1ख़ुदा ने सबसे पहले ज़मीन-ओ-आसमान को पैदा किया।2और ज़मीन वीरान और सुनसान थी और गहराओ के ऊपर अँधेरा था: और ख़ुदा की रूह पानी की सतह पर जुम्बिश करती थी।3और ख़ुदा ने कहा कि रोशनी हो जा, और रोशनी हो गई।4और ख़ुदा ने देखा कि रोशनी अच्छी है, और ख़ुदा ने रोशनी को अँधेरे से जुदा किया।5और ख़ुदा ने रोशनी को तो दिन कहा और अँधेरे को रात। और शाम हुई और सुबह हुई- तब पहला दिन हुआ।6और ख़ुदा ने कहा कि पानियों के बीच फ़ज़ा हो ताकि पानी, पानी से जुदा हो जाए।7फिर ख़ुदा ने फ़ज़ा को बनाया और फ़ज़ा के नीचे के पानी को फ़ज़ा के ऊपर के पानी से जुदा किया; और ऐसा ही हुआ।8और ख़ुदा ने फ़ज़ा को आसमान कहा। और शाम हुई और सुबह हुई - तब दूसरा दिन हुआ।9और ख़ुदा ने कहा कि आसमान के नीचे का पानी एक जगह जमा' हो कि ख़ुश्की नज़र आए, और ऐसा ही हुआ।10और ख़ुदा ने ख़ुश्की को ज़मीन कहा और जो पानी जमा' हो गया था उसको समुन्दर; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।11और ख़ुदा ने कहा कि ज़मीन घास और बीजदार बूटियों को, और फलदार दरख़्तों को जो अपनी-अपनी क़िस्म के मुताबिक़ फलें और जो ज़मीन पर अपने आप ही में बीज रख्खें उगाए और ऐसा ही हुआ।12तब ज़मीन ने घास, और बूटियों को, जो अपनी-अपनी क़िस्म के मुताबिक़ बीज रख्खें और फलदार दरख़्तों को जिनके बीज उन की क़िस्म के मुताबिक़ उनमें हैं उगाया; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।13और शाम हुई और सुबह हुई-तब तीसरा दिन हुआ।14और ख़ुदा ने कहा कि फ़लक पर सितारे हों कि दिन को रात से अलग करें; और वह निशानों और ज़मानो और दिनों और बरसों के फ़र्क़ के लिए हों |15और वह फ़लक पर रोशनी के लिए हों कि ज़मीन पर रोशनी डालें, और ऐसा ही हुआ।16फिर ख़ुदा ने दो बड़े चमकदार सितारे बनाए ; एक बड़ा चमकदार सितारा, कि दिन पर हुक्म करे और एक छोटा चमकदार सितारा कि रात पर हुक्म करे और उसने सितारों को भी बनाया।17और ख़ुदा ने उनको फ़लक पर रख्खा कि ज़मीन पर रोशनी डालें,18और दिन पर और रात पर हुक्म करें, और उजाले को अन्धेरे से जुदा करें ; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।19और शाम हुई और सुबह हुई - तब चौथा दिन हुआ।20और ख़ुदा ने कहा कि पानी जानदारों को कसरत से पैदा करे, और परिन्दे ज़मीन के ऊपर फ़ज़ा में उड़ें।21और ख़ुदा ने बड़े बड़े दरियाई जानवरों को, और हर क़िस्म के जानदार को जो पानी से बकसरत पैदा हुए थे, उनकी क़िस्म के मुताबिक़ और हर क़िस्म के परिन्दों को उनकी क़िस्म के मुताबिक़, पैदा किया; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।22और ख़ुदा ने उनको यह~कह कर बरकत दी कि फलो और बढ़ो और इन समुन्दरों के पानी को भर दो, और परिन्दे ज़मीन पर बहुत बढ़ जाएँ।23और शाम हुई और सुबह हुई - तब पाँचवाँ दिन हुआ।24और ख़ुदा ने कहा कि ज़मीन जानदारों ~को, उनकी क़िस्म ~के मुताबिक़, चौपाये और रेंगनेवाले जानदार और जंगली जानवर उनकी क़िस्म के मुताबिक़ पैदा करे, और ऐसा ही हुआ।25और ख़ुदा ने जंगली जानवरों और चौपायों को उनकी क़िस्म ~के मुताबिक़ और ज़मीन के रेंगने वाले जानदारों को उनकी क़िस्म के मुताबिक़ बनाया; और ख़ुदा ने देखा कि अच्छा है।26फिर ख़ुदा ने कहा कि हम इन्सान को अपनी सूरत पर अपनी शबीह की तरह बनाएँ और वह समुन्दर की मछलियों और आसमान के परिन्दों और चौपायों, और तमाम ज़मीन और सब जानदारों पर जो ज़मीन पर रेंगते हैं इख़्तियार रख्खें।27और ख़ुदा ने इन्सान को अपनी सूरत पर पैदा किया ख़ुदा की सूरत पर उसको पैदा किया - नर-ओ-नारी उनको पैदा किया।28और ख़ुदा ने उनको बरकत दी और कहा कि फलो और बढ़ो और ज़मीन को भर दो और हुकूमत करो और समुन्दर की मछलियों और हवा के परिन्दों और कुल जानवरों पर जो ज़मीन पर चलते हैं इख़ितयार रख्खो।29और ख़ुदा ने कहा कि देखो, मैं तमाम रू-ए-ज़मीन की कुल बीजदार सब्ज़ी और हर दरख़्त जिसमें उसका बीजदार फल हो, तुम को देता हूँ; यह तुम्हारे खाने को हों।30और ज़मीन के कुल जानवरों के लिए, और हवा के कुल परिन्दों के लिए और उन सब के लिए जो ज़मीन पर रेंगने वाले हैं जिनमें ज़िन्दगी का दम है, कुल हरी बूटियाँ खाने को देता हूँ, और ऐसा ही हुआ।31और ख़ुदा ने सब पर जो उसने बनाया था नज़र की, और देखा कि बहुत अच्छा है। और शाम हुई और सुबह हुई - तब छठा दिन हुआ।
1तब आसमान और ज़मीन और उनके कुल लश्कर का बनाना ख़त्म हुआ।2और ख़ुदा ने अपने काम को, जिसे वह करता था सातवें दिन ख़त्म किया, और अपने सारे काम से जिसे वह कर रहा था, सातवें दिन फ़ारिग़ हुआ।3और ख़ुदा ने सातवें दिन को बरकत दी, और उसे मुक़द्दस ठहराया; क्यूँकि उसमें ख़ुदा सारी कायनात से जिसे उसने पैदा किया और बनाया फ़ारिग़ हुआ।4यह है आसमान और ज़मीन की पैदाइश, जब वह पैदा हुए जिस दिन ख़ुदावन्द ख़ुदा ने ज़मीन और आसमान को बनाया;5और ज़मीन पर अब तक खेत का कोई पौधा न था और न मैदान की कोई सब्ज़ी अब तक उगी थी, क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा ने ज़मीन पर पानी नहीं बरसाया था, और न ज़मीन जोतने को कोई इन्सान था।6बल्कि ज़मीन से कुहर उठती थी, और तमाम रू-ए-ज़मीन को सेराब करती थी।7और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने ज़मीन की मिट्टी से इन्सान को बनाया और उसके नथनों में ज़िन्दगी का दम फूंका इन्सान जीती जान हुआ।8और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मशरिक़ की तरफ़ 'अदन में एक बाग़ लगाया और इन्सान को जिसे उसने बनाया था वहाँ रख्खा।9और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने हर दरख़्त को जो देखने में ख़ुशनुमा और खाने के लिए अच्छा था ज़मीन से उगाया और बाग़ के बीच में ज़िन्दगी का दरख़्त और भले और बुरे की पहचान का दरख़्त भी लगाया।10और 'अदन से एक दरिया बाग़ के सेराब करने को निकला और वहाँ से चार नदियों में तक़सीम हुआ।11पहली का नाम फ़ैसून है जो हवीला की सारी ज़मीन को जहाँ सोना होता है घेरे हुए है।12और इस ज़मीन का सोना चोखा है। और वहाँ मोती और संग-ए-सुलेमानी भी हैं।13और दूसरी नदी का नाम जैहून है, जो कूश की सारी ज़मीन को घेरे हुए है।14और तीसरी नदी का नाम दिजला है जो असूर के मशरिक़ को जाती है। और चौथी नदी का नाम फ़ुरात है।15और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने 'आदम को लेकर बाग़-ए-'अदन में रख्खा के उसकी बाग़वानी और निगहबानी करे।16और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम को हुक्म दिया और कहा कि तू बाग़ के हर दरख़्त का फल बे रोक टोक खा सकता है।17लेकिन भले और बुरे ~की पहचान के दरख़्त का कभी न खाना क्यूँकि जिस रोज़ तूने उसमें से खायेगा तू मर जायेगा।18और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कहा कि आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं मैं उसके लिए एक मददगार उसकी तरह बनाऊँगा।"19और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने सब जंगली ~जानवर और हवा के सब परिन्दे मिट्टी से बनाए और उनको आदम के पास लाया कि देखे कि वह उनके क्या नाम रखता है और आदम ने जिस जानवर को जो कहा वही उसका नाम ठहरा।20और आदम ने सब ~चौपायों और हवा के परिन्दों और सब जंगली ~जानवरों के नाम रख्खे लेकिन आदम के लिए कोई मददगार उसकी तरह न मिला।21और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम पर गहरी नींद भेजी और वह सो गया और उसने उसकी पसलियों में से एक को निकाल लिया और उसकी जगह गोश्त भर दिया।22और ख़ुदावन्द ख़ुदा उस पसली से जो उसने आदम में से निकाली थी एक 'औरत बना कर उसे आदम के पास लाया।23और आदम ने कहा कि यह तो अब मेरी हड्डियों में से हड्डी, और मेरे गोश्त में से गोश्त है; इसलिए वह 'औरत कहलाएगी क्यूँकि वह मर्द से निकाली गई |24इसलिए आदमी अपने माँ बाप को छोड़ेगा और अपनी बीवी से मिला रहेगा और वह एक तन होंगे।25और आदम और उसकी बीवी दोनों नंगे थे और शरमाते न थे।
1और साँप सब जंगली जानवरों से, जिनको ख़ुदावन्द ख़ुदा ने बनाया था चालाक था, और उसने 'औरत से कहा क्या वाक़'ई ख़ुदा ने कहा है, कि बाग़ के किसी दरख़्त का फल तुम न खाना?2'औरत ने साँप से कहा कि बाग़ के दरख़्तों का फल तो हम खाते हैं|3लेकिन जो दरख़्त बाग़ के बीच में है उसके फल के बारे में ~ख़ुदा ने कहा है कि तुम न तो उसे खाना और न छूना वरना मर जाओगे।4तब साँप ने 'औरत से कहा कि तुम हरगिज़ न मरोगे!5बल्कि ख़ुदा जानता है कि जिस दिन तुम उसे खाओगे, तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम ख़ुदा की तरह भले और बुरे के जानने वाले बन जाओगे।6'औरत ने जो देखा कि वह दरख़्त खाने के लिए अच्छा और आँखों को ख़ुशनुमा मा'लूम होता है और अक्ल बख़्शने के लिए ख़ूब है तो उसके फल में से लिया और खाया और अपने शौहर को भी दिया और उसने खाया।7तब दोनों की आँखें खुल गई और उनको मा'लूम हुआ कि वह नंगे हैं और उन्होंने अन्जीर के पत्तों को सी कर अपने लिए लूंगियाँ बनाई।8और उन्होंने ख़ुदावन्द ख़ुदा की आवाज़ जो ठंडे वक़्त बाग़ में फिरता था सुनी और आदम और उसकी बीवी ने अपने आप को ख़ुदावन्द ख़ुदा के सामने से बाग़ के दरख़तों में छिपाया।9तब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम को पुकारा और उससे कहा कि तू कहाँ है?|10उसने कहा, "मैंने बाग़ में तेरी आवाज़ सुनी और मैं डरा क्यूँकि मैं नंगा था और मैंने अपने आप को छिपाया।"11उसने कहा, "तुझे किसने बताया कि तू नंगा है? क्या तूने उस दरख़्त का फल खाया जिसके बारे में ~मैंने तुझ को हुक्म दिया था कि उसे न खाना?"12आदम ने कहा कि जिस 'औरत को तूने मेरे साथ किया है उसने मुझे उस दरख़्त का फल दिया और मैंने खाया।13तब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने, 'औरत से कहा कि तूने यह क्या किया? 'औरत ने कहा कि साँप ने मुझ को बहकाया तो मैंने खाया।14और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने साँप से कहा, इसलिए कि तूने यह किया तू सब चौपायों और जंगली जानवरों में ला'नती ठहरा; तू अपने पेट के बल चलेगा, और अपनी 'उम्र भर खाक चाटेगा।15और मैं तेरे और 'औरत के बीच और तेरी नसल और औरत की नसल के बीच 'अदावत डालूँगा वह तेरे सिर को कुचलेगा और तू उसकी एड़ी पर काटेगा।16फिर उसने 'औरत से कहा कि मैं तेरे दर्द-ए-हम्ल को बहुत बढ़ाऊँगा तू दर्द के साथ बच्चे जनेगी और तेरी रग़बत अपने शौहर की तरफ़ होगी और वह तुझ पर हुकूमत करेगा।"17और आदम से उसने कहा चूँकि तूने अपनी बीवी की बात मानी और उस दरख़्त का फल खाया जिस के बारे ~मैंने तुझे हुक्म दिया था कि उसे न खाना इसलिए ज़मीन तेरी वजह से ला'नती हुई। मशक़्क़त के साथ तू अपनी 'उम्र भर उसकी पैदावार खाएगा18और वह तेरे लिए काँटे और ऊँटकटारे उगाएगी और तू खेत की सब्ज़ी खाएगा |19तू अपने मुँह के पसीने की रोटी खाएगा जब तक कि ज़मीन में तू फिर लौट न जाए इसलिए कि तू उससे निकाला गया है क्यूँकि तू ख़ाक है और ख़ाक में फिर लौट जाएगा।20और आदम ने अपनी बीवी का नाम हव्वा रख्खा, इसलिए कि वह सब ज़िन्दों की माँ है।21और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आदम और उसकी बीवी के लिए चमड़े के कुर्तें बना कर उनको पहनाए।22और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कहा, "देखो इंसान भले और बुरे की पहचान में हम में से एक की तरह हो गया: अब कहीं ऐसा न हो कि वह अपना हाथ बढ़ाए और ज़िन्दगी के दरख़्त से भी कुछ लेकर खाए और हमेशा ज़िन्दा रहे।"23इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा ने उसको बाग-ए-'अदन से बाहर कर दिया, ताकि वह उस ज़मीन की जिसमें से वह लिया गया था, खेती करे।24चुनाँचे उसने आदम को निकाल दिया और बाग-ए-'अदन के मशरिक़ की तरफ़ करूबियों को और चारों तरफ़ घूमने वाली शो'लाज़न तलवार को रख्खा, कि वह ज़िन्दगी के दरख़्त की राह की हिफ़ाज़त करें।
1और आदम अपनी बीवी हव्वा के पास गया, और वह हामिला हुई और उसके क़ाइन पैदा हुआ। तब उसने कहा, "मुझे ख़ुदावन्द से एक फ़र्ज़न्द मिला।”2फिर क़ाइन का भाई हाबिल पैदा हुआ; और हाबिल भेड़ बकरियों का चरवाहा और क़ाइन किसान था।3कुछ दिन ~के बा'द ऐसा हुआ कि क़ाइन अपने खेत के फल का हदिया ख़ुदावन्द के लिए लाया।4और हाबिल भी अपनी भेड़ बकरियों के कुछ पहलौठे बच्चों का और कुछ उनकी चर्बी का हदिया लाया। और ख़ुदावन्द ने हाबिल को और उसके हदिये को क़ुबूल किया,5लेकिन क़ाइन को और उसके हदिये को क़ुबूल न किया। इसलिए क़ाइन बहुत ग़ुस्सा हुआ और उसका मुँह बिगड़ा।6और ख़ुदावन्द ने क़ाइन से कहा, "तू क्यूँ ग़ुस्सा हुआ? और तेरा मुँह क्यूँ बिगड़ा हुआ है?7अगर तू भला करे तो क्या तू मक़्बूल न होगा? और अगर तू भला न करे तो गुनाह दरवाज़े पर दुबका बैठा है और तेरा मुश्ताक़ है, लेकिन तू उस पर ग़ालिब आ।"8और क़ाइन ने अपने भाई हाबिल को कुछ कहा और जब वह दोनों खेत में थे तो ऐसा हुआ कि क़ाइन ने अपने भाई हाबिल पर हमला किया और उसे क़त्ल कर डाला।9तब ख़ुदावन्द ने क़ाइन से कहा कि तेरा भाई हाबिल कहाँ है?" उसने कहा, "मुझे मा'लूम नहीं; क्या मैं अपने भाई का मुहाफ़िज़ हूँ?"10फिर उसने कहा कि तूने यह क्या किया? तेरे भाई का ख़ून ज़मीन से मुझ को पुकारता है।11और अब तू ज़मीन की तरफ़ से ला'नती हुआ, जिसने अपना मुँह पसारा कि तेरे हाथ से तेरे भाई का ख़ून ले।12जब तू ज़मीन को जोतेगा, तो वह अब तुझे अपनी पैदावार न देगी और ज़मीन पर तू ख़ानाख़राब और आवारा होगा।13तब क़ाइन ने ख़ुदावन्द से कहा कि मेरी सज़ा बर्दाश्त से बाहर है।14देख, आज तूने मुझे रू-ए-ज़मीन से निकाल दिया है, और मैं तेरे सामने से ग़ायब हो जाऊँगा; और ज़मीन पर खानाख़राब और आवारा रहूँगा, और ऐसा होगा कि जो कोई मुझे पाएगा क़त्ल कर डालेगा।15तब ख़ुदावन्द ने उसे कहा, "नहीं, बल्कि जो क़ाइन को क़त्ल करे उससे सात गुना बदला लिया जाएगा।" और ख़ुदावन्द ने क़ाइन के लिए एक निशान ठहराया कि कोई उसे पा कर मार न डाले।16इसलिए, क़ाइन ख़ुदावन्द के सामने से निकल गया और 'अदन के मशरिक़ की तरफ़ नूद के इलाक़े में जा बसा।17और क़ाइन अपनी बीवी के पास गया और वह हामिला हुई और उसके हनूक पैदा हुआ; और उसने एक शहर बसाया और उसका नाम अपने बेटे के नाम पर हनूक रख्खा।18और हनूक से 'ईराद पैदा हुआ, और 'ईराद से महुयाएल पैदा हुआ, और महुयाएल से मतूसाएल पैदा हुआ, और मत्तूसाएल से लमक पैदा हुआ।19और लमक दो 'औरतें ब्याह लाया : एक का नाम 'अदा और दूसरी का नाम ज़िल्ला था।20और 'अदा के याबल पैदा हुआ : वह उनका बाप था जो ख़ेमों में रहते और जानवर पालते हैं।21और उसके भाई का नाम यूबल था : वह बीन और बांसली बजाने वालों का बाप था।22और ज़िल्ला के भी तूबलक़ाइन पैदा हुआ : जो पीतल और लोहे के सब तेज़ हथियारों का बनाने वाला था; और ना'मा तूबलक़ाइन की बहन थी।23और लमक ने अपनी बीवियों से कहा कि ऐ 'अदा और ज़िल्ला मेरी बात सुनो; ऐ लमक की बीवियो, मेरी बात पर कान लगाओ : मैंने एक आदमी को जिसने मुझे ज़ख़्मी किया, मार डाला । और एक जवान को जिसने मेरे चोट लगाई, क़त्ल कर डाला।24अगर क़ाइन का बदला सात गुना लिया जाएगा, तो लमक का सत्तर और सात गुना।25और आदम फिर अपनी बीवी के पास गया और उसके एक और बेटा हुआ और उसका नाम सेत रख्खा : और वह कहने लगी कि ख़ुदा ने हाबिल के बदले जिसको क़ाइन ने क़त्ल किया, मुझे दूसरा फ़र्ज़न्द दिया।26और सेत के यहाँ भी एक बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम उसने अनूस रख्खा; उस वक़्त से लोग यहोवा का नाम लेकर दु'आ करने लगे।
1यह आदम का नसबनामा है। जिस दिन ख़ुदा ने आदम को पैदा किया; तो उसे अपनी शबीह पर बनाया।2मर्द और 'औरत उनको पैदा किया और उनको बरकत दी, और जिस दिन वह पैदा हुए उनका नाम आदम रख्खा।3और आदम एक सौ तीस साल का था जब उसकी सूरत-ओ-शबीह का एक बेटा उसके यहाँ पैदा हुआ; और उसने उसका नाम सेत रख्खा।4और सेत की पैदाइश के बा'द आदम आठ सौ साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।5और आदम की कुल 'उम्र नौ सौ तीस साल की हुई, तब वह मरा।6और सेत एक सौ पाँच साल का था जब उससे अनूस पैदा हुआ।7और अनूस की पैदाइश के बा'द सेत आठ सौ सात साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।8और सेत की कुल 'उम्र नौ सौ बारह साल की हुई, तब वह मरा।9और अनूस नव्वे साल का था जब उससे क़ीनान पैदा हुआ।10और क़ीनान की पैदाइश के बा'द अनूस आठ सौ पन्द्रह साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।11और अनूस की कुल 'उम्र नौ सौ पाँच साल की हुई, तब वह मरा।12और क़ीनान सत्तर साल का था जब उससे महललेल पैदा हुआ।13और महललेल की पैदाइश के बा'द क़ीनान आठ सौ चालीस साल ज़िन्दा रहाऔर उससे बेटे और बेटियाँ ~पैदा हुई।14और क़ीनान की कुल 'उम्र नौ सौ दस साल की हुई, तब वह मरा।15और महललेल पैंसठ साल का था जब उससे यारिद पैदा हुआ।16और यारिद की पैदाइश के बा'द महललेल आठ सौ तीस साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।17और महललेल की कुल 'उम्र आठ सौ पचानवे साल की हुई, तब वह मरा।18और यारिद एक सौ बासठ साल का था जब उससे हनूक पैदा हुआ।19और हनूक की पैदाइश के बा'द यारिद आठ सौ साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।20और यारिद की कुल 'उम्र नौ सौ बासठ साल की हुई, तब वह मरा।21और हनूक पैंसठ साल का था उससे मतुसिलह पैदा हुआ।22और मतूसिलह की पैदाइश के बा'द हनूक तीन सौ साल तक ख़ुदा के साथ-साथ चलता रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।23और हनूक की कुल 'उम्र तीन सौ पैंसठ साल की हुई।24और हनूक ख़ुदा के साथ-साथ चलता रहा, और वह ग़ायब हो गया क्यूँकि ख़ुदा ने उसे उठा लिया।25और मतूसिलह एक सौ सतासी साल का था जब उससे लमक पैदा हुआ।26और लमक की पैदाइश के बा'द मतूसिलह सात सौ बयासी साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।27और मतूसिलह की कुल 'उम्र नौ सौ उनहत्तर साल की हुई, तब वह मरा।28और लमक एक सौ बयासी साल का था जब उससे एक बेटा पैदा हुआ।29और उसने उसका नाम नूह रख्खा और कहा, कि यह हमारे हाथों की मेहनत और मशक़्क़त से जो ज़मीन की वजह से है जिस पर ख़ुदा ने ला'नत की है, हमें आराम देगा।30और नूह की पैदाइश के बा'द लमक पाँच सौ पंचानवे साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।31और ~लमक की कुल 'उम्र सात सौ सत्तर साल की हुई, तब वह मरा ।32और नूह पाँच सौ साल का था, जब उससे सिम, हाम और याफ़त, पैदा हुए।
1जब रु-ए-ज़मीन पर आदमी बहुत बढ़ने लगे और उनके बेटियाँ पैदा हुई।2तो ख़ुदा के बेटों ने आदमी की बेटियों को देखा कि वह ख़ूबसूरत हैं; और जिनको उन्होंने चुना उनसे ब्याह कर लिया।3तब ख़ुदावन्द ने कहा कि मेरी रूह इन्सान के साथ हमेशा मुज़ाहमत न करती रहेगी। क्यूँकि वह भी तो इन्सान है; तो भी उसकी 'उम्र एक सौ बीस साल की होगी।"4उन दिनों में ज़मीन पर जब्बार थे, और बा'द में जब ख़ुदा के बेटे इन्सान की बेटियों के पास गए, तो उनके लिए उनसे औलाद हुई। यही पुराने ~ज़माने के सूर्मा हैं, जो बड़े नामवर हुए हैं।5और ख़ुदावन्द ने देखा कि ज़मीन पर इन्सान की बदी बहुत बढ़ गई, और उसके दिल के तसव्वुर और ख़याल हमेशा बुरे ही होते हैं।6तब ख़ुदावन्द ज़मीन पर इन्सान के पैदा करने से दुखी हुआ और दिल में ग़म किया।7और ख़ुदावन्द ने कहा कि मैं इन्सान को जिसे मैंने पैदा किया, रू-ए-ज़मीन पर से मिटा डालूँगा; इन्सान से लेकर हैवान और रेंगनेवाले जानदार और हवा के परिन्दों तक; क्यूँकि मैं उनके बनाने से दुखी हूँ।"8मगर नूह ख़ुदावन्द की नज़र में मक़्बूल हुआ।9नूह का नसबनामा यह है : नूह मर्द-ए-रास्तबाज़ और अपने ज़माने के लोगों में बे'ऐब था, और नूह ख़ुदा के साथ-साथ चलता रहा।10और उससे तीन बेटे सिम, हाम और याफ़त पैदा हुए।11लेकिन ज़मीन ख़ुदा के आगे नापाक हो गई थी, और वह ज़ुल्म से भरी थी।12और ख़ुदा ने ज़मीन पर नज़र की और देखा, कि वह नापाक हो गई है; क्यूँकि ~हर इन्सान ने ज़मीन पर अपना तरीक़ा बिगाड़ लिया था।13और ख़ुदा ने नूह से कहा कि पूरे इन्सान का ख़ातिमा मेरे सामने आ पहुँचा है; क्यूँकि उनकी वजह से ज़मीन जुल्म से भर गई, इसलिए ~देख, मैं ज़मीन के साथ उनको हलाक करूँगा।14तू गोफर की लकड़ी की एक कश्ती अपने लिए बना; उस कश्ती में कोठरियाँ तैयार करना और उसके अन्दर और बाहर राल लगाना।15~और ऐसा करना कि कश्ती की लम्बाई तीन सौ हाथ, उसकी चौड़ाई पचास हाथ और उसकी ऊँचाई तीस हाथ हो।16और उस कश्ती में एक रौशनदान बनाना, और ऊपर से हाथ भर छोड़ कर उसे ख़त्म कर देना; और उस कश्ती का दरवाज़ा उसके पहलू में रखना; और उसमें तीन हिस्से बनाना निचला, दूसरा और तीसरा।17और देख, मैं ख़ुद ज़मीन पर पानी का तूफ़ान लानेवाला हूँ, ताकि हर इन्सान को जिसमें जिन्दगी की साँस है, दुनिया से हलाक कर डालूँ, और सब जो ज़मीन पर हैं मर जाएँगे।18लेकिन तेरे साथ मैं अपना 'अहद क़ायम करूँगा; और तू कश्ती में जाना-तू और तेरे साथ तेरे बेटे और तेरी बीवी और तेरे बेटों की बीवियाँ।19और जानवरों की हर क़िस्म ~में से दो-दो अपने साथ कश्ती में ले लेना, कि वह तेरे साथ जीते बचें, वह नर-ओ-मादा हों।20और परिन्दों की हर क़िस्म में से, और चरिन्दों की हर क़िस्म में से, और ज़मीन पर रेंगने वालों की हर क़िस्म में से दो दो तेरे पास आएँ, ताकि वह जीते बचें।21और तू हर तरह की खाने की चीज़ लेकर अपने पास जमा' कर लेना, क्यूँकि यही तेरे और उनके खाने को होगा।22और नूह ने ऐसा ही किया; जैसा ख़ुदा ने उसे हुक्म दिया था, वैसा ही 'अमल किया।
1~और ख़ुदावन्द ने नूह से कहा कि तू अपने पूरे ख़ान्दान के साथ कश्ती में आ; क्यूँकि मैंने तुझी को अपने सामने इस ज़माना में रास्तबाज़ देखा है।2सब पाक जानवरों में से सात-सात, नर और उनकी मादा; और उनमें से जो पाक नहीं हैं दो-दो, नर और उनकी मादा अपने साथ ले लेना।3और हवा के परिन्दों में से भी सात-सात, नर और मादा, लेना ताकि ज़मीन पर उनकी नसल बाक़ी रहे।4क्यूँकि सात दिन के बा'द मैं ज़मीन पर चालीस दिन और चालीस रात पानी बरसाऊंगा, और हर जानदार शय को जिसे मैंने बनाया ज़मीन पर से मिटा डालूँगा।5और नूह ने वह सब जैसा ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया था किया।6और नूह छ: सौ साल का था, जब पानी का तूफ़ान ज़मीन पर आया।7तब नूह और उसके बेटे और उसकी बीवी, और उसके बेटों की बीवियाँ, उसके साथ तूफ़ान के पानी से बचने के लिए कश्ती में गए।8और पाक जानवरों में से और उन जानवरों में से जो पाक नहीं, और परिन्दों में से और ज़मीन पर के हर रेंगनेवाले जानदार में से9दो-दो, नर और मादा, कश्ती में नूह के पास गए, जैसा ख़ुदा ने नूह को हुक्म दिया था।10और सात दिन के बा'द ऐसा हुआ कि तूफ़ान का पानी ज़मीन पर आ गया।11नूह की 'उम्र का छ: सौवां साल था, कि उसके दूसरे महीने के ठीक सत्रहवीं तारीख़ को बड़े समुन्दर के सब सोते फूट निकले और आसमान की खिड़कियाँ खुल गई।12और चालीस दिन और चालीस रात ज़मीन पर बारिश होती रही।13उसी दिन नूह और नूह के बेटे सिम और हाम और याफ़त, और14और हर क़िस्म का जानवर और हर क़िस्म का चौपाया और हर क़िस्म का ज़मीन पर का रेंगने वाला जानदार और हर क़िस्म का परिन्दा और हर क़िस्म की चिड़िया, यह सब कश्ती में दाख़िल हुए।15और जो ज़िन्दगी का दम रखते हैं उनमें से दो-दो कश्ती में नूह के पास आए।16और जो अन्दर आए वो, जैसा ख़ुदा ने उसे हुक्म दिया था, सब जानवरों के नर-ओ-मादा थे। तब ख़ुदावन्द ने उसको बाहर से बन्द कर दिया।17और चालीस दिन तक ज़मीन पर तूफ़ान रहा, और पानी बढ़ा और उसने कश्ती को ऊपर उठा दिया; तब कश्ती ज़मीन पर से उठ गई।18और पानी ज़मीन पर चढ़ता ही गया और बहुत बढ़ा और कश्ती पानी के ऊपर तैरती रही।19और पानी ज़मीन पर बहुत ही ज़्यादा चढ़ा और सब ऊँचे पहाड़ जो दुनिया में हैं छिप गए।20पानी उनसे पंद्रह हाथ और ऊपर चढ़ा और पहाड़ डूब गए।21और सब जानवर जो ज़मीन पर चलते थे, परिन्दें और चौपाए और जंगली जानवर और ज़मीन पर के सब रेंगनेवाले जानदार, और सब आदमी मर गए।22और ख़ुश्की के सब जानदार जिनके नथनों में ज़िन्दगी का दम था मर गए।23बल्कि हर जानदार शय जो इस ज़मीन पर थी मर मिटी - क्या इन्सान क्या हैवान क्या रेंगने वाले जानदार क्या हवा ~का परिन्दा, यह सब के सब ज़मीन पर से मर मिटे। सिर्फ़ एक नूह बाक़ी बचा, या वह जो उसके साथ कश्ती में थे।24और पानी ज़मीन पर एक सौ पचास दिन तक बढ़ता रहा।
1~फिर ख़ुदा ने नूह को और सब जानदार और सब चौपायों को जो उसके साथ कश्ती में थे याद किया; और ख़ुदा ने ज़मीन पर एक हवा चलाई और पानी रुक गया।2और समुन्दर के सोते और आसमान के दरीचे बन्द किए गए, और आसमान से जो बारिश हो रही थी थम गई;|3और पानी ज़मीन पर से घटते-घटते एक सौ पचास दिन के बा'द कम हुआ।4और सातवें महीने की सत्रहवीं तारीख़ को कश्ती अरारात के पहाड़ों पर टिक गई।5और पानी दसवें महीने तक बराबर घटता रहा, और दसवें महीने की पहली तारीख़ को पहाड़ों की चोटियाँ नज़र आई।6और चालीस दिन के बा'द ऐसा हुआ, कि नूह ने कश्ती की खिड़की जो उसने बनाई थी खोली, |7और उसने एक कौवे को उड़ा दिया; इसलिए वह निकला और जब तक कि ज़मीन पर से पानी सूख न गया इधर उधर फिरता रहा।8फिर उसने एक कबूतरी अपने पास से उड़ा दी, ताकि देखे, कि ज़मीन पर पानी घटा या नहीं।9लेकिन कबूतरी ने पंजा टेकने की जगह न पाई और उसके पास कश्ती को लौट आई, क्यूँकि तमाम रू-ए-ज़मीन पर पानी था। तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे ले लिया और अपने पास कश्ती में रख्खा।10और सात दिन ठहर कर उसने उस कबूतरी को फिर कश्ती से उड़ा दिया ;|11और वह कबूतरी शाम के वक़्त उसके पास लौट आई, और देखा तो जैतून की एक ताज़ा पत्ती उसकी चोंच में थी। तब नूह ने मा'लूम किया कि पानी ज़मीन पर से कम हो गया।12तब वह सात दिन और ठहरा, इसके बा'द फिर उस कबूतरी को उड़ाया, लेकिन वह उसके पास फिर कभी न लौटी।13और छ: सौ पहले साल के पहले महीने की पहली तारीख़ को ऐसा हुआ, कि ज़मीन पर से पानी सूख गया; और नूह ने कश्ती की छत खोली और देखा कि ज़मीन की सतह सूख गई है।14और दूसरे महीने की सताईस्वीं तारीख़ को ज़मीन बिल्कुल सूख गई।15तब ख़ुदा ने नूह से कहा कि16"कश्ती से बाहर निकल आ; तू और तेरे साथ तेरी बीवी और तेरे बेटे और तेरे बेटों की बीवियाँ।17और उन जानदारों को भी बाहर निकाल ला जो तेरे साथ हैं : क्या परिन्दे, क्या चौपाये, क्या ज़मीन के रेंगनेवाले जानदार; ताकि वह ज़मीन पर कसरत से बच्चे दें और फल दायक हों और ज़मीन पर बढ़ जाएँ।"18तब नूह अपनी बीवी और अपने बेटों और अपने बेटों की बीवियों के साथ बाहर निकला।19और सब जानवर, सब रेंगनेवाले जानदार, सब परिन्दे और सब जो ज़मीन पर चलते हैं, अपनीअपनी क़िस्म ~के साथ कश्ती से निकल गए।20तब नूह ने ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बनाया; और सब पाक चौपायों और पाक परिन्दों में से थोड़े से लेकर उस मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं।21और ख़ुदावन्द ने उसकी राहत अंगेज़ ख़ुशबू ली, और ख़ुदावन्द ने अपने दिल में कहा कि इन्सान की वजह से मैं फिर कभी ज़मीन पर ला'नत नहीं भेजूँगा, क्यूँकि इन्सान के दिल का ख़्याल लड़कपन से बुरा है; और न फिर सब जानदारों को जैसा अब किया है, मारूँगा।22बल्कि जब तक ज़मीन क़ायम है बीज बोना और फ़सल कटना, सर्दी और तपिश, गर्मी और जाड़ा और रात ख़त्म न ~होंगे।
1और ख़ुदा ने नूह और उसके बेटों को बरकत दी और उनको कहा कि फ़ायदेमन्द हो और बढ़ो और ज़मीन को भर दो।2और ज़मीन के सब ~जानदारों और हवा के सब परिन्दों पर तुम्हारी दहशत और तुम्हारा रौब होगा;| यह और तमाम कीड़े जिन से ज़मीन भरी पड़ी है, और समुन्दर की कुल मछलियाँ तुम्हारे क़ब्ज़े में की गई ।3हर चलता फिरता जानदार तुम्हारे खाने को होगा; हरी सब्ज़ी की तरह मैंने सबका सब तुम को दे दिया4मगर तुम गोश्त के साथ खू़न को, जो उसकी जान है न खाना।5मैं तुम्हारे खू़न का बदला ज़रूर लुँगा, हर जानवर से उसका बदला लूँगा; आदमी की जान का बदला आदमी से और उसके भाई बन्द से लुँगा ।6जो आदमी का खू़न करे उसका खू़न आदमी से होगा, क्यूँकि ख़ुदा ने इन्सान को अपनी सूरत पर बनाया है |7और तुम फल दायक हो और बढ़ो और ज़मीन पर खू़ब अपनी नसल बढ़ाओ, और बहुत ज़्यादा हो जाओ।”8और ख़ुदा ने नूह और उसके बेटों से कहा,9"देखो, मैं खुद तुमसे और तुम्हारे बा'द तुम्हारी नसल से,10और सब जानदारों से जो तुम्हारे साथ हैं, क्या परिन्दे क्या चौपाए क्या ज़मीन के जानवर, या'नी ज़मीन के उन सब जानवरों के बारे में जो कश्ती से उतरे, 'अहद करता हूँ11मैं इस 'अहद को तुम्हारे साथ क़ायम रखूँगा कि सब जानदार तूफ़ान के पानी से फिर हलाक न होंगे, और न कभी ज़मीन को तबाह करने के लिए फिर तूफ़ान आएगा12~और ख़ुदा ने कहा कि जो अहद मैंने अपने और तुम्हारे बीच और सब जानदारों के बीच जो तुम्हारे साथ हैं, नसल -दर-नसल हमेशा के लिए करता हूँ, उसका निशान यह है, कि|13मैं अपनी कमान को बादल में रखता हूँ, वह मेरे और ज़मीन के बीच 'अहद का निशान होगी14और ऐसा होगा कि जब मैं ज़मीन पर बादल लाऊँगा, तो मेरी कमान बादल में दिखाई देगी।15और मैं अपने 'अहद को, जो मेरे और तुम्हारे और हर तरह के जानदार के बीच है, याद करूँगा; और तमाम जानदारों की हलाकत के लिए पानी का तूफ़ान फिर न होगा।16और कमान बादल में होगी और मैं उस पर निगाह करूँगा, ताकि उस अबदी 'अहद को याद करूँ जो ख़ुदा के और ज़मीन के सब तरह के जानदार के बीच है।"17तब ख़ुदा ने नूह से कहा कि यह उस 'अहद का निशान है जो मैं अपने और ज़मीन के कुल जानदारों के बीच क़ायम करता हूँ।18नूह के बेटे जो कश्ती से निकले, सिम, हाम और याफ़त थे और हाम कना'न का बाप था ।19~यही तीनों नूह के बेटे थे और इन्हीं की नसल सारी ज़मीन फैली |20और नूह काश्तकारी करने लगा और उसने एक अँगूर का बाग़ लगाया।21और उसने उसकी मय पी और उसे नशा आया और वह अपने डेरे में नंगा हो गया।22और कना'न के बाप हाम ने अपने बाप को नंगा देखा, और अपने दोनों भाइयों को बाहर आ कर ख़बर दी।23तब सिम और याफ़त ने एक कपड़ा लिया और उसे अपने कन्धों पर धरा, और पीछे को उल्टे चल कर गए और अपने बाप की नंगे पन को ~ढाँका, इसलिए उनके मुँह उल्टी तरफ़ थे और उन्होंने अपने बाप की नंगे पन को ~न देखा।24जब नूह अपनी मय के नशे से होश में आया, तो जो उसके छोटे बेटे ने उसके साथ किया था उसे मा'लूम हुआ |25और उसने कहा कि कना'न मल'ऊन हो, वह अपने भाइयों के गु़लामों का ग़ुलाम होगा26फिर कहा, "ख़ुदावन्द सिम का ख़ुदा मुबारक हो, और कना'न सिम का ग़ुलाम हो।27ख़ुदा याफ़त को फैलाए, कि वह सिम के डेरों में बसे, और कना'न उसका गु़लाम"28और तूफ़ान के बा'द नूह साढ़े तीन सौ साल और ज़िन्दा रहा।29और नूह की कुल 'उम्र साढ़े नौ सौ साल की हुई। तब उसने वफ़ात पाई।
1नूह के बेटों सिम, हाम और याफ़त की औलाद यह हैं। तूफान के बा'द उनके यहाँ बेटे पैदा हुए।2बनी याफ़त यह हैं : जुमर और माजूज और मादी, और यावान और तूबल और मसक और तीरास।3और जुमर के बेटे: अशकनाज़ और रीफ़त और तुजरमा।4और यावान के बेटे: इलीसा और तरसीस, किती और दोदानी।5क़ौमों के जज़ीरे इन्हीं की नसल में बट कर, हर एक की ज़बान और क़बीले के मुताबिक़ मुख़तलिफ़ मुल्क और गिरोह हो गए।6और बनी हाम यह हैं : कूश और मिस्र और फ़ूत और कना'न।7और बनी कूश यह हैं | सबा और हवीला और सबता और रा'मा और सब्तीका। और बनी रा'मा यह हैं : सबा और ददान।8और कूश से नमरूद पैदा हुआ| वह रू-ए-ज़मीन पर एक सूर्मा हुआ है।9ख़ुदावन्द के सामने वह एक शिकारी सूर्मा हुआ है, इसलिए यह मसल चली कि ख़ुदावन्द के सामने नमरूद सा शिकारी सूर्मा।"10और उस की बादशाही का पहला मुल्क सिन'आर में बाबुल और अरक और अक्काद और कलना से हुई।11उसी मुल्क से निकल कर वह असूर में आया, और नीनवा और रहोबोत 'ईर और कलह को,12और नीनवा और कलह के बीच रसन को, जो बड़ा शहर है बनाया।13और मिस्र से लूदी और 'अनामी और लिहाबी और नफ़तूही14और फ़तरूसी और कसलूही (जिनसे फ़िलिस्ती निकले) और कफ़तूरी पैदा हुए।15और कना'न से सैदा जो उसका पहलौठा था, और हित,16और यबूसी और अमोरी और जिरजासी,17और हव्वी और 'अरकी और सीनी,18और अरवादी और समारी और हमाती पैदा हुए; और बा'द में कना'नी क़बीले फैल गए।19और कना'नियों की हद यह है : सैदा से ग़ज़्ज़ा तक जो जिरार के रास्ते पर है, फिर वहाँ से लसा' तक जो सदूम और 'अमूरा और अदमा और ज़िबयान की राह पर है।20इसलिए बनी हाम यह हैं, जो अपने-अपने मुल्क और गिरोहों में अपने क़बीलों और अपनी ज़बानों के मुताबिक़ आबा'द हैं।21और सिम के यहाँ भी जो तमाम बनी 'इब्र का बाप और याफ़त का बड़ा भाई था, औलाद हुई।22और बनी सिम यह हैं : 'ऐलाम और असुर और अरफ़कसद और लुद और आराम |23~और बनी आराम यह हैं ;'ऊज़ और हूल और जतर और मस |24और अरफ़कसद से सिलह पैदा हुआ और सिलह से 'इब्र।25और 'इब्र के यहाँ दो बेटे पैदा हुए; एक का नाम फ़लज था क्यूँकि ज़मीन उसके दिनों में बटी, और उसके भाई का नाम युक्तान था।26और युक़्तान से अलमूदाद और सलफ़ और हसारमावत और इराख़ |27और हदूराम और ऊज़ाल और दिक़ला |28और 'ऊबल और अबी माएल और सिबा |29और ओफ़ीर और हवील और यूबाब पैदा हुए; यह सब बनी युक़्तान थे |30और इनकी आबादी मेसा से मशरिक़ के एक पहाड़ सफ़ार की तरफ़ थी।31इसलिए बनी सिम यह हैं, जो अपने-अपने मुल्क और गिरोह में अपने क़बीलों और अपनी ज़बानों के मुताबिक़ आबा'द हैं |32नूह के बेटों के ख़ान्दान उनके गिरोह और नसलों के ऐतबार से यही हैं, और तूफ़ान के बा'द जो क़ौमें ज़मीन पर इधर उधर बट गई वह इन्हीं में से थीं।
1और तमाम ज़मीन पर एक ही ज़बान और एक ही बोली थी।2और ऐसा हुआ कि मशरिक़ की तरफ़ सफ़र करते करते उनको मुल्क-ए-सिन'आर में एक मैदान मिला और वह वहाँ बस गए।3और उन्होंने आपस में कहा, 'आओ, हम ईटें बनाएँ और उनको आग में खू़ब पकाएँ। तब उन्होंने पत्थर की जगह ईट से और चूने की जगह गारे से काम लिया।4फिर वह कहने लगे, कि आओ हम अपने लिए एक शहर और एक बुर्ज जिसकी चोटी आसमान तक पहुँचे बनाए और ~यहाँ अपना नाम करें, ऐसा न हो कि हम तमाम रु-ए-ज़मीन पर बिखर जाएँ | |5और ख़ुदावन्द इस शहर और बुर्ज, को जिसे बनी आदम बनाने लगे देखने को उतरा।6और ख़ुदावन्द ने कहा, "देखो, यह लोग सब एक हैं और इन सभों की एक ही ज़बान है। वह जो यह करने लगे हैं तो अब कुछ भी जिसका वह इरादा करें उनसे बाक़ी न छूटेगा।7इसलिए आओ, हम वहाँ जाकर उनकी ज़बान में इख्तिलाफ़ डालें, ताकि वह एक दूसरे की बात समझ न सकें।"8तब, ख़ुदावन्द ने उनको वहाँ से तमाम रू-ए-ज़मीन में बिखेर दिया; तब वह उस शहर के बनाने से बाज़ आए।9इसलिए उसका नाम बाबुल हुआ क्यूँकि ख़ुदावन्द ने वहाँ सारी ज़मीन की ज़बान में इख्तिलाफ़ डाला और वहाँ से ख़ुदावन्द ने उनको तमाम रू-ए-ज़मीन पर बिखेर ~दिया।10यह सिम का नसबनामा है : सिम एक सौ साल का था जब उससे तूफ़ान के दो साल बा'द अरफ़कसद पैदा हुआ;11और अरफ़कसद की पैदाइश के बा'द सिम पाँच सौ साल ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।12जब अरफ़कसद पैतीस साल का हुआ, तो उससे सिलह पैदा हुआ;13और सिलह की पैदाइश के बा'द अरफ़कसद चार सौ तीन साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।14सिलह जब तीस साल का हुआ, तो उससे 'इब्र पैदा हुआ;15और 'इब्र की पैदाइश के बा'द सिलह चार सौ तीन साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।16जब 'इब्र चौंतीस साल का था. तो उससे फ़लज पैदा हुआ;17और फ़लज की पैदाइश के बा'द इब्र चार सौ तीस साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई |18फ़लज तीस साल का था, जब उससे र'ऊ पैदा हुआ;19और र'ऊ की पैदाइश के बा'द फ़लज दो सौ नौ साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।20और र'ऊ बत्तीस साल का था, जब उससे सरूज पैदा हुआ;21और सरूज की पैदाइश के बा'द र'ऊ दो सौ सात साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई |22और सरूज तीस साल का था, जब उससे नहूर पैदा हुआ |23और नहूर की पैदाइश के बा'द सरूज दो सौ साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुईं |24नहूर उन्तीस साल का था, जब उससे तारह पैदा हुआ |25और तारह की पैदाइश के बा'द नहूर एक सौ उन्नीस साल और ज़िन्दा रहा, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।26और तारह सत्तर साल का था, जब उससे अब्राम और नहूर और हारान पैदा हुए |27और यह तारह का नसबनामा है : तारह से अब्राम और नहूर और हारान पैदा हुए और हारान से लूत पैदा हुआ।28और हारान अपने बाप तारह के आगे अपनी पैदाइशी जगह ~या'नी कसदियों के ऊर में मरा।29और अब्राम और नहूर ने अपना-अपना ब्याह कर लिया। अब्राम की बीवी का नाम सारय ~और नहुर की बीवी का नाम मिल्का था जो हारान की बेटी थी। वही मिल्का का बाप और इस्का का बाप था।30और सारय बाँझ थी; उसके कोई बाल-बच्चा न था।31और तारह ने अपने बेटे अब्राम को और अपने पोते लूत को, जो हारान का बेटा था, और अपनी बहू सारय को जो उसके बेटे अब्राम की बीवी थी, साथ लिया और वह सब कसदियों के ऊर से रवाना हुए की कना'न के मुल्क में जाएँ; और वह हारान तक आए और वहीं रहने लगे।32और तारह की 'उम्र दो सौ पाँच साल की हुई और उस ने हारान में वफ़ात पाई।
1ख़ुदावन्द ने अब्राम से कहा, कि तू अपने वतन और अपने नातेदारों के बीच से और अपने बाप के घर से निकल कर उस मुल्क में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।2और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा और बरकत दूँगा और तेरा नाम सरफ़राज़ करूँगा; इसलिए तू बरकत का ज़रिया' हो।3जो तुझे मुबारक कहें उनको मैं बरकत दूँगा, और जो तुझ पर ला'नत करे उस पर मैं ला'नत करूँगा, और ज़मीन के सब क़बीले तेरे वसीले से बरकत पाएँगे।4तब अब्राम ख़ुदावन्द के कहने के मुताबिक़ चल पड़ा और लूत उसके साथ गया, और अब्राम पच्छत्तर साल का था जब वह हारान से रवाना हुआ।5और अब्राम ने अपनी बीवी सारय, और अपने भतीजे लूत को, और सब माल को जो उन्होंने जमा' किया था, और उन आदमियों को जो उनको हारान में मिल गए थे साथ लिया, और वह मुल्क-ए-कना'न को रवाना हुए और मुल्क-ए-कना'न में आए।6और अब्राम उस मुल्क में से गुज़रता हुआ मक़ाम-ए-सिक्म में मोरा के बलूत तक पहुँचा। उस वक़्त ~मुल्क में कना'नी रहते थे।7तब ख़ुदावन्द ने अब्राम को दिखाई देकर कहा कि यही मुल्क मैं तेरी नसल को दूँगा। और उसने वहाँ ख़ुदावन्द के लिए जो उसे दिखाई दिया था, एक क़ुर्बानगाह बनाई।8और वहाँ से कूच करके उस पहाड़ की तरफ़ गया जो बैत-एल के मशरिक़ में है, और अपना डेरा ऐसे लगाया कि बैत-एल मग़रिब में और 'अई मशरिक़ में पड़ा; और वहाँ उसने ख़ुदावन्द के लिए एक क़ुर्बानगाह बनाई और ख़ुदावन्द से दु'आ की।9और अब्राम सफ़र करता करता दख्खिन की तरफ़ बढ़ गया।10और उस मुल्क में काल पड़ा: और अब्राम मिस्र को गया कि वहाँ टिका रहे; क्यूँकि मुल्क में सख़्त काल था।11और ऐसा हुआ कि जब वह मिस्र में दाख़िल होने को था तो उसने अपनी बीवी सारय से कहा कि देख, मैं जानता हूँ कि तू देखने में ख़ूबसूरत 'औरत है।12और यूँ होगा कि मिस्री तुझे देख कर कहेंगे कि यह उसकी बीवी है, इसलिए वह मुझे तो मार डालेंगे मगर तुझे ज़िन्दा रख लेंगे।13इसलिए तू यह कह देना, कि मैं इसकी बहन हूँ, ताकि तेरी वजह से मेरा भला हो और मेरी जान तेरी बदौलत बची रहे।14और यूँ हुआ कि जब अब्राम मिस्र में आया तो मिस्रियों ने उस 'औरत को देखा कि वह निहायत ख़ूबसूरत है।15और फ़िर'औन के हाकिमों ने उसे देख कर फ़िर'औन के सामने में उसकी ता'रीफ़ की, और वह 'औरत फ़िर'औन के घर में पहुँचाई गई।16और उसने उसकी ख़ातिर अब्राम पर एहसान किया; और भेड़ बकरियाँ और गाय, बैल और गधे और ग़ुलाम और लौंडियाँ और गधियाँ और ऊँट उसके पास हो गए।17लेकिन ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन और उसके ख़ान्दान पर, अब्राम की बीवी सारय की वजह से बड़ी-बड़ी बलाएं नाज़िल कीं।18तब फ़िर'औन ने अब्राम को बुला कर उससे कहा, कि तूने मुझ से यह क्या किया? तूने मुझे क्यूँ न बताया कि यह तेरी बीवी है।19तूने यह क्यूँ कहा कि वह मेरी बहन है? इसी लिए मैंने उसे लिया कि वह मेरी बीवी बने इसलिए देख तेरी बीवी हाज़िर है। उसको ले और चला जा।"20और फ़िर'औन ने उसके हक़ में अपने आदमियों को हिदायत की, और उन्होंने उसे और उसकी बीवी को उसके सब माल के साथ रवाना कर दिया।
1और अब्राम मिस्र से अपनी बीवी और अपने सब माल और लूत को साथ ले कर कना'न के दख्खिन की तरफ़ चला।2और अब्राम के पास चौपाए और सोना चाँदी बकसरत था।3और वह कना'न के दख्खिन से सफ़र करता हुआ बैत-एल में उस जगह पहुँचा जहाँ पहले बैत-एल और 'अई के बीच उसका डेरा था।4या'नी वह मक़ाम जहाँ उसने शुरु' में क़ुर्बानगाह बनाई थी, और वहाँ अब्राम ने ख़ुदावन्द से दु'आ की।5और लूत के पास भी जो अब्राम का हमसफ़र था भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल और डेरे थे।6और उस मुल्क में इतनी गुन्जाइश न थी कि वह इकट्ठे रहें, क्यूँकि उनके पास इतना माल था कि वह इकट्ठे नहीं रह सकते थे।7और अब्राम के चरवाहों और लूत के चरवाहों में झगड़ा हुआ; और कना'नी और फ़रिज़्ज़ी उस वक़्त मुल्क में रहते थे।8तब अब्राम ने लूत से कहा कि मेरे और तेरे बीच और मेरे चरवाहों और तेरे चरवाहों के~बीच झगड़ा न हुआ करे, क्यूँकि~हम भाई हैं।9क्या यह सारा मुल्क तेरे सामने नहीं? इसलिए तू मुझ से अलग हो जा: अगर तू बाएँ जाए तो मैं दहने जाऊँगा, और अगर तू दहने जाए तो मैं बाएँ जाऊँगा।10तब लूत ने आँख उठाकर यरदन की सारी तराई पर जो ज़ुग़र की तरफ़ है नज़र दौड़ाई| क्यूँकि वह इससे पहले कि ख़ुदावन्द ने सदूम और 'अमूरा को तबाह किया, ख़ुदावन्द के बाग़ और मिस्र के मुल्क की तरह खू़ब सेराब थी।11तब लूत ने यरदन की सारी तराई को अपने लिए चुन लिया, और वह मशरिक़ की तरफ़ चला; और वह एक दूसरे से जुदा हो गए।12अब्राम तो मुल्क-ए-कना'न में रहा, और लूत ने तराई के शहरों में सुकूनत इख़्तियार की और सदूम की तरफ़ अपना डेरा लगाया।13और सदूम के लोग ख़ुदावन्द की नज़र में निहायत बदकार और गुनहगार थे।14और लूत के जुदा हो जाने के बा'द ख़ुदावन्द ने अब्राम से कह कि अपनी आँख उठा और जिस जगह तू है वहाँ से शिमाल दख्खिन और मशरिक़ और मग़रिब की ~तरफ़ नज़र दौड़ा।15क्यूँकि यह तमाम मुल्क जो तू देख रहा है, मैं तुझ को और तेरी नसल को हमेशा के लिए दूँगा।16और मैं तेरी नसल को ख़ाक के ज़र्रों की तरह बनाऊँगा, ऐसा कि अगर कोई शख़्स ख़ाक के ज़र्रों को गिन सके तो तेरी नसल भी गिन ली जाएगी।17उठ, और इस मुल्क की लम्बाई और चौड़ाई में घूम, क्यूँकि मैं इसे तुझ को दूँगा।"18और अब्राम ने अपना डेरा उठाया, और ममरे के बलूतों में जो हबरून में हैं जा कर रहने लगा; और वहाँ ख़ुदावन्द के लिए एक क़ुर्बानगाह बनाई।
1और सिन'आर के बादशाह अमराफ़िल, और इल्लासर के बादशाह अर्युक, और 'ऐलाम के बादशाह किदरला 'उम्र, और जोइम के बादशाह तिद'आल के दिनों में,2~ऐसा हुआ कि उन्होंने सदूम के बादशाह बर'आ, और 'अमूरा के बादशाह बिरश'आ और अदमा के बादशाह सिनिअब, और ज़िबोईम के बादशाह शिमेबर, और बाला' या'नी जुग़्र के बादशाह से जंग की।3यह सब सिद्दीम या'नी दरिया-ए-शोर की वादी में इकट्ठे हुए।4बारह साल तक वह किदरला 'उम्र के फ़र्माबरदार रहे, लेकिन तेरहवें साल उन्होंने सरकशी की।5और चौदहवें साल किदरला 'उम्र और उसके साथ के बादशाह आए, और रिफ़ाईम को 'असतारात क़र्नेम में, और ज़ूज़ियों को हाम में, और ऐमीम को सवीक़र्यतैम में,6और होरियों को उनके कोह-ए-श'ईर में मारते-मारते एल-फ़ारान तक जो वीराने से लगा हुआ है आए।7फिर वह लौट कर 'ऐन-मिसफ़ात या'नी क़ादिस पहुँचे, और 'अमालीक़ियों के तमाम मुल्क को, और अमोरियों को जो हसेसून तमर में रहते थे मारा।8तब सदूम का बादशाह, और 'अमूरा का बादशाह, और अदमा का बादशाह, और ज़िबोइम का बादशाह, और बाला' या'नी ज़ुग़र का बादशाह, निकले और उन्होंने सिद्दीम की वादी में लड़ाई की |9ताकि 'ऐलाम के बादशाह किदरला 'उम्र, और जोइम के बादशाह तिद'आल, और सिन'आर के बादशाह अमराफ़िल, और इल्लासर के बादशाह अर्यूक से जंग करें; यह चार बादशाह उन पाँचों के मुक़ाबिले में थे।10और सिद्दीम की वादी में जा-बजा नफ़्त के गढ़े थे; और सदूम और 'अमूरा के बादशाह भागते-भागते वहाँ गिरे, और जो बचे पहाड़ पर भाग गए।11तब वह सदूम 'अमूरा का सब माल और वहाँ का सब अनाज लेकर चले गए;12और अब्राम के भतीजे लूत को और उसके माल को भी ले गए क्यूँकि वह सदूम में रहता था13तब एक ने जो बच गया था जाकर अब्राम 'इब्रानी को ख़बर दी, जो इस्काल और 'आनेर के भाई ममरे अमोरी के बलूतों में रहता था, और यह अब्राम के हम 'अहद थे।14जब अब्राम ने सुना कि उसका भाई गिरफ़्तार हुआ, तो उसने अपने तीन सौ अट्ठारा माहिर लड़ाकों को लेकर दान तक उनका पीछा किया।15और रात को उसने और उसके ख़ादिमों ने गोल-गोल होकर उन पर धावा किया और उनको मारा और खू़बा तक, जो दमिश्क़ के बाएँ हाथ है, उनका पीछा किया।16और वह सारे माल को और अपने भाई लूत को और उसके माल और 'औरतों को भी और और लोगों को वापस फेर लाया।17और जब वह किदरला 'उम्र और उसके साथ के बादशाहों को मार कर फिरा तो सदूम का बादशाह उसके इस्तक़बाल को सवी की वादी तक जो बादशाही वादी है आया।18और मलिक-ए-सिदक़, सालिम का बादशाह, रोटी और मय लाया और वह ख़ुदा ता'ला का काहिन था।19और उसने उसको बरकत देकर कहा कि ख़ुदा ता'ला की तरफ़ से जो आसमान और ज़मीन का मालिक है, अब्राम मुबारक हो।20और मुबारक है ख़ुदा ता'ला जिसने तेरे दुश्मनों को तेरे हाथ में कर दिया। तब अब्राम ने सबका दसवाँ हिस्सा उसको ~दिया।21और सदूम के बादशाह ने अब्राम से कहा कि आदमियों को मुझे दे दे और माल अपने लिए रख ले।22लेकिन अब्राम ने सदूम के बादशाह से कहा कि मैंने ख़ुदावन्द ख़ुदा ता'ला, आसमान और ज़मीन के मालिक, की क़सम खाई है,23कि मैं न तो कोई धागा, न जूती का तस्मा, न तेरी और कोई चीज़ लूँ ~ताकि तू यह न कह सके कि मैंने अब्राम को दौलतमन्द बना दिया।24सिवा उसके जो जवानों ने खा लिया और उन आदमियों के हिस्से के जो मेरे साथ गए; इसलिए 'आनेर और इस्काल और ममरे अपना-अपना हिस्सा ले लें।"
1इन बातों के बा'द ख़ुदावन्द का कलाम ख़्वाब में अब्राम पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया, "ऐ अब्राम, तू मत डर; मैं तेरी ढाल और तेरा बहुत बड़ा अज्र हूँ।"2अब्राम ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तू मुझे क्या देगा? क्यूँकि मैं तो बेऔलाद जाता हूँ, और मेरे घर का मुख़्तार दमिश्क़ी इली'अज़र है।"3फिर अब्राम ने कहा, "देख, तूने मुझे कोई औलाद नहीं दी और देख मेरा खानाज़ाद मेरा वारिस होगा।”4तब ख़ुदावन्द का कलाम उस पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया, "यह तेरा वारिस न होगा, बल्कि वह जो तेरे सुल्ब से पैदा होगा वही तेरा वारिस होगा।"5और वह उसको बाहर ले गया और कहा, कि अब आसमान कि तरफ़ निगाह कर और अगर तू सितारों को गिन सकता है तो गिन। और उससे कहा कि तेरी औलाद ऐसी ही होगी।6और वह ख़ुदावन्द पर ईमान लाया और इसे उसने उसके हक़ में रास्तबाज़ी शुमार किया।7और उसने उससे कहा कि मैं ख़ुदावन्द हूँ जो तुझे कसदियों के ऊर से निकाल लाया, कि तुझ को यह मुल्क मीरास में दूँ।"8और उसने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा ! मैं क्यूँ कर जानूँ कि मैं उसका वारिस हूँगा?”9उसने उस से कहा कि मेरे लिए तीन साल की एक बछिया, और तीन साल की एक बकरी, और तीन साल का एक मेंढा, और एक कुमरी, और एक कबूतर का बच्चा ले।10उसने उन सभों को लिया और उनके बीच से दो टुकड़े किया, और हर टुकड़े को उसके साथ के दूसरे टुकड़े के सामने रख्खा, मगर परिन्दों के टुकड़े न किए।11तब शिकारी परिन्दे उन टुकड़ों पर झपटने लगे पर अब्राम उनकी हँकता रहा।12सूरज डूबते वक़्त अब्राम पर गहरी नींद ग़ालिब हुई और देखो, एक बडा ख़तरनाक अँधेरा उस पर छा गया।13और उसने अब्राम से कहा, "यक़ीन जान कि तेरी नसल के लोग ऐसे मुल्क में जो उनका नहीं परदेसी होंगे और वहाँ के लोगों की ग़ुलामी करेंगे और वह चार सौ साल तक उनको दुख देंगे।14लेकिन मैं उस कौम की 'अदालत करूँगा जिसकी वह गु़लामी करेंगे, और बा'द में वह बड़ी दौलत लेकर वहाँ से निकल आएँगे।15और तू सही सलामत अपने बाप -दादा से जा मिलेगा और बहुत ही बुढापे में दफ़न होगा।16और वह चौथी पुश्त में यहाँ लौट आएँगे, क्यूँकि अमोरियों के गुनाह अब तक पूरे नहीं हुए।"17और जब सूरज डूबा और अन्धेरा छा गया, तो एक तनूर जिसमें से धुंआ उठता था दिखाई दिया, और एक जलती मश'अल उन टुकड़ों के बीच में से होकर गुज़री।18उसी रोज़ ख़ुदावन्द ने अब्राम से 'अहद किया और फ़रमाया, "यह मुल्क दरिया-ए- मिस्र से लेकर उस बड़े दरिया या'नी दरयाए-फु़रात तक,19क़ैनियों और क़नीज़ियों और क़दमूनियों,20और हित्तियों ~और फ़रिज़्ज़ियों और रिफ़ाईम,21और अमोरियों और कना'नियों और जिरजासियों और यबुसियों समेत मैंने तेरी औलाद को दिया है।
1और अब्राम की बीवी सारय ~के कोई औलाद न हुई। उसकी एक मिस्री लौंडी थी जिसका नाम हाजिरा था।2और सारय ने अब्राम से कहा कि देख, ख़ुदावन्द ने मुझे तो औलाद से महरूम रख्खा है, इसलिए तू मेरी लौंडी के पास जा शायद उससे मेरा घर आबा'द हो। और अब्राम ने सारय की बात मानी।3और अब्राम को मुल्क-ए-कना'न में रहते दस साल हो गए थे जब उसकी बीवी सारय ने अपनी मिस्री लौंडी उसे दी कि उसकी बीवी बने।4और वह हाजिरा के पास गया और वह हामिला हुई। और जब उसे मा'लूम हुआ कि वह हामिला हो गई तो अपनी बीवी को हक़ीर जानने लगी।5तब सारय ने अब्राम से कहा, "जो जु़ल्म मुझ पर हुआ वह तेरी गर्दन पर है। मैंने अपनी लौंडी तेरे आग़ोश में दी और अब जो उसने आपको हामिला देखा तो मैं उसकी नज़रों में हक़ीर हो गई; इसलिए ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच इंसाफ़ करे।6अब्राम ने सारय से कहा कि तेरी लौंडी तेरे हाथ में है; जो तुझे भला दिखाई दे वैसा ही उसके साथ कर।" तब सारय उस पर सख़्ती करने लगी और वह उसके पास से भाग गई।7और वह ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता को वीराने में पानी के एक चश्मे के पास मिली। यह वही चश्मा है जो शोर की राह पर है।8और उसने कहा, "ऐ सारय की लौंडी हाजिरा, तू कहाँ से आई और किधर जाती है?" उसने कहा कि मैं अपनी बीबी सारय के पास से भाग आई हूँ।9ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ने उससे कहा कि तू अपनी बीबी के पास लौट जा और अपने को उसके कब्ज़े में कर दे10और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ने उससे कहा, कि मै तेरी औलाद को बहुत बढ़ाऊँगा यहाँ तक कि कसरत की वजह से उसका शुमार न हो सकेगा।11और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ने उससे कहा कि तू हामिला है और तेरा बेटा होगा, उसका नाम इस्मा'ईल रखना इसलिए कि ख़ुदावन्द ने तेरा दुख सुन लिया।12वह गोरखर की तरह आज़ाद मर्द होगा, उसका हाथ सबके ख़िलाफ़ और सबके हाथ उसके ख़िलाफ़ होंगे और वह अपने सब भाइयों के सामने बसा रहेगा।13और हाजिरा ने ख़ुदावन्द का जिसने उससे बातें कीं, अताएल-रोई नाम रख्खा या'नी ऐ ख़ुदा तू बसीर है; क्यूँकि उसने कहा, "क्या मैंने यहाँ भी अपने देखने वाले को जाते हुए देखा?'|14इसी वजह से उस कुएँ का नाम बैरलही रोई पड़ गया; वह क़ादिस और बरिद के बीच है।15और अब्राम से हाजिरा के एक बेटा हुआ, और अब्राम ने अपने उस बेटे का नाम जो हाजिरा से पैदा हुआ इस्मा'ईल रख्खा।16और जब अब्राम से हाजिरा के इस्मा'ईल पैदा हुआ तब अब्राम छियासी साल का था।
1जब अब्राम निनानवे साल का हुआ तब ख़ुदावन्द अब्राम को नज़र आया और उससे कहा कि मैं ख़ुदा-ए-क़ादिर हूँ; तू मेरे सामने में चल और कामिल हो।2और मैं अपने और तेरे बीच 'अहद बाँधूंगा और तुझे बहुत ज़्यादा बढ़ाऊँगा।3तब अब्राम सिज्दे में हो गया और ख़ुदा ने उससे हम-कलाम होकर फ़रमाया |4कि देख मेरा 'अहद तेरे साथ है और तू बहुत क़ौमों का बाप होगा।5और तेरा नाम फिर अब्राम नहीं कहलाएगा बल्कि तेरा नाम इब्राहीम होगा, क्यूँकि मैंने तुझे बहुत क़ौमों का बाप ठहरा दिया है।6और मैं तुझे बहुत कामयाब करूँगा और क़ौमें तेरी नसल से होंगी और बादशाह तेरी औलाद में से निकलेंगे ।7और मैं अपने और तेरे बीच, और तेरे बा'द तेरी नसल के बीच उनकी सब नसलो के लिए अपना 'अहद जो अबदी 'अहद होगा, बांधूंगा ताकि मैं तेरा और तेरे बा'द तेरी नसल का ख़ुदा रहूँ।8और मैं तुझ को और तेरे बा'द तेरी नसल को, कना'न का तमाम मुल्क जिसमें तू परदेसी है ऐसा दूँगा, कि वह हमेशा की मिल्कियत हो जाए; और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।9फिर ख़ुदा ने इब्राहीम से कहा ~कि तू मेरे 'अहद को मानना और तेरे बा'द तेरी नसल पुश्त दर पुश्त उसे माने।10और मेरा 'अहद जो मेरे और तेरे बीच और तेरे बा'द तेरी नसल के बीच है, और जिसे तुम मानोगे वह यह है: कि तुम में से हर एक फ़र्ज़न्द-ए-नरीना का ख़तना किया जाए।11और तुम अपने बदन की खलड़ी का ख़तना किया करना, और यह उस 'अहद का निशान होगा जो मेरे और तुम्हारे बीच है।12तुम्हारे यहाँ नसल -दर-नसल हर लड़के का ख़तना, जब वह आठ रोज़ का हो, किया जाए; चाहे वह घर में पैदा हो चाहे उसे किसी परदेसी से ख़रीदा हो जो तेरी नसल से नहीं।13लाज़िम है कि तेरे ख़ानाज़ाद और तेरे ग़ुलाम का ख़तना किया जाए, और मेरा 'अहद तुम्हारे जिस्म में अबदी 'अहद होगा।14और वह फ़र्ज़न्द-ए-नरीना जिसका ख़तना न हुआ हो, अपने लोगों में से काट डाला जाए क्यूँकि ~उसने मेरा 'अहद तोड़ा।15और ख़ुदा ने इब्राहीम से कहा, कि सारय जो तेरी बीवी है इसलिए उसको सारय न पुकारना, उसका नाम सारा होगा।16और मैं उसे बरकत दूँगा और उससे भी तुझे एक बेटा बख्शूँगा; यक़ीनन मैं उसे बरकत दूँगा कि ~क़ौमें उसकी नसल से होंगी और 'आलम के बादशाह उससे पैदा होंगे।"17तब इब्राहीम सिज्दे में हुआ और हँस कर दिल में कहने लगा कि क्या सौ साल के बूढ़े से कोई बच्चा होगा, और क्या सारा के जो नव्वे साल की है औलाद होगी?18और इब्राहीम ने ख़ुदा से कहा कि काश इस्मा'ईल ही तेरे सामने ज़िन्दा रहे,19तब ख़ुदा ने फ़रमाया, कि बेशक तेरी बीवी सारा के तुझ से बेटा होगा, तू उसका नाम इस्हाक़ रखना; और मैं उससे और फिर उसकी औलाद से अपना 'अहद जो अबदी 'अहद है बाँधूगा।20और इस्मा'ईल के हक़ में भी मैंने तेरी दु'आ सुनी; देख मैं उसे बरकत दूँगा और उसे कामयाब करूँगा और उसे बहुत बढ़ाऊँगा; और उससे बारह सरदार पैदा होंगे और मैं उसे बड़ी क़ौम बनाऊँगा।21लेकिन मैं अपना 'अहद इस्हाक़ से बाँधूगा जो अगले साल इसी वक़्त-ए-मुक़र्रर पर सारा से पैदा होगा।"22और जब ख़ुदा इब्राहीम से बातें कर चुका तो उसके पास से ऊपर चला गया।23तब इब्राहीम ने अपने बेटे इस्मा'ईल की और सब ख़ानाज़ादों और अपने सब ग़ुलामों को या'नी अपने घर के सब आदमियों को लिया और उसी दिन ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ उन का ख़तना किया।24इब्राहीम निनानवे साल का था जब उसका ख़तना हुआ।25और जब उसके बेटे इस्मा'ईल का ख़तना हुआ तो वह तेरह साल का था।26इब्राहीम और उसके बेटे इस्मा'ईल का ख़तना एक ही दिन हुआ।27और उसके घर के सब आदमियों का ख़तना, ख़ानाज़ादों और उनका भी जो ~परदेसियों से ख़रीदे गए थे, उसके साथ हुआ।
1फिर ख़ुदावन्द ममरे के बलूतों में उसे नज़र आया और वह दिन को गर्मी के वक़्त अपने खे़मे के दरवाज़े पर बैठा था।2और उसने अपनी आँखें उठा कर नज़र की और क्या देखता है कि तीन मर्द उसके सामने खड़े हैं। वह उनको देख कर खे़मे के दरवाज़े से उनसे मिलने को दौड़ा और ज़मीन तक झुका|3और कहने लगा कि ऐ मेरे ख़ुदावन्द, अगर मुझ पर आपने करम की नज़र की है तो अपने ख़ादिम के पास से चले न जाएँ।4बल्कि थोड़ा सा पानी लाया जाए, और आप अपने पाँव धो कर उस दरख़्त के नीचे आराम करें।5मैं कुछ रोटी लाता हूँ, आप ताज़ा-दम हो जाएँ ;तब आगे बढ़ें क्यूँकि आप इसी लिए अपने ख़ादिम के यहाँ आए हैं उन्होंने कहा, "जैसा तूने कहा है, वैसा ही कर।"6और इब्राहीम डेरे में सारा के पास दौड़ा गया और कहा, कि तीन पैमाना बारीक आटा जल्द ले और उसे गूंध कर फुल्के बना।7और इब्राहीम गल्ले की तरफ़ दौड़ा और एक मोटा ताज़ा बछड़ा लाकर एक जवान को दिया, और उस ने जल्दी-जल्दी उसे तैयार किया।8फिर उसने मक्खन और दूध और उस बछड़े को जो उस ने पकवाया था, लेकर उनके सामने रख्खा; और ख़ुद उनके पास दरख़्त के नीचे खड़ा रहा और उन्होंने खाया।9फिर उन्होंने उससे पूछा कि तेरी बीवी सारा कहाँ है? उसने कहा, "वह डेरे में है।"10तब उसने कहा, "मैं फिर मौसम-ए- बहार में तेरे पास आऊँगा, और देख तेरी बीवी सारा के बेटा होगा।" उसके पीछे डेरे का दरवाज़ा था, सारा वहाँ से सुन रही थी।11और इब्राहीम और सारा ज़ईफ़ और बड़ी 'उम्र के थे, और सारा की वह हालत नहीं रही थी जो 'औरतों की होती है।12तब सारा ने अपने दिल में हँस कर कहा, "क्या इस क़दर 'उम्र-दराज़ होने पर भी मेरे लिए खु़शी हो सकती है, जबकि मेरा शौहर भी बूढ़ा है?"13फिर ख़ुदावन्द ने इब्राहीम से कहा कि सारा क्यूँ यह कह कर हँसी की क्या मेरे जो ऐसी बुढ़िया हो गई हूँ वाक़ई बेटा होगा?14क्या ख़ुदावन्द के नज़दीक कोई बात मुश्किल है? मौसम-ए-बहार में मुक़र्रर वक़्त पर मैं तेरे पास फिर आऊँगा और सारा के बेटा होगा।15तब सारा इन्कार कर गई, कि मैं नहीं हँसी।" क्यूँकि वह डरती थी, लेकिन उसने कहा, "नहीं, तू ज़रूर हँसी थी।"16तब वह मर्द वहाँ से उठे और उन्होंने सदूम का रुख़ किया, और इब्राहीम उनको रुख़सत करने को उनके साथ हो लिया।17और ख़ुदावन्द ने कहा कि जो कुछ मैं करने को हूँ, क्या उसे इब्राहीम से छिपाए रख्खूँ18इब्राहीम से तो यक़ीनन एक बड़ी और ज़बरदस्त क़ौम पैदा होगी, और ज़मीन की सब क़ौमें उसके वसीले से बरकत पाएँगी।19क्यूँकि मैं जानता हूँ कि वह अपने बेटों और घराने को जो उसके पीछे रह जाएँगे, वसीयत करेगा कि ~वह ख़ुदावन्द की राह में क़ायम रह कर 'अद्ल और इंसाफ़ करें; ताकि जो कुछ ख़ुदावन्द ने इब्राहीम के हक़ में फ़रमाया है उसे पूरा करे।20फिर ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "चूँकि सदूम और 'अमूरा का गुनाह बढ़ गया और उनका जुर्म निहायत संगीन हो गया है।21इसलिए मैं अब जाकर देखूँगा कि क्या उन्होंने सरासर वैसा ही किया है जैसा गुनाह मेरे कान तक पहुँचा है, और अगर नहीं किया तो मैं मा'लूम कर लूँगा।"22इसलिए वह मर्द वहाँ से मुड़े और सदूम की तरफ़ चले, लेकिन इब्राहीम ख़ुदावन्द के सामने खड़ा ही रहा।23तब इब्राहीम ने नज़दीक जा कर कहा, "क्या तू नेक को बद के साथ हलाक करेगा?24शायद उस शहर में पचास रास्तबाज़ हों; क्या तू उसे हलाक करेगा और उन पचास रास्तबाज़ों की ख़ातिर जो उसमें हों उस मक़ाम को न छोड़ेगा?25ऐसा करना तुझ से दूर है कि नेक को बद के साथ मार डाले और नेक बद के बराबर हो जाएँ। ये तुझ से दूर है। क्या तमाम दुनिया का इंसाफ़ करने वाला इंसाफ़ न करेगा?"26और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, कि अगर मुझे सदूम में शहर के अन्दर पचास रास्तबाज़ मिलें, तो मैं उनकी ख़ातिर उस मक़ाम को छोड़ दूँगा।"27तब इब्राहीम ने जवाब दिया और कहा, कि देखिए! मैंने ख़ुदावन्द से बात करने की हिम्मत की, अगर चे मैं मिट्टी और राख हूँ।28शायद पचास रास्तबाज़ों में पाँच कम हों; क्या उन पाँच की कमी की वजह से तू तमाम शहर को बर्बाद करेगा ?उस ने कहा अगर मुझे वहाँ पैंतालीस मिलें तो मैं उसे बर्बाद नहीं करूँगा।"29फिर उसने उससे कहा कि शायद वहाँ चालीस मिलें। तब उसने कहा कि मैं उन चालीस की ख़ातिर भी यह नहीं करूँगा।"30फिर उसने कहा, "ख़ुदावन्द नाराज़ न हो तो मैं कुछ और 'अर्ज़ करूँ। शायद वहाँ तीस मिलें।” उसने कहा, "अगर मुझे वहाँ तीस भी मिलें तो भी ऐसा नहीं करूँगा।"31फिर उसने कहा, "देखिए! मैंने ख़ुदावन्द से बात करने की हिम्मत की; शायद वहाँ बीस मिलें।" उसने कहा, 'मैं बीस के लिए भी उसे बर्बाद नहीं करूँगा।"32तब उसने कहा, "ख़ुदावन्द नाराज़ न हो तो मैं एक बार और कुछ 'अर्ज़ करूँ; शायद वहाँ दस मिलें।" उसने कहा, "मैं दस के लिए भी उसे बर्बाद नहीं करूँगा।"33जब ख़ुदावन्द इब्राहीम से बातें कर चुका तो चला गया और इब्राहीम अपने मकान को लौटा।
1और वह दोनों फ़रिश्ता शाम को सदूम में आए और लूत सदूम के फाटक पर बैठा था। और लूत उनको देख कर उनके इस्तक़बाल के लिए उठा और ज़मीन तक झुका,2और कहा, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, अपने ख़ादिम के घर तशरीफ़ ले चलिए और रात भर आराम कीजिए और अपने पाँव धोइये और सुबह उठ कर अपनी राह लीजिए।" और उन्होंने कहा, "नहीं, हम चौक ही में रात काट लेंगे।"3लेकिन जब वह बहुत बजिद्द हुआ तो वह उसके साथ चल कर उसके घर में आए; और उसने उनके लिए खाना तैयार की और बेख़मीरी रोटी पकाई; और उन्होंने खाया।4और इससे पहले कि वह आराम करने के लिए लेटें सदूम शहर के आदमियों ने, जवान से लेकर बूढ़े तक सब लोगों ने, हर तरफ़ से उस घर को घेर लिया।5और उन्होंने लूत को पुकार कर उससे कहा ~कि वह आदमी जो आज रात तेरे यहाँ आए, कहाँ हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ ताकि हम उनसे सोहबत करें।6तब लूत निकल कर उनके पास दरवाज़ा ~पर गया और अपने पीछे किवाड़ बन्द कर दिया |7और कहा कि ऐ भाइयो! ऐसी बदी तो न करो।8देखो! मेरी दो बेटियाँ हैं जो आदमी से वाकिफ़ नहीं; मर्ज़ी हो तो मैं उनको तुम्हारे पास ले आऊँ और जो तुम को भला मा'लूम हो उनसे करो, मगर इन आदमियों से कुछ न कहना क्यूँकि वह इसलिए मेरी पनाह में आए हैं।"9उन्होंने कहा, "यहाँ से हट जा!" फिर कहने लगे, कि यह शख़्स हमारे बीच क़याम करने आया था और अब हुकूमत जताता है; इसलिए हम तेरे साथ उनसे ज़्यादा ~बद सलूकी करेंगे।" तब वह ~उस आदमी या'नी लूत पर पिल पड़े और नज़दीक आए ताकि किवाड़ तोड़ डालें।10लेकिन उन आदमियों ने अपना हाथ बढ़ा कर लूत को अपने पास घर में खींच लिया और दरवाज़ा बन्द कर दिया।11और उन आदमियों को जो घर के दरवाज़े पर थे क्या छोटे क्या बड़े, अन्धा कर दिया; तब वह दरवाज़ा ढूँडते-ढूँडते थक गए।12~तब उन आदमियों ने लूत से कहा, "क्या यहाँ तेरा और कोई है? दामाद और अपने बेटों और बेटियों और जो कोई तेरा इस शहर में हो, सबको इस मक़ाम से बाहर निकाल ले जा।13क्यूँकि हम इस मक़ाम को बर्बाद करेंगे, इसलिए कि उनका गुनाह ख़ुदावन्द के सामने बहुत बुलन्द हुआ है और ख़ुदावन्द ने उसे बर्बाद करने को हमें भेजा है।"14तब लूत ने बाहर जाकर अपने दामादों से जिन्होंने उसकी बेटियाँ ब्याही थीं बातें कीं और कहा कि उठो और इस मक़ाम से निकलो क्यूँकि ख़ुदावन्द इस शहर को बर्बाद करेगा।" लेकिन वह अपने दामादों की नज़र में मज़ाक़ सा मा'लूम हुआ।15जब सुबह हुई तो फ़रिश्तों ने लूत से जल्दी कराई और कहा कि उठ अपनी बीवी और अपनी दोनों बेटियों को जो यहाँ हैं ले जा; ऐसा न हो कि तू भी इस शहर की बदी में गिरफ़्तार होकर हलाक हो जाए।16मगर उसने देर लगाई तो उन आदमियों ने उसका और उसकी बीवी और उसकी दोनों बेटियों का हाथ पकड़ा, क्यूँकि ~ख़ुदावन्द की मेहरबानी उस पर हुई और उसे निकाल कर शहर से बाहर कर दिया।17और यूँ हुआ कि जब वह उनको बाहर निकाल लाए तो उसने कहा, "अपनी जान बचाने को भाग; न तो पीछे मुड़ कर देखना न कहीं मैदान में ठहरना; उस पहाड़ को चला जा, ऐसा न हो कि तू हलाक हो जाए।"18और लूत ने उनसे कहा कि ऐ मेरे ख़ुदावन्द, ऐसा न कर।19देख, तूने अपने ख़ादिम पर करम की नज़र की है और ऐसा बड़ा फ़ज़ल किया कि मेरी जान बचाई; मैं पहाड़ तक जा नहीं सकता, कहीं ऐसा न हो कि मुझ पर मुसीबत आ पड़े और मैं मर जाऊँ।20देख, यह शहर ऐसा नज़दीक है कि वहाँ भाग सकता हूँ और यह~छोटा भी है। इजाज़त हो तो मैं वहाँ चला जाऊँ, वह छोटा सा भी है और मेरी जान बच जाएगी।21उसने उससे कहा कि देख, मैं इस बात में भी तेरा लिहाज़ करता हूँ कि इस शहर को जिसका तू ने ज़िक्र किया, बर्बाद नहीं करूँगा।22जल्दी कर और वहाँ चला जा, क्यूँकि मैं कुछ नहीं कर सकता जब तक कि तू वहाँ पहुँच न जाए। इसीलिए उस शहर का नाम जुग़्र ~कहलाया।23और ज़मीन पर धूप निकल चुकी थी, जब लूत जुग़्र में दाख़िल हुआ।24तब ख़ुदावन्द ने अपनी तरफ़ से सदूम और 'अमूरा पर गन्धक और आग आसमान से बरसाई,25और उसने उन शहरों को और उस सारी तराई को और उन शहरों के सब रहने वालों को और सब कुछ जो ज़मीन से उगा था बर्बाद किया।26मगर उसकी बीवी ने उसके पीछे से मुड़ कर देखा और वह ~नमक का सुतून बन गई।27और इब्राहीम सुबह सवेरे उठ कर उस जगह गया जहाँ वह ख़ुदावन्द के सामने खड़ा हुआ था;28और उसने सदूम और 'अमूरा और उस तराई की सारी ज़मीन की तरफ़ नज़र की, और क्या देखता है कि ज़मीन पर से धुवां ऐसा उठ रहा है जैसे भट्टी का धुवां।29और यूँ हुआ कि जब ख़ुदा ने उस तराई के शहरों को बर्बाद किया, तो ख़ुदा ने इब्राहीम को याद किया और उन शहरों की जहाँ लूत रहता था, बर्बाद करते वक़्त लूत को उस बला से बचाया।30और लूत~जुग़्रसे निकल कर पहाड़ पर जा बसा और उसकी दोनों बेटियाँ उसके साथ थीं; क्यूँकि उसे जुग़्र में बसते~डर लगा, और वह और उसकी दोनों बेटियाँ एक ग़ार में रहने लगे।31तब पहलौठी ने छोटी से कहा, कि हमारा बाप बूढ़ा है और ज़मीन पर कोई आदमी नहीं जो दुनिया के दस्तूर के मुताबिक़ हमारे पास आए।32आओ, हम अपने बाप को मय पिलाएँ और उससे हम-आग़ोश हों, ताकि अपने बाप से नसल बाक़ी रख्खें।33इसलिए उन्होंने उसी रात अपने बाप को मय पिलाई और पहलौठी अन्दर गई और अपने बाप से हम-आग़ोश हुई, लेकिन उसने न जाना कि वह कब लेटी और कब उठ गई।34और दूसरे दिन यूँ हुआ कि पहलौठी ने छोटी से कहा कि देख, कल रात को मैं अपने बाप से हम-आग़ोश हुई, आओ, आज रात भी उसको मय पिलाएँ और तू भी जा कर उससे हमआग़ोश हो, ताकि हम अपने बाप से नसल बाक़ी रख्खें।"35फिर उस रात भी उन्होंने अपने बाप को मय पिलाई और छोटी गई और उससे हम-आग़ोश हुई, लेकिन उसने न जाना कि वह ~कब लेटी और कब उठ गई।36फिर लूत की दोनों बेटियाँ अपने बाप से हामिला हुई।37और बड़ी के एक बेटा हुआ और उसने उसका नाम मोआब रख्खा; वही मोआबियों का बाप है जो अब तक मौजूद हैं।38और छोटी के भी एक बेटा हुआ और उसने उसका नाम बिन-'अम्मी रख्खाः वही बनी-'अम्मोन का बाप है जो अब तक मौजूद हैं।
1और इब्राहीम वहाँ से दख्खिन के मुल्क की तरफ़ चला और क़ादिस और शोर के बीच ठहरा और जिरार में क़याम किया।2और इब्राहीम ने अपनी बीवी सारा के हक़ में कहा, कि वह मेरी बहन है, "और जिरार के बादशाह अबीमलिक ने सारा को बुलवा लिया।3लेकिन रात को ख़ुदा अबीमलिक के पास ख़्वाब में आया और उसे कहा कि देख, तू उस 'औरत की वजह से जिसे तूने लिया है हलाक होगा क्यूँकि वह शौहर वाली है।"4लेकिन अबीमलिक ने उससे सोहबत नहीं की थी; तब उसने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू सादिक़ क़ौम को भी मारेगा?5क्या उसने ख़ुद मुझ से नहीं कहा, कि यह मेरी बहन है?' और वह ख़ुद भी यही कहती थी, कि वह मेरा भाई है;' मैंने तो अपने सच्चे दिल और पाकीज़ा हाथों से यह किया।6और ख़ुदा ने उसे ख़्वाब में कहा, "हाँ, मैं जानता हूँ कि तूने अपने सच्चे दिल से यह किया, और मैंने भी तुझे रोका कि तू मेरा गुनाह न करे; इसी लिए मैंने तुझे उसको छूने न दिया।7अब तू उस आदमी की बीवी को वापस कर दे; क्यूँकि वह ~नबी है और वह तेरे लिए दु'आ करेगा और तू ज़िन्दा रहेगा। लेकिन अगर तू उसे वापस न करे तो जान ले कि तू भी और जितने तेरे हैं सब ज़रूर हलाक होंगे।"8तब अबीमलिक ने सुबह सवेरे उठ कर अपने सब नौकरों को बुलाया और उनको ये सब बातें कह सुनाई, तब वह लोग बहुत डर गए।9और अबीमलिक ने इब्राहीम को बुला कर उससे कहा, कि तूने हम से यह क्या किया? और मुझ से तेरा क्या कु़सूर हुआ कि तू मुझ पर और मेरी बादशाही पर एक गुनाह-ए-अज़ीम लाया? तूने मुझ से वह काम किए जिनका करना मुनासिब न था।10अबीमलिक ने इब्राहीम से यह~भी कहा कि तूने क्या समझ कर ये बात की?11इब्राहीम ने कहा, कि मेरा ख़्याल था कि ख़ुदा का ख़ौफ़ तो इस जगह हरगिज़ न होगा, और वह ~मुझे मेरी बीवी की वजह से मार डालेंगे।12और फ़िल-हक़ीक़त वह मेरी बहन भी है, क्यूँकि वह मेरे बाप की बेटी है अगरचे मेरी माँ की बेटी नहीं; फिर वह मेरी बीवी हुई।13और जब ख़ुदा ने मेरे बाप के घर से मुझे आवारा किया तो मैंने इससे कहा कि मुझ पर यह तेरी मेहरबानी होगी कि जहाँ कहीं हम जाएँ तू मेरे हक़ में यही कहना कि यह मेरा भाई है।14तब अबीमलिक ने भेड़ बकरियाँ और गाये बैल और ग़ुलाम और लौंडियाँ इब्राहीम को दीं, और उसकी बीवी सारा को भी उसे वापस कर दिया।15और अबीमलिक ने कहा कि देख, मेरा मुल्क तेरे सामने है, जहाँ जी चाहे रह।16और उसने सारा से कहा कि देख, मैंने तेरे भाई को चाँदी के हज़ार सिक्के दिए हैं, वह उन सब के सामने जो तेरे साथ हैं तेरे लिए आँख का पर्दा है, और सब के सामने तेरी बड़ाई हो गी।17तब इब्राहीम ने ख़ुदा से दु'आ की, और ख़ुदा ने अबीमलिक और उसकी बीवी और उसकी-लौंडियों की शिफ़ा बख़्शी ~और उनके औलाद होने लगी।18क्यूँकि ख़ुदावन्द ने इब्राहीम की बीवी सारा की वजह से अबीमलिक के ख़ान्दान के सब रहम बन्द कर दिए थे।
1और ख़ुदावन्द ने जैसा उसने फ़रमाया था, सारा पर नज़र की और उसने अपने वादे के मुताबिक़ सारा से किया।2तब सारा हामिला हुई और इब्राहीम के लिए उसके बुढ़ापे में उसी मुक़र्रर वक़्त पर जिसका ज़िक्र ख़ुदा ने उससे किया था, उसके बेटा हुआ।3और इब्राहीम ने अपने बेटे का नाम जो उससे, सारा के पैदा हुआ इस्हाक़ रख्खा।4और इब्राहीम ने ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ अपने बेटे इस्हाक़ का ख़तना, उस वक़्त किया जब वह आठ दिन का हुआ।5और जब उसका बेटा इस्हाक़ उससे पैदा हुआ तो इब्राहीम सौ साल का था।6और सारा ने कहा, कि ख़ुदा ने मुझे हँसाया और सब सुनने वाले मेरे साथ हँसेंगे।7और यह भी कहा कि भला कोई इब्राहीम से कह सकता था कि सारा लड़कों को दूध पिलाएगी? क्यूँकि उससे उसके बुढ़ापे में मेरे एक बेटा हुआ।8और वह लड़का बढ़ा और उसका दूध छुड़ाया गया और इस्हाक़ के दूध छुड़ाने के दिन इब्राहीम ने बड़ी दावत की।9और सारा ने देखा कि हाजिरा मिस्री का बेटा जो उसके इब्राहीम से हुआ था, ठट्ठे मारता है।10तब उसने इब्राहीम से कहा कि इस लौंडी को और उसके बेटे को निकाल दे, क्यूँकि इस लौंडी का बेटा मेरे बेटे इस्हाक़ के साथ वारिस न होगा।11लेकिन इब्राहीम को उसके बेटे के ज़रिए' यह बात निहायत बुरी मा'लूम हुई।12और ख़ुदा ने इब्राहीम से कहा कि तुझे इस लड़के और अपनी लौंडी की वजह से बुरा न लगे; जो कुछ सारा तुझ से कहती है तू उसकी बात मान क्यूँकि इस्हाक़ से तेरी नसल का नाम चलेगा।13और इस लौंडी के बेटे से भी मैं एक क़ौम पैदा करूँगा, इसलिए कि वह तेरी नसल है।14तब इब्राहीम ने सुबह सवेरे उठ कर रोटी और पानी की एक मश्क ली और उसे हाजिरा को दिया, बल्कि उसे उसके कन्धे पर रख दिया और लड़के को भी उसके हवाले करके उसे रुख़सत कर दिया। इसलिए वह चली गई और बैरसबा' के वीराने में आवारा फिरने लगी।15और जब मश्क का पानी ख़त्म हो गया तो उसने लड़के को एक झाड़ी के नीचे डाल दिया।16और ख़ुद उसके सामने एक टप्पे के किनारे पर दूर जा कर बैठी और कहने लगी कि मैं इस लड़के का मरना तो न देखूँ । इसलिए वह उसके सामने बैठ गई और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।17और ख़ुदा ने उस लड़के की आवाज़ सुनी और ख़ुदा के फ़रिश्ता ने आसमान से हाजिरा को पुकारा और उससे कहा, "ऐ हाजिरा, तुझ को क्या हुआ? मत डर, क्यूँकि ख़ुदा ने उस जगह से जहाँ लड़का पड़ा है उसकी आवाज़ सुन ली है।18उठ, और लड़के को उठा और उसे अपने हाथ से संभाल; क्यूँकि मैं उसको एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा।"19फिर ख़ुदा ने उसकी आँखें खोलीं और उसने पानी का एक कुआँ देखा, और जाकर मश्क को पानी से भर लिया और लड़के को पिलाया।20और ख़ुदा उस लड़के के साथ था और वह बड़ा हुआ और वीराने में रहने लगा और तीरंदाज़ बना।21और वह फ़ारान के वीराने में रहता था, और उसकी माँ ने मुल्क-ए-मिस्र से उसके लिए बीवी ली।22फिर उस वक़्त यूँ हुआ, कि अबीमलिक और उसके लश्कर के सरदार फ़ीकुल ने इब्राहीम से कहा कि हर काम में जो तू करता है ख़ुदा तेरे साथ है।23इसलिए तू अब मुझ से ख़ुदा की क़सम खा, कि तू न मुझ से न मेरे बेटे से और न मेरे पोते से दग़ा करेगा; बल्कि जो मेहरबानी मैंने तुझ पर की है वैसे ही तू भी मुझ पर और इस मुल्क पर, जिसमें तूने क़याम किया है, करेगा।24तब इब्राहीम ने कहा, "मैं क़सम खाऊँगा।"25और इब्राहीम ने पानी के एक कुएँ की वजह से, जिसे अबीमलिक के नौकरों ने ज़बरदस्ती छीन लिया था, अबीमलिक को झिड़का।26अबीमलिक ने कहा, "मुझे ख़बर नहीं कि किसने यह काम किया, और तूने भी मुझे नहीं बताया, न मैंने आज से पहले इसके बारे में कुछ सुना।"27फिर इब्राहीम ने भेड़ बकरियाँ और गाय-बैल लेकर अबीमलिक को दिए और दोनों ने आपस में 'अहद किया।28इब्राहीम ने भेड़ के सात मादा बच्चों को लेकर अलग रख्खा।29और अबीमलिक ने इब्राहीम से कहा कि भेड़ के इन सात मादा बच्चों को अलग रखने से तेरा मतलब क्या है?"30उसने कहा, कि भेड़ के इन सात मादा बच्चों को तू मेरे हाथ से ले ताकि वह मेरे गवाह हों कि मैंने यह कुआँ खोदा।31इसीलिए उसने उस मक़ाम का नाम बैरसबा' रख्खा, क्यूँकि वहीं उन दोनों ने क़सम खाई।32तब उन्होंने बैरसबा' में 'अहद किया, तब अबीमलिक और उसके लश्कर का सरदार फ़ीकुल दोनों उठ खड़े हुए और फ़िलिस्तियों के मुल्क को लौट गए।33तब इब्राहीम ने बैरसबा' में झाऊ का एक दरख़्त लगाया और वहाँ उसने ख़ुदावन्द से जो अबदी ख़ुदा है दु'आ की।34और इब्राहीम बहुत दिनों तक फ़िलिस्तियों के मुल्क में रहा।
1~इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि ख़ुदा ने इब्राहीम को आज़माया और उसे कहा, "ऐ इब्राहीम!" उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ।"2तब उसने कहा कि तू अपने बेटे इस्हाक़ को जो तेरा इकलौता है और जिसे तू प्यार करता है, साथ लेकर मोरियाह के मुल्क में जा और वहाँ उसे पहाड़ों में से एक पहाड़ पर जो मैं तुझे बताऊँगा, सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ा।3तब इब्राहीम ने सुबह सवेरे उठ कर अपने गधे पर चार जामा कसा और अपने साथ दो जवानों और अपने बेटे इस्हाक़ को लिया, और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए लकड़ियाँ चीरी और उठ कर उस जगह को जो ख़ुदा ने उसे बताई थी रवाना हुआ।4तीसरे दिन इब्राहीम ने निगाह की और उस जगह को दूर से देखा।5तब इब्राहीम ने अपने जवानों से कहा, "तुम यहीं गधे के पास ठहरो, मैं और यह लड़का दोनों ज़रा वहाँ तक जाते हैं, और सिज्दा करके फिर तुम्हारे पास लौट आएँगे।"6और इब्राहीम ने सोख्त़नी क़ुर्बानी की लकड़ियाँ लेकर अपने बेटें इस्हाक़ पर रख्खीं, और आग और छुरी अपने हाथ में ली और दोनों इकट्ठे रवाना हुए।7तब इस्हाक़ ने अपने बाप इब्राहीम से कहा, "ऐ बाप !" उसने जवाब दिया कि ऐ मेरे बेटे, मैं हाज़िर हूँ। उसने कहा, "देख, आग और लकड़ियाँ तो हैं, लेकिन सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बर्रा कहाँ है?"8इब्राहीम ने कहा, "ऐ मेरे बेटे ख़ुदा ख़ुद ही अपने लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बर्रा मुहय्या कर लेगा।" तब वह दोनों आगे चलते गए।9और उस जगह पहुँचे जो ख़ुदा ने बताई थी; वहाँ इब्राहीम ने क़ुर्बान गाह बनाई और उस पर लकड़ियाँ चुनीं और अपने बेटे इस्हाक़ को बाँधा और उसे क़ुर्बानगाह पर लकड़ियों के ऊपर रख्खा।10और इब्राहीम ने हाथ बढ़ाकर छुरी ली कि अपने बेटे को ज़बह करे।11तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ने उसे आसमान से पुकारा, कि ऐ इब्राहीम, ऐ इब्राहीम!” उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ।"12फिर उसने कहा कि तू अपना हाथ लड़के पर न चला और न उससे कुछ कर; क्यूँकि मैं अब जान गया कि तू ख़ुदा से डरता है, इसलिए कि तूने अपने बेटे को भी जो तेरा इकलौता है मुझ से दरेग न किया।"13और इब्राहीम ने निगाह की और अपने पीछे एक मेंढा देखा जिसके सींग झाड़ी में अटके थे; तब इब्राहीम ने जाकर उस मेंढे को पकड़ा और अपने बेटे के बदले सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ाया।14और इब्राहीम ने उस मक़म का नाम यहोवा यरी रख्खा। चुनाँचे आज तक यह कहावत है कि ख़ुदावन्द के पहाड़ पर मुहय्या किया जाएगा।15और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने आसमान से दोबारा इब्राहीम को पुकारा और कहा कि |16ख़ुदावन्द फ़रमाता है, चूँकि तूने यह काम किया कि अपने बेटे की भी जो तेरा इकलौता है दरेग न रख्खा; इसलिए मैंने भी अपनी ज़ात की क़सम खाई है कि17मैं तुझे बरकत पर बरकत दूँगा, और तेरी नसल को बढ़ाते-बढ़ाते आसमान के तारों और समुन्दर के किनारे की रेत की तरह कर दूँगा, और तेरी औलाद अपने दुश्मनों के फाटक की मालिक होगी।18और तेरी नसल के वसीले से ज़मीन की सब क़ौमें बरकत पाएँगी, क्यूँकि तूने मेरी बात मानी।"19तब इब्राहीम अपने जवानों के पास लौट गया, और वह उठे और इकट्ठे बैरसबा' को गए; और इब्राहीम बैरसबा' में रहा ।20इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि इब्राहीम को यह ख़बर मिली, कि मिल्काह के भी तेरे भाई नहूर से बेटे हुए हैं।21या'नी ऊज़ जो उसका पहलौठा है, और उसका भाई बूज़ और क्रमूएल, अराम का बाप,22और कसद और हजू और फ़िल्दास और इद्लाफ़ और बैतूएल।23और बैतूएल से रिब्क़ा पैदा हुई। यह आठों इब्राहीम के भाई नहूर से मिल्काह के पैदा हुए।24और उसकी बाँदी से भी जिसका नाम रूमा था, तिबख़ और जाहम और तख़स और मा'का पैदा हुए।
1और सारा की 'उम्र एक सौ सताईस साल की हुई, सारा की ज़िन्दगी के इतने ही साल थे।2और सारा ने करयतअरबा' में वफ़ात पाई। यह कना'न में है और हबरून भी कहलाता है। और इब्राहीम सारा के लिए मातम और नौहा करने को वहाँ गया।3फिर इब्राहीम मय्यत के पास से उठ कर बनी-हित से बातें करने लगा और कहा कि |4मैं तुम्हारे बीच परदेसी और ग़रीब-उल-वतन हूँ। तुम अपने यहाँ क़ब्रिस्तान के लिए कोई मिलिकयत मुझे दो, ताकि मैं अपने मुर्दे को आँख के सामने से हटाकर दफ़्न कर दूँ।5तब बनीहित ने इब्राहीम को जवाब दिया कि |6ऐ खुदावन्द, हमारी सुनः तू हमारे बीच ज़बरदस्त सरदार है। हमारी कब्रों में जो सबसे अच्छी हो उसमें तू अपने मुर्दे को दफ़्न कर; हम में ऐसा कोई नहीं जो तुझ से अपनी क़ब्र का इन्कार करे, ताकि तू अपना मुर्दा दफ़न न कर सके।7इब्राहीम ने उठ कर और बनी-हित के आगे, जो उस मुल्क के लोग हैं, आदाब बजा लाकर8उनसे यूँ बातें की, कि अगर तुम्हारी मर्ज़ी हो कि मैं अपने मुर्दे को आँख के सामने से हटाकर दफ़्न कर दूँ, तो मेरी 'अर्ज़ सुनो, और सुहर के बेटे इफ़रोन से मेरी सिफ़ारिश करो,9कि वह मकफ़ीला के ग़ार को जो उसका है और उसके खेत के किनारे पर है, उसकी पूरी क़ीमत लेकर मुझे दे दे, ताकि वह क़ब्रिस्तान के लिए तुम्हारे बीच मेरी मिल्कियत हो जाए।10और 'इफ़रोन बनी-हित के बीच बैठा था। तब 'इफ़रोन हिती ने बनी हित के सामने, उन सब लोगों के आमने सामने जो उसके शहर के दरवाज़े से दाख़िल होते थे इब्राहीम को जवाब दिया,11"ऐ मेरे ख़ुदावन्द! यूँ न होगा, बल्कि मेरी सुन! मैं यह खेत तुझे देता हूँ, और वह ग़ार भी जो उसमें है तुझे दिए देता हूँ। यह मैं अपनी क़ौम के लोगों के सामने तुझे देता हूँ, तू अपने मुर्दे को दफ़्न कर।"12तब इब्राहीम उस मुल्क के लोगों के सामने झुका।13फिर उसने उस मुल्क के लोगों के सुनते हुए 'इफ़रोन से कहा कि अगर तू देना ही चाहता है तो मेरी सुन, मैं तुझे उस खेत का दाम दूँगा; यह तू मुझ से ले ले, तो मैं अपने मुर्दे को वहाँ दफ़्न करूँगा।14इफ़रोन ने इब्राहीम को जवाब दिया,15"ऐ मेरे ख़ुदावन्द, मेरी बात सुन; यह ज़मीन चाँदी की चार सौ मिस्काल की है इसलिए मेरे और तेरे बीच यह है क्या? तब अपना मुर्दा दफ़न कर।"16और इब्राहीम ने 'इफ़रोन की बात मान ली; इसलिए इब्राहीम ने इफ़रोन को उतनी ही चाँदी तौल कर दी, जितनी का ज़िक्र उसने बनी-हित के सामने किया था, या'नी चाँदी के चार सौ मिस्काल जो सौदागरों में राइज थी।17इसलिए इफ़रोन का वह खेत जो मकफ़ीला में ममरे के सामने था, और वह ग़ार जो उसमें था, और सब दरख़्त जो उस खेत में और उसके चारों तरफ़ की हदूद में थे,18यह सब बनी-हित के और उन सबके आमने सामने जो उसके शहर के दरवाज़े से दाख़िल होते थे, इब्राहीम की ख़ास मिल्कियत क़रार दिए गए।19इसके बा'द इब्राहीम ने अपनी बीवी सारा को मकफ़ीला के खेत के ग़ार में, जो मुल्कए-कना'न में ममरे या'नी हबरून के सामने है, दफ़्न किया।20चुनाँचे वह खेत और वह ग़ार जो उसमें था, बनी-हित की तरफ़ से क़ब्रिस्तान के लिए इब्राहीम की मिल्कियत क़रार दिए गए।
1और इब्राहीम ज़ईफ़ और 'उम्र दराज़ हुआ और ख़ुदावन्द ने सब बातों में इब्राहीम को बरकत बख़्शी थी।2और इब्राहीम ने अपने घर के ख़ास नौकर से, जो उसकी सब चीज़ों का मुख़्तार था कहा, "तू अपना हाथ ज़रा मेरी रान के नीचे रख कि |3~मैं तुझ से ख़ुदावन्द की जो ज़मीन-ओ-आसमान का ख़ुदा है क़सम लें, कि तू कना'नियों की बेटियों में से जिनमें मैं रहता हूँ, किसी को मेरे बेटे से नहीं ब्याहेगा।4बल्कि तू मेरे वतन में मेरे रिश्तेदारों के पास जा कर मेरे बेटे इस्हाक़ के लिए बीवी लाएगा।5उस नौकर ने उससे कहा, "शायद वह 'औरत इस मुल्क में मेरे साथ आना न चाहे; तो क्या मैं तेरे बेटे को उस मुल्क में जहाँ से तू आया फिर ले जाऊँ?"6तब इब्राहीम ने उससे कहा ख़बरदार तू मेरे बेटे को वहाँ हरगिज़ न ले जाना।7ख़ुदावन्द, आसमान का ख़ुदा, जो मुझे मेरे बाप के घर और मेरी पैदाइशी जगह से निकाल लाया, और जिसने मुझ से बातें कीं और क़सम खाकर मुझ से कहा, कि मैं तेरी नसल को यह मुल्क दूँगा; वही तेरे आगे-आगे अपना फ़िरिश्ता भेजेगा कि तू वहाँ से मेरे बेटे के लिए बीवी लाए।8और अगर वह 'औरत तेरे साथ आना न चाहे, तो तू मेरी इस क़सम से छूटा, लेकिन मेरे बेटे को हरगिज़ वहाँ न ले जाना।"9उस नौकर ने अपना हाथ अपने आक़ा इब्राहीम की रान के नीचे रख कर उससे इस बात की क़सम खाई।10तब वह नौकर अपने आक़ा के ऊँटों में से दस ऊँट लेकर रवाना हुआ, और उसके आक़ा की अच्छी अच्छी चीज़ें उसके पास थीं, और वह उठकर मसोपतामिया में नहूर के शहर को गया।11और शाम को जिस वक़्त 'औरतें पानी भरने आती है उस ने उस शहर के बाहर बावली के पास ऊँटों को बिठाया |12और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, मेरे आक़ा इब्राहीम के खुदा, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ के आज तू मेरा काम बना दे, और मेरे आक़ा इब्राहीम पर करम कर।13देख, मैं पानी के चश्मा पर खड़ा हूँ और इस शहर के लोगों की बेटियाँ पानी भरने को आती हैं;14इसलिए ऐसा हो कि जिस लड़की से मैं कहूँ, कि तू ज़रा अपना घड़ा झुका दे तो मैं पानी पी लूँ और वह कहे, कि ले पी, और मैं तेरे ऊँटों को भी पिला दूँगी'; तो वह वही हो जिसे तूने अपने बन्दे इस्हाक़ के लिए ठहराया है; और इसी से मैं समझ लूँगा कि तूने मेरे आक़ा पर करम किया है।"15वह यह कह ही रहा था कि रिब्क़ा, जो इब्राहीम के भाई नहूर की बीवी मिल्काह के बेटे बैतूएल से पैदा हुई थी, अपना घड़ा कंधे पर लिए हुए निकली।16वह लड़की निहायत ख़ूबसूरत और कुंवारी, और मर्द से नवाक़िफ़ थी। वह नीचे पानी के चश्मा के पास गई और अपना घड़ा भर कर ऊपर आई।17तब वह नौकर उससे मिलने को दौड़ा और कहा कि ज़रा अपने घड़े से थोड़ा सा पानी मुझे पिला दे।18उसने कहा, "पीजिए साहब;" और फ़ौरन घड़े को हाथ पर उतार उसे पानी पिलाया।19जब उसे पिला चुकी तो कहने लगी, कि मैं तेरे ऊँटों के लिए भी पानी भर-भर लाऊँगी, जब तक वह पी न चुकें।"20और फ़ौरन अपने घड़े को हौज़ में ख़ाली करके फिर बावली की तरफ़ पानी भरने दौड़ी गई, और उसके सब ऊँटों के लिए भरा।21वह आदमी चुप-चाप उसे ग़ौर से देखता रहा, ताकि मा'लूम करे कि ख़ुदावन्द ने उसका सफ़र मुबारक किया है या नहीं।22और जब ऊँट पी चुके तो उस शख़्स ने आधे मिस्काल सोने की एक नथ, और दस मिस्काल सोने के दो कड़े उसके हाथों के लिए निकाले|23और कहा कि ज़रा मुझे बता कि तू किसकी बेटी है? और क्या तेरे बाप के घर में हमारे टिकने की जगह है?24उसने उससे कहा कि मैं बैतूएल की बेटी हूँ। वह मिल्काह का बेटा है जो नहूर से उसके हुआ।25और यह भी उससे कहा कि हमारे पास भूसा और चारा बहुत है, और टिकने की जगह भी है।26तब उस आदमी ने झुक कर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया,27और कहा, "ख़ुदावन्द मेरे आक़ा इब्राहीम का ख़ुदा मुबारक हो, जिसने मेरे आक़ा को अपने करम और सच्चाई से महरूम नहीं रख्खा और मुझे तो ख़ुदावन्द ठीक राह पर चलाकर मेरे आक़ा के भाइयों के घर लाया।"28तब उस लड़की ने दौड़ कर अपनी माँ के घर में यह सब हाल कह सुनाया।29और रिब्क़ा का एक भाई था जिसका नाम लाबन था; वह बाहर पानी के चश्मा पर उस आदमी के पास दौड़ा गया।30और ऐसा हुआ कि जब उसने वह नथ देखी, और वह कड़े भी जो उसकी बहन के हाथों में थे, और अपनी बहन रिब्क़ा का बयान भी सुन लिया कि उस शख़्स ने मुझ से ऐसी-ऐसी बातें कहीं, तो वह उस आदमी के पास आया और देखा कि वह चश्मा के नज़दीक ऊँटों के पास खड़ा है।31तब उससे कहा, "ऐ, तू जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक है। अन्दर चल, बाहर क्यूँ खड़ा है? मैंने घर को और ऊँटों के लिए भी जगह को तैयार कर लिया है।"32तब वह आदमी घर में आया, और उसने उसके ऊँटों को खोला और ऊँटों के लिए भूसा और चारा, और उसके और उसके साथ के आदमियों के पॉव धोने को पानी दिया।33और खाना उसके आगे रख्खा गया, लेकिन उसने कहा कि मैं जब तक अपना मतलब बयान न कर लूँ नहीं खाऊँगा। उसने कहा, "अच्छा, कह।"34तब उसने कहा कि मैं इब्राहीम का नौकर हूँ।35और ख़ुदावन्द ने मेरे आक़ा को बड़ी बरकत दी है, और वह बहुत बड़ा आदमी हो गया है; और उसने उसे भेड़-बकरियाँ, और गाय बैल और सोना चाँदी और लौंडिया और ग़ुलाम और ऊँट और गधे बख़्शे हैं।36और मेरे आक़ा की बीवी सारा के जब वह बुढ़िया हो गई, उससे एक बेटा हुआ। उसी को उसने अपना सब कुछ दे दिया है।37और मेरे आक़ा ने मुझे क़सम दे कर कहा है, कि तू कना'नियों की बेटियों में से, जिनके मुल्क में मैं रहता हूँ किसी को मेरे बेटे से न ब्याहना।38बल्कि तू मेरे बाप के घर और मेरे रिश्तेदारों में जाना और मेरे बेटे के लिए बीवी लाना |39तब मैंने अपने आक़ा से कहा, 'शायद वह 'औरत मेरे साथ आना न चाहे।'40तब उसने मुझ से कहा, 'ख़ुदावन्द, जिसके सामने मैं चलता रहा हूँ, अपना फ़रिश्ता तेरे साथ भेजेगा और तेरा सफ़र मुबारक करेगा; तू मेरे रिश्तेदारों और मेरे बाप के ख़ान्दान में से मेरे बेटे के लिए बीवी लाना।41और जब तू मेरे ख़ान्दान में जा पहुँचेगा, तब मेरी क़सम से छूटेगा; और अगर वह कोई लड़की न दें, तो भी तू मेरी क़सम से छूटा।'42इसलिए मैं आज पानी के उस चश्मा पर आकर कहने लगा, 'ऐ ख़ुदावन्द, मेरे आक़ा इब्राहीम के ख़ुदा, अगर तू मेरे सफ़र को जो मैं कर रहा हूँ मुबारक करता है।43तो देख, मैं पानी के चश्मा के पास खड़ा होता हूँ, और ऐसा हो कि जो लड़की पानी भरने निकले और मैं उससे कहूँ, 'ज़रा अपने घड़े से थोड़ा पानी मुझे पिला दे;"44और वह मुझे कहे कि तू भी पी और मैं तेरे ऊँटों के लिए भी भर दूँगी, " तो वो वही 'औरत हो जिसे ख़ुदावन्द ने मेरे आक़ा के बेटे के लिए ठहराया है।'45मैं दिल में यह कह ही रहा था कि रिब्क़ा अपना घड़ा कन्धे पर लिए हुए बाहर निकली, और नीचे चश्मा के पास गई, और पानी भरा। तब मैंने उससे कहा, 'ज़रा मुझे पानी पिला दे।'46उसने फ़ौरन अपना घड़ा कन्धे पर से उतारा और कहा, 'ले पी और मैं तेरे ऊँटों को भी पिला दूँगी।' तब मैंने पिया और उसने मेरे ऊँटों को भी पिलाया।47फिर मैंने उससे पूछा, 'तू किसकी बेटी है?' उसने कहा, 'मैं बैतूएल की बेटी हूँ, वह नहूर का बेटा है जो मिल्काह से पैदा हुआ;' फिर मैंने उसकी नाक में नथ और उसके हाथों में कड़े पहना दिए।48और मैंने झुक कर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया और ख़ुदावन्द, अपने आक़ा इब्राहीम के ख़ुदा को मुबारक कहा, जिसने मुझे ठीक राह पर चलाया कि अपने आक़ा के भाई की बेटी उसके बेटे के लिए ले जाऊँ।49इसलिए अब अगर तुम करम और सच्चाई से मेरे आक़ा के साथ पेश आना चाहते हो तो मुझे बताओ, और अगर नहीं तो कह दो, ताकि मैं दहनी या बाएँ तरफ़ फिर जाऊँ।"50तब लाबन और बैतूएल ने जवाब दिया, कि यह बात ख़ुदावन्द की तरफ़ से हुई है, हम तुझे कुछ बुरा या भला नहीं कह सकते।51देख, रिब्क़ा तेरे सामने मौजूद है, उसे ले और जा, और ख़ुदावन्द के क़ौल के मुताबिक़ अपने आक़ा के बेटे से उसे ब्याह दे।"52जब इब्राहीम के नौकर ने उनकी बातें सुनीं, तो ज़मीन तक झुक कर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया।53और नौकर ने चाँदी और सोने के ज़ेवर, और लिबास निकाल कर रिब्क़ा को दिए, और उसके भाई और उसकी माँ को भी क़ीमती चीजें दीं।54और उसने और उसके साथ के आदमियों ने खाया पिया और रात भर वहीं रहे; सुबह को वह उठे और उसने कहा, कि मुझे मेरे आक़ा के पास रवाना कर दो।"55रिब्क़ा के भाई और माँ ने कहा, कि लड़की को कुछ दिन, कम से कम दस दिन, हमारे पास रहने दे; इसके बा'द वह चली जाएगी।"56उसने उनसे कहा, कि मुझे न रोको क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मेरा सफ़र मुबारक किया है, मुझे रुख़्सत कर दो ताकि मैं अपने आक़ा के पास जाऊँ।"57उन्होंने कहा, "हम लड़की को बुलाकर पूछते हैं कि वह क्या कहती है।"58तब उन्होंने रिब्क़ा को बुला कर उससे पूछा, "क्या तू इस आदमी के साथ जाएगी?” उसने कहा, "जाऊँगी।"59तब उन्होंने अपनी बहन रिब्क़ा और उसकी दाया और इब्राहीम के नौकर और उसके आदमियों को रुख़सत किया।60और उन्होंने रिब्क़ा को दु'आ दी और उससे कहा, "ऐ हमारी बहन, तू लाखों की माँ हो और तेरी नसल अपने कीना रखने वालों के फाटक की मालिक हो।”61और रिब्क़ा और उसकी सहेलियाँ उठकर ऊँटों पर सवार हुई, और उस आदमी के पीछे हो लीं। तब वह ~आदमी रिब्क़ा को साथ लेकर रवाना हुआ।62और इस्हाक़ बेरलही-रोई से होकर चला आ रहा था, क्यूँकि वह दख्खिन के मुल्क में रहता था।63और शाम के वक़्त इस्हाक़ बैतुलख़ला को ~मैदान में गया, और उसने जो अपनी आँखें उठाई और नज़र की तो क्या देखता है कि ऊँट चले आ रहे हैं।64और रिब्क़ा ने निगाह की और इस्हाक़ को देख कर ऊँट पर से उतर पड़ी।65और उसने नौकर से पूछा, 'यह शख़्स कौन है जो हम से मिलने की मैदान में चला आ रहा है?" उस नौकर ने कहा, "यह मेरा आक़ा है।" तब उसने बुरक़ा लेकर अपने ऊपर डाल लिया।66नौकर ने जो-जो किया था सब इस्हाक़ को बताया।67और इस्हाक़ रिब्क़ा को अपनी माँ सारा के डेरे में ले गया। तब उसने रिब्क़ा से ब्याह कर लिया और उससे मुहब्बत की, और इस्हाक़ ने अपनी माँ के मरने के बा'द तसल्ली पाई।
1और इब्राहीम ने फिर एक और बीवी की जिसका नाम क़तूरा था।2और उससे ज़िम्रान और युकसान और मिदान और मिदियान और इसबाक़ और सूख़ पैदा हुए।3और युकसान से सिबा और ददान पैदा हुए, और ददान की औलाद से असूरी और लतूसी और लूमी थे।4और मिदियान के बेटे ऐफ़ा और इफ़िर और हनूक और अबीदा'आ और इल्दू'आ थे; यह सब बनी क़तूरा थे।5और इब्राहीम ने अपना सब कुछ इस्हाक़ को दिया।6और अपनी बाँदियों के बेटों को इब्राहीम ने बहुत कुछ इनाम देकर अपने जीते जी उनको अपने बेटे इस्हाक़ के पास से मशरिक़ की तरफ़ या'नी मशरिक़ के मुल्क में भेज दिया।7और इब्राहीम की कुल 'उम्र जब तक कि वह जिन्दा रहा एक सौ पिच्छत्तर साल की हुई।8तब इब्राहीम ने दम छोड़ दिया और ख़ूब बुढ़ापे में निहायत ज़ईफ़ और पूरी 'उम्र का होकर वफ़ात पाई, और अपने लोगों में जा मिला।9और उसके बेटे इस्हाक़ और इस्मा'ईल ने मकफ़ीला के ग़ार में, जो ममरे के सामने हिती सुहर के बेटे इफ़रोन के खेत में है, उसे दफ़्न किया।10यह वही खेत है जिसे इब्राहीम ने बनी-हित से ख़रीदा था; वहीं इब्राहीम और उसकी बीवी सारा दफ़्न हुए।11और इब्राहीम की वफ़ात के बा'द ख़ुदा ने उसके बेटे इस्हाक़ को बरकत बख़्शी और इस्हाक़ बैर-लही-रोई के नज़दीक रहता था।12यह नसबनामा इब्राहीम के बेटे इस्मा'ईल का है जो इब्राहीम से सारा की लौंडी हाजिरा मिस्री के बत्न से पैदा हुआ।13और इस्मा'ईल के बेटों के नाम यह है : यह नाम तरतीबवार उनकी पैदाइश के मुताबिक़ हैं, इस्मा'ईल का पहलौठा नबायोत था, फिर कीदार और अदबिएल और मिबसाम,14और मिशमा' और दूमा और मस्सा,15हदद और तैमा और यतूर और नफ़ीस और क़िदमा।16यह इस्मा'ईल के बेटे हैं और इन्ही के नामों से इनकी बस्तियां और छावनियाँ नामज़द हुई और यही बारह अपने अपने क़बीले के सरदार हुए।17और इस्मा'ईल की कुल 'उम्र एक सौ सैंतीस साल की हुई तब उसने दम छोड़ दिया और वफ़ात पाई और अपने लोगों में जा मिला।18और उसकी औलाद हवीला से शोर तक, जो मिस्र के सामने उस रास्ते पर है जिस से असूर को जाते हैं आबा'द थी। यह लोग अपने सब भाइयों के सामने बसे हुए थे।19और इब्राहीम के बेटे इस्हाक़ का नसबनामा यह है : इब्राहीम से इस्हाक़ पैदा हुआ:20इस्हाक़ चालीस साल का था जब उसने रिब्क़ा से ब्याह किया, जो फ़द्दान अराम के बाशिन्दे बैतूएल अरामी की बेटी और लाबन अरामी की बहन थी।21और इस्हाक़ ने अपनी बीवी के लिए ख़ुदावन्द से दु'आ की, क्यूँकि वह बाँझ थी; और ख़ुदावन्द ने उसकी दु'आ क़ुबूल की, और उसकी बीवी रिब्क़ा हामिला हुई।22और उसके पेट में दो लड़के आपस में मुज़ाहमत करने लगे। तब उसने कहा, "अगर ऐसा ही है तो मैं जीती क्यूँ हूँ?" और वह ख़ुदावन्द से पूछने गई।23ख़ुदावन्द ने उससे कहा: ‘दो क़ौमें तेरे पेट में हैं, और दो क़बीले तेरे बत्न से निकलते ही अलग-अलग हो जाएँगे। और एक क़बीला दूसरे क़बीले से ताक़तवर होगा, और बड़ा छोटे की ख़िदमत करेगा।"24और जब उसके बच्चा पैदा होने के दिन पूरे हुए, तो क्या देखते हैं कि उसके पेट में जुड़ुवा बच्चे हैं।25और पहला जो पैदा हुआ तो सुर्ख़ था और ऊपर से ऐसा जैसे ऊनी कपड़ा, और उन्होंने उसका नाम 'ऐसौ रख्खा।26उसके बा'द उसका भाई पैदा हुआ और उसका हाथ 'ऐसौ की एड़ी को पकड़े हुए था, और उसका नाम या'क़ूब रख्खा गया; जब वह रिब्क़ा से पैदा हुए तो इस्हाक़ साठ साल का था।27और वह लड़के बढ़े, और 'ऐसौ शिकार में माहिर हो गया और जंगल में रहने लगा, और या'क़ूब सादा मिजाज़ डेरों में रहने वाला आदमी था। ।28और इस्हाक़ 'ऐसौ को प्यार करता था क्यूँकि वह उसके शिकार का गोश्त खाता था और रिब्क़ा या'क़ूब को प्यार करती थी।29और या'क़ूब ने दाल पकाई, और 'ऐसौ जंगल से आया और वह बहुत भूका ~था।30और 'ऐसौ ने या'क़ूब से कहा, "यह जो लाल-लाल है मुझे खिला दे, क्यूँकि मैं बे-दम हो रहा हूँ।" इसी लिए उसका नाम अदोम भी हो गया।31तब या'क़ूब ने कहा, "तू आज अपने पहलौठे का हक़ मेरे हाथ बेच दे।"32'ऐसौ ने कहा, "देख, मैं तो मरा जाता हूँ, पहलौठे का हक़ मेरे किस काम आएगा?"33तब या'क़ूब ने कहा कि आज ही मुझ से क़सम खा, उसने उससे क़सम खाई; और उसने अपना पहलौठे का हक़ या'क़ूब के हाथ बेच दिया।34तब या'क़ूब ने 'ऐसौ को रोटी और मसूर की दाल दी; वह खा-पीकर उठा और चला गया। यूँ 'ऐसौ ने अपने पहलौठे के हक़ की क़द्र न जाना।
1और उस मुल्क में उस पहले काल के 'अलावा जो इब्राहीम के दिनों में पड़ा था, फिर काल पड़ा। तब इस्हाक़ ज़िरार को फ़िलिस्तियों के बादशाह अबीमलिक के पास गया।2और ख़ुदावन्द ने उस पर ज़ाहिर हो कर कहा कि मिस्र को न जा; बल्कि जो मुल्क मैं तुझे बताऊँ उसमें रह।3तू इसी मुल्क में क़याम रख और मैं तेरे साथ रहूँगा और तुझे बरकत बख्शुंगा क्यूँकि मै तुझे और तेरी नसल को यह सब मुल्क दूँगा, और मैं उस क़सम को जो मैंने तेरे बाप इब्राहीम से खाई पूरा करूँगा।4और मैं तेरी औलाद को बढ़ा कर आसमान के तारों की तरह कर दूँगा, और यह सब मुल्क तेरी नसल को दूँगा, और ज़मीन की सब कौमें तेरी नसल के वसीले से बरकत पाएँगी।5इसलिए कि इब्राहीम ने मेरी बात मानी, और मेरी नसीहत और मेरे हुक्मों और कवानीन-ओ-आईन पर 'अमल किया।6फिर इस्हाक़ ज़िरार में रहने लगा;7और वहाँ के बाशिन्दों ने उससे उसकी बीवी के बारे में पूछा। उसने कहा, "वह मेरी बहन है, " क्यूँकि वह उसे अपनी बीवी बताते डरा, यह सोच कर कि कहीं रिबक़ा की वजह से वहाँ के लोग उसे क़त्ल न कर डालें, क्यूँकि वह ख़ूबसूरत थी।8जब उसे वहाँ रहते बहुत दिन हो गए तो, फ़िलिस्तियों के बादशाह अबीमलिक ने खिड़की में से झाँक कर नज़र की और देखा कि इस्हाक़ अपनी बीवी रिब्क़ा से हँसी खेल कर रहा है।9तब अबीमलिक ने इस्हाक़ को बुला कर कहा, "वह तो हक़ीक़त में तेरी बीवी है; फिर तूने क्यूँ कर उसे अपनी बहन बताया?" इस्हाक़ ने उससे कहा, "इसलिए कि मुझे ख़्याल हुआ कि कहीं मैं उसकी वजह से मारा न जाऊँ।"10अबीमलिक ने कहा, "तूने हम से क्या किया? यूँ तो आसानी से इन लोगों में से कोई तेरी बीवी के साथ मुबाश्रत कर लेता, और तू हम पर इल्ज़ाम लाता।"11तब अबीमलिक ने सब लोगों को यह हुक्म किया कि जो कोई इस आदमी को या इसकी बीवी को छुएगा वह मार डाला जाएगा।"12और इस्हाक़ ने उस मुल्क में खेती की और उसी साल उसे सौ गुना फल मिला; और ख़ुदावन्द ने उसे बरकत बख़्शी।13और वह बढ़ गया और उसकी तरक़्क़ी होती गई, यहाँ तक कि वह बहुत बड़ा आदमी हो गया।14और उसके पास भेड़ बकरियाँ और गाय बैल और बहुत से नौकर चाकर थे, और फ़िलिस्तियों को उस पर रश्क आने लगा।15और उन्होंने सब कुएँ जो उसके बाप के नौकरों ने उसके बाप इब्राहीम के वक़्त में खोदे थे, बन्द कर दिए और उनको मिट्टी से भर दिया।16और अबीमलिक ने इस्हाक़ से कहा कि तू हमारे पास से चला जा, क्यूँकि तू हम से ज़्यादा ताक़तवर हो गया है।17तब इस्हाक़ ने वहाँ से जिरार की वादी में जाकर अपना डेरा लगाया और वहाँ रहने लगा।18और इस्हाक़ ने पानी के उन कुओं को जो उसके बाप इब्राहीम के दिनों में खोदे गए थे फिर खुदवाया, क्यूँकि फ़िलिस्तियों ने इब्राहीम के मरने के बा'द उनको बन्द कर दिया था, और उसने उनके फिर वही नाम रख्खे जो उसके बाप ने रख्खे थे।19और इस्हाक़ के नौकरों को वादी में खोदते-खोदते बहते पानी का एक सोता मिल गया।20तब जिरार के चरवाहों ने इस्हाक़ के चरवाहों से झगड़ा किया और कहने लगे कि यह पानी हमारा है। और उसने उस कुएँ का नाम 'इस्क़ ~रख्खा, क्यूँकि उन्होंने उससे झगड़ा किया।21और उन्होंने दूसरा कुआँ खोदा, और उसके लिए भी वह झगड़ने लगे; और उसने उसका नाम सितना रख्खा।22इसलिए वह वहाँ से दूसरी जगह चला गया और एक और कुआँ खोदा, जिसके लिए उन्होंने झगड़ा न किया और उसने उसका नाम रहोबूत रख्खा और कहा किअब ख़ुदावन्द ने हमारे लिए जगह निकाली और हम इस मुल्क में कामयाब होंगे।23वहाँ से वह बैरसबा' को गया।24और ख़ुदावन्द उसी रात उस पर ज़ाहिर हुआ और कहा कि मैं तेरे बाप इब्राहीम का ख़ुदा हूँ! मत डर, क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ और तुझे बरकत दूँगा, और अपने बन्दे ~इब्राहीम की ख़ातिर तेरी नसल बढ़ाऊँगा।25और उसने वहाँ मज़बह बनाया और ख़ुदावन्द से दु'आ की, और अपना डेरा वहीं लगा लिया; और वहाँ इस्हाक़ के नौकरों ने एक कुआँ खोदा।26तब अबीमलिक अपने दोस्त अख़ूज़त और अपने सिपहसालार फ़ीकुल को साथ ले कर, जिरार से उसके पास गया।27इस्हाक़ ने उनसे कहा कि तुम मेरे पास क्यूँ कर आए, हालाँकि मुझ से कीना रखते हो और मुझ को अपने पास से निकाल दिया।28उन्होंने कहा, "हम ने ख़ूब सफ़ाई से देखा कि ख़ुदावन्द तेरे साथ है, तब हम ने कहा कि हमारे और तेरे बीच क़सम हो जाए और हम तेरे साथ 'अहद करें,29कि जैसे हम ने तुझे छुआ तक नहीं, और अलावा नेकी के तुझ से और कुछ नहीं किया और तुझ को सलामत रुख़्सत, किया तू भी हम से कोई बदी न करेगा क्यूँकि तू अब ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक है।"30तब उसने उनके लिए दावत तैयार की और उन्होंने खाया पिया।31और वह सुबह सवेरे उठे और आपस में क़सम खाई; और इस्हाक़ ने उन्हें रुख़्सत किया और वह उसके पास से सलामत चले गए।32उसी रोज़ इस्हाक़ के नौकरों ने आ कर उससे उस कुएँ का ज़िक्र किया जिसे उन्होंने खोदा था और कहा कि हम को पानी मिल गया।33तब उसने उसका नाम सबा' रख्खा : इसीलिए वह शहर आज तक बैरसबा' कहलाता है।34जब 'ऐसौ चालीस साल का हुआ, तो उसने बैरी हिती की बेटी यहूदिथ और ऐलोन हिती की बेटी बशामथ से ब्याह किया;35और वह इस्हाक़ और रिब्क़ा के लिए वबाल-ए-जान हुईं।
1जब इस्हाक़ ज़ईफ़ हो गया, और उसकी आँखें ऐसी धुन्धला गई कि उसे दिखाई न देता था तो उसने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ को बुलाया और कहा, "ऐ मेरे बेटे!" उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ।"2तब उसने कहा, "देख! मैं तो ज़ईफ़ हो गया और मुझे अपनी मौत का दिन मा'लूम नहीं।3इसलिए अब तू ज़रा अपना हथियार, अपना तरकश और अपनी कमान लेकर जंगल को निकल जा और मेरे लिए शिकार मार ला।4और मेरी हस्ब-ए-पसन्द लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार करके मेरे आगे ले आ, ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले दिल से तुझे दु'आ दूँ।5और जब इस्हाक़ अपने बेटे 'ऐसौ से बातें कर रहा था तो रिब्क़ा सुन रही थी, और 'ऐसौ जंगल को निकल गया कि शिकार मार कर लाए।6तब रिब्क़ा ने अपने बेटे या'क़ूब से कहा, कि देख, मैंने तेरे बाप को तेरे भाई 'ऐसौ से यह कहते सुना कि |7'मेरे लिए शिकार मार कर लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार कर ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले ख़ुदावन्द के आगे तुझे दु'आ दूँ।'8इसलिए ऐ मेरे बेटे, इस हुक़्म के मुताबिक़ जो मैं तुझे देती हूँ मेरी बात को मान |9और जाकर रेवड़ में से बकरी के दो अच्छे-अच्छे बच्चे मुझे ला दे, और मैं उनको लेकर तेरे बाप के लिए उसकी हस्ब-ए-पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार कर दूँगी।10और तू उसे अपने बाप के आगे ले जाना, ताकि वह खाए और अपने मरने से पहले तुझे दु'आ दे।11तब या'क़ूब ने अपनी माँ रिब्क़ा से कहा, "देख, मेरे भाई 'ऐसौ के जिस्म पर बाल हैं और मेरा जिस्म साफ़ है।12शायद मेरा बाप मुझे टटोले, तो मैं उसकी नज़र में दग़ाबाज़ ठहरूंगा; और बरकत नहीं बल्कि ला'नत कमाऊँगा।"13उसकी माँ ने उसे कहा, "ऐ मेरे बेटे! तेरी ला'नत मुझ पर आए; तू सिर्फ़ मेरी बात मान और जाकर वह बच्चे मुझे ला दे।"14तब वह गया और उनको लाकर अपनी माँ को दिया, और उसकी माँ ने उसके बाप की हस्ब-ए-पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार किया।15और रिब्क़ा ने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ के नफ़ीस लिबास, जो उसके पास घर में थे लेकर उनकी अपने छोटे बेटे या'क़ूब को पहनाया।16और बकरी के बच्चों की खालें उसके हाथो और उसकी गर्दन पर जहाँ बाल न थे लपेट दीं।17और वह लज़ीज़ खाना और रोटी जो उसने तैयार की थी, अपने बेटे या'क़ूब के हाथ में दे दी।18तब उसने बाप के पास आ कर कहा, "ऐ मेरे बाप!" उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ, तू कौन है मेरे बेटे?"19या'क़ूब ने अपने बाप से कहा, "मैं तेरा पहलौठा बेटा 'ऐसौ हूँ। मैंने तेरे कहने के मुताबिक़ किया है;इसलिए ज़रा उठ और बैठ कर मेरे शिकार का गोश्त खा, ताकि तू दिल से मुझे दु'आ दे।"20तब इस्हाक़ ने अपने बेटे से कहा, "बेटा! तुझे यह इस क़दर जल्द कैसे मिल गया?" उसने कहा, "इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने मेरा काम बना दिया।"21तब इस्हाक़ ने या'क़ूब से कहा, "ऐ मेरे बेटे, ज़रा नज़दीक आ कि मैं तुझे टटोलूँ कि तू मेरा ही बेटा 'ऐसौ है या नहीं।"22और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के नज़दीक गया; और उसने उसे टटोलकर कहा, "आवाज़ तो या'क़ूब की है लेकिन हाथ 'ऐसौ के हैं।"23और उसने उसे न पहचाना, इसलिए कि उसके हाथों पर उसके भाई 'ऐसौ के हाथों की तरह बाल थे; इसलिए उसने उसे दु'आ दी।24और उसने पूछा कि क्या तू मेरा बेटा 'ऐसौ ही है?" उसने कहा, "मैं वही हूँ।"25तब उसने कहा, "खाना मेरे आगे ले आ, और मैं अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाऊँगा, ताकि दिल से तुझे दु'आ दूँ।” तब वह उसे उसके नज़दीक ले आया, और उसने खाया; और वह उसके लिए मय लाया और उसने पी।26फिर उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, "ऐ मेरे बेटे! अब पास आकर मुझे चूम।"27उसने पास जाकर उसे चूमा। तब उसने उसके लिबास की ख़शबू पाई और उसे दु'आ दे कर कहा, "देखो! मेरे बेटे की महक उस खेत की महक की तरह है जिसे ख़ुदावन्द ने बरकत दी हो।28ख़ुदा आसमान की ओस और ज़मीन की फ़र्बही, और बहुत सा अनाज और मय तुझे बख़्शे।29कौमें तेरी खिदमत करें, और क़बीले तेरे सामने झुकें। तू अपने भाइयों का सरदार हो, और तेरी माँ के बेटे तेरे आगे झुकें, जो तुझ पर ला'नत करे वह खुद ला'नती हो, और जो तुझे दु'आ दे वह बरकत पाए।"30जब इस्हाक़ या'क़ूब को दु'आ दे चुका, और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के पास से निकला ही था कि उसका भाई 'ऐसौ अपने शिकार से लौटा।31वह भी लज़ीज़ खाना पका कर अपने बाप के पास लाया, और उसने अपने बाप से कहा, "मेरा बाप उठ कर अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाए, ताकि दिल से मुझे दु'आ दे।32उसके बाप इस्हाक़ ने उससे पूछा कि तू कौन है?" उसने कहा, "मैं तेरा पहलौठा बेटा 'ऐसौ हूँ।"33तब तो इस्हाक़ शिद्दत से काँपने लगा और उसने कहा, "फिर वह कौन था जो शिकार मार कर मेरे पास ले आया, और मैंने तेरे आने से पहले सबमें से थोड़ा-थोड़ा खाया और उसे दु'आ दी? और मुबारक भी वही होगा।"34ऐसौ अपने बाप की बातें सुनते ही बड़ी बुलन्दी और हसरतनाक आवाज़ से चिल्ला उठा, और अपने बाप से कहा, "मुझ को भी दु'आ दे, ऐ मेरे बाप! मुझ को भी।"35उसने कहा, "तेरा भाई दग़ा से आया, और तेरी बरकत ले गया।"36तब उसने कहा, "क्या उसका नाम या'क़ूब ठीक नहीं रख्खा गया? क्यूँकि उसने दोबारा मुझे अड़गा मारा। उसने मेरा पहलौठे का हक़ तो ले ही लिया था, और देख, अब वह मेरी बरकत भी ले गया।" फिर उसने कहा, "क्या तूने मेरे लिए कोई बरकत नहीं रख छोड़ी है?"37इस्हाक़ ने 'ऐसौ को जवाब दिया, कि देख, मैंने उसे तेरा सरदार ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके सुपर्द किया कि ख़ादिम हों, और अनाज और मय उसकी परवरिश के लिए बताई। अब ऐ मेरे बेटे, तेरे लिए मैं क्या करूँ?"38तब 'ऐसौ ने अपने बाप से कहा, "क्या तेरे पास एक ही बरकत है, ऐ मेरे बाप? मुझे भी दु'आ दे, ऐ मेरे बाप, मुझे भी।" और 'ऐसौ ज़ोर-ज़ोर से रोया।39तब उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, "देख ज़रख्खेज़ ज़मीन में तेरा घर हो, और ऊपर से आसमान की शबनम उस पर पड़े।40तेरी अौकात-बसरी तेरी तलवार से हो, और तू अपने भाई की ख़िदमत करे, और जब तू आज़ाद हो; तो अपने भाई का जुआ अपनी गर्दन पर से उतार फेंके।"41और 'ऐसौ ने या'क़ूब से, उस बरकत की वजह से जो उसके बाप ने उसे बख्शी, कीना रख्खा; और 'ऐसौ ने अपने दिल में कहा, कि "मेरे बाप के मातम के दिन नज़दीक हैं, फिर मैं अपने भाई या'क़ूब को मार डालूँगा।"42और रिब्क़ा को उसके बड़े बेटे 'ऐसौ की यह बातें बताई गई; तब उसने अपने छोटे बेटे या'क़ूब को बुलवा कर उससे कहा, "देख, तेरा भाई 'ऐसौ तुझे मार डालने पर है, और यही सोच-सोचकर अपने को तसल्ली दे रहा है।43इसलिए ऐ मेरे बेटे, तू मेरी बात मान, और उठकर हारान को मेरे भाई लाबन के पास भाग जा;44और थोड़े दिन उसके साथ रह, जब तक तेरे भाई की नाराज़गी उतर न जाए।45या'नी जब तक तेरे भाई का क़हर तेरी तरफ़ से ठंडा न हो, और वह उस बात को जो तूने उससे की है भूल न जाए; तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा भेजूँगी। मैं एक ही दिन में तुम दोनों को क्यूँ खो बैठूँ?"46और रिब्क़ा ने इस्हाक़ से कहा, 'मैं हिती लड़कियों की वजह से अपनी ज़िन्दगी से तंग हूँ, इसलिए अगर या'क़ूब हिती लड़कियों में से, जैसी इस मुल्क की लड़कियाँ हैं, किसी से ब्याह कर ले तो मेरी ज़िन्दगी में क्या लुत्फ़ रहेगा?'
1तब इस्हाक़ ने या'क़ूब को बुलाया और उसे दु'आ दी और उसे ताकीद की, कि तू कना'नी लड़कियों में से किसी से ब्याह न करना।2तू उठ कर फ़द्दान अराम को अपने नाना बैतूएल के घर जा, और वहाँ से अपने मामूं लाबन की बेटियों में से एक को ब्याह ला।3और क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा तुझे बरकत बख़्शे और तुझे क़ामयाब करे और बढ़ाए, कि तुझ से क़ौमों के क़बीले ~पैदा हों।4और वह इब्राहीम की बरकत तुझे और तेरे साथ तेरी नसल को दे, कि तेरी मुसाफ़िरत की यह सरज़मीन जो ख़ुदा ने इब्राहीम को दी तेरी मीरास हो जाए।5तब इस्हाक़ ने या'क़ूब को रुख्सत किया और वह फ़द्दान अराम में लाबन के पास, जो अरामी बैतूएल का बेटा और या'क़ूब और 'ऐसौ की माँ रिब्क़ा का भाई था गया।6फिर जब 'ऐसौ ने देखा कि इस्हाक़ ने या'क़ूब को दु'आ देकर उसे फ़द्दान अराम भेजा है, ताकि वह वहाँ से बीवी ब्याह कर लाए; और उसे दु'आ देते वक़्त यह ताकीद भी की है कि तू कना'नी लड़कियों में से किसी से ब्याह न करना |7और या'क़ूब अपने माँ बाप की बात मान कर फ़द्दान अराम को चला गया।8और 'ऐसौ ने यह भी देखा कि कना'नी लड़कियाँ उसके बाप इस्हाक़ को बुरी लगती हैं,9तो 'ऐसौ इस्मा'ईल के पास गया और महलत को, जो इस्मा'ईल-बिन-इब्राहीम की बेटी और नबायोत की बहन थी, ब्याह कर उसे अपनी और बीवियों में शामिल किया।10और या'क़ूब बैर-सबा' से निकल कर हारान की तरफ़ चला।11और एक जगह पहुँच कर सारी रात वहीं रहा क्यूँकि सूरज डूब गया था, और उसने उस जगह के पत्थरों में से एक उठा कर अपने सरहाने रख लिया और उसी जगह सोने को लेट गया।12और ख़्वाब में क्या देखता है कि एक सीढ़ी ज़मीन पर खड़ी है, और उसका सिरा आसमान तक पहुँचा हुआ है। और ख़ुदा के फ़रिश्ता उस पर से चढ़ते उतरते हैं।13और ख़ुदावन्द उसके ऊपर खड़ा कह रहा है, कि मैं ख़ुदावन्द, तेरे बाप इब्राहीम का ख़ुदा और इस्हाक़ का ख़ुदा हूँ। मैं यह ज़मीन जिस पर तू लेटा है तुझे और तेरी नसल को दूँगा।14और तेरी नसल ज़मीन की गर्द के ज़रों की तरह होगी और तू मशरिक़ और मग़रिब और शिमाल और दख्खिनमें फैल जाएगा, और ज़मीन के सब क़बीले तेरे और तेरी नसल के वसीले से बरकत पाएंगे।15और देख, मैं तेरे साथ हूँ और हर जगह जहाँ कहीं तू जाए तेरी हिफ़ाज़त करूँगा और तुझ को इस मुल्क में फिर लाऊँगा, और जो मैंने तुझ से कहा है जब तक उसे पूरा न कर लें तुझे नहीं छोडुंगा।16तब या'क़ूब जाग उठा और कहने लगा, कि यक़ीनन ख़ुदावन्द इस जगह है और मुझे मा'लूम न था।”17और उसने डर कर कहा, "यह कैसी ख़ौफ़नाक जगह है! तो यह ख़ुदा के घर और आसमान के आसताने के अलावा और कुछ न होगा।"18और या'क़ूब सुब्ह-सवेरे उठा, और उस पत्थर की जिसे उसने अपने सरहाने रख्खा ~था लेकर सुतून की तरह खड़ा किया और उसके सिरे पर तेल डाला।19और उस जगह का नाम बैतएल रख्खा, लेकिन पहले उस बस्ती का नाम लूज़ था।20और या'क़ूब ने मन्नत मानी और कहा कि अगर ख़ुदा मेरे साथ रहे, और जो सफ़र मैं कर रहा हूँ उसमें मेरी हिफ़ाज़त करे, और मुझे खाने को रोटी और पहनने की कपड़ा देता रहे,21और मैं अपने बाप के घर सलामत लौट आऊँ; तो ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा होगा।22और यह पत्थर जो मैंने सुतून सा खड़ा किया है, ख़ुदा का घर होगा; और जो कुछ तू मुझे दे उसका दसवाँ हिस्सा ज़रूर ही तुझे दिया करूँगा।
1और या'क़ूब आगे चल कर मशरिक़ी लोगों के मुल्क में पहुँचा।2और उसने देखा कि मैदान में एक कुआँ है और कुएँ के नज़दीक भेड़ बकरियों के तीन रेवड़ बैठे हैं; क्यूँकि चरवाहे इसी कुएँ से रेवड़ों को पानी पिलाते थे और कुएँ के मुँह पर एक बड़ा पत्थर रख्खा ~रहता था।3और जब सब रेवड़ वहाँ इकट्ठे होते थे, तब वह उस पत्थर को कुएँ के मुँह पर से ढलकाते और भेड़ों को पानी पिला कर उस पत्थर को ~फिर उसी जगह कुएँ के मुँह पर रख देते थे।4तब या'क़ूब ने उनसे कहा, "ऐ मेरे भाइयों, तुम कहाँ के हो?" उन्होंने कहा, "हम हारान के हैं।"5फिर उसने पूछा कि तुम नहूर के बेटे लाबन से वाकिफ़ हो? उन्होंने कहा, "हम वाकिफ़ हैं।"6उसने पूछा, "क्या वह ख़ैरियत से है?" उन्होंने कहा, "ख़ैरियत से है, और वह देख, उसकी बेटी राख़िल भेड़ बकरियों के साथ चली आती है।"7और उसने कहा, "देखो, अभी तो दिन बहुत है, और चौपायों के जमा' होने का वक़्त नहीं। तुम भेड़ बकरियों को पानी पिला कर फिर चराने को ले जाओ।8उन्होंने कहा, "हम ऐसा नहीं कर सकते, जब तक कि सब रेवड़ जमा' न हो जाएँ। तब हम उस पत्थर को कुएँ के मुँह पर से ढलकाते हैं, और भेड़ बकरियों को पानी पिलाते हैं।"9वह उनसे बातें कर ही रहा था कि राख़िल अपने बाप की भेड़ बकरियों के साथ आई, क्यूँकि वह उनको चराया करती थी।10जब या'क़ूब ने अपने मामूँ लाबन की बेटी राख़िल को और अपने मामूँ लाबन के रेवड़ को देखा, तो वह नज़दीक गया और पत्थर को कुएँ के मुँह पर से ढलका कर अपने मामूँ लाबन के रेवड़ को पानी पिलाया।11और या'क़ूब ने राख़िल को चूमा और ज़ोर ज़ोर से रोया।12और या'क़ूब ने राख़िल से कहा, कि मैं तेरे बाप का रिश्तेदार और रिब्क़ा का बेटा हूँ। तब उसने दौड़ कर अपने बाप को ख़बर दी।13लाबन अपने भांजे की ख़बर पाते ही उससे मिलने को दौड़ा, और उसको गले लगाया और चूमा और उसे अपने घर लाया; तब उसने लाबन को अपना सारा हाल बताया।14लाबन ने उसे कहा, "तू वाक़'ई मेरी हड्डी और मेरा गोश्त है।" फिर वह एक महीना उसके साथ रहा।15तब लाबन ने या'क़ूब से कहा, "चूँकि तू मेरा रिश्तेदार है, तो क्या इसलिए लाज़िम है कि तू मेरी ख़िदमत मुफ़्त करे?इसलिए ~मुझे बता कि तेरी मजदुरी क्या होगी?"16और लाबन की दो बेटियाँ थीं, बड़ी का नाम लियाह और छोटी का नाम राख़िल था।17लियाह की आखें भूरी थीं लेकिन राख़िल हसीन और ख़ूबसूरत थी।18और या'क़ूब राख़िल पर फ़िदा था, तब उसने कहा, "तेरी छोटी बेटी राख़िल की ख़ातिर मैं सात साल तेरी खिदमत करूँगा।"19लाबन ने कहा, "उसे ग़ैर आदमी को देने की जगह तुझी को देना बेहतर है, तू मेरे पास रह।"20चुनाँचे या'क़ूब सात साल तक राख़िल की ख़ातिर ख़िदमत करता रहा लेकिन वह उसे राख़िल की मुहब्बत की वजह से चन्द दिनों के बराबर मा'लूम हुए।21या'क़ूब ने लाबन से कहा कि मेरी मुद्दत पूरी हो गई, इसलिए मेरी बीवी मुझे दे ताकि मैं उसके पास जाऊँ।22तब लाबन ने उस जगह के सब लोगों को बुला कर जमा' किया और उनकी दावत की।23और जब शाम हो गई तो अपनी बेटी लियाह को उसके पास ले आया, और या'क़ूब उससे हम आगोश हुआ।24और लाबन ने अपनी लौंडी ज़िल्फ़ा अपनी बेटी लियाह के साथ कर दी कि उसकी लौंडी हो।25जब सुबह को मा'लूम हुआ कि यह तो लियाह है, तब उसने लाबन से कहा, कि तूने मुझ से ये क्या किया? क्या मैंने जो तेरी ख़िदमत की, वह राख़िल की ख़ातिर न थी? फिर तूने क्यूँ मुझे धोका दिया?"26लाबन ने कहा कि हमारे मुल्क में ये दस्तूर नहीं के पहलौठी से पहले छोटी को ब्याह दें।27तू इसका हफ़्ता पूरा कर दे, फिर हम दूसरी भी तुझे दे देंगे; जिसकी ख़ातिर तुझे सात साल और मेरी ख़़िदमत करनी होगी।28या'क़ूब ने ऐसा ही किया, कि लियाह का हफ़्ता पूरा किया; तब लाबन ने अपनी बेटी राख़िल भी उसे ब्याह दी।29और अपनी लौडी बिल्हाह अपनी बेटी राख़िल के साथ कर दी कि उसकी लौंडी हो।30इसलिए वह राख़िल से भी हमआग़ोश हुआ, और वह लियाह से ज़्यादा राख़िल को चाहता था; और सात साल और साथ रह कर लाबन की ख़िदमत की।31और जब ख़ुदावन्द ने देखा कि लियाह से नफ़रत की गई, तो उसने उसका रिहम खोला, मगर राख़िल बाँझ रही।32और लियाह हामिला हुई और उसके बेटा हुआ, और उसने उसका नाम रूबिन रख्खा क्यूँकि उसने कहा कि ख़ुदावन्द ने मेरा दुख देख लिया, इसलिए मेरा शौहर अब मुझे प्यार करेगा।33वह फिर हामिला हुई और उसके बेटा हुआ तब उसने कहा कि ख़ुदावन्द ने सुना कि मुझ से नफ़रत की गई, इसलिए उसने मुझे यह~भी बख़्शा।" तब उसने उसका नाम शमा'ऊन रख्खा।34और वह फिर हामिला हुई और उसके बेटा हुआ तब उसने कहा, "अब इस बार मेरे शौहर को मुझ से लगन होगी, क्यूँकि उससे मेरे तीन बेटे हुए।" इसलिए उसका नाम लावी रख्खा गया।35और वह फिर हामिला हुई और उसके बेटा हुआ तब उसने कहा कि अब मैं ख़ुदावन्द की हम्द करूँगी।" इसलिए उसका नाम यहूदाह रख्खा। फिर उसके औलाद होने में देरी हुई।
1और जब राख़िल ने देखा कि या'क़ूब से उसके औलाद नहीं होती तो राख़िल को अपनी बहन पर रश्क आया, तब वह या'क़ूब से कहने लगी, "मुझे भी औलाद दे नहीं तो मैं मर जाऊँगी।"2तब या'क़ूब का क़हर राख़िल पर भड़का और उस ने कहा, "क्या मैं ख़ुदा की जगह हूँ जिसने तुझ को औलाद से महरूम रख्खा है?"3उसने कहा, "देख, मेरी लौंडी बिल्हाह हाज़िर है, उसके पास जा ताकि मेरे लिए उससे औलाद हो और वह औलाद मेरी ठहरे।"4और उसने अपनी लौंडी बिल्हाह को उसे दिया के उसकी बीवी बने, और या'क़ूब उसके पास गया।5और बिल्हाह हामिला हुई, और या'क़ूब से उसके बेटा हुआ।6तब राख़िल ने कहा कि ख़ुदा ने मेरा इंसाफ़ किया और मेरी फ़रियाद भी सुनी और मुझ को बेटा बख़्शा।" इसलिए उसने उसका नाम दान रख्खा।7और राख़िल की लौंडी बिल्हाह फिर हामिला हुई और या'क़ूब से उसके दूसरा बेटा हुआ।8तब राख़िल ने कहा, "मैं अपनी बहन के साथ निहायत ज़ोर मार-मारकर कुश्ती लड़ी और मैंने फ़तह पाई।" इसलिए उसने उसका नाम नफ़्ताली रख्खा।9जब लियाह ने देखा कि वह जनने से रह गई तो उसने अपनी लौंडी ज़िलफ़ा को लेकर या'क़ूब को दिया कि उसकी बीवी बने।10और लियाह की लौंडी ज़िलफ़ा के भी या'क़ूब से एक बेटा हुआ।11तब लियाह ने कहा, "ज़हे-किस्मत!" तब उसने उसका नाम जद रख्खा।12लियाह की लौंडी ज़िलफ़ा के या'क़ूब से फिर एक बेटा हुआ।13तब लियाह ने कहा, "मैं ख़ुश क़िस्मत हूँ: 'औरतें मुझे खुश क़िस्मत कहेंगी।" और उसने उसका नाम आशर रख्खा ।14और रूबिन गेहूँ काटने के मौसम में घर से निकला और उसे खेत में मदुम गियाह मिल गए, और वह अपनी माँ लियाह के पास ले आया। तब राख़िल ने लियाह से कहा ~किअपने बेटे के मदुम गियाह में से मुझे भी कुछ दे दे।15उसने कहा, "क्या ये छोटी बात है कि तूने मेरे शौहर को ले लिया, और अब क्या मेरे बेटे के मदुम गियाह भी लेना चाहती है?" राख़िल ने कहा, "बस तो आज रात वह तेरे बेटे के मदुम गियाह की ख़ातिर तेरे साथ सोएगा।"16जब या'क़ूब शाम को खेत से आ रहा था तो लियाह आगे से उससे मिलने को गई और कहने लगी कि तुझे मेरे पास आना होगा, क्यूँकि मैंने अपने बेटे के मदुम गियाह के बदले तुझे मज़दूरी पर लिया है। ~वह उस रात उसी के साथ सोया।17और ख़ुदा ने लियाह की सुनी और वह हामिला हुई, और या'क़ूब से उसके पाँचवाँ बेटा हुआ।18तब लियाह ने कहा कि ख़ुदा ने मेरी मज़दूरी मुझे दी क्यूँकि मैंने अपने शौहर को अपनी लौंडी दी।" और उसने उसका नाम इश्कार रख्खा।19और लियाह फिर हामिला हुई और या'क़ूब से उसके छटा बेटा हुआ।20तब लियाह ने कहा कि ख़ुदा ने अच्छा महर मुझे बख़्शा; अब मेरा शौहर मेरे साथ रहेगा क्यूँकि मेरे उससे छ: बेटे हो चुके हैं। इसलिए उसने उसका नाम ज़बूलून रख्खा।21इसके बा'द उसके एक बेटी हुई और उसने उसका नाम दीना रख्खा।22और ख़ुदा ने राख़िल को याद किया, और ख़ुदा ने उसकी सुन कर उसके रहम को खोला।23और वह हामिला हुई और उसके बेटा हुआ, तब उसने कहा कि ख़ुदा ने मुझ से रुस्वाई दूर की।24और उस ने उसका नाम युसुफ़ यह कह कर रख्खा कि ख़ुदा वन्द मुझ को एक और बेटा बख़्शे |25और जब राख़िल से युसुफ़ पैदा हुआ तो या'क़ूब ने लाबन से कहा, "मुझे रुख़्सत कर कि मैं अपने घर और अपने वतन को जाऊँ।26मेरी बीवियाँ और मेरे बाल बच्चे जिनकी ख़ातिर मैं ने तेरी ख़िदमत की है ~मेरे हवाले कर और मुझे जाने दे, क्यूँकि तू ख़ुद जानता है कि मैंने तेरी कैसी ख़िदमत की है।"27तब लाबन ने उसे कहा, "अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो यहीं रह क्यूँकि मैं जान गया हूँ कि ख़ुदावन्द ने तेरी वजह से मुझ को बरकत बख़्शी है।"28और यह भी कहा कि मुझ से तू अपनी मज़दूरी ठहरा ले, और मैं तुझे दिया करूँगा।29उसने उसे कहा कि तू ख़ुद जानता है कि मैंने तेरी कैसी ख़िदमत की और तेरे जानवर मेरे साथ कैसे रहे।30क्यूँकि मेरे आने से पहले यह थोड़े थे और अब बढ़ कर बहुत से हो गए हैं, और ख़ुदावन्द ने जहाँ जहाँ मेरे क़दम पड़े तुझे बरकत बख़्शी। अब मैं अपने घर का बन्दोबस्त कब करूँ?"31उसने कहा, "तुझे मैं क्या दूँ?" या'क़ूब ने कहा, "तू मुझे कुछ न देना, लेकिन अगर तू मेरे लिए एक काम कर दे तो मैं तेरी भेड़-बकरियों को फिर चराऊँगा और उनकी निगहबानी करूँगा।32मैं आज तेरी सब भेड़-बकरियों में चक्कर लगाऊँगा, और जितनी भेड़ें चितली और अबलक और काली हों और जितनी बकरियाँ अबलक और चितली हों उन सबको अलग एक तरफ़ कर दूँगा, इन्हीं को मैं अपनी मज़दूरी ठहराता हूँ।33और आइन्दा जब कभी मेरी मज़दूरी का हिसाब तेरे सामने ही तो मेरी सच्चाई आप मेरी तरफ़ से इस तरह बोल उठेगी, कि जो बकरियाँ चितली और अबलक नहीं और जो भेड़े काली नहीं अगर वह मेरे पास हों तो चुराई हुई समझी जाएँगी।"34लाबन ने कहा, "मैं राज़ी हूँ, जो तू कहे वही सही।"35और उसने उसी रोज़ धारीदार और अबलक बकरों की और सब चितली और अबलक बकरियों को जिनमें कुछ सफ़ेदी थी, और तमाम काली भेड़ों को अलग करके उनकी अपने बेटों के हवाले किया।36और उसने अपने और या'क़ूब के बीच तीन दिन के सफ़र का फ़ासला ठहराया; और या'क़ूब लाबन के बाक़ी रेवड़ों को चराने लगा।37और या'क़ूब ने सफ़ेदा और बादाम, और चिनार की हरी हरी छड़ियाँ लीं उनको छील छीलकर इस तरह गन्डेदार बना लिया के उन छड़ियों की सफ़ेदी दिखाई देने लगी।38और उसने वह गन्डेदार छड़ियाँ भेड़-बकरियों के सामने हौज़ों और नालियों में जहाँ वह पानी पीने आती थीं खड़ी कर दीं, और जब वह पानी पीने आई तब गाभिन हो गई।39और उन छड़ियों के आगे गाभिन होने की वजह से उन्होने धारीदार, चितले और अबलक बच्चे दिए।40और या'क़ूब ने भेड़ बकरियों के उन बच्चों को अलग किया, और लाबन की भेड़-बकरियों के मुँह धारीदार और काले बच्चों की तरफ़ फेर दिए और उसने अपने रेवड़ों को जुदा किया, और लाबन की भेड़ बकरियों में मिलने न दिया।41और जब मज़बूत भेड़-बकरियाँ गाभिन होती थीं तो या'क़ूब छड़ियों को नालियों में उनकी आँखों के सामने रख देता था, ताकि वह उन छड़ियों के आगे गाभिन हों।42लेकिन जब भेड़ बकरियाँ दुबली होतीं तो वह उनको वहाँ नहीं रखता था। इसलिए दुबली तो लाबन की रहीं और मज़बूत या'क़ूब की हो गई।43चुनाँचे वह निहायत बढ़ता गया और उसके पास बहुत से रेवड़ और लौंडिया और नौकर चाकर और ऊँट और गधे हो गये |
1और उसने लाबन के बेटों की यह बातें सुनीं, कि या'क़ूब ने हमारे बाप का सब कुछ ले लिया और हमारे बाप के माल की बदौलत उसकी यह सारी शान-ओ- शौकत है।"2और या'क़ूब ने लाबन के चेहरे को देख कर ताड़ लिया कि उसका रुख़ पहले से बदला हुआ है।3और ख़ुदावन्द ने या'क़ूब से कहा, कि तू अपने बाप दादा के मुल्क को और अपने रिश्तेदारो के पास लौट जा, और मैं तेरे साथ रहूँगा।4तब या'क़ूब ने राख़िल और लियाह को मैदान में जहाँ उसकी भेड़-बकरियाँ थीं बुलवाया5और उनसे कहा, "मैं देखता हूँ कि तुम्हारे बाप का रुख़ पहले से बदला हुआ है, लेकिन मेरे बाप का ख़ुदा मेरे साथ रहा।6तुम तो जानती हो कि मैंने अपनी ताक़त के मुताबिक़ तुम्हारे बाप की ख़िदमत की है।7लेकिन तुम्हारे बाप ने मुझे धोका दे देकर दस बार मेरी मज़दूरी बदली, लेकिन ख़ुदा ने उसको मुझे नुक़्सान पहुँचाने न दिया।8जब उसने यह कहा कि चितले बच्चे तेरी मज़दूरी होंगे, तो भेड़ बकरियाँ चितले बच्चे देने लगीं, और जब कहा कि धारीदार बच्चे तेरे होंगे, तो भेड़-बकरियों ने धारीदार बच्चे दिए।9यूँ ख़ुदा ने तुम्हारे बाप के जानवर लेकर मुझे दे दिए।10और जब भेड़ बकरियाँ गाभिन हुई, तो मैंने ख़्वाब में देखा कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं वो धारीदार, चितले और चितकबरे हैं।11और ख़ुदा के फ़रिश्ते ने ख़्वाब में मुझ से कहा, 'ऐ या'कूब!' मैंने कहा, 'मैं हाज़िर हूँ।'12तब उसने कहा कि अब तू अपनी आँख उठा कर देख, कि सब बकरे जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं धारीदार चितले और चितकबरे हैं, क्यूँकि जो कुछ लाबन तुझ से करता है मैंने देखा।13मैं बैतएल का ख़ुदा हूँ, जहाँ तूने सुतून पर तेल डाला और मेरी मन्नत मानी, इसलिए अब उठ और इस मुल्क से निकल कर अपने वतन ~को लौट जा'।14तब राख़िल और लियाह ने उसे जवाब दिया, "क्या, अब भी हमारे बाप के घर में कुछ हमारा बख़रा या मीरास है?15क्या वह हम को अजनबी के बराबर नहीं समझता? क्यूँकि उसने हम को भी बेच डाला और हमारे रुपये भी खा बैठा।16इसलिए अब जो दौलत ख़ुदा ने हमारे बाप से ली वह हमारी और हमारे फ़र्ज़न्दों की है, फिर जो कुछ ख़ुदा ने तुझ से कहा है वही कर।"17तब या'क़ूब ने उठ कर अपने बाल बच्चों और बीवियों को ऊँटों पर बिठाया।18और अपने सब जानवरों और माल-ओ-अस्बाब को जो उसने इकट्ठा किया था, या'नी वह जानवर जो उसे फ़द्दान-अराम में मज़दूरी में मिले थे, लेकर चला ताकि मुल्क-ए-कना'न में अपने बाप इस्हाक़ के पास जाए।19और लाबन अपनी भेड़ों की ऊन कतरने को गया हुआ था, तब राख़िल अपने बाप के बुतों को चुरा ले गई।20और या'क़ूब लाबन अरामी के पास से चोरी से चला गया, क्यूँकि उसे उसने अपने भागने की ख़बर न दी।21फिर वह अपना सब कुछ लेकर भागा और दरिया पार होकर अपना रुख़ कोह-ए-जिल'आद की तरफ किया।22और तीसरे दिन लाबन की ख़बर हुई कि या'क़ूब भाग गया।23तब उसने अपने भाइयों को हमराह लेकर सात मन्ज़िल तक उसका पीछा किया, और जिल'आद के पहाड़ पर उसे जा पकड़ा।24और रात को ख़ुदा लाबन अरामी के पास ख़्वाब में आया और उससे कहा कि ख़बरदार, तू या'क़ूब को बुरा या भला कुछ न कहना।25और लाबन या'क़ूब के बराबर जा पहुँचा और या'क़ूब ने अपना ख़ेमा पहाड़ पर खड़ा कर रख्खा था। इसलिए लाबन ने भी अपने भाइयों के साथ जिल'आद के पहाड़ पर डेरा लगा लिया।26तब लाबन ने या'क़ूब से कहा, कि तूने यह क्या किया कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को भी इस तरह ले आया गोया वह तलवार से क़ैद की गई हैं?27तू छिप कर क्यूँ भागा और मेरे पास से चोरी से क्यूँ चला आया और मुझे कुछ कहा भी नहीं, वरना मैं तुझे खु़शी-खु़शी तबले और बरबत के साथ गाते बजाते रवाना करता?28और मुझे अपने बेटों और बेटियों को चूमने भी न दिया? यह तूने बेहूदा काम किया।29मुझ में इतनी ताक़त है कि तुम को दुख दूँ, लेकिन तेरे बाप के ख़ुदा ने कल रात मुझे यूँ कहा, कि ख़बरदार तू या'क़ूब को बुरा या भला कुछ न कहना।'30खै़र! अब तू चला आया तो चला आया क्यूँकि तू अपने बाप के घर का बहुत ख़्वाहिश मन्द है, लेकिन मेरे बुतों को क्यूँ चुरा लाया?"31तब या'क़ूब ने लाबन से कहा, "इसलिए कि मैं डरा, क्यूँकि कि मैंने सोचा कि कहीं तू अपनी बेटियों को जबरन मुझ से छीन न ले।32अब जिसके पास तुझे तेरे बुत मिलें वह ज़िन्दा नहीं बचेगा। तेरा जो कुछ मेरे पास निकले उसे इन भाइयों के आगे पहचान कर ले।" क्यूँकि या'क़ूब को मा'लूम न था कि राख़िल उन बुतों को चुरा लाई है।33चुनांचे लाबन या'क़ूब और लियाह और दोनों लौंडियों के ख़ेमों में गया लेकिन उनको वहाँ न पाया, तब वह लियाह के ख़ेमा से निकल कर राख़िल के ख़ेमे में दाख़िल हुआ।34और राख़िल उन बुतों को लेकर और उनकी ऊँट के कजावे में रख कर उन पर बैठ गई थी, और लाबन ने सारे ख़में में टटोल टटोल कर देख लिया पर उनको न पाया।35तब वह अपने बाप से कहने लगी, "ऐ मेरे बुज़ुर्ग! तू इस बात से नाराज़ न होना कि मैं तेरे आगे उठ नहीं सकती, क्यूँकि मैं ऐसे हाल में हूँ जो 'औरतों का हुआ करता है।" तब उसने ढूंडा पर वह बुत उसको न मिले।36तब या'क़ूब ने ग़ुस्सा होकर लाबन को मलामत की और या'क़ूब लाबन से कहने लगा कि मेरा क्या जुर्म और क्या क़ुसूर है कि तूने ऐसी तेज़ी से मेरा पीछा किया?37तूने जो मेरा सारा सामान टटोल-टटोल कर देख लिया तो तुझे तेरे घर के सामान में से क्या चीज़ मिली? अगर कुछ है तो उसे मेरे और अपने इन भाइयो के आगे रख, कि वह हम दोनों के बीच इंसाफ़ करें।38मैं पूरे बीस साल तेरे साथ रहा; न तो कभी तेरी भेड़ों और बकरियों का गाभ गिरा, और न तेरे रेवड़ के मेंढे मैंने खाए।39जिसे दरिन्दों ने फाड़ा मैं उसे तेरे पास न लाया, उसका नुक़्सान मैंने सहा; जो दिन की या रात को चोरी गया उसे तूने मुझ से तलब किया।40मेरा हाल यह रहा कि मैं दिन को गर्मी और रात को सर्दी में मरा और मेरी आँखों से नींद दूर रहती थी।41मैं बीस साल तक तेरे घर में रहा, चौदह साल तक तो मैंने तेरी दोनों बेटियों की ख़ातिर और छ: साल तक तेरी भेड़ बकरियों की ख़ातिर तेरी ख़िदमत की, और तूने दस बार मेरी मज़दूरी बदल डाली।42अगर मेरे बाप का ख़ुदा इब्राहीम का मा'बूद जिसका रौब इस्हाक़ मानता था, मेरी तरफ़ न होता तो ज़रूर ही तू अब मुझे ख़ाली हाथ जाने देता। ख़ुदा ने मेरी मुसीबत और मेरे हाथों की मेहनत देखी है और कल रात तुझे डाँटा भी।"43तब लाबन ने या'क़ूब को जवाब दिया, "यह बेटियाँ भी मेरी और यह लड़के भी मेरे और यह भेड़ बकरियाँ भी मेरी हैं, बल्कि जो कुछ तुझे दिखाई देता है वह सब मेरा ही है। इसलिए मैं आज के दिन अपनी ही बेटियों से या उनके लड़कों से जो उनके हुए क्या कर सकता हूँ?44फिर अब आ, कि मैं और तू दोनों मिल कर आपस में एक 'अहद बाँधे और वही मेरे और तेरे बीच गवाह रहे।45तब या'क़ूब ने एक पत्थर लेकर उसे सुतून की तरह खड़ा किया।46और या'क़ूब ने अपने भाइयों से कहा, "पत्थर जमा' करो!" उन्होंने पत्थर जमा' करके ढेर लगाया और वहीं उस ढेर के पास उन्होंने खाना खाया।47और लाबन ने उसका नाम यज्र शाहदूथा और या'क़ूब ने जिल'आद रख्खा।48और लाबन ने कहा कि यह ढेर आज के दिन मेरे और तेरे बीच गवाह हो। इसी लिए उसका नाम जिल'आद रख्खा गया।49और मिस्फ़ाह भी क्यूँकि लाबन ने कहा कि जब हम एक दूसरे से गैर हाज़िर हों तो ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच निगरानी करता रहे।50अगर तू मेरी बेटियों को दुख दे और उनके अलावा और बीवियाँ करे तो कोई आदमी हमारे साथ नहीं है लेकिन देख ख़ुदा मेरे और तेरे बीच में गवाह है।51लाबन ने या'क़ूब से यह भी कहा कि इस ढेर को देख और उस सुतून को देख जो मैंने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है |52यह ढेर गवाह हो और ये सुतून गवाह हो, नुक़सान पहुँचाने के लिए न तो मैं इस ढेर से उधर तेरी तरफ़ हद से बढूँ और न तू इस ढेर और सुतून से इधर मेरी तरफ़ हद से बढ़े।53इब्राहीम का ख़ुदा और नहूर का ख़ुदा और उनके बाप का ख़ुदा हमारे बीच में इंसाफ़ करे।" और या'क़ूब ने उस ज़ात की क़सम खाई जिसका रौ'ब उसका बाप इस्हाक़ मानता था।54तब या'क़ूब ने वहीं पहाड़ पर क़ुर्बानी पेश की और अपने भाइयों को खाने पर बुलाया, और उन्होंने खाना खाया और रात पहाड़ पर काटी।55और लाबन सुबह-सवेरे उठा और अपने बेटों और अपनी बेटियों को चूमा और उनको दु'आ देकर रवाना हो गया और अपने मकान को लौटा।
1और या'क़ूब ने भी अपनी राह ली और ख़ुदा के फ़रिश्ता उसे मिले।2और या'क़ूब ने उनको देख कर कहा, कि यह ख़ुदा का लश्कर है और उस जगह का नाम महनाइम रख्खा।3और या'क़ूब ने अपने आगे-आगे क़ासिदों को अदोम के मुल्क को, जो श'ईर की सर-ज़मीन में है, अपने भाई 'ऐसौ के पास भेजा,4और उनको हुक्म दिया, कि तुम मेरे ख़ुदावन्द 'ऐसौ से यह कहना कि आपका बन्दा या'क़ूब कहता है, कि मै लाबन के यहाँ मुक़ीम था और अब तक वहीं रहा |5और मेरे पास गाय बैल गधे और भेड़ बकरियाँ और नौकर चाकर और लौंडियाँ है और मै अपने ख़ुदावन्द के पास इसलिए ख़बर भेजता हूँ कि मुझ पर आप के करम की नज़र हो6फिर क़ासिद या'क़ूब के पास ~लौट कर आए और कहने लगे कि हम भाई 'ऐसौ के पास गए थे ;वह चार सौ आदमियों को साथ लेकर तेरी मुलाक़ात को आ रहा है7तब या'क़ूब निहायत डर गया और परेशान हो और उस ने अपने साथ के लोगों और भेड़ बकरियों और गाये बैलों और ऊँटों के दो ग़ोल किए8और सोचा कि 'ऐसौ एक ग़ोल पर आ पड़े और उसे मारे तो दुसरा ग़ोल बच कर भाग जाएगा9और या'क़ूब ने कहा ऐ मेरे बापअब्राहम के ख़ुदा और मेरे बाप इस्हाक़ के ख़ुदा !ऐ ख़ुदावन्द जिस ने मुझे यह~फ़रमाया कि तू अपने मुल्क को अपने रिश्तादारों के पास लौट जा और मैं तेरे साथ भलाई करूँगा10मै तेरी सब रहमतों और वफ़ादारी के मुक़ाबला में जो तूने अपने बन्दा के साथ बरती है बिल्कुल हेच हूँ क्यूँकि मै सिर्फ़ अपनी लाठी लेकर इस यरदन के पार गया था और अब ऐसा हूँ कि मेरे दो ग़ोल हैं11मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे मेरे भाई 'ऐसौ के हाथ से बचा ले क्यूँकि मै उस से डरता हूँ कि कहीं वह आकर मुझे और बच्चों को माँ समेत मार न डाले12यह तेरा ही फ़रमान है कि मैं तेरे साथ ज़रूर भलाई करूँगा और तेरी नसल को दरिया की रेत की तरह बनाऊंगा जो कसरत की वजह से गिनी नहीं जा सकती |13और वह उस रात वही रहा और जो उसके पास था उस में से अपने भाई 'ऐसौ के लिए यह नज़राना लिया |14दो सौ बकरियां और बीस बकरे ;दो सौ भेड़ें और बीस मेंढ़े |15और तीस दूध देने वाली ऊँटनीयां बच्चों समेत और चालीस गाय और दस बैल बीस गधियाँ और दस गधे16और उनको जुदा-जुदा ग़ोल कर के नौकरों को सौंपना और उन से कहा कि तुम मेरे आगे आगे पार जाओ और ग़ोलों को ज़रा दूर दूर रखना |17और उसने सब से अगले ग़ोल के रखवाले को हुक्म दिया कि जब मेरा भाई 'एेसौ तुझे मिले और तुझ से पूछे कि तू किस का नौकर है और कहाँ जाता है और यह~जानवर जो तेरे आगे आगे हैं किस के हैं ?18तू कहना कि यह तेरे ख़ादिम या'क़ूब के हैं, यह नज़राना है जो मेरे ख़ुदावन्द 'ऐसौ के लिए भेजा गया है और वह ख़ुद भी हमारे पीछे पीछे आ रहा है |19और उस ने दूसरे और तीसरे को ग़ोलों के सब रखवालों को हुक्म दिया कि जब 'एसौ तुमको मिले तो तुम यही बात कहना |20और यह भी कहना कि तेरा ख़ादिम या'क़ूब ख़ुद भी हमारे पीछे पीछे आ रहा है, उस ने यह सोचा कि मैं इस नज़राना से जो मुझ से पहले वहाँ जायेगा उसे ख़ुश कर लूँ, तब उस का मुँह देखूँगा, शायद यूँ वह मुझको क़ुबूल कर ले |21चुनाँचे वह नज़राना उसके आगे आगे पार गया लेकिन वह ख़ुद उस रात अपने डेरे में रहा |22और वह उसी रात उठा और अपनी दोनों बीवियों दोनों लौंडियों और ग्यारह बेटों को लेकर उनको यबूक के घाट से पार उतारा |23और उनको लेकर नदी पार कराया और अपना सब कुछ पार भेज दिया |24और या'क़ूब अकेला रह गया और पौ फटने के वक़्त तक एक शख़्स वहाँ उस से कुश्ती लड़ता रहा |25जब उसने देखा कि वह उस पर ग़ालिब नहीं होता, तो उसकी रान को अन्दर की तरफ़ से छुआ और या'क़ूब की रान की नस उसके साथ कुश्ती करने में चढ़ गई।26और उसने कहा, "मुझे जाने दे क्यूँकि पौ फट चली, ” या'क़ूब ने कहा, "जब तक तू मुझे बरकत न दे, मैं तुझे जाने नहीं दूँगा।"27तब उसने उससे पूछा, "तेरा क्या नाम है? उसने जवाब दिया, "या'क़ूब।"28उसने कहा, "तेरा नाम आगे को या'क़ूब नहीं बल्कि इस्राईल होगा, क्यूँकि तूने ख़ुदा और आदमियों के साथ ज़ोर आज़माई की और ग़ालिब हुआ।"29तब या'क़ूब ने उससे कहा, "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, तू मुझे अपना नाम बता दे।" उसने कहा, "तू मेरा नाम क्यूँ पूछता है?” और उसने उसे वहाँ बरकत दी।30और या'क़ूब ने उस जगह का नाम फ़नीएल रख्खा और कहा, "मैंने ख़ुदा को आमने सामने ~देखा, तो भी मेरी जान बची रही।"31और जब वह फ़नीएल से गुज़र रहा था तो आफ़ताब तुलू' हुआ और वह अपनी रान से लंगड़ाता था।32इसी वजह से बनी इस्राईल उस नस की जो रान में अन्दर की तरफ़ है आज तक नहीं खाते, क्यूँकि उस शख़्स ने या'क़ूब की रान की नस को जो अन्दर की तरफ़ से चढ़ गई थी छू दिया था।
1और या'क़ूब ने अपनी आँखें उठा कर नज़र की और क्या देखता है कि 'ऐसौ चार सौ आदमी साथ लिए चला आ रहा है। तब उसने लियाह और राख़िल और दोनों लौंडियों को बच्चे बाँट दिए।2और लौंडियों और उनके बच्चों को सबसे आगे, और लियाह और उसके बच्चों को पीछे, और राख़िल और यूसुफ़ को सबसे पीछे रख्खा।3और वह खुद उनके आगे-आगे चला और अपने भाई के पास पहुँचते-पहुँचते सात बार ज़मीन तक झुका।4और 'ऐसौ उससे मिलने को दौड़ा, और उससे बग़लगीर ~हुआ और उसे गले लगाया और चूमा, और वह दोनों रोए।5फिर उसने आँखें उठाई और 'औरतों और बच्चों को देखा और कहा कि यह तेरे साथ कौन हैं? उसने कहा, 'यह वह बच्चे हैं जो ख़ुदा ने तेरे ख़ादिम को इनायत किए हैं।"6तब लौडियाँ और उनके बच्चे नज़दीक आए और अपने आप को झुकाया।7फिर लियाह अपने बच्चों के साथ नज़दीक आई और वह झुके, आख़िर को यूसुफ़ और राख़िल पास आए और उन्होंने अपने आप को झुकाया।8फिर उसने कहा कि उस बड़े गोल से जो मुझे मिला तेरा क्या मतलब है?" उसने कहा, "यह कि मैं अपने ख़ुदावन्द की नज़र में मक़्बूल ठहरूँ।9तब 'ऐसौ ने कहा, "मेरे पास बहुत हैं; इसलिए ऐ मेरे भाई जो तेरा है वह तेरा ही रहे।"10या'क़ूब ने कहा, "नहीं अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र हुई है तो मेरा नज़राना मेरे हाथ से क़ुबूल कर, क्यूँकि मैंने तो तेरा मुँह ऐसा देखा जैसा कोई ख़ुदा का मुँह देखता है, और तू मुझ से राज़ी हुआ।11इसलिए मेरा नज़राना जो तेरे सामने पेश हुआ उसे क़ुबूल कर ले, क्यूँकि ख़ुदा ने मुझ पर बड़ा फ़ज़ल किया है और मेरे पास सब कुछ है।" ग़र्ज़ उसने उसे मजबूर किया, तब उसने उसे ले लिया।12और उसने कहा कि अब हम कूच करें और चल पड़ें, और मैं तेरे आगे-आगे हो लूँगा।13उसने उसे जवाब दिया, "मेरा ख़ुदावन्द जानता है कि मेरे साथ नाज़ुक बच्चे और दूध पिलाने वाली भेड़-बकरियाँ और गाय हैं। अगर उनकी एक दिन भी हद से ज़्यादा हंकाएँ तो सब भेड़ बकरियाँ मर जाएँगी।14इसलिए मेरा ख़ुदावन्द अपने ख़ादिम से पहले रवाना हो जाए, और मैं चौपायों और बच्चों की रफ़्तार के मुताबिक़ आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ अपने ख़ुदावन्द के पास श'ईर में आ जाऊँगा।"15तब 'ऐसौ ने कहा कि मर्ज़ी हो तो मैं जो लोग मेरे साथ हैं उनमें से थोड़े तेरे साथ छोड़ता जाऊँ। उसने कहा, "इसकी क्या ज़रूरत है? मेरे ख़ुदावन्द की नज़र-ए- करम मेरे लिए काफ़ी है।"16तब 'ऐसौ उसी रोज़ उल्टे पाँव श'ईर को लौटा।17और या'क़ूब सफ़र करता हुआ सुक्कात में आया, और अपने लिए एक घर बनाया और अपने चौपायों के लिए झोंपड़े खड़े किए। इसी वजह से इस जगह का नाम सुक्कात पड़ गया।18और या'क़ूब जब फ़द्दान अराम से चला तो मुल्क-ए-कना'न के एक शहर सिक्म के नज़दीक सही-ओ-सलामत पहुँचा और उस शहर के सामने अपने डेरे लगाए।19और ज़मीन के जिस हिस्से पर उसने अपना ख़ेमा खड़ा किया था, उसे उसने सिक्म के बाप हमीर के लड़कों से चाँदी के सौ सिक्के देकर ख़रीद लिया।20और उसने वहाँ एक मसबह बनाया और उसका नाम ~एल-इलाह-ए-इस्राईल रख्खा ।
1और लियाह की बेटी दीना जो या'क़ूब से उसके पैदा हुई थी, उस मुल्क की लड़कियों के देखने को बाहर गई।2तब उस मुल्क के अमीर हवी हमोर के बेटे सिक्म ने उसे देखा, और उसे ले जाकर उसके साथ मुबाश्रत की और उसे ज़लील किया।3और उसका दिल या'क़ूब की बेटी दीना से लग गया, और उसने उस लड़की से 'इश्क में मीठी-मीठी बातें कीं।4और सिक्म ने अपने बाप हमीर से कहा कि इस लड़की को मेरे लिए ब्याह ला दे।5और या'क़ूब को मा'लूम हुआ कि उसने उसकी बेटी दीना को बे इज़्ज़त किया है। लेकिन उसके बेटे चौपायों के साथ जंगल में थे इसलिए या'क़ूब उनके आने तक चुपका रहा।6तब सिक्म का बाप हमीर निकल कर या'क़ूब से बातचीत करने को उसके पास गया।7और या'क़ूब के बेटे यह बात सुनते ही जंगल से आए। यह शख़्स बड़े नाराज़ और ख़ौफ़नाक थे, क्यूँकि उसने जो या'क़ूब की बेटी से मुबाश्रत की तो बनी-इस्राईल में ऐसा मकरूह फ़ेल किया जो हरगिज़ मुनासिब न था।8तब हमूर उन से कहने लगा कि मेरा बेटा सिक्म तुम्हारी बेटी को दिल से चाहता है, उसे उसके साथ ब्याह दो ।9हम से समधियाना कर लो; अपनी बेटियाँ हम को दो और हमारी बेटियाँ आप लो।10तो तुम हमारे साथ बसे रहोगे और यह मुल्क तुम्हारे सामने है, इसमें ठहरना और तिजारत करना और अपनी जायदादें खड़ी कर लेना।"11और सिक्म ने इस लड़की के बाप और भाइयों से कहा, कि मुझ पर बस तुम्हारे करम की नज़र हो जाए, फिर जो कुछ तुम मुझ से कहोगे मैं दूँगा।12मैं तुम्हारे कहने के मुताबिक़ जितना मेहर और जहेज़ तुम मुझ से तलब करो, दूँगा लेकिन लड़की को मुझ से ब्याह दो।"13तब या'क़ूब के बेटों ने इस वजह से कि उसने उनकी बहन दीना को बे'इज़्ज़त किया था, रिया से सिक्म और उसके बाप हमीर को जवाब दिया,14और कहने लगे, "हम यह नहीं कर सकते कि नामख़्तून ~आदमी को अपनी बहन दें, क्यूँकि इसमें हमारी बड़ी रुस्वाई है।15लेकिन जैसे हम हैं अगर तुम वैसे ही हो जाओ, कि तुम्हारे हर आदमियों का ख़तना कर दिया जाए तो हम राज़ी हो जाएँगे।16और हम अपनी बेटियाँ तुम्हे देंगे और तुम्हारी बेटियाँ लेंगे और तुम्हारे साथ रहेंगे और हम सब एक क़ौम हो जाएँगे।17और अगर तुम ख़तना कराने के लिए हमारी बात न मानी तो हम अपनी लड़की लेकर चले जाएँगे।"18उनकी बातें हमीर और उसके बेटे सिक्म को पसन्द आई।19और उस जवान ने इस काम में ताख़ीर न की क्यूँकि उसे या'क़ूब की बेटी की चाहत थी, और वह अपने बाप के सारे घराने में सबसे ख़ास था।20फिर हमीर और उसका बेटा सिक्म अपने शहर के फाटक पर गए और अपने शहर के लोगों से यूँ बातें करने लगे कि,21यह लोग हम से मेल जोल रखते हैं; तब वह इस मुल्क में रह कर सौदागरी करें, क्यूँकि इस मुल्क में उनके लिए बहुत गुन्जाइश है, और हम उनकी बेटियाँ ब्याह लें और अपनी बेटियाँ उनकी दें।22और वह भी हमारे साथ रहने और एक क़ौम बन जाने को राज़ी हैं, मगर सिर्फ़ इस शर्त पर कि हम में से हर आदमी का ख़तना किया जाए जैसा उनका हुआ है।23क्या उनके चौपाए और माल और सब जानवर हमारे न हो जाएँगे? हम सिर्फ़ उनकी मान लें और वह हमारे साथ रहने लगेंगे।24तब उन सभों ने जो उसके शहर के फाटक से आया-जाया करते थे, हमीर और उसके बेटे सिक्म की बात मानी और जितने उसके शहर के फाटक से आया-जाया करते थे उनमें से हर आदमी ने ख़तना कराया।25और तीसरे दिन जब वह दर्द में मुब्तिला थे, तो यूँ हुआ कि या'क़ूब के बेटों में से दीना के दो भाई, शमा'ऊन और लावी, अपनीअपनी तलवार लेकर अचानक शहर पर आ पड़े और सब आदमियों को क़त्ल किया।26और हमोर और उसके बेटे सिक्म को भी तलवार से क़त्ल कर डाला और सिक्म के घर से दीना को निकाल ले गए।27और या'क़ूब के बेटे मक़्तूलों पर आए और शहर को लूटा, इसलिए कि उन्होंने उनकी बहन को बे'इज़्ज़त किया था।28उन्होंने उनकी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल, गधे और जो कुछ शहर और खेत में था ले लिया।29और उनकी सब दौलत लूटी और उनके बच्चों और बीवियों को क़ब्ज़े में कर लिया, और जो कुछ घर में था सब लूट-घसूट कर ले गए।30तब या'क़ूब ने शमा'ऊन और लावी से कहा, कि तुम ने मुझे कुढ़ाया क्यूँकि तुम ने मुझे इस मुल्क के बाशिन्दों, या'नी कना'नियों और फ़रिज़्ज़ियों में नफ़रतअंगेज बना दिया, क्यूँकि मेरे साथ तो थोड़े ही आदमी हैं; अब वह मिल कर मेरे मुक़ाबिले को आएँगे और मुझे क़त्ल कर देंगे, और मैं अपने घराने समेत बर्बाद हो जाऊँगा।31उन्होंने कहा, "तो क्या उसे मुनासिब था कि वह हमारी बहन के साथ कसबी की तरह बर्ताव करता?"
1और ख़ुदा ने या'क़ूब से कहा, कि उठ बैतएल को जा और वहीं रह और वहाँ ख़ुदा के लिए, जो तुझे उस वक़्त दिखाई दिया जब तू अपने भाई 'ऐसौ के पास से भागा जा रहा था, एक मज़बह बना।2तब या'क़ूब ने अपने घराने और अपने सब साथियों से कहा ग़ैर मा'बूदों को जो तुम्हारे बीच हैं दूर करो, और पाकी हासिल ~करके अपने कपड़े बदल डालो।3और आओ, हम रवाना हों और बैत-एल को जाएँ, वहाँ मैं ख़ुदा के लिए जिसने मेरी तंगी के दिन मेरी दु'आ क़ुबूल की और जिस राह में मैं चला मेरे साथ रहा, मज़बह बनाऊँगा।"4तब उन्होंने सब ग़ैर मा'बूदों को जो उनके पास थे और मुन्दरों को जो उनके कानों में थे, या'क़ूब को दे दिया और या'क़ूब ने उनको उस बलूत के दरख़्त के नीचे जो सिक्म के नज़दीक था दबा दिया।5और उन्होंने कूच किया और उनके आस पास के शहरों पर ऐसा बड़ा ख़ौफ़ छाया हुआ था कि उन्होंने या'क़ूब के बेटों का पीछा न किया।6और या'क़ूब उन सब लोगों के साथ जो उसके साथ थे लूज़ पहुँचा, बैत-एल यही है और मुल्क-ए-कना'न में है।7और उसने वहाँ मज़बह बनाया और उस मुक़ाम ~का नाम एल-बैतएल रख्खा, क्यूँकि जब वह अपने भाई के पास से भागा जा रहा था तो ख़ुदा वहीं उस पर ज़ाहिर हुआ था।8और रिब्क़ा की दाया दबोरा मर गई और वह बैतएल की उतराई में बलूत के दरख़्त के नीचे दफ़्न हुई, और उस बलूत का नाम अल्लोन बकूत रख्खा गया।9और या'क़ूब के फ़द्दान अराम से आने के बा'द ख़ुदा उसे फिर दिखाई दिया और उसे बरकत बख़्शी।10और ख़ुदा ने उसे कहा कि तेरा नाम या'क़ूब है; तेरा नाम आगे को या'क़ूब न कहलाएगा, बल्कि तेरा नाम इस्राईल होगा। तब उसने उसका नाम इस्राईल रख्खा।11फिर ख़ुदा ने उसे कहा, कि मैं ख़ुदा-ए- क़ादिर-ए-मुतलक हूँ, तू कामयाब हो और बहुत हो जा। तुझ से एक क़ौम, बल्कि क़ौमों के क़बीले पैदा होंगे और बादशाह तेरे सुल्ब से निकलेंगे।12और यह मुल्क जो मैंने इब्राहीम और इस्हाक़ को दिया है, वह तुझ को दूँगा और तेरे बा'द तेरी नसल को भी यही मुल्क दूँगा।"13और ख़ुदा जिस जगह उससे हम कलाम हुआ, वहीं से उसके पास से ऊपर चला गया।14तब या'क़ूब ने उस जगह जहाँ वह उससे हम-कलाम हुआ, पत्थर का एक सुतून खड़ा किया और उस पर तपावन किया और तेल डाला।15और या'क़ूब ने उस मक़ाम का नाम जहाँ ख़ुदा उससे हम कलाम हुआ 'बैतएल' रख्खा।16और वह बैतएल से चले और इफ़रात थोड़ी ही दूर रह गया था कि राख़िल के दर्द-ए- ज़िह लगा, और वज़ा'-ए-हम्ल में निहायत दिक्कत हुई।17और जब वह सख़्त दर्द में मुब्तिला थी तो दाई ने उससे कहा, "डर मत, अब के भी तेरे बेटा ही होगा।"18और यूँ हुआ कि उसने मरते-मरते उसका नाम बिनऊनी रख्खा और मर गई, लेकिन उसके बाप ने उसका नाम बिनयमीन रख्खा।19और राख़िल मर गई और इफ़रात, या'नी बैतलहम के रास्ते में दफ़्न हुई।20और या'क़ूब ने उसकी क़ब्र पर एक सुतून खड़ा कर दिया। राख़िल की क़ब्र का यह सुतून आज तक मौजूद है।21और इस्राईल आगे बढ़ा और 'अद्र के बुर्ज की परली तरफ़ अपना डेरा लगाया।22और इस्राईल के उस मुल्क में रहते हुए ऐसा हुआ कि रूबिन ने जाकर अपने बाप की हरम बिल्हाह से मुबाश्रत की और इस्राईल को यह मा'लूम हो गया।23उस वक़्त या'क़ूब के बारह बेटे थे लियाह के बेटे यह थे : रूबिन या'क़ूब का पहलौठा, और शमा'ऊन और लावी और यहूदाह, इश्कार और ज़बूलून।24और राख़िल के बेटे : युसुफ़ और बिनयमीन थे।25और राख़िल की लौंडी बिल्हाह के बेटे, दान और नफ़्ताली थे।26और लियाह की लौडी ज़िलफ़ा के बेटे, जद और आशर थे। यह सब या'क़ूब के बेटे हैं जो फ़द्दान अराम में पैदा हुए।27और या'क़ूब ममरे में जो करयत अरबा' या'नी हबरून है जहाँ इब्राहीम और इस्हाक़ ने डेरा किया था, अपने बाप इस्हाक़ के पास आया।28और इस्हाक़ एक सौ अस्सी साल का हुआ।29तब इस्हाक़ ने दम छोड़ दिया और वफ़ात पाई और बूढ़ा और पूरी 'उम्र का हो कर अपने लोगों में जा मिला, और उसके बेटों 'ऐसौ और या'क़ूब ने उसे दफ़न किया।
1और 'ऐसौ या'नी अदोम का नसबनामा यह है।2'ऐसौ कना'नी लड़कियों में से हिती ऐलोन की बेटी 'अद्दा को, और हवी सबा'ओन की नवासी और 'अना की बेटी उहलीबामा की,3और इस्मा'ईल की बेटी और नबायोत की बहन बशामा को ब्याह लाया।4और 'ऐसौ से 'अद्दा के इलीफ़ज़ पैदा हुआ, और बशामा के र'ऊएल पैदा हुआ,5और उहलीबामा के य'ओस और यालाम और क़ोरह पैदा हुए। यह 'ऐसौ के बेटे हैं जो मुल्क-ए-कना'न में पैदा हुए।6और 'ऐसौ अपनी बीवियों और बेटे बेटियों और अपने घर के सब नौकर चाकरों और अपने चौपायों और तमाम जानवरों और अपने सब माल अस्बाब को, जो उसने मुल्कए-कना'न में जमा' किया था, लेकर अपने भाई या'क़ूब के पास से एक दूसरे मुल्क को चला गया।7क्यूँकि उनके पास इस क़दर सामान हो गया था कि वह एक जगह रह नहीं सकते थे, और उनके चौपायों की कसरत की वजह से उस ज़मीन में जहाँ उनका क़याम था गुंजाइश न थी।8तब 'ऐसौ जिसे अदोम भी कहते हैं, कोह-ए-श'ईर में रहने लगा।9और 'ऐसौ का जो कोह-ए-श'ईर के अदोमियों का बाप है यह नसबनामा है।10'ऐसौ के बेटों के नाम यह हैं : इलीफ़ज़, 'ऐसौ की बीवी 'अद्दा का बेटा; और र'ऊएल, 'ऐसौ की बीवी बशामा का बेटा।11इलीफ़ज़ के बेटे, तेमान और ओमर और सफ़ी और जा'ताम और कनज़ थे।12और तिमना' 'ऐसौ के बेटे इलीफ़ज़ की हरम थी, और इलीफ़ज़ से उसके 'अमालीक पैदा हुआ; और 'ऐसौ की बीवी 'अद्दा के बेटे यह थे।13र'ऊएल के बेटे यह हैं : नहत और ज़ारह और सम्मा और मिज़्ज़ा, यह 'ऐसौ की बीवी बशामा के बेटे थे।14और उहलीबामा के बेटे, जो 'अना की बेटी सबा'ओन की नवासी और 'ऐसौ की बीवी थी, यह हैं : 'ऐसौ से उसके य'ओस और या लाम और कोरह पैदा हुए।15और 'ऐसौ की औलाद में जो रईस थे वह यह हैं : 'ऐसी के पहलौटे बेटे इलीफ़ज़ की औलाद में रईस तेमान, रईस ओमर, रईस सफ़ी, रईस कनज़,16रईस कोरह, रईस जा'ताम, रईस 'अमालीक। यह वह रईस हैं जो इलीफ़ज़ से मुल्क-ए-अदोम में पैदा हुए और 'अद्दा के फ़र्ज़न्द थे।17और र'ऊएल-बिन 'ऐसौ के बेटे यह हैं : रईस नहत, रईस ज़ारह, रईस सम्मा, रईस मिज़्ज़ा। यह वह रईस हैं जो र'ऊएल से मुल्क-ए-अदोम में पैदा हुए और "ऐसौ की बीवी बशामा के फ़ज़न्द थे।18और 'ऐसौ की बीवी उहलीबामा की औलाद यह हैं : रईस य'ऊस, रईस या'लाम, रईस कोरह। यह वह रईस हैं जो 'ऐसौ की बीवी उहलीबामा बिन्त 'अना के फ़र्ज़न्द थे।19और 'ऐसौ या'नी अदोम की औलाद और उनके रईस यह हैं।20और श'ईर होरी के बेटे जो उस मुल्क के बाशिन्दे थे, यह हैं : लोप्तान अौर सोबल और सबा'ओन और 'अना21और दीसोन और एसर और दीसान; बनी श'ईर में से जो होरी रईस मुल्क-ए-अदोम में हुए ये हैं।22होरी और हीमाम लोतान के बेटे, और तिम्ना' लोतान की बहन थी।23और यह सोबल के बेटे हैं : 'अलवान और मानहत और "एबाल और सफ़ी और ओनाम।24और सबा'ओन के बेटे यह हैं : आया और 'अना; यह वह 'अना है जिसे अपने बाप के गधों को वीराने में चराते वक़्त गर्म चश्मे मिले।25और 'अना की औलाद यह हैं : दीसोन और उहलीबामा बिन्त 'अना।26और दीसोन के बेटे यह हैं : हमदान और इशबान और यित्रान और किरान।27यह एसर के बेटे हैं : बिलहान और ज़ावान और 'अकान।28दीसान के बेटे यह है : 'ऊज़ और इरान।29जो होरियों में से रईस हुए वह यह हैं : रईस 'लुतान, रईस, सोबल 'रईस सब'उन और रईस 'अना,30रईस दीसोन, रईस एसर, रईस दीसान; यह उन होरियों के रईस हैं जो मुल्कए-श'ईर में थे।31यही वह बादशाह हैं जो मुल्क-ए- अदोम से पहले उससे कि इस्त्राईल का कोई बादशाह हो, मुसल्लत थे।32बाला'-बिनब'ओर अदोम में एक बादशाह था, और उसके शहर का नाम दिन्हाबा था।33बाला' मर गया और यूबाब-बिन ज़ारह जो बुसराही था, उसकी जगह बादशाह हुआ।34फिर यूबाब मर गया और हुशीम जो तेमानियों के मुल्क का बाशिन्दा था, उसका जानशीन हुआ।35और हुशीम मर गया और हदद-बिन-बदद जिसने मोआब के मैदान में मिदियानियों को मारा, उसका जानशीन हुआ और उसके शहर का नाम 'अवीत था।36और हदद मर गया और शम्ला जो मुसरिका का था उसका जानशीन हुआ।37और शमला ~मर गया और साउल उसका ~जानशीन हुआ ये रहुबुत का था जो दरियाई फुर्रात के बराबर है ।38और साऊल मर गया और बा'लहनानबिन-'अकबूर उसका जानशीन हुआ।39और बा'लहनान-बिन-'अकबूर मर गया और हदर उसका जानशीन हुआ, औरउसके शहर का नाम पाऊ और उसकी बीवी का नाम महेतबएल था, जो मतरिद की बेटी और मेज़ाहाब की नवासी थी।40फिर 'ऐसौ के रईसों के नाम उनके ख़ान्दानों और मक़ामो और नामों के मुताबिक़ यह है :रईस', तिम्ना ', रईस 'अलवा, रईस यतेत,41रईस उहलिबामा, रईस एला, रईस फिनोन,42रईस क़नज़, रईस तेमान, रईस मिबसार,43रईस मज्दाएल, रईस 'इराम ;अदोम का रईस यही है, जिनके नाम उनके मक़्बूज़ा मुल्क में उनके घर के मुताबिक़ दिए गए हैं |यह हाल अदोमियों के बाप 'ऐसौ का है|
1और या'क़ूब मुल्क-ए-कना'न में रहता था, जहाँ उसका बाप मुसाफ़िर की तरह रहा था।2या'क़ूब की नसल का हाल यह है : कि यूसुफ़ सत्रह साल की 'उम्र में अपने भाइयों के साथ भेड़-बकरियाँ चराया करता था। यह लड़का अपने बाप की बीवियों, बिल्हाह और ज़िल्फ़ा के बेटों के साथ रहता था और वह उनके बुरे कामों की ख़बर बाप तक पहुँचा देता था।3और इस्राईल यूसुफ़ को अपने सब बेटों से ज़्यादा प्यार करता था क्यूँकि वह उसके बुढ़ापे का बेटा था, और उसने उसे एक बूक़लमून क़बा भी बनवा दी।4और उसके भाइयों ने देखा कि उनका बाप उसके सब भाइयों से ज़्यादा उसी को प्यार करता है, इसलिए वह उससे अदावत रखने लगे और ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे।5और यूसुफ़ ने एक ख़्वाब देखा जिसे उसने अपने भाइयों को बताया, तो वह उससे और भी अदावत रखने लगे।6और उसने उनसे कहा, "ज़रा वह ख़्वाब तो सुनो, जो मैंने देखा है :7हम खेत में पूले बांधते थे और क्या देखता हूँ कि मेरा पूला उठा और सीधा खड़ा हो गया, और तुम्हारे पूलों ने मेरे पूले को चारों तरफ़ से घेर लिया और उसे सिज्दा किया।"8तब उसके भाइयों ने उससे कहा, कि क्या तू सचमुच हम पर सल्तनत करेगा या हम पर तेरा तसल्लुत होगा?" और उन्होंने उसके ख़्वाबों और उसकी बातों की वजह से उससे और भी ज़्यादा अदावत रख्खा।9फिर उसने दूसरा ख़्वाब देखा और अपने भाइयों को बताया। उसने कहा, "देखो! मुझे एक और ख़्वाब दिखाई दिया है, कि सूरज और चाँद और ग्यारह सितारों ने मुझे सिज्दा किया।"10और उसने इसे अपने बाप और भाइयों दोनों को बताया; तब उसके बाप ने उसे डाँटा और कहा कि यह ख़्वाब क्या है जो तूने देखा है? क्या मैं और तेरी माँ और तेरे भाई सचमुच तेरे आगे ज़मीन पर झुक कर तुझे सिज्दा करेंगे?11और उसके भाइयों को उससे हसद हो गया, लेकिन उसके बाप ने यह बात याद रख्खी।12और उसके भाई अपने बाप की भेड़-बकरियाँ चराने सिक्म को गए।13तब इस्राईल ने यूसुफ़ से कहा, "तेरे भाई सिक्म में भेड़-बकरियों को चरा रहे होंगे, इसलिए आ कि ~मैं तुझे उनके पास भेज़ें।" उसने उसे कहा, "मैं तैयार हूँ।"14तब उसने कहा, "तू जा कर देख कि तेरे भाइयों का और भेड़-बकरियों का क्या हाल है, और आकर मुझे ख़बर दे।” तब उसने उसे हबरून की वादी से भेजा और वह सिक्म में आया।15और एक शख़्स ने उसे मैदान में इधर-उधर आवारा फिरते पाया; यह देख कर उस शख़्स ने उससे पूछा, "तू क्या ढूंडता है?"16उसने कहा, "मैं अपने भाइयों को ढूंडता हूँ। ज़रा मुझे बता दे कि वह भेड़ बकरियों को कहाँ चरा रहे हैं?"17उस शख़्स ने कहा, "वह यहाँ से चले गए, क्यूँकि मैंने उनको यह कहते सुना, 'चलो, हम दूतैन को जाएँ।” चुनाँचे यूसुफ़ अपने भाइयों की तलाश में चला और उनको दूतैन में पाया।18और जूँ ही उन्होंने उसे दूर से देखा, ~इससे पहले कि वह नज़दीक पहुँचे, उसके क़त्ल का मन्सूबा बाँधा।19और आपस में कहने लगे, 'देखो! ख़्वाबों का देखने वाला आ रहा है।20आओ, अब हम उसे मार डालें और किसी गढ़े में डाल दें और यह कह देंगे कि कोई बुरा दरिन्दा उसे खा गया; फिर देखेंगे कि उसके ख़्वाबों का अन्जाम क्या होता है।"21तब, रूबिन ने यह सुन कर उसे उनके हाथों से बचाया और कहा, "हम उसकी जान न लें।"22और रूबिन ने उनसे यह भी कहा ~कि ख़ून न बहाओ बल्कि उसे इस गढ़े में जो वीराने में है डाल दो, लेकिन उस पर हाथ न उठाओ।” वह चाहता था कि उसे उनके हाथ से बचा कर उसके बाप के पास सलामत पहुँचा दे।23और यूँ हुआ कि जब यूसुफ़ अपने भाइयों के पास पहुँचा, तो उन्होंने उसकी बू क़लमून क़बा की जो वह पहने था उतार लिया;24और उसे उठा कर गढ़े में डाल दिया। वह गढ़ा सूखा था, उसमें ज़रा भी पानी न था।25और वह खाना खाने बैठे और ऑखें उठाई तो देखा कि इस्मा'ईलियों का एक काफ़िला जिल'आद से आ रहा है, और गर्म मसाल्हे और रौग़न बलसान और मुर्र ऊँटों पर लादे हुए मिस्र को लिए जा रहा है।26तब यहूदाह ने अपने भाइयों से कहा किअगर हम अपने भाई को मार डालें और उसका खू़न छिपाएँ तो क्या नफ़ा' होगा?27आओ, उसे इस्मा'ईलियों के हाथ बेच डालें कि हमारे हाथ उस पर न उठे क्यूँकि वह हमारा भाई और हमारा खू़न है। उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली।28फिर वह मिदिया'नी सौदागर उधर से गुज़रे, तब उन्होंने यूसुफ़ को खींच कर गढ़े से बाहर निकाला और उसे इस्मा'ईलियों के हाथ बीस रुपये को बेच डाला और वह यूसुफ़ को मिस्र में ले गए।29जब रूबिन गढ़े पर लौट कर आया और देखा कि यूसुफ़ उसमें नहीं है तो अपना लिबास चाक किया।30और अपने भाइयों के पास उल्टा फिरा और कहने लगा, कि लड़का तो वहाँ नहीं है, अब मैं कहाँ जाऊँ?31फिर उन्होंने यूसुफ़ की क़बा लेकर और एक बकरा ज़बह करके उसे उसके खू़न में तर किया।32और उन्होंने उस बूक़लमून क़बा को भिजवा दिया। फिर वह उसे उनके बाप के पास ले आए और कहा, "हम को यह चीज़ पड़ी मिली; अब तू पहचान कि यह तेरे बेटे की क़बा है या नहीं?"33और उसने उसे पहचान लिया और कहा, "यह तो मेरे बेटे की क़बा है। कोई बुरा दरिन्दा उसे खा गया है, यूसुफ़ बेशक फाड़ा गया।"34तब या'क़ूब ने अपना लिबास चाक किया और टाट अपनी कमर से लपेटा, और बहुत दिनों तक अपने बेटे के लिए मातम करता रहा।35और उसके सब बेटे बेटियाँ उसे तसल्ली देने जाते थे, लेकिन उसे तसल्ली न होती थी। वह यही कहता रहा, कि मैं तो मातम ही करता हुआ क़ब्र में अपने बेटे से जा मिलूँगा।" इसलिए उसका बाप उसके लिए रोता रहा।36और मिदियानियों ने उसे मिस्र में फूतीफ़ार के हाथ जो फ़िर'औन का एक हाकिम और जिलौदारों का सरदार था बेचा।
1~उन्ही दिनों में ऐसा हुआ कि यहूदाह अपने भाइयों से जुदा हो कर एक 'अदूल्लामी आदमी के पास, जिसका नाम हीरा था गया।2और यहूदाह ने वहाँ सुवा' नाम किसी कना'नी की बेटी को देखा और उससे ब्याह करके उसके पास गया।3वह हामिला हुई और उसके एक बेटा हुआ, जिसका नाम उसने 'एर रख्खा।4और वह फिर हामिला हुई और एक बेटा हुआ और उसका नाम ओनान रख्खा।5फिर उसके एक और बेटा हुआ और उसका नाम सेला रख्खा, और यहूदाह कज़ीब में था जब इस 'औरत के यह लड़का हुआ।6और यहूदाह अपने पहलौठे बेटे 'एर के लिए एक 'औरत ब्याह लाया जिसका नाम तमर था।7और यहूदाह का पहलौठा बेटा 'एर ख़ुदावन्द की निगाह में शरीर था, इसलिए ख़ुदावन्द ने उसे हलाक कर दिया।8तब यहूदाह ने ओनान से कहा किअपने भाई की बीवी के पास जा और देवर का हक़~अदा कर ताकि तेरे भाई के नाम से नसल चले।9और ओनान जानता था कि यह नसल मेरी न कहलाएगी, इसलिए यूँ हुआ कि जब वह अपने भाई की बीवी के पास जाता तो नुत्फ़े को ज़मीन पर गिरा देता था कि मबादा उसके भाई के नाम से नसल चले।10और उसका यह काम ख़ुदावन्द की नज़र में बहुत बुरा था, इसलिए उसने उसे भी हलाक किया।11तब यहूदाह ने अपनी बहू तमर से कहा कि मेरे बेटे सेला के बालिग़ होने तक तू अपने बाप के घर बेवा बैठी रह। क्यूँकि उसने सोचा कि कहीं यह भी अपने भाइयों की तरह हलाक न हो जाए। तब तमर अपने बाप के घर में जाकर रहने लगी।12और एक 'अरसे के बा'द ऐसा हुआ कि सुवा' की बेटी जो यहूदाह की बीवी थी मर गई, और जब यहूदाह को उसका ग़म भूला तो वह अपने 'अदूल्लामी दोस्त हीरा के साथ अपनी भेड़ो की ऊन के कतरने वालों के पास तिमनत को गया।13और तमर की यह ख़बर मिली कि तेरा ख़ुसर अपनी भेड़ो की ऊन कतरने के लिए तिमनत को जा रहा है।"14तब उसने अपने रंडापे के कपड़ों को उतार फेंका और बुर्का ओढ़ा और अपने को ढांका और 'ऐनीम के फाटक के बराबर जो तिमनत की राह पर है, जा बैठी क्यूँकि उसने देखा कि सेला बालिग़ हो गया मगर यह उससे ब्याही नहीं गई।15यहूदाह उसे देख कर समझा कि कोई कस्बी है, क्यूँकि उसने अपना मुँह ढाँक रख्खा था।16इसलिए वह रास्ते से उसकी तरफ़ को फिरा और उससे कहने लगा कि जरा मुझे अपने साथ मुबासरत कर लेने दे, क्यूँकि इसे बिल्कुल नहीं मा'लूम था कि वह इसकी बहू है। उसने कहा, "तू मुझे क्या देगा ताकि मेरे साथ मुबाश्रत करे।"17उसने कहा, "मैं रेवड़ में से बकरी का एक बच्चा तुझे भेज दूँगा।" उसने कहा कि उसके भेजने तक तू मेरे पास कुछ रहन कर देगा।"18उसने कहा, "तुझे रहन क्या दूँ?" उसने कहा, "अपनी मुहर ~और अपना बाजू बंद और अपनी लाठी जो तेरे हाथ में है।” उसने यह चीजें उसे दीं और उसके साथ मुबाश्रत की, और वह उससे हामिला हो गई।19फिर वह उठ कर चली गई और बुरका उतार कर रंडापे का जोड़ा पहन लिया।20और यहूदाह ने अपने 'अदूल्लामी दोस्त के हाथ बकरी का बच्चा भेजा ताकि उस 'औरत के पास से अपना रहन वापिस मंगाए, लेकिन वह 'औरत उसे न मिली।21तब उसने उस जगह के लोगों से पूछा, "वह कस्बी जो ऐनीम में रास्ते के बराबर बैठी थी कहाँ है?” उन्होंने कहा, "यहाँ कोई कस्बी नहीं थी।22तब उसने यहूदाह के पास लौट कर उसे बताया कि वह मुझे नहीं मिली; और वहाँ के लोग भी कहते थे कि वहाँ कोई कस्बी नहीं थी।23यहूदाह ने कहा, "ख़ैर ! उस रहन को वही रख्खे, हम तो बदनाम न हों; मैंने तो बकरी का बच्चा भेजा लेकिन वह तुझे नहीं मिली।"24और करीबन तीन महीने के बा'द यहूदाह को यह ख़बर मिली ~कि तेरी बहू तमर ने ज़िना किया और उसे छिनाले का हम्ल भी है। यहूदाह ने कहा कि उसे बाहर निकाल लाओ कि वह जलाई जाए।25जब उसे बाहर निकाला तो उसने अपने खुसर को कहला भेजा कि मेरे उसी शख़्स का हम्ल है जिसकी यह चीजें हैं। इसलिए तू पहचान तो सही कि यह मुहर और बाजूबन्द और लाठी किसकी है।26तब यहूदाह ने इक़रार किया और कहा, "वह मुझ से ज़्यादा सच्ची है, क्यूँकि मैंने उसे अपने बेटे सेला से नहीं ब्याहा।" और वह फिर कभी उसके पास न गया।27और उसके वज़ा-ए-हम्ल के वक़्त मा'लूम हुआ कि उसके पेट में तौअम हैं।28और जब वह जनने लगी तो एक बच्चे का हाथ बाहर आया और दाई ने पकड़ कर उसके हाथ में लाल डोरा बाँध दिया, और कहने लगी, "यह पहले पैदा हुआ।"29और यूँ हुआ कि उसने अपना हाथ फिर खींच लिया, इतने में उसका भाई पैदा हो गया। तब वह दाई बोल उठी कि तू कैसे ज़बरदस्ती निकल पड़ा तब ~ उसका नाम फ़ारस रख्खा गया।30फिर उसका भाई जिसके हाथ में लाल डोरा बंधा था, पैदा हुआ और उसका नाम ज़ारह रख्खा गया।
1और यूसुफ़ को मिस्र में लाए, और फूतीफ़ार मिस्री ने जो फ़िर'औन का एक हाकिम और जिलौदारों का सरदार था, उसकी इस्मा'ईलियों के हाथ से जो उसे वहाँ ले गए थे ख़रीद लिया।2और ख़ुदावन्द यूसुफ़ के साथ था और वह इक़बालमन्द हुआ, और अपने मिस्री आक़ा के घर में रहता था।3और उसके आक़ा ने देखा कि ख़ुदावन्द उसके साथ है और जिस काम को वह हाथ लगाता है ख़ुदावन्द उसमें उसे इकबालमंद करता है।4चुनाँचे यूसुफ़ उसकी नज़र में मक़्बूल ठहरा और वही उसकी ख़िदमत करता था; और उसने उसे अपने घर का मुख़्तार बना कर अपना सब कुछ उसे सौंप दिया।5और जब उसने उसे घर का और सारे माल का मुख़्तार बनाया, तो ख़ुदावन्द ने उस मिस्री के घर में यूसुफ़ की ख़ातिर बरकत बख़्शी; और उसकी सब चीज़ों पर जो घर में और खेत में थीं, ख़ुदावन्द की बरकत होने लगी।6और उसने अपना सब कुछ यूसुफ़ के हाथ में छोड़ दिया, और सिवा रोटी के जिसे वह खा लेता था, उसे अपनी किसी चीज़ का होश न था। और यूसुफ़ ख़ूबसूरत और हसीन था।7इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि उसके आक़ा की बीवी की आँख यूसुफ़ पर लगी और उसने उससे कहा कि मेरे साथ हमबिस्तर हो।8लेकिन उसने इन्कार किया; और अपने आक़ा की बीवी से कहा कि देख, मेरे आक़ा को ख़बर भी नहीं कि इस घर में मेरे पास क्या-क्या है, और उसने अपना सब कुछ मेरे हाथ में छोड़ दिया है।9इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं; और उसने तेरे अलावा कोई चीज़ मुझ से बाज़ नहीं रख्खी, क्यूँकि तू उसकी बीवी है। इसलिए भला मैं क्यूँ ऐसी बड़ी बुराई करूँ और ख़ुदा का गुनहगार बनूँ?10और वह हर दिन यूसुफ़ को मजबूर करती ~रही, लेकिन उसने उसकी बात न मानी कि उससे हमबिस्तर होने के लिए उसके साथ लेटे।11और एक दिन ऐसा हुआ कि वह अपना काम करने के लिए घर में गया, और घर के आदमियों में से कोई भी अन्दर न था।12तब उस 'औरत ने उसका लिबास पकड़ कर कहा, "मेरे साथ हम बिस्तर हो, "वह अपना लिबास उसके हाथ में छोड़ कर भागा और बाहर निकल गया।13जब उसने देखा कि वह अपना लिबास उसके हाथ में छोड़ कर भाग गया,14तो उसने अपने घर के आदमियों को बुला कर उनसे कहा, "देखो, वह एक 'इब्री को हम से मज़ाक करने के लिए हमारे पास ले आया है। यह मुझ से हम बिस्तर होने को अन्दर घुस आया, और मैं बुलन्द आवाज़ से चिल्लाने लगी।15जब उसने देखा कि मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही हूँ, तो अपना लिबास मेरे पास छोड़ कर भागा और बाहर निकल गया।"16और वह उसका लिबास उसके आक़ा के घर लौटने तक अपने पास रख्खे रही।17तब उसने यह बातें उससे कहीं, "यह इब्री गुलाम, जो तू लाया है मेरे पास अन्दर घुस आया कि मुझ से मज़ाक़ करे।18जब मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी तो वह अपना लिबास मेरे ही पास छोड़ कर बाहर भाग गया।"19जब उसके आक़ा ने अपनी बीवी की वह बातें जो उसने उससे कहीं, सुन लीं, कि तेरे ग़ुलाम ने मुझ से ऐसा ऐसा किया तो उसका ग़ज़ब भड़का ।20और यूसुफ़ के आक़ा ने उसको लेकर क़ैद खाने में जहाँ बादशाह के क़ैदी बन्द थे डाल दिया, तब वह वहाँ क़ैद खाने में रहा।21लेकिन ख़ुदावन्द यूसुफ़ के साथ था; उसने उस पर रहम किया और क़ैद खाने के दारोग़ा की नज़र में उसे मक़्बूल बनाया।22और क़ैद खाने के दारोग़ा ने सब क़ैदियों को जो क़ैद में थे, यूसुफ़ के हाथ में सौंपा; और जो कुछ वह करते उसी के हुक्म से करते थे।23और क़ैद खाने का दारोग़ा सब कामों की तरफ़ से, जो उसके हाथ में थे बेफ़िक्र था, इसलिए कि ख़ुदावन्द उसके साथ था; और जो कुछ वह करता ख़ुदावन्द उसमें इक़बाल मन्दी बख़्शता था।
1इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि शाह ए-मिस्र का साकी और नानपज़ अपने ख़ुदावन्द शाह-ए-मिस्र के मुजरिम हुए|2और फ़िर'औन अपने इन दोनों हाकिमों से जिनमें एक साकियों और दूसरा नानपज़ों का सरदार था, नाराज़ हो गया।3और उसने इनको जिलौदारों के सरदार के घर में उसी जगह जहाँ यूसुफ़ हिरासत में था, क़ैद खाने में नज़रबन्द करा दिया।4जिलौदारों के सरदार ने उनको यूसुफ़ के हवाले किया, और वह उनकी ख़िदमत करने लगा और वह एक मुद्दत तक नज़रबन्द रहे।5और शाह-ए-मिस्र के साकी और नानपज़ दोनों ने, जो क़ैद खाने में नज़रबन्द थे एक ही रात में अपने-अपने होनहार के मुताबिक़ एक-एक ख़्वाब देखा।6और यूसुफ़ सुबह को उनके पास अन्दर आया और देखा कि वह उदास हैं।7और उसने फ़िर'औन के हाकिमों से जो उसके साथ उसके आक़ा के घर में नज़रबन्द थे, पूछा कि आज तुम क्यूँ ऐसे उदास नज़र आते हो?8उन्होंने उससे कहा, "हम ने एक ख़्वाब देखा है, जिसकी ता'बीर करने वाला कोई नहीं।" यूसुफ़ ने उनसे कहा, "क्या ता'बीर की कुदरत ख़ुदा को नहीं? मुझे ज़रा वह ख़्वाब बताओ।"9तब सरदार साकी ने अपना ख़्वाब यूसुफ़ से बयान किया। उसने कहा, "मैंने ख़्वाब में देखा कि अंगूर की बेल मेरे सामने है।10और उस बेल में तीन शाखें हैं, और ऐसा दिखाई दिया कि उसमें कलियाँ लगीं और फूल आए और उसके सब गुच्छों में पक्के-पक्के अंगूर लगे।11और फ़िर'औन का प्याला मेरे हाथ में है, और मैंने उन अंगूरों को लेकर फ़िर'औन के प्याले में निचोड़ा और वह प्याला मैंने फ़िर'औन के हाथ में दिया।"12यूसुफ़ ने उससे कहा, "इसकी ता'बीर यह है कि वह तीन शाखें तीन दिन हैं।13इसलिए अब से तीन दिन के अन्दर फ़िर'औन तुझे सरफ़राज़ फ़रमाएगा, और तुझे फिर तेरे 'ओहदे पर बहाल कर देगा; और पहले की तरह जब तू उसका साकी था, प्याला फ़िर'औन के हाथ में दिया करेगा।14लेकिन जब तू ख़ुशहाल हो जाए तो मुझे याद करना और ज़रा मुझ से मेहरबानी से पेश आना, और फ़िर'औन से मेरा ज़िक्र करना और मुझे इस घर से छुटकारा दिलवाना।15क्यूँकि इब्रानियों के मुल्क से मुझे चुरा कर ले आए हैं, और यहाँ भी मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसकी वजह से क़ैद खाने में डाला जाऊँ।"16जब सरदार नानपज़ ने देखा कि ता'बीर अच्छी निकली तो यूसुफ़ से कहा, "मैंने भी ख़्वाब में देखा, कि मेरे सिर पर सफ़ेद रोटी की तीन टोकरियाँ हैं;17और ऊपर की टोकरी में हर क़िस्म का पका हुआ खाना फ़िर'औन के लिए है, और परिन्दे मेरे सिर पर की टोकरी में से खा रहे हैं।"18यूसुफ़ ने उसे कहा, "इसकी ता'बीर यह है कि वह तीन टोकरियाँ तीन दिन हैं।19इसलिए अब से तीन दिन के अन्दर फ़िर'औन तेरा सिर तेरे तन से जुदा करा के तुझे एक दरख़्त पर टंगवा देगा, और परिन्दे तेरा गोश्त नोंच-नोंच कर खाएँगे।”20और तीसरे दिन जो फ़िर'औन की सालगिरह का दिन था, यूँ हुआ कि उसने अपने सब नौकरों की दावत की और उसने सरदार साकी और सरदार नानपज़ को अपने नौकरों के साथ याद फ़रमाया |21और उसने सरदार साकी को फिर उसकी ख़िदमत पर बहाल किया, और वह फ़िर'औन के हाथ में प्याला देने लगा।22लेकिन उसने सरदार नानपज़ को फाँसी दिलवाई, जैसा यूसुफ़ ने ता'बीर करके उनको बताया था।23लेकिन सरदार साकी ने यूसुफ़ को याद न किया बल्कि उसे भूल गया।
1पूरे दो साल के बा'द फ़िर'औन ने ख़्वाब में देखा कि वह दरिया के किनारे खड़ा है;2और उस दरिया में से सात ख़ूबसूरत और मोटी-मोटी गायें निकल कर सरकंडों के खेत में में चरने लगीं।3उनके बा'द और सात बदशक्ल और दुबली-दुबली गायें दरिया से निकलीं और दूसरी गायों के बराबर दरिया के किनारे जा खड़ी हुई।4और यह बदशक्ल और दुबली दुबली गायें उन सातों ख़ूबसूरत और मोटी मोटी गायों को खा गई, तब फ़िर'औन जाग उठा।5और वह फिर सो गया और उसने दूसरा ख़्वाब देखा कि एक टहनी में अनाज की सात मोटी और अच्छी-अच्छी बालें निकलीं।6उनके बा'द और सात पतली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें निकलीं।7यह पतली बालें उन सातों मोटी और भरी हुई बालों को निगल गई। और फ़िर'औन जाग गया और उसे मा'लूम हुआ कि यह ख़्वाब था।8और सुबह को यूँ हुआ कि उसका जी घबराया तब उसने मिस्र के सब जादूगरों और सब अक्लमन्दों को बुलवा भेजा, और अपना ख़्वाब उनको बताया। लेकिन उनमें से कोई फ़िर'औन के आगे उनकी ता'बीर न कर सका।9उस वक़्त सरदार साक़ी ने फ़िर'औन से कहा, "मेरी ख़ताएँ आज मुझे याद आईं।10जब फ़िर'औन अपने ख़ादिमों से नाराज़ था और उसने मुझे और सरदार नानपज़ को जिलौदारों के सरदार के घर में नज़रबन्द करवा दिया।11तो मैंने और उसने एक ही रात में एक-एक ख़्वाब देखा, यह~ख्वाब हम ने अपनेअपने होनहार के मुताबिक़ ~देखे।12वहाँ एक 'इब्री जवान, जिलौदारों के सरदार का नौकर, हमारे साथ था। हम ने उसे अपने ख़्वाब बताए और उसने उनकी ता'बीर की, और हम में से हर एक को हमारे ख़्वाब के मुताबिक़ उसने ता'बीर बताई।13और जो ता'बीर उसने बताई थी वैसा ही हुआ, क्यूँकि मुझे तो उसने मेरे मन्सब पर बहाल किया था और उसे फाँसी दी थी।14तब फ़िर'औन ने यूसुफ़ को बुलवा भेजा: तब उन्होंने जल्द उसे क़ैद खाने से बाहर निकाला, और उसने हजामत बनवाई और कपड़े बदल कर फ़िर'औन के सामने आया।15फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, "मैंने एक ख़्वाब देखा है जिसकी ता'बीर कोई नहीं कर सकता, और मुझ से तेरे बारे में कहते हैं कि तू ख़्वाब को सुन कर उसकी ता'बीर करता है।"16यूसुफ़ ने फ़िर'औन को जवाब दिया, "मैं कुछ नहीं जानता, ख़ुदा ही फ़िर'औन को सलामती बख़्श जवाब देगा।"17तब फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, "मैंने ख़्वाब में देखा कि मैं दरिया के किनारे खड़ा हूँ।18और उस दरिया में से सात मोटी और ख़ूबसूरत गायें निकल कर सरकंडों के खेत में चरने लगीं।19उनके बा'द और सात ख़राब और निहायत बदशक्ल और दुबली गायें निकलीं, और वह इस क़दर बुरी थीं कि मैंने सारे मुल्क-ए-मिस्र में ऐसी कभी नहीं देखीं।20और वह दुबली और बदशक्ल गायें उन पहली सातों मोटी गायों को खा गई;21और उनके खा जाने के बा'द यह मा'लूम भी नहीं होता था कि उन्होंने उनको खा लिया है, बल्कि वह पहले की तरह जैसी की तैसी बदशक्ल रहीं। तब मैं जाग गया।22और फिर ख़्वाब में देखा कि एक टहनी में सात भरी और अच्छी-अच्छी बालें निकलीं।23और उनके बा'द और सात सूखी और पतली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें निकलीं।24और यह पतली बाले उन सातों अच्छी-अच्छी बालों को निगल गई। और मैंने इन जादूगरों से इसका बयान किया लेकिन ऐसा कोई न निकला जो मुझे इसका मतलब बताता।"25तब यूसुफ़ ने फ़िर'औन से कहा कि फ़िर'औन का ख़्वाब एक ही है, जो कुछ ख़ुदा करने को है उसे उसने फ़िर'औन पर ज़ाहिर किया है।26वह सात अच्छी-अच्छी गायें सात साल हैं, और वह सात अच्छीअच्छी बालें भी सात साल हैं; ख़्वाब एक ही है।27और वह सात बदशक्ल और दुबली गायें जो उनके बा'द निकलीं, और वह सात ख़ाली और पूरबी हवा की मारी मुरझाई हुई बालें भी सात साल ही हैं; मगर काल के सात बरस।28यह वही बात है जो मैं फ़िर'औन से कह चुका हूँ कि जो कुछ ख़ुदा करने को है उसे उसने फ़िर'औन पर ज़ाहिर किया है।29देख! सारे मुल्क-ए-मिस्र में सात साल तो पैदावार ज़्यादा के होंगे।30उनके बा'द सात साल काल के आएँगे और तमाम मुल्क ए-मिस्र में लोग इस सारी पैदावार को भूल जाएँगे और यह काल मुल्क को तबाह कर देगा।31और अज़ानी मुल्क में याद भी नहीं रहेगी, क्यूँकि जो काल बा'द में पड़ेगा वह निहायत ही सख़्त होगा।32और फ़िर'औन ने जो यह ख़्वाब दो दफ़ा' देखा तो इसकी वजह यह है कि यह बात ख़ुदा की तरफ़ से मुक़र्रर हो चुकी है, और ख़ुदा इसे जल्द पूरा करेगा।33इसलिए फ़िर'औन को चाहिए कि एक समझदार और 'अक़्लमन्द आदमी को तलाश कर ले और उसे मुल्क-ए-मिस्र पर मुख़्तार बनाए।34फ़िर'औन यह करे ताकि उस आदमी को इख़्तियार हो कि वह मुल्क में नाज़िरों को मुक़र्रर कर दे, और अज़ानी के सात बरसों में सारे मुल्क-ए-मिस्र की पैदावार का पाँचवा हिस्सा ले ले।35और वह उन अच्छे बरसों में जो आते हैं सब खाने की चीजें जमा' करें और शहर-शहर में गल्ला जो फ़िर'औन के इख़्तियार में हो, ख़ुराक के लिए फ़राहम करके उसकी हिफ़ाज़त करें।36यही ग़ल्ला मुल्क के लिए ज़ख़ीरा होगा, और सातों साल के लिए जब तक मुल्क में काल रहेगा काफ़ी होगा, ताकि काल की वजह से मुल्क बर्बाद न हो जाए।"37य बात फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमों को पसंद आई।38तब फ़िर'औन ने अपने ख़ादिमों से कहा कि क्या हम को ऐसा आदमी जैसा यह है, जिसमें ख़ुदा का रूह है मिल सकता है?39और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, "चूँकि ख़ुदा ने तुझे यह सब कुछ समझा दिया है, इसलिए तेरी तरह~समझदार~और~'अक्लमन्द कोई नहीं।40इसलिए तू मेरे घर का मुख़्तार होगा और मेरी सारी रि'आया तेरे हुक्म पर चलेगी, सिर्फ़ तख़्त का मालिक होने की वजह से मैं बुज़ुर्गतर हूँगा।41और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा कि देख, मैं तुझे सारे मुल्क-ए-मिस्र का हाकिम बनाता हूँ42और फ़िर'औन ने अपनी अंगूठी अपने हाथ से निकाल कर यूसुफ़ के हाथ में पहना दी, और उसे बारीक कतान के लिबास में आरास्ता करवा कर सोने का हार उसके गले में पहनाया।43और उसने उसे अपने दूसरे रथ में सवार करा कर उसके आगे-आगे यह 'ऐलान करवा दिया, कि घुटने टेको और उसने उसे सारे मुल्क-ए-मिस्र का हाकिम बना दिया ।44और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा, "मैं फ़िर'औन हूँ और तेरे हुक्म के बग़ैर कोई आदमी इस सारे मुल्क-ए-मिस्र में अपना हाथ या पाँव हिलाने न पाएगा।"45और फ़िर'औन ने यूसुफ़ का नाम सिफ़्नात फ़ा'नेह रख्खा, और उसने ओन के पुजारी फ़ोतीफ़िरा' की बेटी आसिनाथ को उससे ब्याह दिया, और यूसुफ़ मुल्क-ए-मिस्र में दौरा करने लगा।46और यूसुफ़ तीस साल का था जब वह मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के सामने गया, और उसने फ़िर'औन के पास से रुख़्सत हो कर सारे मुल्क-ए-मिस्र का दौरा किया।47और अज़ानी के सात बरसों में इफ़्रात से फ़स्ल हुई।48और वह लगातार सातों साल हर क़िस्म की ख़ुराक, जो मुल्क-ए-मिस्र में पैदा होती थी, जमा' कर करके शहरों में उसका ज़ख़ीरा करता गया। हर शहर की चारों तरफ़ो की ख़ुराक वह उसी शहर में रखता गया।49और यूसुफ़ ने ग़ल्ला समुन्दर की रेत की तरह निहायत कसरत से ज़ख़ीरा किया, यहाँ तक कि हिसाब रखना भी छोड़ दिया क्यूँ कि वह बे-हिसाब था।50और काल से पहले ओन के पुजारी फ़ोतीफ़िरा' की बेटी आसिनाथ के यूसुफ़ से दो बेटे पैदा हुए।51और यूसुफ़ ने पहलौठे का नाम मनस्सी यह कह कर रख्खा, कि 'ख़ुदा ने मेरी और मेरे बाप के घर की सब मुसीबत मुझ से भुला दी।'52और दूसरे का नाम इफ़्राईम यह कह कर रख्खा, कि 'ख़ुदा ने मुझे मेरी मुसीबत के मुल्क में फलदार किया।'53और अज़ानी के वह सात साल जो मुल्क-ए-मिस्र में हुए तमाम हो गए, और यूसुफ़ के कहने के मुताबिक़ काल के सात साल शुरू' हुए।54और सब मुल्कों में तो काल था लेकिन मुल्क-ए-मिस्र में हर जगह खुराक मौजूद थी।55और जब मुल्क-ए-मिस्र में लोग भूकों मरने लगे तो रोटी के लिए फ़िर'औन के आगे चिल्लाए। फ़िर'औन ने मिस्रियों से कहा कि यूसुफ़ के पास जाओ, जो कुछ वह तुम से कहे वह करो।56और तमाम रू-ए-ज़मीन पर काल था; और यूसुफ़ अनाज के ज़खीरह को खुलवा कर मिस्रियों के हाथ बेचने लगा, और मुल्क-ए-मिस्र में सख़्त काल हो गया।57और सब मुल्कों के लोग अनाज मोल लेने के लिए यूसुफ़ के पास मिस्र में आने लगे, क्यूँकि सारी ज़मीन पर सख़्त काल पड़ा था।
1और या'क़ूब को मा'लूम हुआ कि मिस्र में ग़ल्ला है, तब उसने अपने बेटों से कहा कि तुम क्यूँ एक दूसरे का मुँह ताकते हो?2देखो, मैंने सुना है कि मिस्र में ग़ल्ला है। तुम वहाँ जाओ और वहाँ से हमारे लिए अनाज मोल ले आओ, ताकि हम ज़िन्दा रहें और हलाक न हों।3तब यूसुफ़ के दस भाई ग़ल्ला मोल लेने को मिस्र में आए।4लेकिन या'क़ूब ने यूसुफ़ के भाई बिनयमीन को उसके भाइयों के साथ न भेजा, क्यूँकि उसने कहा, कि कहीं उस पर कोई आफ़त न आ जाए।5इसलिए जो लोग ग़ल्ला खरीदने आए उनके साथ इस्राईल के बेटे भी आए, क्यूँकि कना'न के मुल्क में काल था।6और यूसुफ़ मुल्क-ए-मिस्र का हाकिम था और वही मुल्क के सब लोगों के हाथ ग़ल्ला बेचता था। तब यूसुफ़ के भाई आए और अपने सिर ज़मीन पर टेक कर उसके सामने आदाब बजा लाए।7यूसुफ़ अपने भाइयों को देख कर उनको पहचान गया; लेकिन उसने उनके सामने अपने आप को अन्जान बना लिया और उनसे सख़्त लहजे में पूछा, "तुम कहाँ से आए हो?" उन्होंने कहा, "कना'न के मुल्क से अनाज मोल लेने को।"8यूसुफ़ ने तो अपने भाइयों को पहचान लिया था लेकिन उन्होंने उसे न पहचाना।9और यूसुफ़ उन ख़्वाबों को जो उसने उनके बारे में देखे थे याद करके उनसे कहने लगा कि तुम जासूस हो। तुम आए हो कि इस मुल्क की बुरी हालत दरियाफ़्त करो।10उन्होंने उससे कहा, "नहीं ख़ुदावन्द! तेरे ग़ुलाम अनाज मोल लेने आए हैं।11हम सब एक ही शख़्स के बेटे हैं। हम सच्चे हैं; तेरे ग़ुलाम जासूस नहीं हैं।"12उसने कहा, "नहीं; बल्कि तुम इस मुल्क की बुरी हालत दरियाफ़्त करने को आए हो।"13तब उन्होंने कहा, "तेरे ग़ुलाम बारह भाई एक ही शख़्स के बेटे हैं जो मुल्क-ए-कना'न में है। सबसे छोटा इस वक़्त हमारे बाप के पास है और एक का कुछ पता नहीं।”14तब यूसुफ़ ने उनसे कहा, "मैं तो तुम से कह चुका कि तुम जासूस हो।15इसलिए तुम्हारी आज़माइश इस तरह की जाएगी कि फ़िर'औन की हयात की क़सम, तुम यहाँ से जाने न पाओगे; जब तक तुम्हारा सबसे छोटा भाई यहाँ न आ जाए।16इसलिए अपने में से किसी एक को भेजो कि वह तुम्हारे भाई को ले आए और तुम क़ैद रहो, ताकि तुम्हारी बातों की तसदीक़ हो कि तुम सच्चे हो या नहीं; वरना फ़िर'औन की हयात की क़सम तुम ज़रूर ही जासूस हो।"17और उसने उन सब को तीन दिन तक इकट्ठे नज़रबन्द रख्खा।18और तीसरे दिन यूसुफ़ ने उनसे कहा, "एक काम करो तो ज़िन्दा रहोगे; क्यूँकि मुझे ख़ुदा का ख़ौफ़ है।19अगर तुम सच्चे हो तो अपने भाइयों में से एक को क़ैद खाने में बन्द रहने दो, और तुम अपने घरवालों के खाने के लिए अनाज ले जाओ।20और अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ, यूँ तुम्हारी बातों की तस्दीक़ हो जाएगी और तुम हलाक न होगे।” इसलिए उन्होंने ऐसा ही किया।21और वह आपस में कहने लगे, "हम दरअसल अपने भाई की वजह से मुजरिम ठहरे हैं; क्यूँकि जब उसने हम से मिन्नत की तो हम ने यह देखकर भी, कि उसकी जान कैसी मुसीबत में है उसकी न सुनी; इसी लिए यह मुसीबत हम पर आ पड़ी है।”22तब रूबिन बोल उठा, "क्या मैंने तुम से न कहा था कि इस बच्चे पर ज़ुल्म न करो, और तुम ने न सुना; इसलिए देख लो, अब उसके ख़ून का बदला लिया जाता है।"23और उनको मा'लूम न था कि यूसुफ़ उनकी बातें समझता है, इसलिए कि उनके बीच एक तरजुमान था।24तब वह उनके पास से हट गया और रोया, और फिर उनके पास आकर उनसे बातें कीं और उनमें से शमा'ऊन को लेकर उनकी आँखों के सामने उसे बन्धवा दिया।25फिर यूसुफ़ ने हुक्म किया, कि उनके बोरों में अनाज भरें और हर शख़्स की नकदी उसी के बोरे में रख दें, और उनको सफ़र का सामान भी दे दें। चुनांचे उनके लिए ऐसा ही किया गया।26और उन्होंने अपने गधों पर ग़ल्ला लाद लिया और वहाँ से रवाना हुए।27जब उनमें से एक ने मन्जिल पर अपने गधे को चारा देने के लिए अपना बोरा खोला, तो अपनी नक़दी बोरे के मुँह में रख्खी देखी।28तब उसने अपने भाइयों से कहा कि मेरी नक़दी वापस कर दी गई है, वह मेरे बोरे में है, देख लो !' फिर तो वह घबरा ~गए और हक्का-बक्का होकर एक दूसरे को देखने और कहने लगे, "ख़ुदा ने हम से यह क्या किया?"29और वह मुल्क-ए-कना'न में अपने बाप या'क़ूब के पास आए, और सारी वारदात उसे बताई और कहने लगे कि30उस शख़्स ने जो उस मुल्क का मालिक है हम से सख़्त लहजे में बातें कीं, और हम को उस मुल्क के जासूस समझा।31हम ने उससे कहा कि हम सच्चे आदमी हैं; हम जासूस नहीं।32हम बारह भाई एक ही बाप के बेटे हैं; हम में से एक का कुछ पता नहीं और सबसे छोटा इस वक़्त हमारे बाप के पास मुल्क-ए-कना'न में है।33तब उस शख़्स ने जो मुल्क का मालिक है हम से कहा, 'मैं इसी से जान लूँगा कि तुम सच्चे हो कि अपने भाइयों में से किसी को मेरे पास छोड़ दो और अपने घरवालों के खाने के लिए अनाज लेकर चले जाओ।34और अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; तब मैं जान लूँगा कि तुम जासूस नहीं बल्कि सच्चे आदमी हो। और मैं तुम्हारे भाई को तुम्हारे हवाले कर दूँगा, फिर तुम मुल्क में सौदागरी करना'।35और यूँ हुआ कि जब उन्होंने अपनेअपने बोरे खाली किए तो हर शख़्स की नक़दी की थैली उसी के बोरे में रख्खी देखी, और वह और उनका बाप नक़दी की थैलियाँ देख कर डर गए।36और उनके बाप या'क़ूब ने उनसे कहा, "तुम ने मुझे बेऔलाद कर दिया। यूसुफ़ नहीं रहा और शमा'ऊन भी नहीं है, और अब बिनयमीन को भी ले जाना चाहते ही। ये सब बातें मेरे ख़िलाफ़ हैं।"37तब रूबिन ने अपने बाप से कहा, 'अगर मैं उसे तेरे पास न ले आऊँ तो तू मेरे दोनों बेटों को क़त्ल कर डालना। उसे मेरे हाथ में सौंप दे और मैं उसे फिर तेरे पास पहुँचा दूँगा।"38उसने कहा, "मेरा बेटा तुम्हारे साथ नहीं जाएगा; क्यूँकि उसका भाई मर गया और वह अकेला रह गया है। अगर रास्ते में जाते-जाते उस पर कोई आफ़त आ पड़े तो तुम मेरे सफ़ेद बालों को ग़म के साथ क़ब्र में उतारोगे।
1और काल मुल्क में और भी सख़्त हो गया |2और यूँ हुआ कि जब उस ग़ल्ले को जिसे मिस्र से लाए थे, खा चुके तो उनके बाप ने उनसे कहा कि जाकर हमारे लिए फिर कुछ अनाज मोल ले आओ।"3तब यहूदाह ने उसे कहा कि उस शख़्स ने हम को निहायत ताकीद से कह दिया था कि तुम मेरा मुँह न देखोगे, जब तक तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ न हो।4इसलिए अगर तू हमारे भाई को हमारे साथ भेज दे, तो हम जाएँगे और तेरे लिए अनाज मोल लाएँगे।5और अगर तू उसे न भेजे तो हम नहीं जाएँगे; क्यूँकि उस शख़्स ने कह दिया है कि तुम मेरा मुँह न देखोगे जब तक तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ न हो'।6तब इस्राईल ने कहा कि तुम ने मुझ से क्यूँ यह बदसुलूकी की, कि उस शख़्स को बता दिया कि हमारा एक भाई और भी है?7उन्होंने कहा, "उस शख़्स ने बजिद्द हो कर हमारा और हमारे ख़ान्दान का हाल पूछा कि 'क्या तुम्हारा बाप अब तक ज़िन्दा है? और क्या तुम्हारा कोई और भाई है?' तो हम ने इन सवालों के मुताबिक़ उसे बता दिया। हम क्या जानते थे कि वह कहेगा, 'अपने भाई को ले आओ'।"8तब यहूदाह ने अपने बाप इस्राईल से कहा कि उस लड़के को मेरे साथ कर दे तो हम चले जाएँगे; ताकि हम और तू और हमारे बाल बच्चे ज़िन्दा रहें और हलाक न हों।9और मैं उसका ज़िम्मेदार होता हूँ, तू उसको मेरे हाथ से वापस माँगना। अगर मैं उसे तेरे पास पहुँचा कर सामने खड़ा न कर दूँ, तो मैं हमेशा के लिए गुनहगार ठहरूंगा।10अगर हम देर न लगाते तो अब तक दूसरी दफ़ा' लौट कर आ भी जाते।"11तब उनके बाप इस्राईल ने उनसे कहा, "अगर यही बात है तो ऐसा करो कि अपने बर्तनों में इस मुल्क की मशहूर पैदावार में से कुछ उस शख़्स के लिए नज़राना लेते जाओ; जैसे थोड़ा सा रौग़ान-ए-बलसान, थोड़ा सा शहद, कुछ गर्म मसाले, और मुर्र और पिस्ता और बादाम,12और दूना दाम अपने हाथ में ले लो, और वह नक़दी जो फेर दी गई और तुम्हारे बोरों के मुँह में रख्खी मिली अपने साथ वापस ले जाओ; क्यूँकि शायद भूल हो गई होगी।13और अपने भाई को भी साथ लो, और उठ कर फिर उस शख़्स के पास जाओ।14और ख़ुदा-ए-क़ादिर उस शख़्स को तुम पर मेहरबानी करे, ताकि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिनयमीन को तुम्हारे साथ भेज दे। मैं अगर बे-औलाद हुआ तो हुआ।"15तब उन्होंने नज़राना लिया और दूना दाम भी हाथ में ले लिया, और बिनयमीन को लेकर चल पड़े; और मिस्र पहुँच कर यूसुफ़ के सामने जा खड़े हुए।16जब यूसुफ़ ने बिनयमीन को उनके साथ देखा तो उसने अपने घर के मुन्तज़िम से कहा, "इन आदमियों को घर में ले जा, और कोई जानवर ज़बह करके खाना तैयार करवा; क्यूँकि यह आदमी दोपहर को मेरे साथ खाना खाएँगे।"17उस शख़्स ने जैसा यूसुफ़ ने फ़रमाया था किया, और इन आदमियों को यूसुफ़ के घर में ले गया।18जब इनको यूसुफ़ के घर में पहुँचा दिया तो डर के मारे कहने लगे, "वह नक़दी जो पहली दफ़ा' हमारे बोरों में रख कर वापस कर दी गई थी, उसी की वजह से हम को अन्दर करवा दिया है; ताकि उसे हमारे ख़िलाफ़ बहाना मिल जाए और वह हम पर हमला करके हम को ग़ुलाम बना ले और हमारे गधों को छीन ले।"19और वह यूसुफ़ के घर के मुन्तज़िम के पास गए और दरवाज़े पर खड़े होकर उससे कहने लगे,20"जनाब, हम पहले भी यहाँ अनाज मोल लेने आए थे;21और यूँ हुआ कि जब हम ने मंज़िल पर उतर कर अपने बोरों को खोला, तो अपनी अपनी पूरी तौली हुई नक़दी अपने अपने बोरे के मुँह में रख्खी देखी, इसलिए हम उसे अपने साथ वापस लेते आए हैं।22और हम अनाज मोल लेने को और भी नक़दी साथ लाए हैं, ये हम नहीं जानते के हमारी नक़दी किसने हमारे बोरों में रख दी।"23उसने कहा कि तुम्हारी सलामती हो, मत डरो! तुम्हारे ख़ुदा और तुम्हारे बाप के ख़ुदा ने तुम्हारे बोरों में तुम को ख़ज़ाना दिया होगा, मुझे तो तुम्हारी नक़दी मिल चुकी। फिर वह शमा'ऊन को निकाल कर उनके पास ले आया।24और उस शख़्स ने उनको यूसुफ़ के घर में लाकर पानी दिया, और उन्होंने अपने पाँव धोए; और उनके गधों को चारा दिया।25फिर उन्होंने यूसुफ़ के इन्तिज़ार में कि वह दोपहर को आएगा, नज़राना तैयार करके रख्खा; क्यूँकि उन्होंने सुना था कि उनको वहीं रोटी खानी है।26जब यूसुफ़ घर आया, तो वह उस नज़राने को जो उनके पास था उसके सामने ले गए, और ज़मीन पर झुक कर उसके सामने आदाब बजा लाए।27उसने उनसे ख़ैर-ओ-'आफियत पूछी और कहा कि तुम्हारा बूढ़ा बाप जिसका तुम ने ज़िक्र किया था अच्छा तो है? क्या वह अब तक ज़िन्दा है?28उन्होंने जवाब दिया, "तेरा ख़ादिम हमारा बाप ख़ैरियत से है; और अब तक ज़िन्दा है।" फिर वह सिर झुका-झुका कर उसके सामने आदाब बजा लाए।29फिर उसने आँख उठा कर अपने भाई बिनयमीन को जो उसकी माँ का बेटा था, देखा और कहा कि तुम्हारा सबसे छोटा भाई जिसका ज़िक्र तुम ने मुझ से किया था यही है? फिर कहा कि ऐ मेरे बेटे! ख़ुदा तुझ पर~मेहरबान~रहे।"30तब यूसुफ़ ने जल्दी की क्यूँकि भाई को देख कर उसका जी भर आया, और वह चाहता था कि कहीं जाकर रोए। तब वह अपनी कोठरी में जा कर वहाँ रोने लगा।31फिर वह अपना मुँह धोकर बाहर निकला और अपने को बर्दाश्त करके हुक्म दिया कि खाना लगाओ।32और उन्होंने उसके लिए अलग और उनके लिए जुदा, और मिस्रियों के लिए, जो उसके साथ खाते थे, जुदा खाना लगाया; क्यूँकि मिस्र के लोग इब्रानियों के साथ खाना नहीं खा सकते थे, क्यूँकि मिस्रियों को इससे कराहियत है।33और यूसुफ़ के भाई उसके सामने तरतीबवार अपनी 'उम्र की बड़ाई और छोटाई के मुताबिक़ बैठे और आपस में हैरान थे।34फिर वह अपने सामने से खाना उठा कर हिस्से कर-कर के उनको देने लगा, और बिनयमीन का हिस्सा उनके हिस्सों से पाँच गुना ज़्यादा था। और उन्होंने मय पी और उसके साथ खु़शी मनाई।
1फिर उसने अपने घर के मुन्ताज़िम को यह हुक्म किया कि इन आदमियों के बोरों में जितना अनाज वह लेजा सकें भर दे, और हर शख़्स की नक़दी उसी के बोरे के मुँह में रख दे;2और मेरा चाँदी का प्याला सबसे छोटे के बोरे के मुँह में उसकी नक़दी के साथ रखना।" चुनांचे उसने यूसुफ़ के फ़रमाने के मुताबिक़ 'अमल किया।3सुबह रौशनी होते ही यह आदमी अपने गधों के साथ रुख़्सत कर दिए गए।4वह शहर से निकल कर अभी दूर भी नहीं गए थे कि यूसुफ़ ने अपने घर के मुन्तज़िम से कहा, "जा! उन लोगों का पीछा कर; और जब तू उनको पा ले तो उनसे कहना, 'नेकी के बदले तुम ने बदी क्यूँ की?5क्या यह वही चीज़ नहीं जिससे मेरा आक़ा पीता और इसी से ठीक फ़ाल भी खोला करता है? तुम ने जो यह किया इसलिए बुरा किया'6और उसने उनको पा लिया और यही बातें उनसे कहीं।7तब उन्होंने उससे कहा कि हमारा ख़ुदावन्द, ऐसी बातें क्यूँ कहता है? ख़ुदा न करे कि तेरे ख़ादिम ऐसा काम करें8भला, जो नक़दी हम को अपने बोरों के मुँह में मिली, उसे तो हम मुल्क-ए-कना'न से तेरे पास वापस ले आए; फिर तेरे आक़ा के घर से चाँदी या सोना क्यूँ कर चुरा सकते हैं?9इसलिए तेरे ख़ादिमों में से जिस किसी के पास वह निकले वह मार दिया जाए, और हम भी अपने ख़ुदावन्द के ग़ुलाम हो जाएँगे।10उसने कहा कि तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास वह निकल आए वह मेरा ग़ुलाम होगा, और तुम बेगुनाह ठहरोगे।11तब उन्होंने जल्दी की, और एक-एक ने अपना बोरा ज़मीन पर उतार लिया और हर शख़्स ने अपना बोरा खोल दिया।12तब वह ढूँढने लगा और सबसे बड़े से शुरू' करके सबसे छोटे पर तलाशी ख़त्म की, और प्याला बिनयमीन के बोरे में मिला।13तब उन्होंने अपने लिबास चाक किए और हर एक अपने गधे को लादकर उल्टा शहर को फिरा।14और यहूदाह और उसके भाई यूसुफ़ के घर आए, वह अब तक वहीं था; तब वह उसके आगे ज़मीन पर गिरे।15तब यूसुफ़ ने उनसे कहा, "तुम ने यह कैसा काम किया? क्या तुम को मा'लूम नहीं कि मुझ सा आदमी ठीक फ़ाल खोलता है?"16यहूदाह ने कहा कि हम अपने ख़ुदावन्द से क्या कहें? हम क्या बात करें? या क्यूँ कर अपने को बरी ठहराएँ? ख़ुदा ने तेरे ख़ादिमों की बदी पकड़ ली। इसलिए देख, हम भी और वह भी जिसके पास प्याला निकला, दोनों अपने ख़ुदावन्द के ग़ुलाम हैं।17उसने कहा कि ख़ुदा न करे कि मैं ऐसा करूँ; जिस शख़्स के पास यह प्याला निकला वही मेरा ग़ुलाम होगा, और तुम अपने बाप के पास सलामत चले जाओ।18तब यहूदाह उसके नज़दीक जाकर कहने लगा, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द! ज़रा अपने ख़ादिम को इजाज़त दे कि अपने ख़ुदावन्द के कान में एक बात कहे; और तेरा ग़ज़ब तेरे ख़ादिम पर न भड़के, क्यूँकि तू फ़िर'औन की तरह है।19मेरे ख़ुदावन्द ने अपने ख़ादिमों से सवाल किया था कि तुम्हारा बाप या तुम्हारा भाई है?"20और हम ने अपने ख़ुदावन्द से कहा था, 'हमारा एक बूढ़ा बाप है और उसके बुढ़ापे का एक छोटा लड़का भी है; और उसका भाई मर गया है और वह अपनी माँ का एक ही रह गया है, इसलिए उसका बाप उस पर जान देता है।'21तब तूने अपने ख़ादिमों से कहा, 'उसे मेरे पास ले आओ कि मैं उसे देख़ूँ।'22हम ने अपने ख़ुदावन्द को बताया, 'वह लड़का अपने बाप को छोड़ नहीं सकता, क्यूँकि अगर वह अपने बाप को छोड़े तो उसका बाप मर जाएगा।'23फिर तूने अपने खादिमों से कहा कि जब तक तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे साथ न आए, तुम फिर मेरा मुँह न देखोगे।24और यूँ हुआ कि जब हम अपने बाप के पास, जो तेरा ख़ादिम है, पहुँचे तो हम ने अपने ख़ुदावन्द की बातें उससे कहीं।25हमारे बाप ने कहा, "फिर जा कर हमारे लिए कुछ अनाज मोल लाओ।"26हम ने कहा, 'हम नहीं जा सकते; अगर हमारा सबसे छोटा भाई हमारे साथ हो तो हम जाएँगे। क्यूँकि जब तक हमारा सबसे छोटा भाई हमारे साथ न हो, हम उस शख़्स का मुँह न देखेंगे।"27और तेरे ख़ादिम मेरे बाप ने हम से कहा, 'तुम जानते हो कि मेरी बीवी के मुझ से दो बेटे हुए।28एक तो मुझे छोड़ ही गया और मैंने ख़्याल किया कि वह ज़रूर फाड़ डाला गया होगा; और मैंने उसे उस वक़्त से फिर नहीं देखा।29अब अगर तुम इसको भी मेरे पास से ले जाओ और इस पर कोई आफ़त आ पड़े, तो तुम मेरे सफ़ेद बालों को ग़म के साथ क़ब्र में उतारोगे।”30इसलिए अब अगर मैं तेरे ख़ादिम अपने बाप के पास जाऊँ और यह लड़का हमारे साथ न हो, तो चूँकि उसकी जान इस लड़के की जान के साथ जुड़ी है।31वह यह देख कर कि लड़का नहीं आया मर जाएगा, और तेरे ख़ादिम अपने बाप के, जो तेरा ख़ादिम है, सफ़ेद बालों को ग़म के साथ क़ब्र में उतारेंगे।32और तेरा ख़ादिम अपने बाप के सामने इस लड़के का ज़िम्मेदार भी हो चुका है और यह कहा है किअगर मैं इसे तेरे पास वापस न पहुँचा दूँ तो मैं हमेशा के लिए अपने बाप का गुनहगार ठहरूंगा।'33इसलिए अब तेरे ख़ादिम की इजाज़त हो कि वह इस लड़के के बदले अपने ख़ुदावन्द का ग़ुलाम हो कर रह जाए, और यह लड़का अपने भाइयों के साथ चला जाए।34क्यूँकि लड़के के बग़ैर मैं क्या मुँह लेकर अपने बाप के पास जाऊँ? कहीं ऐसा न हो कि मुझे वह मुसीबत देखनी पड़े, जो ऐसे हाल में मेरे बाप पर आएगी।"
1तब यूसुफ़ उनके आगे जो उसके आस पास खड़े थे, अपने को रोक न कर सका और चिल्ला कर कहा, "हर एक आदमी को मेरे पास से बाहर कर दो।" चुनांचे जब यूसुफ़ ने अपने आप को अपने भाइयों पर ज़ाहिर किया उस वक़्त और कोई उसके साथ न था।2और वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगा; और मिस्रियों ने सुना, और फ़िर'औन के महल में भी आवाज़ गई।3और यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, "मैं यूसुफ़ हूँ! क्या मेरा बाप अब तक ज़िन्दा है?" और उसके भाई उसे कुछ जवाब न दे सके, क्यूँकि वह उसके सामने घबरा गए।4और यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, "ज़रा नज़दीक आ जाओ।" और वह नज़दीक आए। तब उसने कहा, "मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ हूँ, जिसको तुम ने बेच कर मिस्र पहुँचवाया।5और इस बात से कि तुम ने मुझे बेच कर यहाँ पहुँचवाया, न तो ग़मगीन हो और न अपने-अपने दिल में परेशान हो; क्यूँकि ख़ुदा ने जानों को बचाने के लिए मुझे तुम से आगे भेजा।6इसलिए कि अब दो साल से मुल्क में काल है, और अभी पाँच साल और ऐसे हैं जिनमें न तो हल चलेगा और न फसल कटेगी।7और ख़ुदा ने मुझ को तुम्हारे आगे भेजा, ताकि तुम्हारा बक़िया ज़मीन पर सलामत रख्खे और तुम को बड़ी रिहाई के वसीले से ज़िन्दा रख्खे।8फिर तुम ने नहीं बल्कि ख़ुदा ने मुझे यहाँ भेजा, और उसने मुझे गोया फ़िर'औन का बाप और उसके सारे घर का ख़ुदावन्द और सारे मुल्क-ए-मिस्र का हाकिम बनाया।9इसलिए तुम जल्द मेरे बाप के पास जाकर उससे कहो, 'तेरा बेटा यूसुफ़ यूँ कहता है, कि ख़ुदा ने मुझ को सारे मिस्र का मालिक कर दिया है। तू मेरे पास चला आ, देर न कर।10तू जशन के इलाक़े में रहना, और तू और तेरे बेटे और तेरे पोते और तेरी भेड़ बकरियाँ और गायें बैल और तेरा माल ओ-मता'अ, यह सब मेरे नज़दीक होंगे।11और वहीं मैं तेरी परवरिश करूँगा; ऐसा न हो कि तुझ को और तेरे घराने और तेरे माल-ओ-मता'अ को ग़रीबी आ दबाए, क्यूँकि काल के अभी पाँच साल और हैं।'12और देखो, तुम्हारी आँखें और मेरे भाई बिनयमीन की आँखें देखती हैं कि खुद मेरे मुँह से ये बातें तुम से हो रही हैं।13और तुम मेरे बाप से मेरी सारी शान-ओ-शौकत का जो मुझे मिस्र में हासिल है, और जो कुछ तुम ने देखा है सबका ज़िक्र करना; और तुम बहुत जल्द मेरे बाप को यहाँ ले आना।"14और वह अपने भाई बिनयमीन के गले लग कर रोया और बिनयमीन भी उसके गले लगकर रोया।15और उसने सब भाइयों को चूमा और उनसे मिल कर रोया, इसके बा'द उसके भाई उससे बातें करने लगे।16और फ़िर'औन के महल में इस बात का ज़िक्र हुआ कि यूसुफ़ के भाई आए हैं और इस से फ़िर'औन के नौकर चाकर बहुत खुश हुए।17और फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा कि अपने भाइयों से कह, तुम यह काम करो कि अपने जानवरों को लाद कर मुल्क-ए-कना'न को चले जाओ।18और अपने बाप को और अपने-अपने घराने को लेकर मेरे पास आ जाओ, और जो कुछ मुल्क-ए-मिस्र में अच्छे से अच्छा है वह मैं तुम को दूँगा और तुम इस मुल्क की उम्दा उम्दा चीज़ें खाना।19तुझे हुक्म मिल गया है, कि उनसे कहे, 'तुम यह करो कि अपने बाल बच्चों और अपनी बीवियों के लिए मुल्क-ए- मिस्र से अपने साथ गाड़ियाँ ले जाओ, और अपने बाप को भी साथ लेकर चले आओ।20और अपने अस्बाब का कुछ अफ़सोस न करना, क्यूँकि मुल्क-ए-मिस्र की सब अच्छी चीज़ें तुम्हारे लिए हैं।"21और इस्राईल के बेटों ने ऐसा ही किया; और यूसुफ़ ने फ़िर'औन के हुक्म के मुताबिक़ उनको गाड़ियाँ दीं और सफ़र का सामान ~भी दिया।22और उसने उनमें से हर एक को एक-एक जोड़ा कपड़ा दिया, लेकिन बिनयमीन को चाँदी के तीन सौ सिक्के और पाँच जोड़े कपड़े दिए।23और अपने बाप के लिए उसने यह चीज़ें भेजीं, या'नी दस गधे जो मिस्र की अच्छी चीज़ों से लदे हुए थे, और दस गधियाँ जो उसके बाप के रास्ते के लिए ग़ल्ला और रोटी और सफ़र के सामान ~से लदी हुई थीं।24चुनांचे ~उसने अपने भाइयों को रवाना किया और वह चल पड़े; और उसने उनसे कहा, "देखना, कहीं रास्ते में तुम झगड़ा न करना।"25और वह मिस्र से रवाना हुए और मुल्क-ए-कना'न में अपने बाप या'क़ूब के पास पहुँचे,26और उससे कहा, "यूसुफ़ अब तक ज़िन्दा है और वही सारे मुल्क-ए- मिस्र का हाकिम है।" और या'क़ूब का दिल धक से रह गया, क्यूँकि उसने उनका यक़ीन न किया।27तब उन्होंने उसे वह सब बातें जो यूसुफ़ ने उनसे कही थीं बताई, और जब उनके बाप या'क़ूब ने वह गाड़ियाँ देख लीं जो यूसुफ़ ने उसके लाने को भेजीं थीं, तब उसकी जान में जान आई।28और इस्राईल कहने लगा, "यह बस है कि मेरा बेटा यूसुफ़ अब तक ज़िन्दा है। मैं अपने मरने से पहले जाकर उसे देख तो लूँगा।"
1और इस्राईल अपना सब कुछ लेकर चला और बैरसबा' में आकर अपने बाप इस्हाक़ के ख़ुदा के लिए क़ुर्बानियाँ पेश कीं।2और ख़ुदा ने रात को ख़्वाब में इस्राईल से बातें कीं और कहा, "ऐ या'कूब, ऐ या'कूब!" उसने जवाब दिया, "मैं हाज़िर हूँ।"3उसने कहा, "मैं ख़ुदा, तेरे बाप का ख़ुदा हूँ! मिस्र में जाने से न डर, क्यूँकि मैं वहाँ तुझ से एक बड़ी क़ौम पैदा करूँगा।4मैं तेरे साथ मिस्र को जाऊँगा और फिर तुझे ज़रूर लौटा भी लाऊँगा, और यूसुफ़ अपना हाथ तेरी आँखों पर लगाएगा।”5तब या'क़ूब बैरसबा' से रवाना हुआ, और इस्राईल के बेटे अपने बाप या'क़ूब को और अपने बाल बच्चों और अपनी बीवियों को उन गाड़ियों पर ले गए जो फ़िर'औन ने उनके लाने को भेजीं थीं।6और वह अपने चौपायों और सारे माल-ओ-अस्बाब को जो उन्होंने मुल्क-ए- कना'न में जमा' किया था लेकर मिस्र में आए, और या'क़ूब के साथ उसकी सारी औलाद थी।7~वह अपने बेटों और बेटियों और पोतों और पोतियों, और अपनी कुल नसल को अपने साथ मिस्र में ले आया।8और या'क़ूब के साथ जो इस्राइली या'नी उसके बेटे वग़ैरा मिस्र में आए उनके नाम यह हैं: रूबिन, या'क़ूब का पहलौठा ।9और बनी रूबिन यह हैं : हनूक और फ़ल्लू और हसरोन और करमी।10और बनी शमा'ऊन यह हैं: यमूएल और यमीन और उहद और यकीन और सुहर और साऊल, जो एक कना'नी 'औरत से पैदा हुआ था।11और बनी लावी यह हैं : जैरसोन और किहात और मिरारी।12और बनी यहूदाह यह हैं : 'एर और ओनान और सीला, और फ़ारस और ज़ारह - इनमें से 'एर और ओनान मुल्क-ए-कना'न में मर चुके थे। और फ़ारस के बेटे यह हैं : हसरोन और हमूल।13और बनी इश्कार यह हैं: तोला' और फूवा और योब और सिमरोन।14और बनी ज़बूलून यह हैं : सरद और एलोन और यहलीएल।15यह सब या'क़ूब के उन बेटों की औलाद हैं जो फ़द्दान अराम में लियाह से पैदा हुए, इसी के बत्न से उसकी बेटी दीना थी। यहाँ तक तो उसके सब बेटे बेटियों का शुमार तैंतीस हुआ।16बनी जद्द यह हैं: सफ़ियान और हज्जी और सूनी और असबान और 'एरी और अरूदी और अरेली।17और बनी आशर यह~हैं: यिमना और इसवाह और इसवी और बरि'आह और सिर्राह उनकी बहन और ~बनी बरी'आह यह हैं: हिब्र और मलकीएल।18यह सब या'क़ूब के उन बेटों की औलाद हैं जो ज़िल्फ़ा लौंडी से पैदा हुए, जिसे लाबन ने अपनी बेटी लियाह को दिया था। उनका शुमार सोलह था।19और या'क़ूब के बेटे यूसुफ़ और बिनयमीन राख़िल से पैदा हुए थे।20और यूसुफ़ से मुल्क-ए-मिस्र में ओन के पुजारी फ़ोतीफ़िरा' की बेटी आसिनाथ के मनस्सी और इफ़ाईम पैदा हुए।21और बनी बिनयमीन यह हैं: बाला' और बक्र और अशबेल और जीरा और ना'मान, अख़ी और रोस, मुफ़्फ़ीम और हुफ़्फ़ीम और अरद।22यह सब या'क़ूब के उन बेटों की औलाद हैं जो राख़िल से पैदा हुए। यह सब शुमार में चौदह थे।23और दान के बेटे का नाम हशीम था।24और बनी नफ़्ताली यह~हैं: यहसीएल और जूनी और यिस्र और सलीम।25यह सब या'क़ूब के उन बेटों की औलाद हैं जो बिल्हाह लौंडी से पैदा हुए, जिसे लाबन ने अपनी बेटी राख़िल को दिया था। इनका शुमार सात था।26या'क़ूब के सुल्ब से जो लोग पैदा हुए और उसके साथ मिस्र में आए वह उसकी बहुओं को छोड़ कर शुमार में छियासठ थे।27और यूसुफ़ के दो बेटे थे जो मिस्र में पैदा हुए, इसलिए या'क़ूब के घराने के जो लोग मिस्र में आए वह सब मिल कर सत्तर हुए।28और उसने यहूदाह को अपने से आगे यूसुफ़ के पास भेजा ताकि वह उसे जशन का रास्ता दिखाए, और वह जशन के 'इलाक़े में आए।29और यूसुफ़ अपना रथ तैयार करवा के अपने बाप इस्राईल के इस्तक़बाल के लिए जशन को गया, और उसके पास जाकर उसके गले से लिपट गया और वहीं लिपटा हुआ देर तक रोता रहा।30तब इस्राईल ने यूसुफ़ से कहा, "अब चाहे मैं मर जाऊँ; क्यूँकि तेरा मुँह देख चुका कि तू अभी ज़िन्दा है।"31और यूसुफ़ ने अपने भाइयों से और अपने बाप के घराने से कहा, "मैं अभी जाकर फ़िर'औन को ख़बर कर दूँगा और उससे कह दूँगा कि मेरे भाई और मेरे बाप के घराने के लोग, जो मुल्क-ए-कना'न में थे मेरे पास आ गए हैं।32और वह चौपान हैं; क्यूँकि बराबर चौपायों को पालते आए हैं, और वह अपनी भेड़ बकरियाँ और गाय-बैल और जो कुछ उनका है सब ले आए हैं।'33तब जब फ़िर'औन तुम को बुला कर पूछे कि तुम्हारा पेशा क्या है?34तो तुम यह कहना कि तेरे ख़ादिम, हम भी और हमारे बाप दादा भी, लड़कपन से लेकर आज तक चौपाये पालते आए हैं।' तब तुम जशन के इलाक़े में रह सकोगे, इसलिए कि मिस्रियों को चौपानों से नफ़रत है।
1तब यूसुफ़ ने आकर फ़िर'औन को ख़बर दी कि मेरा बाप और मेरे भाई और उनकी भेड़ बकरियाँ और गाय बैल और उनका सारा माल-ओ-सामान' ~मुल्क-ए-कना'न से आ गया है, और अभी तो वह सब जशन के 'इलाक़े में हैं।2फिर उसने अपने भाइयों में से पाँच को अपने साथ लिया और उनको फ़िर'औन के सामने हाज़िर किया।3और फ़िर'औन ने उसके भाइयों से पूछा, "तुम्हारा पेशा क्या है?" उन्होंने फ़िर'औन से कहा, तेरे ख़ादिम चौपान हैं जैसे हमारे बाप दादा ~थे।”4फिर उन्होंने फ़िर'औन से कहा कि हम इस मुल्क में मुसाफ़िराना तौर पर रहने आए हैं, क्यूँकि मुल्क-ए-कना'न में सख़्त काल होने की वजह से वहाँ तेरे खादिमों के चौपायों के लिए चराई नहीं रही। इसलिए करम करके अपने ख़ादिमों को जशन के 'इलाक़े में रहने दे।5तब फ़िर'औन ने यूसुफ़ से कहा कि तेरा बाप और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं।6मिस्र का मुल्क तेरे आगे पड़ा है, यहाँ के अच्छे से अच्छे इलाक़े में अपने बाप और भाइयों को बसा दे, या'नी जशन ही के 'इलाक़े में उनको रहने दे, और अगर तेरी समझ में उनमें होशियार आदमी भी हों तो उनको मेरे चौपायों पर मुक़र्रर कर दे।"7और यूसुफ़ अपने बाप या'क़ूब को अन्दर लाया और उसे फ़िर'औन के सामने हाज़िर किया, और या'क़ूब ने फ़िर'औन को दु'आ दी।8और फ़िर'औन ने या'क़ूब से पूछा कि तेरी 'उम्र कितने साल की है?9या'क़ूब ने फ़िर'औन से कहा कि मेरी मुसाफ़िरत के साल एक सौ तीस हैं; मेरी ज़िन्दगी के दिन थोड़े और दुख से भरे हुए रहे, और अभी यह इतने हुए भी नही हैं जितने मेरे बाप दादा की ज़िन्दगी के दिन उनके दौर-ए-मुसाफ़िरत में हुए।10और या'क़ूब फ़िर'औन को दु'आ दे कर उसके पास से चला गया।11और यूसुफ़ ने अपने बाप और अपने भाइयों को बसा दिया और फ़िर'औन के हुक्म के मुताबिक़ रा'मसीस के इलाक़े को, जो मुल्क-ए-मिस्र का निहायत हरा भरा 'इलाक़ा है उनकी जागीर ठहराया।12और यूसुफ़ अपने बाप और अपने भाइयों और अपने बाप के घर के सब आदमियों की परवरिश, एक-एक के ख़ान्दान की ज़रूरत के मुताबिक़ अनाज से करने लगा।13और उस सारे मुल्क में खाने को कुछ न रहा, क्यूँकि काल ऐसा सख़्त था कि मुल्क-ए-मिस्र और मुल्क-ए-कना'न दोनों काल की वजह से तबाह हो गए थे।14और जितना रुपया मुल्क-ए-मिस्र और मुल्क-ए- कना'न में था वह सब यूसुफ़ ने उस ग़ल्ले के बदले, जिसे लोग ख़रीदते थे, ले ले कर जमा' कर लिया और सब रुपये को उसने फ़िर'औन के महल में पहुँचा दिया।15और जब वह सारा रुपया, जो मिस्र और कना'न के मुल्कों में था, ख़र्च हो गया तो मिस्री यूसुफ़ के पास आकर कहने लगे, "हम को अनाज दे; क्यूँकि रुपया तो हमारे पास रहा नहीं। हम तेरे होते हुए क्यूँ। मरें?"16यूसुफ़ ने कहा कि अगर रुपया नहीं हैं तो अपने चौपाये दो; और मैं तुम्हारे चौपायों के बदले तुम को अनाज दूँगा।17तब वह अपने चौपाये यूसुफ़ के पास लाने लगे ~और गाय बैलों और गधों के बदले उनको अनाज देने लगा; और पूरे साल भर उनको उनके सब चौपायों के बदले अनाज खिलाया।18जब यह साल गुज़र गया तो वह दूसरे साल उसके पास आ कर कहने लगे कि इसमें हम अपने ख़ुदावन्द से कुछ नहीं छिपाते कि हमारा सारा रुपया ~खर्च हो चुकाऔर हमारे चौपायों के गल्लों का मालिक भी हमारा ख़ुदावन्द हो गया है। और हमारा ख़ुदावन्द देख चुका है कि अब हमारे जिस्म और हमारी ज़मीन के अलावा कुछ बाक़ी नहीं।19फिर ऐसा क्यूँ हो कि तेरे देखते-देखते हम भी मरें और हमारी ज़मीन भी उजड़ जाए? इसलिए तू हम को और हमारी ज़मीन को अनाज के बदले ख़रीद ले कि हम फ़िर'औन के ग़ुलाम बन जाएँ, और हमारी ज़मीन का मालिक भी वही हो जाए और हम को बीज दे ताकि हम हलाक न हों बल्कि ज़िन्दा रहें और मुल्क भी वीरान न हो|20~और ~यूसुफ़ ने मिस्र की सारी ज़मीन फ़िर'औन के नाम पर ख़रीद ली; क्यूँकि काल से तंग आ कर मिस्रियों में से हर शख़्स ने अपना खेत बेच डाला। तब सारी ज़मीन फ़िर'औन की हो गई।21और मिस्र के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक जो लोग रहते थे उनको उसने शहरों में बसाया।22लेकिन पुजारियों की ज़मीन उसने न ख़रीदी, क्यूँकि फ़िर'औन की तरफ़ से पुजारियों को ख़ुराक मिलती थी। इसलिए वह अपनी-अपनी ख़ुराक, जो फ़िर'औन उनको देता था खाते थे इसलिए उन्होंने अपनी ज़मीन न बेची।23तब यूसुफ़ ने वहाँ के लोगों से कहा, कि देखो, मैंने आज के दिन तुम को और तुम्हारी ज़मीन को फ़िर'औन के नाम पर ख़रीद लिया है। इसलिए तुम अपने लिए यहाँ से बीज लो और खेत बो ~डालो।24और फ़सल पर पाँचवाँ हिस्सा फ़िर'औन को दे देना और बाक़ी चार तुम्हारे रहे, ताकि खेती के लिए बीज के भी काम आएँ, और तुम्हारे और तुम्हारे घर के आदमियों और तुम्हारे बाल बच्चों के लिए खाने को भी हो।25उन्होंने कहा, कि तूने हमारी जान बचाई है, हम पर हमारे ख़ुदावन्द के करम की नज़र रहे और हम फ़िर'औन के ग़ुलाम बने रहेंगे।26और यूसुफ़ ने यह कानून जो आज तक है मिस्र की ज़मीन के लिए ठहराया, के फ़िर'औन पैदावार का पाँचवाँ हिस्सा लिया करे। इसलिए सिर्फ़ पुजारियों की ज़मीन ऐसी थी जो फ़िर'औन की न हुई।27और इस्राइली मुल्क-ए-मिस्र में जशन के इलाक़े में रहते थे, और उन्होंने अपनी जायदादें खड़ी कर लीं और वह बढ़े और बहुत ज़्यादा हो गए।28और या'क़ूब मुल्क-ए-मिस्र में सत्रह साल और जिया; तब या'क़ूब की कुल 'उम्र एक सौ सैंतालीस साल की हुई।29और इस्राईल के मरने का वक़्त नज़दीक आया; तब उसने अपने बेटे यूसुफ़ को बुला कर उससे कहा, "अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो अपना हाथ मेरी रान के नीचे रख, और देख, मेहरबानी और सच्चाई से मेरे साथ पेश आना; मुझ को मिस्र में दफ़्न न करना।30बल्कि जब मैं अपने बाप-दादा के साथ सो जाऊँ तो मुझे मिस्र से ले जाकर उनके कब्रिस्तान में दफ़न करना।" उसने जवाब दिया, ‘जैसा तूने कहा है मैं वैसा ही करूँगा।"31और उसने कहा कि तू मुझ से क़सम खा। और उसने उससे क़सम खाई, तब इस्राईल अपने बिस्तर पर सिरहाने की तरफ़ सिजदे में हो गया।
1इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि किसी ने यूसुफ़ से कहा, "तेरा बाप बीमार है।" तब वह अपने दोनो बेटों, मनस्सी और इफ़्राईम को साथ लेकर चला।2और या'क़ूब से कहा गया, "तेरा बेटा यूसुफ़ तेरे पास आ रहा है," और इस्राईल अपने को संभाल कर पलंग पर बैठ गया।3और या'क़ूब ने यूसुफ़ से कहा, "खुदा-ए-क़ादिर-ए-मुतलक़ मुझे लूज़ में जो मुल्क-ए-कना'न में है, दिखाई दिया और मुझे बरकत दी।4और उसने मुझ से कहा मै तुझे कामयाब करूँगा और बढ़ाऊंगा और तुझ से क़ौमों का एक गिरोह पैदा करूँगा; और तेरे बा'द यह ज़मीन तेरी नसल को दूँगा, ताकि यह उनकी हमेशा की जायदाद ~हो जाए।'5तब तेरे दोनों बेटे, जो मुल्क-ए-मिस्र में मेरे आने से पहले पैदा हुए मेरे हैं, या'नी रूबिन और शमा'ऊन की तरह इफ़्राईम और मनस्सी भी मेरे ही होंगे।6और जो औलाद अब उनके बा'द तुझ से होगी वह तेरी ठहरेगी, लेकिन अपनी मीरास में अपने भाइयों के नाम से वह लोग नामज़द होंगे।7और मैं जब फ़द्दान से आता था तो राख़िल ने रास्ते ही में जब इफ़रात थोड़ी दूर रह गया था, मेरे सामने मुल्क-ए-कना'न में वफ़ात पाई। और मैंने उसे वहीं इफ़रात के रास्ते में दफ़्न किया। बैतलहम वही है।"8फिर इस्राईल ने यूसुफ़ के बेटों को देख कर पूछा, "यह कौन हैं?"9यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा, "यह मेरे बेटे हैं जो ख़ुदा ने मुझे यहाँ दिए हैं।" उसने कहा, "उनको ज़रा मेरे पास ला, मैं उनको बरकत दूँगा।"10लेकिन इस्राईल की आँखें बुढ़ापे की वजह से धुन्धला गई थीं, और उसे दिखाई नहीं देता था। तब यूसुफ़ उनको उसके नज़दीक ले आया। तब उसने उनको चूम कर गले लगा लिया।11और इस्राईल ने यूसुफ़ से कहा, "मुझे तो ख़्याल भी न था कि मैं तेरा मुँह देखूँगा लेकिन ख़ुदा ने तेरी औलाद भी मुझे दिखाई।"12और यूसुफ़ उनको अपने घुटनों के बीच से हटा कर मुँह के बल ज़मीन तक झुका।13और यूसुफ़ उन दोनों को लेकर, या'नी इफ़्राईम को अपने दहने हाथ से इस्राईल के बाएं हाथ के सामने और मनस्सी को अपने बाएं हाथ से इस्राईल के दहने हाथ के सामने करके, उनको उसके नज़दीक लाया।14और इस्राईल ने अपना दहना हाथ बढ़ा कर इफ़्राईम के सिर पर जो छोटा था, और बाँया हाथ मनस्सी के सिर पर रख दिया। उसने जान बूझ कर अपने हाथ यूँ रख्खे, क्यूँकि पहलौठा तो मनस्सी ही था।15और उसने यूसुफ़ को बरकत दी और कहा कि ख़ुदा, जिसके सामने मेरे बाप इब्राहीम और इस्हाक़ ने अपना दौर पूरा किया; वह ख़ुदा, जिसने सारी 'उम्र आज के दिन तक मेरी रहनुमाई ~की।16और वह फ़रिश्ता, जिसने मुझे सब बलाओं से बचाया, इन लड़कों को बरकत दे; और जो मेरा और मेरे बाप दादा इब्राहीम और इस्हाक़ का नाम है उसी से यह नामज़द हों, और ज़मीन पर बहुत कसरत से बढ़ जाएँ।"17और यूसुफ़ यह देखकर कि उसके बाप ने अपना दहना हाथ इफ़्राईम के सिर पर रख्खा, नाखुश हुआ और उसने अपने बाप का हाथ थाम लिया, ताकि उसे इफ़्राईम के सिर पर से हटाकर मनस्सी के सिर पर रख्खे।18और यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा कि ऐ मेरे बाप, ऐसा न कर; क्यूँकि पहलौठा यह है, अपना दहना हाथ इसके सिर पर रख।"19उसके बाप ने न माना, और कहा, "ऐ मेरे बेटे, मुझे खू़ब मा'लूम है। इससे भी एक गिरोह पैदा होगी और यह भी बुज़ुर्ग होगा, लेकिन इसका छोटा भाई इससे बहुत बड़ा होगा और उसकी नसल से बहुत सी क़ौमें होंगी।"20और उसने उनको उस दिन बरकत बख़्शी और कहा, "इस्राइली तेरा नाम ले लेकर यूँ दु'आ दिया करेंगे, 'ख़ुदा तुझ को इफ़्राईम और मनस्सी को तरह कामयाब ~करे' !' तब उसने इफ़ाईम को मनस्सी पर फ़ज़ीलत दी।21और इस्राईल ने यूसुफ़ से कहा, "मैं तो मरता हूँ लेकिन ख़ुदा तुम्हारे साथ होगा और तुम को फिर तुम्हारे बाप दादा के मुल्क में ले जाएगा।22और मैं तुझे तेरे भाइयों से ज़्यादा एक हिस्सा, जो मैने अमोरियों के हाथ से अपनी तलवार और कमान से लिया देता हूँ |
1और या'क़ूब ने अपने बेटों को यह कह कर बुलवाया कि तुम सब जमा' हो जाओ, ताकि मैं तुम को बताऊँ कि आख़िरी दिनों में तुम पर क्या-क्या गुज़रेगा।2~ऐ, या'क़ूब के बेटों जमा' हो कर सुनो, और अपने बाप इस्राईल की तरफ़ कान लगाओ।3ऐ रूबिन! तू मेरा पहलौठा, मेरी क़ुव्वत और मेरी शहज़ोरी का पहला फल है।तू मेरे रौब की और मेरी ताक़त की शान है।4तू पानी की तरह बे सबात है, इसलिए मुझे फ़ज़ीलत नहीं मिलेगी ~क्यूँकि तू अपने बाप के बिस्तर पर चढ़ा तूने उसे नापाक किया; रूबिन मेरे बिछोने पर चढ़ गया।5शमा'ऊन और लावी तो भाई-भाई हैं, उनकी तलवारें ज़ुल्म के हथियार हैं।6ऐ मेरी जान! उनके मधरे में शरीक न हो, ऐ मेरी बुज़ुर्गी! उनकी मजलिस में शामिल न हो, क्यूँकि उन्होंने अपने ग़ज़ब में एकआदमी को क़त्ल किया, और अपनी खुदराई से बैलों की कूँचें काटीं।7~ला'नत उनके ग़ज़ब पर, क्यूँकि वह तुन्द था। और उनके क़हर पर, क्यूँकि वह सख़्त था; मैं उन्हें या'क़ूब में अलग अलग और इस्राईल में बिखेर दूँगा।8ऐ यहूदाह, तेरे भाई तेरी मदह करेंगे, तेरा हाथ तेरे दुश्मनों की गर्दन पर होगा। तेरे बाप की औलाद तेरे आगे सिज्दा करेगी।9यहूदाह शेर-ए-बबर का बच्चा है ~ऐ मेरे बेटे! तू शिकार मार कर चल दिया है। वह शेर-ए-बबर, बल्कि शेरनी की तरह दुबक कर बैठ गया, कौन उसे छेड़े?10यहूदाह से सल्तनत नहीं छूटेगी। और न उसकी नसल से हुकूमत का 'असा मौकूफ़ होगा। जब तक शीलोह न आए और क़ौमें उसकी फ़रमाबरदार होंगी।11वह अपना जवान गधा अंगूर के दरख़्त से, और अपनी गधी का बच्चा 'आला दरजे के अंगूर के दरख़्त से बाँधा करेगा; वह अपना लिबास मय में, और अपनी पोशाक आब-ए अंगूर में ~धोया करेगा12उसकी आँखें मय की वजह से लाल, और उसके दाँत दूध की वजह से सफ़ेद रहा करेंगे।13ज़बूलून समुन्दर के किनारे बसेगा, और जहाज़ों के लिए बन्दरगाह का काम देगा, और उसकी हद सैदा तक फैली होगी।14इश्कार मज़बूत गधा है, जो दो भेड़सालों के बीच बैठा है;15उसने एक अच्छी आरामगाह और खुशनुमा ज़मीन को ~देख कर अपना कन्धा बोझ उठाने को झुकाया, और बेगार में ग़ुलाम की तरह काम करने लगा।16दान इस्राईल के क़बीलों में से एक की तरह अपने लोगों का इन्साफ़ करेगा।17दान रास्ते का साँप है, वह राहगुज़र का अज़दहा है, जो घोड़े के 'अकब को ऐसा डसता है किउसका सवार पछाड़ खा कर गिर पड़ता है।18ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी नजात की राह देखता आया हूँ।19जद पर एक फौज़ हमला करेगी लेकिन वह उसके दुम्बाला पर छापा मारेगा ।20आशर नफ़ीस अनाज पैदा किया करेगा और बादशाहों के लायक़ लज़ीज़ सामान मुहय्या करेगा।21नफ़्ताली ऐसा है जैसा छूटी हुई हरनी, वह मीठी-मीठी बातें करता है।22यूसुफ़ एक फलदार पौधा है, ऐसा फलदार पौधा जो पानी के चश्में के पास लगा हुआ हो, और उसकी शाखें । दीवार पर फैल गई हों।23तीरंदाज़ों ने उसे बहुत छेड़ा और मारा और सताया है;24लेकिन उसकी कमान मज़बूत रही, और उसके हाथों और बाजुओं ने या'क़ूब के क़ादिर के हाथ से ताक़त पाई, वहीं से वह चौपान उठा है जो इस्राईल ~की चट्टान ~है।25यह तेरे बाप के ख़ुदा का काम है, जो तेरी मदद करेगा, उसी क़ादिर-ए-मुतलक का काम जो ऊपर से आसमान की बरकतें, और नीचे से गहरे समुन्दर कि बरकतें 'अता करेगा।26तेरे बाप की बरकतें, मेरे बाप दादा की बरकतों से कहीं ज़्यादा हैं, और क़दीम पहाड़ों की इन्तिहा तक पहुँची हैं; वह यूसुफ़ के सिर, बल्कि उसके सिर की चाँदी पर जो अपने भाइयों से जुदा हुआ नाज़िल होंगी।27बिनयमीन फाड़ने वाला भेड़िया है, वह सुबह को शिकार खाएगा और शाम को लूट का माल बाँटेगा।28इस्राईल के बारह क़बीले यही हैं : और उनके बाप ने जो-जो बातें कह कर उनको बरकत दीं वह भी यही हैं; हर एक को, उसकी बरकत के मुवाफ़िक़ उसने बरकत दी।29फिर उसने उनको हुक्म किया और कहा, कि मैं अपने लोगों में शामिल होने पर हूँ; मुझे मेरे बाप दादा के पास उस मग़ारह मारे में जो इफ़रोन हित्ती के खेत में है दफ़्न करना,30या'नी उस मग़ारे में जो मुल्क-ए-कना'न में ममरे के सामने मकफ़ीला के खेत में है, जिसे इब्राहीम ने खेत के साथ 'इफ़रोन हिती से मोल लिया था, ताकि क़ब्रिस्तान के लिए वह उसकी मिलिकयत बन जाए।31वहाँ उन्होंने इब्राहीम को और उसकी बीवी सारा को दफ़न किया, वहीं उन्होने इस्हाक़ और उसकी बीवी रिबक़ा को दफ़न किया, और वहीं मैंने भी लियाह को दफ़न किया,32या'नी उसी खेत के माग़ारे में जो बनी हित्ती से ख़रीदा था।"33और जब या'क़ूब अपने बेटों को वसीयत कर चुका तो, उसने अपने पाँव बिछौने पर समेट लिए और दम छोड़ दिया और अपने लोगों में जा मिला।
1तब यूसुफ़ अपने बाप के मुँह से लिपट कर उस पर रोया और उसको चूमा।2और यूसुफ़ ने उन हकीमों को जो उसके नौकर थे, अपने बाप की लाश में खुशबू भरने का हुक्म दिया। तब हकीमों ने इस्राईल की लाश में ख़ुशबू भरी।3और उसके चालीस दिन पूरे हुए, क्यूँकि खुशबू भरने में इतने ही दिन लगते हैं। और मिस्री उसके लिए सत्तर दिन तक मातम करते रहे।4और जब मातम के दिन गुज़र गए तो यूसुफ़ ने फ़िर'औन के घर के लोगों से कहा, "अगर मुझ पर तुम्हारे करम की नज़र है तो फ़िर'औन से ज़रा 'अर्ज़ कर दो,5कि मेरे बाप ने यह मुझ से क़सम लेकर कहा है, 'मैं तो मरता हूँ, तू मुझ को मेरी क़ब्र में जो मैंने मुल्क-ए-कना'न में अपने लिए खुदवाई है, दफ़्न करना।' इसलिए ज़रा मुझे इजाज़त दे कि मैं वहाँ जाकर अपने बाप को दफ़्न करूँ, और मैं लौट कर आ जाऊँगा।"6फ़िर'औन ने कहा, कि जा और अपने बाप को जैसे उसने तुझ से क़सम ली है दफ़्न कर।"7तब यूसुफ़ अपने बाप को दफ़्न करने चला, और फ़िर'औन के सब ख़ादिम और उसके घर के बुज़ुर्ग, और मुल्क-ए-मिस्र के सब बुज़ुर्ग,8और यूसुफ़ के घर के सब लोग और उसके भाई, और उसके बाप के घर के आदमी उसके साथ गए; वह सिर्फ़ अपने बाल बच्चे और भेड़ बकरियाँ और गाय-बैल जशन के 'इलाक़े में छोड़ गए।9और उसके साथ रथ और सवार भी गए, और एक बड़ा क़ाफिला उसके साथ था।10और वह अतद के खलिहान पर जो यरदन के पार है पहुंचे, और वहाँ उन्होंने बुलन्द और दिलसोज़ आवाज़ से नौहा किया; और यूसुफ़ ने अपने बाप के लिए सात दिन तक मातम कराया।11और जब उस मुल्क के बाशिन्दों या'नी कना'नियों ने अतद में खलिहान पर इस तरह का मातम देखा, तो कहने लगे, "मिस्रियों का यह बड़ा दर्दनाक मातम है।" इसलिए वह ~जगह अबील मिस्रयीम कहलाई, और वह यरदन के पार है।12और या'क़ूब के बेटों ने जैसा उसने उनको हुक्म किया था, वैसा ही उसके लिए किया।13क्यूँकि उन्होंने उसे मुल्क-ए-कना'न में ले जाकर ममरे के सामने मकफ़ीला के खेत के मग़ारे में, जिसे इब्राहीम ने 'इफ़रोन हिती से खरीदकर क़ब्रिस्तान के लिए अपनी मिल्कियत बना लिया था दफ़न किया।14और यूसुफ़ अपने बाप को दफ़्न करके अपने भाइयों, और उनके साथ जोउसके बाप को दफ़्न करने के लिए उसके साथ गए थे, मिस्र को लौटा।15और यूसुफ़ के भाई यह देख कर कि उनका बाप मर गया कहने लगे, कि यूसुफ़ शायद हम से दुश्मनी करे, और सारी बुराई का जो हम ने उससे की है पूरा बदला ले।"16तब उन्होंने यूसुफ़ को यह कहला भेजा, "तेरे बाप ने अपने मरने से आगे ये हुक्म किया था,17'तुम यूसुफ़ से कहना कि अपने भाइयों की ख़ता और उनका गुनाह अब बख़्श दे, क्यूँकि उन्होंने तुझ से बुराई की; इसलिए अब तू अपने बाप के ख़ुदा के बन्दों की ख़ता बख़्श दे'।" और यूसुफ़ उनकी यह बातें सुन कर रोया।18और उसके भाइयों ने ख़ुद भी उसके सामने जाकर अपने सिर टेक दिए और कहा, "देख! हम तेरे ख़ादिम हैं।"19यूसुफ़ ने उनसे कहा, "मत डरो! क्या मैं ख़ुदा की जगह पर हूँ?20तुम ने तो मुझ से बुराई करने का इरादा किया था, लेकिन ख़ुदा ने उसी से नेकी का क़स्द किया, ताकि बहुत से लोगों की जान बचाए चुनाँचे आज के दिन ऐसा ही हो रहा है।21इसलिए तुम मत डरो, मैं तुम्हारी और तुम्हारे बाल बच्चों की परवरिश करता रहूँगा।” इस तरह उसने अपनी मुलायम बातों से उनको तसल्ली दी।22और यूसुफ़ और उसके बाप के घर के लोग मिस्र में रहे, और यूसुफ़ एक सौ दस साल तक ज़िन्दा रहा।23और यूसुफ़ ने इफ़्राईम की औलाद तीसरी नसल तक देखी, और मनस्सी के बेटे मकीर की औलाद को भी यूसुफ़ ने अपने घुटनों पर खिलाया।24और यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, "मैं मरता हूँ; और ख़ुदा यक़ीनन तुम को याद करेगा, और तुम को इस मुल्क से निकाल कर उस मुल्क में पहुँचाएगा जिसके देने की क़सम उसने अब्राहम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई थी।"25और यूसुफ़ ने बनी-इस्राईल से क़सम लेकर कहा, "ख़ुदा यक़ीनन तुम को याद करेगा, इसलिए तुम ज़रूर ही मेरी हडिड्डयों को यहाँ से ले जाना।"26और यूसुफ़ ने एक सौ दस साल का होकर वफ़ात पाई; और उन्होंने उसकी लाश में ख़ुशबू भरी और उसे मिस्र ही में ताबूत में रख्खा।|
1इस्राईल के बेटों के नाम जो अपने-अपने घराने को लेकर या'क़ूब के साथ मिस्र में आए यह हैं:2~रूबिन, शमा'ऊन, लावी, यहूदाह,3~इश्कार, ज़बूलून, बिनयमीन,4~दान, नफ़्ताली, जद्द, आशर5~और सब जानें जो या'क़ूब के सुल्ब से पैदा हुई सत्तर थीं, और यूसुफ़ तो मिस्र में पहले ही से था।6और यूसुफ़ और उसके सब भाई और उस नसल के सब लोग मर मिटे।7और इस्राईल की औलाद क़ामयाब और ज़्यादा ता'दाद और फ़िरावान और बहुत ताक़तवर हो गई और वह मुल्क उनसे भर गया।8~तब मिस्र में एक नया बादशाह हुआ जो यूसुफ़ को नहीं जानता था।9~और उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "देखो इस्राइली हम से ज़्यादा और ताक़तवर हो गए हैं।10~इसलिए आओ, हम उनके साथ हिकमत से पेश आएँ, ऐसा न हो कि जब वह और ज़्यादा हो जाएँ और उस वक़्त जंग छिड़ जाए तो वह हमारे दुश्मनों से मिल कर हम से लड़ें और मुल्क से निकल जाएँ।”11~इसलिए उन्होंने उन पर बेगार लेने वाले मुक़र्रर किए जो उनसे सख़्त काम लेकर उनको सताएँ। तब उन्होंने फ़िर'औन के लिए ज़ख़ीरे के शहर पितोम और रा'मसीस बनाए।12~तब उन्होंने जितना उनको सताया वह उतना ही ज़्यादा बढ़ते और फैलते गए, इसलिए वह लोग बनी-इस्राईल की तरफ़ से फ़िक्रमन्द ही गए।13~और मिस्रियों ने बनी-इस्राईल पर तशद्दुद कर-कर के उनसे काम कराया।14और उन्होंने उनसे सख़्त मेहनत से गारा और ईंट बनवा-बनवाकर और खेत में हर क़िस्म की ख़िदमत ले-लेकर उनकी ज़िन्दगी कड़वी की; उनकी सब ख़िदमतें जो वह उनसे कराते थे दुख की थीं।15तब मिस्र के बादशाह ने'इब्रानी दाइयों से जिनमें एक का नाम सिफ़रा और दूसरी का नाम फू'आ था बातें की,16~और कहा, "जब 'इब्रानी 'औरतों के तुम बच्चा जनाओ और उनको पत्थर की बैठकों पर बैठी देखो, तो अगर बेटा हो तो उसे मार डालना, और अगर बेटी हो तो वह जीती रहे।"17~लेकिन वह दाइयाँ ख़ुदा से डरती थीं, तब उन्होंने मिस्र के बादशाह का हुक्म न माना बल्कि लड़कों को ज़िन्दा छोड़ देती थीं।18~फिर मिस्र के बादशाह ने दाइयों को बुलवा कर उनसे कहा, "तुम ने ऐसा क्यूँ किया कि लड़कों को ज़िन्दा रहने दिया?"19दाइयों ने फ़िर'औन से कहा, 'इब्रानी 'औरतें मिस्री 'औरतों की तरह नहीं हैं। वह ऐसी मज़बूत होती हैं कि दाइयों के पहुँचने से पहले ही जनकर फ़ारिग़ हो जाती हैं।"20तब ख़ुदा ने दाइयों का भला किया और लोग बढ़े और बहुत ज़बरदस्त हो गए।21और इस वजह से कि दाइयाँ ख़ुदा से डरी, उसने उनके घर आबाद कर दिए ।22~और फ़िर'औन ने अपनी क़ौम के सब लोगों को ताकीदन कहा, "उनमें जो बेटा पैदा हो तुम उसे दरिया में डाल देना, और जो बेटी हो उसे ज़िन्दा छोड़ना।"
1और लावी के घराने के एक शख़्स ने जाकर लावी की नसल की एक 'औरत से ब्याह किया।2~वह 'औरत हामिला हुई और उसके बेटा हुआ, और उस ने यह देखकर कि बच्चा ख़ूबसूरत है तीन महीने तक उसे छिपा कर रखा।3और जब उसे और ज़्यादा छिपा न सकी तो उसने सरकन्डों का एक टोकरा लिया, और उस पर चिकनी मिट्टी और राल लगा कर लड़के को उसमें रख्खा, और उसे दरिया के किनारे झाऊ में छोड़ आई।4और उसकी बहन दूर खड़ी रही ताकि देखे कि उसके साथ क्या होता है।5और फ़िर'औन की बेटी दरिया पर ग़ुस्ल करने आई और उसकी सहेलियाँ दरिया के किनारे-किनारे टहलने लगीं। तब उसने झाऊ में वह टोकरा देख कर अपनी सहेली की भेजा कि उसे उठा लाए।6जब उसने उसे खोला तो लड़के को देखा, और वह बच्चा रो रहा था। उसे उस पर रहम आया और कहने लगी, "यह~किसी 'इब्रानी का बच्चा है।”7~तब उसकी बहन ने फ़िर'औन की बेटी से कहा, "क्या मैं जा कर 'इब्रानी 'औरतों में से एक दाई तेरे पास बुला लाऊँ, जो तेरे लिए इस बच्चे को दूध पिलाया करे?"8~फ़िर'औन की बेटी ने उसे कहा, "जा! "वह लड़की जाकर उस बच्चे की माँ को बुला लाई।9~फ़िर'औन की बेटी ने उसे कहा, "तू इस बच्चे को ले जाकर मेरे लिए दूध पिला, मैं तुझे तेरी मज़दूरी दिया करूँगी। "वह 'औरत उस बच्चे को ले जाकर दूध पिलाने लगी।10जब बच्चा कुछ बड़ा हुआ तो वह उसे फ़िर'औन की बेटी के पास ले गई और वह उसका बेटा ठहरा और उसने उसका नाम मूसा यह कह कर रख्खा, "मैंने उसे पानी से निकाला।"11~इतने में जब मूसा बड़ा हुआ तो बाहर अपने भाइयों के पास गया। और उनकी मशक़्क़तों पर उसकी नज़र पड़ी और उसने देखा कि एक मिस्री उसके एक 'इब्रानी भाई को मार रहा है।12~फिर उसने इधर उधर निगाह की और जब देखा कि वहाँ कोई दूसरा आदमी नहीं है, तो उस मिस्री को जान से मार कर उसे रेत में छिपा दिया।13~फिर दूसरे दिन वह बाहर गया और देखा कि दो 'इब्रानी आपस में मार पीट कर रहे हैं। तब उसने उसे जिसका कु़सूर था कहा, कि "तू अपने साथी को क्यूँ मारता है?”14~उसने कहा, "तुझे किसने हम पर हाकिम या मुन्सिफ़ मुक़र्रर किया? क्या जिस तरह तूने उस मिस्री को मार डाला, मुझे भी मार डालना चाहता है?" तब मूसा यह सोच कर डरा, "बिला शक यह राज़ खुल गया।”15~जब फ़िर'औन ने यह सुना तो चाहा कि मूसा को क़त्ल करे।पर मूसा फ़िर'औन के सामने से भाग कर मुल्क-ए-मिदियान में जा बसा। वहाँ वह एक कुएँ के नज़दीक बैठा था।16और मिदियान के काहिन की सात बेटियाँ थी। वह आईं और पानी भर-भर कर कठरों में डालने लगीं ताकि अपने बाप की भेड़-बकरियों को पिलाएँ।17~और गड़रिये आकर उनको भगाने लगे, लेकिन मूसा खड़ा हो गया और उसने उनकी मदद की और उनकी भेड़-बकरियों को पानी पिलाया।18~और जब वह अपने बाप र'ऊएल के पास लौटीं तो उसने पूछा, "आज तुम इस क़दर जल्द कैसे आ गई?"19~उन्होंने कहा, 'एक मिस्री ने हम को गड़रियों के हाथ से बचाया, और हमारे बदले पानी भर-भर कर भेड़ बकरियों को पिलाया।”20~उसने अपनी बेटियों से कहा, "वह आदमी कहाँ है? तुम उसे क्यूँ छोड़ आई? उसे बुला लाओ कि रोटी खाए।"21और मूसा उस शख़्स के साथ रहने को राज़ी हो गया। तब उसने अपनी बेटी सफ़्फूरा मूसा को ब्याह दी।22~और उसके एक बेटा हुआ, और मूसा ने उसका नाम जैरसोम यह कहकर रख्खा, "मैं अजनबी मुल्क में मुसाफ़िर हूँ।”23और एक मुद्दत के बाद यूँ हुआ कि मिस्र का बादशाह मर गया। और बनी-इस्राईल अपनी ग़ुलामी की वजह से आह भरने लगे और रोए; और उनका रोना जो उनकी ग़ुलामी की वजह था ख़ुदा तक पहुँचा।24~और ख़ुदा ने उनका कराहना सुना, और ख़ुदा ने अपने 'अहद को जो इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब के साथ था याद किया।25~और ख़ुदा ने बनी-इस्राईल पर नज़र की और उनके हाल को मा'लूम किया।
1और मुसा के ससुर यित्रो कि जो मिदियान का काहिन था, भेड़-बकारियाँ चराता था। और वह भेड़-बकरियों को हंकाता हुआ उनको वीराने की परली तरफ़ से ख़ुदा के पहाड़ होरिब के नज़दीक ले आया।2और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता एक झाड़ी में से आग के शो'ले में उस पर ज़ाहिर हुआ। उसने निगाह की और क्या देखता है, कि एक झाड़ी में आग लगी हुई है पर वह झाड़ी भसम नहीं होती।3तब मूसा ने कहा, "मैं अब ज़रा उधर कतरा कर इस बड़े मन्ज़र को देखूँ कि यह झाड़ी क्यूँ नहीं जल जाती।"4~जब ख़ुदावन्द ने देखा कि वह देखने को कतरा कर आ रहा है, तो ख़ुदा ने उसे झाड़ी में से पुकारा और कहा, "ऐ मूसा! ऐ मूसा!" उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ।"5~तब उसने कहा, "इधर पास मत आ। अपने पाँव से जूता उतार, क्यूँकि जिस जगह तू खड़ा है वह पाक ज़मीन है।"6~फिर उसने कहा कि मैं तेरे बाप का ख़ुदा, या'नी इब्राहीम का ख़ुदा और इस्हाक़ का ख़ुदा और या'क़ूब का ख़ुदा हूँ।" मूसा ने अपना मुँह छिपाया क्यूँकि वह ख़ुदा पर नज़र करने से डरता था।7~और ख़ुदावन्द ने कहा, "मैंने अपने लोगों की तक्लीफ़ जो मिस्र में हैं ख़ूब देखी, और उनकी फ़रियाद जो बेगार लेने वालों की वजह से है सुनी, और मैं उनके दुखों को जानता हूँ।8~और मैं उतरा हूँ कि उनको मिस्रियों के हाथ से छुड़ाऊँ, और उस मुल्क से निकाल कर उनको एक अच्छे और बड़े मुल्क में जहाँ दूध और शहद बहता है या'नी कना'नियों और हित्तियों और अमोरियों और ~फ़रिज़ियों और हव्वियों और यबूसियों के मुल्क में पहुँचाऊँ।9देख बनी-इस्राईल की फ़रियाद मुझ तक पहुँची है, और मैंने वह जु़ल्म भी जो मिस्री उन पर करते हैं देखा है।10~इसलिए अब आ मैं तुझे फ़िर'औन के पास भेजता हूँ कि तू मेरी क़ौम बनी-इस्राईल को मिस्र से निकाल लाए।"11मूसा ने ख़ुदा से कहा, "मैं कौन हूँ जो फ़िर'औन के पास जाऊँ और बनी-इस्राईल को मिस्र से निकाल लाऊँ?"12उसने कहा, "मैं ज़रूर तेरे साथ रहूँगा और इसका कि मैंने तुझे भेजा है तेरे लिए यह निशान होगा, कि जब तू उन लोगों को मिस्र से निकाल लाएगा तो तुम इस पहाड़ पर ख़ुदा की 'इबादत करोगे।"13~तब मूसा ने ख़ुदा से कहा, "जब मैं बनी-इस्राईल के पास जाकर उनको कहूँ कि तुम्हारे बाप-दादा के ख़ुदा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, " और वह मुझे कहें कि उसका नाम क्या है?" तो मैं उनको क्या बताऊँ?"14~ख़ुदा ने मूसा से कहा, "मैं जो हूँ सो मैं हूँ।इसलिए तू बनी-इस्राईल से यूँ कहना, 'मैं जो हूँ ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है'।"15~फिर ख़ुदा ने मूसा से यह भी कहा कि तू बनी-इस्राईल से यूँ कहना कि ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा के ख़ुदा, इब्राहीम के ख़ुदा और इस्हाक़ के ख़ुदा और या'क़ूब के ख़ुदा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। हमेशा तक मेरा यही नाम है और सब नसलों में इसी से मेरा ज़िक्र होगा।"16~जा कर इस्राइली बुजु़र्गों को एक जगह जमा' कर और उनको कह, 'ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा के ख़ुदा, इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब के ख़ुदा ने मुझे दिखाई देकर यह कहा है कि मैंने तुम को भी, और जो कुछ बरताव तुम्हारे साथ मिस्र में किया जा रहा है उसे भी ख़ूब देखा है।17~और मैंने कहा है कि मैं तुम को मिस्र के दुख में से निकाल कर कना'नियों और हित्तियोंऔर अमोरियोंऔर फ़रिज़्ज़ियों और हव्वियों और यबूसियों के मुल्क में ले चलूँगा, जहाँ दूध और शहद बहता है।'18और वह तेरी बात मानेंगे और तू इस्राइली बुज़ुर्गों को साथ लेकर मिस्र के बादशाह के पास जाना और उससे कहना कि ~'ख़ुदावन्द इब्रानियों के ख़ुदा की हम से मुलाक़ात हुई। अब तू हम को तीन दिन की मंज़िल तक वीराने में जाने दे ताकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए क़ुर्बानी करें।"19~और मैं जानता हूँ कि मिस्र का बादशाह तुम को न यूँ जाने देगा, न बड़े ज़ोर से।20तब मैं अपना हाथ बढ़ाऊँगा और मिस्र को उन सब 'अजाइब से जो मैं उसमें करूँगा, मुसीबत में डाल दूँगा। इसके बाद वह तुम को जाने देगा।21~और मैं उन लोगों को मिस्रियों की नज़र में इज़्ज़त बख़्शूँगा और यूँ होगा कि जब तुम निकलोगे तो ख़ाली हाथ न निकलोगे।22~बल्कि तुम्हारी एक-एक 'औरत अपनीअपनी पड़ौसन से और अपने-अपने घर की मेहमान से सोने चाँदी के ज़ेवर और लिबास माँग लेगी। इनको तुम अपने बेटों और बेटियों को पहनाओगे और मिस्रियों को लूट लोगे।”
1तब मूसा ने जवाब दिया, "लेकिन वह तो मेरा यक़ीन ही नहीं करेंगे न मेरी बात सुनेंगे। वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द तुझे दिखाई नहीं दिया'।"2~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि यह तेरे हाथ में क्या है?" उसने कहा, "लाठी।"3फिर उसने कहा कि उसे ज़मीन पर डाल दे।" उसने उसे ज़मीन पर डाला और वह साँप बन गई, और मूसा उसके सामने से भागा।4तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "हाथ बढ़ा कर उसकी दुम पकड़ ले। (उसने हाथ बढ़ाया और उसे पकड़ लिया, वह उसके हाथ में लाठी बन गया।)5~ताकि वह यक़ीन करें कि ख़ुदावन्द उनके बाप-दादा का ख़ुदा, इब्राहीम का ख़ुदा, इस्हाक़ का ख़ुदा और या'क़ूब का ख़ुदा तुझ को दिखाई दिया।"6~फिर ख़ुदावन्द ने उसे यह भी कहा, कि तू अपना हाथ अपने सीने पर रख कर ढाँक ले।" उसने अपना हाथ अपने सीने पर रख कर उसे ढाँक लिया, और जब उसने उसे निकाल कर देखा तो उसका हाथ कोढ़ से बर्फ़ की तरह सफ़ेद था।7~उसने कहा कि तू अपना हाथ फिर अपने सीने पर रख कर ढाँक ले। (उसने फिर उसे सीने पर रख कर ढाँक लिया। जब उसने उसे सीने पर से बाहर निकाल कर देखा तो वह फिर उसके बाकी जिस्म की तरह हो गया।)8और यूँ होगा कि अगर वह तेरा यक़ीन न करें और पहले मोअजिज़े को भी न मानें तो वह दूसरे मोअजिज़े की वजह से यक़ीन करेंगे।9~और अगर वह इन दोनों मो'अजिज़ों की वजह से भी यक़ीन न करें और तेरी बात न सुनें, तो तू दरिया का पानी लेकर ख़ुश्क ज़मीन पर छिड़क देना और वह पानी जो तू दरिया से लेगा ख़ुश्क ज़मीन पर ख़ून हो जाएगा।"10~तब मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, "ऐ ख़ुदावन्द! मैं फ़सीह नहीं, न तो पहले ही था और न जब से तूने अपने बन्दे से कलाम किया बल्कि रुक-रुक कर बोलता हूँ और मेरी ज़बान कुन्दहै |"11~तब ख़ुदावन्द ने उसे कहा कि आदमी का मुँह किसने बनाया है? और कौन गूँगा या बहरा या बीना या अन्धा करता है? क्या मैं ही जो ख़ुदावन्द हूँ यह नहीं करता?12~इसलिए अब तू जा और मैं तेरी ज़बान का ज़िम्मा लेता हूँ और तुझे सिखाता रहूँगा कि तू क्या-क्या कहे।"13~तब उसने कहा कि ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, किसी और के हाथ से जिसे तू चाहे यह पैग़ाम भेज।”14~तब ख़ुदावन्द का क़हर मूसा पर भड़का और उसने कहा, "क्या लावियों में से हारून तेरा भाई नहीं है? मैं जानता हूँ कि वह फ़सीह है और वह तेरी मुलाक़ात को आ भी रहा है, और तुझे देख कर दिल में खु़श होगा।15~इसलिए तू उसे सब कुछ बताना और यह सब बातें उसे सिखाना और मैं तेरी और उसकी ज़बान का ज़िम्मा लेता हूँ, और तुम को सिखाता रहूँगा कि तुम क्या-क्या करो।16और वह तेरी तरफ़ से लोगों से बातें करेगा और वह तेरा मुँह बनेगा और तू उसके लिए जैसे ख़ुदा होगा।17और तू इस लाठी को अपने हाथ में लिए जा और इसी से इन मो'अजिज़ों को दिखाना।18~तब मूसा लौट कर अपने ससुर यित्रो के पास गया और उसे कहा, "मुझे ज़रा इजाज़त दे कि अपने भाइयों के पास जो मिस्र में हैं, जाऊँ और देखूँ कि वह अब तक ज़िन्दा हैं कि नहीं।" यित्रो ने मूसा से कहा, कि सलामत जा।"19और ख़ुदावन्द ने मिदियान में मूसा से कहा, कि "मिस्र को लौट जा, क्यूँकि वह सब जो तेरी जान के ख़्वाहाँ थे मर गए।"20तब मूसा अपनी बीवी और अपने बेटों को लेकर और उनको एक गधे पर चढ़ा कर मिस्र को लौटा, और मूसा ने ख़ुदा की लाठी अपने हाथ में ले ली।21~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "जब तू मिस्र में पहुँचे तो देख वह सब करामात जो मैंने तेरे हाथ में रख्खी हैं फ़िर'औन के आगे दिखाना, लेकिन मैं उसके दिल को सख़्त करूँगा, और वह उन लोगों को जाने नहीं देगा।22~तू फ़िर'औन से कहना, कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि इस्राईल मेरा बेटा बल्कि मेरा पहलौठा है।23और मैं तुझे कह चुका हूँ कि मेरे बेटे को जाने दे ताकि वह मेरी 'इबादत करे, और तूने अब तक उसे जाने देने से इन्कार किया है; और देख मैं तेरे बेटे को बल्कि तेरे पहलौटे को ~मार डालूँगा'।"24~और रास्ते में मंज़िल पर ख़ुदावन्द उसे मिला और चाहा कि उसे मार डाले।25तब सफ़्फूरा ने चक़मक़ का एक पत्थर लेकर अपने बेटे की खलड़ी काट डाली और उसे मूसा के पाँव पर फेंक कर कहा, "तू बेशक मेरे लिए ख़ूनी दूल्हा ठहरा।"26~तब उसने उसे छोड़ दिया। लेकिन उसने कहा, कि "ख़तने की वजह से तू ख़ूनी दूल्हा है।"27~और ख़ुदावन्द ने हारून से कहा, कि "वीराने में जा कर मूसा से मुलाक़ात कर।" वह गया और ख़ुदा के पहाड़ पर उससे मिला और उसे बोसा दिया।28~और मूसा ने हारून को बताया, कि ख़ुदा ने क्या-क्या बातें कह कर उसे भेजा और कौन-कौन से मो'अजिज़े दिखाने का उसे हुक्म दिया है।29~तब मूसा और हारून ने जाकर बनी-इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को एक जगह जमा' किया।30~और हारून ने सब बातें जो ख़ुदावन्द ने मूसा से कहीं थी उनको बताई और लोगों के सामने मो'जिज़े किए।31~तब लोगों ने उनका यक़ीन किया और यह सुन कर कि ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल की ख़बर ली और उनके दुखों पर नज़र की, उन्होंने अपने सिर झुका कर सिज्दा किया।
1~इसके बा'द मूसा और हारून ने जाकर फ़िर'औन से कहा कि, "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि 'मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह वीराने में मेरे लिए 'ईद करें'।"2~फ़िर'औन ने कहा, कि "ख़ुदावन्द कौन है कि मैं उसकी बात को मान कर बनी-इस्राईल को जानें दूँ? मैं ख़ुदावन्द को नहीं जानता और मैं बनी-इस्राईल को जाने भी नहीं दूँगा।"3~तब उन्होंने कहा, कि 'इब्रानियों का ख़ुदा हम से मिला है; इसलिए हम को इजाज़त दे कि हम तीन दिन की मन्ज़िल वीराने में जा कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए क़ुर्बानी करें, ऐसा न हो कि वह हम पर वबा भेज दे या हम को तलवार से मरवा दे।"4~तब मिस्र के बादशाह ने उनको कहा, कि "ऐ मूसा और ऐ हारून! तुम क्यूँ इन लोगों को इनके काम से छुड़वाते हो? तुम जाकर अपने-अपने बोझ को उठाओ।”5~और फ़िर'औन ने यह भी कहा, कि "देखो, यह लोग इस मुल्क में बहुत हो गए हैं, और तुम इनको इनके काम से बिठाते हो।"6~और उसी दिन फ़िर'औन ने बेगार लेने वालों और सरदारों को जो लोगों पर थे हुक्म किया,7~"अब आगे को तुम इन लोगों को ईटें बनाने के लिए भुस न देना जैसे अब तक देते रहे, वह ख़ुद ही जाकर अपने लिए भुस बटोरें।8~और इनसे उतनी ही ईटें बनवाना जितनी वह अब तक बनाते आए हैं; तुम उसमें से कुछ न घटाना क्यूँकि वह काहिल हो गए हैं, इसीलिए चिल्ला-चिल्ला कर कहते हैं, 'हम को जाने दो कि हम अपने ख़ुदा के लिए क़ुर्बानी करें।"9~इसलिए इनसे ज़्यादा सख़्त मेहनत ली जाए, ताकि काम में मशगू़ल रहें और झूठी बातों से दिल न लगाएँ।"10~तब बेगार लेने वालों और सरदारों ने जो लोगों पर थे जाकर उनसे कहा, कि फ़िर'औन कहता है, कि 'मैं तुम को भुस नहीं देने का।11~तुम ख़ुद ही जाओ और जहाँ कहीं तुम को भुस मिले वहाँ से लाओ, क्यूँकि तुम्हारा काम कुछ भी घटाया नहीं जाएगा'।"12~चुनाँचे वह लोग तमाम मुल्क-ए-मिस्र में मारे-मारे फिरने लगे कि ~भुस के 'बदले खूँटी जमा' करें।13~और बेगार लेने वाले यह कह कर जल्दी कराते थे कि तुम अपना रोज़ का काम जैसे भुस पा कर करते थे अब भी करो।14~और बनी-इस्राईल में से जो-जो फ़िर'औन के बेगार लेने वालों की तरफ़ से इन लोगों पर सरदार मुक़र्रर हुए थे, उन पर मार पड़ी और उनसे पूछा गया, कि "क्या वजह है कि तुम ने पहले की तरह आज और कल पूरी-पूरी ईंटें नहीं बनवाई?"15तब उन सरदारों ने जो बनी-इस्राईल में से मुक़र्रर हुए थे फ़िर'औन के आगे जा कर फ़रियाद की और कहा कि तू अपने ख़ादिमों से ~ऐसा सुलूक क्यूँ करता है?16~तेरे ख़ादिमों को भुस तो दिया नहीं जाता और वह हम से कहते रहते हैं ईंटें बनाओ', और देख तेरे ख़ादिम मार भी खाते हैं पर कु़सूर तेरे लोगों का है।"17~उसने कहा, "तुम सब काहिल हो काहिल, इसी लिए तुम कहते हो कि हम को जाने दे कि ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी करें।18~इसलिए अब तुम जाओ और काम करो, क्यूँकि भुस तुम को नहीं मिलेगा और ईटों को तुम्हें उसी हिसाब से देना पड़ेगा।"19~जब बनी-इस्राईल के सरदारों से यह कहा गया, कि तुम अपनी ईटों और रोज़ मर्रा के काम में कुछ भी कमी नहीं करने पाओगे तो वह जान गए कि वह कैसे वबाल में फैसे हुए हैं।20~जब वह फ़िर'औन के पास से निकले आ रहे थे तो उनको मूसा और हारून मुलाक़ात के लिए रास्ते पर खड़े मिले।21~तब उन्होंने उन से कहा, कि ख़ुदावन्द ही देखे और तुम्हारा इन्साफ़ करे, क्यूँकि तुम ने हम को फ़िर'औन और उसके ख़ादिमों की निगाह में ऐसा घिनौना किया है, कि हमारे क़त्ल के लिए उनके हाथ में तलवार दे दी है।"22तब मूसा ख़ुदावन्द के पास लौट कर गया और कहा, कि ऐ ख़ुदावन्द! तूने इन लोगों को क्यूँ दुख में डाला और मुझे क्यूँ भेजा?23~क्यूँकि जब से मैं फ़िर'औन के पास तेरे नाम से बातें करने गया, उसने इन लोगों से बुराई ही बुराई की और तूने अपने लोगों को ज़रा भी रिहाई न बख़्शी।"
1तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि 'अब तू देखेगा कि मैं फ़िर'औन के साथ क्या करता हूँ, तब वह ताक़तवर हाथ की वजह से उनको जाने देगा और ताक़तवर हाथ ही की वजह से वह उनको अपने मुल्क से निकाल देगा।"2~फिर ख़ुदा ने मूसा से कहा, कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।3~और मैं इब्राहीम ~और इस्हाक़ और या'क़ूब को ख़ुदा-ए-क़ादिर-ए-मुतलक के तौर पर दिखाई दिया, लेकिन अपने यहोवा नाम से उन पर ज़ाहिर न हुआ।4और मैंने उनके साथ अपना 'अहद भी बाँधा है कि मुल्क-ए- कना'न जो उनकी मुसाफ़िरत का मुल्क था और जिसमें वह परदेसी थे उनको दूँगा।5~और मैंने बनी-इस्राईल के कराहने को भी सुन कर, जिनको मिस्रियों ने ग़ुलामी में रख छोड़ा है, अपने उस 'अहद को याद किया है।6इसलिए तू बनी-इस्राईल से कह, कि 'मैं ख़ुदावन्द हूँ, और मैं तुम को मिस्रियों के बोझों के नीचे से निकाल लूँगा और मैं तुम को उनकी ग़ुलामी से आज़ाद करूँगा, और मैं अपना हाथ बढ़ा कर और उनको बड़ी-बड़ी सज़ाएँ देकर तुम को रिहाई दूँगा।7~और मैं तुम को ले लूँगा कि मेरी क़ौम बन जाओ और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा, और तुम जान लोगे के मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ जो तुम्हें मिस्रियों के बोझों के नीचे से निकालता हूँ।8~और जिस मुल्क को इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब को देने की क़सम मैंने खाई थी उसमें तुम को पहुँचा कर उसे तुम्हारी मीरास कर दूँगा। ख़ुदावन्द मैं हूँ।"9~और मूसा ने बनी-इस्राईल को यह बातें सुना दीं, लेकिन उन्होंने दिल की कुढ़न और ग़ुलामी की सख़्ती की वजह से मूसा की बात न सुनी।10~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया,11~कि जा कर मिस्र के बादशाह फ़िर'औन से कह कि बनी-इस्राईल को अपने मुल्क में से जाने दे।"12~मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, कि "देख, बनी-इस्राईल ने तो मेरी सुनी नहीं; तब मैं जो ना मख़्तून होंट रखता हूँ फ़िर'औन मेरी क्यूँ कर सुनेगा?"13~तब ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून को बनी-इस्राईल और मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के हक़ में इस मज़मून का हुक्म दिया कि वह बनी-इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल ले जाएँ।14~उनके आबाई ख़ान्दानों के सरदार यह थे: रूबिन, जो इस्राईल का पहलौठा था, उसके बेटे: हनूक और फ़ल्लू और हसरोन और करमी थे; यह रूबिन के घराने थे।15बनी शमा'ऊन यह थे: यमूएल और यमीन और उहद और यक़ीन और सुहर और साऊल, जो एक कना'नी 'औरत से पैदा हुआ था; यह शमा'ऊन के घराने थे।16~और बनी लावी जिनसे उनकी नसल चली उनके नाम यह हैं: जैरसोन और क़िहात और मिरारी; और लावी की 'उम्र एक सौ सैंतीस बरस की हुई।17~बनी जैरसोन: लिबनी और सिमई थे; इन ही से इनके ख़ान्दान चले।18~और बनी क़िहात: 'अमराम और इज़हार और हबरून और 'उज़्ज़ीएल थे; और क़िहात की 'उम्र एक सौ तैतीस बरस की हुई।19और बनी मिरारी: महली और मूर्शी थे। लावियों के घराने जिनसे उनकी नसल चली यही थे।20और 'अमराम ने अपने बाप की बहन यूकबिद से ब्याह किया, उस 'औरत के उससे हारून और मूसा पैदा हुए; और 'अमराम की 'उम्र एक सौ सैंतीस बरस की हुई।21~बनी इज़हार: कोरह और नफ़ज और ज़िकरी थे।22~और बनी उज़्ज़ीएल: मीसाएल और इलसफ़न और सितरी थे।23और हारून ने नहसोन की बहन 'अमीनदाब की बेटी इलीसिबा' से ब्याह किया; उससे नदब और अबीहू और इली'अज़र और इतमर पैदा हुए।24और बनी क़ोरह: अस्सीर और इलाकना और अबियासफ़ थे, और यह कोरहियों के घराने थे।25~और हारून के बेटे इली'अज़र ने फूतिएल की बेटियों में से एक के साथ ब्याह किया, उससे फ़ीन्हास पैदा हुआ; लावियों के बाप-दादा के घरानों के सरदार जिनसे उनके ख़ान्दान चले यही थे।26~यह वह हारून और मूसा हैं जिनको ख़ुदावन्द ने फ़रमाया: कि बनी-इस्राईल को उनके लश्कर के मुताबिक़ मुल्क-ए-मिस्र से निकाल ले जाओ।”27~यह वह हैं जिन्होंने मिस्र के बादशाह फ़िर'औन से कहा, कि हम बनी-इस्राईल को मिस्र से निकाल ले जाएँगे; यह वही मूसा और हारून हैं।28~जब ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र में मूसा से बातें कीं तो यूँ हुआ,29~कि ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि मैं ख़ुदावन्द हूँ जो कुछ मैं तुझे कहूँ तू उसे मिस्र के बादशाह फ़िर'औन से कहना।"30~मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, कि देख, मेरे तो होटों का ख़तना नहीं हुआ। फ़िर'औन क्यूँ कर मेरी सुनेगा?"
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, देख, मैंने तुझे फ़िर'औन के लिए जैसे ख़ुदा ठहराया और तेरा भाई पैग़म्बर होगा।2~जो-जो हुक्म मैं तुझे दूँ तब तू कहना, और तेरा भाई हारून उसे फ़िर'औन से कहे कि वह बनी-इस्राईल को अपने मुल्क से जाने दे।3~और मैं फ़िर'औन के दिल को सख़्त करूँगा और अपने निशान अज़ाईब मुल्क-ए-मिस्र में कसरत से दिखाऊँगा।4तो भी फ़िर'औन तुम्हारी न सुनेगा, तब मैं मिस्र को हाथ लगाऊँगा और उसे बड़ी-बड़ी सज़ाएँ देकर अपने लोगों, बनी-इस्राईल के लश्करों को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाऊँगा।5और मैं जब मिस्र पर हाथ चलाऊँगा और बनी-इस्राईल को उनमें से निकाल लाऊँगा, तब मिस्री जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"6~मूसा और हारून ने जैसा ख़ुदावन्द ने उनको हुक्म दिया वैसा ही किया।7~और मूसा अस्सी बरस और हारून तिरासी बरस का था, जब वह फ़िर'औन से हम कलाम हुए।8~और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,9~"जब फ़िर'औन तुम को कहे, कि अपना मो'अजिज़ा दिखाओ, " तो हारून से कहना, कि अपनी लाठी को लेकर फ़िर'औन के सामने डाल दे, ताकि वह साँप बन जाए'।”10~और मूसा और हारून फ़िर'औन के पास गए और उन्होंने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ किया; और हारून ने अपनी लाठी फ़िर'औन और उसके ख़ादिमों के सामने डाल दी और वह साँप बन गई।11~तब फ़िर'औन ने भी 'अक़्लमन्दों और जादूगरों को बुलवाया, और मिस्र के जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा ही किया।12~क्यूँकि उन्होंने भी अपनी-अपनी लाठी सामने डाली और वह साँप बन गई, लेकिन हारून की लाठी उनकी लाठियों को निगल गई।13और फ़िर'औन का दिल सख़्त हो गया और जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था उसने उनकी न सुनी।14तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि फ़िर'औन का दिल मुतास्सिब है, वह इन लोगों को जाने नहीं देता।15~अब तू सुबह को फ़िर'औन के पास जा। वह दरिया पर जाएगा इसलिए तू दरिया के किनारे उसकी मुलाक़ात के लिए खड़ा रहना, और जो लाठी साँप बन गई थी उसे हाथ में ले लेना।16और उससे कहना, कि 'ख़ुदावन्द 'इब्रानियों के ख़ुदा ने मुझे तेरे पास यह कहने को भेजा है कि मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह वीराने में मेरी 'इबादत करें; और अब तक तूने कुछ सुनी नहीं ।17~तब ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू इसी से जान लेगा कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, देख, मैं अपने हाथ की लाठी को दरिया के पानी पर मारूँगा और वह ख़ून हो जाएगा।18और जो मछलियाँ दरिया में हैं मर जाएँगी, और दरिया से झाग उठेगा और मिस्रियों को दरिया का पानी पीने से कराहियत होगी'।"19~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि हारून से कह, अपनी लाठी ले और मिस्र में जितना पानी है, या'नी दरियाओं और नहरों और झीलों और तालाबों पर, अपना हाथ बढ़ा ताकि वह ख़ून बन जाएँ; और सारे मुल्क-ए-मिस्र में पत्थर और लकड़ी के बर्तनों में भी ख़ून ही ख़ून होगा।"20~और मूसा और हारून ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ किया; उसने लाठी उठाकर उसे फ़िर'औन और उसके ख़ादिमों के सामने दरिया के पानी पर मारा, और दरिया का पानी सब ख़ून हो गया।21~और दरिया की मछलियाँ मर गई, और दरिया से झाग उठने लगा और मिस्री दरिया का पानी पी न सके, और तमाम मुल्क-ए-मिस्र में ख़ून ही ख़ून हो गया।22~तब मिस्र के जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा ही किया, लेकिन फ़िर'औन का दिल सख़्त हो गया; और जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था उसने उनकी न सुनी।23और फ़िर'औन लौट कर अपने घर चला गया, और उसके दिल पर कुछ असर न हुआ।24~और सब मिस्रियों ने दरिया के आस पास पीने के पानी के लिए कुएँ खोद डाले, क्यूँकि वह दरिया का पानी नहीं पी सकते थे।25~और जब से ख़ुदावन्द ने दरिया को मारा उसके बा'द सात दिन गुज़रे।
1फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि ~फिर'औंन के पास जा और उससे कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह मेरी 'इबादत करें।2और अगर तू उनको जाने न देगा, तो देख, मैं तेरे मुल्क को मेंढकों से मारूँगा।3~और दरिया बेशुमार मेंढकों से भर जाएगा, और वह आकर तेरे घर में और तेरी आरामगाह में और तेरे पलंग पर और तेरे मुलाज़िमों के घरों में और तेरी र'इयत पर और तेरे तनूरों और आटा गूँधने के लगनों में घुसते फिरेंगे,4~और तुझ पर और तेरी र'इयत और तेरे नौकरों पर चढ़ जाएँगे'।"5~और ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया, "हारून से कह, कि अपनी लाठी लेकर अपने हाथ दरियाओं और नहरों और झीलों पर बढ़ा और मेंढकों को मुल्क-ए-मिस्र पर चढ़ा ला।"6चुनाँचे ~जितना पानी मिस्र में था उस पर हारून ने अपना हाथ बढ़ाया, और मेंढक चढ़ आए और मुल्क-ए-मिस्र को ढाँक लिया।7~और जादूगरों ने भी अपने जादू से ऐसा ही किया और मुल्क-ए-मिस्र पर मेंढक चढ़ा लाए8~तब फ़िर'औन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, कि ~"ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश करो के मेंढकों को मुझ से और मेरी र'इयत से दफ़ा' करे, और मैं इन लोगों को जाने दूँगा ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी करें।"9~मूसा ने फ़िर'औन से कहा, कि तुझे मुझ पर यही फ़ख़्र रहे ! मैं तेरे और तेरे नौकरों और तेरी र'इयत के वास्ते कब के लिए सिफ़ारिश करूँ कि मेंढक तुझ से और तेरे घरों से दफ़ा' हों और दरिया ही में रहें?"10~उसने कहा, कल के लिए।" तब उसने कहा, तेरे ही कहने के मुताबिक़ होगा ताकि तू जाने कि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तरह कोई नहीं11और मेंढक तुझ से और तेरे घरों से और तेरे नौकरों से और तेरी र'इयत से दूर होकर दरिया ही में रहा करेंगे।"12~फिर मूसा और हारून फ़िर'औन के पास से निकल कर चले गए; और मूसा ने ख़ुदावन्द से मेंढकों के बारे में जो उसने फ़िर'औन पर भेजे थे फ़रियाद की।13और ख़ुदावन्द ने मूसा की दरख़्वास्त के मुवाफ़िक किया, और सब घरों और सहनों और खेतों के मेंढक मर गए।14और लोगों ने उनको जमा' कर करके उनके ढेर लगा दिए, और ज़मीन से बदबू आने लगी।15~फिर जब फ़िर'औन ने देखा कि छुटकारा मिल गया तो उसने अपना दिल सख़्त कर लिया, और जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था उनकी न सुनी।16~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, हारून से कह, 'अपनी लाठी बढ़ा कर ज़मीन की गर्द को मार, ताकि वह तमाम मुल्क-ए-मिस्र में जूएँ बन जाएँ"।"17~उन्होंने ऐसा ही किया, और हारून ने अपनी लाठी लेकर अपना हाथ बढ़ाया और ज़मीन की गर्द को मारा, और इन्सान और हैवान पर जूएँ हो गई और तमाम मुल्क-ए-मिस्र में ज़मीन की सारी गर्द जूएँ बन गई।18~और जादूगरों ने कोशिश की कि अपने जादू से जूएँ पैदा करें लेकिन न कर सके। और इन्सान और हैवान दोनों पर जूएँ चढ़ी रहीं।19~तब जादूगरों ने फ़िर'औन से कहा, कि ~"यह ख़ुदा का काम है।" लेकिन फ़िर'औन का दिल सख़्त हो गया, और जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था उसने उनकी न सुनी।20~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "सुबह-सवेरे उठ कर फ़िर'औन के आगे जा खड़ा होना, वह दरिया पर आएगा तब तू उससे कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि मेरे लोगों को जाने दे कि वह मेरी 'इबादत करें।21~वर्ना अगर तू उनको जाने न देगा तो देख मैं तुझ पर और तेरे नौकरों और तेरी र'इयत पर और तेरे घरों में मच्छरों के ग़ोल के ग़ोल भेजूँगा; और मिस्रियों के घर और तमाम ज़मीन जहाँ जहाँ वह हैं, मच्छरों के ग़ोलों से भर जाएगी।22~और मैं उस दिन जशन के 'इलाके़ को उसमें मच्छरों के ग़ोल न होंगे; ताकि तू जान ले कि दुनिया में ख़ुदावन्द मैं ही हूँ।23और मैंऔर अपने लोगों और तेरे लोगों में फ़र्क़ करूँगा और कल तक यह निशान ज़ुहूर में आएगा।"24~चुनाँचे ख़ुदावन्द ने ऐसा ही किया, और फ़िर'औन के घर और उसके नौकरों के घरों और सारे मुल्क-ए-मिस्र में मच्छरों के ग़ोल के ग़ोल भर गए, और इन मच्छरों के ग़ोलों की वजह से मुल्क का नास हो गया।25~तब फ़िर'औन ने मूसा और हारून को बुलवा कर कहा, कि तुम जाओ और अपने ख़ुदा के लिए इसी मुल्क में क़ुर्बानी करो।”26~मूसा ने कहा, "ऐसा करना मुनासिब नहीं, क्यूँकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए उस चीज़ की क़ुर्बानी करेंगे जिससे मिस्री नफ़रत रखते हैं; तब अगर हम मिस्रियों की आँखों के आगे उस चीज़ की क़ुर्बानी करें जिससे वह नफ़रत रखते हैं तो क्या वह हम को संगसार न कर डालेंगे?27~तब हम तीन दिन की राह वीराने में जाकर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए जैसा वह हम को हुक्म देगा क़ुर्बानी करेंगे।"28~फ़िर'औन ने कहा, "मैं तुम को जाने दूँगा ताकि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए वीराने में क़ुर्बानी करो, लेकिन तुम बहुत दूर मत जाना और मेरे लिए सिफ़ारिश करना।"29~मूसा ने कहा, ~देख, मैं तेरे पास से जाकर ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश करूँगा के मच्छरों के ग़ोल फ़िर'औन और उसके नौकरों और उसकी र'इयत के पास से कल ही दूर हो जाएँ, सिर्फ़ इतना हो कि फ़िर'औन आगे को दग़ा करके लोगों को ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी करने को जाने देने से इन्कार न कर दे।"30~और मूसा ने फ़िर'औन के पास से जा कर ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश की।31~ख़ुदावन्द ने मूसा की दरख़्वास्त के मुवाफ़िक़ किया; और उसने मच्छरों के ग़ोलों को फ़िर'औन और उसके नौकरों और उसकी र'इयत के पास से दूर कर दिया, यहाँ तक कि एक भी बाक़ी न रहा।32~फिर फ़िर'औन ने इस बार भी अपना दिल सख़्त कर लिया, और उन लोगों को जाने न दिया।
1तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि फ़िर'औन के पास जाकर उससे कह, ख़ुदावन्द 'इब्रानियों का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह मेरी 'इबादत करें।2~क्यूँकि अगर तू इन्कार करे और उनको जाने न दे और अब भी उनको रोके रख्खे,3तो देख, ख़ुदावन्द का हाथ तेरे चौपायों पर जो खेतों में हैं या'नी घोड़ों, गधों, ऊँटों, गाय बैलों और भेड़-बकरियों पर ऐसा पड़ेगा कि उनमें बड़ी भारी मरी फैल जाएगी।4~और ख़ुदावन्द इस्राईल के चौपायों को मिस्रियों के चौपायों से जुदा करेगा, और जो बनी-इस्राईल के हैं उनमें से एक भी नहीं मरेगा'।"5~और ख़ुदावन्द ने एक वक़्त मुक़र्रर कर दिया और बता दिया कि कल ख़ुदावन्द इस मुल्क में यही काम करेगा।”6और ख़ुदावन्द ने दूसरे दिन ऐसा ही किया और मिस्रियों के सब चौपाए मर गए लेकिन बनी-इस्राईल के चौपायों में से एक भी न मरा।7~चुनाँचे फ़िर'औन ने आदमी भेजे तो मा'लूम हुआ कि ~इस्राईलियों के चौपायों में से एक भी नहीं मरा है, लेकिन फ़िर'औन का दिल ता'अस्सुब में~था और उसने लोगों को जाने न दिया।8~और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि तुम दोनों भट्टी की राख अपनी मुट्ठियों में ले लो, और मूसा उसे फ़िर'औन के सामने आसमान की तरफ़ उड़ा दे।9~और वह सारे मुल्क-ए-मिस्र में बारीक गर्द हो कर मिस्र के आदमियों और जानवरों के जिस्म पर फोड़े और फफोले बन जाएगी।"10~फिर वह भट्टी की राख लेकर फ़िर'औन के आगे जा खड़े हुए, और मूसा ने उसे आसमान की तरफ़ उड़ा दिया और वह आदमियों और जानवरों के जिस्म पर फोड़े और फफोले बन गयी।11~और जादूगर फोड़ों की वजह से मूसा के आगे खड़े न रह सके, क्यूँकि जादूगरों और सब मिस्रियों के फोड़े निकले हुए थे।12और ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया, और उसने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा से कह दिया था उनकी न सुनी।13~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "सुबह-सवेरे उठ कर फ़िर'औन के आगे जा खड़ा हो और उसे कह, कि 'ख़ुदावन्द 'इब्रानियों का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि मेरे लोगों को जाने दे ताकि वह मेरी 'इबादत करें।14~क्यूँकि मैं अब की बार अपनी सब बलाएँ तेरे दिल और तेरे नौकरों और तेरी र'इयत पर नाज़िल करूँगा, ताकि तू जान ले कि तमाम दुनिया में मेरी तरह कोई नहीं है।15~और मैंने तो अभी हाथ बढ़ा कर तुझे और तेरी र'इयत को वबा से मारा होता और तू ज़मीन पर से हलाक हो जाता।16~लेकिन मैंने तुझे हक़ीक़त में इसलिए क़ायम रख्खा है कि अपनी ताक़त तुझे दिखाऊँ, ताकि मेरा नाम सारी दुनिया में मशहूर हो जाए।17~क्या तू अब भी मेरे लोगों के मुक़ाबले में तकब्बुर करता है कि उनको जाने नहीं देता?18देख, मैं कल इसी वक़्त ऐसे बड़े-बड़े ओले बरसाऊँगा जो मिस्र में जब से उसकी बुनियाद डाली गई आज तक नहीं पड़े।19~तब आदमी भेज कर अपने चौपायों को, जो कुछ तेरा माल खेतों में है उसको अन्दर कर ले; क्यूँकि जितने आदमी और जानवर मैदान में होंगे और घर में नहीं पहुँचाए जाएँगे, उन पर ओले पड़ेंगे और वह हलाक हो जाएँगे'।"20~तब फ़िर'औन के ख़ादिमों में जो-जो ख़ुदावन्द के कलाम से डरता था, वह अपने नौकरों और चौपायों को घर में भगा ले आया।21~और जिन्होंने ख़ुदावन्द के कलाम का लिहाज़ न किया, उन्होंने अपने नौकरों और चौपायों को मैदान में रहने दिया।22और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि अपना हाथ आसमान की तरफ़ बढ़ा ताकि सब मुल्क-ए-मिस्र में इन्सान और हैवान और खेत की सब्ज़ी पर जो मुल्क-ए-मिस्र में है ओले गिरें।"23~और मूसा ने अपनी लाठी आसमान की तरफ़ उठाई, और ख़ुदावन्द ने रा'द और ओले भेजे और आग ज़मीन तक आने लगी, और ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र पर ओले बरसाए।24~तब ओले गिरे और ओलों के साथ आग मिली हुई थी, और वह ओले ऐसे भारी थे कि जब से मिस्री क़ौम आबाद हुई ऐसे ओले मुल्क में कभी नहीं पड़े थे।25~और ओलों ने सारे मुल्क-ए-मिस्र में उनको जो मैदान में थे क्या इन्सान, क्या हैवान, सबको मारा और खेतों की सारी सब्ज़ी को भी ओले मार गए और मैदान के सब दरख़्तों को तोड़ डाला।26~मगर जशन के 'इलाक़ा में जहाँ बनी-इस्राईल रहते थे ओले नहीं गिरे।27~तब फ़िर'औन ने मूसा और हारून को बुला कर उनसे कहा, कि मैंने इस दफ़ा' गुनाह किया; ख़ुदावन्द सच्चा है और मैं और मेरी क़ौम हम दोनों बदकार हैं।28ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश करो क्यूँकि यह ज़ोर का गरजना और ओलों का बरसना बहुत हो चुका, और मैं तुम को जाने दूँगा और तुम अब रुके नहीं रहोगे।”29~तब मूसा ने उसे कहा, कि मैं शहर से बाहर निकलते ही ख़ुदावन्द के आगे हाथ फैलाऊँगा और गरज ख़त्म हो जाएगा और ओले भी फिर न पड़ेंगे, ताकि तू जान ले कि ~दुनिया ख़ुदावन्द ही की है।30~लेकिन मैं जानता हूँ कि ~तू और तेरे नौकर अब भी ख़ुदावन्द ख़ुदा से नहीं डरोगे।"31~अब सुन और जौ को तो ओले मार गए, क्यूँकि जौ की बालें निकल चुकी थीं और सन में फूल लगे हुए थे;32~पर गेहूँ और कठिया गेहूँ मारे न गए क्यूँकि वह बढ़े न थे।33और मूसा ने फ़िर'औन के पास से शहर के बाहर जाकर ख़ुदावन्द के आगे हाथ फैलाए, तब गरज और ओले ख़त्म हो गए और ज़मीन पर बारिश थम गई।34~जब फ़िर'औन ने देखा कि मेंह और ओले और गरज ख़त्म हो गए, तो उसने और उसके ख़ादिमों ने और ज़्यादा गुनाह किया कि अपना दिल सख़्त कर लिया।35~और फ़िर'औन का दिल सख़्त हो गया, और उसने बनी-इस्राईल को जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' कह दिया था जाने न दिया।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि फ़िर'औन के पास जा; क्यूँकि मैं ही ने उसके दिल और उसके नौकरों के दिल को सख़्त कर दिया है, ताकि मैं अपने यह निशान उनके बीच दिखाऊँ;2~और तू अपने बेटे और अपने पोते को मेरे निशान और वह काम जो मैंने मिस्र में उनके बीच किए सुनाए और तुम जान लो कि ख़ुदावन्द मैं ही हूँ।"3और मूसा और हारून ने फ़िर'औन के पास जाकर उससे कहा कि ख़ुदावन्द, 'इब्रानियों का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि 'तू कब तक मेरे सामने नीचा बनने से इन्कार करेगा? मेरे लोगों को जाने दे कि वह मेरी 'इबादत करें।4वर्ना, अगर तू मेरे लोगों को जाने न देगा, तो देख, कल मैं तेरे मुल्क में टिड्डियाँ ले आऊँगा।5और वह ज़मीन की सतह को ऐसा ढाँक लेंगी कि कोई ज़मीन को देख भी न सकेगा; और तुम्हारा जो कुछ ओलों से बच रहा है वह उसे खा जाएँगी, और तुम्हारे जितने दरख़्त मैदान में लगे हैं उनको भी चट कर जाएँगी,6~और वह तेरे और तेरे नौकरों बल्कि सब मिस्रियों ~के घरों में भर जाएँगी; और ऐसा तेरे बाप दादाओं ने जब से वह पैदा हुए उस वक़्त से आज तक नहीं देखा होगा'।" और वह लौट कर फ़िर'औन के पास से चला गया।7~तब फ़िर'औन के नौकर फ़िर'औन से कहने लगे कि "ये शख़्स कब तक हमारे लिए फन्दा बना रहेगा? इन लोगों को जाने दे ताकि वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करें। क्या तुझे ख़बर नहीं कि मिस्र बर्बाद हो गया?"8~तब मूसा और हारून फ़िर'औन के पास फिर बुला लिए गए, और उसने उनको कहा, कि 'जाओ, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करो, लेकिन वह कौन-कौन हैं जो जाएँगे?”9~मूसा ने कहा, कि "हम अपने जवानों और बूढों और अपने बेटों और बेटियों और अपनी भेड़ बकरियों और अपने गाये बैलों समेत जाएँगे, क्यूँकि हम को अपने ख़ुदा की 'ईद करनी है।"10तब उसने उनको कहा कि "ख़ुदावन्द ही तुम्हारे साथ रहे, ~मैं तो ज़रूर ही तुम को बच्चों समेत जाने दूँगा, ख़बरदार हो जाओ इसमें तुम्हारी ख़राबी है।11~नहीं, ऐसा नहीं होने पाएगा; तब तुम मर्द ही मर्द जाकर ख़ुदावन्द की 'इबादत करो क्यूँकि तुम यही चाहते थे।" और वह फ़िर'औन के पास से निकाल दिए गए।12~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "मुल्क-ए-मिस्र पर अपना हाथ बढ़ा ताकि टिड्डियाँ मुल्क-ए-मिस्र पर आएँ और हर क़िस्म की सब्ज़ी को जो इस मुल्क में ओलों से बच रही है चट कर जाएँ।"13~तब मूसा ने मुल्क-ए-मिस्र पर अपनी लाठी बढ़ाई, और ख़ुदावन्द ने उस सारे दिन और सारी रात पुरवा आँधी चलाई; और सुबह होते होते पुरवा आँधी टिड़िडयाँ ले आई।14~और टिडिडयाँ सारे मुल्क-ए-मिस्र पर छा गई और वहीं मिस्र की हदों में बसेरा किया, और उनका दल ऐसा भारी था कि न तो उनसे पहले ऐसी टिड्डियाँ कभी आई न उनके बा'द फिर आएँगी।15~क्यूँकि उन्होंने इस ज़मीन को ढाँक लिया, ऐसा कि मुल्क में अन्धेरा हो गया; और उन्होंने उस मुल्क की एक-एक सब्ज़ी को और दरख़्तों के मेवह को, जो ओलों से बच गए थे चट कर लिया। और मुल्क-ए-मिस्र में न तो किसी दरख़्त की, न खेत की किसी सब्ज़ी की हरियाली बाक़ी रही।16~तब फ़िर'औन ने जल्द मूसा और हारून को बुलवा कर कहा कि "मैं ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का और तुम्हारा गुनहगार हूँ।17~ इसलिए सिर्फ़ इस बार मेरा गुनाह बख़्शो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से सिफ़ारिश करो कि वह सिर्फ़ इस मौत को मुझ से दूर कर दे।”18~फिर उसने फ़िर'औन के पास से निकल कर ख़ुदावन्द से सिफ़ारिश की।19~और ख़ुदावन्द ने पछुवा आँधी भेजी जो टिड्डियों को उड़ा कर ले गई और उनको बहर-ए-कुलज़म में डाल दिया, और मिस्र की हदों में एक टिड्डी भी बाक़ी न रही।20~लेकिन ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया और उसने बनी-इस्राईल को जाने न दिया।21~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि अपना हाथ आसमान की तरफ़ बढ़ा ताकि मुल्क-ए- मिस्र में तारीकी छा जाए, ऐसी तारीकी जिसे टटोल सकें।"22और मूसा ने अपना हाथ आसमान की तरफ़ बढ़ाया और तीन दिन तक सारे मुल्क-ए-मिस्र में गहरी तारीकी रही।23~तीन दिन तक न तो किसी ने किसी को देखा और न कोई अपनी जगह से हिला, लेकिन सब बनी-इस्राईल के मकानों में उजाला रहा।24~तब फ़िर'औन ने मूसा को बुलवा कर कहा कि "तुम जाओ और ख़ुदावन्द की 'इबादत करो सिर्फ़ अपनी भेड़ बकरियों और गाये बैलों को यहीं छोड़ जाओ और जो तुम्हारे बाल-बच्चे हैं उनको भी साथ लेते जाओ।"25~मूसा ने कहा, कि तुझे हम को कु़र्बानियों और सोख़्तनी कु़र्बानियों के लिए जानवर देने पड़ेंगे, ताकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे क़ुर्बानी करें।26~इसलिए हमारे चौपाये भी हमारे साथ जाएँगे और उनका एक खुर तक भी पीछे नहीं छोड़ा जाएगा, क्यूँकि उन्ही में से हम को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत का सामान लेना पड़ेगा, और जब तक हम वहाँ पहुँच न जाएँ हम नहीं जानते कि ~क्या-क्या लेकर हम को ख़ुदावन्द की 'इबादत करनी होगी।"27~लेकिन ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया और उसने उनको जाने ही न दिया।28और फ़िर'औन ने उसे कहा, मेरे सामने से चला जा; और होशियार रह, फिर मेरा मुँह देखने को मत आना क्यूँकि जिस दिन तूने मेरा मुँह देखा तो मारा जाएगा।"29~तब मूसा ने कहा, कि तूने ठीक कहा है, मैं फिर तेरा मुँह कभी नहीं देखूँगा
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "मैं फ़िर'औन और मिस्रियों पर एक बला और लाऊँगा, उसके बा'द वह तुम को यहाँ से जाने देगा, और जब वह तुम को जाने देगा तो यक़ीनन तुम सब को यहाँ से बिल्कुल निकाल देगा।2इसलिए अब तू लोगों के कान में यह बात डाल दे कि उनमें से हर शख़्स अपने पड़ोसी और हर 'औरत अपनी पड़ौसन से सोने, चाँदी के ज़ेवर ले।"3और ख़ुदावन्द ने उन लोगों पर मिस्रियों को मेहरबान कर दिया, और यह आदमी मूसा भी मुल्क-ए-मिस्र में फ़िर'औन के ख़ादिमों के नज़दीक और उन लोगों की निगाह में बड़ा बुज़ुर्ग़ था।4~और मूसा ने कहा, कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मैं आधी रात को निकल कर मिस्र के बीच में जाऊँगा;5~और मुल्क-ए-मिस्र के सब पहलौटे, फ़िर'औन जो तख़्त पर बैठा है उसके पहलौटे से लेकर वह लौंडी जो चक्की पीसती है उसके पहलौटे तक और सब चौपायों के पहलौठे मर जाएँगे।6और सारे मुल्क-ए- मिस्र में ऐसा बड़ा मातम होगा जैसा न कभी पहले हुआ और न फिर कभी होगा।7~लेकिन इस्राईल में से किसी पर चाहे इन्सान हो चाहे हैवान एक कुत्ता भी नही भौंकेगा, ताकि तुम जान लो कि ख़ुदावन्द मिस्रियों और इस्राईलियों में कैसा फ़र्क करता है।8~और तेरे यह सब नौकर मेरे पास आकर मेरे आगे सर झुकाएंगे और कहेंगे, कि 'तू भी निकल और तेरे सब पैरौ भी निकलें, " इसके बा'द मैं निकल जाऊँगा।” यह कह कर वह बड़े ग़ुस्से में फ़िर'औन के पास से निकल कर चला गया।9और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि ~फ़िरऔन तुम्हारी इसी वजह से नहीं सुनेगा; ताकि 'अजाइब मुल्क-ए-मिस्र में बहुत ज़्यादा हो जाएँ।"10~और मूसा और हारून ने यह करामात फ़िरऔन को दिखाई, और ख़ुदावन्द ने फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया कि उसने अपने मुल्क से बनी-इस्राईल को जाने न दिया।
1~फिर ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र में मूसा और हारून से कहा कि2"यह महीना तुम्हारे लिए महीनों का शुरू'~और साल का पहला महीना हो।3~तब इस्राईलियों की सारी जमा'अत से यह कह दो कि इसी महीने के दसवें दिन, हर शख़्स अपने आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ घर पीछे एक बर्रा ले;4~और अगर किसी के घराने में बर्रे को खाने के लिए आदमी कम हों, तो वह और उसका पड़ोसी जो उसके घर के बराबर रहता हो, दोनों मिल कर नफ़री के शुमार के मुवाफ़िक़ एक बर्रा ले रख्खें, तुम हर एक आदमी के खाने की मिक़्दार के मुताबिक़ बर्रे का हिसाब लगाना।5~तुम्हारा बर्रा बे"ऐब और यक साला नर हो, और ऐसा बच्चा या तो भेड़ों में से चुन कर लेना या बकरियों में से।6~और तुम उसे इस महीने की चौदहवीं तक रख छोड़ना, और इस्राईलियों के क़बीलों की सारी जमा'अत शाम को उसे ज़बह करे।7~और थोड़ा सा ख़ून लेकर जिन घरों में वह उसे खाएँ, उनके दरवाज़ों के दोनों बाजु़ओं और ऊपर की चौखट पर लगा दें।8~और वह उसके गोश्त को उसी रात आग पर भून कर बेख़मीरी रोटी और कड़वे साग पात के साथ खा लें।9~उसे कच्चा या पानी में उबाल कर हरगिज़ न खाना, बल्कि उसको सिर और पाये और अन्दरूनी 'अाज़ा समेत आग पर भून कर खाना।10~और उसमें से कुछ भी सुबह तक बाक़ी न छोड़ना और अगर कुछ उसमें से सुबह तक बाक़ी रह जाए तो उसे आग में जला देना।11~और तुम उसे इस तरह खाना अपनी कमर बाँधे और अपनी जूतियाँ पाँव में पहने और अपनी लाठी हाथ में लिए हुए तुम उसे जल्दी-जल्दी खाना, क्यूँकि यह फ़सह ख़ुदावन्द की है।12इसलिए कि मैं उस रात मुल्क-ए-मिस्र में से होकर गुज़रूँगा और इन्सान और हैवान के सब पहलौठों को जो मुल्क-ए-मिस्र में हैं, मारूँगा और मिस्र के सब मा'बूदों को भी सज़ा दूँगा; मैं ख़ुदावन्द हूँ।13और जिन घरों में तुम हो उन पर वह ख़ून तुम्हारी तरफ़ से निशान ठहरेगा और मैं उस ख़ून को देख कर तुम को छोड़ता जाऊँगा, और जब मैं मिस्रियों को मारूँगा तो वबा तुम्हारे पास फटकने की भी नहीं कि तुम को हलाक करे।14~और वह दिन तुम्हारे लिए एक यादगार होगा और तुम उसको ख़ुदावन्द की 'ईद का दिन समझ कर मानना। तुम उसे हमेशा की रस्म करके उस दिन को नसल दर नसल 'ईद का दिन मानना |15~'सात दिन तक तुम बेख़मीरी रोटी खाना, और पहले ही दिन से ख़मीर अपने अपने घर से बाहर कर देना; इसलिए कि जो कोई पहले दिन से सातवें दिन तक ख़मीरी रोटी खाए वह शख़्स इस्राईल में से काट डाला जाएगा।16और पहले दिन तुम्हारा मुक़द्दस मजमा' हो, और सातवें दिन भी मुक़द्दस मजमा' हो; उन दोनों दिनों में कोई काम न किया जाए सिवा उस खाने के जिसे हर एक आदमी खाए, सिर्फ़ यही किया जाए।17~और तुम बेख़मीरी रोटी की यह 'ईद मनाना, क्यूँकि मैं उसी दिन तुम्हारे लश्कर को मुल्क-ए-मिस्र से निकालूँगा; इस लिए तुम उस दिन को हमेशा की रस्म करके नसल दर नसल मानना।18~पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ की शाम से इक्कीसवीं तारीख़ की शाम तक तुम बेख़मीरी रोटी खाना।19सात दिन तक तुम्हारे घरों में कुछ भी ख़मीर न हो, क्यूँकि जो कोई किसी ख़मीरी चीज़ को खाए, वह चाहे मुसाफ़िर हो चाहे उसकी पैदाइश उसी मुल्क की हो, इस्राईल की जमा'अत से काट डाला जाएगा।20~तुम कोई ख़मीरी चीज़ न खाना बल्कि अपनी सब बस्तियों में बेख़मीरी रोटी खाना।"21~तब मूसा ने इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को बुलवाकर उनको कहा, कि अपने-अपने ख़ान्दान के मुताबिक़ एक-एक बर्रा निकाल रख्खो, और यह फ़सह का बर्रा ज़बह करना।22और तुम जूफ़े का एक गुच्छा लेकर उस ख़ून में जो तसले में होगा डुबोना और उसी तसले के ख़ून में से कुछ ऊपर की चौखट और दरवाज़े के दोनों बाजु़ओं पर लगा देना; और तुम में से कोई सुबह तक अपने घर के दरवाज़े से बाहर न जाए।23~क्यूँकि ख़ुदावन्द मिस्रियों को मारता हुआ गुज़रेगा, और जब ख़ुदावन्द ऊपर की चौखट और दरवाज़े के दोनों बाज़ुओं पर ख़ून देखेगा तो वह उस दरवाज़े को छोड़ जाएगा; और हलाक करने वाले को तुम को मारने के लिए घर के अन्दर आने न देगा।24और तुम इस बात को अपने और अपनी औलाद के लिए हमेशा की रिवायत करके मानना।25~और जब तुम उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तुम को अपने वा'दे के मुवाफ़िक़ देगा दाख़िल हो जाओ, तो इस 'इबादत को बराबर जारी रखना।26और जब तुम्हारी औलाद तुम से पूछे, कि इस 'इबादत से तुम्हारा मक़सद क्या है?"27~तो तुम यह कहना, कि 'यह ख़ुदावन्द की फ़सह की क़ुर्बानी है, जो मिस्र में मिस्रियों को मारते वक़्त बनी-इस्राईल के घरों को छोड़ गया और यूँ हमारे घरों को बचा लिया'।" तब लोगों ने सिर झुका कर सिज्दा किया।28और बनी-इस्राईल ने जाकर, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून को फ़रमाया था वैसा ही किया।29~और आधी रात को ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र के सब पहलौठों को फ़िर'औन जो अपने तख़्त पर बैठा था उसके पहलौठे से लेकर वह कै़दी जो कै़दखानें में था उसके पहलौठे तक, बल्कि चौपायों के पहलौठों को भी हलाक कर दिया।30~और फ़िर'औन और उसके सब नौकर और सब मिस्री रात ही को उठ बैठे और मिस्र में बड़ा कोहराम मचा, क्यूँकि एक भी ऐसा घर न था जिसमें कोई न मरा हो।31~तब उसने रात ही रात में मूसा और हारून को बुलवा कर कहा, कि "तुम बनी-इस्राईल को लेकर मेरी क़ौम के लोगों में से निकल जाओ और जैसा कहते हो जाकर ख़ुदावन्द की 'इबादत करो।32और अपने कहने के मुताबिक़ अपनी भेड़ बकरियाँ और गाय बैल भी लेते जाओ और मेरे लिए भी दुआ' करना।"33~और मिस्री उन लोगों से बजिद्द होने लगे, ताकि उनको मुल्क-ए-मिस्र से जल्द बाहर चलता करें, क्यूँकि वह समझे कि हम सब मर जाएँगे।34~तब इन लोगों ने अपने गुन्धे गुन्धाए आटे को बग़ैर ख़मीर दिए लगनों समेत कपड़ों में बाँध कर अपने कंधों पर धर लिया।35~और बनी-इस्राईल ने मूसा के कहने के मुवाफ़िक यह भी किया, कि मिस्रियों से सोने चाँदी के ज़ेवर और कपड़े माँग लिए।36~और ख़ुदावन्द ने उन लोगों को मिस्रियों की निगाह में ऐसी 'इज़्ज़त बख़्शी कि जो कुछ उन्होंने माँगा उन्होंने दे दिया। तब उन्होंने मिस्रियों को लूट लिया।37~और बनी-इस्राईल ने रा'मसीस से सुक्कात तक पैदल सफ़र किया और बाल बच्चों को छोड़ कर वह कोई छः लाख मर्द थे।38और उनके साथ एक मिली-जुली गिरोह भी गई और भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल और बहुत चौपाये उनके साथ थे।39~और उन्होंने उस गुन्धे हुए आटे की जिसे वह मिस्र से लाए थे बेख़मीरी रोटियाँ पकाई, क्यूँकि वह उसमें ख़मीर देने न पाए थे इसलिए कि वह मिस्र से ऐसे जबरन निकाल दिए गए कि वहाँ ठहर न सके और न कुछ खाना अपने लिए तैयार करने पाए।40और बनी-इस्राईल को मिस्र में रहते हुए हुए चार सौ तीस बरस हुए थे।41~और उन चार सौ तीस बरसों के गुज़र जाने पर ठीक उसी दिन ख़ुदावन्द का सारा लश्कर मुल्क-ए-मिस्र से निकल गया।42~ये वह रात है जिसे ख़ुदावन्द की ख़ातिर मानना बहुत मुनासिब है क्यूँकि ~इसमें वह उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, ख़ुदावन्द की यह वही रात है जिसे ज़रूरी है कि सब बनीइस्राईल नसल-दर-नसल ख़ूब मानें।43~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा, कि 'फ़सह की रिवायत यह है, कि कोई बेगाना उसे खाने न पाए।44~लेकिन अगर कोई शख़्स किसी का ख़रीदा हुआ ग़ुलाम हो, और तूने उसका ख़तना कर दिया हो तो वह उसे खाए।45~पर अजनबी और मज़दूर उसे खाने न पाए।46~और उसे एक ही घर में खाएँ या'नी उसका ज़रा भी गोश्त तू घर से बाहर न ले जाना और न तुम उसकी कोई हड्डी तोड़ना।47~इस्राईल की सारी जमा'अत इस पर 'अमल करे।48~और अगर कोई अजनबी तेरे साथ मुक़ीम हो और ख़ुदावन्द की फ़सह को मानना चाहता हो उसके ~यहाँ के सब मर्द अपना ख़तना कराएँ, तब वह पास आकर फ़सह करे; यूँ वह ऐसा समझा जाएगा जैसे उसी मुल्क की उसकी पैदाइश है लेकिन कोई नामख़्तून आदमी उसे खाने न पाए।49~वतनी और उस अजनबी के लिए जो तुम्हारे बीच मुक़ीम हो एक ही शरी'अत होगी।”50तब सब बनी-इस्राईल ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून को फ़रमाया वैसा ही किया।51~और ठीक उसी दिन ख़ुदावन्द बनी-इस्राईल के सब लश्करों को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल ले गया।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया, कि |2~"सब पहलौठों को या'नी जो बनी-इस्राईल में, चाहे इन्सान हो चाहे हैवान पहलौठे बच्चे हों उनको मेरे लिए पाक ठहरा क्यूँकि वह मेरे हैं।"3और मूसा ने लोगों से कहा, कि "तुम इस दिन को याद रखना जिस में तुम मिस्र से जो ग़ुलामी का घर है निकले, क्यूँकि ख़ुदावन्द अपनी ताक़त से तुम को वहाँ से निकाल लाया; इसमें ख़मीरी रोटी खाई न जाए।4तुम अबीब के महीने में आज के दिन निकले हो ।5~फिर जब ख़ुदावन्द तुझ को कना'नियों और हित्तियों और अमोरियों और हव्वियों और यबूसियों के मुल्क में पहुँचा दे जिसे तुझ को देने की क़सम उसने तेरे बाप दादा से खाई थी और जिसमें दूध और शहद बहता है, तो तू इसी महीने में यह 'इबादत किया करना।6~सात दिन तक तो तू बेख़मीरी रोटी खाना और सातवें दिन ख़ुदावन्द की 'ईद मनाना।7~बेख़मीरी रोटी सातों दिन खाई जाए, और ख़मीरी रोटी तेरे पास दिखाई भी न दे और न तेरे मुल्क की हदों में कहीं कुछ ख़मीर नज़र आए।8~और तू उस दिन अपने बेटे को यह बताना, कि इस दिन को मैं उस काम की वजह से मानता हूँ जो ख़ुदावन्द ने मेरे लिए उस वक़्त किया जब मैं मुल्क-ए-मिस्र से निकला।9और यही तेरे पास जैसे तेरे हाथ में एक निशान और तेरी दोनों आँखों के सामने एक यादगार ठहरे, ताकि ख़ुदावन्द की शरी'अत ~तेरी ज़बान पर हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुझ को अपनी ताक़त से मुल्क-ए-मिस्र से निकाला।10तब तू इस रिवायत को इसी वक़्त -ए-मु'अय्यन में हर साल माना करना।11~"और जब ख़ुदावन्द उस क़सम के मुताबिक़, जो उसने तुझ से और तेरे बाप दादा से खाई, तुझ को कना'नियों के मुल्क में पहुँचा कर वह मुल्क तुझ को दे दे।12तो तू पहलौटे बच्चों को और जानवरों के पहलौठों को ख़ुदावन्द के लिए अलग कर देना। सब नर बच्चे ख़ुदावन्द के होंगे।13और गधे के पहले बच्चे के फ़िदिये में बर्रा देना, और अगर तू उसका फ़िदिया न दे तो उसकी गर्दन तोड़ डालना। और तेरे बेटों में जितने पहलौठे हों उन सबका फ़िदिया तुझ को देना होगा।14और जब अगले ज़माने में तेरा बेटा तुझसे सवाल करे, कि 'यह क्या है?" तो तू उसे यह जवाब देना, 'ख़ुदावन्द हम को मिस्र से जो ग़ुलामी का घर है अपनी ताक़त से निकाल लाया।15~और जब फ़िर'औन ने हम को जाने देना न चाहा, तो ख़ुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र में इन्सान और हैवान दोनों के पहलौठे मार दिए। इसलिए मैं जानवरों के सब नर बच्चों को जो अपनी अपनी माँ के रिहम को खोलते हैं ख़ुदावन्द के आगे क़ुर्बानी करता हूँ, लेकिन अपने बेटों के सब पहलौठों का फ़िदिया देता हूँ।"16~और यह तेरे हाथ पर एक निशान और तेरी पेशानी पर टीकों की तरह हों, क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने ताक़त से हम को मिस्र से निकाल लाया।"17~और जब फ़िर'औन ने उन लोगों को जाने की इजाज़त दे दी तो ख़ुदा इनको फ़िलिस्तियों के मुल्क के रास्ते से नहीं ले गया, अगरचे उधर से नज़दीक पड़ता; क्यूँकि ख़ुदा ने कहा, "ऐसा न हो कि यह लोग लड़ाई-भिड़ाई देख कर पछताने लगें और मिस्र को लौट जाएँ।"18~बल्कि ख़ुदा इनको चक्कर खिला कर बहर-ए-कुलज़ुम के वीरान के रास्ते से ले गया और बनी-इस्राईल मुल्क-ए-मिस्र से हथियार बन्द निकले थे।19और मूसा यूसुफ़ की हड्डियों को साथ लेता गया, क्यूँकि उसने बनी-इस्राईल से यह कह कर, कि "ख़ुदा ज़रूर तुम्हारी ख़बर लेगा इस बात की सख़्त क़सम ले ली थी, कि "तुम यहाँ से मेरी हड्डियाँ अपने साथ लेते जाना।"20~और उन्होंने सुक्कात से रवाना करके वीराने के किनारे ईताम में ख़ेमा लगाया।21~और ख़ुदावन्द उनको दिन को रास्ता दिखाने के लिए बादल के सुतून में और रात को रौशनी देने के लिए आग के सुतून में हो कर उनके आगे-आगे चला करता था, ताकि वह दिन और रात दोनों में चल सके।22~वह बादल का सुतून दिन को और आग का सुतून रात को उन लोगों के आगे से हटता न था।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से फ़रमाया, कि2~"बनी-इस्राईल को हुक्म दे कि ~वह लौट कर मिजदाल और समुन्दर के बीच फ़ी हख़ीरोत के सामने बाल-सफ़ोन के आगे ख़ेमे लगाएँ, उसी के आगे समुन्दर के किनारे किनारे ख़ेमें लगाना।3~फ़िर'औन बनी-इस्राईल के हक़ में कहेगा कि वह ज़मीन की उलझनों में आकर वीरान में घिर गए हैं।4~और मैं फ़िर'औन के दिल को सख़्त करूँगा और वह उनका पीछा करेगा, और मैं फ़िर'औन और उसके सारे लश्कर पर मुम्ताज़ हूँगा और मिस्री जान लेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।" और उन्होंने ऐसा ही किया।5जब मिस्र के बादशाह को ख़बर मिली कि वह लोग चल दिए, तो फ़िर'औन और उसके खादिमों का दिल उन लोगों की तरफ़ से फिर गया, और वह कहने लगे कि हम ने यह क्या किया, कि इस्राईलियों को अपनी ख़िदमत से छुट्टी देकर उनको जाने दिया?"6~तब उसने अपना रथ तैयार करवाया और अपनी क़ौम के लोगों को साथ लिया,7और उसने छ: सौ चुने हुए रथ बल्कि मिस्र के सब रथ लिए और उन सभों में सरदारों को बिठाया।8और ख़ुदावन्द ने मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के दिल को सख़्त कर दिया और उसने बनीइस्राईल का पीछा किया, क्यूँकि बनी-इस्राईल बड़े फ़ख़्र से निकले थे।9~और मिस्री फ़ौज ने फ़िर'औन के सब घोड़ों और रथों और सवारों समेत उनका पीछा किया और उनको जब वह समुन्दर के किनारे फ़ी-हख़ीरोत के पास बाल सफ़ोन के सामने ख़ेमा लगा रहे थे जा लिया।10और जब फ़िर'औन नज़दीक आ गया तब बनी-इस्राईल ने आँख उठा कर देखा कि मिस्री उनका पीछा किए चले आते हैं, और वह बहुत ख़ौफ़ज़दा हो गए। तब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की,11~और मूसा से कहने लगे, "क्या मिस्र में क़ब्रे न थीं जो तू हम को वहाँ से मरने के लिए वीराने में ले आया है? तूने हम से यह क्या किया कि हम को मिस्र से निकाल लाया?12क्या हम तुझ से मिस्र में यह बात न कहते थे कि हम को रहने दे कि हम मिस्रियों की ख़िदमत करें? क्यूँकि हमारे लिए मिस्रियों की ख़िदमत करना वीराने में मरने से बेहतर होता।"13~तब मूसा ने लोगों से कहा, "डरो मत, चुपचाप खड़े होकर ख़ुदावन्द की नजात के काम को देखो जो वह आज तुम्हारे लिए करेगा। क्यूँकि जिन मिस्रियों को तुम आज देखते हो उनको फिर कभी हमेशा तक न देखोगे।14~ख़ुदावन्द तुम्हारी तरफ़ से जंग करेगा और तुम ख़ामोश रहोगे।”15~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि तू क्यूँ मुझ से फ़रियाद कर रहा है? बनी-इस्राईल से कह कि वह आगे बढ़ें।16~और तू अपनी लाठी उठा कर अपना हाथ समुन्दर के ऊपर बढ़ा और उसे दो हिस्से कर, और बनीइस्राईल समुन्दर के बीच में से ख़ुश्क ज़मीन पर चल कर निकल जाएँगे।17~और देख, ~मिस्रियों के दिल सख़्त कर दूँगा और वह उनका पीछा करेंगे, और मैं फ़िर'औन और उसकी सिपाह और उसके रथों और सवारों पर मुम्ताज़ हूँगा |18और जब मैं फ़िर'औनऔर उसके रथों और सवारों पर मुम्ताज़ हो जाउँगा तो मिस्री जान लेंगे कि मैं ही ख़ुदावन्द हूँ |19और ख़ुदा उसका फ़रिश्ता जो इस्राइली लश्कर के आगे-आगे चला करता था जा कर उनके पीछे हो गया और बादल का वह सुतून उनके सामने से हट कर ~उनके पीछे जा ठहरा |20इस तरह वह मिस्रियों के लश्कर और इस्राईली लश्कर के बीच में हो गया, तब वहाँ बादल भी था और अन्धेरा भी तो भी रात को उससे रौशनी रही| तब वह रात भर एक दूसरे के पास नहीं आए |21फिर मूसा ने अपना हाथ समुन्दर के ऊपर बढ़ाया और ख़ुदावन्द ने रात भर तुन्द पूरबी आँधी चला कर और समुन्दर को पीछे हटा कर उसे ख़ुश्क ज़मीन बना दिया और पानी दो हिस्से हो गया |22और बनी-इस्राईल समुन्दर के बीच में से ख़ुश्क ज़मीन पर चल कर निकल गए और उनके दाहने और बाएँ हाथ पानी दीवार की तरह था |23और मिस्रियों ने पीछा किया और फ़िर'औन सब घोडे़ और रथ और सवार उनके पीछे-पीछे समुन्दर के बीच में चले गए |24और रात के पिछले पहर ख़ुदावन्द ने आग और बादल के सुतून में से मिस्रियों के लश्कर पर नज़र कीऔर उनके लश्कर को घबरा दिया |25और उसने उनके रथों के पहियों को निकाल डाला इसलिए उनका चलना मुश्किल हो गया तब मिस्री कहने लगे, "आओ, हम इस्राईलियों के सामने से भागें, क्यूँकि ख़ुदावन्द उनकी तरफ़ से मिस्रियों के साथ जंग करता है |"26और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि अपना हाथ समुन्दर के ऊपर बढ़ा, ताकि पानी मिस्रियों और उनके रथों और सवारों पर फिर बहने लगे |"27और मूसा ने अपना हाथ समुन्दर के ऊपर बढ़ाया, और सुबह होते होते समुन्दर फिर अपनी असली ताक़त पर आ गया; और मिस्री उल्टे भागने लगे और ख़ुदावन्द ने समुन्दर के बीच ही में मिस्रियों को हलाक कर दिया |28और पानी पलट कर आया और उसने रथों और सवारों और फ़िर'औन सारे लश्कर जो इस्रईलियों का पीछा करता हुआ समुन्दर में गया था डुबो दिया और उसमे से एक भी बाक़ी न छोड़ा |29लेकिन बनी-इस्राईल समुन्दर के बीच में ख़ुश्क ज़मीन पर चलकर निकल गए और पानी उनके दहने और बाएँ हाथ दीवार की तरह रहा|30फिर ख़ुदावन्द ने उस दिन इस्रईलियों को मिस्रियों को हाथ से इस तरह बचाया, और इस्रईलियों ने मिस्रियों को समुन्दर के किनारे मरे हुए पड़े देखा |31और इस्रईलियों ने बड़ी क़ुदरत जो ख़ुदावन्द ने मिस्रियों पर ज़ाहिर की देखी, और वह लोग ख़ुदावन्द से और ख़ुदावन्द पर और उसके बन्दे मूसा पर ईमान लाए|
1तब मूसा ~और बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द के लिए यह गीत गाया और यूँ कहने लगे, मैं ख़ुदा वन्द की सना गाँऊगा क्यूँकि वह जलाल के साथ फ़तहमन्द हुआ; उस ने घोड़े को सवार समेत समुन्द्र में डाल दिया|2ख़ुदावन्द मेरी ताक़त और राग है, वही मेरी नजात भी ठहरा | वह मेरा ख़ुदा है, मैं उसकी बड़ाई करूँगा, वह मेरे बाप का ख़ुदा है मैं उसकी बुजु़र्गी करूँगा।3~ख़ुदावन्द साहिब-ए-जंग है, यहोवा उसका नाम है।4~"फ़िर'औन के रथों और लश्कर को उसने समुन्दर में डाल दिया; और उसके चुने सरदार बहर-ए-कु़ल्ज़म में ~डूब गये।5~गहरे पानी ने उनको छिपा लिया;वह पत्थर की तरह तह में चले गए।6ऐ ख़ुदावन्द, तेरा दहना हाथ कु़दरत की वजह से जलाली है। ऐ खुदावन्द तेरा दहना हाथ दुश्मन को चकनाचूर कर देता है।7तू अपनी 'अज़मत के ज़ोर से अपने मुख़ालिफ़ों को हलाक करता है; तू अपना क़हर भेजता है, और वह उनको खूँटी की तरह भस्म कर डालता है।8~तेरे नथनों के दम से पानी का ढेर लग गया, सैलाब तूदे की तरह सीधे खड़े हो गए, और गहरा पानी समन्दर के बीच में जम गया।9~दुश्मन ने तो यह कहा था, मैं पीछा करूँगा, मैं जा पकड़ूँगा, मैं लूट का माल बाटूँगा, उनकी तबाही से मेरा कलेजा ठंडा होगा। मैं अपनी तलवार खींच कर अपने ही हाथ से उनको हलाक करूँगा।10~तूने अपनी आँधी की फूँक मारी, तो समन्दर ने उनको छिपा लिया। वह ज़ोर के पानी में शीसे की तरह डूब गए।11~मा'बूदों में ऐ ख़ुदावन्द तेरी तरह कौन है? कौन है जो तेरी तरह अपनी पाकीज़गी की वजह से जलाली और अपनी मदह की वजह से रौ'ब वाला और साहिब-ए-करामात है?12~तूने अपना दहना हाथ बढ़ाया, तो ज़मीन उनको निगल गई।13~"अपनी रहमत से तूने उन लोगों की जिनको तूने छुटकारा बख़्शा रहनुमाई की, और अपने ज़ोर से तू उनको अपने मुक़द्दस मकान को ले चला है।14~क़ौमें सुन कर काँप गई हैं। और फ़िलिस्तीन के रहने वालों की जान पर आ बनी है।15~अदोम के रईस हैरान हैं, मोआब के पहलवानों को कपकपी लग गई है; कना'न के सब रहने वालों के दिल पिघले जाते हैं।16~ख़ौफ़-ओ-हिरास उन पर तारी है; तेरे बाजू़ की 'अज़मत की वजह से वह पत्थर की तरह बेहिस-ओ-हरकत हैं। जब तक ऐ ख़ुदावन्द, तेरे लोग निकल न जाएँ, जब तक तेरे लोग जिनको तूने ख़रीदा है पार न हो जाएँ,17~तू उनको वहाँ ले जाकर अपनी मीरास के पहाड़ पर दरख़्त की तरह लगाएगा, तू उनको उसी जगह ले जाएगा जिसे तूने अपनी सुकूनत के लिए बनाया है। ऐ ख़ुदावन्द! वह तेरी जा-ए-मुक़द्दस है, जिसे तेरे हाथों ने क़ायम किया है।18~ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा तक सल्तनत करेगा।"19~इस हम्द की वजह यह थी कि ~फ़िर'औन के सवार घोड़ों और रथों समेत समन्दर में गए, और ख़ुदावन्द समन्दर के पानी को उन पर लौटा लाया; लेकिन बनी-इस्राईल समन्दर के बीच में से ख़ुश्क ज़मीन पर चल कर निकल गए।20~तब हारून की बहन मरियम नबिया ने दफ़ हाथ में लिया, और सब 'औरतें दफ़ लिए नाचती हुई उसके पीछे चलीं।21और मरियम उनके हम्द के जवाब में यह गाती थी, "ख़ुदावन्द की हम्द-ओ-सना गाओ, क्यूँकि वह जलाल के साथ फ़तहमन्द हुआ है; उसने घोड़े को उसके सवार समेत समन्दर में डाल दिया है।”22~फ़िर मूसा बनी-इस्राईल को बहर -ए-कु़लज़ुम से आगे ले गया और वह शोर के वीराने में आए, और वीराने में चलते हुए तीन दिन तक उनको कोई पानी का चश्मा न मिला।23~और जब वह मारह में आए तो मारह का पानी पी न सके क्यूँकि वह कड़वा था, इसीलिए उस जगह का नाम मारह पड़ गया।24तब वह लोग मूसा पर बड़बड़ा कर कहने लगे, कि हम क्या पिएँ?"25उसने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की; ख़ुदावन्द ने उसे एक पेड़ दिखाया जिसे जब उसने पानी में डाला तो पानी मीठा हो गया।वहीं ख़ुदावन्द ने उनके लिए एक क़ानून और शरी'अत बनाई और वहीं यह कह कर उनकी आज़माइश की,26कि "अगर तू दिल लगा कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुने और वही काम करे जो उसकी नज़र में भला है और उसके हुक्मों को माने और उसके क़ानूनों पर 'अमल करे, तो मैं उन बीमारियों में से जो मैंने मिस्रियों पर भेजीं तुझ पर कोई न भेजूँगा क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा शाफ़ी हूँ।"27~फिर वह एलीम में आए जहाँ पानी के बारह चश्मे और खजूर के सत्तर दरख़्त थे, और वहीं पानी के क़रीब उन्होंने अपने ख़ेमे लगाए।
1~फिर वह एलीम से रवाना हुए और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत मुल्क-ए-मिस्र से निकलने के बा'द दूसरे महीने की पंद्रहवीं तारीख़ को सीन के वीराने में जो एलीम और सीना के बीच है पहुँची।2~और उस वीराने में बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत मूसा और हारून पर बड़बड़ाने लगी।3~और बनी-इस्राईल कहने लगे, "काश कि हम ख़ुदावन्द के हाथ से मुल्क-ए-मिस्र में जब ही मार दिए जाते जब हम गोश्त की हाँडियों के पास बैठ कर दिल भर कर रोटी खाते थे, क्यूँकि तुम तो हम को इस वीराने में इसीलिए ले आए हो कि सारे मजमे' को भूका मारो।"4तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "मैं आसमान से तुम लोगों के लिए रोटियाँ बरसाऊँगा, फिर यह लोग निकल निकल कर सिर्फ़ एक-एक दिन का हिस्सा हर दिन बटोर लिया करें कि इस से मैं इनकी आज़माइश करूँगा कि वह मेरी शरी'अत पर चलेंगे या नहीं।5और छटे दिन ऐसा होगा कि जितना वह ला कर पकाएँगे वह उससे जितना रोज़ जमा' करते हैं दूना होगा।”6तब मूसा और हारून ने सब बनी-इस्राईल से कहा, कि "शाम को तुम जान लोगे कि जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया है वह ख़ुदावन्द है।7~और सुबह को तुम ख़ुदावन्द का जलाल देखोगे, क्यूँकि तुम जो ख़ुदावन्द पर बड़बड़ाने लगते हो उसे वह सुनता है। और हम कौन हैं जो तुम हम पर बड़बड़ाते हो?"8~और मूसा ने यह भी कहा, कि "शाम को ख़ुदावन्द तुम को खाने को गोश्त और सुबह को रोटी पेट भर के देगा; क्यूँकि तुम जो ख़ुदावन्द पर बड़बड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हमारी क्या हक़ीक़त है? तुम्हारा बड़बड़ाना हम पर नहीं बल्कि ख़ुदावन्द पर है।"9~फिर मूसा ने हारून से कहा, कि "बनी इस्राईल की सारी जमा'अत से कह, कि तुम ख़ुदावन्द के नज़दीक आओ क्यूँकि उसने तुम्हारा बड़बड़ाना सुन लिया है।"10और जब हारून बनी-इस्राईल की जमा'अत से यह बातें कह रहा था, तो उन्होंने वीराने की तरफ़ नज़र की और उनको ख़ुदावन्द का जलाल बादल में दिखाई दिया।11~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,12"मैंने बनी-इस्राईल का बड़बड़ाना सुन लिया है, इसलिए तू उनसे कह दे कि शाम को तुम गोश्त खाओगे और सुबह को तुम रोटी से सेर होगे, और तुम जान लोगे कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"13और यूँ हुआ कि शाम को इतनी बटेरें आईं कि उनकी खे़मागाह को ढाँक लिया, और सुबह को ख़ेमागाह के आस पास ओस पड़ी हुई थी।14~और जब वह ओस जो पड़ी थी। सूख गई तो क्या देखते हैं, कि वीराने में एक छोटी-छोटी गोल गोल चीज़ ऐसी छोटी जैसे पाले के दाने होते हैं ज़मीन पर पड़ी है।15~बनी-इस्राईल उसे देखकर आपस में कहने लगे, मन्न? क्यूँकि वह नहीं जानते थे कि वह क्या है। तब मूसा ने उनसे कहा, "यह वही रोटी है जो ख़ुदावन्द ने खाने को तुम को दी है।16इसलिए ख़ुदावन्द का हुक्म यह है कि तुम उसे अपने-अपने खाने की मिक़्दार के मुवाफ़िक़ या'नी अपने-अपने आदमियों के शुमार के मुताबिक़ हर शख़्स एक ओमर जमा' करना, और हर शख्स़ उतने ही आदमियों के लिए जमा' करे जितने उसके ख़ेमे में हों।"17~चुनाँचे बनी-इस्राईल ने ऐसा ही किया और किसी ने ज़्यादा और किसी ने कम जमा' किया।18और जब उन्होंने उसे ओमर से नापा तो जिसने ज़्यादा जमा' किया था कुछ ज़्यादा न पाया और उसका जिसने कम जमा' किया था कम न हुआ। उनमें से हर एक ने अपने खाने की मिक़्दार के मुताबिक़ जमा' किया था।19और मूसा ने उनसे कह दिया था ~कि~कोई उसमें से कुछ सुबह तक बाक़ी न छोड़े।"20तोभी उन्होंने मूसा की बात न मानी बल्कि बा'ज़ों ने सुबह तक कुछ रहने दिया, इसलिए उसमें कीड़े पड़ गए और वह सड़ गया; तब मूसा उनसे नाराज़ हुआ।21~और वह हर सुबह को अपने-अपने खाने की मिक़्दार के मुताबिक़ जमा' कर लेते थे और धूप तेज़ होते ही वह पिघल जाता था।22और छटे दिन ऐसा हुआ कि जितनी रोटी वह रोज़ जमा' करते थे उससे दूनी जमा' की या'नी हर शख़्स दो ओमर, और जमा'अत के सब सरदारों ने आकर यह मूसा को बताया।23~उसने उनको कहा, कि "ख़ुदावन्द का हुक्म यह है कि कल ख़ास आराम का दिन या'नी ख़ुदावन्द का मुक़द्दस सबत है, जो तुम को पकाना हो पका लो और जो उबालना हो उबाल लो और वह जो बच रहे उसे अपने लिए सुबह तक महफ़ूज़ रख्खो।"24चुनाँचे उन्होंने जैसा मूसा ने कहा था उसे सुबह तक रहने दिया, और वह न तो सड़ा और न उसमें कीड़े पड़े।25और मूसा ने कहा कि आज उसी को खाओ क्यूँकि आज ख़ुदावन्द का सबत है, इसलिए वह आज तुम को मैदान में नहीं मिलेगा।26~छ: दिन तक तुम उसे जमा' करना लेकिन सातवें दिन सबत है, उसमें वह नहीं मिलेगा।"27~और सातवें दिन ऐसा हुआ कि उनमें से कुछ आदमी मन बटोरने गए पर उनको कुछ नहीं मिला।28~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "तुम लोग कब तक मेरे हुक्मों और शरी'अत के मानने से इन्कार करते रहोगे?29~देखो, चूँकि ख़ुदावन्द ने तुम को सबत का दिन दिया है, इसीलिए वह तुम को छठे दिन दो दिन का खाना देता है। इसलिए तुम अपनी-अपनी जगह रहो और सातवें दिन कोई अपनी जगह से बाहर न जाए।"30~चुनाँचे लोगों ने सातवें दिन आराम किया।31~और बनी-इस्राईल ने उसका नाम मन्न रख्खा, और वह धनिये के बीज की तरह सफ़ेद और उसका मज़ा शहद के बने हुए पूए की तरह था।32~और मूसा ने कहा, "ख़ुदावन्द यह हुक्म देता है, कि इसका एक ओमर भर कर अपनी नसल के लिए रख लो, ताकि वह उस रोटी को देखें जो मैंने तुम को वीराने में खिलाई जब मैं तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया।"33~और मूसा ने हारून से कहा, "एक मर्तबान ले और एक ओमर मन उसमें भर कर उसे ख़ुदावन्द के आगे रख दे, ताकि वह तुम्हारी नसल के लिए रख्खा रहे।"34और जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था उसी के मुताबिक़ हारून ने उसे शहादत के सन्दूक के आगे रख दिया ताकि वह रख्खा रहे।35~और बनी-इस्राईल जब तक आबाद मुल्क में न आए या'नी चालीस बरस तक मन्न खाते रहे, अलग़रज़ जब तक वह मुल्क -ए-कना'न की हद तक न आए मन्न खाते रहे।36और एक ओमर ऐफ़ा का दसवाँ हिस्सा है।
1~फिर बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत सीन के वीराने से चली और ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ सफ़र करती हुई रफ़ीदीम में आकर ख़ेमा लगाया; वहाँ उन लोगों के पीने को पानी न मिला।2~वहाँ वह लोग मूसा से झगड़ा करके कहने लगे, कि "हम को पीने को पानी दे।" मूसा ने उनसे कहा, कि "तुम मुझ से क्यूँ झगड़ते हो और ख़ुदावन्द को क्यूँ आज़माते हो?"3~वहाँ उन लोगों को बड़ी प्यास लगी, तब वह लोग मूसा पर बड़बड़ाने लगे और कहा, कि तू हम को और हमारे बच्चों और चौपायों को प्यासा मारने के लिए हम लोगों को क्यूँ मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया?”4~मूसा ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद करके कहा किमैं इन लोगों से क्या करूँ? वह सब तो अभी मुझे संगसार करने को तैयार हैं।"5ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि लोगों के आगे होकर चल और बनी-इस्राईल के बुज़ुर्गों में से कुछ को अपने साथ ले ले और जिस लाठी से तूने दरिया पर मारा था उसे अपने हाथ में लेता जा।6~देख, मैं तेरे आगे जाकर वहाँ होरिब की एक चट्टान पर खड़ा रहूँगा, और तू उस चट्टान पर मारना तो उसमें से पानी निकलेगा कि यह लोग पिएँ।” चुनाँचे मूसा ने बनी-इस्राईल के बुज़ुर्गों के सामने यही किया,7~और उसने उस जगह का नाम मस्सा और मरीबा रख्खा; क्यूँकि बनी-इस्राईल ने वहाँ झगड़ा किया और यह कह कर ख़ुदावन्द का इम्तिहान किया, "ख़ुदावन्द हमारे बीच में है या नहीं?"8~तब 'अमालीक़ी आकर रफ़ीदीम में बनी-इस्राईल से लड़ने लगे।9~और मूसा ने यशू'अ से कहा, "हमारी तरफ़ के कुछ आदमी चुन कर ले जा और 'अमालीक़ियों से लड़, और मैं कल ख़ुदा की लाठी अपने हाथ में लिए हुए पहाड़ की चोटी पर खड़ा रहूँगा।"10~फिर मूसा के हुक्म के मुताबिक़ यशू'अ 'अमालीक़ियों से लड़ने लगा, और मूसा और हारून और हूर पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए।11और जब तक मूसा अपना हाथ उठाए रहता था बनी-इस्राईल ग़ालिब रहते थे, और जब वह हाथ लटका देता था तब 'अमालीक़ी ग़ालिब होते थे।12~और जब मूसा के हाथ भर गए तो उन्होंने एक पत्थर लेकर मूसा के नीचे रख दिया और वह उस पर बैठ गया, और हारून और हूर एक इधर से दूसरा उधर से उसके हाथों को संभाले रहे। तब उसके हाथ आफ़ताब के गु़रूब होने तक मज़बूती से उठे रहे।13~और यशू'अ ने 'अमालीक़ और उसके लोगों की तलवार की धार से शिकस्त दी।14~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "इस बात की यादगारी के लिए किताब में लिख दे और यशू'अ को सुना दे कि मैं 'अमालीक़ का नाम-ओ-निशान दुनिया से बिल्कुल मिटा दूँगा।"15~और मूसा ने एक क़ुर्बानगाह बनाई और उसका नाम 'यहोवा निस्सी' रख्खा ।16और उसने कहा ख़ुदावन्द ने क़सम खाई है; इसलिए ख़ुदावन्द 'अमालीक़ियों से नसल दर नसल जंग करता रहेगा |
1~और जो कुछ ख़ुदावन्द ने मूसा और अपनी क़ौम इस्राईल के लिए किया और जिस तरह से ख़ुदावन्द ने इस्राईल को मिस्र से निकाला, सब मूसा के ससुर यित्रो ने जो मिदियान का काहिन था सुना।2~और मूसा के ससुर यित्रो ने मूसा की बीवी सफ़्फू़रा को जो मायके भेज दी गई थी,3और उसके दोनों बेटों को साथ लिया। इनमें से एक का नाम मूसा ने यह कह कर जैरसोम रख्खा था कि "मैं परदेस में मुसाफ़िर हूँ।"4~और दूसरे का नाम यह कह कर इली'अज़र रख्खा था कि "मेरे बाप का ख़ुदा मेरा मददगार हुआ, और उसने मुझे फ़िर'औन की तलवार से बचाया।"5~और मूसा का ससुर यित्रो उसके बेटों और बीवी को लेकर मूसा के पास उस वीराने में आया, जहाँ ख़ुदा के पहाड़ के पास उसका ख़ेमा लगा था,6और मूसा से कहा, कि "मैं तेरा ससुर यित्रो तेरी बीवी को और उसके साथ उसके दोनों बेटों को लेकर तेरे पास आया हूँ।"7~तब मूसा अपने ससुर से मिलने को बाहर निकला और कोर्निश बजा लाकर उसको चूमा, और वह एक दूसरे की ख़ैर-ओ-'आफ़ियत पूछते हुए ख़ेमे में आए।8~और मूसा ने अपने ससुर को बताया कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल की ख़ातिर फ़िर'औन के साथ क्या क्या किया, और इन लोगों पर रास्ते में क्या-क्या मुसीबतें पड़ीं और ख़ुदावन्द उनको किस किस तरह बचाता आया।9और यित्रों इन सब एहसानों की वजह से जो ख़ुदावन्द ने इस्राईल पर किए कि उनको मिस्रियों के हाथ से नजात बख़्शी बहुत ख़ुश हुआ।10~और यित्रों ने कहा, "ख़ुदावन्द मुबारक हो, जिसने तुम को मिस्रियों के हाथ और फ़िर'औन के हाथ से नजात बख़्शी, और जिसने इस क़ौम को मिस्रियों के पंजे से छुड़ाया।11~अब मैं जान गया कि ख़ुदावन्द सब मा'बूदों से बड़ा है, क्यूँकि वह उन कामों में जो उन्होंने गु़रूर से किए उन पर ग़ालिब हुआ।"12और मूसा के ससुर यित्रो ने ख़ुदा के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहे चढ़ाए, और हारून और इस्राईल के सब बुज़ुर्ग़ मूसा के ससुर के साथ ख़ुदा के सामने खाना खाने आए।13~और दूसरे दिन मूसा लोगों की 'अदालत करने बैठा और लोग मूसा के आसपास सुबह से शाम तक खड़े रहे।14और जब मूसा के ससुर ने सब कुछ जो वह लोगों के लिए करता था देख लिया तो उससे कहा, "यह क्या काम है जो तू लोगों के लिए करता है? तू क्यूँ आप अकेला बैठता है और सब लोग सुबह से शाम तक तेरे आस-पास खड़े रहते हैं?"15~मूसा ने अपने ससुर से कहा, "इसकी वजह यह है कि लोग मेरे पास ख़ुदा से मा'लूम करने के लिए आते हैं।16जब उनमें कुछ झगड़ा होता है तो वह मेरे पास आते हैं, और मैं उनके बीच इन्साफ़ करता और ख़ुदा के अहकाम और शरी'अत उनको बताता हूँ।"17~तब मूसा के ससुर ने उससे कहा, कि "तू अच्छा काम नहीं करता।18~इससे तू क्या बल्कि यह लोग भी जो तेरे साथ हैं क़त'ई घुल जाएँगे, क्यूँकि यह काम तेरे लिए बहुत भारी है।19~तू अकेला इसे नहीं कर सकता। इसलिए अब तू मेरी बात सुन, मैं तुझे सलाह देता हूँ और ख़ुदा तेरे साथ रहे! तू इन लोगों के लिए ख़ुदा के सामने जाया कर और इनके सब मु'आमिले ख़ुदा के पास पहुँचा दिया कर।20~और तू रिवायतों और शरी'अत की बातें इनको सिखाया कर, और जिस रास्ते इनको चलना और जो काम इनको करना हो वह इनको बताया कर।21~और तू इन लोगों में से ऐसे लायक़ शख़्सों को चुन ले जो ख़ुदातरस और सच्चे और रिश्वत के दुश्मन हों, और उनको हज़ार- हज़ार और सौ-सौ और पचास-पचास और दस-दस आदमियों पर हाकिम बना दे;22~कि वह हर वक़्त लोगों का इन्साफ़ किया करें और ऐसा हो कि बड़े-बड़े मुक़द्दमें तो वह तेरे पास लाएँ और छोटी-छोटी बातों का फ़ैसला ख़ुद ही कर दिया करें। यूँ तेरा बोझ हल्का हो जाएगा और वह भी उसके उठाने में तेरे शरीक होंगे।23~अगर तू यह काम करे और ख़ुदा भी तुझे ऐसा ही हुक्म दे, तो तू सब कुछ झेल सकेगा और यह लोग भी अपनी जगह इत्मीनान से जाएँगे।24और मूसा ने अपने ससुर की बात मान कर जैसा उसने बताया था वैसा ही किया।25~चुनाँचे मूसा ने सब इस्राईलियों में से लायक़~शख़्सों को~चुना और उन को हज़ार-हज़ार और सौ-सौ और~पचास-पचास आौर दस-दस आदमियों के ऊपर हाकिम मुक़र्रर किया।26इसलिए यही हर वक़्त लोगों का इन्साफ़ करने लगे, मुश्किल मुक़द्दमात तो वह मूसा के पास ले आते थे पर छोटी-छोटी बातों का फ़ैसला ख़ुद ही कर देते थे।27~फिर मूसा ने अपने ससुर को रुख़्सत किया और वह अपने वतन को रवाना हो गया।
1और बनी-इस्राईल को जिस दिन मुल्क-ए-मिस्र से निकले तीन महीने हुए उसी दिन वह सीना के वीराने में आए।2~और जब वह रफ़ीदीम से रवाना होकर सीना के वीरान में आए तो वीरान ही में ख़ेमे लगा लिए, इसलिए वहीं पहाड़ के सामने इस्राईलियों के डेरे लगे।3~और मूसा उस पर चढ़ कर ख़ुदा के पास गया और ख़ुदावन्द ने उसे पहाड़ पर से पुकार कर कहा, "तू या'क़ूब के ख़ान्दान से यूँ कह और बनी-इस्राईल को यह सुना दे:4~'तुम ने देखा कि मैंने मिस्रियों से क्या-क्या किया, और तुम को जैसे 'उक़ाब के परों पर बैठा कर अपने पास ले आया।5~इसलिए अब अगर तुम मेरी बात मानो और मेरे 'अहद पर चलो तो सब क़ौमों में से तुम ही मेरी ख़ास मिल्कियत ठहरोगे क्यूँकि सारी ज़मीन मेरी है।6~और तुम मेरे लिए काहिनों की एक मम्लुकत और एक मुक़द्दस क़ौम होगे, इन्हीं बातों को तू बनी-इस्राईल को सुना देना।"7~तब मूसा ने आ कर और उन लोगों के बुज़ुर्गों को बुलाकर उनके आमने-सामने वह सब बातें जो ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाई थीं बयान कीं।8और सब लोगों ने मिल कर जवाब दिया, "जो कुछ ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है वह सब हम करेंगे।" और मूसा ने लोगों का जवाब ख़ुदावन्द को जाकर सुनाया।9~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "देख, मैं काले बादल में इसलिए तेरे पास आता हूँ कि जब मैं तुझ से बातें करूँ तो यह लोग सुनें और हमेशा तेरा यक़ीन करें।" और मूसा ने लोगों की बातें ख़ुदावन्द से बयान कीं।10~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "लोगों के पास जा, और आज और कल उनको पाक कर, और वह अपने कपड़े धो लें,11और तीसरे दिन तैयार रहें, क्यूँकि ख़ुदावन्द तीसरे दिन सब लोगों के देखते देखते कोह-ए-सीना पर उतरेगा।12और तू लोगों के लिए चारों तरफ़ हद बाँध कर उनसे कह देना, ख़बरदार तुम न तो इस पहाड़ पर चढ़ना और न इसके दामन को छूना; जो कोई पहाड़ को छुए ज़रूर जान से मार डाला जाए।13~मगर उसे कोई हाथ न लगाए बल्कि वह ला-कलाम संगसार किया जाए, या तीर से छेदा जाए चाहे वह इन्सान हो चाहे हैवान, वह जीता न छोड़ा जाए; और जब नरसिंगा देर तक फूंका जाए तो वह सब पहाड़ के पास आ जाएँ।"14~तब मूसा पहाड़ पर से उतरकर लोगों के पास गया और उसने लोगों को पाक साफ़ किया, और उन्होंने अपने कपड़े धो लिए।15और उसने लोगों से कहा कि "तीसरे दिन तैयार रहना और 'औरत के नज़दीक न जाना।"16~जब तीसरा दिन आया तो सुबह होते ही बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पहाड़ पर काली घटा छा गई और करना की आवाज़ बहुत बुलन्द हुई और सब लोग ख़ेमों में काँप गए।17~और मूसा लोगों को ख़ेमा गाह से बाहर लाया कि ख़ुदा से मिलाए, और वह पहाड़ से नीचे आ खड़े हुए।18~और कोह-ए-सीना ऊपर से नीचे तक धुएँ से भर गया क्यूँकि ख़ुदावन्द शोले में होकर उस पर उतरा, और धुआँ तनूर के धुएँ की तरह ऊपर को उठ रहा था और वह सारा पहाड़ ज़ोर से हिल रहा था।19~और जब करना की आवाज़ निहायत ही बुलन्द होती गई तो मूसा बोलने लगा और ख़ुदा ने आवाज़ के ज़रिए' से उसे जवाब दिया।20~और ख़ुदावन्द कोह-ए-सीना की चोटी पर उतरा, और ख़ुदावन्द ने पहाड़ की चोटी पर मूसा को बुलाया; तब मूसा ऊपर चढ़ गया।21~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "नीचे उतर कर लोगों को ताकीदन समझा देता ऐसा न हो कि वह देखने के लिए हदों को तोड़ कर ख़ुदावन्द के पास आ जाएँ और उनमें से बहुत से हलाक हो जाएँ।22और काहिन भी जो ख़ुदावन्द के नज़दीक आया करते हैं अपने आपको पाक करें, कहीं ऐसा न हो कि ख़ुदावन्द उन पर टूट पड़े।"23~तब मूसा ने खुदावन्द से कहा, "लोग कोह-ए-सीना पर नहीं चढ़ सकते क्यूँकि तूने तो हम को ताकीदन कहा है, कि पहाड़ के चौगिर्द हद बन्दी करके उसे पाक रख्खो।"24~ख़ुदावन्द ने उसे कहा, "नीचे उतर जा, और हारून को अपने साथ लेकर ऊपर आ; लेकिन काहिन और अवाम हदें तोड़कर ख़ुदावन्द के पास ऊपर न आए, ऐसा न हो कि वह उन पर टूट पड़े |25चुनाँचे मूसा नीचे उतर कर लोगों के पास गया और यह बातें उन को बताई |
1और ख़ुदा ने यह सब बातें फ़रमाई:कि2~"ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जो तुझे मुल्क-ए-मिस्र से और ग़ुलामी के घर से निकाल लाया मैं हूँ।3"मेरे सामने तू गै़र मा'बूदों को न मानना।4~"तू अपने लिए कोई तराशी हुई मूरत न बनाना, न किसी चीज़ की सूरत बनाना जो ऊपर आसमान में या नीचे ज़मीन पर या ज़मीन के नीचे पानी में है।5~तू उनके आगे सिज्दा न करना और न उनकी 'इबादत करना, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ग़य्यूर ख़ुदा हूँ और जो मुझ से 'अदावत रखते हैं उनकी औलाद को तीसरी और चौथी नसल तक बाप दादा की बदकारी की सज़ा देता हूँ।6और हज़ारों पर जो मुझ से मुहब्बत रखते और मेरे हुक्मों को मानते हैं। रहम करता हूँ।7~"तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का नाम बेफ़ाइदा न लेना, क्यूँकि जो उसका नाम बेफ़ायदा लेता है ख़ुदावन्द उसे बेगुनाह न ठहराएगा।8~"याद कर कि तू सबत का दिन पाक मानना।9~छ: दिन तक तू मेहनत करके अपना सारा काम-काज करना।10~लेकिन सातवाँ दिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा का सबत है; उसमें न तू कोई काम करे न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा गु़लाम, न तेरी लोंडी, न तेरा चौपाया, न कोई मुसाफ़िर जो तेरे यहाँ तेरे फाटकों के अन्दर हो11~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने छ: दिन में आसमान और ज़मीन और समन्दर और जो कुछ उनमें है वह सब बनाया, और सातवें दिन आराम किया; इसलिए ख़ुदावन्द ने सबत के दिन को बरकत दी और उसे पाक ठहराया।12~"तू अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना ताकि तेरी 'उम्र उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझे देता है दराज़ हो।13~"तू ख़ून न करना।14~"तू ज़िना न करना।15~“तू चोरी न करना।16~"तू अपने पड़ोसी के खिलाफ़ झूटी गवाही न देना।17~"तू अपने पड़ोसी के घर का लालच न करना; तू अपने पड़ोसी की बीवी का लालच न करना, और न उसके ग़ुलाम और उसकी लौंडी और उसके बैल और उसके गधे का, और न अपने पड़ोसी की किसी और चीज़ का लालच करना।"18~और सब लोगों ने बादल गरजते और बिजली चमकते और करना की आवाज़ होते और पहाड़ से धुआँ उठते देखा, और जब लोगों ने यह देखा तो काँप उठे और दूर खड़े हो गए;19~और मूसा से कहने लगे, "तू ही हम से बातें किया कर और हम सुन लिया करेंगे; लेकिन ख़ुदा हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएँ।"20~मूसा ने लोगों से कहा, "तुम डरो मत, क्यूँकि ख़ुदा इसलिए आया है कि तुम्हारा इम्तिहान करे और तुम को उसका ख़ौफ़ हो ~ताकि तुम गुनाह न करो।"21~और वह लोग दूर ही खड़े रहे और मूसा उस गहरी तारीकी के नज़दीक गया जहाँ ख़ुदा था।22और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "तू बनी-इस्राईल से यह कहना कि 'तुम ने ख़ुद देखा कि मैंने आसमान पर से तुम्हारे साथ बातें कीं।23~तुम मेरे साथ किसी को शरीक न करना, या'नी चाँदी या सोने के देवता अपने लिए न गढ़ लेना।24~और तू मिट्टी की एक क़ुर्बानगाह मेरे लिए बनाया करना, और उस पर अपनी भेंड़ बकरियों और गाय-बैल की सोख़्तनी कु़र्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश करना और जहाँ-जहाँ मैं अपने नाम की यादगारी कराऊँगा वहाँ मैं तेरे पास आकर तुझे बरकत दूँगा।25~और अगर तू मेरे लिए पत्थर की क़ुर्बानगाह बनाए तो तराशे हुए पत्थर से न बनाना, क्यूँकि अगर तू उस पर अपने औज़ार लगाए तो तू उसे नापाक कर देगा।26और तू मेरी क़ुर्बानगाह पर सीढ़ियों से हरगिज़ न चढ़ना ऐसा न हो कि तेरा नंगापन उस पर ज़ाहिर हो।'
1~“वह अहकाम जो तुझे उनको बताने हैं यह हैं:2अगर तू कोई 'इब्रानी ग़ुलाम ख़रीदे तो वह छ: बरस ख़िदमत करे और सातवें बरस मुफ़्त आज़ाद होकर चला जाए।3~अगर वह अकेला आया हो तो अकेला ही चला जाए और अगर वह शादी शुदा हो तो उसकी बीवी भी उसके साथ जाए।4अगर उसके आक़ा ने उसकी शादी कराया हो और उस 'औरत के उससे बेटे और बेटियाँ हुई हों तो वह 'औरत और उसके बच्चे उस आक़ा के होकर रहें और वह अकेला चला जाए।5~पर अगर वह ग़ुलाम साफ़ कह दे कि मैं अपने आक़ा से और अपनी बीवी और बच्चों से मुहब्बत रखता हूँ, मैं आज़ाद होकर नहीं जाऊँगा।6~तो उसका आक़ा उसे ख़ुदा के पास ले जाए, और उसे दरवाज़े पर या दरवाज़े की चौखट पर लाकर सुतारी से उसका कान छेदे; तब वह हमेशा उसकी खि़दमत करता रहे।7'और अगर कोई शख़्स अपनी बेटी को लौंडी होने के लिए बेच डाले तो वह गु़लामों की तरह चली न जाए।8अगर उसका आक़ा जिसने उससे निस्बत की है उससे ख़ुश न हो, तो वह उसका फ़िदिया मंजूर करे पर उसे यह इख़्तियार न होगा कि उसको किसी अजनबी क़ौम के हाथ बेचे, क्यूँकि उसने उससे दग़ाबाज़ी की।9और अगर वह उसकी निस्बत अपने बेटे से कर दे तो वह उससे बेटियों का सा सुलूक करे।10अगर वह दूसरी 'औरत कर ले तो भी वह उसके खाने, कपड़े और शादी के फ़र्ज़ में क़ासिर न हो।11~और अगर वह उससे यह तीनों बातें न करे तो वह मुफ़्त बे-रुपये दिए चली जाए।12~'अगर कोई किसी आदमी को ऐसा मारे कि वह मर जाए तो वह क़तई' जान से मारा जाए।13~लेकिन अगर वह शख़्स घात लगाकर न बैठा हो बल्कि ख़ुदा ही ने उसे उसके हवाले कर दिया हो, तो मैं ऐसे हाल में एक जगह बता दूँगा जहाँ वह भाग जाए।14~और अगर कोई दीदा-ओ-दानिस्ता अपने पड़ोसी पर चढ़ आए ताकि उसे धोखे से मार डाले, तो तू उसे मेरी क़ुर्बानगाह से जुदा कर देना ताकि वह मारा जाए।15"और जो कोई अपने बाप या अपनी माँ को मारे वह क़तई' जान से मारा जाए।16~"और जो कोई किसी आदमी को चुराए चाहे वह उसे बेच डाले चाहे वह उसके यहाँ मिले, वह क़तई' मार डाला जाए।17~'और जो अपने बाप या अपनी माँ पर ला'नत करे वह क़तई' मार डाला जाए।18~"और अगर दो शख़्स झगड़ें और एक दूसरे को पत्थर या मुक्का मारे और वह मरे तो नहीं पर बिस्तर पर पड़ा रहे,19~तो जब वह उठ कर अपनी लाठी के सहारे बाहर चलने-फिरने लगे, तब वह जिसने मारा था बरी हो जाए और सिर्फ़ उसका हरजाना भर दे और उसका पूरा 'इलाज करा दे।20"और अगर कोई अपने ग़ुलाम या लौंडी को लाठी से ऐसा मारे कि वह उसके हाथ से मर जाए तो उसे ज़रूर सज़ा दी जाए।21~लेकिन अगर वह एक-दो दिन जीता रहे तो आक़ा को सज़ा न दी जाए, इसलिए कि वह ग़ुलाम उसका माल है।22~"अगर लोग आपस में मार पीट करें और किसी हामिला को ऐसी चोट पहुँचाएँ कि उसे इस्क़ात हो जाए, लेकिन और कोई नुक़्सान न हो तो उससे जितना जुर्माना उसका शौहर तजवीज़ करे लिया जाए, और वह जिस तरह क़ाज़ी फ़ैसला करें जुर्माना भर दे।23लेकिन अगर नुक़्सान हो जाए तो तू जान के बदले जान ले,24~और आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, और हाथ के बदले हाथ, पाँव के बदले पाँव,25जलाने के बदले जलाना, ज़ख़्म के बदले ज़ख़्म और चोट के बदले चोट।26~"और अगर कोई अपने ग़ुलाम या अपनी लौंडी की आँख पर ऐसा मारे कि वह फूट जाए, तो वह उसकी आँख के बदले उसे आज़ाद कर दे।27~अगर कोई अपने ग़ुलाम या अपनी लौंडी का दाँत मार कर तोड़ दे, तो वह उसके दाँत के बदले उसे आज़ाद कर दे।28~'अगर बैल किसी मर्द या 'औरत को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल ज़रूर संगसार किया जाय और उसका गोश्त खाया न जाए, लेकिन बैल का मालिक बेगुनाह ठहरे।29~लेकिन अगर उस बैल की पहले से सींग मारने की 'आदत थी और उसके मालिक को बता भी दिया गया था तोभी उसने उसे बाँध कर नहीं रख्खा, और उसने किसी मर्द या'औरत को मार दिया हो तो बैल संगसार किया जाए और उसका मालिक भी मारा जाए।30~और अगर उससे ख़ूनबहा माँगा जाए, तो उसे अपनी जान के फ़िदिया में जितना उसके लिए ठहराया जाए उतना ही देना पड़ेगा।31~चाहे उसने किसी के बेटे को मारा हो या बेटी को, इसी हुक्म के मुवाफ़िक़ उसके साथ 'अमल किया जाए।32~अगर बैल किसी के ग़ुलाम या लौंडी को सींग से मारे तो मालिक उस ग़ुलाम या लौंडी के मालिक को तीस मिस्काल रुपये दे और बैल संगसार किया जाए।33~'और अगर कोई आदमी गढ़ा खोले या खोदे और उसका मुँह न ढाँपे, और कोई बैल या गधा उसमें गिर जाए;34~तो गढ़े का मालिक इसका नुक़्सान भर दे और उनके मालिक को क़ीमत दे और मरे हुए जानवर को ख़ुद ले ले।35"और अगर किसी का बैल दूसरे के बैल को ऐसी चोट पहुँचाए के वह मर जाए, तो वह जीते बैल को बेचें और उसका दाम आधा आधा आपस में बाँट लें और इस मरे हुए बैल को भी ऐसे ही बाँट लें।36~और अगर मा'लूम हो जाए कि उस बैल की पहले से सींग मारने की 'आदत थी और उसके मालिक ने उसे बाँध कर नहीं रख्खा, तो उसे क़तई' बैल के बदले बैल देना होगा और वह मरा हुआ जानवर उसका होगा।
1"अगर कोई आदमी बैल या भेड़ चुरा ले और उसे ज़बह कर दे या बेच डाले, तो वह एक बैल के बदले पाँच बैल और एक भेड़ के बदले चार भेड़े भरे।2अगर चोर सेंध मारते हुए पकड़ा जाए और उस पर ऐसी मार पड़े कि वह मर जाए तो उसके ख़ून का कोई जुर्म नहीं।3~अगर सूरज निकल चुके तो उसका ख़ून जुर्म होगा; बल्कि उसे नुक़्सान भरना पड़ेगा और अगर उसके पास कुछ न हो तो वह चोरी के लिए बेचा जाए।4~अगर चोरी का माल उसके पास जीता मिले चाहे वह बैल हो या गधा या भेड़ तो वह उसका दूना भर दे।5~'अगर कोई आदमी किसी खेत या ताकिस्तान को खिलवा दे और अपने जानवर को छोड़ दे कि वह दूसरे के खेत को चर लें, तो अपने खेत या ताकिस्तान की अच्छी से अच्छी पैदावार में से उसका मु'आवज़ा दे।6~'अगर आग भड़के और काँटों में लग जाए और अनाज के ढेर या खड़ी फ़सल या खेत को जला कर भस्म कर दे, तो जिस ने आग जलाई हो वह ज़रूर मु'आवज़ा दे।7~"अगर कोई अपने पड़ोसी की नक़द या जिन्स रखने को दे और वह उस शख़्स के घर से चोरी हो जाए, तो अगर चोर पकड़ा जाए तो दूना उसको भरना पड़ेगा।8~लेकिन अगर चोर पकड़ा न जाए तो उस घर का मालिक ख़ुदा के आगे लाया जाए, ताकि मालूम हो जाए कि उसने अपने पड़ोसी के माल को हाथ नहीं लगाया।9~हर क़िस्म की ख़ियानत के मु'आमिले में चाहे बैल का चाहे गधे या भेड़ या कपड़े या किसी और खोई हुई चीज़ का हो, जिसकी निस्बत कोई बोल उठे कि वह चीज़ यह है तो फ़रीक़ीन का मुक़द्दमा ख़ुदा के सामने लाया जाए और जिसे ख़ुदा मुजरिम ठहराए वह अपने पड़ोसी को दूना भर दे।10~'अगर कोई अपने पड़ोसी के पास गधा या बैल या भेड़ या कोई और जानवर अमानत रख्खे और वह बगै़र किसी के देखे मर जाए या चोट खाए या हंका दिया जाए,11~तो उन दोनों के बीच ख़ुदावन्द की क़सम हो कि उसने अपने हमसाये के माल को हाथ नहीं लगाया, और मालिक इसे सच माने और दूसरा उसका मु'आवज़ा न दे।12~लेकिन अगर वह उसके पास से चोरी हो जाए तो वह उसके मालिक को मु'आवज़ा दे।13~और अगर उसको किसी दरिन्दे ने फाड़ डाला हो तो वह उसको गवाही के तौर पर पेश कर दे और फाड़े हुए का नुक़्सान न भरे।14~'अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी से कोई जानवर 'आरियत ले और वह ज़ख़्मी हो जाए या मर जाए, और मालिक वहाँ मौजूद न हो तो वह ज़रूर उसका मु'आवज़ा दे।15~लेकिन अगर मालिक साथ हो तो उसका नुक़्सान न भरे और अगर किराया की हुई चीज़ हो तो उसका नुक़्सान उसके किराये में आ गया16~"अगर कोई आदमी किसी कुँवारी को जिसकी निस्बत न हुई हो, फुसला कर उससे मुबाश्रत करे तो वह ज़रूर ही उसे महर देकर उससे शादी करे।17लेकिन अगर उसका बाप हरगिज़ राज़ी न हो कि उस लड़की को उसे दे, तो वह कुँवारियों के महर के मुवाफ़िक़ उसे नक़दी दे।18~"तू जादूगरनी को जीने न देना।19~"जो कोई किसी जानवर से मुबाश्रत करे वह क़तई' जान से मारा जाए।20~"जो कोई एक ख़ुदावन्द को छोड़ कर किसी और मा'बूद के आगे क़ुर्बानी चढ़ाए वह बिल्कुल नाबूद कर दिया जाए।21~"और तू मुसाफ़िर को न तो सताना न उस पर सितम करना, इस लिए के तुम भी मुल्क-ए-मिस्र में मुसाफ़िर थे।22तुम किसी बेवा या यतीम लड़के को दुख न देना।23~अगर तू उनको किसी तरह से दुख दे और वह मुझ से फ़रियाद करें तो मैं ज़रूर उनकी फ़रियाद सुनूँगा।24~और मेरा क़हर भड़केगा और मैं तुम को तलवार से मार डालूँगा और तुम्हारी बीवियाँ बेवा और तुम्हारे बच्चे यतीम हो जाएँगे।25~"अगर तू मेरे लोगों में से किसी मोहताज को जो तेरे पास रहता हो कुछ क़र्ज़ दे तो उससे क़र्ज़दार की तरह सुलूक न करना और न उससे सूद लेना।26अगर तू किसी वक़्त अपने पड़ोसी के कपड़े गिरवी रख भी ले तो सूरज के डूबने तक उसको वापस कर देना।27क्यूँकि सिर्फ़ वही उसका एक ओढ़ना है, उसके जिस्म का वही लिबास है फिर वह क्या ओढ़ कर सोएगा? फिर जब वह फ़रियाद करेगा तो मैं उसकी सुनूँगा क्यूँकि मैं मेहरबान हूँ।28~"तू ख़ुदा को न कोसना और न अपनी क़ौम के सरदार पर ला'नत भेजना।29"तू अपनी ज़्यादा पैदावार और अपने कोल्हू के रस में से मुझे नज़्र-ओ-नियाज़ देने में देर न करना और अपने बेटों में से पहलौठे को मुझे देना।30~अपनी गायों और भेड़ों से भी ऐसा ही करना; सात दिन तक तो बच्चा अपनी माँ के साथ रहे, आठवें दिन तू उसे मुझ को देना।31~"और तू मेरे लिए पाक आदमी होना, इसी वजह से दरिन्दों के फाड़े हुए जानवर का गोश्त जो मैदान में पड़ा हुआ मिले मत खाना; तुम उसे कुत्तों के आगे फेंक देना।
1तू झूठी बात ना फैलाना और नारास्त गवाह होने के लिए शरीरों का साथ न देना।2~बुराई करने के लिए किसी भीड़ की पैरवी न करना, और न किसी मुक़दमें में इन्साफ़ का ख़ून कराने के लिए भीड़ का मुँह देखकर कुछ कहना।3~और न मुक़दमों में कंगाल की तरफ़दारी करना।4'अगर तेरे दुश्मन का बैल या गधा तुझे भटकता हुआ मिले, तो तू ज़रूर उसे उसके पास फेर कर ले आना।5~अगर तू अपने दुश्मन के गधे को बोझ के नीचे दबा हुआ देखे और उसकी मदद करने को जी भी न चाहता हो तो भी ज़रूर उसे मदद देना।6~"तू अपने कंगाल लोगों के मुक़दमों में इन्साफ़ का ख़ून न करना।7झूटे मु'आमिले से दूर रहना और बेगुनाहों और सादिकों को क़त्ल न करना क्यूँकि मैं शरीर को रास्त नहीं ठहराऊँगा।8~तू रिश्वत न लेना क्यूँकि रिश्वत बीनाओं को अन्धा कर देती है और सादिकों की बातों को पलट देती है।9~"परदेसी पर ज़ुल्म न करना क्यूँकि तुम परदेसी के दिल को जानते हो, इसलिए कि तुम ख़ुद भी मुल्क-ए-मिस्र में परदेसी थे।10~"छ: बरस तक तू अपनी ज़मीन में बोना और उसका ग़ल्ला जमा' करना,11~पर सातवें बरस उसे यूँ ही छोड़ देना कि पड़ती रहे, ताकि तेरी क़ौम के ग़रीब उसे खाएँ और जो उनसे बचे उसे जंगल के जानवर चर लें। अपने अंगूर और जैतून के बाग़ से भी ऐसा ही करना।12~छ: दिन तक अपना काम काज करना और सातवें दिन आराम करना, ताकि तेरे बैल और गधे को आराम मिले और तेरी लौंडी का बेटा और परदेसी ताज़ा दम हो जाएँ।13और तुम सब बातों में जो मैंने तुम से कहीं हैं होशियार रहना और दूसरे मा'बूदों का नाम तक न लेना बल्कि वह तेरे मुँह से सुनाई भी न दे।14~'तू साल भर में तीन बार मेरे लिए 'ईद मनाना।15~ईद-ए-फ़तीर को मानना, उसमें मेरे हुक्म के मुताबिक़ अबीब महीने के मुक़र्ररा वक़्त पर सात दिन तक बेख़मीरी रोटियाँ खाना (क्यूँकि उसी महीने में तू मिस्र से निकला था) और कोई मेरे आगे ख़ाली हाथ न आए।16और जब तेरे खेत में जिसे तूने मेहनत से बोया पहला फल आए तो फ़स्ल काटने की 'ईद मानना, और साल के आखिर में जब तू अपनी मेहनत का फल खेत से जमा' करे तो जमा' करने की 'ईद मनाना।17और साल में तीनों मर्तबा तुम्हारे यहाँ के सब मर्द ख़ुदावन्द ख़ुदा के आगे हाज़िर हुआ करें।18~"तू ख़़मीरी रोटी के साथ मेरे ज़बीहे का ख़ून न चढ़ाना और मेरी 'ईद की चर्बी सुबह तक बाक़ी न रहने देना।19~तू अपनी ज़मीन के पहले फलों का पहला हिस्सा ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में लाना। तू हलवान को उसकी माँ के दूध में न पकाना।20~"देख, मैं एक फ़रिश्ता तेरे आगेआगे भेजता हूँ कि रास्ते में तेरा निगहबान हो और तुझे उस जगह पहुँचा दे जिसे मैंने तैयार किया है।21~तुम उसके आगे होशियार रहना और उसकी बात मानना, उसे नाराज़ न करना क्यूँकि वह तुम्हारी ख़ता नहीं बख़्शेगा इसलिए कि मेरा नाम उसमें रहता है।22~लेकिन अगर तू सचमुच उसकी बात माने और जो मैं कहता हूँ वह सब करे, तो मैं तेरे दुश्मनों का दुश्मन और तेरे मुख़ालिफ़ों का मुख़ालिफ़ हूँगा।23इसलिए कि मेरा फ़रिश्ता तेरे आगे-आगे चलेगा और तुझे अमोरियों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़ियों और कना'नियों और हव्वियों यबूसियों में पहुँचा देगा और मैं उनको हलाक कर डालूँगा।24~तू उनके मा'बूदो को सिज्दा न करना, न उनकी 'इबादत करना, न उनके से काम करना बल्कि तू उनको बिल्कुल उलट देना और उनके सुतूनो को टुकड़े टुकड़े कर डालना।25~और तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करना, तब वह तेरी रोटी और पानी पर बरकत देगा और मैं तेरे बीच से बीमारी को दूर कर दूँगा।26~और तेरे मुल्क में न तो किसी के इस्कात होगा और न कोई बाँझ रहेगी और मैं तेरी उम्र पूरी करूँगा ।27~मैं अपने ख़ौफ़ को तेरे आगे-आगे भेजूँगा और मैं उन सब लोगों को जिनके पास तू जाएगा शिकस्त दूँगा, और मैं ऐसा करूँगा कि तेरे सब दुश्मन तेरे आगे अपनी पुश्त फेर देंगे।28~मैं तेरे आगे ज़म्बूरों को भेजूँगा, जो हव्वी और कना'नी और हित्ती को तेरे सामने से भगा देंगे।29~मैं उनको एक ही साल में तेरे आगे से दूर नहीं करूँगा ऐसा न हो के ज़मीन वीरान हो जाए और जंगली दरिन्दे ज़्यादा होकर तुझे सताने लगें।30~बल्कि मैं थोड़ा थोड़ा करके उनको तेरे सामने से दूर करता रहूँगा, जब तक तू शुमार में बढ़ कर मुल्क का वारिस न हो जाए।31~मैं बहर-ए-कु़लजु़म से लेकर फ़िलिस्तियों के समन्दर तक और वीरान से लेकर नहर-ए-फु़रात तक तेरी हदें बाधूँगा। क्यूँकि मैं उस मुल्क के बाशिन्दों को तुम्हारे हाथ में कर दूँगा और तू उनको अपने आगे से निकाल देगा।32~तू उनसे या उनके मा'बूदों से कोई 'अहद न बाँधना।33वह तेरे मुल्क में रहने न पाएँ ऐसा न हो कि वह तुझ से मेरे ख़िलाफ़ गुनाह कराएँ, क्यूँकि अगर तू उनके मा'बूदों की 'इबादत करे तो यह तेरे लिए ज़रूर फंदा हो जाएगा।"
1~और उसने मूसा से कहा, कि "तू हारून और नदब और अबीहू और बनी इस्राईल के सत्तर बुज़ुर्गों को लेकर ख़ुदावन्द के पास ऊपर आ, और तुम दूर ही से सिज्दा करना।2~और मूसा अकेला ख़ुदावन्द के नज़दीक आए पर वह नज़दीक न आएँ और लोग उसके साथ ऊपर न चढ़ें।"3~और मूसा ने लोगों के पास जाकर ख़ुदावन्द की सब बातें और अहकाम उनको बता दिए और सब लोगों ने हम आवाज़ होकर जवाब दिया, "जितनी बातें ख़ुदावन्द ने फ़रमाई हैं, हम उन सब को मानेंगे।”4और मूसा ने ख़ुदावन्द की सब बातें लिख लीं और सुब्ह को सवेरे उठ कर पहाड़ के नीचे एक क़ुर्बानगाह और बनी-इस्राईल के बारह क़बीलों के हिसाब से बारह सुतून बनाए।5और उसने बनीइस्राईल के जवानों को भेजा, जिन्होंने सोख़्तनी कु़र्बानियाँ चढ़ाई और बैलों को ज़बह करके सलामती के ज़बीहे ख़ुदावन्द के लिए पेश किया।6~और मूसा ने आधा ख़ून लेकर तसलों में रख्खा और आधा क़ुर्बानगाह पर छिड़क दिया।7फिर उसने 'अहदनामा लिया और लोगों को पढ़ कर सुनाया। उन्होंने कहा, कि "जो कुछ ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है उस सब को हम करेंगे और ताबे' रहेंगे।"8~तब मूसा ने उस ख़ून को लेकर लोगों पर छिड़का और कहा, "देखो, यह उस 'अहद का ख़ून है जो ख़ुदावन्द ने इन सब बातों के बारे में तुम्हारे साथ बाँधा है।"9~तब मूसा और हारून और नदब और अबीहू और बनी-इस्राईल के सत्तर बुज़ुर्ग़ ऊपर गए।10और उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा को देखा, और उसके पाँव के नीचे नीलम के पत्थर का चबूतरा सा था जो आसमान की तरह शफ़्फ़ाफ़ था।11~और उसने बनीइस्राईल के शरीफ़ों पर अपना हाथ न बढ़ाया।फिर उन्होंने ख़ुदा को देखा और खाया और पिया।12और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि~"पहाड़ पर मेरे पास आ और वहीं ठहरा रह; और मैं तुझे पत्थर की लोहें और शरी'अत और अहकाम जो मैंने लिखे हैं दूँगा ताकि तू उनको सिखाए।"13~और मूसा और उसका ख़ादिम यशू'अ उठे और मूसा ख़ुदा के पहाड़ के ऊपर गया।14~और बुज़ुर्गों से कह गया कि "जब तक हम लौट कर तुम्हारे पास न आ जाएँ तुम हमारे लिए यहीं ठहरे रहो, और देखो हारून और हूर तुम्हारे साथ हैं, जिस किसी का कोई मुक़दमा हो वह उनके पास जाए।15~तब मूसा पहाड़ के ऊपर गया और पहाड़ पर घटा छा गई।16~और ख़ुदावन्द का जलाल कोह-ए-सीना पर आकर ठहरा और छ: दिन तक घटा उस पर छाई रही और सातवें दिन उसने घटा में से मूसा को बुलाया।17~और बनी-इस्राईल की निगाह में पहाड़ की चोटी पर ख़ुदावन्द के जलाल का मन्ज़र भसम करने वाली आग की तरह था।18~और मूसा घटा के बीच में होकर पहाड़ पर चढ़ गया और वह पहाड़ पर चालीस दिन और चालीस रात रहा।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया,2'बनी-इस्राईल से यह कहना कि मेरे लिए नज़्र लाएँ, और तुम उन्हीं से मेरी नज़्र लेना जो अपने दिल की ख़ुशी से दें।3और जिन चीज़ों की नज़्र तुम को उनसे लेनी हैं वह यह हैं: सोना और चाँदी और पीतल,4और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग का कपड़ा और बारीक कतान और बकरी की पश्म,5और मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालें और तुख़स की खालें और कीकर की लकड़ी,6~और चराग़ के लिए तेल और मसह करने के तेल के लिए और ख़ुशबूदार ख़ुशबू के लिए मसाल्हे,7और संग-ए-सुलेमानी और अफ़ोद और सीनाबन्द में जड़ने के नगीने।8~और वह मेरे लिए एक मक़दिस बनाएँ ताकि मैं उनके बीच सुकूनत करूँ।9~और घर और उसके सारे सामान का जो नमूना मैं तुझे दिखाऊँ ठीक उसी के मुताबिक़ तुम उसे बनाना।10~'और वह कीकर की लकड़ी का एक सन्दूक़ बनाये जिस की लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ हो।11~और तू उसके अन्दर और बाहर ख़ालिस सोना मंढ़ना और उसके ऊपर चारों तरफ़ एक ज़रीन ताज बनाना।12और उसके लिए सोने के चार कड़े ढालकर उसके चारों पायों में लगाना, दो कड़े एक तरफ़ हों और दो ही दूसरी तरफ़।13~और कीकर की लकड़ी की चोबें बना कर उन पर सोना मंढ़ना।14और इन चोबों को सन्दूक़ के पास के कड़ों में डालना कि उनके सहारे सन्दूक उठ जाए।15~चोबें सन्दूक के कड़ों के अन्दर लगी रहें और उससे अलग न की जाएँ।16और तू उस शहादत नामे को जो मैं तुझे दूँगा उसी सन्दूक में रखना।17"और तू कफ़्फ़ारे का सरपोश ख़ालिस सोने का बनाना जिसकी लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ हो।18और सोने के दो करूबी सरपोश के दोनों सिरों पर गढ़ कर बनाना।19~एक करूबी को एक सिरे पर और दूसरे करूबी को दूसरे सिरे पर लगाना, और तुम सरपोश को और दोनों सिरों के करूबियों को एक ही टुकड़े से बनाना।20~और वह करूबी इस तरह ऊपर को अपने पर फैलाए हुए हों कि सरपोश को अपने परों से ढाँक लें और उनके मुँह आमने-सामने सरपोश की तरफ़ हों।21~और तू उस सरपोश को उस सन्दूक के ऊपर लगाना और वह 'अहदनामा जो मैं तुझे दूँगा उसे उस सन्दूक के अन्दर रखना।22वहाँ मैं तुझ से मिला करूँगा और उस सरपोश के ऊपर से और करूबियों के बीच में से जो 'अहदनामे के सन्दूक़ के ऊपर होंगे, उन सब अहकाम के बारे में जो मैं बनी-इस्राईल के लिए तुझे दूँगा तुझ से बातचीत किया करूँगा ।23~"और तू दो हाथ लम्बी और एक हाथ चौड़ी और डेढ़ हाथ ऊँची कीकर की लकड़ी की एक मेज़ भी बनाना।24~और उसको ख़ालिस सोने से मंढ़ना और उसके चारों तरफ़ एक ज़रीन ताज बनाना।25~और उसके चौगिर्द चार उंगल चौड़ी एक कंगनी लगाना और उस कंगनी के चारों तरफ़ एक ज़रीन ताज बनाना।26~और सोने के चार कड़े उसके लिए बना कर उन कड़ों को उन चारों कोनों में लगाना जो चारों पायों के सामने होंगे।27~वह कड़े कंगनी के पास ही हों, ताकि चोबों के लिए जिनके सहारे मेज़ उठाई जाए घरों का काम दें।28~और कीकर की लकड़ी की चोबें बना कर उनको सोने से मंढ़ना ताकि मेज़ उन्हीं से उठाई जाए।29~और तू उसके तबाक़ और चमचे और आफ़ताबे और उंडेलने के बड़े-बड़े कटोरे सब ख़ालिस सोने के बनाना।30और तू उस मेज़ पर नज़्र की रोटियाँ हमेशा मेरे सामने रखना।31~"और तू ख़ालिस सोने का एक शमा'दान बनाना। वह शमा'दान और उसका पाया और डन्डी सब घड़ कर बनाए जाएँ और उसकी प्यालियाँ और लट्टू और उसके फूल सब एक ही टुकड़े के बने हों।32और उसके दोनों पहलुओं से छ: शाँख़े बाहर को निकलती हों, तीन शाखें शमा'दान के एक पहलू से निकलें और तीन दूसरे पहलू से।33~एक शाख़ में बादाम के फूल की सूरत की तीन प्यालियाँ, एक लट्टू और एक फूल हो; और दूसरी शाख़ में भी बादाम के फूल की सूरत की तीन प्यालियाँ, एक लट्टू और एक फूल हो; इसी तरह शमा'दान की छहों शाख़ों में यह सब लगा हुआ हो।34~और खु़द शमादान में बादाम के फूल की सूरत की चार प्यालियाँ अपने-अपने लट्टू और फूल समेत हों।35~और दो शाख़ों के नीचे एक लट्टू, सब एक ही टुकड़े के हों और फिर दो शाख़ों के नीचे एक लट्टू, सब एक ही टुकड़े के हों और फिर दो शाखों के नीचे एक लट्टू, सब एक ही टुकड़े के हों शमा'दान की छहों बाहर को निकली हुई शाखें ऐसी ही हों।36~या'नी लट्टू और शाख़ें और शमा 'दान सब एक ही टुकड़े के बने हों, यह सबका सब ख़ालिस सोने के एक ही टुकड़े से गढ़ कर बनाया जाए।37~और तू उसके लिए सात चराग़ बनाना, यही चराग़ जलाए जाएँ ताकि शमा'दान के सामने रौशनी हो।38~और उसके गुलगीर और गुलदान ख़ालिस सोने के हों।39~शमा'दान और यह सब बर्तन एक किन्तार ख़ालिस सोने के बने हुए हों।40~और देख, तू इनको ठीक इनके नमूने के मुताबिक़ जो तुझे पहाड़ पर दिखाया गया है बनाना।
1~"और तू घर के लिए दस पर्दे बनाना; यह बटे हुए बारीक कतान और आसमानी क़िरमिज़ी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों के हों और इनमें किसी माहिर उस्ताद से करूबियों की सूरत कढ़वाना।2~हर पर्दे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ हो और सब पर्दे एक ही नाप के हों।3~और पाँच पर्दे एक दूसरे से जोड़े जाएँ और बाक़ी पाँच पर्दे भी एक दूसरे से जोड़े जाएँ।4~और तू एक बड़े पर्दे के हाशिये में बटे हुए किनारे की तरफ़ जो जोड़ा जाएगा आसमानी रंग के तुकमे बनाना और ऐसे ही दूसरे बड़े पर्दे के हाशिये में जो इसके साथ मिलाया जाएगा तुकमे बनाना।5~पचास तुकमे एक बड़े पर्दे में बनाना और पचास ही दूसरे बड़े पर्दे के हाशिये में जो इसके साथ मिलाया जाएगा बनाना, और सब तुकमे एक दूसरे के आमने सामने हों।6~और सोने की पचास घुन्डियाँ बना कर इन पर्दों को इन्हीं घुन्डियों से एक दूसरे के साथ जोड़ देना, तब वह घर एक हो जाएगा।7'और तू बकरी के बाल के पर्दे बनाना ताकि घर के ऊपर ख़ेमा का काम दें, ऐसे पर्दे ग्यारह हों।8और हर पर्दे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ हो, वह ग्यारह हों, पर्दे एक ही नाप के हों।9~और तू पाँच पर्दे एक जगह और छ: पर्दे एक जगह आपस में जोड़ देना, और छटे पर्दे को खे़मे के सामने मोड़ कर दोहरा कर देना।10~और तू पचास तुकमे उस पर्दे के हाशिये में, जो बाहर से मिलाया जाएगा और पचास ही तुकमे दूसरी तरफ़ के पर्दे के हाशिये में जो बाहर से मिलाया जाएगा बनाना।11~और पीतल की पचास घुन्डियाँ बना कर इन घुन्डियों को तुकमों में पहना देना और खे़मे को जोड़ देना ताकि वह एक हो जाए।12और खे़मे के पर्दों का लटका हुआ हिस्सा, या'नी आधा पर्दा जो बचा रहेगा वह घर की पिछली तरफ़ लटका रहे।13~और ख़ेमे के पर्दों की लम्बाई के बाक़ी हिस्से में से एक हाथ पर्दा इधर से और एक हाथ पर्दा उधर से घर की दोनों तरफ़ इधर और उधर लटका रहे ताकि उसे ढाँक ले।14~और तू इस खे़मे के लिए मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालों का ग़िलाफ़ और उसके ऊपर तुख़्सों की खालों का ग़िलाफ़ बनाना।15~"और तू घर के लिए कीकर की लकड़ी के तख़्ते बनाना कि खड़े किए जाएँ।16~हर तख़्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ हो।17~और हर तख़्ते में दो-दो चूलें हों जो एक दूसरे से मिली हुई हों, घर के सब तख़्ते इसी तरह के बनाना।18और घर के लिए जो तख़्ते तू बनाएगा उनमें से बीस तख़्ते दाख्खिनी रुख़ के लिए हों।19~और इन बीसों तख़्तों के नीचे चाँदी के चालीस ख़ाने बनाना या'नी हर एक तख़्ते के नीचे उसकी दोनों चूलों के लिए दो-दो ख़ाने।20~और घर~की दूसरी तरफ़ या'नी उत्तरी रुख़ के लिए बीस तख़्ते हों।21~और उनके लिए भी चाँदी के चालीस ही ख़ाने हों, या'नी एक-एक तख़्ते के नीचे दो-दो ख़ाने।22~और घर~के पिछले हिस्से के लिए पश्चिमी रुख़ में छ: तख़्ते बनाना।23~और उसी पिछले हिस्से में घर के कोनों के लिए दो तख़्ते बनाना।24~यह नीचे से दोहरे हों और इसी तरह ऊपर के सिरे तक आकर एक हल्के़ में मिलाए जाएँ, दोनों तख़्ते इसी ढब के हों, यह तख़्ते दोनों कोनों के लिए होंगे।25~तब आठ तख़्ते और चाँदी के सोलह ख़ाने होंगे, या'नी एक एक तख़्ते के लिए दो दो ख़ाने।26~"और तू कीकर की लकड़ी के बेन्डे बनाना, पाँच बेन्डे घर के एक पहलू के तख़्तों के लिए,27~और पाँच बेन्डे घर के दूसरे पहलू के तख़्तों के लिए, और पाँच बेन्डे घर के पिछले हिस्से या'नी ~पश्चिमी रुख़ के तख़्तों के लिए,28~और वस्ती बेन्डा जो तख़्तों के बीच में हो, वह ख़ेमे की एक हद से दूसरी हद तक पहुँचे।29और तू तख़्तों को सोने से मंढ़ना और बेन्डों के घरों के लिए सोने के कड़े बनाना और बेन्डों को भी सोने से मंढ़ना।30~और तू घर~को उसी नमूने के मुताबिक़ बनाना जो पहाड़ पर दिखाया गया है।31~"और तू आसमानी-अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का एक पर्दा बनाना, और उसमें किसी माहिर उस्ताद से करूबियों की सूरत कढ़वाना।32~और उसे सोने से मंढ़े हुए कीकर के चार सुतूनों पर लटकाना, इनके कुन्डे सोने के हों और चाँदी के चार ख़ानों पर खड़े किए जाएँ,33~और पर्दे को घुन्डियों के नीचे लटकाना और शहादत के सन्दूक को वहीं पर्दे के अन्दर ले जाना और यह पर्दा तुम्हारे लिए पाक मक़ाम को पाकतरीन मक़ाम से अलग करेगा।34~और तू सरपोश को पाकतरीन मक़ाम में शहादत के सन्दूक़ पर रखना।35~और मेज़ को पर्दे के बाहर रख कर शमा'दान को उसके सामने घर की दाख्खिनी रुख़ में रखना या'नी मेज़ उत्तरी रुख़ में रखना।36~और तू एक पर्दा खे़मे के दरवाज़े के लिए आसमानी अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाना और उस पर बेल बूटे कढ़े हुए हों।37~और इस पर्दे के लिए कीकर की लकड़ी के पाँच सुतून बनाना और उनको सोने से मंढ़ना और उनके कुन्डे सोने के हों, जिनके लिए तू पीतल के पाँच ख़ाने ढाल कर बनाना।
1"और तू कीकर की लकड़ी की क़ुर्बानगाह पाँच हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी बनाना; वह क़ुर्बानगाह चौखुन्टी और उसकी ऊँचाई तीन हाथ हो।2और तू उसके लिए उसके चारों कोनों पर सींग बनाना, और वह सींग और क़ुर्बानगाह सब एक ही टुकड़े के हों और तू उनको पीतल से मंढ़ना।3~और तू उसकी राख उठाने के लिए देगें और बेलचे और कटोरे और सीखें और अन्गेठियाँ बनाना; उसके सब बर्तन पीतल के बनाना।4और उसके लिए पीतल की जाली की झंजरी बनाना और उस जाली के चारों कोनों पर पीतल के चार कड़े लगाना।5~और उस झंजरी को क़ुर्बानगाह की चारों तरफ़ के किनारे के नीचे इस तरह लगाना कि वह ऊँचाई में क़ुर्बानगाह की आधी दूर तक पहुँचे।6और तू क़ुर्बानगाह के लिए कीकर की लकड़ी की चोबें बनाकर उनको पीतल से मंढ़ना।7और तू उन चोबों को कड़ों में पहना देना कि जब कभी क़ुर्बानगाह उठाई जाए, वह चोबें उसकी दोनों तरफ़ रहें।8तख़्तों से वह क़ुर्बानगाह बनाना और वह खोखली हो। वह उसे ऐसी ही बनाएँ जैसी तुझे पहाड़ पर दिखाई गई है।9"फिर तू घर के लिए सहन बनाना, उस सहन की दाख्खिनी तरफ़ के लिए बारीक बटे हुए कतान के पर्दे हों जो मिला कर सौ हाथ लम्बे हों; यह सब एक ही रुख़ में हों।10और उनके लिए बीस सुतून बनें और सुतूनों के लिए पीतल के बीस ही ख़ाने बनें और इन सुतूनों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की हों।11इसी तरह उत्तरी रुख़ के लिए पर्दे सब मिला कर लम्बाई में सौ हाथ हों, उनके लिए भी बीस ही सुतून और सुतूनों के लिए बीस ही पीतल के ख़ाने बनें और सुतूनों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की हों।12और सहन की पश्चिमी रुख़ की चौड़ाई में पचास हाथ के पर्दे हों, उनके लिए दस सुतून और सुतूनों के लिए दस ही ख़ाने बनें।13और पूर्वी रुख़ में सहन हो।14और सहन के दरवाज़े के एक पहलू के लिए पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, जिनके लिए तीन सुतून और सुतून के लिए तीन ही ख़ाने बनें।15~और दूसरे पहलू के लिए भी पन्द्रह हाथ के पर्दे और तीन सुतून और तीन ही ख़ाने बनें।16और सहन के दरवाज़े के लिए बीस हाथ का एक पर्दा हो जो आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बना हुआ हो और उस पर बेल-बूटे कढ़े हों, उसके सुतून चार और सुतूनों के ख़ाने भी चार ही हों।17और सहन के आस पास सब सुतून चाँदी की पट्टियों से जड़े हुए हों और उनके कुन्डे चाँदी के और उनके ख़ाने पीतल के हों।18सहन की लम्बाई सौ हाथ और चौड़ाई हर जगह पचास हाथ और कनात की ऊँचाई पाँच हाथ ही, पर्दे बारीक बटे हुए कतान के और सुतूनों के ख़ाने पीतल के हों।19घर के तरह तरह के काम के सब सामान और वहाँ की मेख़ें और सहन की मेख़े यह सब पीतल के हों।20'और तू बनी-इस्राईल को हुक्म देना कि वह तेरे पास कूट कर निकाला हुआ जैतून का ख़ालिस तेल रोशनी के लिए लाएँ ताकि चराग़ हमेशा जलता रहे।21ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में उस पर्दे के बाहर, जो शहादत के सन्दूक के सामने होगा, हारून और उसके बेटे शाम से सुबह तक शमा 'दान को ख़ुदावन्द के सामने अरास्ता रख्खें, यह दस्तूर-उल'अमल बनी-इस्राईल के लिए नसल-दर-नसल हमेशा क़ायम रहेगा।
1"और तू बनी-इस्राईल में से हारून को जो तेरा भाई है, और उसके साथ उसके बेटों को अपने नज़दीक कर लेना; ताकि हारून और उसके बेटे नदब और अबीहू और इली'अज़र और इतमर कहानत के 'उहदे पर होकर मेरी ख़िदमत करें।2और तू अपने भाई हारून के लिए 'इज़्ज़त और ज़ीनत के लिए पाक लिबास बना देना।3~और तू उन सब रोशन ज़मीरों से जिनको मैंने हिकमत की रूह से भरा है, कह कि वह हारून के लिए लिबास बनाएँ ताकि वह पाक होकर मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दे।4और जो लिबास वह बनाएँगे यह हैं: या'नी सीना बन्द और अफूद और जुब्बा और चार ख़ाने का कुरता, और 'अमामा, और कमरबन्द, वह तेरे भाई हारून और उसके बेटों के लिए यह पाक लिबास बनाएँ, ताकि वह मेरे लिए काहिन की खि़दमत को अन्जाम दे।5और वह सोना और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़े और महीन कतान लें।6~"और वह अफ़ोद सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाएँ, जो किसी माहिर उस्ताद के हाथ का काम हो।7और वह इस तरह से जोड़ा जाए कि उसके दोनों मोंढों के सिरे आपस में मिला दिए जाएँ।8और उसके ऊपर जो कारीगरी से बना हुआ पटका उसके बाँधने के लिए होगा, उस पर अफ़ोद की तरह काम हो और वह उसी कपड़े का हो, और सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बुना हुआ हो।9और तू दो सुलेमानी पत्थर लेकर उन पर इस्राईल के बेटों के नाम कन्दा कराना।10~उनमें से छ: के नाम तो एक पत्थर पर और बाक़ियों के छः नाम दूसरे पत्थर पर उनकी पैदाइश की तरतीब के मुवाफ़िक हों।11तू पत्थर के कन्दाकार को लगा कर अँगूठी के नक़्श की तरह इस्राईल के बेटों के नाम उन दोनों पत्थरों पर खुदवा कर के उनको सोने के ख़ानों में जड़वाना।12और दोनों पत्थरों को अफ़ोद के दोनों मोंढों पर लगाना ताकि यह पत्थर इस्राईल के बेटों की यादगारी के लिए हों, और हारून उनके नाम ख़ुदावन्द के सामने अपने दोनों कन्धों पर यादगारी के लिए लगाए रहे।13"और तू सोने के ख़ाने बनाना,14और ख़ालिस सोने की दो ज़जीरें डोरी की तरह गुन्धी हुई बनाना और इन गुन्धी हुई ज़ंजीरों को ख़ानों में जड़ देना।15"और 'अदल का सीना बन्द किसी माहिर उस्ताद से बनवाना और अफ़ोद की तरह सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाना।16~वह चौखुन्टा और दोहरा हो, उसकी लम्बाई एक बालिश्त और चौड़ाई भी एक ही बालिश्त हो।17और चार कतारों में उस पर जवाहर जड़ना, पहली क़तार में याकू़त-ए-सुर्ख़ और पुखराज और गौहर-ए-शब चराग़ हो18~दूसरी क़तार में ज़मुर्रुद और नीलम और हीरा,19~तीसरी कतार में लश्म और यश्म और याकू़त,20~चौथी क़तार में फ़ीरोज़ा और संग-ए-सुलेमानी और ज़बरजद; यह सब सोने के ख़ानों में जड़े जाएँ।21~यह जवाहर इस्राईल के बेटों के नामों के मुताबिक़ शुमार में बारह हों और अँगूठी के नक़्श की तरह यह नाम जो बारह क़बीलों के नाम होंगे, उन पर खुदवाए ~जाएँ।22~और तू सीनाबन्द पर डोरी की तरह गुन्धी हुई ख़ालिस सोने की दो ज़ंजीरें लगाना।23~और सीनाबन्द के लिए सोने के दो हल्के़ बना कर उनको सीनाबन्द के दोनों सिरों पर लगाना;24और सोने की दोनों गुन्धी हुई ज़ंजीरों को उन दोनों हल्क़ों में जो सीनाबन्द के दोनों सिरों पर होंगे लगा देना।25और दोनों गुन्धी हुई ज़ंजीरों के बाक़ी दोनों सिरों को दोनों पत्थरों के ख़ानों में जड़ कर उनको अफ़ोद के दोनों मोंढों पर सामने की तरफ़ लगा देना।26~और सोने के और दो हल्के़ बनाकर उनको सीनाबन्द के दोनों सिरों के उस हाशिये में लगाना जो अफ़ोद के अन्दर की तरफ़ है।27~फिर सोने के दो हल्के़ और बनाकर उनको अफ़ोद के दोनों मोंढों के नीचे उसके अगले हिस्से में लगाना जहाँ अफ़ोद जोड़ा जाएगा, ताकि वह अफ़ोद के कारीगरी से बुने हुए पटके के ऊपर रहे।28और वह सीनाबन्द को लेकर उसके हल्क़ो को एक नीले फ़ीते से बाँधे, ताकि यह सीनाबन्द अफ़ोद के कारीगरी से बने हुए पटके के ऊपर भी रहे और अफ़ोद से भी अलग न होने पाए।29और हारून इस्राईल के बेटों के नाम 'अदल के सीनाबन्द पर अपने सीने पर पाक मक़ाम में दाख़िल होने के वक़्त ख़ुदावन्द के आमने सामने लगाए रहे, ताकि हमेशा उनकी यादगारी हुआ करे।30~और तू 'अदल के सीनाबन्द में ऊरीम और तुम्मीम को रखना और जब हारून ख़ुदावन्द के सामने जाए तो यह उसके दिल के ऊपर हों, यूँ हारून बनी-इस्राईल के फै़सले को अपने दिल के ऊपर ख़ुदावन्द के आमने सामने ~हमेशा लिए रहेगा।31"और तू अफ़ोद का जुब्बा बिल्कुल आसमानी रंग का बनाना।32~और उसका गिरेबान बीच में हो, और ज़िरह के गिरेबान की तरह उसके गिरेबान के चारों तरफ़ बुनी हुई गोट हो ताकि वह फटने न पाए।33और उसके दामन के घेर में चारों तरफ़ आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के अनार बनाना और उनके बीच चारों तरफ़ सोने की घंटियाँ लगाना।34~या'नी जुब्बे के दामन के पूरे घेर में एक सोने की घन्टी हो और उसके बाद अनार, फिर एक सोने की घन्टी हो और उसके बाद अनार।35~इस जुब्बे को हारून ख़िदमत के वक़्त पहना करे, ताकि जब-जब वह पाक मक़ाम के अन्दर ख़ुदावन्द के सामने जाए या वहाँ से निकले तो उसकी आवाज़ सुनाई दे, कहीं ऐसा न हो कि वह मर जाए।36~“और तू ख़ालिस सोने का एक पत्तर बना कर उस पर अँगूठी के नक़्श की तरह यह ~खुदवाना: 'ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस'।37~और उसे नीले फ़ीते से बाँधना, ताकि वह 'अमामे पर या'नी 'अमामे के सामने के हिस्से पर हो।38~और यह हारून की पेशानी पर रहे ताकि जो कुछ बनी-इस्राईल अपने पाक हदियों के ज़रिए' से पाक ठहराएँ, उन पाक ठहराई हुई चीज़ों की बदी हारून उठाए और यह उसकी पेशानी पर हमेशा रहे, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने मक़बूल हों।39"और कुरता बारीक कतान का बुना हुआ और चार ख़ाने का हो और 'अमामा भी बारीक कतान ही का बनाना, और एक कमरबन्द बनाना जिस पर बेल बूटे कढ़े हों।40"और हारून के बेटों के लिए कुरते बनाना और 'इज़्ज़त और ज़ीनत के लिए उनके लिए कमरबन्द और पगड़ियाँ बनाना।41~और तू यह सब अपने भाई हारून और उसके साथ उसके बेटों को पहनाना, और उनको मसह और मख़्सूस और पाक करना ताकि वह सब मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें।42~और तू उनके लिए कतान के पाजामे बना देना ताकि उनका बदन ढंका रहे, यह कमर से रान तक के हों।43और हारून और उसके बेटे जब-जब ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में दाख़िल हों या ख़िदमत करने को पाक मक़ाम के अन्दर क़ुर्बानगाह के नज़दीक जाएँ, उनको पहना करें कहीं ऐसा न हो कि गुनाहगार ठहरें और मर जाएँ। यह दस्तूर-उल-'अमल उसके और उसकी नसल के लिए हमेशा रहेगा।
1और उनको पाक करने की ख़ातिर ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें, तू उनके लिए यह करना कि एक बछड़ा और दो बे-'ऐब मेंढे लेना,2~और बेख़मीरी रोटी और बे-ख़मीर के कुल्चे जिनके साथ तेल मिला हो और तेल की चुपड़ी हुई बे-ख़मीरी चपातियाँ लेना। यह सब गेहूँ के मैदे की बनाना।3~और इनको एक टोकरी में रख कर उस टोकरी को बछड़े और दोनों मेंढों समेत आगे ले आना।4~फिर हारून और उसके बेटों को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर लाकर उनको पानी से नहलाना।5~और वह लिबास लेकर हारून को कुरता और अफ़ोद का जुब्बा और अफ़ोद और सीनाबन्द पहनाना, और अफ़ोद का कारीगरी से बुना हुआ कमरबन्द उसके बांध देना।6~और 'अमामे को उसके सिर पर रख कर उस 'अमामे के ऊपर पाक ताज लगा देना।7~और मसह करने का तेल लेकर उसके सिर पर डालना और उसको मसह करना।8~फिर उसके बेटों को आगे लाकर उनको कुरते पहनाना।9~और हारून और उसके बेटों के कमरबन्द लपेट कर उनके पगड़ियाँ बाँधना ताकि कहानत के 'उहदे पर हमेशा के लिए उनका हक़ रहे; और हारून और उसके बेटों को मख़्सूस करना।10~"फिर तू उस बछड़े को ख़ेमा -ए- इजितमा'अ के सामने लाना, और हारून और उसके बेटे अपने हाथ उस बछड़े के सिर पर रख्खें।11~फिर उस बछड़े को ख़ुदावन्द के आगे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ज़बह करना।12~और उस बछड़े के ख़ून में से कुछ लेकर उसे अपनी उंगली से क़ुर्बानगाह के सींगों पर लगाना और बाक़ी सारा ख़ून क़ुर्बानगाह के पाये पर उंडेल देना।13~फिर उस चर्बी को जिससे अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और जिगर पर की झिल्ली को और दोनों गुर्दों को और उनके ऊपर की चर्बी को लेकर सब क़ुर्बानगाह पर जलाना।14~लेकिन उस बछड़े के गोश्त और खाल और गोबर को ख़ेमागाह के बाहर आग से जला देना इसलिए कि यह ख़ता की क़ुर्बानी है।15~"फिर तू एक मेंढे को लेना, और हारून और उसके बेटे अपने हाथ उस मेंढे के सिर पर रख्खें।16और तू उस मेंढे को ज़बह करना और उसका ख़ून लेकर क़ुर्बानगाह पर चारों तरफ़ छिड़कना।17~और तू मेंढे को टुकड़े-टुकड़े काटना और उसकी अंतड़ियों और पायों को धो कर उसके टुकड़ों और उसके सिर के साथ मिला देना।18~फिर इस पूरे मेंढे को क़ुर्बानगाह पर जलाना। यह ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी है। यह राहतअंगेज़ खु़शबू या'नी ख़ुदावन्द के लिए आतिशीन क़ुर्बानी है।19~"फिर दूसरे मेंढे को लेना और हारून और उसके बेटे अपने हाथ उस मेंढे के सिर पर रख्खें।20~और तू इस मेंढे को ज़बह करना और उसके ख़ून में से कुछ लेकर हारून और उसके बेटों के दहने कान की लौ पर और दहने हाथ और दहने पाँव के अंगूठों पर लगाना, और ख़ून को क़ुर्बानगाह पर चारों तरफ़ छिड़क देना।21~और क़ुर्बानगाह पर के ख़ून और मसह करने के तेल में से कुछ कुछ लेकर हारून और उसके लिबास पर, और उसके साथ उसके बेटों और उनके लिबास पर छिड़कना, तब वह अपने लिबास समेत और उसके साथ ही उसके बेटे अपने-अपने लिबास समेत पाक होंगे।22~और तू मेंढे की चर्बी और मोटी दुम को, और जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं उसको और जिगर पर की झिल्ली को, और दोनों गुर्दों को और उनके ऊपर की चर्बी को और दहनी रान को लेना; इस लिए कि यह ख़ास मेंढा है।23~और बेख़मीरी रोटी की टोकरी में से जो ख़ुदावन्द के आगे रखी होगी, रोटी का एक गिरदा और एक कुल्चा जिसमें तेल मिला हुआ हो और एक चपाती लेना।24~और इन सभों को हारून और उसके बेटों के हाथों पर रख कर इनको ख़ुदावन्द के सामने हिलाना, ताकि यह हिलाने का हदिया हो।25~फिर इनको उनके हाथों से लेकर क़ुर्बानगाह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के ऊपर जला देना, ताकि वह ख़ुदावन्द के आगे राहतअंगेज़ ख़ुशबू हो; यह ख़ुदावन्द के लिए आतिशीन क़ुर्बानी है।26~"और तू हारून के ख़ास मेंढे का सीना लेकर उसको ख़ुदावन्द के सामने हिलाना ताकि वह हिलाने का हदिया हो, यह तेरा हिस्सा ठहरेगा।27और तू हारून और उसके बेटों के ख़ास मेंढे के हिलाने के हदिये के सीने को जो हिलाया जा चुका है, और उठाए जाने के हदिये की रान को जो उठाई जा चुकी है, लेकर उन दोनों को पाक ठहराना,28~ताकि यह सब बनी-इस्राईल की तरफ़ से हमेशा के लिए हारून और उसके बेटों का हक़ हो क्यूँकि यह उठाए जाने का हदिया है। इसलिए यह बनी-इस्राईल की तरफ़ से उनकी सलामती के ज़बीहों में से उठाए जाने का हदिया होगा, जो उनकी तरफ़ से ख़ुदावन्द के लिए उठाया गया है।29~'और हारून के बा'द उसके पाक लिबास उसकी औलाद के लिए होंगे ताकि उन ही में वह मसह-ओ-मख़्सूस किए जाएँ।30~उसका जो बेटा उसकी जगह काहिन हो वह जब पाक मक़ाम में ख़िदमत करने को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में दाख़िल हो तो उनको सात दिन तक पहने रहे।31"और तू ख़ास मेंढे को लेकर उसके गोश्त को किसी पाक जगह में उबालना।32~और हारून और उसके बेटे मेंढे का गोश्त और टोकरी की रोटियाँ ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े पर खाएँ।33~और जिन चीज़ों से उनको मख़्सूस और पाक करने के लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए वह उनको भी खाएँ, लेकिन अजनबी शख़्स उनमें से कुछ न खाने पाए क्यूँकि यह चीजें पाक हैं।34और अगर मख़्सूस करने के गोश्त या रोटी में से कुछ सुबह तक बचा रह जाए तो उस बचे हुए को आग से जला देना, वह हरगिज़ न खाया जाए इसलिए कि वह पाक है।35~"और तू हारून और उसके बेटों के साथ जो कुछ मैंने हुक्म दिया है वह सब 'अमल में लाना, और सात दिन तक उनको मख़्सूस करते रहना।36~और तू हर रोज़ ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े को कफ़्फ़ारे के लिए ज़बह करना; और तू क़ुर्बानगाह को उसके कफ़्फ़ारा देने के वक़्त साफ़ करना, और उसे मसह करना ताकि वह पाक हो जाए,37~तू सात दिन तक क़ुर्बानगाह के लिए कफ़्फ़ारा देना और उसे पाक करना तो क़ुर्बानगाह निहायत पाक हो जाएगी, और जो कुछ उससे छू जाएगा वह भी पाक ठहरेगा38~"और तू हर रोज़ सदा एक-एक बरस के दो-दो बर्रे क़ुर्बानगाह पर चढ़ाया करना।39~एक बर्रा सुबह को और दूसरा बर्रा ज़वाल और गु़रूब के बीच चढ़ाना।40~और एक बर्रे के साथ ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा देना, जिसमें हीन के चौथे हिस्से की मिक़्दार में कूट कर निकाला हुआ तेल मिला हुआ हो और हीन के चौथे हिस्से की मिक़्दार में तपावन के लिए मय भी देना।41~और तू दूसरे बर्रे को ज़वाल और गु़रूब के बीच चढ़ाना और उसके साथ सुबह की तरह नज़्र की क़ुर्बानी और वैसा ही तपावन देना, जिससे वह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू और आतिशीन क़ुर्बानी ठहरे।42ऐसी ही सोख़्तनी क़ुर्बानी तुम्हारी नसल दर नसल ख़ेमा-ए- इज्तिमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के आगे हमेशा हुआ करे। वहाँ मैं तुम से मिलूँगा और तुझ से बातें करूँगा ।43~और वहीं मैं बनी इस्राईल से मुलाक़ात करूँगा और वह मक़ाम मेरे जलाल से पाक होगा।44और मैं ख़ेमा-ए-इजितमा'अ को और क़ुर्बानगाह को पाक करूँगा, और मैं हारून और उसके बेटों को पाक करूँगा ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत की अन्जाम दें।45और मैं बनी-इस्राईल के बीच सुकूनत करूँगा और उनका ख़ुदा हूँगा।46~तब वह जान लेंगे कि मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ जो उनको मुल्क -ए-मिस्र से इसलिए निकाल कर लाया कि मैं उनके बीच सुकूनत करूँ। मैं ही ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।
1और तू ख़ुशबू जलाने के लिए कीकर की लकड़ी की एक क़ुर्बानगाह बनाना।2उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ हो, वह चौखुन्टी रहे और उसकी ऊँचाई दो हाथ हो और उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएँ।3~और तू उसकी ऊपर की सतह और चारों पहलूओं को जो उसके चारों ओर हैं, और उसके सींगों को ख़ालिस सोने से मढ़ना और उसके लिए चारों ओर एक ज़रीन ताज बनाना।4~और तू उस ताज के नीचे उसके दोनों पहलुओं में सोने के दो कड़े उसकी दोनों तरफ़ बनाना। वह उसके उठाने की चोबों के लिए ख़ानों का काम देंगे।5~और चोबें कीकर की लकड़ी की बना कर उनको सोने से मंढना।6~और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो शहादत के सन्दूक के सामने है; वह सरपोश के सामने रहे जो शहादत के सन्दूक के ऊपर है, जहाँ मैं तुझ से मिला करूँगा ।7~इसी पर हारून ख़ुशबूदार ख़ुशबू जलाया करे, हर सुबह चराग़ों को ठीक करते वक़्त ख़ुशबू जलाएँ।8~और ज़वाल और गु़रूब के बीच भी जब हारून चरागों को रोशन करे तब ख़ुशबू जलाए, यह ख़ुशबू ख़ुदावन्द के सामने तुम्हारी नसल-दर-नसल हमेशा जलाया जाए।9और तुम उस पर और तरह की ख़ुशबू न जलाना, न उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी चढ़ाना और कोई तपावन भी उस पर न तपाना।10और हारून साल में एक बार उसके सींगों पर कफ़्फ़ारा दे। तुम्हारी नसल-दर-नसल साल में एक बार इस ख़ता की क़ुर्बानी के ख़ून से जो कफ़्फ़ारे के लिए हो, उसके लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए। यह ख़ुदावन्द के लिए सबसे ज़्यादा पाक है।"11और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, |12"जब तू बनी-इस्राईल का शुमार करे तो जितनों का शुमार हुआ हो वह फ़ी-मर्द शुमार के वक़्त अपनी जान का फ़िदिया ख़ुदावन्द के लिए दें, ताकि जब तू उनका शुमार कर रहा हो उस वक़्त कोई वबा उनमें फैलने न पाए।13हर एक जो निकल-निकल कर शुमार किए हुओं में मिलता जाए, वह मक़दिस की मिस्काल के हिसाब से नीम मिस्काल दे। मिस्काल बीस जीरहों की होती है। यह नीम मिस्काल ख़ुदावन्द के लिए नज़र है।14जितने बीस बरस के या इससे ज़्यादा उम्र के निकल निकल कर शुमार किए हुओं में मिलते जाएँ, उनमें से हर एक ख़ुदावन्द की नज़्र दे।15~जब तुम्हारी जानों के कफ़्फ़ारे के लिए ख़ुदावन्द की नज़्र दी जाए, तो दौलतमन्द नीम मिस्काल से ज़्यादा न दे और न ग़रीब उससे कम दे।16और तू बनी-इस्राईल से कफ़्फ़ारे की नक़्दी लेकर उसे ख़ेमा -ए-इजितमा'अ के काम में लगाना, ताकि वह बनी-इस्राईल की तरफ़ से तुम्हारी जानों के कफ़्फ़ारे के लिए ख़ुदावन्द के सामने यादगार हो।"17फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,18"तू धोने के लिए पीतल का एक हौज़ और पीतल ही की उसकी कुर्सी बनाना, और उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और क़ुर्बानगाह के बीच में रख कर उसमें पानी भर देना।19और हारून और उसके बेटे अपने हाथ पाँव उससे धोया करें।20~ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में दाख़िल होते वक़्त पानी से धो लिया करें ताकि हलाक न हों, या जब वह क़ुर्बानगाह के नज़दीक ख़िदमत के लिए या'नी ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करने को आएँ,21~तो अपने-अपने हाथ पाँव धो लें ताकि मर न जाएँ। यह उसके और उसकी औलाद के लिए नसल-दर-नसल हमेशा की रिवायत हो।"22और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,23कि तू मक़दिस की मिस्काल के हिसाब से ख़ास-ख़ास खु़शबूदार मसाल्हे लेना; या'नी अपने आप निकला हुआ मुर्र पाँच सौ मिस्काल, और उसका आधा या'नी ढाई सौ मिस्काल दारचीनी, और ख़ुशबूदार अगर ढाई सौ मिस्काल,24और तज पाँच सौ मिस्काल, और जैतून का तेल एक हीन;25और तू उनसे मसह करने का पाक तेल बनाना, या'नी उनकी गन्धी की हिकमत के मुताबिक़ मिला कर एक ख़ुशबूदार रौग़न तैयार करना। यही मसह करने का पाक तेल होगा।26इसी से तू ख़ेमा -ए- इजित्तमा'अ को, और शहादत के सन्दूक को,27और मेज़ को उसके बर्तन के साथ, और शमा'दान को उसके बर्तन के साथ, और ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह को28और सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करने के मज़बह को उसके सब बर्तन के साथ, और हौज़ को और उसकी कुर्सी को मसह करना;29और तू उनको पाक करना ताकि वह निहायत पाक हो जाएँ, जो कुछ उनसे छू जाएगा वह पाक ठहरेगा।30और तू हारून और उसके बेटों को मसह करना और उनको ~पाक करना ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें।31और तू बनी-इस्राईल से कह देना, 'यह तेल मेरे लिए तुम्हारी नसल दर नसल मसह करने का पाक तेल होगा।32यह किसी आदमी के जिस्म पर न डाला जाए, और न तुम कोई और रौग़न इसकी तरकीब से बनाना; इस लिए के यह पाक है और तुम्हारे नज़दीक पाक ठहरे।33जो कोई इसकी तरह कुछ बनाए या इसमें, से कुछ किसी अजनबी पर लगाए वह अपनी कौम में से काट डाला जाए"।"34और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "तू ख़ुशबूदार मसाल्हे मुर्र और मस्तकी और लौन और खु़शबूदार मसाल्हे के साथ ख़ालिस लुबान वज्न में बराबर-बराबर लेना,35और नमक मिलाकर उनसे गन्धी की हिकमत के मुताबिक़ ख़ुशबूदार रोग़न की तरह साफ़ और पाक ख़ुशबू बनाना।36और इसमें से कुछ ख़ूब बारीक पीस कर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में शहादत के सन्दूक़ के सामने जहाँ मैं तुझ से मिला करूँगा रखना। यह तुम्हारे लिए निहायत पाक ठहरे।37~और जो ख़ुशबू तू बनाए उसकी तरकीब के मुताबिक़ तुम अपने लिए कुछ न बनाना। वह ख़ुशबू तेरे नज़दीक ख़ुदावन्द के लिए पाक हो।38~जो कोई सूघने के लिए भी उसकी तरह कुछ बनाए वह अपनी क़ौम में से काट डाला जाए।"
1फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2"देख मैंने बज़लीएल-बिन-ऊरी, बिन हूर को यहूदाह के क़बीले में से नाम लेकर बुलाया है।3और मैंने उसको हिकमत और समझऔर 'इल्म और हर तरह की कारिगरी में अल्लाह के रूह ~से मा'मूर किया है।4ताकि हुनरमन्दी के कामों को ईजाद करे, और सोने और चाँदी और पीतल की चीज़ें बनाए।5और पत्थर को जड़ने के लिए काटे और लकड़ी को तराशे, जिससे सब तरह की कारीगरी का काम हो।6और देख, मैंने अहलियाब को जो अख़ीसमक का बेटा और दान के क़बीले में से है उसका साथी मुक़र्रर किया है, और मैंने सब रौशन ज़मीरो के दिल में ऐसी समझ रख्खी है कि जिन-जिन चीज़ों का मैंने तुझ को हुक्म दिया है उन सभों को वह बना सकें।7या'नी ख़ेमा -ए-इजितमा'अ और शहादत का सन्दूक और सरपोश जो उसके ऊपर रहेगा, और ख़ेमें का सब सामान,8और मेज़ और उसके बर्तन, और ख़ालिस सोने का शमा'दान और उसके सब बर्तन, और ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह ,9और सब बर्तन, और हौज़ और उसकी कुर्सी,10और बेल-बूटे कढ़े हुए जामे और हारून काहिन के पाक लिबास और उसके बेटों के लिबास, ताकि काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें।11और मसह करने का तेल, और मक़दिस के लिए खु़शबूदार मसाल्हे का ख़ुशबू; इन सभों को वह जैसा मैंने तुझे हुक्म दिया है वैसा ही बनाएँ।"12और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,13कि तू बनी-इस्राईल से यह भी कह देना, 'तुम मेरे सबतों को ज़रूर मानना, इस लिए कि यह मेरे और तुम्हारे बीच तुम्हारी नसल दर नसल एक निशान रहेगा, ताकि तुम जानों कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा पाक करने वाला हूँ।14फिर तुम सबत को मानना इस लिए कि वह तुम्हारे लिए पाक है, जो कोई उसकी बे हुरमती करे वह ज़रूर मार डाला जाए। जो उसमें कुछ काम करे वह अपनी क़ौम में से काट डाला जाए।15~छ: दिन काम काज किया जाए लेकिन सातवाँ दिन आराम का सबत है जो ख़ुदावन्द के लिए पाक है, जो कोई सबत के दिन काम करे वह ज़रूर मार डाला जाए।16~तब बनी-इस्राईल सबत को मानें और नसल दर नसल उसे हमेशा का 'अहद' जानकर उसका लिहाज़ रख्खें।17~मेरे और बनी-इस्राईल के बीच यह हमेशा के लिए एक निशान रहेगा, इस लिए कि छ: दिन में ख़ुदावन्द ने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और सातवें दिन आराम करके ताज़ा दम हुआ'।"18~और जब ख़ुदावन्द कोह-ए-सीना पर मूसा से बातें कर चुका तो उसने उसे शहादत की दो तख़्तियाँ दीं, वह~तख़्तियाँ पत्थर की और ख़ुदा के हाथ की लिख्खी हुई थीं।
1और जब लोगों ने देखा कि मूसा ने पहाड़ से उतरने में देर लगाई तो वह हारून के पास जमा' होकर उससे कहने लगे, कि "उठ, हमारे लिए देवता बना दे जो हमारे आगे-आगे चले; क्यूँकि हम नहीं जानते कि इस मर्द मूसा को, जो हम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया क्या हो गया?"2हारून ने उनसे कहा, "तुम्हारी बीवियों और लड़कों और लड़कियों के कानों में जो सोने की बालियाँ हैं उनको उतार कर मेरे पास ले आओ।"3चुनाँचे सब लोग उनके कानों से सोने की बालियाँ उतार-उतार कर उनको हारून के पास ले आए।4और उसने उनको उनके हाथों से लेकर एक ढाला हुआ बछड़ा बनाया, जिसकी सूरत छेनी से ठीक की। तब वह कहने लगे, "ऐ इस्राईल, यही तेरा वह देवता है जो तुझ को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया।"5~यह देख कर हारून ने उसके आगे एक क़ुर्बानगाह बनाई और उसने 'ऐलान कर दिया कि "कल ख़ुदावन्द के लिए 'ईद होगी।"6और दूसरे दिन सुबह सवेरे उठ कर उन्होंने क़ुर्बानियाँ पेश कीं और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेशअदा कीं ~फिर उन लोगों ने बैठ कर खाया-पिया और उठकर खेल-कूद में लग गए।7तब ख़ुदावन्द ने मूसा को कहा, "नीचे जा, क्यूँकि तेरे लोग जिनको तू मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया बिगड़ गए हैं।8वह उस राह से जिसका मैंने उनको हुक्म दिया था बहुत जल्द फिर गए हैं; उन्होंने अपने लिए ढाला हुआ बछड़ा बनाया और उसे पूजा और उसके लिए क़ुर्बानी चढ़ाकर यह भी कहा, कि "ऐ इस्राईल, यह तेरा वह देवता है जो तुझ को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया'।"9और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "मैं इस क़ौम को देखता हूँ कि यह बाग़ी क़ौम है।10इसलिए तू मुझे अब छोड़ दे कि मेरा ग़ज़ब उन पर भड़के और मैं उनको भसम कर दूँ, और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा।"11तब मूसा ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे मिन्नत करके कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, क्यूँ तेरा ग़ज़ब अपने लोगों पर भड़कता है जिनको तू क़ुव्वत-ए-'अज़ीम और ताक़तवर हाथों से मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया है?12मिस्री लोग यह क्यूँ कहने पाएँ, कि 'वह उनको बुराई के लिए निकाल ले गया, ताकि उनको पहाड़ों में मार डाले और उनको ~इस ज़मीन पर से फ़ना कर दे'? इसलिए तू अपने क़हर-ओ- ग़ज़ब से बाज़ रह और अपने लोगों से इस बुराई करने के ख़याल को छोड़ दे।13तू अपने बन्दों, इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब, को याद कर जिनसे तूने अपनी ही क़सम खा कर यह कहा था, कि मैं तुम्हारी नसल को आसमान के तारों की तरह बढ़ाऊँगा; और यह सारा मुल्क जिसका मैंने ज़िक्र किया है तुम्हारी नसल को बख़्शूँगा कि वह सदा उसके मालिक रहें।"14तब ख़ुदावन्द ने उस बुराई के ख़याल को छोड़ दिया जो उसने कहा था कि अपने लोगों से करेगा।15~और मूसा शहादत की दोनों~तख़्तियाँ~हाथ में लिए हुए उल्टा फिरा और पहाड़ से नीचे उतरा; और वह~तख़्तियाँ इधर से और उधर से दोनों तरफ़ से लिखी हुई थीं।16~और वह~तख़्तियाँ ख़ुदा ही की बनाई हुई थीं, और जो लिखा हुआ था वह भी ख़ुदा ही का लिखा और उन पर खुदा हुआ था।17~और जब यशू'अ ने लोगों की ललकार की आवाज़ सुनी तो मूसा से कहा, कि "लश्करगाह में लड़ाई का शोर हो रहा है।”18मूसा ने कहा, "यह आवाज़ न तो फ़तहमन्दों का नारा है, न मग़लूबों की फ़रियाद; बल्कि मुझे तो गाने वालों की आवाज़ सुनाई देती है।”19और लश्करगाह के नज़दीक आकर उसने वह बछड़ा और उनका नाचना देखा। तब मूसा का ग़ज़ब भड़का, और उसने उन~तख़्तियाँ को अपने हाथों में से पटक दिया और उनकी पहाड़ के नीचे तोड़ डाला।20और उसने उस बछड़े को जिसे उन्होंने बनाया था लिया, और उसको आग में जलाया और उसे बारीक पीस कर पानी पर छिड़का और उसी में से बनी-इस्राईल को पिलवाया।21और मूसा ने हारून से कहा, कि "इन लोगों ने तेरे साथ क्या किया था जो तूने इनको इतने बड़े गुनाह में फँसा दिया?"22हारून ने कहा, कि "मेरे मालिक का ग़ज़ब न भड़के; तू इन लोगों को जानता है कि गुनाह पर तुले रहते हैं, ~'23चुनाँचे इन्हीं ने मुझ से कहा, कि 'हमारे लिए देवता बना दे जो हमारे आगे-आगे चले, क्यूँकि हम नहीं जानते कि इस आदमी मूसा को जो हम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया क्या हो गया?24~तब मैंने इनसे कहा, कि "जिसके यहाँ सोना हो वह उसे उतार लाए।'तब इन्होंने उसे मुझ को दिया और मैंने उसे आग में डाला, तो यह बछड़ा निकल पड़ा।”25~जब मूसा ने देखा कि लोग बेक़ाबू हो गए, क्यूँकि हारून ने उनको बेलगाम छोड़कर उनको उनके दुश्मनों के बीच ज़लील कर दिया,26~तो मूसा ने लश्करगाह के दरवाज़े पर खड़े होकर कहा, "जो-जो ख़ुदावन्द की तरफ़ है वह मेरे पास आ जाए।" तब सभी बनी लावी उसके पास जमा' हो गए।27और उसने उनसे कहा, कि "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि तुम अपनी-अपनी रान से तलवार लटका कर फाटक-फाटक घूम-घूम कर सारी लश्करगाह में अपने अपने भाइयों और अपने अपने साथियों और अपने अपने पड़ोसियों को क़त्ल करते फिरो।"28और बनी लावी ने मूसा के कहने के मुवाफ़िक़ 'अमल किया; चुनाँचे उस दिन लोगों में से करीबन तीन हज़ार मर्द मारे गए।29और मूसा ने कहा, कि "आज ख़ुदावन्द के लिए अपने आपको मख़्सूस करो; बल्कि हर शख़्स अपने ही बेटे और अपने ही भाई के ख़िलाफ़ हो ताकि वह तुम को आज ही बरकत दे।"30और दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, कि "तुम ने बड़ा गुनाह किया; और अब मैं ख़ुदावन्द के पास ऊपर जाता हूँ शायद मैं तुम्हारे गुनाह का कफ़्फ़ारा दे सकूं।"31और मूसा ख़ुदावन्द के पास लौट कर गया और कहने लगा, 'हाय, इन लोगों ने बड़ा गुनाह किया कि अपने लिए सोने का देवता बनाया।32और अब अगर तू इनका गुनाह मु'आफ़ कर दे तो ख़ैर वरना मेरा नाम उस किताब में से जो तूने लिखी है मिटा दे।"33और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "जिसने मेरा गुनाह किया है मैं उसी के नाम को अपनी किताब में से मिटाऊँगा।34अब तू रवाना हो और लोगों को उस जगह ले जा जो मैंने तुझे बताई है। देख, मेरा फ़रिश्ता तेरे आगे-आगे चलेगा। लेकिन मैं अपने मुतालबे के दिन उनको उनके गुनाह की सज़ा दूँगा।"35और ख़ुदावन्द ने उन लोगों में वबा भेजी, क्यूँकि जो बछड़ा हारून ने बनाया वह उन्हीं का बनवाया हुआ था।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "उन लोगों को अपने साथ लेकर, जिनको तू मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया, यहाँ से उस मुल्क की तरफ़ रवाना हो जिसके बारे में इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से मैंने क़सम खाकर कहा था कि इसे मैं तेरी नसल को दूँगा।2~और मैं तेरे आगे-आगे एक फ़रिश्ते को भेजूँगा; और मैं कना'नियों और अमोरियों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़ियों और हव्वियों और यबूसियों को निकाल दूँगा।3~उस मुल्क में दूध और शहद बहता है; और चूँकि तू बाग़ी~क़ौम है इस लिए मैं तेरे बीच में होकर न चलूँगा, कहीं ऐसा न हो कि मैं तुझ को राह में फ़ना कर डालूँ।"4~लोग इस दहशतनाक ख़बर को सुन कर ग़मगीन हुए और किसी ने अपने ज़ेवर न पहने।5~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मूसा से कह दिया था, कि "बनी-इस्राईल से कहना, कि 'तुम बाग़ी लोग हो, अगर मैं एक लम्हा भी तेरे बीच में होकर चलूँ तो तुझ को फ़ना कर दूँगा। फिर तू अपने ज़ेवर उतार डाल ताकि मुझे मा'लूम हो कि तेरे साथ क्या करना चाहिए।"6~चुनाँचे बनी-इस्राईल होरिब पहाड़ से लेकर आगेआगे अपने ज़ेवरों को उतारे रहे।7और मूसा ख़ेमें को लेकर उसे लश्करगाह से बाहर बल्कि लश्करगाह से दूर लगा लिया करता था, और उसका नाम ख़ेमा ए-इजितमा'अ रख्खा। और जो कोई ख़ुदावन्द का तालिब होता वह लश्करगाह के बाहर उसी ख़ेमे की तरफ़ चला जाता था।8और जब मूसा बाहर ख़ेमे की तरफ़ जाता तो सब लोग उठकर अपने-अपने ख़ेमे के दरवाज़े पर खड़े हो जाते और मूसा के पीछे देखते रहते थे, जब तक वह ख़ेमे के अन्दर दाख़िल न हो जाता।9~और जब मूसा ख़ेमे के अन्दर चला जाता तो बादल का सुतून उतरकर ख़ेमे के दरवाज़े पर ठहरा रहता, और ख़ुदावन्द मूसा से बातें करने लगता।10~और सब लोग बादल के सुतून को ख़ेमे के दरवाज़े पर ठहरा हुआ देखते थे, और सब लोग उठ-उठकर अपने-अपने ख़ेमे के दरवाज़े पर से उसे सिज्दा करते थे।11~और जैसे कोई शख़्स अपने दोस्त से बात करता है वैसे ही ख़ुदावन्द आमने सामने होकर मूसा से बातें करता था। और मूसा लश्करगाह को लौट आता था, लेकिन उसका ख़ादिम यशू'अ जो नून का बेटा और जवान आदमी था ख़ेमे से बाहर नहीं निकलता था।12~और मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, "देख, तू मुझ से कहता है, कि "इन लोगों को ले चल, 'लेकिन मुझे यह नहीं बताया कि तू किसको मेरे पास भेजेगा। हालाँकि तूने यह भी कहा है, कि मैं तुझ को नाम से जानता हूँ और तुझ पर मेरे करम की नज़र है।13तब अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो मुझ को अपनी राह बता, जिससे मैं तुझे पहचान लूँ ताकि मुझ पर तेरे करम की नज़र रहे; और यह ख़याल रख कि यह क़ौम तेरी ही उम्मत है।"14~तब उसने कहा, "मैं साथ चलूँगा और तुझे आराम दूँगा।"15~मूसा ने कहा, "अगर तू साथ न चले तो हम को यहाँ से आगे न ले जा।16~क्यूँकि यह क्यूँ कर मा'लूम होगा कि मुझ पर और तेरे लोगों पर तेरे करम की नज़र है? क्या इसी तरह से नहीं कि तू हमारे साथ-साथ चले, ताकि मैं और तेरे लोग इस ज़मीन की सब क़ौमों से निराले ठहरें?17~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "मैं यह काम भी जिसका तूने ज़िक्र किया है, करूँगा क्यूँकि तुझ पर मेरे करम की नज़र है और मैं तुझ को नाम से पहचानता हूँ।”18~तब वह बोल उठा, कि "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, मुझे अपना जलाल दिखा दे।"19उसने कहा, "मैं अपनी सारी नेकी तेरे सामने ज़ाहिर करूँगा और तेरे ही सामने ख़ुदावन्द के नाम का 'ऐलान करूँगा; और मैं जिस पर मेहरबान होना चाहूँ मेहरबान हूँगा, और जिस पर रहम करना चाहूँ रहम करूँगा ।"20~और यह भी कहा, "तू मेरा चेहरा नहीं देख सकता, क्यूँकि इन्सान मुझे देख कर ज़िन्दा नहीं रहेगा।"21~फिर ख़ुदावन्द ने कहा, "देख, मेरे क़रीब ही एक जगह है, इसलिए तू उस चट्टान पर खड़ा हो।22~और जब तक मेरा जलाल गुज़रता रहेगा मैं तुझे उस चट्टान के शिगाफ़ में रख्खूँगा, और जब तक मैं निकल न जाऊँ तुझे अपने हाथ से ढाँके रहूँगा।23~इसके बा'द मैं अपना हाथ उठा लूँगा, और तू मेरा पीछा देखेगा लेकिन मेरा चेहरा दिखाई नहीं देगा।”
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा पहली~तख़्तियों की तरह दो~तख़्तियाँ अपने लिए तराश लेना; और मैं उन~तख़्तियों पर वही बातें लिख दूँगा जो पहली~तख़्तियों पर, जिनको तूने तोड़ डाला मरकू़म थीं।2और सुबह तक तैयार हो जाना, और सवेरे ही कोह-ए-सीना पर आकर वहाँ पहाड़ की चोटी पर मेरे सामने हाज़िर होना।3~लेकिन तेरे साथ कोई और आदमी न आए, और न पहाड़ पर कहीं कोई दूसरा शख़्स दिखाई दे। भेड़ बकरियाँ और गाय-बैल भी पहाड़ के सामने चरने न पाएँ।4~और मूसा ने पहली~तख़्तियों की तरह पत्थर की दो~तख़्तियाँ~तराशीं, और सुबह सवेरे उठ कर पत्थर की दोनों~तख़्तियाँ~हाथ में लिए हुए ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ कोह-ए-सीना पर चढ़ गया।5~तब ख़ुदावन्द बादल में हो कर उतरा और उसके साथ वहाँ खड़े हो कर ख़ुदावन्द के नाम का 'ऐलान किया।6और ख़ुदावन्द उसके आगे से यह पुकारता हुआ गुज़रा ख़ुदावन्द ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-रहीम और मेहरबान, क़हर करने में धीमा और शफ़क़त और वफ़ा में ग़नी ।7~हज़ारों पर फ़ज़्ल करने वाला, गुनाह और तक़सीर और ख़ता का बख़्शने वाला; लेकिन वह मुजरिम को हरगिज़ बरी नहीं करेगा, बल्कि बाप-दादा के गुनाह की सज़ा उनके बेटों और पोतों को तीसरी और चौथी नसल तक देता है।"8तब मूसा ने जल्दी से सिर झुका कर सिज्दा किया,9~और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है, तो ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि हमारे बीच में होकर चल, अगरचे यह क़ौम बाग़ी है, और तू हमारे गुनाह और ख़ता को मु'आफ़ कर और हम को अपनी मीरास कर ले।"10~उसने कहा, "देख, मैं 'अहद बाँधता हूँ, कि तेरे सब लोगों के सामने ऐसी करामात करूँगा जो दुनिया भर में और किसी क़ौम में कभी की नहीं गई; और वह सब लोग जिनके बीच तू रहता है, ख़ुदावन्द के काम को देखेंगे क्यूँकि जो मैं तुम लोगों से करने को हूँ वह हैबतनाक काम होगा।11~आज के दिन जो हुक्म मैं तुझे देता हूँ, तू उसे याद रखना। देख, मैं अमोरियों और कना'नियों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़यों और हव्वियों और यबूसियों को तेरे आगे से निकालता हूँ।12~इसलिए ख़बरदार रहना कि जिस मुल्क को तू जाता है उसके बाशिन्दों से कोई 'अहद न बाँधना, ऐसा न हो कि वह तेरे लिए फन्दा ठहरें।13~बल्कि तुम उनकी क़ुर्बानगाहों को ढा देना, और उनके सुतूनों के टुकड़े-टुकड़े कर देना, और उनकी यसीरतों को काट डालना।14~क्यूँकि तुझ को किसी दूसरे मा'बूद की परस्तिश नहीं करनी होगी, इसलिए कि ख़ुदावन्द जिसका नाम ग़य्यूर है वह ख़ुदा-ए-ग़य्यूर है भी।15~कहीं ऐसा न हो कि तू उस मुल्क के बाशिन्दों से कोई 'अहद बाँध ले और जब वह अपने मा'बूदों की पैरवी में ज़िनाकार ठहरें और अपने मा'बूदों के लिए क़ुर्बानी करें, और कोई तुझ को दा'वत दे और तू उसकी क़ुर्बानी में से कुछ खा ले;16~और तू उनकी बेटियाँ अपने बेटों से ब्याहे और उनकी बेटियाँ अपने मा'बूदों की पैरवी में ज़िनाकार ठहरें, और तेरे बेटों को भी अपने मा'बूदों की पैरवी में ज़िनाकार बना दें।17~"तू अपने लिए ढाले हुए देवता न बना लेना।18~"तू बेख़मीरी रोटी की 'ईद माना करना। मेरे हुक्म के मुताबिक़ सात दिन तक अबीब के महीने में वक़्त-ए-मुअय्यना पर बेख़मीरी रोटियाँ खाना; क्यूँकि माह-ए-अबीब में तू मिस्र से निकला था।19~सब पहलौठे मेरे हैं: और तेरे चौपायों में जो नर पहलौटे हों, क्या बछड़े, क्या बर्रे सब मेरे होंगे।20~लेकिन गधे के पहले बच्चे का फ़िदिया बर्रा देकर होगा, और अगर तू फ़िदिया देना न चाहे तो उसकी गर्दन तोड़ डालना; लेकिन अपने सब पहलौठे बेटों का फ़िदिया ज़रूर देना। और कोई मेरे सामने ख़ाली हाथ दिखाई न दे।21~"छ: दिन काम काज करना लेकिन सातवें दिन आराम करना, हल जोतने और फ़सल काटने के मौसम में भी आराम करना।22~और तू गेहूँ के पहले फल के काटने के वक़्त हफ़्तों की 'ईद, और साल के आख़िर में फ़सल जमा' करने की 'ईद माना करना।23~तेरे सब मर्द साल में तीन बार ख़ुदावन्द ख़ुदा के आगे जो इस्राईल का ख़ुदा है, हाज़िर हों।24~क्यूँकि मैं क़ौमों को तेरे आगे से निकाल कर तेरी सरहदों को बढ़ा दूँगा, और जब साल में तीन बार तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे हाज़िर होगा तो कोई शख़्स तेरी ज़मीन का लालच न करेगा।25~"तू मेरी क़ुर्बानी का ख़ून ख़मीरी रोटी के साथ न पेश करना, और 'ईद-ए-फ़सह की क़ुर्बानी में से कुछ सुबह तक बाक़ी न रहने देना।26अपनी ज़मीन की पहली पैदावार का पहला फल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में लाना। हलवान को उसकी माँ के दूध में न पकाना।"27और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, कि "तू यह बातें लिख; क्यूँकि इन्हीं बातों के मतलब के मुताबिक़ मैं तुझ से और इस्राईल से 'अहद बाँधता हूँ।"28~तब वह चालीस दिन और चालीस रात वहीं ख़ुदावन्द के पास रहा और न रोटी खाई और न पानी पिया, और उसने उन~तख़्तियों पर उस 'अहद की बातों को या'नी दस अहकाम को लिखा।29~और जब मूसा शहादत की दोनों~तख़्तियाँ अपने हाथ में लिए हुए कोह-ए-सीना से उतरा आता था, तो पहाड़ से नीचे उतरते वक़्त उसे ख़बर न थी कि ख़ुदावन्द के साथ बातें करने की वजह से उसका चेहरा चमक रहा है।30~और जब हारून और बनीइस्राईल ने मूसा पर नज़र की और उसके चेहरे को चमकते देखा तो उसके नज़दीक आने से डरे।31~तब मूसा ने उनको बुलाया; और हारून और जमा'अत के सब सरदार उसके पास लौट आए और मूसा उन से बातें करने लगा।32~और बा'द में सब बनीइस्राईल नज़दीक आए और उसने वह सब अहकाम जो ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर बातें करते वक़्त उसे दिए थे उनको बताए।33~और जब मूसा उनसे बातें कर चुका तो उसने अपने मुँह पर नक़ाब डाल लिया।34~और जब मूसा ख़ुदावन्द से बातें करने के लिए उसके सामने जाता तो बाहर निकलने के वक़्त तक नक़ाब को उतारे रहता था; और जो हुक्म उसे मिलता था, वह उसे बाहर आकर बनी-इस्राईल को बता देता था।35~और बनी-इस्राईल मूसा के चेहरे को देखते थे कि उसके चेहरे की जिल्द चमक रही है; और जब तक मूसा ख़ुदावन्द से बातें करने न जाता तब तक अपने मुँह पर नक़ाब डाले रहता
1~और मूसा ने बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत को जमा' करके कहा, "जिन बातों पर 'अमल करने का हुक्म ख़ुदावन्द ने तुम को दिया है वह यह हैं।2~छ: दिन काम लिए रोज़-ए-मुक़द्दस या'नी ख़ुदावन्द के आराम का सबत हो; जो कोई उसमें कुछ काम करे वह मार डाला जाए।3~तुम सबत के दिन अपने घरों में कहीं भी आग न जलाना।”4~और मूसा ने बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत से कहा, "जिस बात का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है वह यह है, कि5~तुम अपने पास से ख़ुदावन्द के लिए हदिया लाया करो। जिस किसी के दिल की खु़शी हो वह ख़ुदावन्द का हदिया लाये सोना और चाँदी और पीतल,6~और आसमानी रंग और अर्ग़वानी रंगऔर सुर्ख़ रंग के कपड़े, और महीन कतान, और बकरियों की पश्म,7~और मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालें और तुख़्स की खालें और कीकर की लकड़ी,8और जलाने का तेल, और मसह करने के तेल के लिए और ख़ुशबूदार ख़ुशबू के लिए मसाल्हे,9~और अफ़ोद और सीनाबन्द के लिए सुलेमानी पत्थर और और जड़ाऊ पत्थर।10~"और तुम्हारे बीच जो रौशन ज़मीर हैं, वह आकर वह चीजें बनाएँ जिनका हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है।11~या'नी घर और उसका ख़ेमा और ग़िलाफ़ और उसकी घुन्डियाँ और तख़्तें और बेंडे और उसके ~सुतून, और ख़ाने,12~सन्दूक और उसकी चोबें, सरपोश और बीच का पर्दा,13~मेज़ और उसकी चोबें और उसके सब बर्तन, और नज़्र की रोटियाँ,14~और रोशनी के लिए शमा 'दान और उसके बर्तन और चराग़ और जलाने का तेल;15~और ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बान गाह और उसकी चोबें और मसह करने का तेल, और ख़ुशबूदार ख़ुशबू; और घर के दरवाज़े के लिए दरवाज़े का पर्दा,16~और सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह, और उसके लिए पीतल की झंजरी और उसकी चोबें और उसके सब बर्तन, और हौज़ और उसकी कुर्सी;17~और सहन के पर्दे सुतूनों के साथ और उनके ख़ाने, और सहन के दरवाज़े का पर्दा,18और घर की मेंख़े, और सहन की मेखें, और उन दोनों की रस्सियाँ,19और मकदिस की खिदमत के लिए बेल बूटे कढ़े हुए लिबास, और हारून काहिन के लिए पाक लिबास और उसके बेटों के लिबास, ताकि वह काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दें।20~तब बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत मूसा के पास से रुख़्सत हुई।21~और जिस जिस का जी चाहा और जिस-जिस के दिल में रग़बत । हुई, वह ख़ेमा -ए-इजतिमा'अ के काम और वहाँ की 'इबादत और पाक लिबास के लिए ख़ुदावन्द का हदिया लाया।22~और क्या मर्द, क्या 'औरत, जितनों का दिल चाहा वह सब जुगनू बालियाँ, अँगूठियाँ और बाजूबन्द, जो सब सोने के ज़ेवर थे लाने लगे। इस तरीके से लोगों ने ख़ुदावन्द को सोने का हदिया दिया।23~और जिस-जिस के पास आसमानी रंग ~और अर्ग़वानी रंग और सुर्ख़ रंग के कपड़े, और महीन कतान और बकरियों की पश्म और मेंढों की सुर्ख रंगी हुई खाले और तुख़स की खालें थीं, वह उनको ले आए।24~जिसने चाँदी या पीतल का हदिया देना चाहा वह वैसा ही हदिया ख़ुदावन्द के लिए लाया, और जिस किसी के पास कीकर की लकड़ी थी वह उसी को ले आया।25~और जितनी 'औरतें होशियार थीं उन्होंने अपने हाथों से कात-कात कर आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के और महीन कतान के तार लाकर दिए।26~और जितनी 'औरतों के दिल हिकमत की तरफ़ मायल थे उन्होंने बकरियों की पश्म काती।27~और जो सरदार थे वह अफ़ोद और सीना बन्द के लिए सुलेमानी पत्थर और जड़ाऊ पत्थर,28~और रोशनी और मसह करने के तेल, और ख़ुशबूदार ख़ुशबू के लिए मसाल्हे और तेल लाए।29~यूँ बनी-इस्राईल अपनी ही ख़ुशी से ख़ुदावन्द के लिए हदिये लाए, या'नी जिस-जिस मर्द या 'औरत का जी चाहा कि इन कामों के लिए जिनके बनने का हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' दिया था, कुछ दे वह उन्होंने दिया30~और मूसा ने बनी-इस्राईल से कहा, "देखो, ख़ुदावन्द ने बज़लीएल बिन ऊरी बिन हूर को जो यहूदाह के क़बीले में से है नाम लेकर बुलाया है।31और उसने उसे हिकमत और समझ और अक़्ल और हर तरह की कारीगरी ~के लिए रूह उल्लाह से मा'मूर किया है।32~और कारीगरी ~में और सोना, चाँदी और पीतल के काम में,33~और जड़ाऊ पत्थर और लकड़ी के तराशने में गरज़ हर एक नादिर काम के बनाने में माहिर किया है।34~और उसने उसे और अखीसमक के बेटे अहलियाब को भी जो दान के क़बीले का है, हुनर सिखाने की क़ाबिलियत बख़्शी है।35~और उनके दिलों में ऐसी हिकमत भर दी है जिससे वह हर तरह की कारीगरी में माहिर हों, और कन्दाकार का और माहिर उस्ताद का और ज़रदोज़ का जो आसमानी, अर्ग़वानी और सु़र्ख रंग के कपड़ों और महीन कतान पर गुलकारी करता है, और जूलाहे का और हर तरह के दस्तकार का काम कर सके और 'अजीब और नादिर चीजें ईजाद करें।
1फिर~बज़लीएल और अहलियाब और सब रोशन ज़मीर आदमी काम करें, जिनको ख़ुदावन्द ने हिकमत और समझ से मालामाल किया है ताकि वह मक़दिस की ' इबादत के सब काम को ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ अन्जाम दें।2तब मूसा ने बज़लीएल और अहलियाब और सब रोशन ज़मीर आदमियों को बुलाया, जिनके दिल में ख़ुदावन्द ने हिकमत भर दी थी, या'नी जिनके दिल में तहरीक हुई कि जाकर काम करें।3~और जो-जो हदिये बनी-इस्राईल लाए थे कि उनसे मक़दिस की 'इबादत की चीज़ें बनाई जाएँ, वह सब उन्होंने मूसा से ले लिए, और लोग फिर भी अपनी खु़शी से हर सुबह उसके पास हदिये लाते रहे।4तब वह सब 'अक़्लमन्द कारीगर जो मक़दिस के सब काम बना रहे थे, अपने-अपने काम को छोड़कर मूसा के पास आए,5~और वह मूसा से कहने लगे, कि लोग इस काम के सरअन्जाम के लिए, जिसके बनाने का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है, ज़रूरत से बहुत ज़्यादा ले आए हैं।"6~तब मूसा ने जो हुक्म दिया उसका 'ऐलान उन्होंने तमाम लश्करगाह में करा दिया: कि कोई मर्द या 'औरत अब से मक़दिस के लिए हदिया देने की ग़र्ज़ से कुछ और काम न बनाएँ।" यूँ वह लोग और लाने से रोक दिए गए।7~क्यूँकि जो सामान उनके पास पहुँच चुका था वह सारे काम को तैयार करने के लिए न सिर्फ़ काफ़ी बल्कि ज़्यादा था।8~और काम करनेवालों में जितने रोशन ज़मीर थे, उन्होंने मक़दिस के लिए बारीक बटे हुए कतान के और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों के दस पर्दे बनाए, जिन पर माहिर उस्ताद के हाथ के कढ़े हुए करूबी थे।9~हर पर्दे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ थी और वह सब पर्दे एक ही नाप के थे।10और उसने पाँच पर्दे एक दूसरे के साथ जोड़ दिए और दूसरे पाँच पर्दे भी एक दूसरे के साथ जोड़ दिए।11~और उसने एक बड़े पर्दे के हाशिये में उसके मिलाने के रुख़ पर आसमानी रंग के तुकमे बनाए। ऐसे ही तुकमे उसने दूसरे बड़े पर्दे की उस तरफ़ के हाशिये में बनाए जिधर मिलाने का रुख़ था।12~पचास तुकमे उसने एक पर्दे में और पचास ही दूसरे पर्दे के हाशिये में उसके मिलाने के रुख़ पर बनाए, यह तुकमे आपस में एक दूसरे के सामने थे।13~और उसने सोने की पचास घुन्डियाँ बनाई और उन्हीं घुन्डियों से पर्दों को आपस में ऐसा जोड़ दिया कि घर मिलकर एक हो गया।14~और बकरी के बालों से ग्यारह पर्दे घर के ऊपर के ख़ेमे के लिए बनाए।15~हर पर्दे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ थी, और वह ग्यारह पर्दे एक ही नाप के थे।16~और उसने पाँच पर्दे तो एक साथ जोड़े और छ: एक साथ।17~और पचास तुकमे उन जुड़े हुए पर्दों में से किनारे के पर्दे के हाशिये में बनाए और पचास ही तुकमे उन दूसरे जुड़े हुए पर्दों में से किनारे के पर्दे के हाशिये में बनाए।18~और उसने पीतल की पचास घुन्डियाँ भी बनाई ताकि उनसे उस ख़ेमे को ऐसा जोड़ दे कि वह एक हो जाए।19और ख़ेमे के लिए एक ग़िलाफ़ मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालों का और उसके लिए ग़िलाफ़ तुख़स की खालों का बनाया।20~और उसने घर के लिए कीकर की लकड़ी के तख़्ते बनाए कि खड़े किए जाएँ।21~हर तख़्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ थी।22और उसने एक एक तख़्ते के लिए दो-दो जुड़ी हुई चूलें बनाई, घर के सब तख़्तों की चूलें ऐसी ही बनाई।23और घर के लिए जो तख़्ते बने थे उनमें से बीस तख़्ते दाख्खिनी रुख़ में लगाए।24~और उसने उन बीसों तख़्तों के नीचे चाँदी के चालीस ख़ाने बनाए, या'नी हर तख़्ते की दोनों चूलों के लिए दो-दो ख़ाने।25~और घर की दूसरी तरफ़ या'नी उत्तरी रुख़ के लिए बीस तख़्ते बनाए।26~और उनके लिए भी चाँदी के चालीस ही ख़ाने बनाए, या'नी एक-एक तख़्ते के नीचे दो-दो ख़ाने।27~और घर के पिछले हिस्से या'नी पश्चिमी रुख़ के लिए छ: तख़्ते बनाए।28~और दो तख़्ते घर के दोनों कोनों के लिए पिछले हिस्से में बनाए।29~यह नीचे से दोहरे थे और इसी तरह ऊपर के सिरे तक आकर एक ही हल्के में मिला दिए गए थे, उसने दोनों कोनों के दोनों तख़्ते इसी ढब के बनाए।30~वह, आठ तख़्ते थे और उनके लिए चाँदी के सोलह ख़ाने, या'नी एक-एक तख़्ते के लिए दो-दो ख़ाने।31~और उसने कीकर की लकड़ी के~बेन्डे~बनाये पाँच~बेन्डे~घर के एक तरफ़~के तख़्तों के लिए,32और पाँच बेन्डे घर के दूसरी तरफ़ के तख़्तों के लिए, और पाँच बेन्डे घर के पिछले हिस्से में पश्चिम की तरफ़ के तख़्तों के लिए बनाए।33~और उसने वस्ती बेन्डे को ऐसा बनाया कि तख़्तों के बीच में से होकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचे।34~और तख़्तों को सोने से मंढ़ा और सोने के कड़े बनाए, ताकि बेन्डों के लिए ख़ानों का काम दें और बेन्डों को सोने से मंढ़ा।35~और उसने बीच का पर्दा आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाया जिस पर माहिर उस्ताद के हाथ के करूबी कढ़े हुए थे।36~और उसके लिए कीकर के चार सुतून बनाए और उनको सोने से मंढ़ा, उनके कुन्डे सोने के थे और उसने उनके लिए चाँदी के चार ख़ाने ढाल कर बनाए।37~और उसने ख़ेमे के दरवाज़े के लिए एक पर्दा आसमानी, अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बनाया, वह बेल-बूटेदार था।38और उसके लिए पाँच सुतून कुन्डों समेत बनाए और उनके सिरों और पट्टियों को सोने से मंढ़ा, उनके लिए जो पाँच ख़ाने थे वह पीतल के बने हुए थे।
1~और बज़लीएल ने वह सन्दूक कीकर की लकड़ी का बनाया, उसकी लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी।2~और उसने उसके अन्दर और बाहर ख़ालिस सोना मंढा और उसके लिए चारों तरफ़ एक सोने का ताज बनाया।3~और उसने उसके चारों पायों पर लगाने को सोने के चार कड़े ढाले, दो कड़े तो उसकी एक तरफ़ और दो दूसरी तरफ़ थे।4~और उसने कीकर की लकड़ी की चोबें बनाकर उनको सोने से मंढ़ा।5~और उन चोबों को सन्दूक के दोनों तरफ़ के कड़ों में डाला ताकि सन्दूक उठाया जाए।6~और उसने सरपोश ख़ालिस सोने का बनाया, उसकी लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ थी।7और उसने सरपोश के दोनों सिरों पर सोने के दो करूबी गढ़ कर बनाए।8~एक करूबी को उसने एक सिरे पर रख्खा और दूसरे को दूसरे सिरे पर, दोनों सिरों के करूबी और सरपोश एक ही टुकड़े से बने थे।9~और करूबियों के बाजू ऊपर से फैले हुए थे और उनके बाजूओं से सरपोश ढका हुआ था, और उन करूबियों के चेहरे सरपोश की तरफ़ और एक दूसरे के सामने थे।10~और उसने वह मेज़ कीकर की लकड़ी की बनाई, उसकी लम्बाई दो हाथ और चौड़ाई एक हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी।11~और उसने उसको ख़ालिस सोने से मंढ़ा और उसके लिए चारों तरफ़ सोने का एक ताज बनाया।12और उसने एक कंगनी चार उंगल चौड़ी उसके चारों तरफ़ रख्खी और उस कंगनी पर चारों तरफ़ सोने का एक ताज बनाया।13~और उसने उसके लिए सोने के चार कड़े ढाल कर उनको उसके चारों पायों के चारों कोनों में लगाया।14~यह कड़े कंगनी के पास थे, ताकि मेज़ उठाने की चोबों के ख़ानों का काम दें।15और उसने मेज़ उठाने की वह चोबें कीकर की लकड़ी की बनाई और उनको सोने से मंढ़ा।16और उसने मेज़ पर के सब बर्तन, या'नी उसके तबाक़ और चमचे और बड़े-बड़े प्याले और उंडेलने के लोटे ख़ालिस सोने के बनाए।17~और उसने शमा'दान ख़ालिस सोने का बनाया। वह शमा'दान और उसका पायाऔर उसकी डन्डी गढ़े हुए थे। यह सब और उसकी प्यालियाँ और लट्टू और फूल एक ही टुकड़े के बने हुए थे।18~और छ: शाखें उसकी दोनों तरफ़ से निकली हुई थीं। शमा'दान की तीन शाख़ें तो उसकी एक तरफ़ से और तीन शाख़ उसकी दूसरी तरफ़ से।19और एक शाख़ में बादाम के फूल की शक्ल की तीन प्यालियाँ और एक लट्टू और एक फूल था, और दूसरी शाख़ में भी बादाम के फूल की शक्ल की तीन प्यालियाँ और एक लट्टू और एक फूल था। ग़र्ज़ उस शमा'दान की छहों शाखों में सब कुछ ऐसा ही था।20और ख़ुद शमा'दान में बादाम के फूल की शक्ल की चार प्यालियाँ अपने-अपने लट्टू और फूल समेत बनी थीं।21~और शमा'दान की छहों निकली हुई शाख़ों में से हर दो-दो शाखें और एक-एक लट्टू एक ही टुकड़े के थे।22~उनके लट्टू और उनकी शाख़ें सब एक ही टुकड़े के थे। सारा शमा'दान ख़ालिस सोने का और एक ही टुकड़े का गढ़ा हुआ था।23~और उसने उसके लिए सात चराग़ बनाए और उसके गुलगीर और गुलदान ख़ालिस सोने के थे।24और उसने उसको और उसके सब बर्तन को एक किन्तार ख़ालिस सोने से बनाया25~और उसने ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह कीकर की लकड़ी की बनाई, उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ थी। वह चौकोर थी और उसकी ऊँचाई दो हाथ थी और वह और उसके सींग एक ही टुकड़े के थे।26~और उसने उसके ऊपर की सतह और चारों तरफ़ की अतराफ़ और सींगों को ख़ालिस सोने से मढ़ा और उसके लिए सोने का एक ताज चारों तरफ़ बनाया।27~और उसने उसकी दोनों तरफ़ के दोनों पहलुओं में ताज के नीचे सोने के दो कड़े बनाए जो उसके उठाने की चोबों के लिए ख़ानों का काम दें।28~और चोबें कीकर की लकड़ी की बनाई और उनको सोने से मढ़ा।29~और उसने मसह करने का पाक तेल और खु़शबूदार मसाल्हे का ख़ालिस ख़ुशबू गन्धी की हिकमत के मुताबिक़ तैयार किया।
1~और उसने सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह कीकर की लकड़ी का बनाया; उसकी लम्बाई पाँच हाथ और चौड़ाई पाँच हाथ थी, वह चौकोर था और उसकी ऊँचाई तीन हाथ थी।2~और उसने उसके चारों कोनों पर सींग बनाए सींग और वह मज़बह दोनों एक ही टुकड़े के थे, और उसने उसको पीतल से मंढ़ा।3~और उसने मज़बह के सब बर्तन, या'नी देगें और बेलचे और कटोरे और सीहें और अंगूठियाँ बनायीं उसके सब बर्तन पीतल के थे।4~और उसने मज़बह के लिए उसकी चारों तरफ़ किनारे के नीचे पीतल की जाली की झंजरी इस तरह लगाई कि वह उसकी आधी दूर तक पहुँचती थी।5~और उसने पीतल की झंजरी के चारों कोनों में लगाने के लिए चार कड़े ढाले ताकि चोबों के लिए ख़ानों का काम दें।6और चोबें कीकर की लकड़ी की बनाकर उनको पीतल से मंढ़ा।7और उसने वह चोबें मज़बह की दोनों तरफ़ के कड़ों में उसके उठाने के लिए डाल दीं। वह खोखला तख़्तों का बना हुआ था।8~और जो ख़िदमत गुज़ार 'औरतें ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़िदमत करती थीं, उनके आईनों के पीतल से उसने पीतल का हौज़ और पीतल ही की उसकी कुर्सी बनाई9फिर उसने सहन बनाया, और दख्खिनी रुख़ के लिए उस सहन के पर्दे बारीक बटे हुए कतान के थे और सब मिला कर सौ हाथ लम्बे थे।10उनके लिए बीस सुतून और उनके लिए पीतल के बीस ख़ाने थे, और सुतून के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की थीं।11~और उत्तरी रुख़ में भी वह सौ हाथ लम्बे और उनके लिए बीस सुतून और उनके लिए बीस ही पीतल के ख़ाने थे, और सुतूनों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की थीं।12~और पश्चिमी रुख़ के लिए सब पर्दे मिला कर पचास हाथ के थे, उनके लिए दस सुतून और दस ही उनके ख़ाने थे और सुतूनों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की थीं।13~और पूर्वी रुख़ में भी वह पचास ही हाथ के थे।14~उसके दरवाज़े की एक तरफ़ पन्द्रह हाथ के पर्दे और उनके लिए तीन सुतून और तीन ख़ाने थे |15और दुसरी तरफ़ भी वैसा ही था तब सहन के दरवाज़े के इधर और उधर पंद्रह-पन्द्रह हाथ के पर्दे थे |उनके लिए तीन-तीन सुतून और तीन ही तीन ख़ाने थे |16सहन के चारों तरफ़ के सब पर्दे बारीक बटे हुए कतान के बुने हुए थे |17और सुतूनों के ख़ाने पीतल के और उनके कुंडे और पट्टियाँ चाँदी की थी| उनके सिरे चाँदी से मंढ़े हुए और सहन के कुल सुतून चाँदी की पट्टियों से जड़े हुए थे |18और सहन के दरवाज़े के पर्दे पर बेल बूटे का काम था, और वह आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़े और बारीक बटे हुए कतान का बुना हुआ था; उसकी लम्बाई बीस हाथ और ऊँचाई सहन के पर्दे की चौड़ाई के मुताबिक़ पाँच हाथ थी |19उनके लिए चार सुतून और चार ही उनके लिए पीतल के ख़ाने थे, उनके कुन्दे चाँदी के थे और उनके सिरों पर चाँदी मंढी हुई थी और उनकी पट्टियाँ भी चाँदी की थीं |20और घर के और सहन के चारो तरफ़~की सब मेखे़ं पीतल ~की थीं21और ~घर या'नी मस्कन-ए-शहादत के जो सामान लावियों की ख़िदमत के लिए बने और जिनको मूसा के हुक्म के मुताबिक़ हारून काहिन के बेटे इतमर ने गिना, उनका हिसाब यह है|22बज़लीएल बिन-ऊरी बिन-हूर ने जो यहूदाह के क़बीले का था, सब कुछ जो ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया था बनाया |23और उसके साथ दान के क़बीले का अहलियाब बिन अख़ीसमक था जो खोदने में माहिर कारीगर था और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ो और बारीक कतान पर बेल-बूटे काढ़ता था24सब सोना जो मक़दिस की चीज़ों के काम में लगा, या'नी हदिये का सोना उन्तीस क़िन्तार और मक़दिस की मिस्क़ाल के हिसाब से एक हज़ार सात सौ पिछत्तर मिस्क़ाल था |25और जमा'त में से गिने हुए लोगों के हदिये की चाँदी एक सौ क़िन्तार और मक़दिस की मिस्क़ाल के हिसाब से एक हज़ार सात सौ पिछत्तर~मिस्क़ाल थी |26मक़दिस की मिस्क़ाल के हिसाब से हरआदमी जो निकल कर शुमार किए हुओ में मिल गया एक बिका, या'नी नीम मिस्क़ाल बीस बरस और उससे ज़्यादा 'उम्र लोगों से लिया गया था यह छ:लाख तीन हज़ार साढ़े पाँच सौ मर्द थे |27इस सौ~क़िन्तार चाँदी से मक़दिस के और बीच के पर्दे के ख़ाने ढाले गए, सौ~क़िन्तार से सौ ही ख़ाने बने या'नी एक-एक क़िन्तार |एक-एक ख़ाने में लगा28और एक हज़ार सात सौ पिछत्तर मिस्क़ाल चाँदी से सुतूनों के कुन्डे बने और उनके सिरे मंढे गए और उनके लिए पट्टियाँ तैयार हुई |29और हदिये का पीतल सत्तर क़िन्तार और दो हज़ार चार सौ मिस्क़ाल था |30इससे उसने ख़ेमें-ए-इज्तिमा'अ के दरवाज़े के ख़ाने और पीतल का मज़बह और उसके लिए पीतल की झंजरी और मज़बह के सब बर्तन,31और सहन के चारों तरफ़ के ख़ाने और सहन के दरवाज़े के ख़ाने और घर की मेख़ें और सहन के चारों तरफ़ की मेख़ें ~बनाई |
1~और उन्होंने मक़दिस में ख़िदमत करने के लिए आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ बेल बूटे कढ़े हुए लिबास और हारून के लिए पाक लिबास, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था बनाए।2~और उसने सोने, और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का अफ़ोद बनाया।3~और उन्होंने सोना पीट पीट कर पतले-पतले पत्तर और पतरों को काट-काट कर तार बनाए, ताकि आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के ~कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान पर माहिर उस्ताद की तरह उनसे ज़रदोज़ी करें।4~और अफ़ोद को जोड़ने के लिए उन्होंने दो मोंढे बनाए और उनके दोनों सिरों को मिलाकर बाँध दिया।5~और उसके कसने के लिए कारीगरी से बुना हुआ कमरबन्द जो उसके ऊपर था, वह भी उसी टुकड़े और बनावट का था, या'नी सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बना हुआ था; जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।6और उन्होंने सुलेमानी पत्थर काट कर साफ़ किए जो सोने के ख़ानों में जड़े गए, और उन पर अँगूठी के नक़्श की तरह बनीइस्राईल के नाम खुदे थे।7~और उसने उनको अफ़ोद के मोंढों पर लगाया ताकि वह बनी-इस्राईल की यादगारी के पत्थर हों, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।8~और उसने अफ़ोद की बनावट का सीनाबन्द तैयार किया जो माहिर उस्ताद के हाथ का काम था, या'नी वह सोने और आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों और बारीक बटे हुए कतान का बना हुआ था।9~वह चौकोर था; उन्होंने उस सीनाबन्द को दोहरा बनाया और दोहरा होने पर उसकी लम्बाई एक बालिश्त और चौड़ाई एक बालिश्त थी।10इस पर चार कतारों में उन्होंने जवाहर जड़े। याकू़त-ए-सुर्ख़, और पुखराज, और ज़मुर्रुद की कतार तो पहली कतार थी।11~और दूसरी क़तार में गौहर-ए-शब चराग़, और नीलम, और हीरा:12~तीसरी कतार में लश्म, और यश्म, और याकू़त:13~चौथी क़तार में फ़ीरोज़ा, और संग-ए-सुलेमानी, और ज़बरजद; यह सब अलग-अलग सोने के ख़ानों में जड़े हुए थे।14~और यह पत्थर इस्राईल के बेटों के नामों के शुमार के मुताबिक़ बारह थे और अँगूठी के नक़्श की तरह बारह क़बीलों में से एक-एक का नाम अलग-अलग एक एक पत्थर पर ख़ुदा था।15~और उन्होंने सीना बन्द पर डोरी की तरह गुन्धी हुई ख़ालिस सोने की ज़न्जीरें बनाई।16~और उन्होंने सोने के दो ख़ाने और सोने के दो कड़े बनाए और दोनों कड़ों को सीनाबन्द के दोनों सिरों पर लगाया।17~और सोने की दोनों गुन्धी हुई ज़न्जीरें उन कड़ों में पहनाई जो सीनाबन्द के सिरों पर थे18~और दोनों गुन्धी हुई ज़न्जीरों के बाक़ी दोनों सिरों को दोनों ख़ानो में जड़कर उनको अफ़ोद के दोनों मोंढों पर सामने के रुख़ लगाया।19~और उन्होंने सोने के दो कड़े और बना कर उनको सीना बन्द के दोनो सिरों के उस हाशिये में लगाया जिस का रुख़ अन्दर अफ़ोद की तरफ़ था |20और उन्होंने सोने ~के दो कड़े और बना कर उनको अफ़ोद के दोनों मेढ़ों के सामने के हिस्से में अन्दर के रुख़ जहाँ अफ़ोद जुड़ा था लगाया ताकि वह अफ़ोद के कारीगरी से बुने हुए पटके के ऊपर रहे |21और उन्होंने सीना बन्द को लेकर उसके कड़े को अफ़ोद के कड़ों के साथ एक नीले फ़ीते से इस तरह बाँधा कि वह अफ़ोद के कारीगरी से बने हुए पटके के ऊपर रहे और सीना बन्द ढीला होकर अफ़ोद से अलग न होने पाए जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था |22और उसने अफ़ोद का जुब्बा बुन कर बिल्कुल आसमानी रंग का बनाया |23और उसका गिरेबान ज़िरह के गिरेबान की तरह बीच में था और उसके चारों तरफ़ गोट लगी ~हुई थी ताकि वह फट न जाए |24और उन्होंने उसके दामन के घेरे में आसमानी और अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के बटे हुए तार से अनार बनाये |25और ख़ालिस सोंने की घंटियाँ बना कर उनको जुब्बे के दामन के घेरे में चारों तरफ़ अनारों के बीच लगाया |26तब जुब्बे के दामन के सारे घेरे में ख़िदमत करने के लिए एक-एक घन्टी थी और फिर एक-एक अनार जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था |27और उन्होंने बारीक कतान के बुने हुए कुरते हारून और उसके बेटों के लिए बनाये |28और बारीक कतान का 'अमामा, और बारीक कतान की ख़ूबसूरत पगड़ियाँ, और बारीक बटे हुए कतान के पजामे,29और बारीक बटे हुए कतान, और आसमानी अर्ग़वानी और सुर्ख़ रंग के कपड़ों का बेल बूटेदार कमरबन्द~भी बनाया; जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था |30और उन्होंने पाक ताज का पत्तर ख़ालिस सोने का बनाकर उस पर अँगूठी के नक़्श की तरह यह खुदवाया: ख़ुदावन्द के लिए पाक |31और उसे 'अमामे के साथ ऊपर बाँधने के लिए उसमे एक नीला फ़ीता लगाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था |32इस तरह ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के घर का सब काम ख़त्म हुआ और बनी इस्राईल ने सब कुछ जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया |33और वह घर को मूसा के पास लाए, या'नी ख़ेमा, और उसका सारा सामान, उसकी घुन्डियाँ, और तख़्ते, बेन्डे और सुतून और ख़ाने;34और घटा टोप, मेंढों की सुर्ख़ रंगी हुई खालों का ग़िलाफ़ और तुख़स की खालों का~~ग़िलाफ़ और बीच का पर्दा;35शहादत का सन्दूक़ और उसकी चोबें और सरपोश,36और मेज़ और उसके सब बर्तन और नज़्र की रोटी;37और पाक शमा'दान और उसकी सजावट के चराग़ और उसके सब बर्तनऔर जलाने का तेल;38और ज़र्रीन क़ुर्बानगाह, और मसह करने का तेल और ख़ुशबूदार ख़ुशबू और ख़ेमे के दरवाज़े का पर्दा;39और पीतल मढ़ा हुआ मज़बह, और पीतल की झंजरी, और उसकी चोबें और उसके सब बर्तन और हौज़ और उसकी कुर्सी;40सहन के पर्दे और उनके सुतून और ख़ाने और सहन के दरवाज़े का पर्दा और उसकी रस्सियाँ और मेख़े और ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के काम के लिए घर की 'इबादत के सब सामान;41और पाक मुक़ाम कि ख़िदमत के लिए कढ़े हुए लिबास और हारून काहिन के पाक लिबास और उसके बेटों के लिबास जिनको पहन कर उनको काहिन की ख़िदमत को अन्जाम देना था |42जो कुछ ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था उसी के मुताबिक़ बनीइस्राईल ने सब काम बनाया|43और मूसा ने सब काम का मुलाहज़ा किया और देखा कि उन्होंने उसे कर लिया है जैसा ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया था उन्होंने सब कुछ वैसा ही किया, और मूसा ने उनको बरकत दी |
1और खुदावन्द ने मूसा से कहा;2पहले महीने की पहली तारीख़ को तू ख़ेमा इज्तिमा' के घर को खड़ा कर देना |3और उस में शहादत का संदूक रख कर संदूक पर बीच का पर्दा खींच देना |4और मेज़ को अन्दर ले जाकर उस पर की सब चीज़ें तरतीब से सजा देना और शमा'दान को अन्दर करके उसके चराग़ रोशन कर देना |5और ख़ुशबू जलाने की ज़र्रीन क़ुर्बानगाह को शहादत के संदूक़ के सामने रखना और घर के दरवाज़े का पर्दा लगा देना |6और सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह ख़ेमा-ऐ-इज्तिमा'आ के घर के दरवाज़े के सामने रखना|7और हौज़ को ख़ेमा-ऐ-इज्त्तिमा'अ और मज़बह के बीच में रख ~कर~उसमे पानी भर देना8और सहन के चारो तरफ़ से घेर कर सहन के दरवाज़े में पर्दा ~लटका देना |9और मसह करने का तेल लेकर घर को और उसके अन्दर के सब चीजों को मसह करना; और यूँ उसे और उसके सब बर्तन को पाक करना तब वह पाक ठहरेगा |10और तू सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह और उसके सब बर्तन को मसह करके मज़बह को पाक करना, और मज़बह निहायत ही पाक ठहरेगा11और तू हौज़ और उसकी कुर्सी को भी मसह करके पाक करना |12और हारून और उसके बेटे को ख़ेमा-ऐ-इज्त्तिमा'अ के दरवाज़े पर लाकर उसको पानी से ग़ुस्ल दिलाना13और हारून को पाक लिबास पहनाना और उसे मसह और पाक करना, ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दे14और उनके बेटों को लाकर उनको कुरते पहनाना,15और जैसा उनके बाप को मसह करे वैसा ही उनको भी मसह करना, ताकि वह मेरे लिए काहिन की ख़िदमत को अन्जाम दे;और उनका मसह होना उनके लिए नसल-दर-नसल हमेशा की कहानत का निशान होगा|"16और मूसा ने सब कुछ जैसा ख़ुदावन्द ने उसको हुक्म किया था उसके मुताबिक़ किया |17और दूसरे साल के पहले महीने की पहली तारीख़ को घर खड़ा किया गया |18और मूसा ने घर को खड़ा किया और ख़ानों को रख कर उनमे तख़्ते लगा उनके बेन्डे खींच दिए और उसके सुतूनों खड़ा कर दिया |19और घर के ऊपर ख़ेमे को तान दिया और ख़ेमा पर उसका ग़िलाफ़ चढ़ा दिया, जैसे ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था |20और शहादतनामे को लेकर सन्दूक़ में रख्खा, और चोबों को सन्दूक़ में लगा सरपोश को सन्दूक़ के ऊपर रख्खा;21फिर उस सन्दूक़ को घर के अन्दर लाया, और बीच का पर्दा लगा कर शहादत के सन्दूक़ को पर्दे के अन्दर किया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।22~और मेज़ को उस पर्दे के बाहर घर को उत्तरी रुख़ में ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर रख्खा,23~और उस पर ख़ुदावन्द के आमने सामने रोटी सजाकर रख्खी, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।24~और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर ही मेज़ के सामने घर की दाख्खिनी रुख़ में शमा'दान को रख्खा,25~और चराग़ ख़ुदावन्द के सामने रोशन कर दिए, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।26~और ज़रीन क़ुर्बानगाह को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर पर्दे के सामने रख्खा,27~और उस पर ख़ुशबूदार मसाल्हे का ख़ुशबू ~जलाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था28और उसने घर के दरवाज़े में पर्दा लगाया था।29~और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के घर के दरवाज़े पर सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह रखकर उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़्र की क़ुर्बानी पेश कीं, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया,30~और उसने हौज़ को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और मज़बह के बीच में रखकर उसमें धोने के लिए पानी भर दिया।31~और मूसा और हारून और उसके बेटों ने अपने-अपने हाँथ-पाँव उसमे धोए|32~जब-जब वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर दाख़िल होते, और जब-जब वह मज़बह के नज़दीक जाते तो अपने आपको धोकर जाते थे, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।33~और उसने घर और मज़बह के चारों तरफ़ सहन को घेर कर सहन के दरवाज़े का पर्दा डाल दिया यूँ मूसा ने उस काम को ख़त्म किया।34~तब ख़ेमा-ए-इजितमा'अ पर बादल छा गया, और घर ख़ुदावन्द के जलाल से भरा हो गया।35और मूसा ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में दाख़िल न हो सका क्यूँकि वह बादल उस पर ठहरा हुआ था, और घर ख़ुदावन्द के जलाल से भरा था |36~और बनी-इस्राईल के सारे सफ़र में यह होता रहा कि जब वह बादल घर के ऊपर से उठ जाता तो वह आगे बढ़ाते,37लेकिन अगर वह बादल न उठता तो उस दिन तक सफ़र नहीं करते थे जब तक वह उठ न जाता|38क्यूँकि ख़ुदावन्द का बादल इस्राईल के सारे घराने ~के समाने और उनके सारे सफ़र में दिन के वक़्त तो घर के ऊपर ठहरा रहता और रात को उसमें आग रहती थी|
1~और ख़ुदावन्द ने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में से मूसा को बुलाकर उससे कहा,2बनी-इस्राईल से कह, कि जब तुम में से कोई ख़ुदावन्द के लिए चढ़ावा चढ़ाए, तो तुम चौपायों या'नी गाय-बैल और भेड़-बकरी का हदिया देना।3अगर उसका चढ़ावा गाय-बैल की सोख़्तनी क़ुर्बानी हो, तो वह बे'ऐब नर को लाकर उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर चढ़ाए ताकि वह ख़ुद ख़ुदावन्द के सामने मक़बूल ठहरे।4और वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर के सिर पर अपना हाथ रख्खे, तब वह उसकी तरफ़ से मक़बूल होगा ताकि उसके लिए कफ़्फ़ारा हो।5~और वह उस बछड़े को ख़ुदावन्द के सामने ज़बह करे, और हारून के बेटे जो काहिन हैं ख़ून को लाकर उसे उस मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें जो ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर है।6तब वह उस सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर की खाल खींचे और उसके 'उज़्व-'उज़्व को काट कर जुदा-जुदा करे।7~फिर हारून काहिन के बेटे मज़बह पर आग रख्खें, और आग पर लकड़ियाँ तरतीब से चुन दें।8और हारून के बेटे जो काहिन हैं, उसके 'आज़ा को और सिर और चर्बी ~को उन लकड़ियों पर जो मज़बह की आग पर होंगी तरतीब से रख दें।9~लेकिन वह उसकी अंतड़ियों और पायों को पानी से धो ले, तब काहिन सबको मज़बह पर जलाए कि वह सोख़्तनी क़ुर्बानी या'नी ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी हों|10और अगर उसका चढ़ावा रेवड़ में से भेड़ या बकरी की सोख़्तनी क़ुर्बानी हो, तो वह बे-'ऐब नर को लाए।11~और वह उसे मज़बह की उत्तरी सिम्त में ख़ुदावन्द के आगे ज़बह करे, और हारून के बेटे जो काहिन हैं उसके ख़ून को मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें।12~फिर वह उसके 'उज़्व-'उज़्व को और सिर और चर्बी को काट कर जुदा-जुदा करे, और काहिन उनकी तरतीब से उन लकड़ियों पर जो मज़बह की आग पर होंगी चुन दे;13~लेकिन वह अंतड़ियों और पायों को पानी से धो ले। तब काहिन सबको लेकर मज़बह पर जला दे, वह सोख़्तनी क़ुर्बानी या'नी ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ूशबू की आतिशी क़ुर्बानी है।14~"और अगर उसका चढ़ावा ख़ुदावन्द के लिए परिन्दों की सोख़्तनी क़ुर्बानी हो, तो वह कुमरियों या कबूतर के बच्चों का चढ़ावा चढ़ाए।15और काहिन उसको मज़बह पर लाकर उसका सिर मरोड़ डाले, और उसे मज़बह पर जला दे; और उसका ख़ून मज़बह के पहलू पर गिर जाने दे।16और उसके पोटे को आलाइश के साथ ले जाकर मज़बह की पूरबी सिम्त में राख की जगह में डाल दे|17~ और वह उसके दोनों बाज़ुओं को पकड़ कर उसे चीरे पर अलग-अलग न करे। तब काहिन उसे मज़बह पर उन लकड़ियों के ऊपर रख कर जो आग पर होंगी जला दे, वह सोख़्तनी क़ुर्बानी या'नी ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी है।
1और अगर कोई ख़ुदावन्द के लिए नज़्र की क़ुर्बानी का हदिया लाए, तो अपने हदिये के लिए मैदा ले और उसमें तेल डाल कर उसके ऊपर लुबान रख्खे;2~और वह उसे हारून के बेटों के पास जो काहिन हैं लाए, और तेल मिले हुए मैदे में से इस तरह अपनी मुट्ठी भर कर निकाले कि सब लुबान उसमें आ जाए। तब काहिन उसे नज़्र की क़ुर्बानी की यादगारी के तौर पर मज़बह के ऊपर जलाए। यह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी होगी।3~और जो कुछ उस नज़्र की क़ुर्बानी में से बाक़ी रह जाए, वह हारून और उसके बेटों का होगा। यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में पाकतरीन चीज़ है।4~"और जब तू तनूर का पका हुआ नज़्र की क़ुर्बानी का हदिया लाए, तो वह तेल मिले हुए मैदे के बेख़मीरी गिरदे या तेल चुपड़ी हुई बेख़मीरी चपातियाँ हों।5~और अगर तेरी नज़्र की क़ुर्बानी का चढ़ावा तवे का पका हुआ हो, तो वह तेल मिले हुए बेख़मीरी मैदे का हो।6~उसको टुकड़े-टुकड़े करके उस पर तेल डालना, तो वह नज़्र की क़ुर्बानी होगी।7~और अगर तेरी नज़्र की क़ुर्बानी का चढ़ावा कढ़ाई का तला हुआ हो, तो वह मैदे से तेल में बनाया जाए।8~तू इन चीज़ों की नज़्र की क़ुर्बानी का चढ़ावा ख़ुदावन्द के पास लाना, वह काहिन को दिया जाए। और वह उसे मज़बह के पास लाए।9और काहिन उस नज़्र की क़ुर्बानी में से उसकी यादगारी का हिस्सा उठा कर मज़बह पर जलाए, यह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी होगी।10और जो कुछ उस नज़्र की क़ुर्बानी में से बच रहे वह हारून और उसके बेटों का होगा। यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में पाकतरीन चीज़ है।11कोई नज़्र की क़ुर्बानी जो तुम ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाओ, वह ख़मीर मिला कर न बनाई जाए; तुम कभी आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने ख़मीर या शहद न जलाना।12~तुम इनको पहले फलों के हदिये के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने लाना, लेकिन राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए वह मज़बह पर न पेश किये जाएँ।13~और तू अपनी नज़्र की क़ुर्बानी के हर हदिये को नमकीन बनाना, और अपनी किसी नज़्र की क़ुर्बानी को अपने ख़ुदा के 'अहद के नमक बग़ैर न रहने देना; अपने सब हदियों के साथ नमक भी पेश करना।14~'और अगर तू पहले फलों की नज़्र का हदिया ख़ुदावन्द के सामने पेश करे तो अपने पहले फलों की नज़्र के चढ़ावे के लिए अनाज की भुनी हुई बालें, या'नी हरी-हरी बालों में से हाथ से मलकर निकाले हुए अनाज को चढ़ाना।15~और उसमें तेल डालना और उसके ऊपर लुबान रखना, तो वह नज़्र की क़ुर्बानी होगी।16~और काहिन उसकी यादगारी के हिस्से को, या'नी थोड़े से मल कर निकाले हुए दानों को और थोड़े से तेल को और सारे लुबान को जला दे; यह ख़ुदावन्द के लिए आतिशी क़ुर्बानी होगी।
1और अगर उसका हदिया सलामती का ज़बीहा हो और वह गाय बैल में से किसी को अदा करे, तो चाहे वह नर हो या मादा; लेकिन जो बे-'ऐब हो उसी को वह ख़ुदावन्द~के सामने पेश करे।2और वह अपना हाथ अपने हदिये के जानवर के सिर पर रख्खे, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर उसे ज़बह करे; और हारून के बेटे जो काहिन हैं उसके ख़ून को मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें।3~और वह सलामती के ज़बीहे में से ख़ुदावन्द के लिए आतिशी क़ुर्बानी पेश करे, या'नी जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं,4और वह सारी चर्बी जो अंतड़ियों पर लिपटी रहती है, और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथ; इन सभों को वह जुदा करे।5और हारून के बेटे उन्हें मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के ऊपर जलाएँ जो उन लकड़ियों पर होगी जो आग के ऊपर हैं; यह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू की अतिशी क़ुर्बानी है।6और अगर उसका सलामती के ज़बीहे का हदिया ख़ुदावन्द के लिए भेड़-बकरी में से हो, तो चाहे नर हो या मादा, लेकिन जो बे-'ऐब हो उसी को वह अदा करे।7~अगर वह बर्रा पेश करता हो, तो उसे ख़ुदावन्द के सामने अदा करे,8~और अपना हाथ अपने चढ़ावे के जानवर के सिर पर रख्खे, और उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सामने ज़बह करे; और हारून के बेटे उसके ख़ून को मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें।9~और वह सलामती के ज़बीहे में से ख़ुदावन्द के लिए अतिशी क़ुर्बानी पेश करे; या'नी उसकी पूरी चर्बी भरी दुम को वह रीढ़ के पास से अलग करे, और जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और वह सारी चर्बी जो अंतड़ियों पर लिपटी रहती है,10~और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथ; इन सभों को वह अलग करे।11~और काहिन इन्हें मज़बह पर जलाए; यह उस अतिशी क़ुर्बानी की ग़िज़ा है जो ख़ुदावन्द को पेश की जाती है।12~"और अगर वह बकरा या बकरी पेश करता हो, तो उसे ख़ुदावन्द के सामने अदा करे।13~और वह अपना हाथ उसके सिर पर रख्खे, और उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सामने ज़बह करे; और हारून के बेटे उसके ख़ून को मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़कें।14~और वह उसमें से अपना चढ़ावा अतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करे; या'नी जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और वह सब चर्बी जो अंतड़ियों पर लिपटी रहती है,15~और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथ, इन सभों को वह अलग करे।16और काहिन इनको मज़बह पर जलाए; यह उस अतिशीन क़ुर्बानी की ग़िज़ा है, जो राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए होती है; सारी चर्बी ख़ुदावन्द की है।17यह तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में नसल-दर-नसल एक हमेशा का क़ानून रहेगा, कि तुम चर्बी या ख़ून मुतलक़ न खाओ।'
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,2~बनी इस्राईल से कह कि अगर कोई उन कामों में से जिनको ख़ुदावन्द ने मना' किया है, किसी काम को करे और उससे अनजाने में ख़ता हो जाए।3अगर काहिन-ए-मम्सूह ऐसी ख़ता करे जिससे क़ौम मुजरिम ठहरती हो, तो वह अपनी उस ख़ता के लिए जो उसने की है, एक बे-'ऐब बछड़ा ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करे।4~वह उस बछड़े को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के आगे लाए, और बछड़े के सिर पर अपना हाथ रख्खे और उसको ख़ुदावन्द के आगे ज़बह करे।5~और वह काहिन-ए-मम्सूह उस बछड़े के ख़ून में से कुछ लेकर उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ले जाए।6~और काहिन अपनी उँगली ख़ून में डुबो-डुबो कर, और ख़ून में से ले लेकर उसे हैकल के पर्दे के सामने सात बार ख़ुदावन्द के आगे छिड़के।7~और काहिन उसी ख़ून में से ख़ुशबूदार ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह के सींगों पर, जो ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में है, ख़ुदावन्द के आगे लगाए; और उस बछड़े के बाक़ी सब ख़ून को सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के पाये पर, जो ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर है उँडेल दे।8~फिर वह ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े की सब चर्बी को उससे अलग करे; या'नी जिस चर्बी से अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और वह सब चर्बी जो अंतड़ियों पर लिपटी रहती है,9~और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथ; इन सभों को वह वैसे ही अलग करे|10~जैसे सलामती के ज़बीहे के बछड़े से वह अलग किए जाते हैं; और काहिन उनको सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह पर जलाए।11~और उस बछड़े की खाल, और उसका सब गोश्त, और सिर और पाये, और अंतड़ियाँ और गोबर;12~या'नी पूरे बछड़े को लश्कर गाह के बाहर किसी साफ़ जगह में जहाँ राख पड़ती है, ले जाए; और सब कुछ लकड़ियों पर रख कर आग से जलाए, वह वहीं जलाया जाए जहाँ राख डाली जाती है।13~'अगर बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत से अनजाने चूक हो जाए, और यह बात जमा'अत की आँखों से छिपी तो हो तो भी वह उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना'~किया है, किसी काम को करके मुजरिम हो गई हो,14~तो उस ख़ता के जिसके वह क़ुसूरवार हों, मा'लूम हो जाने पर जमा'अत एक बछड़ा ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ाने के लिए ख़ेमा-ए-इजतिमा'अ के सामने लाए।15~और जमा'अत के बुज़ुर्ग अपने-अपने हाथ ख़ुदावन्द के आगे उस बछड़े के सिर पर रख्खें, और बछड़ा ख़ुदावन्द के आगे ज़बह किया जाए।16~और काहिन-ए-मम्सूह उस बछड़े के ख़ून में से कुछ ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ले जाए;17~और काहिन अपनी उँगली उस ख़ून में डुबो-डुबो कर उसे पर्दे के सामने सात बार ख़ुदावन्द के आगे छिड़के,18और उसी ख़ून में से मज़बह के सींगों पर जो ख़ुदावन्द के आगे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में है लगाए, और बाक़ी सारा ख़ून सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के पाये पर, जो ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर है, उँडेल दे।19~और उसकी सब चर्बी उससे अलग करके उसे मज़बह पर जलाए।20~ वह बछड़े से यही करे, या'नी जो कुछ ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े से किया था, वही इस बछड़े से करे। यूँ काहिन उनके लिए कफ़्फ़ारा दे, तो उन्हें मु'आफ़ी मिलेगी;21~और वह उस बछड़े को लश्करगाह के बाहर ले जा कर जलाए, जैसे पहले बछड़े को जलाया था; यह जमा'अत की ख़ता की क़ुर्बानी है।22~और जब किसी सरदार से ख़ता हो जाए, और वह उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना' किया है किसी काम को अनजाने में कर बैठे और मुजरिम हो जाए।23~तो जब वह ख़ता जो उससे सरज़द हुई है उसे बता दी जाए, तो वह एक बे-'ऐब बकरा अपनी क़ुर्बानी के लिए लाए;24~और अपना हाथ उस बकरे के सिर पर रख्खे, और उसे उस जगह ज़बह करे जहाँ सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर ख़ुदावन्द के आगे ज़बह करते हैं; यह ख़ता की क़ुर्बानी है।25~और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून अपनी उँगली पर लेकर उसे सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के सींगों पर लगाए, और उसका बाक़ी सब ख़ून सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के पाए पर उँडेल दे।26~और सलामती के ज़बीहे की चर्बी की तरह उसकी सब चर्बी मज़बह पर जलाए। यूँ काहिन उसकी ख़ता का कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।27~'और अगर कोई 'आम आदमियों में से अनजाने में ख़ता करे, और उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना' किया है किसी काम को करके मुजरिम हो जाए;28~तो जब वह ख़ता जो उसने की है उसे बता दी जाए, तो वह अपनी उस ख़ता के लिए जो उससे सरज़द हुई है, एक बे-'ऐब बकरी लाए।29~और वह अपना हाथ ख़ता की क़ुर्बानी के जानवर के सिर पर रख्खे, और ख़ता की क़ुर्बानी के उस जानवर को सोख़्तनी क़ुर्बानी की जगह पर ज़बह करे।30और काहिन उसका कुछ ख़ून अपनी उँगली पर ले कर उसे सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के सींगों पर लगाए, और उसका बाक़ी सब ख़ून मज़बह के पाए पर उँडेल दे;31~और वह उसकी सारी चर्बी को अलग करे जैसे सलामती के ज़बीहे की चर्बी अलग की जाती है, और काहिन उसे मज़बह पर राहतअंगेज़ ख़ुशबू के तौर पर ख़ुदावन्द के लिए जलाए। यूँ काहिन उसके लिए कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।32~और अगर ख़ता की क़ुर्बानी के लिए उसका हदिया बर्रा हो, तो वह बे-'ऐब मादा लाए;33और अपना हाथ ख़ता की क़ुर्बानी के जानवर के सिर पर रख्खे; और उसे ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर उस जगह ज़बह करे जहाँ सोख़्तनी क़ुर्बानी ज़बह करते है |"34और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून अपनी उँगली पर लेकर उसे सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह के सींगों पर लगाए, और उसका बाक़ी सब ख़ून मज़बह के पाये पर उँडेल दे।35~और उसकी सब चर्बी को अलग करे जैसे सलामती के ज़बीहे के बर्रे की चर्बी अलग की जाती है। और काहिन उसको मज़बह पर ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों के ऊपर जलाए। यूँ काहिन उसके लिए उसकी ख़ता का जो उससे हुई है कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
1और ~अगर कोई इस तरह ख़ता करे कि~वह गवाह हो और उसे क़सम दी जाए कि जैसे उसने कुछ देखा या उसे कुछ मा'लूम है, और वह न बताए, तो उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।2~या अगर कोई शख़्स किसी नापाक चीज़ को छू ले, चाहे वह नापाक जानवर या नापाक चौपाये या नापाक रेंगनेवाले जानदार की लाश हो, तो चाहे उसे मा'लूम भी न हो कि वह नापाक हो गया है तो भी वह मुजरिम ठहरेगा।3या अगर वह इन्सान की उन नजासतों में से जिनसे वह नजिस हो जाता है, किसी नजासत को छू ले और उसे मा'लूम न हो, तो वह उस वक़्त मुजरिम ठहरेगा जब उसे मा'लूम हो जाएगा।4~या अगर कोई बगै़र सोचे अपनी ज़बान से बुराई या भलाई करने की क़सम खाले, तो क़सम खा कर वह आदमी चाहे कैसी ही बात बग़ैर सोचे कह दे, बशर्ते कि उसे मा'लूम न हो, तो ऐसी बात में मुजरिम उस वक़्त ठहरेगा जब उसे मा'लूम हो जाएगा।5और जब वह इन बातों में से किसी में मुजरिम हो, तो जिस अम्र में उससे ख़ता हुई है वह उसका इक़रार करे,6~और ख़ुदावन्द के सामने अपने जुर्म की क़ुर्बानी लाए; या'नी जो ख़ता उससे हुई है उसके लिए रेवड़ में से एक मादा, या'नी एक भेड़ या बकरी ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करे, और काहिन उसकी ख़ता का कफ़्फ़ारा दे7~"और अगर उसे भेड़ देने का मक़दूर न हो, तो वह अपनी ख़ता के लिए जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे ख़ुदावन्द के सामने पेश करे; एक ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरा सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए।8वह उन्हें काहिन के पास ले आए जो पहले उसे जो ख़ता की क़ुर्बानी के लिए है पेश करे, और उसका सिर गर्दन के पास से मरोड़ डाले पर उसे अलग न करे,9और ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून मज़बह के पहलू पर छिड़के और बाक़ी ख़ून को मज़बह के पाये पर गिर जाने दे; यह ख़ता की क़ुर्बानी है।10~और दूसरे परिन्दे को हुक्म के मुवाफ़िक़ सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर अदा करे यूँ काहिन उसकी ख़ता का जो उसने की है कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।11~और अगर उसे दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे लाने का भी मक़दूर न हो, तो अपनी ख़ता के लिए अपने हदिये के तौर पर, ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए लाए। उस पर न तो वह तेल डाले, न लुबान रख्खे, क्यूँकि यह ख़ता की क़ुर्बानी है।12~वह उसे काहिन के पास लाए, और काहिन उसमें से अपनी मुट्ठी भर कर उसकी यादगारी का हिस्सा मज़बह पर ख़ुदावन्द की आतिशीन क़ुर्बानी के ऊपर जलाए। यह ख़ता की क़ुर्बानी है।13यूँ काहिन उसके लिए इन बातों में से, जिस किसी में उससे ख़ता हुई है उस ख़ता का कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी; और जो कुछ बाक़ी रह जाएगा, वह नज़्र की क़ुर्बानी की तरह काहिन का होगा।”14~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;15अगर ख़ुदावन्द की पाक चीज़ों में किसी से तक़सीर हो और वह अनजाने में ख़ता करे, तो वह अपने जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर रेवड़ में से बे-'ऐब मेंढा ख़ुदावन्द के सामने अदा करे। जुर्म की क़ुर्बानी के लिए उसकी क़ीमत हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से चाँदी की उतनी ही मिस्क़ालें हों, जितनी तू मुक़र्रर कर दे।16~और जिस पाक चीज़ में उससे तक़सीर हुई है वह उसका मु'आवज़ा दे, और उसमें पाँचवाँ हिस्सा और बढ़ा कर उसे काहिन के हवाले करे। यूँ काहिन जुर्म की क़ुर्बानी का मेंढा पेश कर उसका कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।17~'और अगर कोई ख़ता करे, और उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना' किया है किसी काम को करे, तो चाहे वह यह बात जानता भी न हो तो भी मुजरिम ठहरेगा; और उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।18तब वह रेवड़ में से एक बे-'ऐब मेंढा उतने ही दाम का, जो तू मुक़र्रर कर दे, जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन के पास लाए। यूँ काहिन उसकी उस बात का, जिसमें उससे अनजाने में चूक हो गई क़फ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।19~यह जुर्म की क़ुर्बानी है, क्यूँकि वह यक़ीनन ख़ुदावन्द के आगे मुजरिम है।"
1फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से ~कहा,2~"अगर किसी से यह ख़ता हो कि वह ख़ुदावन्द का क़ुसूर करे, और अमानत या लेन-देन या लूट के मु'आमिले में अपने पड़ोसी को धोखा दे, या अपने पड़ोसी पर ज़ुल्म करे,3~या किसी खोई हुई चीज़ को पाकर धोखा दे, और झूठी क़सम भी खा ले; तब इनमें से चाहे कोई बात हो जिसमें किसी शख़्स से ख़ता हो गई है,4इसलिए अगर उससे ख़ता हुई है और वह मुजरिम ठहरा है, तो जो चीज़ उसने लूटी, या जो चीज़ उसने ज़ुल्म करके छीनी, या जो चीज़ उसके पास अमानत थी, या जो खोई हुई चीज़ उसे मिली,5~या जिस चीज़ के बारे में उसने झूटी क़सम खाई; उस चीज़ को वह ज़रूर पूरा-पूरा वापस करे, और असल के साथ पाँचवा हिस्सा भी बढ़ा कर दे। जिस दिन यह मा'लूम हो कि वह मुजरिम है, उसी दिन वह उसे उसके मालिक को वापस दे;6~और अपने जुर्म की क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने अदा करे, और जितना दाम तू मुक़र्रर करे उतने दाम का एक बे-'ऐब मेंढा रेवड़ में से जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन के पास लाए।"7यूँ कहिन उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे, तो जिस काम को करके वह मुजरिम ठहरा है उसकी उसे मु'आफ़ी मिलेगी।"8~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,9~"हारून और उसके बेटों को यूँ हुक्म दे कि सोख़्तनी क़ुर्बानी के बारे में शरा' यह है, कि सोख़्तनी क़ुर्बानी मज़बह के ऊपर आतिशदान पर तमाम रात सुबह तक रहे, और मज़बह की आग उस पर जलती रहे।10और काहिन अपना कतान का लिबास पहने और कतान के पाजामे को अपने तन पर डाले और आग ने जो सोख़्तनी क़ुर्बानी को मज़बह पर भसम करके राख कर दिया है, उस राख को उठा कर उसे मज़बह की एक तरफ़ रख्खे।11~फिर वह अपने लिबास को उतार कर दूसरे कपड़े पहने, और उस राख को उठा कर लश्करगाह के बाहर किसी साफ़ जगह में ले जाए।12और मज़बह पर आग जलती रहे, और कभी बुझने न पाए; और काहिन हर सुबह को उस पर लकड़ियाँ जला कर सोख़्तनी क़ुर्बानी को उसके ऊपर चुन दे, और सलामती के ज़बीहों की चर्बी को उसके ऊपर जलाया करे।13~मज़बह पर आग हमेशा जलती रख्खी जाए; वह कभी बुझने न पाए।14नज़्र की क़ुर्बानी~'और नज़्र की क़ुर्बानी के बारे में शरा' यह है, कि हारून के बेटे उसे मज़बह के आगे ख़ुदावन्द के सामने पेश करें।15और वह नज़्र की क़ुर्बानी में से अपनी मुट्ठी भर इस तरह निकाले कि उसमें थोड़ा सा मैदा और कुछ तेल जो उसमें पड़ा होगा और नज़्र की क़ुर्बानी का सब लुबान आ जाए, और इस~यादगारी के हिस्से को मज़बह पर ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज ख़ुशबू के तौर पर जलाए।16~और जो बाक़ी बचे उसे हारून और उसके बेटे खाएँ, वह बग़ैर ख़मीर के पाक जगह में खाया जाए, या'नी वह ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के सहन में उसे खाएँ।17वह ख़मीर के साथ पकाया न जाए; मैंने यह अपनी आतिशीन क़ुर्बानियों में से उनका हिस्सा दिया है, और यह ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी की तरह बहुत पाक है।18~हारून की औलाद के सब मर्द उसमें से खाएँ। तुम्हारी नसल-दर-नसल की आतिशी क़ुर्बानियों में से यह उनका हक़ होगा। जो कोई उन्हें छुए वह पाक ठहरेगा।"19~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,20~'जिस दिन हारून को मसह किया जाए उस दिन वह और उसके बेटे ख़ुदावन्द के सामने यह हदिया अदा करें, कि ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा, आधा सुबह को और आधा शाम को, हमेशा नज़्र की क़ुर्बानी के लिए लाएँ।21~वह तवे पर तेल में पकाया जाए; जब वह तर हो जाए तो तू उसे ले आना। इस नज़्र ~की क़ुर्बानी को पकवान के टुकड़ों की सूरत में पेश करना ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू भी हो।22और जो उसके बेटों में से उसकी जगह काहिन मम्सूह हो वह उसे पेश करे। यह हमेशा का क़ानून होगा कि वह ख़ुदावन्द के सामने बिल्कुल जलाया जाए।23~काहिन की हर एक नज़्र की क़ुर्बानी बिल्कुल जलाई जाए; वह कभी खाई न जाए।"24~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,25~"हारून और उसके बेटों से कह कि ख़ता की क़ुर्बानी के बारे में शरा' यह है, कि जिस जगह सोख़्तनी क़ुर्बानी का जानवर ज़बह किया जाता है, वहीं ख़ता की क़ुर्बानी का जानवर भी ख़ुदावन्द के आगे ज़बह किया जाए; वह बहुत पाक है।26~जो काहिन उसे ख़ता के लिए पेश करे वह उसे खाए: वह पाक जगह में, या'नी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सहन में खाया जाए।27~जो कुछ उसके गोश्त से छू जाए वह पाक ठहरेगा, और अगर किसी कपड़े पर उसके ख़ून की छिट पड़ जाए, तो जिस कपड़े पर उसकी छींट पड़ी है तू उसे किसी पाक जगह में धोना।28~और मिट्टी का वह बर्तन जिसमें वह पकाया जाए तोड़ दिया जाए, लेकिन अगर वह पीतल के बर्तन में पकाया जाए तो उस बर्तन की माँज कर पानी से धो लिया जाए।29~और काहिनों में से हर मर्द उसे खाए; वह बहुत पाक है।30~लेकिन जिस ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर पाक मक़ाम में कफ़्फ़ारे के लिए पहुँचाया गया है, उसका गोश्त कभी न खाया जाए; बल्कि वह आग से जला दिया जाए।
1~"और जुर्म की क़ुर्बानी के बारे में शरा' यह है। वह बहुत पाक है।2~जिस जगह सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करते हैं, वहीं वह जुर्म की क़ुर्बानी के जानवर को भी ज़बह करें; और वह उसके ख़ून को मज़बह के चारों तरफ़ छिड़के।3~और वह उसकी सब चर्बी को चढ़ाए, या'नी उसकी मोटी दुम को, और उस चर्बी को जिससे अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं4~और दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी जो कमर के पास रहती है, और जिगर पर की झिल्ली गुर्दों के साथः इन सबको वह अलग करे।5~और काहिन उनको मज़बह पर ख़ुदावन्द के सामने आतिशीन क़ुर्बानी के तौर पर जलाए, यह जुर्म की क़ुर्बानी है।6~और काहिनों में से हर मर्द उसे खाए और किसी पाक जगह में उसे खाएँ; वह बहुत पाक है।7~जुर्म की क़ुर्बानी वैसी ही है ~जैसी ख़ता की क़ुर्बानी है और उनके लिए एक ही शरा' है, और उन्हें वही काहिन ले जो उनसे कफ़्फ़ारा देता है8~और जो काहिन किसी शख़्स की तरफ़ से सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करता हैं वही काहिन उस सोख़्तनी क़ुर्बानी की खाल को जो उसने पेश कीं, अपने लिए ले-ले।9और हर एक नज़्र ~की क़ुर्बानी जो तनूर में पकाई जाए, और वह भी जी कड़ाही में तैयार की जाए, और तवे की पकी हुई भी उसी~काहिन की है जो उसे पेश करे।10~और हर एक नज़्र की क़ुर्बानी चाहे उसमे तेल मिला हुआ हो या वह ख़ुश्क हो, बराबर-बराबर हारून के सब बेटों के लिए हो।11'और सलामती के ज़बीहे के बारे में जिसे कोई ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाए शरा' यह है,12~कि वह अगर शुक्राने के तौर पर उसे अदा करे तो वह शुक्राने के ज़बीहे के साथ, तेल मिले हुए बे-ख़मीरी कुल्चे और तेल चुपड़ी हुई बे-ख़मीरी चपातियाँ और तेल मिले हुए मैदे के तर कुल्चे भी पेश करे।13~और सलामती के ज़बीहे की क़ुर्बानी के साथ जो शुक्राने के लिए होगी, वह ख़मीरी रोटी के गिर्द अपने हदिये पर पेश करे।14~और हर हदिये में से वह एक को लेकर उसे ख़ुदावन्द के सामने हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर अदा करे; और यह उस काहिन का ही जो सलामती के ज़बीहे का ख़ून छिड़कता है।15~और सलामती के ज़बीहों की उस क़ुर्बानी का गोश्त, जो उस की तरफ़ से शुक्राने के तौर पर होगी, क़ुर्बानी अदा करने के दिन ही खा लिया जाए; वह उसमें से कुछ सुबह तक बाक़ी न छोड़े।16~लेकिन अगर उसके चढ़ावे की क़ुर्बानी मिन्नत का या रज़ा का हदिया हो, तो वह उस दिन खाई जाए जिस दिन वह अपनी क़ुर्बानी पेश करे; और जो कुछ उस में से बच रहे, वह दूसरे दिन खाया जाए।17~लेकिन जो कुछ उस क़ुर्बानी के गोश्त में से तीसरे दिन तक रह जाए वह आग में जला दिया जाए।18~और उसके सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानी के गोश्त में से अगर कुछ तीसरे दिन खाया जाए तो वह मंजूर न होगा, और न उस का सवाब क़ुर्बानी देने वाले की तरफ़ मन्सूब होगा, बल्कि यह मकरूह बात होगी; और जो उस में से खाए उस का गुनाह उसी के सिर लगेगा।19'और जो गोश्त किसी नापाक चीज़ से छू जाए, खाया न जाए; वह आग में जलाया जाए। और ज़बीहे के गोश्त को, जो पाक है वह तो खाए,20~लेकिन जो शख़्स नापाकी की हालत में ख़ुदावन्द की सलामती के ज़बीहे का गोश्त खाए, वह अपने लोगों में से काट डाला जाए।21~और जो कोई किसी नापाक चीज़ को छुए, चाहे वह इन्सान की नापाकी हो या नापाक जानवर हो या कोई नजिस मकरूह शय हो, और फिर ख़ुदावन्द के सलामती के ज़बीहे के गोश्त में से खाए, वह भी अपने लोगों में से काट डाला जाए।"22~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,23~"बनी-इस्राईल से कह, कि तुम लोग न तो बैल की न भेड़ की और न बकरी की कुछ चर्बी खाना।24जो जानवर ख़ुद-ब-ख़ुद मर गया हो और जिस को दरिन्दों ने फाड़ा हो, उनकी चर्बी ~और-और काम में लाओ तो लाओ पर उसे तुम किसी हाल में न खाना।25~क्यूँकि जो कोई ऐसे चौपाये की चर्बी खाए, जिसे लोग आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाते हैं, वह खाने वाला आदमी अपने लोगों में से काट डाला जाए।26~और तुम अपनी सुकूनतगाहों में कहीं भी किसी तरह का ख़ून चाहे परिन्दे का हो या चौपाये का, हरगिज़ न खाना।27~जो कोई किसी तरह का ख़ून खाए, वह शख़्स अपने लोगों में से काट डाला जाए।"28और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,29"बनी-इस्राईल से कह कि जो कोई अपना सलामती का ज़बीहा ख़ुदावन्द के सामने पेश करे, वह ख़ुद ही अपने सलामती के ज़बीहे की क़ुर्बानी में से अपना हदिया ख़ुदावन्द के सामने लाए "30~वह अपने ही हाथों में ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानी को लाए, या'नी चर्बी को सीने के साथ लाए कि सीना हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर हिलाया जाए।31~और काहिन चर्बी ~को मज़बह पर जलाए, लेकिन सीना हारून और उसके बेटों का हो।32~और तुम सलामती के ज़बीहों की दहनी रान उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन को देना।33~हारून के बेटों में से जो सलामती के ज़बीहों का ख़ून और चर्बी पेश करे, वही वह दहनी रान अपना हिस्सा ले।34~क्यूँकि बनीइस्राईल के सलामती के ज़बीहों में से हिलाने की क़ुर्बानी का सीना और उठाने की क़ुर्बानी की रान को लेकर, मैंने हारून काहिन और उसके बेटों को दिया है, कि यह हमेशा बनीइस्राईल की तरफ़ से उन का हक़ हो।35~"यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में से हारून के मम्सूह होने का और उसके बेटों के मम्सूह होने का हिस्सा है, जो उस दिन मुक़र्रर हुआ जब वह ख़ुदावन्द के सामने काहिन की ख़िदमत को अंजाम देने के लिए हाज़िर किए गए।36~या'नी जिस दिन ख़ुदावन्द ने उन्हें मसह किया, उस दिन उसने यह हुक्म दिया कि बनी-इस्राईल की तरफ़ से उन्हें यह मिला करे; इसलिए उन की नसल-दर-नसल यह उन का हक़ रहेगा।"37~सोख़्तनी क़ुर्बानी, और नज़्र की क़ुर्बानी, और ख़ता की क़ुर्बानी, और जुर्म की क़ुर्बानी, और तख़्सीस और सलामती के ज़बीहे के बारे में शरा' यह है।38~जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को उस दिन कोह-ए-सीना पर दिया जिस दिन उसने बनी-इस्राईल को फ़रमाया, कि सीना के वीराने में ख़ुदावन्द के सामने अपनी क़ुर्बानी पेश करें।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~"हारून और उसके साथ उसके बेटों को, और लिबास, को और मसह करने के तेल को, और ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े और दोनों मेंढों और बे-ख़मीरी रोटियों की टोकरी को ले;3~और सारी जमा'अत को ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े पर जमा' कर।"4चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ 'अमल किया; और सारी जमा'अत ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर जमा' हुई।5~तब मूसा ने जमा'अत से कहा, 'यह वह काम है, जिसके करने का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है।"6~फिर मूसा हारून और उसके बेटों को आगे लाया और उन को पानी से ग़ुस्ल दिलाया।7~और उसको कुरता पहना कर उस पर कमरबन्द लपेटा, और उसको जुब्बा पहना कर उस पर अफ़ोद लगाया और अफ़ोद के कारीगरी से बुने हुए कमरबन्द को उस पर लपेटा, और उसी से उसको उसके ऊपर कस दिया।8~और सीनाबन्द को उसके ऊपर लगा कर सीनाबन्द में ऊरीम और तुम्मीम लगा दिए।9~और उसके सिर पर 'अमामा रख्खा और 'अमामे पर सामने सोने के पत्तर या'नी पाक ताज को लगाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।10~और मूसा ने मसह करने का तेल लिया; और घर को और जो कुछ उसमें था सब को मसह कर के पाक किया।11~और उस में से थोड़ा सा लेकर मज़बह पर सात बार छिड़का; और मज़बह और उसके सब बर्तनों को, और हौज़ और उसकी कुर्सी को मसह किया, ताकि उन्हें पाक करे।12~और मसह करने के तेल में से थोड़ा सा हारून के सिर पर डाला और उसे मसह किया ताकि वह पाक हो।13~फिर मूसा हारून के बेटों को आगे लाया और उन को कुरते पहनाए, और उन पर कमरबन्द लपेटे, और उनको पगड़ियाँ पहनाई जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।14~और वह ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े को आगे लाया, और हारून और उसके बेटों ने अपने-अपने हाथ ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े के सिर पर रख्खे।15~फिर उसने उसको ज़बह किया, और मूसा ने ख़ून को लेकर मज़बह के चारों तरफ़ उसके सींगों पर अपनी उँगली से लगाया और मज़बह को पाक किया; और बाक़ी ख़ून मज़बह के पाये पर उँडेल कर उसका कफ़्फ़ारा दिया, ताकि वह पाक हो।16~और मूसा ने अंतड़ियों के ऊपर की सारी चर्बी, और जिगर पर की झिल्ली, और दोनों गुर्दों और उन की चर्बी को लिया और उन्हें मज़बह पर जलाया;17~लेकिन बछड़े को, उसकी खाल और गोश्त और गोबर के साथ, लश्करगाह के बाहर आग में जलाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।18~फिर उसने सोख़्तनी क़ुर्बानी के मेंढे को हाज़िर किया, और हारून और उसके बेटों ने अपने-अपने हाथ उस मेंढे के सिर पर रख्खे।19और उसने उसको ज़बह किया, और मूसा ने ख़ून को मज़बह के ऊपर चारों तरफ़ छिड़का।20~फिर उसने मेंढे के 'उज़्व-'उज़्व को काट कर अलग किया, और मूसा ने सिर और 'आज़ा और चर्बी को जलाया।21और उसने अंतड़ियों और पायों को पानी से धोया, और मूसा ने पूरे मेंढे को मज़बह पर जलाया। यह सोख़्तनी क़ुर्बानी राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए थी, यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानी थी, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।22और उसने दूसरे मेंढे को जो तख़्सीसी मेंढा था हाज़िर किया, और हारून और उसके बेटों ने अपने-अपने हाथ उस मेंढे के सिर पर रख्खे।23और उसने उस को ज़बह किया, और मूसा ने उसका कुछ ख़ून लेकर उसे हारून के दहने कान की लौ पर, और दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर लगाया।24~फिर वह हारून के बेटों को आगे लाया, और उसी ख़ून में से कुछ उनके दहने कान की लौ पर और दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर लगाया; और बाक़ी ख़ून को उसने मज़बह के ऊपर चारों तरफ़ छिड़का।25~और उसने चर्बी और मोटी दुम, और अंतड़ियों के ऊपर की चर्बी, और जिगर पर की झिल्ली, और दोनो गुर्दे और उन की चर्बी, और दहनी रान इन सभों को लिया,26और बे-ख़मीरी रोटियों की टोकरी में से जो ख़ुदावन्द के सामने रहती थी, बे-ख़मीरी रोटी का एक गिर्दा, और तेल चुपड़ी हुई रोटी का एक गिर्दा, और एक चपाती निकाल कर उन्हे चर्बी और दहनी रान पर रख्खा।27और इन सभों को हारून और उसके बेटों के हाथों पर रखकर उन्हें हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़दावन्द के सामने हिलाया।28~फिर मूसा ने उनको उनके हाथों से ले लिया, और उनको मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के ऊपर जलाया। यह राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए तख़्सीसी क़ुर्बानी थी। यह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानी थी।29~फिर मूसा ने सीने को लिया, और उसको हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाया। उस तख़्सीसी मेंढे में से यही मूसा का हिस्सा था, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।30~और मूसा ने मसह करने के तेल और मज़बह के ऊपर के ख़ून में से कुछ-कुछ लेकर उसे हारून और उसके लिबास पर, और साथ ही उसके बेटों पर और उनके लिबास पर छिड़का; और हारून और उसके लिबास को, और उसके बेटों को और उनके लिबास को पाक किया।31~और मूसा ने हारून और उसके बेटों से कहा कि , "ये गोश्त ख़मा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर पकाओ, और इसको वहीं उस रोटी के साथ जो तख़्सीसी टोकरी में है, खाओ, जैसा मैंने हुक्म किया है कि हारून और उसके बेटे उसे खाएँ।32~और इस गोश्त और रोटी में से जो कुछ बच रहे उसे आग में जला देना;33~और जब तक तुम्हारी तख्सीस के दिन पूरे न हों, तब तक या'नी सात दिन तक, तुम ख़ेमा-ए-इजतिमा'अ के दरवाज़े से बाहर न जाना; क्यूँकि सात दिन तक वह तुम्हारी तख्सीस करता रहेगा।34~जैसा आज किया गया है, वैसा ही करने का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है ताकि तुम्हारे लिए कफ़्फ़ारा हो।35~इसलिए तुम ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर सात रोज़ तक दिन रात ठहरे रहना, और ख़ुदावन्द के हुक्म को मानना, ताकि तुम मर न जाओ; क्यूँकि ऐसा ही हुक्म मुझको मिला है।"36तब हारून और उसके बेटों ने सब काम ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ किया जो उस ने मूसा के ज़रिए' दिया था।
1~आठवें दिन मूसा ने हारून और उसके बेटों को और बनी-इस्राईल के बुज़ुर्गों को बुलाया और हारून से कहा कि ,2~"ख़ता की~क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब बछड़ा और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब मेंढा तू अपने वास्ते ले और उन को ख़ुदावन्द के सामने पेश कर।3~और बनी-इस्राईल से कह, कि तुम ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा, और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, और एक बर्रा जो यकसाला और बे-'ऐब हों लो।4और सलामती के ज़बीहे के लिए ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाने के वास्ते एक बैल और एक मेंढा, और तेल मिली हुई नज़्र की क़ुर्बानी भी लो; क्यूँकि आज ख़ुदावन्द तुम पर ज़ाहिर होगा।"5और वह जो कुछ मूसा ने हुक्म किया था सब ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के सामने ले आए, और सारी जमा'अत नज़दीक आकर ख़ुदावन्द के सामने खड़ी हुई।6~मूसा ने कहा, "ये वह काम है जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है कि तुम उसे करो, और ख़ुदावन्द का जलाल तुम पर ज़ाहिर होगा।"7और मूसा ने हारून से कहा, कि मज़बह के नज़दीक जा और अपनी ख़ता की क़ुर्बानी और अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश कर और अपने लिए और क़ौम के लिए कफ़्फ़ारा दे, और जमा'अत के हदिये को पेश कर और उनके लिए कफ़्फ़ारा दे जैसा ख़ुदावन्द ने हुक्म किया है।"8~तब हारून ने मज़बह के पास जाकर उस बछड़े को जो उसकी ख़ता की क़ुर्बानी के लिए था ज़बह किया।9और हारून के बेटे ख़ून को उसके पास ले गए, और उस ने अपनी उँगली उस में डुबो-डुबो कर उसे मज़बह के सीगों पर लगाया और बाक़ी ख़ून मज़बह के पाये पर उँडेल दिया।10~लेकिन ख़ता की क़ुर्बानी की चर्बी, और गुर्दों और जिगर पर की झिल्ली को उसने मज़बह पर जलाया, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था।11~और गोश्त और खाल को लश्करगाह के बाहर आग में जलाया।12~फिर उसने सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह किया, और हारून के बेटों ने ख़ून उसे दिया और उसने उसको मज़बह के चारों तरफ़ छिड़का।13~और सोख़्तनी क़ुर्बानी को एक-एक टुकड़ा कर के, सिर के साथ उसको दिया और उसने उन्हें मज़बह पर जलाया।14~और उसने अंतड़ियों और पायों को धोया और उनको मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के उपर जलाया ।15~फिर जमा'अत के हदिये को आगे लाकर, और उस बकरे को जो जमा'अत की ख़ता की क़ुर्बानी के लिए था लेकर उस को ज़बह किया, और पहले की तरह उसे भी ख़ता के लिए पेश करा।16और सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को आगे लाकर, उसने उसे हुक्म के मुताबिक़ पेश किया।17. फिर नज़्र की क़ुर्बानी को आगे लाया, और उसमें से एक मुट्ठी लेकर सुबह की सोख़्तनी क़ुर्बानी के 'अलावा उसे जलाया।18और उसने बैल और मेंढे को, जो लोगों की तरफ़ से सलामती के ज़बीहे थे, ज़बह किया; और हारून के बेटों ने ख़ून उसे दिया, और उसने उसको मज़बह पर चारों तरफ़ छिड़का।19और उन्होंने बैल की चर्बी को, और मेंढे की मोटी दुम को, और उस चर्बी को जिससे अंतड़ियाँ ढकी रहती हैं, और दोनों गुर्दों, और जिगर पर की झिल्ली को भी उसे दिया;20~और चर्बी सीनों पर धर दी। तब उसने वह चर्बी मज़बह पर जलाई,21~और सीना और दहनी रान को हारून ने मूसा के हुक्म के मुताबिक़ हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाया।22~और हारून ने जमा'अत की तरफ़ अपने हाथ बढ़ाकर उनको बरकत दी; ~और ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानी पेश करके नीचे उतर आया।23~और मूसा और हारून ख़ेमा-ए- इजितमा'अ में दाख़िल हुए, और बाहर निकल कर लोगों को बरकत दी; तब सब लोगों पर ख़ुदावन्द का जलाल नमूदार हुआ।24~और ख़ुदावन्द के सामने से आग निकली और सोख़्तनी क़ुर्बानी और चर्बी को मज़बह के ऊपर भसम कर दिया; लोगों ने यह देख कर ना'रे मारे और~सरनगूँ हो गए।
1~और नदब और अबीहू ने जो हारून के बेटे थे, अपने-अपने ख़ुशबूदान को लेकर उनमें आग भरी, और उस पर और ऊपरी आग जिस का हुक्म ख़ुदावन्द ने उनको नहीं दिया था, ख़ुदावन्द के सामने पेश कीं।2और ख़ुदावन्द के सामने से आग निकली और उन दोनों को खा गई, और वह ख़ुदावन्द के सामने मर गए।3~तब मूसा ने हारून से कहा, "यह वही बात है जो ख़ुदावन्द ने कही थी, कि जो मेरे नज़दीक आएँ ज़रूर है कि वह मुझे पाक जानें, और सब लोगों के आगे मेरी तम्जीद करें।" और हारून चुप रहा4~फिर मूसा ने मीसाएल और अलसफ़न को जो हारून के चचा उज़्ज़ीएल के बेटे थे, बुला कर उन से कहा, "नज़दीक आओ, और अपने भाइयों को हैकल के सामने से उठा कर लश्करगाह के बाहर ले जाओ।"5~तब वह नज़दीक गए, और उन्हें उनके कुरतों के साथ उठाकर मूसा के हुक्म के मुताबिक़ लश्करगाह के बाहर ले गए।6~और मूसा ने हारून और उसके बेटों, इली'अज़र और इतमर से कहा, कि न तुम्हारे सिर के बाल बिखरने पाएँ, और न तुम अपने कपड़े फाड़ना, ताकि न तुम ही मरो, और न सारी जमा'अत पर उसका ग़ज़ब नाज़िल हो; लेकिन इस्राईल के सब घराने के लोग जो तुम्हारे भाई हैं, उस आग पर जो ख़ुदावन्द ने लगाई है नोहा करें।7~और तुम ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े से बाहर न जाना, ता ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; क्यूँकि ख़ुदावन्द का मसह करने का तेल तुम पर लगा हुआ है। इसलिए उन्होंने मूसा के कहने के मुताबिक़ 'अमल किया।8~और ख़ुदावन्द ने हारून से कहा,कि9~"तू या तेरे बेटे मय या शराब पीकर कभी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर दाख़िल न होना, ताकि तुम मर न जाओ। यह तुम्हारे लिए नसल-दर-नसल हमेशा तक एक क़ानून रहेगा;10~ताकि तुम पाक और 'आम अशिया में, और पाक और नापाक में तमीज़ कर सको;11और बनी-इस्राईल को वह सब तौर-तरीक़े सिखा सको जो ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' उनको फ़रमाए हैं।"12~फिर मूसा ने हारून और उसके बेटों, इली'अज़र और इतमर से जो बाक़ी रह गए थे कहा, कि"ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में से जो नज़्र की क़ुर्बानी बच रही है उसे ले लो, और बग़ैर ख़मीर के उसको मज़बह के पास खाओ, क्यूँकि यह बहुत पाक है;13और तुम उसे किसी पाक जगह में खाना, इसलिए ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में से तेरा और तेरे बेटों का यह हक़ है; क्यूँकि मुझे ऐसा ही हुक्म मिला है।14~और हिलाने की क़ुर्बानी के सीने को, और उठाने की क़ुर्बानी की रान को तुम लोग या'नी तेरे साथ तेरे बेटे और बेटियाँ भी, किसी साफ़ जगह में खाना; क्यूँकि बनी-इस्राईल की सलामती के ज़बीहो में से यह तेरा और तेरे बेटों का हक़ है जो दिया गया है।15~और उठाने की क़ुर्बानी की रान और हिलाने की क़ुर्बानी का सीना, जिसे वह चर्बी की आतिशी क़ुर्बानियों के साथ लाएँगे, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर हिलाए जाएँ। यह दोनों हमेशा के लिए ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ तेरा और तेरे बेटों का हक़ होगा।"16~फिर मूसा ने ख़ता की क़ुर्बानी के बकरे को जो बहुत तलाश किया, तो क्या देखता है कि वह जल चुका है। तब वह हारून के बेटों इली'अज़र और इतमर पर, जो बच रहे थे, नाराज़ हुआ और कहने लगा कि ,17~"ख़ता की क़ुर्बानी जो बहुत पाक है और जिसे ख़ुदावन्द ने तुम को इसलिए दिया है कि तुम जमा'अत के गुनाह को अपने ऊपर उठा कर ख़ुदावन्द के सामने उनके लिए कफ़्फ़ारा दो, तुम ने उसका गोश्त हैकल में क्यूँ न खाया?18~देखो, उसका ख़ून हैकल में तो लाया ही नहीं गया था। पस तुम्हें लाज़िम था कि मेरे हुक्म के मुताबिक़ तुम उसे हैकल में खा लेते।"19~तब हारून ने मूसा से कहा, "देख, आज ही उन्होंने अपनी ख़ता की क़ुर्बानी और अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेश कीं, और मुझ पर ऐसे-ऐसे हादसे गुज़र गए। तब अगर मैं आज ख़ता की क़ुर्बानी का गोश्त खाता तो क्या यह बात ख़ुदावन्द की नज़र में भली होती?"20~जब मूसा ने यह सुना तो उसे पसन्द आया।
1फ़िर ~ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,2~"तुम बनी-इस्राईल से कहो कि ज़मीन के सब ~हैवानात में से जिन जानवरों को तुम खा सकते हो वह यह हैं।3~जानवरों में जिनके पाँव अलग और चिरे हुए हैं और वह जुगाली करते हैं, तुम उनको ~खाओ।4~मगर जो जुगाली करते हैं या जिनके पाँव अलग हैं, उन में से तुम इन जानवरों को न खाना; या'नी ऊँट को, क्यूँकि वह जुगाली करता है लेकिन उसके पाँव अलग नहीं, इसलिए वह तुम्हारे लिए नापाक है।5~और साफ़ान को, क्यूँकि वह जुगाली करता है लेकिन उसके पाँव अलग नहीं, वह भी तुम्हारे लिए नापाक है।6~और ख़रगोश को, क्यूँकि वह जुगाली तो करता है लेकिन उसके पाँव अलग नहीं, वह भी तुम्हारे लिए नापाक है।7~और सूअर को, क्यूँकि उसके पाँव अलग और चिरे हुए हैं लेकिन वह जुगाली नहीं करता, वह भी तुम्हारे लिए नापाक है।8~तुम उनका गोश्त न खाना और उन की लाशों को न छूना, वह तुम्हारे लिए नापाक हैं।9~"जो जानवर पानी में रहते हैं उन में से तुम इनको खाना, या'नी समन्दरों और दरियाओं वग़ैरह के जानवरो में, जिनके पर और छिल्के हों तुम उन्हें खाओ।10~लेकिन वह सब जानदार जो पानी में या'नी समन्दरों और दरियाओं~वग़ैरह~में चलते फिरते और रहते हैं, लेकिन उनके पर और छिल्के नहीं होते, वह तुम्हारे लिए मकरूह हैं।11~और वह तुम्हारे लिए मकरूह ही रहें। तुम उनका गोश्त न खाना और उन की लाशों से कराहियत करना।12~पानी के जिस किसी जानदार के न पर हों और न छिल्के, वह तुम्हारे लिए मकरूह हैं।13~'और परिन्दों में जो मकरूह होने की वजह से कभी खाए न जाएँ और जिन से तुम्हें कराहियत करना है वो यह हैं। 'उक़ाब और उस्तख़्वान ख़्वार और लगड़,14और चील और हर क़िस्म का बाज़,15~और हर क़िस्म के कव्वे,16~और शुतरमुर्ग़ और चुग़द और कोकिल और हर क़िस्म के शाहीन,17~और बूम और हड़गीला और उल्लू,18और क़ाज़ और हवासिल और गिद्ध,19~और लक़लक़ और सब क़िस्म के बगुले और हुद-हुद, और चमगादड़।20~"और सब परदार रेंगने वाले जानदार जितने चार पाँवों के बल चलते हैं, वह तुम्हारे लिए मकरूह हैं।21~मगर परदार रेंगने वाले जानदारों में से जो चार पाँव के बल चलते हैं तुम उन जानदारों को खा सकते हो, जिनके ज़मीन के ऊपर कूदने फाँदने को पाँव के ऊपर टाँगें होती हैं,22~वह जिन्हें तुम खा सकते हो यह हैं, हर क़िस्म की टिड्डी और हर क़िस्म का सुलि'आम और हर क़िस्म का झींगर और हर क़िस्म का टिड्डा।23~लेकिन सब परदार रेंगने वाले जानदार जिनके चार पाँव हैं, वह तुम्हारे लिए मकरूह हैं।24~'और इन से तुम नापाक ठहरोगे, जो कोई इन में से किसी की लाश को छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।25और जो कोई इन की लाश में से कुछ भी उठाए वह अपने कपड़े धो डाले और वह शाम तक नापाक रहेगा।26और सब चारपाए जिनके पाँव अलग हैं लेकिन वह चिरे हुए नहीं और न वह जुगाली करते हैं, वह तुम्हारे लिए नापाक हैं; जो कोई उन को छुए वह नापाक ठहरेगा।27~और चार पाँवों पर चलने वाले जानवरों में से जितने अपने पंजों के बल चलते हैं, वह भी तुम्हारे लिए नापाक हैं। जो कोई उन की लाश को छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।28~और जो कोई उन की लाश को उठाए वह अपने कपड़े धो डाले और वह शाम तक नापाक रहेगा। यह सब तुम्हारे लिए नापाक हैं।29~"और ज़मीन पर के रेंगने वाले जानवरों में से जो तुम्हारे लिए नापाक हैं वह यह हैं, या'नी नेवला और चूहा और हर क़िस्म की बड़ी छिपकली,30और हिरजून और गोह और छिपकली और सान्डा और गिरगिट।31~सब रेंगने वाले जानदारों में से यह तुम्हारे लिए नापाक हैं, जो कोई उनके मरे पीछे उन को छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।32और जिस चीज़ पर वह मरे पीछे गिरें वह चीज़ नापाक होगी, चाहे वह लकडी का बर्तन हो या कपड़ा या चमड़ा या बोरा हो, चाहे किसी का कैसा ही बर्तन हो, ज़रूर है कि वह पानी में डाला जाए और वह शाम तक नापाक रहेगा, इस के बा'द वह पाक ठहरेगा।33~और अगर इनमें से कोई किसी मिट्टी के बर्तन में गिर जाए तो जो कुछ उस में है वह नापाक होगा, और बर्तन को तुम तोड़ डालना।34~उसके अन्दर अगर खाने की कोई चीज़ हो जिस में पानी पड़ा हुआ हो, तो वह भी नापाक ठहरेगी; और अगर ऐसे बर्तन में पीने के लिए कुछ हो तो वह नापाक होगा35~और जिस चीज़ पर उनकी लाश का कोई हिस्सा गिरे, चाहे वह तनूर हो या चूल्हा, वह नापाक होगी और तोड़ डाली जाए। ऐसी चीज़ें नापाक होती हैं और वह तुम्हारे लिए भी नापाक हों,36~मगर चश्मा या तालाब जिस में बहुत पानी हो वह पाक रहेगा, लेकिन जो कुछ उन की लाश से छू जाए वह नापाक होगा।37~और अगर उन की लाश का कुछ हिस्सा किसी बोने के बीज पर गिरे तो वह बीज पाक रहेगा;38~लेकिन अगर बीज पर पानी डाला गया हो और इसके बा'द उन की लाश में से कुछ उस पर गिरा हो, तो वह तुम्हारे लिए नापाक होगा।39~"और जिन जानवरों को तुम खा सकते हो, अगर उन में से कोई मर जाए तो जो कोई उस की लाश को छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।40और जो कोई उनकी लाश में से कुछ खाए, वह अपने कपड़े धो डाले और वह शाम तक नापाक रहेगा; और जो कोई उन की लाश को उठाए, वह अपने कपड़े धो डाले और वह शाम तक नापाक रहेगा।41~'और सब रेंगने वाले जानदार जो ज़मीन पर रेंगते हैं, मकरूह हैं और कभी खाए न जाएँ।42~और ज़मीन पर के सब रेंगने वाले जानदारों में से, जितने पेट या चार पाँवों के बल चलते हैं या जिनके बहुत से पाँव होते हैं, उनको तुम न खाना क्यूँकि वह मकरूह हैं।43~और तुम किसी रेंगने वाले जानदार की वजह से जो ज़मीन पर रेंगता है, अपने आप को मकरूह न बना लेना और न उन से अपने आप को नापाक करना के नजिस हो जाओ;44क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, इसलिए अपने आप को पाक करना और पाक होना क्यूँकि मैं क़ुद्दूस हूँ, इसलिए तुम किसी तरह के रेंगने वाले जानदार से जो ज़मीन पर चलता है, अपने आप को नापाक न करना;45~क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द हूँ, और तुमको मुल्क-ए-मिस्र से इसी लिए निकाल कर लाया हूँ कि मैं तुम्हारा ख़ुदा ठहरूँ । इसलिए तुम पाक होना क्यूँकि मैं क़ुद्दुस हूँ।"46~हैवानात, और परिन्दों, और आबी जानवरों, और ज़मीन पर के सब रेंगने वाले जानदारों के बारे में शरा' यही है;47~ताकि पाक और नापाक में, और जो जानवर खाए जा सकते हैं और जो नहीं खाए जा सकते, उनके बीच इम्तियाज़ किया जाए।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~"बनी-इस्राईल से कह कि अगर कोई 'औरत हामिला हो, और उसके लड़का हो तो वह सात दिन तक नापाक रहेगी; जैसे हैज़ के दिनों में रहती है।3~और आठवें दिन लड़के का ख़तना किया जाए।4~इसके बा'द तैतीस दिन तक वह तहारत के ख़ून में रहे, और जब तक उसकी तहारत के दिन पूरे न हों तब तक न तो किसी पाक चीज़ को छुए और न हैकल में दाख़िल हो।5~और अगर उसके लड़की हो तो वह दो हफ़्ते नापाक रहेगी, जैसे हैज़ के दिनों में रहती है। इसके बा'द वह छियासठ दिन तक तहारत के ख़ून में रहे।6~'और जब उसकी तहारत के दिन पूरे हो जाएँ, तो चाहे उसके बेटा हुआ हो या बेटी, वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक यक-साला बर्रा, और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए कबूतर का एक बच्चा या एक कुमरी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर काहिन के पास लाए;7~और काहिन उसे ख़ुदावन्द के सामने पेश करे और उसके लिए कफ़्फ़ारा दे। तब वह अपने जिरयान-ए-ख़ून से पाक ठहरेगी। जिस 'औरत के लड़का या लड़की हो उसके बारे में शरा' यह है।8और अगर उस को बर्रा लाने का मक़दूर न हो तो वह दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे, एक सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए और दूसरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए लाए। यूँ कहिन उसके लिए कफ़्फ़ारा दे तो वह पाक ठहरेगी।"
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,2~"अगर किसी के जिस्म की जिल्द में वर्म, या पपड़ी, या सफ़ेद चमकता हुआ दाग़ हो, और उसके जिस्म की जिल्द में कोढ़ जैसी बला हो, तो उसे हारून काहिन के पास या उसके बेटों में से जो काहिन हैं किसी के पास ले जाएँ।3और काहिन उसके जिस्म की जिल्द की बला को देखे, अगर उस बला की जगह के बाल सफ़ेद हो गए हों और वह बला देखने में खाल से गहरी हो, तो वह कोढ़ का मर्ज़ है; और काहिन उस शख़्स को देख कर उसे नापाक करार दे।4और अगर उसके जिस्म की जिल्द का चमकता हुआ दाग़ सफ़ेद तो हो लेकिन खाल से गहरा न दिखाई दे, और न उसके ऊपर के बाल सफ़ेद हो गए हों, तो काहिन उस शख़्स को सात दिन तक बन्द रख्खे;5~और सातवें दिन काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर वह बला उसे वहीं के वहीं दिखाई दे और जिल्द पर फैल न गई हो, तो काहिन उसे सात दिन और बन्द रख्खे;6~और~सातवें दिन काहिन उसे मुलाहिज़ा करे,और अगर देखे कि उस बला की चमक कम है और वह जिल्द के ऊपर फैली भी नहीं है; तो काहिन उसे पाक क़रार दे क्यूँकि वह पपड़ी है। इसलिए वह अपने कपड़े धो डाले और साफ़ हो जाए।7~लेकिन अगर काहिन के उस मुलहज़े के बा'द जिस में वह साफ़ क़रार दिया गया था, वह पपड़ी उसकी जिल्द पर बहुत फैल जाए, तो वह शख़्स काहिन को फिर~दिखाया जाए;8और काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह पपड़ी जिल्द पर फैल गई है तो वह उसे नापाक क़रार दे; क्यूँकि वह कोढ़ है।9~"अगर किसी शख़्स को कोढ़ का मर्ज़ हो, तो उसे काहिन के पास ले जाएँ,10और काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि जिल्द पर सफ़ेद वर्म है और उसने बालों को~सफ़ेद कर दिया है, और उस वर्म की जगह का गोश्त ज़िन्दा और कच्चा है,11~तो यह उसके जिस्म की जिल्द में पुराना कोढ़ है, इसलिए काहिन उसे नापाक करार दे लेकिन उसे बन्द न करे क्यूँकि वह नापाक है।12और अगर कोढ़ जिल्द में चारों तरफ़ फूट आए, और जहाँ तक काहिन को दिखाई देता है, यही मा'लूम हो कि उस की जिल्द सिर से पाँव तक कोढ़ से ढंक गई है;13~तो काहिन ग़ौर से देखे और अगर उस शख़्स का सारा जिस्म कोढ़ से ढका हुआ निकले, तो काहिन उस मरीज़ को पाक क़रार दे, क्यूँकि वह सब सफ़ेद हो गया है और वह पाक है।14~लेकिन जिस दिन जीता और कच्चा गोश्त उस पर दिखाई दे, वह नापाक होगा।15~और काहिन उस कच्चे गोश्त को देख कर उस शख़्स को नापाक करार दे, कच्चा गोश्त नापाक होता है; वह कोढ़ है।16~और अगर वह कच्चा गोश्त फिर कर सफ़ेद हो जाए, तो वह काहिन के पास जाए;17~और काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि मर्ज़ की जगह सब सफ़ेद हो गई है तो काहिन मरीज़ को पाक क़रार दे; वह पाक है।18~'और अगर किसी के जिस्म की जिल्द पर फोड़ा हो कर अच्छा हो जाए,19~और फोड़े की जगह सफ़ेद वर्म या~सुर्ख़ी~~माइल चमकता हुआ सफ़ेद दाग़ हो तो वह दिखाया जाए;20और काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह खाल से गहरा नज़र आता है और उस पर के बाल भी सफ़ेद हो गए हैं, तो काहिन उस शख़्स को नापाक करार दे; क्यूँकि वह कोढ़ है जो फोड़े में से फूट कर निकला है।21~लेकिन अगर काहिन देखे कि उस पर सफ़ेद बाल नहीं, और वह खाल से गहरा भी नहीं है और उसकी चमक कम है; तो काहिन उसे सात दिन तक बन्द रख्खे।22~और अगर वह जिल्द पर चारों तरफ़ फैल जाए, तो काहिन उसे नापाक क़रार दे; क्यूँकि वह कोढ़ की बला है।23~लेकिन~अगर वह चमकता हुआ दाग अपनी जगह पर वहीं का वहीं रहे, और फैल न जाए तो वह फोड़े का दाग़ है; तब काहिन उस शख़्स को पाक करार दे।24~"या अगर जिस्म की खाल कहीं से जल जाए, और उस जली हुई जगह का ज़िन्दा गोश्त एक सुर्ख़ी माइल चमकता हुआ सफ़ेद दाग़ या बिल्कुल ही सफ़ेद दाग़ बन जाए25~तो काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि उस चमकते हुए दाग़ के बाल सफ़ेद हो गए हैं और वह खाल से गहरा दिखाई देता है; तो वह कोढ़ है जो उस जल जाने से पैदा हुआ है; और काहिन उस शख़्स को नापाक क़रार दे क्यूँकि उसे कोढ़ की बीमारी है।26~लेकिन अगर काहिन देखे कि उस चमकते हुए दाग़ पर सफ़ेद बाल नहीं, और न वह खाल से गहरा है बल्कि उसकी चमक भी कम है, तो वह उसे सात दिन तक बन्द रख्खे;27~और सातवें दिन काहिन उसे देखे, अगर वह जिल्द पर बहुत फैल गया हो तो काहिन उस शख़्स को नापाक क़रार दे; क्यूँकि उसे कोढ़ की बीमारी है।28~और अगर वह चमकता हुआ दाग़ अपनी जगह पर वहीं का वहीं रहे और जिल्द पर फैला हुआ न हो, बल्कि उसकी चमक भी कम हो, तो वह सिर्फ़ जल जाने की वजह से फूला हुआ है; और काहिन उस शख़्स को पाक क़रार दे क्यूँकि वह दाग़ जल जाने की वजह से है।29~"अगर किसी मर्द या 'औरत के सिर या ठोड़ी में दाग़ हो,30~तो काहिन उस दाग़ को मुलाहिज़ा करे और अगर देखे कि वह खाल से गहरा मा'लूम होता है और उस पर ज़र्द-ज़र्द बारीक रोंगटे हैं तों काहिन उस शख़्स को नापाक क़रार दे क्यूँकि वह सा'फ़ा है जो सिर या ठोड़ी का कोढ़ है।31~और अगर काहिन देखे कि वह सा'फ़ा की बला खाल से गहरी नहीं मा'लूम होती और उस पर स्याह बाल नहीं हैं, तो काहिन उस शख़्स को जिसे सा'फ़ा का मर्ज़ है, सात दिन तक बन्द रख्खे;32~और सातवें दिन काहिन उस बला का मुलाहिज़ा करे और अगर देखे कि सा'फ़ा फैला नहीं और उस पर कोई ज़र्द बाल भी नहीं और सा'फ़ा खाल से गहरा नहीं मा'लूम होता;33तो उस शख़्स के बाल मूँडे जाएँ, लेकिन जहाँ सा'फ़ा हो वह जगह न मूँडी जाए। और काहिन उस शख़्स को जिसे सा'फ़ा का मर्ज़ है, सात दिन और बन्द रख्खे।34~फिर सातवें रोज़ काहिन सा'फ़े का मुलाहिज़ा करे, और अगर देखें कि सा'फ़ा जिल्द में फैला नहीं और न वह खाल से गहरा दिखाई देता है तो काहिन उस शख़्स को पाक करार दे; और वह अपने कपड़े धोए और साफ़ हो जाए।35~लेकिन अगर उस की सफ़ाई के बा'द सा'फ़ा उसकी जिल्द पर बहुत फैल जाए तो काहिन उसे देखे,36~और अगर सा'फ़ा उसकी जिल्द पर फैला हुआ नज़र आए तो काहिन ज़र्द बाल को न ढूँढे क्यूँकि वह शख़्स नापाक है।37~लेकिन अगर उस को सा'फ़ा अपनी जगह पर वहीं का वहीं दिखाई दे और उस पर स्याह बाल निकले हुए हों, तो सा'फ़ा अच्छा हो गया; वह शख़्स पाक है और काहिन उसे पाक क़रार दे।38~और अगर किसी मर्द या 'औरत के जिस्म की जिल्द में चमकते हुए दाग़ या सफ़ेद चमकते हुए दाग़ हों,39~तो काहिन देखे, और अगर उनके जिस्म की जिल्द के दाग स्याही माइल सफ़ेद रंग के हों, तो वह छीप है जो जिल्द में फूट निकली है; वह शख़्स पाक है।40~'और जिस शख़्स के सिर के बाल गिर गए हों, वह गंजा तो है मगर पाक है।41और जिस शख़्स के सर के बाल पेशानी की तरफ़ से गिर गए हों, वह चँदुला तो है मगर पाक है|42~लेकिन उस गंजे या चँदले सिर पर~सुर्ख़ी~~माइल सफ़ेद दाग़ हों, तो यह कोढ़ है जो उसके गंजे या चँदले सिर पर निकला~है;43~इसलिए काहिन उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर वह देखे कि उसके गंजे या चँदले सिर पर वह दाग़ ऐसा सुर्खी माइल सफ़ेद रंग लिए हुए है, जैसा जिल्द के कोढ़ में होता है,44~तो वह आदमी कोढ़ी है, वह नापाक है और काहिन उसे ज़रूर ही नापाक करार दे क्यूँकि वह मर्ज़ उसके सिर पर है।45~और जो कोढ़ी इस बला में मुब्तिला हो, उसके कपड़े फटे और उसके सिर के बाल बिखरे रहें, और वह अपने ऊपर के होंट को ढाँके और चिल्ला-चिल्ला कर कहे, नापाक, नापाक।46जितने दिनों तक वह इस बला में मुब्तिला रहे, वह नापाक रहेगा और वह है भी नापाक। तब वह अकेला रहा करे, उसका मकान लश्करगाह के बाहर हो।47'और वह कपड़ा भी जिस में कोढ़ की बला हो, चाहे वह ऊन का हो या कतान का;48और वह बला भी चाहे कतान या ऊन के कपड़े के ताने में या उसके बाने में हो, या वह चमड़े में हो या चमड़े की बनी हुई किसी चीज़ में हो;49~अगर वह बला कपड़े में या चमड़े में, कपड़े के ताने में या बाने में या चमड़े की किसी चीज़ में सब्ज़ी माइल या~सुर्ख़ी~माइल रंग की हो, तो वह कोढ़ की बला है और काहिन को दिखाई जाए।50~और काहिन उस बला को देखे, और उस चीज़ को जिस में वह बला है सात दिन तक बन्द रख्खे;51~और सातवें दिन उस को देखें। अगर वह बला कपड़े के ताने में या बाने में, या चमड़े पर या चमड़े की बनी हुई किसी चीज़ पर फैल गई हो, तो वह खा जाने वाला कोढ़ है और नापाक है।52~और उस ऊन या कतान के कपड़े को जिसके ताने में या बाने में वह बला है, या चमड़े की उस चीज़ को जिस में वह है जला दे; क्यूँकि यह खा जाने वाला कोढ़ है। वह आग में जलाया जाए।53~"और अगर काहिन देखे, कि वह बला कपड़े के ताने में या बाने में, या चमड़े की किसी चीज़ में फैली हुई नज़र नहीं आती,54~तो काहिन हुक्म करे कि उस चीज़ को जिस में वह बला है धोएँ, और वह फिर उसे और सात दिन तक बन्द रख्खे;55~और उस बला के धोए जाने के बा'द काहिन फिर उसे मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि उस बला का रंग नहीं बदला और वह फैली भी नहीं है, तो वह नापाक है। तू उस कपड़े को आग में जला देना; क्यूँकि वह खा जाने वाली बला है, चाहे उस का फ़साद अन्दरूनी हो या बैरूनी।56~और अगर काहिन देखे कि धोने के बा'द उस बला की चमक कम हो गई है, तो वह उसे उस कपड़े से या चमड़े से, ताने या बाने से, फाड़ कर निकाल फेंके।57~और अगर वह बला फिर भी कपड़े के ताने या बाने में या चमड़े की चीज़ में दिखाई दे, तो वह फूटकर निकल रही है। तब तू उस चीज़ को जिस में वह बला है आग में जला देना।58~और अगर उस कपड़े के ताने या बाने में से, या चमड़े की चीज़ में से, जिसे तूने धोया है, वह बला जाती रहे तो वह चीज़ दोबारा धोई जाए और वह पाक ठहरेगी।”59~ऊन या कतान के ताने या बाने में, या चमड़े की किसी चीज़ में अगर कोढ़ की बला हो, तो उसे पाक या नापाक क़रार देने केलिए शरा' यही है।
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~'कोढ़ी के लिए जिस दिन वह पाक क़रार दिया जाए यह शरा' है, कि उसे काहिन के पास ले जाएँ,3और काहिन लश्करगाह के बाहर जाए, और काहिन ख़ुद कोढ़ी को मुलाहिज़ा करे और अगर देखे कि उसका कोढ़ अच्छा हो गया है,4तो काहिन हुक्म दे कि वह जो पाक क़रार दिए जाने को है, उसके लिए दो ज़िन्दा पाक परिन्दे और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़ा और जूफ़ा लें।5और काहिन हुक्म दे कि उनमें से एक परिन्दा किसी मिट्टी के बर्तन में बहते हुए पानी के ऊपर ज़बह किया जाए।6फिर वह ज़िन्दा परिन्दे को और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़े और जूफ़े को ले, और इन को और उस ज़िन्दा परिन्दे को उस परिन्दे के ख़ून में ग़ोता दे जो बहते पानी पर ज़बह हो चुका है।7~और उस शख़्स पर जो कोढ़ से पाक करार दिया जाने को है, सात बार छिड़क कर उसे पाक क़रार दे और ज़िन्दा परिन्दे को खुले मैदान में छोड़ दे।8~और वह जो पाक करार दिया जाएगा अपने कपड़े धोए और सारे बाल मुन्डाए और पानी में ग़ुस्ल करे, तब वह पाक ठहरेगा; इसके बा'द वह लश्करगाह में आए, लेकिन सात दिन तक अपने ख़ेमे के बाहर ही रहे।9~और सातवें रोज़ अपने सिर के सब~बाल और अपनी दाढ़ी और अपने अबरू ग़र्ज़ अपने सारे बाल मुंडाए, और अपने कपड़े धोए और पानी में नहाए, तब वह पाक ठहरेगा।10~और वह आठवें दिन दो बे-'ऐब नर बर्रे और एक बे-'ऐब यक-साला मादा बर्रा और नज़्र की क़ुर्बानी के लिए ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर तेल मिला हुआ मैदा और लोज भर तेल ले।11~तब वह काहिन जो उसे पाक करार देगा, उस शख़्स को जो पाक करार दिया जाएगा और इन चीज़ों को ख़ुदावन्द के सामने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर हाज़िर करे।12~और काहिन नर बर्रों में से एक को लेकर जुर्म की क़ुर्बानी के लिए उसे और उस लोज भर तेल की नज़दीक लाए, और उनको हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाए;13~और उस बर्रे को हैकल में उस जगह ज़बह करे जहाँ ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर ज़बह किए जाते हैं, क्यूँकि जुर्म की क़ुर्बानी ख़ता की क़ुर्बानी की तरह काहिन का हिस्सा ठहरेगी; वह बहुत पाक है।14और काहिन जुर्म की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून ले और जो शख़्स पाक क़रार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और दहने हाथ के अँगूठे पर और दहने पाँव के अंगूठे पर उसे लगाए,15~और काहिन उस लोज भर तेल में से कुछ लेकर अपने बाएँ हाथ की हथेली में डाले;16और काहिन अपनी दहनी उँगली को अपने बाएँ हाथ के तेल में डुबोए, और ख़ुदावन्द के सामने कुछ तेल सात बार अपनी उँगली से छिड़के।17~और काहिन अपने हाथ के बाक़ी तेल में से कुछ ले और जो शख़्स पाक करार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ के अंगूठे और दहने पांव के अंगूठे पर, जुर्म की क़ुर्बानी के ख़ून के ऊपर लगाए।18~~और जो तेल काहिन के हाथ में बाक़ी बचे उसे वह उस शख़्स के सिर में डाल दे जो पाक करार दिया जाएगा, यूँ काहिन उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे।19~और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी भी पेश करे, और उसके लिए जो अपनी नापाकी से पाक करार दिया जाएगा कफ़्फ़ारा दे; इसके बा'द वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करे।20~फिर काहिन सोख़्तनी कुबानी और नज़्र की क़ुर्बानी को मज़बह पर अदा करे। यूँ काहिन उसके लिए कफ़्फ़ारा दे तो वह पाक ठहरेगा।21~"और अगर वह ग़रीब हो और इतना उसे मक़दूर न हो तो वह हिलाने के लिए जुर्म की क़ुर्बानी के लिए एक नर बर्रा ले ताकि उसके लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए और नज़्र की क़ुर्बानी के लिए ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर तेल मिला हुआ मैदा और लोज भर तेल,22~और अपने मक़दूर के मुताबिक़ दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे भी ले, जिन में से एक तो ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरा सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए हो।23इन्हें वह आठवें दिन अपने पाक करार दिए जाने के लिए काहिन के पास ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने लाए।24~और काहिन जुर्म की क़ुर्बानी के बर्रे को और उस लोज भर तेल को लेकर उनको ख़ुदावन्द के सामने हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर हिलाए।25~फिर काहिन जुर्म की क़ुर्बानी के बर्रे को ज़बह करे, और वह जुर्म की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून लेकर जो शख़्स पाक क़रार दिया जाएगा, उसके दहने कान की लौ पर और दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर उसे लगाए।26~फिर काहिन उस तेल में से कुछ अपने बाएँ हाथ की हथेली में डाले,27और वह अपने बाएँ हाथ के तेल में से कुछ अपनी दहनी उँगली से ख़ुदावन्द के सामने सात बार छिड़के।28~फिर काहिन कुछ अपने हाथ के तेल में से ले, और जो शख़्स पाक करार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर, जुर्म की क़ुर्बानी के ख़ून की जगह उसे लगाए;29~और जो तेल काहिन के हाथ में बाक़ी बचे उसे वह उस शख़्स के सिर में डाल दे जो पाक क़रार दिया जाएगा, ताकि उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दिया जाए।30~फिर वह कुमरियों या कबूतर के बच्चों में से जिन्हें वह ला सका हो एक को अदा करे,31~या'नी जो कुछ उसे मयस्सर हुआ हो उस में से एक को ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर, नज़्र की क़ुर्बानी के साथ पेश करे। यूँ कहिन उस शख़्स के लिए जो पाक क़रार दिया जाएगा, ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे।32~उस कोढ़ी के लिए जो अपने पाक क़रार दिए जाने के सामान को लाने का मक़दूर न रखता हो शरा' यह है।"33फिर ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,34~"जब तुम मुल्क-ए-कनान में जिसे मैं तुम्हारी मिल्कियत किए देता हूँ दाख़िल हो, और मैं तुम्हारे मीरासी मुल्क के किसी घर में कोढ़ की बला भेजूँ35~तो उस घर का मालिक जाकर काहिन को ख़बर दे कि मुझे ऐसा मा'लूम होता है कि उस घर में कुछ बला सी है।36~तब काहिन हुक्म करे कि इससे पहले कि उस बला को देखने के लिए काहिन वहाँ जाए लोग उस घर को ख़ाली करें, ताकि जो कुछ घर में हो वह नापाक न ठहराया जाए। इसके बा'द काहिन घर देखने को अन्दर जाए।37और उस बला को मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह बला उस घर की दीवारों में सब्ज़ी या सुर्ख़ीमाइल गहरी लकीरों की सूरत में है, और दीवार में सतह के अन्दर नज़र आती है,38तो काहिन घर से बाहर निकल कर घर के दरवाज़े पर जाए और घर को सात दिन के लिए बन्द कर दे;39~और वह सातवें दिन फिर आकर उसे देखें। अगर वह बला घर की दीवारों में फैली हुई नज़र आए,40~तो काहिन हुक्म दे कि उन पत्थरों को जिन में वह बला है, निकालकर उन्हें शहर के बाहर किसी नापाक जगह में फेंक दें।41~फिर वह उस घर को अन्दर ही अन्दर चारों तरफ़ से खुर्चवाए, और उस खुर्ची हुई मिट्टी को शहर के बाहर किसी नापाक जगह में डालें।42~और वह उन पत्थरों की जगह और पत्थर लेकर लगाएं और काहिन ताज़ा गारे से उस घर की अस्तरकारी कराए।43और अगर पत्थरों के निकाले जाने और उस घर के खुर्च और अस्तरकारी कराए जाने के बा'द भी वह बला फिर आ जाए और उस घर में फूट निकले,44~तो काहिन अन्दर जाकर मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह बला घर में फैल गई है तो उस घर में खा जाने वाला कोढ़ है; वह नापाक है।45~तब वह उस घर को, उसके पत्थरों और लकड़ियों और उसकी सारी मिट्टी को गिरा दे; और वह उनको शहर के बाहर निकाल कर किसी नापाक जगह में ले जाए।46~इसके सिवा , अगर कोई उस घर के बन्द कर दिए जाने के दिनों में उसके अन्दर दाख़िल हो तो वह शाम तक नापाक रहेगा;47और जो कोई उस घर में सोए वह अपने कपड़े धो डाले, और जो कोई उस घर में कुछ खाए वह भी अपने कपड़े धोए।48"और अगर काहिन अन्दर जाकर मुलाहिज़ा करे और देखे कि घर की अस्तरकारी के बा'द वह बला उस घर में नहीं फैली, तो वह उस घर को पाक क़रार दे क्यूँकि वह बला दूर हो गई।49और वह उस घर को पाक करार देने के लिए दो परिन्दे और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़ा और जूफ़ा ले,50~और वह उन परिन्दों में से एक को मिट्टी के किसी बर्तन में बहते हुए पानी पर ज़बह करे;51फिर वह देवदार की लकड़ी और जूफ़े और~सुर्ख़~कपड़े और उस ज़िन्दा परिन्दे को लेकर उनको उस ज़बह किए हुए~परिन्दे के ख़ून में और उस बहते हुए पानी में गोता दे, और सात बार उस घर पर छिड़के।52और वह उस परिन्दे के ख़ून से, और बहते हुए पानी और ज़िन्दा परिन्दे और देवदार की लकड़ी और जूफ़े और~सुर्ख़~कपड़े से उस घर को पाक करे;53और उस ज़िन्दा परिन्दे को शहर के बाहर खुले मैदान में छोड़ दे; यूँ वह घर के लिए कफ़्फ़ारा दे, तो वह पाक ठहरेगा।"54कोढ़ की हर क़िस्म की बला के, और साफ़े के लिए,55और कपड़े और घर के कोढ़ के लिए,56और वर्म और पपड़ी, और चमकते हुए दाग़ के लिए शरा' यह है;57~ ~ताकि बताया जाए कि कब वह नापाक और कब पाक करार दिए जाएँ। कोढ़ के लिए शरा' यही है।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि;2~"बनी-इस्राईल से कहो कि अगर किसी शख़्स की जिरयान का मर्ज़ हो तो वह जिरयान की वजह से नापाक है;3~और जिरयान की वजह से उसकी नापाकी यूँ होगी, कि चाहे धात बहती हो या धात का बहना ख़त्म हो गया हो वह नापाक है।4~जिस बिस्तर पर जिरयान का मरीज़ सोए वह बिस्तर नापाक होगा, और जिस चीज़ पर वह बैठे वह चीज़ नापाक होगी।5और जो कोई उसके बिस्तर को छुए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।6और जो कोई उस चीज़ पर बैठे जिस पर जिरयान का मरीज़ बैठा हो, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।7~और जो कोई जिरयान के मरीज़ के जिस्म को छुए, वह भी अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।8और अगर जिरयान का मरीज़ किसी शख़्स पर जो पाक है। थूक दे, तो वह शख़्स अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।9~और जिस ज़ीन पर जिरयान का मरीज़ सवार हो, वह ज़ीन नापाक होगा।10~और जो कोई किसी चीज़ को जो उस मरीज़ के नीचे रही हो छुए, वह शाम तक नापाक रहे; और जो कोई उन चीज़ों को उठाए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।11~और जिस शख़्स की जिरयान का मरीज़ बगै़र हाथ धोए छुए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।12~और मिट्टी के जिस बर्तन को जिरयान का मरीज़ छुए, वह तोड़ डाला जाए; लेकिन चोबी बर्तन पानी से धोया जाए।13'और जब जिरयान के मरीज़ को शिफ़ा हो जाए, तो वह अपने पाक ठहरने के लिए सात दिन गिने; इस के बा'द वह अपने कपड़े धोए और बहते हुए पानी में नहाए तब वह पाक होगा।14~और आठवें दिन दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे लेकर वह ख़ुदावन्द के सामने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर जाए, और उन को काहिन के हवाले करे;15~और काहिन एक को ख़ता की~क़ुर्बानी के लिए, और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए पेश करे। यूँ काहिन उसके लिए उसके जिरयान की वजह से ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे।16~'और अगर किसी मर्द की धात बहती हो, तो वह पानी में नहाए और शाम तक नापाक रहे।17~और जिस कपड़े या चमड़े पर नुत्फ़ा लग जाए, वह कपड़ा या चमड़ा पानी से धोया जाए और शाम तक नापाक रहे।18और वह 'औरत भी जिसके साथ मर्द सुहबत करे और मुन्ज़िल हो, तो वह दोनों पानी से ग़ुस्ल करें और शाम तक नापाक रहे।19'और अगर किसी 'औरत को ऐसा जिरयान हो कि उसे हैज़ का ख़ून आए, तो वह सात दिन तक नापाक रहेगी, और जो कोई उसे छुए वह शाम तक नापाक रहेगा।20और जिस चीज़ पर वह अपनी नापाकी की हालत में सोए वह चीज़ नापाक होगी, और जिस चीज़ पर बैठे वह भी नापाक हो जाएगी।21~और जो कोई उसके बिस्तर को छुए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।22~और जो कोई उस चीज़ को जिस पर वह बैठी हो छुए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से नहाए और शाम तक नापाक रहे।23~और अगर उसका ख़ून उसके बिस्तर पर या जिस चीज़ पर वह बैठी हो उस पर लगा हुआ हो और उस वक़्त कोई उस चीज़ को छुए, तो वह शाम तक नापाक रहे।24~और अगर मर्द उसके साथ सुहबत करे और उसके हैज़ का ख़ून उसे लग जाए, तो वह सात दिन तक नापाक रहेगा और हर एक बिस्तर जिस पर वह मर्द सोएगा नापाक होगा।25~'और अगर किसी 'औरत को हैज़ के दिन को छोड़कर यूँ बहुत दिनों तक ख़ून आए या हैज़ की मुद्दत गुज़र जाने पर भी ख़ून जारी रहे, तो जब तक उस को यह मैला ख़ून आता रहेगा तब तक वह ऐसी ही रहेगी जैसी हैज़ के दिनों में रहती है, वह नापाक है।26~और इस जिरयान-ए-ख़ून के कुल दिनों में जिस-जिस बिस्तर पर वह सोएगी, वह हैज़ के बिस्तर की तरह नापाक होगा; और जिस-जिस चीज़ पर वह बैठेगी, वह चीज़ हैज़ की नजासत की तरह नापाक होगी।27~और जो कोई उन चीज़ों को छुए वह नापाक होगा, वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे।28~और जब वह अपने जिरयान से शिफ़ा पा जाए तो सात दिन गिने, तब इसके बा'द वह पाक ठहरेगी।29~और आठवें दिन वह दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे लेकर उनको ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर काहिन के पास लाए।30~और काहिन एक को ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए पेश करे, यूँ काहिन उसके नापाक ख़ून के जिरयान के लिए ख़ुदावन्द के सामने उस की तरफ़ से कफ़्फ़ारा दे।31~"इस तरीक़े से तुम बनी-इस्राईल को उन की नजासत से अलग रखना, ताकि वह मेरे हैकल की जो उनके बीच है नापाक करने की वजह से अपनी नजासत में हलाक न हों।”32~उसके लिए जिसे जिरयान का मर्ज़ हो, और उसके लिए जिस की धात बहती हो, और वह उसकी वजह से नापाक हो जाए,33और उसके लिए जो हैज़ से हो, और उस मर्द और 'औरत के लिए जिनको जिरयान का मर्ज़ हो, और उस मर्द के लिए जो नापाक 'औरत के साथ सुहबत करे शरा' यही है।
1~और हारून के दो बेटों की वफ़ात के बा'द जब वह ख़ुदावन्द के नज़दीक आए और मर गए|2~ख़ुदावन्द मूसा से हम कलाम हुआ; और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "अपने भाई हारून से कह कि वह हर वक़्त पर्दे के अन्दर के पाकतरीन मक़ाम में सरपोश के पास जो सन्दूक के ऊपर है न आया करे, ताकि वह मर न जाए; क्यूँकि मैं सरपोश पर बादल में दिखाई दूँगा।3~और हारून पाकतरीन मक़ाम में इस तरह आए कि ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक मेंढा लाए।4और वह कतान का पाक कुरता पहने, और उसके तन पर कतान का पाजामा हो, और कतान के कमरबन्द से उसकी कमर कसी हुई हो, और कतान ही का 'अमामा उसके सिर पर बँधा हो; यह पाक लिबास हैं और वह इन को पानी से नहा कर पहने5और बनी-इस्राईल की जमा'अत से ख़ता की क़ुर्बानी के लिए दो बकरे और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक मेंढा ले।6और हारून ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े को जो उसकी तरफ़ से है पेश कर अपने और अपने घर के लिए कफ़्फ़ारा दे।7फिर उन दोनों बकरों को लेकर उन को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने खड़ा करे।8और हारून उन दोनों बकरों पर चिट्ठियाँ डाले, एक चिट्ठी ख़ुदावन्द के लिए और दूसरी 'अज़ाज़ेल के लिए हो।9और जिस बकरे पर ख़ुदावन्द के नाम की चिट्ठी निकले उसे हारून लेकर ख़ता की क़ुर्बानी के लिए अदा करे;10~लेकिन जिस बकरे पर 'अज़ाज़ेल के नाम की चिट्ठी निकले वह ख़ुदावन्द के सामने ज़िन्दा खड़ा किया जाए, ताकि उससे कफ़्फ़ारा दिया जाए और वह 'अज़ाज़ेल के लिए वीराने में छोड़ दिया जाए।11~"और हारून ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े की जो उस की तरफ़ से है, आगे लाकर अपने और अपने घर के लिए कफ़्फ़ारा दे, और उस बछड़े को जो उस की तरफ़ से ख़ता की क़ुर्बानी के लिए है ज़बह करे।12~और वह एक ख़ुशबूदान को ले जिसमें ख़ुदावन्द के मज़बह पर की आग के अंगारे भर हों और अपनी मुठ्ठियाँ बारीक ख़ुशबूदार ख़ुशबू से भर ले और उसे पर्दे के अन्दर लाए13~और उस~ख़ुशबू~को ख़ुदावन्द के सामने आग में डाले, ताकि~ख़ुशबू~का धुआँ सरपोश को जो शहादत के सन्दूक के~ऊपर है~छिपा ले, कि वह हलाक न हो।14~फिर वह उस बछड़े का कुछ ख़ून लेकर उसे अपनी उँगली से पूरब की तरफ़ सरपोश के ऊपर छिड़के, और सरपोश के आगे भी कुछ ख़ून अपनी उँगली से सात बार छिड़के।15~फिर वह ख़ता की क़ुर्बानी के उस बकरे को ज़बह करे जो जमा'अत की तरफ़ से है और उसके ख़ून को पर्दे के अन्दर लाकर जो कुछ उसने बछड़े के ख़ून से किया था वही इससे भी करे, और उसे सरपोश के ऊपर और उसके सामने छिड़के।16~और बनी-इस्राईल की सारी नापाकियों, और गुनाहों, और ख़ताओं की वजह से पाकतरीन मक़ाम के लिए कफ़्फ़ारा दे; और ऐसा ही वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के लिए भी करे जो उनके साथ उन की~नापाकियों~के बीच रहता है।17~और जब वह कफ़्फ़ारा देने को पाकतरीन मक़ाम के अन्दर जाए, तो जब तक वह अपने और अपने घराने और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के लिए कफ़्फ़ारा देकर बाहर न आ जाए उस वक़्त तक कोई आदमी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के अन्दर न रहे18~फिर वह निकल कर उस मज़बह के पास जो ख़ुदावन्द के सामने है जाए और उसके लिए कफ़्फ़ारा दे, और उस बछड़े और बकरे का थोड़ा-थोड़ा सा ख़ून लेकर मज़बह के सींगों पर चारों तरफ़ लगाए;19~और कुछ ख़ून उसके ऊपर सात बार अपनी उँगली से छिड़के और उसे बनी-इस्राईल की~नापाकियों~से पाक और पाक करे।20और जब वह पाकतरीन मक़ाम और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और मज़बह के लिए कफ़्फ़ारा दे चुके तो उस ज़िन्दा बकरे को आगे लाए;21~और हारून अपने दोनों हाथ उस ज़िन्दा बकरे के सिर पर रख कर उसके ऊपर बनी-इस्राईल की सब बदकारियों, और उनके सब गुनाहों, और ख़ताओं का इक़रार करे और उन को उस बकरे के सिर पर धर कर उसे किसी शख़्स के हाथ जो इस काम के लिए तैयार ही वीरान में भिजवा दे।22और वह बकरा उनकी सब बदकारियाँ अपने ऊपर लादे हुए किसी वीरान में ले जाएगा, इसलिए वह उस बकरे को वीराने में छोड़े दे|23~"फिर हारून ख़मा-ए-इजितमा'अ में आकर कतान के सारे लिबास को जिसे उसने पाकतरीन मक़ाम में जाते वक़्त पहना था उतारे और उसकी वहीं रहने दे।24~फिर वह किसी पाक जगह में पानी से ग़ुस्ल करके अपने कपड़े पहन ले, और बाहर आ कर अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी और जमा'त की~सोख़्तनी क़ुर्बानी ~पेश करे और अपने लिए और जमा'अत के लिए कफ़्फ़ारा दे।25~और ख़ता की क़ुर्बानी की चर्बी को मज़बह पर जलाए।26~और जो आदमी बकरे को 'अज़ाज़ेल के लिए छोड़ कर आए, वह अपने कपड़े धोए और पानी से नहाए, इसके बा'द वह लश्करगाह में दाख़िल हो।27~और ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े को और ख़ता की क़ुर्बानी के बकरे को जिन का ख़ून पाकतरीन मक़ाम में कफ़्फ़ारे के लिए पहुँचाया जाए, उन को वह लश्करगाह से बाहर ले जाएँ, और उनकी खाल और गोश्त और फुज़लात को आग में जला दें:28~और जो उन को जलाए वह अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे, उसके बा'द वह लश्करगाह में दाख़िल हो।29~"और यह तुम्हारे लिए एक हमेशा का क़ानून हो कि सातवें महीने की दसवीं तारीख़ को तुम अपनी अपनी जान को दुख देना, और उस दिन कोई चाहे वह देसी हो या परदेसी जो तुम्हारे बीच बूद-ओ-बाश रखता हो किसी तरह का काम न करे;30~क्यूँकि उस रोज़ तुम्हारे लिए तुम को पाक करने के लिए कफ़्फ़ारा दिया जाएगा, इसलिए तुम अपने सब गुनाहों से ख़ुदावन्द के सामने पाक ठहरोगे।31~यह तुम्हारे लिए ख़ास आराम का सबत होगा। तुम उस दिन अपनी अपनी जान को दुख देना; यह हमेशा का क़ानून है।32~और जो अपने बाप की जगह काहिन होने के लिए मसह और मख़्सूस किया जाए, वह काहिन कफ़्फ़ारा दिया करे; या'नी कतान के पाक लिबास को पहनकर33~वह हैकल के लिए कफ़्फ़ारा दे, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और मज़बह के लिए कफ़्फ़ारा दे, और काहिनों और जमा'अत के सब लोगों के लिए कफ़्फ़ारा दे।34~इसलिए यह तुम्हारे लिए एक ~हमेशा क़ानून हो कि तुम बनी-इस्राईल के लिए साल में एक दफ़ा' उनके सब गुनाहों का कफ़्फ़ारा दो।" और उसने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया।
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~'हारून और उसके बेटों से और सब बनी-इस्राईल से कह कि ख़ुदावन्द ने यह हुक्म दिया है कि3" इस्राईल के घराने का जो कोई शख़्स बैल या बर्रे या बकरे को चाहे लश्करगाह में या लश्करगाह के बाहर ज़बह कर के4उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर, ख़ुदावन्द के घर के आगे, ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाने को न ले जाए, उस शख़्स पर ख़ून का इल्ज़ाम होगा कि उसने ख़ून किया है; और वह शख़्स अपने लोगों में से काट डाला जाए।5~इससे मक़सूद यह है कि बनी-इस्राईल अपनी क़ुर्बानियाँ, जिनको वह खुले मैदान में ज़बह करते हैं, उन्हें ख़ुदावन्द के सामने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर काहिन के पास लाएँ और उनको ख़ुदावन्द के सामने सलामती के ज़बीहों के तौर पर पेश करें,6~और काहिन उस ख़ून को ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के मज़बह के ऊपर छिड़के और चर्बी को जलाए, ताकि ख़ुदावन्द के लिए राहतअंगेज़ ख़ुशबू हो।7और आइन्दा कभी वह उन बकरों के लिए जिनके पैरौ होकर वह ज़िनाकार ठहरें हैं, अपनी क़ुर्बानियाँ न पेश करे। उनके लिए नसल-दर-नसल यह हमेशा क़ानून होगा।8~"इसलिए तू उन से कह दे कि इस्राईल के घराने का या उन परदेसियों में से जो उनमें क़याम करते हैं जो कोई सोख़्तनी क़ुर्बानी या कोई ज़बीहा पेश कर,9~उसे ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाने को न लाए; वह अपने लोगों में से काटडाला जाए।10~"और इस्राईल के घराने का या उन परदेसियों में से जो उनमें क़याम करते हैं जो कोई किसी तरह का ख़ून खाए, मैं उस ख़ून खाने वाले के खिलाफ़ हूँगा और उसे उसके लोगों में से काट डालूँगा।11~क्यूँकि जिस्म की जान ख़ून में है; और मैंने मज़बह पर तुम्हारी जानों के कफ़्फ़ारे के लिए उसे तुम को दिया है कि उससे तुम्हारी जानों के लिए कफ़्फ़ारा हो; क्यूँकि जान रखने ही की वजह से ख़ून कफ़्फ़ारा देता है।12~इसीलिए मैंने बनी-इस्राईल से कहा है कि तुम में से कोई शख़्स ख़ून कभी न खाए, और न कोई परदेसी जो तुम में क़याम करता हो कभी ख़ून को खाए।13"और बनी-इस्राईल में से या उन परदेसियों में से जो उनमें क़याम करते हैं जो कोई शिकार में ऐसे जानवर या परिन्दे को पकड़े जिसका खाना ठीक है, तो वह उसके ख़ून को निकाल कर उसे मिट्टी से ढॉक दे।14~क्यूँकि जिस्म की जान जो है वह उस का ख़ून है, जो उसकी जान के साथ एक है। इसीलिए मैंने बनी-इस्राईल को हुक्म किया है कि तुम किसी क़िस्म के जानवर का ख़ून न खाना, क्यूँकि हर जानवर की जान उसका ख़ून ही है; जो कोई उसे खाए वह काट डाला जाएगा।15~और जो शख़्स मुरदार को या दरिन्दे के फाड़े हुए जानवर को खाए, वह चाहे देसी हो या परदेसी अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और शाम तक नापाक रहे; तब वह पाक होगा।16~लेकिन अगर वह उनको न धोए और न ग़ुस्ल करे, तो उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।"
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~"बनी-इस्राईल से कह कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।3~तुम मुल्क-ए- मिस्र के से काम जिसमें तुम रहते थे, न करना और मुल्क-ए-कना'न के से काम भी जहाँ मैं तुम्हें लिए जाता हूँ, न करना और न उनकी रस्मों पर चलना।4~तुम मेरे हुक्मों पर 'अमल करना और मेरे क़ानून को मान कर उन पर चलना। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।5~इसलिए तुम मेरे आईन और अहकाम मानना, जिन पर अगर कोई 'अमल करे तो वह उन ही की बदौलत ज़िन्दा रहेगा। मैं ख़ुदावन्द हूँ।6"तुम में से कोई अपनी किसी क़रीबी रिश्तेदार के पास उसके बदन को बे-पर्दा करने के लिए न जाए। मैं ख़ुदावन्द हूँ।7~तू अपनी माँ के बदन को जो तेरे बाप का बदन है बे-पर्दा न करना; क्यूँकि वह तेरी माँ है, तू उसके बदन को बे-पर्दा न करना।8~तू अपने बाप की बीवी के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरे बाप का बदन है।9~तू अपनी बहन के बदन को, चाहे वह तेरे बाप की बेटी हो चाहे तेरी माँ की और चाहे वह घर में पैदा हुई हो चाहे और कहीं, बे-पर्दा न करना।10~तू अपनी पोती या नवासी के बदन को बे-पर्दा न करना क्यूँकि उनका बदन तो तेरा ही बदन है।11तेरे बाप की बीवी की बेटी, जो तेरे बाप से पैदा हुई है, तेरी बहन है; तू उसके बदन को बे-पर्दा न करना।12~तू अपनी फूफी के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरे बाप की क़रीबी रिश्तेदार है।13~तू अपनी ख़ाला के बदन को बेपर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरी माँ की क़रीबी रिश्तेदार है।14~तू अपने बाप के भाई के बदन को बे-पर्दा न करना, या'नी उस की बीवी के पास न जाना, वह तेरी चची है।15~तू अपनी बहू के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरे बेटे की बीवी है, इसलिए तू उसके बदन को बे-पर्दा न करना।16~तू अपनी भावज के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि वह तेरे भाई का बदन है।17तू किसी 'औरत और उसकी बेटी दोनों के बदन को बेपर्दा न करना; और न तू उस 'औरत की पोती या नवासी से ब्याह कर के उस में से किसी के बदन को बे-पर्दा करना, क्यूँकि वह दोनों उस 'औरत की क़रीबी रिश्तेदार हैं : यह बड़ी ख़बासत है।18~तू अपनी साली से ब्याह कर के उसे अपनी बीवी की सौतन न बनाना, कि दूसरी के जीते जी उसके बदन को भी बेपर्दा करे।19~"और तू 'औरत के पास जब तक वह हैज़ की वजह से नापाक है, उसके बदन को बे-पर्दा करने के लिए न जाना।20~और तू अपने को नजिस करने के लिए अपने पड़ोसी की बीवी से सुहबत न करना।21~तू अपनी औलाद में से किसी को मोलक की ख़ातिर आग में से पेश करने के लिए न देना, और न अपने ख़ुदा के नाम को नापाक ठहराना। मैं ख़ुदावन्द हूँ।22~तू मर्द के साथ सुहबत न करना जैसे 'औरत से करता है; यह बहुत मकरूह काम है।23~तू अपने को नजिस करने के लिए किसी जानवर से सुहबत न करना, और न कोई 'औरत किसी जानवर से हम-सुहबत होने के लिए उसके आगे खड़ी हो; क्यूँकि यह औंधी बात है।24~"तुम इन कामों में से किसी में फँस कर आलूदा न हो जाना, क्यूँकि जिन क़ौमों को मैं तुम्हारे आगे से निकालता हूँ वह इन सब कामों की वजह से आलूदा हैं।25और उन का मुल्क भी आलूदा हो गया है; इसलिए मैं उसकी बदकारी की सज़ा उसे देता हूँ, ऐसा कि वह अपने बाशिन्दों को उगले देता है।26~लिहाज़ा तुम मेरे आईन और अहकाम को मानना और तुम में से कोई, चाहे वह देसी हो या परदेसी जो तुम में क़याम रखता हो, इन मकरूहात में से किसी काम को न करे;27~क्यूँकि उस मुल्क के बाशिंदों ने जो तुमसे पहले थे यह सब मकरूह काम किये हैं और मुल्क आलूदा हो गया है |28~इसलिए ऐसा न हो कि जिस तरह उस मुल्क ने उस क़ौम को जो तुमसे पहले वहाँ थी उगल दिया, उसी तरह तुम को भी जब तुम उसे आलूदा करो तो उगल दे।29क्यूँकि जो इन मकरूह कामों में से किसी को करेगा, वह अपने लोगों में से काट डाला जाएगा।30~इसलिए मेरी शरी'अत को मानना, और यह मकरूह रस्में जो तुमसे पहले अदा की जाती थीं, इनमें से किसी को 'अमल में न लाना और इन में फँस कर आलूदा न हो जाना। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~"बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत से कह कि तुम पाक रहो; क्यूँकि मैं जो ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ पाक हूँ3तुम में से हर एक अपनी माँ और अपने बाप से डरता रहे, और तुम मेरे सबतों को मानना; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।4~तुम बुतों की तरफ़ रुजू' न होना, और न अपने लिए ढाले हुए मा'बूद बनाना; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।5~"और जब तुम ख़ुदावन्द के सामने सलामती के ज़बीहे पेश करो, तो उनको इस तरह पेश करना कि तुम मक़बूल हो।6~और जिस दिन उसे पेश करो उस दिन और दूसरे दिन वह खाया जाए, और अगर तीसरे दिन तक कुछ बचा रह जाए तो वह आग में जला दिया जाए।7और अगर वह ज़रा भी तीसरे दिन खाया जाए, तो मकरूह ठहरेगा और मक़बूल न होगा;8~बल्कि जो कोई उसे खाए उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द की पाक चीज़ को नजिस किया; इसलिए वह शख़्स अपने लोगों में से काट डाला जाएगा।9"और जब तुम अपनी ज़मीन की पैदावार की फ़स्ल काटो, तो अपने खेत के कोने-कोने तक पूरा-पूरा न काटना और न कटाई की गिरी-पड़ी बालों को चुन लेना।10~और तू अपने अंगूरिस्तान का दाना-दाना न तोड़ लेना, और न अपने अंगूरिस्तान के गिरे हुए दानों को जमा' करना; उनको ग़रीबों और मुसाफ़िरों के लिए छोड़ देना। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।11~"तुम चोरी न करना और न दग़ा देना और न एक दूसरे से झूट बोलना।12और तुम मेरा नाम लेकर झूटी क़सम न खाना जिससे तू अपने ख़ुदा के नाम को नापाक ठहराए; मैं ख़ुदावन्द हूँ।13~"तू अपने पड़ोसी पर न ज़ुल्म करना, न उसे लूटना। मज़दूर की मज़दूरी तेरे पास सारी रात सुबह तक रहने न पाए।14~तू बहरे को न कोसना, और न अन्धे के आगे ठोकर खिलाने की चीज़ को धरना, बल्कि अपने ख़ुदा से डरना। मैं ख़ुदावन्द हूँ।15~"तुम फ़ैसले में नारास्ती न करना, न तो ग़रीब की रि'आयत करना और न बड़े आदमी का लिहाज़; बल्कि रास्ती के साथ अपने पड़ोसी का इन्साफ़ करना।16~तू अपनी क़ौम में इधर-उधर लुतरापन न करते फिरना, और न अपने पड़ोसी का ख़ून करने पर आमादा होना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।17~तू अपने दिल में अपने भाई से बुग्ज़ न रखना; और अपने पड़ोसी को ज़रूर डाँटते भी रहना, ताकि उसकी वजह से तेरे सिर गुनाह न लगे।18~तू इन्तक़ाम न लेना, और न अपनी क़ौम की नसल से कीना रखना, बल्कि अपने पड़ोसी से अपनी तरह मुहब्बत करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।19~"तू मेरी शरी'अतों को माननाः तू अपने चौपायों को ग़ैर जिन्स से भरवाने न देना, और अपने खेत में दो क़िस्म के बीज एक साथ न बोना, और न तुझ पर दो क़िस्म के मिले जुले तार का कपड़ा हो।20~"अगर कोई ऐसी 'औरत से सुहबत करे जो लौंडी और किसी शख़्स की मंगेतर हो, और न तो उसका फ़िदिया ही दिया गया हो और न वह आज़ाद की गई हो, तो उन दोनों की सज़ा मिले लेकिन वह जान से मारे न जाएँ इसलिए कि वह 'औरत आज़ाद न थी।21~और वह आदमी अपने जुर्म की क़ुर्बानी के लिए ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने एक मेंढा लाए कि वह उसके जुर्म की क़ुर्बानी हो।22~और काहिन उसके जुर्म की क़ुर्बानी के मेंढे से उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे, तब जो ख़ता उसने की है वह उसे मु'आफ़ की जाएगी।23और जब तुम उस मुल्क में पहुँचकर क़िस्म-क़िस्म के फल के दरख़्त लगाओ तो~तुम ~उनके फल को जैसे नामख़्तून समझना वह तुम्हारे लिए तीन बरस तक नामख़्तून के बराबर हों और खाए न जाएँ ।24~और चौथे साल उनका सारा फल ख़ुदावन्द की तम्जीद करने के~लिए पाक होगा |25~तब पाँचवे साल से उनका फल खाना ताकि वह तुम्हारे लिए इफ़रात के साथ पैदा हों। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।26~"तुम किसी चीज़ को ख़ून के साथ न खाना। और न जादू मंतर करना, न शगुन निकालना।27तुम अपने अपने सिर के गोशों को बाल काट कर गोल न बनाना, और न तू अपनी दाढ़ी के कोनों को बिगाड़ना।28तुम मुर्दों की वजह से अपने जिस्म को ज़ख़्मी न करना, और न अपने ऊपर कुछ गुदवाना। मैं ख़ुदावन्द हूँ।29~तू अपनी बेटी को कस्बी बना कर नापाक न होने देना, कहीं ऐसा न हो कि मुल्क में ~रण्डी बाज़ी फैल जाए और सारा मुल्क बदकारी से भर जाए।30~तुम मेरे सबतों को मानना और मेरे हैकल की ता'ज़ीम करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।31~जो जिन्नात के यार हैं और जो जादूगर हैं, तुम उनके पास न जाना और न उनके तालिब होना कि वह तुम को नजिस बना दें। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।32~"जिनके सिर के बाल सफ़ेद हैं, तुम उनके सामने उठ खड़े होना और बड़े-बूढ़े का अदब करना, और अपने ख़ुदा से डरना। मैं ख़ुदावन्द हूँ।33'और अगर कोई परदेसी तेरे साथ तुम्हारे मुल्क में क़याम करता हो तो तुम उसे आज़ार न पहुँचाना;34बल्कि जो परदेसी तुम्हारे साथ रहता हो उसे देसी की तरह समझना, बल्कि तू उससे अपनी तरह मुहब्बत करना; इसलिए कि तुम मुल्क-ए-मिस्र में परदेसी थे। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।35"तुम इन्साफ़, और पैमाइश, और वज़न, और पैमाने में नारास्ती न करना।36ठीक तराजू, ठीक बाट, पूरा ऐफ़ा और पूरा हीन रखना। जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया मैं ही हूँ, ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा।37इसलिए तुम मेरे सब आईन और सब अहकाम मानना और उन पर 'अमल करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2"तू बनी-इस्राईल से यह भी कह दे कि बनी-इस्राईल में से या उन परदेसियों में से जो इस्राईलियों के बीच क़याम करते हैं, जो कोई शख़्स अपनी औलाद में से किसी की मोलक की नज़्र करे वह ज़रूर जान से मारा जाए; अहल-ए-मुल्क उसे संगसार करें।3~और मैं भी उस शख़्स का मुख़ालिफ़ हूँगा और उसे उसके लोगों में से काट डालेंगा, इसलिए कि उस ने अपनी औलाद को मोलक की नज़्र कर के मेरे हैकल और मेरे पाक नाम को नापाक ठहराया।4और अगर उस वक़्त जब वह अपनी औलाद में से किसी की मोलक की नज़्र करे, अहल-ए-मुल्क उस शख़्स की तरफ़ से चश्मपोशी कर के उसे जान से न मारें5~तो मैं ख़ुद उस शख़्स का और उसके घराने का मुख़ालिफ़ हो कर उसको और उन सभों को जो उसकी पैरवी में ज़िनाकार बनें और मोलक के साथ ज़िना करें, उनकी क़ौम में से काट डालूँगा।6'और जो शख़्स जिन्नात के यारों और जादूगरों के पास जाए कि उनकी पैरवी में ज़िना करे, मैं उसका मुख़ालिफ़ हूँगा और उसे उस की क़ौम में से काट डालूँगा।7इसलिए तुम अपने आप को पाक करो और पाक रहो, मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़दा हूँ।8~और तुम मेरे क़ानून को मानना और उस पर 'अमल करना। मैं ख़ुदावन्द हूँ जो तुम को पाक करता हूँ।9~और जो कोई अपने बाप या अपनी माँ पर ला'नत करे वह ज़रूर जान से मारा जाए, उसने अपने बाप या माँ पर ला'नत की है, इसलिए उस का ख़ून उसी की गर्दन पर होगा।10'और जो शख़्स दूसरे की बीवी से या'नी अपने पड़ोसी की बीवी से ज़िना करे, वह ज़ानी और ज़ानिया दोनों ज़रूर जान से मार दिए जाएँ।11और जो शख़्स अपनी सौतेली माँ से सुहबत करे उसने अपने बाप के बदन को बे-पर्दा किया, वह दोनों ज़रूर जान से मारे जाएँ, उन का ख़ून उन ही की गर्दन पर होगा।12~और अगर कोई शख़्स अपनी बहू से सुहबत करे तो वह दोनों ज़रूर जान से मारे जायें उन्होंने औंधी बात की है उनका ख़ून उन~ही की गर्दन पर होगा।13और अगर कोई मर्द से सुहबत करे जैसे 'औरत से करते हैं तो उन दोनों ने बहुत मकरूह काम किया है, इसलिए वह दोनों ज़रूर जान से मारे जाएँ, उनका ख़ून उनही की गर्दन पर होगा।14~और अगर कोई शख़्स अपनी बीवी और अपनी सास दोनों को रख्खे तो यह बड़ी ख़बासत है, इसलिए वह आदमी और वह 'औरतें तीनों के तीनों जला दिए जाएँ ताकि तुम्हारे बीच~ख़बासत न रहे;15और अगर कोई मर्द किसी जानवर से जिमा'अ करे तो वह ज़रूर जान से मारा जाए और तुम उस जानवर को भी मार डालना।16~और अगर कोई 'औरत किसी जानवर के पास जाए और उससे हम सुहबत हो तो उस 'औरत और जानवर दोनों को मार डालना, वह ज़रूर जान से मारे जाएँ; उनका ख़ून उन ही की गर्दन पर होगा।17'और अगर कोई मर्द अपनी बहन को जो उसके बाप की या उसकी माँ की बेटी हो, लेकर उसका बदन देखे और उसकी बहन उसका बदन देखे, तो यह शर्म की बात है; वह दोनों अपनी क़ौम के लोगों की आँखों के सामने क़त्ल किए जाएँ, उसने अपनी बहन के बदन को बे-पर्दा किया, उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।18और अगर मर्द उस 'औरत से जो कपड़ों से हो सुहबत कर के उसके बदन को बे-पर्दा करे, तो उसने उसका चश्मा खोला और उस 'औरत ने अपने ख़ून का चश्मा खुलवाया। इसलिए वह दोनों अपनी क़ौम में से काट डाले जाएँ।19और तू अपनी ख़ाला या फूफी के बदन को बे-पर्दा न करना, क्यूँकि जो ऐसा करे उसने अपनी क़रीबी रिश्तेदार को बे-पर्दा किया; इसलिए उन दोनों का गुनाह उन ही के सिर लगेगा।20और अगर कोई अपनी चची या ताई से सुहबत करे तो उसने अपने चचा या ताऊ के बदन को बे-पर्दा किया; इसलिए उनका गुनाह उनके सिर लगेगा, वह बे-औलाद मरेंगे।21~अगर कोई शख़्स अपने भाई की बीवी को रख्खें तो यह नजासत है, उसने अपने भाई के बदन को बे-पर्दा किया है; वह बे-औलाद रहेंगे।22इसलिए तुम मेरे सब आईन और अहकाम मानना और उन पर 'अमल करना, ताकि वह मुल्क जिसमें मैं तुम को बसाने को लिए जाता हूँ तुम को उगल न दे।23~तुम उन क़ौमों के दस्तूरों पर जिनको मैं तुम्हारे आगे से निकालता हूँ मत चलना, क्यूँकि उन्होंने यह सब काम किए इसीलिए मुझे उन से नफ़रत हो गई।24लेकिन मैंने तुमसे कहा है कि तुम उनके मुल्क के वारिस होगे, और मैं तुम को वह मुल्क जिस में दूध और शहद बहता है तुम्हारी मिल्कियत होने के लिए दूँगा। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जिसने तुम को और क़ौमों से अलग किया है।25इसलिए तुम पाक और नापाक चौपायों में, और पाक और नापाक परिन्दों में फ़र्क़ करना, और तुम किसी जानवर या परिन्दे या ज़मीन पर के रेंगनेवाले जानदार से, जिनको मैंने तुम्हारे लिए नापाक ठहराकर अलग किया है अपने आप को मकरूह न बना लेना।26~और तुम मेरे लिए पाक बने रहना, क्यूँकि मैं जो ख़ुदावन्द हूँ पाक हूँ; और मैंने तुम को और क़ौमों से अलग किया है ताकि तुम मेरे ही रहो।27~' और वह मर्द या 'औरत जिसमें जिन्न हो या वह जादूगर हो तो वह ज़रूर जान से मारा जाए, ऐसों को लोग संगसार करें; उनका ख़ून उन ही की गर्दन पर होगा।"
1और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि 'हारून के बेटों से जो काहिन हैं कह कि अपने क़बीले के मुर्दे की वजह से कोई अपने आप को नजिस न कर ले।2अपने क़रीबी रिश्तेदारों की वजह से जैसे अपनी माँ की वजह से, और अपने बाप की वजह से, और अपने बेटे-बेटी की वजह से, और अपने भाई की वजह से,3~और अपनी सगी कुँवारी बहन की वजह से जिसने शौहर न किया हो, इन की ख़ातिर वह अपने को नजिस कर सकता है।4~चूँकि वह अपने लोगों में सरदार है, इसलिए वह अपने आप को ऐसा आलूदा न करे कि नापाक हो जाए।5~वह न अपने सिर उनकी ख़ातिर बीच से घुटवाएँ और न अपनी दाढ़ी के कोने मुण्डवाएँ, और न अपने को ज़ख़्मी करें।6~वह अपने ख़ुदा के लिए पाक बने रहें और अपने ख़ुदा के नाम को बेहुरमत न करें, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की आतिशीन क़ुर्बानियाँ जो उनके ख़ुदा की गिज़ा है पेश करते हैं; इसलिए वह पाक रहें।7~वह किसी फ़ाहिशा या नापाक 'औरत से ब्याह न करें, और न उस 'औरत से ब्याह करें जिसे उसके शौहर ने तलाक़ दी हो; क्यूँकि काहिन अपने ख़ुदा के लिए पाक है।8तब तू काहिन को पाक जानना क्यूँकि वह तेरे ख़ुदा की गिज़ा पेश करता है; इसलिए वह तेरी नज़र में पाक ठहरे, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द जो तुम को पाक करता हूँ क़ुद्दूस हूँ।9~और अगर काहिन की बेटी फ़ाहिशा बनकर अपने आप को नापाक करे तो वह अपने बाप को नापाक ठहराती है, वह 'औरत आग में जलाई जाए।10' और वह जो अपने भाइयों के बीच सरदार काहिन हो, जिसके सिर पर मसह करने का तेल डाला गया और जो पाक लिबास पहनने के लिए मख़्सूस किया गया, वह अपने सिर के बाल बिखरने न दे और अपने कपड़े न फाड़े।11वह किसी मुर्दे के पास न जाए, और न अपने बाप या माँ की ख़ातिर अपने आप को नजिस करे।12और वह हैकल के बाहर भी न निकले और न अपने ख़ुदा के हैकल को बेहुरमत करे, क्यूँकि उसके ख़ुदा के मसह करने के तेल का ताज उस पर है; मैं ख़ुदावन्द हूँ।13~और वह कुँवारी 'औरत से ब्याह करे;14जो बेवा या मुतल्लक़ा या नापाक 'औरत या फ़ाहिशा हो, उनसे वह ब्याह न करे बल्कि वह अपनी ही क़ौम की कुँवारी को ब्याह ले।15~और वह अपने तुख़्म को अपनी क़ौम में नापाक न ठहराए, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द हूँ जो उसे पाक करता हूँ।"16~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,17~"हारून से कह दे कि तेरी नसल में नसल-दर-नसल अगर कोई किसी तरह का 'ऐब रखता हो, तो वह अपने ख़ुदा की गिज़ा पेश करने को नज़दीक न आए;18~चाहे कोई हो जिसमें 'ऐब हो वह नज़दीक न आए चाहे वह अन्धा हो या लंगड़ा, या नकचपटा हो, या ज़ाइद-उल-'आज़ा,19~या उसका पाँव टूटा हो, या~हाथ टूटा हो20, या वह कुबड़ा या बौना हो, या उसकी आँख में कुछ नुक्स हो, या खुजली भरा हो, या उसके पपड़ियाँ हों, या उसके खुसिए पिचके हों।21~हारून काहिन की नसल में से कोई जो 'ऐबदार हो ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियाँ पेश करने को नज़दीक न आए, वह 'ऐबदार है; वह हरगिज़ अपने ख़ुदा की ग़िज़ा पेश करने को पास न आए।22~वह अपने ख़ुदा की बहुत ही मुक़द्दस और पाक दोनों तरह की रोटी खाए,23~लेकिन पर्दे के अन्दर दाख़िल न हो, न मज़बह के पास आए इसलिए कि वह 'ऐबदार है; कहीं ऐसा न हो कि वह मेरे पाक मक़ामों को बे-हुरमत करे, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।"24~तब मूसा ने हारून और उसके बेटों और सब बनी-इस्राईल से यह बातें कहीं।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~"हारून और उसके बेटों से कह कि वह बनी-इस्राईल की पाक चीज़ों से जिनको वह मेरे लिए पाक करते हैं अपने आप को बचाए रख्खें, और मेरे पाक नाम को बे-हुरमत न करें; मैं ख़ुदावन्द हूँ।3उनको कह दे कि तुम्हारी नसल-दर-नसल जो कोई तुम्हारी नसल में से अपनी नापाकी की हालत में उन पाक चीज़ों के पास जाए, जिनको बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द के लिए पाक करते हैं, वह शख़्स मेरे सामने से काट डाला जाएगा; मैं ख़ुदावन्द हूँ।4~हारून की नसल में जो कोढ़ी, या जिरयान का मरीज़ हो वह जब तक पाक न हो जाए, पाक चीज़ों में से कुछ न खाए; और जो कोई ऐसी चीज़ को जो मुर्दे की वजह से नापाक हो गई है, या उस शख़्स की जिस की धात बहती हो छुए5~या जो कोई किसी रेंगने वाले जानदार को जिसके छूने से वह नापाक हो सकता है, छुए या किसी ऐसे शख़्स को छुए जिससे उसकी नापाकी चाहे वह किसी क़िस्म की हो उसको भी लग सकती हो;6तो वह आदमी जो इनमें से किसी को छुए शाम तक नापाक रहेगा, और जब तक पानी से ग़ुस्ल न कर ले पाक चीज़ों में से कुछ न खाए;7और वह उस वक़्त पाक ठहरेगा जब आफ़ताब गुरूब हो जाए, इसके बा'द वह पाक चीज़ों में से खाए, क्यूँकि यह उसकी ख़ुराक है।8और मुरदार या दरिन्दों के फाड़े हुए जानवर को खाने से वह अपने आप को नजिस न कर ले; मैं ख़ुदावन्द हूँ9~इसलिए वह मेरी शरा' को माने, ऐसा न हो कि उस की वजह से उनके सिर गुनाह लगे और उसकी बेहुरमती करने की वजह से वह मर भी जाएँ, मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।10~'कोई अजनबी पाक चीज़ की न खाने पाए चाहे वह काहिन ही के यहाँ ठहरा हो, या उसका नौकर हो तो भी वह कोई पाक चीज़ न खाए;11~लेकिन वह जिसे काहिन ने अपने ज़र से ख़रीदा हो उसे खा सकता है, और वह जो उसके घर में पैदा हुए हों वह भी उसके खाने में से खाएँ।12~अगर काहिन की बेटी किसी अजनबी से ब्याही गई हो, तो वह पाक चीज़ों की क़ुर्बानी में से कुछ न खाए।13~लेकिन अगर काहिन की बेटी बेवा हो जाए, या मुतल्लक़ा हो और बे-औलाद हो, और लड़कपन के दिनों की तरह अपने बाप के घर में फिर आ कर रहे तो वह अपने बाप के खाने में से खाए; लेकिन कोई अजनबी उसे न खाए।14~और अगर कोई अनजाने में पाक चीज़ को खा जाए तो वह उसके पाँचवें हिस्से के बराबर अपने पास से उस में मिला कर वह पाक चीज़ काहिन को दे15~और वह बनी-इस्राईल की पाक चीज़ों को जिनको वह ख़ुदावन्द की नज़्र करते हों बेहुरमत करके,16उनके सिर उस गुनाह का जुर्म न लादें जो उनकी पाक चीज़ों को खाने से होगा; क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।"17~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,18~"हारून और उसके बेटों और सब बनी-इस्राईल से कह कि इस्राईल के घराने का या उन परदेसियों में से जो इस्राईलियों के बीच रहते हैं, जो कोई शख़्स अपनी क़ुर्बानी लाए, चाहे वह कोई मिन्नत की क़ुर्बानी हो या रज़ा की क़ुर्बानी, जिसे वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करते हैं;19~तो अपने मक़बूल होने के लिए तुम बैलों या बर्रों ~या बकरों में से बे-'ऐब नर चढ़ाना।20~और जिसमें 'ऐब हो उसे न अदा करना क्यूँकि वह तुम्हारी तरफ़ से मक़बूल न होगा।21~और जो कोई अपनी मिन्नत पूरी करने के लिए या रज़ा की क़ुर्बानी के तौर पर गाय, बैल या भेड़ बकरी में से सलामती का ज़बीहा ख़ुदावन्द के सामने पेश करे, तो वह जानवर मक़बूल ठहरने के लिए बे-'ऐब हो; उसमें कोई नुक़्स न हो।22~जो अन्धा या शिकस्ता-ए-'उज़्व या लूला हो, जिसके रसौली या खुजली या पपड़ियाँ हों, ऐसों को ख़ुदावन्द के सामने न चढ़ाना और न मज़बह पर उनकी आतिशी क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेश करना।23~जिस बछड़े या बर्रे का कोई 'उज़्व ज़्यादा या कम हो उसे तो रज़ा की क़ुर्बानी के तौर पर पेश कर सकता है, लेकिन मिन्नत पूरी करने के लिए वह मक़बूल न होगा।24~जिस जानवर के ख़ुसिए कुचले हुए या चूर किए हुए या टूटे या कटे हुए हों, उसे तुम ख़ुदावन्द के सामने न चढ़ाना और न अपने मुल्क में ऐसा काम करना;25और न इनमें से किसी को लेकर तुम अपने ख़ुदा की ग़िज़ा परदेसी या अजनबी के हाथ से अदा करवाना, क्यूँकि उनका बिगाड़ उनमें मौजूद होता है, उनमें 'ऐब है इसलिए वह तुम्हारी तरफ़ से मक़बूल न होंगे।"26~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,27~"जिस वक़्त बछड़ा या भेड़ या बकरी का बच्चा पैदा हो, तो सात दिन तक वह अपनी माँ के साथ रहे और आठवें दिन से और उसके बा'द से वह ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानी के लिए मक़बूल होगा।28और चाहे गाय हो या भेड़, बकरी, तुम उसे और उसके बच्चे दोनों को एक ही दिन ज़बह न करना।29~और जब तुम ख़ुदावन्द के शुक्राने का ज़बीहा क़ुर्बानी करो, तो उसे इस तरह क़ुर्बानी करना कि तुम मक़बूल ठहरो;30~और वह उसी दिन खा भी लिया जाए, तुम उसमें से कुछ भी दूसरे दिन की सुबह तक बाक़ी न छोड़ना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।31~"इसलिए तुम मेरे हुक्मों को मानना और उन पर 'अमल करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।32~तुम मेरे पाक नाम को नापाक न ठहराना, क्यूँकि मैं बनी-इस्राईल के बीच ज़रूर ही पाक माना जाऊँगा; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा पाक करने वाला हूँ,33~जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया हूँ ताकि तुम्हारा ख़ुदा बना रहूँ, मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,कि2~"बनी-इस्राईल से कह कि ख़ुदावन्द की 'ईदें जिनका तुम को पाक मजम'ओं के लिए 'ऐलान देना होगा, मेरी वह 'ईदें यह हैं।3~छ: दिन काम-काज किया जाए लेकिन सातवाँ दिन ख़ास आराम का और पाक मजमे' का सबत है, उस रोज़ किसी तरह का काम न करना; वह तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में ख़ुदावन्द का सबत है।4~"ख़ुदावन्द की 'ईदें जिनका 'ऐलान तुम को पाक मजम'ओं के लिए वक़्त-ए- मु'अय्यन पर करना होगा इसलिए यह हैं।5~पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ की शाम के वक़्त ख़ुदावन्द की फ़सह हुआ करे।6~और उसी महीने की पंद्रहवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द के लिए 'ईद-ए-फ़तीर हो, उसमें तुम सात दिन तक बे-ख़मीरी रोटी खाना।7~पहले दिन तुम्हारा पाक मजमा' हो उसमें तुम कोई ख़ादिमाना काम न करना।8और सातों दिन तुम ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना और और सातवें दिन फिर पाक मजमा' हो उस रोज़ तुम कोई ख़ादिमाना काम न करना।"9~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,10~"बनी-इस्राईल से कह कि जब तुम उस मुल्क में जो मैं तुम को देता हूँ दाख़िल हो जाओ और उसकी फ़स्ल काटो, तो तुम अपनी फ़स्ल के पहले फलों का एक पूला काहिन के पास लाना;11~और वह उसे ख़ुदावन्द के सामने हिलाए, ताकि वह तुम्हारी तरफ़ से क़ुबूल हो और काहिन उसे सबत के दूसरे दिन सुबह को हिलाए।12~और जिस दिन तुम पूले को हिलाओ उसी दिन एक नर बे-'ऐब यक-साला बर्रा सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करना।13~और उसके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा ऐफ़ा के दो दहाई हिस्से के बराबर हो, ताकि वह आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू के लिए जलाई जाए; और उसके साथ मय का तपावन हीन के चौथे हिस्से के बराबर मय लेकर करना।14~और जब तक तुम अपने ख़ुदा के लिए यह हदिया न ले आओ, उस दिन तक नई फ़स्ल की रोटी या भुना हुआ अनाज, या हरी बालें हरगिज़ न खाना। तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में नसल-दर-नसल हमेशा यही क़ानून रहेगा।15~"और तुम सबत के दूसरे दिन से जिस दिन हिलाने की क़ुर्बानी के लिए पूला लाओगे गिनना शुरू' करना, जब तक सात सबत पूरे न हो जाएँ।16~और सातवें सबत के दूसरे दिन तक पचास दिन गिन लेना, तब तुम ख़ुदावन्द के लिए नज़्र की नई क़ुर्बानी पेश करना।17~तुम अपने घरों में से ऐफ़ा के दो दहाई हिस्से के वज़न के मैदे के दो गिर्दे हिलाने की क़ुर्बानी के लिए ले आना; वह ख़मीर के साथ पकाए जाएँ ताकि ख़ुदावन्द के लिए पहले फल ठहरें।18और उन गिर्दों के साथ ही तुम सात यक-साला बे-'ऐब बर्रे और एक बछड़ा और दो मेंढे लाना, ताकि वह अपनी अपनी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के साथ ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर पेश करे जाएँ, और ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़शबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरें।19और तुम ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा और सलामती के ज़बीहे के लिए दो यकसाला नर बर्रे चढ़ाना।20~और काहिन इनको पहले फल के दोनों गिर्दों के साथ लेकर उन दोनों बर्रों के साथ हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाए, वह ख़ुदावन्द के ~लिए पाक और काहिन का हिस्सा ठहरें।21~और तुम ऐन उसी दिन 'ऐलान कर देना, उस रोज़ तुम्हारा पाक मजमा' हो, तुम उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना; तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में नसल-दर-नसल सदा यही तौर तरीक़ा रहेगा।22~"और जब तुम अपनी ज़मीन की पैदावार की फ़सल काटो, तो तू अपने खेत को कोने-कोने तक पूरा न काटना और न अपनी फ़सल की गिरी-पड़ी बालों को जमा' करना, बल्कि उनको ग़रीबों और मुसाफ़िरों के लिए छोड़ देना; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"23~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,24~"बनी-इस्राईल से कह कि सातवें महीने की पहली तारीख़ तुम्हारे लिए ख़ास आराम का दिन हो, उसमें यादगारी के लिए नरसिंगे फूंके जाएँ और पाक मजमा' हो।25~तुम उस रोज़ कोई ख़ादिमाना काम न करना और ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना।"26~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा27~'उसी सातवें महीने की दसवीं तारीख़ की कफ़्फ़ारे का दिन है; उस रोज़ तुम्हारा पाक मजमा' हो, और तुम अपनी जानों को दुख देना और ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना।28~तुम उस दिन किसी तरह का काम न करना, क्यूँकि वह कफ़्फ़ारे का दिन है जिसमें ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के सामने तुम्हारे लिए क़फ्फारा दिया जाएगा|29जो शख़्स उस दिन अपनी जान को दुख ने दे वह अपने लोगों में से काट डाला जाएगा। ་30और जो शख़्स उस दिन किसी तरह का काम करे, उसे मैं उसके लोगों में से फ़ना कर दूँगा।31~तुम किसी तरह का काम मत करना, तुम्हारी सब सुकुनत गाहों में नसल-दर-नसल हमेशा यही तौर तरीक़े रहेंगे ।32~यह तुम्हारे लिए ख़ास आराम का सबत हो, इसमें तुम अपनी जानों को दुख देना; तुम उस महीने की नौवीं तारीख़ की शाम से दूसरी शाम तक अपना सबत मानना।"33~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,34~'बनी-इस्राईल से कह कि उसी सातवें महीने की पंद्रहवीं तारीख़ से लेकर सात दिन तक ख़ुदावन्द के लिए 'ईद-ए-ख़ियाम होगी।35पहले दिन पाक मजमा हो; तुम उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना।36~तुम सातों दिन बराबर ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना। आठवें दिन तुम्हारा पाक मजमा' हो और फिर ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी पेश करना; वह ख़ास मजमा' है, उसमें कोई ख़ादिमाना काम न करना।37~"यह ख़ुदावन्द की मुक़र्ररा 'ईदें हैं जिनमें तुम पाक मजम'ओं का 'ऐलान करना; ताकि ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी, और सोख़्तनी क़ुर्बानी, और नज़्र की क़ुर्बानी और जबीहा और तपावन हर एक अपने अपने मुअ'य्यन दिन में पेश किया जाए।38~इनके अलावा ख़ुदावन्द के सबतों को मानना, और अपने हदियों और मिन्नतों और रज़ा की क़ुर्बानियों को जो तुम ख़ुदावन्द के सामने लाते हो पेश करना।39~"और सातवें महीने की पंद्रहवीं तारीख़ से, जब तुम ज़मीन की पैदावार जमा' कर चुको तो सात दिन तक ख़ुदावन्द की 'ईद मानना। पहला दिन खास आराम का हो, और अट्ठारहवें दिन भी ख़ास आराम ही का हो।40~इसलिए तुम पहले दिन ख़ुशनुमा दरख़्तों के फल और खजूर की डालियाँ, और घने दरख़्तों की शाख़े और नदियों की बेद-ए-मजनूँ लेना; और तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे सात दिन तक ख़ुशी मनाना।41~और तुम हर साल ख़ुदावन्द के लिए सात रोज़ तक यह 'ईद माना करना। तुम्हारी नसल दर नसल हमेशा यही क़ानून रहेगा कि तुम सातवें महीने इस 'ईद को मानो।42~सात रोज़ तक बराबर तुम सायबानों में रहना, जितने इस्राईल की नसल के हैं सब के सब सायबानों में रहें;43~ताकि तुम्हारी नसल को मा'लूम हो कि जब मैं बनी-इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर ला रहा था तो मैंने उनको सायबानों में टिकाया था; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"44~इसलिए मूसा ने बनी-इस्राईल को ख़ुदावन्द की मुक़र्ररा 'ईदें बता दीं।
1~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~"बनी-इस्राईल को हुक्म कर कि वह तेरे पास जै़तून का कूट कर निकाला हुआ ख़ालिस तेल रोशनी के लिए लाएँ, ताकि चराग़ा हमेशा जलता रहे।3~हारून उसे शहादत के पर्दे के बाहर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में शाम से सुबह तक ख़ुदावन्द के सामने क़रीने से रख्खा करे; तुम्हारी नसल-दर-नसल सदा यही क़ानून रहेगा।4~वह हमेशा उन चराग़ो की तरतीब से पाक शमा'दान पर ख़ुदावन्द के सामने रख्खा करे।5"और तू मैदा लेकर बारह गिर्दे पकाना, हर एक गिर्दे में ऐफ़ा के दो दहाई हिस्से के बराबर मैदा हो;6और तू उनको दो क़तारें कर कि हर क़तार में छ: छ: रोटियाँ, पाक मेज़ पर ख़ुदावन्द के सामने रखना।7~और तू हर एक क़तार पर ख़ालिस लुबान रखना, ताकि वह रोटी पर यादगारी या'नी ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर हो।8वह हमेशा हर सबत के रोज़ उनको ख़ुदावन्द के सामने तरतीब दिया करे, क्यूँकि यह बनी-इस्राईल की जानिब से एक हमेशा 'अहद है।9~और यह रोटियाँ हारून और उसके बेटों की होंगी वह इन को किसी पाक जगह में खाएँ, क्यूँकि वह एक जाविदानी क़ानून के मुताबिक़ ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियों में से हारून के लिए बहुत पाक हैं।"10~और एक इस्राइली 'औरत का बेटा जिसका बाप मिस्री था, इस्राईलियों के बीच चला गया और वह इस्राइली 'औरत का बेटा और एक इस्राइली लश्करगाह में आपस में मार पीट करने लगे;11~और इस्राइली 'औरत के बेटे ने पाक नाम पर कुफ़्र बका और ला'नत की। तब लोग उसे मूसा के पास ले गए। उसकी माँ का नाम सलोमीत था, जो दिब्री की बेटी थी जो दान के क़बीले का था।12~और उन्होंने उसे हवालात में डाल दिया ताकि ख़ुदावन्द की जानिब से इस बात का फ़ैसला उन पर ज़ाहिर किया जाए।13~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;14'उस ला'नत करने वाले को लश्करगाह के बाहर निकाल कर ले जा : और जितनों ने उसे ला'नत करते सुना, वह सब अपने-अपने हाथ उसके सिर पर रख्खें और सारी जमा'अत उसे संगसार करे।15~और तू बनी-इस्राईल से कह दे कि जो कोई अपने ख़ुदा पर ला'नत करे उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।16~और वह जो ख़ुदावन्द के नाम पर कुफ़्र बके, ज़रूर जान से मारा जाए; सारी जमा'अत उसे कत'ई संगसार करे, चाहे वह देसी हो या परदेसी; जब वह पाक नाम पर कुफ़्र बके तो वह ज़रूर जान से मारा जाए।17~'और जो कोई किसी आदमी को मार डाले वह ज़रूर जान से मारा जाए।18और जो कोई किसी चौपाए को मार डाले, वह उसका मु'आवज़ा जान के बदले जान दे।19"और अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी को 'ऐबदार बना दे, जो जैसा उसने किया वैसा ही उससे किया जाए;20~या'नी 'उज़्व तोड़ने के बदले 'उज़्व तोड़ना हो, और आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत। जैसा ऐब उसने दूसरे आदमी में पैदा कर दिया है वैसा ही उसमें भी कर दिया जाए21अलग़र्ज़, जो कोई किसी चौपाए को मार डाले वह उसका मु'आवज़ा दे; लेकिन इन्सान का क़ातिल जान से मारा जाए।22~तुम एक ही तरह का क़ानून देसी और परदेसी दोनों के लिए रखना,क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"23~और मूसा ने यह बनी-इस्राईल को बताया। तब वह उस ला'नत करने वाले को निकाल कर लश्करगाह के बाहर ले गए और उसे संगसार कर दिया। इसलिए बनी-इस्राईल ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया।
1~और ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर मूसा से कहा कि;2~"बनी-इस्राईल से कहा कि,~जब तुम उस मुल्क में जो मैं तुम को देता हूँ दाख़िल हो जाओ, तो उसकी ज़मीन भी ख़ुदावन्द के लिए सबत को माने।3~तू अपने खेत को छ: बरस बोना, और अपने अंगूरिस्तान को छ: बरस छाँटना और उसका फल जमा' करना|4लेकिन सातवें साल ज़मीन के लिए ख़ास आराम का सबत हो। यह सबत ख़ुदावन्द के लिए हो। इसमें तू न अपने खेत को बोना और न अपने अंगूरिस्तान को छाँटना।5~और न अपनी खु़दरो फ़सल को काटना और न अपनी बे-छटी ताकों के अंगूरों को तोड़ना; यह ज़मीन के लिए ख़ास आराम का साल हो।6और ज़मीन का यह सबत तेरे, और तेरे ग़ुलामों और तेरी लौंडी और मज़दूरों ~और उन परदेसियों के लिए जो तेरे साथ रहते हैं, तुम्हारी ख़ुराक का ज़रिया' होगा;7और उसकी सारी पैदावार तेरे चौपायों और तेरे मुल्क के और जानवरों के लिए ख़ूराक़ ठहरेगी।8~"और तू बरसों के सात सबतों को, या’नी सात गुना सात साल गिन लेना, और तेरे हिसाब से बरसों के सात सबतों की मुद्दत कुल उन्चास साल होंगे।9~तब तू सातवें महीने की दसवीं तारीख़ की बड़ा नरसिंगा ज़ोर से फुँकवाना, तुम कफ़्फ़ारे के रोज़ अपने सारे मुल्क में यह नरसिंगा फुँकवाना।10~और तुम पचासवें बरस को पाक जानना और तमाम मुल्क में सब बाशिन्दों के लिए आज़ादी का 'ऐलान कराना, यह तुम्हारे लिए यूबली हो। इसमें तुम में से हर एक अपनी मिल्कियत का मालिक हो, और हर शख़्स अपने ख़ान्दान में फिर शामिल हो जाए।11~वह पचासवाँ बरस तुम्हारे लिए यूबली हो, तुम उसमें कुछ न बोना और न उसे जो अपने आप पैदा हो जाए काटना और न बे-छटी ताकों का अंगूर जमा' करना।12क्यूँकि वह साल-ए-यूबली होगा; इसलिए वह तुम्हारे लिए पाक ठहरे, तुम उसकी पैदावार की खेत से लेकर खाना।13"उस साल-ए-यूबली में तुम में से हर एक अपनी मिल्कियत का फिर मालिक हो जाए।14और अगर तू अपने पड़ोसी के हाथ कुछ बेचे या अपने पड़ोसी से कुछ ख़रीदे, तो तुम एक दूसरे पर अन्धेर न करना।15यूबली के बा'द जितने बरस गुज़रें हो उनके शुमार के मुताबिक़ तू अपने पड़ोसी से उसे ख़रीदना, और वह उसे फ़सल के बरसों के शुमार के मुताबिक़ तेरे हाथ बेचे।16जितने ज़्यादा बरस हों उतना ही दाम ज़्यादा करना और जितने कम बरस हों उतनी ही उस की क़ीमत घटाना; क्यूँकि बरसों के शुमार के मुताबिक़ वह उनकी फ़स्ल तेरे हाथ बेचता है।17और तुम एक दूसरे पर अन्धेर न करना, बल्कि अपने ख़ुदा से डरते रहना; क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।18~इसलिए तुम मेरी शरी'अत पर 'अमल करना और मेरे हुक्मों को मानना और उन पर चलना, तो तुम उस मुल्क में अम्न के साथ बसे रहोगे।19~और ज़मीन फलेगी और तुम पेट भर कर खाओगे, और वहाँ अम्न के साथ रहा करोगे।20~और अगर तुम को ख़याल हो ~कि हम सातवें बरस क्या खाएँगे? क्यूँकि देखो, हम को न तो बोना है और न अपनी पैदावार की जमा' करना है।21~तो मैं छटे ही बरस ऐसी बरकत तुम पर नाज़िल करूँगा कि तीनों साल के लिए काफ़ी ग़ल्ला पैदा हो जाएगा।22~और आठवें बरस फिर जीतना बोना और पिछला ग़ल्ला खाते रहना, बल्कि जब तक नौवें साल के बोए हुए की फ़सल न काट लो उस वक़्त तक ~वही पिछला ग़ल्ला खाते रहोगे।23"और ज़मीन हमेशा के लिए बेची न जाए क्यूँकि ज़मीन मेरी है, और तुम मेरे मुसाफ़िर और मेहमान हो।24बल्कि तुम अपनी मिल्कियत के मुल्क में हर जगह ज़मीन को छुड़ा लेने देना।25"और अगर तुम्हारा भाई ग़रीब हो जाए और अपनी मिल्कियत का कुछ हिस्सा बेच डाले, तो जो उस का सबसे क़रीबी रिश्तेदार है वह आकर उस को जिसे उसके भाई ने बेच डाला है छुड़ा ले।26और अगर उस आदमी का कोई न हो जो उसे छुड़ाए, और वह ख़ुद मालदार हो जाए और उसके छुड़ाने के लिए उसके पास काफ़ी हो।27तो वह फ़रोख़्त के बा'द के बरसों को गिन कर बाक़ी दाम उसकी जिसके हाथ ज़मीन बेची है फेर दे; तब वह फिर अपनी मिल्कियत का मालिक हो जाए।28लेकिन अगर उसमें इतना मक़दूर न हो कि अपनी ज़मीन वापस करा ले, तो जो कुछ सन बेच डाला है वह साल-ए-यूबली तक ख़रीदार के हाथ में रहे; और साल-ए-यूबली में छुट जाए, तब यह आदमी अपनी मिल्कियत का फिर मालिक हो जाए।29‘और अगर कोई शख़्स रहने के ऐसे मकान को बेचे जो किसी फ़सीलदार शहर में हो, तो वह उसके बिक जाने के बा'द साल भर के अन्दर-अन्दर उसे छुड़ा सकेगा; या'नी पूरे एक साल तक वह उसे छुड़ाने का हक़दार रहेगा।30~और अगर वह पूरे एक साल की मी'आद के अन्दर छुड़ाया न जाए, तो उस फ़सीलदार शहर के मकान पर ख़रीदार का नसल-दर-नसल हमेशा का क़ब्ज़ा हो जाए और वह साल-ए-यूबली में भी न छूटे।31~लेकिन जिन देहात के गिर्द कोई फ़सील नहीं उनके मकानों का हिसाब मुल्क के खेतों की तरह होगा, वह छुड़ाए भी जा सकेंगे और साल-ए- यूबली में वह छूट भी जाएँगे।32~तो भी लावियों के जो शहर हैं, लावी अपनी मिल्कियत के शहरों के मकानों को चाहे किसी वक़्त छुड़ा लें।33और अगर कोई दूसरा लावी उनको छुड़ा ले, तो वह मकान जो बेचा गया और उसकी मिल्कियत का शहर दोनों साल ए-यूबली में छूट जाएँ; क्यूँकि जो मकान लावियों के शहरों में हैं वही बनी-इस्राईल के बीच लावियों की मिल्कियत हैं।34लेकिन उनके शहरों की 'इलाक़े के खेत नहीं बिक सकते, क्यूँकि वह उनकी हमेशा की ~मिल्कियत हैं।35और अगर तेरा कोई भाई ग़रीब हो जाए और वह तेरे सामने तंगदस्त हो, तो तू उसे संभालना। वह परदेसी और मुसाफ़िर की तरह तेरे साथ रहे।36~तू उससे सूद या नफ़ा' मत लेना बल्कि अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ रखना, ताकि तेरा भाई तेरे साथ ज़िन्दगी बसर कर सके।37तू अपना रुपया उसे सूद पर मत देना और अपना खाना भी उसे नफ़े' के ख़याल से न देना।38~मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जो तुम को इसी लिए मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया कि मुल्क-ए-कना'न तुम को दूँ और तुम्हारा ख़ुदा ठहरूँ ।39'और अगर तेरा कोई भाई तेरे सामने ऐसा ग़रीब हो जाए कि अपने को तेरे हाथ बेच डाले, तो तू उससे गु़लाम की तरह ख़िदमत न लेना।40बल्कि वह मज़दूर और मुसाफ़िर की तरह तेरे साथ रहे और साल-ए-यूबली तक तेरी ख़िदमत करे।41उसके बा'द वह बाल-बच्चों के साथ तेरे पास से चला जाए, और अपने घराने के पास और अपने बाप दादा की मिल्कियत की जगह को लौट जाए।42~~इसलिए कि वह मेरे ख़ादिम हैं जिनको मैं मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया हूँ, वह ग़ुलामों की तरह बेचे न जाएँ।43~तू उन पर सख़्ती से हुक्मरानी न करना, बल्कि अपने ख़ुदा से डरते रहना।44~और तेरे जो ग़ुलाम और तेरी जो लौंडियाँ हों, वह उन क़ौमों में से हों जो तुम्हारे चारों तरफ़ रहती हैं; उन ही में से तुम गु़लाम और लौंडियाँ ख़रीदा करना।45इनके सिवा उन परदेसियों के लड़के बालों में से भी जो तुम में क़याम करते हैं और उनके घरानों में से जो तुम्हारे मुल्क में पैदा हुए और तुम्हारे साथ हैं तुम ख़रीदा करना और वह तुम्हारी ही मिल्कियत होंगे।46और तुम उनको मीरास के तौर पर अपनी औलाद के नाम कर देना कि वह उनकी मौरूसी मिल्कियत हों। इनमें से तुम हमेशा अपने लिए ग़ुलाम लिया करना; लेकिन बनी-इस्राईल जो तुम्हारे भाई हैं, उनमें से किसी पर तुम सख़्ती से हुक्मरानी न करना।47"और अगर कोई परदेसी या मुसाफ़िर जो तेरे साथ हो, दौलतमन्द हो जाए और तेरा भाई उसके सामने ग़रीब हो कर अपने आप को उस परदेसी या मुसाफ़िर या परदेसी के ख़ान्दान के किसी आदमी के हाथ बेच डाले,48तो बिक जाने के बा'द वह छुड़ाया जा सकता है, उसके भाइयों में से कोई उसे छुड़ा सकता है,49या उसका चचा या ताऊ, या उसके चचा या ताऊ का बेटा, या उसके ख़ान्दान का कोई और आदमी जो उसका क़रीबी रिश्तेदार हो वह उस को छुड़ा सकता है; या अगर वह मालदार हो जाए, तो वह अपना फ़िदिया दे कर छूट सकता है।50वह अपने ख़रीदार के साथ अपने को फ़रोख़्त कर देने के साल से लेकर साल-ए-यूबली तक हिसाब करे और उसके बिकने की क़ीमत बरसों की ता'दाद के मुताबिक़ हो; या'नी उसका हिसाब मज़दूर के दिनों की तरह उसके साथ होगा।51~अगर यूबली के अभी बहुत से बरस बाक़ी हों, तो जितने रुपयों में वह ख़रीदा गया था उनमें से अपने छूटने की क़ीमत उतने ही बरसों के हिसाब के मुताबिक़ फेर दे।52~और अगर साल-ए-यूबली के थोड़े से बरस रह गए हों, तो वह उसके साथ हिसाब करे और अपने छूटने की क़ीमत उतने ही बरसों के मुताबिक़ उसे फेर दे;53~और वह उस मज़दूर की तरह अपने आक़ा के साथ रहे जिसकी मज़दूरी साल-ब-साल ठहराई जाती हो, और उसका आक़ा उस पर तुम्हारे सामने सख़्ती से हुकूमत न करने पाए।54~और अगर वह इन तरीक़ों से छुड़ाया न जाए तो साल-ए-यूबली में बाल बच्चों के साथ छूट जाए।55~क्यूँकि बनी-इस्राईल मेरे लिए ख़ादिम हैं, वह मेरे ख़ादिम हैं जिनको मैं मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया हूँ; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
1~तुम अपने लिए बुत न बनाना और न कोई तराशी हुई मूरत या लाट अपने लिए खड़ी करना, और न अपने मुल्क में कोई शबीहदार पत्थर रखना कि उसे सिज्दा करो; इसलिए कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।2~तुम मेरे सबतों को मानना और मेरे हैकल की ता'ज़ीम करना; मैं ख़ुदावन्द हूँ।3~"अगर तुम मेरी शरी'अत पर चलो और मेरे हुक्मों को मानो और उन पर 'अमल करो,4~तो मैं तुम्हारे लिए सही वक़्त मेंह बरसाऊँगा और ज़मीन से अनाज पैदा होगा और मैदान के दरख़्त फलेंगे;5यहाँ तक कि अंगूर जमा' करने के वक़्त तक तुम दावते रहोगे, और जोतने बोने के वक़्त तक अंगूर जमा' करोगे, और पेट भर अपनी रोटी खाया करोगे, और चैन से अपने मुल्क में बसे रहोगे।6~और मैं मुल्क में अम्न बख़्शूंगा, और तुम सोओगे और तुम को कोई नहीं डराएगा; और मैं बुरे दरिन्दों को मुल्क से हलाक कर दूँगा, और तलवार तुम्हारे मुल्क में नहीं चलेगी।7और तुम अपने दुश्मनों का पीछा करोगे, और वह तुम्हारे आगे-आगे तलवार से मारे जाएँगे।8और तुम्हारे पाँच आदमी सौ को दौड़ाएंगे, और तुम्हारे सौ आदमी दस हज़ार को खदेड़ देगें, और तुम्हारे दुश्मन तलवार से तुम्हारे आगे-आगे मारे जाएँगे;9~और मैं तुम पर नज़र-ए-'इनायत रख्खूंगा, और तुम को कामयाब करूँगा और बढ़ाऊँगा, और जो मेरा 'अहद तुम्हारे साथ है उसे पूरा करूँगा।10और तुम 'अरसे का ज़ख़ीरा किया हुआ पुराना अनाज खाओगे, और नये की वजह से पुराने को निकाल बाहर करोगे।11~और मैं अपना घर तुम्हारे बीच क़ायम रखूँगा और मेरी रूह तुमसे नफ़रत न करेगी।12~और मैं तुम्हारे बीच चला फिरा करूँगा, और तुम्हारा ख़ुदा हूँगा, और तुम मेरी क़ौम होगे।13~मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से इसलिए निकाल कर ले आया कि तुम उनके ग़ुलाम न बने रहो; और मैंने तुम्हारे जूए की चोबें तोड़ डाली हैं और तुम को सीधा खड़ा करके चलाया।14~लेकिन अगर तुम मेरी न सुनो और इन सब हुक्मों पर 'अमल न करो,15~और मेरी शरी'अत को छोड़ दो, और तुम्हारी रूहों को मेरे फ़ैसलों से नफ़रत हो, और तुम मेरे सब हुक्मों पर 'अमल न करो बल्कि मेरे 'अहद को तोड़ो;16~तो मैं भी तुम्हारे साथ इस तरह पेश आऊँगा कि दहशत और तप-ए-दिक़ और बुख़ार को तुम पर मुक़र्रर कर दूँगा, जो तुम्हारी आँखों को चौपट कर देंगे और तुम्हारी जान को घुला डालेंगे, और तुम्हारा बीज बोना फ़िज़ूल होगा क्यूँकि तुम्हारे दुश्मन उसकी फ़सल खाएँगे;17~और मैं ख़ुद भी तुम्हारा मुख़ालिफ़ हो जाऊँगा, और तुम अपने दुश्मनों के आगे शिकस्त खाओगे; और जिनको तुमसे 'अदावत है वही तुम पर हुक्मरानी करेंगे, और जब कोई तुमको दौड़ाता भी न होगा तब भी तुम भागोगे।18~और अगर इतनी बातों पर भी तुम मेरी न सुनो तो मैं तुम्हारे गुनाहों के ज़रिए' तुम को सात गुनी सज़ा और दूँगा।19~और मैं तुम्हारी शहज़ोरी के फ़ख़्र को तोड़ डालूँगा, और तुम्हारे लिए आसमान को लोहे की तरह और ज़मीन को पीतल की तरह कर दूँगा।20~और तुम्हारी क़ुव्वत बेफ़ायदा सर्फ़ होगी क्यूँकि तुम्हारी ज़मीन से कुछ पैदा न होगा और मैदान के दरख़्त फलने ही के नहीं।21~और अगर तुम्हारा चलन मेरे ख़िलाफ़ ही रहे और तुम मेरा कहा न मानो, तो मैं तुम्हारे गुनाहों के मुवाफ़िक़ तुम्हारे ऊपर और सातगुनी बलाएँ लाऊँगा।22जंगली दरिन्दे तुम्हारे बीच छोड़ दूंगा जो तुम को बेऔलाद कर देंगे और तुम्हारे चौपायों को हलाक करेंगे और तुम्हारा शुमार घटा देगें, और तुम्हारी सड़कें सूनी पड़ जाएँगी।23~और अगर इन बातों पर भी तुम मेरे लिए न सुधरो बल्कि मेरे ख़िलाफ़ ही चलते रहो,24~तो मैं भी तुम्हारे ख़िलाफ़ चलूँगा, और मैं आप ही तुम्हारे गुनाहों के लिए तुम को और सात गुना मारूँगा।25और तुम पर एक ऐसी तलवार चलवाऊँगा जो 'अहदशिकनी का पूरा पूरा इन्तक़ाम ले लेगी, और जब तुम अपने शहरों के अन्दर जा जाकर इकट्ठे हो जाओ, तो मैं वबा को तुम्हारे बीच भेजूँगा और तुम ग़नीम के हाथ में सौंप दिए जाओगे।26और जब मैं तुम्हारी रोटी का सिलसिला तोड़ दूंगा, तो दस 'औरतें एक ही तनूर में तुम्हारी रोटी पकाएँगी। और तुम्हारी उन रोटियों को तोल-तोल कर देती जाएँगी; और तुम खाते जाओगे पर सेर न होगे।27~"और अगर तुम इन सब बातों पर भी मेरी न सुनो और मेरे ख़िलाफ़ ही चलते रहो,28~तो मैं अपने ग़ज़ब में तुम्हारे बरख़िलाफ़ चलूँगा, और तुम्हारे गुनाहों के ज़रिए' तुम को सात गुनी सज़ा भी दूँगा।29~और तुम को अपने बेटों का गोश्त और अपनी बेटियों का गोश्त खाना पड़ेगा।30और मैं तुम्हारी परस्तिश के बलन्द मकामों को ढा दुंगा, और तुम्हारी सूरज की मूरतों को काट डालूँगा और तुम्हारी लाशें तुम्हारे शिकस्ता बुतों पर डाल दूँगा, और मेरी रूह को तुमसे नफ़रत हो जाएगी।31~और मैं तुम्हारे शहरों को वीरान कर डालूँगा, और तुम्हारे हैकलों को उजाड़ बना दूँगा, और तुम्हारी ख़ुशबू-ए- शीरीन की लपट को मैं सूघने का भी नहीं।32~और मैं मुल्क को सूना कर दूँगा, और तुम्हारे दुश्मन जो वहाँ रहते हैं इस बात से हैरान होंगे।33और मैं तुम को गैर क़ौमों में बिखेर दूँगा और तुम्हारे पीछे-पीछे तलवार खींचे रहूँगा; और तुम्हारा मुल्क सूना हो जाएगा, और तुम्हारे शहर वीरान बन जाएँगे।34'और यह ज़मीन जब तक वीरान रहेगी और तुम दुश्मनों के मुल्क में होगे, तब तक वह अपने सबत मनाएगी; तब ही इस ज़मीन को आराम भी मिलेगा और वह अपने सबत भी मनाने पाएगी।35~ये जब तक वीरान रहेगी तब ही तक आराम भी करेगी, जो इसे कभी तुम्हारे सबतों में जब तुम उसमें रहते थे नसीब नहीं हुआ था।36~~और जो तुम में से बच जाएँगे और अपने दुश्मनों के मुल्कों में होंगे, उनके दिल के अन्दर मैं बेहिम्मती पैदा कर दूँगा उड़ती हुई पट्टी की आवाज़ उनको खदेड़ेगी, और वह ऐसे भागेंगे जैसे कोई तलवार से भागता हो और हालाँकि कोई पीछा भी न करता होगा तो भी वह गिर-गिर पड़ेगे।37और वह तलवार के ख़ौफ़ से एक दूसरे से टकरा-टकरा जाएँगे बावजूद यह कि कोई खदेड़ता न होगा, और तुम को अपने दुश्मनों के मुक़ाबले की ताब न होगी।38और तुम ग़ैर क़ौमों के बीच बिखर कर हलाक हो जाओगे, और तुम्हारे दुश्मनों की ज़मीन तुम को खा जाएगी।39और तुम में से जो बाक़ी बचेंगे वह अपनी बदकारी की वजह से तुम्हारे दुश्मनों के मुल्कों में घुलते रहेंगे, और अपने बाप दादा की बदकारी की वजह से भी वह उन्हीं की तरह घुलते जाएँगे।40'तब वह अपनी और अपने बाप दादा की इस बदकारी का इक़रार करेंगे कि उन्होंने मुझ से ख़िलाफ़वर्ज़ी कर कि मेरी हुक्म-उदूली की; और यह भी मान लेंगे कि चूँकि वह मेरे ख़िलाफ़ चले थे,41~इसलिए मैं भी उनका मुख़ालिफ़ हुआ और उनको उनके दुश्मनों के मुल्क में ला छोड़ा। अगर उस वक़्त उनका नामख़्तून दिल 'आजिज़ बन जाए और वह अपनी बदकारी की सज़ा को मन्जूर करें,42तब मैं अपना 'अहद जो या'क़ूब के साथ था याद करूँगा, और जो 'अहद मैंने इस्हाक़ के साथ, और जो 'अहद मैंने इब्राहीम के साथ बान्धा था उनको भी याद करूँगा, और इस मुल्क को याद करूँगा।43~और वह ज़मीन भी उनसे छूट कर जब तक उनकी ग़ैर हाज़िरी में सूनी पड़ी रहेगी तब तक अपने सबतों को मनाएगी; और वह अपनी बदकारी की सज़ा को मन्जूर कर लेंगे, इसी वजह से कि उन्होंने मेरे हुक्मों को छोड़ दिया था, और उनकी रूहों को मेरी शरी'अत से नफ़रत ही गई थी।44इस पर भी जब वह अपने दुश्मनों के मुल्क में होंगे तो मैं उनको ऐसा नहीं छोड़ूँगा करूँगा और न मुझे उनसे ऐसी नफ़रत होगी कि मैं उनकी बिल्कुल फ़ना कर दूँ, और मेरा जो 'अहद उनके साथ है उसे तोड़ दूँ क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।45बल्कि मैं उनकी ख़ातिर उनके बाप दादा के 'अहद की याद करूँगा, जिनको मैं ग़ैरक़ौमों की आँखों के सामने मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया ताकि मैं उनका ख़ुदा ठहरूँ; मैं ख़ुदावन्द हूँ।"46यह वह शरी'अत और अहकाम और क़वानीन हैं जो ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर अपने और बनी-इस्राईल के बीच मूसा की ज़रिए' मुक़र्रर किए।
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;2~"बनी-इस्राईल से कह,~कि जब कोई शख़्स अपनी मिन्नत पूरी करने लगे, तो मिन्नत के आदमी तेरी क़ीमत ठहराने के मुताबिक़ ख़ुदावन्द के होंगे।3इसलिए बीस बरस की 'उम्र से लेकर साठ बरस की 'उम्र तक के मर्द के लिए तेरी ठहराई हुई क़ीमत हैकल की ~मिस्क़ाल के हिसाब से चाँदी की पचास मिस्क़ाल हों।4~और अगर वह 'औरत हो, तो तेरी ठहराई हुई क़ीमत तीस मिस्क़ाल हों।5~और अगर पाँच बरस से लेकर बीस बरस तक की 'उम्र हो, तो तेरी ठहराई हुई क़ीमत मर्द के लिए बीस मिस्क़ाल और 'औरत के लिए दस मिस्क़ाल हों।6~लेकिन अगर 'उम्र एक महीने से लेकर पाँच बरस तक की हो, तो लड़के के लिए चाँदी के पाँच मिस्क़ाल और लड़की के लिए चाँदी के तीन मिस्क़ाल ठहराई जाएँ।7~. और अगर साठ बरस से लेकर ऊपर ऊपर की 'उम्र हो, तो मर्द के लिए पन्द्रह मिस्क़ाल और 'औरत के लिए दस मिस्क़ाल मुक़र्रर हों।8लेकिन अगर कोई तेरे अन्दाज़े की निस्बत कम मक़दूर रखता हो, तो वह काहिन के सामने हाज़िर किया जाए और काहिन उसकी क़ीमत ठहराए, या'नी जिस शख़्स ने मिन्नत मानी है उसकी जैसी हैसियत ही वैसी ही क़ीमत काहिन उसके लिए ठहराए।9'और अगर वह मिन्नत किसी ऐसे जानवर की है जिसकी क़ुर्बानी लोग ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाया करते हैं, तो जो जानवर कोई ख़ुदावन्द की नज़्र करे वह पाक ठहरेगा।10~~वह उसे फिर किसी तरह न बदले, न तो अच्छे की बदले बुरा दे और न बुरे की बदले अच्छा दे; और अगर वह किसी हाल में एक जानवर के बदले दूसरा जानवर दे तो वह और उसका बदल दोनों पाक ठहरेंगे।11और अगर वह कोई नापाक जानवर हो जिसकी क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने नहीं पेश करते, तो वह उसे काहिन के सामने खड़ा करे,12और चाहे वह अच्छा हो या बुरा काहिन उसकी क़ीमत ठहराए और ऐ काहिन, जो कुछ तू उसका दाम ठहराएगा वही रहेगा।13~और अगर वह चाहे कि उसका फ़िदिया देकर उसे छुड़ाए, तो जो क़ीमत तूने ठहराई है उसमें उसका पाँचवा हिस्सा वह और मिला कर दे।14'और अगर कोई अपने घर को पाक क़रार दे ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए पाक हो, तो ख़्वाह वह अच्छा हो या बुरा काहिन उसकी क़ीमत ठहराए, और जो कुछ वह ठहराए वही उसकी क़ीमत रहेगी।15और जिसने उस घर को पाक क़रार दिया है अगर वह चाहे कि घर का फ़िदिया देकर उसे छुड़ाए, तो तेरी ठहराई हुई क़ीमत में उसका पाँचवाँ हिस्सा और मिला दे तब वह घर उसी का रहेगा।16और अगर कोई शख़्स अपने मौरूसी खेत का कोई हिस्सा ख़ुदावन्द के लिए पाक~क़रार दे, तो तू क़ीमत का अन्दाज़ा करते यह देखना कि उसमें कितना बीज बोया जाएगा। जितनी ज़मीन में एक ख़ोमर के वज़न के बराबर जौ बो सकें उसकी क़ीमत चाँदी की पचास मिस्क़ाल हो।17अगर कोई साल-ए- यूबली से अपना खेत पाक करार दे, तो उसकी क़ीमत जो तू ठहराए वही रहेगी।18लेकिन अगर वह साल-ए-यूबली के बा'द अपने खेत को पाक क़रार दे, तो जितने बरस दूसरे साल-ए-यूबली के बाक़ी हों उन्ही के मुताबिक़ काहिन उसके लिए रुपये का हिसाब करे; और जितना हिसाब में आए उतना तेरी ठहराई हुई क़ीमत से कम किया जाए।19~और अगर वह जिसने उस खेत को पाक करार दिया है यह चाहे कि उसका फ़िदिया देकर उसे छुड़ाए, वह तेरी ठहराई हुई क़ीमत का पाँचवाँ हिस्सा उसके साथ और मिला कर दे तो वह खेत उसी का रहेगा।20~और अगर वह उस खेत का फ़िदिया देकर उसे न छुड़ाए या किसी दूसरे शख़्स के हाथ उसे बेच दे, तो फिर वह खेत कभी न छुड़ाया जाए;21बल्कि वह खेत जब साल-ए-यूबली में छूटे तो वक्फ़ किए हुए खेत की तरह वह ख़ुदावन्द के लिए पाक होगा, और काहिन की मिल्कियत ठहरेगा22~और अगर कोई शख़्स किसी ख़रीदे हुए खेत को जो उसका मौरूसी नहीं, ख़ुदावन्द के लिए पाक क़रार दे,23~तो काहिन जितने बरस दूसरे साल-ए-यूबली के बाक़ी हों उनके मुताबिक़ तेरी ठहराई हुई क़ीमत का हिसाब उसके लिए करे, और वह उसी दिन तेरी ठहराई हुई क़ीमत को ख़ुदावन्द के लिए पाक जानकर दे दे।24और साल-ए- यूबली में वह खेत उसी को वापस हो जाए जिससे वह ख़रीदा गया था और जिसकी वह मिल्कियत है।25और तेरे सारे क़ीमत के अन्दाज़े हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से हों; और एक मिस्क़ाल बीस जीरह का हो।26लेकिन सिर्फ़ चौपायों के पहलौठों को जो पहलौठे होने की वजह से ख़ुदावन्द के ठहर चुके हैं, कोई शख़्स पाक क़रार न दे, चाहे वह बैल हो या भेड़-बकरी वह तो ख़ुदावन्द ही का है।27~लेकिन अगर वह किसी नापाक जानवर का पहलौठा हो तो वह शख़्स तेरी ठहराई हुई क़ीमत का पाँचवा हिस्सा क़ीमत में और मिलाकर उसका फ़िदिया दे और उसे छुड़ाए; और अगर उसका फ़िदिया न दिया जाए तो वह तेरी ठहराई हुई क़ीमत पर बेचा जाए।28"तोभी कोई मख़्सूस की हुई चीज़ जिसे कोई शख़्स अपने सारे माल में से ख़ुदावन्द के लिए मख़्सूस करे, चाहे वह उसका आदमी या जानवर या मौरूसी ज़मीन ही बेची न जाए और न उसका फ़िदिया दिया जाए; हर एक मख़्सूस की हुई चीज़ ख़ुदावन्द के लिए बहुत पाक है।29~अगर आदमियों में से कोई मख़्सूस किया जाए तो उसका फ़िदिया न दिया जाए, वह ज़रूर जान से मारा जाए।30' और ज़मीन की पैदावार की सारी दहेकी चाहे वह ज़मीन के बीज की या दरख़्त के फल की हो, ख़ुदावन्द की है और ~ख़ुदावन्द के लिए पाक है।31~और अगर कोई अपनी दहेकी में से कुछ छुड़ाना चाहे, तो वह उसका पाँचवाँ हिस्सा उसमें और मिला कर उसे छुड़ाए।32और गाय, बैल और भेड़ बकरी, या जो जानवर चरवाहे की लाठी के नीचे से गुज़रता हो, उनकी दहेकी या'नी दस पीछे एक-एक जानवर ख़ुदावन्द के लिए पाक ठहरे।33~कोई उसकी देख भाल न करे कि वह अच्छा है या बुरा है और न उसे बदलें और अगर कहीं कोई उसे बदले तो वह असल और बदल दोनों के दोनों पाक ठहरे और उसका फ़िदिया भी न दिया जाए |34जो हुक्म ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर बनी इस्राईल के लिए मूसा को दिए वह यही हैं|
1~बनी-इस्राईल के मुल्क-ए-मिस्र से निकल आने के दूसरे बरस के दूसरे महीने की पहली तारीख़ को सीना के वीरान में ख़ुदावन्द ने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में मूसा से कहा कि,2"तुम एक-एक मर्द का नाम ले लेकर गिनो, और उनके नामों की ता'दाद से बनी-इस्रईल की सारी जमा'अत की मर्दुमशुमारी का हिसाब उनके क़बीलों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ करो।3~बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के जितने इस्राईली जंग करने के क़ाबिल हों, उन सभों के अलग-अलग दलों को तू और हारून दोनों मिल कर गिन डालो।4~और हर क़बीले से एक-एक आदमी जो अपने आबाई ख़ान्दान का सरदार है तुम्हारे साथ हो।5~और जो आदमी तुम्हारे साथ होंगे उनके नाम यह हैं: रूबिन के क़बीले से इलीसूर बिन शदियूर6शमा'ऊन के क़बीले से सलूमीएल बिन सूरी शद्दी,7~यहूदाह के क़बीले से नहसोन बिन 'अम्मीनदाब,8~इश्कार के क़बीले से नतनीएल बिन ज़ुग़र,9~ज़बूलून के क़बीले से इलियाब बिन हेलोन,10~यूसुफ़ की नसल में से इफ़्राईम के क़बीले का इलीसमा'अ बिन 'अम्मीहूद, और मनस्सी के क़बीले का जमलीएल बिन फ़दाहसूर,11~बिनयमीन के क़बीले से अबिदान बिन जिदा'ऊनी12~दान के क़बीले से अख़ी'अज़र बिन 'अम्मीशद्दी,13~आशर के क़बीले से फ़ज'ईएल बिन 'अकरान,14~जद्द के क़बीले से इलियासफ़ बिन द'ऊएल,15~नफ़्ताली के क़बीले से अख़िरा' बिन 'एनान।"16~यही अश्ख़ास जो अपने आबाई क़बीलों के रईस और बनी-इस्राईल में हज़ारों के सरदार थे जमा'अत में से बुलाए गए।17~और मूसा और हारून ने इन अश्ख़ास को जिनके नाम मज़कूर हैं अपने साथ लिया।18~और उन्होंने दूसरे महीने की पहली तारीख़ को सारी जमा'अत को जमा' किया, और इन लोगों ने बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के सब आदमियों का शुमार करवा के अपने-अपने क़बीले, और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ अपना अपना हस्ब-ओ-नसब लिखवाया।19~इसलिए जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था उसी के मुताबिक़ उसने उनको दश्त-ए-सीना में गिना।20~और इस्राईल के पहलौठे रूबिन की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ अपने नाम से गिना गया।21~इसलिए रूबिन के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह छियालीस हज़ार पाँच सौ थे ।22~और शमा'ऊन की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ अपने नाम से गिना गया।23इसलिए शमा'ऊन के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह उन्सठ हज़ार तीन सौ थे।24~और जद्द की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।25~इसलिए जद्द के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह पैंतालीस हज़ार छ: सौ पचास थे।26~और यहूदाह की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।27~इसलिए यहूदाह के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह चौहत्तर हज़ार छ: सौ थे।28और इश्कार की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।29~इसलिए इश्कार के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह चव्वन हज़ार चार सौ थे।30~और ज़बूलून की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।31~इसलिए ज़बूलून के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह सतावन हज़ार चार सौ थे।32~और यूसुफ़ की औलाद या'नी इफ़्राईम की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।33इसलिए इफ़्राईम के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह चालीस हज़ार पाँच सौ थे।34~और मनस्सी की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।35इसलिए मनस्सी के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह बत्तीस हज़ार दो सौ थे।36~और बिनयमीन की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।37~इसलिए बिनयमीन के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह पैतिस हज़ार चार सौ थे।38~और दान की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।39~इसलिए दान के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह बासठ हज़ार सात सौ थे।40और आशर की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।41~इसलिए आशर के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह इकतालीस हज़ार पाँच सौ थे।42~और नफ़्ताली की नसल के लोगों में से एक-एक मर्द जो बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का और जंग करने के क़ाबिल था, वह अपने घराने और आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ गिना गया।43~इसलिए, नफ़्ताली के क़बीले के जो आदमी शुमार किए गए वह तिरपन हज़ार चार सौ थे।44~यही वह लोग हैं जो गिने गए। इन ही को मूसा और हारून और बनी-इस्राईल के बारह रईसों ने जो अपने-अपने आबाई ख़ान्दान के सरदार थे, गिना।45~इसलिए बनी-इस्राईल में से जितने आदमी बीस बरस या उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के और जंग करने के क़ाबिल थे, वह सब गिने गए।46~और उन सभों का शुमार छः लाख तीन हज़ार पाँच सौ पचास था।47~पर लावी अपने आबाई क़बीले के मुताबिक़ उनके साथ गिने नहीं गए।48~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा था कि,49~'तू लावियों के क़बीले को न गिनना और न बनी-इस्राईल के शुमार में उनका शुमार दाख़िल करना,50~बल्कि तू~लावियों को शहादत के घर और उसके सब बर्तनों और उसके सब लवाज़िम के मुतवल्ली मुक़र्रर करना।~वही घर और उसके सब बर्तनों को उठाया करें और वहीँ उसमें ख़िदमत भी करें और घर के आस-पास वही अपने ख़ेमे लगाया करें।51~और जब घर को आगे रवाना करने का वक़्त हो तो लावी उसे उतारें, और जब घर को लगाने का वक़्त हो तो लावी उसे खड़ा करें; और अगर कोई अजनबी शख़्स उसके नज़दीक आए तो वह जान से मारा जाए।52और बनी-इस्राईल अपने-अपने दल के मुताबिक़ अपनी-अपनी छावनी और अपने-अपने झंडे के पास अपने-अपने ख़ेमे डालें;53~लेकिन लावी शहादत के घर के चारों तरफ़ ख़ेमे लगाएँ, ताकि बनी-इस्राईल की जमा'अत पर ग़ज़ब न हो; और लावी ही शहादत के घर की निगाहबानी करें।”54चुनाँचे बनी-इस्राईल ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया।
1और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि2~"बनी-इस्राईल अपने-अपने ख़ेमे अपने-अपने झंडे के पास और अपने-अपने आबाई ख़ान्दान के 'अलम के साथ ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के सामने और उसके चारों तरफ़ लगाएँ।3और जो पश्चिम की तरफ़ जिधर से सूरज निकलता है, अपने ख़ेमे अपने दलों के मुताबिक़ लगाएँ वह यहूदाह की छावनी के झंडे के लोग हों, और अम्मीनदाब का बेटा नहसोन बनी यहूदाह का सरदार हो;4~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह सब चौहत्तर हजार छ: सौ थे।5~और इनके क़रीब इश्कार के क़बीले के लोग ख़ेमे लगायें, और ज़ुग़र का बेटा नतनीएल बनी इश्कार का सरदार हो;6~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे चव्वन हज़ार चार सौ थे।7~फिर ज़बूलून का क़बीला हो, और हेलोन का बेटा इलियाब बनी ज़बूलून का सरदार हो;8~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह सत्तावन हज़ार चार सौ थे।9इसलिए जितने यहूदाह की छावनी में अपने-अपने दल के मुताबिक़ गिने गए वह एक लाख छियासी हज़ार चार सौ थे। पहले यही रवाना हुआ करें।10~"और दख्खिन की तरफ़ अपने दलों के मुताबिक़ रूबिन की छावनी के झंडे के लोग हों, और शदियूर का बेटा इलीसूर बनी रूबिन का सरदार हो;11और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह छियालीस हज़ार पाँच सौ थे।12~और इनके क़रीब शमा'ऊन के क़बीले के लोग ख़ेमे लगायें, और सूरीशद्दी का बेटा सलूमीएल बनी शमा'ऊन का सरदार हो;13~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह उनसठ हज़ार तीन सौ थे।14फिर जद्द का क़बीला हो, और र'ऊएल का बेटा इलियासफ़ बनी जद्द का सरदार हो;15~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह पैन्तालीस हज़ार छ: सौ पचास थे।16~इसलिए जितने रूबिन की छावनी में अपने-अपने दल के मुताबिक़ गिने गए वह एक लाख इक्कावन हज़ार चार सौ पचास थे। रवानगी के वक़्त दूसरी नौबत इन लोगों की हो।17~"फिर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ लावियों की छावनी के साथ जो और छावनियों के बीच में होगी आगे जाए और जिस तरह से लावी ख़ेमे लगाएँ उसी तरह से वह अपनी-अपनी जगह और अपने-अपने झंडे के पास-पास चलें।18~'और पश्चिम की तरफ़ अपने दलों के मुताबिक़ इफ़्राईम की छावनी के झंडे के लोग हों, और 'अम्मीहूद का बेटा इलीसमा' बनी इफ़्राईम का सरदार हो;19~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे, वह चालीस हज़ार पाँच सौ थे।20~और इनके क़रीब मनस्सी का क़बीला हो, और फ़दाहसूर का बेटा जमलीएल बनी मनस्सी का सरदार हो;21~उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे बत्तीस हज़ार दो सौ थे।22~फिर बिनयमीन का क़बीला हो, और जिद'औनी का बेटा अबिदान बनी बिनयमीन का सरदार हो;23~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह पैंतीस हज़ार चार सौ थे।24~इसलिए जितने इफ़्राईम की छावनी में अपने-अपने दल के मुताबिक़ गिने गए वह एक लाख आठ हज़ार एक सौ थे। रवाना के वक़्त तीसरी नौबत इन लोगों की हो।25~'और शिमाल की तरफ़ अपने दलों के मुताबिक़ दान की छावनी के झंडे के लोग हों और 'अम्मीशद्दी का बेटा अख़ी 'अज़र बनी दान का सरदार हो;26~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे, वह बासठ हज़ार सात सौ थे।27~इनके क़रीब आशर के क़बीले के लोग ख़ेमे लगाएँ, और 'अकरान का बेटा फ़ज'ईएल बनी आशर का सरदार हो;28~और उसके दल के लोग जो शुमार किए गए थे वह, इकतालीस हज़ार पाँच सौ थे।29फिर नफ़्ताली का क़बीला हो, और 'एनान का बेटा अख़ीरा' बनी नफ़्ताली का सरदार हो;30और उसके दल के लोग जो शुमार किये गए, वह तिरपन हज़ार चार सौ थे।31~फिर जितने दान की छावनी में गिने गए वह एक लाख सत्तावन हज़ार छ: सौ थे। यह लोग अपने-अपने झंडे के पास-पास होकर सब से पीछे रवाना हुआ करें।”32~बनी-इस्राईल में से जो लोग अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ गिने गए वह यही हैं; और सब छावनियों के जितने लोग अपने-अपने दल के मुताबिक़ गिने गए वह छः लाख तीन हज़ार पाँच सौ पचास थे।33~लेकिन लावी जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म किया था, बनी-इस्राईल के साथ गिने नहीं गए।34~इसलिए बनी-इस्राईल ने ऐसा ही किया और जो-जो हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया था उसी के मुताबिक़ वह अपने-अपने झंडे के पास और अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़, अपने-अपने घराने के साथ ख़ेमे लगाते और रवाना होते थे।
1~और जिस दिन ख़ुदावन्द ने कोह-ए-सीना पर मूसा से बातें कीं, तब हारून और मूसा के पास यह औलाद थी।2और हारून के बेटों के नाम यह हैं: नदब जो पहलौठा था, और अबीहू और इली'अज़र और इतमर।3~हारून के बेटे जो कहानत के लिए मम्सूह हुए और जिनको उसने कहानत की ख़िदमत के लिए मख़्सूस किया था उनके नाम यही हैं।4~और नदब और अबीहू तो जब उन्होंने~दश्त-ए-सीना में ख़ुदावन्द के सामने ऊपरी आग पेश कीं तब ही ख़ुदावन्द के सामने मर गए, और वह बे-औलाद भी थे। और इली'अज़र और इतमर अपने बाप हारून के सामने कहानत की ख़िदमत को अन्जाम देते थे।5और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,6~"लावी के क़बीले को नज़दीक लाकर हारून काहिन के आगे हाज़िर कर ताकि वह उसकी ख़िदमत करें।7और जो कुछ उसकी तरफ़ से और जमा'अत की तरफ़ से उनको सौंपा जाए वह सब की ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के आगे निगहबानी करें ताकि घर की ख़िदमत बजा लाएँ।8~और वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सब सामान की और बनी-इस्राईल की सारी अमानत की हिफ़ाज़त करें ताकि घर की ख़िदमत बजा लाएँ।9~और तू लावियों को हारून और उसके बेटों के हाथ में सुपर्द कर; बनी-इस्राईल की तरफ़ से वह बिल्कुल उसे दे दिए गए हैं।10और हारून और उसके बेटों को मुक़र्रर कर, और वह अपनी कहानत को महफ़ूज़ रख्खे और अगर कोई अजनबी नज़दीक आये तो वह जान से मारा जाए।"11~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;12~"देख, मैंने बनी-इस्राईल में से लावियों को उन सभों के बदले में ले लिया है जो इस्राईलियों में पहलौठी के बच्चे हैं, इसलिए लावी मेरे हों।13~क्यूँकि सब पहलौठे मेरे हैं, इसलिए कि जिस दिन मैंने मुल्क-ए-मिस्र में सब पहलौठों को मारा, उसी दिन मैंने बनी-इस्राईल के सब पहलौठों को, क्या इन्सान और क्या हैवान, अपने लिए पाक किया; इसलिए वह ज़रूर मेरे हों। मैं ख़ुदावन्द हूँ।"14~फिर ख़ुदावन्द ने दश्त-ए-सीना में मूसा से कहा,15~"बनी लावी को उनके आबाई ख़ान्दानों और घरानों के मुताबिक़ शुमार कर, या'नी एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के हर लड़के को गिनना।"16~चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ जो उसने उसे दिया, उनको गिना।17~और लावी के बेटों के नाम यह हैं : जैरसोन और क़िहात और मिरारी।18~जैरसोन के बेटों के नाम जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं : लिबनी और सिम'ई।19और क़िहात के बेटों के नाम जिनसे उनके ख़ान्दान चले 'अमराम और इज़हार और हब्रून और 'उज़्ज़ीएल हैं।20~और मिरारी के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले, महली और मूशी हैं। लावियों के घराने उनके आबाई ख़ान्दानों के मुवाफ़िक़ यही हैं।21~और जैरसोन से लिबनियों और सिम'इयों के ख़ान्दान चले; यह जैरसोनियों के ख़ान्दान हैं।22~इनमें जितने फ़रज़न्द-ए-नरीना एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के थे वह सब गिने गए और उनका शुमार सात हज़ार पाँच सौ था।23~जैरसोनियों के ख़ान्दानों के आदमी घर के पीछे पश्चिम की तरफ़ अपने ख़ेमे लगाया करें।24और लाएल का बेटा इलियासफ़, जैरसोनियों के आबाई ख़ान्दानों का सरदार हो।25~और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के जो सामान बनी जैरसोन की हिफ़ाज़त में सौंपे जाएँ वह यह हैं : घर और ख़ेमा, और उसका ग़िलाफ़, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े का पर्दा,26~और घर और मज़बह के गिर्द के सहन के पर्दे, और सहन के दरवाज़े का पर्दा, और वह सब रस्सियाँ जो उसमें काम आती हैं।27~और क़िहात से 'अमरामियों और इज़हारियों और हबरूनियों और 'उज़्ज़ीएलियों के ख़ान्दान चले; ये~क़िहातियों के~ख़ान्दान हैं।28~उनके फ़र्ज़न्द-ए-नरीना एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के आठ हज़ार छ: सौ थे। हैकल की निगहबानी इनके ज़िम्मे थी।29~बनी क़िहात के ख़ान्दानों के आदमी घर की दख्खिनी सिम्त में अपने ख़ेमे डाला करें।30और 'उज़्ज़ीएल का बेटा इलीसफ़न क़िहातियों के घरानों के आबाई खान्दान का सरदार हो।31और सन्दूक़ और मेज़ और शमा'दान और दोनों मज़बहे और हैकल के बर्तन, जो 'इबादत के काम में आते हैं, और पर्दे और हैकल में बर्तन का सारा सामान, यह सब उनके ज़िम्मे हों।32~और हारून काहिन का बेटा इलि'अज़र लावियों के सरदारों का सरदार और हैकल के मुत्वल्लियों का नाज़िर हो।33~मिरारी से महलियों और मूशियों के ख़ान्दान चले; यह मिरारियों के ख़ान्दान हैं।34~इनमें जितने फ़रज़न्द-ए-नरीना एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के थे वह छः हज़ार दो सौ थे।35~और अबीख़ेल का बेटा सूरीएल मिरारियों के घरानों के आबाई ख़ान्दान का सरदार हो । यह लोग घर की उत्तरी सिम्त में अपने ख़ेमे डाला करें।36और घर के तख़्तों और उसकी बेडों और सुतूनों और ~ख़ानों और उसके सब आलात, और उसकी ख़िदमत के सब लवाज़िम की मुहाफ़िज़त,37~और सहन के चारों तरफ़ के सुतूनों, और ख़ानों और मेख़ों और रस्सियों की निगरानी बनी मिरारी के ज़िम्मे हो।38~और घर के आगे पश्चिम की तरफ़ जिधर से सूरज निकलता है, या'नी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के आगे, मूसा और हारून और उसके बेटे अपने ख़ेमे लगाया करें और बनी-इस्राईल के बदले हैकल की हिफ़ाज़त किया करें; और जो अजनबी शख़्स उसके नज़दीक आए वह जान से मारा जाए।39~इसलिए लावियों में से जितने एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के थे उनको मूसा और हारून ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुवाफ़िक़ उनके घरानों के मुताबिक़ गिना, वह शुमार में बाईस हज़ार थे।40~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "बनीइस्राईल के सब नरीना पहलौटे, एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के गिन ले और उनके नामों का शुमार लगा।41~और बनी-इस्राईल के सब पहलौठों के बदले लावियों को, और बनी-इस्राईल के चौपायों के सब पहलौठों के बदले लावियों के चौपायों को मेरे लिए ले। मैं ख़ुदावन्द हूँ।"42चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ बनी-इस्राईल के सब पहलौठों को गिना।43~तब जितने नरीना पहलौठे एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के गिने गए, वह नामों के शुमार के मुताबिक़ बाईस हज़ार दो सौ तिहतर थे।44~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;45~'बनी-इस्राईल के सब पहलौठों के बदले लावियों को, और उनके चौपायों के बदले लावियों के चौपायों को ले; और लावी मेरे हों, मैं ख़ुदावन्द हूँ।46~और बनी-इस्राईल के पहलौठों में जो दो सौ तिहत्तर लावियों के शुमार से ज़्यादा हैं, उनके फ़िदिये के लिए47तू हैकल की मिस्काल के हिसाब से हर शख़्स पाँच मिस्काल लेना (एक मिस्क़ाल बीस जीरह का होता है)।48~और इनके फ़िदिये का रुपया जो शुमार में ज़्यादा हैं तू हारून और उसके बेटों को देना।”49~तब जो उनसे जिनको लावियों ने छुड़ाया था, शुमार में ज़्यादा निकले थे उनके फ़िदिये का रुपया मूसा ने उनसे लिया।50~ये रुपया उसने बनी-इस्राईल के पहलौठों से लिया, इसलिए हैकल की मिस्काल के हिसाब से एक हज़ार तीन सौ पैंसठ मिस्क़ालें वसूल हुई।51~और मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ फ़िदिये का रुपया जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया था, हारून और उसके बेटों को दिया।
1और ख़दावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि;,2~"बनी लावी में से क़िहातियों को उनके घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़,3~तीस बरस से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत में शामिल हैं, उन सभों को गिनो।4और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में पाकतरीन चीज़ों की निस्बत बनी क़िहात का यह काम होगा,5कि जब लश्कर रवाना हो तो हारून और उसके बेटे आएँ और बीच के पर्दे को उतारें और उससे शहादत के सन्दूक़ को ढाँकें,6~और उस पर तुख़स की खालों का एक ग़िलाफ़ डालें, और उसके ऊपर बिल्कुल आसमानी रंग का कपड़ा बिछाएँ, और उसमें उसकी चोबें लगाएँ।7और नज़्र की रोटी की मेज़ पर आसमानी रंग का कपड़ा बिछाकर, उसके ऊपर तबाक़ और चमचे और उँडेलने के कटोरे और प्याले रख्खें; और दाइमी रोटी भी उस पर हो।8~फिर वह उन पर सुर्ख़ रंग का कपड़ा बिछाएँ और उसे तुख़स की खालों के एक ग़िलाफ़ से ढाँकें, और मेज़ में उसकी चोबें लगा दें।9~फिर आसमानी रंग का कपड़ा लेकर उससे रोशनी देने वाले शमा'दान को, और उसके चराग़ों और गुलगीरों और गुलदानों और तेल के सब बर्तनों को, जो शमा'दान के लिए काम में आते हैं ढाँकें;10~और उसको और उसके सब बर्तनों को तुख़स की खालों के एक ग़िलाफ़ के अन्दर रख कर उस ग़िलाफ़ को चौखटे पर धर दें।11~और ज़रीन मज़बह पर आसमानी रंग का कपड़ा बिछाएँ और उसे तुख़स की खालों के एक ग़िलाफ़ से ढाँकें और उसकी चोबें उसमें लगाएँ।12~और सब बर्तनों को जो हैकल की ख़िदमत के काम में आते हैं लेकर उनको आसमानी रंग के कपड़े में लपेटें और उनको तुख़स की खालों के एक ग़िलाफ़ से ढाँक कर चौखटे पर धरें।13~फिर वह मज़बह पर से सब राख को उठाकर उसके ऊपर अर्गवानी रंग का कपड़ा बिछाएँ।14उसके सब बर्तन जिनसे उसकी ख़िदमत करते हैं जैसे अंगीठियाँ और सेख़ें और बेल्चे और कटोरे, ग़र्ज़ मज़बह के सब बर्तन उस पर रख्खें, और उस पर तुख़स की खालों का एक ग़िलाफ़ बिछाएँ और मज़बह में चोबें लगा दें।15~और जब हारून और उसके बेटे हैकल की और हैकल के सब अस्बाब को ढाँक चुकें, तब ख़ेमागाह के रवानगी के वक़्त बनी क़िहात उसके उठाने के लिए आएँ लेकिन वह हैकल को न छुएँ, ऐसा न हो कि वह मर जाएँ। ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की यही चीज़ें बनी क़िहात के उठाने की हैं।16"और रोशनी के तेल, और ख़ुशबूदार ख़ुशबू और दाइमी नज़्र की क़ुर्बानी और मसह करने के तेल, और सारे घर, और उसके लवाज़िम और हैकल और उसके सामान की निगहबानी हारून काहिन के बेटे इली'अज़र के ज़िम्मे हो।”17~और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा कि;18~"तुम लावियों में से क़िहातियों के क़बीले के ख़ान्दानों को मुनक़ता' होने न देना;19~बल्कि इस मक़सूद से कि जब वह पाकतरीन चीज़ों के पास आएँ तो ज़िन्दा रहें, और मर न जाएँ, तुम उनके लिए ऐसा करना कि हारून और उसके बेटे अन्दर आ कर उनमें से एक-एक का काम और बोझ मुक़र्रर कर दें।20~लेकिन वह हैकल को देखने की ख़ातिर दम भर के लिए भी अन्दर न आने पाएँ, ऐसा न हो कि वह मर जाएँ।”21~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,22~'बनी जैरसोन में से भी उनके आबाई ख़ान्दानों और घरानों के मुताबिक़,23~तीस बरस से लेकर पचास बरस तक की 'उम्र के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत के वक़्त हाज़िर रहते हैं उन सभों को गिन।24~जैरसोनियों के ख़ान्दानों का काम ख़िदमत करने और बोझ उठाने का है।25वह घर के पर्दों को, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और उसके ग़िलाफ़ को, और उसके ऊपर के ग़िलाफ़ को जो तुख़स की खालों का है, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े के पर्दे को,26~और घर और मज़बह के चारों तरफ़ के सहन के पर्दों को, और सहन के दरवाज़े के पर्दे को और उनकी रस्सियों को, और ख़िदमत के सब बर्तनों को उठाया करें; और इन चीज़ों से जो-जो काम लिया जाता है वह भी यही लोग किया करें।27~जैरसोनियों की औलाद का ख़िदमत करने और बोझ उठाने का सारा काम हारून और उसके बेटों के हुक्म के मुताबिक़ हो, और तुम उनमें से हर एक का बोझ मुक़र्रर करके उनके सुपुर्द करना।28~ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में बनी जैरसोन के ख़ान्दानों का यही काम रहे और वह हारून काहिन के बेटे इतमर के मातहत होकर ख़िदमत करें।29~'और बनी मिरारी में से उनके आबाई ख़ान्दानों और घरानों के मुताबिक़,30~तीस बरस से लेकर पचास बरस तक की 'उम्र के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत के वक़्त हाज़िर रहते हैं उन सभों को गिन।31~और ख़ेमा-ए- इजितमा'अ में जिन चीज़ों के उठाने की ख़िदमत उनके ज़िम्मे हो वह यह हैं : घर के तख़्ते और उसके बेंडे, और सुतून और सुतूनों के ख़ाने,32~और चारों तरफ़ के सहन के सुतून और उनके सब आलात और सारे सामान; और जो चीज़ें उनके उठाने के लिए तुम मुक़र्रर करो उनमें से एक-एक का नाम लेकर उसे उनके सुपुर्द करो।33~बनी मिरारी के ख़ान्दानों को जो कुछ ख़िदमत ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में हारून काहिन के बेटे इतमर के मातहत करना है वह यही है।”34~चुनाँचे मूसा और हारून और जमा'अत के सरदारों ने क़िहातियों की औलाद में से उनके घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़,35~तीस बरस की 'उम्र से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत में शामिल थे, उन सभों की गिन लिया;36और उनमें से जितने अपने घरानों के मुवाफ़िक़ गिने गए वह दो हज़ार सात सौ पचास थे।37~क़िहातियों के ख़ान्दानों में से जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ख़िदमत करते थे उन सभों का शुमार इतना ही है; जो हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' दिया था उसके मुताबिक़ मूसा और हारून ने उनको गिना।38~और बनी जैरसोन में से अपने घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़,39~तीस बरस से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत में शामिल थे, वह सब गिने गए;40और जितने अपने घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ गिने गए वह दो हज़ार छ: सौ तीस थे।41~इसलिए बनी जैरसोन के ख़ान्दानों में से जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ख़िदमत करते थे और जिनको मूसा और हारून ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ शुमार किया वह इतने ही थे।42~और बनी मिरारी के घरानों में से अपने घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़,43~तीस बरस से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में काम करने के लिए हैकल की ख़िदमत में शामिल थे,44~वह सब गिने गए; और जितने उनमें से अपने घरानों के मुवाफ़िक़ गिने गए वह तीन हज़ार दो सौ थे।45~इसलिए ख़ुदावन्द के उस हुक्म के मुताबिक़ जो उसने मूसा के ज़रिए' दिया था, जितनों को मूसा और हारून ने बनी मिरारी के ख़ान्दानों में से गिना वह यही हैं।46~अलग़रज़ लावियों में से जिनको मूसा और हारून और इस्राईल के सरदारों ने उनके घरानों और आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ गिना,47~या'नी तीस बरस से लेकर पचास बरस की 'उम्र तक के जितने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में ख़िदमत करने और बोझ उठाने के काम के लिए हाज़िर होते थे,48~उन सभों का शुमार आठ हज़ार पाँच सौ अस्सी था।49~वह ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ मूसा के ज़रिए' अपनी अपनी ख़िदमत और बोझ उठाने के काम के मुताबिक़ गिने गए। यूँ वह मूसा के ज़रिए' जैसा ख़ुदावन्द ने उसको हुक्म दिया था गिने गए।
1फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;2~"बनी-इस्राईल को हुक्म दे कि वह हर कोढ़ी को, और जिरयान के मरीज़ को, और जो मुर्दे की वजह से से नापाक हो, उसको लश्करगाह से बाहर कर दें;3~ऐसों को चाहे वह मर्द हों या 'औरत, तुम निकाल कर उनको लश्करगाह के बाहर रख्खो ताकि वह उनकी लश्करगाह को जिसके बीच मैं रहता हूँ, नापाक न करें।"4~चुनाँचे बनी-इस्राईल ने ऐसा ही किया और उनको निकाल कर लश्करगाह के बाहर रख्खा; जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही बनी-इस्राईल ने किया।5~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;6~'बनी-इस्राईल से कह कि अगर कोई मर्द या 'औरत ख़ुदावन्द की हुक्म उदूली करके कोई ऐसा गुनाह करे जो आदमी करते हैं और क़ुसूरवार हो जाए,7~तो जो गुनाह उसने किया है वह उसका इक़रार करे, और अपनी तक़सीर के मु'आवज़े में पूरा दाम और उसमें पाँचवाँ हिस्सा और मिलकर उस शख़्स को दे जिसका उसने क़ुसूर किया है।8~लेकिन अगर उस शख़्स का कोई रिश्तेदार न हो जिसे~उस तक़सीर का मु'आवज़ा दिया जाए, तो तक़सीर का जो मु'आवज़ा ख़ुदावन्द को दिया जाए वह काहिन का हो 'अलावा कफ़्फ़ारे के उस मेंढे के जिससे उसका कफ़्फ़ारा दिया जाए।9~और जितनी पाक चीज़ें बनीइस्राईल उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन के पास लाएँ वह उसी की हों।10~और हर शख़्स की पाक की हुई चीज़ें उसकी हों और जो चीज़ कोई शख़्स काहिन को दे वह भी उसी की हो।"11~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "बनीइस्राईल से कह कि12~अगर किसी की बीवी गुमराह हो कर उससे बेवफ़ाई करे,13~और कोई दूसरा आदमी उस 'औरत के साथ मुबाश्रत करे और उसके शौहर को मा'लूम न हो बल्कि यह उससे पोशीदा रहे, और वह नापाक हो गई हो लेकिन न तो कोई शाहिद ही और न वह 'ऐन फ़ेल के वक़्त पकड़ी गई हो।14~और उसके शौहर के दिल में ग़ैरत आए: और वह अपनी बीवी से ग़ैरत खाने लगे हालाँकि वह नापाक हुई हो, या उसके शौहर के दिल में ग़ैरत आए और वह अपनी बीवी से ग़ैरत खाने लगे हालाँके वह नापाक नहीं हुई।15~तो वह शख़्स अपनी बीवी को काहिन के पास हाज़िर करे, और उस 'औरत के चढ़ावे के लिए ऐफ़ा के दस्वें हिस्से के बराबर जौ का आटा लाए लेकिन उस पर न तेल डाले न लुबान रख्खे; क्यूँकि यह नज़्र की क़ुर्बानी ग़ैरत की है, या'नी यह यादगारी की नज़्र की क़ुर्बानी है जिससे गुनाह याद दिलाया जाता है।16~"तब काहिन उस 'औरत की नज़दीक लाकर ख़ुदावन्द के सामने खड़ी करे,17~और काहिन मिट्टी के एक बासन में पाक पानी ले और घर के फ़र्श की गर्द लेकर उस पानी में डाले।18~फिर काहिन उस 'औरत को ख़ुदावन्द के सामने खड़ी करके उसके सिर के बाल खुलवा दे, और यादगारी की नज़्र की क़ुर्बानी को जो ग़ैरत की नज़्र की क़ुर्बानी है उसके हाथों पर धरे, और काहिन अपने हाथ में उस कड़वे पानी को ले जो ला'नत को लाता है।19~फिर काहिन उस 'औरत को क़सम खिला कर कहे कि अगर किसी शख़्स ने तुझसे सुहबत नहीं की है और तू अपने शौहर की होती हुई नापाकी की तरफ़ माइल नहीं हुई, तो तू इस कड़वे पानी की तासीर से जो ला'नत लाता है बची रह।20~लेकिन अगर तू अपने शौहर की होती हुई गुमराह होकर नापाक हो गई है और तेरे शौहर के 'अलावा किसी दूसरे शख़्स ने तुझ से सुहबत की है,21~तो काहिन उस 'औरत को ला'नत की क़सम खिला कर उससे कहे, कि ख़ुदावन्द तुझे तेरी क़ौम में तेरी रान को सड़ा कर और तेरे पेट को फुला कर ला'नत और फटकार का निशाना बनाए;22~और यह पानी जो ला'नत लाता है तेरी अंतड़ियों में जा कर तेरे पेट को फुलाए और तेरी रान को सड़ाए। और 'औरत आमीन, आमीन कहे।23~"फिर काहिन उन ला'नतों को किसी किताब में लिख कर उनको उसी कड़वे पानी में धो डाले।24~और वह कड़वा पानी जो ला'नत को लाता है उस 'औरत को पिलाए, और वह पानी जो ला'नत को लाता है उस 'औरत के पेट में जा कर कड़वा हो जाएगा।25~और काहिन उस 'औरत के हाथ से ग़ैरत की नज़्र की क़ुर्बानी को लेकर ख़ुदावन्द के सामने उसको हिलाए, और उसे मज़बह के पास लाए,26~फिर काहिन उस नज़्र की क़ुर्बानी में से उसकी यादगारी के तौर पर एक मुट्ठी लेकर उसे मज़बह पर जलाए, बा'द उसके वह पानी उस 'औरत को पिलाए।27~और जब वह उसे वह पानी पिला चुकेगा, तो ऐसा होगा कि अगर वह नापाक हुई और उसने अपने शौहर से बेवफ़ाई की, तो वह पानी जो ला'नत को लाता है उसके पेट में जा कर कड़वा हो जाएगा और उसका पेट फूल जाएगा और उसकी रान सड़ जाएगी; और वह 'औरत अपनी क़ौम में ला'नत का निशाना बनेगी।28~पर अगर वह नापाक नहीं हुई बल्कि पाक है, तो बे-इल्ज़ाम ठहरेगी और उससे औलाद होगी।29~"ग़ैरत के बारे में यही शरा' है, चाहे 'औरत अपने शौहर की होती हुई गुमराह होकर नापाक हो जाए या मर्द पर ग़ैरत सवार हो,30~और वह अपनी बीवी से ग़ैरत खाने लगे; ऐसे हाल में वह उस 'औरत को ख़ुदावन्द के आगे खड़ी करे और काहिन उस पर यह सारी शरी'अत 'अमल में लाए।31~तब मर्द गुनाह से बरी ठहरेगा और उस 'औरत का गुनाह उसी के सिर लगेगा।"
1फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;2~'बनी-इस्राईल से कह कि जब कोई मर्द या 'औरत नज़ीर की मिन्नत, या'नी अपने आप को ख़ुदावन्द के लिए अलग रखने की ख़ास मिन्नत माने,3~तो वह मय और शराब से परहेज़ करे, और मय का या शराब का सिरका न पिए और न अंगूर का रस पिए और न ताज़ा या ख़ुश्क अंगूर खाए।4और अपनी नज़ारत के तमाम दिनों में बीज से लेकर छिल्के तक जो कुछ अंगूर के दरख़्त में पैदा हो उसे न खाए।5~'और उसकी नज़ारत की मिन्नत के दिनों में उसके सिर पर उस्तरा न फेरा जाए; जब तक वह मुद्दत जिसके लिए वह ख़ुदावन्द का नज़ीर बना है पूरी न हो, तब तक वह पाक रहे और अपने सिर के बालों की लटों को बढ़ने दे।6~उन तमाम दिनों में जब वह ख़ुदावन्द का नज़ीर हो वह किसी लाश के नज़दीक न जाए।7~वह अपने बाप या माँ या भाई या बहन की ख़ातिर भी जब वह मरें, अपने आप को नजिस न करे। क्यूँकि उसकी नज़ारत जो ख़ुदा के लिए है, उसके सिर पर है।8वह अपनी नज़ारत की पूरी मुद्दत तक ख़ुदावन्द के लिए पाक है।9~"और अगर कोई आदमी नागहान उसके पास ही मर जाए और उसकी नज़ारत के सिर को नापाक कर दे, तो वह अपने पाक होने के दिन अपना सिर मुण्डवाए, या'नी सातवें दिन सिर मुण्डवाए।10और आठवें दिन दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के दरवाज़े पर काहिन के पास लाए।11~और काहिन एक को ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए पेश करे और उसके लिए कफ़्फ़ारा दे, क्यूँकि वह मुर्दे की वजह से से गुनहगार ठहरा है; और उसके सिर को उसी दिन पाक करे।12~फिर वह अपनी नज़ारत की मुद्दत को ख़ुदावन्द के लिए पाक करे, और एक यकसाला नर बर्रा जुर्म की क़ुर्बानी के लिए लाए; लेकिन जो दिन गुज़र गए हैं वह गिने नहीं जाएँगे क्यूँकि उसकी नज़ारत* नापाक हो गई थी।13~'और नज़ीर के लिए शरा' यह है, कि जब उसकी नज़ारत के दिन पूरे हो जाएँ तो वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर हाज़िर किया जाए।14और वह ख़ुदावन्द के सामने अपना चढ़ावा चढ़ाए, या'नी सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब यक-साला नर बर्रा, और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब यक-साला मादा बर्रा, और सलामती की क़ुर्बानी के लिए एक बे-'ऐब मेंढा,15~और बेख़मीरी रोटियों की एक टोकरी, और तेल मिले हुए मैदे के कुल्चे, और तेल चुपड़ी हुई बे-ख़मीरी रोटियाँ, और उनकी नज़्र की कुर्बानी, और उनके तपावन लाए।16~और काहिन उनको ख़ुदावन्द के सामने ला कर उसकी तरफ़ से ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करे।17~और उस मेंढे को बेख़मीरी रोटियों की टोकरी के साथ ख़ुदावन्द के सामने सलामती की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करे, और काहिन उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और उसका तपावन भी अदा करे।18~फिर वह नज़ीर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर अपनी नज़ारत के बाल मुण्डवाए, और नज़ारत के बालों को उस आग में डाल दे जो सलामती की क़ुर्बानी के नीचे होगी।19~और जब नज़ीर अपनी नज़ारत के बाल मुण्डवा चुके, तो काहिन उस मेंढे का उबाला हुआ शाना और एक बे-ख़मीरी रोटी टोकरी में से और एक बे-ख़मीरी कुल्चा लेकर उस नज़ीर के हाथों पर उनको धरे।20~फिर काहिन उनको हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाए। हिलाने की क़ुर्बानी के सीने और उठाने की क़ुर्बानी के शाने के साथ यह भी काहिन के लिए पाक हैं। इसके बा'द नज़ीर मय पी सकेगा।21~"नज़ीर जो मिन्नत माने और जो चढ़ावा अपनी नज़ारत के लिए ख़ुदावन्द के सामने लाये 'अलावा उसके जिसका उसे मक़दूर हो उन सभों के बारे में शरा' यह है। जैसी मिन्नत उसने मानी हो वैसा ही उसको नज़ारत की शरा' के मुताबिक़ 'अमल करना पड़ेगा।"22~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;23~"हारून और उसके बेटों से कह कि तुम बनी-इस्राईल को इस तरह दु'आ दिया करना। तुम उनसे कहना :24~'ख़ुदावन्द तुझे बरकत दे और तुझे महफ़ूज़ रख्खें।25~"ख़ुदावन्द अपना चेहरा तुझ पर जलवागर फ़रमाए, और तुझ पर मेहरबान रहे।26~"ख़ुदावन्द अपना चेहरा तेरी तरफ़ मुतवज्जिह करे, और तुझे सलामती बख़्शे।27~"इस तरह वह मेरे नाम को बनी-इस्राईल पर रख्खें और मैं उनको बरकत बख़्शूँगा।"
1और जिस दिन मूसा घर को खड़ा करने से फ़ारिग़ हुआ और उसको और उसके सब सामान को मसह और पाक किया, और मज़बह और उसके सब मसह को भी मसह और पाक किया;2~तो इस्राईली रईस जो अपने आबाई ख़ान्दानों के सरदार और क़बीलों के रईस और शुमार किए हुओं~के ऊपर मुक़र्रर थे नज़राना लाए।3वह अपना हदिया छ: पर्देदार गाड़ियाँ और बारह बैल ख़ुदावन्द के सामने लाये दो-दो रईसों की तरफ़ से एक-एक गाड़ी और हर रईस की तरफ़ से एक बैल था, इनको उन्होंने घर के सामने हाज़िर किया|4~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;5~"तू इनको उनसे ले ताकि वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के काम में आएँ, और तू लावियों में हर शख़्स की ख़िदमत के मुताबिक़ उनको तक़सीम कर दे।”6~तब मूसा ने वह गाड़ियाँ और बैल लेकर उनको लावियों को दे दिया।7~बनी जैरसोन को उसने उनकी ख़िदमत के लिहाज़ से दो गाड़ियाँ और चार बैल दिए।8और चार गाड़ियाँ और आठ बैल उसने बनी मिरारी को उनकी ख़िदमत के लिहाज़ से हारून काहिन के बेटे इतमर के माताहत करके दिए।9~लेकिन बनी क़िहात को उसने कोई गाड़ी नहीं दी, क्यूँकि उनके ज़िम्में हैकल की ख़िदमत थी; वह उसे अपने कन्धों पर उठाते થે10और जिस दिन मज़बह मसह किया गया उस दिन वह रईस उसकी तक़दीस के लिए हदिये लाए, और अपने हदियों को वह रईस मज़बह के आगे ले जाने लगे।11~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "मज़बह की~तक़दीस~के लिए एक-एक रईस एक-एक दिन अपना हदिया पेश करे।"12~इसलिए पहले दिन यहूदाह के क़बीले में से 'अम्मीनदाब के बेटे नहसोन ने अपना हदिया पेश करा।13~और उसका हदिया यह था : हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से एक सौ तीस~मिस्क़ाल~चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर~मिस्क़ाल~चाँदी का एक कटोरा, उन~दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;14~दस~मिस्क़ाल~सोने का एक चम्मच, जो ख़ुशबू से भरा था;15~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा,16~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;17~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह 'अमीनदाब के बेटे नहसोन का हदिया था।18~दूसरे दिन ज़ुग़र के बेटे नतनीएल ने जो इश्कार के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।19और उसका हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस~मिस्क़ाल~चाँदी का एक तबाक़, और~सत्तर~मिस्क़ाल~चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;20~दस~मिस्क़ाल~सोने का एक चम्मच, जो ख़ुशबू से भरा था;21~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;22~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;23~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह ज़ुग़र के बेटे नतनीएल का हदिया था।24और तीसरे दिन हेलोन के बेटे इलियाब ने जो ज़बूलून के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।25और उसका हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और~सत्तर~मिस्क़ाल~चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;26दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो ख़ुशबू से भरा था;27~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;28~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;29~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह हेलोन के बेटे इलियाब का हदिया था।30~चौथे दिन शदियूर के बेटे इलीसूर ने जो रूबिन के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।31~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;32~दस~मिस्क़ाल~सोने का एक चम्मच, जो ख़ुशबू से भरा था;33सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;34~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;35और सलामती की क़ुर्बानी लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह शदियूर के बेटे इलीसूर का हदिया था।36और पाँचवे दिन सूरीशद्दी के बेटे सलूमीएल ने जो शमा'ऊन के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।37और उसका हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़ और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;38दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;39~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;40~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;41~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल पाँच मेंढे पाँच बकरे पाँच नर यक-साला बर्रे। यह सूरीशद्दी के बेटे सलूमीएल का हदिया था।42~और छटे दिन द'ऊएल के बेटे इलियासफ़ ने जो जद्द के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।43और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;44दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;45सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;46~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;47~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढ़े, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह द'ऊएल के बेटे इलियासफ़ का हदिया था।48और सातवें दिन 'अम्मीहूद के बेटे इलीसमा' ने जो इफ़्राईम के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।49~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;50दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;51~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;52~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;53~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह 'अम्मीहूद के बेटे इलीसमा' का हदिया था।54और आठवें दिन फ़दाहसूर के बेटे जमलीएल ने जो मनस्सी के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।55~और उसका~हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;56दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;57~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा,58~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;59~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह फ़दाहसूर के बेटे जमलीएल का हदिया था।60~और नवें दिन जिद'औनी के बेटे अबिदान ने जो बिनयमीन के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।61~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और~सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;62दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच जो~ख़ुशबू~से भरा था;63सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;64~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;65~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह जिद'औनी के बेटे अबिदान का हदिया था।66और दसवें दिन 'अम्मीशद्दी के बेटे अख़ी'अज़र ने जो दान के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।67~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;68दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;69~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;70~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;71~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह 'अम्मीशद्दी के बेटे अख़ी'अज़र का हदिया~था।72और ग्यारहवें दिन 'अकरान के बेटे फ़ज'ईएल ने जो आशर के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।73~और उसका हदिया यह था: हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;74दस मिस्क़ाल चाँदी का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;75~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;76~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;77और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यक-साला बर्रे। यह 'अकरान के बेटे फ़ज'ईएल का हदिया था।78~और बारहवें दिन 'एनान के बेटे अख़ीरा' ने जो बनी नफ़्ताली के क़बीले का सरदार था, अपना हदिया पेश करा।79और उसका हदिया यह था : हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से एक सौ तीस मिस्क़ाल चाँदी का एक तबाक़, और सत्तर मिस्क़ाल चाँदी का एक कटोरा, उन दोनों में नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा भरा था;80दस मिस्क़ाल सोने का एक चम्मच, जो~ख़ुशबू~से भरा था;81~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए एक~बछड़ा, एक मेंढा, एक नर यक-साला बर्रा;82~ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा;83~और सलामती की क़ुर्बानी के लिए दो बैल, पाँच मेंढे, पाँच बकरे, पाँच नर यकसाला बर्रे। यह 'एनान के बेटे अख़ीरा' का हदिया था।84मज़बह के मम्सूह होने के दिन जो हदिये उसकी तक़दीस के लिए इस्राईली रईसों की तरफ़ से पेश करे गए वह यही थे : या'नी चाँदी के बारह तबाक़, चाँदी के बारह कटोरे, सोने के बारह चम्मच।85चाँदी का हर तबाक़ वज़न में एक सौ तीस मिस्क़ाल और हर एक कटोरा सत्तर मिस्क़ाल का था। इन बर्तनों की सारी~चाँदी~हैकल की~मिस्क़ाल~के हिसाब से दो हज़ार चार सौ~मिस्क़ाल~थी।86ख़ुशबू से भरे हुए सोने के बारह चम्मच जो हैकल की~मिस्क़ाल~की तौल के मुताबिक़ वज़न में दस-दस मिस्क़ाल के थे,~इन~चम्मचों का सारा सोना एक सौ बीस मिस्क़ाल था। सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए कुल बारह बछड़े, बारह मेंढे, बारह नर यक-साला बर्रे अपनी-अपनी नज़्र की क़ुर्बानी के साथ थे; और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बारह बकरे थे;87~सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए कुल बारह बछड़े, बारह मेंढे, बारह नर यक-साला बर्रे अपनी-अपनी नज़्र की क़ुर्बानी के साथ थे; और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बारह बकरे थे;88और सलामती की क़ुर्बानी के लिए कुल चौबीस बैल, साठ मेंढ़े, साठ बकरे, साठ नर यक-साला बर्रे थे। मज़बह की तक़दीस के लिए जब वह मम्सूह हुआ इतना हदिया पेश करा गया।89~और जब मूसा ख़ुदा से बातें करने को ख़ेमा-ए- इजितमा'अ में गया, तो उसने सरपोश पर से जो शहादत के सन्दूक़ के ऊपर था, दोनों करूबियों के बीच से वह आवाज़ सुनी जो उससे मुख़ातिब थी; और उसने उससे बातें की।
1और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;2"हारून से कह, जब तू चराग़ों को रोशन करे तो सातों चराग़ों की रोशनी शमा'दान के सामने हो।"3चुनाँचे हारून ने ऐसा ही किया, उसने चराग़ों को इस तरह जलाया कि शमा'दान के सामने रोशनी पड़े, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था।4~और शमा'दान की बनावट ऐसी थी कि वह पाये से लेकर फूलों तक गढ़े हुए सोने का बना हुआ था। जो नमूना ख़ुदावन्द ने मूसा को दिखाया उसी के मुवाफ़िक उसने शमा'दान को बनाया।5और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि6~"लावियों को बनी-इस्राईल से अलग करके उनको पाक कर।7और उनको पाक करने के लिए उनके साथ यह करना, कि ख़ता का पानी लेकर उन पर छिड़कना; फिर वह अपने सारे जिस्म पर उस्तरा फिरवाएँ, और अपने कपड़े धोएँ, और अपने को साफ़ करें।8~तब वह एक बछड़ा और उसके साथ की नज़्र की क़ुर्बानी के लिए तेल मिला हुआ मैदा लें, और तू ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक दूसरा बछड़ा भी लेना।9~और तू लावियों को ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के आगे हाज़िर करना और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत को जमा' करना।10~फिर लावियों को ख़ुदावन्द के आगे लाना, तब बनी-इस्राईल अपने-अपने हाथ लावियों पर रख्खें।11और हारून लावियों की बनी-इस्राईल की तरफ़ से हिलाने की क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करे, ताकि वह ख़ुदावन्द~की ख़िदमत करने पर रहें।12~फिर लावी अपने-अपने हाथ बछड़ों के सिरों पर रख्खें, और तू एक को ख़ता की क़ुर्बानी और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करना, ताकि लावियों के वास्ते कफ़्फ़ारा दिया जाए।13~फिर तू लावियों को हारून और उसके बेटों के आगे खड़ा करना और उनको हिलाने की क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करना।14~"यूँ तू लावियों को बनी-इस्राईल से अलग करना और लावी मेरे ही ठहरेंगे।15~इसके बा'द लावी ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की ख़िदमत के लिए अन्दर आया करें, इसलिए तू उनको पाक कर और हिलाने की क़ुर्बानी के लिए उनको पेश करना।16~इसलिए कि वह सब बनी-इस्राईल में से मुझे बिल्कुल दे दिए गए हैं, क्यूँकि मैंने इन ही को उन सभों के बदले जो इस्राईलियों में पहलौठी के बच्चे हैं, अपने लिए ले लिया है।17~इसलिए कि बनी-इस्राईल के सब पहलौठे, क्या इन्सान क्या हैवान मेरे हैं, मैंने जिस दिन मुल्क-ए- मिस्र के पहलौठों को मारा उसी दिन उनको अपने लिए पाक किया।18और बनी-इस्राईल के सब पहलौठों के बदले मैंने लावियों को ले लिया है।19और मैंने बनी-इस्राईल में से लावियों को लेकर उनको हारून और उसके बेटों को 'अता किया है, ताकि वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में बनी-इस्राईल की जगह ख़िदमत करें और बनी-इस्राईल के लिए कफ़्फ़ारा दिया करें; ताकि जब बनी-इस्राईल हैकल के नज़दीक आएँ तो उनमें कोई वबा न फैले।”20~चुनाँचे मूसा और हारून और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत ने लावियों से ऐसा ही किया; जो कुछ ख़ुदावन्द ने लावियों के बारे में मूसा को हुक्म दिया था, वैसा ही बनी-इस्राईल ने उनके साथ किया।21~और लावियों ने अपने आप को गुनाह से पाक करके अपने कपड़े धोए, और हारून ने उनको हिलाने की क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करा, और हारून ने उनकी तरफ़ से कफ़्फ़ारा दिया ताकि वह पाक हो जाएँ।22~इसके बा'द लावी अपनी ख़िदमत बजा लाने को हारून और उसके बेटों के सामने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में जाने लगे। इसलिए जैसा ख़ुदावन्द ने लावियों के बारे में मूसा को हुक्म दिया था उन्होंने वैसा ही उनके साथ किया।23~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,24"लावियों के मुत'अल्लिक़ जो बात है वह यह है, कि पच्चीस बरस से लेकर उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र में वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की ख़िदमत के काम के लिए अन्दर हाज़िर हुआ करें।25और जब पचास बरस के हों तो फिर उस काम के लिए न आएँ और न ख़िदमत करें,26~बल्कि ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में अपने भाइयों के साथ निगहबानी के काम में मशग़ूल हों, और कोई ख़िदमत न करें। लावियों को जो-जो काम सौंपे जाएँ उनके~मुत'अल्लिक़~तू उनसे ऐसा ही करना।"
1~बनी-इस्राईल के मुल्क-ए-मिस्र से निकलने के दूसरे बरस के पहले महीने में ख़ुदावन्द ने दश्त-ए-सीना में मूसा से कहा कि;2~"बनी इस्राईल 'ईद-ए-फ़सह उसके मु'अय्यन वक़्त पर मनाएँ।3~इसी महीने की चौदहवीं तारीख़ की शाम को तुम वक़्त-ए-मु'अय्यन पर यह 'ईद मनाना, और जितने उसके तौर तरीक़े और रसूम हैं, उन सभों के मुताबिक़ उसे मनाना।"4~इसलिए मूसा ने बनी-इस्राईल को हुक्म किया कि 'ईद-ए-फ़सह करें।5~और उन्होंने पहले महीने~की चौदहवीं तारीख़ की शाम को दश्त-ए- सीना में 'ईद-ए-फ़सह की और बनी-इस्राईल ने सब पर, जो ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था 'अमल किया।6और कई आदमी ऐसे थे जो किसी लाश की वजह से से नापाक हो गए थे, वह उस दिन फ़सह न कर सके। इसलिए वह उसी दिन मूसा और हारून के पास आए,7~और मूसा से कहने लगे, "हम एक लाश की वजह से से नापाक हो रहे हैं; फिर भी हम और इस्राईलियों के साथ वक़्त-ए-मु'अय्यन पर ख़ुदावन्द की क़ुर्बानी पेश करने से क्यूँ रोके जाएँ?"8मूसा ने उनसे कहा, "ठहर जाओ, मैं ज़रा सुन लूँ किख़ुदावन्द तुम्हारे हक़ में क्या हुक्म करता है।"9और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,10~"बनी-इस्राईल से कह कि अगर कोई तुम में से या तुम्हारी नसल में से, किसी लाश की वजह से से नापाक हो जाए या वह कहीं दूर सफ़र में हो तोभी वह ख़ुदावन्द के लिए 'ईद-ए-फ़सह करे।11~वह दूसरे महीने की चौदहवीं तारीख़ की शाम को यह 'ईद मनाएँ और क़ुर्बानी के गोश्त को बे-ख़मीरी रोटियों और कड़वी तरकारियों के साथ खाएँ।12~वह उसमें से कुछ भी सुबह के लिए बाक़ी न छोड़ें, और न उसकी कोई हड्डी तोड़ें, और फ़सह को उसके सारे तौर तरीक़े के मुताबिक़ मानें।13~लेकिन जो आदमी पाक हो और सफ़र में भी न हो, अगर वह फ़सह करने से बाज़ रहे तो वह आदमी अपनी क़ौम में से अलग कर डाला जाएगा; क्यूँकि उसने मु'अय्यन वक़्त पर ख़ुदावन्द की क़ुर्बानी नहीं पेश कीं इसलिए उस आदमी का गुनाह उसी के सिर लगेगा।14और अगर कोई परदेसी तुम में क़याम करता हो और वह ख़ुदावन्द के लिए फ़सह करना चाहे, तो वह फ़सह के तौर तरीक़े और रसूम के मुताबिक़ उसे माने; तुम देसी और परदेसी दोनों के लिए एक ही क़ानून रखना।"15और जिस दिन घर या'नी ख़ेमा-ए-शहादत नस्ब हुआ उसी दिन बादल उस पर छा गया, और शाम को वह घर पर आग सा दिखाई दिया और सुबह तक वैसा ही रहा।16और हमेशा ऐसा ही हुआ करता था, कि बादल उस पर छाया रहता और रात को आग दिखाई देती थी।17~और जब घर पर से वह बादल उठ जाता तो बनी-इस्राईल रवाना होते थे, और जिस जगह वह बादल जा कर ठहर जाता वहीं बनी-इस्राईल ख़ेमा लगाते थे।18~ख़ुदावन्द के हुक्म से बनी-इस्राईल रवाना होते, और ख़ुदावन्द ही के हुक्म से वह ख़ेमे लगाते थे; और जब तक बादल घर पर ठहरा रहता वह अपने ख़ेमे डाले पड़े रहते थे।19~और जब बादल घर पर बहुत दिनों ठहरा रहता, तो बनी-इस्राईल खुदावन्द के हुक्म को मानते और रवाना नहीं होते थे।20और कभी-कभी वह बादल चंद दिनों तक घर पर रहता, और तब भी वह ख़ुदावन्द के हुक्म से ख़ेमे लगाये रहते और ख़ुदावन्द ही के हुक्म से वह~रवाना होते थे।21~फिर कभी-कभी वह बादल शाम से सुबह तक ही रहता, तो जब वह सुबह को उठ जाता तब वह रवाना ते थे; और अगर वह रात दिन बराबर रहता, तो जब वह उठ जाता तब ही वह~रवाना होते थे।22और जब तक वह बादल घर पर ठहरा रहता, चाहे दो दिन या एक महीने या एक बरस हो, तब तक बनी-इस्राईल अपने ख़ेमों में मक़ीम रहते और रवाना नहीं होते थे; पर~जब वह उठ जाता तो वह रवाना होते थे।23~ग़रज़ वह ख़ुदावन्द के हुक्म से मक़ाम करते और ख़ुदावन्द ही के हुक्म से रवाना होते थे; और जो हुक्म ख़ुदावन्द मूसा के ज़रिए' देता, वह ख़ुदावन्द के उस हुक्म को माना करते थे।
1और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,2'अपने लिए चाँदी के दो नरसिंगे बनवा; वह दोनों गढ़कर बनाए जाएँ, तू उनको जमा'अत के बुलाने और लश्करों की रवानगी के लिए काम में लाना।3~और जब वह दोनों नरसिंगे फूँकें, तो सारी जमा'अत ख़ेमा-ए- इज्तिमा'अ के दरवाज़े पर तेरे पास इकट्ठी हो जाए।4और अगर एक ही फूँके, तो वह रईस जो हज़ारों इस्राईलियों के सरदार हैं तेरे पास जमा' हो।5और जब तुम साँस बाँध कर ज़ोर से फूँको, तो वह लश्कर जो पश्चिम की तरफ़ हैं रवानगी करें।6~जब तुम दोबारा साँस बाँध कर ज़ोर से फूँको, तो उन लश्करों को जो दख्खिन की तरफ़ हैं रवाना हो । इसलिए रवानगी के लिए साँस बाँध कर ज़ोर से नरसिंगा फूँका करें।7लेकिन जब जमा'अत को जमा' करना हो तब भी फूँकना, लेकिन साँस बाँध कर ज़ोर से न फूँकना।8~और हारून के बेटे जो काहिन हैं वह नरसिंगे~फूँका~करें। यही तौर तरीक़े हमेशा तुम्हारी नसल-दर-नसल क़ायम रहे।9और जब तुम अपने मुल्क में ऐसे दुश्मन से जो तुम को सताता हो लड़ने को निकलो, तो तुम नरसिंगों को साँस बाँध कर ज़ोर से फूँकना। इस हाल में ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के सामने तुम्हारी याद होगी और तुम अपने दुश्मनों से नजात पाओगे।10~और तुम अपनी खुशी के दिन और अपनी मुक़र्ररा 'ईदों के दिन और अपने महीनों के शुरू' में अपनी सोख़्तनी कुर्बानियों और सलामती की कुर्बानियों के वक़्त नरसिंगे फूँकना ताकि उनसे तुम्हारे ख़ुदा~के सामने तुम्हारी यादगारी हो; मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"11और दूसरे साल के दूसरे महीने की बीसवीं तारीख़ को वह बादल शहादत के घर पर से उठ गया।12~तब बनी-इस्राईल सीना के जंगल से रवाना होकर निकले और वह बादल फारान के जंगल में ठहर गया।13इसलिए ख़ुदावन्द के उस हुक्म के मुताबिक़ जो उसने मूसा के ज़रिए' दिया था, उनकी पहली रवानगी हुई।14और सब से पहले बनी यहूदाह के लश्कर का झंडा रवाना हुआ और वह अपने दलों के मुताबिक़ चले, उनके लश्कर का सरदार 'अम्मीनदाब का बेटा नहसोन था।15और इश्कार के क़बीले के लश्कर का सरदार ज़ुग़र का बेटा नतनीएल था।16और ज़बूलून के क़बीले के लश्कर का सरदार हेलोन का बेटा इलियाब था।17~फिर घर उतारा गया और बनी जैरसोन और बनी मिरारी, जो घर को उठाते थे रवाना हुए।18~फिर रूबिन के लश्कर का झंडा आगे बढ़ा और वह अपने दलों के मुताबिक़ चले, शदियूर का बेटा इलीसूर उनके लश्कर का सरदार था।19~और शमा'ऊन के क़बीले के लश्कर का सरदार सूरीशद्दी का बेटा सलूमीएल था।20~और जद्द के क़बीले के लश्कर का सरदार द'ऊएल का बेटा इलियासफ़ था।21~फिर क़िहातियों ने जो हैकल को उठाते थे रवानगी की , और उनके पहुँचने तक घर खड़ा कर दिया जाता था।22~फिर बनी इफ़्राईम के लश्कर का झंडा निकला और वह अपने दलों के मुताबिक़ चले, उनके लश्कर का सरदार 'अम्मीहूद का बेटा इलीसमा' था।23~और मनस्सी के क़बीले के लश्कर का सरदार फ़दाहसूर का बेटा जमलीएल था।24और बिनयमीन के क़बीले के लश्कर का सरदार जिद'औनी का बेटा अबिदान था।25और बनी दान के लश्कर का झंडा उनके सब लश्करों के पीछे-पीछे रवाना हुआ और वह अपने दलों के मुताबिक़ चले, उनके लश्कर का सरदार 'अम्मीशद्दी का बेटा अख़ी'अज़र था।26और आशर के क़बीले के लश्कर का सरदार 'अकरान का बेटा फ़ज'ईएल था।27~और नफ़्ताली के क़बीले के लश्कर का सरदार एनान का बेटा अख़ीरा' था।28~तब बनी-इस्राईल इसी तरह अपने दलों के मुताबिक़ कूच करते और आगे रवाना होते थे।29~इसलिए मूसा ने अपने ससुर र'ऊएल मिदियानी के बेटे होबाब से कहा कि "हम उस जगह जा रहे हैं जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने कहा है कि मैं उसे तुम को दूँगा; इसलिए तू भी साथ चल और हम तेरे साथ नेकी करेंगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल से नेकी का वा'दा किया है।”30उसने उसे जवाब दिया, "मैं नहीं चलता, बल्कि मैं अपने वतन को और अपने रिश्तेदारों में लौट कर जाऊँगा।"31~तब मूसा ने कहा, "हम को छोड़ मत, क्यूँकि यह तुझ को मा'लूम है कि हमको वीराने में किस तरह ख़ेमाज़न होना चाहिए, इसलिए तू हमारे लिए आँखों का काम देगा;32~और अगर तू हमारे साथ चले, तो इतनी बात ज़रूर होगी कि जो नेकी ख़ुदावन्द हम से करे वही हम तुझ से करेंगे।"33~फिर वह ख़ुदावन्द के पहाड़ से सफ़र करके तीन दिन की राह चले, और तीनों दिन के सफ़र में ख़ुदावन्द के 'अहद का संदूक़ उनके लिए आरामगाह तलाश करता हुआ उनके आगे-आगे चलता रहा।34और जब वह लश्करगाह से रवाना होते तो ख़ुदावन्द का बादल दिन भर उनके ऊपर छाया रहता था।35और संदूक़ की रवानगी के वक़्त मूसा यह कहा करता, "उठ, ऐ ख़ुदावन्द, तेरे दुश्मन तितर-बितर हो जाएँ, और जो तुझ से कीना रखते है वह तेरे आगे से भागें।"36और जब वह ठहर जाता तो वह यह कहता था, "ऐ ख़ुदावन्द, हज़ारों-हज़ार इस्राईलियों में लौट कर आ जा।"
1फिर वह लोग़ कुड़कुड़ाने और ख़ुदावन्द के सुनते बुरा कहने लगे; चुनाँचे ख़ुदावन्द ने सुना और उसका ग़ज़ब भड़का और ख़ुदावन्द की आग उनके बीच जल उठी, और लश्करगाह को एक किनारे से भसम करने लगी।2~तब लोगों ने मूसा से फ़रियाद की; और मूसा ने ख़ुदावन्द से दु'आ की, तो आग बुझ गई।3और उस जगह का नाम तबे'रा पड़ा, क्यूँकि ख़ुदावन्द की आग उनमें जल उठी थी।4और जो मिली-जुली भीड़ इन लोगों में थी वह तरह-तरह की लालच करने लगी, और बनी-इस्राईल भी फिर रोने और कहने~लगे, “हम को कौन गोश्त खाने को देगा?5~हम को वह मछली याद आती है जो हम मिस्र में मुफ़्त खाते थे; और हाय! वह खीरे, और वह ख़रबूज़े, और वह गन्दने, और प्याज़, और लहसन;6लेकिन अब तो हमारी जान ख़ुश्क हो गई, यहाँ कोई चीज़ मयस्सर नहीं और मन के अलावा हम को और कुछ दिखाई नहीं देता।7~और मन धनिये की तरह था और ऐसा नज़र आता था जैसे मोती।8~लोग इधर-उधर जा कर उसे जमा' करते और उसे चक्की में पीसते या ओखली में कूट लेते थे, फिर उसे हाण्डियों में उबाल कर रोटियाँ बनाते थे; उसका मज़ा ताज़ा तेल का सा था।9~और रात को जब लश्करगाह में ओस पड़ती तो उसके साथ मन भी गिरता था।10और मूसा ने सब घरानों के आदमियों को अपने-अपने ख़ेमे के दरवाज़े पर रोते सुना, और ख़ुदावन्द का क़हर बहुत भड़का और मूसा ने भी बुरा माना।11~तब मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, "तूने अपने ख़ादिम से यह सख़्त बर्ताव क्यूँ किया? और मुझ पर तेरे करम की नज़र क्यूँ नहीं हुई, जो तू इन सब लोगों का बोझ मुझ पर डालता है?12~क्या यह सब लोग मेरे पेट में पड़े थे? क्या यह मुझ ही से पैदा हुए थे जो तू मुझे कहता है कि जिस तरह से बाप दूध पीते बच्चे को उठाए-उठाए फिरता है, उसी तरह मैं इन लोगों को अपनी गोद में उठा कर उस मुल्क में ले जाऊँ जिसके देने की क़सम तूने उनके बाप दादा से खाई है?13~मैं इन सब लोगों को कहाँ से गोश्त ला कर दूँ? क्यूँकि वह यह कह-कह कर मेरे सामने रोते हैं, कि हम को गोश्त खाने को दे।14~मैं अकेला इन सब लोगों को नहीं सम्भाल सकता, क्यूँकि यह मेरी ताक़त से बाहर है।15~और जो तुझे मेरे साथ यही बर्ताव करना है तो मेरे ऊपर अगर तेरे करम की नज़र हुई है, तो मुझे एक ही बार में जान से मार डाल ताकि मैं अपनी बुरी हालत देखने न पाऊँ।"16ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "बनी-इस्राईल के बुज़ुगों में से सत्तर मर्द, जिनको तू जानता है कि क़ौम के बुज़ुर्ग और उनके सरदार हैं मेरे सामने जमा' कर और उनको ख़ेमा-ए- इजितमा'अ के पास ले आ; ताकि वह तेरे साथ वहाँ खड़े हों।17~और में उतर कर तेरे साथ वहाँ बातें करूँगा, और मैं उस रूह में से जो तुझ में है, कुछ लेकर उनमें डाल दूँगा कि वह तेरे साथ क़ौम का बोझ उठाएँ, ताकि तू उसे अकेला न उठाए।18~और लोगों से कह कि कल के लिए अपने को पाक कर रख्खो तो तुम गोश्त खाओगे, क्यूँकि तुम ख़ुदावन्द के सुनते हुए यह कह-कह कर रोए हो कि हम को कौन गोश्त खाने को देगा? हम तो मिस्र ही में मौज से थे। इसलिए ख़ुदावन्द तुम को गोश्त देगा और तुम खाना।19~और तुम एक या दो दिन नहीं और न पाँच या दस या बीस दिन,20~बल्कि एक महीना कामिल उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नथुनों से निकलने न लगे और तुम उससे घिन न खाने लगो; क्यूँकि तुम ने ख़ुदावन्द को जो तुम्हारे बीच है छोड़ दिया, और उसके सामने यह कह-कह कर रोए हो कि हम मिस्र से क्यूँ निकल आए?”21~फिर मूसा कहने लगा, "जिन लोगों में मैं हूँ उनमें छः लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है कि मैं उनको इतना गोश्त दूँगा कि वह महीने भर उसे खाते रहेंगे।22~इसलिए क्या भेड़बकरियों के यह रेवड़ और गाय-बैलों के झुण्ड उनकी ख़ातिर ज़बह हों कि उनके लिए बस हो? या समन्दर की सब मछलियाँ उनकी ख़ातिर इकट्ठी की जाएँ कि उन सब के लिए काफ़ी हो?"23~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "क्या ख़ुदावन्द का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देख लेगा कि जो मैंने तुझ से कहा है वह पूरा होता है या नहीं।"24~तब मूसा ने बाहर जाकर ख़ुदावन्द की बातें उन लोगों को कह सुनाई, और क़ौम के बुज़ुर्गों में से सत्तर शख़्स इकट्ठे करके उनको ख़ेमे के चारों तरफ़ खड़ा कर दिया।25तब ख़ुदावन्द बादल में होकर उतरा और उसने मूसा से बातें कीं, और उस रूह में से जो उसमें थी कुछ लेकर उसे उन सत्तर बुज़ुगों में डाला; चुनाँचे जब रूह उनमें आई तो वह नबुव्वत करने लगे, लेकिन बा'द में फिर कभी न की।26लेकिन उनमें से दो शख़्स लश्करगाह ही में रह गए, एक का नाम इलदाद और दूसरे का मेदाद था, उनमें भी रूह आई; यह भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिए गए थे लेकिन यह खेमे के पास न गए, और लश्करगाह ही में नबुव्वत करने लगे।27~तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को ख़बर दी और कहने लगा, कि इलदाद और मेदाद लश्करगाह में नबुव्वत कर रहे हैं।28इसलिए मूसा के ख़ादिम नून के बेटे यशू'आ ने, जो उसके चुने हुए जवानों में से था मूसा से कहा, "ऐ मेरे मालिक मूसा, तू उनको रोक दे।"29~मूसा ने उससे कहा, "क्या तुझे मेरी ख़ातिर रश्क आता है? काश ख़ुदावन्द के सब लोग नबी होते, और ख़ुदावन्द अपनी रूह उन सब में डालता।”30फिर मूसा और वह इस्राईली बुज़ुर्ग लश्करगाह में गए।31और ख़ुदावन्द की तरफ़ से एक आँधी चली और समन्दर से बटेरें उड़ा लाई, और उनको लश्करगाह के बराबर और उसके चारों तरफ़ एक दिन की राह तक इस तरफ़ और एक ही दिन की राह तक दूसरी तरफ़ ज़मीन से क़रीबन दो-दो हाथ ऊपर डाल दिया।32~और लोगों ने उठ कर उस सारे दिन और उस सारी रात और उसके दूसरे दिन भी बटेरें जमा' कीं, और जिसने कम से कम जमा' की थीं उसके पास भी दस खोमर के बराबर जमा' हो गई; और उन्होंने अपने लिए लश्करगाह की चारों तरफ़ उनको फैला दिया।33~और उनका गोश्त उन्होंने दाँतों से काटा ही था और उसे चबाने भी नहीं पाए थे कि ख़ुदावन्द का क़हर उन लोगों पर भड़क उठा, और ख़ुदावन्द ने उन लोगों को बड़ी सख़्त वबा से मारा।34इसलिए उस मक़ाम का नाम क़ब्रोत हतावा रखा गया, क्यूँकि उन्होंने उन लोगों को जिन्होंने लालच किया था वहीं दफ़न किया।35~और वह लोग कब्रोत हतावा से सफ़र करके हसेरात को गए और वहीं हसेरात में रहने लगे।
1~और मूसा ने एक कूशी 'औरत से ब्याह कर लिया। तब उस कूशी 'औरत की वजह से से जिसे मूसा ने ब्याह लिया था, मरियम और हारून उसकी बदगोई करने लगे।2~वह कहने लगे, "क्या ख़ुदावन्द ने सिर्फ़ मूसा ही से बातें की हैं? क्या उसने हम से भी बातें नहीं कीं?" और ख़ुदावन्द ने यह सुना।3और मूसा तो इस ज़मीन के सब आदमियों से ज़्यादा हलीम था।4तब ख़ुदावन्द ने अचानक मूसा और हारून और मरियम से कहा, "तुम तीनों निकल कर ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के पास हाज़िर हो।" तब वह तीनों वहाँ आए।5और ख़ुदावन्द बादल के सुतून में होकर उतरा और ख़ेमे के दरवाज़े पर खड़े होकर~हारून और मरियम को बुलाया। वह दोनों पास गए।6तब उसने कहा, "मेरी बातें सुनो, अगर तुम में कोई नबी हो, तो मैं जो ख़ुदावन्द हूँ उसे रोया में दिखाई दूँगा और ख़्वाब में उससे बातें करूँगा।7~पर मेरा ख़ादिम मूसा ऐसा नहीं है, वह मेरे सारे ख़ान्दान में अमानतदार है;8मैं उससे राज़ों में नहीं बल्कि आमने-सामने और सरीह तौर पर बातें करता हूँ, और उसे ख़ुदावन्द का दीदार भी नसीब होता है। इसलिए तुम को मेरे ख़ादिम मूसा की बदगोई करते ख़ौफ़ क्यूँ न आया?"9और ख़ुदावन्द का ग़ज़ब उन पर भड़का और वह चला गया।10~और बादल ख़ेमे के ऊपर से हट गया, और मरियम कोढ़ से बर्फ़ की तरह सफ़ेद हो गई; और हारून ने जो मरियम की तरफ़ नज़र की तो देखा कि वह कोढ़ी हो गई है।11~तब हारून मूसा से कहने लगा, "हाय मेरे मालिक, इस गुनाह को हमारे सिर न लगा, क्यूँकि हम से नादानी हुई और हम ने ख़ता की।12~और मरियम की उस मरे हुए की तरह न रहने दे, जिसका जिस्म उसकी पैदाइश ही के वक़्त आधा गला हुआ होता है।"13~तब मूसा ख़ुदावन्द से फ़रियाद करने लगा, "ऐ ख़ुदा, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, उसे शिफ़ा दे।"14~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "अगर उसके बाप ने उसके मुँह पर सिर्फ़ थूका ही होता, तो क्या सात दिन तक वह शर्मिन्दा न रहती ? इसलिए वह सात दिन तक लश्करगाह के बाहर बन्द रहे, इसके बा'द वह फिर अन्दर आने पाए।"15चुनाँचे मरियम सात दिन तक लश्करगाह के बाहर बन्द रही, और लोगों ने जब तक वह अन्दर आने न पाई रवाना न हुए।16~इसके बा'द वह लोग हसेरात से रवाना हुए और फ़ारान के जंगल में पहुँच कर उन्होंने ख़ेमे लगाए।
1और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,2~"तू आदमियों को भेज कि वह मुल्क-ए-कना'न का, जो मैं बनी-इस्राईल को देता हूँ हाल दरियाफ़्त करें; उनके बाप-दादा के हर क़बीले से एक आदमी भेजना जो उनके यहाँ का रईस हो।"3~चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के इरशाद के मुवाफ़िक़ फ़ारान के जंगल से ऐसे आदमी रवाना किए जो बनी-इस्राईल के सरदार थे।4~उनके यह नाम थे: रूबिन के क़बीले से ज़कूर का बेटा सम्मूअ,5~और शमा'ऊन के क़बीले से होरी का बेटा साफ़त,6~और यहूदाह के क़बीले से यफुना का बेटा कालिब,7~और इश्कार के क़बीले से युसुफ़ का बेटा इजाल,8~और इफ़्राईम के क़बीले से नून का बेटा होसे'अ,9~और बिनयमीन के क़बीले से रफू का बेटा फ़ल्ती,10और ज़बूलून के क़बीले से सोदी का बेटा जद्दीएल,11और यूसुफ़ के क़बीले या'नी मनस्सी के क़बीले से सूसी का बेटा जद्दी,12~और दान के क़बीले से जमल्ली का बेटा 'अम्मीएल,13और आशर के क़बीले से मीकाएल का बेटा सतूर,14और नफ़्ताली के क़बीले से वुफ़सी का बेटा नख़बी,15~और जद्द के क़बीले से माकी का बेटा ज्यूएल।16~यही उन लोगों के नाम हैं जिनको मूसा ने मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने को भेजा था। और नून के बेटे होसे'अ का नाम मूसा ने यशू'अ रख्खा।17और मूसा ने उनको रवाना किया ताकि मुल्क-ए-कना'न का हाल दरियाफ़्त करें और उनसे कहा, "तुम इधर दख्खिन की तरफ़ से जाकर पहाड़ों में चले जाना।18और देखना कि वह मुल्क कैसा है, और जो लोग~वहाँ बसे हुए हैं वह कैसे हैं, ज़ोरावर हैं या कमज़ोर और थोड़े से हैं या बहुत।19~और जिस मुल्क में वह आबाद हैं वह कैसा है, अच्छा है या बुरा; जिन शहरों में वह रहते हैं वह कैसे हैं, आया वह ख़ेमों में रहते हैं या किलों' में।20और वहाँ की ज़मीन कैसी है, ज़रखेज़ है या बंजर और उसमें दरख़्त हैं या नहीं; तुम्हारी हिम्मत बन्धी रहे और तुम उस मुल्क का कुछ फल लेते आना।" और वह मौसम अंगूर की पहली फ़सल का था।21~तब वह रवाना हुए और दश्त-ए-सीन से रहोब तक जो हमात के रास्ते में है, मुल्क को ख़ूब देखा भाला।22~और वह दख्खिन की तरफ़ से होते हुए हबरून तक गए, जहाँ 'अनाक के बेटे अख़ीमान और सीसी और तलमी रहते थे (और हबरून जुअन से जो मिस्र में है, सात बरस आगे बसा था)।23और वह वादी-ए-इस्काल में पहुँचे, वहाँ से उन्होंने अंगूर की एक डाली काट ली जिसमें एक ही गुच्छा था, और जिसे दो आदमी एक लाठी पर लटकाए हुए लेकर गए; और वह कुछ अनार और अंजीर भी लाए।24उसी गुच्छे की वजह से से जिसे इस्राईलियों ने वहाँ से काटा था, उस जगह का नाम वादी-ए-इस्काल पड़ गया।25~और चालीस दिन के बा'द वह उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करके लौटे।26~और वह चले और मूसा और हारून और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के पास दश्त-ए-फ़ारान के क़ादिस में आए, और उनकी और सारी जमा'अत को सब हाल सुनाया, और उस मुल्क का फल उनको दिखाया।27और मूसा से कहने लगे, "जिस मुल्क में तूने हम को भेजा था हम वहाँ गए; वाक़'ई दूधऔर शहद उसमें बहता है, और यह वहाँ का फल है।28~लेकिन जो लोग वहाँ बसे हुए हैं वह ज़ोरावर हैं और उनके शहर बड़े-बड़े और फ़सीलदार हैं, और हम ने बनी 'अनाक को भी वहाँ देखा।29उस मुल्क के दख्खिनी हिस्से में तो अमालीकी आबाद हैं, और हित्ती और यबूसी और अमोरी पहाड़ों पर रहते हैं, और समन्दर के साहिल पर और यरदन के किनारे-किनारे कना'नी बसे हुए हैं।"30~तब कालिब ने मूसा के सामने लोगों को चुप कराया और कहा, "चलो, हम एक दम जा कर उस पर क़ब्ज़ा करें, क्यूँकि हम इस क़ाबिल हैं कि उस पर हासिल कर लें।”31~लेकिन जो और आदमी उसके साथ गए थे वह कहने लगे, "हम इस लायक़ नहीं हैं ~कि उन लोगों पर हमला करें, क्यूँकि वह हम से ज़्यादा ताक़तवर हैं।"32~इन आदमियों ने बनी-इस्राईल को उस मुल्क की, जिसे वह देखने गए थे बुरी ख़बर दी, और यह कहा, "वह मुल्क जिसका हाल दरियाफ़्त करने को हम उसमें से गुज़रे, एक ऐसा मुल्क है जो अपने बाशिन्दों को खा जाता है; और वहाँ जितने आदमी हम ने देखें वह सब बड़े क़द्दावर हैं।33और हम ने वहाँ बनी 'अनाक को भी देखा जो जब्बार हैं और जब्बारों की नसल से हैं, और हम तो अपनी ही निगाह में ऐसे थे जैसे टिड्डे होते हैं और ऐसे ही उनकी निगाह में थे।”
1तब सारी जमा'अत ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी और वह लोग उस रात रोते ही रहे।2~और कुल बनी-इस्राईल मूसा और हारून की शिकायत करने लगे, और सारी जमा'त उनसे कहने लगी हाय काश ~हम मिस्र ही में मर जाते या काश इस वीरान ही में मरते।3~ख़ुदावन्द क्यूँ हम को उस मुल्क में ले जा कर तलवार से क़त्ल कराना चाहता है?4फिर तो हमारी बीवियाँ और बाल बच्चे लूट का माल ठहरेंगे, क्या हमारे लिए बेहतर न होगा कि हम मिस्र को वापस चले जाएँ?" फिर वह आपस में कहने लगे, "आओ हम किसी को अपना सरदार बना लें, और मिस्र को लौट चलें।5तब मूसा और हारून बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के सामने औधे मुँह हो गए।6और नून का बेटा यशू'अ और यफुन्ना का बेटा कालिब, जो उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने वालों में से थे, अपने-अपने कपड़े फाड़ कर7बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत से कहने लगे कि "वह मुल्क जिसका हाल दरियाफ़्त करने को हम उसमें से गुज़रे, बहुत अच्छा मुल्क है।8अगर ख़ुदा हम से राज़ी रहे तो वह हम को उस मुल्क में पहुँचाएगा, और वही मुल्क जिस में दूध और शहद बहता है हम को देगा।9~सिर्फ़ इतना हो कि तुम ख़ुदावन्द से बग़ावत न करो और न उस मुल्क के लोगों से डरो; वह तो हमारी ख़ुराक हैं, उनकी पनाह उनके सिर पर से जाती रही है और हमारे साथ ख़ुदावन्द है; इसलिए उनका ख़ौफ़ न करो।"10तब सारी जमा'अत बोल उठी कि इनको संगसार करो। उस वक़्त ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में सब बनी-इस्राईल के सामने ख़ुदावन्द का जलाल नुमायाँ हुआ।11और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "यह लोग कब तक मेरी तौहीन करते रहेंगे? और बावजूद उन सब मो'जिज़ों के जो मैंने इनके बीच किए हैं, कब तक मुझ पर ईमान नहीं लाएँगे?12में इनको वबा से मारूँगा और मीरास से ख़ारिज करूँगा, और तुझे एक ऐसी क़ौम बनाऊँगा जो इनसे कहीं बड़ी और ज़्यादा ज़ोरावर हो।"13मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा, "तब तो मिस्री, जिनके बीच से तू इन लोगों को अपने ज़ोर-ए-बाज़ू से निकाल ले आया यह सुनेंगे,14और उसे इस मुल्क के बाशिन्दों को बताएँगे। उन्होंने सुना है कि तू जो ख़ुदावन्द है इन लोगों के बीच रहता है, क्यूँकि तू ऐ ख़ुदावन्द सरीह तौर पर दिखाई देता है, और तेरा बादल इन पर साया किए रहता है, और तू दिन को बादल के सुतून में और रात को आग के सुतून में हो कर इनके आगे-आगे चलता है।15तब अगर तू इस क़ौम को एक अकेले आदमी की तरह जान से मार डाले, तो वह क़ौमें जिन्होंने तेरी शोहरत सुनी कहेंगी;16कि चूँकि ख़ुदावन्द इस क़ौम को उस मुल्क में, जिसे उसने इनको देने की क़सम खाई थी पहुँचा न सका, इसलिए उसने इनको वीरान में हलाक कर दिया।17तब ख़ुदावन्द की क़ुदरत की 'अज़मत तेरे ही इस क़ौल के मुताबिक़ ज़ाहिर हो,18~कि ख़ुदावन्द क़हर करने में धीमा और शफ़क़त में ग़नी है, वह गुनाह और ख़ता को बख़्श देता है लेकिन मुजरिम को हरगिज़ बरी नहीं करेगा, क्यूँकि वह बाप दादा के गुनाह की सज़ा उनकी औलाद को तीसरी और चौथी नसल तक देता है।19इसलिए तू अपनी रहमत की फ़िरावानी से इस उम्मत का गुनाह, जैसे तू मिस्र से लेकर यहाँ तक इन लोगों को मु'आफ़ करता रहा है अब भी मु'आफ़ कर दे।"20ख़ुदावन्द ने कहा, "मैंने तेरी दरख़्वास्त के मुताबिक़ मुआफ़ किया;21लेकिन मुझे अपनी हयात की क़सम और ख़ुदावन्द के जलाल की क़सम जिससे सारी ज़मीन मा'मूर होगी,22~चूँकि इन सब लोगों ने जिन्होंने बावजूद मेरे जलाल के देखने के, और बावजूद उन मो'जिजों के जो मैंने मिस्र में और इस वीरान में दिखाए, फिर भी दस बार मुझे आज़माया और मेरी बात नहीं मानी;23इसलिए वह उस मुल्क को जिसके देने की क़सम मैंने उनके बाप दादा से खाई थी देखने भी न पायेंगे और जिन्होंने मेरी तौहीन की है उन में से भी कोई उसे देखने नहीं पाएगा।24~लेकिन इसलिए कि मेरे बन्दे कालिब का कुछ और ही मिज़ाज था और उसने मेरी पूरी पैरवी की है, मैं उसको उस मुल्क में जहाँ वह हो आया है पहुँचाऊँगा और उसकी औलाद उसकी वारिस होगी।25और वादी में तो 'अमालीकी और कना'नी बसे हुए हैं, इसलिए कल तुम घूम कर उस रास्ते से जो बहर-ए-क़ुलज़ुम को जाता है वीरान में दाख़िल हो जाओ।"26और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,27~"मैं कब तक इस ख़बीस गिरोह की जो मेरी शिकायत करती रहती है, बर्दाश्त करूँ? बनी-इस्राईल जो मेरे बरख़िलाफ़ शिकायतें करते रहते हैं, मैंने वह सब शिकायतें सुनी हैं।28~इसलिए तुम उससे कह दो, ख़ुदावन्द कहता है, मुझे अपनी हयात की क़सम है कि जैसा तुम ने मेरे सुनते कहा है, मैं तुम से ज़रूर वैसा ही करूँगा।29तुम्हारी लाशें इसी वीरान में पड़ी रहेंगी, और तुम्हारी सारी ता'दाद में से या 'नी बीस बरस से लेकर उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के तुम सब जितने गिने गए, और मुझ पर शिकायत करते रहे,30~इनमें से कोई उस मुल्क में, जिसके बारे में मैने क़सम खाई थी कि तुमको वहाँ बसाऊँगा, जाने न पाएगा, अलावा यफ़ुन्ना के बेटे कालिब और नून के बेटे यशू'अ के।31~और तुम्हारे बाल-बच्चे जिनके बारे में तुम ने यह कहा कि वह तो लूट का माल ठहरेंगे, उनको मैं वहाँ पहुँचाऊगा, और जिस मुल्क को तुम ने हक़ीर जाना वह उसकी हक़ीक़त पहचानेंगे।32~और तुम्हारा यह हाल होगा कि तुम्हारी लाशें इसी वीरान में पड़ी रहेंगी।33और तुम्हारे लड़के बाले चालीस बरस तक वीरान में आवारा फिरते और तुम्हारी ज़िनाकारियों का फल पाते रहेंगे, जब तक कि तुम्हारी लाशें वीरान में गल न जाएँ।34उन चालीस दिनों के हिसाब से जिनमें तुम उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करते रहे थे, अब दिन पीछे एक-एक बरस या'नी चालीस बरस तक, तुम अपने गुनाहों का फल पाते रहोगे; तब तुम मेरे मुख़ालिफ़ हो जाने को समझोगे।35मैं ख़ुदावन्द यह कह चुका हूँ कि मैं इस पूरी ख़बीस गिरोह से जो मेरी मुखालिफ़त पर मुत्तफ़िक़ है क़त'ई ऐसा ही करूँगा, इनका ख़ातमा इसी वीरान में होगा और वह यहीं मरेंगे।"36और जिन आदमियों को मूसा ने मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने को भेजा था, जिन्होंने लौट कर उस मुल्क की ऐसी बुरी ख़बर सुनाई थी, जिससे सारी जमा'अत मूसा पर कुड़कुड़ाने लगी,37इसलिए वह आदमी जिन्होंने मुल्क की बुरी ख़बर दी थी खुदावन्द के सामने वबा से मर गए।38~लेकिन जो आदमी उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने गए थे उनमें से नून का बेटा यशू'अ और यफ़ुन्ना का बेटा कालिब दोनों जीते बचे रहे।39और मूसा ने यह बातें सब बनीइस्राईल से कहीं, तब वह लोग ज़ार-ज़ार रोए।40~और वह दूसरे दिन सुबह सवेरे उठ कर यह कहते हुए पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगे, कि हम हाज़िर हैं और जिस जगह का वा'दा ख़ुदावन्द ने किया है वहाँ जाएँगे क्यूँकि हम से ख़ता हुई है।41~मूसा ने कहा, "तुम क्यूँ अब ख़ुदावन्द की हुक्म उदूली करते हो? इससे कोई फ़ाइदा न होगा।42ऊपर मत चढ़ो क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारे बीच नहीं है ऐसा न हो कि अपने दुश्मनों के मुक़ाबले में शिकस्त खाओ।43क्यूँकि वहाँ तुम से आगे 'अमालीक़ी और कना'नी लोग हैं, इसलिए तुम तलवार से मारे जाओगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द से तुम फिर गए हो, इसलिए ख़ुदावन्द तुम्हारे साथ नहीं रहेगा।"44लेकिन वह शोख़ी करके पहाड़ की चोटी तक चढ़े चले गए, लेकिन ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ और मूसा लश्करगाह से बाहर न निकले।45तब 'अमालीक़ी और कना'नी जो उस पहाड़ पर रहते थे, उन पर आ पड़े और उनको क़त्ल किया और हुरमा तक उनको मारते चले आए।
1और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2"बनी-इस्राईल से कह कि जब तुम अपने रहने के मुल्क में जो मैं तुम को देता हूँ पहुँचो3और ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी, या'नी सोख़्तनी क़ुर्बानी या ख़ास मिन्नत का ज़बीहा या रज़ा की क़ुर्बानी पेश करो, या अपनी मु'अय्यन 'ईदों में राहतअंगेज़ ख़ुशबू के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने गाय बैल या भेड़ बकरी चढ़ाओ|4~तो जो शख़्स अपना हदिया लाए, वह ख़ुदावन्द के सामने नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर ऐफ़ा के दस्वें हिस्से के बराबर मैदा जिसमें चौथाई हीन के बराबर तेल मिला हुआ हो,5और तपावन के तौर पर चौथाई हीन के बराबर मय भी लाए; तू अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी या अपने ज़बीहे के हर बर्रे के साथ इतना ही तैयार किया करना।6और हर मेंढे के साथ ऐफ़ा के पाँचवे हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तिहाई हीन के बराबर तेल मिला हुआ हो, नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर लाना।7और तपावन के तौर पर तिहाई हीन के बराबर मय देना, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू ठहरे।8और जब तू ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानी या ख़ास मिन्नत के ज़बीहे या सलामती के ज़बीहे के तौर पर बछड़ा पेश करे,9तो वह उस बछड़े के साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें आधे हीन के बराबर तेल मिला हुआ हो चढ़ाए।10और तू तपावन के तौर पर आधे हीन के बराबर मय पेश करना, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरे।11"हर बछड़े, और हर मेंढे, और हर नर बर्रे या बकरी के बच्चे के लिए ऐसा ही किया जाए।12तुम जितने जानवर लाओ, उनके शुमार के मुताबिक़ एक-एक के साथ ऐसा ही करना।13जितने देसी ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी पेश करें वह उस वक़्त यह सब काम इसी तरीक़े से करें|14और अगर कोई परदेसी तुम्हारे साथ क़याम करता हो या जो कोई नसलों से तुम्हारे साथ रहता आया हो, और वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की~आतिशीन क़ुर्बानी पेश करना चाहे तो जैसा तुम करते हो वह भी वैसा ही करे।15मजमे' के लिए, या'नी तुम्हारे लिए और उस परदेसी के लिए जो तुम में रहता हो नसल-दर-नसल हमेशा एक ही क़ानून रहेगा; ख़ुदावन्द के आगे परदेसी भी वैसे ही हों जैसे तुम हो।16तुम्हारे लिए और परदेसियों के लिए जो तुम्हारे साथ रहते हैं एक ही शरी'अत और एक ही क़ानून हो।"17और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;18~"बनी-इस्राईल से कह, जब तुम उस मुल्क में पहुँचो, जहाँ मैं तुम को लिए जाता हूँ,19~और उस मुल्क की रोटी खाओ तो ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी पेश करना।20~तुम अपने पहले गूँधे हुए आटे का एक गिर्दा उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर अदा करना, जैसे खलीहान की उठाने की क़ुर्बानी को लेकर उठाते हो वैसे ही इसे भी उठाना।21तुम अपनी नसल-दर-नसल अपने पहले ही गूँधे हुए आटे में से कुछ लेकर उसे ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करना।22~"और अगर तुम से भूल हो जाए और तुमने उन सब हुक्मों पर जो ख़ुदावन्द ने मूसा को दिए 'अमल न किया हो,23या'नी जिस दिन से ख़ुदावन्द ने हुक्म देना शुरू' किया उस दिन से लेकर आगे-आगे, जो कुछ हुक्म खुदावन्द ने तुम्हारी नसल-दर-नसल मूसा के ज़रिए' तुम को दिया है,24~उसमें अगर अनजाने में कोई ख़ता हो गई हो और जमा'अत उससे वाक़िफ़ न हो तो सारी जमा'अत एक बछड़ा सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए पेश करे, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू हो,और उसके साथ शरा' के मुताबिक़ उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और उसका तपावन भी चढ़ाए, और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा पेश करे।25यूँ काहिन बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के लिए कफ़्फ़ारा दे तो उनकी मु'आफ़ी मिलेगी, क्यूँकि यह महज़ भूल थी और उन्होंने उस भूल के बदले वह क़ुर्बानी भी चढ़ाई जो ख़ुदावन्द के सामने आतिशी क़ुर्बानी ठहरती है, और ख़ता की क़ुर्बानी भी ख़ुदावन्द के सामने पेश कीं।26तब बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत को और उन परदेसियों को भी जो उनमें रहते हैं मु'आफ़ी मिलेगी, क्यूँकि जमा'अत के ऐतबार से यह अनजाने में हुआ।27और अगर एक ही शख़्स अनजाने में ख़ता करे तो वह यक-साला बकरी ख़ता की क़ुर्बानी के लिए चढ़ाए।"28~यूँ काहिन उस शख़्स की तरफ़ से जिसने अनजाने में ख़ता की, उसकी ख़ता के लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।29जिस शख़्स ने अनजाने में ख़ता की हो, उसके लिए तुम एक ही शरा' रखना चाहे वह बनी-इस्राईल में से देसी हो या परदेसी जो उनमें रहता हो।30लेकिन जो शख़्स बेख़ौफ़ हो कर गुनाह करे, चाहे वह देसी हो या परदेसी, वह ख़ुदावन्द की बे'इज़्ज़ती करता है; वह शख़्स अपने लोगों में से अलग किया जाएगा।31क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द के कलाम की हिक़ारत की और उसके हुक्म को तोड़ डाला, वह शख़्स बिल्कुल अलग कर दिया जाएगा, उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।"32और जब बनी-इस्राईल वीरान में रहते थे, उन दिनों एक आदमी उनको सबत के दिन लकड़ियाँ जमा' करता हुआ मिला।33~और जिनकी वह लकड़ियाँ जमा' करता हुआ मिला वह उसे मूसा और हारून और सारी जमा'अत के पास ले गए।34~उन्होंने उसे हवालात में रख्खा, क्यूँकि उनको यह नहीं बताया गया था कि उसके साथ क्या करना चाहिए35तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "यह शख़्स ज़रूर जान से मारा जाए; सारी जमा'अत लश्करगाह के बाहर उसे पथराव करे।"36चुनाँचे जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था, उसके मुताबिक़ सारी जमा'अत ने उसे लश्करगाह के बाहर ले जाकर पथराव किया और वह मर गया।37और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,38"बनी-इस्राईल से कह कि वह नसल-दर-नसल अपने लिबासों के किनारों पर झालर लगाएँ, और हर किनारे की झालर के ऊपर आसमानी रंग का डोरा टाँके।39यह झालर तुम्हारे लिए ऐसी हो कि जब तुम उसे देखो तो ख़ुदावन्द के सारे हुक्मों को याद करके उन पर 'अमल करो और अपने दिल और आँखों ~की ख़्वाहिशों की पैरवी में ज़िनाकारी न करते फिरो जैसा करते आए हो;40बल्कि मेरे सब हुक्मों को याद करके उनको 'अमल में लाओ और अपने ख़ुदा के लिए पाक हो।41~मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, जो तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल कर लाया ताकि तुम्हारा ख़ुदा ठहरूँ। मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।"
1और कोरह बिन इज़हार बिन क़िहात बिन लावी ने बनी रूबिन में से~इलियाब के बेटों दातन और अबीराम, और पलत के बेटे ओन के साथ मिल कर और आदमियों को साथ लिया;2~और वह और बनी-इस्राईल में से ढाई सौ और अश्ख़ास जो जमा'अत के सरदार और चीदा और मशहूर आदमी थे, मूसा के मुक़ाबले में उठे;3और वह मूसा और हारून के ख़िलाफ़ इकट्ठे होकर उनसे कहने लगे, "तुम्हारे तो बड़े दा'वे हो चले, क्यूँकि जमा'अत का एक-एक आदमी पाक है और ख़ुदावन्द उनके बीच रहता है। इसलिए तुम अपने आप को ख़ुदावन्द की जमा'अत से बड़ा क्यूँकर ठहराते हो?"4मूसा यह सुन कर मुँह के बल गिरा।5फिर उसने कोरह और उसके कुल फ़रीक़ से कहा कि "कल सुबह ख़ुदावन्द दिखा देगा कि कौन उसका है और कौन पाक है और वह उसी को अपने नज़दीक आने देगा, क्यूँकि जिसे वह ख़ुद चुनेगा उसे वह अपनी क़ुरबत भी देगा।6इसलिए ऐ क़ोरह और उसके फ़रीक़ के लोगों, तुम यूँ करो कि अपना अपना ख़ुशबूदान लो,7और उनमें आग भरो और ख़ुदावन्द के सामने कल उनमें ख़ुशबू जलाओ, तब जिस शख़्स को ख़ुदावन्द चुन ले वही पाक ठहरेगा। ऐ लावी के बेटो, बड़े-बड़े दा'वे तो तुम्हारे हैं।"8फिर मूसा ने क़ोरह की तरफ़ मुख़ातिब होकर कहा, "ऐ बनी लावी सुनो,9क्या यह तुम को छोटी बात दिखाई देती है कि इस्राईल के ख़ुदा ने तुम को बनी-इस्राईल की जमा'अत में से चुन कर अलग किया, ताकि तुम को वह अपनी क़ुरबत बख़्शे और तुम ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत करो, और जमा'अत के आगे खड़े हो कर उसकी भी ख़िदमत बजा लाओ।10और तुझे और तेरे सब भाइयों को जो बनी लावी हैं, अपने नज़दीक आने दिया? इसलिए क्या अब तुम कहानत को भी चाहते हो?11इसीलिए तू और तेरे फ़रीक़ के लोग, यह सब के सब ख़ुदावन्द के खिलाफ़ इकट्ठे हुए हैं; और हारून कौन है जो तुम उस की शिकायत करते हो?"12फिर मूसा ने दातन और अबीराम को जो इलियाब के बेटे थे बुलवा भेजा; उन्होंने कहा, "हम नहीं आते;13क्या यह छोटी बात है कि तू हम को एक ऐसे मुल्क से, जिसमें दूध और शहद बहता है निकाल लाया है, कि हमको वीरान में हलाक करे, और उस पर भी यह तुर्रा है कि अब तू सरदार बन कर हम पर हुकूमत जताता है?14इसके अलावा तूने हम को उस मुल्क में भी नहीं पहुँचाया जहाँ दूध और शहद बहता है, और न हम को खेतों और ताकिस्तानों का वारिस बनाया; क्या तू इन लोगों की आँखें निकाल डालेगा? हम तो नहीं आने के।"15तब मूसा बहुत तैश में आ कर ख़ुदावन्द से कहने लगा, "तू उनके हदिये की तरफ़ तवज्जुह मत कर। मैंने उनसे एक गधा भी नहीं लिया, न उनमें से किसी को कोई नुक़सान पहुँचाया है।"16~फिर मूसा ने कोरह से कहा, "कल तू अपने सारे फ़रीक़ के लोगों को लेकर ख़ुदावन्द के आगे हाज़िर हो; तू भी हो और वह भी हों, और हारून भी हो।17~और तुम में से हर शख़्स अपना ख़ुशबूदान लेकर उसमें~ख़ुशबू~डाले, और तुम अपने-अपने~ख़ुशबूदान को जो शुमार~में~ढाई सौ होंगे, ख़ुदावन्द के सामने लाओ और तू भी अपना~ख़ुशबूदान लाना और हारून भी लाए।"18तब उन्होंने अपना अपना~ख़ुशबूदान लेकर और उनमें आग रख कर उस पर~ख़ुशबू~डाला, और ख़ेमा-ए-इजितमा'अ~के~दरवाज़े पर मूसा और हारून के साथ आ कर खड़े हुए।19और कोरह ने सारी जमा'अत को उनके खिलाफ़ ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर जमा' कर लिया था। तब ख़ुदावन्द का जलाल सारी जमा'अत के सामने नुमायाँ हुआ।20और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा;21कि "तुम अपने आप को इस जमा'अत से बिल्कुल अलग कर लो, ताकि मैं उनको एक पल में भसम कर दूँ।”22तब वह मुँह के बल गिर कर कहने लगे, "ऐ ख़ुदा, सब बशर की रूहों के ख़ुदा ! क्या एक आदमी के गुनाह की वजह से से तेरा क़हर सारी जमा'अत पर होगा?"23तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,24"तू जमा'अत से कह कि तुम क़ोरह और दातन और अबीराम के खेमों के आस पास से दूर हट जाओ।"25~और मूसा उठ कर दातन और अबीराम की तरफ़ गया, और बनी-इस्राईल के बुज़ुर्ग उसके पीछे पीछे गए।26और उसने जमा'अत से कहा, "इन शरीर आदमियों के खेमों से निकल जाओ और उनकी किसी चीज़ को हाथ न लगाओ, ऐसा न हो कि तुम भी उनके सब गुनाहों की वजह से से हलाक हो जाओ।"27~तब वह लोग कोरह और दातन और अबीराम के खेमों के आस पास से दूर हट गए; और दातन और अबीराम अपनी बीवियों और बेटों और बाल-बच्चों समेत निकल कर अपने ख़ेमों के दरवाज़ों पर खड़े हुए।28तब मूसा ने कहा, "इस से तुम जान लोगे के ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा है कि यह सब काम करूँ, क्यूँकि मैंने अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं किया।29अगर यह आदमी वैसी ही मौत से मरें जो सब लोगों को आती है, या इन पर वैसे ही हादसे गुज़रें जो सब पर गुज़रते हैं, तो मैं ख़ुदावन्द का भेजा हुआ नहीं हूँ।30लेकिन अगर ख़ुदावन्द कोई~नया करिश्मा दिखाए, और ज़मीन अपना मुँह खोल दे और इनको इनके घर-बार के साथ निगल जाए और यह जीते जी पाताल में समा जाएँ, तो तुम जानना कि इन लोगों ने ख़ुदावन्द की तहक़ीर की है।"31उसने यह बातें ख़त्म ही की थीं कि ज़मीन उनके पाओं तले फट गई।32और ज़मीन ने अपना मुँह खोल दिया और उनको और उनके घर-बार को, और कोरह के यहाँ के सब आदमियों को और उनके सारे माल-ओ-अस्बाब को निगल गई।33तब वह और उनका सारा घर-बार जीते जो पाताल में समा गए और ज़मीन उनके ऊपर बराबर हो गई, और वह जमा'अत में से ख़त्म हो गए।34और सब इस्राईली जो उनके आस पास थे उनका चिल्लाना सुन कर यह कहते हुए भागे, कि कहीं ज़मीन हम को भी निगल न ले।35और ख़ुदावन्द के सामने से आग निकली और उन ढाई सौ आदमियों को जिन्होंने~ख़ुशबू~पेश करा था भसम कर डाला।36और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;37~'हारून काहिन के बेटे इली'अज़र से कह कि वह~ख़ुशबूदान को शोलों में से उठा ले और आग के अंगारों को उधर ही~बिखेर दे क्यूँकि वह पाक हैं।38जो ख़ताकार अपनी ही जान के दुश्मन हुए, उनके~ख़ुशबूदानों के पीट पीट कर पत्तर बनाए जाएँ ताकि वह मज़बह पर~मंढे जाएँ, क्यूँकि उन्होंने उनको ख़ुदावन्द के सामने रख्खा था इसलिए वह पाक हैं, और वह बनी-इस्राईल के लिए एक निशान भी ठहरेंगे।”39तब इली'अज़र काहिन ने पीतल के उन~ख़ुशबूदानों को उठा लिया जिनमें उन्होंने जो भसम कर दिए गए थे~ख़ुशबू~पेश करा~था, और मज़बह पर मंढने के लिए उनके पत्तर बनवाए:40~ताकि बनी-इस्राईल के लिए एक यादगार हो कि कोई ग़ैर शख़्स जो हारून की नसल से नहीं, ख़ुदावन्द के सामने~ख़ुशबू~जलाने को नज़दीक न जाए, ऐसा न हो कि वह कोरह और उसके फ़रीक़ की तरह हलाक हो, जैसा ख़ुदावन्द ने उसको~मूसा के ज़रिए' बता दिया था।41~लेकिन दूसरे ही दिन बनी-इस्राईल की सारी जमाअत ने मूसा और हारून की शिकायत की और कहने लगे, कि तुम ने ख़ुदावन्द के लोगों को मार डाला है।42और जब वह जमा'अत मूसा और हारून के ख़िलाफ़ इकट्ठी हो रही थी तो उन्होंने ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की तरफ़ निगाह की, और देखा कि बादल उस पर छाया हुआ है और ख़ुदावन्द का जलाल नुमायाँ है।43तब मूसा और हारून ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के सामने आए।44और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;45~"तुम इस जमा'अत के बीच से हट जाओ, ताकि मैं इनको एक पल में भसम कर डालूँ।" तब वह मुँह के बल गिरे।46~और मूसा ने हारून से कहा, "अपना~ख़ुशबूदान ले और मज़बह पर से आग लेकर उसमें डाल और उस पर~ख़ुशबू~जला, और जल्द जमा'अत के पास जाकर उनके लिए कफ़्फ़ारा दे क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर नाज़िल हुआ है और~वबा शुरू' हो गई।”47~मूसा के कहने के मुताबिक़ हारून~ख़ुशबूदान लेकर जमा'अत के बीच में दौड़ता हुआ गया और देखा कि वबा लोगों में~फैलने लगी है, तब उसने~ख़ुशबू~जलायी और उन लोगों के लिए कफ़्फ़ारा दिया।48और वह मुर्दों और ज़िन्दों के बीच~में खड़ा हुआ, तब वबा ख़त्म हुई।49~तब 'अलावा उनके जो क़ोरह के मुआ'मिले की वजह से से हलाक हुए थे, चौदह हज़ार सात सौ आदमी वबा से हलाक गए।50फिर हारून लौट कर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर मूसा के पास आया और वबा ख़त्म हो गई।
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;2"बनी-इस्राईल से गुफ़्तगू करके उनके सब सरदारों से उनके आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक, हर ख़ान्दान एक लाठी के हिसाब से बारह लाठियाँ ले; और हर सरदार का नाम उसी की लाठी पर लिख,3और लावी की लाठी पर हारून का नाम लिखना। क्यूँकि उनके आबाई ख़ान्दानों के हर सरदार के लिए एक लाठी होगी।4और उनको लेकर ख़ेमा-ए- इजितमा'अ में शहादत के सन्दूक के सामने जहाँ मैं तुम से मुलाक़ात करता हूँ रख देना।5और जिस शख़्स को मैं चुनूँगा उसकी लाठी से कलियाँ फूट निकलेंगी, और बनी-इस्राईल जो तुम पर कुड़कुड़ाते रहते हैं, वह कुड़कुड़ाना मैं अपने पास से दफ़ा' करूँगा।"6तब मूसा ने बनी-इस्राईल से गुफ़्तगू की, और उनके सब सरदारों ने अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ हर सरदार एक लाठी के हिसाब से बारह लाठियाँ उस को दीं; और हारून की लाठी भी उनकी लाठियों में थी।7और मूसा ने उन लाठियों को शहादत के ख़ेमे में ख़ुदावन्द के सामने रख दिया।8और दूसरे दिन जब मूसा शहादत के ख़ेमे में गया, तो देखा कि हारून की लाठी में जो लावी के ख़ान्दान के नाम की थी कलियाँ फूटी हुई और शगूफ़े खिले हुए और पक्के बादाम लगे हैं।9~और मूसा उन सब लाठियों को ख़ुदावन्द के सामने से निकाल कर सब बनी-इस्राईल के पास ले गया, और उन्होंने देखा और हर शख़्स ने अपनी लाठी ले ली।10और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "हारून की लाठी शहादत के सन्दूक़ के आगे धर दे, ताकि वह फ़ित्नाअंगेज़ों के लिए एक निशान के तौर पर रख्खी रहे, और इस तरह तू उनकी शिकायतें जो मेरे ख़िलाफ़ होती रहती हैं बन्द कर दे ताकि वह हलाक न हों।"11और मूसा ने जैसा ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया था वैसा ही किया।12और बनी-इस्राईल ने मूसा से कहा, "देख, हम हलाक हुए जाते, हम हलाक हुए जाते, हम सब के सब हलाक हुए जाते हैं।13जो कोई ख़ुदावन्द के घर के नज़दीक जाता है, मर जाता है। तो क्या हम सब के सब हलाक ही हो जाएँगे?"
1और ख़ुदावन्द ने हारून से कहा कि, "हैकल का बार-ए-गुनाह तुझ पर और तेरे बेटों और तेरे आबाई ख़ान्दान पर होगा, और तुम्हारी कहानत का बार-ए-गुनाह भी तुझ पर और तेरे बेटों पर होगा।2~और तू लावी के क़बीले या'नी अपने बाप के क़बीले के लोगों को भी जो तेरे भाई हैं अपने साथ ले आया कर, ताकि वह तेरे साथ होकर तेरी ख़िदमत करें; लेकिन शहादत के ख़ेमे के आगे तू और तेरे बेटे ही आया करें।3~वह तेरी ख़िदमत और सारे ख़ेमे की मुहाफ़िज़त करें; सिर्फ़ वह हैकल के बर्तनों और मज़बह के नज़दीक न जाएँ, ऐसा न हो कि वह भी और तुम भी हलाक हो जाओ।4इसलिए वह तेरे साथ होकर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ और ख़ेमे के इस्ते'माल की सब चीज़ों की मुहाफ़िज़त करें,~और कोई ग़ैर शख़्स तुम्हारे नज़दीक न आने पाए।5और तुम हैकल और मज़बह की मुहाफ़िज़त करो ताकि आगे को फिर बनी इस्राईल पर क़हर नाज़िल न हो।6और देखो, मैंने बनी लावी को जो तुम्हारे भाई हैं बनी-इस्राईल से अलग करके ख़ुदावन्द की ख़ातिर बख़्शिश के तौर पर तुम को सुपुर्द किया, ताकि वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ की ख़िदमत करें।7लेकिन मज़बह की और पर्दे के अन्दर की ख़िदमत तेरे और तेरे बेटों के ज़िम्मे है; इसलिए उसके लिए तुम अपनी कहानत की हिफ़ाज़त करना, वहाँ तुम ही ख़िदमत किया करना, कहानत की ख़िदमत का शर्फ़ मैं तुम को बख़्शता हूँ और जो ग़ैर शख़्स नज़दीक आए वह जान से मारा जाए।"8फिर ख़ुदावन्द ने हारून से कहा, "देख, मैंने बनी-इस्राईल की सब पाक चीज़ों में से उठाने की कुर्बानियाँ तुझे दे दीं; मैंने उनको तेरे मम्सूह होने का हक़ ठहराकर तुझे और तेरे बेटों को हमेशा के लिए दिया।9सबसे पाक चीज़ों में से जो कुछ आग से बचाया जाए वह तेरा होगा; उनके सब चढ़ावे, या'नी नज़्र की क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी जिनको वह मेरे सामने गुजरानें, वह तेरे और तेरे बेटों के लिए बहुत पाक ठहरें।10और तू उनको बहुत पाक जान कर खाना; मर्द ही मर्द उनको खाएँ, वह तेरे लिए पाक हैं।11और अपने हदिये में से जो कुछ बनी-इस्राईल उठाने की क़ुर्बानी और हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करें वह भी तेरा ही हो, इनको मैं तुझ को और तेरे बेटे-बेटियों को हमेशा के हक़ के तौर पर देता हूँ; तेरे घराने में जितने पाक हैं वह उनको खाएँ।12अच्छे से अच्छा तेल और अच्छी से अच्छी मय और अच्छे से अच्छा गेहूँ, या'नी इन चीज़ों में से जो कुछ वह पहले फल के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करें वह सब मैंने तुझे दिया।13~उनके मुल्क की सारी पैदावार के पहले पक्के फल, जिनको वह ख़ुदावन्द के सामने लाएँ तेरे होंगे; तेरे घराने में जितने पाक हैं वह उनको खाएँ।14बनी-इस्राईल की हर एक मख़्सूस की हुई चीज़ तेरी होगी।15~उन जानदारों में से जिनको वह ख़ुदावन्द के सामने पेश करते हैं, जितने पहलौठी के बच्चे हैं चाहे वह इंसान के हों चाहे हैवान के वह सब तेरे होंगे; लेकिन इंसान के पहलौठों का फ़िदिया लेकर उनको ज़रूर छोड़ देना और नापाक जानवरों के पहलौठे भी फ़िदिये से छोड़ दिए जाएँ।16और जिनका फ़िदिया दिया जाए वह जब एक महीने के हों, तो उनको अपनी ठहराई हुई क़ीमत के मुताबिक़ हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से जो बीस जीरे की होती है चाँदी की पाँच मिस्क़ाल लेकर छोड़ देना।17~लेकिन गाय और भेड़-बकरी के पहलौठों का फ़िदिया न लिया जाए, वह पाक हैं; तू उनका ख़ून मज़बह पर छिड़कना और उनकी चर्बी आतिशीन क़ुर्बानी के तौर पर जला देना, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू ठहरे।18और उनका गोश्त तेरा होगा जिस तरह हिलाई हुई क़ुर्बानी का सीना और दहनी रान तेरे हैं।19~जितनी पाक चीज़ें बनी-इस्राईल उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करें, उन सभों को मैंने तुझे और तेरे बेटे-बेटियों को हमेशा के हक़ के तौर पर दिया; यह ख़ुदावन्द के सामने तेरे और तेरी नसल के लिए नमक का दाइमी 'अहद है।"20और ख़ुदावन्द ने हारून से कहा, "उनके मुल्क में तुझे कोई मीरास नहीं मिलेगी और न उनके बीच तेरा कोई हिस्सा होगा क्यूँकि बनी-इस्राईल में तेरा हिस्सा और तेरी मीरास मैं हूँ |21'और बनी लावी को उस ख़िदमत के मु'आवज़े में जो वह ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में करते हैं मैंने बनी इस्राईल की सारी दहेकी मौरूसी हिस्से के तौर पर दी।22और आगे को बनी-इस्राईल ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के नज़दीक हरगिज़ न आएँ, ऐसा न हो कि गुनाह उनके सिर लगे और वह मर जाएँ।23बल्कि बनी लावी ख़ेमा-ए-इजतिमा'अ की ख़िदमत करें और वहीँ उनका बार-ए-गुनाह उठाएँ; तुम्हारी नसल-दर-नसल यह एक दाइमी क़ानून हो, और बनीइस्राईल के बीच उनको कोई मीरास न मिले।24~क्यूँकि मैंने बनी-इस्राईल की दहेकी को, जिसे वह उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करेंगे उनका मौरूसी हिस्सा कर दिया है; इसी वजह से मैंने उनके हक़ में कहा है कि बनी-इस्राईल के बीच उनकी कोई मीरास न मिले।"25और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,26~"तू लावियों से इतना कह देना कि जब तुम बनी-इस्राईल से उस दहेकी को लो जिसे मैंने उनकी तरफ़ से तुम्हारा मौरूसी हिस्सा कर दिया है, तो तुम उस दहेकी की दहेकी ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी के लिए पेश करना।27और यह तुम्हारी उठाई हुई क़ुर्बानी तुम्हारी तरफ़ से ऐसी ही समझी जाएगी जैसे खलिहान का गल्ला और कोल्हू की मय समझी जाती है।28इस तरीक़े से तुम भी अपनी सब दहेकियों में से जो तुम को बनी इस्राईल की तरफ़ से मिलेगी ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी पेश करना, और ख़ुदावन्द की यह उठाई हुई क़ुर्बानी हारून काहिन को देना।29जितने नज़राने तुम को मिलें उनमें से उनका अच्छे से अच्छा हिस्सा, जो पाक किया गया है और ख़ुदावन्द का है, तुम उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करना।30इसलिए तू उनसे कह देना कि जब तुम इनमें से उनका अच्छे से अच्छा हिस्सा उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करोगे, तो वह लावियों के हक़ में खलिहान के भरे गल्ले और कोल्हू की भरी मय के बराबर का हिसाब होगा।31~और इनको तुम अपने घरानों के साथ हर जगह खा सकते हो, क्यूँकि यह उस ख़िदमत के बदले तुम्हारा मजदूरी है जो तुम ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में करोगे।32~और जब तुम उसमें से अच्छे से अच्छा हिस्सा उठाने की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करोगे, तो तुम उसकी वजह से गुनाहगार न ठहरोगे; और ख़बरदार बनी इस्राईल की पाक चीज़ों को नापाक न करना ताकि तुम हलाक न हो|
1और ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,2कि "शरी'अत के जिस क़ानून का हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया है वह यह है, कि तू बनी-इस्राईल से कह कि वह तेरे पास एक बेदाग़ और बे-'ऐब सुर्ख़ रंग की बछिया लाएँ, जिस पर कभी बोझ न रख्खा गया हो।3और तुम उसे लेकर इली'अज़र काहिन को देना कि वह उसे लश्करगाह के बाहर ले जाए, और कोई उसे उसी के सामने ज़बह कर दे;4और इली'अज़र काहिन अपनी उंगली से उसका कुछ ख़ून लेकर उसे ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के आगे की तरफ़ सात बार छिड़के।5फिर कोई उसकी आँखों के सामने उस गाय को जला दे; या'नी उसका चमड़ा, और गोश्त, और ख़ून, और गोबर, इन सब को वह जलाए।6फिर काहिन देवदार की लकड़ी और जूफ़ा और सुर्ख़ कपड़ा लेकर उस आग में जिसमें गाय जलती हो डाल दे।7तब काहिन अपने कपड़े धोए और पानी से ग़ुस्ल करे; इसके बा'द वह लश्करगाह के अन्दर आए, फिर भी काहिन शाम तक नापाक रहेगा।8~और जो उस गाय को जलाए वह भी अपने कपड़े पानी से धोए और पानी से ग़ुस्ल करे और वह भी शाम तक नापाक रहेगा।9~और कोई पाक शख़्स उस गाय की राख को बटोरे, और उसे लश्करगाह के बाहर किसी पाक जगह में धर दे; यह बनी-इस्राईल की जमा'अत के लिए नापाकी दूर करने के पानी के लिए रख्खी रहे, क्यूँकि यह ख़ता की क़ुर्बानी है।10और जो उस गाय की राख को बटोरे वह भी अपने कपड़े धोए और वह भी शाम तक नापाक रहेगा, और यह बनी-इस्राईल के और उन परदेसियों के लिए जो उनमें क़याम करते हैं एक दाइमी क़ानून होगा।11~'जो कोई किसी आदमी की लाश को छुए वह सात दिन तक नापाक रहेगा।12~ऐसा आदमी तीसरे दिन उस राख से अपने को साफ़ करे तो वह सातवें दिन पाक ठहरेगा लेकिन अगर वह तीसरे दिन अपने को साफ़ न करे तों वह सातवें दिन पाक नहीं ठहरेगा |13जो कोई आदमी की लाश को छूकर अपने को साफ़ न करे वह ख़ुदावन्द के घर को नापाक करता है, वह शख़्स इस्राईल में से अलग किया जाएगा क्यूँकि नापाकी दूर करने का पानी उस पर छिड़का नहीं गया इसलिए वह नापाक है उसकी नापाकी अब तक उस पर है|14~अगर कोई आदमी किसी ख़ेमे में मर जाए तो उसके बारे में शरा' यह है, कि जितने उस ख़ेमे में आएँ और जितने उस ख़ेमे में रहते हों वह सात दिन तक नापाक रहेंगे।15और हर एक खुला बर्तन जिसका ढकना उस पर बन्धा न हो नापाक ठहरेगा।16और जो कोई मैदान में तलवार के मक़तूल को या मुर्दे को या आदमी की हड्डी को या किसी क़ब्र को छुए वह सात दिन तक नापाक रहेगा।17और नापाक आदमी के लिए उस जली हुई ख़ता की क़ुर्बानी की राख को किसी बर्तन में लेकर उस पर बहता पानी डालें।18फिर कोई पाक आदमी जूफ़ा लेकर और उसे पानी में डुबो-डुबोकर उस ख़ेमे पर, और जितने बर्तन और आदमी वहाँ हों उन पर और जिस शख़्स ने हड्डी को, या~मक़तूलको, या मुर्दे को,~या क़ब्र को छुआ है उस पर छिड़के।19~वह पाक आदमी तीसरे दिन और सातवें दिन उस नापाक आदमी पर इस पानी को छिड़के और सातवें दिन उसे साफ़ करे फिर वह अपने कपड़े धोए और पानी से नहाए, तो वह शाम को पाक होगा।20~'लेकिन जो कोई नापाक हो और अपनी सफ़ाई न करे, वह शख़्स जमा'अत में से अलग किया जाएगा क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द के हैकल को नापाक किया नापाकी दूर करने का पानी उस पर छिड़का नहीं गया इसलिए वह नापाक है|21और यह उनके लिए एक दाइमी क़ानून हो; जो नापाकी दूर करने के पानी को लेकर छिड़के वह अपने कपड़े धोए, और जो कोई नापाकी दूर करने के पानी को छुए वह भी शाम तक नापाक रहेगा।22और जिस किसी चीज़ को वह नापाक आदमी छुए~वह चीज़ नापाक ठहरेगी, और जो कोई उस चीज़ को छू ले वह भी शाम तक नापाक रहेगा|
1और पहले महीने में बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत सीन के जंगल में आ गई और वह लोग क़ादिस में रहने लगे, और मरियम ने वहाँ वफ़ात पाई और वहीं दफ़्न हुई।2और जमा'अत के लोगों के लिए वहाँ पानी न मिला, इसलिए वह मूसा और हारून के बरख़िलाफ़ इकट्ठे हुए।3और लोग मूसा से झगड़ने और यह कहने लगे, "हाय, काश हम भी उसी वक़्त मर जाते जब हमारे भाई ख़ुदावन्द के सामने मरे।4तुम ख़ुदावन्द की जमा'अत को इस जंगल में क्यूँ ले आए हो कि हम भी और हमारे जानवर भी यहाँ मरें?5और तुम ने क्यूँ हम को मिस्र से निकाल कर इस बुरी जगह पहुँचाया है? यह तो बोने की और अंजीरों और ताकों और अनार की जगह नहीं है बल्कि यहाँ तो पीने के लिए पानी तक हासिल नहीं।”6और मूसा और हारून जमा'अत के पास से जाकर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर औंधे मुँह गिरे। तब ख़ुदावन्द का जलाल उन पर ज़ाहिर हुआ,7और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,8~"उस लाठी को ले और तू और तेरा भाई हारून, तुम दोनों जमा'अत को इकट्ठा करो और उनकी आँखों के सामने उस चट्टान से कहो कि वह अपना पानी दे; और तू उनके लिए~चट्टान~ही से पानी निकालना, यूँ जमा'अत को और उनके चौपायों को पिलाना।"9चुनाँचे मूसा ने ख़ुदावन्द के सामने से उसी के हुक्म के मुताबिक़ वह लाठी ली।10और मूसा और हारून ने जमा'अत को उस चट्टान के सामने इकट्ठा किया, और उसने उनसे कहा, “सुनो, ऐ बाग़ियों, क्या हम तुम्हारे लिए इसी चट्टान से पानी निकालें?"11तब मूसा ने अपना हाथ उठाया और उस चट्टान पर दो बार लाठी मारी, और कसरत से पानी बह निकला और जमा'अत ने और उनके चौपायों ने पिया।12लेकिन मूसा और हारून से ख़ुदावन्द ने कहा, "चूँकि तुम ने मेरा यक़ीन नहीं किया कि बनी-इस्राईल के सामने मेरी तक़दीस करते, इसलिए तुम इस जमा'अत को उस मुल्क में जो मैंने उनको दिया है नहीं पहुँचाने पाओगे।"13मरीबा का चश्मा यही है क्यूँकि बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से झगड़ा किया और वह उनके बीच क़ुद्दूस साबित हुआ।14और मूसा ने क़ादिस से अदोम के बादशाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि "तेरा भाई इस्राईल यह 'अर्ज़ करता है, कि तू हमारी सारी मुसीबतों से जो हम पर आईं वाकिफ़ है;15~कि हमारे बाप दादा मिस्र में गए और हम बहुत मुद्दत तक मिस्र में रहे, और मिस्रियों ने हम से और हमारे बाप दादा से बुरा सुलूक किया।16और जब हमने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो उसने हमारी सुनी, और एक फ़रिश्ते को भेज कर हम को मिस्र से निकाल ले आया है, और अब हम क़ादिस शहर में हैं जो तेरी सरहद के आख़िर में वाक़े' है।17इसलिए हम को अपने मुल्क में से होकर जाने की इजाज़त दे। हम खेतों और ताकिस्तानों~में से होकर नहीं गुज़रेंगे, और न कुओं का पानी पिएँगे; हम शाहराह पर चल कर जाएँगे और दहने या बाएँ हाथ नहीं मुड़ेंगे, जब तक तेरी सरहद से बाहर निकल न जाएँ।"18लेकिन शाह-ए-अदोम ने कहला भेजा, "तू मेरे मुल्क से होकर जाने नहीं पाएगा, वरना मैं तलवार लेकर तेरा सामना करूँगा।"19बनी-इस्राईल ने उसे फिर कहला भेजा कि "हम सड़क ही सड़क जाएँगे, और अगर हम या हमारे चौपाये तेरा पानी भी पिएँ तो उसका दाम देंगे; हम को और कुछ नहीं चाहिए अलावा इसके कि हम को पॉव-पाँव चल कर निकल जाने दे।"20लेकिन उसने कहा, "तू हरगिज़ निकलने नहीं पाएगा।” और अदोम उसके मुक़ाबले के लिए बहुत से आदमी और हथियार लेकर निकल आया।21~यूँ अदोम ने इस्राईल को अपनी हदों से गुज़रने का रास्ता देने से इन्कार किया, इसलिए इस्राईल उसकी तरफ़ से मुड़ गया।22और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत क़ादिस से रवाना होकर कोह-ए-हूर पहुँची।23और ख़ुदावन्द ने कोह-ए-हूर पर, जो अदोम की सरहद से मिला हुआ था, मूसा और हारून से कहा,24~'हारून अपने लोगों में जा मिलेगा, क्यूँकि वह उस मुल्क में जो मैने बनी-इस्राईल को दिया है जाने नहीं पाएगा, इसलिए कि मरीबा के चश्मे पर तुम ने मेरे कलाम के ख़िलाफ़ 'अमल किया।25~इसलिए तू हारून और उसके बेटे इली'अज़र को अपने साथ लेकर कोह-ए-हूर के ऊपर आ जा।26और हारून के लिबास को उतार कर उसके बेटे इली'अज़र को पहना देना, क्यूँकि हारून वहीं वफ़ात पाकर अपने लोगों में जा मिलेगा।"27और मूसा ने ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ 'अमल किया, और वह सारी जमा'अत की आँखों के सामने कोह-ए-हूर पर चढ़ गए।28और मूसा ने हारून के लिबास को उतार कर उस के बेटे इली'अज़र को पहना दिया, और हारून ने वहीं पहाड़ की चोटी पर रहलत की। तब मूसा और इली'अजर पहाड़ पर से उतर आए।29~जब जमा'अत ने देखा कि हारून ने वफ़ात पाई तो इस्राईल के सारे घराने के लोग हारून पर तीस दिन तक मातम करते रहे।
1और जब 'अराद के कना'नी बादशाह ने जो दख्खिन की तरफ़ रहता था सुना, कि इस्राईली अथारिम की राह से आ रहे हैं, तो वह इस्राईलियों से लड़ा और उनमें से कई एक को ग़ुलाम कर लिया।2~तब इस्राईलियों ने ख़ुदावन्द के सामने मिन्नत मानी और कहा कि "अगर तू सचमुच उन लोगों को हमारे हवाले कर दे तो हम उनके शहरों को बर्बाद कर देंगे।"3और ख़ुदावन्द ने इस्राईल की फ़रियाद सुनी और कना'नियों को उन के हवाले कर दिया; और उन्होंने उनको और उनके शहरों को बर्बाद कर दिया, चुनाँचे उस जगह का नाम भी हुरमा पड़ गया।4फिर उन्होंने कोह-ए-होर से रवाना होकर बहर-ए-क़ुलज़ुम का रास्ता लिया, ताकि मुल्क-ए-अदोम के बाहर-बाहर घूम कर जाएँ; लेकिन उन लोगों की जान उस रास्ते से 'आजिज़ आ गई।5और लोग ख़ुदा की और मूसा की~शिकायत करके कहने लगे कि " तुम क्यूँ हम को मिस्र से वीरान में मरने के लिए ले आए? यहाँ तो न रोटी है, न पानी, और हमारा जी इस निकम्मी ख़ुराक से कराहियत करता है।”6तब ख़ुदावन्द ने उन लोगों में जलाने वाले साँप भेजे, उन्होंने लोगों को काटा और बहुत से इस्राईली मर गए।7तब वह लोग मूसा के पास आकर कहने लगे कि "हम ने गुनाह किया, क्यूँकि हम ने ख़ुदावन्द की और तेरी शिकायत की; इसलिए तू ख़ुदावन्द से दु'आ कर कि वह इन साँपों को हम से दूर करे।” चुनौंचे मूसा ने लोगों के लिए दु'आ की।8~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि "एक जलाने वाला साँप बना ले और उसे एक बल्ली पर लटका दे, और जो साँप का डसा हुआ उस पर नज़र करेगा वह ज़िन्दा बचेगा।"9चुनाँचे मूसा ने पीतल का एक साँप बनवाकर उसे बल्ली पर लटका दिया; और ऐसा हुआ कि जिस जिस साँप के डसे हुए आदमी ने उस पीतल के साँप पर निगाह की वह ज़िन्दा बच गया।10और बनी-इस्राईल ने वहाँ से रवानगी की और ओबूत में आकर ख़ेमे डाले।11फिर ओबूत से कूच किया और 'अय्ये 'अबारीम में, जो पश्चिम की तरफ़ मोआब के सामने के वीरान में वाके' है ख़ेमे डाले।12और वहाँ से रवाना होकर वादी-ए-ज़रद में ख़ेमे डाले।13~जब वहाँ से चले तो अरनोन से पार हो कर, जो अमोरियों की सरहद से निकल कर वीरान में बहती है, ख़ेमे डाले: क्यूँकि मोआब और अमोरियों के बीच अरनोन मोआब की सरहद है।14इसी वजह से ख़ुदावन्द के जंग नामे में यूँ लिखा है : "वाहेब जो सूफ़ा में है, और अरनोन के नाले15और उन नालों का ढलान जो 'आर शहर तक जाता है, और मोआब की सरहद से मुतसिल है।"16फिर इस जगह से वह बैर को गए; यह वही कुवाँ है जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा था कि "इन लोगों को एक जगह जमा' कर, और मैं इनको पानी दूँगा।"17तब इस्राईल ने यह गीत गाया: 'ऐ कुएँ, तू उबल आ! तुम इस कुएँ की ता'रीफ़ गाओ।18यह वही कुआँ है जिसे रईसों ने बनाया, और क़ौम के अमीरों ने अपने 'असा और लाठियों से खोदा।" तब वह उस जंगल से मत्तना को गए,19और मत्तना से नहलीएल को, और नहलीएल से बामात को,20और बामात से उस वादी में पहुँच कर जो मोआब के मैदान में है, पिसगा की उस चोटी तक निकल गए जहाँ से यशीमोन नज़र आता है।21और इस्राईलियों ने अमोरियों के बादशाह सीहोन के पास क़ासिद रवाना किए और यह कहला भेजा कि;22"हम को अपने मुल्क से गुज़र जाने दे; हम खेतों और अँगूर के बाग़ों में नहीं घुसेंगे, और न कुओं का पानी पीएँगे, बल्कि शाहराह से सीधे चले जाएँगे जब तक तेरी हद के बाहर न हो जाएँ।”23लेकिन सीहोन ने इस्राईलियों को अपनी हद में से गुज़रने न दिया; बल्कि सीहोन अपने सब लोगों को इकट्ठा करके इस्राईलियों के मुक़ाबले के लिए वीरान में पहुँचा, और उसने यहज़ में आकर इस्राईलियों से जंग की।24और इस्राईल ने उसे तलवार की धार से मारा और उसके मुल्क पर, अरनोन से लेकर यब्बोक़ तक जहाँ बनी 'अम्मोन की सरहद है क़ब्ज़ा कर ~लिया; क्यूँकि बनी 'अम्मोन की सरहद मज़बूत थी।25तब बनी-इस्राईल ने यहाँ के सब शहरों को ले लिया और अमोरियों के सब शहरों में, या'नी हस्बोन और उसके आस पास के कस्बों में बनी-इस्राईल बस गए।26हस्बोन अमोरियों के बादशाह सीहोन का शहर था, इसने मोआब के अगले बादशाह से लड़कर उसके सारे मुल्क को, अरनोन तक उससे छीन लिया था।27~इसी वजह से मिसाल कहने वालों की यह कहावत है कि "हस्बोन में आओ, ताकि सीहोन का शहर बनाया और मज़बूत किया जाए।28क्यूँकि हस्बोन से आग निकली, सीहोन के शहर से शोला बरामद हुआ, इसने मोआब के 'आर शहर को और अरनोन के ऊँचे मक़ामात के सरदारों को भसम कर दिया।29ऐ, मोआब! तुझ पर नोहा है। ऐ कमोस के मानने वालों! तुम हलाक हुए, उसने अपने बेटों को जो भागे थे और अपनी बेटियों को ग़ुलामों की तरह अमोरियों के बादशाह सीहोन के हवाले किया।30हमने उन पर तीर चलाए, इसलिए हस्बोन दीबोन तक तबाह हो गया, बल्कि हम ने नुफ़ा तक सब कुछ उजाड़ दिया। वह नुफ़ा जो मीदबा से मुत्तसिल है।"31~तब बनी-इस्राईल अमोरियों के मुल्क में रहने लगे।32और मूसा ने या'ज़ेर की जासूसी कराई; फिर उन्होंने उसके गाँव ले लिए और अमोरियों को जो वहाँ थे निकाल दिया।33और वह घूम कर बसन के रास्ते से आगे को बढ़े और बसन का बादशाह 'ओज अपने सारे लश्कर को लेकर निकला, ताकि अदर'ई में उनसे जंग करे।34~और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "उससे मत डर, क्यूँकि मैंने उसे और उसके सारे लश्कर को और उसके मुल्क को तेरे हवाले कर दिया है। इसलिए जैसा तूने अमोरियों के बादशाह सीहोन के साथ जो हस्बोन में रहता था किया है, वैसा ही इसके साथ भी करना।"35चुनाँचे उन्होंने उसको और उसके बेटों और सब लोगों को यहाँ तक मारा कि उसका कोई बाक़ी न रहा, और उसके मुल्क को अपने क़ब्ज़े में कर लिया।
1फिर बनी-इस्राईल रवाना हुए और दरिया-ए-यरदन के पार मोआब के मैदानों में यरीहू के सामने ख़ेमे खड़े किए।2और जो कुछ बनी-इस्राईल ने अमोरियों के साथ किया था वह सब बलक़ बिन सफ़ोर ने देखा था।3इसलिए मोआबियों को इन लोगों से बड़ा ख़ौफ़ आया, क्यूँकि यह बहुत से थे; ग़र्ज़ मोआबी बनी-इस्राईल की वजह से से परेशान हुए।4~तब मोआबियों ने मिदियानी बुज़ुर्गों से कहा, "जो कुछ हमारे आस पास है उसे यह लश्कर ऐसा चट कर जाएगा जैसे बैल मैदान की घास को चट कर जाता है।” उस वक़्त बलक़ बिन सफ़ोर मोआबियों का बादशाह था।5इसलिए उस ने ब'ओर के बेटे बल'आम के पास फ़तोर को, जो बड़े दरिया कि किनारे उसकी क़ौम के लोगों का मुल्क था, क़ासिद रवाना किए कि उसे बुला लाएँ और यह कहला भेजा, "देख, एक क़ौम मिस्र से निकलकर आई है, उनसे ज़मीन की सतह छिप गई है; अब वह मेरे सामने ही आकर जम गए हैं।6इसलिए अब तू आकर मेरी ख़ातिर इन लोगों पर ला'नत कर, क्यूँकि यह मुझ से बहुत क़वी हैं; फिर मुम्किन है कि मैं ग़ालिब आऊँ, और हम सब इनको मार कर इस मुल्क से निकाल दें; क्यूँकि यह मैं जानता हूँ कि जिसे तू बरकत देता है उसे बरकत मिलती है, और जिस पर तू ला'नत करता है वह मला'ऊन होता है।”7तब मोआब के बुज़ुर्ग और मिदियान के बुज़ुर्ग फ़ाल खोलने का इनाम साथ लेकर रवाना हुए और बल'आम के पास पहुँचे और बलक़ का पैग़ाम उसे दिया।8उसने उनसे कहा, "आज रात यहीं ठहरो और जो कुछ ख़ुदावन्द मुझ से कहेगा, उसके मुताबिक़ मैं तुम को जवाब दूँगा।" चुनाँचे मोआब के हाकिम बल'आम के साथ ठहर गए।9और ख़ुदा ने बल'आम के पास आकर कहा, "तेरे यहाँ यह कौन आदमी हैं?"10बल'आम ने ख़ुदा से कहा, "मोआब के बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर ने मेरे पास कहला भेजा है, कि11जो कौम मिस्र से निकल कर आई है उससे ज़मीन की सतह छिप गई है, इसलिए तू अब आकर मेरी ख़ातिर उन पर ला'नत कर, फिर मुम्किन है कि मैं उनसे लड़ सकूँ और उनको निकाल दूँ।”12~ख़ुदा ने बल'आम से कहा, "तू इनके साथ मत जाना, तू उन लोगों पर ला'नत न करना, इसलिए कि वह मुबारक हैं।"13~बल'आम ने सुबह को उठ कर बलक़ के हाकिमों से कहा, "तुम अपने मुल्क को लौट जाओ, क्यूँकि ख़ुदावन्द मुझे तुम्हारे साथ जाने की इजाज़त नहीं देता।"14और मोआब के हाकिम चले गए और जाकर बलक़ से कहा, 'बल'आम हमारे साथ आने से इंकार करता है।”15~तब दूसरी दफ़ा' बलक़ ने और हाकिमों को भेजा, जो पहलों से बढ़ कर मु'अज़िज़ और शुमार में भी ज़्यादा थे।16उन्होंने बल'आम के पास जाकर उस से कहा, "बलक़ बिन सफ़ोर ने यूँ कहा है, कि मेरे पास आने में तेरे लिए कोई रुकावट न हो;17क्यूँकि मैं बहुत 'आला मन्सब पर तुझे मुम्ताज़ करूँगा, और जो कुछ तू मुझ से कहे मैं वही करूँगा; इसलिए तू आ जा और मेरी ख़ातिर इन लोगों पर ला'नत कर।”18बल'आम ने बलक़ के ख़ादिमों को जवाब दिया, "अगर बलक़ अपना घर भी चाँदी और सोने से भर कर मुझे दे, तो भी मैं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म से तजावुज़ नहीं कर सकता, कि उसे घटाकर या बढ़ा कर मानूँ।19~इसलिए अब तुम भी आज रात यहीं ठहरो, ताकि मैं देखूँ कि ख़ुदावन्द मुझ से और क्या कहता है।"20और ख़ुदा ने रात को बल'आम के पास आ कर उससे कहा, "अगर यह आदमी तुझे बुलाने को आए हुए हैं तो तू उठ कर उनके साथ जा; मगर जो बात मैं तुझ से कहूँ उसी पर 'अमल करना।"21तब बल'आम सुबह को उठा, और अपनी गधी पर ज़ीन रख कर मोआब के हाकिमों के साथ चला।22और उसके जाने की वजह से ख़ुदा का ग़ज़ब भड़का, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उससे मुज़ाहमत करने के लिए रास्ता रोक कर खड़ा हो गया। वह तो अपनी गधी पर सवार था और उसके साथ उसके दो मुलाज़िम थे।23और उस गधी ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा, कि वह अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए रास्ता रोके खड़ा है; तब गधी रास्ता छोड़कर एक तरफ़~हो गई और खेत में चली गई। तब बल'आम ने गधी को मारा ताकि उसे रास्ते पर ले आए।24तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता एक नीची राह में जा खड़ा हुआ, जो ताकिस्तानों के बीच से होकर निकलती थी और उसकी दोनों तरफ़ दीवारें थीं।25गधी ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देख कर दीवार से जा लगी और बल'आम का पाँव दीवार से पिचा दिया, इसलिए उसने फिर उसे मारा।26~तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता आगे बढ़ कर एक ऐसे तंग मक़ाम में खड़ा हो गया, जहाँ दहनी या बाई तरफ़ मुड़ने की जगह न थी।27फिर जो गधी ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा तो बल'आम को लिए हुए बैठ गई; फिर तो बल'आम झल्ला उठा और उसने गधी को अपनी लाठी से मारा।28तब ख़ुदावन्द ने गधी की ज़बान खोल दी और उसने बल'आम से कहा, "मैंने तेरे साथ क्या किया है कि तूने मुझे तीन बार मारा?"29~बल'आम ने गधी से कहा, "इसलिए कि तूने मुझे चिढ़ाया; काश मेरे हाथ में तलवार होती, तो मैं तुझे अभी मार डालता।"30गधी ने बल'आम से कहा, "क्या मैं तेरी वही गधी नहीं हूँ जिस पर तू अपनी सारी 'उम्र आज तक सवार होता आया है? क्या मैं तेरे साथ पहले कभी ऐसा करती थी?" उसने कहा, "नहीं।"31~तब ख़ुदावन्द ने बल'आम की आँखें खोलीं, और उसने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को देखा कि वह अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए रास्ता रोके खड़ा है, तब उसने अपना सिर झुका लिया और औंधा हो गया।32ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे कहा, "तू ने अपनी गधी को तीन बार क्यूँ मारा? देख, मैं तुझ से मुज़ाहमत करने को आया हूँ, इसलिए कि तेरी चाल मेरी नज़र में टेढ़ी है।33और गधी ने मुझ को देखा, और वह तीन बार मेरे सामने से मुड़ गई। अगर वह मेरे सामने से न हटती तो मैं ज़रूर तुझ को मार ही डालता, और उसको ज़िन्दा छोड़ देता।"34~बल'आम ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से कहा, "मुझ से ख़ता हुई, क्यूँकि मुझे मा'लूम न था कि तू मेरा रास्ता रोके खड़ा है। इसलिए अगर अब तुझे बुरा लगता है तो मैं लौट जाता हूँ।"35~ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने बल'आम से कहा, "तू इन आदमियों के साथ चला ही जा, लेकिन सिर्फ़ वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूँ।" तब बल'आम बलक़ के हाकिमों के साथ गया।36जब बलक़ ने सुना कि बल'आम आ रहा है, तो वह उसके इस्तक़बाल के लिए मोआब के उस शहर तक गया जो अरनोन की सरहद पर उसकी हदों के इन्तिहाई हिस्से में वाक़े' था।37तब बलक़ ने बल'आम से कहा, "क्या मैंने बड़ी उम्मीद के साथ तुझे नहीं बुलवा भेजा था? फिर तू मेरे पास क्यूँ न चला आया? क्या मैं इस क़ाबिल नहीं कि तुझे 'आला मन्सब पर मुम्ताज़ करूँ?"38बल'आम ने बलक़ को जवाब दिया, "देख, मैं तेरे पास आ तो गया हूँ लेकिन क्या मेरी इतनी मजाल है कि मैं कुछ बोलूँ? जो बात ख़ुदा मेरे मुँह में डालेगा, वही मैं कहूँगा।"39और बल'आम बलक़ के साथ-साथ चला और वह करयत हुसात में पहुँचे।40~बलक़ ने बैल और भेड़ों की क़ुर्बानी पेश कीं, और बल'आम और उन हाकिमों के पास जो उसके साथ थे क़ुर्बानी का गोश्त भेजा।41दूसरे दिन सुबह को बलक़ बल'आम को साथ लेकर उसे बा'ल के बुलन्द मक़ामों पर ले गया। वहाँ से उसने दूर दूर के इस्राईलियों को देखा।
1और बल'आम ने बलक़ से कहा,मेरे लिए यहाँ सात मज़बहे बनवा दे, और सात बछड़े और सात मेंढे मेरे लिए यहाँ तैयार कर रख।”2बलक़ ने बल'आम के कहने के मुताबिक़ किया, और बलक़ और बल'आम ने हर मज़बह पर एक बछड़ा और एक मेंढा चढ़ाया।3फिर बल'आम ने बलक़ से कहा, "तू अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के पास खड़ा रह, और मैं जाता हूँ, मुम्किन है कि ख़ुदावन्द मुझ से मुलाक़ात करने को आए। इसलिए जो कुछ वह मुझ पर ज़ाहिर करेगा, मैं तुझे बताऊँगा।" और वह एक बरहना पहाड़ी पर चला गया।4और ख़ुदा बल'आम से मिला; उसने उससे कहा मैंने सात मज़बहे तैयार किए हैं और उन पर एक-एक बछड़ा और एक-एक मेंढा चढ़ाया है।"5~तब ख़ुदावन्द ने एक बात बल'आम के मुँह में डाली और कहा कि "बलक़ के पास लौट जा, और यूँ कहना।"6तब वह उसके पास लौट कर आया और क्या देखता है, कि वह अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के पास मोआब के सब हाकिमों के साथ खड़ा है।7तब उसने अपनी मिसाल शुरू' की, और कहने लगा, "बलक़ ने मुझे अराम से, या'नी शाह-ए-मोआब ने पश्चिम के पहाड़ों से बुलवाया, कि आ जा, और मेरी ख़ातिर या'क़ूब पर ला'नत कर, आ, इस्राईल को~फटकार !8~मैं उस पर ला'नत कैसे करूँ, जिस पर ख़ुदा ने ला'नत नहीं की? मैं उसे कैसे फटकारूँ, जिसे ख़ुदावन्द ने नहीं फटकारा9चट्टानों की चोटी पर से वह मुझे नज़र आते हैं, और पहाड़ों पर से मैं उनको देखता हूँ। देख, यह वह क़ौम है जो अकेली बसी रहेगी, और दूसरी क़ौमों के साथ मिल कर इसका शुमार न होगा।10~या'क़ूब की गर्द के ज़र्रों को कौन गिन सकता है, और बनीइस्राईल की चौथाई को कौन शुमार कर सकता है? काश, मैं सादिक़ों की मौत मरूँ और मेरी 'आक़बत भी उन ही की तरह हो।"11तब बलक़ ने बल'आम से कहा, "ये तूने मुझ से क्या किया? मैंने तुझे बुलवाया ताकि तू मेरे दुश्मनों पर ला'नत करे, और तू ने उनको बरकत ही बरकत दी।"12उसने जवाब दिया और कहा क्या मैं उसी बात का ख़याल न करूँ, जो ख़ुदावन्द मेरे मुँह में डाले?'13फिर बलक़ ने उससे कहा, "अब मेरे साथ दूसरी जगह चल, जहाँ से तू उनको देख भी सकेगा; वह सब के सब तो तुझे नहीं दिखाई देंगे, लेकिन जो दूर दूर पड़े हैं उनको देख लेगा; फिर तू वहाँ से मेरी ख़ातिर उन पर ला'नत करना।”14~तब वह उसे पिसगा की चोटी पर, जहाँ ज़ोफ़ीम का मैदान है ले गया; वहीं उसने सात मज़बहे बनाए और हर मज़बह पर एक-एक बछड़ा और एक मेंढा चढ़ाया।15~तब उसने बलक़ से कहा, "तू यहाँ अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के पास ठहरा रह, जब कि मैं उधर जाकर ख़ुदावन्द से मिल कर आऊँ।"16और ख़ुदावन्द बल'आम से मिला, और उसने उसके मुँह में एक बात डाली, और कहा, 'बलक़ के पास लौट जा, और यूँ कहना।"17और जब वह उसके पास लौटा तो क्या देखता है, कि वह अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी कि पास मोआब के हाकिमों के साथ खड़ा है। तब बलक़ ने उससे पूछा, "ख़ुदावन्द ने क्या कहा है?"18तब उसने अपनी मिसाल शुरू' की और कहने लगा, "उठ ऐ बलक़, और सुन, ऐ सफ़ोर के बेटे! मेरी बातों पर कान लगा,19~ख़ुदा इन्सान नहीं कि झूठ बोले, और न वह आदमज़ाद है कि अपना इरादा बदले। क्या, जो कुछ उसने कहा उसे न करे? या, जो फ़रमाया है उसे पूरा न करे?20देख, मुझे तो बरकत देने का हुक्म मिला है; उसने बरकत दी है, और मैं उसे पलट नहीं सकता।21वह या'क़ूब में बदी नहीं पाता, और न इस्राईल में कोई ख़राबी देखता है। ख़ुदावन्द उसका ख़ुदा उसके साथ है, और बादशाह के जैसी ललकार उन लोगों के बीच में है।22ख़ुदा उनको मिस्र से निकाल कर लिए आ रहा है, उनमें जंगली साँड के जैसी ताक़त है|23या'क़ूब पर कोई जादू नहीं चलता, और न इस्राईल के ख़िलाफ़ फ़ाल कोई चीज़ है; बल्कि या'क़ूब और इस्राईल के हक़ में अब यह कहा जाएगा, कि ख़ुदा ने कैसे कैसे काम किए।24~देख, यह गिरोह शेरनी की तरह उठती है। और शेर की तरह तन कर खड़ी होती है। वह अब नहीं लेटने को, जब तक शिकार न खा ले। और मक़तूलों~का ख़ून न पी ले।”25तब बलक़ ने बल'आम से कहा, "न तो तू उन पर ला'नत ही कर और न उनको बरकत ही दे।"26~बल'आम ने जवाब दिया, और बलक़ से कहा, "क्या मैंने तुझ से नहीं कहा कि जो कुछ ख़ुदावन्द कहे, वही मुझे करना पड़ेगा?"27तब बलक़ ने बल'आम से कहा, 'अच्छा आ, मैं तुझ को एक और जगह ले जाऊँ; शायद ख़ुदा को पसन्द आए कि तू मेरी ख़ातिर वहाँ से उन पर ला'नत करे।"28तब बलक़ बल'आम को फ़गूर की चोटी पर, जहाँ से यशीमोन नज़र आता है ले गया।29और बल'आम ने बलक़ से कहा कि "मेरे लिए यहाँ सात मज़बहे बनवा और सात बैल और सात ही मेंढे मेरे लिए तैयार कर रख।”30चुनाँचे बलक़ ने, जैसा बल'आम ने कहा वैसा ही किया और हर मज़बह पर एक बैल और एक मेंढा चढ़ाया।
1जब बल'आम ने देखा कि ख़ुदावन्द को यही मन्ज़ूर है कि इस्राईल को बरकत दे, तो वह पहले की तरह शगून देखने को इधर उधर न गया, बल्कि वीरान की तरफ़ अपना मुँह कर लिया।2और बल'आम ने निगाह की, और देखा कि बनी-इस्राईल अपने-अपने क़बीले की तरतीब से मुक़ीम हैं। और ख़ुदा की रूह उस पर नाज़िल हुई।3और उसने अपनी मसल शुरू' की और कहने लगा, ब'ओर का बेटा बल'आम कहता है, या'नी वही शख़्स जिसकी आँखें बन्द थीं यह कहता है,4बल्कि यह उसी का कहना है जो ख़ुदा की बातें सुनता है, और सिज्दे में पड़ा हुआ खुली आँखों से क़ादिर-ए-मुतलक का ख्व़ाब देखता है।5ऐ या'क़ूब, तेरे डेरे, ऐ इस्राईल, तेरे ख़ेमें कैसे ख़ुशनुमा हैं!6वह ऐसे फैले हुए हैं, जैसे वादियाँ और दरिया कि किनारे बाग़, और ख़ुदावन्द के लगाए हुए 'ऊद के दरख़्त और नदियों के किनारे देवदार के दरख़्त।7उसके चरसों से पानी बहेगा, और सेराब खेतों में उसका बीज पड़ेगा। उसका बादशाह अजाज से बढ़कर होगा, और उसकी सल्तनत को 'उरूज हासिल होगा।8ख़ुदा उसे मिस्र से निकाल कर लिए आ रहा उसमें जंगली सांड के जैसी ताक़त है, वह उन क़ौमों को जो उसकी दुश्मन हैं, चट कर जाएगा, और उनकी हड्डियों को तोड़ डालेगा और उनको अपने तीरों से छेद-छेद कर मारेगा।9वह दुबक कर बैठा है, वह शेर की तरह बल्कि शेरनी की तरह लेट गया है, अब कौन उसे छेड़े? जो तुझे बरकत दे वह मुबारक, और जो तुझ पर ला'नत करे वह मला'ऊन हो।”10तब बलक़ को बल'आम पर बड़ा ग़ुस्सा आया, और वह अपने हाथ पीटने लगा। फिर उसने बल'आम से कहा, "मैंने तुझे बुलाया कि तू मेरे दुश्मनों पर ला'नत करे, लेकिन तू ने तीनों बार उनको बरकत ही बरकत दी।11इसलिए अब तू अपने मुल्क को भाग जा। मैंने तो सोचा था कि तुझे 'आला मन्सब पर मुम्ताज़ करूँ, लेकिन ख़ुदावन्द ने तुझे ऐसे ऐज़ाज़ से महरूम रख्खा।"12बल'आम ने बलक़ को जवाब दिया, "क्या मैंने तेरे उन क़ासिदों से भी जिनको तूने मेरे पास भेजा था। यह नहीं कह दिया था, कि13अगर बलक़ अपना घर चाँदी और सोने से भर कर मुझे दे तोभी मैं अपनी मर्ज़ी से भला या बुरा करने की ख़ातिर ख़ुदावन्द के हुक्म से तजावुज़ नहीं कर सकता, बल्कि जो कुछ ख़ुदावन्द कहे मैं वही कहूँगा?14~'और अब मैं अपनी क़ौम के पास लौट कर जाता हूँ, इसलिए तू आ, मैं तुझे आगाह कर दूँ कि यह लोग तेरी क़ौम के साथ आख़िरी दिनों में क्या क्या करेंगे।"15~चुनौंचे उसने अपनी मिसाल शुरू' की और ~कहने लगा, ब'ओर का बेटा बल'आम कहता है, या'नी वही शख़्स जिसकी आँखें बन्द थी यह कहता है,16~बल्कि यह उसी का कहना है जो ख़ुदा की बातें सुनता है, और हक़ता'ला का इरफ़ान रखता है, और सिज्दे में पड़ा हुआ खुली आँखों से क़ादिर-ए-मुतलक का ख्व़ाब देखता है;17~मैं उसे देखूँगा तो सही, लेकिन अभी नहीं; वह मुझे नज़र भी आएगा, लेकिन नज़दीक से नहीं; या'क़ूब में से एक सितारा निकलेगा और इस्राईल में से एक 'असा उठेगा, और मोआब के 'इलाक़े को मार मार कर साफ़ कर देगा, और सब हंगामा करने वालों को हलाक कर डालेगा।18और उसके दुश्मन अदोम और श'ईर दोनों उसके क़ब्ज़े में होंगे, और इस्राईल दिलावरी करेगा।19और या'क़ूब ही की नसल से वह फ़रमाँरवाँ उठेगा, जो शहर के बाक़ी मान्दा लोगों को हलाक कर डालेगा।"20फिर उसने 'अमालीक पर नज़र करके अपनी यह मसल शुरू' की, और कहने लगा, 'क़ौमोंमें पहली क़ौम 'अमालीक़ की थी, लेकिन उसका अन्जाम हलाकत है।"21और कीनियों की तरफ़ निगाह करके यह मिसाल शुरू' की,और कहने लगा तेरा घर मज़बूत है और तेरा आशियाना भी चट्टान पर बना हुआ है।22तोभी क़ीन ख़ाना ख़राब होगा, यहाँ तक कि असूर तुझे ग़ुलाम करके ले जाएगा।"23और उसने यह मसल भी शुरू' की, और कहने लगा, "हाय, अफ़सोस! जब ख़ुदा यह करेगा तो कौन जीता बचेगा?24लेकिन कितीम के साहिल से जहाज़ आएँगे, और वह असूर और इब्र दोनों को दुख देंगे। फिर वह भी हलाक हो जाएगा।"25इसके बा'द बल'आम उठ कर रवाना हुआ और अपने मुल्क को लौटा, और बलक़ ने भी अपनी राह ली।
1और इस्राईली शित्तीम में रहते थे, और लोगों ने मोआबी 'औरतों के साथ हरामकारी शुरू' कर दी।2क्यूँकि वह~'औरतें इन लोगों को अपने मा'बूदों की क़ुर्बानियों में आने की दावत देती थीं, और यह लोग जाकर खाते और उनके मा'बूदों को सिज्दा करते थे।3~यूँ इस्राईली बा'ल फ़ग़ूर की 'इबादत लगे। तब ख़ुदावन्द का क़हर बनीइस्राईल पर भड़का,4और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "क़ौम के सब सरदारों को पकड़कर ख़ुदावन्द के सामने धूप में टाँग दे, ताकि ख़ुदावन्द का शदीद क़हर इस्राईल पर से टल जाए।”5तब मूसा ने बनी-इस्राईल के हाकिमों से कहा, "तुम्हारे जो-जो आदमी बा'ल फ़गूर की 'इबादत करने लगे हैं उनको क़त्ल कर डालो।”6और जब बनी-इस्राईल की जमा'अत ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर रो रही थी, तो एक इस्राईली मूसा और तमाम लोगों की आँखों के सामने एक मिदियानी 'औरत को अपने साथ अपने भाइयों के पास ले आया।7जब फ़ीन्हास बिन इली'अज़र बिन हारून काहिन ने यह देखा, तो उसने जमा'अत में से उठ हाथ में एक बर्छी ली,8और उस मर्द के पीछे जाकर ख़ेमे के अन्दर घुसा और उस इस्राईली मर्द और उस 'औरत दोनों का पेट छेद दिया। तब बनी-इस्राईल में से वबा जाती रही।9और जितने इस वबा से मरे उनका शुमार चौबीस हज़ार था।10और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;11'फ़ीन्हास बिन इली'अज़र बिन हारून काहिन ने मेरे क़हर को बनी-इस्राईल पर से हटाया क्यूँकि उनके बीच उसे मेरे लिए ग़ैरत आई, इसीलिए मैंने बनी-इस्राईल को~अपनी ग़ैरत के जोश में हलाक नहीं किया।12इसलिए तू कह दे कि मैंने उससे अपना सुलह का 'अहद बाँधा,13~और वह उसके लिए और उसके बा'द उसकी नसल के लिए कहानत का 'दाइमी 'अहद होगा; क्यूँकि वह अपने ख़ुदा के लिए ग़ैरतमन्द हुआ और उसने बनी-इस्राईल के लिए कफ़्फ़ारा दिया।"14उस इस्राईली मर्द का नाम जो उस मिदियानी 'औरत के साथ मारा गया ज़िमरी था, जो सलू ~का बेटा और शमाऊन के क़बीले के एक आबाई ख़ान्दान का सरदार था।15~और जो मिदियानी 'औरत मारी गई उसका नाम कज़बी था, वह सूर की बेटी थी जो मिदियान में एक आबाई ख़ान्दान के लोगों का सरदार था ।16और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,17"मिदियानियों को सताना और उनको मारना,18क्यूँकि वह तुम को अपने धोखे के दाम में फँसाकर सताते हैं, जैसा फ़गूर के मु'आमिले में हुआ और कज़बी के मु'आमिले में भी हुआ।" जो मिदियान के सरदार की बेटी और मिदियानियों की बहन थी, और फ़गूर ही के मु'आमिले में वबा के दिन मारी गई।
1और वबा के बा'द ख़ुदावन्द ने मूसा अौर हारून काहिन के बोटे इली'अज़र से कहा कि,2"बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत में बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के जितने इस्राईली जंग करने के क़ाबिल हैं, उन सभों को उनके आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ गिनो।"3चुनाँचे मूसा और इली'अज़र काहिन ने मोआब के मैदानों में जो यरदन के किनारे किनारे यरीहू के सामने हैं, उन लोगों से कहा,4कि "बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र के आदमियों को वैसे ही गिन लो जैसे ख़ुदावन्द ने मूसा और बनी-इस्राईल को, जब वह मुल्क-ए-मिस्र से निकल आए थे हुक्म किया था।”5रूबिन जो इस्राईल का पहलौठा था~उसके बेटे यह हैं, या'नी हनूक, जिससे हनूकियों का ख़ान्दान चला; और फ़ल्लू, जिससे फ़लवियों का ख़ान्दान चला;6और हसरोन, जिससे हसरोनियों का ख़ान्दान चला; और करमी, जिससे करमियों का ख़ान्दान चला।7~ये बनी रूबिन के ख़ान्दान हैं, और इनमें से जो गिने गए वह तैन्तालीस हज़ार सात सौ तीस थे।8और फ़ल्लू का बेटा इलियाब था,9और इलियाब के बेटे नमूएल और दातन और अबीराम थे। यह वही दातन और अबीराम हैं जो जमा'अत के चुने हुए थे, और जब क़ोरह के फ़रीक़ ने ख़ुदावन्द से झगड़ा किया तो यह भी उस फ़रीक़ के साथ मिल कर मूसा और हारून से झगड़े;10और जब उन ढाई सौ आदमियों के आग में भसम हो जाने से वह फ़रीक़ हलाक हो गया, उसी मौक़े' पर ज़मीन ने मुँह खोल कर क़ोरह के साथ उनको भी निगल लिया था; और वह सब 'इबरत का निशान ठहरे।11लेकिन कोरह के बेटे नहीं मरे थे।12और शमा'ऊन के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी नमूएल, जिससे नमूएलियों का ख़ान्दान चला; और यमीन, जिससे यमीनियों का ख़ान्दान चला; और यकीन, जिससे यकीनियों का ख़ान्दान चला;13और ज़ारह, जिससे ज़ारहियों का ख़ान्दान चला; और साऊल, जिससे साऊलियों का ख़ान्दान चला।14तब बनी शमा'ऊन के ख़ान्दानों में से बाईस हज़ार दो सौ आदमी गिने गए।15और जद्द के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी सफ़ोन, जिससे सफ़ोनियों का ख़ान्दान चला; और हज्जी, जिससे हज्जियों का ख़ान्दान चला; और सूनी, जिससे सूनियों का ख़ान्दान चला;16और उज़नी, जिससे उज़नियों का ख़ान्दान चला; और 'एरी, जिससे 'एरियों का ख़ान्दान चला;17और अरूद,जिससे अरूदियों का ख़ान्दान चला; और अरेली, जिससे अरेलियों का ख़ान्दान चला।18बनी जद्द के यही घराने हैं, जो इनमें से गिने गए वह चालीस हज़ार पाँच सौ थे।19~यहूदाह के बेटों में से 'एर और ओनान तो मुल्क-ए-कना'न ही में मर गए।20और यहूदाह के और बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी सीला, जिससे सीलानियों का ख़ान्दान चला; और फ़ारस, जिससे फ़ारसियों का ख़ान्दान चला; और ज़ारह, जिससे ज़ारहियों का ख़ान्दान चला।21फ़ारस के बेटे यह हैं, या'नी हसरोन, जिससे हसरोनियों का ख़ान्दान चला; और हमूल, जिससे हमूलियों का ख़ान्दान चला।22~ये बनी यहूदाह के घराने हैं। इनमें से छिहत्तर हज़ार पाँच सौ आदमी गिने गए।23और इश्कार के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी तोला', जिससे तोल'इयों का ख़ान्दान चला; और फ़ुव्वा, जिससे फ़ुवियों का ख़ान्दान चला:24यसूब, जिससे यसूबियों का ख़ान्दान चला; सिमरोन, जिससे सिमरोनियों का ख़ान्दान चला।25यह बनी इश्कार के घराने हैं। इनमें से जो गिने गए वह चौंसठ हज़ार तीन सौ थे।26और ज़बूलून के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी सरद, जिससे सरदियों का ख़ान्दान चला; एलोन, जिससे एलोनियों का ख़ान्दान चला; यहलीएल, जिससे यहलीएलियों का ख़ान्दान चला।27यह बनी ज़बूलून के घराने हैं। इनमें से साठ हज़ार पाँच सौ आदमी गिने गए।28और यूसुफ़ के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी मनस्सी और इफ़्राईम।29और मनस्सी का बेटा मकीर था, जिससे मकीरियों का ख़ान्दान चला; और मकीर से~जिल'आद पैदा हुआ, जिससे जिल'आदियों का ख़ान्दान चला।30और जिल'आद के बेटे यह हैं, या'नी ई'अज़र, जिससे ई'अज़रियों का ख़ान्दान चला; और ख़लक़, जिससे ख़लक़ियों का ख़ान्दान चला;31और असरीएल, जिससे असरिएलियों का ख़ान्दान चला; और सिक्म, जिससे सिक्मियों का ख़ान्दान चला;32और समीदा', जिससे समीदा'इयों का ख़ान्दान चला; और हिफ़्र, जिससे हिफ़्रियों का ख़ान्दान चला।33और हिफ़्र के बेटे सिलाफ़िहाद के यहाँ कोई बेटा नहीं बल्कि बेटियाँ ही हुई, और सिलाफ़िहाद की बेटियों के नाम यह हैं: महलाह, और नू'आह, और हुजलाह, और मिल्काह, और तिरज़ाह।34यह बनी मनस्सी के घराने हैं। इनमें से जो गिने गए वह बावन हज़ार सात सौ थे।35और इफ़्राईम के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी सुतलह, जिससे सुतलहियों का ख़ान्दान चला; और बकर, जिससे बकरियों का ख़ान्दान चला; और तहन जिससे तहनियों का ख़ान्दान चला।36और सूतलह का बेटा 'ईरान था, जिससे 'ईरानियों का ख़ान्दान चला।37यह बनी इफ़्राईम के घराने हैं। इनमें से जो गिने गए वह बत्तीस हज़ार पाँच सौ थे। यूसुफ़ के बेटों के ख़ान्दान यही हैं।38और बिनयमीन के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी बला', जिससे बला'इयों का ख़ान्दान चला; और अशबील, जिससे अशबीलियों का ख़ान्दान चला; और अख़ीराम, जिससे अख़ीरामियों का ख़ान्दान चला;39और सूफ़ाम, जिससे सूफ़ामियों का ख़ान्दान चला; और हूफ़ाम, जिससे हूफ़ामियों का ख़ान्दान चला।40~बाला' के दो बेटे थे एक अर्द, जिससे अर्दियों का ख़ान्दान चला; दूसरा ना'मान, जिससे ना'मानियों का ख़ानदान चला।41~यह बनी बिनयमीन के घराने हैं। इनमें से जो गिने गए वह पैंतालस हजार छ: सौ थे|42और दान का बेटा जिससे उसका ख़ान्दान चला सुहाम था, उससे सूहामियों ख़ान्दान चला। दानियों का ख़ान्दान यही था|43सूहामियों के ख़ान्दान के जो आदमी गिने गए वह चौंसठ हज़ार चार सौ थे।44~और आशर के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी यिमना, जिससे यिमनियों का ख़ान्दान चला; और इसवी, जिससे इसवियों का ख़ान्दान चला; और बरी'अह, जिससे बरी'अहियों का ख़ान्दान चला ।45बनी बरी'आह यह हैं, या'नी हिब्र, जिससे हिब्रियों का ख़ान्दान चला; और मलकीएल, जिससे मलकीएलियों का ख़ान्दान चला।46और आशर की बेटी का नाम सारा था।47यह बनी आशर के घराने हैं, और जो इनमें से गिने गए वह तिरपन हज़ार चार सौ थे।48और नफ़्ताली के बेटे जिनसे उनके ख़ान्दान चले यह हैं, या'नी यहसीएल, जिससे यहसीएलियों का ख़ान्दान चला; और जूनी, जिससे जूनियों का ख़ान्दान चला;49~और यिस्र, जिससे यिस्रियों का ख़ान्दान चला; और सलीम, जिससे सलीमियों का ख़ान्दान चला।50यह बनी नफ़्ताली के घराने हैं, और जितने इनमें से गिने गए वह पैंतालीस हज़ार चार सौ थे।51फिर बनी-इस्राईल में से जितने गिने गए वह सब मिला कर छः लाख एक हज़ार सात सौ तीस थे।52और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,53"इन ही को, इनके नामों के शुमार के मुवाफ़िक़ वह ज़मीन मीरास के तौर पर बाँट दी जाए।54~जिस क़बीले में ज़्यादा आदमी हों उसे ज़्यादा हिस्सा मिले, और जिसमें कम हों उसे कम हिस्सा मिले। हर क़बीले की मीरास उसके गिने हुए आदमियों के शुमार पर ख़त्म हो।55~लेकिन ज़मीन पर्ची से तक़्सीम की जाए। वह अपने आबाई क़बीलों के नामों के मुताबिक़ मीरास पाएँ।56और चाहे ज़्यादा आदमियों का क़बीला हो या थोड़ों का, पर्चीसे उनकी मीरास~तक़्सीम~की~जाए।"57और जो लावियों में से अपने-अपने ख़ान्दान के मुताबिक़ गिने गए वह यह हैं, या'नी जैरसोन से जैरसोनियों का घराना, क़िहात से क़िहातियों का घराना, मिरारी से मिरारियों का घराना।58और यह भी लावियों के घराने हैं, या'नी लिबनी का घराना, हबरून का घराना, महली का घराना, और मूशी का घराना, और कोरह का घराना। और क क़िहात से अमराम पैदा हुआ।59और अमराम की बीवी का नाम यूकबिद था, जो लावी की बेटी थी और मिस्र में लावी के यहाँ पैदा हुई; इसी के हारून और मूसा और उनकी बहन मरियम अमराम से पैदा हुए।60~और हारून के बेटे यह थे: नदब और अबीहू और अली 'अज़र और ~इतमर।61और~नदब और अबीहू तो उसी वक़्त मर गए जब उन्होंने ख़ुदावन्द के सामने ऊपरी आग पेश कीं थी।62फिर उनमें से जितने एक महीने और उससे ऊपर-ऊपर के नरीना फ़र्ज़न्द गिने गए वह तेईस हज़ार थे। यह बनी-इस्राईल के साथ नहीं गिने गए क्यूँकि इनको बनी-इस्राईल के साथ मीरास नहीं मिली।63तब मूसा और इली'अज़र काहिन ने जिन बनी-इस्राईल को मोआब के मैदानों में जो यरदन के किनारे किनारे यरीहू के सामने हैं शुमार किया वह यही हैं।64लेकिन जिन इस्राईलियों को मूसा और हारून काहिन ने सीना के जंगल में गिना था, उनमें से एक शख़्स भी इनमें न था।65क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनके हक़ में कह दिया था कि वह यक़ीनन वीरान में मर जाएँगे, चुनाँचे उनमें से अलावा युफ़न्ना के बेटे कालिब और नून के बेटे यशू'अ के एक भी बाक़ी नहीं बचा था।
1तब यूसुफ़ के बेटे मनस्सी की औलाद के घरानों में से सिलाफ़िहाद बिन हिफ़्र बिन जिल'आद बिन मकीर बिन मनस्सी की बेटियाँ, जिनके नाम महलाह और नो'आह और हुजलाह और मिलकाह और तिरज़ाह हैं, पास आकर2ख़ेमा-ए-इजितमा'अ के दरवाज़े पर मूसा और इली'अज़र काहिन और अमीरों और सब जमा'अत के सामने खड़ी हुई और कहने लगीं कि;3~"हमारा बाप वीरान में मरा, लेकिन वह उन लोगों में शामिल न था जिन्होंने कोरह के फ़रीक से मिल कर ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ सिर उठाया था; बल्कि वह अपने गुनाह में मरा और उसके कोई बेटा न था।4~इसलिए बेटा न होने की वजह से से हमारे बाप का नाम उसके घराने से क्यूँ मिटने पाए? इसलिए हम को भी हमारे बाप के भाइयों के साथ हिस्सा दो।"5मूसा उनके मु'आमिले को ख़ुदावन्द के सामने ले गया।6~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,7"सिलाफ़िहाद की बेटियाँ ठीक कहती हैं; तू उनको उनके बाप के भाइयों के साथ ज़रूर ही मीरास का हिस्सा देना, या'नी उनको उनके बाप की मीरास मिले।8और बनी-इस्राईल से कह, कि अगर कोई शख़्स मर जाए और उसका कोई बेटा न हो, तो उस की मीरास उसकी बेटी को देना।9अगर उसकी कोई बेटी भी न हो, तो उसके भाइयों को उसकी मीरास देना।10अगर उसके भाई भी न हों, तो तुम उसकी मीरास उसके बाप के भाइयों को देना।11अगर उसके बाप का भी कोई भाई न हो, तो जो शख़्स उसके घराने में उसका सब से क़रीबी रिश्तेदार हो उसे उसकी मीरास देना; वह उसका वारिस होगा। और यह हुक्म बनी-इस्राईल के लिए, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया वाजिबी फ़र्ज़ होगा।”12फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "तू 'अबारीम के इस पहाड़ पर चढ़कर उस मुल्क को, जो मैंने बनी-इस्राईल को 'इनायत किया है देख ले।13~और जब तू उसे देख लेगा, तो तू भी अपने लोगों में अपने भाई हारून की तरह जा मिलेगा।14क्यूँकि सीन के जंगल में जब जमा'अत ने मुझ से झगड़ा किया, तो बर'अक्स इसके कि वहाँ पानी के चश्मे पर तुम दोनों उनकी आँखों के सामने मेरी तक़दीस करते, तुम ने मेरे हुक्म से सरकशी की।" यह वही मरीबा का चश्मा है जो दश्त-ए-सीन के क़ादिस में है।15~मूसा ने ख़ुदावन्द से कहा कि;16"ख़ुदावन्द सारे बशर की रूहों का ख़ुदा, किसी आदमी को इस जमा'अत पर मुक़र्रर करे;17जिसकी आमद-ओ-रफ़्त उनके सामने हो और वह उनको बाहर ले जाने और अन्दर ले आने में उनका रहबर हो, ताकि ख़ुदावन्द की जमा'अत उन भेड़ों की तरह न रहे जिनका कोई चरवाहा नहीं।"18~ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "तू नून के बेटे यशू'अ को लेकर उस पर अपना हाथ रख, क्यूँकि उस शख़्स में रूह है;19और उसे इली'अज़र काहिन और सारी जमा'अत के आगे खड़ा करके उनकी आँखों के सामने उसे वसीयत कर।20और अपने रोबदाब से उसे बहरावर कर दे, ताकि बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत उसकी फ़रमाबरदारी करे।21वह इली 'काहिन के आगे खड़ा हुआ करे, जो उसकी जानिब से ख़ुदावन्द के सामने ऊरीम का हुक्म दरियाफ़्त किया करेगा। उसी के कहने से वह और बनी-इस्राईल की सारी जमा'अत के लोग निकला करें, और उसी के कहने से लौटा भी करें।"22~इसलिए मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ 'अमल किया, और उसने यशू'अ को लेकर उसे इली'अज़र काहिन और सारी जमा'अत के सामने खड़ा किया;23और उसने अपने हाथ उस पर रख्खे, और जैसा ख़ुदावन्द ने उसको हुक्म दिया था उसे वसीयत की।
1और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;2~"बनी-इस्राईल से कह कि मेरा हदिया, या'नी मेरी वह गिज़ा जो राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशीन क़ुर्बानी है, तुम याद करके मेरे सामने वक़्त-ए-मु'अय्यन पर पेश करा करना।3तू उन से कह दे कि जो आतिशी क़ुर्बानी तुम को ख़ुदावन्द के सामने पेश करना है वह यह है: कि दो बे-'ऐब यक-साला नर बर्रे हर दिन दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए 'अदा करो।4एक बर्रा सुबह और दूसरा बर्रा शाम को चढ़ाना;5और साथ ही ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें कूट कर निकाला हुआ तेल चौथाई हीन के बराबर मिला हो, नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करना।6यह वही दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी है जो कोह-ए- सीना पर मुक़र्रर की गई, ताकि ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरे।7और हीन की चौथाई के बराबर मय हर एक बर्रा तपावन के लिए लाना। हैकल ही में ख़ुदावन्द के सामने मय का यह तपावन चढ़ाना।8और दूसरे बर्रे को शाम के वक़्त चढ़ाना, और उसके साथ भी सुबह की तरह वैसी ही नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हो, ताकि यह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरे।9'और सबत के दिन दो बे-'ऐब यकसाला नर बर्रे और नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर ऐफ़ा के पाँचवें हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तेल मिला हो, तपावन के साथ पेश करना।10दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसके तपावन के 'अलावा यह हर सब्त की सोख़्तनी क़ुर्बानी है।11~"और अपने महीनों के शुरू' में हर माह दो। बछड़े और एक मेंढा और सात बे'ऐब यक-साला नर बर्रे सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाया करना।12और ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तेल मिला हो, हर बछड़े के साथ; और ऐफ़ा के पाँचवे हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तेल मिला हो, हर मेंढे के साथ: और ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा, जिसमें तेल मिला हो,13हर बर्रे के साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर लाना। ताकि यह राहतअंगेज़ ख़ुशबू की सोख़्तनी कुर्बानी, या'नी ख़ुदावन्द के सामने आतिशीन क़ुर्बानी ठहरे।14~और इन के साथ तपावन के लिए मय हर एक बछड़ा आधे हीन के बराबर, और हर एक मेंढा तिहाई हीन के बराबर, और हर एक बर्रा चौथाई हीन के बराबर हो। यह साल भर के हर महीने की सोख़्तनी क़ुर्बानी है।15और उस दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसके तपावन के 'अलावा एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश करा जाए।16~और पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द की फ़सह हुआ करे।17और उसी महीने की पंद्रहवीं तारीख़ को 'ईद हो, और सात दिन तक बेख़मीरी रोटी खाई जाए।18पहले दिन लोगों का पाक मजमा' हो, तुम उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना।19बल्कि तुम आतिशी क़ुर्बानी, या'नी ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर दो बछड़े और एक मेंढा और सात यक-साला नर बर्रे चढ़ाना। यह सब के सब बे-'ऐब हों।20और उनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेल मिला हुआ मैदा; हर एक बछड़ा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और हर एक मेंढा पाँचवें हिस्से के बराबर।21और सातों बर्रों में से हर बर्रा पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर पेश करा करना।22~और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा हो, ताकि उससे तुम्हारे लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए।23~तुम सुबह की सोख़्तनी क़ुर्बानी के 'अलावा, जो दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी है, इनको भी पेश करना।24इसी तरह तुम हर दिन सात दिन तक आतिशी क़ुर्बानी की यह ग़िज़ा चढ़ाना, ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू ठहरे; दिन-मर्रा की दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा यह भी पेश करा जाए।25और सातवें दिन फिर तुम्हारा पाक मज़मा हो उसमें कोई ख़ादिमाना काम न करना।26'और पहले फलों के दिन, जब तुम नई नज़्र की क़ुर्बानी हफ़्तों की 'ईद में ख़ुदावन्द के सामने पेश करो, तब भी तुम्हारा पाक मजमा' हो; उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना।27बल्कि तुम सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर दो बछड़े, एक मेंढा और सात यक-साला नर बर्रे पेश करना; ताकि यह ख़ुदावन्द के सामने राहत अंगेज़ ख़ुशबू हो,28और इनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेल मिला हुआ मैदा; हर बछड़ा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और हर मेंढा पाँचवें हिस्से के बराबर,29और सातों बर्रों में से हर बर्रे पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर हो।30~और एक बकरा हो ताकि तुम्हारे लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए।31~दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी के 'अलावा तुम इनको भी पेश करना। यह सब बे-'ऐब हों और इनके तपावन साथ हों।
1और सातवें महीने की पहली तारीख़ को तुम्हारा पाक मजमा' हो, उसमें कोई ख़ादिमाना काम न करना। यह तुम्हारे लिए नरसिंगे फूँकने का दिन है।2तुम सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर एक बछड़ा, एक मेंढा और सात बे-'ऐब यक-साला नर बर्रे चढ़ाना ताकि यह ख़ुदावन्द के सामने राहत अंगेज़ ख़ुशबू ठहरे।3और इनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेल मिला हुआ मैदा; "बछड़ा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और हर मेंढा पाँचवें हिस्से के बराबर,4और सातों बर्रों में से हर बर्रे पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर हो।5और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो, ताकि तुम्हारे वास्ते कफ़्फ़ारा दिया जाए।6नये चाँद की~सोख़्तनी क़ुर्बानी और~उसकी नज़्र की क़ुर्बानी, और दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और~उसकी नज़्र की क़ुर्बानी~और~उनके तपावनों के 'अलावा, जो अपने-अपने क़ानून के मुताबिक़ पेश करे जाएँगे, यह भी राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने अदा किये जाए।7~'फिर उसी सातवें महीने की दसवीं तारीख़ को तुम्हारा पाक मजमा' हो; तुम अपनी अपनी जान को दुख देना और किसी~तरह का काम न करना,8बल्कि सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर एक बछड़ा, एक मेंढा और सात यक-साला नर बर्रे ख़ुदावन्द के सामने चढ़ाना, ताकि यह राहतअंगेज़ ख़ुशबू ठहरे; यह सब के सब बे-'ऐब हों,9~और इनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेल मिला हुआ मैदा; हर बछड़ा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और हर मेंढा पाँचवें हिस्से के बराबर,10और सातों बर्रों में से हर बर्रे पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर हो,11और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा हो; यह भी उस ख़ता की क़ुर्बानी के 'अलावा, जो कफ़्फ़ारे के लिए है और दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की कुर्बानी, और तपावनों के 'अलावा अदा किये जाएँ।12और सातवें महीने की पन्द्रहवीं तारीख़ को फिर तुम्हारा पाक मजमा' हो; उस दिन तुम कोई ख़ादिमाना काम न करना, और सात दिन तक ख़ुदावन्द की ख़ातिर 'ईद मनाना।13और तुम सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर तेरह बछड़े, दो मेंढे, और चौदह यक-साला नर बर्रे चढ़ाना ताकि यह राहत अंगेज़ ख़ुशबू की आतिशीन क़ुर्बानी ठहरे; यह सब के सब बे-'ऐब हों।14और इनके साथ नज़्र की क़ुर्बानी के तौर पर तेरह बछड़ों में से हर बछड़े पीछे तेल मिला हुआ मैदा ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर, और दोनों मेंढों में से हर मेंढे पीछे पाँचवें हिस्से के बराबर,15~और चौदह बर्रों में से हर बर्रे पीछे ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर हो।16और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा चढ़ाए जाएँ।17"और दूसरे दिन बारह बछड़े, दो मेंढे और चौदह बे-'ऐब यक-साला नर बर्रे चढ़ाना।18~और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,19और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावनों के 'अलावा चढ़ाए जाएँ।20~'और तीसरे दिन ग्यारह बछड़े, दो मेंढे और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।21और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,22और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के अलावा चढ़ाए जाएँ।23~'और चौथे दिन दस बछड़े, दो मेंढे और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।24~और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,25और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा चढ़ाए जाए।26~"और पाँचवे दिन नौ बछड़े, दो मेंढ़े और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।27और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और क़ानून के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,28और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा चढ़ाए जाए।29'और छठे दिन आठ बछड़े, दो मेंढे और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।30और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और क़ानून के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों;31और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा अदा की जाए।32"और सातवें दिन सात बछड़े, दो मेंढे और चौदह यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे हों।33और बछड़ों और मेंढों और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,34और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के अलावा अदा की जाएँ35"और आठवें दिन तुम्हारा पाक मजमा' हो; तुम उस दिन कोई ख़ादिमाना काम न करना,36बल्कि तुम एक बछड़ा, एक मेंढा, और सात यक-साला बे-'ऐब नर बर्रे सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ाना ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने राहतअंगेज़ ख़ुशबू की आतिशी क़ुर्बानी ठहरे।37~और बछड़े और मेंढे और बर्रों के साथ, उनके शुमार और तौर तरीक़े के मुताबिक़ उनकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन हों,38और एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए हो। यह सब दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन के 'अलावा चढ़ाए जाएँ।39"तुम अपनी मुक़र्ररा 'ईदों में अपनी मिन्नतों और रज़ा की क़ुर्बानियों के 'अलावा यहीं सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और नज़्र की कुर्बानियाँ और तपावन और सलामती की कुर्बानियाँ पेश करना।”40और जो कुछ ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया, वह सब मूसा ने बनीइस्राईल को बता दिया।
1और मूसा ने बनी-इस्राईल के क़बीलों के सरदारों से कहा, "जिस बात का ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है वह यह है, कि2जब कोई मर्द ख़ुदावन्द की मिन्नत माने या ~क़सम खाकर अपने ऊपर कोई ख़ास फ़र्ज़~ठहराए, तो वह अपने 'अहद को न तोड़े; बल्कि जो कुछ उसके मुँह से निकला है उसे पूरा करे।3और अगर कोई 'औरत ख़ुदावन्द की मिन्नत माने और अपनी नौ जवानी के दिनों में अपने बाप के घर होते हुए अपने ऊपर कोई फ़र्ज़ ठहराए।4और उसका बाप उसकी~मिन्नत और उसके फ़र्ज़ का हाल जो उसने अपने ऊपर ठहराया है सुनकर चुप हो रहे, तो वह सब मिन्नतें ~और सब फ़र्ज़ जो उस 'औरत ने अपने ऊपर ठहराए हैं क़ायम रहेंगे।5लेकिन अगर उसका बाप जिस दिन यह सुने उसी दिन उसे मना' करे, तो उसकी कोई मिन्नत या कोई फ़र्ज़ जो उसने अपने ऊपर ठहराया है, क़ायम नहीं रहेगा; और ख़ुदावन्द उस 'औरत को मा'ज़ूर रख्खेगा क्यूँकि उसके बाप ने उसे इजाज़त नहीं दी।6और अगर किसी आदमी से उसकी निस्बत हो जाए, हालाँके उसकी मिन्नतें या मुँह की निकली हुई बात जो उसने अपने ऊपर फ़र्ज़ ठहराई है, अब तक पूरी न हुई हो;7और उसका आदमी यह हाल सुनकर उस दिन उससे कुछ न कहे तो उसकी मनतें क़ायम रहेंगी, और जो बातें उसने अपने ऊपर फ़र्ज़ ठहराई हैं वह भी क़ायम रहेंगी।8~लेकिन अगर उसका आदमी जिस दिन यह सब सुने, उसी दिन उसे मना' करे तो उसने जैसे उस 'औरत की मिन्नत को और उसके मुँह की निकली हुई बात को जो उसने अपने ऊपर फ़र्ज़ ठहराई थी तोड़ दिया; और ख़ुदावन्द उस 'औरत को मा'जूर रख्खेगा।9लेकिन बेवा और तलाकशुदा कीं मिन्नतें और फ़र्ज़ ठहरायी हुई बातें क़ायम रहेंगी।10और अगर उसने अपने शौहर के घर होते हुए कुछ मिन्नत मानी या क़सम खाकर अपने ऊपर कोई फ़र्ज़ ठहराया ~हो,11और उसका शौहर यह हाल सुन कर ख़ामोश रहा हो और उसे मना' न किया हो, तो उसकी मिन्नतें और सब फ़र्ज़ जो उसने अपने ऊपर ठहराए क़ायम रहेंगे।12~लेकिन अगर उसके शौहर ने जिस दिन यह सब सुना उसी दिन उसे बातिल ठहराया हो, तो जो कुछ उस 'औरत के मुँह से उसकी मिन्नतों और ठहराए हुए फ़र्ज़ के बारे में निकला है, वह क़ायम नहीं रहेगा; उसके शौहर ने उनको तोड़ डाला है, और ख़ुदावन्द उस 'औरत को मा'ज़ूर रख्खेगा।13उसकी हर मिन्नत को और अपनी जान को दुख देने की हर क़सम को उसका शौहर चाहे तो क़ायम रख्खे, या अगर चाहे तो बातिल ठहराए।14~लेकिन अगर उसका शौहर दिन-ब-दिन ख़ामोश ही रहे, तो वह जैसे उसकी सब मिन्नतों और ठहराए हुए फ़र्ज़ों को क़ायम कर देता है; उसने उनको क़ायम यूँ किया कि जिस दिन से सब सुना वह ख़ामोश ही रहा।15लेकिन अगर वह उनको सुन कर बा'द में उनको बातिल ठहराए तो वह उस 'औरत का गुनाह उठाएगा।"16शौहर और बीवी के बीच और बाप बेटी के बीच, जब बेटी नौ-जवानी के दिनों में बाप के घर हो, इन ही तौर तरीक़े का हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया।
1~फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,2~"मिदियानियों से बनी-इस्राईल का इन्तक़ाम ले; इसके बा'द तू अपने लोगों में जा मिलेगा।"3तब मूसा ने लोगों से कहा, "अपने में से जंग के लिए आदमियों को~हथियारबन्द~करो, ताकि वह~मिदियानियों पर हमला करें और मिदियानियों से ख़ुदावन्द का इन्तक़ाम लें।4और इस्राईल के सब क़बीलों में से हर क़बीला एक हज़ार आदमी लेकर जंग के लिए भेजना।"5फिर हज़ारों हज़ार बनी-इस्राईल में से हर क़बीला एक हज़ार के हिसाब से बारह हज़ार हथियारबन्द आदमी जंग के लिए चुने गए।6यूँ मूसा ने हर क़बीले से एक हज़ार आदमियों को जंग के लिए भेजा और इली'अज़र काहिन के बेटे फ़ीन्हास को भी जंग पर रवाना किया, और हैकल के बर्तन और बलन्द आवाज़ के नरसिंगे उसके साथ कर दिए।7और जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था, उसके मुताबिक़ उन्होंने मिदियानियों से जंग की और सब मर्दों को क़त्ल किया।8और उन्होंने उन मक्तूलों के अलावा 'अव्वी और रक़म और सूर और होर और रबा' को भी, जो मिदियान के पाँच बादशाह थे, जान से मारा और ब'ओर के बेटे बल'आम को भी तलवार से क़त्ल किया।9~और बनी-इस्राईल ने मिदियान की 'औरतों और उनके बच्चों को ग़ुलाम किया, और उनके चौपाये और भेड़ बकरियाँ और माल-ओ-अस्बाब सब कुछ लूट लिया।10और उनकी सुकुनतगाहों के सब शहरों को जिनमें वह रहते थे, और उनकी सब छावनियों को आग से फूँक दिया।11और उन्होंने सारा माल-ए-ग़नीमत और सब ग़ुलाम, क्या इन्सान और क्या हैवान साथ लिए,12~और उन ग़ुलामों और माल-ए-ग़नीमत को मूसा और अली 'अज़र काहिन और बनी इस्राईल की सारी~जमा'अत के पास उस लश्करगाह में ले आए जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे किनारे मोआब के मैदानों में थी।13~तब मूसा और इली'अज़र काहिन और जमा'अत के सब सरदार उनके इस्तक़बाल के लिए लश्करगाह के बाहर गए।14और मूसा उन फ़ौजी सरदारों पर जो हज़ारों और सैकड़ों के सरदार थे और जंग से लौटे थे झल्लाया,15और उनसे कहने लगा, 'क्या तुम ने सब 'औरतें जीती बचा रख्खी हैं?16~देखो, इन ही ने बल'आम की सलाह से~फ़गूर के मु'आमिले में बनी-इस्राईल से ख़ुदावन्द की हुक्म उदूली कराई, और यूँ ख़ुदावन्द की जमा'अत में वबा फैली।17इसलिए इन बच्चों में जितने लड़के हैं सब को मार डालो, और जितनी 'औरतें मर्द का मुँह देख चुकी हैं उनको क़त्ल कर डालो।18लेकिन उन लड़कियों को जो मर्द से वाक़िफ़ नहीं और अछूती हैं, अपने लिए ज़िन्दा रख्खो।19और तुम सात दिन तक लश्करगाह के बाहर ही ख़ेमे डाले पड़े रहो, और तुम में से जितनों ने किसी आदमी की जान से मारा हो और जितनों ने किसी मक़्तूल को छुआ हो, वह सब अपने आप को और अपने कैदियों को तीसरे दिन और सातवें दिन पाक करें।20~तुम अपने सब कपड़ों और चमड़े की सब चीज़ों को और बकरी के बालों की बुनी हुई चीज़ों को और लकड़ी के सब बर्तनों को पाक करना।”21और इली'अज़र काहिन ने उन सिपाहियों से जो जंग पर गए थे कहा, “शरी'अत का वह क़ानून जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया यही है, कि22~सोना और चाँदी और पीतल और लोहा और रांगा और सीसा;23~ग़रज़ जो कुछ आग में ठहर सके वह सब तुम आग में डालना तब वह साफ़ होगा, तो भी नापाकी दूर करने के पानी से उसे पाक करना पड़ेगा; और जो कुछ आग में न ठहर सके उसे तुम पानी में डालना।24और तुम सातवें दिन अपने कपड़े धोना तब तुम पाक ठहरोगे, इसके बा'द लश्करगाह में दाख़िल होना।'25और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,26"इली'अज़र काहिन और जमा'अत के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों को साथ लेकर, तू उन आदमियों और जानवरों को शुमार कर जो लूट में आए हैं।27और लूट के इस माल को दो हिस्सों में तक़्सीम कर कि, एक हिस्सा उन जंगी मर्दों को दे जो लड़ाई में गए थे और दूसरा हिस्सा जमा'अत को दे।28और उन जंगी मर्दों से जो लड़ाई में गए थे, ख़ुदावन्द के लिए चाहे आदमी हों या गाय-बैल या गधे या भेड़ बकरियाँ, हर पाँच सौ पीछे एक को हिस्से के तौर पर ले;29इनही के आधे में से इस हिस्से को लेकर इली'अज़र काहिन को देना, ताकि यह ख़ुदावन्द के सामने उठाने की क़ुर्बानी ठहरे।30और बनी-इस्राईल के आधे में से चाहे आदमी हों या गाय-बैल या गधे या भेड़-बकरियाँ, या'नी सब क़िस्म के चौपायों में से पचास-पचास पीछे एक-एक को लेकर लावियों को देना जो ख़ुदावन्द के घर की मुहाफ़िज़त करते हैं।"31चुनाँचे मूसा और इली'अज़र काहिन ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा था वैसा ही किया।32और जो कुछ माल-ए-ग़नीमत जंगी मदों के हाथ आया था उसे छोड़कर लूट के माल में छः लाख पिछतर हज़ार भेड़-बकरियाँ थीं;33और बहतर हज़ार गाय-बैल,34और इकसठ हज़ार गधे,35और नुफूस-ए-इन्सानी में से बतीस हज़ार ऐसी 'औरतें जो मर्द से नावाक़िफ़ और अछूती थीं।36~और लूट के माल के उस आधे में जो जंगी मदों का हिस्सा था, तीन लाख सैंतीस हज़ार पाँच सौ भेड़-बकरियाँ थीं,37जिनमें से छ: सौ पिछतर भेड़-बकरियाँ ख़ुदावन्द के हिस्से के लिए थीं।38और छत्तीस हज़ार गाय-बैल थे, जिनमें से बहत्तर ख़ुदावन्द के हिस्से के थे।39~और तीस हज़ार पाँच सौ गधे थे, जिनमें से इकसठ गधे ख़ुदावन्द के हिस्से के थे।40और नुफूस-ए-इन्सानी का शुमार सोलह हज़ार था, जिनमें से बतीस जानें ख़ुदावन्द के हिस्से की थीं।41तब मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुवाफ़िक उस हिस्से को जो ख़ुदावन्द के उठाने की क़ुर्बानी थी, इली'अज़र काहिन को दिया।42अब रहा बनी-इस्राईल का आधा हिस्सा, जिसे मूसा ने जंगी मर्दों के हिस्से से अलग रख्खा था;43फिर ~इस आधे में भी जो जमा'अत को दिया गया तीन लाख सैंतीस हज़ार पाँच सौ भेड़-बकरियाँ थीं,44~और छत्तीस हज़ार गाय-बैल45और तीस हज़ार पाँच सौ गधे,46और सोलह हज़ार नुफूस-ए-इन्सानी।47~और बनी-इस्राईल के इस आधे में से मूसा ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुवाफ़िक, क्या इन्सान और क्या हैवान हर पचास पीछे एक को लेकर लावियों को दिया जो ख़ुदावन्द के घर की मुहाफ़िज़त करते थे|48तब वह फ़ौजी सरदार जो हज़ारों और सैकड़ों सिपाहियों के सरदार थे, मूसा के पास आकर49उससे कहने लगे, "तेरे ख़ादिमों ने उन सब जंगी मदों को जो हमारे मातहत हैं गिना, और उनमें से एक जवान भी कम न हुआ।50~इसलिए हम में से जो कुछ जिसके हाथ लगा, या'नी सोने के ज़ेवर और पाज़ेब और कंगन और अंगूठियाँ और मुन्दरें और बाज़ूबन्द यह सब हम ख़ुदावन्द के हदिये के तौर पर ले आए हैं ताकि हमारी जानों के लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दिया जाए।"51~चुनाँचे मूसा और इली'अज़र काहिन ने उनसे यह सब सोने के घड़े हुए ज़ेवर ले लिए।52और उस हदिये का सारा सोना जो हज़ारों और सैकड़ों के सरदारों ने ख़ुदावन्द के सामने पेश कर, वह या'नी , तकरीबन 190 कि. ग्रा.~या'नीसोलह हज़ार सात सौ पचास मिस्काल था।53क्यूँकि जंगी मर्दों में से हर एक कुछ न कुछ लूट कर ले आया था।54तब मूसा और इली'अज़र काहिन उस सोने को जो उन्होंने हज़ारों और सैकड़ों के सरदारों से लिया था, ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में लाए ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने बनी-इस्राईल की यादगार ठहरे।
1और बनी रूबिन और बनी जद्द के पास चौपायों के बहुत बड़े बड़े ग़ोल थे। इसलिए जब उन्होंने या'ज़ेर और जिल'आद के मुल्कों को देखा कि यह मक़ाम चौपायों के लिए बहुत अच्छे हैं,2तो उन्होंने जाकर मूसा और इली'अज़र काहिन और जमा'अत के सरदारों से कहा कि,3'अतारात और दीबोन और या'जेर और निमरा और हस्बोन, इली'आली और शबाम और नबू और बऊन,4~या'नी वह मुल्क जिस पर ख़ुदावन्द ने इस्राईल की जमा'अत को फ़तह दिलाई है, चौपायों के लिए बहुत अच्छा है और तेरे ख़ादिमों के पास चौपाये हैं।5इसलिए अगर हम पर तेरे करम की नज़र है तो इसी मुल्क को अपने ख़ादिमों की मीरास कर दे, और हम को यरदन पार न ले जा।"6~मूसा ने बनी रूबिन और बनी जद्द से कहा, "क्या तुम्हारे भाई लड़ाई में जाएँ और तुम यहीं बैठे रहो?7तुम क्यूँ बनी-इस्राईल को पार उतर कर उस मुल्क में जाने से, जो ख़ुदावन्द ने उन को दिया है, बेदिल करते हो?8तुम्हारे बाप दादा ने भी, जब मैंने उनको क़ादिस बरनी' से भेजा कि मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें तो ऐसा ही~किया था।9क्यूँकि जब वह वादी-ए-इस्काल में पहुँचे और उस मुल्क को देखा, तो उन्होंने बनी-इस्राईल को बे-दिल कर दिया, ताकि वह उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द ने उनको 'इनायत किया न जाएँ।10और उसी दिन ख़ुदावन्द का ग़ज़ब भड़का और उसने क़सम खाकर कहा, कि11उन लोगों में से जो मिस्र से निकल कर आये हैं बीस बरस और उससे ऊपर-ऊपर की 'उम्र का कोई शख़्स उस मुल्क को नहीं देखने पाएगा, जिसके देने की क़सम मैंने इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई; क्यूँकि उन्होंने मेरी पूरी पैरवी नहीं की।12~मगर युफ़ना क़िन्ज़ी का बेटा कालिब और नून का बेटा यशू'अ उसे देखेंगे, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द की पूरी पैरवी की है।13सो ख़ुदावन्द का क़हर इस्राईल पर भड़का और उसने उनकी वीरान में चालीस बरस तक आवारा फिराया, जब तक कि उस नसल के सब लोग जिन्होंने ख़ुदावन्द के सामने गुनाह किया था, नाबूद न हो गए।14और देखो, तुम जो गुनाहगारों की नसल हो, अब अपने बाप दादा की जगह उठे हो, ताकि ख़ुदावन्द के क़हर-ए-शदीद की इस्राईलियों पर ज़्यादा कराओ।15क्यूँकि अगर तुम उस की पैरवी से फिर जाओ तो वह उनको फिर वीरान में छोड़ देगा, और तुम इन सब लोगों को हलाक कराओगे।”16~तब वह उसके नज़दीक आकर कहने लगे, "हम अपने चौपायों के लिए यहाँ भेड़साले और अपने बाल-बच्चों के लिए शहर बनाएँगे,17लेकिन हम ख़ुद हथियार बाँधे हुए तैयार रहेंगे के बनी-इस्राईल के आगे आगे चलें, जब तक कि उनको उनकी जगह तक न पहुँचा दें; और हमारे बाल-बच्चे इस मुल्क के बाशिन्दों की वजह से से फ़सीलदार शहरों में रहेंगे।18~और हम अपने घरों को फिर वापस नहीं आएँगे जब तक बनी-इस्राईल का एक-एक आदमी अपनी मीरास का मालिक न हो जाए।19और हम उनमें शामिल होकर यरदन के उस पार या उससे आगे, मीरास न लेंगे क्यूँकि हमारी मीरास यरदन के इस पार पश्चिम की तरफ़ हम को मिल गई।"20मूसा ने उनसे कहा, "अगर तुम यह काम करो और ख़ुदावन्द के सामने हथियारबन्द होकर लड़ने जाओ,21और तुम्हारे हथियार बन्द जवान ख़ुदावन्द के सामने यरदन पार जाएँ, जब तक कि ख़ुदावन्द अपने दुश्मनों को अपने सामने से दफ़ा' न करे,22और वह मुल्क ख़ुदावन्द के सामने क़ब्ज़े में न आ जाए; तो इसके बा'द तुम वापस आओ, फिर तुम ख़ुदावन्द के सामने और इस्राईल के आगे बेगुनाह ठहरोगे और यह मुल्क ख़ुदावन्द के सामने तुम्हारी मिल्कियत हो जाएगा।23लेकिन अगर तुम ऐसा न करो तो तुम ख़ुदावन्द के गुनाहगार ठहरोगे; और यह जान लो कि तुम्हारा गुनाह तुम को पकड़ेगा।24इसलिए तुम अपने बाल बच्चों के लिए शहर और अपनी भेड़-बकरियों के लिए भेड़साले बनाओ; जो तुम्हारे मुँह से निकला है वही करो।”25तब बनी जद्द और बनी रूबिन ने मूसा से कहा कि "तेरे ख़ादिम, जैसा हमारे मालिक का हुक्म है वैसा ही करेंगे।26हमारे बाल बच्चे और हमारी बीवियाँ, हमारी भेड़ बकरियाँ और हमारे सब चौपाये जिल'आद के शहरों में रहेंगे;27लेकिन हम जो तेरे ख़ादिम हैं, इसलिए हमारा एक-एक हथियारबन्द जवान ख़ुदावन्द के सामने लड़ने को पार जाएगा, जैसा हमारा मालिक कहता है।”28~तब मूसा ने उनके बारे में इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और इस्राईली क़बाइल के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों को~वसीयत की29~और उनसे यह कहा कि "अगर बनी जद्द और बनी रूबिन का एक-एक मर्द ख़ुदावन्द के सामने तुम्हारे साथ यरदन के पार हथियारबन्द होकर लड़ाई में जाए और उस मुल्क पर तुम्हारा क़ब्ज़ा हो जाए, तो तुम जिल'आद का मुल्क उनकी मीरास कर देना।30लेकिन अगर वह हथियार बाँध कर तुम्हारे साथ पार न जाएँ, तो उनको भी मुल्क-ए-कना'न ही में तुम्हारे बीच मीरास मिले।"31तब बनी जद्द और बनी रूबिन ने जवाब दिया, "जैसा ख़ुदावन्द ने तेरे ख़ादिमों को हुक्म दिया है, हम वैसा ही करेंगे।32हम हथियार बाँध कर ख़ुदावन्द के सामने उस पार मुल्क-ए-कना'न को जाएँगे, लेकिन यरदन के इस पार ही हमारी मीरास रहे।”33तब मूसा ने अमोरियों के बादशाह सीहोन की मम्लकत और बसन के बादशाह 'ओज की मम्लकत को, या'नी उनके मुल्कों को और शहरों को जो उन अतराफ़ में थे, और उस सारी नवाही के शहरों को बनी जद्द और बनी रूबिन और मनस्सी बिन यूसुफ़ के आधे क़बीले को दे दिया।34तब बनी जद्द ने तब बनी जद्द ने दिबोन] और 'अतारात और अरो'ईर,35और 'अतारात, शोफ़ान, और या'ज़ेर, और युगबिहा,36और बैत निमरा, और बैत हारन, फ़सीलदार शहर और भेड़साले बनाए।37अौर बनी रूबिन ने हस्बोन, और इली'आली, और करयताइम,38और नबो, और बालम'ऊन के नाम बदलकर उनको और शिबमाह को बनाया, और उन्होंने अपने बनाए हुए शहरों के दूसरे नाम रख्खे।39और मनस्सी के बेटे मकीर की नसल के लोगों ने जाकर जिल'आद को ले लिया, और अमोरियों को जो वहाँ बसे हुए थे निकाल दिया।40तब मूसा ने जिल'आद मकीर बिनमनस्सी को दे दिया। तब उसकी नसल के लोग वहाँ सुकूनत करने लगे।41और मनस्सी के बेटे या'ईर ने उस नवाही की बस्तियों की जाकर ले लिया और उनका नाम हव्वहत या'ईर रख्खा42और नूबह ने कनात और उसके देहात को अपने क़ब्ज़े में कर लिया और अपने ही नाम पर उस का भी नाम नूबह रख्खा |
1जब बनी-इस्राईल मूसा और हारून के मातहत दल बाँधे हुए मुल्क-ए-मिस्र से निकल कर चले तो जैल की मंज़िलों पर उन्होंने क़याम किया।2और मूसा ने उनके सफ़र का हाल उनकी मंज़िलों के मुताबिक़ ख़ुदावन्द के हुक्म से लिखा किया; इसलिए उनके सफ़र की मंज़िलें यह हैं।3पहले महीने की पंद्रहवी तारीख़ की उन्होंने रा'मसीस से रवानगी की। फ़सह के दूसरे दिन सब बनी-इस्राईल के लोग सब मिस्रियों की आँखों के सामने बड़े फ़ख़्र से रवाना हुए।4उस वक़्त मिस्री अपने पहलौठों को, जिनको ख़ुदावन्द ने मारा था दफ़न कर रहे थे। ख़ुदावन्द ने उनके मा'बूदों को भी सज़ा दी थी।5इसलिए बनी-इस्राईल ने रा'मसीस से रवाना होकर सुक्कात में ख़ेमे डाले।6और सुक्कात से रवाना होकर एताम में, जो वीरान से मिला हुआ है मुक़ीम हुए।7फिर एताम से रवाना होकर हर हखीरोत को, जो बा'ल सफ़ोन के सामने है मुड़ गए और मिजदाल के सामने ख़ेमे डाले।8फिर उन्होंने फ़ी हख़ीरोत के सामने से कूच किया और समन्दर के बीच से गुज़र कर वीरान में दाख़िल हुए, और दश्त-ए-एताम में तीन दिन की राह चल कर~मारा में पड़ाव किया।9और मारा से रवाना होकर एलीम में आए। और एलीम में पानी के बारह चश्मे और खजूर के सत्तर दरख़्त थे, इसलिए उन्होंने यहीं ख़ेमे डाल लिए।10और एलीम से रवाना होकर उन्होंने बहर-ए-क़ुलज़ुम के किनारे ख़ेमे खड़े किए।11और बहर-ए- क़ुलज़ुम से चल कर सीन के जंगल में ख़ेमाज़न हुए।12और~सीन के जंगल~से रवाना होकर दफ़का में ठहरे।13और दफ़का से रवाना होकर अलूस में मुक़ीम हुए।14और अलूस से चल कर रफ़ीदीम में ख़ेमे डाले। यहाँ इन लोगों को पीने के लिए पानी न मिला।15और रफ़ीदीम से रवाना होकर दश्त-ए- सीना में ठहरे।16और~सीना के जंगल~से चल कर क़बरोत हतावा में ख़ेमें खड़े किए।17~और क़बरोत हतावा से रवाना होकर हसीरात में ख़ेमे डाले।18और हसीरात से रवाना होकर रितमा में ख़ेमे डाले।19और रितमा से रवाना होकर रिम्मोन फ़ारस में खेमें खड़े किए।20और रिमोन फ़ारस से जो चले तो लिबना में जाकर मुक़ीम हुए।21और लिबना से रवाना होकर रैस्सा में ख़ेमे डाले।22और रैस्सा से चलकर कहीलाता में ख़ेमे खड़े किए।23और कहीलाता से चल कर कोह-ए- साफ़र के पास ख़ेमा किया।24कोह-ए-साफ़र से रवाना होकर हरादा में ख़ेमाज़न हुए।25और हरादा से सफ़र करके मकहीलोत में क़याम किया।26और मकहीलोत से रवाना होकर तहत में ख़ेमें खड़े किए।27तहत से जो चले तो तारह में आकर ख़ेमे डाले।28और तारह से रवाना होकर मितक़ा में क़याम किया।29और मितका से रवाना होकर हशमूना में ख़ेमे डाले।30और हशमूना से चल कर मौसीरोत में ख़ेमे खड़े किए।31और मौसीरोत से रवाना होकर बनी या'कान में ख़ेमे डाले।32और बनी या'कान से चल कर होर हज्जिदजाद में ख़ेमाज़न हुए।33और हीर हज्जिदजाद से रवाना होकर यूतबाता में ख़ेमें खड़े किए।34और यूतबाता से चल कर 'अबरूना में ख़ेमे डाले।35और 'अबरूना से चल कर "अस्यून जाबर में ख़ेमा किया।36और 'अस्यून जाबर से रवाना होकर~सीन के जंगल~में, जो क़ादिस है क़याम किया।37और क़ादिस से चल कर कोह-ए- होर के पास, जो मुल्क-ए-अदोम की सरहद है ख़ेमाज़न हुए।38यहाँ हारून काहिन ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ कोह-ए-होर पर चढ़ गया और उसने बनी-इस्राईल के मुल्क-ए-मिस्र से निकलने के चालीसवें बरस के पाँचवें महीने की पहली तारीख़ को वहीं वफ़ात पाई।39और जब हारून ने कोह-ए-होर पर वफ़ात पाई तो वह एक सौ तेईस बरस का था।40और 'अराद के कना'नी बादशाह को, जो मुल्क-ए-कना'न के दख्खिन में रहता था, बनीइस्राईल की आमद की ख़बर मिली।41और इस्राईली कोह-ए-होर से रवाना होकर ज़लमूना में ठहरे।42और ज़लमूना से रवाना होकर फूनोन में ख़ेमे डाले।43और फूनोन से रवाना होकर ओबोत में क़याम किया।44~और ओबोत से रवाना होकर 'अय्यी अबारीम में जो मुल्क-ए-मोआब की सरहद पर है ख़ेमे डाले,45और 'अय्यीम से रवाना होकर दीबोन जद्द में ख़ेमाज़न हुए।46और दीबोन जद्द से रवाना होकर 'अलमून दबलातायम में ख़मे खड़े किए।47और 'अलमून दबलातायम से रवाना होकर 'अबारीम के कोहिस्तान में, जो नबी के सामने है ख़ेमा किया।48और 'अबारीम के कोहिस्तान से चल कर मोआब के मैदानों में, जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे वाके' है ख़ेमाज़न हुए।49और यरदन के किनारे बैत यसीमोत~से लेकर अबील सतीम तक मोआब के मैदानों में उन्होंने ख़ेमे डाले।50और ख़ुदावन्द ने मोआब के मैदानों में, जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे वाके' है, मूसा से कहा कि ,51"बनी-इस्राईल से यह कह दे कि जब तुम यरदन को उबूर करके मुल्क-ए-कना'न में दाख़िल हो,52तो तुम उस मुल्क के सारे बाशिन्दों को वहाँ से निकाल देना, और उनके शबीहदार पत्थरों को ~और उनके ढाले हुए बुतों को तोड़ डालना, और उनके सब ऊँचे मक़ामों को तबाह कर देना।53और तुम उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उसमें बसना, क्यूँकि मैंने वह मुल्क तुम को दिया है कि तुम उसके मालिक बनो।54और तुम पर्ची डाल कर उस मुल्क को अपने घरानों में मीरास के तौर पर बाँट लेना। जिस ख़ान्दान में ज़्यादा आदमी हों उसको ज़्यादा, और जिसमें थोड़े हों उसको थोड़ी मीरास देना; और जिस आदमी का पर्चा जिस जगह के लिए निकले वही उसके हिस्से में मिले। तुम अपने आबाई क़बाइल के मुताबिक़ अपनी अपनी मीरास लेना।55~लेकिन अगर तुम उस मुल्क के बाशिन्दों को अपने आगे से दूर न करो, तो जिनको तुम बाक़ी रहने दोगे वह तुम्हारी आँखों में ख़ार और तुम्हारे पहलुओं में काँटे होंगे, और उस मुल्क में जहाँ तुम बसोगे तुम को दिक़ करेंगे।56और आख़िर को यूँ होगा कि जैसा मैंने उनके साथ करने का इरादा किया वैसा ही तुम से करूँगा।"
1फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,2"बनी-इस्राईल को हुक्म कर,और उनको कह दे कि जब तुम मुल्क-ए-कना'न में दाख़िल हो; (यह वही मुल्क है जो तुम्हारी मीरास होगा, या'नी कना'न का मुल्क म'ए अपनी हुदूद-ए-अरबा' के)3तो तुम्हारी दख्खिनी सिम्त~सीन के जंगल~से लेकर मुल्क-ए-अदोम के किनारे किनारे हो, और तुम्हारी~दख्खिनी सरहद दरिया-ए-शोर के आख़िर से शुरू' होकर पश्चिम को जाए।4वहाँ से तुम्हारी सरहद 'अक़राबियम की चढ़ाई के दख्खिन तक पहुँच कर मुड़े, और सीन से होती हुई क़ादिस बर्नी'अ के दख्खिन में जाकर निकले, और हसर अद्दार से होकर 'अज़मून तक पहुँचे।5फिर यही सरहद 'अज़मून से होकर घूमती हुई मिस्र की नहर तक जाए और समन्दर के किनारे पर ख़त्म हो।6"और पश्चिमी सिम्त में बड़ा समन्दर और उसका साहिल हो, इसलिए यही तुम्हारी पश्चिमी सरहद ठहरे।7"और उत्तरी सिम्त में तुम बड़े समन्दर से कोह-ए-होर तक अपनी हद्द रखना।8फिर कोह-ए-होर से हमात के मदख़ल तक तुम इस तरह अपनी हद्द मुक़र्रर करना कि वह सिदाद से जा मिले।9और वहाँ से होती हुई ज़िफ़रून को निकल जाए और हसर 'एनान पर जाकर ख़त्म हो, यह तुम्हारी उत्तरी सरहद हो।10"और तुम अपनी पूरबी सरहद हसर 'एनान से लेकर सफ़ाम तक बाँधना।11~ और यह सरहद सफ़ाम से रिबला तक जो 'ऐन के पश्चिम में है जाए, और वहाँ से नीचे को उतरती हुई किन्नरत की झील के पूरबी किनारे तक पहुँचे:12और फिर यरदन के किनारे किनारे नीचे को जाकर दरिया-ए-शोर पर ख़त्म हो। इन हदों के अन्दर का मुल्क तुम्हारा होगा।"13तब मूसा ने बनी-इस्राईल को हुक्म दिया, "यही वह ज़मीन है जिसे तुम पर्ची डाल कर मीरास में लोगे, और इसी के बारे में ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है कि वह साढ़े नौ क़बीलों को दी जाए।14क्यूँकि बनी रूबिन के क़बीले ने अपने आबाई ख़ान्दानों के मुवाफ़िक, और बनी जद्द के क़बीले ने भी अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ मीरास पा ली, और बनी मनस्सी के आधे क़बीले ने भी अपनी मीरास पा ली;15या'नी इन ढाई क़बीलों को यरदन के इसी पार यरीहू के सामने पश्चिम की तरफ़ जिधर से सूरज निकलता है मीरास मिल चुकी है।"16और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,17'जो अश्ख़ास इस मुल्क को मीरास के तौर पर तुम को बाँट देंगे उन के नाम यह हैं, या'नी इली'अज़र काहिन और नून का बेटा यशू'अ।18और तुम ज़मीन को मीरास के तौर पर बाँटने के लिए हर क़बीले से एक सरदार को लेना।19~और उन आदमियों के नाम यह हैं : यहूदाह के क़बीले से यफुना का बेटा कालिब,20और बनी शमा'ऊन के क़बीले से अम्मीहूद का बेटा समूएल,21और बिनयमीन के क़बीले से किसलून का बेटा इलीदाद,22और बनी दान के क़बीले से एक सरदार बुक्की बिन युगली,23और बनी यूसुफ़ में से या'नी बनी मनस्सी के क़बीले से एक सरदार हनीएल बिन अफूद,24और बनी इफ़्राईम के क़बीले से एक सरदार क़मूएल बिन सिफ़्तान,25और बनी ज़बूलून के क़बीले से एक सरदार इलीसफ़न बिन फ़रनाक,26और बनी इश्कार के क़बीले से एक सरदार फ़लतीएल बिन 'अज़्ज़ान,27और बनी आशर के क़बीले से एक सरदार अखीहूद बिन शलूमी,28और बनी नफ़्ताली के क़बीले से एक सरदार फ़िदाहेल बिन 'अम्मीहूद।"29यह वह लोग हैं जिनको ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया कि मुल्क-ए-कना'न में बनी-इस्राईल को मीरास तक़्सीम कर दें।
1~फिर ख़ुदावन्द ने मोआब के मैदानों में, जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे वाके' हैं, मूसा से कहा कि,2~"बनी इस्राईल को हुक्म कर, कि अपनी मीरास में से जो उनके क़ब्ज़े में आए लावियों की रहने के लिए शहर दें, और उन शहरों के 'इलाक़े भी तुम लावियों को दे देना।3यह शहर उनके रहने के लिए हों; उनके 'इलाक़े उनके चौपायों और माल और सारे जानवरों के लिए हों।4और शहरों के 'इलाक़े जो तुम लावियों को दो वह हर शहर की दीवार से शुरू' करके बाहर चारों तरफ़ हज़ार-हज़ार हाथ के फेर में हों।5और तुम शहर के बाहर पश्चिम की तरफ़ दो हज़ार हाथ, और दख्खिन की तरफ़ दो हज़ार हाथ, और पश्चिम की तरफ़ दो हज़ार हाथ, और उत्तर की तरफ़ दो हज़ार हाथ इस तरह पैमाइश करना के शहर उनके बीच में आ जाए। उनके शहरों के इतनी ही 'इलाक़े हों।6और लावियों के उन शहरों में से जो तुम उनको दो, छः पनाह के शहर ठहरा देना जिनमें ख़ूनी भाग जाएँ। इन शहरों के 'अलावा बयालीस शहर और उनको देना;7या'नी सब मिला कर अड़तालीस शहर लावियों की देना और इन शहरों के साथ इनके 'इलाक़े भी हों।8और वह शहर बनी-इस्राईल की मीरास में से यूँ दिए जाएँ। जिनके क़ब्ज़े में बहुत से~हों उनसे थोड़े शहर लेना। हर क़बीला अपनी मीरास के मुताबिक़ जिसका वह वारिस हो लावियों के लिए शहर दे।"9और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,10"बनी-इस्राईल से कह दे कि जब तुम यरदन को पार करके मुल्क-ए-कना'न में पहुँच जाओ,11~तो तुम कई ऐसे शहर मुक़र्रर करना जो तुम्हारे लिए पनाह के शहर हों, ताकि वह ख़ूनी जिससे अनजाने में ~ख़ून हो जाए वहाँ भाग जा सके।12इन शहरों में तुम को इन्तक़ाम लेने वाले से पनाह मिलेगी, ताकि ख़ूनी जब तक वह फ़ैसले के लिए जमा'अत के आगे हाज़िर न हो तब तक मारा न जाए।13और पनाह के जो शहर तुम दोगे वह छः हों।14तीन शहर तो यरदन के पार और तीन मुल्क-ए-कना'न में देना। यह पनाह के शहर होंगे।15इन छहों शहरों में बनी-इस्राईल को और उन मुसाफ़िरों और परदेसियों को जो तुम में क़याम करते हैं, पनाह मिलेगी ताकि जिस किसी से अनजाने में ख़ून हो जाए वह वहाँ भाग जा सके।16'और अगर कोई किसी को लोहे के हथियार से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह ख़ूनी ठहरेगा और वह ख़ूनी ज़रूर मारा जाए।17या अगर कोई ऐसा पत्थर हाथ में लेकर जिससे आदमी मर सकता हो, किसी को मारे और वह मर जाए, तो वह ख़ूनी ठहरेगा और वह ख़ूनी ज़रूर मारा जाए।18या अगर कोई चोबी आला हाथ में लेकर जिससे आदमी मर सकता हो, किसी को मारे और वह मर जाए, तो वह ख़ूनी ठहरेगा और वह ख़ूनी ज़रूर मारा जाए।19ख़ून का इन्तक़ाम लेने वाला ख़ूनी को आप ही क़त्ल करे; जब वह उसे मिले तब ही उसे मार डाले।20और अगर कोई किसी को 'अदावत से धकेल दे या घात लगा कर कुछ उस पर फेंक दे और वह मर जाए,21या दुश्मनी से उसे अपने हाथ से ऐसा मारे कि वह मर जाए; तो वह जिसने मारा हो ज़रूर क़त्ल किया जाए क्यूँकि वह ख़ूनी है। ख़ून का इन्तक़ाम लेने वाला इस ख़ूनी को जब वह उसे मिले मार डाले।22'लेकिन अगर कोई किसी को बग़ैर 'अदावत के नागहान धकेल दे या बग़ैर घात लगाए उस पर कोई चीज़ डाल दे,23या उसे बग़ैर देखे कोई ऐसा पत्थर उस पर फेंके जिससे आदमी मर सकता हो, और वह मर जाए; लेकिन यह न तो उसका दुश्मन और न उसके नुक़सान का ख्वाहान था;24तो जमा'अत ऐसे क़ातिल और ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले के बीच इन ही हुक्मों के मुवाफ़िक़ फ़ैसला करे;25और जमा'अत उस क़ातिल को ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले के हाथ से छुड़ाए और जमा'अत ही उसे पनाह के उस शहर में जहाँ वह भाग गया था वापस पहुँचा दे, और जब तक सरदार काहिन जो पाक तेल से मम्सूह हुआ था मर न जाए तब तक वह वहीं रहे।26लेकिन अगर वह ख़ूनी अपने पनाह के शहर की सरहद से, जहाँ वह भाग कर गया हो किसी वक़्त बाहर निकले,27और ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले की वह पनाह के शहर की सरहद के बाहर मिल जाए और इन्तक़ाम लेने वाला क़ातिल को क़त्ल कर डाले, तो वह ख़ून करने का मुजरिम न होगा;28क्यूँकि ख़ूनी को लाज़िम था कि सरदार काहिन की वफ़ात तक उसी पनाह कि शहर में रहता, लेकिन सरदार काहिन के मरने के बा'द ख़ूनी अपनी मौरूसी जगह को लौट जाए।29"इसलिए तुम्हारी सब सुकूनतगाहों में नसल-दर-नसल यह बातें फ़ैसले के लिए क़ानून ठहरेंगी।30अगर कोई किसी को मार डाले तो कातिल गवाहों की शहादत पर क़त्ल किया जाए, लेकिन एक गवाह की शहादत से कोई मारा न जाए।31और तुम उस क़ातिल से जो वाजिब-उल-क़त्ल हो दियत न लेना बल्कि वह ज़रूर ही मारा जाए।32~और तुम उससे भी जो किसी पनाह के शहर को भाग गया हो, इस ग़र्ज़ से दियत न लेना कि वह सरदार काहिन की मौत से पहले फिर मुल्क में रहने को लौटने पाए।33इसलिए तुम उस मुल्क को जहाँ तुम रहोगे नापाक न करना, क्यूँकि ख़ून मुल्क को नापाक कर देता है; और उस मुल्क के लिए जिसमें ख़ून बहाया जाए अलावा क़ातिल के ख़ून के और किसी चीज़ का कफ़्फ़ारा नहीं लिया जा सकता।34~और तुम अपनी क़याम के मुल्क को जिसके अन्दर मैं रहूँगा, गन्दा भी न करना; क्यूँकि मैं जो ख़ुदावन्द हूँ, इसलिए बनी-इस्राईल के बीच रहता हूँ।"
1और बनी यूसुफ़ के घरानों में से बनी जिल'आद बिन मकीर बिन मनस्सी के आबाई ख़ान्दानों के सरदार मूसा और उन अमीरों के पास जाकर जो बनी इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे कहने लगे,2"ख़ुदावन्द ने हमारे मालिक को हुक्म दिया था कि ~पर्ची डाल कर यह मुल्क मीरास के तौर पर बनी-इस्राईल को देना; और हमारे मालिक को ख़ुदावन्द की तरफ़ से हुक्म मिला था, कि हमारे भाई सिलाफ़िहाद की मीरास उसकी बेटियों को दी जाए।3लेकिन अगर वह बनी-इस्राईल के और क़बीलों के आदमियों से ब्याही जाएँ, तो उनकी मीरास हमारे बाप-दादा की मीरास से निकल कर उस क़बीले की मीरास में शामिल की जाएगी जिसमें वह ब्याही जाएँगी; यूँ वह हमारे हिस्से की मीरास से अलग हो जाएगी।4और जब बनी-इस्राईल का साल-ए-यूबली आएगा, तो उनकी मीरास उसी क़बीले की मीरास से मुल्हक़ की जाएगी जिसमें वह ब्याही जाएँगी। यूँ हमारे बाप-दादा के क़बीले की मीरास से उनका हिस्सा निकल जाएगा।"5तब मूसा ने ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ बनी-इस्राईल को हुक्म दिया और कहा कि "बनी यूसुफ़ के क़बीले के लोग ठीक कहते हैं।6इसलिए सिलाफ़िहाद की बेटियों के हक़ में ख़ुदावन्द का हुक्म यह है कि वह जिनको पसन्द करें उन्हीं से ब्याह करें, लेकिन अपने बापदादा के क़बीले ही के ख़ान्दानों में ब्याही जाएँ।7~यूँ बनी-इस्राईल की मीरास एक क़बीले से दूसरे क़बीले में नहीं जाने पाएगी; क्यूँकि हर इस्राईली को अपने बाप-दादा के क़बीले की मीरास को अपने क़ब्ज़े में रखना होगा।8और अगर बनी इस्राईल के किसी क़बीले में कोई लड़की हो जो मीरास की ,मालिक हो तों वह अपने बाप के क़बीले के किसी ख़ानदान में ब्याह करे ताकि हर इस्राईली अपने बाप दादा की मीरास पर क़ायम रहे|9यूँ किसी की मीरास एक क़बीले से दूसरे क़बीले में नहीं जाने पाएगी; क्यूँकि बनी-इस्राईल के क़बीलों को लाज़िम है कि अपनी अपनी मीरास अपने-अपने क़ब्ज़े में रख्खें।"10और सिलाफ़िहाद की बेटियों ने जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही किया।11क्यूँकि महलाह और तिरज़ाह और हुजलाह और मिल्काह और नू'आह जो सिलाफ़िहाद की बेटियाँ थीं, वह अपने चचेरे भाइयों के साथ ब्याही गई,12या'नी वह यूसुफ़ के बेटे मनस्सी की नसल के ख़ान्दानों में ब्याही गई, और उनकी मीरास, उनके आबाई ख़ान्दान के क़बीले में क़ायम रही।13जो हुक्म और फ़ैसले ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' मोआब के मैदानों में जो यरीहू के सामने यरदन के किनारे वाक़े' है बनी इस्राईल को दिए वह यही हैं|
1यह~वही बातें हैं जो मूसा ने यरदन के उस पार वीराने में, या'नी उस मैदान में जो सूफ़ के सामने और फ़ारान और तोफ़ल और लाबन और हसीरात और दीज़हब के बीच है, सब इस्राईलियों से कहीं।2कोह-ए-श'ईर की राह से होरिब से क़ादिस बर्नी'अ तक ग्यारह दिन की मन्ज़िल है।3~और चालीसवें बरस के ग्यारहवें महीने की पहली तारीख़ को मूसा ने उन सब अहकाम के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द ने उसे बनी-इस्राईल के लिए दिए थे, उनसे यह बातें कहीं:4या'नी जब उसने अमोरियों के बादशाह सीहोन को जो हस्बोन में रहता था मारा, और बसन के बादशाह 'ओज को जो 'इस्तारात में रहता था, अदर'ई में क़त्ल किया;5तो इसके बा'द यरदन के पार मोआब के मैदान में मूसा इस शरी'अत को यूँ बयान करने लगा कि,6~"ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने होरिब में हमसे यह कहा था, कि तुम इस पहाड़ पर बहुत रह चुके हो7इसलिए अब फिरो और कूच करो और अमोरियों के पहाड़ी मुल्क, और उसके आस-पास के मैदान और पहाड़ी क़ता'अ और नशेब की ज़मीन और दख्खिनी अतराफ़ में, और समन्दर के साहिल तक जो कना'नियों का मुल्क है बल्कि कोह-ए-लुबनान और दरिया-ए-फ़रात तक जो एक बड़ा दरिया है, चले जाओ।8देखो, मैंने इस मुल्क को तुम्हारे सामने कर दिया है। इसलिए जाओ और उस मुल्क को अपने क़ब्ज़े में कर लो, जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बाप-दादा इब्राहीम, इस्हाक़, और या'क़ूब से क़सम खाकर यह कहा था, कि वह उसे उनको और उनके बा'द उनकी नसल को देगा।9~उस वक़्त मैंने तुमसे कहा था, कि मैं अकेला तुम्हारा बोझ नहीं उठा सकता।10ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको बढ़ाया है और आज के दिन आसमान के तारों की तरह तुम्हारी कसरत है।11ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा का ख़ुदा तुमको इससे भी हज़ार चँद बढ़ाए, और जो वा'दा उसने तुमसे किया है उसके मुताबिक़ तुमको बरकत बख़्शे।12मैं अकेला तुम्हारे जंजाल और बोझ और झंझट को कैसे उठा सकता हूँ?13इसलिए तुम अपने-अपने क़बीले से ऐसे आदमियों को चुनो जो दानिश्वर और 'अक़्लमन्द और मशहूर हों, और मैं उनको तुम पर सरदार बना दूँगा।14इसके जवाब में तुमने मुझसे कहा था, कि जो कुछ तूने फ़रमाया है उसका करना बेहतर है।15इसलिए मैंने तुम्हारे क़बीलों के सरदारों को जो 'अक़्लमन्द और मशहूर थे, लेकर उनको तुम पर मुक़र्रर किया ताकि वह तुम्हारे क़बीलों के मुताबिक़ हज़ारों के सरदार, और सैकड़ों के सरदार, और पचास-पचास के सरदार, और दस-दस के सरदार हाकिम हों।16और उसी मौक़े' पर मैंने तुम्हारे क़ाज़ियों से ताकीदन ये कहा, कि तुम अपने भाइयों के मुक़द्दमों को सुनना, पर चाहे भाई-भाई का मुआ'मिला हो या परदेसी का तुम उनका फैसला इंसाफ़ के साथ करना।17तुम्हारे फ़ैसले में किसी की रू-रि'आयत न हो, जैसे बड़े आदमी की बात सुनोगे वैसे ही छोटे की सुनना और किसी आदमी का मुँह देख कर डर न जाना; क्यूँकि यह 'अदालत ख़ुदा की है; और जो मुक़द्दमा तुम्हारे लिए मुश्किल हो उसे मेरे पास ले आना मैं उसे सुनूँगा18और मैंने उसी वक़्त सब कुछ जो तुमको करना है बता दिया।19और हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ होरिब से सफ़र करके उस बड़े और ख़तरनाक वीराने में से होकर गुज़रे, जिसे तुमने अमोरियों के पहाड़ी मुल्क के रास्ते में देखा। फिर हम क़ादिस बर्नी'अ में पहुँचे।20वहाँ मैंने तुमको कहा, कि तुम अमोरियों के पहाड़ी मुल्क तक आ गए हो जिसे ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमको देता है।21~देख, उस मुल्क को ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तेरे सामने कर दिया है। इसलिए तू जा, और जैसा ख़ुदावन्द तेरे बाप-दादा के ख़ुदा ने तुझ से कहा है तू उस पर क़ब्ज़ा कर और न ख़ौफ़ खा न हिरासान हो।22~तब तुम सब मेरे पास आकर मुझसे कहने लगे, कि हम अपने जाने से पहले वहाँ आदमी भेजें, जो जाकर हमारी ख़ातिर उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें और आकर हमको बताएँ के हमको किस राह से वहाँ जाना होगा और कौन-कौन से शहर हमारे रास्ते में पड़ेंगे।23यह बात मुझे बहुत पसन्द आई चुनाँचे मैंने क़बीले पीछे एक-एक आदमी के हिसाब से बारह आदमी चुने।24और वह रवाना हुए और पहाड़ पर चढ़ गए और वादी-ए-इसकाल में पहुँच कर उस मुल्क का हाल दरियाफ़्त किया।25और उस मुल्क का कुछ फल हाथ में लेकर उसे हमारे पास लाए, और हमको यह ख़बर दी कि जो मुल्क ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमको देता है वह अच्छा है।26"तो भी तुम वहाँ जाने पर राज़ी न हुए, बल्कि तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म से सरकशी की,27और अपने ख़ेमों में कुड़कुड़ाने और कहने लगे, कि ख़ुदावन्द को हमसे नफ़रत है इसीलिए वह हमको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया ताकि वह हमको अमोरियों के हाथ में गिरफ़्तार करा दे और वह हमको हलाक कर डालें ।28हम किधर जा रहे हैं? हमारे भाइयों ने तो यह बता कर हमारा हौसला तोड़ दिया है, कि वहाँ के लोग हमसे बड़े-बड़े और लम्बे हैं; और उनके शहर बड़े-बड़े और उनकी फ़सीलें आसमान से बातें करती हैं। इसके अलावा हमने वहाँ 'अनाक़ीम की औलाद को भी देखा।29~तब मैंने तुमको कहा, कि ख़ौफ़ज़दा मत हो और न उनसे डरो।30~ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है, वही तुम्हारी तरफ़ से जंग करेगा जैसे उसने तुम्हारी ख़ातिर मिस्र में तुम्हारी आँखों के सामने सब कुछ किया31और वीराने में भी तुमने यही देखा के जिस तरह इन्सान अपने बेटे को उठाए हुए चलता है उसी तरह ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तेरे इस जगह पहुँचने तक सारे रास्ते जहाँ-जहाँ तुम गए तुमको उठाए रहा32तो भी इस बात में तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का यक़ीन न किया,33जो राह में तुमसे आगे-आगे तुम्हारे वास्ते ख़ेमे लगाने की जगह तलाश करने के लिए, रात को आग में और दिन को बादल में होकर चला, ताकि तुमको वह रास्ता दिखाए जिस से तुम चलो।34'और ख़ुदावन्द तुम्हारी बातें सुन कर गज़बनाक हुआ और उसने क़सम खाकर कहा, कि35इस बुरी नसल के लोगों में से एक भी उस अच्छे मुल्क को देखने नहीं पाएगा, जिसे उनके बाप-दादा को देने की क़सम मैंने खाई है,36सिवा यफुना के बेटे कालिब के; वह उसे देखेगा, और जिस ज़मीन पर उसने क़दम रख्खा है उसे मैं उसकी और उसकी नसल को दूँगा; इसलिए के उसने ख़ुदावन्द की पैरवी पूरे तौर पर की,37और तुम्हारी ही वजह से ख़ुदावन्द मुझ पर भी नाराज़ हुआ और यह कहा, कि तू भी वहाँ जाने न पाएगा।38नून का बेटा यशू'अ जो तेरे सामने खड़ा रहता है वहाँ जाएगा, इसलिए तू उसकी हौसला अफ़ज़ाई कर क्यूँकि वही बनी इस्राईल को उस मुल्क का मालिक बनाएगा।39और तुम्हारे बाल-बच्चे जिनके बारे में तुमने कहा था, कि लूट में जाएँगे, और तुम्हारे लड़के बाले जिनको आज भले और बुरे की भी तमीज़ नहीं, यह~वहाँ जाएँगे; और यह मुल्क मैं इन ही को दूँगा और यह उस पर क़ब्ज़ा करेंगे।40पर तुम्हारे लिए यह है, कि तुम लौटो और बहर-ए-क़ुलज़ुम की राह से वीराने में जाओ।41"तब तुमने मुझे जवाब दिया, कि हमने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है और अब जो कुछ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमको हुक्म दिया है, उसके मुताबिक़ हम जाएँगे और जंग करेंगे। इसलिए तुम सब अपने-अपने जंगी हथियार बाँध कर पहाड़ पर चढ़ जाने को तैयार हो गए।42~तब ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि उनसे कह दे के ऊपर मत चढ़ो और न जंग करो क्यूँकि मैं तुम्हारे बीच नहीं हूँ; कहीं ऐसा न हो कि तुम अपने दुश्मनों से शिकस्त खाओ।43और मैंने तुमसे कह भी दिया पर तुमने मेरी न सुनी, बल्कि तुमने ख़ुदावन्द के हुक्म से सरकशी की और शोख़ी से पहाड़ पर चढ़ गए।44तब अमोरी जो उस पहाड़ पर रहते थे तुम्हारे मुक़ाबले को निकले, और उन्होंने शहद की मक्खियों की तरह तुम्हारा पीछा किया और श'ईर में मारते-मारते तुमको हुरमा तक पहुँचा दिया।45तब तुम लौट कर ख़ुदावन्द के आगे रोने लगे, लेकिन ख़ुदावन्द ने तुम्हारी फ़रियाद न सुनी और न तुम्हारी बातों पर कान लगाया।46इसलिए तुम क़ादिस में बहुत दिनों तक पड़े रहे, यहाँ तक के एक ज़माना हो गया |
1~"और जैसा ख़ुदावन्द ने मुझे हुक्म दिया था, उसके मुताबिक़ हम लौटे और बहर-ए-क़ुलज़ुम की राह से वीराने में आए और बहुत दिनों तक कोह-ए-श'ईर के बाहर-बाहर चलते रहे।2तब ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि:3~तुम इस पहाड़ के बाहर-बाहर बहुत चल चुके; उत्तर की तरफ़ मुड़ जाओ,4और तू इन लोगों को ताकीद कर दे कि तुमको बनी 'ऐसौ, तुम्हारे भाई जो श'ईर में रहते हैं उनकी सरहद के पास से होकर जाना है, और वह तुमसे हिरासान होंगे। इसलिए तुम ख़ूब एहतियात रखना,5और उनको मत छेड़ना; क्यूँकि मैं उनकी ज़मीन में से पाँव धरने तक की जगह भी तुमको नहीं दूँगा, इसलिए कि मैंने कोह-ए-श'ईर 'ऐसौ को मीरास में दिया है।6तुम रुपये देकर अपने खाने के लिए उनसे ख़ुराक ख़रीदना, और पीने के लिए पानी भी रुपया देकर उनसे मोल लेना।7क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तेरे हाथ की कमाई में बरकत देता रहा है, और इस बड़े वीराने में जो तुम्हारा चलना फिरना है वह उसे जानता है। इन चालीस बरसों में ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा बराबर तुम्हारे साथ रहा और तुझको किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।8इसलिए हम अपने भाइयों बनी 'ऐसौ के पास से जो श'ईर में रहते हैं, कतरा कर मैदान की राह से ऐलात और 'अस्यून जाबर होते हुए गुज़रे।"फिर हम मुड़े और मोआब के वीराने के रास्ते से चले।9फिर ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि मोआबियों को न तो सताना और न उनसे जंग करना; इसलिए कि मैं तुझको उनकी ज़मीन का कोई हिस्सा मिल्कियत के तौर पर नहीं दूँगा, क्यूँकि मैंने 'आर को बनी लूत की मीरास कर दिया है।10~(वहाँ पहले ऐमीम बसे हुए थे जो 'अनाक़ीम की तरह बड़े-बड़े और लम्बे-लम्बे और शुमार में बहुत थे।11और 'अनाक़ीम ही की तरह वह भी रफ़ाईम में गिने जाते थे, लेकिन मोआबी उनको ऐमीम कहते हैं।12और पहले श'ईर~में होरी क़ौम के लोग बसे हुए थे, लेकिन बनी 'ऐसौ ने उनको निकाल दिया और उनको अपने सामने से बर्बाद करके आप उनकी जगह बस गए, जैसे इस्राईल ने अपनी मीरास के मुल्क में किया जिसे ख़ुदावन्द ने उनको दिया।)13अब उठो और वादी-ए-ज़रद के पार जाओ। चुनाँचे हम वादी-ए-ज़रद से पार हुए।14~और हमारे क़ादिस बर्नी'अ से रवाना होने से लेकर वादी-ए-ज़रद के पार होने तक अड़तीस बरस का 'अरसा गुज़रा। इस असना में ख़ुदावन्द की क़सम के मुताबिक़ उस नसल के सब जंगी मर्द लश्कर में से मर खप गए|15~और जब तक वह नाबूद न हो गए तब तक ख़ुदावन्द का हाथ उनको लश्कर में से हलाक करने को उनके ख़िलाफ़ बढ़ा ही रहा।16जब सब जंगी मर्द मर गए और क़ौम में से फ़ना हो गए17तो ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा,18आज तुझे 'आर शहर से होकर जो मोआब की सरहद है गुज़रना है।19~और जब तू बनी 'अम्मोन के क़रीब जा पहुँचे, तो उन को मत सताना और न उनको छेड़ना, क्यूँकि मैं बनी 'अम्मोन की ज़मीन का कोई हिस्सा तुझे मीरास के तौर पर नहीं दूँगा इसलिए कि उसे मैंने बनी लूत को मीरास में दिया है।20(वह मुल्क भी रफ़ाईम का गिना जाता था, क्यूँकि पहले रफ़ाईम जिनको 'अम्मोनी लोग ज़मज़मीम कहते थे वहाँ बसे हुए थे।21यह लोग भी 'अनाक़ीम की तरह बड़े-बड़े और लम्बे-लम्बे और शुमार में बहुत थे, लेकिन ख़ुदावन्द ने उनको 'अम्मोनियों के सामने से हलाक किया, और वह उनको निकाल कर उनकी जगह आप बस गए।22ठीक वैसे ही जैसे उसने बनी 'ऐसौ के सामने से जो श'ईर में रहते थे होरियों को हलाक किया, और वह उनको निकाल कर आज तक उन ही की जगह बसे हुए हैं।23ऐसे ही 'अवियों को जो अपनी बस्तियों में ग़ज़्ज़ा तक बसे हुए थे, कफ़तूरियों ने जो कफ़तूरा से निकले थे हलाक किया और उनकी जगह आप बस गए)24इसलिए उठो, और वादी-ए-अरनून के पार जाओ। देखो, मैंने हस्बोन के बादशाह सीहोन को, जो अमोरी है उसके मुल्क समेत तुम्हारे हाथ में कर दिया है; इसलिए उस पर क़ब्ज़ा करना शुरू' करो और उससे जंग छेड़ दो।25मैं आज ही से तुम्हारा ख़ौफ़ और रौब उन क़ौमों के दिल में डालना शुरू' करूँगा जो इस ज़मीन पर रहती हैं, वह तुम्हारी ख़बर सुनेंगी और काँपेंगी, और तुम्हारी वजह से बेताब हो जाएँगी।26~"और मैंने दश्त-ए-क़दीमात से हस्बोन के बादशाह सीहोन के पास सुलह के पैग़ाम के साथ क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा, कि27मुझे अपने मुल्क से गुज़र जाने दे; मैं शाहराह से होकर चलूँगा और दहने और बाएँ हाथ नहीं मुड़ूँगा28तू रुपये लेकर मेरे हाथ मेरे खाने के लिए ख़ुराक बेचना, और मेरे पीने के लिए पानी भी मुझे रुपया लेकर देना; सिर्फ़ मुझे पाँव-पाँव निकल जाने दे,29जैसे बनी 'ऐसौ ने जो श'ईर में रहते हैं, और मोआबियों ने जो 'आर शहर में बसते हैं। मेरे साथ किया; जब तक कि मैं यरदन को उबूर करके उस मुल्क में पहुँच न जाऊँ जो ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमको देता है।30लेकिन हस्बोन के बादशाह सीहोन ने हमको अपने हाँ से गुज़रने न दिया; क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने उसका मिज़ाज कड़ा और उसका दिल सख़्त कर दिया ताकि उसे तेरे हाथ में हवाले कर दे, जैसा आज ज़ाहिर है।31~और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, "देख, मैं सीहोन और उसके मुल्क को तेरे हाथ में हवाले करने को हूँ, इसलिए तू उस पर क़ब्ज़ा करना शुरू' कर, ताकि वह तेरी मीरास ठहरे।'32तब सीहोन अपने सब आदमियों को लेकर हमारे मुक़ाबले में निकला और जंग करने के लिए यहज़ में आया।33और ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने उसे हमारे हवाले कर दिया; और हमने उसे, और उसके बेटों को, और उसके सब आदमियों को मार लिया।34और हमने उसी वक़्त उसके सब शहरों को ले लिया, और हर आबाद शहर को 'औरतों और बच्चों समेत बिल्कुल नाबूद कर दिया और किसी को बाक़ी न छोड़ा;35~लेकिन चौपायों को और शहरों के माल को जो हमारे हाथ लगा लूट कर हमने अपने लिए रख लिया।36और 'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनोन के किनारे है, और उस शहर से जो वादी में है, जिल'आद तक ऐसा कोई शहर न था जिसको सर करना हमारे लिए मुश्किल हुआ; ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने सबको हमारे क़ब्ज़े में कर दिया।37लेकिन बनी 'अम्मोन के मुल्क के नज़दीक और दरिया-ए- यबोक़ का 'इलाक़ा और कोहिस्तान के शहरों में और जहाँ-जहाँ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमको मना' किया था तो नहीं गया।
1"फिर हमने मुड़ कर बसन का रास्ता लिया और बसन का बादशाह 'ओज अदर'ई में अपने सब आदमियों को लेकर हमारे मुक़ाबले में जंग करने को आया।2और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, 'उससे मत डर, क्यूँकि मैंने उसको और उसके सब आदमियों और मुल्क को तेरे क़ब्ज़े में कर दिया है; जैसा तूने अमोरियों के बादशाह सीहोन से जो हस्बोन में रहता था किया, वैसा ही तू इससे भी करेगा।'3चुनाँचे ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने बसन के बादशाह 'ओज को भी उसके सब आदमियों समेत हमारे क़ाबू में कर दिया, और हमने उनको यहाँ तक मारा के उनमें से कोई बाक़ी न रहा।4और हमने उसी वक़्त उसके सब शहर ले लिए, और एक शहर भी ऐसा न रहा जो हमने उनसे ले न लिया हो। यूँ अरजूब का सारा मुल्क जो बसन में 'ओज की सल्तनत में शामिल था और उसमें साठ शहर थे, हमारे क़ब्ज़े में आया।5यह सब शहर फ़सीलदार थे और इनकी ऊँची-ऊँची दीवारें और फाटक और बेंडे थे। इनके 'अलावा बहुत से ऐसे क़स्बे भी हमने ले लिए जो फ़सीलदार न थे।6और जैसा हमने हस्बोन के बादशाह सीहोन के यहाँ किया वैसा ही इन सब आबाद शहरों को म'ए 'औरतों और बच्चों के बिल्कुल नाबूद कर डाला।7लेकिन सब चौपायों और शहरों के माल को लूट कर हमने अपने लिए रख लिया।8यूँ हमने उस वक़्त अमोरियों के दोनों बादशाहों के हाथ से, जो यरदन पार रहते थे उनका मुल्क वादी-ए- अरनोन से कोह-ए-हरमून तक ले लिया।9(इस हरमून को सैदानी सिरयून, और अमोरी सनीर कहते हैं)10और सलका और अदर'ई तक मैदान के सब शहर और सारा जिल'आद और सारा बसन या'नी 'ओज की सल्तनत के सब शहर जो बसन में शामिल थे हमने ले लिए।11(क्यूँकि रफ़ाईम की नसल में से सिर्फ़ बसन का बादशाह 'ओज बाक़ी रहा~था। उसका पलंग लोहे का बना हुआ था और वह बनी अम्मोन के शहर रब्बा में मौजूद है, और आदमी के हाथ के नाप के मुताबिक़ नौ हाथ लम्बा और चार हाथ चौड़ा है।)12~इसलिए इस मुल्क पर हमने उस वक़्त क़ब्ज़ा कर लिया, और 'अरो'ईर जो वादी-ए-अरनोन के किनारे है और जिल'आद के पहाड़ी मुल्क का आधा हिस्सा और उसके शहर मैंने रूबीनियों और जद्दियों को दिए।13और जिल'आद का बाक़ी हिस्सा और सारा बसन या'नी अरजूब का सारा मुल्क जो 'ओज की क़लमरौ में था, मैंने मनस्सी के आधे क़बीले को दिया। (बसन रफ़ाईम का मुल्क कहलाता था।14और मनस्सी के बेटे याईर ने जसूरियों और मा'कातियों की सरहद तक अरजूब के सारे मुल्क को ले लिया और अपने नाम पर बसन के शहरों को हव्वत याईर का नाम दिया, जो आज तक चला आता है)15और जिल'आद मैंने मकीर को दिया,16और रूबीनियों और जद्दियों को मैंने जिल'आद से वादी-ए-अरनोन तक का मुल्क, या'नी उस वादी के बीच के हिस्से को उनकी एक हद ठहरा कर दरिया-ए-यबोक़ तक, जो 'अम्मोनियों की सरहद है उनको दिया।17और मैदान को और किन्नरत से लेकर मैदान के दरिया या'नी दरिया-ए-शोर तक, जो पूरब में पिसगा के ढाल तक फैला हुआ है और यरदन और उसका सारा इलाके को भी मैंने इन ही को दे दिया।18~"और मैंने उस वक़्त तुमको हुक्म दिया, कि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको यह मुल्क दिया है कि तुम उस पर क़ब्ज़ा करो। इसलिए तुम सब जंगी मर्द हथियारबंद होकर अपने भाइयों बनी-इस्राईल के आगे-आगे पार चलो;19मगर तुम्हारी बीवियाँ और तुम्हारे बाल बच्चे और चौपाये (क्यूँकि मुझे मा'लूम है कि तुम्हारे पास चौपाये बहुत हैं), इसलिए यह सब तुम्हारे उन ही शहरों में रह जाएँ जो मैंने तुमको दिए हैं;20आखीर तक कि ख़ुदावन्द तुम्हारे भाइयों को चैन न बख़्शे जैसे तुमको बख़्शा, और वह भी उस मुल्क पर जो ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा यरदन के उस पार तुमको देता है क़ब्ज़ा न कर लें। तब तुम सब अपनी मिल्कियत में जो मैंने तुमको दी है लौट कर आने पाओगे।21और उसी मौक़े' पर मैंने यशू'अ को हुक्म दिया, कि जो कुछ ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने इन दो बादशाहों से किया वह सब तूने अपनी आँखों से देखा; ख़ुदावन्द ऐसा ही उस पार उन सब सल्तनतों का हाल करेगा जहाँ तू जा रहा है।22तुम उनसे न डरना, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारी तरफ़ से आप जंग कर रहा है।23उस वक़्त मैंने ख़ुदावन्द से 'आजिज़ी के साथ दरख़्वास्त की कि,24ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तूने अपने बन्दे को अपनी 'अज़मत और अपना ताक़तवर हाथ दिखाना शुरू' किया है क्यूँकि आसमान में या ज़मीन पर ऐसा कौन मा'बूद है जो तेरे से काम या करामात कर सके|25इसलिए मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे पार जाने दे कि मैं भी अच्छे मुल्क को जो यरदन के पार है और उस ख़ुशनुमा पहाड़ और लुबनान को देखूँ|26लेकिन ख़ुदावन्द तुम्हारी वजह से मुझसे नाराज़ था और उसने मेरी न सुनी; बल्कि ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि बस कर इस मज़मून पर मुझसे फिर कभी कुछ न कहना।27तू कोह-ए-पिसगा की चोटी पर चढ़ जा और पश्चिम और उत्तर और दख्खिन और पूरब की तरफ़ नज़र दौड़ा कर उसे अपनी आँखों से देख ले, क्यूँकि तू इस यरदन के पार नहीं जाने पाएगा।28पर यशू'अ को वसीयत कर और उसकी हौसला अफ़्ज़ाई करके उसे मज़बूत कर क्यूँकि वह इन लोगों के आगे पार जाएगा; और वही इनको उस मुल्क का, जिसे तू देख लेगा मालिक बनाएगा।29चुनाँचे हम उस वादी में जो बैत फ़ग़ूर है ठहरे रहे।
1"और अब ऐ इस्राईलियो, जो आईन और अहकाम मैं तुमको सिखाता हूँ तुम उन पर 'अमल करने के लिए उनको सुन लो, ताकि तुम ज़िन्दा रहो और उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा का ख़ुदा तुमको देता है, दाख़िल हो कर उस पर क़ब्ज़ा कर लो।2जिस बात का मैं तुमको हुक्म देता हूँ, उसमें न तो कुछ बढ़ाना और न कुछ घटाना; ताकि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को जो मैं तुमको बताता हूँ मान सको।3जो कुछ ख़ुदावन्द ने बा'ल फ़ग़ूर की वजह से किया, वह तुमने अपनी आँखों से देखा है; क्यूँकि उन सब आदमियों को जिन्होंने बा'ल फ़ग़ूर की पैरवी की, ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे बीच से नाबूद कर दिया।4पर तुम जो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से लिपटे रहे हो, सब के सब आज तक ज़िन्दा हो।5देखो, जैसा ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा ने मुझे हुक्म दिया, उसके मुताबिक़ मैंने तुमको आईन और अहकाम सिखा दिए हैं; ताकि उस मुल्क में उन पर 'अमल करो जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए जा रहे हो।6इसलिए तुम इनको मानना और 'अमल में लाना, क्यूँकि और क़ौमों के सामने यही तुम्हारी 'अक़्ल और दानिश ठहरेंगे। वह इन तमाम क़वानीन को सुन कर कहेंगी, कि यक़ीनन ये बुज़ुर्ग क़ौम निहायत 'अक़्लमन्द और समझदार है।7क्यूँकि ऐसी बड़ी क़ौम कौन है जिसका मा'बूद इस क़द्र उसके नज़दीक हो जैसा ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा, कि जब कभी हम उससे दु'आ करें हमारे नज़दीक है?8और कौन ऐसी बुज़ुर्ग क़ौम है जिसके आईन और अहकाम ऐसे रास्त हैं जैसी ये सारी शरी'अत है, जिसे मैं आज तुम्हारे सामने रखता हूँ।9"इसलिए तुम ज़रूर ही अपनी एहतियात रखना और बड़ी हिफ़ाज़त करना, ऐसा न हो कि तुम वह बातें जो तुमने अपनी आँख से देखी हैं भूल जाओ और वह ज़िन्दगी भर के लिए तुम्हारे दिल से जाती रहें; बल्कि तुम उनको अपने बेटों और पोतों को सिखाना।10~ख़ासकर उस दिन की बातें, जब तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने होरिब में खड़ा हुआ; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा था, कि क़ौम को मेरे सामने जमा' कर और मैं उनको अपनी बातें सुनाऊँगा ताकि वह ये सीखें कि ज़िन्दगी भर, जब तक ज़मीन पर ज़िन्दा रहें मेरा ख़ौफ़ मानें और अपने बाल-बच्चों को भी यही सिखाएँ।11चुनाँचे तुम नज़दीक जाकर उस पहाड़ के नीचे खड़े हुए, और वह पहाड़ आग से दहक रहा था और उसकी लौ आसमान तक पहुँचती थी और चारों तरफ़ तारीकी और घटा और ज़ुलमत थी।12~और ख़ुदावन्द ने उस आग में से होकर तुमसे कलाम किया; तुमने बातें तो सुनीं लेकिन कोई सूरत न देखी, सिर्फ़ आवाज़ ही आवाज़ सुनी।13और उसने तुमको अपने 'अहद के दसों अहकाम बताकर उनके मानने का हुक्म दिया, और उनको पत्थर की दो तख़्तियों पर लिख भी दिया।14उस वक़्त ख़ुदावन्द ने मुझे हुक्म दिया, कि तुमको यह आईन और अहकाम सिखाऊँ ताकि तुम उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए जा रहे हो, उन पर 'अमल करो।15"इसलिए तुम अपनी ख़ूब ही एहतियात रखना; क्यूँकि तुमने उस दिन जब ख़ुदावन्द ने आग में से होकर होरिब में तुमसे कलाम किया, किसी तरह की कोई सूरत नहीं देखी।16~ऐसा न हो कि तुम बिगड़कर किसी शक्ल या सूरत की खोदी हुई मूरत अपने लिए बना लो, जिसकी शबीह किसी मर्द या 'औरत,17या ज़मीन के किसी हैवान या हवा में उड़ने वाले परिन्दे,18~या ज़मीन के रेंगनेवाले जानदार या मछली से, जो ज़मीन के नीचे पानी में रहती है मिलती हो;19~या जब तू आसमान की तरफ नज़र करे और तमाम अजराम-ए-फ़लक या'नी सूरज और चाँद और तारों को देखे, तो गुमराह होकर उन्हीं को सिज्दा और उनकी 'इबादत करने लगे जिनको ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने इस ज़मीन की सब क़ौमों के लिए रख्खा है।20लेकिन ख़ुदावन्द ने तुमको चुना, और तुमको जैसे लोहे की भट्टी या'नी मिस्र से निकाल ले आया है ताकि तुम उसकी मीरास के लोग ठहरो, जैसा आज ज़ाहिर है।21और तुम्हारी ही वजह से ख़ुदावन्द ने मुझसे नाराज़ होकर क़सम खाई, कि मैं यरदन पार न जाऊँ और न उस अच्छे मुल्क में पहुँचने पाऊँ, जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको देता है;22बल्कि मुझे इसी मुल्क में मरना है, मैं यरदन पार नहीं जा सकता; लेकिन तुम पार जाकर उस अच्छे मुल्क पर क़ब्ज़ा करोगे।23इसलिए तुम एहतियात रखो, ऐसा न हो कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के उस 'अहद को जो उसने तुमसे बाँधा है भूल जाओ, और अपने लिए किसी चीज़ की शबीह की खोदी हुई मूरत बना लो जिसे ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको मना' किया है24क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा भसम करने वाली आग है; वह ग़य्यूर ख़ुदा है।25और जब तुझसे बेटे और पोते पैदा हों और तुमको उस मुल्क में रहते हुए एक ज़माना हो जाए, और तुम बिगड़कर किसी चीज़ की शबीह की खोदी हुई मूरत बना लो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने शरारत करके उसे ग़ुस्सा दिलाओ;26तो मैं आज के दिन तुम्हारे बरख़िलाफ़ आसमान और ज़मीन को गवाह बनाता हूँ कि तुम उस मुल्क से, जिस पर क़ब्ज़ा करने को यरदन पार जाने पर हो, जल्द बिल्कुल फ़ना हो जाओगे; तुम वहाँ बहुत दिन रहने न पाओगे बल्कि बिल्कुल नाबूद कर दिए जाओगे।27और ख़ुदावन्द तुमको क़ौमों में तितर बितर करेगा; और जिन क़ौमों के बीच ख़ुदावन्द तुमको पहुँचाएगा उनमें तुम थोड़े से रह जाओगे।28और वहाँ तुम आदमियों के हाथ के बने हुए लकड़ी और पत्थर के मा'बूदों की 'इबादत करोगे, जो न देखते न सुनते न खाते न सूँघते हैं।29लेकिन वहाँ भी अगर तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के तालिब हो तो वह तुझको मिल जाएगा, बशर्ते कि तुम अपने पूरे दिल से और अपनी सारी जान से उसे ढूँढो।30~जब तू मुसीबत में पड़ेगा और यह सब बातें तुझ पर गुज़रेंगी तो आख़िरी दिनों में तू ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ फिरेगा और उसकी मानेगा;31~क्यूँकि खुदावन्द तेरा ख़ुदा रहीम ख़ुदा है, वह तुझको न तो छोड़ेगा और न हलाक करेगा और न उस 'अहद को भूलेगा जिसकी क़सम उसने तुम्हारे बाप-दादा से खाई।32~"और जब से ख़ुदा ने इन्सान को ज़मीन पर पैदा किया, तब से शुरू' करके तुम उन गुज़रे दिनों का हाल जो तुमसे पहले हो चुके पूछ, और आसमान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक दरियाफ़्त कर, कि इतनी बड़ी वारदात की तरह कभी कोई बात हुई या सुनने में भी आई?33~क्या कभी कोई क़ौम ख़ुदा की आवाज़ जैसे तू ने सुनी, आग में से आती हुई सुन कर ज़िन्दा बची है?34या कभी ख़ुदा ने एक क़ौम को किसी दूसरी क़ौम के बीच से निकालने का इरादा करके, इम्तिहानों और निशानों और मो'जिज़ों और जंग और ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू और हौलनाक माजरों के वसीले से, उनको अपनी ख़ातिर बरगुज़ीदा करने के लिए वह काम किए जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारी आँखों के सामने मिस्र में तुम्हारे लिए किए?35~यह सब कुछ तुझको दिखाया गया, ताकि तू जाने कि ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और उसके अलावा और कोई है ही नहीं।36~उसने अपनी आवाज़ आसमान में से तुमको सुनाई ताकि तुझको तरबियत करे, और ज़मीन पर उसने तुझको अपनी बड़ी आग दिखाई; और तुमने उसकी बातें आग के बीच में से आती हुई सुनी।37~और चूँकि उसे तेरे बाप-दादा से मुहब्बत थी, इसीलिए उसने उनके बा'द उनकी नसल को चुन लिया, और तेरे साथ होकर अपनी बड़ी कुदरत से तुझको मिस्र से निकाल लाया;38ताकि तुम्हारे सामने से उन क़ौमों को जो तुझ से बड़ी और ताक़तवर हैं दफ़ा' करे, और तुझको उनके मुल्क में पहुँचाए, और उसे तुझको मीरास के तौर पर दे, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।39इसलिए आज के दिन तू जान ले और इस बात को अपने दिल में जमा ले, कि ऊपर आसमान में और नीचे ज़मीन पर ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और कोई दूसरा नहीं।40~इसलिए तू उसके आईन और अहकाम को जो मैं तुझको आज बताता हूँ मानना, ताकि तेरा और तेरे बा'द तेरी औलाद का भला हो, और हमेशा उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है तेरी 'उम्र दराज़ हो।"41फिर मूसा ने यरदन के पार पूरब की तरफ़ तीन शहर अलग किए,42ताकि ऐसा ख़ूनी जो अनजाने बग़ैर क़दीमी 'अदावत के अपने पड़ोसी को मार डाले, वह वहाँ भाग जाए और इन शहरों में से किसी में जाकर जीता बच रहे।43या'नी रूबीनियों के लिए तो शहर-ए-बसर हो जो तराई में वीरान के बीच वाक़े' है, और जद्दियों के लिए शहर-ए- रामात जो जिल'आद में है, और मनस्सियों के लिए बसन का शहर-ए-जौलान।44यह वह शरी'अत है जो मूसा ने बनी-इस्राईल के आगे पेश की।45~यही वह शहादतें और आईन और अहकाम हैं जिनको मूसा ने बनी-इस्राईल को उनके मिस्र से निकलने के बा'द,46~यरदन के पार उस वादी में जो बैत फ़ग़ूर के सामने है, कह सुनाया; या'नी अमोरियों के बादशाह सीहोन के मुल्क में जो हस्बोन में रहता था, जिसे मूसा और बनी इस्राईल ने मुल्क-ए-मिस्र से निकलने के बा'द मारा।47और फिर उसके मुल्क को, और बसन के बादशाह 'ओज के मुल्क को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। अमोरियों के इन दोनों बादशाहों का यह मुल्क यरदन पार पूरब की तरफ़,48'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनोन के किनारे वाक़े' है, कोह-ए-सियून तक जिसे हरमून भी कहते हैं, फैला हुआ है।49~इसी में यरदन पार पूरब की तरफ़ मैदान के दरिया तक जो पिसगा की ढाल के नीचे बहता है, वहाँ का सारा मैदान शामिल है।
1फिर मूसा ने सब इस्रराईलियों को बुलावा कर उनको कहा, "ऐ इस्राईलियो। तुम उन आईन और अहकाम को सुन लो, जिनको मैं आज तुमको सुनाता हूँ, ताकि तुम उनको सीख कर उन पर 'अमल करो।2~ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने होरिब में हमसे एक 'अहद बाँधा।3ख़ुदावन्द ने यह 'अहद हमारे बाप-दादा से नहीं, बल्कि ख़ुद हम सब से जो यहाँ आज के दिन जीते हैं बाँधा।4~ख़ुदावन्द ने तुमसे उस पहाड़ पर, आमने-सामने आग के बीच में से बातें कीं।5उस वक़्त मैं तुम्हारे और ख़ुदावन्द के बीच खड़ा हुआ ताकि ख़ुदावन्द का कलाम तुम पर ज़ाहिर करूँ क्यूँकि तुम आग की वजह से डरे हुए थे और पहाड़ पर न चढ़े|6"तब उसने कहा, 'ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, जो तुझको मुल्क-ए-मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर से निकाल लाया, मैं हूँ।7'मेरे आगे तू और मा'बूदों को न मानना।8'तू अपने लिए कोई तराशी हुई मूरत न बनाना, न किसी चीज़ की सूरत बनाना जो ऊपर आसमान में या नीचे ज़मीन पर या ज़मीन के नीचे पानी में है।9तू उनके आगे सिज्दा न करना और न उनकी 'इबादत करना,क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ग़य्यूर ख़ुदा हूँ। और जो मुझसे 'अदावत रखते हैं उनकी औलाद को तीसरी और चौथी नसल तक बाप-दादा की बदकारी की सज़ा देता हूँ10और हज़ारों पर जो मुझसे मुहब्बत रखते और मेरे हुक्मों को मानते हैं, रहम करता हूँ।11~'तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का नाम बेफ़ायदा न लेना; क्यूँकि ख़ुदावन्द उसको जो उसका नाम बेफ़ायदा लेता है, बेगुनाह न ठहराएगा।12~'तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ सबत के दिन को याद करके पाक मानना।13छ: दिन तक तू मेहनत करके अपना सारा काम-काज करना;14लेकिन सातवाँ दिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा का सबत है उसमें न तू कोई काम करे, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा ग़ुलाम, न तेरी लौंडी, न तेरा बैल, न तेरा गधा, न तेरा और कोई जानवर और न कोई मुसाफ़िर जो तेरे फाटकों के अन्दर हों; ताकि तेरा ग़ुलाम और तेरी लौंडी भी तेरी तरह आराम करें।15और याद रखना कि तू मुल्क-ए-मिस्र में ग़ुलाम था, और वहाँ से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू से तुझको निकाल लाया; इसलिए ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको सबत के दिन को मानने का हुक्म दिया।16~'अपने बाप और अपनी माँ की 'इज़्ज़त करना, जैसा ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझे हुक्म दिया है; ताकि तेरी 'उम्र दराज़ हो और जो तेरा मुल्क ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदातुझे देता है उसमें तेरा भला हो।17~‘तू ख़ून न करना।18~'तू ज़िना न करना।19~“तू चोरी न करना।20'तू अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ झूठी गवाही न देना।21'तू अपने पड़ोसी की बीवी का लालच न करना, और न अपने पड़ोसी के घर, या उसके खेत, या ग़ुलाम, या लौंडी, या बैल, या गधे, या उसकी किसी और चीज़ का ख़्वाहिश मन्द ~होना।'22"यही बातें ख़ुदावन्द ने उस पहाड़ पर, आग और घटा और ज़ुलमत में से तुम्हारी सारी जमा'अत को बलन्द आवाज़ से कहीं, और इससे ज़्यादा और कुछ न कहा और इन ही को उसने पत्थर की दो तख़्तियों पर लिखा और उनको मेरे सुपुर्द किया।23'और जब वह पहाड़ आग से दहक रहा था, और तुमने वह आवाज़ अन्धेरे में से आती सुनी तो तुम और तुम्हारे क़बीलों के सरदार और बुज़ुर्ग मेरे पास आए।24और तुम कहने लगे, कि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने अपनी शौकत और 'अज़मत हमको दिखाई, और हमने उसकी आवाज़ आग में से आती सुनी; आज हमने देख लिया के ख़ुदावन्द इन्सान से बातें करता है तो भी इन्सान ज़िन्दा रहता है।25इसलिए अब हम क्यूँ अपनी जान दें? क्यूँकि ऐसी बड़ी आग हमको भसम कर देगी, अगर हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ फिर सुनें तो मर ही जाएँगे।26क्यूँकि ऐसा कौन सा बशर है जिसने ज़िन्दा ख़ुदा की आवाज़ हमारी तरह आग में से आती सुनी हो और फिर भी ज़िन्दा रहा?27इसलिए तू ही नज़दीक जाकर जो कुछ ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा कहे उसे सुन ले, और तू ही वह बातें जो ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा तुझ से कहे हमको बताना; और हम उसे सुनेंगे और उस पर 'अमल करेंगे।28~"और जब तुम मुझसे गुफ़्तगू कर रहे थे तो ख़ुदावन्द ने तुम्हारी बातें सुनीं। तब ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि मैंने इन लोगों की बातें, जो उन्होंने तुझ से कहीं सुनी हैं; जो कुछ उन्होंने कहा ठीक कहा।29~काश उनमें ऐसा ही दिल हो ताकि वह मेरा ख़ौफ़ मान कर हमेशा मेरे सब हुक्मों पर 'अमल करते, ताकि हमेशा उनका और उनकी औलाद का भला होता।30~इसलिए तू जाकर उनसे कह दे, कि तुम अपने ख़ेमों को लौट जाओ।31लेकिन तू यहीं मेरे पास खड़ा रह और मैं वह सब फ़रमान और सब आईन और अहकाम जो तुझे उनको सिखाने हैं, तुझको बताऊँगा; ताकि वह उन पर उस मुल्क में जो मैं उनको क़ब्ज़ा करने के लिए देता हूँ, 'अमल करें।32~इसलिए तुम एहतियात रखना और जैसा ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको हुक्म दिया है वैसा ही करना, और दहने या बाएँ हाथ को न मुड़ना।33~तुम उस सारे रास्ते पर जिसका हुक्म ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको दिया है चलना; ताकि तुम ज़िन्दा रहो और तुम्हारा भला हो, और तुम्हारी 'उम्र उस मुल्क में जिस पर तुम क़ब्ज़ा करोगे दराज़ हो।
1~यह वह फ़रमान और आईन और अहकाम हैं, जिनको ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुमको सिखाने का हुक्म दिया है; ताकि तुम उन पर उस मुल्क में 'अमल करो, जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए पार जाने को हो।2और तुम अपने बेटों और पोतों समेत ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मान कर उसके तमाम आईन और अहकाम पर, जो मैं तुमको बताता हूँ, ज़िन्दगी भर 'अमल करना ताकि तुम्हारी 'उम्र दराज़ हो।3इसलिए, ऐ इस्राईल सुन, और एहतियात करके उन पर 'अमल कर, ताकि तेरा भला हो और तुम ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के वा'दे के मुताबिक़ उस मुल्क में, जिस में दूध और शहद बहता है बहुत बढ़ जाओ।4~'सुन, ऐ इस्राईल, खुदावन्द हमारा ख़ुदा एक ही ख़ुदावन्द है।5तू अपने सारे दिल, और अपनी सारी जान, और अपनी सारी ताक़त से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख।6और ये बातें जिनका हुक्म आज मैं तुझे देता हूँ तेरे दिल पर नक़्श रहें।7और तू इनको अपनी औलाद के ज़हन नशीं करना, और घर बैठे और राह चलते और लेटते और उठते वक़्त इनका ज़िक्र किया करना।8और तू निशान के तौर पर इनको अपने हाथ पर बाँधना, और वह तेरी पेशानी पर टीकों की तरह हों।9और तू उनको अपने घर की चौखटों और अपने फाटकों पर लिखना।10और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको उस मुल्क में पहुँचाए, जिसे तुझको देने की क़सम उसने तेरे बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई, और जब वह तुझको बड़े-बड़े और अच्छे शहर जिनको तूने नहीं बनाया,11और अच्छी-अच्छी चीज़ों से भरे हुऐ घर जिनको तूने नहीं भरा, और खोदे-खुदाए हौज़ जो तूने नहीं खोदे, और अंगूर के बाग़ और ज़ैतून के दरख़्त जो तूने नहीं लगाए 'इनायत करे, और तू खाए और सेर हो,12~तो तू होशियार रहना, कहीं ऐसा न हो कि तू ख़ुदावन्द को जो तुझको मुल्क-ए-मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर से निकाल लाया भूल जाए।13तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, और उसी की 'इबादत करना, और उसी के नाम की क़सम खाना।14तुम और मा'बूदों की या'नी उन क़ौमों के मा'बूदों की, जो तुम्हारे आस-पास रहती हैं पैरवी न करना।15~क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा जो तुम्हारे बीच है ग़य्यूर ख़ुदा है। इसलिए ऐसा न हो कि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का ग़ज़ब तुझ पर भड़के, और वह तुझको इस ज़मीन पर से फ़ना कर दे।16"तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को मत आज़माना, जैसा तुमने उसे मस्सा में आज़माया था।17~तुम मेहनत से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों और शहादतों और आईन को, जो उसने तुझको फ़रमाए हैं मानना।18और तुम वह ही करना जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त और अच्छा है ताकि तेरा भला हो ~और जिस अच्छे मुल्क के बारे में ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बाप-दादा से क़सम खाई तू उसमें दाख़िल होकर उस पर क़ब्ज़ा कर सके।19और ख़ुदावन्द तेरे सब दुश्मनों को तुम्हारे आगे से दफ़ा' करे, जैसा उसने कहा है।20~"और जब आइन्दा ज़माने में तुम्हारे बेटे तुझसे सवाल करें, कि जिन शहादतों और आईन और फ़रमान के मानने का हुक्म ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने तुमको दिया है उनका मतलब क्या है?21तो तू अपने बेटों को यह जवाब देना, कि जब हम मिस्र में फ़िर'औन के ग़ुलाम थे, तो ख़ुदावन्द अपने ताक़तवर हाथ से हमको मिस्र से निकाल लाया;22और ख़ुदावन्द ने बड़े-बड़े और हौलनाक अजायब-ओ-निशान हमारे सामने अहल-ए-मिस्र, और फ़िर'औन और उसके सब घराने पर करके दिखाए;23और हमको वहाँ से निकाल लाया ताकि हमको इस मुल्क में, जिसे हमको देने की क़सम उसने हमारे बाप दादा से खाई पहुँचाए।24इसलिए खुदावन्द ने हमको इन सब हुक्मों पर 'अमल करने और हमेशा अपनी भलाई के लिए ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानने का हुक्म दिया है, ताकि वह हमको ज़िन्दा रख्खे, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।25और अगर हम एहतियात रख्खें कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने इन सब हुक्मों को मानें, जैसा उस ने हमसे कहा है, तो इसी में हमारी सदाक़त होगी।
1"जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको~उस मुल्क में, जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए तू जा रहा है पहुँचा दे, और तेरे ~आगे से उन बहुत सी क़ौमों को या'नी हित्तियों,~और जिरजासियों, और अमोरियों, और कना'नियों,और फ़रिज़्ज़ियों, और हव्वियों,और~यबूसियों को, जो सातों क़ौमें तुझसे बड़ी और ताक़तवर हैं निकाल दे।2और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे ~आगे शिकस्त दिलाए और तू ~उनको मार ले, तो तू उनको बिल्कुल हलाक कर डालना; तू उनसे कोई 'अहद न बांधना और न उन पर रहम करना।3तू उनसे ब्याह शादी भी न करना, न उनके बेटों को अपनी बेटियाँ देना और न अपने बेटों के लिए उनकी बेटियाँ लेना।4क्यूँकि वह तेरे बेटों को मेरी पैरवी से बरगश्ता कर देंगी, ताकि वह और मा'बूदों की 'इबादत करें। यूँ ख़ुदावन्द का ग़ज़ब तुम पर भड़केगा और वह तुझको जल्द हलाक कर देगा।5बल्कि तुम उनसे यह सुलूक करना, कि उन के मज़बहों को ढा देना, उन के सुतूनों को टुकड़े-टुकड़े कर देना और उनकी यसीरतों को काट डालना, और उनकी तराशी हुई मूरतें आग में जला देना।6क्यूँकि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए एक मुक़द्दस क़ौम हो, ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुझको इस ज़मीन की और सब क़ौमों में से चुन लिया है ताकि उसकी ख़ास उम्मत ठहरो।7~ख़ुदावन्द ने जो तुमसे मुहब्बत की और तुमको चुन लिया, तो इसकी वजह यह न थी कि तुम शुमार में और क़ौमों से ज़्यादा थे, क्यूँकि तुम सब क़ौमों से शुमार में कम थे;8बल्कि चूँकि ख़ुदावन्द को तुमसे मुहब्बत है और वह उस क़सम को जो उसने तुम्हारे बाप-दादा से खाई पूरा करना चाहता था, इसलिए ख़ुदावन्द तुमको अपने ताक़तवर हाथ से निकाल लाया, और ग़ुलामी के घर या'नी मिस्र के बादशाह फ़िर'औन के हाथ से तुमको छुटकारा बख़्शा।9इसलिए जान लो कि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा वही ख़ुदा है। वह वफ़ादार ख़ुदा है, और जो उससे मुहब्बत रखते और उसके हुक्मों को मानते हैं, उनके साथ हज़ार नसल तक वह अपने 'अहद को क़ायम रखता और उन पर रहम करता है।10और जो उससे 'अदावत रखते हैं, उनको उनके देखते ही देखते बदला देकर हलाक कर डालता है, वह उसके बारे में जो उससे 'अदावत रखता है देर न करेगा, बल्कि उसी के देखते-देखते उसे बदला देगा।11इसलिए जो फ़रमान और आईन और अहकाम मैं आज के दिन तुझको बताता हूँ तू उनको मानना और उन पर 'अमल करना।12~और तुम्हारे इन हुक्मों को सुनने और मानने और उन पर 'अमल करने की वजह से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा भी तेरे साथ उस 'अहद और रहमत को क़ायम रख्खेगा, जिसकी क़सम उसने तुम्हारे बाप-दादा से खाई,13और तुझसे मुहब्बत रख्खेगा और तुझको बरकत देगा और बढ़ाएगा; और उस मुल्क में जिसे तुझको देने की क़सम उसने तेरे बाप-दादा से खाई वह तेरी औलाद पर, और तेरी ज़मीन की पैदावार या'नी तुम्हारे ग़ल्ले, और मय, और तेल पर, और तेरे गाय-बैल के और भेड़-बकरियों के बच्चों पर बरकत नाज़िल करेगा।14तुझको सब क़ौमों से ज़्यादा बरकत दी जाएगी, और तुम में या तुम्हारे चौपायों में न तो कोई 'अक़ीम होगा न बाँझ।15और ख़ुदावन्द हर क़िस्म की बीमारी तुझ से दूर करेगा और मिस्र के उन बुरे रोगों को जिनसे तुम वाक़िफ़ हो तुझको लगने न देगा, बल्कि उनको उन पर जो तुझ से 'अदावत रखते हैं नाज़िल करेगा।16और तू उन सब क़ौमों को, जिनको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे क़ाबू में कर देगा नाबूद कर डालना। तू उन पर तरस न खाना और न उनके मा'बूदों की 'इबादत करना, वर्ना यह तुम्हारे लिए एक जाल होगा।17और अगर तेरा दिल भी यह कहे कि ये क़ौमें तो मुझसे ज़्यादा हैं, हम उनको क्यूँ कर निकालें?18तोभी तू उनसे न डरना, बल्कि जो कुछ ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने फ़िर'औन और सारे मिस्र से किया उसे ख़ूब याद रखना;19या'नी उन बड़े-बड़े तजरिबों को जिनको तेरी आँखों ने देखा, और उन निशानों और मो'जिज़ों और ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू को जिनसे ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा~तुझको निकाल लाया; क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ऐसा ही उन सब क़ौमों से~करेगा जिनसे तू डरता है।20बल्कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनमें ज़म्बूरों को भेज देगा, यहाँ तक कि जो उनमें से बाक़ी बच कर छिप जाएँगे वह भी तेरे आगे से हलाक हो जाएँगे।21इसलिए तू उनसे दहशत न खाना; क्यूँकि खुदावन्द तेरा ~ख़ुदा तेरे ~बीच में है, और वह ख़ुदा-ए-'अज़ीम और मुहीब है।22और ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा उन क़ौमों को तेरे आगे से थोड़ा-थोड़ा करके दफ़ा' करेगा। तू एक ही दम उनको हलाक न करना, ऐसा न हो कि जंगली दरिन्दे बढ़ कर तुझ पर हमला करने लगें।23बल्कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे हवाले करेगा, और उनको ऐसी शिकस्त-ए-फ़ाश देगा कि वह हलाक हो जाएँगे।24और वह उनके बादशाहों को तेरे क़ाबू में कर देगा, और तू उनका नाम सफ़ह-ए-रोज़गार से मिटा डालेगा ; और कोई मर्द तेरा सामना न कर सकेगा, यहाँ तक कि तू उनको हलाक कर देगा।25तुम उनके मा'बूदों की तराशी हुई मूरतों को आग से जला देना और जो चाँदी या सोना उन पर हो उसका तू ~लालच न करना और न उसे लेना, ऐसा न हो कि तू उसके फन्दे में फँस जाए क्यूँकि ऐसी बात ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के आगे मकरूह है।26इसलिए तू ऐसी मकरूह चीज़ अपने घर में लाकर उसकी तरह नेस्त कर दिए जाने के लायक़ न बन जाना, बल्कि तू उससे बहुत ही नफ़रत करना और उससे बिल्कुल नफ़रत रखना; क्यूँकि वह मलाऊन चीज़ है।
1सब हुक्मों पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ, तुम एहतियात करके 'अमल करना ताकि तुम जीते और बढ़ते रहो; और जिस मुल्क के बारे में ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बाप-दादा से क़सम खाई है, तुम उसमें जाकर उस पर क़ब्ज़ा करो।2और तू उस सारे तरीक़े को याद रखना जिस पर इन चालीस बरसों में ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा ने तुझको इस वीराने में चलाया, ताकि वह तुझको 'आजिज़ कर के आज़माए और तेरे ~दिल की बात दरियाफ़्त करे कि तू उसके हुक्मों को मानेगा या नहीं।3और उसने~तुझको 'आजिज़ किया भी और~तुझको भूका होने दिया, और वह मन्न जिसे न तू न तेरे बाप-दादा~जानते~थे~तुझको खिलाया; ताकि~तुझको सिखाए कि इन्सान सिर्फ़ रोटी ही से ज़िन्दा नहीं रहता, बल्कि हर बात से~जो~ख़ुदावन्द के मुँह से निकलती है वह ज़िन्दा रहता है।4इन चालीस बरसों में न तो तेरे तन पर तेरे ~कपड़े पुराने हुए और न तुम्हारे पाँव सूजे।5और तू अपने दिल में ख़याल रखना कि जिस तरह आदमी अपने बेटों को तम्बीह करता है, वैसे ही ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुमको तम्बीह करता है।6~इसलिए तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की राहों पर चलने और उसका ख़ौफ़ मानने के लिए उसके हुक्मों पर 'अमल करना।7क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको एक अच्छे मुल्क में लिए जाता है। वह पानी की नदियों और ऐसे चश्मों और सोतों का मुल्क है जो वादियों और पहाड़ों से फूट कर निकलते हैं।8वह ऐसा मुल्क है जहाँ गेहूँ और जौ और अंगूर और अंजीर के दरख़्त और अनार होते हैं। वह ऐसा मुल्क है जहाँ रौग़नदार ज़ैतून और शहद भी है।9उस मुल्क में~तुझको रोटी इफ़रात से मिलेगी और~तुझको किसी चीज़ की कमी न होगी, क्यूँकि उस मुल्क के पत्थर~भी~लोहा हैं और वहाँ के पहाड़ों से तू ~ताँबा खोद कर निकाल सकेगा।10और तू खाएगा और सेर होगा, और उस अच्छे मुल्क के लिए जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है उसका शुक्र बजा लाएगा।11इसलिए ख़बरदार रहना, कि कहीं ऐसा न हो कि तू ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूलकर, उसके फ़रमानों और हुक्मों और आईन को जिनको आज मैं~तुझको सुनाता हूँ मानना छोड़ दे;12ऐसा न हो कि जब तू खाकर सेर हो और ख़ुशनुमा घर बना कर उनमें रहने लगे,13और तेरे गाय-बैल के ग़ल्ले और भेड़ बकरियाँ बढ़ जाएँ और तेरे पास चाँदी, और सोना और माल बा-कसरत हो जाए;14तो तेरे दिल में गु़रूर समाए और तू ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल जाए ~जो~तुझ~को मुल्क-ए-मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर~से निकाल लाया है,15और ऐसे बड़े और हौलनाक वीराने में तेरा रहबर हुआ जहाँ जलाने वाले साँप और बिच्छू थे; और जहाँ की ज़मीन बग़ैर पानी के सूखी पड़ी थी।वहाँ उसने तेरे लिए चक़मक़ की चट्टान से पानी निकाला|16~और तुझको वीरान में वह मन्न खिलाया जिसे तेरे ~बाप-दादा जानते भी न थे; ताकि तुझको 'आजिज़ करे और तेरी आज़माइश करके आख़िर में तेरा भला करे।17~और ऐसा न हो कि तू अपने दिल में कहने लगे, कि मेरी ही ताक़त और हाथ के ज़ोर से मुझको यह दौलत नसीब हुई है।18~बल्कि तू ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को याद रखना, क्यूँकि वही~तुझको दौलत हासिल करने की क़ुव्वत इसलिए देता है कि अपने उस 'अहद को जिसकी क़सम उसने तेरे बाप-दादा से खाई थी, क़ायम रखे जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।19और अगर तू कभी ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूले, और और मा'बूदों के पैरौ बन कर उनकी 'इबादत और परस्तिश करे, तो मैं आज के दिन तुमको आगाह किए देता हूँ कि तुम ज़रूर ही हलाक हो जाओगे।20~जिन क़ौमों को ख़ुदावन्द तुम्हारे सामने हलाक करने को है, उन्ही की तरह तुम भी ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात न मानने की वजह से हलाक हो जाओगे।
1~सुन ले ऐ इस्राईल, आज तुझे यरदन पार इसलिए जाना है, कि तू ऐसी क़ौमों पर जो तुझ से बड़ी और ताक़तवर हैं, और ऐसे बड़े शहरों पर जिनकी फ़सीलें आसमान से बातें करती हैं, क़ब्ज़ा करे।2वहाँ 'अनाक़ीम की औलाद हैं जो बड़े-बड़े और क़दआवर लोग हैं। तुझे उनका हाल मा'लूम है, और तूने उनके बारे में यह कहते सुना है कि बनी 'अनाक़ का मुक़ाबला कौन कर सकता है?3फिर तू आज कि दिन जान ले, कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे आगे आगे भसम करने वाली आग की तरह पार जा रहा है। वह उनको फ़ना करेगा और वह उनको तेरे आगे पस्त करेगा, ऐसा कि तू उनको निकाल कर जल्द हलाक कर डालेगा, जैसा ख़ुदावन्द ने तुझ से कहा है।4"और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे आगे से निकाल चुके, तो तू अपने दिल में यह न कहना कि मेरी सदाक़त की वजह से ख़ुदावन्द मुझे इस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने को यहाँ लाया क्यूँकि हक़ीक़त में इनकी शरारत ~की वजह से ख़ुदावन्द इन क़ौमों को तेरे आगे से निकालता है।5तू अपनी सदाक़त या अपने दिल की रास्ती की वजह से उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने को नहीं जा रहा है बल्कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा इन क़ौमों की शरारत की वजह से इनको तेरे आगे से ख़ारिज करता है, ताकि यूँ वह उस वा'दे को जिसकी क़सम उसने तेरे बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से खाई पूरा करे।6"ग़रज़ तू समझ ले कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरी सदाक़त की वजह से यह अच्छा मुल्क तुझे क़ब्ज़ा करने के लिए नहीं दे रहा है, क्यूँकि तू एक बाग़ी क़ौम है।7इस बात को याद रख और कभी न भूल, कि तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को वीराने में किस किस तरह ग़ुस्सा दिलाया; बल्कि जब से तुम मुल्क-ए-मिस्र से निकले हो तब से इस जगह पहुँचने तक, तुम बराबर ख़ुदावन्द से बग़ावत ही करते रहे।8और होरिब में भी तुमने ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया, चुनाँचे ख़ुदावन्द नाराज़ होकर तुमको हलाक करना चाहता था।9जब मैं पत्थर की दोनों तख़्तियों को, या'नी उस अहद की~तख़्तियों~को जो ख़ुदावन्द ने तुमसे बाँधा था लेने को पहाड़ पर चढ़ गया; तो मैं चालीस दिन और चालीस रात वहीं पहाड़ पर रहा और न रोटी खाई न पानी पिया।10और ख़ुदावन्द ने अपने हाथ की लिखी हुई पत्थर की दोनों~तख़्तियाँ~मेरे सुपुर्द की, और उन पर वही बातें लिखी थीं जो ख़ुदावन्द ने पहाड़ पर आग के बीच में से मजमे' के दिन तुमसे कही थीं।11और चालीस दिन और चालीस रात के बा'द ख़ुदावन्द ने पत्थर की वह दोनों~तख़्तियाँ~या'नी 'अहद की~तख़्तियाँ~मुझको दीं।12और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, 'उठ कर जल्द यहाँ से नीचे जा, क्यूँकि तेरे लोग जिनको तू मिस्र से निकाल लाया है बिगड़ गए हैं वह उस राह से जिसका मैंने ~उनको हुक्म दिया जल्द नाफ़रमान हो गए, और अपने लिए एक मूरत ढाल कर बना ली है।"13~"और ख़ुदावन्द ने मुझसे यह भी कहा, कि मैंने इन लोगों को देख लिया, ये बाग़ी लोग हैं।14इसलिए अब तू मुझे इनको हलाक करने दे ताकि मैं इनका नाम सफ़ह-ए- रोज़गार से मिटा डालूँ, और मैं तुझ से एक क़ौम जो इन से ताक़तवर और बड़ी हो बनाऊँगा।15तब मैं उल्टा फिरा और पहाड़ से नीचे उतरा, और पहाड़ आग से दहक रहा था; और 'अहद की वह दोनों~तख़्तियाँ~मेरे दोनों हाथों में थीं।16और मैंने देखा कि तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का गुनाह किया; और अपने लिए एक बछड़ा ढाल कर बना लिया है, और बहुत जल्द उस राह से जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने तुमको दिया था, नाफ़रमान हो गए।17~तब मैंने उन दोनों~तख़्तियों~को अपने दोनों हाथों से लेकर फेंक दिया और तुम्हारी आँखों के सामने उनको तोड़ डाला18और मैं पहले की तरह चालीस दिन और चालीस रात ख़ुदावन्द के आगे औंधा पड़ा रहा, मैंने न रोटी खाई न पानी पिया; क्यूँकि तुमसे बड़ा गुनाह सरज़द हुआ था, और ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाने के लिए तुमने वह काम किया जो उसकी नज़र में बुरा था।19और मैं ख़ुदावन्द के क़हर और ग़ज़ब से डर रहा था, क्यूँकि वह तुमसे सख़्त नाराज़ होकर तुमको हलाक करने को था; लेकिन ख़ुदावन्द ने उस बार भी मेरी सुन ली।20~और ख़ुदावन्द हारून से ऐसे ग़ुस्सा था कि उसे हलाक करना चाहा, लेकिन मैंने उस वक़्त हारून के लिए भी दु'आ की।21और मैंने तुम्हारे गुनाह को या'नी उस बछड़े को, जो तुमने बनाया था लेकर आग में जलाया; फिर उसे कूट कूटकर ऐसा पीसा कि वह गर्द की तरह बारीक हो गया; और उसकी उस राख को उस नदी में जो पहाड़ से निकल कर नीचे बहती थी डाल दिया।22"और तबेरा और मस्सा और क़बरोत हत्तावा में भी तुमने ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया।23और जब ख़ुदावन्द ने तुमको क़ादिस बर्नी'अ से यह कह कर रवाना किया, कि जाओ और उस मुल्क को जो मैंने तुमको दिया है क़ब्ज़ा करो, तो उस वक़्त भी तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म को 'उदूल किया, और उस पर ईमान न लाए और उसकी बात न मानी।24~जिस दिन से मेरी तुमसे वाक़फ़ियत हुई है, तुम बराबर ख़ुदावन्द से सरकशी करते रहे हो।25~"इसलिए वह चालीस दिन और चालीस रात जो मैं ख़ुदावन्द के आगे औंधा पड़ा रहा, इसी लिए पड़ा रहा क्यूँकि ख़ुदावन्द ने कह दिया था कि वह तुमको हलाक करेगा।26और मैंने ख़ुदावन्द से यह दु'आ की, कि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तू अपनी क़ौम और अपनी मीरास के लोगों को, जिनको तूने अपनी क़ुदरत से नजात बख़्शी और जिनको तू ताक़तवर हाथ से मिस्र से निकाल लाया, हलाक न कर।27अपने ख़ादिमों इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब को याद फ़रमा, और इस क़ौम की ख़ुदसरी और शरारत और गुनाह पर नज़र न कर,28कहीं ऐसा न हो कि जिस मुल्क से तू हमको निकाल लाया है वहाँ के लोग कहने लगें, कि चूँकि ख़ुदावन्द उस मुल्क में जिसका वा'दा उसने उनसे किया था पहुँचा न सका, और चूँकि उसे उनसे नफ़रत भी थी, इसलिए वह उनको निकाल ले गया ताकि उनको वीराने में हलाक कर दे।29आख़िर यह लोग तेरी क़ौम और तेरी मीरास हैं जिनको तू अपने बड़े ज़ोर और बलन्द बाज़ू से निकाल लाया है।
1"उस वक़्त ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, कि पहली~तख़्तियों की तरह पत्थर की दो और~तख़्तियों~तराश ले, और मेरे पास पहाड़ पर आ जा, और एक चोबी संदूक़ भी बना ले।2और जो बातें पहली~तख़्तियों~पर जिनको तूने तोड़ डाला लिखी थीं, वही मैं इन~तख़्तियों~पर भी लिख दूँगा; फिर तू इनको उस सन्दूक़ में रख देना।3इसलिए मैंने कीकर की लकड़ी का एक संदूक़ बनाया और पहली~तख़्तियों~की तरह पत्थर की दो~तख़्तियाँ~तराश लीं, और उन दोनों~तख़्तियों~को अपने हाथ में लिये हुए पहाड़ पर चढ़ गया।4और जो दस हुक्म ख़ुदावन्द ने मजमे' के दिन पहाड़ पर आग के बीच में से तुमको दिए थे, उन ही को पहली तहरीर के मुताबिक़ उसने इन~तख़्तियों~पर लिख दिया; फिर इनको ख़ुदावन्द ने मेरे सुपुर्द किया।5तब मैं पहाड़ से लौट कर नीचे आया और इन~तख़्तियों को उस संदूक़ में जो मैंने बनाया था रख दिया, और ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ जो उसने मुझे दिया था, वह वहीं रखी हुई हैं।6फिर बनी-इस्राईल बेरोत-ए-बनी या'कान से रवाना होकर मौसीरा में आए। वहीं हारून ने वफ़ात पाईऔर दफ़्न भी हुआ, और उसका बेटा इली'अज़र कहानत के 'उहदे पर मुक़र्रर होकर उसकी जगह ख़िदमत करने लगा।7वहाँ से वह जुदजूदा को और जुदजूदा से यूतबात को चले, इस मुल्क में पानी की नदियाँ हैं।8उसी मौक़े' पर ख़ुदावन्द ने लावी के क़बीले को इस वजह से अलग किया, कि वह ख़ुदावन्द के 'अहद के संदूक़ को उठाया करे और ख़ुदावन्द के सामने खड़ा होकर उसकी खिदमत को अन्जाम दे, और उसके नाम से बरकत दिया करे, जैसा आज तक होता है।9~इसीलिए लावी को कोई हिस्सा या मीरास उसके भाइयों के साथ नहीं मिली, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसकी मीरास है, जैसा ख़ुद ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने उससे कहा है।)10'और मैं पहले की तरह चालीस दिन और चालीस रात पहाड़ पर ठहरा रहा, और इस दफ़ा' भी ख़ुदावन्द ने मेरी सुनी और न चाहा कि तुझको हलाक करे।11फिर ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा, 'उठ, और इन लोगों के आगे रवाना हो, ताकि ये उस मुल्क पर जाकर क़ब्ज़ा कर लें जिसे उनको देने की क़सम मैंने उनके बाप-दादा से खाई थी।'12~"इसलिए ऐ इस्राईल, ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझ से इसके अलावा और क्या चाहता है कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ माने, और उसकी सब राहों पर चले, और उससे मुहब्बत रख्खे, और अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बन्दगी करे,13और ख़ुदावन्द के जो अहकाम और आईन मैं तुझको आज बताता हूँ उन पर 'अमल करो, ताकि तेरी ख़ैर हो ?14~देख, आसमान और आसमानों का आसमान, और ज़मीन और जो कुछ ज़मीन में है, यह सब ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ही का है।15तोभी ख़ुदावन्द ने तेरे बाप-दादा से ख़ुश होकर उनसे मुहब्बत की, और उनके बा'द उनकी औलाद को या'नी तुमको सब क़ौमों में से बरगुज़ीदा किया, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।16इसलिए अपने दिलों का ख़तना करो और आगे को बाग़ी न रहो।17क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा इलाहों का इलाह ख़ुदावन्दों का ख़ुदावन्द है, वह बुज़ुर्गवार और क़ादिर और मुहीब ख़ुदा है, जो रूरि'आयत नहीं करता और न रिश्वत लेता है।18~वह यतीमों और बेवाओं का इन्साफ़ करता है, और परदेसी से ऐसी मुहब्बत रखता है कि उसे खाना और कपड़ा देता है।19इसलिए तुम परदेसियों से मुहब्बत रखना क्यूँकि तुम भी मुल्क-ए-मिस्र में परदेसी थे।20तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, उसकी बन्दगी करना और उससे लिपटे रहना और उसी के नाम की क़सम खाना।21~वही तेरी हम्द का सज़ावार है और वही तेरा ख़ुदा है जिसने तेरे ~लिए वह बड़े और हौलनाक काम किए जिनको तू ने अपनी आँखों से देखा।22तेरे बाप-दादा जब मिस्र में गए तो सत्तर आदमी थे, लेकिन अब ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुझको बढ़ा कर आसमान के सितारों की तरह कर दिया है।
1~"इसलिए तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखना, और उसकी शरी'अत और आईन और अहकाम और फ़रमानों पर सदा 'अमल करना।2~और तुम आज के दिन ख़ूब समझ लो, क्यूँकि मैं तुम्हारे बाल बच्चों से कलाम नहीं कर रहा हूँ, जिनको न तो मा'लूम है और न उन्होंने देखा कि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा की तम्बीह, और उसकी 'अज़मत, और ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू से क्या क्या हुआ;3और मिस्र के बीच मिस्र के बादशाह फ़िर'औन और उसके मुल्क के लोगों को कैसे कैसे निशान और कैसी करामात दिखाई।4और उसने मिस्र के लश्कर और उनके घोड़ों और रथों का क्या हाल किया, और कैसे उसने बहर-ए-कु़लजु़म के पानी में उनको डुबो दिया जब वह तुम्हारा पीछा कर रहे थे, और ख़ुदावन्द ने उनको कैसा हलाक किया कि आज के दिन तक वह नाबूद हैं;5और तुम्हारे इस जगह पहुँचने तक उसने वीराने में तुमसे क्या क्या किया;6और दातन और अबीराम का जो इलीयाब बिन रूबिन के बेटे थे, क्या हाल बनाया कि सब इस्राईलियों के सामने ज़मीन ने अपना मुँह पसार कर उनको और उनके घरानों और ख़ेमो और हर आदमी को जो उनके साथ था निगल लिया;7लेकिन ख़ुदावन्द के इन सब बड़े-बड़े कामों को तुमने अपनी आँखों से देखा है।8"इसलिए इन सब हुक्मों को जो आज मैं तुमको देता हूँ तुम मानना, ताकि तुम मज़बूत होकर उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए तुम पार जा रहे हो, पहुँच जाओ और उस पर क़ब्ज़ा भी कर लो।9~और उस मुल्क में तुम्हारी 'उम्र दराज़ हो जिसमें दूध और शहद बहता है, और जिसे तुम्हारे बाप-दादा और उनकी औलाद को देने की क़सम ख़ुदावन्द ने उनसे खाई थी।10~क्यूँकि जिस मुल्क पर तू क़ब्ज़ा करने को जा रहा है वह मुल्क मिस्र की तरह नहीं है, जहाँ से तुम निकल आए हो वहाँ तो तू बीज बोकर उसे सब्ज़ी के बाग़ की तरह पाँव से नालियाँ बना कर सींचता था।11~लेकिन जिस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने के लिए तुम पार जाने को हो वह पहाड़ों और वादियों का मुल्क है, और बारिश के पानी से सेराब हुआ करता है।12~उस मुल्क पर ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा की तवज्जुह रहती है, और साल के शुरू' से साल के आख़िर तक ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा की आँखें उस पर लगी रहती हैं।13'और अगर तुम मेरे हुक्मों को जो आज मैं तुमको देता हूँ दिल लगा कर सुनो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख्खो, और अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से उसकी बन्दगी करो,14~तो मैं तुम्हारे मुल्क में सही वक़्त पर पहला और पिछला मेंह बरसाऊँगा, ताकि तू अपना ग़ल्ला और मय और तेल जमा' कर सके।15और मैं तेरे चौपायों के लिए मैदान में घास पैदा करूँगा, और तू खायेगा और सेर होगा।16इसलिए तुम ख़बरदार रहना कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे दिल धोका खाएँ और तुम बहक कर और मा'बूदों की 'इबादत और परस्तिश करने लगो।17और ख़ुदावन्द का ग़ज़ब तुम पर भड़के और वह आसमान को बन्द कर दे ताकि मेंह न बरसे, और ज़मीन में कुछ पैदावार न हो, और तुम इस अच्छे मुल्क से जो ख़ुदावन्द तुमको देता है जल्द फ़ना हो जाओ।18इसलिए मेरी इन बातों को तुम अपने दिल और अपनी जान में महफू़ज़ रखना और निशान के तौर पर इनको अपने हाथों पर बाँधना, और वह तुम्हारी पेशानी पर टीकों की तरह हों।19और तुम इनको अपने लड़कों को सिखाना, और तुम घर बैठे और राह चलते और लेटते और उठते वक़्त इन ही का ज़िक्र किया करना।20और तुम इनको अपने घर की चौखटों पर और अपने फाटकों पर लिखा करना,21ताकि जब तक ज़मीन पर आसमान का साया है, तुम्हारी और तुम्हारी औलाद की 'उम्र उस मुल्क में दराज़ हो, जिसको खुदावन्द ने तुम्हारे बाप-दादा को देने की क़सम उनसे खाई थी।22क्यूँकि अगर तुम उन सब हुक्मों को जो मैं तुमको देता हूँ, पूरी जान से मानो और उन पर 'अमल करो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख्खो, और उसकी सब राहों पर चलो, और उससे लिपटे रहो;23तो ख़ुदावन्द इन सब क़ौमों को तुम्हारे आगे से निकाल डालेगा, और तुम उन क़ौमों पर जो तुमसे बड़ी और ताक़तवर हैं क़ाबिज़ होगे।24जहाँ जहाँ तुम्हारे पाँव का तलवा टिके वह जगह तुम्हारी हो जाएगी, या'नी वीराने और लुबनान से और दरिया-ए-फु़रात से पश्चिम के समन्दर तक तुम्हारी सरहद होगी।25और कोई शख़्स वहाँ तुम्हारा मुक़ाबला न कर सकेगा, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारा रौब और ख़ौफ़ उस तमाम मुल्क जहाँ कहीं तुम्हारे क़दम पड़े पैदा कर देगा जैसा उसने तुमसे कहा है।26"देखो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे बरकत और ला'नत दोनों रख्खे देता हूँ27~बरकत उस हाल में जब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को जो आज मैं तुमको देता हूँ मानो;28और ला'नत उस वक़्त जब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़रमाँबरदारी न करो, और उस राह को जिसके बारे में मैं आज तुमको हुक्म देता हूँ छोड़ कर और मा'बूदों की पैरवी करो, जिनसे तुम अब तक वाक़िफ़ नहीं।29और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने को तू जा रहा है पहुँचा दे, तो कोह-ए-गरिज़ीम पर से बरकत और कोह-ए-'ऐबाल पर से ला'नत सुनाना।30वह दोनों पहाड़ यरदन पार पश्चिम की तरफ़ उन कना'नियों के मुल्क में वाके' हैं जो जिलजाल के सामने मोरा के बलूतों के क़रीब मैदान में रहते हैं।31और तुम यरदन पार इसी लिए जाने को हो, कि उस मुल्क पर जो ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको देता है क़ब्ज़ा करो, और तुम उस पर क़ब्ज़ा करोगे भी और उसी में बसोगे।32इसलिए तुम एहतियात कर के उन सब आईन और अहकाम पर 'अमल करना जिनको मैं आज तुम्हारे सामने पेश करता हूँ।
1"जब तक तुम दुनिया में ज़िन्दा~रहो तुम एहतियात करके इन ही आईन और अहकाम पर उस मुल्क में 'अमल करना जिसे ख़ुदावन्द तेरे ~बाप-दादा के ख़ुदा ने तुझको दिया है, ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे।2वहाँ तुम ज़रूर उन सब जगहों को बर्बाद कर देना जहाँ-जहाँ वह क़ौमें ~जिनके तुम वारिस होगे, ऊँचे ऊँचे पहाड़ों पर और टीलों पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे अपने मा'बूदों की पूजा करती थीं।3तुम उनके मज़बहों को ढा देना, और उनके सुतूनों को तोड़ डालना, और उनकी यसीरतों को आग लगा देना, और उनके मा'बूदों की खुदी हुई मूरतों को काट कर गिरा देना, और उस जगह से उनके नाम तक को मिटा डालना।4लेकिन ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से ऐसा न करना।5बल्कि जिस जगह को ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे सब क़बीलों में से चुन ले, ताकि वहाँ अपना नाम क़ायम करे, तुम उसके उसी घर के तालिब होकर वहाँ जाया करना।6और वहीं तुम अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियों और ज़बीहों और दहेकियों और उठाने की क़ुर्बानियों और अपनी मिन्नतों की चीज़ों और अपनी रज़ा की क़ुर्बानियों और गाय बैलों और भेड़ बकरियों के पहलौठों को पेश करना।7और वहीं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने खाना और अपने घरानों समेत अपने हाथ की कमाई की ख़ुशी भी करना, जिसमें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको बरकत बख़्शी हो।8और जैसे हम यहाँ जो काम जिसको ठीक दिखाई देता है वही करते हैं, ऐसे तुम वहाँ न करना।9क्यूँकि तुम अब तक उस आरामगाह और मीरास की जगह तक, जो खुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है नहीं पहुँचे हो।10लेकिन जब तुम यरदन पार जाकर उस मुल्क में जिसका मालिक ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको बनाता है बस जाओ, और वह तुम्हारे सब दुश्मनों की तरफ़ से जो चारों तरफ़ हैं तुमको राहत दे, और तुम अम्न से रहने लगो;11~तो वहाँ जिस जगह को ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुन ले, वहीं तुम ये सब कुछ जिसका मैं तुमको हुक्म देता हूँ ले जाया करना; या'नी अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ ~और ज़बीहे और ~अपनी दहेकियाँ, और अपने हाथ के उठाए हुए हदिये, और अपनी ख़ास नज़्र की चीज़ें जिनकी मन्नत तुमने ख़ुदावन्द के लिए मानी हो।12और वहीं तुम और तुम्हारे बेटे बेटियाँ और तुम्हारे नौकर चाकर और लौंडियाँ ~और वह लावी भी जो तुम्हारे फाटकों के अन्दर रहता हो और जिसका कोई हिस्सा या मीरास तुम्हारे साथ नहीं, सब के सब मिल कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाना।13और तुम ख़बरदार रहना, कहीं ऐसा न हो कि जिस जगह को देख ले। वहीं अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करो।14~बल्कि सिर्फ़ उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरे किसी क़बीले में चुन ले, तू अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करना और वहीं सब कुछ जिसका मैं तुमको हुक्म देता हूँ करना।15"लेकिन गोश्त को तुम अपने सब फाटकों के अन्दर अपने दिल की चाहत और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की दी हुई बरकत के मुवाफ़िक़ ज़बह कर के खा सकेगा। पाक और नापाक दोनों तरह के आदमी उसे खा सकेंगे, जैसे चिकारे और हिरन को खाते हैं।16~लेकिन तुम ख़ून को बिल्कुल न खाना, बल्कि तुम उसे पानी की तरह ज़मीन पर उँडेल देना।17और तू अपने फाटकों के अन्दर अपने ग़ल्ले और मय और तेल की दहेकियाँ, और गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के पहलौठे, और अपनी मन्नत मानी हुई चीज़ें और रज़ा की क़ुर्बानियाँ और अपने हाथ की उठाई हुई क़ुर्बानियाँ कभी न खाना।18बल्कि तू और तेरे ~बेटे बेटियाँ और तेरे नौकर-चाकर और लौंडियाँ, और वह लावी भी जो तेरे फाटकों के अन्दर हो, उन चीज़ों को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने उस जगह खाना जिसे ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा चुन ले, और तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने अपने हाथ की कमाई की ख़ुशी मनाना।19~और ख़बरदार जब तक तू ~अपने मुल्क में ज़िन्दा रहे ~लावियों को छोड़ न देना।20~"जब ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा उस वा'दे के मुताबिक़ जो उसने तुझ से किया है तुम्हारी सरहद को बढ़ाए, और तेरा जी गोश्त खाने को करे और तू कहने लगे कि मै तो गोश्त खाऊँगा, तो तू जैसा तेरा जी चाहे गोश्त खा सकता है।21और अगर वह जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने अपने नाम को वहाँ क़ायम करने के लिए चुना है तेरे मकान से बहुत दूर हो, तो तूअपने गाय बैल और भेड़-बकरी में से जिनको ख़ुदावन्द ने तुझको दिया है किसी को ज़बह कर लेना और जैसा मैंने तुझको हुक्म दिया है तू उसके गोश्त को अपने दिल की चाहत के ~ मुताबिक़ अपने फाटकों के अन्दर खाना;22जैसे चिकारे और हिरन को खाते हैं वैसे ही तू उसे खाना। पाक और नापाक दोनों तरह के आदमी उसे एक जैसे खा सकेंगे।23सिर्फ़ इतनी एहतियात ज़रूर रखना कि तू ~ख़ून को न खाना; क्यूँकि ख़ून ही तो जान है, इसलिए तू गोश्त के साथ जान को हरगिज़ न खाना।24तू ~उसको खाना मत, बल्कि उसे पानी की तरह ज़मीन पर उँडेल देना;25तू उसे न खाना; ताकि तेरे ~उस काम के करने से जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है, तेरा ~और तेरे ~साथ तेरी ~औलाद का भी भला हो।26~लेकिन अपनी पाक चीज़ों को जो तेरे पास हों और अपनी मन्नतो की चीज़ों ~को उसी जगह ले जाना जिसे ख़ुदावन्द चुन ले।27और वहीं अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियों का गोश्त और ख़ून दोनों ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के मज़बह पर पेश करना; और ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा ही के मज़बह पर तेरे ~ज़बीहों का ख़ून उँडेला जाए, मगर उनका गोश्त तू खाना।28इन सब बातों को जिनका मैं तुझको हुक्म देता हूँ ग़ौर से सुन ले, ताकि तेरे ~उस काम के करने से जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की नज़र में अच्छा और ठीक है, तेरा ~और तेरे ~बा'द तेरी औलाद का भला हो।29"जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सामने से उन क़ौमों को उस जगह जहाँ तू उनके वारिस होने को जा रहा है काट डाले, और तू उनका वारिस होकर उनके मुल्क में बस जाये,30तो तू ख़बरदार रहना, कहीं ऐसा न हो कि जब वह तेरे आगे से ख़त्म हो जाएँ तो तू इस फंदे में फँस जाये, कि उनकी पैरवी करे और उनके मा'बूदों के बारे में ये दरियाफ़्त करे कि ये क़ौमें किस तरह से अपने मा'बूदों की पूजा करती है? मै भी वैसा ही करूँगा।31~तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए ऐसा न करना, क्यूँकि जिन जिन कामों से ख़ुदावन्द को नफ़रत और 'अदावत है वह सब उन्होंने अपने मा'बूदों के लिए किए हैं, बल्कि अपने बेटों और बेटियों को भी वह अपने मा'बूदों के नाम पर आग में डाल कर जला देते हैं।32~"जिस जिस बात का मैं हुक्म करता हूँ, तुम एहतियात करके उस पर 'अमल करना और उसमें न तो कुछ बढ़ाना और न उसमें से कुछ घटाना।
1अगर तेरे बीच कोई नबी या ख्व़ाब ~देखने वाला ज़ाहिर हो और तुझको किसी निशान या अजीब बात की ख़बर दे|2और वह निशान या 'अजीब बात जिसकी उसने तुझको ख़बर दी वजूद में आए और वह तुझ से कहे, कि आओ हम और मा'बूदों की जिनसे तुम वाक़िफ़ नहीं पैरवी करके उनकी पूजा करें;3तो तू हरगिज़ उस नबी या ख़्वाब देखने वाले की बात को न सुनना; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको आज़माएगा, ताकि जान ले कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से मुहब्बत रखते हो या नहीं।4तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की पैरवी करना, और उसका ख़ौफ़ मानना , और उसके हुक्मों ~पर चलना, और उसकी बात सुनना; तुम उसी की बन्दगी करना और उसी से लिपटे रहना।5वह नबी या ख़्वाब देखने वाला क़त्ल किया जाए, क्यूँकि उसने तुमको ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा से (जिसने तुमको मुल्क-ए-मिस्र से निकाला और तुझको ग़ुलामी के घर से रिहाई बख़्शी), बग़ावत करने की तरगीब दी ताकि तुझको उस राह से जिस पर ख़ुदावन्द तेरे ~ख़ुदा ने तुझको चलने का हुक्म दिया है बहकाए। यूँ तुम अपने बीच में से ऐसे गुनाह को दूर कर देना।6"अगर तेरा भाई, या तेरी माँ का बेटा, या तेरा बेटा या बेटी, या तेरी हमआग़ोश बीवी, या तेरा दोस्त जिसको तू अपनी जान के बराबर 'अज़ीज़ रखता है, तुझको चुपके चुपके फुसलाकर कहे, कि चलो, हम और मा'बूदों की पूजा करें जिनसे तू और तेरे बाप-दादा वाक़िफ़ भी नहीं,7~या'नी उन लोगों के मा'बूद जो तेरे चारों तरफ़ तेरे नज़दीक रहते हैं, या तुझ से दूर ज़मीन के इस सिरे से उस सिरे तक बसे हुए हैं;8तो तू इस पर उसके साथ रज़ामन्द न होना, और न उनकी बात सुनना। तू उस पर तरस भी न खाना और न उसकी रि'आयत करना और न उसे छिपाना।9बल्कि तू उसको ज़रूर क़त्ल करना और उसको क़त्ल ~करते वक़्त पहले तेरा हाथ उस पर पड़े, इसके बा'द सब क़ौम का हाथ।10~और तू उसे संगसार करना ताकि वह मर जाए; क्यूँकि उसने तुझको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा से, जो तुझको मुल्क-ए-मिस्र से या'नी ग़ुलामी के घर से निकाल लाया, नाफ़रमान करना चाहा।11तब सब इस्राईल सुन कर डरेंगे और तेरे बीच फिर ऐसी शरारत नहीं करेंगे।12~"और जो शहर ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको रहने को दिए हैं, अगर उनमें से किसी के बारे में तू ये अफ़वाह सुने, कि,13~कुछ ~ख़बीस आदमियों ने तेरे ही बीच में से निकलकर अपने शहर के लोगों को ये कहकर गुमराह कर दिया है, कि चलो, हम और मा'बूदो की जिनसे तू वाक़िफ़ नहीं पूजा करें;14तो तू दरियाफ़्त और ख़ूब तफ़्तीश करके पता लगाना; और देखो, अगर ये सच हो और क़त'ई यही बात निकले, कि ऐसा मकरूह काम तेरे बीच किया गया,15तो तू उस शहर के बाशिन्दों को तलवार से ज़रूर क़त्ल कर डालना, और वहाँ का सब कुछ और चौपाये वग़ैरा तलवार ही से हलाक कर देना।16और वहाँ की सारी लूट को चौक के बीच जमा' कर के उस शहर को और वहाँ की लूट को, तिनका तिनका ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने आग से जला देना; और वह हमेशा को एक ढेर सा पड़ा रहे, और फिर कभी बनाया न जाए।17और उनकी मख़्सूस की हुई चीज़ों में से कुछ भी तेरे हाथ में न रहे; ताकि ख़ुदावन्द अपने क़हर-ए- शदीद से बाज़ आए, और जैसा उसने तेरे बाप-दादा से क़सम खाई है, उस के मुताबिक़ तुझ पर रहम करे और तरस खाए और तुझको बढ़ाए।18ये तब ही होगा जब तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात मान कर उसके हुक्मों पर जो आज मैं तुझको देता हूँ चले, और जो कुछ ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की नज़र में ठीक है उसी को करे।
1~"तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हो, तुम मुर्दों ~की वजह से अपने आप को ज़ख़्मी न करना, और न अपने अबरू के बाल मुंडवाना।2~क्यूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की मुक़द्दस क़ौम है और ख़ुदावन्द ने तुझको इस ज़मीन की और सब क़ौमों में से चुन लिया है ताकि तू उसकी ख़ास क़ौम ठहरे।3~"तू किसी घिनौनी चीज़ को मत खाना।4जिन चौपायों को तुम खा सकते हो वह ये हैं, या'नी गाय-बैल, और भेड़, और बकरी,5और हिरन, और चिकारा, और ~छोटा हिरन और बुज़कोही और साबिर और नीलगाय और, जंगली भेड़।6और चौपायों में से जिस जिस के पाँव अलग और चिरे हुए हैं और वह जुगाली भी करता हो तुम उसे खा सकते हो।7लेकिन उनमें से जो जुगाली करते हैं या उनके पाँव चिरे हुए हैं तुम उनको, या'नी ऊँट, और ख़रगोश, और साफ़ान को न खाना, क्यूँकि ये जुगाली करते हैं लेकिन इनके पाँव चिरे हुए नहीं हैं; इसलिए ये तुम्हारे लिए नापाक हैं।8और सूअर तुम्हारे लिए इस वजह से नापाक है कि उसके पाँव तो चिरे हुए हैं लेकिन वह जुगाली नहीं करता। तुम न तो उनका गोश्त खाना और न उनकी लाश को हाथ लगाना।9~'आबी जानवरों में से तुम उन ही को खाना जिनके पर और छिल्के हों।10~लेकिन जिसके पर और छिल्के न हों तुम उसे मत खाना, वह तुम्हारे लिए नापाक हैं।11~"पाक परिन्दों में से तुम जिसे चाहो खा सकते हो,12लेकिन इनमें से तुम किसी को न खाना, या'नी 'उक़ाब, और उस्तुख़्वानख़्वार, और बहरी 'उक़ाब,13और चील और बाज़ और गिद्ध और उनकी क़िस्म के :14हर क़िस्म का कौवा,15और शुतुरमुर्ग़ और चुग़द और कोकिल और क़िस्म क़िस्म के शाहीन,16और बूम, और उल्लू, और क़ाज़,17और हवासिल, और रख़म, और हड़गीला,18और लक़-लक़, और हर क़िस्म का बगुला, और हुद-हुद, और चमगादड़।19और सब परदार रेंगने वाले जानदार तुम्हारे लिए नापाक हैं, वह खाए न जाएँ।20और पाक परिन्दों में से तुम जिसे चाहो खाओ।21~"जो जानवर आप ही मर जाए तू उसे मत खाना; तू उसे किसी परदेसी को, जो तेरे फाटकों के अन्दर हो खाने को दे सकता है, या उसे किसी अजनबी आदमी के हाथ बेच सकता है; क्यूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की मुक़द्दस क़ौम है। तू हलवान को उसकी माँ के दूध में न उबालना।22~"तू अपने ग़ल्ले में से, जो हर साल तुम्हारे खेतों में पैदा हो दहेकी देना।23और तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने उसी मक़ाम में जिसे वह अपने नाम के घर के लिए चुने, अपने ग़ल्ले और मय और तेल की दहेकी को, और अपने गाय-बैल और भेड़-बकरियों के पहलौठों को खाना, ताकि तू हमेशा ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना सीखे।24और अगर वह जगह जिसको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम को वहाँ क़ायम करने के लिए चुने तेरे घर से बहुत दूर हो, और रास्ता भी इस क़दर लम्बा हो कि तू अपनी दहेकी को उस हाल में जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको बरकत बख़्शे वहाँ तक न ले जा सके,25तो तू उसे बेच कर रुपये को बाँध, हाथ में लिए हुए उस जगह चले जाना जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुने।26और इस रुपये से जो कुछ तेरा जी चाहे, चाहे गाय-बैल, या भेड़-बकरी, या मय, या शराब मोल लेकर उसे अपने घराने समेत वहाँ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने खाना और ख़ुशी मनाना।27~और लावी को जो तेरे फाटकों के अन्दर है छोड़ न देना, क्यूँकि उसका तेरे साथ कोई हिस्सा या मीरास नहीं हैं।28'तीन तीन बरस के बा'द तू तीसरे बरस के माल की सारी दहेकी निकाल कर उसे अपने फाटकों के अन्दर इकट्ठा करना।29तब लावी जिसका तेरे ~साथ कोई हिस्सा या मीरास नहीं, और परदेसी और यतीम और बेवा 'औरतें जो तेरे फाटकों के अन्दर हों आएँ, और खाकर सेर हों, ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सब कामों में जिनको तू हाथ लगाये तुझको बरकत बख़्शे।
1'हर सात साल के बा'द तू ~छुटकारा दिया करना।2और छुटकारा देने का तरीक़ा ये हो, कि अगर किसी ने अपने पड़ोसी को कुछ क़र्ज़ दिया हो तो वह उसे छोड़ दे, और अपने पड़ोसी से या भाई से उसका मुताल्बा न करे; क्यूँकि ख़ुदावन्द के नाम से इस छुटकारे का 'ऐलान हुआ है।3परदेसी से तू उसका मुताल्बा कर सकता है, पर जो कुछ तेरा तेरे भाई पर आता हो उसकी तरफ़ से दस्तबरदार हो जाना।4तेरे बीच कोई कंगाल न रहे; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुझको इस मुल्क में ज़रूर बरकत बख़्शेगा, जिसे ख़ुद ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है।5बशर्ते कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात मान कर इन सब अहकाम पर चलने की एहतियात रख्खे, जो मैं आज तुझको देता हूँ।6क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, जैसा उसने तुझ से वा'दा किया है, तुझको बरकत बख़्शेगा और तू बहुत सी क़ौमों को क़र्ज़ देगा, पर तुझको उनसे क़र्ज़ लेना न पड़ेगा; और तू बहुत सी क़ौमों पर हुक्मरानी करेगा, लेकिन वह तुझ पर हुक्मरानी करने न पाएँगी।7जो मुल्क खुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है, अगर उसमें कहीं तेरे फाटकों के अन्दर तेरे भाइयों में से कोई ग़रीब हो, तो तू अपने उस ग़रीब भाई की तरफ़ से न अपना दिल सख़्त करना और न अपनी मुट्ठी बन्द कर लेना;8बल्कि उसकी ज़रूरत दूर करने को जो चीज़ उसे दरकार हो, उसके लिए तू ज़रूर खुले दिल से उसे क़र्ज़ देना।9ख़बरदार रहना कि तेरे दिल में ये बुरा ख़याल न गुज़रने पाए कि सातवाँ साल, जो छुटकारे का साल है, नज़दीक है और तेरे ग़रीब भाई की तरफ़ से तेरी नज़र बद हो जाए और तू उसे कुछ न दे; और वह तेरे ख़िलाफ़ ख़ुदावन्द से फ़रियाद करे और ये तेरे लिए गुनाह ठहरे।10बल्कि तुझको उसे ज़रूर देना होगा; और उसको देते वक़्त तेरे दिल को बुरा भी न लगे, इसलिए कि ऐसी बात की वजह से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सब कामों में, और सब मु'आमिलों में जिनको तू अपने हाथ में लेगा तुझको बरकत बख़्शेगा।11और चूँकि मुल्क में कंगाल हमेशा पाए जाएँगे, इसलिए मैं तुझको हुक्म करता हूँ कि तू अपने मुल्क में अपने भाई या'नी कंगालों और मुहताजों के लिए अपनी मुट्ठी खुली रखना।12~'अगर तेरा कोई भाई, चाहे वह 'इब्रानी मर्द हो या 'इब्रानी 'औरत तेरे हाथ बिके और वह छ: बरस तक तेरी ख़िदमत करे, तो तू सातवें साल उसको आज़ाद होकर जाने देना।13और जब तू उसे आज़ाद कर के अपने पास से रुख़्सत करे, तो उसे ख़ाली हाथ न जाने देना।14बल्कि तू अपनी भेड़ बकरी और खत्ते और कोल्हू में से दिल खोलकर उसे देना, या'नी ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने जैसी बरकत तुझको दी हो उसके मुताबिक़ उसे देना।15और याद रखना कि मुल्क-ए-मिस्र में तू भी ग़ुलाम था, और ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको छुड़ाया; इसीलिए मैं तुझको इस बात का हुक्म आज देता हूँ।16और अगर वह इस वजह से कि उसे तुझसे और तेरे घराने से मुहब्बत हो और वह तेरे साथ ख़ुशहाल हो, तुझ से कहने लगे कि मैं तेरे पास से नहीं जाता।17~तो तू एक सुतारी लेकर उसका कान दरवाज़े से लगाकर छेद देना, तो वह हमेशा तेरा ग़ुलाम बना रहेगा। और अपनी लौंडी से भी ऐसा ही करना।18और अगर तू उसे आज़ाद करके अपने पास से रुख़्सत करे तो उसे मुश्किल न गरदानना; क्यूँकि उसने दो मज़दूरों के बराबर छ: बरस तक तेरी ख़िदमत की, और ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा तेरे ~सब कारोबार में तुझको बरकत बख़्शेगा।19~"तेरे ~गाय-बैल और भेड़-बकरियों में जितने पहलौठे नर पैदा हों, उन सब को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए मुक़द्दस करना।अपने गाय-बैल के पहलौठे से कुछ काम न लेना और न अपनी भेड़-बकरी के पहलौठे के बाल कतरना।20तू उसे अपने घराने समेत ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द चुन ले, साल-ब-साल खाया करना।21~और अगर उसमें कोई नुक़्स हो मसलन वह लंगड़ा या अन्धा हो या उसमें और कोई बुरा 'ऐब हो, तो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए उसकी क़ुर्बानी न गुज़रानना।22तू उसे अपने फाटकों के अन्दर खाना। पाक और नापाक दोनों तरह के आदमी जैसे चिकारे और हिरन को खाते हैं वैसे ही उसे खाएँ।23लेकिन उसके ख़ून को हरगिज़ न खाना; बल्कि तू उसको पानी की तरह ज़मीन पर उँडेल देना।
1'तू अबीब के महीने को याद रखना और उसमें ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़सह करना क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अबीब के महीने में रात के वक़्त तुझको मिस्र से निकाल लाया।2और जिस जगह को ख़ुदावन्द अपने नाम के घर के लिए चुने, वहीं तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए अपने गाय-बैल और भेड़-बकरी में से फ़सह की क़ुर्बानी पेश करना।3~तू उसके साथ ख़मीरी रोटी न खाना, बल्कि सात दिन तक उसके साथ बेख़मीरी रोटी जो दुख की रोटी है खाना; क्यूँकि तू मुल्क-ए-मिस्र से हड़बड़ी में निकला था। यूँ तू 'उम्र भर उस दिन को जब तू मुल्क-ए-मिस्र से निकले याद रख सकेगा।4और तेरी हदों के अन्दर सात दिन तक कहीं ख़मीर नज़र न आए, और उस क़ुर्बानी में से जिसको तू पहले दिन की शाम को चढ़ाए कुछ गोश्त सुबह तक बाक़ी न रहने पाए।5तू फ़सह की क़ुर्बानी को अपने फाटकों के अन्दर, जिनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको दिया हो कहीं न चढ़ाना;6बल्कि जिस जगह को ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुनेगा, वहाँ तू फ़सह की क़ुर्बानी को उस वक़्त जब तू मिस्र से निकला था, या'नी शाम को सूरज डूबते वक़्त अदा करना।7और जिस जगह को ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुने वहीं उसे भून कर खाना और फिर सुबह को अपने-अपने ख़ेमे को लौट जाना।8छ: दिन तक बेख़मीरी रोटी खाना और सातवें दिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की ख़ातिर पाक मजमा' हो, उसमें तू कोई काम न करना।9फिर तू सात हफ़्ते यूँ गिनना, कि जब से हँसुआ लेकर फ़सल काटनी शुरू' करे~तब से सात हफ़्ते गिन लेना।10तब जैसी बरकत ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने दी हो, उसके मुताबिक़ अपने हाथ की रज़ा की क़ुर्बानी का हदिया लाकर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए हफ़्तों की 'ईद मनाना।11और उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुनेगा, तू और तेरे बेटे बेटियाँ और तेरे ग़ुलाम और लौंडियाँ और वह लावी जो तेरे फाटकों के अन्दर हो, और मुसाफ़िर और यतीम और बेवा जो तेरे बीच हों, सब मिल कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाना।12और याद रखना के तू मिस्र में ग़ुलाम था और इन हुक्मों पर एहतियात करके 'अमल करना।13जब तू अपने खलीहान और कोल्हू का माल जमा' कर चुके, तो सात दिन तक 'ईद-ए-ख़ियाम करना।14और तू और तेरे बेटे बेटियाँ और ग़ुलाम और लौंडियाँ और लावी, और मुसाफ़िर और यतीम और बेवा जो तेरे फाटकों के अन्दर हों, सब तेरी इस 'ईद में ख़ुशी मनाएँ।15सात दिन तक तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द चुने, 'ईद करना, इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सारे माल में और सब कामों में जिनको तू ~हाथ लगाये तुझको बरकत बख़्शेगा, इसलिए तू पूरी-पूरी ख़ुशी करना।16और साल में तीन बार, या'नी बेख़मीरी रोटी की 'ईद और हफ़्तों की 'ईद और 'ईद-ए-ख़ियाम के मौक़े' पर तेरे यहाँ के सब मर्द ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे, उसी जगह हाज़िर हुआ करें जिसे वह चुनेगा। और जब आएँ तो ख़ुदावन्द के सामने ख़ाली हाथ न आएँ;17बल्कि हर मर्द जैसी बरकत ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको बख़्शी हो अपनी तौफ़ीक़ के मुताबिक़ दे।18तू अपने क़बीलों की सब बस्तियों में जिनको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको दे, क़ाज़ी और हाकिम मुक़र्रर करना जो सदाक़त से लोगों की 'अदालत करें।19तू इन्साफ़ का ख़ून न करना। तू न तो किसी की रूरि'आयत करना और न रिश्वत लेना, क्यूँकि रिश्वत 'अक़्लमन्द की आँखों को अन्धा कर देती है और सादिक़ की बातों को पलट देती है।20जो कुछ बिल्कुल हक़ है तू उसी की पैरवी करना, ताकि तू ज़िन्दा रहे और उस मुल्क का मालिक बन जाये जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है।21जो मज़बह तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए बनाये उसके क़रीब किसी क़िस्म के दरख़्त की यसीरत न लगाना,22और न कोई सुतून अपने लिए खड़ा कर लेना, जिससे ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा को नफ़रत है।
1तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए कोई बैल या भेड़-बकरी, जिसमें कोई 'ऐब या बुराई हो, ज़बह मत करना क्यूँकि यह ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह है।2'अगर तेरे बीच तेरी बस्तियों में जिनको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको दे, कहीं कोई मर्द या 'औरत मिले जिसने ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने यह बदकारी की हो कि उसके 'अहद को तोड़ा हो,3और जाकर और मा'बूदों की या सूरज या चाँद या अजराम-ए-फ़लक में से किसी की, जिसका हुक्म मैंने तुझको नहीं दिया, 'इबादत और परस्तिश की हो,4~और यह बात तुझको बताई जाए और तेरे सुनने में आए, तो तू जाँफ़िशानी से तहक़ीक़ात करना और अगर यह ठीक हो और कत'ई तौर पर साबित हो जाए कि इस्राईल में ऐसा मकरूह काम हुआ,5तो तू उस मर्द या उस 'औरत को जिसने यह बुरा काम किया हो, बाहर अपने फाटकों पर निकाल ले जाना और उनको ऐसा संगसार करना कि वह मर जाएँ।6~जो वाजिब-उल-क़त्ल ठहरे वह दो या तीन आदमियों की गवाही से मारा जाए, सिर्फ़ एक ही आदमी की गवाही से वह मारा न जाए।7उसको क़त्ल करते वक़्त गवाहों के हाथ पहले उस पर उठे उसके बा'द बाक़ी सब लोगों के हाथ, यूँ तू अपने बीच से शरारत को दूर किया करना।8‘अगर तेरी बस्तियों में कहीं आपस के ख़ून या आपस के दा'वे या आपस की मार पीट के बारे में कोई झगड़े की बात उठे, और उसका फ़ैसला करना तेरे लिए निहायत ही मुश्किल हो, तो तू उठ कर उस जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुनेगा जाना।9और लावी काहिनों और उन दिनों के क़ाज़ियों के पास पहुँच कर उनसे दरियाफ़्त करना, और वह तुझको फ़ैसले की बात बताएँगे;10और तू उसी फ़ैसले के मुताबिक़ जो वह तुझको उस जगह से जिसे ख़ुदावन्द चुनेगा बताए 'अमल करना। जैसा वह तुमको सिखाएँ उसी के मुताबिक़ सब कुछ एहतियात करके मानना।11शरी'अत की जो बात वह तुझको सिखाएँ और जैसा फ़ैसला तुझको बताएँ, उसी के मुताबिक़ करना और जो कुछ फ़तवा वह दें उससे दहने या बाएँ न मुड़ना।12~और अगर कोई शख़्स गुस्ताख़ी से पेश आए कि उस काहिन की बात, जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने ख़िदमत के लिए खड़ा रहता है या उस क़ाज़ी का कहा न सुने, तो वह शख़्स मार डाला जाए और तू इस्राईल में से ऐसी बुराई को दूर कर देना।13और सब लोग सुन कर डर जाएँगे और फिर गुस्ताख़ी से पेश नहीं आएँगे।14~जब तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है पहुँच जाये,~और उस पर क़ब्ज़ा कर के वहाँ रहने और कहने लगे, कि उन क़ौमों की तरह जो मेरे चारों तरफ़ हैं मैं भी किसी को अपना बादशाह बनाऊँ|15तो तू बहरहाल सिर्फ़ उसी को अपना बादशाह बनाना जिसको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुन ले, तू अपने भाइयों में से ही किसी को अपना बादशाह बनाना, और परदेसी को जो तेरा भाई नहीं अपने ऊपर हाकिम न कर लेना।16इतना ज़रूर है कि वह अपने लिए बहुत घोड़े न बढ़ाए, और न लोगों को मिस्र में भेजे ताकि उसके पास बहुत से घोड़े हो जाएँ, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने तुमसे कहा है कि तुम उस राह से फिर कभी उधर न लौटना।17और वह बहुत सी बीवियाँ भी न रख्खे ऐसा न हो कि उसका दिल फिर जाए, और न वह अपने लिए सोना चाँदी ज़ख़ीरा करे।18~और जब वह तख़्त-ए-सल्तनत पर बैठा करे तो उस शरी'अत की जो लावी काहिनों के पास रहेगी, एक नक़ल अपने लिए एक किताब में उतार ले।19और वह उसे अपने पास रख्खे और अपनी सारी 'उम्र उसको पढ़ा करे, ताकि वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना और उस शरी'अत और आईन की सब बातों पर 'अमल करना सीखे;20~जिससे उसके दिल में ग़ुरूर न हो कि वह अपने भाइयों को हक़ीर जाने, और इन अहकाम से न तो दहने न बाएँ मुड़े; ताकि इस्राईलियों के बीच उसकी और उसकी औलाद की सल्तनत ज़माने तक रहे।
1लावी काहिनों या'नी लावी के क़बीले का कोई हिस्सा और मीरास इस्राईल के साथ न हो; वह ख़ुदावन्द की आतिशीन क़ुर्बानियाँ और उसी की मीरास खाया करें|2~इसलिए उनके भाइयों के साथ उनको मीरास न मिले; ख़ुदावन्द उनकी मीरास है, जैसा उसने ख़ुद उनसे कहा है।3और जो लोग गाय-बैल या भेड़ या बकरी की क़ुर्बानी गुज़रानते हैं उनकी तरफ़ से काहिनों का यह हक़ होगा, कि वह काहिन को शाना और कनपटियाँ और झोझ दें।4और तू अपने अनाज और मय और तेल के पहले फल में से, और अपनी भेड़ों के बाल में से जो पहली दफ़ा' कतरे जाएँ उसे देना।5~क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने उसको तेरे सब क़बीलों में से चुन लिया है, ताकि वह और उसकी औलाद हमेशा ख़ुदावन्द के नाम से ख़िदमत के लिए हाज़िर रहें।6और तेरी जो बस्तियाँ सब इस्राईलियों में हैं उनमें से अगर कोई लावी किसी बस्ती से जहाँ वह बूद-ओ-बाश करता था आए, और अपने दिल की पूरी चाहत से उस जगह हाज़िर हो जिसको ख़ुदावन्द चुनेगा:7तो अपने सब लावी भाइयों की तरह जो वहाँ ख़ुदावन्द के सामने खड़े रहते हैं, वह भी ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम से ख़िदमत करे।8और उन सबको खाने को बराबर हिस्सा मिले, 'अलावा उस क़ीमत के जो उसके बाप-दादा की मीरास बेचने से उसे हासिल हो।9जब तू उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुमको देता है पहुँच जाओ, तो वहाँ की क़ौमों की तरह मकरूह काम करने न सीखना।10तुझमें हरगिज़ कोई ऐसा न हो जो अपने बेटे या बेटी को आग में चलवाए, या फ़ालगीर या शगुन निकालने वाला या अफ़सूँगर या जादूगर11या मंतरी या जिन्नात का आशना या रम्माल या साहिर हो।12क्यूँकि वह सब जो ऐसा काम करते हैं ख़ुदावन्द के नज़दीक मकरूह हैं, और इन ही मकरूहात की वजह से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे सामने से निकालने पर है।13तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने कामिल रहना ।14क्यूँकि वह क़ौमें जिनका तू वारिस होगा शगुन निकालने वालों और फ़ालगीर की सुनती हैं; लेकिन तुझको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने ऐसा करने न दिया।15~ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे लिए तेरे ही बीच से, या'नी तेरे ही भाइयों में से मेरी तरह एक नबी खड़ा करेगा तुम उसकी सुनना;16यह तेरी उस दरख़्वास्त के मुताबिक़ होगा जो तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मजमे' के दिन होरिब में की थी, 'मुझको न तो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ फिर सुननी पड़े और न ऐसी बड़ी आग ही का नज़ारा हो, ताकि मैं मर न जाऊँ।'17और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा कि "वह जो कुछ कहते हैं इसलिए ठीक कहते हैं।18~मैं उनके लिए उन ही के भाइयों में से तेरी तरह एक नबी खड़ा करूँगा, और अपना कलाम उसके मुँह में डालूँगा, और जो कुछ मैं उसे हुक्म दूँगा वही वह उनसे कहेगा।19और जो कोई मेरी उन बातों की जिनकी वह मेरा नाम लेकर कहेगा न सुने, तो मैं उनका हिसाब उनसे लूँगा।20लेकिन जो नबी गुस्ताख़ बन कर कोई ऐसी बात मेरे नाम से कहे, जिसके कहने का मैंने उसको हुक्म नहीं दिया या और मा'बूदों के नाम से कुछ कहे, तो वह नबी क़त्ल किया जाए।'21और अगर तू अपने दिल में कहे कि ~'जो बात ख़ुदावन्द ने नहीं कही है, उसे हम क्यूँ कर पहचानें?'22तो पहचान यह है, कि जब वह नबी ख़ुदावन्द के नाम से कुछ कहे और उसके कहे कि मुताबिक़ कुछ वाक़े' या पूरा न हो, तो वह बात ख़ुदावन्द की कही हुई नहीं; बल्कि उस नबी ने वह बात ख़ुद गुस्ताख़ बन कर कही है, तू उससे ख़ौफ़ न करना।
1जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उन क़ौमों को, जिनका मुल्क ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है काट डाले, और तू उनकी जगह उनके शहरों और घरों में रहने लगे,2~तो तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है, तीन शहर अपने लिए अलग कर देना।3और तू एक रास्ता भी अपने लिए तैयार करना, और अपने उस मुल्क की ज़मीन को जिस पर ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा दिलाता है तीन हिस्से करना, ताकि हर एक ख़ूनी वहीं भाग जाए।4और उस क़ातिल का जो वहाँ भाग कर अपनी जान बचाए हाल यह हो, कि उसने अपने पड़ोसी को अनजाने में और बग़ैर उससे पुरानी दुश्मनी रख्खे मार डाला हो।5मसलन कोई शख़्स अपने पड़ोसी के साथ लकड़ियाँ काटने को जंगल में जाए और कुल्हाड़ा हाथ में उठाए ताकि दरख़्त काटे, और कुल्हाड़ा दस्ते से निकल कर उसके पड़ोसी के जा लगे और वह मर जाए, तो वह इन शहरों में से किसी में भाग कर ज़िन्दा बचे।6~कहीं ऐसा न हो कि रास्ते की लम्बाई की वजह से ख़ून का इन्तक़ाम लेने वाला अपने जोश-ए-ग़ज़ब में क़ातिल का पीछा करके उसको जा पकड़े और उसको क़त्ल करे, हालाँके वह वाजिब-उल-क़त्ल नहीं क्यूँकि उसे मक़्तूल से पुरानी दुश्मनी न थी।7इसलिए मैं तुझको हुक्म देता हूँ कि तू अपने लिए तीन शहर अलग कर देना।8और अगर ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस क़सम के मुताबिक़ जो उसने तेरे बाप-दादा से खाई, तेरी सरहद को बढ़ाकर वह सब मुल्क जिसके देने का वा'दा उसने तेरे बाप दादा से किया था तुझको दे।9और तू इन सब हुक्मों पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ ध्यान करके 'अमल करे और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख्खे और हमेशा उसकी राहों पर चले, तो इन तीन शहरों के आलावा तीन शहर और अपने लिए अलग कर देना।10ताकि तेरे मुल्क के बीच जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको मीरास में देता है, बेगुनाह का ख़ून बहाया न जाए और वह ख़ून यूँ तेरी गर्दन पर हो।11~लेकिन अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी से दुश्मनी रखता हुआ उसकी घात में लगे, और उस पर हमला कर के उसे ऐसा मारे कि वह मर जाए और वह ख़ुद उन शहरों में से किसी में भाग जाए।12~तो उसके शहर के बुज़ुर्ग लोगों को भेजकर उसे वहाँ से पकड़वा मँगवाएँ, और उसको ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले के हाथ में हवाले करें ताकि वह क़त्ल हो।13तुझको उस पर ज़रा तरस न आए, बल्कि तू इस तरह बेगुनाह के ख़ून को इस्राईल से दफ़ा' करना ताकि तेरा भला हो।14तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है,अपने पड़ोसी की हद का निशान जिसको अगले लोगों ने तेरी मीरास के हिस्से में ठहराया हो मत हटाना।15~किसी शख़्स के ख़िलाफ़ उसकी किसी बदकारी या गुनाह के बारे में जो उससे सरज़द हो, एक ही गवाह बस नहीं बल्कि दो गवाहों या तीन गवाहों के कहने से बात पक्की समझी जाए।16अगर कोई झूटा गवाह उठ कर किसी आदमी की बदी की निस्बत गवाही दे,17तो वह दोनों आदमी जिनके बीच यह झगड़ा हो, ख़ुदावन्द के सामने काहिनों और उन दिनों के क़ाज़ियों के आगे खड़े हों,18और क़ाज़ी ख़ूब तहक़ीक़ात करें, और अगर वह गवाह झूटा निकले और उसने अपने भाई के ख़िलाफ़ झूटी गवाही दी हो;19~तो जो हाल उसने अपने भाई का करना चाहा था, वही तुम उसका करना; और यूँ तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दफ़ा' कर देना।20और दूसरे लोग सुन कर डरेंगे और तेरे बीच फिर ऐसी बुराई नहीं करेंगे।21और तुझको ज़रा तरस न आए; जान का बदला जान, आँख का बदला आँख, दाँत का बदला दाँत, हाथ का बदला हाथ, और पाँव का बदला पाँव हो।
1~जब तू अपने दुश्मनों से जंग करने को जाये, और घोड़ों और रथों और अपने से बड़ी फ़ौज को देखे तो उनसे डर न जाना; क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जो तुझको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया तेरे साथ है।2~और जब मैदान-ए-जंग में तुम्हारा मुक़ाबला होने को हो तो काहिन फ़ौज के आदमियों के पास जाकर उनकी तरफ़ मुख़ातिब हो,3और उनसे कहे, 'सुनो ऐ इस्राईलियों, तुम आज के दिन अपने दुश्मनों के मुक़ाबले के लिए मैदान-ए-जंग में आए हो; इसलिए तुम्हारा दिल परेशान न हो, तुम न ख़ौफ़ करो, न काँपों, न उनसे दहशत खाओ।4~क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे साथ-साथ चलता है, ताकि तुमको बचाने को तुम्हारी तरफ़ से तुम्हारे दुश्मनों से जंग करे।"5~फिर फ़ौजी अफ़सरान लोगों से यूँ कहें कि 'तुम में से जिस किसी ने नया घर बनाया हो और उसे मख़्सूस न किया हो तो वह अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह जंग में क़त्ल हो और दूसरा शख़्स उसे मख़्सूस करे।6और जिस किसी ने ताकिस्तान लगाया हो लेकिन अब तक उसका फल इस्ते'माल न किया हो वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह जंग में मारा जाए और दूसरा आदमी उसका फल खाए।7और जिसने किसी 'औरत से अपनी मंगनी तो कर ली हो लेकिन उसे ब्याह कर नहीं लाया है वह अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह लड़ाई में मारा जाए और दूसरा मर्द उससे ब्याह करे।'8और फ़ौजी हाकिम लोगों की तरफ़ मुख़ातिब हो कर उनसे यह भी कहें कि 'जो शख़्स डरपोक और कच्चे दिल का हो वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि उसकी तरह उसके भाइयों का हौसला भी टूट जाए।'9और जब फ़ौजी हाकिम यह सब कुछ लोगों से कह चुकें, तो लश्कर के सरदारों को उन पर मुक़र्रर कर दें।10जब तू किसी शहर से जंग करने को उसके नज़दीक पहुँचे, तो पहले उसे सुलह का पैग़ाम देना।11और अगर वह तुझको सुलह का जवाब दे और अपने फाटक तेरे लिए खोल दे, तो वहाँ के सब बाशिन्दे तेरे बाजगुज़ार बन कर तेरी ख़िदमत करें।12~और अगर वह तुझसे सुलह न करें बल्कि तुझसे लड़ना चाहें, तो तुम उसका मुहासिरा करना;13और जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उसे तेरे क़ब्ज़े में कर दे तो वहाँ के हर मर्द को तलवार से क़त्ल कर डालना।14~लेकिन 'औरतों और बाल बच्चों और चौपायों और उस शहर का सब माल और लूट को अपने लिए रख लेना, और तू अपने दुश्मनों की उस लूट को जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको दी हो खाना।15उन सब शहरों का यही हाल करना जो तुझसे बहुत दूर हैं और इन क़ौमों के शहर नहीं हैं।16लेकिन इन क़ौमों के शहरों में जिनको ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको देता है, किसी आदमीं को ज़िन्दा न बाक़ी रखना।17बल्कि तू इनको या'नी हित्ती और अमोरी और कना'नी और फ़रिज़्ज़ी और हव्वी और यबूसी क़ौमों को, जैसा ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको हुक्म दिया है बिल्कुल हलाक कर देना।18~ताकि वह तुमको अपने से मकरूह काम करने न सिखाएँ जो उन्होंने अपने मा'बूदों के लिए किए हैं, और यूँ तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ गुनाह करने लगो।19जब तू किसी शहर को फ़तह करने के लिए उससे जंग करे और ज़माने तक उसको घेरे रहे, तो उसके दरख़्तों को कुल्हाड़ी से न काट डालना क्यूँकि उनका फल तेरे खाने के काम में आएगा इसलिए तू उनको मत काटना। क्यूँकि क्या मैदान का दरख़्त इन्सान है कि तू उसको घेरे रहे?20इसलिए सिर्फ़ उन्हीं दरख्तों को काट कर उड़ा देना जो तेरी समझ में खाने के मतलब के न हों, और तू उस शहर के सामने जो तुझसे जंग करता हो बुर्जों को बना लेना जब तक वह सर न हो जाए।
1अगर उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है, किसी मक़्तूल की लाश मैदान में पड़ी हुई मिले और यह मा'लूम न हो कि उसका क़ातिल कौन है;2तो तेरे बुज़ुर्ग और क़ाज़ी निकल कर उस मक़्तूल के चारों तरफ़ के शहरों के फ़ासले को नापें,3और जो शहर उस~मक़्तूल~के सब से नज़दीक हो, उस शहर के बुज़ुर्ग एक बछिया लें जिससे कभी कोई काम न लिया गया~हो और न वह जुए में जोती गई हो;4और उस शहर के बुज़ुर्ग उस बछिया को बहते पानी की वादी में, जिसमें न हल चला हो और न उसमें कुछ बोया गया हो ले जाएँ, और वहाँ उस वादी में उस बछिया की गर्दन तोड़ दें।5तब बनी लावी जो काहिन है नज़दीक आयें क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने उनको चुन लिया है कि ख़ुदावन्द की ख़िदमत करें और उसके नाम से बरकत दिया करें, और उन ही के कहने के मुताबिक़ हर झगड़े और मार पीट के मुक़द्दमे का फ़ैसला हुआ करे।6फिर इस शहर के सब बुज़ुर्ग जो उस मक़्तूल के सब से नज़दीक रहने वाले हों, उस बछिया के ऊपर जिसकी गर्दन उस वादी में तोड़ी गई अपने अपने हाथ धोएँ,7और यूँ कहें, 'हमारे हाथ से यह ख़ून नहीं हुआ और न यह हमारी आँखों का देखा हुआ है।8इसलिए ऐ ख़ुदावन्द, अपनी क़ौम इस्राईल को जिसे तुने छुड़ाया है मु'आफ़ कर, और बेगुनाह के ख़ून को अपनी क़ौम इस्राईल के ज़िम्में न लगा।' तब वह ख़ून उनको मु'आफ़ कर दिया जाएगा।9यूँ तू उस काम को करके जो ख़ुदावन्द के नज़दीक दुरुस्त है, बेगुनाह के ख़ून की जवाबदेही को अपने ऊपर से दूर-ओ-दफ़ा' करना।10~'जब तू अपने दुश्मनों से जंग करने को निकले और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे ~हाथ में कर दे, और तू उनको ग़ुलाम कर लाए,11और उन ग़ुलामों में किसी ख़ूबसूरत 'औरत को देख कर तुम उस पर फ़रेफ़्ता हो जाओ और उसको ब्याह लेना चाहो,12तो तू उसे अपने घर ले आना और वह अपना सिर मुण्डवाए और अपने नाख़ून तरशवाए,13और अपनी ग़ुलामी का लिबास उतार कर तेरे घर में रहे और एक महीने तक अपने माँ बाप के लिए मातम करे; इसके बा'द तू उसके पास जाकर उसका शौहर होना और वह तेरी बीवी बने।14और अगर वह तुझको न भाए तो जहाँ वह चाहे उसको जाने देना, लेकिन रुपये की ख़ातिर उसको हरगिज़ न बेचना और उससे लौंडी का सा सुलूक न करना, इसलिए कि तूने उसकी हुरमत ले ली है।15~'अगर किसी मर्द की दो बीवियाँ हों और एक महबूबा और दूसरी ग़ैर महबूबा हो, और महबूबा और ग़ैर महबूबा दोनों से लड़के हों और पहलौठा बेटा ग़ैर महबूबा से हो,16तो जब वह अपने बेटों को अपने माल का वारिस करे, तो वह महबूबा के बेटे को ग़ैर महबूबा के बेटे पर जो हक़ीक़त में पहलौठा है तर्जीह देकर पहलौठा न ठहराए।17बल्कि वह ग़ैर महबूबा के बेटे को अपने सब माल का दूना हिस्सा दे कर उसे पहलौठा माने, क्यूँकि वह उसकी क़ुव्वत की शुरू'आत है और पहलौठे का हक़ उसी का है।18अगर किसी आदमी का ज़िद्दी और बाग़ी, बेटा हो, जो अपने बाप या माँ की बात न मानता हो और उनके तम्बीह करने पर भी उनकी न सुनता हो,19~तो उसके माँ बाप उसे पकड़ कर और निकाल कर उस शहर के बुज़ुर्गों के पास उस जगह के फाटक पर ले जाएँ,20और वह उसके शहर के बुज़ुर्गों से 'अर्ज़ करें कि यह हमारा बेटा ज़िद्दी और बाग़ी है, यह हमारी बात नहीं मानता और उड़ाऊ और शराबी है।21~तब उसके शहर के सब लोग उसे संगसार करें कि वह मर जाए, यूँ तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दूर करना। तब सब इस्राईली सुन कर डर जाएँगे।22और अगर किसी ने कोई ऐसा गुनाह किया हो जिससे उसका क़त्ल वाजिब हो, और तू उसे मारकर दरख़्त से टाँग दे,23~तो उसकी लाश रात भर दरख़्त पर लटकी न रहे बल्कि तू उसी दिन उसे दफ़्न कर देना, क्यूँकि जिसे फाँसी मिलती है वह ख़ुदा की तरफ़ से मला'ऊन है; ऐसा न हो कि तू उस मुल्क को नापाक कर दे जिसे खुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको मीरास के तौर पर देता है।
1~तू अपने भाई के बैल या भेड़ को भटकती देख कर उस से मुँह न फेरना, बल्कि ज़रूर तू उसको अपने भाई के पास पहुँचा देना।2और अगर तेरा भाई तेरे नज़दीक न रहता हो या तू उससे वाक़िफ़ न हो, तो तू उस जानवर को अपने घर ले आना और वह तेरे पास रहे जब तक तेरा भाई उसकी तलाश न करे, तब तू उसे उसको दे देना।3तू उसके गधे और उसके कपड़े से भी ऐसा ही करना; ग़रज़ जो कुछ तेरे भाई से खोया जाए और तुझको मिले, तू उससे ऐसा ही करना और मुँह न फेरना।4तू अपने भाई का गधा या बैल रास्ते में गिरा हुआ देखकर उससे मुँह न फेरना, बल्कि ज़रूर उसके उठाने में उसकी~मदद करना।5~'औरत मर्द का लिबास न पहने और न मर्द 'औरत की पोशाक पहने, क्यूँकि जो ऐसा काम करता है वह ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह है।6~अगर राह चलते अचानक किसी परिन्दे का घोंसला दरख़्त या ज़मीन पर बच्चों या अण्डों के साथ तुझको मिल जाए, और माँ बच्चों या अण्डों पर बैठी हुई हो तो तू बच्चों को माँ के साथ न पकड़ लेना;7बच्चों को तू ले तो ले लेकिन माँ को ज़रूर छोड़ देना, ताकि तेरा भला हो और तेरी 'उम्र दराज़ हो।8जब तू कोई नया घर बनाये तो अपनी छत पर मुण्डेर ज़रूर लगाना, ऐसा न हो कि कोई आदमी वहाँ से गिरे और तेरी वजह से वह ख़ून तेरे ही घरवालों पर हो।9तू अपने ताकिस्तान में दो क़िस्म के बीज न बोना, ऐसा न हो कि सारा फल या'नी जो बीज तूने बोया और ताकिस्तान की पैदावार दोनों ज़ब्त कर लिए जाएँ।10~तू बैल और गधे दोनों को एक साथ जोत कर हल न चलाना।11~तू ऊन और सन दोनों की मिलावट का बुना हुआ कपड़ा न पहनना।12तू अपने ओढ़ने की चादर के चारों किनारों पर झालर लगाया करना।13'अगर कोई मर्द किसी 'औरत को ब्याहे और उसके पास जाए, और बा'द उसके उससे नफ़रत करके,14शर्मनाक बातें उसके हक़ में कहे और उसे बदनाम करने के लिए यह दा'वा करे कि 'मैंने इस 'औरत से ब्याह किया, और जब मैं उसके पास गया तो मैंने कुँवारेपन के निशान उसमें नहीं पाए।'15~तब उस लड़की का बाप और उसकी माँ उस लड़की के कुँवारेपन के निशानों को उस शहर के फाटक पर बुज़ुर्गों के पास ले जाएँ,16~और उस लड़की का बाप बुज़ुर्गों से कहे कि 'मैंने अपनी बेटी इस शख़्स को ब्याह दी, लेकिन यह उससे नफ़रत रखता है;17और शर्मनाक बातें उसके हक़ में कहता है, और यह दा'वा करता है कि मैंने तेरी बेटी में कुँवारेपन के निशान नहीं पाए; हालाँकि मेरी बेटी के कुँवारेपन के निशान यह मौजूद हैं।' फिर वह उस चादर को शहर के बुज़ुर्गों के आगे फैला दें।18~तब शहर के बुज़ुर्ग उस शख़्स को पकड़ कर उसे कोड़े लगाएँ,19और उससे चाँदी के सौ मिस्क़ाल जुर्माना लेकर उस लड़की के बाप को दें, इसलिए कि उसने एक इस्राईली कुँवारी को बदनाम किया; और वह उसकी बीवी बनी रहे और वह ज़िन्दगी भर उसको तलाक़ न देने पाए।20लेकिन अगर यह बात सच हो कि लड़की में कुँवारेपन के निशान नहीं पाए गए,21तो वह उस लड़की को उसके बाप के घर के दरवाज़े पर निकाल लाएँ, और उसके शहर के लोग उसे संगसार करें कि वह मर जाए; क्यूँकि उसने इस्राईल के बीच शरारत की, कि अपने बाप के घर में फ़ाहिशापन किया। यूँ~तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दफ़ा' करना ।22~अगर कोई मर्द किसी शौहर वाली 'औरत से ज़िना करते पकड़ा जाए तो वह दोनों मार डाले जाएँ, या'नी वह मर्द भी जिसने उस 'औरत से सुहबत की और वह 'औरत भी; यूँ तू इस्राईल में से ऐसी बुराई को दफ़ा' करना।23~अगर कोई कुंवारी लड़की किसी शख़्स से मन्सूब हो गई हो, और कोई दूसरा आदमी उसे शहर में पाकर उससे सुहबत करे;24तो तू उन दोनों को उस शहर के फाटक पर निकाल लाना, और उनको तू संगसार कर देना कि वह मर जाएँ, लड़की को इसलिए कि वह शहर में होते हुए न चिल्लाई, और मर्द को इसलिए कि उसने अपने पड़ोसी की बीवी को बेहुरमत किया। यूँ तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दफ़ा' करना।25लेकिन अगर उस आदमी को वही लड़की जिसकी निस्बत हो चुकी हो किसी मैदान या खेत में मिल जाए, और वह आदमी जबरन उससे सुहबत करे, तो सिर्फ़ वह आदमी ही जिसने सुहबत की मार डाला जाए:26~लेकिन उस लड़की से कुछ न करना क्यूँकि लड़की का ऐसा गुनाह नहीं जिससे वह क़त्ल के लायक ठहरे, इसलिए कि यह बात ऐसी है जैसे कोई अपने पड़ोसी पर हमला करे और उसे मार डाले।27~क्यूँकि वह लड़की उसे मैदान में मिली और वह मन्सूबा लड़की चिल्लाई भी लेकिन वहाँ कोई ऐसा न था जो उसे छुड़ाता।28अगर किसी आदमी को कोई कुँवारी लड़की मिल जाए जिसकी निस्बत न हुई हो, और वह उसे पकड़कर उससे सुहबत करे और दोनों पकड़े जाएँ,29~तो वह मर्द जिसने उससे सुहबत की हो, लड़की के बाप को चाँदी के पचास मिस्क़ाल दे और वह लड़की उसकी बीवी बने; क्यूँकि उसने उसे बेहुरमत किया, और वह उसे अपनी जिन्दगी भर तलाक़ न देने पाए।30~कोई शख़्स अपने बाप की बीवी से ब्याह न करे और अपने बाप के दामन को न खोले।
1जिसके ख़ुसिये कुचले गए हों या आलत काट डाली गई हो, वह ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने न पाए।2कोई हरामज़ादा ख़ुदावन्द की जमा'अत में दाख़िल न हो, दसवीं नसल तक उसकी नसल में से कोई ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने न पाए।3कोई 'अम्मोनी या मोआबी ख़ुदावन्द की जमा'अत में दाख़िल न हो, दसवीं नसल तक उनकी नसल में से कोई ख़ुदावन्द की जमा'अत में कभी आने न पाए;4~इसलिए कि जब तुम मिस्र से निकल कर आ रहे थे तो उन्होंने रोटी और पानी लेकर रास्ते में तुम्हारा इस्तक़बाल नहीं किया, बल्कि ब'ओर के बेटे बल'आम को मसोपतामिया के फ़तोर से उजरत पर बुलवाया ताकि वह तुझ पर ला'नत करे।5लेकिन ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने बल'आम की न सुनी, बल्कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तेरे लिए उस ला'नत को बरकत से बदल दिया इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा को तुझसे मुहब्बत थी।6तू अपनी ज़िन्दगी भर कभी उनकी सलामती या स'आदत की चाहत न रखना।7तू किसी अदोमी से नफ़रत न रखना, क्यूँकि वह तेरा भाई है; तू किसी मिस्री से भी नफ़रत न रखना, क्यूँकि तू उसके मुल्क में परदेसी हो कर रहा था।8उनकी तीसरी नसल के जो लड़के पैदा हों वह ख़ुदावन्द की जमा'अत में आने पाएँ।9जब तू अपने दुश्मनों से लड़ने के लिए दल बाँध कर निकले तो अपने को हर बुरी चीज़ से बचाए रखना।10अगर तुम्हारे बीच कोई ऐसा आदमी हो जो रात को एहतिलाम की वजह से नापाक हो गया हो, तो वह खे़मागाह से बाहर निकल जाए और खे़मागाह के अन्दर न आए;11लेकिन जब शाम होने लगे तो वह पानी से गु़स्ल करे, और जब आफ़ताब गु़रूब हो जाए तो ख़ेमागाह में आए।12और ख़ेमागाह के बाहर तू कोई जगह ऐसी ठहरा देना, जहाँ तू अपनी हाजत के लिए जा सके;13और अपने साथ अपने हथियारों में एक मेख़ भी रखना, ताकि जब बाहर तुझे हाजत के लिए बैठना हो तो उससे जगह खोद लिया करे और लौटते वक़्त अपने फुज़ले को ढाँक दिया करे।14इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरी ख़ेमागाह में फिरा करता है ताकि तुझको बचाए, और तेरे दुश्मनों को तेरे हाथ में कर दे; इसलिए तेरी ख़ेमागाह पाक रहे, ऐसा न हो कि वह तुझमें नजासत को देख कर तुझ से फिर जाए।15अगर किसी का ग़ुलाम अपने आक़ा के पास से भाग कर तेरे पास पनाह ले, तो तू उसे उसके आक़ा के हवाले न कर देना;16बल्कि वह तेरे साथ तेरे ही बीच तेरी बस्तियों में से, जो उसे अच्छी लगे उसे चुन कर उसी जगह रहे; इसलिए तू उसे हरगिज़ न सताना।17इस्राईली लड़कियों में कोई फ़ाहिशा न हो, और न इस्राईली लड़कों में कोई लूती हो।18~तू किसी फ़ाहिशा की ख़र्ची या कुत्ते की मज़दूरी, किसी मिन्नत के लिए ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में न लाना; क्यूँकि ये दोनों ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह हैं।19तू अपने भाई को सूद पर क़र्ज़ न देना, चाहे वह रुपये का सूद ~हो या अनाज का सूद या किसी ऐसी चीज़ का सूद हो जो ब्याज पर दी जाया करती है।20तू परदेसी को सूद पर क़र्ज़ दे तो दे, लेकिन अपने भाई को सूद पर क़र्ज़ न देना; ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में जिस पर तू क़ब्ज़ा करने जा रहा है, तेरे सब कामों में जिनको तू हाथ लगाए तुझको बरकत दे।21जब तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की ख़ातिर मिन्नत माने तो उसके पूरा करने में देर न करना, इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ज़रूर उसको तुझसे तलब करेगा तब तू गुनहगार ठहरेगा।22लेकिन अगर तू मिन्नत न माने तो तेरा कोई गुनाह नहीं |23जो कुछ तेरे मुँह से निकले उसे ध्यान कर के पूरा करना, और जैसी मिन्नत तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए मानी हो, उसके मुताबिक़ रज़ा की क़ुर्बानी जिसका वा'दा तेरी ज़बान से हुआ अदा करना।24~जब तू अपने पड़ोसी के ताकिस्तान में जाए, तो जितने अंगूर चाहे पेट भर कर खाना, लेकिन कुछ अपने बर्तन में न रख लेना।25जब तू अपने पड़ोसी के खड़े खेत में जाए, तो अपने हाथ से बालें तोड़ सकता है लेकिन अपने पड़ोसी के खड़े खेत को हँसुआ न लगाना।
1~अगर कोई मर्द किसी 'औरत से ब्याह करे और पीछे उसमे कोई ऐसी बेहूदा बात पाए जिससे उस 'औरत की तरफ़ उसकी उनसियत न रहे, तो वह उसका तलाक़ नामा लिख कर उसके हवाले करे और उसे अपने घर से निकाल दे।2~और जब वह उसके घर से निकल जाए, तो वह दूसरे मर्द की हो सकती है।3लेकिन अगर दूसरा शौहर भी उससे नाख़ुश रहे, और उसका तलाक़नामा लिखकर उसके हवाले करे और उसे अपने घर से निकाल दे या वह दूसरा शौहर जिसने उससे ब्याह किया हो मर जाए,4तो उसका पहला शौहर जिसने उसे निकाल दिया था उस 'औरत के नापाक हो जाने के बा'द फिर उससे ब्याह न करने पाए, क्यूँकि ऐसा काम ख़ुदावन्द के नज़दीक मकरूह है। इसलिए तू उस मुल्क को जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको देता है, गुनाहगार न बनाना।5~जब किसी ने कोई नई 'औरत ब्याही हो, तो वह जंग के लिए न जाए और न कोई काम उसके सुपुर्द हो। वह साल भर तक अपने ही घर में आज़ाद रह कर अपनी ब्याही हुई बीवी को ख़ुश रख्खे।6कोई शख़्स चक्की को या उसके ऊपर के पाट को गिरवी न रख्खे, क्यूँकि यह तो जैसे आदमी की जान को गिरवी रखना है।7~अगर कोई शख़्स अपने इस्राईली भाइयों में से किसी को ग़ुलाम बनाए या बेचने की नियत से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो वह चोर मार डाला जाए। यूँ तू ऐसी बुराई अपने बीच से दफ़ा' करना।8~तू कोढ़ की बीमारी की तरफ़ से होशियार रहना, और लावी काहिनों की सब बातों को जो वह तुमको बताएँ जानफ़िशानी से मानना और उनके मुताबिक़ 'अमल करना; जैसा मैंने उनको हुक्म किया है वैसा ही ध्यान देकर करना।9तू याद रखना कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे, तो रास्ते में मरियम से क्या किया।10~जब तू अपने भाई को कुछ क़र्ज़ दे, तो गिरवी की चीज़ लेने को उसके घर में न घुसना।11~तू बाहर ही खड़े रहना, और वह शख़्स जिसे तू ~क़र्ज़ दे खु़द गिरवी की चीज़ बाहर तेरे पास लाए।12और अगर वह शख़्स ग़रीब हो, तो उसकी गिरवी की चीज़ को पास रखकर सो न जाना;13बल्कि जब आफ़ताब गु़रूब होने लगे, तो उसकी चीज़ उसे लौटा देना ताकि वह अपना ओढ़ना ओढ़कर सोए और तुझको दु'आ दे; और यह बात तेरे लिए ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने रास्तबाज़ी ठहरेगी।14~तू अपने ग़रीब और मोहताज ख़ादिम पर जु़ल्म न करना, चाहे वह तेरे भाइयों में से हो चाहे उन परदेसियों में से जो तेरे मुल्क के अन्दर तेरी बस्तियों में रहते हों।15~तू उसी दिन इससे पहले कि आफ़ताब ग़ुरूब हो उसकी मज़दूरी उसे देना, क्यूँकि वह ग़रीब है और उसका दिल मज़दूरी में लगा रहता है; ऐसा न हो कि वह ख़ुदावन्द से तेरे ख़िलाफ़ फ़रियाद करे और यह तेरे हक़ में गुनाह ठहरे।16बेटों के बदले बाप मारे न जाएँ न बाप के बदले बेटे मारे जाएँ। हर एक अपने ही गुनाह की वजह से मारा जाए।17तू परदेसी या यतीम के मुक़द्दमे को न बिगाड़ना, और न बेवा के कपड़े को गिरवी रखना;18~बल्कि याद रखना कि तू मिस्र में ग़ुलाम था, और ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको वहाँ से छुड़ाया; इसीलिए मैं तुझको इस काम के करने का हुक्म देता हूँ।19~जब तू अपने खेत की फ़सल काटे और कोई पूला खेत में भूल से रह जाए, तो उसके लेने को वापस न जाना, वह परदेसी और यतीम और बेवा के लिए रहे; ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सब कामों में जिनको तू हाथ लगाये तुझको बरकत बख़्शे।20जब तू अपने ज़ैतून के दरख़्त को झाड़े, तो उसके बा'द उसकी शाख़ों को दोबारा न झाड़ना; बल्कि वह परदेसी और यतीम और बेवा के लिए रहें।21~जब तू अपने ताकिस्तान के अंगूरों को जमा' करे , तो उसके बा'द उसका दाना-दाना न तोड़ लेना; वह परदेसी और यतीम और बेवा के लिए रहे।22और याद रखना कि तू मुल्क-ए-मिस्र में ग़ुलाम था; इसी लिए मैं तुझको इस काम के करने का हुक्म देता हूँ।
1~अगर लोगों में किसी तरह का झगड़ा हो और वह 'अदालत में आएँ ताकि क़ाज़ी उनका इन्साफ़ करें, तो वह सादिक़ को बेगुनाह ठहराएँ और शरीर पर फ़तवा दें।2~और अगर वह शरीर पिटने के लायक़ निकले, तो क़ाज़ी उसे ज़मीन पर लिटवाकर अपनी आँखों के सामने उसकी शरारत के मुताबिक़ उसे गिन गिनकर कोड़े लगवाए।3वह उसे चालीस कोड़े लगाए, इससे ज़्यादा न मारे; ऐसा न हो कि इससे ज़्यादा कोड़े लगाने से तेरा भाई तुझको हक़ीर मा'लूम देने लगे।4~तू दाएँ में चलते हुए बैल का मुँह न बाँधना।5अगर कोई भाई मिलकर साथ रहते हों और एक उनमें से बे-औलाद मर जाए, तो उस मरहूम की बीवी किसी अजनबी से ब्याह न करे; बल्कि उसके शौहर का भाई उसके पास जाकर उसे अपनी बीवी बना ले, और शौहर के भाई का जो हक़ है वह उसके साथ अदा करे।6और उस 'औरत के जो पहला बच्चा हो वह इस आदमी के मरहूम भाई के नाम का कहलाए, ताकि उसका नाम इस्राईल में से मिट न जाए।7और अगर वह आदमी अपनी भावज से ब्याह करना न चाहे, तो उसकी भावज फाटक पर बुज़ुर्गों के पास जाए और कहे, 'मेरा देवर इस्राईल में अपने भाई का नाम बहाल रखने से इनकार करता है, और मेरे साथ देवर का हक़ अदा करना नहीं चाहता।'8तब उसके शहर के बुज़ुर्ग उस आदमी को बुलवाकर उसे समझाएँ, और अगर वह अपनी बात पर क़ायम रहे और कहे, 'मुझको उससे ब्याह करना मंज़ूर नहीं।'9तो उसकी भावज बुज़ुर्गों के सामने उसके पास जाकर उसके पावों से जूती उतारे, और उसके मुँह पर थूक दे और यह कहे, 'जो आदमी अपने भाई का घर आबाद न करे उससे ऐसा ही किया जाएगा।'10तब इस्राईलियों में उसका नाम यह पड़ जाएगा, कि यह उस शख़्स का घर है जिसकी जूती उतारी गई थी।11~जब दो शख़्स आपस में लड़ते हों और एक की बीवी पास जाकर अपने शौहर को उस आदमी के हाथ से छुड़ाने के लिए जो उसे मारता हो अपना हाथ बढ़ाए और उसकी शर्मगाह को पकड़ ले,12तो तू उसका हाथ काट डालना और ज़रा तरस न खाना।13तू अपने थैले में तरह-तरह के छोटे और बड़े बाट न रखना।14तू अपने घर में तरह-तरह के छोटे और बड़े पैमाने भी न रखना।15तेरा बाट पूरा और ठीक और तेरा पैमाना भी पूरा और ठीक हो, ताकि उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है तेरी 'उम्र दराज़ हो।16इसलिए कि वह सब जो ऐसे ऐसे फ़रेब के काम करते हैं, ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नज़दीक मकरूह हैं।17याद रखना कि जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे तो रास्ते में 'अमालीकियों ने तेरे साथ क्या किया।18क्यूँकि वह रास्ते में तेरे सामने आए और जबकि तू थका माँदा था, तोभी उन्होंने उनको जो कमज़ोर और सब से पीछे थे मारा, और उनको ख़ुदा का ख़ौफ़ न आया।19~इसलिए जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में, जिसे ख़ुदावन्द तेरा ~ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है, तेरे सब दुश्मनों से जो आस-पास हैं तुझको राहत बख़्शे, तो तू 'अमालीकियों के नाम-ओ-निशान को सफ़ह-ए-रोज़गार से मिटा देना; तू इस बात को न भूलना।
1~और जब तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको मीरास के तौर पर देता है पहुँचे, और उस पर क़ब्ज़ा~कर के उस में बस जाये;2~तब जो मुल्क ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है उसकी ज़मीन में जो क़िस्म-क़िस्म की चीज़े तू लगाये, उन सब के पहले फल को एक टोकरे में रख कर उस जगह ले जाना जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुने।3और उन दिनों के काहिन के पास जाकर उससे कहना, 'आज के दिन मैं ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने इक़रार करता हूँ, कि मैं उस मुल्क में जिसे हमको देने की क़सम ख़ुदावन्द ने हमारे बाप-दादा से खाई थी आ गया हूँ।'4तब काहिन तेरे हाथ से उस टोकरे को लेकर ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के मज़बह के आगे रख्खे।5फिर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने यूँ कहना, 'मेरा बाप एक अरामी था जो मरने पर था, वह मिस्र में जाकर वहाँ रहा और उसके लोग थोड़े से थे, और वहीं वह एक बड़ी और ताक़तवर और ज़्यादा ता'दाद वाली क़ौम बन गयी।6~फिर मिस्रियों ने हमसे बुरा सुलूक किया और हमको दुख दिया और हमसे सख़्त-ख़िदमत ली।7और हमने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के सामने फ़रियाद की, तो ख़ुदावन्द ने हमारी फ़रियाद सुनी और हमारी मुसीबत और मेहनत और मज़लूमी देखी।8और ख़ुदावन्द क़वी हाथ और बलन्द बाज़ू से बड़ी हैबत और निशानों और मो'जिज़ों के साथ हमको मिस्र से निकाल लाया।9और हमको इस जगह लाकर उसने यह मुल्क जिसमें दूध और शहद बहता है हमको दिया है।10इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द, देख, जो ज़मीन तूने मुझको दी है, उसका पहला फल मैं तेरे पास ले आया हूँ।' फिर तू उसे ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे रख देना और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा करना।11और तू और लावी और जो मुसाफ़िर तेरे बीच रहते हों, सब के सब मिल कर उन सब ने'मतों के लिए, जिनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको और तेरे घराने को बख़्शा हो ख़ुशी करना।12और जब तू तीसरे साल जो दहेकी का साल है अपने सारे माल की दहेकी निकाल चुके, तो उसे लावी और मुसाफ़िर और यतीम और बेवा को देना ताकि वह उसे तेरी बस्तियों में खाएँ और सेर हों।13फिर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे यूँ कहना, 'मैंने तेरे हुक्मों के मुताबिक़ जो तूने मुझे दिए मुक़द्दस चीज़ों को अपने घर से निकाला और उनको लावियों और मुसाफ़िरों और यतीमों और बेवाओं को दे भी दिया: और मैंने तेरे किसी हुक्म को नहीं टाला और न उनको भूला।14और मैंने अपने मातम के वक़्त उन चीज़ों में से कुछ नहीं खाया, और नापाक हालत में उनको अलग नहीं किया, और न उनमें से कुछ मुर्दों के लिए दिया। मैंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात मानी है, और जो कुछ तूने हुक्म दिया उसी के मुताबिक़ 'अमल किया।15आसमान पर से जो तेरा मुक़द्दस घर है नज़र कर और अपनी क़ौम इस्राईल को और उस मुल्क को बरकत दे, जिस मुल्क में दूध और शहद बहता है और जिसको तूने उस क़सम के मुताबिक़ जो तूने हमारे बाप दादा से खाई हमको 'अता किया है।16~खुदावन्द तेरा खुदा, आज तुझको इन आईन और अहकाम के मानने का हुक्म देता है; इसलिए तू अपने सारे दिल और सारी जान से इनको मानना और इन पर 'अमल करना।17~तूने आज के दिन इक़रार किया है कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा है, और तू उसकी राहों पर चलेगा, और उसके आईन और फ़रमान और अहकाम को मानेगा, और उसकी बात सुनेगा।18और ख़ुदावन्द ने भी आज के दिन तुझको, जैसा उसने वा'दा किया था, अपनी ख़ास क़ौम क़रार दिया है ताकि तू उसके सब हुक्मों को माने;19और वह सब क़ौमों से, जिनको उसने पैदा किया है, ता'रीफ़ और नाम और 'इज़्ज़त में तुझको मुम्ताज़ करे; और तू उसके कहने के मुताबिक़ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की पाक क़ौम बन जाये।"
1~फिर मूसा ने बनी-इस्राईल के बुज़ुर्गों के साथ हो कर लोगों से कहा कि "जितने हुक्म आज के दिन मैं तुमको देता हूँ उन सब को मानना।2और जिस दिन तुम यरदन पार हो कर उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है पहुँचो, तो तू बड़े-बड़े पत्थर खड़े करके उन पर चूने की अस्तरकारी करना;3और पार हो जाने के बा'द इस शरी'अत की सब बातें उन पर लिखना, ताकि उस वा'दे के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द तेरे बाप-दादा के ख़ुदा ने तुझ से किया, उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है या'नी उस मुल्क में जहाँ दूध और शहद बहता है तू पहुँच जाये।4इसलिए तुम यरदन के पार हो कर उन पत्थरों को जिनके बारे में मैं तुमको आज के दिन हुक्म देता हूँ, कोह-ए-'ऐबाल पर नस्ब करके उन पर चूने की अस्तरकारी करना।5और वहीं तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए पत्थरों का एक मज़बह बनाना, और लोहे का कोई औज़ार उन पर न लगाना।6और तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का मज़बह बे तराशे पत्थरों से बनाना, और उस पर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करना।7और वहीं सलामती की क़ुर्बानियाँ अदा करना और उनको खाना और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाना।8और उन पत्थरों पर इस शरी'अत की सब बातें साफ़-साफ़ लिखना।"9फिर मूसा और लावी काहिनों ने सब बनी-इस्राईल से कहा, "ऐ इस्राईल, ख़ामोश हो जा और सुन, तू आज के दिन ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की क़ौम बन गया है।10~इसलिए तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुनना और उसके सब आईन और अहकाम पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ 'अमल करना।"11और मूसा ने उसी दिन लोगों से ताकीद करके कहा कि;12"जब तुम यरदन पार हो जाओ, तो कोह-ए-गरिज़ीम पर शमा'ऊन, और लावी, और यहूदाह, और इश्कार,और यूसुफ़, और बिनयमीन खड़े हों और लोगों को बरकत सुनाएँ।13और रूबिन, और जद्द, और आशर, और जबूलून, और दान, और नफ़्ताली कोह-ए-'ऐबाल पर खड़े होकर ला'नत सुनाएँ।14और लावी बलन्द आवाज़ से सब इस्राईली आदमियों से कहें कि :15~'ला'नत उस आदमी पर जो कारीगरी की सन'अत की तरह खोदी हुई या ढाली हुई मूरत बना कर जो ख़ुदावन्द के नज़दीक मकरूह है, उसको किसी पोशीदा जगह में नस्ब करे।' और सब लोग जवाब दें और कहें, 'आमीन।'16~'ला'नत उस पर जो अपने बाप या माँ को हक़ीर जाने।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'17~'ला'नत उस पर जो अपने पड़ोसी की हद के निशान को हटाये |' और सब लोग कहें, 'आमीन|'18~'ला'नत उस पर जो अन्धे को रास्ते से गुमराह करे।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'19'ला'नत उस पर जो परदेसी और यतीम और बेवा के मुक़द्दमे को बिगाड़े।" और सब लोग कहें, 'आमीन।'20~'ला'नत उस पर जो अपने बाप की बीवी से मुबाश्रत करे, क्यूँकि वह अपने बाप के दामन को बेपर्दा करता है।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'21'ला'नत उस पर जो किसी चौपाए के साथ जिमा'अ करे।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'22~~'ला'नत उस पर जो अपनी बहन से मुबाश्रत करे, चाहे वह उसके बाप की बेटी हो चाहे माँ की।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'23'ला'नत उस पर जो अपनी सास से मुबाश्रत करे।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'24~'ला'नत उस पर जो अपने पड़ोसी को पोशीदगी में मारे।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'25'लानत उस पर जो बे-गुनाह को क़त्ल करने के लिए इनाम ले।' और सब लोग कहें, 'आमीन।'26'ला'नत उस पर जो इस शरी'अत की बातों पर 'अमल करने के लिए उन पर क़ायम न रहे।" और सब लोग कहें, 'आमीन।'
1और अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात को जांफिशानी से मान कर उसके इन सब हुक्मों पर, जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ, एहतियात से 'अमल करे तो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा दुनिया की सब क़ौमों से ज़्यादा तुझको सरफ़राज़ करेगा।2~और अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुने तो यह सब बरकतें तुझ पर नाज़िल होंगी और तुझको मिलेंगी।3~शहर में भी तू मुबारक होगा, और खेत में भी मुबारक होगा।4तेरी औलाद, और तेरी ज़मीन की पैदावार, और तेरे चौपायों के बच्चे, या'नी गाय-बैल की बढ़ती और तेरी भेड़-बकरियों के बच्चे मुबारक होंगे।5~तेरा टोकरा और तेरी कठौती दोनों मुबारक होंगे।6और तू अन्दर आते वक़्त मुबारक होगा, और बाहर जाते वक़्त भी मुबारक होगा।7ख़ुदावन्द तेरे दुश्मनों को जो तुझ पर हमला करें, तेरे सामने शिकस्त दिलाएगा; वह तेरे मुक़ाबले को तो एक ही रास्ते से आएँगे, लेकिन सात सात रास्तों से हो कर तेरे आगे से भागेंगे।8ख़ुदावन्द तेरे अम्बारख़ानों में और सब कामों में जिनमें तू हाथ लगाये बरकत का हुक्म देगा, और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में जिसे वह तुझको देता है तुझको बरकत बख़्शेगा।9अगर तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को माने और उसकी राहों पर चले, तो ख़ुदावन्द अपनी उस क़सम के मुताबिक़ जो उसने तुझ से खाई तुझको अपनी पाक क़ौम बना कर क़ायम रख्खेगा।10~और दुनिया की सब क़ौमें यह देखकर कि तू ख़ुदावन्द के नाम से कहलाता है, तुझ से डर जाएँगी।11~और जिस मुल्क को तुझको देने की क़सम ख़ुदावन्द ने तेरे बाप-दादा से खाई थी, उसमें ख़ुदावन्द तेरी औलाद को और तेरे चौपायों के बच्चों को और तेरी ज़मीन की पैदावार को ख़ूब बढ़ा कर तुझको बढ़ाएगा।12ख़ुदावन्द आसमान को जो उसका अच्छा ख़ज़ाना है तेरे लिए खोल देगा कि तेरे मुल्क में वक़्त पर मेंह बरसाए, और वह तेरे सब कामों में जिनमें तू हाथ लगाए बरकत देगा; और तू बहुत सी क़ौमों को क़र्ज़ देगा, लेकिन ख़ुद क़र्ज़ नहीं लेगा।13और ख़ुदावन्द तुझको दुम नहीं बल्कि सिर ठहराएगा, और तू पस्त नहीं बल्कि सरफ़राज़ ही रहेगा; बशर्ते कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को, जो मैं तुझको आज के दिन देता हूँ, सुनो और एहतियात से उन पर 'अमल करो,14और जिन बातों का मैं आज के दिन तुझको हुक्म देता हूँ, उनमें से किसी से दहने या बाएँ हाथ मुड़ कर और मा'बूदों की पैरवी और 'इबादत न करे।15"लेकिन अगर तू ऐसा न करे, कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात सुनकर उसके सब अहकाम और आईन पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ एहतियात से 'अमल करे, तो यह सब ला'नतें तुझ पर नाज़िल होंगी और तुझको लगेंगी।16~शहर में भी तू ला'नती होगा, और खेत में भी ला'नती होगा।17तेरा टोकरा और तेरी कठौती दोनों ला'नती ठहरेंगे।18तेरी औलाद और तेरी ज़मीन की पैदावार, और तेरे गाय-बैल की बढ़ती और तेरी भेड़-बकरियों के बच्चे ला'नती होंगे।19तू अन्दर आते ला'नती ठहरेगा, और बाहर जाते भी ला'नती ठहरेगा।20~ख़ुदावन्द उन सब कामों में जिनको तू हाथ लगाए, ला'नत और इज़तिराब और फटकार को तुझ पर नाज़िल करेगा जब तक कि तू हलाक होकर जल्द बर्बाद न हो जाए, यह तेरी उन बद'आमालियों की वजह से होगा जिनको करने की वजह से तू मुझको छोड़ देगा।21~ख़ुदावन्द ऐसा करेगा कि वबा तुझ से लिपटी रहेगी, जब तक कि वह तुझको उस मुल्क से जिस पर क़ब्ज़ा करने को तू वहाँ जा रहा है फ़ना न कर दे।22ख़ुदावन्द तुझको तप-ए-दिक़ और बुख़ार और सोज़िश और शदीद हरारत और तलवार और बाद-ए-समूम और गेरूई से मारेगा, और यह तेरे पीछे पड़े रहेंगे जब तक कि तू फ़ना न हो जाये।23और आसमान जो तेरे सिर पर है पीतल का, और ज़मीन जो तेरे नीचे है लोहे की हो जाएगी।24~ख़ुदावन्द मेंह के बदले तेरी ज़मीन पर ख़ाक और धूल बरसाएगा; यह आसमान से तुझ पर पड़ती ही रहेगी, जब तक कि तू हलाक न हो जाये।25~"ख़ुदावन्द तुझको तेरे दुश्मनों के आगे शिकस्त दिलाएगा; तू उनके मुक़ाबले के लिए तो एक ही रास्ते से जाएगा, और उनके सामने से सात-सात रास्तों से होकर भागेगा, और दुनिया की तमाम सल्तनतों में तू मारा-मारा फिरेगा।26और तेरी लाश हवा के परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होगी, और कोई उनको हंका कर भगाने को भी न होगा।27~ख़ुदावन्द तुझको मिस्र के फोड़ों, और बवासीर, और खुजली, और ख़ारिश में ऐसा मुब्तिला करेगा कि तू कभी अच्छा भी नहीं होने का।28~ख़ुदावन्द तुझको जुनून और नाबीनाई और दिल की घबराहट में भी मुब्तिला कर देगा।29और जैसे अँधा अँधेरे में टटोलता है वैसे ही तू ~दोपहर दिन को टटोलता फिरेगा और तू अपने धन्धों में ~नाकाम रहेगा; और तुझ पर हमेशा जुल्म ही होगा, और तू लुटता ही रहेगा और कोई न होगा जो तुझको बचाए।30'औरत से मंगनी तो तू करेगा लेकिन दूसरा उससे मुबाश्रत करेगा, तू घर बनाएगा लेकिन उसमें बसने न पाएगा, तू ताकिस्तान लगाएगा लेकिन उसका फल इस्ते'माल न करेगा।31तेरा बैल तेरी आँखों के सामने ज़बह किया जाएगा लेकिन तू उसका गोश्त खाने न पाएगा, तेरा गधा तुझ से जबरन छीन लिया जाएगा और तुझको फिर न मिलेगा, तेरी भेड़ें तेरे दुश्मनों के हाथ लगेंगी और कोई न होगा जो तुझको बचाए।32~तेरे बेटे और बेटियाँ दूसरी क़ौम को दी जाएँगी, और तेरी आँखें देखेंगी और सारे दिन उनके लिए तरसते-तरसते रह जाएँगी; और तेरा कुछ बस नहीं चलेगा।33तेरी ज़मीन की पैदावार और तेरी सारी कमाई को एक ऐसी क़ौम खाएगी जिससे तू वाक़िफ़ नहीं; और तू हमेशा मज़लूम और दबा ही रहेगा,34~यहाँ तक कि इन बातों को अपनी आँखों से देख देखकर दीवाना हो जाएगा।35ख़ुदावन्द तेरे घुटनों और टाँगों में ऐसे बुरे फोड़े पैदा करेगा, कि उनसे तू पाँव के तलवे से लेकर सिर की चाँद तक शिफ़ा न पा सकेगा।36ख़ुदावन्द तुझको और तेरे बादशाह को, जिसे तू अपने ऊपर मुक़र्रर करेगा, एक ऐसी क़ौम के बीच ले जाएगा जिसे तू और तेरे बाप-दादा जानते भी नहीं; और वहाँ तू और मा'बूदों की जो महज़ लकड़ी और पत्थर है 'इबादत करेंगे।37और उन सब क़ौमों में, जहाँ-जहाँ ख़ुदावन्द तुझको पहुँचाएगा, तू बाइस-ए-हैरत और ज़र्ब-उल-मसल और अंगुश्तनुमा बनेगा।38तू खेत में बहुत सा बीज ले जाएगा लोकन थोड़ा सा जमा' करेगा, क्यूँकि टिड्डी उसे चाट लेंगी।39तू ताकिस्तान लगाएगा और उन पर मेहनत करेगा, लेकिन न तो मय पीने और न अंगूर जमा' करने पायेगा; क्यूँकि उनको कीड़े खा जाएँगे।40~तेरी सब हदों में ज़ैतून के दरख़्त लगे होंगे, लेकिन तू उनका तेल नहीं लगाने पाएगा; क्यूँकि तेरे ज़ैतून के दरख़्तों का फल झड़ जाया करेगा।41तेरे बेटे और बेटियाँ पैदा होंगी लेकिन वह सब तेरे न रहेंगे, क्यूँकि वह ग़ुलाम हो कर चले जाएँगे।42~तेरे सब दरख़्तों और तेरी सब ज़मीन की पैदावार पर टिड्डियाँ क़ब्ज़ा कर लेंगी।43~परदेसी जो तेरे बीच होगा वह तुझसे बढ़ता और सरफ़राज़ होता जाएगा, लेकिन तू पस्त ही पस्त होता जाएगा।44~वह तुझको क़र्ज़ देगा, लेकिन तू उसे क़र्ज़ न दे सकेगा; वह सिर होगा और तू दुम ठहरेगा।45और चूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के उन हुक्मों और आईन पर जिनको उसने तुझको दिया है, 'अमल करने के लिए उसकी बात नहीं सुनेंगे; इसलिए यह सब ला'नतें तुझ पर आएँगी और तेरे पीछे पड़ी रहेंगी और तुझको लगेंगी, जब तक तेरा नास न हो जाए।46और वह तुझ पर और तेरी औलाद पर हमेशा निशान और अचम्भे के तौर पर रहेंगी।47और चूँकि तू बावजूद सब चीज़ों की फ़िरावानी के फ़रहत और ख़ुशदिली से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत नहीं करेगा।48इसलिए भूका और प्यासा और नंगा और सब चीज़ों का मुहताज होकर तू अपने दुश्मनों की ख़िदमत करेगा जिनको ख़ुदावन्द तेरे बरख़िलाफ़ भेजेगा; और ग़नीम तेरी गरदन पर लोहे का जुआ रख्खे रहेगा, जब तक वह तेरा नास न कर दे।49ख़ुदावन्द दूर से बल्कि ज़मीन के किनारे से एक क़ौम को तुझ पर चढ़ा लाएगा जैसे 'उक़ाब टूट कर आता है, उस क़ौम की ज़बान को तू नहीं समझेगा;50उस क़ौम के लोग तुर्शरू होंगे, जो न बुड्ढों का लिहाज़ करेंगे न जवानों पर तरस खाएँगे।51और वह तेरे चौपायों के बच्चों और तेरी ज़मीन की पैदावार को खाते रहेंगे, जब तक तेरा नास न हो जाए और वह तेरे लिए अनाज, या मय, या तेल, या गाय-बैल की बढ़ती, या तेरी भेड़-बकरियों के बच्चे कुछ नहीं छोड़ेंगे, जब तक वह तुझको फ़ना न कर दें।52और वह तेरे तमाम मुल्क में तेरा घिराव तेरी ही बस्तियों में किए रहेंगे; जब तक तेरी ऊँची-ऊँची फ़सीलें जिन पर तेरा भरोसा होगा, गिर न जाएँ। तेरा घिराव वह तेरे ही उस मुल्क की सब बस्तियों में करेंगे, जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है।53तब उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में तू अपने दुश्मनों से तंग आकर अपने ही जिस्म के पहले फल को, या'नी अपने ही बेटों और बेटियों का गोश्त जिनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको 'अता किया होगा खायेगा।54वह शख़्स जो तुम में नाज़ुक मिज़ाज और नाज़ुक बदन होगा, उसकी भी अपने भाई और अपनी हमआग़ोश बीवी और अपने बाक़ी मांदा बच्चों की तरफ़ बुरी नज़र होगी;55यहाँ तक कि वह इनमें से किसी को भी अपने ही बच्चों के गोश्त में से, जिनको वह ख़ुद खाएगा कुछ नहीं देगा; क्यूँकि उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में जब तेरे दुश्मन तुझको तेरी ही सब बस्तियों में तंग कर मारेंगे, तो उसके पास और कुछ बाक़ी न रहेगा।56वह 'औरत भी जो तुम्हारे बीच ऐसी नाज़ुक मिज़ाज और नाज़ुक बदन होगी कि नर्मी-ओ-नज़ाकत की वजह से अपने पाँव का तलवा भी ज़मीन से लगाने की जुर'अत न करती हो, उसकी भी अपने पहलू के शौहर और अपने ही बेटे और बेटी,57और अपने ही नौज़ाद बच्चे की तरफ़ जो उसकी रानों के बीच से निकला हो, बल्कि अपने सब लड़के बालों की तरफ़ जिनको वह जनेगी बुरी नज़र होगी; क्यूँकि वह तमाम चीज़ों की क़िल्लत की वजह से उन्हीं को छुप-छुप कर खाएगी, जब उस घिराव के मौक़े' पर और उस आड़े वक़्त में तेरे दुश्मन तेरी ही बस्तियों में तुझको तंग कर मारेंगे।58~अगर तू उस शरी'अत की उन सब बातों पर जो इस किताब में लिखी हैं, एहतियात रख कर इस तरह 'अमल न करे कि तुमको ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के जलाली और मुहीब नाम का ख़ौफ़ हो;59तो ख़ुदावन्द तुम पर 'अजीब आफ़तें नाज़िल करेगा, और तुम्हारी औलाद की आफ़तों को बढ़ा कर बड़ी और देरपा आफ़तें और सख़्त और देरपा बीमारियाँ कर देगा।60और मिस्र के सब रोग जिनसे तू डरता था तुझको लगाएगा और वह तुझको लगे रहेंगे।61और उन सब बीमारियों और आफ़तों को भी जो इस शरी'अत की किताब में मज़कूर नहीं हैं, ख़ुदावन्द तुझको लगाएगा जब तक तेरा नास न हो जाए।62और चूँकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात नहीं सुनेगा, इसलिए कहाँ तो तुम कसरत में आसमान के तारों की तरह हो, और कहाँ शुमार में थोड़े ही से रह जाओगे।63तब यह होगा कि जैसे तुम्हारे साथ भलाई करने और तुमको बढ़ाने से ख़ुदावन्द ख़ुशनूद हुआ, ऐसे ही तुमको फ़ना कराने और हलाक कर डालने से ख़ुदावन्द ख़ुशनूद होगा; और तुम उस मुल्क से उखाड़ दिए जाओगे, जहाँ तू उस पर क़ब्ज़ा करने को जा रहा है।64और ख़ुदावन्द तुझको ज़मीन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक तमाम क़ौमों में तितर-बितर करेगा, वहाँ तू लकड़ी और पत्थर के और मा'बूदों को जिनको तू या तेरे बाप-दादा जानते भी नहीं 'इबादत करेगा।65~उन क़ौमों के बीच तुझको चैन नसीब न होगा और न तेरे पाँव के तलवे को आराम मिलेगा, बल्कि ख़ुदावन्द तुझको वहाँ दिल-ए-लरज़ाँ और आँखों को धुंधलाहट और जी को कुढ़न देगा।66और तेरी जान शक में अटकी रहेगी और तू रात-दिन डरता रहेगा, और तुम्हारी ज़िन्दगी का कोई ठिकाना न होगा।67~और तू अपने दिली ख़ौफ़ के और उन नज़ारों की वजह से जिनको तू अपनी आँखों से देखेगा, सुबह को कहेगा कि ऐ काश कि शाम होती और शाम को कहेगा ऐ काश कि सुबह होती।68और ख़ुदावन्द तुझको किश्तियों में चढ़ा कर उस रास्ते से मिस्र में लौटा ले जाएगा, जिसके बारे में मैंने तुझसे कहा कि तू उसे फिर कभी न देखना; और वहाँ तुम अपने दुश्मनों के ग़ुलाम और लौंडी होने के लिए अपने को बेचोगे लेकिन कोई ख़रीदार न होगा।"
1इस्राईलियों के साथ जिस 'अहद के बाँधने का हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को मोआब के मुल्क में दिया उसी की यह बातें हैं। यह उस 'अहद से अलग हैं जो उसने उनके साथ होरिब में बाँधा था।2इसलिए मूसा ने सब इस्राईलियों को बुलवा कर उनसे कहा, "तुमने सब कुछ जो ख़ुदावन्द ने तुम्हारी आँखों के सामने, मुल्क-ए-मिस्र में फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमों और उसके सारे मुल्क से किया देखा है।3इम्तिहान के वह बड़े-बड़े काम और निशान और बड़े-बड़े करिश्मे, तुमने अपनी आँखों से देखे।4लेकिन ख़ुदावन्द ने तुमको आज तक न तो ऐसा दिल दिया जो समझे, और न देखने की आँखें और सुनने के कान दिए।5~और मैं चालीस बरस वीराने में तुमको लिए फिरा, और न तुम्हारे तन के कपड़े पुराने हुए और न तुम्हारे पाँव की जूती पुरानी हुई।6और तुम इसी लिए रोटी खाने और मय या शराब पीने नहीं पाए ताकि तुम जान लो कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।7और जब तुम इस जगह आए तो हस्बोन का बादशाह सीहोन और बसन का बादशाह 'ओज हमारा मुक़ाबला करने को निकले, और हमने उनको मारकर8उनका मुल्क ले लिया और उसे रूबीनियों को और जद्दियों को और मनस्सियों के आधे क़बीले को मीरास के तौर पर दे दिया।9तब तुम इस 'अहद की बातों को मानना और उन पर 'अमल करना, ताकि जो कुछ तुम करो उसमें कामयाब हो।10~आज के दिन तुम और तुम्हारे सरदार, तुम्हारे क़बीले और तुम्हारे बुज़ुर्ग और तुम्हारे 'उहदेदार और सब इस्राईली मर्द,11~और तुम्हारे बच्चे और तुम्हारी बीवियाँ और वह परदेसी भी जो तेरी ख़ेमागाह में रहता है, चाहे वह तेरा लकड़हारा हो चाहे सक़्क़ा, सबके सब ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने खड़े हों,12ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद में, जिसे वह तेरे साथ आज बाँधता और उसकी क़सम में जिसे वह आज तुझसे खाता है शामिल हो।13और वह तुझको आज के दिन अपनी क़ौम क़रार दे और वह तेरा ख़ुदा हो, जैसा उसने तुझसे कहा, जैसी उसने तेरे बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से क़सम खाई।14और मैं इस 'अहद और क़सम में सिर्फ़ तुम्हीं को नहीं,15लेकिन उसको भी जो आज के दिन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने यहाँ हमारे साथ खड़ा है, और उसकी भी जो आज के दिन यहाँ हमारे साथ नहीं, उनमें शामिल करता हूँ।16~(तुम ख़ुद जानते हो कि मुल्क-ए-मिस्र में हम कैसे रहे और क्यूँ कर उन क़ौमों के बीच से होकर आए, जिनके बीच से तुम गुज़रे।17और तुमने ख़ुद उनकी मकरूह चीज़ें और लकड़ी और पत्थर और चाँदी और सोने की मूरतें देखीं जो उनके यहाँ थीं।)18~इसलिए ऐसा न हो कि तुम में कोई मर्द या 'औरत या ख़ान्दान या क़बीला ऐसा हो जिसका दिल आज के दिन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से बरगश्ता हो, और वह जाकर उन क़ौमों के मा'बूदों की 'इबादत करे या ऐसा न हो कि तुम में कोई ऐसी जड़ हो जो इन्द्रायन और नागदौना पैदा करे;19और ऐसा आदमी ला'नत की यह बातें सुनकर दिल ही दिल में अपने को मुबारकबाद दे और कहे, कि चाहे मैं कैसा ही ज़िद्दी हो कर तर के साथ ख़ुश्क को फ़ना कर डालूँ तोभी मेरे लिए सलामती है।20लेकिन ख़ुदावन्द उसे मु'आफ़ नहीं करेगा, बल्कि उस वक़्त ख़ुदावन्द का क़हर और उसकी ग़ैरत उस आदमी पर नाज़िल होगी और सब ला'नतें जो इस किताब में लिखी हैं उस पर पड़ेंगी, और ख़ुदावन्द उसके नाम को सफ़ह-ए-रोज़गार से मिटा देगा।21और ख़ुदावन्द इस 'अहद की उन सब ला'नतों के मुताबिक़ जो इस शरी'अत की किताब में लिखी हैं, उसे इस्राईल के सब क़बीलों में से बुरी सज़ा के लिए जुदा करेगा।22~और आने वाली नसलों में तुम्हारी नसल के लोग जो तुम्हारे बा'द पैदा होंगे और परदेसी भी जो दूर के मुल्क से आएँगे, जब वह इस मुल्क की बलाओं और ख़ुदावन्द की लगाई हुई बीमारियों को देखेंगे,23और यह भी देखेंगे कि सारा मुल्क जैसे गन्धक और नमक बना पड़ा है और ऐसा जल गया है कि इसमें न तो कुछ बोया जाता न पैदा होता, और न किसी क़िस्म की घास उगती है और वह सदूम और 'अमूरा और 'अदमा और ज़िबोईम की तरह उजड़ गया जिनको ख़ुदावन्द ने अपने ग़ज़ब और क़हर में तबाह कर डाला।24तब वह बल्कि सब क़ौमे पूछेंगी, 'ख़ुदावन्द ने इस मुल्क से ऐसा क्यूँ किया? और ऐसे बड़े क़हर के भड़कने की वजह क्या है?'25~उस वक़्त लोग जवाब देंगे, 'ख़ुदावन्द इनके बाप-दादा के ख़ुदा ने जो 'अहद इनके साथ इनको मुल्क-ए-मिस्र से निकालते वक़्त बाँधा था, उसे इन लोगों ने छोड़ दिया;26और जाकर और मा'बूदों की 'इबादत और परस्तिश की, जिनसे वह वाक़िफ़ न थे और जिनको ख़ुदावन्द ने इनको दिया भी न था।27इसीलिए इस किताब की लिखी हुई सब ला'नतों को इस मुल्क पर नाज़िल करने के लिए ख़ुदावन्द का ग़ज़ब इस पर भड़का।28और ख़ुदावन्द ने क़हर और ग़ुस्से और बड़े ग़ज़ब में इनको इनके मुल्क से उखाड़कर दूसरे मुल्क में फेंका, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।'29~ग़ैब का मालिक तो ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा ही है; लेकिन जो बातें ज़ाहिर की गई हैं वह हमेशा तक हमारे और हमारी औलाद के लिए हैं, ताकि हम इस शरी'अत की सब बातों पर 'अमल करें।
1~और जब यह सब बातें या'नी बरकत और ला'नत जिनको मैंने आज तेरे आगे रख्खा है तुझ पर आएँ, और तू उन क़ौमों के बीच जिनमें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको हँका कर पहुँचा दिया हो उनको याद करें।2और तू और तेरी औलाद दोनों ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ फिरे, और उसकी बात इन सब हुक्मों के मुताबिक़ जो मैं आज तुझको देता हूँ अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से माने।3तो खुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरी ग़ुलामी को पलटकर तुझ पर रहम करेगा, और फिरकर तुझको सब क़ौमों में से, जिनमें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको तितर-बितर किया हो जमा' करेगा।4अगर तेरे आवारागर्द दुनिया के इन्तिहाई हिस्सों में भी हों, तो वहाँ से भी ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको जमा' करके ले आएगा।5और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उसी मुल्क में तुमको लाएगा जिस पर तुम्हारे बाप-दादा ने क़ब्ज़ा किया था, और तू उसको अपने क़ब्ज़े में लाएगा; फिर वह तुझसे भलाई करेगा और तेरे बाप-दादा से ज़्यादा तुमको बढ़ाएगा।6और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे और तेरी औलाद के दिल का ख़तना करेगा, ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से मुहब्बत रख्खे और ज़िन्दा रहे।7और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा यह सब ला'नतें तुम्हारे दुश्मनों और कीना रखने वालों पर, जिन्होंने तुझको सताया नाज़िल करेगा।8और तू लौटेगा और ख़ुदावन्द की बात सुनेगा, और उसके सब हुक्मों पर जो मैं आज तुझको देता हूँ 'अमल करेगा।9और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको तेरे कारोबार और आस औलाद और चौपायों के बच्चों और ज़मीन की पैदावार के लिहाज़ से तेरी भलाई की ख़ातिर तुझको~बढ़ाएगा; फिर तुझसे ख़ुश होगा, जैसे वह तेरे बाप-दादा से ख़ुश था।10बशर्ते कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात को सुनकर उसके अहकाम और आईन को माने जो शरी'अत की इस किताब में लिखे हैं, और अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ फिरे।11~क्यूँकि वह हुक्म जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ, तेरे लिए बहुत मुश्किल नहीं और न वह दूर है।12वह आसमान पर तो है नहीं कि तू कहे कि 'आसमान पर कौन हमारी ख़ातिर चढ़े, और उसको हमारे पास लाकर सुनाए ताकि हम उस पर 'अमल करें?'13और न वह समन्दर पार है कि तू कहे, 'समन्दर पर कौन हमारी ख़ातिर जाए, और उसको हमारे पास ला कर सुनाए ताकि हम उस पर 'अमल करें?'14बल्कि वह कलाम तेरे बहुत नज़दीक है; वह तुम्हारे मुँह में और तुम्हारे दिल में है, ताकि तुम उस पर 'अमल करो।15~देखो, मैंने आज के दिन ज़िन्दगी और भलाई को, और मौत और बुराई को तुम्हारे आगे रख्खा है।16~क्यूँकि मैं आज के दिन तुमको हुक्म करता हूँ, कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखे और उसकी राहों पर चले, और उसके फ़रमान और आईन और अहकाम को माने ताकि तू ज़िन्दा रहे और बढ़े; और ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस मुल्क में तुझको बरकत बख़्शे, जिस पर क़ब्ज़ा करने को तू वहाँ जा रहा है।17लेकिन अगर तेरा दिल फिर जाए और तू न सुने, बल्कि गुमराह होकर और मा'बूदों की परस्तिश और 'इबादत करने लगे;18तो आज के दिन मैं तुमको जता देता हूँ कि तुम ज़रूर फ़ना हो जाओगे, और उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने को तुम यरदन पार जा रहे हो तुम्हारी 'उम्र दराज़ न होगी।19मैं आज के दिन आसमान और ज़मीन को तुम्हारे बरख़िलाफ़ गवाह बनाता हूँ, कि मैंने ज़िन्दगी और मौत की और बरकत और ला'नत को तुम्हारे आगे रख्खा है; इसलिए तुम ज़िन्दगी को इख़्तियार करो कि तुम भी ज़िन्दा रहो और तुम्हारी औलाद भी;20~ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखे, और उसकी बात सुने और उसी से लिपटा रहे; क्यूँकि वही तेरी ज़िन्दगी और तेरी 'उम्र की दराज़ी है, ताकि तू उस मुल्क में बसा रहे जिसको तेरे बाप-दादा इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब को देने की क़सम ख़ुदावन्द ने उनसे खाई थी।”
1और मूसा ने जा कर यह बातें सब इस्राईलियों को सुनाई,2और उनको कहा कि "मैं तो आज कि दिन एक सौ बीस बरस का हूँ, मैं अब चल फिर नहीं सकता; और ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा है कि तू इस यरदन पार नहीं जाएगा।3इसलिए ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ही तेरे आगे-आगे पार जाएगा, और वही उन क़ौमों को तेरे आगे से फ़ना करेगा और तू उसका वारिस होगा; और जैसा ख़ुदावन्द ने कहा है, यशू'अ तुम्हारे आगे-आगे पार जाएगा।4और ख़ुदावन्द उनसे वही करेगा जो उसने अमोरियों के बादशाह सीहोन और 'ओज और उनके मुल्क से किया, कि उनको फ़ना कर डाला।5और ख़ुदावन्द उनको तुमसे शिकस्त दिलाएगा, और तुम उनसे उन सब हुक्मों के मुताबिक़ पेश आना जो मैंने तुमको दिए हैं।6तू मज़बूत हो जा और हौसला रख; मत डर और न उनसे ख़ौफ़ खा, क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ख़ुद ही तेरे साथ जाता है; वह तुझसे दस्तबरदार नहीं होगा, और न तुमको छोड़ेगा।"7फिर मूसा ने यशू'अ को बुलाकर सब इस्राईलियों के सामने उससे कहा, "तू मज़बूत हो जा और हौसला रख; क्यूँकि तू इस क़ौम के साथ उस मुल्क में जाएगा, जिसको ख़ुदावन्द ने उनके बाप-दादा से क़सम खाकर देने को कहा था, और तू उनको उसका वारिस बनाएगा।8~और ख़ुदावन्द ही तेरे आगे-आगे चलेगा; वह तेरे साथ रहेगा, वह तुझ से न दस्तबरदार होगा, न तुझे छोड़ेगा; इसलिए तू ख़ौफ़ न कर और बे-दिल न हो।"9और मूसा ने इस शरी'अत को लिखकर उसे काहिनों के, जो बनी लावी और ख़ुदावन्द के 'अहद के संन्दूक के उठाने वाले थे, और इस्राईल के सब बुज़ुर्गों के सुपर्द किया।10फिर मूसा ने उनको यह हुक्म दिया, "हर सात बरस के आख़िर में छुटकारे के साल के मु'अय्यन वक़्त पर झोपड़ियों ~के 'ईद में,11~जब सब इस्राइली ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के सामने उस जगह आ कर हाज़िर हों जिसे वह ख़ुद चुनेगा, तो तुम इस शरी'अत को पढ़कर सब इस्राईलियों को सुनाना।12तुम सारे लोगों को, या'नी मर्दों और 'औरतों और बच्चों और अपनी बस्तियों के मुसाफ़िरों को जमा' करना, ताकि वह सुनें और सीखें और ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का ख़ौफ़ मानें और इस शरी"अत की सब बातों पर एहतियात रखकर 'अमल करें;13और उनके लड़के जिनको कुछ मा'लूम नहीं वह भी सुनें, और जब तक तुम उस मुल्क में जीते रहो जिस पर क़ब्ज़ा करने को तुम यरदन पार जाते हो, तब तक वह बराबर ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना सीखें।"14फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "देख, तेरे मरने के दिन आ पहुँचे। इसलिए तू यशू'अ को बुला ले और तुम दोनों ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में हाज़िर हो जाओ, ताकि मैं उसे हिदायत करूँ।"चुनाँचे मूसा और यशू'अ रवाना होकर ख़ेमा-ए-इजितमा'अ में हाज़िर हुए।15और ख़ुदावन्द बादल के सुतून में होकर ख़ेमे में नमूदार हुआ, और बादल का सुतून ख़ेमे के दरवाज़े पर ठहर गया।16~तब ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा, "देख, तू अपने बाप-दादा के साथ सो जाएगा; और यह लोग उठकर उस मुल्क के अजनबी मा'बूदों की पैरवी में, जिनके बीच वह जाकर रहेंगे ज़िनाकार हो जाएँगे और मुझको छोड़ देंगे, और उस 'अहद को जो मैंने उनके साथ बाँधा है तोड़ डालेंगे।17तब उस वक़्त मेरा क़हर उन पर भड़केगा, और मैं उन को छोड़ दूँगा और उनसे अपना मुँह छिपा लूँगा; और वह निगल लिए जाएँगे और बहुत सी बलाएँ और मुसीबतें उन पर आएँगी, चुनाँचे वह उस दिन कहेंगे, 'क्या हम पर यह बलाएँ इसी वजह से नहीं आईं कि हमारा ख़ुदा हमारे बीच नहीं?'18उस वक़्त उन सब बदियों की वजह से, जो और मा'बूदों की तरफ़ माइल होकर उन्होंने की होंगी मैं ज़रूर अपना मुँह छिपा लूँगा।19इसलिए तुम यह गीत अपने लिए लिख लो, और तुम उसे बनी-इस्राईल को सिखाना और उनको हिफ़्ज़ करा देना, ताकि यह गीत बनी इस्राईल के ख़िलाफ़ मेरा गवाह रहे।20इसलिए कि जब मैं उनको उस मुल्क में, जिस की क़सम मैंने उनके बाप-दादा से खाई और जहाँ दूध और शहद बहता है पहुँचा दूँगा, और वह ख़ूब खा-खाकर मोटे हो जाएँगे; तब वह और मा'बूदों की तरफ़ फिर जाएँगे और उनकी 'इबादत करेंगे और मुझको हक़ीर जानेंगे और मेरे 'अहद को तोड़ डालेंगे।21और यूँ होगा कि जब बहुत सी बलाएँ और मुसीबतें उन पर आएँगी, तो ये गीत गवाह की तरह उन पर शहादत देगा; इसलिए कि इसे उनकी औलाद कभी नहीं भूलेगी, क्यूँकि इस वक़्त भी उनको उस मुल्क में पहुँचाने से पहले जिसकी क़सम मैंने खाई है, मैं उनके ख़याल को जिसमें वह हैं जानता हूँ।”22~इसलिए मूसा ने उसी दिन इस गीत को लिख लिया और उसे बनी-इस्राईल को सिखाया।23और उसने नून के बेटे यशू'अ को हिदायत की और कहा, "मज़बूत हो जा, और हौसला रख; क्यूँकि तू बनी-इस्राईल को उस मुल्क में ले जाएगा जिसकी क़सम मैंने उनसे खाई थी, और मैं तेरे साथ रहूँगा।"24और ऐसा हुआ कि जब मूसा इस शरी'अत की बातों को एक किताब में लिख चुका और वह ख़त्म हो गई,25~तो मूसा ने लावियों से, जो ख़ुदावन्द के 'अहद के संदूक़ को उठाया करते थे कहा,26"इस शरी'अत की किताब को लेकर खुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद के सन्दूक़ के पास रख दो, ताकि वह तुम्हारे बरख़िलाफ़ गवाह रहे।27~क्यूँकि मैं तुम्हारी बग़ावत और गर्दनकशी को जानता हूँ। देखो, अभी तो मेरे जीते जी तुम ख़ुदावन्द से बग़ावत करते रहे हो, तो मेरे मरने के बा'द कितना ज़्यादा न करोगे?28तुम अपने क़बीले के सब बुज़ुर्गों और 'उहदेदारों को मेरे पास जमा' करो, ताकि मैं यह बातें उनके कानों में डाल दूँ और आसमान और ज़मीन को उनके बरख़िलाफ़ गवाह बनाऊँ।29क्यूँकि मैं जानता हूँ कि मेरे मरने के बा'द तुम अपने को बिगाड़ लोगे, और उस रास्ते से जिसका मैंने तुमको हुक्म दिया है फिर जाओगे; तब आख़िरी दिनों में तुम पर आफ़त टूटेगी, क्यूँकि तुम अपने कामों से ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाने के लिए वह काम करोगे जो उसकी नज़र में बुरा है।"30इसलिए मूसा ने इस गीत की बातें इस्राईल की सारी जमा'अत को आख़िर तक कह सुनाई।
1कान लगाओ, ऐ आसमानो, और मैं बोलूँगा; और ज़मीन मेरे मुँह की बातें सुने।2मेरी ता'लीम मेंह की तरह बरसेगी, मेरी तक़रीर शबनम की तरह टपकेगी; जैसे नर्म घास पर फुआर पड़ती हो, और सब्ज़ी पर झड़ियाँ।3क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द के नाम का इश्तिहार दूँगा। तुम हमारे ख़ुदा की ता'ज़ीम करो।4~"वह वही चट्टान है, उसकी सन'अत कामिल है; क्यूँकि उसकी सब राहें इन्साफ़ की हैं, वह वफ़ादार ख़ुदा, और बदी से मुबर्रा है, वह मुन्सिफ़ और बर-हक़ है।5यह लोग उसके साथ बुरी तरह से पेश आए, यह उसके फ़र्ज़न्द नहीं। यह उनका 'ऐब है, यह सब कजरौ और टेढ़ी नसल हैं।6क्या तुम ऐ बेवक़ूफ़ और कम'अक़्ल लोगों, इस तरह ख़ुदावन्द को बदला दोगे? क्या वह तुम्हारा बाप नहीं, जिसने तुमको ख़रीदा है? उस ही ने तुमको बनाया और क़याम बख़्शा।7क़दीम दिनों को याद करो, नसल दर नसल के बरसों पर ग़ौर करो; अपने बाप से पूछो, वह तुमको बताएगा; बुज़ुर्गों से सवाल करो, वह तुमसे बयान करेंगे।8जब हक़ त'आला ने क़ौमों को मीरास बाँटी, और बनी आदम को जुदा-जुदा किया, तो उसने क़ौमों की सरहदें, बनी इस्राईल के शुमार के मुताबिक़ ठहराईं।9क्यूँकि ख़ुदावन्द का हिस्सा उसी के लोग हैं। या'क़ूब उसकी मीरास का हिस्सा है।10वह ख़ुदावन्द को वीराने और सूने ख़तरनाक वीराने में मिला; ख़ुदावन्द उसके चारों तरफ़ रहा,उसने उसकी ख़बर ली, और उसे अपनी आँख की पुतली की तरह रख्खा।11जैसे 'उक़ाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों पर मण्डलाता है, वैसे ही उसने अपने बाज़ूओं को फैलाया,और उनको लेकर अपने परों पर उठा लिया।12~सिर्फ़ ख़ुदावन्द ही ने उनकी रहबरी की, और उसके साथ कोई अजनबी मा'बूद न था।13उसने उसे ज़मीन की ऊँची-ऊँची जगहों पर सवार कराया, और उसने खेत की पैदावार खाई; उसने उसे चट्टान में से शहद, और मुश्किल जगह में से तेल चुसाया।14और गायों का मक्खन और भेड़-बकरियों का दूध और बर्रों की चर्बी, और बसनी नसल के मेंढे और बकरे, और ख़ालिस गेंहू का आटा भी; और तू अंगूर के ख़ालिस रस की मय पिया करता था।15लेकिन यसूरून मोटा हो कर लातें मारने लगा; तू मोटा हो कर सुस्त हो गया है, और तुझ पर चर्बी छा गई है; तब उसने ख़ुदा को जिसने उसे बनाया छोड़ दिया, और अपनी नजात की चट्टान की हिक़ारत की।16उन्होंने अजनबी मा'बूदों के ज़रिए' उसे ग़ैरत, और मकरूहात से उसे ग़ुस्सा दिलाया।17उन्होंने जिन्नात के लिए जो ख़ुदा न थे, बल्कि ऐसे मा'बूदों के लिए जिनसे वह वाक़िफ़ न थे, या'नी नये-नये मा'बूदों के लिए जो हाल ही में ज़ाहिर हुए थे, जिनसे उनके बाप दादा कभी डरे नहीं क़ुर्बानी की।18तू उस चट्टान से ग़ाफ़िल हो गया, जिसने तुझे पैदा किया था; तू ख़ुदा को भूल गया,जिसने तुझे पैदा किया।19"ख़ुदावन्द ने यह देख कर उनसे नफ़रत की, क्यूँकि उसके बेटों और बेटियों ने उसे ग़ुस्सा दिलाया।20तब उसने कहा, 'मैं अपना मुँह उनसे छिपा लूँगा, और देखूँगा कि उनका अन्जाम कैसा होगा; क्यूँकि वह बाग़ी नसल और बेवफ़ा औलाद हैं।21~उन्होंने उस चीज़ के ज़रिए' जो ख़ुदा नहीं, मुझे ग़ैरत और अपनी बातिल बातों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया; इसलिए मैं भी उनके ज़रिए' से जो कोई उम्मत नहीं उनको ग़ैरत और एक नादान क़ौम के ज़रिए' से उनको ग़ुस्सा दिलाऊँगा।22इसलिए कि मेरे ग़ुस्से के मारे आग भड़क उठी है, जो पाताल की तह तक जलती जाएगी, और ज़मीन को उसकी पैदावार समेत भसम कर देगी, और पहाड़ों की बुनियादों में आग लगा देगी।23'मैं उन पर आफ़तों का ढेर लगाऊँगा, और अपने तीरों को उन पर ख़त्म करूँगा।24वह भूक के मारे घुल जाएँगे,और शदीद हरारत और सख़्त हलाकत का लुक़्मा हो जाएँगे; और मैं उन पर दरिन्दों के दाँत और ज़मीन पर के सरकने वाले कीड़ों का ज़हर छोड़ दूँगा।25बाहर वह तलवार से मरेंगे, और कोठरियों के अन्दर ख़ौफ़ से, जवान मर्द और कुँवारियों, दूध पीते बच्चे और पक्के बाल वाले सब यूँ ही हलाक होंगे।26मैंने कहा, मैं उनको दूर-दूर तितर-बितर करूँगा, और उनका तज़किरा नौ'-ए-बशर में से मिटा डालूँगा।27लेकिन मुझे दुश्मन की छेड़ छाड़ का अन्देशा था, कि कहीं मुख़ालिफ़ उल्टा समझ कर,यूँ न कहने लगें, कि हमारे ही हाथ बाला हैं और यह सब ख़ुदावन्द से नहीं हुआ।"28"वह एक ऐसी क़ौम हैं जो मसलहत से ख़ाली हो उनमें कुछ समझ नहीं।29काश वह 'अक़्लमन्द होते कि इसको समझते, और अपनी 'आक़बत पर ग़ौर करते।30क्यूँ कर एक आदमी हज़ार का पीछा करता, और दो आदमी दस हज़ार को भगा देते, अगर उनकी चट्टान ही उनको बेच न देती, और ख़ुदावन्द ही उनको हवाले न कर देता?31क्यूँकि उनकी चट्टान ऐसी नहीं जैसी हमारी चट्टान है, चाहे हमारे दुश्मन ही क्यूँ न मुन्सिफ़ हों।32क्यूँकि उनकी ताक सदूम की ताकों में से और 'अमूरा के खेतों की है; उनके अंगूर हलाहल के बने हुए हैं, और उनके गुच्छे कड़वे हैं।33उनकी मय अज़दहाओं का बिस,और काले नागों का ज़हर-ए-क़ातिल है34क्या यह मेरे ख़ज़ानों में सर-ब-मुहर होकर भरा नहीं पड़ा है?35उस वक़्त जब उनके पाँव फिसलें,तो इन्तक़ाम लेना और बदला देना मेरा काम होगाः क्यूँकि उनकी आफ़त का दिन नज़दीक है, और जो हादिसे उन पर गुज़रने वाले हैं वह जल्द आएँगे।36~क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों का इन्साफ़ करेगा, और अपने बन्दों पर तरस खाएगा; जब वह देखेगा कि उनकी क़ुव्वत जाती रही, और कोई भी, न क़ैदी और न आज़ाद बाक़ी बचा।37और वह कहेगा, उन के मा'बूद कहाँ हैं? वह चट्टान कहाँ, जिस पर उनका भरोसा था;38जो उनके क़ुर्बानियों की चर्बी खाते,और उनके तपावन की मय पीते थे? वही उठ कर तुम्हारी मदद करें, वही तुम्हारी पनाह हों।39~'इसलिए अब तुम देख लो, कि मैं ही वह हूँ। और मेरे साथ कोई मा'बूद नहीं।मैं ही मार डालता और मैं ही जिलाता हूँ। मैं ही ज़ख़्मी करता और मैं ही चंगा करता हूँ, और कोई नहीं जो मेरे हाथ से छुड़ाए।40क्यूँकि मैं अपना हाथ आसमान की तरफ़ उठाकर कहता हूँ, कि चूँकि मैं हमेशा हमेश ज़िन्दा हूँ,41इसलिए अगर मैं अपनी झलकती तलवार को, तेज़ करूँ, और 'अदालत को अपने हाथ में ले लूँ, तो अपने मुख़ालिफ़ों से इन्तक़ाम लूँगा, और अपने कीना रखने वालों को बदला दूँगा।42~मैं अपने तीरों को ख़ून पिला-पिलाकर मस्त कर दूंगा, और मेरी तलवार गोश्त खाएगी- वह ख़ून~मक़्तूलों~और ग़ुलामों~का, और वह गोश्त दुश्मन के सरदारों के सिर का होगा।'43'ऐ क़ौमों, उसके लोगों के साथ ख़ुशी मनाओ क्यूँकि वह अपने बन्दों के ख़ून का बदला लेगा,और अपने मुख़ालिफ़ों को बदला देगा, और अपने मुल्क और लोगों के लिए कफ़्फ़ारा देगा।"44तब मूसा और नून के बेटे होसे'अ ने आ कर इस गीत की सारी बातें लोगों को कह सुनाईं।45और जब मूसा यह सब बातें सब इस्राईलियों को सुना चुका,46तो उसने उनसे कहा, "जो बातें मैंने तुमसे आज के दिन बयान की हैं, उन सब से तुम दिल लगाना और अपने लड़कों को हुक्म देना कि वह एहतियात रखकर इस शरी'अत की सब बातों पर 'अमल करें।47~क्यूँकि यह तुम्हारे लिए कोई बे फ़ायदा बात नहीं, बल्कि यह तुम्हारी ज़िन्दगानी है; और इसी से उस मुल्क में, जहाँ तुम यरदन पार जा रहे हो कि उस पर क़ब्ज़ा करो, तुम्हारी 'उम्र दराज़ होगी।"48और उसी दिन ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,49"तू इस कोह-ए-'अबारीम पर चढ़ कर नबू की चोटी को जा, जो यरीहू के सामने मुल्क-ए-मोआब में है; और कना'न के मुल्क की जिसे मैं मीरास के तौर पर बनी-इस्राईल को देता हूँ देख ले।50और उसी पहाड़ पर जहाँ तू जाए वफ़ात पाकर अपने लोगों में शामिल हो, जैसे तेरा भाई हारून होर के पहाड़ पर मरा और अपने लोगों में जा मिला।51~इसलिए कि तुम दोनों ने बनी-इस्राईल के बीच सीन के जंगल के क़ादिस में मरीबा के चश्मे पर मेरा गुनाह किया, क्यूँकि तुमने बनी-इस्राईल के बीच मेरी बड़ाई न की।52इसलिए तू उस मुल्क को अपने आगे देख लेगा, लेकिन तू वहाँ उस मुल्क में जो मैं बनी-इस्राईल को देता हूँ जाने न पाएगा।"
1~और मर्द-ए-ख़ुदा मूसा ने जो दु'आ-ए-ख़ैर देकर अपनी वफ़ात से पहले बनी-इस्राईल को बरकत दी, वह यह है।2~और उसने कहा :"ख़ुदावन्द सीना से आया और श'ईर से उन पर ज़ाहिर हुआ, वह कोह-ए-फ़ारान से जलवागर हुआ, और लाखों फ़रिश्तों ~में से आया; उसके दहने हाथ पर उनके लिए आतिशी शरी'अत थी।3वह बेशक क़ौमों से मुहब्बत रखता है, उसके सब मुक़द्दस लोग तेरे हाथ में हैं, और वह तेरे क़दमों में बैठे, एक एक तेरी बातों से मुस्तफ़ीज़ होगा।4मूसा ने हमको शरी'अत और या'क़ूब की जमा'अत के लिए मीरास दी।5और वह उस वक़्त यसूरून में बादशाह था, जब क़ौम के सरदार इकट्ठे और इस्राईल के क़बीले जमा' हुए।6"रूबिन ज़िन्दा रहे और मर न जाए, तोभी उसके आदमी थोड़े ही हों।"7और यहूदाह के लिए यह है जो मूसा ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, तू यहूदाह की सुन, और उसे उसके लोगों के पास पहुँचा; वह अपने लिए आप अपने हाथों से लड़ा, और तू ही उसके दुश्मनों के मुक़ाबले में उसका मददगार होगा।"8और लावी के हक़ में उसने कहा, "तेरे तुम्मीन और ऊरीम उस मर्द-ए-ख़ुदा के पास हैं जिसे तूने मस्सा पर आज़मा लिया, और जिसके साथ मरीबा के चश्मे पर तेरा तनाज़ा' हुआ;9जिसने अपने माँ बाप के बारे में कहा, कि मैंने इन को देखा नहीं; और न उसने अपने भाइयों को अपना माना, और न अपने बेटों को पहचाना। क्यूँकि उन्होंने तेरे कलाम की एहतियात की और वह तेरे 'अहद को मानते हैं।10वह या'क़ूब को तेरे हुक्मों और इस्राईल को तेरी शरी'अत सिखाएँगे। वह तेरे आगे ख़ुशबू और तेरे मज़बह पर पूरी सोख़्तनी क़ुर्बानी रख्खेंगे।11~ऐ ख़ुदावन्द, तू उसके माल में बरकत दे और उसके हाथों की ख़िदमत को क़ुबूल कर; जो उसके ख़िलाफ़ उठे उनकी कमर तोड़ दे, और उनकी कमर भी जिनको उससे 'अदावत है ताकि वह फिर न उठे।12और बिनयमीन के हक़ में उस ने कहा,"खुदावन्द का प्यारा, सलामती के साथउसके पास रहेगा; वह सारे दिन उसे ढाँके रहता है, और वह उसके कन्धों के बीच सुकूनत करता है।"13~और यूसुफ़ के हक़ में उसने कहा,"उसकी ज़मीन ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक हो, आसमान की बेशक़ीमत अशया और शबनम और वह गहरा पानी जो नीचे है,14और सूरज के पकाए हुए बेशक़ीमत फल,और चाँद की उगाई हुई बेशक़ीमती चीज़ें|15और क़दीम पहाड़ों की बेशक़ीमत चीज़ें,और अबदी पहाड़ियों की बेशक़ीमत चीज़ें।16और ज़मीन और उसकी मा'मूरी की बेशक़ीमती चीज़ें और उसकी ख़ुशनूदी जो झाड़ी में रहता था, इन सबके ऐतबार से यूसुफ़ के सिर पर या'नी उसी के सिर के चाँद पर, जो अपने भाइयों से जुदा रहा बरकत नाज़िल हो।17उसके बैल के पहलौठे की सी उसकी शौकत है; और उसके सींग जंगली साँड के से हैं; उन्हीं से वह सब क़ौमों को, बल्कि ज़मीन की इन्तिहा के लोगों को ढकेलेगा; वह इफ़्राईम के लाखों लाख,और मनस्सी के हज़ारों हज़ार हैं।"18और ज़बूलून के बारे में उसने कहा,"ऐ ज़बूलून, तू अपने बाहर जाते वक़्त और ऐ इश्कार, तू अपने ख़ेमों में ख़ुश रह।19वह लोगों को पहाड़ों पर बुलाएँगे, और वहाँ सदाक़त की क़ुर्बानियाँ पेश करेंगे; क्यूँकि वह समन्दरों के फ़ैज़ और रेत के छिपे हुऐ ख़ज़ानों से बहरावर होंगे।"20और जद्द के हक़ में उसने कहा,"जो कोई जद्द को बढ़ाए वह मुबारक हो। वह शेरनी की तरह रहता है,और बाज़ू बल्कि सिर के चाँद तक को फाड़ डालता है21और उसने पहले हिस्से को अपने लिए चुन लिया, क्यूँकि शरा' देने वाले का हिस्सा वहाँ अलग किया हुआ था; और उसने लोगों के सरदारों के साथ आकर ख़ुदावन्द के इन्साफ़ को और उसके हुक्मों को जो इस्राईल के लिए था पूरा किया।”22और दान के हक़ में उसने कहा,"दान उस शेर-ए-बबर का बच्चा है जो बसन से कूद कर आता है।”23और नफ़्ताली के हक़ में उसने कहा,"ऐ नफ़्ताली, जो लुत्फ़-ओ-करम से आसूदा, और ख़ुदावन्द की बरकत से मा'मूर है; तू पश्चिम और दख्खिन का मालिक हो।"24और आशर के हक़ में उसने कहा,"आशर आस-औलाद से मालामाल हो; वह अपने भाइयों का मक़्बूल हो और अपना पाँव तेल में डुबोए।25तेरे बेन्डे लोहे और पीतल के होंगे, और जैसे तेरे दिन वैसी ही तेरी क़ुव्वत हो।26"ऐ यसूरून, ख़ुदा की तरह और कोई नहीं, जो तेरी मदद के लिए आसमान पर और अपने जाह-ओ-जलाल में आसमानों पर सवार है|27अबदी ख़ुदा तेरी सुकूनतगाह है और नीचे दाइमी बाज़ू है, उसने ग़नीम को तेरे सामने से निकाल दिया और कहा, "उनको हलाक कर दे|"28और इस्राईल सलामती के साथ या'क़ूब का सोता, अकेला अनाज और मय के मुल्क में बसा हुआ है; बल्कि आसमान से उस पर ओस पड़ती रहती है29मुबारक है तू, ऐ इस्राईल; तू ख़ुदावन्द की बचाई हुई क़ौम है, इसलिए कौन तेरी तरह है? वही तेरी मदद की सिपर, और तेरे जाह-ओ-जलाल की तलवार है।तेरे दुश्मन तेरे मुती' होंगे और तू उन के ऊँचे मक़ामों को पस्त करेगा।"
1और मूसा मोआब के मैदानों से कोह~ए-नबू के ऊपर पिसगा की चोटी पर, जो यरीहू के सामने है चढ़ गया; और ख़ुदावन्द ने जिल'आद का सारा मुल्क दान तक, और नफ़्ताली का सारा मुल्क,2और इफ़्राईम और मनस्सी का मुल्क, और यहूदाह का सारा मुल्क पिछले समन्दर तक,3~और दख्खिन का मुल्क, और वादी-ए-यरीहू जो ख़ुरमों का शहर है उसकी वादी का मैदान ज़ुग़र तक उसको दिखाया।4और ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "यही वह मुल्क है, जिसके बारे में मैंने इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से क़सम खाकर कहा था, कि इसे मैं तुम्हारी नसल को दूँगा। इसलिए मैंने ऐसा किया कि तू इसे अपनी आँखों से देख ले, लेकिन तू उस पार वहाँ जाने न पाएगा।"5तब ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने ख़ुदावन्द के कहे के मुवाफ़िक़, वहीं मोआब के मुल्क में वफ़ात पाई,6और उसने उसे मोआब की एक वादी में बैत फ़ग़ूर के सामने दफ़न किया; लेकिन आज तक किसी आदमी को उसकी क़ब्र मा'लूम नहीं।7और मूसा अपनी वफ़ात के वक़्त एक सौ बीस बरस का था, और न तो उसकी आँख धुंधलाने पाई और न उसकी अपनी क़ुव्वत कम हुई।8और बनी इस्राईल मूसा के लिए मोआब के मैदानों में तीस दिन तक रोते रहे; फिर मूसा के लिए मातम करने और रोने-पीटने के दिन ख़त्म हुए।9और नून का बेटा यशू'अ 'अक़्लमन्दी की रूह से मा'मूर था, क्यूँकि मूसा ने अपने हाथ उस पर रख्खे थे; और बनी-इस्राईल उसकी बात मानते रहे, और जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था उन्होंने वैसा ही किया।10और उस वक़्त से अब तक बनी-इस्राईल में कोई नबी मूसा की तरह, जिससे ख़ुदावन्द ने आमने-सामने बातें कीं नहीं उठा।11और उसको खुदावन्द ने मुल्क-ए-मिस्र में फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमों और उसके सारे मुल्क के सामने, सब निशानों और 'अजीब कामों के दिखाने को भेजा था।12यूँ मूसा ने सब इस्राईलियों के सामने ताक़तवर हाथ और बड़ी हैबत के काम कर दिखाए।
1और ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा की वफ़ात के बा'द ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द ने उसके ख़ादिम नून के बेटे यशू'अ से कहा,2"मेरा बन्दा मूसा मर गया है इसलिए अब तू उठ और इन सब लोगों को साथ लेकर इस यरदन के पार उस मुल्क में जा जिसे मैं उनको या'नी, बनी इस्राईल को देता हूँ|3जिस-जिस जगह तुम्हारे पाँव का तलुवा टिके उसको, जैसा मैंने मूसा से कहा, मैंने तुमको दिया है|4वीराने और उस लुबनान से लेकर बड़े दरिया-ए- फ़रात तक हित्तियों का सारा मुल्क और पश्चिम की तरफ़ बड़े समन्दर तक तुम्हारी ह़द होगी|5तेरी ज़िन्दगी भर कोई शख्स़ तेरे सामने खड़ा न रह सकेगा; जैसे मैं मूसा के साथ था वैसे ही तेरे साथ रहूँगा मैं न तुझ से अलग हूँगा और न तुझे छोड़ूंगा|6इसलिए मज़बूत हो जा और हौसला रख, क्यूँकि तू इस क़ौम को उस मुल्क का वारिस करायेगा जिसे मैंने उनको देने की क़सम उनके बाप दादा से खाई|7तू सिर्फ़ मज़बूत और निहायत दिलेर हो जा कि एहतियात रख कर उस सारी शरी'अत पर 'अमल करे जिसका हुक्म मेरे बन्दे मूसा ने तुझ को दिया; उस से न दहिने मुड़ना न बायें ताकि जहाँ कहीं तू जाये तुझे ख़ूब कामयाबी हासिल हो|8शरी'अत की यह किताब तेरे मुँह से न हटे, बल्कि तुझे दिन और रात इसी का ध्यान हो ताकि जो कुछ उस में लिखा है उस सब पर तू एहतियात करके 'अमल कर सके; ~क्यूँकि तब ही तुझे कामयाबी ~की राह नसीब होगी और तू ख़ूब कामयाब होगा|9क्या मैनें तुझको हुक्म नहीं दिया? इसलिए मज़बूत हो जा और हौसला रख; ख़ौफ़ न खा और बेदिल न हो, क्यँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जहाँ जहाँ तू जाए तेरे साथ रहेगा| ”10तब यशू'अ ने लोगों के मनसबदारों को हुक्म दिया कि|11तुम लश्कर के बीच से होकर गुज़रो और लोगों को यह हुक्म दो कि तुम अपने अपने लिए सफ़र का सामान ~तैयार कर लो क्यूँकि तीन दिन के अन्दर तुम को इस यरदन के पार होकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने को जाना है जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको देता है ताकि तुम उसके मालिक हो जाओ|12और बनी रुबिन और बनी जद और मनस्सी के आधे क़बीले~से यशू'अ ने यह कहा कि|13उस बात को जिसका हुक्म ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने तुमको दिया याद रखना कि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको आराम बख़्शता है और वह यह मुल्क तुमको देगा|14तुम्हारी बीवियां और तुम्हारे बाल बच्चे और चौपाये इसी मुल्क में जिसे मूसा ने यरदन के इस पार तुमको दिया है रहें, लेकिन तुम सब जितने बहादुर और सूरमा हो हथियार लगाए हुए अपने भाइयों के आगे आगे पार जाओ और उनकी मदद करो|15जब तक ख़ुदावन्द तुम्हारे भाइयों को तुम्हारी तरह आराम न बख़्शे और वह उस मुल्क पर जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा उनको देता है क़ब्ज़ा न कर लें| बा'द में तुम अपनी मिल्कियत के मुल्क में लौटना जिसे ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने यरदन के इस पार पूरब की तरफ़ तुम को दिया है और उसके मालिक होना|16और उन्होंने यशू'अ को जवाब दिया कि जिस जिस बात का तूने हम को हुक्म दिया है हम वह सब करेंगे, और जहाँ जहाँ तू हमको भेजे वहाँ हम जाएँगे|17जैसे हम सब उमूर में मूसा की बात सुनते थे वैसे ही तेरी सुनेंगे; सिर्फ़ ~इतना हो कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जिस तरह मूसा के साथ रहता था तेरे साथ भी रहे|18जो कोई तेरे हुक्म की मुख़ालिफ़त करे और सब मु'आमिलों में जिनकी तू ताकीद करे तेरी बात न माने वह जान से मारा जाए| तू सिर्फ़ मज़बूत हो जा और हौसला रख|
1तब नून के बेटे यशू'अ ने शित्तीम से दो आदमियों को चुपके से जासूस के तौर पर भेजा और उन से कहा, कि जा कर उस मुल्क को और यरीहू को देखो भालो| चुनाँचे वह रवाना हुए और एक कस्बी के घर में जिसका नाम राहब था आए और वहीं सोए|2और यरीहू के बादशाह को ख़बर मिली कि देख आज की रात बनी इस्राईल में से कुछ आदमी इस मुल्क की जासूसी करने को यहाँ आए हैं|3और यरीहू के बादशाह ने राहब को कहला भेजा कि उन लोगों को जो तेरे पास आये और तेरे घर में दाख़िल हुए हैं निकाल ला इस लिए कि वह इस सारे मुल्क की जासूसी करने को आए हैं|4तब उस 'औरत ने उन दोनों आदमियों को लेकर और उनको छिपा कर यूँ कह दिया कि वह आदमी मेरे पास आए तो थे लेकिन मुझे मा'लूम न हुआ कि वह कहाँ के थे|5और फाटक बंद होने के वक़्त के क़रीब जब अँधेरा हो गया, वह आदमी चल दिए और मैं नहीं जानती हूँ कि वह कहाँ गये| इसलिए जल्द उनका पीछा करो क्यूँकि तुम ज़रूर उनको पा लोगे|6लेकिन उसने उनको अपनी छत पर चढ़ा कर सन की लकड़ियों के नीचे जो छत पर तरतीब से धरी थीं छिपा दिया था|7और यह लोग यरदन के रास्ते पर पाँव के निशानों ~तक उनके पीछे गये और जूँही उनका पीछा करने वाले फाटक से निकले उन्होंने फाटक बंद कर लिया|8तब राहब छत पर उन आदमियों ~के लेट जाने से पहले उन के पास गई9और उन से यूँ कहने लगी कि मुझे यक़ीन है कि ख़ुदावन्द ने यह मुल्क तुमको दिया है और तुम्हारा रौ'ब हम लोगों पर छा गया है और इस मुल्क के सब बाशिन्दे तुम्हारे आगे डरे जा रहे हैं|10क्यँकि हम ने सुन लिया है कि जब तुम मिस्र से निकले तो ख़ुदावन्द ने तुम्हारे आगे बहरे क़ुलज़ुम के पानी को सुखा दिया, और तुम ने अमूरियों के दोनों बादशाहों सीहोन और 'ओज़ से जो यरदन के उस पार थे और जिनको तुमने बिल्कुल हलाक कर डाला क्या क्या किया|11यह सब कुछ सुनते ही हमारे दिल पिघल गये और तुम्हारी वजह से ~फिर किसी शख़्स में जान बाक़ी न रही क्यँकि खु़दावन्द तुम्हारा ख़ुदा ही ऊपर आसमान का और नीचे ज़मीन का ख़ुदा है|12इसलिए अब मैं तुम्हारी मिन्नत करती हूँ कि मुझ से ख़ुदावन्द की क़सम खाओ कि चूँकि मैंने तुम पर मेहरबानी की है तुम भी मेरे बाप के घराने पर मेहरबानी करोगे और मुझे कोई सच्चा निशान दो;13कि तुम मेरे बाप और माँ और भाइयों और बहनों को और जो कुछ उनका है सबको सलामत बचा लोगे और हमारी जानों को मौत से महफ़ूज़ रखोगे|14उन आदमियों ने उस से कहा कि हमारी जान तुम्हारी जान की ज़िम्मेदार होगी बशर्ते कि तुम हमारे इस काम का ज़िक्र न कर दो और ऐसा होगा कि जब ख़ुदावन्द इस मुल्क को हमारे क़ब्ज़े में कर देगा तो हम तेरे साथ मेहरबानी और वफ़ादारी से पेश आयेंगे|15तब उस 'औरत ने उनको खिड़की के रास्ते रस्सी से नीचे उतार दिया क्यूँकि उस का घर शहर की दीवार पर बना था और वह दीवार पर रहती थी|16और उस ने उस से कहा कि पहाड़ को चल दो ऐसा न हो कि पीछा करने वाले तुम को मिल जायें; और तीन दिन तक वहीं छिपे रहना जब तक पीछा करने वाले लौट न आयें , इस के बा'द अपना रास्ता लेना|17तब उन आदमियों ने उस से कहा कि हम तो उस क़सम की तरफ़ से जो तूने हम को खिलाई है बे इलज़ाम रहेंगे|18इसलिए देख! जब हम इस मुल्क में आंएँ तो तू सुर्ख़ रंग के सूत की इस डोरी को उस खिड़की में जिससे तूने हम को नीचे उतारा है बांध देना; और अपने बाप और माँ और भाईयों बल्कि अपने बाप के सारे घराने को अपने पास घर में जमा' कर रखना|19फिर जो कोई तेरे घर के दरवाज़ों से निकल कर गली में जाये, उस का ख़ून उसी के सर पर होगा और हम बे गुनाह ठहरेंगे; और जो कोई तेरे साथ घर में होगा उस पर अगर किसी का हाथ चले, तो उसका ख़ून हमारे सर पर होगा|20और अगर तू हमारे इस काम का ज़िक्र कर दे, तो हम उस क़सम की तरफ़ से जो तूने हम को खिलाई है बेइल्ज़ाम हो जाएँगे|21उसने कहा , "जैसा तुम कहते हो वैसा ही हो| ” इसलिए उसने उनको रवाना किया और वह चल दिए; तब उसने सुर्ख़ रंग की वह डोरी खिड़की में बाँध दी|22और वह जाकर पहाड़ पर पहुँचे और तीन दिन तक वहीं ठहरे रहे, जब तक उनका पीछा करने वाले लौट न आए; और उन पीछा करने वालों ने उनको सारे रास्ते ढूंढा पर कहीं न पाया|23फिर यह दोनों आदमी लौटे और पहाड़ से उतर कर पार गये, और नून के बेटे यशु'अ के पास जाकर सब कुछ जो उन पर गुज़रा था उसे बताया|24और उन्होंने यशू'अ से कहा “यक़ीनन ख़ुदावन्द ने वह सारा मुल्क हमारे क़ब्ज़े में कर दिया है क्यूँकि उस मुल्क के सब बाशिंदे हमारे आगे डरे जा रहे हैं| ”
1तब यशू'अ सुबह सवेरे उठा, और वह सब बनी इस्राईल शित्तीम से रवाना हो कर यरदन पर आए, और पार उतरने से पहले वहीं टिके|2और तीन दिन के बा'द मनसबदार लश्कर के बीच होकर गुज़रे|3और उन्होंने लोगों को हुक्म दिया कि जब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के अहद के सन्दूक़ को देखो और काहिनों और लावी उसे उठाये हुए हों, तो तुम अपनी जगह से उठ कर उसके पीछे पीछे चलना|4लेकिन तुम्हारे और उस के बीच पैमाइश करके क़रीब दो हज़ार हाथ का फ़ासला रहे , उसके नज़दीक न जाना; ताकि तुम को मा'लूम हो कि किस रास्ते तुमको चलना है, क्यूँकि तुम अब तक इस राह से कभी नहीं गुज़रे|5और यशू'अ ने लोगों से कहा, "तुम अपने आप को पाक करो क्यूँकि कल के दिन ख़ुदावन्द तुम्हारे बीच 'अजीब-ओ-ग़रीब काम करेगा| ”6फिर यशू'अ ने काहिनों से कहा कि तुम 'अहद के सन्दूक़ को ले कर लोगों के आगे आगे पार उतरो| चुनाँचे वह 'अहद के सन्दूक़ को लेकर लोगों के आगे आगे चले|7और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा, "आज के दिन से मैं तुझे सब इस्राईलियों के सामने सरफ़राज़ करना शुरू'' करूँगा, ताकि वह जान लें कि जैसे मैं मूसा के साथ रहा वैसे ही तेरे साथ रहूँगा|8और तू उन काहिनों को जो 'अहद के सन्दूक़ को उठायें यह हुक्म देना, कि जब तुम यरदन के पानी के किनारे पहुँचो तो यरदन में खड़े रहना| ”9और यशू'अ ने बनी इस्राईल से कहा कि पास आकर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बातें सुनो|10और यशू'अ कहने लगा कि इस से तुम जान लोगे कि ज़िन्दा ख़ुदा तुम्हारे बीच है, और वही ज़रूर कना'नियों और हित्तियों और हव्वियों, और फ़रिज़्ज़ियों और जरजासियों, और अमोरियों और यबूसियों को तुम्हारे आगे से दफ़ा करेगा|11देखो, सारी ज़मीन के मालिक के 'अहद का सन्दूक़ तुम्हारे आगे आगे यरदन में जाने को है|12इसलिए अब तुम हर क़बीला पीछे एक आदमी के हिसाब से बारह आदमी इस्राईल के क़बीलों में से चुन लो|13और जब यरदन के पानी में उन काहिनों के पाँव के तलवे टिक जाएँगे, जो ख़ुदावन्द या'नी सारी दुनिया के मालिक के 'अहद का सन्दूक़ उठाते हैं तो यरदन का पानी या'नी वह पानी जो उपर से बहता हुआ नीचे आता है थम जायेगा, और उस का ढेर लग जाएगा|14और जब लोगों ने यरदन के पार जाने को अपने ख़ेमों से रवानगी की और वह काहिन जो 'अहद का सन्दूक़ उठाये हुए थे, लोगों के आगे आगे हो लिए|15और जब 'अहद के संदूक़ के उठाने वाले यरदन पर पहुँचे और उन काहिनों के पाँव जो संदूक़ को उठाये हुए थे, किनारे के पानी में डूब गए (क्यूँकि फ़सल के तमाम दिनों में यरदन का पानी चारों तरफ़ अपने किनारों से ऊपर चढ़कर बहा करता है ),16तो जो पानी ऊपर से आता था वह ख़ूब दूर 'अदम के पास जो ज़रतान के बराबर एक शहर है, रुक कर एक ढेर हो गया; और वह पानी जो मैदान के दरिया या'नी दरिया-ए-शोर की तरफ़ बह कर गया था बिल्कुल अलग हो गया और लोग 'ऐन यरीहू के मुक़ाबिल पार उतरे|17और वह काहिन जो ख़ुदावन्द के 'अहद का संदूक़ उठाये हुए थे यरदन के बीच में सूखी ज़मीन पर खड़े रहे; और सब इस्राईली ख़ुश्क ज़मीन पर हो कर गुज़रे, यहाँ तक कि सारी क़ौम साफ़ यरदन के पार हो गयी|
1और जब सारी क़ौम यरदन के पार हो गई तो ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि|2क़बीला पीछे एक आदमी के हिसाब से बारह आदमी लोगों में से चुन लो|3और उन को हुक्म दो कि तुम यरदन के बीच में से जहाँ काहिनों के पाँव जमे हुए थे बारह पत्थर लो और उनको अपने साथ ले जा कर उस मंज़िल पर जहाँ तुम आज की रात टिकोगे रख देना|4तब यशू'अ ने उन बारह आदमियों को जिनको उस ने बनी इस्राईल में से क़बीला पीछे एक आदमी के हिसाब से तैयार कर रखा था बुलाया|5और यशू'अ ने उन से कहा, " तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद के सन्दूक़ के आगे आगे यरदन के बीच में जाओ, और तुम में से हर शख़्स बनी इस्राईल के क़बीलों के शुमार के मुताबिक़ एक एक पत्थर अपने कन्धे पर उठा ले|6ताकि यह तुम्हारे बीच एक निशान हो, और जब तुम्हारी औलाद आइन्दा ज़माने में तुम से पूछे, कि इन पत्थरों से तुम्हारा क्या मतलब है ?7तो तुम उन को जवाब देना कि यरदन का पानी ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के आगे दो हिस्से हो गया था; क्यूँकि जब वह यरदन पार आ रहा था तब यरदन का पानी दो हिस्से होगया| यूँ यह पत्थर हमेशा के लिए बनी इस्राईल के वास्ते यादगार ठहरेंगे| ”8चुनाँचे बनी इस्राईल ने यशू'अ के हुक्म के मुताबिक़ किया, और जैसा ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा था उन्होंने बनी इस्राईल के क़बीलों के शुमार के मुताबिक़ यरदन के बीच में से बारह पत्थर उठा लिए; और उन को उठा कर अपने साथ उस जगह ले गये जहाँ वह टिके और वहीं उनको रख दिया|9और यशू'अ ने यरदन के बीच में उस जगह जहाँ 'अहद के सन्दूक़ के उठाने वाले काहिनों ने पाँव जमाये थे बारह पत्थर खड़े किये; चुनाँचे वह आज के दिन तक वहीं हैं|10क्यूँकि वह काहिन जो सन्दूक़ को उठाये हुए थे यरदन के बीच ही में खड़े रहे, जब तक उन सब बातों के मुताबिक़ जिनका हुक्म मूसा ने यशू'अ को दिया था हर एक बात पूरी न हो चुकी, जिसे लोगों को बताने का हुक्म ख़ुदावन्द ने यशू'अ को किया था; और लोगों ने जल्दी की और पार उतरे|11और ऐसा हुआ कि जब सब लोग साफ़ पार हो गये, ~तो ख़ुदावन्द का सन्दूक़ और काहिन भी लोगों के रूबरू पार हुए|12और बनी रुबिन और बनी जद्द और मनस्सी के आधे क़बीले के लोग मूसा के कहने के मुताबिक़ हथियार बांधे हुए बनी इस्राईल के आगे पार गये;13या'नी क़रीब चालीस हज़ार आदमी लड़ाई के लिए तैयार और हथियार बांधे हुए ~ख़ुदावन्द के सामने पार होकर यरीहू के मैदान में पहुँचे ताकि जंग करें|14उस दिन ख़ुदावन्द ने सब इस्राईलियों के सामने यशू'अ को सरफ़राज़ किया; और जैसा वह मूसा से डरते थे, वैसे ही उससे उसकी ज़िन्दगी भर डरते रहे|15और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि|16इन काहिनो को जो 'अहद का सन्दूक़ उठाये हुए हैं, हुक्म कर कि वह यरदन में से निकल आयें|17चुनाँचे यशू'अ ने काहिनो को हुक्म दिया कि यरदन में से निकल आओ|18और जब वह काहिन जो ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ उठाये हुए थे यरदन के बीच में से निकल आए, और उनके पाँव के तलवे ख़ुश्की पर आ टिके तो यरदन का पानी फिर अपनी जगह पर आ गया और पहले की तरह अपने सब किनारों पर बहने लगा|19और लोग पहले महीने की दसवीं तारीख़ को यरदन में से निकल कर यरीहू की पूरबी सरहद पर जिल्जाल में ख़ेमाज़न हुए|20और यशू'अ ने उन बारह पत्थरों को जिनको उन्होंने यरदन में से लिया था जिल्जाल में खड़ा किया|21और उस ने बनी इस्राईल से कहा कि जब तुम्हारे लड़के आइन्दा ज़माने में अपने अपने बाप दादा से पूछें, कि इन पत्थरों का मतलब क्या है ?|22तो तुम अपने लड़कों को यही बताना कि इस्राईली ख़ुश्की ख़ुश्की हो कर इस यरदन के पार आए थे|23क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने जब तक तुम पार न हो गये, यरदन के पानी को तुम्हारे सामने से हटा कर सुखा दिया; जैसा ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने बहर-ए- कुल्ज़ुम से किया, कि उसे हमारे सामने से हटा कर सुखा दिया जब तक हम पार न हो गये|24ताकि ज़मीन की सब क़ौमें जान लें कि ख़ुदावन्द का हाथ ताक़तवर है| और ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा से हमेशा डरती रहें|
1और जब उन अमोरियों के सब बादशाहों ने जो यरदन के पार पश्चिम की तरफ़ थे, और उन कना'नियों के तमाम बादशाहों ने जो समन्दर के नज़दीक थे सुना, कि ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल के सामने से यरदन के पानी को हटा कर सुखा दिया, जब तक हम पार न आ गये तो उनके दिल डर गये और उन में बनी इस्राईल की वजह से जान बाक़ी न रही|2उस वक़्त ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि चक़मक़ की छुरियां बना कर बनी इस्राईल का ख़तना फिर दूसरी बार कर दे|3और यशू'अ ने चक़मक़़ की छुरियां बनायीं और खल्ड़ियों की पहाड़ी पर बनी इस्राईल का ख़तना किया|4और यशू'अ ने जो ख़तना किया उसकी वजह यह है, कि वह लोग जो मिस्र से निकले, उन में जितने जंगी मर्द थे वह सब वीराने में मिस्र से निकलने के बा'द रास्ते ही में मर गये|5तब वह सब लोग जो निकले थे उनका ख़तना हो चुका था, लेकिन वह सब लोग जो वीराने में मिस्र से निकलने के बा'द रास्ते ही में पैदा हुए थे उनका ख़तना नहीं हुआ था|6क्यूँकि बनी इस्राईल चालीस बरस तक वीराने में फिरते रहे, जब तक सारी क़ौम या'नी सब जंगी मर्द जो मिस्र से निकले थे फ़ना न हो गये| इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द की बात नहीं मानी थी| उन ही से ख़ुदावन्द ने क़सम खा कर कहा था, कि वह उनको उस मुल्क को देखने भी न देगा जिसे हमको देने की क़सम उस ने उनके बाप दादा से खाई और जहाँ दूध और शहद बहता है|7तब उन ही के लड़कों का जिनको उस ने उनकी जगह बरपा किया था, यशू'अ ने ख़तना किया क्यूँकि वह नामख़्तून थे इसलिए कि रास्ते में उनका ख़तना नहीं हुआ था|8और जब सब लोगों का ख़तना कर चुके तो यह लोग ख़ेमागाह में अपनी अपनी जगह रहे जब तक अच्छे न हो गये|9फिर ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि आज के दिन में मिस्र की मलामत को तुम पर से ढलका दिया| इसी वजह से आज के दिन तक उस जगह का नाम जिल्जाल है|10और बनी इस्राईल ने जिल्जाल में डेरे डाल लिए, और उन्होंने यरीहू के मैदानों में उसी महीने की चौदहवीं तारीख़ को शाम के वक़्त 'ईद-ए- फ़सह मनाई|11और 'ईद-ए- फ़सह के दूसरे दिन उस मुल्क के पुराने अनाज की बेख़मीरी रोटियां और उसी रोज़ भुनी हुईं बालें भी खायीं|12और दूसरे ही दिन से उनके उस मुल्क के पुराने अनाज के खाने के बा'द मन्न रोक दिया गया और आगे फिर बनी इस्राईल को मन्न कभी न मिला, लेकिन उस साल उन्होंने मुल्क कना'न की पैदावार खाई|13और जब यशू'अ यरीहू के नज़दीक था तो उस ने अपनी आँखें उठायीं और क्या देखा कि उसके मुक़ाबिल एक शख़्स हाथ में अपनी नंगी तलवार लिए खड़ा है; और यशू'अ ने उस के पास जा कर उस से कहा, " तू हमारी तरफ़ है या हमारे दुश्मनों की तरफ़ ?”14उस ने कहा, " नहीं! बल्कि मैं इस वक़्त ख़ुदावन्द के लश्कर का सरदार हो कर आया हूँ| ” तब यशू'अ ने ज़मीन पर सरनगूँ हो कर सिज्दा किया और उससे कहा, " मेरे मालिक का अपने ख़ादिम से क्या इरशाद है ?”15और ख़ुदावन्द के लश्कर के सरदार ने यशू'अ से कहा कि तू अपने पाँव से अपनी जूती उतार दे क्यूँकि यह जगह जहाँ तू खड़ा है पाक है| इसलिए यशू'अ ने ऐसा ही किया|
1(और यरीहू बनी इस्राईल की वजह ~से निहायत मज़बूती से बंद था और न तो कोई बाहर जाता और न कोई अन्दर आता था )|2और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि देख मैं ने यरीहू को और उसके बादशाह और ज़बरदस्त सूरमाओं को तेरे हाथ में कर दिया है|3इसलिए तुम जंगी मर्द शहर को घेर लो, और एक दफ़ा' उसके चौगिर्द गश्त करो| छ: दिन तक तुम ऐसा ही करना|4और सात काहिन सन्दूक़ के आगे आगे मेंढों के सींगों के सात नरसिंगे लिए हुए चलें! और सातवें दिन तुम शहर की चारों तरफ़ सात बार घूमना, और काहिन नरसिंगे फूँकें|5और यूँ होगा कि जब वह मेंढे के सींग को ज़ोर से फूँकें और तुम नरसिंगे की आवाज़ सुनो तो सब लोग निहायत ज़ोर से ललकारें; तब शहर की दीवार बिल्कुल गिर जायेगी और लोग अपने अपने सामने सीधे चढ़ जायें|6और नून के बेटे यशू'अ ने काहिनों को बुला कर उन से कहा कि 'अहद के सन्दूक़ को उठाओ, और सात काहिन मेंढों के सींगो के सात नरसिंगे लिए हुए ख़ुदावन्द के सन्दूक़ के आगे आगे चलें|7और उन्होंने लोंगों से कहा, " बढ़ कर शहर को घेर लो और जो आदमी हथियार लिए हैं वह ख़ुदा के सन्दूक़ के आगे आगे चलें| ”8और जब यशू'अ लोगों से यह बातें कह चुका, तो सात काहिन मेंढों के सींगों के सात नरसिंगे लिए हुए ख़ुदावन्द के आगे आगे चले और वह नरसिंगे फूँकते गये और ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ उनके पीछे पीछे चला|9और वह हथियार लिए आदमी उन काहिनों के आगे आगे चले जो नरसिंगे फूँक रहे थे, और दुम्बाला सन्दूक़ के पीछे पीछे चला, और काहिन चलते चलते नरसिंगे फूँकते जाते थे|10और यशू'अ ने लोगों को हुक्म दिया कि न तुम ललकारना, और न तुम्हारी आवाज़ सुनायी दे और न तुम्हारे मुँह से कोई बात निकले| जब मैं तुम को ललकारने को कहूँ तब तुम ललकारना|11इसलिए उसने ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को शहर के गिर्द एक बार फिरवाया| तब वह ख़ेमागाह में आए और वहीं रात काटी|12और यशू'अ सुबह सवेरे उठा और काहिनों ने ख़ुदावन्द का सन्दूक़ उठा लिया|13और वह सात काहिन मेंढों के सींगों के सात नरसिंगे लिए हुए ख़ुदावन्द के सन्दूक़ के आगे आगे बराबर चलते और नरसिंगे फूँकते जाते थे और वह हथियार लिए आदमी आगे आगे हो लिए और दुम्बाला ख़ुदावन्द के सन्दूक़ के पीछे पीछे चला, और काहिन चलते चलते नरसिंगे फूँकते जाते थे|14और दूसरे दिन भी वह एक बार शहर के गिर्द घूम कर ख़ेमागाह में फिर आए| उनहोंने छे दिन तक ऐसा ही किया|15और सातवें दिन यूँ हुआ कि वह सुबह को पौ फटने के वक़्त उठे और उसी तरह शहर के गिर्द सात बार फिरे; सात बार शहर के गिर्द सिर्फ़ उसी दिन फिरे|16और सातवीं बार ऐसा हुआ कि जब काहिनों ने नरसिंगे फूंके तो यशू'अ ने लोगों से कहा, " ललकारो! क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यह शहर तुम को दे दिया है|17और वह शहर और जो कुछ उस में है सब ख़ुदावन्द की ख़ातिर बर्बाद होगा| सिर्फ़ राहिब कस्बी और जितने उसके साथ घर में हों वह सब जीते बचेंगे, इसलिए कि उस ने उन क़ासिदों को जिनको हम ने भेजा छुपा रखा था|18और तुम बहरहाल अपने आप को मख़्सूस की हुई चीज़ों से बचाए रखना, ऐसा न हो कि उनको मख़्सूस करने के बा'द तुम किसी मख़्सूस की हुई चीज़ को लो और यूँ इस्राईल की ख़ेमागाह को ला'नती कर डालो और उसे दुख दो|19लेकिन सब चाँदी और सोना और बरतन जो पीतल और लोहे के हों ख़ुदावन्द के लिए पाक हैं~इसलिए वह ख़ुदावन्द के ख़ज़ाने में दाख़िल किये जाएँ| ”20तब लोगों ने ललकारा और काहिनों ने नरसिंगे फूँके, और ऐसा हुआ कि जब लोगों ने नरसिंगे की आवाज़ सुनी तो उन्होंने बुलंद आवाज़ से ललकारा और दीवार बिल्कुल गिर पड़ी और लोगों में से हर एक आदमी अपने सामने से चढ़ कर शहर में घुसा और उन्होंने उस को ले लिया|21और उन्होंने उन सब को जो शहर में थे क्या मर्द क्या 'औरत, क्या जवान क्या बुढ्ढे, क्या बैल क्या भेड़ क्या गधे सब को तलवार की धार से बिल्कुल हलाक कर दिया|22और यशू'अ ने उन दोनों आदमियों से जिन्होंने उस मुल्क की जासूसी की थी कहा कि उस कस्बी के घर जाओ, और वहाँ से जैसी तुम ने उस से क़सम खाई है उसके मुताबिक़ उस 'औरत को और जो कुछ उसके पास है सब को निकाल लाओ|23तब वह दोनों जवान जासूस अन्दर गये और राहब को और उसके बाप और उसकी माँ और उसके भाइयों को, और उसके अस्बाब बल्कि उसके सारे ख़ानदान को निकाल लाये, और उनको बनी इस्राईल की ख़ेमागाह के बाहर बिठा दिया|24फिर उन्होंने उस शहर को और जो कुछ उस में था सब को आग से फूँक दिया और सिर्फ़ चाँदी और सोने को और पीतल और लोहे के बरतनों को ख़ुदावन्द के घर के ख़़ज़ाने में दाख़िल किया|25लेकिन यशू'अ ने राहब कस्बी और उस के बाप के घराने को और जो कुछ उसका था सब को सलामत बचा लिया| उसकी रिहाइश आज के दिन तक इस्राईल में है, क्यूँकि उस ने उन क़ासिदों को जिनको यशू'अ ने यरीहू में जासूसी के लिए भेजा था छिपा रखा था|26और यशू'अ ने उस वक़्त उन को क़सम दे कर ताकीद की और कहा कि जो शख़्स उठ कर इस यरीहू शहर को फिर बनाये वह ख़ुदावन्द के सामने मला'ऊन हो| वह अपने पहलौठे को उसकी नींव डालते वक़्त और अपने सब से छोटे बेटे को उसके फाटक लगवाते वक़्त खो बैठेगा|27इसलिए ख़ुदावन्द यशू'अ के साथ था और उस सारे मुल्क में उसकी शोहरत फैल गयी|
1लेकिन बनी इस्राईल ने मख़्सूस की हुई चीज़ में ख़यानत की, क्यूँकि 'अकन बिन करमी बिन ज़ब्दी बिन ज़ारह ने जो यहूदाह के क़बीले का था उन मख़्सूस की हुई चीज़ों में से कुछ ले लिया; ~इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर बनी इस्राईल पर भड़का|2और यशू'अ ने यरीहू से 'ए को जो बैतएल की पूरबी सिम्त में बैतआवन के क़रीब आबाद है, कुछ लोग यह कहकर भेजे , कि जाकर मुल्क का हाल दरियाफ़्त करो! और इन लोगों ने जाकर 'ए का हाल दरियाफ़्त किया|3और वह यशू'अ के पास लौटे और उस से कहा, " सब लोग न जाएँ सिर्फ़ दो तीन हज़ार मर्द चढ़ जाएँ और 'ए को मार लें| सब लोगों को वहाँ जाने की तकलीफ़ न दे, क्यूँकि वह थोड़े से हैं”4चुनाँचे लोगों में से तीन हज़ार मर्द के क़रीब वहाँ चढ़ गये , और 'ए के लोगों के सामने से भाग आए|5और 'ए के लोगों ने उन में से तक़रीबन छत्तीस आदमी मार लिए; और फाटक के सामने से लेकर शबरीम तक उनको खदेड़ते आए और उतार पर उनको मारा| इसलिए उन लोगों के दिल पिघल कर पानी की तरह हो गये|6तब यशू'अ और सब इस्राईली बुज़ुर्गों ने अपने अपने कपड़े फाड़े और ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के आगे शाम तक ज़मीन पर औंधे पड़े रहे, और अपने अपने सर पर ख़ाक डाली|7और यशू'अ ने कहा, " हाय ऐ मालिक ख़ुदावन्द! तू हमको अमोरियों के हाथ में हवाला करके, हमारा नास कराने की ख़ातिर इस क़ौम को यरदन के इस पार क्यों लाया ?काश कि हम सब्र करते और यरदन के उस पार ही ठहरे रहते|8ऐ मालिक, इस्राईलियों के अपने दुश्मनों के आगे पीठ फेर देने के बा'द मैं क्या कहूँ !|9क्यूँकि कना'नी और इस मुल्क के सब बाशिन्दे यह सुन कर हम को घेर लेंगे, और हमारा नाम मिटा डालेंगे| फिर तू अपने बुज़ुर्ग नाम के लिए क्या करेगा ?”10और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा , " उठ खड़ा हो| तू क्यूँ इस तरह औंधा पड़ा है ?11इस्राईलियों ने गुनाह किया, और उन्होंने उस 'अहद को जिसका मैंने उनको हुक्म दिया तोड़ा है; उन्होंने मख़्सूस की हुई चीज़ों में से कुछ ले भी लिया, और चोरी भी की और रियाकारी भी की और अपने सामान में उसे मिला भी लिया है|12इस लिए बनी इस्राईल अपने दुश्मनों के आगे ठहर नहीं सकते| वह अपने दुश्मनों के आगे पीठ फेरते हैं, क्यूँकि वह मल'ऊन हो गये मैं आगे को तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा, जब तक तुम मख़्सूस की हुई चीज़ को अपने बीच से मिटा न दो|13उठ लोगों को पाक कर और कह कि तुम अपने को कल के लिए पाक करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि ऐ इस्राईलियों! तुम्हारे बीच मख़्सूस की हुई चीज़ मौजूद है तुम अपने दुश्मनों के आगे ठहर नहीं सकते जब तक तुम उस मख़्सूस की हुई चीज़ को अपने बीच से दूर न कर दो| ”14इसलिए तुम कल सुबह को अपने क़बीले के मुताबिक़ हाज़िर किये जाओगे; और जिस क़बीले को ख़ुदावन्द पकड़े वह एक एक ख़ानदान कर के पास आए; और जिस ख़ानदान को ख़ुदावन्द पकड़े वह एक एक घर कर के पास आए; और जिस घर को ख़ुदावन्द पकड़े वह एक-एक आदमी करके पास आए|15तब जो कोई मख़्सूस की हुई चीज़ रखता हुआ पकड़ा जाये, वह और जो कुछ उसका हो सब आग से जला दिया जाये; इस लिए कि उस ने ख़ुदावन्द के 'अहद को तोड़ डाला और बनी इस्राईल के बीच शरारत का काम किया|16तब यशू'अ ने सुबह सवेरे उठ कर इस्राईलियों को क़बीला बा क़बीला हाज़िर किया, और यहूदाह का क़बीला पकड़ा गया|17फिर वह यहूदाह के ख़ानदानों को नज़दीक लाया, और ज़ारह का ख़ानदान पकड़ा गया| फिर वह ज़ारह के ख़ानदान के एक एक आदमी को नज़दीक लाया, और ज़ब्दी पकड़ा गया|18फिर वह उसके घराने के एक एक आदमी को नज़दीक लाया, और 'अकन बिन करमी बिन ज़ब्दी बिन ज़ारह जो यहूदाह के क़बीले का था पकड़ा गया|19तब यशू'अ ने 'अकन से कहा, " ऐ मेरे फ़र्ज़न्द मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तमजीद कर और उसके आगे इक़रार कर , अब तू मुझे बता दे कि तूने क्या किया है और मुझ से मत छिपा| ”20और 'अकन ने यशू'अ को जवाब दिया, " हक़ीक़त में मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा का गुनाह किया है, और यह यह मुझ से सरज़द हुआ है|21कि जब मैंने लूट के माल में बाबुल की एक नफ़ीस चादर, और दो सौ मिस्क़ाल चाँदी और पचास मिस्क़ाल सोने की एक ईंट देखी तो मैंने ललचा कर उन को ले लिया; और देख वह मेरे ख़ेमे में ज़मीन में छिपाई हुई हैं और चाँदी उनके नीचे है| ”22तब यशू'अ ने क़ासिद भेजे; वह उस डेरे को दौड़े गये, और क्या देखा कि वह उसके डेरे में छिपाई हुई हैं और चाँदी उनके नीचे है|23वह उनको डेरे में से निकाल कर यशू'अ और सब बनी इस्राईल के पास लाये, और उनको ख़ुदावन्द के सामने रख दिया|24तब यशू'अ और सब इस्राईलियों ने ज़ारह के बेटे 'अकन को, और उस चाँदी और चादर और सोने की ईंट को, और उसके बेटों और बेटियों को, और उसके बैलों और गधों और भेड़ बकरियों और डेरे को, और जो कुछ उसका था सबको लिया और वादी-ए-अकूर में उनको ले गये|25और यशू'अ ने कहा कि तूने हम को क्यूँ दुख दिया ?ख़ुदावन्द आज के दिन तुझे दुख देगा !तब सब इस्राईलियों ने उसे संगसार किया; और उन्होंने उनको आग में जलाया और उनको पत्थरों से मारा|26और उन्होंने उसके पत्थरों का एक बड़ा ढेर लगा दिया जो आज तक है तब ख़ुदावन्द अपने क़हर-ए- शदीद से बा'ज़ आया| इस लिए उस जगह का नाम आज तक वादी-ए-'अकूर है|
1और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा, " खौफ़ न खा और न हिरासाँ हो सब जंगी मर्दों को साथ ले और उठ कर 'ए पर चढ़ाई कर देख मैंने 'ए के बादशाह और उसकी क़ौम और उसके शहर और उसके 'इलाक़े को तेरे क़ब्ज़े में कर दिया है|2और तू 'ए और उसके बादशाह से वही करना जो तूने यरीहू और उसके बादशाह से किया| सिर्फ़ वहाँ के माल-ए-ग़नीमत और चौपायों को तुम अपने लिए लूट के तौर पर ले लेना| इसलिए तू उस शहर के लिए उसी के पीछे अपने आदमी घात में लगा दे| ”3तब यशू'अ और सब जंगी मर्द 'ए पर चढ़ाई करने को उठे; और यशू'अ ने तीस हज़ार मर्द जो ज़बरदस्त सूरमा थे, चुन कर रात ही को उनको रवाना किया|4और उनको यह हुक्म दिया कि देखो !तुम उस शहर के मुक़ाबिल शहर ही के पीछे घात में बैठना; शहर से बहुत दूर न जाना बल्कि तुम सब तैयार रहना|5और मैं उन सब आदमियों को लेकर जो मेरे साथ हैं, शहर के नज़दीक आऊँगा; और ऐसा होगा कि जब वह हमारा सामना करने को पहले की तरह निकल आएंगे, तो हम उनके सामने से भागेंगे|6और वह हमारे पीछे पीछे निकल चले आयेंगे, यहाँ तक कि हम उनको शहर से दूर निकाल ले जायेंगे; क्यूँकि वह कहेंगे कि यह तो पहले की तरह हमारे सामने से भागे जातें हैं; ~इसलिए हम उनके आगे से भागेंगे|7और तुम घात में से उठ कर शहर पर क़ब्ज़ा कर लेना, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा उसे तुम्हारे क़ब्ज़े में कर देगा|8और जब तुम उस शहर को ले लो तो उसे आग लगा देना; ख़ुदावन्द के कहने के मुताबिक़ काम करना| देखो, मैंने तुमको हुक्म कर दिया|9और यशू'अ ने उनको रवाना किया, और वह आराम गाह में गये और बैत एल और 'ए के पश्चिम की तरफ़ जा बैठे; लेकिन यशू'अ उस रात को लोगों के बीच टिका रहा|10और यशू'अ ने सुबह सवेरे उठ कर लोगों की मौजूदात ली, और वह बनी इस्राईल के बुज़ुर्गों को साथ लेकर लोगों के आगे आगे 'ए की तरफ़ चला|11और सब जंगी मर्द जो उसके साथ थे चले, और नज़दीक पहुँचकर शहर के सामने आए और 'ए के उत्तर में डेरे डाले, और यशू'अ और 'ए के बीच एक वादी थी|12तब उस ने कोई पाँच हज़ार आदमियों को लेकर बैतएल और 'ए के बीच शहर के पश्चिम की तरफ़ उनको आराम गाह में बिठाया|13इसलिए उन्होंने लोगों को या'नी सारी फ़ौज जो शहर के उत्तर में थी, और उनको जो शहर की पश्चिमी तरफ़ घात में थे ठिकाने पर कर दिया; और यशू'अ उसी रात उस वादी में गया|14और जब 'ए के बादशाह ने देखा, तो उन्होंने जल्दी की और सवेरे उठे और शहर के आदमी या'नी वह और उसके सब लोग निकल कर मु'अय्यन वक़्त पर लड़ाई के लिए बनी इस्राईल के मुक़ाबिल मैदान के सामने आए; और उसे ख़बर न थी कि शहर के पीछे उसकी घात में लोग बैठे हुए हैं|15तब यशू'अ और सब इस्राईलियों ने ऐसा दिखाया, गोया उन्होंने उन से शिकस्त खाई और वीराने के रास्ते होकर भागे|16और जितने लोग शहर में थे वह उनका पीछा करने के लिए बुलाये गये; और उन्होंने यशू'अ का पीछा किया और शहर से दूर निकले चले गये|17और 'ए और बैतएल में कोई आदमी बाक़ी न रहा जो इस्राईलियों के पीछे न गया हो; और उन्होंने शहर को खुला छोड़ कर इस्राईलियों का पीछा किया|18तब ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि जो बरछा तेरे हाथ में है उसे 'ए की तरफ़ बढ़ा दे, क्यूँकि मैं उसे तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा और यशू'अ ने उस बरछे को जो उसके हाथ में था शहर की तरफ़ बढ़ाया|19तब उसके हाथ बढ़ाते ही जो घाट में थे अपनी जगह से निकले, और दौड़ कर शहर में दाख़िल हुए और उसे सर कर लिया, और जल्द शहर में आग लगा दी|20और जब 'ए के लोगों ने पीछे मुड़ कर नज़र की, तो देखा, कि शहर का धुंआ आसमान की तरफ़ उठ रहा है और उनका बस न चला कि वह इधर या उधर भागें, और जो लोग वीराने की तरफ़ भागे थे वह पीछा करने वालों पर उलट पड़े|21और जब यशू'अ और सब इस्राईलियों ने देखा कि घात वालों ने शहर ले लिया और शहर का धुंआ उठ रहा है, तो उन्होंने पलट कर 'ए के लोगों को क़त्ल किया|22और वह दूसरे भी उनके मुक़ाबले को शहर से निकले; इसलिए वह सब के सब इस्राईलियों के बीच में, जो कुछ तो इधर और उधर थे पड़ गये , और उन्होंने उनको मारा यहाँ तक कि किसी को न बाक़ी छोड़ा न भागने दिया|23और वह 'ए के बादशाह को ज़िन्दा गिरफ़्तार करके यशू'अ के पास लाये|24और जब इस्राईली 'ए के सब बाशिंदों को मैदान में उस वीराने के बीच जहाँ उन्होंने इनका पीछा किया था क़त्ल कर चुके, और वह सब तलवार से मारे गये यहाँ तक कि बिल्कुल फ़ना हो गये, तो सब इस्राईली 'ए को फिरे और उसे बर्बाद कर दिया|25चुनाँचे वह जो उस दिन मारे गये, मर्द 'औरत मिला कर बारह हज़ार या'नी 'ए के सब लोग थे|26क्यूँकि यशू'अ ने अपना हाथ जिस से वह बरछे को बढ़ाये हुए था नहीं खींचा, जब तक कि उस ने 'ए के सब रहने वालों को बिल्कुल हलाक न कर डाला|27और इस्राईलियों ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़, जो उस ने यशू'अ को दिया था अपने लिए सिर्फ़ शहर के चौपायों और माल-ए-ग़नीमत को लूट में लिया|28तब यशू'अ ने 'ए को जला कर हमेशा के लिए उसे एक ढेर और वीराना बना दिया, जो आज के दिन तक है|29और उस ने 'ए के बादशाह को शाम तक दरख़्त पर टांग रखा; और जूँ ही सूरज डूबने लगा, उन्होंने यशू'अ के हुक्म से उसकी लाश को दरख़्त से उतार कर शहर के फाटक के सामने डाल दिया, और उस पर पत्थरों का एक बड़ा ढेर लगा दिया जो आज के दिन तक है|30तब यशू'अ ने कोह-ए-'एबाल पर ख़ुदावन्द इस्राईल के खुदा के लिए एक मज़बह बनाया|31जैसा ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने बनी इस्राईल को हुक्म दिया था, और जैसा मूसा की शरी'अत की किताब में लिखा है; यह मज़बह बे खड़े पत्थरों का था जिस पर किसी ने लोहा नहीं लगाया था, और उन्होंने उस पर ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती के ज़बीहे पेश किये|32और उस ने वहाँ उन पत्थरों पर मूसा की शरी'अत की जो उस ने लिखी थीं, सब बनी इस्राईल के सामने एक नक़ल कन्दा की|33और सब इस्राईली और उनके बुज़ुर्ग और मनसबदार और क़ाज़ी, या'नी देसी और परदेसी दोनों लावी काहिनों के आगे जो ख़ुदावन्द के आगे, जो ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के उठाने वाले थे, सन्दूक़ के इधर और उधर खड़े हुए| इन में से आधे तो कोह-ए-गरज़ीम के मुक़ाबिल थे जैसा ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने पहले हुक्म दिया था कि वह इस्राईली लोगों को बरकत दें|34इसके बा'द उस ने शरी'अत की सब बातें, या'नी बरकत और ला'नत जैसी वह शरी'अत की किताब में लिखी हुई हैं, पढ़ कर सुनायीं|35चुनाँचे जो कुछ मूसा ने हुक्म दिया था, उस में से एक बात भी ऐसी न थी जिसे यशू'अ ने बनी इस्राईल की सारी जमा'अत, और 'औरतों और बाल बच्चों और उन मुसाफ़िरों के सामने जो उनके साथ मिल कर रहते थे न पढ़ा हो|
1और जब उन सब हित्ती, अमोरी, कना'नी , फ़रिज़्ज़ी , हव्वी और यबूसी बादशाहों ने जो यरदन के उस पार पहाड़ी मुल्क और नशेब की ज़मीन और बड़े समन्दर के उस साहिल पर जो लुबनान के सामने है रहते थे यह सुना|2तो वह सब के सब इकठ्ठा हुए ताकि मुत्तफ़िक़ हो कर यशू'अ और बनी इस्राईल से जंग करें|3और जब जिबा'ऊन के बाशिंदों ने सुना कि यशू'अ ने यरीहू और 'ए से क्या क्या किया है|4तो उन्होंने भी हीला बाज़ी की और जाकर सफ़ीरों का भेस भरा , और पुराने बोरे और पुराने फटे हुए और मरम्मत किये हुए शराब के मश्कीज़े अपने गधों पर लादे|5और पाँव में पुराने पैवन्द लगे हुए जूते और तन पर पुराने कपड़े डाले, और उनके सफ़र का खाना सूखी फफूँदी लगी हुई रोटियां थीं|6और वह जिल्जाल में ख़ेमागाह को यशू'अ के पास जाकर उस से और इस्राईली मर्दों से कहने लगे, "हम एक दूर मुल्क से आयें हैं; इसलिए अब तुम हम से 'अहद बाँधों| ”7तब इस्राईली मर्दों ने उन हव्वियों से कहा, कि शायद तुम हमारे बीच ही रहते हो; फिर हम तुम से क्यूँकर 'अहद बाँधें ?8उन्होंने यशू'अ से कहा, " हम तेरे ख़ादिम हैं| तब यशू'अ ने उन से पूछा, " तुम कौन हो और कहाँ से आए हो ?”9उन्होंने ने उस से कहा, " तेरे ख़ादिम एक बहुत दूर मुल्क से ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के नाम के ज़रिये' आए हैं क्यूँकि हम ने उसकी शोहरत और जो कुछ उस ने मिस्र में किया|10और जो कुछ उस ने अमोरियों के दोनों बादशाहों से जो यरदन के उस पार थे, या'नी हसबून के बादशाह सीहोन और बसन के बादशाह 'ओज़ से जो असतारात में था किया सब सुना है|11इसलिए हमारे बुज़ुर्गों और हमारे मुल्क के सब बाशिंदों ने हम से यह कहा कि तुम सफ़र के लिए अपने हाथ में खाना ले लो और उन से मिलने को जाओ और उन से कहो कि हम तुम्हारे ख़ादिम हैं~इसलिए ~तुम अब हमारे साथ 'अहद बाँधो|12जिस दिन हम तुम्हारे पास आने को निकले हमने अपने अपने घर से अपने खाने की रोटी गरम गरम ली, और अब देखो वह सूखी है और उसे फफूँदी लग गई|13और मय के यह मश्कीज़े जो हम ने भर लिए थे नये थे, और देखो यह तो फट गये; और यह हमारे कपड़े और जूते दूर-ओ-दराज़ सफ़र की वजह से पुराने हो गये|14तब इन लोगों ने उनके खाने में से कुछ लिया और ख़ुदावन्द से मशवरत न की|15और यशू'अ ने उन से सुलह की और उनकी जान बख़्शी करने के लिए उन से 'अहद बाँधा, और जमा'अत के अमीरों ने उन से क़सम खाई|16और उनके साथ 'अहद बाँधने से तीन दिन के बा'द उनके सुनने में आया, कि यह उनके पड़ोसी हैं और उनके बीच ही रहते हैं|17और बनी इस्राईल रवाना हो कर तीसरे दिन उनके शहरों में पहुँचे; जिबा'ऊन और कफ़ीरह और बैरूत और क़रयत या'रीम उनके शहर थे|18और बनी इस्राईल ने उनको क़त्ल न किया इसलिए कि जमा'अत के अमीरों ने उन से ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की क़सम खाई थी; और सारी जमा'अत उन अमीरों पर कुड़कुड़ाने लगी19लेकिन उन सब अमीरों ने सारी जमा'अत से कहा कि हम ने उन से ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की क़सम खाई है, इसलिए हम उन्हें छू नहीं सकते|20हम उन से यही करेंगे और उनको जीता छोड़ेंगे ऐसा न हो कि उस क़सम की वजह से जो हम ने उन से खाई है, हम पर ग़ज़ब टूटे|21इसलिए अमीरों ने उन से यही कहा कि उनको जीता छोड़ो| तब वह सारी जमा'अत के लिए लकड़हारे और पानी भरने वाले बने जैसा अमीरों ने उन से कहा था|22तब यशू'अ ने उनको बुलवा कर उन से कहा जिस हाल कि तुम हमारे बीच रहते हो, तुम ने यह कह कर हमको क्यूँ फ़रेब दिया कि हम तुम से बहुत दूर रहते हैं ?23इसलिए अब तुम ला'नती ठहरे, और तुम में से कोई ऐसा न रहेगा जो ग़ुलाम या'नी मेरे ख़ुदा के घर के लिए लकड़हारा और पानी भरने वाला न हो|24उन्होंने यशू'अ को जवाब दिया कि तेरे ख़ादिमों को तहक़ीक़ यह ख़बर मिली थी, कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने अपने बन्दे मूसा को फ़रमाया कि सारा मुल्क तुमको दे और उस मुल्क के सब बाशिंदों को तुम्हारे सामने से हलाक करे| इसलिए हमको तुम्हारी वजह से अपनी अपनी जानों के लाले पड़ गये, इस लिए हम ने यह काम किया|25और अब देख, हम तेरे हाथ में हैं जो कुछ तू हम से करना भला और ठीक जाने सो कर|26फिर उसने उन से वैसा ही किया, और बनी इस्राईल के हाथ से उनको ऐसा बचाया कि उन्होंने उनको क़त्ल न किया|27और यशू'अ ने उसी दिन उनको जमा'अत के लिए और उस मुक़ाम पर जिसे ख़ुदावन्द ख़ुद चुने उसके मज़बह के लिए, लकड़हारे और पानी भरने वाले मुक़र्रर किया जैसा आज तक है
1और जब यरुशलीम के बादशाह अदूनी सिद्क़ ने सुना कि यशू'अ ने 'ए को सर करके उसे हलाक कर दिया और जैसा उस ने यरीहू और वहाँ के बादशाह से किया वैसा ही 'ए और उसके बादशाह से किया; और जिबा'ऊन के बाशिंदों ने बनीइस्राईल से सुलह कर ली और उनके बीच रहने लगे हैं|2तो वह सब बहुत ही डरे, क्यूँकि जिबा'ऊन एक बड़ा शहर बल्कि बादशाही शहरों में से एक की तरह और 'ए से बड़ा था और उसके सब मर्द बड़े बहादुर थे|3इस लिए यरूशलीम के बादशाह अदूनी सिद्क़ ने हबरून के बादशाह हुहाम , और यरमूत के बादशाह पीराम, और लकीस के बादशाह याफ़ी' और अजलून के बादशाह दबीर को यूँ कहला भेजा कि|4मेरे पास आओ और मेरी मदद करो और चलो हम जिबा'ऊन को मारें; क्यूँकि उस ने यशू'अ और बनीइस्राईल से सुलह कर ली है|5इसलिए अमोरियों के पाँच बादशाह, या'नी यरूशलीम का बादशाह और हबरून का बादशाह और यरमूत का बादशाह और लकीस का बादशाह और 'अजलून का बादशाह इकठ्ठे हुए; और उन्होंने अपनी सब फ़ौजों के साथ चढ़ाई की और जिबा'ऊन के मुक़ाबिल डेरे डाल कर उस से जंग शुरू' की|6तब जिबा'ऊन के लोगों ने यशू'अ को जो जिलजाल में ख़ेमाज़न था कहला भेजा कि अपने ख़ादिमों की तरफ़ से अपना हाथ मत खींच| जल्द हमारे पास पहुँच कर हमको बचा और हमारी मदद कर, इसलिए कि सब अमूरी बादशाह जो पहाड़ी मुल्क में रहते हैं हमारे ख़िलाफ़ इकठ्ठे हुए हैं|7तब यशू'अ सब जंगी मर्दों और सब ज़बरदस्त सूरमाओं को हमराह लेकर जिलजाल से चल पड़ा|8और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा, " उन से न डर इस लिए कि मैंने उनको तेरे क़ब्ज़े में कर दिया है; उन में से एक आदमी भी तेरे सामने खड़ा न रह सकेगा| ”9तब यशू'अ रातों रात जिल्जाल से चल कर अचानक उन पर आ पड़ा|10और ख़ुदावन्द ने उनको बनीइस्राईल के सामने शिकस्त दी; और उस ने उनको जिबा'ऊन में बड़ी ख़ून रेज़ी के साथ क़त्ल किया और बैत हौरून की चढ़ाई के रास्ते पर उनको दौड़ाया और 'अजी़क़ाह और मुक़क़ीदा तक उनको मारता गया|11और जब वह इस्राईलियों के सामने से भागे और बैतहोरून के उतार पर थे, तो ख़ुदावन्द ने 'अज़ीक़ाह तक आसमान से उन पर बड़े बड़े पत्थर बरसाए और वह मर गये; और जो ओलों से मरे वह उनसे जिनको बनीइस्राईल ने तलवार से मारा कहीं ज़्यादा थे|12और उस दिन जब ख़ुदावन्द ने अमोरियों को बनीइस्राईल के क़ाबू में कर दिया यशू'अ ने ख़ुदावन्द के हुज़ूर बनी इस्राईल के सामने यह कहा कि, ऐ सूरज तू जिबा'ऊन पर और ऐ चाँद! तू वादी-ए-अयालून में ठहरा रह|13और सूरज ठहर गया और चाँद थमा रहा| जब तक क़ौम ने अपने दुश्मनों से अपना इन्तिक़ाम न ले लिया| क्या यह आशर की किताब में नहीं लिखा है ?और सूरज आसमान के बीचो बीच ठहरा रहा, और तक़रीबन सारे दिन डूबने में जल्दी न की|14और ऐसा दिन कभी उस से पहले हुआ और न उसके बा'द, जिस में ख़ुदावन्द ने किसी आदमी की बात सुनी हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईलियों की ख़ातिर लड़ा|15फिर यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली जिलजाल को ख़ेमागाह में लौटे|16और वह पाँचों बादशाह भाग कर मुक़्क़ैदा के ग़ार में जा छिपे|17और यशू'अ को यह ख़बर मिली कि वह पाँचो बादशाह मुक़्क़ैदा के ग़ार में छिपे हुए मिले हैं|18यशू'अ ने हुक्म किया कि बड़े बड़े पत्थर उस ग़ार के मुँह पर लुढ़का दो और आदमियों को उसके पास उनकी निगहबानी के लिए बिठा दो|19लेकिन तुम न रुको , तुम अपने दुश्मनों का पीछा करो और उन में के जो जो पीछे रह गए ~हैं उनको मार डालो , उनको मोहलत न दो कि वह अपने अपने शहर में दाख़िल हों; इसलिए कि खुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने उनको तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया है|20और जब यशू'अ और बनी इस्राईल बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ उनको क़त्ल कर चुके, यहाँ तक कि वह हलाक-ओ-बर्बाद हो गये; और वह जो उन में से बाक़ी बचे फ़सील दार शहरों में दाख़िल हो गये|21तो सब लोग मुक़्क़ैदा में यशू'अ के पास लश्कर गाह को सलामत लौटे, और किसी ने बनीइस्राईल में से किसी के बरख़िलाफ़ ज़बान न हिलाई|22फिर यशू'अ ने हुक्म दिया कि ग़ार का मुँह खोलो और उन पाँचों बादशाहों को ग़ार से बाहर निकाल कर मेरे पास लाओ23उन्होंने ऐसा ही किया और वह पाँचों बादशाहों को या'नी शाह यरुशलीम और शाह-ए-हबरोन और शाह-ए-यारमोत और शाह-ए-लकीस और शाह-ए-अजलून को ग़ार से निकाल कर उसके पास लाये|24और जब वह उनको यशू'अ के सामने लाये तो यशू'अ ने सब इस्राईलियों को बुलवाया और उन जंगी मर्दों के सरदारों से जो उसके साथ गये थे यह कहा कि नज़दीक आकर अपने अपने पाँव इन बादशाहों की गरदनों पर रखो|25और यशू'अ ने उन से कहा खौफ़ न करो और हिरासाँ मत हो मज़बूत हो जाओ और हौसला रखो इसलिए कि ख़ुदावन्द तुम्हारे सब दुश्मनों से जिनका मुक़ाबिला तुम करोगे ऐसा ही करेगा|26इसके बा'द यशू'अ ने उनको मारा और क़त्ल किया और पाँच दरख़्तों पर उनको टांग दिया| इसलिए वह शाम तक दरख़्तों पर टंगे रहे|27और सूरज डूबते वक़्त उन्होंने यशू'अ के हुक्म से उनको दरख़्तों पर से उतार कर उसी ग़ार में जिस में वह जा छिपे थे डाल दिया, और ग़ार के मुँह पर बड़े बड़े पत्थर रख दिए जो आज तक हैं|28और उसी दिन यशू'अ ने मुक़्क़ैदा को घेर कर के उसे हलाक किया, और उसके बादशाह को और उसके सब लोगों को बिल्कुल हलाक कर डाला और एक भी बाक़ी न छोड़ा; और मुक़्क़ैदा के बादशाह से उसने वही किया जो यरीहू के बादशाह से किया था|29फिर यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली मुक़्क़ैदा से लिबनाह को गये, और वह लिबनाह से लड़ा|30और ख़ुदावन्द ने उसको भी और उसके बादशाह को भी बनीइस्राईल के क़ब्ज़े में कर दिया; और उस ने उसे और उसके सब लोगों को हलाक किया और एक को भी बाक़ी न छोड़ा, और वहाँ के बादशाह से वैसा ही किया जो यरीहू के बादशाह से किया था|31फिर लिबनाह से यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली लकीस को गये और उसके मुक़ाबिल डेरे डाल लिए और वह उस से लड़ा|32और ख़ुदावन्द ने लकीस को इस्राईल के क़ब्ज़े में कर दिया उस ने दूसरे दिन उस पर फ़तह पायी और उसे हलाक किया और सब लोगों को जो उस में थे क़त्ल किया जिस तरह उस ने लिबनाह से किया था|33उस वक़्त जज़र का बादशाह हुरम लकीस को मदद करने को आया~इसलिए यशू'अ ने उसको और उसके आदमियों को मारा यहाँ तक कि उसका एक भी जीता न छोड़ा| |34और यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली लकीस से 'अजलून को गये और उसके मुक़ाबिल डेरे डालकर उस से जंग शुरू' की|35और उसी दिन उसे घेर लिया उसे हलाक किया और उन सब लोगों को जो उस में थे उस ने उसी दिन बिल्कुल हलाक कर डाला जैसा उस ने लकीस से किया था|36फिर 'अजलून से यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली हबरून को गये और उस से लड़े|37और उन्होंने उसे घेर करके उसे और उसके बादशाह और उसकी सब बस्तियों और वहाँ के सब लोगों को बर्बाद किया और जैसा उस ने 'अजलून से किया था एक को भी जीता न छोड़ा बल्कि उसे और वहाँ के सब लोगों को बिल्कुल हलाक कर डाला|38फिर यशू'अ और उसके साथ सब इस्राईली दबीर को लौटे और उससे लड़े|39और उसने उसे और उसके बादशाह और उसकी सब बस्तियों को फ़तह कर लिया और उन्होंने उनको बर्बाद किया और सब लोगों को जो उस में थे बिल्कुल हलाक कर दिया उसने एक को भी बाक़ी न छोड़ा जैसा उसने हबरून और उसके बादशाह से किया था वैसा ही दबीर और उसके बादशाह से किया, ऐसा ही उस ने लिबनाह और उसके बादशाह से भी किया था|40तब यशू'अ ने सारे मुल्क को या'नी पहाड़ी मुल्क और दख्खिनी हिस्सा और नशीब की ज़मीन और ढलानों और वहाँ के सब बादशाहों को मारा| उस ने एक को भी जीता न छोड़ा बल्कि वहाँ के हर इन्सान को जैसा ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने हुक्म किया था बिल्कुल हलाक कर डाला|41और यशू'अ ने उनको क़ादिस बरनी' से लेकर ग़ज़्ज़ा तक और जशन के सारे मुल्क के लोगों को जिबा'ऊन तक मारा|42और यशू'अ ने उन सब बादशाहों पर और उनके मुल्क पर एक ही वक़्त में क़ब्ज़ा हासिल किया इसलिए कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा इस्राईल की ख़ातिर लड़ा|43फिर यशू'अ और सब इस्राईली उसके साथ जिल्जाल को ख़ेमागाह में लौटे|
1जब हसूर के बादशाह याबीन ने यह सुना तो उस ने मदून के बादशाह यूआब और समरून के बादशाह और इक्शाफ़ के बादशाह को|2और उन बादशाहों को जो उत्तर की तरफ़ पहाड़ी मुल्क और किन्नरत के दख्खिनी मैदान और नशेब की ज़मीन और पश्चिम की तरफ़ डोर की मुर्तफ़ा ज़मीन में रहते थे|3और पूरबी और पश्चिम के कना'नियों और अमूरीयों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़ियों और पहाड़ी मुल्क के यबूसियों और हव्वियों को जो हरमून के नीचे मिस्फ़ाह के मुल्क में रहते थे बुलवा भेजा|4तब वह और उनके साथ उनके लश्कर या'नी एक बड़ी भीड़ जो ता'दाद में समन्दर के किनारे की रेत की तरह ~थे बहुत से घोड़ों और रथों को साथ लेकर निकले|5और यह सब बादशाह मिलकर आए और उन्होंने मेरुम की झील पर इकठ्ठे डेरे डाले ताकि इस्राईलियों से लड़ें|6तब ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि उन से न डरो क्यूँकि कल इस वक़्त मैं उन सब को इस्राईलियों के सामने मार कर डाल दूँगा तू उनके घोड़ों की कूचें काट डालना और उनके रथ आग से जला देना|7चुनाँचे यशू'अ और सब जंगी मर्द उसके साथ मेरूम की झील पर अचानक उनके मुक़ाबिले को आए और उन पर टूट पड़े|8और ख़ुदावन्द ने उनको इस्राईलियों के क़ब्ज़े में कर दिया~इसलिए उन्होंने उनको मारा और बड़े सैदा और मिसरफ़ात अलमाइम और पूरब में मिसफ़ाह की वादी तक उनको दौड़ाया और क़त्ल किया यहाँ तक कि उन में से एक भी बाक़ी न छोड़ा|9और यशू'अ ने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुवाफ़िक़ उन से किया कि उनके घोड़ों की कूँचें काट डालीं और उनके रथ आग से जला दिए|10फिर यशू'अ उसी वक़्त लौटा और उस ने हसूर को घेर करके उसके बादशाह को तलवार से मारा, क्यूँकि अगले वक़्त में हसूर उन सब सल्तनतों का सरदार था|11और उन्होंने उन सब लोगों को जो वहाँ थे तहस नहस ~करके उनको, बिल्कुल हलाक कर दिया; वहाँ कोई आदमी बाक़ी न रहा, फिर उस ने हसूर को आग से जला दिया|12और यशू'अ ने उन बादशाहों के सब शहरों को और उन शहरों के सब बादशाहों को लेकर और उनको तहस नहस कर के बिल्कुल हलाक कर दिया, जैसा खुदावन्द के बन्दे मूसा ने हुक्म किया था|13लेकिन जो शहर अपने टीलों पर बने हुए थे उन में से किसी को इस्राईलियों ने नहीं जलाया, सिवा हसूर के जिसे यशू'अ ने फूँक दिया था|14और उन शहरों के तमाम माल-ए-ग़नीमत और चौपायों को बनीइस्राईल ने अपने वास्ते लूट में ले लिया, लेकिन हर एक आदमी को तलवार की धार से क़त्ल किया, यहाँ तक कि उनको ख़त्म ~कर दिया और एक आदमी ~को भी न छोड़ा|15जैसा ख़ुदावन्द ने अपने बन्दे मूसा को हुक्म दिया था वैसा ही मूसा ने यशू'अ को हुक्म दिया , और यशू'अ ने वैसा ही किया; और जो हुक्म ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया था उन में से किसी को उस ने बग़ैर पूरा किये न छोड़ा|16इसलिए ~यशू'अ ने उस सारे मुल्क को, या'नी पहाड़ी मुल्क, और सारे दख्खिनी हिस्से और जशन के सारे मुल्क, और नशेब की ज़मीन, और मैदान और इस्राईलियों के पहाड़ी मुल्क, और उसी के नशेब की ज़मीन, |17कोह-ए-ख़ल्क़ से लेकर जो सि'ईर की तरफ़ जाता है, बा'ल जद्द तक जो वादी-ए-लुबनान में कोह-ए-हरमून के नीचे है सब को ले लिया, और उनके बादशाहों पर फ़तह़ हासिल करके उस ने उनको मारा और क़त्ल किया|18और यशू'अ मुद्दत तक उन सब बादशाहों से लड़ता रहा|19सिवा हव्वियों के जो जिबा'ऊन के बाशिंदे थे और किसी शहर ने बनीइस्राईल से सुलह नहीं की, बल्कि ~सब को उन्होंने लड़ कर फ़तह किया|20क्यूँकि यह ख़ुदावन्द ही की तरफ़ से था कि वह उनके दिलों को ऐसा सख़्त कर दे कि वह जंग में इस्राईल का मुक़ाबला करें ताकि वह उनको बिल्कुल हलाक़ कर डाले और उन पर कुछ मेहरबानी न हो बल्कि वह उनको बर्बाद ~कर दे, जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था|21फिर उस वक़्त यशू'अ ने आकर, अनाक़ीम की पहाड़ी मुल्क, या'नी हबरून और दबीर और 'अनाब से बल्कि यहूदाह के सारे पहाड़ी मुल्क और इस्राईल के सारे पहाड़ी मुल्क से काट डाला; यशू'अ ने उनको उनके शहरों के साथ बिल्कुल हलाक़ कर दिया|22इसलिए ~अ'नाक़ीम में में से कोई बनीइस्राईल के मुल्क में बाक़ी न रहा, सिर्फ़ गज़्ज़ा और जात और अशदूद में थोड़े से बाक़ी रहे|23तब जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा था, उसके मुताबिक़ यशू'अ ने सारे मुल्क को लिया यशू'अ ने उसे इस्राईलियों को उनके क़बीलों के हिस्से ~के मुवाफ़िक़ मीरास के तौर पर दिया, और मुल्क को जंग से फराग़त मिली|
1उस मुल्क के वह बादशाह जिनको बनीइस्राईल ने क़त्ल करके उनके मुल्क पर, यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ अरनोंन की वादी से लेकर कोह-ए-हरमून तक और तमाम पूरबी मैदान पर, क़ब्ज़ा कर लिया यह हैं ~|2अमूरियों का बादशाह सीहून जो हसबून में रहता था और 'अरो'ईर से लेकर जो वादी-ए-अरनून के किनारे है, और उस वादी के बीच के शहर से वादी-ए-यब्बूक़ तक जो बनी 'अम्मून की सरहद है आधे जिल'आद पर, |3और मैदान से बहरे-ए-किन्नरत तक जो पूरब की तरफ़ है, बल्कि पूरब ही की तरफ़ बैत यसीमोत से होकर मैदान के दरिया तक जो दरयाई शोर है, और दख्खिन में पिसगा के दामन के नीचे नीचे हुकूमत करता था|4और बसन के बादशाह 'ऊज़ की सरहद , जो रफ़ाईम की बक़िया नसल से था और 'असतारात और अदर'ई में रहता था, |5और वह कोह-ए-हरमून और सिल्का और सारे बसन में जसूरियों और मा'कातियों की सरहद तक, आधे जिल'आद में जो हसबून के बादशाह सीहून की सरहद थी, हुकूमत करता था|6उनको ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा और बनीइस्राईल ने मारा, और ख़ुदावन्द के बन्दा मूसा ने बनीरूबिन और बनीजद और मनस्सी के आधे क़बीले को उनका मुल्क, मीरास के तौर पर दे दिया|7और यरदन के इस पार पश्चिम की तरफ़ बा'ल जद से जो वादी-ए-लुबनान में है, कोह-ए-ख़ल्क़ तक जो स'ईर को निकल गया है, जिन बादशाहों को यशू'अ और बनीइस्राईल ने मारा और जिनके मुल्क को यशू'अ ने इस्राईलियों के क़बीलों को उनकी तक़सीम के मुताबिक़ मीरास के तौर पर दे दिया वह यह हैं|8पहाड़ी मुल्क और नशीब की ज़मीन और मैदान और ढलानों में और वीरान और दख्खिनी हिस्से में हित्ती और अमूरी और कना'नी और फ़रिज्ज़ी और हव्वी और यबूसी क़ौमों में से; |9एक यरीहू का बादशाह, एक 'ए का बादशाह जो बैतएल के नज़दीक आबाद है|10एक यरूशलीम का बादशाह, एक हबरून का बादशाह, |11एक यरमूत का बादशाह, एक लकीस का बादशाह, |12एक 'अजलून का बादशाह, एक जज़र का बादशाह, |13एक दबीर का बादशाह, एक जदर का बादशाह, |14एक हुरमा का बादशाह, एक 'अराद का बादशाह, |15एक लिब्नाह का बादशाह, एक उद्लाम का बादशाह, |16एक मक़्क़ीदा का बादशाह, एक बैत एल का बादशाह, |17एक तफ़ूह का बादशाह, एक हफ़र का बादशाह, |18एक अफ़ीक का बादशाह, एक लशरून का बादशाह, |19एक मदून का बादशाह, एक हसूर का बादशाह, |20एक सिमरून मरून का बादशाह, एक इक्शाफ़ का बादशाह, |21एक ता'नक का बादशाह, एक मजिद्दो का बादशाह, |22एक क़ादिस का बादशाह, एक कर्मिल के यक़'नियाम का बादशाह, |23एक दोर की मुर्तफ़ा' ज़मीन के दोर का बादशाह, एक गोइम का बादशाह, जो जिलजाल में था|24एक तिरज़ा का बादशाह, यह सब इकतीस बादशाह, थे|
1और यशू'अ बूढ़ा और 'उम्र रसीदा हुआ और ख़ुदावन्द ने उस से कहा, कि तू बूढ़ा और 'उम्र रसीदा है और क़ब्ज़ा करने को अभी बहुत सा मुल्क बाक़ी है|2और वह मुल्क जो बाक़ी है~इसलिए ~ये है; फिलिस्तियों की सब इक़लीम और सब हबसूरी|3सीहूर से जो मिस्र के सामने है उत्तर की तरफ़ 'अक़रून की हद तक जो कना'नियों का गिना जाता है, | फ़िलिस्तियों के पाँच सरदार या'नी ग़ज़ी और अशदूदी असक़लूंनी और जातीऔर अक़रूनी और 'अव्वीम भी|4जो दख्खिन की तरफ़ हैं ~और कना'नियों का सारा मुल्क और मग़ारह जो सैदानियों का है, | अफ़ीक़ या'नी अमूरियों की सरहद तक|5और जिब्लियों का मुल्क और पूरब की तरफ़ बा'ल जद से जो कोह-ए-हरमून के नीचे है, हिमात के मद्खल तक सारा लुबनान|6फिर लुबनान से मिसरफ़ात अलमाईम तक पहाड़ी मुल्क के सब बाशिंदे या'नी सब सैदानी| उनको मैं बनीइस्राईल के सामने से निकाल डालूँगा, | तू सिर्फ़ जैसा मैंने तुझको हुक्म दिया है, मीरास के तौर पर उसे इस्राईलियों को तक़सीम कर दे, |7इसलिए तू~इस मुल्क को उन नौ क़बीलों और मनस्सी के आधे क़बीले को मीरास के तौर पर बाँट दे, |8मनस्सी के साथ बनी रूबिन और बनी जद ने अपनी अपनी मीरास पा ली थी जिसे मूसा ने यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ उनको दिया था, क्यूँकि ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने उसे उन ही को दिया था, या'नी: |9'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनून के किनारे आबाद है शुरू', करके वह शहर जो वादी के बीच में है, मिदबा का सारा मैदान दीबोन तक, |10और अमूरियों के बादशाह सीहून के सब शहर जो हसबून में सल्तनत करता था बनी 'अम्मून की सरहद तक|11और जिल'आद और जसूरियों और मा'कातियों की नवाही और सारा कोह-ए-हरमून और सारा बसन सलका तक|12और 'ओज जो रफ़ाईम की बक़िया नसल से था और 'इस्तारात और अदर'ई में हुक्मरान था उसका सारा 'इलाक़ा जो बसन में था क्यूँकि मूसा ने उनको मार कर अलग कर दिया था|13तो भी बनीइस्राईल ने जसूरियों और मा'कात्तियों को नहीं निकाला चुनाँचे जसूरी और मा'काती आज तक इस्राईलियों के बीच ~बसे हुए हैं|14सिर्फ़ लावी के क़बीले को उस ने कोई मीरास नहीं दी; क्यूँकी ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की आतिशीन क़ुर्बानियाँ उसकी मीरास हैं , जैसा उसने उससे कहा था|15और मूसा ने बनी रूबिन के क़बीले को उनके घरानों के मुताबिक़ मीरास दी, |16और उनकी सरहद यह थी: या'नी 'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनोन के किनारे आबाद ~है, और वह शहर जो पहाड़ के बीच में है , और मिदबा के पास का सारा मैदान;17हस्बोन और उसके सब शहर जो मैदान में हैं, दीबोन और बामात बा'ल , बैत बा'ल म'ऊन ,18और यह्साह, और क़दीमात, और मफ़'अत,19और क़रीताईम, और सिबमाह, और ज़रत-उल-सहर जो पहाड़ के किनारे ~में हैं,20और बैत फ़गू़र, और पिसगा के दामन की ज़मीन, और बैत यसीमोत,21और मैदान के सब शहर और अमोरियों के बादशाह सीहोन का सारा मुल्क़ जो हसबोन में सल्तनत करता था, जिसे मूसा ने मिदियान के रईसों अवी और रक़म और सूर और हूर और रब्बा , सीहोन के रईसों के साथ जो उस मुल्क़ में बसते थे, क़त्ल किया था|22और ब'ओर के बेटे बल'आम को भी जो नजूमी था, बनीइस्राईल ने तलवार से क़त्ल करके उनके मक़तूलों के साथ मिला दिया था|23और यरदन और उसके 'इलाक़े बनी रूबिन की सरहद थी| यही शहर और उनके गाँव बनी रूबिन के घरानों के मुताबिक़ उनके वारिस ठहरे|24और मूसा ने जद्द के क़बीले या'नी बनी जद्द को उनके घरानों के मुताबिक़ मीरास दी|25और उनकी सरहद यह थी: या'ज़ीर और जिल'आद के सब शहर और बनी 'अम्मोन का आधा मुल्क़, 'अरो'ईर तक जो रब्बा के सामने है|26और हसबोन से रामात उल मिस्फ़ाह और बतूनीम तक, और महनाईम से दबीर की सरहद तक|27और वादी ~में बैत हारम, और बैत निमरा, और सुक्कात, और सफ़ोन, या'नी हस्बोन के बादशाह सीहोन की अक़लीम का बाक़ी हिस्सा, और यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ किन्नरत की झील के उस सिरे तक, यरदन और उस की सारी नवाही|28यही शहर और इनके गाँव बनी जद्द के घरानों के मुताबिक़ उनकी मीरास ~ठहरे|29और मूसा ने मनस्सी के आधे क़बीले को भी मीरास दी, यह बनी मनस्सी के घरानों के मुताबिक़ उनके आधे क़बीले के लिए थी|30और उनकी सरहद यह थी: महनाईम से लेकर सारा बसन और बसन के बादशाह 'ओज़ की तमाम अक़लीम, और या'ईर के सब क़स्बे जो बसन में हैं वह साठ शहर हैं,31और आधा जिल'आद और 'इस्तारात और अदर'ई जो बसन के बादशाह 'ओज़ के शहर थे, मनस्सी के बेटे मकीर की औलाद को मिले, या'नी मकीर की औलाद के आधे को उनके घरानों के मुताबिक़ यह मिले|32यही वह हिस्से हैं जिनको मूसा ने यरीहू के पास मोआब के मैदानों में यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ मीरास ~के तौर पर तक़सीम किया|33लेकिन लावी के क़बीले को मूसा ने कोई मीरास नही दी; क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा उनकी मीरास है, जैसा उसने उनसे ख़ुद कहा|
1और वह हिस्से जिनको कन'आन के मुल्क में बनीइस्राईल ने वारिस ~के तौर पर पाया, और जिनको इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और बनीइस्राईल के क़बीलों के आबाई ख़ानदानों के सरदारों ने उनको तक़सीम किया यह हैं|2उनकी मीरास पर्ची से दी गयी, जैसा ख़ुदावन्द ने साढ़े नौ क़बीलों के हक़ में मूसा को हुक्म दिया था|3क्यूँकि मूसा ने यरदन के उस पार ढाई क़बीलों की मीरास ~उनको दे दी थी, लेकिन उसने लावियों को उनके बीच कुछ मीरास ~नहीं दी|4क्यूँकि बनी यूसुफ़ के दो क़बीले थे, मनस्सी और इफ़्राईम, ~इसलिए लावियों को उस मुल्क में कुछ हिस्सा न मिला सिवा शहरों के जो उनके रहने के लिए थे और उनकी नवाही के जो उनके चौपायों और माल के लिए थी|5जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था, वैसा ही बनीइस्राईल ने किया और मुल्क को बाँट लिया|6तब बनी यहूदाह जिल्जाल में यशू'अ के पास आये; और क़िन्ज़ी युफ़न्ना के बेटे कालिब ने उससे कहा, "तुझे मा'लूम है कि ख़ुदावन्द ने मर्द-ए-ख़ुदा मूसा से मेरी और तेरी बारे में क़ादिस बरनी' में क्या कहा था|7जब ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने क़ादिस बरनी' से मुझको इस मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने को भेजा उस वक़्त मैं चालीस बरस का था; और मैंने उसको वही ख़बर ला कर दी जो मेरे दिल में थी|8तो भी मेरे भाइयों ने जो मेरे साथ गये थे, लोगों के दिलों को पिघला दिया; लेकिन मैंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की पूरी पैरवी की है|9तब मूसा ने उस दिन क़सम खा कर कहा, “जिस ज़मीन पर तेरा क़दम पड़ा है वह हमेशा के लिए तेरी और तेरे बेटों की मीरास ठहरेगी, क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा की पूरी पैरवी की है”|10और अब देख जब से ख़ुदावन्द ने यह बात मूसा से कही तब से इन पैंतालीस बरसों तक, जिनमें बनीइस्राईल वीराने में आवारा फ़िरते रहे, ख़ुदावन्द मुझे अपने क़ौल के मुताबिक़ जीता रखा और अब देख, मैं आज के दिन पिचासी बरस का हूँ|11और आज के दिन भी मैं वैसा ही हूँ जैसा उस दिन था, जब मूसा ने मुझे भेजा था और जंग के लिए और बाहर जाने और लौटने के लिए जैसी क़ुव्वत मुझ में उस वक़्त थी वैसी ही अब भी है|12इसलिए यह पहाड़ी जिसका ज़िक्र ख़ुदावन्द ने उस रोज़ किया था मुझ को दे दे, क्यूँकि तूने उस दिन सुन लिया था कि 'अनाक़ीम वहाँ बसते हैं और वहाँ के शहर बड़े फ़सील दार हैं; यह मुमकिन है कि ख़ुदावन्द मेरे साथ हो और मैं उनको ख़ुदावन्द के क़ौल के मुताबिक़ निकाल दूँ| ”13तब यशू'अ ने युफ़न्ना के बेटे कालिब को दु'आ दी, और उसको हबरून मीरास के तौर पर दे दिया|14इसलिए हबरून उस वक़्त से आज तक क़िन्ज़ी युफ़न्ना के बेटे कालिब की मीरास ~है, इस लिए कि उस ने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की पूरी पैरवी की|15और अगले वक़्त में हबरून का नाम क़रयत अरबा' था, और वह अरबा' 'अनाक़ीम में सब से बड़ा आदमी था| और उस मुल्क को जंग से फ़राग़त मिली|
1और बनी यहूदाह के क़बीले का हिस्सा उनके घरानों के मुताबिक़ पर्ची डालकर अदोम की सरहद तक, और दख्खिन में दश्त-ए-सीन तक जो जुनुब के इन्तिहाई हिस्से में आबाद है ठहरा|2और उनकी दख्खिनी हद दरिया-ए-शोर के इन्तिहाई हिस्से की उस खाड़ी से जिसका रुख दख्खिन की तरफ़ है शुरू'' हुई;3और वह 'अक़रब्बीम की चढ़ाई की दख्खिनी सिम्त से निकल सीन होती हुई क़ादिस बरनी' के दख्खिन को गयी, फिर हसरून के पास से अदार को जाकर क़रक़ा' को मुड़ी,4और वहाँ से 'अज़मून होती हुई मिस्र के नाले को जा निकली, और उस हद का ख़ातिमा समन्दर पर हुआ; यही तुम्हारी दख्खिनी सरहद होगी|5और पूरबी सरहद यरदन के दहाने तक दरिया-ए-शोर ही ठहरा, और उसकी उत्तरी हद उस दरिया की उस खाड़ी से जो यरदन के दहाने पर है शुरू'' हुई ,6और यह हद बैत हजला को जाकर और बैत उल 'अराबा के उत्तर से गुज़र कर रूबिन के बेटे बोहन के पत्थर को पहुँची;7फिर वहाँ से वह हद 'अकूर की वादी होती हुई दबीर को गई और वहाँ से उत्तर की सिम्त चल कर जिलजाल के सामने जो अदुम्मीम की चढ़ाई के मुक़ाबिल है जा निकली, यह चढ़ाई नदी के दख्खिन में है; फिर वह हद 'ऐन शम्स के चश्मों के पास होकर 'ऐन राजिल पहुँची|8फिर वही हद हिन्नूम के बेटे की वादी में से होकर यबूसियों की बस्ती के दख्खिन को गयी, यरुशलीम ~वही है; और वहाँ से उस पहाड़ की चोटी को जा निकली, जो वादी-ए-हिन्नूम के मुक़ाबिल पश्चिम की तरफ़ और रिफ़ाईम की वादी के उत्तरी इन्तिहाई हिस्से में आबाद' है;9फिर वही हद पहाड़ की चोटी से आब-ए-नफ़्तूह के चश्में को गयी, और वहाँ से कोह-ए-'अफ़रोन के शहरों के पास जा निकली, और उधर से बा'ला तक जो क़रयत या'रीम है पहुँची;10और बा'ला से होकर पश्चिम की सिम्त कोह-ए-श'ईर को फिरी, और कोह-ए-या'रीम के जो कसलून भी कहलाता है, उत्तरी दामन के पास से गुज़र कर बैत शम्स की तरफ़ उतरती हुई तिमना को गयी;11और वहाँ से वह हद 'अक़रून के उत्तर को जा निकली; फिर वह सिक्रून से हो कर कोह-ए-बा'ला के पास से गुज़रती हुई यबनीएल पर जा निकली; और इस हद का ख़ातिमा समन्दर पर हुआ12और पश्चिमी सरहद बड़ा समन्दर और उसका साहिल था| बनी यहूदाह की चारों तरफ़ की हद उनके घरानों के मुताबिक़ यही है|13और यशू'अ ने उस हुक्म के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द ने उसे दिया था, युफ़न्ना के बेटे कालिब को बनी यहूदाह के बीच 'अनाक़ के बाप अरबा' का शहर क़रयत अरबा'जो हबरून है हिस्सा दिया|14इसलिए कालिब ने वहाँ से 'अनाक़ के तीनों बेटों, या'नी सीसी और अख़ीमान और तलमी को जो बनी 'अनाक़ हैं निकाल दिया|15और वह वहाँ से दबीर के बाशिंदों पर चढ़ गया| दबीर का क़दीमी नाम क़रयत सिफ़र था|16और कालिब ने कहा, “जो कोई क़रयत सिफ़र को मार कर उसको सर करले, उसे मैं अपनी बेटी 'अकसा ब्याह दूँगा”|17तब कालिब के भाई क़नज़ के बेटे ग़तनीएल ने उसको सर कर लिया, इसलिए उसने अपनी बेटी 'अकसा उसे ब्याह दी|18जब वह उसके पास आई, तो उसने उस आदमी को उभारा कि वह उसके बाप से एक खेत माँगे; इसलिए वह अपने गधे पर से उतर पड़ी, तब कालिब ने उससे कहा, “तू क्या चाहती है ?”19उस ने कहा, “ मुझे बरकत दे; क्यूँकि तूने दख्खिन के मुल्क में कुछ ज़मीन मुझे 'इनायत की है, इसलिए मुझे पानी के चश्में भी दे| ” तब उसने उसे ऊपर के चश्में और नीचे के चश्में 'इनायत किये|20बनीयहूदाह के क़बीले की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यह है|21और अदूम की सरहद की तरफ़ दख्खिन में बनी यहूदाह के इन्तिहाई शहर यह हैं: क़बज़ीएल और 'एदर और यजूर ,22और कै़ना और दैमूना और 'अद 'अदा ,23और क़ादिस और हसूर और इतनान ,24ज़ीफ़ और तलम और बा'लूत ,25और हसूर और हदता और क़रयत और हसरून जो हसूर हैं ,26और अमाम और समा' और मोलादा ,27और हसार जद्दा और हिशमोन और बैत फ़लत ,28और हसर सु'आल और बैरसबा'और बिज़योत्याह ,29बा'ला और 'इय्यीम और 'अज़म ,30और इलतोलद और कसील और हुरमा ,31और सिक़लाज और मदमन्ना और सनसन्ना ,32और लबाऊत और सिलहीम और 'ऐन और रिम्मोन; यह सब उन्तीस शहर हैं, और इनके गाँव भी हैं|33और नशेब की ज़मीन में इस्ताल और सुर'आह और असनाह ,34और ज़नूह और 'ऐन जन्नीम, तफ़्फ़ूह और 'एनाम,35यरमोत और 'अद्दुल्लाम , शोका और 'अज़ीक़ा ,36और शा'रीम और अदीतीम और जदीरा और जदीरतीम; और यह चौदह शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|37ज़िनान और हदाशा और मिजदल जद ,38और दिल'आन और मिस्फ़ाह और यक़्तीएल ,39लकीस और बुसक़त और 'इजलून ,40और कब्बून और लहमान और कितलीस ,41और जदीरोत और बैत दजून और ना'मा और मुक़्क़ैदा; यह सोलह शहर हैं, और इनके गाँव भी हैं|42लिबना और 'अत्र और 'असन ,43और यफ़्ताह और असना और नसीब;44और क़'ईला और अकज़ीब और मरेसा; यह नौ शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|45'अकरून और उसके क़स्बे और गाँव|46'अकरून से समन्दर तक अशदूद के पास के सब शहर और उनके गाँव|47अशदूद अपने शहरों और गांवों के साथ, और गज़्ज़ा अपने शहरों और गाँव के साथ; मिस्र की नदी और बड़े समन्दर और साहिल तक|48और पहाड़ी मुल्क में समीर और यतीर और शोका ,49और दन्ना और क़रयत सन्ना जो दबीर है ,50और 'अनाब और इस्मतोह और 'इनीम,51और जशन और हौलून और जिलोह; यह ग्यारह शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|52अराब और दोमाह और इश'आन ,53और यनीम और बैत तफ़्फ़ूह और अफ़ीका ,54और हुमता और क़रयत अरबा' जो हबरून है और सी'ऊर; यह नौ शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|55म'ऊन, कर्मिल और ज़ीफ़ और यूत्ता ,56और यज़रएल और याक़दि'आम और ज़नूह ,57कै़न, जिब'आ और तिमना; यह दस शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|58हालहूल और बैत सूर और जदूर ,59और मा' रात और बैत 'अनोत और इलतिक़ून; यह छह शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|60क़रयत बा'ल जो क़रयत या'रीम है, और रब्बा; यह दो शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|61और वीराने में बैत 'अराबा और मद्दीन और सकाका ,62और नबसान और नमक का शहर और 'ऐन जदी; यह छः शहर हैं और इनके गाँव भी हैं|63और यबूसियों को जो यरूशलीम के बाशिन्दे थे, बनी यहूदाह निकाल न सके; इसलिए यबूसी बनी यहूदाह के साथ आज के दिन तक यरूशलीम में बसे हुए हैं|
1और बनी यूसुफ़ का हिस्सा पर्ची डालकर यरीहू के पास के यरदन से शुरू' हुआ, या'नी पूरब की तरफ़ यरीहू के चश्में बल्कि वीराना पड़ा| फिर उसकी हद यरीहू से पहाड़ी मुल्क होती हुई बैत एल को गयी|2फिर बैत एल से निकल कर लूज़ को गई और अर्कियों की सरहद के पास से गुज़रती हुई 'अतारात पहुँची;3और वहाँ से पश्चिम की तरफ़ यफ़लीतियों की सरहद से होती हुई नीचे के बैत हौरून बल्कि जज़र को निकल गयी, और उसका ख़ातिमा समन्दर पर हुआ|4तब बनी यूसुफ़ या'नी मनस्सी और इफ़्राईम ने अपनी अपनी मीरास ~पर क़ब्ज़ा किया|5और बनी इफ़्राईम की सरहद उनके घरानों के मुताबिक़ यह थी: पूरब की तरफ़ ऊपर के बैत हौरून तक 'अतारात अदार उनकी हद ठहरी;6मैं उत्तर की तरफ़ वह हद पश्चिम के मिकमता होती हुई पूरब की तरफ़ तानत सैला को मुड़ी, और वहाँ से यनूहाह के पूरब को गयी; |7और यनूहाह से 'अतारात और ना'राता होती हुई यरीहू पहुँची, और फिर यरदन को जा निकली;8और वह हद तफ़्फ़ूह से निकल कर पश्चिम की तरफ़ क़ानाह के नाले को गई और उसका ख़ातिमा समन्दर पर हुआ| बनी इफ्राईम के क़बीला की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यही है|9और इसके साथ बनी इफ़्राईम के लिए बनी मनस्सी की मीरास में भी शहर अलग किए गये और उन सब शहरों के साथ उनके गाँव भी थे|10और उन्होंने कना'नियों को जो जज़र में रहते थे न निकाला, बल्कि वह कना'नी आज के दिन तक इफ्राईमियों में बसे हुए हैं, और ख़ादिम बनकर बेगार का काम करते हैं|
1और मनस्सी के क़बीले का हिस्सा पर्ची डालकर यह ठहरा| क्यूँकि वह यूसुफ़ का पहलौठा था, और चूँकि मनस्सी का पहलौठा बेटा मकीर जो जिल'आद का बाप था जंगी मर्द था इसलिए उस को जिल'आद और बसन मिले|2इसलिए यह हिस्सा बनी मनस्सी के बाक़ी लोगों के लिए उनके घरानों के मुताबिक़ था या'नी बनी अबी'अज़र और बनी ख़लक़ और बनी इसरीएल और बनी सिक्म और बनी हिफ़्र और बनी समीदा' के लिए, यूसुफ़ के बेटे मनस्सी के फ़र्ज़न्द-ए-नरीना अपने अपने घराने के मुताबिक़ यही थे|3और सिलाफ़िहाद बिन हिफ्र बिन जिल'आद बिन मकीर बिन मनस्सी के बेटे नहीं बल्कि बेटियाँ थी और उसकी बेटियों के नाम यह हैं , महलाह और नू'आह और हुजला और मिलकाह और तिरज़ाह|4इसलिए ~वह इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और सरदारों के आगे आकर कहने लगीं कि ख़ुदावन्द ने मूसा को हुक्म दिया था कि वह हमको हमारे भाईयों के बीच मीरास दे चुनाँचे ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ उस ने उनके भाईयों के बीच उनको विरासत दी|5इसलिए ~मनस्सी को जिल'आद और बसन के मुल्क को छोड़ कर जो यरदन के उस पार है दस हिस्से और मिले|6क्यूँकि मनस्सी की बेटियों ने भी बेटों के साथ मीरास पाई और मनस्सी के बेटों को जिल'आद का मुल्क मिला|7और आशर से लेकर मिकमताह तक जो सिक्म के मुक़ाबिल है मनस्सी की हद थी , और वही हद दहने हाथ पर, 'ऐन तफ़्फ़ूह के बाशिन्दों तक चली गयी|8यूँ तफ़्फ़ूह की ज़मीन तो मनस्सी की हुई लेकिन तफ़्फ़ूह शहर जो मनस्सी की सरहद पर था बनी इफ़्राईम ~का हिस्सा ठहरा, |9फिर वहाँ से वह हद क़ानाह के नाले को उतर कर उसके दख्खिन की तरफ़ पहुँची, यह शहर जो मनस्सी के शहरों के बीच हैं इफ़्राईम के ठहरे और मनस्सी की हद उस नाले के उत्तर की तरफ़ से होकर समन्दर पर ख़त्म हुई|10इसलिए ~दख्खिन की तरफ़ इफ़्राईम ~की और उत्तर की तरफ़ मनस्सी की मीरास पड़ी और उसकी सरहद समन्दर थी यूँ वह दोनों उत्तर की तरफ़ आशर से और पूरब की तरफ़ इश्कार से जा मिलीं|11और इश्कार और आशर की हद में बैत शान और उसके क़स्बे और इबली'आम और उसके क़स्बे और अहल-ए-दोर और उसके क़स्बे और अहल-ए-'ऐन दोर और उसके क़स्बे और अहल-ए-ता'नाक और उसके क़स्बे और अहल-ए-मजिद्दो और उसके क़स्बे बल्कि तीनों मुर्तफ़ा' मक़ामात ~मनस्सी को मिले|12तो भी बनी मनस्सी उन शहरों के रहने वालों को निकाल न सके बल्कि उस मुल्क में कना'नी बसे ही रहे, |13और जब बनी इस्राईल ताक़तवर हो गये तो उन्होंने कना'नियों से बेगार का काम लिया और उनको बिल्कुल निकाल बाहर न किया|14बनी यूसुफ़ ने यशू'अ से कहा कि तूने क्यूँ पर्ची डालकर हम को सिर्फ़ एक ही हिस्सा मीरास के लिए दिया अगरचे हम बड़ी क़ौम हैं क्यूँकि ख़ुदावन्द ने हम को बरकत दी है ?|15यशू'अ ने उनको जवाब दिया कि अगर तुम बड़ी क़ौम हो तो जंगल में जाओ, और वहाँ फ़रिज्ज़ियों और रिफ़ाईम के मुल्क को अपने लिए काट कर साफ़ कर लो क्यूँकि इफ़्राईम का पहाड़ी मुल्क तुम्हारे लिए बहुत तंग है|16बनी यूसुफ़ ने कहा कि यह पहाड़ी मुल्क हमारे लिए काफ़ी नहीं है और सब कना'नियों के पास जो नशेब के मुल्क में रहते हैं या'नी वह जो बैत शान और उसके क़स्बों में और वह जो यज़र 'एल की वादी में रहते हैं दोनों के पास लोहे के रथ हैं|17यशू'अ ने बनी युसुफ़ या'नी इफ़्राईम और मनस्सी से कहा कि तुम बड़ी क़ौम हो और बड़े ज़ोर रखते हो, ~इसलिए~तुम्हारे लिए सिर्फ़ एक ही हिस्सा न होगा|18बल्कि यह पहाड़ी मुल्क भी तुम्हारा होगा क्यूँकि अगरचे वह जंगल है तुम उसे काट कर साफ़ कर डालना और उसके मख़ारिज भी तुम्हारे ही ठहरेंगे क्यूँकि तुम कना'नियों को निकाल दोगे अगरचे उनके पास लोहे के रथ हैं और वह ताक़तवर भी हैं|
1और बनी इस्राईल की सारी जमा'अत ने सैला में जमा' होकर ख़ेमा'-ए-इज्तिमा'अ को वहाँ खड़ा किया और वह मुल्क उनके आगे मग़लूब हो चुका था|2और बनी इस्राईल में सात क़बीले ऐसे रह गये थे जिनकी मीरास उनको तक़सीम होने न पाई थी|3और यशू'अ ने बनी इस्राईल से कहा, कि तुम कब तक उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने से जो ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप दादा के ख़ुदा ने तुम को दिया है सुस्ती करोगे ?|4इसलिए ~तुम अपने लिए हर क़बीले में से तीन शख़्स चुन लो, मैं उनको भेजूँगा और वह जाकर उस मुल्क में सैर करेंगे और अपनी अपनी मीरास के मुवाफ़िक़ उसका हाल लिख कर मेरे पास आएँगें|5वह उसके सात हिस्से करेंगे, यहूदाह अपनी सरहद में दख्खिन की तरफ़ और यूसुफ़ का ख़ानदान अपनी सरहद में उत्तर की तरफ़ रहेगा|6इसलिए तुम उस मुल्क के सात हिस्से लिख कर मेरे पास यहाँ लाओ ताकि मैं ख़ुदावन्द के आगे जो हमारा ख़ुदा है तुम्हारे लिए पर्ची डालूँ|7क्यूँकि तुम्हारे बीच लावियों का कोई हिस्सा नहीं इसलिए कि ख़ुदावन्द की कहानत उनकी मीरास है और जद्द और रूबिन और मनस्सी के आधे क़बीले को यरदन के उस पार पूरब की तरफ़ मीरास मिल चुकी है जिसे ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने उनको दिया|8तब वह आदमी उठ कर रवाना हुए और यशू'अ ने उनको जो उस मुल्क का हाल लिखने के लिए गये ताकीद की कि तुम जाकर उस मुल्क में सैर करो और उसका हाल लिख कर फिर मेरे पास आओ और मैं सैला में ख़ुदावन्द के आगे तुम्हारे लिए पर्ची डालूँगा|9चुनाँचे उन्होंने जाकर उस मुल्क में सैर की और शहरों के सात हिस्से कर के उनका हाल किताब में लिखा और सैला की ख़ेमागाह में यशू'अ के पास लौटे|10तब यशू'अ ने सैला में उनके लिए ख़ुदावन्द के सामने पर्ची डाली और वहीं यशू'अ ने उस मुल्क को बनी इस्राईल की हिस्सों ~के मुताबिक़ उनको बाँट दिया|11और बनी बिन यमीन के क़बीले की पर्ची उनके घरानों के मुताबिक़ निकली और उनके हिस्से की हद बनी यहूदाह और बनी यूसुफ़ के बीच पड़ी|12इसलिए ~उनकी उत्तरी हद यरदन से शुरू'' हुई और यह हद यरीहू के पास से उत्तर की तरफ़ गुज़र कर पहाड़ी मुल्क से होती हुई पश्चिम की तरफ़ बैत आवन के वीराने तक पहुँची|13और वह हद वहाँ से लूज़ को जो बैत एल है गयी और लूज़ के दख्खिन से उस पहाड़ के बराबर होती हुई जो नीचे के बैत हौरून के दख्खिन में है 'अतारात अदार को जा निकली|14और वह पश्चिम की तरफ़ से मुड़ कर दख्खिन को झुकी और बैत हौरून के सामने के पहाड़ से होती हुई दख्खिन की तरफ़ बनी यहूदाह के एक शहर क़रयत बा'ल तक जो क़रयत या'रीम है चली गयी, यह पश्चिमी हिस्सा था|15और दख्खिनी हद क़रयत या'रीम की इन्तिहा से शुरू''हुई और वह हद पश्चिम की तरफ़ आब-ए-नफ़तूह के चश्मे तक चली गयी; |16और वहाँ से वह हद उस पहाड़ के सिरे तक जो हिन्नूम के बेटे की वादी के सामने है गयी, यह रिफ़ाईम की वादी के उत्तर में है और वहाँ से दख्खिन की तरफ़ हिन्नूम की वादी और यबूसियों के बराबर से गुज़रती हुई 'ऐन राजिल पहुँची; |17वहाँ से वह उत्तर की तरफ़ मुड़ कर और 'ऐन शम्स से गुज़रती हुई जलीलोत को गयी जो अदुम्मीम की चढ़ाई के मुक़ाबिल है और वहाँ से रूबिन के बेटे बोहन के पत्थर तक पहुँची; |18और फिर उत्तर को जाकर मैदान के मुक़ाबिल के रुख़ से निकलती हुयी मैदान ही में जा उतरी|19फिर वह हद वहाँ से बैत हुजला के उत्तरी पहलू तक पहुँची और उस हद का ख़ातिमा दरिया-ए-शोर की उत्तरी खाड़ी पर हुआ जो यरदन के दख्खिनी सिरे पर है, यह दख्खिन की हद थी|20और उसकी पूरबी सिम्त की हद यरदन ठहरा, बनी बिनयमीन की मीरास उनकी चौगिर्द की हदों के 'ऐतबार से और उनके घरानों के मुवाफ़िक़ यह थी|21और बनी बिन यमीन के क़बीले के शहर उनके घरानों के मुवाफ़िक़ यह थे, यरीहू और बैत हुजला और 'ईमक़ क़सीस|22और बैत 'अराबा और समरीम और बैतएल|23और 'अव्वीम और फ़ारा और 'उफ़रा|24और कफ़रउल'उम्मूनी और 'उफ़नी और जबा' , यह बारह शहर थे और इनके गाँव भी थे|25और जिबा'ऊन और रामा और बैरोत|26मिस्फ़ाह और कफ़ीरह और मोज़ा27और रक़म और अरफ़ील और तराला|28और ज़िला', अलिफ़ और यबूसियों का शहर जो यरूशलीम है और जिब'अत और क़रयत, यह चौदह शहर हैं और इनके गाँव भी हैं, बनी बिनयमीन की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यह है
1और दूसरा पर्चा शमा'ऊन के नाम पर बनी शमा'ऊन के क़बीले के वास्ते उनके घरानों के मुवाफ़िक़ निकला और उनकी मीरास बनी यहूदाह की मीरास के बीच थी|2और उनकी मीरास में बैरसबा' यासबा' था और मोलादा|3और हसार स'ऊल और बालाह और 'अज़म|4और इलतोलद और बतूल और हुरमा5और सिक़लाज और बैत मरकबोत और हसार सूसा|6और बैत लिबाउत और सरोहन, यह तेरह शहर थे और इनके गाँव भी थे|7'ऐन और रिम्मोन और 'अतर और 'असन, यह चार शहर थे और इनके गाँव भी थे|8और वह सब गाँव भी इनके थे जो इन शहरों के आस पास बा'लात बैर या'नी दख्खिन के रामा तक हैं, बनी शमा'ऊन के क़बीले की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यह ठहरी|9बनी यहूदाह की मिल्कियत में से बनी शमा'ऊन की मीरास ली गयी क्यूँकि बनी यहूदाह का हिस्सा उनके वास्ते बहुत ज़्यादा था, इसलिए बनी शमा'ऊन को उनकी मीरास के बीच मीरास मिली|10और तीसरा पर्चा ~बनी ज़बूलून का उनके घरानों के मुवाफ़िक़ निकला और उनकी मीरास की हद सारीद तक थी|11और उनकी हद पश्चिम की तरफ़ मर'अला होती हुई दब्बासत तक गयी, और उस नदी से जो युक़नि'आम के आगे है जा मिली|12और सारीद से पूरब की तरफ़ मुड़ कर वह किसलोत तबूर की सरहद को गई और वहाँ से दबरत होती हुई यफ़ी'को जा निकली|13और वहाँ से पूरब की तरफ़ जित्ता हीफ़्र और इत्ता क़ाज़ीन से गुज़रती हुई रिम्मोन को गयी, जो नी'आ तक फैला हुआ है|14और वह हद उस के उत्तर से मुड़ कर हन्नातोन को गई, और उसका ख़ातिमा इफ़ताएल की वादी पर हुआ|15और क़त्तात और नहलाल और सिमरोन और इदाला और बैतलहम, यह बारह शहर और उनके गाँव इन लोगों के ठहरे|16यह सब शहर और इनके गाँव बनी ज़बूलून के घरानों के मुवाफ़िक़ उनकी मीरास है|17और चौथा पर्चा ~इश्कार के नाम पर बनी इश्कार के लिए उनके घरानों के मुवाफ़िक़ निकला|18और उनकी हद यज़र 'एल और किसूलोत और शूनीम|19और हफ़ारीम और शियून और अनाख़रात|20और रबैत क़सयोन और अबिज़|21और रीमत और 'ऐन जन्नीम और 'ऐन हद्दा और बैत क़सीस तक थी|22और वह हद तबूर और शख़सीमाह और बैत शम्स से जा मिली और उनकी हद का ख़ातिमा यरदन पर हुआ, यह सोलह शहर थे और इनके गाँव भी थे|23यह शहर और इनके गाँव बनी इश्कार के घरानों के मुवाफ़िक़ उनकी मीरास है|24और पाँचवां पर्चा बनी आशर के क़बीले के लिए उनके घरानों के मुताबिक़ निकला|25और ख़िलक़त और हली और बतन और इक्शाफ़|26और अलम्मलक और 'अमाद और मिसाल उनकी हद ठहरे और पश्चिम की तरफ़ वह कर्मिल और सैहूर लिबनात तक पहुँची|27औ़र वह पूरब की तरफ़ मुड़ कर बैत द्जून को गयी और फिर ज़बूलून तक और वादी-ए-इफ़ताहएल के उत्तर से होकर बैत उल 'अमक़ और नग़ीएल तक पहुँची और फिर कबूल के बाएँ को गयी|28और 'अबरून और रहोब और ह्म्मून और क़ानाह बल्कि बड़े सैदा तक पहुँची|29फिर वह हद रामा ज़ूर के फ़सील दार शहर की तरफ़ को झुकी और वहाँ से मुड़ कर हूसा तक गयी और उसका ख़ातिमा अकज़ीब की नवाही के समन्दर पर हुआ|30और 'उम्मा और अफ़ीक़ और रहोब भी इनको मिले, यह बाईस शहर थे और इनके गाँव भी थे|31बनी आशर के क़बीले की मीरास उनके घरानों के मुताबिक़ यह शहर और इनके गाँव थे|32छठा पर्चा ~बनी नफ़्ताली के नाम पर बनी नफ़्ताली के क़बीले के लिए उनके घरानों के मुताबिक़ निकला|33और उनकी सरहद हलफ़ से ज़ा'नन्नीम के बलूत से अदामी नक़ब और यबनीएल होती हुई लक़ूम तक थी और उसका ख़ातिमा यरदन पर हुआ|34और वह हद पश्चिम की तरफ़ मुड़ कर अज़नूत तबूर से गुज़रती हुई हुक़्क़ूक़ को गई और दख्खिन में ज़बूलून तक और पश्चिम में आशर तक और पूरब में यहूदाह के हिस्सा के यरदन तक पहुँची|35और फ़सील दार शहर यह हैं या'नी सिद्दीम और सैर और ह्म्मात और रक़त और किन्नरत|36और अदामा और रामा और ह्सूर|37और क़ादिस और अद'रई और 'ऐन हसूर|38और इरून और मिजदालएल और हुरीम और बैत 'अनात और बैत शम्स, यह उन्तीस शहर थे और इनके गाँव भी थे|39यह शहर और इनके गाँव बनी नफ़्ताली के क़बीले के घरानों के मुताबिक़ उनकी मीरास हैं|40और सातवां पर्चा ~बनी दान के क़बीले के लिए उनके घरानों के मुवाफ़िक़ निकला|41और उनकी मीरास की हद यह है, सुर'आह और इस्ताल और 'ईर शम्स|42और शा'लबीन और अय्यालोन और इतलाह|43और एलोन और तिमनाता और 'अक़रून|44और इलतिक़िया और जिब्बातोन और बा'लात|45और यहूदी और बनी बरक़ और जात रिम्मोन|46और मेयरक़ून और रिक़्क़ूनमा' उस सरहद के जो याफ़ा के मुक़ाबिल है|47और बनी दान की हद उनकी इस हद के' अलावा भी थी, क्यूँकि बनी दान ने जाकर लशम से जंग की और उसे घेर करके उसको तलवार की धार से मारा और उस पर क़ब्ज़ा करके वहाँ बसे, और अपने बाप दान के नाम पर लशम का नाम दान रखा|48यह सब शहर और इनके गाँव बनी दान के क़बीले के घरानों के मुताबिक़ उनकी मीरास है|49तब वह उस मुल्क को मीरास के लिए उसकी सरहदों के मुताबिक़ तक़सीम करने से फ़ारिग़ हुए और बनी इस्राईल ने नून के बेटे यशू'अ को अपने बीच मीरास दी|50उन्होंने ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ वही शहर जिसे उसने माँगा था या'नी इफ्राईम के पहाड़ी मुल्क का तिमनत सरह उसे दिया और वह उस शहर को ता'मीर करके उसमें बस गया|51यह वह मीरासी हिस्से हैं जिनको इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और बनी इस्राईल के क़बीलों के आबाई ख़ानदानों के सरदारों ने सैला में ख़ेमा-ए-इज्तिमा' के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने पर्ची डालकर मीरास के लिए तक़सीम किया, यूँ वह उस मुल्क की तक़सीम से फ़ारिग़ हुए|
1और ख़ुदावन्द ने यशू'अ से कहा कि, |2बनी इस्राईल से कह कि अपने लिए पनाह के शहर जिनकी वजह मैं ने मूसा के बारे में ~तुमको हुक्म किया मुक़र्रर करो, |3ताकि वह ख़ूनी जो भूल से और ना दानिस्ता किसी को मार डाले वहाँ भाग जाए और वह ख़ून के बदला लेने वाले से तुम्हारी पनाह ठहरें|4वह उन शहरों में से किसी में भाग जाए , और उस शहर के दरवाज़े पर खड़ा हो कर उस शहर के बुज़ुर्गों को अपना हाल कह सुनाए; तब वह उसे शहर में अपने हाँ ले जाकर कोई जगह दें ताकि वह उनके बीच रहे|5और अगर ख़ून का बदला लेने वाला उसका पीछा करे तो वह उस ख़ूनी को उसके हवाला न करें क्यूँकि उस ने अपने पड़ोसी को अन्जाने में ~मारा ओर पहले से उसकी उस से 'अदावत न थी|6और वह जब तक फ़ैसले के लिए जमा'त के आगे खड़ा न हो, और उन दिनों का सरदार काहिन मर न जाये तब तक उसी शहर में रहे इसके बा'द वह ख़ूनी लौट कर अपने शहर और अपने घर में या'नी उस शहर में आए जहाँ से वह भागा था|7तब उन्होंने नफ़्ताली के पहाड़ी मुल्क में जलील के क़ादिस को और इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में सिक्म को और यहूदाह के पहाड़ी मुल्क में क़रयत अरबा' को जो हबरून है अलग किया|8और यरीहू के पास के यरदन के पूरब की तरफ़ रूबिन के क़बीले के मैदान में बसर को जो वीराने में है और जद् के क़बीले के हिस्से में रामा को जो जिल'आद में है और मनस्सी के क़बीले के हिस्सा में जो लान को जो बसन में है मुक़र्रर किया|9यही वह शहर हैं जो सब बनी इस्राईल और उन मुसाफ़िरों के लिए जो उनके बीच बसते हैं इसलिए ठहराये गये कि जो कोई अन्जाने में किसी को क़त्ल करे वह वहाँ भाग जाये, और जब तक वह जमा'अत के आगे खड़ा न हो तब तक ख़ून के बदला लेने वाले के हाथ से मारा न जाये|
1तब लावियों के आबाई ख़ानदानों के सरदार इली'अज़र काहिन और नून के बेटे यशू'अ और बनी इस्राईल के क़बीलों के आबाई ख़ानदानों के सरदारों के पास आये|2और मुल्क-ए-कना'न के सैला में उन से कहने लगे कि ख़ुदावन्द ने मूसा के बारे में ~हमारे रहने के लिए शहर और हमारे चौपायों के लिए उनकी नवाही के देने का हुक्म किया था|3इसलिए बनी इस्राईल ने अपनी अपनी मीरास में से ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ यह शहर और उनकी नवाही लावियों को दीं|4और पर्चा क़िहातियों के नाम पर निकला और हारून काहिन की औलाद को जो लावियों में से थी पर्ची से यहूदाह के क़बीले और शमा'ऊन के क़बीले और बिनयमीन के क़बीले में से तेरह शहर मिले|5और बाक़ी बनी क़िहात को इफ़्राईम के क़बीले के घरानों और दान के क़बीले और मनस्सी के आधे क़बीले में से दस शहर पर्ची से मिले|6और बनी जैरसोन को इश्कार के क़बीले के घरानों औरआशर के क़बीले और नफ़्ताली के क़बीले और मनस्सी के आधे क़बीले में से जो बसन में है तेरह शहर पर्ची से मिले|7और बनी मिरारी को उनके घरानों के मुताबिक़ रूबिन के क़बीले और जद्द के क़बीले और ज़बूलून के क़बीले में से बारह शहर मिले|8और बनी इस्राईल ने पर्ची डालकर इन शहरों और इनकी नवाही को जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा के बारे में ~फ़रमाया था लावियों को दिया|9उन्होंने बनी यहूदाह के क़बीले और बनी शमा'ऊन के क़बीले में से यह शहर दिए जिनके नाम यहाँ मज़कूर है|10और यह क़हातियों के ख़ानदानों में से जो लावी की नसल में से थे बनी हारून को मिले क्यूँकि पहला पर्चा ~उनके नाम का था|11इसलिए उन्होंने यहूदाह के पहाड़ी मुल्क में 'अनाक़ के बाप अरबा' का शहर क़रयत अरबा'जो हबरून कहलाता है म'ए उसके 'इलाक़े के उनको दिया|12लेकिन उस शहर के खेतों और गाँव को उन्होंने युफ़न्ना के बेटे कालिब को मीरास के तौर पर दिया|13इसलिए ~उन्होंने हारून का काहिन की औलाद को हबरून जो ख़ूनी की पनाह का शहर था और उसके 'इलाक़े और लिबनाह और उसके 'इलाक़े|14और यतीर और उसके 'इलाक़े और इस्तिमू'अ और उसके 'इलाक़े|15और हौलून और उसके 'इलाक़े और दबीर और उसके 'इलाक़े|16और 'ऐन और उसके 'इलाक़े और यूता और उसके 'इलाक़े और बैत शम्स और उसके 'इलाक़े या'नी यह नौ शहर उन दोनों क़बीलों से ले कर दिए|17और बिनयमीन के क़बीले से जिबा'ऊन और उसके 'इलाक़े और जिबा' और उसके 'इलाक़े|18और 'अनतोत और उसके 'इलाक़े और 'अलमोन और उसके 'इलाक़े यह चार शहर दिए गए ~|19इसलिए बनी हारून के जो काहिन हैं सब शहर तेरह थे जिनके साथ उनकी नवाही भी थी|20और बनी क़िहात के घरानों को जो लावी थे या'नी बाक़ी बनी क़िहात को इफ़्राईम के क़बीले से यह शहर पर्ची से मिले|21और उन्होंने इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में उनको सिक्म शहर और उसके 'इलाक़े तो ख़ूनी की पनाह के लिए और जज़र और उसके 'इलाक़े|22और क़िबज़ैम और उसके 'इलाक़े और बैत हौरून और उसके 'इलाक़े यह चार शहर दिए|23और दान के क़बीला से इलतिक़िया और उसके 'इलाक़े और जिब्बतून और उसके 'इलाक़े|24और अय्यालोन और उसके 'इलाक़े और जात रिम्मोन और उसके 'इलाक़े यह चार शहर दिए|25और मनस्सी के आधे क़बीले से ता'नाक और उसके 'इलाक़े और जात रिम्मोन और उसके 'इलाक़े , यह दो शहर दिए|26बाक़ी बनी क़िहात के घरानों के सब शहर अपनी अपनी नवाही के साथ दस थे|27और बनी जैरसोन को जो लावियों के घरानों में से हैं मनस्सी के दूसरे आधे क़बीले में से उन्होंने बसन में जो लान और उसके 'इलाक़े तो ख़ूनी की पनाह के लिए और बि'अस्तराह और उसके 'इलाक़े यह दो शहर दिए|28और इश्कार के क़बीले से क़िसयून और उसके 'इलाक़े और दबरत और उसके 'इलाक़े|29यरमोत और उसके 'इलाक़े और 'ऐन जन्नीम और उसके 'इलाक़े , यह चार शहर दिए|30और आशर के क़बीले से मसाल और उसके 'इलाक़े और अबदोन और उसके 'इलाक़े|31ख़िलक़त और उसके 'इलाक़े और रहोब और उसके 'इलाक़े यह चार शहर दिए|32और नफ़्ताली के क़बीले से जलील में क़ादिस और उसके 'इलाक़े तो ख़ूनी की पनाह के लिए और हम्मात दूर और उसके 'इलाक़े और क़रतान और उसके 'इलाक़े , यह तीन शहर दिए|33इसलिए जैरसोनियों के घरानों के मुताबिक़ उनके सब शहर अपनी अपनी नवाही के साथ तेरह थे|34और बनी मिरारी के घरानों को जो बाक़ी लावी थे ज़बूलून के क़बीला से युक़नि'याम और उसके 'इलाक़े , क़रताह और उसके 'इलाक़े|35दिमना और उसके 'इलाक़े , नहलाल और उसके 'इलाक़े , यह चार शहर दिए|36और रूबिन के क़बीले से बसर और उसके 'इलाक़े , यहसा और उसके 'इलाक़े|37क़दीमात और उसके 'इलाक़े और मिफ़'अत और उसके 'इलाक़े , यह चार शहर दिये|38और जद के क़बीले से जिल'आद में रामा और उसके 'इलाक़े तो ख़ूनी की पनाह के लिए और महनाइम और उसके 'इलाक़े|39हस्बोन और उसके 'इलाक़े , या'ज़ीर और उसके 'इलाक़े , कुल चार शहर दिए|40इसलिए ~ये सब शहर उनके घरानों के मुताबिक़ बनी मिरारी के थे, जो लावियों के घरानों के बाक़ी लोग थे उनको पर्ची से बारह शहर मिले|41तब बनी इस्राईल की मिल्कियत के बीच लावियों के सब शहर अपनी अपनी नवाही के साथ अड़तालीस थे|42उन शहरों में से हर एक शहर अपने गिर्द की नवाही के साथ था सब शहर ऐसे ही थे|43यूँ ख़ुदावन्द ने इस्राईलियों को वह सारा मुल्क दिया जिसे उनके बाप दादा को देने की क़सम उस ने खाई थी और वह उस पर क़ाबिज़ हो कर उसमें बस गये|44और ख़ुदावन्द ने उन सब बातों के मुताबिक़ जिनकी क़सम उस ने उनके बाप दादा से खाई थी चारों तरफ़ से उनको आराम दिया और उनके सब दुश्मनों में से एक आदमी भी उनके सामने खड़ा न रहा, ख़ुदावन्द ने उनके सब दुश्मनों को उनके क़ब्ज़े में कर दिया|45और जितनी अच्छी बातें ख़ुदावन्द ने इस्राईल के घराने से कही थीं उन में से एक भी न छूटी, सब की सब पूरी हुईं|
1उस वक़्त यशू'अ ने रोबिनियों और जद्दियों और मनस्सी के आधे क़बीले को बुला कर|2उन से कहा कि सब कुछ जो ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने तुम को फ़रमाया तुम ने माना, और जो कुछ मैं ने तुम को हुक्म दिया उस में तुम ने मेरी बात मानी|3तुमने अपने भाईयों को इस मुद्दत में आज के दिन तक नहीं छोड़ा बल्कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म की ताकीद पर 'अमल किया|4और अब ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे भाईयों को जैसा उस ने उन से कहा था आराम बख़्शा है~इसलिए तुम अब लौट कर अपने अपने ख़ेमे को अपनी मीरासी सर ज़मीन में जो ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने यरदन के उस पार तुम को दी है चले जाओ|5सिर्फ़ उस फ़रमान और शरा' पर 'अमल करने की निहायत एहतियात रखना जिसका हुक्म ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने तुम को दिया, कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखो और उसकी सब राहों पर चलो, और उसके हुक्मों को मानो और उस से लिपटे रहो और अपने सारे दिल, और सारी जान, से उसकी बन्दगी करो|6और यशू'अ ने बरकत दे कर उनको रुख़्सत किया और वह अपने अपने ख़ेमे को चले गये|7मनस्सी के आधे क़बीले को तो मूसा ने बसन में मीरास दी, थी लेकिन उस के दूसरे आधे को यशु'अ ने उनके भाईयों के बीच यरदन के इस पार पश्चिम की तरफ़ हिस्सा दिया; और जब यशू'अ ने उनको रुख़्सत किया की अपने अपने ख़ेमे को जाएँ, तो उनको भी बरकत देकर|8उन से कहा कि, बड़ी दौलत और बहुत से चौपाये, और चाँदी और सोना और पीतल और लोहा और बहुत सी पोशाक लेकर तुम अपने अपने ख़ेमे को लौटो; और अपने दुश्मनों के माल-ए-ग़नीमत को अपने भाईयों के साथ बाँट लो|9तब बनी रूबिन और बनी जद्द और मनस्सी का आधा क़बीला लौटा और वह बनी इस्राईल के पास से सैला से जो मुल्क-ए-कना'न में है रवाना हुए, ताकि वह अपने मीरासी मुल्क जिल'आद को लौट, जाएँ जिसके मालिक वह ख़ुदावन्द के उस हुक्म के मुताबिक़ हुए थे जो उस ने मूसा के बारे में ~दिया था|10और जब वह यरदन के पास के उस मुक़ाम में पहुँचे जो मुल्क कना'न में है, तो बनी रूबिन और बनी जद और मनस्सी के आधे क़बीले ने वहाँ यरदन के पास एक मज़बह जो देखने में बड़ा मज़बह था बनाया|11और बनी इस्राईल के सुनने में आया की देखो बनी रूबिन और बनी जद और मनस्सी के आधे क़बीला ने मुल्क-ए-कना'न के सामने, यरदन के गिर्द के मक़ाम में उस रुख़ पर जो बनी इस्राईल का है एक मज़बह बनाया है|12जब बनी इस्राईल ने यह सुना तो बनी इस्राईल की सारी जमा'त सैला में इकठ्ठा हुई , ताकि उन पर चढ़ जाये और लड़े, |13और बनी इस्राईल ने इली'अज़र काहिन के बेटे फ़ीन्हास को बनी रूबिन और बनी जद और मनस्सी के आधे क़बीला के पास जो मुल्क जिल'आद में थे भेजा|14और बनी इस्राईल के क़बीलों से हर एक के आबाई ख़ानदान से एक अमीर के हिसाब से दस अमीर उसके साथ किये, उन में से हर एक हज़ार दर हज़ार इस्राईलियों में अपने आबाई ख़ानदान का सरदार था|15इसलिए वह बनी रूबिन और बनी जद्द और मनस्सी के आधे क़बीले के पास मुल्क जिल'आद में आये और उन से कहा कि, |16ख़ुदावन्द की सारी जमा'अत यह कहती, है कि तुम ने इस्राईल के ख़ुदा से यह क्या सरकशी की कि, आज के दिन ख़ुदावन्द की पैरवी से फिरकर ~अपने लिए एक मज़बह बनाया, और आज के दिन तुम ख़ुदावन्द से बाग़ी हो गये ?|17क्या हमारे लिए फ़गू़र की बदकारी कुछ कम थी जिस से हम आज के दिन तक पाक नहीं हुए, अगरचे ख़ुदावन्द की जमा'त में वबा भी आई कि|18तुम आज के दिन ख़ुदावन्द की पैरवी से फिर जाते हो ?और चूँकि तुम आज ख़ुदावन्द से बाग़ी होते हो, इसलिए कल यह होगा कि इस्राईल की सारी जमा'त पर उसका क़हर नाज़िल होगा19और अगर तुम्हारा मीरासी मुल्क नापाक है, तो तुम ख़ुदावन्द के मीरासी मुल्क में पार आ जाओ जहाँ ख़ुदावन्द का घर है और हमारे बीच मीरास लो, लेकिन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के मज़बह के सिवा अपने लिए कोई और मज़बह बना कर, न तो ख़ुदावन्द से बाग़ी हो और न हम से बग़ावत करो|20क्या ज़ारह के बेटे 'अकन की ख़यानत की वजह से जो उस ने मख़्सूस की हुई चीज़ में की इस्राईल की सारी जमा'त पर ग़ज़ब नाज़िल न हुआ ?वह शख्स़ अकेला ही अपनी बदकारी में हलाक नहीं हुआ|21तब बनी रूबिन औ बनी जद्द और मनस्सी के आधे क़बीला ने हज़ार दर हज़ार इस्राईलियों के सरदारों को जवाब दिया कि|22ख़ुदावन्द ख़ुदाओं का ख़ुदा, ख़ुदावन्द ख़ुदाओं का ख़ुदा जानता है और इस्राईली भी जान लेंगे, अगर इस में बग़ावत या ख़ुदावन्द की मुख़ालिफ़त है (तूने तो हमको आज जीता न छोड़ा )|23अगर हम ने आज के दिन इसलिए यह मज़बह बनाया हो कि ख़ुदावन्द से फिर जाएँ या उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी या नज़र की क़ुर्बानी या सलामती के ज़बीहे चढ़ाएं तो ख़ुदावन्द ही इसका हिसाब ले|24बल्कि हम ने इस ख़याल और ग़रज़ से यह किया कि कहीं आइन्दा ज़माना में तुम्हारी औलाद हमारी औलाद से यह न कहने लगे, ' कि तुम को ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा से क्या लेना है ?25क्यूँकि ख़ुदावन्द तो हमारे और तुम्हारे बीच 'ऐ बनी रूबिन और बनी जद यरदन को हद ठहराया है इसलिए ख़ुदावन्द में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है, यूँ तुम्हारी औलाद हमारी औलाद से ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ छुड़ा देगी|26इसलिए हम ने कहा कि आओ हम अपने लिए एक मज़बह बनाना शुरू'' करें जो न सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए हो और न ज़बीहे के लिए|27बल्कि वह हमारे और तुम्हारे और हमारे बा'द हमारी नसलों के बीच ~गवाह ठहरे, ताकि हम ख़ुदावन्द के सामने उसकी ''इबादत अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियों और अपने ज़बीहों और सलामती के हदियों से करें, और आइन्दा ज़माना में तुम्हारी औलाद हमारी औलाद से कहने न पाए कि ख़ुदावन्द में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं| '28इसलिए हम ने कहा कि, जब वह हम से या हमारी औलाद से आइन्दा ज़माना में यूँ कहेंगे तो हम उनको जवाब देंगे कि देखो ख़ुदावन्द के मज़बह का नमूना जिसे हमारे बाप दादा ने बनाया, यह न सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए है न ज़बीहा के लिए बल्कि यह हमारे और तुम्हारे बीच गवाह है|29ख़ुदा न करे कि हम ख़ुदावन्द से बाग़ी हों और आज ख़ुदावन्द की पैरवी से फिर कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के मज़बह के सिवा जो उसके ख़ेमें के सामने है सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़्र की क़ुर्बानी और ज़बीहा के लिए कोई मज़बह बनाएँ|30जब फ़ीन्हास काहिन और जमा'त के अमीरों या'नी हज़ार दर हज़ार इस्राईलियों के सरदारों ने जो उसके साथ आए थे यह बातें सुनीं जो बनी रूबिन और बनीजद और बनी मनस्सी ने कहीं तो वह बहुत खुश हुए|31तब इली'अज़र के बेटे फ़ीन्हास काहिन ने बनी रूबिन और बनी जद और बनी मनस्सी से कहा आज हम ने जान लिया कि ख़ुदावन्द हमारे बीच है क्यूँकि तुम से ख़ुदावन्द की यह ख़ता नहीं हुई, ~इसलिए ~तुम ने बनी इस्राईल को ख़ुदावन्द के हाथ से छुड़ा लिया है|32और इली'अज़र काहिन का बेटा फ़ीन्हास और वह सरदार जिल'आद से बनी रूबिन और बनी जद के पास से मुल्क-ए-कना'न में बनी इस्राईल के पास लौट आये और उनको यह माजरा सुनाया ?|33तब बनी इस्राईल इस बात से खुश हुए और बनी इस्राईल ने ख़ुदा की हम्द की और फिर जंग के लिए उन पर चढ़ाई करने और उस मुल्क को तबाह करने का नाम न लिया जिस में बनी रूबिन और बनी जद रहते थे|34तब बनी रूबिन और बनी जद ने उस मज़बह का नाम 'ईद यह कह कर रखा की वह हमारे बीच ~गवाह है कि यहोवाह ख़ुदा है|
1इसके बहुत दिनों बा'द जब ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल को उनके सब चारों तरफ़ के दुश्मनों से आराम दिया और यशू'अ बुढ्ढा और 'उम्र रसीदा हुआ|2तो यशू'अ ने सब इस्राईलियों और उनके बुज़ुर्गों और सरदारों और क़ाज़ियों और मनसबदारों को बुलवा कर उन से कहा कि, मैं बूढ़ा और 'उम्र रसीदा हूँ|3और जो कुछ ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे वजह से इन सब क़ौमों के साथ किया वह सब तुम देख चुके हो क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने आप तुम्हारे लिए जंग की|4देखो मैं ने पर्ची डाल कर इन क़ौमों को तुम में तक़सीम किया कि यह इन सब क़ौमों के साथ जिनको मैंने काट डाला यरदन से लेकर पश्चिम की तरफ़ बड़े समन्दर तक तुम्हारे क़बीलों की मीरास ठहरें|5और ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा ही उनको तुम्हारे सामने से निकालेगा और तुम्हारी नज़र से उनको दूर कर देगा और तुम उनके मुल्क पर क़ाबिज़ होगे जैसा ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम से कहा है, |6इसलिए तुम ख़ूब हिम्मत बाँध कर जो कुछ मूसा की शरी'अत की किताब में लिखा है उस पर चलना और 'अमल करना ताकि तुम उस से दहने या बाएं हाथ को न मुड़ो|7और उन क़ौमों में जो तुम्हारे बीच हुनूज़ बाक़ी हैं न जाओ और न उनके म'बूदों के नाम का ज़िक्र करो और न उनकी क़सम खिलाओ और न उनकी 'इबादत करो और न उनको सिज्दा करो|8बल्कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से लिपटे रहो जैसा तुम ने आज तक किया है|9क्यूँकि ख़ुदावन्द ने बड़ी बड़ी और ज़ोरावर क़ौमों को तुम्हारे सामने से दफ़ा' किया बल्कि तुम्हारा यह हाल रहा कि आज तक कोई आदमी तुम्हारे सामने ठहर न सका|10तुम्हारा एक-एक आदमी एक-एक हज़ार को दौड़ायेगा, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा ही तुम्हारे लिए लड़ता है जैसा उसने तुम से कहा|11इसलिए तुम ख़ूब चौकसी करो कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रखो|12वरना अगर तुम किसी तरह फिर कर उन क़ौमों के बक़िया से या'नी उन से जो तुम्हारे बीच बाक़ी हैं घुल मिल ~जाओ और उनके साथ ब्याह शादी करो और उन से मिलो और वह तुम से मिलें|13तो यक़ीन जानो कि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा फिर इन क़ौमों को तुम्हारे सामने से दफ़ा' नहीं करेगा; बल्कि यह तुम्हारे लिए जाल और फंदा और तुम्हारे पहलुओं के लिए कोड़े , और तुम्हारी आँखों में काँटों की तरह होंगी, यहाँ तक कि तुम इस अच्छे मुल्क से जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम को दिया है मिट जाओगे|14और देखो, मैं आज उसी रास्ते जाने वाला हूँ जो सारे जहान का है और तुम ख़ूब जानते हो कि उन सब अच्छी बातों में से जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे हक़ में कहीं एक बात भी न छूटी, सब तुम्हारे हक़ में पूरी हुईं और एक भी उन में से न रह गयी|15इसलिए ~ऐसा होगा कि जिस तरह वह सब भलाइयां जिनका ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम से ज़िक्र किया था तुम्हारे आगे आयीं उसी तरह ख़ुदावन्द सब बुराईयाँ तुम पर लाएगा जब तक इस अच्छे मुल्क से जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम को दिया है वह तुम को बर्बाद न कर डाले|16जब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के उस 'अहद को जिसका हुक्म उस ने तुम को दिया तोड़ डालो और जाकर और मा'बूदों की 'इबादत करने और उनको सिज्दा करने लगो तो ख़ुदावन्द का क़हर तुम पर भड़केगा और तुम इस अच्छे मुल्क से जो उस ने तुम को दिया है जल्द हलाक हो जाओगे|
1इसके बा'द यशू'अ ने इस्राईल के सब क़बीलों को सिक्म में जमा' किया, और इस्राईल के बुज़ुर्गों और सरदारों और क़ाज़ियों और मनसबदारों को बुलवाया, और वह ख़ुदा के सामने हाज़िर हुए|2तब यशू'अ ने उन सब लोगों से कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि तुम्हारे आबा या'नी अब्रहाम और नहूर का बाप तारह वगै़रह पुराने ज़माने में बड़े दरिया के पार रहते और दूसरे मा'बूदों की 'इबादत करते थे|3और मैंने तुम्हारे बाप अब्रहाम को बड़े दरिया के पार से लेकर कना'न के सारे मुल्क में उसकी रहबरी की, और उसकी नसल को बढ़ाया और उसे इज़्हाक़ 'इनायत किया|4और मैंने इस्हाक़ को या'क़ूब और 'ऐसौ बख़्शे; और 'ऐसौ को कोह-ए-श'ईर दिया की वह उसका मालिक हो, और या'क़ूब अपनी औलाद के साथ मिस्र में गया|5और मैंने मूसा और हारून को भेजा, और मिस्र पर जो मैंने उस में किया उसके मुताबिक़ मेरी मार पड़ी और उसके बा'द मैं तुमको निकाल लाया|6तुम्हारे बाप दादा को मैंने मिस्र से निकाला , और तुम समन्दर पर आये, तब मिस्रियों ने रथों और सवारों को लेकर बहर-ए-क़ुल्ज़ुम तक तुम्हारे बाप दादा का पीछा किया|7और जब उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो उसने तुम्हारे और मिस्रियों के बीच अन्धेरा कर दिया, और समन्दर को उन पर चढ़ा लाया और उनको छिपा दिया और तुमने जो कुछ मैंने मिस्र में किया अपनी आँखों से देखा और तुम बहुत दिनों तक वीराने में रहे|8फिर मैं तुम को अमोरियों के मुल्क में जो यरदन के उस पार रहते थे ले आया, वह तुमसे लड़े और मैंने उनको तुम्हारे हाथ में कर दिया; और तुमने उनके मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया, और मैंने उनको तुम्हारे आगे से हलाक किया|9फिर सफ़ोर का बेटा बलक़, मोआब का बादशाह, उठ कर इस्राईलियों से लड़ा और तुम पर ला'नत करने को ब'ऊर के बेटे बिल'आम को बुलवा भेजा|10और मैंने न चाहा बिल'आम की सुनूँ; इसलिए वह तुम को बरकत ही देता गया, ~इसलिए ~मैं ने तुम को उसके हाथ से छुड़ाया|11फिर तुम यरदन पार हो कर यरीहू को आये, और यरीहू के लोग या'नी अमोरी और फ़िरिज़्ज़ी और कना'नी और हित्ती और जिरजासी और हव्वी और यबूसी तुम से लड़े, और मैंने उनको तुम्हारे क़ब्ज़ा में कर दिया|12और मैंने तुम्हारे आगे ज़म्बूरों को भेजा, जिन्होंने दोनों अमोरी बादशाहों को तुम्हारे सामने से भगा दिया; यह न तुम्हारी तलवार और न तुम्हारी कमान से हुआ|13और मैंने तुम को वह मुल्क जिस पर तुम ने मेहनत न की, और वह शहर जिनको तुम ने बनाया न था 'इनायत किये, और तुम उन में बसे हो और तुम ऐसे ताकिस्तानो और ज़ैतून के बाग़ों का फल खाते हो जिनको तुमने नहीं लगाया|14इसलिए अब तुम ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ रखो और नेक नियती और सदाक़त से उसकी 'इबादत करो; और उन माँ'बूदों को दूर कर दो जिनकी 'इबादत तुम्हारे बाप दादा बड़े दरिया के पार और मिस्र में करते थे, और ख़ुदावन्द की 'इबादत करो|15और अगर ख़ुदावन्द की 'इबादत तुम को बुरी मा'लूम होती हो, तो आज ही तुम उसे जिसकी 'इबादत करोगे चुन लो, ख़्वाह वह वही मा'बूद हों जिनकी 'इबादत तुम्हारे बाप दादा बड़े दरिया के उस पार करते थे या अमोरी के मा'बूद हों जिनके मुल्क में तुम बसे हो; अब रही मेरी और मेरे घराने की बात~इसलिए हम तो ख़ुदावन्द की 'इबादत करेंगे|16तब लोगों ने जवाब दिया कि ख़ुदा न करे कि हम ख़ुदावन्द को छोड़ कर और मा'बूदों की 'इबादत करें|17क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा वही है जिस ने हमको और हमारे बाप दादा को मुल्क मिस्र या'नी ग़ुलामी के घर से निकाला और वह बड़े-बड़े निशान हमारे सामने दिखाए और सारे रास्ते जिस में हम चले और उन सब क़ौमों के बीच जिन में से हम गुज़रे हम को महफ़ूज़ रखा|18और ख़ुदावन्द ने सब क़ौमों या'नी अमोरियों को जो उस मुल्क में बसते थे हमारे सामने से निकाल दिया, ~इसलिए ~हम भी ख़ुदावन्द की 'इबादत करेंगे क्यूँकि वह हमारा ख़ुदा है|19यशू'अ ने लोगों से कहा, " तुम ख़ुदावन्द की 'इबादत नहीं कर सकते; क्यूँकि वह पाक ख़ुदा है, वह ग़य्यूर ख़ुदा है, वह तुम्हारी ख़ताएँ और तुम्हारे गुनाह नहीं बख़्शेगा|20अगर तुम ख़ुदावन्द को छोड़ कर अजनबी मा'बूदों की 'इबादत करो तो अगरचे वह तुम से नेकी करता रहा है तो भी वह फिर कर तुम से बुराई करेगा और तुम को फ़ना कर डालेगा| ”21लोगों ने यशू'अ से कहा, " नहीं बल्कि हम ख़ुदावन्द ही की 'इबादत करेंगे| ”22यशू'अ ने लोगों से कहा, " तुम आप ही अपने गवाह हो कि तुम ने ख़ुदावन्द को चुना है कि उसकी 'इबादत करो| ” उन्होंने ने कहा, " हम गवाह हैं| ”23तब उसने कहा, "इसलिए अब तुम अजनबी मा'बूदों को जो तुम्हारे बीच हैं दूर कर दो और अपने दिलों को ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तरफ़ लाओ| ”24लोगों ने यशू'अ से कहा, " हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करेंगे और उसी की बात मानेंगे| ”25इसलिए ~यशू'अ ने उसी रोज़ लोगों के साथ 'अहद बांधा, और उनके लिए सिक्म में क़ायदा और क़ानून ठहराया|26और यशू'अ ने यह बातें ख़ुदा की शरी'अत की किताब में लिख दीं, और एक बड़ा पत्थर लेकर उसे वहीं उस बलूत के दरख्त़ के नीचे जो ख़ुदावन्द के मक़्दिस के पास था खड़ा किया|27और यशू'अ ने सब लोगों से कहा कि देखो यह पत्थर हमारा गवाह रहे, क्यूँकि उस ने ख़ुदावन्द की सब बातें जो उस ने हम से कहीं सुनी हैं इसलिए यही तुम पर गवाह रहे ऐसा न हो की तुम अपने ख़ुदा का इन्कार कर जाओ|28फिर यशू'अ ने लोगों को उनकी अपनी अपनी मीरास की तरफ़ रुख़्सत कर दिया|29और इन बातों के बा'द यूँ हुआ कि नून का बेटा यशू'अ ख़ुदावन्द का बन्दा एक सौ दस बरस का होकर वफ़ात कर गया|30~और उन्होंने उसी की मीरास की हद पर तिमनत सिरह में जो इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में कोह-ए-जा'स की उत्तर की तरफ़ को है उसे दफ़न किया31और इस्राईली ख़ुदावन्द की 'इबादत यशू'अ के जीते जी और उन बुज़ुर्गों के जीते जी करते रहे जो यशू'अ के बा'द ज़िन्दा रहे, और ख़ुदावन्द के सब कामों से जो उस ने इस्राईलियों के लिए किये वाक़िफ़ थे32और उन्होंने यूसुफ़ की हड्डियों को, जिनको बनी इस्राईल मिस्र से ले आये थे, सिक्म में उस ज़मीन के हिस्से में दफ़न किया जिसे या'क़ूब ने सिक्म के बाप हमोर के बेटों से चाँदी के सौ सिक्कों में ख़रीदा था; और वह ज़मीन बनी यूसुफ़ की मीरास ठहरी|33और हारून के बेटे इली'अज़र ने वफ़ात की और उन्होंने उसे उसके बेटे फ़ीन्हास की पहाड़ी पर दफ़न किया, जो इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में उसे दी गयी थी|
1~और यशू'अ की मौत के बा'द यूँ हुआ कि बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से पूछा कि हमारी तरफ़ से कन'आनियों से जंग करने को पहले कौन चढ़ाई करे ?2ख़ुदावन्द ने कहा कि यहूदाह चढ़ाई करे; और देखो, मैंने यह मुल्क उसके हाथ में कर दिया है।3तब यहूदाह ने अपने भाई शमा'ऊन से कहा कि तू मेरे साथ मेरे बँटवारे के हिस्से में चल, ताकि हम कन'आनियों से लड़ें: और इसी तरह मैं भी तेरे बँटवारे के हिस्से में तेरे साथ चलूँगा। इसलिए शमा'ऊन उसके साथ गया।4और यहूदाह ने चढ़ाई की, और ख़ुदावन्द ने कन'आनियों और फ़रिज़्ज़ियों को उनके क़ब्ज़े में कर दिया; और उन्होंने बज़क़ में उनमें से दस हज़ार आदमी क़त्ल किए।5और अदूनी बज़क़ को बज़क़ में पाकर वह उससे लड़े, और कन'आनियों और फ़रिज़्ज़ियों को मारा।6लेकिन अदूनी बज़क़ भागा, और उन्होंने उसका पीछा करके उसे पकड़ लिया, और उसके हाथ और पाँव के अँगूठे काट डाले।7तब अदूनी बज़क़ ने कहा कि हाथ और पाँव के अँगूठे कटे हुए सत्तर बादशाह मेरी मेज़ के नीचे रेज़ाचीनी करते थे, इसलिए जैसा मैंने किया वैसा ही ख़ुदा ने मुझे बदला दिया। फिर वह उसे यरुशलीम में लाए और वह वहाँ मर गया।8और बनी यहूदाह ने यरुशलीम से लड़ कर उसे ले लिया, और उसे बर्बाद करके शहर को आग से फूंक दिया।9इसके बा'द बनी यहूदाह उन कन'आनियों से जो पहाड़ी मुल्क और दक्खिनी हिस्से और नशेब की ज़मीन में रहते थे, लड़ने को गए।10और यहूदाह ने उन कन'आनियों पर जो हबरून में रहते थे चढ़ाई की (और हबरून का नाम पहले क़रयत अरबा' था); वहाँ उन्होंने सीसी और अख़ीमान और तलमी को मारा।11वहाँ से वह दबीर के बाशिदों पर चढ़ाई करने को गया (दबीर का नाम पहले क़रयत सिफ़र था)।12तब कालिब ने कहा, "जो कोई क़रयत सिफ़र को मार कर उसे ले ले, मैं उसे अपनी बेटी 'अकसा ब्याह दूँगा।"13और कालिब के छोटे भाई क़नज़ के बेटे ग़ुतनीएल ने उसे ले लिया; फिर उसने अपनी बेटी 'अकसा उसे ब्याह दी।14और जब वह उसके पास गई, तो उसने उसे सलाह दी कि वह उसके बाप से एक खेत माँगे; फिर वह अपने गधे पर से उतर पड़ी, तब कालिब ने उससे कहा, "तू क्या चाहती है?"15उसने उससे कहा, "मुझे बरकत दे; चूँकि तूने मुझे दख्खिन के मुल्क में रख्खा है, इसलिए पानी के चश्मे भी मुझे दे।" तब कालिब ने ऊपर के चश्मे और नीचे के चश्मे उसे दिए।16और मूसा के साले क़ीनी की औलाद खजूरों के शहर में बनी यहूदाह के साथ याहूदाह के वीराने ~को जो 'अराद के दख्खिन में है, चली गयी और जाकर लोगों के साथ रहने लगी |17और यहूदाह अपने भाई शमा'ऊन के साथ गया और उन्होंने उन कन'आनियों को जो सफ़त में रहते थे मारा, और शहर को मिटा दिया; इसलिए उस शहर का नाम हुरमा' कहलाया।18और यहूदाह ने ग़ज़्ज़ा और उसका 'इलाक़ा,और अस्क़लोन और उसका 'इलाक़ा अक़रून और उसका 'इलाक़ा को भी ले लिया।19और ख़ुदावन्द यहूदाह के साथ था, इसलिए उसने पहाड़ियों को निकाल दिया, लेकिन वादी के बाशिदों को निकाल न सका, क्यूँकि उनके पास लोहे के रथ थे।20तब उन्होंने मूसा के कहने के मुताबिक़ हबरून कालिब को दिया; और उसने वहाँ से 'अनाक़ के तीनों बेटों को निकाल दिया।21और बनी बिनयमीन ने उन यबूसियों को जो यरुशलीम में रहते थे न निकाला,~इसलिए यबूसी बनी बिनयमीन के साथ आज तक यरुशलीम में रहते हैं।22और यूसुफ़ के घराने ने भी बैतएल लेकिन चढ़ाई की, और ख़ुदावन्द उनके साथ था।23और यूसुफ़ के घराने ने बैतएल का हाल दरियाफ़्त करने को जासूस भेजे (और उस शहर का नाम पहले लूज़ था)।24और जासूसों ने एक शख़्स को उस शहर से निकलते देखा और उससे कहा,कि शहर में दाख़िल होने की राह हम को दिखा दे, तो हम तुझ से मेहरबानी से पेश आएँगे।25इसलिए~उसने शहर में दाख़िल होने की राह उनको दिखा दी। उन्होंने शहर को बर्बाद किया, पर उस शख़्स और उसके सारे घराने को छोड़ दिया।26और वह शख़्स हित्तियों के मुल्क में गया, और उसने वहाँ एक शहर बनाया और उसका नाम लूज़ रख्खा; चुनाँचे आज तक उसका यही नाम है।27और मनस्सी ने भी बैत शान और उसके क़स्बों और ता'नाक और उसके क़स्बों और दोर और उसके क़स्बों के बाशिदों, और इबली'आम और उसके क़स्बों के बाशिंदों, और मजिद्दो और उसके क़स्बों के बार्शिदों को न निकाला; बल्कि कन'आनी उस मुल्क में बसे ही रहे।28लेकिन जब इस्राईल ने ज़ोर पकड़ा, तो वह कन'आनियों से बेगार का काम लेने लगे लेकिन उनको बिल्कुल निकाल न दिया।29और इफ़्राईम~ने उन कन'आनियों को जो जज़र में रहते थे न निकाला,~इसलिए~कन'आनी उनके बीच जज़र में बसे रहे।30और ज़बूलून ने क़ितरोन और नहलाल के लोगों को न निकाला, इसलिए~कन'आनी उनमें क़याम करते रहे और उनके फ़रमाबरदार हो गए।31और आशर ने 'अक्को और सैदा और अहलाब और अकज़ीब और हिलबा और अफ़ीक़ और रहोब के बाशिंदों को न निकाला;32बल्कि आशरी उन कन'आनियों के बीच जो उस मुल्क के बाशिंदे थे बस गए, क्यूँकि उन्होंने उनको निकाला न था।33और नफ़्ताली ने बैत शम्स और बैत 'अनात के बाशिंदों को न निकाला, बल्कि वह उन कन'आनियों में जो वहाँ रहते थे बस गया; तो भी बैत शम्स और बैत'अनात के बाशिंदे उनके फ़रमाबरदार हो गए।34और अमोरियों ने बनी दान को पहाड़ी मुल्क में भगा दिया, क्यूँकि उन्होंने उनको वादी में आने न दिया।35बल्कि अमोरी कोह-ए-हरिस पर और अय्यालोन और सा'लबीम में बसे ही रहे, तो भी बनी यूसुफ़ का हाथ ग़ालिब हुआ, ऐसा कि यह फ़रमाबरदार हो गए।36और अमोरियों की सरहद 'अक़रब्बीम की चढ़ाई से या'नी चट्टान से शुरू' करके ऊपर ऊपर थी।
1और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता जिल्जाल से बोकीम को आया और कहने लगा, "मैं तुम को मिस्र से निकाल कर, उस मुल्क में जिसके बारे में मैं ने तुम्हारे बाप-दादा से क़सम खाई थी, ले आया और मैंने कहा, 'मैं हरगिज़ तुम से वा'दा ख़िलाफ़ी नहीं करूंगा।2और तुम उस मुल्क के बाशिंदों के साथ 'अहद न बाँधना, बल्कि तुम उनके मज़बहों को ढा देना।' लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं मानी। तुमने क्यूँ ऐसा किया?3इसी लिए मैंने भी कहा, 'कि मैं उनको तुम्हारे आगे से दफ़ा' न करूँगा, बल्कि वह तुम्हारे पहलुओं के काँटे और उनके मा'बूद तुम्हारे लिए फंदा होंगे'।"4जब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने सब बनी इस्राईल से यह बातें कहीं, तो वह ज़ोर-ज़ोर रोने से लगे।5और उन्होंने उस जगह का नाम बोकीम रख्खा; और वहाँ उन्होंने ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी अदा की।6और जिस वक़्त यशू'अ ने जमा'अत को रुख़सत किया था, तब बनी-इस्राईल में से हर एक अपनी मीरास को लौट गया था ताकि उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करे।7और वह लोग ख़ुदावन्द की 'इबादत यशू'अ के जीते जी और उन बुज़ुर्गों के जीते जी करते रहे, जो यशू'अ के बा'द ज़िन्दा रहे और जिन्होंने ख़ुदावन्द के सब बड़े काम जो उसने इस्राईल के लिए किए देखे थे।8और नून का बेटा यशू'अ, ख़ुदावन्द का बंदा, एक सौ दस बरस का होकर वफ़ात कर गया।9और उन्होंने उसी की मीरास की हद पर, तिमनत हरिस में इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में जो कोह-ए-जा'स के उत्तर की तरफ़ है, उसको दफ़्न किया।10और वह सारी नसल भी अपने बाप-दादा से जा मिली; और उनके बा'द एक और नसल पैदा हुई, जो न ख़ुदावन्द को और न उस काम को जो उसने इस्राईल के लिए किया जानती थी।11और बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द के आगे बुराई की, और बा'लीम की 'इबादत करने लगे।12और उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को जो उनको मुल्क-ए- मिस्र से निकाल लाया था छोड़ दिया, और दूसरे मा'बूदों की जो उनके चारों तरफ़ की क़ौमों के मा'बूदों में से थे पैरवी करने और उनको सिज्दा करने लगे और ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया।13और वह ख़ुदावन्द को छोड़ कर बा'ल और 'इस्तारात की 'इबादत करने लगे।14और ख़ुदावन्द का क़हर इस्राईल पर भड़का, और उसने उनको ग़ारतगरों के हाथ में कर दिया जो उनको लूटने लगे; और उसने उनको उनके दुश्मनों के हाथ जो आस पास थे बेचा,~इसलिए वह फिर अपने दुश्मनों के सामने खड़े न हो सके।15और वह जहाँ कहीं जाते ख़ुदावन्द का हाथ उनकी तकलीफ़ ही पर तुला रहता था, जैसा ख़ुदावन्द ने कह दिया था और उनसे क़सम खाई थी; इसलिए वह निहायत तंग आ गए।16फिर ख़ुदावन्द ने उनके लिए ऐसे क़ाज़ी खड़े किए, जिन्होंने उनको उनके ग़ारतगरों के हाथ से छुड़ाया।17लेकिन उन्होंने अपने क़ाज़ियों की भी न सुनी, बल्कि और मा'बूदों की पैरवी में ज़िना करते और उनको सिज्दा करते थे; और वह उस राह से जिस पर उनके बाप-दादा चलते और ख़ुदावन्द की फ़रमाँबरदारी करते थे, बहुत जल्द फिर गए और उन्होंने उनके से काम न किए।18और जब ख़ुदावन्द उनके लिए क़ाज़ियों को बरपा करता तो ख़ुदावन्द उस क़ाज़ी के साथ होता, और उस क़ाज़ी के जीते जी उनको उनके दुश्मनों के हाथ से छुड़ाया करता था; इसलिए कि जब वह अपने सताने वालों और दुख देने वालों के ज़रिए' कुढ़ते थे, तो ख़ुदावन्द ग़मगीन होता था।19लेकिन जब वह क़ाज़ी मर जाता, तो वह फिरकर और मा'बूदों की पैरवी में अपने बाप-दादा से भी ज़्यादा बिगड़ जाते और उनकी 'इबादत करते और उनको सिज्दा करते थे; वह न तो अपने कामों से और न अपनी घमंडी के चाल-चलन से बाज़ आए।20इसलिए ख़ुदावन्द का ग़ज़ब इस्राईल पर भड़का और उसने कहा, "चूँकि इन लोगों ने मेरे उस 'अहद को जिसका हुक्म मैं ने उनके बाप-दादा को दिया था, तोड़ डाला और मेरी बात नहीं सुनी।21इसलिए मैं भी अब उन क़ौमों में से जिनको यशू'अ छोड़ कर मरा है, किसी को भी इनके आगे से दफ़ा' नहीं करूँगा।22ताकि मैं इस्राईल को उन ही के ज़रिए' से आज़माऊँ, कि वह ख़ुदावन्द की राह पर चलने के लिए अपने बाप-दादा की तरह क़ायम रहेंगे या नहीं।"23~इसलिए~ख़ुदावन्द ने उन कौमों को रहने दिया और उनको जल्द न निकाल दिया और यशू'अ. के हाथ में भी उनको हवाले न किया।
1और यह वह क़ौमें हैं जिनको ख़ुदावन्द ने रहने दिया, ताकि उनके वसीले से इस्राईलियों में से उन सब को जो कन'आन की सब लड़ाइयों से वाक़िफ़ न थे आज़माए,2~सिर्फ़ मक़सद यह था कि बनी-इस्राईल की नसल के ख़ासकर उन लोगों को, जो पहले लड़ना नहीं जानते थे लड़ाई सिखाई जाए ताकि वह वाक़िफ़ हो जाएँ,3या'नी फ़िलिस्तियों के पाँचों सरदार, और सब कन'आनी और सैदानी, और कोह-ए-बा'ल हरमून से हमात के मदख़ल तक के सब हव्वी जो कोह-ए-लुबनान में बसते थे।4यह इसलिए थे कि इनके वसीले से इस्राइली आज़माए जाएँ, ताकि मा'लूम हो जाए के वह ख़ुदावन्द के हुक्मों को जो उसने मूसा के ज़रिए' उनके बाप-दादा को दिए थे सुनेंगे या नहीं।5~इसलिए~बनी-इस्राईल कन'आनियों और हित्तियों और अमूरियों और फ़रिज़्ज़ियों और हव्वियों और यबूसियों के बीच बस गए;6और उनकी बेटियों से आप निकाह करने और अपनी बेटियाँ उनके बेटों को देने, और उनके मा'बूदों की 'इबादत करने लगे।7और बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द के आगे बुराई की, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल कर बा'लीम और यसीरतों की 'इबादत करने लगे।8इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर इस्राईलियों पर भड़का, और उसने उनको मसोपतामिया के बादशाह कोशन रिसा'तीम के हाथ बेच डाला; इसलिए वह आठ बरस तक कोशन रिसा'तीम के फ़रमाँबरदार रहे।9और जब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के लिए एक रिहाई देने वाले को खड़ा किया, और कालिब के छोटे भाई क़नज़ के बेटे ग़ुतनीएल ने उनको छुड़ाया।10और ख़ुदावन्द की रूह उस पर उतरी और वह इस्राईल का क़ाज़ी हुआ और जंग के लिए निकला; तब ख़ुदावन्द ने मसोपतामिया के बादशाह कोशन रिसा'तीम को उसके हाथ में कर दिया,~इसलिए~उसका हाथ कोशन रिसा'तीम पर ग़ालिब हुआ।11और उस मुल्क में चालीस बरस तक चैन रहा और क़नज़ के बेटे गुतनीएल ने वफ़ात पाई।12और बनी-इस्राईल ने फिर ख़ुदावन्द के आगे बुराई की; तब ख़ुदावन्द ने मोआब के बादशाह 'अजलून को इस्राईलियों के ख़िलाफ़ ज़ोर बख़्शा, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द के आगे बदी की थी।13और उसने बनी 'अम्मून और बनी 'अमालीक़ को अपने यहाँ जमा' किया और जाकर इस्राईल को मारा, और उन्होंने खजूरों का शहर ले लिया।14इसलिए बनीइस्राईल अठारह बरस तक मोआब के बादशाह 'अजलून के फ़रमाँबरदार रहे।15लेकिन जब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो ख़ुदावन्द ने बिनयमीनी जीरा के बेटे अहूद को जो बेसहारा था, उनका छुड़ाने वाले मुक़र्रर किया और बनी इस्राईल ने उसके ज़रिए' मोआब के बादशाह 'अजलून के लिए हदिया भेजा।16और अहूद ने अपने लिए एक दोधारी तलवार एक हाथ लम्बी बनवाई, और उसे अपने जामे के नीचे दहनी रान पर बाँध लिया।17फिर उसने मोआब के बादशाह 'अजलून के सामने वह हदिया पेश किया, और 'अजलून बड़ा मोटा आदमी था।18और जब वह हदिया पेश कर चुका तो उन लोगों को जो हदिया लाए थे रुख़सत किया।19और वह उस पत्थर के कान के पास जो जिल्जाल में है, कहने लगा, "ऐ बादशाह मेरे पास तेरे लिए एक ख़ूफ़िया पैग़ाम है |" उसने कहा, " ख़ामोश रह|" तब वह पास सब जो उसके खड़े थे उसके पास से बाहर चले गए|20फिर अहूद उसके पास आया, उस वक़्त वह अपने हवादार बालाख़ाने में अकेला बैठा था। तब अहूद ने कहा, "तेरे लिए मेरे पास ख़ुदा की तरफ़ से एक पैग़ाम है।" तब वह कुर्सी पर से उठ खड़ा हुआ।21और अहूद ने अपना बायाँ हाथ बढ़ा कर अपनी दहनी रान पर से वह तलवार ली और उसकी पेट में घुसेड़ दी।22और फल क़ब्ज़े समेत दाख़िल हो गया, और चर्बी फल के ऊपर लिपट गई; क्यूँकि उसने तलवार को उसकी पेट से न निकाला, बल्कि वह पार हो गई।23तब अहूद ने बरआमदे में आकर और बालाख़ाने के दरवाज़ों के अन्दर उसे बन्द कर के ताला लगा दिया।24और जब वह चलता बना तो उसके ख़ादिम आए और उन्होंने देखा कि बालाख़ाने के दरवाज़ों में ताला लगा है; वह कहने लगे, "वह ज़रूर हवादार कमरे में फराग़त कर रहा है।"25और वह ठहरे ठहरे शरमा भी गए, और जब देखा के वह बालाख़ाने के दरवाज़े नहीं खोलता, तो उन्होंने कुंजी ली और दरवाज़े खोले, और देखा कि उनका आक़ा ज़मीन पर मरा पड़ा है।26और वह ठहरे ही हुए थे के अहूद इतने में भाग निकला, और पत्थर की कान से आगे बढ़ कर स'ईरत में जा पनाह ली।27और वहाँ पहुँच कर उसने इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में नरसिंगा फूंका। तब बनी इस्राईल उसके साथ पहाड़ी मुल्क से उतरे, और वह उनके आगे आगे हो लिया।28उसने उनको कहा, "मेरे पीछे पीछे चले चलो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुम्हारे दुश्मनों या'नी मोआबियों को तुम्हारे क़ब्ज़ा में कर दिया है।"~इसलिए उन्होंने उसके पीछे पीछे जाकर यरदन के घाटों को जो मोआब की तरफ़ थे अपने क़ब्ज़े में कर लिया, और एक को भी पार उतरने न दिया।29उस वक़्त उन्होंने मोआब के दस हज़ार शख़्स के क़रीब जो सब के सब मोटे ताज़े और बहादुर थे, क़त्ल किए और उनमें से एक भी न बचा।30~इसलिए~मोआब उस दिन इस्राईलियों के हाथ के नीचे दब गया, और उस मुल्क में अस्सी बरस चैन रहा।31इसके बा'द 'अनात का बेटा शमजर खड़ा हुआ, और उसने फ़िलिस्तियों में से छ: सौ आदमी बैल के पैने से मारे; और उसने भी इसाईल को रिहाई दी।
1और अहूद की वफ़ात के बा'द बनीइस्राईल ने फिर ख़ुदावन्द के सामने बुराई की।2~इसलिए~ख़ुदावन्द ने उनको कन'आन के बादशाह याबीन के हाथ जो हसूर में सल्तनत करता था बेचा, और उसके लश्कर के सरदार का नाम सीसरा था; वह~दीगर अक़वाम के शहर हरूसत में रहता था।3तब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की; क्यूँकि उसके पास लोहे के नौ सौ रथ थे, और उसने बीस बरस तक बनी-इस्राईल को शिद्दत से सताया।4उस वक़्त लफ़ीदोत की बीवी दबोरा नबिया, बनी-इस्राईल का इन्साफ़ किया करती थी।5और वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में रामा और बैतएल के बीच दबोरा के खजूर के दरख़्त के नीचे रहती थी, और बनी इस्राईल उसके पास इन्साफ़ के लिए आते थे।6और उसने क़ादिस नफ़्ताली से अबीनू'अम के बेटे बरक़ को बुला भेजा और उससे कहा, "क्या ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने हुक्म नहीं किया, कि तू तबूर के पहाड़ पर चढ़ जा, और बनी नफ़्ताली और बनी ज़बूलून में से दस हज़ार आदमी अपने साथ ले ले?7और मैं नहर-ए-क़ीसोन पर याबीन के लश्कर के सरदार सीसरा को और उसके रथों और फ़ौज को तेरे पास खींच लाऊँगा, और उसे तेरे हाथ में कर दूँगा।"8और बरक़ ने उससे कहा, "अगर तू मेरे साथ चलेगी तो मैं जाऊँगा, लेकिन अगर तू मेरे साथ नहीं चलेगी तो मैं नहीं जाऊँगा।"9उसने कहा, "मैं ज़रूर तेरे साथ चलूँगीं ; लेकिन इस सफ़र से जो तू करता है तुझे कुछ इज़्ज़त हासिल न होगी, क्यूँकि ख़ुदावन्द सीसरा को एक 'औरत के हाथ बेच डालेगा।" और दबोरा उठ कर बरक़ के साथ क़ादिस को गई।10और बरक़ ने ज़बूलून और नफ़्ताली को क़ादिस में बुलाया; और दस हज़ार आदमी अपने साथ लेकर चढ़ा, और दबोरा भी उसके साथ चढ़ी।11और हिब्र क़ीनी ने जो मूसा के साले हुबाब की नसल से था, क़ीनियों से अलग होकर क़ादिस के क़रीब ज़ाननीम में बलूत के दरख़्त के पास अपना डेरा डाल लिया था।12तब उन्होंने सीसरा को ख़बर पहुँचाई कि बरक़ बिन अबीनू'अम कोह-ए-तबूर पर चढ़ गया है।13और सीसरा ने अपने सब रथों को, या'नी लोहे के नौ सौ रथों और अपने साथ के सब लोगों को दीगर अक़वाम के शहर हरूसत से क़ीसोन की नदी पर जमा' किया।14तब दबोरा ने बरक़ से कहा कि उठ! क्यूँकि यही वह दिन है, जिसमें ख़ुदावन्द ने सीसरा को तेरे क़ब्ज़े में कर दिया है। क्या ख़ुदावन्द तेरे आगे नहीं गया है? तब बरक़ और वह दस हज़ार आदमी उसके पीछे पीछे कोह-ए-तबूर से उतरे।15और ख़ुदावन्द ने सीसरा को और उसके सब रथों और सब लश्कर को, तलवार की धार से बरक़ के सामने शिकस्त दी; और सीसरा रथ पर से उतर कर पैदल भागा।16और बरक़ रथों और लश्कर को दीगर अक़वाम के हरूसत शहर तक दौड़ाता गया; चुनाँचे सीसरा का सारा लश्कर तलवार से मिटा, और एक भी न बचा।17लेकिन सीसरा हिब्र क़ीनी की बीवी या'एल के डेरे को पैदल भाग गया, इसलिए कि हसूर के बादशाह याबीन और हिब्र क़ीनी के घराने में सुलह थी।18तब या'एल सीसरा से मिलने को निकली, और उससे कहने लगी, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, आ मेरे पास आ, और परेशान न हो।” इसलिए वह उसके पास डेरे में चला गया, और उसने उसको कम्बल उढ़ा दिया।19तब सीसरा ने उससे कहा कि ज़रा मुझे थोड़ा सा पानी पीने को दे, क्यूँकि मैं प्यासा हूँ। तब उसने दूध का मश्कीज़ा खोलकर उसे पिलाया, और फिर उसे उढ़ा दिया।20तब उसने उससे कहा कि तू डेरे के दरवाज़े पर खड़ी रहना, और अगर कोई शख़्स आकर तुझ से पूछे कि यहाँ कोई आदमी है? तो कह देना कि नहीं।21तब हिब्र की बीवी या'एल डेरे की एक मेख और एक मेख़चू को हाथ में ले, दबे पाँव उसके पास गई और मेख़ उसकी कनपट्टियों पर रख कर ऐसी ठोंकी कि वह पार होकर ज़मीन में जा धँसी, क्यूँकि वह गहरी नींद में था, पस वह बेहोश होकर मर गया।22और जब बरक़ सीसरा को दौड़ाता आया तो या'एल उससे मिलने को निकली और उससे कहा, "आ जा, और मैं तुझे वही शख़्स जिसे तू ढूँडता है दिखा दूँगी।” पस उसने उसके पास आकर देखा कि सीसरा मरा पड़ा है, और मेख़ उसकी कनपट्टियों में है।23~इसलिए~ख़ुदा ने उस दिन कन'आन के बादशाह याबीन को बनी-इस्राईल के सामने नीचा दिखाया।24और बनी-इस्राईल का हाथ कन'आन के बादशाह याबीन पर ज़्यादा ग़ालिब ही होता गया, यहाँ तक कि उन्होंने शाह-ए-कन'आन याबीन को बर्बाद कर डाला।
1उसी दिन दबोरा और अबीनू'अम के बेटे बरक़ ने यह गीत गाया कि :2~पेशवाओं ने जो इस्राईल की पेशवाई की और लोग ख़ुशी ख़ुशी भर्ती हुए इसके लिए ख़ुदावन्द को मुबारक कहो।3ऐ बादशाहों, सुनो! ऐ शाहज़ादों, कान लगाओ! मैं ख़ुद ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ करूंगी, मैं ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा की बड़ाई गाऊँगी।4ऐ ख़ुदावन्द, जब तू श'ईर से चला, जब तू अदोम के मैदान से बाहर निकला, तो ज़मीन कॉप उठी, और आसमान टूट पड़ा, हाँ, बादल बरसे।5पहाड़ ख़ुदावन्द की हुज़ूरी की वजह से, और वह सीना भी ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हुज़ूरी की वजह से कॉप गए।6'अनात के बेटे शमजर के दिनों में, और या'एल के दिनों में शाहराहें सूनी पड़ी थीं, और मुसाफ़िर पगडंडियों से आते जाते थे।7इस्राईल में हाकिम बन्द रहे, वह बन्द रहे, जब तक कि मैं दबोरा खड़ी न हुई, जब तक कि मैं इस्राईल में माँ होकर न उठी।8उन्होंने नए नए मा'बूद चुन लिए, तब जंग फाटकों ही पर होने लगी। क्या चालीस हज़ार इस्त्राईलियों में भी कोई ढाल या बर्छी दिखाई देती थी?9मेरा दिल इस्राईल के हाकिमों की तरफ़ लगा है जो लोगों के बीच ख़ुशी ख़ुशी भर्ती हुए। तुम ख़ुदावन्द को मुबारक कहो।10~ऐ तुम सब जो सफ़ेद गधों पर सवार हुआ करते हो, और तुम जो नफ़ीस गालीचों पर बैठते हो, और तुम लोग जो रास्ते चलते हो, सब इसका चर्चा करो।11तीरअंदाज़ों के शोर से दूर पनघटों में, वह ~ख़ुदावन्द के सच्चे कामों का, या'नी उसकी हुकूमत के उन सच्चे कामों का जो इस्राईल में हुए ज़िक्र करेंगे। उस वक़्त ख़ुदावन्द के लोग उतर उतर कर फाटकों पर गए।12"जाग, जाग, ऐ दबोरा! जाग, जाग और गीत गा! उठ, ऐ बरक़, और अपने ग़ुलामों को बाँध ले जा, ऐ अबीनू'अम के बेटे।13उस वक़्त थोड़े से ~रईस और लोग उतर आए: ख़ुदावन्द मेरी तरफ़ से ताक़तवरों के मुक़ाबिले के लिए आया।14~इफ़्राईम ~में से वह ~लोग आए जिनकी जड़ 'अमालीक़ में है; तेरे पीछे पीछे ऐ बिनयमीन, तेरे लोगों के बीच , मकीर में से हाकिम उतर कर आए; और ज़बूलून में से वह ~लोग आए जो सिपहसालार की लाठी लिए रहते हैं;15और इश्कार के सरदार दबोरा के साथ साथ थे, जैसा इश्कार वैसा ही बरक़ था; वह ~लोग उसके साथी ~झपट कर वादी में गए। रूबिन की नदियों के पास बड़े बड़े इरादे दिल में ठाने गए।16तू उन सीटियों को सुनने के लिए, जो भेड़ बकरियों के लिए बजाते हैं भेड़ सालों के बीच क्यूँ बैठा रहा? रूबिन की नदियों के पास दिलों में बड़ी घबराहट थी।17जिल'आद यरदन के पार रहा; और दान किश्तियों में क्यूँ रह गया? आशर समुन्दर के बन्दर के पास बैठा ही रहा, और अपनी खाड़ियों के आस पास जम गया।18ज़बूलून अपनी जान पर खेलने वाले लोग थे; और नफ़्ताली भी मुल्क के ऊँचे ऊँचे मक़ामों पर ऐसा ही निकला।19~बादशाह आकर लड़े, तब कन'आन के बादशाह ता'नाक में मजिद्दो के चश्मों के पास लड़े: लेकिन उनको कुछ रूपये हासिल न हुए।20आसमान की तरफ़ से भी लड़ाई हुई; बल्कि सितारे भी अपनी अपनी मंजिल में सीसरा से लड़े।21~क़ीसोन नदी उनको बहा ले गई, या'नी वही पुरानी नदी जो क़ीसोन नदी है। ऐ मेरी जान! तू ज़ोरों में चल।22उनके कूदने, उन ताक़तवर घोड़ों के कूदने की वजह से, खुरों की टांप की आवाज़ होने लगी।23ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने कहा, कि तुम मीरोज़ पर ला'नत करो,उसके बाशिंदों पर सख़्त ला'नत करो क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की मदद को ताक़तवर के मुक़ाबिल ख़ुदावन्द की मदद को आए|24~हिब्र क़ीनी की बीवी या'एल, सब 'औरतों से मुबारक ठहरेगी; जो 'औरतें डेरों में हैं उन से वह मुबारक होगी।25सीसरा ने पानी माँगा, उसने उसे दूध दिया, अमीरों की थाल में वह उसके लिए मक्खन लाई।26उसने अपना हाथ मेख़ को, और अपना दहना हाथ बढ़इयों के मेख़चू को लगाया; और मेख़चू से उसने सीसरा को मारा, उसने उसके सिर को फोड़ डाला, और उसकी कनपट्टियों को आर पार छेद दिया।27उसके पाँव पर वह ~झुका, वह गिरा, और पड़ा रहा; उसके पाँव पर वह झुका और गिरा; जहाँ वह झुका था, वहीं वह मर कर गिरा।28सीसरा की माँ खिड़की से झाँकी और चिल्लाई, उसने झिलमिली की ओट से पुकारा, 'उसके रथ के आने में इतनी देर क्यूँ लगी? उसके रथों के पहिए क्यूँ अटक गए?'29उसकी अक़्लमन्द 'औरतों ने जवाब दिया, बल्कि उसने अपने को आप ही जवाब दिया,30'क्या उन्होंने लूट को पाकर उसे बॉट नहीं लिया है? क्या हर आदमी को एक एक बल्कि दो दो कुँवारियाँ, और सीसरा को रंगारंग कपड़ों की लूट, बल्कि बेल बूटे कढ़े हुए रंगारंग कपड़ों की लूट, और दोनों तरफ़ बेल बूटे कढ़े हुए जो ग़ुलामों की गरदनों पर लदी हों, नहीं मिली ?'31~ऐ ख़ुदावन्द, तेरे सब दुश्मन ऐसे ही हलाक हो जाएँ! लेकिन उसके प्यार करने वाले आफ़ताब की तरह हों जब वह ज़ोश के साथ उगता है।" और मुल्क में चालीस बरस अम्न रहा।
1और बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द के आगे बुराई की, और ख़ुदावन्द ने उनको सात बरस तक मिदियानियों के हाथ में रख्खा।2और मिदियानियों का हाथ इस्राईलियों पर ग़ालिब हुआ; और मिदियानियों की वजह से बनी-इस्राईल ने अपने लिए पहाड़ों में खोह और ग़ार और क़िले' बना लिए।3और ऐसा होता था कि जब बनी-इस्राईल कुछ बोते थे, तो मिदियानी और 'अमालीक़ी और मशरिक़ के लोग उन पर चढ़ आते थे;4और उनके मुक़ाबिल डेरे लगा कर ग़ज़्ज़ा तक खेतों की पैदावार को बर्बाद कर डालते, और बनी-इस्राईल के लिए न तो कुछ ख़ुराक, न भेड़-बकरी, न गाय बैल, न गधा छोड़ते थे।5क्यूँकि वह अपने चौपायों और डेरों को साथ लेकर आते, और टिड्डियों के दल की तरह आते; और वह और उनके ऊँट बेशुमार होते थे। यह लोग मुल्क को तबाह करने के लिए आ जाते थे।6~~इसलिए~इस्राइली मिदियानियों की वजह से निहायत बर्बाद हो गए, और बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द से फ़रियाद करने लगे।7और जब बनी-इस्राईल मिदियानियों की वजह से ख़ुदावन्द से फ़रियाद करने लगे,8तो ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के पास एक नबी को भेजा। उसने उनसे कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: मैं तुम को मिस्र से लाया, और मैंने तुम को ग़ुलामी के घर से बाहर निकाला।9मैंने मिस्त्रियों के हाथ से और उन सभों के हाथ से जो तुम को सताते थे तुम को छुड़ाया, और तुम्हारे सामने से उनको दफ़ा' किया और उनका मुल्क तुम को दिया।10और मैंने तुम से कहा था कि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा मैं हूँ;~इसलिएतुम उन अमोरियों के मा'बूदों से जिनके मुल्क में बसते हो, मत डरना।' लेकिन तुम ने मेरी बात न मानी।11फिर ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता आकर उफ़रा में बलूत के एक दरख़्त के नीचे जो यूआस अबी'अज़री का था बैठा, और उसका बेटा जिदाऊन मय के एक कोल्हू में गेहूँ झाड़ रहा था ताकि उसको मिदियानियों से छिपा रख्खे।12और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उसे दिखाई देकर उससे कहने लगा कि ऐ ताक़तवर सूर्मा, ख़ुदावन्द तेरे साथ है।13` जिदा'ऊन ने उससे कहा, "ऐ मेरे मालिक! अगर ख़ुदावन्द ही हमारे साथ है तो हम पर यह सब हादसे क्यूँ गुज़रे? और उसके वह सब 'अजीब काम कहाँ गए, जिनका ज़िक्र हमारे बाप-दादा हम से यूँ करते थे, कि क्या ख़ुदावन्द ही हम को मिस्र से नहीं निकाल लाया? लेकिन अब तो ख़ुदावन्द ने हम को छोड़ दिया, और हम को मिदियानियों के हाथ में कर दिया।"14तब ख़ुदावन्द ने उस पर निगाह की और कहा कि तू अपने इसी ताक़त में जा, और बनी-इस्राईल की मिदियानियों के हाथ से छुड़ा। क्या मैंने तुझे नहीं भेजा?15उसने उससे कहा, "ऐ मालिक! मैं किस तरह बनी-इस्राईल को बचाऊँ? मेरा घराना मनस्सी में सब से ग़रीब है, और मैं अपने बाप के घर में सब से छोटा हूँ।"16ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "मैं ज़रूर तेरे साथ हूँगा, और तू मिदियानियों को ऐसा मार लेगा जैसे एक आदमी को।"17तब उसने उससे कहा कि अगर अब मुझ पर तेरे करम की नज़र हुई है, तो इसका मुझे कोई निशान दिखा कि मुझ से तू ही बातें करता है।18और मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, कि तू यहाँ से न जा जब तक मैं तेरे पास फिर न आऊँ और अपना हदिया निकाल कर तेरे आगे न रखूँ। उसने कहा कि जब तक तू फिर आ न जाए, मैं ठहरा रहूँगा।19तब जिदा'ऊन ने जाकर बकरी का एक बच्चा और एक ऐफ़ा आटे की फ़तीरी रोटियाँ तैयार कीं, और गोश्त को एक टोकरी में और शोरबा एक हॉण्डी में डालकर उसके पास बलूत के दरख़्त के नीचे लाकर पेश किया।20तब ख़ुदा के फ़रिश्ते ने उससे कहा, "इस गोश्त और फ़तीरी रोटियों कों ले जाकर उस चट्टान पर रख, और शोरबे को उंडेल दे।” उसने वैसा ही किया।21तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उस लाठी की नोक से जो उसके हाथ में थी, गोश्त और फ़तीरी रोटियों को छुआ; और उस पत्थर से आग निकली और उसने गोश्त और फ़तीरी रोटियों को भसम कर दिया। तब ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उसकी नज़र से ग़ायब हो गया।22और जिदा'ऊन ने जान लिया के वह ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता था;~इसलिए ~जिदा'ऊन कहने लगा, "अफ़सोस है ऐ मालिक, ख़ुदावन्द, कि मैंने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को आमने-सामने देखा।"23ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "तेरी सलामती हो, ख़ौफ़ न कर, तू मरेगा नहीं।"24तब जिदाऊन ने वहाँ ख़ुदावन्द के लिए मज़बह बनाया, और उसका नाम यहोवा सलोम रख्खा; वह अबी'अज़रियों के 'उफ़रा में आज तक मौजूद है।25और उसी रात ख़ुदावन्द ने उसे कहा कि अपने बाप का जवान बैल, या'नी वह दूसरा बैल जो सात बरस का है ले, और बा'ल के मज़बह को जो तेरे बाप का है ढा दे, और उसके पास की यसीरत को काट डाल;26और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए इस गढ़ी की चोटी पर क़ा'इदे के मुताबिक़ एक मज़बह बना; और उस दूसरे बैल को लेकर, उस यसीरत की लकड़ी से जिसे तू काट डालेगा, सोख़्तनी क़ुर्बानी गुज़ार।27तब जिदा'ऊन ने अपने नौकरों में से दस आदमियों को साथ लेकर जैसा ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया था किया; और चूँकि वह यह काम अपने बाप के ख़ान्दान और उस शहर के बाशिंदों के डर से दिन को न कर सका, इसलिए उसे रात को किया।28जब उस शहर के लोग सुबह सवेरे उठे तो क्या देखते हैं, कि बा'ल का मज़बह ढाया हुआ, और उसके पास की यसीरत कटी हुई, और उस मज़बह पर जो बनाया गया था वह दूसरा बैल चढ़ाया हुआ है।29और वह आपस में कहने लगे, "किसने यह काम किया?" और जब उन्होंने तहक़ीक़ात और पूछ-ताछ की तो लोगों ने कहा, "यूआस के बेटे जिदा'ऊन ने यह काम किया है।"30तब उस शहर के लोगों ने यूआस से कहा, "अपने बेटे को निकाल ला ताकि क़त्ल किया जाए, इसलिए कि उसने बा'ल का मज़बह ढा दिया, और उसके पास की यसीरत काट डाली है।"31यूआस ने उन सभों को जो उसके सामने खड़े थे कहा, "क्या तुम बा'ल के वास्ते झगड़ा करोगे? या तुम उसे बचा लोगे? जो कोई उसकी तरफ़ से झगड़ा करे वह इसी सुबह मारा जाए। अगर वह ख़ुदा है तो आप ही अपने लिए झगड़े, क्यूँकि किसी ने उसका मज़बह ढा दिया है।"32इसलिए उसने उस दिन जिदा'ऊन का नाम यह कहकर यरुब्बा'ल रख्खा, कि बा'ल आप इससे झगड़ ले, इसलिए कि इसने उसका मज़बह ढा दिया है।33तब सब मिदियानी और 'अमालीकी और मशरिक़ के लोग इकट्ठे हुए, और पार होकर यज़र'एल की वादी में उन्होंने डेरा किया।34तब ख़ुदावन्द की रूह जिदा'ऊन पर नाज़िल हुई,~इसलिए~उसने नरसिंगा फूंका और अबी'अज़र के लोग उसकी पैरवी में इकट्ठे हुए।35फिर उसने सारे मनस्सी के पास क़ासिद भेजे, तब वह भी उसकी पैरवी में इकट्ठे हुए। और उसने आशर और ज़बूलून और नफ़्ताली के पास भी क़ासिद रवाना किए,~इसलिए वह उनके इस्तक़बाल को आए।36तब जिदा'ऊन ने खुदा से कहा, "अगर तू अपने क़ौल के मुताबिक़ मेरे हाथ के वसीले से बनी-इस्राईल को रिहाई देना चाहता है,37तो देख, मैं भेड़ की ऊन खलिहान में रख दूँगा;~इसलिए~अगर ओस सिर्फ़ ऊन ही पर पड़े और आस- पास की ज़मीन सब सूखी रहे, तो मैं जान लूंगा कि तू अपने क़ौल के मुताबिक़ बनी-इस्राईल को मेरे हाथों के वसीले से रिहाई बख़्शेगा।"38और ऐसा ही हुआ। क्यूँकि वह सुबह को जूँ ही सवेरे उठा, और उस ऊन को दबाया और ऊन में से ओस निचोड़ी तो प्याला भर पानी निकला।39तब जिदा'ऊन ने ख़ुदा से कहा कि तेरा ग़ुस्सा मुझ पर न भड़के, मैं सिर्फ़ एक बार और 'अर्ज़ करता हूँ, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि सिर्फ़ एक बार और इस ऊन से आज़माइश कर लूँ, अब सिर्फ़ ऊन ही ऊन ख़ुश्क रहे और आस पास की सब ज़मीन पर ओस पड़े।40~तब ख़ुदा ने उस रात ऐसा ही किया क्यूँकि ऊन ही ख़ुश्क रही और सारी ज़मीन पर ओस पड़ी।
1तब यरुब्बा'ल या'नी जिदा'ऊन और सब लोग जो उसके साथ थे सवेरे ही उठे, और हरोद के चश्मे के पास डेरा किया, और मिदियानियों की लश्कर गाह उनके उत्तर की तरफ़ कोह-ए-मोरा के मुत्तसिल वादी में थी2तब ख़ुदावन्द ने जिदा'ऊन से कहा, "तेरे साथ के लोग इतने ज़्यादा हैं, कि मैं मिदियानियों को उनके हाथ में नहीं कर सकता; ऐसा न हो कि इस्राइली मेरे सामने अपने ऊपर फ़ख़्र कर के कहने लगें कि हमारी ताक़त ने हम को बचाया।3~इसलिए~तू लोगों में सुना सुना कर ऐलान कर दे कि जो कोई तरसान और हिरासान हो, वह लौट कर कोह-ए-जिल'आद से चला जाए'। चुनाचें उन लोगों में से बाइस हज़ार तो लौट गए, और दस हज़ार बाक़ी रह गए।4तब खुदावन्द ने जिदा'ऊन से कहा कि लोग अब भी ज़्यादा हैं;~इसलिए~तू उनको चश्मे के पास नीचे ले आ, और वहाँ मैं तेरी ख़ातिर उनको आज़माऊँगा; और ऐसा होगा कि जिसके बारे में में तुझ से कहूँ, 'यह तेरे साथ जाए, वही तेरे साथ जाए; और जिसके हक़ में मैं कहूँ कि यह तेरे साथ न जाए,' वह न जाए।5~इसलिए~वह उन लोगों को चश्मे के पास नीचे ले गया, और ख़ुदावन्द ने जिदा'ऊन से कहा कि जो जो अपनी ज़बान से पानी चपड़ चपड़ कर के कुत्ते की तरह पिए उसको अलग रख, और वैसे ही हर ऐसे शख़्स को जो घुटने टेक कर पिए।6~इसलिए~जिन्होंने अपना हाथ अपने मुँह से लगा कर चपड़ चपड़ कर के पिया वह गिनती में तीन सौ शख़्स थे, और बाक़ी सब लोगों ने घुटने टेक कर पानी पिया।7तब ख़ुदावन्द ने जिदा'ऊन से कहा कि मैं इन तीन सौ आदमियों के वसीले से जिन्होंने चपड़ चपड़ कर के पिया तुम को बचाऊँगा, और मिदियानियों को तेरे हाथ में कर दूँगा; और बाक़ी सब लोग अपनी अपनी जगह को लौट जाएँ।8तब उन लोगों ने अपना-अपना खाना और नरसिंगा अपने अपने हाथ में लिया; और उसने सब इस्राइली आदमियों को उनके डेरों की तरफ़ रवाना कर दिया पर उन तीन सौ आदमियों रख लिया; और मिदियानियों की लश्कर गाह उसके नीचे वादी में थी।9और उसी रात ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "उठ, और नीचे लश्कर गाह में उतर जा: क्यूँकि मैंने उसे तेरे क़ब्ज़ा में कर दिया है।10लेकिन अगर तू नीचे जाते डरता है, तो तू अपने नौकर फ़ूराह के साथ लश्कर गाह में उतर जा,11और तू सुन लेगा कि वह क्या कह रहे हैं; इसके बा'द तुझ को हिम्मत होगी कि तू उस लश्कर गाह में उतर जाए। चुनाँचे वह अपने नौकर फ़ूराह को साथ लेकर उन सिपाहियों के पास जो उस लश्कर गाह के किनारे थे गया।12और मिदियानी और 'अमालीकी और मशरिक़ के लोग कसरत से वादी के बीच टिड्डियों की तरह फैले पड़े थे; और उनके ऊँट कसरत की वजह से समुन्दर के किनारे की रेत की तरह बेशुमार थे।13और जब जिदा'ऊन पहुँचा तो देखो, वहाँ एक शख़्स अपना ख़्वाब अपने साथी से बयान करता हुआ कह रहा था, "देख, मैंने एक ख़्वाब देखा है कि जौ की एक रोटी मिदियानी लश्कर गाह में गिरी और लुढ़कती हुई डेरे के पास पहुँची, और उससे ऐसी टकराई कि वह गिर गया और उसको ऐसा उलट दिया कि वह डेरा फ़र्श हो गया।"14तब उसके साथी ने जवाब दिया कि यह यूआस के बेटे जिदा'ऊन इस्राइली आदमी की तलवार के 'अलावा और कुछ नहीं; ख़ुदा ने मिदियान की और सारे लश्कर को उसके क़ब्ज़े में कर दिया है।15जब जिदा'ऊन ने ख़्वाब का मज़मून और उसकी ता'बीर सुनी तो सिज्दा किया, और इस्राइली लश्कर में लौट कर कहने लगा, "उठो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मिदियानी लश्कर को तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया है।"16और उसने उन तीन सौ आदमियों के तीन ग़ोल किए, और उन सभों के हाथ में एक एक नरसिंगा, और उसके साथ एक एक खाली घड़ा दिया हर घड़े के अन्दर एक मशाल थी।17और उसने उनसे कहा कि मुझे देखते रहना और वैसा ही करना; और देखो, जब मैं लश्कर गाह के किनारे जा पहुँचूँ, तो जो कुछ मैं करूँ तुम भी वैसा ही करना।18जब मैं और वह सब जो मेरे साथ हैं। नरसिंगा फूंकें, तो तुम भी लश्कर गाह की हर तरफ़ नरसिंगे फूँकना और ललकारना, ~यहोवा की और जिदा'ऊन की तलवार।"19~इसलिए बीच के पहर के शुरू' में जब नए पहरे वाले बदले गए, तो जिदा'ऊन और वह सौ आदमी जो उसके साथ थे लश्कर गाह के किनारे आए; और उन्होंने नरसिंगे फूँके और उन घड़ों को जो उनके हाथ में थे तोड़ा।20और उन तीनों ग़ोलों ने नरसिंगे फूँके और घड़े तोड़े और मशालों को अपने बाएँ हाथ में और नरसिंगों को फूँकने के लिए अपने दहने हाथ में ले लिया और चिल्ला उठे कि यहोवा की और जिदा'ऊन की तलवार।21और यह सब के सब लश्कर गाह के चारों तरफ़ अपनी अपनी जगह खड़े हो गए, तब सारा लश्कर दौड़ने लगा और उन्होंने चिल्ला चिल्लाकर उनको भगाया।22और उन्होंने तीन सौ नरसिंगों को फूँका, और ख़ुदावन्द ने हर शख़्स की तलवार उसके साथी और सब लश्कर पर चलवाई और सारा लश्कर सरीरात की तरफ़ बैत-सित्ता तक और तब्बात के क़रीब अबील महूला की सरहद तक भागा।23तब इस्राइली आदमी नफ़्ताली और आशर और मनस्सी की सरहदों से जमा' होकर निकले और मिदियानियों का पीछा किया।24और जिदा'ऊन ने इफ़्राईम के तमाम पहाड़ी मुल्क में क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि मिदियानियों के मुक़ाबिले को उतर आओ, और उनसे पहले पहले दरिया-ए-यरदन के घाटों पर बैतबरा तक क़ाबिज़ हो जाओ। तब सब इफ़ाईमी जमा' होकर दरिया-ए-यरदन के घाटों पर बैतबरा तक क़ाबिज़ हो गए।25और उन्होंने मिदियान के दो सरदारों 'ओरेब और ज़ईब को पकड़ लिया, और 'ओरेब को 'ओरेब की चट्टान पर और ज़ईब को ज़ईब के कोल्हू के पास क़त्ल किया; और मिदियानियों को दौड़ाया और 'ओरेब और ज़ईब के सिर यरदन पार जिदा'ऊन के पास ले आए।
1और इफ़्राईम के बाशिन्दों ने उससे कहा कि तूने हम से यह सलूक क्यूँ किया, कि जब तू मिदियानियों से लड़ने को चला तो हम को न बुलवाया?~इसलिए~उन्होंने उसके साथ बड़ा झगड़ा किया।2उसने उनसे कहा, "मैंने तुम्हारी तरह भला किया ही क्या है? क्या इफ़्राईम के छोड़े हुए अंगूर भी अबी'अज़र की फ़सल से बेहतर नहीं हैं?3ख़ुदा ने मिदियान के सरदार 'ओरेब और ज़ईब को तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया; इसलिए तुम्हारी तरह मैं कर ही क्या सका हूँ?" जब उसने यह कहा, तो उनका गुस्सा उसकी तरफ़ से धीमा हो गया।4तब जिदा'ऊन और उसके साथ के तीन सौ आदमी जो बावजूद थके माँदे होने के फिर भी पीछा करते ही रहे थे, यरदन पर आकर पार उतरे।5तब उसने सुक्कात के बाशिंदों से कहा कि इन लोगों को जो मेरे पैरौ हैं, रोटी के गिर्दे दो क्यूँकि यह थक गए हैं; और मैं मिदियान के दोनों बादशाहों ज़िबह और ज़िलमना' का पीछा कर रहा हूँ।6सुक्कात के सरदारों ने कहा, "क्या ज़िबह और ज़िलमना' के हाथ अब तेरे क़ब्ज़े में आ गए हैं, जो हम तेरे लश्कर को रोटियाँ दें?"7जिदा'ऊन ने कहा, "जब ख़ुदावन्द ज़िबह और ज़िलमना' को मेरे क़ब्ज़े में कर देगा, तो मैं तुम्हारे गोश्त को बबूल और हमेशा गुलाब के काँटों से नुचवाऊँगा।"8फिर वहाँ से वह फ़नूएल को गया, और वहाँ के लोगों से भी ऐसी ही बात कही; और फ़नूएल के लोगों ने भी उसे वैसा ही जवाब दिया जैसा सुक्कातियों ने दिया था।9~इसलिए~उसने फ़नूएल के बाशिंदों से भी कहा कि जब मैं सलामत लौटूँगा, तो इस बुर्ज को ढा दूँगा।10और ज़िबह और ज़िलमना' अपने क़रीबन पंद्रह हज़ार आदमियों के लश्कर के साथ क़रक़ूर में थे, क्यूँकि सिर्फ़ इतने ही मशरिक़ के लोगों के लश्कर में से बच रहे थे; इसलिए कि एक लाख बीस हज़ार शमशीर ज़न आदमी क़त्ल हो गए थे।11~तब जिदा'ऊन उन लोगों के रास्ते से जो नुबह और युगबिहा के मशरिक़ की तरफ़ डेरों में रहते थे गया, और उस लश्कर को मारा क्यूँकि वह लश्कर बेफ़िक्र पड़ा था।12और ज़िबह और ज़िलमना' भागे, और उसने उनका पीछा करके उन दोनों मिदियानी बादशाहों, ज़िबह और ज़िलमना' को पकड़ लिया और सारे लश्कर को भगा दिया।13और यूआस का बेटा जिदा'ऊन हर्स की चढ़ाई के पास से जंग से लौटा।14और उसने सुक्कातियों में से एक जवान को पकड़ कर उससे दरियाफ़त किया;~इसलिए उसने उसे सुक्कात के सरदारों और बुज़ुर्गों का हाल बता दिया जो शुमार में सत्तर थे।15तब वह सुक्कातियों के पास आकर कहने लगा कि ज़िबह और ज़िलमना' को देख लो, जिनके बारे में तुम ने तन्ज़न मुझ से कहा था, 'क्या ज़िबह और ज़िलमना' के हाथ तेरे क़ब्ज़े में आ गए हैं, कि हम तेरे आदमियों को जो थक गए हैं रोटियाँ दें?'16तब उसने शहर के बुज़ुर्गों को पकड़ा और बबूल और सदा गुलाब के कॉटें लेकर उनसे सुक्कातियों की तादीब की।17और उसने फ़नूएल का बुर्ज ढा कर उस शहर के लोगों को क़त्ल किया।18फिर उसने ज़िबह और ज़िलमना' से कहा कि वह लोग जिनको तुम ने तबूर में क़त्ल किया कैसे थे? उन्होंने जवाब दिया, "जैसा तू है वैसे ही वह थे; उनमें से हर एक शहज़ादों की तरह था।"19तब उसने कहा कि वह मेरे भाई, मेरी माँ के बेटे थे,~इसलिए~ख़ुदावन्द की हयात की क़सम, अगर तुम उनको जीता छोड़ते तो मैं भी तुम को न मारता।20फिर उसने अपने बड़े बेटे यतर को हुक्म किया कि उठ, उनको क़त्ल कर। लेकिन उस लड़के ने अपनी तलवार न खींची, क्यूँकि उसे डर लगा, इसलिए कि वह अभी लड़का ही था।21तब ज़िबह और ज़िलमना' ने कहा, "तू आप उठ कर हम पर वार कर, क्यूँकि जैसा आदमी होता है वैसी ही उसकी ताक़त होती है।" इसलिए जिदा'ऊन ने उठ कर ज़िबह और ज़िलमना' को क़त्ल किया, और उनके ऊँटों के गले के चन्दन हार ले लिए।22तब बनीं-इस्राईल ने जिदा'ऊन से कहा कि तू हम पर हुकूमत कर, तू और तेरा बेटा और तेरा पोता भी; क्यूँकि तूने हम को मिदियानियों के हाथ से छुड़ाया।23तब जिदा'ऊन ने उनसे कहा कि न मैं तुम पर हुकूमत करूँ और न मेरा बेटा, बल्कि ख़ुदावन्द ही तुम पर हुकूमत करेगा।24और जिदा'ऊन ने उनसे कहा कि मैं तुम से यह 'अर्ज़ करता हूँ, कि तुम में से हर शख़्स अपनी लूट की बालियाँ मुझे दे दे। (यह लोग इस्माईली थे, इसलिए इनके पास सोने की बालियाँ थीं।)25उन्होंने जवाब दिया कि हम इनको बड़ी ख़ुशी से देंगे। फिर उन्होंने एक चादर बिछाई और हर एक ने अपनी लूट की बालियाँ उस पर डाल दीं।26~इसलिए~वह सोने की बालियाँ जो उसने माँगी थीं, वज़न में एक हज़ार सात सौ मिस्काल थीं; 'अलावह उन चन्दन हारों और झुमकों और मिदियानी बादशाहों की इर्ग़वानी पोशाक के जो वह पहने थे, और उन ज़न्जीरों के जो उनके ऊँटों के गले में पड़ी थीं।27और जिदा'ऊन ने उनसे एक अफ़ूद बनवाया और उसे अपने शहर उफ़रा में रख्खा; और वहाँ सब इस्राइली उसकी पैरवी में ज़िनाकारी करने लगे, और वह जिदा'ऊन और उसके घराने के लिए फंदा ठहरा।28यूँ मिदियानी बनी-इस्राईल के आगे मग़लूब हुए और उन्होंने फिर कभी सिर न उठाया। और जिदा'ऊन के दिनों में चालीस बरस तक उस मुल्क में अम्न रहा।29और यूआस का बेटा यरुब्बा'ल जाकर अपने घर में रहने लगा।30और जिदा'ऊन के सत्तर बेटे थे जो उस ही के सुल्ब से पैदा हुए थे, क्यूँकि उसकी बहुत सी बीवियाँ थीं।31और उसकी एक हरम के भी जो सिक्म में थी उस से एक बेटा हुआ, और उसने उसका नाम अबीमलिक रख्खा।32और यूआस के बेटे जिदा'ऊन ने ख़ूब 'उम्र रसीदा होकर वफ़ात पाई, और अबी'अज़रियों के उफ़रा में अपने बाप यूआस की क़ब्र में दफ़्न हुआ।33अौर जिदा'ऊन के मरते ही बनीइस्राईल फिर कर बा'लीम की पैरवी में ज़िनाकारी करने लगे, और बा'ल बरीत को अपना मा'बूद बना लिया।34और बनीइस्राईल ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को, जिसने उनको हर तरफ़ उनके दुश्मनों के हाथ से रिहाई दी थी याद न रख्खा;35और न वह यरुब्बा'ल या'नी जिदा'ऊन के ख़ान्दान के साथ, उन सब नेकियों के बदले में जो उसने बनीइस्राईल से की थीं महेरबानी से पेश आए।
1तब यरुब्बा'ल का बेटा अबीमलिक सिक्म में अपने मामुओं के पास गया, और उनसे और अपने सब ननिहाल के लोगों से कहा कि;2~सिक्म के सब आदमियों से पूछ देखो कि तुम्हारे लिए क्या बेहतर है, यह कि यरुब्बा'ल के सब बेटे जो सत्तर आदमी हैं वह तुम पर सल्तनत करें, या यह कि एक ही की तुम पर हुकूमत हो? और यह भी याद रखो, कि मैं तुम्हारी ही हड्डी और तुम्हारा ही गोश्त हूँ।3और उसके मामुओं ने उसके बारे में सिक्म के सब लोगों के कानों में यह बातें डालीं; और उनके दिल अबी मलिक की पैरवी पर माइल हुए, क्यूँकि वह कहने लगे कि यह हमारा भाई है।4और उन्होंने बा'ल बरीत के घर में से चाँदी के सत्तर सिक्के उसको दिए, जिनके वसीले से अबी मलिक ने शुहदे और बदमाश लोगों को अपने यहाँ लगा लिया, जो उसकी पैरवी करने लगे।5और वह उफ़रा में अपने बाप के घर गया और उसने अपने भाइयों यरुब्बा'ल के बेटों को जो सत्तर आदमी थे, एक ही पत्थर पर क़त्ल किया; लेकिन यरुब्बा'ल का छोटा बेटा यूताम बचा रहा, क्यूँकि वह छिप गया था।6तब सिक्म के सब आदमी और सब अहल-ए-मिल्लो जमा' हुए, और जाकर उस सुतून के बलूत के पास जो सिक्म में था अबीमलिक को बादशाह बनाया।7जब यूताम को इसकी ख़बर हुई तो वह जाकर कोह-ए-गरिज़ीम की चोटी पर खड़ा हुआ और अपनी आवाज़ बुलन्द की, और पुकार पुकार कर उनसे कहने लगा, "ऐ सिक्म के लोगों, मेरी सुनो। ताकि ख़ुदा तुम्हारी सुने।8एक ज़माने में दरख़्त चले, ताकि किसी को मसह करके अपना बादशाह बनाएँ;~इसलिए~उन्होंने जै़तून के दरख़्त से कहा, 'तू हम पर सल्तनत कर।'9तब जै़तून के दरख़्त ने उनसे कहा, 'क्या मैं अपनी चिकनाहट की, जिसके ज़रिए' मेरे वसीले से लोग ख़ुदा और इन्सान की बड़ाई करते हैं, छोड़ कर दरख़्तों पर हुक्मरानी करने जाऊँ?'10तब दरख़्तों ने अंजीर के दरख़्त से कहा, 'तू आ और हम पर सल्तनत कर।'11लेकिन अंजीर के दरख़्त ने उनसे कहा, 'क्या मैं अपनी मिठास और अच्छे अच्छे फलों को छोड़ कर दरख़्तों पर हुक्मरानी करने जाऊँ?"12तब दरख़्तों ने अंगूर की बेल से कहा कि तू आ और हम पर सल्तनत कर।13अंगूर की बेल ने उनसे कहा, "क्या मैं अपनी मय को जो ख़ुदा और इन्सान दोनों को ख़ुश करती है, छोड़ कर दरख़्तों पर हुक्मरानी करने जाऊँ?"14तब उन सब दरख़्तों ने ऊँट कटारे से कहा, "चल, तू ही हम पर सल्तनत कर।"15ऊँटकटारे ने दरख़्तों से कहा, "अगर तुम सचमुच मुझे अपना बादशाह मसह करके बनाओ, तो आओ, मेरे साये में पनाह लो; और अगर नहीं, तो ऊँटकटारे से आग निकलकर लुबनान के देवदारों को खा जाए।"16~इसलिए~बात यह है कि तुम ने जो अबी मलिक को बादशाह बनाया है, इसमें अगर तुम ने सच्चाई और ईमानदारी बरती है, और यरुब्बा'ल और उसके घराने से अच्छा सुलूक किया और उसके साथ उसके एहसान के हक़ के मुताबिक़ सुलूक किया है।17(क्यूँकि मेरा बाप तुम्हारी ख़ातिर लड़ा, और उसने अपनी जान ख़तरे में डाली, और तुम को मिदियान के क़ब्ज़े से छुड़ाया।18और तुम ने आज मेरे बाप के घराने से बग़ावत की, और उसके सत्तर बेटे एक ही पत्थर पर क़त्ल किए, और उसकी लौंडी के बेटे अबीमलिक को सिक्म के लोगों का बादशाह बनाया इसलिए कि वह तुम्हारा भाई है।)19~इसलिए~अगर तुम ने यरुब्बा'ल और उसके घराने के साथ आज के दिन सच्चाई और ईमानदारी बरती है, तो तुम अबी मलिक से ख़ुश रहो और वह तुम से ख़ुश रहे|20और अगर नहीं, तो अबि मलिक से आग निकलकर सिक्म के लोगों को और अहल-ए-मिल्लो खा जाए; और सिक्म के लोगों और अहल-ए-मिल्लो के बीच से आग निकलकर अबी मलिक को खा जाए।21फिर यूताम दौड़ता हुआ भागा और बैर को चलता बना, और अपने भाई अबी मलिक के ख़ौफ़ से वहीं रहने लगा।22और अबीमलिक इस्राईलियों पर तीन बरस हाकिम रहा।23तब ख़ुदा ने अबीमलिक और सिक्म के लोगों के बीच एक बुरी रूह भेजी, और सिक्म के लोग अबी मलिक से दग़ा बाज़ी करने लगे;24~ताकि जो ज़ुल्म उन्होंने यरुब्बा'ल के सत्तर बेटों पर किया था वह उन ही पर आए, और उनका ख़ून उनके भाई अबीमलिक के सिर पर जिस ने उनको क़त्ल किया, और सिक्म के लोगों के सिर पर हो जिन्होंने उसके भाइयों के क़त्ल में उसकी मदद की थी।25तब सिक्म के लोगों ने पहाड़ों की चोटियों पर उसकी घात में लोग बिठाए, और वह उनको जो उस रास्ते के पास से गुज़रते लूट लेते थे; और अबीमलिक को इसकी ख़बर हुई।26तब जा'ल बिन 'अबद अपने भाइयों के साथ सिक्म में आया; और सिक्म के लोगों ने उस पर भरोसा किया।27और वह खेतों में गए और अपने अपने ताकिस्तानों का फल तोड़ा और अंगूरों का रस निकाला और ख़ूब ख़ुशी मनाई, और अपने मा'बूद के हैकल में जाकर खाया-पिया और अबीमलिक पर ला'नतें बरसाई।28और जा'ल बिन 'अबद कहने लगा, "अबीमलिक कौन है, और सिक्म कौन है कि हम उसकी फ़रमाँबरदारी करें? क्या वह यरुब्बा'ल का बेटा नहीं, और क्या ज़बूल उसका मन्सबदार नहीं? तुम ही सिक्म के बाप हमूर के लोगों की~फ़रमाँबरदारी ~करो, हम उसकी~फ़रमाँबरदारी क्यूँ करें?29काश कि यह लोग मेरे क़ब्ज़े में होते, तो मैं अबीमलिक को किनारे कर देता।" और उसने अबीमलिक से कहा, "तू अपने लश्कर को बढ़ा और निकल आ।"30जब उस शहर के हाकिम ज़बूल ने ज़ाल बिन 'अबद की यह बातें सुनीं तो उसका क़हर भड़का।31और उसने चालाकी से अबीमलिक के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा, "देख, जा'ल बिन 'अबद और उसके भाई सिक्म में आए हैं, और शहर को तुझ से बग़ावत करने की तहरीक कर रहे हैं।32~इसलिए तू अपने साथ के लोगों को लेकर रात को उठ, और मैदान में घात लगा कर बैठ जा।33और सुबह को सूरज निकलते ही सवेरे उठ कर शहर पर हमला कर, और जब वह और उसके साथ के लोग तेरा सामना करने को निकलें तो जो कुछ तुझ से बन आए तू उन से कर।"34~इसलिए अबीमलिक और उसके साथ के लोग रात ही को उठ चार ग़ोल हो सिक्म के मुक़ाबिल घात में बैठ गए।35और जा'ल बिन 'अबद बाहर निकल कर उस शहर के फाटक के पास जा खड़ा हुआ; तब अबीमलिक और उसके साथ के आदमी आरामगाह से उठे।36और जब जा'ल ने फ़ौज को देखा तो वह ~ज़बूल से कहने लगा, "देख, पहाड़ों की चोटियों से लोग उतर रहे हैं।" ज़बूल ने उससे कहा कि तुझे पहाड़ों का साया ऐसा दिखाई देता है जैसे आदमी।37जा'ल फिर कहने लगा, "देख, मैदान के बीचों बीच से लोग उतरे आते हैं; और एक ग़ोल म'ओननीम के बलूत के रास्ते आ रहा है।"38तब ज़बूल ने उससे कहा, "अब तेरा वह मुँह कहाँ है जो तू कहा करता था, कि अबी मलिक कौन है कि हम उसकी फ़रमाँबरदारी करें? क्या यह वही लोग नहीं हैं जिनकी तूने हिक़ारत की है? इसलिए अब ज़रा निकल कर उनसे लड़ तो सही।"39तब जा'ल सिक्म के लोगों के सामने बाहर निकला और अबीमलिक से लड़ा।40और अबीमलिक ने उसको दौड़ाया और वह उसके सामने से भागा, और शहर के फाटक तक बहुत से ~ज़ख़्मी हो हो कर गिरे।41और अबीमलिक ने अरोमा में क़याम किया; और ज़बूल ने जा'ल और उसके भाइयों को निकाल दिया, ताकि वह सिक्म में रहने न पाएँ।42और दूसरे दिन सुबह को ऐसा हुआ कि लोग निकल कर मैदान को जाने लगे, और अबी मलिक को ख़बर हुई।43~इसलिए~अबी मलिक ने फ़ौज लेकर उसके तीन ग़ोल किए और मैदान में घात लगाई; और जब देखा कि लोग शहर से निकले आते हैं, तो वह उनका सामना करने को उठा और उनको मार लिया।44और अबीमलिक उस~ग़ोल~समेत जो उसके साथ था आगे लपका, और शहर के फाटक के पास आकर खड़ा हो गया; और वह दो~ग़ोल~उन सभों पर जो मैदान में थे झपटे और उनको काट डाला।45और अबीमलिक उस दिन शाम तक शहर से लड़ता रहा, और शहर को घेर कर के उन लोगों को जो वहाँ थे क़त्ल किया, और शहर को बर्बाद कर के उसमें नमक छिड़कवा दिया।46और जब सिक्म के बुर्ज के सब लोगों ने यह सुना, तो वह अलबरीत के हैकल के क़िले' में जा घुसे।47और अबी मलिक को यह ख़बर हुई कि सिक्म के बुर्ज के सब लोग इकट्ठे हैं।48तब अबीमलिक अपनी फ़ौज समेत ज़लमोन के पहाड़ पर चढ़ा; और अबी मलिक ने कुल्हाड़ा अपने हाथ में ले दरख़्तों में से एक डाली काटी और उसे उठा कर अपने कन्धे पर रख लिया, और अपने साथ के लोगों से कहा, "जो कुछ तुम ने मुझे करते देखा है, तुम भी जल्द वैसा ही करो।"49तब उन सब लोगों में से हर एक ने उसी तरह एक डाली काट ली, और वह अबीमलिक के पीछे हो लिए और उनको क़िले' पर डालकर क़िले' में आग लगा दी; चुनाँचे सिक्म के बुर्ज के सब आदमी भी जो शख़्स और 'औरत मिलाकर क़रीबन एक हज़ार थे मर गए।50फिर अबीमलिक तैबिज़ को जा तैबिज़ के मुक़ाबिल ख़ेमाज़न हुआ और उसे ले लिया।51लेकिन वहाँ शहर के अन्दर एक बड़ा मज़बूत बुर्ज था,~इसलिए~सब शख़्स और 'औरतें और शहर के सब बाशिन्दे भाग कर उस में जा घुसे और दरवाज़ा बन्द कर लिया, और बुर्ज की छत पर चढ़ गए।52और अबीमलिक बुर्ज के पास आकर उसके मुक़ाबिल लड़ता रहा, और बुर्ज के दरवाज़े के नज़दीक गया ताकि उसे जला दे।53तब किसी 'औरत ने चक्की का ऊपर का पाट अबी मलिक के सिर पर फेंका, और उसकी खोपड़ी को तोड़ डाला।54तब अबीमलिक ने फ़ौरन एक जवान को जो उसका सिलाहबरदार था बुला कर उससे कहा कि अपनी तलवार खींच कर मुझे क़त्ल कर डाल, ताकि मेरे हक़ में लोग यह न कहने पाएँ कि एक 'औरत ने उसे मार डाला।~इसलिए~उस जवान ने उसे छेद दिया और वह मर गया।55जब इस्राईलियों ने देखा के अबीमलिक मर गया, तो हर शख़्स अपनी जगह चला गया।56यूँ ख़ुदा ने अबी मलिक की उस बुराई का बदला जो उसने अपने सत्तर भाइयों को मार कर अपने बाप से की थी उसको दिया।57और सिक्म के लोगों की सारी बुराई ख़ुदा ने उन ही के सिर पर डाली, और यरुब्बा'ल के बेटे यूताम की ला'नत उनको लगी।
1और अबीमलिक के बा'द तोला' बिन फुव्वा बिन दोदो जो इश्कार के क़बीले का था, इस्राईलियों की हिमायत करने को उठा; वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में समीर में रहता था।2वह तेईस बरस इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा; और मर गया और समीर में दफ़्न हुआ।3इसके बा'द जिल'आदी याईर उठा, और वह बाइस बरस इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।4उसके तीस बेटे थे जो तीस जवान गधों पर सवार हुआ करते थे; और उनके तीस शहर थे जो आज तक हव्वोत याईर कहलाते हैं, और जिल'आद के मुल्क में हैं।5और याईर मर गया और क़ामोन में दफ़्न हुआ।6और बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द के हुज़ूर फिर बुराई करने, और बा'लीम और 'इस्तारात और अराम के मा'बूदों और सैदा के मा'बूदों और मोआब के मा'बूदों और बनी 'अम्मोन के मा'बूदों और फ़िलिस्तियों के मा'बूदों की 'इबादत करने लगे, और ख़ुदावन्द को छोड़ दिया और उसकी 'इबादत न की।7तब ख़ुदावन्द का क़हर इस्राईल पर भड़का, और उसने उनको फ़िलिस्तियों के हाथ और बनी 'अम्मोन के हाथ बेच डाला।8और उन्होंने उस साल बनी इस्राईल को तंग किया और सताया, बल्कि अठारह बरस तक वह सब बनी-इस्राईल पर ज़ुल्म करते रहे, जो यरदन पार अमोरियों के मुल्क में जो जिल'आद में है रहते थे।9और बनी 'अम्मून~यरदन पार होकर यहूदाह और बिनयमीन और इफ़्राईम के ख़ान्दान से लड़ने को भी आ जाते थे, इसलिए इस्राईली बहुत तंग आ गए।10और बनीइस्राईल ख़ुदावन्द से फ़रियाद करके कहने लगे, "हमने तेरा गुनाह किया कि अपने ख़ुदा को छोड़ा और बा'लीम की 'इबादत की।"11और ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल से कहा, "क्या मैंने तुम को मिस्रियों और अमोरियों और बनी 'अम्मोन और फ़िलिस्तियों के हाथ से रिहाई नहीं दी?12और सैदानियों और 'अमालीक़ियों और मा'ओनियों ने भी तुम को सताया, और तुम ने मुझ से फ़रियाद की और मैंने तुम को उनके हाथ से छुड़ाया।13~तो भी तुम ने मुझे छोड़ कर और मा'बूदों की 'इबादत की, इसलिए~अब मैं तुम को रिहाई नहीं दूँगा।14तुम जाकर उन मा'बूदों से, जिनको तुम ने इख़्तियार किया है फ़रियाद करो, वही तुम्हारी मुसीबत के वक़्त तुम को छुड़ाएँ।"15बनी इस्राईल ने ख़ुदावन्द से कहा, "हम ने तो गुनाह किया,~इसलिए~जो कुछ तेरी नज़र में अच्छा हो हम से कर; लेकिन आज हम को छुड़ा ही ले।"16और वह अजनबी मा'बूदों को अपने बीच से दूर करके ख़ुदावन्द की 'इबादत करने लगे; तब उसका जी इस्राईल की परेशानी से ग़मगीन हुआ।17फिर बनी 'अम्मून इकट्ठे होकर जिल'आद में ख़ेमाज़न हुए; और बनी-इस्राईल भी फ़राहम होकर मिस्फ़ाह में ख़ेमाज़न हुए।18तब जिल'आद के लोग और सरदार एक दूसरे से कहने लगे, "वह~कौन शख़्स है जो बनी 'अम्मून से लड़ना शुरू' करेगा? वही जिल'आद के सब बाशिदों का हाकिम होगा।"
1और जिल'आदी इफ़्ताह बड़ा ज़बरदस्त सूर्मा और कस्बी का बेटा था; और जिल'आद से इफ़्ताह पैदा हुआ था।2और जिल'आद की बीवी के भी उससे बेटे हुए, और जब उसकी बीवी के बेटे बड़े हुए, तो उन्होंने इफ़्ताह को यह कहकर निकाल दिया कि हमारे बाप के घर में तुझे कोई मीरास नहीं मिलेगी, क्यूँकि तू ग़ैर 'औरत का बेटा है।3तब इफ़्ताह अपने भाइयों के पास से भाग कर तोब के मुल्क में रहने लगा और इफ़्ताह के पास शुहदे जमा' हो गए, और उसके साथ फिरने लगे।4और कुछ 'अरसे के बा'द बनी 'अम्मून ने बनी-इस्राईल से जंग छेड़ दी।5और जब बनी 'अम्मून~बनी-इस्राईल से लड़ने लगे, तो जिल'आदी बुज़ुर्ग चले कि इफ़्ताह को तोब के मुल्क से ले आएँ।6~इसलिए~वह इफ़्ताह से कहने लगे कि हम बनी 'अम्मून~से लड़ें।7और इफ़्ताह ने जिल'आदी बुज़ुगों से कहा, "क्या तुम ने मुझ से 'अदावत करके मुझे मेरे बाप के घर से निकाल नहीं दिया?~इसलिए~अब जो तुम मुसीबत में पड़ गए हो तो मेरे पास क्यूँ आए?"8जिल'आदी बुज़ुर्गों ने इफ़्ताह से कहा कि अब हम ने फिर इसलिए तेरी तरफ़ रुख़ किया है, कि तू हमारे साथ चलकर बनी 'अम्मून~से जंग करे; और तू ही जिल'आद के सब बाशिंदों पर हमारा हाकिम होगा।9और इफ़्ताह ने जिल'आदी~बुज़ुर्गों~से कहा, "अगर तुम मुझे बनी 'अम्मून~से लड़ने को मेरे घर ले चलो, और ख़ुदावन्द~उनको मेरे हवाले कर दे, तो क्या मैं तुम्हारा हाकिम हूँगा?”10जिल'आदी~बुज़ुर्गों~ने इफ़्ताह को जवाब दिया कि ख़ुदावन्द हमारे बीच गवाह हो, यक़ीनन जैसा तूने कहा, हम वैसा ही~करेंगे।11तब इफ़्ताह जिल'आदी~बुज़ुर्गों~के साथ रवाना हुआ, और लोगों ने उसे अपना हाकिम और सरदार बनाया; और इफ़्ताह~ने मिस्फ़ाह में ख़ुदावन्द के आगे अपनी सब बातें कह सुनाई।12और इफ़्ताह ने बनी 'अम्मून~के बादशाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि तुझे मुझ से क्या काम, जो तू मेरे मुल्क में लड़ने को मेरी तरफ़ आया है?13बनी 'अम्मून~के बादशाह ने इफ़्ताह के क़ासिदों को जवाब दिया, "इसलिए कि जब इस्राइली मिस्र से निकल कर आए, तो अरनून से यब्बूक़ और यरदन तक जो मेरा मुल्क था उसे उन्होंने छीन लिया;~इसलिए~अब तू उन 'इलाकों को सुलह-ओ-सलामती से मुझे लौटा दे।"14तब इफ़्ताह ने फिर क़ासिदों को बनी 'अम्मून~के बादशाह के पास रवाना किया,15और यह कहला भेजा कि इफ़्ताह यूँ कहता है कि; इस्राईलियों ने न तो मोआब का मुल्क और न बनी 'अम्मोन का मुल्क छीना;16बल्कि इस्राइली जब मिस्र से निकले और वीराने छानते हुए बहर-ए-क़ुलज़ुम तक आए और क़ादिस में पहुँचे,17तो इस्राईलियों ने अदोम के बादशाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि हम को ज़रा अपने मुल्क से होकर गुज़र जाने दे, लेकिन अदोम का बादशाह न माना। इसी तरह उन्होंने मोआब के बादशाह को कहला भेजा, और वह भी राज़ी न हुआ। चुनाँचे इस्राइली क़ादिस में रहे।18तब वह वीराने में होकर चले, और अदोम के मुल्क और मोआब के मुल्क के बाहर बाहर चक्कर काट कर मोआब के मुल्क के मशरिक़ की तरफ़ आए, और अरनून के उस पार डेरे डाले, पर मोआब की सरहद में दाख़िल न हुए, इसलिए कि मोआब की सरहद अरनून था।19फिर इस्राईलियों ने अमोरियों के बादशाह सीहोन के पास जो हस्बोन का बादशाह था, क़ासिद रवाना किए; और इस्राईलियों ने उसे कहला भेजा कि 'हम को ज़रा इजाज़त दे दे, कि तेरे मुल्क में से होकर अपनी जगह को चले जाएँ।20लेकिन सीहोन ने इस्राईलियों का इतना ऐ'तबार न किया कि उनको अपनी सरहद से गुज़रने दे, बल्कि सीहोन अपने सब लोगों को जमा' करके यहस में ख़ेमाज़न हुआ और इस्राईलियों से लड़ा।21और ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने सीहोन और उसके सारे लश्कर को इस्राईलियों के क़ब्ज़े में कर दिया, और उन्होंने उनको मार लिया; इसलिए इस्राईलियों ने अमोरियों के जो वहाँ के बाशिंदे थे, सारे मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया।22और वह अरनून से यब्बूक तक, और वीरान से यरदन तक अमोरियों की सब सरहदों पर क़ाबिज़ हो गए।23~तब ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने अमोरियों को उनके मुल्क से अपनी क़ौम इस्राईल के सामने से ख़ारिज किया;~इसलिए क्या तू अब उस पर क़ब्ज़ा करने पाएगा?24क्या जो कुछ तेरा मा'बूद कमोस तुझे क़ब्ज़ा करने को दे, तू उस पर क़ब्ज़ा न करेगा? इसलिए जिस जिस को ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमारे सामने से ख़ारिज कर दिया है, हम भी उनके मुल्क पर क़ब्ज़ा करेंगे।25और क्या तू सफ़ोर के बेटे बलक़ से जो मोआब का बादशाह था, कुछ बेहतर है? क्या उसने इस्राईलियों से कभी झगड़ा किया या कभी उन से लड़ा?26जब इस्राइली हस्बोन और उसके क़स्बों, और 'अरो'ईर और उसके क़स्बों और उन सब शहरों में जो अरनून के किनारे-किनारे हैं तीन सौ बरस से बसे हैं, तो इस 'अरसे में तुम ने उनको क्यूँ न छुड़ा लिया?27ग़रज़ मैंने तेरी ख़ता नहीं की, बल्कि तेरा मुझ से लड़ना तेरी तरफ़ से मुझ पर ज़ुल्म है; इसलिए ख़ुदावन्द ही जो मुन्सिफ़ है, बनी-इस्राईल और बनी 'अम्मोन के बीच आज इन्साफ़ करे।28लेकिन बनी 'अम्मोन के बादशाह ने इफ़्ताह की यह बातें, जो उसने उसे कहला भेजी थीं न मानीं।29तब ख़ुदावन्द की रूह इफ़्ताह पर नाज़िल हुई, और वह जिल'आद और मनस्सी से गुज़र कर जिल'आद के मिस्फ़ाह में आया; और जिल'आद के मिस्फ़ाह से बनी 'अमोन की तरफ़ चला।30और इफ़्ताह ने ख़ुदावन्द की मिन्नत मानी और कहा कि अगर तू यक़ीनन बनी 'अम्मोन को मेरे हाथ में कर दे;31तो जब मैं बनी 'अम्मोन की तरफ़ से सलामत लौटूँगा, उस वक़्त जो कोई पहले मेरे घर के दरवाज़े से निकलकर मेरे इस्तक़बाल को आए वह ख़ुदावन्द का होगा; और मैं उसको सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर पेश करूँगा।32तब इफ़्ताह बनी 'अम्मून~की तरफ़ उनसे लड़ने को गया, और ख़ुदावन्द ने उनको उसके हाथ में कर दिया।33और उसने 'अरो'ईर से मिनियत तक जो बीस शहर हैं, और अबील करामीम तक बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ उनको मारा; इस तरह बनी 'अम्मून बनी-इस्राईल से मग़लूब हुए।34और इफ़्ताह मिस्फ़ाह को अपने घर आया, और उसकी बेटी तबले बजाती और नाचती हुई उसके इस्तक़बाल को निकलकर आई; और वही एक उसकी औलाद थी, उसके सिवा उसके कोई बेटी बेटा न था।35जब उसने उसको देखा, तो अपने कपड़े फाड़ कर कहा, "हाय, मेरी बेटी! तूने मुझे पस्त कर दिया, और जो मुझे दुख देते हैं उनमें से एक तू है; क्यूँकि मैंने ख़ुदावन्द को ज़बान दी है, और मैं पलट नहीं सकता।"36उसने उससे कहा, "ऐ मेरे बाप, तूने ख़ुदावन्द को ज़बान दी है,इसलिए~जो कुछ तेरे मुँह से निकला वही मेरे साथ कर, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने तेरे दुश्मनों बनी 'अम्मून से तेरा इन्तक़ाम लिया।"37फिर उसने अपने बाप से कहा, "मेरे लिए इतना कर दिया जाए कि दो महीने की मोहलत मुझ को मिले, ताकि मैं जाकर पहाड़ों पर अपनी हमजोलियों के साथ अपने कुँवारेपन पर मातम करती फिरूं।"38उसने कहा, "जा!" और उसने उसे दो महीने की रुख्त़स दी, और वह अपनी हमजोलियों को लेकर गई, और पहाड़ों पर अपने कुँवारेपन पर मातम करती फिरी।39और दो महीने के बा'द वह अपने बाप के पास लौट आई, और वह उसके साथ वैसा ही पेश आया जैसी मिन्नत उसने मानी थी। इस लड़की ने शख़्स का मुँह न देखा था; इसलिए बनी इस्राईल में यह दस्तूर चला,40~कि साल-ब-साल इस्राइली 'औरतें जाकर बरस में चार दिन तक इफ़्ताह जिल'आदी की बेटी की यादगारी करती थीं
1तब इफ़्राईम के लोग जमा' होकर उत्तर की तरफ़ गए और इफ़्ताह से कहने लगे कि जब तू बनी 'अम्मून से जंग करने को गया तो हम को साथ चलने को क्यूँ न बुलवाया? इसलिए~हम तेरे घर को तुझ समेत जलाएँगे।2इफ़्ताह ने उनको जवाब दिया कि मेरा और मेरे लोगों का बड़ा झगड़ा बनी 'अम्मून के साथ हो रहा था, और जब मैंने तुम को बुलवाया तो तुम ने उनके हाथ से मुझे न बचाया।3और जब मैंने यह देखा कि तुम मुझे नहीं बचाते, तो मैंने अपनी जान हथेली पर रख्खी और बनी 'अम्मून के मुक़ाबिले को चला, और ख़ुदावन्द ने उनको मेरे क़ब्ज़े में कर दिया; फिर तुम आज के दिन मुझ से लड़ने को मेरे पास क्यूँ चले आए?4तब इफ़्ताह सब जिल'आदियों को जमा' करके इफ़्राईमियों से लड़ा, और जिल'आदियों ने इफ़्राईमियों को मार लिया क्यूँकि वह कहते थे कि तुम जिल'आदी इफ़्राईम ही के भगोड़े हो, जो इफ़्राईमियों और मनस्सियों के बीच रहते हो।5और जिल'आदियों ने इफ़्राईमियों का रास्ता रोकने के लिए यरदन के घाटों को अपने क़ब्ज़े में कर लिया, और जो भागा हुआ इफ़्राईमी कहता कि मुझे पार जाने दो तो जिल'आदी उससे कहते क्या कि तू इफ़्राइमी ~है? और अगर वह ~जवाब देता, "नहीं।"6तो वह उससे कहते, "शिब्बुलत तो बोल," तो वह "सिब्बुलत" कहता, क्यूँकि उससे उसका सही तलफ़्फ़ुज़ नहीं हो सकता था। तब वह उसे पकड़कर यरदन के घाटों पर कत्ल कर देते थे।~इसलिए~उस वक़्त बयालीस हज़ार इफ़्राइमी क़त्ल हुए।7और इफ़्ताह छ: बरस तक बनीइस्राईल का क़ाज़ी रहा। फिर जिल'आदी इफ़्ताह ने वफ़ात पाई, और जिल'आद के शहरों में से एक में दफ़्न हुआ।8उसके बा'द बैतलहमी इबसान इस्राईलियों का क़ाज़ी हुआ।9उसके तीस बेटे थे; और तीस बेटियाँ उसने बाहर ब्याह दीं, और बाहर से अपने बेटों के लिए तीस बेटियाँ ले आया। वह सात बरस तक इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।10और इबसान मर गया और बैतलहम में दफ़्न हुआ।11और उसके बा'द ज़बूलूनी अय्यालोन इस्राईल का क़ाज़ी हुआ; और वह दस बरस इस्राईल का क़ाज़ी रहा।12और ज़बूलूनी अय्यालोन मर गया, और अय्यालोन में जो ज़बूलून के मुल्क में है दफ़्न हुआ।13इसके बा'द फ़िर'अतोनी हिल्लेल का बेटा 'अबदोन इस्राईल का क़ाज़ी हुआ।14और उसके चालीस बेटे और तीस पोते थे जो सत्तर जवान गधों पर सवार होते थे; और वह आठ बरस इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।15और फ़िर'आतोनी हिल्लेल का बेटा 'अबदोन मर गया, और 'अमालीक़ियों के पहाड़ी 'इलाक़े में, फ़िर'आतोन में जो इफ़्राईम के मुल्क में है दफ़्न हुआ।
1और बनी-इस्राईल ने फिर ख़ुदावन्द के आगे बुराई की, और ख़ुदावन्द ने उनकी चालीस बरस तक फ़िलिस्तियों के हाथ में कर रख्खा।2और दानियों के घराने में सुर'आ का एक शख़्स था जिसका नाम मनोहा था। उसकी बीवी बाँझ थी,~इसलिए~उसके कोई बच्चा न हुआ।3और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उस 'औरत को दिखाई देकर उससे कहा, "देख, तू बाँझ है और तेरे बच्चा नहीं होता; लेकिन तू हामिला होगी और तेरे बेटा होगा।4~इसलिए~ख़बरदार, मय या नशे की चीज़ न पीना, और न कोई नापाक चीज़ खाना।5क्यूँकि देख, तू हामिला होगी और तेरे बेटा होगा। उसके सिर पर कभी उस्तरा न फिरे, इसलिए कि वह लड़का पेट ही से ख़ुदा का नज़ीर होगा; और वह इस्राईलियों को फ़िलिस्तियों के हाथ से रिहाई देना शुरू' करेगा।"6उस 'औरत ने जाकर अपने शौहर से कहा कि एक शख़्स-ए-ख़ुदा मेरे पास आया, उसकी सूरत ख़ुदा के फ़रिश्ते की सूरत की तरह निहायत ख़ौफ़नाक थी; और मैंने उससे नहीं पूछा के तू कहाँ का है? और न उसने मुझे अपना नाम बताया।7लेकिन उसने मुझ से कहा, "देख, तू हामिला होगी और तेरे बेटा होगा;~इसलिए~तू मय या नशे की चीज़ न पीना, और न कोई नापाक चीज़ खाना, क्यूँकि वह लड़का पेट ही से अपने मरने के दिन तक ख़ुदा का नज़ीर रहेगा।"8तब मनोहा ने ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त की और कहा, "ऐ मेरे मालिक, मैं तेरी मित्रत करता हूँ कि वह शख़्स-ए-ख़ुदा जिसे तूने भेजा था, हमारे पास फिर आए और हम को सिखाए कि हम उस लड़के से जो पैदा होने को है क्या करें।"9और ख़ुदा ने मनोहा की 'अर्ज़ सुनी, और ख़ुदा का फ़रिश्ता उस 'औरत के पास जब वह खेत में बैठी थी फिर आया, लेकिन उसका शौहर मनोहा उसके साथ नहीं था।10~इसलिए~उस 'औरत ने जल्दी की और दौड़ कर अपने शौहर को ख़बर दी और उससे कहा कि देख, वही शख़्स जो उस दिन मेरे पास आया था अब फिर मुझे दिखाई दिया।11तब मनोहा उठ कर अपनी बीवी के पीछे पीछे चला, और उस शख़्स के पास आकर उससे कहा, "क्या तू वही शख़्स है जिसने इस 'औरत से बातें की थीं?" उसने कहा, "मैं वही हूँ।"12तब मनोहा ने कहा, "तेरी बातें पूरी हों, लेकिन उस लड़के का कैसा तौर-ओ-तरीक़ और क्या काम होगा?”13ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने मनोहा से कहा, "उन सब चीज़ों से जिनका ज़िक्र मैंने इस 'औरत से किया यह परहेज़ करे।14वह ऐसी कोई चीज़ जो ताक से पैदा होती है न खाए, और मय या नशे की चीज़ न पिए, और न कोई नापाक चीज़ खाए; और जो कुछ मैंने उसे हुक्म दिया यह उसे माने।"15मनोहा ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से कहा कि इजाज़त हो तो हम तुझ को रोक लें, और बकरी का एक बच्चा तेरे लिए तैयार करें।16तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने मनोहा को जवाब दिया, "अगर तू मुझे रोक भी ले, तो भी मैं तेरी रोटी नहीं खाने का; लेकिन अगर तू सोख़्तनी क़ुर्बानी तैयार करना चाहे, तो तुझे लाज़िम है कि उसे ख़ुदावन्द के लिए पेश करे।" (क्यूँकि मनोहा नहीं जानता था कि वह ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता है।)17फिर मनोहा ने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से कहा कि तेरा नाम क्या है? ताकि जब तेरी बातें पूरी हों तो हम तेरा इकराम कर सकें।18ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उससे कहा, "तू क्यूँ। मेरा नाम पूछता है? क्यूँकि वह तो 'अजीब है।"19तब मनोहा ने बकरी का वह बच्चा म'ए उसकी नज़्र की क़ुर्बानी के लेकर एक चट्टान पर ख़ुदावन्द के लिए उनको पेश किया, और फ़रिश्ते ने मनोहा और उसकी बीवी के देखते देखते 'अजीब काम किया।20क्यूँकि ऐसा हुआ कि जब शो'ला मज़बह पर से आसमान की तरफ़ उठा, तो ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता मज़बह के शो'ले में होकर ऊपर चला गया, और मनोहा और उसकी बीवी देखकर औधे मुँह ज़मीन पर गिरे।21लेकिन ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता न फिर मनोहा को दिखाई दिया न उसकी बीवी को। तब मनोहा ने जाना कि वह ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता था।22और मनोहा ने अपनी बीवी से कहा कि हम अब ज़रूर मर जाएँगे, क्यूँकि हम ने ख़ुदा को देखा।23उसकी बीवी ने उससे कहा, "अगर ख़ुदावन्द यही चाहता कि हम को मार दे, तो सोख़्तनी और नज़्र की क़ुर्बानी हमारे हाथ से क़ुबूल न करता, और न हम को यह वाक़ि'आत दिखाता और न हम से ऐसी बातें कहता।"24और उस 'औरत के एक बेटा हुआ और उसने उसका नाम समसून रख्खा; और वह लड़का बढ़ा, और खुदावन्द ने उसे बरकत दी।25और ख़ुदावन्द की रूह उसे महने दान में, जो सुर'आ और इस्ताल के बीच में है तहरीक देने लगी।
1और समसून तिमनत को गया, और तिमनत में उसने फ़िलिस्तियों की बेटियों में से एक 'औरत देखी।2और उसने आकर अपने माँ बाप से कहा, "मैंने फ़िलिस्तियों की बेटियों में से तिमनत में एक 'औरत देखी है,~इसलिए~तुम उससे मेरा ब्याह करा दो।"3उसके माँ बाप ने उससे कहा, "क्या तेरे भाइयों की बेटियों में, या मेरी सारी क़ौम में कोई 'औरत नहीं है जो तू नामख़्तून फ़िलिस्तियों में ब्याह करने जाता है?" समसून ने अपने बाप से कहा, "उसी से मेरा ब्याह करा दे, क्यूँकि वह मुझे बहुत पसंद आती है।"4लेकिन उसके माँ बाप को मा'लूम न था, यह ख़ुदावन्द की तरफ़ से है; क्यूँकि वह फ़िलिस्तियों के ख़िलाफ़ बहाना ढूंडता था। उस वक़्त फ़िलिस्ती इस्राईलियों पर हुक्मरान थे।5फिर समसून और उसके माँ बाप तिमनत को चले, और तिमनत के ताकिस्तानों में पहुँचे, और देखो, एक जवान शेर समसून के सामने आकर गरजने लगा।6तब ख़ुदावन्द की रूह उस पर ज़ोर से नाज़िल हुई, और उसने उसे बकरी के बच्चे की तरह चीर डाला, गो उसके हाथ में कुछ न था। लेकिन जो उसने किया उसे अपने बाप या माँ को न बताया।7और उसने जाकर उस 'औरत से बातें कीं: और वह समसून को बहुत पसंद आई।8और कुछ 'अरसे के बा'द वह~उसे लेने को लौटा; और शेर की लाश देखने को कतरा गया, और देखा कि शेर के पिंजर में शहद की मक्खियों का हुजूम और शहद है।9उसने उसे हाथ में ले लिया और खाता हुआ चला, और अपने माँ बाप के पास आकर उनको भी दिया और उन्होंने भी खाया, लेकिन उसने उनको न बताया कि यह शहद उसने शेर के पिंजरे में से निकाला था।10फिर उसका बाप उस 'औरत के यहाँ गया, वहाँ समसून ने बड़ी ज़ियाफ़त की क्यूँकि जवान ऐसा ही करते थे।11वह उसे देखकर उसके लिए तीस साथियों को ले आए कि उसके साथ रहें।12समसून ने उनसे कहा, "मैं तुम से एक पहेली पूछता हूँ;~इसलिए~अगर तुम ज़ियाफ़त के सात दिन के अन्दर अन्दर उसे बूझकर मुझे उसका मतलब बता दो, तो मैं तीस कतानी कुर्ते और तीस जोड़े कपड़े तुम को दूँगा।13और अगर तुम न बता सको, तो तुम तीस कतानी कुर्ते और तीस जोड़े कपड़े मुझ को देना।” उन्होंने उससे कहा कि तू अपनी पहेली बयान कर, ताकि हम उसे सुनें।14उसने उनसे कहा, "खाने वाले में से तो खाना निकला, और ज़बरदस्त में से मिठास निकली" और वह तीन दिन तक उस पहेली को हल न कर सके।15और सातवें दिन उन्होंने समसून की बीवी से कहा कि अपने शौहर को फुसला, ताकि इस पहेली का मतलब वह हम को बता दे; नहीं तो हम तुझ को और तेरे बाप के घर को आग से जला देंगे। क्या तुम ने हम को इसीलिए बुलाया है कि हम को फ़क़ीर कर दो? क्या बात भी यूँ ही नहीं?16और समसून की बीवी उसके आगे रो कर कहने लगी, "तुझे तो मुझ से नफ़रत है, तू मुझ को प्यार नहीं करता। तूने मेरी क़ौम के लोगों से पहेली पूछी, लेकिन वह मुझे न बताई।" उसने उससे कहा, "ख़ूब! मैंने उसे अपने माँ बाप को तो बताया नहीं और तुझे बता दूँ ?"17~इसलिए वह उसके आगे जब तक ज़ियाफ़त रही सातों दिन रोती रही; और सातवें दिन ऐसा हुआ कि उसने उसे बता ही दिया, क्यूँकि उसने उसे निहायत परेशान किया था। और उस 'औरत ने वह पहेली अपनी क़ौम के लोगों को बता दी।18और उस शहर के लोगों ने सातवें दिन सूरज के डूबने से पहले उससे कहा, "शहद से मीठा और क्या होता है? और शेर से ताक़तवर और कौन है?" उसने उनसे कहा, "अगर तुम मेरी बछिया को हल में न जोतते, तो मेरी पहेली कभी न बूझते"।19फिर ख़ुदावन्द की रूह उस पर जोर से नाज़िल हुई, और वह अस्क़लोन को गया। वहाँ उसने उनके तीस आदमी मारे, और उनको लूट कर कपड़ों के जोड़े पहेली बूझने वालों को दिए। और उसका क़हर भड़क उठा, और वह अपने माँ बाप के घर चला गया।20लेकिन समसून की बीवी उसके एक साथी को, जिसे समसून ने दोस्त बनाया था दे दी गई।
1लेकिन कुछ 'अरसे बा'द गेहूँ की फ़सल के मौसम में, समसून बकरी का एक बच्चा लेकर अपनी बीवी के यहाँ गया और कहने लगा, "मैं अपनी बीवी के पास कोठरी में जाऊँगा।" लेकिन उसके बाप ने उसे अन्दर जाने न दिया।2और उसके बाप ने कहा, "मुझ को यक़ीनन यह ख़याल हुआ कि तुझे उससे सख़्त नफ़रत हो गई है, इसलिए मैंने उसे तेरे साथी को दे दिया। क्या उसकी छोटी बहन उससे कहीं ख़ूबसूरत नहीं है?~इसलिए उसके बदले तू इसी को ले ले।"3समसून ने उनसे कहा, "इस बार मैं फ़िलिस्तियों की तरफ़ से, जब मैं उनसे बुराई करूँ बेक़ुसूर ठहरूँगा।"4और समसून ने जाकर तीन सौ लोमड़ियाँ पकड़ीं; और मशा'लें ली और दुम से दुम मिलाई, और दो दो दुमों के बीच में एक एक मशा'ल बाँध दी।5और मशा'लों में आग लगा कर उसने लोमड़ियों को फ़िलिस्तियों के खड़े खेतों में छोड़ दिया, और पूलियों और खड़े खेतों दोनों को, बल्कि ज़ैतून के बाग़ों को भी जला दिया।6तब फ़िलिस्तियों ने कहा, "किसने यह किया है?" लोगों ने बताया कि तिमनती के दामाद समसून ने; इसलिए कि उसने उसकी बीवी छीन कर उस के साथी को दे दी। तब फ़िलिस्तियों ने आकर उस 'औरत को और उसके बाप को आग में जला दिया।7समसून ने उनसे कहा कि तुम जो ऐसा काम करते हो, तो ज़रूर ही मैं तुम से बदला लूँगा और इसके बा'द बाज़ आऊँगा।8और उस ने उनको बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ मार मार कर उनका कचूमर कर डाला; और वहाँ से जाकर 'ऐताम की चट्टान की दराड़ में रहने लगा।9तब फ़िलिस्ती जाकर यहूदाह में ख़ेमाज़न हुए और लही में फैल गए।10और यहूदाह के लोगों ने उनसे कहा, "तुम हम पर क्यूँ चढ़ आए हो?" उन्होंने कहा, "हम समसून को बाँधने आए हैं, ताकि जैसा उसने हम से किया हम भी उससे वैसा ही करें।"11तब यहूदाह के तीन हज़ार आदमी ऐताम की चट्टान की दराड़ में उतर गए, और समसून से कहने लगे, "क्या तू नहीं जानता के फ़िलिस्ती हम पर हुक्मरान हैं?~इसलिए~तूने हम से यह क्या किया है?" उसने उनसे कहा, "जैसा उन्होंने मुझ से किया, मैंने भी उनसे वैसा ही किया।"12उन्होंने उससे कहा, "अब हम आए हैं कि तुझे बाँध कर फ़िलिस्तियों के हवाले कर दें।" समसून ने उनसे कहा, "मुझ से क़सम खाओ के तुम ख़ुद मुझ पर हमला न करोगे।"13उन्होंने उसे जवाब दिया, "नहीं! बल्कि हम तुझे कस कर बाँधेगे और उनके हवाले कर देंगे; लेकिन हम हरगिज़ तुझे जान से न मारेंगे।" फिर उन्होंने उसे दो नई रस्सियों से बाँधा और चट्टान से उसे ऊपर लाए।14जब वह लही में पहुँचा, तो फ़िलिस्ती उसे देख कर ललकारने लगे। तब ख़ुदावन्द की रूह उस पर ज़ोर से नाज़िल हुई, और उसके बाजु़ओं पर की रस्सियाँ आग से जले हुए सन की तरह हो गई, और उसके बन्धन उसके हाथों पर से उतर गए।15और उसे एक गधे के जबड़े की नई हड्डी मिल गई:~इसलिए~उसने हाथ बढ़ा कर उसे उठा लिया, और उससे उसने एक हज़ार आदमियों को मार डाला।16फिर समसून ने कहा, 'गधे के जबड़े की हड्डी से ढेर के ढेर लग गए, गधे के जबड़े की हड्डी से मैंने एक हज़ार आदमियों को मारा"।17और जब वह अपनी बात ख़त्म कर चुका, तो उसने जबड़ा अपने हाथ में से फेंक दिया; और उस जगह का नाम रामत लही पड़ गया।18और उसको बड़ी प्यास लगी, तब उसने ख़ुदावन्द को पुकारा और कहा, "तूने अपने बन्दे के हाथ से ऐसी बड़ी रिहाई बख़्शी। अब क्या मैं प्यास से मरूँ, और नामख़्तूनों के हाथ में पडूँ?"19लेकिन ख़ुदा ने उस गढ़े को जो लही में है चाक कर दिया, और उसमें से पानी निकला; और जब उसने उसे पी लिया तो उसकी जान में जान आई, और वह ताज़ा दम हुआ। इसलिए उस जगह का नाम ऐन हक़्क़ोरे रख्खा गया, वह लही में आज तक है।20और वह फ़िलिस्तियों के दिनों में बीस बरस तक इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।
1फिर समसून ग़ज़्ज़ा को गया। वहाँ उसने एक कस्बी देखी, और उसके पास गया।2और ग़ज़्ज़ा के लोगों को ख़बर हुई के समसून यहाँ आया है। उन्होंने उसे घेर लिया और सारी रात शहर के फाटक पर उसकी घात में बैठे रहे; लेकिन रात भर चुप चाप रहे और कहा कि सुबह की रोशनी होते ही हम उसे मार डालेंगे।3और समसून आधी रात तक लेटा रहा, और आधी रात को उठ कर शहर के फाटक के दोनों पल्लों और दोनों बाज़ुओं को पकड़कर चौखट समेत उखाड़ लिया; और उनको अपने कंधों पर रख कर उस पहाड़ की चोटी पर, जो हबरून के सामने है ले गया।4इसके बा'द सूरिक़ की वादी में एक 'औरत से जिसका नाम दलीला था, उसे 'इश्क़ हो गया।5और फ़िलिस्तियों के सरदारों ने उस 'औरत के पास जाकर उससे कहा कि तू उसे फुसलाकर दरियाफ़्त कर ले कि उसकी ताक़त ~का राज़ क्या है और हम क्यूँकर उस पर ग़ालिब आएँ, ताकि हम उसे बाँधकर उसको अज़िय्यत पहुँचाएँ; और हम में से हर एक ग्यारह सौ चाँदी के सिक्के तुझे देगा।6तब दलीला ने समसून से कहा कि मुझे तो बता दे तेरी ताक़त का राज़ क्या है, और तुझे तकलीफ़ पहुँचाने के लिए किस चीज़ से तुझे बाँधना चाहिए।7समसून ने उससे कहा कि अगर वह मुझ को सात हरी हरी बेदों से जो सुखाई न गई हों बाँधे, तो मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।8तब फ़िलिस्तियों के सरदार सात हरी हरी बेदें जो सुखाई न गई थीं, उस 'औरत के पास ले आए और उसने समसून को उनसे बाँधा।9और उस 'औरत ने कुछ आदमी अन्दर की कोठरी में घात में बिठा लिए थे।~इसलिए उस ने समसून से कहा कि ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए! तब उसने उन बेदों को ऐसा तोड़ा जैसे सन का सूत आग पाते ही टूट जाता है;~इसलिए~उसकी ताक़त का राज़ न खुला।10तब दलीला ने समसून से कहा, "देख, तूने मुझे धोका दिया और मुझ से झूट बोला। अब तू ज़रा मुझ को बता दे, कि तू किस चीज़ से बाँधा जाए।"11उसने उससे कहा, "अगर वह मुझें नई नई रस्सियों से जो कभी काम में न आई हों , बाँधे तो मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।"12तब दलीला ने नई रस्सियाँ लेकर उसको उनसे बाँधा और उससे कहा, "ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए!" और घात वाले अन्दर की कोठरी में ठहरे ही हुए थे। तब उसने अपने बाज़ुओं पर से धागे की तरह उनको तोड़ डाला।13~तब~दलीला समसून से कहने लगी, "अब तक तो तूने मुझे धोका ही दिया और मुझ से झूट बोला; अब तो बता दे, कि तू किस चीज़ से बँध सकता है?" उसने उसे कहा, "अगर तू मेरे सिर की सातों लटें ताने के साथ बुन दे।"14तब उसने खूंटे से उसे कसकर बाँध दिया और उससे कहा, "ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए!" तब वह नींद से जाग उठा, और बल्ली के खूंटे को ताने के साथ उखाड़ डाला।15फिर वह उससे कहने लगी, "तू क्यूँकर कह सकता है, कि मैं तुझे चाहता हूँ, जब कि तेरा दिल मुझ से लगा नहीं? तूने तीनों बार मुझे धोका ही दिया और न बताया कि तेरी ताक़त का राज़ क्या है।"16जब वह उसे रोज़ अपनी बातों से तंग और मजबूर करने लगी, यहाँ तक कि उसका दम नाक में आ गया।17तो उसने अपना दिल खोलकर उसे बता दिया कि मेरे सिर पर उस्तरा नहीं फिरा है, इसलिए कि मैं अपनी माँ के पेट ही से ख़ुदा का नज़ीर हूँ,~इसलिए~अगर मेरा सिर मूंडा जाए तो मेरी ताक़त मुझ से जाती रहेगा, और मैं कमज़ोर होकर और आदमियों की तरह हो जाऊँगा।18जब दलीला ने देखा के उसने दिल खोलकर सब कुछ बता दिया, तो उसने फ़िलिस्तियों के सरदारों को कहला भेजा कि इस बार और आओ, क्यूँकि उसने दिल खोलकर मुझे सब कुछ बता दिया है।" तब फ़िलिस्तियों के सरदार उसके पास आए, और रुपये अपने हाथ में लेते आए।19तब उसे उसने अपने ज़ानों पर सुला लिया, और एक आदमी को बुलवाकर सातों लटें जो उसके सिर पर थीं, मुण्डवा डालीं, और उसे तकलीफ़ देने लगी; और उसका ज़ोर उससे जाता रहा।20फिर उसने कहा, "ऐ समसून, फ़िलिस्ती तुझ पर चढ़ आए!” और वह नींद से जागा और कहने लगा कि मैं और दफ़ा' की तरह बाहर जाकर अपने को झटकुँगा। लेकिन उसे ख़बर न थी कि ख़ुदावन्द उससे अलग हो गया है।21तब फ़िलिस्तियों ने उसे पकड़ कर उसकी आँखें निकाल डालीं, और उसे ग़ज़्ज़ा में ले आए और पीतल की बेड़ियों से उसे जकड़ा, और वह क़ैदख़ाने में चक्की पीसा करता था।22~तो भी उसके सिर के बाल मुण्डवाए जाने के बा'द फिर बढ़ने लगे।23और फ़लिस्तियों के सरदार फ़राहम हुए ताकि अपने मा'बूद दजोन के लिए बड़ी क़ुर्बानी गुजारें और ख़ुशी करें क्यूँकि वह कहते थे कि हमारे मा'बूद ने हमारे दुश्मन समसून को हमारे क़ब्ज़े में कर दिया है।24और जब लोग उसको देखते तो अपने मा'बूद की ता'रीफ़ करते और कहते थे कि हमारे मा'बूद ने हमारे दुश्मन और हमारे मुल्क को उजाड़ने वाले को, जिसने हम में से बहुतों को हलाक किया हमारे हाथ में कर दिया है।25और ऐसा हुआ कि जब उनके दिल निहायत शाद हुए, तो वह कहने लगे कि समसून को बुलाओ, कि हमारे लिए कोई खेल करे।~इसलिए~उन्होंने समसून को क़ैदख़ाने से बुलवाया, और वह उनके लिए खेल करने लगा; और उन्होंने उसको दो खम्बों के बीच खड़ा किया।26तब समसून ने उस लड़के से जो उसका हाथ पकड़े था कहा, "मुझे उन खम्बों को जिन पर यह घर क़ायम है, थामने दे ताकि मैं उन पर टेक लगाऊँ।"27और वह~घर शख़्सों और 'औरतों से भरा था, और फ़िलिस्तियों के सब सरदार वहीं थे, और छत पर क़रीबन तीन हज़ार शख़्स और 'औरत थे जो समसून के खेल देख रहे थे।28तब समसून ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, "ऐ मालिक, ख़ुदावन्द! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे याद कर; और मैं तेरी मिन्नत करता हूँ ऐ ख़ुदा सिर्फ़ इस बार और तू मुझे ताक़त बख़्श, ताकि मैं एक बार फ़िलिस्तियों से अपनी दोनों ऑखों का बदला लूं।"29और समसून ने दोनों बीच के खम्बों को जिन पर घर क़ायम था पकड़ कर, एक पर दहने हाथ से और दूसरे पर बाएँ हाथ से ज़ोर लगाया।30और समसून कहने लगा कि फ़िलिस्तियों के साथ मुझे भी मरना ही है।~इसलिए~वह अपने सारी ताक़त से झुका; और वह घर उन सरदारों और सब लोगों पर जो उसमें थे गिर पड़ा। इसलिए वह मुर्दे जिनको उसने अपने मरते दम मारा, उनसे भी ज़्यादा थे जिनको उसने जीते जी क़त्ल किया।31तब उसके भाई और उसके बाप का सारा घराना आया, और वह उसे उठा कर ले गए और सुर'आ और इस्ताल के बीच उसके बाप मनोहा के क़ब्रिस्तान में उसे दफ़्न किया। वह बीस बरस तक इस्राईलियों का क़ाज़ी रहा।
1और इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क का एक शख़्स था जिसका नाम मीकाह था।2उसने अपनी माँ से कहा, "चाँदी के वह ग्यारह सौ सिक्के जो तेरे पास से लिए गए थे, और जिनके बारे में तूने ला'नत भेजी और मुझे भी यही सुना कर कहा;~इसलिए देख वह चाँदी मेरे पास है, मैंने उसको ले लिया था।” उसकी माँ ने कहा, "मेरे बेटे को ख़ुदावन्द की तरफ़ से बरकत मिले।"3और उसने चाँदी के वह ग्यारह सौ सिक्के अपनी माँ को लौटा दिए, तब उसकी माँ ने कहा, "मैं इस चाँदी को अपने बेटे की ख़ातिर अपने हाथ से ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस किए देती हूँ, ताकि वह एक बुत तराशा हुआ और एक ढाला हुआ बनाए~इसलिए, अब मैं इसको तुझे लौटा देती हूँ।”4लेकिन जब उसने वह नक़दी अपनी माँ को लौटा दी, तो उसकी माँ ने चाँदी के दो सौ सिक्के लेकर उनको ढालने वाले को दिया, जिसने उनसे एक तराशा हुआ और एक ढाला हुआ बुत बनाया; और वह मीकाह के घर में रहे।5और इस शख़्स मीकाह के यहाँ एक बुत ख़ाना था, और उसने एक अफ़ूद और तराफ़ीम को बनवाया; और अपने बेटों में से एक को मख़्सूस किया जो उसका काहिन हुआ।6उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह न था, और हर शख़्स जो कुछ उसकी नज़र में अच्छा मा'लूम होता वही करता था।7और बैतलहम यहूदाह में यहूदाह के घराने का एक जवान था जो लावी था; यह वहीं टिका हुआ था।8यह शख़्स उस शहर या'नी बैतलहम-ए-यहूदाह से निकला, कि और कहीं जहाँ जगह मिले जा टिके। तब वह सफ़र करता हुआ इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में मीकाह के घर आ निकला।9और मीकाह ने उससे कहा, "तू कहाँ से आता है?" उसने उससे कहा, "मैं बैतलहम-ए-यहूदाह का एक लावी हूँ, और निकला हूँ कि जहाँ कहीं जगह मिले वहीं रहूँ।”10मीकाह ने उससे कहा, "मेरे साथ रह जा, और मेरा बाप और काहिन हो; मैं तुझे चाँदी के दस सिक्के सालाना और एक जोड़ा कपड़ा और खाना दूँगा।" तब वह लावी अन्दर चला गया।11और वह उस आदमी के साथ रहने पर राज़ी हुआ; और वह जवान उसके लिए ऐसा ही था जैसा उसके अपने बेटों में से एक बेटा।12और मीकाह ने उस लावी को मख़्सूस किया, और वह जवान उसका काहिन बना और मीकाह के घर में रहने लगा।13तब मीकाह ने कहा, "मैं अब जानता हूँ कि ख़ुदावन्द मेरा भला करेगा, क्यूँकि एक लावी मेरा काहिन है।"
1उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह न था, और उन ही दिनों में दान का क़बीला अपने रहने के लिए मीरास ढूँडता था, क्यूँकि उनको उस दिन तक इस्राईल के क़बीलों में मीरास नहीं मिली थी।2~इसलिए~बनी दान ने अपने सारे शुमार में से पाँच सूर्माओं को सुर'आ और इस्ताल से रवाना किया, ताकि मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें और उसे देखें भालें और उनसे कह दिया कि जाकर उस मुल्क को देखो भालो।~इसलिए~वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में मीकाह के घर आए और वहीं उतरे।3जब वह मीकाह के घर के पास पहुँचे, तो उस लावी जवान की आवाज़ पहचानी, पस वह उधर को मुड़ गए और उससे कहने लगे, "तुझ को यहाँ कौन लाया? तू यहाँ क्या करता है और यहाँ तेरा क्या है?"4उसने उनसे कहा, "मीकाह ने मुझ से ऐसा ऐसा सुलूक किया, और मुझे नौकर रख लिया है और मैं उसका काहिन बना हूँ।"5उन्होंने उससे कहा कि ख़ुदा से ज़रा सलाह ले, ताकि हम को मा'लूम हो जाए कि हमारा यह सफ़र मुबारक होगा या नहीं।6उस काहिन ने उनसे कहा, "सलामती से चले जाओ, क्यूँकि तुम्हारा यह सफ़र ख़ुदावन्द के हुज़ूर है।"7~इसलिए~वह पाँचों शख़्स चल निकले और लैस में आए। उन्होंने वहाँ के लोगों को देखा कि सैदानियों की तरह कैसे इत्मिनान और अम्न और चैन से रहते हैं; क्यूँकि उस मुल्क में कोई हाकिम नहीं था जो उनको किसी बात में ज़लील करता। वह सैदानियों से बहुत दूर थे, और किसी से उनको कुछ सरोकार न था।8~इसलिए~वह सुर'आ और इस्ताल को अपने भाइयों के पास लौटे, और उनके भाइयों ने उनसे पूछा कि तुम क्या कहते हो?9उन्होंने कहा, "चलो, हम उन पर चढ़ जाएँ; क्यूँकि हम ने उस मुल्क को देखा कि वह बहुत अच्छा है; और तुम क्या चुप चाप ही रहे? अब चलकर उस मुल्क पर क़ाबिज़ होने में सुस्ती न करो।10अगर तुम चले तो एक मुतम'इन क़ौम के पास पहुँचोगे, और वह मुल्क वसी' है; क्यूँकि ख़ुदा ने उसे तुम्हारे हाथ में कर दिया है। वह ऐसी जगह है जिसमें दुनिया की किसी चीज़ की कमी नहीं।"11तब बनी दान के घराने के छ: सौ शख़्स जंग के हथियार बाँधे हुए सुर'आ और इस्ताल से रवाना हुए।12और जाकर यहूदाह के क़रयत या'रीम में ख़ैमाज़न हुए। इसीलिए आज के दिन तक उस जगह को महने दान कहते हैं, और यह क़रयत या'रीम के पीछे है।13और वहाँ से चलकर इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में पहुँचे और मीकाह के घर आए।14तब वह पाँचों शख़्स जो लैस के मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने गए थे, अपने भाइयों से कहने लगे, "क्या तुम को ख़बर है, कि इन घरों में एक अफ़ूद और तराफ़ीम और एक तराशा हुआ बुत और एक ढाला हुआ बुत है?~इसलिए अब सोच लो कि तुम को क्या करना है।"15तब वह उस तरफ़ मुड़ गए और उस लावी जवान के मकान में या'नी मीकाह के घर में दाख़िल हुए, और उससे ख़ैर-ओ-सलामती पूछी।16और वह छ: सौ आदमी जो बनी दान में से थे, जंग के हथियार बाँधे फाटक पर खड़े रहे।17और उन पाँचों शख़्सों ने जो ज़मीन का हाल दरियाफ़्त करने को निकले थे, वहाँ आकर तराशा हुआ बुत और अफ़ूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत सब कुछ ले लिया, और वह काहिन फाटक पर उन छ: सौ आदमियों के साथ जो जंग के हथियार बाँधे थे खड़ा था।18जब वह मीकाह के घर में घुस कर तराशा हुआ बुत और अफ़ूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत ले आए, तो उस काहिन ने उनसे कहा, "तुम यह क्या करते हो?"19तब उन्होंने उसे कहा, "चुप रह, मुँह पर हाथ रख ले; और हमारे साथ चल और हमारा बाप और काहिन बन। क्या तेरे लिए एक शख़्स के घर का काहिन होना अच्छा है, या यह कि तू बनी-इस्राईल के एक क़बीले और घराने का काहिन हो?"20तब काहिन का दिल ख़ुश हो गया और वह अफ़ूद और तराफ़ीम और तराशे हुए बुत को लेकर लोगों के बीच चला गया।21फिर वह मुड़े और रवाना हुए, और बाल बच्चों और चौपायों और सामन को अपने आगे कर लिया।22जब वह मीकाह के घर से दूर निकल गए, तो जो लोग मीकाह के घर के पास के मकानों में रहते थे वह जमा' हुए और चलकर बनी दान को जा लिया।23और उन्होंने बनी दान को पुकारा, तब उन्होंने उधर मुँह करके मीकाह से कहा, "तुझ को क्या हुआ जो तू इतने लोगों की जमिय'त को साथ लिए आ रहा है?"24उसने कहा, "तुम मेरे मा'बूदों को जिनको मैंने बनवाया, और मेरे काहिन को साथ लेकर चले आए, अब मेरे पास और क्या बाक़ी रहा?~इसलिए~तुम मुझ से यह क्यूँकर कहते हो कि तुझ को क्या हुआ?"25बनी दान ने उससे कहा कि तेरी आवाज़ हम लोगों में सुनाई न दे, ऐसा न हो कि झल्ले मिज़ाज के आदमी तुझ पर हमला कर बैठें और तू अपनी जान अपने घर के लोगों की जान के साथ खो बैठे।26~इसलिए बनी दान तो अपने रास्ते ही चले गए: और जब मीकाह ने देखा, कि वह उसके मुक़ाबले में बड़े ज़बरदस्त हैं, तो वह मुड़ा और अपने घर को लौटा।27यूँ वह मीकाह की बनवाई हुई चीज़ों को और उस काहिन को जो उसके यहाँ था, लेकर लैस में ऐसे लोगों के पास पहुँचे जो अम्न और चैन से रहते थे; और उनको बर्बाद किया और शहर जला दिया।28और बचाने वाला कोई न था, क्यूँकि वह सैदा से दूर था और यह लोग किसी आदमी से सरोकार नहीं रखते थे। और वह शहर बैत रहोब के पास की वादी में था। फिर उन्होंने वह शहर बनाया और उसमें रहने लगे।29और उस शहर का नाम अपने बाप दान के नाम पर जो इस्राईल की औलाद था दान ही रख्खा, लेकिन पहले उस शहर का नाम लैस था।30और बनी दान ने वह तराशा हुआ बुत अपने लिए खड़ा कर लिया; और यूनतन बिन जैरसोम बिन मूसा और उसके बेटे उस मुल्क की असीरी के दिन तक बनी दान के क़बीले के काहिन बने रहे।31और सारे वक़्त जब तक ख़ुदा का घर सैला में रहा, वह मीकाह के तराशे हुए बुत को जो उसने बनवाया था अपने लिए खड़े किए रहे।
1उन दिनों में जब इस्राईल में कोई बादशाह न था, ऐसा हुआ कि एक शख़्स ने जो लावी था और इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क के दूसरे सिरे पर रहता था, बैतलहम-ए-यहूदाह से एक हरम अपने लिए कर ली।2उसकी हरम ने उस से बेवफ़ाई की और उसके पास से बैतलहम यहूदाह में अपने बाप के घर चली गई, और चार महीने वहीं रही।3और उसका शौहर उठकर और एक नौकर और दो गधे साथ लेकर उसके पीछे रवाना हुआ, कि उसे मना फुसला कर वापस ले आए।~इसलिए~वह उसे अपने बाप के घर में ले गई, और उस जवान 'औरत का बाप उसे देख कर उसकी मुलाक़ात से ख़ुश हुआ।4और उसके ख़ुसर या'नी उस जवान 'औरत के बाप ने उसे रोक लिया, और वह उसके साथ तीन दिन तक रहा; और उन्होंने खाया पिया और वहाँ टिके रहे।5चौथे रोज़ जब वह सुबह सवेरे उठे, और वह चलने को खड़ा हुआ; तो उस जवान 'औरत के बाप ने अपने दामाद से कहा, "एक टुकड़ा रोटी खाकर ताज़ा दम हो जा, इसके बा'द तुम अपनी राह लेना।6~इसलिए~वह दोनों बैठ गए और मिलकर खाया पिया फिर उस जवान 'औरत के बाप ने उस शख़्स से कहा कि रात भर और टिकने को राज़ी हो जा, और अपने दिल को ख़ुश कर।7लेकिन वह शख़्स चलने को खड़ा हो गया, लेकिन उसका ख़ुसर उससे बजिद हुआ;~इसलिए~फिर उसने वहीं रात काटी।8और पाँचवें रोज़ वह सुबह सवेरे उठा, ताकि रवाना हो; और उस जवान 'औरत के बाप ने उससे कहा, "ज़रा इत्मिनान रख और दिन ढलने तक ठहरे रहो।" तब दोनों ने रोटी खाई।9और जब वह शख़्स और उसकी हरम और उसका नौकर चलने को खड़े हुए, तो उसके ख़ुसर या'नी उस जवान 'औरत के बाप ने उससे कहा, "देख, अब तो दिन ढला और शाम हो चली;~इसलिए~मैं तुम से मिन्नत करता हूँ कि तुम रात भर ठहर जाओ। देख, दिन तो ख़ातिमें पर है, इसलिए यहीं टिक जा, तेरा दिल खुश हो और कल सुबह ही सुबह तुम अपनी राह लगना, ताकि तू अपने घर को जाए।"10लेकिन वह शख़्स उस रात रहने पर राज़ी न हुआ, बल्कि उठ कर रवाना हुआ और यबूस के सामने पहुँचा (यरुशलीम यही है); और दो गधे ज़ीन कसे हुए उसके साथ थे, और उसकी हरम भी साथ थी।11जब वह यबूस के बराबर पहुँचे तो दिन बहुत ढल गया था, और नौकर ने अपने आक़ा से कहा, "आ, हम यबूसियों के इस शहर में मुड़ जाएँ और यहीं टिकें।"12उसके आक़ा ने उससे कहा, "हम किसी अजनबी के शहर में, जो बनी-इस्राईल में से नहीं दाख़िल न होंगे, बल्कि हम जिब'आ को जाएँगे।"13फिर उसने अपने नौकर से कहा कि आ, हम इन जगहों में से किसी में चले चलें, और जिब'आ या रामा में रात काटें।"14~इसलिए~वह आगे बढ़े और रास्ता चलते ही रहे, और बिनयमीन के जिब'आ के नज़दीक पहुँचते पहुँचते सूरज डूब गया।15इसलिए~वह उधर को मुड़े, ताकि जिब'आ में दाख़िल होकर वहाँ टिके। वह दाख़िल होकर शहर के चौक में बैठ गया, क्यूँकि वहाँ कोई आदमी उनको टिकाने को अपने घर न ले गया।16शाम को एक बूढ़ा शख़्स अपना काम करके वहाँ आया। यह आदमी इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क का था, और जिब'आ में आ बसा था; लेकिन उस मक़ाम के बाशिंदे बिनयमीनी थे।17उसने जो आँखें उठाई तो उस मुसाफ़िर को उस शहर के चौक में देखा, तब उस बूढ़े शख़्स ने कहा, "तू किधर जाता है और कहाँ से आया है?"18उसने उससे कहा, "हम यहूदाह के बैतलहम से इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क के दूसरे सिरे को जाते हैं। मैं वहीं का हूँ, और यहूदाह के बैतलहम को गया हुआ था; और अब ख़ुदावन्द के घर को जाता हूँ, यहाँ कोई मुझे अपने घर में नहीं उतारता।19हालाँकि हमारे साथ हमारे गधों के लिए भूसा और चारा है; और मेरे और तेरी लौंडी के वास्ते, और इस जवान के लिए जो तेरे बन्दो के साथ है रोटी और मय भी है, और किसी चीज़ की कमी नहीं।"20उस बूढ़े शख़्स ने कहा, "तेरी सलामती हो; तेरी सब ज़रूरतें हरसूरत मेरे ज़िम्मे हों, लेकिन इस चौक में हरगिज़ न टिक।"21वह उसे अपने घर ले गया और उसके गधों को चारा दिया, और वह अपने पाँव धोकर खाने पीने लगे।22जब वह अपने दिलों को ख़ुश कर रहे थे, तो उस शहर के लोगों में से कुछ ख़बीसों ने उस घर को घेर लिया और दरवाज़ा पीटने लगे, और साहिब-ए-खाना या'नी बूढ़े शख़्स से कहा, "उस शख़्स को जो तेरे घर में आया है, बाहर ले आ ताकि हम उसके साथ सुहबत करें।"23वह ~आदमी जो साहिब-ए- ख़ाना था, बाहर उनके पास जाकर उनसे कहने लगा, "नहीं, मेरे भाइयों ऐसी शरारत न करो; चूँकि यह शख़्स मेरे घर में आया है, इसलिए यह बेवक़ूफ़ी न करो।24देखो, मेरी कुँवारी बेटी और इस शख़्स की हरम यहाँ हैं, मैं अभी उनको बाहर लाए देता हूँ, तुम उनकी आबरू लो और जो कुछ तुम को भला दिखाई दे उनसे करो, लेकिन इस शख़्स से ऐसा घिनौना काम न करो।"25लेकिन वह लोग उसकी सुनते ही न थे। तब वह शख़्स अपनी हरम को पकड़ कर उनके पास बाहर ले आया। उन्होंने उससे सुहबत की और सारी रात सुबह तक उसके साथ बदज़ाती करते रहे, और जब दिन निकलने लगा तो उसको छोड़ दिया।26वह 'औरत पौ फटते हुए आई, और उस शख़्स के घर के दरवाज़े पर जहाँ उसका ख़ाविन्द था गिरी और रोशनी होने तक पड़ी रही।27और उसका ख़ाविन्द सुबह को उठा और घर के दरवाज़े खोले और बाहर निकला कि रवाना हों और देखो वह 'औरत जो उसकी हरम थी घर के दरवाज़े पर अपने आस्ताना पर फैलाये हुए पड़ी थी |28उसने उससे कहा, "उठ, हम चलें।" लेकिन किसी ने जवाब न दिया। तब उस शख़्स ने उसे अपने गधे पर लाद लिया, और वह शख़्स उठा और अपने मकान को चला गया।29और उसने घर पहुँच कर छुरी ली, और अपनी हरम को लेकर उसके आ'ज़ा काटे और उसके बारह टुकड़े करके इस्राईल की सब सरहदों में भेज दिए।30और जितनों ने यह देखा, वह कहने लगे कि जब से बनी-इस्राईल मुल्क-ए-मिस्र से निकल आए, उस दिन से आज तक ऐसा बुरा काम न कभी हुआ न कभी देखने में आया,~इसलिए~इस पर ग़ौर करो और सलाह करके बताओ।
1་तब सब बनी इस्राईल निकले और सारी जमा'अत जिल'आद के मुल्क समेत दान से बैरसबा' तक यकतन होकर ख़ुदावन्द के सामने मिस्फ़ाह में इकट्ठी हुई।2और तमाम क़ौम के सरदार बल्कि बनी इस्राईल के सब क़बीलों के लोग जो चार लाख शमशीर ज़न प्यादे थे, ख़ुदा के लोगों के मजमे' में हाज़िर हुए।3(और बनी बिनयमीन ने सुना कि बनी-इस्राईल मिसफ़ाह में आए हैं।) और बनी-इस्राईल पूछने लगे कि बताओ तो सही यह शरारत क्यूँकर हुई?4तब उस लावी ने जो उस मक़्तूल 'औरत का शौहर था जवाब दिया कि मैं अपनी हरम को साथ लेकर बिनयमीन के जिब'आ में टिकने को गया था।5और जिब'आ के लोग मुझ पर चढ़ आए, और रात के वक़्त उस घर को जिसके अन्दर मैं था चारों तरफ़ से घेर लिया, और मुझे तो वह मार डालना चाहते थे; और मेरी हरम को जबरन ऐसा बेआबरू किया कि वह मर गई।6~इसलिए~मैंने अपनी हरम को लेकर उसको टुकड़े टुकड़े किया, और उनको इस्राईल की मीरास के सारे मुल्क में भेजा, क्यूँकि इस्राईल के बीच उन्होंने शुहदापन और घिनौना काम किया है।7ऐ बनी-इस्राईल, तुम सब के सब देखो, और यहीं अपनी सलाह-ओ-मशवरत दो।8और सब लोग यकतन होकर उठे और कहने लगे, "हम में से कोई अपने डेरे को नहीं जाएगा, और न हम में से कोई अपने घर की तरफ़ रुख़ करेगा।9बल्कि हम जिब'आ से यह करेंगे, कि पर्ची डाल कर उस पर चढ़ाई करेंगे।10और हम इस्राईल के सब क़बीलों में से सौ पीछे दस, और हज़ार पीछे सौ, और दस हज़ार पीछे एक हज़ार आदमी लोगों के लिए रसद लाने को जुदा करें; ताकि वह लोग जब बिनयमीन के जिब'आ में पहुँचें, तो जैसा मकरूह काम उन्होंने इस्राईल में किया है उसके मुताबिक़ उससे कारगुज़ारी कर सकें।11तब~सब बनी-इस्राईल उस शहर के मुक़ाबिल गठे हुए यकतन होकर जमा' हुए।12और बनी-इस्राईल के क़बीलों ने बिनयमीन के सारे क़बीले में लोग रवाना किए और कहला भेजा कि यह क्या शरारत है जो तुम्हारे बीच हुई?13इसलिए अब उन आदमियों या'नी उन ख़बीसों को जो जिब'आ में हैं हमारे हवाले करो, कि हम उनको क़त्ल करें और इस्राईल में से बुराई को दूर कर डालें। लेकिन बनी बिनयमीन ने अपने भाइयों बनी इस्राईल का कहना न माना।14बल्कि बनी बिनयमीन शहरों में से जिब'आ में जमा' हुए, ताकि बनी-इस्राईल से लड़ने को जाएँ।15और बनी बिनयमीन जो शहरों में से उस वक़्त जमा' हुए, वह शुमार में छब्बीस हज़ार शमशीर ज़न शख़्स थे, 'अलावा जिब'आ के बाशिंदों के जो शुमार में सात सौ चुने हुए जवान थे|16~ इन सब लोगों में से सात सौ चुने हुए बेंहत्थे जवान थे, जिनमें से हर एक फ़लाख़न से बाल के निशाने पर बग़ैर ख़ता किए पत्थर मार सकता था।17और इस्राईल के लोग, बिनयमीन के 'अलावा, चार लाख शमशीर ज़न शख़्स थे, यह सब साहिब-ए-जंग थे।18और बनी-इस्राईल उठ कर बैतएल को गए और ख़ुदा से मश्वरत चाही और कहने लगे कि हम में से कौन बनी बिनयमीन से लड़ने को पहले जाए? ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "पहले यहूदाह जाए।"19~इसलिए~बनी-इस्राईल सुबह सवेरे उठे और जिब'आ के सामने डेरे खड़े किए।20और इस्राईल के लोग बिनयमीन से लड़ने को निकले, और इस्राईल के लोगों ने जिब'आ में उनके मुक़ाबिल सफ़आराई की।21तब बनी बिनयमीन ने जिब'आ से निकल कर उस दिन बाइस हज़ार इस्राईलियों को क़त्ल करके ख़ाक में मिला दिया।22लेकिन बनी-इस्राईल के लोग हौसला करके दूसरे दिन उसी मक़ाम पर जहाँ पहले दिन सफ़ बाँधी थी फिर सफ़आरा हुए।23~(और बनी-इस्राईल जाकर शाम तक ख़ुदावन्द के आगे रोते रहे; और उन्होंने ख़ुदावन्द से पूछा कि हम अपने भाई बिनयमीन की औलाद से लड़ने के लिए फिर बढ़े या नहीं? ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "उस पर चढ़ाई करो)।"24~इसलिए~बनी-इस्राईल दूसरे दिन बनी बिनयमीन के मुक़ाबले के लिए नज़दीक आए।25और उस दूसरे दिन बनी बिनयमीन उनके मुक़ाबिल जिब'आ से निकले और अठारह हज़ार इस्राईलियों को क़त्ल करके ख़ाक में मिला दिया, यह सब शमशीर ज़न थे।26तब सब बनी-इस्राईल और सब लोग उठे और बैतएल में आए और वहाँ ख़ुदावन्द के हुज़ूर बैठे रोते रहे, और उस दिन शाम तक रोज़ा रख्खा और सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियाँ ख़ुदावन्द के आगे पेश कीं।27और बनी-इस्राईल ने इस वजह से कि ख़ुदा के 'अहद का सन्दूक़ उन दिनों वहीं था,28और हारून के बेटे इली'अज़र का बेटा फ़ीन्हास उन दिनों उसके आगे खड़ा रहता था, ख़ुदावन्द से पूछा कि मैं अपने भाई बिनयमीन की औलाद से एक दफ़ा' और लड़ने को जाऊँ या रहने दूँ? ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि जा, मैं कल उसको तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा।29~इसलिए~बनी-इस्राईल ने जिब'आ के चारों तरफ़ लोगों को घात में बिठा दिया।30और बनी-इस्राईल तीसरे दिन बनी बिनयमीन के मुक़ाबिले को चढ़ गए, और पहले की तरह जिब'आ के मुक़ाबिल फिर सफ़आरा हुए।31और ~बनी बिनयमीन इन लोगों का सामना करने ~निकले, और शहर से दूर खिंचे चले गए; और उन शाहराहों पर जिनमें से एक बैतएल को और दूसरी मैदान में से जिब'आ को जाती थी, पहले की तरह लोगों को मारना और क़त्ल करना शुरू' किया और इस्राईल के तीस आदमी के क़रीब मार डाले |32और बनी बिनयमीन कहने लगे कि वह पहले की तरह हम से मग़लूब हुए। लेकिन बनी-इस्राईल ने कहा, "आओ, भागें और उन को शहर से दूर शाहराहों पर खींच लाएँ।"33तब सब इस्राईली शख़्स अपनी अपनी जगह से उठ खड़े हुए, और बा'ल तमर में सफ़आरा हुए; इस वक़्त वह इस्राइली जो कमीन में बैठे थे, मा'रे जिब'आ से जो उनकी जगह थी निकले।34और सारे इस्राईल में से दस हज़ार चुने हुए आदमी जिब'आ के सामने आए और लड़ाई सख़्त होने लगी; लेकिन उन्होंने न जाना कि उन पर आफ़त आने वाली है।35और ख़ुदावन्द ने बिनयमीन को इस्राईल के आगे मारा, और बनी-इस्राईल ने उस दिन पच्चीस हज़ार एक सौ बिनयमीनियों को क़त्ल किया, यह सब शमशीर ज़न थे।36~तब बनी बिनयमीन ने देखा कि वह मग़लूब हुए क्यूँकि इस्राइली~शख़्स उन लोगों का भरोसा करके जिनकी उन्होंने जिब'आ के ख़िलाफ़ घात में बिठाया था, बिनयमीन के सामने से हट गए।37तब कमीन वालों ने जल्दी की और जिब'आ पर झपटे, और इन कमीन वालों ने आगे बढ़कर सारे शहर को बर्बाद किया।38और इस्राइली आदमियों और उन कमीनवालों में यह निशान मुक़र्रर हुआ था, कि वह ऐसा करें कि धुवें का बहुत बड़ा बादल शहर से उठाएँ।39इसलिए~इस्राइली शख़्स लड़ाई में हटने लगे और बिनयमीन ने उनमें से क़रीब तीस के आदमी क़त्ल कर दिए क्यूँकि उन्होंने कहा कि वह यक़ीनन हमारे सामने मग़लूब हुए जैसे पहली लड़ाई में।40लेकिन जब धुएँ के सुतून में बादल सा उस शहर से उठा, तो बनी बिनयमीन ने अपने पीछे निगाह की और क्या देखा कि शहर का शहर धुवें में आसमान को उड़ा जाता है।41फिर तो इस्राइली~शख़्स पलटे और बिनयमीन के लोग हक्का-बक्का हो गए, क्यूँकि उन्होंने देखा कि उन पर आफ़त आ पड़ी।42~इसलिए~उन्होंने इस्राइली शख़्सों के आगे पीठ फेर कर वीराने की की राह ली; लेकिन लड़ाई ने उनका पीछा न छोड़ा, और उन लोगों ने जो और शहरों से आते थे उनको उनके बीच में फ़ना कर दिया।43यूँ उन्होंने बिनयमीनियों को घेर लिया और उनको दौड़ाया, और मशरिक़ में जिब'आ के मुक़ाबिल उनकी आराम गाहों में उनको लताड़ा।44~इसलिए~अठारह हज़ार बिनयमीनी मारे गए, यह सब सूर्मा थे।45और वह लौट कर रिम्मोन की चट्टान की तरफ़ वीराने में भाग गए; लेकिन उन्होंने शाहराहों में चुन-चुन कर उनके पाँच हज़ार और मारे और जिदोम तक उनको ख़ूब दौड़ा कर उनमें से दो हज़ार~शख़्स और मार डाले।46~इसलिए सब बनी बिनयमीन जो उस दिन मारे गए पच्चीस हज़ार शमशीर ज़न शख़्स थे, और यह सब के सब सूर्मा थे।47लेकिन छ: सौ आदमी लौट कर और वीराने की तरफ़ भाग कर रिम्मोन की चट्टान को चल दिए, और रिम्मोन की चट्टान में चार महीने रहे।48और इस्राईली~शख़्स~लौट कर फिर बनी बिनयमीन पर टूट पड़े, और उनको बर्बाद किया, या'नी सारे शहर और चौपायों और उन सब को जो उनके हाथ आए। और जो-जो शहर उनको मिले उन्होंने उन सबको फूँक दिया।
1और इस्राईल के लोगों ने मिस्फ़ाह में क़सम खाकर कहा था कि हम में से कोई अपनी बेटी किसी बिनयमीनी को न देगा।2और लोग बैतएल में आए, और शाम तक वहाँ ख़ुदा के आगे बुलन्द आवाज़ से ज़ार ज़ार रोते रहे,3और उन्होंने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा! इस्राईल में ऐसा क्यूँ हुआ, कि इस्राईल में से आज के दिन एक क़बीला कम हो गया?"4और दूसरे दिन वह लोग सुबह सवेरे उठे और उस जगह एक मज़बह बना कर सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं।5और बनी-इस्राईल कहने लगे कि इस्राईल के सब क़बीलों में ऐसा कौन है जो ख़ुदावन्द के हुज़ूर जमा'अत के साथ नहीं आया क्यूँकि उन्होंने सख़्त क़सम खाई थी कि जो ख़ुदावन्द के सामने मिस्फ़ाह में हाज़िर न होगा वह ज़रूर क़त्ल किया जाएगा।6इसलिए बनी-इस्राईल अपने भाई बिनयमीन की वजह से पछताए और कहने लगे कि आज के दिन बनी-इस्राईल का एक क़बीला कट गया।7और वह जो बाक़ी रहे हैं, हम उनके लिए बीवियों की निस्बत क्या करें? क्यूँकि हम ने तो ख़ुदावन्द की क़सम खाई है कि हम अपनी बेटियाँ उनको नहीं ब्याहेंगे।8~इसलिए वह कहने लगे कि बनी-इस्राईल में से वह कौन सा क़बीला है जो मिस्फ़ाह में ख़ुदावन्द के सामने नहीं आया? और देखो, लश्कर गाह में जमा'अत में शामिल होने के लिए यबीस जिल'आद से कोई नहीं आया था।9क्यूँकि जब लोगों का शुमार किया गया तो यबीस जिल'आद के बाशिंदों में से वहाँ कोई नहीं मिला।10तब जमा'अत ने बारह हज़ार सूर्मा रवाना किए और उनको हुक्म दिया कि जाकर याबीस जिल'आद के बाशिंदों को 'औरतों और बच्चों समेत क़त्ल करो।11और जो तुम को करना होगा वह यह है, कि सब~शख़्सों~और ऐसी 'औरतों को जो~शख़्ससे वाक़िफ़ हो चुकी हों हलाक कर देना।12और उनको यबीस जिल'आद के बाशिंदों में चार सौ कुँवारी 'औरतें मिलीं जो~शख़्स से नावाक़िफ़ और अछूती थीं, और वह उनको मुल्क-ए-कन'आन में सैला की लश्करगाह में ले आए।13तब सारी जमा'अत ने बनी बिनयमीन को जो रिम्मोन की चट्टान में थे कहला भेजा, और सलामती का पैग़ाम उनको दिया।14तब बिनयमीनी लौटे; और उन्होंने वह 'औरतें उनको दे दीं, जिनको उन्होंने यबीस जिल'आद की 'औरतों में से ज़िन्दा बचाया था, लेकिन वह उनके लिए बस न हुई।15और लोग बिनयमीन की वजह से पछताए, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल के क़बीलों में रख़ना डाल दिया था।16तब जमा'अत के बुज़ुर्ग कहने लगे किउनके लिए जो बच रहे हैं बीवियों की निस्बत हम क्या करें, क्यूँकि बनी बिनयमीन की सब 'औरतें मिट गई?17~इसलिए उन्होंने कहा, 'बनी बिनयमीन के बाक़ी मान्दा लोगों के लिए मीरास ज़रूरी है, ताकि इस्राईल में से एक क़बीला मिट न जाए।18~तो भी हम तो अपनी बेटियां उनको ब्याह नहीं सकते; क्यूँकि बनी-इस्राईल ने यह कहकर क़सम खाई थी, कि जो किसी बिनयमीनी को बेटी दे वह ला'नती हो।19फिर वह कहने लगे, "देखो, सैला में जो बैतएल के उत्तर में, और उस शाहराह की मशरिक़ी तरफ़ में है जो बैतएल से सिक्म को जाती है, और लबूना के दख्खिन में है, साल-ब-साल खुदावन्द की एक 'ईद होती है।"20तब उन्होंने बनी बिनयमीन को हुक्म दिया कि जाओ, और ताकिस्तानों में घात लगाए बैठे रहो;21और देखते रहना, कि अगर सैला की लड़कियाँ नाच नाचने को निकलें, तो तुम ताकिस्तानों में से निकलकर सैला की लड़कियों में से एक एक बीवी अपने अपने लिए पकड़ लेना, और बिनयमीन के मुल्क को चल देना।22और जब उनके बाप या भाई हम से शिकायत करने को आएँगे, तो हम उनसे कह देंगे कि उनको महेरबानी से हमें 'इनायत करो, क्यूँकि उस लड़ाई में हम उनमें से हर एक के लिए बीवी नहीं लाए; और तुम ने उनको अपने आप नहीं दिया, वरना तुम गुनहगार होते।23~ग़रज़ बनी बिनयमीन ने ऐसा ही किया, और अपने शुमार के मुताबिक़ उनमें से जो नाच रही थीं जिनको पकड़ कर ले भागे, उनको ब्याह लिया और अपनी मीरास को लौट गए, और उन शहरों को बना कर उनमें रहने लगे।24तब बनी-इस्राईल वहाँ से अपने अपने क़बीले और घराने को चले गए, और अपनी मीरास को लौटे।25और उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह न था; हर एक शख़्स जो कुछ उसकी नज़र में अच्छा मा'लूम होता था वही करता था।
1उन ही दिनों में जब क़ाज़ी इन्साफ़ किया करते थे, ऐसा हुआ कि~उस सरज़मीन में काल पड़ा, बैतलहम का एक आदमी अपनी बीवी और दो बेटों को लेकर चला कि मोआब के मुल्क में ~जाकर बसे।2उस आदमी का नाम इलीमलिक और उसकी बीवी का नाम न'ओमी उसके दोनों बेटों के नाम महलोन~और किलयोन थे।ये यहूदाह के बैतलहम के इफ़्राती थे। तब वह मोआब के मुल्क में आकर रहने लगे।3और न'ओमी का शौहर इलीमलिक मर गया, वह और उसके दोनों बेटे बाक़ी रह गए।4उन दोनों ने एक एक मोआबी ''औरत ब्याह ली।~इनमें से एक का नाम 'उर्फ़ा और दूसरी का रूत था;और वह दस बरस के क़रीब वहाँ रहे।5और महलोन और किलयोन दोनों मर गए ,तब वह 'औरत अपने दोनों बेटों और शौहर से महरूम हो ~गई।6तब वह अपनी दोनों बहुओं को लेकर उठी कि मोआब के मुल्क से लौट जाएँ इसलिए कि उस ने मोआब के मुल्क में यह हाल सुना कि ख़ुदावन्द ने अपने लोगों को रोटी दी और यूँ उनकी ख़बर ली।7इसलिए वह उस जगह से जहाँ वह थी, दोनों बहुओं को साथ लेकर चल निकली,और वह सब यहूदाह की सरज़मीन को लौटने के लिए रास्ते पर हो लीं|8और न'ओमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, "दोनों अपने अपने मैके को जाओ। जैसा तुम ने मरहूमों के साथ और मेरे साथ किया,वैसा ही ख़ुदावन्द तुम्हारे साथ मेहरबानी से पेश आए।9ख़ुदावन्द यह करे कि तुम को अपने अपने शौहर के घर में आराम मिले| तब उसने उनको चूमा और वह ज़ोर-ज़ोर से~रोने लगीं।10~फिर उन दोनों ने उससे कहा,~"नहीं! बल्कि हम तेरे साथ लौट कर तेरे लोगों में जाएँगी।”11~न'ओमी ने कहा, "ऐ मेरी बेटियों, लौट जाओ! मेरे साथ क्यूँ चलो? क्या मेरे रिहम में और बेटे हैं जो तुम्हारे शौहर हों?12ऐ मेरी बेटियों, लौट जाओ! अपना रास्ता लो, क्यूँकि मैं ज़्यादा बुढ़िया हूँ और शौहर करने के लायक़ नहीं।अगर मैं कहती कि मुझे उम्मीद है बल्कि अगर आज ~की रात मेरे पास शौहर भी होता, और मेरे लड़के पैदा होते;13तो भी क्या तुम उनके बड़े होने तक इंतज़ार करतीं ~और शौहर कर लेने से बाज़ रहतीं ?नहीं मेरी बेटियों मैं तुम्हारी वजह से ज़ियादा दुखी हूँ इसलिए कि ख़ुदावन्द का हाथ मेरे ख़िलाफ़ बढ़ा हुआ है14वह फिर ~ज़ोर ज़ोर से रोईं,और उर्फ़ा ने अपनी सास को चूमा लेकिन रूत उससे लिपटी रही।15तब उसने कहा, जिठानी अपने ~कुन्बे और अपने मा'बूद के पास लौट गई; तू भी अपनी जिठानी के पीछे चली जा |"16रुत ~ने कहा, "तू मिन्नत न कर कि मैं तुझे छोडूं और तेरे पीछे से लौट जाऊँ; क्यूँकि जहाँ तू जाएगीं मै जाऊँगी और जहाँ तू रहेगी ~मैं रहूँगी,| तेरे लोग मेरे लोग और तेरा ख़ुदा मेरा ख़ुदा होगा।17जहाँ तू मरेगी मैं मरूँगीं और वहीं दफ़्न भी हूँगी; ख़ुदावन्द मुझ से ऐसा ही बल्कि इस से भी ज़्यादा करे,अगर मौत के अलावा कोई और चीज़ मुझ को तुझ से जुदा न कर दे।”18~जब उसने देखा कि उसने उसके साथ चलने की ठान ली है,तो उससे और कुछ न कहा।19इसलिए वह~दोनों चलते चलते बैतलहम में आईं। जब वह बैतलहम में दाख़िल हुई तो सारे शहर में धूम मची,और 'औरतें ~कहने लगीं, कि क्या ये न'ओमी है ?|20उसने उनसे कहा, "मुझ को न'ओमी ~नहीं बल्कि मारह कहो, कि क़ादिर-ए-मुतलक मेरे साथ बहुत तल्ख़ी से पेश आया है।21मैं भरी पूरी गई, ख़ुदावन्द मुझ को ख़ाली लौटा लाया। इसलिए तुम क्यूँ मुझे न'ओमी कहती हो, हालाँकि ख़ुदावन्द मेरे ख़िलाफ़ दा'वेदार हुआ और क़ादिर-ए-मुतलक ने मुझे दुख दिया ?”22~ग़रज़ ~न'ओमी ~लौटी और उसके साथ उसकी बहू मोआबी रूत थी, जो मोआब के मुल्क से यहाँ आई। और वह दोनों जौ काटने के मौसम में बैतलहम में दाख़िल हुईं |
1और न'ओमी के शौहर का एक रिश्तेदार था, जो इलीमलिक के घराने का और बड़ा मालदार था; और उसका नाम बो'अज़ था |2~इसलिए मोआबी रूत ने न'ओमी से कहा, "मुझे इजाज़त दे,तो मैं खेत में जाऊँ और जो कोई करम की नज़र मुझ पर करे,उसके पीछे पीछे बाले चुनूँ।"उस ने उससे कहा, " जा मेरी बेटी |"3~इसलिए वह गई और खेत में जाकर काटने ~वालों के पीछे बालें चुनने लगी, इत्तफ़ाक से वह बो'अज़ ही के खेत के हिस्से में जा पहुँची जो इलीमलिक के ख़ान्दान का था।4और बो'अज़ ने बैतलहम से आकर काटने वालों से कहा,ख़ुदावन्द ~तुम्हारे साथ हो |उन्होंने उससे जवाब दिया ख़ुदावन्द तुझे बरकत दे!"5फिर बो'अज़ ने अपने उस नौकर से जो काटने वालों पर मुक़र्रर था पूछा, किसकी लड़की है?"6उस नौकर ने जो काटने वालों पर मुक़र्रर था जवाब दिया, "ये वह मोआबी लड़की है जो न'ओमी के साथ मोआब के मुल्क से आई है | "7उस ने मुझ से कहा था,'कि मुझ को ज़रा काटने वालों के पीछे पूलियों के बीच बालें चुनकर जमा' करने दे इसलिए यह आकर सुबह से अब तक यहीं रही, सिर्फ़ ज़रा सी देर घर में ठहरी। थी "8तब बो'अज़ ने रूत से कहा, "ऐ मेरी बेटी! क्या तुझे सुनाई नहीं देता? तू दूसरे खेत में बालें चुनने को न जाना और न यहाँ से निकलना, मेरी लड़कियों के साथ साथ रहना |9इस खेत पर जिसे वह काटते हैं तेरी आखें जमी रहें और तू इन्ही के पीछे पीछे चलना। क्या मैंने इन जवानों को हुक्म नहीं किया कि वह तुझे न छुएँ? और जब तू प्यासी हो, बर्तनों के पास जाकर उसी पानी में से पीना जो मेरे जवानों ने भरा है।"10तब वह औधे मुँह गिरी और ज़मीन पर सरनगू होकर उससे कहा,क्या वजह है कि तू मुझ पर करम की नज़र करके मेरी ख़बर लेता है,हालाँकि मैं परदेसन हूँ?"11बो'अज़ ने उसे जवाब दिया,कि "जो कुछ तूने अपने शौहर के मरने के बा'द अपनी सास के साथ किया सब मुझे पूरे तौर पर बताया गया तूने कैसे अपने माँ-बाप और रहने की जगह को छोड़ा, उन लोगों में जिनको तू इससे पहले न जानती थी आई।12ख़ुदावन्द ~तेरे काम का बदला दे, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तरफ़ से,जिसके परों के नीचे तू पनाह के लिए आई है,तुझ को पूरा अज्र मिले।"13तब उसने कहा, "ऐ मेरे मालिक! तेरे करम की नज़र मुझ पर रहे,क्यूँकि तूने मुझे दिलासा दिया और मेहरबानी के साथ अपनी लौंडी से बातें कीं जब कि मैं तेरी लौंडियों में से एक के बराबर भी नहीं।"14फिर बो'अज़ ने उससे खाने के वक़्त कहा कि यहाँ आ और रोटी खा और अपना निवाला सिरके में भिगो। तब वह काटने वालों के पास बैठ गई,और उन्होंने भुना ~हुआ अनाज उसके पास कर दिया; तब उसने खाया और सेर हुई और कुछ रख छोड़ा।15और जब वह बालें चुनने उठी, तो बो'अज़ ने अपने जवानों से कहा कि उसे पूलियों के बीच में भी चुनने देना और उसे ~न डाँटना।16और उसके लिए गट्ठरों में से थोड़ा सा निकाल कर छोड़ देना, और उसे चुनने देना और झिड़कना मत |17इसलिए वह शाम तक खेत में चुनती रही, जो कुछ उसने चुना था उसे फटका और वह क़रीब एक ऐफ़ा जौ निकला।18और वह उसे उठा कर शहर में गई, जो कुछ उसने चुना था उसे उसकी सास ने देखा, और उसने वह भी जो उसने सेर होने के बाद रख छोड़ा था,निकालकर अपनी सास को दिया।19उसकी सास ने उससे पूछा,तूने आज कहाँ बालें चुनीं और कहाँ काम किया? मुबारक हो वह जिसने तेरी खबर ली।"तब ~उसने अपनी सास को बताया कि उसने किसके पास काम किया था, और कहा कि उस शख़्स का नाम,जिसके यहाँ आज मैंने काम किया बो'अज़ है |20न'ओमी ने अपनी बहू से कहा, :वह ख़ुदावन्द की तरफ़ से बरकत पाए, जिसने ज़िंदों और मुर्दों से अपनी मेहरबानी बा'ज़ न रखी!"और न'ओमी ने उससे कहा, ये शख़्स हमारे क़रीबी रिश्ते का है और हमारे नज़दीक के क़रीबी रिश्तेदारों में से एक है।”21मोआबी रूत ने कहा,उसने मुझ से ये भी कहा था कि तू मेरे जवानों के साथ रहना,जब तक वह मेरी सारी फ़स्ल काट न चुकें |22न'ओमी ने अपनी बहू रूत से कहा, मेरी बेटी ये अच्छा है कि तू उसकी लड़कियों के साथ जाया करे, और वह तुझे किसी और खेत में न पायें |23तब वह बालें चुनने के लिए जौ और गेहूँ की फ़सल के ख़ातिमे तक बो'अज़ की लड़कियों के साथ-साथ लगी रही;और वह अपनी सास के साथ रहती थी।
1फिर उसकी सास न'ओमी ने उससे कहा, "मेरी बेटी क्या मैं ~तेरे आराम की तालिब न बनूँ, जिससे तेरी भलाई हो?2और क्या बो'अज़ हमारा रिश्तेदार नहीं,जिसकी लड़कियों के साथ तू थी? देख वह आज की रात खलीहान में जौ फटकेगा।3इसलिए तू नहा-धोकर ख़ुश्बू लगा, अपनी पोशाक पहन और खलीहान को जा जब तक वह मर्द खा पी न चुके,तब तक तू अपने आप उस पर ज़ाहिर न करना |4जब वह लेट जाए, तो उसके लेटने की जगह को देख लेना; तब तू अन्दर जा कर और उसके पाँव खोलकर लेट जाना और जो ~कुछ तुझे करना मुनासिब है वह तुझ को बताएगा।"5उसने अपनी सास से कहा, "जो कुछ तू मुझ से कहती है, वह सब मैं करूँगी।"6फिर वह खलीहान को गई और जो कुछ उसकी सास ने हुक्म दिया था वह सब किया |7और जब बो'अज़ खा पी चुका, उसका दिल खुश हुआ; तो वह ग़ल्ले के ढेर की एक तरफ़ जाकर लेट गया। तब वह चुपके-चुपके आई और उसके पाँव खोलकर लेट गई।8और आधी रात को ऐसा हुआ कि वह मर्द डर गया,और उसने करवट ली और देखा कि एक ''औरत उसके पाँव के पास पड़ी है।9तब उसने पूछा, "तू कौन है?" उस ने कहा , "तेरी लौंडी रूत हूँ; इसलिए तू अपनी लौंडी पर अपना दामन फैला दे, क्यूँकि तू नज़दीक का क़रीबी रिश्तेदार ~है।"10उसने कहा, "तू ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक हो, ऐ मेरी बेटी क्यूँकि तूने शुरू' की तरह आख़िर में ज़्यादा मेहरबानी कर दिखाई कि तूने जवानों का चाहे अमीर हों या ग़रीब पीछा न किया |11अब ऐ मेरी बेटी, मत डर! मैं सब कुछ जो तू कहती है तुझ से करूँगा क्यूँकि मेरी क़ौम का तमाम शहर जानता है कि तू पाक दामन 'औरत है |12और यह सच है कि मैं नज़दीक का क़रीबी रिश्तेदार हूँ ,लेकिन एक और भी है जो क़रीब के रिश्तों ~में मुझ से ज़्यादा नज़दीक है।13~इस रात तू ठहरी रह, सुबह को अगर वह क़रीब के रिश्ते का हक़ अदा करना चाहे,तो ख़ैर वह क़रीब के रिश्ते का हक़ अदा करे; और अगर वह तेरे साथ क़रीबी रिश्ते का हक़ अदा करना न चाहे, तो ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम है मैं तेरे क़रीबी रिश्ते का हक़ अदा करूँगा। सुबह तक तो तू लेटी रह।”14इसलिए वह सुबह तक उसके पाँव के पास लेटी रही, और पहले इससे कि कोई एक दूसरे को पहचान सके उठ खड़ी हुई; क्यूँकि उसने कह दिया था कि ये ज़ाहिर होने न पाए कि खलीहान में ये 'औरत आई थी।15फिर उसने कहा,उस चादर को जो तेरे ऊपर है ला, और उसे थामे रह। ”जब उसने उसे थामा तो उसने जौ के छह पैमाने नाप कर उस पर लाद दिए| फिर वह शहर को चला गया।16फिर वह अपनी सास के पास आई तो उसने कहा ,"ऐ मेरी बेटी, तू कौन है?" तब उसने सब कुछ जो उस मर्द ने उससे किया था उसे बताया,17और कहने लगी कि मुझको उसने यह छ: पैमाने जौ के दिए, क्यूँकि उसने कहा, "तू अपनी सास के पास ख़ाली हाथ न जा।”18तब उसने कहा, "ऐ मेरी बेटी, जब तक इस बात के अंजाम का तुझे पता न लगे,तू चुप चाप बैठी रह इसलिए कि उस शख़्स को चैन न मिलेगा जब तक वह इस काम को आज ही तमाम न कर ले|"
1तब बो'अज़ फाटक के पास जाकर वहाँ बैठ गया और देखो जिस नज़दीक के क़रीबी रिश्ते का ज़िक्र बो'अज़ ने किया था वह आ निकला। उसने उससे कहा अरे भाई इधर आ! ज़रा यहाँ बैठ जा। तब वह उधर आकर बैठ गया।2~फिर उसने शहर के बुज़ुर्गों में से दस आदमियों को बुला कर कहा, "यहाँ बैठ जाओ।" तब वह बैठ गए।3तब उसने उस नज़दीक के क़रीबी रिश्तेदार से कहा, न'ओमी जो मोआब के मुल्क से लौट आई है ज़मीन के उस टुकड़े को जो हमारे भाई इलीमलिक का माल था बेचती है।4इसलिए मैंने सोचा कि तुझ पर इस बात को ज़ाहिर करके कहूँगा कि तू इन लोगों के सामने जो बैठे हैं और मेरी क़ौम के बुज़ुर्गों के सामने उसे मोल ले। अगर तू उसे छुड़ाता है तो छुड़ा और अगर नहीं छुड़ाता तो मुझे बता दे ताकि मुझ को मा'लूम हो जाए क्यूँकि तेरे अलावा और कोई नहीं जो उसे छुड़ाए और मैं तेरे बा'द हूँ। उसने कहा, "मैं छुड़ाऊँगा |"5तब बो'अज़ ने कहा, " जिस दिन तू वह ज़मीन न'ओमी के हाथ से मोल ले तो तुझे उसको मोआबी रूत के हाथ से भी जो मरहूम की बीवी है मोल लेना होगा ताकि उस मरहूम ~का नाम उसकी मीरास पर क़ायम करे।6तब उसके नज़दीक के क़रीबी रिश्तेदार ने कहा, " मै अपने लिए ~उसे छुड़ा नहीं सकता ~ऐसा न हो कि मैं अपनी मीरास ख़राब कर दूँ। उसके छुड़ाने का जो मेरा हक़ है उसे तू ले ले क्यूँकि मैं उसे छुड़ा नहीं सकता।"7और अगले ज़माने में इस्राईल में मु'आमिला पक्का करने के लिए छुड़ाने और बदलने के बारे में यह मा'मूल था कि आदमी अपनी जूती उतार कर अपने पड़ोसी को दे देता था। इस्राईल में तस्दीक़ करने का यही तरीक़ा था8तब उस नज़दीक के क़रीबी रिश्तेदार ने बो'अज़ से कहा, " तू आप ही उसे मोल ले ले। फिर उसने अपनी जूती उतार डाली।9और बो'अज़ ने बुज़ुर्गों और सब लोगों से कहा, " तुम आज के दिन गवाह हो कि मैंने इलीमलिक और किलयोन और महलोन का सब कुछ न'ओमी के हाथ से मोल ले लिया है।10सिर्फ़ इसके मैंने महलोन की बीवी मोआबी रूत को भी अपनी बीवी बनाने के लिए ख़रीद लिया है ताकि उस मरहूम के नाम को उसकी मीरास में क़ायम करूं और उस मरहूम का नाम उसके भाइयों और उसके मकान के दरवाज़े से मिट न जाए तुम आज के दिन गवाह हो।”11तब सब लोगों ने जो फाटक पर थे और उन बुज़ुर्गों ने कहा कि हम गवाह हैं। ख़ुदावन्द उस 'औरत को जो तेरे घर में आई है राख़िल और लियाह की तरह करे जिन दोनों ने इस्राईल का घर आबाद किया और तू इफ़्राता ~में भलाई का काम करे, और बैतलहम में तेरा नाम हो12और तेरा घर उस नसल से जो ख़ुदावन्द तुझे इस 'औरत से दे फ़ारस के घर की तरह हो जो यहूदाह से तमर के हुआ |13इसलिए बो'अज़ ने रूत को लिया और वह उसकी बीवी बनी और उसने उससे सोहबत की और ख़ुदावन्द के फ़ज़ल से वह हामिला हुई और उसके बेटा हुआ।14और 'औरतों ने न'ओमी से कहा, " ख़ुदावन्द मुबारक हो जिसने आज के दिन तुझ को नज़दीक के क़रीबी रिश्ते ~के बग़ैर नहीं छोड़ा और उसका नाम इस्राईल में मशहूर हुआ |15और वह तेरे लिए तेरी जान का बहाल करनेवाला और तेरे बुढ़ापे का पालने वाला होगा क्यूँकि तेरी बहू जो तुझ से मुहब्बत रखती है और तेरे लिए सात बेटों से भी बढ़ कर है वह उसकी माँ है।16और न'ओमी ने उस लड़के को लेकर उसे अपनी छाती से लगाया और उसकी दाया बनी |17और उसकी पड़ोसनों ने उस बच्चे को एक नाम दिया और कहने लगीं न'ओमी के लिए बेटा पैदा हुआ इसलिए उन्होंने उसका नाम 'ओबेद रखा। वह यस्सी का बाप था जो दाऊद का बाप है।18~और फ़ारस का नसबनामा ये है फ़ारस से हसरोन पैदा हुआ19और हसरोन से राम पैदा हुआ और राम से 'अम्मीनदाब पैदा हुआ20और 'अम्मीनदाब से नहसोन पैदा हुआ और नहसोन से सलमोन पैदा हुआ,21~और सलमोन से बो'अज़ पैदा हुआ और बो'अज़ से 'ओबेद पैदा हुआ22और ओबेद से यस्सी पैदा हुआ और यस्सी से दाऊद पैदा हुआ |
1इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में रामातीम सोफ़ीम का एक शख़्स था जिसका नाम इल्क़ाना था | वह इफ़्राईमी था और यरोहाम बिन इलीहू बिन तूहू बिन सूफ़ का बेटा था |2उसके दो बीवियाँ थीं ,एक का नाम हन्ना था और दूसरी का फ़निन्ना :और फ़निन्ना के औलाद हुई लेकिन हन्ना बे औलाद थी|3यह शख़्स हर साल अपने शहर से सैला में रब्ब-उल-अफ़्वाज़ के हुज़ूर सज्दा करने क़ुर्बानी पेश करने को जाता था और एली के दोनों बेटे हुफ़्नी और फ़ीन्हास जो ख़ुदावन्द के काहिन थे वहीं रहते थे4और जिस दिन इल्क़ना क़ुर्बानी अदा करता वह अपनी बीवी फ़निन्ना को और उस के सब बेटे बेटियों को हिस्से देता था5लेकिन हन्ना को दूना हिस्सा दिया करता था इसलिए कि वह हन्ना को चाहता था लेकिन ख़ुदावन्द ने उसका रहम बंद कर रख्खा था6और उसकी सौत उसे कुढ़ाने के लिए बे तरह छेड़ती थी क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसका रहम बंद कर रख्खा था7और चूँकि वह हर साल ऐसा ही करता था जब वह ख़ुदावन्द के घर जाती इसलिए फ़निन्ना उसे छेड़ती थी चुनाँचे वह रोती खाना न खाती थी8इसलिए उसके ख़ाविंद इल्क़ना ने उससे कहा, ”ऐ हन्ना तू क्यूँ रोती है और क्यूँ नहीं खाती और तेरा दिल क्यूँ ग़मगीन है ?क्या मैं तेरे लिए दस बेटों से बढ़ कर नहीं ?”9और जब वह सैला में खा पी चुके तो हन्ना उठी; उस वक़्त ‘एली कहिन ख़ुदावन्द की हैकल की चौखट के पास कुर्सी पर बैठा हुआ था10और वह निहायत दुखी थी, तब वह ख़ुदावन्द से दु'आ करने और ज़ार ज़ार रोने लगी11और उसने मिन्नत मानी और कहा, "ऐ रब्ब-उल-अफ़वाज़ अगर तू अपनी लौंडी की मुसीबत पर नज़र करे और मुझे याद फ़रमाए और अपनी लौंडी को फ़रामोश न करे और अपनी लौंडी को फ़र्ज़न्द-ए-नरीना बख़्शे तो मैं उसे ज़िन्दगी भर के लिए ख़ुदावन्द को सुपुर्द कर दूँगी और उस्तरा उसके सर पर कभी न फिरेगा|"12और जब वह ख़ुदावन्द के सामने दु’आ कर रही थी, तो एली उसके मुँह को ग़ौर से देख रहा था|13और हन्ना तो दिल ही दिल में कह रही थी सिर्फ़ उसके होंट हिलते थे लेकिन उसकी आवाज़ नहीं सुनाई देती थी तब ~एली को गुमान हुआ कि वह नशे में है |14इसलिए एली ने उस से कहा, "कि तू कब तक नशे में रहेगी ?अपना नशा उतार |15हन्ना ने जवाब दिया "नहीं ऐ मेरे मालिक,मैं तो ग़मगीन औरत हूँ-मैंने न तो मय न कोई नशा पिया लेकिन ख़ुदावन्द के आगे अपना दिल उँडेला है |16तू अपनी लौंडी को ख़बीस 'औरत न समझ, मैं तो अपनी फ़िक्रों और दुखों के हुजूम के ज़रिए' अब तक बोलती रही|”17तब एली ने जवाब दिया, "तू सलामत जा और इस्राईल का ख़ुदा तेरी मुराद जो तूने उससे माँगी है पूरी करे |”18उसने कहा, ”तेरी ख़ादिमा पर तेरे करम की नज़र हो|” तब वह 'औरत चली गई और खाना खाया और फिर उसका चेहरा उदास न रहा |19और सुबह को वह सवेरे उठे और ख़ुदावन्द के आगे सज्दा किया और रामा को अपने घर लोट गये| और इल्क़ाना ने अपनी बीवी हन्ना से मुबाशरत की और ख़ुदावन्द ने उसे याद किया |20और ऐसा हुआ कि वक़्त पर हन्ना हामिला हुई और उस के बेटा हुआ और उस ने उसका नाम समुएल ~रख्खा क्यूँकि वह कहने लगी, “मैंने उसे ख़ुदावन्द से माँग कर पाया है |”21और वह शख़्स इल्क़ाना अपने सारे घराने के साथ ख़ुदावन्द के हुज़ूर सालाना क़ुर्बानी पेश करने और अपनी मिन्नत पूरी करने को गया |22लेकिन हन्ना न गई क्यूँकि उसने अपने ख़ाविंद से कहा, “जब तक लड़के का दूध छुड़ाया न जाए मैं यहीं रहूँगी और तब उसे लेकर जाऊँगी ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हो और फिर हमेशा वहीं रहे23और उस के खा़विन्द इल्क़ाना ने उससे कहा, जो तुझे अच्छा लगे ~वह कर |जब तक तू उसका दूध न छुड़ाये ठहरी रह सिर्फ़ इतना हो कि ~ख़ुदावन्द अपनी बात को बऱकरार रख्खे इसलिए वह 'औरत ठहरी रही और अपने बेटे को दूध छुड़ाने के वक़्त तक पिलाती रही |24और जब उस ने उसका दूध छुड़ाया तो उसे अपने साथ लिया और तीन बछड़े और एक एफ़ा आटा मय की एक मश्क अपने साथ ले गई ,और उस लड़के को सैला में ख़ुदावन्द के घर लाई ,और वह लड़का बहुत ही छोटा था25और उन्होंने एक बछड़े को ज़बह किया और लड़के को एली के पास लाए :26और वह कहने लगी, ऐ मेरे मालिक तेरी जान की क़सम ऐ मेरे मालिक मैं वही 'औरत हूँ जिसने तेरे पास यहीं खड़ी होकर ख़ुदावन्द से दु'आ की थी|27मैंने इस लड़के के लिए दु'आ की थी और ख़ुदावन्द ने मेरी मुराद जो मैंने उससे माँगी पूरी की |28इसी लिए मैंने भी इसे ख़ुदावन्द को दे दिया; यह अपनी ज़िन्दगी भर के लिए ख़ुदावन्द को दे दिया गया है "तब उसने वहाँ ख़ुदावन्द के आगे सिज्दा किया|
1और हन्ना ने दु'आ की और कहा, "मेरा दिल ख़ुदावन्द मैं ख़ुश है: मेरा सींग ख़ुदावन्द के तुफ़ैल से ऊँचा हुआ | मेरा मुँह मेरे दुश्मनों पर खुल गया है क्यूँकि मैं तेरी नजात से ख़ुश हूँ |2"ख़ुदावन्द की तरह कोई पाक नहीं क्यूँकि तेरे सिवा और कोई है ही नहीं और न कोई चटटान है जो हमारे ख़ुदा की तरह हो3इस क़दर ग़ुरूर से और बातें न करो और बड़ा बोल तुम्हारे मुहँ से न निकले; क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-'अलीम है, और 'आमाल का तोलने वाला है |4ताक़तवरों की कमाने टूट गईं और जो लड़खड़ाते थे वह ताक़त से कमर बस्ता हुए |5वह जो आसूदा थे रोटी की ख़ातिर मज़दूर बनें और जो भूके थे ऐसे न रहे, बल्कि जो बाँझ थी उस के साथ हुए, और जिसके पास बहुत बच्चे हैं वह घुलती जाती है |6ख़ुदावन्द मारता है और जिलाता है ;वही क़ब्र मैं उतारता और उससे निकालता है |7ख़ुदावन्द ग़रीब कर देता और दौलतमंद बनाता है, वही पस्त करता और बुलंद भी करता है |8वह ग़रीब को ख़ाक पर से उठाता, और कंगाल को घूरे में से निकाल खड़ा करता है ताकि इनको शहज़ादों के साथ बिठाए ,और जलाल के तख़्त का वारिस बनाए ;क्यूँकि ज़मीन के सुतून ख़ुदावन्द के हैं उसने दुनिया को उन ही पर क़ायम किया है |9"वह अपने मुक़द्दसों के पाँव को संभाले रहेगा, लेकिन शरीर अँधेरे मैं ख़ामोश किए जायेंगे क्यूँकि ताक़त ही से कोई फ़तह नहीं पाएगा |10जो ख़ुदावन्द से झगड़ते हैं वह टुकड़े टुकड़े कर दिए जाएँगे ;वह उन के ख़िलाफ़ आस्मान में गरजेगा ख़ुदावन्द ज़मीन के किनारों का इंसाफ करेगा: वह अपने बादशाह को ताक़त बख़्शेगा ,और अपने मम्सूह के सींग को बुलंद करेगा "11तब इल्क़ाना रामा को अपने घर चला गया; और एली काहिन के सामने वह लड़का ख़ुदावन्द की ख़िदमत करने लगा |12और एली के बेटे बहुत शरीर थे; उन्होंने ख़ुदावन्द को न पहचाना |13और कहिनों का दस्तूर लोगों के साथ यह था, कि जब कोई शख़्स क़ुर्बानी करता था तो काहिन का नोंकर गोश्त उबालने के वक़त एक सह्शाखा काँटा अपने हाथ मैं लिए हुए आता था;14और उसको कढ़ाह या दिग्चे या हांडे या हांड़ी में डालता और जितना गोश्त उस काँटे में लग जाता उसे काहिन अपने आप लेता था |यूँ ही वह सैला में सब इस्राईलियों से किया करते थे जो वहाँ आते थे15बल्कि चर्बी जलाने से पहले काहिन का नोकर आ मौजूद होता, और उस शख़्स से जो क़ुर्बानी पेश करता यह कहने लगता था, "काहिन के लिए कबाब के वास्ते गोश्त दे, क्यूँकि वह तुझ से उबला हुआ गोश्त नहीं बल्कि कच्चा लेगा|"16और अगर वह शख़्स यह कहता कि अभी वह चर्बी को ज़रूर जलायेंगे तब जितना तेरा जी चाहे ले लेना "तो वह उसे जवाब देता नहीं तू मुझे अभी दे नही तो मैं छीन कर ले जाऊँगा|"17इसलिए उन जवानों का गुनाह ख़ुदावन्द के सामने बहुत बड़ा था क्यूँकि लोग ख़ुदावन्द की क़ुर्बानी से नफ़रत करने लगे थे|18लेकिन समुएल जो लड़का था, कतान का अफ़ूद पहने हुए ख़ुदावन्द के सामने ख़िदमत करता था |19और उस की माँ उस के लिए एक छोटा सा जुब्बा बनाकर साल ब साल लाती जब वह अपने शौहर के साथ सालाना क़ुर्बानी पेश करने ~आती थी |20और एली ने इल्क़ाना और उस की बीवी को दु'आ दी और कहा, "ख़ुदावन्द तुझको इस 'औरत से उस क़र्ज़ के बदले में जो ख़ुदावन्द को दिया गया नसल दे|" फिर वह अपने घर गये |21और ख़ुदावन्द ने हन्ना पर नज़र की और वह हामिला हुई, और उसके तीन बेटे और दो बेटियाँ हुईं, और वह लड़का समुएल ख़ुदावन्द के सामने बढ़ता गया|22एली बहुत बुड्ढा हो गया था, और उसने सब कुछ सुना कि उसके बेटे सारे इस्राईल से क्या किया करते हैं और उन 'औरतों से जो ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के दरवाज़े पर ख़िदमत करती थी हम आग़ोशी करते हैं|23और उस ने उन से कहा, तुम ऐसा क्यूँ करते हो? क्यूँकि मैं तुम्हारी बदज़ातियाँ पूरी क़ौम से सुनता हूँ?24नहीं मेरे बेटों ये अच्छी बात नहीं जो मैं सुनता हूँ; तुम ख़ुदावन्द के लोगों से नाफ़रमानी कराते हो |25अगर एक आदमी दूसरे का गुनाह करे तो ख़ुदा उसका इंसाफ करेगा लेकिन अगर आदमी ख़ुदावन्द का गुनाह करे तो उस की शफ़ा'अत क़ौन करेगा?" बावजूद इसके उन्होंने अपने बाप का कहना न माना; क्यूँकि ख़ुदावन्द उनको मार डालना चाहता था|26और वह लड़का समुएल बढ़ता गया और ख़ुदावन्द और इन्सान दोनों का मक़बूल था|27तब एक नबी एली के पास आया और उससे कहने लगा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है क्या मैं तेरे आबाई ख़ानदान पर जब वह मिस्र में फिर'औन के ख़ानदान की ग़ुलामी में था ज़ाहिर नहीं हुआ?28और क्या मैंने उसे बनी इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन न लिया, ताकि वह मेरा काहिन हो और मेरे मज़बह के पास जाकर ख़ुशबू जलाये और मेरे सामने अफ़ूद पहने और क्या मैंने सब क़ुर्बानियाँ जो बनी इस्राईल आग से अदा करते है तेरे बाप को न दी?29तब तुम क्यूँ मेरे उस क़ुर्बानी और हदिये को जिनका हुक्म मैंने अपने घर में दिया लात मारते हो ?और क्यूँ तू अपने बेटों की मुझ से ज़्यादा 'इज़्ज़त करता है, ताकि तुम मेरी क़ौम इस्राईल के अच्छे से अच्छे हदियों को खाकर मोटे बनो|30इसलिए ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि मैंने तो कहा, था कि तेरा घराना और तेरे बाप का घराना हमेशा मेरे सामने चलेगा लेकिन अब ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि यह बात अब मुझ से दूर हो, क्यूँकि वह जो मेरी 'इज़्ज़त करते है मैं उन की 'इज़्ज़त करूँगा लेकिन वह जो मेरी हिक़ारत करते है बेक़द्र होंगे31देख वह दिन आते हैं कि मैं तेरा बाज़ू और तेरे बाप के घराने का बाज़ू काट डालूँगा, कि तेरे घर में कोई बुड्ढा होने न पाएगा |32और तू मेरे घर की मुसीबत देखेगा बावजूद उस सारी दौलत के जो ख़ुदा इस्राईल को देगा और तेरे घर में कभी कोई बुड्ढा होने न पाएगा33और तेरे जिस आदमी को मैं अपने मज़बह से काट नहीं डालूँगा वह तेरी आँखों को घुलाने और तेरे दिल को दुख देने के लिए रहेगा और तेरे घर की सब बढ़ती अपनी भरी जवानी में मर मिटेगी|34और जो कुछ तेरे दोनों बेटों हुफ़्नी फ़ीन्हास पर नाज़िल होगा वही तेरे लिए निशान ठहरेगा; वह दोनों एक ही दिन मर जाएँगे |35और मैं अपने लिए एक वफ़ादार काहिन पैदा करूँगा जो सब कुछ मेरी मर्ज़ी और मंशा के मुताबिक़ करेगा, और मैं उस के लिए एक पायदार घर बनाऊँगा और वह हमेशा मेरे मम्सूह के आगे आगे चलेगा36और ऐसा होगा की हर एक शख्स़ जो तेरे घर में बच रहेगा, एक टुकड़े चाँदी और रोटी के एक टुकड़े के लिए उस के सामने आकर सिज्दा करेगा और कहेगा, कि कहानत का कोई काम मुझे दीजिए ताकि मैं रोटी का निवाला खा सकूँ|"
1और वह लड़का समुएल एली के सामने ख़ुदावन्द की ख़िदमत करता था, और उन दिनों ख़ुदावन्द का कलाम गिराँक़द्र था कोई ख़्वाब ज़ाहिर न होता था |2और उस वक़्त ऐसा हुआ कि जब एली अपनी जगह लेटा था उस की ऑंखें धुन्द्लाने लगी थी,और वह देख नहीं सकता था |3और ख़ुदा का चराग़ अब तक बुझा नहीं था और समुएल ख़ुदावन्द की हैकल में जहाँ ख़ुदा का संदूक़ था लेटा हुआ था4तो ख़ुदावन्द ने समुएल को पुकारा; उसने कहा, "मैं हाज़िर हूँ|"5और वह दौड़ कर एली के पास गया और कहा, "तूने मुझे पुकारा इसलिए में हाज़िर हूँ "उसने कहा, "मैंने नहीं पुकारा फिर लेट जा इसलिए वह जाकर लेट गया |6और ख़ुदावन्द ने फिर पुकारा "समुएल|" समुएल उठ कर एली के पास गया और कहा, "तूने मुझे पुकारा इसलिए मैं हाज़िर हूँ |"उसने कहा, "ऐ,मेरे बेटे मैंने नहीं पुकारा; फिर लेट जा|"7और समुएल ने अभी ख़ुदावन्द को नही पहचाना था और न ख़ुदावन्द का कलाम उस पर ज़ाहिर हुआ था |8फिर ख़ुदावन्द ने तीसरी दफ़ा समुएल को पुकारा और वह उठ कर एली के पास गया और कहा, "तूने मुझे पुकारा इसलिए में हाज़िर हूँ "तब एली जान गया कि ख़ुदावन्द ने उस लड़के को पुकारा |9इसलिए एली ने समुएल से कहा, "जा लेट रह और अगर वह तुझे पुकारे तो तू कहना ऐ ख़ुदावन्द फ़रमा; क्यूँकि तेरा बन्दा सुनता है|" तब समुएल जाकर अपनी जगह पर लेट गया10तब ख़ुदावन्द आ मौजूद हुआ, और पहले की तरह पुकारा "समुएल, समुएल" समुएल ने कहा, "फ़रमा, क्यूँकि तेरा बन्दा सुनता है|"11ख़ुदावन्द ने समुएल से कहा, "देख मैं इस्राईल में ऐसा काम करने पर हूँ जिस से हर सुनने वाले के कान भन्ना जाएँगे|12उस दिन मैं एली पर सब कुछ जो मैंने उस के घराने के हक़ में कहा है शुरू' से आख़िर तक पूरा करूँगा13क्यूँकि मैं उसे बता चुका हूँ कि मैं उस बदकारी की वजह से जिसे वह जानता है हमेशा के लिए उसके घर का ~फ़ैसला करूँगा क्यूँकि उसके बेटों ने अपने ऊपर ला'नत बुलाई और उसने उनको न रोका |14इसी लिए एली के घराने के बारे में मैंने क़सम खाई कि एली के घराने की बदकारी न तो कभी किसी ज़बीहा से साफ़ होगी न हदिये से|"15और समुएल सुबह तक लेटा रहा; तब उसने ख़ुदावन्द के घर के दरवाज़े खोले और समुएल एली पर ख़्वाब ज़ाहिर करने से डरा |16तब एली ने समुएल को बुलाकर कहा, "ऐ मेरे बेटे समुएल" उसने कहा, "मैं ~हाज़िर हूँ|"17तब उसने पूछा वह "क्या बात है जो ख़ुदावन्द ने तुझ से कही हैं? मैं तेरी मिन्नत करता हूँ उसे मुझ से पोशीदा न रख ,अगर तू कुछ भी उन बातों में से जो उसने तुझ से कहीं हैं छिपाए तो ख़ुदा तुझ से ऐसा ही करे बल्कि उससे भी ज़्यादा|"18तब समुएल ने उसको पूरा हाल बताया और उससे कुछ न छिपाया, उसने कहा, "वह ख़ुदावन्द है जो वह भला जाने वह करे|"19और समुएल बड़ा होता गया और ख़ुदावन्द उसके साथ था और उसने उसकी बातों में से किसी को मिट्टी में मिलने न दिया |20और सब बनी इस्राईल ने दान से बैरसबा' तक जान लिया कि समुएल ख़ुदावन्द का नबी मुक़र्रर हुआ |21और ख़ुदावन्द सैला में फिर ज़ाहिर हुआ, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने आप को सैला में समुएल पर अपने कलाम के ज़रिए' से ज़ाहिर किया
1और समुएल की बात सब इस्राईलीयों के पास पहुँची, और इसराईली फ़िलिस्तियों से लड़ने को निकले और इब्न-ए-'अज़र के आस पास डेरे लगाए और फ़िलिस्तियों ने अफ़ीक़ में ख़ेमे खड़े किए |2और फ़िलिस्तियों ने इस्राईल के मुक़ाबिले के लिए सफ़ आराई की और जब वह इकठ्ठा लड़ने लगे तो इस्राईलियों ने फिलिस्तियों से शिकस्त खाई; और उन्होंने उनके लश्कर में से जो मैदान में था क़रीबन चार हज़ार आदमी क़त्ल किए |3और जब लोग लश्कर गाह में फिर आए तो इस्राईल के बुज़ुर्गों ने कहा, "कि आज ख़ुदावन्द ने हमको फ़िलिस्तियों के सामने क्यूँ शिकस्त दी आओ हम ख़ुदावन्द के 'अहद का संदूक़ सैला से अपने पास ले आयें ताकि वह हमारे बीच आकर हमको हमारे दुशमनों से बचाए|"4तब उन्होंने सैला में लोग भेजे, और वह करुबियों के ऊपर बैठने वाले रब्ब-उल-अफ़्वाज ~के 'अहद के संदूक़ को वहाँ से ले आए और एली के दोनों बेटे हुफ़्नी और फ़ीन्हास ख़ुदा के 'अहद का संदूक़ के साथ वहाँ हाज़िर थे |5और जब ख़ुदावन्द के 'अहद का संदूक़ लश्कर गाह में आ पहुँचा तो सब इस्राईली ऐसे ज़ोर से ललकारने लगे, कि ज़मीन गूँज उठी |6और फ़िलिस्तियों ने जो ललकारने की आवाज़ सुनी तो वह कहने लगे, कि इन 'इब्रानियों की लश्कर गाह में इस बड़ी ललकार के शोर के क्या मा'ना हैं? "फिर उनको मा'लूम हुआ कि ख़ुदावन्द का संदूक़ लश्कर गाह में आया है |7तब फ़िलिस्ती डर गए क्यूँकि वह कहने लगे, "कि ख़ुदा लश्कर गाह में आया है और उन्होंने कहा, "कि हम पर बर्बादी है इस लिए कि इस से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ ~|8हम पर बर्बादी है ,ऐसे ज़बरदस्त मा'बूदों के हाथ से हमको क़ौन बचाएगा? यह वहीं मा'बूद हैं जिन्होंने मिस्रियों को वीराने में हर क़िस्म की बला से मारा |9ऐ फ़िलिस्तियों तुम मज़बूत हो और मर्दानगी करो ताकि तुम 'इब्रानियों के ग़ुलाम न बनो जैसे वह तुम्हारे बने बल्कि मर्दानगी करो और लड़ो|"10और फ़िलिस्ती लड़े और बनी इस्राईल ने शिकस्त खाई और हर एक अपने डेरे को भागा, और वहाँ बहुत बड़ी खूँरेज़ी हुई क्यूँकि तीस हज़ार इस्राईली पियादे वहाँ मारे गए|11और ख़ुदावन्द का संदूक़ छिन गया, और ‘एली के दोनों बेटे हुफ़्नी और फ़ीन्हास मारे गये |12और बिनयमीन का एक आदमी लश्कर में से दौड़ कर अपने कपड़े फाड़े और सर पर ख़ाक डाले हुए उसी दिन सैला में आ पहुँचा|13और जब वह पहुँचा तो एली रास्ते ~के किनारे कुर्सी पर बैठा इंतिज़ार कर रहा था क्यूँकि उसका दिल ख़ुदा के संदूक़ के लिए काँप रहा था और जब उस शख़्स ने शहर में आकर हाल ~सुनाया, तो सारा शहर चिल्ला उठा |14और एली ने चिल्लाने की आवाज़ सुनकर कहा, "इस हुल्लड़ की आवाज़ के क्या मा'ने हैं" और उस आदमी ने जल्दी की और आकर एली को हाल सुनाया|15और एली अठानवे साल का था और उसकी आँखें रह गई थीं और उसे कुछ नहीं सूझता था |16तब उस शख़्स ने एली से कहा,"मैं फ़ौज में से आता हूँ और मैं आज ही फ़ौज के बीच से भागा हूँ," उसने कहा, "ऐ मेरे बेटे क्या ~हाल रहा?"17उस ख़बर ~लाने वाले ने जवाब दिया इस्राईली फ़िलिस्तियों के आगे से भागे और लोगों में भी बड़ी खूँरेज़ी हुई और तेरे दोनों बेटे हुफ़्नी और फ़ीन्हास भी मर गये और ख़ुदा का संदूक़ छिन गया|"18जब उसने ख़ुदा के संदूक़ का ज़िक्र किया तो वह कुर्सी पर से पछाड़ खाकर फाटक के किनारे गिरा,और उसकी गर्दन टूट गई और वह मर गया क्यूँकि वह बुड्ढा और भारी आदमी था, वह चालीस बरस बनी इस्राईल का क़ाज़ी रहा|19और उसकी बहू, फ़ीन्हास की बीवी हमल से थी, और उसके जनने का वक़्त नज़दीक था और जब उसने यह ख़बरें सुनीं कि ख़ुदा का संदूक़ छिन गया और उसका ससुर और शौहर मर गये तो वह झुक कर जनी क्यूँकि दर्द ऐ ज़िह उसके लग गया था |20और उसने उसके मरते वक़्त उन 'औरतों ने जो उस के पास खड़ी थीं उसे कहा, "मत डर क्यूँकि तेरे बेटा हुआ है|" लेकिन उसने न जवाब दिया और न कुछ तवज्जुह की|21और उसने उस लड़के का नाम यकबोद रख्खा और कहने लगी,"कि हशमत इस्राईल से जाती रही|" इसलिए कि ख़ुदा का संदूक़ छिन गया था, और उसका ससुर और शौहर जाते रहे थे |22इसलिए उसने कहा, "हशमत इस्राईल से जाती रही, क्यूँकि ख़ुदा का संदूक़ छिन गया है|"
1और फ़िलिस्तियों ने ख़ुदा का संदूक़ छीन लिया और वह उसे इब्न-ए- 'अज़र से अशदुद को ले गए;2और फ़िलिस्ती ख़ुदा के संदूक़ को लेकर उसे दजोन के घर में लाए और दजोन के पास उसे रख्खा;3और अशदूदी जब सुबह को सवेरे उठे, तो देखा कि दजोन ख़ुदावन्द के संदूक़ के आगे औंधे मुहँ ज़मीन पर गिरा पड़ा है |तब उन्होंने दजोन को लेकर उसी की जगह उसे फिर खड़ा कर दिया |4फिर वह जो दूसरे दिन की सुबह को सवेरे उठे, तो देखा कि दजोन ख़ुदावन्द के संदूक़ के आगे औंधे मुहँ ज़मीन पर गिरा पड़ा है, और दजोन का सर और उसकी हथेलियाँ दहलीज़ पर कटी पड़ी थीं, सिर्फ़ दजोन का धड़ ही धड़ रह गया था;5तब दजोन के पुजारी और जितने दजोन के घर में आते हैं, आज तक अश्दूद में दजोन की दहलीज़ पर पाँव नहीं रखते |6तब ख़ुदावन्द का हाथ अशदूदियों पर भारी हुआ,और वह उनको हलाक करने लगा, और अशदूद और उसकी 'इलाक़े के लोगों को गिल्टियों से मारा |7और अशदूदियों ने जब यह हाल देखा तो कहने लगे, "कि इस्राईल के ख़ुदा का संदूक़ हमारे साथ न रहे, क्यूँकि उसका हाथ बुरी तरह हम पर और हमारे मा'बूद दजोन पर है|"8तब उन्होंने फ़िलिस्तियों के सब सरदारों को बुलवा कर अपने यहाँ जमा' किया और कहने लगे, "हम इस्राईल के ख़ुदा के संदूक़ को क्या करें?" उन्होंने जवाब दिया, "कि इस्राईल के ख़ुदा का संदूक़ जात को पहुँचाया जाए|" इसलिए वह इस्राईल के ख़ुदा के संदूक़ को वहाँ ले गए|9और जब वह उसे ले गए तो ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द का हाथ उस शहर के ख़िलाफ़ ऐसा उठा कि उस में बड़ी भारी हल चल मच गई; और उसने उस शहर के लोगों को छोटे से बड़े तक मारा और उनके गिल्टियाँ निकलने लगीं |10जब उन्होंने ख़ुदा का संदूक़ 'अक़्रून को भेज दिया |और जैसे ही ख़ुदा का संदूक़ 'अक़्रूून को पहुँचा,अक़्रूनी चिल्लाने लगे, "वह इस्राईल के ख़ुदा का संदूक़ हम में इसलिए लाए हैं, कि हमको और हमारे लोगों को मरवा डालें|"11तब उन्होंने फ़िलिस्तियों के सरदारों को बुलवा कर जमा'~किया और कहने लगे, "कि इस्राईल के ख़ुदा के संदूक़ को रवाना कर दो कि वह फिर अपनी जगह पर जाए, और हमको और हमारे लोगों को मार डालने न पाए|" क्यूँकि वहाँ सारे शहर में मौत की हलचल मच गई थी, और ख़ुदा का हाथ वहाँ बहुत भारी हुआ |12और जो लोग मरे नहीं वह गिल्टियों के मारे पड़े रहे, और शहर की फ़रियाद आसमान तक पहुँची |
1इसलिए ख़ुदावन्द का संदूक़ सात महीने तक फ़िलिस्तियों के मुल्क में रहा |2तब फ़िलिस्तियों ने काहिनों और नजूमियों को बुलवाया और कहा, "कि हम ख़ुदावन्द के इस संदूक़ को क्या करें? हमको बताओ कि हम क्या साथ कर के उसे उसकी जगह भेजें ?"3उन्होंने कहा, "कि अगर तुम इस्राईल के ख़ुदा के संदूक़ को वापस भेजते हो, तो उसे ख़ाली न भेजना बल्कि जुर्म की क़ुर्बानी उसके लिए ज़रूर ही साथ करना तब तुम शिफ़ा पाओगे और तुमको मा'लूम हो जाएगा कि वह तुम से किस लिए अलग नहीं होता|"4उन्होंने पूछा कि "वह जुर्म की क़ुर्बानी जो हम उसको दें क्या हो" उन्होंने जवाब दिया, "कि फ़िलिस्ती सरदारों के शुमार के मुताबिक़ सोने की पाँच गिल्टियाँ और सोने ही की पाँच चुहियाँ क्यूँकि तुम सब और तुम्हारे सरदार दोनों एक ही दुख में मुब्तिला हुए|5इसलिए तुम अपनी गिल्टियों की मूरतें और उन चूहियों की मूरतें, जो मुल्क को ख़राब करतीं हैं बनाओ और इस्राईल के ख़ुदा की बड़ाई करो; शायद यूँ वह तुम पर से और तुम्हारे मा'बूदों पर से और तुम्हारे मुल्क पर से अपना हाथ हल्का कर ले |6तुम क्यूँ अपने दिल को सख़्त करते हो, जेसे मिस्रियों ने और फिर'औन ने अपने दिल को सख़्त किया ?जब उसने उनके बीच 'अजीब काम किए, तो क्या उन्होंने लोगों को जाने न दिया और क्या वह चले न गये?7अब तुम एक नई गाड़ी बनाओ, और दो दूध वाली गायों को जिनके जुआ न लगा हो लो, और उन गायों को गाड़ी में जोतो और उनके बच्चों को घर लौटा लाओ|8और ख़ुदावन्द का संदूक़ लेकर उस गाड़ी पर रख्खो, और सोने की चीज़ों को जिनको तुम जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर साथ करोगे एक सन्दूक्चे में करके उसके पहलू में रख दो और उसे रवाना न कर दो कि चला जाए |9और देखते रहना, अगर वह अपनी ही सरहद के रास्ते बैत शम्स को जाए, तो उसी ने हम पर यह बलाए 'अज़ीम भेजीं और अगर नहीं तो हम जान लेंगे कि उसका हाथ हम पर नहीं चला, बल्कि यह हादसा जो हम पर हुआ इत्तिफ़ाक़ी था|"10तब उन लोगों ने ऐसा ही किया, और दो दूध वाली गायें लेकर उनको गाड़ी में जोता और उनके बच्चों को घर में बन्द कर दिया |11और ख़ुदवन्द के सन्दूक़ और सोने की चुहियों और अपनी गिल्टियों की मूरतों के संदूक्चे को गाड़ी पर रख दिया|12उन गायों ने बैत शम्स का सीधा रास्ता लिया, वह सड़क ही सड़क डकारती गईं, और दहने या बाएँ हाथ न मुड़ीं, और फ़िलिस्ती सरदार उनके पीछे-पीछे बैत शम्स की सरहद तक गये |13और बैत शम्स के लोग वादी में गेहूं की फ़सल काट रहे थे|उनहों ने जो आँख उठाई तो संदूक़ को देखा, और देखते ही ख़ुश हो गए |14और गाड़ी बैतशम्सी यशु 'अ के खेत में आकर वहाँ खड़ी हो गई, जहाँ एक बड़ा पत्थर था| तब उनहोंने गाड़ी की लकड़ियों को चीरा और गायों को सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश किया |15और लावियों ने ख़ुदावन्द के संदूक़ को और उस संदूक्चे को जो उसके साथ था, ~जिसमें सोने की चीजें थीं, नीचे उतारा और उनको उस बड़े पत्थर पर रख्खा| और बैत शम्स के लोगों ने उसी दिन ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं और ज़बीहे पेश किए|16जब उन पाँचों फ़िलिस्ती सरदारों ने यह देख लिया तो वह उसी दिन 'अक़्रून को लौट गए|17सोने की गिल्टियाँ जो फ़िलिस्तियों ने जुर्म की क़ुर्बानी के तौर ~पर ख़ुदावन्द को पेश कीं वह यह हैं, एक अशदूद की तरफ़ से ,एक ग़ज्ज़ा की तरफ़ से, एक अस्क़लोन की तरफ़ से ,एक जात की तरफ़ से, और एक 'अक़्रून की तरफ़ से |18और वह सोने की चुहियाँ फ़िलिस्तियों के उन पाँचो सरदारों के शहरों के शुमार के मुताबिक़ थीं, जो फ़सीलदार शहरों और दिहात के मालिक उस बड़े पत्थर तक थे जिस पर उन्होंने ख़ुदावन्द के संदूक़ को रख्खा था जो आज के दिन तक बैत शम्सी यशु'अ के खेत में मौजूद है |19और उसने बैत शम्स के लोगों को मारा इस लिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द के संदूक़ के अंदर झाँका था तब उसने उनके पचास हज़ार और सत्तर आदमी मार डाले, और वहाँ के लोगों ने मातम किया, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने उन लोगों को बड़ी वबा से मारा |20तब बैत शम्स के लोग कहने लगे, "कि किसकी मजाल है कि इस ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-क़ुद्दूस के आगे खड़ा हो? और वह हमारे पास से किस की तरफ़ जाए ?"21और उन्होंने क़रयत या'रीम के बाशिंदों के पास क़ासिद भेजे और कहला भेजा, कि फ़िलिस्ती ख़ुदावन्द के संदूक़ को वापस ले आए हैं इसलिये तुम आओ और उसे अपने यहाँ ले जाओ|
1तब क़रयत या'रीम के लोग आए और ख़ुदावन्द के संदूक़ को लेकर अबीनदाब के घर में जो टीले पर है, लाए, और उसके बेटे एली 'अज़र को पाक किया कि वह ख़ुदावन्द के संदूक़ की निगरानी करे |2और जिस दिन से संदूक़ क़रयत या'रीम में रहा, तब से एक मुद्दत हो गई, या'नी बीस बरस गुज़रे और इस्राईल का सारा घराना ख़ुदावन्द के पीछे नौहा करता रहा |3और समुएल ने इस्राईल के सारे घराने से कहा कि "अगर तुम अपने सारे दिल से ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरते हो तो ग़ैर मा'बूदों और ~'इस्तारात को अपने बीच से दूर करो और ख़ुदावन्द के लिए अपने दिलों को मुसत'इद करके सिर्फ़ उसकी 'इबादत करो, और वह फ़िलिस्तियों के हाथ से तुमको रिहाई देगा|"4तब बनी इस्राईल ने बा'लीम और 'इस्तारात को दूर किया, और सिर्फ़ ख़ुदावन्द की 'इबादत करने लगे |5फिर समुएल ने कहा कि "सब इस्राईल को मिस्फ़ाह में जमा' करो,और मैं तुम्हारे लिए ख़ुदावन्द से दु'आ करूंगा|"6तब ~वह सब मिस्फ़ाह में इकठ्ठा हुए और पानी भर कर ख़ुदावन्द के आगे उँडेला, और उस दिन रोज़ा रख्खा और वहाँ कहने लगे, कि "हमने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है |"और समुएल मिस्फ़ाह में बनी इस्राईल की 'अदालत करता था |7और जब फ़िलिस्तियों ने सुना कि बनी इस्राईल मिस्फ़ाह में इकट्ठे हुए हैं, तो उनके सरदारों ने बनी इस्राईल पर हमला किया, और जब बनी- इस्राईल ने यह सुना तो वह फ़िलिस्तियों से डरे|8और बनी-इस्राईल ने समुएल से कहा, "ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने हमारे लिए फ़रियाद करना न छोड़, ताकि वह हमको फ़िलिस्तियों के हाथ से बचाए|"9और समुएल ने एक दूध पीता बर्रा लिया और उसे पूरी सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने पेश किया, और समुएल बनी -इस्राईल के लिए ख़ुदावन्द के सामने फ़रियाद करता रहा और ख़ुदावन्द ने उस की सुनी |10और जिस वक़्त समुएल उस सोख़्तनी क़ुर्बानी को अदा कर रहा था उस वक़्त फ़िलिस्ती इस्रालियों से जंग करने को नज़दीक आए, लेकिन ख़ुदावन्द फ़िलिस्तियों के उपर उसी दिन बड़ी कड़क के साथ गरजा और उनको घबरा दिया; और उन्होंने इस्रालियों के आगे शिकस्त खाई |11और इस्राईल के लोगों ने मिस्फ़ाह से निकल कर फ़िलिस्तियों को दौड़ाया, और बैतकर्र के नीचे तक उन्हें मारते चले गए |12तब समुएल ने एक पत्थर ले कर उसे मिस्फ़ाह और शेन के बीच में खड़ा किया, और उसका नाम इब्न-ए-'अज़र यह कहकर रख्खा, कि यहाँ तक ख़ुदावन्द ने हमारी मदद की|"13इस लिए फ़िलिस्ती मग़लूब हुए और इस्राईल की सरहद में फिर न आए, और समुएल की ज़िन्दगी भर ख़ुदावन्द का हाथ फ़िलिस्तियों के ख़िलाफ़ रहा |14और~'अक़्रून से जात तक के शहर जिनको फ़िलिस्तियों ने इस्राईलियों से ले लिया था, वह फिर इस्रालियों के क़ब्ज़े में आए; और इस्राईलियों ने उनकी 'इलाक़ा भी फ़िलिस्तियों के हाथ से छुड़ा लिया और इस्राईलियों और अमोरियों में सुलह थी |15और समुएल अपनी ज़िन्दगी भर इस्राईलियों की 'अदालत करता रहा|16और वह हर साल बैतएल और जिल्जाल और मिस्फ़ाह में दौरा करता, और उन सब मक़ामों में बनी-इस्राईल की 'अदालत करता था |17फिर वह रामा को लौट आता क्यूँकि ~वहाँ उसका घर था, और वहाँ इस्राईल की 'अदालत करता था, और वहीं उसने ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बनाया |
1जब समुएल बुड्ढा हो गया, तो उसने अपने बेटों को इस्राईलियों के क़ाज़ी ठहराया |2उसके पहलौठे का नाम यूएल, और उसके दूसरे बेटे का नाम अबियाह था| वह दोनों बैरसबा' के क़ाज़ी थे |3लेकिन उसके बेटे उसकी रास्ते पर न चले, बल्कि वह नफ़ा' के लालच से रिश्वत लेते और इन्साफ़ का ख़ून कर देते थे |4तब सब इस्राईली बुज़ुर्ग जमा' होकर रामा में समुएल के पास आए |5और उससे कहने लगे "देख, तू ज़ई'फ़ है, और तेरे बेटे तेरी राह पर नही चलते; अब तो किसी को हमारा बादशाह मुक़र्रर करदे,जो और क़ौमों ~की तरह हमारी 'अदालत करे|"6लेकिन जब उन्होंने कहा, "कि हमको कोई बादशाह दे जो हमारी 'अदालत करे, तो यह बात समुएल को बुरी लगी,"और समुएल ने ख़ुदावन्द से दु'आ की |7और ख़ुदावन्द ने समुएल से कहा, कि "जो कुछ यह लोग तुझ से कहते हैं, तू उसको मान क्यूँकि उन्होंने तेरी नहीं बल्कि मेरी हिक़ारत की है कि मैं उनका बादशाह न रहूँ |8जैसे काम वह उस दिन से जब से में उनको मिस्र से निकाल लाया आज तक करते आए हैं,कि मुझे छोड़ करके और मा'बूदों की 'इबादत करते रहे हैं, वैसा ही वह तुझ से करते हैं|9इसलिए तू उसकी बात मान, तो भी तू संजीदगी से उनको ख़ूब जता दे और उनको बता भी दे, कि जो बादशाह उनपर हुकूमत करेगा उसका तरीक़ा कैसा होगा|"10और समुएल ने उन लोगों को जो उससे बादशाह के तालिब थे, ख़ुदावन्द की सब बातें कह सुनाईं |11और उसने कहा, कि जो बादशाह तुम पर हुकूमत करेगा उसका तरीक़ा यह होगा, कि वह तुम्हारे बेटों को लेकर अपने रथों के लिए और अपने रिसाले में नौकर रख्खेगा और वह उसके रथों के आगे आगे दौड़ेंगे |12और वह उनको हज़ार-हज़ार के सरदार और पचास-पचास के जमा'दार बनाएगा और कुछ से हल जुतवायेगा और फ़सल कटवाएगा और अपने लिए जंग के हथियार और अपने रथों के साज़ बनवाएगा |13और तुम्हारी बेटियों को लेकर गंधिन और बावरचिन और नानबज़ बनाएगा |14और तुम्हारे खेतों और ताकिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों को जो अच्छे से अच्छे होंगे लेकर अपने ख़िदमत गारों को 'अता करेगा ,|15और तुम्हारे खेतों और ताकिस्तानों का दसवाँ हिस्सा लेकर अपने ख़ोजों और ख़ादिमों को देगा |16और तुम्हारे नौकर चाकरों और लौंडियों और तुम्हारे ख़ूबसूरत जवानों और तुम्हारे गदहों को लेकर अपने काम पर लगाएगा |17और वह तुम्हारी भेड़ बकरियों का भी दसवाँ हिस्सा लेगा इस लिए तुम उसके ग़ुलाम बन जाओगे |18और तुम उस दिन उस बादशाह की वजह से जिसे तुमने अपने लिए चुना होगा, फ़रियाद करोगे पर उस दिन ख़ुदावन्द तुम को जवाब न देगा |19तो भी लोगों ने समुएल की बात न सुनी और कहने लगे, "नहीं हम तो बादशाह चाहते हैं जो हमारे ऊपर हो|20ताकि हम भी और सब क़ौमों की तरह हों और हमारा बादशाह हमारी 'अदालत करे, और हमारे आगे आगे चले और हमारी तरफ़ से लड़ाई करे|"21और समुएल ने लोगों की सब बातें सुनीं और उनको ख़ुदावन्द के कानों तक पहुँचाया|22और ख़ुदावन्द ने समुएल को फ़रमाया तू उनकी बात मान और उनके लिए एक बादशाह मुक़र्रर कर तब समुएल ने इस्राईल के लोगों से कहा कि तुम सब अपने अपने शहर को चले जाओ |
1और बिनयमीन के क़बीले का एक शख़्स था जिसका नाम क़ीस, बिन अबिएल, बिन सरोर, बिन बकोरत, बिन अफ़ीख़ था वह एक बिनयमीनी का बेटा और ज़बरदस्त सूरमा था|2उसका एक जवान और ख़ूबसूरत बेटा था जिसका नाम साऊल था, और बनी -इस्राईल के बीच उससे ख़ूबसूरत कोई शख़्स न था| वह ऐसा लम्बा था कि लोग उसके कंधे तक आते थे |3और साऊल के बाप क़ीस के गधे खो गए, इसलिए क़ीस ने अपने बेटे साऊल से कहा, "कि नौकरों में से एक को अपने साथ ले और उठ कर गधों को ढूँड ला|"4इसलिए वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क और सलीसा की सर ज़मीन से होकर गुज़रा, लेकिन वह उनको न मिले |तब वह सा'लीम की सर ज़मीन में गए और वह वहाँ भी न थे, फिर वह बिन यमीनियों के मुल्क में आए लेकिन उनको वहाँ ~भी न पाया|5जब वह सूफ़ के मुल्क में पहुँचे तो साऊल अपने नौकर से जो उसके साथ था कहने लगा, "आ हम लौट जाएँ, ऐसा न हो कि मेरा बाप गधों की फ़िक्र छोड़ कर हमारी फ़िक्र करने लगे|"6उसने उससे कहा, "देख इस शहर में एक नबी है जिसकी बड़ी 'इज़्ज़त होती है, जो कुछ वह कहता है, वह सब ज़रूर ही पूरा होता है| इसलिए हम उधर चलें, शायद वह हमको बता दे कि हम किधर जाएँ|"7साऊल ने अपने नौकर से कहा, "लेकिन देख अगर हम वहाँ चलें तो उस शख़्स के लिए क्या लेते जाएँ? रोटियाँ तो हमारे तोशेदान की हो चुकीं और कोई चीज़ हमारे पास है नहीं, जिसे हम उस नबी को पेश करें हमारे पास है किया?"8नौकर ने साऊल को जवाब दिया, "देख, पाव मिस्क़ाल चाँदी मेरे पास है, उसी को मैं उस नबी को दूँगा ताकि वह हमको रास्ता बता दे |"9अगले ज़माने में इस्राईलियों में जब कोई शख़्स ख़ुदा से मशवरा करने जाता तो यह कहता था, "कि आओ, हम ग़ैबबीन के पास चलें, "क्यूँकि जिसको अब नबी कहतें हैं, उसको पहले ग़ैबबीन कहते थे |10तब साऊल ने अपने नौकर से कहा, "तू ने क्या ख़ूब कहा, आ हम चलें इस लिए वह उस शहर को जहाँ वह नबी था चले|11और उस शहर की तरफ़ टीले पर चढ़ते हुए, उनको कई जवान लड़कियाँ ~मिलीं जो पानी भरने जाती थीं; उन्होंने उन से पूछा, "क्या ग़ैबबीन यहाँ है?"12उन्होंने उनको जवाब दिया, "हाँ है, देखो वह तुम्हारे सामने ही है, इसलिए जल्दी करो क्यूँकि वह आज ही शहर में आया है, इसलिए कि आज के दिन ऊँचे मक़ाम में लोगों की तरफ़ से क़ुर्बानी होती है|13जैसे ही तुम शहर में दाख़िल होगे, वह तुमको पहले उससे कि वह ऊँचे मक़ाम में खाना खाने जाए मिलेगा, क्यूँकि जब तक वह न पहुँचे लोग खाना नहीं खायेंगे, इसलिए कि वह क़ुर्बानी को बरकत देता है, उसके बा'द मेहमान खाते हैं ,इसलिए अब तुम चढ़ जाओ, क्यूँकि इस वक़्त वह तुमको मिल जाएगा|"14इसलिए वह शहर को चले और शहर में दाख़िल होते ही देखा कि समुएल उनके सामने आ रहा है कि वह ऊँचे मक़ाम को जाए |15और ख़ुदावन्द ने साऊल के आने से एक दिन पहले समुएल पर ज़ाहिर कर दिया था कि16कल इसी वक़्त मैं एक शख़्स को बिन यमीन के मुल्क से तेरे पास भेजूँगा ,तू उसे मसह करना ताकि वह मेरी क़ौम इस्राईल का सरदार हो, और वह मेरे लोगों को फ़िलिस्तियों के हाथ से बचाएगा, क्यूँकि मैंने अपने लोगों पर नज़र की है, इसलिए कि उनकी फ़रियाद मेरे पास पहुँची है|17इसलिए जब समुएल साऊल से मिला, तो ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "देख यही वह शख़्स है जिसका ज़िक्र मैंने तुझ से किया था ,यही मेरे लोगों पर हुकूमत करेगा|"18फिर साऊल ने फाटक पर समुएल के नज़दीक जाकर उससे कहा, "कि मुझको ज़रा बता दे कि ग़ैबबीन का घर कहा, है?"19समुएल ने साऊल को जवाब दिया कि वह ग़ैबबीन मैं ही हूँ; मेरे आगे आगे ऊँचे मक़ाम को जा, क्यूँकि तुम आज के दिन मेरे साथ खाना खाओगे और सुबह को मैं तुझे रुख़्सत करूँगा, और जो कुछ तेरे दिल में है सब तुझे बता दूँगा|20और तेरे गधे जिनको खोए हुए तीन दिन हुए, उनका ख़्याल मत कर, क्यूँकि वह मिल गए और इस्राईलियों में जो कुछ दिलकश हैं वह किसके लिए हैं, क्या वह तेरे और तेरे बाप के सारे घराने के लिए नहीं?21साऊल ने जवाब दिया "क्या मैं बिन यमीनी, या'नी इस्राईल के सब से छोटे क़बीले का नहीं? और क्या मेरा घराना बिन यमीन के क़बीले के सब घरानों में सब से छोटा नहीं? इस लिए तू मुझ से ऐसी बातें क्यूँ कहता है ?"22और समुएल साऊलऔर उसके नौकर को मेहमानख़ाने में लाया, और उनको मेहमानों के बीच जो कोई तीस आदमी थे सद्र जगह में बिठाया|23और समुएल ने बावर्ची से कहा "कि वह टुकड़ा जो मैंने तुझे दिया ,जिसके बारे में तुझ से कहा, था कि उसे अपने पास रख छोड़ना,लेआ|"24बावर्ची ने वह रान म'अ उसके जो उसपर था, उठा कर साऊल के सामने रख दी ,तब समुएल ने कहा, "यह देख जो रख लिया गया था, उसे अपने सामने रख कर खा ले क्यूँकि वह इसी मु'अय्यन वक़्त के लिए, तेरे लिए रख्खी रही क्यूँकि मैंने कहा कि मैंने इन लोगों की दा'वत की है" इस लिए साऊल ने उस दिन समुएल के साथ खाना खाया|25और जब वह ऊँचे मक़ाम से उतर कर शहर में आए तो उसने साऊल से उस के घर की छत पर बातें कीं26और वह सवेरे उठे, और ऐसा हुआ, कि जब दिन चढ़ने लगा, तो समुएल ने साऊल को फिर घर की छत पर बुलाकर उससे कहा, "उठ कि मैं तुझे रुख़्सत करूँ।" इस लिए साऊल उठा, और वह और समुएल दोनों बाहर निकल गए|27और शहर के सिरे के उतार पर चलते चलते समुएल ने साऊल से कहा कि अपने नौकर को हुक्म कर कि वह हम से आगे बढ़े, इसलिए वह आगे बढ़,गया, लेकिन तू अभी ठहरा ~रह ताकि मैं तुझे ख़ुदा की बात सुनाऊँ |
1फिर समुएल ने तेल की कुप्पी ली और उसके सर पर उँडेली और उसे चूमा और कहा,"कि क्या यही बात नहीं कि ख़ुदावन्द ने तुझे मसह किया ,ताकि तू उसकी मीरास का रहनुमा हो?2जब तू आज मेरे पास से चला जाएगा, तो ज़िल्ज़ह में जो बिनयमीन की सरहद में है, राख़िल की क़ब्र के पास दो शख़्स तुझे मिलेंगे, और वह तुझ से कहेंगे ,कि वह गधे जिनको तू ढूंडने गया था मिल गए;और देख अब तेरा बाप गधों की तरफ़ से बेफ़िक्र होकर तुम्हारे लिए फ़िक्र मंद है, और कहता है,कि मैं अपने बेटे के लिए क्या करूँ?3फिर वहाँ से आगे बढ़ कर जब तू तबूर के बलूत के पास पहुँचेगा, तो वहाँ तीन शख़्स जो बैतएल को ख़ुदा के पास जाते होंगे तुझे मिलेंगे ,एक तो बकरी के तीन बच्चे, दूसरा रोटी के तीन टुकड़े, और तीसरा मय का एक मश्कीज़ा लिए जाता होगा|4और वह तुझे सलाम करेंगे, और रोटी के दो टुकड़े तुझे देंगे, तू उनको उनके हाथ से ले लेना |5और बा'द उसके तू ख़ुदा के पहाड़ को पहुँचेगा, जहाँ फ़िलिस्तियों की चौकी है,और जब तू वहाँ शहर में दाख़िल होगा तो नबियों की एक जमा'अत जो ऊँचे मक़ाम से उतरती होगी,तुझे मिलेगी, और उनके आगे सितार और दफ़ और बाँसुली और बरबत होंगे और वह नबुव्वत करते होंगे|6तब ख़ुदावन्द की रूह तुझ पर ज़ोर से नाज़िल होगी, और तू उनके साथ नबुव्वत करने लगेगा, और बदल कर और ही आदमी हो जाएगा|7इसलिए जब यह निशान तेरे आगे आएँ, तो फिर जैसा मौक़ा हो वैसा ही काम करना क्यूँकि ~ख़ुदा तेरे साथ है |8और तु मुझ से पहले जिल्जाल को जाना; और देख में तेरे पास आऊँगा ताकि सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ करूँ और सलामती के ज़बीहों को ज़बह करूँ| तू~सात दिन तक वहीं रहना जब तक मैं तेरे पास आकर तुझे बता न दूँ कि तुझको क्या करना होगा|"9और ऐसा हुआ कि जैसे ही उसने समुएल से रुख़्सत होकर पीठ फेरी, ख़ुदा ने उसे दूसरी तरह का दिल दिया और वह सब निशान उसी दिन वजूद में आए|10और जब वह उधर उस पहाड़ के पास आए तो नबियों की एक जमा'अत उसको मिली, और ख़ुदा की रूह उस पर ज़ोर से नाज़िल हुई, और वह भी उनके बीच नबुव्वत करने लगा|11और ऐसा हुआ कि जब उसके अगले जान पहचानों ने यह देखा कि वह नबियों के बीच नबुव्वत कर रहा है तो वह एक दूसरे से कहने लगे,"क़ीस के बेटे को क्या हो गया? क्या साऊल भी नबियों में शामिल है?"12और वहाँ के एक आदमी ने जवाब दिया, कि भला उनका बाप कौन है ?" तब ही से यह मिसाल चली,क्या साऊल भी नबियों में है?"13और जब वह नबुव्वत कर चुका तो ऊँचे मक़ाम में आया|14वहाँ साऊल के चचा ने उससे और उसके नौकर से कहा,"तुम कहाँ गए थे? "उसने कहा,गधे ढूंडने और जब हमने देखा कि वह नही मिलते,तो हम समुएल के पास आए|"15फिर साऊल के चचा ने कहा, "कि मुझको ज़रा बता तो सही कि समुएल ने तुम से क्या क्या कहा|"16साऊल ने अपने चचा से कहा, "उसने हमको साफ़-साफ़ बता दिया, कि गधे मिल गए," लेकिन हुकूमत का मज़मून जिसका ज़िक्र समुएल ने किया था न बताया|17और समुएल ने लोगों को मिसफ़ाह में ख़ुदावन्द के सामने बुलवाया |18और उसने बनीइस्राईल से कहा "कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मैं इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया और मैंने तुमको मिस्रयों के हाथ से और सब सल्तनतों के हाथ से जो तुम पर ज़ुल्म करती थीं रिहाई दी|19लेकिन तुमने आज अपने ख़ुदा को जो तुम को तुम्हारी सब मुसीबतों और तकलीफ़ों से रिहाई बख़्शी है, हक़ीर जाना और उससे कहा, हमारे लिए एक बादशाह मुक़र्रर कर, इसलिए अब तुम क़बीला- क़बीला होकर और हज़ार हज़ार करके सब के सब ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हो|"20जब समुएल इस्राईल के सब क़बीलों को नज़दीक लाया,और पर्ची बिनयमीन के क़बीले के नाम पर निकली |21तब वह बिनयमीन के क़बीला को ख़ानदान-ख़ानदान करके नज़दीक लाया, तो मतरियों के ख़ानदान का नाम निकला और फिर क़ीस के बेटे साऊल का नाम निकला लेकिन जब उन्होंने उसे ढूँढा, तो वह न मिला |22तब उन्होंने ख़ुदावन्द से फिर पूछा, क्या यहाँ किसी और आदमी को भी आना है, ख़ुदावन्द ने जवाब दिया, देखो वह असबाब के बीच ~छिप गया है|23तब वह दौड़े और उसको वहाँ से लाए,और जब वह लोगों के बीच खड़ा हुआ, तो ऐसा लम्बा था कि लोग उसके कंधे तक आते थे|24और समुएल ने उन लोगों से कहा तुम उसे देखते हो जिसे ख़ुदावन्द ने चुन लिया, कि उसकी तरह सब लोगो में एक भी नहीं, तब सब लोग ललकार कर बोल उठे, "कि बादशाह जीता रहे|"25फिर समुएल ने लोगों को हुकूमत का तरीक़ा बताया और उसे किताब में लिख कर ख़ुदावन्द के सामने रख दिया, उसके बा'द समुएल ने सब लोगों को रुख़्सत कर दिया, कि अपने अपने घर जाएँ |26और साऊल भी जिबा' को अपने घर गया, और लोगों का एक जत्था,भी जिनके दिल को ख़ुदा ने उभारा था उसके साथ, हो लिया |27लेकिन शरीरों में से कुछ कहने लगे,"कि यह शख़्स हमको किस तरह बचाएगा?" इसलिए उन्होंने उसकी तहक़ीर की और उसके लिए नज़राने न लाए तब वह अनसुनी कर गया |
1तब अम्मूनी नाहस चढ़ाई कर के यबीस जिल'आद के मुक़ाबिल ख़ेमाज़न हुआ; और यबीस के सब लोगों ने नाहस से कहा,"हम से 'अहद-ओ-पैमान कर ले, और हम तेरी ख़िदमत करेंगे|"2तब अम्मूनी नाहस ने उनको जवाब दिया, इस शर्त पर मैं तुम से 'अहद करूँगा, कि तुम सब की दहनी आँख निकाल डाली जाए और मैं इसे सब इस्राईलियों के लिए ज़िल्लत का निशान ठहराऊँ|"3तब यबीस के बुज़ुर्गों ने उस से कहा, "हमको सात दिन की मोहलत दे ताकि हम इस्राईल की सब सरहदों में क़ासिद भेजें, तब अगर हमारा हिमायती कोई न मिले तो हम तेरे पास निकल आएँगे|"4और वह क़ासिद साऊल के जिबा' में आए और उन्होंने लोगों को यह बातें कह सुनाई और सब लोग चिल्ला चिल्ला कर रोने लगे |5और साऊल खेत से बैलों के पीछे पीछे चला आता था, और साऊल ने पूछा ,"कि इन लोगों को क्या हुआ,कि रोते हैं ?"उन्होंने यबीस के लोगों की बातें उसे बताईं |6जब साऊल ने यह बातें सुनीं तो ख़ुदा की रूह उसपर ज़ोर से नाज़िल हुई,और उसका ग़ुस्सा निहायत भड़का7तब उसने एक जोड़ी बैल लेकर उनको टुकड़े-टुकड़े काटा और क़ासिदों के हाथ इस्राईल की सब सरहदों में भेज दिया, और यह कहा कि "जो कोई आकर साऊल और समुएल के पीछे न हो ले, उसके बैलों से ऐसा ही किया जाएगा, "और ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ लोगों पर छा गया, और वह एक तन हो कर निकल आए |8और उसने उनको बज़क़ में गिना, इसलिए बनी इस्राईल तीन लाख और यहूदाह के आदमी तीस हज़ार थे |9और उन्होंने उन क़ासिदों से जो आए थे कहा कि तुम यबीस जिल'आद के लोगों से यूँ कहना कि कल धूप तेज़ होने के वक़्त तक तुम रिहाई पाओगे इस लिए क़ासिदों ने जाकर यबीस के लोगों को ख़बर दी और वह ख़ुश हुए |10तब अहल-ए-यबीस ~ने कहा, "कल हम तुम्हारे पास निकल आएँगे, और जो कुछ तुमको अच्छा लगे, हमारे साथ करना|"11और दूसरी सुबह को साऊल ने लोगों के तीन ग़ोल किए; और वह रात के पिछले पहर लश्कर में घुस कर 'अम्मूनियों को क़त्ल करने लगे, यहाँ तक कि दिन बहुत चढ़ गया, और जो बच निकले वह ऐसे तितर बितर हो गए, कि दो आदमी भी कहीं एक साथ न रहे |12और लोग समुएल से कहने लगे "किसने यह कहा, था कि क्या साऊल हम पर हुकूमत करेगा? उन आदमियों को लाओ, ताकि हम उनको क़त्ल करें|"13साऊल ने कहा "आज के दिन हरगिज़ कोई मारा नहीं जाएगा, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल को आज के दिन रिहाई दी है|"14तब समुएल ने लोगों से कहा,"आओ जिल्जाल को चलें ताकि वहाँ हुकूमत को नए सिरे से क़ायम करें|"15तब सब लोग जिल्जाल को गए,और वहीं उन्होंने ख़ुदावन्द के सामने साऊल को बादशाह बनाया, फिर उन्होंने वहाँ ख़ुदावन्द के आगे, सलामती के ज़बीहे ज़बह किए, और वहीं साऊल और सब इस्राईली मर्दों ने बड़ी ख़ुशी मनाई|
1तब समुएल ने सब इस्राईलियों से कहा,"देखो जो कुछ तुमने मुझ से कहा, मैंने तुम्हारी एक एक बात मानी और एक बादशाह तुम्हारे ऊपर ठहराया है |2और अब देखो यह बादशाह तुम्हारे आगे आगे चलता है, मैं तो बुड्ढा हूँ और मेरा सिर सफ़ेद हो गया और देखो मेरे बेटे तुम्हारे साथ हैं, मैं लड़कपन से आज तक तुम्हारे सामने ही चलता रहा हूँ |3मैं हाज़िर हूँ, इसलिए तुम ख़ुदावन्द और उसके मम्सूह के आगे मेरे मुँह पर बताओ, कि मैंने किसका बैल ले लिया या किसका गधा लिया? मैंने किसका हक़ मारा या किस पर ज़ुल्म किया, या किस के हाथ से मैंने रिश्वत ली, ताकि अँधा बनज़ाऊँ? बताओ और यह मैं तुमको वापस कर दूँगा|"4उन्होंने जवाब दिया "तूने हमारा हक़ नहीं मारा और न हम पर ज़ुल्म किया, और न तूने किसी के हाथ से कुछ लिया|"5तब उसने उनसे कहा,"कि ख़ुदावन्द तुम्हारा गवाह, और उसका मम्सूह आज के दिन गवाह है, कि मेरे पास तुम्हारा कुछ नहीं निकला|" उन्होंने कहा, "वह गवाह है|"6फिर समुएल लोगों से कहने लगा, "वह ख़ुदावन्द ही है जिसने मूसा और हारून को मुक़र्रर किया, और तुम्हारे बाप दादा को मुल्क मिस्र से निकाल लाया |7इस लिए अब ठहरे रहो ताकि मैं ख़ुदावन्द के सामने उन सब नेकियों के बारे में जो ख़ुदावन्द ने तुम से और तुम्हारे बाप दादा से कीं बातें करूँ|8जब या'कूब मिस्र में गया, और तुम्हारे बाप दादा ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की तो ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून को भेजा, जिन्होंने तुम्हारे बाप दादा को मिस्र से निकाल कर इस जगह बसाया |9लेकिन वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल गए, तब उसने उनको हसूर की फ़ौज के सिपह सालार सीसरा के हाथ और फ़िलिस्तियों के हाथ और शाह-ए-मोआब के हाथ बेच डाला, और वह उनसे लड़े |10फिर उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा कि हमने गुनाह किया, इसलिए कि हमने ख़ुदावन्द को छोड़ा, और बा'लीम और इस्तारात की 'इबादत की लेकिन अब तू हमको हमारे दुश्मनों के हाथ, से छुड़ा, तो हम तेरी 'इबादत करेंगे |11इस लिए ख़ुदावन्द ने यरुब्बा'ल और बिदान और इफ़्ताह और समुएल को भेजा और तुम को तुम्हारे दुश्मनों के हाथ से जो तुम्हारी चारों तरफ़ थे, रिहाई दी और तुम चैन से रहने लगे |12और जब तुमने देखा कि बनी अम्मून का बादशाह नाहस तुम पर चढ़ आया, तो तुमने मुझ से कहा कि हम पर कोई बादशाह हुकूमत करे हालाँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारा बादशाह था |13इसलिए अब उस बादशाह को देखो जिसे तुमने चुन लिया, और जिसके लिए तुमने दरख़्वास्त की थी, देखो ख़ुदावन्द ने तुम पर बादशाह मुक़र्रर कर दिया है |14अगर तुम ख़ुदावन्द से डरते और उसकी 'इबादत करते और उस की बात मानते रहो, और ख़ुदावन्द के हुक्म से सरकशी न करो और तुम और वह बादशाह भी जो तुम पर हुकूमत करता है ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के पैरौ बने रहो तो भला;15लेकिन अगर तुम ख़ुदावन्द की बात न मानों बल्कि ख़ुदावन्द के हुक्म से सरकशी करो तो ख़ुदावन्द का हाथ तुम्हारे ख़िलाफ़ होगा, जैसे वह तुम्हारे बाप दादा के ख़िलाफ़ होता था |16इसलिए अब तुम ठहरे रहो और इस बड़े काम को देखो जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारी आँखों के सामने करेगा |17क्या आज गेहूँ काटने का दिन नही, मैं ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करूँगा ,कि बादल गरजे और पानी बरसे, और तुम जान लोगे,और देख भी लोगे कि तुमने ख़ुदावन्द के सामने अपने लिए ,बादशाह माँगने से कितनी बड़ी शरारत की |18चुनाँचे समुएल ने ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त की और ख़ुदावन्द की तरफ़ से उसी दिन बादल गरजा और पानी बरसा; तब सब लोग ख़ुदावन्द और समुएल से निहायत डर गए|19और सब लोगों ने समुएल से कहा, कि अपने ख़ादिमों के लिए ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से दु'आ कर कि हम मर न जाएँ क्यूँकि हमने अपने सब गुनाहों पर यह शरारत भी बढ़ा दी है कि अपने लिए एक बादशाह माँगा|20समुएल ने लोगों से कहा, "खौफ़ न करो, यह सब शरारत तो तुमने की है तो भी ख़ुदावन्द की पैरवी से किनारा कशी न करो बल्कि अपने सारे दिल से ख़ुदावन्द की 'इबादत करो |21तुम किनारा कशी न करना: वरना ~बातिल चीज़ों की पैरवी करने लगोगे जो न फ़ायदा पहुंचा सकती न रिहाई दे सकती हैं, इसलिए कि वह सब बातिल हैं |22क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने बड़े नाम के ज़रिए' अपने लोगों को नहीं छोड़ेगा, इस लिए कि ख़ुदावन्द को यही पसंद आया कि तुम को अपनी क़ौम बनाए |23अब रहा मैं इसलिए ख़ुदा न करे कि तुम्हारे लिए दु'आ करने से बाज़ आकर ख़ुदावन्द का गुनहगार ठहरुँ, बल्कि मैं वही रास्ता जो अच्छा और सीधा है, तुमको बताऊँगा |24सिर्फ़ इतना हो कि तुम ख़ुदावन्द से डरो, और अपने सारे दिल और सच्चाई से उसकी 'इबादत करो क्यूँकि सोचो कि उसने तुम्हारे लिए कैसे बड़े काम किए हैं |25लेकिन अगर तुम अब भी शरारत ही करते जाओ, तो तुम और तुम्हारा बादशाह दोनों के दोनों मिटा दिए जाओगे|"
1साऊल तीस बरस की 'उम्र में हुकूमत करने लगा, और इस्राईल पर दो बरस हुकूमत कर चुका |2तो साऊल ने तीन हज़ार इस्राईली जवान अपने लिए चुने, उनमें से दो हज़ार मिक्मास में और बैत'एल के पहाड़ पर साऊल के साथ और एक हज़ार बिनयमीन के जिबा' में यूनतन के साथ रहे और बाक़ी लोगों को उसने रुख़्सत किया, कि अपने अपने डेरे को जाएँ|3और यूनतन ने फ़िलिस्तियों की चौकी के सिपाहियों को जो जिबा' में थे क़त्ल कर डाला और फ़िलिस्तियों ने यह सुना, और साऊल ने सारे मुल्क में नरसिंगा फुंकवा ~कर ~कहला भेजा कि 'इब्रानी लोग सुनें |4और सारे इस्राईल ने यह कहते सुना, कि साऊल ने फ़िलिस्तियों की चौकी के सिपाही मार डाले और यह भी कि इस्राईल से फ़िलिस्तियों को नफ़रत हो गई है, तब लोग साऊल के पीछे चल कर जिल्जाल में जमा' हो गए|5और फ़िलिस्ती इस्राईलियों से लड़ने को इकट्ठे हुए या'नी तीस हज़ार रथ और छ: हज़ार सवार और एक बड़ा गिरोह जैसे समन्दर के किनारे की रेत| इसलिए वह चढ़ आए और मिक्मास में बैतआवन के पूरब की तरफ़ ख़ेमाज़न हुए |6जब बनी इस्राईल ने देखा, कि वह आफ़त में मुब्तिला हो गए, क्यूँकि लोग परेशान थे, तो वह ग़ारों और झाड़ियों और चट्टानों और गढ़यों और गढ़ों में जा छिपे|7और कुछ 'इब्रानी यरदन के पार जद और जिल'आद के 'इलाक़े को चले गए लेकिन साऊल जिल्जाल ही में रहा, और सब लोग काँपते हुए उसके पीछे पीछे रहे|8और वह वहाँ सात दिन समुएल के मुक़र्रर वक़्त के मुताबिक़ ठहरा रहा, लेकिन समुएल जिल्जाल में न आया, और लोग उसके पास से इधर उधर हो गए|9तब साऊल ने कहा,"सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियों को मेरे पास लाओ, " तब उसने सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा की|10और जैसे ही वह सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा कर चुका तो क्या, देखता है, कि समुएल आ पहुँचा और साऊल उसके इस्तक़बाल को निकला ताकि उसे सलाम करे11समुएल ने पूछा,"कि तूने क्या किया?" साऊल ने जवाब दिया कि जब मैंने देखा कि लोग मेरे पास से इधर उधर हो गए, और तू ठहराए, हुए दिनों के अन्दर नहीं आया, और फ़िलिस्ती मिक्मास में जमा' हो गए हैं|12तो मैंने सोंचा कि फ़िलिस्ती जिल्जाल में मुझ पर आ पड़ेंगे, और मैंने ख़ुदावन्द के करम के लिए अब तक दु'आ भी नहीं की है, इस लिए मैंने मजबूर होकर सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा की|"13समुएल ने साऊल से कहा, "तूने बेवक़ूफ़ी की, तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म को जो उसने तुझे दिया, नहीं माना वर्ना ख़ुदावन्द तेरी बादशाहत बनी इस्राईल में हमेशा तक क़ायम रखता|14लेकिन अब तेरी हुकूमत क़ायम न रहेगी क्यूँकि ख़ुदावन्द ने एक शख़्स को जो उसके दिल के मुताबिक़ है, तलाश कर लिया है और ख़ुदावन्द ने उसे अपनी क़ौम का सरदार ठहराया है, इसलिए कि तूने वह बात नहीं मानी जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने तुझे दिया था|"15और समुएल ~उठकर जिल्जाल से बिनयमीन के जिबा' को गया तब साऊल ने उन लोगों को जो उसके साथ हाज़िर थे, गिना और वह क़रीबन छ:सौ थे16और साऊल और उसका बेटा यूनतन और उनके साथ के लोग बिनयमीन के जिबा' में रहे, लेकिन फ़िलिस्ती मिक्मास में ख़ेमाज़न थे|17और ग़ारतगर फ़िलिस्तियों के लश्कर में से तीन ग़ोल होकर निकले एक ग़ोल तो सु'आल के 'इलाक़े को उफ़रह के रास्ते से गया|18और दूसरे ग़ोल ने बैतहोरून की राह ली और तीसरे ग़ोल ने उस सरहद की राह ली जिसका रुख़ वादी -ए-ज़ुबू'ईम की तरफ़ जंगल के सामने है|19और इस्राईल के सारे मुल्क में कहीं लुहार नहीं मिलता था क्यूँकि फ़िलिस्तियों ने कहा था कि, 'इब्रानी लोग अपने लिए तलवारें और भाले न बनाने पाएँ|20इसलिए सब इस्राईली अपनी अपनी फाली और भाले और कुल्हाड़ी और कुदाल को तेज़ कराने के लिए फ़िलिस्तियों के पास जाते थे |21लेकिन कुदालों और फालियों और काँटो और कुल्हाड़ों के लिए, और पैनों को दुरुस्त करने के लिए, वह रेती रखते थे |22इस लिए लड़ाई के दिन साऊल और यूनतन के साथ के लोगों में से किसी के हाथ में न तो तलवार थी न भाला, लेकिन साऊल और उसके बेटे यूनतन के पास तो यह थे|23और फ़िलिस्तियों की चौकी के सिपाही, निकल कर मिक्मास की घाटी को गए|
1और एक दिन ऐसा हुआ, कि साऊल के बेटे यूनतन ने उस जवान से जो उसका सिलाह बरदार था कहा कि आ हम फ़िलिस्तियों की चौकी को जो उस तरफ़ है चलें, पर उसने अपने बाप को न बताया|2और साऊल जिबा' के निकास पर उस अनार के दरख़्त के नीचे जो मजरुन में है मुक़ीम ~था, और क़रीबन छ: सौ आदमी उसके साथ थे |3और अख़ियाह बिन अख़ीतोब जो यक़बोद बिन फ़ीन्हास बिन 'एली का भाई और सैला में ख़ुदावन्द का काहिन था अफ़ूद पहने हुए था और लोगों को ख़बर न थी कि यूनतन चला गया है|4और उन की घाटियों के बीच जिन से होकर यूनतन फ़िलिस्तियों की ~चौकी को जाना चाहता था एक तरफ़ एक बड़ी नुकीली चट्टान थी और दूसरी तरफ़ भी एक बड़ी नुकीली चट्टान थी, एक का नाम बुसीस था दूसरी का सना |5एक तो शिमाल की तरफ़ मिक्मास के मुक़ाबिल और दूसरी जुनूब की तरफ़ जिबा' के मुक़ाबिल थी |6इसलिए यूनतन ने उस जवान से जो उसका सिलाह बरदार था, कहा, "आ हम उधर उन नामख़्तूनों ~की चौकी को चलें -मुम्किन है, कि ख़ुदावन्द हमारा काम बना दे, क्यूँकि ख़ुदावन्द के लिए बहुत सारे या थोड़ों के ज़रिए' से बचाने की कै़द नहीं|"7उसके सिलाह बरदार ने उससे कहा, "जो कुछ तेरे दिल में है इसलिए कर और उधर चल मैं तो तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ तेरे साथ हूँ|"8तब यूनतन ने कहा, "देख हम उन लोगों के पास इस तरफ़ जाएँगे,और अपने को उनको दिखाएँगे|9अगर वह हम से यह कहें, कि हमारे आने तक ठहरो, तो हम अपनी जगह चुप चाप खड़े रहेंगे और उनके पास नहीं जाएँगे|10लेकिन अगर वह यूँ कहें, कि हमारे पास तो आओ, तो हम चढ़ जाएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको हमारे क़ब्ज़े में कर दिया, और यह हमारे लिए निशान होगा|"11फिर इन दोनों ने अपने आप को फ़िलिस्तियों की चौकी के सिपाहियों को दिखाया, और फ़िलिस्ती कहने लगे, "देखो ये 'इब्रानी उन सुराख़ों में से जहाँ वह छिप गए थे ,बाहर निकले आते हैं |"12और चौकी के सिपाहियों ने यूनतन और उसके सिलाह बरदार से कहा, "हमारे पास आओ, तो सही, हम तुमको एक चीज़ दिखाएँ|"इसलिए यूनतन ने अपने सिलाह बरदार से कहा, "अब मेरे पीछे पीछे चढ़ा,चला आ, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको इस्राईल के क़ब्ज़े में कर दिया है|"13और यूनतन अपने हाथों और पाँव के बल चढ़ गया, और उसके पीछे पीछे उसका सिलाह बरदार था,और वह यूनतन के सामने गिरते गए और उसका सिलाह बरदार उसके पीछे पीछे उनको क़त्ल करता गया|14यह पहली ख़ूॅरेज़ी जो यूनतन और उसके सिलाह बरदार ने की क़रीबन बीस आदमियों की थी जो कोई एक बीघा ज़मीन की रेघारी में मारे गए|15तब लश्कर और मैदान और सब लोगों में लरज़िश हुई और चौकी के सिपाही,और ग़ारतगर भी काँप गए, और ज़लज़ला ~आया इसलिए निहायत तेज़ कपकपी हुई|16और साऊल के निगहबानों ने जो बिनयमीन के जिबा' में थे नज़र की और देखा कि भीड़ घटती जाती है और लोग इधर उधर जा रहे हैं|17तब साऊल ने उन लोगों से जो उसके साथ थे, कहा, "गिनती करके देखो, कि हम में से कौन चला गया है, इसलिए उन्होंने शुमार किया तो देखो, यूनतन और उसका सिलाह बरदार ग़ायब थे|"18और साऊल ने अख़ियाह से कहा, "ख़ुदा का संदूक़ यहाँ ला|" क्यूँकि ख़ुदा का संदूक़ उस वक़्त बनी इस्राईल के साथ वहीं था |19और जब साऊल काहिन से बातें कर रहा था तो फ़िलिस्तियों की लश्कर गाह, में जो हलचल मच गई थी वह और ज़्यादा हो गई तब साऊल ने काहिन से कहा कि "अपना हाथ खींच ले|"20और साऊल और सब लोग जो उसके साथ थे, एक जगह जमा' हो गए, और लड़ने को आए और देखा कि हर एक की तलवार अपने ही साथी पर चल रही है,और सख़्त तहलका मचा हुआ है|21और वह 'इब्रानी भी जो पहले की तरह फ़िलिस्तियों के साथ थे और चारो तरफ़ से उनके साथ लश्कर में आए थे फिर कर उन इस्राईलियों से मिल गए जो साऊल और यूनतन के साथ थे |22इसी तरह उन सब इस्राईली मर्दों ने भी जो इफ़्राईम ~के पहाड़ी मुल्क में छिप गए थे, यह सुन कर कि फ़िलिस्ती भागे जाते हैं, लड़ाई में आ उनका पीछा किया |23तब ख़ुदावन्द ने उस दिन इस्राईलियों को रिहाई दी और लड़ाई बैत आवन के उस पार तक पहुँची|24और इस्राईली मर्द उस दिन बड़े परेशान थे, क्यूँकि साऊल ने लोगों को क़सम देकर यूँ कहा,था कि जब तक शाम न हो और मैं अपने दुश्मनों से बदला न ले लूँ उस वक़्त तक अगर कोई कुछ खाए तो वह ला'नती हो| इस वजह से उन लोगों में से किसी ने खाना चखा तक न था|25और सब लोग जंगल में जा पहुँचे और वहाँ ज़मीन पर शहद था|26और जब यह लोग उस जंगल में पहुँच गए तो देखा कि शहद टपक रहा है तो भी कोई अपना हाथ अपने मुँह तक नही ले गया इसलिए कि उनको क़सम का ख़ौफ़ था |27लेकिन यूनतन ने अपने बाप को उन लोगों को क़सम देते नहीं सुना था, इसलिए उसने अपने हाथ की लाठी के सिरे को शहद के छत्ते में भोंका और अपना हाथ अपने मुँह से लगा लिया और उसकी आँखों में रोशनी आई|28तब उन लोगों में से एक ने उससे कहा, "तेरे बाप ने लोगों को क़सम देकर सख़्त ताकीद की थी, और कहा, था कि जो शख़्स आज के दिन कुछ खाना खाए, वह ला'नती हो और लोग बेदम से हो रहे थे|"29तब यूनतन ने कहा कि मेरे बाप ने मुल्क को दुख ~दिया है, देखो मेरी आँखों में ज़रा सा शहद चखने की वजह से कैसी रोशनी आई |30कितना ज़्यादा अच्छा होता अगर सब लोग दुश्मन की लूट में से जो उनको मिली दिल खोल कर खाते क्यूँकि अभी तो फ़िलिस्तियों में कोई बड़ी ख़ूॅरेज़ी भी नहीं हुई है |31और उन्होंने उस दिन मिक्मास से अय्यालोन तक फ़िलिस्तियों को मारा और लोग बहुत ही बे दम हो गए|32इसलिए वह लोग लूट पर गिरे और भेड़ बकरियों और बैलों और बछड़ों को लेकर उनको ज़मीन पर ज़बह, किया और ख़ून समेत खाने लगे|33तब उन्होंने साऊल को ख़बर दी कि देख लोग ख़ुदावन्द का गुनाह करते हैं कि ख़ून समेत खा रहे हैं| उसने कहा, "तुम ने बेईमानी की, इसलिए एक बड़ा पत्थर आज मेरे सामने ढलका लाओ|34फिर साऊल ने कहा कि लोगों के बीच इधर उधर जाकर उन से कहो कि हर शख़्स अपना बैल और अपनी भेड़ यहाँ मेरे पास लाए और यहीं, ज़बह करे और खाए और ख़ून समेत खाकर ख़ुदा का गुनहगार न बने| चुनाँचे उस रात लोगों में से हर शख़्स अपना बैल वहीं लाया और वहीं ज़बह किया |35और साऊल ने ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बनाया,यह पहला मज़बह है, जो उसने ख़ुदावन्द के लिए बनाया |36फिर साऊल ने कहा, "आओ,रात ही को फ़िलिस्तियों का पीछा करें और पौ फटने तक उनको लूटें और उन में से एक आदमी को भी न छोड़ें|" उन्होंने कहा, "जो कुछ तुझे अच्छा लगे वह कर तब काहिन ने कहा, कि आओ,हम यहाँ ख़ुदा के नज़दीक हाज़िर हों|"37और साऊल ने ख़ुदा से सलाह ली, कि क्या मैं ~फ़िलिस्तियों का पीछा करूँ? क्या तू उनको इस्राईल के हाथ में कर देगा |तो भी~उसने उस दिन उसे कुछ जवाब न दिया |38तब साऊल ने कहा कि तुम सब जो लोगों के सरदार हो यहाँ, नज़दीक आओ, और तहक़ीक़ करो और देखो कि आज के दिन गुनाह क्यूँकर हुआ है |39क्यूँकि ख़ुदावन्द की हयात की क़सम जो इस्राईल को रिहाई देता है अगर वह मेरे बेटे यूनतन ही का गुनाह हो, वह ज़रूर मारा जाएगा, लेकिन उन सब लोगों में से किसी आदमी ने उसको जवाब न दिया|40तब उस ने सब इस्राईलियों से कहा, "तुम सब के सब एक तरफ़ हो जाओ,और मैं और मेरा बेटा यूनतन दूसरी तरफ़ हो जायेंगे|" लोगों ने साऊल से कहा, "जो तू मुनासिब जाने वह कर|"41तब साऊल ने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा से कहा, "हक़ को ज़ाहिर कर दे ,इसलिए पर्ची यूनतन और साऊल के नाम पर निकली,और लोग बच गए|"42तब साऊल ने कहा कि "मेरे और मेरे बेटे यूनतन के नाम पर पर्ची डालो, तब यूनतन पकड़ा गया|"43और साऊल ने यूनतन से कहा, "मुझे बता कि तूने क्या किया है?" यूनतन ने उसे बताया कि मैंने बेशक अपने हाथ की लाठी ~के सिरे से ज़रा सा शहद चख्खा था इसलिए देख मुझे मरना होगा|44साऊल ने कहा, "ख़ुदा ऐसा ही बल्कि इससे भी ज़्यादा करे क्यूँकि ऐ यूनतन तू ज़रूर मारा जाएगा|"45तब लोगों ने साऊल से कहा, "क्या यूनतन मारा जाए, जिसने इस्राईल को ऐसा बड़ा छुटकारा दिया है ऐसा न होगा, ख़ुदावन्द की हयात की क़सम है कि उसके सर का एक बाल भी ज़मीन पर गिरने नहीं पाएगा क्यूँकि उसने आज ख़ुदा के साथ हो कर काम किया है|" इसलिए लोगों ने यूनतन को बचा लिया और वह मारा न गया|46और साऊल फ़िलिस्तियों का पीछा छोड़ कर लौट गया और फ़िलिस्ती अपने मक़ाम को चले गए47जब साऊल बनी इस्राईल पर बादशाहत करने लगा, तो वह हर तरफ़ अपने दुश्मनों या'नी मोआब और बनी 'अम्मून और अदूम और जुबाह के बादशाहों और फ़िलिस्तियों से लड़ा और वह जिस जिस तरफ़ फिरता उनका बुरा हाल करता था |48और उसने बहादुरी करके अमालीक़ियों को मारा, और इस्राईलियों को उनके हाथ से छुड़ाया जो उनको लूटते थे |49साऊल के बेटे यूनतन और इसवी और मलकीशू'अ थे; और उसकी दोनों बेटियों के नाम यह थे,बड़ी का नाम मेरब और छोटी का नाम मीकल था|50और साऊल कि बीवी का नाम अख़ीनु'अम था जो अख़ीमा'ज़ की बेटी थी, और उसकी फ़ौज के सरदार का नाम अबनेर था, जो साऊल के चचा नेर का बेटा था |51और साऊल के बाप का नाम क़ीस था और अबनेर का बाप नेर अबीएल का बेटा था |52और साऊल की ज़िन्दगी भर फ़िलिस्तियों से सख़्त जंग रही, इसलिए जब साऊल किसी ताक़तवर मर्द या सूरमा को देखता था तो उसे अपने पास रख लेता था |
1और समुएल ने साऊल से कहा कि "ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा है कि मैं तुझे मसह करूँ ताकि तू उसकी क़ौम इस्राईल का बादशाह हो, इसलिए अब तू ख़ुदावन्द की बातें सुन|2रब्ब-उल-अफ़वाज़ यूँ फ़रमाता है कि मुझे इसका ख़्याल है कि 'अमालीक़ ने इस्राईल से क्या किया और जब यह मिस्र से निकल आए तो वह रास्ते में उनका मुख़ालिफ़ हो कर आया |3इस लिए अब तू जा और 'अमालीक़ को मार और जो कुछ उनका है, सब को बिलकुल मिटा दे, और उनपर रहम मत कर बल्कि मर्द और 'औरत नन्हे, बच्चे और दूध पीते, गाय बैल और भेड़ बकरियाँ, ऊँट और गधे सब को क़त्ल कर डाल|"4चुनाँचे साऊल ने लोगों को जमा' किया और तलाइम में उनको गिना; इस लिए वह दो लाख पियादे, और यहूदा के दस हज़ार जवान थे|5और साऊल 'अमालीक़ के शहर को आया और वादी के बीच घात लगा कर बैठा|6और साऊल ने क़ीनियों से कहा कि तुम चल दो 'अमालीक़ियों के बीच से निकल जाओ; ऐसा न हो कि मैं तुमको उनके साथ हलाक कर डालूँ इसलिए कि तुम सब इस्राईलियों से जब वह मिस्र से निकल आए महेरबानी के साथ पेश आए| इसलिए क़ीनी अमालीक़ियों में से निकल गए |7और साऊल ने 'अमालीक़ियों को हवीला से शोर तक जो मिस्र के सामने है मारा |8और 'अमालीक़ियों के बादशाह अजाज को जीता पकड़ा और सब लोगों को तलवार की धार से ~मिटा दिया|9लेकिन साऊल ने और उन लोगों ने अजाज को और अच्छी अच्छी भेड़ बकरियों गाय -बैलों और मोटे मोटे बच्चों और बर्रों को और जो कुछ अच्छा था उसे जीता रख्खा और उनको बरबाद करना न चाहा लेकिन उन्होंने हर एक चीज़ को जो नाक़िस और निकम्मी थी बरबाद कर दिया|10तब ख़ुदावन्द का कलाम समुएल को पहुँचा कि |11मुझे अफ़सोस है कि मैंने साऊल को बादशाह होने के लिए मुक़र्रर किया है, क्यूँकि वह मेरी पैरवी से फिर गया है, और उसने मेरे हुक्म नहीं माने, तब समुएल का ग़ुस्सा भड़का और वह सारी रात ख़ुदावन्द से फ़रियाद करता रहा |12और समुएल सवेरे उठा कि सुबह को साऊल से मुलाक़ात करे, और समुएल को ख़बर मिली, कि साऊल करमिल को आया था, और अपने लिए लाट खड़ी की और फिर गुज़रता हुआ जिल्जाल को चला गया है|13फिर समुएल साऊल के पास गया और साऊल ने उस से कहा, "तू ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक हुआ, मैंने ख़ुदावन्द के हुक्म पर 'अमल किया|"14समुएल ने कहा, "फिर यह भेड़ बकरियों का मिम्याना और गाय,और बैलों का बनबाना कैसा है,जो मैं सुनता हूँ?"15साऊल ने कहा कि "यह लोग उनको 'अमालीक़ियों के यहाँ से ले आए है, इसलिए कि लोगों ने अच्छी अच्छी भेड़ बकरियों और गाय बैलों को जीता रख्खा ताकि उनको ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के लिए ज़बह करें और बाक़ी सब को तो हम ने बरबाद कर दिया |"16तब समुएल ने साऊल से कहा, "ठहर जा और जो कुछ ख़ुदावन्द ने आज की रात मुझ से कहा है, वह मैं तुझे बताऊँगा|" उसने कहा, "बताइये|"17समुएल ने कहा, "अगर्चे तू अपनी ही नज़र में हक़ीर था तो भी क्या तू बनी इस्राईल के क़बीलों का सरदार न बनाया गया? और ख़ुदावन्द ने तुझे मसह किया ताकि तू बनी इस्राईल का बादशाह हो|18और ख़ुदावन्द ने तुझे सफ़र पर भेजा और कहा कि जा और गुनहगार 'अमालीक़ियों को मिटा कर और जब तक वह फ़ना न हो जायें उन से लड़ता रह|19तब तूने ख़ुदावन्द की बात क्यूँ न मानी बल्कि लूट पर टूट कर वह काम कर गुज़रा जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा है?"20साऊल ने समुएल से कहा, "मैंने तो ख़ुदावन्द का हुक्म माना और जिस रास्ते पर ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा चला,और 'अमालीक़ के बादशाह अजाज को ले आया हूँ,और 'अमालीक़ियों को बरबाद कर दिया |21जब लोग लूट के माल में से भेड़ बकरियाँ और गाय बैल या'नी अच्छी अच्छी चीज़ें जिनको बरबाद करना था, ले आए ताकि जिल्जाल में ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के सामने क़ुर्बानी करें|"22समुएल ने कहा, "क्या ख़ुदावन्द सोख़्तनी क़ुर्बानियों और जबीहों से इतना ही ख़ुश होता है जितना इस बात से कि ख़ुदावन्द का हुक्म माना जाए? देख फ़रमा बरदारी क़ुर्बानी से और बात मानना मेंढ़ों की चर्बी से बेहतर है |23क्यूँकि बग़ावत और जादूगरी बराबर हैं और सरकशी ऐसी ही है जैसी मूरतों और बुतों की 'इबादत इस लिए चूँकि तूने ख़ुदावन्द के हुक्म को रद्द किया है इसलिए उसने भी तुझे रद्द किया है कि बादशाह न रहे|"24साऊल ने समुएल से कहा, "मैंने गुनाह किया कि मैंने ~ख़ुदावन्द के फ़रमान को और तेरी बातों को टाल दिया है, क्यूँकि मैं लोगों से डरा और उनकी बात सुनी |25इसलिए अब में तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरा गुनाह बख़्श दे, और मेरे साथ लौट चल ताकि मैं ख़ुदावन्द को सिज्दा करूँ|26समुएल ने साऊल से कहा, "मैं तेरे साथ नहीं लौटूँगा क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द के कलाम को रद्द कर दिया है और ख़ुदावन्द ने तुझे रद्द किया, कि इस्राईल का बादशाह न रहे|"27और जैसे ही समुएल जाने को मुड़ा साऊल ने उसके जुब्बा का दामन पकड़ लिया, और वह फट गया |28तब समुएल ने उससे कहा, "ख़ुदावन्द ने इस्राईल की बादशाही तुझ से आज ही चाक कर के छीन ली और तेरे एक पड़ोसी को जो तुझ से बेहतर है दे दी है |29और जो इस्राईल की ताक़त है,वह न तो झूट बोलता और न पछताता है, क्यूँकि वह इंसान नही है कि पछताए|"30उसने कहा, "मैंने गुनाह तो किया है तो भी मेरी क़ौम के बुज़ुर्गों और इस्राईल के आगे मेरी 'इज्ज़त कर और मेरे साथ, लौट कर चल ताकि मैं ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा को सिज्दा करूँ|"31तब समुएल लौट कर साऊल के पीछे हो लिया और साऊल ने ख़ुदावन्द को सिज्दा किया|32तब समुएल ने कहा कि 'अमालीक़ियों के बादशाह अजाज को यहाँ मेरे पास लाओ, इसलिए अजाज ख़ुशी ख़ुशी उसके पास आया और अजाज कहने लगा, हक़ीक़त में मौत की कड़वाहट गुज़र गयी |33समुएल ने कहा, "जैसे तेरी तलवार ने 'औरतों को बे औलाद किया वैसे ही तेरी माँ 'औरतों में बे औलाद होगी और समुएल ने अजाज को जिल्जाल में ख़ुदावन्द के सामने टुकड़े टुकड़े किया|34और समुएल रामा को चला गया और साऊल अपने घर साऊल के ज़िबा' को ~गया |35और समुएल अपने मरते दम तक साऊल ~को फिर देखने न गया क्यूँकि साऊल के लिए ग़म खाता रहा,और ख़ुदावन्द साऊल को बनी इस्राईल का बादशाह करके दुखी हुआ|"
1और ख़ुदावन्द ने समुएल से कहा, "तू कब तक साऊल के लिए ग़म खाता रहेगा, जिस हाल कि मैंने उसे बनी इस्राईल का बादशाह होने से रद्द कर दिया है? तू अपने सींग में तेल भर और जा, मैं तुझे बैतलहमी यस्सी के पास भेजता हूँ, क्यूँकि मैंने उसके बेटों में से एक को अपनी तरफ़ से बादशाह चुना है|"2समुएल ने कहा, "में क्यूँकर जाऊँ? अगर साऊल सुन लेगा, तो मुझे मार ही डालेगा" ख़ुदावन्द ने कहा, "एक बछिया अपने साथ लेजा और कहना कि मैं ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी करने को आया हूँ|3और यस्सी को क़ुर्बानी की दा'वत देना फिर मैं तुझे बता दूँगा कि तुझे क्या करना है, और उसी को जिसका नाम मैं तुझे बताऊँ मेरे लिए मसह करना|"4और समुएल ने वही जो ख़ुदावन्द ने कहा था किया और बैतलहम में आया, तब शहर के बुज़ुर्ग काँपते हुए उससे मिलने को गए और कहने लगे, "तू सुलह के ख़्याल से आया है ?"5उसने कहा, "सुलह के ख़्याल से, मैं ख़ुदावन्द के लिए क़ुर्बानी पेश करने आया हूँ| तुम अपने आप को पाक साफ़ करो और मेरे साथ क़ुर्बानी के लिए आओ" और उसने यस्सी को और उसके बेटों को पाक किया और उनको क़ुर्बानी की दा'वत दी|6जब वह आए तो वह इलियाब को देख कर कहने लगा, "यक़ीनन ख़ुदावन्द का म्मसूह उसके आगे है|"7तब ख़ुदावन्द ने समुएल से कहा कि "तू उसके चेहरा और उसके क़द की ऊँचाई को न देख इसलिए कि मैंने उसे ना पसंद किया है, क्यूँकि ख़ुदावन्द इंसान की तरह नज़र नहीं करता इसलिए कि इन्सान ज़ाहिरी सूरत को देखता है,पर ख़ुदावन्द दिल पर नज़र करता है"8तब यस्सी ने अबीनदाब को बुलाया और उसे समुएल के सामने से निकाला, उसने कहा, "ख़ुदावन्द ने इसको भी नहीं चुना|"9फिर यस्सी ने सम्मा को आगे किया, उसने कहा, "ख़ुदावन्द ने इसको भी नहीं चुना "10और यस्सी ने अपने सात बेटों को समुएल के सामने से निकाला और समुएल ने यस्सी से कहा कि "ख़ुदावन्द ने उनको नहीं ~चुना है|"11फिर समुएल ने यस्सी से पूछा, "क्या तेरे सब लड़के यहीं हैं?" उसने कहा, "सब से छोटा अभी रह गया, वह भेड़ बकरियाँ चराता है" समुएल ने यस्सी से कहा, "उसे बुला भेज क्यूँकि जब तक वह यहाँ न आ जाए हम नहीं बैठेंगे|"12इसलिए वह उसे बुलवाकर अंदर लाया|वह सुर्ख रंग और ख़ूबसूरत और हसीन था और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "उठ,और उसे मसह कर क्यूँकि वह यही है|"13तब समुएल ने तेल का सींग लिया और उसे उसके ~भाइयों के बीच मसह किया; और ख़ुदावन्द की रूह उस दिन से आगे को दाऊद पर ज़ोर से नाज़िल होती रही,तब ~समुएल उठकर रामा को चला गया|14और ख़ुदावन्द की रूह साऊल से जुदा हो गई और ख़ुदावन्द की तरफ़ से एक बुरी रूह उसे सताने लगी |15और साऊल के मुलाज़िमों ने उससे कहा, "देख अब एक बुरी रूह ख़ुदा की तरफ़ तुझे सताती है|16इसलिए हमारा मालिक अब अपने ख़ादिमों को जो उसके सामने हैं, हुक्म दे कि वह एक ऐसे ~शख़्स को तलाश कर लाएँ जो बरबत बजाने में क़ाबिल हो, और जब जब ख़ुदा की तरफ़ से यह बुरी रूह तुझ पर चढ़े वह अपने हाथ से बजाए, और तू बहाल हो जाए|"17साऊल ने अपने ख़ादिमों से कहा, "ख़ैर एक अच्छा बजाने वाला मेरे लिए ढूँढों और उसे मेरे पास लाओ|"18तब जवानों में से एक यूँ बोल उठा कि देख मैंने बैतलहम के यस्सी के एक बेटे को देखा जो बजाने में क़ाबिल और ज़बरदस्त सूरमा और जंगी जवान और बात में साहिबे तमीज़ और ख़ूबसूरत आदमी है और ख़ुदावन्द उसके साथ है|"19तब साऊल ने यस्सी के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि "अपने बेटे दाऊद को जो भेड़ बकरियों ~के साथ रहता है, मेरे पास भेज दे|"20तब यस्सी ~ने एक गधा जिस पर रोटियाँ लदीं थीं, और मय का एक मश्कीज़ा और बकरी का एक बच्चा लेकर उनको अपने बेटे दाऊद के हाथ साऊल के पास भेजा|21और दाऊद साऊल के पास आकर उसके सामने खड़ा हुआ, और साऊल उससे मुहब्बत करने लगा, और वह उसका सिलह बरदार हो गया|22और साऊल ने यस्सी ~को कहला भेजा कि दाऊद को मेरे सामने रहने दे क्यूँकि वह मेरा मंज़ूरे नज़र हुआ है|23इसलिए जब वह बुरी रूह ख़ुदा की तरफ़ से साऊल पर चढ़ती थी तो दाऊद बरबत लेकर हाथ से बजाता था, और साऊल को राहत होती और वह बहाल हो जाता था,और वह बुरी रूह उस पर से उतर जाती थी|
1फिर फ़िलिस्तियों ने जंग के लिए अपनी फ़ौजें जमा' कीं,और यहूदाह के शहर शोके में इकट्ठे हुए. और शोक़े और 'अजीक़ा के बीच अफ़सदम्मीम में ख़ैमाज़न हुए|2और साऊल और इस्राईल के लोगों ने जमा' ~होकर एला की वादी में डेरे डाले और लड़ाई के लिए फ़िलिस्तियों के मुक़ाबिल सफ़ आराई की|3और एक तरफ़ के पहाड़ पर फ़िलिस्ती और दूसरी तरफ़ के पहाड़ पर बनी इस्राईल खड़े हुए और इन दोनों के बीच वादी थी|4और फ़िलिस्तियों के लश्कर से एक पहलवान निकला जिसका नाम जाती जूलियत था, उसका क़द छ हाथ और एक बालिश्त था|5और उसके सर पर पीतल का टोपा था,और वह पीतल ही की ज़िरह पहने हुए था जो तोल में पाँच हज़ार पीतल की मिस्क़ाल के बराबर थी|6और उसकी टाँगों पर पीतल के दो साकपोश थे और उसके दोनों शानों के बीच पीतल की बरछी थी|7और उसके भाले की छड़ ऐसी थी जैसे जुलाहे का शहतीर और उसके नेज़े का फ़ल छ: सौ मिस्क़ाल लोहे का था और एक शख़्स ढाल ~लिए हुए उसके आगे आगे चलता था|8वह खड़ा हुआ,और इस्राईल के लश्करों को पुकार कर उन से कहने लगा कि तुमने आकर जंग के लिए क्यूँ सफ आराई की? क्या मैं फ़िलिस्ती नहीं और तुम साऊल के ख़ादिम नहीं ? इसलिए अपने लिए किसी शख़्स को चुनो जो मेरे पास उतर आए |9अगर वह मुझे से लड़ सके और मुझे क़त्ल कर डाले तो हम तुम्हारे ख़ादिम हो जाएँगे लेकिन अगर मैं उस पर ग़ालिब आऊँ और उसे क़त्ल कर डालूँ तो तुम हमारे ख़ादिम हो जाना और हमारी ख़िदमत करना |10फिर उस फ़िलिस्ती ने कहा कि मैं आज के दिन इस्राईली फ़ौजों की बे'इज़्ज़ती करता हूँ कोई जवान निकालो ताकि हम लड़ें |11जब साऊल और सब इस्राईलियों ने उस फ़िलिस्ती की बातें सुनीं,तो परेशान हुए और बहुत डर गए |12और दाऊद बैतल हम यहूदाह के उस इफ़्राती आदमी का बेटा था जिसका नाम यस्सी था, उसके आठ बेटे थे और वह ख़ुद साऊल के ज़माना के लोगों के बीच बुड्ढा और उम्र दराज़ था |13और यस्सी के तीन बड़े बेटे साऊल के पीछे पीछे जंग में गए थे और उसके तीनों बेटों के नाम जो जंग में गए थे यह थे इलियाब जो पहलौठा था,और दूसरा अबीनदाब और तीसरा सम्मा|14और दाऊद सबसे छोटा था और तीनों बड़े बेटे साऊल के पीछे पीछे थे |15और दाऊद बैतलहम में अपने बाप की भेड़ बकरयाँ चराने को साऊल के पास से आया जाया करता था |16और वह फ़िलिस्ती सुबह और शाम नज़दीक आता और चालिस दिन तक निकल कर आता रहा|17और यस्सी ने अपने बेटे दाऊद से कहा कि "इस भुने अनाज में से एक ऐफ़ा और यह दस रोटियाँ अपने भाइयों के लिए लेकर इनको जल्द लश्कर गाह, में अपने भाइयों के पास पहुचा दे |18और उनके हज़ारी सरदार के पास पनीर की यह दस टिकियाँ लेजा और देख कि तेरे भाइयों का क्या हाल है, और उनकी कुछ निशानी ले आ|"19और साऊल और वह भाई और सब इस्राईली जवान एला की वादी में फ़िलिस्तियों से लड़ रहे थे|20और दाऊद सुबह को सवेरे उठा, और भेड़ बकरियों को एक रखवाले ~के पास छोड़ कर यस्सी के हुक्म के मुताबिक़ सब कुछ लेकर रवाना हुआ, और जब वह लश्कर जो लड़ने जा रहा था, जंग के लिए ललकार रहा था, उस वक़्त वह छकड़ों के पड़ाव में पहुँचा|21और इस्राईलियों और फ़िलिस्तियों ने अपने-अपने लश्कर को आमने सामने करके सफ़ आराई की|22और दाऊद अपना सामान असबाब के निगहबान के हाथ में छोड़ कर आप लश्कर में दौड़ गया और जाकर अपने भाइयों से ख़ैर-ओ-'आफ़ियत पूछी|23और वह उनसे बातें करता ही था कि देखो वह पहलवान जात का फ़िलिस्ती जिसका नाम जूलियत था फ़िलिस्ती सफ़ों में से निकला और उसने फिर वैसी ही बातें कहीं और दाऊद ने उनको सुना|24और सब इस्राईली जवान उस शख़्स को देख कर उसके सामने से भागे और बहुत डर गए|25तब इस्राईली जवान ऐसा कहने लगे, "तुम इस आदमी को जो निकला है देखते हो? यक़ीनन यह इस्राईल की बे'इज़्ज़ती करने को आया है, इसलिए जो कोई उसको मार डाले उसे बादशाह बड़ी दौलत से माला माल करेगा और अपनी बेटी उसे ब्याह देगा, और उसके बाप के घराने को इस्राईल के बीच आज़ाद कर देगा|"26और दाऊद ने उन लोगों से जो उसके पास खड़े थे पूछा कि जो शख़्स इस फ़िलिस्ती को मार कर यह नंग इस्राईल से दूर करे उस से क्या सुलूक किया जाएगा? क्यूँकि यह ना मख्तून फ़िलिस्ती होता कौन है कि वह जिंदा ख़ुदा की फ़ौजों की बे'इज़्ज़ती करे?|27और लोगों ने उसे यही जवाब दिया कि उस शख़्स से जो उसे मार डाले यह सुलूक किया जाएगा |28और उसके सब से बड़े भाई इलयाब ने उसकी बातों को जो वह लोगों से करता था सुना और इलयाब का ग़ुस्सा दाऊद पर भड़का और वह कहने लगा, "तू यहाँ क्यूँ आया है? और वह थोड़ी सी भेड़ बकरियाँ तूने जंगल में किस के पास छोड़ीं?मैं तेरे घमंड और तेरे दिल की शरारत से वाक़िफ़ हूँ, तु लड़ाई देखने आया है|"29दाऊद ने कहा, ~"मैंने अब क्या किया? क्या बात ही नहीं हो रही है?"30और वह उसके पास से फिर कर दूसरे की तरफ़ गया और वैसी ही बातें करने लगा और लोगों ने उसे फिर पहले की तरह जवाब दिया|31और जब वह बातें जो दाऊद ने कहीं सुनने में आईं तो उन्होंने साऊल के आगे उनका ज़िक्र किया और उसने उसे बुला भेजा|32और दाऊद ने साऊल से कहा कि उस शख़्स की वजह से किसी का दिल न घबराए, तेरा ख़ादिम जाकर उस फ़िलिस्ती से लड़ेगा|33साऊल ने दाऊद से कहा कि तू इस क़ाबिल नहीं कि उस फ़िलिस्ती से लड़ने को उसके सामने जाए; क्यूँकि तू महज़ लड़का है और वह अपने बचपन से जंगी जवान है|34तब दाऊद ने साऊल को जवाब दिया कि तेरा ख़ादिम अपने बाप की भेड़ बकरियाँ चराता था और जब कभी कोई शेर या रीछ आकर झुंड में से कोई बर्रा उठा ले जाता|35तो मैं उसके पीछे पीछे जाकर उसे मारता और उसे उसके मुँह से छुड़ाता था और जब वह मुझ पर झपटता तो मैं उसकी दाढ़ी पकड़ कर उसे मारता और हलाक कर देता था|36तेरे ख़ादिम ने शेर और रीछ दोनों को जान से मारा इसलिए यह नामख़तून फ़िलिस्ती उन में से एक की तरह होगा, इसलिए कि उसने ज़िन्दा ख़ुदा की फ़ौजों की बे'इज़्ज़ती की है|37फिर दाऊद ने कहा, "ख़ुदावन्द ने मुझे शेर और रीछ के पंजे से बचाया, वही मुझको इस फ़िलिस्ती के हाथ से बचाएगा|" ~साऊल ने दाऊद से कहा, जा ख़ुदावन्द तेरे साथ रहे |38तब साऊल ने अपने कपड़े दाऊद को पहनाए, और पीतल का टोप उसके सर पर रख्खा और उसे ज़िरह भी पहनाई |39और दाऊद ने उसकी तलवार अपने कपड़ों पर कस ली और चलने की कोशिश की क्यूँकि उसने इनको आजमाया नहीं था, तब दाऊद ने साऊल से कहा, "मैं इनको पहन कर चल नहीं सकता क्यूँकि मैंने इनको आजमाया नहीं है|" इसलिए दाऊद ने उन सबको उतार दिया|40और उसने अपनी लाठी अपने हाथ में ली,और उस नाला से पाँच चिकने-चिकने पत्थर अपने वास्ते चुन कर उनको चरवाहे के थैले में जो उसके पास था, या'नी झोले में डाल लिया, और उसका गोफ़न उसके हाथ में था फिर वह फ़िलिस्ती के नज़दीक चला|41और वह फ़िलिस्ती बढ़ा, और दाऊद के नज़दीक़ आया और उसके आगे-आगे उसका सिपर बरदार था|42और जब उस फ़िलिस्ती ने इधर उधर निगाह की और दाऊद को देखा तो उसे नाचीज़ जाना क्यूँकि वह महज़ लड़का था, और सुर्ख़रु और नाज़ुक चेहरे का था|43तब फ़िलिस्ती ने दाऊद से कहा, "क्या मैं कुत्ता हूँ, जो तू लाठी लेकर मेरे पास आता है?" और उस फ़िलिस्ती ने अपने मा'बूदों का नाम लेकर दाऊद पर ला'नत की |44और उस फ़िलिस्ती ने दाऊद से कहा, "तू मेरे पास आ, और मैं तेरा गोश्त हवाई परिंदों और जंगली जानवरों को दूँगा|"45और दाऊद ने उस फ़िलिस्ती से कहा कि "तू तलवार भाला और बरछी लिए हुए मेरे पास आता है, लेकिन मैं रब्ब-उल-अफ़वाज़ के नाम से जो इस्राईल के लश्करों का ख़ुदा है, जिसकी तूने बे'इज़्ज़ती की है तेरे पास आता हूँ |46और आज ही के दिन ख़ुदावन्द तुझको मेरे हाथ में कर देगा, और मैं तुझको मार कर तेरा सर तुझ पर से उतार लूँगा और मैं आज के दिन फ़िलिस्तियों के लश्कर की लाशें हवाई परिंदों और ज़मीन के जंगली जानवरों को दूँगा ताकि दुनिया जान ले कि इस्राईल में एक ख़ुदा है|47और यह सारी जमा'अत जान ले कि ख़ुदावन्द तलवार और भाले के ज़रिए' से नहीं बचाता इसलिए कि जंग तो ख़ुदावन्द की है, और वही तुमको हमारे हाथ में कर देगा|"48और ऐसा हुआ, कि जब वह फ़िलिस्ती उठा, और बढ़ कर दाऊद के मुक़ाबिला के लिए नज़दीक आया, तो दाऊद ने जल्दी की और लश्कर की तरफ़ उस फ़िलिस्ती से मुक़ाबिला करने को दौड़ा |49और दाऊद ने अपने थैले में अपना हाथ डाला और उस में से एक पत्थर लिया और गोफ़न में रख कर उस फ़िलिस्ती के माथे पर मारा और वह पत्थर उसके माथे के अंदर घुस गया और वह ज़मीन पर मुँह के बल गिर पड़ा |50इसलिए दाऊद उस गोफ़न और एक पत्थर से उस फ़िलिस्ती पर ग़ालिब आया और उस फ़िलिस्ती को मारा और क़त्ल किया और दाऊद के हाथ में तलवार न थी |51और दाऊद दौड़ कर उस फ़िलिस्ती के ऊपर खड़ा हो गया, और उसकी तलवार पकड़ कर मियाँन से खींची और उसे क़त्ल किया और उसी से उसका सर काट डाला और फ़िलिस्तियों ने जो देखा कि उनका पहलवान मारा गया तो वह भागे|52और इस्राईल और यहूदाह के लोग उठे और ललकार कर फ़िलिस्तियों को गई और 'अक्रू़न के फाटकों तक दौड़ाया और फ़िलिस्तियों में से जो ज़ख़्मी हुए थे वह शा'रीम के रास्ते ~में और जात और 'अक्रू़न तक गिरते गए |53तब बनी इस्राईल फ़िलिस्तियों के पीछे से उलटे फिरे और उनके ख़ेमों को लूटा |54और दाऊद उस फ़िलिस्ती का सर लेकर उसे यरूशलीम में लाया और उसके हथियारों को उसने अपने डेरे में रख दिया|55जब साऊल ने दाऊद को उस फ़िलिस्ती का मुक़ाबिला करने के लिए जाते देखा तो उसने लश्कर के सरदार अबनेर से पूछा अबनेर यह लड़का किसका बेटा है? अबनेर ने कहा, ऐ बादशाह तेरी जान की क़सम में नहीं जानता |56तब बादशाह ने कहा, तू मा'लूम कर कि यह नौजवान किस का बेटा है |57और जब दाऊद उस फ़िलिस्ती को क़त्ल कर के फ़िरा तो अबनेर उसे लेकर साऊल के पास लाया और फ़िलिस्ती का सर उसके हाथ में था |58तब साऊल ने उससे कहा, "ऐ जवान तू किसका बेटा है?" दाऊद ने जवाब दिया, "मैं तेरे ख़ादिम बैतलहमी यस्सी का बेटा हूँ|"
1जब वह साऊल से बातें कर चुका, तो यूनतन का दिल दाऊद के दिल से ऐसा मिल गया कि यूनतन उससे अपनी जान के बराबर मुहब्बत करने लगा|2और साऊल ने उस दिन से उसे अपने साथ रख्खा और फिर उसे उसके बाप के घर जाने न दिया|3और यूनतन और दाऊद ने आपस में 'अहद किया, क्यूँकि वह उससे अपनी जान के बराबर मुहब्बत रखता था|4तब यूनतन ने वह क़बा जो वह पहने हुए था उतार कर दाऊद को दी ओर अपनी पोशाक बल्कि अपनी तलवार और अपनी कमान और अपना कमर बन्द तक दे दिया|5और जहाँ, कहीं साऊल दाऊद को भेजता वह जाता और 'अक़्लमन्दी से काम करता था, और साऊल ने उसे जंगी मर्दों पर मुक़र्रर कर दिया और यह बात सारी क़ौम की और साऊल के मुलाज़िमों की नज़र में अच्छी थी |6जब दाऊद उस फ़िलिस्ती को क़त्ल कर के लौटा आता था, और वह सब भी आ रहे थे, तो इस्राईल के सब शहरों से 'औरतें गाती और नाचती हुई दफ़ों और ख़ुशी के ना'रों और बाजों के साथ साऊल बादशाह के इस्तक़बाल को निकलीं |7और वह 'औरतें नाचती हुई गाती जाती थीं, कि साऊल ने तो हज़ारों को पर दाऊद ने लाखों को मारा |8और साऊल निहायत ख़फ़ा हुआ क्यूँकि वह बात उसे बड़ी बुरी लगी, और वह कहने लगा, कि उन्होंने दाऊद के लिए तो लाखों और मेरे लिए सिर्फ़ हज़ारों ही ठहराए| इसलिए बादशाही के 'अलावा उसे और क्या मिलना बाक़ी है ?9इसलिए उस दिन से आगे को साऊल दाऊद को बद गुमानी से देखने लगा |10और दूसरे दिन ऐसा हुआ, कि ख़ुदा कि तरफ़ से बुरी रूह साऊल पर ज़ोर से नाज़िल हुई और वह घर के अंदर नबुव्वत करने लगा, और दाऊद हर दिन ~की तरह अपने हाथ से बजा रहा था, और साऊल अपने हाथ में अपना भाला लिए था|11तब साऊल ने भाला चलाया क्यूँकि उसने कहा, कि मैं दाऊद को दीवार के साथ छेद दूँगा, और दाऊद उसके सामने से दो बार हट गया |12इसलिए साऊल दाऊद से डरा करता था क्यूँकि ख़ुदावन्द उसके साथ था और साऊल से अलग हो गया था |13इसलिए साऊल ने उसे अपने पास से अलग कर के उसे हज़ार जवानों का सरदार बना दिया, और वह लोगों के सामने आया जाया करता था |14और दाऊद अपनी सब राहों में 'अक़्लमन्दी के साथ चलता था, और ख़ुदावन्द उसके साथ था |15जब साऊल ने देखा कि वह 'अक़्लमन्दी से काम करता है, तो वह उससे डरने लगा|16लेकिन पूरा इस्राईल और यहूदाह के लोग दाऊद को प्यार करते थे, इसलिए कि वह उनके सामने आया जाया करता था|17तब साऊल ने दाऊद से कहा कि देख मैं अपनी बड़ी बेटी मेरब को तुझ से ब्याह दूँगा, तू सिर्फ़ मेरे लिए बहादुरी का काम कर और ख़ुदावन्द की लड़ाइयाँ लड़, क्यूँकि साऊल ने कहा ~कि मेरा हाथ नहीं बल्कि फ़िलिस्तियों का हाथ उस पर चले|18दाऊद ने साऊल से कहा, "मैं क्या हूँ और मेरी हस्ती ही क्या और इस्राईल में मेरे बाप का ख़ानदान क्या है, कि मैं बादशाह का दामाद बनूँ?"|19लेकिन जब वक़्त आ गया कि साऊल की बेटी मेरब दाऊद से ब्याही जाए, तो वह महूलाती 'अदरीएल से ब्याह दी गई|20और साऊल की बेटी मीकल दाऊद को चाहती थीं, इसलिए उन्होंने साऊल को बताया और वह इस बात से ख़ुश हुआ|21तब साऊल ने कहा, मैं उसी को उसे दूँगा, ताकि यह उसके लिए फंदा हो और फ़िलिस्तियों का हाथ उस पर पड़े, इसलिए साऊल ने दाऊद से कहा कि इस दूसरी दफ़ा' तो तू आज के दिन मेरा दामाद हो जाएगा|22और साऊल ने अपने ख़ादिमों को हुक्म किया कि दाऊद से चुपके चुपके बातें करो और कहो कि देख बादशाह तुझ से ख़ुश है और उसके सब ख़ादिम तुझे प्यार करतें हैं इसलिए अब तू बादशाह का दामाद बन जा|23चुनाँचे साऊल के मुलाज़िमों ने यह बातें दाऊद के कान तक पहूँचाईं, दाऊद ने कहा, "क्या बादशाह का दामाद बनना तुमको कोई हल्की बात मा'लूम होती है ,जिस हाल कि मैं ग़रीब आदमी हूँ और मेरी कुछ औक़ात नहीं?"24तब साऊल के मुलाज़िमों ने उसे बताया कि दाऊद ऐसा कहता है |25तब साऊल ने कहा, "तुम दाऊद से कहना कि बादशाह मेहर नही माँगता वह सिर्फ़ फ़िलिस्तियों की सौ खलड़ियाँ चाहता है, ताकि बादशाह के दुश्मनों से इन्तक़ाम लिया जाए, साऊल का यह इरादा था, कि दाऊद को फ़िलिस्तियों के हाथ से मरवा डाले |26जब उसके ख़ादिमो ने यह बातें दाऊद से कहीं तो दाऊद बादशाह का दामाद बनने को राज़ी हो गया और अभी दिन पूरे भी नहीं हुए थे |27कि दाऊद उठा, और अपने लोगों को लेकर गया और दो सौ फ़िलिस्ती क़त्ल कर डाले और दाऊद उनकी खलड़ियाँ लाया और उन्होंने उनकी पूरी ता'दाद में बादशाह को दिया ताकि वह बादशाह का दामाद हो, और साऊल ने अपनी बेटी मीकल उसे ब्याह दी |28और साऊल ने देखा और जान लिया कि ख़ुदावन्द दाऊद के साथ है, और साऊल की बेटी मीकल उसे चाहती थी |29और साऊल दाऊद से और भी डरने लगा, और साऊल बराबर दाऊद का दुश्मन रहा|30फिर फ़िलिस्तियों के सरदारों ने धावा किया और जब जब उन्होंने धावा किया साऊल के सब ख़ादिमों की निस्बत दाऊद ने ज़्यादा 'अक़्लमंदी का काम किया इस से उसका नाम बहुत बड़ा हो गया |
1और साऊल ने अपने बेटे यूनतन और अपने सब ख़ादिमों से कहा, कि दाऊद को मार डालो |2लेकिन साऊल का बेटा यूनतन दाऊद से बहुत ख़ुश था इसलिए यूनतन ने दाऊद से कहा, मेरा बाप तेरे क़त्ल की फ़िक्र में है, इसलिए तू सुबह को अपना ख़याल रखना और किसी पोशीदा जगह में छिपे रहना |3और मैं बाहर जाकर उस मैदान में जहाँ तू होगा अपने बाप के पास खड़ा हूँगा और अपने बाप से तेरे ज़रिए' बात करूँगा और अगर मुझे कुछ मा'लूम हो जाए तो तुझे बता दूँगा"|4और यूनतन ने अपने बाप साऊल से दाऊद की ता'रीफ की और कहा,कि बादशाह अपने ख़ादिम दाऊद से बुराई न करे क्यूँकि उसने तेरा कुछ गुनाह नहीं किया बल्कि तेरे लिए उसके काम बहुत अच्छे रहे हैं |5क्यूँकि उसने अपनी जान हथेली पर रख्खी और उस फ़िलिस्ती को क़त्ल किया और ख़ुदावन्द ने सब इस्राईलियों के लिए बड़ी फ़तह कराई, तूने यह देखा और ख़ुश हुआ, तब तू किस लिए दाऊद को बे वजह क़त्ल करके बे गुनाह के ख़ून का मुजरिम बनना चाहता है?6और साऊल ने यूनतन की बात सुनी और साऊल ने क़सम ख़ाकर कहा कि ख़ुदावन्द की हयात की क़सम है वह मारा नहीं जाएगा|7और यूनतन ने दाऊद को बुलाया और उसने वह सब बातें उसको बताईं और यूनतन दाऊद को साऊल के पास लाया और वह पहले की तरह उसके पास रहने लगा |8और फिर जंग हुई और दाऊद निकला और फ़िलिस्तियों से लड़ा और बड़ी ख़ूँरेज़ी के साथ उनको क़त्ल किया और वह उसके सामने से भागे|9और ख़ुदावन्द की तरफ़ से एक बुरी रूह साऊल पर जब वह अपने घर में अपना भाला अपने हाथ में लिए बैठा था, चढ़ी और दाऊद हाथ से बजा रहा था, |10और साऊल ने चाहा, कि दाऊद को दीवार के साथ भाले से छेद दे लेकिन वह साऊल के आगे से हट गया, और भाला दीवार में जा घुसा और दाऊद भागा और उस रात बच गया |11और साऊल ने दाऊद के घर पर क़ासिद भेजे कि उसकी ताक में रहें और सुबह को उसे मार डालें, इसलिए दाऊद की बीवी मीकल ने उससे कहा, "अगर आज की रात तू अपनी जान न बचाए तो कल मारा जाएगा|"12और मीकल ने दाऊद को खिड़की से उतार दिया, इसलिए वह चल दिया और भाग कर बच गया |13और मीकल ने एक बुत को लेकर पलंग पर लिटा दिया, और बकरियों के बाल का तकिया सिरहाने रखकर उसे कपड़ों से ढांक दिया |14और जब साऊल ने दाऊद के पकड़ने को क़ासिद भेजे तो वह कहने लगी, कि वह बीमार है|15और साऊल ने क़ासिदों को भेजा कि दाऊद को देखें और कहा, कि उसे पलंग समेत मेरे पास लाओ कि मैं उसे क़त्ल करूँ|16और जब वह क़ासिद अंदर आए, तो देखा कि पलंग पर बुत पड़ा है और उसके सिरहाने बकरियों के बाल का तकिया है|17तब साऊल ने मीकल से कहा, "कि तू ने मुझ से क्यूँ ऐसी दग़ा की और मेरे दुश्मन को ऐसे जाने दिया कि वह बच निकला?" मीकल ने साऊल को जवाब दिया, कि वह मुझ से कहने लगा, मुझे जाने दे, मैं क्यूँ तुझे मार डालूँ?18और दाऊद भाग कर बच निकला और रामा में समुएल के पास आकर जो कुछ साऊल ने उससे किया था, सब उसको बताया, तब वह और समुएल दोनों नयोत में जाकर रहने लगे |19और साऊल को ख़बर मिली कि दाऊद रामा के बीच नयोत में है |20और साऊल ने दाऊद को पकड़ने को क़ासिद भेजे और उन्होंने जो देखा कि नबियों का मजमा' नबुव्वत कर रहा है और समुएल उनका सरदार बना खड़ा है तो ख़ुदा की रूह साऊल के क़ासिदों पर नाज़िल हुई और वह भी नबुव्वत करने लगे|21और जब साऊल तक यह ख़बर पहूँची तो उसने और क़ासिद भेजे और वह भी नबुव्वत करने लगे और साऊल ने फिर तीसरी बार और क़ासिद भेजे और वह भी नबुव्वत करने लगे|22तब वह ख़ुद रामा को चला और उस बड़े कुवें पर जो सीको में है पहूँच कर पूछने लगा कि समुएल और दाऊद कहाँ ~हैं? और किसी ने कहा, कि देख वह रामा के बीच नयोत में हैं|23तब वह उधर रामा के नयोत की तरफ़ चला और ख़ुदा की रूह उस पर भी नाज़िल हुई और वह चलते चलते नबुव्वत करता हुआ, रामा के नयोत में पहूँचा |24और उसने भी अपने कपड़े उतारे और वह भी समुएल के आगे नबुव्वत करने लगा, और उस सारे दिन और सारी रात नंगा पड़ा रहा, इसलिए यह कहावत चली, "क्या साऊल भी नबियों में है?"
1और दाऊद रामा के नयोत से भागा, और यूनतन के पास जाकर कहने लगा कि मैंने क्या किया है? मेरा क्या गुनाह है?मैंने तेरे बाप के आगे कौन सी ग़ल्ती की है, जो वह मेरी जान चाहता है?2उसने उससे कहा कि ख़ुदा न करे, तू मारा नहीं जाएगा, देख मेरा बाप कोई काम बड़ा हो या छोटा नहीं करता जब तक उसे मुझ को न बताए, फिर भला मेरा बाप इस बात को क्यूँ मुझसे छिपाएगा? ऐसा नहीं|3तब दाऊद ने क़सम खाकर कहा कि तेरे बाप को अच्छी तरह मा'लूम है ,कि मुझ पर तेरे करम की नज़र है इस लिए वह सोचता होगा, कि यूनतन को यह मा'लूम न हो नहीं तो वह दुखी होगा लेकिन यक़ीनन ख़ुदावन्द की हयात और तेरी जान की क़सम मुझ में और मौत में सिर्फ़ एक ही क़दम का फ़ासला है|4तब यूनतन ने दाऊद से कहा कि जो कुछ तेरा जी चाहता हो मैं तेरे लिए वही करूँगा|5दाऊद ने यूनतन से कहा कि देख कल नया चाँद है, और मुझे लाज़िम है कि बादशाह के साथ खाने बैठूँ; लेकिन तू मुझे इजाज़त दे कि मैं परसों शाम तक मैदान में छिपा रहूँ |6अगर मैं तेरे बाप को याद आऊँ तो कहना कि दाऊद ने मुझ से बजिद होकर इजाज़त माँगी ताकि वह अपने शहर बैतलहम को जाए, इसलिए कि वहाँ, सारे घराने की तरफ़ से सालाना क़ुर्बानी है|7अगर वह कहे कि अच्छा तो तेरे चाकर की सलामती है लेकिन अगर वह ग़ुस्से से भर जाए तो जान लेना कि उसने बदी की ठान ली है |8तब तू अपने ख़ादिम के साथ नरमी से पेश आ, क्यूँकि तूने अपने ख़ादिम को अपने साथ ख़ुदावन्द के 'अहद में दाख़िल कर लिया है, लेकिन अगर मुझ में कुछ बुराई हो तो तू ख़ुद ही मुझे क़त्ल कर डाल तू मुझे अपने बाप के पास क्यूँ पहुँचाए ?|9यूनतन ने कहा, "ऐसी बात कभी न होगी, अगर मुझे 'इल्म होता कि मेरे बाप का 'इरादा है कि तुझ से बदी करे तो क्या में तुझे ख़बर न करता?|"10फिर दाऊद ने यूनतन से कहा, "अगर तेरा बाप तुझे सख़्त जवाब दे तो कौन मुझे बताएगा?"11यूनतन ने दाऊद से कहा, "चल हम मैदान को निकल जाएँ|" चुनाँचे वह दोनों मैदान को चले गए|12तब यूनतन दाऊद से कहने लगा, "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा गवाह रहे ,कि जब मैं कल या परसों 'अनक़रीब इसी वक़्त अपने बाप का राज़ लूँ और देखूँ कि दाऊद के लिए भलाई है तो क्या मैं उसी वक़्त तेरे पास कहला न भेजूँगा और तुझे न बताऊँगा?13ख़ुदावन्द यूनतन से ऐसा ही बल्कि इससे भी ज़्यादा करे अगर मेरे बाप की यही मर्जी हो कि तुझ से बुराई करे और मैं तुझे न बताऊँ और तुझे रुख़्सत न करदूँ ताकि तू सलामत चला जाए और ख़ुदावन्द तेरे साथ रहे, जैसा वह मेरे बाप के साथ रहा|14और सिर्फ़ यहीं नहीं कि जब तक मैं जीता रहूँ तब ही तक तू मुझ पर ख़ुदावन्द का सा करम करे ताकि मैं मर न जाऊँ;15बल्कि मेरे घराने से भी कभी अपने करम को बाज़ न रखना और जब ख़ुदावन्द तेरे दुश्मनों में से एक एक को ज़मीन पर से मिटा और बर्बाद कर डाले तब भी ऐसा ही करना|"16इसलिए यूनतन ने दाऊद के ख़ानदान से 'अहद किया और कहा कि "ख़ुदावन्द दाऊद के दुशमनों से बदला ले|17और यूनतन ने दाऊद को उस मुहब्बत की वजह से जो उसको उससे थी दोबारा क़सम खिलाई क्यूँकि उससे अपनी जान के बराबर मुहब्बत रखता था|"18तब यूनतन ने दाऊद से कहा कि "कल नया चाँद है और तू याद आएगा, क्यूँकि तेरी जगह ख़ाली रहेगी |19और अपने तीन दिन ठहरने के बा'द तू जल्द जाकर उस जगह आ जाना जहाँ, तू उस काम के दिन छिपा था, और उस पत्थर के नज़दीक रहना जिसका नाम अज़ल है|20और मैं उस तरफ़ तीन तीर इस तरह चलाऊँगा, गोया निशाना मारता हूँ |21और देख, मैं उस वक़्त लड़के को भेजूँगा कि जा तीरों को ढूँड ले आ, इसलिए अगर मैं लड़के से कहूँ कि देख ,तीर तेरी इस तरफ़ हैं तो तू ~उनको उठा ,कर ले आना क्यूँकि ख़ुदावद की हयात की क़सम तेरे लिए सलामती होगी न कि नुक़्सान |22लेकिन अगर मैं छोकरे से यूँ ~कहूँ कि देख, तीर तेरी उस तरफ़ हैं तो तू अपनी रास्ता लेना क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुझे रुख़्सत किया है|23रहा वह मु'आमिला जिसका ज़िक्र तूने और मैंने किया है इस लिए देख ,ख़ुदावन्द हमेशा तक मेरे और तेरे बीच रहे|"24तब दाऊद मैदान मैं जा छिपा और जब नया चाँद हुआ तो बादशाह खाना खाने बैठा |25और बादशाह अपने दस्तूर के मुताबिक़ अपनी मसनद पर या'नी उसी मसनद पर जो दीवार के बराबर थी बैठा, और यूनतन खड़ा हुआ, और अबनेर साऊल के पहलू में बैठा, और दाऊद की जगह ख़ाली रही |26लेकिन उस रोज़ साऊल ने कुछ न कहा, क्यूँकि उसने गुमान किया कि उसे कुछ हो गया होगा, वह नापाक होगा, वह ज़रूर नापाक ही होगा |27और नए चाँद के बा'द दूसरे दिन दाऊद की जगह फिर ख़ाली रही, तब साऊल ने अपने बेटे यूनतन से कहा कि "क्या वजह है, कि यस्सी का बेटा न तो कल खाने पर आया न आज आया है?"28तब यूनतन ने साऊल को जवाब दिया कि दाऊद ने मुझ से बजिद होकर बैतलहम जाने को इजाज़त माँगी |29वह कहने लगा कि "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ मुझे जाने दे क्यूँकि शहर में हमारे घराने का ज़बीहा है और मेरे भाई ने मुझे हुक्म किया है कि हाज़िर रहूँ, अब अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो मुझे जाने दे कि अपने भाइयों को देखूँ, इसीलिए वह बादशाह के दस्तरख़्वान पर हाज़िर नही हुआ|"30तब साऊल का ग़ुस्सा यूनतन पर भड़का और उसने उससे कहा, "ऐ कजरफ़्तार चण्डालन के बेटे क्या मैं नहीं जानता कि तूने अपनी शर्मिंदगी और अपनी माँ की बरहनगी की शर्मिंदगी के लिए यस्सी के बेटे को चुन लिया है?31क्यूँकि जब तक यस्सी का यह बेटा इस ज़मीन पर ज़िन्दा है, न तो तुझ को क़याम होगा न तेरी बादशाहत को, इसलिए अभी लोग भेज कर उसे मेरे पास ला क्यूँकि उसका मरना ज़रूर है|"32तब यूनतन ने अपने बाप साऊल को जवाब दिया "वह क्यूँ मारा जाए? उसने क्या किया है?"33तब साऊल ने भाला फेंका कि उसे मारे, इससे यूनतन जान गया कि उसके बाप ने दाऊद के क़त्ल का पूरा 'इरादा किया है|34इसलिए यूनतन बड़े ग़ुस्सा में दस्तरख़्वान पर से उठ गया और महीना के उस दूसरे दिन कुछ खाना न खाया क्यूँकि वह दाऊद के लिए दुखी था इसलिए कि उसके बाप ने उसे रुसवा किया|35और सुबह को यूनतन उसी वक़्त जो दाऊद के साथ ठहरा था मैदान को गया और एक लड़का उसके साथ था |36और उसने अपने लड़के को हुक्म किया कि दौड़ और यह तीर जो मैं चलाता हूँ ढूँड ला और जब वह लड़का दौड़ा जा रहा था, तो उसने ऐसा तीर लगाया जो उससे आगे गया |37और जब वह लड़का उस तीर की जगह पहूँचा जिसे यूनतन ने चलाया था ,तो यूनतन ने लड़के के पीछे पुकार कर कहा, "क्या वह तीर तेरी उस तरफ़ नहीं?"38और यूनतन उस लड़के के पीछे चिल्लाया, तेज़ जा, ज़ल्दी कर ठहरमत ,इस लिए यूनतन के लड़के ने तीरों को जमा' किया और अपने आक़ा के पास लौटा|39लेकिन उस लड़के को कुछ मा'लूम न हुआ, सिर्फ़ दाऊद और यूनतन ही इसका राज़ जानते थे |40फिर यूनतन ने अपने हथियार उस लड़के को दिए और उससे कहा "इनको शहर को ले जा|"41जैसे ही वह लड़का चला गया दाऊद जुनूब की तरफ़ से निकला और ज़मीन पर औंधा ~होकर तीन बार सिज्दा किया और उन्होंने आपस में एक दूसरे को चूमा और आपस में रोए लेकिन दाऊद बहुत रोया |42और यूनतन ने दाऊद से कहा कि सलामत चला जा क्यूँकि हम दोनों ने ख़ुदावन्द के नाम की क़सम खाकर कहा है कि ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच और मेरी और तेरी नसल के बीच हमेशा तक रहे, इसलिए वह उठ कर रवाना हुआ और यूनतन शहर में चला गया |
1और दाऊद नोब में अख़ीमलिक काहिन के पास आया; और अख़ीमलिक दाऊद से मिलने को काँपता हुआ आया और उससे कहा,"तू क्यूँ अकेला है ,और तेरे साथ कोई आदमी नहीं?"2दाऊद ने अख़ीमलिक काहिन से कहा कि "बादशाह ने मुझे एक काम का हुक्म करके कहा है, कि जिस काम पर मैं तुझे भेजता हूँ, और जो हुक्म मैंने तुझे दिया है वह किसी शख़्स पर ज़ाहिर न हो इस लिए मैंने जवानों को फु़लानी फु़लानी जगह बिठा दिया है |3इसलिए अब तेरे यहाँ क्या है? मेरे हाथ में रोटियों के पाँच टुकड़े या जो कुछ मौजूद हो दे|"4काहिन ने दाऊद को जवाब दिया मेरे यहाँ 'आम रोटियाँ तो नहीं लेकिन पाक रोटियाँ हैं; बशर्ते कि वह जवान 'औरतों से अलग रहे हों |"5दाऊद ने काहिन को जवाब दिया "सच तो यह है कि तीन दिन से 'औरतें हमसे अलग रहीं हैं, और अगरचे यह मा'मूली सफ़र है तोभी जब मैं चला था तब इन जवानों के बर्तन पाक थे, तो आज तो ज़रूर ही वह बर्तन पाक होंगे |"6तब काहिन ने पाक रोटी उसको दी क्यूँकि और रोटी वहाँ नहीं थी, सिर्फ़ नज़र की रोटी थी ,जो ख़ुदावन्द के आगे से उठाई गई थी ताकि उसके बदले उस दिन जब वह उठाई जाए गर्म रोटी रख्खी जाए |7और वहाँ उस दिन साऊल के ख़ादिमों में से एक शख़्स ख़ुदावन्द के आगे रुका हुआ था, उसका नाम अदोमी दोएग था| यह साऊल के चरवाहों का सरदार था |8फिर दाऊद ने अख़ीमलिक से पूछा "क्या यहाँ तेरे पास कोई नेज़ह या तलवार नहीं? क्यूँकि मैं अपनी तलवार और अपने हथियार अपने साथ नहीं लाया क्यूँकि बादशाह के काम की जल्दी थी |"9उस काहिन ने कहा, कि "फ़िलिस्ती जोलियत की तलवार जिसे तूने एला की वादी में क़त्ल किया कपड़े में लिपटी हुई अफ़ूद के पीछे रख्खी है, अगर तु उसे लेना चाहता है तो ले ,उसके 'अलावा यहाँ कोई और नहीं है|" दाऊद ने कहा,"वैसे तो कोई है ही नहीं, वही मुझे दे |"10और दाऊद उठा,और साऊल के ख़ौफ़ से उसी दिन भागा और जात के बादशाह अकीस के पास चला गया |11और अकीस के मुलाज़िमों ने उससे कहा, "क्या यही उस मुल्क का बादशाह दाऊद नहीं? क्या इसी के बारे में नाचते वक़्त गा-गा कर उन्होंने आपस में नहीं कहा था कि साऊल ने तो हज़ारों को लेकिन दाऊद ने लाखों को मारा?|"12दाऊद ने यह बातें अपने दिल में रख्खीं और जात के बादशाह अकीस से निहायत डरा |13इसलिए वह उनके आगे दूसरी चाल चला और उनके हाथ पड़ कर अपने को दीवाना सा बना लिया,और फाटक के किवाड़ों पर लकीरें खींचने और अपनी थूक को अपनी दाढ़ी पर बहाने लगा |14तब अकीस ने अपने नौकरों से कहा, "लो यह आदमी तो दीवाना है, तुम उसे मेरे पास क्यूँ लाए ?15क्या मुझे दीवानों की ज़रूरत है जो तुम उसको मेरे पास लाए हो कि मेरे सामने दीवाना पन करे? क्या ऐसा आदमी मेरे घर में आने पाएगा ?"
1और दाऊद वहाँ से चला और 'अदूल्लाम के मग़ारे में भाग आया, और उसके भाई और उसके बाप का सारा घराना यह सुनकर उसके पास वहाँ पहुँचा |2और सब कंगाल और सब क़र्ज़दार और सब बिगड़े दिल उसके पास जमा' हुए और वह उनका सरदार बना और उसके साथ क़रीबन चार सौ आदमी हो गए |3और वहाँ से दाऊद मोआब के मिसफ़ाह को गया और मोआब के बादशाह से कहा, "मेरे माँ बाप को ज़रा यहीं आकर अपने यहाँ रहने दे जब तक कि मुझे मा'लूम न हो कि ख़ुदा मेरे लिए क्या करेगा|"4और वह उनको शाहे मोआब के सामने ले आया, इसलिए वह जब तक दाऊद गढ़ में रहा, उसी के साथ रहे |5तब जाद नबी ने दाऊद से कहा, "इस गढ़ में मत रह, रवाना हो और यहूदाह के मुल्क में जा, इसलिए दाऊद रवाना हुआ ,और हारत के बन में चला गया|6और साऊल ने सुना कि दाऊद और उसके साथियों का पता लगा है, और साऊल उस वक़्त रामा के जिब'आ में झाऊ के दरख़्त के नीचे अपना भाला अपने हाथ में लिए बैठा था और उसके ख़ादिम उसके चारों तरफ़ खड़े थे |7तब साऊल ने अपने ख़ादिमों से जो उसके चारों तरफ़ खड़े थे कहा, "सुनों तो ऐ बिनयमीनों |क्या यस्सी का बेटा तुम मैं से हर एक को खेत और ताकिस्तान देगा और तुम सबको हज़ारों और सैकड़ों का सरदार बनाएगा?8जो तुम सब ने मेरे ख़िलाफ़ साज़िश की है और जब मेरा बेटा यस्सी के बेटे से 'अहद-ओ-पैमान करता है तो तुम में से कोई मुझ पर ज़ाहिर नहीं करता और तुम में कोई नहीं जो मेरे लिए ग़मगीन हो और मुझे बताए कि मेरे बेटे ने मेरे नौकर को मेरे ख़िलाफ़ घात लगाने को उभारा है, जैसा आज के दिन है ?"9तब अदोमी दोएग ने जो साऊल के ख़ादिमों के बराबर खड़ा था जवाब दिया कि मैंने यस्सी के बेटे को नोब में अख़ीतोब के बेटे अख़ीमलिक काहिन के पास आते देखा |10और उसने उसके लिए ख़ुदावन्द से सवाल किया और उसे ज़ाद -ए-राह दिया और फ़िलिस्ती जूलियत की तलवार दी|"11तब बादशाह ने अख़ीतोब के बेटे अख़ीमलिक काहिन को और उसके बाप के सारे घराने को या'नी उन काहिनों को जो नोब में थे बुलवा भेजा और वह सब बादशाह के पास हाज़िर हुए |12और साऊल ने कहा, "ऐ अख़ीतोब के बेटे तू सुन| उसने कहा, "ऐ मेरे मालिक मैं हाज़िर हूँ|"13और साऊल ने उससे कहा कि "तुम ने या'नी तूने और यस्सी के बेटे ने क्यूँ मेरे ख़िलाफ़ साज़िश की है, कि तूने उसे रोटी और तलवार दी और उसके लिए ख़ुदा से सवाल किया ताकि वह मेरे बर ख़िलाफ़ उठ कर घात लगाए जैसा आज के दिन है?"14तब अख़ीमलिक ने बादशाह को जवाब दिया कि "तेरे सब ख़ादिमों में दाऊद की तरह आमानतदार कौन है? वह बादशाह का दामाद है, और तेरे दरबार में हाज़िर हुआ ,करता और तेरे घर में मु'अज़िज्ज़ है |15और क्या मैंने आज ही उसके लिए ख़ुदा से सवाल करना शुरू' किया? ऐसी बात मुझ से दूर रहे, बादशाह अपने ख़ादिम पर और मेरे बाप के सारे घराने पर कोई इल्ज़ाम न लगाए क्यूँकि तेरा ख़ादिम उन बातों को कुछ नहीं जानता ,न थोड़ा न बहुत|"16बादशाह ने कहा, "ऐ अख़ीमलिक! तू और तेरे बाप का सारा घराना ज़रूर मार डाला जाएगा|"17फिर बादशाह ने उन सिपाहियों को जो उसके पास खड़े थे हुक्म किया कि "मुड़ो और ख़ुदावन्द के काहिनों को मार डालो क्यूँकि दाऊद के साथ इनका भी हाथ है और इन्होंने यह जानते हुए भी कि वह भागा हुआ है मुझे नही बताया|" लेकिन बादशाह के ख़ादिमों ने ख़ुदावन्द के काहिनों पर हमला करने के लिए हाथ बढाना न चाहा|18तब बादशाह ने दोएग से कहा, "तू मुड़ और उन काहिनों पर हमला कर इसलिए अदोमी दोएग ने मुड़ कर काहिनों पर हमला किया" और उस दिन उसने पचासी आदमी जो कतान के अफ़ूद पहने थे क़त्ल किए |19और उसने काहिनों के शहर नोब को तलवार की धार से मारा और मर्दों और औरतों और लड़कों और दूध पीते बच्चों और बैलों और गधों और भेड़ बकरियों को बरबाद किया |20और अख़ीतोब के बेटे अख़ीमलिक के बेटों में से एक जिसका नाम अबीयातर था बच निकला और दाऊद के पास भाग गया |21और अबीयातर ने दाऊद को ख़बर दी कि "साऊल ने ख़ुदावन्द के काहिनों को क़त्ल कर ड़ाला है|"22दाऊद ने अबीयातर से कहा, "मैं उसी दिन जब अदोमी दोएग वहाँ मिला जान गया था कि वह ज़रूर साऊल को ख़बर देगा तेरे बाप के सारे घराने के मारे जाने की वजह ~मैं हूँ |23इसलिए तू मेरे साथ रह और मत डर -जो तेरी जान चाहता ~है,वह मेरी जान चाहता है, इसलिए तू मेरे साथ सलामत रहेगा|"
1और उन्होंने दाऊद को ख़बर दी कि "देख ,फ़िलिस्ती क़'ईला से लड़ रहे हैं और खलिहानों को लूट रहे हैं|"2तब दाऊद ने ख़ुदावन्द से पूछा कि "क्या मैं जाऊँ और उन फ़िलिस्तियों को मारूं?" ख़ुदावन्द ने दाऊद को फ़रमाया, "जा फ़िलिस्तियों को मार और क़'ईला को बचा|"3और दाऊद के लोगों ने उससे कहा कि "देख ,हम तो यहीं यहूदाह में डरते हैं, तब हम क़'ईला को जाकर फ़िलिस्ती लशकरों का सामना करें तो कितना ज़्यादा न डर लगेगा?"4तब दाऊद ने ख़ुदावन्द से फिर सवाल किया ,ख़ुदावन्द ने जवाब दिया कि "उठ क़'ईला को जा क्यूँकि मैं फ़िलिस्तियों को तेरे क़ब्ज़े ~में कर दूँगा|"5इसलिए दाऊद और उसके लोग क़'ईला को गए और फ़िलिस्तियों से लड़े और उनकी मवाशी ले आए और उनको बड़ी खूँरेज़ी के साथ क़त्ल किया ,यूँ दाऊद ने क़'ईलियों को बचाया|6जब अख़ीमलिक का बेटा अबीयातर दाऊद के पास क़'ईला को भागा तो उसके हाथ में एक अफ़ूद था जिसे वह साथ ले गया था|7और साऊल को ख़बर हुई कि दाऊद क़'ईला में आया है इसलिए साऊल कहने लगा कि "ख़ुदा ने उसे मेरे क़ब्ज़े में कर दिया क्यूँकि वह जो ऐसे शहर में घुसा है, जिस में फाटक और अड़बंगे हैं तो क़ैद हो गया है|"8और साऊल ने जंग के लिए अपने सारे लश्कर को बुला लिया ताकि क़'ईला में जाकर दाऊद और उसके लोगों को घेर ले|9और दाऊद को मा'लूम हो गया कि साऊल उसके ख़िलाफ़ बुराई की तदबीरें कर रहा है, इसलिए उसने अबीयातर काहिन से कहा कि "अफ़ूद यहाँ ले आ|"10और दाऊद ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा तेरे बन्दे ने यह क़त'ई सुना है कि साऊल क़'ईला को आना चाहता है ताकि मेरी वजह से शहर को बरबाद करदे |11तब क्या क़'ईला के लोग मुझको उसके हवाले कर देंगे ?क्या साऊल जैसा तेरे बन्दे ने सुना है आएगा? ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू अपने बन्दे को बता दे" ख़ुदावन्द ने कहा, "वह आएगा|"12तब दाऊद ने कहा कि "क्या क़'ईला के लोग मुझे और मेरे लोगों को साऊल के हवाले कर देंगे?" ख़ुदावन्द ने कहा, "वह तुझे हवाले कर देंगे|"13तब दाऊद और उसके लोग जो क़रीबन छ: सौ थे उठकर क़'ईला से निकल गए और जहाँ कहीं जा सके चल दिए और साऊल को ख़बर मिली कि दाऊद क़'ईला से निकल गया तब वह जाने से बाज़ रहा|14और दाऊद ने वीराने के क़िलों' में सुकूनत की और दश्त ऐ ज़ीफ़ के पहाड़ी मुल्क में रहा,और साऊल हर रोज़ उसकी तलाश में रहा, लेकिन ख़ुदावन्द ने उसको उसके क़ब्ज़े में हवाले न किया|15और दाऊद ने देखा कि साऊल उसकी जान लेने को निकला है, उस वक़्त दाऊद दश्त-ए-जीफ़ के बन में था |16और साऊल का बेटा यूनतन उठकर दाऊद के पास बन में गया और ख़ुदा में उसका हाथ मज़बूत किया |17उसने उससे कहा, "तू मत डर क्यूँकि तू मेरे बाप साऊल के हाथ में नहीं पड़ेगा और तू इस्राईल का बादशाह होगा और में तुझ से दूसरे दर्जे पर हूँगा, यह मेरे बाप साऊल को भी मा'लूम है|"18और उन दोनों ने ख़ुदावन्द के आगे 'अहद ओ पैमान किया और दाऊद बन में ठहरा रहा, और यूनतन अपने घर को गया |19तब ज़ीफ़ के लोग जिबा' में साऊल के पास जाकर कहने लगे, "क्या दाऊद हमारे बीच कोहे ह्कीला के बन के क़िलों' में जंगल के जुनूब की तरफ़ छिपा नही है?20इसलिए अब ऐ बादशाह तेरे दिल को जो बड़ी आरजू आने की है उसके मुताबिक़ आ और उसको बादशाह के हाथ में हवाले करना हमारा ज़िम्मा रहा|"21तब साऊल ने कहा, "ख़ुदावन्द की तरफ़ से तुम मुबारक हो क्यूँकि तुमने मुझ पर रहम किया|22इसलिए अब ज़रा जाकर सब कुछ और पक्का कर लो और उसकी जगह को देख, कर जान लो कि उसका ठिकाना कहाँ है, और किसने उसे वहाँ देखा है, क्यूँकि मुझ से कहा, गया है कि वह बड़ी चालाकी से काम करता है|23इसलिए तुम देख भाल कर जहाँ-जहाँ वह छिपा करता है उन ठिकानों का पता लगा कर ज़रूर मेरे पास फिर आओ और मैं तुम्हारे साथ चलूँगा और अगर वह इस मुल्क में कहीं भी हो तो में उसे यहूदाह के हज़ारों हज़ार में से ढूँड निकालूँगा|"24इसलिए वह उठे और साऊल से पहले ज़ीफ़ को गए लेकिन दाऊद और उसके लोग म'ऊन के वीराने में थे जो जंगल के जुनूब की तरफ़ मैदान में था |25और साऊल और उसके लोग उसकी तलाश में निकले और दाऊद को ख़बर पहुँची, इसलिए वह चट्टान पर से उतर आया और म'ऊन के वीराने में रहने लगा, और साऊल ने यह सुनकर म'ऊन के वीराने में दाऊद का पीछा किया |26और साऊल पहाड़ की इस तरफ़ और दाऊद और उसके लोग पहाड़ की उस तरफ़ चल रहे थे, और दाऊद साऊल के ख़ौफ़ से निकल जाने की जल्दी कर रहा ,था इसलिए कि साऊल और उसके लोगों ने दाऊद को और उसके लोगों को पकड़ने के लिए घेर लिया था |27लेकिन एक क़ासिद ने आकर साऊल से कहा कि "जल्दी चल क्यूँकि फ़िलिस्तियों ने मुल्क पर हमला किया है|"28इसलिए साऊल दाऊद का पीछा छोड़ कर फ़िलिस्तियों का मुक़ाबिला करने को गया इसलिए उन्होंने उस जगह का नाम सिला'हम्मख़ल्कोत रख्खा |29और दाऊद वहाँ से चला गया और 'ऐन जदी के क़िलों' में रहने लगा |
1जब साऊल फ़िलिस्तियों का पीछा करके लौटा तो उसे ख़बर मिली कि दाऊद 'ऐन जदी के वीराने में हैं |2इसलिए साऊल सब इस्राईलियों में से तीन हज़ार चुने हुए जवान लेकर जंगली बकरों की चट्टानों पर दाऊद और उसके लोगों की तलाश में चला |3और वह रास्ता में भेड़ सालो के पास पहुँचा जहाँ एक ग़ार था ,और साऊल उस ग़ार में फ़राग़त करने घुसा और दाऊद अपने लोगों के साथ उस ग़ार के अंदरूनी ख़ानों में बैठा ,था |4और दाऊद के लोगों ने उससे कहा, "देख,यह वह दिन है ,जसके बारे में ~ख़ुदावन्द ने तुझ से कहा,था कि देख,मैं तेरे दुश्मन को तेरे क़ब्ज़े ~में कर दूँगा और जो तेरा जी चाहे वह तू उससे करना" इसलिए दाऊद उठकर साऊल के जुब्बे का दामन चुपके से काट ले गया |5और उसके बा'द ऐसा हुआ कि दाऊद का दिल बेचैन हुआ ,इसलिए कि उसने साऊल के जुब्बे का दामन काट लिया था |6और उसने अपने लोगों से कहा कि "ख़ुदावन्द न करे कि मैं अपने मालिक से जो ख़ुदावन्द का मम्सूह ~है ,ऐसा काम करूं कि अपना हाथ उस पर चलाऊँ इसलिए कि वह ख़ुदावन्द का मम्सुह है|"7इसलिए दाऊद ने अपने लोगों को यह बातें कह कर रोका और उनको साऊल पर हमला करने न दिया और साऊल उठ कर ग़ार से निकला और अपनी राह ली |8और बा'द उसके दाऊद भी उठा,और उस ग़ार में से निकला और साऊल के पीछे पुकार कर कहने लगा, "ऐ मेरे मालिक बादशाह!" जब साऊल ने पीछे फिर कर देखा तो दाऊद ने ओंधे मुँह गिरकर सिज्दा किया |9और दाऊद ने साऊल से कहा, "तू क्यूँ ऐसे लोगों की बातों को सुनता है,जो कहते है कि दाऊद तेरी बदी चाहता है|?10देख,आज के दिन तूने अपनी आँखों से देखा कि ख़ुदावन्द ने ग़ार में आज ही तुझे मेरे क़ब्ज़े में कर दिया और कुछ ने मुझ से कहा,भी कि तुझे मार डालूँ लेकिन मेरी आँखों ने तेरा लिहाज़ किया और मैंने कहा कि मैं अपने मालिक पर हाथ नहीं चलाऊँगा क्यूँकि वह ख़ुदावन्द का मम्सूह है |11'अलावा इसके ऐ मेरे बाप देख,यह भी देख,कि तेरे जुब्बे का दामन मेरे हाथ में है ,और चूँकि मैंने तेरे जुब्बे का दामन काटा और तुझे मार नहीं डाला इसलिए तू जान ले और देख,ले कि मेरे हाथ में किसी तरह,की बदी या बुराई नहीं और मैंने तेरा कोई गुनाह नहीं किया अगर्चे ~तू मेरी जान लेने के दर्पे है |12ख़ुदावन्द मेरे और तेरे बीच इन्साफ़ करे और ख़ुदावन्द तुझ से मेरा बदला ले लेकिन मेरा हाथ तुझ पर नहीं उठेगा |13~ ~पुराने लोगों कि मिसाल है ,कि बुरों से बुराई होती है लेकिन मेरा हाथ तुझ पर नहीं उठेगा |14इस्राईल का बादशाह किस के पीछे निकला? तू किस के पीछे पड़ा है? एक मरे हुए कुत्ते के पीछे,एक पिस्सू के पीछे |15जब ख़ुदावन्द ही मुंसिफ हो और मेरे और तेरे बीच फ़ैसला करे और देखे,और मेरा मुक़द्दमा लड़े और तेरे हाथ से मुझे छुड़ाए|"16और ऐसा हुआ,कि जब दाऊद यह बातें साऊल से कह चुका तो साऊल ने कहा, "ऐ मेरे बेटे दाऊद क्या यह तेरी आवाज़ है?और साऊल चिल्ला कर रोने लगा|"17और उसने दाऊद से कहा, "तू मुझ से ज़्यादा सच्चा है इसलिए कि तूने मेरे साथ भलाई की है,हालाँकि मैंने तेरे साथ बुराई की |18और तूने आज के दिन ज़ाहिर कर दिया कि तूने मेरे साथ भलाई की है क्यूँकि जब ख़ुदावन्द ने मुझे तेरे क़ब्ज़े में कर दिया तो तूने मुझे क़त्ल न किया |19भला क्या कोई अपने दुश्मन को पाकर उसे सलामत जाने देता है ? इसलिए ख़ुदावन्द उसने की के बदले जो तूने मुझ से आज के दिन की तुझ को नेक अज्र दे|20और अब देख,मैं ख़ूब जानता हूँ कि तू यक़ीनन बादशाह होगा और इस्राईल की सल्तनत तेरे हाथ में पड़ कर क़ायम होगी |21इसलिए अब मुझ से ख़ुदावन्द की क़सम खा कि तू मेरे बा'द मेरी नसल को हलाक नहीं करेगा और मेरे बाप के घराने में से मेरे नाम को मिटा नहीं डालेगा|"22इसलिए दाऊद ने साऊल से क़सम खाई और साऊल घर को चला गया पर दाऊद और उसके लोग उस गढ़ में जा बैठे |
1और समुएल मर गया और सब इस्राईली जमा' हुए और उन्होंने उस पर नौहा किया और उसे रामा में उसी के घर में दफ़न किया और दाऊद उठ कर फ़ारान के जंगल को चला गया |2और म'ऊन में एक शख़्स रहता था जिसकी जायदाद करमिल में थी यह शख़्स बहुत बड़ा था और उस के पास तीन हज़ार भेड़ें और एक हज़ार बकरियाँ थीं और यह कर्मिल में अपनी भेड़ों के बाल कतर रहा था |3इस शख़्स का नाम नाबाल और उसकी बीवी का नाम अबीजेल था ,यह 'औरत बड़ी समझदार और ख़ूबसूरत थी लेकिन वह आदमी बड़ा बे अदब और बदकार था और वह कालिब के ख़ानदान से था |4और दाऊद ने वीराने में सुना कि नाबाल अपनी भेड़ों के बाल कतर रहा,है |5इसलिए दाऊद ने दस जवान रवाना किए और उसने उन जवानों से कहा,कि तुम कर्मिल पर चढ़कर नाबाल के पास जाओ,और मेरा नाम लेकर उसे सलाम कहो |6और उस ख़ुश हाल आदमी से यूँ कहो कि तेरी और तेरे घर कि और तेरे माल असबाब की सलामती हो |7मैंने अब सुना है कि तेरे यहाँ बाल कतरने वाले हैं और तेरे चरवाहे हमारे साथ रहे और हमने उनको नुक़्सान नहीं पहूँचाया और जब तक वह कर्मिल में हमारे साथ रहे उनकी कोई चीज़ खोई न गई|8तू अपने जवानों से पूछ और वह तुझे बताएँगे ,तब इन जवानों पर तेरे करम की नज़र हो इसलिए कि हम अच्छे दिन आए हैं ,मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि जो कुछ तेरे क़ब्ज़े में आए अपने ख़ादिमों को और अपने बेटे दाऊद को 'अता कर|"9इसलिए दाऊद के जवानों ने जाकर नाबाल से दाऊद का नाम लेकर यह बातें कहीं और चुप हो रहे |10नाबाल ने दाऊद के ख़ादिमों को जवाब दिया "कि दाऊद कौन है ?और यस्सी का बेटा कौन है ?इन दिनों बहुत से नौकर ऐसे हैं जो अपने आक़ा के पास से भाग जातें हैं |11क्या मैं अपनी रोटी और पानी और ज़बीहे जो मैंनें अपने कतरने वालों के लिए ज़बह किए हैं ,लेकर उन लोगों को दूँ जिनको मैं नहीं जानता कि वह कहाँ के हैं ?|"12इसलिए दाऊद के जवान उलटे पाँव फिरे और लौट गए और आकर यह सब बातें उसे बताईं |13तब दाऊद ने अपने लोगों से कहा, "अपनी अपनी तलवार बाँध लो ,इसलिए हर एक ने अपनी तलवार बाँधी और दाऊद ने भी अपनी तलवार लटकाई ,तब क़रीबन चार सौ जवान दाऊद के पीछे चले और दो सौ सामान के पास रहे |14और जवानों में से एक ने नाबाल की बीवी अबीजेल से कहा,कि देख,दाऊद ने वीराने से हमारे आक़ा को मुबारकबाद देने को क़ासिद भेजे लेकिन वह उन पर झुंझलाया |15लेकिन इन लोगों ने हम से बड़ी नेकी की और हमारा नुक़्सान नहीं हुआ,और मैदानों में जब तक हम उनके साथ रहे हमारी कोई चीज़ गुम न हुई |16बल्कि जब तक हम उनके साथ भेड़ बकरी चराते रहे वह रात दिन हमारे लिए गोया दीवार थे |17इसलिए अब सोच समझ ले कि तू क्या करेगी क्यूँकि हमारे आक़ा और उसके सब घराने के ख़िलाफ़ बदी का मंसूबा बाँधा गया है ,क्यूँकि यह ऐसा ख़बीस आदमी है कि कोई इस से बात नहीं कर सकता|"18तब अबीजेल ने जल्दी की और दो सौ रोटियाँ और मय के दो मश्कीज़े और पाँच पकी पकाई भेंडें और भुने हुए अनाज के पाँच पैमाने और किशमिश के एक सौ ख़ोशे और इन्जीर की दो सौ टिकियाँ साथ लीं और उनको गधों पर लाद लिया |19और अपने चाकरों से कहा, "तुम मुझ से आगे जाओ,देखो मैं तुम्हारे पीछे पीछे आती हूँ "और उसने अपने शोहर नाबाल को ख़बर न की |20और ऐसा हुआ,कि जैसे ही वह गधे पर चढ़ कर पहाड़ की आड़ से उतरी दाऊद अपने लोगों के साथ उतरते हुए उसके सामने आया और वह उनको मिली |21और दाऊद ने कहा,था "कि मैं इस पाजी के सब माल की जो वीराने में था बे फ़ाइदा इस तरह निगहबानी की कि उसकी चीज़ों में से कोई चीज़ गुम न हुई क्यूँकि उसने नेकी के बदले मुझ से बदी की |22इसलिए अगर मैं सुबह की रोशनी होने तक उसके~लोगों में से एक लड़का भी बाक़ी छोडूँ तो ख़ुदावन्द दाऊद के दुशमनों से ऐसा ही बल्कि इससे ज़्यादा ही करे|"23और अबीजेल ने जो दाऊद को देखा,तो जल्दी की और गधे से उतरी और दाऊद के आगे औंधी गिरीं और ज़मीन पर सरनगूँ ~हो गई |24और वह उसके पाँव पर गिर कर कहने लगी, "मुझ पर ऐ मेरे मालिक मुझी पर यह गुनाह हो और ज़रा अपनी लौंडी को इजाज़त दे कि तेरे कान में कुछ कहे और तू अपनी लौंडी की दरख़्वास्त सुन |25मैं तेरी मिन्नत करती हूँ कि मेरा मालिक उस ख़बीस आदमी नाबाल का कुछ ख़याल न करे क्यूँकि जैसा उसका नाम है वैसा ही वह है उसका नाम नाबाल है और हिमाक़त उसके साथ है लेकिन मैंनें जो तेरी लौंडी हूँ अपने मालिक के जवानों को जिनको तूने भेजा था नहीं देखा |26और अब ऐ मेरे मालिक !ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान ही की क़सम कि ख़ुदावन्द ने जो तुझे ख़ूँरेज़ी से और अपने ही हाथो अपना इन्तक़ाम लेने से बाज़ रख्खा है इसलिए तेरे दुश्मन और मेरे मालिक के बुराई चाहने वाले नाबाल की तरह ठहरें |27अब यह हदिया जो तेरी लौंडी अपने मालिक के सामने लाई है,उन जवानों को जो मेरे ख़ुदावन्द की पैरवी करतें हैं दिया जाए |28तू अपनी लौंडी का गुनाह मु'आफ़ करदे क्यूँकि ख़ुदावन्द यक़ीनन मेरे मालिक का घर क़ायम रख्खेगा इसलिए कि मेरे मालिक ख़ुदावन्द की लड़ाईयाँ लड़ता है और तुझ में तमाम 'उम्र बुराई नहीं पाई जाएगी |29और जो इन्सान तेरा पीछा करने और तेरी जान लेने को उठे तोभी मेरे मालिक की जान ज़िन्दगी के बूक़चे में ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा के साथ बंधी रहेगी लेकिन तेरे दुशमनों की जानें वह गोया गोफ़न में रखकर फेंक देगा |30और जब ख़ुदावन्द मेरे मालिक से वह सब नेकियाँ जो उसने तेरे हक़ में फ़रमाई हैं कर चुकेगा और तुझ को इस्राईल का सरदार बना देगा |31तो तुझे इसका ग़म और मेरे मालिक को यह दिली सदमा न होगा कि तूने बे वजह ख़ून बहाया या मेरे मालिक ने अपना बदला लिया और जब ख़ुदावन्द मेरे मालिक से भलाई करे तो तू अपनी लौंडी को याद करना|"32दाऊद ने अबीजेल से कहा, "कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो जिसने तुझे आज के दिन मुझ से मिलने को भेजा |33और तेरी 'अक़ल्मंदी मुबारक तू ख़ुद भी मुबारक हो जिसने मुझको आज के दिन ख़ूँरेज़ीऔर अपने हाथों अपना बदला लेने से बाज़ रख्खा |34क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हयात की क़सम जिसने मुझे तुझको नुक़्सान पहुचाने से रोका कि अगर तू जल्दी न करती और मुझ से मिलने को न आती तो सुबह की रोशनी तक नाबाल के लिए एक लड़का भी न रहता|"35और दाऊद ने उसके हाथ से जो कुछ वह उसके लिए लाई थी क़ुबूल किया और उससे कहा, "अपने घर सलामत जा ,देख मैंने तेरी बात मानी और तेरा लिहाज़ किया|"36और अबीजेल नाबाल के पास आई और देखा कि उसने अपने घर में शाहाना ज़ियाफ़त की तरह दावत कर रख्खी है और नाबाल का दिल उसके पहलू में ख़ुश है इसलिए कि वह नशे में चूर था ,इसलिए उसने उससे सुबह की रोशनी तक न थोड़ा न बहुत कुछ न कहा,|37सुबह को जब नाबाल का नशा उतर गया तो उसकी बीवी ने यह बातें उसे बताईं तब उसका दिल उसके पहलू में मुर्दा हो गया और वह पत्थर की तरह सुन पड़ गया |38और दस दिन के बा'द ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द ने नाबाल को मारा और वह मर गया |39जब दाऊद ने सुना कि नाबाल मर गया तो वह कहने लगा, "कि ख़ुदावन्द मुबारक हो जो नाबाल से मेरी रुसवाई का मुक़द्दमा लड़ा और अपने बन्दे को बुराई से बाज़ रख्खा और ख़ुदावन्द ने नाबाल की शरारत को उसी के सिर पर लादा|"और दाऊद ने अबीजेल के बारे में पैग़ाम भेजा ताकि उससे शादी करे |40और जब दाऊद के ख़ादिम करमिल में अबीजेल के पास आए तो उन्होंने उससे कहा, "कि दाऊद ने हमको तेरे पास भेजा है ताकि हम तुझे उससे शादी करने को लें जाएँ|"41इसलिए वह उठी,और ज़मीन पर ओंधे मुँह गिरी और कहने लगी "कि देख,तेरी लौंडी तो नौकर है ताकि अपने मालिक के ख़ादिमों के पाँव धोए |"42और अबीजेल ने जल्दी की और उठकर गधे पर सवार हुई और अपनी पाँच लौंडियाँ जो उसके जिलौ में थीं साथ लेलीं और वह दाऊद के क़ासिदों के पीछे पीछे गईं और उसकी बीवी बनी |43और दाऊद ने यज़र'एल की अख़ीनु'अम को भी ब्याह लिया ,इसलिए वह दोनों उसकी बीवियाँ बनीं |44और साऊल ने अपनी बेटी मीकल को जो दाऊद की बीवी थी लैस के बेटे जिल्लीमी फिल्ती को दे दिया था |
1और ज़ीफ़ी जिबा' में साऊल के पास जाकर कहने लगे, "क्या दाऊद हकीला के पहाड़ में जो जंगल के सामने है ,छिपा हुआ,नहीं?"2तब साऊल उठा,और तीन हज़ार चुने हुए इस्राईली जवान अपने साथ लेकर ज़ीफ़ के जंगल को गया ताकि उस जंगल में दाऊद को तलाश करे |3और साऊल हकीला के पहाड़ में जो जंगल के सामने है रास्ता के किनारे ख़ेमा ज़न हुआ,पर दाऊद जंगल में रहा,और उसने देखा कि साऊल उसके पीछे जंगल में आया है |4तब दाऊद ने जासूस भेज कर मा'लूम कर लिया कि साऊल ~हक़ीक़त में आया है ?5तब दाऊद उठ कर साऊल की ख़ेमागाह,में आया और वह जगह देखी जहाँ साऊल और नेर का बेटा अबनेर भी जो उसके लश्कर का सरदार था आराम कर रहे थे और साऊल गाड़ियों की जगह के बीच सोता था और लोग उसके चारों तरफ़ डेरे डाले हुए थे |6तब दाऊद ने हित्ती अख़ीमलिक जरुयाह के बेटे अबीशै से जो योआब का भाई था कहा "कौन मेरे साथ साऊल के पास ख़ेमागाह में चलेगा ? "अbiशै ने कहा ,मैं तेरे साथ चलूँगा|"7इसलिए दाऊद और अबीशै रात को लश्कर में घुसे और देखा कि साऊल गाड़ियों की जगह के बीच में पड़ा सो रहा है और उसका नेज़ा उसके सरहाने ज़मीन में गड़ा हुआ है और अबनेर और लश्कर के लोग उसके चारों तरफ़ पड़े हैं |8तब अबीशै ने दाऊद से कहा, "ख़ुदा ने आज के दिन तेरे दुश्मन को तेरे हाथ में कर दिया है इसलिए अब तू ज़रा मुझको इजाज़त दे कि नेज़े के एक ही वार में उसे ज़मीन से पैवंद कर दूँ और मैं उस पर दूसरा वार करने का भी नहीं |9दाऊद ने अबीशै से कहा, "उसे क़त्ल न कर क्यूँकि कौन है जो ख़ुदावन्द के मम्सूह पर हाथ उठाए और बे गुनाह ठहरे|"10और दाऊद ने यह भी कहा, "कि ख़ुदावन्द की हयात की क़सम ख़ुदावन्द आप उसको मारेगा या उसकी मौत का दिन आएगा या वह जंग में जाकर मर जाएगा |11लेकिन ख़ुदावन्द न करे कि मैं ख़ुदावन्द के मम्सूह पर हाथ चलाऊँ पर ज़रा उसके सरहाने से यह नेज़ा और पानी की सुराही उठा, ले फिर हम चले चलें|"12इसलिए दाऊद ने नेज़ा और पानी की सुराही साऊल के सरहाने से उठा ली और वह चल दिए और न किसी आदमी ने यह देखा और न किसी को ख़बर हुई और न कोई जागा क्यूँकि वह सब के सब सोते थे इसलिए कि ख़ुदावन्द की तरफ़ से उन पर गहरी नींद आई हुई थी |13फिर दाऊद दूसरी तरफ़ जाकर उस पहाड़ की चोटी पर दूर खड़ा रहा, और उनके बीच एक बड़ा फ़ासला था|14और दाऊद ने उन लोगों को और नेर के बेटे अबनेर को पुकार कर कहा, "ऐ अबनेर तु जवाब नहीं देता? अबनेर ने जवाब दिया "तू कौन है जो बादशाह को पुकारता है?"15दाऊद ने अबनेर से कहा, "क्या तू बड़ा बहादुर नहीं और कौन बनी इस्राईल में तेरा नज़ीर है? फिर किस लिए तूने अपने मालिक बादशाह की निगहबानी न की? क्यूँकि एक शख़्स तेरे मालिक बादशाह को क़त्ल करने घुसा था |16तब यह काम तूने कुछ अच्छा न किया ख़ुदावन्द कि हयात की क़सम तुम क़त्ल के लायक़ हो क्यूँकि तुमने अपने मालिक की जो ख़ुदावन्द का मम्सूह है, निगहबानी न की अब ज़रा देख, कि बादशाह का भाला और पानी की सुराही जो उसके सरहाने थी कहाँ हैं|17तब साऊल ने दाऊद की आवाज़ पहचानी और कहा, "ऐ मेरे बेटे दाऊद क्या यह तेरी आवाज़ है? "दाऊद ने कहा, ऐ मेरे मालिक बादशाह यह मेरी ही आवाज़ है |"18और उसने कहा, "मेरा मालिक क्यूँ अपने ख़ादिम के पीछे पड़ा है? मैंने क्या किया है और मुझ में क्या बुराई है ?|19इसलिए अब ज़रा मेरा मालिक बादशाह अपने बन्दे की बातें सुने अगर ख़ुदावन्द ने तुझ को मेरे ख़िलाफ़ उभारा हो तो वह कोई हदिया मंज़ूर करे और अगर यह आदमियों का काम हो तो वह ख़ुदावन्द के आगे ला'नती हों क्यूँकि उन्होंने आज के दिन मुझको ख़ारिज किया है कि मैं ख़ुदावन्द की दी हुई मीरास में शामिल न रहूँ और मुझ से कहते हैं जा और मा'बूदों की 'इबादत कर|20इसलिए अब ख़ुदावन्द की सामने से अलग मेरा ख़ून ज़मीन पर न बहे क्यूँकि बनी इस्राईल का बादशाह एक पिस्सू ढूँढने को इस तरह, निकला है जैसे कोई पहाड़ों पर तीतर का शिकार करता हो|"21तब साऊल ने कहा, "कि मैंने ख़ता की -ऐ मेरे बेटे दाऊद लौट आ क्यूँकि मैं फिर तुझे नुक़्सान नहीं पहुचाऊँगा इसलिए की मेरी जान आज के दिन तेरी निगाह में क़ीमती ठहरी -देख,मैंने हिमाक़त की और निहायत बड़ी भूल मुझ से हुई|"22दाऊद ने जवाब दिया "ऐ बादशाह इस भाला को देख, इसलिए जवानों में से कोई आकर इसे ले जाए |23और ख़ुदावन्द हर शख़्स को उसकी सच्चाई और दियानतदारी के मुताबिक़ बदला देगा क्यूँकि ख़ुदावन्द ने आज तुझे मेरे हाथ में कर दिया था लेकिन मैंनें न चाहा कि ख़ुदावन्द के मम्सूह पर हाथ उठाऊँ |24और देख, जिस तरह,तेरी ज़िन्दगी आज मेरी नज़र में क़ीमती ठहरी इसी तरह मेरी ज़िंदगी ख़ुदावन्द की निगाह में क़ीमती हो और वह मुझे सब तकलीफ़ों से रिहाई बख़्शे|"25तब साऊल ने दाऊद से कहा,"ऐ मेरे बेटे दाऊद तू मुबारक हो तू बड़े बड़े काम करेगा और ज़रूर फ़तहमंद होगा। इसलिए दाऊद अपनी रास्ते~चला गया और साऊल अपने मकान को लौटा |
1और दाऊद ने अपने दिल में कहा कि अब मैं किसी न किसी दिन साऊल के हाथ से हलाक हूँगा, तब मेरे लिए इससे बेहतर और कुछ नहीं कि मैं फ़िलिस्तियों की सर ज़मीन को भाग जाऊँ और साऊल मुझ से न उम्मीद हो कर बनी इस्राईल की सरहदों में फिर मुझे नहीं ढूँडेगा, यूँ मैं उसके हाथ से बच जाऊँगा|2इसलिए दाऊद उठा और अपने साथ के छ :सौ जवानों को लेकर जात के बादशाह म'ओक के बेटे अकीस के पास गया |3और दाऊद उसके लोग जात में अख़ीस के साथ अपने अपने ख़ानदान समेत रहने लगे और दाऊद के साथ भी उसकी दोनों बीवियाँ या'नी यज़र'एली अख़ीनु'अम और नाबाल की बीवी कर्मिली अबीजेल थीं |4और साऊल को ख़बर मिली कि दाऊद जात को भाग गया, तब उस ने फिर कभी उसकी तलाश न की |5और दाऊद ने अख़ीस से कहा, "कि अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र है तो मुझे उस मुल्क के शहरों में कहीं जगह दिला दे ताकि मैं वहाँ बसूँ, तेरा ख़ादिम तेरे साथ दार-उस -सल्तनत में क्यूँ रहें?"6इसलिए अख़ीस ने उस दिन सिक़लाज उसे दिया इसलिए सिक़लाज आज के दिन तक यहूदाह के बादशाहों का है |7और दाऊद फ़िलिस्तियों की सर ज़मीन में कुल एक बरस और चार महीने तक रहा|8और दाऊद और उसके लोगों ने जाकर जसूरियों और जज़ीरयों और 'अमालीक़ियों पर हमला किया क्यूँकि वह शोर कि राह से मिस्र की हद तक उस सर ज़मीन के पुराने बाशिंदे थे |9और दाऊद ने उस सर ज़मीन को तबाह कर डाला और 'औरत मर्द किसी को ज़िन्दा न छोड़ा और उनकी भेड़ बकरियाँ और बैल और गधे और ऊँट और कपड़े लेकर लौटा और अख़ीस के पास गया |10अख़ीस ने पूछा, "कि आज तुम ने किधर लूट मार की", दाऊद ने कहा,"यहूदाह के~दख्खिन~और यरहमीलियों के दख्खिन और~क़ीनियों के~दख्खिनमें |"11और दाऊद उन में से एक मर्द 'औरत को भी ज़िन्दा बचा कर जात में नहीं लाता था और कहता था कि "कहीं वह हमारी हक़ीक़त न खोल दें ,और कह दें कि दाऊद ने ऐसा ऐसा किया और जब से वह फ़िलिस्तियों के मुल्क में बसा है, तब से उसका यहीं तरीक़ा रहा,है|"12और अख़ीस ने दाऊद का यक़ीन कर के कहा, "कि उसने अपनी कौम इस्राईल को अपनी तरफ़ से कमाल नफ़रत दिला दी है इसलिए अब हमेशा यह मेरा ख़ादिम रहेगा|"
1और उन्हीं दिनों में ऐसा हुआ ,कि फ़िलिस्तियों ने अपनी फ़ौजें जंग के लिए जमा' कीं ताकि इस्राईल से लड़ें और अख़ीस ने दाऊद से कहा,"तू ~यक़ीन जान कि तुझे और तेरे लोगों को लश्कर में हो कर मेरे साथ जाना होगा|"2दाऊद ने अख़ीस से कहा, "फिर जो कुछ तेरा ख़ादिम करेगा वह तुझे मा'लूम भी हो जाएगा "अख़ीस ने दाऊद से कहा, "फिर तो हमेशा के लिए तुझ को मैं अपने बुराई का निगहबान ठहराऊँगा|"3और समुएल मर चुका था और सब इस्राईलियों ने उस पर नौहा कर के उसे ~उसके शहर रामा में दफ़न किया था और साऊल ने जिन्नात के आशनाओं और अफ़सूँगरों को मुल्क से ख़ारिज कर दिया था |4और फ़िलिस्ती जमा'हुए और आकर शूनीम में डेरे डाले और साऊल ने भी सब इस्राईलियों को जमा' किया और वह जिलबु'आ में ख़ेमाज़न हुए |5और जब साऊल ने फ़िलिस्तियों का लश्कर देखा तो परेशान हुआ, और उसका दिल बहुत काँपने लगा |6और जब साऊल ने ख़ुदावन्द से सवाल किया तो ख़ुदावन्द ने उसे न तो ख़्वाबों और न उरीम और न नबियों के वसीले से कोई जवाब दिया |7तब साऊल ने अपने मुलाज़िमों से कहा,"कोई ऐसी 'औरत मेरे लिए तलाश करो जिसका आशना जिन्न हो ताकि मैं उसके पास जाकर उससे पूछूँ|" उसके मुलाज़िमों ने उससे कहा, "देख, ऐन दोर में एक 'औरत है जिसका आशना जिन्न है|"8इसलिए साऊल ने अपना भेस बदल कर दूसरी पोशाक पहनी और दो आदमियों को साथ लेकर चला और वह रात को उस 'औरत के पास आए और उसने कहा, "ज़रा मेरी ख़ातिर जिन्न के ज़रिए' से मेरा फ़ाल खोल और जिसका नाम मैं तुझे बताऊँ उसे ऊपर बुला दे|"9तब उस 'औरत ने उससे कहा, "देख,तू जानता है कि साऊल ने क्या किया कि उसने जिन्नात के आशनाओं और अफसूँगरों को मुल्क से काट डाला है ,फिर तू क्यूँ ~मेरी जान के लिए फँदा लगाता है ताकि मुझे मरवा डाले|"10तब साऊल ने ख़ुदावन्द की क़सम खा कर कहा,"कि ख़ुदावन्द की हयात की क़सम इस बात के लिए तुझे कोई सज़ा नहीं दी जाएगी|"11तब उस 'औरत ने कहा, "मैं किस को तेरे लिए ऊपर बुला दूँ? "उसने कहा, "समुएल को मेरे लिए बुला दे|"12जब उस 'औरत ने समुएल को देखा तो बुलंद आवाज़ से चिल्लाई और उस 'औरत ने साऊल से कहा, "तूने मुझ से क्यूँ दग़ा की क्यूँकि तू ~तो साऊल है|"13तब बादशाह ने उससे कहा,"परेशान मत हो, तुझे क्या दिखाई देता है?" उसने साऊल से कहा,"मुझे एक मा'बूद ज़मीन से उपर आते दिखाई देता है|"14तब उसने उससे कहा, "उसकी शक्ल कैसी है ? "उसने कहा, "एक बुड्ढा ऊपर को आ रहा है और जुब्बा पहने है," तब साऊल जान गया कि वह समुएल है और उसने मुँह के बल गिर कर ज़मीन पर सिज्दा किया |15समुएल ने साऊल से कहा, "तूने क्यूँ मुझे बेचैन किया कि मुझे ऊपर बुलवाया? " साऊल ने जवाब दिया, "मैं सख़्त परेशान हूँ; क्यूँकि फ़िलिस्ती मुझ से लड़तें हैं और ख़ुदा मुझ से अलग हो गया है और न तो नबियों और न तो ख़्वाबों के वसीले से मुझे जवाब देता है इसलिए मैंने तुझे बुलाया ताकि तू मुझे बताए कि मैं क्या करूँ|"16समुएल ने कहा, " फिर तू मुझ से किस लिए पूछता है जिस हाल कि ख़ुदावन्द तुझ से अलग हो गया और तेरा दुश्मन बना है?17और ख़ुदावन्द ने जैसा मेरे ज़रिए' कहा, था वैसा ही किया है, ख़ुदावन्द ने तेरे हाथ से सल्तनत चाक कर ली और तेरे पड़ोसी दाऊद को 'इनायत की है |18इसलिए कि तूने ख़ुदावन्द की बात नहीं मानी और 'अमालीक़ियों से उसके क़हर-ए-शदीद के मुताबिक़ पेश नहीं आया इसी वजह से ख़ुदावन्द ने आज के दिन तुझ से यह बरताव किया |19'अलावा इसके ख़ुदावन्द तेरे साथ इस्राईलियों को भी फ़िलिस्तियों के हाथ में कर देगा और कल तू और तेरे बेटे मेरे साथ होंगे और ख़ुदावन्द इस्राइली लश्कर को भी फ़िलिस्तियों के हाथ में कर देगा |20तब साऊल फ़ौरन ज़मीन पर लम्बा होकर गिरा और समुएल की बातों की वजह से निहायत डर गया और उस में कुछ ताक़त बाक़ी न रही क्यूँकि उसने उस सारे दिन और सारी रात रोटी नहीं खाई थी |21तब वह 'औरत साऊल के पास आई और देखा कि वह निहायत परेशान है, इसलिए उसने उससे कहा,"देख, तेरी लौंडी ने तेरी बात मानी और मैंने अपनी जान अपनी हथेली पर रख्खी और जो बातें तूने मुझ से कहीं मैंने उनको माना है |22इसलिए अब मैं तेरी मिन्नत करती हूँ कि तू अपनी लौंडी की बात सुन और मुझे 'इजाज़त दे कि रोटी का टुकड़ा तेरे आगे रख्खूँ, तू खा कि जब तू अपनी राह ले तो तुझे ताक़त मिले|"23लेकिन उसने इनकार किया और कहा, कि मैं नहीं खाऊँगा लेकिन उसके मुलाज़िम उस 'औरत के साथ मिलकर उससे बजिद हुए, तब उसने उनका कहा, माना और ज़मीन पर से उठ कर पलंग पर बैठ गया |24उस 'औरत के घर में एक मोटा बछड़ा था, इसलिए उसने जल्दी की और उसे ज़बह किया और आटा लेकर गूँधा और बे ख़मीरी रोटियाँ पकाईं ~|25और उनको साऊल और उसके मुलाज़िमों के आगे लाई और उन्होंने खाया तब वह उठेऔर उसी रात चले गए |
1और फ़िलिस्ती अपने सारे लश्कर को अफ़ीक़ में जमा' करने लगे और इस्राईली उस चश्मा के नज़दीक जो यज़रएल में है ख़ेमा ज़न हुए|2और फ़िलिस्तियों के उमरा सैकड़ों और हज़ारों के साथ आगे-आगे चल रहे थे और दाऊद अपने लोगों के साथ अख़ीस के साथ पीछे-पीछे जा रहा था |3तब फ़िलिस्ती अमीरों ने कहा, "इन 'इब्रानियों का यहाँ क्या काम है ? "अख़ीस ने फ़िलिस्ती अमीरों से कहा "क्या यह इस्राईल के बादशाह साऊल का ख़ादिम दाऊद नहीं जो इतने दिनों बल्कि इतने बरसों से मेरे साथ है और मैंने जब से वह मेरे पास भाग आया है आज के दिन तक उस में कुछ बुराई नहीं पाई?"4लेकिन फ़िलिस्ती हाकिम उससे नाराज़ हुए और फ़िलिस्ती ने उससे कहा, "इस शख़्स को लौटा दे कि वह अपनी जगह को जो तूने उसके लिए ठहराई है वापस जाए , उसे हमारे साथ जंग पर न जाने दे ऐसा न हो कि जंग में वह हमारा मुख़ालिफ़ हो क्यूँकि वह अपने आक़ा से कैसे मेल करेगा? क्या इन ही लोगों के सिरों से नहीं ?5क्या यह वही दाऊद नहीं जिसके बारे में उन्होंने नाचते वक़्त गा-गा कर एक दूसरे से कहा कि "साऊल ने तो हज़ारों को पर दाऊद ने लाखों को मारा?"6तब अक़ीस ने दाऊद को बुला कर उससे कहा, "ख़ुदवन्द की हयात की क़सम कि तू सच्चा है और मेरी नज़र में तेरा आना जाना मेरे साथ लश्कर में अच्छा है क्यूँकि मैंने ~जिस दिन से तू मेरे पास आया आज के दिन तक तुझ में कुछ बुराई नहीं पाई तोभी यह हाकिम तुझे नहीं चाहते |7इसलिए तू अब लौट कर सलामत चला जा ताकि फ़िलिस्ती हाकिम तुझ से नाराज़ न हों|"8दाऊद ने अक़ीस से कहा,"लेकिन मैंने क्या किया है? और जब से मैं तेरे सामने हूँ तब से आज के दिन तक मुझ में तूने क्या बात पाई जो मैं अपने मालिक बादशाह के दुश्मनों से जंग करने को न जाऊँ|"9अक़ीस ने दाऊद को जवाब दिया "मैं जानता हूँ कि तू मेरी नज़र में ख़ुदा के फ़रिश्ता की तरह नेक है तोभी फ़िलिस्ती हाकिम ने कहा है कि वह हमारे साथ जंग के लिए न जाए |10इसलिए अब तू सुबह सवेरे अपने आक़ा के ख़ादिमों को लेकर जो तेरे साथ यहाँ आए हैं उठना और जैसे ही तुम सुबह सवेरे उठो रोशनी होते होते रवाना हो जाना|"11इसलिए दाऊद अपने लोगों के साथ तड़के उठा ताकि सुबह को रवाना होकर फ़िलिस्तियों के मुल्क को लौट जाए और फ़िलिस्ती यज़र'एल को चले गए|
1और ऐसा हुआ, कि जब दाऊद और उसके लोग तीसरे दिन सिक़लाज में पहुँचे तो देखा कि 'अमालीक़ियों ने~दख्खिनी~हिस्से और~सिक़लाज पर चढ़ाई कर के सिक़लाज को मारा और आग से फूँक दिया |2और 'औरतों को और जितने छोटे बड़े वहाँ थे सब को क़ैद कर लिया है, उन्होंने किसी को क़त्ल नहीं किया बल्कि उनको लेकर चल दिए थे |3इसलिए जब दाऊद और उसके लोग शहर में पहुँचे तो देखा कि शहर आग से जला पड़ा है,और उनकी बीवियाँ और बेटे और बेटियाँ क़ैद हो गई हैं |4तब दाऊद और उसके साथ के लोग ज़ोर ज़ोर से रोने लगे यहाँ तक कि उन में रोने की ताक़त न रही |5और दाऊद की दोनों बीवियाँ यज़र'एली अख़ीनु'अम और कर्मिली नाबाल की बीवी अबीजेल क़ैद हो गई थीं |6और दाऊद बड़े शिकंजे में था क्यूँकि लोग उसे संगसार करने को कहते थे इसलिए कि लोगों के दिल अपने बेटों और बेटियों के लिए निहायत ग़मग़ीन थे लेकिन दाऊद ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा में अपने आप को मज़बूत किया |7और दाऊद ने अख़ीमलिक के बेटे अबीयातर काहिन से कहा, "कि ज़रा अफ़ूद को यहाँ मेरे पास ले आ," इसलिए अबीयातर अफ़ूद को दाऊद के पास ले आया |8और दाऊद ने ख़ुदावन्द से पूछा कि "अगर मैं उस फ़ौज का पीछा करूँ तो क्या मैं उनको जा लूँगा?" उसने उससे कहा कि "पीछा कर क्यूँकि तू यक़ीनन उनको पालेगा और ज़रूर सब कुछ छुड़ा लाएगा|"9इसलिए दाऊद और वह छ:सौ आदमी जो उसके साथ थे चले और बसोर की नदी पर पहुँचे जहाँ वह लोग जो पीछे छोड़े गए ठहरे रहे |10लेकिन दाऊद और चार सौ आदमी पीछा किए चले गए क्यूँकि दो सौ जो ऐसे थक गए थे कि बसोर की नदी के पार न जा सके पीछे रह गए |11और उनको मैदान में एक मिस्री मिल गया, उसे वह दाऊद के पास ले आए और उसे रोटी दी, इसलिए उसने खाई और उसे पीने को पानी दिया |12और उन्होंने अंजीर की टिकया का टुकड़ा और किशमिश के दो खोशे उसे दिए, जब वह खा चुका तो उसकी जान में जान आई क्यूँकि उस ने तीन दिन और तीन रात से न रोटी खाई थी न पानी पिया था |13तब दाऊद ने पूछा ~"तू किस का आदमी है ?और तू कहाँ का है?" उस ने कहा "मैं एक मिस्री जवान और एक 'अमालीक़ी का नौकर हूँ और मेरा आक़ा मुझ को छोड़ गया क्यूँकि तीन दिन हुए कि मैं बीमार पड़ गया था|14हमने करेतियों के दख्खिन में और यहूदाह के मुल्क में और कालिब के दख्खिन में लूट मार की और सिक़लाज को आग से फूँक दिया |15दाऊद ने उस से कहा ~"क्या तू मुझे उस फ़ौज तक पहुँचा देगा?" उसने कहा "तू मुझ से ख़ुदा की क़सम खा कि न तू मुझे क़त्ल करेगा और न मुझे मेरे आक़ा के हवाले करेगा तो मैं तुझ को उस फ़ौज तक पहुँचा दूँगा|"16जब उसने उसे वहाँ पहुँचा दिया तो देखा कि वह लोग उस सारी ज़मीन पर फैले हुए थे और उसे बहुत से माल की वजह से जो उन्होंने फ़िलिस्तियों के मुल्क और यहूदाह के मुल्क से लूटा था खाते पीते और ज़ियाफतें उड़ा रहे थे |17इसलिए दाऊद रात के पहले पहर से लेकर दूसरे दिन की शाम तक उनको मारता रहा, और उन में से एक भी न बचा सिवा चार सौ जवानों के जो ऊँटों पर चढ़ कर भाग गए |18और दाऊद ने सब कुछ जो 'अमालीक़ी ले गए थे छुड़ा लिया और अपनी दोनों बीवियों को भी दाऊद ने छुड़ाया |19और उनकी कोई चीज़ गुम न हुई न छोटी न बड़ी न लड़के न लड़कियाँ न लूट का माल न और कोई चीज़ जो उन्होंने ली थी दाऊद सब का सब लौटा लाया |20और दाऊद ने सब भेड़ बकरियाँ और गाय और बैल ले लिए और वह उनको बाक़ी जानवर के आगे यह कहते हुए हाँक लाए कि यह दाऊद की लूट है |21और दाऊद उन दो सौ जवानों के पास आया जो ऐसे थक गए थे कि दाऊद के पीछे पीछे न जा सके और जिनको उन्होंने बसोर की नदी पर ठहराया था, वह दाऊद और उसके साथ के लोगों से मिलने को निकले और जब दाऊद उन लोगों के नज़दीक पहुँचा तो उसने उनसे ख़ैर-ओ- 'आफ़ियत पूछी |22तब उन लोगों में से जो दाऊद के साथ गए थे सब बद ज़ात और ख़बीस लोगों ने कहा, चूँकि यह हमारे साथ न गए ,इसलिए हम इनको उस माल में से जो हम ने छुड़ाया है कोई हिस्सा नहीं देंगे 'अलावा हर शख़्स की ~बीवी और बाल बच्चों के ताकि वह उनको लेकर चलें जाएँ|23तब दाऊद ने कहा,"ऐ मेरे भाइयों तुम इस माल के साथ जो ख़ुदावन्द ने हमको दिया है ऐसा नहीं करने पाओगे क्यूँकि उसी ने हमको बचाया और उस फ़ौज को जिसने हम पर चढ़ाई की हमारे क़ब्ज़े में कर दिया|24और इस काम में तुम्हारी मानेगा कौन? क्यूँकि जैसा उसका हिस्सा है जो लड़ाई में जाता है वैसा ही उसका हिस्सा होगा जो सामान के पास ठहरता है, दोनों बराबर हिस्सा पाएँगे|"25और उस दिन से आगे को ऐसा ही रहा कि उसने इस्राईल के लिए यही क़ानून और आईन मुक़र्रर किया जो आज तक है |26और जब दाऊद सिक़लाज में आया तो उसने लूट के माल में से यहूदाह के बुज़ुर्गों के पास जो उसके दोस्त थे कुछ कुछ भेजा और कहा,कि देखो ख़ुदावन्द के दुश्मनों के माल में से यह तुम्हारे लिए हदिया है |27यह उनके पास जो बैतएल में और उनके पास जो रामात-उल-जुनूब में और उनके पास जो यतीर में |28और उनके पास जो 'अरो'ईर में, और उनके पास जो सिफ़मोत में और उनके पास जो इस्तमु' में |29और उनके पास जो रकिल में और उनके पास जो यरहमीलियों के शहरों में और उनके पास जो क़ीनियों के शहरों में |30और उनके पास जो हुरमा में और उनके पास जो कोर'आसान में, और उनके पास जो 'अताक में |31और उनके पास जो हबरून में थे और उन सब जगहों में जहाँ जहाँ दाऊद और उसके लोग फ़िरा करते थे, भेजा|
1और फ़िलिस्ती इस्राईल से लड़े और इस्राईली जवान फ़िलिस्तियों ~के सामने से भागे और पहाड़ी-ए-जिल्बू'आ में क़त्ल होकर गिरे|2~और फ़िलिस्तियों ने साऊल और उसके बेटों का ख़ूब पीछा किया और फ़िलिस्तियों ने साऊल के बेटों यूनतन और अबीनदाब, और मलकीशु'अ को मार डाला |3और यह जंग साऊल पर निहायत भारी हो गई और तीरअंदाज़ो ने उसे पा लिया और वह तीरअंदाज़ों की वजह से सख़्त मुश्किल में पड़ गया |4तब साऊल ने अपने सिलाह बरदार से कहा, "अपनी तलवार खींच और उससे मुझे छेद दे ऐसा न हो कि यह नामख़्तून आएँ और मुझे छेद लें, और मुझे बे 'इज्ज़त करें लेकिन उसके सिलाह बरदार ऐसा करना न चाहा, क्यूँकि वह बहुत डर गया था इसलिए साऊल ने अपनी तलवार ली और उस पर गिरा|5जब उसके सिलाह बरदार ने देखा ,कि साऊल मर गया तो वह भी अपनी तलवार पर गिरा और उसके साथ मर गया |6इसलिए साऊल और उसके तीनों बेटे और उसका सिलाह बरदार और उसके सब लोग उसी दिन एक साथ मर मिटे |7जब उन इस्राईली मर्दों ने जो उस वादी की दूसरी तरफ़ और यरदन के पार थे यह देखा कि इस्राईल के लोग भाग गए और साऊल और उसके बेटे मर गए तो वह शहरों को छोड़ कर भाग निकले और फ़िलिस्ती आए और उन में रहने लगे |8दूसरे दिन जब फ़िलिस्ती लाशों के कपड़े उतारने आए तो उन्होंने साऊल और उसके तीनों बेटों को कोहे जिल्बू'आ पर मुर्दा पाया|9इसलिए उन्होंने उसका सर काट लिया और उसके हथियार उतार लिए और फ़िलिस्तियों के मुल्क में क़ासिद रवाना कर दिए, ताकि उनके बुतख़ानों और लोगों को यह ख़ुशख़बरी पहूँचा दें|10इसलिए उन्होंने उसके हथियारों को 'अस्तारात के मन्दिर में रख्खा और उसकी लाश को बैतशान की दीवार पर जड़ दिया |11जब यबीस जिल'आद के बाशिंदों ने इसके बारे में वह बात जो फ़िलिस्तियों ने साऊल से की सुनी |12तो सब बहादुर उठे, और रातों रात जाकर साऊल और उसके बेटों की लाशें बैतशान की दीवार पर से ले आए और यबीस में पहुँच कर वहाँ उनको जला दिया |13और उनकी हड्डियाँ लेकर यबीस में झाऊ के दरख़्त के नीचे दफ़न कीं और सात दिन तक रोज़ा रख्खा |
1~और साऊल की मौत के बा’द जब दाऊद ‘अमालीक़ियों को मार कर लौटा और दाऊद को सिक़लाज में रहते हुए दो दिन हो गए|2तो तीसरे दिन ऐसा हुआ कि एक शख़्स लश्करगाह में से साऊल के पास से अपने लिबास को फाड़े और सिर पर ख़ाक डाले हुए आया और जब वह दाऊद के पास पहुँचा तो ज़मीन पर गिरा और सिज्दा किया|3दाऊद ने उससे कहा, "तू कहाँ से आता है ?" उसने उससे कहा, "मैं इस्राईल की लश्करगाह में से बच निकला हूँ|"4तब दाऊद ने उससे पूँछा, "क्या हाल रहा? ज़रा मुझे बता|" उसने कहा कि लोग जंग में से भाग गए,और बहुत से गिरे मर गए और साऊल और उसका बेटा यूनतन भी मर गये हैं|5तब दाऊद ने उस जवान से जिसने उसको यह ख़बर दी कहा, "तुझे कैसे मा'लूम है कि साऊल और उसका बेटा यूनतन मर गये ?|"6वह जवान जिसने उसको यह ख़बर दी कहने लगा कि मैं कूह-ए- जिलबू’आ पर अचानक पहुँच गया और क्या देखा कि साऊल अपने नेज़ह पर झुका हुआ है रथ और सवार उसका पीछा किए आ रहे हैं|7और जब उसने अपने पीछे नज़र की तो मुझको देखा और मुझे पुकारा, मैंने जवाब दिया मैं हाज़िर हूँ|8उसने मुझे कहा तू कौन है? मैंने उसे जवाब दिया मैं ‘अमालीक़ी हूँ|9फिर उसने मुझसे कहा, "मेरे पास खड़ा होकर मुझे क़त्ल कर डाल क्यूँकि मैं बड़े तकलीफ़ में हूँ और अब तक मेरी जान मुझ में है|"10तब मैंने उसके पास खड़े होकर उसे क़त्ल किया क्यूँकि मुझे यक़ीन था कि अब जो वह गिरा है तो बचेगा नहीं और मैं उसके सिर का ताज और बाज़ू पर का कंगन लेकर उनको अपने ख़ुदावन्द के पास लाया हूँ|11तब दाऊद ने अपने कपड़ों को पकड़ कर उनको फाड़ डाला और उसके साथ सब आदमियों ने भी ऐसा ही किया|12और वह साऊल और उसके बेटे यूनतन और ख़ुदावन्द के लोगों और इस्राईल के घराने के लिये मातम करने लगे और रोने लगे और शाम तक रोज़ा रखा इसलिए कि वह तलवार से मारे गये थे|13फिर दाऊद ने उस जवान से जो यह ख़बर लाया था पूछा कि तू कहाँ का है? उसने कहा, "मैं एक परदेसी का बेटा और 'अमालीक़ी हूँ|"14दाऊद ने उससे कहा, "तू ख़ुदावन्द के ममसूह को हलाक करने के लिए उस पर हाथ चलाने से क्यूँ न डरा ?|"15फिर दाऊद ने एक जवान को बुलाकर कहा, "नज़दीक जा और उसपर हमला कर|" इसलिए उसने उसे ऐसा मारा कि वह मर गया|16और दाऊद ने उससे कहा, ~"तेरा ख़ून तेरे ही सिर पर हो क्यूँकि तू ही ने अपने मुँह से ख़ुद अपने ऊपर गवाही दी| और कहा कि मैंने ख़ुदावन्द के ममसूह को जान से मारा|"17और दाऊद ने साऊल और उसके बेटे यूनतन पर इस मर्सिया के साथ मातम किया|18और उसने उनको हुक्म दिया कि बनी यहूदाह को कमान का गीत सिखायें|देखो वह याशर की किताब में लिखा है|19"ए इस्राईल !तेरे ही ऊँचे मक़ामों पर तेरा ग़ुरूर मारा गया, हाय !पहलवान कैसे मर गए|20यह जात में न बताना, अस्क़लोन की गलियों में इसकी ख़बर न करना, ऐसा न हो कि फ़िलिस्तियों की बेटियाँ ख़ुश हों, ऐसा न हो कि नामख़्तूनों की बेटियाँ ग़ुरूर ~करें|21ऐ जिलबू'आ के पहाड़ों! तुम पर न ओस पड़े और न बारिश हो और न हदिया की चीज़ों के खेत हों, क्यूँकि वहाँ पहलवानों ~की ढाल बुरी तरह से फेंक दी गई, या'नी साऊल की ढाल जिस पर तेल नहीं लगाया गया था|22मक़तूलों के ख़ून से ज़बरदस्तों की चर्बी से यूनतन की कमान कभी न टली, और साऊल की तलवार ख़ाली न लौटी|23साऊल और यूनतन अपने जीते जी ‘अज़ीज़ और दिल पसन्द थे और अपनी मौत के वक़्त अलग न हुए, वह 'उक़ाबों से तेज़ और शेर बबरों से ताक़त वर थे|24जिसने तुमको अच्छे अच्छे अर्ग़वानी लिबास पहनाए और सोने के ज़ेवरों से तुम्हारे लिबास को आरास्ता किया|25हाय! लड़ाई में पहलवान कैसे मर गये !यूनतन तेरे ऊँचे मक़ामों पर क़त्ल हुआ|26ऐ मेरे भाई यूनतन! मुझे तेरा ग़म है, तू मुझको बहुत ही प्यारा था, तेरी मुहब्बत मेरे लिए 'अजीब थी, ’औरतों की मुहब्बत से भी ज़्यादा,|27हाय, पहलवान कैसे मर गये और जंग के हथियार बरबाद ~हो गये|"
1और इसके बा’द ऐसा हुआ कि दाऊद ने ख़ुदावन्द से पूछा कि क्या मैं यहूदाह के शहरों में से किसी में चला जाऊँ| ख़ुदावन्द ने उस से कहा, "ज़ा|" दाऊद ने कहा, "किधर जाऊँ" उस ने फ़रमाया, "हब्रून को|"2इसलिए दाऊद अपनी दोनों बीवियों यज़र’एली आख़ीन’अम और कर्मिली नाबाल की बीवी अबीजेल के साथ वहाँ गया|3और दाऊद अपने साथ के आदमियों को भी एक एक घराने समेत वहाँ ले गया और वह हब्रून के शहरों में रहने लगे|4तब यहूदाह के लोग आए और वहाँ उन्होंने दाऊद को मसह करके यहूदाह के ख़ानदान का बादशाह बनाया, और उन्होंने दाऊद को बताया कि यबीस जिल’आद के लोगों ने साऊल को दफ़न किया था|5इसलिए दाऊद ने यबीस जिल'आद के लोगों के पास क़ासिद रवाना किए और उनको कहला भेजा कि ख़ुदावन्द की तरफ़ से तुम मुबारक हो इसलिए कि तुमने अपने मालिक साऊल पर यह एहसान किया और उसे दफ़न किया|6इसलिए ख़ुदावन्द तुम्हारे साथ रहमत और सच्चाई को ‘अमल में लाये और मैं भी तुमको इस नेकी का बदला दूँगा इसलिए कि तुमने यह काम किया है|7तब तुम्हारे बाज़ू ताक़तवर ~हों और तुम दिलेर रहो क्यूँकि तुम्हारा मालिक साऊल मर गया और यहूदाह के घराने ने मसह कर के मुझे अपना बादशाह बनाया है|8लेकिन नेर के बेटे अबनेर ने जो साऊल के लशकर का सरदार था साऊल के बेटे इश्बोसत को लेकर उसे महनायम में पहुँचाया|9और उसे जिल’आद और आशरयों और यज़र'ईल और इफ़्राईम और बिनयामीन और तमाम इस्राईल का बादशाह बनाया|10और साऊल के बेटे इश्बोसत की ‘उम्र चालीस बरस की थी जब वह इस्राईल का बादशाह हुआ और उसने दो बरस बादशाही की लेकिन यहूदाह के घराने ने दाऊद की पैरवी की|11और दाऊद हब्रून में बनी यहूदाह पर सात बरस छ:महीने तक हाकिम रहा|12फिर नेर का बेटा अबनेर और साऊल के बेटे इश्बोसत के ख़ादिम महनायम से जिब’ऊन में आए|13और ज़रोयाह का बेटा योआब और दाऊद के मुलाज़िम निकले और जिब’ऊन के तालाब पर उनसे मिले और दोनों अलग अलग बैठ गये, एक तालाब की इस तरफ़ और दूसरा तालाब की दूसरी तरफ़|14तब अबनेर ने योआब से कहा, "ज़रा यह जवान उठकर हमारे सामने एक दूसरे का मुक़ाबला करें ",योआब ने कहा "ठीक|"15तब वह उठकर ता’दाद के मुताबिक़ आमने सामने हुए या’नी साऊल के बेटे इश्बोसत और बिनयामीन की तरफ़ से बारह जवान और दाऊद के ख़ादिमों में से बारह आदमी|16और उन्होंने एक दूसरे का सिर पकड़ कर अपनी अपनी तलवार अपने मुख़ालिफ़ के पेट में भोंक दी, इसलिए वह एक ही साथ गिरे इसलिए वह जगह हल्क़त हस्सोरीम कहलाई वह जिब’ऊन में है|17और उस रोज़ बड़ी सख्त़ लड़ाई हुई और अबनेर और इस्राईल के लोगों ने दाऊद के ख़ादिमों से शिकस्त खाई|18और ज़रोयाह के तीनों बेटे योआब, और अबीशे और ‘असाहील वहाँ मौजूद थे और ‘असाहील जंगली हिरन की तरह दौड़ता था|19और ‘असाहील ने अबनेर का पीछा किया और अबनेर का पीछा करते वक़्त वह दहने या बाएं हाथ न मुड़ा|20तब अबनेर ने अपने पीछे नज़र करके उससे कहा, "ऐ ‘असाहील क्या तू है|" उसने कहा, "हाँ|"21अबनेर ने उससे कहा, "अपनी दहनी या बायीं तरफ़ मुड़ जा और जवानों में से किसी को पकड़ कर उसके हथियार लूट ले|" लेकिन 'असाहेल उसका पीछा करने से बाज़ न आया|22अबनेर ने ‘असाहील से फिर कहा, "मेरा पीछा करने से बाज़ रह मैं कैसे तुझे ज़मीन पर मार कर डाल दूँ क्यूँकि फिर मैं तेरे भाई योआब को क्या मुँह दिखाऊंगा|"23इस पर भी उसने मुड़ने से इनकार किया, अबनेर ने अपने भाले के पिछले सिरे से उसके पेट पर ऐसा मारा कि वह पार हो गया तब ~वह वहाँ गिरा और उसी जगह मर गया और ऐसा हुआ कि जितने उस जगह आए जहाँ 'असाहील गिर कर मरा था वह वहीं खड़े रह गये|24लेकिन योआब और अबीशे अबनेर का पीछा करते रहे और जब वह कोह-ए-अम्मा जो दश्त-ए-जिबऊन के रास्ते में जियाह के मुक़ाबिल है पहुँचे तो सूरज डूब गया|25और बनी बिनयमीन अबनेर के पीछे इकट्ठे हुए और एक झुण्ड बन गए और एक पहाड़ की चोटी पर खड़े हुए|26तब अबनेर ने योआब को पुकार कर कहा, "क्या ~तलवार हमेशा तक हलाक करती रहे ?क्या तू नहीं जानता कि इसका अंजाम कड़वाहट होगा? तू कब लोगों को हुक्म देगा कि अपने भाइयों का पीछा छोड़ कर लौट जायें|”27योआब ने कहा, "ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम अगर तू न बोला होता तो लोग सुबह ही को ज़रूर चले जाते और अपने भाइयों का पीछा न करते|"28फिर योआब ने नरसिंगा फूँका और सब लोग ठहर गये और इस्राईल का पीछा फिर न किया और न फिर लड़े29और अबनेर और उसके लोग उस सारी रात मैदान चले, और यरदन के पार हुए, और सब बितारोन से गुज़र कर महनायम में आ पहुँचे|30और योआब अबनेर का पीछा छोड़ कर लौटा, और उसने जो सब आदमियों को जमा' किया, तो दाऊद के मुलाज़िमो में से उन्नीस आदमी और 'असाहील कम निकले|31लेकिन दाऊद के मुलाज़िमों ने बिनयमीन में से और अबनेर के लोगों में से इतने मार दिए कि तीन सौ साठ आदमी मर गये|32और उन्होंने 'असाहील को उठा कर उसे उसके बाप की क़ब्र में जो बैतलहम में थी दफ़न किया और योआब और उसके लोग सारी रात चले और हब्रून पहुँच कर उनको दिन निकला|
1असल में साऊल के घराने और दाऊद के घराने में मुद्दत तक जंग रही और दाऊद रोज़ ब रोज़ ताक़तवर होता गया और साऊल का ख़ानदान कमज़ोर होता गया|2और हब्रून में दाऊद के यहाँ बेटे पैदा हुए, अमनून उसका पहलौठा था, जो यज़र ऐली अख़नूअम के बतन से था|3और दूसरा किलयाब था जो कर्मिली नाबाल की बीवी अबिजेल से हुआ, तीसरा अबी सलोम था जो जसूर के बादशाह तल्मी की बेटी मा'का से हुआ|4चौथा अदुनियाह था जो हज्जीत का बेटा था और पाँचवाँ सफतियाह जो अबीताल का बेटा था|5और छठा इत्रि'आम था जो दाऊद की बीवी 'इज्लाह से हुआ, यह दाऊद के यहाँ हब्रून में पैदा हुआ|6और जब साऊल के घराने और दाऊद के घराने में जंग हो रही थी, तो अबनेर ने साऊल के घराने में ख़ूब ज़ोर पैदा कर लिया|7और साऊल के एक बाँदी थी जिसका नाम रिस्फ़ाह था, वह अय्याह की बेटी थी इसलिए इश्बोसत ने अबनेर से कहा, ”तू मेरे बाप की बाँदी के पास क्यूँ गया ?”8अबनेर इश्बोसत की इन बातों से बहुत ग़ुस्सा होकर कहने लगा, "क्या मैं यहूदाह के किसी कुत्ते का सिर हूँ ? आज तक मैं तेरे बाप साऊल के घराने और उसके भाइयों और दोस्तों से मेहरबानी से पेश आता रहा हूँ और तुझे दाऊद के हवाले नहीं किया, तो भी तू आज इस 'औरत के साथ मुझ पर 'ऐब लगाता है|9ख़ुदा अबनेर से वैसा ही बल्कि उससे ज़्यादा करे अगर मैं दाऊद से वही सुलूक न करूँ जिसकी क़सम ख़ुदावन्द ने उसके साथ खाई थी|10ताकि हुकूमत को साऊल के घराने से हटा कर के दाऊद के तख़्त को इस्राईल और यहूदाह दोनों पर दान से बैरसबा' तक क़ायम करूँ|"11और वह अबनेर को एक लफ्ज़ जवाब न दे सका इसलिए कि उससे डरता था|12और अबनेर ने अपनी तरफ़ से दाऊद के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा कि "मुल्क किसका है ?तू मेरे साथ अपना 'अहद बाँध और देख मेरा हाथ तेरे साथ होगा ताकि सारे इस्राईल को तेरी तरफ़ मायल करूँ|”13उसने कहा, "अच्छा मैं तेरे साथ 'अहद बाँधूँगा पर मैं तुझसे एक बात चाहता हूँ और वह यह है कि जब तू मुझसे मिलने को आए तो जब तक साऊल की बेटी मीकल को पहले अपने साथ न लाये तू मेरा मुँह देखने नहीं पाएगा|"14और दाऊद ने साऊल के बेटे इश्बोसत को क़ासिदों कि ज़रिए' कहला भेजा कि "मेरी बीवी मीकल को जिसको मैंने फ़िलिस्तियों की सौ खलड़ियाँ देकर ब्याहा था मेरे हवाले कर|"15इसलिए इश्बोसत ने लोग भेज कर उसे उसके शौहर लैस के बेटे फ़लतीएल से छीन लिया|16और उसका शौहर उसके साथ चला, और उसके पीछे पीछे बहुरीम तक रोता हुआ चला आया, तब अबनेर ने उससे कहा, "लौट जा|” इसलिए वह लौट गया|17और अबनेर ने इस्राईली बुज़ुर्गों के पास ख़बर भेजी, ”गुज़रे दिनों में तुम यह चाहते थे कि दाऊद तुम पर बादशाह हो|18तब अब ऐसा करलो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने दाऊद के हक़ में फ़रमाया है कि मैं अपने बन्दा दाऊद के ज़रिए' अपनी क़ौम इस्राईल को फ़िलिस्तियों और उनके सब दुश्मनों के हाथ से रिहाई दूँगा|”19और अबनेर ने बनी बिनयमीन से भी बातें कीं और अबनेर चला कि जो कुछ इस्राईलियों और बिनयमीन के सारे घराने को अच्छा लगा उसे हब्रून में दाऊद को कह सुनाये|20इसलिए अबनेर हब्रून में दाऊद के पास आया और बीस आदमी उसके साथ थे तब दाऊद ने अबनेर और उन लोगों की जो उसके साथ थे मेहमान नवाज़ी की|21अबनेर ने दाऊद से कहा,"अब में उठकर जाऊँगा और सारे इस्राईल को अपने मालिक बादशाह के पास इकट्ठा करूँगा ताकि वह तुझसे ‘अहद बाँधे और तू जिस जिस पर तेरा जी चाहे हुकूमत करे|” ~इसलिए दाऊद ने अबनेर को रुखसत किया और वह सलामत चला गया|22दाऊद के लोग और योआब किसी जंग से लूट का बहुत सा माल अपने साथ लेकर आए : लेकिन अबनेर हबरून में दाऊद के पास नहीं था, क्यूँकि उसे उसने रुख़सत कर दिया था और वह सलामत चला गया था|23और जब योआब और लश्कर के सब लोग जो उसके साथ थे आए तो उन्होंने योआब को बताया कि "नेर का बेटा अबनेर बादशाह के पास आया था और उसने उसे रुख़्सत कर दिया और वह सलामत चला गया|"24तब योआब बादशाह के पास आकर कहने लगा, "यह तूने क्या किया? देख !अबनेर तेरे पास आया था, इसलिए तूने उसे क्यूँ रुख़्सत कर दिया कि वह निकल गया|?25तू नेर के बेटे अबनेर को जानता है कि वह तुझको धोका देने और तेरे आने जाने और तेरे सारे काम का राज़ लेने आया था|"26जब योआब दाऊद के पास से बाहर निकला तो उसने अबनेर के पीछे क़ासिद भेजे और वह उसको सीरह के कुँवें से लौटा ले आए, लेकिन यह दाऊद को मा'लूम नहीं था|27जब अबनेर हब्रून में लौट आया तो योआब उसे अलग फाटक के अन्दर ले गया, ताकि उसके साथ चुपके चुपके बात करे, और वहाँ अपने भाई 'असाहील के ख़ून के बदले में उसके पेट में ऐसा मारा कि वह मर गया|28बा'द में जब दाऊद ने यह सुना तो कहा कि "मैं और मेरी हुकूमत दोनों हमेशा तक ख़ुदावन्द के आगे नेर के बेटे अबनेर के ख़ून की तरफ़ से बे गुनाह हैं|29वह योआब और उसके बाप के सारे घराने के सिर लगे, और योआब के घराने में कोई न कोई ऐसा होता रहे जिसे जरयान हो या कोढ़ी या बैसाखी पर चले या तलवार से मरे या टुकड़े टुकड़े को मोहताज हों|"30इसलिए योआब और उसके भाई अबीशे ने अबनेर को मार दिया इसलिए कि उसने जिब’ऊन में उनके भाई 'असाहेल को लड़ाई में क़त्ल किया था31और दाऊद ने योआब से और उन सब लोगों से जो उसके साथ थे कहा कि "अपने कपड़े फाड़ो और टाट पहनो और अबनेर के आगे आगे मातम करो|" और दाऊद बादशाह ख़ुद जनाज़े के पीछे पीछे चला|32और उन्होंने अबनेर को हब्रून में दफ़न किया और बादशाह अबनेर की क़ब्र पर ज़ोर ज़ोर से रोया और सब लोग भी रोए|33और बादशाह ने अबनेर पर मर्सिया कहा, "क्या अबनेर को ऐसा ही मरना था जैसे बेवकूफ़ मरता है ?|34तेरे हाथ बंधे न थे और न तेरे पाँव बेड़ियों में थे, जैसे कोई बदकारों के हाथ से मरता है वैसे ही तू मारा गया|" तब उसपर सब लोग दोबारह रोए|35और सब लोग कुछ दिन रहते दाऊद को रोटी खिलाने आए लेकिन दाऊद ने क़सम खाकर कहा, "अगर मैं सूरज के गु़रूब होने से पहले रोटी या और कुछ चखूँ तो ख़ुदा मुझ से ऐसा बल्कि इससे ज़्यादा करे|"36और सब लोगों ने इस पर ग़ौर किया और इससे ख़ुश हुए क्यूँकि जो कुछ बादशाह करता था सब लोग उससे ख़ुश होते थे|37तब सब लोगों ने और तमाम इस्राईल ने उसी दिन जान लिया कि नेर के बेटे अबनेर का क़त्ल होना बादशाह की तरफ़ से न था|38और बादशाह ने अपने मुलाज़िमों से कहा, “क्या तुम नहीं जानते हो कि आज के दिन एक सरदार बल्कि एक बहुत बड़ा आदमी इस्राईल में मरा है?39और अगर्चे मैं मम्सूह बादशाह हूँ तो भी आज के दिन बेबस हूँ और यह लोग बनी ज़रोयाह मुझसे ~ताक़तवर हैं ख़ुदावन्द बदकारों को उसकी गुनाह के मुताबिक़ बदला दे|”
1जब साऊल के बेटे इश्बोसत ने सुना कि अबनेर हब्रून में मर गया तो उसके हाथ ढीले पड़ गए, और सब इस्राईली घबरा गए|2और साऊल के बेटे इश्बोसत के दो आदमी थे जो फ़ौजों के सरदार थे, एक का नाम बा'ना और दूसरे का रेकाब था, यह दोनों बिनयमीन की नसल के बैरूती रिम्मोंन के बेटे थे, क्यूँकि बैरूत भी बनी बिनयमीन का गिना जाता है|3और बैरूती जित्तीम को भाग गए थे चुनाँचे आज के दिन तक वह वहीं रहते हैं|4और साऊल के बेटे यूनतन का एक लंगड़ा बेटा था, जब साऊल और यूनतन की ख़बर यज़र'एल से पहुँची तो एह पाँच बरस का था, तब उसकी दाया उसको उठा कर भागी और और उसने जो भागने में जल्दी की तो ऐसा हुआ कि वह गिर पड़ा और वह लंगड़ा हो गया उसका नाम मिफ़ीबोसत था|5और बैरूती रिम्मोन के बेटे रेकाब और बा'ना चले और कड़ी धूप के वक़्त इश्बोसत के घर आए जब दोपहर को आराम कर रहा था|6तब वह वहाँ घर के अन्दर गेंहूँ लेने के बहाने से घुसे और उसके पेट में मारा और रेकाब और उसका भाई बा'ना भाग निकले|7जब वह घर में घुसे तो वह अपनी आरामगाह में अपने बिस्तर पर सोता था, तब उन्होंने उसे मारा और क़त्ल किया और उसका सिर काट दिया और उसका सिर लेकर तमाम रात मैदान की राह चले|8और इश्बोसत का सिर हब्रून में दाऊद के पास ले आए और बादशाह से कहा, "तेरा दुश्मन साऊल जो तेरी जान का तालिब था यह उसके बेटे इश्बोसत का सिर है, इसलिए ख़ुदावन्द ने आज के दिन मेरे मालिक बादशाह का बदला साऊल और उसकी नसल से लिया|"9तब दाऊद ने रेकाब और उसके भाई बा'ना को बैरूती रिममोन के बेटे थे जवाब दिया कि "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम जिसने मेरी जान को हर मुसीबत से रिहाई दी है|10जब एक शख्स़ ने मुझसे कहा कि देख साऊल मर गया और समझा कि ख़ुशख़बरी देता है तो मैंने उसे पकड़ा और सिक़लाज में उसे क़त्ल किया यही सज़ा मैंने उसे उसकी ख़बर के बदले दिया|11तब जब बदकारों ने एक सच्चे इन्सान को उसी के घर में उसके बिस्तर पर क़त्ल किया है, तो क्या मैं अब उसके ख़ून का बदला तुमसे ज़रूर न ~लूँ और तुमको ज़मीन पर से मिटा न ~डालूँ ?|”12तब दाऊद ने अपने जवानों को हुक्म दिया, और उन्होंने उनको क़त्ल किया और उनके हाथ और पाँव काट डाले, और उनको हब्रून में तालाब के पास टाँग दिया और इश्बोसत के सिर को लेकर उन्होंने हब्रून में अबनेर की क़ब्र में दफ़न किया|
1तब इस्राईल के सब क़बीले हब्रून में दाऊद के पास आकर कहने लगे, "देख हम तेरी हड्डी और तेरा गोश्त हैं|2और गुज़रे ज़माने में जब साऊल हमारा बादशाह था, तो तू ही इस्राईलियों को ले जाया और ले आया करता था: और ख़ुदावन्द ने तुझसे कहा कि तू मेरे इस्राईली लोगों की गल्ला बानी करेगा और तू इस्राईल का सरदार होगा|"3ग़र्ज़ इस्राईल के सब बुज़ुर्ग हब्रून में बादशाह के पास आए और दाऊद बादशाह ने हब्रून में उनके साथ ख़ुदावन्द के सामने 'अहद बाँधा और उन्होंने दाऊद को मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया|4और दाऊद जब हुकूमत करने लगा तो तीस बरस का था और उसने चालीस बरस बादशाहत की|5उसने हब्रून में सात बरस छ: महीने यहूदाह पर हुकूमत की और यरुशलीम में सब इस्राईल और यहूदाह पर तैंतीस बरस बादशाहत की|6फिर बादशाह और उसके लोग यरुशलीम को यबूसियों पर जो उस मुल्क के बाशिंदे थे चढ़ाई करने लगे, उन्होंने दाऊद से कहा, "जब तक तू अंधों और लंगड़ों को न ले जाए यहाँ नहीं आने पायेगा|" वह समझते थे कि दाऊद यहाँ नहीं आ सकता है|7तो भी दाऊद ने सीय्योन का क़िला' ले लिया, वही दाऊद का शहर है|8और दाऊद ने उस दिन कहा कि "जो कोई यबूसियों को मारे वह नाले को जाए और उन लंगड़ों और अंधों को मारे जिन से दाऊद के दिल को नफ़रत है|" ~इसी लिए यह कहावत है कि "अंधे और लंगड़े वहाँ हैं, इसलिए वह घर में नहीं आ सकता|"9और दाऊद उस क़िला' में रहने लगाऔर उसने उसका नाम दाऊद का शहर रखा और दाऊद ने चारों तरफ़ मिल्लो से लेकर अन्दर के रुख़ तक बहुत कुछ ता'मीर किया|10और दाऊद बढ़ता ही गया क्यूँकि ख़ुदावन्द लश्करों का ख़ुदा उसके साथ था|11और सूर के बादशाह हेरान ने क़ासिदों को और देवदार की लकड़ियों और बढ़इयों और राजगीरों को दाऊद के पास भेजा और उन्होंने दाऊद के लिए एक महल बनाया|12और दाऊद को यक़ीन हुआ कि ख़ुदावन्द ने उसे इस्राईल का बादशाह बनाकर क़यास बख़्शा, और उसने उसकी हुकूमत को अपनी क़ौम इस्राईल की खा़तिर मुम्ताज़ किया है|13और हब्रून से चले आने के बा'द दाऊद ने यरुशलीम से और बाँदियाँ ~रख लीं और बीवियाँ कीं और दाऊद के यहाँ और बेटे बेटियाँ पैदा हुईं|14और जो यरुशलीम में उसके यहाँ पैदा हुए, उनके नाम यह हैं सम्मू'आ, और सोबाब और नातन और सुलैमान|15और इबहार और इलीसू और नफ़ज और यफ़ी’|16और इलीसमा’ और इलयदा और इलीफ़ालत|17और जब फ़िलिस्तियों ने सुना कि उन्होंने दाऊद को मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया है, तो सब फ़िलिस्ती दाऊद की तलाश में चढ़ आए और दाऊद को ख़बर हुई, तब वह क़िला' में चला गया|18और फ़िलिस्ती आकर रिफ़ाईम की वादी में फ़ैल गये|19तब दाऊद ने ख़ुदा से पूँछा, "क्या मैं फ़िलिस्तियों के मुक़ाबला को जाऊँ ?क्या तू उनको मेरे क़ब्ज़े ~में कर देगा ?" ~ख़ुदावन्द ने दाऊद से कहा कि "जा|" क्यूँकि मैं ज़रूर फ़िलिस्तियों को तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा|”20फिर दाऊद बा'ल प्राज़ीम में आया और वहाँ दाऊद ने उनको मारा और कहने लगा कि "ख़ुदावन्द ने मेरे दुश्मनों को मेरे सामने तोड़ डाला जैसे पानी टूट कर बह निकलता है|" ~तब उसने उस जगह का नाम बा'ल प्राज़ीम रखा|21और वहीं उन्होंने अपने बुतों को छोड़ दिया था तब दाऊद और उसके लोग उनको ले गए|22और फ़िलिस्ती फिर चढ़ आए और रिफ़ाईम की वादी में फ़ैल गये|23और जब दाऊद ने ख़ुदावन्द से पूँछा तो उसने कहा, "तू चढ़ाई न कर, उनके पीछे से घूम कर तूत के दरख़्तों के सामने से उन पर हमला कर|24और जब तूत के दरख़्तों की फुन्गियों में तुझे फ़ौज के चलने की आवाज़ सुनाई दे तो चुस्त हो जाना, क्यूँकि उस वक़्त ख़ुदावन्द तेरे आगे आगे निकल चुका होगा, ताकि फ़िलिस्तियों के लश्कर को मारे|"25और दाऊद ने जैसा ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया था वैसा ही किया और फ़िलिस्तियों को जिबा' से जज़र तक मारता गया|
1और दाऊद ने फिर इस्राईलियों के सब चुने हुए तीस हज़ार मर्दों को जमा' किया|2और दाऊद उठा और सब लोगों को जो उसके साथ थे लेकर बा'ला यहूदाह से चला ताकि ख़ुदा के संदूक़ को उधर से ले आए, जो उस नाम का या'नी रब्ब-उल-अफ़्वाज के नाम का कहलाता है, जो करूबियों पर बैठता है|3तब उन्होंने ख़ुदा के संदूक़ को नई गाड़ी पर रखा और उसे अबीनदाब के घर से जो पहाड़ी पर था निकाल लाये, और उस नई गाड़ी को अबीनदाब के बेटे उज़्ज़ह और अख़ियो हॉकने लगे|4और वह उसे अबीनदाब के घर से जो पहाड़ी पर था ख़ुदा के संदूक़ के साथ निकाल लाये, और अख़ियो संदूक़ के आगे आगे चल रहा था|5और दाऊद और इस्राईल का सारा घराना सनोबर की लकड़ी के सब तरह के साज़ और सितार बरबत और दफ़ और ख़न्जरी और झाँझ ख़ुदावन्द के आगे आगे बजाते चले|6और जब वह नकोन के खलियान पर पहुँचे तो उज़्ज़ह ने ख़ुदा के संदूक़ की तरफ़ हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया, क्यूँकि बैलों ने ठोकर खाई थी|7तब ख़ुदावन्द का ग़ुस्सा उज़्ज़ह पर भड़का और ख़ुदा ने वहीं उसे उसकी ख़ता की वजह ~से मारा, और वह वहीं ख़ुदा के संदूक़ के पास मर गया|8और दाऊद इस वजह ~से कि ख़ुदा उज़्ज़ह पर टूट पड़ा नाख़ुश हुआ, और उसने उस जगह का नाम परज़ उज़्ज़ह रख्खा जो आज के दिन तक है|9और दाऊद उस दिन ख़ुदावन्द से डर गया और कहने लगा कि "ख़ुदावन्द का संदूक़ मेरे यहाँ क्यूँकर आए ?|"10और दाऊद ने ख़ुदावन्द के संदूक़ को अपने यहाँ, दाऊद के शहर में ले जाना न चाहा, बल्कि दाऊद उसे एक तरफ़ जाती 'ओबेदअदूम के घर ले गया|11और ख़ुदावन्द का संदूक़ जाती ओबेदअदूम के घर में तीन महीने तक रहा और ख़ुदावन्द ने ओबेदअदूम को और उसके सारे घराने को बरकत दी|12और दाऊद बादशाह को ख़बर मिली कि ख़ुदावन्द ने 'ओबेदअदूम के घराने ~को और उसकी हर चीज़ में ख़ुदा के संदूक़ की वजह से बरकत दी है, तब दाऊद गया और ख़ुदा के संदूक़ को 'ओबेदअदूम के घर से दाऊद के शहर में ख़ुशी ख़ुशी ले आया|13और ऐसा हुआ कि जब ख़ुदावन्द के संदूक़ के उठाने वाले छ:क़दम चले तो दाऊद ने एक बैल और एक मोटा बछड़ा ज़बह किया|14और दाऊद ख़ुदावन्द के सामनेअपने सारे ज़ोर से नाचने लगा, और दाऊद कतान का अफ़ूद पहने था|15तब दाऊद और इस्राईल का सारा घराना ख़ुदावन्द के संदूक़ को ललकारते और नरसिंगा फूँकते हुए लाये|16और जब ख़ुदावन्द का संदूक़ दाऊद के शहर के अन्दर आ रहा था, तो साऊल की बेटी मीकल ने खिड़की से निगाह की और दाऊद बादशाह को ख़ुदावन्द के सामने उछलते और नाचते देखा, तब उसने अपने दिल ही दिल में हक़ीर जाना|17और वह ख़ुदा के संदूक़ को अन्दर लाये और उसे उसकी जगह पर उस ख़ेमा के बीच जो दाऊद ने उसके लिए खड़ा किया था रख्खा, और दाऊद ने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ ख़ुदावन्द के आगे पेश कीं|18और जब दाऊद सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कर चुका, तो उसने रब्बुल अफ़्वाज के नाम से लोगों को बरकत दी|19और उसने सब लोगों या'नी इस्राईल के सारे जमा'त के मर्दों और 'औरतों दोनों को एक एक रोटी और एक एक टुकड़ा गोश्त और किशमिश की एक एक टिकया बाँटी, फिर सब लोग अपने अपने घर चले गये|20तब दाऊद लौटा ताकि अपने घराने को बरकत दे और साऊल की बेटी मीकल दाऊद के इस्तक़बाल को निकली और कहने लगी कि "इस्राईल का बादशाह आज कैसा शानदार मा'लूम होता था जिसने आज के दिन अपने मुलाज़िमों की लौंडियों के सामने अपने को नंगा किया जैसे कोई नौजवान बेहयाई से नंगा हो जाता है|"21दाऊद ने मीकल से कहा, "यह तो ख़ुदावन्द के सामने था जिसने तेरे बाप और उसके सारे घराने को छोड़ कर मुझे पसन्द किया, ताकि वह मुझे ख़ुदावन्द की क़ौम इस्राईल का रहनुमा बनाये, इसलिए मैं ख़ुदावन्द के आगे नाचूँगा|22बल्कि मैं इससे भी ज़्यादा ज़लील हूँगा और अपनी ही नज़र में नीच हूँगा और जिन लौंडियों का ज़िक्र तूने किया है वहीं मेरी इज़्ज़त करेंगी|”23इसलिए साऊल की बेटी मीकल मरते दम तक बे औलाद रही|
1जब बादशाह अपने महल में रहने लगा, और ख़ुदावन्द ने उसे उसको चारों तरफ़ के सब दुश्मनों से आराम बख़्शा|2तो बादशाह ने नातन नबी से कहा, "देख मैं तो देवदार की लकड़ियों के घर में रहता हूँ लेकिन ख़ुदावन्द का संदूक़ पर्दों के अन्दर रहता है|"3तब नातन ने बादशाह से कहा. “जा जो कुछ तेरे दिल में है कर क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरे साथ है|”4और उसी रात को ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द का कलाम नातन को पहुँचा कि|5"जा और मेरे बन्दा दाऊद से कह, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि क्या तू मेरे रहने के लिए एक घर बनाएगा ?6क्यूँकि जब से मैं बनी इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया आज के दिन तक किसी घर में नहीं रहा, बल्कि ख़ेमा और मसकन में फिरता रहा हूँ|7और जहाँ जहाँ मैं सब बनी इस्राईल के साथ फिरता रहा, क्या मैं ने कहीं किसी इस्राईली क़बीले से जिसे मैंने हुक्म किया कि मेरी क़ौम इस्राईल की गल्ला बानी करो यह कहा कि तुमने मेरे लिए देवदार की लकड़ियों का घर क्यों नहीं बनाया ?|8इसलिए अब तू मेरे बन्दा ~दाऊद से कहा ~कि रब्बुल अफ़्वाज यूँ फ़रमाता है, कि मैंने तुझे भेड़साला से जहाँ तू भेड़ बकरियों के पीछे पीछे फिरता था लिया, ताकि तू मेरी क़ौम इस्राईल का रहनुमा हो|9और मैं जहाँ जहाँ तू गया तेरे साथ रहा, और तेरे सब दुश्मनों को तेरे सामने से काट डाला है, और मैं दुनिया के बड़े बड़े लोगों के नाम की तरह तेरा नाम बड़ा करूँगा|10और मैं अपनी क़ौम इस्राईल के लिए एक जगह मुक़र्रर करूँगा, और वहाँ उनको जमाऊँगा ताकि वह अपनी ही जगह बसें और फिर हटाये न जायें, और शरारत के फ़र्ज़न्द उनको फिर दुख नहीं देने पायेंगे जैसा पहले होता था|11और जैसा उस दिन से होता आया, जब मैंने हुक्म दिया, कि मेरी क़ौम इस्राईल पर क़ाज़ी हों और मैं ऐसा करूँगा, कि तुझको तेरे सब दुश्मनों से आराम मिले ~इसके अलावा ख़ुदावन्द तुझको बताता है कि ख़ुदावन्द तेरे घरको बनाये रख्खेगा|12और जब तेरे दिन पूरे हो जायेंगे और तू अपने बाप दादा के साथ मर जाएगा, तो मैं तेरे बा'द तेरी नसल को जो तेरे सुल्ब से होगी, खड़ा करके उसकी हुकूमत को क़ायम करूँगा|13वही मेरे नाम का एक घर बनाएगा और मैं उसकी बादशाहत का तख़्त हमेशा के लिए क़ायम करूँगा |14और मैं उसका बाप हूँगा और वह मेरा बेटा होगा, अगर वह ख़ता करे तो मैं उसे आदमियों की लाठी और बनी आदम के ताज़िया नों से नसीहत करूँगा|15लेकिन मेरी रहमत उससे जुदा न होगी, जैसे मैंने उसे साऊल से जुदा किया जिसे मैंने तेरे आगे से हटा दिया|16और तेरा घर और तेरी बादशाहत हमेशा बनी रहेगी, तेरा तख़्त हमेशा के लिए क़ायम किया जायेगा|"17जैसी यह सब बातें और यह सारा ख़्वाब था वैसा ही दाऊद से नातन ने कहा|18तब दाऊद बादशाह अन्दर जाकर ख़ुदावन्द के आगे बैठा, और कहने लगा, "ऐ मालिक ख़ुदावन्द मैं कौन हूँ और मेरा घराना क्या है कि तूने मुझे यहाँ तक पहुँचाया|19तो भी ऐ मालिक ख़ुदावन्द यह तेरी नज़र में छोटी बात थी क्यूँकि तूने अपने बन्दा के घराने के हक़ में बहुत मुद्दत तक का ज़िक्र किया है और वह भी ऐ मालिक ख़ुदावन्द आदमियों के तरीक़े पर|20और दाऊद तुझसे और क्या कह सकता है ?क्यूँकि ऐ मालिक ख़ुदावन्द तू अपने बन्दा को जानता है|21तूने अपने कलाम की ख़ातिर और अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ यह सब बड़े काम किए, ताकि तेरा बन्दा उनसे वाकिफ़ हो जाए|22इसलिए तू ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, बुज़ुर्ग है, क्यूँकि जैसा हमने अपने कानों से सुना है उसके मुताबिक़ कोई तेरी तरह नहीं और तेरे 'अलावह कोई ख़ुदा नहीं|23और दुनिया में वह कौन सी एक क़ौम है जो तेरे लोगों या'नी इस्राईल की तरह है, जिसे ख़ुदा ने जाकर अपनी क़ौम बनाने को छुड़ाया, ताकि वह अपना नाम करे, और तुम्हारी ख़ातिर बड़े बड़े काम और अपने मुल्क के लिए और अपनी क़ौम के आगे जिसे तूने मिस्र की क़ौमों से और उनके मा'बूदों से रिहाई बख़्शी होलनाक काम करे|24और तूने अपने लिए अपनी क़ौम बनी इस्राईल को मुक़र्रर किया, ताकि वह हमेशा के लिए तेरी क़ौम ठहरे और तू ख़ुद ऐ ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हुआ|25और अब तू ऐ ख़ुदावन्द उस बात को जो तूने अपने बन्दा और उसके घराने के हक़ में फ़रमाई है, हमेशा के लिए क़ायम करदे और जैसा तूने फ़रमाया है वैसा ही कर|26और हमेशा यह कह कहकर तेरे नाम की बड़ाई की जाए, कि रब्ब-उल-अफ़्वाज इस्राईल का ख़ुदा है और तेरे बन्दा दाऊद का घराना तेरे सामने क़ायम किया जाएगा|27क्यूँकि तूने ऐ रब्ब-उल-अफ़्वाज इस्राईल के ख़ुदा अपने बन्दा पर ज़ाहिर किया, और फ़रमाया कि मैं तेरा घराना बनाए रख्खूँगा, तब तेरे बन्दा के दिल में यह आया कि तेरे आगे यह मुनाजात करे|28और ऐ मालिक ख़ुदावन्द तू ख़ुदा है और तेरी बातें सच्ची हैं, और तूने अपने बन्दे से इस नेकी का वा'दा किया है|29इसलिए अब अपने बन्दा के घराने को बरकत देना मंज़ूर कर, ताकि वह हमेशा तेरे नज़दीक वफ़ादार रहे, कि तू ही ने ऐ मालिक ख़ुदावन्द यह कहा है, और तेरी ही बरकत से तेरे बन्दे का घराना हमेशा मुबारक रहे !|"
1इसके बा'द दाऊद ने फ़िलिस्तियों को मारा, और उनको मग़लूब किया और दाऊद ने दारुल हुकूमत 'इनान फ़िलिस्तियों के हाथ से छीन ली|2और उसने मोआब को मारा और उनको ज़मीन पर लिटा कर रस्सी से नापा, तब उसने क़त्ल करने के लिए दो रस्सियों से नापा और जीता छोड़ने के लिए एक पूरी रस्सी से, यूँ मोआबी दाऊद के ख़ादिम बनकर हदिये लाने लगे|3और दाऊद ने ज़ोबाह के बादशाह रहोब के बेटे हदद'अज़र को भी जब वह दरिया-ए-फ़रात पर बादशाहत पर भी क़ब्ज़ा करने को जा रहा था मार लिया|4और दाऊद ने उसके एक हज़ार सात सौ सवार और बीस हज़ार पियादे पकड़ लिए और दाऊद ने रथों के सब घोड़ों की नालें काटीं पर उनमें से सौ रथों के लिए घोड़े बचा रख्खे|5और जब दमिश्क़ के अरामी ज़ूबाह के बादशाह हदद अज़र की मदद को आए तो दाऊद ने अरामियों के बाईस हज़ार आदमी क़त्ल किए|6जब दाऊद ने दमिश्क़ के आराम में सिपाहियों की चौकियाँ बिठाईं तब अरामी भी दाऊद के ख़ादिम बन कर हदिये लाने लगे, और ख़ुदावन्द ने दाऊद को जहाँ कहीं वह गया फ़तह बख़्शी|7और दाऊद ने हदद'अज़र के मुलाज़िमों की सोने की ढालें छीन लीं और उनको यरुशलीम में ले आया|8और दाऊद बादशाह बताह और बैरूती से जो हदद'अज़र के शहर थे बहुत सा पीतल ले आया|9और जब हमात के बादशाह तूग़ी ने सुना कि दाऊद ने हदद'अज़र का सारा लश्कर मार लिया|10तो तूग़ी ने अपने बेटे यूराम को दाऊद बादशाह के पास भेजा, कि उसे सलाम कहे और ~मुबारकबाद दे, इसलिए कि उसने हदद’अज़र तूग़ी से लड़ा करता था और यूराम चाँदी और सोने और पीतल के बरतन अपने साथ लाया|11और दाऊद बादशाह ने उनको ख़ुदावन्द के लिए मख़्सूस किया, ऐसे ही उसने उनसब क़ौमों के सोने चाँदी को मख़्सूस किया जिनको उसने मग़लूब किया था|12या'नी अरामियों और मोआबियों और बनी अम्मोन और फ़िलिस्तियों और 'अमालीकियों के सोने चाँदी और ज़ूबाह के बादशाह रहोब के बेटे हदद'अज़र की लूट को|13और दाऊद का बड़ा नाम हुआ जब वह नमक की वादी में अरामियों के अठारह हज़ार आदमी मार कर लौटा|14और उसने अदूम में चौकियाँ बिठायीं बल्कि सारे अदूम में चौकियाँ बिठायीं और सब अदूमी दाऊद के ख़ादिम बने और ख़ुदावन्द ने दाऊद को जहाँ कहीं वह गया फ़तह बख़्शी|15और दाऊद ने कुल इस्राईल पर बादशाहत की और दाऊद अपनी सब र’इयत के साथ ‘अदल-ओ- इन्साफ़ करता था16और ज़रोयाह का बेटा योआब लश्कर का सरदार था, और अख़ीलूद का बेटा यहूसफ़त मुवर्रिख़ था|17और अख़ीतोब का बेटा सदूक़ और अबियातर का बेटा अख़ीमलिक कहिन थे और शरायाह मुंशी था|18और यहूयदाह का बेटा बनायाह करेतियों और फ़िलिस्तियों का सरदार था, और दाऊद के बेटे कहिन थे|
1फिर दाऊद ने कहा, "क्या साऊल के घराने में से कोई बाक़ी है, जिस पर मैं यूनतन की ख़ातिर महेरबानी करूँ|"2और साऊल के घराने का एक ख़ादिम जिसका नाम ~ज़ीबा था, उसे दाऊद के पास बुला लाये, बादशाह ने उससे कहा, "क्या तू ज़ीबा है ?" उसने कहा, "हाँ तेरा बन्दा वही है|”3तब बादशाह ने उससे कहा, "क्या साऊल के घराने में से कोई नहीं रहता ताकि मैं उसपर ख़ुदा की तरह महेरबानी करूं?" ज़ीबा ने बादशाह से कहा, "यूनतन का एक बेटा रह गया है जो लंगड़ा है|"4तब बादशाह ने उससे पूछा,”वह कहाँ है ?” ~ज़ीबा ने बादशाह को जवाब दिया, "देख वह लूदबार में ‘अम्मी ऐल के बेटे मकीर के घर में है|”5तब दाऊद बादशाह ने लोग भेज कर लूदबार से ‘अम्मी ऐल के बेटे मकीर के घर से उसे बुलवा लिया|6और साऊल के बेटे यूनतन का बेटा मिफ़ीबोसत दाऊद के पास आया, और उसने मुँह के बल गिरकर सिज्दा किया, तब दाऊद ने कहा, "मिफ़ीबोसत !" ~उसने जवाब दिया, "तेरा बन्दा हाज़िर है|"7दाऊद ने उससे कहा, "मत डर क्यूँकि मैं तेरे बाप यूनतन की ख़ातिर ज़रुर तुझ पर महेरबानी करूँगा, और तेरे बाप साऊल की ज़मीन पर तुझे फेर दूँगा, और तू हमेशा मेरे दस्तरख़्वान पर खाना खाया कर|"8तब उसने सिज्दा किया और कहा, "कि तेरा बन्दा है क्या चीज़ जो तू मुझ जैसे मरे कुत्ते पर निगाह करे ?"9तब बादशाह ने साऊल के ख़ादिम ज़ीबा को बुलाया और उससे कहा कि "मैंने सब कुछ जो साऊल और उसके सारे घराने का था तेरे आक़ा के बेटे को बख़्श दिया|10इसलिए तू अपने बेटों और नौकरों समेत ज़मीन को उसकी तरफ़ से जोत कर पैदावार को ले आया कर ताकि तेरे आक़ा के बेटे के खाने को रोटी हो पर मिफ़ीबोसत जो तेरे आक़ा का बेटा है मेरे दस्तरख़्वान पर हमेशा खाना खायेगा|" और ज़ीबा के पन्दरह बेटे और बीस नौकर थे|11तब ज़ीबा ने बादशाह से कहा, "जो कुछ मेरे मालिक बादशाह ने अपने ख़ादिम को हुक्म दिया है तेरा ख़ादिम वैसा ही करेगा|" लेकिन मिफ़ीबोसत के हक़ में बादशाह ने फ़रमाया कि वह मेरे दस्तरख़्वान पर इस तरह खाना खायेगा कि गोया वह बादशाह जादों मेंसे एक है|12और मिफ़ीबोसत का एक छोटा बेटा था जिसका नाम मीका था, और जितने ज़ीबा के घर में रहते थे वह सब मिफ़ीबोसत के ख़ादिम थे|13इसलिए मिफ़ीबोसत यरुशलीम में रहने लगा, क्यूँकि वह हमेशा बादशाह के दस्तरख़्वान पर खाना खाता था और वह दोनों पाँव से लंगड़ा था|
1इसके बा'द ऐसा हुआ कि बनी अम्मोन का बादशाह मर गया और उसका बेटा हनून उसका जानशीन हुआ|2तब दाऊद ने कहा कि "मैं नाहस के बेटे हनून के साथ महेरबानी करूँगा, जैसे उसके बाप ने मेरे साथ महेरबानी की|" तब दाऊद ने अपने ख़ादिम भेजे ताकि उनके ज़रिए' उसके बाप के बारे में उसे तसल्ली दे, चुनाँचे दाऊद के ख़ादिम बनी अम्मोन की सर ज़मीन पर आए|3बनी अम्मोन के सरदारों ने अपने मालिक हनून से कहा, "तुझे क्या यह गुमान है कि दाऊद तेरे बाप की ता'ज़ीम करता है कि उसने तसल्ली देने वाले तेरे पास भेजे हैं ? क्या दाऊद ने अपने ख़ादिम तेरे पास इसलिए नहीं भेजे हैं कि शहर का हाल दरयाफ़्त करके और इसका भेद लेकर वह इसको बरबाद करे ?”4तब हनून ने दाऊद के ख़ादिमों को पकड़ कर उनकी आधी आधी दाढ़ी मुंडवाई और उनकी लिबास बीच से सुरीन तक कटवा कर उनको रूख़्सत कर दिया|5जब दाऊद को ख़बर पहुँची तो उसने उनसे मिलने को लोग भेजे इसलिए यह आदमी बहुत ही शर्मिन्दा थे, इसलिए बादशाह ने फ़रमाया कि "जब तक तुम्हारी दाढ़ी न बढ़े यरीहू में रहो, उसके बा'द चले आना|"6जब बनी अम्मोन ने देखा कि वह दाऊद के आगे ग़ुस्सा ~हो गया तो बनी अम्मोन ने लोग भेजे और बैतरहोब के अरामियों और ज़ूबाह के अरामियों में से बीस हज़ार पियादों को और मा'का के बादशाह को एक हज़ार सिपाहियों समेत और तोब के बारह हज़ार आदमियों को मज़दूरी पर बुलाया|7और दाऊद ने यह सुनकर योआब और बहादुरों के सारे लश्कर को भेजा|8तब बनी अम्मोन निकले और उन्होंने फाटक के पास ही लड़ाई के लिए सफ़ बाँधी और ज़ूबाह और रहोब के अरामी और तोब और मा'का के लोग मैदान में अलग थे|9जब योआब ने देखा कि उसके आगे और पीछे दोनों तरफ़ लड़ाई के लिए सफ़ बंधी है तो उसने बनी इस्राईल के ख़ास लोगों को चुन लिया और अरामियों के सामने उनकी सफ़ बाँधी|10और बाक़ी लोगों को अपने भाई अबीशे के हाथ सौंप दिया, और उसने बनी अम्मोन के सामने सफ़ बाँधी|11फिर उसने कहा, "अगर अरामी मुझ पर ग़ालिब होने लगें तो तू मेरी मदद करना और अगर बनी अम्मोन तुझ पर ग़ालिब होने लगें तो मैं आकर तेरी मदद करूँगा|12इसलिए ख़ूब हिम्मत रख और हम सब अपनी क़ौम और अपने ख़ुदा के शहरों की ख़ातिर मर्दानगी करें और ख़ुदावन्द जो बेहतर जाने वह करे|13तब योआब और वह लोग जो उसके साथ थे अरामियों पर हमला करने को आगे बढ़े और वह उसके आगे भागे|14जब बनी अम्मोन ने देखा कि अरामी भाग गए तो वह भी अबीशे के सामने से भाग कर शहर के अन्दर घुस गए, तब योआब बनी अम्मोन के पास से लौट कर यरुशलीम में आया|15जब अरामियों ने देखा कि उन्होंने इस्राईलियों से शिकस्त खाई तो वह सब जमा' हुए|16और हदद’अज़र ने लोग भेजे और अरामियों को जो दरिया-ए-फ़रात के पार थे ले आया और वह हिलाम में आए और हदद’अज़र की फ़ौज का सिपह सालार सूबक उनका सरदार था|17और दाऊद को ख़बर मिली, इसलिए उसने सब इस्राईलियों को इकठ्ठा किया और यर्दन के पार होकर हिलाम में आया और अरामियों ने दाऊद के सामने सफ़ आराई की और उससे लड़े|18और अरामी इस्राईलियों के सामने से भागे और दाऊद ने अरामियों के सात सौ रथों के आदमी और चालीस हज़ार सवार क़त्ल कर डाले, और उनकी फ़ौज के सरदार सूबक को ऐसा मारा कि वह वहीं मर गया|19और जब बादशाहों ने जो हदद’अज़र के ख़ादिम थे देखा कि वह इस्राईलियों से हार गए, तो उन्होंने इस्राईलियों से सुलह कर ली और उनकी ख़िदमत करने लगे, तब अरामी बनी अम्मोन की फिर मदद करने से डरे|
1और ऐसा हुआ कि दूसरे साल जिस वक़्त बादशाह जंग के लिए निकलते हैं, दाऊद ने योआब और उसके साथ अपने ख़ादिमों और सब इस्राईलियों को भेजा, और उन्होंने बनी अम्मोन को क़त्ल किया और रब्बा को जा घेरा पर दाऊद यरुशलीम ही में रहा|2और शाम के वक़्त दाऊद अपने पलंग पर से उठकर बादशाही महल की छत पर टहलने लगा, और छत पर से उसने एक 'औरत को देखा जो नहा रही थी, और वह 'औरत निहायत ख़ूबसूरत थी|3तब दाऊद ने लोग भेजकर उस 'औरत का हाल दरयाफ़्त किया, और किसी ने कहा, "क्या वह इल’आम की बेटी बतसबा नहीं जो हित्ती औरय्याह की बीवी है ?|"4और दाऊद ने लोग भेजकर उसे बुला लिया, वह उसके पास आई और उसने उससे सोहबत की {क्यूँकि वह अपनी नापाकी से पाक हो चुकी थी }फिर वह अपने घर को चली गई|5और वह औरत हाम्ला हो गई, तब उसने दाऊद के पास ख़बर भेजी कि "मैं हाम्ला हूँ|"6और दाऊद ने योआब को कहला भेजा कि "हित्ती औरय्याह को मेरे पास भेज दे|" इसलिए योआब ने औरय्याह को दाऊद के पास भेज दिया|7और जब औरय्याह आया तो दाऊद ने पूछा कि योआब कैसा है और लोगों का क्या हाल है और जंग कैसी हो रही है ?|8फिर दाऊद ने औरय्याह से कहा कि "अपने घर जा और अपने पाँव धो|" और औरय्याह बादशाह के महल से निकला और बादशाह की तरफ़ से उसके पीछे पीछे एक ख़्वान भेजा गया|9लेकिन औरय्याह बादशाह के घर के आस्ताना पर अपने मालिक के और सब ख़ादिमों के साथ सोया और अपने घर न गया|10और जब उन्होंने दाऊद को यह बताया कि "औरय्याह अपने घर नहीं गया| तो दाऊद ने औरय्याह से कहा, "क्या तू सफ़र से नहीं आया ?तब तू अपने घर क्यों नहीं गया ?|"11औरय्याह ने दाऊद से कहा कि "संदूक़ और इस्राईल और यहूदाह झोंपड़ियों में रहते हैं और मेरा मालिक योआब और मेरे मालिक के ख़ादिम खुले मैदान में डेरे डाले हुए हैं तो क्या मैं अपने घर जाऊँ और खाऊँ पियूँ और अपनी बीवी के साथ सोऊँ ? तेरी हयात और तेरी जान की क़सम मुझसे यह बात न होगी|"12फिर दाऊद ने औरय्याह से कहा कि "आज भी तू यहीं रह जा, कल मैं तुझे रवाना कर दूँगा|" इसलिए औरय्याह उस दिन और दूसरे दिन भी यरुशालीम में रहा|13और जब दाऊद ने उसे बुलाया तो उसने उसके सामने खाया पिया और उसने उसे पिलाकर मतवाला किया और शाम को वह बाहर जाकर अपने मालिक के और ख़ादिमों के साथ अपने बिस्तर पर सो रहा पर अपने घर को न गया|14सुबह को दाऊद ने योआब के लिए ख़त लिखा और उसे औरय्याह के हाथ भेजा|15और उसने ख़त में यह लिखा कि "औरय्याह को जंग में सबसे आगे रखना और तुम उसके पास से हट जाना ताकि वह मारा जाए और जाँ बहक़ हो|"16और यूँ हुआ कि जब योआब ने उस शहर का जाइज़ा कर लिया तो उसने औरय्याह को ऐसी जगह रख्खा जहाँ वह जानता था कि बहादुर मर्द हैं|17और उस शहर के लोग निकले ओर योआब से लड़े और वहाँ दाऊद के ख़ादिमों में से थोड़े से लोग काम आए और हित्ती औरय्याह भी मर गया|18तब योआब ने आदमी भेज कर जंग का सब हाल दाऊद को बताया|19और उसने क़ासिद को नसीहत कर दी कि "जब तू बादशाह से जंग का सब हाल byaa कर चुके|20तब अगर ऐसा हो कि बादशाह को ग़ुस्सा आ जाये और वह तुझसे कहने लगे कि तुम लड़ने को शहर के ऐसे नज़दीक क्यों चले गये? क्या तुम नहीं जानते थे कि वह दीवार पर से तीर मारेंगे ?|21यरोब्बुसत के बेटे अबीमलिक को किसने मारा? क्या एक 'औरत ने चक्की का पात दीवार परसे उसके ऊपर ऐसा नहीं फेंका कि वह तैबिज़ में मर गया? ~इसलिए तुम शहर की दीवार के नज़दीक क्यों गये? तो फिर तू कहना कि तेरा ख़ादिम हित्ती औरय्याह भी मर गया|"22तब वह क़ासिद चला और आकर जिस काम के लिए योआब ने उसे भेजा था वह सब दाऊद को बताया|23और उस क़ासिद ने दाऊद से कहा कि “वह लोग हमपर ग़ालिब हुए और निकल कर मैदान में हमारे पास आगए, फिर हम उनको दौड़ाते हुए फाटक के मदख़ल तक चले गये|24तब तीरंदाज़ों ने दीवार पर से तेरे ख़ादिमों पर तीर छोड़े, इसलिए बादशाह के थोड़े ख़ादिम भी मरे और तेरा ख़ादिम हित्ती औरय्याह भी मर गया|”25तब दाऊद ने क़ासिद से कहा कि, "तू योआब से यूँ कहना कि तुझे इस बात से ना ख़ुशी न हो इसलिए कि तलवार जैसा एक को उड़ाती है वैसा ही दूसरे को, इसलिए तू शहर से और सख़्त जंग करके उसे ढा दे और तू उसे हिम्मत देना|”26जब और्य्याह की बीवी ने सुना कि उसका शौहर औरय्याह मर गया तो वह अपने शौहर के लिए मातम करने लगी|27और जब मातम के दिन गुज़र गए तो दाऊद ने बुलवाकर उसको अपने महल में रख लिया और वह उसकी बीवी हो गई और उससे उसके एक लड़का हुआ पर उस काम से जिसे दाऊद ने किया था ख़ुदावन्द नाराज़ हुआ|
1और ख़ुदावन्द ने नातन को दाऊद के पास भेजा, उसने उसके पास आकर उससे कहा, "किसी शहर में दो शख़्स थे, एक अमीर दूसरा ग़रीब|2उस अमीर के पास बहुत से रेवड़ और गल्ले थे|3लेकिन उस ग़रीब के पास भेड़ की एक पठिया के 'अलावा कुछ न था, जिसे उसने ख़रीद कर पाला था और वह उसके और उसके बाल बच्चों के साथ बढ़ी थी, वह उसी के नेवाले में से खाती और उसके पियाला से पीती और उसकी गोद में सोती थी, और उसके लिए बतौर बेटी के थी|4और उस अमीर के यहाँ कोई मुसाफ़िर आया, इसलिए उसने उस मुसाफ़िर के लिए जो उसके यहाँ आया था पकाने को अपने रेवड़ और गल्ला में से कुछ न लिया, बल्कि उस ग़रीब की भेड़ ले ली, और उस शख़्स के लिए जो उसके यहाँ आया था पकाई|"5तब दाऊद का गज़ब उस शख्स़ पर बशिददत भड़का और उसने नातन से कहा कि "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम कि वह शख़्स जिसने यह काम किया वाजिबुल क़त्ल है|6इसलिए उस शख़्स को उस भेड़ का चौ गुना भरना पड़ेगा क्यूँकि उसने ऐसा काम किया और उसे तरस न आया|"7तब नातन ने दाऊद से कहा, "वह शख़्स तूही है, ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मैंने तुझे मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया और मैंने तुझे साऊल के हाथ से छुड़ाया|8और मैंने तेरे आक़ा का घर तुझे दिया और तेरे आक़ा की बीवियाँ तेरी गोद में करदीं, और इस्राईल और यहूदाह का घराना तुझको दिया, और अगर यह सब कुछ थोड़ा था तो मैं तुझको और और चीजें भी देता|9इसलिए तूने क्यों ख़ुदा की बात की तहक़ीर करके उसके सामने बुराई की ?तूने हित्ती औरय्याह को तलवार से मारा और उसकी बीवी लेली ताकि वह तेरी बीवी बने और उसको बनी अम्मोन की तलवार से क़त्ल करवाया|10इसलिए अब तेरे घरसे तलवार कभी अलग न होगी क्यूँकि तूने मुझे हक़ीर जाना और हित्ती औरय्याह की बीवी लेली ताकि वह तेरी बीवी हो|11इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख मैं बुराई को तेरे ही घर से तेरे ख़िलाफ़ उठाऊँगा और मैं तेरी बीवियों को लेकर तेरी आँखों के सामने तेरे पड़ोसी को दूँगा, और वह दिन दहाड़े तेरी बीवियों से सोहबत करेगा|12क्यूँकि तूने छिपकर यह किया लेकिन मैं सारे इस्राईल के सामने दिन दहाड़े यह करूँगा|”13तब दाऊद ने नातन से कहा, "मैंने ख़ुदावन्द का गुनाह किया|" ~नातन ने दाऊद से कहा कि "ख़ुदावन्द ने भी तेरा गुनाह बख़्शा, तू मरेगा नहीं|14तोभी चूँकि तूने इस काम से ख़ुदावन्द के दुश्मनों को कुफ़्र बकने का बड़ा मौ'क़ा दिया है इसलिए वह लड़का भी जो तुझसे पैदा होगा मर जाएगा|"15फिर नातन अपने घर चला गया और ख़ुदावन्द ने उस लड़के को जो औरय्याह की बीवी के दाऊद से पैदा हुआ था मारा और वह बहुत बीमार हो गया|16इसलिए दाऊद ने उस लड़के की ख़ातिर ख़ुदा से मिन्नत की और दाऊद ने रोज़ा रखा और अन्दर जाकर सारी रात ज़मीन पर पड़ा रहा|17और उसके घराने के बुज़ुर्ग उठकर उसके पास आए कि उसे ज़मीन पर से उठायें पर वह न उठा और न उसने उनके साथ खाना खाया|18और सातवें दिन वह लड़का मर गया और दाऊद के मुलाज़िम उसे डर के मारे यह न बता सके कि लड़का मर गया, क्यूँकि उन्होंने कहा कि "जब वह लड़का ज़िन्दा ही था और हमने उससे बात की तो उसने हमारी बात न मानी तब अगर हम उसे बतायें कि लड़का मर गया तो वह बहुत ही दुखी होगा|"19लेकिन जब दाऊद ने अपने मुलाज़िमों को आपस में फुसफुसाते देखा तो दाऊद समझ गया कि लड़का मर गया, इसलिए दाऊद ने अपने मुलाज़िमों से पूछा, "क्या लड़का मर गया ?" उन्होंने जवाब दिया,"मर गया|”20तब दाऊद ज़मीन पर से उठा और उसने ग़ुस्ल करके उसने तेल लगाया और लिबास बदली और ख़ुदावन्द के घर में जाकर सज्दा किया फिर वह अपने घर आया और उसके हुक्म देने पर उन्होंने उसके आगे रोटी रखी और उसने खाई21तब उसके मुलाज़िमों ने उससे कहा, "यह कैसा काम है जो तूने किया? जब वह लड़का जीता था तो तूने उसके लिए रोज़ा रख्खा और रोता भी रहा और जब वह लड़का मर गया तो तूने उठकर रोटी खाई|"22उसने कहा कि "जब तक वह लड़का ज़िन्दा था मैंने रोज़ा रख्खा और मैं रोता रहा क्यूँकि मैंने सोचा क्या जाने ख़ुदावन्द को मुझपर रहम आजाये कि वह लड़का जीता रहे?|23लेकिन अब तो मर गया तब मैं किस लिए रोज़ा रखूँ? क्या मैं उसे लौटा के ला सकता हूँ ?मैं तो उसके पास जाऊँगा पर वह मेरे पास नहीं लौटने का|"24फिर दाऊद ने अपनी बीवी बत सबा'को तसल्ली दी और उसके पास गया और उससे सोहबत की और उसके एक बेटा हुआ और दाऊद ने उसका नाम सुलैमान रख्खा और ख़ुदावन्द का प्यारा हुआ|25और उसने नातन नबी की ज़रिए पैग़ाम भेजा तब उसने उसका नाम ख़ुदावन्द की ख़ातिर यदीदियाह रख्खा|26और योआब बनी अम्मोन के रब्बा से लड़ा और उसने दारुल हुकूमत को ले लिया|27और योआब ने क़ासिदों के ज़रिए ~दाऊद को कहला भेजा कि "मैं रब्बा से लड़ा और मैंने पानियों के शहर को ले लिया|28फिर अब तू बाक़ी लोगों को जमा' कर और इस शहर के नज़दीक ख़ेमा ज़न हो और इस पर क़ब्ज़ा कर ले ऐसा न हो कि मैं इस शहर को बरबाद करूँ और वह मेरे नाम से कहलाए|"29तब दाऊद ने लोगों को जमा' किया और रब्बा को गया और उससे लड़ा और उसे ले लिया|30और उसने उनके बादशाह का ताज उसके सर पर से उतार लिया, उसका वज़न सोने का एक क़िन्तार था और उसमें जवाहर जड़े हुए थे, फिर वह दाऊद के सर पर रख्खा गया और वह उस शहर से लूट का बहुत सा माल निकाल लाया|31और उसने उन लोगों को जो उसमें थे बाहर निकाल कर उनको आरों और लोहे के हैंगों और लोहे के कुल्हाड़ों के नीचे कर दिया, और उनको ईंटों के पज़ावे में से चलवाया और उसने बनी अम्मोन के सब शहरों से ऐसा ही किया, फिर दाऊद और सब लोग यरुशलीम को लौट आए|
1और इसके बा'द ऐसा हुआ कि दाऊद के बेटे अबी सलोम की एक ख़ूबसूरत बहन थी, जिसका नाम तमर था, उस पर दाऊद का बेटा अमनून 'आशिक़ हो गया|2और अमनून ऐसा कुढ़ने लगा कि वह अपनी बहन तमर की वजह से बीमार पड़ गया, क्यूँकि वह कुँवारी थी इसलिए अमनून को उसके साथ कुछ करना दुशवार मा'लूम हुआ|3और दाऊद के भाई सम'आ का बेटा यूनदब अमनून का दोस्त था, और यूनदब बड़ा चालाक आदमी था|4फिर उसने उनसे कहा, "ऐ बादशाह ज़ादे! तू क्यूँ दिन ब दिन दुबला होता जाता है ?क्या तू मुझे नहीं बताएगा?" तब अमनून ने उससे कहा कि "मैं अपने भाई अबीसलोम की बहन तमर पर 'आशिक़ हूँ|"5यूनदब ने उससे कहा, "तू अपने बिस्तर पर लेट जा और बीमारी का बहाना कर ले और जब तेरा बाप तुझे देखने आए, तो तू उससे कहना, मेरी बहन तमर को ज़रा आने दे कि वह मुझे खाना दे और मेरे सामने खाना पकाये, ताकि मैं देखूँ और उसके हाथ से खाऊँ|"6तब अमनून पड़ गया और उसने बीमारी का बहाना कर लिया और ~जब बादशाह उसको देखने आया, तो अमनून ने बादशाह से कहा, "मेरी बहन तमर को ज़रा आने दे कि वह मेरे सामने दो पूरियाँ बनाये, ताकि मैं उसके हाथ से खाऊँ|"7तब दाऊद ने तमर के घर कहला भेजा कि "तू अभी अपने भाई अमनून के घर जा और उसके लिए खाना पका|"8फिर तमर अपने भाई अमनून के घर गई और वह बिस्तर पर पड़ा हुआ था और उसने आटा लिया और गूँधा, और उसके सामने पूरियाँ बनायीं और उनको पकाया|9और तवे को लिया और उसके सामने उनको उंडेल दिया, लेकिन उसने खाने से इन्कार किया, तब अमनून ने कहा कि "सब आदमियों को मेरे पास से बाहर कर दो|" तब हर एक आदमी उसके पास से चला गया|10तब अमनून ने तमर से कहा कि "खाना कोठरी के अन्दर ले आ ताकि मैं तेरे हाथ से खाऊँ|" इसलिए तमर वह पूरियाँ जो उसने पकाई थीं उठा कर उनको कोठरी में अपने भाई अमनून के पास लायी|11और जब वह उनको उसके नज़दीक ले गई कि वह खाए तो उसने उसे पकड़ लिया और उससे कहा, "ऐ मेरी बहन मुझसे सोहबत कर|"12उसने कहा, "नहीं मेरे भाई मेरे साथ ज़बरदस्ती न कर क्यूँकि इस्राईलियों में कोई ऐसा काम नहीं होना चाहिए, तू ऐसी हिमाक़त न कर|13और भला मैं अपनी रुसवाई कहाँ लिए फिरूँगी? और तू भी इस्राईलियों के बेवक़ूफ़ों~में से एक की तरह~ठहरेगा, इसलिए तू बादशाह से दरख़्वास्त कर क्यूँकि वह मुझको तुझसे रोक नहीं रख्खेगा|"14लेकिन उसने उसकी बात न मानी और चूँकि वह उससे ताक़तवर था इसलिए उसने उसके साथ ज़बरदस्ती की, और उससे सोहबत की|15फिर अमनून को उससे बड़ी सख्त़ नफ़रत हो गई क्यूँकि उसकी नफ़रत उसके जज़्ब-ए-इश्क़ से कहीं बढ़कर थी, इसलिए अमनून ने उससे कहा, "उठ चली जा|"16वह कहने लगी, "ऐसा न होगा क्यूँकि यह ज़ुल्म कि तू मुझे निकालता है उस काम से जो तूने मुझसे किया बदतर है|" लेकिन उसने उसकी एक न सुनी|17तब उसने अपने एक मुलाज़िम को जो उसकी ख़िदमत करता था बुला कर कहा, "इस 'औरत को मेरे पास से बाहर निकाल दे और पीछे दरवाज़े की चटकनी लगा दे|"18और वह रंग बिरंग जोड़ा पहने हुए थी क्यूँकि बादशाहों की कुँवारी बेटियाँ ऐसी ही लिबास पहनती थीं फिर उसके ख़ादिम ने उसको बाहर कर दिया और उसके पीछे चटकनी लगा दी19और तमर ने अपने सर पर ख़ाक डाली और अपने रंग बिरंग के जोड़े को जो पहने हुए थी फाड़ लिया, और सर पर हाथ धर कर रोती हुई चली|20उसके भाई अबीसलोम ने उससे कहा, "क्या तेरा भाई अमनून तेरे साथ रहा है ? ख़ैर ऐ मेरी बहन अब चुप हो रह क्यूँकि वह तेरा भाई है और इस बात का ग़म न कर|" ~तब तमर अपने भाई अबीसलोम के घर में बे बस पड़ी रही|21और जब दाऊद बादशाह ने यह सब बातें सुनी तो निहायत ग़ुस्सा हुआ|22और अबी सलोम ने अपने भाई अमनून से कुछ बुरा भला न कहा क्यूँकि अबीसलोम को अमनून से नफ़रत थी इसलिए कि उसने उसकी बहन तमर के साथ ज़बरदस्ती किया था|23और ऐसा हुआ कि पूरे दो साल के बा'द भेड़ों के बाल कतरने वाले अबीसलोम के यहाँ बा'ल हसोर में थे जो इफ़्राईम के पास है और अबीसलोम ने बादशाह के सब बेटों को दा'वत दी|24तब अबीसलोम बादशाह के पास आकर कहने लगा, "तेरे ख़ादिम के यहाँ भेड़ों के बाल कतरने वाले आए हैं इसलिए मैं मिन्नत करता हूँ कि बादशाह अपने मुलाज़िमों और अपने ख़ादिम के साथ चले|"25तब बादशाह ने अबीसलोम से कहा, "नहीं मेरे बेटे हम सबके सब न चलें ऐसा न हो कि तुझ पर हम बोझ हो जाएँ और वह उससे बजिद हुआ तो भी वह न गया पर उसे दु'आ दी|"26तब अबीसलोम ने कहा, "अगर ऐसा नहीं हो सकता तो मेरे भाई अमनून को तो हमारे साथ जाने दे" बादशाह ने उससे कहा, "वह तेरे साथ क्यों जाए ?|"27लेकिन अबीसलोम ऐसा बजिद हुआ कि उसने अमनून और सब शहज़ादों को उसके साथ जाने दिया|28और अबीसलोम ने अपने ख़ादिमों को हुक्म दिया कि "देखो जब अमनून का दिल मय से सुरूर में हो और मैं तुम को कहूँ कि अमनून को मारो तो तुम उसे मार डालना खौफ़ न करना, क्या मैंने तुमको हुक्म नही दिया? ~हिम्मतवर और बहादुर बने रहो|"29चुनाँचे अबीसलोम के नौकरों ने अमनून से वैसा ही किया जैसा अबीसलोम ने हुक्म दिया था, तब सब शहज़ादे उठे और हर एक अपने खच्चर पर चढ़ कर भागा|30और वह अभी रास्ते ही में थे कि दाऊद के पास यह ख़बर पहुँची कि "अबीसलोम ने सब शहज़ादों को क़त्ल कर डाला है और उनमें से एक भी बाक़ी नहीं बचा|"31तब बादशाह ने उठकर अपने लिबास को फाड़ा और ज़मीन पर गिर पड़ा और उसके सब मुलाज़िम लिबास फाड़े हुए उसके सामने खड़े रहे|32तब दाऊद के भाई सिम'आ का बेटा यून्दब कहने लगा कि "मेरा मालिक यह ख़्याल न करे, कि उन्होंने सब जवानों को जो बादशाह ज़ादे हैं मार डाला है इसलिए कि सिर्फ़ अमनून ही मरा है, क्यूँकि अबीसलोम के इन्तिज़ाम से उसी दिन से यह बात ठान ली गई थी जब उसने उसकी बहन तमर के साथ ज़बरदस्ती की थी|33इसलिए मेरा मालिक बादशाह ऐसा ख़्याल करके कि सब शहज़ादे मर गये इस बात का ग़म न करे क्यूँकि सिर्फ़ अमनून ही मरा है|"34और अबीसलोम भाग गया और उस जवान ने जो निगहबान था अपनी आँखें उठाकर निगाह की और क्या देखा कि बहुत से लोग उसके पीछे की तरफ़ से पहाड़ के किनारे के रास्ते से चले आ रहे हैं|35तब यूनदब ने बादशाह से कहा कि "देख शहज़ादे आ गए जैसा तेरे ख़ादिम ने कहा ~था वैसा ही है|"36उसने अपनी बात ख़त्म ही की थी कि शहज़ादे आ पहुँचे और ज़ोर ज़ोर से रोने लगे और बादशाह और उसके सब मुलाज़िम भी ज़ोर ज़ोर से रोए|37लेकिन अबीसलोम भाग कर जसूर के बादशाह 'अम्मीहूद के बेटे तल्मी के पास चला गया और दाऊद हर रोज़ अपने बेटे के लिए मातम करता रहा|38इसलिए अबीसलोम भाग कर जसूर को गया और तीन बरस तक वहीं रहा|39और दाऊद बादशाह के दिल में अबीसलोम के पास जाने की बड़ी आरज़ू थी क्यूँकि अमनून की तरफ़ से उसे तसल्ली हो गई थी इसलिए कि वह मर चुका था
1और ज़रोयाह के बेटे योआब ने जान लिया कि बादशाह का दिल अबीसलोम की तरफ़ लगा है|2तब योआब ने तक़ू'अ को आदमी भेज कर वहाँ से एक 'अक़्लमन्द 'औरत बुलवाई और उससे कहा कि "ज़रा सोग वाली सा भेस करके मातम के कपड़े पहन ले, और तेल न लगा बल्कि ऐसी 'औरत की तरह बन जा, जो बड़ी मुद्दत से मुर्दा के लिए मातम कर रही हो|3और बादशाह के पास जाकर उससे इस इस तरह कहना| फिर योआब ने जो बातें कहनी थीं सिखायीं|4और जब तक़ू'अ ~की वह 'औरत बादशाह से बातें करने लगी, तो ज़मीन पर औंधे मुँह होकर गिरी और सिज्दा करके कहा, "ऐ बादशाह तेरी दुहाई है!|"5बादशाह ने उससे कहा, "तुझे क्या हुआ?" उसने कहा, "मैं सच मुच एक बेवा हूँ और मेरा शौहर मर गया है|6तेरी लौंडी के दो बेटे थे, वह दोनों मैदान पर आपस में मार पीट करने लगे, और कोई न था जो उनको छुड़ा देता, इसलिए एक ने दूसरे को ऐसी मार लगाई कि उसे मार डाला|7और अब देख कि सब कुम्बे का कुम्बा तेरी लौंडी के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है, और वह कहते हैं, कि उसको जिसने अपने भाई को मारा हमारे हवाले कर ताकि हम उसको उसके भाई की जान के बदले, जिसे उसने मार डाला क़त्ल करें, और यूँ वारिस को भी हलाक कर दें, इस तरह वह मेरे अंगारे को जो बाक़ी रहा है बुझा देंगे, और मेरे शौहर का न तो नाम न बक़िया रू-ए-ज़मीन पर छोड़ेंगे|"8बादशाह ने उस 'औरत से कहा, "तू अपने घर जा और मैं तेरे बारे में हुक्म करूँगा|"9तक़ू'अ की उस 'औरत ने बादशाह से कहा, "ऐ मेरे मालिक !ऐ बादशाह! सारा गुनाह मुझ पर और मेरे बाप के घराने पर हुआ और बादशाह और उसका तख़्त बे गुनाह रहे|"10तब बादशाह ने फ़रमाया, "जो कोई तुझसे कुछ कहे उसे मेरे पास ले आना और फिर वह तुझको छूने नहीं पायेगा|"11तब उसने कहा कि "मैं 'अर्ज़ करती हूँ कि बादशाह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को याद करे, कि ख़ून का बदला लेने~वाला और हलाक ~न करने पाए, ऐसा न हो कि वह मेरे बेटे को हलाक कर दें" उसने जवाब दिया, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम तेरे बेटे का एक बाल भी ज़मीन पर नहीं गिरने पायेगा|"12तब उस 'औरत ने कहा, "ज़रा मेरे मालिक बादशाह से तेरी लौंडी एक बात कहे ? "13उसने जवाब दिया,"कह" तब उस 'औरत ने कहा कि "तूने ख़ुदा के लोगों के ख़िलाफ़ ऐसी तदबीर क्यों निकाली है?क्यूँकि बादशाह इस बात के कहने से मुजरिम सा ठहरता है, इसलिए कि बादशाह अपने जिला वतन को फिर घर लौटा कर नहीं आता|14क्यूँकि हम सबको मरना है, और हम ज़मीन पर गिरे हुए पानी कि तरह हो जाते हैं जो फिर जमा' नहीं हो सकता, और ख़ुदा किसी की जान नहीं लेता बल्कि ऐसे ज़रिए' निकालता है, कि जिला वतन उसके यहाँ से निकाला हुआ न रहे|15और मैं जो अपने मालिक से यह बात कहने आई हूँ, तो इसकी वजह यह है कि लोगों ने मुझे डरा दिया था, इसलिए तेरी लौंडी ने कहा कि मैं ख़ुद बादशाह से दरख़्वास्त ~करूँगी, शायद बादशाह अपनी लौंडी की गुज़ारिश~पूरी करे|16क्यूँकि बादशाह सुनकर ज़रूर अपनी लौंडी को उस शख़्स के हाथ से छुड़ाएगा, जो मुझे और मेरे बेटे दोनों को ख़ुदा की मीरास में से मिटा ~डालना चाहता है|17इसलिए तेरी लौंडी ने कहा कि मेरे मालिक बादशाह की बात तसल्ली बख़्स हो, क्यूँकि मेरा मालिक बादशाह नेकी और गुनाह के फ़र्क ~करने में ख़ुदा के फ़रिश्ता की तरह है, इसलिए ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे साथ हो|"18तब बादशाह ने उस 'औरत से कहा, "मैं तुझसे जो कुछ पूछूँ तो उसको ज़रा भी मुझसे मत छिपाना| उस 'औरत ने कहा, "मेरा मालिक बादशाह फ़रमाए|"19बादशाह ने कहा, "क्या इस सारे मु'आमले में योआब का हाथ तेरे साथ है ?" उस 'औरत ने जवाब दिया, "तेरी जान की क़सम ऐ मेरे मालिक बादशाह कोई इन बातों से जो मेरे मालिक बादशाह ने फ़रमाई हैं दहनी याँ बायीं तरफ़ नहीं मुड़ सकता क्यूँकि तेरे ख़ादिम योआब ही ने मुझे हुक्म दिया और उसी ने यह सब बातें तेरी लौंडी को सिखायीं|20और तेरे ख़ादिम योआब ने यह काम इसलिए किया ताकि उस मज़मून के रंग ही को पलट दे और मेरा मालिक 'अक़्लमन्द है, जिस तरह ख़ुदा के फ़रिश्ता में समझ होती है कि दुनिया की सब बातों को जान ले|"21तब बादशाह ने योआब से कहा, "देख, मैंने यह बात मान ली इसलिए तू जा और उस जवान अबीसलोम को फिर ले आ|"22तब यूआब ज़मीन पर औंधे होकर गिरा और सज्दा किया और बादशाह को मुबारक बाद दी और योआब कहने लगा, "आज तेरे बन्दा को यक़ीन हुआ ऐ मेरे मालिक बादशाह मुझ पर तेरे करम की नज़र है इसलिए कि बादशाह ने अपने ख़ादिम की गुज़ारिश पूरी की|"23फिर योआब उठा, और जसूर को गया और अबीसलोम को यरुशलीम में ले आया|24तब बादशाह ने फ़रमाया, "वह अपने घर जाए और मेरा मुँह न देखे|" तब अबीसलोम अपने घर गया और वह बादशाह का मुँह देखने न पाया|25और सारे इस्राईल में कोई शख़्स अबी सलोम की तरह उसके हुस्न की वजह से ता'रीफ़ के क़ाबिल न था क्यूँकि उसके पाँव के तलवे से सर के चाँद तक उसमें कोई ऐब न था|26जब वह अपना सिर मुंडवाता था क्यूँकि हर साल के आख़िर में वह उसे मुंडवाता था इसलिए कि उसके बाल घने थे, इसलिए वह उनको मुंडवाता था तो अपने सिर के बाल वज़न में शाही तौल के मुताबिक़ दो सौ मिस्क़ाल के बराबर पाता था|27और अबीसलोम से तीन बेटे पैदा हुए और एक बेटी जिसका नाम तमर था वह बहुत ख़ूबसूरत 'औरत थी|28और अबीसलोम पूरे दो बरस यरुशलीम में रहा और बादशाह का मुँह न देखा|29तब अबीसलोम ने योआब को बुलवाया ताकि उसे बादशाह के पास भेजे, लेकिन उसने उसके पास आने से इन्कार किया, और उसने दोबारह बुलवाया लेकिन वह न आया|30तब उसने अपने मुलाज़िमों से कहा, "देखो योआब का खेत मेरे खेत से लगा है और उसमें जौ हैं इसलिए जाकर उसमें आग लगा दो|" और अबीसलोम के मुलाज़िमों ने उस खेत में आग लगा दी|31तब योआब उठा और अबीसलोम के पास उसके घर जाकर उससे कहने लगा, "तेरे ख़ादिमों ने मेरे खेत में आग क्यों लगा दी ?|"32अबीसलोम ने योआब को जवाब दिया कि "देख मैंने तुझे कहला भेजा कि यहाँ आ ताकि मैं तुझे बादशाह के पास यह कहने को भेजूँ, कि मैं जसूर से यहाँ क्यों आया? मेरे लिए वहीँ रहना बेहतर होता, इसलिए बादशाह अब मुझे अपना दीदार दे और अगर मुझमें कोई बुराई हो तो मुझे मार डाले|"33तब योआब ने बादशाह के पास जाकर उसे यह पैग़ाम दिया और जब उसने अबीसलोम को बुलवाया तब वह बादशाह के पास आया और बादशाह के आगे ज़मीन पर सर झुका दिया, और बादशाह ने अबीसलोम को बोसा दिया|
1इसके बा'द ऐसा हुआ कि अबीसलोम ने अपने लिए एक रथ और घोड़े और पचास आदमी तैयार किए, जो उसके आगे आगे दौड़ें|2और अबीसलोम सवेरे उठकर फाटक के रास्ता के बराबर खड़ा हो जाता और जब कोई ऐसा आदमी आता जिसका मुक़द्दमा फ़ैसला के लिए बादशाह के पास जाने को होता, तो अबीसलोम उसे बुलाकर पूछता था कि "तू किस शहर का है?" और वह कहता कि "तेरा ख़ादिम इस्राईल के फ़लाँ क़बीले का है?|"3फिर अबीसलोम उससे कहता,"देख तेरी बातें तो ठीक और सच्ची हैं लेकिन कोई बादशाह की तरफ़ से मुक़र्रर नहीं है जो तेरी सुने|"4और अबीसलोम यह भी कहा करता था कि "काश मैं मुल्क का क़ाज़ी बनाया गया होता तो हर शख़्स जिसका कोई मुक़द्दमा या दा'वा होता मेरे पास आता और मैं उसका इन्साफ़ करता|"5और जब कोई अबीसलोम के नज़दीक आता था कि उसे सज्दा करे तो वह हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लेता और उसको बोसा देता था|6और अबीसलोम सब इस्राईलियों से जो बादशाह के पास फ़ैसला के लिए आते थे, इसी तरह पेश आता था|यूँ अबी सलोम ने इस्राईल के दिल जीत लिए|7और चालीस बरस के बा'द यूँ हुआ कि अबीसलोम ने बादशाह से कहा, "मुझे ज़रा जाने दे कि मैं अपनी मिन्नत जो मैंने ख़ुदावन्द के लिए मानी है हब्रून में पूरी करूँ|8क्यूँकि जब मैं अराम के जसूर में था तो तेरे ख़ादिम ने यह मिन्नत मानी थी कि अगर ख़ुदावन्द मुझे फिर यरुशलीम में सच मुच पहुँचा दे, तो मैं ख़ुदावन्द की 'इबादत करूँगा|"9बादशाह ने उससे कहा कि "सलामत जा|" इसलिए वह उठा और हब्रून को गया|10और अबीसलोम ने बनी इस्राईल के सब क़बीलों में जासूस भेजकर ऐलान करा दिया कि जैसे ही तुम नरसिंगे की आवाज़ सुनो तो बोल उठना कि "अबीसलोम हब्रून में बादशाह ~हो गया है|"11और अबीसलोम के साथ यरुशलीम से दो सौ आदमी जिनको दा'वत दी गई थी गये थे वह सादा दिली से गये थे और उनको किसी बात की ~ख़बर नहीं थी|12और अबीसलोम ने कुर्बानियाँ अदा करते वक़्त जिलोनी अख़ीतुफ्फ़ल को जो दाऊद का सलाहकार था, उसके शहर जल्वा से बुलवाया, यह बड़ी भारी साज़िश थी और अबीसलोम के पास लोग बराबर बढ़ते ही जाते थे|13और एक क़ासिद ने आकर दाऊद को ख़बर दी कि "बनी इस्राईल के दिल अबी सलोम की तरफ़ हैं|"14और दाऊद ने अपने सब मुलाज़िमों से जो यरुशलीम में उसके साथ थे कहा, "उठो भाग चलें नहीं तो हममें से एक भी अबीसलोम से नहीं बचेगा चलने की जल्दी न करो ऐसा न हो कि वह हम को झट आले और हम पर आफ़त लाये और शहर को तहस नहस ~करे|"15बादशाह के ख़ादिमों ने बादशाह से कहा, "देख तेरे ख़ादिम जो कुछ हमारा मालिक बादशाह चाहे उसे करने को तैयार हैं|"16तब बादशाह निकला और उसका सारा घराना उसके पीछे चला और बादशाह ने दस 'औरतें जो बाँदी ~थीं घर की निगहबानी के लिए पीछे छोड़ दीं|17और बादशाह निकला और सब लोग उसके पीछे चले और वह बैत मिर्हाक़ में ठहर गये|18और उसके सब ख़ादिम उसके बराबर से होते हुए आगे गए और सब करैती और सब फ़लैती और सब जाती या'नी वह छ:सौ आदमी जो जात से उसके साथ आए थे बादशाह के सामने आगे चले|19तब बादशाह ने जाती इती से कहा, "तू हमारे साथ क्यों चलता है? तू लौट जा और बादशाह के साथ रह क्यूँकि तू परदेसी और जिला वतन भी है, इसलिए अपनी जगह को लौट जा|20तू कल ही तो आया है, तो क्या आज मैं तुझे अपने साथ इधर उधर फिराऊँ? जिस ~हाल कि मुझे जिधर जा सकता हूँ जाना है ?इसलिए तू लौट जा और अपने भाइयों को साथ लेता जा, रहमत और सच्चाई तेरे साथ हों|"21तब इती ने बादशाह को जवाब दिया, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और मेरे मालिक बादशाह की जान की क़सम जहाँ कहीं मेरा मालिक बादशाह चाहे मरते चाहे जीते होगा, वहीं ज़रूर तेरा ख़ादिम भी होगा|"22तब दाऊद ने इती से कहा, "चल पार जा|" और जाती इती और उसके सब लोग और सब नन्हे बच्चे जो उसके साथ थे पार गये|23और सारा मुल्क ऊँची आवाज़ से रोया और सब लोग पार हो गये, और बादशाह ख़ुद नहर क़िद्रोन के पार हुआ,और सब लोगों ने पार हो कर जंगल की राह ली|24और सदूक़ भी और उसके साथ सब लावी ख़ुदा के 'अहद का संदूक़ लिए हुए आए और उन्होंने ख़ुदा के संदूक़ को रख दिया, और अबियातर ऊपर चढ़ गया और जब तक सब लोग शहर से निकल न आए वहीं रहा|25तब बादशाह ने सदूक़ से कहा कि "ख़ुदा का संदूक़ शहर को वापस ले जा, तब अगर ख़ुदावन्द के करम की नज़र मुझ पर होगी तो वह मुझे फिर ले आएगा, और उसे और अपने घर को मुझे फिर दिखाएगा|26लेकिन अगर वह यूँ फ़रमाए, कि मैं तुझसे ख़ुश नहीं, तो देख मैं हाज़िर हूँ जो कुछ उसको अच्छा मा'लूम हो मेरे साथ करे|"27और बादशाह ने सदूक़ काहिन से यह भी कहा, "क्या तू ग़ैब बीन नहीं? शहर को सलामत लौट जा और तुम्हारे साथ तुम्हारे दोनों बेटे हों, अख़ीमा'ज़ जो तेरा बेटा है और यूनतन जो अबियातर का बेटा है|28और देख, मैं उस जंगल के घाटों के पास ठहरा रहूँगा जब तक तुम्हारे पास से मुझे हक़ीक़त हाल की ख़बर न मिले|"29इसलिए सदूक़ और अबियातर ख़ुदा का संदूक़ यरुशलीम को वापस ले गये और वहीं रहे|30और दाऊद कोह-ए-ज़ैतून की चढ़ाई पर चढ़ने लगा और रोता जा रहा था, उसका सिर ढका था और वह नंगे पाँव चल रहा था, और वह सब लोग जो उसके साथ थे उनमें से हर एक ने अपना सिर ढाँक रख्खा था, वह ऊपर चढ़ते जाते थे और रोते जाते थे|31और किसी ने दाऊद को बताया कि "अख़ीतुफ़्फ़ल भी फ़सादियों में शामिल और अबी सलोम के साथ है|" तब दाऊद ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द! मैं तुझसे मिन्नत करता हूँ कि अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह को बेवक़ूफ़ी से बदल दे|"32जब दाऊद चोटी पर पहुँचा जहाँ ख़ुदा को सज्दा किया करते थे, तो अरकी हूसी अपनी चोग़ा फाड़े और सिर पर ख़ाक डाले उसके इस्तक़बाल को आया|33और दाऊद ने उससे कहा, "अगर तू मेरे साथ जाए तो मुझ पर बोझ होगा|34लेकिन अगर तू शहर को लौट जाए और अबी सलोम से कहे कि, ऐ बादशाह मैं तेरा ख़ादिम हूँगा जैसे गुज़रे ज़माना में तेरे बाप का ख़ादिम रहा वैसे ही अब तेरा ख़ादिम हूँ तो तू मेरी ख़ातिर अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह को रद कर देगा35और क्या वहाँ तेरे साथ सदूक़ और अबियातर काहिन न होंगे? इसलिए जो कुछ तू बादशाह के घर से सुने उसे सदूक़ और अबियातर काहिनों को बता देना|36देख वहाँ उनके साथ उनके दोनों बेटे हैं या'नी सदूक़ का बेटा अख़ीमा'ज़ और अबियातर का बेटा यूनतन इसलिए जो कुछ तुम सुनो, उसे उनके ज़रिए' मुझे कहला भेजना|"37इसलिए दाऊद का दोस्त हूसी शहर में आया और अबीसलोम भी यरुशलीम में पहुँच गया|
1और जब दाऊद चोटी से आगे बढ़ा तो मिफ़ीबोसत का ख़ादिम ज़ीबा दो गधे लिए हुए उसे मिला, जिन पर जीन कसे थे और उनके ऊपर दो सौ रोटियाँ और किशमिश के सौ गुच्छे और ताबिस्तानी मेवों के सौ दाने और मय का एक मश्कीज़ा था|2और बादशाह ने ज़ीबा से कहा, "इन से तेरा क्या मतलब है?" ज़ीबा ने कहा, "यह गधे बादशाह के घराने की सवारी के लिए और रोटियाँ और गर्मी के फल जवानों के खाने के लिए हैं और यह शराब इसलिए है कि जो बयाबान में थक जायें उसे पियें|"3और बादशाह ने पूछा, "तेरे आक़ा का बेटा कहाँ है ?" ज़ीबा ने बादशाह से कहा, "देख वह यरुशलीम में रह गया है क्यूँकि उसने कहा आज इस्राईल का घराना मेरे बाप की बादशाहत मुझे लौटा देगा|"4तब बादशाह ने ज़ीबा से कहा, "देख! जो कुछ मिफ़ीबोसत का है वह सब तेरा हो गया|तब ज़ीबा ने कहा, "मैं सिज्दा करता हूँ ऐ मेरे मालिक बादशाह तेरे करम की नज़र मुझ पर रहे !"5जब दाऊद बादशाह बहूरेम पहुँचा तो वहाँ से साऊल के घर के लोगों में से एक शख़्स जिसका नाम सिम'ई बिन जीरा था निकला और ला'नत करता हुआ आया|6और उसने दाऊद पर और दाऊद बादशाह के सब ख़ादिमों पर पत्थर फेंके और सब लोग और सब सूरमा उसके दहने और बायें हाथ थे|7और सिम'ई ला'नत करते वक़्त यूँ कहता था, "दूर हो! दूर हो !ऐ ख़ूनी आदमी ऐ ख़बीस !|8ख़ुदावन्द ने साऊल के घराने के सब ख़ून को जिसके बदले तू बादशाह हुआ तेरे ही ऊपर लौटाया, और ख़ुदावन्द बादशाहत तेरे बेटे अबीसलोम के हाथ में दे दी, है और देख तू अपनी ही बुराई में ख़ुद आप फंस गया है इसलिए कि तू ख़ूनी आदमी है|"9तब ज़रोयाह के बेटे अबीशे ने बादशाह से कहा, "यह मरा हुआ कुत्ता मेरे मालिक बादशाह पर क्यूँ ला'नत करे? मुझको ज़रा उधर जाने दे कि उसका सिर उड़ा दूँ|"10बादशाह ने कहा, "ऐ ज़रोयाह के बेटो ! मुझे तुमसे क्या काम? वह जो ला'नत कर रहा है, और ख़ुदावन्द ने उससे कहा है कि दाऊद पर ला'नत कर इसलिए कौन कह सकता है कि तूने क्यों ऐसा किया?|"11और दाऊद ने अबीशे से और अपने सब ख़ादिमों से कहा, "देखो मेरा बेटा ही जो मेरे सुल्ब से पैदा हुआ मेरी जान का तालिब है तब अब यह बिनयमीनी कितना ज़्यादा ऐसा न करे ? उसे छोड़ दो और ला'नत करने दो क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया है12शायद ख़ुदावन्द उस ज़ुल्म पर जो मेरे ऊपर हुआ है, नज़र करे और ख़ुदावन्द आज के दिन उसकी ला'नत के बदले मुझे नेक बदला दे|"13तब दाऊद और उसके लोग रास्ता चलते रहे और सिम'ई उसके सामने के पहाड़ के किनारे पर चलता रहा और चलते चलते ला'नत करता और उसकी तरफ़ पत्थर फेंकता और ख़ाक डालता रहा|14और बादशाह और उसके सब साथी थके हुए आए और वहाँ उसने आराम किया|15और अबीसलोम और सब इस्राईली मर्द यरुशलीम में आए और अख़ीतुफ़्फ़ल उसके साथ था|16और ऐसा हुआ कि जब दाऊद का दोस्त अरकी हूसी अबीसलोम के पास आया तो हूसी ने~अबीसलोम से कहा, "बादशाह जीता रहे !बादशाह जीता रहे !|"17और अबीसलोम ने हूसी से कहा, "क्या तूने अपने दोस्त पर यही महेरबानी की ? तू अपने दोस्त के साथ क्यों न गया?|"18हूसी ने अबीसलोम से कहा, "नहीं बल्कि जिसको ख़ुदावन्द ने और इस क़ौम ने और इस्राईल के सब आदमियों ने चुन लिया है मैं उसी का हूँगा और उसी के साथ रहूँगा|19और फिर मैं किसकी ख़िदमत करूँ? क्या मैं उसके बेटे के सामने रह कर ख़िदमत न करूँ? जैसे मैंने तेरे बाप के सामने रहकर की वैसे ही तेरे सामने रहूँगा|"20तब अबीसलोम ने अख़ीतुफ़्फ़ल से कहा, "तुम सलाह दो कि हम क्या करें|"21तब अख़ीतुफ़्फ़ल ने अबीसलोम से कहा कि "अपने बाप की बाँदियों ~के पास जा जिनको वह घर की निगह बानी को छोड़ गया है, इसलिए कि जब इस्राईली सुनेंगे कि तेरे बाप को तुझ से नफ़रत है, तो उन सबके हाथ जो तेरे साथ हैं ताक़तवर हो जायेंगे|"22फिर उन्होंने महल की छत पर अबीसलोम के लिए एक तम्बू खड़ा कर दिया और अबी सलोम सब इस्राईल के सामने अपने बाप की बाँदियों के पास गया|23और अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह जो इन दिनों होती वह ऐसी समझी जाती थी, कि गोया ख़ुदा के कलाम से आदमी ने बात पूछ ली, यूँ अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह दाऊद और अबी सलोम की ख़िदमत में ऐसी ही होती थी|
1और अख़ीतुफ़्फ़ल ने अबीसलोम से यह भी कहा कि "मुझे अभी बारह हज़ार जवान चुन लेने दे और मैं उठकर आज ही रात को दाऊद का पीछा करूँगा|2और ऐसे हाल में कि वह थका माँदा हो और उसके हाथ ढीले हों, मैं उस पर जा पडूँगा और उसे डराऊँगा, और सब लोग जो उसके साथ हैं भाग जायेंगे, और मैं सिर्फ़ बादशाह को मारूँगा|3और मैं सब लोगों को तेरे पास लौटा लाऊँगा, जिस आदमी का तू तालिब है वह ऐसा है कि जैसे सब लौट आए, यूँ सब लोग सलामत रहेंगे|4यह बात अबीसलोम को और इस्राईल के सब बुज़ुर्गों को बहुत अच्छी लगी|"5और अबीसलोम ने कहा, "अब अरकी हूसी को भी बुलाओ और जो वह कहे हम उसे भी सुनें|6जब हूसी अबीसलोम के पास आया तो अबीसलोम ने उससे कहा कि, "अख़ीतुफ़्फ़ल ने तो यह यह कहा है, क्या हम उसके कहने के मुताबिक़ 'अमल करें? अगर नहीं तो तू बता|"7हूसी ने अबीसलोम से कहा कि, "वह सलाह जो अख़ीतुफ़्फ़ल ने इस बार दी है अच्छी नहीं|"8~इसके 'अलावा हूसी ने यह भी कहा कि, "तू अपने बाप को और उसके आदमियों को जानता है कि वह बहादुर लोग हैं, और वह अपने दिल ही दिल में उस रीछनी की तरह, जिसके बच्चे जंगल में छिन गये हों झल्ला रहे होंगे और तेरा बाप जंगी मर्द है, और वह लोगों के साथ नहीं ठहरेगा9और देख अब तो वह किसी ग़ार में या किसी दूसरी जगह छिपा हुआ होगा|और जब शुरू' ही में थोड़े से क़त्ल हों जायेंगे, तो जो कोई सुनेगा यही कहेगा, कि अबीसलोम के पैरोकार के बीच तो ख़ूँरेज़ी शुरू' है|10तब वह भी जो बहादुर है और जिसका दिल शेर के दिल की तरह है बिल्कुल पिघल जाएगा क्यूँकि सारा इस्राईल जानता है कि तेरा बाप बहादुर आदमी है और उसके साथ के लोग सूरमा हैं|11तो मैं यह सलाह देता हूँ कि दान से बेर सबा' तक के सब इस्राईली समुन्दर के किनारे की रेत की तरह तेरे पास कसरत से इकट्ठे किए जायें और तू आप ही लड़ाई पर जा|12यूँ हम किसी न किसी जगह जहाँ वह मिले उस पर जा ही पड़ेंगे और हम उस पर ऐसे गिरेंगे जैसे शबनम ज़मीन पर गिरती है, फिर न तो हम उसे और न उसके साथ के सब आदमियों में से किसी को जीता छोड़ेंगे|13~इसके 'अलावा अगर वह किसी शहर में घुसा हुआ होगा तो सब इस्राईली उस शहर के पास रस्सियाँ ले आयेंगे और हम उसको खींचकर दरया में कर देंगे यहाँ तक कि उसका एक छोटा सा पत्थर भी वहाँ नहीं मिलेगा|"14तब अबी सलोम और सब इस्राईली कहने लगे कि "यह सलाह जो अरकी हूसी ने दी है अख़ीतुफ़्फ़ल की सलाह से अच्छी है|" क्यूँकि यह तो ख़ुदावन्द ही ने ठहरा दिया था कि अख़ीतुफ़्फ़ल की अच्छी सलाह बातिल हो जाए ताकि ख़ुदावन्द अबीसलोम पर बला नाज़िल करे|15तब हूसी ने सदूक़ और अबियातर काहिनों से कहा कि "अख़ीतुफ़्फ़ल ने अबीसलोम को और बनी इस्राईल के बुज़ुर्गों को ऐसी ऐसी सलाह दी और मैंने ~यह सलाह दी|16इसलिए अब जल्द दाऊद के पास कहला भेजो कि आज रात को जंगल के घाटों पर न ठहर बल्कि जिस तरह हो सके पार उतर जा ताकि ऐसा न हो कि बादशाह और सब लोग जो उसके साथ हैं निगल लिए जायें|"17और यूनतन और अख़ीमा'ज़ 'ऐन राजिल के पास ठहरे थे और एक लौंडी जाती और उनको ख़बर दे आती थी और वह जाकर दाऊद को बता देते थे क्यूँकि मुनासिब न था कि वह शहर में आते दिखाई देते|18लेकिन एक लड़के ने उनको देख लिया और अबीसलोम को ख़बर दी लेकिन वह दोनों जल्दी करके निकल गये और बहूरीम में एक शख़्स के घर गये जिसके सहन में एक कुआँ था इसलिए वह उसमें उतर गये|19और उस 'औरत ने पर्दा ले कर कुवें के मुहँ पर बिछाया और उस पर दला हुआ अनाज फैला दिया और कुछ मा'लूम नहीं होता था|20और अबीसलोम के ख़ादिम उस घर पर उस 'औरत के पास आए और पूछा कि "अख़ीमा'ज़ और यूनतन कहाँ हैं ?" उस 'औरत ने उनसे कहा, "वह नाले के पार गये|" और जब उन्होंने उनको ढूंडा और न पाया तो यरुशलीम को लौट गये|21और ऐसा हुआ कि जब यह चले गये तो वह कुवें से निकले और जाकर दाऊद बादशाह को ख़बर दी और वह दाऊद से कहने लगे, कि "उठो और दरया पार हो जाओ क्यूँकि अख़ीतुफ़्फ़ल ने तुम्हारे ख़िलाफ़ ऎसी ऐसी सलाह दी है|"22तब दाऊद और सब लोग जो उसके साथ थे उठे और यर्दन के पार गये,और सुबह की रोशनी तक उनमें से एक भी ऐसा न था जो यर्दन के पार न हो गया हो|23जब अख़ीतुफ़्फ़ल ने देखा कि उसकी सलाह पर 'अमल नहीं किया गया तो उसने अपने गधे पर ज़ीन कसा और उठ कर अपने शहर को अपने घर गया और अपने घराने का बन्दोबस्त करके अपने को फाँसी दी और मर गया और अपने बाप की क़ब्र में दफ़न हुआ|24तब दाऊद महनायम में आया और अबीसलोम और सब इस्राईली जवान जो उसके साथ थे यर्दन के पार हुए|25और अबीसलोम ने योआब के बदले 'अमासा को लश्कर का सरदार किया, यह 'अमासा एक इस्राईली आदमी का बेटा था जिसका नाम इतरा था उसने नाहस की बेटी अबीजेल से जो योआब की माँ ज़रोयाह की बहन थी सोहबत की थी|26और इस्राईली और अबीसलोम जिल'आद के मुल्क में ख़ेमा ज़न हुए|27और जब दाऊद महनायम में पहुँचा तो ऐसा हुआ कि नाहस का बेटा सोबी, बनी अम्मोन के रब्बा से और अम्मी ऐल का बेटा मकीर लूदबार से और बरज़िली जिल'आदी राजिलीम से|28पलंग और चार पाइयाँ और बासन और मिट्टी के बर्तन और गेहूँ और जौ और आटा और भुना हुआ अनाज और लोबिये की फलियाँ और मसूर और भुना हुआ चबेना|29और शहद और मख्खन और भेड़ और गाय के दूध का पनीर दाऊद के और उसके साथ के लोगों के खाने के लिए लाये क्यूँकि उन्होंने कहा कि "लोग बयाबान में भूके और थके और प्यासे हैं|"
1और दाऊद ने उन ~लोगों को जो उसके साथ थे गिना और हज़ारों के और सैकड़ों के सरदार मुक़र्रर किए|2और दाऊद ने लोगों की एक तिहाई योआब के मातहत और एक तिहाई योआब के भाई अबीशे बिन ज़रोयाह के मातहत और तिहाई जाती इत्ती के मातहत करके उनको रवाना किया और बादशाह ने लोगों से कहा कि "मैं ख़ुद भी ज़रूर तुम्हारे साथ चलूँगा|"3लेकिन लोगों ने कहा कि "तू नहीं जाने पायेगा क्यूँकि हम अगर भागें तो उनको कुछ हमारी परवा न होगी और अगर हम में से आधे मारे जायें तो भी उनको कुछ परवा न होगी लेकिन तू हम जैसे दस हज़ार के बराबर है इसलिए बेहतर यह है कि तू शहर में से हमारी मदद करने को तैयार रहे|"4बादशाह ने उनसे कहा, "जो तुमको बेहतर मा'लूम होता है मैं वही करूँगा|" ~इसलिए बादशाह शहर के फाटक की एक तरफ़ खड़ा रहा और सब लोग सौ सौ और हज़ार हज़ार करके निकलने लगे|5और बादशाह ने योआब और अबीशे और इती को फ़रमाया कि "मेरी ख़ातिर उस जवान अबीसलोम के साथ नरमी से पेश आना|" जब बादशाह ने सब सरदारों को अबीसलोम के हक़ में नसीहत की तो सब लोगों ने सुना|6इसलिए वह लोग निकल कर मैदान में इस्राईल के मुक़ाबिले को गये और इफ़्राईम के जंगल में हुई|7और वहाँ इस्राईल के लोगों ने दाऊद के ख़ादिमों से शिकस्त खाई और उस दिन ऐसी बड़ी खूँरेज़ी हुई कि बीस हज़ार आदमी मारे गए|8इसलिए कि उस दिन सारी बादशाहत में जंग थी और लोग इतने तलवार का लुक़मा नहीं बने जितने बन का शिकार हुए|9और अचानक अबीसलोम दौड़ के ख़ादिमों के सामने आ गया और अबीसलोम अपने खच्चर पर सवार था और वह खच्चर एक बड़े बलूत के दरख़्त की घनी डालियों के नीचे से गया, इसलिए उसका सिर बलूत में अटक गया और वह आसमान और ज़मीन के बीच में लटका रह गया और वह खच्चर जो उसके रान तले था निकल गया|10किसी शख़्स ने यह देखा और योआब को ख़बर दी कि "मैंने अबीसलोम को बलूत के दरख्त़ में लटका हुआ देखा|"11और योआब ने उस शख़्स से जिसने उसे ख़बर दी थी कहा, "तूने यह देखा फिर क्यों नहीं तूने उसे मार कर वहीं ज़मीन पर गिरा दिया? क्यूँकि मैं तुझे चाँदी के दस टुकड़े और कमर बंद देता|"12उस शख़्स ने योआब से कहा कि "अगर मुझे चाँदी के हज़ार टुकड़े भी मेरे हाथ में मिलते तो भी मैं बादशाह के बेटे पर हाथ न उठाता क्यूँकि बादशाह ने हमारे सुनते तुझे और अबीशे और इती को नसीहत की थी कि ख़बरदार कोई उस जवान अबीसलोम को न छुए|13वरना अगर मैं उसकी जान के साथ दग़ा खेलता और बादशाह से तो कोई बात छुपी भी नहीं तो तू ख़ुद भी किनारा कर लेता|"14तब योआब ने कहा, "मैं तेरे साथ यूँ ही ठहरा नहीं रह सकता|" फिर उसने तीन तीर हाथ में लिए और उनसे अबी सलोम के दिल को जो अभी बलूत के दरख्त़ के बीच ज़िन्दा ही था छेद डाला|15और दस जवानों ने जो योआब के सलह बरदार थे अबी सलोम को घेर कर उसे मारा और क़त्ल कर दिया|16तब योआब ने नरसिंगा फूँका और लोग इस्राईलियों का पीछा करने से लौटे क्यूँकि योआब ने लोगों को रोक लिया|17और उन्होंने अबीसलोम को लेकर बन के उस बड़े गढ़े में डाल दिया और उस पर पत्थरों का एक बहुत बड़ा ढेर लगा दिया और सब इस्राईली अपने अपने डेरे को भाग गये|18और अबीसलोम ने अपने जीते जी एक लाट लेकर खड़ी कराई थी जो शाही वादी में है क्यूँकि उसने कहा, "मेरे कोई बेटा नहीं जिससे मेरे नाम की यादगार रहे इसलिए उसने उस लाट को अपना नाम दिया|" और वह आज तक अबी सलोम की यादगार कहलाती है|19तब सदूक़ के बेटे अखीमा'ज़ ने कहा कि "मुझे दौड़ कर बादशाह को ख़बर पहुँचाने दे कि ख़ुदावन्द ने उसके दुश्मनों से उसका बदला ले लिया|"20लेकिन योआब ने उससे कहा कि आज के दिन तू कोई ख़बर न पहुँचा बल्कि दूसरे दिन ख़बर पहुँचा देना लेकिन आज तुझे कोई ख़बर नहीं ले जाना होगा इसलिए बादशाह का बेटा मर गया है|21तब योआब ने कूशी से कहा कि ~जा कर जो कुछ तूने देखा है इसलिए बादशाह को जाकर बता दे| तब वह कूशी योआब को सज्दा करके दौड़ गया|22तब सदूक़ के बेटे अख़ीमा'ज़ ने फिर योआब से कहा, "चाहे कुछ ही हो तू मुझे भी उस कूशी के पीछे दौड़ जाने दे|" ~योआब ने कहा, "ऐ मेरे बेटे तू क्यूँ दौड़ जाना चाहता है जिस हाल कि इस ख़बर के बदले तुझे कोई इन'आम नहीं मिलेगा?"23उसने कहा, "चाहे कुछ ही हो मैं तो जाऊँगा" उसने कहा, "दौड़ जा|" तब अख़ीमा'ज़ मैदान से होकर दौड़ गया और कूशी से आगे बढ़ गया|24और दाऊद दोनों फाटकों के दरमियान बैठा था और पहरे वाला फाटक की छत से होकर दीवार पर गया और क्या देखता है कि एक शख़्स अकेला दौड़ा आता है|25उस पहरे वाले ने पुकार कर बादशाह को ख़बर दी, बादशाह ने फ़रमाया, "अगर वह अकेला है तो मुँह ज़बानी ख़बर लाता होगा|" और वह तेज़ आया और नज़दीक पहुँचा|26और पहरे वाले ने एक और आदमी को देखा कि दौड़ा आता है, तब उस पहरे वाले ने दरबान को पुकार कर कहा कि "देख एक शख़्स और अकेला दौड़ा आता है|" बादशाह ने कहा, वह भी ख़बर लाता होगा|"27और पहरे वाले ने कहा, "मुझे अगले का दौड़ना सदूक़ के बेटे अख़ीमा'ज़ के दौड़ने की तरह मा'लूम देता है|" तब बादशाह ने कहा, "वह भला आदमी है और अच्छी ख़बर लाता होगा|"28और अख़ीमा'ज़ ने पुकार कर बादशाह से कहा, "ख़ैर है!" और बादशाह के आगे ज़मीन पर झुक कर सिज्दा किया और कहा कि "ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मुबारक हो जिसने उन आदमियों को जिन्होंने मेरे मालिक बादशाह के ख़िलाफ़ हाथ उठाये थे क़ाबू में कर दिया है|"29बादशाह ने पूछा क्या वह जवान अबीसलोम सलामत है ?अख़ीमा'ज़ ने कहा कि "जब योआब ने बादशाह के ख़ादिम को या'नी मुझको जो तेरा ख़ादिम हूँ रवाना किया तो मैंने एक बड़ी हलचल तो देखी लेकिन मैं नहीं जानता कि वह क्या थी|"30तब बादशाह ने कहा, "एक तरफ़ हो जा और यहीं खड़ा रह|" इसलिए वह एक तरफ़ होकर चुप चाप खड़ा हो गया|31फिर वह कूशी आया और कूशी ने कहा, "मेरे मालिक बादशाह के लिए ख़बर है क्यूँकि ख़ुदावन्द ने आज के दिन उन सबसे जो तेरे ख़िलाफ़ उठे थे तेरा बदला लिया|"32तब बादशाह ने कूशी से पूछा, "क्या वह जवान अबीसलोम सलामत है ?" कूशी ने जवाब दिया कि "मेरे मालिक बादशाह के दुश्मन और जितने तुझे तकलीफ़ पहुँचाने को तेरे ख़िलाफ़ उठें वह उसी जवान की तरह हो जायें|"33तब बादशाह बहुत बेचैन हो गया और उस कोठरी की तरफ़ जो फाटक के ऊपर थी रोता हुआ चला और चलते चलते यूँ कहता जाता था, "हाय मेरे बेटे अबीसलोम! मेरे बेटे! मेरे बेटे अबीसलोम! काश मैं तेरे बदले मर जाता !ऐ अबी सलोम !मेरे बेटे !मेरे बेटे "|
1और योआब को बताया गया कि "देख बादशाह अबीसलोम के लिए नौहा और मातम कर रहा है|"2इसलिए तमाम लोगों के लिए उस दिन की फ़तह मातम से बदल गई क्यूँकि लोगों ने उस दिन यह कहते सुना कि "बादशाह अपने बेटे के लिए दुखी ~है|"3इसलिए वह लोग उस दिन चोरी से शहर में घुसे जैसे वह लोग जो लड़ाई से भागते हैं शर्म के मारे चोरी चोरी चलते हैं|4और बादशाह ने अपना मुँह ढाँक लिया और बादशाह ऊँची आवाज़ से चिल्लाने लगा कि "हाय मेरे बेटे अबीसलोम! हाय अबी सलोम मेरे बेटे! मेरे बेटे|"5तब योआब घर में बादशाह के पास जाकर कहने लगा कि "तूने आज अपने सब ख़ादिमों को शर्मिन्दा किया, जिन्होंने आज के दिन तेरी जान और तेरे बेटों और तेरी बेटियों की जानें और तेरी बीवियों की जानें और तेरी बाँदियों की जानें बचायीं|6क्यूँकि तू अपने 'अदावत रखने वालों को प्यार करता है, और अपने दोस्तों से 'अदावत रखता है, इसलिए कि तूने आज के दिन ज़ाहिर कर दिया कि सरदार और ख़ादिम तेरे नज़दीक बेक़द्र हैं, क्यूँकि आज के दिन मैं देखता हूँ कि अगर अबी सलोम जीता रहता और हम सब मर जाते, तो तू बहुत ख़ुश होता|7इसलिए उठ बाहर निकल और अपने ख़ादिमों से तसल्ली बख़्श बातें कर क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की क़सम खाता हूँ कि अगर तू बाहर न जाए तो आज रात को एक आदमी भी तेरे साथ न रहेगा और यह तेरे लिए उन सब आफतों से बदतर होगा जो तेरी नौजवानी से लेकर अब तक तुझ पर आई है|"8तब बादशाह उठकर फाटक में जा बैठा और सब लोगों को बताया गया कि देखो बादशाह फाटक में बैठा है, तब सब लोग बादशाह के सामने आए और इस्राईली अपने अपने डेरे को भाग गये थे|9और इस्राईल के क़बीलों के सब लोगों में झगड़ा था और वह कहते थे कि "बादशाह ने हमारे दुश्मनों के हाथ से और फ़िलिस्तियों के हाथ से बचाया और अब वह अबी सलोम के सामने से मुल्क छोड़ कर भाग गया|10और अबी सलोम जिसे हमने मसह करके अपना हाकिम बनाया था, लड़ाई में मर गया है इसलिए तुम अब बादशाह को वापस लाने की बात क्यों नहीं करते ?"11तब दाऊद बादशाह ने सदूक़ और अबियातर काहिनों को कहला भेजा कि "यहूदाह के बुज़ुर्गों से कहो कि तुम बादशाह को उसके महल में पहुँचाने के लिए सबसे पीछे क्यों होते हो जिस हाल कि सारे इस्राईल की बात उसे उसके महल में पहुँचाने के बारे में बादशाह तक पहुँची है|12तुम तो मेरे भाई और मेरी हड्डी हो फिर तुम बादशाह को वापस ले जाने के लिए सबसे पीछे क्यों हो ?|13और 'अमासा से कहना क्या तू मेरी हड्डी और गोश्त नहीं ? इसलिए अगर तू योआब की जगह मेरे सामने हमेशा के लिए लश्कर का सरदार न हो तो ख़ुदा मुझसे ऐसा ही बल्कि इससे भी ज़्यादा करे|"14और उसने सब बनी यहूदाह का दिल एक आदमी के दिल की तरह माएल कर लिया चुनाँचे उन्होंने बादशाह को पैग़ाम भेजा कि "तू अपने सब ख़ादिमों को साथ लेकर लौट आ|"15इसलिए बादशाह लौट कर यर्दन पर आया और सब बनी यहूदाह ज़िल्जाल को गये कि बादशाह का इस्तक़बाल करें और उसे यर्दन के पार ले आयें|16और जीरा के बेटे बिनयमीनी सिम'ई ने जो बहूरीम का था जल्दी की और बनी यहूदाह के साथ दाऊद बादशाह के इस्तक़बाल को आया|17और उसके साथ एक हज़ार बिनयमीनी जवान थे और साऊल के घराने का ख़ादिम ज़ीबा अपने पन्दरह बेटों और बीस नौकरों समेत आया और बादशाह के सामने यर्दन के पार उतरे|18और एक कश्ती पार गई कि बादशाह के घराने को ले आये और जो काम उसे मुनासिब मा'लूम हो उसे करे और ज़ीरा का बेटा सिम'ई बादशाह के सामने जैसे ही वह यर्दन पार हुआ औंधा हो कर गिरा|19और बादशाह से कहने लगा कि मेरा मालिक मेरी तरफ़ गुनाह मंसूब न करे और जिस दिन मेरा मालिक बादशाह यरुशलीम से निकला उस दिन जो कुछ तेरे ख़ादिम ने बद मिज़ाजी से किया उसे ऐसा याद न रख कि बादशाह उसको अपने दिल में रख्खे|20क्यूँकि तेरा बन्दा यह जानता है कि "मैंने गुनाह किया है और देख आज के दिन मैं ही यूसुफ़ के घराने में से पहले आया हूँ कि अपने मालिक बादशाह का इस्तक़बाल करूँ|21और ज़रोयाह के बेटे अबीशे ने जवाब, "दिया क्या सिम'ई इस वजह से मारा न जाए कि उसने ख़ुदावन्द के ममसूह पर ला'नत की ?"22दाऊद ने कहा, "ऐ ज़रोयाह के बेटो !मुझे तुमसे क्या काम कि तुम आज के दिन मेरे मुखालिफ़ हुए हो? क्या इस्राईल में से कोई आदमी आज के दिन क़त्ल किया जाए? क्या मैं यह नहीं जानता कि कि मैं आज के दिन इस्राईल का बादशाह हूँ ?"23और बादशाह ने सिम'ई से कहा, "तू मारा नहीं जाएगा" और बादशाह ने उससे क़सम खाई|24फिर साऊल का बेटा मिफ़ीबोसत बादशाह के इस्तक़बाल को आया, उसने बादशाह के चले जाने के दिन से लेकर उसे सलामत घर आजाने के दिन तक न तो अपने पाँव पर पट्टियाँ बाँधी और न अपनी दाढ़ी कतरवाई और न अपने कपड़े धुलवाए थे|25और ऐसा हुआ कि जब वह यरुशलीम में बादशाह से मिलने आया तो बादशाह ने उससे कहा, "ऐ मिफ़ीबोसत तू मेरे साथ क्यों नहीं गया था ?"26उसने जवाब दिया, "ऐ मेरे मालिक बादशाह मेरे नौकर ने मुझसे दग़ा की क्यूँकि तेरे ख़ादिम ने कहा था कि मैं अपने लिए गधे पर जीन कसूँगा ताकि मैं सवार हो कर बादशाह के साथ जाऊँ इसलिए कि तेरा ख़ादिम लंगड़ा है|27तब उसने मेरे मालिक बादशाह के सामने तेरे ख़ादिम पर ~इल्ज़ाम लगाया, लेकिन मेरा मालिक बादशाह तू ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता की तरह है, इसलिए जो कुछ तुझे अच्छा मा'लूम हो वह कर|28क्यूँकि मेरे बाप का सारा घराना, मेरे मालिक बादशाह के आगे मुर्दों के तरह था तो भी तूने अपने ख़ादिम को उन लोगों के बीच बिठाया जो तेरे दस्तरख़्वान~पर खाते थे तब क्या अब भी मेरा कोई हक़ है कि मैं बादशाह के आगे फिर फ़रयाद करूँ?|29बादशाह ने उनसे कहा,"तू अपनी बातें क्यों बयान करता जाता है? मैं कहता हूँ कि तू और ज़ीबा दोनों उस ज़मीन को आपस में बाँट लो|"30और मिफ़ीबोसत ने बादशाह से कहा, "वही सब ले ले इसलिए कि मेरा मालिक बादशाह अपने घर में फिर सलामत आ गया है|"31और बरज़िली जिल'आदी रजिलीम से आया और बादशाह के साथ यर्दन पार गया ताकि उसे यर्दन के पार पहुँचाये|32और यह बरज़िली बहुत ही 'उम्र दराज़ आदमी या'नी अस्सी बरस का था, उसने बादशाह को जब तक वह मेहनायम में रहा ख़ुराक पहुँचाई थी इसलिए कि वह बहुत बड़ा आदमी था|33तब बादशाह ने बरज़िली से कहा कि "तू मेरे साथ चल और मैं यरुशलीम में अपने साथ तेरी परवरिश करूँगा|"34और बरज़िली ने बादशाह को जवाब दिया कि "मेरी ज़िन्दगी के दिन ही कितने हैं जो मैं बादशाह के साथ यरुशलीम को जाऊँ?35आज मैं अस्सी बरस का हूँ, क्या मैं भले और बुरे में फ़र्क कर सकता हूँ?क्या तेरा बन्दा जो कुछ खाता पीता है उसका मज़ा जान सकता है?क्या मैं गाने वालों और गाने वालियों की फिर आवाज़ सुन सकता हूँ? तब तेरा बन्दा अपने बादशाह पर क्यों बोझ हो?36तेरा बन्दा सिर्फ़ यर्दन के पार तक बादशाह के साथ जाना चाहता है, इसलिए बादशाह मुझे ऐसा बड़ा बदला क्यूँ दे?37अपने बन्दा को लौट जाने दे ताकि मैं अपने शहर में अपने बाप और माँ की क़ब्र के पास मरूँ लेकिन देख तेरा बन्दा किम्हाम हाज़िर है, वह मेरे मालिक बादशाह के साथ पार जाए और जो कुछ तुझे अच्चा मा'लूम दे उससे कर|"38तब बादशाह ने कहा, "किम्हाम मेरे साथ पार चलेगा और जो कुछ तुझे अच्चा मा'लूम हो वही मैं उसके साथ करूँगा और जो कुछ तू चाहेगा मैं तेरे लिए वही करूँगा|"39और सब लोग यर्दन के पार हो गये और बादशाह भी पार हुआ, फिर बादशाह ने बरज़िली को चूमा और उसे दु'आ दी और वह अपनी जगह को लौट गया|40तब बादशाह जिलजाल को रवाना हुआ और किम्हाम उसके साथ चला और यहूदाह के सब लोग और इस्राईल के लोगों में से भी आधे बादशाह को पार लाये|41तब इस्राईल के सब लोग बादशाह के पास आकर उससे कहने लगे कि "हमारे भाई बनी यहूदाह तुझे क्यूँ चोरी से ले आए और बादशाह को और उसके घराने को और दाऊद के साथ जितने थे उनको यर्दन के पार से लाये?"42तब सब बनी यहूदाह ने बनी इस्राईल को जवाब दिया, "इसलिए कि बादशाह का हमारे साथ नज़दीक का रिश्ता है, तब तुम इस बात की वजह से नाराज़ क्यों हुए? क्या हमने बादशाह के दाम का कुछ खा लिया है या उसने हमको कुछ इन'आम दिया है?"43फिर बनी इस्राईल ने बनी यहूदाह को जवाब दिया कि "बादशाह में हमारे दस हिस्से हैं और हमारा हक़ भी दाऊद पर तुम से ज़्यादा है तब तुमने क्यों हमारी हिक़ारत की, कि बादशाह को लौटा लाने में पहले हमसे सलाह नहीं ली?" और बनी यहूदाह की बातें बनी इस्राईल की बातों से ज़्यादा सख्त़ थीं|
1और वहाँ एक शरीर बिनयमीनी था और उसका नाम सबा' बिन बिक्री था, उसने नरसिंगा फूँका और कहा कि "दाऊद में हमारा कोई हिस्सा नहीं और न हमारी मीरास यस्सी के बेटे के साथ है, ऐ इस्राईलियों अपने अपने डेरे को चले जाओ|"2इसलिए सब इस्राईली दाऊद की पैरवी छोड़ कर सबा' बिन बिक्री के पीछे हो लिए लेकिन यहूदाह के लोग यर्दन से यरुशलीम तक अपने बादशाह के साथ ही रहे|3और दाऊद यरुशलीम में अपने महल में आया और बादशाह ने अपनी उन दस बाँदियों को जिनको वह अपने घर की निगहबानी के लिए छोड़ गया था, लेकर उनको नज़र बंद कर दिया और उनकी परवरिश करता रहा लेकिन उनके पास न गया, इसलिए उन्होंने अपने मरने के दिन तक नज़र बंद रहकर रंडापे की हालत में ज़िन्दगी काटी|4और बादशाह ने 'अमासा को हुक्म किया कि "तीन दिन के अन्दर बनी यहूदाह को मेरे पास जमा' कर और तू भी यहाँ हाज़िर हो|"5तब 'अमासा बनी यहूदाह को बुलाने गया, लेकिन वह मुताअय्यन वक़्त से जो उसने उसके लिए मुक़र्रर किया था ज़्यादा ठहरा|6तब दाऊद ने अबीशे से कहा कि "सबा' बिन बिक्री तो हमको अबी सलोम से ज़्यादा नुक़सान पहुँचायेगा फिर तू अपने मालिक के ख़ादिमों को लेकर उसका पीछा कर ऐसा न हो कि वह दीवारदार शहरों को लेकर हमारी नज़र से बच निकले|"7तब योआब के आदमी और करैती और फ़लेती और सब बहादुर उसके पीछे हो लिए और यरुशलीम से निकले ताकि सबा' बिन बिक्री का पीछा करें|8और जब वह उस बड़े पत्थर के नज़दीक पहुँचे जो जिब'ऊन में है तो 'अमासा उनसे मिलने को आया और योआब अपना जंगी लिबास पहने था और उसके ऊपर एक पटका था जिस से एक तलवार मियान में पड़ी हुई उसके कमर में बंधी थी और उसके चलते चलते वह निकल पड़ी|9तब योआब ने 'अमासा से कहा, "ऐ मेरे भाई तू ~ख़ैरियत से है?" और योआब ने 'अमासा की दाढ़ी अपने दहने हाथ से पकड़ी कि उसको बोसा दे|10और 'अमासा ने उस तलवार का जो योआब के हाथ में थी ख़्याल न किया, इसलिए उसने उससे उसके पेट में ऐसा मारा कि उसकी अंतड़ियाँ ज़मीन पर निकल पड़ीं ~और उसने दूसरा वार न किया, इसलिए वह मर गया, फिर योआब और उसका भाई अबीशे सबा' बिन बिक्री का पीछा करने चले "|11और योआब के जवानों में से एक शख़्स उसके पास खड़ा हो गया और कहने लगा कि "जो कोई योआब से राज़ी है और जो कोई दाऊद की तरफ़ है वह योआब के पीछे होले|"12और 'अमासा सड़क के बीच अपने ख़ून में लोट रहा था और उस शख़्स ने देखा कि सब लोग खड़े हो गये हैं, तो वह 'अमासा को सड़क पर से मैदान को उठा ले गया और जब यह देखा कि जो कोई उसके पास आता है खड़ा हो जाता है, तो उस पर एक कपड़ा डाल दिया|13और जब वह सड़क पर से हटा लिया गया, तो सब लोग योआब के पीछे सबा' बिन बिक्री का पीछा करने चले|14और वह इस्राईल के सब क़बीलों ~में से होता हुआ अबील और बैत मा'का और सब बेरियों तक पहुँचा और वह भी जमा' होकर उसके पीछे चले|15और उन्होंने आकर उसे बैत मा'का में घेर लिया शहर के सामने ऐसा दमदमा बाँधा कि वह दीवार के बराबर रहा और सब लोगों ने जो योआब के साथ थे दीवार को तोड़ना शुरू' किया ताकि उसे गिरा दें|16तब एक 'अक़्ल मन्द 'औरत शहर में से पुकार कर कहने लगी कि ""ज़रा योआब से कह दो कि यहाँ आए ताकि मैं उससे कुछ कहूँ|17तब वह उसके नज़दीक आया, उस 'औरत ने उससे कहा, "क्या तू योआब है ?"उसने कहा, "हाँ " तब वह उससे कहने लगी, "अपनी लौंडी की बातें सुन| उसने कहा, "मैं सुनता हूँ|"18तब वह कहने लगी कि "पुराने ज़माना में यूँ कहा करते थे कि वह ज़रूर अबील में सलाह पूँछेंगे और इस तरह वह बात को ख़त्म करते थे|19और मैं इस्राईल में उन लोगों में से हूँ जो सुलह पसंद और दयानतदार हैं, तू चाहता है कि एक शहर और माँ को इस्राईलियों के बीच हलाक करे, फिर तू क्यूँ ख़ुदावन्द की मीरास को निगलना चाहता है ?"20योआब ने जवाब दिया, "मुझसे हरगिज़ हरगिज़ ऐसा न हो कि मैं निगल जाऊँ या हलाक करूँ|21बात यह नहीं है बल्कि इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क के एक शख़्स ने जिसका नाम सबा' बिन बिक्री है बादशाह या'नी दाऊद के ख़िलाफ़ हाथ उठाया है इसलिए सिर्फ़ उसी को मेरे हवाले कर देते तो मैं शहर से चला जाऊँगा|" उस 'औरत ने योआब से कहा, "देख उसका सिर दीवार पर से तेरे पास फेंक दिया जाएगा|"22तब वह 'औरत अपनी दानाई से सब लोगों के पास गई, फिर उसने सबा'बिन बिक्री का सिर काट कर उसे बाहर योआब की तरफ़ फेंक दिया, तब उसने नरसिंगा फूँका और लोग शहर से अलग होकर अपने अपने डेरे को चले गये और योआब यरुशलीम को बादशाह के पास लौट आया|23और योआब इस्राईल के सारे लश्कर का सरदार था, और बिनायाह बिन यहूयदा' करेतियों और फलेतियों का सरदार था|24और आदूराम ख़िराज का दरोग़ा था और अख़ीलूद का बेटा यहूसफ़त मुवर्रिख़ था|25और सिवा मुन्शी था और सदूक़ और अबियातर काहिन थे|26और 'ईरा याइरी भी दाऊद का एक काहिन था|
1और दाऊद के दिनों में लगातार तीन साल काल पड़ा, और दाऊद ने ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त किया, ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "यह साऊल और उसके ख़ूँरेज़ घराने की वजह से है, क्यूँकि उसने जिब'ऊँनियों को क़त्ल किया|"2तब बादशाह ने जिब'ऊँनियों को बुलाकर उनसे बात की, यह जिब'ऊनी बनी इस्राईल में से नहीं बल्कि बचे हुए अमूरियों में से थे और बनी इस्राईल ने उनसे क़सम खाई थी और साऊल ने बनी इस्राईल और बनी यहूदाह की ख़ातिर अपनी गरम जोशी में उनको क़त्ल कर डालना चाहा था|3इसलिए दाऊद ने जिब'ऊनियों से कहा, "मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ और मैं किस चीज़ से कफ़्फ़ारा दूँ, ताकि तुम ख़ुदावन्द की मीरास को दु'आ दो?"4जिब'ऊनियों ने उससे कहा कि "हमारे और साऊल या उसके घराने के दरमियान चाँदी या सोने का कोई मु'आमला नहीं और न हमको यह इख़्तियार है कि हम इस्राईल के किसी आदमी को जान से मारें|" उसने कहा, "जो कुछ तुम कहो मैं वही तुम्हारे लिए करूँगा|"5उन्होंने बादशाह को जवाब दिया कि जिस शख़्स ने हमारा नास किया और हमारे ख़िलाफ़ ऐसी तदबीर निकाली कि हम मिटा दिए जायें, और इस्राईल की किसी बादशाहत में बाक़ी न रहें|6उसी के बेटों में से सात आदमी हमारे हवाले कर दिए जायें, और हम उनको ख़ुदावन्द के लिए चुने हुए साऊल के जिबा' में लटका देंगे|" बादशाह ने कहा, "मैं दे दूँगा|"7लेकिन बादशाह ने मिफ़ीबोसत बिन यूनतन बिन साऊल को ख़ुदावन्द की क़सम की वजह से जो उनके दाऊद और साऊल के बेटे यूनतन के दरमियान हुई थी बचा रख्खा|8लेकिन बादशाह ने अय्याह की बेटी रिस्फ़ह के दोनों बेटों अरमोनी और मिफ़ीबोसत को जो साऊल से हुए थे और साऊल की बेटी मीकल के पाँचों बेटों को जो बरज़िली महूलाती के बेटे 'अदरी ऐल से हुए थे लेकर|9उनको जिब'ऊनियों के हवाले किया और उन्होंने उनको पहाड़ पर ख़ुदावन्द के सामने लटका दिया, इसलिए वह सातों एक साथ मारे, यह सब फ़सल काटने के दिनों में या'नी जौ की फ़सल के शुरू' में मारे गये|10तब अय्याह की बेटी रिस्फ़ह ने टाट लिया और फ़सल के शुरू' से उसको अपने लिए चट्टान पर बिछाए रही जब तक आसमान से उन पर बारिश न हुई और उसने न तो दिन के वक़्त हवा के परिन्दों को और न रात के वक़्त जंगली दरिन्दों को उन पर आने दिया|11और दाऊद को बताया गया कि साऊल की बाँदी अय्याह की बेटी रिस्फ़ह ने ऐसा ऐसा किया|12तब दाऊद ने जाकर साऊल की हड्डियों और उसके बेटे यूनतन की हड्डियों को यबीस जिल'आद के लोगों से लिया जो उनको बैत शान के चौक में से चुरा लाये थे, जहाँ फ़िलिस्तियों ने उनको जिस दिन कि उन्होंने साऊल को जिलबू'आ में क़त्ल किया टाँग दिया था|13इसलिए वह साऊल की हड्डियों और उसके बेटे यूनतन की हड्डियों को वहाँ से ले आया, और उन्होंने उनकी भी हड्डियाँ जमा' कीं जो लटकाए गये थे|14और उन्होंने साऊल और उसके बेटे यूनतन की हड्डियों को जिला' में जो बिनयमीन की सर ज़मीन में है उसी के बाप क़ैस की क़ब्र में दफ़न किया और उन्होंने जो कुछ बादशाह ने फ़रमाया था सब पूरा किया, इसके बा'द ख़ुदा ने उस मुल्क के बारे में दु'आ सुनी|15और फ़िलिस्ती फिर इस्राईलियों से लड़े और दाऊद अपने ख़ादिमों के साथ निकला और फ़िलिस्तियों से लड़ा और दाऊद बहुत थक गया|16और इश्बी बनोब ने जो देवज़ादों में से था और जिसका नेज़ह वज़न में पीतल की तीन सौ मिस्क़ाल था और वह एक नई तलवार बाँधे था चाहा कि दाऊद को क़त्ल करे|17लेकिन ज़रोयाह के बेटे अबीशे ने उसकी मदद की और उस फ़िलिस्ती को ऐसी मार लगाई कि उसे मार दिया, तब दाऊद के लोगों ने क़सम खाकर उससे कहा कि ~"तू फिर कभी हमारे साथ जंग पर नहीं जाएगा ऐसा न हो कि तू इस्राईल का चराग़ बुझादे|"18इसके बा'द फ़िलिस्तियों के साथ जूब में लड़ाई हुई, तब हूसाती सिब्बकी ने सफ़ को जो देवज़ादों में से था क़त्ल किया|19और फिर फ़िलिस्तियों से जूब में एक और लड़ाई हुई, तब इलहनान बिन या'अरी अरजीम ने जो बैतल हम का था जाती जोलियत को क़त्ल किया जिसके नेज़ह की छड़ जुलाहे के शहतीर की तरह थी|20फिर जात में लड़ाई हुई और वहाँ एक बड़ा लम्बा शख़्स था, उसके दोनों हाथों और दोनों पावों में छ: छ: उंगलियाँ थीं जो सब की सब गिनती में चौबीस थीं और यह भी उस देव से पैदा हुआ था|21जब इसने इस्राईलियों की फ़ज़ीहत की तो दाऊद के भाई सिम'ई के बेटे यूनतन ने उसे क़त्ल किया|22यह चारों उस देव से जात में पैदा हुए थे, और वह दाऊद के हाथ से और उसके ख़ादिमों के हाथ से मारे गये|
1जब ख़ुदावन्द ने दाऊद को उसके सब दुश्मनों और साऊल के हाथ से रिहाई दी तो उसने ख़ुदावन्द के सामने इस मज़मून का हम्द सुनाया|2वह कहने लगा, "ख़ुदावन्द मेरी चट्टान और मेरा किला' और मेरा छुड़ाने वाला है|3ख़ुदा मेरी चट्टान है, मैं उसी पर भरोसा रख्खूँगा, वही मेरी ढाल और मेरी नजात का सींग है, मेरा ऊँचा बुर्ज और मेरी पनाह है, मेरे नजात देने वाले! तूही मुझे ज़ुल्म से बचाता है|4मैं ख़ुदावन्द को जो ता'रीफ़ के लायक़ है पुकारूँगा, यूँ मैं अपने दुश्मनों से बचाया जाऊँगा|5क्यूँकि मौत की मौजों ने मुझे घेरा, बेदीनी के सैलाबों ने मुझे डराया|6पाताल की रस्सियाँ मेरे चारो तरफ़ थीं~मौत के फंदे मुझ पर आते थे|7अपनी मुसीबत में मैंने ख़ुदावन्द को पुकारा, मैं अपने ख़ुदा के सामने चिल्लाया| उसने अपनी हैकल में से मेरी आवाज़ सुनी~और मेरी फ़रयाद उसके कान में पहुँची|8तब ज़मीन हिल गई और काँप उठी~और आसमान की बुनियादों ने जुम्बिश खाई~और हिल गयीं, इसलिए कि वह ग़ुस्सा हुआ|9उसके नथुनों से धुवाँ उठा~और उसके मुँह से आग निकल कर भस्म करने लगी, कोयले उससे दहक उठे|10उसने आसमानों को भी झुका दिया और नीचे उतर आया~और उसके पाँव तले गहरा अँधेरा था|11वह करूबी पर सवार होकर उदा~और हवा के बाज़ुओं पर दिखाई दिया|12और उसने अपने चारों तरफ़ अँधेरे को और पानी के इज्तिमा'और आसमान के दलदार बादलों को शामियाने बनाया|13उस झलक से जो उसके आगे आगे थी~आग के कोयले सुलग गये|14ख़ुदावन्द आसमान से गरजा~और हक़ त'आला ने अपनी आवाज़ सुनाई|15उसने तीर चला कर उनको तितर बितर ~किया, और बिजली से उनको शिकस्त दी|16तब ख़ुदावन्द की डॉट से ;उसके नथुनों के दम के झोंके से, समुन्दर की गहराई दिखाई देने लगी, और जहान की बुनियादें नमूदार हुईं|17उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और मुझे बहुत पानी में से खींच कर बाहर निकाला|18उसने मेरे ताक़तवर दुश्मन और मेरे 'अदावत रखने वालों से, मुझे छुड़ा लिया क्यूँकि वह मेरे लिए निहायत बहादुर थे|19वह मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर आ पड़े, पर ख़ुदावन्द मेरा सहारा था|20वह मुझे चौड़ी जगह में निकाल भी लाया, उसने मुझे छुड़ाया, इसलिए कि वह मुझसे ख़ुश था|21ख़ुदावन्द ने मेरी रास्तबाज़ी के मुवाफ़िक़ मुझे बदला दिया, और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ मुझे बदला दिया|22क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की राहों पर चलता रहा, और ग़ल्ती से अपने ख़ुदा से अलग न हुआ|23क्यूँकि उसके सारे फ़ैसले मेरे सामने थे, और मैं उसके क़ानून से अलग न हुआ|24मैं उसके सामने कामिल भी रहा, और अपनी बदकारी से बा'ज़ रहा|25इसीलिए ख़ुदावन्द ने मुझे मेरी रास्तबाज़ी के मुवाफ़िक़ बल्कि मेरी उस पाकीज़गी के मुताबिक़ जो उसकी नज़र के सामने थी बदला दिया|26रहम दिल के साथ तू रहीम होगा, और कामिल आदमी के साथ कामिल|27नेकों के साथ नेक होगा, और टेढों के साथ टेढ़ा|28मुसीबत ज़दा लोगों को तू बचाएगा, लेकिन तेरी आँखें मग़रूरों पर लगी हैं ताकि तू उन्हें नीचा करे|29क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! तू मेरा चराग़ है, और ख़ुदावन्द मेरे अँधेरे को उजाला कर देगा|30क्यूँकि तेरी बदौलत मैं फ़ौज पर जंग करता हूँ, और अपने ख़ुदा की बदौलत दीवार फाँद जाता हूँ|31लेकिन ख़ुदा की राह कामिल है, ख़ुदावन्द का कलाम ताया हुआ है, वह उन सबकी ढाल है जो उसपर भरोसा रखते हैं|32क्यूँकि ख़ुदावन्द के 'अलावा और कौन ख़ुदा है? और हमारे ख़ुदा को छोड़ कर और कौन चटटान है?33ख़ुदा मेरा मज़बूत किला' है, वह अपनी राह में कामिल शख़्स की रहनुमाई करता है|34वह उसके पाँव हरनियों के से बना देता है, और मुझे मेरी ऊँची जगहों में क़ायम करता है|35वह मेरे हाथों को जंग करना सिखाता है, यहाँ तक कि मेरे बाज़ू पीतल की कमान को झुका देते हैं|36तूने मुझको अपनी नजात की ढाल भी बख़्शी, और तेरी नरमी ने मुझे बुज़ुर्ग बना दिया|37तूने मेरे नीचे मेरे क़दम चौड़े कर दिए, और मेरे पाँव नहीं फिसले|38मैंने अपने दुश्मनों का पीछा करके उनको हलाक किया, और जब तक वह फ़ना न हो गये मैं वापस नहीं आया|39मैंने उनको फ़ना कर दिया और ऐसा छेद डाला है कि वह उठ नहीं सकते, बल्कि वह तो मेरे पाँव के नीचे गिरे पड़े हैं|40क्यूँकि तूने लड़ाई के लिए मुझे ताक़त से तैयार किया, और मेरे मुख़ालिफ़ों को मेरे सामने नीचा किया|41तूने मेरे दुश्मनों की पीठ मेरी तरफ़ फेरदी, ताकि मैं अपने 'अदावत रखने वालों को काट डालूँ|42उन्होंने इन्तिज़ार किया लेकिन कोई न था जो बचाए, बल्कि ख़ुदावन्द का भी इन्तिज़ार किया, लेकिन उसने उनको जवाब न दिया|43तब मैंने उनको कूट कूट कर ज़मीन की गर्द की तरह कर दिया, मैंने उनको गली कूचों के कीचड़ की तरह रौंद रौंद कर चारो तरफ़ फैला दिया|44तूने मुझे मेरी क़ौम के झगड़ों से भी छुड़ाया, तूने मुझे क़ौमों का सरदार होने के लिए रख छोड़ा है, जिस क़ौम से मैं वाक़िफ़ भी नहीं वह मेरी फ़रमा बरदार ~होगी|45परदेसी मेरे ताबे' हो जायेंगे, वह मेरा नाम सुनते ही मेरी फ़रमाबर्दारी करेंगे|46परदेसी मुरझा जायेंगे~और अपने किलों'से थरथराते हुए निकलेंगे|47ख़ुदावन्द ज़िन्दा है, मेरी चटटान मुबारक हो! और ख़ुदा मेरे नजात की चटटान मुम्ताज़ हो !48वही ख़ुदा जो मेरा बदला लेता है, और उम्मतों को मेरे ताबे' कर देता है|49और मुझे मेरे दुश्मनों के बीच से निकालता है, हाँ तू मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता है, तू मुझे टेढ़े आदमियों से रिहाई देता है|50इसलिए ऐ ख़ुदावन्द ! मैं क़ौमों के बीच तेरी शुक्रगुज़ारी और तेरे नाम की मदह सराई करूँगा|51वह अपने बादशाह को बड़ी नजात 'इनायत करता है, और अपने ममसूह दाऊद और उसकी नसल पर हमेशा शफ़क़त करता है|
1दाऊद की आख़री बातें यह हैं: दाऊद बिन यस्सी कहता है, "या'नी यह उस शख़्स का कलाम है जो सरफ़राज़ किया गया, और या'क़ूब के ख़ुदा का ममसूह~और इस्राईल का शीरीं नग़मा साज़ है|2"ख़ुदावन्द की रूह ने मेरी ज़रिए' कलाम किया, और उसका सुख़न मेरी ज़बान पर था|3इस्राईल के ख़ुदा ने फ़रमाया|इस्राईल की चटटान ने मुझसे कहा|एक है जो सच्चाई से लोगों पर हुकूमत करता है|जो ख़ुदा के खौफ़ के साथ हुकूमत करता है|4वह सुबह की रोशनी की तरह होगा जब सूरज निकलता है, ऐसी सुबह जिसमें बादल न हो, जब नरम नरम घास ज़मीन में से, बारिश के बा'द की साफ़ चमक के ज़रिए' निकलती है|5मेरा घर तो सच मुच ख़ुदा के सामने ऐसा है भी नहीं, तो भी उसने मेरे साथ एक हमेशा का 'अहद, जिसकी सब बातें मु'अय्यन और पाएदार हैं बाँधा है, क्यूँकि यही मेरी सारी नजात और सारी मुराद है, अगर चे वह उसको बढ़ाता नहीं|6लेकिन झूठे लोग सब के सब काँटों की तरह ठहरेंगे जो हटा दिए जाते हैं, क्यूँकि वह हाथ से पकड़े नहीं जा सकते|7बल्कि जो आदमी उनको छुए, ज़रूर है कि वह लोहे और नेज़ह की छड़ से मुसल्लह हो, इसलिए वह अपनी ही जगह में आग से बिल्कुल भस्म कर दिए जायेंगे|8और दाऊद के बहादुरों के नाम यह हैं :या'नी तहकमोनी योशेब बशेबत जो सिपह सालार का सरदार था, वही ऐज़नी अदीनो था जिससे आठ सौ एक ही वक़्त में मक़तूल हुए|9उसके बा'द एक अखूही के बेटे दोदे का बेटा इली'अज़र था, यह उन तीनों सूरमाओं में से एक था जो दाऊद के साथ उस वक़्त थे, जब उन्होंने उन फ़िलिस्तियों को जो लड़ाई के लिए जमा' हुए थे लल्कारा हालाँकि सब बनी इस्राईल चले गये थे|10और उसने उठकर फ़िलिस्तियों को इतना मारा कि उसका हाथ थक कर तलवार से चिपक गया और ख़ुदावन्द ने उस दिन बड़ी फ़तह कराई और लोग फिर कर सिर्फ़ लूटने के लिए उसके पीछे हो लिए|11बा'द उसके हरारी अजी का बेटा सम्मा था और फ़िलिस्तियों ने उस क़त-ए-ज़मीन के पास जो मसूर के पेड़ों से भरा था जमा' होकर दिल बाँध लिया था और लोग फ़िलिस्तियों के आगे से भाग गये थे|12लेकिन उसने उस क़ता' के बीच में खड़े होकर उसको बचाया और फ़िलिस्तियों को क़त्ल किया और ख़ुदावन्द ने बड़ी फ़तह कराई|13और उन तीस सरदारों में से तीन सरदार निकले और फ़सल काटने के मौसम में दाऊद के पास 'अदुल्लाम के मग़ारा में आए और फ़िलिस्तियों की फ़ौज रिफ़ाईम की वादी में ख़ेमा ज़न थी|14और दाऊद उस वक़्त गढ़ी में था और फ़िलिस्तियों के पहरे की चौकी बैतल हम में थी|15और दाऊद ने तरसते हुए कहा, "ऐ काश कोई मुझे बैतल हम के उस कुँवें का पानी पीने को देता जो फाटक के पास है|16और उन तीनों बहादुरों ने फ़िलिस्तियों के लश्कर में से जाकर बैतल हम के कुँवें से जो फाटक के बराबर है पानी भर लिया और उसे दाऊद के पास लाये लेकिन उसने ~न चाहा कि पिए बल्कि उसे ख़ुदावन्द के सामने उंडेल दिया|17और कहने लगा, "ऐ ख़ुदावन्द मुझसे यह बात हरगिज़ न हो कि मैं ऐसा करूँ, क्या मैं उन लोगों का ख़ून पियूँ जिन्होंने अपनी जान जोखों में डाली?" इसी लिए उसने न चाहा कि उसे पिए, उन तीनों बहादुरों ने ऐसे ऐसे काम किए|18और ज़रोयाह के बेटे योआब का भाई अबीशे उन तीनों में अफज़ल था, उसने तीन सौ पर अपना भाला चला ~कर उनको क़त्ल किया और तीनों में नामी था|19क्या वह उन तीनों में ख़ास न था ? इसीलिए वह उनका सरदार हुआ तो भी वह उन पहले तीनों के बराबर नहीं होने पाया|20और यहूयदा' का बेटा बिनायाह क़बजील के एक सूरमा का बेटा था, जिसने बड़े बड़े काम किए थे, इसने मोआब के अरीऐल के दोनों बेटों को क़त्ल किया और जाकर बर्फ़ के मौसम में एक ग़ार के बीच एक शेर बबर को मारा|21और उसने एक जसीम मिस्री को क़त्ल किया, उस मिस्री के हाथ में भला था लेकिन यह लाठी ही लिए हुए उस पर लपका और मिस्री के हाथ से भला छीन लिया और उसी के भाले से उसे मारा|22तब यहूयदा' के बेटे बिनायाह ने ऐसे ऐसे काम किए और तीनों बहादुरों में नामी था|23वह उन तीसों से ज़्यादा ख़ास था लेकिन वह उन पहले तीनों के बराबर नहीं होने पाया और दाऊद ने उसे अपने मुहाफ़िज़ सिपाहियों पर मुक़र्रर किया|24और तीसों में योआब का भाई 'असाहील और इल्हनान बैतल हम के दोदो का बेटा|25हरोदी सम्मा, हरोदी इल्क़ा|26फ़लती ख़लिस,~'ईरा बिन 'अक़ीस तकू़'ई|27अन्तोती अबी अज़र, ~हूसाती मबूनी|28अखू़सी ज़ल्मोन, नतोफ़ाती महरी|29नतोफ़ाती बा'ना के बेटा हलिब, ~इती बिन रीबी बनी बिनयमीन के जिब्बा'का|30फिर'आतोनी, ~बिनायाह, ~और जा'स के नालों कब हिद्दी|31'अरबाती अबी 'अल्बून, बर्हूमी 'अज़मावत|32सा'लाबूनी इल्याहब, ~ बनी यासीन यूनतन|33हरारी सम्मा, ~अख़ीआम ~बिन सरार हरारी|34इलीफ़लत बिन अहसबी मा'काती का बेटा, इली'आम बिन अख़ीतुफ़्फ़ल जिलोनी|35कर्मिली हसरो, अरबी फ़ा'री|36ज़ोबाह के नातन का बेटा इजाल, जद्दी बानी|37'अम्मोनी सिलक़, बैरोती नहरी, ज़रोयाह के बेटे योआब के सिलहबरदार|38इतरी 'ईरा, इतरी जरीब|39और हित्ती औरय्याह : यह सब सैंतीस थे|
1इसके बा'द ख़ुदावन्द का ग़ुस्सा इस्राईल पर फिर भड़का और उसने दाऊद के दिल को उनके ख़िलाफ़ यह कहकर उभारा कि "जाकर इस्राईल और यहूदाह को गिन|"2और बादशाह ने लश्कर के सरदार योआब को जो उसके साथ था हुक्म किया कि "इस्राईल के सब क़बीलों में दान से बेर सबा' तक गश्त करो और लोगों को गिनो ताकि लोगों की ता'दाद मुझे मा'लूम हो|"3तब योआब ने बादशाह से कहा कि "ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उन लोगों को चाहे वह कितने ही हों सौ गुना बढ़ाए और मेरे मालिक बादशाह की आँखें इसे देखें, लेकिन मेरे मालिक बादशाह को यह बात क्यों भाती है ?|"4तो भी बादशाह की बात योआब और लश्कर के सरदारों पर ग़ालिब ही रही, और योआब और लश्कर के सरदार बादशाह के सामने से इस्राईल के लोगों का शुमार करने निकले|5और वह यर्दन पार उतरे और उस शहर की दहनी तरफ़ 'अरो'ईर में ख़ेमाज़न हुए जो जद की वादी में उया'ज़ेर की जानिब है|6फिर जिल'आद और तहतीम हदसी के 'इलाक़े में गए,और दान या'न को गए, और घूम कर सैदा तक पहुँचे|7और वहाँ से सूर के क़िला' को और हव्वियों और कन'आनियों के सब शहरों को गए और यहूदाह के जुनूब में बेरसबा' तक निकल गए|8चुनाँचे सारी हुकूमत में गश्त करके नौ महीने बीस दिन के बा'द वह यरुशलीम को लौटे|9और योआब ने मर्दुम शुमारी~की ता'दाद~बादशाह को दी वह इस्राईल में आठ लाख बहादुर मर्द निकले जो शमशीर ज़न थे और यहूदाह में आदमी पाँच लाख निकले|10और लोगों का शुमार करने के बा'द दाऊद का दिल बेचैन हुआ और दाऊद ने ख़ुदावन्द से कहा, "यह जो मैंने किया वह बड़ा गुनाह किया, अब ऐ ख़ुदावन्द मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू अपने बन्दा का गुनाह दूर कर दे क्यूँकि मुझसे बड़ी बेवक़ूफ़ी हुई|"11इसलिए जब दाऊद सुबह को उठा तो ख़ुदावन्द का कलाम जाद ~पर जो दाऊद का ग़ैब बीन था नाज़िल हुआ और उसने कहा कि|12"जा और दाऊद से कह ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि ~मैं तेरे सामने तीन बलाएँ पेश करता हूँ, तू उनमें से एक को चुन ले ताकि मैं उसे तुझ पर नाज़िल करूँ|"13तब जाद ने दाऊद के पास जाकर उसको यह बताया और उस से पुछा, "क्या तेरे मुल्क में सात बरस क़हत रहे या तू तीन महीने तक अपने दुश्मनों से भागता फिरे और वह तेरा पीछा करें या तेरी हुकूमत में तीन दिन तक मौतें हों? इसलिए तू सोच ले और ग़ौर कर ले कि मैं उसे जिसने मुझे भेजा नै क्या जवाब दूँ|"14दाऊद ने जाद से कहा, "मैं बड़े शिकंजे में हूँ, हम ख़ुदावन्द के हाथ में पड़ें क्यूँकि उसकी रहमतें 'अजीम हैं लेकिन मैं इन्सान के हाथ में न पड़ूँ|"15तब ख़ुदावन्द ने इस्राईल पर वबा भेजी जो उस सुबह से लेकर वक़्त मु'अय्यना तक रही और दान से बेर सबा' तक लोगों मेंसे सत्तर हज़ार आदमी मर गए|16और जब फ़रिश्ते ने अपना हाथ बढ़ाया कि यरुशलीम को हलाक करे तो ख़ुदावन्द उस वबा से मलूल हुआ और उस फ़रिश्ते से जो लोगों को हलाक कर रहा था कहा, "यह बस है, अब अपना हाथ रोक ले|" उस वक़्त ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता याबूसी अरोनाह के खलिहान के पास ~खड़ा था|17और दाऊद ने जब उस फ़रिश्ता को जो लोगों को मार रहा था देखा तो ख़ुदावन्द से कहने लगा, "देख गुनाह तो मैंने किया और ख़ता मुझसे हुई लेकिन इन भेड़ों ने क्या किया है? ~इसलिए तेरा हाथ मेरे और मेरे बाप के घराने के ख़िलाफ़ हो|"18उसी दिन जाद ने दाऊद के पास आकर उससे कहा, ~"जा और याबूसी अरोनाह के खलिहान में ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बना|"19इसलिए दाऊद जाद के कहने के मुताबिक़ जैसा ख़ुदावन्द का हुक्म था गया|20और अरोनाह ने निगाह की और बादशाह और उसके ख़ादिमों को अपनी तरफ़ आते देखा, तब अरोनाह निकला और ज़मीन पर सरनगूँ ~होकर बादशाह के आगे सज्दा किया|21और अरोनाह कहने लगा, "मेरा मालिक बादशाह अपने बन्दा के पास क्यों आया?" दाऊद ने कहा, "यह खलिहान तुझसे ख़रीदने और ख़ुदावन्द के लिए एक मज़बह बनाने आया हूँ ताकि लोगों में से वबा जाती रहे|"22अरोनाह ने दाऊद से कहा, "मेरा मालिक बादशाह जो कुछ उसे अच्छा मा'लूम हो लेकर पेश करे, देख सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बैल हैं और दायें चलाने के औज़ार और बैलों का सामान ईंधन के लिए हैं|23यह सब कुछ ऐ बादशाह अरोनाह बादशाह की नज़र करता है|" और अरोनाह ने बादशाह से कहा कि "ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ुबूल फ़रमाए|"24तब बादशाह ने अरोनाह से कहा, "नहीं बल्कि मैं ज़रूर क़ीमत देकर उसको तुझसे ख़रीदूँगा और मैं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ऐसी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ अदा करूँगा जिन पर मेरा कुछ ख़र्च न हुआ हो" फिर दाऊद ने वह खलिहान और वह बैल चाँदी के पचास मिस्क़ालें देकर ख़रीदे|25और दाऊद ने वहाँ ख़ुदावन्द के लिए मज़बह बनाया और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं और ख़ुदावन्द ने उस मुल्क के बारे में दु'आ सुनी और वबा इस्राईल में से जाती रही|
1और दाऊद बादशाह बुड्ढा और 'उम्र दराज़ हुआ; और वह उसे कपड़े उढ़ाते, लेकिन वह गर्म न होता था।2तब उसके ख़ादिमों ने उससे कहा, "कि हमारे मालिक बादशाह के लिए एक जवान कुँवारी ~ढूँडी ~जाए, जो बादशाह~के सामने खड़ी रहे और उसकी देख भाल किया करे, और तेरे पहलू में लेट रहा करे ताकि हमारे मालिक बादशाह को गर्मी पहुँचे।"3~चुनाँचे उन्होंने इस्राईल की सारी हुकूमत में एक ख़ूबसूरत लड़की तलाश करते करते शून्मीत अबीशाग को पाया, और उसे बादशाह के पास लाए।4~और वह लड़की बहुत हसीन थी, तब वह बादशाह की देख भाल और उसकी ख़िदमत करने लगी; लेकिन बादशाह उससे वाक़िफ़ न हुआ।5~तब हज्जीत के बेटे अदूनियाह ने सर उठाया और कहने लगा, "मैं बादशाह हूँगा।" और अपने लिए रथ और सवार और पचास आदमी, जो उसके आगे-आगे दौड़ें, तैयार किए।6उसके बाप ने उसको कभी इतना भी कहकर ग़मगीन नहीं किया, "कि तू ने यह क्यूँ किया है?" और वह बहुत ख़ूबसूरत भी था, और अबीसलोम के बा'द पैदा हुआ था।7और उसने ज़रोयाह के बेटे योआब और अबीयातर काहिन से बात की; और यह दोनों अदूनियाह के पैरोकार होकर उसकी मदद करने लगे।8~लेकिन सदूक़ काहिन, और यहूयदा' के बेटे बिनायाह, और नातन नबी, और सिम'ई और रे'ई और दाऊद के बहादुर लोगों ने अदूनियाह का साथ न दिया।9~और अदूनियाह ने भेड़ें और बैल और मोटे-मोटे जानवर ज़ुहलत के पत्थर के पास, जो 'ऐन राजिल के बराबर है, ज़बह किए, और अपने सब भाइयों या'नी बादशाह के बेटों की, और सब यहूदाह के लोगों की, जो बादशाह के मुलाज़िम थे, दा'वत की;10लेकिन नातन नबी और बिनायाह और बहादुर लोगों और अपने भाई सुलेमान को न बुलाया।11~तब नातन ने सुलेमान की माँ ~बतसबा' से कहा, "क्या तू ने नहीं सुना कि हज्जीत का बेटा अदूनियाह बादशाह बन बैठा है, और हमारे मालिक दाऊद को यह मालूम नहीं?12अब तू आ कि मैं तुझे सलाह दूँ, ताकि तू अपनी और अपने बेटे सुलेमान की जान बचा सके।13तू दाऊद बादशाह के सामने जाकर उससे कह, 'ऐ मेरे मालिक, ऐ बादशाह, क्या तू ने अपनी लौंडी से क़सम खाकर नहीं कहा कि यक़ीनन तेरा बेटा सुलेमान मेरे बा'द हुकूमत ~करेगा, और वही मेरे तख़्त पर बैठेगा? पस अदूनियाह क्यूँ बादशाही करता है?"14और देख, तू बादशाह से बात करती ही होगी कि मैं भी तेरे बा'द आ पहुँचूँगा, और तेरी बातों की तस्दीक़ करूँगा।"15~तब बतसबा' अन्दर कोठरी में बादशाह के पास गई; और बादशाह बहुत बुड्ढा था, और शून्मीत अबीशाग बादशाह की ख़िदमत करती थी।16और बतसबा' ने झुककर बादशाह को सिज्दा किया। बादशाह ने कहा, "तू क्या चाहती है?"17उसने उससे कहा, "ऐ मेरे मालिक, तू ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की क़सम खाकर अपनी लौंडी से कहा था, "यक़ीनन तेरा बेटा सुलेमान मेरे बा'द हुकूमत करेगा, और वही मेरे तख़्त पर बैठेगा।'18~पर देख, अब तो अदूनियाह बादशाह बन बैठा है, और ऐ मेरे मालिक बादशाह, तुझ को इसकी ख़बर नहीं।19और उसने बहुत से बैल और मोटे मोटे जानवर और भेड़ें ज़बह की हैं; और बादशाह के सब बेटों और अबीयातार काहिन, और लश्कर के सरदार योआब की दा'वत की है, लेकिन तेरे बन्दे सुलेमान को उसने नहीं बुलाया।20~लेकिन ऐ मेरे मालिक, सारे इस्राईल की निगाह तुझ पर है, ताकि तू उनको बताए कि मेरे मालिक बादशाह के तख़्त पर कौन उसके बा'द बैठेगा।21वरना यह होगा कि जब मेरा मालिक बादशाह अपने बाप-दादा के साथ सो जाएगा, तो मैं और मेरा बेटा सुलेमान दोनों क़ुसूरवार ठहरेंगे।"22~वह अभी बादशाह से बात ही कर रही थी कि नातन नबी आ गया।23और उन्होंने बादशाह को ख़बर दी, "देख, नातन नबी हाज़िर है।" और जब वह बादशाह के सामने आया, तो उसने मुँह के बल गिर कर बादशाह को सिज्दा किया।24और नातन कहने लगा, "ऐ मेरे मालिक बादशाह ! क्या तू ने फ़रमाया है, कि मेरे बा'द अदूनियाह बादशाह हो, और वही मेरे तख़्त पर बैठे'?25~क्यूँकि उसने आज जाकर बैल और मोटे-मोटे जानवर और भेड़ें कसरत से ज़बह की हैं, और बादशाह के सब बेटों और लश्कर के सरदारों और अबीयातर काहिन की दा'वत की है; और देख, वह उसके सामने खा पी रहे हैं और कहते हैं, 'अदूनियाह बादशाह ज़िन्दा रहे!"26~लेकिन मुझ तेरे ख़ादिम को, और सदूक़ काहिन और यहूयदा' के बेटे बिनायाह और तेरे ख़ादिम सुलेमान को उसने नहीं बुलाया।27~क्या यह बात मेरे मालिक बादशाह की तरफ़ से है? और तू ने अपने ख़ादिमों को बताया भी नहीं कि मेरे मालिक बादशाह के बा'द, उसके तख़्त पर कौन बैठेगा?"28~तब दाऊद बादशाह ने जवाब दिया और फ़रमाया, 'बतसबा' को मेरे पास बुलाओ।" तब वह बादशाह के सामने आई और बादशाह के सामने खड़ी हुई।29बादशाह ने क़सम खाकर कहा कि, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम ~जिसने मेरी जान को हर तरह की आफ़त से रिहाई दी,30~कि सचमुच जैसी मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की क़सम तुझ से खाई और कहा, 'कि यक़ीनन तेरा बेटा सुलेमान मेरे बा'द बादशाह होगा, और वही मेरी जगह मेरे तख़्त पर बैठेगा, "तो सचमुच मैं आज के दिन वैसा ही करूँगा।"31तब बतसबा' ज़मीन पर मुँह के बल गिरी और बादशाह को सिज्दा करके कहा कि "मेरा मालिक दाऊद बादशाह, हमेशा ज़िन्दा रहे |"32और दाऊद बादशाह ने फ़रमाया, कि सदूक़ काहिन आयर नातन नबी और यहूयदा' के बेटे बिनायाह को मेरे पास बुलाओ।" तब वह बादशाह के सामने आए।33बादशाह ने उनको फ़रमाया कि "तुम अपने मालिक के मुलाज़िमों को अपने साथ लो, और मेरे बेटे सुलेमान को मेरे ही खच्चर पर सवार कराओ; और उसे जैहून को ले जाओ;34~और वहाँ सदूक़ काहिन और नातन नबी उसे मसह करें, कि वह इस्राईल का बादशाह हो; और तुम नरसिंगा फूँकना और कहना कि सुलेमान बादशाह ज़िन्दा रहे!"35~फिर तुम उसके पीछे-पीछे चले आना, और वह आकर मेरे तख़्त पर बैठे; क्यूँकि वही मेरी जगह बादशाह होगा, और मैंने उसे मुक़र्रर किया है कि वह इस्राईल और यहूदाह का हाकिम हो।”36तब यहूयदा' के बेटे बिनायाह ने बादशाह के जवाब में कहा, "आमीन! ख़ुदावन्द मेरे मालिक बादशाह का ख़ुदा भी ऐसा ही कहे।37जैसे ख़ुदावन्द मेरे मालिक बादशाह के साथ रहा, वैसे ही वह सुलेमान के साथ रहे; और उसके तख़्त को मेरे मालिक दाऊद बादशाह के तख़्त से बड़ा बनाए।"38~इसलिए सदूक़ काहिन और नातन नबी और यहूयदा' का बेटा बिनायाह और करेती और फ़लेती गए, और सुलेमान को दाऊद बादशाह के खच्चर पर सवार कराया और उसे जैहून पर लाए।39~और सदूक़ काहिन ने ख़ेमे से तेल का सींग लिया और सुलेमान को मसह किया। और उन्होंने नरसिंगा फूंका और सब लोगों ने कहा, "सुलेमान बादशाह ज़िन्दा रहे!"40और सब लोग उसके पीछे आए और उन्होंने बाँसुलियाँ बजाईं और बड़ी ख़ुशी मनाई, ऐसा कि ज़मीन उनके शोरओ-गु़ल से गूँज उठी।41और अदूनियाह और उसके सब मेहमान जो उसके साथ थे, खा ही चुके थे कि उन्होंने यह सुना। और जब योआब को नरसिंगे की आवाज़ सुनाई दी तो उसने कहा, "शहर में यह हंगामा और शोर क्यूँ मच रहा है?"42~वह यह ~कह ही रहा था कि देखो, अबीयातर काहिन का बेटा यूनतन आया; और अदूनियाह ने उससे कहा, "भीतर आ; क्यूँकि तू लायक़ शख़्स है, और अच्छी ख़बर लाया होगा।"43यूनतन ने अदूनियाह को जवाब दिया, "वाक़ई हमारे मालिक दाऊद बादशाह ने सुलेमान को बादशाह बना दिया है।44और बादशाह ने सदूक़ काहिन और नातन नबी और यहूयदा' के बेटे बिनायाह और करेतियों और फ़लेतियों को उसके साथ भेजा। तब उन्होंने बादशाह के खच्चर पर उसे सवार कराया।45~और सदूक़ काहिन और नातन नबी ने जैहून पर उसको मसह करके बादशाह बनाया है; तब वह वहीं से ख़ुशी करते आए हैं, ऐसा कि शहर गूँज गया। वह शोर जो तुम ने सुना यही है।46और सुलेमान तख़्त-ए-हुकूमत पर बैठ भी गया है।47इसके 'अलावा बादशाह के मुलाज़िम हमारे मालिक दाऊद बादशाह को मुबारकबाद देने आए और कहने लगे कि तेरा ख़ुदा, सुलेमान के नाम को तेरे नाम से ज़्यादा मुम्ताज़ करे, और उसके तख़्त को तेरे तख़्त से बड़ा बनाए;' और बादशाह अपने बिस्तर पर सिजदे में हो गया।48और बादशाह ने भी ऐसा फ़रमाया कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो, जिसने एक वारिस बख़्शा कि वह मेरी ही आँखों के देखते हुए आज मेरे तख़्त पर बैठे।”49~फिर तो अदूनियाह के सब मेहमान डर गए, और उठ खड़े हुए और हर एक ने अपना रास्ता लिया।50और अदूनियाह सुलेमान की वजह से डर के मारे उठा, और जाकर मज़बह के सींग पकड़ लिए।51और सुलेमान को यह बताया गया कि "देख, अदूनियाह सुलेमान बादशाह से डरता है, क्यूँकि उसने मज़बह के सींग पकड़ रख्खे हैं; और कहता है कि ~सुलेमान बादशाह आज के दिन मुझ से क़सम खाए, कि वह ~अपने ख़ादिम को तलवार से क़त्ल नहीं करेगा। "52सुलेमान ने कहा, "अगर वह अपने को लायक़ साबित करे, तो उसका एक बाल भी ज़मीन पर नहीं गिरेगा; लेकिन अगर उसमें शरारत पाई जाएगी तो वह मारा जाएगा।"53तब सुलेमान बादशाह ने लोग भेजे, और वह उसे मज़बह पर से उतार लाए। उसने आकर सुलेमान बादशाह को सिज्दा किया; और सुलेमान ने उससे कहा, "अपने घर जा।"
1और दाऊद के मरने के दिन नज़दीकआए, तब उसने अपने बेटे सुलेमान को वसीय्यत की और कहा कि,2~"मैं उसी रास्ते जाने वाला हूँ जो सारे जहान का है; इसलिए तू मज़बूत हो और मर्दानगी दिखा।3~और जो मूसा की शरी'अत में लिखा है, उसके मुताबिक़ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की हिदायत को मानकर उसके रास्तों पर चल; और उसके क़ानून पर और उसके फ़रमानों और हुक्मों और शहादतों पर 'अमल कर, ताकि जो कुछ तू करे और जहाँ कहीं तू जाए, सब में तुझे कामयाबी हो,4और ख़ुदावन्द अपनी उस बात को क़ायम रख्खे, जो उसने मेरे हक़ में कही कि, 'अगर तेरी औलाद अपने रास्ते की हिफ़ाज़त करके अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से मेरे सामने सच्चाई से चले, तो इस्राईल के तख़्त पर तेरे यहाँ आदमी की कमी न होगी।'5"और तू ख़ुद जानता है कि ज़रोयाह के बेटे योआब ने मुझ से क्या-क्या किया, या'नी उसने इस्राइली लश्कर के दो सरदारों, नेर के बेटे अबनेर और यतर के बेटे 'अमासा से क्या किया, जिनको उसने क़त्ल किया और सुलह के वक़्त ख़ून-ए-जंग बहाया, और ख़ून-ए-जंग को अपने पटके पर जो उसकी कमर में बंधा था और अपनी जूतियों पर जो उसके पाँवों में थी लगाया।6इसलिए तू अपनी हिकमत से काम लेना और उसके सफ़ेद सर को क़ब्र में सलामत उतरने न देना।7लेकिन बरज़िली जिल'आदी के बेटों पर महेरबानी करना, और वह उनमें शामिल हों जो तेरे दस्तरख़्वान पर खाना खाया करेंगे, क्यूँकि वह ऐसा ही करने को मेरे पास आए जब मैं तेरे भाई अबीसलोम की वजह से भागा था।8और देख, बिनयमीनी जीरा का बेटा बहूरीमी सिम'ई तेरे साथ है, जिसने उस दिन जब कि मैं महनायम को जाता था बहुत बुरी तरह मुझ पर ला'नत की, लेकिन वह यरदन पर मुझ से मिलने को आया, और मैंने ख़ुदावन्द की क़सम खाकर उससे कहा कि "मैं तुझे तलवार से क़त्ल नहीं करूँगा।9~तब तू उसको बेगुनाह न ठहराना, क्यूँकि तू ''अक़्लमन्द आदमी है और तू जानता है कि तुझे उसके साथ क्या करना चाहिए, इसलिए तू उसका सफ़ेद सर लहू लुहान करके क़ब्र में उतारना।"10~और दाऊद अपने बाप-दादा के साथ सो गया और दाऊद के शहर में दफ़्न हुआ।11और कुल मुद्दत जिसमें दाऊद ने इस्राईल पर हुकूमत की चालीस साल की थी; सात साल तो उसने हबरून में हुकूमत की, और सैंतीस साल यरूशलीम में।12और सुलेमान अपने बाप दाऊद के तख़्त पर बैठा और उसकी हुकूमत बहुत ही मज़्बूत हुई।13~~तब हज्जीत का बेटा अदूनियाह, सुलेमान की माँ बतसबा' के पास आया; उसने पूछा, "तू सुलह के ख़्याल से आया है?” उसने कहा, "सुलह के ख़्याल से।"14~ फिर उसने कहा, "मुझे तुझ से कुछ कहना है।" उसने कहा, "कह।"15~उसने कहा, "तू जानती है कि हुकूमत मेरी थी, और सब इस्राइली मेरी तरफ़ मुतवज्जिह थे कि मैं हुकूमत करूँ, लेकिन हुकूमत पलट गई और मेरे भाई की हो गई, क्यूँकि ख़ुदावन्द की तरफ़ से यह उसी की थी।16~इसलिए मेरी तुझ से एक दरख़्वास्त है, नामंजूर न कर।" उसने कहा, "बयान कर।"17~उसने कहा, "ज़रा सुलेमान बादशाह से कह, क्यूँकि वह तेरी बात को नहीं टालेगा, किअबीशाग शून्मीत को मुझे ब्याह दे।”18~बतसबा' ने कहा, "अच्छा, मैं तेरे लिए बादशाह से 'दरख़्वास्त करूँगी।"19तब बतसबा' सुलेमान बादशाह के पास गई, ताकि उससे अदूनियाह के लिए 'दरख़्वास्त करे। बादशाह उसके इस्तक़बाल के वास्ते उठा और उसके सामने झुका, फिर अपने तख़्त पर बैठा; और उसने बादशाह की माँ के लिए एक तख़्त लगवाया, तब वह उसके दहने हाथ बैठी;20~और कहने लगी, "मेरी तुझ से एक छोटी सी दरख़्वास्त है; तू मुझ से इन्कार न करना।" बादशाह ने उससे कहा, "ऐ मेरी माँ, इरशाद फ़रमा; मुझे तुझ से इन्कार न होगा।"21~उसने कहा, 'अबीशाग शून्मीत तेरे भाई अदूनियाह को ब्याह दी जाए।"22~सुलेमान बादशाह ने अपनी माँ को जवाब दिया, "तू अबीशाग शून्मीत ही को अदूनियाह के लिए क्यूँ माँगती है? उसके लिए हुकूमत भी माँग, क्यूँकि वह तो मेरा बड़ा भाई है; बल्कि उसके लिए क्या, अबीयातर काहिन और ज़रोयाह के बेटे योआब के लिए भी माँग।"23तब सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द की क़सम खाई और कहा कि अगर अदूनियाह ने यह बात अपनी ही जान के ख़िलाफ़ नहीं कही, तो ख़ुदा मुझ से ऐसा ही, बल्कि इससे भी ज़्यादा करे।24~इसलिए अब ख़ुदावन्द की हयात की क़सम जिसने मुझ को क़याम बख़्शा, और मुझ को मेरे बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाया, और मेरे लिए अपने वा'दे के मुताबिक़ एक घर बनाया, यक़ीनन अदूनियाह आज ही क़त्ल किया जाएगा।"25~और सुलेमान बादशाह ने यहूयदा' के बेटे बिनायाह को भेजा: उसने उस पर ऐसा वार किया कि वह मर गया।26फिर बादशाह ने अबीयातर काहिन से कहा, "तू अनतोत को अपने खेतों में चला जा क्यूँकि तू क़त्ल के लायक़ है, लेकिन मैं इस वक़्त तुझ को क़त्ल नहीं करता क्यूँकि तू मेरे बाप दाऊद के सामने ख़ुदावन्द यहोवाह का सन्दूक़ उठाया करता था; और जो जो मुसीबत मेरे बाप पर आई वह तुझ पर भी आई।"27तब सुलेमान ने अबीयातर को ख़ुदावन्द के कहिन के उहदे से बरतरफ़ किया, ताकि वह~ख़ुदावन्द के उस क़ौल को पूरा करे जो उसने सैला में एली के घराने के हक़ में कहा था।28और यह ख़बर योआब तक पहुँची: क्यूँकि योआब अदूनियाह का तो पैरोकार हो गया था, अगर्चे वह अबीसलोम का पैरोकार नहीं हुआ था। इसलिए योआब ख़ुदावन्द के ख़ेमे को भाग गया, और मज़बह के सींग पकड़ लिए।29~ और सुलेमान बादशाह को ख़बर हुई, "योआब ख़ुदावन्द के ख़ैमे को भाग गया है; और देख, वह मज़बह के पास है।" तब सुलेमान ने यहूयदा' के बेटे बिनायाह को यह कहकर भेजा कि, "जाकर उस पर वार कर।"30~तब बिनायाह ख़ुदावन्द के ख़ैमे को गया, और उसने उससे कहा, "बादशाह यूँ फ़रमाता है कि "तू बाहर निकल आ।" उसने कहा, "नहीं, बल्कि मैं यहीं मरूँगा।" तब बिनायाह ने लौट कर बादशाह को ख़बर दी कि "योआब ने ऐसा कहा है, और उसने मुझे ऐसा जवाब दिया।"31तब बादशाह ने उससे कहा, "जैसा उसने कहा वैसा ही कर, और उस पर वार कर और उसे दफ़्न कर दे; ताकि तू उस ख़ून को जो योआब ने बे वजह बहाया, मुझ पर से और मेरे बाप के घर पर से दूर कर दे।32और ख़ुदावन्द उसका ख़ून उल्टा उसी के सर पर लाएगा, क्यूँकि उसने दो शख़्सों पर जो उससे ज़्यादा रास्तबाज़ और अच्छे थे, या'नी नेर के बेटे अबनेर पर जो इस्राइली लश्कर का सरदार था और यतर के बेटे 'अमासा पर जो यहूदाह की फ़ौज का सरदार था, वार किया और उनको तलवार से क़त्ल किया, और मेरे बाप दाऊद को मा'लूम न था।33इसलिए उनका ख़ून योआब के सर पर और उसकी नसल के सर पर हमेशा तक रहेगा, लेकिन दाऊद पर और उसकी नसल पर और उसके घर पर और उसके तख़्त पर हमेशा तक ख़ुदावन्द की तरफ़ से सलामती होगी।"34~तब यहूयदा' का बेटा बिनायाह गया, और उसने उस पर वार करके उसे क़त्ल किया; और वह वीरान के बीच अपने ही घर में दफ़्न हुआ।35~ और बादशाह ने यहूयदा' के बेटे बिनायाह को उसकी जगह लश्कर पर मुक़र्रर किया; और सदूक़ काहिन को बादशाह ने अबीयातर की जगह रखा |36फिर बादशाह ने सिम्ई को बुला भेजा और उससे कहा कि "यरूशलीम में अपने लिए एक घर बना ले और वहीं रह, और वहाँ से कहीं न जाना;37क्यूँकि जिस दिन तू बाहर निकलेगा और नहर-ए-क़िद्रोन के पार जाएगा, तू यक़ीन जान ले कि तू ज़रूर मारा जाएगा, और तेरा ख़ून तेरे ही सर पर होगा।"38और सिम्ई ने बादशाह से कहा, "यह बात अच्छी है; जैसा मेरे मालिक बादशाह ने कहा है, तेरा ख़ादिम वैसा ही करेगा।" इसलिए सिम्ई बहुत दिनों तक यरूशलीम में रहा।39और तीन साल के आख़िर में ऐसा हुआ कि सिम्ई के नौकरों में से दो आदमी जात के बादशाह अकीस-बिन-मा'काह के यहाँ भाग गए। और उन्होंने सिम'ई को बताया कि, "देख, तेरे नौकर जात में है।”40~तब सिम्'ई ने उठकर अपने गधे पर ज़ीन कसा, और अपने नौकरों की तलाश में जात को अकीस के पास गया; और सिम्'ई जाकर अपने नौकरों को जात से ले आया।41और यह ख़बर सुलेमान को मिली कि सिम्'ई यरूशलीम से जात को गया था और वापस आ गया है,42तब बादशाह ने सिम्'ई को बुला भेजा और उससे कहा, "क्या मैंने तुझे ख़ुदावन्द की क़सम न खिलाई और तुझ को बता न दिया कि, 'यक़ीन जान ले कि जिस दिन तू बाहर निकला और इधर-उधर कहीं गया, तो ज़रूर मारा जाएगा'? और तू ने मुझ से यह कहा कि जो बात मैंने सुनी, वह अच्छी है।'43~इसलिए तूने ख़ुदावन्द की क़सम को, और उस हुक्म को जिसकी मैंने तुझे ताकीद की, क्यूँ न माना?"44और बादशाह ने सिम्'ई से यह भी कहा, "तू उस सारी शरारत को जो तू ने मेरे बाप दाऊद से की, जिससे तेरा दिल वाकिफ़ है जानता है; इसलिए ~ख़ुदावन्द तेरी शरारत को उल्टा तेरे ही सर पर लाएगा।45लेकिन सुलेमान बादशाह मुबारक होगा, और दाऊद का तख़्त ख़ुदावन्द के सामने हमेशा क़ायम रहेगा।"46और बादशाह ने यहूयदा' के बेटे बिनायाह को हुक्म दिया, तब उसने बाहर जाकर उस पर ऐसा वार किया कि वह मर गया। और हुकूमत सुलेमान के हाथ में मज़बूत हो गई।
1~और सुलेमान ने मिस्र के बादशाह फ़िर'औन से रिश्तेदारी की, और फ़िर'औन की बेटी ब्याह ली; और जब तक अपना महल और ख़ुदावन्द का घर और यरूशलीम के चरों तरफ़ दीवार न बना चुका, उसे दाऊद के शहर में लाकर रख्खा।2~ लेकिन लोग ऊँची जगहों में क़ुर्बानी करते थे, क्यूँकि उन दिनों तक कोई घर ख़ुदावन्द के नाम के लिए नहीं बना था।3~और सुलेमान ख़ुदावन्द से मुहब्बत रखता और अपने बाप दाऊद के क़ानून पर चलता था। इतना ज़रूर है कि वह ऊँची जगहों में क़ुर्बानी करता और बख़ूर जलाता था।4और बादशाह जिबा'ऊन को गया ताकि क़ुर्बानी करे, क्यूँकि वह ख़ास ऊँची जगह थी, और सुलेमान ने उस मज़बह पर एक हज़ार सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं।5~जिबाऊन में ख़ुदावन्द रात के वक़्त सुलेमान को ख़्वाब में दिखाई दिया, और ख़ुदावन्द ने कहा, "माँग, मैं तुझे क्या दूँ।”6सुलेमान ने कहा, "तू ने अपने ख़ादिम मेरे बाप दाऊद पर बड़ा एहसान किया, इसलिए कि वह तेरे सामने सच्चाई और सदाक़त और तेरे साथ सीधे दिल से चलता रहा, और तू ने उसके वास्ते यह बड़ा एहसान रख छोड़ा था कि तू ने उसे एक बेटा इनायत किया जो उसके तख़्त पर बैठे, जैसा आज के दिन है।7और अब ऐ ख़ुदावन्द, मेरे ख़ुदा! तू ने अपने ख़ादिम को मेरे बाप दाऊद की जगह बादशाह बनाया है, और मैं छोटा लड़का ही हूँ और मुझे बाहर जाने और भीतर आने का तमीज़ नहीं।8और तेरा ख़ादिम तेरी क़ौम के बीच में है, जिसे तू ने चुन लिया है; वह ऐसी क़ौम है जो कसरत के ज़रिए' न गिनी जा सकती है न शुमार हो सकती है।9तब तू अपने ख़ादिम को अपनी क़ौम का इन्साफ़ करने के लिए समझने वाला दिल 'इनायत कर, ताकि मैं बुरे और भले में फ़र्क़ कर सकूँ; क्यूँकि तेरी इस बड़ी क़ौम का इन्साफ़ कौन कर सकता है?"10और यह बात ख़ुदावन्द को पसन्द आई कि सुलेमान ने यह चीज़ माँगी।11और ख़ुदा ने उससे कहा, "चूँकि तू ने यह चीज़ माँगी, और अपने लिए लम्बी 'उम्र की दरख़्वास्त न की और न अपने लिए दौलत का सवाल किया और न अपने दुश्मनों की जान माँगीं, बल्कि इन्साफ़ पसन्दी के लिए तू ने अपने वास्ते 'अक़्लमन्दी की दरख़्वास्त की है।12इसलिए देख, मैंने तेरी दरख़्वास्त के मुताबिक़ किया; मैंने एक 'अक़्लमन्द ~और समझने वाला दिल तुझ को बख़्शा, ऐसा कि तेरी तरह न तो कोई तुझ से पहले हुआ और न कोई तेरे बा'द तुझ सा पैदा होगा।13और मैंने तुझ को कुछ और भी दिया जो तू ने नही माँगा, या'नी दौलत और 'इज़्ज़त ऐसा कि बादशाहों में तेरी 'उम्र भर कोई तेरी तरह न होगा।14~और अगर तू मेरे रास्तों पर चले, और मेरे क़ानून और मेरे अहकाम को माने जैसे तेरा बाप दाऊद चलता रहा, तो मैं तेरी 'उम्र लम्बी करूँगा।"15~फिर सुलेमान जाग गया, और देखा कि एक ख़्वाब था; और वह यरूशलीम में आया और ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के आगे खड़ा हुआ और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं और अपने सब मुलाज़िमों की दा'वत की।16~उस वक़्त दो 'औरतें जो कस्बियाँ थीं, बादशाह के पास आईं और उसके आगे खड़ी हुईं।17~और एक 'औरत कहने लगी, "ऐ मेरे मालिक! मैं और यह 'औरत दोनों एक ही घर में रहती हैं; और इसके साथ घर में रहते हुए मेरे एक बच्चा हुआ।18~और मेरे जच्चा हो जाने के बा'द, तीसरे दिन ऐसा हुआ कि यह 'औरत भी ज़च्चा हो गई; और हम एक साथ ही थीं कोई गैर-शख़्स उस घर में न था, सिवा हम दोनों के जो घर ही में थीं।19और इस 'औरत का बच्चा रात को मर गया, क्यूँकि यह उसके ऊपर ही लेट गई थी।20तब यह आधी रात को उठी; और जिस वक़्त तेरी लौड़ी सोती थी। मेरे बेटे को मेरी बग़ल से लेकर अपनी गोद में लिटा लिया, और अपने मरे हुए बच्चे को मेरी गोद में डाल दिया।21सुबह को जब मैं उठी कि अपने बच्चे को दूध पिलाऊँ, तो क्या देखती हूँ कि वह मरा पड़ा है; लेकिन जब मैंने सुबह को ग़ौर किया, तो देखा कि यह मेरा लड़का नहीं है जो मेरे हुआ था।22”फिर वह दूसरी 'औरत कहने लगी, "नहीं, यह जो ज़िन्दा है मेरा बेटा है और मरा हुआ तेरा बेटा है।” इसने जवाब दिया, "नहीं, मरा हुआ तेरा बेटा है और ज़िन्दा मेरा बेटा है।" तब वह बादशाह के सामने इसी तरह कहती रहीं।23तब बादशाह ने कहा, "एक कहती है, 'यह जो ज़िन्दा है मेरा बेटा है, और जो मर गया है वह तेरा बेटा है, " और दूसरी कहती है, 'नहीं, बल्कि जो मर गया है वह तेरा बेटा है, और जो ज़िन्दा है वह मेरा बेटा है।"24तब बादशाह ने कहा, "मुझे एक तलवार ला दो।" तब वह बादशाह के पास तलवार ले आए।"25फिर बादशाह ने फ़रमाया, "इस जीते बच्चे को चीर कर दो टुकड़े कर डालो, और आधा एक को और आधा दूसरी को दे दो।"26तब उस 'औरत ने जिसका वह ज़िन्दा बच्चा था बादशाह से दरख़्वास्त की, क्यूँकि उसके दिल में अपने बेटे की ममता थी, तब वह कहने लगी, 'ऐ मेरे मालिक! यह ज़िन्दा बच्चा उसी को दे दे, लेकिन उसे जान से न मरवा।" लेकिन दूसरी ने कहा, 'यह न मेरा हो न तेरा, उसे चीर डालो।"27तब बादशाह ने हुक्म किया, "ज़िन्दा बच्चा उसी को दो, और उसे जान से न मारो; क्यूँकि वही उसकी माँ है।"28और सारे इस्राईल ने यह इन्साफ़ जो बादशाह ने किया सुना, और वह बादशाह से डरने लगे; क्यूँकि उन्होंने देखा कि 'अदालत करने के लिए ख़ुदा की हिकमत उसके दिल में है।
1और सुलेमान बादशाह तमाम इस्राईल का बादशाह था।2और जो सरदार उसके पास थे, वह यह थे: सदूक़ का बेटा अज़रियाह काहिन,3और सीसा के बेटे इलीहोरिफ़ और अख़ियाह मुंशी थे, और अख़ीलूद का बेटा यहूसफ़त मुवर्रिख़ था;4और यहूयदा' का बेटा बिनायाह लश्कर का सरदार, और सदूक़ और अबीयातर काहिन थे;5और नातन का बेटा अज़रियाह मन्सबदारों का दारोग़ा था, और नातन का बेटा ज़बूद काहिन और बादशाह का दोस्त था;6और अख़ीसर महल का दीवान, और 'अबदा का बेटा अदूनिराम बेगार का मुन्सरिम था।7और सुलेमान ने सब इस्राईल पर बारह मन्सबदार मुक़र्रर किए, जो बादशाह और उसके घराने के लिए ख़ुराक पहुँचाते थे। हर एक को साल में महीना भर ख़ूराक पहुँचानी पड़ती थी।8उनके नाम यह हैं: इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में बिनहूर;9और मक़स और सा'लबीम और बैतशम्स~और ऐलोन बैतहनान में बिन दिक़र10और अरबूत में बिन हसद था, और शोकह और हिफ़र की सारी सर-ज़मीन उसके 'इलाक़े में थी;11और दोर के सारे मुर्तफ़ा' इलाक़े में बिन अबीनदाब था, और सुलेमान की बेटी ताफ़त उसकी बीवी थी;12और अख़ीलूद का बेटा बा'ना था, जिसके ज़िम्मा ता'नाक और मजिद्दो और सारा बैतशान था, जो ज़रतान से मुत्तसिल और यज़रएल के नीचे बैतशान से अबीलमहूला तक या'नी युक़म'आम से उधर तक था;13और बिन जबर रामात जिल'आद में था, और मनस्सी के बेटे याईर की बस्तियाँ जो जिल'आद में हैं उसके ज़िम्मा थीं, और बसन में अरजूब का 'इलाक़ा भी इसी के ज़िम्मा था जिसमें साठ बड़े शहर थे जिनकी शहर पनाहें और पीतल के बेंडे थे;14और इददु का बेटा अख़ीनदाब महनायम में था;15और अख़ीमा'ज़ नफ़्ताली में था, इसने भी सुलेमान की बेटी बसीमत को ब्याह लिया था;16~और हूसी का बेटा बा'ना आशर और 'अलोत में था;17~और फ़रूह का बेटा यहूसफ़त इश्कार में था;18~ और ऐला का बेटा सिम्ई बिनयमीन में था;19~और ऊरी का बेटा जबर जिल'आद के 'इलाक़े में था, जो अमोरियों के बादशाह सीहोन और बसन के बादशाह 'ओज का मुल्क था, उस मुल्क का वही अकेला मन्सबदार था।20और यहूदाह और इस्राईल के लोग कसरत में समुन्दर के किनारे की रेत की तरह थे, और खाते-पीते और ख़ुश रहते थे।21और सुलेमान दरिया-ए-फ़ुरात से फ़िलिस्तियों के मुल्क तक, और मिस्र की सरहद तक सब हुकूमतों पर हाकिम था। वह उसके लिए हदिये लाती थीं, और सुलेमान की उम्र भर उसकी फ़रमाबरदार रहीं।22~और सुलेमान की एक दिन की ख़ुराक यह थी: तीस कोर मैदा और साठ कोर आटा,23और दस मोटे-मोटे बैल और चराई पर के बीस बैल, एक सौ भेड़े, और इनके 'अलावा चिकारे और हिरन और छोटे हिरन और मोटे ताज़ा मुर्ग़।24क्यूँकि वह दरिया-ए- फ़ुरात की इस तरफ़ के सब मुल्क पर, तिफ़सह से ग़ज़्ज़ा तक, या'नी सब बादशाहों पर जो दरिया-ए-फ़ुरात की इस तरफ़ थे फ़रमानरवा था, और उसके चारों तरफ़ सब पास पड़ोस में सबसे उसकी सुलह थी।25~ और सुलेमान की 'उम्र भर यहूदाह और इस्राईल का एक-एक आदमी अपनी ताक और अपने अंजीर के दरख़्त के नीचे, दान से बैरसबा' तक अमन से रहता था।26और सुलेमान के यहाँ उसके रथों के लिए चालीस हज़ार थान और बारह हज़ार सवार थे'।27~ और उन मन्सबदारों में से हर एक अपने महीने में सुलेमान बादशाह के लिए, और उन सबके लिए जो सुलेमान बादशाह के दस्तरख़्वान पर आते थे, ख़ूराक पहुँचाता था; वह किसी चीज़ की कमी न होने देते थे।28~ और लोग अपने-अपने फ़र्ज़ के मुताबिक़ घोड़ों और तेज़ रफ़्तार समन्दों के लिए जौ और भूसा उसी जगह ले आते थे जहाँ वह मन्सबदार होते थे।29और ख़ुदा ने सुलेमान को हिकमत और समझ बहुत ही ज़्यादा, और दिल की बड़ाई भी 'इनायत की जैसी समुन्दर के किनारे की रेत होती है।30और सुलेमान की हिकमत सब अहल-ए-मशरिक़ की हिकमत, और मिस्र की सारी हिकमत पर फ़ोक़ियत रखती थी;31~इसलिए कि वह सब आदमियों से, बल्कि अज़राखी ऐतान और हैमान और कलकूल और दरदा' से, जो बनी महूल थे, ज़्यादा दानिशमन्द था; और चारों तरफ़ की सब क़ौमों में उसकी शोहरत थी।32और उसने तीन हज़ार मिसालें कहीं और उसके एक हज़ार पाँच गीत थे;33और उसने दरख़्तों का, या'नी लुबनान के देवदार से लेकर जूफ़ा तक का जो दीवारों पर उगता है, बयान किया;और चौपायों और परिन्दों और रेंगने वाले जानदारों और मछलियों का भी बयान किया।34और सब क़ौमों में से ज़मीन के सब बादशाहों की तरफ़ से जिन्होंने उसकी हिकमत की शोहरत सुनी थी, लोग सुलेमान की हिकमत को सुनने आते थे।
1और सूर के बादशाह हीराम ने अपने ख़ादिमों को सुलेमान के पास भेजा, क्यूँकि उसने सुना था कि उन्होंने उसे उसके बाप की जगह मसह करके बादशाह बनाया है; इसलिए कि हीराम हमेशा दाऊद का दोस्त रहा था।2और सुलेमान ने हीराम को कहला भेजा,3"तू जानता है कि मेरा बाप दाऊद, ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम के लिए घर न बना सका; क्यूँकि उसके चारों ओर हर तरफ़ लड़ाइयाँ होती रहीं, जब तक कि ख़ुदावन्द ने उन सब को उसके पाँवों के तलवों के नीचे न कर दिया।4और अब ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा ने मुझ को हर तरफ़ अमन दिया है; न तो कोई मुख़ालिफ़ है, न आफ़त की मार।5इसलिए देख, ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाने का मेरा इरादा है, जैसा ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा था, 'तेरा बेटा, जिसको मैं तेरी जगह तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा, वही मेरे नाम के लिए घर बनाएगा।'6इसलिए अब तू हुक्म कर कि वह मेरे लिए लुबनान से देवदार के दरख़्तों को काटें; और मेरे मुलाज़िम तेरे मुलाज़िमों के साथ रहेंगे, और मैं तेरे मुलाज़िमों के लिए जितनी मज़दूरी तू कहेगा तुझे दूँगा; क्यूँकि तू जानता है कि हम में ऐसा कोई नहीं जो सैदानियों की तरह लकड़ी काटना जानता हो।"7~जब हीराम ने सुलेमान की बातें सुनी, तो बहुत ही ख़ुश हुआ और कहने लगा कि "आज के दिन ख़ुदावन्द मुबारक हो, जिसने दाऊद को इस बड़ी क़ौम के लिए एक 'अक़्लमन्द बेटा बख़्शा।"8~और हीराम ने सुलेमान को कहला भेजा कि "जो पैग़ाम तू ने मुझे भेजा मैंने उसको सुन लिया है, और मैं देवदार की लकड़ी और सनोबर की लकड़ी के बारे में तेरी मर्ज़ी पूरी करूँगा।9~मेरे मुलाज़िम उनको लुबनान से उतारकर समुन्दर तक लाएँगे, और मैं उनके बेड़े बन्धवा दूँगा; ताकि समुन्दर ही समुन्दर उस जगह जाएँ जिसे तू ठहराए। और वहाँ उनको खुलवा दूँगा, फिर तू उनको ले लेना, और तू मेरे घराने के लिए ख़ुराक देकर मेरी मर्ज़ी पूरी करना।10~ फिर हीराम ने सुलेमान को उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ देवदार की लकड़ी और सनोबर की लकड़ी दी;11~और सुलेमान ने हीराम को उसके घराने के खाने के लिए बीस हज़ार कोर' गेहूँ और बीस कोर ख़ालिस तेल दिया; इसी तरह सुलेमान हीराम को ~हर साल देता रहा।12और ख़ुदावन्द ने सुलेमान को, जैसा उसने उससे वा'दा किया था हिकमत बख़्शी; और हीराम और सुलेमान के दर्मियान सुलह थी, और उन दोनों ने बाहम 'अहद बाँध लिया।13और सुलेमान बादशाह ने सारे इस्राईल में से बेगारी लगाए, वह बेगारी ~तीस हज़ार आदमी थे,14और वह हर महीने उनमें से दस-दस हज़ार को बारी-बारी से लुबनान भेजता था। तब वह एक महीने लुबनान पर और दो महीने अपने घर रहते; और अदूनिराम उन बेगारियों के ऊपर था।15और सुलेमान के सत्तर हज़ार बोझ उठाने वाले, और अस्सी हज़ार दरख़्त काटने वाले पहाड़ों में थे।16इनके 'अलावा सुलेमान के तीन हज़ार तीन सौ ख़ास मन्सबदार थे, जो इस काम पर मुख़्तार थे और उन लोगों पर जो काम करते थे सरदार थे।17और बादशाह के हुक्म से वह बड़े बड़े बेशक़ीमत पत्थर निकाल कर लाए, ताकि घर की बुनियाद घड़े हुए पत्थरों की डाली जाए।18और सुलेमान के राजगीरों, और हीराम के राजगीरों, और जिबलियों ने उनको तराशा और घर की ता'मीर के लिए लकड़ी और पत्थरों को तैयार किया।
1और बनी-इस्राईल के मुल्क-ए-मिस्र से निकल आने के बा'द चार सौ अस्सीवें साल, इस्राईल पर सुलेमान की हुकूमत के चौथे साल, ज़ीव के महीने में जो दूसरा महीना है, ऐसा हुआ कि उसने ख़ुदावन्द का घर बनाना शुरू' किया।2और जो घर सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द के लिए बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ' और चौड़ाई बीस हाथ और ऊँचाई तीस हाथ थी।3और उस घर की हैकल के सामने एक बरआमदा, उस घर की चौड़ाई के मुताबिक़ बीस हाथ लम्बा था, और उस घर के सामने उसकी चौड़ाई दस हाथ थी।4और उसने उस घर के लिए झरोके बनाए जिनमें जाली जड़ी हुई थी।5और उसने चारों तरफ़ घर की दीवार से लगी हुई, या'नी हैकल और इल्हामगाह की दीवारों से लगी हुई, चारों तरफ़ मन्ज़िलें बनाई और हुजरे भी~चारों तरफ़~बनाए।6सबसे निचली मन्ज़िल पाँच हाथ चौड़ी, और बीच की छ: हाथ चौड़ी, और तीसरी सात हाथ चौड़ी थी; क्यूँकि उसने घर की दीवार के चारों तरफ़ बाहर के रुख पुश्ते बनाए थे, ताकि कड़ियाँ घर की दीवारों को पकड़े हुए न हों।7और वह घर जब ता'मीर हो रहा था, तो ऐसे पत्थरों का बनाया गया जो कान पर तैयार किए जाते थे; इसलिए उसकी ता'मीर के वक़्त न मार तोल, न कुल्हाड़ी, न लोहे के किसी औज़ार की आवाज़ उस घर में सुनाई दी।8और बीच के हुजरों का दरवाज़ा उस घर की दहनी तरफ़ था, और चक्करदार सीढ़ियों से बीच की मन्ज़िल के हुजरों में, और बीच की मन्ज़िल से तीसरी मन्ज़िल को जाया करते थे।9तब उसने वह घर बनाकर उसे पूरा किया, और उस घर को देवदार के शहतीरों और तख़्तों से पाटा।10और उसने उस पूरे घर से लगी हुई पाँच-पाँच हाथ ऊँची मन्ज़िलें बनाई, और वह देवदार की लकड़ियों के सहारे उस घर पर टिकी हुई थीं।11और ख़ुदावन्द का कलाम सुलेमान पर नाज़िल हुआ,12~"यह घर जो तू बनाता है, इसलिए अगर तू मेरे क़ानून पर चले और मेरे हुक्मों को पूरा करे और मेरे फ़रमानों को मानकर उन पर 'अमल करे, तो मैं अपना वह क़ौल जो मैंने तेरे बाप दाऊद से किया तेरे साथ क़ायम रखूँगा।13और मैं बनी-इस्राईल के दर्मियान रहूँगा और अपनी क़ौम इस्राईल को तर्क न करूँगा।"14~इसलिए सुलेमान ने वह घर बनाकर उसे पूरा किया।15और उसने अन्दर घर की दीवारों पर देवदार के तख़्ते लगाए। इस घर के फ़र्श से छत की दीवारों तक उसने उन पर लकड़ी लगाई, और उसने उस घर के फ़र्श को सनोबर के तख़्तों से पाट दिया।16और उसने उस घर के पिछले हिस्से में बीस हाथ तक, फ़र्श से दीवारों तक देवदार के तख़्ते लगाए, उसने इसे उसके अन्दर बनाया ताकि वह इल्हामगाह या'नी पाकतरीन मकान हो।17और वह घर या'नी इल्हामगाह के सामने की हैकल चालीस हाथ लम्बी थी।18और उस घर के अन्दर-अन्दर देवदार था, जिस पर लट्टू और खिले हुए फूल खुदे हुए थे; सब देवदार ही था और पत्थर अलग नज़र नहीं आता था।19और उसने उस घर के अन्दर बीच में इलहामगाह तैयार की, ताकि ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ वहाँ रख्खा जाए।20और इल्हामगाह अन्दर ही अन्दर से बीस हाथ लम्बी और बीस हाथ चौड़ी और बीस हाथ ऊँची थी; और उसने उस पर ख़ालिस सोना मंढा, और मज़बह को देवदार से पाटा।21और सुलेमान ने उस घर को अन्दरअन्दर ख़ालिस सोने से मंढा, और इल्हामगाह के सामने उसने सोने की ज़जीरें तान दीं और उस पर भी सोना मंढा।22और उस पूरे घर को, जब तक कि वह सारा घर पूरा न हो गया, उसने सोने से मंढा; और इल्हामगाह के पूरे मज़बह पर भी उसने सोना मंढा।23और इल्हामगाह में उसने ज़ैतून की लकड़ी के दो करूबी दस-दस हाथ ऊँचे बनाए।24और करूबी का एक बाज़ू पाँच हाथ का और उसका दूसरा बाज़ू भी पाँच ही हाथ का था; एक बाज़ू के सिरे से दूसरे बाज़ू के सिरे तक दस हाथ का फ़ासला था।25और दस ही हाथ का दूसरा करूबी था; दोनों करूबी एक ही नाप और एक ही सूरत के थे।26एक करूबी की ऊंचाई दस हाथ थी, और इतनी ही दूसरे करूबी की थी।27और उसने दोनों करूबियों को भीतर के मकान के अन्दर रखा; और करूबियों के बाज़ू फैले हुए थे, ऐसा कि एक का बाज़ू एक दीवार से, और दूसरे का बाज़ू दूसरी दीवार से लगा हुआ था; और इनके बाज़ू घर के बीच में एक दूसरे से मिले हुए थे।28और उसने करूबियों पर सोना मंढा।29उसने उस घर की सब दीवारों पर, चारों तरफ़ अन्दर और बाहर करूबियों और खजूर के दरख़्तोंऔर खिले हुए फूलों की खुदी हुई सूरतें कन्दा की।30और उस घर के फ़र्श पर उसने अन्दर और बाहर सोना मंढा।31और इलहामगाह में दाख़िल होने के लिए उसने ज़ैतून की लकड़ी के दरवाज़े बनाए: ऊपर की चौखट और बाज़ुओं का चौड़ाई ~दीवार का पाँचवा हिस्सा था।32दोनों दरवाज़े ज़ैतून की लकड़ी के थे; और उसने उन पर करूबियों और खजूर के दरख़्तों और खिले हुए फूलों की खुदी हुई सूरतें कन्दा कीं, और उन पर सोना मंढा और इस सोने को करूबियों पर और खजूर के दरख़्तों पर फैला दिया।33~ऐसे ही हैकल में दाख़िल होने के लिए उसने ज़ैतून की लकड़ी की चौखट बनाई, जो दीवार का चौथा हिस्सा थी।34~और सनोबर की लकड़ी के दो दरवाज़े थे; एक दरवाज़े के दोनों पट दुहरे हो जाते, और दूसरे दरवाज़े के भी दोनों पट दुहरे हो जाते थे।35~ और इन पर करूबियों और खजूर के दरख़्तोंऔर खिले हुए फूलों को उसने खुदवाया, और खुदे हुए काम पर सोना मंढा।36और अन्दर के सहन की तीन सफ़े तराशे हुए पत्थर की बनाई, और एक सफ़ देवदार के शहतीरों की।37चौथे साल ज़ीव के महीने में ख़ुदावन्द के घर की बुनियाद डाली गई;38और ग्यारहवें साल बूल के महीने में, जो आठवाँ महीना है, वह घर अपने सब हिस्सों समेत अपने नक़्शे के मुताबिक़ बनकर तैयार हुआ। ऐसा उसको बनाने में उसे सात साल लगे।
1और सुलेमान तेरह साल अपने महल की ता'मीर में लगा रहा, और अपने महल को ख़त्म किया;2क्यूँकि उसने अपना महल लुबनान के बन की लकड़ी का बनाया, उसकी लम्बाई सौ हाथ और चौड़ाई पचास हाथ और ऊँचाई तीस हाथ थी, और वह देवदार के सुतूनों की चार क़तारों पर बना था; और सुतूनों पर देवदार के शहतीर थे|3और वह पैंतालीस शहतीरों के ऊपर जो सुतूनों पर टिके थे, पाट दिया गया था। हर क़तार में पन्द्रह शहतीर थे।4और खिड़कियों की तीन क़तारें थी, और तीनों क़तारों में हर एक रोशनदान दूसरे रोशनदान के सामने था।5और सब दरवाज़े और चौखटें मुरब्बा' शक्ल की थीं, और तीनों क़तारों में हर एक रोशनदान दूसरे रोशनदान के सामने था।6और उसने सुतूनों का बरआमदा बनाया; उसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ, और इनके सामने एक डयोढ़ी थी, और इनके आगे सुतून और मोटे-मोटे शहतीर थे।7और उसने तख़्त के लिए एक बरआमदा, या'नी 'अदालत का बरआमदा बनाया जहाँ वह 'अदालत कर सके; और फ़र्श-से- फ़र्श तक उसे देवदार से पाट दिया।8और उसके रहने का महल जो उसी बरआमदे के अन्दर दूसरे सहन में था, ऐसे ही काम का बना हुआ था। और सुलेमान ने फ़िर'औन की बेटी के लिए, जिसे उसने ब्याहा था, उसी बरआमदे के तरह का एक महल बनाया9~यह सब अन्दर और बाहर बुनियाद से मुन्डेर तक बेशक़ीमत पत्थरों, या'नी तराशे हुए पत्थरों के बने हुए थे, जो नाप के मुताबिक़ आरों से चीरे गए थे, और ऐसा ही बाहर बाहर बड़े सहन तक था।10और बुनियाद बेशक़ीमत पत्थरों, या'नी बड़े-बड़े पत्थरों की थी; यह पत्थर दस-दस हाथ और आठ-आठ हाथ के थे।11और ऊपर नाप के मुताबिक़ बेशक़ीमत पत्थर, या'नी घड़े हुए पत्थर और देवदार की लकड़ी लगी हुई थी।12और बड़े सहन में चारों तरफ़ घड़े हुए पत्थरों की तीन क़तारें और देवदार के शहतीरों की एक क़तार, वैसी ही थी जैसी ख़ुदावन्द के घर के अन्दरूनी सहन और उस घर के बरआमदे में थी।13~फिर सुलेमान बादशाह ने सूर से हीराम को बुलवा लिया।14वह नफ़्ताली के क़बीले की एक बेवा 'औरत का बेटा था, और उसका बाप सूर का बाशिन्दा था और ठठेरा था; और वह पीतल के सब काम की कारीगरी में हिकमत और समझ और महारत रखता था। इसलिए ~उसने सुलेमान बादशाह के पास आकर उसका सब काम बनाया।15क्यूँकि उसने अठारह-अठारह हाथ ऊँचे पीतल के दो सुतून बनाए, और एक-एक का घेर बारह हाथ के सूत के बराबर था (यह अन्दर से खोखले और इसके पीतल की मोटाई चार उंगल थी)।16और उसने सुतूनों की चोटियों पर रखने के लिए पीतल ढाल कर दो ताज बनाये एक ताज की ऊँचाई पाँच और दूसरे ताज की ऊँचाई भी पाँच हाथ थी।17और उन ताजों के लिए जो सुतूनों की चोटियों पर थे, चारखाने की जालियाँ और जंजीरनुमा हार थे, सात एक ताज के लिए और सात दूसरे ताज के लिए।18तब उसने वह सुतून बनाए, और सुतूनों' की चोटी के ऊपर के ताजों को ढाँकने के लिए एक जाली के काम पर चारों तरफ़ दो क़तारें थीं, और दूसरे ताज के लिए भी उसने ऐसा ही किया।19और उन चार-चार हाथ के ताजों पर जो बरआमदे के सुतूनों की चोटी पर थे सोसन का काम था;20और उन दोनों सुतूनों पर, ऊपर की तरफ़ भी जाली के बराबर की गोलाई के पास ताज बने थे; और उस दूसरे ताज पर क़तार दर क़तार चारों तरफ़ दो सौ अनार थे।21और उसने हैकल के बरआमदे में वह सुतून खड़े किए; और उसने दहने सुतून को खड़ा करके उसका नाम याकिन" रखा, और बाएँ सुतून को खड़ा करके उसका नाम बो'अज़र रखा।22और सुतूनों की चोटी पर सोसन का काम था; ऐसे सुतूनों का काम ख़त्म हुआ।23फिर उसने ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया, वह एक किनारे से दूसरे किनारे तक दस हाथ था; वह गोल था, और ऊँचाई उसकी पाँच हाथ थी, और उसका घेर चारों तरफ़ तीस हाथ के सूत के बराबर था।24~और उसके किनारे के नीचे चारों तरफ़ दसों हाथ तक लट्टू थे, जो उसे या'नी बड़े हौज़ को घेरे हुए थे; यह लट्टू दो क़तारों में थे, और जब वह ढाला गया तब ही यह भी ढाले गए थे।25और वह बारह बैलों पर रखा गया; तीन के मुँह शिमाल की तरफ़, और तीन के मुँह मग़रिब की तरफ़, और तीन के मुँह जुनूब की तरफ़, और तीन के मुँह मशरिक़ की तरफ़ थे; और वह बड़ा हौज़ उन ही पर ऊपर की तरफ़ था, और उन सभों का पिछला धड़ अन्दर के रुख़ था।26और दिल उसका चार उंगल था, और उसका किनारा प्याले के किनारे की तरह गुल-ए-सोसन की तरह था, और उसमें दो हज़ार बत की समाई थी।27और उसने पीतल की दस कुर्सियाँ बनाई, एक एक कुर्सी की लम्बाई चार हाथ और चौड़ाई चार हाथ और उँचाई तीन हाथ थी।28और उन कुर्सियों की कारीगरी इस तरह की थीं; इनके हाशिये थे, और पटरों के दर्मियान भी हाशिये थे;29और उन हाशियों पर जो पटरों के दर्मियान थे, शेर और बैल और करूबी बने थे; और उन पटरों पर भी एक कुर्सी ~ऊपर की तरफ़ थी, और शेरों और बैलों के नीचे लटकते काम के हार थे।30और हर कुर्सी ~के लिए चार चार पीतल के पहिये और पीतल ही के धुरे थे, और उसके चारों पायों में टेकें लगी थीं; यह ढली हुई टेकें हौज़ के नीचे थीं, और हर एक के पहलू में हार बने थे।31और उसका मुँह ताज के अन्दर और बाहर एक हाथ था, और वह मुँह डेढ़ हाथ था और उसका काम कुर्सी के काम की तरह गोल था; और उसी मुँह पर नक़्क़ाशी का काम था और उनके हाशिये गोल नहीं बल्कि चौकोर थे।32और वह चारों पहिये हाशियों के नीचे थे, और पहियों के धुरे कुर्सी ~में लगे थे; और हर पहिये की उँचाई डेढ़ हाथ थी।33और पहियों का काम रथ के पहिये के जैसा था, और उनके धुरे और उनकी पुठियाँ और उनके आरे और उनकी नाभें सब के सब ढाले हुए थे।34और हर कुर्सी ~के चारों कोनों पर चार टेकें थीं, और टेकें और कुर्सी ~एक ही टुकड़े की थीं।35और हर कुर्सी के सिरे पर आध हाथ ऊँची चारों तरफ़ गोलाई थी, और कुर्सी ~के सिरे की कंगनियाँ और हाशिये उसी के टुकड़े के थे।36और उसकी कंगनियों के पाटों पर और उसके हाशियों पर उसने करूबियों और शेरों और खजूर के दरख़्तों को, हर एक की जगह के मुताबिक़ कन्दा किया, और चारों तरफ़ हार थे।37दसों कुर्सियों को उसने इस तरह बनाया, और उन सबका एक ही साँचा और एक ही नाप और एक ही सूरत थी।38और उसने पीतल के दस हौज़ बनाए, हर एक हौज़ में चालीस बत की समाई थी; और हर एक हौज़ चार हाथ का था; और उन दसों कुर्सियों में से हर एक पर एक हौज़ था।39उसने पाँच कुर्सियाँ घर की दहनी तरफ़, और पाँच घर की बाई तरफ़ रखीं, और बड़े हौज़ को घर के दहने मशरिक़ की तरफ़ जुनूब के रुख़ पर रख्खा।40हीराम ने हौज़ों और बेलचों और कटोरों को भी बनाया। इसलिए हीराम ने वह सब काम जिसे वह सुलेमान बादशाह की ख़ातिर ख़ुदावन्द के घर में बना रहा था पूरा किया;41या'नी दोनों सुतून और सुतूनों की चोटी पर ताजों के दोनों प्याले, और सुतूनों की चोटी पर के ताजों के दोनों प्यालों की ढाँकने की दोनों जालियाँ;42और दोनों जालियों के लिए चार सौ अनार, या'नी सुतूनों पर के ताजों के दोनों प्यालों के ढाँकने की हर जाली के लिए अनारों की दो दो क़तारें;43और दसों कुर्सियाँ और दसों कुर्सियों पर के दसों हौज़;44~और वह बड़ा हौज़ और बड़े हौज़ के नीचे के बारह बैल;45~ और वह देगें और बेल्चे और कटोरे। यह सब बर्तन ~जो हीराम ने सुलेमान बादशाह की ख़ातिर ख़ुदावन्द के घर में बनाए, झलकते हुए पीतल के थे।46~ बादशाह ने उन सबको यरदन के मैदान में सुकात और ज़रतान के बीच की चिकनी मिट्टी वाली ज़मीन में ढाला।47~और सुलेमान ने उन सब बर्तन ~को बगै़र तोले छोड़ दिया, क्यूँकि वह बहुत से थे; इसलिए ~उस पीतल का वज़न मा'लूम न हो सका।48~और सुलेमान ने वह सब बर्तन बनाए जो ख़ुदावन्द के घर में थे, या'नी वह सोने का मज़बह, और सोने की मेज़ जिस पर नज़र ~की रोटी रहती थी,49~और ख़ालिस सोने के वह शमा'दान जो इल्हामगाह के आगे पाँच दहने और पाँच बाएँ थे, और सोने के फूल और चिराग, और चिमटे;50~और ख़ालिस सोने के प्याले और गुलतराश और कटोरे और चमचे और ऊदसोज़; और अन्दरूनी घर, या'नी पाकतरीन मकान के दरवाज़े के लिए और घर के या'नी हैकल के दरवाज़े के लिए सोने के क़ब्ज़े।51~ऐसे वह सब काम जो सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द के घर में बनाया ख़त्म हुआ; और सुलेमान अपने बाप दाऊद की मख़्सूस की हुई चीज़ो, या'नी सोने और चाँदी और बर्तनों को अन्दर लाया, और उनको ख़ुदावन्द के घर के खज़ानों में रखा।
1तब सुलेमान ने इस्राईल के बुज़ुगों और क़बीलों के सब सरदारों को, जो बनी इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के रईस थे, अपने पास यरूशलीम में जमा' किया ताकि वह दाऊद के शहर से, जो सिय्यून है, ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को ले आएँ।2~ इसलिए उस 'ईद में इस्राईल के सब लोग माह-ए-ऐतानीम में, जो सातवाँ महीना है, सुलेमान बादशाह के पास जमा' हुए।3और इस्राईल के सब बुज़ुर्ग आए, और काहिनों ने सन्दूक़ उठाया।4~और वह ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को, और ख़ेमा-ए- इजितमा'अ को, और उन सब मुक़द्दस बर्तनों ~को जो ख़ेमे के अन्दर थे ले आए; उनको काहिन और लावी लाए थे।5~और सुलेमान बादशाह ने और उसके साथ इस्राईल की सारी जमा'अत ने, जो उसके पास जमा' थी, सन्दूक़ के सामने खड़े होकर इतनी भेड़-बकरियाँ और बैल ज़बह किए कि ~उनको कसरत की वजह से उनकी गिनती या हिसाब न हो सका।6~और काहिन ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को उसकी जगह पर, उस घर की इल्हामगाह में, या'नी पाकतरीन मकान में 'ऐन करूबियों के बाज़ुओं के नीचे ले आए।7~ क्यूँकि करूबी अपने बाज़ुओं को सन्दूक़ की जगह के ऊपर फैलाए हुए थे, और वह करूबी सन्दूक़ को और उसकी चोबों को ऊपर से ढाँके हुए थे।8~ और वह चोबें ऐसी लम्बी थीं के उन चोंबों के सिरे पाक मकान से इल्हामगाह के सामने दिखाई देते थे, लेकिन बाहर से नहीं दिखाई देते थे। और वह आज तक वहीं हैं।9~उस सन्दूक़ में कुछ न था सिवा पत्थर की उन दो लौहों के जिनको वहाँ मूसा ने होरिब में रख दिया था, जिस वक़्त के ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल से जब वह मुल्क-ए-मिस्र से निकल आए, 'अहद बाँधा था।10~फिर ऐसा हुआ कि जब काहिन पाक मकान से बाहर निकल आए, तो ख़ुदावन्द का घर अब्र से भर गया:11~इसलिए काहिन उस अब्र की वजह से ख़िदमत के लिए खड़े न हो सके, इसलिए कि ख़ुदावन्द का घर उसके जलाल से भर गया था।12~तब सुलेमान ने कहा कि ~"ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था कि वह गहरी तारीकी में रहेगा।13~मैंने हक़ीक़त में ~एक घर तेरे रहने के लिए, बल्कि तेरी हमेशा की सुकूनत के वास्ते एक जगह बनाई है।”14~और बादशाह ने अपना मुँह फेरा और इस्राईल की सारी जमा'अत को बरकत दी, और इस्राईल की सारी जमा'अत खड़ी रही;15~और उसने कहा कि "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो! जिसने अपने मुँह से मेरे बाप दाऊद से कलाम किया, और उसे अपने हाथ से यह कह कर पूरा किया कि |16~"जिस दिन से मैं अपनी क़ौम इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया, मैंने इस्राईल के सब क़बीलों में से भी किसी शहर को नहीं चुना कि एक घर बनाया जाए, ताकि मेरा नाम वहाँ हो; लेकिन मैंने दाऊद को चुन लिया कि वह मेरी क़ौम इस्राईल पर हाकिम हो।'17~ और मेरे बाप दाऊद के दिल में था कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाए।18~लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा, 'चूँकि मेरे नाम के लिए एक घर बनाने का ख़्याल तेरे दिल में था, तब तू ने अच्छा किया कि अपने दिल में ऐसा ठाना;19~तोभी तू उस घर को न बनाना, बल्कि तेरा बेटा जो तेरे सुल्ब से निकलेगा वह मेरे नाम के लिए घर बनाएगा।'20~और ख़ुदावन्द ने अपनी बात, जो उसने कही थी, क़ायम की है; क्यूँकि मैं अपने बाप दाऊद की जगह उठा हूँ, और जैसा ख़ुदावन्द ने वा'दा किया था, मैं इस्राईल के तख़्त पर बैठा हूँ और मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए उस घर को बनाया है।21~और मैंने वहाँ एक जगह उस सन्दूक़ के लिए मुक़र्रर कर दी है, जिसमें ख़ुदावन्द का वह 'अहद है जो उसने हमारे बाप-दादा से, जब वह उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, बाँधा था।"22~और सुलेमान ने इस्राईल की सारी जमा'अत के सामने ख़ुदावन्द के मज़बह के आगे खड़े होकर अपने हाथ आसमान की तरफ़ फ़ैलाए23~और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा ! तेरी तरह न तो ऊपर आसमान में, न नीचे ज़मीन पर कोई ख़ुदा है; तू अपने उन बन्दों के लिए जो तेरे सामने अपने सारे दिल से चलते हैं, 'अहद और रहमत को निगाह रखता है।24~तू ने अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के हक़ में वह बात क़ायम रख्खी, जिसका तू ने उससे वा'दा किया था; तू ने अपने मुँह से फ़रमाया और अपने हाथ से उसे पूरा किया, जैसा आज के दिन है।25~ इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा! तू अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के साथ उस क़ौल को भी पूरा कर जो तूने उससे किया था कि 'तेरे आदमियों से मेरे सामने इस्राईल के तख़्त पर बैठने वाले की कमी न होगी; बशर्ते कि तेरी औलाद, जैसे तू मेरे सामने चलता रहा वैसे ही मेरे सामने चलने के लिए, अपने रास्ते की एहतियात रखखे।26~इसलिए अब ऐ इस्राईल के खुदा, तेरा वह क़ौल सच्चा साबित किया जाए, जो तू ने अपने बन्दे मेरे बाप दाऊद से किया।27~"लेकिन क्या ख़ुदा ~हक़ीक़त में ज़मीन पर सुकूनत करेगा? देख, आसमान बल्कि आसमानों के आसमान में भी तू समा नहीं सकता, तो यह घर तो कुछ भी नहीं जिसे मैंने बनाया।28~तोभी, ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, अपने बन्दा की दु'आ और मुनाजात का लिहाज़ करके, उस फ़रियाद और दु'आ को सुन ले जो तेरा बन्दा आज के दिन तेरे सामने करता है,29~ताकि तेरी आँखें इस घर की तरफ़, या'नी उसी जगह की तरफ़ जिसकी ज़रिए' तू ने फ़रमाया कि 'मैं अपना नाम वहाँ रखूँगा, ' दिन और रात खुली रहें; ताकि तू उस दु'आ को सुने जो तेरा बन्दा इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके तुझ से करेगा।30~ और तू अपने बन्दा और अपनी क़ौम इस्राईल की मुनाजात को, जब वह इस जगह की तरफ रुख करके करें सुन लेना, बल्कि तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और सुनकर मु'आफ़ कर देना।31~"अगर कोई शख़्स अपने पड़ौसी का गुनाह करे, और उसे क़सम खिलाने के लिए उसको हलफ़ दिया जाए, और वह आकर इस घर में तेरे मज़बह के आगे क़सम खाए:32~तो तू आसमान पर से सुनकर 'अमल करना और अपने बन्दों का इन्साफ़ करना, और बदकार पर फ़तवा लगाकर उसके 'आमाल को उसी के सिर डालना, और सादिक़ को सच्चा ठहराकर उसकी सदाक़त के मुताबिक उसे बदला देना।33~"जब तेरी क़ौम इस्राईल तेरा गुनाह करने के ज़रिए' अपने दुश्मनों से शिकस्त खाए और फिर तेरी तरफ़ रुजू' लाये और तेरे नाम का इकरार करके इस घर में तुझ से दु'आ और मुनाजात करे;34~तो तू आसमान पर से सुनकर अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ करना, और उनको इस मुल्क में जो तूने उनके बाप दादा को दिया फिर ले आना|35~"जब इस वजह से कि उन्होंने तेरा गुनाह किया हो, आसमान बन्द हो जाए और बारिश न हो, और वह इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके दु'आ करें और तेरे नाम का इक़रार करें, और अपने गुनाह से बाज़ आएँ जब तू उनको दुख दे;36तो तू आसमान पर से सुन कर अपने बन्दों और अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ कर देना, क्यूँकि तू उनको उस अच्छी रास्ते की ता'लीम देता है जिस पर उनको चलना फ़र्ज़ है, और अपने मुल्क पर जिसे तू ने अपनी क़ौम को मीरास के लिए दिया है, पानी बरसाना।37"अगर मुल्क में काल हो, अगर वबा हो, अगर बाद-ऐ-समूम या गेरूई या टिड्डी या कमला हो, अगर उनके दुश्मन उनके शहरों के मुल्क में उनको घेर लें, ग़रज़ कैसी ही बला कैसा ही रोग हो;38~तो जो दु'आ और मुनाजात किसी एक शख़्स या तेरी क़ौम इस्राईल की तरफ़ से ही, जिनमें से हर शख़्स अपने दिल का दुख जानकर अपने हाथ इस घर की तरफ़ फैलाए;39~तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकुनतगाह है सुनकर मु'आफ़ कर देना, और ऐसा करना कि हर आदमी को, जिसके दिल को तू जानता है, उसी की सारे चाल चलन के मुताबिक़ बदला देना; क्यूँकि सिर्फ़ तू ही सब बनी-आदम के दिलों को जानता है;40~ताकि जितनी मुद्दत तक वह उस मुल्क में जिसे तू ने हमारे बाप-दादा को दिया ज़िन्दा रहें, तेरा ख़ौफ़ माने।41~'अब रहा वह परदेसी जो तेरी क़ौम इस्राईल में से नहीं है, वह जब दूर मुल्क से तेरे नाम की ख़ातिर आए,42क्यूँकि वह तेरे बुज़ुर्ग नाम और क़वी हाथ और बुलन्द बाज़ू का हाल सुनेंगे) इसलिए जब वह आए और इस घर की तरफ़ रुख़ करके दु'आ करे,43~तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और जिस-जिस बात के लिए वह परदेसी तुझ से फ़रयाद करे तू उसके मुताबिक़ करना, ताकि ज़मीन की सब क़ौमें तेरे नाम को पहचाने मानें, और जान लें कि यह घर जिसे मैंने बनाया है तेरे नाम का कहलाता है।44'अगर तेरे लोग चाहे किसी रास्ते से तू उनको भेजे, अपने दुश्मनों से लड़ने को निकलें, और वह ख़ुदावन्द से उस शहर की तरफ़ जिसे तू ने चुना है, और उस घर की तरफ़ जिसे मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके दु'आ करें,45तो तू आसमान पर से उनकी दु'आ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना।46'अगर वह तेरा गुनाह करें (क्यूँकि कोई ऐसा आदमी नहीं जो गुनाह न करता हो) और तू उनसे नाराज़ होकर उनको दुश्मन के हवाले कर दे, ऐसा कि वह दुश्मन उनको ग़ुलाम करके अपने मुल्क में ले जाए, ख़्वाह वह दूर हो या नज़दीक,47~तोभी अगर वह उस मुल्क में जहाँ वह ग़ुलाम होकर पहुँचाए गए, होश में आयें और रुजू' लायें और अपने ग़ुलाम करने वालों के मुल्क में तुझसे मुनाजात करें और कहें कि हम ने गुनाह किया, हम टेढ़ी चाल चले, और हम ने शरारत की;48~इसलिए अगर वह अपने दुश्मनों के मुल्क में जो उनको क़ैद करके ले गए, अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से तेरी तरफ़ फिरें और अपने मुल्क की तरफ़, जो तू ने उनके बाप-दादा को दिया, और इस शहर की तरफ़, जिसे तू ने चुन लिया, और इस घर की तरफ़, जो मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके तुझ से दु'आ करें,49~तो तू आसमान पर से, जो तेरी सुकूनत गाह है, उनकी दु'आ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना,50~और अपनी क़ौम को, जिसने तेरा गुनाह किया, और उनकी सब ख़ताओं को, जो उनसे तेरे ख़िलाफ़ सरज़द हों, मु'आफ़ कर देना, और उनके ग़ुलाम करने वालों के आगे उन पर रहम करना ताकि वह उन पर रहम करें।51क्यूँकि वह तेरी क़ौम और तेरी मीरास हैं, जिसे तू मिस्र से लोहे के भट्टे के बीच में से निकाल लाया।52~सो तेरी आँखें तेरे बन्दा की मुनाजात और तेरी क़ौम इस्राईल की मुनाजात की तरफ़ खुली रहें, ताकि जब कभी वह तुझ से फ़रियाद करें, तू उनकी सुने;53क्यूँकि तू ने ज़मीन की सब क़ौमों में से उनको ~अलग किया कि वह तेरी मीरास हों, जैसा ऐ मालिक ख़ुदावन्द, तू ने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' फ़रमाया, जिस वक़्त तू हमारे बाप-दादा को मिस्र से निकाल लाया।"54और ऐसा हुआ कि जब सुलेमान ख़ुदावन्द से यह सब मुनाजात कर चुका, तो वह ख़ुदावन्द के मज़बह के सामने से, जहाँ वह अपने हाथ आसमान की तरफ़ फैलाए हुए घुटने टेके था, उठा|55~और खड़े होकर इस्राईल की सारी जमा'अत को ऊँची आवाज़ से बरकत दी और कहा,56~"ख़ुदावन्द, जिसने अपने सब वा'दों के मुताबिक़ अपनी क़ौम इस्राईल को आराम बख़्शा मुबारक हो; क्यूँकि जो सारा अच्छा वा'दा उसने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' किया, उसमें से एक बात भी ख़ाली न गई।57~ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमारे साथ रहे जैसे वह हमारे बाप-दादा के साथ रहा, और न हम को तर्क करे न छोड़े।58~ताकि वह हमारे दिलों को अपनी तरफ़ माइल करे कि ~हम उसकी सब रास्तों पर चलें, और उसके फ़रमानों और क़ानून और अहकाम को, जो उसने हमारे बाप-दादा को दिए मानें।59और यह मेरी बातें जिनको मैंने ख़ुदावन्द के सामने मुनाजात में पेश किया है, दिन और रात ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के नज़दीक रहें, ताकि ~वह अपने बन्दा की दाद और अपनी क़ौम इस्राईल की दाद हर दिन की ज़रूरत के मुताबिक़ दे;60~जिससे ज़मीन की सब क़ौमें जान लें कि ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और उसके सिवा और कोई नहीं।61~इसलिए तुम्हारा दिल आज की तरह ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के साथ उसके क़ानून पर चलने, और उसके हुक्मों को मानने के लिए कामिल रहे।"62और बादशाह ने और उसके साथ सारे इस्राईल ने ख़ुदावन्द के सामने क़ुर्बानी पेश की।63~सुलेमान ने जो सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेशकीं उसमें उसने बाईस हज़ार बैल और एक लाख बीस हज़ार भेड़ें पेश कीं। ऐसे बादशाह ने और सब बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द का घर मख़्सूस किया।64उसी दिन बादशाह ने सहन के दर्मियानी हिस्से को जो ख़ुदावन्द के घर के सामने था मुक़द्दस ~किया, क्यूँकि उसने वहीं ~सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र ~की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बीहों की चर्बी पेश की, इसलिए कि पीतल का मज़बह जो ख़ुदावन्द के सामने था, इतना छोटा था कि उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बोहों की चर्बी के लिए गुन्जाइश न थी।65~इसलिए सुलेमान ने और उसके साथ सारे इस्राईल, या'नी एक बड़ी जमा'अत, ने जो हमात के मदख़ल से लेकर मिस्र की नहर तक की हुदूद से आई थी, ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने सात दिन और फिर सात दिन और, या'नी चौदह दिन, 'ईद मनाई।66~और आठवें दिन उसने उन लोगों को रुख़सत कर दिया। तब उन्होंने बादशाह को मुबारकबाद दी, और उस सारी नेकी के ज़रिए' जो ख़ुदावन्द ने अपने बन्दा दाऊद और अपनी क़ौम इस्राईल से की थी, अपने डेरों को दिल में ख़ुश और ख़ुश होकर लौट गए।
1~और ऐसा हुआ कि जब सुलेमान ख़ुदावन्द का घर और शाही महल बना चुका, और जो कुछ सुलेमान करना चाहता था वह सब ख़त्म हो गया,2~तो ख़ुदावन्द सुलेमान को दूसरी बार दिखाई दिया, जैसे वह जिब'ऊन में दिखाई दिया था।3~और ख़ुदावन्द ने उससे कहा, "मैंने तेरी दु'आ और मुनाजात जो तूने मेरे सामने की है सुन ली, और इस घर में, जिसे तू ने बनाया है, अपना नाम हमेशा तक रखने के लिए मैंने उसे मुक़द्दस किया; और मेरी आँखें और मेरा दिल सदा वहाँ लगे रहेंगे।4~अब रहा तू इसलिए अगर तू जैसे तेरा बाप दाऊद चला, वैसे ही मेरे सामने ख़ुलूस-ए-दिल और सच्चाई से चल कर उस सब के मुताबिक़ जो मैंने तुझे फ़रमाया 'अमल करे, और मेरे क़ानून और अहकाम को माने;5~तो मैं तेरी हुकूमत का तख़्त इस्राईल के ऊपर हमेशा क़ायम रखूँगा, जैसा मैंने तेरे बाप दाऊद से वा'दा किया और कहा कि ~'तेरी नस्ल में इस्राईल के तख़्त पर बैठने के लिए आदमी की कमी न होगी।'6~लेकिन तुम हो या तुम्हारी औलाद, अगर तुम मेरी पैरवी से बरगश्ता हो जाओ और मेरे अहकाम और क़ानून को, जो मैंने तुम्हारे आगे रख्खे हैं, न मानो बल्कि जाकर और मा'बूदों की 'इबादत करने और उनको सिज्दा करने लगो,7~तो मैं इस्राईल को उस मुल्क से जो मैंने उनको दिया है काट डालूँगा; और उस घर को जिसे मैंने अपने नाम के लिए मुक़द्दस किया है, अपनी नज़र से दूर कर दूँगा; और इस्राईल सब क़ौमों में उसकी मिसाल होगी और उस पर उँगली उठेगी।8~और अगरचे यह घर ऐसा मुम्ताज़ है तोभी हर एक जो इसके पास से गुज़रेगा, हैरान होगा और सुसकारेगा, और वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द ने इस मुल्क और इस घर से ऐसा क्यूँ किया?'9~तब वह जवाब देंगे, 'इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को, जो उनके बाप-दादा को मुल्क-ए- मिस्र से निकाल लाया, छोड़ दिया और गै़र मा'बूदों को थाम कर उनको सिज्दा करने और उनकी 'इबादत करने लगे; इसी लिए ख़ुदावन्द ने उन पर यह सारी मुसीबत नाज़िल की। "10~और बीस साल के बा'द जिनमें सुलेमान ने वह दोनों घर, या'नी ख़ुदावन्द का घर और शाही महल बनाए, ऐसा हु'आ कि11~ चूँकि सूर के बादशाह हीराम ने सुलेमान के लिए देवदार की और सनोबर की लकड़ी और सोना उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ इन्तिज़ाम किया था, इसलिए सुलेमान बादशाह ने गलील के मुल्क में बीस शहर हीराम को दिए।12और हीराम उन शहरों को जो सुलेमान ने उसे दिए थे, देखने के लिए सूर से निकला पर वह उसे पसन्द न आए।13~तब उसने कहा, "ऐ मेरे भाई, यह क्या शहर हैं जो तू ने मुझे दिए?" और उसने उनका नाम क़ुबूल" का मुल्क रखा, जो आज तक चला आता है।14~ और हीराम ने बादशाह के पास एक सौ बीस क़िन्तार सोना भेजा।15~और सुलेमान बादशाह ने जो बेगारी लगाए, तो इसी लिए कि वह ख़ुदावन्द के घर और अपने महल को और मिल्लो और यरूशलीम की शहरपनाह और हसूर और मजिद्दो और जज़र को बनाए।16~मिस्र के बादशाह फ़िर'औन ने ~हमला करके और जज़र को घेर करके उसे आग से फूँक दिया था, और उन कना'आनियों को जो उस शहर में बसे हुए थे क़त्ल करके उसे अपनी बेटी को, जो सुलेमान की बीवी थी, जहेज़ में दे दिया था,17~ तब सुलेमान ने जज़र और बैतहोरून असफ़ल को,18~और बालात और बियाबान के तमर को बनाया, जो मुल्क के अन्दर हैं।19~और ज़ख़ीरों के सब शहरों को जो सुलेमान के पास थे, और अपने रथों के लिए शहरों को, और अपने सवारों के लिए शहरों को, और जो कुछ सुलेमान ने अपनी मर्ज़ी से यरूशलीम में और लुबनान में और अपनी मुल्क की सारी ज़मीन में बनाना चाहा बनाया।20~और वह सब लोग जो अमोरियों और हित्तियों और फरज़्ज़ियों और हवय्यों यबूसियों में से बाक़ी रह गए थे और बनी-इस्राईल में से न थे,21~इसलिए उनकी औलाद को जो उनके बा'द मुल्क में बाक़ी रही, जिनको बनी-इस्राईल पूरे तौर पर मिटा न सके, सुलेमान ने ग़ुलाम बनाकर बेगार में लगाया जैसा आज तक है।22~लेकिन सुलेमान ने बनी-इस्राईल में से किसी को ग़ुलाम न बनाया, बल्कि वह उसके जंगी मर्द और मुलाज़िम और हाकिम और फ़ौजी सरदार और उसके रथों और सवारों के हाकिम थे।23~और वह ख़ास मन्सबदार जो सुलेमान के काम पर मुक़र्रर थे, पाँच सौ पचास थे; यह उन लोगों पर जो काम बना रहे थे सरदार थे।24~ और फ़िर'औन की बेटी दाऊद के शहर से अपने उस महल में, जो सुलेमान ने उसके लिए बनाया था, आई तब सुलेमान ने मिल्लो की ता'मीर किया।25~और सुलेमान साल में तीन बार उस मज़बह पर जो उसने ख़ुदावन्द के लिए बनाया था, सोख़्तनी कु़र्बानियाँ और सलामती के ज़बीहे पेश करता था, और उनके साथ उस मज़बह पर जो ख़ुदावन्द के आगे था ख़ुशबू जलाता था। इस तरह उसने उस घर को पूरा किया।26~फिर सुलेमान बादशाह ने 'असयोन जाबर में, जो अदोम के मुल्क में बहर-ए- कु़लजु़म के किनारे ऐलोत के पास है, जहाज़ों का बेड़ा बनाया।27~ और हीराम ने अपने मुलाज़िम सुलेमान के मुलाज़िमों के साथ उस बेड़े में भेजे, वह मल्लाह थे जो समुन्दर से वाकिफ़ थे।28~और वह ओफ़ीर को गए और वहाँ से चार सौ बीस क़िन्तार सोना लेकर उसे सुलेमान बादशाह के पास लाए।
1और जब सबा की मलिका ने ख़ुदावन्द के नाम के ज़रिए' सुलेमान की शोहरत सुनी, तो वह आई ताकि मुशकिल सवालों से उसे आज़माए।2~ और वह बहुत बड़ी जिलौ के साथ यरूशलीम में आई; और उसके साथ ऊँट थे, जिन पर मशाल्हे और बहुत सा सोना और क़ीमती जवाहर लदे थे, और जब वह सुलेमान के पास पहुँची तो उसने उन सब बातों के बारे में जो उसके दिल में थीं उससे बात की।3~सुलेमान ने उसके सब सवालों का जवाब दिया, बादशाह से कोई बात ऐसी छुपी न थी जो उसे न बताई।4~और जब सबा की मलिका ने सुलेमान की सारी हिकमत और उस महल को जो उसने बनाया था,5~ और उसके दस्तरख़्वान की ने'मतों, और उसके मुलाज़िमों के बैठने के तरीक़े, और उसके ख़ादिमों की हुज़ूरी और उनकी पोशाक, और उसके साक़ियों , और उस सीढ़ी को जिससे वह ख़ुदावन्द के घर को जाता' था देखा, तो उसके होश उड़ गए।6~उसने बादशाह से कहा कि "वह सच्ची ख़बर थी जो मैंने तेरे कामों और तेरी हिकमत के बारे में अपने मुल्क में सुनी थी।7~तोभी मैंने वह बातों पर यक़ीन न कीं, जब तक ख़ुद आकर अपनी ऑखों से यह देख न लिया, और मुझे तो आधा भी नहीं बताया गया था: क्यूँकि तेरी हिकमत औरतेरी कामयाबी उस शोहरत से जो मैंने सुनी बहुत ज़्यादा है।8~ खु़शनसीब हैं तेरे लोग! और ख़ुशनसीब हैं तेरे यह मुलाज़िम, जो बराबर तेरे सामने खड़े रहते और तेरी हिकमत सुनते हैं।9~ ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मुबारक हो, जो तुझ से ऐसा ख़ुश हुआ कि तुझे इस्राईल के तख़्त पर बिठाया है; चूँकि ख़ुदावन्द ने इस्राईल से हमेशा मुहब्बत रख्खी है, इसलिए उसने तुझे 'अदल और इन्साफ़ करने को बादशाह बनाया।"10~और उसने बादशाह को एक सौ बीस क़िन्तार सोना और मसाल्हे का बहुत बड़ा ढेर और क़ीमती जवाहर दिए; और जैसे मसाल्हे सबा की मलिका ने सुलेमान बादशाह को दिए, वैसे फिर कभी ऐसी बहुतायत के साथ न आए।11~और हीराम का बेड़ा भी जो ओफ़ीर से सोना लाता था, बड़ी कसरत से चन्दन के दरख़्त और क़ीमती जवाहर ओफ़ीर से लाया।12~तब बादशाह ने ख़ुदावन्द के घर और शाही महल के लिए चन्दन की लकड़ी के सुतून, और बरबत और गाने वालों के लिए सितार बनाए; चन्दन के ऐसे दरख़्त न कभी आए थे, और न कभी आज के दिन तक दिखाई दिए।13~और सुलेमान बादशाह ने सबा की मलिका को सब कुछ, जिसकी वह मुश्ताक़ हुई और जो कुछ उसने माँगा दिया; 'अलावा इसके सुलेमान ने उसको अपनी शाहाना सख़ावत से भी इनायत किया। फिर वह अपने मुलाज़िमों के साथ अपनी मुल्क को लौट गई।14~जितना सोना एक साल में सुलेमान के पास आता था, उसका वज़न सोने का छ: सौ छियासठ क़िन्तार था।15~'अलावा इसके ब्योपारियों और सौदागरों की तिजारत और मिली जुली क़ौमों के सब सलातीन, और मुल्क के सूबेदारों की तरफ़ से भी सोना आता था।16~और सुलेमान बादशाह ने सोना घड़कर दो सौ ढालें बनाई, छः सौ मिस्क़ाल सोना एक एक ढाल में लगा।17~और उसने घड़े हुए सोने की तीन सौ ढालें बनाई; एक एक ढाल में डेढ़ सेर सोना लगा, और बादशाह ने उनको लुबनानी बन के घर में रख्खा।18~ इनके 'अलावा बादशाह ने हाथी दाँत का एक बड़ा तख़्त बनाया, और उस पर सबसे चोखा सोना मंढा।19~उस तख़्त में छ: सीढ़ियाँ थीं, और तख़्त के ऊपर का हिस्सा पीछे से गोल था, और बैठने की जगह की दोनों तरफ़ टेकें थीं, और टेकों के पास दो शेर खड़े थे:20~और उन छ: सीढ़ियों के इधर और उधर बारह शेर खड़े थे। किसी हुकूमत में ऐसा कभी नहीं बना।21~ और सुलेमान बादशाह के पीने के सब बरतन सोने के थे, और लुबनानी बन के घर के भी सब बरतन ख़ालिस सोने के थे, चाँदी का एक भी न था, क्यूँकि सुलेमान के दिनों में उसकी कुछ क़द्र न थी।22~ क्यूँकि बादशाह के पास समुन्दर में हीराम के बेड़े के साथ एक तरसीसी बेड़ा भी था। यह तरसीसी बेड़ा तीन साल में एक बार आता था, और सोना और चाँदी और हाथी दाँत, और बन्दर, और मोर लाता था।23~इसलिए सुलेमान बादशाह दौलत और हिकमत में ज़मीन के सब बादशाहों पर सबक़त ले गया।24~और सारा जहान सुलेमान के दीदार का तालिब था, ताकि उसकी हिकमत को जो ख़ुदा ने उसके दिल में डाली थी सुनें,25~और उनमें से हर एक आदमी चाँदी के बर्तन, और सोने के बरतन कपड़े और हथियार और मसाल्हे और घोड़े, और खच्चर हदिये के तौर पर अपने हिस्से के मुवाफ़िक़ लाता था।26~और सुलेमान ने रथ और सवार इकट्ठे कर लिए; उसके पास एक हज़ार चार सौ रथ और बारह हज़ार सवार थे, जिनको उसने रथों के शहरों में और बादशाह के साथ यरूशलीम में रखा।27~और बादशाह ने यरूशलीम में इफ़रात की वजह से चाँदी को तो ऐसा कर दिया जैसे पत्थर, और देवदारों को ऐसा जैसे नशेब के मुल्क के गूलर के दरख़्त होते हैं।28~ और जो घोड़े सुलेमान के पास थे वह मिस्र से मगाए गए थे, और बादशाह के सौदागर एक एक झुण्ड की क़ीमत लगाकर उनके झुण्ड के झुण्ड लिया करते थे।29~और एक रथ चाँदी की छ: सौ मिस्क़ाल में आता और मिस्र से रवाना होता, और घोड़ा डेढ़ सौ मिस्क़ाल में आता था, और ऐसे ही हितियों के सब बादशाहों और अरामी बादशाहों के लिए, वह इनको उन्हीं के ज़रिए' से मंगाते थे।
1और सुलेमान बादशाह फ़िर'औन की बेटी के 'अलावा बहुत सी अजनबी 'औरतों से, या'नी मोआबी, 'अम्मोनी, अदोमी, सैदानी और हिती 'औरतों से मुहब्बत करने लगा;2~यह उन क़ौमों की थीं जिनके बारे में ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल से कहा था कि "तुम उनके बीच न जाना, और न वह तुम्हारे बीच आएँ, क्यूँकि वह ज़रूर तुम्हारे दिलों को अपने मा'बूदों की तरफ़ माइल कर लेंगी" सुलेमान इन्हीं के 'इश्क़ का दम भरने लगा।3और उसके पास सात सौ शाहज़ादियाँ उसकी बीवियाँ और तीन सौ बाँदी थीं, और उसकी बीवियों ने उसके दिल को फेर दिया।4~क्यूँकि जब सुलेमान बुड्ढा हो गया, तो उसकी बीवियों ने उसके दिल को गै़र मा'बूदों की तरफ़ माइल कर लिया; और उसका दिल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के साथ कामिल न रहा, जैसा उसके बाप दाऊद का दिल था।5~ क्यूँकि सुलेमान सैदानियों की देवी इसतारात, और 'अम्मोनियों के नफ़रती मिलकोम की पैरवी करने लगा।6~ और सुलेमान ने ख़ुदावन्द के आगे बदी की, और उसने ख़ुदावन्द की पूरी पैरवी न की जैसी उसके बाप दाऊद ने की थी।7~फिर सुलेमान ने मोआबियों के नफ़रती कमोस के लिए उस पहाड़ पर जो यरूशलीम के सामने है, और बनी 'अम्मोन के नफ़रती मोलक के लिए ऊँचा मक़ाम बना दिया।8~ उसने ऐसा ही अपनी सब अजनबी बीवियों की ख़ातिर किया, जो अपने मा'बूदों के सामने ख़ुशबू जलाती और क़ुर्बानी पेश करती थीं।9~और ख़ुदावन्द सुलेमान से नाराज़ हुआ, क्यूँकि उसका दिल ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा से फिर गया था जिसने उसे दो बार दिखाई देकर10~उसको इस बात का हुक्म किया था कि वह गै़र मा'बूदों की पैरवी न करे; लेकिन उसने वह बात न मानी जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने दिया था।11~इस वजह से ख़ुदावन्द ने सुलेमान को कहा, "चूँकि तुझ से यह काम हुआ, और तू ने मेरे 'अहद और मेरे क़ानून को जिनका मैंने तुझे हुक्म दिया नहीं माना, इसलिए मैं हुकूमत को ज़रूर तुझ से छीनकर तेरे ख़ादिम को दूँगा।12~तोभी तेरे बाप दाऊद की ख़ातिर मैं तेरे दिनों में यह नहीं करूँगा; बल्कि उसे तेरे बेटे के हाथ से छीनूँगा।13~फिर भी मैं सारी हुकूमत को नहीं छीनूँगा, बल्कि अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर और यरूशलीम की ख़ातिर, जिसे मैंने चुन लिया है, एक क़बीला तेरे बेटे को दूँगा।14~तब ख़ुदावन्द ने अदोमी हदद को सुलेमान का मुख़ालिफ़ बना कर खड़ा किया, यह अदोम की शाही नसल से था।15~क्यूँकि जब दाऊद अदोम में था और लश्कर का सरदार योआब अदोम में हर एक आदमी को क़त्ल करके उन मक़्तूलों को दफ़्न करने गया,16~(क्यूँकि योआब और सब इस्राईल छ: महीने तक वहीं रहे, जब तक कि उसने अदोम में हर एक आदमी को क़त्ल न कर डाला।)17~तो हदद कई एक अदोमियों के साथ, जो उसके बाप के मुलाज़िम थे, मिस्र को जाने को भाग निकला, उस वक़्त हदद छोटा लड़का ही था।18~और वह मिदियान से निकलकर फ़ारान में आए, और फ़ारान से लोग साथ लेकर शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन के पास मिस्र में गए। उसने उसको एक घर दिया और उसके लिए ख़ुराक मुक़र्रर की और उसे जागीर दी।19~ और हदद की फ़िर'औन के सामने इतना रसूख हासिल हुआ कि उसने अपनी साली, या'नी मलिका तहफ़नीस की बहन उसी को ब्याह दी।20~और तहफ़नीस की बहन के उससे उसका बेटा जनूबत पैदा हुआ जिसका दूध तहफ़नीस ने फ़िर'औन के महल में छुड़ाया; और जनूबत फ़िर'औन के बेटों के साथ फिर'औन के महल में रहा।21~ इसलिए जब हदद ने मिस्र में सुना कि दाऊद अपने बाप-दादा के साथ सो गया और लश्कर का सरदार योआब भी मर गया है, तो हदद ने फ़िर'औन से कहा, "मुझे रुख़्सत कर दे, ताकि मैं अपने मुल्क को चला जाऊँ।"22~तब फ़िर'औन ने उससे कहा, "भला तुझे मेरे पास किस चीज़ की कमी हुई कि तू अपने मुल्क को जाने के लिए तैयार है?" उसने कहा, "कुछ नहीं, फिर भी तू मुझे जिस तरह हो रुख्स़त ही कर दे।"23~और ख़ुदा ने उसके लिए एक और मुख़ालिफ़ इलयदा' के बेटे रज़ोन को खड़ा किया, जो अपने आक़ा ज़ोबाह के बादशाह हदद'अज़र के पास से भाग गया था;24~ और उसने अपने पास लोग जमा' कर लिए, और जब दाऊद ने ज़ोबाह वालों को क़त्ल किया, तो वह एक फ़ौज का सरदार हो गया; और वह दमिश्क़ को जाकर वहीं रहने और दमिश्क़ में हुकूमत करने लगे।25~ इसलिए हदद की शरारत के 'अलावा यह भी सुलेमान की सारी 'उम्र इस्राईल का दुश्मन रहा; और उसने इस्राईल से नफ़रत रखी और अराम पर हुकूमत करता रहा।26~और सरीदा के इफ़्राईमी नबात का बेटा युरब'आम, जो सुलेमान का मुलाज़िम था और जिसकी माँ का नाम, जो बेवा थी, सरू'आ था; उसने भी बादशाह के ख़िलाफ़ अपना हाथ उठाया।27~और बादशाह के ख़िलाफ़ उसके हाथ उठाने की यह वजह हुई कि बादशाह मिल्लो को बनाता था, और अपने बाप दाऊद ~के शहर के रखने की मरम्मत करता था।28~ और वह शख़्स युरब'आम एक ताक़तवर सूर्मा था, और सुलेमान ने उस जवान को देखा कि मेहनती है, इसलिए उसने उसे बनी यूसुफ़ के सारे काम पर मुख़्तार बना दिया।29~उस वक़्त जब युरब'आम यरूशलीम से निकल कर जा रहा था, तो सैलानी अखि़याह नबी उसे रास्ते में मिला, और अख़ियाह एक नई चादर ओढ़े हुए था; यह दोनों मैदान में अकेले थे।30~इसलिए अख़ियाह ने उस नई चादर को जो उस पर थी लेकर उसके बारह टुकड़े फाड़े।31~और उसने युरब'आम से कहा कि "तू अपने लिए दस टुकड़े ले ले; क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा कहता है कि देख, मैं सुलेमान के हाथ से हुकूमत छीन लूँगा, और दस क़बीले तुझे दूँगा।32~ (लेकिन मेरे बन्दे दाऊद की ख़ातिर और यरूशलीम या'नी उस शहर की ख़ातिर, जिसे मैंने बनी-इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन लिया है, एक क़बीला उसके पास रहेगा)33~क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और सैदानियों की देवी इस्तारात और मोआबियों के मा'बूद कमोस और बनी 'अमोन के मा'बूद मिलकोम की 'इबादत की है, और मेरे रास्तों पर न चले कि वह काम करते जो मेरी नज़र में भला था, और मेरे क़ानून और अहकाम को मानते जैसा उसके बाप दाऊद ने किया।34~फिर भी मैं सारी मुल्क उसके हाथ से नहीं ले लूँगा, बल्कि अपने बन्दा दाऊद की ख़ातिर, जिसे मैंने इसलिए चुन लिया कि उसने मेरे अहकाम और क़ानून माने, मैं इसकी 'उम्र भर इसे पेशवा बनाए रखूँगा।35~लेकिन उसके बेटे के हाथ से हुकूमत या'नी दस क़बीलों को लेकर तुझे दूँगा;36~ और उसके बेटे को एक क़बीला दूँगा, ताकि मेरे बन्दे दाऊद का चराग़ यरूशलीम, या'नी उस शहर में जिसे मैंने अपना नाम रखने के लिए चुन लिया है, हमेशा मेरे आगे रहे।37~ और मैं तुझे लूँगा, और तू अपने दिल की पूरी ख़्वाहिश के मुवाफ़िक हुकूमत करेगा और इस्राईल का बादशाह होगा।38~ और ऐसा होगा कि अगर तू उन सब बातों को जिनका मैं तुझे हुक्म दूँ सुने, और मेरी रास्तों पर चले, और जो काम मेरी नज़र में भला है उसको करे, और मेरे क़ानूनऔर अहकाम को माने, जैसा मेरे बन्दा दाऊद ने किया, तो मैं तेरे साथ रहूँगा, और तेरे लिए एक मज़बूत घर बनाऊँगा, जैसा मैंने दाऊद के लिए बनाया, और इस्राईल को तुझे दे दूँगा।39~और मैं इसी वजह से दाऊद की नसल को दुख दूँगा, लेकिन हमेशा तक नहीं।"40~ इसलिए सुलेमान युरब'आम के क़त्ल के पीछे पड़ गया , लेकिन युरब'आम उठकर मिस्र को शाह-ए-मिस्र सीसाक के पास भाग गया और सुलेमान की वफ़ात तक मिस्र में रहा।41~ सुलेमान का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया और उसकी हिकमत: इसलिए क्या वह सुलेमान के अहवाल की किताब में दर्ज नहीं?42~और वह मुद्दत जिसमें सुलेमान ने यरूशलीम में सब इस्राईल पर हुकूमत की चालीस साल की थी।43~और सुलेमान अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और अपने बाप दाऊद के शहर में दफ़्न हुआ, और उसका बेटा रहुब'आम उसकी जगह बादशाह हुआ।
1और रहुब'आम ~सिक्म को गया, क्यूँकि सारा इस्राईल उसे बादशाह बनाने की सिक्म को गया था।2~और जब नबात के बेटे युरब'आम ने, जो अभी मिस्र में था, यह सुना; (क्यूँकि युरब'आम सुलेमान बादशाह के सामने से भाग गया था, और वह मिस्र में रहता था:3~इसलिए उन्होंने लोग भेजकर उसे बुलवाया) तो यरुब'आम और इस्राईल की सारी जमा'अत आकर रहुब'आम से ऐसे कहने लगी कि|4~"तेरे बाप ने हमारा बोझ सख़्त कर दिया था; तब तू अब अपने बाप की उस सख़्त ख़िदमत को और उस भारी बोझे को, जो उसने हम पर रखा, हल्का कर दे, और हम तेरी ख़िदमत करेंगे।"5~तब उसने उनसे कहा, "अभी तुम तीन दिन के लिए चले जाओ, तब फिर मेरे पास आना।" तब वह लोग चले गए।6~और रहुब'आम बादशाह ने उन 'उम्र दराज़ लोगों से जो उसके बाप सुलेमान के जीते जी उसके सामने खड़े रहते थे, सलाह ली और कहा कि ~"इन लोगों को जवाब देने के लिए तुम मुझे क्या सलाह देते हो?"7~ उन्होंने उससे यह कहा कि "अगर तू आज के दिन इस क़ौम का ख़ादिम बन जाए, और उनकी ख़िदमत करे और उनको जवाब दे और उनसे मीठी बातें करे, तो वह हमेशा तेरे ख़ादिम बने रहेंगे।"8~ लेकिन उसने उन 'उम्र दराज़ लोगों की सलाह जो उन्होंने उसे दी, छोड़कर उन जवानों से जो उसके साथ बड़े हुए थे और उसके सामने खड़े थे, सलाह ली;9~ और उनसे पूछा कि ~"तुम क्या सलाह देते हो, ताकि हम इन लोगों को जवाब दे सकें जिन्होंने मुझ से ऐसा कहा है कि उस बोझे को जो तेरे बाप ने हम पर रख्खा हल्का कर दे?"10~इन जवानों ने जो उसके साथ बड़े हुए थे उससे कहा, "तू उन लोगों को ऐसा जवाब देना जिन्होंने तुझ से कहा है कि तेरे बाप ने हमारे बोझे को भारी किया, तू उसको हमारे लिए हल्का कर दे" तब तू उनसे ऐसा कहना कि मेरी छिंगुली मेरे बाप की कमर से भी मोटी है।11~और अब अगर्चे मेरे बाप ने भारी बोझ तुम पर रख्खा है, तोभी मैं तुम्हारे बोझे को और ज़्यादा भारी करूँगा, मेरे बाप ने तुम को कोड़ों से ठीक किया, मैं तुम को बिच्छुओं से ठीक बनाऊँगा।"12~तब युरब'आम और सब लोग तीसरे दिन रहुब'आम के पास हाज़िर हुए, जैसा बादशाह ने उनको हुक्म दिया था कि "तीसरे दिन मेरे पास फिर आना।"13~और बादशाह ने उन लोगों को सख़्त जवाब दिया और 'उम्र दराज़ लोगों की उस सलाह को जो उन्होंने उसे दी थी छोड़ दिया,14~और जवानों की सलाह के मुवाफ़िक़ उनसे यह कहा कि "मेरे बाप ने तो तुम पर भारी बोझ रखा, लेकिन मैं तुम्हारे बोझे को ज़्यादा भारी करूँगा; मेरे बाप ने तुम को कोड़ों से ठीक किया, लेकिन मैं तुम को बिच्छुओं से ठीक बनाऊँगा।"15~इसलिए बादशाह ने लोगों की न सुनी क्यूँकि यह मु'आमिला ख़ुदावन्द की तरफ़ से था, ताकि ख़ुदावन्द अपनी बात को जो उसने सैलानी अख़ियाह की ज़रिए' नबात के बेटे युरब'आम से कही थी पूरा करे।16और ~जब सारे इस्राईल ने देखा कि बादशाह ने उनकी न सुनी तो उन्होंने बादशाह को ऐसा जवाब दिया कि "दाऊद में हमारा क्या हिस्सा है? यस्सी के बेटे में हमारी मीरास नहीं। ऐ इस्राईल, अपने डेरो को चले जाओ; और अब ऐ दाऊद तू अपने घर को संभाल! तब इस्राईली अपने डेरों को चल दिए।17~लेकिन जितने इस्राइली यहूदाह के शहरों में रहते थे उन पर रहुब'आम हुकूमत करता रहा।18~फिर रहुब'आम बादशाह ने अदूराम को भेजा जो बेगारियों के ऊपर था, और सारे इस्राईल ने उस पर पथराव किया और वह मर गया। तब रहुब'आम बादशाह ने अपने रथ पर सवार होने में जल्दी की ताकि यरूशलीम को भाग जाए।19~ऐसे इस्राईल दाऊद के घराने से बाग़ी हुआ और आज तक है।20~ जब सारे इस्राईल ने सुना कि युरब'आम लौट आया है, तो उन्होंने लोग भेज कर उसे जमा'अत में बुलवाया और उसे सारे इस्राईल का बादशाह बनाया, और यहुदाह के क़बीले के 'अलावा किसी ने दाऊद के घराने की पैरवी न की।21~जब रहुब'आम यरूशलीम में पहुँचा तो उसने यहूदाह के सारे घराने और बिनयमीन के क़बीले को, जो सब एक लाख अस्सी हज़ार चुने हुए जंगी मर्द थे, इकट्ठा किया ताकि वह इस्राईल के घराने से लड़कर हुकूमत को फिर सुलेमान के बेटे रहुब'आम के क़ब्ज़े में करा दें।22~ लेकिन समायाह को जो मर्द-ए-ख़ुदा था, ख़ुदा का यह पैग़ाम आया23कि "यहूदाह के बादशाह सुलेमान के बेटे रहुब'आम और यहूदाह और बिनयमीन के सारे घराने और क़ौम के बाकी लोगों से कह कि24~ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि: तुम चढ़ाई न करो और न अपने भाइयों बनी-इस्राईल से लड़ो, बल्कि हर शख़्स अपने घर को लौटे, क्यूँकि यह बात मेरी तरफ़ से है। " इसलिए उन्होंने ख़ुदावन्द की बात मानी और ख़ुदावन्द के हुक्म के मुताबिक़ लौटे और अपना रास्ता लिया।25~तब युरब'आम ने इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में सिक्म को ता'मीर किया और उसमें रहने लगा, और वहाँ से निकल कर उसने फ़नूएल को ता'मीर किया।26~और युरब'आम ने अपने दिल में कहा कि "अब हुकूमत दाऊद के घराने में फिर चली जाएगी।27~ अगर यह लोग यरूशलीम में ख़ुदावन्द के घर में क़ुर्बानी अदाकरने को जाया करें, तो इनके दिल अपने मालिक, या'नी यहूदाह के बादशाह रहुब'आम, की तरफ़ माइल होंगे और वह मुझ को क़त्ल करके शाह-ए-यहूदाह रहुब'आम की तरफ़ फिर जाएँगे।"28~ इसलिए उस बादशाह ने सलाह लेकर सोने के दो बछड़े बनाए और लोगों से कहा, "यरूशलीम को जाना तुम्हारी ताक़त से बाहर है; ऐ इस्राईल, अपने मा'बूदों को देख, जो तुझे मुल्क-ए- मिस्र से निकाल लाए।"29~ और उसने एक को बैतएल में क़ायम किया, दूसरे को दान में रखा।30~और यह गुनाह का ज़रिए' ठहरा, क्यूँकि लोग उस एक की 'इबादत करने के लिए दान तक जाने लगे।31~ और उसने ऊँची जगहों के घर बनाए, और लोगों में से जोबनी लावी न थे काहिन बनाए।32~और युरब'आम ने आठवें महीने की पन्द्रहवीं तारीख़ के लिए, उस ईद की तरह जो यहूदाह में होती है एक ईद ठहराई और उस मज़बह के पास गया, ऐसा ही उसने बैतएल में किया; और उन बछड़ों के लिए जो उसने बनाए थे क़ुर्बानी पेशकी, और उसने बैतएल में अपने बनाए हुए ऊँचे मक़ामों के लिए काहिनों को रख्खा।33~और आठवें महीने की पन्द्रहवीं तारीख़ की, या'नी उस महीने में जिसे उसने अपने ही दिल से ठहराया था, वह उस मज़बह के पास जो उसने बैतएल में बनाया था गया, और बनी-इस्राईल के लिए ईद ठहराई और ख़ुशबू जलाने को मज़बह के पास गया।
1~और देखो, ख़ुदावन्द के हुक्म से एक नबी यहूदाह से बैतएल में आया, और युरब'आम ख़ुशबू जलाने को मज़बह के पास खड़ा था।2~और वह ख़ुदावन्द के हुक्म से मज़बह के ख़िलाफ़ चिल्लाकर कहने लगा, "ऐ मज़बह, ऐ मज़बह! ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि "देख, दाऊद के घराने से एक लड़का बनाम यूसियाह पैदा होगा। तब वह ऊँचे मक़ामों के काहिनों की, जो तुझ पर ख़ुशबू जलाते हैं, तुझ पर क़ुर्बानी करेगा और वह आदमियों की हड्डियाँ तुझ पर जलाएँगे। "3~और उसने उसी दिन एक निशान दिया और कहा, "वह निशान जो ख़ुदावन्द ने बताया है, यह है कि देखो, मज़बह फट जाएगा और वह राख जो उस पर है गिर जाएगी।"4~और ऐसा हुआ कि जब बादशाह ने उस नबी का कलाम, जो उसने बैतएल में मज़बह के ख़िलाफ़ चिल्ला कर कहा था, सुना तो युरब'आम ने मज़बह पर से पकड़ लो!" और उसका वह हाथ जो उसने उसकी तरफ़ बढ़ाया था ख़ुश्क हो गया, ऐसा कि वह उसे फिर अपनी तरफ़ खींच न सका।5~और उस निशान के मुताबिक़ जो उस नबी ने ख़ुदावन्द के हुक्म से दिया था, वह मज़बह भी फट गया और राख मज़बह पर से गिर गई।6~तब बादशाह ने उस नबी से कहा कि "अब ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से इल्तिजा कर और मेरे लिए दु'आ कर, ताकि मेरा हाथ मेरे लिए फिर बहाल हो जाए।" तब उस नबी ने ख़ुदावन्द से इल्तिजा की और बादशाह का हाथ उसके लिए बहाल हुआ, और जैसा पहले था वैसा ही हो गया।7~और बादशाह ने उस नबी से कहा कि "मेरे साथ घर चल और ताज़ा दम हो, और मैं तुझे इनाम दूँगा।"8~उस नबी ने बादशाह को जवाब दिया कि "अगर तू अपना आधा घर भी मुझे दे, तोभी मैं तेरे साथ नहीं जाने का और न मैं इस जगह रोटी खाऊँ और न पानी पियूँ।9~क्यूँकि ख़ुदावन्द का हुक्म मुझे ताकीद के साथ यह हुआ है कि तू न रोटी खाना न पानी पीना, न उस रास्ते से लौटना जिससे तू जाए।"10~ तब वह दूसरे रास्ते से गया और जिस रास्ते से बैतएल में आया था उससे न लौटा।11~और बैतएल में एक बुड्ढा नबी रहता था, तब उसके बेटों में से एक ने आकर वह सब काम जो उस नबी ने उस दिन बैतएल में किए उसे बताए, और जो बातें उसने बादशाह से कहीं थीं उनको भी अपने बाप से बयान किया।12~और उनके बाप ने उनसे कहा, "वह किस रास्ते से गया?" उसके बेटों ने देख लिया था कि वह नबी जो यहूदाह से आया था, किस रास्ते से गया है।13~ तब उसने अपने बेटों से कहा, "मेरे लिए गधे पर ज़ीन कस दो।" तब उन्होंने उसके लिए गधे पर ज़ीन कस दिया और वह उस पर सवार हुआ,14~और उस नबी के पीछे चला और उसे बलूत के एक दरख़्त के नीचे बैठे पाया। तब उसने उससे कहा, "क्या तू वही नबी है जो यहूदाह से आया था?" उसने कहा, "हाँ।"15~तब उसने उससे कहा, "मेरे साथ घर चल और रोटी खा।"16उसने कहा, "मैं तेरे साथ लौट नहीं सकता और न तेरे घर जा सकता हूँ, और मैं तेरे साथ इस जगह न रोटी खाऊँ न पानी पियूँ|17~क्यूँकि ख़ुदावन्द का मुझ को यूँ हुक्म हुआ है कि "तू वहाँ न रोटी खाना न पानी पीना, और न उस रास्ते से होकर लौटना जिससे तू जाए।"18~तब उसने उससे कहा, "मैं भी तेरी तरह नबी हूँ, और ख़ुदावन्द के हुक्म से एक फ़रिश्ते ने मुझ से यह कहा कि उसे अपने साथ अपने घर में लौटा कर ले आ, ताकि वह रोटी खाए और पानी पिए।" लेकिन उसने उससे झूठ कहा।19~इसलिए वह उसके साथ लौट गया और उसके घर में रोटी खाई और पानी पिया।20~जब वह दस्तरख़्वान पर बैठे थे तो ख़ुदावन्द का कलाम उस नबी पर, जो उसे लौटा लाया था, नाज़िल हुआ।21और उसने उस नबी से, जो यहूदाह से आया था, चिल्ला कर कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है, 'इसलिए कि तू ने ख़ुदावन्द के कलाम से नाफ़रमानी की, और उस हुक्म को नहीं माना जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझे दिया था।22~बल्कि तू लौट आया और तू ने उसी जगह जिसके ज़रिए' ख़ुदावन्द ने तुझे फ़रमाया था कि न रोटी खाना, न पानी पीना, रोटी भी खाई और पानी भी पिया; इसलिए तेरी लाश तेरे बाप दादा की क़ब्र तक नहीं पहुँचेगी।”23~ जब वह रोटी खा चुका और पानी पी चुका, तो उसने उसके लिए या'नी उस नबी के लिए जिसे वह लौटा लाया था, गधे पर ज़ीन कस दिया।24~ जब वह रवाना हुआ तो रास्ते में उसे एक शेर मिला जिसने उसे मार डाला, इसलिए उसकी लाश रास्ते में पड़ी रही और गधा उसके पास खड़ा रहा, शेर भी उस लाश के पास खड़ा रहा।25~और लोग उधर से गुज़रे और देखा कि लाश रास्ते में पड़ी है और शेर लाश के पास खड़ा है, फिर उन्होंने उस शहर में जहाँ वह बुड्ढा नबी रहता था यह बताया।26और जब उस नबी ने, जो उसे रास्ते से लौटा लाया था, यह सुना तो कहा, "यह वही नबी है जिसने ख़ुदावन्द के कलाम की नाफ़रमानी की, इसी लिए ख़ुदावन्द ने उसको शेर के हवाले कर दिया; और उसने ख़ुदावन्द के उस सुखन के मुताबिक़ जो उसने उससे कहा था, उसे फाड़ा और मार डाला।"27~फिर उसने अपने बेटों से कहा कि "मेरे लिए गधे पर ज़ीन कस दो।" इसलिए उन्होंने ज़ीन कस दिया।28~ तब वह गया और उसने उसकी लाश रास्ते में पड़ी हुई, और गधे और शेर को लाश के पास खड़े पाया; क्यूँकि शेर ने न लाश को खाया और न गधे को फाड़ा था|29~तब उस नबी ने उस नबी की लाश उठाकर उसे गधे पर रखा और ले आया, और वह बुड्ढा नबी उस पर मातम करने और उसे दफ़्न करने को अपने शहर में आया |30~और उसने उसकी लाश को अपनी क़ब्र में रखा, और उन्होंने उस पर मातम किया और कहा, 'हाय, मेरे भाई!"31~और जब वह उसे दफ़्न कर चुका, तो उसने अपने बेटों से कहा कि ~"जब मैं मर जाऊँ, तो मुझ को उसी क़ब्र में दफ़्न करना जिसमें यह नबी दफ़्न हुआ है। मेरी हड्डियाँ उसकी हड्डियों के बराबर रखना।32~ इसलिए कि वह बात जो उसने ख़ुदावन्द के हुक्म से बैतएल के मज़बह के ख़िलाफ़ और उन सब ऊँचे मक़ामों के घरों के खिलाफ़, जो सामरिया के कस्बों में हैं, कही है ज़रूर पूरी होगी।"33~इस माजरे के बा'द भी युरब'आम अपनी बुरे रास्ते से बाज़ न आया, बल्कि उसने 'अवाम में से ऊँचे मक़ामों के काहिन ठहराए; जिस किसी ने चाहा उसे उसने मख़्सूस किया, ताकि ऊँचे मक़ामों के लिए काहिन हों।34~और यह काम युरब'आम के घराने के लिए, उसे काट डालने और उसे रू-ए-ज़मीन पर से मिटाऔर बरबाद ~करने के लिए गुनाह ठहरा।
1~उस वक़्त युरब'आम का बेटा अबियाह बीमार पड़ा।2~और युरब'आम ने अपनी बीवी से कहा, "ज़रा उठ कर अपना भेस बदल डाल, ताकि पहचान न हो सके कि तू युरब'आम की बीवी है, और सैला को चली जा। देख, अख़ियाह नबी वहाँ है जिसने मेरे बारे में कहा था कि मैं इस क़ौम का बादशाह हूँगा |3और दस रोटियाँ और पपड़ियाँ और शहद का एक मर्तबान अपने साथ ले, और उसके पास जा; वह तुझे बता देगा कि लड़के का क्या हाल होगा।”4~तब युरब'आम की बीवी ने ऐसा ही किया, और उठकर सैला को गई और अख़ियाह के घर पहुँची; लेकिन अख़ियाह को कुछ नज़र नहीं आता था, क्यूँकि बुढ़ापे की वजह से उसकी आँखें रह गई थीं।5और ख़ुदावन्द ने अख़ियाह से कहा, "देख, युरब'आम की बीवी तुझ से अपने बेटे के बारे में पूछने आ रही है, क्यूँकि वह बीमार है। तब तू उससे ऐसा ऐसा कहना, क्यूँकि जब वह अन्दर आएगी तो अपने आपको दूसरी 'औरत बनाएगी।"6और जैसे ही वह दरवाज़े से अन्दर आई, और अख़ियाह ने उसके पाँव की आहट सुनी तो उसने उससे कहा, "ऐ युरब'आम की बीवी, अन्दर आ! तू क्यूँ अपने को दूसरी बनाती है? क्यूँकि मैं तो तेरे ही पास सख़्त पैग़ाम के साथ भेजा गया हूँ।7~इसलिए जाकर युरब'आम से कह, 'ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है, हालाँकि मैंने तुझे लोगों में से लेकर सरफ़राज़ किया, और अपनी कौम इस्राईल पर तुझे बादशाह बनाया।8~और दाऊद के घराने से हुकूमत छीन ली और तुझे दी; तोभी तू मेरे बन्दे दाऊद की तरह न हुआ, जिसने मेरे हुक्म माने और अपने सारे दिल से मेरी पैरवी की ताकि सिर्फ़ वही करे जो मेरी नज़र में ठीक था,9लेकिन तू ने उन सभों से जो तुझ से पहले हुए ज़्यादा बदी की, और जाकर अपने लिए और और मा'बूद और ढाले हुए बुत बनाए ताकि मुझे ग़ुस्सा दिलाए; बल्कि तू ने मुझे अपनी पीठ के पीछे फेंका।10~इसलिए देख, मैं युरब'आम के घराने पर बला नाज़िल करूँगा, और युरब'आम की नसल के हर एक लड़के को, यानी हर एक को जो इस्राईल में बन्द है और उसको जो आज़ाद छूटा हुआ है, काट डालूँगा, और युरब'आम के घराने की सफ़ाई कर दूँगा, जैसे कोई गोबर की सफ़ाई करता हो, जब तक वह सब दूर न हो जाए।11~युरब'आम का जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खाएँगे और जो मैदान में मरेगा उसे हवा के परिन्दे चट कर जाएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।'12~इसलिए तू उठ और अपने घर जा, और जैसे ही तेरा क़दम शहर में पड़ेगा वह लड़का मर जाएगा।13~और सारा इस्राईल उसके लिए रोएगा और उसे दफ़न करेगा क्यूँकि युरब'आम की औलाद में से सिर्फ़ उसी को क़ब्र नसीब होगी, इसलिए कि युरब'आम के घराने में से इसी में कुछ पाया गया जो ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नज़दीक भला है।14~'अलावा इसके ख़ुदावन्द अपनी तरफ़ से इस्राईल के लिए एक ऐसा बादशाह पैदा करेगा जो उसी दिन युरब'आम के घराने को काट डालेगा, लेकिन कब? यह अभी होगा।15~क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल को ऐसा मारेगा जैसे सरकण्डा पानी में हिलाया जाता है, और वह इस्राईल को इस अच्छे मुल्क से जो उसने उनके बाप दादा को दिया था उखाड़ फेंकेगा, और उनको दरिया-ए-फ़ुरात के पार बिखेर देगा; क्यूँकि उन्होंने अपने लिए यसीरतें बनाई और ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया है।16~और वह इस्राईल को युरब'आम के उन गुनाहों की वजह से छोड़ देगा जो उसने ख़ुद किए, और जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया।"17~और युरब'आम की बीवी उठकर रवाना हुई और तिरज़ा में आई, और जैसे ही वह घर की चौखट पर पहुँची वह लड़का मर गया;18~और सारे इस्राईल ने जैसा ख़ुदावन्द ने अपने बन्दे अख़ियाह नबी की ज़रिए' फ़रमाया था, उसे दफ़न करके उस पर नौहा किया।19~युरब'आम का बाक़ी हाल कि वह किस किस तरह लड़ा और उसने क्यूँकर हुकूमत की, वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा है।20~और जितनी मुद्दत तक युरब'आम ने हुकूमत की वह बाईस साल की थी, और वह अपने बाप दादा के साथ सो गया और उसका बेटा नदब उसकी जगह बादशाह हुआ।21~सुलेमान का बेटा रहुब'आम यहूदाह में बादशाह था। रहुब'आम इकतालीस साल का था, जब वह बादशाही करने लगा और उसने यरूशलीम यानी उस शहर में, जिसे ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के सब क़बीलों में से चुना था ताकि अपना नाम वहाँ रख्खे, सतरह साल हुकूमत की; और उसकी माँ का नाम ना'मा था जो 'अमोनी 'औरत थी।22और यहूदाह ने ख़ुदावन्द के सामने बदी की और जो गुनाह उनके बाप-दादा ने किए थे उनसे भी ज़्यादा उन्होंने अपने गुनाहों से, जो उनसे सरज़द हुए, उसकी ग़ैरत को भड़काया।23~क्यूँकि उन्होंने अपने लिए हर एक ऊँचे टीले पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे, ऊँचे मक़ाम और सुतून और यसीरतें बनाई,24~और उस मुल्क में लूती भी थे। वह उन क़ौमों के सब मकरूह काम करते थे, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल के सामने से निकाल दिया था।25रहुब'आम बादशाह के पाँचवें साल में शाह-ए-मिस्र सीसक ने यरूशलीम पर पेश की।26और उसने ख़ुदावन्द के घर के ख़ज़ानों और शाही महल के ख़ज़ानों को ले लिया, बल्कि उसने सब कुछ ले लिया, और सोने की वह सब ढालें भी ले गया जो सुलेमान ने बनाई थीं।27और रहुब'आम बादशाह ने उनके बदले पीतल की ढालें बनाई और उनको मुहाफ़िज़ सिपाहियों के सरदारों के हवाले किया जो शाही महल के दरवाज़े पर पहरा देते थे।28और जब बादशाह ख़ुदावन्द के घर में जाता तो वह सिपाही उनको लेकर चलते, और फिर उनको वापस लाकर सिपाहियों की कोठरी में रख देते थे।29और रहुब'आम का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं है?30~और रहुब'आम और युरब'आम में बराबर जंग रही।31~और रहुब'आम अपने बाप-दादा के साथ सो गया और दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़न हुआ, उसकी माँ का नाम ना'मा था जो 'अम्मोनी 'औरत थी; और उसका बेटा अबियाम उसकी जगह बादशाह हुआ।
1और नबात के बेटे यरुब'आम की हुकूमत के अठारवें साल से अबियाम यहूदाह पर हुकूमत करने लगा।2~उसने यरूशलीम में तीन साल बादशाही की। उसकी माँ का नाम मा'का था, जो अबीसलोम की बेटी थी।3~उसने अपने बाप के सब गुनाहों में, जो उसने उससे पहले किए थे, उसके चाल चलन ~इख़्तियार किए और उसका दिल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के साथ कामिल न था, जैसा उसके बाप दाऊद का दिल था।4~बावजूद इसके ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा ने दाऊद की ख़ातिर यरूशलीम में उसे एक चराग़ दिया, या'नी उसके बेटे को उसके बा'द ठहराया और यरूशलीम को बरकरार रख्खा।5~इसलिए कि दाऊद ने वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था और अपनी सारी 'उम्र ख़ुदावन्द के किसी हुक्म से बाहर न हुआ, 'अलावा हित्ती औरयाह के मु'आमिले के।6~और रहुब'आम और युरब'आम के बीच उसकी सारी 'उम्र जंग रही;7~और अबियाम का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं है? और अबियाम और युरब'आम में जंग होती रही।8~और अबियाम अपने बाप दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में दफ़न किया; और उसका बेटा आसा उसकी जगह बादशाह हुआ।9~शाह-ए-इस्राईल युरब"आम के बीसवें साल से आसा यहूदाह पर हुकूमत करने लगा।10~उसने इकतालीस साल यरूशलीम में हुकूमत की; उस की माँ का नाम मा'काथा, जो अबीसलोम की बेटी थी।11~ और आसा ने अपने बाप दाऊद की तरह वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था।12~ उसने लूतियों को मुल्क से निकाल दिया, और उन सब बुतों को जिनको उसके बाप दादा ने बनाया था दूर कर दिया।13~और उसने अपनी माँ मा'का को भी मलिका के रुतबे से उतार दिया, क्यूँकि उसने एक यसीरत के लिए एक नफ़रत अंगेज़ बुत बनाया था। तब आसा ने उसके बुत को काट डाला और वादी-ए-क़िद्रोन में उसे जला दिया।14~लेकिन ऊँचे मक़ाम ढाए न गए, तोभी आसा का दिल 'उम्र भर ख़ुदावन्द के साथ कामिल रहा।15~ और उसने वह चीजें जो उसके बाप ने नज़र की थीं, और वह चीज़ें जो उसने आप नज़र की थीं, या'नी चाँदी और सोना और बर्तन, सबको ख़ुदावन्द के घर में दाख़िल किया।16~आसा और शाह-ए-इस्राईल बाशा में उनकी 'उम्र भर जंग रही।17~ और शाह-ए-इस्राईल बाशा ने यहूदाह पर चढ़ाई की और रामा को बनाया, ताकि शाह-ए-यहूदाह आसा के पास किसी की आना जाना न हो सके।18~तब आसा ने सब चाँदी और सोने को, जो ख़ुदावन्द के घर के ख़ज़ानों में बाक़ी रहा था, और शाही महल के ख़ज़ानों को लेकर उनको अपने ख़ादिमों के हवाले किया, और आसा बादशाह ने उनको शाह-ए-अराम बिनहदद के पास, जो हज़ियून के बेटे तब रिम्मून का बेटा था और दमिश्क़ में रहता था, रवाना किया और कहला भेजा,19कि "मेरे और तेरे बीच और मेरे बाप और तेरे बाप के बीच 'अहद-ओ-पैमान है। देख, मैंने तेरे लिए चाँदी और सोने का हदिया भेजा है; तब तू आकर शाह-ए-इस्राईल बा'शा से 'अहद को तोड़दे , ताकि वह मेरे पास से चला जाए।20~ और बिन हदद ने आसा बादशाह की बात मानी और अपने लश्कर के सरदारों को इस्राइली शहरों पर चढ़ाई करने को भेजा, और 'अय्यून और दान और अबील बैत मा'का और सारे किनरत और नफ़्ताली के सारे मुल्क को मारा।21~जब बाशा ने यह सुना तो रामा के बनाने से हाथ खींचा और तिरज़ा में रहने लगा।22~तब आसा बादशाह ने सारे यहूदाह में 'एलान कराया और कोई छोड़ा न गया; तब वह रामा के पत्थर को और उसकी लकड़ियों को, जिन से बा'शा उसे ता'मीर कर रहा था, उठा ले गए; और आसा बादशाह ने उनसे बिनयमीन के जिबा' और मिसफ़ाह को बनाया।23~ आसा का बाकी सब हाल और उसकी सारी ताक़त, और सब कुछ जो उसने किया, और जो शहर उसने बनाए, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं है? लेकिन उसके बुढ़ापे के वक़्त में उसे पाँवों का रोग लग गया।24~ और आसा अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और अपने बाप-दादा के साथ अपने बाप दाऊद के शहर में दफ़्न हुआ; और उसका बेटा यहूसफ़त उसकी जगह बादशाह हुआ।25~शाह-ए-यहूदाह आसा की हुकूमत के दूसरे साल से युरब'आम का बेटा नदब इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और उसने इस्राईल पर दो साल हुकूमत की।26~और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की और अपने बाप की रास्ते और उसके गुनाह के चाल चलन ~इख़्तियार किए, जिससे उसने इस्राईल से गुनाह कराया था।27~अख़ियाह के बेटे बा'शा ने, जो इश्कार के घराने का था, उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और बाशा ने जिब्बतून में, जो फ़िलिस्तियों का था, उसे क़त्ल किया; क्यूँकि नदब और सारे इस्राईल ने जिब्बतून का घेरा कर रखा था।28~ शाह-ए-यहूदाह आसा के तीसरे ही साल बाशा ने उसे क़त्ल किया, और उसकी जगह हुकूमत करने लगा।29~ और जूँही वह बादशाह हुआ उसने युरब'आम के सारे घराने को क़त्ल किया; और जैसा ख़ुदावन्द ने अपने ख़ादिम अख़ियाह सैलानी की ज़रिए' फ़रमाया था, उसने युरब'आम के लिए किसी साँस लेने वाले को भी, जब तक उसे हलाक न कर डाला, न छोड़ा।30~ युरब'आम के उन गुनाहों की वजह से जो उसने ख़ुद किए, और जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, और उसके उस ग़ुस्सा दिलाने की वजह से, जिससे उसने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के ग़ज़ब को भड़काया।31~और नदब का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?32आसा और शाह-ए-इस्राईल बा'शा के दर्मियान उनकी 'उम्र भर जंग रही।33~शाह-ए-यहूदा आसा के तीसरे साल से अख़ियाह का बेटा बा'शा तिरज़ा में सारे इस्राईल पर बादशाही करने लगा, और उसने चौबीस साल हुकूमत की।34~ और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की, और युरब'आम की रास्ते और उसके गुनाह के चाल चलन इख़्तियार किया जिससे उसने इस्राईल से गुनाह कराया।
1~और हनानी के बेटे याहू पर ख़ुदावन्द का यह कलाम बा'शा के ख़िलाफ़ नाज़िल हुआ,2~ "इसलिए के मैंने तुझे ख़ाक पर से उठाया और अपनी क़ौम इस्राईल का पेशवा बनाया, और तू युरब'आम की रास्ते पर चला, और तू ने मेरी क़ौम इस्राईल से गुनाह करा के उनके गुनाहों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया।3~इसलिए देख, मैं बा'शा और उसके घराने की पूरी सफ़ाई कर दूँगा और तेरे घराने को नबात के बेटे युरब'आम के घराने की तरह बना दूँगा।4~बा'शा का जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खाएँगे, और जो मैदान में मरेगा उसे हवा के परिन्दे चट कर जाएँगे।"5~बा'शा का बाक़ी हाल और जो कुछ उसने किया और उसकी ताक़त, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं है?6~ और बा'शा अपने बाप दादा के साथ सो गया और तिरज़ा में दफ़न हुआ, और उसका बेटा ऐला उसकी जगह बादशाह हुआ।7~और हनानी के बेटे याहू के ज़रिए' ख़ुदावन्द का कलाम बा'शा और उसके घराने के ख़िलाफ़ उस सारी बदी की वजह से भी नाज़िल हुआ, जो उसने ख़ुदावन्द की नज़र में की और अपने हाथों के काम से उसे ग़ुस्सा दिलाया, और युरब"आम के घराने की तरह बना, और इस वजह से भी कि उसने उसे क़त्ल किया।8~शाह-ए-यहूदाह आसा के छब्बीसवें साल से बा'शा का बेटा ऐला तिरज़ा में बनी इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और उसने दो साल हुकूमत की।9~ और उसके ख़ादिम ज़िमरी ने, जो उसके आधे रथों का दारोग़ा था, उसके ख़िलाफ़ साज़िश की। उस वक़्त वह तिरज़ा में था, और अरज़ा के घर में जो तिरज़ा में उसके घर का दीवान था, शराब पी पी कर मतवाला होता जाता था।10~ तब ज़िमरी ने आसा शाह-ए-यहूदाह के सत्ताइसवें साल अन्दर जाकर उस पर वार किया और उसे क़त्ल कर दिया, और उसकी जगह हुकूमत करने लगा।11~जब वह बादशाही करने लगा, तो तख़्त पर बैठते ही उसने बा'शा के सारे घराने को क़त्ल किया, और न तो उसके रिश्तेदारों का और न उसके दोस्तों का कोई लड़का बाक़ी छोड़ा।12~ऐसे ज़िमरी ने ख़ुदावन्द के उस कहे के मुताबिक़, जो उसने बा'शा के ख़िलाफ़ याहू नबी के ~ज़रिए' फ़रमाया था, बाशा के सारे घराने को मिटा दिया।13~बाशा के सब गुनाहों और उसके बेटे ऐला के गुनाहों की वजह से जो उन्होंने किए, और जिनसे उन्होंने इस्राईल से गुनाह कराया, ताकि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा को अपने बातिल कामों से ग़ुस्सा दिलाएँ।14~ऐला का बाक़ी हाल और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?15~शाह-ए-यहूदाह आसा के सत्ताइसवें साल में ज़िमरी ने तिरज़ा में सात दिन बादशाही की; उस वक़्त लोग जिब्बतून के मुक़ाबिल, जो फ़िलिस्तियों का था, ख़ेमाज़न थे।16~और उन लोगों ने, जो ख़ैमाज़न थे, यह चर्चा सुना के ज़िमरी ने साज़िश की और बादशाह को मार भी डाला है, इसलिए सारे इस्राईल ने उमरी को, जो लश्कर का सरदार था, उस दिन लश्करगाह में इस्राईल का बादशाह बनाया।17~तब 'उमरी और उसके साथ सारा इस्राईल जिब्बतून से रवाना हुआ और उन्होंने तिरज़ा का घेरा कर लिया।18~और ऐसा हुआ कि जब ज़िमरी ने देखा कि शहर का घिराव हो गया, तो शाही महल के मज़बूत हिस्से में जाकर शाही महल में आग लगा दी और जल मरा।19~अपने उन गुनाहों की वजह से जो उसने किए, कि ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की और युरब'आम के रास्ते और उसके गुनाह के चाल चलन ~इख़्तियार किए जो उसने किया, ताकि इस्राईल से गुनाह कराए।20~ ज़िमरी का बाक़ी हाल और जो बग़ावत उसने की, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?21~उस वक़्त इस्राइली दो हिस्से हो गए, आधे आदमी जीनत के बेटे तिबनी के पैरोकार हो गए ताकि उसे बादशाह बनाएँ और आधे 'उमरी के पैरोकार थे।22~ लेकिन जो 'उमरी के पैरोकार थे उन पर, जो जीनत के बेटे तिबनी के पैरोकार थे, ग़ालिब आए। इसलिए तिबनी मर गया और उमरी बादशाह हुआ।23~ शाह-ए-यहूदाह आसा के इकतीसवें साल में उमरी इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, उसने बारह साल हुकूमत की; तिरज़ा में छ: साल उसकी हुकूमत रही।24~ और उसने सामरिया का पहाड़ समर से दो क़िन्तार' चाँदी में ख़रीदा, और उस पहाड़ पर एक शहर बनाया और उस शहर का नाम, जो उसने बनाया था, पहाड़ के मालिक समर के नाम पर सामरिया रखा।25~और उमरी ने ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की, और उन सब से जो उससे पहले हुए बदतर काम किए।26~क्यूँकि उसने नबात के बेटे युरब'आम की सब रास्तों और उसके गुनाहों की चाल चलन ~इख़्तियार की, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया ताकि वह ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा को अपने बातिल कामों से ग़ुस्सा दिलाएँ।27~और उमरी के बाक़ी काम जो उसने किए और उसका ज़ोर जो उसने दिखाया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?28~तब उमरी अपने बाप-दादा के साथ सो गया और सामरिया में दफ़्न हुआ, और उसका बेटा अख़ीअब उसकी जगह बादशाह हुआ।29~शाह-ए-यहूदाह आसा के अड़तीसवें साल से उमरी का बेटा अख़ीअब इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और उमरी के बेटे अख़ीअब ने सामरिया में इस्राईल पर बाईस साल हुकूमत की।30~और उमरी के बेटे अख़ीअब ने जितने उससे पहले हुए थे, उन सभों से ज़्यादा ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की।31~और गोया नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों के चाल चलन ~इख़्तियार करना उसके लिए एक हल्की सी बात थी, इसलिए उसने सैदानियों के बादशाह इतबाल की बेटी ईज़बिल से ब्याह किया, और जाकर बाल की 'इबादत करने और उसे सिज्दा करने लगा।32~और बाल के मन्दिर में, जिसे उसने सामरिया में बनाया था, बाल के लिए एक मज़बह तैयार किया।33~ और अख़ीअब ने यसीरत बनाई, और अख़ीअब ने इस्राईल के सब बादशाहों से ज़्यादा, जो उससे पहले हुए थे, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा को ग़ुस्सा दिलाने के काम किए।34~ उसके दिनों में बैतएली हीएल ने यरीहू को ता'मीर किया। जब उसने उसकी बुनियाद डाली तो उसका पहलौठा बेटा अबराम मरा, और जब उसके फाटक लगाए तो उसका सबसे छोटा बेटा सजूब मर गया, यह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ हुआ जो उसने नून के बेटे यशूअ के ज़रिए' फ़रमाया था।
1~एलियाह तिशबी ने जो जिल'आद के परदेसियों में से था, अख़ीअब से कहा कि "खुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हयात की क़सम, जिसके सामने मैं खड़ा हूँ, इन बरसों में न ओस पड़ेगी न बारिश होगी, जब तक मैं न कहूँ।"2~और ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ कि3~ "यहाँ से चल दे और मशरिक़ की तरफ़ अपना रुख कर और करीत के नाले के पास, जो यरदन के सामने है, जा छिप।4~ और तू उसी नाले में से पीना, और मैंने कौवों को हुक्म किया है कि वह तेरी परवरिश करें।”5~ तब उसने जाकर ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ किया, क्यूँकि वह गया और करीत के नाले के पास जो यरदन के सामने है रहने लगा।6~ और कौवे उसके लिए सुबह को रोटी और गोश्त, और शाम को भी रोटी और गोश्त लाते थे, और वह उस नाले में से पिया करता था।7और कुछ 'अरसे के बा'द वह नाला सूख गया इसलिए कि उस मुल्क में बारिश नहीं हुई थी।8~तब ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ, कि9~ "उठ और सैदा के सारपत को जा और वहीं रह। देख, मैंने एक बेवा को वहाँ हुक्म दिया है कि तेरी परवरिश करे।”10~ तब वह उठकर सारपत को गया, और जब वह शहर के फाटक पर पहुँचा तो देखा, कि एक बेवा वहाँ लकड़ियाँ चुन रही है; तब उसने उसे पुकार कर कहा, "ज़रा मुझे थोड़ा सा पानी किसी बर्तन में ला दे कि मैं पियूं।"11~जब वह लेने चली, तो उसने पुकार कर कहा, "ज़रा अपने हाथ में एक टुकड़ा रोटी मेरे वास्ते लेती आना।"12~उसने कहा, "ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की हयात की कसम, मेरे यहाँ रोटी नहीं सिर्फ़ मुट्ठी भर आटा एक मटके में, और थोड़ा सा तेल एक कुप्पी में है। और देख, मैं दो एक लकड़ियाँ चुन रही हूँ, ताकि घर जाकर अपने और अपने बेटे के लिए उसे पकाऊँ, और हम उसे खाएँ, फिर मर जाएँ।"13~और एलियाह ने उससे कहा, "मत डर; जा और जैसा कहती है कर, लेकिन पहले मेरे लिए एक टिकिया उसमें से बनाकर मेरे पास ले आ; उसके बा'द अपने और अपने बेटे के लिए बना लेना।14~क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है, "उस दिन तक जब तक ख़ुदावन्द ज़मीन पर मेंह न बरसाए, न तो आटे का मटका खाली होगा और न तेल की कुप्पी में कमी होगी।' "15~ तब उसने जाकर एलियाह के कहने के मुताबिक़ किया, और यह और वह और उसका कुन्बा बहुत दिनों तक खाते रहे।16~और ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो उसने एलियाह की ज़रिए' फ़रमाया था, न तो आटे का मटका ख़ाली हुआ और न तेल की कुप्पी में कमी हुई।17~इन बातों के बा'द उस 'औरत का बेटा, जो उस घर की मालिक थी, बीमार पड़ा और उसकी बीमारी ऐसी सख़्त हो गई कि उसमें दम बाक़ी न रहा।18~तब वह एलियाह से कहने लगी, "ऐ नबी, मुझे तुझ से क्या काम? तू मेरे पास आया है, कि मेरे गुनाह याद दिलाए और मेरे बेटे को मार दे!"19~उसने उससे कहा, "अपना बेटा मुझ को दे।" और वह उसे उसकी गोद से लेकर उसकी बालाखाने पर, जहाँ वह रहता था, ले गया और उसे अपने पलंग पर लिटाया।20~ और उसने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! क्या तू ने इस बेवा पर भी, जिसके यहाँ मैं टिका हुआ हूँ, उसके बेटे को मार डालने से बला नाज़िल की?"21~और उसने अपने आपको तीन बार उस लड़के पर पसार कर ख़ुदावन्द से फ़रियाद की और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि इस लड़के की जान इसमें फिर आ जाए।"22~और ख़ुदावन्द ने एलियाह की फ़रयाद सुनी औए लड़के की जान उसमें फिर आ गई और वह जी उठा।23~ तब एलियाह उस लड़के को उठाकर बालाखाने पर से नीचे घर के अन्दर ले गया, और उसे उसकी माँ के ज़िम्मे किया, और एलियाह ने कहा, "देख, तेरा बेटा ज़िन्दा है।"24~ तब उस 'औरत ने एलियाह से कहा, "अब मैं जान गई कि तू नबी है, और ख़ुदावन्द का जो कलाम तेरे मुँह में है वह सच है।"
1और बहुत दिनों के बा'द ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द का यह कलाम तीसरे साल एलियाह पर नाज़िल हुआ, कि "जाकर अख़ीअब से मिल, और मैं ज़मीन पर मेंह बरसाऊँगा।"2~ इसलिए एलियाह अख़ी'अब से मिलने को चला; और सामरिया में सख़्त काल था।3और अख़ीअब ने 'अबदियाह को, जो उसके घर का दीवान था, तलब किया और अबदियाह ख़ुदावन्द से बहुत डरता था,4क्यूँकि जब ईज़बिल ने ख़ुदावन्द के नबियों को क़त्ल किया तो 'अबदियाह ने सौ नबियों को लेकर, पचास पचास करके उनको एक ग़ार में छिपा दिया, और रोटी और पानी से उनको पालता रहा -5इसलिए अख़ीअब ने 'अबदियाह से कहा, "मुल्क में गश्त करता हुआ पानी के सब चश्मों और सब नालों पर जा, शायद हम को कहीं घास मिल जाए, जिससे हम घोड़ों और खच्चरों को ज़िन्दा बचा लें ताकि हमारे सब चौपाए जाया' न हों।"6~तब उन्होंने उस पूरे मुल्क में गश्त करने के लिए, उसे आपस में तक़सीम कर लिया; अख़ीअब अकेला एक तरफ़ चलाऔर 'अबदियाह अकेला दूसरी तरफ़ गया।7और 'अबदियाह रास्ते ही में था कि एलियाह उसे मिला, वह उसे पहचान कर मुँह के बल गिरा और कहने लगा, "ऐ मेरे मालिक एलियाह, क्या तू है?"8~उसने उसे जवाब दिया, "मैं ही हूँ जा अपने मालिक को बता दे कि एलियाह हाज़िर है।9~उसने कहा, "मुझ से क्या गुनाह हुआ है, जो तू अपने ख़ादिम को अख़ीअब के हाथ में हवाले करना चाहता है, ताकि वह मुझे क़त्ल करे |10~ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की हयात की क़सम, कि~ऐसी कोई क़ौम या हुकूमत नहीं जहाँ मेरे मालिक ने तेरी तलाश के लिए न भेजा हो; और जब उन्होंने कहा कि वह यहाँ नहीं, तो उसने उस हुकूमत और क़ौम से क़सम ली कि तू उनको नहीं मिला है।11और अब तू कहता है कि जाकर अपने मालिक को ख़बर कर दे कि एलियाह हाज़िर है।'12~और ऐसा होगा कि जब मैं तेरे पास से चला जाऊँगा, तो ख़ुदावन्द की रूह तुझ को न जाने कहाँ ले जाए; और मैं जाकर अख़ीअब को ख़बर दूँ और तू उसको कहीं मिल न सके, तो वह मुझको क़त्ल कर देगा। लेकिन मैं तेरा ख़ादिम लड़कपन से ख़ुदावन्द से डरता रहा हूँ।13~क्या मेरे मालिक को जो कुछ मैंने किया है नहीं बताया गया, कि जब ईज़बिल ने ख़ुदावन्द के नबियों को क़त्ल किया, तो मैंने ख़ुदावन्द के नबियों में से सौ आदमियों को लेकर, पचास-पचास करके उनको एक ग़ार में छिपाया और उनको रोटी और पानी से पालता रहा?14~और अब तू कहता है कि जाकर अपने मालिक को ख़बर दे कि एलियाह हाज़िर है; तब वह मुझे मार डालेगा।"15~तब एलियाह ने कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज की हयात की क़सम जिसके सामने मैं खड़ा हूँ, मैं आज उससे ज़रूर मिलूँगा।"16तब 'अबदियाह अख़ीअब से मिलने को गया और उसे ख़बर दी; और अख़ीअब एलियाह की मुलाक़ात को चला।17~और जब अख़ीअब ने एलियाह को देखा, तो उसने उससे कहा, "ऐ इस्राईल के सताने वाले, क्या तू ही है?"18~उसने जवाब दिया, "मैंने इस्राईल को नहीं सताया, बल्कि तू और तेरे बाप के घराने ने, क्यूँकि तुमने ख़ुदावन्द के हुक्मों को छोड़ दिया, और तू बा'लीम का पैरोकार हो गया।19इसलिए अब तू क़ासिद भेज; और सारे इस्राईल को और बा'ल के साढ़े चार सौ नबियों को, और यसीरत के चार सौ नबियों को जो ईज़बिल के दस्तरख़्वान पर खाते हैं कर्मिल की पहाड़ी पर मेरे पास इकट्ठा कर दे।"20तब अख़ीअब ने सब बनी-इस्राईल को बुला भेजा, और नबियों को कर्मिल की पहाड़ी पर इकट्ठा किया।21और एलियाह सब लोगों के नज़दीक आकर कहने लगा, "तुम कब तक दो ख़्यालों में डाँवाडोल रहोगे? अगर ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है, तो उसकी पैरवी करो; और अगर बा'ल है, तो उसकी पैरवी करो।" लेकिन उन लोगों ने उसे एक हर्फ़ जवाब न दिया।22तब एलियाह ने उन लोगों से कहा, "एक मैं ही अकेला ख़ुदावन्द का नबी बच रहा हूँ, लेकिन बा'ल के नबी चार सौ पचास आदमी हैं।23इसलिए हम को दो बैल दिए जाएँ, और वह~अपने लिए एक बैल को चुन लें और उसे टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ियों पर धरें~और नीचे आग न दें; और मैं दूसरा बैल तैयार करके उसे लकड़ियों पर धरूँगा, और नीचे आग नहीं दूँगा।24~तब तुम अपने मा'बूद से दु'आ करना, और मैं ख़ुदावन्द से दु'आ करूँगा; और वह ख़ुदा जो आग से जवाब दे, वही ख़ुदा ठहरे।” और सब लोग बोल उठे, "ख़ूब कहा!"25तब एलियाह ने बा'ल के नबियों से कहा कि "तुम अपने लिए एक बैल चुनलो और पहले उसे तैयार करो क्यूँकि~तुम बहुत से हो; और अपने मा'बूद से दु'आ करो, लेकिन आग नीचे न देना।”26इसलिए उन्होंने उस बैल को लेकर जो उनको दिया गया उसे तैयार किया; और सुबह से दोपहर तक बा'ल से दु'आ करते और कहते रहे, "ऐ बा'ल, हमारी सुन!" लेकिन न कुछ आवाज़ हुई और न कोई जवाब देने वाला था। और वह उस मज़बह के पास जो बनाया गया था कूदते रहे।27~और दोपहर को ऐसा हुआ कि एलियाह ने उनको चिढ़ाकर कहा, "बुलन्द आवाज़ से पुकारो; क्यूँकि वह तो मा'बूद है, वह किसी सोच में होगा, या वह तनहाई में है, या कहीं सफ़र में होगा, या शायद वह सोता है, इसलिए ज़रूर है कि वह जगाया जाए।”28~तब वह बुलन्द आवाज़ से पुकारने लगे, और अपने दस्तूर के मुताबिक़ अपने आप को छुरियों और नश्तरों से घायल कर लिया, यहाँ तक कि लहू लुहान हो गए।29~वह दोपहर ढले पर भी शाम की क़ुर्बानी चढ़ाकर नबुव्वत करते रहे; लेकिन न कुछ आवाज़ हुई, न कोई जवाब देने वाला, न ध्यान करने वाला था।30तब एलियाह ने सब लोगों से कहा कि "मेरे नज़दीक आ जाओ।" चुनाँचे सब लोग उसके नज़दीक आ गए। तब उसने ख़ुदावन्द के उस मज़बह को, जो ढा दिया गया था, मरम्मत किया।31और एलियाह ने या'कूब के बेटों के क़बीलों के गिनती के मुताबिक़, जिस पर ख़ुदावन्द का यह कलाम नाज़िल हुआ था कि "तेरा नाम इस्राईल होगा" बारह पत्थर लिए,32~और उसने उन पत्थरों से ख़ुदावन्द के नाम का एक मज़बह बनाया; और मज़बह के आस पास उसने ऐसी बड़ी खाई खोदी, जिसमें दो पैमाने बीज की समाई थी,33~और लकड़ियों को तरतीब से चुना और बैल भी टुकड़े-टुकड़े काटकर लकड़ियों पर धर दिया, और कहा, "चार मटके पानी से भरकर उस सोख़्तनी क़ुर्बानी पर और लकड़ियों पर उँडेल दो।"34~फिर उसने कहा, "दोबारा करो।" उन्होंने दोबारा किया; फिर उसने कहा, "तिबारा करो।" तब उन्होंने तिबारा भी किया।35~और पानी मज़बह के चारों तरफ़ बहने लगा, और उसने खाई भी पानी से भरवा दी।36~और शाम की क़ुर्बानी पेश करने ~के वक़्त एलियाह नबी नज़दीक आया और उसने कहा ऐ ख़ुदावन्द अब्राहाम और इज़्हाक़ और इस्राईल के ख़ुदा ! आज मा'लूम हो जाए कि इस्राईल में तू ही ख़ुदा है, और मैं तेरा बन्दा हूँ, और मैंने इन सब बातों को तेरे ही हुक्म से किया है।37~ मेरी सुन, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी सुन! ताकि यह लोग जान जाएँ कि ~ऐ ख़ुदावन्द, तू ही ख़ुदा है; और तू ने फिर उनके दिलों को फेर दिया है।"38~ तब ख़ुदावन्द की आग नाज़िल हुई और उसने उस सोख़्तनी क़ुर्बानी को लकड़ियों और पत्थरों और मिट्टी समेत भसम कर दिया, और उस पानी को जो खाई में था चाट लिया।39~जब सब लोगों ने यह देखा, तो मुँह के बल गिरे और कहने लगे, "ख़ुदावन्द वही ख़ुदा है, ख़ुदावन्द वही ख़ुदा है।"40~एलियाह ने उनसे कहा, "बा'ल के नबियों को पकड़ लो, उनमें से एक भी जाने न पाए।" इसलिए उन्होंने उनको पकड़ लिया, और एलियाह उनको नीचे कोसोन के नाले पर ले आया और वहाँ उनको क़त्ल कर दिया।41~फिर एलियाह ने अख़ीअब से कहा, "ऊपर चढ़ जा, खा और पी, क्यूँकि कसरत की बारिश की आवाज़ है।"42इसलिए अख़ीअब खाने पीने को ऊपर चला गया। और एलियाह कर्मिल की चोटी पर चढ़ गया, और ज़मीन पर सरनगू होकर अपना मुँह अपने घुटनों के बीच कर लिया,43और अपने ख़ादिम से कहा, "ज़रा ऊपर जाकर समुन्दर की तरफ़ तो नज़र कर।" इसलिए उसने ऊपर जाकर नज़र की और कहा, "वहाँ कुछ भी नहीं है।" उसने कहा, "फिर सात बार जा।"44और सातवें मर्तबा उसने कहा, "देख, एक छोटा सा बादल आदमी के हाथ के बराबर समुन्दर में से उठा है।" तब उसने कहा, "जा और अख़ीअब से कह कि अपना रथ तैयार कराके नीचे उतर जा, ताकि बारिश तुझे रोक न ले।"45और थोड़ी ही देर में आसमान घटा और आँधी से सियाह हो गया और बड़ी बारिश हुई; और अख़ीअब सवार होकर यज़र'एल को चला।46~ और ख़ुदावन्द का हाथ एलियाह पर था; और उसने अपनी कमर कस ली और अख़ीअब के आगे-आगे यज़र'एल के मदख़ल तक दौड़ा चला गया।
1~और अख़ीअब ने सब कुछ, जो एलियाह ने किया था और यह भी कि उसने सब नबियों को तलवार से क़त्ल कर दिया, ईज़बिल को बताया।2~इसलिए ईज़बिल ने एलियाह के पास एक क़ासिद रवाना किया और कहला भेजा कि "अगर मैं कल इस वक़्त तक तेरी जान उनकी जान की तरह न बना डालूँ, तो मा'बूद मुझ से ऐसा ही बल्कि इससे ज़्यादा करें।"3~जब उसने यह देखा तो उठकर अपनी जान बचाने को भागा, और बैरसबा' में, जो यहूदाह का है, आया और अपने ख़ादिम को वहीं छोड़ा।4और ख़ुद एक दिन की मन्ज़िल दश्त में निकल गया और झाऊ के एक पेड़ के नीचे आकर बैठा, और अपने लिए मौत माँगी और कहा, "बस है; अब तू ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को ले ले, क्यूँकि मैं अपने बाप-दादा से बेहतर नहीं हूँ।"5~और वह झाऊ के एक पेड़ के नीचे लेटा और सो गया; और देखो, एक फ़रिश्ते ने उसे छुआ और उससे कहा, "उठ और खा।"6उसने जो निगाह की तो क्या देखा कि उसके सिरहाने, अंगारों पर पकी हुई एक रोटी और पानी की एक सुराही रखी है; तब वह खा पीकर फिर लेट गया।7~और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता दोबारा फिर आया, और उसे छुआ और कहा, "उठ और खा, कि यह सफ़र तेरे लिए बहुत बड़ा है।"8~इसलिए उसने उठकर खाया पिया, और उस खाने की ताक़त से चालीस दिन और चालीस रात चल कर ख़ुदा के पहाड़ होरिब तक गया।9और वहाँ एक ग़ार में जाकर टिक गया, और देखो, ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ कि "ऐ एलियाह, तू यहाँ क्या करता है?”10~उसने कहा, "ख़ुदावन्द लश्करों के ख़ुदा के लिए मुझे बड़ी गै़रत आई, क्यूँकि बनी-इस्राईल ने तेरे 'अहद को छोड़ दिया और तेरे मज़बहों को ढा दिया, और तेरे नबियों को तलवार से क़त्ल किया, और एक मैं ही अकेला बचा हूँ; तब वह मेरी जान लेने को पीछे पड़े ~हैं।"11~उसने कहा, "बाहर निकल, और पहाड़ पर ख़ुदावन्द के सामने खड़ा हो।” और देखो, ख़ुदावन्द गुज़रा; और एक बड़ी सख़्त आँधी ने ख़ुदावन्द के आगे पहाड़ों को चीर डाला और चट्टानों के टुकड़े कर दिए, लेकिन ख़ुदावन्द आँधी में नहीं था; और आँधी के बा'द ज़लज़ला आया, पर ख़ुदावन्द ज़लज़ले में नहीं था।12~और ज़लज़ले के बा'द आग आई, लेकिन ख़ुदावन्द आग में भी नहीं था; और आग के बा'द एक दबी हुई हल्की आवाज़ आई।13~उसको सुनकर एलियाह ने अपना मुँह अपनी चादर से लपेट लिया, और बाहर निकल कर उस ग़ार के मुँह पर खड़ा हुआ। और देखो, उसे यह आवाज़ आई कि 'ऐ एलियाह, तू यहाँ क्या करता है?"14~ उसने कहा, "मुझे ख़ुदावन्द लश्करों के ख़ुदा के लिए बड़ी गै़रत आई, क्यूँकि बनी-इस्राईल ने तेरे 'अहद को छोड़ दिया और तेरे मज़बहों को ढा दिया, और तेरे नबियों को तलवार से क़त्ल किया; एक मैं ही अकेला बचा हूँ, तब वह मेरी जान लेने को पीछे पड़े हैं।"15~ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया, "तू अपने रास्ते लौट कर दमिश्क़ के बियाबान को जा, और जब तू वहाँ पहुँचे तो तू हज़ाएल को मसह कर, कि अराम का बादशाह हो,16~ और निमसी के बेटे याहू को मसह कर, कि इस्राईल का बादशाह हो, और अबील महूला के इलीशा'-बिन-साफ़त को मसह कर, कि तेरी जगह नबी हो।17~ और ऐसा होगा कि जो हज़ाएल की तलवार से बच जाएगा उसे याहू क़त्ल करेगा, और जो याहू की तलवार से बच रहेगा उसे इलीशा क़त्ल कर डालेगा।18~तोभी मैं इस्राईल में सात हज़ार अपने लिए रख छोडूँगा, या'नी वह सब घुटने जो बा'ल के आगे नहीं झुके और हर एक मुँह जिसने उसे नहीं चूमा।"19~तब वह वहाँ से रवाना हुआ, और साफ़त का बेटा इलीशा' उसे मिला जो बारह जोड़ी बैल अपने आगे लिए हुए जोत रहा था, और वह ख़ुद बारहवें के साथ था; और एलियाह उसके बराबर से गुज़रा, और अपनी चादर उस पर डाल दी।20~तब वह बैलों को छोड़कर एलियाह के पीछे दौड़ा और कहने लगा, "मुझे अपने बाप और अपनी माँ को चूम लेने दे, फिर मैं तेरे पीछे हो लूँगा।" उसने उससे कहा कि "लौट जा; मैंने तुझ से क्या किया है?"21तब वह उसके पीछे से लौट गया, और उसने उस जोड़ी बैल को लेकर ज़बह किया, और उन ही बैलों के सामान से उनका गोश्त उबाला और लोगों को दिया, और उन्होंने खाया; तब वह उठा और एलियाह के पीछे रवाना हुआ, और उसकी ख़िदमत करने लगा।
1और अराम के बादशाह बिन हदद ने अपने सारे लश्कर को इकट्ठा किया, और उसके साथ बत्तीस बादशाह और घोड़े और रथ थे; और उसने सामरिया पर चढ़ाई करके उसका घेरा किया और उससे लड़ा।2और इस्राईल के बादशाह अख़ीअब के पास शहर में क़ासिद रवाना किए और उसे कहला भेजा कि "बिन हदद ऐसा फ़रमाता है:कि3~'तेरी चाँदी और तेरा सोना मेरा है; तेरी बीवियों और तेरे लड़कों में जो सबसे ख़ूबसूरत हैं वह मेरे हैं।' "4~इस्राईल के बादशाह ने जवाब दिया, "ऐ मेरे मालिक, बादशाह! तेरे कहने के मुताबिक़, मैं और जो कुछ मेरे पास है सब तेरा ही है।"5फिर उन क़ासिदों ने दोबारा आकर कहा कि "बिनहदद ऐसा फ़रमाता है कि 'मैंने तुझे कहला भेजा था कि तू अपनी चाँदी और अपनी बीवियाँ और अपने लड़के मेरे हवाले कर दे6~लेकिन अब मैं कल इसी वक़्त अपने ख़ादिमों को तेरे पास भेजूँगा; तब वह तेरे घर और तेरे ख़ादिमों के घरों की तलाशी लेंगे, और जो कुछ तेरी निगाह में क़ीमती होगा वह उसे अपने कब्ज़े में करके ले आएँगे।"7~तब इस्राईल के बादशाह ने मुल्क के सब बुज़ुर्गों को बुला कर कहा, "ज़रा ग़ौर करो और देखो, कि यह शख़्स किस तरह बुराई के पीछे पड़ा ~है; क्यूँकि उसने मेरी बीवियाँ और मेरे लड़के और मेरी चाँदी और मेरा सोना, मुझ से मंगा भेजा और मैंने उससे इन्कार नहीं किया।"8~तब सब बुज़गों और सब लोगों ने उससे कहा कि "तू मत सुन, और मत मान।"9~इसलिए उसने बिनहदद के कासिदों से कहा, "मेरे मालिक बादशाह से कहना, 'जो कुछ तू ने अपने ख़ादिम से पहले तलब किया, वह तो मैं करूँगा; पर यह बात मुझ से नहीं हो सकती।” तब क़ासिद रवाना हुए और उसे यह जवाब सुना दिया।10तब बिन हदद ने उसको कहला भेजा कि “अगर सामरिया की मिट्टी, उन सब लोगों के लिए जो मेरे पैरोकार हैं, मुट्ठियाँ भरने को भी काफ़ी हो; तो मा'बूद मुझ से ऐसा ही बल्कि इससे भी ज़्यादा करें।"11~शाह-ए-इस्राईल ने जवाब दिया, "तुम उससे कहना, 'जो हथियार बाँधता ~है, वह उसकी तरह फ़ख़्र न करे जो उसे उतारता है।”12~जब बिन हदद ने, जो बादशाहों के साथ सायबानों में मयनोशी कर रहा था, यह पैग़ाम सुना तो अपने मुलाज़िमों को हुक्म किया कि "सफ़ बान्ध लो।" इसलिए उन्होंने शहर पर चढ़ाई करने के लिए सफ़आराई की।13~और देखो, एक नबी ने शाह-ए-इस्राईल अख़ीअब के पास आकर कहा, 'ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि 'क्या तू ने इस बड़े हुजूम को देख लिया? मैं आज ही उसे तेरे हाथ में कर दूँगा, और तू जान लेगा कि ख़ुदावन्द मैं ही हूँ।"14~तब अख़ीअब ने पूछा, "किसके वसीले से?" उसने कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि सूबों के सरदारों के जवानों के वसीले से! ~" फिर उसने पूछा कि लड़ाई कौन शुरू करे|" उसने जवाब दिया कि ~"तू।"15~तब उसने सूबों के सरदारों के जवानों को शुमार किया, और वह दो सौ बत्तीस निकले; उनके बा'द उसने सब लोगों, या'नी सब बनी-इस्राईल की हाजरी ली, और वह सात हज़ार थे।16~यह सब दोपहर को निकले, और बिन हदद और वह बत्तीस बादशाह, जो उसके मददगार थे, सायबानों में पी पीकर मस्त होते जाते थे।17~इसलिए सूबों के सरदारों के जवान पहले निकले। और बिन हदद ने आदमी भेजे, और उन्होंने उसे ख़बर दी कि "सामरिया से लोग निकले हैं।"18उसने कहा, "अगर वह सुलह के इरादे से निकले हों तो उनको ज़िन्दा पकड़ लो, और अगर वह जंग को निकले हों तोभी उनको ज़िन्दा पकड़ो।"19~तब सूबों के सरदारों के जवान और वह लश्कर जो उनके पीछे हो लिया था शहर से बाहर निकले;20~और उनमें से एक एक ने अपने मुख़ालिफ़ को क़त्ल किया; इसलिए अरामी भागे और इस्राईल ने उनका पीछा किया, और शाह-ए-अराम बिन हदद एक घोड़े पर सवार होकर सवारों के साथ भागकर बच गया।21~और शाह-ए-इस्राईल ने निकल कर घोड़ों और रथों को मारा, और अरामियों को बड़ी खूँरेज़ी के साथ क़त्ल किया।22और वह नबी शाह-ए-इस्राईल के पास आया और उससे कहा, "जा अपने को मज़बूत कर, और जो कुछ तू करे उसे ग़ौर से देख लेना; क्यूँकि अगले साल शाह-ए-अराम फिर तुझ पर चढ़ाई करेगा।"23~और शाह-ए-अराम के ख़ादिमों ने उससे कहा, "उनका ख़ुदा पहाड़ी ख़ुदा है, इसलिए वह हम पर ग़ालिब आए; लेकिन हम को उनके साथ मैदान में लड़ने दे तो ज़रूर हम उन पर ग़ालिब होंगे।24~और एक काम यह कर, कि बादशाहों को हटा दे, या'नी हर एक को उसके 'उहदे से हटा दे और उनकी जगह सरदारों को मुक़र्रर कर;25~और अपने लिए एक लश्कर अपनी उस फ़ौज की तरह, जो तबाह हो गई, घोड़े की जगह घोड़ा और रथ की जगह रथ गिन गिनकर तैयार कर ले। हम मैदान में उनसे लड़ेंगे और ज़रूर उन पर ग़ालिब होंगे।" इसलिए उसने उनका कहा माना और ऐसा ही किया।26~और अगले साल बिन हदद ने अरामियों की हाज़री ली, और इस्राईल से लड़ने के लिए अफ़ीक को गया।27और बनी-इस्राईल की हाज़री भी ली गई, और उनकी ख़ूराक का इन्तज़ाम किया गया और यह उनसे लड़ने को गए; और बनी-इस्राईल उनके बराबर ख़ेमाज़न होकर ऐसे मा'लूम होते थे जैसे हलवानों के दो छोटे रेवड़, लेकिन अरामियों से वह मुल्क भर गया था।28~तब एक नबी इस्राईल के बादशाह के पास आया और उससे कहा, "~ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि चूँकि अरामियों ने ऐसा कहा है कि ख़ुदावन्द पहाड़ी ख़ुदा है, और वादियों का ख़ुदा नहीं;' इसलिए मैं इस सारे बड़े हुजूम को तेरे ज़िम्मे में कर दूँगा, और तुम जान लोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"29और वह एक दूसरे के मुक़ाबिल सात दिन तक ख़ेमाज़न रहे; और सातवें दिन जंग छिड़ गई, और बनी-इस्राईल ने एक दिन में अरामियों के एक लाख प्यादे क़त्ल कर दिए;30और बाक़ी अफ़ोक को शहर के अन्दर भाग गए, और वहाँ एक दीवार सताईस हज़ार पर जो बाकी रहे थे गिरी। और बिन हदद भागकर शहर के अन्दर एक अन्दरूनी कोठरी में घुस गया।31~और उसके ख़ादिमों ने उससे कहा, "देख, हम ने सुना है कि इस्राईल के घराने के बादशाह रहीम होते हैं; इसलिए हम को ज़रा अपनी कमरों पर टाट और अपने सिरों पर रस्सियाँ बाँध कर शाह-ए-इस्राईल के सामने जाने दे; शायद वह तेरी जान बख़्शी करे।"32इसलिए उन्होंने अपनी कमरों पर टाट और सिरों पर रस्सियाँ बाँधी, और शाह-ए-इस्राईल के सामने आकर कहा, 'तेरा ख़ादिम बिनहदद यह दरख़्वास्त करता है कि 'महेरबानी करके मुझे जीने दे।' " उसने कहा, "क्या वह अब तक ज़िन्दा है? वह मेरा भाई है।"33~वह लोग बड़ी ध्यान से सुन रहे थे; इसलिए उन्होंने उसका दिली इरादा दरियाफ़्त करने के लिए झट उससे कहा कि "तेरा भाई बिन हदद।" तब उसने फ़रमाया कि 'जाओ, उसे ले आओ।" तब बिन हदद उससे मिलने को निकला, और उसने उसे अपने रथ पर चढ़ा लिया।34~और बिनहदद ने उससे कहा, "जिन शहरों को मेरे बाप ने तेरे बाप से ले लिया था, मैं उनको लौटा दूँगा; और तू अपने लिए दमिश्क़ में सड़कें बनवा लेना, जैसे मेरे बाप ने सामरिया में बनवाई।” अख़ीअब ने कहा, "मैं इसी 'अहद पर तुझे छोड़ दूँगा।" इसलिए उसने उससे 'अहद बाँधा और उसे छोड़ दिया।35इसलिए अम्बियाज़ादों में से एक ने ख़ुदावन्द के हुक्म से अपने साथी से कहा, "मुझे मार।" लेकिन उसने उसे मारने से इन्कार किया।36~तब उसने उससे कहा, "इसलिए कि तू ने ख़ुदावन्द की बात नहीं मानी, सो देख, जैसे ही तू मेरे पास से रवाना होगा एक शेर तुझे मार डालेगा।" सो जैसे ही वह उसके पास से रवाना हुआ, उसे एक शेर मिला और उसे मार डाला।37~फिर उसे एक और शख़्स मिला, उसने उससे कहा, "मुझे मार।" उसने उसे मारा, और मार कर ज़ख़्मी कर दिया।38~तब वह नबी चला गया और बादशाह के इन्तज़ार में रास्ते पर ठहरा रहा, और अपनी आँखों पर अपनी पगड़ी लपेट ली और अपना भेस बदल डाला।39~जैसे ही बादशाह उधर से गुज़रा, उसने बादशाह की दुहाई दी और कहा कि "तेरा ख़ादिम जंग होते में वहाँ चला गया था; और देख, एक शख़्स उधर मुड़कर एक आदमी को मेरे पास ले आया, और कहा कि ~"इस आदमी की हिफ़ाज़त कर; अगर यह किसी तरह ग़ायब हो जाए, तो उसकी जान के बदले तेरी जान जाएगी, और नहीं तो तुझे एक क़िन्तार' चाँदी देनी पड़ेगी।'40~जब तेरा ख़ादिम इधर उधर मसरूफ़ था, वह चलता बना।" शाह-ए-इस्राईल ने उससे कहा, "तुझ पर वैसा ही फ़तवा होगा, तू ने ख़ुद इसका फ़ैसला किया।"41~तब उसने झट अपनी आँखों पर से पगड़ी हटा दी, और शाह-ए-इस्राईल ने उसे पहचाना कि वह नबियों में से है।42~और उसने उससे कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है, 'इसलिए कि तू ने अपने हाथ से एक ऐसे शख़्स को निकल जाने दिया, जिसे मैंने क़त्ल के लायक़ ठहराया था, इसलिए तुझे उसकी जान के बदले अपनी जान और उसके लोगों के बदले अपने लोग देने पड़ेंगे।"43इसलिए शाह-ए-इस्राईल उदास और नाख़ुश होकर अपने घर को चला और सामरिया में आया।
1इन बातों के बा'द ऐसा हुआ कि यज़र एली नबोत के पास यज़र एल में एक ताकिस्तान था, जो सामारिया के बादशाह अख़ीअब के महल से लगा हुआ था।2इसलिए अख़ीअब ने नबोत से कहा कि "अपना ताकिस्तान मुझ को दे ताकि मैं उसे तरकारी का बाग बनाऊँ, क्यूँकि वह मेरे घर से लगा हुआ है; और मैं उसके बदले तुझ को उससे बेहतर ताकिस्तान दूँगा; या अगर तुझे मुनासिब मा'लूम हो, तो मैं तुझ को उसकी क़ीमत नक़द दे दूँगा।"3नबोत ने अख़ीअब से कहा, "ख़ुदावन्द मुझ से ऐसा न कराए कि मैं तुझ को अपने बाप-दादा की मीरास दे दूँ।"4~और अख़ीअब उस बात की वजह से जो यज़र'एली नबोत ने उससे कही उदास और ना ख़ुश हो कर अपने घर में आया, क्यूँकि उसने कहा था ~मैं तुझ को अपने बाप-दादा की मीरास नहीं दूँगा। इसलिए उसने अपने बिस्तर पर लेट कर अपना मुँह फेर लिया, और खाना छोड़ दिया।5~तब उसकी बीवी ईज़बिल उसके पासआकर उससे कहने लगी, "तेरा जी ऐसा क्यूँ उदास है कि तू रोटी नहीं खाता?"6~उसने उससे कहा, "इसलिए कि मैंने यज़र'एली नबोत से बातचीत की, और उससे कहा कि तू अपना ताकिस्तान की क़ीमत लेकर मुझे दे दे; या अगर तू चाहे तो मैं उसके बदले दूसरा ताकिस्तान तुझे दे दूँगा। लेकिन उसने जवाब दिया, 'मैं तुझ को अपना ताकिस्तान नहीं दूँगा'।"7~उसकी बीवी ईज़बिल ने उससे कहा, "इस्राईल की बादशाही पर यही तेरी हुकुमत है? उठ रोटी खा, और अपना दिल बहला; यज़र एली नबोत का ताकिस्तान मैं तुझ को दूँगी।"8~इसलिए उसने अख़ीअब के नाम से ख़त लिखे, और उन पर उसकी मुहर लगाई, और उनको उन बुज़ुर्गों और अमीरों के पास जो नबोत के शहर में थे और उसी के पड़ोस में रहते थे भेज दिया।9~उसने उन ख़तों में यह लिखा कि "रोज़ा का 'एलान कराके नबोत को लोगों में ऊँची जगह पर बिठाओ।10और दो आदमियों को, जो बुरें हों, उसके सामने कर दो कि वह उसके ख़िलाफ़ यह गवाही दें कि तू ने ख़ुदा पर और बादशाह पर ला'नत की, फिर उसे बाहर ले जाकर पथराव करो ताकि वह मर जाए।”11~चुनाँचे उसके शहर के लोगों या'नी बुज़ुर्गों और अमीरों ने, जो उसके शहर में रहते थे, जैसा ईज़बिल ने उनको कहला भेजा वैसा ही उन ख़ुतूत के मज़मून के मुताबिक़, जो उसने उनको भेजे थे, किया।12~उन्होंने रोज़ा का 'एलान कराके नबोत को लोगों के बीच ऊँची जगह पर बिठाया।13और वह दोनों आदमी जो बुरे थे, आकर उसके आगे बैठ गए; और उन बुरों ने लोगों के सामने उसके, या'नी नबोत के ख़िलाफ़ यह गवाही दी कि "नबोत ने ख़ुदा पर और बादशाह पर ला'नत की है।" तब वह उसे शहर से बाहर निकाल ले गए, और उसको ऐसा पथराव किया कि वह मर गया।14फिर उन्होंने ईज़बिल को कहला भेजा कि "नबोत पर पथराव कर दिया गया और मर गया।”15~जब ईज़बिल ने सुना कि नबोत पर पथराव कर दिया गया और मर गया, तो उसने अख़ीअब से कहा, "उठ और यज़र'एली नबोत के ताकिस्तान पर क़ब्ज़ा कर, जिसे उसने क़ीमत पर भी तुझे देने से इन्कार किया था; क्यूँकि नबोत ज़िन्दा नहीं बल्कि मर गया है।"16~जब अख़ीअब ने सुना कि नबोत मर गया है, तो अख़ी'अब उठा ताकि यज़र'एली नबोत के ताकिस्तान को जाकर उस पर क़ब्ज़ा करे।17और ख़ुदावन्द का यह कलाम एलियाह तिशबी पर नाज़िल हुआ कि18उठ और शाहए-इस्राईल अख़ीअब से, जो सामरिया में रहता है, मिलने को जा। देख, वह नबोत के ताकिस्तान में है, और उस पर क़ब्ज़ा करने को वहाँ गया है।19~इसलिए तू उससे यह कहना कि ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि क्या तू ने जान भी ली और क़ब्ज़ा भी कर लिया?" तब तू उससे यह कहना कि ~ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि उसी जगह जहाँ कुत्तों ने नबोत का लहू चाटा, कुत्ते तेरे लहू को भी चाटेंगे।' "20और अख़ीअब ने एलियाह से कहा, "ऐ मेरे दुश्मन, क्या मैं तुझे मिल गया?" उसने जवाब दिया कि "तू मुझे मिल गया; इसलिए कि तू ने ख़ुदावन्द के सामने बदी करने के लिए अपने आपको बेच डाला है।21~देख, मैं तुझ पर बला नाज़िल करूँगा और तेरी पूरी सफ़ाई कर दूँगा, और अख़ीअब की नसल के हर एक लड़के को, या'नी हर एक को जो इस्राईल में बन्द है, और उसे जो आज़ाद छुटा हुआ है काट डालूँगा।22और तेरे घर को नबात के बेटे युरब'आम के घर, और अख़ियाह के बेटे बाशा के घर की तरह बना दूँगा; उस ग़ुस्सा दिलाने की वजह से जिससे तू ने मेरे ग़ज़ब को भड़काया और इस्राईल से गुनाह कराया।23~और ख़ुदावन्द ने ईज़बिल के हक़ में भी यह फ़रमाया कि यज़र'एल की फ़सील के पास कुत्ते ईज़बिल को खाएँगे।'24~अख़ीअब का जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खाएँगे, और जो मैदान में मरेगा उसे हवा के परिन्दे चट कर जाएँगे।”25क्यूँकि अख़ीअब की तरह कोई नहीं हुआ था, जिसने ख़ुदावन्द के सामने बदी करने के लिए अपने आपको बेच डाला था और जिसे उसकी बीवी ईज़बिल उभारा करती थी।26और उसने बहुत ही नफ़रतअंगेज़ काम यह किया कि अमोरियों की तरह, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के आगे से निकाल दिया था, बुतों की पैरवी की।27जब अख़ीअब ने यह बातें सुनीं, तो अपने कपड़े फाड़े और अपने तन पर टाट डाला और रोज़ा रख्खा और टाट ही में लेटने और दबे पाँव चलने लगा।28~तब ख़ुदावन्द का यह कलाम एलियाह तिशबी पर नाज़िल हुआ कि29~"तू देखता है कि अख़ीअब मेरे सामने कैसा ख़ाकसार बन गया है? लेकिन चूँकि वह मेरे सामने ख़ाकसार बन गया है, इसलिए मैं उसके दिनों में यह बला नाज़िल नहीं करूँगा, बल्कि उसके बेटे के दिनों में उसके घराने पर यह बला नाज़िल करूँगा।"
1तीन साल वह ऐसे ही रहे और इस्राईल और अराम के बीच लड़ाई न हुई;2~और तीसरे साल यहूदाह का बादशाह यहूसफ़त शाह-ए-इस्राईल के यहाँ आया,3~और शाह-ए-इस्राईल ने अपने मुलाज़िमों से कहा, "क्या तुम को मा'लूम है कि रामात जिल'आद हमारा है? लेकिन हम ख़ामोश हैं और शाह-ए-अराम के हाथ से उसे छीन नहीं लेते?"4~फिर उसने यहूसफ़त से कहा, "क्या तू मेरे साथ रामात जिल'आद से लड़ने चलेगा? यहूसफ़त ने शाह-ए-इस्राईल को जवाब दिया, "मैं ऐसा हूँ जैसा तू मेरे लोग ऐसे हैं जैसे तेरे लोग और मेरे घोड़े ऐसे हैं जैसे तेरे घोड़े।"5और यहूसफ़त ने शाह-ए-इस्राईल से कहा, "ज़रा आज ख़ुदावन्द की मर्ज़ी भी तो मा'लूम कर ले।"6~तब शाह-ए-इस्राईल ने नबियों को जो क़रीब चार सौ आदमी थे इकट्ठा किया और उनसे पूछा, "मैं रामात जिल'आद से लड़ने जाऊँ, या बाज़ रहूँ?" उन्होंने कहा, "जा" क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।"7लेकिन यहूसफ़त ने कहा, "क्या इनको छोड़कर यहाँ ख़ुदावन्द का कोई नबी नहीं है, ताकि हम उससे पूछे?"8~शाह-ए- इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "कि एक शख़्स, इमला का बेटा मीकायाह है तो सही, जिसके ज़रिए' से हम ख़ुदावन्द से पूछ सकते हैं; लेकिन मुझे उससे नफ़रत हैं, क्यूँकि वह मेरे हक़ में नेकी की नहीं बल्कि बदी की पेशीनगोई करता हैं।" यहूसफ़त ने कहा, "बादशाह ऐसा न कहे।"9~तब शाह-ए-इस्राईल ने एक सरदार को बुलाकर कहा, कि "इमला के बेटे मीकायाह को जल्द ले आ।"10~उस वक़्त शाह-ए- इस्राईल और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त सामरिया के फाटक के सामने, एक खुली जगह में, अपने-अपने तख़्त पर शाहाना लिबास पहने हुए बैठे थे, और सब नबी उनके सामने पेशीनगोई कर रहे थे।11~और कन'आना के बेटे सिदक़ियाह ~ने अपने लिए लोहे के सींग बनाए और कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि तू इन से अरामियों को मारेगा, जब तक वह मिट न जाएँ।' "12और सब नबियों ने यही पेशीनगोई की और कहा कि रामात जिल'आद पर चढ़ाई कर और कामयाब हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।"13~और उस क़ासिद ने जो मीकायाह को बुलाने गया था उससे कहा, "देख, सब नबी एक ज़बान होकर बादशाह को ख़ुशख़बरी दे रहे हैं, तो ज़रा तेरी बात भी उनकी बात की तरह हो और तू ख़ुशख़बरी ही देना।"14~मीकायाह ने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम, जो कुछ ख़ुदावन्द मुझे फ़रमाए मैं वही कहूँगा।"15~इसलिए जब वह बादशाह के पास आया, तो बादशाह ने उससे कहा, "मीकायाह, हम रामात जिल'आद से लड़ने जाएँ या रहने दें?" उसने जवाब दिया, "जा और कामयाब हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।"16~बादशाह ने उससे कहा, "मैं कितनी मर्तबा तुझे क़सम देकर कहूँ, कि तू ख़ुदावन्द के नाम से हक़ के 'अलावा और कुछ मुझ को न बताए?"17तब उसने कहा, "मैंने सारे इस्राईल को उन भेड़ों की तरह, जिनका चौपान न हो, पहाड़ों पर बिखरा देखा; और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि इनका कोई मालिक नहीं; तब वह अपने अपने घर सलामत लौट जाएँ।”18तब शाह-ए-इस्राईल ने यहुसफ़त से कहा, "क्या मैंने तुझ को बताया नहीं था कि यह मेरे हक़ में नेकी की नहीं बल्कि बदी की पेशीनगोई करेगा?"19~तब उसने कहा, "अच्छा, तू ख़ुदावन्द की बात को सुन ले; मैंने देखा कि ख़ुदावन्द अपने तख़्त पर बैठा है, और सारा आसमानी लश्कर उसके दहने और बाएँ खड़ा है।20और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, 'कौन अख़ीअब को बहकाएगा, ताकि वह चढ़ाई करे और रामात जिल'आद में मारे ग़ए?' तब किसी ने कुछ कहा, और किसी ने कुछ।21लेकिन एक रूह निकल कर ख़ुदावन्द के सामने खड़ी हुई, और कहा, 'मैं उसे बहकाऊँगी।'22~ख़ुदावन्द ने उससे पूछा, "किस तरह?" उसने कहा, 'मैं जाकर उसके सब नबियों के मुँह में झूठ बोलने वाली रूह बन जाऊँगी, उसने कहा तू उसे बहका देगी और ग़ालिब भी होगी, रवाना हो जा और ऐसा ही कर।'23~इसलिए देख, ख़ुदावन्द ने तेरे इन सब नबियों के मुँह में झूठ बोलने वाली रूह डाली है; और ख़ुदावन्द ने तेरे हक़ में बदी का हुक्म दिया है।"24~तब कन'आना का बेटा सिदक़ियाह नज़दीक आया, और उसने मीकायाह के गाल पर मार कर कहा, "ख़ुदावन्द की रूह तुझ से बात करने को किस रास्ते से होकर मुझ में से गई?"25~मीकायाह ने कहा, "यह तू उसी दिन देख लेगा, जब तू अन्दर की एक कोठरी में घुसेगा ताकि छिप जाए।"26~और शाह-ए- इस्राईल ने कहा, "मीकायाह को लेकर उसे शहर के नाज़िम अमून और यूआस शहज़ादे के पास लौटा ले जाओं;27और कहना, 'बादशाह यूँ फ़रमाता है कि इस शख़्स को कै़दख़ाने में डाल दो, और इसे मुसीबत की रोटी खिलाना और मुसीबत का पानी पिलाना, जब तक मैं सलामत न आऊँ।' "28तब मीकायाह ने कहा, "अगर तू सलामत वापस आ जाए, तो ख़ुदावन्द ने मेरी ज़रिए' कलाम ही नहीं किया।" फिर उसने कहा, "ऐ लोगो, तुम सब के सब सुन लो।"29~इसलिए शाह-ए-इस्राईल और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त ने रामात जिल'आद पर चढ़ाई की।30और शाह-ए-इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "मैं अपना भेस बदलकर लड़ाई में जाऊँगा; लेकिन तू अपना लिबास पहने रह।" तब शाह-ए-इस्राईल अपना भेस बदलकर लड़ाई में गया।31~उधर शाह-ए-अराम ने अपने रथों के बत्तीसों सरदारों को हुक्म दिया था, "किसी छोटे या बड़े से न लड़ना, 'अलावा शाह-ए-इस्राईल के।"32इसलिए जब रथों के सरदारों ने यहूसफ़त को देखा तो कहा, "ज़रूर शाह-ए-इस्राईल यही है।" और वह उससे लड़ने को मुड़े, तब यहूसफ़त चिल्ला उठा।33~जब रथों के सरदारों ने देखा कि वह शाह-ए-इस्राईल नहीं, तो वह उसका पीछा करने से लौट गए।34~और किसी शख़्स ने ऐसे ही अपनी कमान खींची और शाह-ए-इस्राईल को जौशन के बन्दों के बीच मारा, तब उसने अपने सारथी से कहा, "बाग" फेर कर मुझे लश्कर से बाहर निकाल ले चल, क्यूँकि मैं ज़ख़्मी हो गया हूँ।"35~और उस दिन बड़े घमसान का रन पड़ा, और उन्होंने बादशाह को उसके रथ ही में अरामियों के मुक़ाबिल संभाले रखा; और वह शाम को मर गया, और ख़ून उसके ज़ख़्म से बह कर रथ के पायदान में भर गया।36~और आफ़ताब ग़ुरूब होते हुए लश्कर में यह पुकार हो गई, "हर एक आदमी अपने शहर, और हर एक आदमी अपने मुल्क को जाए।"37इसलिए बादशाह मर गया और वह सामरिया में पहुँचाया गया, और उन्होंने बादशाह को सामरिया में दफ़न किया;38~और उस रथ को सामरिया के तालाब में धोया (कस्बियाँ यहीं ग़ुस्ल करती थीं), और ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो उसने फ़रमाया था, कुत्तों ने उसका ख़ून चाटा।39और अख़ीअब की बाक़ी बातें, और सब कुछ जो उसने किया था, और हाथी दाँत का घर जो उसने बनाया था, और उन सब शहरों का हाल जो उसने ता'मीर किए, तो क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?40और अख़ीअब अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उसका बेटा अख़ज़ियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।41~और आसा का बेटा यहूसफ़त शाह-ए- इस्राईल अख़ीअब के चौथे साल से यहूदाह पर हुकूमत करने लगा।42~जब यहूसफ़त हुकूमत करने लगा तो पैंतीस साल का था, और उसने यरूशलीम में पच्चीस साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम 'अजूबा था, जो सिल्ही की बेटी थी।43~वह अपने बाप आसा के नक़्श-ए-क़दम पर चला; उससे वह मुड़ा नहीं और जो ख़ुदावन्द की निगाह में ठीक था उसे करता रहा, तोभी ऊँचे मक़ाम ढाए न गए लोग उन ऊँचे मक़ामों पर ही क़ुर्बानी करते और बख़ूर जलाते थे।44~और यहूसफ़त ने शाह-ए-इस्राईल से सुलह की।45और यहूसफ़त की बाक़ी बातें और उसकी ताक़त जो उसने दिखाई, और उसके जंग करने की कै़फ़ियत, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में क़लमबन्द नहीं?46~और उसने बाक़ी लूतियों को जो उसके बाप आसा के 'अहद में रह गए थे, मुल्क से निकाल दिया।47और अदोम में कोई बादशाह न था, बल्कि एक नाइब हुकूमत करता था।48~और यहूसफ़त ने तरसीस के जहाज़ बनाए ताकि ओफ़ीर को सोने के लिए जाएँ, लेकिन वह गए नहीं, क्यूँकि वह "अस्यून जाबर ही में टूट गए।49~तब अख़ीअब के बेटे अख़ज़ियाह ने यहूसफ़त से कहा, 'अपने ख़ादिमों के साथ मेरे ख़ादिमों को भी जहाज़ों में जाने दे।” लेकिन यहूसफ़त राज़ी न हुआ।50और यहूसफ़त अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और अपने बाप दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़्न हुआ; और उसका बेटा यहूराम उसकी जगह बादशाह हुआ।51~और अख़ीअब का बेटा अख़ज़ियाह शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त के सत्रहवें साल से सामरिया में इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और उसने इस्राईल पर दो साल हुकूमत की।52~और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की, और अपने बाप की रास्ते और अपनी माँ के रास्ते और नबात के बेटे युरब'आम की रास्ते पर चला, जिससे उसने बनी-इस्राईल से गुनाह कराया;53और अपने बाप के सब कामों के मुताबिक़ बा'ल की 'इबादत करता और उसको सिज्दा करता रहा, और ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा को ग़ुस्सा दिलाया||
1अख़ीअब के मरने के बा'द मोआब इस्राईल से बाग़ी हो गया।2और अख़ज़ियाह उस झिलमिली दार खिड़की में से, जो सामरिया में उसके बालाख़ानें में थी, गिर पड़ा और बीमार हो गया। इसलिए उसने क़ासिदों को भेजा और उनसे ये कहा, "जाकर 'अक्रून के मा'बूद बा'लज़बूब' से पूछो, कि ~मुझे इस बीमारी से शिफ़ा हो जाएगी या नहीं।"3लेकिन ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने एलियाह तिशबी से कहा, "उठ और सामरिया के बादशाह के क़ासिदों से मिलने को जा और उनसे कह, 'क्या इस्राईल में ख़ुदा नहीं जो तुम 'अक्रून के~मा'बूद~बा'लज़बूब से पूछने चले हो?4~इसलिए अब ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू उस पलंग पर से, जिस पर तू चढ़ा है, उतरने न पाएगा, बल्कि तू ज़रूर ~मरेगा।' " तब एलियाह रवाना हुआ।5~वह क़ासिद उसके पास लौट आए, तब उसने उनसे पूछा, "तुम लौट क्यूँ आए?"6~उन्होंने उससे कहा, "एक शख़्स हम से मिलने को आया, और हम से कहने लगा, 'उस बादशाह के पास जिसने तुम को भेजा है फिर जाओ, और उससे कहो: ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि क्या इस्राईल में कोई ख़ुदा नहीं जो तू 'अक्रून के~मा'बूद बा'लज़बूब से पूछने को भेजता है? इसलिए तू उस पलंग से, जिस पर तू चढ़ा है, उतरने न पाएगा, बल्कि ज़रूर ही मरेगा।' "7~उसने उनसे कहा, "उस शख़्स की कैसी शक्ल थी, जो तुम से मिलने को आया और तुम से ये बातें कहीं?"8~उन्होंने उसे जवाब दिया, "वह बहुत बालों वाला आदमी था, और चमड़े का कमरबन्द अपनी कमर पर कसे हुए था।" तब उसने कहा, "ये तो एलियाह तिशबी है।”9तब बादशाह ने पचास सिपाहियों के एक सरदार को, उसके पचासों सिपाहियों के साथ उसके पास भेजा। जब वह उसके पास गया और देखा कि वह एक टीले की चोटी पर बैठा है। उसने उससे कहा, "ऐ नबी, बादशाह ने कहा है, 'तू उतर आ।' "10एलियाह ने उस पचास के सरदार को जवाब दिया, "अगर मैं नबी हूँ, तो आग आसमान से नाज़िल हो और तुझे तेरे पचासों के साथ जला कर भसम कर दे।” तब आग आसमान से नाज़िल हुई, और उसे उसके पचासों के साथ जला कर भसम कर दिया।11~फिर उसने दोबारा पचास सिपाहियों के दूसरे सरदार को, उसके पचासों सिपाहियों के साथ उसके पास भेजा। उसने उससे मुख़ातिब होकर कहा, "ऐ नबी, बादशाह ने यूँ कहा है, 'जल्द उतर आ।' "12एलियाह ने उनको भी जवाब दिया, "अगर मैं नबी हूँ, तो आग आसमान से नाज़िल हो और तुझे तेरे पचासों के साथ जलाकर ~भसम कर दे।" फ़िर ख़ुदा की आग आसमान से नाज़िल हुई, और उसे उसके पचासों के साथ जला कर भसम कर दिया।13~फिर उसने तीसरे पचास सिपाहियों के सरदार को, उसके पचासों सिपाहियों के साथ भेजा; और पचास सिपाहियों का ये तीसरा सरदार ऊपर चढ़कर एलियाह के आगे घुटनों के बल गिरा, और उसकी मिन्नत करके उससे कहने लगा, "ऐ नबी, मेरी जान और इन पचासों की जानें, जो तेरे ख़ादिम हैं, तेरी निगाह में क़ीमती हों।14~देख, आसमान से आग नाज़िल हुई और पचास सिपाहियों के पहले दो सरदारों को उनके पचासों समेत ~जला कर भसम कर दिया; इसलिए अब मेरी जान तेरी नज़र में क़ीमती हो।"15तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने एलियाह से कहा, "उसके साथ नीचे जा, उससे न डर।" तब वह उठकर उसके साथ बादशाह के पास नीचे गया,16और उससे कहा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'तूने जो 'अक्रून के मा'बूद बा'लज़बूब से पूछने को लोग भेजे हैं, तो क्या इसलिए कि इस्राईल में कोई ख़ुदा नहीं है जिसकी मर्ज़ी को तू दरियाफ़्त कर सके? इसलिए तू उस पलंग से, जिस पर तू चढ़ा है, उतरने न पाएगा, बल्कि ज़रूर ही मरेगा।"17इसलिए वह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो एलियाह ने कहा था, मर गया; और चूँकि उसका कोई बेटा न था, इसलिए शाह-ए-यहूदाह यहूराम-बिन-यहूसफ़त के दूसरे साल से यहूराम उसकी जगह सल्तनत करने लगा।18और अख़ज़ियाह के और काम जो उसने किए, क्या वह ~इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?
1और जब ख़ुदावन्द एलियाह को शोले में आसमान पर उठा लेने को था, तो ऐसा हुआ कि एलियाह इलीशा' को साथ लेकर जिलजाल से चला,2और एलियाह ने इलीशा' से कहा, "तू ज़रा यहीं ठहर जा, इसलिए कि ख़ुदावन्द ने मुझे बैतएल को भेजा है।” इलीशा' ने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा।" इसलिए वह बैतएल को चले गए।3~और अम्बियाज़ादे जो बैतएल में थे, इलीशा' के पास आकर उससे कहने लगे कि क्या तुझे मा'लूम है कि ख़ुदावन्द आज तेरे सिर से तेरे आक़ा को उठा लेगा?" उसने कहा, "हाँ, मैं जानता हूँ; तुम चुप रहो।”4एलियाह ने उससे कहा, "इलीशा', तू ज़रा यहीं ठहर जा, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझे यरीहू को भेजा है।" उसने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा।" इसलिए वह यरीहू में आए।5और अम्बियाज़ादे जो यरीहू में थे, इलीशा' के पास आकर उससे कहने लगे, "क्या तुझे मा'लूम है कि ख़ुदावन्द आज तेरे आक़ा को तेरे सिर से उठा लेगा?" उसने कहा, "हाँ, मैं जानता हूँ; तुम चुप रहो।”6और एलियाह ने उससे कहा, "तू ज़रा यहीं ठहर जा, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझ को यरदन ~भेजा है।" उसने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा।" इसलिए वह दोनों आगे चले।7और अम्बियाज़ादों में से पचास आदमी जाकर उनके सामने दूर खड़े हो गए; और वह दोनों यरदन के किनारे खड़े हुए।8और एलियाह ने अपनी चादर को लिया, और उसे लपेटकर पानी पर मारा और पानी दो हिस्से होकर इधर-उधर हो गया; और वह दोनों खु़श्क ज़मीन पर होकर पार गए।9~और जब वह पार गए तो एलियाह ने इलीशा' से कहा, "इससे पहले कि मैं तुझ से ले लिया जाऊँ, बता कि मैं तेरे लिए क्या करूँ।" इलीशा' ने कहा, "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तेरी रूह का दूना हिस्सा मुझ पर हो।"10~उसने कहा, "तू ने मुश्किल सवाल किया; तोभी अगर तू मुझे अपने से जुदा होते देखे, तो तेरे लिए ऐसा ही होगा; और अगर नहीं, तो ऐसा न होगा।"11और वह आगे चलते और बातें करते जाते थे, कि देखो, एक आग का रथ और आग के घोड़ों ने उन दोनों को जुदा कर दिया, और एलियाह शोले में आसमान पर चला गया।12इलीशा' ये देखकर चिल्लाया, "ऐ मेरे बाप, मेरे बाप! इस्राईल के रथ, और उसके सवार!"और उसने उसे फिर न देखा, तब उसने अपने कपड़ों को पकड़कर फाड़ डाला और दो हिस्से कर दिए।13~और उसने एलियाह की चादर को भी, जो उस पर से गिर पड़ी थी उठा लिया, और उल्टा फिरा और यरदन के किनारे खड़ा हुआ।14~और उसने एलियाह की चादर को, जो उस पर से गिर पड़ी थी, लेकर पानी पर मारा और कहा, "ख़ुदावन्द एलियाह का ख़ुदा कहाँ है?" और जब उसने भी पानी पर मारा, तो वह इधर-उधर दो हिस्से हो गया और इलीशा' पार हुआ।15जब उन अम्बियाज़ादों ने जो यरीहू में उसके सामने थे, उसे देखा तो वह कहने लगे, "एलियाह की रूह इलीशा' पर ठहरी हुई है।" और वह उसके इस्तक़बाल को आए और उसके आगे ज़मीन तक झुककर उसे सिज्दा किया।16और उन्होंने उससे कहा, 'अब देख, तेरे ख़ादिमों के साथ पचास ताक़तवर जवान हैं, ज़रा उनको जाने दे कि वह तेरे आक़ा को ढूँढें, कहीं ऐसा न हो कि ख़ुदावन्द की रूह ने उसे उठाकर किसी पहाड़ पर या किसी जंगल में डाल दिया हो।" उसने कहा, "मत भेजो।"17~जब उन्होंने उससे बहुत ज़िद की, यहाँ तक कि वह शर्मा भी गया, तो उसने कहा, 'भेज दो।" इसलिए उन्होंने पचास आदमियों को भेजा, और उन्होंने तीन दिन तक ढूँढा पर उसे न पाया।18और वह अभी यरीहू में ठहरा हुआ था; जब वह उसके पास लौटे, तब उसने उनसे कहा, "क्या मैंने तुमसे न कहा था कि न जाओ?"19~फिर उस शहर के लोगों ने इलीशा' से कहा, "ज़रा देख, ये शहर क्या अच्छे मौके़' पर है, जैसा हमारा ख़ुदावन्द ख़ुद देखता है; लेकिन पानी ख़राब और ज़मीन बंजर हैं।"20उसने कहा, "मुझे एक नया प्याला ला दो, और उसमें नमक डाल दो।" वह उसे उसके पास ले आए।21~और वह निकल कर पानी के चश्मे पर गया, और वह नमक उसमें डाल कर कहने लगा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मैने इस पानी को ठीक कर दिया है, अब आगे को इससे मौत या बंजरपन न होगा।"22~देखो इलीशा' के कलाम के मुताबिक़ जो उसने फ़रमाया, वह पानी आज तक ठीक है23वहाँ से वह बैतएल को चला, और जब वह रास्ते में जा रहा था तो उस शहर के छोटे लड़के निकले, और उसे चिढ़ाकर कहने लगे, 'चढ़ा चला जा, ऐ गंजे सिर वाले: चढ़ा चला जा, ऐ गंजे सिर वाले।"24और उसने अपने पीछे नज़र की, और उनको देखा और ख़ुदावन्द का नाम लेकर उन पर ला'नत की; इसलिए जंगल में से दो रीछनियाँ निकली, और उन्होंने उनमें से बयालीस बच्चे फाड़ डाले।25वहाँ से वह कर्मिल पहाड़ को गया, फिर वहाँ से सामरिया को लौट आया।
1और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त के अठारवें बरस से अख़ी'अब का बेटा यहूराम सामरिया में इस्राईल पर बादशाहत करने लगा, और उसने बारह साल बादशाहत की।2और उसने ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ गुनाह किया; लेकिन अपने बाप और अपनी माँ की तरह नहीं, क्यूँकि उसने बा'ल के उस सुतून को जो उसके बाप ने बनाया था दूर कर दिया।3तोभी वह नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया था लिपटा रहा, और उनसे अपने आपको अलग न किया।4मोआब का बादशाह मीसा बहुत भेड़ बकरियाँ रखता था, और इस्राईल के बादशाह को एक लाख बर्रों और एक लाख मेंढों की ऊन देता था।5~लेकिन जब अख़ीअब मर गया, तो मोआब का बादशाह इस्राईल के बादशाह से बाग़ी हो गया।6~उस वक़्त यहूराम बादशाह ने सामरिया से निकलकर सारे इस्राईल का जाएज़ा लिया।7और उसने जाकर यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त से पुछवा भेजा, ' मोआब का बादशाह मुझ से बाग़ी हो गया है; इसलिए क्या तू मोआब से लड़ने के लिए मेरे साथ चलेगा?" उसने जवाब दिया, "मैं चलूँगा; क्यूँकि जैसा मैं हूँ। वैसा ही तू है, और जैसे मेरे लोग वैसे ही तेरे लोग, और जैसे मेरे घोड़े वैसे ही तेरे घोड़े हैं।"8~तब उसने पूछा, "हम किस रास्ते से जाएँ?" उसने जवाब दिया, " अदोम के रास्ते से।"9चुनाँचे इस्राईल के बादशाह और यहूदाह के बादशाह और अदोम के बादशाह निकले; और उन्होंने सात दिन की मन्ज़िल का चक्कर काटा, और उनके लश्कर और चौपायों के लिए, जो पीछे पीछे आते थे, कहीं पानी न था।10और इस्राईल के बादशाह ने कहा, "अफ़सोस कि ख़ुदावन्द ने इन तीन बादशाहों को इकट्ठा किया है, ताकि उनको मोआब के बादशाह के हवाले कर दे।"11~लेकिन यहूसफ़त ने कहा, "क्या ख़ुदावन्द के नबियों में से कोई यहाँ नहीं है, ताकि उसके वसीले से हम ख़ुदावन्द की मर्ज़ी मा'लूम करें?" और इस्राईल के बादशाह के ख़ादिमों में से एक ने जवाब दिया, "इलीशा'- बिन-साफ़त यहाँ है, जो एलियाह के हाथ पर पानी डालता था।"12यहूसफ़त ने कहा, "ख़ुदावन्द का कलाम उसके साथ है।" तब इस्राईल के बादशाह और यहूसफ़त और अदोम के बादशाह उसके पास गए।13तब इलीशा' ने इस्राईल के बादशाह से कहा, "मुझ को तुझ से क्या काम? तू अपने बाप के नबियों और अपनी माँ के नबियों के पास जा।" पर इस्राईल के बादशाह ने उससे कहा, "नहीं, नहीं, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने इन तीनों बादशाहों को इकट्ठा किया है, ताकि उनको मोआब के हवाले कर दे।”14इलीशा' ने कहा, "रब्ब-उल-अफ़वाज की हयात की क़सम, जिसके आगे मैं खड़ा हूँ, अगर मुझे यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त की हुज़ूरी के नज़दीक न होता , तो मैं तेरी तरफ़ नज़र भी न करता और न तुझे देखता।15लेकिन ख़ैर, किसी बजाने वाले को मेरे पास लाओ।” और ऐसा हुआ कि जब उस बजाने वाले ने बजाया, तो ख़ुदावन्द का हाथ उस पर ठहरा।16~तब उसने कहा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "इस जंगल में ख़न्दक़ ही ख़न्दक़ खोद डालो।"17~क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'तुम न हवा आती देखोगे और न पानी आते देखोगे, तोभी ये वादी पानी से भर जाएगी, और तुम भी पियोगे और तुम्हारे मवेशी और तुम्हारे जानवर भी।'18और ये ख़ुदावन्द के लिए एक हल्की सी बात है; वह मोआबियों को भी तुम्हारे हाथ में कर देगा।19और तुम हर फ़सीलदार शहर और उम्दा शहर ~क़ब्ज़ा लोगे, और हर अच्छे दरख़्त को काट डालोगे, और पानी के सब चश्मों को भर दोगे, और हर अच्छे खेत को पत्थरों से ख़राब कर दोगे।”20~इसलिए सुबह को क़ुर्बानी पेश करने के वक़्त ऐसा हुआ, कि अदोम की राह से पानी बहता आया और वह मुल्क पानी से भर गया।21जब सब मोआबियों ने ये सुना कि बादशाहों ने उनसे लड़ने के लिए चढ़ाई की है, तो वह सब जो हथियार बाँधने के क़ाबिल थे, और 'उम्र दराज़ भी, इकट्ठे होकर सरहद पर खड़े हो गए;22और वह सुबह सवेरे उठे और सूरज पानी पर चमक रहा था, और मोआबियों को वह पानी जो उनके सामने था, ख़ून की तरह सुर्ख़ दिखाई दिया।23तब वह कहने लगे, "ये तो खू़न है; वह बादशाह यक़ीनन हलाक हो गए हैं, और उन्होंने आपस में एक दूसरे को मार दिया है। इसलिए अब ऐ मोआब, लूट को चल।"24~जब वह इस्राईल की लश्करगाह में आए, तो इस्राईलियों ने उठकर मोआबियों को ऐसा मारा कि वह उनके आगे से भागे; पर वह आगे बढ़ कर मोआबियों को मारते मारते उनके मुल्क' में घुस गए।25~और उन्होंने शहरों को गिरा दिया, और ज़मीन के हर अच्छे ख़ित्ते' पर सभी ने एक एक पत्थर डालकर उसे भर दिया, और उन्होंने पानी के सब चश्में बन्द कर दिए, और सब अच्छे दरख़्त काट डाले, सिर्फ़ हरासत के पहाड़ ही के पत्थरों को बाक़ी छोड़ा, पर गोफ़न चलाने वालों ने उसको भी जा घेराऔर उसे मारा।26~जब मोआब के बादशाह ने देखा कि जंग उसके लिए निहायत सख़्त हो गई, तो उसने सात सौ तलवार वाले मर्द अपने साथ लिए, ताकि सफ़ चीर कर अदोम के बादशाह तक जा पहुँचे; पर वह ऐसा न कर सके।27तब उसने अपने पहलौठे बेटे को लिया, जो उसकी जगह बादशाह होता, और उसे दीवार पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर पेश किया। यूँ इस्राईल पर बड़ा ग़ज़ब हुआ; तब वह उसके पास से हट गए और अपने मुल्क को लौट आए।
1और अम्बियाज़ादों की बीवियों में से एक 'औरत ने इलीशा' से फ़रियाद की और कहने लगी, "तेरा ख़ादिम मेरा शौहर मर गया है, और तू जानता है कि तेरा ख़ादिम ख़ुदावन्द से डरता था; इसलिए अब क़र्ज़ देने वाला आया है कि मेरे दोनों बेटों को ले जाए ताकि वह ग़ुलाम बनें।"2~इलीशा' ने उससे कहा, "मैं तेरे लिए क्या करूँ? मुझे बता, तेरे पास घर में क्या है?" उसने कहा, "तेरी ख़ादिमा के पास घर में एक प्याला तेल के 'अलावा कुछ भी नहीं।”3~तब उसने कहा, "तू जा, और बाहर से अपने सब पड़ोसियों से बर्तन उजरत पर ले, वह बर्तन ख़ाली हों, और थोड़े बर्तन न लेना।4~फिर तू अपने बेटों को साथ लेकर अन्दर जाना और पीछे से दरवाज़ा बन्द कर लेना, और उन सब बर्तनों में तेल उँडेलना, और जो भर जाए उसे उठा कर अलग रखना।"5~तब वह उसके पास से गई, और उसने अपने बेटों को अन्दर साथ लेकर दरवाज़ा बन्द कर लिया; और वह उसके पास लाते जाते थे और वह उँडेलती जाती थी।6~जब वह बर्तन भर गए तो उसने अपने बेटे से कहा, "मेरे पास एक और बर्तन ला।" उसने उससे कहा, "और तो कोई बर्तन रहा नहीं।" तब तेल बन्द हो गया।7~तब उसने आकर मर्द-ए-ख़ुदा को बताया। उसने कहा, 'जा, तेल बेच, और क़र्ज़ अदा कर, और जो बाक़ी रहे उससे तू और तेरे बेटे गुज़ारा ~करें।”8एक रोज़ ऐसा हुआ कि इलीशा' शूनीम को गया, वहाँ एक दौलतमन्द 'औरत थी; और उसने उसे रोटी खाने पर मजबूर किया। फिर तो जब कभी वह उधर से गुज़रता, रोटी खाने के लिए वहीं चला जाता था।9इसलिए उसने अपने शौहर से कहा, "देख, मुझे मा'लूम होता है कि ये मर्द-ए-ख़ुदा, जो अकसर हमारी तरफ़ आता है, मुक़द्दस है।10हम उसके लिए एक छोटी सी कोठरी दीवार पर बना दें, और उसके लिए एक पलंग और मेज़ और चौकी और चराग़दान लगा दें, फिर जब कभी वह हमारे पास आए तो वहीं ठहरेगा।"11~फिर एक दिन ऐसा हुआ कि वह उधर गया और उस कोठरी में जाकर वहीं सोया।12~फिर उसने अपने ख़ादिम जेहाज़ी से कहा, "इस शूनीमी 'औरत को बुला ले।" उसने उसे बुला लिया और वह उसके सामने खड़ी हुई।13~फिर उसने अपने ख़ादिम से कहा, "तू उससे पूछ कि तूने जो हमारे लिए इस क़दर फ़िक्रें कीं, तो तेरे लिए क्या किया जाए? क्या तू चाहती है कि बादशाह से, या फ़ौज के सरदार से तेरी सिफ़ारिश की जाए?" उसने जवाब दिया, "मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ।"14~फिर उसने कहा, "उसके लिए क्या किया जाए?" तब जेहाज़ी ने जवाब दिया, "सच उसके कोई बेटा नहीं, और उसका शौहर बुड्ढा है।”15~तब उसने कहा, "उसे बुला ले।" और जब उसने उसे बुलाया, तो वह दरवाज़े पर खड़ी हुई।16तब उसने कहा, "मौसम-ए-बहार में, वक़्त पूरा होने पर तेरी गोद में बेटा होगा।" उसने कहा, "नहीं, ऐ मेरे मालिक! ऐ मर्द-ए-ख़ुदा, अपनी ख़ादिमा से झूठ न कह।"17~फिर वह 'औरत हामिला हुई और जैसा इलीशा' ने उससे कहा था, मौसम-ए-बहार में वक़्त पूरा होने पर उसके बेटा हुआ।18जब वह लड़का बढ़ा, तो एक दिन ऐसा हुआ कि वह अपने बाप के पास खेत काटनेवालों में चला गया।19और उसने अपने बाप से कहा, "हाय मेरा सिर, हाय मेरा सिर!" उसने अपने ख़ादिम से कहा, 'उसे उसकी माँ के पास ले जा।"20जब उसने उसे लेकर उसकी माँ के पास पहुँचा दिया, तो वह उसके घुटनों पर दोपहर तक बैठा रहा, इसके बा'द मर गया।21तब उसकी माँ ने ऊपर जाकर उसे मर्द-ए-ख़ुदा के पलंग पर लिटा दिया, और दरवाज़ा बन्द करके बाहर गई।22~और उसने अपने शौहर से पुकार कर कहा, "जल्द जवानों में से एक को, और गधों में से एक को मेरे लिए भेज दे, ताकि मैं मर्द-ए-ख़ुदा के पास दौड़ जाऊँ और फिर लौट आऊँ।"23उसने कहा, "आज तू उसके पास क्यूँ जाना चाहती है? आज न तो नया चाँद है न सब्त।" उसने जवाब दिया, "अच्छा ही होगा।"24और उसने गधे पर ज़ीन कसकर अपने ख़ादिम से कहा, "चल, आगे बढ़; और सवारी चलाने में सुस्ती न कर, जब तक मैं तुझ से न कहूँ।"25तब वह चली और वह कर्मिल पहाड़ को मर्द-ए-ख़ुदा के पास गई। उस मर्द-ए-ख़ुदा ने दूर से उसे देखकर अपने ख़ादिम जेहाज़ी से कहा, "देख, उधर वह शूनीमी 'औरत है।26अब ज़रा उसके इस्तक़बाल को दौड़ जा, और उससे पूछ, 'क्या तू खै़रियत से है? तेरा शौहर खै़रियत से, बच्चा ख़ैरियत से है?' " उसने जवाब दिया, "ठीक नहीं है।"27~और जब वह उस पहाड़ पर मर्द-ए-ख़ुदा के पास आई, तो उसके पैर पकड़ लिए, और जेहाज़ी उसे हटाने के लिए नज़दीक आया, पर मर्द-ए-ख़ुदा ने कहा, "उसे छोड़ दे, क्यूँकि उसका दिल परेशान है, और ख़ुदावन्द ने ये बात मुझ से छिपाई और मुझे न बताई।"28और वह कहने लगी, "क्या मैंने अपने मालिक से बेटे का सवाल किया था? क्या मैंने न कहा था, 'मुझे धोका न दे'?"29तब उसने जेहाज़ी से कहा, "कमर बाँध, और मेरी लाठी हाथ में लेकर अपना रास्ता ले; अगर कोई तुझे रास्ते में मिले तो उसे सलाम न करना, और अगर कोई तुझे सलाम करे तो जवाब न देना; और मेरी लाठी उस लड़के के मुँह पर रख देना।"30~उस लड़के की माँ ने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगी।" तब वह उठ कर उसके पीछे-पीछे चला।31~और जेहाज़ी ने उनसे पहले आकर लाठी को उस लड़के के मुँह पर रखा; पर न तो कुछ आवाज़ हुई, न सुना। इसलिए वह उससे मिलने को लौटा, और उसे बताया, "लड़का नहीं जागा।"32~जब इलीशा' उस घर में आया, तो देखो, वह लड़का मरा हुआ उसके पलंग पर पड़ा था।33~तब वह अकेला अन्दर गया, और दरवाज़ा बन्द करके ख़ुदावन्द से दु'आ की।34और ऊपर चढ़कर उस बच्चे पर लेट गया; और उसके मुँह पर अपना मुँह, और उसकी आँखों पर अपनी ऑखें, और उसके हाथों पर अपने हाथ रख लिए, और उसके ऊपर लेट गया; तब उस बच्चे का जिस्म गर्म होने लगा।35~फिर वह उठकर उस घर में एक बार टहला, और ऊपर चढ़कर उस बच्चे के ऊपर लेट गया; और वह बच्चा सात बार छींका और बच्चे ने ऑखें खोल दीं।36तब उसने जेहाज़ी को बुला कर कहा, "उस शूनीमी 'औरत को बुला ले।” तब उसने उसे बुलाया, और जब वह उसके पास आई, तो उसने उससे कहा, "अपने बेटे को उठा ले।"37~तब वह अन्दर जाकर उसके क़दमों पर गिरी और ज़मीन पर सिज्दे में हो गई; फिर अपने बेटे को उठा कर बाहर चली गई।38और इलीशा' फिर जिलजाल में आया, और मुल्क में काल था, और अम्बियाज़ादे उसके सामने बैठे हुए थे। और उसने अपने ख़ादिम से कहा, "बड़ी देग चढ़ा दे, और इन अम्बियाज़ादों के लिए लप्सी पका।"39और उनमें से एक खेत में गया कि कुछ सब्ज़ी चुन लाए। तब उसे कोई जंगली लता मिल गई। उसने उसमें से इन्द्रायन तोड़कर दामन भर लिया और लौटा, और उनको काटकर लप्सी की देग में डाल दिया, क्यूँकि वह उनको पहचानते न थे।40चुनाँचे उन्होंने उन मर्दों के खाने के लिए उसमें से ऊँडेला। और ऐसा हुआ कि जब वह उस लप्सी में से खाने लगे, तो चिल्ला उठे और कहा, "ऐ मर्द-ए-ख़ुदा, देग में मौत है!" और वह उसमें से खा न सके।41~लेकिन उसने कहा, "आटा लाओ।" और उसने उस देग में डाल दिया और कहा, "उन लोगों के लिए उंडेलो, ताकि वह खाएँ।" फ़िर देग में कोई मुज़िर चीज़ बाक़ी न रही।42बाल सलीसा से एक शख़्स आया, और पहले फ़सल की रोटियाँ, या'नी जौ के बीस गिर्दे और अनाज की हरी-हरी बाले मर्द ए-ख़ुदा के पास लाया, उसने कहा, "इन लोगों को दे दे, ताकि वह खाएँ।”43उसके ख़ादिम ने कहा, "क्या मैं इतने ही को सौ आदमियों के सामने रख दूँ?" फिर उसने फिर कहा, "लोगों को दे दे, ताकि वह खाएँ; क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'वह खाएँगे और उसमें से कुछ छोड़ भी देंगे।' "44तब उसने उसे उनके आगे रख्खा और उन्होंने खाया; और जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, उसमें से कुछ छोड़ भी दिया।
1अराम के बादशाह के लश्कर का सरदार ना'मान, अपने आक़ा के नज़दीक मु'अज़्ज़िज़-'इज़्ज़तदार शख़्स था; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसके वसीले से अराम को फ़तह बख़्शी थी। वह ज़बरदस्त सूर्मा भी था, लेकिन कोढ़ी था।2~और अरामी दल बाँधकर निकले थे, और इस्राईल के मुल्क में से एक छोटी लड़की को क़ैद करके ले आए थे; वह ना'मान की बीवी की ख़ादमा थी।3उसने अपनी बीबी से कहा, "काश मेरा आक़ा उस नबी के यहाँ होता, जो सामरिया में है! तो वह उसे उसके कोढ़ से शिफ़ा दे देता।”4तो किसी ने अन्दर जाकर अपने मालिक से कहा, "वह लड़की जो इस्राईल के मुल्क की है, ऐसा-ऐसा कहती है।"5~तब अराम के बादशाह ने कहा, "तू जा, और मैं इस्राईल के बादशाह को ख़त भेजूँगा।" तब वह रवाना हुआ, और दस क़िन्तार चाँदी और छः हज़ार मिस्क़ाल सोना और दस जोड़े कपड़े अपने साथ ले लिए।6और वह उस ख़त को इस्राईल के बादशाह के पास लाया जिसका मज़मून ये था, "ये ख़त जब तुझको मिले, तो जान लेना कि मैंने अपने ख़ादिम ना'मान को तेरे पास भेजा है, ताकि तू उसके कोढ़ से उसे शिफ़ा दे।"7~जब इस्राईल के बादशाह ने उस ख़त को पढ़ा, तो अपने कपड़े फाड़कर कहा, "क्या मैं ख़ुदा हूँ कि मारूँ और जिलाऊँ, जो ये शख़्स एक आदमी को मेरे पास भेजता है कि उसको कोढ़ से शिफ़ा दूँ? इसलिए अब ज़रा ग़ौर करो, देखो, कि वह किस तरह मुझ से झगड़ने का बहाना ढूँढता है।"8जब मर्द-ए-ख़ुदा इलीशा' ने सुना कि इस्राईल के बादशाह ने अपने कपड़े फाड़े, तो बादशाह को कहला भेजा, "तूने अपने कपड़े क्यूँ फाड़े? अब उसे मेरे पास आने दे, और वह जान लेगा कि इस्राईल में एक नबी है।”9तब ना'मान अपने घोड़ों और रथों के साथ आया, और इलीशा' के घर के दरवाज़े पर खड़ा हुआ,10और इलीशा' ने एक क़ासिद के ज़रिए' कहला भेजा, 'जा और यरदन में सात बार ग़ोता मार, तो तेरा जिस्म फिर बहाल हो जाएगा और तू पाक साफ़ होगा।" l11पर ना'मान नाराज़ होकर चला गया और कहने लगा, "मुझे यक़ीन था कि वह निकल कर ज़रूर मेरे पास आएगा, और खड़ा होकर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से दु'आ करेगा, और उस जगह के ऊपर अपना हाथ इधर-उधर हिला कर कोढ़ी को शिफ़ा देगा।12क्या दमिश्क़ के दरिया, अबाना और फ़रफ़र, इस्राईल की सब नदियों से बढ़ कर नहीं हैं? क्या मैं उनमें नहाकर पाक साफ़ नहीं हो सकता?" इसलिए वह लौटा और बड़े ग़ुस्से में चला गया।13तब उसके मुलाज़िम पास आकर उससे यूँ कहने लगे, "ऐ हमारे बाप, अगर वह नबी कोई बड़ा काम करने का हुक्म तुझे देता, तो क्या तू उसे न करता? इसलिए जब वह तुझ से कहता है कि नहा ले और पाक साफ़ हो जा, तो कितना ज़्यादा इसे मानना चाहिए?"14~तब उसने उतरकर नबी के कहने के मुताबिक़ यरदन में सात ग़ोते लगाए, और उसका जिस्म छोटे बच्चे के जिस्म की तरह हो गया और वह पाक साफ़ हुआ।15~फिर वह अपनी जिलौ के सब लोगों के साथ नबी के पास लौटा, और उसके सामने खड़ा हुआ और कहने लगा, "देख, अब मैंने जान लिया कि इस्राईल को छोड़ और कहीं इस ज़मीन पर कोई ख़ुदा नहीं। इसलिए अब करम फ़रमाकर अपने ख़ादिम का तोहफ़ा कु़बूल कर।"16~लेकिन उसने जवाब दिया, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम जिसके आगे मैं खड़ा हूँ, मैं कुछ नहीं लूँगा।" और उसने उससे बहुत मजबूर किया कि ले, पर उसने इन्कार किया।17तब ना'मान ने कहा, "अच्छा, तो मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, कि तेरे ख़ादिम को दो ख़च्चरों का बोझ मिट्टी दी जाए' क्यूँकि तेरा ख़ादिम अब से आगे ख़ुदावन्द के सिवा किसी गै़र-मा'बूद के सामने न तो सोख़्तनी क़ुर्बानी न ज़बीहा पेश करेगा।18~तब इतनी बात में ख़ुदावन्द तेरे ख़ादिम को मु'आफ़ करे, कि जब मेरा आक़ा 'इबादत करने को रिम्मोन के बुतख़ाने में जाए और वह मेरे हाथ का सहारा ले, और मैं रिम्मोन के बुतख़ाने में सिज्दे में जाऊँ ; तो जब मैं रिम्मोन के बुतख़ाने में सिज्दे में हो जाऊँ, तो ख़ुदावन्द इस बात में तेरे ख़ादिम को मु'आफ़ करे।”19उसने उससे कहा, 'सलामती जा।" तब वह उससे रुख़्सत होकर थोड़ी दूर निकल गया।20लेकिन उस नबी इलीशा' के ख़ादिम जेहाज़ी ने सोचा, "मेरे आक़ा ने अरामी ना'मान को यूँ ही जाने दिया कि जो कुछ वह लाया था उससे न लिया; इसलिए ख़ुदावन्द की हयात की क़सम, मैं उसके पीछे दौड़ जाऊँगा और उससे कुछ न कुछ लूँगा।"21तब जेहाज़ी ना'मान के पीछे चला। जब ना'मान ने देखा, कि कोई उसके पीछे दौड़ा आ रहा है, तो वह उससे मिलने को रथ पर से उतरा और कहा, "खै़र तो है?"22उसने कहा, "सब खै़र है! मेरे मालिक ने मुझे ये कहने को भेजा है कि देख, अम्बियाज़ादों में से अभी दो जवान इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क से मेरे पास आ गए हैं; इसलिए ज़रा एक क़िन्तार चाँदी, और दो जोड़े कपड़े उनके लिए दे दे।"23~ना'मान ने कहा, "ख़ुशी से दो क़िन्तार ले।” और वह उससे बज़िद हुआ, और उसने दो क़िन्तार चाँदी दो थैलियों में बाँधी और दो जोड़े कपड़ों के साथ उनको अपने दो नौकरों पर लादा, और वह उनको लेकर उसके आगे-आगे चले।24और उसने टीले पर पहुँचकर उनके हाथ से उनको ले लिया और घर में रख दिया, और उन मर्दों को रुख़्सत किया, तब वह चले गए।25~लेकिन ख़ुद अन्दर जाकर अपने आक़ा के सामने खड़ा हो गया। इलीशा' ने उससे कहा, "जेहाज़ी, तू कहाँ से आ रहा है?" उसने कहा, "तेरा ख़ादिम तो कहीं नहीं गया था।"26उसने उससे कहा, "क्या मेरा दिल उस वक़्त तेरे साथ न था, जब वह शख़्स तुझ से मिलने को अपने रथ पर से लौटा? क्या रुपये लेने, और पोशाक, और जै़तून के बाग़ों और ताकिस्तानों और भेड़ों और गु़लामों, और लौंडियों के लेने का ये वक़्त है?27इसलिए ना'मान का कोढ़ तुझे और तेरी नस्ल को हमेशा लगा रहेगा। इसलिए~~वह बर्फ़ की तरह~सफ़ेद कोढ़ी होकर उसके सामने से चला गया।
1और अम्बियाज़ादों ने इलीशा' से कहा,"देख, ये जगह जहाँ हम तेरे सामने रहते हैं, हमारे लिए छोटी है;2~इसलिए हम को ज़रा यरदन को जाने दे कि हम वहाँ से एक एक कड़ी लेकर आएँ और अपने रहने के लिए एक घर बना सकें ।" उसने जवाब दिया, "जाओ।”3तब एक ने कहा, "मेहरबानी से अपने ख़ादिमों के साथ चल।" उसने कहा, "मैं चलूँगा।"4चुनाँचे वह उनके साथ गया, और जब वह यरदन पर पहुँचे तो लकड़ी काटने लगे।5~लेकिन एक की कुल्हाड़ी का लोहा, जब वह कड़ी काट रहा था, पानी में गिर गया। तब वह चित्ला उठा, और कहने लगा, 'हाय, मेरे मालिक! यह तो माँगा हुआ था।”6~नबी ने कहा, "वह किस जगह गिरा?" उसने उसे वह जगह दिखाई। तब उसने एक छड़ी काट कर उस जगह डाल दी, और लोहा तैरने लगा।7~फिर उसने कहा, "अपने लिए उठा ले।” तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे उठा लिया।8अराम का बादशाह, इस्राईल के बादशाह से लड़ रहा था; और उसने अपने ख़ादिमों से मशवरा किया कि मैं इन इन जगह पर डेरा डालूँगा।"9~इसलिए मर्द-ए-ख़ुदा ने इस्राईल के बादशाह से कहला भेजा कि ख़बरदार तू उन जगहों से मत गुज़रना, क्यूँकि वहाँ अरामी आने को हैं।"10और इस्राईल के बादशाह ने उस जगह, जिसकी ख़बर मर्द-ए-ख़ुदा ने दी थी और उसको आगाह कर दिया था, आदमी भेजे और वहाँ से अपने को बचाया, और यह सिर्फ़ एक या दो बार ही नहीं।11इस बात की वजह से अराम के बादशाह का दिल निहायत बेचैन हुआ; और उसने अपने ख़ादिमों को बुलाकर उनसे कहा, "क्या तुम मुझे नहीं बताओगे कि हम में से कौन इस्राईल के बादशाह की तरफ़ है?"12~तब उसके ख़ादिमों में से एक ने कहा, "नहीं, ऐ मेरे मालिक, ऐ बादशाह! बल्कि इलीशा', जो इस्राईल में नबी है, तेरी उन बातों को जो तू अपनी आरामगाह में कहता है, इस्राईल के बादशाह को बता देता है।”13~उसने कहा, "जाकर देखो वह कहाँ है, ताकि मैं उसे पकड़वाऊँ।" और उसे यह बताया गया, "वह दूतैन में है।”14तब उसने वहाँ घोड़ों और रथों, और एक बड़े लश्कर को रवाना किया; तब उन्होंने रातों रात आकर उस शहर को घेर लिया।15जब उस मर्द-ए-ख़ुदा का ख़ादिम सुबह को उठ कर बाहर निकला तो देखा, कि एक लश्कर घोड़ों के साथ और रथों के शहर के चारों तरफ़ है। तब उस ख़ादिम ने जाकर उससे कहा, 'हाय! ऐ मेरे मालिक, हम क्या करें?"16~उसने जवाब दिया, "ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि हमारे साथ वाले उनके साथ वालों से ज़्यादा हैं।"17और इलीशा' ने दु'आ की और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, उसकी आँखें खोल दे ताकि वह देख सके।" तब ख़ुदावन्द ने उस जवान की आँखें खोल दीं, और उसने जो निगाह की तो देखा कि इलीशा' के चारों तरफ़ का पहाड़ आग के घोड़ों और रथों से भरा है।18और जब वह उसकी तरफ़ आने लगे, तो इलीशा' ने ख़ुदावन्द से दु'आ की और कहा, "मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, इन लोगों को अन्धा कर दे।" इसलिए उसने जैसा इलीशा' ने कहा था, उनको अन्धा कर दिया।19~फिर इलीशा' ने उनसे कहा, "यह वह रास्ता नहीं और न ये वह शहर है, तुम मेरे पीछे चले आओ, और मैं तुम को उस शख़्स के पास पहुँचा दूँगा जिसकी तुम तलाश करते हो।” और वह उनको सामरिया को ले गया।20जब वह सामरिया में पहुँचे तो इलीशा' ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, इन लोगों की आँखें खोल दे, ताकि वह देख सके।" तब ख़ुदावन्द ने उनकी आँखें खोल दीं, उन्होंने जो निगाह की, तो क्या देखा कि सामरिया के अन्दर हैं।21और इस्राईल के बादशाह ने उनको देखकर इलीशा' से कहा, "ऐ मेरे बाप, क्या मैं उनको मार लूँ? मैं उनको मार लूँ?”22~उसने जवाब दिया, "तू उनको न मार। क्या तू उनको मार दिया करता है, जिनको तू अपनी तलवार और कमान से क़ैद कर लेता है? तू उनके आगे रोटी और पानी रख, ताकि वह खाएँ-पिएँ और अपने मालिक के पास जाएँ।"23~तब उसने उनके लिए बहुत सा खाना तैयार किया; और जब वह खा पी चुके तो उसने उनको रुख़्सत किया, और वह अपने मालिक के पास चले गए। और अराम के गिरोह इस्राईल के मुल्क में फिर न आए।24~इसके बा'द ऐसा हुआ कि बिनहदद, अराम, का बादशाह अपनी सब फ़ौज इकट्ठी करके चढ़ आया और सामरिया का घेरा कर लिया।25और सामरिया में बड़ा काल था, और वह उसे घेरे रहे, यहाँ तक कि गधे का सिर चाँदी के अस्सी सिक्कों में और कबूतर की बीट का एक चौथाई पैमाना' चाँदी के पाँच सिक्कों में बिकने लगा।26जब इस्राईल का बादशाह दीवार पर जा रहा था, तो एक 'औरत ने उसकी दुहाई दी और कहा, "ऐ मेरे मालिक, ऐ बादशाह, मदद कर।”27उसने कहा, "अगर ख़ुदावन्द ही तेरी मदद न करे, तो मैं कहाँ से तेरी मदद करूँ? क्या ख़लिहान से, या अंगूर के कोल्हू से?"28~फिर बादशाह ने उससे कहा, "तुझे क्या हुआ?" उसने जवाब दिया, "इस 'औरत ने मुझसे कहा, 'अपना बेटा दे दे, ताकि हम आज के दिन उसे खाएँ; और मेरा बेटा जो है, फिर उसे हम कल खाएँगे।'29तब मेरे बेटे को हम ने पकाया और उसे खा लिया, और दूसरे दिन मैंने उससे कहा, 'अपना बेटा ला, ताकि हम उसे खाएँ;" लेकिन उसने अपना बेटा छिपा दिया है।"30बादशाह ने उस 'औरत की बातें सुनकर अपने कपड़े फाड़े; उस वक़्त वह दीवार पर चला जाता था, और लोगों ने देखा कि अन्दर उसके तन पर टाट है।31~और उसने कहा, "अगर आज साफ़त के बेटे इलीशा' का सिर उसके तन पर रह जाए, तो ख़ुदावन्द मुझसे ऐसा बल्कि इससे ज़्यादा करे।"32~लेकिन इलीशा' अपने घर में बैठा रहा, और बुजु़र्ग़ लोग उसके साथ बैठे थे, और बादशाह ने अपने सामने से एक शख़्स को भेजा, पर इससे पहले कि वह क़ासिद उसके पास आए, उसने बुज़ु़गों से कहा, "तुम देखते हो कि उस क़ातिल के बेटे ने मेरा सिर उड़ा देने को एक आदमी भेजा है? इसलिए देखो, जब वह क़ासिद आए, तो दरवाज़ा बन्द कर लेना~और मज़बूती से दरवाज़े को उसके सामने पकड़े रहना। क्या उसके पीछे-पीछे उसके मालिक के पैरों की आहट नहीं?"33~और वह उनसे अभी बातें कर ही रहा था कि देखो, कि वह क़ासिद उसके पास आ पहुँचा, और उसने कहा, "देखो, ये बला ख़ुदावन्द की तरफ़ से है, अब आगे मैं ख़ुदावन्द का रास्ता क्यूँ देखूँ?"
1तब इलीशा' ने कहा, "तुम ख़ुदावन्द की बात सुनो, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि 'कल इसी वक़्त के क़रीब सामरिया के फाटक पर एक मिस्क़ाल में एक पैमाना' मैदा, और एक ही मिस्क़ाल में दो पैमाना जौ बिकेगा।”2~तब उस सरदार ने जिसके हाथ पर बादशाह भरोसा करता था, मर्द-ए-ख़ुदा को जवाब दिया, "देख, अगर ख़ुदावन्द आसमान में खिड़कियाँ भी लगा दे, तोभी क्या ये बात हो सकती है उसने कहा, सुन, तू इसे अपनी आँखों से देखेगा, लेकिन तू उसमें से खाने न पाएगा।"3और उस जगह जहाँ से फाटक में दाख़िल होते थे, चार कोढ़ी थे: उन्होंने एक दूसरे से कहा, "हम यहाँ बैठे-बैठे क्यूँ मरें?4अगर हम कहें, 'शहर के अन्दर जाएँगे, तो शहर में क़हत ~है और हम वहाँ मर जाएँगे; और अगर यहीं बैठे रहें, तोभी मरेंगे। इसलिए आओ, हम अरामी लश्कर में जाएँ, अगर वह हमको जीता छोड़ें तो हम जीते रहेंगे; और अगर वह हम को मार डालें, तो हम को मरना ही तो है।"5~फिर वह शाम के वक़्त उठ कर अरामियों के लश्करगाह को गए, और जब वह अरामियों के लश्करगाह की बाहर की हद पर पहुँचे तो देखा, कि वहाँ कोई आदमी नहीं है।6क्यूँकि ख़ुदावन्द ने रथों की आवाज़ और घोड़ों की आवाज़ बल्कि एक बड़ी फ़ौज की आवाज़ अरामियों के लश्कर को सुनवाई, इसलिए वह आपस में कहने लगे, "देखो, इस्राईल के बादशाह ने हित्तियों के बादशाहों और मिस्रियों के बादशाहों को हमारे ख़िलाफ़ मज़दूरी पर बुलाया है, ताकि वह हम पर चढ़ आएँ।"7इसलिए वह उठे, और शाम को भाग निकले; और अपने ख़ेमे, और अपने घोड़े, और अपने गधे, बल्कि सारी लश्करगाह जैसी की तैसी छोड़ दी और अपनी जान लेकर भागे।8~चुनाँचे जब ये कोढ़ी लश्करगाह की बाहर की हद पर पहुँचे, तो एक ख़ेमे में जाकर उन्होंने खाया पिया, और चाँदी और सोना और लिबास वहाँ से ले जाकर छिपा दिया, और लौट कर आए और दूसरे ख़ेमे में दाख़िल होकर वहाँ से भी ले गए और जाकर छिपा दिया।9फिर वह एक दूसरे से कहने लगे, "हम अच्छा नहीं करते; आज का दिन ख़ुशख़बरी का दिन है, और हम ख़ामोश हैं; अगर हम सुबह की रोशनी तक ठहरे रहे तो सज़ा पाएँगे। अब आओ, हम जाकर बादशाह के घराने को ख़बर दें।"10~फिर उन्होंने आकर शहर के दरबान को बुलाया और उनको बताया, "हम अरामियों की लश्करगाह में गए, और देखो, वहाँ न आदमी है न आदमी की आवाज़, सिर्फ़ घोड़े बन्धे हुए, और गधे बन्धे हुए, और ख़ेमे जैसे थे वैसे ही हैं।"11और दरबानों ने पुकार कर बादशाह के महल में ख़बर दी।12तब बादशाह रात ही को उठा, और अपने ख़ादिमों से कहा कि "मैं तुम को बताता हूँ, अरामियों ने हम से क्या किया है? वह खू़ब जानते हैं कि हम भूके हैं; इसलिए वह मैदान में छिपने के लिए लश्करगाह से निकल गए हैं, और सोचा है कि जब हम शहर से निकलें तो वह हम को ज़िन्दा पकड़ लें, और शहर में दाख़िल हो जाएँ।”13~और उसके ख़ादिमों में से एक ने जवाब दिया, "ज़रा कोई उन बचे हुए घोड़ों में से जो शहर में बाक़ी हैं पाँच घोड़े ले (वह तो इस्राईल की सारी जमा'अत की तरह हैं जो बाक़ी रह गई है, बल्कि वह उस सारी इस्राईली जमा'अत की तरह हैं जो फ़ना हो गई), और हम उनको भेज कर देखें।"14तब उन्होंने दो रथ घोड़ों के साथ लिए, और बादशाह ने उनको अरामियों के लश्कर के पीछे भेजा कि जाकर देखें।15और वह उनके पीछे यरदन तक चले गए; और देखो, सारा रास्ता कपड़ों और बर्तनों से भरा पड़ा था जिनको अरामियों ने जल्दी में फेंक दिया था। तब क़ासिदों ने लौट कर बादशाह को ख़बर दी।16तब लोगों ने निकल कर अरामियों की लश्करगाह को लूटा। फिर एक मिस्क़ाल में एक पैमाना मैदा, और एक ही मिस्क़ाल में दो पैमाने जौ, ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ बिका।17और बादशाह ने उसी सरदार को जिसके हाथ पर भरोसा करता था, फाटक पर मुक़र्रर किया; और वह फाटक में लोगों के पैरों के नीचे दब कर मर गया, जैसा नबी ने फ़रमाया था, जिसने ये उस वक़्त कहा था जब बादशाह उसके पास आया था।18और नबी ने जैसा बादशाह से कहा था, "कल इसी वक़्त के क़रीब एक मिस्क़ाल में दो पैमाने जौ, और एक ही मिस्क़ाल में एक पैमाना मैदा सामरिया के फाटक पर मिलेगा," वैसा ही हुआ;19और उस सरदार ने नबी को जवाब दिया था, "देख, अगर ख़ुदावन्द आसमान में खिड़कियाँ भी लगा दे, तोभी क्या ऐसी बात हो सकती है?" और इसने कहा था, "तू अपनी आँखों से देखेगा, पर उसमें से खाने न पाएगा।"20~इसलिए उसके साथ ठीक ऐसा ही हुआ, क्यूँकि वह फाटक में लोगों के पैरों के नीचे दबकर मर गया।
1और इलीशा' ने उस 'औरत से जिसके बेटे को उसने ज़िन्दा किया था, ये कहा था, "उठ और अपने ख़ानदान के साथ जा, और जहाँ कहीं तू रह सके वहीं रह; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने काल का हुक्म दिया है"; और वह मुल्क में सात बरस तक रहेगा भी।"2तब उस 'औरत ने उठ कर नबी के कहने के मुताबिक़ किया, और अपने ख़ानदान के साथ जाकर फ़िलिस्तियों के मुल्क में सात बरस तक रही।3सातवें साल के आख़िर में ऐसा हुआ कि ये 'औरत फ़िलिस्तियों के मुल्क से लौटी, और बादशाह के पास अपने घर और अपनी ज़मीन के लिए फ़रियाद करने लगी।4उस वक़्त बादशाह नबी के ख़ादिम जेहाज़ी से बातें कर रहा और ये कह रहा था, "ज़रा वह सब बड़े बड़े काम जो इलीशा' ने किए मुझे बता।"5और ऐसा हुआ कि जब वह बादशाह को बता ही रहा था, कि उसने एक मुर्दे को ज़िन्दा किया, तो वही 'औरत जिसके बेटे को उसने ज़िन्दा किया था, आकर बादशाह के ~अपने घर और अपनी ज़मीन के लिए फ़रियाद करने लगी। तब जेहाज़ी बोल उठा, "ऐ मेरे मालिक, ऐ बादशाह! यही वह 'औरत है, यही उसका बेटा है जिसे इलीशा' ने ज़िन्दा किया था।”6जब बादशाह ने उस 'औरत से पूछा, तो उसने उसे सब कुछ बताया। तब बादशाह ने एक ख़्वाजासरा को उसके लिए मुक़र्रर कर दिया और फ़रमाया, "सब कुछ जो इसका था, और जब से इसने इस मुल्क को छोड़ा, उस वक़्त से अब तक की खेत की सारी पैदावार इसको दे दो।7और इलीशा' दमिश्क़ में आया, और अराम का बादशाह बिनहदद बीमार था; और उसकी ख़बर हुई, "वह नबी इधर आया है,"8और बादशाह ने हज़ाएल से कहा, "अपने हाथ में तोहफ़ा लेकर नबी के इस्तक़बाल को जा, और उसके ज़रिए ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त कर, 'मैं इस बीमारी से शिफ़ा पाऊँगा या नहीं?' "9तब हज़ाएल उससे मिलने को चला और उसने दमिश्क़ की हर उम्दा चीज़ में से ~चालीस ऊँटों पर तोहफ़े लदवाकर अपने साथ लिया, और आकर उसके सामने खड़ा हुआ और कहने लगा, "तेरे बेटे बिनहदद अराम के बादशाह ने मुझ को तेरे पास ये पूछने को भेजा है, 'मैं इस बीमारी से शिफ़ा पाऊँगा या नहीं?' "10इलीशा' ने उससे कहा, "जा उससे कह तू ज़रूर शिफ़ा पाएगा तोभी ख़ुदावन्द ने मुझ को यह बताया है कि वह यक़ीनन मर जाएगा।"11~और वह उसकी तरफ़ नज़र लगा कर देखता रहा, यहाँ तक कि वह शर्मा गया; फिर नबी रोने लगा।12और हज़ाएल ने कहा, "मेरे मालिक रोता क्यूँ है?" उसने जवाब दिया, "इसलिए कि मैं उस गुनाह से जो तू बनी-इस्राईल से करेगा, आगाह हूँ; तू उनके क़िलों' में आग लगाएगा, और उनके जवानों को हलाक करेगा, और उनके बच्चों को पटख़-पटख़ कर टुकड़े-टुकड़े करेगा, और उनकी हामिला 'औरतों को चीर डालेगा।13हज़ाएल ने कहा, "तेरे ख़ादिम की जो कुत्ते के बराबर है, हक़ीक़त ही क्या है, जो वह ऐसी बड़ी बात करे?" इलीशा' ने जवाब दिया, "ख़ुदावन्द ने मुझे बताया है कि तू अराम का बादशाह होगा।"14फिर वह इलीशा' से रुख़्सत हुआ, और अपने मालिक के पास आया, उसने पूछा, "इलीशा' ने तुझ से क्या कहा?" उसने जवाब दिया, "उसने मुझे बताया कि तू ज़रूर शिफ़ा पाएगा।"15और दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उसने बाला पोश को लिया, और उसे पानी में भिगोकर उसके मुँह पर तान दिया, ऐसा कि वह मर गया। और हज़ाएल उसकी जगह सल्तनत करने लगा।16और इस्राईल का बादशाह अख़ीअब के बेटे यूराम के पाँचवें साल, जब यहूसफ़त यहूदाह का बादशाह था, तो यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त का बेटा यहूराम सल्तनत करने लगा।17~जब वह सल्तनत करने लगा तो बत्तीस साल का था, और उसने यरुशलीम में आठ साल बादशाही की।18~उसने भी अख़ीअब के घराने की तरह इस्राईल के बादशाहों के रास्ते की पैरवी की; क्यूँकि अख़ीअब की बेटी उसकी बीवी थी और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।19तोभी ख़ुदावन्द ने अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर न चाहा कि यहूदाह को हलाक करे । क्यूँकि उसने उससे वा'दा किया था कि वह उसे उसकी नस्ल के वास्ते हमेशा के लिए एक चराग़ देगा।20उसी के दिनों में अदोम यहूदाह की इता'अत से फिर गया, और उन्होंने अपने लिए एक बादशाह बना लिया।21~तब यूराम' सईर को गया और उसके सब रथ उसके साथ थे, और उसने रात को उठ कर अदोमियों को जो उसे घेरे हुए थे, और रथों के सरदारों को मारा, और लोग अपने डेरों को भाग गए।22~ऐसे अदोम यहूदाह की इता'अत से आज तक फिरा है। और उसी वक़्त लिबनाह भी फिर ~गया।23यूराम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?24~और यूराम अपने बाप दादा के साथ सो गया, और दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़्न हुआ, और उसका बेटा अख़ज़ियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।25और इस्राईल के बादशाह अख़ीअब के बेटे यूराम के बारहवें साल से यहूदाह का बादशाह यहूराम का बेटा अख़ज़ियाह सल्तनत करने लगा।26अख़ज़ियाह बाईस साल का था, जब वह सल्तनत करने लगा; और उसने यरुशलीम में एक साल सल्तनत की। उसकी माँ का नाम 'अतलियाह था, जो इरुलाईल के बादशाह उमरी की बेटी थी।27और वह भी अख़ीअब के घराने के रास्ते पर चला, और उसने अख़ीअब के घराने की तरह ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया, क्यूँकि वह अख़ीअब के घराने का दामाद था।28~और वह अख़ीअब के बेटे यूराम के साथ रामात जिल'आद में अराम के बादशाह हज़ाएल से लड़ने को गया, और अरामियों ने यूराम को ज़ख़्मी किया।29इसलिए यूराम बादशाह लौट गया ताकि वह यज़र'एल में उन ज़ख़्मों का इलाज कराए, जो अराम के बादशाह हज़ाएल से लड़ते वक़्त रामा में अरामियों के हाथ से लगे थे। और यहूदाह का बादशाह यहूराम का बेटा अख़ज़ियाह अख़ीअब के बेटे यूराम को देखने के लिए यज़रएल में आया क्यूँकि वह बीमार था।
1~और इलीशा' नबी ने अम्बियाज़ादों में से एक को बुलाकर उससे कहा, "अपनी कमर बाँध, और तेल की ये कुप्पी अपने हाथ में ले, और रामात जिल'आद को जा।2और जब तू वहाँ पहुँचे तो याहू-बिन-यहूसफ़त बिन-निमसी को पूछ, और अन्दर जाकर उसे उसके भाइयों में से उठा और अन्दर की कोठरी में ले जा।3फिर तेल की यह ~कुप्पी लेकर उसके सिर पर डाल और कह, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि मैंने तुझे मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया है,' फिर तू दरवाज़ा खोल कर भागना और ठहरना मत।"4तब वह जवान, या'नी वह जवान जो नबी था, रामात जिल'आद को गया।5जब वह पहुँचा तो लश्कर के सरदार बैठे हुए थे उसने कहा, "ऐ सरदार, मेरे पास तेरे लिए एक पैग़ाम है।" याहू ने कहा, "हम सभों में से किसके लिए?" उसने कहा, "ऐ सरदार, तेरे लिए।"6तब वह उठ कर उस घर में गया, तब उसने उसके सिर पर वह तेल डाला, और उससे कहा, "ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि मैंने तुझे मसह करके ख़ुदावन्द की क़ौम या'नी इस्राईल का बादशाह बनाया है।7इसलिए तू अपने मालिक अख़ीअब के घराने को मार डालना, ताकि मैं अपने बन्दों, नबियों के ख़ून का और ख़ुदावन्द के सब बन्दों के ख़ून का इन्तिक़ाम ईज़बिल के हाथ से लूँ।8क्यूँकि अख़ीअब का सारा घराना हलाक होगा, और मैं अख़ीअब की नस्ल के हर एक लड़के को, और उसको जो इस्राईल में बन्द है और उसको जो आज़ाद छूटा हुआ है, काट डालूँगा।9और मैं अख़ीअब के घर को नबात के बेटे युरब'आम के घर और अख़ियाह के बेटे बाशा के घर की तरह कर दूँगा।10और ईज़बिल को यज़र'एल के इलाके़ में कुत्ते खाएँगे, वहाँ कोई न होगा जो उसे दफ़्न करे।" फिर वह दरवाज़ा खोल कर भागा।11तब याहू अपने मालिक के ख़ादिमों के पास बाहर आया; और एक ने उससे पूछा,"सब खै़र तो है? यह दीवाना तेरे पास क्यूँ आया था?" उसने उनसे कहा, "तुम उस शख़्स से और उसके पैग़ाम से वाक़िफ हो।"12उन्होंने कहा, "यह झूठ है; अब हम को हाल बता।" उसने कहा, "उसने मुझ से इस इस तरह की बात की और कहा, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि मैंने तुझे मसह करके इस्राईल का बादशाह बनाया है।' "13~तब उन्होंने जल्दी की और हर एक ने अपनी पोशाक लेकर उसके नीचे सीढ़ियों की चोटी पर बिछाई, और तुरही फूंककर कहने लगे, "याहू बादशाह है।”14तब याहू-बिन-यहूसफ़त-बिन-निमसी ने यूराम के ख़िलाफ़ साज़िश की। (और यूराम सारे इस्राईल के साथ अराम के बादशाह हज़ाएल की वजह से रामात जिल'आद की हिमायत कर रहा था;15~लेकिन यूराम बादशाह लौट गया था, ताकि यज़र'एल में उन ज़ख़्मों का इलाज कराए जो अराम के बादशाह हज़ाएल से लड़ते वक़्त अरामियों के हाथ से लगे थे।) तब याहू ने कहा, "अगर तुम्हारी मर्ज़ी यही है, तो कोई यज़र'एल जाकर ख़बर करने के लिए इस शहर से भागने और निकलने न पाए।"16और याहू रथ पर सवार होकर यज़र'एल को गया, क्यूँकि यूराम वहीं पड़ा हुआ था। और यहूदाह का बादशाह अख़ज़ियाह यूराम की मुलाक़ात को आया हुआ था।17यज़र'एल में निगहबान बुर्ज पर खड़ा था, और उसने जो याहू के लश्कर को आते हुए देखा, तो कहा, "मुझे एक लश्कर दिखाई देता है।" यूराम ने कहा, "एक सवार को लेकर उनसे मिलने को भेज, वह ये पूछे, 'ख़ैर है? "18चुनाँचे एक शख़्स घोड़े पर उससे मिलने को गया और कहा, "बादशाह पूछता है, 'ख़ैर है?' " याहू ने कहा, "तुझ को खै़र से क्या काम? मेरे पीछे हो ले।" फिर निगहबान ने कहा, "क़ासिद उनके पास पहुँच तो गया, लेकिन वापस नहीं आता।”19~तब उसने दूसरे को घोड़े पर रवाना किया, जिसने उनके पास जाकर उनसे कहा, "बादशाह यूँ कहता है, 'ख़ैर है?' " याहू ने जवाब दिया, "तुझे ख़ैर से क्या काम? मेरे पीछे हो ले।”20फिर निगहबान ने कहा, "वह भी उनके पास पहुँच तो गया, लेकिन वापस नहीं आता। और रथ का हाँकना ऐसा है जैसे निमसी के बेटे याहू का हाँकना होता है, क्यूँकि वही सुस्ती से हाँकता है।"21तब यूराम ने फ़रमाया, "जोत ले।" तब~उन्होंने उसके रथ को जोत लिया। तब इस्राईल का बादशाह यूराम और यहूदाह का बादशाह अख़ज़ियाह अपने-अपने रथ पर निकले और याहू से मिलने को गए, और यज़र'एली नबोत की मिल्कियत में उससे दो चार हुए।22~यूराम ने याहू को देखकर कहा, 'ऐ याहू, खै़र है?" उसने जवाब दिया, 'जब तक तेरी माँ ईज़बिल की ज़िनाकारियाँ और उसकी जादूगरियाँ इस क़दर हैं, तब तक कैसी ख़ैर?”23~तब यूराम ने बाग़' मोड़ी और भागा, और अख़ज़ियाह से कहा, "ऐ अख़ज़ियाह यह धोका है।"24तब याहू ने अपने सारे ज़ोर से कमान खेंची', और यूराम के दोनों शानों के बीच ऐसा मारा के तीर उसके दिल से पार हो गया और वह अपने रथ में गिरा।25तब याहू ने अपने लश्कर के सरदार बिदक़र से कहा,"उसे लेकर यज़र'एली नबोत की मिल्कियत के खेत में डाल दे; क्यूँकि याद कर कि जब मैं और तू उसके बाप अख़ीअब के पीछे पीछे सवार होकर चल रहे थे, तो ख़ुदावन्द ने ये फ़तवा उस पर दिया था,26'यक़ीनन मैंने कल नबोत के ख़ून और उसके बेटों के ख़ून को देखा है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं इसी खेत में तुझे बदला दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।" इसलिए जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है, उसे लेकर उसी जगह डाल दे।"27लेकिन जब यहूदाह के बादशाहअख़ज़ियाह ने ये देखा, तो वह बाग़ की बारह दरी के रास्ते से निकल भागा। और याहू ने उसका पीछा किया और कहा, "उसे भी रथ ही में मार दो।" चुनाँचे उन्होंने उसे जूर की चढ़ाई पर, जो इबलि'आम के क़रीब है मारा; और वो मजिही को भागा, और वहीं मर गया।28~और उसके ख़ादिम उसको एक रथ में यरुशलीम को ले गए, और उसे उसकी क़ब्र में दाऊद के शहर में उसके बाप-दादा के साथ दफ़न किया।29और अख़ीअब के बेटे यूराम के ग्यारहवें साल अख़ज़ियाह यहूदाह का बादशाह हुआ।30जब याहू यज़र'एल में आया, तो ईज़बिल ने सुना और अपनी आँखों में सुरमा लगा, और अपना सिर संवार खिड़की से झाँकने लगी।31~और जैसे ही याहू फाटक में दाखिल हुआ, वह कहने लगी, "ऐ ज़िमरी। अपने आक़ा के क़ातिल, खै़र तो है?"32पर उसने खिड़की की तरफ़ मुँह उठा कर कहा, "मेरी तरफ़ कौन है, कौन?" तब दो तीन ख़्वाजासराओं ने इसकी तरफ़ देखा।33~इसने कहा, 'उसे नीचे गिरा दो।" तब उन्होंने उसे नीचे गिरा दिया, और उसके ख़ून के छींटें दीवार पर और घोड़ों पर पड़ीं, और इसने उसे पैरों तले रौदा।34जब ये अन्दर आया, तो इसने खाया पिया; फिर कहने लगा, 'जाओ, उस ला'नती 'औरत को देखो, और उसे दफ़्न करो क्यूँकि वह शहज़ादी है।"35~और वह उसे दफ़्न करने गए, पर सिर और उसके पैर और हथेलियों के सिवा उसका और कुछ उनको न मिला।36इसलिए वह लौट आए और उसे ये बताया, इसने कहा, "ये ख़ुदावन्द का वही सुख़न है, जो उसने अपने बन्दे एलियाह तिशबी के मा'रिफ़त फ़रमाया था, 'यज़र'एल के इलाके़ में कुत्ते ईज़बिल का गोश्त खाएँगे;37और ईज़बिल की लाश यज़र'एल के इलाके़ में खेत में खाद की तरह पड़ी रहेगी, यहाँ तक कि कोई न कहेगा कि यह ईज़बिल है।' "
1सामरिया में अख़ीअब के सत्तर बेटे थे। इसलिए याहू ने सामरिया में यज़र'एल के अमीरों, या'नी बुज़ुर्गों के पास और उनके पास जो अख़ीअब के बेटों के पालने वाले थे, ख़त लिख भेजे,2कि "जिस हाल में तुम्हारे मालिक के बेटे तुम्हारे साथ हैं, और तुम्हारे पास रथ और घोड़े और फ़सीलदार शहर भी और हथियार भी हैं;~इसलिए~इस ख़त के पहुँचते ही,3~तुम अपने मालिक के बेटों में सबसे अच्छे और लायक़ को चुनकर उसे उसके बाप के तख़्त पर बिठाओ, और अपने मालिक के घराने के लिए जंग करो।4लेकिन वह निहायत परेशान हुए और कहने लगे देखो दो बादशाह तो उसका मुक़ाबिला न कर सके; तो हम क्यूँकर कर सकेंगे?"5इसलिए महल के दीवान ने और शहर के हाकिम ने और बुज़ुगों ने भी, और लड़कों के पालने वालों ने याहू को कहला भेजा, "हम सब तेरे ख़ादिम हैं, और जो कुछ तू फ़रमाएगा वह सब हम करेंगे; हम किसी को बादशाह नहीं बनाएँगे, जो कुछ तेरी नज़र में अच्छा है वही कर।"6तब उसने दूसरी बार एक ख़त उनको लिख भेजा, कि "अगर तुम मेरी तरफ़ हो और मेरी बात मानना चाहते हो, तो अपने मालिक के बेटों के सिर उतार कर कल यज़र'एल में इसी वक़्त मेरे पास आ जाओ।" उस वक़्त शाहज़ादे जो सत्तर आदमी थे, शहर के उन बड़े आदमियों के साथ थे जो उनके पालनेवाले थे।7इसलिए~जब यह ख़त उनके पास आया, तो उन्होंने शाहज़ादों को लेकर उनको, या'नी उन सत्तर आदमियों को क़त्ल किया और उनके सिर टोकरों में रख कर उनको उसके पास यज़र'एल में भेज दिया।8तब एक क़ासिद ने आकर उसे ख़बर दी, "वह शाहज़ादों के सिर लाए हैं।" उसने कहा, "तुम शहर के फाटक के मदख़ल पर उनकी दो ढेरियाँ लगा कर कल सुबह तक रहने दो।"9और सुबह को ऐसा हुआ कि वह निकल कर खड़ा हुआ और सब लोगों से कहने लगा, "तुम तो रास्त हो। देखो, मैंने तो अपने मालिक के ख़िलाफ़ बन्दिश बाँधी और उसे मारा; पर इन सभों को किसने मारा?10इसलिए अब जान लो कि ख़ुदावन्द के उस बात में से, जिसे ख़ुदावन्द ने अख़ीअब के घराने के हक़ में फ़रमाया, कोई बात ख़ाक में नहीं मिलेगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने जो कुछ अपने बन्दे एलियाह के ज़रिए फ़रमाया था उसे पूरा किया।"11इसलिए याहू ने उन सबको जो अख़ीअब के घराने से यज़र'एल में बच रहे थे, और उसके सब बड़े ~आदमियों और क़रीबी दोस्तों और काहिनों को क़त्ल किया, यहाँ तक कि उसने उसके किसी आदमी को बाक़ी न छोड़ा।12~फिर वह उठ कर रवाना हुआ और सामरिया को चला। और रास्ते में गड़रियों के बाल कतरने के घर तक पहुँचा ही था कि13याहू को यहूदाह के बादशाह अख़ज़ियाह के भाई मिल गए; इसने पूछा, "तुम कौन हो?” उन्होंने कहा, "हम अख़ज़ियाह के भाई हैं; और हम जाते हैं कि बादशाह के बेटों और मलिका के बेटों को सलाम करें।” I14तब उसने कहा, कि "उनको ज़िन्दा पकड़ लो।"~इसलिए उन्होंने उनको ज़िन्दा पकड़ लिया और उनको जो बयालीस आदमी थे बाल कतरने के घर के हौज़ पर क़त्ल किया; उसने उनमें से एक को भी न छोड़ा।15~फिर जब वह वहाँ से रुख़्सत हुआ, तो यहूनादाब-बिन-रैकाब जो उसके इस्तक़बाल को आ रहा था उसे मिला। तब उसने उसे सलाम किया और उससे कहा क्या तेरा दिल ठीक है, जैसा मेरा दिल तेरे दिल के साथ है?" यहूनादाब ने जवाब दिया कि है। इसलिए उसने कहा, 'अगर ऐसा है, तो अपना हाथ मुझे दे।" तब उसने उसे अपना हाथ दिया;और उसने उसे रथ में अपने साथ बिठा लिया,16और कहा, "मेरे साथ चल, और मेरी गै़रत को जो ख़ुदावन्द के लिए है, देख।" ~तब ~उन्होंने उसे उसके साथ रथ पर सवार कराया,17~और जब वह सामरिया में पहुँचा, तो अख़ीअब के सब बाक़ी लोगों को, जो सामरिया में थे क़त्ल किया, यहाँ तक कि उसने, जैसा ख़ुदावन्द ने एलियाह से कहा था, उसको नेस्त-ओ-नाबूद कर दिया।18~फिर याहू ने सब लोगों को जमा' किया, और उनसे कहा, कि "अख़ीअब ने बा'ल की थोड़ी 'इबादत की, याहू उसकी बहुत 'इबादत करेगा।"19इसलिए अब तुम बा'ल के सब नबियों और उसके सब पूजने वालों और पुजारियों को मेरे पास बुला लाओ; उनमें से कोई गै़र हाज़िर न रहे, क्यूँकि मुझे बा'ल के लिए बड़ी क़ुर्बानी करना है। इसलिए जो कोई गै़र हाज़िर रहे, वह ज़िन्दा न बचेगा।” पर याहू ने इस ग़रज़ से कि बा'ल के पूजनेवालों को हलाक कर दे, ये बहाना निकाला था।20और याहू ने कहा, कि "बा'ल के लिए एक ख़ास 'ईद का 'एलान करो।" तब उन्होंने उसका 'एलान कर दिया।21~और याहू ने सारे इस्राईल में लोग भेजे, और बा'ल के सब पूजनेवाले आए, यहाँ तक कि एक शख़्स भी ऐसा न था जो न आया हो। और वह बा'ल के बुतख़ाने में दाख़िल हुए, और बा'ल का बुतख़ाना इस सिरे से उस सिरे तक भर गया।22फिर उसने उसको जो ~तोशाखाने पर मुक़र्रर था हुक्म किया, ~कि बा'ल के सब पूजनेवालों के लिए लिबास निकाल ला।” तब वह उनके लिए लिबास निकाल लाया।23~तब याहू और यहूनादाब-बिन-रैकाब बा'ल के बुतख़ाने के अन्दर गए, और उसने बा'ल के पूजनेवालों से कहा, "बयान करो, और देख लो कि यहाँ तुम्हारे साथ ख़ुदावन्द के ख़ादिमों में से कोई न हो, सिर्फ़ बा'ल ही के पूजनेवाले हों।”24~और वह ज़बीहे और सोख़्तनी कु़र्बानियाँ पेश करने को अन्दर गए।और याहू ने बाहर अस्सी जवान मुक़र्रर कर दिए और कहा, कि "अगर कोई उन लोगों में से जिनको मैं तुम्हारे हाथ में कर दूँ निकल भागे, तो छोड़ने वाले की जान उसकी जान के बदले जाएगी।"25जब वह सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा कर चुका, तो याहू ने पहरेवालों और सरदारों से कहा, कि "घुस जाओ और उनको क़त्ल करो, एक भी निकलने न पाए।" चुनाँचे उन्होंने उनको हलाक किया, और पहरेवालों और सरदारों ने उनको बाहर फेंक दिया और बा'ल के बुतख़ाने के शहर को गए।26~और उन्होंने बा'ल के बुतख़ाने की कड़ियों को बाहर निकाल कर उनको आग में जलाया।27और बा'ल के सुतूनों को चकनाचूर किया, और बा'ल का बुतख़ाना को गिरा कर उसे बैतुल-ख़ला' बना दिया, जैसा आज तक है।28~इस तरह याहू ने बा'ल को इस्राईल के बीच से हलाक कर दिया।29तोभी नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, याहू बाज़ न आया; या'नी उसने सोने के बछड़ों को मानने से जो बैतएल और दान में थे, दूरी इख़्तियार न की।30और ख़ुदावन्द ने याहू से कहा, "चूँकि तू ने ये नेकी की है कि जो कुछ मेरी नज़र में भला था उसे अंजाम दिया है, और अख़ीअब के घराने से मेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ बर्ताव किया है; इसलिए तेरे बेटे चौथी नस्ल तक इस्राईल के तख़्त पर बैठेंगे।"31~लेकिन याहू ने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की शरी'अत पर अपने सारे दिल से चलने की फ़िक्र न की; वह युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, अलग न हुआ।32~उन दिनों ख़ुदावन्द इस्राईल को घटाने लगा, और हज़ाएल ने उनको इस्राईल की सब सरहदों में मारा,33या'नी यरदन से लेकर पूरब की तरफ़ जिल'आद के सारे मुल्क में, और जद्दियों और रूबीनियों और मनस्सियों को, 'अरो'ईर से जो वादी-ए-अरनून में है, या'नी जिल'आद और बसन को भी।34याहू के बाक़ी काम और सब जो उसने किया, और उसकी सारी ताक़त का बयान; इसलिए क्या वह सब इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?35और याहू अपने बाप-दादा के साथ मर गया, और उन्होंने उसे सामरिया में दफ़न किया, और उसका बेटा यहूआख़ज़ उसकी जगह बादशाह हुआ।36~और वह उसी 'अरसे में ~जिसमें याहू ने सामरिया में बनी-इस्राईल पर सल्तनत की अठाईस साल का था।
1~जब अख़ज़ियाह की माँ 'अतलियाह ने देखा कि उसका बेटा मर गया, तब उसने उठकर बादशाह की सारी नस्ल को हलाक किया।2लेकिन यूराम बादशाह की बेटी यहूसबा' ने जो अख़ज़ियाह की बहन थी, अख़ज़ियाह के बेटे यूआस को लिया, और उसे उन शाहज़ादों से जो क़त्ल हुए चुपके से जुदा किया; और उसे उसकी दवा और बिस्तरों ~के साथ बिस्तरों की कोठरी में कर दिया। और उन्होंने उसे 'अतलियाह से छिपाए रख्खा, वह मारा न गया।3~वह उसके साथ ख़ुदावन्द के घर में छ: साल तक छिपा रहा, और 'अतलियाह मुल्क में सल्तनत करती रही।4सातवें साल में यहोयदा' ने काम करने और पहरेवालों के सौ-सौ के सरदारों को बुला भेजा, और उनको ख़ुदावन्द के घर में अपने पास लाकर उनसे 'अहद-ओ-पैमान किया और ख़ुदावन्द के घर में उनको क़सम खिलाई और बादशाह के बेटे को उनको दिखाया।5और उसने उनको ये हुक्म दिया, कि "तुम ये काम करना : तुम जो सबत को यहाँ आते हो; इसलिए ~तुम में से एक तिहाई आदमी बादशाह के महल के पहरे पर रहें,6और एक तिहाई सूर नाम फाटक पर रहें, और एक तिहाई उस फाटक पर हों जो पहरेवालों के पीछे हैं, यूँ तुम महल की निगहबानी करना और लोगों को रोके रहना।7~और तुम्हारे दो लश्कर, या'नी ~जो सबत के दिन बाहर निकलते हैं, वह बादशाह के आसपास होकर ख़ुदावन्द के घर की निगहबानी करें।8और तुम अपने अपने हथियार हाथ में लिए हुए बादशाह को चारों तरफ़ से घेरे रहना, और जो कोई सफ़ों के अन्दर चला आए वह क़त्ल कर दिया जाए, और तुम बादशाह के बाहर जाते और अंदर आते वक़्त उसके साथ साथ रहना।"9चुनाँचे सौ सौ के सरदारों ने, जैसा यहोयदा' काहिन ने उनको हुक्म दिया था वैसे ही सब कुछ किया; और उनमें से हर एक ने अपने आदमियों को जिनकी सबत के दिन अन्दर आने की बारी थी, ~उन लोगों के साथ जिनकी सबत के दिन बाहर निकलने की बारी थी लिया, और यहोयदा' काहिन के पास आए।10और काहिन ने दाऊद बादशाह की बर्छियाँ और सिप्परें, जो ख़ुदावन्द के घर में थीं सौ-सौ के सरदारों को दीं।11और पहरेवाले अपने अपने हथियार हाथ में लिए हुए, हैकल के दाहिने तरफ़ से लेकर बाएँ तरफ़ मज़बह और हैकल के बराबर-बराबर बादशाह के चारों तरफ़ खड़े हो गए।12फिर उसने शाहज़ादे को बाहर लाकर उस पर ताज रख्खा, और शहादत नामा उसे दिया; और उन्होंने उसे बादशाह बनाया और उसे मसह किया, और उन्होंने तालियाँ बजाईं और कहा बादशाह सलामत रहे !"13जब 'अतलियाह ने पहरेवालों और लोगों का शोर सुना, तो वह उन लोगों के पास ख़ुदावन्द की हैकल में गई;14और देखा कि बादशाह दस्तूर के मुताबिक़ सुतून के क़रीब खड़ा है और उसके पास ही सरदार और नरसिंगे हैं, और सल्तनत के सब लोग ख़ुश हैं और नरसिंगे फूंक रहे हैं। तब 'अतलियाह ने अपने कपड़े फाड़े और चिल्लाई, "ग़द्र है! ग़द्र !"15~तब यहोयदा" काहिन ने सौ-सौ के सरदारों को जो लश्कर के ऊपर थे ये हुक्म दिया, कि "उसको सफ़ों के बीच करके बाहर निकाल ले जाओ, और जो कोई उसके पीछे चले उसको तलवार से क़त्ल कर दो।" क्यूँकि काहिन ने कहा, "वह ख़ुदावन्द के घर के अन्दर क़त्ल न की जाए।"16~तब उन्होंने उसके लिए रास्ता छोड़ दिया, और वह उस रास्ते से गई जिससे घोड़े बादशाह के महल में दाख़िल होते थे, और वहीं क़त्ल हुई।17और यहोयदा' ने ख़ुदावन्द के, और बादशाह और लोगों के बीच एक 'अहद बाँधा, ताकि वह ख़ुदावन्द के लोग हों, और बादशाह और लोगों के बीच भी 'अहद बाँधा।18और ममलुकत के सब लोग बा'ल के बुतख़ाने में गए और उसे ढाया, और उन्होंने उसके मज़बहों और बुतों को बिल्कुल चकनाचूर किया, और बा'ल के पुजारी मत्तान को मज़बहों के सामने क़त्ल किया। और काहिन ने ख़ुदावन्द के घर के लिए सरदारों को मुक़र्रर किया;19और उसने सौ-सौ के सरदारों और काम करने वालों और पहरेवालों और सल्तनत के लोगों को लिया, और वह बादशाह को ख़ुदावन्द के घर से उतार लाए और पहरेवालों के फाटक के रास्ते से बादशाह के महल में आए; और उसने बादशाहों के तख़्त पर जुलूस फ़रमाया।20और सल्तनत के सब लोग खु़श हुए, और शहर में अमन हो गया। उन्होंने 'अतलियाह को बादशाह के महल के पास तलवार से क़त्ल किया।21~और जब यूआस सल्तनत करने लगा तो सात साल का था।
1और ~याहू के सातवें साल यहूआस ' बादशाह हुआ और उसने यरुशलीम में चालीस साल सल्तनत की। उसकी माँ का नाम ज़िबियाह था जो बैरसबा' की थी।2और यहूआस ने इस तमाम 'अर्से ~में जब तक यहोयदा' काहिन उसकी ता'लीम-व-तरबियत करता रहा, वही काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था।3~तोभी ऊँचे मक़ाम ढाए न गए, और लोग अभी ऊँचे मक़ामों पर क़ुर्बानी करते और ख़ुशबू जलाते थे।4~और यहूआस' ने काहिनों से कहा, कि "मुक़द्दस की हुई चीज़ों की सब नक़दी जो मौजूदा सिक्के में ख़ुदावन्द के घर में पहुँचाई जाती है, या'नी उन लोगों की नक़दी जिनके लिए हर शख़्स की हैसियत के मुताबिक़ अन्दाज़ा लगाया जाता है, और वह सब नक़दी जो हर एक अपनी ख़ुशी से ख़ुदावन्द के घर में लाता है,5~इन सबको काहिन अपने अपने जान पहचान से लेकर अपने पास रख लें; और हैकल की दरारों की जहाँ कहीं कोई दरार मिले मरम्मत ~करें।"6लेकिन यहूआस के तेईसवें साल तक काहिनों ने हैकल की दरारों की मरम्मत न की।7~तब यहूआस ~बादशाह ने यहोयदा' काहिन को और, और काहिनों को बुलाकर उनसे कहा, "तुम हैकल की दरारों की मरम्मत क्यूँ नहीं करते? इसलिए अब अपने अपने जान-पहचान से नक़दी न लेना, बल्कि इसको हैकल की दरारों के लिए हवाले करो।"8इसलिए काहिनों ने मंज़ूर कर लिया कि न तो लोगों से नक़दी लें और न हैकल की दरारों की मरम्मत करें।9~तब यहोयदा' काहिन ने एक सन्दूक़ लेकर उसके ऊपर में एक सूराख किया, और उसे मज़बह के पास रख्खा, ऐसा कि ख़ुदावन्द की हैकल में दाख़िल होते वक़्त वह दहनी तरफ़ पड़ता था; और जो काहिन दरवाज़े के निगहबान थे, वह सब नक़दी जो ख़ुदावन्द के घर में लाई जाती थी उसी में डाल देते थे।10~जब वह देखते थे कि सन्दूक़ में बहुत नक़दी हो गई है, तो बादशाह का मुन्शी और सरदार काहिन ऊपर आकर उसे थैलियों में बाँधते थे, और उस नक़दी को जो ख़ुदावन्द के घर में मिलती थी गिन लेते थे।11और वह उस नक़दी को जो तोल ली जाती थी, उनके हाथों में सौप देते थे जो काम करनेवाले, या'नी ख़ुदावन्द की हैकल की देख भाल करते थे; और वह उसे बढ़इयों और मे'मारों पर जो ख़ुदावन्द के घर का काम बनाते थे।12और राजों और संग तराशों पर और ख़ुदावन्द की हैकल की दरारों की मरम्मत के लिए लकड़ी और तराशे हुए पत्थर ख़रीदने में, और उन सब चीज़ों पर जो हैकल की मरम्मत के लिए इस्ते'माल में आती थी ख़र्च करते थे।13लेकिन जो नक़दी ख़ुदावन्द की हैकल में लाई जाती थी, उससे ख़ुदावन्द की हैकल के लिए चाँदी के प्याले, या गुलगीर, या देगचे, या नरसिर्गे, या'नी सोने के बर्तन या चाँदी के बर्तन न बनाए गए,14~क्यूँकि ये नक़दी कारीगरों को दी जाती थी, और इसी से उन्होंने ख़ुदावन्द की हैकल की मरम्मत की।15~ इसके अलावा जिन लोगों के हाथ वह इस नक़दी को सुपुर्द करते थे, ताकि वह उसे कारीगरों को दें, उनसे वह ~उसका कुछ हिसाब नहीं लेते थे इसलिए कि वह ईमानदारी से काम करते थे।16~और जुर्म की क़ुर्बानी की नक़दी और ख़ता की क़ुर्बानी की नक़दी, ख़ुदावन्द की हैकल में नहीं लाई जाती थी, वह ~काहिनों की थी।17तब शाह-ए-अराम हज़ाएल ने चढ़ाई की, और जात से लड़कर उसे ले लिया। फिर हज़ाएल ने यरुशलीम का रुख़ किया ताकि उस पर चढ़ाई करे।18~तब शाह-ए-यहूदाह यहू'आस ' ने सब मुक़द्दस चीज़ें जिनको उसके बाप-दादा, यहूसफ़त और यहूराम और अख़ज़ियाह, यहूदाह के बादशाहों ने नज़्र किया था, और अपनी सब मुक़द्दस चीज़ों को और सब सोना जो ख़ुदावन्द की हैकल के ख़ज़ानों और बादशाह के महल में मिला, लेकर शाहे अराम हज़ाएल को भेज दिया; तब वह यरुशलीम से हटा।19यूआस के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?20उसके ख़ादिमों ने उठकर साज़िश की और यूआस को मिल्लो के महल में जो सिल्ला की उतराई पर है, क़त्ल किया;21~या'नी उसके ख़ादिमों यूसकार-बिन-समा'अत, और यहूज़बद-बिन-शूमीर ने उसे मारा और वह मर गया, और उन्होंने उसे उसके बाप-दादा के साथ दाऊद के शहर में दफ़न किया; और उसका बेटा अमसियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
1और शाह-ए-यहूदाह अख़ज़ियाह के बेटे यूआस के तेईसवें बरस से याहू का बेटा यहूआख़ज़ सामरिया में इस्राईल पर सल्तनत करने लगा और उसने सत्रह बरस सल्तनत की।2और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों की पैरवी की, जिनसे उसने बनी-इस्राईल से गुनाह कराया, उसने उनसे किनारा न किया।3और ख़ुदावन्द का ग़ुस्सा बनी इस्राईल पर भड़का, और उसने उनको बार बार शाह-ए- अराम हज़ाएल, और हज़ाएल के बेटे बिनहदद के क़ाबू में कर दिया।4~और यहूआख़ज़ ख़ुदावन्द के सामने गिड़गिड़ाया और ख़ुदावन्द ने उसकी सुनी, क्यूँकि उसने इस्राईल की मज़लूमी को देखा कि अराम का बादशाह उन पर कैसा जु़ल्म करता है।5~(और ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल ~को एक नजात देनेवाला इनायत किया, इसलिए वह अरामियों के हाथ से निकल गए, और बनी-इस्राईल पहले की तरह अपने ख़ेमों में रहने लगे।6~तोभी उन्होंने युरब'आम के घराने के गुनाहों से, जिनसे उसने बनी-इस्राईल से गुनाह कराया, किनारा न किया बल्कि उन्हीं पर चलते रहे; और यसीरत भी सामरिया में रही!)7और उसने यहूआख़ज़ के लिए लोगों में से सिर्फ़ पचास सवार और दस रथ और दस हज़ार प्यादे छोड़े; इसलिए कि अराम के बादशाह ने उनको तबाह कर डाला, और रौंद-रौंद कर ख़ाक की तरह कर दिया' ।8और यहुआख़ज़ के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया और उसकी क़ुव्वत, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?9और यहूआख़ज़ अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे सामरिया में दफ़न किया; और उसका बेटा यूआस उसकी जगह बादशाह हुआ।10और शाह-ए-यहूदाह यूआस के सैतीसवें बरस यहूआख़ज़ का बेटा यहूआस सामरिया में इस्राईल पर सल्तनत करने लगा, और उसने सोलह बरस सल्तनत की।11~और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, बाज़ न आया बल्कि उन ही पर चलता रहा।12और यहूआस के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया और उसकी क़ुव्वत जिससे वह शाह-ए-यहूदाह अमसियाह से लड़ा, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?13और यूआस अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और युरब'आम उसके तख़्त पर बैठा; और यूआस। सामरिया में इस्राईल के बादशाहों के साथ दफ़न हुआ।14~इलीशा' को वह मर्ज़ लगा जिससे वह मर गया। और शाह-ए-इस्राईल यूआस' उसके पास गया और उसके ऊपर रो कर कहने लगा, "ऐ मेरे बाप, ऐ मेरे बाप, इस्राईल के रथ और उसके सवार !"15और इलीशा' ने उससे कहा, "तीर-ओ-कमान ले ले।" इसलिए उसने अपने लिए तीर-ओ-कमान ले लिया।16~फिर उसने शाह-ए-इस्राईल से कहा, "कमान पर अपना हाथ रख।" इसलिए उसने अपना हाथ उस पर रखा; और इलीशा' ने बादशाह के हाथों पर अपने हाथ रख्खे,17और कहा, "पूरब की तरफ़ की खिड़की खोल।” इसलिए उसने उसे खोला, तब इलीशा' ने कहा, "तीर चला।" तब उसने चलाया। तब वह कहने लगा, "ये फ़तह का तीर ख़ुदावन्द का, या'नी अराम पर फ़तह पाने का तीर है; क्यूँकि तू अफ़ीक़ में अरामियों को मारेगा, यहाँ तक कि उनको हलाक कर देगा।”18फिर उसने कहा, "तीरों को ले।" तब उसने उनको लिया। फिर उसने शाह-ए-इस्राईल से कहा,"ज़मीन पर मार।" इसलिए उसने तीन बार मारा और ठहर गया।19तब मर्द-ए-ख़ुदा उस पर ग़ुस्सा हुआ और कहने लगा, "तुझे पाँच या छ: बार मारना चाहिए था, तब तू अरामियों को इतना मारता कि उनको हलाक कर देता; लेकिन अब तू अरामियों को सिर्फ़ तीन बार मारेगा।"20और इलीशा' ने वफ़ात पाई, और उन्होंने उसे दफ़न किया। और नये साल के शुरू' में मोआब के लश्कर मुल्क में घुस आए।21और ऐसा हुआ कि जब वह एक आदमी को दफ़न कर रहे थे तो उनको एक लश्कर नज़र आया, तब उन्होंने उस शख़्स को इलीशा' की क़ब्र में डाल दिया, और वह ~शख़्स इलीशा' की हड्डियों से टकराते ही ज़िन्दा हो गया और अपने पाँव पर खड़ा हो गया।22और शाह-ए-आराम हज़ाएल, यहूआख़ज़ के 'अहद में बराबर इस्राईल को सताता रहा।23और ख़ुदावन्द उन पर मेहरबान हुआ और उसने उन पर तरस खाया, और उस 'अहद की वजह से जो उसने इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब से बाँधा था, उनकी तरफ़ इलितफ़ात की; और न चाहा कि उनको हलाक करे, और अब भी उनको अपने सामने से दूर न किया।24और शाह-ए-अराम हज़ाएल मर गया, और उसका बेटा बिन हदद उसकी जगह बादशाह हुआ।25~और यहूआख़ज़ के बेटे यहूआस ने हज़ाएल के बेटे बिन हदद के हाथ से वह शहर छीन लिए जो उसने उसके बाप यहूआख़ज़ के हाथ से जंग करके ले लिए थे। तीन बार यूआस ने उसे शिकस्त दी और इस्राईल के शहरों को वापस ले लिया।
1~और शाह-ए-इस्राईल यहूआख़ज़ के बेटे यूआस के दूसरे साल से शाह-ए-यहूदाह यूआस का बेटा अमसियाह सल्तनत करने लगा।2वह पच्चीस बरस का था जब सल्तनत करने लगा, और उसने यरुशलीम में उन्तीस बरस सल्तनत की। उसकी माँ का नाम यहू'अद्दान था जो यरुशलीम की~थी3उसने वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में नेक ~था, तोभी अपने बाप दाऊद की तरह नहीं; बल्कि उसने सब कुछ अपने बाप यूआस की तरह किया।4क्यूँकि ऊँचे मक़ाम ढाए न गए, लोग अभी ऊँचे मक़ामों पर क़ुर्बानी करते और ख़ुशबू जलाते थे।5~जब सल्तनत उसके हाथ में मज़बूत हो गई, तो उसने अपने उन मुलाज़िमों को जिन्होंने उसके बाप बादशाह को क़त्ल किया था जान से मारा।6~लेकिन ~उसने उन क़ातिलों के बच्चों को जान से न मारा; क्यूँकि मूसा की शरी'अत की किताब में, जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, लिखा है : "बेटों के बदले बाप न मारे जाएँ, और न बाप के बदले बेटे मारे जाएँ, बल्कि हर शख़्स अपने ही गुनाह की ~वजह से मरे।"7उसने वादी-ए- शोर में दस हज़ार अदूमी मारे और सिला' को जंग करके ले लिया, और उसका नाम युक़तील रख्खा जो आज तक है।8~तब अमसियाह ने शाह-ए-इस्राईल यहूआस-बिन-यहूआख़ज़-बिन-याहू के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा ज़रा आ तो, हम एक दूसरे का मुक़ाबला करें।”9और शाह-ए-इस्राईल यहूआस ने शाह-ए- यहूदाह अमसियाह को कहला भेजा, "लुबनान के ऊँट-कटारे ने लुबनान के देवदार को पैग़ाम भेजा, 'अपनी बेटी की मेरे बेटे से शादी कर दे; ~इतने में एक जंगली जानवर जो लुबनान में था गुज़रा, और ऊँट-कटारे को रौंद डाला।10तू ने बेशक अदूम को मारा, और तेरे दिल में गु़रूर बस गया है"; इसलिए उसी की डींग मार और घर ही में रह, तू क्यूँ नुक़्सान उठाने को छेड़-छाड़ करता है; जिससे तू भी दुख़ उठाए और तेरे साथ यहूदाह भी?”|11लेकिन अमसियाह ने न माना। तब शाह-ए-इस्राईल यहूआस ने चढ़ाई की, और वह और शाह-ए-यहूदाह अमसियाह बैतशम्स में जो यहूदाह में है, एक दूसरे के सामने हुए।12~और यहूदाह ने इस्राईल के आगे शिकस्त खाई, और उनमें से हर एक अपने ख़ेमे को भागा।13लेकिन शाह-ए-इस्राईल यहूआस ने शाह-ए-यहूदाह अमसियाह-बिन-यहूआस-बिन-अख़ज़ियाह को बैत-शम्स में पकड़ लिया और यरुशलीम में आया, और यरुशलीम की दीवार इफ़्राईम के फाटक से कोने वाले फाटक तक, चार सौ हाथ के बराबर ढा दी।14और उसने सब सोने और चाँदी की, और सब बर्तनों को जो ख़ुदावन्द की हैकल और शाही महल के ख़ज़ानों में मिले, और कफ़ीलों को भी साथ लिया और सामरिया को लौटा।15यहूआस के बाक़ी काम जो उसने किए और उसकी क़ुव्वत, और जैसे शाह-ए- यहूदाह अमसियाह से लड़ा, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?16और यहूआस अपने बाप दादा के साथ सो गया और इस्राईल के बादशाहों के साथ सामरिया में दफ़न हुआ, और उसका बेटा युरब'आम उसकी जगह बादशाह हुआ।17और शाह-ए-यहूदाह यूआस का बेटा अमसियाह शाह-ए-इस्राईल यहूआख़ज़ के बेटे यहूआस के मरने के बा'द पन्द्रह बरस जीता रहा।18~अमसियाह के बाक़ी काम, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?19और उन्होंने यरुशलीम में उसके ख़िलाफ़ साज़िश की, इसलिए वह ~लकीस को भागा; लेकिन उन्होंने लकीस तक उसका पीछा करके वहीं उसे क़त्ल किया।20और वह उसे घोड़ों पर ले आए, और वह यरुशलीम में अपने बाप-दादा के साथ दाऊद के शहर में दफ़न हुआ।21और यहूदाह के सब लोगों ने अज़रियाह' को जो सोलह बरस का था, उसके बाप अमसियाह की जगह बादशाह बनाया ।22और बादशाह के अपने बाप-दादा के साथ सो जाने के बा'द उसने ऐलात को बनाया, और उसे फिर यहूदाह की मुल्क में दाख़िल कर लिया।23शाह-ए-यहूदाह यूआस के बेटे अमसियाह के पन्द्रहवें बरस से शाह-ए-इस्राईल यूआस का बेटा युरब'आम सामरिया में बादशाही करने लगा; उसने इकतालिस बरस बादशाही की।24उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया; वह नबात के बेटे युरब'आम के उन सब गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, बाज़ न आया।25और उसने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के उस बात के मुताबिक़, जो उसने अपने बन्दे और नबी यूनाह-बिन-अमित्ते के ज़रिए' जो जात हिफ़्र का था फ़रमाया था, इस्राईल की हद को हमात के मदख़ल से मैदान के दरिया तक फिर पहुँचा दिया।26~इसलिए कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल के दुख़ को देखा कि वह बहुत सख़्त है', क्यूँकि न तो कोई बन्द किया हुआ, न आज़ाद छूटा हुआ रहा और न कोई इस्राईल का मददगार था।27और ख़ुदावन्द ने यह तो नहीं फ़रमाया था कि मैं इस ज़मीन पर से इस्राईल का नाम मिटा दूँगा; इसलिए उसने उनको यूआस के बेटे युरब'आम के वसीले से रिहाई दी।28युरब'आम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया और उसकी क़ुव्वत, या'नी क्यूँकर उसने लड़ कर दमिश्क़ और हमात को जो यहूदाह के थे, इस्राईल के लिए वापस ले लिया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?29~और युरब'आम अपने बाप-दादा, या'नी इस्राईल के बादशाहों के साथ सो गया; और उसका बेटा ज़करियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
1~शाह-ए-इस्राईल युरब'आम के सत्ताइसवें बरस से शाह-ए-यहूदाह अमसियाह का बेटा अज़रियाह सल्तनत करने लगा।2जब वह सल्तनत करने लगा तो सोलह बरस का था, और उसने यरुशलीम में बावन बरस सल्तनत की। उसकी माँ का नाम यकूलियाह था, जो यरुशलीम की थी।3और उसने जैसा उसके बाप अमसियाह ने किया था, ठीक उसी तरह वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में नेक था;4~तोभी ऊँचे मक़ाम ढाए न गए, और लोग अब तक ऊँचे मक़ामों पर क़ुर्बानी करते और ख़ुशबू जलाते थे।5और बादशाह पर ख़ुदावन्द की ऐसी मार पड़ी कि वह अपने मरने के दिन तक कोढ़ी रहा और अलग एक घर में रहता था। और बादशाह का बेटा यूताम महल का मालिक था, और मुल्क के लोगों की 'अदालत किया करता था।6और 'अज़रियाह के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, तो क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?7और 'अज़रियाह अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में उसके बाप-दादा के साथ दफ़न किया; और उसका बेटा यूताम उसकी जगह बादशाह हुआ।8~और शाह-ए-यहूदाह 'अज़रियाह के अड़तीसवें साल युरब'आम के बेटे ज़करियाह ने इस्राईल पर सामरिया में छ: महीने बादशाही की।9और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया, जिस तरह उसके बाप-दादा ने की थी; और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया बाज़ न आया।10और यबीस के बेटे सलूम ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और लोगों के सामने उसे मारा, और क़त्ल किया और उसकी जगह बादशाह हो गया।11~ज़करियाह के बाक़ी काम इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे हैं।12~और ख़ुदावन्द का वह वा'दा जो उसने याहू से किया यही था कि: "चौथी नस्ल तक तेरे फ़र्ज़न्द इस्राईल के तख़्त पर बैठेगे।" इसलिए ~वैसा ही हुआ।13शाह-ए-यहूदाह उज़्ज़ियाह के उन्तालीसवें बरस यबीस का बेटा सलूम बादशाही करने लगा, और उसने सामरिया में महीना भर सल्तनत की।14और जादी का बेटा मनाहिम तिरज़ा से चला और सामरिया में आया, और यबीस के बेटे सलूम को सामरिया में मारा, और क़त्ल किया और उसकी जगह बादशाह हो गया।15और सलूम के बाक़ी काम और जो साज़िश उसने की, इसलिए देखो, वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे हैं।16~फिर मनाहिम ने तिरज़ा से जाकर तिफ़सह को, और उन सभों को जो वहाँ थे और उसकी हुदूद को मारा; और मारने की वजह यह थी कि उन्होंने उसके लिए फाटक नहीं खोले थे; और उसने वहाँ की सब हामिला 'औरतों को चीर डाला।17और शाह-ए-यहूदाह 'अज़रियाह के उन्तालीसवें बरस से जादी का बेटा मनाहिम इस्राईल पर सल्तनत करने लगा, और उसने सामरिया में दस बरस सल्तनत की।18उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, अपनी सारी 'उम्र बाज़ न आया।19~और शाह-ए-असूर पूल उसके मुल्क पर चढ़ आया। इसलिए मनाहिम ने हज़ार क़िन्तार' चाँदी पूल को नज़्र की, ताकि वह ~उसकी दस्तगीरी करे और सल्तनत को उसके हाथ में मज़बूत कर दे।20और मनाहिम ने ये नक़दी शाह-ए-असूर को देने के लिए इस्राईल से या'नी सब बड़े-बड़े दौलतमन्दों से पचास-पचास मिस्क़ाल हर शख़्स के हिसाब से जबरन ली। इसलिए असूर का बादशाह लौट गया और उस मुल्क में न ठहरा।21मनाहिम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?22~और मनाहिम अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उसका बेटा फक़ीहयाह उसकी जगह बादशाह हुआ।23~शाह-ए-यहूदाह 'अज़रियाह के पचासवीं साल मनाहिम का बेटा फक़ीयाह सामरिया में इस्राईल पर सल्तनत करने लगा, और उसने दो बरस सल्तनत की।24उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया; वह नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, बाज़ न आया।25~और फिक़ह-बिन-रमलियाह ने जो उसका एक सरदार था, उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और उसको सामरिया में बादशाह के महल के मुहकम हिस्से में अरजूब और अरिया के साथ मारा, और जिल'आदियों में से पचास मर्द उसके साथ थे, इसलिए वह उसे क़त्ल करके उसकी जगह बादशाह हो गया।26फक़ीयाह के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा है।27शाह-ए-यहूदाह 'अज़रियाह के बावनवें बरस से फिक़ह-बिन-रमलियाह सामरिया में इस्राईल पर सल्तनत करने लगा, और उसने बीस बरस सल्तनत की।28उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया और नबात के बेटे युरब'आम के गुनाहों से, जिनसे उसने इस्राईल से गुनाह कराया, बाज़ न आया।29शाह-ए-इस्राईल फिक़ह के अय्याम में शाह-ए-असूर तिगलत पिलासर ने आकर अय्यून, और अबील बैतमा'का, और यनूहा, और क़ादिस ~और हसूर और जिल'आद और गलील, और नफ़्ताली के सारे मुल्क को ले लिया, और लोगों को ग़ुलाम करके ग़ुलामी ~में ले गया।30और हूसी'-बिन ऐला ने फ़िक़ह-बिन-रमलियाह के ख़िलाफ़ साज़िश की और उसे मारा, और क़त्ल किया और उसकी जगह, उज़्ज़ियाह के बेटे यूताम के बीसवें बरस, बादशाह हो गया;31और फ़िक़ह के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इस्राईल के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे हैं।32शाह-ए-इस्राईल रमलियाह के बेटे फ़िक़ह के दूसरे साल से शाह-ए-यहूदाह उज़ियाह का बेटा यूताम सल्तनत करने लगा।33जब वह सल्तनत करने लगा तो पच्चीस बरस का था, उसने सोलह बरस यरुशलीम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम यरूसा था, जो सदूक़ी की बेटी थी।34उसने वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में भला है; उसने सब कुछ ठीक वैसे ही किया जैसे उसके बाप 'उज़ियाह ने किया था।35तोभी ऊँचे मक़ाम ढाए न गए लोग अभी ऊँचे मक़ामों पर क़ुर्बानी करते और ख़ुशबू जलाते थे। ख़ुदावन्द के घर का बालाई दरवाज़ा इसी ने बनाया।36यूताम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?37~उन ही दिनों में ख़ुदावन्द शाह-ए-अराम रज़ीन को और फ़िक़ह-बिन-रमलियाह को, यहूदाह पर चढ़ाई करने के लिए भेजने लगा।38~यूताम अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और अपने बाप दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़न हुआ; और उसका बेटा आख़ज़ उसकी जगह बादशाह हुआ।
1और रमलियाह के बेटे फ़िक़ह के सत्तरहवें ~बरस से शाह-ए-यहूदाह यूताम का बेटा आख़ज़ सल्तनत करने लगा।2~जब वह सल्तनत करने लगा तो बीस बरस का था, और उसने सोलह बरस यरुशलीम में बादशाही की। और उसने वह काम न किया जो ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा की नज़र में सही है, जैसा उसके बाप दाऊद ने किया था।3~बल्कि वह इस्राईल के बादशाहों के रास्ते पर चला और उसने उन क़ौमों के नफ़रती दस्तूर के मुताबिक़, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के सामने से ख़ारिज कर दिया था, अपने बेटे को भी आग में चलवाया।4~और ऊँचे मक़ामों और टीलों पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे उसने क़ुर्बानी की और ख़ुशबू जलाया।5तब शाह-ए-अराम रज़ीन और शाह-ए-इस्राईल रमलियाह के बेटे फ़िक़ह ने लड़ने को यरुशलीम पर चढ़ाई की, और उन्होंने आख़ज़ को घेर लिया लेकिन उस पर ग़ालिब न आ सके।6उस वक़्त शाह-ए-अराम रज़ीन ने ऐलात को फ़तह करके फिर अराम में शामिल कर लिया, और यहूदियों को ऐलात से निकाल दिया; और अरामी ऐलात में आकर वहाँ बस गए जैसा आज तक है।7इसलिए आख़ज़ ने शाह-ए-असूर तिगलत पिलासर के पास क़ासिद रवाना किए और कहला भेजा, "मैं तेरा ख़ादिम और बेटा हूँ, इसलिए तू आ और मुझ को शाह-ए-अराम के हाथ से और शाह-ए-इस्राईल के हाथ से जो मुझ पर चढ़ आए हैं, रिहाई दे।"8~और आख़ज़ ने उस चाँदी और सोने को जो ख़ुदावन्द के घर में और शाही महल के ख़ज़ानों में मिला, लेकर शाह-ए-असूर के लिए नज़राना भेजा।9और शाह-ए-असूर ने उसकी बात मानी, चुनॉचे शाह-ए-असूर ने दमिश्क़ पर लश्करकशी की और उसे ले लिया, और वहाँ के लोगों को क़ैद करके क़ीर में ले गया और रज़ीन को क़त्ल किया।10और आख़ज़ बादशाह, शाह-ए-असूर तिगलत पिलासर की मुलाक़ात के लिए दमिश्क़ को गया, और उस मज़बह को देखा जो दमिश्क़ में था; और आख़ज़ बादशाह ने उस मज़बह का नक़्शा और उसकी सारी सन'अत का नमूना ऊरियाह काहिन के पास भेजा।11~और ऊरियाह काहिन ने ठीक उसी नमूने के मुताबिक़ जिसे आख़ज़ ने दमिश्क़ से भेजा था, एक मज़बह बनाया। और आख़ज़ बादशाह के दमिश्क़ से लौटने तक ऊरियाह काहिन ने उसे तैयार कर दिया।12जब बादशाह दमिश्क़ से लौट आया तो बादशाह ने मज़बह को देखा, और बादशाह मज़बह के पास गया और उस पर क़ुर्बानी पेश की।13उसने उस मज़बह पर अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी और अपनी नज़्र की क़ुर्बानी जलाई, और अपना तपावन तपाया और अपनी सलामती के ज़बीहों का ख़ून उसी मज़बह पर छिड़का।14और उसने पीतल का वह मज़बह जो ख़ुदावन्द के आगे था, हैकल के सामने से या'नी अपने मज़बह और ख़ुदावन्द की हैकल के बीच में से, उठवाकर उसे अपने मज़बह के उत्तर की तरफ़ रखवा दिया।15और आख़ज़ बादशाह ने ऊरियाह काहिन को हुक्म दिया , "बड़े मज़बह पर सुबह की सोख़्तनी कु़र्बानी, और शाम की नज़्र की कु़र्बानी, और बादशाह की सोख़्तनी कु़र्बानी, और उसकी नज़्र की कु़र्बानी, और ममलुकत के सब लोगों की सोख़्तनी कु़र्बानी, और उनकी नज़्र की कु़बानी, और उनका तपावन चढ़ाया कर, और सोख़्तनी क़ुर्बानी का सारा खू़न, और ज़बीहे का सारा ख़ून उस पर छिड़क कर; और पीतल का वह मज़बह मेरे सवाल करने के लिए रहेगा।"16~इसलिए जो कुछ आख़ज़ बादशाह ने फ़रमाया, ऊरियाह काहिन ने वह सब किया।17और आख़ज़ बादशाह ने कुर्सियों के किनारों को काट डाला, और उनके ऊपर के हौज़ को उनसे जुदा कर दिया; और उस बड़े हौज़ को पीतल के बैलों पर से जो उसके नीचे थे उतार कर पत्थरों के फ़र्श पर रख दिया |18और उसने उस रास्ते को जिस पर छत थी, और जिसे उन्होंने सबत के दिन के लिए हैकल के अन्दर बनाया था, और बादशाह के आने के रास्ते को जो बाहर था, शाह-ए- असूर की वजह से ख़ुदावन्द के घर में शामिल कर दिया'।19और आख़ज़ के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?20और आख़ज़ अपने बाप दादा के साथ सो गया, और दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़न हुआ; और उसका बेटा हिज़क़ियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
1~शाह-ए-यहूदाह आख़ज़ के बारहवें बरस से ऐला का बेटा हूसी'अ इस्राईल पर सामरिया में सल्तनत करने लगा, और उसने नौ बरस सल्तनत की।2उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया, तोभी इस्राईल के उन बादशाहों की तरह नहीं जो उससे पहले हुए।3~शाह-ए-असूर सलमनसर ने इस पर चढ़ाई की, और हूसी'अ उसका ख़ादिम हो गया और उसके लिए हदिया लाया।4और शाह-ए-असूर ने हूसी'अ की साज़िश मा'लूम कर ली, क्यूँकि उसने शाह-ए-मिस्र के पास इसलिए क़ासिद भेजे, और शाह-ए-असूर को हदिया न दिया जैसा वह साल-ब-साल देता था, इसलिए ~शाह-ए-असूर ने उसे बन्द कर दिया और कै़दखाने में उसके बेड़ियाँ डाल दीं।5~शाह-ए-असूर ने सारी ममलुकत पर चढ़ाई की, और सामरिया को जाकर तीन बरस उसे घेरे रहा।6~और हूसी'अ के नौवें बरस शाह-ए-असूर ने सामरिया को ले लिया और इस्राईल को ग़ुलाम करके असूर में ले गया, और उनको ख़लह में, और जौज़ान की नदी ख़ाबूर पर, और मादियों के शहरों में बसाया I7और ये इसलिए हुआ कि बनी-इस्राईल ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़, जिसने उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकालकर शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन के हाथ से रिहाई दी थी, गुनाह किया और ग़ैर-मा'बूदों का ख़ौफ़ माना।8और उन क़ौमों के तौर पर जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के आगे से ख़ारिज किया, और इस्राईल के बादशाहों के तौर पर जो उन्होंने ख़ुद ~बनाए थे चलते रहे।9और बनी इस्राईल ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ छिपकर वह काम किए जो भले न थे, और उन्होंने अपने सब शहरों में, निगहबानों के बुर्ज से फ़सीलदार शहर तक, अपने लिए ऊँचे मक़ाम बनाए10और हर एक ऊँचे पहाड़ पर, और हर एक हरे दरख़्त के नीचे उन्होंने अपने लिए सुतूनों और यसीरतों को खड़ा किया।11~और वहीं उन सब ऊँचे मक़ामों पर, उन क़ौमों की तरह जिनको ख़ुदावन्द ने उनके सामने से दफ़ा' किया, ख़ुशबू जलाया और ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाने के लिए शरारतें कीं;12और बुतों की 'इबादत की, जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने उनसे कहा था, "तुम ये काम न करना।"13तोभी ख़ुदावन्द सब नबियों और ग़ैबबीनों के ज़रिए' इस्राईल और यहूदाह को आगाह करता रहा, "तुम अपनी बुरी राहों से बाज़ आओ, और उस सारी शरी'अत के मुताबिक़, जिसका हुक्म मैंने तुम्हारे बाप-दादा को दिया और जिसे मैंने अपने बन्दों नबियों के ज़रिए' तुम्हारे पास भेजा है, मेरे अहकाम और क़ानून को मानो।"14~बावजूद इसके उन्होंने न सुना, बल्कि अपने बाप-दादा की तरह जो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा पर ईमान नहीं लाए थे, गर्दनकशी की,15और उसके क़ानून को और उसके 'अहद को, जो उसने उनके बाप-दादा से बाँधा था, और उसकी शहादतों को जो उसने उनको दी थीं रद्द किया; और बेकार बातों के पैरौ होकर निकम्मे हो गए, और अपने आस-पास की क़ौमों की पैरवी की, जिनके बारे में ख़ुदावन्द ने उनको ताकीद की थी कि वह उनके से काम न करें।16और उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सब अहकाम छोड़ कर अपने लिए ढाली हुई मूरतें या'नी दो बछड़े बना लिए, और यसीरत तैयार की, और आसमानी फ़ौज की 'इबादत की, और बा'ल की 'इबादत की।17और उन्होंने अपने बेटे और बेटियों को आग में चलवाया, और फ़ालगीरी और जादूगरी से काम लिया और अपने को बेच डाला, ताकि ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह करके उसे ग़ुस्सा दिलाएँ।18इसलिए ख़ुदावन्द इस्राईल से बहुत नाराज़ हुआ, और अपनी नज़र से उनको ~दूर कर दिया; इसलिए यहूदाह के क़बीले के अलावा और कोई न छूटा।19यहूदाह ने भी ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के अहकाम न माने, बल्कि उन तौर तरीक़ों पर चले जिनको ~इस्राईल ने बनाया था।20~तब ख़ुदावन्द ने इस्राईल की सारी नस्ल को रद्द किया, और उनको दुख दिया और उनको लुटेरों के हाथ में करके आख़िरकार उनको अपनी नज़र से दूर कर दिया।21~क्यूँकि उसने इस्राईल को दाऊद के घराने से जुदा किया, और उन्होंने नबात के बेटे युरब'आम को बादशाह बनाया, और युरब'आम ने इस्राईल को ख़ुदावन्द की पैरवी से दूर किया और उनसे बड़ा गुनाह कराया।22और बनी इस्राईल उन सब गुनाहों की जो युरब'आम ने किए, पैरवी करते रहे; वह उनसे बाज़ न आए।23यहाँ तक कि ख़ुदावन्द ने इस्राईल को अपनी नज़र से दूर कर दिया, जैसा उसने अपने सब बन्दों के ज़रिए', जो नबी थे फ़रमाया था। इसलिए इस्राईल अपने मुल्क से असूर को पहुँचाया गया, जहाँ वह आज तक है।24~और शाह-ए-असूर ने बाबुल और कूताह और 'अव्वा और हमात और सिफ़वाइम के लोगों को लाकर बनी-इस्राईल की जगह सामरिया के शहरों में बसाया। इसलिए वह ~सामरिया के मालिक हुए, और उसके शहरों में बस गए।25और अपने बस जाने के शुरू' में उन्होंने ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ न माना; इसलिए ख़ुदावन्द ने उनके बीच शेरों को भेजा, जिन्होंने उनमें से कुछ को मार डाला।26तब उन्होंने शाह-ए-असूर से ये कहा, "जिन क़ौमों को तूने ले जाकर सामरिया के शहरों में बसाया है, वह उस मुल्क के ख़ुदा के तरीक़े से वाक़िफ़ नहीं हैं; चुनाँचे उसने उनमें शेर भेज दिए हैं और देख, वह उनको फाड़ते हैं, इसलिए कि वह उस मुल्क के ख़ुदा के तरीक़े से वाक़िफ़ नही हैं।"27~तब असूर के बादशाह ने ये हुक्म दिया, "जिन काहिनों को तुम वहाँ से ले आए हो, उनमें से एक को वहाँ ले जाओ, और वह ~जाकर वहीं रहे और ये काहिन उनको उस मुल्क के ख़ुदा का तरीक़ा सिखाए।"28इसलिए उन काहिनों में से, जिनको वह सामरिया ले गए थे, एक काहिन आकर बैतएल में रहने लगा, और उनको सिखाया कि उनको ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ क्यूँकर मानना चाहिए।29~इस पर भी हर क़ौम ने अपने मा'बूद बनाए, और उनको सामरियों के बनाए हुए ऊँचे मक़ामों के बुतख़ानों में रख्खा; हर क़ौम ने अपने शहर में जहाँ उसकी सुकूनत थी ऐसा ही किया।30इसलिए बाबुलियों ने सुक्कात बनात को, और कूतियों ने नैरगुल को, और हमातियों ने असीमा को,31और 'अवाइयों ने निबहाज़ और तरताक़ को बनाया; और सिफ़वियों ने अपने बेटों को अदरम्मलिक और 'अनम्मलिक के लिए, जो सिफ़वाइम के मा'बूद थे, आग में जलाया।32इस तरह वह ख़ुदावन्द से भी डरते थे और अपने लिए ऊँचे मक़ामों के काहिन भी अपने ही में से बना लिए, जो ऊँचे मक़ामों के बुतख़ानों में उनके लिए क़ुर्बानी पेश करते थे।33इसलिए वह ख़ुदावन्द से भी डरते थे और अपनी क़ौमों के दस्तूर के मुताबिक़, जिनमें से वह निकाल लिए गए थे, अपने-अपने मा'बूद की 'इबादत भी करते थे।34आज के दिन तक वह पहले दस्तूर पर चलते हैं, वह ~ख़ुदावन्द से डरते नहीं, और न तो अपने आईन-ओ-क़वानीन पर और न उस शरा' और फ़रमान पर चलते हैं, जिसका हुक्म ख़ुदावन्द ने या'क़ूब की नसल को दिया था, जिसका नाम उसने इस्राईल रखा था।35उन ही से ख़ुदावन्द ने 'अहद करके उनको ये ताकीद की थी, "तुम गै़र-मा'बूदों से न डरना, और न उनको सिज्दा करना, न 'इबादत करना , और न उनके लिए क़ुर्बानी करना;36बल्कि ख़ुदावन्द जो बड़ी क़ुव्वत और बलन्द बाज़ू से तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, तुम उसी से डरना और उसी को सिज्दा करना और उसी के लिए क़ुर्बानी पेश करना।37और जो-जो क़ानून, और रवायत, और जो शरी'अत, और हुक्म उसने तुम्हारे लिए लिखे, उनको हमेशा मानने के लिए एहतियात रखना; और तुम गै़र-मा'बूदों से न डरना,38और उस 'अहद को जो मैंने तुम से किया है तुम भूल न जाना; और न तुम गै़र-मा'बूदों का ख़ौफ़ मानना;39~बल्कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना, और वह ~तुम को तुम्हारे सब दुश्मनों के हाथ से छुड़ाएगा।"40लेकिन उन्होंने न माना, बल्कि अपने पहले दस्तूर के मुताबिक़ करते रहे।41~इसलिए ये क़ौमें ख़ुदावन्द से भी डरती रहीं, और अपनी खोदी हुई मूरतों को भी पूजती रहीं; इसी तरह उनकी औलाद और उनकी औलाद की नसल भी, जैसा उनके बाप-दादा करते थे, वैसा वह भी आज के दिन तक करती हैं।
1और शाह-ए इस्राईल होशे' बिन ऐला के तीसरे साल ऐसा हुआ कि शाह-ए-यहूदाह आख़ज़ का बेटा हिज़क़ियाह सल्तनत करने लगा।2~जब वह सल्तनत करने लगा तो पच्चीस बरस का था, और उसने उन्तीस बरस यरुशलीम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम अबी था, जो ज़करियाह की बेटी थी।3~और जो-जो उसके बाप दाऊद ने किया था, उसने ठीक उसी के मुताबिक़ वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में अच्छा था।4उसने ऊँचे मक़ामों को दूर कर दिया, और सुतूनों को तोड़ा और यसीरत को काट डाला; और उसने पीतल के साँप को जो मूसा ने बनाया था चकनाचूर कर दिया, क्यूँकि बनी-इस्राईल उन दिनों तक उसके आगे ख़ुशबू जलाते थे; और उसने उसका नाम नहुश्तान' रखा।5~वह ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा पर भरोसा करता था, ऐसा कि उसके बा'द यहूदाह के सब बादशाहों में उसकी तरह एक न हुआ, और न उससे पहले कोई हुआ था।6क्यूँकि वह ख़ुदावन्द से लिपटा रहा और उसकी पैरवी करने से बाज़ न आया; बल्कि उसके हुक्मों को माना जिनको ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया था।7और ख़ुदावन्द उसके साथ रहा और जहाँ कहीं वह गया कामयाब हुआ; और वह शाह-ए-असूर से फिर गया और उसकी पैरवी न की।8उसने फ़िलिस्तियों को ग़ज़्ज़ा और उसकी सरहदों तक, निगहबानों के बुर्ज से फ़सीलदार शहर तक मारा।9हिज़क़ियाह बादशाह के चौथे बरस जो शाह-ए-इस्राईल हूसे'अ-बिन-ऐला का सातवाँ बरस था, ऐसा हुआ कि शाह-ए-असूर सलमनसर ने सामरिया पर चढ़ाई की, और उसको घेर ~लिया।10और तीन साल के आख़िर में उन्होंने उसको ले लिया; या'नी हिज़क़ियाह के छठे साल जो शाह-ए-इस्राईल हूसे'अ का नौवाँ बरस था, सामरिया ले लिया गया।11और शाह-ए-असूर इस्राईल को ग़ुलाम करके असूर को ले गया, और उनको ख़लह में और जौज़ान की नदी ख़ाबूर पर, और मादियों के शहरों में रख्खा,12इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात न मानी, बल्कि उसके 'अहद को या'नी उन सब बातों को जिनका हुक्म ख़ुदा के बन्दे मूसा ने दिया था मुख़ालिफ़त की, और न उनको सुना न उन पर 'अमल किया।13~हिज़क़ियाह बादशाह के चौदहवें बरस शाह-ए-असूर सनहेरिब ने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों पर चढ़ाई की और उनको ले लिया।14~और शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह ने शाह-ए-असूर को लकीस में कहला भेजा, "मुझ से ख़ता हुई, मेरे पास से लौट जा; जो कुछ तू मेरे सिर करे मैं उसे उठाऊँगा।” इसलिए शाह-ए-असूर ने तीन सौ क़िन्तार चाँदी और तीस क़िन्तार सोना शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के ज़िम्मे लगाया।15~और हिज़क़ियाह ने सारी चाँदी जो ख़ुदावन्द के घर और शाही महल के ख़ज़ानों में मिली उसे दे दी।16उस वक़्त हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द की हैकल के दरवाज़ों का और उन सुतूनों पर का सोना, जिनको शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह ने ख़ुद मंढ़वाया था, उतरवा कर शाह-ए-असूर को दे दिया।17~फिर भी शाह-ए-असूर ने तरतान और रब सारिस और रबशाक़ी को लकीस से बड़े लश्कर के साथ हिज़क़ियाह बादशाह के पास यरुशलीम को भेजा। इसलिए वह चले और यरुशलीम को आए, और जब वहाँ पहुँचे तो जाकर ऊपर के तालाब की नाली के पास, जो धोबियों के मैदान के रास्ते पर है, खड़े हो गए।18~और जब उन्होंने बादशाह को पुकारा, तो इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह जो ~घर का दीवान था और शबनाह मुन्शी और आसफ़ मुहर्रिर का बेटा यूआख़ उनके पास निकल कर आए।19और रबशाक़ी ने उनसे कहा, "तुम हिज़क़ियाह से कहो, कि मलिक-ए-मुअज़्ज़म शाह-ए-असूर यूँ फ़रमाता है, 'तू क्या भरोसा किए बैठा है?20तू कहता तो है, लेकिन ये सिर्फ़ बातें ही बातें हैं कि जंग की मसलहत भी है और हौसला भी। आख़िर किसके भरोसे पर तू ने मुझ से सरकशी की है?21~देख, तुझे इस मसले हुए सरकण्डे के 'असा या'नी मिस्र पर भरोसा है; उस पर अगर कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में गड़ जाएगा और उसे छेद देगा"। शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन उन सब के लिए जो उस पर भरोसा करते हैं, ऐसा ही है।22और अगर तुम मुझ से कहो कि हमारा भरोसा ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा पर है, तो क्या वह वही नहीं है, जिसके ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को हिज़क़ियाह ने दूर करके ~यहूदाह और यरुशलीम से कहा है, कि तुम यरुशलीम में इस मज़बह के आगे सिज्दा किया करो?'23इसलिए अब ज़रा मेरे आक़ा शाह-ए-असूर के साथ शर्त बाँध और मैं तुझे दो हज़ार घोड़े दूँगा, बशर्ते कि तू अपनी तरफ़ से उन पर सवार चढ़ा सके।24भला फिर तू क्यूँकर मेरे आक़ा के अदना मुलाज़िमों में से एक सरदार का भी मुँह फेर सकता है, और रथों और सवारों के लिए मिस्र पर भरोसा रखता है?25~और क्या अब मैंने ख़ुदावन्द के बिना कहे ही इस मक़ाम को ग़ारत करने के लिए इस पर चढ़ाई की है? ख़ुदावन्द ही ने मुझ से कहा कि इस मुल्क पर चढ़ाई कर और इसे बर्बाद कर दे।"26~तब इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह, और शबनाह, और यूआख़ ने रबशाक़ी से अर्ज़ की कि अपने ख़ादिमों से अरामी ज़बान में बात कर, क्यूँकि हम उसे समझते हैं; और उन लोगों के सुनते हुए जो दीवार पर हैं, यहूदियों की ज़बान में बातें न कर।"27~लेकिन रबशाक़ी ने उनसे कहा, "क्या मेरे आक़ा ने मुझे ये बातें कहने को तेरे आक़ा के पास, या तेरे पास भेजा है? क्या उसने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा, जो तुम्हारे साथ अपनी ही नजासत खाने और अपना ही क़ारूरा पीने को दीवार पर बैठे हैं?"28फिर रबशाक़ी खड़ा हो गया और यहूदियों की ज़बान में बलन्द आवाज़ से ये कहने लगा, "मलिक-ए-मुअज़्ज़म शाह-ए- असूर का कलाम सुनो,29बादशाह यूँ फ़रमाता है, 'हिज़क़ियाह तुम को धोका न दे, क्यूँकि वह तुम को उसके हाथ से छुड़ा न सकेगा।30और न हिज़क़ियाह ये कहकर तुम से ख़ुदावन्द पर भरोसा कराए, कि ख़ुदावन्द ज़रूर हमको छुड़ाएगा और ये शहर शाह-ए-असूर के हवाले न होगा।31हिज़क़ियाह की न सुनो। क्यूँकि शाह-ए-असूर यूँ फ़रमाता है कि तुम मुझसे सुलह कर लो और निकलकर मेरे पास आओ, और तुम में से हर एक अपनी ताक और अपने अंजीर के दरख्त़ का फल खाता और अपने हौज़ का पानी पीता रहे।32जब तक मैं आकर तुम को ऐसे मुल्क में न ले जाऊँ, जो तुम्हारे मुल्क की तरह ग़ल्ला और मय का मुल्क, रोटी और ताकिस्तानों का मुल्क, ज़ैतूनी तेल और शहद का मुल्क है; ताकि तुम जीते रहो, और मर न जाओ; इसलिए हिज़क़ियाह की न सुनना, जब वह तुमको ये ता'लीम दे कि ख़ुदावन्द हमको छुड़ाएगा।33~क्या क़ौमों के मा'बूदों में से किसी ने अपने मुल्क को शाह-ए-असूर के हाथ से छुड़ाया है?34हमात और अरफ़ाद के मा'बूद कहाँ हैं? और सिफ़वाइम और हेना' और इवाह के~मा'बूद कहाँ हैं? क्या उन्होंने सामरिया को मेरे हाथ से बचा लिया?35और मुल्कों के तमाम~मा'बूदों में से किस-किस ने अपना मुल्क मेरे हाथ से छुड़ा लिया, जो यहोवाह यरुशलीम को मेरे हाथ से छुड़ा लेगा?"36लेकिन लोग ख़ामोश रहे और उसके जवाब में एक बात भी न कही, क्यूँकि बादशाह का हुक्म यह था कि उसे जवाब न देना।37~तब इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुन्शी, और यूआख़ बिन-आसफ़ मुहर्रिर अपने कपड़े चाक किए हुए हिज़क़ियाह के पास आए और रबशाक़ी की बातें उसे सुनाई।
1जब हिज़क़ियाह बादशाह ने यह सुना, तो अपने कपड़े फाड़े और टाट ओढ़कर ख़ुदावन्द के घर में गया।2और उसने घर के दीवान और इलियाक़ीम और शबनाह मुन्शी और काहिनों के बुज़ुर्गों को टाट उढ़ाकर आमूस के बेटे यसा'याह नबी के पास भेजा।3और उन्होंने उससे कहा, "हिज़क़ियाह यूँ कहता है, कि आज का दिन दुख, और मलामत, और तौहीन का दिन है; क्यूँकि बच्चे पैदा होने पर हैं, लेकिन विलादत की ताक़त नहीं।4शायद ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा रबशाक़ी की सब बातें सुने जिसको उसके आक़ा शाह-ए-असूर ने भेजा है, कि ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करे और जो बातें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने सुनी हैं उन पर वह मलामत करेगा। इसलिए ~तू उस बक़िया के लिए जो मौजूद है दु'आ कर।”5इसलिए हिज़क़ियाह बादशाह के मुलाज़िम यसा'याह के पास आए।6~यसा'याह ने उनसे कहा, "तुम अपने मालिक से यूँ कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू उन बातों से जो तूने सुनी हैं, जिनसे शाह-ए-असूर के मुलाज़िमों ने मेरी बुराई की है, न डर।7देख, मैं उसमें एक रूह डाल दूँगा, और वह एक अफ़वाह सुनकर अपने मुल्क को लौट जाएगा, और मैं उसे उसी के मुल्क में तलवार से मरवा डालूँगा।”8इसलिए रबशाक़ी लौट गया और उसने शाह-ए-असूर को लिबनाह से लड़ते पाया, क्यूँकि उसने सुना था कि वह लकीस से चला गया है;9~और जब उसने कूश के बादशाह तिरहाक़ा के ज़रिए' ये कहते सुना कि "देख, वह तुझसे लड़ने को निकला है, ”तो उसने फिर हिज़क़ियाह के पास क़ासिद रवाना किए और कहा,10कि "शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह से इस तरह कहना, 'तेरा ख़ुदा, जिस पर तेरा भरोसा है, तुझे यह कहकर धोखा न दे कि यरुशलीम शाह-ए-असूर के क़ब्ज़े में नहीं किया जाएगा।11देख, तूने सुना है कि असूर के बादशाहों ने तमाम मुमालिक को बिल्कुल ग़ारत करके उनका क्या हाल बनाया है; इसलिए क्या तू बचा रहेगा?12~क्या उन क़ौमों के~मा'बूदों ने उनको, या'नी जौज़ान और हारान और रसफ़ और बनी-'अदन जो तिल्लसार में थे, जिनको हमारे बाप-दादा ने बर्बाद किया, छुड़ाया?13हमात का बादशाह और अरफ़ाद का बादशाह, और शहर सिफ़वाइम और हेना' और इवाह का बादशाह कहाँ है?"14हिज़क़ियाह ने क़ासिदों के हाथ से ख़त लिया और उसे पढ़ा, और हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द के घर में जाकर उसे ख़ुदावन्द के सामने ~फैला दिया।15~और हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द के सामने इस तरह दु'आ की,"ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा, करूबियों के ऊपर बैठने वाले! तू ही अकेला ज़मीन की सब सल्तनतों का ख़ुदा है। तू ने ही आसमान और ज़मीन को पैदा किया।16~ऐ ख़ुदावन्द, कान लगा और सुन! ऐ ख़ुदावन्द, अपनी आँखें खोल और देख; और सनहेरिब की बातों को, जिनसे ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करने के लिए उसने इस आदमी को भेजा है, सुन ले।17~ऐ ख़ुदावन्द, असूर के बादशाहों ने दर हक़ीक़त क़ौमों को उनके मुल्कों समेत तबाह किया:18और उनके~मा'बूदों~को आग में डाला क्यूँकि वह ख़ुदा न थे, बल्कि आदमियों की दस्तकारी, या'नी लकड़ी और पत्थर थे; इसलिए उन्होंने उनको बर्बाद किया है।19इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, कि तू हमको उसके हाथ से बचा ले, ताकि ज़मीन की सब सल्तनतें जान लें कि तू ही अकेला ख़ुदावन्द ख़ुदा है।"20तब यसा'याह-बिन-आमूस ने हिज़क़ियाह को कहला भेजा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है : चूँकि तू ने शाह-ए-असूर सनहेरिब के ख़िलाफ़ मुझसे दू'आ की है, मैंने तेरी सुन ली|21~इसलिए ख़ुदावन्द ने उसके हक़ में यूँ फ़रमाया कि कुँवारी दुख़्तरें सिय्यून ने तुझे हक़ीर जाना और तेरा मज़ाक़ उड़ाया |22यरुशलीम की बेटी ने तुझ पर सर हिलाया है, "तूने किसकी तौहीन-ओ-बुराई की है? तूने किसके ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बलन्द की, और अपनी आँखें ऊपर उठाई? इस्राईल के क़ुद्दूस के ख़िलाफ़ !23~तूने अपने क़ासिदों के ज़रिए' से ख़ुदावन्द की तौहीन की, और कहा, कि मैं बहुत से रथों को साथ लेकर पहाड़ों की चोटियों पर, बल्कि लुबनान के वस्ती हिस्सों तक चढ़आया हूँ; और मैं उसके ऊँचे-ऊँचे देवदारों और अच्छे ~से अच्छे सनोबर के दरख़्तों को काट डालूँगा; और मैं उसके दूर से दूर मक़ाम में, जहाँ उसकी बेशक़ीमती ज़मीन का जंगल है घुसा चला जाऊँगा।24~मैंने जगह-जगह का पानी खोद-खोद कर पिया है और मैं अपने पाँव के तलवे से मिस्र की सब नदियाँ सुखा डालूँगा।25~"क्या तू ने नहीं सुना कि मुझे यह किए हुए मुद्दत हुई और मैने इसे गुज़रे दिनों में ठहरा दिया था? अब मैने उसको पूरा किया है कि तू फ़सीलदार शहरों को उजाड़ कर खंडर बना देने के लिए खड़ा हो।26इसी वजह से उनके बाशिन्दे कमज़ोर हुए और वह घबरा गए, और शर्मिन्दा हुए वह मैदान की घास और हरी पौद और छतों पर की घास, और उस अनाज की तरह हो गए, जो बढ़ने से पहले ~सूख जाए।27~"लेकिन मैं तेरी मजलिस और आमद-ओ-रफ़्त और तेरा मुझ पर झुंझलाना मैं जानता हूँ।28~तेरे मुझ पर झंझलाने की वजह से, और इसलिए कि तेरा घमण्ड मेरे कानों तक पहुँचा है, मैं अपनी नकेल तेरी नाक में, और अपनी लगाम तेरे मुँह में डालूँगा; और तू जिस रास्ते से आया है, मैं तुझे उसी रास्ते से वापस लौटा दूँगा।29"और तेरे लिए ये निशान होगा कि तुम इस साल वह चीज़ें जो ~ख़ुद से~उगती हैं, और दूसरे साल वह~चीज़ें~जो उनसे पैदा हों खाओगे; और तीसरे साल तुम बोना और काटना, और बाग़ लगाकर उनका फल खाना।30~और वह ~जो यहूदाह के घराने से बचा रहा है फिर नीचे की तरफ़ जड़ पकड़ेगा और ऊपर कि तरफ़ फल लाएगा।31क्यूँकि एक बक़िया यरुशलीम से, और वह जो बच रहे हैं कोह-ए-सिय्यून से निकलेंगे। ख़ुदावन्द की ग़य्यूरी ये कर दिखाएगी।32"इसलिए ख़ुदावन्द शाह-ए-असूर के हक़ में यूँ फ़रमाता है कि वह इस शहर में आने, या यहाँ तीर चलाने न पाएगा; वह न तो सिपर लेकर उसके सामने आने, और न उसके मुक़ाबिल दमदमा बाँधने पाएगा।33~बल्कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि जिस रास्ते से वह आया, उसी रास्ते से लौट जाएगा; और इस शहर में आने न पाएगा।34क्यूँकि मैं अपनी ख़ातिर और अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर इस शहर की हिमायत करूँगा ताकि इसे बचा लें।"35~इसलिए उसी रात को ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने निकल कर असूर की लश्करगाह में एक लाख पचासी हज़ार आदमी मार डाले, और सुबह को जब लोग सवेरे उठे तो देखा, कि वह सब मरे पड़े हैं।36तब शाह-ए-असूर सनहेरिब वहाँ से चला गया और लौटकर नीनवा में रहने लगा।37और जब वह अपने मा'बूद निसरूक के बुतख़ाने में 'इबादत कर रहा था, तो अदरम्मलिक और शराज़र ने उसे तलवार से क़त्ल किया, और अरारात की सरज़मीन को भाग गए। और उसका बेटा असर हद्दून ~उसकी जगह बादशाह हुआ।
1उन ही दिनों में हिज़क़ियाह ऐसा बीमार पड़ा कि मरने के क़रीब हो ~गया तब यशायाह नबी आमूस के बेटे ने उसके पास आकर उस से कहा ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि तू अपने घर का इन्तज़ाम कर दे; क्यूँकि तू मर जाएगा और बचने का नहीं।"2तब उसने अपना चेहरा दीवार की तरफ़ करके ख़ुदावन्द से यह दु'आ की,3"ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मित्रत करता हूँ, याद फ़रमा कि मैं तेरे सामने ~सच्चाई और पूरे दिल से चलता रहा हूँ, और जो तेरी नज़र में भला है वही किया है।” और हिज़क़ियाह बहुत रोया।4और ऐसा हुआ कि यसा'याह निकल कर शहर के बीच के हिस्से तक पहुँचा भी न था कि ख़ुदावन्द का कलाम उस पर नाज़िल हुआ :5"लौट, और मेरी क़ौम के पेशवा हिज़क़ियाह से कह, कि ख़ुदावन्द तेरे बाप दाऊद का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: मैंने तेरी दु'आ सुनी, और मैंने तेरे आँसू देखे। देख, मैं तुझे शिफ़ा दूँगा, और तीसरे दिन तू ख़ुदावन्द के घर में जाएगा।6और मैं तेरी 'उम्र पन्द्रह साल और बढ़ा दूँगा, और मैं तुझ को और इस शहर को शाह-ए-असूर के हाथ से बचा लूँगा, और मैं अपनी ख़ातिर और अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, इस शहर की हिमायत करूँगा।”7~और यसा'याह ने कहा, "अंजीरों की टिकिया लो।" इसलिए वह ~उन्होंने उसे लेकर फोड़े पर बाँधा, तब वह ~अच्छा हो गया।8हिज़क़ियाह ने यसा'याह से पूछा, "इसका क्या निशान होगा कि ख़ुदावन्द मुझे सेहत बख़्शेगा, और मैं तीसरे दिन ख़ुदावन्द के घर में जाऊँगा?"9यसा'याह ने जवाब दिया, "इस बात का, कि ख़ुदावन्द ने जिस काम को कहा है उसे वह करेगा, ख़ुदावन्द की तरफ़ से तेरे लिए निशान ये होगा कि साया या दस दर्जे आगे को जाए, या दस दर्जे पीछे की लौटे।”10~और हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, "ये तो छोटी बात है कि साया दस दर्जे आगे की जाए, इसलिए यूँ नहीं बल्कि साया दस दर्जे पीछे को लौटे।"11~तब यसा'याह नबी ने ख़ुदावन्द से दु'आ की; इसलिए उसने साये को आख़ज़ की धूप घड़ी में दस दर्जे, या'नी जितना वह ढल चुका था उतना ही पीछे को लौटा दिया।12उस वक़्त शाह-ए-बाबुल बरूदक बलादान-बिन-बलादान ने हिज़क़ियाह के पास नामा और तहाइफ़ भेजे; क्यूँकि उसने सुना था कि हिज़क़ियाह बीमार हो गया था।13इसलिए हिज़क़ियाह ने उनकी बातें सुनी, और उसने अपनी बेशबहा चीज़ों का सारा घर, और चाँदी और सोना ~अपना सिलाहख़ाना और जो कुछ उसके ख़ज़ानों में मौजूद था उनको दिखाया; उसके घर में और उसकी सारी ममलुकत में ऐसी कोई चीज़ न थी जो हिज़क़ियाह ने उनको न दिखाई।14~तब यसा'याह नबी ने हिज़क़ियाह बादशाह के पास आकर उसे कहा, "ये लोग क्या कहते थे? और ये तेरे पास कहाँ से आए?" हिज़क़ियाह ने कहा, "ये दूर मुल्क से, या'नी बाबुल से आए हैं।"15~फिर उसने पूछा, "उन्होंने तेरे घर में क्या देखा?" ~हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, "उन्होंने सब कुछ जो मेरे घर में है देखा; मेरे ख़ज़ानों में ऐसी कोई चीज़ नहीं जो मैंने उनको दिखाई न हो।"16~तब यसा'याह ने हिज़क़ियाह से कहा, "ख़ुदावन्द का कलाम सुन ले :17देख, वह दिन आते हैं कि सब कुछ जो तेरे घर में है, और जो कुछ तेरे बाप-दादा ने आज के दिन तक जमा' करके रखा है, बाबुल को ले जाएँगे; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कुछ भी बाक़ी न रहेगा।18और वह तेरे बेटों में से जो तुझसे पैदा होंगे, और जिनका बाप तू ही होगा ले जाएँगे, और वह बाबुल के बादशाह के महल में ख़्वाजासरा होंगे।"19~हिज़क़ियाह ने यसा'याह से कहा, "ख़ुदावन्द का कलाम जो तू ने कहा है, भला है।” और उसने ये भी कहा, 'भला ही होगा, अगर मेरे दिन ~में अमन ~और अमान रहे।20हिज़क़ियाह के बाक़ी काम और उसकी सारी क़ुव्वत, और क्यूँकर उसने तालाब और नाली बनाकर शहर में पानी पहुँचाया; इसलिए क्या वह शाहान-ए-यहूदाह की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?21और हिज़क़ियाह अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उसका बेटा मनस्सी उसकी जगह बादशाह हुआ।
1जब मनस्सी सल्तनत करने लगा तो बारह बरस का था, उसने पचपन बरस यरुशलीम में सल्तनत की, और उसकी माँ का नाम हिफ़सीबाह था।2उसने उन क़ौमों के नफ़रती कामों की तरह जिनको ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल के आगे से दफ़ा' किया, ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।3~क्यूँकि उसने उन ऊँचे मक़ामों को जिनको उसके बाप हिज़क़ियाह ने ढाया था फिर बनाया; और बा'ल के लिए-मज़बह बनाए। और यसीरत बनाई जैसे शाह-ए-इस्राईल अख़ीअब ने किया था; और आसमान की सारी फ़ौज को सिज्दा करता और उनकी 'इबादत ~करता था।4और उसने ख़ुदावन्द की हैकल में, जिसके ज़रिए' ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, "मैं यरुशलीम में अपना नाम रख्खूँगा।"~मज़बह बनाए।5और उसने आसमान की सारी फ़ौज के लिए ख़ुदावन्द की हैकल के दोनों सहनों में मज़बह बनाए।6~और उसने अपने बेटे को आग में चलाया, और वह ~शगून निकालता और अफ़सूँगरी करता, और जिन्नात के प्यारों और जादूगरों से त'अल्लुक़ रखता था। उसने ख़ुदावन्द के आगे उसको ग़ुस्सा दिलाने के लिए बड़ी शरारत की।7और उसने यसीरत की खोदी हुई मूरत को, जिसे उसने बनाया था, उस घर में खड़ा किया जिसके ज़रिए' ख़ुदावन्द ने दाऊद और उसके बेटे सुलेमान से कहा था कि "इसी घर में और यरुशलीम में जिसे मैंने बनी-इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन लिया है, मैं अपना नाम हमेशा ~तक रख्खूँगा8और मैं ऐसा न करूँगा कि बनी-इस्राईल के पाँव उस मुल्क से बाहर आवारा फिरें, जिसे मैंने उनके बाप-दादा को दिया, बशर्ते कि वह ~उन सब हुक्म के मुताबिक़ और उस शरी'अत के मुताबिक़, जिसका हुक्म मेरे बन्दे मूसा ने उनको दिया, 'अमल करने की एहतियात रख्खें।"9लेकिन ~उन्होंने न माना, और मनस्सी ने उनको बहकाया कि वह उन क़ौमों के बारे में, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के आगे से बर्बाद ~किया,ज़्यादा बदी करें ।10इसलिए ख़ुदावन्द ने अपने बन्दों, नबियों के ज़रिए' फ़रमाया,11~"चूँकि बादशाह यहूदाह मनस्सी ने नफ़रती काम किए, और अमोरियों की निस्बत जो उससे पहले ~हुए ज़्यादा बुराई की, और यहूदाह से भी अपने बुतों के ज़रीए' से गुनाह कराया;12इसलिए ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है : देखो, मैं यरुशलीम और यहूदाह पर ऐसी बला लाने को ~हूँ कि जो कोई उसका हाल सुने, उसके कान झन्ना उठेंगे।13और मैं यरुशलीम पर सामरिया की रस्सी, और अख़ीअब के घराने का साहुल डालूँगा; और मैं यरुशलीम को ऐसा साफ़ करूँगा जैसे आदमी थाली को साफ़ करता है और उसे साफ़कर के उल्टी रख देता है।14और मैं अपनी मीरास के बाक़ी लोगों को तर्क करके, उनको उनके दुश्मनों के हवाले करूँगा; और वह अपने सब दुश्मनों के लिए शिकार और लूट ठहरेंगे।15~क्यूँकि जब से उनके बाप-दादा मिस्र ~से निकले, उस दिन से आज तक वह मेरे आगे बुराई ~करते और मुझे ग़ुस्सा दिलाते रहे।"16~'अलावा इसके मनस्सी ने उस गुनाह के 'अलावा ~कि उसने यहूदाह को गुमराह करके ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह कराया, बेगुनाहों का ख़ून भी इस क़दर किया कि यरुशलीम इस सिरे से उस सिरे तक भर गया।17~और मनस्सी के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, और वह गुनाह जो उससे सरज़द हुआ; इसलिए क्या वह बनी यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?18~और मनस्सी अपने बाप दादा के साथ सो गया, और अपने घर के बाग में जो 'उज़्ज़ा का बाग़ है दफ़न हुआ; और उसका बेटा अमून उसकी जगह बादशाह हुआ।19और अमून जब सल्तनत करने लगा तो बाईस बरस का था। उसने यरुशलीम में दो बरस सल्तनत की; उसकी माँ का नाम मुसल्लिमत था, जो हरूस युतबही की बेटी थी।20~और उसने ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया जैसे उसके बाप मनस्सी ने की थी।21~और वह अपने बाप के सब रास्तों पर चला, और उन बुतों की 'इबादत ~की जिनकी 'इबादत ~उसके बाप ने की थी, और उनको सिज्दा किया।22और उसने ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा को छोड़ दिया ~, और ख़ुदावन्द की राह पर न चला।23और अमून के ख़ादिमों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की, और बादशाह को उसी के महल में जान से मार दिया।24लेकिन उस मुल्क के लोगों ने उन सबको, जिन्होंने अमून बादशाह के ख़िलाफ़ साज़िश की थी क़त्ल किया। और मुल्क के लोगों ने उसके बेटे यूसियाह को उसकी जगह बादशाह बनाया।25~अमून के बाक़ी काम जो उसने किए, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?26~और वह अपनी क़ब्र में 'उज़्ज़ा के बाग़ में दफ़न हुआ, और उसका बेटा यूसियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
1जब यूसियाह सल्तनत करने लगा, तो आठ बरस का था, उसने इकतीस साल ~यरुशलीम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम जदीदाह था, जो बुसकती 'अदायाह की बेटी थी।2उसने वह काम किए जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था, और अपने बाप दाऊद की सब राहों पर चला और दहने या बाएँ हाथ को न मुड़ा।3और यूसियाह बादशाह के अठारहवें बरस ऐसा हुआ कि बादशाह ने साफ़न-बिन असलियाह-बिन-मसुल्लाम मुन्शी को ख़ुदावन्द के घर भेजा और कहा,4"तू ख़िलक़ियाह सरदार काहिन के पास जा, ताकि वह उस नक़दी को जो ख़ुदावन्द के घर में लाई जाती है, और जिसे दरबानों ने लोगों से लेकर जमा' किया है गिने,5और वह उसे उन कारगुज़ारों को सौंप दे जो ख़ुदावन्द के घर की निगरानी रखते हैं; और ये लोग उसे उन कारीगरों को दें जो ख़ुदावन्द के घर में काम करते हैं, ताकि हैकल की दरारों की मरम्मत हो;6या'नी बढ़इयों और बादशाहों और मिस्त्रियों को दें, और हैकल की मरम्मत के लिए लकड़ी और तराशे हुए पत्थरों के ख़रीदने पर ख़र्च करें।7लेकिन उनसे उस नक़दी का जो उनके हाथ में दी जाती थी, कोई हिसाब नहीं लिया जाता था, इसलिए कि वह अमानत दारी से काम करते थे।8और सरदार काहिन ख़िलक़ियाह ने साफ़न मुन्शी से कहा, "मुझे ख़ुदावन्द के घर में तौरेत की किताब मिली है।" और ख़िलक़ियाह ने किताब साफ़न को दी और उसने उसको ~पढ़ा।9और साफ़न मुन्शी बादशाह के पास आया और बादशाह को ख़बर दी कि तेरे ख़ादिमों ने वह नक़दी जो हैकल में मिली, लेकर उन कारगुज़ारों के हाथ में सुपुर्द की जो ख़ुदावन्द के घर की निगरानी रखते हैं।"10और साफ़न मुन्शी ने बादशाह को ये भी बताया, "ख़िलक़ियाह काहिन ने एक किताब मेरे हवाले की है।"और साफ़न ने उसे बादशाह के सामने पढ़ा।11~जब बादशाह ने तौरेत की किताब की बातें सुनीं, तो अपने कपड़े फाड़े;12और बादशाह ने ख़िलक़ियाह काहिन, और साफ़न के बेटे अख़ीक़ाम, और मीकायाह के 'अकबूर और साफ़न मुन्शी असायाह को जो बादशाह का मुलाज़िम था ये हुक्म दिया,13~कि "ये किताब जो मिली है, इसकी बातों के बारे में तुम जाकर मेरी और ~सब लोगों और सारे यहूदाह की तरफ़ से ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त करो; क्यूँकि ख़ुदावन्द का बड़ा ग़ज़ब हम पर इसी वजह से भड़का है कि हमारे बाप-दादा ने इस किताब की बातों को न सुना, कि जो कुछ उसमें हमारे बारे में लिखा है उसके मुताबिक़ 'अमल करते।"14तब ख़िलक़ियाह, काहिन और' अखीक़ाम और 'अकबोर और साफन ~असायाह ख़ुल्दा नबिया के पास गए, जो तोशाख़ाने के दरोग़ा सलूम बिन तिक़वा बिन ख़रख़स की बीवी थी, (ये यरुशलीम में मिशना नामी महल्ले में रहती थी) इसलिए उन्होंने उससे गुफ़्तगू की।15~उसने उनसे कहा, "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, 'तुम उस शख़्स से जिसने तुम को मेरे पास भेजा है कहना,16कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मैं इस किताब की उन सब बातों के मुताबिक़, जिनको शाह-ए-यहूदाह ने पढ़ा है, इस मक़ाम पर और इसके सब बाशिन्दों पर बला नाज़िल करूँगा।17~क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और गै़र-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाया, ताकि अपने हाथों के सब कामों से मुझे ग़ुस्सा दिलाएँ, इसलिए मेरा क़हर इस मक़ाम पर भड़केगा और ठण्डा न होगा।18~लेकिन शाह-ए-यहूदाह से जिसने तुम को ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त करने को भेजा है, यूँ कहना कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि जो बातें तू ने सुनीं हैं उनके बारे में यह हैं कि;19चूँकि तेरा दिल नर्म है, और जब तू ने वह बात सुनी जो मैंने इस मक़ाम और इसके बशिन्दों के हक़ में कही कि वह तबाह हो जाएँगे और ला'नती भी ठहरेंगे, तो तू ने ख़ुदावन्द के आगे 'आजिज़ी की और अपने कपड़े फाड़े और मेरे आगे रोया; इसलिए मैंने भी तेरी सुन ली, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।20इसलिए देख मैं तुझे तेरे बाप-दादा के साथ मिला दूँगा, और तू अपनी क़ब्र में सलामती से उतार दिया जाएगा, और उन सब आफ़तों को जो मैं इस मक़ाम पर नाज़िल करूँगा, तेरी ऑखें नहीं देखेंगी।' " इसलिए वह ~यह ख़बर बादशाह के पास लाए।
1~और बादशाह ने लोग भेजे, और उन्होंने यहूदाह और यरुशलीम के सब बुज़ुर्गों को उसके पास जमा' किया।2और बादशाह ख़ुदावन्द के घर को गया, और उसके साथ यहूदाह के सब लोग, और यरुशलीम के सब बाशिन्दे, और काहिन, और नबी, और सब छोटे बड़े आदमी थे, और उसने जो 'अहद की किताब ख़ुदावन्द के घर में मिली थी, उसकी सब बातें उनको पढ़ सुनाई।3~और बादशाह सुतून के बराबर खड़ा हुआ, और उसने ख़ुदावन्द की पैरवी करने और उसके हुक्मों और शहादतों और तौर तरीक़े को अपने सारे दिल और सारी जान से मानने, और इस 'अहद की बातों पर जो उस किताब में लिखी हैं 'अमल करने के लिए ख़ुदावन्द के सामने 'अहद बाँधा, और सब लोग उस 'अहद पर क़ायम हुए।4फिर बादशाह ने सरदार काहिन ख़िलक़ियाह को, और उन काहिनों को जो दूसरे दर्जे के थे, और दरबानों को हुक्म किया कि उन सब बर्तनों को जो बा'ल और यसीरत और आसमान की सारी फ़ौज के लिए बनाए गए थे, ख़ुदावन्द की हैकल से बाहर निकालें, और उसने यरुशलीम के बाहर क़िद्रोन ~के खेतों में उनको जला दिया और उनकी राख बैतएल पहुँचाई।5और उसने उन बुत परस्त काहिनों को, जिनको शाहान-ए-यहूदाह ने यहूदाह के शहरों के ऊँचे मक़ामों और यरुशलीम के आस-पास के मक़ामों में ख़ुशबू जलाने को मुक़र्रर किया था, और उनको भी जो बा'ल और चाँद और सूरज और सय्यारे और ~आसमान के सारे लश्कर के लिए ख़ुशबू जलाते थे, मौक़ूफ़ किया।6और वह यसीरत को ख़ुदावन्द के घर से यरुशलीम के बाहर क़िद्रोन के नाले पर ले गया, और उसे क़िद्रोन के नाले पर जला दिया और उसे कूट कूटकर ख़ाक बना दिया और उसे 'आम लोगों की क़ब्रों पर फेंक दिया।7उसने लूतियों के मकानों को जो ख़ुदावन्द के घर में थे, जिनमें 'औरतें यसीरत के लिए पर्दे बुना करती थीं, ढा दिया।8और उसने यहूदाह के शहरों से सब काहिनों को लाकर, जिबा' से बैरसबा' तक उन सब ऊँचे मक़ामों में जहाँ काहिनों ने ख़ुशबू जलाया था, नजासत डलवाई; और उसने फाटकों के उन ऊँचे मक़ामों को जो शहर के नाज़िम यशू'आ के फाटक के मदखल, या'नी शहर के फाटक के बाएँ हाथ को थे, गिरा दिया।9तोभी ऊँचे मक़ामों के काहिन यरुशलीम में ख़ुदावन्द के मज़बह के पास न आए, लेकिन वह अपने भाइयों के साथ बेख़मीरी रोटी खा लेते थे।10और उसने तूफ़त में जो बनी-हिन्नूम की वादी में है, नजासत फिंकवाई ताकि कोई शख़्स मोलक के लिए अपने बेटे या बेटी को आग में न जला सके।11~और उसने उन घोड़ों को दूर कर दिया जिनको यहूदाह के बादशाहों ने सूरज के लिए मख़्सूस करके ख़ुदावन्द के घर के आसताने पर, नातन मलिक ख़्वाजासरा की कोठरी के बराबर रख्खा था जो हैकल की हद के अन्दर थी, और सूरज के रथों को आग से जला दिया।12और उन मज़बहों को जो आख़ज़ के बालाख़ाने की छत पर थे, जिनको शाहान-ए-यहूदाह ने बनाया था और उन मज़बहों को जिनको मनस्सी ने ख़ुदावन्द के घर के दोनों सहनों में बनाया था, बादशाह ने ढा दिया और वहाँ से उनको चूर-चूर करके उनकी ख़ाक को क़िद्रोन के नाले में फिकवा दिया।13और बादशाह ने उन ऊँचे मक़ामों पर नजासत डलवाई जो यरूशलनीम के मुक़ाबिल कोह-ए-आलायश की दहनी तरफ़ थे, जिनको इस्राईल के बादशाह सुलेमान ने सैदानियों की ~नफ़रती 'अस्तारात और मोआबियों, के नफ़रती कमूस ~और बनी 'अम्मोंन के नफरती ~मिल्कोम के लिए बनाया था।14और उसने सुतूनों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और यसीरतों को काट डाला, और उनकी जगह में मुर्दों की हड्डियाँ भर दीं।15~फिर बैतएल का वह मज़बह और वह ऊँचा मक़ाम जिसे नबात के बेटे युरब'आम ने बनाया था, जिसने इस्राईल से गुनाह कराया, इसलिए इस मज़बह और ऊँचे मक़ाम दोनों को उसने ढा दिया, और ऊँचे मक़ाम को जला दिया और उसे कूट-कूटकर ख़ाक कर दिया, और यसीरत को जला दिया।16और जब यूसियाह मुड़ा तो उसने उन क़ब्रों को देखा जो वहाँ उस पहाड़ पर थीं, इसलिए उसने लोग भेज कर उन क़ब्रों में से हड्डियाँ निकलवाई, और उनको उस मज़बह पर जलाकर उसे नापाक किया। ये ख़ुदावन्द के सुख़न के मुताबिक़ हुआ, जिसे उस मर्द-ए-ख़ुदा ने जिसने इन बातों की ख़बर दी थी सुनाया था।17फिर उसने पूछा, ‘ये कैसी यादगार है जिसे मैं देखता हूँ?" शहर के लोगों ने उसे बताया, "ये उस मर्द-ए-ख़ुदा की क़ब्र है, जिसने यहूदाह से आकर इन कामों की जो तू ने बैतएल के मज़बह से किए, ख़बर दी।”18~तब उसने कहा, "उसे रहने दो, कोई उसकी हड्डियों को न सरकाए।” इसलिए उन्होंने उसकी हडिडयाँ उस नबी की हड्डियों के साथ जो सामरिया से आया था रहने दीं।19और यूसियाह ने उन ऊँचे मक़ामों के सब घरों को भी जो सामरिया के शहरों में थे, जिनको इस्राईल के बादशाहों ने ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाने को बनाया था ढाया, और जैसा उसने बैतएल में किया था वैसा ही उनसे भी किया।20और उसने ऊँचे मक़ामों के सब काहिनों को जो वहाँ थे, उन मज़बहों पर क़त्ल किया और आदमियों की हड्डियाँ उन पर जलाई; फिर वह यरुशलीम को लौट आया।21और बादशाह ने सब लोगों को ये हुक्म दिया, कि "ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए फ़सह मनाओ, जैसा 'अहद की इस किताब में लिखा है।”22और यक़ीनन क़ाजियों के ज़माने से जो इस्राईल की 'अदालत करते थे, और इस्राईल के बादशाहों और यहूदाह के बादशाहों के कुल दिनों में ऐसी 'ईद-ए-फ़सह कभी नहीं हुई थी।23यूसियाह बादशाह के अठारहवें बरस ये फ़सह यरुशलीम में ख़ुदावन्द के लिए मनाई गई।24~इसके सिवा ~यूसियाह ने जिन्नात के यारों और जादूगरों और मूरतों और बुतों, और सब नफ़रती चीज़ों को जो मुल्क-ए- यहूदाह और यरुशलीम में नज़र आई दूर कर दिया, ताकि वह ~शरी'अत की उन बातों को पूरा करे जो उस किताब में लिखी थी, जो ख़िलक़ियाह काहिन को ख़ुदावन्द के घर में मिली थी।25~उससे पहले कोई बादशाह उसकी तरह नहीं हुआ था, जो अपने सारे दिल और अपनी सारी जान और अपने सारे ज़ोर से मूसा की सारी शरी'अत के मुताबिक़ ख़ुदावन्द की तरफ़ रुजू' लाया हो; और न उसके बा'द कोई उसकी तरह खड़ा हुआ।26बावजूद इसके मनस्सी की सब बदकारियों की वजह से, जिनसे उसने ख़ुदावन्द को ग़ुस्सा दिलाया था, ख़ुदावन्द अपने सख़्त-ओ-शदीद क़हर से, जिससे उसका ग़ज़ब यहूदाह पर भड़का था, बाज़ न आया।27और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, कि "मैं यहूदाह को भी अपनी आँखों के सामने से दूर करूँगा, जैसे मैंने इस्राईल को दूर किया; और मैं इस शहर को जिसे मैंने चुना या'नी यरुशलीम को, और इस घर को जिसके ज़रिए' मैंने कहा था की मेरा नाम वहाँ होगा रद्द कर दूँगा28और यूसियाह के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?29उसी के अय्याम में शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन निकोह शाह-ए-असूर पर चढ़ाई करने के लिए दरिया-ए-फ़ुरात को गया था; और यूसियाह बादशाह उसका सामना करने को निकला, इसलिए उसने उसे देखते ही मजिद्दो में क़त्ल कर दिया।30~और उसके मुलाज़िम उसको एक रथ में मजिद्दो से मरा हुआ ले गए, और उसे यरुशलीम में लाकर उसी की क़ब्र में दफ़्न किया। और उस मुल्क के लोगों ने यूसियाह के बेटे यहूआख़ज़ को लेकर उसे मसह किया, और उसके बाप की जगह उसे बादशाह बनाया।31और ~यहूआख़ज़ जब सल्तनत करने लगा तो तेईस साल का था, उसने यरुशलीम में तीन महीने सल्तनत की। उसकी माँ का नाम हमूतल था, जो लिबनाही यरमियाह की बेटी थी।32~और जो-जो उसके बाप-दादा ने किया था उसके मुताबिक़ इसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।33इसलिए फ़िर'औन निकोह ने उसे रिबला में, जो मुल्क-ए-हमात में है, क़ैद कर दिया ताकि वह यरुशलीम में सल्तनत न करने पाए; और उस मुल्क पर सौ क़िन्तार चाँदी और एक~क़िन्तार~सोना ख़िराज मुक़र्रर किया।34और फ़िर'औन निकोह ने यूसियाह के बेटे इलियाक़ीम को उसके बाप यूसियाह की जगह बादशाह बनाया, और उसका नाम बदलकर यहूयक़ीम रखा, लेकिन यहूआख़ज़ को ले गया, इसलिए वह मिस्र में आकर वहाँ मर गया।35यहूयक़ीम ने वह चाँदी और सोना फ़िर'औन को पहुँचाया, पर इस नक़दी को फ़िर'औन के हुक्म के मुताबिक़ देने के लिए उसने ममलुकत पर ख़िराज मुक़र्रर किया; या'नी उसने उस मुल्क के लोगों से हर शख़्स के लगान के मुताबिक़ चाँदी और सोना लिया ताकि फ़िर'औन निकोह को दे।36यहूयक़ीम जब सल्तनत करने लगा, तो पच्चीस बरस का था, उसने यरुशलीम में ग्यारह बरस सल्तनत की। उसकी माँ का नाम ज़बूदा था, जो रूमाह के फ़िदायाह की बेटी थी।37~और जो-जो उसके बाप-दादा ने किया था, उसी के मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में बुराई की।
1उसी के दिनों में शाह-ए-बाबुल नबूकद नज़र ने चढ़ाई की और यहूयक़ीम तीन बरस तक उसका ख़ादिम रहा तब वह फिर कर उससे मुड़ गया।2और ख़ुदावन्द ने कसदियों के दल, और अराम के दल, और मोआब के दल, और बनी 'अम्मोन के दल उस पर भेजे, और यहूदाह पर भी भेजे ताकि उसे जैसा ख़ुदावन्द ने अपने बन्दों नबियों के ज़रिए' फ़रमाया था हलाक कर दे।3यक़ीनन ख़ुदावन्द ही के हुक्म से यहूदाह पर यह सब कुछ हुआ, ताकि मनस्सी के सब गुनाहों के ज़रिए' जो उसने किए, उनको अपनी नज़र से दूर करे4और उन सब बेगुनाहों के ख़ून के ज़रिए' भी जिसे मनस्सी ने बहाया; क्यूँकि उसने यरुशलीम को बेगुनाहों के ख़ून से भर दिया था और ख़ुदावन्द ने मु'आफ़ करना न चाहा।5यहूयक़ीम के बाक़ी काम और सब कुछ जो उसने किया, इसलिए क्या वह यहूदाह के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखा नहीं?6और यहूयक़ीम अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उसका बेटा~यहूयाकीन~उसकी जगह बादशाह हुआ।7और शाह-ए-मिस्र फिर कभी अपने मुल्क से बाहर न गया; क्यूँकि शाह-ए-बाबुल ने मिस्र के नाले से दरिया-ए-फु़रात तक सब कुछ जो शाह-ए- मिस्र का था ले लिया था।8यहूयाकीन~जब सल्तनत करने लगा तो अठारह बरस का था, और यरुशलीम में उसने तीन महीने सल्तनत की। उसकी माँ का नाम नहुशता था, जो यरुशलीमी इलनातन की बेटी थी।9और जो-जो उसके बाप ने किया था उसके मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।10उस वक़्त शाह-ए- बाबुल नबूकदनज़र के ख़ादिमों ने यरुशलीम पर चढ़ाई की और शहर को घेर ~लिया।11~और शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र भी, जब उसके ख़ादिमों ने उस शहर को घेर रख्खा था, वहाँ आया।12तब शाह-ए-यहूदाह यहूयाकीन अपनी माँ और और अपने मुलाज़िमों और सरदारों और 'उहदादारों साथ निकल कर शाह-ए-बाबुल के पास गया, और शाह-ए-बाबुल ने अपनी सल्तनत के आठवें बरस उसे गिरफ़्तार किया।13और वह ख़ुदावन्द के घर के सब ख़ज़ानों और शाही महल के सब ख़ज़ानों को वहाँ से ले गया, और सोने के सब बर्तनों को जिनको शाह-ए-इस्राईल सुलेमान ने ख़ुदावन्द की हैकल में बनाया था, उसने काट कर ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए।14और वह सारे यरुशलीम को और सब सरदारों और सब सूर्माओं को, जो दस हज़ार आदमी थे, और सब कारीगरों और लुहारों को ग़ुलाम करके ले गया; इसलिए वहाँ मुल्क के लोगों में से सिवा कंगालों के और कोई बाक़ी न रहा।15और~यहूयाकीन~को वह बाबुल ले गया, और बादशाह की माँ और बादशाह की बीवियों और उसके 'उहदे दारों और मुल्क के रईसों को वह ग़ुलाम ~करके यरुशलीम से बाबुल को ले गया।16और सब ताक़तवर आदमियों को जो सात हज़ार थे, और कारीगरों और लुहारों को जो एक हज़ार थे, और सब के सब मज़बूत और जंग के लायक़ थे; शाह-ए-बाबुल ग़ुलाम करके बाबुल में ले आया17और शाह-ए-बाबुल ने उसके बाप के भाई मत्तनियाह को उसकी जगह बादशाह बनाया और उसका नाम बदलकर सिदक़ियाह रखा।18~जब सिदक़ियाह सल्तनत करने लगा तो इक्कीस बरस का था, और उसने ग्यारह बरस यरुशलीम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम हमूतल था, जो लिबनाही यर्मियाह की बेटी थी।19और जो-जो यहू यक़ीम ने किया था उसी के मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में गुनाह किया।20क्यूँकि ख़ुदावन्द के ग़ज़ब की वजह से यरुशलीम और यहूदाह की ये नौबत आई, कि आख़िर उसने उनको अपने सामने ~से दूर ही कर दिया; और सिदक़ियाह~शाह-ए-बाबुल से ~फिर ~गया।
1और उसकी सल्तनत के नौवें बरस के दसवें महीने के दसवें दिन, यूँ हुआ कि शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र ने अपनी सारी फ़ौज के साथ यरुशलीम पर चढ़ाई की, और उसके सामने ख़ैमाज़न हुआ, और उन्होंने उसके सामने चारों तरफ़ घेराबन्दी की ।2और सिदक़ियाह बादशाह की सल्तनत के ग्यारहवें बरस तक शहर का मुहासिरा रहा।3चौथे महीने के नौवें दिन से शहर में काल ऐसा सख़्त हो गया, कि मुल्क के लोगों के लिए कुछ खाने को न रहा।4तब शहर पनाह में सुराख़ हो गया, और दोनों दीवारों के बीच ~जो फाटक शाही बाग़ के बराबर था, उससे सब जंगी मर्द रात ही रात भाग गए, (उस वक़्त कसदी शहर को घेरे हुए थे) और बादशाह ने वीराने का रास्ता लिया।5~लेकिन कसदियों की फ़ौज ने बादशाह का पीछा किया और उसे यरीहू के मैदान में जा लिया, और उसका सारा लश्कर उसके पास से तितर बितर हो गया था।6इसलिए वह बादशाह को पकड़ कर रिबला में शाह-ए-बाबुल के पास ले गए, और उन्होंने उस पर फ़तवा दिया।7और उन्होंने सिदक़ियाह के बेटों को उसकी आँखों के सामने ज़बह किया और~सिदक़ियाह की आँखें निकाल डालीं और~उसे ज़ँजीरों से जकड़कर बाबुल को ले गए।8और शाह-ए-बाबुल नबूकद नज़र के 'अहद के उन्नीसवें साल के पाँचवें महीने के सातवें दिन, शाह-ए-बाबुल का एक ख़ादिम नबुज़रादान जो जिलौदारों का सरदार था यरुशलीम में आया।9और उसने ख़ुदावन्द का घर और बादशाह का महल यरुशलीम के सब घर, या'नी हर एक बड़ा घर आग से जला दिया।10और कसदियों के सारे लश्कर ने जो जिलौदारों के सरदार के साथ थे, यरुशलीम की फ़सील को चारों तरफ़ से गिरा दिया।11~और बाक़ी लोगों को जो शहर में रह गए थे, और उनको ~जिन्होंने अपनों को छोड़ कर शाह-ए-बाबुल की पनाह ली थी, और 'अवाम में से जितने बाक़ी रह गए थे, उन सबको नबूज़रादान जिलौदारों का सरदार क़ैद करके ले गया।12पर जिलौदारों के सरदार ने मुल्क के कंगालों को रहने दिया, ताकि खेती और बाग़ों ~की बाग़बानी करें।13और पीतल के उन सुतूनों को जो ख़ुदावन्द के घर में थे, और कुर्सियों को और पीतल के ~बड़े हौज़ को, जो ख़ुदावन्द के घर में था, कसदियों ने तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े किया और उनका पीतल बाबुल को ले गए।14~और तमाम देगें और बेल्चे और गुलगीर और चम्चे, और पीतल के तमाम बर्तन जो वहाँ काम आते थे ले गए।15और अंगीठियाँ और कटोरे, ग़रज़ जो कुछ सोने का था उसके सोने को, और जो कुछ चाँदी का था उसकी चाँदी को, जिलौदारों का सरदार ले गया।16~और दोनों सुतून और वह बड़ा हौज़ और वह कुर्सियाँ, जिनको सुलेमान ने ख़ुदावन्द के घर के लिए बनाया था, इन सब चीज़ों के पीतल का वज़न बेहिसाब था।17~एक सुतून अठारह हाथ ऊँचा था, और उसके ऊपर पीतल का एक ताज था और वह ताज तीन हाथ बलन्द था; उस ताज पर चारों तरफ़ जालियाँ और अनार की कलियाँ, सब पीतल की बनी हुई थीं; और दूसरे सुतून के लवाज़िम भी जाली समेत इन्हीं की तरह थे।18जिलौदारों के सरदार ने सिरायाह सरदार काहिन को और काहिन-ए-सानी सफ़नियाह को और तीनों दरबानों को पकड़ लिया;19और उसने शहर में से एक सरदार को पकड़ लिया जो जंगी मर्दों पर मुक़र्रर था, और जो लोग बादशाह के सामने हाज़िर रहते थे उनमें से पाँच आदमियों को जो शहर में मिले, और लश्कर के बड़े मुहर्रिर को जो अहल-ए-मुल्क की मौजूदात लेता था, और मुल्क के लोगों में से साठ आदमियों को जो शहर में मिले।20इनको जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान पकड़ कर शाह-ए-बाबुल के सामने रिबला में ले गया।21~और शाह-ए-बाबुल ने हमात के 'इलाक़े के रिबला में इनको मारा और क़त्ल किया। इसलिए यहूदाह भी अपने मुल्क से ग़ुलाम होकर चला गया।22जो लोग यहूदाह की सर ज़मीन में रह गए, जिनको नबूकदनज़र शाह-ए-बाबुल ने छोड़ दिया, उन पर उसने जिदलियाह-बिनअख़ीक़ाम-बिन साफ़न को हाकिम मुक़र्रर किया।23जब लश्करों के सब सरदारों और उनकी सिपाह ने, या'नी इस्माईल-बिन-नतनियाह और यूहनान बिन क़रीह और सराया बिन ताख़ूमत नातूफ़ाती और याजनियाह बिन मा'काती ने सुना कि शाह-ए-बाबुल ने जिदलियाह को हाकिम बनाया है, तो वह अपने लोगों समेत मिस्फ़ाह में जिदलियाह के पास आए।24~जिदलियाह ने उनसे और उनकी सिपाह से क़सम खाकर कहा, "कसदियों के मुलाज़िमों से मत डरो; मुल्क में बसे रहो और शाह-ए-बाबुल की ख़िदमत करो और ~तुम्हारी भलाई होगी।"25~मगर सातवें महीने ऐसा हुआ कि इस्माईल-बिन-नतनियाह-बिन-एलीशामा' जो बादशाह की नस्ल से था, अपने साथ दस मर्द लेकर आया और जिदलियाह को ऐसा मारा कि वह मर गया; और उन यहूदियों और कसदियों को भी जो उसके साथ मिस्फ़ाह ~में थे क़त्ल किया।26~तब सब लोग, क्या छोटे क्या बड़े और लोगों के सरदार उठ कर मिस्र को चले गए क्यूँकि वह कसदियों से डरते थे।27और~यहूयाकीन~शाह-ए-यहूदाह की ग़ुलामी के सैंतीसवें साल के बारहवें महीने के सत्ताइसवें दिन ऐसा हुआ, कि शाह-ए-बाबुल अवील मरदूक़ ने अपनी सल्तनत के पहले ही साल~यहूयाकीन~शाह-ए-यहूदाह को क़ैदख़ाने से निकाल कर सरफ़राज़ किया;28और उसके साथ मेहरबानी से बातें कीं, और उसकी कुर्सी उन सब बादशाहों की कुर्सियों से जो उसके साथ बाबुल में थे बलन्द की।29~इसलिए वह अपने क़ैदख़ाने के कपड़े बदलकर 'उम्र भर बराबर उसके सामने खाना खाता रहा;30~और उसको 'उम्र भर बादशाह की तरफ़ से वज़ीफ़े के तौर पर हर रोज़ ख़र्चा मिलता रहा।
1आदम, सेत, उनूस,2किनान, महलीएल, यारिद,3हनूक, मतूसिलह, लमक,4नूह, सिम, हाम, और याफ़त|5बनी याफ़त: जुमर और माजूज और मादी और यावान और तूबल और मसक और तीरास हैं|6और बनी जुमर अश्कनाज और रीफ़त और तजुर्मा है|7और बनी यावान, इलीसा और तरसीस, कित्ती और दूदानी हैं|8बनी हाम: कूश और मिस्र, फ़ूत और कना'न हैं|9बनी कूश: सबा और हवीला और सबता और रा'माह सब्तका हैं और बनी रामाह सबाह और दादान हैं|10कूश से नमरूद पैदा हुआ; ज़मीन पर पहले वही बहादुरी करने लगा|11और मिस्र से लूदी और अनामी और लिहाबी और नफ़तूही,12और फ़तरूसी और कसलूही (जिनसे फ़िलिस्ती निकले), कफ़्तूरी पैदा हुए|13और कना'न से सैदा जो उसका पहलौठा था, और हित्त,14और यबूसी और अमोरी और जिरजाशी,15और हव्वी और 'अर्क़ी और सीनी,16और अरवादी और सिमारी और हिमाती पैदा हुए|17बनी सिम: 'ऐलाम और असूर और अरफ़कसद और लूद और अराम और 'ऊज़ और हूल और जतर और मसक हैं|18और अरफ़कसद से सिलह पैदा हुआ और सिलह से 'इब्र पैदा हुआ|19और इब्र से दो बेटे पहले का नाम फ़लज था क्यूँकि उसके अय्याम में ज़मीन बटी, और उसके भाई का नाम नाम युक़तान था|20और युक़तान से अलमूदाद और सलफ़ और हसर मावत और इराख़,21और हदूराम और ऊज़ाल और दिक़ला,22और 'ऐबाल और अबीमाएल और सबा,23और ओफ़ीर और हवीला और युबाब पैदा हुए; यह सब बनी यूक़तान हैं|24सिम, अरफ़कसद, सिलह,25‘इब्र, फ़लज, र’ऊ,26सरुज, नहूर, तारह,27अब्राम या'नी इब्राहीम|28इब्राहीम के बेटे: इस्हाक़ और इस्मा'ईल थे|29उनकी औलाद यह हैं: इस्मा'ईल का पहलौठा नबायोत उसके बा'द कीदार और अदबिएल और मिबसाम,30मिशमा'अ और दूमा और मसा, हदद और तेमा,31यतूर, नाफ़ीस, क़िदमा; यह बनीइस्मा'ईल हैं|32और इब्राहीम की हरम क़तूरा के बेटे यह हैं: उसके बत्न से ज़िमरान युक़सान और मिदान और मिदियान और इस्बाक़ और सूख़ पैदा हुए और बनी युक़सान: सिबा और ददान हैं|33और बनी मिदियान: 'एफ़ा और 'इफ़्र और हनूक और अबीदा'अ अल्द'आ हैं; यह सब बनी क़तूरा हैं|34और इब्राहीम से इस्हाक़ पैदा हुआ| बनी इस्हाक़: 'ऐसौ और इस्राईल थे|35बनी 'ऐसौ: अलीफ़ज़ और र'ऊएल और य'ऊस और या'लाम और क़ोरह हैं|36बनी अलीफ़ज़: तेमान और ओमर और सफ़ी और जा'ताम, क़नज़, और तिम्ना' और 'अमालीक़ हैं|37बनी र'ऊएल: नहत, जारह, सम्मा और मिज़्ज़ा हैं|38और बनी श'ईर: लोतान और सोबल और सबा'ऊन और 'अना और दीसोन और एसर और दीसान हैं|39और हूरी और होमाम लूतान के बेटे थे, और तिम्ना' लोतान की बहन थी|40बनी सोबल: 'अल्यान और मानहत 'एबाल सफ़ी और औनाम हैं| अय्या और 'अना सबा'ऊन के बेटे थे|41और 'अना का बेटा दीसोन था; और हमरान और इश्बान और यित्रान और किरान दीसोन के बेटे थे|42और एसर के बेटे: बिलहान और ज़ा'वान और या'क़ान थे और ऊज़ और अरान दीसान के बेटे थे|43और जिन बादशाहों ने मुल्क-ए-अदोम पर उस वक़्त हुकूमत की जब बनी-इस्राईल पर कोई बादशाह हुक्मरान न था वह यह हैं: बाला' बिन ब'ओर; उसके शहर का नाम दिन्हाबा था|44और बाला' मर गया और यूबाब बिन ज़ारह जो बुसराही था उसकी जगह बादशाह हुआ|45और यूबाब मर गया और हशाम जो तेमान के 'इलाक़े का था उसकी जगह बादशाह हो हुआ|46और हशाम मर गया और हदद बिन बिदद, जिसने मिदियानियों को मोआब के मैदान में मारा उसकी जगह बादशाह हुआ और उसके शहर का नाम 'अवीत था|47और हदद मर गया और शमला जो मसरिक़ा का था, उसकी जगह बादशाह हुआ|48और शमला मर गया और साउल जो दरिया-ए-फ़रात के पास के रहोबोत का बाशिंदा था उसकी जगह बादशाह हुआ|49और साउल मर गया और बा'ल-हनान बिन 'अकबोर उसकी जगह बादशाह हुआ|50और बा'ल-हनान मर गया और हदद उसकी जगह बादशाह हुआ; उसके शहर का नाम फ़ा'ई और उसकी बीवी का नाम महेतबेल था, जो मतरिद बिन्त मेज़ाहाब की बेटी थी|51और हदद मर गया| फिर यह अदोम के रईस हुए: रईस तिम्ना’, रईस अलियाह, रईस यतीत,52रईस उहलीबामा, रईस ऐला, रईस फ़ीनोन,53रईस क़नज़, रईस तेमान, रईस मिब्सार,54रईस मज्दिएल, रईस 'इराम; अदोम के रईस यही हैं|
1यह बनी इस्राईल हैं: रूबिन, शमा'ऊन, लावी, यहूदाह, इश्कार और ज़बूलून,2दान, यूसुफ़, और बिनयमीन, नफ़्ताली, जद्द और आशर|3'एर और ओनान और सेला, यह यहूदाह के बेटे हैं; यह तीनों उससे एक कना'नी 'औरत बतसू'अ के बत्न से पैदा हुए| और यहूदाह का पहलौठा 'एर ख़ुदावंद की नज़र में एक शरीर था, इसलिए उसने उसको मार डाला;4और उसकी बहू तमर के उससे फ़ारस और ज़ारह हुए| यहूदाह के कुल पांच बेटे थे|5और फ़ारस के बेटे हसरोन और हमूल थे|6और ज़ारह के बेटे: ज़िमरी और ऐतान, हैमान और कलकूल और दारा', या'नी कुल पाँच थे|7और इस्राईल का दुख देने वाला 'अकर जिसने मख़्सूस की हुई चीज़ों में ख़यानत की, करमी का बेटा था;8और ऐतान का बेटा 'अज़रियाह था|9और हसरोन के बेटे जो उससे पैदा हुए यह हैं: यरहमिएल और राम और कुलूबी|10और राम से 'अम्मीनदाब पैदा हुआ और 'अम्मीनदाब से नह्सोन पैदा हुआ, जो बनी यहूदाह का सरदार था|11और नह्सोन से सलमा पैदा हुआ और सलमा से बो'अज़ पैदा हुआ|12और बो'अज़ से 'ओबेद पैदा हुआ और 'ओबेद से यस्सी पैदा हुआ|13यस्सी से उसका पहलौठा 'अलियाब पैदा हुआ, और इबीनदाब दूसरा, और सिमा' तीसरा,14नतनिएल चौथा, रद्दी पाँचवाँ,15'ओज़म छठा, दाऊद सातवाँ,16और उनकी बहनें ज़रुयाह और अबीजेल थीं| अबीशै और युआब और 'असाहेल, यह तीनों ज़रुयाह के बेटे हैं|17और अबीजेल से 'अमासा पैदा हुआ, और 'अमासा का बाप इस्माईली यतर था|18और हसरोन के बेटे कालिब से, उसकी बीवी 'अज़ूबा और यरी'ओत के औलाद पैदा हुई| 'अज़ूबा के बेटे यह हैं: यशर और सूबाब और अरदून|19और 'अज़ूबा मर गई, और कालिब ने इफ़रात को ब्याह लिया जिसके बत्न से हूर पैदा हुआ|20और हूर से ऊरी पैदा हुआ और ऊरी से बज़लिएल पैदा हुआ|21उसके बा'द हसरोन जिल'आद के बाप मकीर की बेटी के पास गया; जिससे उसने साठ बरस की 'उम्र में ब्याह किया था और उसके बत्न से शजूब पैदा हुआ|22और शजूब से याईर पैदा हुआ| जो मुल्क-ए-जिल'आद में तेईस शहरों का मालिक था|23और जसूर और अराम ने याईर के शहरों को और क़नात को म'ए उसके क़स्बों के या'नी साठ शहरों को उन से ले लिया| यह सब जिल'आद के बाप मकीर के बेटे थे|24और हसरोन के कालिब इफ़राता में मर जाने के बा'द हसरोन की बीवी अबियाह के उससे अशूर पैदा हुआ जो तक़ू'अ का बाप था|25और हसरोन के पहलौठे, यरहमिएल के बेटे यह हैं: राम जो उसका पहलौठा था और बूना और ओरन और ओज़म और अख़ियाह|26और यरहमिएल की एक और बीवी थी जिसका नाम 'अतारा था| वह ओनाम की माँ थी|27और यरहमिएल के पहलौठे राम के बेटे मा'ज़ और यमीन 'एकर थे|28और ओनाम के बेटे: सम्मी और यदा'; और सम्मी के बेटे: नदब और अबीसूर थे|29और अबीसूर की बीवी का नाम अबीख़ैल था| उसके बत्न से अख़बान और मोलिद पैदा हुए|30और नदब के बेटे: सिलिद अफ़्फ़ाईम थे लेकिन सिलिद बे औलाद मर गया|31और अफ़्फ़ाईम का बेटा यस'ई; और यस'ई का बेटा सीसान; और सीसान का बेटा अख़ली था|32और सम्मी के भाई यदा' के बेटे: यतर और यूनतन थे; और यतर बे औलाद मर गया|33और यूनतन के बेटे: फ़लत और ज़ाज़ा; यह यरहमिएल के बेटे थे|34और सीसान के बेटे नहीं सिर्फ़ बेटियाँ थीं और सीसान का एक मिस्री नौकर यरख़ा' नामी था|35इसलिए सीसान ने अपनी बेटी को अपने नौकर यरख़ा' से ब्याह दिया, और उसके उससे 'अत्ती पैदा हुआ|36और अत्ती से नातन पैदा हुआ, और नातन से ज़ाबा'द पैदा हुआ,37और ज़ाबा'द से इफ़लाल पैदा हुआ और इफ़लाल से 'ओबेद पैदा हुआ|38और 'ओबेद से याहू पैदा हुआ और याहू से 'अज़रयाह पैदा हुआ39और अज़रयाह से ख़लस पैदा हुआ, और ख़लस से इलि, आसा पैदा हुआ,40और इलि'आसा से सिसमी पैदा हुआ, और सिसमी से सलूम पैदा हुआ|41और सलूम से यक़मियाह पैदा हुआ और यक़मियाह से इलीसमा' पैदा हुआ|42यरहमिएल के भाई कालिब के बेटे यह हैं: मीसा उसका पहलौठा जो ज़ीफ़ का बाप है, और हबरून के बाप मरीसा के बेटे|43और बनी हबरून: क़ोरह और तफ़्फ़ूह और रक़म और समा' थे|44और समा' से युरक़'आम का बाप रख़म पैदा हुआ, और रख़म से सम्मी पैदा हुआ|45और सम्मी का बेटा: म'ऊन था और म'ऊन बैतसूर का बाप था|46और कालिब की हरम ऐफ़ा से हरान और मौज़ा और जाज़िज़ पैदा हुए और हारान से जाज़िज़ पैदा हुआ|47और बनी यहदी: रजम और यूताम और जसाम और फ़लत और 'ऐफ़ा और शा'फ़ थे|48और कालिब की हरम मा'का से शिब्बर और तिरहनाह पैदा हुए|49उसी के बत्न से मदमन्नाह का बाप शा'फ़ और मकबीना का बाप सिवा और रहज और रिजबा' का बाप भी पैदा हुए; और कालिब की बेटी 'अकसा थी|50कालिब के बेटे यह थे| इफ़राता के पहलौठे हूर का बेटा क़रयत-या'रीम का बाप सोबल,51बैतलहम का बाप सलमा, और बैतजादिर का बाप ख़ारीफ़|52और क़रयत-यारीम के बाप सोबल के बेटे ही बेटे थे; हराई और मनोख़ोत के आधे लोग|53और क़रयत या'रीम के घराने यह थे: इतरी और फ़ूती और सुमाती और मिस्रा'ई इन्हीं से सुर'अती और इश्तावली निकले हैं|54बनी सलमा यह थे: बैतलहम और नतूफ़ाती और 'अतरात-बैतयुआब और मनूख़तियों के आधे लोग और सुर'ई,55और या'बीज़ के रहने वाले मुन्शियों के घराने, तिर'आती और सम'आती और सौकाती; यह वह क़ीनी हैं जो रैकाब के घराने के बाप हमात की नसल से थे|
1यह दाऊद के बेटे हैं जो हबरून में उससे पैदा हुए: पहलौठा अमनोन, यज़र'एली अख़ीनू'अम के बत्न से; दूसरा दानिएल, कर्मिली अबीजेल के बत्न से;2तीसरा अबीसलोम, जो जसूर के बादशाह तल्मी की बेटी मा'का का बेटा था; चौथा अदूनियाह, जो हज्जियत का बेटा था|3पाँचवाँ सफ़तियाह, अबीताल ले बत्न से; छठा इतर'आम, उसकी बीवी 'इजला से|4यह छ: हबरून में उससे पैदा हुए| उसने वहाँ सात बरस छ: महीने हुकूमत की, और यरुशालीम में उसने तैंतीस बरस हुकूमत की|5और यह यरुशलीम में उससे पैदा हुए: सिम'आ और सूबाब और नातन और सुलेमान, यह चारों 'अम्मीएल की बेटी बतसू'अ के बत्न से थे|6और इब्हार और इलीसमा' और अलीफ़लत,7और नुजा और नफ़ज और यफ़ी'आ,8और अलीसमा' और इलीदा' और अलीफ़लत; यह नौ9यह सब हरमों के बेटों के 'अलावा दाऊद के बेटे थे; और तमर इनकी बहन थी10और सुलेमान का बेटा रहुब'आम था उसका बेटा अबियाह, उसका बेटा आसा, उसका बेटा यहूसफ़त;11उसका बेटा यूराम, उसका बेटा अख़ज़ियाह, उसका बेटा यूआस;12उसका बेटा अमसियाह, उसका बेटा 'अज़रयाह, उसका बेटा यूताम;13उसका बेटा आख़ज़, उसका बेटा हिज़कियाह, उसका बेटा मनस्सी|14उसका बेटा अमून, उसका बेटा यूसियाह;15और यूसियाह के बेटे यह थे: पहलौठा यूहनान, दूसरा यहूयक़ीम, तीसरा सिदक़ियाह, चौथा सलूम|16और बनी यहूयक़ीम: उसका बेटा यकूनियाह, उसका बेटा सिदक़ियाह|17और यकूनियाह जो ग़ुलाम था, उसके बेटे यह हैं: सियालतिएल,18और मल्कराम और फ़िदायाह और शीनाज़र, यक़मियाह, होसमा' और नदबियाह;19और फ़िदायाह के बेटे यह हैं: ज़रब्बाबुल और सिम'ई और ज़रब्बाबुल के बेटे यह हैं: मुसल्लाम और हनानियाह, और सल्लूमियत उनकी बहन थी,20और हसूबा और अहल और बरकियाह और हसदियाह, यूसजसद यह पाँच|21और हनानियाह के बेटे यह हैं: फ़लतियाह और यसा'याह| बनी रिफ़ायाह, बनी अरनान, बनी 'ईदयाह, बनी सकनियाह,22और सकनियाह का बेटा: समा'याह और बनी समा'याह: हतूश और इजाल और बरीह और ना'रियाह और साफ़त' यह छ:|23और ना'रियाह के बेटे यह थे: इल्यू'ऐनी, और हिज़क़ियाह और 'अज़रीक़ाम, यह तीन|24और बनी इल्यू'ऐनी यह थे: हूदैवाहू और 'अलियासब और फ़िलायाह और 'अक़्क़ूब और युहनान और दिलायाह 'अनानी, यह सात|
1बनी यहूदाह यह हैं: फ़ारस, हसरोन और कर्मी और हूर और सोबल|2और रियायाह बिन सोबल से यहत पैदा हुआ और यहत से अख़ूमी और लाहद पैदा हुए, यह सुर'अतियों के ख़ानदान हैं|3और यह 'ऐताम के बाप से हैं: यज़र'एल और इसमा' और इदबास और उनकी बहन का नाम हज़िल-इलफ़ूनी था;4और फ़नूएल जदूर का बाप और 'अज़र हूसा का बाप था| यह इफ़राता के पहलौठे हूर के बेटे हैं| जो बैतलहम का बाप था|5और तकू'अ के बाप अशूर की दो बीवियां थीं हीलाह और ना'रा|6और ना'रा के उससे अख़ूसाम और हिफ़्र और तेमनी और हख़सतरी पैसा हुए| यह ना'रा के बेटे थे|7और हीलाह के बेटे: ज़रत और यज़ूआर और इतनान थे|8क़ूज़ से 'अनूब और ज़ोबीबा और हरूम के बेटे आख़रख़ैल के घराने पैदा हुए|9और या'बीज़ अपने भाइयों से मु'अज़िज़्ज़ था और उसकी माँ ने उसका नाम या'बीज़ रक्खा क्यूँकि कहती थी, की मैंने ग़म के साथ उसे जनम दिया है|”10और याबीज़ ने इस्राईल के ख़ुदा से यह दु'आ की, आह, तू मुझे वाक़'ई बरकत दे, और मेरी हुदूद को बढ़ाए, और तेरा हाथ मुझ पर हो और तू मुझे बदी से बचाए ताकि वह मेरे ग़म का ज़रि'अ न हो!” और जो उसने माँगा ख़ुदा ने उसको बख़्शा|11और सूख़ा के भाई कलूब से महीर पैदा हुआ जो इस्तून का बाप था|12और इस्तून से बैतरिफ़ा और फ़ासह और 'ईरनहस जा बाप तख़िन्ना पैदा हुए| यही रैका के लोग हैं|13और क़नज़ के बेटे: ग़ुतनिएल और शिरायाह थे, और ग़ुतनिएल का बेटा हतत था|14और म'ऊनाती से 'उफ़रा पैदा हुआ, और शिरायाह से युआब पैदा हुआ जो जिख़राशीम का बाप है; क्यूँकि वह कारीगर थे|15और यफ़ुन्ना के बेटे कालिब के बेटे यह हैं: 'ईरु और ऐला और ना'म; और बनी ऐला: क़नज़|16और यहलिलएल के बेटे यह हैं: ज़ीफ़ और ज़ीफ़ा, तैरयाह और असरिएल|17और 'अज़रा के बेटे यह हैं: यतर और मरद और 'इफ़्र और यलून और उसके बत्न से मरियम और सम्मी और इस्तमू'अ का बाप इस्बाह पैदा हुए,18और उसकी यहूदी बीवी के उस से जदूर का बाप यरद और शोको का बाप हिब्र और ज़नूह का बाप यक़ूतिएल पैदा हुए; और फ़िरऔन की बेटी बित्याह के बेटे जिसे मरद ने ब्याह लिया था यह हैं|19और यहूदियाह की बीवी नहम की बहन के बेटे क़'ईलाजर्मी का बाप और इस्मतू'अ मा'काती थे|20और सीमोन के बेटे यह हैं: अमनून और रिन्ना, बिनहन्नान और तीलोन, और यस'ई के बेटे: ज़ोहित और बिनज़ोहित थे|21और सैला बिन यहूदाह के बेटे यह हैं: 'एर, लका का बाप; और ला'दा, मरीसा का बाप और बीत-अशबि'अ के घराने, जो बारीक कटान का काम करते थे|22और योक़ीम और कोज़ीबा के लोग, और यूआस और शराफ़ जो मोआब के बीच ~हुक्मरान थे, और यसूबी लहम| यह पुरानी तवारीख़ है|23यह कुम्हार थे और नताईम और गदेरा के बाशिंदे थे| वह वहाँ बादशाह के साथ उसके काम के लिए रहते थे|24बनी शमा'ऊन यह हैं: नमुएल, और यमीन, यरीब, ज़ारह, साऊल|25और सूल का बेटा सलूम और सलूम का बेटा मिब्साम, और मिब्साम का बेटा मिशमा'अ|26और मिशमा'अ के बेटे यह हैं: हमुएल हमुएल का बेटा ज़कूर, ज़कूर का बेटा सिम'ई|27और सिम'ई के सोलह बेटे और छ: बेटियाँ थीं, लेकिन उसके भाइयों के बहुत औलाद न हुईं और उनके सब घराने बनी यहूदाह की तरह न बढ़े|28और वह बैरसबा' और मोलादा और हसरसो'आल,29और बिलहा और 'अज़म और तोलाद,30और बतुएल और हुरमा और सिक़लाज,31और मरकबोत और हसर सूसीम और बैतबराई और शा'रीम में रहते थे| दाऊद की हुकूमत तक यही उनके शहर थे|32और उनके गाँव: 'ऐताम और 'ऐन और रिमोन और तोकन और 'असन, यह पाँच शहर थे|33और उनके रहने देहात भी, जो बा'ल तक उन शहरों के आस पास थे यह उनके रहने के मुक़ाम थे और उनके नसबनामे हैं|34और मिसोबाब, यमलीक और योशा बिन अमसियाह,35और यूएल और याहू बिन यूसीबियाह बिन शिरायाह बिन 'असिएल,36और इल्यू'ऐनी और या'क़ूबा और यसुखाया और 'असायाह और 'अदिएल और यिसीमिएल और बिनायाह,37और ज़ीज़ा बिन शिफ़'ई बिन अल्लूनबिन यदायाह बिन सिमरी बिन समा'याह:38यह जिनके नाम मज़कूर हुए, अपने अपने घराने के सरदार थे और इनके आबाई ख़ानदान बहुत बढ़े|39और वह जदूर के मदख़ल तक या'नी उस वादी के पूरब तक अपने गल्लों के लिए चरागाह ढूँडने गए,40वहाँ उन्होंने अच्छी और सुथरी चरागाह पायी और मुल्क वसी' और चैन और सुख की जगह था; क्यूँकि हाम के लोग क़दीम से उस में रहते थे|41और वह जिनके नाम लिखे गए हैं, शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के दिनों में आये और उन्होंने उनके पड़ाव पर हमला किया और म'ऊनीम को जो वहाँ मिले क़त्ल किया, ऐसा की वह आज के दिन तक मिटे हैं, और उनकी जगह रहने लगे क्यूँकि उनके गल्लों के लिए वहाँ चरागाह थी|42और उनमें से या'नी शमा'ऊन के बेटों में से पाँच सौ शख़्स कोह-ए-श'ईर को गए और यस'ई के बेटे फ़लतियाह और ना'रियाह और रिफ़ायाह और 'उज़्ज़ीएल उनके सरदार थे;43और उन्होंने उन बाक़ी 'अमालीक़ियों को जो बच रहे थे क़त्ल किया और आज के दिन तक वहीं बसे हुए हैं|
1और इस्राईल के पहलौठे रूबिन के बेटे (क्यूँकि वह उसका पहलौठा था, लेकिन इसलिए की उसने अपने बाप के बिछौने को नापाक किया था उसके पहलौठे होने का हक़ इस्राईल के यूसुफ़ की औलाद को दिया गया, ताकि नसबनामा पहलौठे पन के मुताबिक़ न हो|2क्यूँकि यहूदाह अपने भाइयों से ताक़तवर ~हो गया और सरदार उसी में से निकला लेकिन पहलौठे का यूसुफ़ का हुआ)3इसलिए इस्राईल के पहलौठे रूबिन के बेटे यह हैं: हनूक और फ़ल्लू और हसरोन और कर्मी|4यूएल के बेटे यह हैं: उसका बेटा समा'याह, सम'याह का बेटा जूज, जूज का बेटा सिम'ई|5सिम'ई का बेटा मीकाह, मीकाह का बेटा रियायाह, रियायाह का बेटा बा'ल|6बा'ल का बेटा बईरा जिसको असूर का बादशाह तिलगातपिलनासर ग़ुलाम कर के ले गया| वह रूबीनियों का सरदार था|7और उसके भाई अपने अपने घराने के मुताबिक़ जब उनकी औलाद का नसब नामा लिख्खा गया था, सरदार य'ईएल और ज़करियाह,8और बाला' बिन 'अज़ज़ बिन समा' योएल, वह 'अरो'ईर में नबू और बा'ल म'ऊन तक,9और पूरब की तरफ़ दरिया-ए-फ़रात से वीरान में दाख़िल होने की जगह तक बसा हुआ था क्यूँकि मुल्क-ए-जिल'आद में उनके चौपाये बहुत बढ़ गए थे|10और साऊल के दिनों में उन्होंने हाजिरियों से लड़ाई की जो उनके हाथ से क़त्ल हुए, और वह जिल'आद के पूरब के सारे 'इलाक़े में उनके डेरों में बस गए|11और बनी जद उनके सामने मुल्क-ए-बसन में सिलका तक बसे हुए थे|12पहला यूएल था, और साफ़म दूसरा, और या'नी और साफ़त बसन में थे|13और उनके आबाई ख़ानदान के भाई यह हैं: मीकाएल और मुसल्लाम और सबा' और यूरी और या'कान और ज़ी'अ और 'इब्र, यह सातों|14यह बनी अबिखैल बिन हूरी बिन यारूआह बिन जिल'आद बिन मीकाएल बिन यमीसी बिन यहदू बिन बूज़ थे|15अख़ी बिन 'अबदिएल बिन जूनी इनके आबाई ख़ानदानों का सरदार था|16और वह बसन में जिल'आद और उसके क़स्बों और शारून की सारे 'इलाक़ा में, जहाँ तक उनकी हद्द थी, बसे हुए थे|17यहूदाह के बादशाह यूताम के दिनों में, और इस्राईल के बादशाह युरब'आम के दिनों ~में उन उन सभों के नाम उनके नसबनामों के मुताबिक़ लिखे गए|18और बनी रूबिन और जद्दियों और मनस्सी के आधे क़बीले में सूर्मा, या'नी ऐसे लोग जो सिपर और तेग़ उठाने के क़ाबिल और तीरअन्दाज़ और जंग आज़मूदा थे, चौवालीस हज़ार सात सौ साठ थे जो जंग पर जाने के लायक़ थे|19यह हजिरियों और यतूर और नफ़ीस और नोदब से लड़े|20और उनसे मुक़ाबिला करने के लिए मदद पायी, और हाजिरी और सब जो उनके साथ थे उनके हवाले किए गए क्यूँकि उन्होंने लड़ाई में ख़ुदा से दु'आ की और उनकी दु'आ क़ुबूल हुई, इसलिए की उन्होंने उस पर भरोसा रख्खा|21और वह उनकी मवेसी ले गए; उनके ऊँटों में से पचास हज़ार और भेड़ बकरियों में से ढाई लाख और गधों में से दो हज़ार और आदमियों में से एक लाख|22क्यूँकि बहुत से लोग क़त्ल हुए इसलिए की जंग ख़ुदा की थी और वह ग़ुलामी के वक़्त तक उनकी जगह बसे रहे|23और मनस्सी के आधे क़बीले के लोग मुल्क में बसे| वह बसन से बा'लहरमून और सनीर और हरमून के पहाड़ तक फैल गए|24उनके आबाई ख़ानदानों के सरदार यह थे: 'इफ़्र और यिस'ई और इलीएल, 'अज़रिएल, यरमियाह और हुदावियाह और यहदएल, जो ताक़तवर सूर्मा और नामवर और अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार थे|25और उन्होंने अपने बाप दादा के ख़ुदा की हुक्म 'उदूली की, और जिस मुल्क के बाशिंदों को ख़ुदा ने उनके सामने से हलाक किया था, उन ही के मा'बूदों की पैरवी में उन्होंने ज़िनाकारी की|26तब इस्राईल के ख़ुदा ने असूर के बादशाह पूल के दिल को और असूर के बादशाह तिलगातपलनासर के दिल को उभारा, और वह उनकी या'नी रूबिनियों और जद्दियों और मनस्सी के आधे क़बीले को ग़ुलाम कर के ले गए और उनको ख़लह और ख़ाबूर और हारा और जौज़ान की नदी तक ले आये; यह आज के दिन तक वहीं हैं|
1बनी लावी: जैरसोन, क़िहात, और मिरारी हैं|2और बनी क़िहात: 'अमराम और इज़हार और हबरून और 'उज़्ज़िएल|3और 'अमराम की औलाद: हारून और मूसा और मरियम| और बनी हारून: नदब और अबीहू इली'अज़र और इतमर|4इली'अज़र से फ़ीनहास पैदा हुआ और फ़ीनहास से अबिसू' पैदा हुआ,5और अबीसू'अ से बुक़्क़ी पैदा हुआ, और बुक़्क़ी 'उज़्ज़ी पैदा हुआ|6और उज़्ज़ी ज़राख़ियाह पैदा हुआ हुआ, और ज़राख़ियाह से मिरायोत पैदा हुआ|7मिरायोत से अमरियाह पैदा हुआ, और अमरियाह अख़ितोब पैदा हुआ|8और अख़ितोब सदूक़ पैदा हुआ, और सदूक़ से अख़ीमा'ज़ पैदा हुआ|9और अख़ीमा'ज़ से 'अज़रियाह पैदा हुआ, और 'अज़रियाह से यूहनान पैदा हुआ,10और यूहनान से अज़रियाह पैदा हुआ (यह वह है जो उस हैकल में जिसे सुलेमान ने यरुशलीम में बनाया था, काहिन था)|11और 'अज़रियाह से अमरियाह पैदा हुआ और अमरियाह से अख़ितोब पैदा हुआ|12और अख़ितोब से सदूक़ पैदा हुआ और सदूक़ से सलूम पैदा हुआ|13और सलूम से ख़िलक़ियाह पैदा हुआ और ख़िलक़ियाह से 'अज़रियाह पैदा हुआ|14और 'अज़रियाह से सिरायाह पैदा हुआ और सिरायाह से यहूसदक़ पैदा हुआ|15और जब ख़ुदावन्द ने नबूकदनज़र के हाथ यहूदाह और यरुशलीम को जिला वतन कराया, तो यहूसदक़ भी ग़ुलाम हो गया|16बनी लावी: जैरसोम क़िहात, और मिरारी हैं|17और जैरसोम के बेटों के नाम यह हैं: लिबनी और सिम'ई|18और बनी क़िहात: 'अमराम और इज़हार और हबरून और 'उज़्ज़ीएल थे|19मिरारी के बेटे यह हैं: महली और मूशी और लावियों के घराने उनके आबाई ख़ानदानों के मुताबिक़ यह हैं|20जैरसोम से उसका बेटा लिबनी| लिबनी का बेटा यहत, यहत का बेटा ज़िम्मा|21ज़िम्मा का बेटा यूआख़, यूआख़ का बेटा 'ईदू, 'ईदू का बेटा ज़ारह, ज़ारह का बेटा यतरी|22बनी क़िहात: क़िहात का बेटा अम्मीनदाब, का बेटा अम्मीनदाब का बेटा क़ोरह, क़ोरह का बेटा अस्सीर,23अस्सीर का बेटा इल्क़ाना| इल्क़ाना का बेटा अबी आसफ़| अबी आसफ़ का बेटा अस्सीर|24अस्सीर का बेटा तहत, तहत का बेटा ऊरिएल| ऊरिएल का बेटा उज़्ज़ियाह, 'उज़्ज़ियाह का बेटा साऊल|25और इल्क़ाना के बेटे यह हैं: 'अमासी और अख़ीमोत|26रहा इल्क़ाना तो, इल्क़ाना के बेटे यह हैं: या'नी उसका बेटा सूफ़ी, सूफ़ी का बेटा नहत|27नहत का बेटा इलियाब, इलियाब का बेटा यरुहाम, यरुहाम का बेटा इल्क़ाना|28समुएल के बेटों में पहलौठा यूएल, दूसरा अबियाह|29बनी मिरारी यह हैं: महली, महली का बेटा लिबनी, लिबनी का बेटा सम'ई, सम'ई का बेटा 'उज़्ज़ा,30'उज़्ज़ा का बेटा सिम'आ, सिम'आ का बेटा हिज्जियाह हिज्जियाह, का बेटा 'असायाह|31वह जिनको दाऊद ने सन्दूक़ के ठिकाना पाने के बा'द ख़ुदावन्द के घर में हम्द के काम पर मुक़र्रर किया यह हैं:32और वह जब तक सुलेमान यरुशलीम में ख़ुदावन्द का घर बनवा न चुका हम्द गा गा कर ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ के मसकन के सामने ख़िदमत करते रहे और अपनी अपनी बारी के मुवाफ़िक़ अपने काम पर हाज़िर रहते थे|33और जो हाज़िर रहते थे वह और उनके बेटे यह हैं: क़िहातियों की औलाद में से हैमान गवय्या बिन यूएल बिन समुएल|34बिन इल्क़ाना बिन यरुहाम, बिन इलीएल, बिन तूह|35बिन सूफ़ बिन इल्क़ाना बिन महत बिन 'अमासी|36बिन इल्क़ाना बिन यूएल बिन 'अज़रियाह बिन सफ़नियाह|37बिन तहत बिन अस्सीर बिन अबी आसफ़बिन क़ोरह|38बिन इज़हार बिन क़िहात बिन लावी बिन इस्राईल|39और उसका भाई आसफ़ जो उसके दहने खड़ा होता था, या'नी आसफ़ बिन बरकियाह बिन सिम'आ|40बिन मीकाएल बिन बा'सियाह बिन मलकियाह|41बिन अतनी बिन जारह बिन 'अदायाह|42बिन ऐतान बिन ज़िम्मा बिन सिम'ई|43बिन यहत बिन जैरसोम बिन लावी|44और बनी मिरारी उनके भाई बाएं हाथ खड़े होते थे या'नी ऐतान बिन क़ीसी बिन 'अबदी बिन मुलोक|45बिन हसबियाह बिन अमसियाह बिन ख़िलक़ियाह|46बिन अमसी बिन बानी बिन सामर|47बिन महली बिन मूशी नीं मिरारी बिन लावी|48और उनके भाई लावी बैत उल्लाह के घर की सारी ख़िदमत पर मुक़र्रर थे|49लेकिन हारून और उसके बेटे सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह और ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह दोनों पर पाकतरीन मकान की सारी ख़िदमत को अंजाम देने और इस्राईल के लिए कफ़्फ़ारा देने के लिए जैसा ख़ुदा बन्दे मूसा ने हुक्म किया था क़ुर्बानी पेश करते थे|50बनी हारून यह हैं: हारून का बेटा इलीअज़र, इलीअज़र का बेटा फ़ीनहास, फ़ीनहास का बेटा अबीसू'अ|51अबीसू'अ का बेटा बुक़्क़ी, बुक़्क़ी का बेटा 'उज़्ज़ी, 'उज़्ज़ी का बेटा ज़राखियाह|52ज़राखियाह का बेटा मिरायोत, मिरायोत का बेटा अमरियाह, अमरियाह का बेटा अख़ीतोब|53अख़ीतोब का बेटा सदूक़, सदूक़ का बेटा अख़ीमा'ज़|54और उनकी हुदूद में उनकी छावनियों के मुताबिक़ उनकी सुकूनतगाहें यह हैं; बनी हारून में से क़िहातियों के ख़ानदानों को, जिनकी पर्ची पहली निकली|55उन्होंने यहूदाह की ज़मीन में हबरून और उसका 'इलाक़ा की दिया|56लेकिन उस शहर के खेत और उसके देहात युफ़न्ना के बेटे कालिब को दिए|57और बनी हारून को उन्होंने पनाह के शहर दिए और हबरून और लिबनाह भी और उसका 'इलाक़ा और यतीर और इस्तमू'अ और उसका 'इलाक़ा|58और हैलान और उसका 'इलाक़ा, और दबीर और उसका 'इलाक़ा,59और 'असन और उसका 'इलाक़ा, और बैत समा' और उसका 'इलाक़ा|60और बिनयमीन के क़बीले में से जिबा' और उसका 'इलाक़ा, और 'अलमत और~उसका 'इलाक़ा, और 'अन्तोत और~उसका इलाक़ा, उनके घरानों के सब शहर तेरह थे|61और बाक़ी बनी क़िहात को आधे क़बीले, या'नी मनस्सी के आधे क़बीले में से दस शहर पर्ची डालकर दिए गए|62और जैरसोम के बेटों को उनके घरानों के मुताबिक़ इश्कार के क़बीले और और आशर के क़बीले और नफ़्ताली के क़बीले और मनस्सी के क़बीले से जो बसन में था तेरह शहर मिले|63मिरारी के बेटों को उनके घरानों के मुताबिक़ रुबिन के क़बीले, और जद के क़बीले और ज़बूलून के क़बीले में से बारह शहर पर्ची डालकर दिए गए|64~फिर बनी इस्राईल ने लावियों को वह शहर उनका 'इलाक़ा समेत दिए|65और उनोने बनी यहूदाह के क़बीले, और बनी शमा'ऊन के क़बीले, और बनी बिनयमीन के क़बीले, में से यह शहर जिनके नाम मज़कूर हुए पर्ची डालकर दिए|66और बनी क़िहात के कुछ ख़ानदानों के पास उनकी सरहद्दों के शहर इफ़्राईम के क़बीले में से थे|67और उन्होंने उनको पनाह के शहर दिए या'नी इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में सिक्म और उसका 'इलाक़ा और जज़र भी और उसका 'इलाक़ा|68और युक़म'आम और उसका 'इलाक़ा और बैतहौरून और उसका 'इलाक़ा|69और अय्यलोन और उसका 'इलाक़ा, नाफ़्ताली और जातरिम्मोन और उसका 'इलाक़ा|70और मनस्सी के आधे क़बीले में से आज़र और उसका 'इलाक़ा, और बिल'आम और उसका 'इलाक़ा बनी क़िहात के बाक़ी ख़ानदान को मिली|71बनी जैरसोम को मनस्सी के आधे क़बीले के ख़ानदान जोलान और उसका इलाक़ा, बसन में और असारात और उसका 'इलाक़ा|72और इश्कार के क़बीले में से क़ादिस और उसका 'इलाक़ा| दाबरात और उसका 'इलाक़ा|73और रामात और उसका 'इलाक़ा, और 'आनीम और उसका 'इलाक़ा|74और आसर के क़बीले में से मसल और उसका 'इलाक़ा, और 'अबदोन और उसका 'इलाक़ा|75और हक़ूक़ और उसका 'इलाक़ा, और रहोब और उसका 'इलाक़ा|76और नफ़्ताली के क़बीले में से क़ादिस और उसका 'इलाक़ा गालील में, और हम्मून और उसकी नवाही, क़रयताइम और उसका 'इलाक़ा, मिला|77बाक़ी लावियों, या'नी बनी मिरारी को ज़बलून के क़बीले में से रिम्मोन और उसकी नवाही, और तबूर और उसका 'इलाक़ा,78यरीहू के नज़दीक यरदन के पार या'नी यरदन की पूरब की तरफ़, रूबिन के क़बीले में से वीरान में बसर और उसका 'इलाक़ा, और यहसा और उसका 'इलाक़ा;79और क़दीमात और उसका 'इलाक़ा, और मिफ़'अत और उसका 'इलाक़ा;80और जद्द के क़बीले में से रामात और उसका 'इलाक़ा, जिल'आद में, और महनायम और उसका 'इलाक़ा,81और हस्बोन और उसका 'इलाक़ा, और याज़ेर और उसका 'इलाक़ा मिली
1और बनी इश्कार यह हैं: तोला' और फ़ुव्वा और यसूब और सिमरोन, यह चारों|2और बनी तोला': 'उज़्ज़ी और रिफ़ायाह और यरीएल और यहमी और इबसाम और समुएल, जो तोला' या'नी अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार थे| वह अपने ज़माने में ताक़तवर सूर्मा थे और दाऊद के दिनों में उनका शुमार बाइस हज़ार छ: सौ था|3और 'उज़्ज़ी का बेटा इज़राख़ियाह और इज़राख़ियाह के बेटे यह हैं: मीकाएल और 'अबदियाह और यूएल और यसय्याह यह पाँचों यह सब के सब सरदार थे|4और उनके साथ अपनी अपनी पुश्त और अपने अपने आबाई ख़ानदान के मुताबिक़ जंगी लश्कर के दल थे जिन में छत्तीस हज़ार जवान थे क्यूँकि उनके यहाँ बहुत सी बीवियाँ और बेटे थे|5और उनके भाई इश्कार के सब घरानों में ताक़तवर सूर्मा थे और नसब नामे के हिसाब के मुताबिक़ कुल सत्तासी हज़ार थे|6और बनी बिनयमीन यह हैं: बाला' और बक्र और यदय'एल, यह तीनों7और बनी बाला': इसबून और 'उज़्ज़ी और 'उज़्ज़ीएल और यरीमोत और 'ईरी, यह पाँचों| यह अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार और ताक़तवर सूर्मा थे और नसब नामे के हिसाब के मुताबिक़ बाइस हज़ार चौंतीस थे|8और बनी बक्र यह हैं: ज़मीरा और यूआस और इली'अज़र और इल्यू'ऐनी और 'उमरी और यरीमोत और अबियाह और 'अन्तोत और 'अलामत यह सब बक्र के बेटे थे|9इनकी नसल के लोग नसबनामे के मुताबिक़ बीस हज़ार दो सौ ताक़तवर सूर्मा और अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार थे|10और यदा'एल का बेटा: बिलहान था| और बनी बिलहाँ यह हैं: य'ओस और बिनयमीन और अहूद और कना'ना और ज़ैतान और तरसीस और अख़ीसहर|11यह सब यदा'एल के बेटे जो अपने आबाई ख़ानदानों के सरदार और ताक़तवर सूर्मा थे, सत्तरह हज़ार दो सौ थे जो लश्कर के साथ जंग पर जाने के लायक़ थे|12और सुफ़्फ़ीम और हुफ़्फ़ीम 'ईर के बेटे, और हाशीम इहीर का बेटा|13बनी नफ़्ताली यह हैं: यहसीएल और जूनी और यसर और सलूम बनी बिल्हा|14बनी मनस्सी यह हैं: असरीएल और उसकी बीवी के बत्न से था ( उसकी अरामी हरम से जिल'आद का बाप मकीर पैदा हुआ|15और मकीर ने हफ़्फ़ीम और सुफ़्फ़ीम की बहन जिसका नाम मा'का था ब्याह लिया ) और दूसरे का नाम सिलाफ़हाद था, और सिलाफ़ हाद के पास बेटियां थीं|16और मकीर की बीवी मा'का के एक बेटा पैदा हुआ उसने उसका नाम फ़रस रख्खा और उसके भाई का नाम शरस था, और उसके बेटे औलाम रक़म थे|17और औलाम का बेटा बिदान था, यह जिल'आद बिन मकीर बिन मनस्सी के बेटे थे|18और उसकी बहन हम्मोलिकत से इशहूद और अबी'अज़र और महला पैदा हुआ|19बनी सिमीदा यह हैं: अख़ियान और सिक्म और लिक़ही और अनि'आम|20और बनी इफ़्राईम यह हैं: सूतलाह, सूतलाह का बेटा बरद, बरद का बेटा तहत, तहत का बेटा इली'अदा, इली'अदा का बेटा तहत,21तहत का बेटा ज़बद, ज़बद का बेटा सूतलाह था और 'अज़र और इली'अदा भी, जिनको जात के लोगों ने, जो उस मुल्क में पैदा हुए थे, मार डाला क्यूँकि वह उनकी मवैशी ले जाने को उतर आये थे|22और उनका बाप इफ़्राईम बहुत दिनों तक मातम करता रहा, और उसके भाई तसल्ली देने को आये|23और वह अपनी बीवी के पास गया और वह हामला हुई और उसके एक बेटा पैदा हुआ और इफ़्राईम ने उसका नाम बरि'आ रख्खा क्यूँकि उसके घर पर आफ़त आई थी|24(और उसकी बेटी सराह थी, जिसने नशेब और फ़राज़ के बैतहोरून और 'उज़्ज़न सराह को बनाया )|25और उसका बेटा रफ़ाह और रसफ़ भी और उसका बेटा तलाह, और तलाह का बेटा तहन,26तहन का बेटा ला'दान, ला'दान का बेटा 'अम्मीहूद, 'अम्मीहूद का बेटा इलीसमा'अ,27इलीसमा'अ का बेटा नून, नून का बेटा यहूसू'अ|28और उनकी मिल्कियत और बस्तियां यह हैं: बैतएल और उसके देहात, और मशरिक़ की तरफ़ ना'रान, और मग़रिब की तरफ़ जज़र और उसके देहात, और सिक्म भी और उसके देहात, 'उज़्ज़ा और उसके देहात तक;29और बनी मनस्सी की हुदूद के पास बैतशान और उसके देहात, ता'नाक और उसके देहात, मजिद्दो और उसके देहात, दोर और उसके देहात थे|इनमें यूसुफ़ बिन इस्राईल के बेटे रहते थे|30बनी आशर यह हैं: यिमना और इस्वाह और इस्वी और बरि'आ, और उनकी बहन सिरह|31और बरि'आ के बेटे: हिबर बिरज़ावीत का बाप मलकिएल थे|32और हिबर से यफ़लीत और सोमिर और ख़ूताम, और उनकी बहन सू'अ पैदा हुए|33और बनी यफ़लीत: फ़ासाक और और बिमहाल और 'असवात; यह बनी यफ़लीत हैं|34और बनी सामिर: अख़ी और रूह्जा और यहुब्बा और आराम थे|35और उसके भाई हीलम के बेटे: सूफ़ह और इमना' और सलस और 'अमल थे|36और बनी सूफ़ह: सूह और हरनफ़र और सू'अल और बैरी और इमराह,37बसर और हुद और सम्मा और सिलसा और इतरान और बैरा थे|38और बनी यतर: युफ़न्ना और फ़िसफ़ाह और अरा थे|39और बनी 'उल्ला: अरख़ और हनीएल और रिज़ियाह थे|40यह सब बनी आशार, अपने आबाई ख़ानदानों के, चुने हुए रईस और ताक़तवर सूर्मा और अमीरों के सरदार थे|उन में से जो अपने नसबनामे के मुताबिक़ जंग करने के लायक़ थे वह शुमार में छब्बीस हज़ार जवान थे|
1और बिनयमीन से उसका पहलौठा बाला' पैदा हुआ, दूसरा और अशबेल, तीसरा अख़िरख़,2चौथा नूहा और पाँचवाँ रफ़ा|3औरे बाला' के बेटे अद्दार और जीरा और अबिहूद,4और अबिसू' और ना'मान और अख़ूह,5और जीरा और सफ़ूफ़ान और हूराम थे|6और अहूत के बेटे यह हैं (यह जिबा' के बाशिंदों के बीच आबाई ख़ानदानों के सरदार थे, और इन्हीं को ग़ुलाम करके मुनाहत को ले गए थे|):7या'नी नामान और अख़ियाह और और जीरा, यह इनको ग़ुलाम करके ले गया था, और उससे 'उज़्ज़ा और अख़ीहूद पैदा हुए|8और सहरीम से, मोआब के मुल्क में अपनी दोनों बीवियों हुसीम और बा'राह को छोड़ देने के बा'द लड़के पैदा हुए,9और उसकी बीवी हूदस के बत्न से यूबाब और ज़िबिया और मैसा और मलकाम,10और य'ऊज़ और सिक्याह और मिरमा पैदा हुए| यह उसके बेटे थे जो आबाई ख़ानदानों के सरदार थे|11और हुसीम से अबीतूब और इलफ़ा'ल पैदा हुए|12और बनी इलफ़ा'ल: 'इब्र और मिश'आम और सामिर थे|इसी ने ओनू और लुद और उसके देहात को आबा'द किया|13और बरि'आ और समा' भी जो अय्यलून के बाशिंदों के दरमियान आबाई ख़ानदानों के सरदार थे और जिन्होंने जात के बाशिंदों को भगा दिया|14और अख़ियू, शाशक़ और यरीमोत,15और ज़बदियाह और 'अराद और 'अदर,16और मीकाएल और इस्फ़ाह और यूख़ा, जो बनी बरि'आ हैं|17और ज़बदयाह और मुसल्लाम और हिज़क़ी और हिबर,18और यसमरी और यज़लियाह और यूबाब जो बनी इलफ़ा'ल हैं|19और यक़ीम और ज़िकरी और ज़बदी,20और इली'ऐनी और ज़लती और इलिएल,21और 'अदायाह और बरायाह और सिमरात, जो बनी सम'ई हैं|22और इसफ़ान और 'इब्र और इलिएल,23और 'अबदोन और ज़िकरी और हनान,24औरे हनानियाह और ऐलाम और अंतूतियाह,25और यफ़दियाह और फ़नूएल, जो बनी शाशक़ हैं|26और समसरी और शहारियाह और 'अतालियाह,27और या'रसियाह और इलियाह और ज़िकरी जो बनी यरोहाम हैं|28यह अपनी नसलों में आबाई ख़ानदानों के सरदार और रईस थे और यरुशलीम में रहते थे|29और जिबा'ऊन में जिबा'ऊन का बाप रहता था, जिसकी बीवी का नाम मा'का था|30और उसका पहलौठा बेटा 'अबदोन, और सूर और क़ीस, और बा'ल और नदब,31और जदूर और अख़ियू और ज़कर,32और मिक़लोत से सिमाह पैदा हुआ, और वह भी अपने भाइयों के साथ यरुशलीम में अपने भाइयों के सामने रहते थे|33और नयिर से क़ीस पैदा हुआ, क़ीस से साऊल पैदा हुआ, और साऊल से यहूनतन और मलकीशू और अबीनदाब और इशबा'ल पैदा हुए;34और यहूनतन का बेटा मरीबबा'ल था, मरीबबा'ल से मीकाह पैदा हुआ|35और बनी मीकाह: फ़ीतूँ और मलिक और तारी' और आख़ज़ थे|36और आख़ज़ से यहू'अदा पैदा हुआ, और यहू'अदा से 'अलमत और 'अज़मावत और ज़िमरी पैदा हुए; और ज़िमरी से मौज़ा पैदा हुआ|37और मौज़ा से बिन'आ पैदा हुआ; बिन'आ का बेटा राफ़ा', राफ़ा' का बेटा इली'असा, और इली'असा का बेटा असील,38और असील के छ: बेटे थे जिनके नाम यह हैं: 'अज़रीकाम, बोकिरू, और इस्मा'ईल और सग़रियाह और 'अबदियाह और हनान; यह सब असील के बेटे थे|39और उसके भाई 'ईशक़ के बेटे यह हैं: उसका पहलौठा औलाम, दूसरा य'ओस, तीसरा इलीफ़लत|40और औलाम के बेटे ताक़तवर सूर्मा और तीरंदाज़ थे, और उसके बहुत से बेटे और पोते थे जो डेढ़ सौ थे| यह सब बनी बिन यमीन में से थे|
1फिर सारा इस्राईल नसबनामों के मुताबिक़ जो इस्राईल के बादशाहों की किताब में दर्ज हैं गिना गया और यहूदाह अपने गुनाहों की वजह से ग़ुलाम हो के बाबुल गया|2और वह जो पहले अपनी मिल्कियत और अपने शहरों में बसे वह इस्राईल और काहिन और लावी और नतनीम थे|3और यारुशलीम में बनी यहूदाह से और बनी बिनयमीन में से और बनी इफ़्राईम और मनस्सी में से यह लोग रहने लगे या'नी|4'ऊती बिन 'अम्मीहूद बिन 'उमरी बिन इमरी बिन बानी जो फ़ारस बिन यहूदाह की औलाद में से था|5और सैलानियों में से 'असायाह, जो पहलौठा था, और उसके बेटे|6और बनी ज़ारह में से, य'ऊएल और उनके छ: सौ नव्वे भाई|7और बनी बिन यमीन में से सल्लू बिन मुसल्लाम बिन हुदावियाह बिन हसीनुवाह,8और इब नियाह बिन यरुहाम औरे ऐला बिन 'उज़्ज़ी बिन बिन मिकरी और मुसल्लाम बिन सफ़तियाह बिन र'ऊएल बिन इबनियाह,9और उनके भाई जो अपने नसबनामों के मुताबिक़ नौ सौ छप्पन थे| यह सब आदमी अपने अपने आबाई ख़ानदान के आबाई ख़ानदानों के सरदार थे|10और काहिनों में से यद'अइयाह और यहुयरीब और यकीन,11और अज़रियाह बिन ख़िलक़ियाह बिन मुसल्लाम बिन सदोक़ बिन मिरायोत बिन अख़ीतोब, जो ख़ुदा के घर का नाज़िम था|12और 'अदायाह बिन यरोहाम बिन फ़शहूर बिन मलकियाह, और मासी बिन 'अदीइएल बिन याहज़ीराह बिन मुसल्लाम बिन मुसलमीत बिन इम्मेर,13और उनके भाई अपने आबाई ख़ानदानों के रईस एक हज़ार सात सौ आठ थे जो ख़ुदा के घर की ख़िदमत के काम के लिए बड़े क़ाबिल आदमी थे|14और लावियों में से यह थे: समा'याह बिन हसूब बिन 'अज़रीक़ाम बिन हसबियाह बनी मिरारी में से,15और बक़बक़र, हरस और जलाल और मतनियाह बिन मीकाह बिन ज़िकरी बिन आसफ़,16और 'अबदियाह बिन समा'याह बिन जलाल बिन यदूतून, और बरकियाह बिन आसा बिन इल्क़ाना, जो नतूफ़ातियों के देहात में बस गए थे|17और दरबानों में से सलोम और 'अक़्क़ूब और तलमून अख़ीमान और उनके भाई; सलूम सरदार था|18वह अब तक शाही फाटक पर मशरिक़ की तरफ़ रहे| बनी लावी की छावनी के दरबान यही थे|19और सलोम बिन क़ोरे बिन अबीआसफ़ बिन क़ोरह और उसके आबाई ख़ानदान के भाई या'नी क़ोरही, ख़िदमत की कारगुज़ारी पर त'इनात थे, और ख़ेमे के फाटकों के निगहबान थे|उनके बाप दादा ख़ुदावन्द की लश्कर गाह पर तैनात और मदख़ल के निगहबान थे|20और फ़ीनहास बिन इली'अज़र इस से पहले उनका सरदार था, और ख़ुदावन्द उसके साथ था|21ज़करियाह बिन मुसलमियाह ख़ेमा इज्तिमा'अ के दरवाज़े का निगहबान था|22यह सब जो फाटकों के दरबान होने को चुने गए दो सौ बारह थे| यह जिनको दाऊद और समुएल ग़ैब बीन ने इनको ओहदे पर मुक़र्रर किया था अपने नसबनामे के मुताबिक़ अपने अपने गाँव में गिने गए थे|23फिर वह और उनके बेटे ख़ुदावन्द के घर या'नी मसकन के घर के फाटकों की निगरानी बारी बारी से करते थे|24और दरबान चारों तरफ़ थे या'नी पूरब, पश्चिम, उत्तर, और दखखिन की तरफ़|25और उनके भाई जो अपने अपने गाँव में थे उनको सात सात दिन के बा'द बारी-बारी उनके साथ रहने को आना पड़ता था|26क्यूँकि चारों सरदार दरबान जो लावी थे ख़ास ओहदों पर मुक़रर्र थे और ख़ुदा के घर की कोठरियों और ख़ज़ानों पर मुक़र्रर थे|27और वह ख़ुदा के घर के आस-पास रहा करते थे क्यूँकि उसकी निगहबानी उनके ज़िम्मे थी और हर सुबह को उसे खोलना उनके ज़िम्मे था|28और उनमें से कुछ की तहवील में 'इबा'दत के बर्तन थे क्यूँकि वह उनको गिन कर अन्दर लाते और गिन कर निकालते थे|29और कुछ उनमें से सामान और मक़्दिस के सब बर्तनों और और मैदा और मय और तेल और लुबान और ख़ुशबूदार मसाल्हे पर मुक़र्रर थे|30और काहिनों के बेटों में से कुछ ख़ुशबूदार मसाल्हे का तेल तैयार करते थे|31और लावियों में से एक शख़्स मत्तितियाह जो क़ुरही सलूम का पहलौठा था, उन चीज़ों पर ख़ास तौर पर मुक़र्रर था जो तवे पर पकाई जाती थीं|32और उनके कुछ भाई जो क़िहातियों की औलाद में से थे, नज़्र की रोटियों पर तैनात थे कि हर सब्त को उसे तैयार करें|33और यह वह हम्द करने वाले हैं जो लावियों के आबाई ख़ानदानों के सरदार थे और कोठरियों में रहते और और ख़िदमत से मा'ज़ूर थे, क्यूँकि वह दिन रात अपने काम में मशग़ूल रहते थे|34यह अपनी अपनी नसलों में लावियों के आबाई ख़ानदानों के सरदार और रईस थे; और यरुशलीम में रहते थे|35और जिबा'ऊन में जिबा'ऊन का बाप य'ईएल रहता था, जिसकी बीवी का नाम मा'का था,36और उसका पहलौठा बेटा 'अबदोन, और सूर और क़ीसऔर बा'ल और नयिर और नदब,37और जदूर और अख़ियू और ज़करियाह और मिक़लोत;38मिक़लोत से सिम'आम पैदा हुआ, और वह भी अपने भाइयों के साथ यरुशलीम में अपने भाइयों के सामने रहते थे|39और नयिर से क़ीस पैदा हुआ और क़ीस से साऊल पैदा हुआ और साऊल से यूनतन और मलकीशू'अ और अबीनदाब और इशबा'ल पैदा हुए|40और यूनतन का बेटा मरीबबा'ल था और मरीबबा'ल से मीकाह पैदा हुआ|41और मीकाह के बेटे फ़ीतून और मलिक और तहरी' और आख़ज़ थे;42और आख़ज़ से या'रा पैदा हुआ, और या'रा से 'अलमत और अज़मावत और ज़िमरी पैदा हुए, और ज़िमरी से मौज़ा पैदा हुआ|43और मौज़ा से बिन'आ पैदा हुआ, बिन'आ का बेटा रिफ़ायाह, रिफ़ायाह का बेटा इली'असा, इली'असा का बेटा असील,44और असील के छ: बेटे थे और यह उनके नाम हैं: 'अज़रक़ाम, बोकिरू, और इस्मा'ईल और सग़रियाह और 'अबदियाह और हनान, यह बनी असील थे|
1और फ़िलिस्ती इस्राईल से लड़े और इस्राईल के लोग फ़िलिस्तियों के आगे से भागे और पहाड़ी जिल्बू'आ में क़त्ल हो कर गिरे|2और फ़िलिस्तियों ने साऊल का और उसके बेटों का ख़ूब पीछा किया और फ़िलिस्तियों ने यूनतन और अबीनदाब और मलकीशू'अ को जो साऊल के बेटे थे क़त्ल किया|3और साऊल पर जंग दोबर हो गयी और तीरंदाज़ों ने उसे पा ~लिया और वह तीरंदाज़ों की वजह से परेशान था|4तब साऊल ने अपने सिलाहबरदार से कहा, अपनी तलवार खींच और उससे मुझे छेद दे ऐसा न हो कि यह नामख़्तून आकर मेरी बे 'इज़्ज़ती करें|"लेकिन उसके सिलाहबरदार ने न माना, क्यूँकि वह बहुत डर गया|तब साऊल ने अपनी तलवार ली और उस पर गिरा|5जब उसके सिलाहबरदार ने देखा कि साऊल मर गया तो वह भी तलवार पर गिरा और मर गया|6तब साऊल मर गया और उसके तीनों बेटे भी और उसका सारा ख़ानदान एक साथ मर मिटा|7जब सब इस्राईली लोगों ने जो वादी में थे देखा कि लोग भाग निकले और साऊल और उसके बेटे मर गए हैं, तो वह अपने शहरों को छोड़कर भाग गए और फ़िलिस्ती आकर उनमें बसे|8और दूसरे दिन सुबह को जब फ़िलिस्ती मक़्तूलों को नंगा करने आये, तो उन्होंने साऊल और उसके बेटों को कोहे जिल्बू'आ पर पड़े पाया|9तब उन्होंने उसको नंगा किया और उसका सिर और उसके हथियार ले लिए, और फ़िलिस्तियों के मुल्क में चारों तरफ़ लोग रवाना कर दिए ताकि उनके बुतों और लोगों के पास उस ख़ुशख़बरी को पहुँचायें|10और उन्होंने उसके हथियारों को अपने मा'बूदों के मंदिर में रख्खा और उसके सिर को दजून के मंदिर में लटका दिया|11जब यबीस जिल'आद के सब लोगों ने, जो कुछ फ़िलिस्तियों ने साऊल से किया था सुना|12तो उनमें के सब बहादुर उठे और साऊल की लाश और उसके बेटों की लाशें लेकर उनको यबीस में लाये, और उनकी हड्डियों को यबीस के बलूत के नीचे दफ़्न किया और सात दिन तक रोज़ा रख्खा|13फिर साऊल अपने गुनाह की वजह से, जो उसने ख़ुदावन्द के सामने किया था मरा; इसलिए कि उसने ख़ुदावन्द की बात न मानी, और इसलिए भी कि उससे मशविरा किया जिसका यार जिन्न था, ताकि उसके ज़रि'ए से दरियाफ़्त करे|14और उसने ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त न किया| इसलिए उसने उसको मार डाला और हुकूमत यस्सी के बेटे दाऊद की तरफ़ बदल दी|
1तब सब इस्राईली हबरून में दाऊद के पास जमा' होकर कहने लगे, देख हम तेरी ही हड्डी और तेरा ही गोश्त हैं|2और गुज़रे ज़माने में उस वक़्त भी जब साऊल बादशाह था, तू ही ले जाने और ले आने में इस्राईलियों का रहबर था; और ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझे फ़रमाया, 'तू मेरी क़ौम इस्राईल की गल्लेबानी करेगा, और तू ही मेरी क़ौम इस्राईल का सरदार होगा|"3ग़रज़ इस्राईल के सब बुज़ुर्ग हबरून में बादशाह के पास आये, और दाऊद ने हबरून में उनके साथ ख़ुदावन्द के सामने ~'अहद किया; और उन्होंने ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो समूएल की ज़रिए' फ़रमाया था, दाऊद को मम्सूह किया ताकि इस्राईलियों का बादशाह हो|4और दाऊद और तमाम इस्राईली यरुशलीम को गए (यबूस यही है), और उस मुल्क के बाशिंदे यबूसी वहाँ थे|5और यबूस के बाशिंदों ने दाऊद से कहा कि तू यहाँ आने न पाएगा तोभी दाऊद ने सिय्यून का क़िला' ले लिया, यही दाऊद का शहर है|6और दाऊद ने कहा, जो कोई पहले यबूसियों को मारे वह सरदार और सिपहसालार होगा|" और योआब बिन ज़रुयाह पहले चढ़ गया और सरदार बना|7और दाऊद क़िले' में रहने लगा, इसलिए उन्होंने उसका नाम दाऊद का शहर रख्खा|8और उसने शहर को चारों तरफ़ या'नी मिल्लो से लेकर चारों तरफ़ बनाया और योआब ने बाक़ी शहर की मरम्मत की|9और दाऊद तरक़्क़ी पर तरक़्क़ी करता गया, क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज़ उसके साथ था|10और दाऊद के सूर्माओं के सरदार यह हैं, जिन्होंने उसकी हुकूमत में सारे इस्राईल के साथ उसे मज़बूती दी ताकि जैसा ख़ुदावन्द ने इस्राईल के हक़ में कहा था उसे बादशाह बनाएँ|11दाऊद के सूर्माओं का शुमार यह है: यसुबि'आम बिन हकमूनी जो तीसों का सरदार था| उने तीन सौ पर अपना भाला चलाया और ~उनको एक ही वक़्त में क़त्ल किया|12उसके बा'द अख़ूहीदोदो का बेटा इली'अज़र था जो उन तीनों सूर्माओं में से एक था|13वह दाऊद के साथ फ़सदम्मीम में था जहाँ फ़िलिस्ती जंग करने को जमा' हुए थे|वहाँ ज़मीन का टुकड़ा जौ से भरा हुआ था, और लोग फ़िलिस्तियों के आगे से भागे|14तब उन्होंने उस ज़मीन क्व टुकड़े के बीच में खड़े हो कर उसे बचाया और फ़िलिस्तियों को क़त्ल किया और ख़ुदावन्द ने बड़ी फ़तह देकर उनको रिहा बख़्शी|15और उन तीसों सरदारों में से तीन, दाऊद के साथ थे उस चट्टान पर या'नी अदुल्लाम के मुग़ारे में उतर गए, और फ़िलिस्तियों की फ़ौज रिफ़ाईम की वादी में ख़ेमाज़न थी|16और दाऊद उस वक़्त गढ़ी में था और फ़िलिस्तियों की चौकी उस वक़्त बैतलहम में थी|17और दाऊद ने तरस कर कहा, ऐ काश कोई बैतलहम के उस कुँए का पानी जो फाटक के क़रीब है, मुझे पीने को देता!"18तब वह तीनों फ़िलिस्तियों की सफ़ तोड़ कर निकल गए और बैतलहम के उस कुँए में से जो फाटक के क़रीब है पानी भर लिया और उसे दाऊद के पास लाये लेकिन दाऊद ने न चाहा कि उसे पिए बल्कि उसे ख़ुदावन्द के लिए तपाया|19और कहने लगा कि ख़ुदा न करे कि मैं ऐसा करूँ| क्या मैं इन लोगों का ख़ून पियूँ जो अपनी जानों पर खेले ~हैं? क्यूँकि वह जानबाज़ी कर के उसको लाये हैं| तब ~उसने न पिया| वह तीनों सूर्मा ऐसे ऐसे काम करते थे|20और योआब का भाई अबीशै तीनों का सरदार था| उसने तीन सौ पर भाला चलाया और उनको मार डाला|वह इन तीनों में मशहूर था|21यह तीनों में ~उन दोनों से ज़्यादा ख़ास था और उनका सरदार बना, लेकिन उन पहले तीनों के दर्जे को न पहुँचा|22और बिनायाह बिन यहूयदा' एक क़बज़िएली सूर्मा था जिसने बड़ी बहादुरी के काम किये थे; उसने मोआब के अरिएल के दोनों बेटों को क़त्ल किया, और जाकर बर्फ़ के मौसम में एक गढ़े के बीच एक शेर को मारा|23और उसने पाँच हाथ के एक क़दआवर मिस्री को क़त्ल किया हालाँकि उस मिस्री के हाथ में जुलाहे के शहतीर के बराबर एक भाला था, लेकिन वह एक लाठी लिए हुए उसके पास गया और भाले को उस मिस्री के हाथ से छीन कर उसी के भाले से उसको क़त्ल किया|24यहुयदा के बेटे बिनायाह ने ऐसे ऐसे काम किये और वह उन तीनों सूर्माओं में नामी था|25वह उन तीसों से मु'अज़्ज़िज़ था, लेकिन पहले तीनों के दर्जे को न पहुँचा| और दाऊद ने उसे मुहाफ़िज़ सिपाहियों का सरदार बनाया|26और लश्करों में सूर्मा यह थे: योआब का भाई 'असाहेल और बैतलहमी दोदो का बेटा इलहनान,27और सम्मोत हरूरी, ख़लिसफ़लूनी,28तक़ू'अ, 'इक़्क़ीस, का बेटा 'ईरा, अबी'अज़र 'अन्तोती,29सिब्बकी हुसाती, 'एली अख़ूही,30महरी नतूफ़ाती, हलिद बिन बा'ना नतूफ़ाती,31बनी बिनयमीन के जिब'आ के रीबी का बेटा इत्ती, बिनायाह फ़िर'आतोनी,32जा'स की नदियों का बाशिंदा हूरी, अबिएल 'अरबाती,33'अज़मावत बहरूमी, इल्याहबा सा'लबूनी,34बनी हशीम जिज़ूनी, हरारी शजी का बेटा यूनतन,35और हरारी सक्कार का बेटा अख़ीआम, इलिफ़ाल बिन ऊर,36हिफ़्र मकीराती, अख़ियाह फ़लूनी,37हसरू कर्मिली, नग़री बिन अज़बी,38नातन कला भाई यूएल, मिबख़ार बिन हाजिरी,39सिलक़ 'अम्मूनी, नहरी बैरोती जो योहाब बिन ज़रूयाह का सिलाहबरदार था,40'ईरा ईत्री, जरीब ईत्री,41ऊरियाह हित्ती, ज़बद बिन अख़ली,42सीज़ा रुबीनी का बेटा 'अदीना रूबीनियों का एक सरदार जिसके साथ तीस जवान थे,43हनान बिन मा'का, यूसफ़त मितनी,44'उज़्ज़ियाह 'इस्ताराती, ख़ूताम 'अरो'ईरी के बेटे समा'अ और य'ईएल,45यदी'एलबिन सिमरी और उसका भाई यूख़ा तीसी,46इलीएल महावी, और इलाना'म के बेटे यरीबी और यूसावियाह, और यितमा मोआबी,47इली'एल, और 'ओबेद, और या'सीएल मज़ूबाई|
1यह वह हैं जो सिक़लाज में दाऊद के पास आये जब कि वह हनूज़ क़ीस के बेटे साऊल की वजह से छिपा रहता था, और उन सूर्माओं में थे जो लड़ाई में उसके मददगार थे|2उनके पास कमाने थीं, और वह गु़फान से पत्थर मारते और कमान से तीर चलाते वक़्त दहने और बाएं दोनों हाथों को काम में ला सकते थे और साऊल के बिनयमीनी भाइयों में से थे|3अख़ी'अज़र सरदार था| फिर यूआस बनी समा'आ जिब'आती और यज़ीएल और फ़लत जो अज़मावत के बेटे थे और बराक और याहू 'अन्तोती,4और इसमा'ईया जिबा'ऊनी जो तीसों में सूर्मा और तीसों का सरदार था; और यरमियाह और यहज़ीएल और युहनान और यूज़बा'द जदीराती,5इल'ओज़ी और यरीमोत और बा'लियाह और समरियाह और सफ़तियाह ख़रूफ़ी,6इलक़ाना और यसियाह और 'अज़रिएल और यू'अज़र और यसूबि'आम जो क़ुरही थे|7और यू'ईला और ज़बदियाह जो यरोहाम जदूरी के बेटे थे|8और जद्दियों में से बहुत से अलग होकर बियाबान के क़िले में दाऊद के पास आ गए; वह ताक़तवर सूर्मा और जंग में माहिर ~लोग थे, जो ढाल और बर्छी का इस्ते'माल जानते थे| उनकी सूरतें ऐसीं थीं जैसी शेरों की सूरतें और वह पहाड़ों पर हिरनियों की तरह तेज़ दौड़ते थे:9अव्वल 'अज़र था, 'अबदियाह दूसरा, इलीयाब तीसरा,10मिसमन्ना चौथा, यरमियाह पाँचवाँ,11'अत्ती छठा, इलीएल सातवाँ,12यूहनान आठवाँ, इलज़बा'द नवाँ,13यरमियाह दसवाँ, मकबानी ग्यारहवाँ|14यह बनी जद में सरलश्कर थे| इनमें सबसे छोटा सौ के बराबर और सबसे बड़ा हज़ार के बराबर था|15यह वह हैं जो पहले महीने में यरदन के पार गए जब उसके सब किनारे डूबे हुए थे और उन्होंने वादियों के सब लोगों को पूरब और पश्चिम की तरफ़ भगा दिया|16बनी बिनयमीन और याहूदाह में से कुछ लोग क़िले' में दाऊद के पास आये|17तब दाऊद उनके इस्तक़बाल को निकला और उनसे कहने लगा, अगर तुम नेक नियती से मेरी मदद के लिए मेरे पास आये हो तो मेरा दिल तुमसे मिला रहेगा लेकिन अगर मुझे मेरे दुश्मनों के हाथ में पकड़वाने आये हो हालाँकि मेरा हाथ ज़ुल्म से पाक है तो हमारे बाप दादा का ख़ुदा यह देखे और मलामत करे|"18तब रूह 'अमासी पर नाज़िल हुई और जो उन तीसों का सरदार था और वह कहने लगा, हम तेरे हैं, ऐ दाऊद! और हम तेरी तरफ़ हैं, ऐ यस्सी के बेटे! सलामती तेरी सलामती, और तेरे मददगारों की सलामती हो, क्यूँकि तेरा ख़ुदा तेरी मदद करता है|"तब दाऊद ने उनको क़ुबूल किया और उनको फ़ौज का सरदार बनाया|19और मनस्सी में से कुछ लोग दाऊद से मिल गए जब वह साऊल के मुक़ाबिल जंग के लिए फ़िलिस्तियों के साथ निकला, लेकिन उन्होंने उनकी मदद न की क्यूँकि फ़िलिस्तियों के हाकिमों ने सलाह कर के उसे लौटा दिया और कहने लगे कि वह हमारे सिर काटकर अपने आक़ा साऊल से जा मिलेगा|20जब वह सिक़लाज को जा रहा था मनस्सी में से 'अदना और यूज़बा'द और यदी'एल और मीकाएल और यूज़बा'द और इलीहू और ज़िलती जो बनी मनस्सी में हज़ारों के सरदार थे उससे मिल गए|21उन्होंने ग़ारतगरों के जत्थे के मुक़ाबिले में दाऊद की मदद की क्यूँकि वह सब ताक़तवर सूर्मा और लश्कर के सरदार थे|22बल्कि रोज़-ब-रोज़ लोग दाऊद के पास उसकी मदद को आते गए, यहाँ तक कि ख़ुदा की फ़ौज की तरह एक बड़ी फ़ौज तैयार हो गयी|23और जो लोग जंग के लिए हथियार बाँध कर हबरून में दाऊद के पास आये ताकि ख़ुदावन्द की बात के मुताबिक़ साऊल की ममलुकत को उसकी तरफ़ बदल दें, उनका शुमार यह है|24बनी यहूदाह छ: हज़ार आठ सौ, जो ढाल और नेज़ा लिए हुए जंग के लिए तैयार थे|25बनी शमा'ऊन में से जंग के ले लिए सात हज़ार एक सौ ताक़तवर सूर्मा'26बनी लावी में से चार हज़ार छ: सौ|27और यहूयदा' हारूनियों का सरदार था और उसके साथ तीन हज़ार सात सौ थे|28और सदोक़, एल जवान सूर्मा और उसके आबाई घराने के बाइस सरदार|29और साऊल के भाई बनी बिनयमीन में से तीन हज़ार लेकिन उस वक़्त तक उनका बहुत बड़ा हिस्सा साऊल के घराने का तरफ़दार था|30और बनी इफ़्राईम में से बीस हज़ार आठ सौ ताक़तवर सूर्मा जो अपने आबाई ख़ानदानों में नामी आदमी थे|31और मनस्सी के आधे क़बीले से अठारह हज़ार, जिनके नाम बताये गए थे कि अगर दाऊद को बादशाह बनायें|32और बनी इश्कार में से ऐसे लोग जो ज़माने को समझते और जानते थे कि इस्राईल को क्या करना मुनासिब है उनके सरदार दो सौ थे और उनके सब भाई उनके हुक्म में थे|33और जबूलून में से ऐसे लोग मैदान में जाने और हर क़िस्म की जंगी हथियार के साथ मैदान ए जंग ~के क़ाबिल थे, पचास हज़ार| यह सफ़आराई करना जानते थे और दो दिले न थे|34और नफ़्ताली में से एक हज़ार सरदार और उनके साथ सैंतीस हज़ार ढालें और भाले लिए हुए|35और दानियों में से अट्ठाईस हज़ार छ: सौ मैदान ए जंग ~करने वाले|36और आशर में से चालीस हज़ार जो मैदान में जाने और मा'रका आराई के क़ाबिल थे|37और यरदन के पार के रुबीनियों और जद्दियों और मनस्सी के आधे क़बीले में से एक लाख बीस हज़ार जिनके साथ लड़ाई के लिए हर क़िस्म के जंगी हथियार थे|38यह सब जंगी मर्द जो मैदान ए जंग ~कर सकते थे ख़ुलूस-ए-दिल से हबरून को आये ताकि दाऊद को सारे इस्राईल का बादशाह बनायें और बाक़ी सब इस्राईली भी दाऊद को बादशाह बनाने पर रज़ामंद थे|39और वह वहाँ दाऊद के साथ तीन दिन तक ठहरे और खाते पीते रहे, क्यूँकि उनके भाइयों ने उनके लिए तैयारी की थी|40इसकेअलावा इनके जो उनके क़रीब के थे बल्कि इश्कार और जबलून और नफ़्ताली तक के लोग गधों और ऊँटों और ख़च्चरों और बैलों पर रोटियाँ और मैदे की बनी हुई खाने की चीज़ें और अंजीर की टिकियाँ| और किशमिश के गुच्छे और शराब और तेल लादे हुए और बैल और भेड़ बकरियाँ इफ़रात से लाये इसलिए कि इस्राईल में ख़ुशी थी|
1और दाऊद उन सरदारों से जो हज़ार हज़ार और सौ सौ पर थे या'नी हर एक लश्कर के शख़्स से सलाह ली|2और दाऊद ने इस्राईल की सारी जमा'अत से कहा कि मर्ज़ी हो तो आओ हम हर जगह इस्राईल के सारे मुल्क में अपने बाक़ी भाइयों को जिनके साथ काहिन और लावी भी अपने नवाहीदार शहरों में रहते हैं, कहला भेजें ताकि वह हमारे पास जमा' हों,3और हम अपने ख़ुदा के सन्दूक़ फिर अपने पास ले आयें क्यूँकि हम साऊल के दिनों में उसके तालिब न हुए|4तब सारी जमा'अत बोल उठे कि हम ऐसा ही करेंगे क्यूँकि यह बात सब लोगों की निगाह में ठीक थी|5तब दाऊद ने मिस्र की नदी सीहूर से हमात के मदख़ल तक के सारे इस्राईल को जमा' किया, ताकि ख़ुदा का सन्दूक़ को क़रयत या'रीम से ले आयें|6और दाऊद और सारा इस्राईल बा'ला को या'नी क़रयतया'रीम को जो यहूदाह में है गए, ताकि ख़ुदा के सन्दूक़ को वहाँ ले आयें, जो क़रूबियों पर बैठने वाला ख़ुदावन्द है और इस नाम से पुकारा जाता है|7और वह ख़ुदा के सन्दूक़ को एक नयी पर गाड़ी रख कर अबीनदाब के घर से बाहर निकाल लाये, और 'उज़्ज़ा और अख़ियू गाड़ी को हाँक रहे थे|8और दाऊद और सारा इस्राईल, ख़ुदा के आगे बड़े ज़ोर सेहम्द करते और बरबत और सितार और दफ़ और झांझ और तुरही बजाते चले आते थे|9और जब वह कीदून के खलिहान पर पहुँचे, तो 'उज़्ज़ा ने सन्दूक़ के थामने को अपना बढ़ाया, क्यूँकि बैलों ने ठोकर खायी थी|10तब ख़ुदावन्द का क़हर 'उज़्ज़ा पर भड़का और उसने उसको मार डाला इसलिए कि उसने अपना हाथ सन्दूक़ पर बढ़ाया था और वह वहीँ ख़ुदा के सामने मर गया|11तब दाऊद उदास हुआ, इसलिए कि ख़ुदा 'उज़्ज़ा पर टूट पड़ा और उसने उस मुक़ाम का नाम परज़ 'उज़्ज़ा रख्खा जो आज तक है|12और दाऊद उस दिन ख़ुदा से डर गया और कहने लगा कि मैं ख़ुदा के सन्दूक़ को अपने यहाँ क्यूँ कर लाऊँ ?13इसलिए दाऊद सन्दूक़ को अपने यहाँ दाऊद के शहर में न लाया बल्कि उसे बाहर ही जाती 'ओबेदअदोम के घर में ले गया14तब ख़ुदा का सन्दूक़ 'ओबेदअदोम के घराने के साथ उसके घर में तीन महीने तक रहा, और ख़ुदावन्द ने 'ओबेदअदोम और उसकी सब चीज़ों को बरकत दी|
1और सूर के बादशाह हीराम ने दाऊद के क़ासिद और उसके लिए महल बनाने के लिए देवदार के लट्ठे और राजगीर और बढ़ई भेजे|2और दाऊद जान गया कि ख़ुदावन्द ने उसे बनी-इस्राईल का बादशाह बना कर क़ायम कर दिया है, क्यूँकि उसकी हुकूमत उसके इस्राईली लोगों की ख़ातिर मुम्ताज़ की गई थी|3और दाऊद ने यरुशलीम में और 'औरतें ब्याह लीं, और उससे और बेटे बेटियाँ पैदा हुए|4और उसके उन बच्चों के नाम जो यरुशलीम में पैदा हुए यह हैं: सम्मू'अ और सोबाब और नातन और सुलेमान,5और इब्हार और इलिसू'अ और इलफ़ालत,6और नौजा और नफ़ज और यफ़ी'आ,7और इलिसमा' और और बा'लयद'अ और इलीफ़ालत|8और जब फ़िलिस्तियों ने सुना कि दाऊद मम्सूह होकर सारे इस्राईल का बादशाह बना है तो सब फ़िलिस्ती दाऊद की तलाश में चढ़ आये और दाऊद यह सुनकर उनके मुक़ाबिले को निकला|9और फ़िलिस्तियों ने आकर रिफ़ाईम की वादी में धावा मारा|10तब दाऊद ने ख़ुदा से सवाल किया, क्या मैं फ़िलिस्तियों पर चढ़ जाऊँ? क्या तू उनको मेरे हाथ में कर देगा?" ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया, चढ़ जा क्यूँकि मैं उनको तेरे हाथ में कर दूँगा|"11तब वह बा'ल पराज़ीम में आये और दाऊद ने वहीं उनको मारा और दाऊद ने कहा, ख़ुदा ने मेरे हाथ से दुश्मनों को ऐसा चीरा, जैसे पानी चाक चाक हो जाता है|" इस वजह से उन्होंने उस मक़ाम का नाम बा'ल पराज़ीम रख्खा|12और वह अपने बुतों को वहाँ छोड़ गए, और वह दाऊद के हुक्म से आग में जला दिए गए|13और फ़िलिस्तियों ने फिर उस वादी में धावा मारा|14और दाऊद ने फिर ख़ुदा से सवाल किया, और ख़ुदा ने उससे कहा, तू उनका पीछा न कर, बल्कि उनके पास से कतरा कर निकल जा, और तूत के पेड़ों के सामने से उन पर हमला कर|15और जब तू तूत के दरख़्तों की फुन्गियों पर चलने की जैसी आवाज़ सुने, तब लड़ाई को निकलना क्यूँकि ख़ुदा तेरे आगे आगे फ़िलिस्तियों के लश्कर को मारने के लिए निकला है|"16और दाऊद ने जैसा ख़ुदा ने उसे फ़रमाया था किया और उन्होंने फ़िलिस्तियों की फ़ौज को जिबा'ऊन से जज़र तक क़त्ल किया|17और दाऊद की शोहरत सब मुल्कों में फ़ैल गई, और ख़ुदावन्द ने सब क़ौमों पर उसका ख़ौफ़ बिठा दिया|
1और दाऊद ने दाऊद के शहर में अपने लिए महल बनाए, और ख़ुदा के सन्दूक़ के लिए एक जगह तैयार करके उसके लिए एक ख़ैमा खड़ा किया।2तब दाऊद ने कहा कि लावियों के 'अलावा और किसी को ख़ुदा के सन्दूक़ को उठाना नहीं चाहिए, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उन्हीं को चुना है कि ख़ुदा सन्दूक़ को उठाएँ और हमेशा उसकी ख़िदमत करें।3और दाऊद ने सारे इस्राईल को यरूशलीम में जमा' किया, ताकि ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को उस जगह जो उसने उसके लिए तैयार की थी ले आएँ।4और दाऊद ने बनी हारून को और लावियों को इकट्ठा किया:5या'नी बनी क़िहात में से, ऊरीएल सरदार और उसके एक सौ बीस भाइयों को;6बनी मिरारी में से, 'असायाह सरदार और उसके दो सौ बीस भाइयों को;7बनी जैरसोम में से, यूएल सरदार और उसके एक सौ तीस भाइयों को;8बनी इलीसफ़न में से, समायाह सरदार और उसके दो सौ भाइयों को;9बनी हबरून में से, इलीएल सरदार और उसके अस्सी भाइयों को;10बनी उज़्ज़ीएल में से, 'अम्मीनदाब सरदार और उसके एक सौ बारह भाइयों को।11और दाऊद ने सदोक़ और अबियातर काहिनों की, और ऊरिएल और 'असायाह और यूएल और समायाह और इलीएल और 'अम्मीनदाब लावियों को बुलाया,12और उनसे कहा कि तुम लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदार हो; तुम अपने आपको पाक करो, तुम भी और तुम्हारे भाई भी, ताकि तुम ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के सन्दूक़ को उस जगह जो मैंने उसके लिए तैयार की है ला सको।13क्यूँकि जब तुम ने पहली बार उसे न उठाया, तो ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हम पर टूट पड़ा, क्यूँकि हम क़ानून के मुताबिक़ उसके तालिब नहीं हुए थे।14तब काहिनों और लावियों ने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के सन्दूक़ को लाने के लिए अपने आपको पाक किया।15और बनी लावी ने ख़ुदा के सन्दूक़ को, जैसा मूसा ने ख़ुदावन्द के कलाम के मुवाफ़िक हुक्म किया था, कड़ियों से अपने कन्धों पर उठा लिया।16और दाऊद ने लावियों के सरदारों को फ़रमाया कि अपने भाइयों में से हम्द करने वालों को मुक़र्रर करें कि मूसीक़ी के साज़, या'नी सितार और बरबत और झाँझ बजाएं और आवाज़ बुलन्द करके ख़ुशी से गाएँ।17~तब लावियों ने हैमान बिन यूएल को मुक़र्रर किया, और उसके भाइयों में से आसफ़ बिन बरकियाह को, और उनके भाइयों बनी मिरारी में से ऐतान बिन कौसियाह को;18और उनके साथ उनके दूसरे दर्जे के भाइयों या'नी ज़करियाह, बीन और या'ज़िएल और सिमीरामोत और यहिएल और उन्नी और इलियाब और बिनायाह और मासियाह और मतितियाह और इलीफ़लहू और मिक़िनियाह और 'ओबेदअदोम और य'ईएल को जो दरबान थे।19~ फिर हम्द करने वाले हैमान, आसफ़ और ऐतान मुक़र्रर हुए कि पीतल की झाँझों को ज़ोर से बजाएँ;20और ज़करियाह और 'अज़ीएल और सिमीरामीत और यहीएल और उन्नी और इलियाब और मा'सियाह और बिनायाह सितार को 'अलामीत राग पर छेड़े;21और मतितियाह और इलिफ़लहू और मिक़िनियाह और 'ओबेदअदोम और य'ईएल और 'अज़ज़ियाह शमीनीत राग पर सितार बजाएँ।22और कनानियाह, लावियों का सरदार, हम्द गाने पर मुक़र्रर था; वहहम्द सिखाता था, क्यूँकि वह बड़ा ही माहिर था।23और बरकियाह और इल्क़ाना सन्दूक़ के दरबान थे,24और शबनियाह और यहूसफ़त और नतनिएल और 'अमासी और ज़करियाह और बिनायाह और इली'अज़र काहिन ख़ुदा के सन्दूक़ के आगे आगे नरसिंगे फूँकते जाते थे, और 'आोबेदअदोम और यहियाह सन्दूक़ के दरबान थे।25~तब दाऊद और इस्राईल के बुज़ुर्ग और हज़ारों के सरदार रवाना हुए कि ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को 'ओबेदअदोम के घर से ख़ुशी मनाते हुए लाएँ।26और ऐसा हुआ कि जब ख़ुदा ने उन लावियों की, जो ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक को उठाए हुए थे मदद की, तो उन्होने सात बैल और सात मेंढे क़ुर्बान किए।27और दाऊद और सब लावी जो सन्दूक़ को उठाये हए थे, और हम्द करने वाले और हम्द करने वालों के साथ कनानियाह जो हम्द करने ~में उस्ताद था कतानी लिबासों से मुलब्बस थे, और दाऊद कतान का अफ़ूद भी पहने था।28यूँ सब इस्राईली नारा मारते और नरसिंगों और तुरहियों और झाँझों की आवाज़ के साथ सिरतार और बरबत कों ज़ोर से बजाते हुए, ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को लाए।29और ऐसा हुआ कि जब ख़ुदावन्द का 'अहद का सन्दूक़ दाऊद के शहर में पहुँचा, तो साऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झाँक कर दाऊद बादशाह को ख़ूब नाचते-कूदते देखा, और उसने अपने दिल में उसको हक़ीर जाना।
1~तब वह ख़दा के सन्दूक़ को ले आए और उसे उस ख़ेमा के बीच में जो दाऊद ने उसके लिए खड़ा किया था रखा, और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ ख़ुदा के सामने पेश कीं।2जब दाऊद सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कर चुका तो उसने ख़ुदावन्द के नाम से लोगों को बरकत दी।3और उसने सब इस्राइली लोगों को, क्या आदमी क्या 'औरत, एक एक रोटी और एक एक टुकड़ा गोश्त और किशमिश की एक एक टिकिया दी।4और उसने लावियों में से कुछ को मुक़र्रर किया कि ख़ुदावन्द के सन्दूक़ के आगे ख़िदमत करें, और ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा का ज़िक्र और शुक्र और उसकी हम्द करें।5अव्वल आसफ़ और उसके बा'द ज़करियाह और य'ईएल और सिमीरामोत और यहीएल और मतितियाह और इलियाब और बिनायाह और 'आोबेदअदोम और य'ईएल, सितार और बरबत के साथ, और आसफ़ झाँझों को ज़ोर से बजाता हुआ;6और बिनायाह और यहज़िएल काहिन हमेशा तुरहियों के साथ ख़ुदा के 'अहद के सन्दूक़ के आगे रहा करें।7पहले उसी दिन दाऊद ने यह ठहराया कि ख़ुदावन्द का शुक्र आसफ़ और उसके भाई बजा लाया करें।8ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी करो। उससे दु'आ करो; क़ौमों के बीच उसके कामों का इश्तिहार दो।9उसके सामने हम्द करो, उसकी बड़ाई करो, उसके सब 'अजीब कामों का ज़िक्र करो।10उसके पाक नाम पर फ़ख़्र करो; जो ख़ुदावन्द के तालिब हैं, उनका दिल खु़श रहे।11तुम ख़ुदावन्द और उसकी ताक़त के तालिब हो; तुम हमेश उसके दीदार के तालिब रहो।12तुम उसके 'अजीब कामों को जो उसने किए, और उसके मो'जिज़ों और मुँह के क़ानून को याद रखो13ऐ उसके बन्दे इस्राईल की नसल, ऐ बनी या'क़ूब, जो उसके चुने हुए हो।14वह ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा है, तमाम रू-ए-ज़मीन पर उसके क़ानून हैं।15~हमेशा उसके 'अहद को याद रखो, और हज़ार नसलों तक उसके कलाम को जो उसने फ़रमाया।16उसी 'अहद को जो उसने इब्राहीम से बाँधा, और उस क़सम को जो उसने इस्हाक़ से खाई,17जिसे उसने या'क़ूब के लिए क़ानून के तौर पर और इस्राईल के लिए हमेशा 'अहद के तौर पर क़ायम किया,18यह कहकर, मैं कन'आन का मुल्क तुझको दूँगा, वह तुम्हारा मौरुसी हिस्सा होगा|"19उस वक़्त तुम शुमार में थोड़े थे बल्कि बहुत ही थोड़े और मुल्क में परदेसी थे।20वह एक क़ौम से दूसरी दूसरी क़ौम में और एक मुल्क से दूसरी मुल्क में फिरते रहे।21उसने किसी शख़्स को उनपर ज़ुल्म करने न दिया; बल्कि उनकी ख़ातिर बादशाहों को तम्बीह की,22कि तुम मेरे मम्सूहों को न छुओ और मेरे नबियों को न सताओ|23ऐ सब अहल-ए ज़मीन, ख़ुदावन्द के सामने हम्द करो। रोज़-ब-रोज़ उसकी नजात की बशारत दो।24क़ौमों में उसके जलाल का, सब लोगों में उसके 'अजाइब का बयान करो।25क्यूँकि ख़ुदावन्द बूज़ुर्ग और बहुत ही ता'रीफ़ ~के लायक़ है, वह सब मा'बूदों से ज़्यादा बड़ा है।26इसलिए कि और क़ौमों के सब मा'बूद महज़ बुत हैं; लेकिन ख़ुदावन्द ने आसमानों को बनाया।27'अज़मत और जलाल उसके सामने में हैं, और उसके यहाँ क़ुदरत और शादमानी हैं।28ऐ क़ौमों के क़बीलो! ख़ुदावन्द की, ख़ुदावन्द ही की तम्जीद-ओ-ताज़ीम करो।29ख़ुदावन्द की ऐसी बड़ाई करो जो उसके नाम के शायाँ है। हदिया लाओ, और उसके सामने आओ, पाक आराइश के साथ ख़ुदावन्द को सिज्दा करो।30ऐ सब अहल-ए-ज़मीन! उसके सामने काँपते रहो। जहान क़ायम है, और उसे हिलता नहीं।31आसमान ख़ुशी मनाए और ज़मीन ख़ुश हो, वह क़ौमों में ऐलान करें कि ख़ुदावन्द हुकूमत करता है।32समन्दर और उसकी मामूरी शोर मचाए, मैदान और जो कुछ उसमें है बाग़ बाग़ हो।33तब जंगल के दरख़्त ख़ुशी से ख़ुदावन्द के सामने हम्द करने लगेंगे, क्यूँकि वह ज़मीन का इंसाफ़ करने को आ रहा है।34ख़ुदावन्द का शुक्र करो, इसलिए कि वह नेक है; क्यूँकि उसकी शफ़क़त हमेशा है।35तुम कहो, ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हम को बचा ले, और क़ौमों में से हम को जमा' कर और उनसे हम को रिहाई दे, ताकि हम तेरे कुहूस नाम का शुक्र करें, और ललकारते हुए तेरी ता'रीफ़ करें।36ख़ुदादावन्द इस्राईल का ख़ुदा, अज़ल से 'हमेश तक मुबारक हो!" और सब लोग बोल उठे आमीन! उन्होंने ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ की।37उसने वहाँ ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के आगे आसफ़ और उसके भाइयों को, हर रोज़ के ज़रूरी काम के मुताबिक़ हमेशा सन्दूक़ के आगे ख़िदमत करने को छोड़ा;38और 'आोबेदअदोम और उसके अड़सठ भाइयों को, और 'ओबेदअदोम बिन यदूतून और हूसाह को ताकि दरबान हों।39और सदूक़ काहिन और उसके काहिन भाइयों को ख़ुदावन्द के घर के आगे, जिबा'ऊन के ऊँचे मक़ाम पर, इसलिए40कि वह ख़ुदावन्द की शरी'अत की सब लिखी हुई बातों के मुताबिक़ जो उसने इस्राईल को फ़रमाई, हर सुबह और शाम सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह पर ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं।41उनके साथ हैमान और यदूतून और बाक़ी चुने हुए आदमियों को जो नाम-ब-नाम मज़कूर हुए थे, ताकि ख़ुदावन्द का शुक्र करें क्यूँकि उसकी शफ़क़त हमेशा है।42उन ही के साथ हैमान और यदूतून थे, जो बजाने वालों के लिए तुरहियाँ और झाँझें और ख़ुदा के हम्द ~के लिए बाजे लिए हुए थे, और बनी यदूतून दरबान थे।43तब सब लोग अपने अपने घर गए, और दाऊद लौटा कि अपने घराने को बरकत दे।
1जब दाऊद अपने महल में रहने लगा, तो उसने नातन नबी से कहा, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, लेकिन ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ ख़ेमे में है।2नातन ने दाऊद से कहा, जो कुछ तेरे दिल में है वह कर, क्यूँकि ख़ुदा तेरे साथ है।3और उसी रात ऐसा हुआ कि ख़ुदा का कलाम नातन पर नाज़िल हुआ कि,4जाकर मेरे बन्दे दाऊद से कह कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू मेरे रहने के लिए घर न बनाना।5क्यूँकि जब से मैं बनी-इस्राईल को निकाल लाया, आज के दिन तक मैंने किसी घर में सुकूनत नहीं की; बल्कि ख़ेमा-ब-ख़ेमा और मस्कन-ब-मस्कन फिरता रहा हूँ6उन जगहों में जहाँ जहाँ मैं सारे इस्राईल के साथ फिरता रहा, क्या मैंने इस्राईली क़ाज़ियों में से जिनको मैंने हुक्म किया था कि मेरे लोगों की गल्लेबानी करें, किसी से एक हर्फ़ भी कहा कि तुम ने मेरे लिए देवदार का घर क्यूँ नहीं बनाया?7~तब तू मेरे बन्दे दाऊद से यूँ कहना कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि मैंने तुझे भेड़साले में से जब तू भेड़-बकरियों के पीछे पीछे चलता था लिया, ताकि तू मेरी क़ौम इस्राईल का रहनुमा हो;8और जहाँ कहीं तू गया मैं तेरे साथ रहा, और तेरे सब दुश्मनों को तेरे सामने से काट डाला है, और मैं रूए-ज़मीन के बड़े बड़े आदमियों के नाम की तरह ~तेरा नाम कर दूँगा।9और मैं अपनी क़ौम इस्राईल के लिए एक जगह ठहराऊँगा, और उनको क़ायम कर दूँगा ताकि अपनी जगह बसे रहें और फिर हटाए न जाएँ, और न शरारत के फ़र्ज़न्द फिर उनको दुख देने पाएँगे जैसा शुरू' में हुआ।10और उस वक़्त भी जब मैंने हुक्म दिया कि मेरी क़ौम इस्राईल पर क़ाज़ी मुकर्रर हों, और मैं तेरे सब दुश्मनों को मग़लूब करूँगा। इसके 'अलावा मैं तुझे बताता हूँ कि ख़ुदावन्द तेरे लिए एक घर बनाएगा।11जब तेरे दिन पूरे हो जाएँगे ताकि तू अपने बाप-दादा के साथ मिल जाने को चला जाए, तो मैं तेरे बा'द तेरी नसल को तेरे बेटों में से खड़ा करूँगा, और उसकी हुकूमत को क़ायम करूँगा।12वह मेरे लिए घर बनाएगा, और मैं उसका तख़्त हमेशा के लिए क़ायम करूँगा।13मैं उसका बाप हूँगा और वह मेरा बेटा होगा; और मैं अपनी शफ़क़त उस पर से नहीं हटाऊँगा, जैसे मैंने उस पर से जो तुझ से पहले था हटा ली,14बल्कि मैं उसको अपने घर में और अपनी ममलुकत में हमेशा तक क़ायम रखूँगा, और उसका तख़्त हमेशा तक साबित रहेगा।15~इसलिए नातन ने इन सब बातों और इस सारे ख़्वाब के मुताबिक़ ऐसा ही दाऊद से कहा ।16तब दाऊद बादशाह अन्दर जाकर ख़ुदावन्द के सामने बैठा, और कहने लगा, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा! मैं कौन हूँ, और मेरा घराना क्या है कि तू ने मुझ को यहाँ तक पहुँचाया?17और ये, ऐ ख़ुदा, तेरी नज़र में छोटी बात थी, बल्कि तू ने तो अपने बन्दे के घर के हक़ में आइंदा बहुत दिनों का ज़िक्र किया है, और तू ने ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, मुझे ऐसा माना कि गोया मैं बड़ा मन्ज़िलत वाला आदमी' हूँ।18भला दाऊद तुझ से उस इकराम की निस्बत, जो तेरे ख़ादिम का हुआ और क्या कहे? क्यूँकि तू अपने बन्दे को जानता है।19ऐ ख़ुदावन्द, तू ने अपने बन्दे की ख़ातिर अपनी ही मर्ज़ी से इन बड़े बड़े कामों को ज़ाहिर करने के लिए इतनी बड़ी बात की।20ऐ ख़ुदावन्द, कोई तेरी तरह नहीं और तेरे 'अलावा जिसे हम ने अपने कानों से सुना है और कोई ख़ुदा नहीं।21और रू-ए-ज़मीन पर तेरी क़ौम इस्राईल की तरहऔर कौन सी क़ौम है, जिसे ख़ुदा ने जाकर अपनी उम्मत बनाने को ख़ुद छुड़ाया? ताकि तू अपनी उम्मत के सामने से जिसे तू ने मिस्र से ख़लासी बख़्शी, क़ौमों को दूर करके बड़े और मुहीब कामों से अपना नाम करे।22क्यूँकि तू ने अपनी क़ौम इस्राईल को हमेशा के लिए अपनी क़ौम ठहराया है, और तू ख़ुद ऐ ख़ुदावन्द, उनका ख़ुदा हुआ है।23और अब ऐ ख़ुदावन्द, वह बात जो तू ने अपने बन्दे के हक़ में और उसके घराने के हक में फ़रमाई, हमेशा तक साबित रहे और जैसा तू ने कहा है वैसा ही कर।24और तेरा नाम हमेशा तक क़ायम और बुज़ुर्ग हो ताकि कहा जाए कि रब्ब-उल-अफ़वाज इस्राईल का ख़ुदा है, बल्कि वह इस्राईल ही के लिए ख़ुदा है और तेरे बन्दे दाऊद का घराना तेरे सामने क़ायम रहे।25क्यूँकि तू ने ऐ मेरे ख़ुदा, अपने बन्दा पर ज़ाहिर किया है कि तू उसके लिए एक घर बनाएगा; इसलिए तेरे बन्दे को तेरे सामने दु'आ करने का हौसला हुआ।26और ऐ ख़ुदावन्द तू ही ख़ुदा है, और तू ने अपने बन्दे से इस भलाई का वा'दा किया;27और तुझे पसंद आया कि तू अपने बन्दे के घराने को बरकत बख़्शे, ताकि वह हमेशा तक तेरे सामने क़ायम रहे; क्यूँकि तू ऐ ख़ुदावन्द बरकत दे चुका है, इसलिए वह हमेशा तक मुबारक है|
1इसके बा'द यूँ हुआ कि दाऊद ने फ़िलिस्तियों को मारा और उनको मग़लूब किया, और जात को उसके क़स्बों समेत फ़िलिस्तियों के हाथ से ले लिया।2उसने मोआब को मारा, और मोआबी दाऊद के फ़रमाँबरदार हो गए और हदिए लाए।3दाऊद ने ज़ोबाह के बादशाह हदर'अज़र को भी, जब वह अपनी हुकूमत दरिया-ए-फु़रात तक क़ायम करने गया, हमात में मार लिया।4और दाऊद ने उससे एक हज़ार रथ और सात हज़ार सवार और बीस हज़ार प्यादे ले लिए, और उसने रथों के सब घोड़ों की नालें कटवा दीं, लेकिन उनमें से एक सौ रथों के लिए घोड़े बचा लिए।5जब दमिश्क़ के अरामी ज़ोबाह के बादशाह हदर'अज़र की मदद करने को आए, तो दाऊद ने अरामियों में से बाइस हज़ार आदमी क़त्ल किए।6तब दाऊद ने दमिश्क़ के अराम में सिपाहियों की चौकियाँ बिठाई, और अरामी दाऊद के फ़रमाँबरदार हो गए और हदिए लाए। और जहाँ कहीं दाऊद जाता ख़ुदावन्द उसे फ़तह बख़्शता था।7और दाऊद हदर'अज़र के नौकरों की सोने की ढालें लेकर उनको यरूशलीम में लाया;8और हदर'अज़र के शहरों, तिबखत और कून से दाऊद बहुत सा पीतल लाया, जिससे सुलेमान ने पीतल का बड़ा हौज़ और खम्भा और पीतल के बर्तन बनाए।9जब हमात के बादशाह तू'ऊ ने सुना के दाऊद ने जू़बाह के बादशाह हदर'अज़र का सारा लश्कर मार लिया,10तो उसने अपने बेटे हदूराम को दाऊद बादशाह के पास भेजा ताकि उसे सलाम करे और मुबारक बा'द दे, इसलिए के उसने जंग करके हदर'अज़र को मारा (क्यूँकि हदर'अज़र तू'ऊ से लड़ा करता था), और हर तरह के सोने और चाँदी और पीतल के बर्तन उसके साथ थे।11इनकी भी दाऊद बादशाह ने उस चाँदी और सोने के साथ, जो उसने और सब क़ौमों या'नी अदूम और मोआब और बनी 'अम्मून और फ़िलिस्तियों और 'अमालीक से लिया था, ख़ुदावन्द को नज़्र किया।12और अबीशै। बिन ज़रूयाह ने वादी-ए-शोर में अठारह हज़ार अदूमियों को मारा।13और उसने अदूम में सिपाहियों की चौकियाँ बिठाई, और सब अदूमी दाऊद के फ़रमाँबरदार हो गए। और जहाँ कहीं दाऊद जाता ख़ुदावन्द उसे फ़तह बख़्शता था।14~तब दाऊद सारे इस्राईल पर हुकूमत करने लगा, और अपनी सारी र'इयत के साथ अद्ल-ओ-इन्साफ़ करता था।15और योआब बिन ज़रूयाह लश्कर का सरदार था, और यहूसफ़त बिन अख़ीलूद मुवर्रिख़था;16और सदूक़ बिन अख़ीतोब और अबीमलिक बिन अबियातर काहिन थे, और शौशा मुन्शी था;17और बिनायाह बिन यहूयदा' करेतियों और फ़लेतियों पर था; और दाऊद के बेटे बादशाह के ख़ास मुसाहिब थे।
1इसके बा'द ऐसा हुआ कि बनी 'अम्मून का बादशाह नाहस मर गया, और उसका बेटा उसकी जगह हुकूमत करने लगा।2तब दाऊद ने कहा कि मैं नाहस के बेटे हनून के साथ नेकी करूँगा क्यूँकि उसके बाप ने मेरे साथ नेकी की, तब दाऊद ने क़ासिद भेजे ताकि उसके बाप के बारे में उसे तसल्ली दें। इसलिए दाऊद के ख़ादिम बनी अम्मून के मुल्क में हनून के पास आये कि उसे तसल्ली दें।3~लेकिन बनी 'अम्मून के अमीरों ने हनून से कहा, क्या तेरा ख़्याल है कि दाऊद तेरे बाप की 'इज़्ज़त करता है, तो उसने तेरे पास तसल्ली देनेवाले भेजे हैं ? क्या उसके ख़ादिम तेरे मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने, और उसे तबाह करने, और राज़ लेने नहीं आए हैं?"4तब हनून ने दाऊद के ख़ादिमों को पकड़ा और उनकी दाढ़ी मूँछें मुंडवाकर, उनकी आधी लिबास उनके सुरीनों तक कटवा डाली, और उनको रवाना कर दिया।5तब कुछ ने जाकर दाऊद को बताया कि उन आदमियों से कैसा सुलूक किया गया। तब उसने उनके इस्तक़बाल को लोग भेजे इसलिए कि वह निहायत शरमाते थे, और बादशाह ने कहा कि जब तक तुम्हारी दाढ़ियाँ न बढ़ जाएँ यरीहू में ठहरे रहो, इसके बा'द लौट आना।6जब बनी 'अम्मून ने देखा कि वह दाऊद के सामने नफ़रतअंगेज़ हो गए हैं, तो हनून और बनी 'अम्मून ने मसोपतामिया और अराम, माका और ज़ोबाह से रथों और सवारों को किराया करने के लिए एक हज़ार क़िन्तार चाँदी भेजी।7~इसलिए उन्होंने बत्तीस हज़ार रथों और मा'का के बादशाह और उसके लोगों को अपने लिए किराया कर लिया, जो आकर मीदबा के सामने ख़ैमाज़न हो गए। और बनी 'अम्मून अपने अपने शहर से जमा' हुए और लड़ने को आए।8जब दाऊद ने यह सुना तो उसने योआब और सूर्माओं के सारे लश्कर को भेजा।9तब बनी 'अम्मून ने निकलकर शहर के फाटक पर लड़ाई के लिए सफ़ बाँधी, और वह बादशाह जो आए थे सो उनसे अलग मैदान में थे।10जब योआब ने देखा कि उसके आगे और पीछे लड़ाई के लिए सफ़ बँधी है, तो उसने सब इस्राईल के ख़ास लोगों में से आदमी चुन लिए और अरामियों के मुक़ाबिल उनकी सफ़ आराई की;11और बाक़ी लोगों को अपने भाई अबीशै के सुपुर्द किया, और उन्होंने बनी 'अम्मून के सामने अपनी सफ़ बाँधी।12और उसने कहा कि अगर अरामी मुझ पर ग़ालिब आएँ, तो तू मेरी मदद करना; और अगर बनी 'अम्मून तुझ पर ग़ालिब आएँ, तो मैं तेरी मदद करूँगा।13इसलिए हिम्मत बाँधो, और आओ हम अपनी क़ौम और अपने ख़ुदा के शहरों की ख़ातिर मर्दानगी करें; और ख़ुदावन्द जो कुछ उसे भला मा'लूम हो करे।14तब योआब अपने लोगों समेत अरामियों से लड़ने को आगे बढ़ा, और वह उसके सामने से भागे।15जब बनी 'अम्मून ने अरामियों को भागते देखा, तो वह भी उसके भाई अबीशै के सामने से भाग कर शहर में घुस गए। तब योआब यरूशलीम को लौट आया।16जब अरामियों ने देखा कि उन्होंने बनी-इस्राईल से शिकस्त खाई, तो उन्होंने क़ासिद भेज कर दरिया-ए-फु़रात के पार के अरामियों को बुलवाया; और हदर'अज़र का सिपहसालार सोफ़क उनका सरदार था।17और इसकी ख़बर दाऊद को मिली तब वह सारे इस्राईल को जमा' करके यरदन के पार गया, और उनके क़रीब पहुँचा और उनके मुक़ाबिल सफ़ बाँधी, फ़िर ~जब दाऊद ने अरामियों के मुक़ाबिले में जंग के लिए सफ़ बाँधी तो वह उससे लड़े।18और अरामी इस्राईल के सामने से भागे, और दाऊद ने अरामियों के सात हज़ार रथों के सवारों और चालीस हज़ार प्यादों को मारा, और लश्कर के सरदार सोफ़क को क़त्ल किया।19जब हदर'अज़र के मुलाज़िमों ने देखा कि वह इस्राईल से हार गए, तो वह दाऊद से सुलह करके उसके फ़रमाँबरदार हो गए; और अरामी बनी 'अम्मून की मदद पर फिर कभी राज़ी न हुए।
1फिर नए साल के शुरू' में जब बादशाह जंग के लिए निकलते हैं, योआब ने ताक़तवर लश्कर ले जाकर बनी 'अम्मून के मुल्क को उजाड़ डाला और आकर रब्बा को घेर लिया; लेकिन दाऊद यरूशलीम में रह गया था, और योआब ने रब्बा को घेर करके उसे ढा दिया।2और दाऊद ने उनके बादशाह के ताज को उसके सिर पर से उतार लिया, और उसका वज़न एक क़िन्तार सोना पाया, और उसमें बेशक़ीमत जवाहिर जड़े थे; इसलिए वह दाऊद के सिर पर रखा गया, और वह उस शहर में से बहुत सा लूट का माल निकाल लाया।3उसने उन लोगों को जो उसमें थे, बाहर निकाल कर आरों और लोहे के हींगों और कुल्हाड़ों से काटा, और दाऊद ने बनी 'अम्मून के सब शहरों से ऐसा ही किया। तब दाऊद और सब लोग यरूशलीम को लौट आए।4इसके बा'द जज़र में फ़िलिस्तियों से जंग हुई; तब हूसाती सिब्बकी ने सफ़्फ़ी को जो पहलवान के बेटों में से एक था क़त्ल किया, और फ़िलिस्ती मग़लूब हुए।5और फ़िलिस्तियों से फिर जंग हुई; तब य'ऊर के बेटे इलहिनान ने जाती जूलियत के भाई लहमी को, जिसके भाले की छड़ जुलाहे के शहतीर के बराबर थी, मार डाला।6फिर जात में एक और जंग हुई जहाँ एक बड़ा क़दआवर आदमी था जिसके चौबीस उंगलियाँ, या'नी हाथों में छ: छ: और पाँव में छ: छ: थीं, और वह भी उसी पहलवान का बेटा था।7जब उसने इस्राईल की फ़ज़ीहत की तो दाऊद के भाई सिम'आ के बेटे योनतन ने उसको मार डाला।8यह जात में उस पहलवान से पैदा हुए थे, और दाऊद और उसके ख़ादिमों के हाथ से क़त्ल हुए।
1और शैतान ने इस्राईल के ख़िलाफ़ उठकर दाऊद को उभारा कि इस्राईल का शुमार करें2तब दाऊद ने यूआब से और लोगों के सरदारों से कहा कि जाओ बैरसबा से दान तक इस्राईल का शुमार करो, और मुझे ख़बर दो ताकि मुझे उनकी ता'दाद मा'लूम हो।3योआब ने कहा, ख़ुदावन्द अपने लोगों को जितने हैं, उससे सौ गुना ज़्यादा करे; लेकिन ऐ मेरे मालिक बादशाह, क्या वह सब के सब मेरे मालिक के ख़ादिम नहीं हैं? फिर मेरा ख़ुदावन्द यह बात क्यूँ चाहता है? वह इस्राईल के लिए ख़ता का ज़रिए' क्यूँ बने?"4तो भी बादशाह का फ़रमान यूआब पर ग़ालिब रहा चुनाँचे यूआब रुख़्सत हुआ और तमाम इस्राईल में फिरा और यरूशलीम की लौटा;5और यूआब ने लोगों के शुमार की मीज़ान दाऊद को बतायी और सब इस्राइली ग्यारह लाख शमशीर ज़न मर्द, और यहूदाह चार लाख सत्तर हज़ार शमशीर ज़न शख़्स थे।6लेकिन उसने लावी और बिनयमीन का शुमार उनके साथ नहीं किया था, क्यूँकि बादशाह का हुक्म यूआब के नज़दीक़ नफ़रतअंगेज़ था।7लेकिन ख़ुदा इस बात से नाराज़ हुआ, इसलिए उसने इस्राईल को मारा ।8तब दाऊद ने ख़ुदा से कहा कि मुझसे बड़ा गुनाह हुआ कि मैंने यह काम किया|अब मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने बन्दा क़ुसूर मु'आफ़ कर, क्यूँकि मैंने बेहूदा काम किया है।9और ख़ुदावन्द ने दाऊद के गै़बबीन जाद से कहा;10कि जाकर दाऊद से कह कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि मैं तेरे सामने तीन चीज़ें पेश करता हूँ, उनमें से एक चुन ले, ताकि मैं उसे तुझ पर भेजूँ।11तब जाद ने दाऊद के पास आकर उससे कहा, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता हैू कि तू जिसे चाहे उसे चुन ले:12या तो क़हत के तीन साल; या अपने दुश्मनों के आगे तीन महीने तक हलाक होते रहना, ऐसे हाल में कि तेरे दुश्मनों की तलवार तुझ पर वार करती रहे; या तीन दिन ख़ुदावन्द की तलवार या'नी मुल्क में वबा रहे, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता इस्राईल की सब सरहदों में मारता रहे।अब सोच ले कि मैं अपने भेजनेवाले को क्या जवाब दूँ।13दाऊद ने जाद से कहा, मैं बड़े शिकंजे में हूँ मैं ख़ुदावन्द के हाथ में पड़ूँ क्यूँकि उसकी रहमतें बहुत ज़्यादा हैं लेकिन इन्सान के हाथ में न पड़ूँ।14तब ख़ुदावन्द ने इस्राईल में वबा भेजी, और इस्राईल में से सत्तर हज़ार आदमी मर गए।15और ख़ुदा ने एक फ़रिश्ता यरूशलीम को भेजा कि उसे हलाक करे; और जब वह हलाक करने ही को था, तो ख़ुदावन्द देख कर उस बला से मलूल हुआ और उस हलाक करनेवाले फ़रिश्ते से कहा, बस, अब अपना हाथ खींच। और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता यबूसी उरनान के खलिहान के पास खड़ा था।16और दाऊद ने अपनी आँखें उठा कर आसमान-ओ-ज़मीन के बीच ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते को खड़े देखा, और उसके हाथ में नंगी तलवार थी जो यरूशलीम पर बढ़ाई हुई थी; तब दाऊद और बुज़ुर्ग टाट ओढ़े हुए मुँह के गिरे सिज्दा किया।17और दाऊद ने ख़ुदा से कहा, क्या मैं ही ने हुक्म नहीं किया था कि लोगों का शुमार किया जाए? गुनाह तो मैंने किया, और बड़ी शरारत मुझ से हुई, लेकिन इन भेड़ों ने क्या किया है? ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, तेरा हाथ मेरे और मेरे बाप के घराने के ख़िलाफ़ हो न किअपने लोगों के ख़िलाफ़ के वह वबा में मुब्तिला हों।18तब ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने जाद को हुक्म किया कि दाऊद से कहे कि दाऊद जाकर यबूसी उरनान के खलिहान में ख़ुदावन्द के लिए एक क़ुर्बानगाह बनाए।19और दाऊद जाद के कलाम के मुताबिक़, जो उसने ख़ुदावन्द के नाम से कहा था गया,20और उरनान ने मुड़ कर उस फ़रिश्ते को देखा, और उसके चारों बेटे जो उसके साथ थे छिप गए। उस वक़्त उरनान गेहूँ दाउता था।21जब दाऊद उरनान के पास आया, तब उरनान ने निगाह की और दाऊद को देखा, और खलिहान से बाहर निकल कर दाऊद के आगे झुका और ज़मीन पर सिज्दा किया।22तब दाऊद ने उरनान से कहा कि इस खलिहान की यह जगह मुझे दे दे, ताकि मैं इसमें ख़ुदावन्द के लिए एक क़ुर्बानगाह बनाऊँ; तू इसका पूरा दाम लेकर मुझे दे, ताकि वबा लोगों से दूर कर दी जाए।23उरनान ने दाऊद से कहा, तू इसे ले ले और मेरा मालिक बादशाह जो कुछ उसे भला मा'लूम हो करे। देख, मैं इन बैलों को सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए और दाउने के सामान ईंधन के लिए, और यह गेहूँ नज़्र की क़ुर्बानी के लिए देता हूँ; मैं यह सब कुछ दिए देता हूँ।”24दाऊद बादशाह ने उरनान से कहा, नहीं नहीं, बल्कि मैं ज़रूर पूरा दाम देकर तुझ से खरीद लूँगा, क्यूँकि मैं उसे जो तेरा माल है ख़ुदावन्द के लिए नहीं लेने का, और बगै़र ख़र्च किये सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा|"25तब दाऊद ने उरनान को उस जगह के लिए छ: सौ मिस्क़ाल सोना तौल कर दिया।26और दाऊद ने वहाँ ख़ुदावन्द के लिए मज़बह बनाया और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश कीं और ख़ुदावन्द से दु'आ की; और उसने आसमान पर से सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह पर आग भेज कर उसको जवाब दिया।27और ख़ुदावन्द ने उस फ़रिश्ते को हुक्म दिया, तब उसने अपनी तलवार फिर मियान में कर ली।28उस वक़्त जब दाऊद ने देखा के ख़ुदावन्द ने यबूसी उरनान के खलिहान में उसको जवाब दिया था, तो उसने वहीं क़ुर्बानी चढ़ाई।29क्यूँकि उस वक़्त ख़ुदावन्द का घर जिसे मूसा ने वीरान में बनाया था, और सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह जिबा ऊन की ऊँची जगह में थे।30लेकिन दाऊद ख़ुदा से पूछने के लिए उसके आगे न जा सका, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द के फ़रिश्ता ~की तलवार की वजह से डर गया।
1और दाऊद ने कहा, "यही ख़ुदावन्द ख़ुदा का घर और यही इस्राईल की सोख़्तनी क़ुर्बानी का मज़बह है।”2दाऊद ने हुक्म दिया कि उन परदेसियों को जो इस्राईल के मुल्क में थे जमा' करें, और उसने पत्थरों को तराशने वाले ~मुक़र्रर किए कि ख़ुदा के घर के बनाने के लिए पत्थर काट कर घड़ें।3और दाऊद ने दरवाज़ों के किवाड़ों की कीलों और क़ब्ज़ों के लिए बहुत सा लोहा, और इतना पीतल कि तौल से बाहर था,4और देवदार के बेशुमार लट्ठे तैयार किए, क्यूँकि सैदानी और सूरी देवदार के लट्ठे कसरत से दाऊद के पास लाते थे।5और दाऊद ने कहा कि मेरा बेटा सुलेमान लड़का और ना तजुरबेकार है, और ज़रूर है कि वह घर जो ख़ुदावन्द के लिए बनाया जाए निहायत 'अज़ीम-उश-शान हो, और सब मुल्कों में उसका नाम और शोहरत हो। इसलिए मैं उसके लिए तैयारी करूँगा। चुनाँचे दाऊद ने अपने मरने से पहले बहुत तैयारी की।6तब उसने अपने बेटे सुलेमान को बुलाया और उसे ताकीद की कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए एक घर बनाए।7दाऊद ने अपने बेटे सुलेमान से कहा, यह तो खु़द मेरे दिल में था कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाऊँ।8लेकिन ख़ुदावन्द का कलाम मुझे पहुँचा, कि तू ने बहुत ख़ूँरेज़ी की है और बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ लड़ा है; इसलिए तू मेरे नाम के लिए घर न बनाना, क्यूँकि तू ने ज़मीन पर मेरे सामने बहुत ख़ून बहाया है।9देख, तुझ से एक बेटा पैदा होगा, वह मर्द-ए-सुलह होगा; और मैं उसे चारों तरफ़ के सब दुश्मनों से अम्न बख़्शूँगा, क्यूँकि सुलेमान उसका नाम होगा और मैं उसके दिनों में इस्राईल को अम्न-आो-अमान बख़्शूँगा।10वही मेरे नाम के लिए घर बनाएगा। वह मेरा बेटा होगा और मैं उसका बाप हूँगा, और मैं इस्राईल पर उसकी हुकूमत का तख़्त हमेशा तक-क़ायम रख्खूँगा।11अब ऐ मेरे बेटे ख़ुदावन्द तेरे साथ रहे और तू कामयाब हो और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का घर बना, जैसा उसने तेरे हक़ में फ़रमाया है।12अब ख़ुदावन्द तुझे अक़्ल-ओ-दानाई बख़्शे और इस्राईल के बारे में तेरी हिदायत करे, ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की शरी'अत को मानता रहे।13तब तू कामयाब होगा, बशर्ते कि तू उन क़ानून और अहकाम पर जो ख़ुदावन्द ने मूसा को इस्राईल के लिए दिए एहतियात करके 'अमल करे। इसलिए हिम्मत बाँध और हौसला रख, ख़ौफ़ न कर, परेशान न हो।14देख, मैंने मशक़्क़त से ख़ुदावन्द के घर के लिए एक लाख क़िन्तार सोना और दस लाख क़िन्तार चाँदी, और बेअंदाज़ा पीतल और लोहा तैयार किया है क्यूँकि वह कसरत से है, और लकड़ी और पत्थर भी मैंने तैयार किए हैं, और तू उनको और बढ़ा सकता है।15बहुत से कारीगर पत्थर और लकड़ी के काटने और तराशने वाले, और सब तरह के हुनरमन्द जो क़िस्म क़िस्म के काम में माहिर हैं तेरे पास हैं।16सोने और चाँदी और पीतल और लोहे का कुछ हिसाब नहीं है। इसलिए उठ और काम में लग जा, और ख़ुदावन्द तेरे साथ रहे।17इसके 'अलावा दाऊद ने इस्राईल के सब सरदारों को अपने बेटे सुलेमान की मदद का हुक्म दिया और कहा,18क्या ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे साथ नहीं है? और क्या उसने तुम को चारों तरफ़ चैन नहीं दिया है? क्यूँकि उसने इस मुल्क के बाशिंदों को मेरे हाथ में कर दिया है, और मुल्क ख़ुदावन्द और उसके लोगों के आगे मग़लूब हुआ है।19इसलिए अब तुम अपने दिल को और अपनी जान को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तलाश में लगाओ, और उठो और ख़ुदावन्द ख़ुदा का मक़दिस बनाओ, ताकि तुम ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को और ख़ुदा के पाक बर्तनों को उस घर में, जो ख़ुदावन्द के नाम का बनेगा ले आओ।
1अब दाऊद बुड्ढा और 'उम्र-दराज़ हो गया था, तब उसने अपने बेटे सुलेमान को इस्राईल का बादशाह बनाया।2उसने इस्राईल के सब सरदारों को, काहिनों और लावियों समेत इकट्ठा किया।3तीस बरस के और उससे ज़्यादा 'उम्र के लावी गिने गए, और उनकी गिनती एक एक आदमी को शुमार करके अड़तीस हज़ार थी।4इनमें से चौबीस हज़ार ख़ुदावन्द के घर के काम की निगरानी पर मुक़र्रर हुए, और छ: हज़ार सरदार और मुन्सिफ़ थे,5और चार हज़ार दरबान थे, और चार हज़ार उन साज़ों से ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ करते थे जिनको मैंने या'नी दाऊद ने ता'रीफ़ और बड़ाई ~के लिए बनाया था6और दाऊद ने उनको जैरसोन, क़िहात और मिरारी नाम बनी लावी के फ़रीक़ों में तक़्सीम किया।7जैरसोनियों में से यह थे: ला'दान और सिम'ई।8ला'दान के बेटे: सरदार यहीएल और जैताम और यूएल, यह तीन थे।9सिम'ई के बेटे: सलूमियत और हज़ीएल और हारान, यह तीन थे। यह ला'दान के आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे।10और सिम'ई के बेटे यहत, ज़ीना और य'ऊस और बरी'आ, यह चारों सिम'ई के बेटे थे।11पहला ~यहत था, और ज़ीज़ा दूसरा, और य'ऊस और बरी'आ के बेटे बहुत न थे, इस वजह से वह एक ही आबाई ख़ान्दान में गिने गए।12क़िहात के बेटे: 'अमराम, इज़हार, हबरून और 'उज़्ज़ीएल, यह चार थे।13अमराम के बेटे: हारून और मूसा थे। हारून अलग किया गया, ताकि वह और उसके बेटे हमेशा पाकतरीन चीज़ों की पाक किया करें, और हमेशा ख़ुदावन्द के आगे ख़ुशबू जलाएँ और उसकी ख़िदमत करें, और उसका नाम लेकर बरकत दें।14रहा मर्द-ए-ख़ुदा मूसा, इसलिए उसके बेटे लावी के क़बीले में गिने गए।15मूसा के बेटे: जैरसोम और इली'अज़र थे।16और जैरसोम का बेटा सबुएल सरदार था,17और इली'अज़र का बेटा रहबियाह सरदार था; और इली'अज़र के और बेटे न थे, लेकिन रहबियाह के बहुत से बेटे थे।18इज़हार का बेटा सलूमीत सरदार था।19हबरून के बेटों में पहला यरयाह, अमरियाह दूसरा, यहज़ीएल तीसरा, और यकीमि'आम चौथा था।20उज़्ज़ीएल के बेटों में अव्वल मीकाह सरदार और यसयाह दूसरा था।21मिरारी के बेटे: महली और मूशी। महली के बेटे: इली'अज़र और क़ीस थे।22और इली'अज़र मर गया और उसके कोई बेटा न था सिर्फ़ बेटियाँ थीं, और उनके भाई क़ीस के बेटों ने उनसे ब्याह किया।23मूशी के बेटे: महली और 'ऐदर और यरीमोत, येतीन थे।24लावी के बेटे यही थे, जो अपने अपने आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ थे। उनके आबाई ख़ान्दानों के सरदार जैसा वह नाम-ब- नाम एक एक करके गिने गए यही हैं। वह बीस बरस और उससे ऊपर की 'उम्र से ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत का काम करते थे।25क्यूँकि दाऊद ने कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने अपने लोगों को आराम दिया है, और वह हमेशा तक यरूशलीम में सुकूनत करेगा।26और लावियों को भी घर और उसकी ख़िदमत के सब बर्तनों को फिर कभी उठाना न पड़ेगा।27क्यूँकि दाऊद की पिछली बातों के मुताबिक़ बनी लावी जो बीस बरस और उससे ज़्यादा 'उम्र के थे, गिने गए।28क्यूँकि उनका काम यह था कि ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत के वक़्त, सहनों और कोठरियों में और सब मुक़द्दस चीज़ों के पाक करने में, या'नी ख़ुदा के घर की ख़िदमत के काम में, बनी हारून की मदद करें;29और नज़्र की रोटी का, और मैदे की नज़्र की क़ुर्बानी का ख़्वाह वह बेख़मीरी रोटियों या तवे पर की पकी हुई चीज़ों या तली हुई चीज़ों की हो, और हर तरह के तौल और नाप का काम करें।30और हर सुबह और शाम को खड़े होकर ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी और बड़ाई करें,31और सब्तों और नये चाँदों और मुक़र्ररा 'ईदों में, हमेशा ख़ुदावन्द के सामने पूरी ता'दाद में सब सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ उस क़ाइदे के मुताबिक़ जो उनके बारे में है पेश करें।32और ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत को अन्जाम देने के लिए ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ की हिफ़ाज़त और मक़दिस की निगरानी और अपने भाई बनी हारून की इता'अत करें।
1और बनी हारून के फ़रीक़ यह थे हारून के बेटे नदब, अबीहू और इलि'अज़र और इतमर थे।2नदब और अबीहू अपने बाप से पहले मर गए और उनके औलाद न थी, इसलिए इली'अज़र और इतमर ने कहानत का काम किया।3दाऊद ने इली'अज़र के बेटों में से सदोक़, और इतमर के बेटों में से अख़ीमलिक को उनकी ख़िदमत की तरतीब के मुताबिक़ तक़्सीम किया।4इतमर के बेटों से ज़्यादा इली'अज़र के बेटों में रईस मिले, और इस तरह से वह तक़्सीम किए गए के इली'अज़र के बेटों में आबाई ख़ान्दानों के सोलह सरदार थे; और इतमर के बेटों में से आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ आठ।5इस तरह पर्ची डाल कर और एक साथ ख़ल्त मल्त होकर वह तक़्सीम हुए, क्यूँकि मक़दिस के सरदार और ख़ुदा के सरदार बनी इली'अज़र और बनी इतमर दोनों में से थे।6और नतनीएल मुन्शी के बेटे समायाह ने जो लावियों में से था, उनके नामों को बादशाह और अमीरों और सदोक़ काहिन और अख़ीमलिक बिन अबियातर और काहिनों और लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों के सामने लिखा। जब इली'अज़र का एक आबाई ख़ान्दान लिया गया, तो इतमर का भी एक आबाई ख़ान्दान लिया गया।7और पहली चिट्ठी यहूयरीब की निकली, दूसरी यद'अयाह की,8तीसरी हारिम की, चौथी श'ऊरीम,9पाँचवीं मलकियाह की, छटी मियामीन की10सातवीं हक्कूज़ की, आठवीं अबियाह की,11नवीं यशू'आ की, दसवीं सिकानियाह की,12ग्यारहवीं इलयासिब की, बारहवीं यक़ीम की,13तेरहवीं खुफ़्फ़ाह की, चौदहवीं यसबाब की,14पन्द्रहवीं बिल्जाह की, सोलहवीं इम्मेर की,15सत्रहवीं हज़ीर की, अठारहवीं फ़ज़ीज़ की,16उन्नीसवीं फ़तहियाह की, बीसवीं यहज़िकेल की,17इक्कीसवीं यकिन की, बाइसवीं जम्मूल की,18तेइसवीं दिलायाह की, चौबीसवीं माज़ियाह की।19यह उनकी ख़िदमत की तरतीब थी, ताकि वह ख़ुदावन्द के घर में उस क़ानून के मुताबिक़ आएँ जो उनको उनके बाप हारून की ज़रिए' वैसा ही मिला, जैसा ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने उसे हुक्म किया था।20बाक़ी बनी लावी में से: 'अमराम के बेटों में से सूबाएल, सूबाएल के बेटों में से यहदियाह;21रहा रहबियाह, सो रहबियाह के बेटों में से पहला यस्सियाह।22इज़हारियों में से सलूमोत, बनी सलूमोत में से यहत।23बनी हबरून में से: यरियाह पहला, अमरियाह दूसरा, यह ज़िएल तीसरा, यकमि'आम चौथा।24बनी उज़्ज़ीएल में से: मीकाह; बनी मीकाह में से: समीर।25मीकाह का भाई यस्सियाह, बनी यस्सियाह में से ज़करियाह।26मिरारी के बेटे: महली और मूशी। बनी याज़ियाह में से बिनू27रहे बनी मिरारी, सो याज़ियाह से बिनू और सूहम और ज़क्कूर और 'इब्री।28महली से: इली'अज़र, जिसके कोई बेटा न था।29क़ीस से, क़ीस का बेटा: यरहमिएल।30और मूशी के बेटे: महली और 'ऐदर और यरीमीत। लावियों की औलाद अपने आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ यही थी।31इन्होंने भी अपने भाई बनी हारून की तरह, दाऊद बादशाह और सदूक़ और अख़ीमालिक और काहिनों और लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों के सामने अपना अपनी पर्ची डाला, या'नी सरदार के आबाई ख़ान्दानों का जो हक़ था वही उसके छोटे भाई के ख़ान्दानों का था।
1फिर दाऊद और लश्कर के सरदारों ने आसफ़ और हैमान और यदूतून के बेटों में से कुछ को ख़िदमत के लिए अलग किया, ताकि वह बरबत और सितार और झाँझ से नबुव्वत करें; और जो उस काम को करते थे उनका शुमार उनकी ख़िदमत के मुताबिक़ यह था:2आसफ़ के बेटों में से ज़क्कूर, यूसुफ़, नतनियाह और असरीलाह; आसफ़ के यह बेटे आसफ़ के मातहत थे, जो बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ नबुव्वत करता था।3यदूतून से बनी यदूतून, सो जिदलियाह, ज़री और यसा'याह, हसबियाह और मतितियाह, यह छ: अपने बाप यदूतून के मातहत थे जो बरबत लिए रहता और ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी और हम्द करता हुआ नबुव्वत करता था।4रहा हैमान, वह हैमान के बेटे: बुक़्क़याह, मत्तनियाह, 'उज़्ज़ीएल, सबूएल यरीमोत, हनानियाह, हनानी, इलियाता, जिद्दाल्ती, रूमम्ती'अज़र, यसबिक़ाशा, मल्लूती, हौतीर, और महाज़ियोत;5यह सब हैमान के बेटे थे, जो ख़ुदा की बातों में सींग बुलन्द करने के लिए बादशाह का गै़बबीन था; और ख़ुदा ने हैमान को चौदह बेटे और तीन बेटियाँ दी थीं।6यह सब ख़ुदावन्द के घर में हम्द करने के लिए अपने बाप के मातहत थे, और झाँझ और सितार और बरबत से ख़ुदा के घर की ख़िदमत करते थे। आसफ़ और यदूतून और हैमान बादशाह के हुक्म के ताबे' थे7उनके भाइयों समेत जो ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ और बड़ाई ~की ता'लीम पा चुके थे, या'नी वह सब जो माहिर थे, उनका शुमार दो सौ अठासी था।8और उन्होंने क्या छोटे क्या बड़े क्या उस्ताद क्या शागिर्द, एक ही तरीक़े से अपनी अपनी ख़िदमत के लिए पर्ची डाला।9पहली चिट्ठी आसफ़ की यूसुफ़ को मिली, दूसरी जिदलियाह को, और उसके भाई और बेटे उस समेत बारह थे।10तीसरी ज़क्कूर को, और उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।11चौथी यिज़री को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।12पाँचवीं नतनियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।13छटी बुक्कयाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे|14सातवीं यसरीलाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।15आठवीं यसा'याह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।16नवीं मत्तनियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।17दसवीं सिमई को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।18ग्यारहवीं 'अज़रएल को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।19बारहवीं हसबियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।20तेरहवीं सबूएल को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।21चौदहवीं मतितियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।22पंद्रहवीं यरीमोत को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।23सोलहवीं हनानियाह को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।24सत्रहवीं यसबिक़ाशा को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।25अठारहवीं हनानी को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।26उन्नीसवीं मल्लूती को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।27बीसवीं इलयाता को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।28इक्कीसवीं हौतीर को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।29बाइसवीं जिद्दाल्ती को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।30तेइसवीं महाज़ियोत को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।31चौबीसवीं रूमम्ती 'अज़र को, उसके बेटे और भाई उस समेत बारह थे।
1दरबानों के फ़रीक़ यह थे: क़ुरहियों में मसलमियाह बिन कूरे, जो बनी आसफ़ में से था;2और मसलमियाह के यहाँ बेटे थे: ज़करियाह पहलौठा, यदी'एल दूसरा, जबदियाह तीसरा, यतनीएल चौथा,3ऐलाम पाँचवाँ, यहूहानान छटा, इलीहू'ऐनी सातवाँ था।4और 'ओबेदअदोम के यहाँ बेटे थे: समा'याह पहलौठा, यहूज़बा'द दूसरा, यूआख़ तीसरा, और सकार चौथा, और नतनीएल पाँचवाँ,5'अम्मीएल छटा, इश्कार सातवाँ, फ़'उलती आठवाँ; क्यूँकि ख़ुदा ने उसे बरकत बख़्शी थी।6उसके बेटे समायाह के यहाँ भी बेटे पैदा हुए, जो अपने आबाई खानदान पर सरदारी करते थे क्यूँकि वह ताक़तवर सूर्मा थे।7समायाह के बेटे: उतनी और रफ़ाएल और 'ओबेद और इलज़बा'द, जिनके भाई इलीहू और समाकियाह सूर्मा थे।8यह सब 'ओबेदअदोम की औलाद में से थे। वह और उनके बेटे और उनके भाई ख़िदमत के लिए ताक़त के 'ऐतबार से क़ाबिल आदमी थे, यूँ 'ओबेदअदोमी बासठ थे।9मसलमियाह के बेटे और भाई अठारह सूर्मा थे।10और बनी मिरारी में से हूसा के हाँ बेटे थे: सिमरी सरदार था (वह पहलौठा तो न था, लेकिन उसके बाप ने उसे सरदार बना दिया था),11दूसरा खिलक़ियाह, तीसरा तबलयाह, चौथा ज़करियाह; हूसा के सब बेटे और भाई तेरह थे।12इन्ही में से या'नी सरदारों में से दरबानों के फ़रीक़ थे, जिनका ज़िम्मा अपने भाइयों की तरह ख़ुदावन्द के घर में ख़िदमत करने का था।13और उन्होंने क्या छोटे क्या बड़े, अपने अपने आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ हर एक फाटक के लिए पर्ची डाला।14~पूरब की तरफ़ का पर्ची सलमियाह के नाम निकला। फिर उसके बेटे ज़करियाह के लिए भी, जो 'अक़्लमन्द सलाहकार था, पर्चा डाला गया और उसका पर्चा शिमाल की तरफ़ का निकला।15'ओबेदअदोम के लिए जुनूब की तरफ़ का था, और उसके बेटों के लिए ग़ल्लाखाना का।16सुफ़्फ़ीम और हूसा के लिए पश्चिम की तरफ़ सलकत के फाटक के नज़दीक का, जहाँ से ऊँची सड़क ऊपर जाती है ऐसा कि आमने सामने होकर पहरा दें।17~पूरब की तरफ़ छ: लावी थे, उत्तर की तरफ़ हर रोज़ चार, दक्खिन की तरफ़ हर रोज़ चार, और तोशाख़ाने के पास दो दो।18~पश्चिम की तरफ़ परबार के लिए चार तो ऊँची सड़क पर और दो परबार के लिए।19बनी कोरही और बनी मिरारी में से दरबानों के फ़रीक़ यही थे।20लावियों में से अख़ियाह ख़ुदा के घर के ख़ज़ानों और नज़्र की चीज़ों के ख़ज़ानों पर मुक़र्रर था।21बनी ला'दान: इसलिए ला'दान के ख़ान्दान के जैरसोनियों के बेटे, जो उन आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे, जो जैरसोनी ला'दान से त'अल्लुक रखते थे यह थे: यहीएली।22और यहीएली के बेटे: जैताम और उसका भाई यूएल, ख़ुदावन्द के घर के खज़ानों पर थे।23अमरामियों, इज़हारियों, हबरूनियों और उज़्ज़ीएलियों में से:24सबूएल बिन जैरसोम बिन मूसा, बैत-उल-माल पर मुख़्तार था।25और उसके भाई इली'अज़र की तरफ़ से: उसका बेटा रहबियाह, रहबिया का बेटा यसा'याह, यसा'याह का बेटा यूराम, यूराम का बेटा ज़िकरी, ज़िकरी का बेटा सल्लूमीत।26यह सल्लूमीत और उसके भाई नज़्र की हुई चीज़ों के सब ख़ज़ानों पर मुक़र्रर थे, जिनको दाऊद बादशाह और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों और हज़ारों और सैकड़ों के सरदारों और लश्कर के सरदारों ने नज़्र किया था।27लड़ाइयों की लूट में से उन्होंने ख़ुदावन्द के घर की मरम्मत के लिए कुछ नज़्र किया था।28समुएल गै़बबीन और साऊल बिन क़ीस और अबनेर बिन नेर और योआब बिन ज़रूयाह की सारी नज़्र, ग़रज़ जो कुछ किसी ने नज़्र किया था वह सब सल्लूमीत और उसके भाइयों के हाथ में सुपुर्द था।29इज़हारियों में से कनानियाह और उसके बेटे, इस्राईलियों पर बाहर के काम के लिए हाकिम और क़ाज़ी थे।30हबरूनियों में से हसबियाह और उसके भाई, एक हज़ार सात सौ सूर्मा, मग़रिब की तरफ़ यरदन पार के इस्राईलियों की निगरानी की ख़ातिर ख़ुदावन्द के सब काम और बादशाह की ख़िदमत के लिए तैनात थे।31हबरूनियों में यरयाह, हबरूनियों का उनके आबाई ख़ान्दानों के नस्बों के मुताबिक़ सरदार था। दाऊद की हुकूमत के चालीसवें बरस में वह ढूँड निकाले गए, और जिल'आद के या'ज़ीर में उनके बीच ताक़तवर सूर्मा मिले।32उसके भाई, दो हज़ार सात सौ सूर्मा और आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे, जिनकी दाऊद बादशाह ने रूबीनियों और जहियों और मनस्सी के आधे क़बीले पर ख़ुदा के हर एक काम और शाही मु'आमिलात के लिए सरदार बनाया।
1और बनी इराईल अपने शुमार के मुवाफ़िक़ या'नी आबाई ख़ान्दानों के रईस और हज़ारों और सैकड़ों के सरदार और उनके मन्सबदार जो उन फ़रीक़ों के हर हाल में बादशाह की ख़िदमत करते थे, जो साल के सब महीनों में माह-ब-माह आते और रुख़्सत होते थे, हर फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।2पहले महीने के पहले फ़रीक़ पर यसूबि'आम बिन ज़बदिएल था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।3वह बनी फ़ारस में से था और पहले महीने के लश्कर के सब सरदारों का रईस था।4दूसरे महीने के फ़रीक़ पर दूदे अख़्ही था, और उसके फ़रीक़ में मिकलोत भी सरदार था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे5तीसरे महीने के लश्कर का ख़ास तीसरा सरदार यहूयदा' काहिन का बेटा बिनायाह था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।6यह वह बिनायाह है जो तीसों में ज़बरदस्त और उन तीसों के ऊपर था; उसी के फ़रीक़ में उसका बेटा 'अम्मीज़बा'द भी शामिल था।7चौथे महीने के लिए यूआब का भाई 'असाहील था, और उसके पीछे उसका बेटा ज़बदियाह था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।8पाँचवें महीने के लिए पाँचवाँ सरदार समहूत इज़राख़ी था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।9छटे महीने के लिए छटा सरदार तकू'ई 'इक्कीस का बेटा ईरा था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।10सातवें महीने के लिए सातवाँ सरदार बनी इफ़्राईम में से फ़लूनीख़लस था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।11आठवे महीने के लिए आठवाँ सरदार ज़ारहियों में से हूसाती सिब्बकी था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।12नवें महीने के लिए नवाँ सरदार बिनयमीनियों में से 'अन्तूती अबी'अज़र था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।13दसवें महीने के लिए दसवाँ सरदार ज़ारहियों में से नतूफ़ाती महरी था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।14ग्यारहवें महीने के लिए ग्यारहवाँ सरदार बनी इफ़्राईम में से फ़र'आतीनी बिनायाह था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।15बारहवें महीने के लिए बारहवाँ सरदार गुतनीएलियों में से नतूफ़ाती ख़ल्दी था, और उसके फ़रीक़ में चौबीस हज़ार थे।16इस्राईल के क़बीलों पर रूबीनियों का सरदार इली'अज़र बिन ज़िकरी था, शमा'ऊनियों का सफ़तियाह बिन मा'का;17लावियों का हसबियाह बिन क़मूएल, हारूनियों का सदोक़;18यहूदाह का इलीहू, जो दाऊद के भाइयों में से था; इश्कार का 'उमरी बिन मीकाएल;19ज़बूलून का इसमाइयाह बिन 'अबदियाह, नफ़्ताली का यरीमोत बिन 'अज़रिएल;20बनी इफ़्राईम का हूसी'अ बिन 'अज़ाज़ियाह, मनस्सी के आधे क़बीले का यूएल बिन फ़िदायाह;21जिल'आद में मनस्सी के आधे क़बीले का 'ईदू बिन ज़करियाह, बिनयमीन का या'सीएल बिन अबनेर;22दान का 'अज़रि'एल बिन यरोहाम। यह इस्राईल के क़बीलों के सरदार थे।23लेकिन दाऊद ने उनका शुमार नहीं किया था जो बीस बरस या कम उम्र के थे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने कहा था कि मैं इस्राईल को आसमान के तारों की तरह बढ़ाऊँगा।24ज़रूयाह के बेटे यूआब ने गिनना तो शुरू 'किया, लेकिन ख़त्म नहीं किया था कि इतने में इस्राईल पर क़हर नाज़िल हुआ, और न वह ता'दाद दाऊद बादशाह की तवारीख़ी ता'दादों में दर्ज हुई।25शाही ख़ज़ानों पर 'अज़मावत बिन 'अदिएल मुक़र्रर था, और खेतों और शहरों और गाँव और क़िलों' के ख़ज़ानों पर यहूनतन बिन उज़्ज़ियाह था;26और काश्तकारी के लिए खेतों में काम करनेवालों पर 'अज़री बिन कलूब था;27और अंगूरिस्तानों पर सिम'ई रामाती था, और मय के ज़ख़ीरों के लिए अंगूरिस्तानों की पैदावार पर ज़बदी शिफ़मी था;28और जै़तून के बाग़ों और गूलर के दरख़्तों पर जो नशेब के मैदानों में थे, बा'ल हनान जदरी था; और यूआस तेल के गोदामों पर;29और गाय-बैल के गल्लों पर जो शारून में चरते थे, सितरी शारूनी था; और साफ़त बिन 'अदली गाय-बैल के उन गल्लों पर था जो वादियों में थे;30और ऊँटों पर इस्माईली ओबिल था, और गधों पर यहदियाह मरूनोती था;31और भेड़-बकरी के रेवड़ों पर याज़ीज़ हाजिर था। यह सब दाऊद बादशाह के माल पर मुक़र्रर थे।32दाऊद का चचा योनतन सलाह कार और अक़्लमंद और मुन्शी था, और यहीएल बिन हकमूनी शहज़ादों के साथ रहता था।33अख़ीतुफ़ल बदशाह का सलाह कार था, और हूसीअरकी बादशाह का दोस्त था।34और अख़ीतुफ़ल से नीचे यहूयदा' बिन बिनायाह और अबियातर थे, और शाही फ़ौज का सिपहसालार यूआब था।
1दाऊद ने इस्राईल के सब हाकिमों को जो क़बीलों के सरदार थे, और उन फ़रीक़ों के सरदारों को जो बारी बारी बादशाह की ख़िदमत करते थे, और हज़ारों के सरदारों और सैकड़ों के सरदारों, और बादशाह के और उसके बेटों के सब माल और मवेशी के सरदारों, और ख़्वाजा सराओं और बहादुरों बल्कि सब ताक़तवर सूर्माओं को यरूशलीम में इकट्ठा किया।2तब दाऊद बादशाह अपने पाँव पर उठ खड़ा हुआ, और कहने लगा, ऐ मेरे भाइयों और मेरे लोगों, मेरी सुनो! मेरे दिल में तो था कि ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ के लिए आरामगाह, और अपने ख़ुदा के लिए पाँव की कुर्सी बनाऊँ, और मैंने उसके बनाने की तैयारी भी की;3लेकिन ख़ुदा ने मुझ से कहा कि तू मेरे नाम के लिए घर नहीं बनाने पाएगा, क्यूँकि तू जंगी मर्द है और तू ने ख़ूनबहाया है।4तो भी ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने मुझे मेरे बाप के सारे घराने में से चुन लिया कि मैं हमेशा इस्राईल का बादशाह रहूँ, क्यूँकि उसने यहूदाह को रहनुमा होने के लिए मुन्तख़ब किया; और यहूदाह के घराने में से मेरे बाप के घराने को चुना है, और मेरे बाप के बेटों में से मुझे पसंद किया ताकि मुझे सारे इस्राईल का बादशाह बनाए।5और मेरे सब बेटों में से (क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझे बहुत से बेटे दिए हैं) उसने मेरे बेटे सुलेमान को पसंद किया, ताकि वह इस्राईल पर ख़ुदावन्द की हुकूमत के तख़्त पर बैठे।6उसने मुझ से कहा, 'तेरा बेटा सुलेमान मेरे घर और मेरी बारगाहों को बनाएगा, क्यूँकि मैंने उसे चुन लिया है कि वह मेरा बेटा हो और मैं उसका बाप हूँगा।7और अगर वह मेरे हुक्मों और फ़रमानों पर 'अमल करने में साबित क़दम रहे जैसा आज के दिन है, तो मैं उसकी बादशाही हमेशा तक क़ायम रखूँगा।'8फिर अब सारे इस्राईल या'नी ख़ुदावन्द की जमा'अत के सामने और हमारे ख़ुदा के सामने, तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सब हुक्मों को मानो और उनके तालिब हो, ताकि तुम इस अच्छे मुल्क के वारिस हो; और उसे अपने बा'द अपनी औलाद के लिए हमेशा के लिए मीरास छोड़ जाओ।9और तू ऐ मेरे बेटे सुलेमान, अपने बाप के ख़ुदा को पहचान और पूरे दिल और रूह की मुस्त'इदी से उसकी 'इबा'दत कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द सब दिलों को जाँचता है, और जो कुछ ख़्याल में आता है उसे पहचानता है। अगर तू उसे ढूँडे तो वह तुझ को मिल जाएगा, और अगर तू उसे छोड़े तो वह हमेशा के लिए तुझे रद्द कर देगा।10इसलिए होशियार हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुझ को मक़दिस के लिए एक घर बनाने को चुना है, इसलिए हिम्मत बाँध कर काम कर।11तब दाऊद ने अपने बेटे सुलेमान को हैकल के उसारे और उसके मकानों और ख़ज़ानों और बालाख़ानों और अन्दर की कोठरियों और कफ़्फ़ारागाह की जगह का नमूना,12और उन सब चीज़ों, या'नी ख़ुदावन्द के घर के सहनों और आस पास की कोठरियों और ख़ुदा के घर के ख़ज़ानों और नज़्र की हुई चीज़ों के ख़ज़ानों का नमूना भी दिया जो, उसको रूह' से मिला था;13और काहिनों और लावियों के फ़रीक़ों और ख़ुदावन्द के घर की 'इबादत के सब काम और ख़ुदावन्द के घर की 'इबादत के सब बर्तन के लिए,14या'नी सोने के बर्तनों के वास्ते सोना तोल कर हर तरह की ख़िदमत के सब बर्तनों के लिए, और चाँदी के सब बर्तनों के वास्ते चाँदी तौल कर हर तरह की ख़िदमत के सब बर्तनों के लिए,15और सोने के शमा'दानों और उसके चिराग़ों के लिए एक एक शमा'दान, और उसके चराग़ों का सोना तोल कर; और चाँदी के शमा'दानों के लिए एक एक शमा'दान, और उसके चराग़ों के लिए हर शमा'दान के इस्ते'माल के मुताबिक़ चाँदी तौल कर;16और नज़्र की रोटी की मेज़ों के वास्ते एक एक मेज़ के लिए सोना तोल कर, और चाँदी की मेज़ों के लिए चाँदी;17और काँटों और कटोरों और प्यालों के लिए ख़ालिस सोना दिया, और सुनहले प्यालों के लिए एक एक प्याले के लिए तौल कर, और चाँदी के प्यालों के वास्ते एक एक प्याले के लिए तौल कर;18और ख़ुशबू की क़ुर्बानगाह के लिए चोखा सोना तौल कर, और रथ के नमूने या'नी उन करूबियों के लिए जो पर फैलाए ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को ढाँके हुए थे, सोना दिया।19यह सब या'नी इस नमूने के सब काम ख़ुदावन्द के हाथ की तहरीर से मुझे समझाए गए।20दाऊद ने अपने बेटे सुलेमान से कहा, हिम्मत बाँध और हौसले से काम कर, ख़ौफ़ न कर, परेशान न हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा जो मेरा ख़ुदा है तेरे साथ है। वह तुझ कोन छोड़ेगा और न छोड़ा करेगा, जब तक ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत का सारा काम तमाम न हो जाए।21और देख, काहिनों और लावियों के फ़रीक़ ख़ुदा के घर की सारी ख़िदमत के लिए हाज़िर हैं, और हर क़िस्म की ख़िदमत के लिए सब तरह के काम में हर शख़्स जो माहिर है बख़ुशी तेरे साथ हो जाएगा; और लश्कर के सरदार और सब लोग भी तेरे हुक्म में होंगे।
1और दाऊद बादशाह ने सारी जमा'अत से कहा कि ख़ुदा ने सिर्फ़ मेरे बेटे सुलेमान को चुना है, और वह अभी लड़का और नातज़ुरबेकार है; और काम बड़ा है, क्यूँकि वह महल इन्सान के लिए नहीं बल्कि ख़ुदावन्द ख़ुदा के लिए है।2और मैंने तो अपने मक़दूर भर अपने ख़ुदा की हैकल के लिए सोने की चीज़ों के लिए सोना, और चाँदी की चीज़ों के लिए चाँदी, और पीतल की चीज़ों के लिए पीतल, लोहे की चीज़ों के लिए लोहा, और लकड़ी की चीज़ों के लिए लकड़ी, और 'अक़ीक़ और जड़ाऊ पत्थर और पच्ची के काम के लिए रंग बिरंग के पत्थर, और हर क़िस्म के बेशक़ीमत जवाहिर और बहुत सा संग-ए-मरमर तैयार किया है।3और चूँकि मुझे अपने ख़ुदा के घर की लौ लगी है और मेरे पास सोने और चाँदी का मेरा अपना ख़ज़ाना है, इसलिए मैं उसकी भी उन सब चीज़ों के 'अलावा जो मैंने उस मुक़द्दस हैकल के लिए तैयार की हैं, अपने ख़ुदा के घर के लिए देता हूँ।4या'नी तीन हज़ार क़िन्तार सोना जो ओफ़ीर का सोना है, और सात हज़ार क़िन्तार ख़ालिस चाँदी 'इमारतों की दीवारों पर मढ़ने के लिए;5और कारीगरों के हाथ के हर क़िस्म के काम के लिए सोने की चीज़ों के लिए सोना, और चाँदी की चीज़ों के लिए चाँदी है। तो कौन तैयार है कि अपनी ख़ुशी से अपने आपको आज ख़ुदावन्द के लिए मख़्सूस' करे?6तब आबाई ख़ान्दानों के सरदारों और इस्राईल के क़बीलों के सरदारों और हज़ारों और सैंकड़ों के सरदारों और शाही काम के नाज़िमों ने अपनी ख़ुशी से तैयार होकर,7ख़ुदा के घर के काम के लिए, सोना पाँच हज़ार क़िन्तार और दस हज़ार दिरहम, और चाँदी दस हज़ार क़िन्तार, और पीतल अठारह हज़ार क़िन्तार, और लोहा एक लाख क़िन्तार दिया।8और जिनके पास जवाहिर थे, उन्होंने उनकी जैरसोनी यहीएल के हाथ में ख़ुदावन्द के घर के ख़ज़ाने के लिए दे डाला।9तब लोग शादमान हुए, इसलिए कि उन्होंने अपनी ख़ुशी से दिया क्यूँकि उन्होंने पूरे दिल से रज़ामन्दी से ख़ुदावन्द के लिए दिया था; और दाऊद बादशाह भी निहायत शादमान हुआ।10~फिरदाऊद ने सारी जमा'अत के आगे ख़ुदावन्द का शुक्र किया, और दाऊद कहने लगा, ऐ ख़ुदावन्द, हमारे बाप इस्राईल के ख़ुदा! तू हमेशा से हमेशा तक मुबारक हो।11ऐ ख़ुदावन्द, 'अज़मत और क़ुदरत और जलाल और ग़लबा और हशमत तेरे ही लिए हैं, क्यूँकि सब कुछ जो आसमान और ज़मीन में है तेरा है। ऐ ख़ुदावन्द, बादशाही तेरी है, और तू ही बहैसियत-ए-सरदार सभों से मुम्ताज़ है।12और दौलत और 'इज़्ज़त तेरी तरफ़ से आती है, और तू सभों पर हुकूमत करता है, और तेरे हाथ में क़ुदरत और तवानाई हैं, और सरफ़राज़ करना और सभों को ज़ोर बख़्शना तेरे हाथ में है।13और अब ऐ हमारे ख़ुदा, हम तेरा शुक्र और तेरे जलाली नाम की ता'रीफ़ करते हैं।14~लेकिन मैं कौन और मेरे लोगों की हक़ीक़त क्या कि हम इस तरह से ख़ुशी ख़ुशी नज़राना देने के क़ाबिल हों? क्यूँकि सब चीजें तेरी तरफ़ से मिलती हैं, और तेरी ही चीज़ों में से हम ने तुझे दिया है।15क्यूँकि हम तेरे आगे परदेसी और मुसाफ़िर हैं जैसे हमारे सब बाप-दादा थे। हमारे दिन रू-ए-ज़मीन पर साये की तरह हैं, और क़याम नसीब नहीं।16ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, यह सारा ज़ख़ीरा जो हम ने तैयार किया है कि तेरे पाक नाम के लिए एक घर बनाएँ, तेरे ही हाथ से मिला है और सब तेरा ही है।17ऐ मेरे ख़ुदा, मैं यह भी जानता हूँ कि तू दिल को जाँचता है, और रास्ती में तेरी खुशनूदी है। मैंने तो अपने दिल की रास्ती से यह सब कुछ रज़ामंदी से दिया, और मुझे तेरे लोगों को जो यहाँ हाज़िर हैं, तेरे सामने ख़ुशी ख़ुशी देते देख कर ख़ुशी हासिल हुई।18ऐ ख़ुदावन्द, हमारे बाप-दादा अब्रहाम, इज़्हाक और इस्राईल के ख़ुदा, अपने लोगों के दिल के ख़्याल और तसव्वुर में यह बात सदा जमाए रख, और उनके दिल को अपनी जानिब मुसत'ईद कर।19और मेरे बेटे सुलेमान को ऐसा कामिल दिल 'अता कर कि वह तेरे हुक्मों और शहादतों और क़ानून को माने और इन सब बातों पर 'अमल करे, और उस हैकल को बनाए जिसके लिए मैंने तैयारी की है।20फिर दाऊद ने सारी जमा'अत से कहा, अब अपने ख़ुदावन्द ख़ुदा को मुबारक कहो। तब सारी जमा'अत ने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को मुबारक कहा, और सिर झुकाकर उन्होंने ख़ुदावन्द और बादशाह के आगे सिज्दा किया।21दूसरे दिन ख़ुदावन्द के लिए ज़बीहों को ज़बह किया और ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी कु़र्बानियाँ पेश कीं, या'नी एक हज़ार बैल और एक हज़ार मेंढे और एक हज़ार बर्रे म'ए उनके तपावनों के चढ़ाए, और बकसरत कु़र्बानियाँ कीं जो सारे इस्राईल के लिए थीं।22और उन्होंने उस दिन निहायत ख़ुशी के साथ ख़ुदावन्द के आगे खाया-पिया और उन्होंने दूसरी बार दाऊद के बेटे सुलेमान को बादशाह बनाकर, उसको ख़ुदावन्द की तरफ़ से पेशवा होने और सदोक़ को काहिन होने के लिए मसह किया।23तब सुलेमान ख़ुदावन्द के तख़्त पर अपने बाप दाऊद की जगह बादशाह होकर बैठा और कामयाब हुआ, और सारा इस्राईल उसका फ़रमाँबरदार हुआ।24और सब हाकिम और बहादुर और दाऊद बादशाह के सब बेटे भी सुलेमान बादशाह के फ़रमाँबरदार हुए।25और ख़ुदावन्द ने सारे इस्राईल की नज़र में सुलेमान को निहायत सरफ़राज़ किया, और उसे ऐसा शाहाना दबदबा 'इनायत किया जो उससे पहले इस्राईल में किसी बादशाह को नसीब न हुआ था।26दाऊद बिन यस्सी ने सारे इस्राईल पर हुकूमत की;27और वह 'अर्सा जिसमें उसने इस्राईल पर हुकूमत की चालीस बरस का था। उसने हबरून में सात बरस और यरूशलीम में तैतीस बरस हुकू़मत की।28और उसने निहायत बुढ़ापे में ख़ूब 'उम्र रसीदा और दौलत-ओ-इज़्ज़त से आसूदा होकर वफ़ात पाई, और उसका बेटा सुलेमान उसकी जगह बादशाह हुआ।29दाऊद बादशाह के काम शुरू' सर तक, आख़िर सब के सब समुएल नबी की तवारीख़ में और नातन नबी की तवारीख़ में और जाद नबी की तवारीख़ में,30या'नी उसकी सारी हुकूमत और ज़ोर और जो ज़माने उस पर और इस्राईल पर और ज़मीन की सब ममलुकतों पर गुज़रे, सब उनमें लिखे हैं।
1और सुलेमान बिन दाऊद अपनी ममलुकत में ठहरा ~हुआ और ख़ुदावन्द उसका ख़ुदा उसके साथ रहा और उसे बहुत बुलन्द ~किया|~2और सुलेमान ने सारे इस्राईल या'नी हज़ारों और सैंकड़ो के सरदारों और क़ाज़िओं, और सब इस्राईलियों के रईसों से ज़ो आबाई ख़ानदानो के सरदार थे बातें कीं|3और सुलेमान सारी ज़मा'अत साथ जिबा'उन के ऊँचे मक़ाम को गया क्यूँकि ख़ुदा का ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ जैसे ख़ुदावन्द के बन्दे मूसा ने विराने ~में बनाया था वहीं था|4लेकिन ख़ुदा के सन्दूक़ को दाऊद क़रीयत-या'रीम से उस मक़ाम में उठा लाया था जो उस ने उसके लिए तैयार किया था क्यूँकि उसने उस के लिए यरुशलीम में एक~ख़ेमा खड़ा किया था|5लेकिन पीतल का वह मज़बह जिसे बज़लीएल बिन ऊरी बिन हूर ने बनाया था वहीं ख़ुदावन्द के मस्कन के आगे था|फिर सुलेमान उस जमा'अत के साथ वहीं गया|6और सुलेमान वहाँ पीतल के मज़बह के पास जो ख़ुदावन्द के आगे ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ में था गया और उस पर एक हज़ार सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं|7उसी रात ख़ुदा सुलेमान को दिखाई दिया और उस से कहा, “माँग मैं तुझे क्या दूँ?8सुलेमान ने ख़ुदा से कहा, “ तूने मेरे बाप दाऊद पर बड़ी मेहरबानी की और मुझे उसकी जगह बादशाह बनाया|9अब ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, जो वा'दा तूने मेरे बाप दाऊद से किया वह बरक़रार रहे] क्यूँकि तूने मुझे एक ऐसी क़ौम का बादशाह बनाया है जो कसरत में ज़मीन की ख़ाक के ज़र्रों की तरह है|10इसलिए मुझे हिक्मत-ओ-मा'रिफत इनायत कर ताकि मै इन लोगों के आगे अन्दर बाहर आया जाया करूँ क्यूँकि ~तेरी इस बड़ी क़ौम का इन्साफ़ कौन कर सकता है?11तब ख़ुदा ने सुलेमान से कहा चुँकि तेरे दिल में यह बात थी और तूने न तो दौलत न माल न इज़्ज़त न अपने दुश्मनो की मौत माँगी और न लम्बी 'उम्र की तलब की बल्कि अपने लिए हिकमत-ओ-मा'रिफ़त की दरख़्वास्त की ताकि मेरे लोगों का जिन पर मैंने तुझे बादशाह बनाया है इन्साफ़ करें|12इसलिए ~हिकमत-ओ-मा'रिफ़त तुझे 'अता हुई है और मै तुझे इस क़दर दौलत और माल और 'इज़्ज़त बख़्शूँगा कि न तू उन बादशाहों में से जो तुझ से पहले हुए किसी को नसीब हुई और न किसी को तेरे बा'द नसीब होगी|13चुनाँचे सुलेमान जिबा'ऊन के ऊँचे मक़ाम से या'नी~ख़ेमा-ए- इज्तिमा'अ~के आगे से~यरुशलीम को लौट आया और बनी इस्राईल पर बादशाहत ~करने लगा|14और सुलेमान ने रथ और सवार ज़मा कर लिए और उसके पास एक हज़ार चार सौ रथ और बारह हज़ार सवार थे,जिनको उसने रथों के शहरों में और यरुशलीम में बादशाह के पास रखा|15और बादशाह ने यरुशलीम में चाँदी और सोने को कसरत की वजह से पत्थरों की तरह ~और देवदारों को नशेब की ज़मीन के गूलर के दरख़्तों की तरह ~बना दिया|16और सुलेमान के घोड़े मिस्र से आते थे और बादशाह के सौदागर उनके झुंड के झुंड या'नी हर झुंड ~का मोल करके उनको लेते थे|17और वह एक रथ छ:सौ मिस्क़ाल चांदी और एक घोड़ा डेढ़ सौ मिस्क़ाल में लेते और मिस्र से ले आते थे और इसी तरह हित्तियों के सब बादशाहों और आराम के बादशाहों के लिए उन ही के वसीला से उन को लाते थे|
1और सुलेमान ने 'इरादा किया कि एक घर ख़ुदावन्द के नाम के लिए और एक घर अपनी हुकूमत के लिए बनाए|2और सुलेमान ने सत्तर हज़ार भोझ उठाने वाले ~और पहाड़ में अस्सी हज़ार पत्थर काटाने वाले और तीन हज़ार छ:सौ आदमी उनकी निगरानी के लिए गिनकर ठहरा दिए|3और सुलेमान ने सूर के बादशाह हूराम के पास कहला भेज़ा कि जैसा तूने मेरे बाप दाऊद के साथ किया और उसके पास देवदार की लकड़ी भेजी कि वह अपने रहने के लिए एक घर बनाए वैसा ही मेरे साथ भी कर4मैं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाने को हूँ कि उसके लिए पाक करूँ और उसके आगे ख़ुशबूदार मसाल्हे का ख़ुशबू जलाऊ, और वह सबतों और नए चाँदों और ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की मुक़र्ररा 'ईदों पर हमेशा ~नज़्र की रोटी और सुबह और शाम की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए हो क्यूँकि यह हमेशा तक इस्राईल पर फ़र्ज़ है|5और वह घर जो मै बनाने को हूँ ‘अज़ीम उश शान होगा क्यूँकि हमारा ख़ुदा सब मा'बूदों से 'अज़ीम है|6लेकिन उसके लिए कौन घर बनाने के लिए काबिल है जिस हाल के आसमान में बल्कि आसमानों के आसमान में भी वह समां नहीं सकता तो भला मै कौन हूँ जो उसके सामने ख़ुशबू जलाने के 'अलावा किसी और ख़्याल से उसके लिए घर बनाऊँ?|7इसलिए ~अब तू मेरे पास एक ऐसे शख़्स को भेज दे जो सोने और चाँदी और पीतल और लोहे के काम में और अर्ग़वानी और क़िर्मिज़ी और नीले कपड़े के काम में माहिर हो और नक़्क़ाशी भी जानता हो ताकि वह उन कारीगरों के साथ रहे जो मेरे बाप दाऊद के ठहराए हुए यहुदाह और यरुशलीम में मेरे पास हैं|8और देवदार और सनोबर और सन्दल के लट्ठे लुबनान से मेरे पास भेजना क्यूँकि मै जनता हु तेरे नौकर लुबनान की लकड़ी कटाने में होशियार है और मेरे नौकर तेरे नौकरों के साथ रहकर,9मेरे लिए बहुत सी लकड़ी तैयार करेंगे क्यूँकि~वह घर जो मै बनाने को हूँ बहुत आ’लिशान होगा10और मै तेरे नौकरों या'नी लकड़ी कटाने वालों को बीस हज़ार कुर साफ़ किया हुआ गेहू और बीस हज़ार कुर जौ,और बीस हज़ार बत मय और बीस हज़ार बत तेल दूँगा|11तब सूर के बादशाह हूराम ने जवाब लिखकर उसे सुलेमान के पास भेजा कि चूँकि ख़ुदावन्द को अपने लोगों से मुहब्बत है इसलिए उस ने तुझको उन का बादशाह बनाया है|12और हूराम ने यह भी कहा ख़ुदावन्द इस्राएल का ख़ुदा जिस ने आसमान और ज़मीन को पैदा किया मुबारक हो कि उस ने दाऊद बादशाह को एक दाना बेटा फ़हम-व-मा'रिफ़त से मा'मूर बख़्शा ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए एक घर और अपनी हुकूमत के लिए एक घर बनाए|13तब मैंने अपने बाप हूराम के एक होशियार शख़्स को जोअक़्ल से मा'मूर है भेज दिया है|14वह दान की बेटियों में से एक 'औरत का बेटा है और उसका बाप सूर का बाशिन्दा था|वह सोने और चाँदी और पीतल और लोहे और पत्थर और लकड़ी के काम में और अर्गवानी और नीले और क़िर्मिज़ी और कतानी कपड़े के काम में माहिर और हर तरह की नक़्क़ाशी और हर क़िस्म की सन'अत में ताक़ है ताकि तेरे हुनरमन्दों और मेरे मख़दूम तेरे बाप दाऊद के हुनरमंदों के साथ उसके लिए जगह मुक़र्रर हो जाए|15और अब गेंहूँ और जौ और तेल और शराब जिनका मेरे मालिक ने ज़िक्र किया है वह उनको अपने ख़ादिमों के लिए भेजे|16और जितनी लकड़ी तुझको ज़रूरत है हम लुबनान से काटेंगे और उनके बेड़े बनवाकर समुन्दर ही समुन्दर तेरे पास याफ़ा में पहुँचाएँगें, फिर तू उनको यरुशलीम को ले जाना|17और सुलेमान ने इस्राईल के मुल्क में के सब परदेसियों को शुमार किया जैसे उसके बाप दाऊद ने उनको शुमार किया था और वह ~एक लाख तिरपन हज़ार छ:सौ निकले|18और उसने उन में से सत्तर हज़ार को बोझ उठाने वालो ~पर और अस्सी हज़ार को पहाड़ पर पत्थर काटने के लिए और तीन हज़ार छ:सौ को लोगों से काम लेने के लिए नज़ीर ठहराया|
1और सुलेमान यरुशलीम में कोह-ए-मोरियाह पर जहाँ उसके बाप दाऊद ने ख़्वाब ~देखा उसी जगह जैसे दाऊद ने तैयारी कर के मुक़र्रर किया या'नी उरनान यबूसी के खलीहान में ख़ुदावन्द का घर बनाने लगा|2और उसने अपनी हुकूमत के चौथे साल के दूसरे महीने की दूसरी तारीख़ को बनाना शूरू' किया|3और जो बुनियाद सुलेमान ने ख़ुदा के घर की ता’मीर के लिए डाली वह यह है उसका तूल हाथों के हिसाब से पहले नाप के मवाफ़िक़ साठ हाथ और 'अरज बीस हाथ था|4और घर के सामने के उसारा की लम्बाई घर की चौड़ाई के मुताबिक़ बीस हाथ और ऊँचाई एक सौ बीस हाथ थी और उस ने उसे अन्दर से ख़ालिस सोने से मेंढा|5और उसने बड़े घर की छत सनोबर के तख़्तों से पटवाई, जिन पर चोखा सोना मंढा था और उसके ऊपर खजूर के दरख़्त और ज़न्जीरे बनाई|6और जो ख़ूबसूरती के लिए उस ने उस घर को बेशक़ीमत जवाहिर से दुरूस्त किया और सोना परवाइम का सोना था|7और उसने घर को यानी उसके शहतीरों ,चौखटों ,दिवारो और किवाड़ो को सोने से मंढ़ा और दीवारों पर करुबियों की सूरत कंदा की|8और उसने पाक तरीन मकान बनाया जिसकी लम्बाई घर के चौड़ाई के मुताबिक़ बीस हाथ और उसकी चौड़ाई बीस हाथ थी और उसने उसे छ:सौ क़िन्तार चोखे सोने से मंढ़ा|9और कीलों का वज़न पचास मिस्क़ाल सोने का था और उसमें ऊपर की कोठरियाँ भी सोने से मंढ़ा|10और उसने पाकतरिन मकान में दो करुबियों को तराशकर बनाया और उन्होंने उनको सोने से मंढ़ा|11और करुबियों के बाज़ू बीस हाथ लम्बे थे,एक करूबी का एक बाज़ू पाँच हाथ का घर की दीवार तक पहुँचा हुआ और दूसरा बाज़ू भी पाँच हाथ का दूसरे करूबी के बाज़ू तक पहुँचा हुआ था|12और दूसरे करूबी का एक बाज़ू पाँच हाथ का घर की दिवार तक पहुँचा हुआ और दूसरा बाज़ू भी पाँच हाथ का दूसरे करूबी के बाज़ू से मिला हुआ था|13इन करुबियों के पर बीस हाथ तक फैले हुएं थे और वह अपने पाँव पर खड़े थे और उनके मुँह उस घर की तरफ़ थे|14और उसने पर्दः आसमानी और अर्गवानी और क़िरमिज़ी कपड़े और महीन कतान से बनाया उस पर करुबियों को कढ़वाया|15और उसने घर के सामने पैंतीस पैंतीस हाथ ऊँचे दो सुतून बनाए,और हर एक के सिरे पर पाँच हाथ का ताज़ था|16और उसने इल्हामगाह में ज़ंजीरे बनाकर सुतूनों के सिरों पर लगाए और एक सौ अनार बनाकर ज़ंजीरों में लगा दिए|17और उसने हैकल के आगे उन सुतूनों ~को एक दाहिनी और दूसरे को बाई तरफ़ खड़ा किया और जो दहिने था उसका नाम यक़ीन और जो बाएँ था उसका नाम बो'अज़ रखा|
1और उसने पीतल का एक मजबह बनाया,उसकी लम्बाई बीस हाथ और चौड़ाई बीस हाथ और ऊंचाई दस हाथ थी|2और उसने एक ढाला हुआ बड़ा हौज बनाया जो एक किनारा से दूसरे किनारे तक दस हाथ था,वह गोल था और उसकी ऊंचाई पाँच हाथ थी और उसका घर तीस हाथ के नाप का था|3और उसके नीचे बैलों की सूरते उसके आस पास ~दस-दस हाथ तक थी और उस बड़े हौज को चारों तरफ़ से घेरे हुए थी, यह बैल दो क़तारों में थे और उसी के साथ ढाले गए थे|4और वह बारह बैलों पर धरा हुआ था, तीन का चेहरा उत्तर की तरफ़ और तीन का चेहरा पश्चिम की तरफ़ और तीन का चेहरा दक्खिन की तरफ़ और तीन का चेहरा पूरब की तरफ़ था और वह बड़ा हौज़ उनके ऊपर था, और उन सब के पिछले 'आज़ा अन्दर के चेहरा थे|5उसकी मोटाई चार उंगल की थी और उसका किनारा प्याला के किनारह की तरह और सोसन के फूल से मुशाबह था,उसमे तीन हज़ार बत की समाई थी|6और उसने दस हौज़ भी बनाने और पाँच दहनी और पाँच बाई तरफ़ रखें ताकि उन में सोख़्तनी क़ुर्बानी की चीज़ें धोई जाएँ, उनमे वह उन्हीं चीज़ों को धोते थे लेकिन वह बड़ा हौज़ काहिनों के नहाने के लिए था|7और उसने सोने के दस शमा’दान उस हुक्म के मुताबिक़ ~बनाए जो उनके बारे में मिला था उसने उनको हैकल में पाँच दहनी और पाँच बाई तरफ़ रखा|8और उसने दस मेज़े भी बनाई और उनको हैकल में पाँच दहनी पाँच बाई तरफ़ रखा और उसने सोने के सौ कटोरे बनाए|9और उस ने काहिनों का सहन और बड़ा सहन और उस सहन के दरवाज़ों को बनाया और उनके किवाड़ों को पीतल से मेंढ़ा|10और उसने उस बड़े हौज़ को पूरब की तरफ़ दहिने हाथ दक्खिन चेहरा पर रखा|11और हूराम ने बर्तन और बेल्चे और कटोरे बनाए ,इसलिए हूराम ने उस काम को जिसे वह सुलेमान बादशाह के लिए ख़ुदा के घर में कर रहा था तमाम किया|12या’नी दोनों सुतूनों और कुरे और दोनों ताज जो उन दोनों सुतूनों पर थे और सुतूनों ~की चोटी पर के ताजों के दोनों कुरों को ढाकने की दोनों जालियाँ;13और दोनों जालियों के लिए चार सौ अनार या'नी हर जाली के लिए अनारों की दो दो क़तारें ताकि सुतूनों ~पर के ताजों के दोनों कुरें ढक जाए|14और उसने कुर्सियाँ भी बनाई और उन कुर्सियों पर हौज़ लगाये|15और एक बड़ा हौज़ और उसके नीचे बारह बैल;16और देगें ,बेल्चे और काँटे और उसके सब बर्तन ~उसके बाप हूराम ने सुलेमान बादशाह के लिए ख़ुदावन्द के घर के लिए झलकते हुए पीतल के बनाए|17और बादशाह ने उन सब को यरदन के मैदान में सुक्कात और सरीदा के बीच की चिकनी मिटी में ढाला|18और सुलेमान ने यह सब बर्तन इस कशरत से बनाए कि उस पीतल का वज़न मा'लूम न हो सका|19और सुलेमान ने उन सब बर्तन को जो ख़ुदा के घर में थे बनाया ,या'नी सोने की क़ुर्बानगाह और वह ~मेजें भी जिन पर नज़्र की रोटियां रखीं जाती थीं|20और ख़ालिस सोने के शमा'दान चिराग़ों के साथ ताकि वह दस्तूर के मुताबिक़ ~इल्हमगाह के आगे रोशन रहें|21और सोने बल्कि कुन्दन के फूल और~चिराग़ों~और चमटे ;|22और गुलगीर और कटोरे और चमचे और ख़ुशबू दान ख़ालिस सोने के और घर का मदख़ल या'नी उसके अन्दुरुनी दरवाज़े पाकतरीन मकान के लिए और घर या'नी हैकल के दरवाज़े सोने के थे|
1इस तरह सब काम जो सुलेमान ने ख़ुदावन्द के घर के लिए बनवाया ख़त्म हुआ और सुलेमान अपने बाप दाऊद की पाक की हुई चीज़ों या'नी सोने और चाँदी और सब बर्तन को अन्दर ले आया और उनको ख़ुदा के घर के ख़ज़ाना में रख़ दिया|2तब सुलेमान ने इस्राईल के बुज़ुर्गों और क़बीलों के सब रईसों या'नी बनी-इस्राईल के आबाई ख़ानदानों के सरदार को यरुश्लीम में इकट्ठा किया ताकि वह दाऊद के शहर से जो सिय्यून है ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़ ले आएं|3और इस्राईल के सब लोग सातवे महीने की 'ईद में बादशाह के पास जमा' हुए|4इस्राईल के सब बुज़ुर्ग आए और लावी ने सन्दूक़ उठाया|5और वह सन्दूक़ को ख़ेमा-ए-इज्तिमा'अ को और सब पाक बर्तन ~को जो उस ख़ेमा में थे ले आए| इनको लावी कहिन लाए थे|6और सुलेमान बादशाह और इस्राईल की सारी जमा'अत ने जो उसके पास इकट्ठी हुई थी सन्दूक़ के आगे खड़ा होकर भेड़ बकरियाँ और बैल ज़बह किए ऐसा कि कसरत की वजह से उनका शुमार-ओ-हिसाब नहीं हो सकता था|7और काहिनों ने ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को उसकी जगह घरकी इल्हामगाह में जो पाकतरीन मकान है या'नी करुबियों के बाज़ुओं के नीचे लाकर रखा8और करूबी अपने कुछ सन्दूक़ की जगह के ऊपर फैलाए हुए थे और यूँ करूबी सन्दूक़ और उसकी चोबों को ऊपर से ढांके हुए थे|9और चोबें ऐसी लम्बी थीं कि उनके सिरे सन्दुक़़ से निकले हुए इल्हामगाह के आगे दिखाई देते थे लेकिन बाहर से नज़र नहीं आते थे और वह आज के दिन तक वहीँ है|10और उस सन्दूक़ में कुछ न था 'अलावा पत्थर की उन दो लौहों के जिनको मूसा ने होरेब पर उस में रखा ~था जब ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल से जिस वक़्त वह मिस्र से निकले थे 'अहद बांधा|11और ऐसा हुआ कि जब काहिन पाक मकान से निकले (क्यूँकि सब काहिन जो हाज़िर थे अपने को पाक़ कर के आए थे और बारी बारी से ख़िदमत नही करते थे|12और लावी जो गाते थे वह सब के सब जैसे आसफ़ और हैमान और यदूतून और उनके बेटे और उनके भाई कतानी कपड़े से मुलव्वस होकर और झांझ और सितार और बरबत लिए हुए मजबह के पूरबी किनारे पर खड़े थे और उनके साथ एक सौ बीस काहिन थे जो नरसिंगे फूँक रहे थे|)13तो ऐसा हुआ कि जब नरसिंगे फूँकने वालें और गाने वाले मिल गए ताकि ख़ुदावन्द की हम्द और शुक्रगुज़ारी में उन सब की एक आवाज़ सुनाई दे और जब नरसिंगो ~और झाँझों और मूसीक़ी के सब साजों के साथ उन्होंने अपनी आवाज़ बलन्द कर के ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ ~की कि वह अच्छा है क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा हैं तो वह घर जो ख़ुदावन्द का घर है अब्र से भर गया|14यहाँ तक कि काहिन अब्र की वजह ~से ख़िदमत के लिए खड़े न रह सके इसलिए कि ख़ुदा का घर ख़ुदावन्द के जलाल से भर गया था|
1तब सुलेमान ने कहा, "ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है कि वह गहरी तारीकी में रहेगा|"2लेकिन मैंने एक घर तेरे रहने के लिए बल्कि तेरी हमेशा ~सुकूनत के वास्ते एक जगह बनाई है|3और बादशाह ने अपना मुँह फेरा और इस्राईल की जमा'अत को बरकत दी और इस्राईल की सारी जमा'अत खड़ी रही|4तब उसने कहा,”ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो जिस ने अपने मुँह से मेरे बाप दाऊद से कलाम किया" और उसे अपने हाथों से यह कहकर पूरा किया| "5कि जिस दिन मै अपनी क़ौम को मुल्के मिस्र से निकाल लाया तब से मै ने इस्राईल के सब क़बीलों में से न तो किसी शहर को चुना ताकि उसमे घर बनाया जाए और वहाँ मेरा नाम हो और न किसी आदमी को चुना ताकि वह मेरी क़ौम इस्राईल का पेशवा हो|6लेकिन मैंने यरुश्लीम को चुना कि वहाँ मेरा नाम हों और दाऊद को चुना ताकि वह मेरी क़ौम इस्राईल पर हाकिम हों|7और मेरे बाप दाऊद के दिल में था की ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाए|8लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा, ”चूँकि मेरे नाम के लिए एक घर बनाने का ख़्याल तेरे दिल में था इसलिए तूने अच्छा किया कि अपने दिल में ऐसा ठाना|"9तू भी तो इस घर को न बनाना बल्कि तेरा बेटा जो तेरे सुल्ब से निकलेगा वही मेरे नाम के लिए घर बनाएगा|’10और खुदवन्द ने अपनी वह बात जो उसने कही थी पूरी की क्यूँकि मैं अपने बाप दाऊद की जगह उठा हूँ और जैसा ख़ुदावन्द ने वा'दा किया था मैं इस्राईल के तख़्त पर बैठा हूँ और मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए उस घर को बनाया है|11और वही मैंने वह सन्दूक़ रखा है जिस में ख़ुदावन्द का वह 'अहद है जो उसने बनी इस्राईल से किया|12और सुलेमान ने इस्राईल की सारी जमा'अत के आमने सामने ~ख़ुदावन्द के मज़बह के आगे खड़े होकर अपने हाथ फैलाए|13( क्यूँकि सुलेमान ने पाँच हाथ लम्बा और पाँच हाथ चौड़ा और तीन हाथ ऊँचा पीतल का एक मिम्बर बना कर सहन के नीचें में उसे रखा था ,उसी पर वह खड़ा था,तब उसने इस्राईल की सारी जमा'अत के आमने सामने ~घुटने टेके और आसमान की तरफ़ अपने हाथ फैलाए )14और कहने लगा ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा तेरी तरह न तो आसमान में न ज़मीन पर कोंई ख़ुदा है|तू अपने उन बन्दों के लिए जो तेरे सामने अपने सारे दिल से चलते है 'अहद और रहमत को निगाह रखता है|15तूने अपने बन्दे मेरे बाप दाऊद के हक़ में वह बात क़ायम रखी जिसका तूने उससे वा'दा किया था ,तूने अपने मुँह से फ़रमाया उसे अपने हाथ से पूरा किया जैसा आज के दिन है|16अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के साथ उस क़ौल को भी पूरा कर जो तूने उस से किया था कि तेरे हाथ मेरे सामने इस्राईल के तख़्त पर बैठने के लिए आदमी की कमी न होगी बशर्ते कि तेरी औलाद जैसे तू मेरे सामने चलता रहा वैसे ही मेरी शरी'अत पर अमल करने के लिए अपनी रास्ते की एहतियात रखें|17और अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा जो क़ौल तूने अपने बन्दा दाऊद से किया था वह सच्चा साबित किया जाए|18लेकिन क्या ख़ुदा फ़िलहक़ीक़त आदमियों के साथ ज़मीन पर सुकूनत करेगा? देख आसमान बल्कि आसमानों के आसमान में भी तू रुक नहीं सकता तू यह घर तो कुछ भी नहीं जिसे मैंने बनाया !|19तो भी ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा अपने बन्दे की दु'आ और मुनाजात का लिहाज़ कर कि उस फ़रियाद दु'आ को सून ले जो तेरा बन्दा तेरे सामने करता है|20ताकि तेरी आँखे इस घर की ~तरफ़ या’नी उसी जगह की तरफ़ जिसकी बारे में ~तूने फ़रमाया कि मैं अपना नाम वहाँ रखूँगा दिन और रात खुली रहे ताकि तू उस दु'आ को सूने जो तेरा बन्दा इस मक़ाम की तरफ़ चेहरा कर के तुझ से करेगा|21और तू अपने बन्दा और अपनी क़ौम इस्राईल की मुनाजात को जब वह इस जगह की तरफ़ चेहरा कर के करें तो सून लेना बल्कि तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सून लेना और सुनकर मु'आफ़ कर देना|22अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी का गुनाह करे और उसे क़सम खिलाने के लिए उसकों हल्फ़ दिया जाए और वह आकर इस घर में तेरे मज़बह के आगे क़सम खाए|23तो तू आसमान पर से सुनकर 'अमल करना और अपने बन्दों का इन्साफ़ कर के बदकार को सज़ा देना ताकि उसके 'आमाल को उसी कि सर डाले और सादिक़ को सच्चा ठहराना ताकि उसकी सदाक़त के मुताबिक़ उसे बदला दे|24और अगर तेरी क़ौम इस्राईल तेरा गुनाह करने के ज़रिए'अपने दुश्मनों से शिकस्त खाए और फिर तेरी तरफ़ रुजू' लाए और तेरे नाम का इकरार कर के इस घर में तेरे सामने दु'आ और मुनाजात करे|25तो तू आसमान पर से सुनकर अपनी क़ौम इस्राईल के गुनाह को बख़्श देना और उनको इस मुल्क में जो तूने उनको और उनके बाप दादा को दिया है फिर ले आना|26और जब इस वजह से कि उन्होंने तेरा गुनाह किया हों आसमान बंद हो जाए और बारिश न हो और वह इस मक़ाम की तरफ़ चेहरा कर के दु'आ करें और तेरे नाम का इक़रार करे और अपने गुनाह से बाज़ आए जब तू उनकों दुःख दे|27तो तू आसमान पर से सुनकर अपने बन्दों और अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ कर देना क्यूँकि तूने उनको उस अच्छी रास्ते की ता'लिम दी जिस पर उनको चलना फ़र्ज़ है और अपने मुल्क पर जैसे तूने अपनी क़ौम के मीरास के लिए दिया है पानी न बरसाना|28अगर मुल्क में काल हो ,अगर वबा हो ,अगर बा'द-ए-समूम या गेरुई टिड्डी या कमला हो ,अगर उनके दुश्मन उनके शहरों के मुल्क में उनकों घेर ले ग़रज़ कैसी ही बला या कैसा ही रोग हो|29तू जो दु'आऔर मुनाजात किसी एक शख़्स या तेरी सारी क़ौम इस्राईल की तरफ़ से हों जिन में से हर शख़्स अपने दुःख और रन्ज को जानकर अपने हाथ इस घर की तरफ़ फैलाए|30तू तो आसमान पर से जो तेरी रहने की जगह है सुनकर मु'आफ़ कर देना और हर शख़्स को जिसके दिल को तू जनता है उसकी सब चालचलन ~के मुताबिक़ बदला देना (क्यूँकि सिर्फ़ तू ही बनी आदम के दिलों को जनता है)31ताकि जब तक वह उस मुल्क में जिसे तूने हमारे बाप दादा को दिया जीते रहे तेरा ख़ौफ़ मानकर तेरे रास्तों में चलें|32और वह परदेसी भी जो तेरी क़ौम इस्राईल में से नहीं है जब वह तेरे बुज़ुर्ग नाम और क़ौमी हाथ और तेरे बुलन्द बाज़ू की वजह ~से दूर मुल्क से आए और आकर इस घर की तरफ़ चेहरा कर के दु'आ करें|33तो तूआसमान पर से जो तेरी रहने की जगह है सून लेना और जिस जिस बात के लिए वह परदेसी तुझ से फ़रियाद करे उसके मुताबिक़ करना ताकि ज़मीन की सब क़ौम तेरे नाम को पहचाने और तेरी क़ौम इस्राईल की तरह तेरा ख़ौफ़ माने और जान ले कि यह घर जिसे मैंने बनाया है तेरे नाम का कहलाता है|34अगर तेरे लोग चाहे ~किसी रास्ते से तू उनको भेजे अपने दुश्मन से लड़ने को निकले और इस शहर की तरफ़ जिसे तूने चुना है और इस घर की तरफ़ जिसे मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है चेहरा करके तुझ से दु'आ करें|35तो तू आसमान पर से उनकी दु'आ और मुनाजात को सुनकर उनकी हिमा’अत करना|36अगर वह तेरा गुनाह करें क्यूँकि कोई इन्सान नहीं जो गुनाह न करता हो और तू उन से नाराज़ होकर उनको दुश्मन के हवाले कर दे ऐसा कि वह दुश्मन उनको क़ैद करके दूर या नज़दीक मुल्क में ले जाए|37तो भी अगर वह उस मुल्क में जहाँ क़ैद होकर पहुँचाए गए ,होश में आए और रुजू' लाए और अपनी ग़ुलामी के मुल्क में तुझ से मुनाजात करें और कहें कि हम ने गुनाह किया है हम टेढ़ी चाल चले और हम ने शरारत की|38इसलिएअगर वह अपनी ग़ुलामी के मुल्क में जहाँ उनको ग़ुलाम कर के ले गए हों अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से तेरी तरफ़ फिरें और अपने मुल्क की तरफ़ जो तूने उनको बाप दादा को दिया और इस शहर की तरफ़ जिसे तूने चुना हैं और इस घर की तरफ़ जो मैनें तेरे नाम के लिए बनाया है चेहरा कर के दु'आ कर|39तो तू आसमान पर से जो तेरी रहने की जगह है उनकी दु'आ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना और अपनी क़ौम को जिस ने तेरा गुनाह किया हो मु'माफ़ कर देना|40इसलिए ऐ मेरे ख़ुदा मै तेरी मिन्नत करता हूँ कि उस दु'आ की तरफ़ जो इस मक़ाम में की ~जाए तेरी ऑंखें खुली और तेरे कान लगें रहें|41इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तू अपनी ताक़त ~के सन्दूक़ के साथ उठकर अपनी आरामगाह में दाख़िल हो, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तेरे काहिन नजात से मुलव्वस हों और तेरे मुक़द्दस नेकी में मगन रहें|42ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा तू अपने मम्सूह की दु'आ नामंजूर न कर ,तू अपने बन्दा दाऊद पर की रहमतें याद फ़रमा|
1और जब सुलेमान दु'आ कर चुका तो आसमान पर से आग़ उतरी और सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहो को भस्म कर दिया और मस्कन ख़ुदावन्द के जलाल से मा'मूर हो गया|2और काहिन ~ख़ुदावन्द के घर में दाख़िल न हों सके इसलिए कि ख़ुदावन्द का घर ख़ुदावन्द के जलाल से मा'मूर था|3और जब आग नाज़िल हुई और ख़ुदावन्द का जलाल उस घर पर छा गया तो सब बनी इस्राईल देख रहे थे ,तब उन्होंने वही फ़र्श पर मुँह के बल ज़मीन तक झुक कर सिज्दा किया और ख़ुदावन्द का शुक्र अदा किया कि वह भला है क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा है|4तब बादशाह और सब लोगो ने ख़ुदावन्द के आगे ज़बीहे ज़बह किए|5और सुलेमान बादशाह ने ज़रिए' हज़ार बैलों और एक लाख बीस हज़ार भेड़ बकरियों की क़ुर्बानी पेश कीं ,यूँ बादशाह और सब लोगों ने ख़ुदा के घर को मख़्सूस किया|6और काहिन अपने अपने मन्सब के मुताबिक़ खड़े थे और लावी भी ख़ुदावन्द के लिए मुसीक़ी के साज़ लिए हुए थे जिनको दाऊद बादशाह ने ख़ुदावन्द का शुक्र बजा लेन को बनाया था जब उसने उनके ज़रिए' से उसकी ता'रीफ़ की थी क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा है और काहिन उनके आगे नरसिंगे फूंकते रहे और सब इस्रईली खड़े रहे हैं|7और सुलेमान ने उस सहन के बीच के हिस्से को जो ~ख़ुदावन्द के घर के सामने था पाक किया क्यूँकि उसने वहाँ सोख़्तनी क़ुर्बानियों और सलामती की क़ुर्बानियों की चर्बी पेश कीं क्यूँकि पीतल के उस मज़बह पर जैसे सुलेमान ने बनाया था सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़्र की क़ुर्बानी और चर्बी के लिए गुंजाइश न थीं|8और सुलेमान और उसके साथ हमात के मदख़ल से मिस्र तक के सब इस्रालियों की बहुत बड़ी जमा'अत ने उस मौक़ा पर सात दिन तक 'ईद मनाई|9और आठवे दिन उनका पाक मजमा' जमा' ~हुआ क्यूँकि वह सात दिन मज़बह के मख़्सूस करने में और सात दिन ईद मानाने में लगे रहे|10और सातवे महीने की तेइसवी तारीख़ को उसने लोगों को रुख़्शत किया, ताकि वह उस नेकी की वजह से जो ख़ुदावन्द ने दाऊद और सुलेमान और अपनी क़ौम इस्राईल से की थी ख़ुश और शादमान होकर अपने ख़ेमों को जाएँ|11यूँ सुलेमान ने ख़ुदावन्द का घर और बादशाह का घर तमाम किया और जो कुछ सुलेमान ने ख़ुदावन्द के घर में और अपने घर में बनाना चाहा उस ने उसे बख़ूबी अंजाम तक पहुँचाया|12और ख़ुदावन्द रात को सुलेमान पर ज़ाहिर हुआ और उससे कहा, “कि मैंने तेरी दु'आ सुनी और इस जगह को अपने वास्ते चुन लिया कि यह क़ुर्बानी का घर हो|13अगर मै आसमान को बंद कर दूँ कि बारिश न हो या टिड्डियों को हुक्म दूँ कि मुल्क को उजाड़ डालें या अपने लोगों के बीच वबा भेजूँ|14तब अगर मेरे लोग जो मरे नाम से कहलाते हैं खाकसार बनकर दु'आ करें और मेरे दीदार के तालिब हों और अपनी बुरी रास्तों से फिरें तो मैं आसमान पर से सुनकर उनका गुनाह मु'आफ़ करूँगा और उनके मुल्क को बहाल कर दूँगा|15अब जो दु'आ इस जगह की जाएगी उस पर मेरी आँखें खुली और मेरे कान लगे रहेंगें|16क्यूँकि मैंने इस घर को चुना और पाक किया कि मेरा नाम यहाँ हमेशा रहे और मेरी आँखें और मेरा दिल बराबर यहीं लगे रहेंगें|17और तू अगर मेरे सामने वैसे ही चले जैसे तेरा बाप दाऊद चलता रहा और जो कुछ मैंने तुझे हुक्म किया उसके मुताबिक़ अम्ल करे और मेरे क़ानून और हुक्मों को माने|18तो मैं ~तेरे तख़्त-ए-हुकूमत को क़ायम रखूँगा जैसा मैंने तेरे बाप दाऊद से 'अहद कर के कहा था कि इस्राईल का सरदार होने के लिए तेरे हाथ मर्द की कभी कमी न होगी|19लेकिन अगर तुम बरगश्ता हो जाओ और मेरे क़ानून -व-हुक्मों को जिनको मैंने तुम्हारे आगे रख्खा है छोड़ कर दो, और जाकर ग़ैर मा'बूदों की 'इबादत करो और उनको सिज्दा करों,20तो ~मैं उनको अपने मुल्क से जो मैंने उनको दिया है जड़ से उखाड़ डालूँगा और इस घर को मैंने अपने नाम के लिए पाक किया है अपने सामने से दूर कर दूँगा और इसको सब क़ोमों में ज़र्ब-उल-मसल और बदनाम कर ~दूँगा|21और यह घर जो ऐसा आलीशान है ,इसलिए हर एक जो इसके पास से गुज़रेगा हैरान होकर कहेगा कि ख़ुदावन्द ने इस मुल्क और इस घर के साथ ऐसा क्यों किया?22तब वह जवाब देंगें इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा को जो उनको मुल्के मिस्र से निकाल लाया था छोड़ दिया और ग़ैर मा'बूदों को इख़्तियार कर के उनको सिज्दा किया और उनकी 'इबादत की इसीलिए ख़ुदावन्द ने उन पर यह सारी मुसीबत नाज़िल की|
1और बीस साल के आख़िर में जिन सुलेमान ने ख़ुदावन्द का घर और अपना घर बनाया था यूँ हुआ कि|2सुलेमान ने उन शहर को जो हुराम ने सुलेमान को दिए थे फिर ता'मीर किया और बनी इस्राईल को वहाँ बसाया|3और सुलेमान हमात ज़ूबाह को जाकर उस पर ग़ालिब हुआ|4और उसने वीरान ~में तदमूर को बनाया और ख़ज़ाना के सब शहरों को भी जो उस ने हमात में बनाए थे|5और उसने ऊपर के बैत हौरून और नीचे के बैत हौरुन को बनाया जो दीवारों और फाटकों और अड़बंगों से मज़बूत किए हुए शहर थे|6और बा'लत और ख़ज़ाना के सब शहर जो सुलेमान के थे और रथों के सब शहर और सवारों के शहर जो कुछ सुलेमान चाहता था कि यरुश्लीम और लुबनान और अपनी ममलुकत की सारी ~सर ज़मी बनाए वह सब बनाया|7और वह सब लोग जो हित्तियों और अमोरियों और फरिज़ियों और हव्वियोंऔर यबुसियों में से बाक़ी रह गए थे और इस्रईली न थे|8उन ही की औलाद जो उनके बा'द मुल्क में बाक़ी रह गई थी जिसे बनी इस्राईल ने नाबूद नहीं किया ,उसी में से सुलेमान ने बेगारी मुक़र्रर किए जैसा आज के दिन है|9लेकिन सुलेमान ने अपने काम के लिए बनी इस्राईल में से किसी को ग़ुलाम न बनाया बल्कि वह जंगी मर्द और उसके लस्करों के सदार और उसके रथों और सवारों पर हुक्मरान थें|10और सुलेमान बादशाह के खास मनसबदार जो लोगों पर हुकूमत करते थे दो सौ पचास थें|11और सुलेमान फ़िर'औन की बेटी को दाऊद के शहर से उस घर में जो उसके लिए बनाया था ले आया क्यूँकि उसने कहाँ, कि “मेरी बीवी इस्राईल के बादशाह दाऊद के घर में नहीं रहेंगी क्यूँकि वह मक़ाम मुक़द्दस है जिन में ख़ुदावन्द का सन्दूक़आ गया है|12तब सुलेमान ख़ुदावन्द के लिए ख़ुदावन्द उस मज़बह पर जिसको उसने उसारें के सामने बनाया था सोख़्तनी क़ुर्बानीयाँ अदा करने लगा|13वह हर दिन के फ़र्ज़ के मुताबिक़ जैसा मूसा ने हुक्म दिया था सब्तों और नए चाँदों और साल में तीन बार मुक़र्रारा 'ईद या'नी फ़तीरी रोटी की 'ईद और हफ़्तों की 'ईद और ख़ेमों की 'ईद पर क़ुर्बानी करता था|14और उस ने बाप दाऊद के हुक्म के मुताबिक़ काहिनों के फ़रीक़ो को हर दिन के फ़र्ज़ के मुताबिक़ उनके काम पर और लावीयों को उनकी ख़िदमत पर मुक़र्रर किया ताकि वह काहिनों के आमने सामने हम्द और ख़िदमत करें और दरबानों को भी उनके फ़रीक़ो ~के मुताबिक़ हर फाटक पर मुक़र्रर किया क्यूँकि मर्दे ख़ुदा दाऊद ने ऐसा ही हुक्म दिया था|15और वह बादशाह के हुक्म से जो उसने काहिनों और लावियों को किसी बात की निस्बत या ख़ज़ानों के हक़ में दिया था बाहर न हुए|16`और सुलेमान का सारा काम ख़ुदावन्द के घर की बुनियाद डालने के दिन से उसके तैयार होने तक तमाम हुआ और ख़ुदावन्द का घर पूरा बन गया|17तब सुलेमान अस्यून जाबर और ऐलोत को गया जो मुल्क-ए-अदोम में समुन्दर के किनारे है|18और हुराम ने अपने नौकरों के हाथ से जहाज़ों और मलाहों को जो समुन्दर से वाक़िफ़ थे उसके पास भेजा और वह सुलेमान के मुलाज़िमों के साथ ओफ़िर में आए और वहाँ से साढ़े चार सौ क़िन्तार ~सोना लेकर बादशाह के पास लाए|
1जब सबा की मलिका ने सुलेमान की शोहरत सुनी तो वह मुश्किल सवालों से सुलेमान को आज़माने के लिए बहुत बड़ी जिलौ और ऊटों के साथ जिन पर मसाल्हे और बाइफ़रात सोना और जवाहर थे यरुशलिम में आई और सुलेमान के पास आकर जो कुछ उसके दिल में था उस सब की बारे में उससे बातें ~की|2सुलेमान ने उसके सब सवालो का जवाब उसे दिया और सुलेमान से कोई बात छिपी हुई न थी कि वह उसकों बता न सका|3जब सबा की मलिका ने सुलेमान की 'अक़्लमन्दी को और उस घर को जो उसने बनाया था|4और उसके दस्तरख़्वान की ने'मत और उसके ख़ादिमो ~की निश्सत और उसके मुलाज़िमो की हाज़िर बाशी और उनके लिबास और उसके साक़ियों और उनके लिबास को और उस ज़ीने को जिस से वह ख़ुदावन्द को घर को जाता था देखा तो उस के होश उड़ गए|5और उसने बादशाह से कहाँ ,”कि वह सच्ची ~ख़बर थी जो मैंने तेरे कामों और तेरी हिकमत की ~बारे में ~अपने मुल्क में सुनी थी|6तोभी जब तक मैंने आकर अपनी आँखों से न देख लिया उनकी बातों का यक़ीन न किया और देख जितनी बड़ी तेरी हिकमत है उसका आधा बयान ~भी मेरे आगे नहीं हुआ तो उस शहर से बढ़कर है जो मैंने सुनी थी|7ख़ुश नसीब है तेरे लोग और ख़ुश नसीब है तेरे यह मलाज़िम जो हमेशा तेरे सामने खड़े रहते और और तेरी हिक्मत सुनते है|8ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मुबारक़ हो जो तुझ से ऐसा राज़ी हुआ कि तुझको अपने तख़्त पर बिठाया ताकि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ से बादशाहों चूँकि तेरे ख़ुदा को इस्राईल से मुहब्बत थी कि उनको हमेशा के लिए क़ायम करे इसलिए उस ने तुझे उनका बादशाह बनाया ताकि तू 'अदल-ओ-इन्साफ़ करे|9और उस ने एक सौ बीस क़िन्तार सोना और मसाल्हे का बहुत बड़ा ढेर और जवाहिर सुलेमान को दिए और जो मसाल्हे सबा की मलिका ने सुलेमान बादशाह को दिए वैसे फ़िर कभी मयस्सर न आए|10और हूराम के नौकर भी और सुलेमान के नौकर जो ओफ़ीर से सोना लाते थे ,वह चन्दन के दरख़्त और जवाहिर भी लाते थे|11और बादशाह ने चन्दन की लकड़ी से ख़ुदावन्द के घर के लिए और शाही महल के लिए चबूतरे और गाने वालों के लिए बरबत और सितार तैयार कराए ;और ऐसी चीज़ें यहुदाह के मुल्क में पहले कभी देखने में नहीं आई थी|12और ~सुलेमान बादशाह ने सबा की मलिका को जो कुछ उसने चाहा और माँगा उस से ज़्यादा जो वह बादशाह के लिए लाई थी दिया और वह लौटकर अपने मुलाज़िमों समेत अपनी ममलुकत को चली गई|13और जितना सोना सुलेमान के पास एक साल में आता था उसका वज़न छे; सौ छियासठ क़िन्तार सोने का था|14यह उसके 'अलावा था जो ब्यापारी और सौदागर लाते थे और अरब के सब बादशाहऔर मुल्क के हाकिम सुलेमान के पास सोना और चाँदी लाते थे|15और सुलेमान बादशाह ने पिटे हुए सोने की दो सौ बड़ी ढालें बनवाई ,छ;सौ मिस्क़ाल पिटा ~हुआ सोना एक एक ढाल में लगा|16और उसने पिटे हुए सोने की तीन सौ ढालें और बनवाई ,एक एक ढाल में ~तीन सौ मिस्क़ाल सोना लगा, और बादशाह ने उनको लुबनानी बन के घर में रखा|17उसके 'अलावा बादशाह ने हाथी दांत का एक बड़ा तख़्त बनवाया और उस पर ख़ालिस सोना मढ़वाया|18और उस तख़्त ~के लिए छ;सीढ़ियाँ और सोने का एक पायदान था ,यह सब तख़्त से जुड़ें हुए थे और बैठने की जगह की दोनों तरफ़ एक एक टेक थी और उन टेकों के बराबर दो शेर-ए-बबर खड़े थे|19और उन छओं ~सीढियों पर इधर और उधर बारह शेर-ए-बबर खड़े थे किसी हुकूमत में कभी नहीं बना था|20और सुलेमान बादशाह के पीने के सब बर्तन सोने के थे और लुबनानी बन के घर सब बर्तन ख़ालिस सोने के थे सुलेमान के अय्याम में चाँदी की कुछ क़द्र न थी|21क्यूँकि बादशाह के पास जहाज़ थे जो हुराम के नौकारों के साथ तरसीस को जाते थे, तरसीस के यह जहाज़ तीन साल में एक बार सोना और चाँदी और हाथी के दांत और बंदर और मोर लेकर आते थे|22सुलेमान बादशाह दौलत और हिकमत में रु-ए-ज़मींन के सब बादशाहों से बढ़ गया|23और रू-ए-ज़मीन के सब बादशाह सुलेमान के दीदार के मुशताक़ थे ताकि वह उसकी हिकमत जो ख़ुदा ने उसके दिल में डाली थी सुनें|24और वह साल-ब-साल अपना अपना हदिया, या'नी चाँदी के बर्तन और सोने के बर्तन और लिबास और हथियार और मसाल्हे और घोड़े और खच्चर जितने मुक़र्रर थे लाते थे|25और सुलेमान के पास घोड़े और रथों के लिए चार हज़ार थान और बारह हज़ार सवार थे जिनको उस ने रथों के शहरों और यरुशलीम, में बादशाह के पास रखा|26और वह दरिया-ए-फ़रात से फ़लिस्तियों के मुल्क बल्कि मिस्र की हद तक सब बादशाहों पर हुक्मरान था|27और बादशाह ने यरुशलीम में इफ़रात की वजह से चाँदी को पत्थरों की तरह और देवदार के दरख़्तों को गूलर के उन दरख़्तो के बराबर कर दिया जो नशीब की सर ज़मीन में है|28और वह मिस्र से और और सब मुल्को से सुलेमान के लिए घोड़े लाया करते थे|29और सुलेमान के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक किया वह नातन नबी की किताब में और सैलानी अखि़याह की पेशीनगोई में और 'ईदू गै़बबीन की रोयतों की किताब में जो उसने युर्बयाआ'म बिन नाबत के ज़रिए देखी थी, मुन्दर्ज़ नहीं है ?|30और सुलेमान ने यरुशलीम में सारे इस्राईल पर चालीस साल हुकूमत की|31और सुलेमान अपने बाप दादा के साथ सो गया और अपने बाप दाऊद के शहर में दफ़न हुआ और उसका बेटा रहुब 'आम उसकी जगह हुकूमत करने लगा|
1और रहुब 'आम सिकम को गया ,इसलिए कि सब इस्रईली उसे बादशाह बनाने को सिकम में इकठ्ठठे हुए थे2जब नबात के बेटे युरब'आम ने यह सुना (क्यूँकि वह मिस्र में था जहाँ वह सुलेमान बादशाह के आगे से भाग गया था )तो युरब'आम मिस्र से लौटा|3और लोगों ने उसे बुलवा भेजा| तब युरब'आम और सब इस्रईली आए और रहुब'आम से कहने लगे|4कि तेरे बाप ने हमारा बोझ सख़्त कर रखा था| इसलिए अब तू अपने बाप की उस सख़्त ख़िदमत को और उस भारी बोझ को जो उस ने हम पर डाल रखा था; कुछ हल्का कर दे और हम तेरी ख़िदमत करेंगे|5और उसने उन से कहा, "तीन दिन के बा'द फिर मेरे पास आना" चुनाँचे वह लोग चले गए6तब रहुब'आम बादशाह ने उन बुज़ुर्गों से जो उसके बाप सुलेमान के सामने उसके जीते जी खड़े रहते थे,सलाह ~की और कहा तुम्हारी क्या सलाह है? मैं इन लोगो को क्या जवाब दूँ?7उन्होंने उससे कहा कि अगर तू इन लोगों पर मेहरबान हो और उनको राज़ी करें और इन से अच्छी अच्छी बातें कहे,तो वह हमेशा तेरी ख़िदमत करेंगे|8लेकिन उस ने उन बुज़ुर्गों की सलाह को जो उन्होंने उसे दी थी छोड़कर कर उन जवानों से जिन्होंने उसके साथ परवरिश पाई थी और उसके आगे हाज़िर रहते थे सलाह ~की|9और उन से कहा तुम मुझे क्या सलाह देते हो कि हम इन लोगों को क्या जवाब दे जिन्होंने मुझ से यह दरखवास्त की है कि उस बोझ को जो तेरे बाप ने हम पर रखा ~कुछ हल्का कर?10उन जवानों ने जिन्होंने उसके साथ परवरिश पाई थी उस से कहा, "तू उन लोगों को जिन्होंने तुझ से कहा तेरे बाप ने हमारे बोझे को भारी ~किया लेकिन तू उसको हमारे लिए कुछ हल्का कर दे यूँ जवाब देना और उन से कहना कि मेरी छिंगुली मेरे बाप के कमर से भी मोटी है|11और मेरे बाप ने तो भारी बोझ तुम पर रखा ही था लेकिन मैं उस बोझ को और भी भारी करूँगा|मेरे बाप ने तुम्हे कोड़ों से ठीक किया लेकिन मैं ~तुम को~~बिच्छुयों~से ठीक ~करूँगा|"12और जैसा बादशाह ने हुक्म दिया था कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना तीसरे दिन युरब'आम और सब लोग रहब'आम के पास हाज़िर हुए|13तब बादशाह उनको सख़्त जवाब दिया और रहुब'आम बादशाह ने बुज़ुर्गों की सलाह को छोड़कर|14जवानों की सलाह के मुताबिक़ उनसे कहा कि मेरे बाप ने तुम्हारा बोझ भारी किया लेकिन मैं उसको और भी भारी करूँगा|मेरे बाप ने तुमको कोड़ों से ठीक किया लेकिन मैं ~तुम को बिच्छुओं से ठीक करूँगा|15तब बादशाह ने लोगों की न मानी क्यूँकि यह ख़ुदा ही की तरफ़ से था ताकि ख़ुदावंद उस बात को जो उसने सैलानी अखि़याह की ज़रिए नबात के बेटे युरबआ'म को फ़रमाई थी पूरा करे|16जब सब इस्राइलियों ने यह देखा कि बादशाह ने उनकी न मानी तो लोगों ने बादशाह को जवाब दिया और यूँ कहा कि दाऊद के साथ हमारा क्या हिस्सा है ?यस्सी के बेटे के साथ हमारी कुछ मीरास नहीं|ऐ इस्राईलियों !अपने अपने डेरे को चले जाओ| अब ऐ दाऊद अपने ही घराने को संभाल|इसलिए सब इस्राइली अपने ख़ेमों को चल दिए|17लेकिन उन बनी इस्राईल पर जो यहुदाह के शहरों में रहते थे रहुब'आम हुकूमत करता रहा|18तब रहुब'आम बादशाह ने हदुराम को जो बेगारियों का दरोग़ा था भेजा लेकिन बनी इस्राईल ने उसको पथराव किया और वह मर गया|तब रहुब'आम यरुशलीम को भाग जाने के लिए झट अपने रथ पर सवार हो गया|19तब ~इस्राईली आज़ के दिन तक दाऊद के घराने से बा'ग़ी है
1और जब रहुब'आम यरुशलीम में आ गया तो उसने इस्राईल से लड़ने के लिए यहूदाह और बिनयमीन के घराने में से एक लाख अस्सी हज़ार चुने हुए जवान, जो जंगी जवान थे इकठ्ठा किए, ताकि वह फिर ममलुकत को रहुब'आम के क़ब्ज़े में करा दें|2लेकिन ख़ुदा वन्द का कलाम नबी समा'याह को पहुँचा कि;3~यहूदाह के बादशाह सुलेमान के बेटे रहुब'आम से और सारे इस्राईल से जो यहूदाह और बिनयमीन में हैं, कह,4'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तुम चढ़ाई न करना और न अपने भाइयों से लड़ना। तुम अपने अपने घर को लौट जाओ, क्यूँकि यह मु'आमिला मेरी तरफ़ से है। तब उन्होंने ख़ुदावन्द की बातें मान लीं, और युरब'आम पर हमला किए बगै़र लौट गए।5रहुब'आम यरूशलीम में रहने लगा, और उसने यहूदाह में हिफ़ाज़त के लिए शहर बनाए।6~चुनाँचे उसने बैतलहम और ऐताम और तकू'अ,7और बैत सूर और शोको और 'अदुल्लाम,8और जात और मरीसा और ज़ीफ़,9और अदूरैम और लकीस और 'अज़ीक़ा,10और सुर'आ और अय्यालोन और हबरून को जो यहूदाह और बिनयमीन में हैं, बना कर क़िला' बन्द कर दिया।11और उसने क़िलों' को बहुत मज़बूत किया और उनमें सरदारों को मुक़र्रर किया, और ख़ुराक और तेल और शराब के ज़ख़ीरे को रखा।12और एक एक शहर में ढालें और भाले रखवाकर उनको बहुत ही मज़बूत कर दिया; और यहूदाह और बिनयमीन उसी के रहे।13और काहिन और लावी जो सारे इस्राईल में थे, अपनी अपनी सरहद से निकल कर उसके पास आ गए।14क्यूँकि लावी अपनी पास के 'इलाक़ों और जायदादों को छोड़ कर यहूदाह और यरूशलीम में आए, इसलिए के युरब'आम और उसके बेटों ने उन्हें निकाल दिया था ताकि वह ख़ुदावन्द के सामने कहानत की ख़िदमत को अंजाम न देने पाएँ,15~और उसने अपनी तरफ़ से ऊँचे मक़ामों और बकरों और अपने बनाए हुए बछड़ों के लिए काहिन मुक़र्रर किए।16~और लावियों के पीछे इस्राईल के सब क़बीलों में से ऐसे लोग जिन्होंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तलाश में अपना दिल लगाया था, यरूशलीम में आए कि ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा के सामने ~क़ुर्बानी पेश करें ।17इसलिए उन्होंने यहूदाह की हुकूमत को ताक़तवर बना दिया, और तीन साल तक सुलेमान के बेटे रहुब'आम को ताक़तवर बना रखा, क्यूँकि वह तीन साल तक दाऊद और सुलेमान की रास्ते पर चलते रहे।18~रहुब'आम ने महालात को जो यरीमोत बिन दाऊद और इलियाब बिन यस्सी की बेटी अबीख़ील की बेटी थी, ब्याह लिया।19उसके उससे बेटे पैदा हुए, या'नी य'ऊस और समरियाह और ज़हम।20उसके बा'द उसने अबीसलोम की बेटी मा'का को ब्याह लिया, जिसके उससे अबियाह और 'अत्ती और ज़ीज़ा और सलूमियत पैदा हुए।21रहुब'आम अबीसलोम की बेटी मा'का को अपनी सब बीवियों और बाँदियों से ज़्यादा प्यार करता था (क्यूँकि उसकी अठारह बीवियाँ और साठ बाँदी थीं; और उससे अठाईस बेटे और साठ बेटियाँ पैदा हुई)।22और रहुब'आम ने अबियाह बिन मा'का को रहनुमा मुक़र्रर किया ताकि अपने भाइयों में सरदार हो, क्यूँकि उसका इरादा था कि उसे बादशाह बनाए।23और उसने होशियारी की, और अपने बेटों को यहूदाह और बिनयमीन की सारी ममलुकत के बीच हर फ़सीलदार शहर में अलग अलग कर दिया; और उनको बहुत ख़ुराक दी, और उनके लिए बहुत सी बीवियाँ तलाश कीं।
1और ऐसा हुआ कि जब रहब'आम की हुकूमत मज़बूत हो गई और वह ताक़तवर बन गया, तो उसने और उसके साथ सारे इस्राईल ने ख़ुदावन्द की शरी'अत को छोड़ दिया।2रहुब'आम बादशाह के पाँचवें साल में ऐसा हुआ कि मिस्र का बादशाह सीसक यरूशलीम पर चढ़ आया, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द की हुक्म 'उदूली की थी,3और उसके साथ बारह सौ रथ और साठ हज़ार सवार थे, और लूबी और सूकी और कूशी लोग जो उसके साथ मिस्र से आए थे बेशुमार थे।4और उसने यहूदाह के फ़सीलदार शहर ले लिए, और यरूशलीम तक आया।5तब समायाह नबी रहुब'आम के और यहूदाह के हाकिमों के पास जो सीसक के डर के मारे यरूशलीम में जमा' हो गए थे, आया और उनसे कहा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तुम ने मुझ को छोड़ दिय़ा, इसी लिए मैंने भी तुम को सीसक के हाथ में छोड़ दिया है।”6तब इस्राईल के हाकिमों ने और बादशाह ने अपने को ख़ाकसार बनाया और कहा, "ख़ुदावन्द सच्चा है।"7जब ख़ुदावन्द ने देखा के उन्होंने अपने को ख़ाकसार बनाया, तो ख़ुदा वन्द का कलाम समायाह पर नाज़िल हुआ : "उन्होंने अपने को ख़ाकसार बनाया है, इसलिए मैं उनको हलाक नहीं करूँगा बल्कि उनको कुछ रिहाई दूँगा; और मेरा क़हर सीसक के हाथ से यरूशलीम पर नाज़िल न होगा।8~तोभी वह उसके ख़ादिम होंगे, ताकि वह मेरी ख़िदमत को और मुल्क मुल्क की सल्तनतों की ख़िदमत को जान लें।”9~इसलिए ~मिस्र का बादशाह सीसक यरूशलीम पर चढ़ आया, और ख़ुदावन्द के घर के खज़ाने और बादशाह के घर के ख़ज़ाने ले गया। बल्कि वह सब कुछ ले गया, और सोने की वह ढालें भी जो सुलेमान ने बनवाई थीं ले गया।10और रहुब'आम बादशाह ने उनके बदले पीतल की ढालें बनवाई और उनको मुहाफ़िज़ सिपाहियों ~के सरदारों को जो शाही महल की निगहबानी करते थे सौंपा।11और जब बादशाह ख़ुदावन्द के घर में जाता था, तो वह मुहाफ़िज़ सिपाही आते और उनको उठाकर चलते थे, और फिर उनको वापस लाकर सिलाहखाने में रख देते थे।12और जब उसने अपने को ख़ाकसार बनाया, तो ख़ुदा वन्द का क़हर उस पर से टल गया और उसने उसको पूरे तौर से तबाह न किया; और भी यहूदाह में ख़ूबियाँ भी थीं।13इसलिए रहुब'आम बादशाह ने ताक़तवर होकर यरूशलीम में हुकूमत की। रहुब'आम जब हुकूमत करने लगा तो इकतालीस साल का था और उसने यरूशलीम में, या'नी उस शहर में जो ख़ुदावन्द ने इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन लिया था कि अपना नाम वहाँ रखे, सत्रह साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम नामा 'अम्मूनिया था।14और उसने बुराई की, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द की तलाश में अपना दिल न लगाया।15और रहुब'आम के काम अव्वल से आख़िर तक, क्या वह समायाह नबी और 'ईद ग़ैबबीन की तवारीखों' में नसबनामों के मुताबिक़ लिखा नहीं? रहुब'आम और युरब'आम के बीच हमेशा जंग रही।16और रहुब'आम अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और दाऊद के शहर में दफ़्न हुआ; और उसका बेटा अबियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
1~युरब'आम बादशाह के अठारहवें साल से अबियाह यहूदाह पर हुकूमत करने लगा।2~उसने यरूशलीम में तीन साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम मीकायाह था जो ऊरीएल जिबई की बेटी थी।और अबियाह और युरब'आम के बीच जंग हुई।3अबियाह जंगी सूर्माओं का लश्कर, या'नी चार लाख चुने हुए जंगी सूरमाओं का लश्कर लेकर लड़ाई में गया। और युरब'आम ने उसके मुक़ाबिले में आठ लाख चुने हुए आदमी ~लेकर, जो ताक़तवर सूर्मा थे सफ़आराई की।4और अबियाह समरेम के पहाड़ पर जो इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में है, खड़ा हुआ और कहने लगा, "ऐ युरब'आम और सब इस्राईलियो, मेरी सुनो !5क्या तुम को मा'लूम नहीं कि ख़ुदा वन्द इस्राईल के ख़ुदा ने इस्राईल की हुकूमत दाऊद ही को और उसके बेटों को, नमक के 'अहद से हमेशा के लिए दी है?6तोभी नबात का बेटा युरब'आम, जो सुलेमान बिन दाऊद का ख़ादिम था, उठकर अपने आक़ा से बाग़ी हुआ।7उसके पास निकम्मे और ख़बीस आदमी जमा' हो गए, जिन्होंने सुलेमान के बेटे रहब'आम के मुक़ाबिले में ज़ोर पकड़ा, जब रहुब'आम अभी जवान और नर्म दिल था और उनका मुक़ाबिला नहीं कर सकता था।8और अब तुम्हारा ख़्याल है कि तुम ख़ुदावन्द की बादशाही का, जो दाऊद की औलाद के हाथ में है, मुक़ाबिला करो; और तुम भारी गिरोह हो और तुम्हारे साथ वह सुनहले बछड़े हैं जिनको युरब'आम ने बनाया कि तुम्हारे मा'बूद हों।9~ क्या तुम ने हारून के बेटों और लावियों को जो ख़ुदावन्द के काहिन थे, ख़ारिज नहीं किया, और मुल्कों की क़ौमों के तरीक़े पर अपने लिए काहिन मुक़र्रर नहीं किए? ऐसा कि जो कोई एक बछड़ा और सात मेंढे लेकर अपनी तक़्दीस करने आए, वह उनका जो हक़ीक़त में ख़ुदा नहीं हैं काहिन हो सके।10लेकिन हमारा यह हाल है कि ख़ुदा वन्द हमारा ख़ुदा है और हम ने उसे छोड़ नहीं दिया ~है, और हमारे यहाँ हारून के बेटे काहिन हैं जो ख़ुदावन्द की ख़िदमत करते हैं, और लावी अपने अपने काम में लगे रहते हैं।11और वह हर सुबह और हर शाम को ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और ख़ुशबूदार ख़ुशबू जलाते हैं, और पाक मेज़ पर नज़ की रोटियाँ क़ाइदे के मुताबिक़ रखते और सुनहले शमा'दान और उसके चिराग़ों को हर शाम को रौशन करते हैं, क्यूँकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्म को मानते हैं; लेकिन तुम ने उसको छोड़ ~दिया है।12~देखो, ख़ुदा हमारे साथ हमारा रहनुमा है, और उसके काहिन तुम्हारें ख़िलाफ़ साँस बांधकर ज़ोर से फूँकने को नरसिंगे लिए हुए हैं। ऐ बनी-इस्राईल, ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा से मत लड़ो, क्यूँकि तुम कामयाब न होगे।"13लेकिन युरब'आम ने उनके पीछे कमीन लगवा दी।इसलिए वह बनी यहूदाह के आगे रहे और कमीन पीछे थी।14जब बनी यहूदाह ने पीछे नज़र की, तो क्या देखा कि लड़ाई उनके आगे और पीछे दोनों तरफ़ से है; और उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और काहिनों ने नरसिंगे फूंके।15~तब यहूदाह के लोगों ने ललकारा, और जब उन्होंने ललकारा तो ऐसा हुआ कि ख़ुदा ने अबियाह और यहूदाह के आगे युरब'आम को और सारे इस्राईल को मारा।16और बनी इस्राईल यहूदाह के आगे से भागे, और ख़ुदा ने उनको उनके हाथ में कर दिया।17और अबियाह और उसके लोगों ने उनको बड़ी ख़ूनरेज़ी के साथ क़त्ल किया, तब इस्राईल के पाँच लाख चुने हुए मर्द मारे गए।18ऐसे बनी-इस्राईल उस वक़्त मग़लूब हुए और बनी यहुदाह ग़ालिब आए, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा पर यक़ीन किया।19और अबियाह ने युरब'आम का पीछा किया और इन शहरों को उससे ले लिया, या'नी बैतएल और उसके देहात। यसाना और उसके देहात इफ्रोनऔर उसके देहात|20~अबियाह के दिनों में युरब'आम ने फिर ज़ोर न पकड़ा, और ख़ुदावन्द ने उसे मारा और वह मर गया।21लेकिन अबियाह ताक़तवर हो गया और उसने चौदह बीवियाँ ब्याही,और उस के ज़रिए' बेटे और सोलह बेटियाँ ~पैदा हुई।22अबियाह के बाक़ी काम और उसके हालात और उसकी कहावतें 'ईदू नबी की तफ़्सीर में लिखी हैं।
1और अबियाह अपने बाप -दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में दफ़्न किया; और उसका बेटा आसा उसकी जगह बादशाह हुआ। उसके दिनों में दस साल तक मुल्क में अमन रहा।2और आसा ने वही किया जो ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा के सामने अच्छा और ठीक था।3क्यूँकि उसने अजनबी मज़बहों और ऊँचे मक़ामों को दूर किया, और लाटों को गिरा दिया, और यसीरतों को काट डाला,4~और यहूदाह को हुक्म किया कि ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के तालिब हों, और शरी'अत और फ़रमान पर 'अमल करें।5उसने यहूदाह के सब शहरों में से ऊँचे मक़ामों और सूरज की मूरतों को दूर कर दिया, और उसके सामने हुकूमत में अमन रहा।6~उसने यहूदाह में फ़सीलदार शहर बनाए, क्यूँकि मुल्क में अमन था। उन बरसों में उसे जंग न करना पड़ा, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसे अमान बख़्शी थी।7इसलिए उसने यहूदाह से कहा,कि ~"हम यह शहर ता'मीर करें और उनके पास दीवार और बुर्ज बनायें और फाटक और अड़बंगे लगाएँ। यह मुल्क अभी हमारे क़ाबू में है, क्यूँकि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के तालिब हुए हैं। हम उसके तालिब हुए और उसने हम को चारों तरफ़ अमान बख़्शी है।" इसलिए उन्होंने उनको ता'मीर किया और कामयाब हुए।8और आसा के पास बनी यहूदाह के तीन लाख आदमियों का लश्कर था जो ढाल और भाला उठाते थे, और बिनयमीन के दो लाख अस्सी हज़ार थे जो ढाल उठाते और तीर चलाते थे। यह सब ज़बरदस्त सूर्मा थे।9और इनके मुक़ाबिले में ज़ारह कूशी दस लाख की फ़ौज और तीन सौ रथों को लेकर निकला, और मरीसा में आया।10और आसा उसके मुक़ाबिले को गया, और उन्होंने मरीसा के बीच सफ़ाता की वादी में जंग के लिए सफ़ बाँधी।11और आसा ने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से फ़रियाद की और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, ताक़तवर और कमज़ोर के मुक़ाबिले में मदद करने को तेरे 'अलावा और कोई नहीं। ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा तू हमारी मदद कर क्यूँकि हम तुझ पर भरोसा रखते हैं और तेरे नाम से इस गिरोह का सामना करने आए हैं। तू ऐ ख़ुदा हमारा ख़ुदा है इन्सान तेरे मुक़ाबिले में ग़ालिब होने न पाए।”12~फिर ख़ुदावन्द ने आसा और यहूदाह के आगे कूशियों को मारा और कूशी भागे,13और आसा और उसके लोगों ने उनको जिरार तक दौड़ाया, और कूशियों में से इतने क़त्ल हुए कि वह फिर संभल न सके, क्यूँकि वह खु़दावन्द और उसके लश्कर के आगे हलाक हुए; और वह बहुत सी लूट ले आए।14उन्होंने जिरार के आसपास के सब शहरों को मारा, क्यूँकि ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ उन पर छा गया था। और उन्होंने सब शहरों को लूट लिया, क्यूँकि उनमें बड़ी लूट थी।15और उन्होंने मवैशी के डेरों पर भी हमला किया, और कसरत से भेड़ें और ऊँट लेकर यरूशलीम को लौटे ।
1और ख़ुदा की रूह अज़रियाह बिन ओदिद पर नाज़िल हुई,2~और वह आसा से मिलने को गया और उससे कहा, "ऐ आसा और सारे यहूदाह और बिनयमीन, मेरी सुनो। ख़ुदा वन्द तुम्हारे साथ है जब तक तुम उसके साथ हो, और अगर तुम उसके तालिब हो तो वह तुम को मिलेगा; लेकिन अगर तुम उसे छोड़ दो तो वह तुम को छोड़ देगा।3अब बड़ी मुद्दत से बनी-इस्राईल बग़ैर सच्चे खु़दा और बगै़र सिखाने वाले काहिन और बगै़र शरी'अत के रहे हैं,4~लेकिन जब वह अपने दुख में ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तरफ़ फिर कर उसके तालिब हुए तो वह उनको मिल गया।5और उन दिनों में उसे जो बाहर जाता था और उसे जो अन्दर आता था बिलकुल चैन न था, बल्कि मुल्कों के सब बाशिंदों पर बड़ी तकलीफ़ें थीं|6~क़ौम क़ौम के मुक़ाबिले में, और शहर शहर के मुक़ाबिले में पिस गए, क्यूँकि ख़ुदा ने उनको हर तरह मुसीबत से तंग किया।7~लेकिन तुम मज़बूत बनो और तुम्हारे हाथ ढीले न होने पाएँ, क्यूँकि तुम्हारे काम का अज्र मिलेगा।"8जब आसा ने इन बातों और 'ओदिद नबी की नबुव्वत को सुना, तो उसने हिम्मत बाँधकर यहूदाह और बिनयमीन के सारे मुल्क से, और उन शहरों से जो उसने इफ्राईम के पहाड़ी मुल्क में से ले लिए थे, मकरूह चीज़ों को दूर कर दिया, और ख़ुदावन्द के मज़बह को जो खु़दावन्द के उसारे के सामने था फिर बनाया।9और उसने सारे यहूदाह और बिनयमीन को, और उन लोगों को जो इफ़्राईम और मनस्सी और शमा'ऊन में से उनके बीच रहा करते थे, इकट्ठा किया, क्यूँकि जब उन्होंने देखा कि ख़ुदावन्द उसका ख़ुदा उसके साथ है, तो वह इस्राईल में से बकसरत उसके पास चले आए।10वह आसा की हुकूमत के पन्द्रहवें साल के तीसरे महीने में, यरूशलीम में जमा' हुए;11और उन्होंने उसी वक़्त उस लूट में से जो वह लाए थे, ख़ुदावन्द के सामने सात सौ बैल और सात हज़ार भेड़ें क़ुर्बान कीं|12और वह उस 'अहद में शामिल हो गए, ताकि अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के तालिब हों,13और जो कोई, क्या छोटा क्या बड़ा क्या मर्द क्या 'औरत, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा का तालिब न हो वह क़त्ल किया जाए।14उन्होंनें बड़ी आवाज़ से ललकार कर तुरहियों और नरसिंगों के साथ ख़ुदावन्द के सामने क़सम खाई;15~और सारा यहूदाह उस क़सम से बहुत ख़ुश हो गए, क्यूँकि उन्होंने अपने सारे दिल से क़सम खाई थी, और कमाल आरज़ू से ख़ुदावन्द के तालिब हुए थे और वह उनको मिला, और ख़ुदावन्द ने उनको चारों तरफ़ अमान बख़्शी।16और आसा बादशाह की माँ मा'का को भी उसने मलिका के 'ओहदे से उतार दिया, क्यूँकि उसने यसीरत के लिए एक मकरूह बुत बनाया था। इसलिए आसा ने उसके बुत को काटकर उसे चूर चूर किया, और वादी-ए-क़िद्रोन में उसको जला दिया।17लेकिन ऊँचे मक़ाम इस्राईल में से दूर न किए गए, तो भी आसा का दिल 'उम्र भर कामिल रहा।18और उसने ख़ुदा के घर में वह चीजें जो उसके बाप ने पाक की थीं, और जो कुछ उसने ख़ुद पाक किया था दाख़िल कर दिया, या'नी चाँदी और सोना और बर्तन।19और आसा की हुकूमत के पैंतीसवें साल तक कोई जंग न हुई।
1और इस्राईल का बादशाह बाशा यहूदाह पर चढ़ आया, और रामा को ता'मीर किया ताकि यहूदाह के बादशाह आसा के यहाँ किसी को आने-जाने न दे।2~तब आसा ने ख़ुदावन्द के घर और शाही महल के ख़ज़ानों में से चाँदी और सोना निकालकर, अराम के बादशाह बिन-हदद के पास जो दमिश्क़ में रहता था रवाना किया और कहला भेजा कि,3~"मेरे और तेरे बीच और मेरे बाप और तेरे बाप के बीच 'अहद-ओ-पैमान है; देख, मैंने तेरे लिए चाँदी और सोना भेजा है, इसलिए तू जाकर इस्राइल के रहने वाले ~बाशा से वा'दा खिलाफी कर ताकि वह मेरे पास से चला जाए।"4और बिन-हदद ने आसा बादशाह की बात मानी और अपने लश्करों के सरदारों को इस्राईली शहरों पर हमला ~करने को भेजा, तब ~उन्होंने 'अयून और दान और अबीलमाइम और नफ़्ताली के जखीरे के सब शहरों को ~तबाह किया।5~जब बाशा ने यह सुना तो रामा का बनाना छोड़ा, और अपना काम बंद कर दिया।6तब आसा बादशाह ने सारे यहूदाह को साथ लिया, और वह रामा के पत्थरों और लकड़ियों को जिनसे बाशा ता'मीर कर रहा था उठा ले गए, और उसने उनसे जिब'आ और मिस्फाह को ता'मीर किया।7उस वक़्त हनानी गै़बबीन यहूदाह के बादशाह आसा के पास आकर कहने लगा, "चूँकि तू ने अराम के बादशाह पर भरोसा किया और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा पर भरोसा नहीं रखा, इसी वजह से अराम के बादशाह का लश्कर तेरे हाथ से बच निकला है।8क्या कूशी और लूबी बहुत बड़ा गिरोह न थे, जिनके साथ गाड़ियाँ और सवार बड़ी कसरत से न थे? तो भी चूँकि तू ने ख़ुदावन्द पर भरोसा रखा, उसने उनको तेरे क़ब्ज़ा में कर~दिया;9~क्यूँकि ख़ुदावन्द की आँखें सारी ज़मीन पर फिरती हैं, ताकि वह उनकी इमदाद में जिनका दिल उसकी तरफ़ कामिल है, अपनी ताक़त दिखाए। इस बात में तू ने बेवकूफ़ी की, क्यूँकि अब से तेरे लिए जंग ही जंग है।"10तब आसा ने उस गै़बबीन से खफ़ा होकर उसे कै़दखाने में डाल दिया, क्यूँकि वह उस कलाम की वजह से बहुत ही ग़ुस्सा हुआ; और आसा ने उस वक़्त लोगों में से कुछ औरों पर भी जु़ल्म किया।11और देखो, आसा के काम शुरू' से आखि़र तक यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में लिखा हैं।12और आसा की हुकूमत के उनतालीसवें साल उसके पाँव में एक रोग लगा और वह रोग बहुत बढ़ गया, तो भी अपनी बीमारी में वह ख़ुदावन्द का तालिब नहीं बल्कि हकीमों का तालिब हुआ।13और आसा अपने बाप-दादा के साथ सो गया; उसने अपनी हुकूमत के इकतालीसवें साल में वफ़ात पाई।14उन्होंने उसे उन क़ब्रों में, जो उसने अपने लिए दाऊद के शहर में खुदवाई थीं दफ़्न किया। उसे उस ताबूत में लिटा दिया जो इत्रों और क़िस्म क़िस्म के मसाल्हे से भरा था, जिनको 'अतारों की हिकमत के मुताबिक़ तैयार किया था, और उन्होंने उसके लिए उनको ख़ूब जलाया।
1~और उसका बेटा यहूसफ़त उसकी जगह बादशाह हुआ, अौर उसने इस्राईल के मुक़ाबिल अपने आपको मज़बूत किया।2~उसने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों में फ़ौजें रखी, और यहूदाह के मुल्क में और इफ़्राईम के उन शहरों में जिनको उसके बाप आसा ने ले लिया था, चौकियाँ बिठाई।3और ख़ुदावन्द यहूसफ़त के साथ था, क्यूँकि उसका ~चाल चलन उसके बाप दाऊद के पहले तरीक़ों पर थी, और वह बा'लीम का तालिब न हुआ,4~बल्कि अपने बाप-दादा के ख़ुदा का तालिब हुआ और उसके हुक्मों पर चलता रहा, और इस्राईल के से काम न किए।5इसलिए ख़ुदावन्द ने उसके हाथ में हुकूमत को मज़बूत किया; और सारा यहूदाह यहूसफ़त के पास हदिए लाया,और उसकी दौलत और 'इज़्ज़त बहुत ~फ़रावान हुई|6उसका दिल ख़ुदावन्द के रास्तों में बहुत ~ख़ुश था, और उसने ऊँचे मक़ामों और यसीरतों को यहूदाह में से दूर कर दिया।7और अपनी हुकूमत के तीसरे साल उसने बिनखैल और अबदियाह और ज़करियाह और नतनीएल और मीकायाह को, जो उसके हाकिम थे, यहूदाह के शहरों में ता'लीम देने को भेजा:8~और उनके साथ यह लावी थे या'नी समा'याह और नतनियाह और ज़बदियाह और 'असाहेल और समीरामोत और यहूनतन और अदूनियाह और तूबियाह और तूब अदूनियाह लावियों में से, और इनके साथ इलीसमा' और यहूराम काहिनों में से थे।9इसोलिए उन्होंने ख़ुदावन्द की शरी'अत की किताब साथ रख कर यहूदाह को ता'लीम दी, और वह यहूदाह के सब शहरों में गए और लोगों को ता'लीम दी।10~और ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ यहूदाह के पास पास की मुल्कों की सब हुकूमतों पर छा गया, यहाँ तक कि उन्होंने यहूसफ़त से कभी जंग न की।11~बा'ज़ कुछ फ़िलिस्ती यहूसफ़त के पास हदिए और ख़िराज में चाँदी लाए, और 'अरब के लोग भी उसके पास रेवड़ लाए, या'नी सात हज़ार सात सौ मेंढे और सात हज़ार सात सौ बकरे।12और यहूसफ़त बहुत ही बढ़ा और उसने यहूदाह में क़िले' और ज़ख़ीरे के शहर बनाए,13और यहूदाह के शहरों में उसके बहुत से कारोबार और यरूशलीम में उसके जंगी जवान या'नी ताक़तवर सूर्मा थे,14और उनका शुमार अपने अपने आबाई ख़ान्दान के मुवाफ़िक़ यह था: यहूदाह में से हज़ारों के सरदार यह थे, सरदार 'अदना और उसके साथ तीन लाख ताक़तवर सूर्मा,15और उससे दूसरे दर्जे पर सरदार यूहनान और उसके साथ दो लाख अस्सी हज़ार,16और उससे नीचे 'अमसियाह बिन ज़िकरी था, जिसने अपने को बख़ुशी ख़ुदावन्द के लिए पेश किया था, और उस के साथ दो लाख ताक़तवर सूर्मा थे;17और बिनयमीन में से, इलीदा' एक ताक़तवर सूर्मा था और उसके साथ कमान और सिपर से मुसल्लह दो लाख थे;18~और उससे नीचे यहूज़बद था, और उसके साथ एक लाख अस्सी हज़ार थे जो जंग के लिए तैयार रहते थे।19यह बादशाह के ख़िदमत गुज़ार थे, और उनसे अलग थे जिनको बादशाह ने तमाम यहूदाह के फ़सीलदार शहरों में रख्खा था।
1और यहूसफ़त की दौलत और 'इज़्ज़त फरावान थी और उसने~अख़ीअब के साथ रिस्ता जोड़ा|2और कुछ सालों के बा'द वह अख़ीअब के पास सामरिया को गया, और~अख़ीअब ने उसके और उसके साथियों के~लिए भेड़-बकरियाँ और बैल कसरत से ज़बह किए, और उसे अपने साथ रामात जिल'आद पर चढ़ायी करने की सलाह दी|3और इस्राईल के बादशाह~अख़ीअब ने यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त से कहा, "क्या तू मेरे साथ रामात जिल'आद को चलेगा? उसने जवाब दिया, "मैं वैसा ही हूँ जैसा तू है, और मेरे लोग ऐसे है जैसे तेरे लोग। इसलिए हम लड़ाई में तेरे साथ होंगे"|4~और यहूसफ़त ने इस्राईल के बादशाह से कहा, "आज ज़रा ख़ुदावन्द की बात पूँछ लें|"5तब इस्राईल के बादशाह ने नबियों को जो चार सौ जवान थे, इकट्ठा किया और उनसे पूछा, "हम रामात जिल'आद को जंग के लिए जाएँ या मैं बाज़ ~रहूँ?" उन्होंने कहा,हमला कर क्यूँकि ख़ुदा उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।”6लेकिन यहूसफ़त ने कहा, "क्या यहाँ इनके 'अलावा ख़ुदावन्द का कोई नबी नहीं ताकि हम उससे पूछे?"7~शाह-ए-इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "एक शख़्स है तो सही, है; जिसके ज़रिए' से हम ख़ुदावन्द से पूछ सकते~लेकिन मुझे उससे नफ़रत है, क्यूँकि वह मेरे हक़ में कभी नेकी की नहीं बल्कि हमेशा बुराई की पेशीनगोई करता है। वह शख़्स मीकायाह बिन इमला है।" यहूसफ़त ने कहा, "बादशाह ऐसा न कहे।”8~तब शाह-ए-इस्राईल ने एक 'उहदेदार को बुला कर हुक्म किया, "मीकायाह बिन इमला को जल्द ले आ।"9और शाह-ए-इस्राईल और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त अपने अपने तख़्त पर अपना अपना लिबास पहने बैठे थे। वह सामरिया के फाटक के सहन पर खुली जगह में बैठे थे, और सब अम्बिया उनके सामने नबुव्वत कर रहे थे।10और सिदक़ियाह बिन कना'ना ने अपने लिए लोहे के सींग बनाए और कहा, "ख़ुदावन्द ऐसा फ़रमाता है कि तू इनसे अरामियों को ढक लेगा, जब तक कि वह ख़त्म न हो जाएँ।"11और सब नबियों ने ऐसी ही नबुव्वत की और कहते रहे कि रामात जिल'आद को जा और कामयाब हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे बादशाह के क़ब्ज़े में कर देगा।12और उस क़ासिद ने जो मीकायाह को बुलाने गया था, उससे यह कहा, "देख, सब अम्बिया एक ज़बान होकर बादशाह को ख़ुश ख़बरी दे रहे हैं,इसलिए तेरी बात भी ज़रा उनकी बात की तरह हो; और तू ख़ुशख़बरी ही देना।"13~मीकायाह ने कहा, "ख़ुदावन्द की हयात की क़सम, जो कुछ मेरा ख़ुदा फ़रमाएगा मैं वही कहूँगा।"14जब वह बादशाह के पास पहुँचा, तो बादशाह ने उससे कहा, "मीकायाह, हम रामात जिल'आद को जंग के लिए जाएँ या मैं बाज़ रहूँ?" उसने कहा, "तुम चढ़ाई ~करो और कामयाब हो, और वह तुम्हारे हाथ में कर दिए जाएँगे।"15बादशाह ने उससे कहा, "मैं तुझे कितनी बार क़सम देकर कहूँ कि तू मुझे ख़ुदावन्द के नाम से हक़ के 'अलावा और कुछ न बताए?"16उसने कहा, "मैंने सब बनी-इस्राईल को पहाड़ों पर उन भेड़ों की तरह बिखरा देखा जिनका कोई चरवाहा न हो, और ख़ुदावन्द ने कहा इनका कोई मालिक नहीं, इसलिए इनमें से हर शख़्स अपने घर को सलामत लौट जाए।"17तब शाह-ए-इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "क्या मैंने तुझ से कहा न था कि वह मेरे हक़ में नेकी की नहीं बल्कि बदी की पेशीनगोई करेगा?”18तब वह बोल उठा, "अच्छा, तुम ख़ुदावन्द के बात को सुनो: मैंने देखा कि ख़ुदावन्द अपने तख़्त पर बैठा है और सारा आसमानी लश्कर उसके दहने और बाएँ हाथ खड़ा है।19~और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, 'शाह-ए-इस्राईल अखी'अब को कौन बहकाएगा, ताकि वह चढ़ाई करे और रामात जिल'आद में मक्तूल हो? और किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा।20तब एक रूह निकलकर ख़ुदावन्द के सामने खड़ी हुई, और कहने लगी, मैं उसे बहकाऊँगी। ख़ुदावन्द ने उससे पूछा, "किस तरह?"21उसने कहा, 'मैं जाऊँगी, और उसके सब नबियों के मुँह में झूट बोलने वाली रूह बन जाऊँगी।' ख़ुदावन्द ने कहा, 'तू उसे बहकाएगी, और ग़ालिब भी होगी; जा और ऐसा ही कर।22इसलिए देख, ख़ुदावन्द ने तेरे इन सब नबियों के मुँह में झूट बोलने वाली रूह डाली है, और ख़ुदावन्द ने तेरे हक़ में बुराई का हुक्म दिया है।"23तब सिदक़ियाह बिन कना'ना ने पास आकर मीकायाह के गाल पर मारा और कहने लगा, "ख़ुदावन्द की रूह तुझ से कलाम करने को किस रास्ते मेरे पास से निकल कर गई?24~मीकायाह ने कहा, "तू उस दिन देख लेगा, जब तू अन्दर की कोठरी में छिपने को घुसेगा।"25और शाह-ए-इस्राईल ने कहा, "मीकायाह को पकड़ कर उसे शहर के नाज़िम अमून और यूआस शहज़ादे के पास लौटा ले जाओ,26और कहना, 'बादशाह यूँ फ़रमाता है कि जब तक मैं सलामत वापस न आ जाऊँ, इस आदमी को क़ैदखाने में रखो, और उसे मुसीबत की रोटी खिलाना और मुसीबत का पानी पिलाना।"27मीकायाह ने कहा, "अगर तू कभी सलामत वापस आए, तो ख़ुदावन्द ने मेरे ज़रिए' कलाम ही नहीं किया।" और उसने कहा, "ऐ लोगों, तुम सब के सब सुन लो।"28इसलिए शाह-ए-इस्राईल और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त ने रामात जिल'आद पर चढ़ाई की।29और शाह-ए-इस्राईल ने यहूसफ़त से कहा, "मैं अपना भेस बदलकर लड़ाई में जाऊँगा, लेकिन तू अपना लिबास पहने रह।" इसलिए शाह-ए-इस्राईल ने भेस बदल लिया, और वह लड़ाई में गए।30~इधर शाह-ए-अराम ने अपने रथों के सरदारों को हुक्म दिया था, "शाह-ए-इस्राईल के सिवा, किसी छोटे या बड़े से जंग न करना।"31और ऐसा हुआ कि जब रथों के सरदारों ने यहूसफ़त को देखा तो कहने लगे, "शाह-ए-इस्राईल यही है।” इसलिए वह उससे लड़ने को मुड़े। लेकिन यहूसफ़त चिल्ला उठा, और ख़ुदावन्द ने उसकी मदद की; और ख़ुदा ने उनको उसके पास से लौटा दिया।32जब रथों के सरदारों ने देखा कि वह शाह-ए-इस्राईल नहीं है, तो उसका पीछा छोड़कर लौट गए।33और किसी शख़्स ने यूँ ही~कमान खींची और शाह-ए-इस्राईल को जौशन के बन्दों के बीच मारा। तब उसने अपने सारथी से कहा, "बाग मोड़ और मुझे लश्कर से निकाल ले चल, क्यूँकि मैं बहुत ज़ख़्मी हो गया हूँ।"34और उस दिन जंग ख़ूब ही हुई, तो भी शाम तक शाह-ए-इस्राईल अरामियों के मुक़ाबिल अपने को अपने रथ पर संभाले रहा, और सूरज डूबने के वक़्त के क़रीब मर गया।
1और शाह-ए-यहूदाह यहूसफ़त यरूशलीम को अपने महल में सलामत लौटा।2तब हनानी ग़ैबबीन का बेटा याहू उसके इस्तक़बाल को निकला, और यहूसफ़त बादशाह से कहने लगा, क्या मुनासिब है कि तू शरीरों की मदद करे, और ख़ुदावन्द के दुश्मनों से मुहब्बत रखें? इस बात की वजह~से ख़ुदावन्द की तरफ़ से तुझ पर ग़ज़ब है।3तो भी तुझ में ख़ूबियाँ हैं; क्यूँकि तू ने यसीरतों को मुल्क में से दफ़ा' किया, और ख़ुदा की तलाश में अपना दिल लगाया है।4यहूसफ़त यरूशलीम में रहता था, और उसने फिर बैरसबा' से इफ़्राईम के पहाड़ी तक लोगों के बीच दौरा करके, उनको ख़ुदावन्द उनके बाप-दादा के ख़ुदा की तरफ़ फिर मोड़ दिया।5उसने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों में शहर-ब-शहर क़ाज़ी मुक़र्रर किए,6और क़ाज़ियों से कहा, जो कुछ करो सोच समझकर करो, क्यूँकि तुम आदमियों की तरफ़ से नहीं, बल्कि ख़ुदावन्द की तरफ़ से 'अदालत करते हो; और वह फ़ैसले में तुम्हारे साथ है।7फिर ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ तुम में रहे; इसलिए ख़बरदारी से काम करना, क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा में बेइन्साफ़ी नहीं है, और न किसी की रूदारी न रिश्वत ख़ोरी ~|8~और यरूशलीम में भी यहूसफ़त ने लावियों और काहिनों और इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से लोगों को, ख़ुदावन्द की 'अदालत और मुक़द्दमों के लिए मुक़र्रर किया; और वह यरूशलीम को लौटे9और उसने उनको ताकीद की और कहा कि तुम ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ से दियानतदारी और कामिल दिल से ऐसा करना।10जब कभी तुम्हारे भाइयों की तरफ़ से जो अपने शहरों में रहते हैं, कोई मुक़द्दमा तुम्हारे सामने आए, जो आपस के ख़ून से या शरी'अत और फ़रमान या क़ानून और 'अदालत से ता'अल्लुक़ रखता हो, तो तुम उनको आगाह कर देना कि वह ख़ुदावन्द का गुनाह न करें, जिससे तुम पर और तुम्हारे भाइयों पर ग़ज़ब नाज़िल हो। यह करो तो तुम से ख़ता न होगी।11और देखो, ख़ुदावन्द के सब मु'आमिलों में अमरियाह काहिन तुम्हारा सरदार है, और बादशाह के सब मु'आमिलों में ज़बदियाह बिन इस्माईल है, जो यहूदाह के ख़ान्दान का रहनुमा है; और लावी भी तुम्हारे आगे सरदार होंगे। हौसले के साथ काम करना और ख़ुदावन्द नेकों के साथ हो।
1उसके बा'द ऐसा हुआ कि बनी मोआब और बनी 'अम्मून और उनके साथ कुछ 'अम्मूनियों ने यहूसफ़त से लड़ने को चढ़ाई की।2तब चन्द लोगों ने आकर यहूसफ़त को ख़बर दी, "दरिया के पार अराम की तरफ़ से एक बड़ा गिरोह तेरे मुक़ाबिले को आ रहा है; और देख, वह हसासून-तमर में हैं, जो ऐनजदी है।"3~और यहूसफ़त डर कर दिल से ख़ुदावन्द का तालिब हुआ, और सारे यहूदाह में रोज़ा का 'ऐलान कराया।4और बनी यहूदाह ख़ुदावन्द से मदद माँगने को इकट्ठे हुए, बल्कि यहूदाह के सब शहरों में से ख़ुदावन्द से मदद माँगने को आए।5और यहूसफ़त यहूदाह और यरूशलीम की जमा'अत के बीच , ख़ुदावन्द के घर में नए सहन के आगे खड़ा हुआ6और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, हमारे बाप-दादा के ख़ुदा! क्या तू ही आसमान में ख़ुदा नहीं? और क्या क़ौमों की सब मुल्कों पर हुकूमत करने वाला तू ही नहीं? ज़ोर और क़ुदरत तेरे हाथ में है, ऐसा कि कोई तेरा सामना नहीं कर सकता।7~ऐ हमारे ख़ुदा, क्या तू ही ने इस सरज़मीन के बाशिंदों को अपनी क़ौम इस्राईल के आगे से निकाल कर इसे अपने दोस्त इब्राहीम की नसल को हमेशा के लिए नहीं दिया?8चुनाँचे वह उसमें बस गए, और उन्होंने तेरे नाम के लिए उसमें एक मक़दिस बनाया है और कहते हैं कि;9~अगर कोई बला हम पर आ पड़े, जैसे तलवार या आफ़त या वबा या काल, तो हम इस घर के आगे और तेरे सामने खड़े होंगे (क्यूँकि तेरा नाम इस घर में है), और हम अपनी मुसीबत में तुझ से फ़रियाद करेंगे और तू सुनेगा और बचा लेगा।'10इसलिए अब देख, 'अम्मून और मोआब और कोह-ए-श'ईर के लोग जिन पर तू ने बनी-इस्राईल को, जब वह मुल्क-ए-मिस्र से निकलकर आ रहे थे, हमला करने न दिया बल्कि वह उनकी तरफ़ से मुड़ गए और उनको हलाक न किया।11~देख, वह हम को कैसा बदला देते हैं कि हम को तेरी मीरास से, जिसका तू ने हम को मालिक बनाया है, निकालने को आ रहे हैं।12~ऐ हमारे ख़ुदा क्या तू उनकी 'अदालत नहीं करेगा? क्यूँकि इस बड़े गिरोह के मुक़ाबिल जो हम पर चढ़ा आता है, हम कुछ ताक़त नहीं रखते और न हम यह जानते हैं कि क्या करें? बल्कि हमारी आँखें तुझ पर लगी हैं।"13और सारा यहूदाह अपने बच्चों और बीवियों और लड़कों समेत ख़ुदावन्द के सामने खड़ा रहा।14~तब जमा'अत के बीच यहज़ीएल बिन ज़करियाह बिन बिनायाह बिन यईएल बिन मत्तनियाह, एक लावी पर जो बनी आसफ़ में से था, ख़ुदावन्द की रूह नाज़िल हुई15और वह कहने लगा, "ऐ तमाम यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों, और ऐ बादशाह यहूसफ़त, तुम सब सुनो! ख़ुदावन्द तुम को यूँ फ़रमाता है कि तुम इस बड़े गिरोह की वजह से न तो डरो और न घबराओ, क्यूँकि यह जंग तुम्हारी नहीं बल्कि ख़ुदा की है।16तुम कल उनका सामना करने को जाना। देखो, वह सीस की चढ़ाई से आ रहे हैं, और यरूएल के जंगल के सामने वादी के किनारे पर तुम को मिलेंगे17~तुम को इस जगह में लड़ना नहीं पड़ेगा। ऐ यहूदाह और यरूशलीम, तुम क़तार बाँधकर चुपचाप खड़े रहना और ख़ुदावन्द की नजात जो तुम्हारे साथ है देखना। ख़ौफ़ न करो और न घबराओ; कल उनके मुक़ाबिला को निकलना, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारे साथ है।18और यहूसफ़त सिज्दे होकर ज़मीन तक झुका, और तमाम यहूदाह और यरूशलीम के रहने वालों ने ख़ुदावन्द के आगे गिरकर उसको सिज्दा किया।19और बनी क़िहात और बनी क़ोरह के लावी बुलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हम्द करने को खड़े हो गए|20और वह सुबह सवेरे उठ कर तकू'अ के जंगल में निकल गए, और उनके चलते वक़्त यहूसफ़त ने खड़े होकर कहा, "ऐ यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों, मेरी सुनो। ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा पर ईमान रखों, तो तुम क़ाइम किए जाओगे; उसके नबियों का यक़ीन करो, तो तुम कामयाब होगे।"21जब उसने क़ौम से सलाह कर लिया, तो उन लोगों को मुक़र्रर किया जो लश्कर के आगे आगे चलते हुए ख़ुदावन्द के लिए गाएँ, और पाकीज़गी की ख़ूबसूरती के साथ उसकी हम्द करें और कहें, कि ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी करो क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा तक है।22जब वह गाने और हम्द करने लगे, तो ख़ुदावन्द ने बनी 'अम्मून और मोआब और कोह-ए-शईर के बाशिन्दों पर जो यहूदाह पर चढ़े आ रहे थे, कमीन वालों को बैठा दिया इसलिए वह मारे गए।23क्यूँकि बनी 'अम्मून और मोआब कोह-ए-शईर के बाशिन्दों के मुक़ाबिले में खड़े हो गए कि उनको बिल्कुल तह-ए-तेग और हलाक करें, और जब वह शईर के बाशिन्दों का ख़ातिमा कर चुके, तो आपस में एक दूसरे को हलाक करने लगे।24~और जब यहूदाह ने पहरेदारों ~के बुर्ज पर जो बियाबान में था, पहुँच कर उस गिरोह पर नज़र की तो क्या देखा कि उनकी लाशें ज़मीन पर पड़ी हैं, और कोई न बचा।25जब यहूसफ़त और उसके लोग उनका माल लूटने आए, तो उनको इस कसरत से दौलत और लाशे और क़ीमती जवाहिर जिनकी उन्होंने अपने लिए उतार लिया, मिले कि वह इनको ले जा भी न सके, और माल-ए-ग़नीमत इतना था कि वह तीन दिन तक उसके बटोर ने में लगे रहे।26चौथे दिन वह बराकाह की वादी में इकट्ठे हुए क्यूँकि उन्होंने वहाँ ख़ुदावन्द को मुबारक कहा; इसलिए कि उस मक़ाम का नाम आज तक बराकाह की वादी है।27तब वह लौटे, या'नी यहूदाह और यरूशलीम का हर शख़्स उनके आगे आगे यहूसफत ताकि वह ख़ुशी ख़ुशी यरूशलीम को वापस जाएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको उनके दुश्मनों पर ख़ुश किया था।28इसलिए वह सितार और बरबत और नरसिंगे लिए यरूशलीम में ख़ुदावन्द के घर में आए।29और ख़ुदा का ख़ौफ़ उन मुल्कों की सब सल्तनतों पर छा गया, जब उन्होंने सुना कि इस्राईल कि दुश्मनों से ख़ुदावन्द ने लड़ाई की है।30इसलिए यहूसफ़त की हुकूमत में अम्न रहा, क्यूँकि उसके ख़ुदा ने उसे चारों तरफ़ अमान बख़्शी ।31यहूसफ़त यहूदाह पर हुकूमत करता रहा। जब वह हुकूमत करने लगा तो पैतीस साल का था, और उसने यरूशलीम में पच्चीस साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम 'अजूबाह था, जो सिलही की बेटी थी।32वह अपने बाप आसा के रास्ते पर चला और उससे न मुड़ा, या'नी वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है।33~तो भी ऊँचे मक़ाम दूर न किए गए थे, और अब तक लोगों ने अपने बाप-दादा के ख़ुदा से दिल नहीं लगाया था।34और यहूसफ़त के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक याहू बिन हनानी की तारीख़ में दर्ज हैं, जो इस्राईल के सलातीन की किताब में शामिल है35इसके बा'द यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त ने इस्राईल के बादशाह अख़ज़ियाह से, जो बड़ा बदकार था, सुलह किया;36और इसलिए उससे सुलह किया कि तरसोस जाने को जहाज़ बनाए, और उन्होंने 'अस्यूनजाबर में जहाज़ बनाए।37तब इली'अज़र बिन दूदावाहू ने, जो मरीसा का था, यहूसफ़त के बरख़िलाफ़ नबुव्वत की और कहा, "इसलिए कि तू ने अखज़ियाह से सुलह कर लिया है, ख़ुदावन्द ने तेरे बनाए को तोड़ दिया है।" फ़िर वह जहाज़ ऐसे टूटे कि तरसीस~को न जा सके।
1~और यहूसफ़त अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और दाऊद के शहर में अपने बाप-दादा के साथ दफ़्न हुआ; और उसका बेटा यहूराम उसकी जगह हुकूमत करने लगा।2~उसके भाई जो यहूसफ़त के बेटे यह थे: या'नी 'अज़रियाह और यहीएल और ज़करियाह और 'अज़रियाह और मीकाईल और सफ़तियाह, यह सब शाह-ए-इस्राईल यहूसफ़त के बेटे थे।3और उनके बाप ने उनको चाँदी और सोने और बेशक़ीमत चीज़ों के बड़े इनाम और फ़सीलदार शहर यहूदाह में 'अता किए, लेकिन हुकूमत यहूराम को दी क्यूँकि वह पहलौठा था।4जब यहूराम अपने बाप की हुकूमत पर क़ायम हो गया और अपने को ताक़तवर कर लिया, तो उसने अपने सब भाइयों को और इस्राईल के कुछ सरदारों को भी तलवार से क़त्ल किया5~यहूराम जब हुकूमत करने लगा तो बत्तीस साल का था, और उसने आठ साल यरूशलीम में हुकूमत की।6और वह अख़ीअब के घराने की तरह इस्राईल के बादशाहों के रास्ते पर चला, क्यूँकि अख़ीअब की बेटी उसकी बीवी थी; और उसने वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा है।7तो भी ख़ुदावन्द ने दाऊद के ख़ान्दान को हलाक करना न चाहा, उस 'अहद की वजह से जो उसने दाऊद से बाँधा था, और जैसा उसने उसे और उसकी नसल को हमेशा के लिए एक चिराग़ देने का वा'दा किया था।8~उसी के दिनों में अदोम यहूदाह की हुकूमत से अलग हो गया और अपने ऊपर एक बादशाह बना लिया।9~तब यहूराम अपने अमीरों और अपने सब रथों को साथ लेकर उबूर कर गया और रात को उठकर अदोमियों को, जो उसे और रथों के सरदारों को घेरे हुए थे मारा।10~इसलिए अदोमी यहूदाह से आज तक अलग हैं, और उसी वक़्त लिबनाह भी उसके हाथ से निकल गया, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को छोड़ दिया था।11और इसके 'अलावा उसने यहूदाह के पहाड़ों पर ऊँचे मक़ाम बनाए और यरूशलीम के बाशिन्दों को ज़िनाकार बनाया, और यहूदाह को गुमराह किया।12और एलियाह नबी से उसे इस मज़्मून का ख़त मिला, "ख़ुदावन्द तेरे बाप दाऊद का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है, इसलिए कि तू न अपने बाप यहूसफ़त के रास्तों पर और न यहूदाह के बादशाह आसा के रास्तों पर चला,13बल्कि इस्राईल के बादशाहों के रास्ते पर चला है, और यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों को ज़िनाकार बनाया जैसा अखी'अब के ख़ान्दान ने किया था; और अपने बाप के घराने में से अपने भाइयों को जो तुझ से अच्छे थे क़त्ल भी किया।14इसलिए देख, ख़ुदावन्द तेरे लोगों को और तेरे बेटों और तेरी बीवियों को और तेरे सारे माल को बड़ी आफ़तों से मारेगा।15और तू अन्तड़ियों के मर्ज़ की वजह से सख़्त बीमार हो जाएगा, यहाँ तक कि तेरी अन्तड़ियाँ उस मर्ज़ की वजह से हर दिन निकलती जाएँगी।"16और ख़ुदावन्द ने यहूराम के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तियों और उन 'अरबों का, जो कूशियों की सिम्त में रहते हैं दिल उभारा।17इसलिए वह यहूदाह पर चढ़ाई करके उसमें घुस आए, और सारे माल को जो बादशाह के घर में मिला और उसके बेटों और उसकी बीवियों को भी ले गए, ऐसा कि यहूआख़ज़ के 'अलावा जो उसके बेटों में सबसे छोटा था उसका कोई बेटा बाक़ी न रहा।18~और इस सबके बा'द ख़ुदावन्द ने एक लाइलाज मर्ज़ उसकी अन्तड़ियों में लगा दिया।19कुछ मुद्दत के बा'द, दो साल के आख़िर में ऐसा हुआ कि उसके रोग के मारे उसकी अन्तड़ियाँ निकल पड़ी और वह बुरी बीमारियों से मर गया। उसके लोगों ने उसके लिए आग न जलाई, जैसा उसके बाप-दादा के लिए जलाते थे।20वह बत्तीस साल का था जब हुकूमत करने लगा और उसने आठ साल यरूशलीम में हुकूमत की; और वह बगै़र मातम के रुख़सत हुआ और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में दफ़्न किया, लेकिन शाही क़ब्रों में नहीं।
1और यरूशलीम के बाशिंदों ने उसके सबसे छोटे बेटे अखज़ियाह को उसकी जगह बादशाह बनाया; क्यूँकि लोगों के उस जत्थे ने जो 'अरबों के साथ छावनी में आया था, सब बड़े बेटों को क़त्ल कर दिया था। इसलिए शाह-ए- यहूदाह यहूराम का बेटा अखज़ियाह बादशाह हुआ।2अखज़ियाह बयालीस' साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने यरूशलीम में एक साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम 'अतलियाह था, जो 'उमरी की बेटी थी।3~वह भी अख़ीअब के ख़ान्दान के रास्ते पर चला, क्यूँकि उसकी माँ उसको बुराई की सलाह देती थी।4उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बुराई की जैसा अख़ीअब के ख़ान्दान ने किया था, क्यूँकि उसके बाप के मरने के बा'द वही उसके सलाहकार थे, जिससे उसकी बर्बादी हुई।5और उसने उनके सलाह पर 'अमल भी किया, और शाह-ए-इस्राईल अख़ीअब के बेटे यहूराम के साथ शाह-ए-अराम हज़ाएल से रामात जिल'आद में लड़ने को गया, और अरामियों ने यहूराम को ज़ख़्मी किया;6और वह यज़र'ऐल को उन ज़ख़्मों के 'इलाज के लिए लौटा जो उसे रामा में शाह-ए-अराम हज़ाएल के साथ लड़ते वक़्त उन लोगों के हाथ से लगे थे, और शाह-ए-यहूदाह यहूराम का बेटा 'अज़रियाह, यहूराम बिन अख़ीअब को यज़र'एल में देखने गया क्यूँकि वह बीमार था।7अखज़ियाह की हलाकत ख़ुदा की तरफ़ से ऐसी हुई कि वह यहूराम के पास गया, क्यूँकि जब वह पहुँचा तो यहूराम के साथ याहू बिन निमसी से लड़ने को गया, जिसे ख़ुदावन्द ने अख़ीअब के ख़ान्दान को काट डालने के लिए मसह किया था।8और जब याहू अख़ीअब के ख़ानदान को सज़ा दे रहा था तो उसने यहूदाह के सरदारों और अखज़ियाह के भाइयों ~के बेटों को अख़ज़ियाह की ख़िदमत करते पाया और उनको क़त्ल किया।9और उसने अख़ज़ियाह को ढूंढा यह ~सामरिया में छिपा था इसलिए ~वह उसे पकड़ कर याहू के पास लाये और उसे क़त्ल किया और उन्होंने उसे दफ़न किया क्यूँकि वह कहने लगे, "वह यहूसफ़त का बेटा है,जो अपने सारे दिल से ख़ुदावन्द का तालिब रहा।” और अख़ज़ियाह के घराने में हुकूमत संभालने की ताक़त किसी में न रही।10जब अख़ज़ियाह की माँ 'अतलियाह ने देखा कि उसका बेटा मर गया, तो उसने उठ कर यहूदाह के घराने की सारी शाही नसल को मिटा ~दिया।11लेकिन बादशाह की बेटी यहूसब'अत अख़ज़ियाह के बेटे यूआस को बादशाह के बेटों के बीच से जो क़त्ल किए गए, चुरा ले गई और उसे और उसकी दाया को बिस्तरों की कोठरी में रखा। इसलिए यहूराम बादशाह की बेटी यहूयदा' काहिन की बीवी यहूसब'अत ने (चूँकि वह अख़ज़ियाह की बहन थी) उसे अतलियाह से ऐसा छिपाया कि वह उसे क़त्ल करने न पायी|12और वह उनके पास ख़ुदा की हैकल में छ: साल तक छिपा रहा, और 'अतलियाह मुल्क पर हुकूमत करती रही।
1सातवे साल यहूयदा' ने ज़ोर पकड़ा और सैकड़ों के सरदारों या'नी 'अज़रियाह बिन यहूराम और इस्मा'ईल बिनयहूहनान और अज़रियाह बिन 'ओबेद और मासियाह बिन 'अदायाह और इलीसाफ़त बिन ज़िकरी से 'अहद बाँधा।2वह यहूदाह में फिरे, और यहूदाह के सब शहरों में से लावियों को, और इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के सरदारों को इकट्ठा किया, और वह यरूशलीम में आए।3और सारी जमा'अत ने ख़ुदा के घर में बादशाह के साथ 'अहद बाँधा, और यहूयदा' ने उनसे कहा, "देखो! यह शाहज़ादा जैसा ख़ुदावन्द ने बनी दाऊद के हक़ में फ़रमाया है, हुकूमत करेगा।4जो काम तुम को करना है वह यह है कि तुम काहिनों और लावियों में से जो सब्त को आते हो, एक तिहाई दरबान हो,5और एक तिहाई शाही महल पर, और एक तिहाई बुनियाद के फाटक पर; और सब लोग ख़ुदावन्द के घर के सहनों में हो।6पर ख़ुदावन्द के घर में सिवा काहिनों के और उनके जो लावियों में से ख़िदमत करते हैं, और कोई न आने पाए वही अन्दर आए क्यूँकि वह मुक़द्दस है लेकिन सब लोग ख़ुदावन्द का पहरा देते रहें।7~और लावी अपने अपने हाथ में अपने हथियार लिए हुए बादशाह को चारों तरफ़ से घेरे रहे, और जो कोई हैकल में आए क़त्ल किया जाए और बादशाह जब अन्दर आए और बाहर निकले तो तुम उसके साथ रहना।"8इसलिए लावियों और सारे यहूदाह ने यहूयदा' काहिन के हुक्म के मुताबिक़ सब कुछ किया, और उनमें से हर शख़्स ने अपने लोगों को लिया, या'नी उनको जो सब्त को अन्दर आते थे और उनको जो सब्त को बाहर चले जाते थे; क्यूँकि यहूयदा' काहिन ने बारी वालों को ~रुख़सत नहीं किया था।9और यहूयदा' काहिन ने दाऊद बादशाह की बर्छियाँ और ढालें और फरियाँ, जो ख़ुदा के घर में थीं, सैंकड़ों सरदारों को दीं।10और उसने सब लोगों को जो अपना अपना हथियार हाथ में लिए हुए थे, हैकल की दहनी तरफ़ से उसकी बाई तरफ़ तक, मज़बह और हैकल के पास बादशाह के चारो तरफ़ खड़ा कर दिया।11फिर वह शाहज़ादे को बाहर लाए, और उसके सिर पर ताज रखकर गवाही नामा दिया और उसे बादशाह बनाया; और यहूयदा' और उसके बेटों ने उसे मसह किया, और वह बोल उठे, "बादशाह सलामत रहे।"12जब 'अतलियाह ने लोगों का शोर सुना, जो दौड़ दौड़ कर बादशाह की तारीफ़ कर रहे थे, तो वह ख़ुदावन्द के घर में लोगों के पास आई।13और उसने निगाह की और क्या देखा कि बादशाह फाटक में अपने सुतून के पास खड़ा है, और बादशाह के नज़दीक हाकिम और नरसिंगे हैं और सारी ममलकत के लोग ख़ुश हैं और नरसिंगे फूंक रहे हैं, और गानेवाले बाजों को लिए हुए मदहसराई करने में पेशवाई कर रहे हैं। तब 'अतलियाह ने अपने कपड़े फाड़े और कहा, "गद्र है! गद्र!"14तब यहूयदा' काहिन सैकड़ों के सरदारों को जो लश्कर पर मुक़र्रर थे, बाहर ले आया और उनसे कहा कि उसको सफ़ों के बीच करके निकाल ले जाओ, और जो कोई उसके पीछे चले वह तलवार से मारा जाए। क्यूँकि काहिन कहने लगा कि ख़ुदावन्द के घर में उसे क़त्ल न करो।15इसलिए उन्होंने उसके लिए रास्ता छोड़ दिया, और वह शाही महल के घोड़ा फाटक के सहन को गई, और वहाँ उन्होंने उसे क़त्ल कर दिया16फिर यहूयदा' ने अपने और सब लोगों और बादशाह के बीच 'अहद बाँधा कि वह ख़ुदावन्द के लोग हों।17तब सब लोग बा'ल के मन्दिर को गए और उसे ढाया; और उन्होंने उसके मज़बहों और उसकी मूरतों को चकनाचूर किया, और बा'ल के पुजारी मतान को मज़बहों के सामने क़त्ल किया।18और यहूयदा' ने ख़ुदावन्द की हैकल की ख़िदमत लावी काहिनों के हाथ में सौंपी, जिनको दाऊद' ने ख़ुदावन्द की हैकल में अलग अलग ठहराया था कि ख़ुदावन्द की सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ जैसा मूसा की तौरेत में लिखा है, ख़ुशी मनाते हुए और गाते हुए दाऊद के दस्तूर के मुताबिक़ अदा करेंगे।19~और उसने ख़ुदावन्द की हैकल के फाटकों पर दरबानों को बिठाया, ताकि जो कोई किसी तरह से नापाक हो, अन्दर आने न पाए।20और उसने सैकड़ों के सरदारों और हाकिम और क़ौम के हाकिमों और मुल्क के सब लोगों को साथ लिया, और बादशाह को ख़ुदावन्द की हैकल से ले आया, और वह ऊपर के फाटक से शाही महल में आए और बादशाह की तख़्त-ए-हुकूमत पर बिठाया।21तब मुल्क के सब लोगों ने ख़ुशी मनाई और शहर में अमन हुआ। उन्होंने 'अतलियाह को तलवार से क़त्ल कर दिया।
1~यूआस सात साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने चालीस साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम ज़िबियाह था, जो बैरसबा' की थी।2और यूआस यहूयदा' काहिन के जीते जी वही, जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है, करता रहा।3~यहूयदा' ने उसे दो बीवियाँ ब्याह दीं, और उससे बेटे और बेटियाँ पैदा हुई।4इसके बा'द यूँ हुआ कि यूआस ने ख़ुदावन्द के घर की मरम्मत का 'इरादा किया।5इसलिए उसने काहिनों और लावियों को इकट्ठा किया और उनसे कहा कि यहूदाह के शहरों में जा जा कर, सारे इस्राईल से साल-ब-साल अपने ख़ुदा के घर की मरम्मत के लिए रुपये जमा' किया करो, और इस काम में तुम जल्दी करना। तो भी लावियों ने कुछ जल्दी न की।6~तब बादशाह ने यहूयदा सरदार को बुलाकर उससे कहा कि तू ने लावियों से क्यूँ तकाज़ा नहीं किया कि वह शहादत के ख़ेमे के लिए, यहूदाह और यरूशलीम से ख़ुदावन्द के बन्दे और इस्राईल की जमा'अत के ख़ादिम मूसा का महसूल लाया करें?7क्यूँकि उस शरीर 'औरत 'अतलियाह के बेटों ने ख़ुदा के घर में छेद कर दिए थे, और ख़ुदावन्द के घर की सब पाक की हुई चीजें भी उन्होंने बा'लीम को दे दी थीं।8तब बादशाह ने हुक्म दिया, और उन्होंने एक सन्दूक़ बना कर उसे ख़ुदावन्द के घर के दरवाज़े के बाहर रखा;9और यहूदाह और यरूशलीम में 'ऐलान किया कि लोग वह महसूल जिसे बन्दा-ए-ख़ुदा मूसा ने वीरान में इस्राईल पर लगाया था, ख़ुदावन्द के लिए लाएँ।10और सब सरदार और सब लोग ख़ुश हुए, और लाकर उस सन्दूक़ में डालते रहे जब तक पूरा न कर दिया।11जब सन्दूक़ लावियों के हाथ से बादशाह के मुख़्तारों के पास पहुँचा, और उन्होंने देखा कि उसमें बहुत नक़दी है, तो बादशाह के मुन्शी और सरदार काहिन के नाइब ने आकर सन्दूक़ को ख़ाली किया और उसे लेकर फिर उसकी जगह पहुँचा दिया; और हर दिन ऐसा ही कर के उन्होंने बहुत सी नकदी जमा' कर ली12~फिर बादशाह और यहूयदा' ने उसे उनको दे दिया जो ख़ुदावन्द के घर की 'इबादत के काम पर मुक़र्रर थे, और उन्होंने पत्थर तराशों और बढ़इयों को ख़ुदावन्द के घर को बहाल करने के लिए और लोहारों और ठठेरों को भी ख़ुदावन्द के घर की मरम्मत के लिए मज़दूरी पर रखा।13इसलिए ~कारीगर लग गए और काम उनके हाथ से पूरा होता गया, और उन्होंने ख़ुदा के घर को उसकी पहली हालत पर करके उसे मज़बूत कर दिया।14और जब उसे पूरा कर चुके तो बाक़ी रुपया बादशाह और यहूयदा' के पास ले आए, जिससे ख़ुदावन्द के घर के लिए बर्तन या'नी ख़िदमत के और क़ुर्बानी पेश करने के बर्तन और चमचे और सोने और चाँदी के बर्तन बने। और वह यहूयदा' के जीते जी ख़ुदावन्द के घर में हमेशा~सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ अदा करते रहे।15लेकिन यहूयदा' ने बुड्ढा और 'उम्र दराज़ होकर वफ़ात पाई; और जब वह मरा तो एक सौ तीस साल का था।16और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में बादशाहों के साथ दफ़न किया, क्यूँकि उसने इस्राईल में, और ख़ुदा और उसके घर की ख़ातिर नेकी की थी।17यहूयदा' के मरने के बा'द यहूदाह के सरदार आकर बादशाह के सामने कोर्निश बजा लाए; तब बादशाह ने उनकी सुनी,18और वह ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के घर को छोड़ कर यसीरतों और बुतों की 'इबादत करने लगे। और उनकी इस ख़ता की वजह से यहूदाह और यरूशलीम पर ग़ज़ब नाज़िल हुआ।19~तो भी ख़ुदावन्द ने नबियों को उनके पास भेजा ताकि उनको उसकी तरफ़ फेर लाएँ, और वह उनको इल्ज़ाम देते रहे, पर उन्होंने कान न लगाया।20तब ख़ुदा की रूह यहूयदा' काहिन के बेटे ज़करियाह पर नाज़िल हुई, इसलिए वह लोगों से बुलन्द जगह पर खड़ा होकर कहने लगा, "ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है कि~तुम क्यूँ ख़ुदावन्द के हुक्मों से बाहर जाते हो कि ऐसे ख़ुशहाल नहीं रह सकते? चूँकि तुम ने ख़ुदावन्द को छोड़ा है, उसने भी तुम को छोड़ दिया।"21तब उन्होंने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की, और बादशाह के हुक्म से ख़ुदावन्द के घर के सहन में उसे पत्थराव कर दिया।22ऐसे यूआस बादशाह ने उसके बाप यहूयदा' के एहसान को जो उसने उस पर किया था, याद न रखा बल्कि उसके बेटे को क़त्ल किया। और मरते वक़्त उसने कहा, "ख़ुदावन्द इसको देखे, और इन्तक़ाम ले।"23~उसी साल के आख़िर में ऐसा हुआ कि अरामियों की फ़ौज ने उस पर चढ़ाई की, और यहूदाह और यरूशलीम में आकर लोगों में से क़ौम के सब सरदारों को हलाक किया और उनका सारा माल लूटकर दमिश्क़ के बादशाह के पास भेज दिया।24अगरचे अरामियों के लश्कर से आदमियों का छोटा ही जत्था आया, तोभी ख़ुदावन्द ने एक बहुत बड़ा लश्कर उनके हाथ में कर दिया, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को छोड़ दिया था। इसलिए उन्होंने यूआस को उसके किए का बदला दिया।25~और जब वह उसके पास से लौट गए (उन्होंने उसे बड़ी बीमारियों में मुब्तला छोड़ा), तो उसी के मुलाज़िमों ने यहूयदा' काहिन के बेटों के ख़ून की वजह से उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और उसे उसके बिस्तर पर क़त्ल किया, और वह मर गया; और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में तो दफ़न किया, लेकिन उसे बादशाहों की कब्रों में दफ़न न किया।26उसके ख़िलाफ़ साज़िश करने वाले यह हैं: 'अम्मूनिया समा'अत का बेटा ज़बद, और मो'आबिया सिमरियत का बेटा यहूज़बद।27अब रहे उसके बेटे और वह बड़े बोझ जो उस पर रखे गए, और ख़ुदा के घर का दोबारा बनाना; इसलिए देखो, यह सब कुछ बादशाहों की किताब की तफ़सीर में लिखा है। और उसका बेटा अमसियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
1अमसियाह पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने उनतीस साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम यहूअद्दान था, जो यरूशलीम की थी।2~उसने वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है, लेकिन कामिल दिल से नहीं।3जब वह हुकूमत पर जम गया तो उसने अपने उन मुलाज़िमों को, जिन्होंने उसके बाप बादशाह को मार डाला था क़त्ल किया,4~लेकिन उनकी औलाद को जान से नहीं मारा बल्कि उसी के मुताबिक़ किया जो मूसा की किताब तौरेत में लिखा है, जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि बेटों के बदले बाप-दादा न मारे जाएँ, और न बाप-दादा के बदले बेटे मारे जाएँ, बल्कि हर आदमी अपने ही गुनाह के लिए मारा जाए।5इसके 'अलावा अमसियाह ने यहूदाह को इकट्ठा किया, और उनको उनके आबाई ख़ान्दानों के मुताबिक़ तमाम मुल्क-ए-यहूदाह और बिनयमीन में हज़ार हज़ार के सरदारों और सौ सौ के सरदारों के नीचे ठहराया; और उनमें से जिनकी 'उम्र बीस साल या उससे ऊपर थी उनको शुमार किया, और उनको तीन लाख चुने हुए जवान पाया जो जंग में जाने के क़ाबिल और बर्छी और ढाल से काम ले सकते थे।6और उसने सौ क़िन्तार चाँदी देकर इस्राईल में से एक लाख ज़बरदस्त सूर्मा नौकर रखे।7~लेकिन एक नबी ने उसके पास आकर कहा, "ऐ बादशाह, इस्राईल की फ़ौज तेरे साथ जाने न पाए, क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल या'नी सब बनी इफ़्राईम के साथ नहीं है।8लेकिन अगर तू जाना ही चाहता है तो जा और लड़ाई के लिए मज़बूत हो, ख़ुदा तुझे दुश्मनों के आगे गिराएगा क्यूँकि ख़ुदा में संभालनेऔर गिराने की ताक़त है।"9अमसियाह ने उस नबी से कहा, "लेकिन सौ क़िन्तारों के लिए जो मैंने इस्राईल के लश्कर को दिए, हम क्या करें?" उस नबी ने जवाब दिया, "ख़ुदावन्द तुझे इससे बहुत ज़्यादा दे सकता है।"10~तब अमसियाह ने उस लश्कर को जो इफ़्राईम में से उसके पास आया था जुदा किया, ताकि वह फिर अपने घर जाएँ। इस वजह से उनका गु़स्सा यहूदाह पर बहुत भड़का, और वह बहुत गु़स्से में घर को लौटे।11~और अमसियाह ने हौसला बाँधा और अपने लोगों को लेकर वादी-ए-शोर को गया, और बनी श'ईर में से दस हज़ार को मार दिया;12और दस हज़ार को बनी यहूदाह ज़िन्दा पकड़ कर ले गए, और उनको एक चट्टान की चोटी पर पहुँचाया और उस चट्टान की चोटी पर से उनको नीचे गिरा दिया, ऐसा कि सब के सब टुकड़े टुकड़े हो गए।13लेकिन उस लश्कर के लोग जिनको अमसियाह ने लौटा दिया था कि उसके साथ जंग में न जाएँ, सामरिया से बैतहौरून तक यहूदाह के शहरों पर टूट पड़े और उनमें से तीन हज़ार जवानों को मार डाला और बहुत सी लूट ले गए।14जब अमसियाह अदूमियों के क़िताल से लौटा, तो बनी श'ईर के मा'बूदों को लेता आया और उनको नस्ब किया ताकि वह उसके मा'बूद हों, और उनके आगे सिज्दा किया और उनके आगे ख़ुशबू जलाया।15~इसलिए ख़ुदावन्द का ग़ज़ब अमसियाह पर भड़का और उसने एक नबी को उसके पास भेजा, जिसने उससे कहा, "तू उन लोगों के मा'बूदों का तालिब क्यूँ हुआ, जिन्होंने अपने ही लोगों को तेरे हाथ से न छुड़ाया?"16वह उससे बातें कर ही रहा था कि उसने उससे कहा कि क्या हम ने तुझे बादशाह का सलाहकार बनाया है? चुप रह, तू क्यूँ मार खाए? तब वह नबी यह कहकर चुप हो गया कि मैं जानता हूँ कि ख़ुदा का इरादा यह है कि तुझे हलाक करे, इसलिए कि तू ने यह किया है और मेरी सलाह नहीं मानी।17तब यहूदाह के बादशाह अमसियाह ने सलाह करके इस्राईल के बादशाह यूआस बिन यहूआख़ज़ बिन याहू के पास कहला भेजा कि ज़रा आ तो, हम एक दूसरे का मुक़ाबिला करें।18इसलिए इस्राईल के बादशाह यूआस ने यहूदाह के बादशाह अमसियाह को कहला भेजा, कि लुबनान के ऊँट-कटारे ने लुबनान के देवदार को पैग़ाम भेजा कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में एक जंगली दरिंदा जो लुबनान में रहता था, गुज़रा और उसने ऊँटकटारे को रौंद डाला।19तू कहता है, "देख मैंने अदोमियों को मारा, इसलिए तेरे दिल में घमण्ड समाया है कि फ़ख़्र करे; घर ही में बैठा रह तू क्यूँ अपने नुक़सान के लिए दस्तअन्दाज़ी करता है कि तू भी गिरे और तेरे साथ यहूदाह भी?”20~लेकिन अमसियाह ने न माना; क्यूँकि यह ख़ुदा की तरफ़ से था कि वह उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दे, इसलिए कि वह अदूमियों के मा'बूदों के तालिब हुए थे।21~इसलिए इस्राईल का बादशाह यूआस चढ़ आया, और वह और शाह-ए-यहूदाह अमसियाह यहूदाह के बैतशम्स में एक दूसरे के मुक़ाबिल हुए।22और यहूदाह ने इस्राईल के मुक़ाबिले में शिकस्त खाई, और उनमें से हर एक अपने डेरे को भागा।23और शाह-ए-इस्राईल यूआस ने शाह-ए-यहूदाह अमसियाह बिन यूआस बिन यहूआखज़ को बैतशम्स में पकड़ लिया और उसे यरूशलीम में लाया, और यरूशलीम की दीवार इफ़्राईम के फाटक से कोने के फाटक तक चार सौ हाथ ढा दी।24और सारे सोने और चाँदी और सब बर्तनों को जो 'ओबेद अदोम के पास ख़ुदा के घर में मिले, और शाही महल के खज़ानों और कफ़ीलों को भी लेकर सामरिया को लौटा।25~और शाह-ए-यहूदाह अमसियाह बिन यूआस, शाह-ए-इस्राईल यूआस बिन यहूआख़ज़ के मरने के बाद पंद्रह साल ज़िन्दा रहा।26अमसियाह के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक, क्या वह यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में क़लमबन्द नहीं हैं?27~जब से अमसियाह ख़ुदावन्द की पैरवी से फिरा, तब ही से यरूशलीम के लोगों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की,इसलिए वह लकीस को भाग गया। लेकिन उन्होंने लकीस में उसके पीछे लोग भेजकर उसे वहाँ क़त्ल किया।28और वह उसे घोड़ों पर ले आए, और यहूदाह के शहर में उसके बाप-दादा के साथ उसे दफ़्न किया।
1~तब यहूदाह के सब लोगों ने 'उज़्ज़ियाह को जो सोलह साल का था, लेकर उसे उसके बाप अमसियाह की जगह बादशाह बनाया।2उसने बादशाह के अपने बाप-दादा के साथ सो जाने के बा'द ऐलूत को ता'मीर किया और उसे फिर यहूदाह में शामिल कर दिया।3~'उज़्ज़ियाह सोलह साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने यरूशलीम में बावन साल हुकूमत की। उसकी माँ का नाम यकूलियाह था, जो यरूशलीम की थी।4उसने वही जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त है, ठीक उसी के मुताबिक़ किया जो उसके बाप अमसियाह ने किया था।5और वह ज़करियाह के दिनों में जो ख़ुदा के ख़्वाबो ~में माहिर था, ख़ुदा का तालिब रहा और जब तक वह ख़ुदावन्द का तालिब रहा ख़ुदा ने उसे कामयाब रखा।6और ~वह निकला और फ़िलिस्तियों से लड़ा, और जात की दीवार को और यबना की दीवार को और अशदूद की दीवार को ढा दिया, और अशदूद के मुल्क में और फ़िलिस्तियों के बीच शहर ता'मीर किए।7और ख़ुदा ने फिलिस्तियों और जूरबाल के रहने वाले 'अरबों और मऊनियों के मुक़ाबिले में उसकी मदद की।8~और 'अम्मूनी 'उज़्ज़ियाह को नज़राने देने लगे और उसका नाम मिस्र की सरहद तक फैल गया, क्यूँकि वह बहुत ताक़तवर हो गया था।9और उज़्ज़ियाह ने यरूशलीम में कोने के फाटक और वादी के फाटक और दीवार के मोड़ पर बुर्ज बनवाए और उनको मज़बूत किया।10और उसने वीरान में बुर्ज बनवाए और बहुत से हौज़ खुदवाए, क्यूँकि नशेब की ज़मीन में भी और मैदान में उसके बहुत चौपाए थे। और पहाड़ों और ज़रखेज़ खेतों में उसके किसान और ताकिस्तानों के माली थे, क्यूँकि काश्त कारी उसे बहुत पसंद थी।11~इसके 'अलावा उज़्ज़ियाह के पास जंगी जवानों का लश्कर था जो य'ईएल मुन्शी और मासियाह नाज़िम के शुमार के मुताबिक़, ग़ोल ग़ोल होकर बादशाह के एक सरदार हनानियाह के मातहत लड़ाई पर जाता था।12और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों या'नी ज़बरदस्त सूर्माओं का कुल शुमार दो हज़ार छ: सौ था।13और उनके मातहत तीन लाख साढ़े सात हज़ार का ज़बरदस्त लश्कर था, जो दुश्मन के मुक़ाबिले में बादशाह की मदद करने को बड़े ज़ोर से लड़ता था।14और उज़्ज़ियाह ने उनके लिए या'नी सारे लश्कर के लिए ढालें और बर्छे और ख़ूद और बकतर और कमानें और फ़लाख़न के लिए पत्थर तैयार किए15और उसने यरूशलीम में हुनरमंद लोगों की ईजाद की हुई कीलें बनवायीं ताकि वह तीर चलाने और बड़े बड़े पत्थर फेंकने के लिए बुर्जों और फ़सीलों पर हों। इसलिए उसका नाम दूर तक फ़ैल गया क्यूँकि उसकी मदद ऐसी 'अजीब तरह से हुई कि वह ताक़तवर हो गया16~लेकिन जब वह ताक़तवर हो गया, तो उसका दिल इस क़दर फूल गया कि वह ख़राब हो गया और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की नाफ़रमानी करने लगा; चुनाँचे वह ख़ुदावन्द की हैकल में गया ताकि ख़ुशबू की क़ुर्बानगाह पर ख़ुशबू जलाए।17~तब 'अज़्ज़रियाह काहिन उसके पीछे पीछे गया और उसके साथ ख़ुदावन्द के अस्सी काहिन और थे जो बहादुर आदमी थे,18और उन्होंने 'उज़्ज़ियाह बादशाह का सामना किया और उससे कहने लगे, "ऐ 'उज़्ज़ियाह, ख़ुदावन्द के लिए ख़ुशबू जलाना तेरा काम नहीं, बल्कि काहिनों या'नी हारून के बेटों का काम है, जो ख़ुशबू जलाने के लिए पाक किए गए हैं। इसलिए मक़दिस से बाहर जा, क्यूँकि तू ने ख़ता की है, और ख़ुदावन्द~ख़ुदा की तरफ़ से यह तेरी 'इज़्ज़त का ज़रिया' न होगा।"19तब 'उज़्ज़ियाह गु़स्सा हुआ, और ख़ुशबू जलाने को बख़ूरदान अपने हाथ में लिए हुए था; और जब वह काहिनों पर झुंझला रहा था, तो काहिनों के सामने ही ख़ुदावन्द के घर के अन्दर ख़ुशबू की कु़र्बानगाह के पास उसकी पेशानी पर कोढ़ फूट निकला।20और सरदार काहिन 'अज़रियाह और सब काहिनों ने उस पर नज़र की और क्या देखा कि उसकी पेशानी पर कोढ़ निकला है। इसलिए उन्होंने उसे जल्द वहाँ से निकाला, बल्कि उसने खु़द भी बाहर जाने में जल्दी की क्यूँकि ख़ुदावन्द की मार उस पर पड़ी थी।21~चुनाँचे 'उज़्ज़ियाह बादशाह अपने मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ी होने की वजह से एक अलग घर में रहता था; क्यूँकि वह ख़ुदावन्द के घर से काट डाला गया था। और उसका बेटा यूताम बादशाह के घर का मुख़्तार था और मुल्क के लोगों का इन्साफ़ करता था।22और 'उज़्ज़ियाह के बाक़ी काम शुरू' से आख़िर तक आमूस के बेटे यसायाह नबी ने लिखे।23इसलिए 'उज़्ज़ियाह अपने बाप-दादा के साथ सो गया; और उन्होंने क़ब्रिस्तान के मैदान में जो बादशाहों का था, उसके बाप-दादा के साथ उसे दफ़न किया क्यूँकि वह कहने लगे, "वह कोढ़ी है।” और उसका बेटा यूताम उसकी जगह बादशाह हुआ।
1यूताम पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने सोलह साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम यरूसा था जो सदोक़ की बेटी थी।2और उसने वही जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त है, ठीक ऐसा ही किया जैसा उसके बाप उज़्ज़ियाह ने किया था, मगर वह ख़ुदावन्द की हैकल में न घुसा, लेकिन लोग गुनाह करते ही रहे।3और उसने ख़ुदावन्द के घर का बालाई दरवाज़ा बनाया, और ओफ़ल की दीवार पर उसने बहुत कुछ ता'मीर किया।4और यहूदाह के पहाड़ी मुल्क में उसने शहर ता'मीर किए, और जंगलों में क़िले' और बुर्ज बनवाए।5~वह बनी 'अम्मून के बादशाह से भी लड़ा और उन पर ग़ालिब हुआ। और उसी साल बनी 'अम्मून ने एक सौ क़िन्तार चाँदी और दस हज़ार कुर गेहूँ और दस हज़ार कुर जौ उसे दिए, और उतना ही बनी 'अम्मून ने दूसरे और तीसरे साल भी उसे दिया ।6इसलिए यूताम ज़बरदस्त हो गया, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के आगे अपने रास्ते दुरुस्त किए थे।7और यूताम के बाक़ी काम और उसकी सब लड़ाईयां और उसके तौर तरीक़े इस्राईल और ~यहूदाह के बादशाहों की किताब में लिखा हैं।8वह पच्चीस साल का था जब हुकूमत करने लगा और उसने सोलह साल यरूशलीम में हुकूमत की।9और यूताम अपने बाप दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे दाऊद के शहर में दफ़न किया; और उसका बेटा आखज़ उसकी जगह बादशाह हुआ।
1आखज़ बीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने सोलह साल यरूशलीम में हुकूमत की। और उसने वह न किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त है जैसा उसके बाप-दादा ने किया था2बल्कि इस्राईल के बादशाहों के रास्तों पर चला,और बा'लीम की ढाली हुई मूरतें भी बनवाई।3इसके 'अलावा उसने हिनूम के बेटे की वादी में ख़ुशबू जलाया, और उन क़ौमों के नफ़रती दस्तूरों के मुताबिक़ जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के सामने से ख़ारिज किया था, अपने ही बेटों को आग में झोंका।4उसने ऊँचे मक़ामों और पहाड़ों पर, और हर एक हरे दरख़्त के नीचे क़ुर्बानियाँ कीं और ख़ुशबू जलायी।5इसलिए ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा ने उसको शाह-ए-अराम के हाथ में कर दिया, इसलिए उन्होंने उसे मारा और उसके लोगों में से ग़ुलामों की भीड़ की भीड़ ले गए, और उनको दमिश्क़ में लाए; और वह शाह-ए-इस्राईल के हाथ में भी कर दिया गया, जिसने उसे मारा और बड़ी ख़ूनरेज़ी की।6और फ़िक़ह बिन रमलिया ने एक ही दिन में यहूदाह में से एक लाख बीस हज़ार को, जो सब के सब सूर्मा थे क़त्ल किया, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को छोड़ दिया था।7और ज़िकरी ने जो इफ़्राईम का एक पहलवान था, मासियाह शाहज़ादे को और महल के नाज़िम 'अज़रीकाम को और बादशाह के वज़ीर इल्क़ाना को मार डाला।8और बनी-इस्राईल अपने भाइयों में से दो लाख 'औरतों और बेटे-बेटियों को ग़ुलाम करके ले गए, और उनका बहुत सा माल लूट लिया और लूट को सामरिया में लाए।9लेकिन वहाँ ख़ुदावन्द का एक नबी था जिसका नाम 'ओदिद था, वह उस लश्कर के इस्तक़बाल को गया जो सामरिया को आ रहा था और उनसे कहने लगा, "देखो, इसलिए कि ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा का ख़ुदा यहूदाह से नाराज़ था, उसने उनको तुम्हारे हाथ में कर दिया और तुम ने उनको ऐसे तैश में क़त्ल किया है जो आसमान तक पहुँचा।10और अब तुम्हारा 'इरादा है कि बनी यहूदाह और यरूशलीम को अपने ग़ुलाम और लौंडियाँ बना कर उनको दबाए रखो। लेकिन क्या तुम्हारे ही गुनाह जो तुमने ख़ुदा वन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ किए हैं, तुम्हारे सिर नहीं हैं?11इसलिए तुम अब मेरी सुनो और उन ग़ुलामों को, जिनको तुम ने अपने भाइयों में से ग़ुलाम कर लिया है, आज़ाद करके लौटा दो क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर-ए-शदीद तुम पर है।"12तब बनी इफ़ाईम के सरदारों में से 'अज़रियाह बिन यूहनान और बरकियाह बिन मसल्लीमोत और यहज़क़ियाह बिन सलूम और 'अमासा बिन ख़दली, उनके सामने जो जंग से आ रहे थे खड़े हो गए13और उनसे कहा कि तुम ग़ुलामों को यहाँ नहीं लाने पाओगे, क्यूँकि जो तुम ने ठाना है उससे हम ख़ुदावन्द के गुनाहगार बनेंगे और हमारे गुनाह और खताएं बढ़ जायेंगी क्यूँकि हमारी ख़ता बड़ी है और इस्राईल पर क़हर-ए-शदीद है।14इसलिए उन हथियारबन्द लोगों ने गु़लामों और माल-ए- ग़नीमत को, अमीरों और सारी जमा'अत के आगे छोड़ दिया।15और वह आदमी जिनके नाम मज़कूर हुए, उठे और ग़ुलामों को लिया और लूट के माल में से उन सभों को जो उनमें नंगे थे, लिबास से आरास्ता किया और उनको जूते पहनाए और उनको खाने-पीने को दिया और उन पर तेल मला, और जितने उनमें कमज़ोर थे उनको गधों पर चढ़ा कर खजूर के दरख़्तों के शहर यरीहू में उनके भाइयों के पास पहुँचा दिया। तब सामरिया को लौट गए।16उस वक़्त आखज़ बादशाह ने असूर के बादशाहों के पास कहला भेजा के उसकी मदद करें।17इसलिए कि अदूमियों ने फिर चढ़ाई करके यहूदाह को मार लिया और ग़ुलामों को ले गए थे।18और फ़िलिस्तियों ने भी नशेब की ज़मीन के और यहूदाह के जुनूब के शहरों पर हमला करके बैतशम्स और अय्यालोन और जदीरोत को, और शोको और उसके देहात को, और तिमना और उसके देहात को, और जिमसू और उसके देहात को भी ले लिया था और उनमें बस गए थे।19~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने शाह-ए-इस्राईल आख़ज़ की वजह से यहूदाह को पस्त किया, इसलिए कि उसने यहूदाह में बेहयाई की चाल चलकर ख़ुदावन्द का बड़ा गुनाह किया था;20~और शाह-ए- असूर तिगलतपिलनासर उसके पास आया, लेकिन उसने उसको तंग किया और उसकी मदद न की।21क्यूँकि आख़ज़ ने ख़ुदावन्द के घर और बादशाह और सरदारों के महलों से माल लेकर शाह-ए-असूर को दिया, तो भी उसकी कुछ मदद न हुई।22अपनी तंगी के वक़्त में भी उसने, या'नी इसी आख़ज़ बादशाह ने ख़ुदावन्द का और भी ज़्यादा गुनाह किया;23क्यूँकि उसने दमिश्क़ के मा'बूदों के लिए जिन्होंने उसे मारा था, क़ुर्बानियाँ कीं और कहा, "चूँकि अराम के बादशाहों के मा'बूदों ने उनकी मदद की है, इसलिए मैं उनके लिए क़ुर्बानी करूंगा ताकि वह मेरी मदद करें।" लेकिन वह उसकी और सारे इस्राईल की तबाही की वजह हुए।24~और आखज़ ने ख़ुदा के घर के बर्तनों को जमा' किया और ख़ुदा के घर के बर्तनों को टुकड़े टुकड़े किया और ख़ुदावन्द के घर के दरवाज़ों को बन्द किया और अपने लिए यरूशलीम के हर कोने में मज़बहे बनाए।25और यहूदाह के एक एक शहर में ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाने के लिए ऊँचे मक़ाम बनाए, और ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा को गु़स्सा दिलाया।26और उसके बाक़ी काम और उसके सब तौर तरीके़ शुरू' से आख़िर तक यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में लिखा हैं।27और आखज़ अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे शहर में या'नी यरूशलीम में दफ़्न किया क्यूँकि वह उसे इस्राईल के बादशाहों की क़ब्रों में न लाए और उसका बेटा हिज़कियाह उसकी जगह बादशाह हुआ।
1हिज़कियाह पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने उन्तीस साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसकी माँ का नाम अबियाह था, जो ज़करियाह की बेटी थी।2उसने वही काम जो ख़ुदावन्द की नज़र में दुरुस्त है, ठीक उसी के मुताबिक़ जो उसके बाप-दादा ने किया था, किया।3उसने अपनी हुकूमत के पहले साल के पहले महीने में, ख़ुदावन्द के घर के दरवाज़ों को खोला और उनकी मरम्मत की।4और वह काहिनों और लावियों को ले आया और उनको मशरिक़ की तरफ़ मैदान में इकट्ठा किया,5और उनसे कहा, "ऐ लावियो, मेरी सुनो! तुम अब अपने को पाक करो और ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के घर को पाक करो, और इस पाक मक़ाम में से सारी नापाकी को निकाल डालो;6क्यूँकि हमारे बाप-दादा ने गुनाह किया और जो ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की नज़र में बुरा है वही किया, और ख़ुदा को छोड़ दिया और ख़ुदावन्द के घर से मुँह फेर लिया और अपनी पीठ उसकी तरफ़ कर दी7और उसारे के दरवाज़ों को भी बन्द कर दिया, और चिराग़ बुझा दिए, और इस्राईल के ख़ुदा के मक़दिस में न तो ख़ुशबू जलायी और न सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं8इस वजह से ख़ुदावन्द का क़हर यहूदाह और यरूशलीम पर नाज़िल हुआ, और उसने उनको ऐसा हवाले किया कि मारे मारे फिरें और हैरत और सुसकार का ज़रिए' हों, जैसा तुम अपनी आँखों से देखते हो।9देखो, इसी वजह से हमारे बाप-दादा तलवार से मारे गए, और हमारे बेटे बेटियाँ और हमारी बीवियाँ ग़ुलामी में हैं।10अब मेरे दिल में है कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के साथ 'अहद बाँधूं, ताकि उसका क़हर-ए-शदीद हम पर से टल जाए।11~ऐ मेरे फ़र्ज़न्दो, तुम अब ग़ाफ़िल न रहो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुम को चुन लिया है कि उसके सामने खड़े रहो और उसकी ख़िदमत करो और उसके ख़ादिम बनो और ख़ुशबू जलाओ।12~तब यह लावी उठे : या'नी बनी क़िहात में से महत बिन 'अमासी और यूएल बिन 'अज़रियाह, और बनी मिरारी में से क़ीस बिन 'अबदी और अज़रियाह बिन यहलीएल और जैरसोनियों में से यूआख़ बिन ज़िम्मा और 'अदन बिन यूआख़,13और बनी इलीसफ़न में से सिमरी और य'ऊएल, और बनी आसफ़ में से ज़करियाह और मत्तनियाह,14और बनी हैमान में से यहीएल और सिमई, और बनी यदूतून में से समा'याह और 'उज़िएल।15और उन्होंने अपने भाइयों को इकट्ठा करके अपने को पाक किया, और बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ था, ख़ुदावन्द के घर को पाक करने के लिए अन्दर गए।16और काहिन ख़ुदावन्द के घर के अन्दरूनी हिस्से में उसे पाक-साफ़ करने को दाख़िल हुए, और सारी नापाकी को जो ख़ुदावन्द की हैकल में उनको मिली निकाल कर बाहर ख़ुदावन्द के घर के सहन में ले आए, और लावियों ने उसे उठा लिया ताकि उसे बाहर क़िद्रून के नाले में पहुँचा दें।17~पहले महीने की पहली तारीख़ को उन्होंने तक़्दीस का काम शुरू किया, और उस महीने की आठवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द के उसारे तक पहुँचे, और उन्होंने आठ दिन में ख़ुदावन्द के घर को पाक किया; इसलिए पहले महीने की सोलहवीं तारीख़ को उसे पूरा किया।18तब उन्होंने महल के अन्दर हिज़कियाह बादशाह के पास जाकर कहा कि हमने ख़ुदावन्द के सारे घर को, और सोख़्तनी क़ुर्बानी के मज़बह को और उसके सब बर्तन को, और नज़्र की रोटियों की मेज़ को और उसके सब बर्तन को पाक-साफ़ कर दिया।19इसके 'अलावा हम ने उन सब बर्तन को जिनकी आख़ज़ बादशाह ने अपने दौर-ए-हुकूमत में ख़ता करके रद्द कर दिया था, फिर तैयार करके उनको पाक किया है, और देख, वह ख़ुदावन्द के मज़बह के सामने हैं।"20~तब हिज़कियाह बादशाह सवेरे उठकर और शहर के रईसों को इकठ्ठा करके ख़ुदावन्द के घर को गया।21और वह सात बैल और सात मेंढ़े और सात बर्रे और सात बकरे मुल्क के लिए और मक़दिस के लिए और यहूदाह के लिए ख़ता की क़ुर्बानी के लिए ले आए, और उसने काहिनों या'नी बनी हारून को हुक्म किया के उनको ख़ुदावन्द के मज़बह पर चढ़ाएँ।22इसलिए उन्होंने बैलों को ज़बह किया और काहिनों ने ख़ून को लेकर उसे मज़बह पर छिड़का, फिर उन्होंने मेंढों को ज़बह किया और ख़ून को मज़बह पर छिड़का, और बर्रों को भी ज़बह किया और ख़ून मज़बह पर छिड़का।23और वह ख़ता की क़ुर्बानी के बकरों को बादशाह और जमा'अत के आगे नज़दीक ले आए और उन्होंने अपने हाथ उन पर रखे।24~फिर काहिनों ने उनको ज़बह किया और उनके ख़ून को मज़बह पर छिड़क कर ख़ता की क़ुर्बानी की, ताकि सारे इस्राईल के लिए कफ़्फ़ारा हो; क्यूँकि बादशाह ने फ़रमाया था कि सोख़्तनी क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी सारे इस्राईल के लिए पेश की जाएँ।25और उसने दाऊद और बादशाह के ग़ैबबीन जाद और नातन नबी के हुक्म के मुताबिक़ ख़ुदावन्द के घर में लावियों को झाँझ और सितार और बरबत के साथ मुक़र्रर किया, क्यूँकि यह नबियों के ज़रिए' ख़ुदावन्द का हुक्म था।26और लावी दाऊद ने बाजों को और काहिन नरसिंगों को लेकर खड़े हुए,27और हिज़क़ियाह ने मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानी अदा करने ~का हुक्म दिया, और जब सोख़तनी क़ुर्बानी शुरू' हुई तो ख़ुदावन्द का हम्द भी नरसिंगों और शाह-ए-इस्राईल दाऊद ने बाजों ~के साथ शुरू' हुआ,28और सारी जमा'अत ने सिज्दा किया, और गानेवाले गाने और नरसिंगे वाले नरसिंगे फूंकने लगे। जब तक सोख़्तनी क़ुर्बानी जल न चुकी, यह सब होता रहा;29और जब वह क़ुर्बानी अदा कर ~चुके, तो बादशाह और उसके साथ सब हाज़रीन ने झुक कर सिज्दा किया।30~फिर हिज़क़ियाह बादशाह और रईसों ने लावियों को हुक्म किया कि दाऊद और आसफ़ ग़ैबबीन के हम्द गाकर ख़ुदावन्द की हम्द करें; और उन्होंने ख़ुशी से बड़ाई की और सिर झुकाए और सिज्दा किया।31और हिज़कियाह कहने लगा, "अब तुम ने अपने आपको ख़ुदावन्द के लिए पाक कर लिया है। इसलिए नज़दीक आओ, और ख़ुदावन्द के घर में ज़बीहे और शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ लाओ।" तब जमा'अत ज़बीहे और शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ लाई, और जितने दिल से राज़ी थे सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ लाए।32~और सोख़्तनी क़ुर्बानियों का शुमार जो जमा'अत लाई यह था: सत्तर बैल और सौ मेंढे और दो सौ बर्रे, यह सब ख़ुदावन्द की सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए थे।33और पाक किए हुए जानवर यह थे : छ:सौ बैल और तीन हज़ार भेड़-बकरियाँ।34मगर काहिन ऐसे थोड़े थे कि वह सारी सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवरों की खालें उतार न सके, इसलिए उनके भाई लावियों ने उनकी मदद की जब तक काम पूरा~न हो गया; और काहिनों ने अपने को पाक न कर लिया, क्यूँकि लावी अपने आपको पाक करने में काहिनों से ज़्यादा सच्चे दिल थे।35और सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ भी कसरत से थीं, और उनके साथ सलामती की ~क़ुर्बानियों की चर्बी और सोख़्तनी क़ुर्बानियों के तपावन थे। यूँ ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत की तरतीब दुरुस्त हुई।36और हिज़क़ियाह और सब लोग उस काम की वजह से, जो ख़ुदा ने लोगों के लिए तैयार किया था, बाग़ बाग़ हुए क्यूँकि वह काम यकबारगी किया गया था ।
1और हिज़क़ियाह ने सारे इस्राईल और यहूदाह को कहला भेजा, और इफ़्राईम और मनस्सी के पास भी ख़त लिख भेजे कि वह ख़ुदावन्द के घर में यरूशलीम को, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए 'ईद-ए-फ़सह करने को आएँ;2~क्यूँकि बादशाह और सरदारों और यरूशलीम की सारी जमा'अत ने दूसरे महीने में 'ईद-ए-फ़सह मनाने की सलाह कर लिया था।3क्यूँकि वह उस वक़्त उसे इसलिए नहीं मना सके कि काहिनों ने काफ़ी ता'दाद में अपने आपको पाक नहीं किया था, और लोग भी यरूशलीम में इकट्ठे नहीं हुए थे।4~यह बात बादशाह और सारी जमा'अत की नज़र में अच्छी थी।5इसलिए उन्होंने हुक्म जारी किया कि बैरसबा' से दान तक सारे इस्राईल में 'ऐलान किया जाए कि लोग यरूशलीम में आकर ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए 'ईद-ए- फ़सह करें, क्यूँकि उन्होंने ऐसी बड़ी तादाद में उसको नहीं मनाया था जैसे लिखा है।6इसलिए बादशाह के क़ासिद और उसके सरदारों से ख़त लेकर बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ सारे इस्राईल और यहूदाह में फिरे, और कहते गए, "ऐ बनी-इस्राईल! इब्राहीम और इस्हाक़ और इस्राईल के ख़ुदावन्द ख़ुदा की तरफ़ दोबारा फिर जाओ, ताकि वह तुम्हारे बाक़ी लोगों की तरफ़ जो असूर के बादशाहों के हाथ से बच रहे हैं, फिर मुतवज्जिह हों।7और तुम अपने बाप-दादा और अपने भाइयों की तरह मत हो, जिन्होंने ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा की नाफ़रमानी की, यहाँ तक कि उसने उनको छोड़ दिया कि बर्बाद हो जाएँ, जैसा तुम देखते हो।8~तब तुम अपने बाप-दादा की तरह मग़रूर न बनो, बल्कि ख़ुदावन्द के ताबे' हो जाओ और उसके मक़दिस में आओ, जिसे उसने हमेशा के लिए पाक किया है, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत करो ताकि उसका क़हर-ए-शदीद तुम पर से टल जाए।9~क्यूँकि अगर तुम ख़ुदावन्द की तरफ़ दोबारा मुड़ो , तो तुम्हारे भाई और तुम्हारे बेटे अपने ग़ुलाम करने वालों की नज़र में क़ाबिल-ए-रहम ठहरेंगे और इस मुल्क में फिर आएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा ग़फ़ूर-ओ-रहीम है, और अगर तुम उसकी तरफ़ फिरो तो वह तुम से अपना मुँह फेर न लेगा।"10इसलिए क़ासिद इफ़्राईम और मनस्सी के मुल्क में शहर-ब-शहर होते हुए ज़बूलून तक गए, पर उन्होंने उनका मज़ाक़ किया और उनको ठठ्ठों में उड़ाया।11~फिर भी आशर और मनस्सी और ज़बूलून में से कुछ लोगों ने फ़िरोतनी की और यरूशलीम को आए।12और यहूदाह पर भी ख़ुदावन्द का हाथ था कि उनको यकदिल बना दे, ताकि वह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ बादशाह और सरदारों के हुक्म पर 'अमल करें।13इसलिए बहुत से लोग यरूशलीम में जमा' हुए कि दूसरे महीने में फ़तीरी रोटी की 'ईद करें; यूँ बहुत बड़ी जमा'अत हो गई।14वह उठे और उन मज़बहों को जो यरूशलीम में थे और ख़ुशबू की सब कु़र्बानगाहों को दूर किया, और उनकी क़िद्रून न के नाले में डाल दिया।15फिर दूसरे महीने की चौदहवीं तारीख़ को उन्होंने फ़सह को ज़बह किया, और काहिनों और लावियों ने शर्मिन्दा होकर अपने आपको पाक किया और ख़ुदावन्द के घर में सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ लाए।16वह अपने दस्तूर पर मर्द-ए-ख़ुदा मूसा की शरी'अत के मुताबिक़ अपनी अपनी जगह खड़े हुए, और काहिनों ने लावियों के हाथ से ख़ून लेकर छिड़का।17क्यूँकि जमा'अत में बहुत से लोग ~ऐसे थे जिन्होंने अपने आपको पाक नहीं किया था, इसलिए यह काम लावियों के सुपुर्द हुआ कि वह सब नापाक शख़्सों के लिए फ़सह के बर्रों को ज़बह करें, ताकि वह ख़ुदावन्द के लिए पाक हों।18~क्यूँकि इफ़्राईम और मनस्सी और इश्कार और ज़बूलून में से बहुत से लोगों ने अपने आपको पाक नहीं किया था, तो भी उन्होंने फ़सह को जिस तरह लिखा है उस तरह से न खाया, क्यूँकि हिज़क़ियाह ने उनके लिए यह दु'आ की थी, कि ख़ुदावन्द जो नेक है, हर एक को19जिसने ख़ुदावन्द ख़ुदा अपने बाप-दादा के ख़ुदा की तलब में दिल लगाया है मु'आफ़ करे, अगर वह मक़दिस की तहारत के मुताबिक़ पाक न हुआ हो।20और ख़ुदावन्द ने हिज़क़ियाह की सुनी और लोगों को शिफ़ा दी।21और जो बनी-इस्राईल यरूशलीम में हाज़िर थे, उन्होंने बड़ी ख़ुशी से सात दिन तक 'ईद-ए-फ़तीर मनाई, और लावी और काहिन बलन्द आवाज़ के बाजों के साथ ख़ुदावन्द के सामने गा गाकर हर दिन ख़ुदावन्द की हम्द करते रहे।22और हिज़क़ियाह ने सब लावियों से जो ख़ुदावन्द की ख़िदमत में माहिर थे, तसल्लीबख़्श बातें कीं। इसलिए वह 'ईद के सातों दिन तक खाते और सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानियाँ पेश करते और ख़ुदावन्द अपने बाप दादा के ख़ुदा के सामने इक़रार करते रहे।23फिर सारी जमा'अत ने और सात दिन मानने की सलाह की, और ख़ुशी से और सात दिन माने।24क्यूँकि शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह ने जमा'अत को क़ुर्बानियों के लिए~एक हज़ार बछड़े और सात हज़ार भेड़ें 'इनायत~कीं, और सरदारों ने जमा'अत को एक हज़ार बछड़े और दस हज़ार भेड़ें दीं, और बहुत से काहिनों ने अपने आपको पाक किया।25और यहूदाह की सारी जमा'अत ने काहिनों और लावियों समेत और उस सारी जमा'अत ने जो इस्राईल में से आई थी, और उन परदेसियों ने जो इस्राईल के मुल्क से आए थे, और जो यहूदाह में रहते थे ख़ुशी मनाई।26इसलिए यरूशलीम में बड़ी ख़ुशी हुई, क्यूँकि शाह-ए- इस्राईल सुलेमान बिन दाऊद के ज़माने से यरूशलीम में ऐसा नहीं हुआ था।27~तब लावी काहिनों ने उठ कर लोगों को बरकत दी, और उनकी सुनी गई, और उनकी दु'आ उसके पाक मकान, आसमान तक पहुँची।
1जब यह हो चुका तो सब इस्राईली जो हाज़िर थे, यहूदाह के शहरों में गए और सारे यहूदाह और बिनयमीन के बल्कि इफ़्राईम और मनस्सी के भी सुतूनों को टुकड़े-टुकड़े किया, और यसीरतों को काट डाला, और ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को ढा दिया; यहाँ तक कि उन सभों को मिटा दिया। तब सब बनी-इस्राईल अपने अपने शहर में अपनी अपनी मिल्कियत को लौट गए।2~और हिज़क़ियाह ने काहिनों के फ़रीक़ों को और लावियों को उनके फ़रीक़ों के मुताबिक़, या'नी काहिनों और लावियों दोनों के हर शख़्स को उसकी ख़िदमत के मुताबिक़ ख़ुदावन्द की ख़ेमागाह के फाटकों के अन्दर सोख़्तनी क़ुर्बानियों और सलामती की क़ुर्बानियों के लिए, और 'इबादत और शुक्रगुज़ारी और ता'रीफ़ ~करने के लिए मुक़र्रर किया।3उसने अपने माल में से बादशाही हिस्सा सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए, या'नी सुबह-ओ-शाम की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए, और सब्तों और नए चाँदों और मुक़र्ररा 'ईदों की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए ठहराया, जैसा ख़ुदावन्द की शरी'अत में लिखा है।4~और उसने उन लोगों को जो यरूशलीम में रहते थे, हुक्म किया कि काहिनों और लावियों का हिस्सा दें ताकि वह ख़ुदावन्द की शरी'अत में लगे रहें।5इस फ़रमान के जारी होते ही बनी-इस्राईल अनाज और मय और तेल और शहद और खेत की सब पैदावार के पहले फल बहुतायत से देने, और सब चीज़ों का दसवाँ हिस्सा कसरत से लाने लगे।6और बनी-इस्राईल और यहूदाह जो यहूदाह के शहरों में रहते थे, वह भी बैलों और भेड़ बकरियों का दसवाँ हिस्सा, और उन पाक चीज़ों का दसवाँ हिस्सा जो ख़ुदावन्द उनके ख़ुदा के लिए पाक की गई थीं, लाए और उनको ढेर ढेर करके लगा दिया।7उन्होंने तीसरे महीने में ढेर लगाना शुरू' किया और सातवें महीने में पूरा~किया।8~जब हिज़क़ियाह और सरदारों ने आकर ढेरों को देखा, तो ख़ुदावन्द को और उसकी क़ौम इस्राईल को मुबारक कहा|9और हिज़क़ियाह ने काहिनों और लावियों से उन ढेरों के बारे में पूछा।10तब सरदार काहिन 'अज़रियाह ने जो सदूक़ के ख़ान्दान का था, उसे जवाब दिया, "जब से लोगों ने ख़ुदावन्द के घर में हदिये लाना शुरू' किया, तब से हम खाते रहे और हम को काफ़ी मिला और बहुत बच रहा है; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने लोगों को बरकत बख़्शी है, और वही बचा हुआ यह बड़ा ढेर है।"11तब हिज़कियाह ने हुक्म किया कि ख़ुदावन्द के घर में कोठरियाँ तैयार करें, इसलिए उन्होंने उनको तैयार किया।12और वह हदिये और वह दहेकियाँ और पाक की हुई चीज़ें ईमानदारी से लाते रहे, और उन पर कनानियाह लावी मुख़्तार था और उसका भाई सिम'ई नाइब था,13और यहीएल और अज़ज़ियाह और नहात और 'असाहील और यरीमोत और यूज़बद और इलीएल और इस्माकियाह और महत और बिनायाह हिज़क़ियाह बादशाह और ख़ुदा के घर के सरदार 'अज़रियाह के हुक्म से कनानियाह और उसके भाई सिम'ई के मातहत पेशकार थे।14और मशरिक़ी फाटक का दरबान यिमना लावी का बेटा कोरे ख़ुदा की ख़ुशी की क़ुर्बानियों पर मुक़र्रर था, ताकि ख़ुदावन्द के हदियों और पाक तरीन चीज़ों को बाँट दिया करे।15और उसके मातहत 'अदन और बिनयमीन और यशू'अ और समा'याह और अमरियाह और सकनियाह, काहिनों के शहरों में इस 'उहदे पर मुक़र्रर थे कि~अपने भाइयों को, क्या बड़े क्या छोटे उनके फ़रीक़ों के मुताबिक़ हिस्सा दिया करें,16और इनके 'अलावा उनको भी दें जो तीन साल की 'उम्र से और उससे ऊपर ऊपर मर्दों ~के नसबनामे में शुमार किए गए, या'नी उनको जो अपने अपने फ़रीक़ की बारियों पर अपने अपने ज़िम्मे की ख़िदमत को हर दिन के फ़र्ज़ के मुताबिक़ अन्जाम देने को ख़ुदावन्द के घर में जाते थे।17~और उनको भी जो अपने अपने आबाई ख़ान्दान के मुताबिक़ काहिनों के नसबनामे में शुमार किए गए, और उन लावियों को जो बीस साल के और उससे ऊपर थे, और अपने अपने फ़रीक़ की बारी पर ख़िदमत करते थे।18और उनको जो सारी जमा'अत में से अपने अपने बाल-बच्चों और बीवियों और बेटों और बेटियों के नसबनामे के मुताबिक़ शुमार किए गए, क्यूँकि अपने अपने मुक़र्ररा काम पर वह अपने आप को तक़द्दुस के लिए पाक करते थे।19और बनी हारून के काहिनों के लिए भी, जो शहर-ब- शहर अपने शहरों के चारोंतरफ़ के खेतों में थे, कई आदमी जिनके नाम बता दिए गए थे, मुक़र्रर हुए कि काहिनों के सब आदमियों को और उन सभों को जो लावियों के बीच नसबनामे के मुताबिक़ शुमार किए गए थे, हिस्सा दें।20इसलिए हिज़क़ियाह ने सारे यहूदाह में ऐसा ही किया, और जो कुछ ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा की नज़र में भला और सच्चा और हक़ था वही किया।21~और ख़ुदा के घर की ख़िदमत और शरी'अत और अहकाम के ऐतबार से जिस जिस काम को उसने अपने ख़ुदा का तालिब होने के लिए किया, उसे अपने सारे दिल से किया और कामयाब हुआ।
1इन बातों और इस ईमानदारी के बा'द शाह-ए-असूर सनहेरिब चढ़ आया और यहूदाह में दाख़िल हुआ, और फ़सीलदार शहरों के मुक़ाबिल ख़ेमाज़न हुआ और उनको अपने क़ब्ज़े में लाना चाहा।2जब हिज़क़ियाह ने देखा कि सनहेरिब आया है और उसका 'इरादा है कि यरूशलीम से लड़े3तो उसने अपने सरदारों और बहादुरों के साथ सलाह ~की कि उन चश्मों के पानी को जो शहर से बाहर थे बन्द कर दे, और उन्होंने उसकी मदद की।4बहुत लोग जमा' हुए और सब चश्मों को और उस नदी को जो उस सरज़मीन के बीच बहती थी, यह कह कर बन्द कर दिया, "असूर के बादशाह आकर बहुत सा पानी क्यूँ पाएँ?"5और उसने हिम्मत बाँधी और सारी दीवार को जो टूटी थी बनाया, और उसे बुर्जों के बराबर ऊँचा किया और बाहर से एक दूसरी दीवार उठाई, और दाऊद के शहर में मिल्लो को मज़बूत किया और बहुत से हथियार और ढालें बनाई।6~और उसने लोगों पर सर लश्कर ठहराए और शहर के फाटक के पास के मैदान में उनको अपने पास इकट्ठा किया, और उनसे हिम्मत अफज़ाई की बातें कीं और कहा,7"हिम्मत बाँधो और हौसला रखो, और असूर के बादशाह और उसके साथ के सारे गिरोह की वजह से न डरो न हिरासा न हो; क्यूँकि वह जो हमारे साथ है, उससे बड़ा है जो उसके साथ है।8~उसके साथ बशर का हाथ है लेकिन हमारे साथ ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा है कि हमारी मदद करे और हमारी लड़ाईयाँ लड़े।" तब लोगों ने शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह की बातों पर भरोसा किया।9उसके बा'द शाह-ए-असूर सनहेरिब ने जो अपने सारे लश्कर' के साथ लकीस के मुक़ाबिल पड़ा था, अपने नौकर यरूशलीम को शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के पास और पूरे ~यहूदाह के पास जो यरूशलीम में थे, यह कहने को भेजे कि;10शाह-ए-असूर सनहेरिब यू फ़रमाता है कि तुम्हारा किस पर भरोसा है कि तुम यरूशलीम में घेरे को झेल रहे हो?11क्या हिज़क़ियाह तुम को कहत और प्यास की मौत के हवाले करने को तुम को नहीं बहका रहा है कि "ख़ुदा वन्द हमारा ख़ुदा हम को शाह-ए-असूर के हाथ से बचा लेगा"?12~क्या इसी हिज़क़ियाह ने उसके ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को दूर करके, यहूदाह और यरूशलीम को हुक्म नहीं दिया कि तुम एक ही मज़बह के आगे सिज्दा करना और उसी पर ख़ुशबू जलाना?13क्या तुम नहीं जानते कि मैंने और मेरे बाप-दादा ने और मुल्कों के सब लोगों से क्या क्या किया है? क्या उन मुल्कों की क़ौमों के मा'बूद अपने मुल्क को किसी तरह से मेरे हाथ से बचा सके?14जिन क़ौमों को मेरे बाप-दादा ने बिल्कुल हलाक कर डाला, उनके मा'बूदों में कौन ऐसा निकला जो अपने लोगों को मेरे हाथ से बचा सका कि तुम्हारा मा'बूद तुम को मेरे हाथ से बचा सकेगा?15फिर हिज़क़ियाह तुम को फ़रेब न देने पाए और न इस तौर पर बहकाए और न तुम उसका यक़ीन करो; क्यूँकि किसी क़ौम या मुल्क का मा'बूद अपने लोगों को मेरे हाथ से और मेरे बाप-दादा के हाथ से बचा नहीं सका, तो कितना कम तुम्हारा मा'बूद तुम को मेरे हाथ से बचा सकेगा।16~उसके नौकरों ने ख़ुदावन्द ख़ुदा के ख़िलाफ़ और उसके बन्दे हिज़क़ियाह के ख़िलाफ़ बहुत सी और बातें कहीं।17और उसने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की बे'इज्ज़ती करने और उसके हक़ में कुफ़्र बकने के लिए, इस मज़मून के ख़त भी लिखे : "जैसे और मुल्कों की क़ौमों के मा'बूदों ने अपने लोगों को मेरे हाथ से नहीं बचाया है, वैसे ही हिज़क़ियाह का मा'बूद भी अपने लोगों को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा।"18और उन्होंने बड़ी आवाज़ से पुकार कर यहूदियों की ज़बान में यरूशलीम के लोगों को जो दीवार पर थे यह बातें कह सुनाये ताकि उनको डराएँ और परेशान करें और शहर को ले लें।19उन्होंने यरूशलीम के ख़ुदा का ज़िक्र ज़मीन की क़ौमों के मा'बूदों की तरह किया, जो आदमी के हाथ की कारीगरी हैं।20इसी वजह से हिज़क़ियाह बादशाह और आमूस के बेटे यसायाह नबी ने दु'आ की, और आसमान की तरफ़ चिल्लाए।21और ख़ुदावन्द ने एक फ़रिश्ते को भेजा, जिसने शाह-ए-असूर के लश्कर में सब ज़बरदत सूर्माओं और रहनुमाओं और सरदारों को हलाक कर डाला। फिर वह शर्मिन्दा होकर अपने मुल्क को लौटा; और जब वह अपने मा'बूद के 'इबादत खाना ~में गया तो उन ही ने जो उसके सुल्ब से निकले थे, उसे वहीं तलवार से क़त्ल किया।22यूँ ख़ुदावन्द ने हिज़क़ियाह को और यरूशलीम के बाशिन्दों को शाह-ए-असूर सनहेरिब के हाथ से और सभों के हाथ से बचाया और हर तरफ़ उनकी रहनुमाई की।23और बहुत लोग यरूशलीम में ख़ुदावन्द के लिए हदिये और शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के लिए क़ीमती चीजें लाए, यहाँ तक कि वह उस वक़्त से सब क़ौमों की नज़र में मुम्ताज़ हो गया।24~उन दिनों में हिज़क़ियाह ऐसा बीमार पड़ा कि मरने के क़रीब हो गया, और उसने ख़ुदावन्द से दु'आ की तब उसने उससे बातें कीं और उसे एक निशान दिया।25लेकिन हिज़क़ियाह ने उस एहसान के लायक़ जो उस पर किया गया 'अमल न किया, क्यूँकि उसके दिल में घमण्ड समा गया; इसलिए उस पर, और यहूदाह और यरूशलीम पर क़हर भड़का।26तब हिज़क़ियाह और यरूशलीम के बाशिन्दों ने अपने दिल के ग़ुरूर के बदले ख़ाकसारी इख़्तियार की, इसलिए हिज़क़ियाह के दिनों में ख़ुदावन्द का क़हर उन पर नाज़िल न हुआ।27और हिज़क़ियाह की दौलत और 'इज़्ज़त बहुत फ़रावान थी और उसने चाँदी और सोने और जवाहर और मसाले और ढालों और सब तरह की क़ीमती चीज़ों के लिए ख़ज़ाने28और अनाज और शराब और तेल के लिए अम्बारख़ाने, और सब क़िस्म के जानवरों के लिए थान, और भेड़-बकरियों के लिए बाड़े बनाए।29इसके 'अलावा उसने अपने लिए शहर बसाए और भेड़ बकरियों और गाय-बैलों को कसरत से मुहय्या किया, क्यूँकि ख़ुदा ने उसे बहुत माल बख़्शा था।30इसी हिज़क़ियाह ने जैहून के पानी के ऊपर के सोते को बंद कर दिया, और उसे दाऊद के शहर के मग़रिब की तरफ़ सीधा पहुँचाया, और हिज़क़ियाह अपने सारे काम में क़ामयाब हुआ।31तो भी बाबुल के हाकिमों के मु'आमिले में, जिन्होंने अपने क़ासिद उसके पास भेजे ताकि उस मोजिज़ा का हाल जो उस मुल्क में किया गया था दरियाफ़्त करें; ख़ुदा ने उसे आज़माने के लिए छोड़ दिया, ताकि मा'लूम करे के उसके दिल में क्या है।32और हिज़क़ियाह के बाक़ी काम और उसके नेक आ'माल आमूस के बेटे यासयाह नबी की ख़्वाब में और यहूदाह और इस्राईल के बादशाहों की किताब में लिखा है|33और हिज़क़ियाह अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे बनी दाऊद की क़ब्रों की चढ़ाई पर दफ़्न किया, और सारे यहूदाह और यरूशलीम के सब बाशिन्दों ने उसकी मौत पर उसकी ताज़ीम की; और उसका बेटा मनस्सी उसकी जगह बादशाह हुआ।
1~मनस्सी बारह साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने यरूशलीम में पचपन साल हुकूमत की।2उसने उन क़ौमों के नफ़रतअंगेज़ कामों के मुताबिक़ जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के आगे से हटा दिया था, वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा था।3क्यूँकि उसने उन ऊँचे मक़ामों को, जिनको उसके बाप हिज़क़ियाह ने ढाया था, फिर बनाया और बा'लीम के लिए मज़बहे बनाए और यसीरतें तैयार कीं और सारे आसमानी लश्कर को सिज्दा किया और उनकी 'इबादत की।4और उसने ख़ुदा~वन्द के घर में जिसके बारे में ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था कि मेरा नाम यरूशलीम में हमेशा रहेगा, मज़बहे बनाए;5~और उसने ख़ुदावन्द के घर के दोनों सहनों में, सारे आसमानी लश्कर के लिए मज़बहे बनाए।6और उसने बिन हलूम की वादी में अपने फ़र्ज़न्दों को भी आग में चलवाया, और वह शगून मानता और जादू और अफ़सून करता और बदरूहों के आशनाओं और जादूगरों से ता'अल्लुक रखता था। उसने ख़ुदावन्द की नज़र में बहुत बदकारी की, जिससे उसे ग़ुस्सा दिलाया;7और जो तराशी हुई मूरत उसने बनवाई थी उसको ख़ुदा के घर में नस्ब किया, जिसके बारे में ख़ुदा ने दाऊद और उसके बेटे सुलेमान से कहा था कि मैं इस घर में और यरूशलीम में जिसे मैंने बनी-इस्राईल के सब क़बीलों में से चुन लिया है, अपना नाम हमेशा तक रखूँगा;8और मैं बनी-इस्राईल के पाँव को उस सरज़मीन से जो मैंने उनके बाप-दादा को 'इनायत की है, फिर कभी नहीं हटाऊँगा बशर्ते कि वह उन सब बातों को जो मैंने उनकी फ़रमाई, या'नी उस सारी शरी'अत और क़ानून और हुक्मों को जो मूसा के जरिए ~मिले, मानने की एहतियात रखें।9और मनस्सी ने यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों को यहाँ तक गुमराह किया कि उन्होंने उन क़ौमों से भी ज़्यादा बुरायी की, जिनको ख़ुदावन्द ने बनी-इस्राईल के सामने से हलाक किया था।10और ख़ुदा वन्द ने मनस्सी और उसके लोगों से बातें की लेकिन उन्होंने कुछ ध्यान न दिया।11इसलिए ख़ुदावन्द उन पर शाह-ए-असूर के सिपह सालारों को चढ़ा लाया, जो मनस्सी को ज़ॅजीरों से जकड़ कर और बेड़ियाँ डाल कर बाबुल को ले गए।12जब वह मुसीबत में पड़ा तो उसने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मिन्नत की और अपने बाप-दादा के ख़ुदा के सामने बहुत ख़ाकसार बना,13और उसने उससे दु'आ की; तब उसने उसकी दु'आ उसे क़बूल करके ~उसकी फ़रयाद सुनी ममलुकत में यरूशलीम को वापस लाया। तब मनस्सी ने जान लिया कि ख़ुदा वन्द ही ख़ुदा है।14इसके बा'द उसने दाऊद के शहर के लिए जैहून के मग़रिब की तरफ़ वादी में मछली फाटक के मदखल तक एक बाहर की दीवार उठाई, और 'ओफ़ल को घेरा और उसे बहुत ऊँचा किया; और यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों में बहादुर जंगी सरदार रखे।15और उसने अजनबी मा'बूदों को, और ख़ुदावन्द के घर से उस मूरत को, और सब मज़बहों को जो उसने ख़ुदावन्द के घर के पहाड़ पर और यरूशलीम में बनवाए थे दूर किया और उनको शहर के बाहर फेंक दिया।16और उसने ख़ुदावन्द के मज़बह की मरम्मत की और उस पर सलामती के ज़बीहों की और शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ अदा कीं और यहूदाह को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की 'इबादत का हुक्म दिया।17~तो भी लोग ऊँचे मक़ामों में क़ुर्बानी करते रहे, लेकिन सिर्फ़ ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए।18और मनस्सी के बाक़ी काम और अपने ख़ुदा से उसकी दु'आ, और उन ग़ैबबीनों की बातें जिन्होंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम से उसके साथ कलाम किया, वह सब इस्राईल के बादशाहों के आ'माल के साथ लिखा हैं।19उसकी दु'आ और उसका क़बूल होना, और उसकी ख़ाकसारी से पहले की सब ख़ताएँ और उसकी बेईमानी और वह जगह जहाँ उसने ऊंचे मक़ाम बनवाये और ~यसीरतें और तराशी हुई मूरतें खड़ी कीं, यह सब बातें हूज़ी की तारीख़ में क़लमबन्द हैं।20और मनस्सी अपने बाप-दादा के साथ सो गया, और उन्होंने उसे उसी के घर में दफ़्न किया; और उसका बेटा अमून उसकी जगह बादशाह हुआ।21अमून बाइस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने दो साल यरूशलीम में हुकूमत की।22और जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा है वही उसने किया, जैसा उसके बाप मनस्सी ने किया था। और अमून ने उन सब तराशी हुई मूरतों के आगे जो उसके बाप मनस्सी ने बनवाई थीं, क़ुर्बानियाँ कीं और उनकी 'इबादत की।23और वह ख़ुदा वन्द के सामने ख़ाकसार न बना, जैसा उसका बाप मनस्सी ख़ाकसार बना था; बल्कि अमून ने गुनाह पर गुनाह किया।24तब उसके ख़ादिमों ने उसके ख़िलाफ़ साज़िश की और उसी के घर में उसे मार डाला।25लेकिन अहल-ए-मुल्क ने उन सबको क़त्ल किया जिन्होंने अमून बादशाह के ख़िलाफ़ साज़िश की थी, और अहल-ए-मुल्क ने उसके बेटे यूसियाह को उसकी जगह बादशाह बनाया|
1यूसियाह आठ साल का था,जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने इकतीस साल यरूशलीम में हुकूमत की।2~उसने वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक था, और अपने बाप दाऊद के रास्तों पर चला और दहने या बाएँ हाथ को न मुड़ा।3क्यूँकि अपनी हुकूमत के आठवें साल जब वह लड़का ही था, वह अपने बाप दाऊद के ख़ुदा का तालिब हुआ, और बारहवें साल में यहूदाह और यरूशलीम को ऊँचे मक़ामों और यसीरतों और तराशे हुए बुतों और ढाली हुई मूरतों से पाक करने लगा।4और लोगों ने उसके सामने बा'लीम के मज़बहों को ढा दिया, और सूरज की मूरतों को जो उनके ऊपर ऊँचे पर थीं उसने काट डाला, और यासीरतों और तराशी हुई और ढाली हुई मूरतों को उसने टुकड़े टुकड़े करके उनको धूल बना दिया, और उसको उनकी क़ब्रों पर बिथराया जिन्होंने उनके लिए क़ुर्बानियाँ अदा की थीं।5उसने उन काहिनों की हड्डियाँ उन्हीं के मज़बहों पर जलाई, और यहूदाह और यरूशलीम को पाक किया।6और मनस्सी और इफ़्राईम और शमा'ऊन के शहरों में, बल्कि नफ़्ताली तक उनके आस -पास ~खण्डरों में उसने ऐसा ही किया,7और मज़बहों को ढा दिया, और यसीरतों और तराशी हुई मूरतों को तोड़ कर धूल कर दिया, और इस्राईल के पूरे मुल्क में सूरज की सब मूरतों को काट डाला, तब यरूशलीम को लोटा।8अपनी हुकूमत के अठारहवें बरस, जब वह मुल्क और हैकल को पाक कर चुका, तो उसने असलियाह के बेटे साफ़न को और शहर के हाकिम मासियाह और यूआख़ज़ के बेटे यूआख मुवरिंख को भेजा कि ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर की मरम्मत करें।9वह ख़िलक़ियाह सरदार काहिन के पास आए, और वह नक़दी जो ख़ुदा के घर में लाई गई थी जिसे दरबान लावियों ने मनस्सी और इफ़ाईमऔर इस्राईल के सब बाक़ी लोगों से और पूरे यहूदाह और बिनयमीन और यरूशलीम के बाशिंदों से लेकर जमा' किया था, उसके सुपुर्द की।10और उन्होंने उसे उन कारिंदों के हाथ में सौंपा जो ख़ुदावन्द के घर की निगरानी करते थे, और उन कारिंदों ने जो ख़ुदावन्द के घर में काम करते थे उसे उस घर की मरम्मत और दुरुस्त करने में लगाया;11या'नी उसे बढ़इयों और राजगीर को दिया की गढ़े हुए पत्थर और जोड़ों के लिए लकड़ी ख़रीदें, और उन घरों के लिए जिनको यहूदाह के बादशाहों ने उजाड़ दिया था शहतीर बनाई।12वह आदमी दियानत से काम करते थे, और यहत और 'अबदियाह लावी जो बनी मिरारी में से थे उनकी निगरानी करते थे, और बनी क़िहात में से ज़करियाह और मुसल्लाम काम कराते थे, और लावियों में से वह लोग थे जो बाजों में माहिर थे।13और वह बारबरदारों के भी दारोग़ा थे और सब क़िस्म क़िस्म के काम करने वालों से काम कराते थे, और मुन्शी और मुहतमिम और दरबान लावियों में से थे।14~जब वह उस नक़दी को जो ख़ुदावन्द के घर में लाई गई थी निकाल रहे थे, तो ख़िलक़ियाह काहिन को ख़ुदावन्द की तौरेत की किताब, जो मूसा की ज़रिए' दी गई थी मिली।15तब ख़िलक़ियाह ने साफ़न मुन्शी से कहा, "मैंने ख़ुदा वन्द के घर में तौरेत की किताब पाई है।" और ख़िलक़ियाह ने वह किताब साफ़न को दी।16और साफ़न वह किताब बादशाह के पास ले गया; फिर उसने बादशाह को यह बताया कि सब कुछ जो तू ने अपने नौकरों के सुपुर्द किया था, उसे वह कर रहे हैं।17और वह नक़दी जो ख़ुदावन्द के घर में मौजूद थी, उन्होंने लेकर नाज़िरों और कारिंदों के हाथ में सौंपी है।18फिर साफ़न मुन्शी ने बादशाह से कहा कि ख़िलक़िययाह काहिन ने मुझे यह किताब दी है। और साफ़न ने उसमें से बादशाह के सामने ~पढ़ा।19और ऐसा हुआ कि जब बादशाह ने तौरेत की बातें सुनीं तो अपने कपड़े फाड़े।20फिर बादशाह ने ख़िलक़ियाह और अख़ीक़ाम बिन साफ़न और अबदून बिन ~मीकाह और साफ़न मुन्शी और बादशाह के नौकर असायाह को यह हुक्म दिया,21कि जाओ, और मेरी तरफ़ से और उन लोगों की तरफ़ से जो इस्राईल और यहूदाह में बाक़ी रह गए हैं, इस किताब की बातों के हक़ में जो मिली है ख़ुदावन्द से पूछो; क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर जो हम पर नाज़िल हुआ है बड़ा है, इसलिए कि हमारे बाप-दादा ने ख़ुदावन्द के कलाम को नहीं माना है कि सब कुछ जो इस किताब में लिखा है उसके मुताबिक़ करते।22तब ख़िलक़ियाह और वह जिनकी बादशाह ने हुक्म किया था, खुल्दा नबिया के पास जो तोशाख़ाने के दारोग़ा सलूम बिन तोकहत बिन ख़सरा की बीवी थी गए। वह यरूशलीम में मिशना नामी महल्ले में रहती थी, इसलिए उन्होंने उससे वह बातें कहीं।23उसने उनसे कहा, "ख़ुदा वन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि तुम उस शख़्स से जिसने तुम को मेरे पास भेजा है कहो कि;24~'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है देख, मैं इस जगह पर और इसके बाशिंदों पर आफ़त लाऊँगा, या'नी सब लानते जो इस किताब में लिखी हैं जो उन्होंने शाह-ए-यहूदाह के आगे पढ़ी है।25~क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाई और अपने हाथों के सब कामों से मुझे ग़ुस्सा दिलाया, तब मेरा क़हर इस मक़ाम पर नाज़िल हुआ है और धीमा न होगा।26रहा शाह-ए- यहूदाह जिसने तुम को ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त करने को भेजा है, तब तुम उससे ऐसा कहना कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा ऐसा फ़रमाता है कि उन बातों के बारे में जो तूने सुनी हैं,27चूँकि तेरा दिल मोम हो गया, और तू ने ख़ुदा के सामने आजिज़ी की जब तू ने उसकी वह बातें सुनीं जो उसने इस मक़ाम और इसके बाशिंदों के ख़िलाफ़ कही हैं, और अपने को मेरे सामने ख़ाकसार बनाया और अपने कपड़े फाड़ कर मेरे आगे रोया, इसलिए मैंने भी तेरी सुन ली है। ख़ुदावन्द फ़रमाता है,28देख, मैं तुझे तेरे बाप-दादा के साथ मिलाऊँगा और तू अपनी क़ब्र ~में सलामती से पहुँचाया जाएगा, और सारी आफ़त को जो मैं इस मक़ाम और इसके बाशिंदों पर लाऊँगा तेरी आँखें नहीं देखेंगी।'" इसलिए उन्होंने यह जवाब बादशाह को पहुँचा दिया।29तब बादशाह ने यहूदाह और यरूशलीम के सब बुज़ुर्गों को बुलवा कर इकट्ठा किया।30और बादशाह और सब अहल-ए-यहूदाह और यरूशलीम के बाशिंदे, काहिन और लावी और सब लोग क्या छोटे क्या बड़े, ख़ुदावन्द के घर को गए, और उसने जो 'अहद की किताब ख़ुदावन्द के घर में मिली थी, उसकी सब बातें उनको पढ़ सुनाई।31और बादशाह अपनी जगह खड़ा हुआ, और ख़ुदावन्द के आगे 'अहद किया के वह ख़ुदावन्द की पैरवी करेगा और उसके हुक्मों और उसकी शहादतों और क़ानून को अपने सारे दिल और सारी जान से मानेगा, ताकि उस 'अहद की उन बातों को जो उस किताब में लिखी थीं पूरा करे।32~और उसने उन सबको जो यरूशलीम और बिनयमीन में मौजूद थे, उस 'अहद में शरीक किया; और यरूशलीम के बाशिंदों ने ख़ुदा अपने बाप-दादा के ख़ुदा के 'अहद के मुताबिक़ 'अमल किया।33और यूसियाह ने बनी-इस्राईल के सब 'इलाक़ों में से सब मकरूहात को दफ़ा' किया और जितने इस्राईल में मिले उन सभों से 'इबादत, या'नी ख़ुदा वन्द उनके ख़ुदा की 'इबादत, कराई और वह उसके जीते जी ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा की पैरवी से न हटे।
1और यूसियाह ने यरुशलीम में ख़ुदावन्द के लिए ईद-ए-फ़सह की, और उन्होंने फ़सह को पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ को ज़बह किया।2उसने काहिनों को उनकी ख़िदमत पर मुक़र्रर किया, और उनको ख़ुदावन्द के घर की ख़िदमत की तरग़ीब दी;3और उन लावियों से जो ख़ुदावन्द के लिए पाक ~होकर तमाम इस्राईल को ता'लीम देते थे कहा कि पाक सन्दूक़ को उस घर में, जिसे शाह-ए- इस्राईल सुलेमान बिन दाऊद ने बनाया था रखो; आगे को तुम्हारे कंधों पर कोई बोझ न होगा। इसलिए अब तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की और उसकी क़ौम इस्राईल की ख़िदमत करो।4और अपने आबाई ख़ान्दानों और फ़रीक़ों के मुताबिक़ जैसा शाह-ए-इस्राईल दाऊद ने लिखा और जैसा उसके बेटे सुलेमान ने लिखा है, अपने आपको तैयार कर लो।5~और तुम मक़दिस में अपने भाइयों या'नी क़ौम के फ़र्ज़न्दों के आबाई ख़ान्दानों की तक़सीम के मुताबिक़ खड़े हो, ताकि उनमें से हर एक के लिए लावियों के किसी न किसी आबाई ख़ान्दान की कोई शाख़ हो।6और फ़सह को ज़बह करो, और ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ जो मूसा के ज़रिए' मिला, 'अमल करने के लिए अपने आपको पाक करके अपने भाइयों के लिए तैयार हो।7और यूसियाह ने लोगों के लिए जितने वहाँ मौजूद थे, रेवड़ों में से बर्रे और हलवान सब के सब फ़सह की क़ुर्बानियों के लिए दिए, जो गिनती में तीस हज़ार थे और तीन हज़ार बछड़े थे; यह सब बादशाही माल में से दिए गए।8और उसके सरदारों ने ख़ुशी की क़ुर्बानी के तौर पर लोगों को और काहिनों को और लावियों को दिया। ख़िलक़ियाह और ज़करियाह और यहीएल ने जो ख़ुदा के घर के नाज़िम थे, काहिनों को फ़सह की क़ुर्बानी के लिए दो हज़ार छ: सौ बकरी और तीन सौ बैल दिए।9और कनानियाह ने भी और उसके भाइयों समा'याह और नतनीएल ने, और हसबियाह और यईएल और यूज़बद ने जो लावियों के सरदार थे, लावियों को फ़सह की क़ुर्बानी के लिए पाँच हज़ार भेड़ बकरी और पाँच सौ बैल दिए।10~ऐसी 'इबादत की तैयारी हुई, और बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ काहिन अपनी अपनी जगह पर और लावी अपने अपने फ़रीक़ के मुताबिक़ खड़े हुए।11~उन्होंने फ़सह को ज़बह किया, और काहिनों ने उनके हाथ से ख़ून लेकर छिड़का और लावी खाल खींचते गए।12फिर उन्होंने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ अलग कीं ताकि वह लोगों के आबाई ख़ान्दानों की तक़सीम के मुताबिक़ ख़ुदावन्द के सामने पेश करने को उनको दें, जैसा मूसा की किताब में लिखा है; और बैलों से भी उन्होंने ऐसा ही किया।13~और उन्होंने दस्तूर के मुताबिक़ फ़सह को आग पर भूना और पाक हड्डियों ~को देगों और हण्डों और कढ़ाइयों में पकाया और उनको जल्द लोगों को पहुँचा दिया।14इसके बा'द उन्होंने अपने लिए और काहिनों के लिए तैयार किया, क्यूँकि काहिन या'नी बनी हारून सोख़्तनी क़ुर्बानियों और चर्बी के चढ़ाने में रात तक मशग़ूल रहे। इसलिए लावियों ने अपने लिए और काहिनों के लिए जो बनी हारून थे तैयार किया।15और गानेवाले जो बनी आसफ़ थे, दाऊद और आसफ़ और हैमान और बादशाह के ग़ैबबीन यदूतोन के हुक्म के मुताबिक़ अपनी अपनी जगह में थे, और हर दरवाज़े पर दरबान थे। उनको अपना अपना काम छोड़ना न पड़ा, क्यूँकि उनके भाई लावियों ने उनके लिए तैयार किया।16~इसलिए उसी दिन यूसियाह बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ फ़सह मानने और ख़ुदावन्द के मज़बह पर सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करने के लिए ख़ुदावन्द की पूरी 'इबादत की तैयारी की गई।17और बनी-इस्राईल ने जो हाज़िर थे, फ़सह को उस वक़्त और फ़तीरी रोटी की 'ईद की सात दिन तक मनाया।18~इसकी तरह कोई फ़सह समुएल नबी के दिनों से इस्राईल में नहीं मनाया गया था, और न शाहान-ए-इस्राईल में से किसी ने ऐसी ईद फ़सह की जैसी यूसियाह और काहिनों और लावियों और सारे यहूदाह और इस्राईल ने जो हाज़िर थे, और यरूशलीम के बाशिंदों ने की।19~ये फ़सह यूसियाह की हुकूमत के अठारहवें साल में मनाया गया।20इस सबके बा'द जब यूसियाह हैकल को तैयार कर चुका, तो शाह-ए-मिस्र निकोह ने करकमीस से जो फुरात के किनारे है, लड़ने के लिए चढ़ाई की और यूसियाह उसके मुक़ाबिला को निकला।21लेकिन उसने उसके पास क़ासिदों से कहला भेजा कि ऐ यहूदाह के बादशाह, तुझ से मेरा क्या काम? मैं आज के दिन तुझ पर नहीं बल्कि उस ख़ान्दान पर चढ़ाई कर रहा हूँ जिससे मेरी जंग है, और ख़ुदा ने मुझ को जल्दी करने का हुक्म दिया है; इसलिए तू ख़ुदा से जो मेरे साथ है मुज़ाहिम न हो, ऐसा न हो कि वह तुझे हलाक कर दे।22लेकिन यूसियाह ने उससे मुँह न मोड़ा, बल्कि उससे लड़ने के लिए अपना भेस बदला, और निकोह की बात जो ख़ुदा के मुँह से निकली थी न मानी और मजिद्दो की वादी में लड़ने को गया।23~और तीरअंदाज़ों ने यूसियाह बादशाह को तीर मारा, और बादशाह ने अपने नौकरों से कहा, "मुझे ले चलो, क्यूँकि मैं बहुत ज़ख़्मी हो गया हूँ।"24इसलिए उसके नौकरों ने उसे उस रथ पर से उतार कर उसके दूसरे रथ पर चढ़ाया, और उसे यरूशलीम को ले गए; और वह मर गया और अपने बाप-दादा की क़ब्रों में दफ़्न हुआ, और सारे यहूदाह और यरूशलीम ने यूसियाह के लिए मातम किया।25और यरमियाह ने यूसियाह पर नौहा किया, और गानेवाले और गानेवालियाँ सब अपने मर्सियों में आज के दिन तक यूसियाह का ज़िक्र करते हैं। यह उन्होंने इस्राईल में एक दस्तूर बना दिया, और देखो वह बातें नौहों में लिखी हैं।26~यूसियाह के बाक़ी काम, और जैसा ख़ुदावन्द की शरी'अत में लिखा है उसके मुताबिक़ उसके नेक आ'माल,27~और उसके काम, शुरू' से आख़िर तक इस्राईल और यहूदाह के बादशाहों की किताब में लिखा हैं।
1और मुल्क के लोगों ने यूसियाह के बेटे यहूआख़ज़ को उसके बाप की जगह यरूशलीम में बादशाह बनाया।2~यहूआख़ज़ तेईस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा; उसने तीन महीने यरूशलीम में हुकूमत की।3और शाह-ए-मिस्र ने उसे यरूशलीम में तख़्त से उतार दिया, और मुल्क पर सौ क़िन्तार' चाँदी और एक क़िन्तार सोना जुर्माना किया।4और शाह-ए-मिस्र ने उसके भाई इल्याक़ीम को यहूदाह और यरूशलीम का बादशाह बनाया, और उसका नाम बदलकर यहूयक़ीम रखा; और निकोह उसके भाई यहूआखज़ को पकड़कर मिस्र को ले गया।5यहूयक़ीम पच्चीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने ग्यारह साल यरूशलीम में हुकूमत की। उसने वही किया जो ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा की नज़र में बुरा था।6उस पर शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र ने चढ़ाई की और उसे बाबुल ले जाने के लिए उसके बेड़ियाँ डालीं7और नबूकदनज़र ख़ुदावन्द के घर के कुछ बर्तन भी बाबुल को ले गया और उनको बाबुल में अपने मन्दिर में रख्खा,8यहूयक़ीम के बाक़ी काम और उसके नफ़रतअंगेज़ 'आमाल, और जो कुछ उसमें पाया गया, वह इस्राईल और यहूदाह के बादशाहों की किताब में लिखा हैं; और उसका बेटा यहूयाकीन उसकी जगह बादशाह हुआ।9यहूयाकीन आठ साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने तीन महीने दस दिन यरूशलीम में हुकूमत की। उसने वही किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में बुरा था।10और नए साल के शुरू' होते ही नबूकदनज़र बादशाह ने उसे ख़ुदावन्द के घर के नफ़ीस बर्तनों के साथ बाबुल को बुलवा लिया, और उसके भाई सिदक़ियाह को यहूदाह और यरूशलीम का बादशाह बनाया।11सिदक़ियाह इक्कीस साल का था जब वह हुकूमत करने लगा, और उसने ग्यारह साल यरूशलीम में हुकूमत की।12उसने वही किया जो ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा की नज़र में बुरा था। और उसने यरमियाह नबी के सामने जिसने ख़ुदावन्द के मुँह की बातें उससे कहीं, 'आजिज़ी न की।13~उसने नबूकदनज़र बादशाह से भी जिसने उसे ख़ुदा की क़सम खिलाई थी, बग़ावत की बल्कि वह गर्दनकश हो गया, और उसने अपना दिल ऐसा सख़्त कर लिया कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की तरफ़ न मुड़ा।14इसके 'अलावा काहिनों के सब सरदारों और लोगों ने और क़ौमों के सब नफ़रती कामों के मुताबिक़ बड़ी बदकारियाँ कीं, और उन्होंने ख़ुदावन्द के घर को जिसे उसने यरूशलीम में पाक ठहराया था नापाक किया।15ख़ुदावन्द उनके बाप-दादा के ख़ुदा ने अपने पैग़म्बरों को उनके पास बर वक़्त भेज ~भेज कर पैग़ाम भेजा क्यूँकि उसे अपने लोगों और अपने घर पर तरस आता था;16~लेकिन उन्होंने ख़ुदा के पैग़म्बरों को ट्ठठों में उड़ाया, और उसकी बातों को नाचीज़ जाना और उसके नबियों की हँसी उड़ाई यहाँ तक कि ख़ुदावन्द का ग़ज़ब अपने लोगों पर ऐसा भड़का कि कोई चारा न रहा।17चुनाँचे वह कसदियों के बादशाह को उन पर चढ़ा लाया, जिसने उनके मक़दिस के घर में उनके जवानों को तलवार से क़त्ल किया; और उसने क्या जवान मर्द क्या कुंवारी, क्या बुड्ढा या 'उम्र दराज़, किसी पर तरस न खाया।उसने सबको उसके हाथ में दे दिया।18~और ख़ुदा के घर के सब बर्तन, क्या बड़े क्या छोटे, और ख़ुदावन्द के घर के ख़ज़ाने और बादशाह और उसके सरदारों के खज़ाने;यह सब वह बाबुल को ले गया।19और उन्होंने ख़ुदा के घर को जला दिया, और यरूशलीम की फ़सील ढा दी, और उसके सारे महल आग से जला दिए और उसके सब क़ीमती बर्तन को बर्बाद किया।20~जो तलवार से बचे वह उनको बाबुल ले गया, और वहाँ वह उसके और उसके बेटों के ग़ुलाम रहे, जब तक फ़ारस की हुकूमत शुरू' न हुई21ताकि ख़ुदावन्द का वह कलाम जो यरमियाह की ज़बानी आया था पूरा हो कि मुल्क अपने सब्तों का आराम पा ले; क्यूँकि जब तक वह सुनसान पड़ा रहा तब तक, या'नी सत्तर साल तक उसे सब्त का आराम मिला।22और शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस की हुकूमत के पहले साल, इसलिए के ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह की ज़बानी आया था पूरा हो, ख़ुदावन्द ने शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस का दिल उभारा; तो उसने अपनी सारी ममलुकत में 'ऐलान करवाया और इस मज़मून का फ़रमान भी लिखा कि :23शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस ऐसा फ़रमाता है, 'ख़ुदावन्द आसमान के ख़ुदा ने ज़मीन की सब हुकूमतें मुझे बख़्शी हैं, और उसने मुझ को ताकीद की है कि मैं यरूशलीम में, जो यहूदाह में है उसके लिए एक घर बनाऊँ; इसलिए तुम्हारे बीच जो कोई उसकी सारी क़ौम में से हो, ख़ुदावन्द उसका ख़ुदा उसके साथ हो और वह रवाना हो जाए।
1~और शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस की सल्तनत के पहले साल में ~इसलिए कि ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह की ज़बानी आया था पूरा हुआ, ख़ुदावन्द ने शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस का दिल उभारा, इसलिए उस ने अपने पूरे मुल्क में 'ऐलान कराया और इस मज़मून का फ़रमान लिखा कि|2शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस यूँ फ़रमाता है कि ख़ुदावन्द आसमान के ख़ुदा ने ज़मीन की सब मुल्कें मुझें बख़्शी हैं ,और मुझें ताकीद की है कि मैं यरुशलीम में जो यहूदाह में है उसके लिए एक घर बनाऊँ |3तब तुम्हारे बीच जो कोई उसकी सारी क़ौम में से हो~उसका ख़ुदा उसके साथ~हो और वह यरुशलीम~को जो यहूदाह में है जाए,और ख़ुदावन्द इस्राईल~के ख़ुदा का घर जो यरूशलीम में है, बनाए~~(ख़ुदा वही है);4और जो कोई किसी जगह जहाँ उसने क़याम किया बाक़ी रहा हो तो उसी जगह के लोग चाँदी और सोने और ~माल मवेशी से उसकी मदद करें, और 'अलावा इसके वह ख़ुदा के घर के लिए जो यरूशलीम में है ख़ुशी के हदिये दें।5~तब यहूदाह और बिनयमीन के आबाई ख़ानदानों के सरदार और काहिन और लावी ~और वह सब जिनके दिल को ख़ुदा ने उभारा, उठे कि जाकर ख़ुदावन्द का घर जो यरूशलीम में है बनाएँ,6और उन सभों ने जो उनके पड़ोस में थे, 'अलावा उन सब चीज़ों के जो ख़ुशी से दी गई, चाँदी के बर्तनों और सोने और सामान और मवाशी और क़ीमती चीज़ों से उनकी मदद की।7~और~ख़ोरस~बादशाह ने भी ख़ुदावन्द के घर के उन बर्तनों को निकलवाया जिनको नबूकदनज़र यरुशलीम से ले आया था और अपने मा'बूदों के 'इबादत खाने ~में रखा था|8इन ही को शाह-ए- फ़ारस ख़ोरस ने ख़ज़ान्ची मित्रदात के हाथ से निकलवाया, और उनको गिनकर यहूदाह के अमीर शेसबज़्ज़र को दिया।9और उनकी गिनती ये है : सोने की तीस थालियाँ, और चाँदी की हजार थालियाँ और उनतीस छुरियाँ |10~और सोने के तीस प्याले, और चाँदी के दूसरी क़िस्म के चार सौ दस प्याले और, और क़िस्म के बर्तन एक हज़ार।11सोने और चाँदी के कुल बर्तन पाँच हज़ार चार सौ थे। शेसबज़्ज़र इन सभों को, जब ग़ुलामी के लोग बाबुल से यरूशलीम को पहुँचाए गए, ले आया।
1मुल्क के जिन लोगों को शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र बाबुल को ले गया था, उन ग़ुलामों की ग़ुलामी में से वह जो निकल आए और यरूशलीम और यहूदाह में अपने अपने शहर को वापस आए ये हैं:2~वह ज़रुब्बाबुल, यशू'अ, नहमियाह, सिराया, रा'लायाह, मर्दकी, बिलशान, मिसफ़ार, बिगवई, रहूम और बा'ना के साथ आए| इस्राईली क़ौम के आदमियों का ये शुमार हैं |3~बनी पर'ऊस, दो हज़ार एक सौ बहत्तर ;4~बनी सफ़तियाह, तीन सौ बहत्तर;5बनी अरख़, सात सौ पिच्छत्तर;6बनी पख़तमोआब, जो यशू'अ और यूआब की औलाद में से थे, दो हज़ार आठ सौ बारह;7बनी 'ऐलाम, एक हज़ार दो सौ चव्वन ,8बनी ज़त्तू, नौ सौ पैंतालीस;9~बनी ज़क्की, सात सौ साठ10बनी बानी, छ: सौ बयालीस;11बनी बबई, छः सौ तेइस;12बनी 'अज़जाद, एक हज़ार दो सौ बाईस13बनी अदूनिक़ाम, छ: सौ छियासठ:14बनी बिगवई, दो हज़ार छप्पन;15बनी 'अदीन, चार सौ चव्वन ,16~बनी अतीर, हिज़क़ियाह के घराने के अठानवे17~बनी बज़ई, तीन सौ तेईस;18बनी यूरह, एक सौ बारह;19~बनी हाशूम, दो सौ तेईस;20बनी जिब्बार, पच्चानवे,21बनी बैतलहम, एक सौ तेईस,22~अहल-ए-नतूफ़ा, छप्पन:23अहल-ए-'अन्तोत, एक सौ अट्ठाईस;24बनी 'अज़मावत, बयालीस;25क़रयत-'अरीम और कफ़रा और बैरोत के लोग, सात सौ तैंतालीस,26रामा और जिबा' के लोग, छः सौ इक्कीस,27~अहल-ए-मिक्मास, एक सौ बाईस;28बैतएल और 'ऐ के लोग, दो सौ तेईस;29बनी नबू, बावन,30~बनी मजबीस, एक सौ छप्पन;31दूसरे 'ऐलाम की औलाद, एक हज़ार दो सौ चव्वन ;32बनी हारेिम, तीन सौ बीस;33लूद ~और हादीद और ओनू की औलाद सात सौ पच्चीस :34~यरीहू के लोग, तीन सौ पैन्तालीस;35सनाआह के लोग, तीन हज़ार छ: सौ तीस।36फिर काहिनों या'नी यशू'अ के ख़ानदान में से : यद'अयाह की औलाद, नौ सौ तिहत्तर;37~बनी इम्मेर, एक हज़ार बावन;38बनी फ़शहूर, एक हज़ार दो सौ सैंतालीस;39बनी हारिम, एक हज़ार सत्रह।40लावियों या'नी हूदावियाह की नस्ल में से यशूअ और क़दमीएल की औलाद, चौहत्तर,41गानेवालों में से बनी आसफ़, एक सौ अट्ठाइस;42दरबानों की नसल में से बनी सलूम, बनी अतीर, बनी तलमून, बनी 'अक़्क़ोब, बनी ख़तीता, बनी सोबै सब मिल ~कर, एक सौ उन्तालीस ।43और नतीनीम' में से बनी ज़िहा, बनी हसूफ़ा, बनी तब'ऊत,44~बनी क़रूस, बनी सीहा, बनी फ़दून,45~बनी लिबाना, बनी हजाबा, बनी 'अक़्बक़ूब,46~बनी हजाब, बनी शमलै, बनी हनान,47बनी जिद्देल, बनी हजर, बनी रआयाह,48बनी रसीन, बनी नक़्क़ूदा बनी जज़्ज़ाम,49~बनी 'उज़्ज़ा, बनी फ़ासेख़, बनी बसैई,50बनी असनाह, बनी म'ओनीम, बनी नफ़ीसीम,51बनी बक़बोक़, बनी हक़ूफ़ा, बनी हरहूर,52बनी बज़लूत, बनी महीदा, बनी हरशा,53बनी बरक़ूस, बनी सीसरा, बनी तामह,54बनी नज़याह, बनी ख़तीफ़ा।55~सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद बनी सूती बनी हसूफ़िरत बनी फ़रूदा :56बनी या'ला, बनी दरक़ून, बनी जिद्देल,57बनी सफ़तियाह, बनी ख़ित्तेल, बनी फ़ूकरत ज़बाइम, बनी अमी।58सब नतीनीम और सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद तीन सौ बानवे।59~और जो लोग तल-मिलह और तल-हरसा और करुब और अद्दान और अमीर से गए थे, वह ये हैं; लेकिन ये लोग अपने अपने आबाई ख़ान्दान और नस्ल का पता नहीं दे सके कि ~इस्राईल के हैं या नहीं :60या'नी बनी दिलायाह, बनी तूबियाह, बनी नक़ूदा छ: सौ बावन।61और काहिनों की औलाद में से बनी हबायाह, बनी हक़ूस, बनी बरज़िल्ली जिसने जिल'आदी बरज़िल्ली की बेटियों में से एक को ब्याह लिया और उनके नाम से कहलाया62~उन्होंने अपनी सनद उनके बीच जो नसबनामों के मुताबिक़ गिने गए थे ढूँडी लेकिन न पाई, इसलिए वह नापाक समझे गए और कहानत से ख़ारिज हुए;63~और हाकिम ने उनसे कहा कि जब तक कोई काहिन ऊरीम-ओ-तम्मीम लिए हुए न उठे, तब तक वह पाक तरीन चीज़ों में से न खाएँ।64~सारी जमा'अत मिल कर बयालीस हज़ार तीन सौ साठ की थी।65इनके 'अलावा उनके ग़ुलामों और लौंडियों का शुमार सात हज़ार तीन सौ सैंतीस था, और उनके साथ दो सौ गानेवाले और गानेवालियाँ थीं।66उनके घोड़े, सात सौ छत्तीस; उनके खच्चर, दो सौ पैंतालीस;67उनके ऊँट, चार सौ पैंतीस और उनके गधे, छ: हज़ार सात सौ बीस थे।68और आबाई ख़ान्दानों के कुछ सरदारों ने जब वह ख़ुदावन्द के घर में जो यरूशलीम में है आए, तो ख़ुशी से ख़ुदा के मस्कन के लिए हदिये दिए, ताकि ~वह फिर अपनी जगह पर ता'मीर किया जाए।69उन्होंने अपने ताक़त के मुताबिक़ काम के ख़ज़ाना में सोने के इकसठ हज़ार दिरहम और चाँदी के पाँच हज़ार मनहाँ और काहिनों के एक सौ लिबास दिए।70इसलिए काहिन, और लावी, और कुछ लोग, और गानेवाले और दरबान, और नतीनीम अपने अपने शहर में और सब इस्राइली अपने अपने शहर में बस गए।
1~जब सातवाँ महीना आया, और बनी इस्राईल अपने अपने शहर में बस गए तो लोग यकतन होकर यरूशलीम में इकट्ठे हुए।2तब यशू'अ बिन यूसदक़ और उसके भाई जो काहिन थे, और ज़रुब्बाबुल बिन सियालतिएल और उसके भाई उठ खड़े हुए और उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा का मज़बह बनाया ताकि उस पर सोख़्तनी कुर्बानियाँ चढ़ाएँ, जैसा मर्द-ए- ख़ुदा मूसा की शरी'अत में लिखा है।3और ~उन्होंने मज़बह को उसकी जगह पर रखा, क्यूँकि ~उन अतराफ़ की क़ौमों की वजह से उनको ख़ौफ़ रहा; और वह उस पर ~ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी ~क़ुर्बानियाँ या'नी सुबह ~और शाम की~सोख़्तनी~क़ुर्बानियाँ~ पेश करने लगे।4और उन्होंने लिखे हुए के मुताबिक़ ख़ैमों की 'ईद मनाई, और रोज़ की सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ गिन गिन कर जैसा ~जिस दिन का फ़र्ज़ था, दस्तूर के मुताबिक़ पेश कीं:5उसके बा'द दाइमी सोख़्तनी क़ुर्बानी, और नये चाँद की, और ख़ुदावन्द की उन सब मुक़र्ररा 'ईदों की जो मुक़द्दस ठहराई गई थीं, और हर शख़्स की तरफ़ से ऐसी क़ुर्बनियाॅ पेश कीं जो रज़ा की क़ुर्बानी ख़ुशी से ख़ुदावन्द के लिए अदा करता` था |6~सातवें महीने की पहली तारीख़ से वह ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करने लगे। लेकिन ख़ुदावन्द की हैकल की बुनियाद अभी तक डाली न गई थी।7और उन्होंने मिस्त्रियों और बढ़इयों को नक़दी दी, और सैदानियों और सूरियों को खाना-पीना और तेल दिया, ताकि वह देवदार के लट्ठे लुबनान से याफ़ा को समन्दर की राह से लाएँ, जैसा उनको शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस से परवाना मिला था।8फिर उनके ख़ुदा के घर में जो यरूशलीम में है आ पहुँचने के बा'द, दूसरे बरस के दूसरे महीने में, ज़रुब्बाबुल बिन सिआलतिएल और यशू'अ बिन यूसदक़ ने, और उनके बाक़ी भाई काहिनों और लावियों और सभों ने जो ग़ुलामी से लौट कर यरूशलीम को आए थे काम शुरू' किया और लावियों को जो बीस बरस के और उससे ऊपर थे मुक़र्रर किया कि ख़ुदावन्द के घर के काम की निगरानी करें |9तब यशू'अ और उसके बेटे और भाई, और क़दमीएल और उसके बेटे जो यहूदाह की नसल से थे, मिल कर उठे कि ~ख़ुदा के घर में कारीगरों की निगरानी करें; और बनी हनदाद भी और उनके बेटे और भाई जो लावी थे उनके साथ थे।10इसलिए जब मिस्त्री ख़ुदावन्द की हैकल की बुनियाद डालने लगे, तो उन्होंने काहिनों को अपने अपने लिबास पहने और नरसिंगे लिए हुए और आसफ़ की नसल के लावियों को झाँझ लिए हुए खड़ा किया, कि शाह-ए- इस्राईल दाऊद की तरतीब के मुताबिक़ ख़ुदावन्द की हम्द करें।11इसलिए वह एक हो कर बारी-बारी से ~ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ और शुक्रगुज़ारी में गा-गा कर कहने लगे कि वह भला है, क्यूँकि उसकी रहमत हमेशा इस्राईल पर है। जब वह ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ कर रहे थे, तो सब लोगों ने बलन्द आवाज़ से नारा मारा, इसलिए कि ख़ुदावन्द के घर की बुनियाद पड़ी थी।12लेकिन काहिनों और लावियों और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से बहुत से 'उम्र दराज़ लोग, जिन्होंने पहले घर को देखा था, उस वक़्त जब इस घर की बुनियाद उनकी आँखों के सामने डाली गई, तो बड़ी आवाज़ से ज़ोर से रोने लगे; और बहुत से ख़ुशी के मारे ज़ोर ज़ोर से ललकारे।13इसलिए लोग ख़ुशी की आवाज़ के शोर और लोगों के रोने की आवाज़ में फ़र्क़ न कर सके, क्यूँकि ~लोग बुलन्द आवाज़ से नारे मार रहे थे, और आवाज़ दूर तक सुनाई देती थी।
1जब यहुदाह और बिनयमीन के दुश्मनों ~ने सुना कि वह जो ग़ुलाम हुए थे, ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए हैकल को बना रहे हैं;2तो वह ज़रुब्बाबुल और आबाई क़बीलों के सरदारों के पास आकर उनसे कहने लगे कि हम को भी अपने साथ बनाने दो; क्यूँकि हम भी तुम्हारे ख़ुदा के तालिब हैं जैसे तुम हो, और हम शाह-ए-असूर असर-हद्दून के दिनों से जो हम को यहाँ लाया, उसके लिए क़ुर्बानी पेश करते ~हैं।3लेकिन ज़रुब्बाबुल और यशू'अ और इस्राईल के आबाई ख़ानदानों के बाक़ी सरदारों ने उनसे कहा कि तुम्हारा काम नहीं, कि हमारे साथ हमारे ख़ुदा के लिए घर बनाओ, बल्कि हम खुद ही मिल कर ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के लिए उसे बनाएँगे, जैसा शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस ने हम को हुक्म किया है।4तब मुल्क के लोग यहूदाह के लोगों की मुखालिफ़त करने और बनाते वक़्त उनको तकलीफ़ देने लगे।5और शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस के जीते जी, बल्कि शाह-ए-फ़ारस दारा की सल्तनत तक उनके मक़सदों को रद ~करने ~के लिए उनके ख़िलाफ़ सलाहकारों को उजरत देते रहे।6~और अख़्सूयरस के हुकूमत के ज़माने, या'नी उसकी सल्तनत के शुरू' में उन्होंने यहूदाह और यरूशलीम के बाशिन्दों की शिकायत लिख भेजी।7फिर अरतख़शशता के दिनों में बिशलाम और मित्रदात और ताबिएल और उसके बाक़ी साथियों ~ने शाह-ए-फ़ारस अरतख़शशता को लिखा। उनका ख़त अरामी हुरूफ़ और अरामी ज़बान में लिखा था।8~रहूम दीवान और शम्सी मुन्शी ने अरतख़शाशता ~बादशाह को यरूशलीम के ख़िलाफ़ यूँ ख़त लिखा।9इसलिए रहूम दीवान और शम्सी मुन्शी और उनके बाक़ी साथियों ने जो दीना और अफ़ार-सतका और तरफ़ीला और फ़ारस और अरक और बाबुल और सोसन और दिह और 'ऐलाम के थे,10और बाक़ी उन कौमों ने जिनको उस बुज़ुर्ग-ओ-शरीफ़ असनफ़्फ़र ने पार लाकर शहर-ए-सामरिया और दरिया के इस पार के बाक़ी 'इलाक़े में बसाया था, वगै़रा वग़ैरा इसको लिखा।11उस ख़त की नक़ल जो उन्होंने अरतख़शशता बादशाह के पास भेजा। ये है: "आपके ग़ुलाम, या'नी वह लोग जो दरिया पार रहते हैं, वग़ैरा।12बादशाह को मा'लूम हो कि यहूदी लोग जो हुज़ूर के पास से हमारे बीच यरूशलीम में आए हैं, वह उस बाग़ी और फ़सादी शहर को बना रहे हैं; चुनाँचे दीवारों को ख़त्म और बुनियादों की मरम्मत कर चुके हैं।13इसलिए बादशाह को मा'लूम हो जाए कि अगर ये शहर बन जाए और फ़सील तैयार हो जाए, तो वह ख़िराज चुंगी, या महसूल नहीं देंगे और आख़िर बादशाहों को नुक्सान होगा।14इसलिए चूँकि हम हुज़ूर के दौलतख़ाने का नमक खाते हैं और मुनासिब नहीं कि ~हमारे सामने बादशाह की तहक़ीर हो, इसलिए हम ने लिखकर बादशाह को ख़बर दी है।15ताकि हुज़ूर के बाप-दादा के दफ़्तर की किताब से मा'लूम की जाए, तो उस दफ़्तर की किताब से हुज़ूर को मा'लूम होगा और यक़ीन हो जाएगा कि ये शहर फ़ितना अंगेज है जो बादशाहों और सूबों ~को नुक़सान पहुँचाता रहा है; और पुराने ज़माने से उसमें फ़साद खड़ा करते रहे हैं। इसी वजह से ये शहर उजाड़ दिया गया था।16और हम बादशाह को यक़ीन दिलाते हैं कि ~अगर ये शहर तामीर हो और इसकी फ़सील बन जाए, तो इस सूरत में हुज़ूर का हिस्सा दरिया पार कुछ न रहेगा।"17तब बादशाह ने रहूम दीवान और शम्सी मुन्शी और उनके बाक़ी साथियों को, जो सामरिया और दरिया पार के बाक़ी मुल्क में रहते हैं यह जवाब भेजा कि "सलाम वगै़रा।18जो ख़त तुम ने हमारे पास भेजा, वह मेरे सामने साफ़ साफ़ पढ़ा गया।19और मैंने हुक्म दिया और मा'लूमात की गयी, और मा'लूम हुआ कि इस शहर ने पुराने ज़माने से बादशाहों से बग़ावत की है, और फ़ितना और फ़साद उसमें होता रहा है।20और यरूशलीम में ताक़तवर बादशाह भी हुए हैं जिन्होंने दरिया पार के सारे मुल्क पर हुकूमत की है, और ख़िराज, चुंगी और महसूल उनको दिया जाता था।21इसलिए तुम हुक्म जारी करो कि ~ये लोग काम बन्द करें और ये शहर न बने, जब तक मेरी तरफ़ से फ़रमान जारी न हों।22ख़बरदार, इसमें सुस्ती न करना; बादशाहों के नुक्सान के लिए ख़राबी क्यूँ बढ़ने पाए?"23इसलिए जब अरतख़शशता बादशाह के ख़त की नक़ल रहूम और शम्सी मुन्शी और उनके साथियों के सामने पढ़ी गई, तो वह जल्द यहूदियों के पास यरूशलीम को गए, और अपनी ताक़त से उनको रोक दिया।24तब ख़ुदा के घर का जो यरूशलीम में है काम बन्द हुआ, और शाह-ए-फ़ारस दारा की सल्तनत के दूसरे बरस तक बन्द रहा।
1फिर नबी या'नी हज्जे नबी और ज़करियाह बिन 'इद्दूउन यहूदियों के सामने जो यहूदाह और यरूशलीम में थे, नबुव्वत करने लगे; उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा के नाम से उनके सामने नबुव्वत की।2तब ज़रुब्बाबुल बिन सियालतिएल और यशू'अ बिन यूसदक़ उठे, और ख़ुदा के घर को जो यरूशलीम में है बनाने लगे; और ख़ुदा के वह नबी उनके साथ होकर उनकी मदद करते थे।3उन्हीं दिनों दरिया पार का हाकिम, तत्तनै और शतर-बोज़नै और उनके साथी उनके पास आकर उनसे कहने लगे कि किसके फ़रमान से तुम इस घर को बनाते, और इस फ़सील को पूरा करते हो?4~तब हम ने उनसे इस तरह कहा कि उन लोगों के क्या नाम हैं, जो इस 'इमारत को बना रहे हैं?5लेकिन यहूदियों के बुज़ुर्गों पर उनके ख़ुदा की नज़र थी; इसलिए उन्होंने उनको न रोका जब तक कि वह मुआ'मिला दारा तक न पहुँचा, और फिर इसके बारे में ख़त के ज़रिए' से जवाब न आया |6~उस ख़त की नक़ल जो दरिया पार के हाकिम तत्तनै और शतर-बोज़नै और उसके अफ़ारसकी साथियों ने जो दरिया पार थे, दारा बादशाह को भेजा,7~उन्होंने उसके पास एक खत भेजा जिसमें यूँ लिखा था: "दारा बादशाह की हर तरह सलामती हो!8बादशाह को मा'लूम हो कि हम यहूदाह के सूबा में ख़ुदा-ए- ताला के घर को गए; वह बड़े बड़े पत्थरों से बन रहा है और दीवारों पर कड़ियाँ धरी जा रही हैं, और काम ख़ूब मेहनत से हो रहा है और उनके हाथों तरक़्क़ी पा रहा है।9तब हम ने उन बुज़ुर्गों से सवाल किया और उनसे यूँ कहा, 'कि तुम किस के फ़रमान से इस घर को बनाते, और इस दीवार को पूरा करते हो?10और हम ने उनके नाम भी पूछे, ताकि हम उन लोगों के नाम लिख कर हुज़ूर को ख़बर दें कि उनके सरदार कौन हैं।11और उन्होंने हम को यूँ जवाब दिया कि हम ज़मीन-ओ-आसमान के ख़ुदा के बन्दे हैं, और वही घर बना रहे हैं जिसे बने बहुत बरस हुए, और जिसे इस्राईल के एक बड़े बादशाह ने बना कर तैयार किया था।12लेकिन जब हमारे बाप-दादा ने आसमान के ख़ुदा को ग़ुस्सा दिलाया, तो उसने उनको शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र कसदी के हाथ में कर दिया; जिसने इस घर को उजाड़ दिया, और लोगों को बाबुल को ले गया।13लेकिन शाह-ए-बाबुल ख़ोरस के पहले साल ख़ोरस बादशाह ने हुक्म दिया कि ख़ुदा का ये घर बनाया जाए।14और ख़ुदा के घर के सोने और चाँदी के बर्तनों को भी, जिनको नबूकदनज़र यरूशलीम की हैकल से निकाल कर बाबुल के 'इबादत गाह में ले आया था, उनको ख़ोरस बादशाह ने बाबुल के इबादत गाह से निकाला और उनको शेसबज़्ज़र नामी एक शख़्स को जिसे उसने हाकिम बनाया था सौंप दिया,15और उससे कहा कि इन बर्तनों को ले और जा, और इनको यरूशलीम की हैकल में रख, और ख़ुदा का मस्कन अपनी जगह पर बनाया जाए।16तब उसी शेसबज़्ज़र ने आकर ख़ुदा के घर की जो यरुशलीम में है बुनियाद डाली; और उस वक़्त से अब तक ये बन रहा है, लेकिन अभी तैयार नहीं हुआ।17इसलिए अब अगर बादशाह मुनासिब जाने, तो बादशाह के दौलतख़ाने में जो बाबुल में है, मा'लूमात की जाए कि ख़ोरस बादशाह ने ख़ुदा के इस घर को यरूशलीम में बनाने का हुक्म दिया था या नहीं। और इस मुआ'मिले में बादशाह अपनी मर्ज़ी हम पर ज़ाहिर करे।"
1तब दारा बादशाह के हुक्म से बाबुल के उस तवारीख़ी कुतुबख़ाने में जिसमें ख़ज़ाने धरे थे, मा'लुमात की गई।2चुनाँचें ~अखमता के महल में जो मादै के सूबे में वाक़े' है, एक तूमार मिला जिसमें ये हुक्म लिखा हुआ था:3"ख़ोरस बादशाह के पहले साल ख़ोरस बादशाह ने ख़ुदा के घर के बारे में जो यरूशलीम में है हुक्म किया, कि वह घर या'नी वह मक़ाम जहाँ क़ुर्बानियां करते है बनाया जाए और उसकी बुनियादें मज़बूती से डाली जाएँ। उसकी ऊँचाई साठ हाथ और चौड़ाई साठ हाथ हो,4तीन रद्दे भारी पत्थरों के और एक रद्दा नई लकड़ी का हो; और ख़र्च शाही महल से दिया जाए।5और ख़ुदा के घर के सोने और चाँदी के बर्तन भी, जिनको नबूकदनज़र उस हैकल से जो यरूशलीम में है निकालकर बाबुल को लाया, वापस दिए जाएँ और यरूशलीम की हैकल में अपनी अपनी जगह पहुँचाए जाएँ, और तू उनको ख़ुदा के घर में रख देना।"6इसलिए तू ऐ दरिया पार के हाकिम, तत्तनै और शतर-बोज़नै और तुम्हारे अफ़ारसकी साथी जो दरिया पार हैं तुम वहाँ से दूर रहो।7ख़ुदा के इस घर के काम में दख़्लअन्दाज़ी न करो। यहूदियों का हाकिम और यहूदियों के ~बुज़ुर्ग ख़ुदा के घर को उसकी जगह पर ता'मीर करें।8'अलावा इसके ख़ुदा के इस घर के बनाने में यहूदियों के बुज़ुर्गों के साथ तुम को क्या करना है, इसलिए उसके बारे में मेरा ये हुक्म है कि शाही माल में से, या'नी दरिया पार के ख़िराज में से उन लोगों को बिला देरी किये ख़र्च दिया जाए, ताकि उनको रुकना न पड़े।9और आसमान के ख़ुदा की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए जिस जिस चीज़ की उनको ज़रूरत हो - या'नी बछड़े और मेंढ़े और हलवान और जितना गेंहूं और नमक और मय और तेल, वह काहिन जो यरूशलीम में हैं बताएँ, वह सब बिला-नाग़ा रोज़-ब-रोज़ उनको दिया जाए;10ताकि वह आसमान के ख़ुदा के हुज़ूर राहत अंगेज क़ुर्बानियाँ पेश करें और बादशाह और शहज़ादों की 'उम्रदराज़ी के लिए दु'आ करें।11~मैंने ये हुक्म भी दिया है, कि जो शख़्स इस फ़रमान को बदल दे, उसके घर में से कड़ी निकाली जाए और उसे उसी पर चढ़ाकर सूली दी जाए, और इस बात की वजह से उसका घर कूड़ाख़ाना बना दिया जाए।12और वह ख़ुदा जिसने अपना नाम वहाँ रखा है, सब बादशाहों और लोगों को जो ख़ुदा के उस घर को जो यरूशलीम में है, ढाने की ग़रज़ से इस हुक्म को बदलने के लिए अपना हाथ बढ़ाएँ, ग़ारत करे। मुझ दारा ने हुक्म दे दिया, इस पर बड़ी कोशिश से 'अमल हो।13तब दरिया पार के हाकिम, तत्तनै और शतर-बोज़नै, और उनके साथियों ने दारा बादशाह के फ़रमान भेजने की वजह से बिना देर किये हुए उसके मुताबिक़ 'अमल किया।14~तब यहूदियों के बुज़ुर्ग, हज्जै नबी और ज़करियाह बिन इद्दू की नबुव्वत की वजह से, ता'मीर करते और कामयाब होते रहे। उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा के हुक्म, और ख़ोरस और दारा, और शाह-ए-फ़ारस अरतख़शशता के हुक्म के मुताबिक़ उसे बनाया और पूरा किया।15इसलिए ये घर अदार के महीने की तीसरी तारीख़ में, दारा बादशाह की सल्तनत के छठे बरस पूरा हुआ।16और बनी-इस्राईल, और काहिनों और लावियों और ग़ुलामी के बाक़ी लोगों ने ख़ुशी के साथ ख़ुदा के इस घर की हम्द की।17~और उन्होंने ख़ुदा के इस घर की तक़्दीस के मौक़े' पर सौ बैल और दो सौ मेंढे और चार सौ बर्रे, और सारे इस्राईल की ख़ता की क़ुर्बानी के लिए इस्राईल के क़बीलों के शुमार के मुताबिक़ बारह बकरे पेश किये ।18और जैसा मूसा की किताब में लिखा है, उन्होंने काहिनों को उनकी तक़्सीम, और लावियों को उनके फ़रीक़ों के मुताबिक़, ख़ुदा की 'इबादत के लिए जो यरूशलीम में होती है मुक़र्रर किया।19~और पहले महीने की चौदहवीं तारीख़ को उन लोगों ने जो ग़ुलामी से आए थे 'ईद-ए-फ़सह मनाई:20क्यूँकि काहिनों और लावियों ने यकतन होकर अपने आपको पाक किया था, वह सबके सब पाक थे, और उन्होंने उन सब लोगों के लिए जो ग़ुलामी से आए थे, और अपने भाई काहिनों के लिए और अपने वास्ते फ़सह को ज़बह किया।21और बनी-इस्राईल ने जो ग़ुलामी से लौटे थे, और उन सभों ने जो ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के तालिब होने के लिए उस सरज़मीन की अजनबी क़ौमों की नापाकियों से अलग हो गए थे, फ़सह खाया,22और ख़ुशी के साथ सात दिन तक फ़तीरी रोटी की 'ईद मनाई, क्यूँकि ~ख़ुदावन्द ने उनको ख़ुश किया था, और शाह-ए-असूर के दिल को उनकी तरफ़ मोड़ा था ताकि वह ख़ुदा या'नी इस्राईल के ख़ुदा के घर के बनाने में उनकी मदद करें।
1~इन बातों के बा'द शाह-ए-फ़ारस अरतख़शशता के दौर-ए-हुकूमत में 'अज़्रा बिन शिरायाह बिन अज़रियाह बिन ख़िलक़ियाह2~बिन सलूम बिन सदूक़ बिन अख़ीतोब,3बिन अमरियाह बिन 'अज़रियाह बिन मिरायोत4~बिन ज़राख़ियाह बिन 'उज़्ज़ी बिन बुक़्क़ी5बिन अबीसू'अ बिन फ़ीन्हास बिन इली'अज़र बिन हारून सरदार काहिन।6यही 'अज़्रा बाबुल से गया और वह मूसा की शरी'अत में, जिसे ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने दिया था, माहिर 'आलिम था; और चूँकि ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा का हाथ उस पर था, बादशाह ने उसकी सब दरख़्वास्तें मन्ज़ूर कीं।7और बनी-इस्राईल और काहिनों और लावियों और गाने वालों और दरबानों नतीनीम में से कुछ लोग, अरतख़शशता बादशाह के सातवें साल यरूशलीम में आए।8और वह बादशाह की हुकूमत के सातवें बरस के पाँचवे महीने यरूशलीम में पहुंचा।9क्यूँकि पहले महीने की पहली तारीख़ को तो बाबुल से चला और पांचवें महीने की पहली तारीख़ को यरुशलीम में आ पहुँचा। क्यूँकि उसके ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ उसपर था |10इसलिए कि 'अज़्रा आमादा हो गया था कि ख़ुदावन्द की शरी'अत का तालिब हो, और उस पर 'अमल करे और इस्राईल में आईन और अहकाम की तालीम दे।11और 'अज़्रा~काहिन और 'आलिम, या'नी ख़ुदावन्द के इस्राईल को दिए हुए अहकाम और आईन की बातों के 'आलिम को जो ख़त अरतख़शशता बादशाह ने 'इनायत किया, उसकी नक़ल ये है:12~"अरतख़शशता शहंशाह की तरफ़ से 'अज़्रा~काहिन, या'नी आसमान के ख़ुदा की शरी'अत के 'आलिम-ए-कामिल वग़ैरा वग़ैरा को।13~मैं ये फ़रमान जारी करता हूँ कि इस्राईल के जो लोग और उनके काहिन और लावी मेरे मुल्क में हैं, उनमें से जितने अपनी ख़ुशी से यरुशलीम को जाना चाहते हैं तेरे साथ जाएँ।14~चूँकि तू बादशाह और उसके सातों सलाहकारों की तरफ़ से भेजा जाता है, ताकि अपने ख़ुदा की शरी'अत के मुताबिक़ जो तेरे हाथ में है, यहूदाह और यरुशलीम का हाल दरियाफ़्त करे;15और जो चाँदी और सोना बादशाह और उसके सलाहकारों ने इस्राईल के ख़ुदा को, जिसका घर यरुशलीम में है, अपनी ख़ुशी से नज़्र किया है ले जाए;16और जिस क़दर चाँदी सोना बाबुल के सारे सूबे से तुझे मिलेगा, और जो ख़ुशी के हदिये लोग और काहिन अपने ख़ुदा के घर के लिए जो यरुशलीम में है अपनी ख़ुशी से दें उनको ले जाए।17इसलिए उस रुपये से बैल और मेंढे और हलवान और उनकी नज़्र की क़ुर्बानियाँ, और उनके तपावन की चीज़ें तू बड़ी कोशिश से ख़रीदना, और उनको अपने ख़ुदा के घर के मज़बह पर जो यरुशलीम में है पेश करना।18और तुझे और तेरे भाइयों को बाक़ी चाँदी सोने के साथ जो कुछ करना मुनासिब मा'लूम हो, वही अपने ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ करना।19~और जो बर्तन तुझे तेरे ख़ुदा के घर की 'इबादत के लिए सौंपे जाते हैं, उनको यरुशलीम के ख़ुदा के सामने दे देना।20और जो कुछ और तेरे ख़ुदा के घर के लिए ज़रूरी हो जो तुझे देना पड़े, उसे शाही ख़ज़ाने से देना।21~और मैं अरतख़शशता बादशाह, ख़ुद दरिया पार के सब ख़ज़ान्चियों को हुक्म करता हूँ, कि जो कुछ 'अज़्रा काहिन, आसमान के ख़ुदा की शरी'अत का 'आलिम, तुम से चाहे वह बिना देर किये किया जाए;22~या'नी सौ क़िन्तार चाँदी, और सौ कुर गेहूँ, और सौ बत मय, और सौ बत तेल तक, और नमक बेअन्दाज़ा।23जो कुछ आसमान के ख़ुदा ने हुक्म किया है, इसलिए ठीक वैसा ही आसमान के ख़ुदा के घर के लिए किया जाए; क्यूँकि बादशाह और शाहजादों की ममलुकत पर ग़ज़ब क्यूँ भड़के?24~और तुम को हम आगाह करते हैं कि काहिनों और लावियों और गानेवालों और दरबानों और नतीनीम और ख़ुदा के इस घर के ख़ादिमों में से किसी पर ख़िराज, चुंगी या महसूल लगाना जायज़ न होगा।25~और ऐ~'अज़्रा, तू अपने ख़ुदा की उस समझ के मुताबिक़ जो तुझ को 'इनायत हुई हाकिमों और क़ाज़ियों को मुक़र्रर कर, ताकि दरिया पार के सब लोगों का जो तेरे ख़ुदा की शरी'अत को जानते हैं इन्साफ़ करें; और तुम उसको जो न जानता हो सिखाओ।26और जो कोई तेरे ख़ुदा की शरी'अत पर और बादशाह के फ़रमान पर 'अमल न करे, उसको बिना देर किये क़ानूनी सज़ा दी जाए, चाहे मौत या जिलावतनी या माल की ज़ब्ती या क़ैद की।"27ख़ुदावन्द हमारे बाप-दादा का ख़ुदा मुबारक हो, जिसने ये बात बादशाह के दिल में डाली कि ख़ुदावन्द के घर को जो यरूशलीम में है आरास्ता करे;28और बादशाह और उसके सलाहकारों के सामने, और बादशाह के सब 'आली क़द्र सरदारों के आगे अपनी रहमत मुझ पर की; और मैंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हाथ से जो मुझ पर था, ताक़त पाई और मैंने इस्राईल में से ख़ास लोगों को इकट्ठा किया कि वह मेरे हमराह चलें।
1अरतख़शशता बादशाह के दौर-ए-सल्तनत में जो लोग मेरे साथ बाबुल से निकले, उनके अबाई ख़ान्दानों के सरदार ये हैं और उनका नसबनामा ये है :2~बनी फ़ीन्हास में से, जैरसोन; बनी इतमर में से, दानीएल; बनी दाऊद में से हत्तूश;3बनी सिकनियाह की नस्ल के बनी पर'ऊस में से, ज़करियाह, और उसके साथ डेढ़ सौ आदमी नसबनामे के तौर से गिने हुए थे;4बनी पख़त-मोआब में से, इलीहू'ऐनी बिन ज़राखियाह, और उसके साथ दो सौ आदमी;5और बनी सिकनियाह में से, यहज़ीएल का बेटा, और उसके साथ तीन सौ~आदमी:6और बनी 'अदीन में से, 'अबद-बिन यूनतन, और उसके साथ पचास~आदमी,7और बनी 'ऐलाम में से, यसायाह बिन 'अतलियाह, और उसके साथ सत्तर~आदमी;8और बनी सफ़तियाह में से, जबदियाह बिन मीकाएल, और उसके साथ अस्सी~आदमी,9और बनी योआब में से 'अबदियाह बिन यहीएल, और उसके साथ दो सौ अट्ठारह~आदमी,10~और बनी सलूमीत में से, यूसिफ़ियाह का बेटा, और उसके साथ एक सौ साठ~आदमी ;11और बनी बबई में से ज़करियाह बिन बबई, और उसके साथ अट्ठाईस~आदमी ;12और बनी 'अज़जाद में से यूहनान बिन हक्कातान, और उसके साथ एक सौ दस~आदमी,13और बनी अदुनिक़ाम में से जो सबसे पीछे गए, उनके नाम ये हैं : इलीफ़लत, और य'ईएल, और समा'याह, और उनके साथ साठ~आदमी ;14~और बनी बिगवई में से, ऊती और ज़ब्बूद, और उनके साथ सत्तर~आदमी।15फिर मैंने उनको उस दरिया के पास जो अहावा की सिम्त को बहता है इकट्ठा किया, और वहाँ हम तीन दिन ख़ैमों में रहे; और मैंने लोगों और काहिनों का मुलाहज़ा किया पर बनी लावी में से किसी को न पाया।16तब मैंने इली'अज़र और अरीएल और समा'याह और इलनातन और यरीब अौर इलनातन अौर नातन अौर ज़करियाह और मसुल्लाम को जो रईस थे, और यूयरीब और इलनातन को जो मु'अल्लिम थे बुलवाया।17~और मैंने उनको क़सीफ़िया नाम एक मक़ाम में इद्दो सरदार के पास भेजा; और जो कुछ उनको इद्दो और उसके भाइयों नतीनीम से क़सीफ़िया में कहना था बताया, कि वह हमारे ख़ुदा के घर के लिए ख़िदमत करने वाले हमारे पास ले आएँ।18और चूँकि हमारे ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ हम पर था, इसलिए वह महली बिन लावी बिन इस्राईल की औलाद में से एक 'अक़्लमन्द शख़्स को, और सरीबियाह को और उसके बेटों और भाइयों, या'नी अट्ठारह आदमियों को19और हसबियाह की, और उसके साथ बनी मिरारी में से यसा'याह को, और उसके भाइयों और उनके बेटों को, या'नी बीस आदमियों को;20और नतीनीम में से, जिनको दाऊद और अमीरों ने लावियों की ख़िदमत के लिए मुक़र्रर किया था, दो सौ बीस नतीनीम को ले आए। इन सभों के नाम बता दिए गए थे।21तब मैंने अहावा के दरिया पर रोज़े का ऐलान कराया, ताकि हम अपने ख़ुदा के सामने उस से अपने और अपने बाल बच्चों और अपने माल के लिए सीधी राह तलब करने को फ़रोतन बने।22क्यूँकि मैंने शर्म की वजह से बादशाह से सिपाहियों के जत्थे और सवारों के लिए दरख़्वास्त न की थी, ताकि वह राह में दुश्मन के मुक़ाबिले में हमारी मदद करें; क्यूँकि हम ने बादशाह से कहा था, "कि हमारे ख़ुदा का हाथ भलाई के लिए उन सब के साथ है जो उसके तालिब हैं, और उसका ज़ोर और क़हर उन सबके ख़िलाफ़ है जो उसे छोड़ देते हैं।"23~इसलिए हम ने रोज़ा रखकर इस बात के लिए अपने ख़ुदा से मिन्नत की, और उसने हमारी सुनी।24तब मैंने सरदार काहिनों में से बारह को, या'नी सरीबियाह और हसबियाह और उनके साथ उनके भाइयों में से दस को अलग किया,25और उनको वह चाँदी सोना और बर्तन, या'नी वह हदिया जो हमारे ख़ुदा के घर के लिए बादशाह और उसके वज़ीरों और अमीरों और तमाम इस्राईल ने जो वहाँ हाज़िर थे, नज़्र किया था तोल दिया।26मैं ही ने उनके हाथ में साढ़े छ: सौ क़िन्तार चाँदी, और सौ क़िन्तार चाँदी के बर्तन, और सौ क़िन्तार सोना,27और सोने के बीस प्याले जो हज़ार दिरहम के थे, और चोखे चमकते हुए पीतल के दो बर्तन जो सोने की तरह क़ीमती थे तौल कर दिए।28और मैंने उनसे कहा, "कि तुम ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस हो, और ये बर्तन भी मुक़द्दस हैं, और ये चाँदी और सोना ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा के ख़ुदा के लिए ख़ुशी की क़ुर्बानी है।29~इसलिए होशियार रहना, जब तक यरूशलीम में ख़ुदावन्द के घर की कोठरियों में सरदार काहिनों और लावियों और इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के अमीरों के सामने उनको तौल न दो, उनकी हिफ़ाज़त करना।"30तब काहिनों और लावियों ने सोने और चाँदी और बर्तनों को तौलकर लिया, ताकि उनको यरूशलीम में हमारे ख़ुदा के घर में पहुँचाएँ।31फिर हम पहले महीने की बारहवीं तारीख़ को अहावा के दरिया से रवाना हुए कि यरूशलीम को जाएँ, और हमारे ख़ुदा का हाथ हमारे साथ था, और उसने हम को दुश्मनों और रास्ते में घात लगानेवालों के हाथ से बचाया।32और हम यरूशलीम पहुँचकर तीन दिन तक ठहरे रहे।33~और चौथे दिन वह चाँदी और सोना और बर्तन हमारे ख़ुदा के घर में तौल कर काहिन मरीमोत बिन ऊरियाह के हाथ में दिए गए, और उसके साथ इली'अज़र बिन फ़ीन्हास था, और उनके साथ ये लावी थे, या'नी यूज़बाद बिन यशू'अ और नौ इंदियाह बिन बिनवी।34~सब चीज़ों को गिन कर और तौल कर पूरा वज़न उसी वक़्त लिख लिया गया।35और ग़ुलामों में से उन लोगों ने जो जिलावतनी से लौट आए थे, इस्राईल के ख़ुदा के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश कीं; या'नी सारे इस्राईल के लिए बारह बछड़े और छियानवे मेंढ़े और सतत्तर बर्रे, और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बारह बकरे; ये सब ख़ुदावन्द के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी थी।36और~उन्होंने ~बादशाह के फ़रमानों को बादशाह के नाइबों, और दरिया पार के हाकिमों के हवाले किया; और उन्होंने लोगों की और ख़ुदा के घर की हिमायत की।
1जब ये सब काम हो चुके तो सरदारों ने मेरे पास आकर कहा कि इस्राईल के लोग और काहिन और लावी इन अतराफ़ की क़ौमों ~से अलग नहीं रहे, क्यूँकि कना'नियों और हित्तियों और फ़रिज़्ज़ियों और यबूसियों ~'अम्मोनियों और मोआबियों और मिस्रियों और अमोरियों के से नफ़रती काम करते हैं।2~चुनाँचे उन्होंने अपने और अपने बेटों के लिए उनकी बेटियाँ ली हैं; इसलिए मुक़द्दस नसल इन अतराफ़ की क़ौमों के साथ ख़ल्त-मल्त हो गई, और सरदारों और हाकिमों का हाथ इस बदकारी में सब से बढ़ा हुआ है।3~जब मैंने ये बात सुनी तो अपने लिबास और अपनी चादर को फाड़ दिया, और सिर और दाढ़ी के बाल नोचे और हैरान हो बैठा।4तब वह सब जो इस्राईल के ख़ुदा की बातों से काँपते थे, ग़ुलामों की इस बदकारी के ज़रिए' मेरे पास जमा' हुए; और मैं शाम की क़ुर्बानी तक हैरान बैठा रहा।5~और शाम की क़ुर्बानी के वक़्त मैं अपना फटा लिबास पहने, और अपनी फटी चादर ओढ़े हुए अपनी शर्मिन्दगी की हालत से उठा, और अपने घुटनों पर गिर कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ अपने हाथ फैलाए,6और कहा, "ऐ मेरे ख़ुदा, मैं शर्मिन्दा हूँ, और तेरी तरफ़, ऐ मेरे ख़ुदा, अपना मुँह उठाते मुझे शर्म आती है; क्यूँकि हमारे गुनाह बढ़ते बढ़ते हमारे सिर से बुलन्द हो गए, और हमारी ख़ताकारी आसमान तक पहुँच गई है।7~अपने बाप-दादा के वक़्त से आज तक हम बड़े ख़ताकार रहे; और अपनी बदकारी के ज़रिए' हम और हमारे बादशाह और हमारे काहिन, और मुल्कों के बादशाहों और तलवार और ग़ुलामी और ग़ारत और शर्मिन्दगी के हवाले हुए हैं, जैसा आज के दिन है।8अब थोड़े दिनों से ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तरफ़ से हम पर फ़ज़ल हुआ है, ताकि हमारा कुछ बक़िया बच निकलने को छूटे, और उसके मकान-ए-मुक़द्दस में हम को एक खूँटी मिले,और हमारा ख़ुदा हमारी आँखें रोशन करे और हमारी ग़ुलामी में हम को कुछ ताज़गी बख़्शे।9~क्यूँकि हम तो ग़ुलाम हैं लेकिन हमारे ख़ुदा ने हमारी ग़ुलामी में हम को छोड़ा नहीं, बल्कि हम को ताज़गी बख़्शने और अपने ख़ुदा के घर को बनाने और उसके खण्डरों की मरम्मत करने, और यहूदाह और यरूशलीम में हम को शहर-ए-पनाह देने को फ़ारस के बादशाहों के सामने हम पर रहमत की।10और अब ऐ हमारे ख़ुदा, हम इसके बा'द क्या कहें? क्यूँकि हम ने तेरे उन हुक्मों को छोड़ दिया है,11जो तू ने अपने ख़ादिमों या'नी नबियों के ज़रिए' फ़रमाए कि वह मुल्क जिसे तुम मीरास में लेने को जाते हो और मुल्कों की क़ौमों की नापाकी और नफ़रती कामों की वजह से नापाक मुल्क है, क्यूँकि उन्होंने अपनी नापाकी से उसको इस सिरे से उस सिरे तक भर दिया है।12इसलिए तुम अपनी बेटियाँ उनके बेटों को न देना और उनकी बेटियाँ अपने बेटों के लिए न लेना, और न कभी उनकी सलामती या भलाई चाहना, ताकि तुम मज़बूत बनो और उस मुल्क की अच्छी-अच्छी चीज़ें खाओ, और अपनी औलाद के वास्ते हमेशा की मीरास के लिए उसे छोड़ जाओ।13और हमारे बुरे कामों और बड़े गुनाह की वजह से जो कुछ हम पर गुज़रा, उसके बा'द ऐ हमारे ख़ुदा, हक़ीक़त ये है कि तू ने हमारे गुनाहों के अन्दाज़े से हम को कम सज़ा दी और हम में से ऐसा बक़िया छोड़ा;14~क्या हम फिर तेरे हुक्मों को तोड़ें, और उन क़ौमों से नाता जोड़ें जो इन नफ़रती कामों को करती हैं? क्या तू हम से ऐसा ग़ुस्सा न होगा कि हम को बर्बाद कर दे, यहाँ तक कि न कोई बक़िया रहे और न कोई बचे?15~ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा! तू सादिक़ है, क्यूँकि हम एक बक़िया हैं जो बच निकला है, जैसा आज के दिन है। देख, हम अपनी ख़ताकारी में तेरे सामने हाज़िर हैं, क्यूँकि इसी वजह से कोई तेरे सामने खड़ा रह नहीं सकता।
1जब~'अज़्रा ख़ुदा के घर के आगे रो रो कर~और सिज्दा में गिरकर दु'आ और इक़रार कर रहा था, तो इस्राईल में से मर्दों और 'औरतों और बच्चों की एक बहुत बड़ी जमा'अत उसके पास इकठ्ठा हो गई; और लोग फूट फूटकर रो रहे थे।2तब सिकनियाह बिन यहीएल जो बनी 'ऐलाम में से था, 'अज़्रा से कहने लगा, "हम अपने ख़ुदा के गुनाहगार तो हुए हैं, और इस सरज़मीन की क़ौमों में से अजनबी 'औरतें ब्याह ली हैं, तो भी इस मु'आमिले में अब भी इस्राईल के लिए उम्मीद है।3इसलिए अब हम अपने मख़दूम की और उनकी सलाह के मुताबिक़, जो हमारे ख़ुदा के हुक्म से काँपते हैं, सब बीवियों और उनकी औलाद को दूर करने के लिए अपने ख़ुदा से 'अहद बाँधे, और ये शरी'अत के मुताबिक़ किया जाए।4~अब उठ, क्यूँकि ये तेरा ही काम है, और हम तेरे साथ हैं, हिम्मत बाँध कर काम में लग जा।"5~तब 'अज़्रा ने उठकर सरदार काहिनों और लावियों और सारे इस्राईल से क़सम ली कि वह इस इक़रार के मुताबिक़ 'अमल करेंगे; और उन्होंने क़सम खाई।6तब 'अज़्रा ख़ुदा के घर के सामने से उठा और यहूहानान बिन इलियासिब की कोठरी में गया, और वहाँ जाकर न रोटी खाई न पानी पिया; क्यूँकि वह ग़ुलामी के लोगों की ख़ता की वजह से मातम करता रहा।7फिर उन्होंने यहूदाह और यरुशलीम में ग़ुलामी के सब लोगों के बीच 'ऐलान किया, कि वह यरूशलीम में इकट्ठे हो जाएँ;8और जो कोई सरदारों और बुज़ुर्गों की सलाह के मुताबिक़ तीन दिन के अन्दर न आए, उसका सारा माल ज़ब्त हो और वह ख़ुद ग़ुलामों की जमा'अत से अलग किया जाए।9तब यहूदाह और बिनयमीन के सब आदमी उन तीन दिनों के अन्दर यरुशलीम में इकट्ठे हुए; महीना नवाँ था, और उसकी बीसवीं तारीख़ थी; और सब लोग इस मु'आमिले और बड़ी बारिश की वजह से ख़ुदा के घर के सामने के मैदान में बैठे काँप रहे थे।10~तब~'अज़्रा काहिन खड़ा होकर उनसे कहने लगा कि तुम ने ख़ता की है और इस्राईल का गुनाह बढ़ाने को अजनबी 'औरतें ब्याह ली हैं।11~फिर ख़ुदावन्द अपने बाप-दादा के ख़ुदा के आगे इक़रार करो, और उसकी मर्ज़ी पर 'अमल करो, और इस सरज़मीन के लोगों और अजनबी 'औरतों से अलग हो जाओ।12तब सारी जमा'अत ने जवाब दिया, और बुलन्द आवाज़ से कहा कि जैसा तू ने कहा, वैसा ही हम को करना लाज़िम है।13लेकिन लोग बहुत हैं, और इस वक़्त ज़ोर की बारिश हो रही है और हम बाहर खड़े नहीं रह सकते, और न ये एक दो दिन का काम है; क्यूँकि हम ने इस मु'आमिले में बड़ा ग़ुनाह किया है।14अब सारी जमा'अत के लिए हमारे सरदार मुक़र्रर हों, और हमारे शहरों में जिन्होंने अजनबी 'औरतें ब्याह ली हैं, वह सब मुक़र्ररा वक़्तों पर आएँ और उनके साथ हर शहर के बुज़ुर्ग और क़ाज़ी हों, जब तक कि हमारे ख़ुदा का क़हर-ए-शदीद हम पर से टल न जाए और इस मु'आमिले का फ़ैसला न हो जाए।15~सिर्फ़ यूनतन बिन 'असाहेल और यहाज़ियाह बिन तिकवह इस बात के ख़िलाफ़ खड़े हुए, और मसुल्लाम और सब्बती लावी ने उनकी मदद की।16~लेकिन ग़ुलामी के लोगों ने वैसा ही किया। और 'अज़्रा काहिन और आबाई खान्दानों के सरदारों में से कुछ अपने अपने आबाई खान्दानों की तरफ़ से सब नाम-ब-नाम अलग किए गए, और वह दसवें महीने की पहली तारीख़ को इस बात की तहक़ीक़ात के लिए बैठे;17और पहले महीने के पहले दिन तक, उन सब आदमियों के मु'आमिले का फ़ैसला किया जिन्होंने अजनबी 'औरतें ब्याह ली थीं।18और काहिनों की औलाद में ये लोग मिले जिन्होंने अजनबी 'औरतें ब्याह ली थीं : या'नी, बनी यशू'अ में से, यूसदक़ का बेटा, और उसके भाई मासियाह और इली'अज़र और यारिब और जिदलियाह।19उन्होंने अपनी बीवियों को दूर करने का वा'दा किया, और गुनाहगार होने की वजह से उन्होंने अपने गुनाह के लिए अपने अपने रेवड़ में से एक एक मेंढा क़ुर्बान किया।20~और बनी इम्मेर में से, हनानी और ज़बदियाह;21और बनी हारिम में से, मासियाह और इलियाह, और समा'याह और यहीएल और 'उज़्ज़ियाह;22और बनी फ़शहूर में से, इल्यू'ऐनी और मासियाह और इस्मा'ईल और नतनीएल और यूज़बाद और 'इलिसा।23और लावियों में से, यूज़बाद और सिमई और क़िलायाह (जो क़लीता भी कहलाता है), फ़तहयाह और यहूदाह और इली'अज़र;24~और गानेवालों में से, इलियासिब; और दरबानों में से, सलूम और तलम और ऊरी।25और इस्राईल में से: बनी पर'ऊस में से, रमियाह और यज़ियाह और मलकियाह और मियामीन और इली'अज़र और मलकियाह और बिनायाह26और बनी 'ऐलाम में से, मतनियाह और ज़करियाह और यहीएल और 'अबदी और यरीमोत और इलियाह;27और बनी ज़त्तू में से, इल्यू'ऐनी और इलियासिब और मत्तनियाह और यरीमोत और ज़ाबाद और 'अज़ीज़ा,28और बनी बबई में से, यहूहानान और हननियाह और ज़ब्बी और 'अतलै29और बनी बानी में से, मसुल्लाम और मलूक और 'अदायाह और यासूब और सियाल और यरामोत।30~और बनी पख़त-मोआब में से, 'अदना और किलाल और बिनायाह और मासियाह और मत्तनियाह और बज़लीएल और बिनवी और मनस्सी,31~और बनी हारिम में से, इली'अज़र और यशियाह और मलकियाह और समा'याह और शमा'ऊन,32बिनयमीन और मलूक और समरियाह;33और बनी हाशूम में से, मत्तनै और मतताह और ज़ाबाद और इलीफ़लत और यरीमै और मनस्सी और सिमई,34और बनी बानी में से, मा'दै और 'अमराम और ऊएल,35बिनायाह और बदियाह और कलूह,36अौर वनियाह अौर मरीमोत अौर इलियासिब,37और मत्तनियाह और मतनै और या'सौ,38और बानी और बिनवी और सिम'ई,39और सलमियाह और नातन और 'अदायाह,40~मकनदबै, सासै, सारै41~'अज़रिएल और सलमियाह, समरियाह,42सलूम, अमरियाह, यूसुफ़।43~बनी नबू में से, य'ईएल, मतित्तियाह, ज़ाबाद, ज़बीना, यद्दो और यूएल, बिनायाह।44ये सब अजनबी 'औरतों को ब्याह लाए थे, और कुछ की बीवियाँ ऐसी थीं जिनसे उनके औलाद थी।
1नहमियाह बिन हकलियाह का कलाम। बीसवें बरस किसलेव के महीने में, जब मैं क़स्र-ए-सोसन में था तो ऐसा हुआ,2~कि हनानी जो मेरे भाइयों में से एक है और चन्द आदमी यहूदाह से आए; और मैंने उनसे उन यहूदियों के बारे में जो बच निकले थे और ग़ुलामों में से बाक़ी रहे थे, और यरुशलीम के बारे में पूछा।3~उन्होंने मुझ से कहा कि वह बाक़ी लोग जो ग़ुलामी से छूट कर उस सूबे में रहते हैं, बहुत मुसीबत और ज़िल्लत में पड़े हैं; और यरुशलीम की फ़सील टूटी हुई, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं।4जब मैंने ये बातें सुनीं तो बैठ कर रोने लगा और कई दिनों तक मातम करता रहा, और रोज़ा रख्खा और आसमान के ख़ुदा के सामने दु'आ की,5और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, आसमान के ख़ुदा~ख़ुदा-ए-'अज़ीम-ओ-मुहीब जो उनके साथ जो तुझसे मुहब्बत रखते और तेरे हुक्मों को मानते है 'अहद-ओ-फ़ज़्ल को क़ायम रखता है, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ,6कि तू कान लगा और अपनी आँखें खुली रख ताकि तू अपने बन्दे की उस दु'आ को सुने जो मैं अब रत दिन तेरे सामने तेरे बन्दों बनी इस्राईल के लिए करता हूँ और बनी इस्राईल की ख़ताओं को जो हमने तेरे बर ख़िलाफ़ कीं मान लेता हूँ, और मैं और मेरे आबाई ख़ान्दान दोनों ने गुनाह किया है|"7हमने तेरे ख़िलाफ़ बड़ी बुराई की है और उन हुक्मों और क़ानून और फ़रमानों को जो तूने अपने बन्दे मूसा को दिए नहीं माना8मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने उस क़ौल को याद कर जो तूने अपने बन्दे मूसा को फ़रमाया अगर तुम नाफ़रमानी करो, मैं तुम को क़ौमों में तितर-बितर करूँगा9लेकिन अगर तुम मेरी तरफ़ फिरकर मेरे हुक्मों को मानों और उन पर 'अमल करो तो गो तुम्हारे आवारागर्द आसमान के किनारों पर भी हो मैं उनको वहाँ से इकट्ठा करके उस मक़ाम में पहुँचाऊँगा जिसे मैंने चुन लिया ताकि अपना नाम वहाँ रखूँ10वह तो तेरे बन्दे और तेरे लोग है जिनको तूने अपनी बड़ी क़ुदरत और क़वी हाथ से छुड़ाया है11ऐ ख़ुदावन्द मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि अपने बन्दे की दु'आ पर, और अपने बन्दों की दु'आ पर जो तेरे नाम से डरना पसन्द करते है कान लगा~और आज ~मैं तेरे मिन्नत करता हूँ अपने ~बन्दे को कामयाब कर और इस शख़्स के सामने उसपर फ़ज़्ल कर |"{मै तो बादशाह का साक़ी था |}
1अरतख़शशता बादशाह के बीसवें बरस नैसान के महीने में, जब मय उसके आगे थी तों मैंने मय उठा कर बादशाह को दी| इससे पहले मैं कभी उसके सामने मायूस नहीं हुआ था|2इसलिए बादशाह ने मुझसे कहा, "तेरा चेहरा क्यूँ मायूस है, बावजूद ये कि तू बीमार नहीं है? तब ये दिल के ग़म के अलावा और कुछ न होगा|" तब मैं बहुत डर गया|3मैंने बादशाह से कहा कि "बादशाह हमेशा ज़िन्दा रहे! मेरा चेहरा मायूस क्यूँ न हो, जबकि वह शहर जहाँ मेरे बाप-दादा की क़ब्रे हैं उजाड़ पड़ा है, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं?"4बादशाह ने मुझसे फ़रमाया, "किस बात के लिए तेरी दरख़्वास्त है?" तब मैंने आसमान के ख़ुदा से दु'आ की,5फिर मैंने बादशाह से कहा, "अगर बादशाह की मर्ज़ी हो, और अगर तेरे ख़ादिम पर तेरे करम की नज़र है, तो तू मुझे यहूदाह में मेरे बाप-दादा की क़ब्रों के शहर को भेज दे ताकि मैं उसे ता'मीर करूँ|"6तब बादशाह ने {मलिका भी उस के पास बैठी थी }मुझ से कहा, "तेरा सफ़र कितनी मुद्दत का होगा और तू कब लौटेगा?" ग़रज़ बादशाह की मर्ज़ी हुई कि मुझे भेजे: और मैंने वक़्त मुक़र्रर करके उसे बताया |7और मैंने बादशाह से ये भी कहा, "अगर बादशाह की मर्ज़ी हो, तो दरिया पार हाकिमों के लिए मुझे परवाने 'इनायत हों कि वह मुझे यहूदाह तक पहुँचने ~के लिए गुज़र जाने दें|"8और आसफ़ के लिए जो शाही जंगल का निगहबान है, एक शाही ख़त मिले कि वह हैकल के क़िले' के फाटकों के लिए, और शहरपनाह और उस घर के लिए जिस में रहूँगा, कड़ियाँ बनाने को मुझे लकड़ी दे और चूँकि मेरे ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ मुझ पर था, बादशाह ने 'अर्ज़ क़ुबूल की |9~तब मैंने दरिया पार के हाकिमों के पास पहुँचकर बादशाह के परवाने उनको दिए और बादशाह ने फ़ौजी सरदारों और सवारों को मेरे साथ कर दिया था।10~जब सनबल्लत हूरूनी और 'अम्मोनी ग़ुलाम तूबियाह ने ये सुना, कि एक शख़्स बनी-इस्राईल की बहबूदी का तलबगार आया है, तो वह बहुत रंजीदा हुए।11~और यरुशलीम पहुँच कर तीन दिन रहा।12~फिर मैं रात को उठा, मैं भी और मेरे साथ चन्द आदमी; लेकिन जो कुछ यरुशलीम के लिए करने को मेरे ख़ुदा ने मेरे दिल में डाला था, वह मैंने किसी को न बताया; और जिस जानवर पर मैं सवार था, उसके अलावा और कोई जानवर मेरे साथ न था।13~मैं रात को वादी के फाटक से निकल कर अज़दहा के कुएँ और कूड़े के फाटक को गया; और यरुशलीम की फ़सील को, जो तोड़ दी गई थी और उसके फाटकों को, जो आग से जले हुए थे देखा।14~फिर मैं चश्मे के फाटक और बादशाह के तालाब को गया, लेकिन वहाँ उस जानवर के लिए जिस पर मैं सवार था, गुज़रने की जगह न थी।15फिर मैं रात ही को नाले की तरफ़ से फ़सील को देखकर लौटा, और वादी के फाटक से दाख़िल हुआ और यूँ वापस आ गया।16~और हाकिमों को मा'लूम न हुआ कि मैं कहाँ-कहाँ गया, या मैंने क्या-क्या किया; और मैंने उस वक़्त तक न यहूदियों, न काहिनों, न अमीरों, न हाकिमों, न बाक़ियों को जो कारगुज़ार थे कुछ बताया था।17~तब मैंने उनसे कहा, "तुम देखते हो कि हम कैसी मुसीबत में हैं, कि यरुशलीम उजाड़ पड़ा है, और उसके फाटक आग से जले हुए हैं। आओ, हम यरुशलीम की फ़सील बनाएँ, ताकि आगे को हम ज़िल्लत का निशान न रहें।”18और मैंने उनको बताया कि ख़ुदा की शफ़क़त का हाथ मुझ पर कैसे रहा, और ये कि बादशाह ने मुझ से क्या क्या बातें कहीं थीं। उन्होंने कहा, "हम उठकर बनाने लगें।” इसलिए इस अच्छे काम के लिए उन्होंने अपने हाथों को मज़बूत किया।19लेकिन जब सनबल्लत हूरूनी और अम्मूनी ग़ुलाम तूबियाह और अरबी जशम ने सुना, तो वह हम को ठट्ठों में उड़ाने और हमारी हिक़ारत करके कहने लगे, "तुम ये क्या काम करते हो? क्या तुम बादशाह से बग़ावत करोगे?”20तब मैंने जवाब देकर उनसे कहा, "आसमान का ख़ुदा, वही हम को कामयाब करेगा; इसी वजह से हम जो उसके बन्दे हैं, उठकर ता'मीर करेंगे; लेकिन यरुशलीम में तुम्हारा न तो कोई हिस्सा, न हक़, न यादगार है।"
1~तब इलियासिब सरदार काहिन अपने भाइयों या'नी काहिनों के साथ उठा, और उन्होंने भेड़ फाटक को बनाया; और उसे पाक किया, और उसके किवाड़ों को लगाया। उन्होंने हमियाह के बुर्ज बल्कि हननएल के बुर्ज तक उसे पाक किया।2~उससे आगे यरीहू के लोगों ने बनाया, और उनसे आगे ज़क्कूर बिन इमरी ने बनाया।3मछली फाटक को बनी हसन्नाह ने बनाया उन्होंने उसकी कड़ियाँ रख्खीं और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।4~और उनसे आगे मरीमोत बिन ऊरियाह बिन हक्कूस ने मरम्मत की। और उनसे आगे मुसल्लाम बिन बरकियाह बिन मशीज़बेल ने मरम्मत की। और उनसे आगे सदोक़ बिन बा'ना ने मरम्मत की।5~और उनसे आगे तक़ू'इयों ने मरम्मत की, लेकिन उनके अमीरों ने अपने मालिक के काम के लिए गर्दन न झुकाई।6~और पुराने फाटक की यहूयदा बिन फ़ासख़ और मुसल्लाम बिन बसूदियाह ने मरम्मत की ~उन्होंने उसकी कड़ियाँ रख्खीं और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।7और उनसे आगे मलतियाह जिबा'ऊनी और यदून मरूनोती, और जिबा'ऊन और मिस्फ़ाह ~के लोगों ने जो दरिया पार के हाकिम की 'अमलदारी में से थे मरम्मत की।8और उनसे आगे सुनारों की तरफ़ से उज़्ज़ीएल बिन हररहियाह ने, और उससे आगे 'अत्तारों में से हननियाह ने मरम्मत की, और उन्होंने यरुशलीम को चौड़ी दीवार तक मज़बूत किया।9और उनसे आगे रिफ़ायाह ने, जो हूर का बेटा और यरुशलीम के आधे हल्क़े का सरदार था मरम्मत की।10~और उससे आगे यदायाह बिन हरुमफ़ ने अपने ही घर के सामने तक की मरम्मत की। और उससे आगे हतूश बिन हसबनियाह ने मरम्मत की।11मलकियाह बिन हारिम और हसूब बिन पख़त-मोआब ने दूसरे हिस्से की और तनूरों के बुर्ज की मरम्मत की।12और उससे आगे सलूम बिन हलूहेश ने जो यरुशलीम के आधे हल्क़े का सरदार था, और उसकी बेटियों ने मरम्मत की।13~वादी के फाटक की मरम्मत हनून और ज़नुवाह के बाशिन्दों ने की; उन्होंने उसे बनाया और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए, और कूड़े के फाटक तक एक हज़ार हाथ दीवार तैयार की।14और कूड़े के फाटक की मरम्मत मलकियाह बिन रैकाब ने की जो बैत-हक्करम के हल्क़े का सरदार था; उसने उसे बनाया और उसके किवाड़े और चटकनियाँ और अड़बंगे लगाए।15और चश्मा फाटक की सलूम बिन कलहूज़ा ने जो मिस्फ़ाह के हल्क़े का सरदार था, मरम्मत की; उसने उसे बनाया और उसको पाटा और उसके किवाड़े चिटकनियाँ और उसके अड़बंगे लगाये और बादशाही बाग़ के पास शीलोख़ के हौज़ की दीवार को उस सीढ़ी तक, जो दाऊद के शहर से नीचे आती है बनाया।16~फिर नहमियाह बिन 'अज़बूक ने जो बैतसूर के आधे हल्क़े का सरदार था, दाऊद की क़ब्रों के सामने की जगह और उस हौज़ तक जो बनाया गया था, और सूर्माओं के घर तक मरम्मत की।17~फिर लावियों में से रहूम बिन बानी ने मरम्मत की। उससे आगे हसबियाह ने जो क'ईलाह के आधे हल्क़े का सरदार था, अपने हल्क़े की तरफ़ से मरम्मत की।18फिर उनके भाइयों में से बवी बिन हनदाद ने जो क़'ईलाह के आधे हल्क़े का सरदार था, मरम्मत की।19~और उससे आगे ईज़र बिन यशू'अ मिस्फ़ाह के सरदार ने दूसरे टुकड़े की जो मोड़ के पास सिलाहख़ाने की चढ़ाई के सामने है, मरम्मत की।20~फिर बारूक बिन ज़ब्बी ने सरगर्मी से उस मोड़ से सरदार काहिन इलियासिब के घर के दरवाज़े तक, एक और टुकड़े की मरम्मत की।21~फिर मरीमोत बिन ऊरियाह बिन हक्कूस ने एक और टुकड़े की इलियासिब के घर के दरवाज़े से इलियासिब के घर के आख़िर तक मरम्मत की।22~फिर नशेब के रहनेवाले काहिनों ने मरम्मत की।23फिर बिनयमीन और हसूब ने अपने घर के सामने तक मरम्मत की। फिर 'अज़रियाह बिन मा'सियाह बिन 'अननियाह ने अपने घर के बराबर तक मरम्मत की।24~फिर बिनवी बिन हनदाद ने 'अज़रियाह के घर से दीवार के मोड़ और कोने तक, एक और टुकड़े की मरम्मत की।25~फ़ालाल बिन ऊज़ी ने मोड़ के सामने के हिस्से की, और उस बुर्ज की जो क़ैदख़ाने के सहन के पास के शाही महल से बाहर निकला हुआ है मरम्मत की। फिर फ़िदायाह बिन पर'ऊस ने मरम्मत की।26~(और नतीनीम" पूरब की तरफ़ ओफ़ल में पानी फाटक के सामने और उस बुर्ज तक बसे हुए थे, जो बाहर निकला हुआ है)27~फिर तक़ू'इयों ने उस बड़े बुर्ज के सामने जो बाहर निकला हुआ है, और ओफ़ल की दीवार तक एक और टुकड़े की मरम्मत की।28~घोड़ा फाटक के ऊपर काहिनों ने अपने अपने घर के सामने मरम्मत की।29~उनके पीछे सदोक़ बिन इम्मीर ने अपने घर के सामने मरम्मत की। और फिर पूरबी फाटक के दरबान समा'याह बिन सिकनियाह ने मरम्मत की।30~फिर हननियाह बिन सलमियाह और हनून ने जो सलफ़ का छठा बेटा था, एक और टुकड़े की मरम्मत की। फिर मुसल्लाम बिन बरकियाह ने अपनी कोठरी के सामने मरम्मत की।31~फिर सुनारों में से एक शख़्स मलकियाह ने नतीनीम" और सौदागरों के घर तक हिम्मीफ़क़ाद के फाटक के सामने और कोने की चढ़ाई तक मरम्मत की।32~और उस कोने की चढ़ाई और भेड़ फाटक के बीच सुनारों और सौदागरों ने मरम्मत की।
1लेकिन ऐसा हुआ जब सनबल्लत ने सुना के हम शहरपनाह बना रहे हैं, तो वह जल गया और बहुत ग़ुस्सा हुआ और यहूदियों को ठट्ठों में उड़ाने लगा।2~और वह अपने भाइयों और सामरिया के लश्कर के आगे यूँ कहने लगा, "ये कमज़ोर यहूदी क्या कर रहे हैं? क्या ये अपने गिर्द मोर्चाबन्दी करेंगे? क्या वह क़ुर्बानी चढ़ाएँगे? क्या वह एक ही दिन में सब कुछ कर चुकेंगे? क्या वह जले हुए पत्थरों को कूड़े के ढेरों में से निकाल कर फिर नये कर देंगे?"3और तूबियाह 'अम्मोनी उसके पास खड़ा था, तब वह कहने लगा, "जो कुछ वह बना रहे हैं, अगर उसपर लोमड़ी चढ़ जाए तो वह उनके पत्थर की शहरपनाह को गिरा देगी।"4~सुन ले, ऐ हमारे ख़ुदा क्यूँकि हमारी हिक़ारत होती है और उनकी मलामत उन ही के सिर पर डाल: और ग़ुलामी के मुल्क में उनको ग़ारतगरों के हवाले कर दे।5और उनकी बुराई को न ढाँक, और उनकी ख़ता तेरे सामने से मिटाई न जाए; क्यूँकि उन्होंने मे'मारों के सामने तुझे ग़ुस्सा दिलाया है।6~ग़रज़ हम दीवार बनाते रहे, और सारी दीवार आधी बलन्दी तक जोड़ी गई; क्यूँकि लोग दिल लगा कर काम करते थे।7लेकिन जब सनबल्लत और तूबियाह और अरबों ~और 'अम्मोनियों और अशदूदियों ने सुना कि यरुशलीम की फ़सील मरम्मत होती जाती है, और दराड़े बन्द होने लगीं, तो वह जल गए।8और सभों ने मिल कर बन्दिश बाँधी कि आकर यरुशलीम से लड़ें, और वहाँ परेशानी पैदा कर दें।9~लेकिन हम ने अपने ख़ुदा से दु'आ की, और उनकी वजह से दिन और रात उनके मुक़ाबले में पहरा बिठाए रखा10~और यहूदाह कहने लगा कि बोझ उठाने वालों की ताक़त घट गयी और मलबा बहुत है, इसलिए हम दीवार नहीं बना सकते हैं।11~और हमारे दुश्मन कहने लगे, "जब तक हम उनके बीच पहुँच कर उनको क़त्ल न कर डालें और काम ख़त्म न कर दें, तब तक उनको न मा'लूम होगा न वह देखेंगे।"12~और जब वह यहूदी जो उनके आस-पास रहते थे आए, तो उन्होंने सब जगहों से दस बार आकर हम से कहा कि तुम को हमारे पास लौट आना ज़रूर है।13इसलिए मैंने शहरपनाह के पीछे की जगह के सबसे नीचे हिस्सों में जहाँ जहाँ खुला था, लोगों को अपनी अपनी तलवार और बर्छी और कमान लिए हुए उनके घरानों के मुताबिक़ बिठा दिया।14~तब मैं देख कर उठा, और अमीरों और हाकिमों और बाक़ी लोगों से कहा कि तुम उनसे मत डरो; ख़ुदावन्द को जो बुज़ुर्ग और बड़ा है याद करो, और अपने भाइयों और बेटे बेटियों और अपनी बीवियों और घरों के लिए लड़ो।15~और जब हमारे दुश्मनों ने सुना कि ये बात हम को मा'लूम हो गई और ख़ुदा ने उनका मन्सूबा बेकार कर दिया, तो हम सबके सब शहरपनाह को अपने अपने काम पर लौटे।16और ऐसा हुआ कि उस दिन से मेरे आधे नौकर काम में लग जाते, और आधे बर्छियाँ और और ढालें और कमाने लिए और बख़्तर पहने ~रहते थे; और वह जो हाकिम थे यहूदाह के सारे ख़ान्दान के पीछे मौजूद रहते थे।17इसलिए जो लोग दीवार बनाते थे और जो बोझ उठाते और ढोते थे, हर एक अपने एक हाथ से काम करता था और दूसरे में अपना हथियार लिए रहता था।18और मे'मारों में से हर एक आदमी अपनी तलवार अपनी कमर से बाँधे हुए काम करता था, और वह जो नरसिंगा फूँकता था मेरे पास रहता था।19~और मैंने अमीरों और हाकिमों और बाक़ी लोगों से कहा कि काम तो बड़ा और फैला हुआ है, और हम दीवार पर अलग अलग एक दूसरे से दूर रहते हैं।20इसलिए जिधर से नरसिंगा तुम को सुनाई दे, उधर ही तुम हमारे पास चले आना। हमारा ख़ुदा हमारे लिए लड़ेगा।21~यूँ हम काम करते रहे, और उनमें से आधे लोग पौ फटने के वक़्त से तारों के दिखाई देने तक बर्छियाँ लिए रहते थे।22~और मैंने उसी मौक़े' पर लोगों से ये भी कह दिया था कि हर शख़्स अपने नौकर को लेकर यरुशलीम में रात काटा करे, ताकि रात को वह हमारे लिए पहरा दिया करें और दिन को काम करें।23~इसलिए न तो मैं न मेरे भाई न मेरे नौकर और न पहरे के लोग जो मेरे पैरौ थे, कभी अपने कपड़े उतारते थे; बल्कि हर शख़्स अपना हथियार लिए हुए पानी के पास जाता था।
1फिर लोगों और उनकी बीवियों की तरफ़ से उनके यहूदी भाइयों पर बड़ी शिकायत हुई।2~क्यूँकि कई ऐसे थे जो कहते थे कि हम और हमारे बेटे-बेटियाँ बहुत हैं; इसलिए हम अनाज ले लें, ताकि खाकर ज़िन्दा रहें।3और कुछ ऐसे भी थे जो कहते थे कि हम अपने खेतों और अंगूरिस्तानों और मकानों को गिरवी रखते हैं, ताकि हम काल में अनाज ले लें।4और कितने कहते थे कि हम ने अपने खेतों और अंगूरिस्तानों पर बादशाह के ख़िराज के लिए रुपया क़र्ज़ लिया है।5~लेकिन हमारे जिस्म तो हमारे भाइयों के जिस्म की तरह हैं, और हमारे बाल बच्चे ऐसे जैसे उनके बाल बच्चे और देखो, हम अपने बेटे-बेटियों को नौकर होने के लिए ग़ुलामी के सुपुर्द करते हैं, और हमारी बेटियों में से कुछ लौंडियाँ बन चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं चलता, क्यूँकि हमारे खेत और अंगूरिस्तान औरों के क़ब्ज़े में हैं।6~जब मैंने उनकी फ़रियाद और ये बातें सुनीं, तो मैं बहुत ग़ुस्सा हुआ।7और मैंने अपने दिल में सोचा, और अमीरों और हाकिमों को मलामत करके उनसे कहा, "तुम में से हर एक अपने भाई से सूद लेता है।" और मैंने एक बड़ी जमा'अत को उनके ख़िलाफ़ जमा' किया;8और मैंने उनसे कहा कि हम ने अपने मक़दूर के मुवाफ़िक़ अपने यहूदी भाइयों को जो और क़ौमों के हाथ बेच दिए गए थे, दाम देकर छुड़ाया; इसलिए क्या तुम अपने ही भाइयों को बेचोगे? और क्या वह हमारे ही हाथ में बेचे जाएँगें? तब वह चुप रहे और उनको कुछ जवाब न सूझा।9~और मैंने ये भी कहा कि ये काम जो तुम करते हो ठीक नहीं; क्या और क़ौमों की मलामत की वजह से जो हमारी दुश्मन हैं, तुम को ख़ुदा के ख़ौफ़ में चलना लाज़िम नहीं?10~मैं भी और मेरे भाई और मेरे नौकर भी उनको ~रुपया और ग़ल्ला सूद पर देते हैं, लेकिन मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि हम सब सूद लेना छोड़ दें।11~मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ कि आज ही के दिन उनके खेतों और अंगूरिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों और घरों को, और उस रुपये और अनाज और मय और तेल के सौवें हिस्से को, जो तुम उनसे जबरन लेते हो उनको वापस कर दो।12~तब उन्होंने कहा कि हम इनको वापस कर देंगे और उनसे कुछ न माँगेंगे, जैसा तू कहता है हम वैसा ही करेंगें। फिर मैंने काहिनों को बुलाया और उनसे क़सम ली कि वह इसी वा'दे के मुताबिक़ करेंगे।13~फिर मैंने अपना दामन झाड़ा और कहा कि इसी तरह से ख़ुदा हर शख़्स को जो अपने इस वा'दे पर 'अमल न करे, उसके घर से और उसके कारोबार से झाड़ डाले; वह इसी तरह झाड़ दिया और निकाल फेंका जाए। तब सारी जमा'अत ने कहा, "आमीन!" और ख़ुदावन्द की हम्द की। और लोगों ने इस वा'दे के मुताबिक़ काम किया।14'अलावा इसके जिस वक़्त से मैं यहूदाह के मुल्क में हाकिम मुक़र्रर हुआ, या'नी अरतख़शशता बादशाह के बीसवें बरस से बत्तीसवें बरस तक, ग़रज़ बारह बरस मैंने और मेरे भाइयों ने हाकिम होने की रोटी न खाई।15~लेकिन अगले हाकिम जो मुझ से पहले थे र'इयत पर एक बार थे, और 'अलावा चालीस मिस्क़ाल चाँदी के रोटी और मय उनसे लेते थे, बल्कि उनके नौकर भी लोगों पर हुकूमत जताते थे; लेकिन मैंने ख़ुदा के ख़ौफ़ की वजह से ऐसा न किया।16~बल्कि मैं इस शहरपनाह के काम में बराबर मशग़ूल रहा, और हम ने कुछ ज़मीन भी नहीं ख़रीदी, और मेरे सब नौकर वहाँ काम के लिए इकट्ठे रहते थे।17~इसके अलावा उन लोगों के 'अलावा जो हमारे आस पास की क़ौमों में से हमारे पास आते थे, यहूदियों और सरदारों में से डेढ़ सौ आदमी मेरे दस्तरख़्वान पर होते थे।18~और एक बैल और छ: मोटी मोटी भेड़ें एक दिन के लिए तैयार होती थी, मुर्ग़ियाँ भी मेरे लिए तैयार की जाती थीं, और दस दस दिन के बा'द हर क़िस्म की मय का ज़ख़ीरा तैयार होता था, बावजूद इस सबके मैंने हाकिम होने की रोटी तलब न की क्यूँकि इन लोगों पर ग़ुलामी गिराँ थी।19~ऐ मेरे ख़ुदा, जो कुछ मैंने इन लोगों के लिए किया है, उसे तू मेरे हक़ में भलाई के लिए याद रख।
1जब सनबल्लत और तूबियाह और जशम 'अरबी और हमारे बाक़ी दुश्मनों ने सुना कि मैं शहरपनाह को बना चुका, और उसमें कोई रख़ना बाक़ी नहीं रहा (अगरचे उस वक़्त तक मैंने फाटकों में किवाड़े नहीं लगाए थे)।2~तो सनबल्लत और जशम ने मुझे ये कहला भेजा कि आ, हम ओनू के मैदान के किसी गाँव में आपस में मुलाक़ात करें। लेकिन वह मुझ से बुराई करने की फ़िक्र में थे।3इसलिए मैंने उनके पास कासिदों से कहला भेजा कि मैं बड़े काम में लगा हूँ और आ नहीं सकता; मेरे इसे छोड़कर तुम्हारे पास आने से ये काम क्यूँ बन्द रहे?4~उन्होंने चार बार मेरे पास ऐसा ही पैग़ाम भेजा और मैंने उनको इसी तरह का जवाब दिया।5~फिर सनबल्लत ने पाँचवीं बार उसी तरह से अपने नौकर को मेरे पास हाथ में खुली चिट्ठी लिए हुए भेजा:6~जिसमें लिखा था कि और क़ौमों में ये अफ़वाह है और जशम यही कहता है, कि तेरा और यहूदियों का इरादा बग़ावत करने का है, इसी वजह से तू शहरपनाह बनाता है; और तू इन बातों के मुताबिक़ उनका बादशाह बनना चाहता है।7और तूने नबियों को भी मुक़र्रर किया कि यरुशलीम में तेरे हक़ में 'ऐलान करें और कहें, 'यहूदाह में एक बादशाह है।' तब इन बातों के मुताबिक़ बादशाह को इत्तला' की जाएगी। इसलिए अब आ हम आपस में मशवरा करें।8~तब मैंने उसके पास कहला भेजा, "जो तू कहता है, इस तरह की कोई बात नहीं हुई, बल्कि तू ये बातें अपने ही दिल से बनाता है।"9~वह सब तो हम को डराना चाहते थे, और कहते थे कि इस काम में उनके हाथ ऐसे ढीले पड़ जाएँगे कि वह होने ही का नहीं। लेकिन अब ऐ ख़ुदा, तू मेरे हाथों को ताक़त बख़्श।10फिर मैं समा'याह बिन दिलायाह बिन मुहेतबेल के घर गया, वह घर में बन्द था; उसने कहा, "हम ख़ुदा के घर में, हैकल के अन्दर मिलें, और हैकल के दरवाज़ों को बन्द कर लें। क्यूँकि वह तुझे क़त्ल करने को आएँगे, वह ज़रूर रात को तुझे क़त्ल करने को आएँगे।"11~मैंने कहा, "क्या मुझसा आदमी भागे? और कौन है जो मुझ सा हो और अपनी जान बचाने को हैकल में घुसे'? मैं अन्दर नहीं जाने का।”12और मैंने मा'लूम कर लिया कि ख़ुदा ने उसे नहीं भेजा था, लेकिन उसने मेरे ख़िलाफ़ पेशीनगोई की बल्कि सनबल्लत और तूबियाह ने उसे मज़दूरी पर रख्खा था।13और उसको इसलिए मज़दूरी दी गई ताकि मैं डर जाऊँ और ऐसा काम करके ख़ताकार ठहरूँ, और उनको बुरी ख़बर फैलाने का मज़मून मिल जाए, ताकि मुझे मलामत करें।14~ऐ मेरे ख़ुदा! तूबियाह और सनबल्लत को उनके इन कामों के लिहाज़ से, और नौ'ईदियाह नबिया को भी और बाक़ी नबियों को जो मुझे डराना चाहते थे याद रख।15~ग़रज़ बावन दिन में, अलूल महीने की पच्चीसवीं तारीख़ को शहरपनाह बन चुकी।16~जब हमारे सब दुश्मनों ने ये सुना, तो हमारे आस-पास की सब क़ौमें डरने लगीं और अपनी ही नज़र में ख़ुद ज़लील हो गईं; क्यूँकि उन्होंने जान लिया कि ये काम हमारे ख़ुदा की तरफ़ से हुआ।17इसके अलावा उन दिनों में यहूदाह के अमीर बहुत से ख़त तूबियाह को भेजते थे, और तूबियाह के ख़त उनके पास आते थे।18~क्यूँकि यहूदाह में बहुत लोगों ने उससे क़ौल-ओ-क़रार किया था, इसलिए कि वह सिकनियाह बिन अरख़ का दामाद था; और उसके बेटे यहूहानान ने मुसल्लाम बिन बरकियाह की बेटी को ब्याह लिया था।19और वह मेरे आगे उसकी नेकियों का बयान भी करते थे और मेरी बातें उसे सुनाते थे, और तूबियाह मुझे डराने को चिट्ठियाँ भेजा करता था।
1जब शहरपनाह बन चुकी और मैंने दरवाज़े लगा लिए, और दरबान और गानेवाले और लावी मुक़र्रर हो गए,2तो मैंने यरुशलीम को अपने भाई हनानी और क़िले' के हाकिम हनानियाह के सुपुर्द किया, क्यूँकि वह अमानतदार और बहुतों से ज़्यादा ख़ुदा तरस था।3और मैंने उनसे कहा कि जब तक धूप तेज़ न हो यरुशलीम के फाटक न खुलें, और जब वह पहरे पर खड़े हों तो किवाड़े बन्द किए जाएँ, और तुम उनमें अड़बंगे लगाओ और यरुशलीम के बाशिन्दों में से पहरेवाले मुक़र्रर करो कि हर एक अपने घर के सामने अपने पहरे पर रहे।4और शहर तो वसी' और बड़ा था, लेकिन उसमें लोग कम थे और घर बने न थे।5और मेरे ख़ुदा ने मेरे दिल में डाला कि अमीरों और सरदारों और लोगों को इकठ्ठा करूँ ताकि नसबनामे के मुताबिक़ उनका शुमार किया जाए और मुझे उन लोगों का नसबनामा मिला जो पहले आए थे, और उसमें ये लिखा हुआ पाया :6मुल्क के जिन लोगों को शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र बाबुल को ले गया था, उन ग़ुलामों की ग़ुलामी में से वह जो निकल आए, और यरुशलीम और यहूदाह में अपने अपने शहर को गए ये हैं,7~जो ज़रुब्बाबुल, यशू'अ, नहमियाह, 'अज़रियाह, रा'मियाह, नहमानी, मर्दकी बिलशान मिसफ़रत, बिगवई, नहूम और बा'ना के साथ आए थे।बनी-इस्राईल के लोगों का शुमार ये था :8बनी पर'ऊस, दो हज़ार एक सौ बहतर;9बनी सफ़तियाह, तीन सौ बहतर;10~बनी अरख़, छ: सौ बावन;11~बनी पख़त-मोआब जो यशू'अ और योआब की नसल में से थे, दो हज़ार आठ सौ अठारह;12~बनी 'ऐलाम, एक हज़ार दो सौ चव्वन,13बनी ज़त्तू, आठ सौ पैन्तालीस;14~बनी ज़क्की, सात सौ साठ;15~बनी बिनबी, छ: सौ अड़तालीस;16~बनी बबई, छ: सौ अठाईस;17~बनी 'अज़जाद, दो हज़ार तीन सौ बाईस;18~बनी अदूनिक़ाम, छ: सौ सड़सठ;19~बनी बिगवई, दो हज़ार सड़सठ;20~बनी 'अदीन, छ: सौ पचपन,21हिज़कियाह के ख़ान्दान में से बनी अतीर, अट्ठानवे;22~बनी हशूम, तीन सौ अठाईस;23~बनी बज़ै, तीन सौ चौबीस;24~बनी ख़ारिफ़, एक सौ बारह,25~बनी जिबा'ऊन, पचानवे;26~बैतलहम और नतूफ़ाह के लोग, एक सौ अठासी,27~'अन्तोत के लोग, एक सौ अटठाईस;28~बैत 'अज़मावत के लोग, बयालीस,29करयतया'रीम, कफ़ीरा और बैरोत के लोग, सात सौ तैन्तालीस;30~रामा और जिबा' के लोग, छ: सौ इक्कीस;31~मिक्मास के लोग, एक सौ बाईस;32~बैतएल और 'ए के लोग, एक सौ तेईस;33दूसरे नबू के लोग, बावन;34~दूसरे 'ऐलाम की औलाद, एक हज़ार दो सौ चव्वन;35~बनी हारिम, तीन सौ बीस;36~यरीहू के लोग, तीन सौ पैन्तालीस;37~लूद और हादीद और ओनू के लोग, सात सौ इक्कीस;38बनी सनाआह, तीन हज़ार नौ सौ तीस।39~फिर काहिन या'नी यशू'अ के घराने में से बनी यदा'याह, नौ सौ तिहत्तर;40~बनी इम्मेर, एक हज़ार बावन;41~बनी फ़शहूर, एक हज़ार दो सौ सैन्तालीस;42~बनी हारिम, एक हज़ार सत्रह।43~फिर लावी या'नी बनी होदावा में से यशू'अ और क़दमीएल की औलाद, चौहत्तर;44~और गानेवाले या'नी बनी आसफ़, एक सौ अड़तालीस;45~और दरबान जो सलूम और अतीर और तलमून और 'अक़्क़ूब और ख़तीता और सोबै की औलाद थे, एक सौ अड़तीस।46और नतीनीम, या'नी बनी ज़ीहा, बनी हसूफ़ा, बनी तब'ओत,47~बनी क़रूस, बनी सीगा, बनी फ़दून,48~बनी लिबाना, बनी हजाबा, बनी शलमी,49~बनी हनान, बनी जिद्देल, बनी जहार,50~बनी रियायाह, बनी रसीन, बनी नकूदा,51~बनी जज़्ज़ाम, बनी उज़्ज़ा, बनी फ़ासख़,52बनी बसै, बनी म'ऊनीम, बनी नफ़ूशसीम53बनी बक़बूक़, बनी हक़ूफ़ा, बनी हरहूर,54~बनी बज़लीत, बनी महीदा, बनी हरशा55~बनी बरक़ूस, बनी सीसरा, बनी तामह,56~बनी नज़ियाह, बनी ख़तीफ़ा।57सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद : बनी सूती, बनी सूफ़िरत, बनी फ़रीदा,58बनी या'ला, बनी दरक़ून, बनी जिद्देल,59बनी सफ़तियाह, बनी ख़तील, बनी फूक़रत ज़बाइम और बनी अमून।60सबनतीनीम और सुलेमान के ख़ादिमों की औलाद, तीन सौ बानवे।61और जो लोग तल-मलह और तलहरसा और करोब और उद्दून और इम्मेर से गए थे, लेकिन अपने आबाई ख़ान्दानों और नसल का पता न दे सके कि इस्राईल में से थे या नहीं, सो ये हैं:62~बनी दिलायाह, बनी तूबियाह, बनी नक़ूदा, छ: सौ बयालिस।63और काहिनों में से बनी हबायाह, बनी हक़्क़ूस और बरज़िल्ली की औलाद जिसने ~जिल'आदी बरज़िल्ली की बेटियों में से एक लड़की को ब्याह लिया और उनके नाम से कहलाया।64~उन्होंने अपनी सनद उनके बीच जो नसबनामों के मुताबिक़ गिने गए थे ढूँडी, लेकिन वह न मिली। इसलिए वह नापाक माने गए और कहानत से ख़ारिज हुए;65और हाकिम ने उनसे कहा कि वह पाकतरीन चीज़ों में से न खाएँ, जब तक कोई काहिन ऊरीम-ओ-तुम्मीम लिए हुए खड़ा न हो।66~सारी जमा'अत के लोग मिलकर बयालीस हज़ार तीन सौ साठ थे;67'अलावा उनके ग़ुलामों और लौंडियों का शुमार सात हज़ार तीन सौ सैन्तीस था, और उनके साथ दो सौ पैन्तालिस गानेवाले और गानेवालियाँ थीं।68उनके घोड़े, सात सौ छत्तीस; उनके खच्चर, दो सौ पैन्तालीस;69~उनके ऊँट, चार सौ पैन्तीस; उनके गधे, छः हज़ार सात सौ बीस थे।70और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से कुछ ने उस काम के लिए दिया। हाकिम ने एक हज़ार सोने के दिरहम, और पचास प्याले, और काहिनों के पाँच सौ तीस लिबास ख़ज़ाने में दाख़िल किए।71और आबाई ख़ान्दानों के सरदारों में से कुछ ने उस कम के ख़ज़ाने में बीस हज़ार सोने के दिरहम, और दो हज़ार दो सौ मना चाँदी दी।72और बाक़ी लोगों ने जो दिया वह बीस हज़ार सोने के दिरहम, और दो हज़ार मना चाँदी, और काहिनों के सड़सठ पैराहन थे।73~इसलिए काहिन ओर लावी और दरबान और गाने वाले और कुछ लोग, और नतीनीम, और तमाम इस्राईल अपने-अपने शहर में बस गए।
1और जब सातवाँ महीना आया, तो बनी-इस्राईल अपने-अपने शहर में थे। और सब लोग यकतन होकर पानी फाटक के सामने के मैदान में इकट्ठा हुए, और उन्होंने 'अज़्रा फ़क़ीह से 'अर्ज़ की कि मूसा की शरी'अत की किताब को, जिसका ख़ुदावन्द ने इस्राईल को हुक्म दिया था लाए।2~और सातवें महीने की पहली तारीख़ को 'अज़्रा काहिन तौरेत को जमा'अत के, या'नी मर्दों और 'औरतों और उन सबके सामने ले आया जो सुनकर समझ सकते थे।3~और वह उसमें से पानी फाटक के सामने के मैदान में, सुबह से दोपहर तक मर्दों और 'औरतों और सभों के आगे जो समझ सकते थे पढ़ता रहा; और सब लोग शरी'अत की किताब पर कान लगाए रहे।4और 'अज़्रा~फ़कीह एक चोबी मिम्बर पर, जो उन्होंने इसी काम के लिए बनाया था खड़ा हुआ; और उसके पास मत्तितियाह, और समा', और 'अनायाह, और ~ऊरियाह, और ख़िलक़ियाह, और मासियाह उसके दहने खड़े थे; और उसके बाएँ फ़िदायाह, और मिसाएल, और मलकियाह, और हाशूम, और हसबदाना, और ज़करियाह और मुसल्लाम थे।5~और 'अज़्रा~ने सब लोगों के सामने किताब खोली (क्यूँकि वह सब लोगों से ऊपर था), और जब उसने उसे खोला तो सब लोग उठ खड़े हुए;6और 'अज़्रा~ने ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-'अज़ीम को मुबारक कहा; और सब लोगों ने अपने हाथ उठाकर जवाब दिया, "आमीन-आमीन" और उन्होंने औंधे मुँह ज़मीन तक ~झुककर ख़ुदावन्द को सिज्दा किया।7~यशू'अ, और बानी, और सरीबियाह, और यामिन और 'अक़्क़ूब, और सब्बती, और हूदियाह, और मासियाह, और क़लीता, और 'अज़रियाह, और यूज़बद, और हनान, और फ़िलायाह और लावी लोगों को शरी'अत समझाते गए; और लोग अपनी-अपनी जगह पर खड़े रहे।8~और उन्होंने उस किताब या'नी ख़ुदा की शरी'अत में से साफ़ आवाज़ से पढ़ा, फिर उसके मानी बताए और उनको 'इबारत समझा दी।9~और नहमियाह ने जो हाकिम था, और 'अज़्रा~काहिन और फ़क़ीह ने, और उन लावियों ने जो लोगों को सिखा रहे थे सब लोगों से कहा, "आज का दिन ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के लिए पाक है, न ग़म करो न रो।" क्यूँकि सब लोग शरी'अत की बातें सुनकर रोने लगे थे।10~फिर उसने उनसे कहा, "अब जाओ, और जो मोटा है खाओ, और जो मीठा है पियो और जिनके लिए कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास भी भेजो; क्यूँकि आज का दिन हमारे ख़ुदावन्द के लिए पाक है; और तुम मायूस मत हो, क्यूँकि ख़ुदावन्द की ख़ुशी तुम्हारी पनाहगाह है।”11और लावियों ने सब लोगों को चुप कराया और कहा, "ख़ामोश हो जाओ, क्यूँकि आज का दिन पाक है; और ग़म न करो।”12~तब सब लोग खाने पीने और हिस्सा भेजने और बड़ी ख़ुशी करने को चले गए; क्यूँकि वह उन बातों को जो उनके आगे पढ़ी गई, समझे थे।13और ~दूसरे दिन सब लोगों के आबाई ख़ान्दानों के सरदार और काहिन और लावी, 'अज़्रा~फ़क़ीह के पास इकट्ठे हुए कि तौरेत की बातों पर ध्यान लगाएँ।14~और उनको शरी'अत में ये लिखा मिला, कि ख़ुदावन्द ने मूसा के ज़रिए' फ़रमाया है कि बनी-इस्राईल सातवें महीने की 'ईद में झोपड़ियों में रहा करें,15और अपने सब शहरों में और यरुशलीम में ये 'ऐलान और मनादी कराएँ कि पहाड़ पर जाकर ज़ैतून की डालियाँ और जंगली ज़ैतून की डालियाँ और मेहंदी की डालियाँ और खजूर की शाख़ें, और घने दरख़्तों की डालियाँ झोपड़ियों के बनाने को लाओ, जैसा लिखा है।16~तब लोग जा-जा कर उनको लाए, और हर एक ने अपने घर की छत पर, और अपने अहाते में, और ख़ुदा के घर के सहनों में, और पानी फाटक के मैदान में, और इफ़्राइमी फाटक के मैदान में अपने लिए झोपड़ियाँ बनाई।17और उन लोगों की सारी जमा'अत ने जो ग़ुलामी से फिर आए थे, झोपड़ियाँ बनाई और उन्हीं झोपड़ियों में रहे; क्यूँकि यशू'अ बिन नून के दिनों से उस दिन तक बनी-इस्राईल ने ऐसा नहीं किया था। चुनाँचे बहुत बड़ी ख़ुशी हुई।18और पहले दिन से आख़िरी दिन तक रोज़-ब-रोज़ उसने ख़ुदा की शरी'अत की किताब पढ़ी। और उन्होंने सात दिन 'ईद मनाई, और आठवें दिन दस्तूर के मुवाफ़िक़ पाक मजमा' इकठ्ठा हुआ।
1~फिर इसी महीने की चौबीसवीं तारीख़ को बनी-इस्राईल रोज़ा रखकर और टाट ओढ़कर और मिट्टी अपने सिर पर डालकर इकट्ठे हुए।2और इस्राईल की नसल के लोग सब परदेसियों से अलग हो गए, और ~खड़े होकर अपने गुनाहों और अपने बाप-दादा की ख़ताओं का इक़रार किया।3~और उन्होंने अपनी अपनी जगह पर खड़े होकर एक पहर तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की ~किताब पढ़ी; और दूसरे पहर में, इक़रार करके ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा करते रहे।4~तब क़दमीएल, यशू'आ, और बानी, और सबनियाह, बुन्नी और सरबियाह, और ~ बानी, और कना'नी ने लावियों की सीढ़ियों पर खड़े होकर बलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से फ़रियाद की।5~फिर यशू'अ, और क़दमिएल और बानी और हसबनियाह और सरबियाह और हूदियाह, और सबनियाह, और फ़तहियाह लावियों ने कहा, "खड़े हो जाओ, और कहो, ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक है; तेरा जलाली नाम मुबारक हो, जो सब हम्द-ओ-ता'रीफ़ से बाला है।6तू ही अकेला ख़ुदावन्द है; तूने आसमान और आसमानों के आसमान को और उनके सारे लश्कर को, और ज़मीन को और जो कुछ उसपर है, और समन्दरों को और जो कुछ उनमें है बनाया और तू उन सभों का परवरदिगार है; और आसमान का लश्कर तुझे सिज्दा करता है।7~तू वह ख़ुदावन्द ख़ुदा है जिसने अब्राम को चुन लिया, और उसे कसदियों के ऊर से निकाल लाया, और उसका नाम इब्राहीम रख्खा;8~तूने उसका दिल अपने सामने वफ़ादार पाया, और कना'नियों हित्तियों और अमोरियों फ़रिज़्ज़ियों और यबूसियों और जिरजासियों का मुल्क देने का 'अहद उससे बाँधा ताकि उसे उसकी नसल को दे; और तूने अपने सुख़न पूरे किए क्यूँकि तू सादिक़ है।9~"और तूने मिस्र में हमारे बाप-दादा की मुसीबत पर नज़र की, और बहर-ए-क़ुलज़ुम के किनारे उनकी फ़रियाद सुनी।10और फ़िर'औन और उसके सब नौकरों, और उसके मुल्क की सब र'इयत पर निशान और 'अजाइब कर दिखाए; क्यूँकि तू जानता था कि वह ग़ुरूर के साथ उनसे पेश आए। इसलिए तेरा बड़ा नाम हुआ, जैसा आज है।11~और तूने उनके आगे समन्दर को दो हिस्से किया, ऐसा कि वह समन्दर के बीच सूखी ज़मीन पर होकर चले; और तूने उनका पीछा करनेवालों को गहराओ में डाला, जैसा पत्थर समन्दर में फेंका जाता है।12और तूने दिन को बादल के सुतून में होकर उनकी रहनुमाई की और रात को आग के सुतून में, ताकि जिस रास्ते उनको चलना था उसमें उनको रोशनी मिले।13~और तू कोह-ए-सीना पर उतर आया, और तूने आसमान पर से उनके साथ बातें कीं, और रास्त अहकाम और सच्चे क़ानून और अच्छे आईन-ओ-फ़रमान उनको दिए,14और उनको अपने पाक सबत से वाक़िफ़ किया, और अपने बन्दे मूसा के ज़रिए' उनको अहकाम और आईन और शरी'अत दी।15~और तूने उनकी भूक मिटाने को आसमान पर से रोटी दी, और उनकी प्यास बुझाने को चट्टान में से उनके लिए पानी निकाला, और उनको फ़रमाया कि वह जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करें जिसको उनको देने की तूने क़सम खाई थी।16"लेकिन उन्होंने और हमारे बाप-दादा ने ग़ुरूर किया, और बाग़ी बने और तेरे हुक्मों को न माना;17और फ़रमाँबरदारी से इन्कार किया, और तेरे 'अजाइब को जो तूने उनके बीच किए याद न रख्खा; बल्कि बाग़ी बने और अपनी बग़ावत में अपने लिए एक सरदार मुक़र्रर किया, ताकि अपनी ग़ुलामी की तरफ़ लौट जाएँ। लेकिन तू वह ख़ुदा है जो रहीम-ओ-करीम मु'आफ़ करने को तैयार, और क़हर करने में धीमा, और शफ़क़त में ग़नी है, इसलिए तूने उनको छोड़ न दिया|18~लेकिन जब उन्होंने अपने लिए ढाला हुआ बछड़ा बनाकर कहा, 'ये तेरा ख़ुदा है, जो तुझे मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, " और यूँ ग़ुस्सा दिलाने के बड़े बड़े काम किए;19~तो भी तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों से उनको वीराने में छोड़ न दिया; दिन को बादल का सुतून उनके ऊपर से दूर न हुआ, ताकि रास्ते में उनकी रहनुमाई करे, और न रात को आग का सुतून दूर हुआ, ताकि वह उनको रोशनी और वह रास्ता दिखाए जिससे उनको चलना था।20और तूने अपनी नेक रूह भी उनकी तरबियत के लिए बख़्शी, और मन को उनके मुँह से न रोका, और उनको प्यास को बुझाने को पानी दिया।21~चालीस बरस तक तू वीराने में उनकी परवरिश करता रहा; वह किसी चीज़ के मुहताज न हुए, न तो उनके कपड़े पुराने हुए और न उनके पाँव सूजे।22इसके सिवा तूने उनको ममलुकतें और उम्मतें बख़्शीं, जिनको तूने उनके हिस्सों के मुताबिक़ उनको बाँट दिया; चुनाँचे वह सीहून के मुल्क, और शाह-ए-हस्बोन के मुल्क, और बसन के बादशाह 'ओज के मुल्क पर क़ाबिज़ हुए।23~तूने उनकी औलाद को बढ़ाकर आसमान के सितारों की तरह कर दिया, और उनको उस मुल्क में लाया जिसके बारे में तूने उनके बाप-दादा से कहा था कि वह जाकर उसपर क़ब्ज़ा करें।24तब उनकी औलाद ने आकर इस मुल्क पर क़ब्ज़ा किया, और तूने उनके आगे इस मुल्क के बाशिन्दों या'नी कना'नियों को मग़लूब किया, और उनको उनके बादशाहों और इस मुल्क के लोगों के साथ उनके हाथ में कर दिया कि जैसा चाहें वैसा उनसे करें।25~तब उन्होंने फ़सीलदार शहरों और ज़रख़ेज़ मुल्क को ले लिया, और वह सब तरह के अच्छे माल से भरे हुए घरों और खोदे हुए कुँवों, और बहुत से अंगूरिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों और फलदार दरख़्तों के मालिक हुए; फिर वह खा कर सेर हुए और मोटे ताज़े हो गए, और तेरे बड़े एहसान से बहुत हज़ उठाया।26~"तो भी वह ना-फ़रमान होकर तुझ से बाग़ी हुए, और उन्होंने तेरी शरी'अत को पीठ पीछे फेंका, और तेरे नबियों को जो उनके ख़िलाफ़ गवाही देते थे ताकि उनको तेरी तरफ़ फिरा लायें क़त्ल किया और उन्होंने ग़ुस्सा दिलाने के बड़े-बड़े काम किए।27इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दिया, जिन्होंने उनको सताया; और अपने दुख के वक़्त में जब उन्होंने तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी गूँनागूँ रहमतों के मुताबिक़ उनको छुड़ाने वाले दिए जिन्होंने उनको उनके दुश्मनों के ~हाथ से छुड़ाया।28~लेकिन जब उनको आराम मिला तो उन्होंने फिर तेरे आगे बदकारी की, इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के क़ब्ज़े में छोड़ दिया इसलिए वह उन पर मुसल्लत रहे; तो भी जब वह रुजू' लाए और तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी रहमतों के मुताबिक़ उनको बार-बार छुड़ाया;29और तूने उनके ख़िलाफ़ गवाही दी, ताकि अपनी शरी'अत की तरफ़ उनको फेर लाए। लेकिन उन्होंने ग़ुरूर किया और तेरे फ़रमान न माने, बल्कि तेरे अहकाम के बरख़िलाफ़ गुनाह किया (जिनको अगर कोई माने, तो उनकी वजह से जीता रहेगा), और अपने कन्धे को हटाकर बाग़ी बन गए और न सुना।30तो भी तू बहुत बरसों तक उनकी बर्दाश्त करता रहा, और अपनी रूह से अपने नबियों के ज़रिए' उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा; तो भी उन्होंने कान न लगाया, इसलिए तूने उनको और मुल्को के लोगों के हाथ में कर दिया।31~बावजूद इसके तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों के ज़रिए' उनको नाबूद न कर दिया और न उनको छोड़ा, क्यूँकि तू रहीम-ओ-करीम ख़ुदा है।32"इसलिए अब, ऐ हमारे ख़ुदा, बुज़ुर्ग, और क़ादिर-ओ-मुहीब ख़ुदा जो 'अहद-ओ-रहमत को क़ायम रखता है। वह दुख जो हम पर और हमारे बादशाहों पर, और हमारे सरदारों और हमारे काहिनों पर, और हमारे नबियों और हमारे बाप-दादा पर, और तेरे सब लोगों पर असूर के बादशाहों के ज़माने से आज तक पड़ा है, इसलिए तेरे सामने हल्का न मा'लूम हो;33~तो भी जो कुछ हम पर आया है उस सब में तू 'आदिल है क्यूँकि तू सच्चाई से पेश आया, लेकिन हम ने शरारत की।34और हमारे बादशाहों और सरदारों और हमारे काहिनों और बाप-दादा ने न तो तेरी शरी'अत पर 'अमल किया और न तेरे अहकाम और शहादतों को माना, जिनसे तू उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा।35~क्यूँकि उन्होंने अपनी ममलुकत में, और तेरे बड़े एहसान के वक़्त जो तूने उन पर किया, और इस वसी' और ज़रख़ेज़ मुल्क में जो तूने उनके हवाले कर दिया, तेरी 'इबादत न की और न वह अपनी बदकारियों से बाज़ आए।36~देख, आज हम ग़ुलाम हैं, बल्कि उसी मुल्क में जो तूने हमारे बाप-दादा को दिया कि उसका फल और पैदावार खाएँ; इसलिए देख, हम उसी में ग़ुलाम हैं।37~वह अपनी कसीर पैदावार उन बादशाहों को देता है, जिनको तूने हमारे गुनाहों की वजह से हम पर मुसल्लत किया है; वह हमारे जिस्मों और हमारी मवाशी पर भी जैसा चाहते हैं इख़्तियार रखते हैं, और हम सख़्त मुसीबत में हैं।38~"इन सब बातों की वजह से हम सच्चा 'अहद करते और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, और हमारे लावी, और हमारे काहिन उसपर मुहर करते हैं।"
1और वह जिन्होंने मुहर लगाई ये हैं: नहमियाह बिन हकलियाह हाकिम, और सिदक़ियाह2~सिरायाह, 'अज़रियाह, यरमियाह,3फ़शहूर, अमरियाह, मलकियाह,4~हत्तूश, सबनियाह, मल्लूक,5~हारिम, मरीमोत, 'अबदियाह,6~दानीएल, जिन्नतून, बारूक़,7~मुसल्लाम, अबियाह, मियामीन,8~माज़ियाह, बिलजी, समा'याह; ये काहिन थे।9~और लावी ये थे: यशू'अ बिन अज़नियाह, बिनवी बनी हनदाद में से क़दमीएल10और उनके भाई सबनियाह, हूदियाह, कलीताह, फ़िलायाह, हनान,11मीका, रहोब, हसाबियाह,12~ज़क्कूर, सरिबियाह, सबनियाह,13~हूदियाह, बानी, बनीनू।14लोगों के रईस ये थे : पर'ऊस, पख़त-मोआब, 'ऐलाम, ज़त्तू, बानी,15~बुनी, 'अज़जाद, बबई,16अदूनियाह, बिगवई, 'अदीन,17~अतीर, हिज़क़ियाह, 'अज़्जूर,18हूदियाह, हाशम, बज़ी,19ख़ारीफ़, 'अन्तोत, नूबै,20~मगफ़ी'आस, मुसल्लाम, हज़ीर,21~मशेज़बेल, सदोक़, यद्दू'22~फ़िलतियाह, हनान, 'अनायाह,23~होसे', हननियाह, हसूब,24~हलूहेस, फ़िलहा, सोबेक,25~रहूम, हसबनाह, मासियाह,26~अखियाह, हनान, 'अनान,27~मल्लूक, हारिम, बानाह।28~बाक़ी लोग, और काहिन, और लावी, और दरबान और गाने वाले और नतनीम और ~सब जो ख़ुदा की शरी'अत की ख़ातिर और मुल्कों की क़ौमों से अलग हो गए थे, और उनकी बीवियाँ और उनके बेटे और बेटियाँ ग़रज़ जिनमें समझ और 'अक़्ल थी29~वह सबके सब अपने भाई अमीरों के साथ मिलकर ला'नत ओ क़सम में शामिल हुए, ताकि ख़ुदा की शरी'अत पर जो बन्दा-ए-ख़ुदा मूसा के ज़रिए' मिली, चलें और यहोवाह हमारे ख़ुदावन्द के सब हुक्मों और फ़रमानों और आईन को मानें और उन पर 'अमल करें।30और हम अपनी बेटियाँ मुल्क के बाशिन्दों को न दें, और न अपने बेटों के लिए उनकी बेटियाँ लें;31~और अगर मुल्क के लोग सबत के दिन कुछ माल या खाने की चीज़ बेचने को लाएँ, तो हम सबत को या किसी पाक दिन को उनसे मोल न लें। और सातवाँ साल और हर क़र्ज़ का मुतालबा छोड़ दें।32और हम ने अपने लिए क़ानून ठहराए कि अपने ख़ुदा के घर की ख़िदमत के लिए साल-ब-साल मिस्क़ाल का तीसरा हिस्सा' दिया करें;33या'नी सबतों और नये चाँदों की नज़्र की रोटी, और हमेशा की नज़्र~की क़ुर्बानी, और हमेशा की सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए~और मुक़र्ररा 'ईदों और पाक चीज़ों और ख़ता की क़ुर्बानियों के लिए कि इस्राईल के वास्ते कफ़्फ़ारा हो, और अपने ख़ुदा के घर के सब कामों के लिए।34और हम ने या'नी काहिनों, और लावियों, और लोगों ने, लकड़ी के हदिए के बारे में पर्ची डाली, ताकि उसे अपने ख़ुदा के घर में बाप-दादा के घरानों के मुताबिक़ मुक़र्ररा वक़्तों पर साल-ब-साल ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के मज़बह पर जलाने को लाया करें, जैसा शरी'अत में लिखा है।35~और साल-ब-साल अपनी-अपनी ज़मीन के पहले फल, और सब दरख़्तों के सब मेवों में से पहले फल ख़ुदावन्द के घर में लाएँ;36और जैसा शरी'अत में लिखा है, अपने पहलौठे बेटों को और अपनी मवाशी या'नी गाय, बैल और भेड़-बकरी के पहलौठे बच्चों को अपने ख़ुदा के घर में काहिनों के पास जो हमारे ख़ुदा के घर में ख़िदमत करते हैं लाएँ।37और अपने गूँधे हुए आटे और अपनी उठाई हुई क़ुर्बानियों और सब दरख़्तों के मेवों, और मय और तेल में से पहले फल को अपने ख़ुदा के घर की कोठरियों में काहिनों के पास, और अपने खेत की दहेकी लावियों के पास लाया करें; क्यूँकि लावी सब शहरों में जहाँ हम काश्तकारी करते हैं, दसवाँ हिस्सा लेते हैं।38और जब लावी दहेकी लें तो कोई काहिन जो हारून की औलाद से हो, लावियों के साथ हो, और लावी दहेकियों का दसवाँ हिस्सा हमारे ख़ुदा के बैत-उल-माल की कोठरियों में लाएँ।39~क्यूँकि बनी-इस्राईल और बनी लावी अनाज और मय और तेल की उठाई हुई क़ुर्बानियाँ उन कोठरियों में लाया करेंगे जहाँ हैकल के बर्तन और ख़िदमत गुज़ार काहिन और दरबान और गानेवाले हैं; और हम अपने ख़ुदा के घर को नहीं छोड़ेंगे।
1और लोगों के सरदार यरुशलीम में रहते थे; और बाक़ी लोगों ने पर्ची डाली कि हर दस शख़्सों में से एक को शहर-ए-पाक, यरुशलीम, में बसने के लिए लाएँ; और नौ बाक़ी शहरों में रहें।2और लोगों ने उन सब आदमियों को, जिन्होंने ख़ुशी से अपने आपको यरुशलीम में बसने के लिए पेश किया दु'आ दी।3उस सूबे के सरदार, जो यरुशलीम में आ बसे ये हैं; (लेकिन यहूदाह के शहरों में हर एक अपने शहर में अपनी ही मिल्कियत में रहता था, या'नी~अहल-ए-इस्राईल और काहिन और लावी और~नतीनीम, और सुलेमान के मुलाज़िमों की औलाद।)4और यरुशलीम में कुछ बनी यहूदाह और कुछ बनी बिनयमीन रहते थे। बनी यहूदाह में से, 'अतायाह बिन 'उज्ज़ियाह बिन ज़करियाह बिन अमरियाह बिन सफ़तियाह बिन महललएल बनी फ़ारस में से;5और मा'सियाह बिन बारूक बिन कुलहोज़ा, बिन हजायाह, बिन 'अदायाह, बिन यूयरीब बिन ज़करियाह बिन शिलोनी।6~सब बनी फ़ारस जो यरुशलीम में बसे चार सौ अड़सठ सूर्मा थे।7~और ये बनी बिनयमीन हैं, सल्लू बिन मुसल्लाम बिन यूऐद बिन फ़िदायाह बिन क़ूलायाह बिन मासियाह बिन एतीएल बिन यसा'याह।8~फिर जब्बै सल्लै और नौ सौ अट्ठाईस आदमी।9और यूएल बिन ज़िकरी उनका नाज़िम था, और यहूदाह बिन हस्सनूह शहर के हाकिम का नाइब था।10काहिनों में से यदा'याह बिन यूयरीब और याकीन,11~शिरायाह बिन ख़िलक़ियाह बिन मुसल्लाम बिन सदोक़ बिन मिरायोत बिन अख़ीतोब, ख़ुदा के घर का नाज़िम,12~और उनके भाई जो हैकल में काम करते थे, आठ सौ बाईस; और 'अदाया बिन यरोहाम, बिन फ़िल्लियाह बिन अम्ज़ी बिन ज़क़रियाह, बिन फ़शहूर बिन मलकियाह,13और उसके भाई आबाई ख़ान्दानों के रईस, दो सौ बयालीस; और अमसी बिन 'अज़्राएल बिन अख़सी बिन ~मसल्लीमोत बिन इम्मेर,14~और उनके भाई ज़बरदस्त सूर्मा, एक सौ अट्ठाईस; और उनका सरदार ज़बदीएल बिन हजदूलीम था।15और लावियों में से, समा'याह बिन हुसूक बिन 'अजरिक़ाम बिन हसबियाह ~बिन बूनी;16और सब्बतै और यूज़बाद लावियों के रईसों में से, ख़ुदा के घर के बाहर के काम पर मुक़र्रर थे;17~और मत्तनियाह बिन मीका बिन ज़ब्दी बिन आसफ़ सरदार था, जो दु'आ के वक़्त शुक्रगुज़ारी शुरू' करने में पेशवा था; और बक़बूक़ियाह उसके भाइयों में से दूसरे दर्जे पर था, और 'अबदा बिन सम्मू' बिन जलाल बिन यदूतून।18~पाक शहर में कुल दो सौ चौरासी लावी थे।19और दरबान 'अक़्क़ब, तलमून और उनके भाई जो फाटकों की निगहबानी करते थे, एक सौ बहतर थे।20~और इस्राईलियों और काहिनों और लावियों के बाक़ी लोग यहूदाह के सब शहरों में अपनी-अपनी मिल्कियत में रहते थे।21~लेकिन नतीनीम 'ओफ़ल में बसे हुए थे; और ज़ीहा और जिसफ़ा नतीनीम पर मुक़र्रर थे।22और उज़्ज़ी बिन बानी बिन हसबियाह बिन मत्तनियाह बिन मीका जो आसफ़ की औलाद या'नी गानेवालों में से था, यरुशलीम में उन लावियों का नाज़िम था, जो ख़ुदा के घर के काम पर मुक़र्रर थे।23~क्यूँकि उनके बारे में बादशाह की तरफ़ से हुक्म हो चुका था, और गानेवालों के लिए हर रोज़ की ज़रूरत के मुताबिक़ मुक़र्ररा रसद थी।24~और फ़तहयाह बिन मशेज़बेल जो ज़ारह बिन यहूदाह की औलाद में से था, र'इयत के सब मुआ'मिलात के लिए बादशाह के सामने रहता था।25~रहे गाँव और उनके खेत, इसलिए बनीयहूदाह में से कुछ लोग क़रयत-अरबा' और उसके क़स्बों में, और दीबोन और उसके क़स्बों में, और यक़बज़ीएल और उसके गाँवों में रहते थे;26~और यशू'अ और मोलादा और बैत फ़लत में,27और हसर-सू'आल और बैरसबा' और उसके कस्बों में,28~और सिक़लाज ~और मक़ुनाह ~और उस के कस्बों में29और 'ऐन-रिम्मोन और सार'आह में, और यारमोत में,30~ज़ानवाह, 'अदुल्लाम, और उनके गाँवों में; लकीस और उसके खेतों में, 'अज़ीक़ा और उसके क़स्बों में, यूँ वह बैरसबा' से हिनूम की वादी तक डेरों में रहते थे।31~बनी बिनयमीन भी जिबा' से लेकर आगे मिकमास और 'अय्याह और बैतएल और उसके क़स्बों में,32~और 'अन्तोत और नूब और 'अननियाह,33और हासूर और रामा और जितेम,34और हादीद और ज़िबोईम और नबल्लात,35~और लूद और ओनू, या'नी कारीगरों की वादी में रहते थे।36~और लावियों में से कुछ फ़रीक़ जो यहूदाह में थे, वह बिनयमीन से मिल गए।
1~वह काहिन और लावी जो ज़रुब्बाबुल बिन सियालतीएल और यशू'अ के साथ गए, सो ये हैं: सिरायाह, यरमियाह, 'अज़्रा,2~अमरियाह, मल्लूक, हत्तूश,3~सिकनियाह, रहूम, मरीमोत,4इद्द, जिन्नतू, अबियाह,5~मियामीन, मा'दियाह, बिल्जा,6समा'याह और यूयरीब, यदा'याह7सल्लू, 'अमुक़ ख़िलक़ियाह, यदा'याह, ये यशू'अ के ~दिनों में ~काहिनों और उनके भाईयों के सरदार थे8~और लावी ये थे: यशू'अ, बिनवी, क़दमिएल सेरबियाह यहूदाह और मत्तिनियाह जो अपने भाइयों के साथ शुक्रगुज़ारी पर मुक़र्रर था;9~और उनके भाई बक़बूक़ियाह और 'उन्नी उनके सामने अपने-अपने पहरे पर मुक़र्रर थे।10और यशू'अ से यूयक़ीम पैदा हुआ, और यूयक़ीम से इलियासिब पैदा हुआ, और इलियासिब से यूयदा' पैदा हुआ,11~और यूयदा' से यूनतन पैदा हुआ, और यूनतन से यद्दू' पैदा हुआ,12~और यूयक़ीम के दिनों में ये काहिन आबाई ख़ान्दानों के सरदार थे: सिरायाह से मिरायाह; यरमियाह से हननियाह;13~'अज़्रा से मुसल्लाम; अमरियाह से यहूहनान;14मलकू से योनतन, सबनियाह से यूसुफ़;15~हारिम से 'अदना; मिरायोत से ख़लक़ै;16~इद्दू से ज़करियाह; जिन्नतून से मुसल्लाम:17अबियाह से ज़िकरी; मिनयमीन से' मौ'अदियाह से फ़िल्ती;18~बिलजाह से सम्मू'आ; समा'याह से यहूनतन;19~यूयरीब से मत्तनै; यद'अयाह से 'उज़्ज़ी;20~सल्लै से कल्लै; 'अमोक से इब्र;21~ख़िलक़ियाह से हसबियाह; यदा'याह से नतनीएल।22इलियासिब और यूयदा' और यूहनान और यद्दू' के दिनों में, लावियों के आबाई ख़ान्दानों के सरदार लिखे जाते थे; और काहिनों के, दारा फ़ारसी की सल्तनत में।23~बनी लावी के आबाई ख़ान्दानों के सरदार यूहनान बिन इलियासिब के दिनों तक, तवारीख़ की किताब में लिखे जाते थे।24और लावियों के रईस: हसबियाह, सेरबियाह और यशू'अ बिन क़दमीएल, अपने भाइयों के साथ आमने सामने बारी-बारी से मर्द-ए-ख़ुदा दाऊद के हुक्म के मुताबिक़ हम्द और शुक्रगुज़ारी के लिए मुक़र्रर थे।25~मत्तनियाह और बक़बूक़ियाह और अब्दियाह और मुसल्लाम और तलमून और अक़्क़ूब दरबान थे, जो फाटकों के मख़ज़नों के पास पहरा देते थे।26~ये यूयक़ीम बिन यशू'अ बिन यूसदक़ के दिनों में, और नहमियाह हाकिम और 'अज़्रा~काहिन और फ़कीह के दिनों में थे।27और यरूशलीम की शहरपनाह की तक़्दीस के वक़्त, उन्होंने लावियों को उनकी सब जगहों से ढूंड निकाला कि उनको यरुशलीम में लाएँ, ताकि वह ख़ुशी-ख़ुशी झाँझ और सितार और बरबत के साथ शुक्रगुज़ारी करके और गाकर तक़दीस करें।28इसलिए गानेवालों की नसल के लोग यरुशलीम को आस-पास के मैदान से और नतूफ़ातियों के देहात से,29~और बैत-उल-जिलजाल से भी, और जिबा' और 'अज़मावत के खेतों से इकट्ठे हुए; क्यूँकि गानेवालों ने यरुशलीम के चारों तरफ़ अपने लिए देहात बना लिए थे।30~और काहिनों और लावियों ने अपने आपको पाक किया, और उन्होंने लोगों को और फाटकों को और शहरपनाह को पाक किया।31~तब मैं यहूदाह के अमीरों को दीवार पर लाया, और मैंने दो बड़े ग़ोल मुक़र्रर किए जो हम्द करते हुए जुलूस में निकले। एक उनमें से दहने हाथ की तरफ़ दीवार के ऊपर-ऊपर से कूड़े के फाटक की तरफ़ गया,32~और ये उनके पीछे-पीछे गए, या'नी हुसा'याह और यहूदाह के आधे सरदार।33~'अज़रियाह, 'अज़्रा और मुसल्लाम,34~यहूदाह और बिनयमीन और समा'याह और यरमियाह,35और कुछ काहिनज़ादे नरसिंगे लिए हुए, या'नी ज़करियाह बिन यूनतन, बिन समा'याह, बिन मत्तिनियाह, बिन मीकायाह, बिन जक्कूर बिन आसफ़;36और उसके भाई समा'याह और 'अज़रएल, मिल्ले, जिल्लै, मा'ऐ, नतनीएल और यहूदाह और हनानी, मर्द-ए- ख़ुदा दाऊद के बाजों को लिए हुए जाते थे और 'अज़्रा~फ़क़ीह उनके आगे-आगे था।37और वह चश्मा फाटक से होकर सीधे आगे गए, और दाऊद के शहर की सीढ़ियों पर चढ़कर शहरपनाह की ऊँचाई पर पहुँचे, और दाऊद के महल के ऊपर होकर पानी फाटक तक पूरब की तरफ़ गए।38~और शुक्रगुज़ारी करनेवालों का दूसरा ग़ोल और उनके पीछे-पीछे मैं और आधे लोग उनसे मिलने को दीवार पर तनूरों के बुर्ज के ऊपर चौड़ी दीवार तक39~और इफ़्राईमी फाटक के ऊपर पुराने फाटक और मछली फाटक, और हननएल के बुर्ज और हमियाह के बुर्ज पर से होते हुए भेड़ फाटक तक गए; और पहरेवालों के फाटक पर खड़े हो गए।40तब शुक्रगुज़ारी करनेवालों के दोनों ग़ोल और मैं और मेरे साथ आधे हाकिम ख़ुदा के घर में खड़े हो गए |41~और काहिन इलियाक़ीम, मासियाह, बिनयमीन, मीकायाह, इल्यूऐनी, ज़करियाह, हननियाह नरसिंगे लिए हुए थे;42~और मासियाह और समा'याह और इली'अज़र और 'उज़्ज़ी और यूहहनान और मल्कियाह और 'ऐलाम और 'अज़्रा अपने सरदार गानेवाले, इज़रखियाह के साथ बलन्द आवाज़ से गाते थे।43और उस दिन उन्होंने बहुत सी क़ुर्बानियाँ चढ़ाईं और उसी दिन ख़ुशी की क्यूँकि ख़ुदा ने ऐसी ख़ुशी उनको बख़्शी कि वह बहुत ख़ुश हुए; और 'औरतों और बच्चों ने भी ख़ुशी मनाई। इसलिए यरुशलीम की ख़ुशी की आवाज़ दूर तक सुनाई देती थी।44~उसी ~दिन लोग ख़ज़ाने की, और उठाई हुई क़ुर्बानियों और पहले फलों और दहेकियों की कोठरियों पर मुक़र्रर हुए, ताकि उनमें शहर शहर के खेतों के मुताबिक़, जो हिस्से काहिनों और लावियों के लिए शरा' के मुताबिक़ मुक़र्रर हुए उनको जमा' करें क्यूँकि बनी यहूदाह काहिनों और लावियों की वजह से जो हाज़िर रहते थे ख़ुश थे।45इसलिए वह अपने ख़ुदा के इन्तज़ाम और तहारत के इन्तज़ाम की निगरानी करते रहे; और गानेवालों और दरबानों ने भी दाऊद और उसके बेटे सुलेमान के हुक्म के मुताबिक़ ऐसा ही किया |46क्यूँकि पुराने ज़माने से दाऊद और आसफ़ के दिनों में एक सरदार मुग़न्नी होता था, और ख़ुदा की हम्द और शुक्र के गीत गाए जाते थे।47~और तमाम इस्राईल ज़रुब्बाबुल के और नहमियाह के दिनों में हर रोज़ की ज़रूरत के मुताबिक़ गानेवालों और दरबानों के हिस्से देते थे; यूँ वह लावियों के लिए चीज़ें मख़्सूस करते, और लावी बनी हारून के लिए मख़्सूस करते थे।
1उस दिन उन्होंने लोगों को मूसा की किताब में से पढ़कर सुनाया, और उसमें ये लिखा मिला कि 'अम्मोनी और मोआबी ख़ुदा की जमा'अत में कभी न आने पाएँ;2~इसलिए कि वह रोटी और पानी लेकर बनी-इस्राईल के इस्तक़बाल को न निकले, बल्कि बल'आम को उनके ख़िलाफ़ मज़दूरी पर बुलाया ताकि उन पर ला'नत करे - लेकिन हमारे ख़ुदा ने उस ला'नत को बरकत से बदल दिया।3और ऐसा हुआ कि शरी'अत को सुनकर उन्होंने सारी मिली जुली भीड़ को इस्राईल से जुदा कर दिया।4~इससे पहले इलियासिब काहिन ने जो हमारे ख़ुदा के घर की कोठरियों का मुख़्तार था, तूबियाह का रिश्तेदार होने की वजह से,5उसके लिए एक बड़ी कोठरी तैयार की थी जहाँ पहले नज़्र की क़ुर्बानियाँ और लुबान और बर्तन, और अनाज की और मय की और तेल की दहेकियाँ, जो हुक्म के मुताबिक़ लावियों और गानेवालों और दरबानों को दी जाती थीं, और काहिनों के लिए उठाई हुई क़ुर्बानियाँ भी रख्खी जाती थीं।6~लेकिन इन दिनों में मैं यरुशलीम में न था, क्यूँकि शाह-ए-बाबुल अरतख़शशता के बत्तीसवें बरस में बादशाह के पास गया था। और कुछ दिनों के बा'द मैंने बादशाह से रुख़्सत की दरख़्वास्त की,7और मैं यरुशलीम में आया, और मा'लूम किया कि ख़ुदा के घर के सहनों में तूबियाह के वास्ते एक कोठरी तैयार करने से इलियासिब ने कैसी ख़राबी की है।8~इससे मैं बहुत रंजीदा हुआ इसलिए मैंने तूबियाह के सब ख़ानगी सामान को उस कोठरी से बाहर फेंक दिया।9~फिर मैंने हुक्म दिया और उन्होंने उन कोठरियों को साफ़ किया, और मैं ख़ुदा के घर के बर्तनों और नज़्र की क़ुर्बानियों और लुबान को फिर वहीं ले आया।10~फिर मुझे मा'लूम हुआ कि लावियों के हिस्से उनको नहीं दिए गए, इसलिए ख़िदमतगुज़ार लावी और गानेवाले अपने अपने खेत को भाग गए हैं।11~तब मैंने हाकिमों से झगड़कर कहा कि ख़ुदा का घर क्यूँ छोड़ दिया गया है? और मैंने उनको इकट्ठा करके उनको उनकी जगह पर मुक़र्रर किया।12~तब सब अहल-ए-यहूदाह ने अनाज और मय और तेल का दसवाँ हिस्सा ख़ज़ानों में दाख़िल किया।13~और मैंने सलमियाह काहिन और सदोक़ फ़क़ीह, और लावियों में से फ़िदायाह को ख़ज़ानों के ख़ज़ांची मुक़र्रर किया; और हनान बिन ज़क्कूर बिन मत्तनियाह उनके साथ था; क्यूँकि वह दियानतदार माने जाते थे, और अपने भाइयों में बाँट देना उनका काम था।14ऐ मेरे ख़ुदा इसके लिए याद कर और मेरे नेक कामों को जो मैंने अपने ख़ुदा के घर और उसके रसूम के लिए किये मिटा न डाल|15उन ही दिनों में मैंने यहूदाह में कुछ को देखा, जो सबत के दिन हौज़ों में पाँव से अंगूर कुचल रहे थे, और पूले लाकर उनको गधों पर लादते थे। इसी तरह मय और अंगूर और अन्जीर, और हर क़िस्म के बोझ सबत को यरुशलीम में लाते थे; और जिस दिन वह खाने की चीज़ें बेचने लगे मैंने उनको टोका।16वहाँ सूर के लोग भी रहते थे, जो मछली और हर तरह का सामान लाकर सबत के दिन यरुशलीम में यहूदाह के लोगों के हाथ बेचते थे।17~तब मैंने यहूदाह के हाकिम से झगड़कर कहा, "ये क्या बुरा काम है जो तुम करते, और सबत के दिन की बेहुरमती करते हो?18~क्या तुम्हारे बाप-दादा ने ऐसा ही नहीं किया? और क्या हमारा ख़ुदा हम पर और इस शहर पर ये सब आफ़तें नहीं लाया? तो भी तुम सबत की बेहुरमती करके इस्राईल पर ज़्यादा ग़ज़ब लाते हो।"19~इसलिए जब सबत से पहले यरुशलीम के फाटकों के पास अन्धेरा होने लगा, तो मैंने हुक्म दिया कि फाटक बन्द कर दिए जाएँ, और हुक्म दे दिया कि जब तक सबत गुज़र न जाए, वह न खुलें, और मैंने अपने कुछ नौकरों को फाटकों पर रख्खा कि सबत के दिन कोई बोझ अन्दर आने न पाए।20इसलिए ताजिर और तरह-तरह के माल के बेचनेवाले एक या दो बार यरुशलीम के बाहर टिके।21~तब मैंने उनको टोका, और उनसे कहा कि तुम दीवार के नज़दीक क्यूँ टिक जाते हो? अगर फिर ऐसा किया तो मैं तुम को गिरफ़्तार कर लूँगा। उस वक़्त से वह सबत को फिर न आए।22और मैंने लावियों को हुक्म किया कि अपने आपको पाक करें, और सबत के दिन की तक़्दीस की ग़रज़ से आकर फाटकों की रखवाली करें। ऐ मेरे ख़ुदा, इसे भी मेरे हक़ में याद कर, और अपनी बड़ी रहमत के मुताबिक़ मुझ पर तरस खा।23~उन्ही दिनों में मैंने उन यहूदियों को भी देखा, जिन्होंने अशदूदी और 'अम्मोनी और मोआबी 'औरतें ब्याह ली थीं।24~और उनके बच्चों की ज़बान आधी अशदूदी थी और वह यहूदी ज़बान में बात नहीं कर सकते थे, बल्कि हर क़ौम की बोली के मुताबिक़ बोलते थे।25~इसलिए मैंने उनसे झगड़कर उनको ला'नत की, और उनमें से कुछ को मारा, और उनके बाल नोच डाले, और उनको ख़ुदा की क़सम खिलाई, "कि तुम अपनी बेटियाँ उनके बेटों को न देना, और न अपने बेटों के लिए और न अपने लिए उनकी बेटियाँ लेना।26~क्या शाह-ए-इस्राईल सुलेमान ने इन बातों से गुनाह नहीं किया? अगरचे अकसर क़ौमों में उसकी तरह कोई बादशाह न था, और वह अपने ख़ुदा का प्यारा था, और ख़ुदा ने उसे सारे इस्राईल का बादशाह बनाया, तो भी अजनबी 'औरतों ने उसे भी गुनाह में फँसाया।27~इसलिए क्या हम तुम्हारी सुनकर ऐसी बड़ी बुराई करें कि अजनबी 'औरतों को ब्याह कर अपने ख़ुदा का गुनाह करें?"28और इलियासिब सरदार काहिन के बेटे यूयदा' के बेटों में से एक बेटा, हूरोनी सनबल्लत का दामाद था, इसलिए मैंने उसको अपने पास से भगा दिया29ऐ मेरे ख़ुदा, उनको याद कर, इसलिए कि उन्होंने कहानत को और कहानत और लावियों के 'अहद को नापाक किया है।30~यूँ ही मैंने उनको कुल अजनबियों से पाक किया, और काहिनों और लावियों के लिए उनकी ख़िदमत के मुताबिक़,31~और मुक़र्ररा वक़्तों पर लकड़ी के हदिए और पहले फलों के लिए हल्क़े मुक़र्रर कर दिए। ऐ मेरे ख़ुदा, भलाई के लिए मुझे याद कर।
1~अख़्सूयरस के दिनों में ऐसा हुआ (यह वही अख़्सूयरस है जो हिन्दोस्तान से कूश तक एक सौ सताईस सूबों पर हुकूमत करता था)2~कि उन दिनों में जब अख़्सूयरस बादशाह अपने तख़्त-ए-हुकूमत पर, जो क़स्र-सोसन में था बैठा।3~तो उसने अपनी हुकूमत के तीसरे साल अपने सब हाकिमों और ख़ादिमों की मेहमान नवाज़ी की। और फ़ारस और मादै की ताक़त और सूबों के हाकिम और सरदार उसके सामने हाज़िर थे।4~तब वह बहुत दिन या'नी एक सौ अस्सी दिन तक अपनी जलीलुल क़द्र हुकूमत की दौलत अपनी 'आला 'अज़मत की शान उनको दिखाता रहा5जब यह दिन गुज़र गए तो बादशाह ने सब लोगों की, क्या बड़े क्या छोटे जो क़स्र-ए- सोसन में मौजूद थे, शाही महल के बाग़ के सहन में सात दिन तक मेहमान नवाज़ी ~की।6~वहाँ सफ़ेद और सब्ज़ और आसमानी रंग के पर्दे थे, जो कतानी और अर्गवानी डोरियों से चाँदी के हल्कों और संग-ए-मरमर के सुतूनों से बन्धे थे; और सुर्ख़ और सफ़ेद और ज़र्द और सियाह संग-ए-मरमर के फ़र्श पर सोने और चाँदी के तख़्त थे।7~उन्होंने उनको सोने के प्यालों में, जो अलग अलग शक्लों के थे, पीने को दिया और शाही मय बादशाह के करम के मुताबिक़ कसरत से पिलाई।8~और मय नौशी इस क़ाइदे से थी कि कोई मजबूर नहीं कर सकता था; क्यूँकि बादशाह ने अपने महल के सब 'उहदे दारों को नसीहत फ़रमाई थी, कि वह हर शख़्स की मर्ज़ी के मुताबिक़ करें।9वश्ती मलिका ने भी अख़्सूयरस बादशाह के शाही महल में 'औरतों की मेहमान नवाज़ी की।10~सात दिन जब बादशाह का दिल मय से मसरूर था, तो उसने सातों ख़्वाजा सराओं या'नी महूमान और बिज़ता और ख़रबूनाह और बिगता और अबग्ता और ज़ितार और करकस को, जो अख़्सूयरस बादशाह के सामने ख़िदमत करते थे हुक्म दिया,11~कि वश्ती मलिका को शाही ताज पहनाकर बादशाह के सामने लाएँ, ताकि उसकी ख़ूबसूरती लोगों और हाकिमों ~को दिखाए क्यूँकि वह देखने में ख़ूबसूरत थी।12~लेकिन वशती मलिका ने शाही हुक्म पर जो ख़्वाजासराओं की ज़रिए' मिला था, आने से इन्कार किया। इसलिए ~बादशाह बहुत झल्लाया और दिल ही दिल में उसका ग़ुस्सा भड़का।13~तब बादशाह ने उन 'अक़्लमन्दों से जिनको वक़्तों के जानने का 'इल्म था पूछा, (क्यूँकि बादशाह का दस्तूर सब क़ानून दानों और 'अदलशनासों के साथ ऐसा ही था,14और फ़ारस और मादै के सातों अमीर या'नी कारशीना और सितार और अदमाता और तरसीस और मरस और मरसिना और ममूकान उसके नज़दीकी थे, जो बादशाह का दीदार हासिल करते और ममलुकत में 'उहदे पर थे)15~क़ानून के मुताबिक़ वश्ती मलिका से क्या करना चाहिए; क्यूँकि उसने अख़्सूयरस बादशाह का हुक्म जो ख़वाजासराओं के ज़रिए' मिला नहीं माना है?"16और ममूकान ने बादशाह और अमीरों के सामने जवाब दिया, "वश्ती मलिका ने सिर्फ़ ~बादशाह ही का नहीं, बल्कि सब उमरा और सब लोगों का भी जो अख़्सूयरस बादशाह के~कुल सूबों में हैं क़ुसूर किया है।17~क्यूँकि मलिका ~की यह बात बाहर सब 'औरतों तक पहुँचेगी जिससे उनके शौहर उनकी नज़र में ज़लील हो जाएँगे, जब यह ख़बर फैलेगी, 'अख़्सूयरस बादशाह ने हुक्म दिया कि वश्ती मलिका उसके सामने लाई जाए, लेकिन वह न आई।'18और आज के दिन फ़ारस और मादै की सब बेग़में जो मलिका की बात सुन चुकी हैं, बादशाह के सब उमरा से ऐसा ही कहने लगेंगी। यूँ बहुत नफ़रत और ग़ुस्सा पैदा होगा।19~अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो तो उसकी तरफ़ से शाही फ़रमान निकले, और वो फ़ारसियों और मादियों के क़ानून में दर्ज हो, ताकि बदला न जाए कि वश्ती अख़्सूयरस बादशाह के सामने फिर कभी न आए, और बादशाह उसका शाहाना रुतबा किसी और को जो उससे बेहतर है 'इनायत करे।20~और जब बादशाह का फ़रमान जिसे वह लागू करेगा, उसकी सारी हुकूमत में (जो बड़ी है) शोहरत पाएगा तो सब बीवियाँ अपने अपने शौहर की क्या बड़ा क्या छोटा 'इज़्ज़त करेंगी |21~यह बात बादशाह और हाकिमों को पसन्द आई, और बादशाह ने ममूकान के कहने के मुताबिक़ किया;22क्यूँकि उसने सब शाही सूबों में सूबे-सूबे के हुरूफ़, और क़ौम-क़ौम की बोली के मुताबिक़ ख़त भेज दिए, कि हर आदमी अपने घर में हुकूमत करे, और अपनी क़ौम की ज़बान में इसका चर्चा करे।
1इन बातों के बा'द जब अख़्सूयरस बादशाह ~का ग़ुस्सा ~ठंडा हुआ, तो उसने वश्ती को और जो कुछ उसने किया था, और जो कुछ उसके ख़िलाफ़ हुक्म हुआ था याद किया।2~तब बादशाह के मुलाज़िम जो उसकी ख़िदमत करते थे कहने लगे, बादशाह के लिए जवान ख़ूबसूरत कुंवारियाँ ढूँढी जाएँ।3और बादशाह अपनी बादशाहत के सब सूबों में मन्सबदारों को मुक़र्रर करे, ताकि वह सब जवान ख़ूबसूरत कुँवारियों को क़स्र-ए-सोसन के बीच हरमसरा में इकट्ठा करके बादशाह के ख़्वाजासरा हैजा के ज़िम्मा ~करें, जो 'औरतों का मुहाफ़िज़ है; और पाकी के लिए उनका सामान उनको दिया जाए।4और जो कुँवारी बादशाह को पसन्द हो, वह वश्ती की जगह मलिका हो।" यह बात बादशाह को पसन्द आई, और उसने ऐसा ही किया।5क़स्र-ए-सोसन में एक यहूदी था जिसका नाम मर्दकै था, जो या'इर बिन सिम'ई बिन क़ीस का बेटा था, जो बिनयमीनी था;6और यरूशलीम से उन ग़ुलामों के साथ गया था जो शाह-ए-यहूदाह यकूनियाह के साथ ग़ुलामी में गए थे, जिनको शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र ग़ुलाम करके ले गया था।7~उसने अपने चचा की बेटी हदस्साह या'नी आस्तर को पाला था; क्यूँकि उसके माँ-बाप न थे, और वह लड़की हसीन और ख़ूबसूरत थी; और जब उसके माँ-बाप मर गए तो मर्दकै ने उसे अपनी बेटी करके पाला।8तब ऐसा हुआ कि जब बादशाह का हुक्म और फ़रमान सुनने में आया, और बहुत सी कुँवारियाँ क़स्र-ए-सोसन में इकट्ठी होकर हैजा के ज़िम्मा हुईं, तो आस्तर भी बादशाह के महल में पहुँचाई गई, और 'औरतों के मुहाफ़िज़ हैजा के ज़िम्मा हुई।9और वह लड़की उसे पसन्द आई और उसने उस पर महेरबानी की, और फ़ौरन उसे शाही महल में से पाकी के लिए उसके सामान और खाने के हिस्से, और ऐसी सात सहेलियाँ जो उसके लायक़ थीं उसे दीं, और उसे और उसकी सहेलियों को हरमसरा की सबसे अच्छी जगह में ले जाकर रख्खा।10आस्तर ने न अपनी क़ौम न अपना ख़ान्दान ज़ाहिर किया था; क्यूँकि मर्दकै ने उसे नसीहत कर दी थी कि न बताए;11और मर्दकै हर रोज़ हरमसरा के सहन के आगे फिरता था, ताकि मा'लूम करे कि आस्तर कैसी है और उसका क्या हाल होगा।12जब एक एक कुँवारी की बारी आई कि 'औरतों के दस्तूर के मुताबिक़ बारह महीने की सफ़ाई के बा'द अख़्सूयरस बादशाह के पास जाए (क्यूँकि इतने ही दिन उनकी पाकिज़गी में लग जाते थे, या'नी छ: महीने मुर्र का तेल लगाने में और छ: महीने इत्र और 'औरतों की सफ़ाई की चीज़ों के लगाने में)13तब इस तरह से वह कुँवारी बादशाह के पास जाती थी कि जो कुछ वो चाहती कि हरमसरा से बादशाह के महल में ले जाए, वह उसको दिया जाता था।14~शाम को वह जाती थी और सुबह को लौटकर दूसरे बाँदीसरा में बादशाह के ख़्वाजासरा शासजज़ के ज़िम्मा हो जाती थी, जो बाँदियों का मुहाफ़िज़ था; वह बादशाह के पास फिर नहीं जाती थी, मगर जब बादशाह उसे चाहता तब वह नाम लेकर बुलाई जाती थी।15~जब मर्दकै के चचा अबीख़ल की बेटी आस्तर की, जिसे मर्दकै ने अपनी बेटी करके रख्खा था, बादशाह के पास जाने की बारी आई तो जो कुछ बादशाह के ख़्वाजासरा और 'औरतों के मुहाफ़िज़ हैजा ने ठहराया था, उसके अलावा उसने और कुछ न माँगा। और आस्तर उन सबकी जिनकी निगाह उस पर पड़ी, मन्ज़ूर-ए-नज़र हुई।16~इसलिए आस्तर अख़्सूयरस बादशाह के पास उसके शाही महल में उसकी हुकूमत के सातवें साल के दसवें महीने में, जो तैबत महीना है पहुँचाई गई।17~और बादशाह ने आस्तर को सब 'औरतों से ज़्यादा प्यार किया, और वह उसकी नज़र में उन सब कुँवारियों से ज़्यादा प्यारी और पसंदीदा ठहरी; तब उसने शाही ताज उसके सिर पर रख दिया, और वश्ती की जगह उसे मलिका बनाया।18और बादशाह ने अपने सब हाकिमों और मुलाज़िमों के लिए एक बड़ी मेहमान नवाज़ी , या'नी आस्तर की मेहमान नवाज़ी की; और सूबों में मु'आफ़ी की, और शाही करम के मुताबिक़ इन'आम बाँटे।19जब कुँवारियाँ दूसरी बार इकट्ठी की गईं, तो मर्दकै बादशाह के फाटक पर बैठा था।20आस्तर ने न तो अपने ख़ान्दान और न अपनी क़ौम का पता दिया था, जैसा मर्दकै ने उसे नसीहत कर दी थी; इसलिए कि आस्तर मर्दकै का हुक्म ऐसा ही मानती थी जैसा उस वक़्त जब वह उसके यहाँ परवरिश पा रही थी।21~उन ही दिनों में, जब मर्दकै बादशाह के फाटक पर बैठा करता था, बादशाह के ख़्वाजासराओं में से जो दरवाज़े पर पहरा देते थे, दो शख़्सों या'नी बिगतान और तरश ने बिगड़कर चाहा कि अख़्सूयरस बादशाह पर हाथ चलाएँ।22~यह~बात मर्दके को मा'लूम हुई और उसने आस्तर मलिका को बताई, और आस्तर ने मर्दकै का नाम लेकर बादशाह को ख़बर दी।23~जब उस मु'आमिले की तहक़ीक़ात की गई और वह बात साबित हुई, तो वह दोनों एक दरख़्त पर लटका दिए गए; और यह बादशाह के सामने तवारीख़ की किताब में लिख लिया गया।
1इन बातों के बा'द अख़्सूयरस बादशाह ने अजाजी हम्मदाता के बेटे हामान को मुम्ताज़ और सरफ़राज़ किया और उसकी कुर्सी को सब हाकिम से जो उसके साथ थे ऊँचा किया।2~और बादशाह के सब मुलाज़िम जो बादशाह के फाटक पर थे, हामान के आगे झुककर उसकी ता'ज़ीम करते थे; क्यूँकि बादशाह ने उसके बारे में ऐसा ही हुक्म किया था। लेकिन~मर्दकै न झुकता, न उसकी ताज़ीम करता था।3~तब बादशाह के मुलाज़िमों ने जो बादशाह के फाटक पर थे मर्दकै से कहा, "तू क्यूँ बादशाह के हुक्म को तोड़ता है?”4~जब वो उससे रोज़ कहते रहे, और उसने उनकी न मानी, तो उन्होंने हामान को बता दिया, ताकि देखें कि मर्दकै की बात चलेगी या नहीं, क्यूँकि उसने उनसे कह दिया था कि मैं यहूदी हूँ।5~जब हामान ने देखा कि मर्दकै न झुकता, न मेरी ताज़ीम करता है, तो हामान गुस्से से भर गया।6लेकिन सिर्फ़ मर्दकै ही पर हाथ चलाना अपनी शान से नीचे समझा; क्यूँकि उन्होंने उसे मर्दकै की क़ौम बता दी थी, इसलिए हामान ने चाहा कि मर्दकै की क़ौम, या'नी सब यहूदियों को जो अख़्सूयरस की पूरी बादशाहत ~ में रहते थे। हलाक करे।7अख़्सूयरस बादशाह की बादशाहत के बारहवें बरस के पहले महीने से, जो नैसान महीना है, वह रोज़-ब-रोज़ और माह-ब-माह बारहवें महीने या'नी अदार के महीने तक हामान के सामने पर या'नी पर्ची डालते रहे।8और हामान ने अख़्सूयरस बादशाह से दरख़्वास्त की ~कि "हुज़ूर की बादशाहत के सब सूबों में एक क़ौम सब क़ौमों के दर्मियान इधर उधर फैली हुई है, उसके काम हर क़ौम से निराले हैं, और वह बादशाह के क़वानीन नहीं मानते हैं, इसलिए उनको रहने देना बादशाह के लिए फ़ाइदे मन्द नहीं।9अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो, तो उनको हलाक करने का हुक्म लिखा जाए; और मैं तहसीलदारों के हाथ में शाही ख़ज़ानों में दाख़िल करने के लिए चाँदी के दस हज़ार तोड़े दूँगा।”10~और बादशाह ने अपने हाथ से अंगूठी उतार कर यहूदियों के दुश्मन अजाजी हम्मदाता के बेटे हामान को दी।11~और बादशाह ने हामान से कहा, "वह चाँदी तुझे बख़्शी गई और वह लोग भी, ताकि जो तुझे अच्छा मा'लूम हो उनसे करे।"12~तब बादशाह के मुंशी पहले महीने की तेरहवीं तारीख़ को बुलाए गए, और जो कुछ हामान ने बादशाह के नवाबों, और हर सूबे के हाकिमों, और हर क़ौम के सरदारों को हुक्म किया उसके मुताबिक़ लिखा गया; सूबे सूबे के हुरूफ़ और क़ौम क़ौम की ज़बान मे अख़्सूयरस के नाम से यह लिखा गया, और उस पर बादशाह की अँगूठी की मुहर की गई।13~और क़ासिदों के हाथ बादशाह के सब सूबों में ख़त भेजे गए कि बारहवें महीने, या'नी अदार महीने की तेरहवीं तारीख़ को सब यहूदियों को, क्या जवान क्या बुड्ढे क्या बच्चे क्या 'औरतें, एक ही दिन में हलाक और क़त्ल करें और मिटा दें और उनका माल लूट लें।14~इस लिखाई की एक एक नक़ल सब क़ौमों के लिए जारी की गई, कि इस फ़रमान का ऐलान हर सूबे में किया जाए, ताकि उस दिन के लिए तैयार हो जाएँ।15~बादशाह के हुक्म से क़ासिद फ़ौरन रवाना हुए और वह हुक्म क़स्र-ए-सोसन में दिया गया। बादशाह और हामान मय नौशी करने को बैठ गए, पर सोसन शहर परेशान था।
1जब मर्दकै को वह सब जो किया गया था मा'लूम हुआ, तो मर्दकै ने अपने कपड़े फाड़े और टाट पहने और सिर पर राख डालकर शहर के बीच में चला गया, और ऊँची ~और पुरदर्द आवाज़ से चिल्लाने लगा;2और वह बादशाह के फाटक के सामने भी आया, क्यूँकि टाट पहने कोई बादशाह के फाटक के अन्दर जाने न पाता था।3और हर सूबे में जहाँ कहीं बादशाह का हुक्म और फ़रमान पहुँचा, यहूदियों के दर्मियान बड़ा मातम और रोज़ा और गिरयाज़ारी और नौहा शुरू' हो गया, और बहुत से टाट पहने राख में बैठ गए।4और आस्तर की सहेलियों और उसके ख़्वाजासराओं ने आकर उसे ख़बर दी तब मलिका बहुत ग़मगीन हुई, और उसने कपड़े भेजे कि मर्दकै को पहनाएँ और टाट उस पर से उतार लें, लेकिन उसने उनको न लिया।5तब आस्तर ने बादशाह के ख़्वाजासराओं में से हताक को, जिसे उसने आस्तर के पास हाज़िर रहने को मुक़र्रर किया था बुलवाया, और उसे ताकीद की कि मर्दकै के पास जाकर दरियाफ़त करे कि यह क्या बात है और किस वजह से है।6इसलिए हताक निकल कर शहर के चौक में, जो बादशाह के फाटक के सामने था मर्दकै के पास गया।7तब मर्दकै ने अपनी पूरी आप बीती, और रुपये की वह ठीक रक़म उसे बताई जिसे हामान ने यहूदियों को हलाक करने के लिए बादशाह के ख़ज़ानों में दाख़िल करने का वा'दा किया था।8~और उस फ़रमान की लिखी हुइ तहरीर की एक नक़ल भी, जो उनको हलाक करने के लिए सोसन में दी गई थी उसे दी, ताकि उसे आस्तर को दिखाए और बताए और उसे ताकीद करे कि बादशाह के सामने जाकर उससे मिन्नत करे, और उसके सामने अपनी क़ौम के लिए दरख़्वास्त करे।9~चुनाँचे हताक ने आकर आस्तर को मर्दकै की बातें कह सुनाई।10~तब आस्तर हताक से बातें करने लगी, और उसे मर्दकै के लिए यह पैग़ाम दिया कि11~"बादशाह के सब मुलाज़िम और बादशाही सूबों के सब लोग जानते हैं कि जो कोई, मर्द हो या 'औरत बिन बुलाए बादशाह की बारगाह-ए-अन्दरूनी में जाए, उसके लिए बस एक ही क़ानून है कि वह मारा जाए, अलावा उसके जिसके लिए बादशाह सोने की लाठी उठाए ताकि वह जीता रहे, लेकिन तीस दिन हुए कि मैं बादशाह के सामने नहीं बुलाई गई।"12उन्होंने मर्दकै से आस्तर की बातें कहीं|13तब मर्दकै ने उनसे कहा कि "आस्तर के पास यह जवाब ले जायें कि तू अपने दिल में यह न समझ कि सब यहूदियों मेंसे तू बादशाह के महल में बची रहेगी |14क्यूँकि अगर तू इस वक़्त ख़ामोशी अख़्तियार करे तो छुटकारा और नजात यहूदियों के लिए किसी और जगह से आएगी, लेकिन तू अपने बाप के ख़ान्दान के साथ हलाक हो जाएगी। और क्या जाने कि तू ऐसे ही वक़्त ~के लिए बादशाहत को पहुँची है?"15तब आस्तर ने उनको मर्दकै के पास यह जवाब ले जाने का हुक्म दिया,16कि "जा, और सोसन में जितने यहूदी मौजूद हैं उनको इकट्ठा कर, और तुम मेरे लिए रोज़ा रख्खो, और तीन रोज़ तक दिन और रात न कुछ खाओ न पियो। मैं भी और मेरी सहेलियाँ इसी तरह से रोज़ा रख्खेंगी; और ऐसे ही मैं बादशाह के सामने जाऊँगी जो क़ानून के ख़िलाफ़ है; और अगर मैं हलाक हुई तो हलाक हुई।"17~चुनाँचे मर्दकै रवाना हुआ और आस्तर के हुक्म के मुताबिक़ सब कुछ किया।
1~और तीसरे दिन ऐसा हुआ कि आस्तर शाहाना लिबास पहन कर शाही महल की बारगाह-ए-अन्दरूनी में शाही महल के सामने खड़ी हो गई। और बादशाह अपने शाही महल में अपने तख़्त-ए-हुकूमत पर महल के सामने के दरवाज़े पर बैठा था।2और ऐसा हुआ कि जब बादशाह ने आस्तर मलिका को बारगाह में खड़ी देखा, तो वह उसकी नज़र में मक़्बूल ठहरी और बादशाह ने वह सुनहली लाठी जो उसके हाथ में थी आस्तर की तरफ़ बढ़ाया। तब आस्तर ने नज़दीक जाकर लाठी की नोक को छुआ।3~तब बादशाह ने उससे कहा, "आस्तर मलिका तू क्या चाहती है और किस चीज़ की दरख़्वास्त करती है? आधी बादशाहत तक वह तुझे बख़्शी जाएगी।"4~आस्तर ने दरख़्वास्त की "अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो, तो बादशाह उस जश्न में जो मैंने उसके लिए तैयार किया है, हामान को साथ लेकर आज तशरीफ़ लाए।”5~बादशाह ने फ़रमाया कि "हामान को जल्द लाओ, ताकि आस्तर के कहे के मुताबिक़ किया जाए।" तब बादशाह और हामान उस जश्न में आए, जिसकी तैयारी आस्तर ने की थी6और बादशाह ने जश्न में मयनौशी के वक़्त आस्तर से पूछा, "तेरा क्या सवाल है? वह मन्ज़ूर होगा। तेरी क्या दरख़्वास्त है? आधी बादशाहत तक वह पूरी की जाएगी।”7आस्तर ने जवाब दिया, "मेरा सवाल और मेरी दरख़्वास्त यह है,8अगर मैं बादशाह की नज़र में मक़बूल हूँ, और बादशाह को मन्ज़ूर हो कि मेरा सवाल क़ुबूल और मेरी दरख़्वास्त पूरी करे, तो बादशाह और हामान मेरे जश्न में जो मैं उनके लिए तैयार करूँगी आयें और कल जैसा बादशाह ने इरशाद किया है मैं करूँगी।”9उस दिन हामान शादमान और ख़ुश होकर निकला। लेकिन जब हामान ने बादशाह के फाटक पर मर्दकै को देखा कि उसके लिए न खड़ा हुआ न हटा, तो हामान मर्दकै के खिलाफ़ गुस्से से भर गया।10~तोभी हामान अपने आपको बरदाश्त करके घर गया, और लोग भेजकर अपने दोस्तों को और अपनी बीवी ज़रिश को बुलवाया।11और हामान उनके आगे अपनी शान-ओ-शौकत, और बेटों की कसरत का क़िस्सा कहने लगा, और किस किस तरह बादशाह ने उसकी तरक़्क़ी की, और उसको हाकिम और बादशाही मुलाज़िमों से ज़्यादा सरफ़राज़ किया।12हामान ने यह भी कहा, "देखो, आस्तर मलिका ने अलावा मेरे किसी को बादशाह के साथ अपने जश्न में, जो उसने तैयार किया था आने न दिया; और कल के लिए भी उसने बादशाह के साथ मुझे दा'वत दी है।13~तोभी जब तक मर्दकै यहूदी मुझे बादशाह के फाटक पर बैठा दिखाई देता है, इन बातों से मुझे कुछ हासिल नहीं।"14~तब उसकी बीवी ज़रिश और उसके सब दोस्तों ने उससे कहा, "पचास हाथ ऊँची सूली बनाई जाए, और कल बादशाह से 'दरख़्वास्त करके मर्दकै उस पर चढ़ाया जाए; तब ख़ुशी ख़ुशी बादशाह के साथ जश्न में जाना।" यह बात हामान को पसन्द आई, और उसने एक सूली बनवाई
1उस रात बादशाह को नींद न आई, तब उसने तवारीख़ की किताबों के लाने का हुक्म दिया और वह बादशाह के सामने पढ़ी गईं।2और यह लिखा मिला कि मर्दकै ने दरबानों में से बादशाह के दो ख़्वाजासराओं, बिगताना और तरश की मुख़बरी की थी, जो अख़्सूयरस बादशाह पर हाथ चलाना चाहते थे।3~बादशाह ने कहा, "इसके लिए मर्दकै की क्या इज़्ज़त-ओ-हुरमत की गई है?" बादशाह के मुलाज़िमों ने जो उसकी ख़िदमत करते थे कहा, "उसके लिए कुछ नहीं किया गया।"4~और बादशाह ने पूछा, "बारगाह में कौन हाज़िर है?" उधर हामान शाही महल की बाहरी बारगाह में आया हुआ था कि मर्दकै को उस सूली पर चढ़ाने के लिए, जो उसने उसके लिए तैयार की थी। बादशाह से दरख़्वास्त करे।5इसलिए बादशाह के मुलाज़िमों ने उससे कहा, "हुज़ूर बारगाह में हामान खड़ा है।" बादशाह ने फ़रमाया, "उसे अन्दर आने दो।”6~तब ~हामान अन्दर आया, और बादशाह ने उससे कहा, "जिसकी ता'ज़ीम बादशाह करना चाहता है, उस शख़्स से क्या किया जाए?” हामान ने अपने दिल में कहा, "मुझ से ज़्यादा बादशाह किसकी ता'ज़ीम करना चाहता होगा?”7~इसलिए ~हामान ने बादशाह से कहा कि "उस शख़्स के लिए, जिसकी ता'ज़ीम बादशाह को मन्ज़ूर हो,8शाहाना लिबास जिसे बादशाह पहनता है, और वह घोड़ा जो बादशाह की सवारी का है, और शाही ताज जो उसके सिर पर रख्खा जाता है लाया जाए।9और वह लिबास और वह घोड़ा बादशाह के सबसे ऊँचे 'ओहदा के उमरा में से एक के हाथ में ज़िम्मा हों, ताकि उस लिबास से उस शख़्स को पहनायी जाए जिसकी ता'ज़ीम बादशाह को मन्ज़ूर है; और उसे उस घोड़े पर सवार करके शहर के 'आम रास्तों में फिराएँ और उसके आगे आगे 'एलान करें, "जिस शख़्स की ता'ज़ीम बादशाह करना चाहता है, उससे ऐसा ही किया जाएगा।' "10~तब बादशाह ने हामान से कहा, "जल्दी कर, और अपने कहे के मुताबिक़ वह लिबास और घोड़ा ले, और मर्दकै यहूदी से जो बादशाह के फाटक पर बैठा है ऐसा ही कर। जो कुछ तूने कहा है उसमें कुछ भी कमी न होने पाए।"11~तब हामान ने वह लिबास और घोड़ा लिया और मर्दकै को पहना करके घोड़े पर सवार शहर के 'आम रास्तों में फिराया, और उसके आगे आगे ऐलान करता गया कि "जिस शख़्स की ताज़ीम बादशाह करना चाहता है, उससे ऐसा ही किया जाएगा।"12और मर्दकै तो फिर बादशाह के फाटक पर लौट आया, लेकिन हामान ग़मगीन और सिर ढाँके हुए जल्दी जल्दी अपने घर गया।13और हामान ने अपनी बीवी ज़रिश और अपने सब दोस्तों को एक एक बात जो उस पर गुज़री थी बताई। तब उसके दानिशमन्दों और उसकी बीवी ज़रिश ने उससे कहा, "अगर मर्दकै, जिसके आगे तू पस्त होने लगा है, यहूदी नसल में से है तो तू उस पर ग़ालिब न होगा,बल्कि उसके आगे ज़रूर पस्त होता जाएगा।”14~वह उससे अभी बातें कर ही रहे थे कि बादशाह के ख़्वाजासरा आ गए, और हामान को उस जश्न में ले जाने की जल्दी की जिसे आस्तर ने तैयार किया था।
1तब बादशाह और हामान आए कि आस्तर मलिका के साथ खाएँ-पिएँ।2और बादशाह ने दूसरे दिन मेहमान नवाज़ी पर मयनौशी के वक़्त आस्तर से फिर पूछा, "आस्तर मलिका, तेरा क्या सवाल है? वह मन्ज़ूर होगा। और तेरी क्या दरख़्वास्त है? आधी बादशाहत तक वह पूरी की जाएगी।"3आस्तर मलिका ने जवाब दिया, "ऐ बादशाह, अगर मैं तेरी नज़र में मक़्बूल हूँ और बादशाह को मंज़ूर हो, तो मेरे सवाल पर मेरी जान बख़्शी हो और मेरी दरख़्वास्त पर मेरी क़ौम मुझे मिले।4~क्यूँकि मैं और मेरे लोग हलाक और क़त्ल किए जाने, और नेस्त-ओ-नाबूद होने को बेच दिए गए हैं। अगर हम लोग ग़ुलाम और लौंडियाँ बनने के लिए बेच डाले जाते तो मैं चुप रहती, अगरचे उस दुश्मन को बादशाह के नुक़्सान का मु'आवज़ा देने की ताक़त न होती।”5~तब अख़्सूयरस बादशाह ने आस्तर मलिका से कहा वह कौन है और कहाँ ~है जिसने अपने दिल में ऐसा ख़्याल करने की हिम्मत की?”6आस्तर ने कहा, "वह मुख़ालिफ़ और वह दुश्मन, यही ख़बीस हामान है!" तब हामान बादशाह और मलिका के सामने परेशान ~हुआ।7~और बादशाह ग़ुस्सा होकर मयनौशी से उठा, और महल के बाग़ में चला गया; और हामान आस्तर मलिका से अपनी जान बख़्शी की दरख़्वास्त करने को उठ खड़ा हुआ, क्यूँकि उसने देखा कि बादशाह ने मेरे ख़िलाफ़ बदी की ठान ली है।8~और बादशाह महल के बाग़ से लौटकर मयनौशी की जगह आया, और हामान उस तख़्त के ऊपर जिस पर आस्तर बैठी थी पड़ा था। तब बादशाह ने कहा, "क्या यह घर ही में मेरे सामने मलिका पर जब्र करना चाहता है?" इस बात का बादशाह के मुँह से निकलना था कि उन्होंने हामान का मुँह ढाँक दिया।9फिर उन ख़्वाजासराओं में से जो ख़िदमत करते थे, एक ख़्वाजासरा ख़रबूनाह ने दरख़्वास्त की, "हुज़ूर! इसके अलावा हामान के घर में वह पचास हाथ ऊँची सूली खड़ी है, जिसको हामान ने मर्दकै के लिए तैयार किया जिसने बादशाह के फ़ाइदे की बात बताई।" बादशाह ने फ़रमाया, "उसे उस पर टाँग दो।"10तब उन्होंने हामान को उसी सूली पर, जो उसने मर्दकै के लिए तैयार की थी टाँग दिया। तब बादशाह का ग़ुस्सा ठंडा हुआ।
1उसी दिन अख़्सूयरस बादशाह ने यहूदियों के दुश्मन हामान का घर आस्तर मलिका को बख़्शा। और मर्दकै बादशाह के सामने आया, क्यूँकि आस्तर ने बता दिया था कि उसका उससे क्या रिश्ता था।2~और बादशाह ने अपनी अँगूठी जो उसने हामान से ले ली थी, उतार कर मर्दकै को दी। और आस्तर ने मर्दकै को हामान के घर पर मुख़्तार बना दिया।3और आस्तर ने फिर बादशाह के सामने ~दरख़्वास्त ~की और उसके क़दमों पर गिरी और आँसू बहा बहाकर उसकी मिन्नत की कि हामान अजाजी की बदख़्वाही और साज़िश को, जो उसने यहूदियों के बरख़िलाफ़ की थी बातिल कर दे।4~तब बादशाह ने आस्तर की तरफ़ सुनहली लाठी ~बढ़ाई, फिर आस्तर बादशाह के सामने ~उठ खड़ी हुई5और कहने लगी, "अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो और मैं उसकी नज़र में मक़बूल ~हूँ, और यह बात बादशाह को मुनासिब मा'लूम हो और मैं उसकी निगाह में प्यारी हूँ, तो उन फ़रमानों को रद करने को लिखा जाए जिनकी अजाजी हम्मदाता के बेटे हामान ने, उन सब यहूदियों को हलाक करने के लिए जो बादशाह के सब सूबों में बसते हैं, पसन्द किया था।6~क्यूँकि मैं उस बला को जो मेरी क़ौम पर नाज़िल होगी, क्यूँकर देख सकती हूँ? या कैसे मैं अपने रिश्तेदारों की हलाकत देख सकती हूँ?"7तब अख़्सूयरस बादशाह ने आस्तर मलिका और मर्दकै यहूदी से कहा कि "देखो, मैंने हामान का घर आस्तर को बख़्शा है, और उसे उन्होंने सूली पर टाँग दिया, इसलिए कि उसने यहूदियों पर हाथ चलाया।8~तुम भी बादशाह के नाम से यहूदियों को जैसा चाहते हो लिखो, और उस पर बादशाह की अँगूठी से मुहर करो, क्यूँकि जो लिखाई ~बादशाह के नाम से लिखी जाती है, उस पर बादशाह की अँगूठी से मुहर की जाती है, उसे कोई रद नहीं कर सकता।"9~तब उसी वक़्त तीसरे महीने, या'नी सैवान महीने की तेइसवीं तारीख़ को, बादशाह के मुन्शी तलब किए गए और जो कुछ मर्दकै ने हिन्दोस्तान से कूश तक एक सौ सताईस सूबों के यहूदियों और नवाबों और हाकिमों और सूबों के अमीरों को हुक्म दिया, वह सब हर सूबे को उसी के हुरूफ़ और हर क़ौम को उसी की ज़बान, और यहूदियों को उनके हुरूफ़ और उनकी ज़बान के मुताबिक़ लिखा गया।10~और उसने अख़्सूयरस बादशाह के नाम से ख़त लिखे, और बादशाह की अँगूठी से उन पर मुहर की, और उनको सवार कासिदों के हाथ रवाना किया, जो अच्छी नसल के तेज़ रफ़्तार शाही घोड़ों पर सवार थे।11~इनमें बादशाह ने यहूदियों को जो हर शहर में थे, इजाज़त दी कि इकट्ठे होकर अपनी जान बचाने के लिए मुक़ाबिले पर अड़ जाएँ, और उस क़ौम और उस सूबे की सारी फ़ौज को जो उन पर और उनके छोटे बच्चों और बीवियों पर हमलावर हो हलाक और क़त्ल करें और बरबाद कर दें, और उनका माल लूट लें।12यह अख़्सूयरस बादशाह के सब सूबों में बारहवें महीने, या'नी अदार महीने की तेरहवीं तारीख़ की एक ही दिन में हो।13~इस तहरीर की एक एक नक़ल सब क़ौमों के लिए जारी की गई कि इस फ़रमान का ऐलान हर सूबे में किया जाए, ताकि यहूदी इस दिन अपने दुश्मनों से अपना इन्तक़ाम लेने को तैयार रहें।14~इसलिए वह क़ासिद ~जो तेज़ रफ़्तार शाही घोड़ों पर सवार थे रवाना हुए,और बादशाह के हुक्म की वजह से तेज़ निकले चले गए, और वह फ़रमान सोसन के महल में दिया गया।15और मर्दकै बादशाह के सामने से आसमानी और सफ़ेद रंग का शाहाना लिबास और सोने का एक बड़ा ताज, और कतानी और अर्ग़वानी चोग़ा पहने निकला और सोसन शहर ने ना'रा मारा और ख़ुशी मनाई।16~यहूदियों को रौनक़ और ख़ुशी और शादमानी और इज़्ज़त हासिल हुई।17~और हर सूबे और हर शहर में जहाँ कहीं बादशाह का हुक्म और उसका फ़रमान पहुँचा, यहूदियों को खुर्रमी और शादमानी और ईद और ख़ुशी का दिन नसीब हुआ; और उस मुल्क के लोगों में से बहुतेरे यहूदी हो गए, क्यूँकि यहूदियों का ख़ौफ़ उन पर छा गया था ।
1अब बारहवें महीने या'नी अदार महीने की तेरहवीं तारीख़ को, जब बादशाह के हुक्म और फ़रमान पर 'अमल करने का वक़्त नज़दीक आया, और उस दिन यहूदियों के दुश्मनों को उन पर ग़ालिब होने की उम्मीद थी, हालाँकि इसके अलावा यह हुआ कि यहूदियों ने अपने नफ़रत करनेवालों पर ग़लबा पाया;2तो अख़्सूयरस बादशाह के सब सूबों के यहूदी अपने अपने शहर में इकट्ठे हुए कि उन पर जो उनका नुक़्सान चाहते थे, हाथ चलाएँ और कोई आदमी उनका सामना न कर सका, क्यूँकि उनका ख़ौफ़ सब क़ौमों पर छा गया था।3और सूबों के सब अमीरों और नवाबों और हाकिमों और बादशाह के कार गुज़ारों ने यहूदियों की मदद की, इसलिए कि मर्दकै का रौब उन पर छा गया था।4~क्यूँकि मर्दकै शाही महल में ख़ास 'ओहदे पर ~था, और सब सूबों में उसकी शोहरत फैल गई थी, इसलिए कि यह आदमी या'नी मर्दकै बढ़ता ही चला गया।5~और यहूदियों ने अपने सब दुश्मनों को तलवार की धार से काट डाला और क़त्ल और हलाक किया, और अपने नफ़रत करने वालों से जो चाहा किया।6और सोसन के महल में यहूदियों ने पाँच सौ आदमियों को क़त्ल और हलाक किया,7और परशन्दाता और दलफ़ून और असपाता,8~और पोरता और अदलियाह और अरीदता,9~और परमश्ता और अरीसै और अरीदै और वैज़ाता,10~या'नी यहूदियों के दुश्मन हामान-बिन-हम्मदाता के दसों बेटों को उन्होंने क़त्ल किया, पर लूट पर उन्होंने हाथ न बढ़ाया।11~उसी दिन उन लोगों का शुमार जो सोसन के महल में क़त्ल हुए बादशाह के सामने पहुँचाया गया।12~और बादशाह ने आस्तर मलिका से कहा, "यहूदियों ने सोसन के महल ही में पाँच सौ आदमियों और हामान के दसों बेटों को कत्ल और हलाक किया है, तो बादशाह के बाक़ी सूबों में उन्होंने क्या कुछ न किया होगा! अब तेरा क्या सवाल है? वह मंजूर होगा, और तेरी और क्या दरख़्वास्त है? वह पूरी की जाएगी।"13आस्तर ने कहा, "अगर बादशाह को मंजूर हो तो उन यहूदियों को जो सोसन में हैं इजाज़त मिले कि आज के फ़रमान के मुताबिक़ कल भी करें, और हामान के दसों बेटे सूली पर चढ़ाए जाएँ।"14इसलिए ~बादशाह ने हुक्म दिया, "ऐसा ही किया जाए।” और सोसन में उस फ़रमान का ऐलान किया गया; और हामान के दसों बेटों को उन्होंने टाँग दिया।15और वह यहूदी जो सोसन में रहते थे, अदार महीने की चौदहवीं तारीख़ को इकट्ठे हुए और उन्होंने सोसन में तीन सौ आदमियों को क़त्ल किया, लेकिन लूट के माल को हाथ न लगाया।16~बाक़ी यहूदी जो बादशाह के सूबों में रहते थे, इकट्ठे होकर अपनी अपनी जान बचाने के लिए मुक़ाबिले को अड़ गए, और अपने दुश्मनों से आराम पाया और अपने नफ़रत करनेवालों में से पच्छत्तर हज़ार को क़त्ल किया, लेकिन लूट पर उन्होंने हाथ न बढ़ाया।17यह अदार महीने की तेरहवीं तारीख़ थी, और उसी की चौदहवीं तारीख़ को उन्होंने आराम किया, और उसे मेहमान नवाज़ी और ख़ुशी का दिन ठहराया।18लेकिन वह यहूदी जो सोसन में थे, उसकी तेरहवीं और चौदहवीं तारीख़ को इकट्ठे हुए, और उसकी पन्द्रहवीं तारीख़ को आराम किया और उसे मेहमान नवाज़ी और ख़ुशी का दिन ठहराया।19~इसलिए देहाती यहूदी जो बिना दीवार ~बस्तियों में रहते हैं, अदार महीने की चौदहवीं तारीख़ की शादमानी और मेहमान नवाज़ी का और ख़ुशी का और एक दूसरे को तोहफ़े भेजने का दिन मानते हैं।20मर्दकै ने यह सब अहवाल लिखकर, उन यहूदियों को जो अख़्सूयरस बादशाह के सब सूबों में क्या नज़दीक क्या दूर रहते थे ख़त भेजे,21ताकि उनको ताकीद करे कि वह अदार महीने की चौदहवीं तारीख़ को, और उसी की पन्द्रहवीं को हर साल,22~ऐसे दिनों की तरह मानें जिनमें यहूदियों को अपने दुश्मनों से चैन मिला; और वह महीने उनके लिए ग़म से शादमानी में और मातम से ख़ुशी के दिन में बदल ~गए; इसलिए वह उनको मेहमान नवाज़ी ~और ख़ुशी और आपस में तोहफ़े भेजने और गरीबों को ख़ैरात देने के दिन ठहराएँ।23यहूदियों ने जैसा शुरू किया था और जैसा मर्दकै ने उनको लिखा था, वैसा ही करने का ज़िम्मा लिया।24क्यूँकि अजाजी हम्मदाता के बेटे हामान, सब यहूदियों के दुश्मन, ने यहूदियों के ख़िलाफ़ उनको हलाक करने की तदबीर की थी, और उसने पूर ~या'नी पर्ची ~डाला था कि उनको मिटाये ~और हलाक करे।25~तब जब वह मु'आमिला बादशाह के सामने पेश हुआ, तो उसने ख़तों के ज़रिए से हुक्म किया कि वह बुरी तजवीज़, जो उसने यहूदियों के बरख़िलाफ़ की थी उल्टी उस ही के सिर पर पड़े, और वह और उसके बेटे सूली पर चढ़ाए जाएँ।26~इसलिए उन्होंने उन दिनों को पूर के नाम की वजह से पूरीम कहा। इसलिए ~इस ख़त की सब बातों की वजह ~से, और जो कुछ उन्होंने इस मु'आमिले में ख़ुद देखा था और जो उनपर गुज़रा था ~उसकी वजह ~से भी27~यहूदियों ने ठहरा दिया, और अपने ऊपर और अपनी नस्ल के लिए और उन सभों के लिए जो उनके साथ मिल गए थे, यह ज़िम्मा लिया ताकि बात अटल हो जाए कि वह उस ख़त की तहरीर के मुताबिक़ हर साल उन दोनों दिनों को मुक़र्ररा वक़्त पर मानेंगे।28~और यह दिन नसल-दर-नसल हर ख़ान्दान और सूबे और शहर में याद रख्खें और माने जाएँगे, और पूरीम के दिन यहूदियों में कभी मौकू़फ़ न होंगे, न उनकी यादगार उनकी नसल से जाती रहेगी।29और अबीख़ेल की बेटी आस्तर मलिका, और यहूदी मर्दकै ने पूरीम के बाब के ख़त पर ज़ोर देने के लिए पूरे इख़्तियार से लिखा।30और उसने सलामती और सच्चाई की बातें लिख कर अख़्सूयरस की बादशाहत ~के एक सौ सताईस सूबों में सब यहूदियों के पास ख़त भेजे31ताकि पूरीम के इन दिनों को उनके मुक़र्ररा वक़्त के लिए बरक़रार करे जैसा यहूदी मर्दकै और आस्तर मलिका ने उनको हुक्म किया था; और जैसा उन्होंने अपने और अपनी नसल के लिए रोज़ा रखने और मातम करने के बारे में ठहराया था।32और आस्तर के हुक्म से पूरीम की इन रस्मों की तसदीक़ हुई और यह किताब में लिख लिया गया।
1और अख़्सूयरस बादशाह ने ज़मीन पर और समुन्दर के जज़ीरों पर मेह्सूल मुक़र्रर किया।2~और उसकी ताक़त ~और हुकूमत के सब काम, और मर्दकै की 'अज़मत का तफ़सीली हाल जहाँ तक बादशाह ने ~उसे तरक़्क़ी दी थी, क्या वह मादै और फ़ारस के बादशाहों की तवारीख़ की किताब में लिखे नहीं?3क्यूँकि यहूदी मर्दकै अख़्सूयरस बादशाह से दूसरे दर्जे पर था, और सब यहूदियों में ख़ास 'ओहदे और अपने भाइयों की सारी जमा'अत में मक़्बूल था, और अपनी क़ौम का ख़ैर ख़्वाह रहा, और अपनी सारी औलाद से सलामती की बातें करता था।
1~ऊज़ की सर ज़मीन में अय्यूब नाम का एक शख़्स था। वह शख़्स कामिल और रास्तबाज़ था और ख़ुदा से डरता और गुनाह से दूर रहता था।2उसके यहाँ सात बेटे और तीन बेटियाँ पैदा हुईं।3उसके पास सात हज़ार भेंड़े और तीन हज़ार ऊँट और पाँच सौ जोड़ी बैल और पाँच सौ गधियाँ और बहुत से नौकर चाकर थे, ऐसा कि अहल-ए-मशरिक़ में वह सबसे बड़ा आदमी था।4उसके बेटे एक दूसरे के घर जाया करते थे और हर एक अपने दिन पर मेहमान नवाज़ी करते थे , और अपने साथ खाने-पीने को अपनी तीनों बहनों को बुलवा भेजते थे|5और जब उनकी मेहमान नवाज़ी के दिन पूरे हो जाते, तो अय्यूब उन्हें बुलवाकर पाक करता और सुबह को सवेरे उठकर उन सभों की ता'दाद के मुताबिक़ सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ अदा करता था, क्यूँकि अय्यूब कहता था, कि "शायद मेरे बेटों ने कुछ ख़ता की हो और अपने दिल में ख़ुदा की बुराई की हो। " अय्यूब हमेशा ऐसा ही किया करता था।6और एक दिन ख़ुदा के बेटे आए कि ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हों, और उनके बीच ~शैतान" भी आया।7और ख़ुदावन्द ने शैतान से पूछा, कि "तू कहाँ से आता है?" शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, कि"ज़मीन पर इधर-उधर घूमता फिरता और उसमें सैर करता हुआ आया हूँ। ”8ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, "क्या तू ने मेरे बन्दे अय्यूब के हाल पर भी कुछ ग़ौर किया? क्यूँकि ज़मीन पर उसकी तरह कामिल और रास्तबाज़ आदमी, जो ख़ुदा से डरता , और गुनाह से दूर रहता हो, कोई नहीं। "9शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, "क्या अय्यूब यूँ ही ख़ुदा से डरता' है?10~क्या तू ने उसके और उसके घर के चारों तरफ़, और जो कुछ उसका है उस सबके ~चारों तरफ़ बाड़ नहीं बनाई है? तू ने उसके हाथ के काम में बरकत बख़्शी है, और उसके गल्ले मुल्क में बढ़ गए हैं।11लेकिन तू ज़रा अपना हाथ बढ़ा कर जो कुछ उसका है उसे छू ही दे; तो क्या वह तेरे मुँह पर तेरी बुराई न करेगा?”12ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, "देख, उसका सब कुछ तेरे इख़्तियार में है, सिर्फ़ उसको हाथ न लगाना। " तब शैतान ख़ुदावन्द के सामने से चला गया।13और एक दिन जब उसके बेटे और बेटियाँ अपने बड़े भाई के घर में खाना खा रहे और मयनोशी कर रहे थे।14तो एक क़ासिद ने अय्यूब के पास आकर कहा, कि "बैल हल में जुते थे और गधे उनके पास चर रहे थे,15कि सबा के लोग उन पर टूट पड़े और उन्हें ले गए, और नौकरों को हलाक किया और सिर्फ़ मैं ही अकेला बच निकला कि तुझे ख़बर दूँ। ”16वह अभी यह कह ही रहा था कि एक और भी आकर कहने लगा, कि "ख़ुदा की आग आसमान से नाज़िल हुई और भेड़ों और नौकरों को जलाकर भस्म कर दिया, और सिर्फ़ मैं ही अकेला बच निकला कि तुझे ख़बर दूँ। "17वह अभी यह कह ही रहा था कि एक और भी आकर कहने लगा, 'कसदी तीन ग़ोल होकर ऊँटों पर आ गिरे और उन्हें ले गए, और नौकरों को हलाक किया और सिर्फ़ मैं ही अकेला बच निकला कि तुझे ख़बर दूँ। ”18वह अभी यह कह ही रहा था कि एक और भी आकर कहने लगा, कि "तेरे बेटे बेटियाँ अपने बड़े भाई के घर में खाना खा रहे और मयनोशी कर रहे थे,19और देख, वीरान से एक बड़ी आँधी चली और उस घर के चारों कोनों पर ऐसे ज़ोर से टकराई कि वह उन जवानों पर गिर पड़ा, और वह मर गए और सिर्फ़ मैं ही अकेला बच निकला कि तुझे ख़बर दूँ। "20तब अय्यूब ने उठकर अपना लिबास चाक किया और सिर मुंडाया और ज़मीन पर गिरकर सिज्दा किया21और कहा, "नंगा मैं अपनी माँ के पेट से निकला, और नंगा ही वापस जाऊँगा। ख़ुदावन्द ने दिया और ख़ुदावन्द ने ले लिया। ख़ुदावन्द का नाम मुबारक हो। "22इन सब बातों में अय्यूब ने न तो गुनाह किया और न ख़ुदा पर ग़लत काम का 'ऐब लगाया।
1~फिर एक दिन ख़ुदा के बेटे आए कि ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हों, और शैतान भी उनके बीच आया कि ख़ुदावन्द के आगे हाज़िर हो।2और ख़ुदावन्द ने शैतान से पूछा, कि "तू कहाँ से आता है?" शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, कि "ज़मीन पर इधर-उधर घूमता फिरता और उसमें सैर करता हुआ आया हूँ। "3ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, "क्या तू ने मेरे बन्दे अय्यूब के हाल पर भी कुछ ग़ौर किया; क्यूँकि ज़मीन पर उसकी तरह कामिल और रास्तबाज़ आदमी जो ख़ुदा से डरता और गुनाह ~से दूर रहता हो, कोई नहीं और गो तू ने मुझको उभारा कि बे वजह उसे हलाक करूँ , तोभी वह अपनी रास्तबाज़ी पर क़ायम है?”4शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, कि 'खाल के बदले खाल, बल्कि ~इन्सान अपना सारा माल अपनी जान के लिए दे डालेगा।5अब सिर्फ़ अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डी और उसके गोश्त को छू दे, तो वह तेरे मुँह पर तेरी बुराई करेगा। ”6ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, कि "देख, वह तेरे इख़्तियार में है, सिर्फ़ उसकी जान महफ़ूज़ रहे। "7तब शैतान ख़ुदावन्द के सामने से चला गया और अय्यूब को तलवे से चाँद तक दर्दनाक फोड़ों से दुख दिया।8और वहअपने को खुजलाने के लिए एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया।9तब उसकी बीवी उससे कहने लगी, कि "क्या तू अब भी अपनी रास्ती पर क़ायम रहेगा? ख़ुदा की बुराई कर और मर जा। "10~लेकिन उसने उससे कहा, कि "तू नादान 'औरतों की जैसी बातें करती है; क्या हम ख़ुदा के हाथ से सुख पाएँ और दुख न पाएँ?" इन सब बातों में अय्यूब ने अपने लबों से ख़ता न की।11जब अय्यूब के तीन दोस्तों, तेमानी अलीफ़ज़ और सूखी बिलदद और नामाती जूफ़र, ने उस सारी आफ़त का हाल जो उस पर आई थीं सुना, तो वह अपनी-अपनी जगह से चले और उन्होंने आपस में 'अहद किया कि जाकर उसके साथ रोएँ और उसे तसल्ली दें।12और जब उन्होंने दूर से निगाह की और उसे न पहचाना, तो वह चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगे और हर एक ने अपना लिबास चाक किया और अपने सिर के ऊपर आसमान की तरफ़ धूल उड़ाई।13और वह सात दिन और सात रात उसके साथ ज़मीन पर बेठे रहे और किसी ने उससे एक बात न कही क्यूँकि उन्होंने देखा कि उसका ग़म बहुत बड़ा |
1इसके बा'द अय्यूब ने अपना मुँह खोल कर अपने पैदाइश के दिन पर ला'नत की।2और अय्यूब कहने लगा :3~ "मिट जाए वह दिन जिसमें मैं पैदा हुआ, और वह रात भी जिसमें कहा गया, 'कि देखो, बेटा हुआ। "4वह दिन अँधेरा हो जाए। ख़ुदा ऊपर से उसका लिहाज़ न करे, और न उस पर रोशनी पड़े।5अँधेरा और मौत का साया उस पर क़ाबिज़ हो"। बदली उस पर छाई रहे और दिन को तारीक कर देनेवाली चीज़ें उसे दहशत ज़दा करें।6गहरी तारीकी उस रात को दबोच ले। वह साल के दिनों के बीच ख़ुशी न करने पाए, और न महीनों की ता'दाद में आए।7वह रात बाँझ हो जाए; उसमें ख़ुशी की कोई आवाज़ न आए।8~दिन पर ला'नत करने वाले उस पर ला'नत करें और वह भी जो अज़दहा" को छेड़ने को तैयार हैं।9उसकी शाम के तारे तारीक हो जाएँ, वह रोशनी की राह देखे, जबकि वह है नहीं, और न वह सुबह की पलकों को देखे।10क्यूँकि उसने मेरी माँ के रहम के दरवाज़ों को बंद न किया और दुख को मेरी आँखों से छिपा न रख्खा।11मैं रहम ही में क्यूँ न मर गया? मैंने पेट से निकलते ही जान क्यूँ न दे दी?12~मुझे क़ुबूल करने को घुटने क्यूँ थे, और छातियाँ कि मैं उनसे पियूँ ~?13नहीं तो इस वक़्त मैं पड़ा होता, और बेख़बर रहता, मैं सो जाता। तब मुझे आराम मिलता।14ज़मीन के बादशाहों और सलाहकारों के साथ, जिन्होंने अपने लिए मक़बरे बनाए।15या उन शाहज़ादों के साथ होता, जिनके पास सोना था। जिन्होंने अपने घर चाँदी से भर लिए थे;16या पोशीदा गिरते हमल की तरह , मैं वजूद में न आता या उन बच्चों की तरह जिन्होंने रोशनी ही न देखी।17वहाँ शरीर फ़साद से बाज़ आते हैं, और थके मांदे राहत पाते हैं।18वहाँ क़ैदी मिलकर आराम करते हैं, और दरोग़ा की आवाज़ सुनने में नहीं आती।19छोटे और बड़े दोनों वहीं हैं, और नौकर अपने मालिक से आज़ाद है। "20दुखियारे को रोशनी, और तल्ख़जान को ज़िन्दगी क्यूँ मिलती है?21जो मौत की राह देखते हैं लेकिन वह आती नहीं, और छिपे ख़ज़ाने से ज़्यादा उसकी ~तलाश करते ~हैं।22जो निहायत शादमान और ख़ुश होते हैं, जब क़ब्र को पा लेते हैं।23ऐसे आदमी को रोशनी क्यूँ मिलती है, जिसकी राह छिपी है, और जिसे ख़ुदा ने हर तरफ़ से बंद कर दिया है?24क्यूँकि मेरे खाने की जगह मेरी आहें हैं, और मेरा कराहना पानी की तरह जारी है।25क्यूँकि जिस बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आती है, और जिस बात का मुझे ख़ौफ़ होता है, वही मुझ पर गुज़रती है।26क्यूँकि मुझे न चैन है, न आराम है, न मुझे कल पड़ती है; बल्कि मुसीबत ही आती है। "
1~तब तेमानी अलीफ़ज़ कहने लगा,2अगर कोई तुझ से बात चीत करने की कोशिश करे तो क्या तू अफ़सोस करेगा?, लेकिन बोले बगै़र कौन रह सकता है?3देख, तू ने बहुतों को सिखाया, और कमज़ोर हाथों को मज़बूत किया।4तेरी बातों ने गिरते हुए को संभाला, और तू ने लड़खड़ाते" घुटनों को मज़बूत किया।5लेकिन अब तो तुझी पर आ पड़ी और तू कमज़ोर हुआ जाता है। उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।6क्या तेरे ख़ुदा का डर ही तेरा भरोसा नहीं? क्या तेरी राहों की रास्ती तेरी उम्मीद नहीं?7क्या तुझे याद है कि कभी कोई मा'सूम भी हलाक हुआ है? या कहीं रास्तबाज़ भी काट डाले गए?8मेरे देखने में तो जो गुनाह को जोतते और दुख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।9वह ख़ुदा के दम से हलाक होते, और उसके ग़ुस्से के झोंके से भस्म होते हैं।10बबर की ग़रज़ और खू़ँख़्वार बबर की दहाड़, और बबर के बच्चों के दाँत, यह सब तोड़े जाते हैं।11शिकार न पाने से बूढ़ा बबर हलाक होता, और शेरनी के बच्चे तितर-बितर हो जाते हैं।12एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, उसकी भनक मेरे कान में पड़ी।13रात के ख़्वाबों ~के ख़्यालों के बीच, जब लोगों को गहरी नींद आती है।14मुझे ख़ौफ़ और कपकपी ने ऐसा पकड़ा, कि मेरी सब हड्डियों को हिला डाला।15तब एक रूह मेरे सामने से गुज़री, और मेरे रोंगटे खड़े हो गए।16वह चुपचाप खड़ी हो गई लेकिन मैं उसकी शक्ल पहचान न सका; एक सूरत मेरी आँखों के सामने थी और सन्नाटा था। फिर मैंने एक आवाज़ सुनी:17कि क्या फ़ानी इन्सान खु़दा से ज़्यादा होगा? क्या आदमी अपने ख़ालिक़ से ज़्यादा पाक ठहरेगा?18देख, उसे अपने ख़ादिमों का 'ऐतबार नहीं, और वह अपने फ़रिश्तों पर हिमाक़त को 'आइद करता है।19फिर भला उनकी क्या हक़ीक़त है, जो मिट्टी के मकानों में रहते हैं। जिनकी बुन्नियाद ख़ाक में है, और जो पतंगे से भी जल्दी पिस जाते हैं।20वह सुबह से शाम तक हलाक होते हैं, वह हमेशा के लिए फ़ना हो जाते हैं, और कोई उनका ख़याल भी नहीं करता।21क्या उनके ख़ेमे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर तोड़ी नहीं जाती? वह मरते हैं और यह भी बगै़र दानाई के। '
1~ज़रा पुकार ~क्या कोई है जो तुझे जवाब देगा? और मुक़द्दसों में से तू किसकी तरफ़ फिरेगा?2क्यूँकि कुढ़ना बेवकू़फ़ को मार डालता है, और जलन~बेवकू़फ़~की जान ले लेती है।3मैंने बेवकू़फ़ को जड़ पकड़ते देखा है, लेकिन बराबर उसके घर पर ला'नत की।4उसके बाल-बच्चे सलामती से दूर हैं; वह फाटक ही पर कुचले जाते हैं, और कोई नहीं जो उन्हें छुड़ाए।5भूका उसकी फ़सल को खाता है, बल्कि उसे काँटों में से भी निकाल लेता है। और प्यासा उसके माल को निगल जाता है।6क्यूँकि मुसीबत मिट्टी में से नहीं उगती। न दुख ज़मीन में से निकलता है।7बस जैसे चिंगारियाँ ऊपर ही को उड़ती हैं, वैसे ही इन्सान दुख के लिए पैदा हुआ है।8लेकिन मैं तो ख़ुदा ही का तालिब रहूँगा, और अपना मु'आमिला ख़ुदा ही पर छोड़ूँगा।9जो ऐसे बड़े बड़े काम जो बयान नहीं हो सकते, और बेशुमार 'अजीब काम करता है।10वही ज़मीन पर पानी बरसाता, और खेतों में पानी भेजता है।11~इसी तरह वह हलीमों को ऊँची जगह पर बिठाता है, और मातम करनेवाले सलामती की सरफ़राज़ी पाते हैं।12वह 'अय्यारों की तदबीरों को बातिल कर देता है। यहाँ तक कि उनके हाथ उनके मक़सद को पूरा नहीं कर सकते।13वह होशियारों की उन ही की चालाकियों में फसाता है, और टेढ़े लोगों की मशवरत जल्द जाती रहती है।14उन्हें दिन दहाड़े अँधेरे से पाला पड़ता है, और वह दोपहर के वक़्त ऐसे टटोलते फिरते हैं जैसे रात को।15लेकिन मुफ़लिस को उनके मुँह की तलवार, और ज़बरदस्त के हाथ से वह बचालेता है।16~जो ग़रीब को उम्मीद रहती है, और बदकारी अपना मुँह बंद कर लेती है।17देख, वह आदमी जिसे ख़ुदा तम्बीह देता है ख़ुश क़िस्मत है। इसलिए क़ादिर-ए-मुतलक़ की तादीब को बेकार न जान।18क्यूँकि वही मजरूह करता और पट्टी बाँधता है। वही ज़ख़्मी करता है और उसी के हाथ शिफ़ा देते हैं।19~वह तुझे छ: मुसीबतों से छुड़ाएगा, बल्कि सात में भी कोई आफ़त तुझे छूने न पाएगी।20काल में वह तुझ को मौत से बचाएगा, और लड़ाई में तलवार की धार से।21तू ज़बान के कोड़े से महफ़ूज़" रखा जाएगा, और जब हलाकत आएगी तो तुझे डर नहीं लगेगा।22तू हलाकत और ख़ुश्क साली पर हँसेगा, और ज़मीन के दरिन्दों से तुझे कुछ ख़ौफ़ न होगा।23मैदान के पत्थरों के साथ तेरा एका होगा, और जंगली जानवर तुझ से मेल रखेंगे।24और तू जानेगा कि तेरा ख़ेमा महफ़ूज़ है, और तू अपने घर में जाएगा और कोई चीज़ ग़ाएब न पाएगा।25तुझे यह भी मा'लूम होगा कि तेरी नसल बड़ी, और तेरी औलाद ज़मीन की घास की तरह बढ़ेगी।26~तू पूरी 'उम्र में अपनी क़ब्र में जाएगा, जैसे अनाज के पूले अपने वक़्त पर जमा' किए जाते हैं।27देख, हम ने इसकी तहक़ीक़ की और यह बात यूँ ही है। इसे सुन ले और अपने फ़ायदे के लिए इसे याद रख। ”
1तब अय्यूब ने जवाब दिया2काश कि मेरा कुढ़ना तोला जाता, और मेरी सारी मुसीबत तराजू़ में रख्खी जाती!3तो वह समन्दर की रेत से भी भारी होती; इसी लिए मेरी बातें घबराहट की हैं।4क्यूँकि क़ादिर-ए-मुतलक़ के तीर मेरे अन्दर लगे हुए हैं; मेरी रूह उन ही के ज़हर को पी रही हैं'। ख़ुदा की डरावनी बातें मेरे ख़िलाफ़ सफ़ बाँधे हुए हैं।5क्या जंगली गधा उस वक़्त भी चिल्लाता है जब उसे घास मिल जाती है? या क्या बैल चारा पाकर डकारता है?6क्या फीकी चीज़ बे नमक खायी जा सकता है? या क्या अंडे की सफ़ेदी में कोई मज़ा है?7मेरी रूह को उनके छूने से भी इंकार है, वह मेरे लिए मकरूह गिज़ा हैं।8काश कि मेरी दरख़्वास्त मंज़ूर होती, और ख़ुदा मुझे वह चीज़ बख़्शता जिसकी मुझे आरजू़ है।9या'नी ख़ुदा को यही मंज़ूर होता कि मुझे ~कुचल डाले, और अपना हाथ चलाकर मुझे काट डाले।10तो मुझे तसल्ली होती, बल्कि ~मैं उस अटल दर्द में भी शादमान रहता; क्यूँकि मैंने उस पाक बातों का इन्कार नहीं किया।11मेरी ताक़त ही क्या है जो मैं ठहरा रहूँ? और मेरा अन्जाम ही क्या है जो मैं सब्र करूँ ?12क्या मेरी ताक़त पत्थरों की ताक़त है? या मेरा जिस्म पीतल का है?13~क्या बात यही नहीं कि मैं लाचार हूँ, और काम करने की ताक़त मुझ से जाती रही है?14उस पर जो कमज़ोर होने को है उसके दोस्त की तरफ़ से मेहरबानी होनी चाहिए, बल्कि उस पर भी जो क़ादिर-ए-मुतलक़ का ख़ौफ़ छोड़ देता है।15मेरे भाइयों ने नाले की तरह दग़ा की, उन वादियों के नालों की तरह जो सूख जाते हैं।16जो जड़ की वजह से काले हैं, और जिनमें बर्फ़ छिपी है।17जिस वक़्त वह गर्म होते हैं तो ग़ायब हो जाते हैं, और जब गर्मी पड़ती है तो अपनी जगह से उड़ जाते हैं।18क़ाफ़िले अपने रास्ते से मुड़ जाते हैं, और वीराने में जाकर हलाक हो जाते हैं।19तैमा के क़ाफ़िले देखते रहे, सबा के कारवाँ उनके इन्तिज़ार में रहे।20वह शर्मिन्दा हुए क्यूँकि उन्होंने उम्मीद की थी, वह वहाँ आए और पशेमान हुए।21इसलिए तुम्हारी भी कोई हक़ीक़त नहीं;तुम डरावनी चीज़ देख कर डर जाते हो।22~क्या मैंने कहा, 'कुछ मुझे दो?'या 'अपने माल में से मेरे लिए रिश्वत दो ?'23या 'मुख़ालिफ़ के हाथ से मुझे बचाओ?' या' ज़ालिमों के हाथ से मुझे छुड़ाओ?'24मुझे समझाओ और मैं ख़ामोश रहूँगा, और मुझे समझाओ कि मैं किस बात में चूका।25रास्ती की बातों में कितना असर होता है, बल्कि तुम्हारी बहस से क्या फ़ायदा होता है।26क्या तुम इस ख़्याल में हो कि लफ़्ज़ों की तक़रार' करो? इसलिए कि मायूस की बातें हवा की तरह होती हैं।27हाँ, तुम तो यतीमों पर कुर'आ डालने वाले, और अपने दोस्त को तिजारत का माल बनाने वाले हो।28इसलिए ज़रा मेरी तरफ़ निगाह करो, क्यूँकि ~तुम्हारे मुँह पर मैं हरगिज़ झूट न बोलूँगा।29मैं तुम्हारी मिन्नत करता हूँ बाज़ आओ बे इंसाफ़ी न करो| ~मैं हक़ पर हूँ |30क्या मेरी ज़बान पर बे इन्साफ़ी है ? क्या फ़ितना अंगेज़ी की बातों के पहचानने का मुझे सलीक़ा नहीं ?
1"क्या इन्सान के लिए ज़मीन पर जंग-ओ-जदल नहीं?~और क्या उसके दिन मज़दूर के जैसे नहीं होते?2जैसे नौकर साये की बड़ी आरज़ू करता है, और मज़दूर अपनी उजरत का मुंतज़िर रहता है;3वैसे ही मैं बुतलान के महीनों का मालिक बनाया गया हूँ, और मुसीबत की रातें मेरे लिए ठहराई गई हैं।4जब मैं लेटता हूँ तो कहता हूँ, 'कब उठूँगा?' लेकिन रात लम्बी होती है; और दिन निकलने तक इधर-उधर करवटें बदलता रहता हूँ।5मेरा जिस्म कीड़ों और मिट्टी के ढेलों से ढका है। मेरी खाल सिमटती और फिर नासूर हो जाती है।6मेरे दिन जुलाहे की ढरकी से भी तेज़ और बगै़र उम्मीद के गुज़र जाते हैं।7'आह, याद कर कि मेरी ज़िन्दगी हवा है, और मेरी आँख ख़ुशी को फिर न देखेगी।8~जो मुझे अब देखता है उसकी आँख मुझे फिर न देखेगी। तेरी आँखें तो मुझ पर होंगी लेकिन मैं न हूँगा।9जैसे बादल फटकर ग़ायब हो जाता है, वैसे ही वह जो क़ब्र में उतरता है फिर कभी ऊपर नहीं आता;10वह अपने घर को फिर न लौटेगा, न उसकी जगह उसे फिर पहचानेगी।11इसलिए मैं अपना मुँह बंद नहीं रख्खूँगा; मैं अपनी रूह की तल्ख़ी में बोलता जाऊँगा। मैं अपनी जान के 'अज़ाब में शिकवा करूँगा।12क्या मैं समन्दर हूँ या मगरमच्छ', जो तू मुझ पर पहरा बिठाता है?13जब मैं कहता हूँ। मेरा बिस्तर मुझे आराम पहुँचाएगा, मेरा बिछौना मेरे दुख को हल्का करेगा।14तो तू ख़्वाबों से मुझे डराता, और दीदार से मुझे तसल्ली देता है;15यहाँ तक कि मेरी जान फाँसी, और मौत को मेरी इन हड्डियों पर तरजीह देती है।16मुझे अपनी जान से नफ़रत है; मैं हमेशा तक ज़िन्दा रहना नहीं चाहता। मुझे छोड़ दे क्यूँकि मेरे दिन ख़राब हैं।17इन्सान की औकात~ही क्या है जो तू उसे सरफ़राज़ करे, और अपना दिल उस पर लगाए;18और हर सुबह उसकी ख़बर ले, और हर लम्हा उसे आज़माए?19तू कब तक अपनी निगाह मेरी तरफ़ से नहीं हटाएगा, और मुझे इतनी भी मोहलत नहीं देगा कि अपना थूक निगल लें?20~ऐ बनी आदम के नाज़िर, अगर मैंने गुनाह किया है तो तेरा क्या बिगाड़ता हूँ? तूने क्यूँ मुझे अपना निशाना बना लिया है, यहाँ तक कि मैं अपने आप पर बोझ हूँ?21तू मेरा गुनाह क्यूँ नहीं मु'आफ़ करता, और मेरी बदकारी क्यूँ नहीं दूर कर देता? अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊँगा, और तू मुझे ख़ूब ढूँडेगा लेकिन मैं न हूँगा। "
1तब बिलदद सूखी कहने लगा,2तू कब तक ऐसे ही बकता रहेगा, और तेरे मुँह की बातें कब तक आँधी की तरह होंगी?3क्या ख़ुदा बेइन्साफ़ी करता है? क्या क़ादिर-ए-मुतलक़ इन्साफ़ का खू़न करता है?4अगर तेरे फ़र्ज़न्दों ने उसका गुनाह किया है, और उसने उन्हें उन ही की ~ख़ता के हवाले कर दिया।5~तोभी अगर तू ख़ुदा को खू़ब ढूँडता, और क़ादिर-ए-मुतलक़ के सामने मिन्नत करता,6तो अगर तू पाक दिल और रास्तबाज़ होता, तो वह ज़रूर अब तेरे लिए बेदार हो जाता, और तेरी रास्तबाज़ी के घर को बढ़ाता।7और अगरचे तेरा आग़ाज़ छोटा सा था, तोभी तेरा अंजाम बहुत बड़ा होता8ज़रा पिछले ज़माने के लोंगों से पूँछ और जो कुछ उनके बाप दादा ने तहक़ीक़ की है उस पर ध्यान कर|9क्यूँकि हम तो कल ही के हैं, और कुछ नहीं जानते और हमारे दिन ज़मीन पर साये की तरह हैं|10क्या वह तुझे न सिखाएँगे और न बताएँगे और अपने दिल की बातें नहीं करेंगे?11क्या नागरमोंथा बग़ैर कीचड़ के उग सकता है क्या ~सरकंडा बिना पानी ~के बढ़ सकता है ?12जब वह हरा ही है और काटा भी नहीं गया तोभी और पौदों से पहले सूख जाता है|13ऐसी ही उन सब की राहें हैं, जो ख़ुदा को भूल जाते हैं बे ख़ुदा आदमी की उम्मीद टूट जाएगी14उसका ऐतमा'द जाता रहेगा और उसका भरोसा मकड़ी का जाला है |15वह अपने घर पर टेक लगाएगा लेकिन वह खड़ा न रहेगा, वह उसे मज़बूती से थामेगा लेकिन वह क़ायम न रहेगा |16वह धूप पाकर हरा भरा हो जाता है और उसकी डालियाँ उसी के बाग़ में फैलतीं हैं17उसकी जड़ें ढेर में लिपटी हुई रहती हैं, ~वह पत्थर की जगह को देख लेता है|18अगर वह अपनी जगह से हलाक किया जाए तो वह उसका इन्कार करके कहने लगेंगी, कि मैंने तुझे देखा ही नहीं |19देख उसके रस्ते की ख़ुशी इतनी ही है, और मिटटी में से दूसरे उग आएगें|20देख ख़ुदा कामिल आदमी को छोड़ न देगा, न वह बदकिरदारों को सम्भालेगा|21वह अब भी तेरे मुँह को हँसी से भर देगा और तेरे लबों की ललकार की आवाज़ से|22तेरे नफ़रत करने वाले शर्म का जामा' पहनेंगे और शरीरों का ख़ेमा क़ायम न रहेगा
1फ़िर अय्यूब ने जवाब दिया2दर हक़ीक़त में मैं जानता हूँ कि बात यूँ ही है, लेकिन इन्सान ख़ुदा के सामने कैसे रास्तबाज़ ठहरे|3अगर वह उससे बहस करने को राज़ी भी हो, यह तो हज़ार बातों में से उसे एक का भी जवाब न दे सकेगा|4वह दिल का 'अक़्लमन्द और ताक़त में ज़ोरआवर है, किसी ने हिम्मत करके उसका सामना किया है और बढ़ा हो|5वह पहाड़ों को हटा देता है और उन्हें पता भी नहीं लगता वह अपने क़हर में उलट देता है|6वह ज़मीन को उसकी जगह से हिला देता है, और उसके सुतून काँपने लगते हैं|7वह सूरज को हुक्म करता है और वह तुलू' नहीं होता है, और सितारों पर मुहर लगा देता है8वह आसमानों को अकेला तान देता है, और समन्दर की लहरों पर चलता है9उसने बनात-उन-नाश और जब्बार और सुरैया और जुनूब के बुजों' को बनाया।10वह बड़े बड़े काम जो बयान नहीं हो सकते, और बेशुमार अजीब काम करता है।11देखो, वह मेरे पास से गुज़रता है लेकिन मुझे दिखाई नहीं देता; वह आगे भी बढ़ जाता है लेकिन मैं उसे नहीं देखता।12देखो, वह शिकार पकड़ता है; कौन उसे रोक सकता है? कौन उससे कहेगा कि तू क्या करता है?13~"ख़ुदा अपने ग़ुस्से को नहीं हटाएगा। रहब' के मददगार उसके नीचे झुकजाते हैं।14फिर मेरी क्या हक़ीक़त है कि मैं उसे जवाब दूँ और उससे बहस करने को अपने लफ़्ज़ छाँट छाँट कर निकालूँ?15उसे तो मैं अगर सादिक़ भी होता तो जवाब न देता। मैं अपने मुख़ालिफ़ की मिन्नत करता।16अगर वह मेरे पुकारने पर मुझे जवाब भी देता, तोभी मैं यक़ीन न करता कि उसने मेरी आवाज़ सुनी।17वह तूफ़ान से मुझे तोड़ता है, और बे वजह मेरे ज़ख़्मों को ज़्यादा करता है।18वह मुझे दम नहीं लेने देता, बल्कि मुझे तल्ख़ी से भरपूर करता है।19अगर ज़ोरआवर की ताक़त का ज़िक्र हो, तो देखो वह है। और अगर इन्साफ़ का, तो मेरे लिए वक़्त कौन ठहराएगा?20अगर मैं सच्चा भी हूँ, तोभी मेरा ही मुँह मुझे मुल्ज़िम ठहराएगा। और अगर मैं कामिल भी हूँ तोभी यह मुझे आलसी साबित करेगा।21मैं कामिल तो हूँ, लेकिन अपने को कुछ नहीं समझता; मैं अपनी ज़िन्दगी को बेकार जानता हूँ।22यह सब एक ही बात है, इसलिए मैं कहता हूँ कि वह कामिल और शरीर दोनों को ~हलाक कर देता है।23अगर वबा अचानक हलाक करने लगे, तो वह बेगुनाह की आज़माइश का मज़ाक़ उड़ाता है।24ज़मीन शरीरों को हवाले कर दी गई है। वह उसके हाकिमों के मुँह ढाँक देता है। अगर वही नहीं तो और कौन है?25मेरे दिन हरकारों से भी तेज़रू हैं। वह उड़े चले जाते हैं और ख़ुशी नहीं देखने पाते।26~वह तेज़ जहाज़ों की तरह निकल गए, और उस उक़ाब की तरह जो शिकार पर झपटता हो।27अगर मैं कहूँ, कि 'मैं अपना ग़म भुला दूँगा, और उदासी" छोड़कर दिलशाद हूँगा,28तो मैं अपने दुखों से डरता हूँ, मैं जानता हूँ कि तू मुझे बेगुनाह न ठहराएगा।29मैं तो मुल्ज़िम ठहरूँगा; फिर मैं 'तो मैं ज़हमत क्यूँ उठाऊँ?30अगर मैं अपने को बर्फ़ के पानी से धोऊँ, और अपने हाथ कितने ही साफ़ करूँ |31तोभी तू मुझे खाई में ग़ोता देगा, और मेरे ही कपड़े मुझ से घिन खाएँगे।32क्यूँकि वह मेरी तरह आदमी नहीं कि मैं उसे जवाब दूँ, और हम 'अदालत में एक साथ हाज़िर हों।33हमारे बीच कोई बिचवानी नहीं, जो हम दोनों पर अपना हाथ रख्खे।34वह अपनी लाठी मुझ से हटा ले, और उसकी डरावनी बात मुझे ~परेशान न करे।35तब मैं कुछ कहूँगा और उससे डरने का नहीं, क्यूँकि अपने आप में तो मैं ऐसा नहीं हूँ।
1'मेरी रूह मेरी ज़िन्दगी से परेशान है; मैं अपना शिकवा ख़ूब दिल खोल कर करूँगा। मैं अपने दिल की तल्ख़ी में बोलूँगा”।2मैं ख़ुदा से कहूँगा, मुझे मुल्ज़िम न ठहरा; मुझे बता कि तू मुझ से क्यूँ झगड़ता है।3क्या तुझे अच्छा लगता है, कि अँधेर करे, और अपने हाथों की बनाई हुई चीज़ को बेकार जाने, और शरीरों की बातों की रोशनी करे?4क्या तेरी आँखें गोश्त की हैं? या तू ऐसे देखता है जैसे आदमी देखता है?5क्या तेरे दिन आदमी के दिन की तरह, और तेरे साल इन्सान के दिनों की तरह हैं,6कि तू मेरी बदकारी को पूछता, और मेरा गुनाह ढूँडता है?7क्या तुझे मा'लूम है कि मैं शरीर नहीं हूँ, और कोई नहीं जो तेरे हाथ से छुड़ा सके?8तेरे ही हाथों ने मुझे बनाया और सरासर जोड़ कर कामिल किया। फिर भी तू मुझे हलाक करता है।9याद कर कि तूने गुंधी हुई मिट्टी की तरह मुझे बनाया, और क्या तू मुझे फिर ख़ाक में मिलाएगा?10क्या तूने मुझे दूध की तरह नहीं उंडेला, और पनीर की तरह नहीं जमाया?11फिर तूने मुझ पर चमड़ा और गोश्त चढ़ाया, और हड्डियों और नसों से मुझे जोड़ दिया।12तूने मुझे जान बख़्शी और मुझ पर करम किया, और तेरी निगहबानी ने मेरी रूह सलामत रख्खी।13तोभी तूने यह बातें तूने अपने दिल में छिपा रख्खी थीं। मैं जानता हूँ कि तेरा यही इरादा है कि14अगर मैं गुनाह करूँ, तो तू मुझ पर निगरान होगा; और तू मुझे मेरी बदकारी से बरी नहीं करेगा।15अगर मैं गुनाह करूँ तो मुझ पर अफ़सोस! अगर मैं सच्चा बनूँ तोभी अपना सिर नहीं उठाने का, क्यूँकि मैं ज़िल्लत से भरा हूँ, और अपनी मुसीबत को देखता रहता हूँ।16और अगर सिर उठाऊँ, तो तू शेर की तरह मुझे शिकार करता है और फिर 'अजीब सूरत में मुझ पर ज़ाहिर होता है।17तू मेरे ख़िलाफ़ नए नए गवाह लाता है, और अपना क़हर मुझ पर बढ़ाता है; नई नई फ़ौजें मुझ पर चढ़ आती हैं।18इसलिए तूने मुझे रहम से निकाला ही क्यूँ? मैं जान दे देता और कोई आँख मुझे देखने न पाती।19मैं ऐसा होता कि गोया मैं था ही नहीं मैं रहम ही से क़ब्र में पहुँचा दिया जाता।20क्या मेरे दिन थोड़े से नहीं? बाज़ आ, और मुझे छोड़ दे ताकि मैं कुछ राहत पाऊँ।21इससे पहले कि मैं वहाँ जाऊँ, जहाँ से फिर न लौटूँगा या'नी तारीकी और मौत और साये की सर ज़मीन को :22गहरी तारीकी की सर ज़मीन जो खु़द तारीकी ही है; मौत के साये की सर ज़मीन जो बे तरतीब है, और जहाँ रोशनी भी ऐसी है जैसी तारीकी। ”
1तब जूफ़र नामाती ने जवाब दिया,2क्या इन बहुत सी बातों का जवाब न दिया जाए? और क्या बकवासी आदमी रास्त ठहराया जाए?3क्या तेरे बड़े बोल लोगों को ख़ामोश करदे? और जब तू ठठ्ठा करे तो क्या कोई तुझे शर्मिन्दा न करे?4क्यूँकि तू कहता है, 'मेरी ता'लीम पाक है, और मैं तेरी निगाह में बेगुनाह हूँ। '5काश ख़ुदा ख़ुद बोले, और तेरे ख़िलाफ़ अपने लबों को खोले।6और हिकमत के आसार तुझे दिखाए कि वह तासीर में बहुत बड़ा है। इसलिए जान ले कि तेरी बदकारी जिस लायक़ है उससे कम ही ख़ुदा तुझ से मुतालबा करता है।7क्या तू तलाश से ख़ुदा को पा सकता है? क्या तू क़ादिर-ए-मुतलक़ का राज़ पूरे तौर से बयान कर सकता है?8वह आसमान की तरह ऊँचा है, तू क्या कर सकता है? वह पाताल सा ~गहरा है, तू क्या जान सकता है?9उसकी नाप ज़मीन से लम्बी और समन्दर से चौड़ी है10अगर वह बीच से गुज़र कर बंद कर दे, और 'अदालत में बुलाए तो कौन उसे रोक सकता है?11क्यूँकि वह बेहूदा आदमियों को पहचानता है, और बदकारी को भी देखता है, चाहे उसका ख़्याल न करे?12लेकिन बेहूदा आदमी समझ से ख़ाली होता है, बल्कि ~इन्सान गधे के बच्चे की तरह पैदा होता है।13अगर तू अपने दिल को ठीक करे, और अपने हाथ उसकी तरफ़ फैलाए,14अगर तेरे हाथ में बदकारी हो तो उसे दूर करे, और नारास्ती को अपने ख़ेमों में रहने न दे,15तब यक़ीनन तू अपना मुँह बे दाग़ उठाएगा, बल्कि तू साबित क़दम हो जाएगा और डरने का नहीं।16क्यूँकि तू अपनी ख़स्ताहाली को भूल जाएगा, तू उसे उस पानी की तरह याद करेगा जो बह गया हो।17और तेरी ज़िन्दगी दोपहर से ज़्यादा रोशन होगी, और अगर तारीकी हुई तो वह सुबह की तरह होगी।18और तू मुतम'इन रहेगा, क्यूँकि उम्मीद होगी और अपने चारों तरफ़ देख देख कर सलामती से आराम करेगा।19और तू लेट जाएगा, और कोई तुझे डराएगा नहीं बल्कि ~बहुत से लोग तुझ से फ़रियाद करेंगे।20लेकिन शरीरों की आँखें रह जाएँगी, उनके लिए भागने को भी रास्ता न होगा, और जान दे देना ही उनकी उम्मीद होगी। ”
1तब अय्यूब ने जवाब दिया,2बेशक आदमी तो तुम ही हो"और हिकमत तुम्हारे ही साथ मरेगी।3लेकिन मुझ में भी समझ है, जैसे तुम में है, मैं तुम से कम नहीं। भला ऐसी बातें जैसी यह हैं, कौन नहीं जानता?4मैं उस आदमी की तरह हूँ जो अपने पड़ोसी के लिए हँसी का निशाना बना है। मैं वह आदमी था जो ख़ुदा से दु'आ करता और वह उसकी सुन लेता था। रास्तबाज़ और कामिल आदमी हँसी का निशाना होता ही है।5जो चैन से है उसके ख़्याल में दुख के लिए हिकारत होती है; यह उनके लिए तैयार रहती है जिनका पाँव फिसलता है।6डाकुओं के ख़ेमे सलामत रहते हैं, और जो ख़ुदा को गु़स्सा दिलाते हैं, वह महफू़ज़ रहते हैं; उन ही के हाथ को ख़ुदा ख़ूब भरता है।7हैवानों से पूछ और वह तुझे सिखाएँगे, और हवा के परिन्दों से दरियाफ़्त कर और वह तुझे बताएँगे।8या ज़मीन से बात कर, वह तुझे सिखाएगी; और समन्दर की मछलियाँ तुझ से बयान करेंगी।9कौन नहीं जानता कि इन सब बातों में ख़ुदावन्द ही का हाथ है जिसने यह सब बनाया?10उसी के हाथ में हर जानदार की जान, और कुल बनी आदम की जान ~ताक़त ~है।11क्या कान बातों को नहीं परख लेता, जैसे ज़बान खाने को चख लेती है?12बुड्ढों में समझ होती है, और 'उम्र की दराज़ी में समझदारी।13ख़ुदा में समझ और कु़व्वत है, उसके पास मसलहत और समझ है।14देखो, वह ढा देता है तो फिर बनता नहीं। वह आदमी को बंद कर देता है, तो फिर खुलता नहीं।15देखो, वह मेंह को रोक लेता है, तो पानी सूख जाता है। फिर जब वह उसे भेजता है, तो वह ज़मीन को उलट देता है।16उसमें ताक़त और ता'सीर की कु़व्वत है। धोका खाने वाला और धोका देने वाला दोनों उसी के हैं।17वह सलाहकारों को लुटवा कर ग़ुलामी में ले जाता है, और 'अदालत करने वालों को बेवकू़फ़ बना देता है।18वह शाही बन्धनों को खोल डालता है, और बादशाहों की कमर पर पटका बाँधता है।19वह काहिनों को लुटवाकर ग़ुलामी में ले जाता, और ज़बरदस्तों को पछाड़ देता है।20वह 'ऐतमाद वाले की क़ुव्वत-ए-गोयाई दूर करता और बुज़ुर्गों की समझदारी को' छीन लेता है।21वह हाकिमों पर हिकारत बरसाता, और ताक़तवरों की कमरबंद को खोल डालता' है।22वह अँधेरे में से गहरी बातों को ज़ाहिर करता, और मौत के साये को भी रोशनी में ले आता है23वह क़ौमों को बढ़ाकर उन्हें हलाक कर डालता है; वह क़ौमों को फैलाता और फिर उन्हें समेट लेता है।24वह ज़मीन की क़ौमों के सरदारों की 'अक़्ल उड़ा देता ~और उन्हें ऐसे वीरान में भटका देता है जहाँ रास्ता नहीं।25वह रोशनी के बगै़र तारीकी में टटोलते फिरते हैं, और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि मतवाले की तरह लड़खड़ाते हुए चलते हैं।
1"मेरी आँख ने तो यह सब कुछ देखा है, मेरे कान ने यह सुना और समझ भी लिया है।2जो कुछ तुम जानते हो उसे मैं भी जानता हूँ, मैं तुम से कम नहीं।3मैं तो क़ादिर-ए-मुतलक़ से गुफ़्तगू करना चाहता हूँ, मेरी आरज़ू है कि ख़ुदा के साथ बहस करूँ4लेकिन तुम लोग तो झूटी बातों के गढ़ने वाले हो; तुम सब के सब निकम्मे हकीम हो।5काश तुम बिल्कुल ख़ामोश हो जाते, यही तुम्हारी 'अक़्लमन्दी होती।6अब मेरी दलील सुनो, और मेरे मुँह के दा'वे पर कान लगाओ।7क्या तुम ख़ुदा के हक़ में नारास्ती से बातें करोगे, और उसके हक़ में धोके से बोलोगे?8क्या तुम उसकी तरफ़दारी करोगे? क्या तुम ख़ुदा की तरफ़ से झगड़ोगे?9क्या यह अच्छ होगा कि वह तुम्हारा जाएज़ा करें? क्या तुम उसे धोका दोगे जैसे आदमी को?10~वह ज़रूर तुम्हें मलामत करेगा जो तुम ख़ुफ़िया तरफ़दारी करो , ~|11क्या उसका जलाल तुम्हें डरा न देगा, और उसका रौ'ब तुम पर छा न जाएगा?12तुम्हारी छुपी बातें राख की कहावतें हैं, तुम्हारी दीवारें मिटटी की दीवारें हैं|13तुम चुप रहो, मुझे छोड़ो ताकि मैं बोल सकूँ, और फिर मुझ पर जो बीते सो बीते।14मैं अपना ही गोश्त अपने दाँतों से क्यूँ चबाऊँ; और अपनी जान अपनी हथेली पर क्यूँ रख्खूँ?15देखो, वह मुझे क़त्ल करेगा, मैं इन्तिज़ार नहीं करूँगा। बहर हाल मैं अपनी राहों की ता'ईद उसके सामने करूँगा।16यह भी मेरी नजात के ज़रिए' होगा, क्यूँकि ~कोई बेख़ुदा उसके बराबर आ नहीं सकता।17मेरी तक़रीर को ग़ौर से सुनो, और मेरा बयान तुम्हारे कानों में पड़े।18देखो, मैंने अपना दा'वा दुरुस्त कर लिया है; मैं जानता हूँ कि मैं सच्चा हूँ।19कौन है जो मेरे साथ झगड़ेगा? क्यूँकि फिर तो मैं चुप हो कर अपनी जान दे दूँगा।20सिर्फ़ दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूँगा :21अपना हाथ मुझ से दूर हटाले, और तेरी हैबत मुझे ख़ौफ़ ज़दा न करे।22तब तेरे बुलाने पर मैं जवाब दूँगा; या मैं बोलूँ और तू मुझे जवाब दे।23मेरी बदकारियाँ और गुनाह कितने हैं? ऐसा कर कि मैं अपनी ख़ता और गुनाह को जान लूँ।24तू अपना मुँह क्यूँ छिपाता है, और मुझे अपना दुश्मन क्यूँ जानता है?25~क्या तू उड़ते पत्ते को परेशान करेगा? क्या तू सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा?26क्यूँकि तू मेरे ख़िलाफ़ तल्ख़ बातें लिखता है, और मेरी जवानी की बदकारियाँ मुझ पर वापस लाता है"।27तू मेरे पाँव काठ में ठोंकता, और मेरी सब राहों की निगरानी करता है; और मेरे पाँव के चारों तरफ़ बाँध खींचता ~है।28अगरचे मैं सड़ी हुई चीज़ की तरह हूँ, जो फ़ना हो जाती है। या उस कपड़े की तरह ~हूँ जिसे कीड़े ने खा लिया हो।
1इन्सान जो 'औरत से पैदा होता है थोड़े दिनों का है, और दुख से भरा है।2वह फूल की तरह निकलता, और काट डाला जाता है। वह साए की तरह उड़ जाता है और ठहरता नहीं।3इसलिए क्या तू ऐसे पर अपनी आँखें खोलता है;और मुझे अपने साथ 'अदालत में घसीटता है?4नापाक चीज़ में से पाक चीज़ कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।5उसके दिन तो ठहरे हुए हैं, और उसके महीनों की ता'दाद तेरे पास है; और तू ने उसकी हदों को मुक़र्रर कर दिया है, जिन्हें वह पार नहीं कर सकता।6इसलिए उसकी तरफ़ से नज़र हटा ले ताकि वह आराम करे, जब तक वह मज़दूर की तरह अपना दिन पूरा न कर ले।7"क्यूँकि दरख़्त की तो उम्मीद रहती है कि अगर वह काटा जाए तो फिर फूट निकलेगा, और उसकी नर्म नर्म डालियाँ ख़त्म न होंगी।8अगरचे उसकी जड़ ज़मीन में पुरानी हो जाए, और उसका तना मिट्टी में गल जाए,9तोभी पानी की बू पाते ही वह नए अखुवे लाएगा, और पौदे की तरह शाख़ें निकालेगा।10लेकिन इन्सान मर कर पड़ा रहता है, बल्कि ~इन्सान जान छोड़ देता है, और फिर वह कहाँ रहा?11जैसे झील" का पानी ख़त्म हो जाता, और दरिया उतरता और सूख जाता है,12वैसे आदमी लेट जाता है और उठता नहीं; जब तक आसमान टल न जाए, वह बेदार न होंगे; और न अपनी नींद से जगाए जाएँगे।13काश कि तू मुझे पाताल में छिपा दे, और जब तक तेरा क़हर टल न जाए, मुझे पोशीदा रख्खे; और कोई मुक़र्ररा वक़्त मेरे लिए ठहराए और मुझे याद करे।14अगर आदमी मर जाए तो क्या वह फिर जिएगा? मैं अपनी जंग के सारे दिनों में मुन्तज़िर रहता जब तक मेरा छुटकारा" न होता।15तू मुझे पुकारता और मैं तुझे जवाब देता; तुझे अपने हाथों की सन'अत की तरफ़ ख्वाहिश होती।16लेकिन अब तो तू मेरे क़दम गिनता है; क्या तू मेरे गुनाह की ताक में लगा नहीं रहता?17मेरी ख़ता थैली में सरब-मुहर है, तू ने मेरे गुनाह को सी रख्खा है।18यक़ीनन पहाड़ गिरते गिरते ख़त्म हो जाता है, और चट्टान अपनी जगह से हटा दी जाती है।19पानी पत्थरों को घिसा डालता है, उसकी बाढ़ ज़मीन की ख़ाक को बहाले जाती है; इसी तरह तू इन्सान की उम्मीद को मिटा देता है।20तू हमेशा उस पर ग़ालिब होता है, इसलिए वह गुज़र जाता है। तू उसका चेहरा बदल डालता और उसे ख़ारिज कर देता है।21उसके बेटों की 'इज़्ज़त होती है, लेकिन उसे ख़बर नहीं। वह ज़लील होते हैं लेकिन वह उनका हाल‘ नहीं जानता।22बल्कि उसका गोश्त जो उसके ऊपर है, दुखी रहता;और उसकी जान उसके अन्दर ही अन्दर ग़म खाती रहती है। ”
1तब अलीफ़ज़ तेमानी ने जवाब दिया,2क्या 'अक़्लमन्द को चाहिए कि फ़ुज़ूल बातें जोड़ कर जवाब दे, और पूरबी हवा से अपना पेट भरे ?3क्या वह बेफ़ाइदा बक़वास से बहस करे या ऐसी तक़रीरों से जो बे फ़ाइदा हैं ?4बल्कि तू ख़ौफ़ को नज़र अन्दाज़ करके, ख़ुदा के सामने 'इबादत को ज़ायल करता है।5क्यूँकि तेरा गुनाह तेरे मुँह को सिखाता है, और तू रियाकारों की ज़बान इख़्तियार करता है।6तेरा ही मुँह तुझे मुल्ज़िम ठहराता है न कि मैं, बल्कि तेरे ही होंट तेरे ख़िलाफ़ गवाही देते हैं।7क्या पहला इन्सान तू ही पैदा हुआ? या पहाड़ों से पहले तेरी पैदाइश हुई?8क्या तू ने ख़ुदा की पोशीदा मसलहत सुन ली है, और अपने लिए 'अक़्लमन्दी का ठेका ले रख्खा है?9तू ऐसा क्या जानता है, जो हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी क्या समझ है जो हम में नहीं?10हम लोगों में सिर सफ़ेद बाल वाले और बड़े बूढ़े भी हैं, जो तेरे बाप से भी बहुत ज़्यादा 'उम्र के हैं।11~क्या ख़ुदा की तसल्ली तेरे नज़दीक कुछ कम है, और वह कलाम जो तुझ से नरमी के साथ किया जाता है?12तेरा दिल तुझे क्यूँ खींच ले जाता है, और तेरी आँखें क्यूँ इशारा करती हैं?13क्या तू अपनी रूह को ख़ुदा की मुख़ालिफ़त पर आमादा करता है, और अपने मुँह से ऐसी बातें निकलने देता है?14इन्सान है क्या कि वह पाक हो? और वह जो 'औरत से पैदा हुआ क्या है, कि सच्चा हो|15देख, वह अपने फ़रिर्श्तों का 'एतिबार नहीं करता बल्कि आसमान भी उसकी नज़र में पाक नहीं।16फ़िर भला उसका क्या ज़िक्र जो घिनौना और ख़राब है या'नी वह आदमी जो बुराई को पानी की तरह पीता है|17"मैं तुझे बताता हूँ, तू मेरी सुन;और जो मैंने देखा है उसका बयान करूँगा।18(जिसे 'अक़्लमन्दों ने अपने बाप-दादा से सुनकर बताया है, और उसे छिपाया नहीं;19सिर्फ़ उन ही को मुल्क दिया गया था, और कोई परदेसी उनके बीच नहीं आया)20~शरीर आदमी अपनी सारी 'उम्र दर्द से कराहता है, या'नी सब बरस जो ज़ालिम के लिए रख्खे गए हैं।21डरावनी आवाजें उसके कान में गूँजती रहती हैं, इक़बालमंदी के वक़्त ग़ारतगर उस पर आ पड़ेगा।22उसे यक़ीन नहीं कि वह अँधेरे से बाहर निकलेगा, और तलवार उसकी मुन्तज़िर है।23वह रोटी के लिए मारा मारा फिरता है कि कहाँ मिलेगी। वह जानता है, कि अँधेरे के दिन मेरे पास ही है।24मुसीबत और सख़्त तकलीफ़ उसे डराती है; ऐसे बादशाह की तरह जो लड़ाई के लिए तैयार हो, वह उस पर ग़ालिब होते है।25इसलिए कि उसने ख़ुदा के ख़िलाफ़ अपना हाथ बढ़ाया और क़ादिर-ए-मुतलक़ के ख़िलाफ़ फ़ख़्र करता है;26~वह अपनी ~ढालों की मोटी-मोटी गुलमैखों के साथ बाग़ी होकर उसपर हमला करता है ~:27इसलिए कि उसके मुँह पर मोटापा छा गया है, और उसके पहलुओं पर चर्बी ~की तहें जम गई हैं।28और वह वीरान शहरों में बस गया है, ऐसे मकानों में जिनमें कोई आदमी न बसा और जो वीरान होने को थे।29वह दौलतमन्द न होगा, उसका माल बना न रहेगा और ऐसों की पैदावार ज़मीन की तरफ़ न झुकेगी।30वह अँधेरे से कभी न निकलेगा, और शोले उसकी शाखों को ख़ुश्क कर देंगे, और वह ख़ुदा के मुँह से ताक़त से जाता रहेगा।31वह अपने आप को धोका देकर बतालत का भरोसा न करे, क्यूँकि बतालत ही उसका मज़दूरी ठहरेगी।32यह उसके वक़्त से पहले पूरा हो जाएगा, और उसकी शाख़ हरी न रहेगी।33ताक की तरह उसके अंगूर कच्चे ही और जै़तून की तरह उसके फूल गिर जाएँगे।34क्यूँकि बे ख़ुदा लोगों की जमा'अत बेफल रहेगी, और रिशवत के ख़ेमों को आग भस्म कर देगी।35वह शरारत से ताक़तवर होते हैं और गुनाह पैदा होता है, और उनका पेट धोका को तैयार करता है। "
1तब अय्यूब ने जवाब जवाब दिया ,2"ऐसी बहुत सी बातें मैं सुन चुका हूँ, तुम सब के सब निकम्मे तसल्ली देने वाले हो|3क्या बेकार बातें कभी ख़त्म होंगी? तू कौन सी बात से झिड़क कर जवाब देता है?4मैं भी तुम्हारी तरह बात बना सकता हूँ: अगर तुम्हारी जान मेरी जान की जगह होती तो मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ बातें बना सकता, और तुम पर अपना सिर हिला सकता।5बल्कि मैं अपनी ज़बान से तुम्हें ताक़त देता, और मेरे लबों की तकलीफ़ तुम को तसल्ली देती।6अगर्चे मैं बोलता हूँ लेकिन मुझ को तसल्ली नहीं होती, और मैं चुप भी हो जाता हूँ, लेकिन मुझे क्या राहत होती है |7~लेकिन उसने तो मुझे दुखी कर डाला है, तूने मेरे सारे गिरोह को तबाह कर दिया है|8तूने मुझे मज़बूती से पकड़ लिया है, यही मुझ पर गवाह है। मेरी लाचारी मेरे ख़िलाफ़ खड़ी होकर मेरे मुँह पर गवाही देती है।9उसने अपने ग़ुस्से से मुझे फाड़ा और मेरा पीछा किया है; उसने मुझ पर दाँत पीसे, मेरा मुख़ालिफ़ मुझे आँखें दिखाता है।10उन्होंने मुझ पर मुँह पसारा हैं, उन्होंने तनज़न मुझे गाल पर मारा है; वह मेरे ख़िलाफ़ इकट्ठे होते हैं।11ख़ुदा मुझे बेदीनों के हवाले करता है, और शरीरों के हाथों में मुझे हवाले करता है।12मैं आराम से था, और उसने मुझे चूर चूरकर डाला; उसने मेरी गर्दन पकड़ ली और मुझे पटक कर टुकड़े टुकड़े कर दिया: और उसने मुझे अपना निशाना बनाकर खड़ा किया है |13उसके तीर अंदाज़ मुझे चारों तरफ़ से घेर लेते हैं, वह मेरे गुर्दों को चीरता है, और रहम नहीं करता, और मेरे पित को ज़मीन पर बहा देता है।14वह मुझे ज़ख़्म पर ज़ख़्म लगा कर खस्ता करता है वह पहलवान की तरह मुझ पर हमला करता है:15मैंने अपनी खाल पर टाट को सी लिया है, और अपना सींग ख़ाक में रख दिया है।16मेरा मुँह रोते रोते सूज गया है, और मेरी पलकों पर मौत का साया है।17अगर्चे मेरे हाथों~ज़ुल्म नहीं , और मेरी दु'आ बुराई से पाक है।18ऐ ज़मीन, मेरे ख़ून को न ढाँकना, और मेरी फ़रियाद को आराम की जगह न मिले।19अब भी देख, मेरा गवाह आसमान पर है, और मेरा ज़ामिन 'आलम-ए-बाला पर है।20मेरे दोस्त मेरी हिकारत करते हैं, लेकिन मेरी आँख ख़ुदा के सामने ~आँसू बहाती है;21ताकि वह आदमी के हक़ को अपने साथ और आदम ज़ाद के हक़ को उसके पड़ोसी के साथ क़ायम रख्खे22क्यूँकि जब चंद साल निकल जाएँगे, तो मैं उस रास्ते से चला जाऊँगा जिससे फिर लौटने का नहीं |
1~मेरी जान तबाह हो गई मेरे दिन हो चुके क़ब्र मेरे लिए तैय्यार है |2यक़ीनन हँसी उड़ाने वाले मेरे साथ साथ हैं, और मेरी आँख उनकी छेड़छाड़ पर लगी रहती है।3"ज़मानत दे, अपने और मेरे बीच में तू ही ज़ामिन हो। कौन है जो मेरे हाथ पर हाथ मारे?4क्यूँकि तूने इनके दिल को समझ से रोका है, इसलिए तू इनको सरफ़राज़ न करेगा।5जो लूट की ख़ातिर अपने दोस्तों को मुल्ज़िम ठहराता है, उसके बच्चों की आँखें भी जाती रहेंगी।6"उसने मुझे लोगों के लिए ज़रबुल मिसाल बना दिया हैं:और मैं ऐसा हो गया कि लोग मेरे मुँह पर थूकें।7मेरी आँखे ~ग़म के मारे धुंदला गई, और मेरे सब 'आज़ा परछाईं की तरह है|8रास्तबाज़ आदमी इस बात से हैरान होंगे और मा'सूम आदमी ~बे ख़ुदा लोगों के ख़िलाफ़ जोश में आएगा9तोभी सच्चा अपनी राह में साबित क़दम रहेगा और जिसके हाथ साफ़ हैं, वह ताक़तवर ही होता जाएगा10लेकिन तुम सब के सब आते हो तो आओ, मुझे तुम्हारे बीच एक भी आदमी 'अक़्लमन्द न मिलेगा |11मेरे दिन तो बीत चुके, और मेरे मक़सद मिट गए और जो मेरे दिल में था, वह बर्बाद हुआ है |12वह रात को दिन से बदलते हैं, वह कहतें है रोशनी तारीकी के नज़दीक है|13अगर में उम्मीद करूँ कि पाताल मेरा घर है, अगर मैंने अँधेरे में अपना बिछौना बिछा लिया है|14अगर मैंने सड़ाहट से कहा है कि तू मेरा बाप है, और कीड़े से कि तू मेरी माँ और बहन है15तोमेरी उम्मीद कहाँ रही, और जो मेरी उम्मीद है, उसे कौन देखेगा16वह पाताल के फाटकों तक नीचे उतर जाएगी जब हम मिलकर ख़ाक में आराम पाएँगे
1तब ~बिलदद शूखी ने जवाब दिया ,2तुम कब तक लफ़्ज़ों की जुस्तुजू में रहोगे ग़ौर कर लो फ़िर हम बोलेंगे3हम क्यूँ जानवरों की तरह समझे जाते हैं, और तुम्हारी नज़र में नापाक ठहरे हैं|4तू जो अपने क़हर में अपने को फाड़ता है तो क्या ज़मीन तेरी वजह से उजड़ जाएगी या चट्टान अपनी जगह से हटा दी जाएगी5बल्कि शरीर का चराग़ गुल कर दिया जाएगा और उसकी आग का शो'ला बे नूर हो जाएगा6रोशनी उसके ख़ेमे में तरीकी हो जाएगी और जो चराग ऊसके उपर है, बुझा दिया जाएगा7उसकी क़ुव्वत के क़दम छोटे किए जाएँगे और उसी की मसलहत उसे नेचे गिराएगी|8क्यूँकि वह अपने ही पाँव से जाल में फँसता है और फँदों पर चलता है9~ दाम उसकी एड़ी को पकड़ेगा, और जाल उसको फँसा लेगा|10कमन्द उसके लिए ज़मीन में छिपा दी गई है, और~फंदा उसके लिए ~रास्ते में रख्खा गया है|11दहशत नाक चीज़ें हर तरफ़ से उसे डराएँगी, और उसके दर पे होकर उसे भगाएंगी|12उसका ज़ोर भूक का मारा होगा और आफ़त उसके शामिल-ए-हाल रहेगी|13वह उसके जिस्म के आ'ज़ा को खा जाएगी बल्कि मौत का पहलौठा उसके आ'ज़ा को चट कर जाएगी|14वह अपने ख़ेमे से जिस पर उसको भरोसा है उखाड़ दिया जाएगा, ~और दहशत के बादशाह के पास पहुंचाया जाएगा|15~और वह जो उसका नहीं, उसके ख़ेमे में बसेगा; उसके मकान पर गंधक छितराई जाएगी।16~नीचे उसकी जड़ें सुखाई जाएँगी, और ऊपर उसकी डाली काटी जाएगी।17उसकी यादगार ज़मीन पर से मिट जाएगी, और कूचों' में उसका नाम न होगा।18वह रोशनी से अंधेरे में हँका दिया जाएगा, और दुनिया से खदेड़ दिया जाएगा।19उसके लोगों में उसका न कोई बेटा होगा न पोता, और जहाँ वह टिका हुआ था, वहाँ कोई उसका बाक़ी न रहेगा।20वह जो पीछे आनेवाले हैं, उसके दिन पर हैरान होंगे, जैसे वह जो पहले हुए डर गए थे।21नारास्तों के घर यक़ीनन ऐसे ही हैं, और जो ख़ुदा को नहीं पहचानता उसकी जगह ऐसी ही है।
1तब अय्यूब ने जवाब दिया2तुम कब तक मेरी जान खाते रहोगे, और बातों से मुझे चूर-चूर करोगे?3अब दस बार तुम ने मुझे मलामत ही की ; तुम्हें शर्म नहीं आती की तुम मेरे साथ सख़्ती से पेश आते हो।4और माना कि मुझ से ख़ता हुई; मेरी ख़ता मेरी ही है।5अगर तुम मेरे सामने में अपनी बड़ाई करते हो, और मेरे नंग को मेरे ख़िलाफ़ पेश करते हो;6तो जान लो कि ख़ुदा ने मुझे पस्त किया, और अपने जाल से मुझे घेर लिया है।7देखो, मैं जु़ल्म जु़ल्म पुकारता हूँ, लेकिन मेरी सुनी नहीं जाती। मैं मदद के लिए दुहाई देता हूँ, लेकिन कोई इन्साफ़ नहीं होता।8उसने मेरा रास्ता ऐसा शख़्त कर दिया है, कि मैं गुज़र नहीं सकता। उसने मेरी राहों पर तारीकी को बिठा दिया है।9उसने मेरी हशमत मुझ से छीन ली, और मेरे सिर पर से ताज उतार लिया।10उसने मुझे हर तरफ़ से तोड़कर नीचे गिरा दिया, बस मैं तो हो लिया, और मेरी उम्मीद को उसने पेड़ की तरह उखाड़ डाला है।11उसने अपने ग़ज़ब को भी मेरे ख़िलाफ़ भड़काया है, और वह मुझे अपने मुख़ालिफ़ों में शुमार करता है।12उसकी फ़ौजें इकट्ठी होकर आती और मेरे ख़िलाफ़ अपनी राह तैयार करती और मेरे ख़ेमे के चारों तरफ़ ख़ेमा ज़न होती हैं।13"उसने मेरे भाइयों को मुझ से दूर कर दिया है, और मेरे जान पहचान मुझ से बेगाना हो गए हैं।14मेरे रिश्तेदार काम न आए, और मेरे दिली दोस्त मुझे भूल गए हैं।15मैं अपने घर के रहनेवालों और अपनी लौंडियों की नज़र में अजनबी हूँ। मैं उनकी निगाह में परदेसी हो गया हूँ।16मैं अपने नौकर को बुलाता हूँ और वह मुझे जवाब नहीं देता, अगरचे मैं अपने मुँह से उसकी मिन्नत करता हूँ।17मेरी साँस मेरी बीवी के लिए मकरूह है, और मेरी मित्रत मेरी माँ की औलाद" के लिए।18~छोटे बच्चे भी मुझे हक़ीर जानते हैं; जब मैं खड़ा होता हूँ तो वह मुझ पर आवाज़ कसते हैं।19मेरे सब हमराज़ दोस्त मुझ से नफ़रत करते हैं और जिनसे मैं मुहब्बत करता था वह मेरे ख़िलाफ़ हो गए हैं।20मेरी खाल और मेरा गोश्त मेरी हड्डियों से चिमट गए हैं, और मैं बाल बाल बच निकला हूँ।21ऐ मेरे दोस्तो! मुझ पर तरस खाओ, तरस खाओ, क्यूँकि ख़ुदा का हाथ मुझ पर भारी है!22तुम क्यूँ ख़ुदा की तरह मुझे सताते हो? और मेरे गोश्त पर कना'अत नहीं करते?23काश कि मेरी बातें अब लिख ली जातीं, काश कि वह किसी किताब में लिखी होतीं;24काश कि वह लोहे के क़लम और सीसे से, हमेशा के लिए चट्टान पर खोद दी जातीं।25लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरा छुड़ाने वाला ज़िन्दा है। और आ़खिर कार ज़मीन पर खड़ा होगा।26और अपनी खाल के इस तरह बर्बाद हो जाने के बा'द भी, मैं अपने इस जिस्म में से ख़ुदा को देखूँगा।27जिसे मैं खुद देखूँगा, और मेरी ही आँखें देखेंगी न कि ग़ैर की; मेरे गुर्दे मेरे अंदर ही फ़ना हो गए हैं।28अगर तुम कहो हम उसे कैसा-कैसा सताएँगे; हालाँकि असली बात मुझ में पाई गई है।29तो तुम तलवार से डरो, क्यूँकि क़हर तलवार की सज़ाओं को लाता है ताकि तुम जान लो कि इन्साफ़ होगा। ”
1तब ज़ूफ़र नामाती ने जवाब दिया|2"इसीलिए मेरे ख़्याल मुझे जवाब सिखाते हैं, उस जल्दबाज़ी की वजह से जो मुझ में है।3मैंने वह झिड़की सुन ली जो मुझे शर्मिन्दा करती है, और मेरी 'अक़्ल की रूह ~मुझे जवाब देती है।4क्या तू पुराने ज़माने की यह बात नहीं जानता, जब से इन्सान ज़मीन पर बसाया गया,5कि शरीरों की फ़तह चंद रोज़ा है, और बेदीनों की ख़ुशी दम भर की है?6चाहे उसका जाह-ओ-जलाल आसमान तक बुलन्द हो जाए, और उसका सिर बादलों तक पहुँचे|7तोभी वह अपने ही फुज़ले की तरह हमेशा के लिए बर्बाद हो जाएगा; जिन्होंने उसे देखा है कहेंगे, वह कहाँ है?8वह ख़्वाब की तरह उड़ जाएगा और फिर न मिलेगा, जो वह रात को रोये की तरह दूर कर दिया जाएगा।9जिस आँख ने उसे देखा, वह उसे फिर न देखेगी; न उसका मकान उसे फिर कभी देखेगा।10उसकी औलाद ग़रीबों की ख़ुशामद करेगी, और उसी के हाथ उसकी दौलत को वापस देंगे।11~ उसकी हड्डियाँ उसकी जवानी से पुर हैं, लेकिन वह उसके साथ ख़ाक में मिल जाएँगी।12~"चाहे शरारत उसको मीठी लगे, चाहे वह उसे अपनी ज़बान के नीचे छिपाए।13चाहे वह उसे बचा रख्खे और न छोड़े, बल्कि उसे अपने मुँह के अंदर दबा रख्खे,14तोभी उसका खाना उसकी अंतड़ियों में बदल गया है; वह उसके अंदर~अज़दहा का ज़हर है।15वह दौलत को निगल गया है, लेकिन वह उसे फिर उगलेगा; ख़ुदा उसे उसके पेट से बाहर निकाल देगा।16वह अज़दहा का ज़हर चूसेगा; अज़दहा~की ज़बान उसे मार डालेगी।17~वह दरियाओं को देखने न पाएगा, या'नी शहद और मख्खन की बहती नदियों को।18जिस चीज़ के लिए उसने मशक़्क़त खींची, उसे वह वापस करेगा और निगलेगा नहीं; जो माल उसने जमा' किया उसके मुताबिक़ वह ख़ुशी न करेगा |19~क्यूँकि उसने ग़रीबों पर जु़ल्म किया और उन्हें छोड़ दिया, उसने ज़बरदस्ती घर छीना लेकिन वह उसे बताने न पाएगा।20इस वजह से कि वह अपने बातिन में आसूदगी से वाक़िफ़ न हुआ , ~वह अपनी दिलपसंद चीज़ों में से कुछ नहीं बचाएगा।21कोई चीज़ ऐसी बाक़ी ~न रही जिसको उसने निगला न हो। इसलिए उसकी इक़बालमन्दी क़ायम न रहेगी।22अपनी अमीरी में भी वह तंगी ~में होगा; हर दुखियारे का हाथ उस पर पड़ेगा।23जब वह अपना पेट भरने पर होगा तो ख़ुदा अपना क़हर-ए-शदीद उस पर नाज़िल करेगा, और जब वह खाता होगा तब यह उसपर बरसेगा।24वह लोहे के हथियार से भागेगा, लेकिन पीतल की कमान उसे छेद डालेगी।25वह तीर निकालेगा और वह उसके जिस्म से बाहर आएगा, उसकी चमकती नोक उसके पित्ते से निकलेगी;दहशत उस पर छाई हुई है।26सारी तारीकी उसके ख़ज़ानों के लिए रख्खी हुई है। वह आग जो किसी इन्सान की सुलगाई हुई नहीं, उसे खा जाएगी। वह उसे जो उसके ख़ेमे में बचा हुआ होगा, भस्म कर देगी।27आसमान उसके गुनाह को ज़ाहिर कर देगा, और ज़मीन उसके ख़िलाफ़ खड़ी ~हो जाएगी।28उसके घर की बढ़ती जाती रहेगी, ख़ुदा के ग़ज़ब के दिन उसका माल जाता रहेगा।29ख़ुदा की तरफ़ से शरीर आदमी का हिस्सा, और उसके लिए ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई मीरास यही है। ”
1तब अय्यूब ने जवाब दिया,2"ग़ौर से मेरी बात सुनो, और यही तुम्हारा तसल्ली देना हो |3मुझे इजाज़त दो तो मैं भी कुछ कहूँगा, और जब मैं कह चुकूँ तो ठठ्ठा मारलेना।4लेकिन मैं, क्या मेरी फ़रियाद इन्सान से है? फिर मैं बेसब्री क्यूँ न करूँ ?5मुझ पर ग़ौर करो और मुत'अज्जिब हो, और अपना हाथ अपने मुँह पर रखो।6जब मैं याद करता हूँ तो घबरा जाता हूँ, और मेरा जिस्म थर्रा उठता है।7शरीर क्यूँ जीते रहते, 'उम्र रसीदा होते, बल्कि ~कु़व्वत में ज़बरदस्त होते हैं?8उनकी औलाद उनके साथ उनके देखते देखते, और उनकी नसल उनकी आँखों के सामने क़ायम हो जाती है।9उनके घर डर से महफ़ूज़ हैं, और ख़ुदा की छड़ी उन पर नहीं है।10उनका साँड बरदार कर देता है और चूकता नहीं, उनकी गाय ब्याती है और अपना बच्चा नहीं गिराती।11वह अपने छोटे छोटे बच्चों को रेवड़ की तरह बाहर भेजते हैं, और उनकी औलाद नाचती है।12वह ख़जरी और सितार के ताल पर गाते, और बाँसली की आवाज़ से ख़ुश होते हैं।13~वह ख़ुशहाली में अपने दिन काटते, और दम के दम में पाताल में उतर जाते हैं।14हालाँकि उन्होंने ख़ुदा से कहा था, कि 'हमारे पास से चला जा; क्यूँकि हम तेरी राहों के 'इल्म के ~ख़्वाहिशमन्द नहीं।15क़ादिर-ए-मुतलक़ है क्या कि हम उसकी 'इबादत करें? और अगर हम उससे दु'आ करें तो हमें क्या फ़ायदा होगा?16देखो, उनकी इक़बालमन्दी ~उनके हाथ में नहीं है। ~शरीरों की मशवरत ~मुझ से दूर है।17"कितनी बार शरीरों का चराग़ बुझ जाता है? और उनकी आफ़त उन पर आ पड़ती है? और ख़ुदा अपने ग़ज़ब में उन्हें ग़म पर ग़म देता है?18और वह ऐसे हैं जैसे हवा के आगे डंठल, और जैसे भूसा जिसे आँधी उड़ा ले जाती है?19~'ख़ुदा उसका गुनाह उसके बच्चों के लिए रख छोड़ता है, " वह उसका बदला उसी को दे ताकि वह ~जान ले।20उसकी हलाकत को उसी की आँखें देखें, और वह क़ादिर-ए-मुतलक के ग़ज़ब में से पिए।21क्यूँकि ~अपने बा'द उसको अपने घराने से क्या ख़ुशी है, जब उसके महीनों का सिलसिला ही काट डाला गया?22क्या कोई ख़ुदा को 'इल्म सिखाएगा? जिस हाल की वह सरफ़राज़ों की 'अदालत ~करता है।23कोई तो अपनी पूरी ताक़त में, चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है।24उसकी दोहिनियाँ दूध से भरी हैं, और उसकी हड्डियों का गूदा तर है;25और कोई अपने जी में कुढ़ कुढ़ कर मरता है, और कभी सुख नहीं पाता।26वह दोनों मिट्टी में यकसाँ पड़ जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढाँक लेते हैं।27"देखो, मैं तुम्हारे ख़यालों को जानता हूँ, और उन मंसूबों को भी जो तुम बे इन्साफ़ी से मेरे ख़िलाफ़ बाँधते हो।28क्यूँकि ~तुम कहते हो, 'अमीर का घर कहाँ रहा ? और वह ख़ेमा कहाँ है जिसमें शरीर बसते थे?29क्या तुम ने रास्ता चलने वालों से कभी नहीं पूछा?और उनके आसार नहीं पहचानते30कि शरीर आफ़त के दिन के लिए रख्खा जाता है, और ग़ज़ब के दिन तक पहुँचाया जाता है?31कौन उसकी राह को उसके मुँह पर बयान करेगा? और उसके किए का बदला कौन उसे देगा?32तोभी वह क़ब्र में पहुँचाया जाएगा, और उसकी क़ब्र पर पहरा दिया जाएगा।33वादी के ढेले उसे पसंद हैं;और सब लोग उसके पीछे चले जाएँगे, जैसे उससे पहले बेशुमार लोग गए।34~इसलिए तुम क्यूँ मुझे झूठी तसल्ली देते हो, जिस हाल कि तुम्हारी बातों में झूँठ ही झूँठ है |
1तब अलीफ़ज़ तेमानी ने जवाब दिया,2"क्या कोई इन्सान ख़ुदा के काम आ सकता है? यक़ीनन 'अक़्लमन्द अपने ही काम का है।3क्या तेरे सादिक़ होने से क़ादिर-ए-मुतलक को कोई ख़ुशी है? या इस बात से कि तू अपनी राहों को कामिल करता है उसे कुछ फ़ायदा है?4क्या इसलिए कि तुझे उसका ख़ौफ़ है, वह तुझे झिड़कता और तुझे 'अदालत में लाता है?5क्या तेरी शरारत बड़ी नहीं? क्या तेरी बदकारियों की कोई हद है?6क्यूँकि तू ने अपने भाई की चीज़ें बे वजह गिरवी रख्खी, नंगों का लिबास उतार लिया।7तूने थके माँदों को पानी न पिलाया, और भूखों से रोटी को रोक रखा।8लेकिन ज़बरदस्त आदमी ज़मीन का मालिक बना, और 'इज़्ज़तदार आदमी उसमें बसा।9तू ने बेवाओं को ख़ाली चलता किया, और यतीमों के बाज़ू~तोड़े गए।10इसलिए फंदे तेरी चारों तरफ़ हैं, और नागहानी ख़ौफ़ तुझे सताता है।11या ऐसी तारीकी कि तू देख नहीं सकता, और पानी की बाढ़ तुझे छिपाए लेती है।12क्या आसमान की बुलन्दी में ख़ुदा नहीं?और तारों की बुलन्दी को देख वह कैसे ऊँचे हैं।13~फिर तू कहता है, कि 'ख़ुदा क्या जानता है? क्या वह गहरी तारीकी में से 'अदालत करेगा?14पानी से भरे हुए बादल उसके लिए पर्दा हैं कि वह देख नहीं सकता; वह आसमान के दाइरे में सैर करता फिरता है। '15क्या तू उसी पुरानी राह पर चलता रहेगा, जिस पर शरीर लोग चले हैं?16जो अपने वक़्त से पहले उठा लिए गए, और सैलाब उनकी बुनियाद को बहा ले गया।17जो ख़ुदा से कहते थे, 'हमारे पास से चला जा, 'और यह कि, 'क़ादिर-ए-मुतलक़ हमारे लिए कर क्या सकता है?'18तोभी उसने उनके घरों को अच्छी अच्छी चीज़ों से भर दिया - लेकिन शरीरों की मशवरत मुझ से दूर है।19सादिक़ यह देख कर ख़ुश होते हैं, और बे गुनाह उनकी हँसी उड़ाते हैं|20और कहते हैं, कि "यक़ीनन वह जो हमारे ख़िलाफ़ उठे थे कट गए, और जो उनमें से बाक़ी रह गए थे, उनको आग ने भस्म कर दिया है।'21~"उससे मिला रह, तो सलामत रहेगा;और इससे तेरा भला होगा।22मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, कि शरी'अत को उसी की ज़बानी क़ुबूल कर और उसकी बातों को अपने दिल में रख ले।23अगर तू क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ फिरे तो बहाल किया जाएगा। बशर्ते कि तू नारास्ती को अपने ख़ेमों ~से दूर कर दे।24तू अपने ख़ज़ाने' को मिट्टी में, और ओफ़ीर के सोने को नदियों के पत्थरों में डाल दे,25तब क़ादिर-ए-मुतलक़ तेरा ख़ज़ाना, और तेरे लिए बेश क़ीमत चाँदी होगा।26क्यूँकि तब ही तू क़ादिर-ए-मुतलक़ में मसरूर रहेगा, और ख़ुदा की तरफ़ अपना मुँह उठाएगा।27तू उससे दु'आ करेगा, वह तेरी सुनेगा; और तू अपनी मिन्नतें पूरी करेगा।28जिस बात को तू कहेगा, वह तेरे लिए हो जाएगी और नूर तेरी राहों को रोशन करेगा।29जब वह पस्त करेंगे, तू कहेगा, 'बुलन्दी होगी। ' और वह हलीम आदमी को बचाएगा।30वह उसको भी छुड़ा लेगा, जो बेगुनाह नहीं है;हाँ वह तेरे हाथों की पाकीज़गी की वजह से छुड़ाया जाएगा।"
1तब अय्यूब ने जवाब दिया,2"मेरी शिकायत आज भी तल्ख़ है; मेरी मार मेरे कराहने से भी भारी है।3काश कि मुझे मा'लूम होता कि वह मुझे कहाँ मिल सकता है ताकि ~मैं ऐन उसकी मसनद तक पहुँच जाता।4मैं अपना मु'आमिला उसके सामने ~पेश करता, और अपना मुँह दलीलों से भर लेता।5मैं उन लफ़्ज़ों को जान लेता जिनमें वह ~मुझे जवाब देता और जो कुछ वह मुझ से कहता मैं समझ लेता।6क्या वह अपनी क़ुदरत की 'अज़मत में मुझ से लड़ता? नहीं, बल्कि वह मेरी तरफ़ तवज्जुह करता।7रास्तबाज़ वहाँ उसके साथ बहस कर सकते, यूँ मैं अपने मुन्सिफ़ के हाथ से हमेशा के लिए रिहाई पाता।8"देखो, मैं आगे जाता हूँ लेकिन वह वहाँ नहीं, और पीछे हटता हूँ लेकिन मैं उसे देख नहीं सकता।9बाएँ हाथ फिरता हूँ जब वह काम करता है, लेकिन वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह दहने हाथ की तरफ़ छिप जाता है, ऐसा कि मैं उसे देख नहीं सकता।10लेकिन वह उस रास्ते को जिस पर मैं चलता हूँ जानता है; जब वह मुझे पालेगा तो मैं सोने के तरह निकल आऊँगा।11मेरा पाँव उसके क़दमों से लगा रहा है। मैं उसके रास्ते पर चलता रहा हूँ और नाफ़रमान नहीं हुआ।12~मैं उसके लबों के हुक्म से हटा नहीं;मैंने उसके मुँह की बातों को अपनी ज़रूरी ख़ुराक से भी ज़्यादा ज़ख़ीरा किया।13लेकिन वह एक ख़याल में रहता है, और कौन उसको फिरा सकता है? और जो कुछ उसका जी चाहता है ~करता है।14क्यूँकि जो कुछ मेरे लिए मुक़र्रर है, वह पूरा करता है; और बहुत सी ऐसी बातें उसके हाथ में हैं।15इसलिए मैं उसके सामने घबरा जाता हूँ, मैं जब सोचता हूँ तो उससे डर जाता हूँ।16क्यूँकि ख़ुदा ने मेरे दिल को बूदा कर डाला है, और क़ादिर-ए-मुतलक़ ने मुझ को घबरा दिया है।17इसलिए कि मैं इस ज़ुल्मत से पहले काट डाला न गया और उसने बड़ी तारीकी को मेरे सामने से न छिपाया।
1"क़ादिर-ए-मुतलक़ ने वक़्त क्यूँ नहीं ठहराए, और जो उसे जानते हैं वह उसके दिनों को क्यूँ नहीं देखते?2ऐसे लोग भी हैं जो ज़मीन की हदों को सरका देते हैं, वह रेवड़ों को ज़बरदस्ती ले जाते और उन्हें चराते हैं।3वह यतीम के गधे को हाँक ले जाते हैं; वह बेवा के बैल को गिरा ~लेते हैं।4वह मोहताज को रास्ते से हटा देते हैं, ज़मीन के ग़रीब इकट्ठे छिपते हैं।5देखो, वह वीरान के गधों की तरह अपने काम को जाते और मशक़्क़त उठाकर' ख़ुराक ढूँडते हैं। वीरान उनके बच्चों के लिए ख़ुराक बहम पहुँचाता है।6वह खेत में अपना चारा काटते हैं, और शरीरों के अंगूर की खू़शा चीनी करते हैं।7वह सारी रात बे कपड़े नंगे पड़े रहते हैं, और जाड़ों में उनके पास कोई ओढ़ना नहीं होता।8~वह पहाड़ों की बारिश से भीगे रहते हैं, और किसी आड़ के न होने से चट्टान से लिपट जाते हैं।9ऐसे लोग भी हैं जो यतीम को छाती पर से हटा लेते हैं और ग़रीबों से गिरवी लेते हैं।10इसलिए वह ~बेकपड़े नंगे फिरते, और भूक के मारे पौले ढोते हैं।11वह इन लोगों के अहातों में तेल निकालते हैं। वह उनके कुण्डों में अंगूर रौदते और प्यासे रहते हैं।12आबाद शहर में से निकल कर लोग कराहते हैं, और ज़ख्मियों की जान फ़रियाद करती है। तोभी ख़ुदा इस हिमाक़त' का ख़्याल नहीं करता।13"यह उनमें से हैं जो नूर से बग़ावत करते हैं; वह उसकी राहों को नहीं जानते, न उसके रास्तों पर क़ायम रहते हैं।14खू़नी रोशनी होते ही उठता है। वह ग़रीबों और मोहताजों को मारडालता है, और रात को वह चोर की तरह है।15ज़ानी की आँख भी शाम की मुन्तज़िर रहती है। वह कहता है किसी की नज़र मुझ पर न पड़ेगी, और वह अपना मुँह ढाँक लेता है।16~अंधेरे में वह घरों में सेंध मारते हैं, वह दिन के वक़्त छिपे रहते हैं; वह नूर को नहीं जानते।17क्यूँकि सुबह उन लोगों के लिए ऐसी है जैसे मौत का साया इसलिए कि उन्हें मौत के साये की दहशत मा'लूम है।18वह पानी की सतह पर तेज़ रफ़्तार हैं, ज़मीन पर उनके ज़मीन पर उनका ~हिस्सा मलऊन हैं वह ताकिस्तानों की राह पर नहीं चलते |19ख़ुश्की और गर्मी बरफ़ानी पानी के नालों को सुखा देती हैं, ऐसा ही क़ब्र गुनहगारों के साथ करती है।20रहम उसे भूल जाएगा, कीड़ा उसे मज़े ~सिखाएगा, उसकी याद फिर न होगी; नारास्ती दरख़्त की तरह तोड़ दी जाएगी।21वह ~बाँझ को जो जनती नहीं, निगल जाता है, और बेवा के साथ भलाई नहीं करता।22ख़ुदा अपनी कु़व्वत से ज़बरदस्तों को भी खींच लेता है; वह उठता है, और किसी को ज़िन्दगी का यक़ीन नहीं रहता।23ख़ुदा उन्हें अम्न बख़्शता है और वह उसी में क़ायम रहते हैं, और उसकी आँखें उनकी राहों पर लगी रहती हैं।24वह सरफ़राज़ तो होते हैं, लेकिन थोड़ी ही देर में जाते रहते हैं; बल्कि वह पस्त किए जाते हैं और सब दूसरों की तरह रास्ते से उठा लिए जाते, और अनाज की बालों की तरह काट डाले जाते हैं।25~और अगर यह यूँ ही नहीं है, तो कौन मुझे झूटा साबित करेगा और मेरी तकरीर को नाचीज़ ठहराएगा?”
1तब बिलदद सूखी ने जवाब दिया2"हुकूमत और दबदबा उसके साथ है वह अपने बुलन्द मक़ामों में अमन रखता है।3क्या उसकी फ़ौजों की कोई ता'दाद है? और कौन है जिस पर उसकी रोशनी नहीं पड़ती?4फिर इन्सान क्यूँकर ख़ुदा के सामने रास्त ठहर सकता है? या वह जो 'औरत से पैदा हुआ है क्यूँकर पाक हो सकता है?5देख, चाँद में भी रोशनी नहीं, और तारे उसकी नज़र में पाक नहीं।6फिर भला इन्सान का जो महज़ कीड़ा है, और आदमज़ाद जो सिर्फ़ किरम है क्या ज़िक्र|"
1तब अय्यूब ने जवाब दिया,2जो बे ताक़त उसकी तूने कैसी मदद की; जिस बाज़ू में कु़व्वत न थी, उसको तू ने कैसा संभाला।3नादान को तूने कैसी सलाह दी, और हक़ीक़ी पहचान ख़ूब ही बताई।4तू ने जो बातें कहीं? इसलिए किस से और किसकी रूह तुझ में से हो कर निकली ?"5‘मुर्दों की रूहें पानी और उसके रहने वालों के नीचे काँपती हैं।6पाताल उसके सामने खुला है, और जहन्नुम बेपर्दा है।7वह शिमाल को फ़ज़ा में फैलाता है, और ज़मीन को ख़ला में लटकाता है।8वह अपने पानी से भरे हुए बादलों पानी को बाँध देता और बादल उसके बोझ से फटता नहीं।9वह अपने तख़्त को ढांक लेता है और उसके ऊपर अपने बादल को तान देता है।10उसने रोशनी और अंधेरे के मिलने की जगह तक, पानी की सतह पर हद बाँध दी है।11आसमान के सुतून काँपते, और और झिड़की से हैरान होते हैं।12वह अपनी क़ुदरत से समन्दर को तूफ़ानी करता, और अपने फ़हम से रहब को छेद देता है।13उसके दम से आसमान आरास्ता होता है, उसके हाथ ने तेज़रू साँप को छेदा है।14देखो, यह तो उसकी राहों के सिर्फ़ किनारे हैं, और उसकी कैसी धीमी आवाज़ हम सुनते हैं। लेकिन कौन उसकी क़ुदरत की गरज़ को समझ सकता है?”
1और अय्यूब ने फिर अपनी मिसाल शुरू' की और कहने लगा,2"ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम, जिसने मेरा हक़ छीन लिया; और क़ादिर-ए-मुतलक़ की क़सम, जिसने मेरी जान को दुख दिया है।3(क्यूँकि मेरी जान मुझ में अब तक सालिम है और ख़ुदा का रूह मेरे नथनों में है)।4यक़ीनन मेरे लब नारास्ती की बातें न कहेंगे, न मेरी ज़बान से फ़रेब की बात निकलेगी।5ख़ुदा न करे कि मैं तुम्हें रास्त ठहराऊँ, मैं मरते दम तक अपनी रास्ती ~को छोड़ूँगा।6मैं अपनी सदाक़त पर क़ायम हूँ और उसे न छोड़ूँगा, जब तक मेरी ज़िन्दगी है, मेरा दिल मुझे मुजरिम न ठहराएगा।7"मेरा दुश्मन शरीरों की तरह हो, और मेरे ख़िलाफ़ उठने वाला नारास्तों की तरह।8क्यूँकि गो बे दीन दौलत हासिल कर ले तोभी उसकी क्या उम्मीद है, ? जब ख़ुदा उसकी जान ले ले,9क्या ख़ुदा उसकी फ़रियाद सुनेगा, जब मुसीबत उस पर आए?10क्या वह क़ादिर-ए-मुतलक में ख़ुश रहेगा, और हर वक़्त ख़ुदा से दु'आ करेगा?11मैं तुम्हें ख़ुदा के बर्ताव" की तालीम दूँगा, और क़ादिर-ए-मुतलक़ की बात न छिपाऊँगा।12देखो, तुम सभों ने ख़ुद यह देख चुके हो, फिर तुम ख़ुद बीन कैसे हो गए |"13~"ख़ुदा की तरफ़ से शरीर आदमी का हिस्सा, और ज़ालिमों की मीरास जो वह क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ से पाते हैं, यही है।14अगर उसके बच्चे बहुत हो जाएँ तो वह तलवार के लिए हैं, और उसकी औलाद रोटी से सेर न होगी।15उसके बाक़ी लोग मर कर दफ़्न होंगे, और उसकी बेवाएँ नौहा न करेंगी।16चाहे वह ख़ाक की तरह चाँदी जमा' कर ले, और कसरत से लिबास तैयार कर रख्खें17वह तैयार कर ले, लेकिन जो रास्त हैं वह उनको पहनेंगे और जो बेगुनाह हैं वह उस चाँदी को बाँट लेंगे।18उसने मकड़ी की तरह अपना घर बनाया, और उस झोंपड़ी की तरह जिसे रखवाला बनाता है।19वह लेटता है दौलतमन्द, लेकिन वह दफ़न न किया जाएगा। वह अपनी आँख खोलता है और वह है ही नहीं।20दहशत उसे पानी की तरह आ लेती है; रात को तूफ़ान उसे उड़ा ले जाता है।21पूरबी हवा उसे उड़ा ले जाती है, और वह जाता रहता है। वह उसे उसकी जगह से उखाड़ फेंकती है|22क्यूँकि ख़ुदा उस पर बरसाएगा और छोड़ने का नहीं वह उसके हाथ से निकल भागना चाहेगा|23लोग उस पर तालियाँ बजाएँगे, और सुस्कार कर उसे उसकी जगह से निकाल देंगे|
1यक़ीनन चाँदी की कान होती है, और सोने के लिए जगह होती है, जहाँ ताया जाता है |2लोहा ज़मीन से निकाला जाता है, और पीतल पत्थर में से गलाया ~जाता है|3इन्सान तारीकी की तह तक पहुँचता है, और ज़ुल्मात और मौत के साए की इन्तिहा तक पत्थरों की तलाश करता है|4आबादी से दूर वह सुरंग लगाता है, आने जाने वालों के पाँव से बे ख़बर और लोगों से दूर वह लटकते और झूलते हैं |5और ज़मीन उस से ख़ूराक पैदा होती है, और उसके अन्दर गोया आग से इन्क़लाब होता रहता है |6उसके पत्थरों में नीलम है, और उसमें सोने के ज़र्रे हैं7उस राह को कोई शिकारी परिन्दा नहीं जानता न कुछ की आँख ने उसे देखा है |8न मुतक़ब्बिर जानवर उस पर चले हैं, न खू़नख़्वार बबर उधर से गुज़रा है|9वह चकमक की चट्टान पर हाथ लगाता है, वह पहाड़ों को जड़ ही से उखाड़ देता है|10वह चट्टानों में से नालियाँ काटता है, उसकी आँख हर एक बेशक़ीमत चीज़ को देख लेती है|11वह नदियों को मसदूद करता है, कि वह टपकती भी नहीं और छिपी चीज़ को वह रोशनी में निकाल लाता है|12लेकिन हिकमत कहाँ मिलेगी? और 'अक़्लमन्दी की जगह कहाँ है13न इन्सान उसकी क़द्र जानता है, न वह ज़िन्दों की सर ज़मीन में मिलती है|14गहराव कहता है, वह मुझ में नहीं है, और समन्दर भी कहता है वह मेरे पास नहीं है|15न वह सोने के बदले मिल सकती है, न चाँदी उसकी क़ीमत के लिए तुलेगी|16न ओफ़ीर का सोना उसका मोल हो सकता है और न क़ीमती सुलैमानी पत्थर या नीलम|17न सोना और काँच उसकी बराबरी कर सकते हैं, न चोखे सोने के ज़ेवर उसका बदल ठहरेंगे|18मोंगे और बिल्लौर का नाम भी नहीं लिया जाएगा, बल्कि हिकमत की क़ीमत मरजान से बढ़कर है|19न कूश का पुखराज उसके बराबर ठहरेगा न चोखा सोना उसका मोल होगा|20फिर हिकमत कहाँ ~से आती है, और 'अक़्लमन्दी~की जगह कहाँ है|21जिस हाल कि वह सब ज़िन्दों की आँखों से छिपी है, और हवा के परिंदों से पोशीदा रख्खी गई है22हलाकत और मौत कहती है, 'हम ने अपने कानों से उसकी अफ़वाह तो सुनी है। "23"ख़ुदा उसकी राह को जानता है, और उसकी जगह से वाक़िफ़ है।24क्यूँकि वह ज़मीन की इन्तिहा तक नज़र करता है, और सारे आसमान के नीचे देखता है;25ताकि वह हवा का वज़न ठहराए, बल्कि वह पानी को पैमाने से नापता है।26जब उसने बारिश के लिए क़ानून, और रा'द की बर्क़ के लिए रास्ता ठहराया,27तब ही उसने उसे देखा और उसका बयान किया, उसने उसे ~क़ायम और ढूँड निकाला।28और उसने इन्सान से कहा, देख, ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ ही हिकमत है; और बदी से दूर रहना यही 'अक़्लमन्दी~है। ' "
1और अय्यूब फिर अपनी मिसाल लाकर कहने लगा,2"काश कि मैं ऐसा होता जैसे गुज़रे महीनों में, या'नी जैसा उन दिनों में जब ख़ुदा मेरी हिफ़ाज़त करता था।3जब उसका चराग़ मेरे सिर पर रोशन रहता था, और मैं अँधेरे में उसके नूर के ज़रिए' से चलता था |4जैसा में अपनी बरोमन्दी के दिनों में था, जब ख़ुदा की ख़ुशनूदी ~मेरे ख़ेमे पर थी |5जब क़ादिर-ए-मुतलक़ भी मेरे साथ था, और मेरे बच्चे मेरे साथ थे।6जब मेरे क़दम मख्खन से धुलते थे, और चट्टान मेरे लिए तेल की नदियाँ बहाती थी।7जब मैं शहर के फाटक पर जाता और अपने लिए चौक में बैठक ~तैयार करता था;8तो जवान मुझे देखते और छिप जाते, और ~'उम्र रसीदा उठ खड़े होते थे।9~हाकिम बोलना बंद कर देते, और अपने हाथ अपने मुँह पर रख लेते थे।10रईसों की आवाज़ थम जाती, और उनकी ज़बान तालू से चिपक जाती थी।11क्यूँकि ~कान जब मेरी सुन लेता तो मुझे मुबारक कहता था, और आँख जब मुझे देख लेती तो मेरी गावाही देती थी;12क्यूँकि मैं ग़रीब को जब वह फ़रियाद करता~छुड़ाता था और यतीमों को भी जिसका कोई मददगार न था।13हलाक होनेवाला मुझे दु'आ देता था, और मैं बेवा के दिल को ऐसा ख़ुश करता था कि वह गाने लगती थी।14मैंने सदाक़त को पहना और उससे मुलब्बस हुआ: ~मेरा इन्साफ़ गोया जुब्बा और 'अमामा था।15~मैं अंधों के लिए आँखें था, और लंगड़ों के लिए पाँव।16मैं मोहताज का बाप था, और मैं अजनबी के मु'आमिले की भी तहक़ीक़ करता था।17मैं नारास्त के जबड़ों को तोड़ डालता, और उसके दाँतों से शिकार छुड़ालेता था।18तब मैं कहता था, ~कि मैं अपने आशियाने में हूँगा और मैं अपने दिनों को रेत की तरह बे शुमार करूँगा,19मेरी जड़ें पानी तक फैल गई हैं, और रात भर ओस मेरी शाखों पर रहती है;20मेरी शौकत मुझ में ताज़ा है, और मेरी कमान मेरे हाथ में नई की जाती है। '21'लोग मेरी तरफ़ कान लगाते और मुन्तज़िर रहते, और मेरी मशवरत के लिए ख़ामोश हो जाते थे।22मेरी बातों के बा'द, वह फिर न बोलते थे; और मेरी तक़रीर उन पर टपकती थी23वह मेरा ऐसा इन्तिज़ार करते थे जैसा बारिश का; और अपना मुँह ऐसा फैलाते थे जैसे पिछले मेंह के लिए।24जब वह मायूस होते थे तो मैं उन पर मुस्कराता था, और मेरे चेहरे की रोनक की उन्होंने कभी न बिगाड़ा।25मैं उनकी राह को चुनता, और सरदार की तरह बैठता, और ऐसे रहता था जैसे फ़ौज में बादशाह, और जैसे वह जो ग़मज़दों को तसल्ली देता है।
1"लेकिन अब तो वह जो मुझ से कम 'उम्र हैं मेरा मज़ाक़ करते हैं, जिनके बाप-दादा को अपने गल्ले के कुत्तों के साथ रखना भी मुझे नागवार था।2बल्कि उनके हाथों की ताक़त मुझे किस बात का फ़ायदा पहुँचाएगी? वह ऐसे आदमी हैं जिनकी जवानी का ज़ोर ज़ाइल हो गया।3वह ग़ुरबत और क़हत के मारे दुबले हो गए हैं, वह वीरानी और सुनसानी की तारीकी में ख़ाक चाटते हैं।4वह झाड़ियों के पास लोनिये का साग तोड़ते हैं, और झाऊ की जड़ें उनकी ख़ूराक है।5वह लोगों के बीच दौड़ाये गए हैं, लोग उनके पीछे ऐसे चिल्लाते हैं जैसे चोर के पीछे।6उनको वादियों के दरख़्तों में, और ग़ारों और ज़मीन के भट्टों में रहना पड़ता है।7वह झाड़ियों के बीच ~रैंकते, और झंकाड़ों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं।8वह बेवक़ूफ़ों बल्कि कमीनों की औलाद हैं, वह मुल्क से मार-मार कर निकाले गए थे।9और अब मैं उनका गीत बना हूँ, बल्कि उनके लिए एक मिसाल की तरह हूँ।10वह मुझ से नफ़रत करते; वह मुझ से दूर खड़े होते, और मेरे मुँह पर थूकने से बाज़ नहीं रहते हैं।11क्यूँकि खु़दा ने मेरा चिल्ला ढीला कर दिया और मुझ पर आफ़त भेजी, इसलिए वह मेरे सामने बेलगाम हो गए हैं।12मेरे दहने हाथ पर लोगों का मजमा' उठता है; वह मेरे पाँव को एक तरफ़ सरका देते हैं, और मेरे ख़िलाफ़ अपनी मुहलिक राहें निकालते हैं |13~ऐसे लोग भी जिनका कोई मददगार नहीं, मेरे रास्ते को बिगाड़ते, और मेरी मुसीबत को बढ़ाते हैं'।14वह गोया बड़े सुराख़ में से होकर आते हैं, और तबाही में मुझ पर टूट पड़ते हैं।15~दहशत मुझ पर तारी हो गई'| वह हवा की तरह मेरी आबरू को उड़ाती है। मेरी 'आफ़ियत बादल की तरह जाती रही।16"अब तो मेरी जान मेरे अंदर गुदाज़ हो गई, दुख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है।17~रात के वक़्त मेरी हड्डियाँ मेरे अंदर छिद जाती हैं और वह दर्द जो मुझे खाए जाते हैं, दम नहीं लेते।18मेरे मरज़ की शिद्दत से मेरी पोशाक बदनुमा हो गयी; वह मेरे पैराहन के गिरेबान की तरह मुझ से लिपटी हुई है।19उसने मुझे कीचड़ में धकेल दिया है, मैं ख़ाक और राख की तरह हो गया हूँ।20मैं तुझ से फ़रियाद करता हूँ, और तू मुझे जवाब नहीं देता; मैं खड़ा होता हूँ, और तू मुझे घूरने लगता है।21तू बदल कर मुझ पर बे रहम हो गया है; अपने बाज़ू की ताक़त से तू मुझे सताता है।22तू मुझे ऊपर उठाकर हवा पर सवार करता है, और मुझे आँधी में घुला देता है।23क्यूँकि मैं जानता हूँ कि तू मुझे मौत और उस घर तक जो सब ज़िन्दों के लिए मुक़र्रर है।24'तोभी क्या तबाही के वक़्त कोई अपना हाथ न बढ़ाएगा, और मुसीबत में फ़रियाद न करेगा?25क्या मैं दर्दमन्द के लिए रोता न था? क्या मेरी जान मोहताज के लिए ग़मग़ीन न होती थी?26जब मैं भलाई का मुन्तज़िर था, तो बुराई पेश आई जब मैं रोशनी के लिए ठहरा था, तो तारीकी आई।27मेरी अंतड़ियाँ उबल रही हैं और आराम नहीं पातीं; मुझ पर मुसीबत के दिन आ पड़े हैं।28मैं बगै़र धूप के काला हो गया हूँ। मैं मजमे' में खड़ा होकर मदद के लिए फ़रियाद करता हूँ।29मैं गीदड़ों का भाई, और शुतर मुर्ग़ों का साथी हूँ।30मेरी खाल काली होकर मुझ पर से गिरती जाती है और मेरी हड्डियाँ हरारत से जल गई।31इसी लिए मेरे सितार से मातम, और मेरी बाँसली से रोने की आवाज़ निकलती है।
1"मैंने अपनी आँखों से 'अहद किया है। फिर मैं किसी कुँवारी पर क्यूँकर नज़र करूँ|2क्यूँकि ऊपर से ख़ुदा की तरफ़ से क्या हिस्सा है और 'आलम-ए-बाला से क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ से क्या मीरास ~है?3क्या वह नारास्तों के लिए आफ़त और बदकिरदारों के लिए तबाही नहीं है|4क्या वह मेरी राहों को नहीं देखता, और मेरे सब क़दमों को नहीं गिनता?5अगर मैं बतालत से चला हूँ, और मेरे पाँव ने दग़ा के लिए जल्दी की है|6(तो मैं ठीक तराज़ू में तोला जाऊँ, ताकि ख़ुदा मेरी रास्ती को जान ले)।7अगर मेरा क़दम रास्ते से फिरा हुआ है, और मेरे दिल ने मेरी आँखों की पैरवी की है, और अगर मेरे हाथों पर दाग़ लगा है;8तो मैं बोऊँ और दूसरा खाए, और मेरे खेत की पैदावार उखाड़ दी जाए।9"अगर मेरा दिल किसी 'औरत पर फ़रेफ़्ता हुआ, और मैं अपने पड़ोसी के दरवाज़े पर घात में बैठा;10~तो मेरी बीवी दूसरे के लिए पीसे, और गै़र मर्द उस पर झुकें।11क्यूँकि यह बहुत बड़ा जुर्म होता, बल्कि ऐसी बुराई होती जिसकी सज़ा क़ाज़ी देते हैं।12~क्यूँकि वह ऐसी आग है जो जलाकर भस्म कर देती है, और मेरे सारे हासिल को जड़ से बर्बाद कर डालती है।13"अगर मैंने अपने ख़ादिम या अपनी ख़ादिमा का हक़ मारा हो, जब उन्होंने मुझ से झगड़ा किया;14तो जब ख़ुदा उठेगा, तब मैं क्या करूँगा? और जब वह आएगा, तो मैं उसे क्या जवाब दूँगा?15क्या वही उसका बनाने वाला नहीं, जिसने मुझे पेट में बनाया? और क्या एक ही ने हमारी सूरत रहम में नहीं बनाई?16अगर मैंने मोहताज से उसकी मुराद रोक रखी, या ऐसा किया कि बेवा की आँखें रह गई17या अपना निवाला अकेले ही खाया हो, और यतीम उसमें से खाने न पाया18(नहीं, बल्कि मेरे लड़कपन से वह मेरे साथ ऐसे पला जैसे बाप के साथ, और मैं अपनी माँ के बतन ही से बेवा का रहनुमा रहा हूँ)।19~अगर मैंने देखा कि कोई बेकपड़े मरता है, या किसी मोहताज के पास ओढ़ने को नहीं;20अगर उसकी कमर ने मुझ को दु'आ न दी हो, और अगर वह मेरी भेड़ों की ऊन से गर्म न हुआ हो।21अगर मैंने किसी यतीम पर हाथ उठाया हो, क्यूँकि फाटक पर मुझे अपनी मदद दिखाई दी;22तो मेरा कंधा मेरे शाने से उतर जाए, और मेरे बाज़ू की हड्डी टूट जाए।23क्यूँकि ~मुझे ख़ुदा की तरफ़ से आफ़त का ख़ौफ़ था, और उसकी बुजु़र्गी की वजह से मैं कुछ न कर सका।24"अगर मैंने सोने पर भरोसा किया हो, और ख़ालिस सोने से कहा, मेरा ऐ'तिमाद तुझ पर है।25अगर मैं इसलिए कि मेरी दौलत फ़िरावान थी, और मेरे हाथ ने बहुत कुछ हासिल कर लिया था, नाज़ाँ हुआ।26अगर मैंने सूरज पर जब वह चमकता है, नज़र की हो या चाँद पर जब वह आब-ओ-ताब में चलता है,27और मेरा दिल चुपके से 'आशिक़ हो गया हो, और मेरे मुँह ने मेरे हाथ को चूम लिया हो;28तो यह भी ऐसा गुनाह है जिसकी सज़ा क़ाज़ी देते हैं क्यूँकि ~यूँ मैंने ख़ुदा का जो 'आलम-ए-बाला पर है, इंकार किया होता।29~'अगर मैं अपने नफ़रत करने वाले की हलाकत से ख़ुश हुआ, या जब उस पर आफ़त आई तो ख़ुश हुआ;30(हाँ, मैंने तो अपने मुँह को इतना भी गुनाह न करने दिया के ला'नत दे कर उसकी मौत के लिए दु'आ करता);31अगर मेरे ख़ेमे के लोगों ने यह न कहा हो, 'ऐसा कौन है जो उसके यहाँ गोश्त से सेर न हुआ?'32(परदेसी को गली कूचों में टिकना न पड़ा, बल्कि ~मैं मुसाफ़िर के लिए अपने दरवाज़े खोल देता था)।33अगर आदम की तरह अपने गुनाह अपने सीने में छिपाकर, मैंने अपनी ग़लतियों पर पर्दा डाला हो;34इस वजह से कि मुझे 'अवाम के लोगों का ख़ौफ़ था, और मैं ख़ान्दानों की हिकारत से डर गया, यहाँ तक कि मैं ख़ामोश हो गया और दरवाज़े से बाहर न निकला35काश कि कोई मेरी सुनने वाला होता! (यह लो मेरा दस्तख़त। क़ादिर-ए-मुतलक़ मुझे जवाब दे)। काश कि मेरे मुख़ालिफ़ के दा'वे का सुबूत होता।36यक़ीनन मैं उसे अपने कंधे पर लिए फिरता; और उसे अपने लिए 'अमामे की तरह बाँध लेता।37मैं उसे अपने क़दमों की ता'दाद बताता; अमीर की तरह मैं उसके पास जाता।38"अगर मेरी ज़मीन मेरे ख़िलाफ़ फ़रियाद करती हों, और उसकी रेघारियाँ मिलकर रोती हों,39अगर मैंने बेदाम उसके फल खाए हों, या ऐसा किया कि उसके मालिकों की जान गई;40~तो गेहूँ के बदले ऊँट कटारे, और जौ के बदले कड़वे दाने उगें। ”अय्यूब की बातें तमाम हुई।
1तब उन तीनों आदमी ने अय्यूब को जवाब देना छोड़ दिया, इसलिए कि वह अपनी नज़र में सच्चा था।2तब इलीहू बिन-बराकील बूज़ी का, जुराम के ख़ान्दान से था, क़हर से भड़का। उसका क़हर अय्यूब पर भड़का, इसलिए कि उसने ख़ुदा को नहीं बल्कि अपने आप को रास्त ठहराया।3और उसके तीनों दोस्तों पर भी उसका क़हर भड़का, इसलिए कि उन्हें जवाब तो सूझा नहीं, तोभी उन्होंने अय्यूब को मुजरिम ठहराया।4और इलीहू अय्यूब से बात करने से इसलिए रुका रहा कि वह उससे बड़े थे।5जब इलीहू ने देखा कि उन तीनों के मुँह में जवाब न रहा, तो उसका क़हर भड़क उठा।6और बराकील बूज़ी का बेटा इलीहू कहने लगा, "मैं जवान हूँ और तुम बहुत बुज़ुर्ग हो, इसलिए मैं रुका रहा और अपनी राय देने की हिम्मत न की।7मैं कहा साल खूरदह लोग बोलें और 'उम्र रसीदा हिकमत से खायें8लेकिन इन्सान में रूह है, और क़ादिर-ए-मुतलक़ का दम~अक़्ल~बख़्शता है।9बड़े आदमी ही 'अक़्लमन्द नहीं होते, और बुज़ुर्ग ही इन्साफ़ को नहीं समझते।10इसलिए मैं कहता हूँ, 'मेरी सुनो, मैं भी अपनी राय दूँगा। '11~"देखो, मैं तुम्हारी बातों के लिए रुका रहा, जब तुम अल्फ़ाज़ की तलाश में थे; मैं तुम्हारी दलीलों का मुन्तज़िर रहा।12बल्कि मैं तुम्हारी तरफ़ तवज्जुह करता रहा, और देखो, तुम में कोई न था जो अय्यूब को क़ायल करता, या उसकी बातों का जवाब देता।13ख़बरदार, यह न कहना कि हम ने हिकमत को पा लिया है, ख़ुदा ही उसे लाजवाब कर सकता है न कि इन्सान।14क्यूँकि न उसने मुझे अपनी बातों का निशाना बनाया, न मैं तुम्हारी तरह तक़रीरों से उसे जवाब दूँगा।15वह हैरान हैं, वह अब जवाब नहीं देते;उनके पास कहने को कोई बात न रही।16और क्या मैं रुका रहूँ, इसलिए कि वह बोलते नहीं? इसलिए कि वह चुपचाप खड़े हैं और अब जवाब नहीं देते?17मैं भी अपनी बात कहूँगा, मैं भी अपनी राय दूँगा।18क्यूँकि मैं बातों से भरा हूँ, और जो रूह मेरे अंदर है वह ~मुझे मज़बूर करती है।19देखो, मेरा पेट बेनिकास शराब की तरह ~है, वह नई मश्कों की तरह फटने ही को है।20~मैं बोलूँगा ताकि तुझे तसल्ली हो: मैं अपने लबों को खोलूँगा और जवाब दूँगा।21न मैं किसी आदमी की तरफ़दारी करूँगा, न मैं किसी शख़्स को ख़ुशामद के ख़िताब दूँगा।22क्यूँकि मुझे ख़ुश करने का ख़िताब देना नहीं आता, वर्ना मेरा बनाने वाला मुझे जल्द उठा लेता।
1"तोभी ऐ अय्यूब ~ज़रा मेरी तक़रीर सुन ले, और मेरी सब बातों पर कान लगा।2देख, मैंने अपना मुँह खोला है; मेरी ज़बान ने मेरे मुँह में सुखन आराई की है।3मेरी बातें मेरे दिल की रास्तबाज़ी को ज़ाहिर करेंगी। और मेरे लब जो कुछ जानते हैं, उसी को सच्चाई से कहेंगे।4ख़ुदा की रूह ने मुझे बनाया है, और क़ादिर-ए-मुतलक़ का दम मुझे ज़िन्दगी बख़्शता है।5अगर तू मुझे जवाब दे सकता है तो दे, और अपनी बातों को मेरे सामने तरतीब देकर खड़ा हो जा।6~देख, ख़ुदा के सामने मैं तेरे बराबर हूँ। मैं भी मिट्टी से बना हूँ।7देख, मेरा रौ'ब तुझे परेशान न करेगा, मेरा दबाव तुझ पर भारी न होगा।8"यक़ीनन तू मेरे सुनते ही कहा है, और मैंने तेरी बातें सुनी हैं,9कि 'मैं साफ़ और में बे तकसीर हूँ, मैं बे गुनाह हूँ, और मुझ में गुनाह नहीं।10वह मेरे ख़िलाफ़ मौक़ा' ढूँडता है, वह मुझे अपना दुश्मन समझता है;11वह मेरे दोनों पाँव को काठ में ठोंक देता है, वह मेरी सब राहों की निगरानी करता है। '12~"देख, मैं तुझे जवाब देता हूँ, इस बात में तू हक़ पर नहीं। क्यूँकि ख़ुदा इन्सान से बड़ा है।13तू क्यूँ उससे झगड़ता है? क्यूँकि वह अपनी बातों में से किसी का हिसाब नहीं देता।14क्यूँकि ख़ुदा एक बार बोलता है, बल्कि दो बार, चाहे इन्सान इसका ख़याल न करे।15ख़्वाब में, रात के ख़्वाब में, जब लोगों को गहरी नींद आती है, और बिस्तर पर सोते वक़्त ;16तब वह लोगों के कान खोलता है, और उनकी ता'लीम पर मुहर लगाता है,17ताकि इन्सान को उसके मक़सद से रोके, और गु़रूर को इन्सान में से दूर करे।18वह उसकी जान को गढ़े से बचाता है, और उसकी ज़िन्दगी तलवार की मार से।19~"वह अपने बिस्तर पर दर्द से तम्बीह पाता है, और उसकी हड्डियों में दाइमी जंग है।20यहाँ तक कि उसका जी रोटी से, और उसकी जान लज़ीज़ खाने से नफ़रत करने लगती है।21उसका गोश्त ऐसा सूख जाता है कि दिखाई नहीं देता; और उसकी हड्डियाँ जो दिखाई नहीं देती थीं, निकल आती हैं'।22बल्कि उसकी जान गढ़े के क़रीब पहुँचती है, और उसकी ज़िन्दगी हलाक करने वालों के नज़दीक।23वहाँ अगर उसके साथ कोई फ़रिश्ता हो, या हज़ार में एक ता'बीर करने वाला, जो इन्सान को बताए कि उसके लिए क्या ठीक है;24तो वह उस पर रहम करता और कहता है, कि 'उसे गढ़े में जाने से बचा ले; मुझे फ़िदिया मिल गया है।25तब उसका जिस्म बच्चे के जिस्म से भी ताज़ा होगा; और उसकी जवानी के दिन लौट आते हैं। '26वह ख़ुदा से दु'आ करता है। और वह उस पर महेरबान होता है, ऐसा कि वह ख़ुशी से उसका मुँह देखता है; और वह इन्सान की सच्चाई को बहाल कर देता है।27वह लोगों के सामने गाने और कहने लगता है, कि'मैंने गुनाह किया और हक़ को उलट दिया, और इससे मुझे फ़ायदा न हुआ।28~उसने मेरी जान को गढ़े में जाने से बचाया, और मेरी ज़िन्दगी रोशनी को देखेगी। '29"देखो, ख़ुदा आदमी के साथ यह सब काम, दो बार बल्कि तीन बार करता है;30ताकि उसकी जान को गढ़े से लौटा लाए, और वह ज़िन्दों के नूर से मुनव्वर हो।31ऐ अय्यूब! ग़ौर से मेरी सुन; ख़ामोश रह और मैं बोलूँगा।32~अगर तुझे कुछ कहना है तो मुझे जवाब दे; बोल, क्यूँकि मैं तुझे रास्त ठहराना चाहता हूँ।33अगर नहीं, तो मेरी सुन; ख़ामोश रह और मैं तुझे समझ सिखाऊँगा।
1इसके 'अलावा इलीहू ने यह भी कहा,2"ऐ तुम 'अक़्लमन्द लोगों, मेरी बातें सुनो, और ऐ तुम जो अहल-ए-'इल्म हो, मेरी तरफ़ कान लगाओ;3क्यूँकि कान बातों को परखता है, जैसे ज़बान' खाने को चखती है।4जो कुछ ठीक है, हम अपने लिए चुन लें, जो भला है, हम आपस में जान लें।5क्यूँकि अय्यूब ने कहा, 'मैं सादिक़ हूँ, और ख़ुदा ने मेरी हक़ तल्फ़ी की है।6अगरचे मैं हक़ पर हूँ, तोभी झूटा ठहरता हूँ जबकि मैं बेक़ुसूर हूँ, मेरा ज़ख़्म ला 'इलाज है। '7अय्यूब जैसा बहादुर कौन है, जो मज़ाक़ को पानी की तरह पी जाता है?8जो बदकिरदारों की रफ़ाफ़त में चलता है, और शरीर लोगों के साथ फिरता है।9क्यूँकि ~उसने कहा है, कि 'आदमी को कुछ फ़ायदा नहीं कि वह ख़ुदा में ख़ुश है। "10"इसलिए ऐ अहल-ए-अक़्ल~मेरी सुनो, यह हरगिज़ हो नहीं सकता कि ख़ुदा शरारत का काम करे, और क़ादिर-ए-मुतलक़ गुनाह करे।11वह इन्सान को उसके आ'माल के मुताबिक़ बदला देगा, वह ऐसा करेगा कि हर किसी को अपनी ही राहों के मुताबिक़ बदला मिलेगा।12यक़ीनन ख़ुदा बुराई नहीं करेगा;क़ादिर-ए-मुतलक़ से बेइन्साफ़ी न होगी।13किसने उसको ज़मीन पर इख़्तियार दिया? या किसने सारी दुनिया का इन्तिज़ाम किया है?14अगर वह इन्सान से अपना दिल लगाए, अगर वह अपनी रूह और अपने दम को वापस ले ले;15तो तमाम बशर इकट्ठे फ़ना हो जाएँगे, और इन्सान फिर मिट्टी में मिल जाएगा।16"इसलिए अगर तुझ में समझ है तो इसे सुन ले, और मेरी बातों पर तवज्जुह कर।17~क्या वह जो हक़ से 'अदावत रखता है, हुकूमत करेगा? और क्या तू उसे जो 'आदिल और क़ादिर है, मुल्ज़िम ठहराएगा?18वह तो बादशाह से कहता है, 'तू रज़ील है';और शरीफ़ों से, कि 'तुम शरीर हो'।19वह उमर की तरफ़दारी नहीं करता, और अमीर को ग़रीब से ज़्यादा नहीं मानता, क्यूँकि वह सब उसी के हाथ की कारीगरी हैं।20~वह दम भर में आधी रात को मर जाते हैं, लोग हिलाए जाते हैं और गुज़र जाते हैं और ज़बरदस्त लोग बगै़र हाथ लगाए उठा लिए जाते हैं।21"क्यूँकि उसकी आँखें आदमी की राहों पर लगीं हैं, और वह उसकी आदतों को देखता है;22न कोई ऐसी तारीकी न मौत का साया है, जहाँ बद किरदार छिप सकें।23क्यूँकि उसे ज़रूरी नहीं कि आदमी का ज़्यादा ख़याल करे ताकि वह ख़ुदा के सामने 'अदालत में जाए।24वह बिला तफ़तीश ज़बरदस्तों को टुकड़े-टुकड़े करता, और उनकी जगह औरों को खड़ा करता है।25इसलिए वह उनके कामों का ख़याल रखता है, और वह उन्हें रात को उलट देता है ऐसा कि वह हलाक हो जाते हैं।26वह औरों को देखते हुए, उनको ऐसा मारता है जैसा शरीरों को;27इसलिए कि वह उसकी पैरवी से फिर गए, और उसकी किसी राह का ख़याल न किया।28यहाँ तक कि उनकी वजह से ग़रीबों की फ़रियाद उसके सामने पहुँची और उसने मुसीबत ज़दों की फ़रियाद सुनी।29जब वह राहत बख़्शे तो कौन मुल्ज़िम ठहरा सकता है? जब वह मुँह छिपा ले तो कौन उसे देख सकता है? चाहे कोई क़ौम हो या आदमी, दोनों के साथ यकसाँ सुलूक है।30ताकि बेदीन आदमी सल्तनत न करे, और लोगों को फंदे में फंसाने के लिए कोई न हो।31"क्यूँकि क्या किसी ने ख़ुदा से कहा है, मैंने सज़ा उठा ली है, मैं अब बुराई न करूँगा;32जो मुझे दिखाई नहीं देता, वह तू मुझे सिखा; अगर मैंने गुनाह किया है तो अब ऐसा नहीं करूँगा'?33क्या उसका बदला तेरी मर्ज़ी पर हो कि तू उसे ना मंज़ूर करता है? क्यूँकि तुझे फ़ैसला करना है न कि मुझे; इसलिए जो कुछ तू जानता है, कह दे।34अहल-ए-अक़्लमुझ से कहेंगे, बल्कि हर 'अक़्लमन्द जो मेरी सुनता है कहेगा,35~'अय्यूब नादानी से बोलता है, और उसकी बातें हिकमत से ख़ाली हैं। '36काश कि अय्यूब आख़िर तक आज़माया जाता, क्यूँकि वह शरीरों की तरह जवाब देता है।37इसलिए कि वह अपने गुनाहों पर बग़ावत को बढ़ाता है; वह हमारे बीच तालियाँ बजाता है, और ख़ुदा के ख़िलाफ़ बहुत बातें बनाता है। ”
1इसके 'अलावा एलीहू ने यह भी कहा ,2~"क्या तू इसे अपना हक़ समझता है, या यह दा'वा करता है कि तेरी सदाक़त ख़ुदा की सदाक़त से ज़्यादा है?3जो तू कहता है कि मुझे इससे क्या फ़ायदा मिलेगा? और मुझे इसमें गुनहगार न होने की निस्बत कौन सा ज़्यादा फ़ायदा होगा?4मैं तुझे और तेरे साथ तेरे दोस्तों को जवाब दूँगा।5आसमान की तरफ़ नज़र कर और देख; और आसमानों पर जो तुझ से बलन्द हैं, निगाह कर।6अगर तू गुनाह करता है तो उसका क्या बिगाड़ता है? और अगर तेरी ख़ताएँ बढ़ जाएँ तो तू उसका क्या करता है?7अगर तू सादिक़ है तो उसको क्या दे देता है? या उसे तेरे हाथ से क्या मिल जाता है?8तेरी शरारत तुझ जैसे आदमी के लिए है, और तेरी सदाक़त आदमज़ाद के लिए।9"जु़ल्म की कसरत की वजह से वह चिल्लाते हैं; ज़बरदस्त के बाज़ू की वजह से वह मदद के लिए दुहाई देतें हैं।10लेकिन कोई नहीं कहता, कि 'ख़ुदा मेरा ख़ालिक़ कहाँ है, जो रात के वक़्त नगमें 'इनायत करता है?11जो हम को ज़मीन के जानवरों से ज़्यादा ता'लीम देता है, और हमें हवा के परिन्दों से ज़्यादा 'अक़्लमन्द बनाता है?'12वह दुहाई देते हैं लेकिन कोई जवाब नहीं देता, यह बुरे आदमियों के ग़ुरूर की वजह से है।13यक़ीनन ख़ुदा बतालत को नहीं सुनेगा, और क़ादिर-ए-मुतलक़ उसका लिहाज़ न करेगा।14ख़ासकर जब तू कहता है, कि तू उसे देखता नहीं। मुकद्दमा उसके सामने है और तू उसके लिए ठहरा हुआ है।15~लेकिन अब चूँकि उसने अपने ग़ज़ब में सज़ा न दी, और वह ~गु़रूर का ज़्यादा ख़याल नहीं करता;16इसलिए अय्यूब ख़ुदबीनी की वजह से अपना मुँह खोलता है और नादानी से बातें बनाता है|"
1फ़िर इलीहू ने यह भी कहा,2मुझे ज़रा इजाज़त दे और मैं तुझे बताऊँगा, क्यूँकि ख़ुदा की तरफ़ से मुझे कुछ और भी कहना है3मैं अपने 'इल्म को दूर से लाऊँगा और रास्ती अपने खालिक़ से मनसूब करूँगा4क्यूँकि हक़ीक़त में मेरी बातें झूटी नहीं हैं, और जो तेरे साथ है 'इल्म में कामिल हैं|5देख ख़ुदा क़ादिर है, और किसी को बेकार नहीं जानता वह समझ की क़ुव्वत में ग़ालिब है |6वह शरीरों की जिंदगी को बरक़रार नहीं रखता, बल्कि मुसीबत ज़दों को उनका हक़ अदा करता है|7वह सादिक़ों से अपनी आँखे नहीं फेरता, बल्कि उन्हें बादशाहों के साथ हमेशा के लिए तख़्त पर बिठाता है|8और वह सरफ़राज़ होते हैं और अगर वह बेड़ियों से जकड़े जाएं और मुसीबत की रस्सियों से बंधें,9तो वह उन्हें उनका 'अमल और उनकी तक्सीरें दिखाता है, कि उन्होंने घमण्ड किया है|10वह उनके कान को ता'लीम के लिए खोलता है, और हुक्म देता है कि वह गुनाह से बाज़ आयें|11अगर वह सुन लें और उसकी 'इबादत करें तो अपने दिन इक़बालमंदी में और अपने बरस खु़शहाली में बसर करेंगे12लेकिन अगर न सुनें तो वह तलवार से हलाक होंगे, और जिहालत में मरेंगे|13लेकिन वह जो दिल में बे दीन ~हैं, ग़ज़ब को रख छोड़ते जब वह उन्हें बांधता है तो वह मदद के लिए दुहाई नहीं देते,14वह जवानी में मरतें हैं और उनकी ज़िन्दगी छोटों के बीच में बर्बाद होता है|15वह मुसीबत ज़दह को मुसीबत से छुड़ाता है, और ज़ुल्म में उनके कान खोलता है|16बल्कि वह तुझे ~भी दुख से छुटकारा दे कर ऐसी वसी' जगह में जहाँ तंगी नहीं है पहुँचा देता और जो कुछ तेरे दस्तरख़्वान पर चुना जाता है वह चिकनाई से पुर होता है|17लेकिन तू तो शरीरों के मुक़द्दमा की ता'ईद करता है, इसलिए 'अदल और इन्साफ़ तुझ पर क़ाबिज़ हैं |18ख़बरदार तेरा क़हर तुझ से तक्फ़ीर न कराए और फ़िदया ~की फ़रादानी तुझे गुमराह न करे |19क्या तेरा रोना या तेरा ज़ोर व तवानाई ~इस बात के लिए काफ़ी है कि तू मुसीबत में न पड़े|20उस रात की ख़्वाहिश न कर, जिसमें क़ौमें अपने घरों से उठा ली जाती हैं।21होशियार रह, गुनाह की तरफ़ राग़िब न हो, क्यूँकि तू ने मुसीबत को नहीं बल्कि इसी को चुना है।22देख, ख़ुदा अपनी क़ुदरत से बड़े-बड़े काम करता है। कौन सा उस्ताद उसकी तरह है?23किसने उसे उसका रास्ता बताया? या कौन कह सकता है कि तू ने नारास्ती की है?24'उसके काम की बड़ाई करना याद रख, जिसकी ता'रीफ़ लोग करते रहे हैं।25सब लोगों ने इसको देखा है, इन्सान उसे दूर से देखता है।26देख, ख़ुदा बुज़ुर्ग है और हम उसे नहीं जानते, उसके बरसों का शुमार दरियाफ़्त से बाहर है।27क्यूँकि वह पानी के क़तरों को ऊपर खींचता है, जो उसी के अबख़िरात से मेंह की सूरत में टपकते हैं;28जिनकी अफ़लाक उंडेलते, और इन्सान पर कसरत से बरसाते हैं।29बल्कि क्या कोई बादलों के फैलाव, और उसके शामियाने की गरजों को समझ सकता है?30देख, वह अपने नूर को अपने चारों तरफ़ फैलाता है, और समन्दर की तह को ढाँकता है।31क्यूँकि इन्हीं से वह क़ौमों का इन्साफ़ करता है, और ख़ूराक इफ़रात से 'अता फ़रमाता है।32वह बिजली को अपने हाथों में लेकर, उसे हुक्म देता है कि दुश्मन पर गिरे।33इसकी कड़क उसी की ख़बर देती है, चौपाये भी तूफ़ान की आमद बताते हैं।
1इस बात से भी मेरा दिल काँपता है और अपनी जगह से उछल पड़ता है।2ज़रा उसके बोलने की आवाज़ को सुनो, और उस ज़मज़मा को जो उसके मुँह से निकलता है।3वह उसे सारे आसमान के नीचे, और अपनी बिजली को ज़मीन की इन्तिहा तक भेजता है।4इसके बा'द कड़क की आवाज़ आती है; वह अपने जलाल की आवाज़ से गरजता है, और जब उसकी आवाज़ सुनाई देती है तो वह उसे रोकता है।5ख़ुदा 'अजीब तौर पर अपनी आवाज़ से गरजता है। वह बड़े बड़े काम करता है जिनको हम समझ नहीं सकते।6क्यूँकि वह बर्फ़ को फ़रमाता है कि तू ज़मीन पर गिर, इसी तरह वह बारिश से और मूसलाधार मेह से कहता है।7वह हर आदमी के हाथ पर मुहर कर देता है, ताकि सब लोग जिनको उसने बनाया है, इस बात को जान लें।8तब दरिन्दे ग़ारों में घुस जाते, और अपनी अपनी माँद में पड़े रहते हैं।9ऑधी दख्खिन की कोठरी से, और सर्दी उत्तर" से आती है।10ख़ुदा के दम से बर्फ़ जम जाती है, और पानी का फैलाव तंग हो जाता है।11बल्कि वह घटा पर नमी को लादता है, और अपने बिजली वाले बादलों को दूर तक फैलाता है।12उसी की हिदायत से वह इधर उधर फिराए जाते हैं, ताकि जो कुछ वह उन्हें फ़रमाए, उसी को वह दुनिया के आबाद हिस्से पर अंजाम दें।13चाहे तम्बीह के लिए या अपने मुल्क के लिए, या रहमत के लिए वह उसे भेजे।14"ऐ अय्यूब, इसको सुन ले;चुपचाप खड़ा रह, और ख़ुदा के हैरतअंगेज़ कामों पर ग़ौर कर।15क्या तुझे मा'लूम है कि ख़ुदा क्यूँकर उन्हें ताकीद करता है और अपने बादल की बिजली को चमकाता है?16क्या तू बादलों के मुवाज़ने से वाक़िफ़ है? यह उसी के हैरतअंगेज़ काम हैं जो 'इल्म में कामिल है।17जब ज़मीन पर दख्खिनी हवा की वजह से सन्नाटा होता है तो तेरे कपड़े क्यूँ गर्म हो जाते हैं?18~क्या तू उसके साथ फ़लक को फैला सकता है जो ढले हुए आइने की तरह मज़बूत है?19हम को सिखा कि हम उस से क्या कहें, क्यूँकि अंधेरे की वजह से हम अपनी तक़रीर को दुरुस्त नहीं कर सकते?20क्या उसको बताया जाए कि मैं बोलना चाहता हूँ? या क्या कोई आदमी यह ख़्वाहिश करे कि वह निगल लिया जाए?21"अभी तो आदमी उस नूर को नहीं देखते जो असमानों पर रोशन है, लेकिन हवा चलती है और उन्हें साफ़ कर देती है।22दख्खिनी से सुनहरी रोशनी आती है, ख़ुदा मुहीब शौकत से मुलब्बस है।23हम क़ादिर-ए-मुतलक़ को पा नहीं सकते, वह क़ुदरत और 'अद्ल में शानदार है, और इन्साफ़ की फ़िरावानी में ज़ुल्म न करेगा।24इसीलिए लोग उससे डरते हैं; वह~अक़्लमन्ददिलों की परवाह नहीं करता |
1~तब ख़ुदावन्द ने अय्यूब को बगोले में से यूँ जवाब दिया,2~"यह कौन है जो नादानी की बातों से, मसलहत पर पर्दा डालता है"?3मर्द की तरह अब अपनी कमर कस ले, क्यूँकि मैं तुझ से सवाल करता हूँ और तू मुझे बता।4~"तू कहाँ था, जब मैंने ज़मीन की बुनियाद डाली? तू~'अक़्लमन्द~है तो बता।5क्या तुझे मा'लूम है किसने उसकी नाप ठहराई? या किसने उस पर सूत खींचा?6किस चीज़ पर उसकी बुनियाद डाली गई', या किसने उसके कोने का पत्थर बिठाया,7जब सुबह के सितारे मिलकर गाते थे, और ख़ुदा के सब बेटे ख़ुशी से ललकारते ~थे?8"या किसने समन्दर को दरवाज़ों से बंद किया, जब वह ऐसा फूट निकला जैसे रहम से,9जब मैंने बादल को उसका लिबास बनाया, और गहरी तारीकी को उसका लपेटने का कपड़ा,10और उसके लिए हद ठहराई", और बेन्डू और किवाड़ लगाए,11और कहा, 'यहाँ तक तू आना, लेकिन आगे नहीं, और यहाँ तक तेरी बिछड़ती हुई मौजें रुक जाएँगी'?12"क्या तू ने अपनी 'उम्र में कभी सुबह पर हुकमरानी की, दिया ~और क्या तूने फ़ज्र को उसकी जगह बताई,13ताकि वह ज़मीन के किनारों पर क़ब्ज़ा करे, और शरीर लोग उसमें से झाड़ दिए जाएँ?14वह ऐसे बदलती है जैसे मुहर के नीचे चिकनी मिटटी15और तमाम चीज़ें कपड़े की तरह नुमाया हो जाती हैं, और और शरीरों से उसकी बन्दगी रुक जाती है और बुलन्द बाज़ू तोड़ा जाता है।16"क्या तू समन्दर के सोतों में दाख़िल हुआ है? या गहराव की थाह में चला है?17~क्या मौत के फाटक तुझ पर ज़ाहिर कर दिए गए हैं? या तू ने मौत के साये के फाटकों को देख लिया है?18क्या तू ने ज़मीन की चौड़ाई को समझ लिया है?अगर तू यह सब जानता है तो बता।19"नूर के घर का रास्ता कहाँ है? रही तारीकी, इसलिए उसका मकान कहाँ है?20ताकि तू उसे उसकी हद तक पहुँचा दे, और उसके मकान की राहों को पहचाने?21बेशक तू जानता होगा; क्यूँकि तू उस वक़्त पैदा हुआ था, और तेरे दिनों का शुमार बड़ा है।22क्या तू बर्फ़ के मख़ज़नों में दाख़िल हुआ है, या ओलों के मखज़नों को तूने देखा है,23जिनको मैंने तकलीफ़ के वक़्त के लिए, और लड़ाई और जंग के दिन की ख़ातिर रख छोड़ा है?24रोशनी किस तरीक़े से तक़सीम होती है, या पूरबी हवा ज़मीन पर फैलाई जाती है?25सैलाब के लिए किसने नाली काटी, या कड़क की बिजली के लिए रास्ता,26ताकि उसे गै़र आबाद ज़मीन पर बरसाए और वीरान पर जिसमें इन्सान नहीं बसता,27ताकि उजड़ी और सूनी ज़मीन को सेराब करे, और नर्म-नर्म घास उगाए?28क्या बारिश का कोई बाप है, या शबनम के क़तरे किससे तवल्लुद हुए?29~यख़ किस के बतन निकला से निकला है, और आसमान के सफ़ेद पाले को किसने पैदा किया?30पानी पत्थर सा हो जाता है, और गहराव की सतह जम जाती है।31~"क्या तू 'अक़्द-ए-सुरैया को बाँध सकता, या जब्बार के बंधन को खोल सकता है,32क्या तू मिन्तक़्तू-उल-बुरूज को उनके वक़्तों पर निकाल सकता है? या बिनात-उन-ना'श की उनकी सहेलियों के साथ रहबरी कर सकता है?33क्या तू आसमान के क़वानीन को जानता है, और ज़मीन पर उनका इख़्तियार क़ायम कर सकता है?34क्या तू बादलों तक अपनी आवाज़ बुलन्द कर सकता है, ताकि पानी की फ़िरावानी तुझे छिपा ले?35क्या तू बिजली को रवाना कर सकता है कि वह जाए, और तुझ से कहे मैं हाज़िर हूँ?36बातिन में हिकमत किसने रख्खी, और दिल को~अक़्ल किसने बख़्शी?37बादलों को हिकमत से कौन गिन सकता है? या कौन आसमान की मश्कों को उँडेल सकता है,38जब गर्द मिलकर तूदा बन जाती है, और ढेले एक साथ मिल जाते हैं?39"क्या तू शेरनी के लिए शिकार मार देगा, या बबर के बच्चों को सेर करेगा,40जब वह अपनी माँदों में बैठे हों, और घात लगाए आड़ में दुबक कर बैठे हों?41पहाड़ी कौवे के लिए कौन ख़ूराक मुहैया करता है, जब उसके बच्चे ख़ुदा से फ़रियाद करते, और ख़ूराक न मिलने से उड़ते फिरते हैं?
1क्या तू जनता है कि पहाड़ पर की जंगली बकरियाँ कब बच्चे देती हैं? या जब हिरनियाँ बियाती हैं, तो क्या तू देख सकता है?2क्या तू उन महीनों को जिन्हें वह पूरा करती हैं, गिन सकता है? या तुझे वह वक़्त मा'लूम है जब वह बच्चे देती हैं?3वह झुक जाती हैं; वह अपने बच्चे देती हैं, और अपने दर्द से रिहाई पाती हैं।4उनके बच्चे मोटे ताज़े होते हैं; वह खुले मैदान में बढ़ते हैं। वह निकल जाते हैं और फिर नहीं लौटते।5गधे को किसने आज़ाद किया? जंगली गधे के बंद किसने खोले ?6वीरान को मैंने उसका मकान बनाया, और ज़मीन-ए-शोर को उसका घर।7वह शहर के शोर-ओ-गु़ल को हेच समझता है, और हाँकने वाले की डॉट को नहीं सुनता।8पहाड़ों का सिलसिला उसकी चरागाह है, और वह हरियाली की तलाश में रहता है।9"क्या जंगली साँड तेरी ख़िदमत पर राज़ी होगा? क्या वह तेरी चरनी के पास रहेगा?10क्या तू जंगली साँड को रस्से से बाँधकर रेघारी में चला सकता है? या वह तेरे पीछे-पीछे वादियों में हेंगा फेरेगा?11क्या तू उसकी बड़ी ताक़त की वजह से उस पर भरोसा करेगा ? या क्या तू अपना काम उस पर छोड़ देगा?12क्या तू उस पर भरोसा करेगा कि वह तेरा ग़ल्ला घर ले आए, और तेरे खलीहान का अनाज इकट्ठा करे?13"शुतरमुर्ग़ के बाज़ू आसूदा हैं, लेकिन क्या उसके पर-ओ-बाल से शफ़क़त ज़ाहिर होती है?14क्यूँकि वह तो अपने अंडे ज़मीन पर छोड़ देती है, और रेत से उनको गर्मी पहुँचाती है;15और भूल जाती है कि वह पाँव से कुचले जाएँगे, या कोई जंगली जानवर उनको रौंद डालेगा।16वह अपने बच्चों से ऐसी सख़्तदिली करती है कि जैसे वह उसके नहीं। चाहे उसकी मेहनत रायगाँ जाए उसे कुछ ख़ौफ़ नहीं।17क्यूँकि ख़ुदा ने उसे 'अक़्ल से महरूम रखा, और उसे समझ नहीं दी।18जब वह तनकर सीधी खड़ी हो जाती है, तो घोड़े और उसके सवार दोनों को नाचीज़ समझती हैं।19~"क्या घोड़े को उसका ताक़त तू ने दी है? क्या उसकी गर्दन की लहराती अयाल से तूने मुलब्बस किया?20क्या उसे टिड्डी की तरह तूने कुदाया है? उसके फ़राने की शान मुहीब है।21वह वादी में टाप मारता है और अपने ज़ोर में ख़ुश है। वह हथियारबंद आदमियों का सामना करने को निकलता है।22वह ख़ौफ़ को नाचीज़ जानता है और घबराता नहीं, और वह तलवार से मुँह नहीं मोड़ता।23तर्कश उस पर खड़खड़ाता है, चमकता हुआ भाला और साँग भी;24वह तुन्दी और क़हर में ज़मीन पैमाई करता है, और उसे यक़ीन नहीं होता कि यह तुर ही की आवाज़ है।25जब जब तुरही बजती है, वह हिन हिन करता है, और लड़ाई को दूर से सूँघ लेता है; सरदारों की गरज़ और ललकार को भी।26"क्या बा'ज़ तेरी हिकमत से उड़ता है, और दख्खिन की तरफ़ अपने बाज़ू फैलाता है?27क्या 'उक़ाब तेरे हुक्म से ऊपर चढ़ता है, और बुलन्दी पर अपना घोंसला बनाता है?28वह चट्टान पर रहता और वहीं बसेरा करता है; या'नी चट्टान की चोटी पर और पनाह की जगह में।29वहीं से वह शिकार ताड़ लेता है, उसकी आँखें उसे दूर से देख लेती हैं।30उसके बच्चे भी खू़न चूसते हैं, और जहाँ मक़्तूल हैं वहाँ वह भी है। ”
1ख़ुदावन्द ने अय्यूब से यह भी कहा,2"क्या जो फु़जू़ल हुज्जत करता है वह क़ादिर-ए-मुतलक़ से झगड़ा करे? जो ख़ुदा से बहस करता है, वह इसका जवाब दे।3” अय्यूब का जवाब तब अय्यूब ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया,4"देख, मैं नाचीज़ ~हूँ! मैं तुझे क्या जवाब दूँ? मैं अपना हाथ अपने मुँह पर रखता हूँ।5अब जवाब न दूँगा; एक बार मैं बोल चुका, बल्कि दो बार लेकिन अब आगे न बढ़ूँगा। "6तब ख़ुदावन्द ने अय्यूब को बगोले में से जवाब दिया,7"मर्द की तरह अब अपनी कमर कस ले, मैं तुझ से सवाल करता हूँ और तू मुझे बता।8क्या तू मेरे इन्साफ़ को भी बातिल ठहराएगा?9क्या तू मुझे मुजरिम ठहराएगा ताकि ख़ुद रास्त ठहरे ? या क्या तेरा बाज़ू ख़ुदा के जैसा है?और क्या तू उसकी तरह आवाज़ से गरज़ सकता है?10'अब अपने को शान-ओ-शौकत से आरास्ता कर, और 'इज़्जत-ओ-जलाल से मुलब्बस हो जा।11अपने क़हर के सैलाबों को बहा दे, और हर मग़रूर को देख और ज़लील कर।12हर मग़रूर को देख और उसे नीचा कर, और शरीरों को जहाँ खड़े हों पामाल कर दे।13उनको इकट्ठा मिट्टी में छिपा दे, और उस पोशीदा मक़ाम में उनके मुँह बाँध दे।14तब मैं भी तेरे बारे में मान लूँगा, कि तेरा ही दहना हाथ तुझे बचा सकता है।15'अब हिप्पो पोटीमस' को देख, जिसे मैंने तेरे साथ बनाया; वह बैल की तरह घास खाता है।16देख, उसकी ताक़त उसकी कमर में है, और उसका ज़ोर उसके पेट के पट्ठों में।17वह अपनी दुम को देवदार की तरह हिलाता है, उसकी रानों की नसे एक साथ पैवस्ता हैं।18उसकी हड्डियाँ पीतल के नलों की तरह हैं, उसके आ'ज़ा लोहे के बेन्डों की तरह हैं।19~वह ख़ुदा की ख़ास सन'अत' है; उसके ख़ालिक़ ही ने उसे तलवार बख़्शी है।20यक़ीनन टीले उसके लिए ख़ूराक एक साथ पहुँचाते हैं जहाँ मैदान के सब जानवर खेलते कूदते हैं।21वह कंवल के दरख़्त के नीचे लेटता है, सरकंडों की आड़ और दलदल में।22कंवल के दरख़्त उसे अपने साये के नीचे ~छिपा लेते हैं। नाले के बीदे उसे घेर लेतीं हैं |23देख, अगर दरिया में बाढ़ हो तो वह नहीं काँपता चाहे यर्दन उसके मुँह तक चढ़ आये वह बे खौफ़ है।24जब वह होशियार हो, तो क्या कोई उसे पकड़ लेगा; या फंदा लगाकर उसकी नाक को छेदेगा?
1क्या तू मगर कोशिस्त से बाहर निकाल सकता है या रस्सी से उसकी ज़बान को दबा सकता है?2क्या तू उसकी नाक में रस्सी डाल सकता है? या उसका जबड़ा मेख़ से छेद सकता है?3क्या वह तेरी बहुत मिन्नत समाजत करेगा? या तुझ से मीठी मीठी बातें कहेगा?4क्या वह तेरे साथ 'अहद बांधेगा, कि तू उसे हमेशा के लिए नौकर बना ले?5क्या तू उससे ऐसे खेलेगा जैसे परिन्दे से? या क्या तू उसे अपनी लड़कियों के लिए बाँध देगा?6क्या लोग उसकी तिजारत करेंगे? क्या वह उसे सौदागरों में तक़सीम करेंगे?7क्या तू उसकी खाल को भालों से, या उसके सिर को माहीगीर के तरसूलों से भर सकता है?8तू अपना हाथ उस पर धरे, तो लड़ाई को याद रख्खेगा और फिर ऐसा न करेगा।9देख, उसके बारे में उम्मीद बेफ़ायदा है। क्या कोई उसे देखते ही गिर न पड़ेगा?10कोई ऐसा तुन्दख़ू नहीं जो उसे छेड़ने की हिम्मत न करे। फिर वह कौन है जो मेरे सामने खड़ा होसके?11किस ने मुझे पहले कुछ दिया है कि मैं उसे अदा करूँ? जो कुछ सारे आसमान के नीचे है वह मेरा है।12न मैं उसके 'आज़ा के बारे में ख़ामोश रहूँगा न उसकी ताक़त और ख़ूबसूरत डील डोल के बारे में।13उसके ऊपर का लिबास कौन उतार सकता है? उसके जबड़ों के बीच कौन आएगा?14उसके मुँह के किवाड़ों को कौन खोल सकता है? उसके दाँतों का दायरा दहशत नाक है।15उसकी ढालें उसका फ़ख़्र हैं; जो जैसा सख़्त मुहर से पैवस्ता की गई हैं।16वह एक दूसरी से ऐसी जुड़ी हुई हैं, कि उनके बीच हवा भी नहीं आ सकती।17वह एक दूसरी से एक साथ पैवस्ता हैं; वह आपस में ऐसी जुड़ी हैं कि जुदा नहीं हो सकतीं।18उसकी छींकें नूर अफ़्शानी करती हैं उसकी आँखें सुबह के पपोटों की तरह हैं।19उसके मुँह से जलती मश'अलें निकलती हैं, और आग की चिंगारियाँ उड़ती हैं।20उसके नथनों से धुवाँ निकलता है, जैसे खौलती देग और सुलगते सरकंडे से।21उसका साँस से ~कोयलों को दहका देता है, और उसके मुँह से शो'ले निकलते हैं।22ताक़त उसकी गर्दन में बसती है, और दहशत उसके आगे आगे चलती" है।23उसके गोश्त की तहें आपस में जुड़ी हुई हैं; वह उस पर ख़ूब जुड़ी हैं और हट नहीं सकतीं।24उसका दिल पत्थर की तरह मज़बूत है, बल्कि चक्की के निचले पाट की तरह।25जब वह उठ खड़ा होता है, तो ज़बरदस्त लोग डर जाते हैं, और घबराकर ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं।26अगर कोई उस पर तलवार चलाए, तो उससे कुछ नहीं बनता: न भाले, न तीर, न बरछी से।27वह लोहे को भूसा समझता है, और पीतल को गली हुई लकड़ी।28तीर उसे भगा नहीं सकता, फ़लाख़न के पत्थर उस पर तिनके से हैं।29लाठियाँ जैसे तिनके हैं, वह बर्छी के चलने पर हँसता है।30उसके नीचे के हिस्से तेज़ ठीकरों की तरह हैं; वह कीचड़ पर जैसे हेंगा फेरता है।31वह गहराव को देग की तरह खौलाता, और समुन्दर को मरहम की तरह बना देता है।32वह अपने पीछे चमकीला निशान छोड़ जाता है; गहराव गोया सफ़ेद नज़र आने लगता है।33ज़मीन पर उसका नज़ीर नहीं, जो ऐसा बेख़ौफ़ पैदा हुआ हो।34वह हर ऊँची चीज़ को देखता है, और सब मग़रूरों का बादशाह है। "
1तब अय्यूब ने ख़ुदावन्द यूँ जवाब दिया2~"मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है, और तेरा कोई इरादा रुक नहीं सकता।3यह कौन है जो नादानी से मसलहत पर पर्दा डालता है" ? लेकिन मैंने जो न समझा वही कहा, या'नी ऐसी बातें जो मेरे लिए बहुत 'अजीब थीं जिनको ~मैं जानता न था।4~'मैं तेरी मिन्नत करता हूँ सुन, मैं कुछ कहूँगा। मैं तुझ से सवाल करूँगा, तू मुझे बता। '5मैंने तेरी ख़बर कान से सुनी थी, लेकिन अब मेरी आँख तुझे देखती है;6इसलिए मुझे अपने आप से नफ़रत है, और मैं ख़ाक और राख में तौबा करता हूँ। "7और ऐसा हुआ कि जब ख़ुदावन्द यह बातें अय्यूब से कह चुका, तो उसने अलीफ़ज़ तेमानी से कहा कि "मेरा ग़ज़ब तुझ पर और तेरे दोनों दोस्तों पर भड़का है, क्यूँकि तुम ने मेरे बारे में वह बात न कही जो हक़ है, जैसे मेरे बन्दे अय्यूब ने कही।8इसलिए अब अपने लिए सात बैल और सात मेंढे लेकर, मेरे बन्दे अय्यूब के पास जाओ और अपने लिए सोख़्तनी कु़र्बानी पेश करो, और मेरा बन्दा अय्यूब तुम्हारे लिए दु'आ करेगा; क्यूँकि उसे तो मैं क़ुबूल करूँगा ताकि तुम्हारी जिहालत के मुताबिक़ तुम्हारे साथ सुलूक न करूँ, क्यूँकि तुम ने मेरे बारे में वह बात न कही जो हक़ है, जैसे मेरे बन्दे अय्यूब ने कही। "9इसलिए अलीफ़ज़ तेमानी , और ~बिलदद सूखी और जूफ़र ना'माती ~ने जाकर जैसा ख़ुदावन्द ने उनको फ़रमाया था किया, और ख़ुदावन्द ने अय्यूब को क़ुबूल किया।10~और ख़ुदावन्द ने अय्यूब की ग़ुलामी को जब उसने अपने दोस्तों के लिए दु'आ की बदल दिया और ख़ुदावन्द ने अय्यूब को जितने उसके पास पहले था उसका दो गुना दे दिया |11तब उसके सब भाई और सब बहनें और उसके सब अगले जान-पहचान उसके पास आए, और उसके घर में उसके साथ खाना खाया; और उस पर नौहा किया और उन सब बलाओं ~के बारे में, जो ख़ुदावन्द ने उस पर नाज़िल की थीं, उसे तसल्ली दी। हर शख़्स ने उसे एक सिक्का भी दिया और हर एक ने सोने की एक बाली।12यूँ खुदावन्द ने अय्यूब के आख़िरी दिनों में शुरू'आत की निस्बत ज़्यादा बरकत बख़्शी; और उसके पास चौदह हज़ार भेड़ बकरियाँ, और छ: हज़ार ऊँट, और हज़ार जोड़ी बैल, और हज़ार गधियाँ, हो गईं।13उसके सात बेटे और तीन बेटियाँ भी हुई।14और उसने पहली का नाम यमीमा और दूसरी का नाम क़स्याह और तीसरी का नाम क़रन-हप्पूक रख्खा।15और उस सारी सर ज़मीन में ऐसी 'औरतें कहीं न थीं, जो अय्यूब की बेटियों की तरह ख़ूबसूरत हों, और उनके बाप ने उनको उनके भाइयों के बीच मीरास दी।16और इसके बा'द अय्यूब एक सौ चालीस बरस ज़िन्दा रहा, और अपने बेटे और पोते चौथी पुश्त तक देखे।17और अय्यूब ने बुड्ढा और बुज़ुर्ग होकर वफ़ात पाई।
1~मुबारक है वह आदमी जो शरीरों की सलाह पर नहीं चलता, और ख़ताकारों की राह में खड़ा नहीं होता; और ठट्ठा बाज़ों की महफ़िल में नहीं बैठता।2बल्कि ख़ुदावन्द की शरी'अत में ~ही उसकी ख़ुशी है; और उसी की शरी'अत पर दिन रात उसका ध्यान रहता है।3~वह उस दरख़्त की तरह होगा, जो पानी की नदियों के पास लगाया गया है। जो अपने वक़्त पर फलता है, और जिसका पत्ता भी नहीं मुरझाता। इसलिए जो कुछ वह करे फलदार होगा।4~शरीर ऐसे नहीं, बल्कि वह भूसे की तरह हैं, जिसे हवा उड़ा ले जाती है।5~इसलिए शरीर 'अदालत में क़ायम न रहेंगे, न ख़ताकार सादिक़ों की जमा'अत में।6~क्यूँकि ख़ुदावन्द सादिक़ो की राह ~जानता है लेकिन शरीरों की राह बर्बाद हो जाएगी।
1~क़ौमें किस लिए ग़ुस्से में है और लोग क्यूँ बेकार ख़याल बाँधते हैं2~ख़ुदावन्द और उसके मसीह के ख़िलाफ़ ज़मीन के बादशाह एक हो कर, और हाकिम आपस में मशवरा करके कहते हैं,3~'आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सियाँ अपने ऊपर से उतार फेंके।"4वह जो आसमान पर तख़्त नशीन है हँसेगा, ख़ुदावन्द उनका मज़ाक़ उड़ाएगा।5~तब वह अपने ग़ज़ब में उनसे कलाम करेगा, और अपने ग़ज़बनाक ग़ुस्से में उनको परेशान कर देगा,6~"मैं तो अपने बादशाह को, अपने पाक पहाड़ सिय्यून पर बिठा चुका हूँ।”7~मैं उस फ़रमान को बयान करूँगा: ख़ुदावन्द ने मुझ से कहा, "तू मेरा बेटा है। आज तू मुझ से पैदा हुआ।8~मुझ से माँग, और मैं क़ौमों को तेरी मीरास के लिए, और ज़मीन के आख़िरी हिस्से तेरी मिल्कियत के लिए तुझे बख़्शूँगा।9~तू उनको लोहे के 'असा से तोड़ेगा, कुम्हार के बर्तन की तरह तू उनको चकनाचूर कर डालेगा।"10~इसलिए अब ऐ बादशाहो, अक़्लमंद बनो; ऐ ज़मीन की 'अदालत करने वालो, तरबियत पाओ।11~डरते हुए ख़ुदावन्द की 'इबादत करो, काँपते हुए ख़ुशी मनाओ।12~बेटे को चूमो, ऐसा न हो कि वह क़हर में आए, और तुम रास्ते में हलाक हो जाओ, क्यूँकि उसका ग़ज़ब जल्द भड़कने को है | मुबारक हैं वह सब जिनका भरोसा उस पर है।
1ऐ ख़ुदावन्द मेरे सताने वाले कितने बढ़ गए, वह जो मेरे ख़िलाफ़ उठते हैं बहुत हैं।2बहुत से मेरी जान के बारे में कहते हैं, कि ख़ुदा की तरफ़ से उसकी मदद न होगी। (सिलाह)3लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, हर तरफ़ मेरी सिपर है। मेरा फ़ख़्र और सरफ़राज़ करने वाला।4मैं बुलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द के सामने फ़रियाद करता हूँ और वह अपने पाक पहाड़ पर से मुझे जवाब देता है। (सिलाह)5मैं लेट कर सो गया; मैं जाग उठा, क्यूँकि ख़ुदावन्द मुझे संभालता है।6मैं उन दस हज़ार आदमियों से नहीं डरने का, जो चारों तरफ़ मेरे ख़िलाफ़ इकठ्ठा हैं।7उठ ऐ ख़ुदावन्द, ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे बचा ले! क्यूँकि तूने मेरे सब दुश्मनों को जबड़े पर मारा है। तूने शरीरों के दाँत तोड़ डाले हैं।8नजात ख़ुदावन्द की तरफ़ से है।तेरे लोगों पर तेरी बरकत हो!
1जब मै पुकारूँ तो मुझे जबाब दे ऐ मेरी सदाक़त के ख़ुदा! तंगी में तूने मुझे कुशादगी बख़्शी, मुझ पर रहम कर और मेरी दु'आ सुन ले।2~ऐ बनी आदम! कब तक मेरी 'इज़्ज़त के बदले रुस्वाई होगी? तुम कब तक बकवास से मुहब्बत रखोगे और झूट के दर पे रहोगे?3जान लो कि ख़ुदावन्द ने दीनदार को अपने लिए अलग कर रखा है; जब मैं ख़ुदावन्द को पुकारूँगा तो वह सुन लेगा।4~थरथराओ और गुनाह न करो; अपने अपने बिस्तर पर दिल में सोचो और ख़ामोश रहो।5सदाक़त की कु़र्बानियाँ पेश करो, और ख़ुदावन्द पर भरोसा करो।6~बहुत से कहते हैं कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? ऐ ख़ुदावन्द तू अपने चेहरे का नूर हम पर जलवह गर फ़रमा ।7~तूने मेरे दिल को उससे ज़्यादा खु़शी बख़्शी है, जो उनको ग़ल्ले और मय की बहुतायत से होती थी।8मैं सलामती से लेट जाऊँगा और सो रहूँगाः क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! सिर्फ़ तू ही मुझे मुत्मईन रखता है!
1ऐ ख़ुदावन्द मेरी बातो पर कान लगा! मेरी आहों पर तवज्जुह कर!2~ऐ मेरे बादशाह! ऐ मेरे ख़ुदा! मेरी फ़रियाद की आवाज़ की तरफ़ मुतवज्जिह हो, क्यूँकि मैं तुझ ही से दु'आ करता हूँ।3~ऐ ख़ुदावन्द तू सुबह को मेरी आवाज़ सुनेगा। मैं सवेरे ही तुझ से दु'आ करके इन्तिज़ार करूँगा ।4~क्यूँकि तू ऐसा ख़ुदा नहीं जो शरारत से खु़श हो। गुनाह तेरे साथ नहीं रह सकता।5~घमंडी तेरे सामने खड़े न होंगे।तुझे सब बदकिरदारों से नफ़रत है।6~तू उनको जो झूट बोलते हैं हलाक करेगा। ख़ुदावन्द को खू़ँख़्वार और दग़ाबाज़ आदमी से नफ़रत है।7लेकिन मैं तेरी शफ़क़त की कसरत से तेरे घर में आऊँगा। मैं तेरा रौ'ब मानकर तेरी पाक हैकल की तरफ़ रुख़ करके सिज्दा करूँगा ।8~ऐ ख़ुदावन्द! मेरे दुश्मनों की वजह से मुझे अपनी सदाक़त में चला; मेरे आगे आगे अपनी राह को साफ़ कर दे।9~क्यूँकि उनके मुँह में ज़रा सच्चाई नहीं, उनका बातिन ~सिर्फ़ बुराई है। उनका गला खुली क़ब्र है, वह अपनी ज़बान से ख़ुशामद करते हैं।10ऐ ख़ुदा तू उनको मुजरिम ठहरा; वह अपने ही मश्वरों से तबाह हों। उनको उनके गुनाहों की ज़्यादती की वजह से ख़ारिज कर दे; क्यूँकि उन्होंने तुझ से बग़ावत की है।11लेकिन वह सब जो तुझ पर भरोसा रखते हैं, शादमान हों, वह सदा ख़ुशी से ललकारें, क्यूँकि तू उनकी हिमायत करता है। और जो तेरे नाम से मुहब्बत रखते हैं, तुझ में ख़ुश रहें।12क्यूँकि तू सादिक़ को बरकत बख़्शेगा।ऐ ख़ुदावन्द! तू उसे करम से ढाल की तरह ढाँक लेगा।
1ऐ ख़ुदा तू मुझे अपने क़हर में न झिड़क, और अपने ग़ज़बनाक ग़ुस्से में मुझे तम्बीह न दे।2ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मैं अधमरा हो गया हूँ। ऐ ख़ुदवन्द, मुझे शिफ़ा दे, क्यूँकि मेरी हडिडयों में बेक़रारी है।3मेरी जान भी बहुत ही बेक़रार है; और तू ऐ ख़ुदावन्द, कब तक?4~लौट ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को छुड़ा।अपनी शफ़क़त की ख़ातिर मुझे बचा ले।5~क्यूँकि मौत के बा'द तेरी याद नहीं होती, क़ब्र में कौन तेरी शुक्रगुज़ारी करेगा?6मैं कराहते कराहते थक गया, मैं अपना पलंग आँसुओं से भिगोता हूँ हर रात मेरा बिस्तर तैरता है।7मेरी आँख ग़म के मारे बैठी जाती हैं, और मेरे सब मुख़ालिफ़ों की वजह से धुंधलाने लगीं।8~ऐ सब बदकिरदारो, मेरे पास से दूर हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मेरे रोने की आवाज़ सुन ली है।9खूदावन्द ने मेरी मिन्नत सुन ली; ख़ुदावन्द मेरी दु'आ क़ुबूल करेगा।10~मेरे सब दुश्मन शर्मिन्दा और बहुत ही बेक़रार होंगे; वह लौट जाएँगे, वह अचानक शर्मिन्दा होंगे।
1~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरा भरोसा तुझ पर है; सब पीछा करने वालों से मुझे बचा और छुड़ा,2~ऐसा न हो कि वह शेर-ए-बबर की तरह मेरी जान को फाड़े; वह उसे टुकड़े टुकड़े कर दे और कोई छुड़ाने वाला न हो।3~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, अगर मैंने यह किया हो, अगर मेरे हाथों से बुराई हुई हो;4अगर मैंने अपने मेल रखने वाले से भलाई के बदले बुराई की हो, (बल्कि मैंने तो उसे जो नाहक़ मेरा मुखालिफ़ था, बचाया है);5तो दुश्मन मेरी जान का पीछा करके उसे आ पकड़े, बल्कि वह मेरी ज़िन्दगी को बर्बाद करके मिट्टी में, और मेरी 'इज़्ज़त को ख़ाक में मिला दे।(सिलाह)6~ऐ ख़ुदावन्द, अपने क़हर में उठ; मेरे मुख़ालिफ़ों के ग़ज़ब के मुक़ाबिले में तू खड़ा हो जा; और मेरे लिए जाग! तूने इंसाफ़ का हुक्म तो दे दिया है।7तेरे चारों तरफ़ क़ौमों का इजितमा'अ हो; और तू उनके ऊपर 'आलम-ए-बाला को लौट जा8ख़ुदावन्द, क़ौमों का इंसाफ़ करता है; ऐ ख़ुदावन्द, उस सदाक़त-ओ-रास्ती के मुताबिक़ जो मुझ में है मेरी'अदालत कर |9~काश कि शरीरों की बदी का ख़ात्मा हो जाए, लेकिन सादिक़ को तू क़याम बख़्श; क्यूँकि ख़ुदा-ए-सादिक़ दिलों और गुर्दों को जाँचता है।10~मेरी ढाल ख़ुदा के हाथ में है, जो रास्त दिलों को बचाता है।11~ख़ुदा सादिक़ मुन्सिफ़ है, बल्कि ऐसा ख़ुदा जो हर रोज़ क़हर करता है।12अगर आदमी बाज़ न आए तो वहअपनी तलवार तेज़ करेगा; उसने अपनी कमान पर चिल्ला चढ़ाकर उसे तैयार कर लिया है।13~उसने उसके लिए मौत के हथियार भी तैयार किए हैं; वह अपने तीरों को आतिशी बनाता है।14देखो, उसे बुराई की पैदाइश का दर्द ~लगा है! बल्कि वह शरारत से फलदार ~हुआ और उससे झूट पैदा हुआ।15~उसने गढ़ा खोद कर उसे गहरा किया, और उस ख़न्दक में जो उसने बनाई थी ख़ुद गिरा।16~उसकी शरारत उल्टी उसी के सिर पर आएगी; उसका ज़ुल्म उसी की खोपड़ी पर नाज़िल होगा।17~ख़ुदावन्द की सदाक़त के मुताबिक़ मैं उसका शुक्र करूँगा, और ख़ुदावन्द ताला के नाम की तारीफ़ गाऊँगा।
1ऐ ख़ुदावन्द हमारे रब तेरा नाम तमाम ज़मीन पर कैसा बुज़ु़र्ग़ है! तूने अपना जलाल आसमान पर क़ायम किया है।2तूने अपने मुखालिफ़ों की वजह से बच्चों और शीरख़्वारों के मुँह से कु़दरत को क़ायम किया, ताकि तू दुश्मन और इन्तक़ाम लेने वाले को ख़ामोश कर दे।3~जब मैं तेरे आसमान पर जो तेरी दस्तकारी है, और चाँद और सितारों पर जिनको तूने मुक़र्रर किया, ग़ौर करता हूँ।4तो फिर इंसान क्या है कि तू उसे याद रख्खे, और बनी आदम क्या है कि तू उसकी ख़बर ले?5क्यूँकि तूने उसे ख़ुदा से कुछ ही कमतर बनाया है, और जलाल और शौकत से उसे ताजदार करता है।6तूने उसे अपनी दस्तकारी पर इख़्तियार बख़्शा है; तूने सब कुछ उसके क़दमों के नीचे कर दिया है।7सब भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल बल्कि सब जंगली जानवर8हवा के परिन्दे और समन्दर की और जो कुछ समन्दरों के रास्ते में चलता फिरता है।9~ऐ ख़ुदावन्द, हमारे रब्ब! तेरा नाम पूरी ज़मीन पर कैसा बुज़ु़र्ग़ है!
1~मैं अपने पूरे दिल से ख़ुदावन्द ~की शुक्रगुज़ारी करूँगा; मैं तेरे सब 'अजीब कामों का बयान करूँगा।2~मैं तुझ में ख़ुशी मनाऊँगा और मसरूर हूँगा; ऐ हक़ता'ला, मैं तेरी सिताइश करूँगा ।3~जब मेरे दुश्मन पीछे हटते हैं, तो तेरी हुजू़री की वजह से लग़ज़िश खाते और हलाक हो जाते हैं।4क्यूँकि तूने मेरे हक़ की और मेरे मु'आमिले की ताईद की है। तूने तख़्त पर बैठकर सदाक़त से इंसाफ़ किया।5~तूने क़ौमों को झिड़का, तूने शरीरों को हलाक किया है; तूने उनका नाम हमेशा से हमेशा के लिए मिटा डाला है।6~दुश्मन ख़त्म हुए, वह हमेशा के लिए बर्बाद हो गए; और जिन शहरों को तूने ढा दिया, उनकी यादगार तक मिट गई।7लेकिन ख़ुदावन्द हमेशा तक तख़्त नशीन है, उसने इंसाफ़ के लिए अपना तख़्त तैयार किया है;8~और वही सदाक़त से जहान की 'अदालत करेगा, और रास्ती से कौमों का इंसाफ़ करेगा।9~ख़ुदावन्द मज़लूमों के लिए ऊँचा बुर्ज होगा, मुसीबत के दिनों में ऊँचा बुर्ज।10और वह जो तेरा नाम जानते हैं तुझ पर भरोसा करेंगे, क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, तूने अपने चाहनें वालो को नहीं छोड़ा।11~ख़ुदावन्द की सिताइश करो, जो सिय्यूनमें रहता है! लोगों के बीच उसके कामों का बयान करो12क्यूँकि खू़न का पूछताछ करने वाला उनको याद रखता है; वह ग़रीबों की फ़रियाद को नहीं भूलता।13~ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर।तू जो मौत के फाटकों से मुझे उठाता है, मेरे उस दुख को देख जो मेरे नफ़रत करने वालों की तरफ़ से है।14~ताकि मैं तेरी कामिल सिताइश का इज़हार करूँ। सिय्यून की बेटी के फाटकों पर, मैं तेरी नजात से ख़ुश हूँगा15~क़ौमें खु़द उस गढ़े में गिरी हैं जिसे उन्होंने खोदा था; जो जाल उन्होंने लगाया था उसमें उन ही का पाँव फंसा।16~ख़ुदावन्द की शोहरत फैल गई, उसने इंसाफ़ किया है; शरीर अपने ही हाथ के कामों में फंस गया है। (हरगायून, सिलाह)17शरीर पाताल में जाएँगे, या'नी वह सब क़ौमें जो ख़ुदा को भूल जाती हैं18~क्यूँकि ग़रीब सदा भूले बिसरे न रहेंगे, न ग़रीबों की उम्मीद हमेशा के लिए टूटेगी।19~उठ, ऐ ख़ुदावन्द! इंसान ग़ालिब न होने पाए। क़ौमों की 'अदालत तेरे सामने हो।20~ऐ ख़ुदावन्द! उनको ख़ौफ़ दिला।क़ौमें अपने आपको इंसान ही जानें।
1ऐ ख़ुदावन्द तू क्यूँ दूर खड़ा रहता है? मुसीबत के वक़्त तू क्यूँ छिप जाता है?2~शरीर के गु़रूर की वजह से ग़रीब का तेज़ी से पीछा किया जाता है; जो मन्सूबे उन्होंने बाँधे हैं, वह उन ही में गिरफ़्तार हो जाएँ।3क्यूँकि शरीर अपनी जिस्मानी ख़्वाहिश पर फ़ख़्र करता है, और लालची ख़ुदावन्द को छोड़ देता बल्कि उसकी नाक़द्री करता है।4शरीर अपने तकब्बुर में कहता है कि वह पूछताछ नहीं करेगा; उसका ख़याल सरासर यही है कि कोई ख़ुदा नहीं।5उसकी राहें हमेशा बराबर हैं, तेरे अहकाम उसकी नज़र से दूर-ओ-बुलन्द हैं; वह अपने सब मुख़ालिफ़ों पर फूंकारता है।6~वह अपने दिल में कहता है, "मैं जुम्बिश नहीं खाने का; नसल दर नसल मुझ पर कभी मुसीबत न आएगी।"7~उसका मुँह लानत-ओ-दग़ा और ज़ुल्म से भरा है; शरारत और बदी उसकी ज़बान पर हैं।8~वह देहात की घातों में बैठता है, वह पोशीदा मक़ामों में बेगुनाह को क़त्ल करता है; उसकी आँखें बेकस की घात में लगी रहती हैं।9~वह पोशीदा मक़ाम में शेर-ए-बबर की तरह दुबक कर बैठता है; वह ग़रीब को पकड़ने की घात लगाए रहता है; वह ग़रीब को अपने जाल में फंसा कर पकड़ लेता है।10वह दुबकता है, वह झुक जाता है; और बेकस उसके पहलवानों के हाथ से मारे जाते हैं।11~वह अपने दिल में कहता है, "ख़ुदा भूल गया है, वह अपना मुँह छिपाता है; वह हरगिज़ नहीं देखेगा।"12उठ ऐ ख़ुदावन्द! ऐ ख़ुदा अपना हाथ बुलंद कर! ग़रीबों को न भूल |13शरीर किस लिए ख़ुदा की नाक़द्री करता है और अपने दिल में कहता है कि तू पूछताछ ना करेगा ?14तूने देख लिया है क्यूँकि तू शरारत और बुग्ज़ देखता है ताकि अपने हाथ से बदला दे |बेकस अपने आप को तेरे सिपुर्द करता है तू ही यतीम का मददगार रहा है |15शरीर का बाज़ू तोड़ दे |और बदकार की शरारत को जब तक बर्बाद न हो ढूँढ़-ढूँढ़ कर निकाल |16ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा बादशाह है |क़ौमें उसके मुल्क में से हलाक हो गयीं |17ऐ ख़ुदावन्द तूने हलीमों का मुद्दा'सुन लिया है तू उनके दिल को तैयार करेगा-तू कान लगा कर सुनेगा18कि यतीम और मज़लूम का इन्साफ़ करे ताकि इन्सान जो ख़ाक से है फिर ना डराए |
1मेरा भरोसा ख़ुदावन्द पर है तुम क्यूँकर मेरी जान से कहते हो कि चिड़िया की तरह अपने पहाड़ पर उड़ जा ?2क्यूँकि देखो! शरीर कमान खींचते हैं वह तीर को चिल्ले पर रखते हैं ताकि अँधेरे में रास्त दिलों पर चलायें |3अगर बुनयाद ही उखाड़ दी जाये तो सादिक़ क्या कर सकता है |4ख़ुदावन्द अपनी पाक हैकल में है ख़ुदावन्द का तख़्त आसमान पर है |उसकी आँखें बनी आदम को देखती ~और उसकी पलकें उनको जाँचती हैं |5ख़ुदावन्द सादिक़ को परखता है लेकिन शरीर और ज़ुल्म को पसन्द करने वाले से उसकी रूह को नफ़रत है6वह शरीरों पर फंदे बरसायेगा आग और गंधक और लू उनके प्याले का हिस्सा होगा|7क्यूँकि ख़ुदावन्द सादिक़ है वह सच्चाई को पसंद करता है रास्त बाज़ उसका दीदार हासिल करेंगे |
1ऐ ख़ुदावन्द! बचा ले क्यूँकि कोई दीनदार नहीं रहा और अमानत दार लोग बनी आदम में से मिट गये |2वह अपने अपने पड़ोसी से झूठ बोलते हैं वह ख़ुशामदी लबों से दो रंगी बातें करते हैं3ख़ुदावन्द सब ख़ुशामदी लबों को और बड़े बोल बोलने वाली ज़बान को काट डालेगा |4वह कहते हैं, "हम अपनी ज़बान से जीतेंगे, हमारे होंट हमारे ही हैं; हमारा मालिक कौन है?"5~ग़रीबों की तबाही और ग़रीबों कीआह की वजह से, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि अब मैं उठूँगा और जिस पर वह फुंकारते हैं उसे अम्न-ओ-अमान में रख्खूँगा।6ख़ुदावन्द का कलाम पाक है, उस चाँदी की तरह जो भट्टी में मिट्टी पर ताई गई, और सात बार साफ़ की गई हो।7तू ही ऐ ख़ुदावन्द उनकी हिफ़ाज़त करेगा, तू ही उनको इस नसल से हमेशा तक बचाए रखेगा।8जब बनी आदम में पाजीपन की क़द्र होती है, तो शरीर हर तरफ़ चलते फिरते हैं।
1ऐ ख़ुदावन्द, कब तक? क्या तू हमेशा मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना चेहरा मुझ से छिपाए रख्खेगा?2~कब तक मैं जी ही जी में मन्सूबा बाँधता रहूँ, और सारे दिन अपने दिल में ग़म किया करू?कब तक मेरा दुश्मन मुझ पर सर बुलन्द रहेगा?3ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरी तरफ़ तवज्जुह कर और मुझे जवाब दे। मेरी आँखे रोशन कर, ऐसा न हो कि मुझे मौत की नींद आ जाए4~ऐसा न हो कि मेरा दुश्मन कहे, कि मैं इस पर ग़ालिब आ गया।ऐसा न हो कि जब मैं जुम्बिश खाऊँ तो मेरे मुखालिफ़ ख़ुश हों।5लेकिन मैंने तो तेरी रहमत पर भरोसा किया है; मेरा दिल तेरी नजात से खु़श होगा।6~मैं ख़ुदावन्द का हम्द गाऊँगा क्यूँकि उसने मुझ पर एहसान किया है,
1बेवकू़फ़ ने अपने दिल में कहा है, कि कोई ख़ुदा नहीं। वह बिगड़ गए, उन्होंने नफ़रतअंगेज़ काम किए हैं; कोई नेकोकार नहीं।2~ख़ुदावन्द ने आसमान पर से बनी आदम पर निगाह की ताकि देखे कि कोई अक़्लमन्द, कोई ख़ुदा का तालिब है या नहीं।3वह सब के सब गुमराह हुए, वह एक साथ नापाक हो गए, कोई नेकोकार नहीं, एक भी नहीं।4क्या उन सब बदकिरदारों को कुछ'इल्म नहीं, जो मेरे लोगों को ऐसे खा जाते हैं जैसे रोटी, और ख़ुदावन्द का नाम नहीं लेते?5वहाँ उन पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया, क्यूँकि ख़ुदा सादिक़ नसल के साथ है।6तुम ग़रीब की मश्वरत की हँसी उड़ाते हो; इसलिए के ख़ुदावन्द उसकी पनाह है।7~काश कि इस्राईल की नजात सिय्यून में से होती! जब ख़ुदावन्द अपने लोगों को ग़ुलामी से लौटा लाएगा, तो या'कू़ब ख़ुश और इस्राईल शादमान होगा।
1ऐ ख़ुदावन्द तेरे ख़ेमे में कौन रहेगा?तेरे पाक पहाड़ पर कौन सुकूनत करेगा?2~वह जो रास्ती से चलता और सदाक़त का काम करता, और दिल से सच बोलता है।3वह जो अपनी ज़बान से बुहतान नहीं बांधता, और अपने दोस्त से बदी नहीं करता, और अपने पड़ोसी की बदनामी नहीं सुनता।4वह जिसकी नज़र में रज़ील आदमी हक़ीर है, लेकिन जो ख़ुदावन्द से डरते हैं उनकी 'इज़्ज़त करता है; वह जो क़सम खाकर बदलता नहीं चाहे नुक़्सान ही उठाए।5वह जो अपना रुपया सूद पर नहीं देता, और बेगुनाह के ख़िलाफ़ रिश्वत नहीं लेता। ऐसे काम करने वाला कभी जुम्बिश न खाएगा।
1~ऐ ख़ुदा मेरी हिफ़ाज़त कर, क्यूँकि मैं तुझ ही में पनाह लेता हूँ।2मैंने ख़ुदावन्द से कहा तू ही रब है तेरे अलावा मेरी भलाई नहीं।"3ज़मीन के पाक लोग वह बरगुज़ीदा हैं, जिनमें मेरी पूरी ख़ुशनूदी है।4~गै़र मा'बूदों के पीछे दौड़ने वालों का ग़म बढ़ जाएगा; मैं उनके से खू़न वाले तपावन नहीं तपाऊँगा और अपने होटों से उनके नाम नहीं लूँगा।5ख़ुदावन्द ही मेरी मीरास और मेरे प्याले का हिस्सा है; तू मेरे बख़रे का मुहाफ़िज़~~है।6~जरीब मेरे लिए दिलपसंद जगहों में पड़ी, बल्कि मेरी मीरास खू़ब है।7मैं ख़ुदावन्द की हम्द करूँगा, जिसने, मुझे नसीहत दी है; बल्कि मेरा दिल रात को मेरी तरबियत करता है8मैंने ख़ुदावन्द को हमेशा अपने सामने रख्खा है; चूँकि वह मेरे दहने हाथ है, इसलिए मुझे जुम्बिश न होगी।9~इसी वजह से मेरा दिल खु़श और मेरी रूह शादमान है; मेरा जिस्म भी अम्न-ओ-अमान में रहेगा।10क्यूँकि तू न मेरी जान को पाताल में रहने देगा, न अपने मुक़द्दस को सड़ने देगा।11तू मुझे ज़िन्दगी की राह दिखाएगा; तेरे हुज़ूरमें कामिल शादमानी है। तेरे दहने हाथ में हमेशा की खु़शी है।
1~ऐ ख़ुदावन्द, हक़ को सुन, मेरी फ़रियाद पर तवज्जुह कर। मेरी दु'आ पर, जो दिखावे के होंटों से निकलती है कान लगा।2~मेरा फ़ैसला तेरे सामने से ज़ाहिर हो! तेरी आँखें रास्ती को देखें!3तूने मेरे दिल को आज़मा लिया है, तूने रात को मेरी निगरानी की; तूने मुझे परखा और कुछ खोट न पाया, मैंने ठान लिया है कि मेरा मुँह ख़ता न करे।4इंसानी कामों में तेरे लबों के कलाम की मदद से मैं ज़ालिमों की राहों से बाज़ रहा हूँ।5~मेरे कदम तेरे रास्तों पर क़ायम रहे हैं, मेरे पाँव फिसले नहीं।6ऐ ख़ुदा, मैंने तुझ से दु'आ की है क्यूँकि तू मुझे जवाब देगा। मेरी तरफ़ कान झुका और मेरी 'अर्ज़ सुन ले।7तू जो अपने दहने हाथ से अपने भरोसा करने वालों को उनके मुखालिफ़ों से बचाता है, अपनी'अजीब शफ़क़त दिखा।8मुझे आँख की पुतली की तरह महफूज़ रख; मुझे अपने परों के साये में छिपा ले,9उन शरीरों से जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं, मेरे जानी दुश्मनों से जो मुझे घेरे हुए हैं।10उन्होंने अपने दिलों को सख़्त किया है; वह अपने मुँह से बड़ा बोल बोलते हैं।11उन्होंने कदम कदम पर हम को घेरा है; वह ताक लगाए हैं कि हम को ज़मीन पर पटक दें।12वह उस बबर की तरह है जो फाड़ने पर लालची हो, वह जैसे जवान बबर है जो पोशीदा जगहों में दुबका हुआ है।13~उठ, ऐ ख़ुदावन्द! उसका सामना कर, उसे पटक दे! अपनी तलवार से मेरी जान को शरीर से बचा ले।14अपने हाथ से ऐ ख़ुदावन्द! मुझे लोगों से बचा। या'नी दुनिया के लोगों से, जिनका बख़रा इसी ज़िन्दगी में है, और जिनका पेट तू अपने ज़ख़ीरे से भरता है। उनकी औलाद भी हस्ब-ए-मुराद है; वह अपना बाक़ी माल अपने बच्चों के लिए छोड़ जाते हैं15~लेकिन मैं तो सदाक़त में तेरा दीदार हासिल करूँगा; मैं जब जागूँगा तो तेरी शबाहत से सेर हूँगा।
1~ऐ ख़ुदावन्द, ऐ मेरी ताक़त! मैं तुझसे मुहब्बत रखता हूँ।2~ख़ुदावन्द मेरी चट्टान, और मेरा क़िला' और मेरा छुड़ाने वाला है; मेरा ख़ुदा, मेरी चट्टान जिस पर मैं भरोसा रखूँगा, मेरी ढाल और मेरी नजात का सींग, मेरा ऊँचा बुर्ज।3मैं ख़ुदावन्द को, जो सिताइश के लायक़ है पुकारूँगा। यूँ मैं अपने दुश्मनों से बचाया जाऊँगा।4मौत की रस्सियों ने मुझे घेर लिया, और बेदीनी के सैलाबों ने मुझे डराया;5पाताल की रस्सियाँ मेरे चारों तरफ़ थीं, मौत के फंदे मुझ पर आ पड़े थे।6अपनी मुसीबत में मैंने ख़ुदावन्द को पुकाराः और अपने ख़ुदा से फ़रियाद की; उसने अपनी हैकल में से मेरी आवाज़ सुनी, और मेरी फ़रियाद जो उसके सामने थी, उसके कान में पहुँची।7तब ज़मीन हिल गई और कॉप उठी, पहाड़ों की बुनियादों ने जुम्बिश खाई और हिल गई, इसलिए कि वह ग़ज़बनाक हुआ।8~उसके नथनों से धुवाँ उठा, और उसके मुँह से आग निकलकर भसम करने लगी; कोयले उससे दहक उठे।9उसने आसमानों को भी झुका दियाअौर नीचे उतर आया; और उसके पाँव तले गहरी तारीकी थी।10वह करूबी पर सवार होकर उड़ा, बल्कि वह तेज़ी से हवा के बाजू़ओं पर उड़ा।11उसने ज़ुल्मत या'नी बादल की तारीकी और आसमान के दलदार बादलों को अपने चारों तरफ़अपने छिपने की जगह और अपना शामियाना बनाया।12उसकी हुज़ूरी की झलक से उसके दलदार बादल फट गए, ओले और अंगारे।13और ख़ुदावन्द आसमान में गरजा, हक़ ता'ला ने अपनी आवाज़ सुनाई, ओले और अंगारे।14उसने अपने तीर चलाकर उनको तितर बितर किया, बल्कि ताबड़ तोड़ बिजली से उनको शिकस्त दी।15तब तेरी डाँट से ऐ ख़ुदावन्द! तेरे नथनों के दम के झोंके से, पानी की थाह दिखाई देने लगीऔर जहान की बुनियादें~नमूदार हुई।16उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और मुझे बहुत पानी में से खींचकर बाहर निकाला।17उसने मेरे ताक़तवर दुश्मन और मेरे'अदावत रखने वालों से मुझे छुड़ा लिया, क्यूँकि वह मेरे लिए बहुत ही ज़बरदस्त थे।18~वह मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर आ पड़े; लेकिन ख़ुदावन्द मेरा सहारा था।19~वह मुझे कुशादा जगह में निकाल भी लाया। उसने मुझे छुड़ाया, इसलिए कि वह मुझ से ख़ुश था।20~ख़ुदावन्द ने मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ मुझे बदला दिया : और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ मुझे बदला दिया।21क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की राहों पर चलता रहा, और शरारत से अपने ख़ुदा से अलग न हुआ।22क्यूँकि उसके सब फ़ैसले मेरे सामने रहे, और मैं उसके आईन से नाफ़रमान न हुआ।23मैं उसके सामने कामिल भी रहा, और अपने को अपनी बदकारी से रोके रख्खा।24~ख़ुदावन्द ने मुझे मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ जो उसके सामने थी बदला दिया।25रहम दिल के साथ तू रहीम होगा, और कामिल आदमी के साथ कामिल।26नेकोकार के साथ नेक होगा, और कजरों के साथ टेढ़ा।27क्यूँकि तू मुसीबत ज़दा लोगों को बचाएगा; लेकिन मग़रूरों की आँखों को नीचा करेगा।28इसलिए के तू मेरे चराग़ को रौशन करेगा: ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा मेरे अंधेरे को उजाला कर देगा।29~क्यूँकि तेरी बदौलत मैं फ़ौज पर धावा करता हूँ। और अपने ख़ुदा की बदौलत दीवार फाँद जाता हूँ।30लेकिन ख़ुदा की राह कामिल है; ख़ुदावन्द का कलाम ताया हुआ है; वह उन सबकी ढाल है जो उस पर भरोसा रखते हैं।31क्यूँकि ख़ुदावन्द के अलावा और कौन ख़ुदा है? और हमारे ख़ुदा को छोड़कर और कौन चट्टान है?32ख़ुदा ही मुझे ताक़त से कमर बस्ता करता है, और मेरी राह को कामिल करता है।33~वही मेरे पाँव हरनियों के से बना देता है, और मुझे मेरी ऊँची जगहों में क़ायम करता है।34वह मेरे हाथों को जंग करना सिखाता है, यहाँ तक कि मेरे बाजू़ पीतल की कमान को झुका देते हैं।35~तूने मुझ को अपनी नजात की ढाल बख़्शी, और तेरे दहने हाथ ने मुझे संभाला, और तेरी नमी ने मुझे बुज़ूर्ग बनाया है।36तूने मेरे नीचे, मेरे क़दम कुशादा कर दिए; और मेरे पाँव नहीं फिसले।37~मैं अपने दुश्मनों का पीछा करके उनको जा लूँगा; और जब तक वह फ़ना न हो जाएँ, वापस नहीं आऊँगा।38~मैं उनको ऐसा छेदुँगा कि वह उठ न सकेंगे; वह मेरे पाँव के नीचे गिर पड़ेंगे।39~क्यूँकि तूने लड़ाई के लिए मुझे ताक़त से कमरबस्ता किया; और मेरे मुख़ालिफ़ों को मेरे सामने नीचा दिखाया।40तूने मेरे दुश्मनों की नसल मेरी तरफ़ फेर दी, ताकि मैं अपने 'अदावत रखने वालों को काट डालूँ।41~उन्होंने दुहाई दी लेकिन कोई न था जो बचाए, ख़ुदावन्द को भी पुकारा लेकिन उसने उनको जवाब न दिया।42~तब मैंने उनको कूट कूट कर हवा में उड़ती हुई गर्द की ~तरह कर दिया; मैंने उनको गली कूचों की कीचड़ की तरह निकाल फेंका43~तूने मुझे क़ौम के झगड़ों से भी छुड़ाया; तूने मुझे क़ौमों का सरदार बनाया है; जिस क़ौम से मैं वाक़िफ़ भी नहीं वह मेरी फ़र्माबरदार होगी।44मेरा नाम सुनते ही वह मेरी फ़रमाबरदारी करेंगे; परदेसी मेरे ताबे' हो जाएँगे।45परदेसी मुरझा जाएँगे, और अपने क़िले' से थरथराते हुए निकलेंगे।46ख़ुदावन्द ज़िन्दा है! मेरी चट्टान मुबारक हो, और मेरा नजात देने वाला ख़ुदा मुम्ताज़ हो।47वही ख़ुदा जो मेरा इन्तक़ाम लेता है; और उम्मतों को मेरे सामने नीचा करता है।48वह मुझे मेरे दुश्मनों से छुड़ाता है; बल्कि तू मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता है। तू मुझे टेढ़े आदमी से रिहाई देता है।49~इसलिए ऐ ख़ुदावन्द! मैं क़ौमों के बीच तेरी शुक्रगुज़ारी, और तेरे नाम की मदहसराई करूँगा ।50वह अपने बादशाह को बड़ी नजात 'इनायत करता है, और अपने मम्सूह दाऊद और उसकी नसल पर हमेशा शफ़क़त करता है।
1~आसमान ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर करता है; और फ़ज़ा उसकी दस्तकारी दिखाती है।2~दिन से दिन बात करता है, और रात को रात हिकमत सिखाती है।3~न बोलना है न कलाम, न उनकी आवाज़ सुनाई देती है।4उनका सुर सारी ज़मीन पर, और उनका कलाम दुनिया की इन्तिहा तक पहुँचा है। उसने आफ़ताब के लिए उनमें ख़ेमा लगाया है।5जो दुल्हे की तरह अपने ख़िलवतख़ाने से निकलता है। और पहलवान की तरह अपनी दौड़ में दौड़ने को खु़श है।6वह आसमान की इन्तिहा से निकलता है, और उसकी गश्त उसके किनारों तक होती है; और उसकी हरारत से कोई चीज़ बे बहरा नहीं।7~ख़ुदावन्द की शरी'अत कामिल है, वह जान को बहाल करती है; ख़ुदावन्द कि शहादत बरहक़ है नादान को दानिश बख़्शती है।8~ख़ुदावन्द के क़वानीन रास्त हैं, वह दिल को फ़रहत पहुँचाते हैं; ख़ुदावन्द का हुक्म बे'ऐब है, वह आँखों की रौशन करता है।9ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ पाक है, वह अबद तक क़ायम रहता है; ख़ुदावन्द के अहकाम बरहक़ और बिल्कुल रास्त हैं।10वह सोने से बल्कि बहुत कुन्दन से ज़्यादा पसंदीदा हैं; वह शहद से बल्कि छत्ते के टपकों से भी शीरीन हैं।11नीज़ उन से तेरे बन्दे को आगाही मिलती है; उनको मानने का अज्र बड़ा है।12~कौन अपनी भूलचूक को जान सकता है? तू मुझे पोशीदा 'ऐबों से पाक कर।13तू अपने बंदे को बे-बाकी के गुनाहों से भी बाज़ रख; वह मुझ पर ग़ालिब न आएँ तो मैं कामिल हूँगा, और बड़े गुनाह से बचा रहूँगा।14मेरे मुँह का कलाम और मेरे दिल का ख़याल तेरे सामने मक़्बूल ठहरे; ऐ ख़ुदावन्द! ऐ मेरी चट्टान और मेरे फ़िदिया देने वाले!
1मुसीबत के दिन ख़ुदावन्द तेरी सुने। या'कू़ब के ख़ुदा का नाम तुझे बुलन्दी पर क़ायम करे!2वह मक़दिस से तेरे लिए मदद भेजे, और सिय्यून से तुझे क़ुव्वत बख़्शे!3वह तेरे सब हदियों को याद रख्खे, और तेरी सोख़्तनी क़ुर्बानी को क़ुबूल करे! (सिलाह)4वह तेरे दिल की आरज़ू पूरी करे, और तेरी सब मश्वरत पूरी करे!5हम तेरी नजात पर ख़ुशी मनाएंगे, और अपने ख़ुदा के नाम पर झंडे खड़े करेंगे। ख़ुदावन्द तेरी तमाम दरख़्वास्तें पूरी करे!6अब मैं जान गया कि ख़ुदावन्द अपने मम्सूह को बचा लेता है; वह अपने दहने हाथ की नजात बख़्श ताक़त से अपने पाक आसमान पर से उसे जवाब देगा।7किसी को रथों का और किसी को घोड़ों का भरोसा है, लेकिन हम तो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा ही का नाम लेंगे।8वह तो झुके और गिर पड़े; लेकिन हम उठे और सीधे खड़े हैं।9ऐ ख़ुदावन्द! बचा ले; जिस दिन हम पुकारें, तो बादशाह हमें जवाब दे।
1ऐ ख़ुदावन्द! तेरी ताक़त से बादशाह खु़श होगा; और तेरी नजात से उसे बहुत ख़ुशी होगी।2तूने उसके दिल की आरज़ू पूरी की है, और उसके मुँह की दरख़्वास्त को नामंजूर नहीं किया।(सिलाह; )3~क्यूँकि तू उसे 'उम्दा बरकतें बख़्शने में पेश कदमी करता, और ख़ालिस सोने का ताज उसके सिर पर रखता है।4उसने तुझ से ज़िन्दगी चाही और तूने बख़्शी; बल्कि 'उम्र की दराज़ी हमेशा के लिए।5~तेरी नजात की वजह से उसकी शौकत 'अज़ीम है; तू उसे हश्मत-ओ-जलाल से आरास्ता करता है।6क्यूँकि तू हमेशा के लिए उसे बरकतों से मालामाल करता है; और अपने सामने उसे ख़ुश-ओ- ख़ुर्रम रखता है।7क्यूँकि बादशाह का भरोसा ख़ुदावन्द पर है; और हक़ता'ला की शफ़क़त की बदौलत उसे हरगिज़ जुम्बिश न होगी।8तेरा हाथ तेरे सब दुश्मनों को ढूंड निकालेगा, तेरा दहना हाथ तुझ से कीना रखने वालों का पता लगा लेगा।9तू अपने क़हर के वक़्त उनको जलते तनूर की तरह कर देगा। ख़ुदावन्द अपने ग़ज़ब में उनको निगल जाएगा, और आग उनको खा जाएगी।10तू उनके फल को ज़मीन पर से बर्बाद कर देगा, और उनकी नसल को बनी आदम में से।11क्यूँकि उन्होंने तुझ से बदी करना चाहा, उन्होंने ऐसा मन्सूबा बाँधा जिसे वह पूरा नहीं कर सकते।12क्यूँकि तू उनका मुँह फेर देगा, तू उनके मुक़ाबले में अपने चिल्ले चढ़ाएगा।13~ऐ ख़ुदावन्द, तू अपनी ही ताक़त में सरबुलन्द हो! और हम गाकर तेरी क़ुदरत की सिताइश करेंगे
1ऐ मेरे ख़ुदा! ऐ मेरे ख़ुदा! तूने मुझे क्यूँ छोड़ दिया? तू मेरी मदद और मेरे नाला-ओ-फ़रियाद से क्यूँ दूर रहता है?2ऐ मेरे ख़ुदा! मै दिन को पुकारता हूँ लेकिन तू जवाब नहीं देता और रात को भी और ख़ामोश नहीं होता |3लेकिन तू पाक है तू जो इस्राईल के हम्दो-ओ-सना पर तख़्तनशीन है|4हमारे बाप दादा ने तुझ पर भरोसा किया; उन्होंने भरोसा किया और तूने उसको छुड़ाया |5उन्होंने तुझ से फ़रियाद की और रिहाई पाई; उन्होंने तुझ पर भरोसा किया और शर्मिंदा न हुए|6लेकिन मै तो कीड़ा हूँ, इंसान नहीं; आदमियों में अन्गुश्तनुमा हूँ और लोगों में हक़ीर|7वह सब जो मुझे देखते हैं, मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं; वह मुँह चिड़ाते, वह सर हिलाकर कहते हैं,8"अपने को ख़ुदावन्द के सुपुर्द कर दे वही उसे छुड़ाए, जब कि वह उससे ख़ुश है तो वही उसे छुड़ाए|"9लेकिन तु ही मुझे पेट से बहार लाया; जब मैं छोटा बच्चा ही था, तूने मुझे भरोसा करना सिखाया |10मैं पैदाइश ही से तुझ पर छोड़ा गया, मेरी माँ के पेट ही से तू मेरा ख़ुदा है|11मुझ से दूर न रह क्यूँकि मुसीबत क़रीब है, इसलिए कि कोई मददगार नहीं |12बहुत से साँडों ने मुझे घेर लिया है, बसन के ताक़तवर साँड मुझे घेरे हुए हैं |13वह फाड़ने और गरजने वाले बबर की तरह मुझ पर अपना मूंह पसारे हुए हैं|14मैं पानी की तरह बह गया मेरी सब हड्डियाँ उखड़ गईं|मेरा दिल मोम की तरह हो गया, वह मेरे सीने में पिघल गया |15मेरी ताक़त ठीकरे की तरह ख़ुश्क हो गई, और मेरी ज़बान मेरे तालू से चिपक गई; और तूने मुझे मौत की ख़ाक में मिला दिया |16क्यूँकि कुत्तो ने मुझे घेर लिया है; बदकारो की गिरोह मुझे घेरे हुए है; वह हाथ और मेरे पाँव छेदते हैं|17मैं अपनी सब हड्डियाँ गिन सकता हूँ; वह मुझे ताकते और घूरते हैं|18~वह मेरे कपड़े आपस में बाँटते हैं, और मेरी पोशाक पर पर्ची डालते हैं।19लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, दूर न रह! ऐ मेरे चारासाज़, मेरी मदद के लिए जल्दी कर!20मेरी जान को तलवार से बचा, मेरी जान को कुत्ते के क़ाबू से।21~मुझे बबर के मुँह से बचा, बल्कि तूने साँडों के सींगों में से मुझे छुड़ाया है।22मैं अपने भाइयों से तेरे नाम का इज़हार करूँगा; जमा'अत में तेरी सिताइश करूँगा।23ऐ ख़ुदावन्द से डरने वालों, उसकी सिताइश करो! ऐ या'क़ूब की औलाद, सब उसकी तम्जीद करो! और ऐ इस्राईल की नसल, सब उसका डर मानो!24क्यूँकि उसने न तो मुसीबत ज़दा की मुसीबत को हक़ीर जाना न उससे नफ़रत की, न उससे अपना मुँह छिपाया; बल्कि जब उसने ख़ुदा से फ़रियाद की तो उसने सुन ली।25बड़े मजमे' में मेरी सना ख़्वानी का जरिया' तू ही है; मैं उस से डरने वालों के सामने अपनी नज़्रे अदा करूँगा ।26हलीम खाएँगे और सेर होंगे; ख़ुदावन्द के तालिब उसकी सिताइश करेंगे। तुम्हारा दिल हमेशा तक ज़िन्दा रहे।27सारी दुनिया ख़ुदावन्द को याद करेगी और उसकी तरफ़ रूजू' लाएगी; और क़ौमों के सब घराने तेरे सामने सिज्दा करेंगे।28~क्यूँकि सल्तनत ख़ुदावन्द की है, वही क़ौमों पर हाकिम है।29~दुनिया के सब आसूदा हाल लोग खाएँगे और सिज्दा करेंगे; वह सब जो ख़ाक में मिल जाते हैं उसके सामने झुकेंगे, बल्कि वह भी जो अपनी जान को ज़िन्दा नहीं रख सकता।30एक नसल उसकी बन्दगी करेगी; दूसरी नसल को ख़ुदावन्द की ख़बर दी जाएगी।31~वह आएँगे और उसकी सदाक़त को एक क़ौम पर जो पैदा होगी यह कहकर ज़ाहिर करेंगे कि उसने यह काम किया है।
1ख़ुदावन्द मेरा चौपान है, मुझे कमी न होगी।2~वह मुझे हरी हरी चरागाहों में बिठाता है; वह मुझे राहत के चश्मों के पास ले जाता है;3वह मेरी जान को बहाल करता है। वह मुझे अपने नाम की ख़ातिर सदाकत की राहों पर ले चलता है।4~बल्कि चाहे मौत के साये की वादी में से मेरा गुज़र हो, मैं किसी बला से नहीं डरूंगा, क्यूँकि तू मेरे साथ है; तेरे 'असा और तेरी लाठी से मुझे तसल्ली है।5तू मेरे दुश्मनों के सामने मेरे आगे दस्तरख़्वान बिछाता है; तूने मेरे सिर पर तेल मला है, मेरा प्याला लबरेज़ होता है।6यक़ीनन भलाई और रहमत 'उम्र भर मेरे साथ साथ रहेंगी: और मैं हमेशा ख़ुदावन्द के घर में सकूनत करूँगा ।
1ज़मीन और उसकी मा'मुरी ख़ुदावन्द ही की है, जहान और उसके बाशिन्दे भी।2~क्यूँकि उसने समन्दरों पर उसकी बुनियाद रख्खी और सैलाबों पर उसे क़ायम किया।3ख़ुदावन्द के पहाड़ पर कौन चढ़ेगा? और उसके पाक मक़ाम पर कौन खड़ा होगा?4वही जिसके हाथ साफ़ हैं और जिसका दिल पाक है, जिसने बकवास पर दिल नहीं लगाया, और मक्र से क़सम नहीं खाई।5~वह ख़ुदावन्द की तरफ़ से बरकत पाएगा, हाँ अपने नजात देने वाले ख़ुदा की तरफ़ से सदाक़त।6यही उसके तालिबों की नसल है, यही तेरे दीदार के तलबगार हैं या'नी या'कूब। (सिलाह)7~ऐ फाटको, अपने सिर बुलन्द करो। ऐ अबदी दरवाज़ो, ऊँचे हो जाओ! और जलाल का बादशाह दाख़िल होगा।8~यह जलाल का बादशाह कौन है? ख़ुदावन्द जो क़वी और क़ादिर है, ख़ुदावन्द जो जंग में ताक़तवर है!9ऐ फाटको, अपने सिर बुलन्द करो! ऐ अबदी दरवाज़ो, उनको बुलन्द करो! और जलाल का बादशाह दाख़िल होगा।10~यह जलाल का बादशाह कौन है? लश्करों का ख़ुदावन्द, वही जलाल का बादशाह है। (सिलाह)
1~ऐ ख़ुदावन्द! मैं अपनी जान तेरी तरफ़ उठाता हूँ।2~ऐ मेरे ख़ुदा, मैंने तुझ पर भरोसा किया है, मुझे शर्मिन्दा न होने दे: मेरे दुश्मन मुझ पर ख़ुशी न मनाएँ।3बल्कि जो तेरे मुन्तज़िर हैं उनमें से कोई शर्मिन्दा न होगा; लेकिन जो नाहक़ बेवफ़ाई करते हैं वही शर्मिन्दा होंगे।4ऐ ख़ुदावन्द, अपनी राहें मुझे दिखा; अपने रास्ते मुझे बता दे।5मुझे अपनी सच्चाई पर चला और ता'लीम दे, क्यूँकि तू मेरा नजात देने वाला ख़ुदा है; मैं दिन भर तेरा ही मुन्तज़िर रहता हूँ।6ऐ ख़ुदावन्द, अपनी रहमतों और शफ़क़तों को याद फ़रमा; क्यूँकि वह शुरू' से हैं।7मेरी जवानी की ख़ताओं और मेरे गुनाहों को याद न कर; ऐ ख़ुदावन्द, अपनी नेकी की ख़ातिर अपनी शफ़क़त के मुताबिक मुझे याद फ़रमा।8ख़ुदावन्द नेक और रास्त है; इसलिए वह गुनहगारों को राह-ए-हक़ की ता'लीम देगा।9वह हलीमों को इंसाफ़ की हिदायत करेगा, हाँ, वह हलीमों को अपनी राह बताएगा।10जो ख़ुदावन्द के 'अहद और उसकी शहादतों को मानते हैं, उनके लिए उसकी सब राहें शफ़क़त और सच्चाई हैं।11~ऐ ख़ुदावन्द, अपने नाम की ख़ातिर मेरी बदकारी मु'आफ़ कर दे क्यूँकि वह बड़ी है।12वह कौन है जो ख़ुदावन्द से डरता है? ख़ुदावन्द उसको उसी राह की ता'लीम देगा जो उसे पसंद है।13उसकी जान राहत में रहेगी, और उसकी नसल ज़मीन की वारिस होगी।14~ख़ुदावन्द के राज़ को वही जानते हैं जो उससे डरते हैं, और वह अपना 'अहद उनको बताएगा।15मेरी आँखें हमेशा ख़ुदावन्द की तरफ़ लगी रहती हैं, क्यूँकि वही मेरा पाँव दाम से छुड़ाएगा।16~मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो और मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मैं बेकस और मुसीबत ज़दा हूँ।17मेरे दिल के दुख बढ़ गए, तू मुझे मेरी तकलीफ़ों से रिहाई दे।18तू मेरी मुसीबत और जॉफ़िशानी को देख, और मेरे सब गुनाह मु'आफ़ फ़रमा।19मेरे दुश्मनों को देख क्यूँकि वह बहुत हैं और उनको मुझ से सख़्त 'अदावत है।20~मेरी जान की हिफ़ाज़त कर, और मुझे छुड़ा; मुझे शर्मिन्दा न होने दे, क्यूँकि मेरा भरोसा तुझ ही पर है।21दियानतदारी और रास्तबाज़ी मुझे सलामत रख्खें, क्यूँकि मुझे तेरी ही आस है।22~ऐ ख़ुदा, इस्राईल को उसके सब दुखों से छुड़ा ले।
1ऐ ख़ुदावन्द, मेरा इंसाफ़ कर, क्यूँकि मैं रास्ती से चलता रहा हूँ, और मैंने ख़ुदावन्द पर बे लग़ज़िश भरोसा किया है।2ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जाँच और आज़मा; मेरे दिल-ओ-दिमाग़ को परख।3क्यूँकि तेरी शफ़क़त मेरी आँखों के सामने है, और मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलता रहा हूँ।4मैं बेहूदा लोगों के साथ नहीं बैठा, मैं रियाकारों के साथ कहीं नहीं जाऊँगा।5बदकिरदारों की जमा'अत से मुझे नफ़रत है, मैं शरीरों के साथ नहीं बैठूँगा।6मैं बेगुनाही में अपने हाथ धोऊँगा, और ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे मज़बह का तवाफ़ करूँगा ;7ताकि शुक्रगुज़ारी की आवाज़ बुलन्द करूँ, और तेरे सब 'अजीब कामों को बयान करूँ ।8~ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी सकूनतगाह, और तेरे जलाल के ख़ेमे को 'अज़ीज़ रखता हूँ।9मेरी जान को गुनहगारों के साथ, और मेरी ज़िन्दगी को ख़ूनी आदमियों के साथ न मिला।10~जिनके हाथों में शरारत है, और जिनका दहना हाथ रिश्वतों से भरा है।11~लेकिन मैं तो रास्ती से चलता रहूँगा। मुझे छुड़ा ले और मुझ पर रहम कर।12मेरा पाँव हमवार जगह पर क़ायम है। मैं जमा'अतों में ख़ुदावन्द को मुबारक कहूँगा।
1ख़ुदावन्द मेरी रोशनी और मेरी नजात मुझे किसकी दहशत? ख़ुदावन्द मेरी ज़िन्दगी की ताक़त है, मुझे किसका डर?2~जब शरीर या'नी मेरे मुख़ालिफ़ और मेरे दुश्मन, मेरा गोश्त खाने को मुझ पर चढ़ आए तो वह ठोकर खाकर गिर पड़े।3चाहे मेरे ख़िलाफ़ लश्कर ख़ेमाज़न हो, मेरा दिल नहीं डरेगा। चाहे मेरे मुक़ाबले में जंग खड़ी हो, तोभी मैं मुतम'इन रहूँगा।4~मैंने ख़ुदावन्द से एक दरख़्वास्त की है, मैं इसी का तालिब रहूँगा; कि मैं 'उम्र भर ख़ुदावन्द के घर में रहूँ, ताकि ख़ुदावन्द के जमाल को देखूँ और उसकी हैकल में इस्तिफ़्सार किया करूँ ~।5क्यूँकि मुसीबत के दिन वह मुझे अपने शामियाने में पोशीदा रख्खेगा; वह मुझे अपने ख़ेमे के पर्दे में छिपा लेगा, वह मुझे चट्टान पर चढ़ा देगा6अब मैं अपने चारों तरफ़ के दुश्मनों पर सरफराज़ किया जाऊँगा; मैं उसके ख़ेमे में ख़ुशी की क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा; मैं गाऊँगा, मैं ख़ुदावन्द की मदहसराई करूँगा ।7~ऐ ख़ुदावन्द, मेरी आवाज़ सुन! मैं पुकारता हूँ। मुझ पर रहम कर और मुझे जवाब दे।8जब तूने फ़रमाया, कि मेरे दीदार के तालिब हो; तो मेरे दिल ने तुझ से कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे दीदार का तालिब रहूँगा।"9मुझ से चेहरा न छिपा ।अपने बन्दे को क़हर से न निकाल। तू मेरा मददगार रहा है; न मुझे तर्क कर, न मुझे छोड़, ऐ मेरे नजात देने वाले ख़ुदा! ।10जब मेरा बाप और मेरी माँ मुझे छोड़ दें, तो ख़ुदावन्द मुझे संभाल लेगा।11ऐ ख़ुदावन्द, मुझे अपनी राह बता, और मेरे दुश्मनों की वजह से मुझे हमवार रास्ते पर चला।12मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों की मर्ज़ी पर न छोड़, क्यूँकि झूटे गवाह और बेरहमी से पुंकारने वाले मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं।13~अगर मुझे यक़ीन न होता कि ज़िन्दों की ज़मीन में ख़ुदावन्द के एहसान को देखूँगा, तो मुझे ग़श आ जाता।14~ख़ुदावन्द की उम्मीद रख; मज़बूत हो और तेरा दिल क़वी हो; हाँ, ख़ुदावन्द ही की उम्मीद रख।~
1~ऐ ख़ुदावन्द, मैं तुझ ही को पुकारूँगा; ऐ मेरी चट्टान, तू मेरी तरफ़ से कान बन्द न कर; ऐसा न हो कि अगर तू मेरी तरफ़ से खामोश रहे तो मैं उनकी तरह बन जाऊँ, जो पाताल में जाते हैं।2जब मैं तुझ से फ़रियाद करूँ, और अपने हाथ तेरी मुक़द्दस हैकल की तरफ़ उठाऊँ, तो मेरी मिन्नत की आवाज़ को सुन ले।3मुझे उन शरीरों और बदकिरदारों के साथ घसीट न ले जा; जो अपने पड़ोसियों से सुलह की बातें करते हैं, मगर उनके दिलों में बदी है।4उनके अफ़'आल-ओ-आ'माल की बुराई के मुवाफ़िक़ उनको बदला दे, उनके हाथों के कामों के मुताबिक़ उनसे सुलूक कर; उनके किए का बदला उनको दे।5~वह ख़ुदावन्द के कामों और उसकी दस्तकारी पर ध्यान नहीं करते, इसलिए वह उनको गिरा देगा और फिर नहीं उठाएगा।6ख़ुदावन्द मुबारक हो, इसलिए के उसने मेरी मिन्नत की आवाज़ सुन ली।7~ख़ुदावन्द मेरी ताक़त और मेरी ढाल है; मेरे दिल ने उस पर भरोसा किया है, और मुझे मदद मिली है। इसलिए मेरा दिल बहुत ख़ुश है; और मैं गीत गाकर उसकी सिताइश करूँगा ।8ख़ुदावन्द उनकी ताक़त है, वह अपने मम्सूह के लिए नजात का क़िला' है।9अपनी उम्मत को बचा, और अपनी मीरास को बरकत दे; उनकी पासबानी कर, और उनको हमेशा तक संभाले रह।
1~ऐ फ़रिश्तों की जमा'त ख़ुदावन्द की, ख़ुदावन्द ही की तम्जीद-ओ-ता'ज़ीम करो।2~ख़ुदावन्द की ऐसी तम्जीद करो, जो उसके नाम के शायाँ है। पाक आराइश के साथ ख़ुदावन्द को सिज्दा करो।3ख़ुदावन्द की आवाज़ बादलों पर है; ख़ुदा-ए-जुलजलाल गरजता है, ख़ुदावन्द पानी से भरे बादलों पर है।4ख़ुदावन्द की आवाज़ में क़ुदरत है; ख़ुदावन्द की आवाज़ में जलाल है।5~ख़ुदावन्द की आवाज़ देवदारों को तोड़ डालती है; बल्कि ख़ुदावन्द लुबनान के देवदारों को टुकड़े टुकड़े कर देता है।6वह उनको बछड़े की तरह, लुबनान और सिरयून को जंगली बछड़े की तरह कुदाता है।7ख़ुदावन्द की आवाज़ आग के शो'लों को चीरती है।8ख़ुदावन्द की आवाज़ वीरान को हिला देती है; ख़ुदावन्द क़ादिस के वीरान को हिला डालता है।9ख़ुदावन्द की आवाज़ से हिरनियों के हमल गिर जाते हैं; और वह जंगलों को बेबर्ग कर देती है; उसकी हैकल में हर एक जलाल ही जलाल पुकारता है।10ख़ुदावन्द तूफ़ान के वक़्त तख़्तनशीन था; बल्कि ख़ुदावन्द हमेशा तक तख़्तनशीन है।11ख़ुदावन्द अपनी उम्मत को ज़ोर बख़्शेगा; ख़ुदावन्द अपनी उम्मत को सलामती की बरकत देगा।
1ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी तम्जीद करूँगा ; क्यूँकि तूने मुझे सरफ़राज़ किया है; और मेरे दुश्मनों को मुझ पर खु़श होने न दिया।2~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! , मैंने तुझ से फ़रियाद की और तूने मुझे शिफ़ा बख़्शी।3~ऐ ख़ुदावन्द, तू मेरी जान को पाताल से निकाल लाया है; तूने मुझे ज़िन्दा रख्खा है कि क़ब्र में न जाऊँ।4~ख़ुदावन्द की सिताइश करो, ऐ उसके पाक लोगों! और उसके पाकीज़गी को याद करके शुक्रगुज़ारी करो|5क्यूँकि उसका क़हर दम भर का है, उसका करम 'उम्र भर का। रात को शायद रोना पड़े पर सुबह को ख़ुशी की नौबत आती है।6मैंने अपनी इक़बालमंदी के वक़्त यह कहा था, कि मुझे कभी जुम्बिश न होगी।7ऐ ख़ुदावन्द, तूने अपने करम से मेरे पहाड़ को क़ायम रख्खा था; जब तूने अपना चेहरा छिपाया तो मैं घबरा उठा।8~ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तुझ से फ़रियाद की; मैंने ख़ुदावन्द से मिन्नत की,9जब मैं क़ब्र में जाऊँ तो मेरी मौत से क्या फ़ायदा? क्या ख़ाक तेरी सिताइश करेगी? क्या वह तेरी सच्चाई को बयान करेगी?10सुन ले ऐ ख़ुदावन्द, और मुझ पर रहम कर; ऐ ख़ुदावन्द, तू मेरा मददगार हो।11तूने मेरे मातम को नाच से बदल दिया; तूने मेरा टाट उतार डाला और मुझे ख़ुशी से कमरबस्ता किया,12ताकि मेरी रूह तेरी मदहसराई करे और चुप न रहे। ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मैं हमेशा तेरा शुक्र करता रहूँगा।
1ऐ ख़ुदावन्द! मेरा भरोसा तुझ पर, मुझे कभी शर्मिन्दा न होने दे; अपनी सदाक़त की ख़ातिर मुझे रिहाई दे।2अपना कान मेरी तरफ़ झुका, जल्द मुझे छुड़ा! तू मेरे लिए मज़बूत चट्टान, मेरे बचाने को पनाहगाह हो!3क्यूँकि तू ही मेरी चट्टान और मेरा क़िला' है; इसलिए अपने नाम की ख़ातिर मेरी राहबरीऔर रहनुमाई कर।4मुझे उस जाल से निकाल ले जो उन्होंने छिपकर मेरे लिए बिछाया है, क्यूँकि तू ही मेरा मज़बूत क़िला' है।5मैं अपनी रूह तेरे हाथ में सौंपता हूँ: ऐ ख़ुदावन्द! सच्चाई के ख़ुदा; तूने मेरा फ़िदिया दिया है।6मुझे उनसे नफ़रत है जो झूटे मा'बूदों को मानते हैं: मेरा भरोसा तो ख़ुदावन्द ही पर है।7मैं तेरी रहमत से ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम रहूँगा, क्यूँकि तूने मेरा दुख: देख लिया है; तू मेरी जान की मुसीबतों से वाक़िफ़ है।8तूने मुझे दुश्मन के हाथ में क़ैद नहीं छोड़ा; तूने मेरे पाँव कुशादा जगह में रख्खे हैं।9ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर क्यूँकि मैं मुसीबत में हूँ। मेरी आँख बल्कि मेरी जान और मेरा जिस्म सब रंज के मारे घुले जाते हैं।10क्यूँकि मेरी जान ग़म में और मेरी 'उम्र कराहने में फ़ना हुई; मेरा ज़ोर मेरी बदकारी के वजह से जाता रहा, और मेरी हड्डियाँ घुल गई।11मैं अपने सब मुख़ालिफ़ों की वजह से अपने पड़ोसियों के लिए, अज़ बस अन्गुश्तनुमा और अपने जान पहचानों के लिए ख़ौफ़ का ज़रिया' हूँ जिन्होंने मुझको बाहर देखा, मुझ से दूर भागे।12मैं मुर्दे की तरह भुला दिया गया हूँ; मैं टूटे बर्तन की तरह हूँ।13क्यूँकि मैंने बहुतों से अपनी बदनामी सुनी है, हर तरफ़ ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ है। जब उन्होंने मिलकर मेरे ख़िलाफ़ मश्वरा किया, तो मेरी जान लेने का मन्सूबा बाँधा।14लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, मेरा भरोसा तुझ पर है।मैंने कहा, "तू मेरा ख़ुदा है।"15मेरे दिन तेरे हाथ में हैं; मुझे मेरे दुश्मनों और सताने वालों के हाथ से छुड़ा।16अपने चेहरे को अपने बन्दे पर जलवागर फ़रमा; अपनी शफ़क़त से मुझे बचा ले।17ऐ ख़ुदावन्द, मुझे शर्मिन्दा न होने दे क्यूँकि मैंने तुझ से दु'आ की है; शरीर शर्मिन्दा हो जाएँ और पाताल में ख़ामोश हों।18~झूटे होंट बन्द हो जाएँ, जो सादिकों के ख़िलाफ़ ग़ुरूर और हिक़ारत से तकब्बुर की बातें बोलते हैं।19~आह! तूने अपने डरने वालों के लिए कैसी बड़ी ने'मत रख छोड़ी है: जिसे तूने बनी आदम के सामने अपने, भरोसा करने वालों के लिए तैयार किया।20~तू उनको इंसान की बन्दिशों से अपनी हुज़ूरी के पर्दे में छिपाएगा; तू उनको ज़बान के झगड़ों से शामियाने में पोशीदा रख्खेगा।21~ख़ुदावन्द मुबारक हो! क्यूँकि उसने मुझ को मज़बूत शहर में अपनी 'अजीब शफ़क़त दिखाई।22~मैंने तो जल्दबाज़ी से कहा था, कि मैं तेरे सामने से काट डाला गया। तोभी जब मैंने तुझ से फ़रियाद की तो तूने मेरी मिन्नत की आवाज़ सुन ली।23ख़ुदावन्द से मुहब्बत रखो, ऐ उसके सब पाक लोगों! ख़ुदावन्द ईमानदारों को सलामत रखता है; और मग़रूरों को ख़ूब ही बदला देता है24ऐ ख़ुदावन्द पर उम्मीद रखने वालो! सब मज़बूत हो और तुम्हारा दिल क़वी रहे।
1~मुबारक है वह जिसकी ख़ता बख़्शी गई, और जिसका गुनाह ढाँका गया।2~मुबारक है वह आदमी जिसकी बदकारी को ख़ुदावन्द हिसाब में नहीं लाता, और जिसके दिल में दिखावा नहीं।3~जब मैं ख़ामोश रहा तो दिन भर के कराहने से मेरी हड्डियाँ घुल गई।4क्यूँकि तेरा हाथ रात दिन मुझ पर भारी था; मेरी तरावट गर्मियों की खु़श्की से बदल गई। (सिलाह)5मैंने तेरे सामने अपने गुनाह को मान लिया और अपनी बदकारी को न छिपाया, मैंने कहा, "मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी ख़ताओं का इक़रार करूँगा और तूने मेरे गुनाह की बुराई को मु'आफ़ किया। (सिलाह)6~इसीलिए हर दीनदार तुझ से ऐसे वक़्त में दु'आ करे जब तू मिल सकता है। यक़ीनन जब सैलाब आए तो उस तक नहीं पहुँचेगा।7तू मेरे छिपने की जगह है; तू मुझे दुख से बचाये रख्खेगा; तू मुझे रिहाई के नाग़मों से घेर लेगा।(सिलाह )8~मैं तुझे ता'लीम दूँगा, और जिस राह पर तुझे चलना होगा तुझे बताऊँगा; मैं तुझे सलाह दूँगा, मेरी नज़र तुझ पर होगी।9तुम घोड़े या खच्चर की तरह न बनो जिनमें समझ नहीं, जिनको क़ाबू में रखने का साज़ दहाना और लगाम है, वर्ना वह तेरे पास आने के भी नहीं।10~शरीर पर बहुत सी मुसीबतें आएँगी; पर जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है, रहमत उसे घेरे रहेगी।11~ऐ सादिक़ो, ख़ुदावन्द में ख़ुश-ओ-बुर्रम रहो; और ऐ रास्तदिलो, खु़शी से ललकारो!
1~ऐ सादिक़ो, ख़ुदावन्द में ख़ुश रहो। हम्द करना रास्तबाज़ों की ज़ेबा है।2~सितार के साथ ख़ुदावन्द का शुक्र करो, दस तार की बरबत के साथ उसकी सिताइश करो।3उसके लिए नया गीत गाओ, बुलन्द आवाज़ के साथ अच्छी तरह बजाओ।4क्यूँकि ख़ुदावन्द का कलाम रास्त है; और उसके सब काम बावफ़ा हैं।5वह सदाक़त और इंसाफ़ को पसंद करता है; ज़मीन ख़ुदावन्द की शफ़क़त से मा'मूर है।6आसमान ख़ुदावन्द के कलाम से, और उसका सारा लश्कर उसके मुँह के दम से बना।7वह समन्दर का पानी तूदे की तरह जमा' करता है; वह गहरे समन्दरों को मख़ज़नों में रखता है।8सारी ज़मीन ख़ुदावन्द से डरे, जहान के सब बाशिन्दे उसका ख़ौफ़ रख्खें।9क्यूँकि उसने फ़रमाया और हो गया; उसने हुक्म दिया और वाके' हुआ।10ख़ुदावन्द क़ौमों की मश्वरत को बेकार कर देता है; वह उम्मतों के मन्सूबों को नाचीज़ बना देता है।11~ख़ुदावन्द की मसलहत हमेशा तक क़ायम रहेगी, और उसके दिल के ख़याल नसल दर नसल ।12~मुबारक है वह क़ौम जिसका ख़ुदा ख़ुदावन्द है, और वह उम्मत जिसको उसने अपनी ही मीरास के लिए बरगुज़ीदा किया।13~ख़ुदावन्द आसमान पर से देखता है, सब बनी आदम पर उसकी निगाह है।14अपनी सुकूनत गाह से वह ~ज़मीन के सब बाशिन्दों को देखता है।15वही है जो उन सबके दिलों को बनाता, और उनके सब कामों का ख़याल रखता है |16~किसी बादशाह को फ़ौज की कसरत न बचाएगी; और किसी ज़बरदस्त आदमी को उसकी बड़ी ताक़त रिहाई न देगी।17~बच निकलने के लिए घोड़ा बेकार है, वह अपनी शहज़ोरी से किसी को नबचाएगा।18देखो ख़ुदावन्द की निगाह उन पर है जो उससे डरते हैं; जो उसकी शफ़क़त के उम्मीदवार हैं,19~ताकि उनकी जान मौत से बचाए, और सूखे में उनको ज़िन्दा रख्खे।20हमारी जान को ख़ुदावन्द की उम्मीद है; वही हमारी मदद और हमारी ढाल है।21हमारा दिल उसमें ख़ुश रहेगा, क्यूँकि हम ने उसके पाक नाम पर भरोसा किया है।22ऐ ख़ुदावन्द, जैसी तुझ पर हमारी उम्मीद है, वैसी ही तेरी रहमत हम पर हो।
1मैं हर वक़्त ख़ुदावन्द को मुबारक कहूँगा, उसकी सिताइश हमेशा मेरी ज़बान पर रहेगी।2~मेरी रूह ख़ुदावन्द पर फ़ख़्र करेगी; हलीम यह सुनकर ख़ुश होंगे।3मेरे साथ ख़ुदावन्द की बड़ाई करो, हम मिलकर उसके नाम की तम्जीद करें।4मैं ख़ुदावन्द का तालिब हुआ, उसने मुझे जवाब दिया, और मेरी सारी दहशत से मुझे रिहाई बख़्शी।5~उन्होंने उसकी तरफ़ नज़र की और मुनव्वर हो गए; और उनके मुँह पर कभी शर्मिन्दगी न आएगी।6इस ग़रीब ने दुहाई दी, ख़ुदावन्द ने इसकी सुनी, और इसे इसके सब दुखों से बचा लिया।7ख़ुदावन्द से डरने वालों के चारों तरफ़ उसका फ़रिश्ता ख़ेमाज़न होता है और उनको बचाता~~है।8आज़माकर देखो, कि ख़ुदावन्द कैसा मेहरबान है! वह आदमी जो उस पर भरोसा करता है।9ख़ुदावन्द से डरो, ऐ उसके पाक लोगों! क्यूँकि जो उससे डरते हैं उनको कुछ कमी नहीं।10बबर के बच्चे तो हाजतमंद और भूके होते हैं, लेकिन ख़ुदावन्द के तालिब किसी ने'मत के मोहताज न हाँगे।11ऐ बच्चो, आओ मेरी सुनो, मैं तुम्हें ख़ुदा से डरना सिखाऊँगा।12~वह कौन आदमी है जो ज़िन्दगी का मुश्ताक़ है, और बड़ी 'उम्र चाहता है ताकि भलाई देखें?13अपनी ज़बान को बदी से बाज़ रख, और अपने होंटों को दग़ा की बात से।14बुराई को छोड़ और नेकी कर; सुलह का तालिब हो और उसी की पैरवी कर।15ख़ुदावन्द की निगाह सादिकों पर है, और उसके कान उनकी फ़रियाद पर लगे रहते हैं।16ख़ुदावन्द का चेहरा बदकारों के ख़िलाफ़ है, ताकि उनकी याद ज़मीन पर से मिटा दे।17सादिक़ चिल्लाए, और ख़ुदावन्द ने सुना; और उनको उनके सब दुखों से छुड़ाया।18ख़ुदावन्द शिकस्ता दिलों के नज़दीक है, और ख़स्ता ज़ानों को बचाता है।19सादिक की मुसीबतें बहुत हैं, लेकिन ख़ुदावन्द उसको उन सबसे रिहाई बख्शता है।20वह उसकी सब हड्डियों को महफूज़ रखता है; उनमें से एक भी तोड़ी नहीं जाती।21बुराई शरीर को हलाक कर देगी; और सादिक़ से 'अदावत रखने वाले मुजरिम ठहरेंगे।22ख़ुदावन्द अपने बन्दों की जान का फ़िदिया देता है; और जो उस पर भरोसा करते हैं उनमें से कोई मुजरिम न ठहरेगा।
1ऐ ख़ुदावन्द, जो मुझ से झगड़ते हैं तू उनसे झगड़; जो मुझ से लड़ते हैं तू उनसे लड़।2ढाल और सिपर लेकर मेरी मदद के लिए खड़ा हो।3भाला भी निकाल और मेरा पीछा करने वालों का रास्ता बंद कर दे; मेरी जान से कह, मैं तेरी नजात हूँ।4~जो मेरी जान के तलबगार हैं, वह शर्मिन्दा और रुस्वा हों। जो मेरे नुक़्सान का मन्सूबा बाँधते हैं, वह पसपा और परेशान हों।5वह ऐसे हो जाएँ जैसे हवा के आगे भूसा, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनको हाँकता रहे।6उनकी राह अंधेरी और फिसलनी हो जाए, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनको दौड़ाता जाए।7क्यूँकि उन्होंने बे वजह मेरे लिए गढ़े में जाल बिछाया, और नाहक़ मेरी जान के लिए गढ़ा खोदा है।8उस पर अचानक तबाही आ पड़े! और जिस जाल को उसने बिछाया है उसमें आप ही फसे; और उसी हलाकत में गिरफ़्तार हो।9~लेकिन मेरी जान ख़ुदावन्द में खु़श रहेगी, और उसकी नजात से शादमान होगी।10~मेरी सब हड्डियाँ कहेंगी, "ऐ ख़ुदावन्द तुझ सा कौन है, जो ग़रीब को उसके हाथ से जो उससे ताक़तवर है, और ग़रीब-ओ-मोहताज को ग़ारतगर से छुड़ाता है?"11झूटे गवाह उठते हैं; और जो बातें मैं नहीं जानता, वह मुझ से पूछते हैं।12~वह मुझ से नेकी के बदले बदी करते हैं, यहाँ तक कि मेरी जान बेकस हो जाती है।13लेकिन मैंने तो उनकी बीमारी में जब वह बीमार थे, टाट ओढ़ा और रोज़े रख रख कर अपनी जान को दुख दिया; और मेरी दु'आ मेरे ही सीने में वापस आई।14~मैंने तो ऐसा किया जैसे वह मेरा दोस्त या मेरा भाई था; मैंने सिर झुका कर ग़म किया जैसे कोई अपनी माँ के लिए मातम करता हो ।15लेकिन जब मैं लंगड़ाने लगा तो वह ख़ुश होकर इकट्ठे हो गए, कमीने मेरे ख़िलाफ़ इकट्ठा हुए और मुझे मा'लूम न था; उन्होंने मुझे फाड़ा और बाज़ न आए।16ज़ियाफ़तों के बदतमीज़ मसखरों की तरह, उन्होंने मुझ पर दाँत पीसे।17~ऐ ख़ुदावन्द, तू कब तक देखता रहेगा? मेरी जान को उनकी ग़ारतगरी से, मेरी जान को शेरों से छुड़ा।18~मैं बड़े मजमे' में तेरी शुक्रगुज़ारी करूँगा मैं बहुत से लोगों में तेरी सिताइश करूँगा ।19जो नाहक़ मेरे दुश्मन हैं, मुझ पर ख़ुशी न मनाएँ; और जो मुझ से बे वजह 'अदावत रखते हैं, चश्मक ज़नी न करें।20~क्यूँकि वह सलामती की बातें नहीं करते, बल्कि मुल्क के अमन पसंद लोगों के ख़िलाफ़, मक्र के मन्सूबे बाँधते हैं।21यहाँ तक कि उन्होंने ख़ूब मुँह फाड़ा और कहा, "अहा हा हा हम ने अपनी आँख से देख लिया है! "22ऐ ख़ुदावन्द, तूने ख़ुद यह देखा है; ख़ामोश न रह! ऐ ख़ुदावन्द, मुझ से दूर न रह!23~उठ, मेरे इंसाफ़ के लिए जाग, और मेरे मु'आमिले के लिए, ऐ मेरे ख़ुदा! ऐ मेरे ख़ुदावन्द!24अपनी सदाक़त के मुताबिक़ मेरी'अदालत कर, ऐ ख़ुदावन्द, मेरे ख़ुदा! और उनको मुझ पर ख़ुशी न मनाने दे।25~वह अपने दिल में यह न कहने पाएँ, 'अहा! हम तो यही चाहते थे! " वह यह न कहें, कि हम उसे निगल गए।26जो मेरे नुक़सान से ख़ुश होते हैं, वह आपस में शर्मिन्दा और परेशान हों! जो मेरे मुक़ाबले में तकब्बुर करते हैं वह शर्मिन्दगी और रुस्वाई से मुलब्बस हों।27जो मेरे सच्चे मु'आमिले की ताईद करते हैं, वह ख़ुशी से ललकारें और ख़ुशहों; वह हमेशा यह कहें, "ख़ुदावन्द की तम्जीद हो, जिसकी ख़ुशनूदी अपने बन्दे की इक़बालमन्दी में है! "28तब मेरी ज़बान से तेरी सदाकत का ज़िक्र होगा, और दिन भर तेरी ता'रीफ़ होगी।
1~शरीर की बदी से मेरे दिल में ख़याल आता है, कि ख़ुदा का ख़ौफ़ उसके सामने नहीं।2~क्यूँकि वह अपने आपको अपनी नज़र में इस ख़याल से तसल्ली देता है, कि उसकी बदी न तो फ़ाश होगी, न मकरूह समझी जाएगी।3उसके मुँह में बदी और फ़रेब की बातें हैं; वह 'अक़्ल और नेकी से दस्तबरदार हो गया है।4~वह अपने बिस्तर पर बदी के मन्सूबे बाँधता है; वह ऐसी राह इख़्तियार करता है जो अच्छी नहीं; वह बुराई से नफ़रत नहीं करता।5~ऐ ख़ुदावन्द, आसमान में तेरी शफ़क़त है, तेरी वफ़ादारी अफ़लाक तक बुलन्द है।6तेरी सदाक़त ख़ुदा के पहाड़ों की तरह है, तेरे अहकाम बहुत गहरे हैं; ऐ ख़ुदावन्द, तू इंसान और हैवान दोनों को महफ़ूज़ रखता है।7ऐ ख़ुदा, तेरी शफ़क़त क्या ही बेशक़ीमत है! बनी आदम तेरे बाज़ुओं के साये में पनाह लेते हैं।8~वह तेरे घर की ने'मतों से ख़ूब आसूदा होंगे, तू उनको अपनी ख़ुशनूदी के दरिया में से पिलाएगा।9~क्यूँकि ज़िन्दगी का चश्मा तेरे पास है; तेरे नूर की बदौलत हम रोशनी देखेंगे।10तेरे पहचानने वालों पर तेरी शफ़क़त हमेशा की हो, और रास्त दिलों पर तेरी सदाकत!11~मग़रूर आदमी मुझ पर लात न उठाने पाए, और शरीर का हाथ मुझे हाँक न दे।12बदकिरदार वहाँ गिरे पड़े हैं; वह गिरा दिए गए हैं और फिर उठ न सकेंगे।
1~तू बदकिरदारों की वजह से बेज़ार न हो, और बदी करने वालों पर रश्क न कर!2~क्यूँकि वह घास की तरह जल्द काट डाले जाएँगे, और ~हरियाली की तरह मुरझा जाएँगे।3~ख़ुदावन्द पर भरोसा कर, और नेकी कर; मुल्क में आबाद रह, और उसकी वफ़ादारी से परवरिश पा।4ख़ुदावन्द में मसरूर रह, और वह तेरे दिल की मुरादें पूरी करेगा।5अपनी राह ख़ुदावन्द पर छोड़ दे:और उस पर भरोसा कर, वही सब कुछ करेगा।6~वह तेरी रास्तबाज़ी को नूर की तरह, और तेरे हक़ को दोपहर की तरह रोशन करेगा।7ख़ुदावन्द में मुतम'इन रह, और सब्र से उसकी आस रख; उस आदमी की वजह से जो अपनी राह में कामयाब होता और बुरे मन्सूबों को अंजाम देता है, बेज़ार न हो।8क़हर से बाज़ आ और ग़ज़ब को छोड़ दे! बेज़ार न हो, इससे बुराई ही निकलती है।9~क्यूँकि बदकार काट डाले जाएँगे; लेकिन जिनको ख़ुदावन्द की आस है, मुल्क के वारिस होंगे।10~क्यूँकि थोड़ी देर में शरीर नाबूद हो जाएगा; तू उसकी जगह को ग़ौर से देखेगा पर वह ~न होगा।11~लेकिन हलीम मुल्क के वारिस होंगे, और सलामती की फ़िरावानी से ख़ुश रहेंगे।12~शरीर रास्तबाज़ के ख़िलाफ़ बन्दिशें बाँधता है, और उस पर दाँत पीसता है;13~ख़ुदावन्द उस पर हंसेगा, क्यूँकि वह देखता है कि उसका दिनआता है।14शरीरों ने तलवार निकाली और कमान खींची है, ताकि ग़रीब और मुहताज को गिरा दें, और रास्तरों ~को क़त्ल करें।15~उनकी तलवार उन ही के दिल को छेदेगी, और उनकी कमानें तोड़ी जाएँगी।16~सादिक़ का थोड़ा सा माल, बहुत से शरीरों की दौलत से बेहतर है।17क्यूँकि शरीरों के बाज़ू तोड़े जाएँगे, लेकिन ख़ुदावन्द सादिकों को संभालता है।18~कामिल लोगों के दिनों को ख़ुदावन्द जानता है, उनकी मीरास हमेशा के लिए होगी।19~वह आफ़त के वक़्त शर्मिन्दा न होंगे, और काल के दिनों में आसूदा रहेंगे।20~लेकिन शरीर हलाक होंगे, ख़ुदावन्द के दुश्मन चरागाहों की सरसब्ज़ी की तरह होंगे; वह फ़ना हो जाएँगे, वह धुएँ की तरह जाते रहेंगे।21~शरीर क़र्ज़ लेता है और अदा नहीं करता, लेकिन सादिक़ रहम करता है और देता है।22क्यूँकि जिनको वह बरकत देता है, वह ज़मीन के वारिस होंगे; और जिन पर वह ला'नत करता है, वह काट डाले जाएँगे।23~इंसान की चाल चलन ख़ुदावन्द की तरफ़ से क़ायम हैं, और वह उसकी राह से ख़ुश है;24अगर वह गिर भी जाए तो पड़ा न रहेगा, क्यूँकि ख़ुदावन्द उसे अपने हाथ से संभालता है।25~मैं जवान था और अब बूढ़ा हूँ तोभी मैंने सादिक़ को बेकस, और उसकी औलाद को टुकड़े माँगते नहीं देखा।26वह दिन भर रहम करता है और क़र्ज़ देता है, और उसकी औलाद को बरकत मिलती है।27~बदी को छोड़ दे और नेकी कर; और हमेशा तक आबाद रह।28~क्यूँकि ख़ुदावन्द इंसाफ़ को पसंद करता है: और अपने पाक लोगों को नहीं छोड़ता। वह हमेशा के लिए महफ़ूज़ हैं, लेकिन शरीरों की नसल काट डाली जाएगी।29~सादिक़ ज़मीन के वारिस होंगे, और उसमें हमेशा बसे रहेंगे।30सादिक़ के मुँह से दानाई निकलती है, और उसकी ज़बान से इंसाफ़ की बातें ।31~उसके ख़ुदा की शरी'अत उसके दिल में है, वह अपनी चाल चलन में फिसलेगा नहीं।32~शरीर सादिक़ की ताक में रहता है; और उसे क़त्ल करना चाहता है।33~ख़ुदावन्द उसे उसके हाथ में नहीं छोड़ेगा, और जब उसकी 'अदालत हो तो उसे मुजरिम न ठहराएगा।34ख़ुदावन्द की उम्मीद रख, और उसी की राह पर चलता रह, और वह तुझे सरफ़राज़ करके ज़मीन का वारिस बनाएगा; जब शरीर काट डाले जाएँगे, तो तू देखेगा।35~मैंने शरीर को बड़े इक्तिदार में और ऐसा फैलता देखा, जैसे कोई हरा दरख़्त अपनी असली ज़मीन में फैलता है।36~लेकिन जब कोई उधर से गुज़राऔर देखा तो वह था ही नहीं; बल्कि मैंने उसे ~ढूंढा लेकिन वह न मिला।37~कामिल आदमी पर निगाह कर और रास्तबाज़ को देख, क्यूँकि सुलह दोस्त आदमी के लिए अज्र है |38~लेकिन ख़ताकार इकट्ठे मर मिटेंगे; शरीरों का अंजाम हलाकत है।39~लेकिन सादिकों की नजात ख़ुदावन्द की तरफ़ से है; मुसीबत के वक़्त वह उनका मज़बूत क़िला है।40~और ख़ुदावन्द उनकी मदद करताऔर उनको बचाता है; वह उनको शरीरों से छुड़ाता और बचा लेता है, इसलिए कि उन्होंने उसमें पनाह ली है।
1~ऐ ख़ुदावन्द, अपने क़हर में मुझे झिड़क न दे, और अपने ग़ज़ब में मुझे तम्बीह न कर।2~क्यूँकि तेरे दुख मुझ में लगे हैं, और तेरा हाथ मुझ पर भारी है।3~तेरे क़हर की वजह से मेरे जिस्म में सिहत नहीं; और मेरे गुनाह की वजह से मेरी हड्डियों को आराम नहीं।4~क्यूँकि मेरी बदी मेरे सिर से गुज़र गई, और वह बड़े बोझ की तरह मेरे लिए बहुत भारी है।5मेरी हिमाक़त की वजह से, मेरे ज़ख़्मों से बदबू आती है, वह सड़ गए हैं।6~मैं पुरदर्द और बहुत झुका हुआ हूँ; मैं दिन भर मातम करता फिरता हूँ ।7क्यूँकि मेरी कमर में दर्द ही दर्द है, और मेरे जिस्म में कुछ सिहत नहीं।8~मैं कमज़ोर और बहुत कुचला हुआ हूँ और दिल की बेचैनी की वजह से कराहता रहा।9ऐ ख़ुदावन्द, मेरी सारी तमन्ना तेरे सामने है, और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं।10~मेरा दिल धड़कता है, मेरी ताक़त घटी जाती है; मेरी आँखों की रोशनी भी मुझ से जाती रही।11~मेरे 'अज़ीज़ और दोस्त मेरी बला में अलग हो गए, और मेरे रिश्तेदार दूर जा खड़े हुए।12मेरी जान के तलबगार मेरे लिए जाल बिछाते हैं, और मेरे नुक़सान के तालिब शरारत की बातें बोलते, और दिन भर मक्र-ओ-फ़रेब के मन्सूबे बाँधते हैं।13~लेकिन मैं बहरे की तरह सुनता ही नहीं, मैं गूँगे की तरह मुँह नहीं खोलता।14~बल्कि मैं उस आदमी की तरह हूँ जिसे सुनाई नहीं देता, और जिसके मुँह में मलामत की बातें नहीं।15क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, मुझे तुझ से उम्मीद है, ऐ ख़ुदावन्द, मेरे ख़ुदा! तू जवाब देगा।16क्यूँकि मैंने कहा, कि कहीं वह मुझ पर ख़ुशी न मनाएँ, जब मेरा पाँव फिसलता है, तो वह मेरे ख़िलाफ़ तकब्बुर करते हैं।17क्यूँकि मैं गिरने ही को हूँ, और मेरा ग़म बराबर मेरे सामने है।18~इसलिए कि मैं अपनी बदी को ज़ाहिर करूँगा, और अपने गुनाह की वजह से ग़मगीन रहूँगा।19लेकिन मेरे दुश्मन चुस्त और ज़बरदस्त हैं, और मुझ से नाहक 'अदावत रखने वाले बहुत हो गए हैं।20जो नेकी के बदले बदी करते हैं, वह भी मेरे मुख़ालिफ़ हैं; क्यूँकि मैं नेकी की पैरवी करता हूँ।21~ऐ ख़ुदावन्द, मुझे छोड़ न दे! ऐ मेरे ख़ुदा, मुझ से दूर न हो!22~ऐ ख़ुदावन्द! ऐ मेरी नजात! मेरी मदद के लिए जल्दी कर!
1मैंने कहा मैं अपनी राह की निगरानी करूँगा, ताकि मेरी ज़बान से ख़ता न हो; जब तक शरीर मेरे सामने है, मैं अपने मुँह को लगाम दिए रहूँगा।"2~मैं गूंगा बनकर ख़ामोश रहा, और नेकी की तरफ़ से भी ख़ामोशी इख़्तियार की; और मेरा ग़म बढ़ गया।3~मेरा दिल अन्दर ही अन्दर जल रहा था। सोचते सोचते आग भड़क उठी, तब मैं अपनी ज़बान से कहने लगा,4~"ऐ ख़ुदावन्द! ऐसा कर कि मैं अपने अंजाम से वाकिफ़ हो जाऊँ, और इससे भी कि मेरी 'उम्र की मी'आद क्या है; मैं जान लूँ कि कैसा फ़ानी हूँ!5~देख, तूने मेरी 'उम्र बालिश्त भर की रख्खी है, और मेरी ज़िन्दगी तेरे सामने बे हक़ीक़त है। यक़ीनन हर इंसान बेहतरीन हालत में भी बिल्कुल बेसबात है (सिलाह)6दर हक़ीकत इंसान साये की तरह चलता फिरता है; यक़ीनन वह फ़जूल घबराते हैं; वह ज़ख़ीरा करता है और यह नहीं जानता के उसे कौन लेगा!7~"ऐ ख़ुदावन्द! अब मैं किस बात के लिए ठहरा हूँ? मेरी उम्मीद तुझ ही से है।8~मुझ को मेरी सब ख़ताओं से रिहाई दे। बेवक़ूफ़ों को मुझ पर अंगुली न उठाने दे।9मैं गूंगा बना, मैंने मुँह न खोला क्यूँकि तू ही ने यह किया है।10~मुझ से अपनी बला दूर कर दे; मैं तो तेरे हाथ की मार से फ़ना हुआ जाता हूँ।11~जब तू इंसान को बदी पर मलामत करके तम्बीह करता है; तो उसके हुस्न को पतंगे की तरह फ़ना कर देता है; यक़ीनन हर इंसान बेसबात है। (सिलाह)12~"ऐ ख़ुदावन्द! मेरी दु'आ सुन और मेरी फ़रियाद पर कान लगा; मेरे आँसुओं को देखकर ख़ामोश न रह! क्यूँकि मैं तेरे सामने परदेसी और मुसाफ़िर हूँ, जैसे मेरे सब बाप-दादा थे।13~आह! मुझ से नज़र हटा ले ताकि ताज़ा दम हो जाऊँ, इससे पहले के मर जाऊँ और हलाक हो जाऊँ।"
1मैंने सब्र से ख़ुदावन्द पर उम्मीद रख्खी उसने मेरी तरफ़ माइल होकर मेरी फ़रियाद सुनी।2~उसने मुझे हौलनाक गढ़े और दलदल की कीचड़ में से निकाला, और उसने मेरे पाँव चट्टान पर रख्खे और मेरी चाल चलन क़ायम की3~उसने हमारे ख़ुदा की सिताइश का नया हम्द मेरे मुँह में डाला। बहुत से देखेंगे और डरेंगे, और ख़ुदावन्द पर भरोसा करेंगे।4~मुबारक है वह आदमी, जो ख़ुदावन्द पर भरोसा करता है, और मग़रूर और झूठे दोस्तों की तरफ़ माइल नहीं होता।5~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! जो 'अजीब काम तूने किए, और तेरे ख़याल जो हमारी तरफ़ हैं, वह बहुत से हैं। मैं उनको तेरे सामने तरतीब नहीं दे सकता; अगर मैं उनका ज़िक्र और बयान करना चाहूँ तो वह शुमार से बाहर हैं।6~क़ुर्बानी और नज़्र को तू पसंद नहीं करता, तूने मेरे कान खोल दिए हैं।सोख़्तनी क़ुर्बानी तूने तलब नहीं की।7तब मैंने कहा, "देख! मैं आया हूँ। किताब के तूमार में मेरे बारे लिखा है।8~ऐ मेरे ख़ुदा, मेरी ख़ुशी तेरी मर्ज़ी पूरी करने में है; बल्कि तेरी शरी'अत मेरे दिल में है।"9मैंने बड़े मजमे' में सदाक़त की बशारत दी है; देख! मैं अपना मुँह बंद नहीं करूँगा, ऐ ख़ुदावन्द! तू जानता है।10~मैंने तेरी सदाक़त अपने दिल में छिपा नहीं रखी; मैंने तेरी वफ़ादारी और नजात का इज़हार किया है; मैंने तेरी शफ़क़त और सच्चाई बड़े मजमा' से नहीं छिपाई।11~ऐ ख़ुदावन्द! तू मुझ पर रहम करने में दरेग़ न कर; तेरी शफ़क़त और सच्चाई बराबर मेरी हिफ़ाज़त करें!12~क्यूँकि बेशुमार बुराइयों ने मुझे घेर लिया है; मेरी बदी ने मुझे आ पकड़ा है, ऐसा कि मैं आँख नहीं उठा सकता; वह मेरे सिर के बालों से भी ज़्यादा हैं: इसलिए मेरा जी छूट गया।13ऐ ख़ुदावन्द! मेहरबानी करके मुझे छुड़ा। ऐ ख़ुदावन्द! मेरी मदद के लिए जल्दी कर ।14~जो मेरी जान को हलाक करने के दर पै हैं, वह सब शर्मिन्दा और ख़जिल हों; जो मेरे नुक्सान से ख़ुश हैं, वह पस्पा और रुस्वा हो।15जो मुझ पर अहा हा हा करते हैं, वह अपनी रुस्वाई की वजह से तबाह हो जाएँ।16~तेरे सब तालिब तुझ में ख़ुश-ओ-खुर्रम हों; तेरी नजात के 'आशिक हमेशा कहा करें ख़ुदावन्द की तम्जीद हो! ",17लेकिन मैं ग़रीब और मोहताज हूँ, ख़ुदावन्द मेरी फ़िक्र करता है। मेरा मददगार और छुड़ाने वाला तू ही है; ऐ मेरे ख़ुदा! देर न कर।
1मुबारक, है वह जो ग़रीब का ख़याल रखता है ख़ुदावन्द मुसीबत के दिन उसे छुड़ाएगा।2~ख़ुदावन्द उसे महफू़ज़ और ज़िन्दा रख्खेगा, और वह ज़मीन पर मुबारक होगा। तू उसे उसके दुश्मनों की मर्ज़ी पर न छोड़।3ख़ुदावन्द उसे बीमारी के बिस्तर पर संभालेगा; तू उसकी बीमारी में उसके पूरे बिस्तर को ठीक करता है।4~मैंने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर! मेरी जान को शिफ़ा दे, क्यूँकि मैं तेरा गुनहगार हूँ।"5~मेरे दुश्मन यह कहकर मेरी बुराई करते हैं, कि वह कब मरेगा और उसका नाम कब मिटेगा ?6जब वह मुझ से मिलने को आता है, तो झूटी बातें बकता है; उसका दिल अपने अन्दर बदी समेटता है; वह बाहर जाकर उसी का ज़िक्र करता है।7मुझ से 'अदावत रखने वाले सब मिलकर मेरी ग़ीबत करते हैं; वह मेरे ख़िलाफ़ मेरे नुक़सान के मन्सूबे बाँधते हैं।8~वह कहते हैं, "इसे तो बुरा रोग लग गया है; अब जो वह पड़ा है तो फिर उठने का नहीं।"9बल्कि मेरे दिली दोस्त ने जिस पर मुझे भरोसा था, और जो मेरी रोटी खाता था, मुझ पर लात उठाई है।10~लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द! मुझ पर रहम करके मुझे उठा खड़ा कर, ताकि मैं उनको बदला दूँ।11~इससे मैं जान गया कि तू मुझ से ख़ुश है, कि मेरा दुश्मन मुझ पर फ़तह नहीं पाता।12~मुझे तो तू ही मेरी रास्ती में क़याम बख्शता है और मुझे हमेशा अपने सामने क़ायम रखता है|,13ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक हो! आमीन, सुम्म आमीन।
1~जैसे हिरनी पानी के नालों को तरसती है, वैसे ही ऐ ख़ुदा! मेरी रूह तेरे लिए तरसती है।2मेरी रूह, ख़ुदा की, ज़िन्दा ख़ुदा की प्यासी है। मैं कब जाकर ख़ुदा के सामने हाज़िर हूँगा?3~मेरे आँसू दिन रात मेरी खू़राक हैं; जिस हाल कि वह मुझ से बराबर कहते हैं, तेरा ख़ुदा कहाँ है?4~इन बातों को याद करके मेरा दिल भरआता है, कि मैं किस तरह भीड़ या'नी 'ईद मनाने वाली जमा'अत के साथ, खु़शी और हम्द करता हुआ उनको ख़ुदा के घर में ले जाता था।5ऐ मेरी जान, तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि उसके नजात बख़्श दीदार की ख़ातिर मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा ।6~ऐ मेरे ख़ुदा! मेरी जान मेरे अंदर गिरी जाती है, इसलिए मैं तुझे यरदन की सरज़मीन से और हरमून और कोह-ए-मिस्फ़ार पर से याद करता हूँ।7~तेरे आबशारों की आवाज़ से गहराव गहराव को पुकारता है। तेरी सब मौजें और लहरें मुझ पर से गुज़र गई।8~तोभी दिन को ख़ुदावन्द अपनी शफ़क़त दिखाएगा; और रात को मैं उसका हम्द गाऊँगा, बल्कि अपनी ज़िन्दगी के ख़ुदा से दु'आ करूँगा ।9~मैं ख़ुदा से जो मेरी चट्टान है कहूँगा, "तू मुझे क्यूँ ~भूल गया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से, क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?"10~मेरे मुख़ालिफ़ों की मलामत, जैसे मेरी हड्डियों में तलवार है, क्यूँकि वह मुझ से बराबर कहते हैं, "तेरा ख़ुदा कहाँ है?"11~ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अंदर ही अंदर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा ।
1~ऐ ख़ुदा, मेरा इंसाफ़ कर और बेदीन क़ौम के मुक़ाबले में मेरी वकालत कर, और दग़ाबाज़ और बेइंसाफ़ आदमी से मुझे छुड़ा।2~क्यूँकि तू ही मेरी ताक़त का ख़ुदा है, तूने क्यूँ मुझे छोड़ दिया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?3अपने नूर, अपनी सच्चाई को भेज, वही मेरी रहबरी करें, वही मुझ को तेरे पाक पहाड़ और तेरे घर तक पहुँचाए।4तब मैं ख़ुदा के मज़बह के पास जाऊँगा, ख़ुदा के सामने जो मेरी कमाल ख़ुशी है; ऐ ख़ुदा! मेरे ख़ुदा! मैं सितार बजा कर तेरी सिताइश करूँगा ।5~ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक़ और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।
1~ऐ ख़ुदा, हम ने अपने कानों से सुना; हमारे बाप-दादा ने हम से बयान किया, कि तूने उनके दिनों में पिछले ज़माने में क्या क्या काम किए।2तूने क़ौमों को अपने हाथ से निकाल दिया, और उनको बसाया: तूने उम्मतों को तबाह किया, और इनको चारों तरफ़ फैलाया;3क्यूँकि न तो यह अपनी तलवार से इस मुल्क पर क़ाबिज़ हुए, और न इनकी ताक़त ने इनको बचाया; बल्कि तेरे दहने हाथ और तेरी ताक़त और तेरे चेहरे के नूर ने इनको फ़तह बख़्शी क्यूँकि तू इनसे ख़ुश था|4~ऐ ख़ुदा! तू मेरा बादशाह है; या'कू़ब के हक़ में नजात का हुक्म सादिर फ़रमा।5~तेरी बदौलत हम अपने मुख़ालिफ़ों को गिरा देंगे; तेरे नाम से हम अपने ख़िलाफ़ उठने वालों को पस्त करेंगे।6~क्यूँकि न तो मैं अपनी कमान पर भरोसा करूँगा, और न मेरी तलवार मुझे बचाएगी।7~लेकिन तूने हम को हमारे मुख़ालिफ़ों से बचाया है, और हम से 'अदावत रखने वालों को शर्मिन्दा किया।8~हम दिन भर ख़ुदा पर फ़ख़्र करते रहे हैं, और हमेशा हम तेरे ही नाम का शुक्रिया अदा करते रहेंगे। (9लेकिन तूने तो अब हम को छोड़ ~दिया और हम को रुस्वा किया, और हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता।10~तू हम को मुख़ालिफ़ के आगे पस्पा करता है, और हम से 'अदावत रखने वाले लूट मार करते हैं11~तूने हम को ज़बह होने वाली भेड़ों की तरह कर दिया, और क़ौमों के बीच हम को तितर बितर किया।12तू अपने लोगों को मुफ़्त बेच डालता है, और उनकी क़ीमत से तेरी दौलत नहीं बढ़ती।13~तू हम को हमारे पड़ोसियों की मलामत का निशाना, और हमारे आसपास के लोगों के तमसखु़र और मज़ाक़ का जरिया' बनाता है।14तू हम को क़ौमों के बीच एक मिसाल, और उम्मतों में सिर हिलाने की वजह ठहराता है।15मेरी रुस्वाई दिन भर मेरे सामने रहती है, और मेरे मुँह पर शर्मिन्दी छा गई।16मलामत करने वाले और कुफ़्र बकने वाले की बातों की वजह से, और मुख़ालिफ़ और इन्तक़ाम लेने वाले की वजह।17~यह सब कुछ हम पर बीता तोभी हम तुझ को नहीं भूले, न तेरे 'अहद से बेवफ़ाई की;18~न हमारे दिल नाफ़रमान हुए, न हमारे क़दम तेरी राह से मुड़े;19~जो तूने हम को गीदड़ों की जगह में खू़ब कुचला, और मौत के साये में हम को छिपाया।20~अगर हम अपने ख़ुदा के नाम को भूले, या हम ने किसी अजनबी मा'बूद के आगे अपने हाथ फैलाए हों:21~तो क्या ख़ुदा इसे दरियाफ़्त न कर लेगा? क्यूँकि वह दिलों के राज़ जानता है।22~बल्कि हम तो दिन भर तेरी ही ख़ातिर जान से मारे जाते हैं, और जैसे ज़बह होने वाली भेड़ें समझे जाते हैं।23~ऐ ख़ुदावन्द, जाग! तू क्यूँ सोता है? उठ! हमेशा के लिए हम को न छोड़ ~।24~तू अपना मुँह क्यूँ छिपाता है, और हमारी मुसीबत और मज़लूमी को भूलता है?25~क्यूँकि हमारी जान ख़ाक में मिल गई, हमारा जिस्म मिट्टी हो गया।26~हमारी मदद के लिए उठ और अपनी शफ़क़त की ख़ातिर, हमारा फ़िदिया दे।
1~मेरे दिल में एक नफ़ीस मज़मून जोश मार रहा है, मैं वही मज़ामीन सुनाऊँगा जो मैंने बादशाह के हक़ में लिखे हैं, मेरी ज़बान माहिर लिखने वाले का क़लम है।2~तू बनी आदम में सबसे हसीन है; तेरे होंटों में लताफ़त भरी है; इसलिए ख़ुदा ने तुझे हमेशा के लिए मुबारक किया।3ऐ ज़बरदस्त! तू अपनी तलवार को जो तेरी हशमत-ओ-शौकत है, अपनी कमर से लटका ले ।4और सच्चाई और हिल्म और सदाक़त की ख़ातिर, अपनी शान-ओ-शौकत में इक़बालमंदी से सवार हो; और तेरा दहना हाथ तुझे अजीब काम दिखाएगा।5~तेरे तीर तेज़ हैं, वह बादशाह के दुश्मनों के दिल में लगे हैं, उम्मतें तेरे सामने पस्त होती हैं।6~ऐ ख़ुदा, तेरा तख़्त हमेशा से हमेशा तक है; तेरी सल्तनत का 'असा रास्ती का 'असा है।7~तूने सदाक़त से मुहब्बत रखी और बदकारी से नफ़रत, इसीलिए ख़ुदा, तेरे ख़ुदा ने ख़ुशी के तेल से, तुझ को तेरे हमसरों से ज़्यादा मसह किया है।8~तेरे हर लिबास से मुर और 'ऊद और तंज की खु़शबू आती है, हाथी दाँत के महलों में से तारदार साज़ों ने तुझे ख़ुश किया है।9तेरी ख़ास ख़्वातीन में शाहज़ादियाँ हैं; मलिका तेरे दहने हाथ, ओफ़ीर के सोने से सजी खड़ी है।10~ऐ बेटी, सुन! ग़ौर कर और कान लगा; अपनी क़ौम और अपने बाप के घर को भूल जा;11और बादशाह तेरे हुस्न का मुश्ताक़ होगा। क्यूँकि वह तेरा ख़ुदावन्द है, तू उसे सिज्दा कर!12~और सूर की बेटी हदिया लेकर हाज़िर होगी, क़ौम के दौलतमंद तेरी ख़ुशी की तलाश करेंगे।13~बादशाह की बेटी महल में सरापा हुस्न अफ़रोज़ है, उसका लिबास ज़रबफ़्त का है;14~वह बेल बूटे दार लिबास में बादशाह के सामने पहुँचाई जाएगी। उसकी कुंवारी सहेलियाँ जो उसके पीछे-पीछे चलती हैं, तेरे सामने हाज़िर की जाएँगी।15~वह उनको ख़ुशी और ख़ुर्रमी से ले आएँगे, वह बादशाह के महल में दाख़िल होंगी।16तेरे बेटे तेरे बाप दादा के जाँ नशीन होंगे; जिनको तू पूरी ज़मीन पर सरदार मुक़र्रर करेगा।17~मैं तेरे नाम की याद को नसल दर नसल क़ायम रखूँगा इसलिए उम्मतें हमेशा से हमेशा तक तेरी ; शुक्रगुज़ारी करेंगी।
1ख़ुदावन्द हमारी पनाह और ताक़त है; मुसीबत में मुस्त'इद मददगार।2इसलिए हम को कुछ ख़ौफ़ नहीं चाहे ज़मीन उलट जाए, और पहाड़ समुन्दर की तह में डाल दिए जाए3~चाहे उसका पानी शोर मचाए और तूफ़ानी हो, और पहाड़ उसकी लहरों से हिल जाएँ।(सिलह)4~एक ऐसा दरिया है जिसकी शाख़ो से ख़ुदा के शहर को या'नी हक़ ता'ला के पाक घर को फ़रहत होती है।5~ख़ुदा उसमें है, उसे कभी जुम्बिश न होगी; ख़ुदा सुबह सवेरे उसकी मदद करेगा।6~क़ौमे झुंझलाई, सल्तनतों ने जुम्बिश खाई; वह बोल उठा, ज़मीन पिघल गई।7~लश्करों का ख़ुदावन्द हमारे साथ है; या'कूब का ख़ुदा हमारी पनाह है (सिलाह)।8आओ, ख़ुदावन्द के कामों को देखो, कि उसने ज़मीन पर क्या क्या वीरानियाँ की हैं।9वह ज़मीन की इन्तिहा तक जंग बंद कराता है; वह कमान को तोड़ता, और नेज़े के टुकड़े कर डालता है। वह रथों को आग से जला देता है।10~'ख़ामोश हो जाओ, और जान लो कि मैं ख़ुदा हूँ। मैं क़ौमों के बीच सरबुलंद हूँगा।मैं सारी ज़मीन पर सरबुलंद हूँगा।"11~लश्करों का ख़ुदावन्द हमारे साथ है; या'क़ूब का ख़ुदा हमारी पनाह है।(सिलाह)
1ऐ सब उम्मतों, तालियाँ बजाओ! ख़ुदा के लिए ख़ुशी की आवाज़ से ललकारो!2~क्यूँकि ख़ुदावन्द ता'ला बड़ा है, वह पूरी ज़मीन का शहंशाह है।3~वह उम्मतों को हमारे सामने पस्त करेगा, और क़ौमें हमारे क़दमों तले हो जायेंगी|4~वह हमारे लिए हमारी मीरास को चुनेगा, जो उसके महबूब या'कू़ब की हश्मत है।(सिलाह)5~ख़ुदा ने बुलन्द आवाज़ के साथ, ख़ुदावन्द ने नरसिंगे की आवाज़ के साथ सु'ऊद फ़रमाया।6मदहसराई करो, ख़ुदा की मदहसराई करो! मदहसराई करो, हमारे बादशाह की मदहसराई करो!7क्यूँकि ख़ुदा सारी ज़मीन का बादशाह है; 'अक़्ल से मदहसराई करो।8~ख़ुदा क़ौमों पर सल्तनत करता है; ख़ुदा अपने पाक तख़्त पर बैठा है।9~उम्मतों के सरदार इकट्ठे हुए हैं, ताकि इब्राहीम के ख़ुदा की उम्मत बन जाएँ; क्यूँकि ज़मीन की ढालें ख़ुदा की हैं, वह बहुत बुलन्द है।
1हमारे ख़ुदा के शहर में, अपने पाक पहाड़ पर ख़ुदावन्द बुज़ु़र्ग़ और बेहद सिताइश के लायक़ है!2उत्तर की जानिब कोह-ए-सिय्यून, जो बड़े बादशाह का शहर है, वह बुलन्दी में खु़शनुमा और तमाम ज़मीन का फ़ख़्र है।3~उसके महलों में ख़ुदा पनाह माना जाता है।4क्यूँकि देखो, बादशाह इकट्ठे हुए,| वह मिलकर गुज़रे।5वह देखकर दंग हो गए, वह घबराकर भागे।6वहाँ कपकपी ने उनको आ दबाया, और ऐसे दर्द ने जैसा पैदाइश का दर्द।7तू पूरबी हवा से तरसीस के जहाज़ों को तोड़ डालता है।8लश्करों के ख़ुदावन्द के शहर में, या'नी अपने ख़ुदा के शहर में, जैसा हम ने सुना था वैसा ही हम ने देखा: ख़ुदा उसे हमेशा बरक़रार रखेगा।9~ऐ ख़ुदा, तेरी हैकल के अन्दर हम ने तेरी शफ़क़त पर ग़ौर किया है10~ऐ ख़ुदा, जैसा तेरा नाम है वैसी ही तेरी सिताइश ज़मीन की इन्तिहा तक है। तेरा दहना हाथ सदाक़त से मा'मूर है।11~तेरे अहकाम की वजह से: कोह-ए-सिय्यून शादमान हो यहूदाह की बेटियाँ ख़ुशी मनाए ~,12सिय्यून के गिर्द फिरो और उसका तवाफ़ करो उसके बुर्जों को गिनों,13~उसकी शहर पनाह को खू़ब देख लो, उसके महलों पर ग़ौर करो; ताकि तुम आने वाली नसल को उसकी ख़बर दे सको।14~क्यूँकि यही ख़ुदा हमेशा से हमेशा तक हमारा ख़ुदा है; यही मौत तक हमारा रहनुमा रहेगा।
1~ऐ सब उम्मतो, यह सुनो। ऐ जहान के सब बाशिन्दो, कान लगाओ!2क्या अदना क्या आ'ला, क्या अमीर क्या फ़कीर।3मेरे मुँह से हिकमत की बातें निकलेंगी, और मेरे दिल का ख़याल पुर ख़िरद होगा।4मैं तम्सील की तरफ़ कान लगाऊँगा, मैं अपना राज़ सितार पर बयान करूँगा ।5~मैं मुसीबत के दिनों में क्यूँ डरूं, जब मेरा पीछा करने ~करने वाली बदी मुझे घेरे हो?6जो अपनी दौलत पर भरोसा रखते, और अपने माल की कसरत पर फ़ख़्र करते हैं;7~उनमें से कोई किसी तरह अपने भाई का फ़िदिया नहीं दे सकता, न ख़ुदा को उसका मु'आवज़ा दे सकता है |8~(क्यूँकि उनकी जान का फ़िदिया बेश क़ीमत है; वह हमेशा तक अदा न होगा।)9~ताकि वह हमेशा तक ज़िन्दा रहे और क़ब्र को न देखे।10~क्यूँकि वह देखता है, कि दानिशमंद मर जाते हैं, बेवकू़फ़ व हैवान ख़सलत एक साथ हलाक होते हैं, और अपनी दौलत औरों के लिए छोड़ जाते हैं।11~उनका दिली ख़याल यह है कि उनके घर हमेशा तक, और उनके घर नसल दर नसल बने रहेंगे; वह अपनी ज़मीन अपने ही नाम नामज़द करते हैं।12~पर इंसान इज़्ज़त की हालत में क़ायम नहीं रहता वह जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो, जाते हैं।13उनकी यह चाल उनकी बेवक़ूफ़ी है, तोभी उनके बा'द लोग उनकी बातों को पसंद करते हैं। (सिलाह)14~वह जैसे पाताल का रेवड़ ठहराए गए हैं; मौत उनकी पासबान होगी; दियानतदार सुबह को उन पर मुसल्लत होगा, और उनका हुस्न पाताल का लुक़्मा होकर बेठिकाना होगा।15~लेकिन ख़ुदा मेरी जान को पाताल के इख़्तियार से छुड़ा लेगा, क्यूँकि वही मुझे कु़बूल करेगा। (सिलाह)16जब कोई मालदार हो जाए जब उसके घर की हश्मत बढ़े, तो तू ख़ौफ़ न कर।17क्यूँकि वह मरकर कुछ साथ न ले जाएगा; उसकी हश्मत उसके साथ न जाएगी।18~चाहे जीते जी वह अपनी जान को मुबारक कहता रहा हो (और जब तू अपना भला करता है तो लोग तेरी तारीफ़ करते हैं)19तोभी वह अपने बाप दादा की गिरोह से जा मिलेगा, वह रोशनी को हरगिज़ न देखेंगे।20आदमी जो 'इज़्ज़त की हालत में रहता है, लेकिन 'अक़्ल नहीं रखता जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो जाते हैं।
1~रब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कलाम किया, और पूरब से पश्चिम तक दुनिया को बुलाया।2~सिय्यून से जो हुस्न का कमाल है, ख़ुदा जलवागर हुआ है।3हमारा ख़ुदा आएगा और ख़ामोश नहीं रहेगा; आग उसके आगे आगे भसम करती जाएगी,4अपनी उम्मत की 'अदालत करने के लिए वह आसमान-ओ-ज़मीन को तलब करेगा,5~कि मेरे पाक लोगों को मेरे सामने जमा' करो, जिन्होंने कु़र्बानी के ज़रिये' से मेरे साथ 'अहद बाँधा है।6~और आसमान उसकी सदाक़त बयान करेंगे, क्यूँकि ख़ुदा आप ही इंसाफ़ करने वाला है|7"ऐ मेरी उम्मत, सुन, मैं कलाम करूँगा, और ऐ इस्राईल, मैं तुझ पर गवाही दूँगा। ख़ुदा, तेरा ख़ुदा मैं ही हूँ।8~मैं तुझे तेरी कु़र्बानियों की वजह से मलामत नहीं करूँगा, और तेरी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ बराबर मेरे सामने रहती हैं;9~न मैं तेरे घर से बैल लूँगा न तेरे बाड़े से बकरे।10~क्यूँकि जंगल का एक एक जानवर, और हज़ारों पहाड़ों के चौपाये मेरे ही हैं।11~मैं पहाड़ों के सब परिन्दों को जानता हूँ, और मैदान के दरिन्दे मेरे ही हैं।12"अगर मैं भूका होता तो तुझ से न कहता, क्यूँकि दुनिया और उसकी मा'मूरी मेरी ही है।13~क्या मैं साँडों का गोश्त खाऊँगा, या बकरों का खू़न पियूँगा?14ख़ुदा के लिए शुक्रगुज़ारी की कु़र्बानी पेश करें, और हक़ता'ला के लिए अपनी मन्नतें पूरी कर;|15और मुसीबत के दिन मुझ से फ़रियाद कर मैं तुझे छुड़ाऊँगा और तू मेरी तम्जीद करेगा।"16~लेकिन ख़ुदा शरीर से कहता है, "तुझे मेरे क़ानून बयान करने से क्या वास्ता? और तू मेरे 'अहद को अपनी ज़बान पर क्यूँ लाता है?17~जबकि तुझे तर्बियत से 'अदावत है, और मेरी बातों को पीठ पीछे फेंक देता है।18तू चोर को देखकर उससे मिल गया, और ज़ानियों का शरीक रहा है।19~"तेरे मुँह से बदी निकलती है, और तेरी ज़बान फ़रेब गढ़ती है।20~तू बैठा बैठा अपने भाई की ग़ीबत करता है; और अपनी ही माँ के बेटे पर तोहमत लगाता है।21~तूने यह काम किए और मैं ख़ामोश रहा; तूने गुमान किया, कि मैं बिल्कुल तुझ ही सा हूँ। लेकिन मैं तुझे मलामत करके इनको तेरी आँखों के सामने तरतीब दूँगा।22~"अब ऐ ख़ुदा को भूलने वालो, इसे सोच लो, ऐसा न हो कि मैं तुम को फाड़ डालूँ, और कोई छुड़ाने वाला न हो।23जो शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानी पेश करता है वह मेरी तम्जीद करता है; और जो अपना चालचलन दुरुस्त रखता है, उसको मैं ख़ुदा की नजात दिखाऊँगा।"
1~ऐ ख़ुदा! अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मुझ पर रहम कर; अपनी रहमत की कसरत के मुताबिक़ मेरी ख़ताएँ मिटा दे।2~मेरी बदी को मुझ से धो डाल, और मेरे गुनाह से मुझे पाक कर!3~क्यूँकि मैं अपनी ख़ताओं को मानता हूँ, और मेरा गुनाह हमेशा मेरे सामने है।4मैंने सिर्फ़ तेरा ही गुनाह किया है, और वह काम किया है जो तेरी नज़र में बुरा है; ताकि तू अपनी बातों में रास्त ठहरे, और अपनी 'अदालत में बे'ऐब रहे।5देख, मैंने बदी में सूरत पकड़ी, और मैं गुनाह की हालत में माँ के पेट में पड़ा।6~देख, तू बातिन की सच्चाई पसंद करता है, और बातिन ही में मुझे दानाई सिखाएगा।7जूफ़े से मुझे साफ़ कर, तो मैं पाक हूँगा; मुझे धो, और मैं बर्फ़ से ज़्यादा सफ़ेद हूँगा।8~मुझे ख़ुशी और ख़ुर्रमी की ख़बर सुना, ताकि वह हड्डियाँ जो तूने तोड़ डाली, हैं, ख़ुश हों।9~मेरे गुनाहों की तरफ़ से अपना मुँह फेर ले, और मेरी सब बदकारी मिटा डाल।10~ऐ ख़ुदा! मेरे अन्दर पाक दिल पैदा कर, और मेरे बातिन में शुरू' से सच्ची रूह डाल।11मुझे अपने सामने से ख़ारिज न कर, और अपनी पाक रूह को मुझ से जुदा न कर।12~अपनी नजात की शादमानी मुझे फिर'इनायत कर, और मुस्त'इद रूह से मुझे संभाल।13~तब मैं ख़ताकारों को तेरी राहें सिखाऊँगा, और गुनहगार तेरी तरफ़ रुजू' करेंगे।14ऐ ख़ुदा! ऐ मेरे नजात बख़्श ख़ुदा, मुझे खू़न के जुर्म से छुड़ा, तो मेरी ज़बान तेरी सदाक़त का हम्द गाएगी।15~ऐ ख़ुदावन्द! मेरे होंटों को खोल दे, तो मेरे मुँह से तेरी सिताइश निकलेगी।16~क्यूँकि कु़र्बानी में तेरी ख़ुशी नहीं, वरना मैं देता; सोख़्तनी कु़र्बानी से तुझे कुछ ख़ुशी नहीं।17~शिकस्ता रूह ख़ुदा की कु़र्बानी है; ऐ ख़ुदा! तू शिकस्ता और ख़स्तादिल को हक़ीर न जानेगा।18अपने करम से सिय्यून के साथ भलाई कर, यरूशलीम की फ़सील को तामीर कर,19~तब तू सदाक़त की कु़र्बानियों और सोख़्तनी कु़र्बानी और पूरी सोख़्तनी कु़र्बानी से खु़श होगा; और वह तेरे मज़बह पर बछड़े चढ़ाएँगे।
1~ऐ ज़बरदस्त, तू शरारत पर क्यूँ फ़ख़्र करता है? ख़ुदा की शफ़क़त हमेशा की है।2~तेरी ज़बान महज़ शरारत ईजाद करती है; ऐ दग़ाबाज़, वह तेज़ उस्तरे की तरह है।3~तू बदी को नेकी से ज़्यादा पसंद करता है, और झूट को सदाक़त की बात से।4ऐ दग़ाबाज ज़बान! तू मुहलिक बातों को पसंद करती है।5~ख़ुदा भी तुझे हमेशा के लिए हलाक कर डालेगा; वह तुझे पकड़ कर तेरे ख़ेमे से निकाल फेंकेगा, और ज़िन्दों की ज़मीन से तुझे उखाड़ डालेगा। (सिलाह)6~सादिक़ भी इस बात को देख कर डर जाएँगे, और उस पर हँसेंगे,7~कि देखो, यह वही आदमी है जिसने ख़ुदा को अपनी पनाहगाह न बनाया, बल्कि अपने माल की ज़यादती पर भरोसा किया, और शरारत में पक्का हो गया।8~लेकिन मैं तो ख़ुदा के घर में जैतून के हरे दरख़्त की तरह हूँ। मेरा भरोसा हमेशा से हमेशा तक ख़ुदा की शफ़क़त पर है।9~मैं हमेशा तेरी शुक्रगुज़ारी करता रहूँगा, क्यूँकि तू ही ने यह किया है; और मुझे तेरे ही नाम की आस होगी, क्यूँकि वह तेरे पाक लोगों के नज़दीक खू़ब है।
1बेवकू़फ़ ने अपने दिल में कहा है, कि कोई ख़ुदा नहीं।वह बिगड़ गये उन्होंने नफ़रत अंगेज़ बदी की है। कोई नेकोकार नहीं।2ख़ुदा ने आसमान पर से बनी आदम पर निगाह की ताकि देखे कि कोई दानिशमंद, कोई ख़ुदा का तालिब है या नहीं।3~वह सब के सब फिर गए हैं, वह एक साथ नापाक हो गए; कोई नेकोकार नहीं, एक भी नहीं।4~क्या उन सब बदकिरदारों को कुछ 'इल्म नहीं, जो मेरे लोगों को ऐसे खाते हैं जैसे रोटी, और ख़ुदा का नाम नहीं लेते?5~वहाँ उन पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया जबकि ख़ौफ़ की कोई बात न थी। क्यूँकि ख़ुदा ने उनकी हड्डियाँ जो तेरे ख़िलाफ़ खै़माज़न थे, बिखेर दीं। तूने उनको शर्मिन्दा कर दिया, इसलिए कि ख़ुदा ने उनको रद्द कर ~दिया है।6काश कि इस्राईल की नजात सिय्यून में से होती! जब ख़ुदा अपने लोगों को ग़ुलामी से लौटा लाएगा; तो या'कू़ब ख़ुश और इस्राईल शादमान होगा।
1~ऐ ख़ुदा! अपने नाम के वसीले से मुझे बचा, और अपनी कु़दरत से मेरा इंसाफ़ कर।2~ऐ ख़ुदा मेरी दु'आ सुन ले; मेरे मुँह की बातों पर कान लगा।3~क्यूँकि बेगाने मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं, और टेढ़े लोग मेरी जान के तलबगार हुए हैं; उन्होंने ख़ुदा को अपने सामने नहीं रख्खा|4~देखो, ख़ुदा मेरा मददगार है! ख़ुदावन्द मेरी जान को संभालने वालों में है।5वह बुराई को मेरे दुश्मनों ही पर लौटा देगा; तू अपनी सच्चाई की रूह से उनको फ़ना कर!6~मैं तेरे सामने रज़ा की कु़र्बानी चढ़ाऊँगा; ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरे नाम की शुक्रगु़ज़ारी करूँगा क्यूँकि वह खू़ब है।7~क्यूँकि उसने मुझे सब मुसीबतों से छुड़ाया है, और मेरी आँख ने मेरे दुश्मनों को देख लिया है।
1ऐ खु़दा! मेरी दु'आ पर कान लगा; और मेरी मिन्नत से मुँह न फेर।2मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो और मुझे जवाब दे; मैं ग़म से बेक़रार होकर कराहता हूँ।3~दुश्मन की आवाज़ से, और शरीर के जु़ल्म की वजह; क्यूँकि वह मुझ पर बदी लादते, और क़हर में मुझे सताते हैं।4~मेरा दिल मुझ में बेताब है; और मौत का हौल मुझ पर छा गया है।5~ख़ौफ़ और कपकपी मुझ पर तारी है, डर ने मुझे दबा लिया है;6~और मैंने कहा, "काश कि कबूतर की तरह मेरे पर होते तो मैं उड़ जाता और आराम पाता!7~फिर तो मैं दूर निकल जाता, और वीरान में बसेरा करता। (सिलाह)8~मैं आँधी के झोंके और तूफ़ान से, किसी पनाह की जगह में भाग जाता।"9~ऐ ख़ुदावन्द! उनको हलाक कर, और उनकी ज़बान में तफ़रिक़ा डाल; क्यूँकि मैंने शहर में जु़ल्म और झगड़ा देखा है।10~दिन रात वह उसकी फ़सील पर गश्त लगाते हैं; बदी और फ़साद उसके अंदर हैं।11~शरारत उसके बीच में बसी हुई है; सितम और फ़रेब उसके कूचों से दूर नहीं होते।12~जिसने मुझे मलामत की वह दुश्मन न था, वरना मैं उसको बर्दाश्त कर लेता; और जिसने मेरे ख़िलाफ़ तकब्बुर किया वह मुझ से 'अदावत रखने वाला न था, नहीं तो मैं उससे छिप जाता।13~बल्कि वह तो तू ही था जो मेरा हमसर, मेरा रफ़ीक और दिली दोस्त था।14~हमारी आपसी गुफ़्तगू शीरीन थी; और हुजूम के साथ ख़ुदा के घर में फिरते थे।15~उनकी मौत अचानक आ दबाए; वह जीते जी पाताल में उतर जाएँ: क्यूँकि शरारत उनके घरों में और उनके अन्दर है।16~लेकिन मैं तो ख़ुदा को पुकारूँगा; और ख़ुदावन्द मुझे बचा लेगा।17सुबह -ओ-शाम और दोपहर को मैं फ़रियाद करूँगा और कराहता रहूँगा, और वह मेरी आवाज़ सुन लेगा।18उसने उस लड़ाई से जो मेरे ख़िलाफ़ थी, मेरी जान को सलामत छुड़ा लिया।क्यूँकि मुझसे झगड़ा करने वाले बहुत थे |19~ख़ुदा जो क़दीम से है, सुन लेगा और उनको जवाब देगा। यह वह हैं जिनके लिए इन्क़लाब नहीं, और जो ख़ुदा से नहीं डरते।20~उस शख़्स ने ऐसों पर हाथ बढ़ाया है, जो उससे सुल्ह रखते थे।उसने अपने 'अहद को तोड़ दिया है।21~उसका मुँह मख्खन की तरह चिकना था, लेकिन उसके दिल में जंग थी।उसकी बातें तेल से ज़्यादा मुलायम, लेकिन नंगी तलवारें थीं।22~अपना बोझ ख़ुदावन्द पर डाल दे, वह तुझे संभालेगा। वह सादिक़ को कभी जुम्बिश न खाने देगा।23~लेकिन ऐ ख़ुदा! तू उनको हलाकत के गढ़े में उतारेगा। खू़नी और दग़ाबाज़ अपनी आधी 'उम्र तक भी ज़िन्दा न रहेंगे।लेकिन मैं तुझ पर भरोसा करूँगा।
1~ऐ ख़ुदा! मुझ पर रहम फ़रमा, क्यूँकि इंसान मुझे निगलना चाहता है; वह दिन भर लड़कर मुझे सताता है।2मेरे दुश्मन दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं, क्यूँकि जो गु़रूर करके मुझ से लड़ते हैं, वह बहुत हैं।3~जिस वक़्त मुझे डर लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा करूँगा।4~मेरा फ़ख़्र ख़ुदा पर और उसके कलाम पर है। मेरा भरोसा ख़ुदा पर है, मैं डरने का नहीं: बशर मेरा क्या कर सकता है?5वह दिन भर मेरी बातों को मरोड़ते रहते हैं; उनके ख़याल सरासर यही हैं, कि मुझ से बदी करें।6~वह इकठ्ठे होकर छिप जाते हैं; वह मेरे नक्श-ए-क़दम को देखते भालते हैं, क्यूँकि वह मेरी जान की घात में हैं।7~क्या वह बदकारी करके बच जाएँगे? ऐ ख़ुदा, क़हर में उम्मतों को गिरा दे!8तू मेरी आवारगी का हिसाब रखता है; मेरे आँसुओं को अपने मश्कीज़े में रख ले। क्या वह तेरी किताब में लिखे नहीं हैं?9तब तो जिस दिन मैं फ़रियाद करूँगा, मेरे दुश्मन पस्पा होंगे। मुझे यह मा'लूम है कि ख़ुदा मेरी तरफ़ है।10मेरा फ़ख़्र ख़ुदा पर और उसके कलाम पर है; मेरा~फ़ख़्र~ ख़ुदावन्द पर और उसके कलाम पर है।11~मेरा भरोसा ख़ुदा पर है, मैं डरने का नहीं। इंसान मेरा क्या कर सकता है?12~ऐ ख़ुदा! तेरी मन्नतें मुझ पर हैं; मैं तेरे हुजू़र शुक्रगुज़ारी की कु़र्बानियाँ पेश करूँगा।13~क्यूँकि तूने मेरी जान को मौत से छुड़ाया; क्या तूने मेरे पाँव को फिसलने से नहीं बचाया, ताकि मैं ख़ुदा के सामने ज़िन्दों के नूर में चलूँ ?
1~मुझ पर रहम कर, ऐ ख़ुदा! मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मेरी जान तेरी पनाह लेती है।मैं तेरे परों के साये में पनाह लूँगा, जब तक यह आफ़तें गुज़र न जाएँ।2~मैं ख़ुदा ता'ला से फ़रियाद करूँगा; ख़ुदा से, जो मेरे लिए सब कुछ करता है।3~वह मेरी नजात के लिए आसमान से भेजेगा; जब वह जो मुझे निगलना चाहता है, मलामत करता हो।(सिलाह) ख़ुदा अपनी शफ़क़त और सच्चाई को भेजेगा।4मेरी जान बबरों के बीच है, मैं आतिश मिज़ाज लोगों में पड़ा हूँ या'नी ऐसे लोगों में जिनके दाँत बर्छियाँऔर तीर हैं, जिनकी ज़बान तेज़ तलवार है।5~ऐ ख़ुदा! तू आसमान पर सरफ़राज़ हो, तेरा जलाल सारी ज़मीन पर हो!6उन्होंने मेरे पाँव के लिए जाल लगाया है; मेरी जान 'आजिज़ आ गई। उन्होंने मेरे आगे गढ़ा खोदा, वह ख़ुद उसमें गिर पड़े। (सिलाह)7~मेरा दिल क़ायम है, ऐ ख़ुदा! मेरा दिल क़ायम है; मैं गाऊँगा बल्कि मैं मदह सराई करूँगा।8~ऐ मेरी शौकत, बेदार हो! ऐ बर्बत और सितार जागो! मैं ख़ुद सुबह सवेरे जाग उठूँगा।9~ऐ ख़ुदावन्द! मैं लोगों में तेरा शुक्र करूँगा । मैं उम्मतों में तेरी मदहसराई करूँगा।10~क्यूँकि तेरी शफ़क़त आसमान के, और तेरी सच्चाई अफ़लाक के बराबर बुलन्द है।11~ऐ ख़ुदा! तू आसमान पर सरफ़राज़ हो! तेरा जलाल सारी ज़मीन पर हो!
1~ऐ बुज़ुर्गों! क्या तुम दर हक़ीक़त रास्तगोई करते हो? ऐ बनी आदम! क्या तुम ठीक 'अदालत करते हो?2~बल्कि तुम तो दिल ही दिल में शरारत करते हो; और ज़मीन पर अपने हाथों से जु़ल्म पैमाई करते हैं।3~शरीर पैदाइश ही से कजरवी इख़्तियार करते हैं; वह पैदा होते ही झूट बोलकर गुमराह हो जाते हैं।4~उनका ज़हर साँप का सा ज़हर है; वह बहरे अज़दहे की तरह हैं जो कान बंद कर लेता है;5जो मन्तर पढ़ने वालों की आवाज़ ही नहीं सुनता, जो चाहे वह कितनी ही होशियारी से मन्तर पढ़ें।6~ऐ ख़ुदा! तू उनके दाँत उनके मुँह में तोड़ दे, ऐ ख़ुदावन्द! बबर के बच्चों की दाढ़ें तोड़ डाल।7~वह घुलकर बहते पानी की तरह हो जाएँ जब वह अपने तीर चलाए, तो वह जैसे कुन्द पैकान हों।8~वह ऐसे हो जाएँ जैसे घोंघा, जो गल कर फ़ना हो जाता है; और जैसे 'औरत का इस्कात जिसने सूरज को देखा ही नहीं।9~इससे पहले कि तुम्हारी हड्डियों को काँटों की आंच लगे ~वह हरे और जलते दोनों को यकसाँ बगोले से उड़ा ले जाएगा।10~सादिक़ इन्तक़ाम को देखकर खु़श होगा; वह शरीर के खू़न से अपने पाँव तर करेगा।11~तब लोग कहेंगे, यक़ीनन सादिक़ के लिए अज्र है; बेशक ख़ुदा है, जो ज़मीन पर 'अदालत करता है।
1~ऐ मेरे खु़दा मुझे मेरे दुश्मनों से छुड़ा मेरे ख़िलाफ़ उठने वालों पर सरफ़राज़ कर ~ ।2मुझे बदकिरदारों से छुड़ा, और खूंख़्वार आदमियों से मुझे बचा।3~क्यूँकि देख, वह मेरी जान की घात में हैं। ऐ ख़ुदावन्द! मेरी ख़ता या मेरे गुनाह के बगै़र ज़बरदस्त लोग मेरे ख़िलाफ़ इकठ्ठे होते हैं।4वह मुझ बेक़सूर पर दौड़ दौड़कर तैयार होते हैं; मेरी मदद के लिए जाग और देख!5~ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा! इस्राईल के ख़ुदा! सब कौमों के मुहासिबे के लिए उठ; किसी दग़ाबाज़ ख़ताकार पर रहम न कर। (सिलाह)6वह शाम को लौटते और कुत्ते की तरह भौंकते हैं और शहर के गिर्द फिरते हैं।7~देख! वह अपने मुँह से डकारते हैं, उनके लबों के अन्दर तलवारें हैं; क्यूँकि वह कहते हैं, "कौन सुनता है?"8~लेकिन ऐ ख़ुदावन्द! तू उन पर हँसेगा; तू तमाम क़ौमों को ठट्ठों में उड़ाएगा।9~ऐ मेरी कु़व्वत, मुझे तेरी ही आस होगी, क्यूँकि ख़ुदा मेरा ऊँचा बुर्ज है।10~मेरा ख़ुदा अपनी शफ़क़त से मेरा अगुवा होगा, ख़ुदा मुझे मेरे दुश्मनों की पस्ती दिखाएगा।11उनको क़त्ल न कर, ऐसा न हो मेरे लोग भूल जाएँ ऐ ख़ुदावन्द, ऐ हमारी ढाल! , अपनी कु़दरत से उनको तितर बितर करके पस्त कर दे।12वह अपने मुँह के गुनाह, और अपने होंटों की बातों और अपनी लान तान और ~झूट बोलने के वजह से, अपने गु़रूर में पकड़े जाएँ।13~क़हर में उनको फ़ना कर दे, फ़ना कर दे ताकि वह बर्बाद हो जाएँ, और वह ज़मीन की इन्तिहा तक जान लें, कि ख़ुदा या'कू़ब पर हुक्मरान है।14फिर शाम को वह लौटें और कुत्ते की तरह भौंकें और शहर के गिर्द फिरें।15~वह खाने की तलाश में मारे मारे फिरें, और अगर आसूदा न हों तो सारी रात ठहरे रहे।16लेकिन मैं तेरी कु़दरत का हम्द गाऊँगा, बल्कि सुबह को बुलन्द आवाज़ से तेरी शफ़क़त का हम्द गाऊँगा। क्यूँकि तू मेरा ऊँचा बुर्ज है, और मेरी मुसीबत के दिन मेरी पनाहगाह।17ऐ मेरी ताक़त, मै तेरी मदहसराई करूँगा ; क्यूँकि ख़ुदा मेरा शफ़ीक़ ख़ुदा मेरा ऊँचाबुर्ज है।
1ऐ ख़ुदा, तूने हमें रद्द किया; तूने हमें शिकस्ता हाल कर दिया। तू नाराज़ रहा है। हमें फिर बहाल कर।2~तूने ज़मीन को लरज़ा दिया; तूने उसे फाड़ डाला है। उसके रख़्ने बन्द कर दे क्यूँकि वह लरज़ाँ है।3तूने अपने लोगों को सख़्तियाँ दिखाई, तूने हमको लड़खड़ा देने वाली मय पिलाई।4जो तुझ से डरते हैं, तूने उनको एक झंडा दिया है; ताकि वह हक़ की ख़ातिर बुलन्द किया जाएं। (सिलाह)5~अपने दहने हाथ से बचा और हमें जवाब दे, ताकि तेरे महबूब बचाए जाएँ।6ख़ुदा ने अपनी पाकीज़गी में फ़रमाया है, "मैं ख़ुशी करूँगा ; मैं सिक्म को तक़सीम करूँगा, और सुकात की वादी को बाटूँगा।7~जिल'आद मेरा है, मनस्सी भी मेरा है; इफ्राईम मेरे सिर का खू़द है, यहूदाह मेरा 'असा है।8~मोआब मेरी चिलमची है, अदोम पर मैं जूता फेफूँगा; ऐ फ़िलिस्तीन, मेरी वजह से ललकार।”9मुझे उस मुहकम शहर में कौन पहुँचाएगा? कौन मुझे अदोम तक ले गया है?10~ऐ ख़ुदा, क्या तूने हमें रद्द नहीं कर दिया? ऐ ख़ुदा, तू हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता।11~मुख़ालिफ़ के मुक़ाबले में हमारी मदद कर, क्यूँकि इंसानी मदद बेकार है।12~ख़ुदा की मदद से हम बहादुरी करेंगे, क्यूँकि वही हमारे मुख़ालिफ़ों को पस्त करेगा।
1~ऐ ख़ुदा, मेरी फ़रियाद सुन! मेरी दु'आ पर तवज्जुह कर।2~मैं अपनी अफ़सुर्दा दिली में ज़मीन की इन्तिहा से तुझे पुकारूँगा; तू मुझे उस चट्टान पर ले चल जो मुझसे ऊँची है;3~क्यूँकि तू मेरी पनाह रहा है, और दुश्मन से बचने के लिए ऊँचा बुर्ज।4मैं हमेशा तेरे खे़मे में रहूँगा।मैं तेरे परों के साये में पनाह लूँगा।5क्यूँकि ऐ ख़ुदा तूने मेरी मिन्नतें क़ुबूल की हैं तूने मुझे उन लोगों की सी मीरास बख़्शी है जो तेरे नाम से डरते हैं।6~तू बादशाह की 'उम्र दराज़ करेगा; उसकी 'उम्र बहुत सी नसलों के बराबर होगी।7~वह ख़ुदा के सामने हमेशा क़ायम रहेगा; तू शफ़क़त और सच्चाई को उसकी हिफ़ाज़त के लिए मुहय्या कर।8~यूँ मैं हमेशा तेरी मदहसराई करूँगा, ताकि रोज़ाना अपनी मिन्नतें पूरी करूँ ।
1मेरी जान को ख़ुदा ही की उम्मीद है, मेरी नजात उसी से है |2वही अकेला मेरी चट्टान और मेरी नजात है, वही मेरा ऊँचा बुर्ज है, मुझे ज़्यादा जुम्बिश न होगी।3~तुम कब तक ऐसे शख़्स पर हमला करते रहोगे, जो झुकी हुई दीवार और हिलती बाड़ की तरह है; ताकि सब मिलकर उसे क़त्ल करो?4~वह उसको उसके मर्तबे से गिरा देने ही का मश्वरा करते रहते हैं; वह झूट से ख़ुश होते हैं।वह अपने मुँह से तो बरकत देते हैं लेकिन दिल में ला'नत करते हैं।5~ऐ मेरी जान, ख़ुदा ही की आस रख, क्यूँकि उसी से मुझे उम्मीद है।6~वही अकेला मेरी चट्टान और मेरी नजात है; वही मेरा ऊँचा बुर्ज है, मुझे जुम्बिश न होगी।7~मेरी नजात और मेरी शौकत ख़ुदा की तरफ़ से है; ख़ुदा ही मेरी ताक़त की चट्टान और मेरी पनाह है।8~ऐ लोगो। हर वक़्त उस पर भरोसा करो; अपने दिल का हाल उसके सामने खोल दो। ख़ुदा हमारी पनाहगाह है। (सिलाह)9~यक़ीनन अदना लोग बेसबात हैं और आला आदमी झूटे; वह तराजू़ में हल्के निकलेंगे; वह सब के सब बेसबाती से भी कमज़ोर हैं10~जु़ल्म पर तकिया न करो, लूटमार करने पर न फूलो; ~अगर माल बढ़ जाए तो उस पर दिल न लगाओ।11~ख़ुदा ने एक बार फ़रमाया; मैंने यह दो बार सुना, कि कु़दरत ख़ुदा ही की है।12~शफ़क़त भी ऐ ख़ुदावन्द तेरी ही है; क्यूँकि तू हर शख़्स को उसके 'अमल के मुताबिक़ बदला देता है।
1ऐ ख़ुदा, तू मेरा खु़दा है, मै दिल से तेरा तालिब हूँगा; ~ख़ुश्क और प्यासी ज़मीन में जहाँ पानी नहीं, मेरी जान तेरी प्यासी और मेरा जिस्म तेरा मुशताक़ है2~इस तरह मैंने मक़दिस में तुझ पर निगाह की ताकि तेरी कु़दरत और हश्मत को देखूँ ।3~क्यूँकि तेरी शफ़क़त ज़िन्दगी से बेहतर है मेरे होंट तेरी ता'रीफ़ करेंगे।4~इसी तरह मैं 'उम्र भर तुझे मुबारक कहूँगा; और तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाया करूँगा;5~मेरी जान जैसे गूदे और चर्बी से सेर होगी, और मेरा मुँह मसरूर लबों से तेरी ता'रीफ़ करेगा |6जब मैं बिस्तर पर तुझे याद करूँगा, और रात के एक एक पहर में तुझ पर ध्यान करूँगा ;7~इसलिए कि तू मेरा मददगार रहा है, ~और मैं तेरे परों के साये में ख़ुशी ~मनाऊँगा।8~मेरी जान को तेरी ही धुन है; तेरा दहना हाथ मुझे संभालता है।9लेकिन जो मेरी जान की हलाकत के दर पै हैं, वह ज़मीन के तह में चले जाएँगे।10वह तलवार के हवाले होंगे, वह गीदड़ों का लुक्मा बनेंगे।11लेकिन बादशाह खु़दा में ख़ुश होगा; जो उसकी क़सम खाता है वह फ़ख़्र करेगा; क्यूँकि झूट बोलने वालों का मुँह बन्द कर दिया जाएगा
1~ऐ ख़ुदा मेरी फ़रियाद की आवाज़ सुन ले मेरी जान को दुश्मन के ख़ौफ़ से बचाए रख |2~शरीरों के ख़ुफ़िया मश्वरे से, और बदकिरदारों के हँगामे से मुझे~छिपा ले3जिन्होंने अपनी ज़बान तलवार की~तरह तेज़ की, और तल्ख़ बातों के तीरों का निशाना~लिया है;4ताकि उनको ख़ुफ़िया मक़ामों में कामिल आदमी पर चलाएँ; वह उनको अचानक उस पर चलाते हैं और डरते नहीं।5~वह बुरे काम का मज़बूत इरादा करते हैं; वह फंदे लगाने की सलाह करते हैं, वह कहते हैं, "हम को कौन देखेगा?"6~वह शरारतों को खोज खोज कर निकालते हैं; वह कहते हैं, "हमने खू़ब खोज लगाया।" उनमें से हर एक का बातिन और दिल 'अमीक है।7लेकिन ख़ुदा उन पर तीर चलाएगा; वह अचानक तीर से ज़ख़्मी हो जाएँगे।8~और उन ही की ज़बान उनको तबाह करेगी; जितने उनको देखेंगे सब सिर हिलाएँगे।9और सब लोग डर जाएँगे, और ख़ुदा के काम का बयान करेंगे; और उसके तरीक़-ए-'अमल को बख़ूबी समझ लेंगे।10~सादिक़ ख़ुदावन्द में ख़ुश होगा, और उस पर भरोसा करेगा, और जितने रास्तदिल हैं सब फ़ख़्र करेंगे।
1ऐ ख़ुदा, सिय्यून में ता'रीफ़ तेरी मुन्तज़िर है; और तेरे लिए मिन्नत पूरी की जाएगी।2~ऐ दु'आ के सुनने वाले! सब बशर तेरे पास आएँगे।3~बद आ'माल मुझ पर ग़ालिब आ जाते हैं; लेकिन हमारी ख़ताओं का कफ़्फ़ारा तू ही देगा।4मुबारक है वह आदमी जिसे तू बरगुज़ीदा करता और अपने पास आने देता है, ताकि वह तेरी बारगाहों में रहे। हम तेरे घर की खू़बी से, या'नी तेरी पाक हैकल से आसूदा होंगे।5~ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा! तू जो ज़मीन के सब किनारों का और समन्दर पर दूर दूर रहने वालों का तकिया है; ख़ौफ़नाक बातों के ज़रिए' से तू हमें सदाक़त से जवाब देगा।6~तू कु़दरत से कमरबस्ता होकर, अपनी ताक़त से पहाड़ों को मज़बूती बख़्शता है।7~तू समन्दर के और उसकी मौजों के शोर को, और उम्मतों के हँगामे को ख़त्म कर देता है।8~ज़मीन की इन्तिहा के रहने वाले, तेरे मु'अजिज़ों से डरते हैं; तू मतला'-ए-सुबह को और शाम को ख़ुशी बख़्शता है।9तू ज़मीन पर तवज्जुह करके उसे सेराब करता है, तू उसे खू़ब मालामाल कर देता है; ख़ुदा का दरिया पानी से भरा है; जब तू ज़मीन को यूँ तैयार कर लेता है तो उनके लिए अनाज मुहय्या करता है।10उसकी रेघारियों को खू़ब सेराब उसकी मेण्डों को बिठा देता उसे बारिश से नर्म करता है, उसकी पैदावार में बरकत देता11तू साल को अपने लुत्फ़ का ताज पहनाता है; और तेरी राहों से रौग़न टपकता है।12वह बियाबान की चरागाहों पर टपकता है, और पहाड़ियाँ ख़ुशी से कमरबस्ता हैं।13चरागाहों में झुंड के झुंड फैले हुए हैं, वादियाँ अनाज से ढकी हुई हैं, वह ख़ुशी के मारे ललकारती और गाती हैं|
1ऐ सारी ज़मीन ख़ुदा के सामने ख़ुशी का ना'रा मार |2उसके नाम के जलाल का हम्द गाओ; सिताइश करते हुए उसकी तम्जीद करो।3ख़ुदा से कहो, "तेरे काम क्या ही बड़े हैं! तेरी बड़ी क़ुदरत के ज़रिए' तेरे दुश्मन आजिज़ी करेंगे।4सारी ज़मीन तुझे सिज्दा करेगी, और तेरे सामने गाएगी; वह तेरे नाम के हम्द गाएँगे।"5आओ और ख़ुदा के कामों को देखो; बनी आदम के साथ वह अपने सुलूक में बड़ा है।6उसने समन्दर को खु़श्क ज़मीन बना दिया: वह दरिया में से पैदल गुज़र गए। वहाँ हम ने उसमें ख़ुशी मनाई।7वह अपनी कु़दरत से हमेशा तक सल्तनत करेगा, उसकी आँखें क़ौमों को देखती रहती हैं। सरकश लोग तकब्बुर न करें।8ऐ लोगो, हमारे ख़ुदा को मुबारक कहो, और उसकी तारीफ़ में आवाज़ बुलंद करो।~।9वही हमारी जान को ज़िन्दा रखता है; और हमारे पाँव को फिसलने नहीं देता10क्यूँकि ऐ ख़ुदा, तूने हमें आज़मा लिया है; तूने हमें ऐसा ताया जैसे चाँदी ताई जाती है।11तूने हमें जाल में फँसाया, और हमारी कमर पर भारी बोझ रख्खा।12तूने सवारों को हमारे सिरों पर से गुज़ारा हम आग में से और पानी में से होकर गुज़रे; लेकिन तू हम को अफ़रात की जगह में निकाल लाया।13मैं सोख़्तनी कु़र्बानियाँ लेकर तेरे घर में दाख़िल हूँगा; और अपनी मिन्नतें तेरे सामने अदा करूँगा |14जो मुसीबत के वक़्त मेरे लबों से निकलीं, और मैंने अपने मुँह से मानें |15मैं मोटे मोटे जानवरों की सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ मेंढों की खु़शबू के साथ अदा करूँगा। मैं बैल और बकरे पेश करूँगा |16ऐ ख़ुदा से डरने वालो, सब आओ, सुनो; और मैं बताऊँगा कि उसने मेरी जान के लिए क्या क्या किया है।17मैंने अपने मुँह से उसको पुकारा, उसकी तम्जीद मेरी ज़बान से हुई।18अगर मैं बदी को अपने दिल में रखता, तो ख़ुदावन्द मेरी न सुनता।19लेकिन ख़ुदा ने यक़ीनन सुन लिया है; उसने मेरी दु'आ की आवाज़ पर कान लगाया है।20ख़ुदा मुबारक हो, जिसने न तो मेरी दु'आ को रद्द किया, ~और न अपनी शफ़क़त को मुझ से बाज़ रख्खा~!
1ख़ुदा हम पर रहम करे और हम को बरक़त बख़्शे; और अपने चेहरे को हम पर जलवागर फ़रमाए, (सिलाह)2ताकि तेरी राह ज़मीन पर ज़ाहिर हो जाए, और तेरी नजात सब क़ौमों पर|3ऐ ख़ुदा! लोग तेरी ता'रीफ़ करें; सब लोग तेरी ता'रीफ़ करें |4उम्मते ख़ुश हों और ख़ुशी से ललकारें, क्यूँकि तू रास्ती से लोगों की 'अदालत करेगा, और ज़मीन की उम्मतों पर हुकूमत करेगा (सिलाह)5ऐ ख़ुदा! लोग तेरी ता'रीफ़ करें; सब लोग तेरी ता'रीफ़ करें|6ज़मीन ने अपनी पैदावार दे दी, ख़ुदा या'नी हमारा ख़ुदा हम को बरकत देगा |7~ख़ुदा हम को बरकत देगा; और ज़मीन की इन्तिहा तक सब लोग उसका डर मानेंगे |
1ख़ुदा उठे, उसके दुश्मन तितर बितर हों, उससे 'अदावत ~रखने वाले उसके सामने से भाग जाएँ।2जैसे धुवाँ उड़ जाता है, वैसे ही तू उनको उड़ा दे; जैसे मोम आग के सामने पिघला जाता, वैसे ही शरीर ख़ुदा के सामने फ़ना हो जाएँ।3लेकिन सादिक़ ख़ुशी मनाएँ, वह ख़ुदा के सामने ख़ुश हों, ~बल्कि वह खु़शी से फूले न समाएँ।4ख़ुदा के लिए गाओ, उसके नाम की मदहसराई करो; सहरा के सवार के लिए शाहराह तैयार करो; उसका नाम याह है, ~और तुम उसके सामने ख़ुश हो।5ख़ुदा अपने मुक़द्दस मकान में, यतीमों का बाप और बेवाओं का दादरस है।6खु़दा तन्हा को ख़ान्दान बख़्शता है; वह कैदियों को आज़ाद करके इक़बालमंद करता है; लेकिन सरकश ख़ुश्क ज़मीन में रहते हैं।7ऐ ख़ुदा, जब तू अपने लोगों के आगे-आगे चला, जब तू वीरान में से गुज़रा, (सिलाह)8तो ज़मीन काँप उठी; ख़ुदा के सामने आसमान गिर पड़े, ~बल्कि पाक पहाड़ भी ख़ुदा के सामने, इस्राईल के ख़ुदा के सामने काँप उठा।9ऐ ख़ुदा, तूने खू़ब मेंह बरसाया: तूने अपनी खु़श्क मीरास को ताज़गी बख़्शी।10तेरे लोग उसमें बसने लगे; ऐ ख़ुदा, तूने अपने फ़ैज़ से ग़रीबों के लिए उसे तैयार किया।11ख़ुदावन्द हुक्म देता है; ख़ुशख़बरी देने वालियाँ फ़ौज की ~फ़ौज हैं।12लश्करों के बादशाह भागते हैं, वह भाग जाते हैं; ~और~'औरत घर में बैठी बैठी लूट का माल बाँटती है।13जब तुम भेड़ सालों में पड़े रहते हो, तो उस कबूतर की तरह होगे जिसके बाज़ू जैसे चाँदी से, और पर ख़ालिस सोने से मंढ़े हुए हों।14जब क़ादिर-ए-मुतलक ने बादशाहों को उसमें परागंदा किया, तो ऐसा हाल हो गया, जैसे सलमोन पर बर्फ़ पड़ रही थी।15बसन का पहाड़ ख़ुदा का पहाड़ है; बसन का पहाड़ ऊँचा पहाड़ है।16ऐ ऊँचे पहाड़ो, तुम उस पहाड़ को क्यूँ ताकते हो, जिसे ख़ुदा ने अपनी सुकूनत के लिए पसन्द किया है, बल्कि ख़ुदावन्द उसमें हमेशा तक रहेगा?17~ख़ुदा के रथ बीस हज़ार, बल्कि हज़ारहा हज़ार हैं; ~ख़ुदावन्द जैसा पाक पहाड़ में वैसा ही उनके बीच हैकल में है।18तूने~'आलम-ए-बाला को सु'ऊद फ़रमाया, तू कैदियों को साथ ले गया; तुझे लोगों से बल्कि सरकशों से भी हदिए मिले, ~ताकि ख़ुदावन्द ख़ुदा उनके साथ रहे।19ख़ुदावन्द मुबारक हो, जो हर रोज़ हमारा बोझ उठाता है; ~वही हमारा नजात देने वाला ख़ुदा है।20ख़ुदा हमारे लिए छुड़ाने वाला ख़ुदा है और मौत से बचने की राहें भी ख़ुदावन्द ख़ुदा की हैं।21~लेकिन ख़ुदावन्द अपने दुश्मनों के सिर को, और लगातार गुनाह करने वाले की बालदार खोपड़ी को चीर डालेगा।22ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "मैं उनको बसन से निकाल लाऊँगा; ~मैं उनको समन्दर की तह से निकाल लाऊँगा |23ताकि तू अपना पाँव ख़ून से तर करे, और तेरे दुश्मन तेरे कुत्तों के मुँह का निवाला बनें|"24ऐ ख़ुदा! लोगों ने तेरी आमद देखी, मक़दिस में मेरे ख़ुदा, ~मेरे बादशाह की 'आमद25~गाने वाले आगे आगे और बजाने वाले पीछे पीछे चले, दफ़ बजाने वाली जवान लड़कियाँ बीच में।26तुम जो इस्राईल के चश्मे से हो, ख़ुदावन्द को मुबारक कहो, ~हाँ, मजमे'~में ख़ुदा को मुबारक कहो।27वहाँ छोटा बिनयमीन उनका हाकिम है, यहूदाह के उमरा और उनके मुशीर, ज़बूलून के उमरा और नफ़्ताली के उमरा हैं।28तेरे ख़ुदा ने तेरी पायदारी का हुक्म दिया है, ऐ ख़ुदा, जो कुछ तूने हमारे लिए किया है, उसे पायदारी बख़्श।29तेरी हैकल की वजह से जो यरूशलीम में है, बादशाह तेरे पास हदिये लाएँगे।30तू नैसतान के जंगली जानवरों को धमका दे, सांडों के ग़ोल को, और क़ौमों के बछड़ों को। जो चाँदी के सिक्कों को पामाल करते हैं:~उसने जंगजू क़ौमों को परागंदा कर दिया है।31उमरा मिस्र से आएँगे; कूश ख़ुदा की तरफ़ अपने हाथ बढ़ाने में जल्दी करेगा।32ऐ ज़मीन की ममलुकतो, ख़ुदा के लिए गाओ; ख़ुदावन्द की मदहसराई करो।33(सिलाह)~उसी की जो क़दीम आसमान नहीं बल्कि आसमानों पर सवार है; देखो वह अपनी आवाज़ बुलंद करता है, उसकी आवाज़ में कु़दरत है।34ख़ुदा ही की ताज़ीम करो, उसकी हश्मत इस्राईल में है, ~और उसकी क़ुदरत आसमानों पर।35ऐ ख़ुदा, तू अपने मक़दिसों में मुहीब है, इस्राईल का ख़ुदा ही अपने लोगों को ज़ोर और तवानाई बख़्शता है। खु़दा मुबारक हो।
1ऐ ख़ुदा मुझ को बचा ले, क्यूँकि पानी मेरी जान तक आ पहुँचा है|2मैं गहरी दलदल में धंसा जाता हूँ, जहाँ खड़ा नहीं रहा जाता; ~मैं गहरे पानी में आ पड़ा हूँ, जहाँ सैलाब मेरे सिर पर से गुज़रता है।3मैं चिल्लाते चिल्लाते थक गया, मेरा गला सूख गया; मेरी आँखें अपने ख़ुदा के इन्तिज़ार में पथरा गई।4मुझ से बे वजह~'अदावत रखने वाले, मेरे सिर के बालों से ज़्यादा हैं; मेरी हलाकत के चाहने वाले और नाहक़ दुश्मन ज़बरदस्त हैं, तब जो मैंने छीना नहीं मुझे देना पड़ा।5ऐ ख़ुदा, तू मेरी हिमाक़त से वाक़िफ़ है, और मेरे गुनाह तुझ से पोशीदा नहीं हैं |6ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा, तेरी उम्मीद रखने वाले मेरी वजह से शर्मिन्दा न हों, ऐ इस्राईल के ख़ुदा, तेरे तालिब मेरी वजह से रुस्वा न हों।7क्यूँकि तेरे नाम की ख़ातिर मैंने मलामत उठाई है, शर्मिन्दगी मेरे मुँह पर छा गई है।8मैं अपने भाइयों के नज़दीक बेगाना बना हूँ, और अपनी माँ के फ़रज़न्दों के नज़दीक अजनबी।9क्यूँकि तेरे घर की गै़रत मुझे खा गई, और तुझ को मलामत करने वालों की मलामतें मुझ पर आ पड़ीं हैं।10मेरे रोज़ा रखने से मेरी जान ने ज़ारी की, और यह भी मेरी मलामत का ज़रिए' हुआ।11जब मैं ने टाट ओढ़ा, तो उनके लिए ज़र्ब-उल-मसल ठहरा|12फाटक पर बैठने वालों में मेरा ही ज़िक्र रहता है, और मैं नशे बाज़ों का हम्द हूँ।13लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तेरी ख़ुशनूदी के वक़्त मेरी दु'आ तुझ ही से है; ऐ ख़ुदा, अपनी शफ़क़त की फ़िरावानी से, अपनी नजात की सच्चाई में जवाब दे।14मुझे दलदल में से निकाल ले और धसने न दे:~मुझ से~'अदावत रखने वालों, और गहरे पानी से मुझे बचा ले।15मैं सैलाब में डूब न जाऊँ, और गहराव मुझे निगल न जाए, ~और पाताल मुझ पर अपना मुँह बन्द न कर ले16ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जवाब दे, क्यूँकि मेरी शफ़क़त ख़ूब है अपनी रहमतों की कसरत के मुताबिक़ मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो।17अपने बन्दे से रूपोशी न कर; क्यूँकि मैं मुसीबत में हूँ, ~जल्द मुझे जवाब दे।18मेरी जान के पास आकर उसे छुड़ा ले मेरे दुश्मनों के सामने मेरा फ़िदिया दे।19तू मेरी मलामत और शर्मिन्दगी और रुस्वाई से वाक़िफ़ है; ~मेरे दुश्मन सब के सब तेरे सामने हैं।20मलामत ने मेरा दिल तोड़ दिया, मैं बहुत उदास हूँ और मैं इसी इन्तिज़ार में रहा कि कोई तरस खाए लेकिन कोई न था; ~और तसल्ली देने वालों का मुन्तज़िर रहा लेकिन कोई न मिला।21~उन्होंने मुझे खाने को इन्द्रायन भी दिया, और मेरी प्यास बुझाने को उन्होंने मुझे सिरका पिलाया।22उनका दस्तरख़्वान उनके लिए फंदा हो जाए। और जब वह अमन से हों तो जाल बन जाए।23उनकी आँखें तारीक हो जाएँ, ताकि वह देख न सके, और उनकी कमरें हमेशा काँपती रहें।24अपना ग़ज़ब उन पर उँडेल दे, और तेरा शदीद क़हर उन पर आ पड़े।25उनका घर उजड़ जाए, उनके खे़मों में कोई न बसे।26क्यूँकि वह उसको जिसे तूने मारा है और जिनको तूने जख़्मी किया है, उनके दुख का ज़िक्र करते हैं।27उनके गुनाह पर गुनाह बढ़ा; और वह तेरी सदाक़त में दाख़िल न हों।28उनके नाम किताब-ए-हयात से मिटा और सादिकों के साथ मुन्दर्ज न हों।29लेकिन मैं तो ग़रीब और ग़मगीन हूँ। ऐ ख़ुदा तेरी नजात मुझे सर बुलन्द करे।30मैं हम्द गाकर ख़ुदा के नाम की ता'रीफ़ करूँगा, और शुक्रगुज़ारी के साथ उसकी तम्जीद करूँगा।31यह ख़ुदावन्द को बैल से ज़्यादा पसन्द होगा, बल्कि सींग और खुर वाले बछड़े से ज़्यादा।32हलीम इसे देख कर ख़ुश हुए हैं; ऐ ख़ुदा के तालिबो, ~तुम्हारे दिल ज़िन्दा रहें।33~क्यूँकि ख़ुदावन्द मोहताजों की सुनता है, और अपने क़ैदियों को हक़ीर नहीं जानता।34आसमान और ज़मीन उसकी ता'रीफ़ करें, और समन्दर और जो कुछ उनमें चलता फिरता है।35क्यूँकि ख़ुदा सिय्यून को बचाएगा, और यहूदाह के शहरों को बनाएगा; और वह वहाँ बसेंगे और उसके वारिस होंगे।36उसके बन्दों की नसल भी उसकी मालिक होगी, और उसके नाम से मुहब्बत रखने वाले उसमें बसेंगे।
1ऐ ख़ुदा! मुझे छुड़ाने के लिए, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मदद के लिए कर जल्दी कर!2जो मेरी जान को हलाक करने के दर पै हैं, वह सब शर्मिन्दा और रुस्वा हों| जो मेरे नुक़्सान से ख़ुश हैं, वह पस्पा और रुस्वा हों |3अहा! हा! हा! करने वाले अपनी रुस्वाई के वजह से पस्पा हों|4तेरे सब तालिब तुझ में ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम हों; तेरी नजात के 'आशिक़ हमेशा कहा करें, "ख़ुदा की तम्जीद हो! "5लेकिन मैं ग़रीब और मोहताज हूँ; ऐ ख़ुदा, मेरे पास जल्द आ! मेरा मददगार और छुड़ाने वाला तू ही है; ऐ ख़ुदावन्द, देर न कर!
1ऐ ख़ुदावन्द तू ही मेरी पनाह है; मुझे कभी शर्मिन्दा न होने दे!2अपनी सदाक़त में मुझे रिहाई दे और छुड़ा; मेरी तरफ़ कान लगा, और मुझे बचा ले।3तू मेरे लिए ठहरने की चट्टान हो, जहाँ मैं बराबर जा सकूँ; ~तूने मेरे बचाने का हुक्म दे दिया है, क्यूँकि मेरी चट्टान और मेरा क़िला' तू ही है।4ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे शरीर के हाथ से, नारास्त और बेदर्द आदमी के हाथ से छुड़ा।5क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तू ही मेरी उम्मीद है; लड़कपन से मेरा भरोसा तुझ ही पर है।6तू पैदाइश ही से मुझे संभालता आया है तू मेरी माँ के बतन ही से मेरा शफ़ीक़ रहा है; इसलिए मैं हमेशा तेरी सिताइश करता रहूँगा।7मैं बहुतों के लिए हैरत की वजह हूँ। लेकिन तू मेरी मज़बूत पनाहगाह है।8मेरा मुँह तेरी सिताइश से, और तेरी ता'ज़ीम से दिन भर पुर रहेगा।9~बुढ़ापे के वक़्त मुझे न छोड़; मेरी ज़ईफ़ी में मुझे छोड़ न दे।10क्यूँकि मेरे दुश्मन मेरे बारे में बातें करते हैं, और जो मेरी जान की घात में हैं वह आपस में मशवरा करते हैं,11और कहते हैं, कि ख़ुदा ने उसे छोड़ दिया है; उसका पीछा करो और पकड़ लो, क्यूँकि छुड़ाने वाला कोई नहीं।12ऐ ख़ुदा, मुझ से दूर न रह! ऐ मेरे ख़ुदा, मेरी मदद के लिए जल्दी कर!13मेरी जान के मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा और फ़ना हो जाएँ; मेरा नुक़्सान चाहने वाले मलामत और रुस्वाई से मुलब्बस हो।14लेकिन मैं हमेशा उम्मीद रख्खूंगा, और तेरी ता'रीफ़ और भी ज़्यादा किया करूँगा।15मेरा मुँह तेरी सदाक़त का, और तेरी नजात का बयान दिन भर करेगा; क्यूँकि मुझे उनका शुमार मा'लूम नहीं।16मैं ख़ुदावन्द ख़ुदा की क़ुदरत के कामों का इज़हार करूँगा; मैं सिर्फ़ तेरी ही सदाक़त का ज़िक्र करूँगा।17ऐ ख़ुदा, तू मुझे बचपन से सिखाता आया है, और मैं अब तक तेरे~'अजाइब का बयान करता रहा हूँ।18ऐ ख़ुदा, जब मैं बुड्ढा और सिर सफ़ेद हो जाऊँ तो मुझे ~न छोड़ना; ~जब तक कि मैं तेरी क़ुदरत आइंदा नसल पर, ~और तेरा ज़ोर हर आने वाले पर ज़ाहिर न कर दूँ।19ऐ ख़ुदा, तेरी सदाक़त भी बहुत बलन्द है। ऐ ख़ुदा, तेरी तरह ~कौन है जिसने बड़े बड़े काम किए हैं?20तू जिसने हम को बहुत और सख़्त तकलीफ़ें दिखाई हैं फिर हम को ज़िन्दा करेगा; और ज़मीन की तह से हमें फिर ऊपर ले आएगा।21तू मेरी~'अज़मत को बढ़ा, और फिर कर मुझे तसल्ली दे।22ऐ मेरे ख़ुदा, मैं बरबत पर तेरी, हाँ तेरी सच्चाई की हम्द करूँगा ; ऐ इस्राईल के पाक! मैं सितार के साथ तेरी मदहसराई करूँगा ।23~जब मैं तेरी मदहसराई करूँगा, तो मेरे होंट बहुत ख़ुश होंगे; और मेरी जान भी जिसका तूने फ़िदिया दिया है।24और मेरी ज़बान दिन भर तेरी सदाक़त का ज़िक्र करेगी; ~क्यूँकि मेरा नुक़्सान चाहने वाले शर्मिन्दा और पशेमान हुए हैं।
1ऐ ख़ुदा! बादशाह को अपने अहकाम और शहज़ादे को अपनी सदाक़त 'अता फ़रमा।2वह सदाक़त से तेरे लोगों की, और इन्साफ़ से तेरे ग़रीबों की 'अदालत करेगा।3इन लोगों के लिए पहाड़ों से सलामती के, और पहाड़ियों से सदाक़त के फल पैदा होंगे।4वह इन लोगों के गरीबों की~'अदालत करेगा; वह मोहताजों की औलाद को बचाएगा, और ज़ालिम को टुकड़े टुकड़े कर डालेगा।5जब तक सूरज और चाँद क़ायम हैं, लोग नसल-दर-नसल तुझ से डरते रहेंगे।6वह कटी हुई घास पर मेंह की तरह, और ज़मीन को सेराब करने वाली बारिश की तरह नाज़िल होगा।7उसके दिनों में सादिक बढ़ेंगे, और जब तक चाँद क़ायम है ख़ूब अमन रहेगा।8उसकी सल्तनत समन्दर से समन्दर तक और दरिया-ए-फ़रात से ज़मीन की इन्तिहा तक होगी।9वीरान के रहने वाले उसके आगे झुकेंगे, और उसके दुश्मन ख़ाक चाटेंगे।10तरसीस के और जज़ीरों के बादशाह नज़रें पेश करेंगे, सबा और सेबा के बादशाह हदिये लाएँगे।11बल्कि सब बादशाह उसके सामने सर्नगूँ होंगे कुल क़ौमें उसकी फरमाबरदार होंगी।12क्यूँकि वह मोहताज को जब वह फ़रियाद करे, और ग़रीब की जिसका कोई मददगार नहीं छुड़ाएगा।13वह ग़रीब और मुहताज पर तरस खाएगा, और मोहताजों की जान को बचाएगा।14वह फ़िदिया देकर उनकी जान को ज़ुल्म और जब्र से छुड़ाएगा और उनका खू़न उसकी नज़र में बेशक़ीमत होगा |15वह ज़िन्दा रहेंगे और सबा का सोना उसको दिया जाएगा। लोग बराबर उसके हक़ में दु'आ करेंगे: वह दिनभर उसे दु'आ देंगे।16ज़मीन में पहाड़ों की चोटियों पर अनाज को अफ़रात होगी; ~उनका फल लुबनान के दरख़्तों की तरह झूमेगा; और शहर वाले ज़मीन की घास की तरह हरे भरे होंगे।17उसका नाम हमेशा क़ायम रहेगा, जब तक सूरज है उसका नाम रहेगा; और लोग उसके वसीले से बरकत पाएँगे, सब क़ौमें उसे खु़शनसीब कहेंगी।18खु़दावन्द ख़ुदा इस्राईल का खु़दा, मुबारक हो! ~वही~'अजीब-ओ-ग़रीब काम करता है।19उसका जलील नाम हमेशा के लिए सारी ज़मीन उसके जलाल से मा'मूर हो| आमीन सुम्मा आमीन!20दाऊद बिन यस्सी की दु'आएँ तमाम हुई।
1बेशक ख़ुदा इस्राईल पर, या'नी पाक दिलों पर मेहरबान है।2लेकिन मेरे पाँव तो फिसलने को थे, मेरे क़दम क़रीबन लग़ज़िश खा चुके थे।3क्यूँकि जब मैं शरीरों की इक़बालमंदी देखता, तो मग़रूरों पर हसद करता था।4इसलिए के उनकी मौत में दर्द नहीं, बल्कि उनकी ताक़त बनी रहती है।5वह और आदमियों की तरह मुसीबत में नहीं पड़ते; न और लोगों की तरह उन पर आफ़त आती है।6इसलिए गु़रूर उनके गले का हार है, जैसे वह ज़ुल्म से मुलब्बस हैं।7उनकी आँखें चर्बी से उभरी हुई हैं, उनके दिल के ख़यालात हद से बढ़ गए हैं।8वह ठट्ठा मारते, और शरारत से जु़ल्म की बातें करते हैं; वह बड़ा बोल बोलते हैं।9उनके मुँह आसमान पर हैं, और उनकी ज़बाने ज़मीन की सैर करती हैं।10इसलिए उसके लोग इस तरफ़ रुजू' होते हैं, और जी भर कर पीते हैं।11वह कहते हैं, "ख़ुदा को कैसे मा'लूम है?~क्या हक़ ता'ला को कुछ 'इल्म है?"12इन शरीरों को देखो, यह हमेशा चैन से रहते हुए दौलत बढ़ाते हैं।13यक़ीनन मैने बेकार अपने दिल को साफ़, और अपने हाथों को पाक किया;14क्यूँकि मुझ पर दिन भर आफ़त रहती है, और मैं हर सुबह तम्बीह पाता हूँ।15अगर मैं कहता, कि यूँ कहूँगा; तो तेरे फ़र्ज़न्दों की नसल से बेवफ़ाई करता ।16जब मैं सोचने लगा कि इसे कैसे समझूँ, तो यह मेरी नज़र में दुश्वार था,17जब तक कि मैंने ख़ुदा के मक़दिस में जाकर, उनके अंजाम को न सोचा।18यक़ीनन तू उनको फिसलनी जगहों में रखता है, और हलाकत की तरफ़ ढकेल देता है।19वह दम भर में कैसे उजड़ गए! वह हादिसों से बिल्कुल फ़ना हो गए।20जैसे जाग उठने वाला ख़्वाब को, वैसे ही तू ऐ ख़ुदावन्द, ~जाग कर उनकी सूरत को नाचीज़ जानेगा।21क्यूँकि मेरा दिल रंजीदा हुआ, और मेरा जिगर छिद गया था;22मैं बे'अक्ल और जाहिल था, मैं तेरे सामने जानवर की तरह था।23तोभी मैं बराबर तेरे साथ हूँ। तूने मेरा दाहिना हाथ पकड़ रखा है |24तू अपनी मसलहत से मेरी रहनुमाई करेगा, और आख़िरकार मुझे जलाल में कु़बूल फ़रमाएगा।25आसमान पर तेरे अलावा मेरा कौन है? और ज़मीन पर मैं तेरे अलावा किसी का मुश्ताक़ नहीं।26जैसे मेरा जिस्म और मेरा दिल ज़ाइल हो जाएँ, तोभी ख़ुदा हमेशा मेरे दिल की ताक़त और मेरा हिस्सा है।27क्यूँकि देख, वह जो तुझ से दूर हैं फ़ना हो जाएँगे; तूने उन सबको जिन्होंने तुझ से बेवफ़ाई की, हलाक कर दिया है।28लेकिन मेरे लिए यही भला है कि ख़ुदा की नज़दीकी हासिल करूँ; मैंने ख़ुदावन्द ख़ुदा को अपनी पनाहगाह बना लिया है ताकि तेरे सब कामों का बयान करूँ|
1ऐ ख़ुदा! तूने हम को हमेशा के लिए क्यूँ छोड़ दिया?~तेरी चरागाह की भेड़ों पर तेरा क़हर क्यूँ भड़क रहा है?2अपनी जमा'अत को जिसे तूने पहले से ख़रीदा है, जिसका तूने फ़िदिया दिया ताकि तेरी मीरास का क़बीला हो, और कोह-ए-सिय्यून को जिस पर तूने सुकूनत की है, याद कर।3अपने क़दम दाइमी खण्डरों की तरफ़ बढ़ा; या'नी उन सब ख़राबियों की तरफ़ जो दुश्मन ने मक़दिस में की हैं।4तेरे मजमे'~में तेरे मुख़ालिफ़ गरजते रहे हैं; निशान के लिए उन्होंने अपने ही झंडे खड़े किए हैं।5वह उन आदमियों की तरह थे, जो गुनजान दरख़्तों पर कुल्हाड़े चलाते हैं;|6और अब वह उसकी सारी नक़्शकारी को, कुल्हाड़ी और हथौड़ों से बिल्कुल तोड़े डालते हैं।7उन्होंने तेरे हैकल में आग लगा दी है, और तेरे नाम के घर को ज़मीन तक मिस्मार करके नापाक किया है।8उन्होंने अपने दिल में कहा है, "हम उनको बिल्कुल वीरान कर डालें; "उन्होंने इस मुल्क में ख़ुदा के सब 'इबादतख़ानों को जला दिया है।9हमारे निशान नज़र नहीं आते; और कोई नबी नहीं रहा, और हम में कोई नहीं जानता कि यह हाल कब तक रहेगा।10ऐ ख़ुदा, मुख़ालिफ़ कब तक ता'नाज़नी करता रहेगा?~क्या दुश्मन हमेशा तेरे नाम पर कुफ़्र बकता रहेगा?11तू अपना हाथ क्यूँ रोकता है? अपना दहना हाथ बाल से निकाल और फ़ना कर।12ख़ुदा क़दीम से मेरा बादशाह है, जो ज़मीन पर नजात बख़्शता है।13तूने अपनी क़ुदरत से समन्दर के दो हिस्से कर दिए तू पानी में अज़दहाओं के सिर कुचलता है।14तूने लिवियातान के सिर के टुकड़े किए, और उसे वीरान के रहने वालों की खू़राक बनाया।15तूने चश्मे और सैलाब जारी किए; तूने बड़े बड़े दरियाओं को ख़ुश्क कर डाला।16दिन तेरा है, रात भी तेरी ही है; नूर और आफ़ताब को तू ही ने तैयार किया।17ज़मीन की तमाम हदें तू ही ने ठहराई हैं; गर्मी और सर्दी के मौसम तू ही ने बनाए।18ऐ ख़ुदावन्द, इसे याद रख के दुश्मन ने ता'नाज़नी की है, ~और बेवकूफ़ क़ौम ने तेरे नाम की तक्फ़ीर की है।19अपनी फ़ाख़्ता की जान की जंगली जानवर के हवाले न कर; अपने ग़रीबों की जान को हमेशा के लिए भूल न जा।20अपने~'अहद का ख़याल फ़रमा, क्यूँकि ज़मीन के तारीक मक़ाम जु़ल्म के घरों से भरे हैं।21मज़लूम शर्मिन्दा होकर न लौटे; ग़रीब और मोहताज तेरे नाम की ता'रीफ़ करें।22उठ ऐ ख़ुदा, आप ही अपनी वकालत कर; याद कर कि अहमक़ दिन भर तुझ पर कैसी ता'नाज़नी करता है।23अपने दुश्मनों की आवाज़ को भूल न मुख़ालिफ़ों का हंगामा खड़ा ~होता रहता|
1ऐ ख़ुदा, हम तेरा शुक्र करते हैं, हम तेरा शुक्र करते हैं; क्यूँकि तेरा नाम नज़दीक है, लोग तेरे~'अजीब कामों का ज़िक्र करते हैं।2जब मेरा मु'अय्यन वक़्त आएगा, तो मैं रास्ती से~'अदालत करूँगा।3ज़मीन और उसके सब बाशिन्दे गुदाज़ हो गए हैं, मैंने उसके सुतूनों को क़ायम कर दिया|4मैंने मग़रूरों से कहा, "गु़रूर न करो, "और शरीरों से, कि सींग ऊँचा न करो।5अपना सींग ऊँचा न करो, बग़ावत से बात न करो।6क्यूँकि सरफ़राज़ी न तो पूरब से न पश्चिम से, और न दख्खिन से आती है;7बल्कि ख़ुदा ही~'अदालत करने वाला है; वह किसी को पस्त करता है और किसी को सरफ़राज़ी बख़्शता है।8क्यूँकि ख़ुदावन्द के हाथ में प्याला है, और मय झाग वाली है; ~वह मिली हुई शराब से भरा है, और ख़ुदावन्द उसी में से उंडेलता है; बेशक उसकी तलछट ज़मीन के सब शरीर निचोड़ निचोड़ कर पिएँगे।9लेकिन मैं तो हमेशा ज़िक्र करता रहूँगा, मैं या'क़ूब के ख़ुदा की मदहसराई करूँगा।10और मैं शरीरों के सब सींग काट डालूँगा लेकिन ~सादिकों के सींग ऊँचे किए जाएंगे|
1ख़ुदा यहूदाह में मशहूर है, उसका नाम इस्राईल में बुजु़र्ग है।2सालिम में उसका खे़मा है, और सिय्यून में उसका घर।3वहाँ उसने बर्क़-ए-कमान की और ढाल और तलवार, और सामान-ए-जंग को तोड़ डाला|4तू जलाली है, और शिकार के पहाड़ों से शानदार है।5मज़बूत दिल लुट गए, वह गहरी नींद में पड़े हैं, और ज़बरदस्त लोगों में से किसी का हाथ काम न आया|6ऐ या'क़ूब के ख़ुदा, तेरी झिड़की से, रथ और घोड़े दोनों पर मौत की नींद तारी है।7~सिर्फ़ तुझ ही से डरना चाहिए; और तेरे क़हर के वक़्त कौन तेरे सामने खड़ा रह सकता है?8तूने आसमान पर से फ़ैसला सुनाया; ज़मीन डर कर चुप हो गई|9जब ख़ुदा~'अदालत करने को उठा, ताकि ज़मीन के सब हलीमों को बचा ले।~(सिलाह)10बेशक इन्सान का ग़ज़ब तेरी सिताइश का ज़रिए' होगा, ~और तू ग़ज़ब के बक़िये से कमरबस्ता होगा।11ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए मन्नत मानो, और पूरी करो, ~और सब जो उसके गिर्द हैं वह उसी के लिए जिससे डरना वाजिब है, हदिए लाएँ।12~वह हाकिम की रूह को क़ब्ज़ करेगा; वह ज़मीन के बादशाहों के लिए बड़ा है|
1मैं बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा के सामने फ़रियाद करूँगा ख़ुदा ही के सामने बुलन्द आवाज़ से, और वह मेरी तरफ़ कान लगाएगा।2अपनी मुसीबत के दिन मैंने ख़ुदावन्द को ढूँढा, मेरे हाथ रात को फैले रहे और ढीले न हुए; मेरी जान को तस्कीन न हुई।3मैं ख़ुदा को याद करता हूँ और बेचैन हूँ मैं वावैला करता हूँ और मेरी जान निढाल है|4तू मेरी आँखें खुली रखता है; मैं ऐसा बेताब हूँ कि बोल नहीं सकता।5मैं गुज़रे दिनों पर, या'नी क़दीम ज़माने के बरसों पर सोचता रहा।6मुझे रात को अपना हम्द याद आता है; मैं अपने दिल ही में सोचता हूँ। मेरी रूह बड़ी तफ़्तीश में लगी है:7~"क्या ख़ुदावन्द हमेशा के लिए छोड़ देगा?~क्या वह फिर कभी मेंहरबान न होगा?8~क्या उसकी शफ़क़त हमेशा के लिए जाती रही?~क्या उसका वा'दा हमेशा तक बातिल हो गया?9क्या ख़ुदा करम करना भूल गया?क्या उसने क़हर से अपनी रहमत रोक ली?"(सिलाह)10फिर मैंने कहा, ‘यह मेरी ही कमज़ोरी है; मैं तो हक़ ता'ला की कुदरत के ज़माने को याद करूँगा ।"11मैं ख़ुदावन्द के कामों का ज़िक्र करूँगा ; क्यूँकि मुझे तेरे क़दीम~'अज़ाइब यादआएँगे।12मैं तेरी सारी सन'अत पर ध्यान करूँगा, और तेरे कामों को सोचूँगा।13ऐ ख़ुदा, तेरी राह मक़दिस में है। कौन सा देवता ख़ुदा की तरह बड़ा है |14तू वह ख़ुदा है जो~'अजीब काम करता है, तूने क़ौमों के बीच अपनी क़ुदरत ज़ाहिर की |15तूने अपने ही बाज़ू से अपनी क़ौम, बनी या'कू़ब और बनी यूसुफ़ को फ़िदिया देकर छुड़ाया है।16ऐ ख़ुदा, समन्दरों ने तुझे देखा, समन्दर तुझे देख कर डर गए, गहराओ भी काँप उठे।17बदलियों ने पानी बरसाया, आसमानों से आवाज़ आई, तेरे तीर भी चारों तरफ़ चले।18बगोले में तेरे गरज़ की आवाज़ थी, बर्क़ ने जहान को रोशन कर दिया, ज़मीन लरज़ी और काँपी।19तेरी राह समन्दर में है, तेरे रास्ते बड़े समुन्दरों में हैं; और तेरे नक़्श-ए-क़दम ना मा'लूम हैं।20तूने मूसा और हारून के वसीले से, क़ि'ला की तरह अपने लोगों की रहनुमाई की|
1ऐ मेरे लोगों मेरी शरी'अत को सुनो मेरे मुँह की बातों पर कान लगाओ।2मैं तम्सील में कलाम~करूँगा, और पुराने पोशीदा राज़ कहूँगा,3जिनको हम ने सुना और जान लिया, और हमारे बाप-दादा ने हम को बताया।4और जिनको हम उनकी औलाद से पोशीदा नहीं रख्खेंगे; ~बल्कि आइंदा नसल को भी ख़ुदावन्द की ता'रीफ़, और उसकी कु़दरत और~'अज़ाइब जो उसने किए बताएँगे।5क्यूँकि उसने या'कू़ब में एक शहादत क़ायम की, और इस्राईल में शरी'अत मुक़र्रर की, जिनके बारे में उसने हमारे बाप दादा को हुक्म दिया, कि वह अपनी औलाद को उनकी ता'लीम दें,6ताकि आइंदा नसल, या'नी वह फ़र्ज़न्द जो पैदा होंगे, उनको जान लें: और वह बड़े होकर अपनी औलाद को सिखाएँ,7कि वह ख़ुदा पर उम्मीद रखें, और उसके कामों को भूल न जाएँ, बल्कि उसके हुक्मों पर~'अमल करें;8और अपने बाप-दादा की तरह, सरकश और बाग़ी नसल न बनें:~ऐसी नसल जिसने अपना दिल दुरुस्त न किया और जिसकी रूह ख़ुदा के सामने वफ़ादार न रही।9बनी इफ़राईम हथियार बन्द होकर और कमाने रखते हुए लड़ाई के दिन फिर गए।10उन्होंने ख़ुदा के~'अहद को क़ायम न रख्खा, और उसकी शरी'अत पर चलने से इन्कार किया।11और उसके कामों को और उसके'अजाइब को, जो उसने उनको दिखाए थे भूल गए।12उसने मुल्क-ए-मिस्र में जुअन के इलाके में, उनके बाप-दादा के सामने~'अजीब-ओ-ग़रीब काम किए।13उसने समुन्दर के दो हिस्से करके उनको पार उतारा, और पानी को तूदे की तरह खड़ा कर दिया।14उसने दिन को बादल से उनकी रहबरी की, और रात भर आग की रोशनी से।15उसने वीरान में चट्टानों को चीरा, और उनको जैसे बहर से खू़ब पिलाया।16उसने चट्टान ~में से नदियाँ जारी कीं, और दरियाओं की तरह पानी बहाया।17तोभी वह उसके ख़िलाफ़ गुनाह करते ही गए, और वीरान में हक़ता'ला से सरकशी करते रहे।18अौर उन्होंने अपनी ख़्वाहिश के मुताबिक़ खाना मांग कर अपने दिल में ख़ुदा को आज़माया।19बल्कि वह ख़ुदा के खि़लाफ़ बकने लगे, और कहा, "क्या ख़ुदा वीरान में दस्तरख़्वान बिछा सकता है?20देखो, उसने चट्टान को मारा तो पानी फूट निकला, और नदियाँ बहने लगीं क्या वह रोटी भी दे सकता है?~क्या वह अपने लोगों के लिए गोश्त मुहय्या कर देगा?"21तब ख़ुदावन्द सुन कर गज़बनाक हुआ, और या'कू़ब के ख़िलाफ़ आग भड़क उठी, और इस्राईल पर क़हर टूट पड़ा;22इसलिए कि वह ख़ुदा पर ईमान न लाए, और उसकी नजात पर भरोसा न किया।23तोभी उसने आसमानों को हुक्म दिया, और आसमान के दरवाज़े खोले:24और खाने के लिए उन पर मन्न बरसाया, और उनको आसमानी खू़राक बख़्शी।25~इन्सान ने फ़रिश्तों की गिज़ा खाई: उसने खाना भेजकर उनको आसूदा किया।26उसने आसमान में पुर्वा चलाई, और अपनी कु़दरत से दखना बहाई|27उसने उन पर गोश्त को ख़ाक की तरह बरसाया, और परिन्दों को समन्दर की रेत की तरह;28जिनको उसने उनकी खे़मागाह में, उनके घरों के आसपास गिराया।29तब वह खाकर खू़ब सेर हुए, और उसने उनकी ख़्वाहिश पूरी की।30वह अपनी ख्वाहिश से बाज़ न आए, और उनका खाना उनके मुँह ही में था|31कि ख़ुदा का ग़ज़ब उन पर टूट पड़ा, और उनके सबसे मोटे ताज़े आदमी क़त्ल किए, और इस्राइली जवानों को मार गिराया।32बावुजूद इन सब बातों कि वह गुनाह करते ही रहे; और उसके~'अजीब-ओ-ग़रीब कामों पर ईमान न लाए।33इसलिए उसने उनके दिनों को बतालत से, और उनके बरसों को दहशत से तमाम कर दिया।34जब वह उनको कत्ल करने लगा, तो~वह उसके तालिब हुए; और रुजू होकर दिल-ओ-जान से ख़ुदा को ढूंडने लगे।35और उनको याद आया कि ख़ुदा उनकी चट्टान, और हक़ता'ला उनका फ़िदिया देने वाला है|36लेकिन उन्होंने अपने मुँह से उसकी ख़ुशामद की, और अपनी ज़बान से उससे झूट बोला।37क्यूँकि उनका दिल उसके सामने दुरुस्त~और वह उसके~'अहद में वफ़ादार न~निकले।38लेकिन वह रहीम होकर बदकारी मु'आफ़ करता है, और हलाक नहीं करता; बल्कि बारहा अपने क़हर को रोक लेता है, और अपने पूरे ग़ज़ब को भड़कने नहीं~देता।39~और उसे याद रहता है कि यह महज़ बशर है| या'नी हवा जो चली जाती है और फिर नहीं आती |40कितनी बार उन्होंने वीरान में उससे सरकशी की और सेहरा में उसे दुख किया।41और वह फिर ख़ुदा को आज़माने लगे और उन्होंने इस्राईल के ख़ुदा को नाराज़ किया |42उन्होंने उसके हाथ को याद न रखा, न उस दिन की जब उसने फ़िदिया देकर उनको मुख़ालिफ़ से रिहाई~बख़्शी|43~उसने मिस्र में अपने निशान दिखाए, और जु'अन के 'इलाके में अपने अजाइब।44और उनके दरियाओं को खू़न बना दिया~और वह अपनी नदियों से पी न सके।,45उसने उन पर मच्छरों के ग़ोल भेजे~जो उनको खा गए और मेंढ़क जिन्होंने उनको तबाह कर~दिया।~,46उसने उनकी पैदावार कीड़ों कोऔर उनकी मेहनत का फल~टिड्डियों को दे दिया।~,47उसने उनकी ताकों को ओलों से, और उनके गूलर के दरख़्तों को~पाले से मारा।48उसने उनके चौपायों को ओलों के~हवाले किया, और उनकी भेड़ बकरियों को बिजली के।49उसने~'अज़ाब के फ़रिश्तों की फ़ौज भेज कर अपनी क़हर की शिद्दत ग़ैज़-ओ-ग़जब और बला को उन पर नाज़िल किया।50उसने अपने क़हर के लिए रास्ता बनाया, और उनकी जान मौत से न बचाई, बल्कि उनकी ज़िन्दगी वबा के हवाले की |51उसने मिस्र के सब पहलौठों को, या'नी हाम के घरों में उनकी ताक़त के पहले फल को मारा~:52लेकिन वह अपने लोगों को भेड़ों की तरह ले चला, और वीरान में ग़ल्ले की तरह उनकी रहनुमाई की।53और वह उनको सलामत ले गया और वह न डरे, लेकिन उनके दुश्मनों को समन्दर ने छिपा लिया।54और वह उनको अपने मक़दिस की सरहद तक लाया, ~या'नी उस पहाड़ तक जिसे उसके दहने हाथ ने हासिल किया था।55उसने और क़ौमों को उनके सामने से निकाल दिया; जिनकी मीरास जरीब डाल कर उनको बाँट दी; और जिनके खे़मों में इस्राईल के क़बीलों को बसाया।56तोभी उन्होंने ख़ुदाता'ला को आज़मायाऔर उससे सरकशी की, और उसकी शहादतों को न माना;57~बल्कि नाफ़रमान होकर अपने बाप दादा की तरह बेवफ़ाई की और धोका देने वाली कमान की तरह एक तरफ़ को झुक गए।58क्यूँकि उन्होंने अपने ऊँचे मक़ामों के वजह से उसका क़हर भड़काया, और अपनी खोदी हुई मूरतों से उसे गै़रत दिलाई।59~ख़ुदा यह सुनकर गज़बनाक हुआ, और इस्राईल से सख़्त नफ़रत की।60~फिर उसने सैला के घर को छोड़ दिया, या'नी उस खे़मे को जो बनी आदम के बीच खड़ा किया था।61और उसने अपनी ताक़त को ग़ुलामी में, और अपनी हश्मत को मुख़ालिफ़ के हाथ में दे दिया।62~उसने अपने लोगों को तलवार के हवाले कर दिया, और वह अपनी मीरास से ग़ज़बनाक हो गया।63आग उनके जवानों को खा गई,, और उनकी कुँवारियों के सुहाग न गाए गए।64उनके काहिन तलवार से मारे गए, और उनकी बेवाओं ने नौहा न किया।65तब ख़ुदावन्द जैसे नींद से जाग उठा, उस ज़बरदस्त आदमी की तरह जो मय की वजह से ललकारता हो।66और उसने अपने मुख़ालिफ़ों को मार कर पस्पा कर दिया; ~उसने उनको हमेशा के लिए रुस्वा किया।67और उसने यूसुफ़ के ख़मे को छोड़ दिया; और इफ़्राईम के क़बीले को न चुना;68बल्कि यहूदाह के क़बीले को चुना! उसी कोह-ए-सिय्यून को जिससे उसको मुहब्बत थी।69और अपने मक़दिस को पहाड़ों की तरह तामीर किया, और ज़मीन की तरह जिसे उसने हमेशा के लिए क़ायम किया है।70उसने अपने बन्दे दाऊद को भी चुना, और भेड़सालों में से उसे ले लिया;71वह उसे बच्चे वाली भेड़ों की चौपानी से हटा लाया, ताकि उसकी क़ौम या'कू़ब और उसकी मीरास इस्राईल की ग़ल्लेबानी करे।72फिर उसने ख़ुलूस-ए-दिल से उनकी पासबानी की और अपने माहिर हाथों से उनकी रहनुमाई करता रहा |
1ऐ ख़ुदा, क़ौमें तेरी मीरास में घुस आई हैं; उन्होंने तेरी पाक हैकल को नापाक किया है; उन्होंने यरूशलीम को खण्डर बना दिया2उन्होंने तेरे बन्दों की लाशों को आसमान के परिन्दों की, और तेरे पाक लोगों के गोश्त को ज़मीन के दरिंदों की खू़राक बना दिया है।3उन्होंने उनका खू़न यरूशलीम के गिर्द पानी की तरह बहाया, और कोई उनको दफ़्न करने वाला न था।4हम अपने पड़ोसियों की मलामत का निशाना हैं; और अपने आसपास के लोगों के तमसख़ुरऔर मज़ाक की वजह|5ऐ ख़ुदावन्द, कब तक?~क्या तू हमेशा के लिए नाराज़ रहेगा?~क्या तेरी गै़रत आग की तरह भड़कती रहेगी?6अपना क़हर उन क़ौमों पर जो तुझे नहीं पहचानतीं, और उन ममलुकतों पर जो तेरा नाम नहीं लेतीं, उँडेल दे।7क्यूँकि उन्होंने या'कू़ब को खा लिया, और उसके घर को उजाड़ दिया है।8हमारे बाप-दादा के गुनाहों को हमारे ख़िलाफ़ याद न कर; ~तेरी रहमत जल्द हम तक पहुँचे, क्यूँकि हम बहुत पस्त हो गए हैं।9ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा, अपने नाम के जलाल की ख़ातिर हमारी मदद कर; अपने नाम की ख़ातिर हम को छुड़ाऔर हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा दे।10क़ौमें क्यूँ कहें कि उनका ख़ुदा कहाँ है? तेरे बन्दों के बहाए हुए खू़न का बदला, हमारी आँखों के सामने क़ौमों पर ज़ाहिर हो जाए।11कै़दी की आह तेरे सामने तक पहुँचे: अपनी बड़ी कु़दरत से मरने वालों को बचा ले।12ऐ ख़ुदावन्द, हमारे पड़ोसियों की ता'नाज़नी, जो वह तुझ पर करते रहे हैं, उल्टी सात गुना उन्ही के दामन में डाल दे।13तब हम जो तेरे लोग और तेरी चरागाह की भेड़ें हैं, हमेशा तेरी शुक्रगुज़ारी करेंगे; हम नसल दर नसल तेरी सिताइश करेंगे |
1ऐ इस्राईल के चौपान! तू जो ग़ल्ले की तरह यूसुफ़ को ले चलता है, कान लगा! तू जो करूबियों पर बैठा है, जलवागर हो!2इफ़्राईम-ओ-बिनयमीन और मनस्सी के सामने अपनी कु़व्वत को बेदार कर, और हमें बचाने को आ!3ऐ ख़ुदा, हम को बहाल कर; और अपना चेहरा चमका, तो हम बच जाएँगे।4ऐ ख़ुदावन्द लश्करों के ख़ुदा, तू कब तक अपने लोगों की दु'आ से नाराज़ रहेगा?5तूने उनको आँसुओं की रोटी खिलाई, और पीने को कसरत से आँसू ही दिए।6तू हम को हमारे पड़ोसियों के लिए झगड़े का ज़रिए' बनाता है, और हमारे दुश्मन आपस में हँसते हैं।7ऐ लश्करों के ख़ुदा, हम को बहाल कर; और अपना चेहरा चमका, तो हम बच जाएँगे।8तू मिस्र से एक ताक लाया; तूने क़ौमों को ख़ारिज करके उसे लगाया।9तूने उसके लिए जगह तैयार की; उसने गहरी जड़ पकड़ी और ज़मीन को भर दिया।10पहाड़ उसके साये में छिप गए, और उसकी डालियाँ ख़ुदा के देवदारों की तरह थीं।11~उसने अपनी शाख़ समन्दर तक फैलाई, और अपनी टहनियाँ दरिया-ए-फरात तक।12फिर तूने उसकी बाड़ों को क्यूँ तोड़ डाला, कि सब आने जाने वाले उसका फल तोड़ते हैं?13जंगली सूअर उसे बरबाद करता है, और जंगली जानवर उसे खा जातेहैं।14ऐ लश्करों के ख़ुदा, हम तेरी मिन्नत करते हैं, फिर मुतक्ज्जिह हो! आसमान पर से निगाह कर और देख, और इस ताक की निगहबानी फ़रमा|15और उस पौदे की भी जिसे तेरे दहने हाथ ने लगाया है, ~और उस शाख़ की जिसे तूने अपने लिए मज़बूत किया है।16यह आग से जली हुई है, यह कटी पड़ी है; वह तेरे मुँह की झिड़की से हलाक हो जाते हैं।17तेरा हाथ तेरी दहनी तरफ़ के इन्सान पर हो, उस इब्न-ए-आदम पर जिसे तूने अपने लिए मज़बूत किया है।18फिर हम तुझ से नाफ़रमान न होंगे: तू हम को फिर ज़िन्दा कर और हम तेरा नाम लिया करेंगे।19ऐ ख़ुदा वन्द लश्करों के ख़ुदा! हम को बहाल कर; अपना ~चेहरा चमका तो हम बच जाएँगे!
1ख़ुदा के सामने जो हमारी ताक़त है, बुलन्द आवाज़ से गाओ; ~या'क़ूब के ख़ुदा के सामने ख़ुशी का नारा मारो~!2नग़मा छेड़ो, और दफ़ लाओ और दिलनवाज़ सितार और बरबत।3नए चाँद और पूरे चाँद के वक़्त, हमारी 'ईद के दिन नरसिंगा फूँको।4क्यूँकि यह इस्राईल के लिए क़ानून, और या'क़ूब के ख़ुदा का हुक्म है।5~इसको उसने यूसुफ़ में शहादत ठहराया, जब वह मुल्क-ए-मिस्र के ख़िलाफ़ निकला। मैंने उसका कलाम सुना, जिसको मैं जानता न था6~'मैंने उसके कंधे पर से बोझ उतार दिया; उसके हाथ टोकरी ढोने से छूट गए।7तूने मुसीबत में पुकारा और मैंने तुझे छुड़ाया; मैंने राद के पर्दे में से तुझे जवाब दिया; मैंने तुझे मरीबा के चश्मे पर आज़माया।~(सिलाह)8ऐ मेरे लोगो,~सुनो, मैं तुम को होशियार करता हूँ! ऐ इस्राईल, ~काश के तू मेरी सुनता!9तेरे बीच कोई गै़र मा'बूद न हो; और तू किसी गै़र मा'बूद को सिज्दा न करना10ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा मैं हूँ, जो तुझे मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया। तू अपना मुँह खू़ब खोल और मैं उसे भर दूँगा।11"लेकिन मेरे लोगों ने मेरी बात न सुनी, और इस्राईल मुझ से रज़ामंद न हुआ।12तब मैंने उनको उनके दिल की हट पर छोड़ दिया, ताकि वह अपने ही मश्वरों पर चलें।13काश कि मेरे लोग मेरी सुनते, और इस्राईल मेरी राहों पर चलता~!14मैं जल्द उनके दुश्मनों को मग़लूब कर देता, और उनके मुखालिफ़ों पर अपना हाथ चलाता ।15~ख़ुदावन्द से~'अदावत रखने वाले उसके ताबे"~हो जाते, ~और इनका ज़माना हमेशा तक बना रहता।16~वह इनको अच्छे से अच्छा गेहूँ खिलाता और मैं तुझे चट्टान में के शहद से शेर करता |
1ख़दा की जमा'अत में ख़ुदा मौजूद है| वह इलाहों के बीच~'अदालत करता है~:2तुम कब तक बेइन्साफ़ी से~'अदालत करोगे, और शरीरों की तरफ़दारी करोगे? (सिलाह)3ग़रीब और यतीम का इन्साफ़ करो, ग़मज़दा और मुफ़लिस के साथ इन्साफ़ से पेश आओ।4ग़रीब और मोहताज को बचाओ; शरीरों के हाथ से उनको छुड़ाओ।"5वह न तो कुछ जानते हैं न समझते हैं, वह अंधेरे में इधर उधर चलते हैं; ज़मीन की सब बुनियादें हिल गई हैं।6मैंने कहा था, "तुम इलाह हो, और तुम सब हक़ता'ला के फ़र्ज़न्द हो;7तोभी तुम आदमियों की तरह मरोगे, और 'उमरा में से किसी की तरह गिर जाओगे।"8~ऐ ख़ुदा! उठ ज़मीन की 'अदालत कर क्यूँकि तू ही सब क़ौमों का मालिक होगा।
1ऐ ख़ुदा! ~ख़ामोश न रह; ऐ ख़ुदा! चुपचाप न हो और ख़ामोशी इख़्तियार न कर।2~क्यूँकि देख तेरे दुश्मन ऊधम मचाते हैं और तुझ से~'अदावत रखने वालों ने सिर उठाया है।3क्यूँकि वह तेरे लोगों के ख़िलाफ़ मक्कारी से मन्सूबा बाँधते हैं, और उनके ख़िलाफ़ जो तेरी पनाह में हैं मशवरा करते हैं।4उन्होंने कहा, "आओ, हम इनको काट डालें कि उनकी क़ौम ही न रहे; और इस्राईल के नाम का फिर ज़िक्र न हो|"5क्यूँकि उन्होंने एक हो कर के आपस में मश्वरा किया है, वह तेरे ख़िलाफ़~'अहद बाँधते हैं।6या'नी अदूम के अहल-ए-ख़ैमा और इस्माइली मोआब और हाजरी,7जबल और'अम्मून और~'अमालीक़, फ़िलिस्तीन और सूर के बाशिन्दे,8असूर भी इनसे मिला हुआ है; उन्होंने बनी लूत की मदद की है।9तू उनसे ऐसा कर जैसा मिदियान से, और जैसा वादी-ए-कैसून में सीसरा और याबीन से किया था।10जो~'ऐन दोर में हलाक हुए, वह जैसे ज़मीन की खाद हो गए11उनके सरदारों को~'ओरेब और ज़ईब की तरह, बल्कि उनके शाहज़ादों को ज़िबह और ज़िलमना'~की तरह बना दे;12जिन्होंने कहा है, "आओ, हम ख़ुदा की बस्तियों पर कब्ज़ा कर लें।"13~ऐ मेरे ख़ुदा, उनको बगोले की गर्द की तरह बना दे, और जैसे हवा के आगे डंठल।14उस आग की तरह जो जंगल को जला देती है, उस शो'ले की तरह जो पहाड़ों मेंआग लगा देता है;15तू इसी तरह अपनी आँधी से उनका पीछा कर, और अपने तूफ़ान से उनको परेशान कर दे।16ऐ ख़ुदावन्द! उनके चेहरों पर रुस्वाई तारी कर, ताकि वह तेरे नाम के तालिब हों।17वह हमेशा शर्मिन्दा और परेशान रहें, बल्कि वह रुस्वा होकर हलाक हो जाएँ18ताकि वह जान लें कि तू ही जिसका यहोवा है, ज़मीन पर बुलन्द-ओ-बाला है|
1ऐ लश्करों के ख़ुदावन्द! तेरे घर क्या ही दिलकश हैं!2मेरी जान ख़ुदावन्द की बारगाहों की मुश्ताक़ है, बल्कि गुदाज़ हो चली, मेरा दिल और मेरा जिस्म ज़िन्दा ख़ुदा के लिए ख़ुशी से ललकारते हैं।3ऐ लश्करों के ख़ुदावन्द! ऐ मेरे बादशाहऔर मेरे ख़ुदा! तेरे मज़बहों के पास गौरया ने अपनाआशियाना, और अबाबील ने अपने लिए घोंसला बना लिया, जहाँ वह अपने बच्चों को रख्खे।4मुबारक हैं वह जो तेरे घर में रहते हैं, वह हमेशा तेरी ता'रीफ़ करेंगे। (मिलाह)5मुबारक है वह आदमी, जिसकी ताक़त तुझ से है, जिसके दिल में सिय्यून की शाह राहें हैं।6वह वादी-ए-बुका से गुज़र कर उसे चश्मों की जगह बना लेते हैं, बल्कि पहली बारिश उसे बरकतों से मा'मूर कर देती है।7वह ताक़त पर ताक़त पाते हैं; उनमें से हर एक सिय्यून में ख़ुदा के सामने हाज़िर होता है।8ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा, मेरी दु'आ सुन ऐ या'क़ूब के ख़ुदा! कान लगा! (सिलाह)9ऐ ख़ुदा! ऐ हमारी सिपर! ~देख; और अपने मम्सूह के चेहरे पर नजर कर ।10क्यूँकि तेरी बारगाहों में एक दिन हज़ार से बेहतर है। मैं अपने ख़ुदा के घर का दरबान होना, शरारत के खे़मों में बसने से ज़्यादा पसंद करूँगा।11क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा, आफ़ताब और ढाल है; ख़ुदावन्द फ़ज़ल और जलाल बख़्शेगा वह ~रास्तरू से कोई ने'मत बाज़ न रख्खेगा।12ऐ लश्करों के ख़ुदावन्द! मुबारक है वह आदमी जिसका भरोसा तुझ पर है।
1~ऐ ख़ुदावन्द तू अपने मुल्क पर मेहरबान रहा है| तू या'क़ूब को ग़ुलामी से वापस लाया है।2तूने अपने लोगों की बदकारी मु'आफ़ कर दी है; तूने उनके सब गुनाह ढाँक दिए हैं।3तूने अपना ग़ज़ब बिल्कुल उठा लिया; तू अपने क़हर-ए-शदीद से बाज़ आया है।4ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा! हम को बहाल कर, अपना ग़ज़ब हम से दूर कर!5क्या तू हमेशा हम से नाराज़ रहेगा? क्या तू अपने क़हर को नसल दर नसल जारी रख्खेगा?6~क्या तू हम को फिर ज़िन्दा न करेगा, ताकि तेरे लोग तुझ में ख़ुश हों?7ऐ ख़ुदावन्द! तू अपनी शफ़क़त हमको दिखा, और अपनी नजात हम को बख़्श।8मैं सुनूँगा कि ख़ुदावन्द ख़ुदा क्या फ़रमाता है| क्यूँकि वह अपने लोगों और अपने पाक लोगों से सलामती की बातें करेगा; लेकिन वह फिर हिमाक़त की तरफ़ रुजू न करें।9~यक़ीनन उसकी नजात उससे डरने वालों के क़रीब है, ~ताकि जलाल हमारे मुल्क में बसे।10शफ़क़त और रास्ती एक साथ मिल गई हैं, सदाक़त और सलामती ने एक दूसरे का बोसा लिया है।11रास्ती ज़मीन से निकलती है, और सदाक़त आसमान पर से झाँकती हैं।12जो कुछ अच्छा है वही ख़ुदावन्द अता फ़रमाएगा और हमारी ज़मीन अपनी पैदावार देगी|13सदाक़त उसके आगे-आगे चलेगी, उसके नक़्श-ए-क़दम को हमारी राह बनाएगी|
1ऐ ख़ुदावन्द! अपना कान झुका और मुझे जवाब दे, क्यूँकि मैं ग़रीब और मोहताज हूँ।2मेरी जान की हिफ़ाज़त कर, क्यूँकि मैं दीनदार हूँ, ऐ मेरे ख़ुदा! अपने बन्दे को, जिसका भरोसा तुझ पर है, बचा ले।3या रब्ब, मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मैं दिन भर तुझ से फ़रियाद करता हूँ।4या रब्ब, अपने बन्दे की जान को ख़ुश कर दे, क्यूँकि मैं अपनी जान तेरी तरफ़ उठाता हूँ।5इसलिए कि तू या रब्ब, नेक और मु'आफ़ करने को तैयार है, और अपने सब दु'आ करने वालों पर शफ़क़त में ग़नी है।6ऐ ख़ुदावन्द, मेरी दु'आ पर कान लगा, और मेरी मिन्नत की आवाज़ पर तवज्जुह फ़रमा।7मैं अपनी मुसीबत के दिन तुझ से दु'आ करूँगा, क्यूँकि तू मुझे जवाब देगा।8या रब्ब, मा'मूदों में तुझ सा कोई नहीं, और तेरी कारीगरी बेमिसाल हैं।9या रब्ब, सब क़ौमें जिनको तूने बनाया, आकर तेरे सामने सिज्दा करेंगी और तेरे नाम की तम्जीद करेंगी।10क्यूँकि तू बुजु़र्ग है और 'अजीब-ओ-ग़रीब काम करता है, ~तू ही अकेला ख़ुदा है।11ऐ ख़ुदावन्द, मुझ को अपनी राह की ता'लीम दे, मैं तेरी रास्ती में चलूँगा; मेरे दिल को यकसूई बख़्श, ताकि तेरे नाम का ख़ौफ़ मानूँ।12या रब्ब! मेरे ख़ुदा, मैं पूरे दिल से तेरी ता'रीफ़ करूँगा; मैं हमेशा तक तेरे नाम की तम्जीद करूँगा।13क्यूँकि मुझ पर तेरी बड़ी शफ़क़त है; और तूने मेरी जान को पाताल की तह से निकाला है।14ऐ ख़ुदा, मग़रूर मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं, और टेढ़े लोगों जमा'अत मेरी जान के पीछे पड़ी है, और उन्होंने तुझे अपने सामने नहीं रख्खा।15लेकिन तू या रब्ब, रहीम-ओ-करीम ख़ुदा है, क़हर करने में धीमा और शफ़क़त-ओ-रास्ती में ग़नी।16मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो और मुझ पर रहम कर; अपने बन्दे को अपनी ताक़त बख़्श, और अपनी लौंडी के बेटे को बचा ले।17मुझे भलाई का कोई निशान दिखा, ताकि मुझ से 'अदावत रखने वाले इसे देख कर शर्मिन्दा हों क्यूँकि तूने ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मदद की, और मुझे तसल्ली दी है।
1उसकी बुनियाद पाक पहाड़ों में है|2ख़ुदावन्द सिय्यून के फाटकों को या'क़ूब के सब घरों से ज़्यादा 'अज़ीज़ रखता है।3ऐ ख़ुदा के शहर! तेरी बड़ी बड़ी खू़बियाँ बयान की जाती हैं।~(सिलाह)4मैं रहब और बाबुल का यूँ ज़िक्र करूँगा, कि वह मेरे जानने वालों में हैं; फ़िलिस्तीन और सूर और कूश को देखो, यह वहाँ पैदा हुआ था।5बल्कि सिय्यून के बारे में कहा जाएगा, कि फ़लाँ फ़लाँ आदमी उसमें पैदा हुए। "और हक़ता'ला ख़ुद उसको क़याम बख़्शेगा।6~ख़ुदावन्द क़ौमों के शुमार के वक़्त दर्ज करेगा, कि यह शख़्स वहाँ पैदा हुआ था।7गाने वाले और नाचने वाले यही कहेंगे कि मेरे सब चश्में तुझ ही में हैं।"
1ऐ ख़ुदावन्द, मेरी नजात देने वाले ख़ुदा, मैंने रात दिन तेरे सामने फ़रियाद की है।2मेरी दु'आ तेरे सामने पहुँचे, मेरी फ़रियाद पर कान लगा!3क्यूँकि मेरा दिल दुखों से भरा है, और मेरी जान पाताल के नज़दीक पहुँच गई है।4मैं क़ब्र में उतरने वालों के साथ गिना जाता हूँ। मैं उस शख़्स की तरह हूँ, जो बिल्कुल बेकस हो।5~जैसे मक़्तूलो की तरह जो क़ब्र में पड़े हैं, मुर्दों के बीच डाल दिया गया हूँ, जिनको तू फिर कभी याद नहीं करता और वह तेरे हाथ से काट डाले गए।6तूने मुझे गहराओ में, अंधेरी जगह में, पाताल की तह में रख्खा है।7मुझ पर तेरा क़हर भारी है, तूने अपनी सब मौजों से मुझे दुख दिया है।(सिलाह)8तूने मेरे जान पहचानों को मुझ से दूर कर दिया; तूने मुझे उनके नज़दीक घिनौना बना दिया। मैं बन्द हूँ और निकल नहीं सकता।9~मेरी आँख दुख से धुंधला चली। ऐ ख़ुदावन्द, मैंने हर रोज़ तुझ से दु'आ की है; मैंने अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाए हैं।10क्या तू मुर्दों को~'अजाइब दिखाएगा? क्या वह जो मर गए हैं उठ कर तेरी ता'रीफ़ करेंगे?(सिलाह)11क्या तेरी शफ़क़त का ज़िक्र क़ब्र में होगा, या तेरी वफ़ादारी का जहन्नुम में?12क्या तेरे~'अजाइब को अंधेरे में पहचानेंगे, और तेरी सदाक़त को फ़रामोशी की सरज़मीन में?13लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तो तेरी दुहाई दी है; और सुबह को मेरी दु'आ तेरे सामने पहुँचेगी।14ऐ ख़ुदावन्द, तू क्यूँ। मेरी जान को छोड़ देता है?~तू अपना चेहरा मुझ से क्यूँ छिपाता है?15मैं लड़कपन ही से मुसीबतज़दा और मौत के क़रीब हूँ मैं तेरे डर के मारे बद हवास हो गया।16तेरा क़हर-ए-शदीद मुझ पर आ पड़ा: तेरी दहशत ने मेरा काम तमाम कर दिया।17उसने दिनभर सैलाब की तरह मेरा घेराव किया; उसने मुझे बिल्कुल घेर लिया।18तूने दोस्त व अहबाब को मुझ से दूर किया और मेरे जान पहचानों को अंधेरे में डाल ~दिया है।
1~मैं हमेशा ख़ुदावन्द की शफ़क़त के हम्द गाऊँगा| मैं नसल दर नसल अपने मुँह से तेरी वफ़ादारी का~'ऐलान करूँगा।2क्यूँकि मैंने कहा कि शफ़क़त हमेशा तक बनी रहेगी, तू अपनी वफ़ादारी को आसमान में क़ायम रखेगा।"3~"मैंने अपने बरगुज़ीदा के साथ~'अहद बाँधा है मैंने अपने बन्दे दाऊद से क़सम खाई है;4मैं तेरी नसल को हमेशा के लिए क़ायम करूँगा, और तेरे तख़्त को नसल दर नसल बनाए रखूँगा।" (सिलाह)5ऐ ख़ुदावन्द, आसमान तेरे~'अजाइब की ता'रीफ़ करेगा; ~पाक लोगों के मजमे'~में तेरी वफ़ादारी की ता'रीफ़ होगी।6~क्यूँकि आसमान पर ख़ुदावन्द का नज़ीर कौन है?~फ़रिश्तों की जमा'त में कौन ख़ुदावन्द की तरह है?7~ऐसा मा'बूद जो पाक लोगो की महफ़िल में बहुत ता'ज़ीम के लायक़ है, और अपने सब चारों तरफ़ वालों से ज़्यादा बड़ा है।8ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा, ऐ याह! तुझ सा ज़बरदस्त कौन है?~तेरी वफ़ादारी तेरे चारों तरफ़ है।9समन्दर के जोश-ओ-ख़रोश पर तू हुक्मरानी करता है; तू उसकी उठती लहरों को थमा देता है।10तूने रहब को मक़्तूल की तरह टुकड़े टुकड़े किया; तूने अपने क़वी बाज़ू से अपने दुश्मनों को तितर बितर कर दिया।11आसमान तेरा है, ज़मीन भी तेरी है; जहान और उसकी मा'मूरी को तू ही ने क़ायम किया है।12उत्तर और दाख्खिन का पैदा करने वाला तू ही है; तबूर और हरमून तेरे नाम से ख़ुशी मनाते हैं।13तेरा बाज़ू कु़दरत वाला है; तेरा हाथ क़वी और तेरा दहना हाथ बुलंद है।14सदाक़त और~'अद्ल तेरे तख़्त की बुनियाद हैं; शफ़क़त और वफ़ादारी तेरे आगे आगे चलती हैं।15मुबारक है वह क़ौम, जो खु़शी की ललकार को पहचानती है, ~वह ऐ ख़ुदावन्द, जो तेरे चेहरे के नूर में चलते हैं;16वह दिनभर तेरे नाम से ख़ुशी मनाते हैं, और तेरी सदाक़त से सरफराज़ होते हैं।17क्यूँकि उनकी ताक़त की शान तू ही हैऔर तेरे करम से हमारा सींग बुलन्द होगा।18क्यूँकि हमारी ढाल ख़ुदावन्द की तरफ़ से है, और हमारा बादशाह इस्राईल के क़ुद्दूस की तरफ़ से।19उस वक़्त तूने ख़्वाब में अपने पाक लोगों से कलाम किया, और फ़रमाया, "मैंने एक ज़बरदस्त को मददगार बनाया है, ~और क़ौम में से एक को चुन कर सरफ़राज़ किया है।20मेरा बन्दा दाऊद मुझे मिल गया, अपने पाक तेल से मैंने उसे मसह किया है।21मेरा हाथ उसके साथ रहेगा, मेरा बाजू़ उसे तक़वियत देगा।22दुश्मन उस पर जब्र न करने पाएगा, और शरारत का फ़र्ज़न्द उसे न सताएगा।23मैं उसके मुख़ालिफ़ों को उसके सामने मग़़लूब करूँगा और उससे~'अदावत रखने वालों को मारूँगा।24लेकिन मेरी वफ़ादारी और शफ़क़त उसके साथ रहेंगी, ~और मेरे नाम से उसका सींग बुलन्द होगा।25मैं उसका हाथ समन्दर तक बढ़ाऊँगा, और उसके दहने हाथ को दरियाओं तक।26वह मुझे पुकार कर कहेगा, 'तू मेराबाप, मेरा ख़ुदा, और मेरी नजात की चट्टान है।'27और मैं उसको अपना पहलौठा बनाऊँगा और दुनिया का शहंशाह।28मैं अपनी शफ़क़त को उसके लिए हमेशा तक क़ायम रखूँगा और मेरा~'अहद उसके साथ लातब्दील रहेगा।29मैं उसकी नसल को हमेशा तक क़ायम रख्खूंगा, और उसके तख़्त को जब तक आसमानहै।30अगर उसके फ़र्ज़न्द मेरी शरी'अत को छोड़ दें, और मेरे अहकाम पर न चलें,31अगर वह मेरे क़ानून को तोड़ें, और मेरे फ़रमान को न मानें,32तो मैं उनको छड़ी से ख़ता की, और कोड़ों से बदकारी की सज़ा दूँगा।33लेकिन मैं अपनी शफ़क़त उस पर से हटा न लूँगा, और अपनी वफ़ादारी को बेकार न होने न दूँगा।34मैं अपने~'अहद को न तोडूँगा, और अपने मुँह की बात को न बदलूँगा।35मैं एक बार अपनी पाकी की क़सम खा चुका हूँ मैं दाऊद से झूट न बोलूँगा।36उसकी नसल हमेशा क़ायम रहेगी, और उसका तख़्त आफ़ताब की तरह मेरे सामने क़ायम रहेगा।37वह हमेशा चाँद की तरह, और आसमान के सच्चे गवाह की तरह क़ायम रहेगा।"(मिलाह)38लेकिन तूने तो तर्क कर दिया और छोड़ दिया, तू अपने मम्सूह से नाराज़ हुआ है।39तूने अपने ख़ादिम के~'अहद को रद्द कर दिया, तूने उसके ताज को ख़ाक में मिला दिया।40तूने उसकी सब बाड़ों को तोड़ डाला, तूने उसके क़िलों'~को खण्डर बना दिया।41सब आने जाने वाले उसे लूटते हैं, वह अपने पड़ोसियों की मलामत का निशाना बन गया।42तूने उसके मुख़ालिफ़ों के दहने हाथ को बुलन्द किया; तूने उसके सब दुश्मनों को ख़ुश किया।43~बल्कि तू उसकी तलवार की धार को मोड़ देता है, और लड़ाई में उसके पाँव को जमने नहीं दिया।44तूने उसकी रौनक़ उड़ा दी, और उसका तख़्त ख़ाक में मिला दिया।45तूने उसकी जवानी के दिन घटा दिए, तूने उसे शर्मिन्दा कर दिया है।(सिलाह)46ऐ ख़ुदावन्द, कब तक?~क्या तू हमेशा तक पोशीदा रहेगा?~तेरे क़हर की आग कब तक भड़कती रहेगी?47याद रख मेरा क़याम ही क्या है, तूने कैसी बतालत के लिए कुल बनी आदम को पैदा किया।48वह कौन सा आदमी है जो ज़िन्दा ही रहेगा और मौत को न देखेगा, और अपनी जान को पाताल के हाथ से बचा लेगा? (सिलाह)49या रब्ब, तेरी वह पहली शफ़क़त क्या हुई, जिसके बारे में तूने दाऊद से अपनी वफ़ादारी की क़सम खाई थी?50या रब्ब, अपने बन्दों की रुस्वाई को याद कर; मैं तो सब ज़बरदस्त क़ौमों की ता'नाज़नी, अपने सीने में लिए फिरता हूँ।51~ऐ ख़ुदावन्द, तेरे दुश्मनों ने कैसे ता'ने मारे, तेरे मम्सूह के क़दम क़दम पर कैसी ता'नाज़नी की है।52ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा तक ~मुबारक हो! आमीन सुम्मा आमीन |
1या रब्ब, नसल दर नसल, तू ही हमारी पनाहगाह रहा है।2इससे पहले के पहाड़ पैदा हुए, या ज़मीन और दुनिया को तूने बनाया, इब्तिदा से हमेशा तक तू ही ख़ुदा है।3तू इन्सान को फिर ख़ाक में मिला देता है, और फ़रमाता है, "ऐ बनी आदम, लौट आओ! "4क्यूँकि तेरी नज़र में हज़ार बरस ऐसे हैं, जैसे कल का दिन जो गुज़र गया, और जैसे रात का एक पहर।5तू उनको जैसे सैलाब से बहा ले जाता है; वह नींद की एक झपकी की तरह हैं, वह सुबह को उगने वाली घास की तरह हैं।6वह सुबह को लहलहाती और बढ़ती है, वह शाम को कटती और सूख जातीहै।7क्यूँकि हम तेरे क़हर से फ़ना हो गए; और तेरे ग़ज़ब से परेशान हुए।8तूने हमारी बदकिरदारी को अपने सामने रख्खा, और हमारे छुपे हुए गुनाहों को अपने चेहरे की रोशनी में।9~क्यूँकि हमारे तमाम दिन तेरे क़हर में गुज़रे, हमारी 'उम्र ख़याल की तरह जाती रहती है।10हमारी 'उम्र की मी'आद सत्तर बरस है, या कु़व्वत हो तो अस्सी बरस; तो भी उनकी रौनक़ महज़ मशक्क़त और ग़म है, ~क्यूँकि वह जल्द जाती रहती है और हम उड़ जाते हैं।11तेरे क़हर की शिद्दत को कौन जानता है, और तेरे ख़ौफ़ के मुताबिक़ तेरे ग़ज़ब को?12हम को अपने दिन गिनना सिखा, ऐसा कि हम अक़्लदिल हासिल करें।13ऐ ख़ुदावन्द, बाज़ आ! कब तक? और अपने बन्दों पर रहम फ़रमा~!14सुबह को अपनी शफ़क़त से हम को आसूदा कर, ताकि हम 'उम्र भर ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम रहें।15जितने दिन तूने हम को दुख दिया, और जितने बरस हम मुसीबत में रहे, ~उतनी ही ख़ुशी हम को 'इनायत कर।16~तेरा काम तेरे बन्दों पर, और तेरा जलाल उनकी औलाद पर ज़ाहिर हो।17और रब्ब हमारे ख़ुदा का करम हम पर साया करे। हमारे हाथों के काम को हमारे लिए क़याम बख़्श हाँ हमारे हाथों के काम को क़याम~बख़्श दे |
1जो हक़ता'ला के पर्दे में रहता है, वह क़ादिर-ए-मुतलक़ के साये में सुकूनत करेगा।2~मैं ख़ुदावन्द के बारे में कहूँगा, "वही मेरी पनाह और मेरा गढ़ है; वह मेरा ख़ुदा है, जिस पर मेरा भरोसा है।"3क्यूँकि वह तुझे सय्याद के फंदे से, और मुहलिक वबा से छुड़ाएगा।4वह तुझे अपने परों से छिपा लेगा, और तुझे उसके बाजु़ओं के नीचे पनाह मिलेगी, ~उसकी सच्चाई ढाल और सिपर है।5तू न रात के ख़ौफ़ से डरेगा, न दिन को उड़ने वाले तीर से।6न उस वबा से जो अंधेरे में चलती है, न उस हलाकत से जो दोपहर को वीरान करती है।7तेरे आसपास एक हज़ार गिर जाएँगे, और तेरे दहने हाथ की तरफ़ दस हज़ार; लेकिन वह तेरे नज़दीक न आएगी।8लेकिन तू अपनी आँखों से निगाह करेगा, और शरीरों के अंजाम को देखेगा।9लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, मेरी पनाह है।तूने हक़ता'ला को अपना घर बना लिया है।10तुझ पर कोई आफ़त नहीं आएगी, और कोई वबा तेरे ख़ेमे के नज़दीक न पहुँचेगी।11क्यूँकि वह तेरे बारे में अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा, कि तेरी सब राहों में तेरी हिफ़ाज़त करें।12वह तुझे अपने हाथों पर उठा लेंगे, ताकि ऐसा न हो कि तेरे पाँव को पत्थर से ठेस लगे।13तू शेर-ए-बबर और अज़दहा को रौंदेगा, तू जवान शेर और अज़दहा को पामाल करेगा।14चूँकि उसने मुझ से दिल लगाया है, इसलिए मैं उसे छुड़ाऊँगा; ~मैं उसे सरफ़राज़ करूँगा, क्यूँकि उसने मेरा नाम पहचाना है।15~वह मुझे पुकारेगा और मैं उसे जवाब दूँगा, मैं मुसीबत में उसके साथ रहूँगा, मैं उसे छुड़ाऊँगा और 'इज़्ज़त बख़्शूँगा।16मैं उसे 'उम्र की दराज़ी से आसूदा कर दूँगा और अपनी नजात उसे दिखाऊँगा।
1क्या ही भला है, ख़ुदावन्द का शुक्र करना, और तेरे नाम की मदहसराई करना; ऐ हक़ ता'ला!2सुबह को तेरी शफ़क़त का इज़्हार करना, और रात को तेरी वफ़ादारी का,3दस तार वाले साज़ और बर्बत पर, और सितार पर गूंजती आवाज़ के साथ|4~क्यूँकि, ऐ ख़ुदावन्द, तूने मुझे अपने काम से ख़ुश किया; मैं तेरी कारीगरी की वजह से ख़ुशी मनाऊँगा।5ऐ ख़ुदावन्द, तेरी कारीगरी कैसी बड़ी हैं। तेरे ख़याल बहुत~'अमीक़ हैं।6हैवान ख़सलत नहीं जानताऔर बेवक़ूफ़ इसको नहीं समझता,7जब शरीर घास की तरह उगते हैं, और सब बदकिरदार फूलते फलते हैं, तो यह इसी लिए है कि वह हमेशा के लिए फ़ना हों।8लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, हमेशा से हमेशा तक बुलन्द है।9क्यूँकि देख, ऐ ख़ुदावन्द, तेरे दुश्मन; देख, तेरे दुश्मन हलाक हो जाएँगे; सब बदकिरदार तितर बितर कर दिए जाएँगे।10लेकिन तूने मेरे सींग को जंगली साँड के सींग की तरह बलन्द किया है; मुझ पर ताज़ा तेल मला गया है।11मेरी आँख ने मेरे दुश्मनों को देख लिया, मेरे कानों ने मेरे मुख़ालिफ़ बदकारों का हाल सुन लिया है।12सादिक़ खजूर के दरख़्त ~की तरह सरसब्ज़ होगा। वह लुबनान के देवदार की तरह बढ़ेगा।13जो ख़ुदावन्द के घर में लगाए गए हैं, वह हमारे ख़ुदा की बारगाहों में सरसब्ज़ होंगे।14वह बुढ़ापे में भी कामयाब होंगे, वह तर-ओ-ताज़ा और सरसब्ज़ रहेंगे;15ताकि वाज़ह करें कि ख़ुदावन्द रास्त है वही मेरी चट्टान है और उसमें न रास्ती नहीं |
1ख़ुदावन्द सलतनत करता है वह शौकत से मुलब्बस है ख़ुदावन्द कु़दरत से मुलब्बस है, वह उससे कमर बस्ता है इस लिए जहान क़ायम है और उसे जुम्बिश नहीं।2तेरा तख़्त पहले से क़ायम है, तू इब्तिदा से है।3सैलाबों ने, ऐ ख़ुदावन्द! सैलाबों ने शोर मचा रख्खा है, ~सैलाब मौजज़न हैं।4बहरों की आवाज़ से, समन्दर की ज़बरदस्त मौजों से भी, ~ख़ुदावन्द बलन्द-ओ-क़ादिर है।5तेरी शहादतें बिल्कुल सच्ची हैं; ऐ ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा तक के लिए ~पाकीज़गी तेरे घर को ज़ेबा है |
1ऐ ख़ुदावन्द! ऐ इन्तक़ाम लेने वाले ख़ुदा ऐ इन्तक़ाम लेने वाले ख़ुदा! जलवागर हो!2~ऐ जहान का इन्साफ़ करने वाले! उठ; मग़रूरों को बदला दे!3ऐ ख़ुदावन्द, शरीर कब तक; शरीर कब तक ख़ुशी मनाया करेंगे?4वह बकवास करते और बड़ा बोल बोलत हैं, सब बदकिरदार लाफ़ज़नी करते हैं।5ऐ ख़ुदावन्द! वह तेरे लोगों को पीसे डालते हैं, और तेरी मीरास को दुख देते हैं।6वह बेवा और परदेसी को क़त्ल करते, और यतीम को मार डालते हैं;7और कहते है ख़ुदावन्द नहीं देखेगा और या'कूब का ख़ुदा ख़याल नहीं करेगा।"8ऐ क़ौम के हैवानो! ~ज़रा ख़याल करो; ऐ बेवक़ूफ़ों! तुम्हें कब ~'अक़्ल आएगी?9जिसने कान दिया, क्या वह ख़ुद नहीं सुनता? जिसने आँख बनाई, क्या वह देख नहीं सकता?10क्या वह जो क़ौमों को तम्बीह करता है, और इन्सान को समझ सिखाता है, सज़ा न देगा?11ख़ुदावन्द इन्सान के ख़यालों को जानता है, कि वह बेकार हैं।12~ऐ ख़ुदावन्द, मुबारक है वह आदमी जिसे तू तम्बीह करता, ~और अपनी शरी'अत की ता'लीम देता है।13~ताकि उसको मुसीबत के दिनों में आराम बख्शे, जब तक शरीर के लिए गढ़ा न खोदा जाए।14क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों को नहीं छोड़ेगा, और वह अपनी मीरास को नहीं छोड़ेगा;15क्यूँकि~'अद्ल सदाक़त की तरफ़ रुजू' करेगा, और सब रास्त दिल~उसकी पैरवी करेंगे।16शरीरों के मुक़ाबले में कौन मेरे लिए ~उठेगा? बदकिरदारों के ख़िलाफ़ कौन मेरे लिए खड़ा होगा?17अगर ख़ुदावन्द मेरा मददगार न होता, तो मेरी जान कब की~'आलम-ए-ख़ामोशी में जा बसी होती।18जब मैंने कहा, ‘मेरा पाँव फिसल चला, "तो ऐ ख़ुदावन्द! ~तेरी शफ़क़त ने मुझे संभाल लिया।19जब मेरे दिल में फ़िक्रों की कसरत होती है, तो तेरी तसल्ली मेरी जान को ख़ुश करती है।20क्या शरारत के तख़्त से तुझे कुछ वास्ता होगा, जो क़ानून की आड़ में बदी गढ़ता है?21वह सादिक़ की जान लेने को इकट्ठे होते हैं, और बेगुनाह पर क़त्ल का फ़तवा देते हैं।22लेकिन ख़ुदावन्द मेरा ऊँचा बुर्ज, और मेरा ख़ुदा मेरी पनाह की चट्टान ~रहा है।23वह उनकी बदकारी उन ही पर लाएगा, और उन ही की शरारत में उनको काट डालेगा। ख़ुदावन्द हमारा उनको काट डालेगा।
1आओ हम ख़ुदावन्द के सामने नग़मासराई करे! अपनी नजात की चट्टान के सामने खु़शी से ललकारें।2शुक्रगुज़ारी करते हुए उसके सामने में हाज़िर हों, मज़मूर गाते हुए उसके आगे ख़ुशी से ललकारें।3क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा-ए-'अज़ीम है, और सब इलाहों पर शाह-ए-'अज़ीम है।4ज़मीन के गहराव उसके क़ब्ज़े में हैं; पहाड़ों की चोटियाँ भी उसी की हैं।5समन्दर उसका है, उसी ने उसको बनाया, और उसी के हाथों ने खु़श्की को भी तैयार किया।6आओ हम झुकें और सिज्दा करें, और अपने खालिक़ ख़ुदावन्द के सामने घुटने टेकें!7क्यूँकि वह हमारा ख़ुदा है, और हम उसकी चरागाह के लोग, और उसके हाथ की भेड़ें हैं।काश कि आज के दिन तुम उसकी आवाज़ सुनते!8तुम अपने दिल को सख़्त न करो जैसा मरीबा में, जैसा मस्साह के दिन वीरान में किया था,9उस वक़्त तुम्हारे बाप-दादा ने मुझे आज़माया, और मेरा इम्तिहान किया और मेरे काम को भी देखा।10चालीस बरस तक मैं उस नसल से बेज़ार रहा, और मैने कहा, कि 'ये वह लोग हैं जिनके दिल आवारा हैं, और उन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना।"11चुनाँचे ~मैने अपने ग़ज़ब में क़सम खाई कि यह लोग मेरे आराम में दाख़िल न होंगे |
1ख़ुदावन्द के सामने नया हम्द गाओ! ऐ सब अहल-ए-ज़मीन! ~ख़ुदावन्द के सामने गाओ।2ख़ुदावन्द के~सामने~गाओ, उसके नाम को मुबारक कहो; ~रोज़ ब रोज़ उसकी नजात की बशारत दो।3क़ौमों में उसके जलाल का, सब लोगों में उसके~'अजाइब का बयान करो।4क्यूँकि ख़ुदावन्द बुज़ु़र्ग़ और बहुत। सिताइश के लायक़ है; ~वह सब मा'बूदों से ज़्यादा ता'ज़ीम के लायक़ है।5इसलिए कि और क़ौमों के सब मा'बूद सिर्फ़ बुत हैं; लेकिन ख़ुदावन्द ने आसमानों को बनाया।6अज़मत और जलाल उसके सामने में हैं, क़ुदरत और जमाल उसके मक़दिस में।7ऐ क़ौमों के क़बीलो! ख़ुदावन्द की, ख़ुदावन्द ही की तम्जीद-ओ-ताज़ीम करो~!8ख़ुदावन्द की ऐसी तम्जीद करो जो उसके नाम की शायान है; हदिया लाओ और उसकी बारगाहों में आओ!9पाक आराइश के साथ ख़ुदावन्द को सिज्दा करो; ऐ सब अहल-ए-ज़मीन! उसके सामने काँपते रहो!10क़ौमों में~'ऐलान करो, "ख़ुदावन्द सल्तनत करता है! जहान क़ायम है, और उसे जुम्बिश नहीं; वह रास्ती से कौमों की~'अदालत करेगा।”11आसमान ख़ुशी मनाए, और ज़मीन ख़ुश हो; समन्दर और उसकी मा'मूरी शोर मचाएँ;12मैदान और जो कुछ उसमें है, बाग़-बाग़~हों; तब जंगल के सब दरख़्त खु़शी से गाने लगेंगे।13ख़ुदावन्द के सामने, क्यूँकि वह आ रहा है; वह ज़मीन की 'अदालत करने को रहा है। वह सदाक़त से जहान की, और अपनी सच्चाई से क़ौमों की 'अदालत करेगा|
1ख़ुदावन्द सल्तनत करता है, ज़मीन ख़ुश हो; बेशुमार जज़ीरे ख़ुशी मनाएँ।2बादल और तारीकी उसके चारों तरफ़ हैं; सदाक़त और अदल उसके तख़्त की बुनियाद हैं।3आग उसके आगे आगे चलती है, और चारों तरफ़ उसके मुख़ालिफ़ो को भसम कर देती है।4~उसकी बिजलियों ने जहान को रोशन कर दिया ज़मीन ने देखा और काँप गई।5ख़ुदावन्द के सामने पहाड़ मोम की तरह पिघल गए, या'नी सारी ज़मीन के ख़ुदावन्द के सामने।6~आसमान उसकी सदाक़त ज़ाहिर करता सब क़ौमों ने उसका जलाल देखा है।7खुदी हुई मूरतों के सब पूजने वाले, जो बुतों पर फ़ख़्र करते हैं, ~शर्मिन्दा हों, ऐ मा'बूद! सब उसको सिज्दा करो।8~ऐ ख़ुदावन्द! सिय्यून ने सुना और खु़श हुई और यहूदाह की बेटियाँ तेरे अहकाम से ख़ुश हुई।9क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! तू तमाम ज़मीन पर बुलंद-ओ-बाला है; ~तू सब मा'बूदों से बहुत आला है।10ऐ ख़ुदावन्द से मुहब्बत रखने वालों, बदी से नफ़रत करो, ~वह अपने पाक लोगों की जानों को महफ़ूज़ रखता है, वह उनको शरीरों के हाथ से छुड़ाता है।11सादिक़ों के लिए नूर बोया गया है, और रास्त दिलों के लिए खु़शी।12ऐ~सादिक़ों! ख़ुदावन्द में खु़श रहो; उसके पाक नाम का शुक्र करो।
1ख़ुदावन्द के सामने नया हम्द गाओ क्यूँकि उसने~'अजीब काम किए हैं। उसके दहने हाथ और उसके पाक बाज़ू ने उसके लिए फ़तह हासिल की है।2ख़ुदावन्द ने अपनी नजात ज़ाहिर की है, "उसने अपनी सदाक़त क़ौमों के सामने ज़ाहिर की है।3उसने इस्राईल के घराने के हक़ में अपनी शफ़क़त-ओ-वफ़ादारी याद की है, इन्तिहाई ज़मीन के लोगों ने हमारे ख़ुदा की नजात देखी है।4ऐ तमाम अहल-ए-ज़मीन! ख़ुदावन्द के सामने ख़ुशी का नारा मारो; ललकारो और खु़शी से गाओ और मदहसराई करो |5ख़ुदावन्द की सिताइश सितार पर करो, सितार और सुरीली आवाज़ से।6नरसिंगे और करना की आवाज़ से, बादशाह या'नी ख़ुदावन्द के सामने खु़शी का नारा मारो।7समन्दर और उसकी मा'मूरी शोर मचाएँ और जहान और उसके बाशिंदे।8सैलाब तालियाँ बजाएँ; पहाड़ियाँ मिलकर ख़ुशी से गाएँ।9~ख़ुदावन्द के सामने, क्यूँकि वह ज़मीन की 'अदालत करने आ रहा है। वह सदाक़त से जहान की, रास्ती से क़ौमों की 'अदालत करेगा|
1ख़ुदावन्द सलतनत करता है, क़ौमें काँपी। वह करूबियों पर बैठता है, ज़मीन लरज़े|2ख़ुदावन्द सिय्यून में बुज़ु़र्ग़ है; और वह सब क़ौमों पर बुलंद-ओ-बाला है।3वह तेरे बुज़ुर्ग और बड़े नाम की ता'रीफ़ करें वह पाक हैं|4बादशाह की ताक़त इन्साफ़ पसन्द है तू रास्ती को क़ायम करता है~तू ही ने~'अद्ल और सदाक़त को या'कूब, में रायज किया।5तुम ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तम्जीद करो, और उसके पाँव की चौकी पर सिज्दा वह पाक है|6उसके काहिनों में से मूसा और हारून ने, और उसका नाम लेनेवालों में से समुएल ने~~ख़ुदावन्द से दु'आ की और उसने उनको जवाब दिया।7उसने बादल के सुतून में से उनसे कलाम किया; उन्होंने उसकी शहादतों को और उस क़ानून को जो उनको दिया था, माना|8ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, तू उनको जवाब देता था; तू वह ख़ुदा है जो उनको मु'आफ करता रहा, अगरचे तूने उनके आ'माल का बदला भी दिया|9तुम ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तम्जीद करो, और उसके पाक पहाड़ पर सिज्दा करो; क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा क़ुददूस है|
1ऐ अहले ज़मीन, सब ख़ुदावन्द के सामने ख़ुशी का ना'रा मारो!2ख़ुशी से ख़ुदावन्द की 'इबादत करो! गाते हुए उसके सामने हाज़िर हों!3जान रखों ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है! उसी ने हम को बनाया और हम उसी के है; हम उसके लोग और उसकी चरागाह की भेड़े हैं |4शुक्रगुज़ारी करते हुए उसके फाटकों में और हम्द करते हुए उसकी बारगाहों में दाख़िल हो; उसका शुक्र करो और उसके नाम को मुबारक कहो!5क्यूँकि ख़ुदावन्द भला है, उसकी शफ़क़त हमेशा की है, और उसकी वफ़ादारी नसल दर नसल रहती है|
1~मैं शफ़क़त और 'अद्ल का हम्द गाऊँँगा; ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मदह सराई करूँगा ।2मैं 'अक़्लमंदी से कामिल राह पर चलूँगा, तू मेरे पास कब आएगा?~घर में मेरा चाल चलन सच्चे दिल से होगा।3~मैं किसी ख़बासत को मद्द-ए-नज़र नहीं रख्खूँँगा; मुझे कज रफ़तारों के काम से नफ़रत है; उसको मुझ से कुछ मतलब न होगा।4~कजदिली मुझ से दूर हो जाएगी; मैं किसी बुराई से आशना न हूँगा।5~जो दर पर्दा अपने पड़ोसी की बुराई करे, मैं उसे हलाक कर डालूँगा; मैं बुलन्द नज़र और मग़रूर दिल की बर्दाश्त न करूँगा।6~मुल्क के ईमानदारों पर मेरी निगाह होगी~ताकि वह मेरे साथ रहें; जो कामिल राह पर चलता है वही मेरी ख़िदमत करेगा।7दग़ाबाज़ मेरे घर में रहने न पाएगा; दरोग़ गो को मेरे सामने क़याम न होगा|8~मैं हर सुबह मुल्क के सब शरीरों को हलाक किया करूँगा, ताकि ख़ुदावन्द के शहर से बदकारों को काट डालूँ।
1ऐ ख़ुदावन्द! मेरी दु'आ सुन और मेरी फ़रियाद तेरे सामने पहुँचे|2मेरी मुसीबत के दिन मुझ से चेहरा न छिपा, अपना कान मेरी तरफ़ झुका, जिस दिन मैं फ़रियाद करूँ मुझे जल्द जवाब दे|3क्यूँकि मेरे दिन धुएँ की तरह उड़े जाते हैं, और मेरी हड्डियाँ ईधन की तरह जल गई।4मेरा दिल घास की तरह झुलस कर सूख गया; क्यूँकि मैं अपनी रोटी खाना भूल जाता हूँ।5कराहते कराहते मेरी हड्डियाँ मेरे गोश्त से जा लगीं।6~मैं जंगली हवासिल की तरह हूँ, मैं वीराने का उल्लू बन गया।7मैं बेख़्वाब और उस गौरे की तरह हो गया हूँ, जो छत पर अकेला हो।8~मेरे दुश्मन मुझे दिन भर मलामत करते हैं; मेरे मुख़ालिफ़ दीवाना होकर मुझ पर ला'नत करते हैं।9~क्यूँकि मैंने रोटी की तरह राख खाई, और आँसू मिलाकर पानी पिया।10यह तेरे ग़ज़ब और क़हर की वजह से है, क्यूँकि तूने मुझे उठाया और फिर पटक दिया।11~मेरे दिन ढलने वाले साये की तरह हैं, और मैं घास की तरह मुरझा गया12~लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, हमेशा तक रहेगा; और तेरी यादगार नसल-दर-नसल रहेगी।13~तू उठेगा और सिय्यून पर रहम करेगाःक्यूँकि उस पर तरस खाने का वक़्त है, हाँ उसका मु'अय्यन वक़्त आ गया है।14~इसलिए कि तेरे बन्दे उसके पत्थरों को चाहते, और उसकी ख़ाक पर तरस खाते हैं।15और क़ौमों को ख़ुदावन्द के नाम का, और ज़मीन के सब बादशाहों को तेरे जलाल का ख़ौफ़ होगा।16~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को बनाया है; वह अपने जलाल में ज़ाहिर हुआ है।17उसने बेकसों की दु'आ पर तवज्जुह की, और उनकी दु'आ को हक़ीर न जाना।18यह आने वाली नसल के लिए लिखा जाएगा, और एक क़ौम पैदा होगी जो ख़ुदावन्द की सिताइश करेगी।19~क्यूँकि उसने अपने हैकल की बुलन्दी पर से निगाह की, ख़ुदावन्द ने आसमान पर से ज़मीन पर~नज़र की;20ताकि ग़ुलाम का कराहना सुने, और मरने वालों को छुड़ा ले;21ताकि लोग सिय्यून में ख़ुदावन्द के नाम का इज़हार, और यरूशलीम में उसकी ता'रीफ़ करें,22जब ख़ुदावन्द की 'इबादत के लिए, हों।23उसने राह में मेरा ज़ोर घटा दिया, उसने मेरी 'उम्र कोताह कर दी।24~मैंने कहा, "ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे आधी 'उम्र में न उठा, तेरे बरस नसल दर नसल हैं।25~तूने इब्तिदा से ज़मीन की बुनियाद डाली; आसमान तेरे हाथ की कारीगरी है।26वह हलाक हो जाएँगे, लेकिन तू बाक़ी रहेगा; बल्कि वह सब पोशाक की तरह पुराने हो जाएँगे। तू उनको लिबास की तरह बदलेगा, और वह बदल जाएँगे;27~लेकिन तू बदलने वाला नहीं है, और तेरे बरस बेइन्तिहा होंगे।28तेरे बन्दों के फ़र्ज़न्द बरकरार रहेंगे; और उनकी नसल तेरे सामने क़ायम रहेगी।
1ऐ मेरी जान! ख़ुदावन्द को मुबारक़ कह; और जो कुछ मुझमें है उसके पाक नाम को मुबारक़ कहें2ऐ मेरी जान! ख़ुदावन्द को मुबारक़ कह और उसकी किसी ने'मत को फ़रामोश न कर |3वह तेरी सारी बदकारी को बख़्शता है वह तुझे तमाम बीमारियों से शिफ़ा देता है4वह तेरी जान हलाकत से बचाता है, वह तेरे सर पर शफ़क़त व रहमत का ताज रखता है |5वह तुझे 'उम्र भर अच्छी अच्छी चीज़ों से आसूदा करता है, तू 'उक़ाब की तरह नए सिरे नौजवान होता है।6ख़ुदावन्द सब मज़लूमों के लिए सदाक़त और अदल के काम करता है|7उसने अपनी राहें मूसा पर और अपने काम बनी इस्राईल पर ज़ाहीर किए |8ख़ुदावन्द रहीम व करीम है, क़हर करने में धीमा और शफ़क़त में गनी |9वह सदा झिड़कता न रहेगा वह हमेशा ग़ज़बनाक न रहेगा |10उस ने हमारे गुनाहों के मुवाफ़िक़ हम से सुलूक नहीं किया और हमारी बदकारियों के मुताबिक़ हमको बदला नहीं दिया |11क्यूँकि जिस क़द्र आसमान ज़मीन से बुलन्द, उसी क़द्र उसकी शफ़क़त उन पर है, जो उससे डरते हैं।12जैसे पूरब पच्छिम से दूर है, वैसे ही उसने हमारी ख़ताएँ हम सेदूर कर दीं।13~जैसे बाप अपने बेटों पर तरस खाता है, वैसे ही ख़ुदावन्द उन पर जो उससे डरते हैं, तरस खाता है।14क्यूँकि वह हमारी सरिश्त से वाक़िफ़ है, उसे याद है कि हम ख़ाक हैं।15~इन्सान की उम्र तो घास की तरह है, वह जंगली फूल की तरह खिलता है,16कि हवा उस पर चली और वह नहीं, और उसकी जगह उसे फिर न देखेगी17लेकिन ख़ुदावन्द की शफ़क़त उससे डरने वालों पर अज़ल से हमेशा तक, और उसकी सदाक़त नसल-दर-नसल है18~या'नी उन पर जो उसके 'अहद पर क़ायम रहते हैं, और उसके क़वानीन पर 'अमल करनायाद रखते हैं।19~ख़ुदावन्द ने अपना तख़्त आसमान पर क़ायम किया है, और उसकी सल्तनत सब पर मुसल्लत है।20ऐ ख़ुदावन्द के फ़िरिश्तो, उसको मुबारक कहो, तुम जो ज़ोर में बढ़ कर हो और उसके कलाम की आवाज़ सुन कर उस पर 'अमल करते हो।21~ऐ ख़ुदावन्द के लश्करो, सब उसको मुबारक कहो! तुम जो उसके ख़ादिम हो और उसकी मर्ज़ी बजा लाते हो।22~ऐ ख़ुदावन्द की मख़लूक़ात, सब उसको मुबारक कहो! तुम जो उसके तसल्लुत के सब मकामों में ही। ऐ मेरी जान, तू ख़ुदावन्द को मुबारक कह!
1~ऐ मेरी जान, तू ख़ुदावन्द को मुबारक कह, ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा तू बहुत बुज़ुर्ग है, तू हश्मत और जलाल से मुलब्बस है!2~तू नूर को पोशाक की तरह पहनता है, और आसमान को सायबान की तरह तानता है।3तू अपने बालाख़ानों के शहतीर पानी पर टिकाता है; तू बादलों को अपना रथ बनाता है; तू हवा के बाज़ुओं पर सैर करता है;4तू अपने फ़रिश्तों को हवाएँ और अपने ख़ादिमों की आग के शो'ले बनाता है।5~तूने ज़मीन को उसकी बुनियाद पर क़ायम किया, ताकि वह कभी जुम्बिश न खाए।6~तूने उसको समन्दर से छिपाया जैसे लिबास से; पानी पहाड़ों से भी बुलन्द था।7वह तेरी झिड़की से भागा वह तेरी गरज की आवाज़ से जल्दी-जल्दी चला।8उस जगह पहुँच गया जो तूने उसके लिए तैयार की थी; पहाड़ उभर आए, वादियाँ बैठ गई।9तूने हद बाँध दी ताकि वह आगे न बढ़ सके, और फिर लौटकर ज़मीन को न छिपाए।10~वह वादियों में चश्मे जारी करता है, जो पहाड़ों में बहते हैं।11सब जंगली जानवर उनसे पीते हैं; गोरखर अपनी प्यास बुझाते हैं।12उनके आसपास हवा के परिन्दे बसेरा करते, और डालियों में चहचहाते हैं।13वह अपने बालाख़ानों से पहाड़ों को सेराब करता है। तेरी कारीगरी के फल से ज़मीन आसूदा है।14~वह चौपायों के लिए घास उगाता है, और इन्सान के काम के लिए सब्ज़ा, ताकि ज़मीन से ख़ुराक पैदा करे।15और मय जो इन्सान के दिल कोऔर रोग़न जो उसके चेहरे को चमकाता है, और रोटी जो आदमी के दिल को तवानाई बख्शती है।16~ख़ुदावन्द के दरख़्त शादाब रहते हैं, या'नी लुबनान के देवदार जो उसने लगाए।17~जहाँ परिन्दे अपने घोंसले बनाते हैं; सनोबर के दरख़्तों में लकलक का बसेरा है।18ऊँचे पहाड़ जंगली बकरों के लिए हैं; चट्टानें साफ़ानों की पनाह की जगह हैं।19उसने चाँद को ज़मानों के फ़र्क़ के लिए मुक़र्रर किया; आफ़ताब अपने ग़ुरुब की जगह जानता है|20तू अँधेरा कर देता है तो रात हो जाती है, जिसमें सब जंगली जानवर निकल आते हैं।21~जवान शेर अपने शिकार की तलाश में गरजते हैं, और ख़ुदा से अपनी खू़राक माँगते हैं।22आफ़ताब निकलते ही वह चल देते हैं, और जाकर अपनी माँदों में पड़े रहते हैं।23इन्सान अपने काम के लिए, और शाम तक अपनी मेहनत करने के लिए निकलता है।24~ऐ ख़ुदावन्द, तेरी कारीगरी ~कैसी बेशुमार हैं। तूने यह सब कुछ हिकमत से बनाया; ज़मीन तेरी मख़लूक़ात से मा'मूर है।25देखो, यह बड़ा और चौड़ा समन्दर, जिसमें बेशुमार रेंगने वाले जानदार हैं; या'नी छोटे और बड़े जानवर।26~जहाज़ इसी में चलते हैं; इसी में लिवियातान है, जिसे तूने इसमें खेलने को पैदा किया।27इन सबको तेरी ही उम्मीद है, ताकि तू उनको वक़्त पर ख़ूराक दे।28जो कुछ तू देता है, यह ले लेते हैं; तू अपनी मुट्ठी खोलता है और यह अच्छी चीज़ों से सेर होते हैं29~तू अपना चेहरा छिपा लेता है, और यह परेशान हो जाते हैं; तू इनका दम रोक लेता है, और यह मर जाते हैं, और फिर मिट्टी में मिल जाते हैं।30तू अपनी रूह भेजता है, और यह पैदा होते हैं; और तू ~इस ज़मीन को नया बना देता है।31~ख़ुदावन्द का जलाल हमेशा तक रहे, ख़ुदावन्द अपनी कारीगरी से खु़श हो।32वह ज़मीन पर निगाह करता है, और वह काँप जाती है; वह पहाड़ों को छूता है, और उनसे से धुआँ निकलने लगता है।33~मैं 'उम्र भर ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ गाऊँगा; जब तक मेरा वुजूद है मैं अपने ख़ुदा की मदहसराई करूँगा ।34~मेरा ध्यान उसे पसन्द आए, मैं ख़ुदावन्द में ख़ुश रहूँगा।35गुनहगार ज़मीन पर से फ़ना हो जाएँ, और शरीर बाक़ी न रहें! ऐ मेरी जान, ख़ुदावन्द को मुबारक कह! ख़ुदावन्द की हम्द करो!
1~ख़ुदावन्द का शुक्र करो, उसके नाम से दु'आ करो; क़ौमों में उसके कामों का बयान करो!2~उसकी ता'रीफ़ में गाओ, उसकी मदहसराई करो; उसके तमाम 'अजाइब का चर्चा करो!3उसके पाक नाम पर फ़ख़्र करो, ख़ुदावन्द के तालिबों के दिल ख़ुश हों!4~ख़ुदावन्द और उसकी ताक़त के तालिब हो, हमेशा उसके दीदार के तालिब रहो!5उन 'अजीब कामों को जो उसने किए, उसके 'अजाइब और मुँह केअहकाम को याद रख्खो!6~ऐ उसके बन्दे इब्राहीम की नसल! ऐ बनी या'क़ूब उसके बरगुज़ीदो!7~वही ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा है; उसके अहकाम तमाम ज़मीन पर हैं।8~उसने अपने 'अहद को हमेशा याद रख्खा, या'नी उस कलाम को जो उसने हज़ार नसलों के लिए फ़रमाया;9उसी 'अहद को जो उसने इब्राहीम से बाँधा, और उस क़सम को जो उसने इस्हाक़ से खाई,10और उसी को उसने या'क़ूब के लिए क़ानून, या'नी इस्राईल के लिए हमेशा का 'अहद ठहराया,11और कहा, "मैं कना'न का मुल्क तुझे दूँगा, कि तुम्हारा मौरूसी हिस्सा हो।"12~उस वक़्त वह शुमार में थोड़े थे, बल्कि बहुत थोड़े और उस मुल्क में मुसाफ़िर थे।13और वह एक क़ौम से दूसरी क़ौम में, और एक सल्तनत से दूसरी सल्तनत में फिरते रहे।14~उसने किसी आदमी को उन पर ज़ुल्म न करने दिया, बल्कि उनकी ख़ातिर उसने बादशाहों को धमकाया,15~और कहा, "मेरे मम्सूहों को हाथ न लगाओ, और मेरे नबियों को कोई नुक़सान न पहुँचाओ! "16फिर उसने फ़रमाया, कि उस मुल्क पर क़हत नाज़िल हो और उसने रोटी का सहारा बिल्कुल तोड़ दिया।17उसने उनसे पहले एक आदमी को भेजा, यूसुफ़ गु़लामी में बेचा गया।18उन्होंने उसके पाँव को बेड़ियों से दुख दिया; वह लोहे की ज़न्जीरों में जकड़ा रहा;19~जब तक के उसका बात पूरा न हुआ, ख़ुदावन्द का कलाम उसे आज़माता रहा |20~बादशाह ने हुक्म भेज कर उसे छुड़ाया, हाँ क़ौमों के फ़रमान रवा ने उसे आज़ाद किया।21उसने उसको अपने घर का मुख़्तार और अपनी सारी मिलिकयत पर हाकिम बनाया,22~ताकि उसके हाकिमों को जब चाहे कै़द करे, और उसके बुज़ुर्गों को अक़्ल सिखाए।23~इस्राईल भी मिस्र में आया, और या'क़ूब हाम की सरज़मीन में मुसाफ़िर रहा।24और ख़ुदा ने अपने लोगों को खू़ब बढ़ाया, और उनको उनके मुख़ालिफ़ों से ज़्यादा मज़बूत किया।25उसने उनके दिल को नाफ़रमान किया, ताकि उसकी क़ौम से 'अदावत रख्खें, और उसके बन्दों से दग़ाबाजी करें।26~उसने अपने बन्दे मूसा को, और अपने बरगुज़ीदा हारून को भेजा।27~उसने उनके बीच मु'अजिज़ात, और हाम की सरज़मीन में 'अजाइब दिखाए।28उसने तारीकी भेजकर अंधेरा कर दिया; और उन्होंने उसकी बातों से सरकशी न की।29उसने उनकी नदियों को लहू बना दिया, और उनकी मछलियाँ मार डालीं।30~उनके मुल्क और बादशाहों के बालाख़ानों में, मेंढक ही मेंढक भर गए।31उसने हुक्म दिया, और मच्छरों के ग़ोल आए, और उनकी सब हदों में जूएं आ गई32उसने उन पर मेंह की जगह ओले बरसाए, और उनके मुल्क पर दहकती आग नाज़िल की।33~उसने उनके अँगूर और अंजीर के दरख़तों को भी बर्बाद कर डाला, और उनकी हद के पेड़ तोड़ डाले।34उसने हुक्म दिया तो बेशुमार टिड्डियाँऔर कीड़े आ गए,35और उनके मुल्क की तमाम चीज़े चट कर गए, और उनकी ज़मीन की पैदावार खा गए।36~उसने उनके मुल्क के सब पहलौठों को भी मार डाला, जो उनकी पूरी ताक़त के पहले फल थे।37और इस्राईल को चाँदी और सोने के साथ निकाल लाया, और उसके क़बीलों में एक भी कमज़ोर आदमी न था।38~उनके चले जाने से मिस्र खु़श हो गया, क्यूँकि उनका ख़ौफ़ मिस्रियों पर छा गया था।39उसने बादल को सायबान होने के लिए फैला दिया, और रात को रोशनी के लिए आग दी।40~उनके माँगने पर उसने बटेरें भेजीं, और उनको आसमानी रोटी से सेर किया।41उसने चट्टान को चीरा, और पानी फूट निकलाः और ख़ुश्क ज़मीन पर नदी की तरह बहने लगा।42~क्यूँकि उसने अपने पाक क़ौल को, और अपने बन्दे इब्राहीम को याद किया।43~और वह अपनी क़ौम को ख़ुशी के साथ, और अपने बरगुज़ीदों को हम्द गाते हुए निकाल लाया।44~और उसने उनको क़ौमों के मुल्क दिए, और उन्होंने उम्मतों की मेहनत के फल पर कब्ज़ा किया।45~ताकि वह उसके क़ानून पर चलें, और उसकी शरी'अत को मानें।ख़ुदावन्द की हम्द करो!
1ख़ुदावन्द की हम्द करो, ख़ुदावन्द का शुक्र करो, क्यूँकि वह भला है; और उसकी शफ़क़त हमेशा की है!2कौन ख़ुदावन्द की कु़दरत के कामों काबयान कर सकता है, या उसकी पूरी सिताइश सुना सकता है?3~मुबारक हैं वह जो 'अद्ल करते हैं, और वह जो हर वक़्त सदाक़त के~काम करता है।4ऐ ख़ुदावन्द, उस करम से जो तू अपने लोगों पर करता है मुझे याद कर, अपनी नजात मुझे इनायत फ़रमा,5ताकि मैं तेरे बरगुज़ीदों की इक़बालमंदी देखें और तेरी क़ौम की ख़ुशी में ख़ुश रहूँ। और तेरी मीरास के लोगों के साथ फ़ख़्र करूँ ।6हम ने और हमारे बाप दादा ने गुनाह किया; हम ने बदकारी की, हम ने शरारत के काम किए!7हमारे बाप-दादा मिस्र में तेरे 'अजाइब न समझे; उन्होंने तेरी शफ़क़त की कसरत को याद न किया; बल्कि समन्दर पर या'नी बहर-ए-कु़लज़ुम पर बाग़ी हुए।8तोभी उसने उनको अपने नाम की ख़ातिर बचाया, ताकि अपनी कु़दरत ज़ाहिर करे9उसने बहर-ए-कु़लज़ुम को डाँटा और वह सूख गया। वह उनकी गहराव में से ऐसे निकाल ले गया जैसे वीरान में से.10~और उसने उनको 'अदावत रखने वाले के हाथ से बचाया, और दुश्मन के हाथ से छुड़ाया।11समन्दर ने उनके मुख़ालिफ़ों को छिपा लियाः उनमें से एक भी न बचा।12~तब उन्होंने उसके क़ौल का यक़ीन किया; और उसकी मदहसराई करने लगे।13~फिर वह जल्द उसके कामों को भूल गए, और उसकी मश्वरत का इन्तिज़ार न किया।14~बल्कि वीरान में बड़ी हिर्स की, और सेहरा में ख़ुदा को आज़माया।15~फिर उसने उनकी मुराद तो पूरी कर दी, लेकिन उनकी जान को सुखा दिया।16~उन्होंने ख़ेमागाह में मूसा पर, और ख़ुदावन्द के पाक मर्द हारून पर हसद किया।17~फिर ज़मीन फटी और दातन को निगल गई, और अबिराम की जमा'अत को खा गई,18और उनके जत्थे में आग भड़क उठी, और शो'लों ने शरीरों को भसम कर दिया।19उन्होंने होरिब में एक बछड़ा बनाया, और ढाली हुई मूरत को सिज्दा किया।20यूँ उन्होंने ख़ुदा के जलाल को, घास खाने वाले बैल की शक्ल से बदल दिया।21वह अपने मुनज्जी ख़ुदा को भूल गए, जिसने मिस्र में बड़े बड़े काम किए,22और हाम की सरज़मीन में 'अजाइब, और बहर-ए-कु़लजु़म पर दहशत अंगेज़ काम किए।23इसलिए उसने फ़रमाया, मैं उनको हलाक कर डालता, अगर मेरा बरगुज़ीदा मूसा मेरे सामने बीच में न आता कि मेरे क़हर को टाल दे, ऐसा न हो कि मैं उनको हलाक करूँ।24और उन्होंने उस सुहाने मुल्क को हक़ीर जाना, और उसके क़ौल का यक़ीन न किया।25~बल्कि वह अपने डेरों में बड़बड़ाए, और ख़ुदावन्द की बात न मानी।26~तब उसने उनके ख़िलाफ़ क़सम खाई कि मैं उनको वीरान में पस्त करूँगा,27और उनकी नसल की क़ौमों के बीच और उनको मुल्क मुल्क में तितर बितर करूँगा।28वह बा'ल फ़गू़र को पूजने लगे, और बुतों की कु़र्बानियाँ खाने लगे।29यूँ उन्होंने अपने आ'माल से उसको ना ख़ुश किया, और वबा उनमें फूट निकली।30तब फ़ीन्हास उठा और बीच में आया, और वबा रुक गई।31और यह काम उसके हक़ में नसल दर नसल, हमेशा के लिए रास्तबाज़ी गिना गया।32~उन्होंने उसकी मरीबा के चश्मे पर भी नाख़ुश किया, और उनकी ख़ातिर मूसा को नुक़सान पहुँचा;33~इसलिए कि उन्होंने उसकी रूह से सरकशी की, और मूसा बे सोचे बोल उठा।34उन्होंने उन क़ौमों को हलाक न किया, जैसा ख़ुदावन्द ने उनको हुक्म दिया था,35~बल्कि उन कौमों के साथ मिल गए, और उनके से काम सीख गए;36और उनके बुतों की परस्तिश करने लगे, जो उनके लिए फंदा बन गए।37बल्कि उन्होंने अपने बेटे बेटियों को, शयातीन के लिए कु़र्बान किया:38~और मासूमों का या'नी अपने बेटे बेटियों का खू़न बहाया, . जिनको उन्होंने कना'न के बुतों के लिए कु़र्बान कर दियाः और मुल्क खू़न से नापाक हो गया।39~यूँ वह अपने ही कामों से आलूदा हो गए, और अपने फ़े'लों से बेवफ़ा बने।40~इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर अपने लोगों पर भड़का, और उसे अपनी मीरास से नफ़रत हो गई;41~और उसने उनकी क़ौमों के क़ब्ज़े में कर दिया, और उनसे 'अदावत रखने वाले उन पर हुक्मरान हो गए।42उनके दुशमनों ने उन पर ज़ुल्म किया, और वह उनके महकूम हो गए।43~उसने तो बारहा उनको छुड़ाया, लेकिन उनका मश्वरा बग़ावत वाला ही रहा और वह अपनी बदकारी के वजह से पस्त हो गए।44तोभी जब उसने उनकी फ़रियाद सुनी, तो उनके दुख पर नज़र की।45~और उसने उनके हक़ में अपने 'अहद को याद किया, और अपनी शफ़क़त की कसरत के मुताबिक़ तरस खाया।46~उसने उनकी ग़ुलाम करने वालों के दिलमें उनके लिए रहम डाला।47~ऐ ख़ुदावन्द, हमारे ख़ुदा! हम को बचा ले, और हम को क़ौमों में से इकट्ठा कर ले, ताकि हम तेरे पाक नाम का शुक्र करें, और ललकारते हुए तेरी सिताइश करें।48ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक हो! ख़ुदावन्द की हम्द करो*।
1ख़ुदा का शुक्र ~करो, क्यूँकि वह भला है; और उसकी शफ़क़त हमेशा की है!2ख़ुदावन्द के छुड़ाए हुए यही कहें, जिनको फ़िदिया देकर मुख़ालिफ़ के हाथ से छुड़ा लिया,3और उनको मुल्क-मुल्क से जमा' किया; पूरब से और पच्छिम से, उत्तर से और दक्खिन से।4~वह वीरान में सेहरा के रास्ते पर भटकते फिरे; उनको बसने के लिए कोई शहर न मिला।5~वह भूके और प्यासे थे, और उनका दिल बैठा जाता था।6तब अपनी मुसीबत में उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और उसने उनको उनके दुखों से रिहाई बख़्शी।7वह उनको सीधी राह से ले गया, ताकि बसने के लिए किसी शहर में जा पहुँचें।8~काश के लोग ख़ुदावन्द की शफ़क़त की ख़ातिर, और बनी आदम के लिए उसके 'अजाइब की ख़ातिर उसकी सिताइश करते।9क्यूँकि वह तरसती जान को सेर करता है, और भूकी जान को ने 'मतों से मालामाल करता है।10~जो अंधेरे और मौत के साये में बैठे, मुसीबत और लोहे से जकड़े हुएथे;11चूँके उन्होंने ख़ुदा के कलाम से सरकशी कीऔर हक़ ता'ला की मश्वरत को हक़ीर जाना।12इसलिए उसने उनका दिल मशक़्क़त से'आजिज़ कर दिया; वह गिर पड़े और कोई मददगार न था।13तब अपनी मुसीबत में उन्होंने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और उसने उनको उनके दुखों से रिहाई बख़्शी।14वह उनको अंधेरे और मौत के साये से निकाल लाया, और उनके बंधन तोड़ डाले।15काश के लोग ख़ुदावन्द की शफ़क़त की खातिर, और बनी आदम के लिए उसके 'अजाइब की ख़ातिर उसकी सिताइश करते!16~क्यूँकि उसने पीतल के फाटक तोड़ दिए, और लोहे के बेण्डों को काट डाला।17बेवक़ूफ़ अपनी ख़ताओं की वजह से, और अपनी बदकारी के ज़रिए' मुसीबत में पड़ते हैं।18उनके जी को हर तरह के खाने से नफ़रत हो जाती है, और वह मौत के फाटकों के नज़दीक पहुँच जाते हैं।19तब वह अपनी मुसीबत में ख़ुदावन्द से फ़रियाद करते है और वह उनको उनके दुखों से रिहाई बख़्शता है।20~वह अपना कलाम नाज़िल फ़रमा कर उनको शिफ़ा देता है, और उनकी उनकी हलाकत से रिहाई बख्शता है।21काश के लोग ख़ुदावन्द की शफ़क़त की खातिर, और बनी आदम के लिए उसके 'अजाइब की ख़ातिर उसकी सिताइश करते!22~वह शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ पेश करें, और गाते हुए उसके कामों को बयान करें।23~जो लोग जहाज़ों में बहर पर जाते हैं, और समन्दर पर कारोबार में लगे रहते हैं;24~वह समन्दर में ख़ुदावन्द के कामों को, और उसके 'अजाइब को देखते हैं।25~क्यूँकि वह हुक्म देकर तुफ़ानी हवा चलाता जो उसमें लहरें उठाती है।26~वह आसमान तक चढ़ते और गहराओ ~में उतरते हैं; परेशानी से उनका दिल पानी पानी हो जाता है;27~वह झूमते और मतवाले की तरह लड़खड़ाते, और बदहवास हो जाते हैं।28~तब वह अपनी मुसीबत में ख़ुदावन्द से फ़रियाद करते है और वह उनको उनके दुखों से रिहाई बख़्शता है।29वह आँधी को थमा देता है, और लहरें ख़त्म हो जाती हैं।30~तब वह उसके थम जाने से ख़ुश होते हैं, यूँ वह उनको बन्दरगाह-ए-मक़सूद तक पहुँचा देता है।31काश के लोग ख़ुदावन्द की शफ़क़त की खातिर, और बनी आदम के लिए उसके 'अजाइब की ख़ातिर उसकी सिताइश करते!32वह लोगों के मजमे' में उसकी बड़ाई करें, और बुज़ुगों की मजलिस में उसकी हम्द।33~वह दरियाओं को वीरान बना देता है, और पानी के चश्मों को ख़ुश्क ज़मीन।34वह ज़रखेज़ ज़मीन की सैहरा-ए-शोर कर देता है, इसलिए कि उसके बाशिंदे शरीर हैं।35वह वीरान की झील बना देता है, और ख़ुश्क ज़मीन को पानी के चश्मे।36वहाँ वह भूकों को बसाता है, ताकि बसने के लिए शहर तैयार करें;37~और खेत बोएँ, और ताकिस्तान लगाएँ, और पैदावार हासिल करें।38वह उनको बरकत देता है, और वह बहुत बढ़ते हैं, और वह उनके चौपायों को कम नहीं होने देता।39फिर ज़ुल्म-ओ-तकलीफ़ और ग़म के मारे, वह घट जाते और पस्त हो जाते हैं,40वह उमरा पर ज़िल्लत उंडेल देता है, और उनको बेराह वीराने में भटकाता है।41तोभी वह मोहताज को मुसीबत से निकालकर सरफ़राज़ करता है, और उसके ख़ान्दान को रेवड़ की तरह बढ़ाता है।42रास्तबाज़ यह देखकर ख़ुश होंगे; और सब बदकारों का मुँह बन्द हो जाएगा।43'अक्लमंद इन बातों पर तवज्जुह करेगा, और वह ख़ुदावन्द की शफ़क़त पर ग़ौर करेंगे।
1ऐ ख़ुदा, मेरा दिल क़ायम है; मैं गाऊँगा और दिल से मदहसराई करूँगा ।2~ऐ बरबत और सितार जागो! मैं ख़ुद भी सुबह सवेरे जाग उठूँगा ।3~ऐ ख़ुदावन्द, मैं लोगों में तेरा शुक्र करूँगा, मैं उम्मतों में तेरी मदहसराई करूँगा ।4क्यूँकि तेरी शफ़क़त आसमान से बुलन्द है, और तेरी सच्चाई आसमानों के बराबर है।5~ऐ ख़ुदा, तू आसमानों पर सरफ़राज़ हो! और तेरा जलाल सारी ज़मीन पर हो6~~अपने दहने हाथ से बचा और हमें जवाब दे, ताकि तेरे महबूब बचाए जाएँ।7~ख़ुदा ने अपनी पाकिज़गी में यह फ़रमाया है" मैं खु़शी करूँगा, मैं सिक्म को तक़्सीम करूँगा और सुक्कात की वादी को बाटुँगा।8~जिल'आद मेरा है, मनस्सी मेरा है; इफ़ाईम मेरे सिर का खू़द है; यहूदाह मेरा 'असा है।9~मोआब मेरी चिलपची है, अदोम पर मैं जूता फेकूँगा, मैं फ़िलिस्तीन पर ललकारूँगा।"10~मुझे उस फ़सीलदार शहर में कौन पहुँचाएगा? कौन मुझे अदोम तक ले गया है?11~ऐ ख़ुदा, क्या तूने हमें रद्द नहीं कर दिया? ऐ ख़ुदा, तू हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता।12~मुख़ालिफ़ के मुक़ाबिले में हमारी मदद कर, क्यूँकि इन्सानी मदद 'बेकार है।13ख़ुदा की बदौलत हम दिलावरी करेगी; क्यूँकि वही हमारे मुख़ालिफ़ों को पामाल करेगा।
1ऐ ख़ुदा मेरे महमूद ख़ामोश न~रह!2क्यूँकि शरीरों और दग़ाबाज़ों ने मेरे ख़िलाफ़ ~मुँह खोला है, उन्होंने झूठी ज़बान से मुझ से बातें की हैं।3उन्होंने 'अदावत की बातों से मुझे घेर~लिया, और बे वजह मुझ से लड़े हैं।4वह मेरी मुहब्बत की वजह से मेरे मुख़ालिफ़~हैं, लेकिन मैं तो बस दु'आ करता हूँ।5उन्होंने नेकी के बदले मुझ से बदी की है, और मेरी मुहब्बत के बदले' अदावत।6तू किसी शरीर आदमी को उस पर मुक़र्रर कर दे और कोई मुख़ालिफ़ उनके दहने हाथ खड़ा रहे7~जब उसकी 'अदालत हो तो वह मुजरिम ठहरे, और उसकी दुआ भी गुनाह गिनी जाए!8~उसकी 'उम्र कोताह हो जाए, और उसका मन्सब कोई दूसरा ले ले!9~उसके बच्चे यतीम हो जाएँ, और उसकी बीवी बेवा हो जाए!10~उसके बच्चे आवारा होकर भीक माँगे; उनको अपने वीरान मकामों से दूर जाकर टुकड़े माँगना पड़ें!11~क़र्ज़ के तलबगार उसका सब कुछ छीन ले, और परदेसी उसकी कमाई लूट लें।12कोई न हो जो उस पर शफ़क़त करे, न कोई उसके यतीम बच्चों पर तरस खाए!13~उसकी नसल कट जाए, और दूसरी नसल में उनका नाम मिटा दिया जाए!14उसके बाप-दादा की बदी ख़ुदावन्द के सामने याद रहे, और उसकी माँ का गुनाह मिटाया न जाए!15~वह बराबर ख़ुदावन्द के सामने रहें, ताकि वह ज़मीन पर से उनका ज़िक्र मिटा दे!16इसलिए कि उसने रहम करना याद नरख्खा, लेकिन ग़रीब और मुहताज और शिकस्तादिल को सताया, ताकि उनको मार डाले।17बल्कि लानत करना उसे पसंद था, इसलिए वही उस पर आ पड़ी; और दु'आ देना उसे पसन्द न था, इसलिए वह उससे दूर रही18~उसने लानत को अपनी पोशाक की तरह पहना, और वह पानी की तरह उसके बातिन में, और तेल की तरह उसकी हड़िडयों में समा गई।19~वह उसके लिए उस पोशाक की तरह हो जिसे वह पहनता है, और उस पटके की जगह, जिससे वह अपनी कमर कसे रहता है।20~ख़ुदावन्द की तरफ़ से मेरे मुख़ालिफ़ों का, और मेरी जान को बुरा कहने वालों का यही बदला है!21लेकिन ऐ मालिक ख़ुदावन्द, अपने नाम की ख़ातिर मुझ पर एहसान कर; मुझे छुड़ा क्यूँकि तेरी शफ़क़त खू़ब है!22~इसलिए कि मैं ग़रीब और मुहताज हूँ, और मेरा दिल मेरे पहलू में ज़ख़्मी है।23~मैं ढलते साये की तरह जाता रहा; मैंटिड्डी की तरह उड़ा दिया गया।24फ़ाक़ा करते करते मेरे घुटने कमज़ोर हो गए, और चिकनाई की कमी से मेरा जिस्म सूख गया।25~मैं उनकी मलामत का निशाना बन गया हूँ जब वह मुझे देखते हैं तो सिर हिलाते हैं।26ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरी मदद कर! अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मुझे बचा ले।27ताकि वह जान लें कि इसमें तेरा हाथ है, और तू ही ने ऐ ख़ुदावन्द, यह किया है!28~वह ला'नत करते रहें, लेकिन तू बरकत दे! वह जब उठेगे तो शर्मिन्दा होंगे, लेकिन तेरा बन्दा ख़ुश होगा!29~मेरे मुख़ालिफ़ ज़िल्लत से मुलब्बस हो जाएँऔर अपनी ही शर्मिन्दगी की चादर की तरह ओढ़ लें।30मैं अपने मुँह से ख़ुदावन्द का बड़ा शुक्र करूँगा, बल्कि बड़ी भीड़ में उसकी हम्द करूँगा ।31~क्यूँकि वह मोहताज के दहने हाथ खड़ा होगा, ताकि उसकी जान पर फ़तवा देने वालों से उसे रिहाई दे।
1यहोवा ने मेरे ख़ुदावन्द से कहा, जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँव की चौकी न कर दूँ।"2ख़ुदावन्द तेरे ज़ोर का 'असा सिय्यून से भेजेगा। तू अपने दुश्मनों में हुक्मरानी कर।3~लश्करकशी के दिन तेरे लोग ख़ुशी से अपने आप को पेश करते हैं; तेरे जवान पाक आराइश में हैं, और सुबह के बत्न से शबनम की तरह।4~ख़ुदावन्द ने क़सम खाई है और फिरेगा नहीं, "तू मलिक-ए-सिद्क के तौर पर हमेशा तक काहिन है।"5ख़ुदावन्द तेरे दहने हाथ पर अपने कहर के दिन बादशाहों को छेद डालेगा।6वह क़ौमों में 'अदालत करेगा, वह लाशों के ढेर लगा देगा; और बहुत से मुल्कों में सिरों को कुचलेगा।7वह राह में नदी का पानी पिएगा; इसलिए वह सिर को बुलन्द करेगा
1ख़ुदावन्द की हम्द करो! मैं रास्तबाज़ों की मजलिस में और जमा'अत में, अपने सारे दिल से ख़ुदावन्द का शुक्र करूँगा ।2~ख़ुदावन्द के काम 'अज़ीम हैं, जो उनमें मसरूर हैं उनकी तलाश। में रहते हैं।3~उसके काम जलाली और पुर हश्मत हैं, और उसकी सदाकत हमेशा तक क़ायम है।4~उसने अपने 'अजाइब की यादगार क़ायम की है; ख़ुदावन्द रहीम-ओ-करीम है।5~वह उनको जो उससे डरते हैं खू़राक देता है; वह अपने 'अहद को हमेशा याद रख्खेगा।6उसने कौमों की मीरास अपने लोगों को देकर, अपने कामों का ज़ोर उनकी दिखाया।7उसके हाथों के काम बरहक़ और इन्साफ भरे हैं; उसके तमाम क़वानीन रास्त है,8वह हमेशा से हमेशा तक क़ायम रहेंगे, वह सच्चाई और रास्ती से बनाए गए हैं।9~उसने अपने लोगों के लिए फ़िदिया दिया; उसने अपना 'अहद हमेशा के लिए ठहराया है। उसका नाम पाक और बड़ा है।10~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ समझ ~का शुरू' है; उसके मुताबिक 'अमल करने वाले अक़्लमंद हैं। उसकी सिताइश हमेशा तक क़ायम है।
1ख़ुदावन्द की हम्द करो! मुबारक है वह आदमी जो ख़ुदावन्द से डरता है, और उसके हुक्मों में खू़ब मसरूर रहता है!2उसकी नसल ज़मीन पर ताक़तवर होगी; रास्तबाज़ों की औलाद मुबारक होगी।3माल-ओ-दौलत उसके घर में है; और उसकी सदाकत हमेशा तक क़ायम है।4रास्तबाज़ों के लिए तारीकी में नूर चमकता है; वह रहीम-ओ-करीम और सादिक है।5~~रहम दिल और क़र्ज़ देने वाला आदमी फ़रमाँबरदार है; वह अपना कारोबार रास्ती से करेगा।6~उसे कभी जुम्बिश न होगी:सादिक की यादगार हमेशा रहेगी।7वह बुरी ख़बर से न डरेगा; ख़ुदावन्द पर भरोसा करने से उसका दिल क़ायम है।8~उसका दिल बरकरार है, वह डरने का नहीं, यहाँ तक कि वह अपने मुख़ालिफ़ों को देख लेगा।9उसने बाँटा और मोहताजों को दिया, उसकी सदाक़त हमेशा क़ायम रहेगी; उसका सींग इज़्ज़त के साथ बलन्द किया जाएगा।10~~शरीर यह देखेगा और कुढ़ेगा; वह दाँत पीसेगा और घुलेगा; शरीरों की मुराद बर्बाद होगी।
1ख़ुदावन्द की हम्द करो! ऐ ख़ुदावन्द के बन्दों, हम्द करो! ख़ुदावन्द के नाम की हम्द करो!2अब से हमेशा तक, ख़ुदावन्द का नाम मुबारक हो!3आफ़ताब के निकलने' से डूबने तक, ख़ुदावन्द के नाम की हम्द हो!4~ख़ुदावन्द सब क़ौमों पर बुलन्द-ओ-बाला है; उसका जलाल आसमान से बरतर है।5ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा की तरह कौन है? जो 'आलम-ए-बाला पर तख़्तनशीन है,6जो फ़रोतनी से, आसमान-ओ-ज़मीन पर नज़र करता है।7~वह ग़रीब को खाक से, और मोहताज को मज़बले पर से उठा लेता है,8~ताकि उसे उमरा के साथ, या'नी अपनी कौम के उमरा के साथ बिठाए।9वह बाँझ का घर बसाता है, और उसे बच्चों वाली बनाकर दिलखुश करता है। ख़ुदावन्द की हम्द करो!
1जब इस्राईल मिस्र से निकलआया, या'नी या'क़ूब का घराना अजनबी ज़बान वाली क़ौम में से;2तो यहूदाह उसका हैकल, और इस्राईल उसकी ममलुकत ठहरा ।3~यह देखते ही समन्दर भागा; यरदन पीछे हट गया।4~पहाड़ मेंढों की तरह उछले, पहाड़ियाँ भेड़ के बच्चों की तरह कूदे।5~ऐ समन्दर, तुझे क्या हुआ के तू भागता है? ऐ यरदन, तुझे क्या हुआ कि तू पीछे हटता है?6ऐ पहाड़ो, तुम को क्या हुआ के तुम मेंढों की तरह उछलते हो? ऐ पहाड़ियो, तुम को क्या हुआ के तुम भेड़ के बच्चों की तरह कूदती हो ?7~ऐ ज़मीन, तू रब्ब के सामने, या'क़ूब के ख़ुदा के सामने थरथरा;8~जो चट्टान को झील, और चक़माक़ की पानी का चश्मा बना देता है।
1हमको नहीं, ऐ ख़ुदावन्द बल्कि तू अपने ही नाम को अपनी शफ़क़त और सच्चाई की ख़ातिर जलाल बख़्श।2क़ौमें क्यूँ कहें, "अब ~उनका ख़ुदा कहाँ है?"3~हमारा ख़ुदा तो आसमान पर है; उसने जो कुछ चाहा वही किया।4~उनके बुत चाँदी और सोना हैं, या'नी आदमी की दस्तकारी।5~उनके मुँह हैं लेकिन वह बोलते नहीं; आँखें हैं लेकिन वह देखते नहीं।6उनके कान हैं लेकिन वह सुनते नहीं; नाक हैं लेकिन वह सूघते नहीं।7पाँव हैं लेकीन वह चलते नहीं, और उनके गले से आवाज़ नहीं निकलती।8~उनके बनाने वाले उन ही की तरह हो जाएँगे; बल्कि वह सब जो उन पर भरोसा रखते हैं।9~ऐ इस्राईल, ख़ुदावन्द पर भरोसा कर! वही उनकी मदद और उनकी ढाल है।10ऐ हारून के घराने, ख़ुदावन्द पर भरोसा करो। वही उनकी मदद और उनकी ढाल है।11~ऐ ख़ुदावन्द से डरने वालो, ख़ुदावन्द पर भरोसा करो! वही उनकी मदद और उनकी ढाल ~है।12~ख़ुदावन्द ने हम को याद रखा, वह बरकत देगाः वह इस्राईल के घराने को बरकत देगा; वह हारून के घराने को बरकत देगा।13~जो ख़ुदावन्द से डरते हैं, क्या छोटे क्या बड़े, वह उन सबको बरकत देगा।14ख़ुदावन्द तुम को बढ़ाए, तुम को और तुम्हारी औलाद को!15तुम ख़ुदावन्द की तरफ़ से मुबारक हो, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया ।16आसमान तो ख़ुदावन्द का आसमान है, लेकिन ज़मीन उसने बनी आदम को दी है।17मुर्दे ख़ुदावन्द की सिताइश नहीं करते, न वह जो ख़ामोशी के 'आलम में उतर जाते हैं:18~लेकिन हम अब से हमेशा तक, ख़ुदावन्द को मुबारक कहेंगे। ख़ुदावन्द की हम्द करो!|
1मैं ख़ुदावन्द से मुहब्बत रखता हूँ क्यूँकि उसने मेरी फ़रियाद और मिन्नत सुनी है2चुँकि उसने मेरी तरफ़ कान लगाया, इसलिए मैं 'उम्र भर उससे दू'आ करूँगा3मौत की रस्सियों ने मुझे जकड़ लिया, और पाताल के दर्द मुझ पर आ पड़े; मैं दुख और ग़म में गिरफ़्तार हुआ।4~तब मैंने ख़ुदावन्द से दु'आ की, "ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ मेरी जान की रिहाई बख्श! "5~ख़ुदावन्द सादिक़ और करीम है; हमारा ख़ुदा रहीम है।6~ख़ुदावन्द सादा लोगों की हिफ़ाज़त करता है; मैं पस्त हो गया था, उसी ने मुझे बचा लिया।7ऐ मेरी जान, फिर मुत्मइन हो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुझ पर एहसान किया है।8इसलिए के तूने मेरी जान को मौत से, मेरी आँखों को आँसू बहाने से, और मेरे पाँव को फिसलने से बचाया है।9~मैं ज़िन्दों की ज़मीन में, ख़ुदावन्द के सामने चलता रहूँगा।10मैं ईमान रखता हूँ इसलिए यह कहूँगा, "मैं बड़ी मुसीबत में था।"11~मैंने जल्दबाज़ी से कह दिया, कि "सब आदमी झूटे हैं।"12~ख़ुदावन्द की सब ने'मतें जो मुझे मिलीं, मैं उनके बदले में उसे क्या दूँ?13~मैं नजात का प्याला उठाकर, ख़ुदावन्द से दु'आ करूँगा।14मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी मन्नतें, उसकी सारी क़ौम के सामने पूरी करूँगा ।15ख़ुदावन्द की निगाह में, उसके पाक लोगों की मौत गिरा क़द्र है।16आह! ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरा बन्दा हूँ। मैं तेरा बन्दा, तेरी लौंडी का बेटा हूँ। तूने मेरे बन्धन खोले हैं।17मैं तेरे सामने शुक्रगुज़ारी की कु़र्बानी पेश करूँगा और ख़ुदावन्द से दुआ करूँगा ।18~मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी मन्नतें, उसकी सारी क़ौम के सामने पूरी करूँगा।19~ख़ुदावन्द के घर की बारगाहों में, तेरे अन्दर ऐ यरूशलीम! ख़ुदावन्द की हम्द करो।
1ऐ क़ौमो सब ख़ुदावन्द की हम्द करो! करो! ऐ उम्मतो! सब उसकी सिताइश करो!2~क्यूँकि हम पर उसकी बड़ी शफ़क़त है; और ख़ुदावन्द की सच्चाई हमेशा है ख़ुदावन्द की हम्द करो!|
1~ख़ुदावन्द का शुक्र ~करो, क्यूँकि वह भला है; और उसकी शफ़क़त हमेशा की है!2इस्राईल अब कहे, उसकी शफ़क़त हमेशा की है।3~हारून का घराना अब कहे, उसकी शफ़क़त हमेशा की है।4~ख़ुदावन्द से डरने वाले अब कहें, उसकी शफ़क़त हमेशा की है।5~मैंने मुसीबत में ख़ुदावन्द से दु'आ की, ख़ुदावन्द ने मुझे जवाब दिया और कुशादगी बख़्शी।6ख़ुदावन्द मेरी तरफ़ है, मैं नहीं डरने का; इन्सान मेरा क्या कर सकता है?7~ख़ुदावन्द मेरी तरफ़ मेरे मददगारों में है, इसलिए मैं अपने 'अदावत रखने वालों को देख लूँगा।8~ख़ुदावन्द पर भरोसा करना, इन्सान पर भरोसा रखने से बेहतर है।9~ख़ुदावन्द पर भरोसा करना, उमरा पर भरोसा रखने से बेहतर है।10~सब क़ौमों ने मुझे घेर लिया; मैं ख़ुदावन्द के नाम से उनको काट डालूँगा!11उन्होंने मुझे घेर लिया, बेशक घेर लिया; मैं ख़ुदावन्द के नाम से उनको काट डालूँगा!12उन्होंने शहद की मक्खियों की तरह मुझे घेर लिया, वह काँटों की आग की तरह बुझ गए; मैं ख़ुदावन्द के नाम से उनको काट डालूँगा।13तूने मुझे ज़ोर से धकेल दिया कि गिर पडू लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरी मदद की।14~ख़ुदावन्द मेरी ताक़त और मेरी हम्द है; वही मेरी नजात हुआ।15सादिकों के खे़मों में ख़ुशी और नजात की रागनी है, ख़ुदावन्द का दहना हाथ दिलावरी करता है।16~ख़ुदावन्द का दहना हाथ बुलन्द हुआ है, ख़ुदावन्द का दहना हाथ दिलावरी करता है।17मैं मरूँगा नहीं बल्कि जिन्दा रहूँगा, और ख़ुदावन्द के कामों का बयान करूँगा ।18~ख़ुदावन्द ने मुझे सख़्त तम्बीह तो की, लेकिन मौत के हवाले नहीं किया।19सदाक़त के फाटकों को मेरे लिए खोल दो, मैं उनसे दाख़िल होकर ख़ुदावन्द का शुक्र करूँगा ।20~ख़ुदावन्द का फाटक यही है, सादिक इससे दाख़िल होंगे।21मैं तेरा शुक्र करूँगा क्यूँकि तूने मुझे जवाब दिया, और ख़ुद मेरी नजात बना है।22~जिस पत्थर की मे'मारों ने रद्द किया, वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया।23~यह ख़ुदावन्द की तरफ़ से हुआ, और हमारी नज़र में 'अजीब है।24~यह वही दिन है जिसे ख़ुदावन्द ने मुक़र्रर किया, हम इसमें ख़ुश होंगे और ख़ुशी मनाएँगे।25आह! ऐ ख़ुदावन्द बचा ले! आह! ऐ ख़ुदावन्द खु़शहाली बख़्श!26मुबारक है वह जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है! हम ने तुम को ख़ुदावन्द के घर से दु'आ दी है।27~यहोवा ही ख़ुदा है, और उसी ने हम को नूर बख़्शा है। कु़र्बानी को मज़बह के सींगों से रस्सियों से बाँधो!28~तू मेरा ख़ुदा है, मैं तेरा शुक्र करूँगा ; तू मेरा ख़ुदा है, मैं तेरी तम्जीद करूँगा|29ख़ुदावन्द का शुक्र करो, क्यूँकि वह भला है; और उसकी शफ़क़त हमेशा की है!
1मुबारक हैं वह जो कामिल रफ़्तार है, जो ख़ुदा की शरी'अत पर 'अमल करते हैं!2मुबारक हैं वह जो उसकी शहादतों को मानते हैं, और पूरे दिल से उसके तालिब हैं!3उन से नारास्ती नहीं होती, वह उसकी राहों पर चलते हैं।4तूने अपने क़वानीन दिए हैं, ताकि हम दिल लगा कर उनकी मानें।5काश कि तेरे क़ानून मानने के लिए, मेरी चाल चलन दुरुस्त हो जाएँ!6~जब मैं तेरे सब अहकाम का लिहाज़ रख्खूँगा, तो शर्मिन्दा न हूँगा।7जब मैं तेरी सदाक़त के अहकाम सीख लूँगा, तो सच्चे दिल से तेरा शुक्र अदा करूँगा।8~मैं तेरे क़ानून मानूँगा; मुझे बिल्कुल छोड़ न दे!9~जवान अपने चाल चलन किस तरह पाक रख्खे? तेरे कलाम के मुताबिक़ उस पर निगाह रखने से।10मैं पूरे दिल से तेरा तालिब हुआ हूँ:मुझे अपने फ़रमान से भटकने न दे।11~मैंने तेरे कलाम को अपने दिल में रख लिया है ताकि मैं तेरे ख़िलाफ़ गुनाह न करूँ।12ऐ ख़ुदावन्द! तू मुबारक है; मुझे अपने क़ानून सिखा!13मैंने अपने लबों से, तेरे फ़रमूदा अहकाम को बयान किया।14मुझे तेरी शहादतों की राह से ऐसी ख़ुशी हुई, जैसी हर तरह की दौलत से होती है।15~मैं तेरे क़वानीन पर ग़ौर करूँगा, और तेरी राहों का लिहाज़ रख्खूँगा।16~मैं तेरे क़ानून में मसरूर रहूँगा; मैं तेरे कलाम को न भूलूँगा।17~अपने बन्दे पर एहसान कर ताकि मैं जिन्दा रहूँ और तेरे कलाम को मानता रहूँ।18~मेरी आँखे खोल दे, ताकि मैं तेरी शरीअत के 'अजाइब देखूँ।19~मैं ज़मीन पर मुसाफ़िर हूँ, अपने फ़रमान मुझ से छिपे न रख|20~मेरा दिल तेरे अहकाम के इश्तियाक में, हर वक़्त तड़पता रहता है।21~तूने उन मला'ऊन मग़रूरों को झिड़क दिया, जो तेरे फ़रमान से भटकते रहते हैं।22~मलामत और हिक़ारत को मुझ से दूर कर दे, क्यूँकि मैंने तेरी शहादतें मानी हैं।23~उमरा भी बैठकर मेरे ख़िलाफ़ बातें करते रहे, लेकिन तेरा बंदा तेरे क़ानून पर ध्यान लगाए रहा।24~तेरी शहादतें मुझे पसन्द, और मेरी मुशीर हैं।25~मेरी जान ख़ाक में मिल गई: तू अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।26~मैंने अपने चाल चलन का इज़हार किया और तूने मुझे जवाब दिया; मुझे अपने क़ानून की ता'लीम दे।27अपने क़वानीन की राह मुझे समझा दे, और मैं तेरे 'अजाइब पर ध्यान करूँगा ।28~ग़म के मारे मेरी जान घुली जाती है; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ताक़त दे।29~झूट की राह से मुझे दूर रख, और मुझे अपनी शरी'अत इनायत फ़रमा।30~मैंने वफ़ादारी की राह इख़्तियार की है, मैंने तेरे अहकाम अपने सामने रख्खे हैं।31~मैं तेरी शहादतों से लिपटा हुआ हूँ, ऐ ख़ुदावन्द! मुझे शर्मिन्दा न होने दे!32जब तू मेरा हौसला बढ़ाएगा, तो मैं तेरे फ़रमान की राह में दौड़ूँगा।33~ऐ ख़ुदावन्द, मुझे अपने क़ानून की राह बता, और मैं आख़िर तक उस पर चलूँगा ।34~मुझे समझ 'अता कर और मैं तेरी शरी'अत पर चलूँगा, बल्कि मैं पूरे दिल से उसको मानूँगा।35~मुझे अपने फ़रमान की राह पर चला, क्यूँकि इसी में मेरी ख़ुशी है।36मेरे दिल की अपनी शहादतों की तरफ़ रुजू' दिला; न कि लालच की तरफ़।37मेरी आँखों को बेकारी पर नज़र करने से बाज़ रख, और मुझे अपनी राहों में ज़िन्दा कर।38~अपने बन्दे के लिए अपना वह क़ौल पूरा कर, जिस से तेरा खौफ़ पैदा होता है।39~मेरी मलामत को जिस से मैं डरता हूँ दूर कर दे; क्यूँकि तेरे अहकाम भले हैं।40~देख, मैं तेरे क़वानीन का मुश्ताक़ रहा हूँ; मुझे अपनी सदाक़त से ज़िन्दा कर।41~ऐ ख़ुदावन्द, तेरे क़ौल के मुताबिक़, तेरी शफ़क़त और तेरी नजात मुझे नसीब हों,42~तब मैं अपने मलामत करने वाले को जवाब दे सकूँगा, क्यूँकि मैं तेरे कलाम पर भरोसा रखता हूँ।43~और हक़ बात को मेरे मुँह से हरगिज़ ~जुदा न होने दे, क्यूँकि मेरा भरोसा तेरे अहकाम पर है।44फिर मैं हमेशा से हमेशा तक, तेरी शरी'अत को मानता रहूँगा45~और मैं आज़ादी से चलूँगा, क्यूँकि मैं तेरे क़वानीन का तालिब रहा हूँ।46~मैं बादशाहों के सामने तेरी शहादतों का बयान करूँगा, और शर्मिन्दा न हूँगा।47~तेरे फ़रमान मुझे 'अज़ीज़ हैं, मैं उनमें मसरूर रहूँगा।48~मैं अपने हाथ तेरे फ़रमान की तरफ़ जो मुझे 'अज़ीज़ है उठाऊँगा, और तेरे क़ानून पर ध्यान करूँगा।49~जो कलाम तूने अपने बन्दे से किया उसे याद कर, क्यूँकि तूने मुझे उम्मीद दिलाई है।50~मेरी मुसीबत में यही मेरी तसल्ली है, कि तेरे कलाम ने मुझे ज़िन्दा किया51~मग़रूरों ने मुझे बहुत ठठ्ठों में उड़ाया, तोभी मैंने तेरी शरी'अत से किनारा नहीं किया52~ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरे क़दीम अहकाम को याद करता, और इत्मीनान पाता रहा हूँ।53~उन शरीरों की वजह से जो तेरी शरी'अत को छोड़ देते ~हैं, मैं सख़्त ग़ुस्से में आ गया हूँ।54~मेरे मुसाफ़िर ख़ाने में, तेरे क़ानून मेरी हम्द रहे हैं।55~ऐ ख़ुदावन्द, रात को मैंने तेरा नाम याद किया है, और तेरी शरी'अत पर 'अमल किया है।56~यह मेरे लिए इसलिए हुआ, कि मैंने तेरे क़वानीन को माना।57~ख़ुदावन्द मेरा बख़रा है; मैंने कहा है मैं तेरी बातें मानूँगा।58~मैं पूरे दिल से तेरे करम का तलब गार हुआ; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझ पर रहम कर!59~मैंने अपनी राहों पर ग़ौर किया, और तेरी शहादतों की तरफ़ अपने कदम मोड़े।60~मैंने तेरे फ़रमान मानने में, जल्दी की और देर न लगाई।61~शरीरों की रस्सियों ने मुझे जकड़ लिया, लेकिन मैं तेरी शरी'अत को न भूला।62~तेरी सदाकत के अहकाम के लिए, मैं आधी रात को तेरा शुक्र करने को उठूँगा।63~मैं उन सबका साथी हूँ जो तुझ से डरते हैं, और उनका जो तेरे क़वानीन को मानते हैं।64~ऐ ख़ुदावन्द, ज़मीन तेरी शफ़क़त से मा'मूर है; मुझे अपने क़ानून सिखा!65~ऐ ख़ुदावन्द! तूने अपने कलाम के मुताबिक़, अपने बन्दे के साथ भलाई की है।66~मुझे सही फ़र्क़ और 'अक़्ल सिखा, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान पर ईमान लाया~हूँ|67~मैं मुसीबत उठाने से पहले गुमराह था; लेकिन अब तेरे कलाम को मानता हूँ।68~तू भला है और भलाई करता है; मुझे अपने क़ानून सिखा।69~मग़रूरों ने मुझ पर बहुतान बाँधा है; मैं पूरे दिल से तेरे क़वानीन को मानूँगा।70~उनके दिल चिकनाई से फ़र्बा हो गए, लेकिन मैं तेरी शरी'अत में मसरूर हूँ।71अच्छा हुआ कि मैंने मुसीबत उठाई, ताकि तेरे क़ानून सीख लूँ।72तेरे मुँह की शरी'अत मेरे लिए, सोने चाँदी के हज़ारों सिक्कों से बेहतर है।73~तेरे हाथों ने मुझे बनाया और तरतीब दी; मुझे समझ 'अता कर ताकि तेरे फ़रमान सीख लें।74~तुझ से डरने वाले मुझे देख कर इसलिए कि~मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है।75~ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे अहकाम की सदाक़त को जानता हूँ, और यह कि वफ़ादारी ही से तूने मुझे दुख; में डाला।76~उस कलाम के मुताबिक़ जो तूनेअपने बन्दे से किया, तेरी शफ़क़त मेरी तसल्ली का ज़रिया' हो।77~तेरी रहमत मुझे नसीब हो ताकि मैं ज़िन्दा रहूँ। क्यूँकि तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी है।78~मग़रूर शर्मिन्दा हों, क्यूँकि उन्होंने नाहक़ मुझे गिराया, लेकिन मैं तेरे क़वानीन पर ध्यान करूँगा ।79~तुझ से डरने वाले मेरी तरफ़ रुजू हों, तो वह तेरी शहादतों को जान लेंगे।80~मेरा दिल तेरे क़ानून मानने में कामिल रहे, ताकि मैं शर्मिन्दगी न उठाऊँ।81~मेरी जान तेरी नजात के लिए बेताब है, लेकिन मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है।82तेरे कलाम के इन्तिज़ार में मेरी आँखें रह गई, मैं यही कहता रहा कि तू मुझे कब तसल्ली देगा?83~मैं उस मश्कीज़े की तरह हो गया जो धुएँ में हो, तोभी मैं तेरे क़ानून को नहीं भूलता।84~तेरे बन्दे के दिन ही कितने हैं? तू मेरे सताने वालों पर कब फ़तवा देगा?85~मग़रूरों ने जो तेरी शरी'अत के पैरौ नहीं, मेरे लिए गढ़े खोदे हैं।86~तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं:वह नाहक़ मुझे सताते हैं; तू मेरी मदद कर!87~उन्होंने मुझे ज़मीन पर से फ़नाकर ही डाला था, लेकिन मैंने तेरे कवानीन को न छोड़ा।88~तू मुझे अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ ज़िन्दा कर, तो मैं तेरे मुँह की शहादत को मानूँगा।89~ऐ ख़ुदावन्द! तेरा कलाम, आसमान पर हमेशा तक क़ायम है।90तेरी वफ़ादारी नसल दर नसल है; तूने ज़मीन को क़याम बख़्शा और वह क़ायम है।91~वह आज तेरे अहकाम के मुताबिक़ क़ायम हैं क्यूँकि सब चीजें तेरी ख़िदमत गुज़ार हैं।92अगर तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी न होती, तो मैं अपनी मुसीबत में हलाक हो जाता।93~मैं तेरे क़वानीन को कभी न भूलूँगा, क्यूँकि तूने उन्ही के वसीले से मुझे ज़िन्दा किया है।94~मैं तेरा ही हूँ मुझे बचा ले, क्यूँकि मैं तेरे क़वानीन का तालिब रहा हूँ।95~शरीर मुझे हलाक करने को घात में लगे रहे, लेकिन मैं तेरी शहादतों पर ग़ौर करूँगा ।96~मैंने देखा कि हर कमाल की इन्तिहा है, लेकिन तेरा हुक्म बहुत वसी'अ है।97~आह! मैं तेरी शरी'अत से कैसी मुहब्बत रखता हूँ, मुझे दिन भर उसी का ध्यान रहता है।98~तेरे फ़रमान मुझे मेरे दुश्मनों से ज़्यादा 'अक़्लमंद ~बनाते हैं, क्यूँकि वह हमेशा मेरे साथ हैं।99~मैं अपने सब उस्तादों से 'अक़्लमंद हैं, क्यूँकि तेरी शहादतों पर मेरा ध्यान रहता है।100~मैं 'उम्र रसीदा लोगों से ज़्यादा समझ रखता हूँ क्यूँकि मैंने तेरे क़वानीन को माना है।101~मैंने हर बुरी राह से अपने क़दम रोक रख्खें हैं, ताकि तेरी शरी'अत पर 'अमल करूँ।102मैंने तेरे अहकाम से किनारा नहीं किया, क्यूँकि तूने मुझे ता'लीम दी है।103~तेरी बातें मेरे लिए कैसी शीरीन हैं, वह मेरे मुँह को शहद से भी मीठी मा'लूम होती हैं!104~तेरे क़वानीन से मुझे समझ हासिल होता है, इसलिए मुझे हर झूटी राह से नफ़रत है।105~तेरा कलाम मेरे क़दमों के लिए चराग़, और मेरी राह के लिए रोशनी है।106~मैंने क़सम खाई है और उस पर क़ायम हूँ, कि तेरी सदाक़त के अहकाम पर'अमल करूँगा।107~मैं बड़ी मुसीबत में हूँ।ऐ ख़ुदावन्द! अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।108~ऐ ख़ुदावन्द, मेरे मुँह से रज़ा की क़ुर्बानियाँ क़ुबूल फ़रमा और मुझे अपने अहकाम की ता'लीम दे।109मेरी जान हमेशा हथेली पर है, तोभी मैं तेरी शरी'अत को नहीं भूलता।110~शरीरों ने मेरे लिए फंदा लगाया है, तोभी मैं तेरे क़वानीन से नहीं भटका।111~मैंने तेरी शहादतों को अपनी हमेशा की मीरास बनाया है, क्यूँकि उनसे मेरे दिल को ख़ुशी होती है।112~मैंने हमेशा के लिए आख़िर तक, तेरे क़ानून मानने पर दिल लगाया है।113~मुझे दो दिलों से नफ़रत है, लेकिन तेरी शरी'अत से मुहब्बत रखता हूँ |114~तू मेरे छिपने की जगह और मेरी ढाल है; मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है।115~ऐ बदकिरदारो! मुझ से दूर हो जाओ, ताकि मैं अपने ख़ुदा के फ़रमान पर'अमल करूँ!116~तू अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे संभाल ताकि ज़िन्दा रहूँ, और मुझे अपने भरोसा से शर्मिन्दगी न उठाने दे।117~मुझे संभाल और मैं सलामत रहूँगा, और हमेशा तेरे क़ानून का लिहाज़ रखूँगा ।118~तूने उन सबको हक़ीर जाना है, जो तेरे क़ानून से भटक जाते हैं; क्यूँकि उनकी दग़ाबाज़ी 'बेकार है।119~तू ज़मीन के सब शरीरों को मैल की तरह छाँट देता है; इसलिए में तेरी शहादतों को 'अज़ीज़ रखता हूँ।120मेरा जिस्म तेरे ख़ौफ़ से काँपता है, और मैं तेरे अहकाम से डरता हूँ।121~मैंने 'अद्ल और इन्साफ़ किया है; मुझे उनके हवाले न कर जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं।122~भलाई के लिए अपने बन्दे का ज़ामिन हो, मग़रूर मुझ पर ज़ुल्म न करें।123~तेरी नजात और तेरी सदाक़त के कलाम के इन्तिज़ार में मेरी आँखें रह गई।124अपने बन्दे से अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ सुलूक कर, और मुझे अपने क़ानून सिखा।125~मैं तेरा बन्दा हूँ! मुझ को समझ 'अताकर, ताकि तेरी शहादतों को समझ लूँ।126अब वक़्त आ गया, कि ख़ुदावन्द काम करे, क्यूँकि उन्होंने तेरी शरी'अत को बेकार कर दिया है।127~इसलिए मैं तेरे फ़रमान को सोने से बल्कि कुन्दन से भी ज़्यादा 'अज़ीज़ रखता हूँ।128~इसलिए मैं तेरे सब कवानीन को बरहक़ जानता हूँ, और हर झूटी राह से मुझे नफ़रत है।129~तेरी शहादतें 'अजीब हैं, इसलिए मेरा दिल उनको मानता है।130तेरी बातों की तशरीह नूर बख़्शती है, वह सादा दिलों को 'अक़्लमन्द बनाती है।131~मैं खू़ब मुँह खोलकर हाँपता रहा, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान का मुश्ताक़ था।132~मेरी तरफ़ तवज्जुह कर और मुझ पर रहम फ़रमा, जैसा तेरे नाम से मुहब्बत रखने वालों का हक़ है।133~अपने कलाम में मेरी रहनुमाई कर, कोई बदकारी मुझ पर तसल्लुत न पाए।134इन्सान के ज़ुल्म से मुझे छुड़ा ले, तो तेरे क़वानीन पर 'अमल करूँगा ।135अपना चेहरा अपने बन्दे पर जलवागर फ़रमा, और मुझे अपने क़ानून सिखा।136~मेरी आँखों से पानी के चश्मे जारी हैं, इसलिए कि लोग तेरी शरी'अत को नहीं मानते।137~ऐ ख़ुदावन्द तू सादिक़ है, और तेरे अहकाम बरहक़ हैं।138~तूने सदाक़त और कमाल वफ़ादारी से, अपनी शहादतों को ज़ाहिर फ़रमाया है।139~मेरी गै़रत मुझे खा गई, क्यूँकि मेरे मुख़ालिफ़ तेरी बातें भूल गए|140तेरा कलाम बिल्कुल ख़ालिस है, इसलिए तेरे बन्दे को उससे मुहब्बत है।141~मैं अदना और हक़ीर हूँ, तौ भी मैं तेरे क़वानीन को नहीं भूलता।142~तेरी सदाक़त हमेशा की सदाक़त है, और तेरी शरी'अत बरहक़ है।143~मैं तकलीफ़ और अज़ाब में मुब्तिला, हूँ तोभी तेरे फ़रमान मेरी ख़ुशनूदी हैं।144~तेरी शहादतें हमेशा रास्त हैं; मुझे समझ 'अता कर तो मैं ज़िन्दा रहूँगा।145~मैं पूरे दिल से दु'आ करता हूँ, ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जवाब दे। मैं तेरे क़ानून पर 'अमल करूँगा ।146मैंने तुझ से दु'आ की है, मुझे बचा ले, और मैं तेरी शहादतों को मानूँगा।147~मैंने पौ फटने से पहले फ़रियाद की; मुझे तेरे कलाम पर भरोसा है।148~मेरी आँखें रात के हर पहर से पहले खुल गई, ताकि तेरे कलाम पर ध्यान करूँ।149अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मेरी फ़रियाद सुन: ऐ ख़ुदावन्द! अपने अहकाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।150~जो शरारत के दर पै रहते हैं, वह नज़दीक आ गए; वह तेरी शरी'अत से दूर हैं।151~ऐ ख़ुदावन्द, तू नज़दीक है, और तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं।152~तेरी शहादतों से मुझे क़दीम से मा'लूम हुआ, कि तूने उनको हमेशा के लिए क़ायम किया है।153~मेरी मुसीबत का ख़याल करऔर मुझे छुड़ा, क्यूँकि मैं तेरी शरी'अत को नहीं भूलता।154~मेरी वकालत कर और मेरा फ़िदिया दे:अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।155~नजात शरीरों से दूर है, क्यूँकि वह तेरे क़ानून के तालिब नहीं हैं।156~ऐ ख़ुदावन्द! तेरी रहमत बड़ी है; अपने अहकाम के मुताबिक़ मुझे ज़िन्दा कर।157~मेरे सताने वाले और मुखालिफ़ बहुत हैं, तोभी मैंने तेरी शहादतों से किनारा न किया।158~मैं दग़ाबाज़ों को देख कर मलूल हुआ, क्यूँकि वह तेरे कलाम को नहीं मानते।159~ख़याल फ़रमा कि मुझे तेरे क़वानीन से कैसी मुहब्बत है! ऐ ख़ुदावन्द! अपनी शफ़क़त के मुताबिक मुझे ज़िन्दा कर।160तेरे कलाम का ख़ुलासा सच्चाई है, तेरी सदाक़त के कुल अहकाम हमेशा के हैं।161~उमरा ने मुझे बे वजह सताया है, लेकिन मेरे दिल में तेरी बातों का ख़ौफ़ है।162~मैं बड़ी लूट पाने वाले की तरह, तेरे कलाम से ख़ुश हूँ।163~मुझे झूट से नफ़रत और कराहियत है, लेकिन तेरी शरी'अत से मुहब्बत है।164~मैं तेरी सदाक़त के अहकाम की वजह से, दिन में सात बार तेरी सिताइश करता हूँ।165~तेरी शरी'अत से मुहब्बत रखने वाले मुत्मइन हैं; उनके लिए ठोकर खाने का कोई मौक़ा' नहीं।166~ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरी नजात का उम्मीदवार रहा हूँ और तेरे फ़रमान बजा लाया हूँ।167~मेरी जान ने तेरी शहादतें मानी हैं, और वह मुझे बहुत 'अज़ीज़ हैं।168~मैंने तेरे क़वानीन और शहादतों को माना है, क्यूँकि मेरे सब चाल चलन तेरे सामने हैं।169~ऐ ख़ुदावन्द! मेरी फ़रियाद तेरे सामने पहुँचे; अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे समझ 'अता कर।170~मेरी इल्तिजा तेरे सामने पहुँचे, अपने कलाम के मुताबिक़ मुझे छुड़ा।171~मेरे लबों से तेरी सिताइश हो।क्यूँकि तू मुझे अपने क़ानून सिखाता है।172मेरी ज़बान तेरे कलाम का हम्द गाए, क्यूँकि तेरे सब फ़रमान बरहक़ हैं।173~तेरा हाथ मेरी मदद को तैयार है क्यूँकि मैंने तेरे क़वानीन इख़्तियार, किए हैं।174~ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरी नजात का मुश्ताक़ रहा हूँ, और तेरी शरी'अत मेरी ख़ुशनूदी है।175~मेरी जान ज़िन्दा रहे तो वह तेरी सिताइश करेगी, और तेरे अहकाम मेरी मदद करें।176मैं खोई हुई भेड़ की तरह भटक गया हूँ अपने बन्दे की तलाश कर, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान को नहीं भूलता।
1~मैंने मुसीबत में ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और उसने मुझे जवाब दिया।2~झूटे होंटों और दग़ाबाज़ ज़बान से, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को छुड़ा।3~ऐ दग़ाबाज़ ज़बान, तुझे क्या दिया जाए? और तुझ से और क्या किया जाए?4~ज़बरदस्त के तेज़ तीर, झाऊ के अंगारों के साथ।5~मुझ पर अफ़सोस कि मैं मसक में बसता, और क़ीदार के ख़ैमों में रहता हूँ।6सुलह के दुश्मन के साथ रहते हुए, मुझे बड़ी मुद्दत हो गई।7मैं तो सुलह दोस्त हूँ। लेकिन जब बोलता हूँ तो वह जंग पर आमादा हो जाते हैं।
1मैं अपनी आँखें पहाड़ों की तरफ उठाऊगा; मेरी मदद कहाँ से आएगी?2मेरी मदद ख़ुदावन्द से है, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया।3~वह तेरे पाँव को फिसलने न देगा; तेरा मुहाफ़िज़ ऊँघने का नहीं।4~देख! इस्राईल का मुहाफ़िज़, न ऊँघेगा, न सोएगा।5~ख़ुदावन्द तेरा मुहाफ़िज़ है; ख़ुदावन्द तेरे दहने हाथ पर तेरा सायबान है।6~न आफ़ताब दिन को तुझे नुक़सान पहुँचाएगा, न माहताब रात को।7~ख़ुदावन्द हर बला से तुझे महफूज़ रख्खेगा, वह तेरी जान को महफूज़ रख्खेगा।8~ख़ुदावन्द तेरी आमद-ओ-रफ़्त में, अब से हमेशा तक तेरी हिफ़ाज़त करेगा।
1~मैं ख़ुश हुआ जब वह मुझ ~से कहने लगे~"आओ ख़ुदावन्द के घर चलें।”2ऐ यरूशलीम! हमारे क़दम, तेरे फाटकों के अन्दर हैं।3ऐ यरुशलीम तू ऐसे शहर के तरह है जो गुनजान बना हो।4~जहाँ क़बीले या'नी ख़ुदावन्द के क़बीले, इस्राईल की शहादत के लिए, ख़ुदावन्द के नाम का शुक्र करने को जातें हैं।5क्यूँकि वहाँ 'अदालत के तख़्त, या'नी दाऊद के ख़ान्दान के तख़्त क़ायम हैं।6~यरूशलीम की सलामती की दु'आ करो, वह जो तुझ से मुहब्बत रखते हैं इकबालमंद होंगे।7~तेरी फ़सील के अन्दर सलामती, और तेरे महलों में इकबालमंदी हो।8~मैं अपने भाइयों और दोस्तों की ख़ातिर, अब कहूँगा तुझ में सलामती रहे!9~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर की ख़ातिर, मैं तेरी भलाई का तालिब रहूँगा।
1~तू जो आसमान पर तख़्तनशीन है, मैं अपनी आँखें तेरी तरफ़ उठाता हूँ!2देख, जिस तरह गुलामों की आँखेंअपने आका के हाथ की तरफ़, और लौंडी की आँखें अपनी बीबी के हाथ की तरफ़ लगी रहती है उसी तरह हमारी आँखे ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ लगी है जब तक वह हम पर रहम न करे।3हम पर रहम कर! ऐ ख़ुदावन्द, हम पर रहम कर, क्यूँकि हम ज़िल्लत उठाते उठाते तंग आ गए।4आसूदा हालों के तमसख़ुर, और माग़रूरों की हिक़ारत से, हमारी जान सेर हो गई।
1अब इस्राईल यूँ कहे, अगर ख़ुदावन्द हमारी तरफ़ न होता,2~अगर ख़ुदावन्द उस वक़्त हमारी तरफ़ न होता, जब लोग हमारे ख़िलाफ़ उठे,3~तो जब उनका क़हर हम पर भड़का था, वह हम को ज़िन्दा ही निगल जाते।4उस वक़्त पानी हम को डुबो देता, और सैलाब हमारी जान पर से गुज़र जाता।5उस वक़्त मौजज़न, पानी हमारी जान पर से गुज़र जाता।6ख़ुदावन्द मुबारक हो, जिसने हमें उनके दाँतों का शिकार न होने दिया।7हमारी जान चिड़िया की तरह चिड़ीमारों के जाल से बच निकली, जाल तो टूट गया और हम बच निकले।8हमारी मदद ख़ुदावन्द के नाम से है, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया।
1जो ख़ुदावन्द पर भरोसा करते~वह कोह-ए-सिय्यून की तरह हैं, जो अटल बल्कि हमेशा क़ायम है।2~जैसे यरूशलीम पहाड़ों से घिरा है, वैसे ही अब से हमेशा तक ख़ुदावन्द अपने लोगों को घेरे रहेगा।3~क्यूँकि शरारत का 'असा सादिकों की मीरास पर क़ायम न होगा, ताकि सादिक बदकारी की तरफ़ अपने हाथ न बढ़ाएँ।4~ऐ ख़ुदावन्द! भलों के साथ भलाई कर, और उनके साथ भी जो रास्त दिल हैं।5~लेकिन जो अपनी टेढ़ी राहों की तरफ़ मुड़ते हैं, उनको ख़ुदावन्द बदकिरदारों के साथ निकाल ले जाएगा। इस्राईल की सलामती हो!
1जब ख़ुदावन्द सिय्युन के गुलामों को वापस लाया, तो हम ख़्वाब देखने वालों की तरह थे।2उस वक़्त हमारे मुँह में हँसी, और हमारी ज़बान पर रागनी थी; तब क़ौमों में यह चर्चा होने लगा, "ख़ुदावन्द ने इनके लिए बड़े बड़े काम किए हैं।"3ख़ुदावन्द ने हमारे लिए बड़े बड़े काम किए हैं, और हम ख़ुश हैं!4ऐ ख़ुदावन्द! दखिन की नदियों की तरह, हमारे गुलामों को वापस ला।5~जो आँसुओं के साथ बोते हैं, वह खु़शी के साथ काटेंगे।6~जो रोता हुआ बीज बोने जाता है, वह अपने पूले लिए हुए ख़ुश लौटेगा।
1अगर ख़ुदावन्द ही घर न बनाए, तो बनाने वालों की मेहनत' बेकार है। अगर ख़ुदावन्द ही शहर की हिफ़ाज़त न करे, तो निगहबान का जागना 'बेकार है।2तुम्हारे लिए सवेरे उठना और देर में आराम करना, और मशक़्क़त की रोटी खाना 'बेकार है; क्यूँकि वह अपने महबूब को तो नींद ही में दे देता है।.3देखो, औलाद ख़ुदावन्द की तरफ़ से मीरास है, और पेट का फल उसी की तरफ़ से अज्र है,4जवानी के फ़र्ज़न्द ऐसे हैं, जैसे ज़बरदस्त के हाथ में तीर।5~ख़ुश नसीब है वह आदमी जिसका तरकश उनसे भरा है। जब वह अपने दुश्मनों से फाटक पर बातें करेंगे तो शर्मिन्दा न होंगे।
1मुबारक है हर एक जो ख़ुदावन्द~से डरता, और उसकी राहों पर चलता है।2तू अपने हाथों की कमाई खाएगा; तू मुबारक और फ़र्माबरदार होगा।3~तेरी बीवी तेरे घर के अन्दर मेवादार ताक की तरह होगी, और तेरी औलाद तेरे दस्तरख़्वान पर ज़ैतून के पौदों की तरह।4देखो! ऐसी बरकत उसी आदमी को मिलेगी, जो ख़ुदावन्द से डरता है।5ख़ुदावन्द सिय्यून में से तुझ को बरकत दे, और तू 'उम्र भर यरूशलीम की भलाई देखे।6बल्कि तू अपने बच्चों के बच्चे देखे।इस्राईल की सलामती हो!
1इस्राईल अब यूँ कहे, 'उन्होंने मेरी जवानी से अब तक मुझे बार बार सताया,2हाँ, उन्होंने मेरी जवानी से अब तक मुझे बार बार सताया, तोभी वह मुझ पर ग़ालिब न आए।3हलवाहों ने मेरी पीठ पर हल चलाया, और लम्बी लम्बी रेघारियाँ बनाई।"4ख़ुदावन्द सादिक़ है; उसने शरीरों की रसियाँ काट डालीं।5सिय्यून से नफ़रत रखने वाले, सब शर्मिन्दा और पस्पा हों।6~वह छत पर की घास की तरह हों, जो बढ़ने से पहले ही सूख जाती है;7~जिससे फ़सल काटने वाला अपनी मुट्ठी को, और पूले बाँधने वाला अपने दामन को नहीं भरता,8न आने जाने वाले यह कहते हैं, "तुम पर ख़ुदावन्द की बरकत हो! हम ख़ुदावन्द के नाम से तुम को दु'आ देते हैं! ”
1ऐ ख़ुदावन्द! मैंने गहराओ में से तेरे सामने फ़रियाद की है!2~ऐ ख़ुदावन्द! मेरी आवाज़ सुन ले! मेरी इल्तिजा की आवाज़ पर, तेरे कान लगे रहें।3~ऐ ख़ुदावन्द! अगर तू बदकारी को हिसाब में लाए, तो ऐ ख़ुदावन्द कौन क़ायम रह सकेगा?4लेकिन मग़फ़िरत तेरे हाथ में है, ताकि लोग तुझ से डरें।5~मैं ख़ुदावन्द का इन्तिज़ार करता हूँ। मेरी जान मुन्तज़िर है, और मुझे उसके कलाम पर भरोसा है।6सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से ज़्यादा, हाँ, सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से कहीं ज़्यादा, मेरी जान ख़ुदावन्द की मुन्तज़िर है।7ऐ इस्राईल! ख़ुदावन्द पर भरोसा कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द के हाथ में शफ़क़त है, उसी के हाथ में फ़िदिए की कसरत है।8और वही इस्राईल का फ़िदिया देकर, उसको सारी बदकारी से छुड़ाएगा।
1ऐ ख़ुदावन्द! मेरा दिल मग़रूर नहीं और मै बुलंद नज़र नहीं हूँ न मुझे बड़े बड़े मु'आमिलो से कोई सरोकार है, न उन बातों से जो मेरी समझ से बाहर हैं,2यक़ीनन मैंने अपने दिल को तिस्कीन देकर मुत्मइन कर दिया है, मेरा दिल मुझ में दूध छुड़ाए हुए बच्चे की तरह है; हाँ, जैसे दूध छुड़ाया हुआ बच्चा माँ की गोद में |3ऐ इस्राईल! अब से हमेशा तक, ख़ुदावन्द पर भरोसा कर!
1~ऐ ख़ुदावन्द! दाऊद कि ख़ातिर उसकी सब मुसीबतों को याद कर;2कि उसने किस तरह ख़ुदावन्द से क़सम खाई, और या'क़ूब के क़ादिर के सामने मन्नत मानी,3~"यक़ीनन मैं न अपने घर में दाख़िल हूँगा, न अपने पलंग पर जाऊँगा;4और न अपनी आँखों में नींद, न अपनी पलकों में झपकी आने दूँगा;5जब तक ख़ुदावन्द के लिए कोई जगह, और या'क़ूब के क़ादिर के लिए घर न हो।"6~देखो, हम ने उसकी ख़बर इफ़्राता में सुनी; हमें यह जंगल के मैदान में मिली।7~हम उसके घरों में दाखि़ल होंगे, हम उसके पाँव की चौकी के सामने सिजदा करेंगे!8उठ, ऐ ख़ुदावन्द! अपनी आरामगाह में दाखि़ल हो! तू और तेरी कु़दरत का संदूक़।9तेरे काहिन सदाक़त से मुलब्बस हों, और तेरे पाक ख़ुशी के नारे मारें।10अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, अपने मम्सूह की दु'आ ना-मन्जूर न कर।11~ख़ुदावन्द ने सच्चाई के साथ दाऊद से क़सम खाई है; वह उससे फिरने का नहीं: कि मैं तेरी औलाद में से किसी को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।12~अगर तेरे फ़र्ज़न्द मेरे 'अहद और मेरी शहादत पर, जो मैं उनको सिखाऊँगा 'अमल करें; तो उनके फ़र्ज़न्द भी हमेशा तेरे तख़्त पर बैठेगें।"13क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को चुना है, उसने उसे अपने घर के लिए पसन्द किया है:14~"यह हमेशा के लिए मेरी आरामगाह है; मै यहीं रहूँगा क्यूँकि मैंने इसे पसंद किया है।15मैं इसके रिज़क़ में ख़ूब बरकत दूँगा; मैं इसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा16~इसके काहिनों को भी मैं नजात से मुलव्वस करूँगा और उसके पाक बुलन्द आवाज़ से ख़ुशी के नारे मारेंगे।17वहीं मैं दाऊद के लिए एक सींग निकालूँगा मैंने अपने मम्सूह के लिए चराग़ तैयार किया है।18मैं उसके दुश्मनों को शर्मिन्दगी का लिबास पहनाऊँगा, लेकिन उस पर उसी का ताज रोनक अफ़रोज़ होगा।
1~देखो! कैसी अच्छी और खु़शी की बात है, कि भाई एक साथ मिलकर रहें!2~यह उस बेशक़ीमत तेल की तरह है, जो सिर पर लगाया गया, और बहता हुआ दाढ़ी पर, या'नी हारून की दाढ़ी पर आ गया; बल्कि उसके लिबास के दामन तक जा पहुँचा।3~या हरमून की ओस की तरह है, जो सिय्यून के पहाड़ों पर पड़ती है! क्यूँकि वहीं ख़ुदावन्द ने बरकत का, या'नी हमेशा की ज़िन्दगी का हुक्म फ़रमाया।
1ऐ ख़ुदावन्द के बन्दो! आओ सब ख़ुदावन्द को मुबारक कहो! तुम जो रात को ख़ुदावन्द के घर में खड़े रहते हो!2हैकल की तरफ़ अपने हाथ उठाओ, और ख़ुदावन्द को मुबारक कहो!3~ख़ुदावन्द, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया, सिय्यून में से तुझे बरकत बख़्शे।
1~ ख़ुदावन्द की हम्द करो! ख़ुदावन्द के नाम की हम्द करो! ऐ ख़ुदावन्द के बन्दो! उसकी हम्द करो।2तुम जो ख़ुदावन्द के घर में, हमारे ख़ुदा के घर की बारगाहों में खड़े रहते हो!3~ख़ुदावन्द की हम्द करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द भला है; उसके नाम की मदहसराई करो कि यह दिल पसंद है!4क्यूँकि ख़ुदावन्द ने या'क़ूब को अपने लिए, और इस्राईल को अपनी ख़ास मिल्कियत के लिए चुन लिया है।5~~इसलिए कि मैं जानता हूँ कि ख़ुदावन्द बुजुर्ग़ है ~और हमारा रब्ब सब मा'बूदों से बालातर है।6आसमान और ज़मीन में, समन्दर और गहराओ में; ख़ुदावन्द ने जो कुछ चाहा वही किया।7~वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है, वह बारिश के लिए बिजलियाँ बनाता है, और अपने मख़ज़नों से आँधी निकालता है।8उसी ने मिस्र के पहलौठों को मारा, क्या इन्सान के क्या हैवान के।9ऐ मिस्र, उसी ने तुझ में फ़िर'औन और उसके सब ख़ादिमो पर, निशान और 'अजाइब ज़ाहिर किए।10उसने बहुत सी क़ौमों को मारा, और ज़बरदस्त बादशाहों को क़त्ल किया।11अमोरियों के बादशाह सीहोन को, और बसन के बादशाह 'ओज को, और कना'न की सब मम्लुकतों को;12और उनकी ज़मीन मीरास कर दी, या'नी अपनी क़ौम इस्राईल की मीरास।13ऐ ख़ुदावन्द! तेरा नाम हमेशा का है, और तेरी यादगार, ऐ ख़ुदावन्द, नसल दर नसल क़ायम है।14क्यूँकि ख़ुदावन्द अपनी क़ौम की 'अदालत करेगा, और अपने बन्दों पर तरस खाएगा।15~क़ौमों के बुत चाँदी और सोना हैं, या'नी आदमी की दस्तकारी।16उनके मुँह हैं, लेकिन वह बोलते नहीं; आँखें हैं लेकिन वह देखते नहीं।17उनके कान हैं, लेकिन वह सुनते नहीं; और उनके मुँह में साँस नहीं।18उनके बनाने वाले उन ही की तरह हो जाएँगे; बल्कि वह सब जो उन पर भरोसा रखते हैं।19~ऐ इस्राईल के घराने! ख़ुदावन्द को मुबारक कहो! ऐ हारून के घराने! ख़ुदावन्द को मुबारक कहो ।20~ऐ लावी के घराने! ख़ुदावन्द को मुबारक कहो! ऐ ख़ुदावन्द से डरने वालो! ख़ुदावन्द को मुबारक कहो!21सिय्यून में ख़ुदावन्द मुबारक हो! वह यरूशलीम में सुकूनत करता है ख़ुदावन्द की हम्द करो|
1खु़दावन्द का शुक्र करो, क्यूँकि वह भला है, कि उसकी शफ़क़त हमेशा की है।2इलाहों के ख़ुदा का शुक्र करो, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की है।3मालिकों के मालिक का शुक्र करो, कि उसकी शफ़क़त हमेशा की है।4~उसी का जो अकेला बड़े बड़े 'अजीब काम करता है, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा कीहै।5उसी का जिसने 'अक़्लमन्दी से आसमान बनाया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा कीहै।6उसी का जिसने ज़मीन को पानी पर फैलाया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा कीहै।7उसी का जिसने बड़े-बड़े सितारे बनाए, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है।8दिन को हुकूमत करने के लिए आफ़ताब, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की है।9रात को हुकूमत करने के लिए माहताब और सितारे, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की है।10उसी का जिसने मिस्र के पहलौठों को मारा, कि उसकी शफ़क़त~हमेशाकी है।11और इस्राईल को उनमें से निकाल लाया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा कीहै।12~क़वी हाथ और बलन्द बाज़ू से, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा~की है|13उसी का जिसने बहर-ए-कु़लज़ुम को दो हिस्से कर दिया, कि उसकी शफ़क़त हमेशा की है।14और इस्राईल को उसमें से पार किया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है।15लेकिन फ़िर'औन और उसके लश्कर को बहर-ए-कु़लजु़म में डाल दिया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की है।16उसी का जो वीरान में अपने लोगों का राहनुमा हुआ, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है।17~उसी का जिसने बड़े-बड़े बादशाहों को मारा, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है;18और नामवर बादशाहों को क़त्ल किया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है।19अमोरियों के बादशाह सीहोन को, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है।20और बसन के बादशाह 'ओज की, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है;21और उनकी ज़मीन मीरास कर दी, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है;22या'नी अपने बन्दे इस्राईल की मीरास, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है।23~जिसने हमारी पस्ती में हम को याद किया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है;24और हमारे मुख़ालिफ़ों से हम को छुड़ाया, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है।25जो सब बशर को रोज़ी देता है, कि उसकी शफ़क़त~हमेशा की~है।26~आसमान के ख़ुदा का शुक्र करो, कि उसकी सफ़कत हमेशा की है|
1~हम बाबुल की नदियों पर बैठे, और सिय्यून को याद करके रोए।2~वहाँ बेद के दरख़्तों पर उनके वस्त में, हम ने अपने सितारों को टाँग दिया।3~क्यूँकि वहाँ हम को ग़ुलाम करने वालों ने हम्द गाने का हुक्म दिया, और तबाह करने वालों ने खु़शी करने का, और कहा, "सिय्यून के हम्दों में से हमको कोई हम्द सुनाओ!"4~हम परदेस में, ख़ुदावन्द का हम्द कैसे गाएँ?5~~ऐ यरूशलीम! अगर मैं तुझे भूलूँ, तो मेरा दहना हाथ अपना हुनर भूल जाए।6~अगर मैं तुझे याद न रख्खूँ, अगर मैं यरूशलीम को, अपनी बड़ी से बड़ी ख़ुशी पर तरजीह न दूँ मेरी ज़बान मेरे तालू से चिपक जाए!7~ऐ ख़ुदावन्द! यरूशलीम के दिन को, बनी अदोम के ख़िलाफ़ याद कर, जो कहते थे, "इसे ढा दो, इसे बुनियाद तक ढा दो! "8~ऐ बाबुल की बेटी! जो हलाक होने वाली है, वह मुबारक होगा, जो तुझे उस सुलूक का, जो तूने हम से किया बदला दे।9~~वह मुबारक होगा, जो तेरे बच्चों को लेकर, चट्टान पर पटक दे!
1~मैं पूरे दिल से तेरा शुक्र करूँगा; मा'बूदों के सामने तेरी मदहसराई करूँगा।2~मैं तेरी पाक हैकल की तरफ़ रुख़ कर के सिज्दा करूँगा, और तेरी शफ़क़त औए सच्चाई की ख़ातिर तेरे नाम का शुक्र करूँगा। क्यूँकि तूने अपने कलाम को अपने हरनाम से ज़्यादा 'अज़मत दी है।3~जिस दिन मैंने तुझ से दु'आ की, तूने मुझे जवाब दिया, और मेरी जान की ताक़त देकर मेरा हौसला बढ़ाया।4~ऐ ख़ुदावन्द! ज़मीन के सब बादशाह तेरा शुक्र करेंगे, क्यूँकि उन्होंने तेरे मुँह का कलाम सुना है;5~बल्कि वह ख़ुदावन्द की राहों का हम्द गाएंगे क्यूँकि ख़ुदावन्द का जलाल बड़ा है।6~क्यूँकि ख़ुदावन्द अगरचे बुलन्द-ओ-बाला है, तोभी ख़ाकसार का ख़याल रखता है; लेकिन मग़रूर को दूर ही से पहचान लेता है।7~चाहे मैं दुख में से गुज़रूं तू मुझे ताज़ादम करेगा, तू मेरे दुश्मनों के क़हर के ख़िलाफ़ हाथ बढ़ाएगा, और तेरा दहना हाथ मुझे बचा लेगा।8~~ख़ुदावन्द मेरे लिए सब कुछ करेगा; ऐ ख़ुदावन्द! तेरी शफ़क़त हमेशा की है। अपनी दस्तकारी को न छोड़ |
1~ऐ ख़ुदावन्द! तूने मुझे जाँच लिया और पहचान लिया।2~तू मेरा उठना बैठना जानता है; तू मेरे ख़याल को दूर से समझ लेता है।3~तू मेरे रास्ते की और मेरी ख़्वाबगाह की छान बीन करता है, और मेरे सब चाल चलन से वाक़िफ़ है।4~~देख! मेरी ज़बान पर कोई ऐसी बात नहीं, जिसे तू ऐ ख़ुदावन्द पूरे तौर पर न जानता हो।5~तूने मुझे आगे पीछे से घेर रखा है, और तेरा हाथ मुझ पर है।6~यह इरफ़ान मेरे लिए बहुत 'अजीब है; यह बुलन्द है, मैं इस तक पहुँच नहीं सकता।7~मैं तेरी रूह से बचकर कहाँ जाऊँ? या तेरे सामने से किधर भागूँ?8~अगर आसमान पर चढ़ जाऊँ, तो तू वहाँ है। अगर मैं पाताल में बिस्तर बिछाऊँ, तो देख तू वहाँ भी है!9~अगर मैं सुबह के पर लगाकर, समन्दर की इन्तिहा में जा बसूँ,10~तो वहाँ भी तेरा हाथ मेरी राहनुमाई करेगा, और तेरा दहना हाथ मुझे संभालेगा।11~अगर मैं कहूँ कि यक़ीनन तारीकी मुझे छिपा लेगी, और मेरी चारों तरफ़ का उजाला रात बन जाएगा।12~~तो अंधेरा भी तुझ से छिपा नहीं सकता, बल्कि रात भी दिन की तरह रोशन है; अंधेरा और उजाला दोनों एक जैसे हैं।13~क्यूँकि मेरे दिल को तू ही ने बनाया; मेरी माँ के पेट में तू ही ने मुझे सूरत बख़्शी।14~~मैं तेरा शुक्र करूँगा, क्यूँकि मैं 'अजीबओ-ग़रीब तौर से बना हूँ।तेरे काम हैरत अंगेज़ हैं मेरा दिल इसे खू़ब जानता है।15~जब मैं पोशीदगी में बन रहा था, और ज़मीन के तह में 'अजीब तौर से मुरतब हो रहा था, तो मेरा क़ालिब तुझ से छिपा न था।16~~तेरी आँखों ने मेरे बेतरतीब माद्दे को देखा, और जो दिन मेरे लिए मुक़र्रर थे, वह सब तेरी किताब में लिखे थे; जब कि एक भी वुजूद में न आया था।17~ऐ ख़ुदा! तेरे ख़याल मेरे लिए कैसे बेशबहा हैं। उनका मजमूआ कैसा बड़ा है!18~~अगर मैं उनको गिनूँ तो वह शुमार में रेत से भी ज़्यादा हैं। जाग उठते ही तुझे अपने साथ पाता हूँ।19~~ऐ ख़ुदा! काश के तू शरीर को क़त्ल करे। इसलिए ऐ ख़ूनख़्वारो! मेरे पास से दूर हो जाओ।20~~क्यूँकि वह शरारत से तेरे ख़िलाफ़ बातें करते हैं: और तेरे दुश्मन तेरा नाम बेफ़ायदा लेते हैं।21~~ऐ ख़ुदावन्द! क्या मैं तुझ से 'अदावत रखने वालों से 'अदावत नहीं रखता, और क्या मैं तेरे मुख़ालिफ़ों से बेज़ार नहीं हूँ?22~मुझे उनसे पूरी 'अदावत है, मैं उनको अपने दुश्मन समझता हूँ।23~ऐ ख़ुदा, तू मुझे जाँच और मेरे दिल को पहचान। मुझे आज़मा और मेरे ख़यालों को जान ले!24~~और देख कि मुझ में कोई बुरा चाल चलन तो नहीं, और मुझ को हमेशा की राह में ले चल!
1~ऐ ख़ुदावन्द! मुझे बुरे आदमी से रिहाई बख़्श; मुझे टेढ़े आदमी से महफूज़ रख।2~जो दिल में शरारत के मन्सूबे बाँधते हैं; वह हमेशा मिलकर जंग के लिए जमा' हो जाते हैं।3~उन्होंने अपनी ज़बान साँप की तरह तेज़ कर रखी है। उनके होटों के नीचे अज़दहा का ज़हर है।4~~ऐ ख़ुदावन्द! मुझे शरीर के हाथ से बचा मुझे टेढ़े आदमी से महफूज़ रख, जिनका इरादा है कि मेरे पाँव उखाड़ दें।5~मग़रूरों ने मेरे लिए फंदे और रस्सियों को छिपाया है, उन्होंने राह के किनारे जाल लगाया है; उन्होंने मेरे लिए दाम बिछा रख्खे हैं। (सिलाह)6~मैंने ख़ुदावन्द से कहा, मेरा ख़ुदा तू ही है। ऐ ख़ुदावन्द, मेरी इल्तिजा की आवाज़ पर कान लगा।7~~ऐ ख़ुदावन्द मेरे मालिक, ऐ मेरी नजात की ताक़त, तूने जंग के दिन मेरे सिर पर साया किया है।8~ऐ ख़ुदावन्द, शरीर की मुराद पूरी न कर, उसके बुरे मन्सूबे को अंजाम न दे ताकि वह डींग न मारे। (सिलाह)9~मुझे घेरने वालों की मुँह के शरारत, उन्हीं के सिर पर पड़े।10~उन पर अंगारे गिरें! वह आग में डाले जाएँ! और ऐसे गढ़ों में कि फिर न उठे।11~बदज़बान आदमी की ज़मीन पर क़याम न होगा। आफ़त टेढ़े आदमी को दौड़ा कर हलाक करेगी।12~मैं जानता हूँ कि ख़ुदावन्द मुसीब तज़दा के मु'आमिले की, और मोहताज के हक़ की ताईद करेगा।13~~यक़ीनन सादिक़ तेरे नाम का शुक्र करेंगे, और रास्तबाज़ तेरे सामने में रहेंगे।
1~ ऐ ख़ुदावन्द! मैने तेरी दुहाई दी मेरी तरफ़ जल्द आ! जब मैं तुझ से दु'आ करूँ, तो मेरी आवाज़ पर कान लगा!2~मेरी दु'आ तेरे सामने ख़ुशबू की तरह हो, और मेरा हाथ उठाना शाम की कु़र्बानी की तरह!3~~ऐ ख़ुदावन्द! मेरे मुँह पर पहरा बिठा; मेरे लबों के दरवाजे़ की निगहबानी कर |4~~मेरे दिल को किसी बुरी बात की तरफ़ माइल न होने दे; कि बदकारों के साथ मिलकर, शरारत के कामों में मसरूफ़ हो जाए, और मुझे उनके नफ़ीस खाने से दूर रख।5~सादिक़ मुझे मारे तो मेहरबानी होगी, वह मुझे तम्बीह करे तो जैसे सिर पर रौग़न होगा। मेरा सिर इससे इंकार न करे, क्यूँकि उनकी शरारत में भी मैं दु'आ करता रहूँगा।6~उनके हाकिम चट्टान के किनारों पर से गिरा दिए गए हैं, और वह मेरी बातें सुनेंगे, क्यूँकि यह शीरीन हैं।7~जैसे कोई हल चलाकर ज़मीन को तोड़ता है, वैसे ही हमारी हड्डियाँ पाताल के मुँह पर बिखरी पड़ी हैं।8~क्यूँकि ऐ मालिक ख़ुदावन्द! मेरी आँखें तेरी तरफ़ हैं; मेरा भरोसा तुझ पर है, मेरी जान को बेकस न छोड़!9~~मुझे उस फंदे से जो उन्होंने मेरे लिए लगाया है, और बदकिरदारों के दाम से बचा।10~शरीर आप अपने जाल में फंसें, और मैं सलामत बच निकलूँ।
1~मैं अपनी ही आवाज़ बुलंद करके ख़ुदावन्द से फ़रियाद करता हूँ मै अपनी ही आवाज़ से ख़ुदावन्द से मिन्नत करता हूँ।2~मैं उसके सामने फ़रियाद करता हूँ, मैं अपना दुख उसके सामने बयान करता हूँ।3~जब मुझ में मेरी जान निढाल थी, तू मेरी राह से वाक़िफ़ था! जिस राह पर मैं चलता हूँ उसमे उन्होंने मेरे लिए फंदा लगाया है।4~दहनी तरफ़ निगाह कर और देख, मुझे कोई नहीं पहचानता। मेरे लिए कहीं पनाह न रही, किसी को मेरी जान की फ़िक्र नहीं।5~~ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तुझ से फ़रियाद की; मैंने कहा, तू मेरी पनाह है, और ज़िन्दों की ज़मीन में मेरा बख़रा।6~~मेरी फ़रियाद पर तवज्जुह कर, क्यूँकि मैं बहुत पस्त हो गया हूँ! मेरे सताने वालों से मुझे रिहाई बख़्श, क्यूँकि वह मुझ से ताक़तवर हैं।7~मेरी जान को कै़द से निकाल, ताकि तेरे नाम का शुक्र करूँ सादिक़ मेरे गिर्द जमा होंगे ~क्यूँकि तू मुझ पर एहसान करेगा।
1~ऐ ख़ुदावन्द, मेरी दू'आ सुन, मेरी इल्तिजा पर कान लगा। अपनी वफ़ादारी और सदाक़त में मुझे जवाब दे,2~और अपने बन्दे को 'अदालत में न ला, क्यूँकि तेरी नज़र में कोई आदमी रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता।3~इसलिए कि दुश्मन ने मेरी जान को सताया है; उसने मेरी ज़िन्दगी को ख़ाक में मिला दिया, और मुझे अंधेरी जगहों में उनकी तरह बसाया है जिनको मरे मुद्दत हो गई हो।4~इसी वजह से मुझ में मेरी जान निढाल है; और मेरा दिल मुझ में बेकल है।5~मैं पिछले ज़मानों को याद करता हूँ, मैं तेरे सब कामों पर ग़ौर करता हूँ, और तेरी दस्तकारी पर ध्यान करता हूँ।6~मैं अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाता हूँ मेरी जान खु़श्क ज़मीन की तरह तेरी प्यासी है।7~ऐ ख़ुदावन्द, जल्द मुझे जवाब दे: मेरी रूह गुदाज़ हो चली! अपना चेहरा मुझ से न छिपा, ऐसा न हो कि मैं क़ब्र में उतरने वालों की तरह हो जाऊँ।8~सुबह को मुझे अपनी शफ़क़त की ख़बर दे, क्यूँकि मेरा भरोसा तुझ पर है।मुझे वह राह बता जिस पर मैं चलूं, क्यूँकि मैं अपना दिल तेरी ही तरफ़ लगाता हूँ।9~ऐ ख़ुदावन्द, मुझे मेरे दुश्मनों से रिहाई बख्श; क्यूँकि मैं पनाह के लिए तेरे पास भाग आया हूँ।10~मुझे सिखा के तेरी मर्ज़ी पर चलूँ, इसलिए कि तू मेरा ख़ुदा है! तेरी नेक रूह मुझे रास्ती के मुल्क में ले चले!11~ऐ ख़ुदावन्द, अपने नाम की ख़ातिर मुझे ज़िन्दा कर! अपनी सदाक़त में मेरी जान को मुसीबत से निकाल!12~अपनी शफ़क़त से मेरे दुश्मनों को काट डाल, और मेरी जान के सब दुख देने वालों को हलाक कर दे, क्यूँकि मैं तेरा बन्दा हूँ |
1~ख़ुदावन्द मेरी चट्टान मुबारक हो, जो मेरे हाथों को जंग करना, और मेरी उँगलियों को लड़ना सिखाता है।2~~वह मुझ पर शफ़क़त करने वाला, और मेरा क़िला' है; मेरा ऊँचा बुर्ज और मेरा छुड़ाने वाला, वह मेरी ढाल और मेरी पनाहगाह है; जो मेरे लोगों को मेरे ताबे' करता है।3~ऐ ख़ुदावन्द, इन्सान क्या है कि तू उसे याद रख्खे? और आदमज़ाद क्या है कि तू उसका ख़याल करे?4~इन्सान बुतलान की तरह है; उसके दिन ढलते साये की तरह हैं।5~ऐ ख़ुदावन्द, आसमानों को झुका कर उतर आ! पहाड़ों को छू, तो उनसे धुआँ उठेगा!6~बिजली गिराकर उनको तितर बितर कर दे, अपने तीर चलाकर उनको शिकस्त दे!7~ऊपर से हाथ बढ़ा, मुझे रिहाई दे और बड़े सैलाब, या'नी परदेसियों के हाथ से छुड़ा।8~जिनके मुँह से बेकारी निकलती रहती है, और जिनका दहना हाथ झूट का दहना हाथ है।9~ऐ ख़ुदा! मैं तेरे लिए नया हम्द गाऊँगा; दस तार वाली बरबत पर मैं तेरी मदहसराई करूँगा।10~वही बादशाहों को नजात बख़्शता है; और अपने बन्दे दाऊद को हलाक़त की तलवार से बचाता है।11~~मुझे बचा और परदेसियों के हाथ से छुड़ा, जिनके मुँह से बेकारी निकलती रहती है, और जिनका दहना हाथ झूट का दहना हाथ है।12~जब हमारे बेटे जवानी में क़दआवर पौदों की तरह हों और हमारी बेटियाँ महल के कोने के लिए तराशे हुए पत्थरों की तरह हों,13~जब हमारे खत्ते भरे हों, जिनसे हर किस्म की जिन्स मिल सके, और हमारी भेड़ बकरियाँ हमारे कूचों में हज़ारों और लाखों बच्चे दें:14~जब हमारे बैल खू़ब लदे हों, जब न रखना हो न ख़ुरूज, और न हमारे कूचों में वावैला हो।15~~मुबारक है वह क़ौम जिसका यह हाल है। मुबारक है वह क़ौम जिसका ख़ुदा ख़ुदावन्द है।
1~ऐ मेरे ख़ुदा, मेरे बादशाह! मैं तेरी तम्जीद करूँगा |और हमेशा से हमेशा तक तेरे नाम को मुबारक कहूँगा।2~मैं हर दिन तुझे मुबारक कहूँगा, और हमेशा से हमेशा तक तेरे नाम की सिताइश करूँगा।3~ख़ुदावन्द बुजु़र्ग और बेहद सिताइश के लायक़ है; उसकी बुजु़र्गी बयान से बाहर है।4~एक नसल दूसरी नसल से तेरे कामों की ता'रीफ़, और तेरी कु़दरत के कामों का बयान करेगी।5~मैं तेरी 'अज़मत की जलाली शान पर, और तेरे 'अजाइब पर ग़ौर करूँगा।6~और लोग तेरी कु़दरत के हौलनाक कामों का ज़िक्र करेंगे, और मैं तेरी बुजु़र्गी बयान करूँगा।7~वह तेरे बड़े एहसान की यादगार का बयान करेंगे, और तेरी सदाक़त का हम्द गाएँगे।8~ख़ुदावन्द रहीम-ओ-करीम है; वह कहर करने में धीमा और शफ़क़त में ग़नी है।9~ख़ुदावन्द सब पर मेहरबान है, और उसकी रहमत उसकी सारी मख़लूक पर है।10~~ऐ ख़ुदावन्द, तेरी सारी मख़लूक़ तेरा शुक्र करेगी, और तेरे पाक लोग तुझे मुबारक कहेंगे!11~वह तेरी सल्तनत के जलाल का बयान, और तेरी कु़दरत का ज़िक्र करेंगे;12~ताकि बनी आदम पर उसके कुदरत के कामों को, और उसकी सल्तनत के जलाल की शान को ज़ाहिर करें।13~तेरी सल्तनत हमेशा की सल्तनत है, और तेरी हुकूमत नसल-दर-नसल।14~ख़ुदावन्द गिरते हुए को संभालता, और झुके हुए को उठा खड़ा करता है।15~सब की आँखें तुझ पर लगी हैं, तू उनको वक़्त पर उनकी ख़ुराक देता है।16~तू अपनी मुट्ठी खोलता है, और हर जानदार की ख़्वाहिश पूरी करता है।17~~ख़ुदावन्द अपनी सब राहों में सादिक़, और अपने सब कामों में रहीम है।18~~ख़ुदावन्द उन सबके क़रीब है जो उससे दु'आ करते हैं, या'नी उन सबके जो सच्चाई से दु'आ करते हैं।19~जो उससे डरते हैं वह उनकी मुराद पूरी करेगा, वह उनकी फ़रियाद सुनेगा और उनको बचा लेगा।20~ख़ुदावन्द अपने सब मुहब्बत रखने वालों की हिफ़ाज़त करेगा; लेकिन सब शरीरों को हलाक कर डालेगा।21~~मेरे मुँह से ख़ुदावन्द की सिताइश होगी, और हर बशर उसके पाक नाम को हमेशा से हमेशा तक मुबारक कहे।
1~ख़ुदावन्द की हम्द करो ऐ मेरी जान, ख़ुदावन्द की हम्द कर!2~~मैं 'उम्र भर ख़ुदावन्द की हम्द करूँगा, जब तक मेरा वुजूद है मैं अपने ख़ुदा की मदहसराई करूँगा।3~न उमरा पर भरोसा करो न आदमज़ाद पर, वह बचा नहीं सकता।4~उसका दम निकल जाता है तो वह मिट्टी में मिल जाता है; उसी दिन उसके मन्सूबे फ़ना हो जाते हैं।5~खु़श नसीब है वह, जिसका मददगार या'क़ूब का ख़ुदा है, और जिसकी उम्मीद ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा से है।6~~जिसने आसमान और ज़मीन और समन्दर को, और जो कुछ उनमें है बनाया; जो सच्चाई को हमेशा क़ायम रखता है।7~जो मज़लूमों का इन्साफ़ करता है; जो भूकों को खाना देता है। ख़ुदावन्द कैदियों को आज़ाद करता है;8~ख़ुदावन्द अन्धों की आँखें खोलता है; ख़ुदावन्द झुके हुए को उठा खड़ा करता है; ख़ुदावन्द सादिक़ों से मुहब्बत रखता है|9~ख़ुदावन्द परदेसियों की हिफ़ाज़त करता है; वह यतीम और बेवा को संभालता है; लेकिन शरीरों की राह टेढ़ी कर देता है।10~~ख़ुदावन्द, हमेशा तक सल्तनत करेगा, ऐ सिय्यून! तेरा ख़ुदा नसल दर नसल। ख़ुदावन्द की हम्द करो*!
1~ख़ुदावन्द की हम्द करो*! क्यूँकि ख़ुदा की मदह्सराई करना भला है; इसलिए कि यह दिलपसंद और सिताइश ज़ेबा है|2ख़ुदावन्द यरूशलीम को ता'मीर करता है; वह इस्राईल के जिला वतनों को जमा' करता है।3~वह शिकस्ता दिलों को शिफ़ा देता है, और उनके ज़ख़्म बाँधता है।4~वह सितारों को शुमार करता है, और उन सबके नाम रखता है।5~हमारा ख़ुदावन्द बुजु़र्ग और कु़दरत में 'अज़ीम है; उसके समझ की इन्तिहा नहीं।6~~ख़ुदावन्द हलीमों को संभालता है, वह शरीरों को ख़ाक में मिला देता है।7~ख़ुदावन्द के सामने शुक्रगुज़ारी का हम्द गाओ, सितार पर हमारे ख़ुदा की मदहसराई करो।8~जो आसमान को बादलों से मुलब्बस करता है; जो ज़मीन के लिए मेंह तैयार करता है; जो पहाड़ों पर घास उगाता है।9~जो हैवानात को ख़ुराक देता है, और कव्वे के बच्चे को जो काएँँ काएँँ करते हैं|10~घोड़े के ज़ोर में उसकी खु़शनूदी नहीं न आदमी की टाँगों से उसे कोई ख़ुशी है;11~ख़ुदावन्द उनसे ख़ुश है जो उससे डरते हैं, और उनसे ~जो उसकी शफ़क़त के उम्मीदवार हैं|12~~ऐ यरूशलीम! ख़ुदावन्द की सिताइश कर! , ऐ सिय्यून! अपने ख़ुदा की सिताइश कर।13~~क्यूँकि उसने तेरे फाटकों के बेंडों को मज़बूत किया है, ~उसने तेरे अन्दर तेरी औलाद को बरकत दी है|14~वह तेरी हद में अम्न रखता है! वह तुझे अच्छे से अच्छे गेहूँ से आसूदा करता है।15~~वह अपना हुक्म ज़मीन पर भेजता है, ~उसका कलाम बहुत तेज़ रौ है।16~वह बर्फ़ को ऊन की तरह गिराता है, और पाले को राख की तरह बिखेरता है।17~~वह यख़ को लुक़मों की तरह फेंकता उसकी ठंड कौन सह सकता है?18~वह अपना कलाम नाज़िल करके उनको पिघला देता है; वह हवा चलाता है और पानी बहने लगता है।19~वह अपना कलाम या'क़ूब पर ज़ाहिर ~करता है, और अपने आईन-ओ-अहकाम इस्राईल पर|20~उसने किसी और क़ौम से ऐसा सुलूक नहीं किया; और उनके अहकाम को उन्होंने नहीं जाना| ख़ुदावन्द की हम्द करो*!
1~ख़ुदावन्द की हम्द करो*! आसमान पर से ख़ुदावन्द की हम्द करो, बुलंदियों पर उसकी हम्द करो!2~~ऐ उसके फ़िरिश्तो! सब उसकी हम्द करो। ऐ उसके लश्करो! सब उसकी हम्द करो!3~~ऐ सूरज! ऐ चाँद! उसकी हम्द करो। ऐ नूरानी सितारों! सब उसकी हम्द करो4~ऐ फ़लक-उल-अफ़लाक! उसकी हम्द करो! और तू भी ~ऐ फ़ज़ा पर के पानी!5~~यह सब ख़ुदावन्द के नाम की हम्द करें, क्यूँकि उसने हुक्म दिया और यह पैदा हो गए|6~उसने इनको हमेशा से हमेशा तक के लिए क़ायम किया है; उसने अटल क़ानून मुक़र्रर कर दिया है।7~~ज़मीन पर से ख़ुदावन्द की हम्द करो ऐ अज़दहाओ और सब गहरे समन्दरो!8~ऐ आग और ओलो! ऐ बर्फ़ और कुहर ऐ तूफ़ानी हवा! जो उसके कलाम की ता'लीम करती है |9~ऐ पहाड़ो और सब टीलो! ऐ मेवादार दरख़्तो और सब देवदारो!10~ऐ जानवरो और सब चौपायो! ऐ रेंगने वालो और परिन्दो!11~~ऐ ज़मीन के बादशाहो और सब उम्मतों! ऐ उमरा और ज़मीन के सब हाकिमों!12~ऐ नौजवानो और कुंवारियो! ऐ बूढ़ों और बच्चो!13~यह सब ख़ुदावन्द के नाम की हम्द करें, क्यूँकि सिर्फ़ उसी का नाम मुम्ताज़ है। उसका जलाल ज़मीन और आसमान से बुलन्द है।14और उसने अपने सब पाक लोगों या'नी अपनी मुक़र्रब क़ौम बनी इस्राईल के फ़ख़्र के लिए, अपनी क़ौम का सींग बुलन्द किया। ख़ुदावन्द की हम्द करो*!
1~ख़ुदावन्द की हम्द करो।! ख़ुदावन्द के सामने नया हम्द गाओ, और पाक लोगों के मजमे' में उसकी मदहसराई करो!2~इस्राईल अपने ख़ालिक में ख़ुश रहे, फ़र्ज़न्दान-ए-सिय्यून अपने बादशाह की वजह से ख़ुश हों!3~वह नाचते हुए उसके नाम की सिताइश करें, वह दफ़ और सितार पर उसकी मदहसराई करें!4क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों से खू़शनूद रहता है; वह हलीमों को नजात से ज़ीनत बख़्शेगा।5पाक लोग जलाल पर फ़ख़्र करें, वह अपने बिस्तरों पर ख़ुशी से नग़मा सराई करें।6उनके मुँह में ख़ुदा की तम्जीद, और हाथ में दोधारी तलवार हो,7~ताकि क़ौमों से इन्तक़ाम लें, और उम्मतों को सज़ा दें:8~उनके बादशाहों को ज़ंजीरों से जकड़ें, और उनके सरदारों को लोहे की बेड़ियाँ पहनाएं|9~ताकि उनको वह सज़ा दें जो लिखी हैं! उसके सब पाक लोगों को यह मक़ाम हासिल है। ख़ुदावन्द की हम्द करो*!
1~ख़ुदावन्द की हम्द करो*! तुम ख़ुदा के हैकल में उसकी हम्द करो; उसकी कु़दरत के फ़लक पर उसकी हम्द करो!2~उसकी कु़दरत के कामों की वजह से उसकी हम्द करो; उसकी बड़ी 'अज़मत के मुताबिक़ उसकी हम्द करो!3~नरसिंगे की आवाज़ के साथ उसकी हम्द करो; बरबत और सितार पर उसकी हम्द करो!4~दफ़ बजाते और नाचते हुए उसकी हम्द करो; तारदार साज़ों और बांसली के साथ~उसकी हम्द करो!5~बुलन्द आवाज़ झाँझ के साथ उसकी हम्द करो! ~ज़ोर से इंझनाती झाँझ के साथ उसकी हम्द करो!6~हर शख़्स ख़ुदावन्द की हम्द करे! ~ख़ुदावन्द की हम्द करो!
1~इस्राईल के बादशाह सुलेमान बिन दाऊद की अम्साल:2हिकमत और तरबियत हासिल करने, और समझ की बातों का फ़र्क़ करने के लिए,3~'अक़्लमंदी और सदाक़त और 'अद्ल, और रास्ती में तरबियत हासिल करने के लिए;4सादा दिलों को होशियारी, जवान को 'इल्म और तमीज़ बख़्शने के लिए,5ताकि 'अक़्लमंद आदमी सुनकर 'इल्म में तरक़्क़ी करे और समझदार आदमी दुरुस्त मश्वरत तक पहुँचे,6~जिस से मसल और तम्सील को, 'अक़्लमंदों की बातों और उनके पोशीदा राज़ो को समझ सके।7~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ 'इल्म की शुरू'आत है; लेकिन बेवक़ूफ़ हिकमत और तरबियत की हिक़ारत करते हैं।8~ऐ मेरे बेटे, अपने बाप की तरबियत पर कान लगा, और अपनी माँ की ता'लीम को न ~छोड़;9क्यूँकि वह तेरे सिर के लिए ज़ीनत का सेहरा, और तेरे गले के लिए तौक़ होंगी।10ऐ मेरे बेटे, अगर गुनहगार तुझे फुसलाएँ, तू रज़ामंद न होना।11~अगर वह कहें, "हमारे साथ चल, हम खू़न करने के लिए ताक में बैठे, और छिपकर बेगुनाह के लिए नाहक़ घात लगाएँ,12~हम उनको इस तरह ज़िन्दा और पूरा निगल जाएँ जिस तरह पाताल मुर्दों को निगल जाता है।13~हम को हर क़िस्म का 'उम्दा माल मिलेगा, हम अपने घरों को लूट से भर लेंगे;14~तू हमारे साथ मिल जा, हम सबकी एक ही थैली होगी, "15~तो ऐ मेरे बेटे, तू उनके साथ न जाना, उनकी राह से अपना पाँव रोकना।16क्यूँकि उनके पाँव बदी की तरफ़ दौड़ते हैं, और खू़न बहाने के लिए जल्दी करते हैं।17क्यूँकि परिंदे की आँखों के सामने, जाल बिछाना बेकार है।18~और यह लोग तो अपना ही खू़न करने के लिए ताक में बैठते हैं, और छिपकर अपनी ही जान की घात लगाते हैं।19~नफ़े' के लालची की राहें ऐसी ही हैं, ऐसा नफ़ा' उसकी जान लेकर ही छोड़ता है।20~हिकमत कूचे में ज़ोर से पुकारती है, वह रास्तों में अपनी आवाज़ बलन्द करती है;21~वह बाज़ार की भीड़ में चिल्लाती है; वह फाटकों के दहलीज़ पर और शहर में यह कहती है:22"ऐ नादानो, तुम कब तक नादानी को दोस्त रख्खोगे? और ठट्ठाबाज़ कब तक ठठ्ठाबाज़ी से और बेवक़ूफ़ कब तक 'इल्म से 'अदावत रख्खेंगे?23तुम मेरी मलामत को सुनकर बाज़ आओ, देखो, मैं अपनी रूह तुम पर उँडेलूँगी, मैं तुम को अपनी बातें बताऊँगी।24चूँकि मैंने बुलाया और तुम ने इंकार किया मैंने हाथ फैलाया और किसी ने ख़याल न किया,25बल्कि तुम ने मेरी तमाम मश्वरत को नाचीज़ जाना, और मेरी मलामत की बेक़द्री की;26~इसलिए मैं भी तुम्हारी मुसीबत के दिन हसूँगी; और जब तुम पर दहशत छा जाएगी तो ठठ्ठा मारूँगी।27~या'नी जब दहशत तूफ़ान की तरह आ पड़ेगी, और आफ़त बगोले की तरह तुम को आ लेगी, जब मुसीबत और जाँकनी तुम पर टूट पड़ेगी।28~तब वह मुझे पुकारेंगे, लेकिन मैं जवाब न दूँगी; और दिल ओ जान से मुझे ढूंडेंगे, लेकिन न पाएँगे।29~इसलिए कि उन्होंने 'इल्म से 'अदावत रख्खी, और ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ को इख़्तियार न किया।30~उन्होंने मेरी तमाम मश्वरत की बेक़द्री की, और मेरी मलामत को बेकार जाना।31~तब वह अपनी ही चाल चलन का फल खाएँगे, और अपने ही मन्सूबों से पेट भरेंगे।32क्यूँकि नादानों की नाफ़रमानी, उनको क़त्ल करेगी, और बेवक़ूफ़ों की बेवक़ूफ़ी उनकी हलाकत का ज़रिया' होगी।33~लेकिन जो मेरी सुनता है, वह महफ़ूज़ होगा, और आफ़त से निडर होकर इत्मिनान से रहेगा।"
1ऐ मेरे बेटे, अगर तू मेरी बातों को क़ुबूल करे, और मेरे फ़रमान को निगाह में रख्खे,2~ऐसा कि तू हिकमत की तरफ़ कान ~लगाए, और समझ से दिल लगाए,3बल्कि अगर तू 'अक़्ल को पुकारे, और समझ के लिए आवाज़ बलन्द करे4~और उसको ऐसा ढूँढे जैसे चाँदी को, और उसकी ऐसी तलाश करे जैसी पोशीदा ख़ज़ानों की;5~तो तू ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ को समझेगा, और ख़ुदा के ज़रिए' को हासिल करेगा।6क्यूँकि ख़ुदावन्द हिकमत बख़्शता है; 'इल्म-ओ-समझ उसी के मुँह से निकलते हैं।7~वह रास्तबाज़ों के लिए मदद तैयार रखता है, और रास्तरौ के लिए सिपर है।8ताकि वह 'अद्ल की राहों की निगहबानी करे, और अपने मुक़द्दसों की राह को महफ़ूज़ रख्खे।9~तब तू सदाक़त और 'अद्ल और रास्ती को, बल्कि हर एक अच्छी राह को समझेगा।10क्यूँकि हिकमत तेरे दिल में दाख़िल होगी, और 'इल्म तेरी जान को पसंद होगा,11~तमीज़ तेरी निगहबान होगी, समझ तेरी हिफ़ाज़त करेगा;12ताकि तुझे शरीर की राह से, और कजगो से बचाएँ।13~जो रास्तबाज़ी की राह को छोड़ते हैं, ताकि तारीकी की राहों में चलें,14~जो बदकारी से ख़ुश होते हैं, और शरारत की कजरवी में खु़श रहते हैं,15~जिनका चाल चलन ना हमवार, और जिनकी राहें टेढ़ी हैं।16ताकि तुझे बेगाना 'औरत से बचाएँ, या'नी चिकनी चुपड़ी बातें करने वाली पराई 'औरत से,17~जो अपनी जवानी के साथी को छोड़ देती है, और अपने ख़ुदा के 'अहद को भूल जाती है।18क्यूँकि उसका घर मौत की उतराई पर है, और उसकी राहें पाताल को जाती हैं।19~जो कोई उसके पास जाता है, वापस नहीं आता; और ज़िन्दगी की राहों तक नहीं पहुँचता।20ताकि तू नेकों की राह पर चले, और सादिक़ों की राहों पर क़ायम रहे।21क्यूँकि रास्तबाज़ मुल्क में बसेंगे, और कामिल उसमें आबाद रहेंगे।22~लेकिन शरीर ज़मीन पर से काट डाले जाएँगे, और दग़ाबाज़ उससे उखाड़ फेंके जाएँगे।
1ऐ मेरे बेटे, मेरी ता'लीम को फ़रामोश न कर, बल्कि तेरा दिल मेरे हुक्मों ~को माने,2क्यूँकि तू इनसे 'उम्र की दराज़ी और बुढ़ापा, और सलामती हासिल करेगा।3~शफ़क़त और सच्चाई तुझ से जुदा न हों, तू उनको अपने गले का तौक़ बनाना, और अपने दिल की तख़्ती पर लिख लेना।4~यूँ तू ख़ुदा और इन्सान की नज़र में, मक़्बूलियत और 'अक़्लमन्दी ~हासिल करेगा।5सारे दिल से ख़ुदावन्द पर भरोसा कर, और अपनी समझ पर इत्मिनान न कर।6अपनी सब राहों में उसको पहचान, और वह तेरी रहनुमाई करेगा।7~तू अपनी ही निगाह में 'अक़्लमन्द न बन, ख़ुदावन्द से डर और बदी से किनारा कर ।8~ये तेरी नाफ़ की सिहत, और तेरी हड़िडयों की ताज़गी होगी।9~अपने माल से और अपनी सारी पैदावार के पहले फलों से, ख़ुदावन्द की ता'ज़ीम कर।10~यूँ तेरे खत्ते भरे रहेंगे, और तेरे हौज़ नई मय से लबरेज़ होंगे।11~ऐ मेरे बेटे, ख़ुदावन्द की तम्बीह को हक़ीर न जान, और उसकी मलामत से बेज़ार न हो;12क्यूँकि ख़ुदावन्द उसी को मलामत करता है जिससे उसे मुहब्बत है, जैसे बाप उस बेटे को जिससे वह ख़ुश है।13~मुबारक है वह आदमी जो हिकमत को पाता है, ~और वह जो समझ हासिल करता है,14क्यूँकि इसका हासिल चाँदी के हासिल से, और इसका नफ़ा' कुन्दन से बेहतर है।15~वह मरजान से ज़्यादा बेशबहा है, और तेरी पसंदीदा चीज़ों में बेमिसाल।16उसके दहने हाथ में 'उम्र की दराज़ी है, और उसके बाएँ हाथ में दौलत ओ-'इज़्ज़त।17~उसकी राहें खु़श गवार राहें हैं, और उसके सब रास्ते सलामती के हैं।18~जो उसे पकड़े रहते हैं, वह उनके लिए ज़िन्दगी का दरख़्त है, और हर एक जो उसे लिए रहता है, मुबारक है।19ख़ुदावन्द ने हिकमत से ज़मीन की बुनियाद डाली; और समझ से आसमान को क़ायम किया।20~उसी के 'इल्म से गहराओ के सोते फूट निकले, और अफ़लाक शबनम टपकाते हैं।21~ऐ मेरे बेटे, 'अक़्लमंदी और तमीज़ की हिफ़ाज़त कर, उनको अपनी आँखों से ओझल न होने दे;22~यूँ वह तेरी जान की हयात, और तेरे गले की ज़ीनत होंगी।23तब तू बेखटके अपने रास्ते पर चलेगा, और तेरे पाँव को ठेस न लगेगी।24~जब तू लेटेगा तो ख़ौफ़ न खाएगा, बल्कि तू लेट जाएगा और तेरी नींद मीठी होगी।25~अचानक दहशत से ख़ौफ़ न खाना, और न शरीरों की हलाकत से, जब वह आए;26क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा सहारा होगा, और तेरे पाँव को फँँस जाने से महफ़ूज़ रख्खेगा।27~भलाई के हक़दार से उसे किनारा न करना जब तेरे मुक़द्दर में हो।28जब तेरे पास देने को कुछ हो, तो अपने पड़ोसी से यह न कहना, अब जा, फिर आना मैं तुझे कल दूँगा।29~अपने पड़ोसी के खि़लाफ़ बुराई का मन्सूबा न बाँधना, जिस हाल कि वह तेरे पड़ोस में बेखटके रहता है।30अगर किसी ने तुझे नुक़सान न पहुँचाया हो, तू उससे बे वजह झगड़ा न करना।31~तुन्दख़ू आदमी पर जलन न करना, और उसके किसी चाल चलन को इख़्तियार न करना;32क्यूँकि कजरौ से ख़ुदावन्द को नफ़रत लेकिन रास्तबाज़ उसके महरम-ए-राज़ हैं।33~शरीरों के घर पर ख़ुदावन्द की ला'नत है, लेकिन सादिक़ों के मस्कन पर उसकी बरकत है।34यक़ीनन वह ठठ्ठाबाज़ों पर ठठ्ठे मारता है, लेकिन फ़रोतनों पर फ़ज़ल करता है।35~'अक़्लमंद जलाल के वारिस होंगे, लेकिन बेवक़ूफ़ों की तरक़्क़ी शर्मिन्दगी होगी।
1~ऐ मेरे बेटो, बाप की तरबियत पर कान लगाओ, और समझ हासिल करने के लिए तवज्जुह करो।2क्यूँकि मैं तुम को अच्छी तल्क़ीन करता तुम मेरी ता'लीम को न छोड़ना।3क्यूँकि मैं भी अपने बाप का बेटा था, और अपनी माँ की निगाह में नाज़ुक और अकेला लाडला।4~बाप ने मुझे सिखाया और मुझ से कहा, "मेरी बातें तेरे दिल में रहें, मेरे फ़रमान बजा ला और ज़िन्दा रह।5हिकमत हासिल कर, समझ हासिल कर, भूलना मत और मेरे मुँह की बातों से नाफ़रमान न होना।6~हिकमत को न छोड़ना, वह तेरी हिफ़ाज़त करेगी; उससे मुहब्बत रखना, वह तेरी निगहबान होगी।~।7~हिकमत अफ़ज़ल असल है, फिर हिकमत हासिल कर; बल्किअपने तमाम हासिलात से समझ हासिल कर;8~उसकी ता'ज़ीम कर, वह तुझे सरफ़राज़ करेगी; जब तू उसे गले लगाएगा, वह तुझे 'इज़्ज़त बख़्शेगी।9~वह तेरे सिर पर ज़ीनत का सेहरा बाँधेगी; और तुझ को ख़ूबसूरती का ताज 'अता करेगी।"10~ऐ मेरे बेटे, सुन और मेरी बातों को कु़बूल कर, और तेरी ज़िन्दगी के दिन बहुत से होंगे।11मैंने तुझे हिकमत की राह बताई है; और राह-ए-रास्त पर तेरी राहनुमाई की है।12~जब तू चलेगा तेरे क़दम कोताह न होंगे; और अगर तू दौड़े तो ठोकर न खाएगा।~~|13तरबियत को मज़बूती से पकड़े रह, उसे जाने न दे; उसकी हिफ़ाज़त कर क्यूँकि वह तेरी ज़िन्दगी है।14~शरीरों के रास्ते में न जाना, और बुरे आदमियों की राह में न चलना |15~उससे बचना, उसके पास से न गुज़रना, उससे मुड़कर आगे बढ़ जाना;16क्यूँकि वह जब तक बुराई न कर लें सोते नहीं; और जब तक किसी को गिरा न दें उनकी नींद जाती रहती है।17क्यूँकि वह शरारत की रोटी खाते, और जु़ल्म की मय पीते हैं।18~लेकिन सादिक़ों की राह सुबह की रोशनी की तरह है, जिसकी रोशनी दो पहर तक बढ़ती ही जाती है।19शरीरों की राह तारीकी की तरह है; वह नहीं जानते कि किन चीज़ों से उनको ठोकर लगती है।20ऐ मेरे बेटे, मेरी बातों पर तवज्जुह कर, मेरे कलाम पर कान लगा।21~उसको अपनी आँख से ओझल न होने दे, उसको अपने दिल में रख।22क्यूँकि जो इसको पा लेते हैं, यह उनकी ज़िन्दगी, और उनके सारे जिस्म की सिहत है।23~अपने दिल की खू़ब हिफ़ाज़त कर; क्यूँकि ज़िन्दगी का सर चश्मा वही हैं|24~कजगो मुँह तुझ से अलग रहे, दरोग़गो लब तुझ से दूर हों।25तेरी आँखें सामने ही नज़र करें, और तेरी पलके सीधी रहें।26अपने पाँव के रास्ते को हमवार बना, और तेरी सब राहें क़ायम रहें।27~न दहने मुड़ न बाएँ; और पाँव को बदी से हटा ले।
1ऐ मेरे बेटे! मेरी हिकमत पर तवज्जुह कर, मेरे समझ पर कान लगा;2ताकि तू तमीज़ को महफ़ूज़ रख्खें, और तेरे लब 'इल्म के निगहबान हों:3क्यूँकि बेगाना 'औरत के होटों से शहद टपकता है, और उसका मुँह तेल से ज़्यादा चिकना है;4~लेकिन उसका अन्जाम अज़दहे की तरह तल्ख़, और दो धारी तलवार की तरह तेज़ है।5~उसके पाँव मौत की तरफ़ जाते हैं, उसके क़दम पाताल तक पहुँचते हैं।6~इसलिए उसे ज़िन्दगी का हमवार रास्ता नहीं मिलता; उसकी राहें बेठिकाना हैं, पर वह बेख़बर है।7~इसलिए ऐ मेरे बेटो, मेरी सुनो, और मेरे मुँह की बातों से नाफ़रमान न हो।8उस 'औरत से अपनी राह दूर रख, और उसके घर के दरवाज़े के पास भी न जा;9~ऐसा न हो कि तू अपनी आबरू किसी गै़र के, और अपनी 'उम्र बेरहम के हवाले करे।10~ऐसा न हो कि बेगाने तेरी कु़व्वत से सेर हों, और तेरी कमाई किसी गै़र के घर जाए;11और जब तेरा गोश्त और तेरा जिस्म घुल जाये तो तू अपने अन्जाम पर नोहा करे;12~और कहे, 'मैंने तरबियत से कैसी 'अदावत रख्खी, ~और मेरे दिल ने मलामत को हक़ीर जाना |13~न मैंने अपने उस्तादों का कहा माना, न अपने तरबियत करने वालों की सुनी।14~मैं जमा'अत और मजलिस के बीच, क़रीबन सब बुराइयों में मुब्तिला हुआ।"15~तू पानी अपने ही हौज़ से और बहता पानी अपने ही चश्मे से पीना16~क्या तेरे चश्मे बाहर बह जाएँ, और पानी की नदियाँ कूचों में?17~वह सिर्फ़ तेरे ही लिए हों, न तेरे साथ गै़रों के लिए भी |18तेरा सोता मुबारक हो और तू अपनी जवानी की बीवी के साथ ख़ुश रह |19प्यारी हिरनी और दिल फ़रेब गजाला की तरह उसकी छातियाँ तुझे हर वक़्त आसूदह करें और उसकी मुहब्बत तुझे हमेशा फ़रेफ्ता रखे |20ऐ मेरे बेटे, तुझे ~बेगाना 'औरत क्यों फ़रेफ्ता करे और तू ग़ैर 'औरत से क्यों हम आग़ोश हो ?21क्यूँकि इन्सान की राहें ख़ुदावन्द कीआँखों के सामने हैं और वही सब रास्तों को हमवार बनाता है |22~शरीर को उसी की बदकारी पकड़ेगी, ~और वह अपने ही गुनाह की रस्सियों से जकड़ा जाएगा।23~वह तरबियत न पाने की वजह से मर जायेगा~~और अपनी सख़्त बेवक़ूफ़ी की वजह से~गुमराह हो जायेगा|
1ऐ मेरे बेटे, अगर तू अपने पड़ोसी ~का ज़ामिन हुआ है, अगर तू हाथ पर हाथ मारकर किसी बेगाने का ज़िम्मेदार हुआ है,2~तो तू अपने ही मुँह की बातों में फंसा, ~तू अपने ही मुँह की बातों से~पकड़ा गया।3~इसलिए ऐ मेरे बेटे, क्यूँकि तू अपने पड़ोसी ~के हाथ में फँस गया है, अब यह कर और अपने आपको बचा ले, ~जा, ख़ाकसार बनकर अपने पड़ोसी ~से इसरार कर।4~तू न अपनी आँखों में नींद आने दे, और न अपनी पलकों में झपकी।5~अपने आपको हरनी की तरह और सय्याद के हाथ से, और चिड़िया की तरह चिड़ीमार के हाथ से छुड़ा।6ऐ काहिल, चींटी के पास जा, ~चाल चलन पर ग़ौर कर और 'अक़्लमंद बन।7जो बावजूद यह कि उसका न कोई सरदार, न नाज़िर न हाकिम है,8गर्मी के मौसिम में अपनी खू़राक मुहय्या करती है, और फ़सल कटने के वक़्त अपनी ख़ुराक जमा' करती है।9ऐ काहिल, तू कब तक पड़ा रहेगा? तू नींद से कब उठेगा?10थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, ज़रा पड़े रहने को हाथ पर हाथ:11इसी तरह तेरी ग़रीबी राहज़न की तरह, और तेरी तंगदस्ती हथियारबन्द आदमी की तरह आ पड़ेगी।12ख़बीस-ओ-बदकार आदमी, टेढ़ी तिरछी ज़बान लिए फिरता है।13~वह आँख मारता है, वह पाँव से बातें, और ऊँगलियों से इशारा करता है।14उसके दिल में कजी है, वह बुराई के मन्सूबे बाँधता रहता है, वह फ़ितना अंगेज़ है।15इसलिए आफ़त उस पर अचानक आ पड़ेगी, वह एकदम तोड़ दिया जाएगा और कोई चारा न होगा।16छ: चीजें हैं जिनसे ख़ुदावन्द को नफ़रत है, बल्कि सात हैं जिनसे उसे नफ़रत है:17ऊँची आँखें, झूटी ज़बान, बेगुनाह का खू़न बहाने वाले हाथ,18~बुरे मन्सूबे बाँधने वाला दिल, शरारत के लिए तेज़ ~रफ़्तार पाँव,19झूटा गवाह जो दरोग़गोई करता है, और जो भाइयों में निफ़ाक़ डालता है।20~ऐ मेरे बेटे, अपने बाप के फ़रमान को बजा ला, और अपनी माँ की ता'लीम को न छोड़।21इनको अपने दिल पर बाँधे रख, और अपने गले का तौक़ बना ले।22यह चलते वक़्त तेरी रहबरी, और सोते वक़्त तेरी निगहबानी, और जागते वक़्त तुझ से बातें करेगी।23क्यूँकि फ़रमान चिराग़ है और ता'लीम नूर, और तरबियत की मलामत ज़िन्दगी की राह है,24ताकि तुझ को बुरी 'औरत से बचाए, या'नी बेगाना 'औरत की ज़बान की चापलूसी से।25तू अपने दिल में उसके हुस्न पर 'आशिक़ न हो, और वह तुझ को अपनी पलकों से शिकार न करे।26क्यूँकि धोके की वजह से आदमी टुकड़े का मुहताज हो जाता है, और ज़ानिया क़ीमती जान का शिकार करती है।27क्या मुम्किन है कि आदमी अपने सीने में आग रख्खे, और उसके कपड़े न जलें ?28या कोई अंगारों पर चले, और उसके पाँव न झुलसें?29वह भी ऐसा है जो अपने पड़ोसी की बीवी के पास जाता है; जो कोई उसे छुए बे सज़ा न रहेगा।30~चोर अगर भूक के मारे अपना पेट भरने को चोरी करे, तो लोग उसे हक़ीर नहीं जानते;31~लेकिन अगर वह पकड़ा जाए तो सात गुना भरेगा, उसे अपने घर का सारा माल देना पड़ेगा।32जो किसी 'औरत से ज़िना करता है वह बे'अक़्ल है; वही ऐसा करता है जो अपनी जान को हलाक करना चाहता है।33~वह ज़ख़्म और ज़िल्लत उठाएगा, और उसकी रुस्वाई कभी न मिटेगी।34क्यूँकि गै़रत से आदमी ग़ज़बनाक होता है, और वह इन्तिक़ाम के दिन नहीं छोड़ेगा।35~वह कोई फ़िदिया मंजूर नहीं करेगा, और चाहे तू बहुत से इन'आम भी दे तोभी वह राज़ी न होगा।
1ऐ मेरे बेटे, मेरी बातों को मान, और मेरे फ़रमान को निगाह में रख।2~मेरे फ़रमान को बजा ला और ज़िन्दा रह, और मेरी ता'लीम को अपनी आँख की पुतली जानः3~उनको अपनी उँगलियों पर बाँध ले, उनको अपने दिल की तख़्ती पर लिख ले।4~हिकमत से कह, "तू मेरी बहन है, " और समझ को अपना रिश्तेदार क़रार दे;5ताकि वह तुझ को पराई 'औरत से बचाएँ, या'नी बेगाना 'औरत से जो चापलूसी की बातें करती है।6क्यूँकि मैंने अपने घर की खिड़की से, या'नी झरोके में से बाहर निगाह की,7~और मैंने एक बे'अक़्ल जवान को नादानों के बीच देखा, या'नी नौजवानों के बीच वह मुझे नज़रआया,8~कि उस 'औरत के घर के पास गली के मोड़ से जा रहा है, और उसने उसके घर का रास्ता लिया;9~दिन छिपे शाम के वक़्त, रात के अंधेरे और तारीकी में।10~और देखो, वहाँ उससे एक 'औरत आ मिली, जो दिल की चालाक और कस्बी का लिबास पहने थी।11~वह गौग़ाई और ख़ुदसर है, उसके पाँव अपने घर में नहीं टिकते;12अभी वह गली में है, अभी बाज़ारों में, और हर मोड़ पर घात में बैठती है।13~इसलिए उसने उसको पकड़ कर चूमा, और बेहया मुँह से उससे कहने लगी,14~"सलामती की कु़र्बानी के ज़बीहे मुझ पर फ़र्ज़ थे, आज मैंने अपनी नज्रे़ अदा की हैं।15~इसीलिए मैं तेरी मुलाक़ात को निकली, कि किसी तरह तेरा दीदार हासिल करूँ, इसलिए ~तू मुझे मिल गया।16~मैंने अपने पलंग पर कामदार गालीचे, और मिस्र के सूत के धारीदार कपड़े बिछाए हैं।17~मैंने अपने बिस्तर को मुर और ऊद, और दारचीनी से मु'अत्तर किया है।18~आ हम सुबह तक दिल भर कर इश्क़ बाज़ी करें और मुहब्बत की बातों से दिल बहलाएँ19क्यूँकि मेरा शौहर घर में नहीं, उसने दूर का सफ़र किया है।20~वह अपने साथ रुपये की थैली ले गया;और पूरे चाँद के वक़्त घर आएगा।"21~उसने मीठी मीठी बातों से उसको फुसला लिया, और अपने लबों की चापलूसी से उसको बहका लिया।22~वह फ़ौरन उसके पीछे हो लिया, जैसे बैल ज़बह होने को जाता है; या बेड़ियों में बेवक़ूफ़ सज़ा पाने को।23~जैसे परिन्दा जाल की तरफ़ तेज़ जाता है, और नहीं जानता कि वह उसकी जान के लिए है, हत्ता कि तीर उसके जिगर के पार हो जाएगा।24~इसलिए अब ऐ बेटो, मेरी सुनो, और मेरे मुँह की बातों पर तवज्जुह ~करो।25~तेरा दिल उसकी राहों की तरफ़ मायल न हो, तू उसके रास्तों में गुमराह न होना;26क्यूँकि उसने बहुतों को ज़ख़्मी करके गिरा दिया है, बल्कि उसके मक़्तूल बेशुमार हैं।27~उसका घर पाताल का रास्ता है, और मौत की कोठरियों को जाता है।
1क्या हिकमत पुकार नहीं रही, और समझ आवाज़ बलंद नहीं कर रहा ?2~वह राह के किनारे की ऊँची जगहों की चोटियों पर, जहाँ सड़कें मिलती हैं, खड़ी होती है।3फाटकों के पास शहर के दहलीज़ पर, या'नी दरवाज़ों के मदख़ल पर वह ज़ोर से पुकारती है,4~"ऐ आदमियो, मैं तुम को पुकारती हूँ, और बनी आदम को आवाज़ देती5~ऐ सादा दिली होशियारी सीखो;और ऐ बेवक़ूफ़़ों, 'अक़्ल दिल बनो ।6सुनो, क्यूँकि मैं लतीफ़ बातें कहूँगी, और मेरे लबों से रास्ती की बातें निकलेगी;7~इसलिए कि मेरा मुँह सच्चाई को बयान करेगा; और मेरे होंटों को शरारत से नफ़रत है।8~मेरे मुँह की सब बातें सदाक़त की हैं, उनमें कुछ टेढ़ा तिरछा नहीं है।9समझने वाले के लिए वह सब साफ़ हैं, और 'इल्म हासिल करने वालों के लिए रास्त हैं।10~चाँदी को नहीं, बल्कि मेरी तरबियत को कु़बूल करो, और कुंदन से बढ़कर 'इल्म को;11क्यूँकि हिकमत मरजान से अफ़ज़ल है, और सब पसन्दीदा चीज़ों में बेमिसाल।12~मुझ हिकमत ने होशियारी को अपना मस्कन बनाया है, और 'इल्म और तमीज़ को पा लेती हूँ।13~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ बदी से 'अदावत है। गु़रूर और घमण्ड और बुरी राह, और टेढ़ी बात से मुझे नफ़रत है।14मशवरत और हिमायत मेरी है, समझ मैं ही हूँ मुझ में क़ुदरत है|15~मेरी बदौलत बादशाह सल्तनत करते, और उमरा इन्साफ़ का फ़तवा देते हैं।16~मेरी ही बदौलत हाकिम हुकूमत करते हैं, और सरदार या'नी दुनिया के सब काज़ी भी।17~जो मुझ से मुहब्बत रखते हैं मैं उनसे मुहब्बत रखती हूँ, और जो मुझे दिल से ढूंडते हैं, वह मुझे पा लेंगे।18दौलत-ओ-'इज़्ज़त मेरे साथ हैं, बल्कि हमेशा दौलत और सदाक़त भी।19~मेरा फल सोने से बल्कि कुन्दन से भी बेहतर है, और मेरा हासिल ख़ालिस चाँदी से।20~मैं सदाक़त की राह पर, इन्साफ़ के रास्तों में चलती हूँ।21ताकि मैं उनको जो मुझ से मुहब्बत रखते हैं, माल के वारिस बनाऊँ, और उनके ख़ज़ानों को भर दूँ।22~"ख़ुदावन्द ने इन्तिज़ाम-ए-'आलम के शुरू' में, अपनी क़दीमी सन'अतों से पहले मुझे पैदा किया।23मैं अज़ल से या'नी इब्तिदा ही से मुक़र्रर हुई, इससे पहले के ज़मीन थी।24~मैं उस वक़्त पैदा हुई जब गहराओ न थे; जब पानी से भरे हुए चश्मे भी न थे।25~मैं पहाड़ों के क़ायम किए जाने से पहले, और टीलों से पहले पैदा हुई।26जब कि उसने अभी न ज़मीन को बनाया था न मैदानों को, और न ज़मीन की ख़ाक की शुरु'आत थी।27~जब उसने आसमान को क़ायम किया मैं वहीं थी; जब उसने समुन्दर की सतह पर दायरा खींचा;28~जब उसने ऊपर अफ़लाक को बराबर किया, और गहराओ के सोते मज़बूत हो गए;29~जब उसने समुन्दर की हद ठहराई, ताकि पानी उसके हुक्म को न तोड़े; जब उसने ज़मीन की बुनियाद के निशान लगाए।30~उस वक़्त माहिर कारीगर की तरह मैं उसके पास थी, और मैं हर रोज़ उसकी ख़ुशनूदी थी, और हमेशा उसके सामने शादमान रहती थी।31~आबादी के लायक़ ज़मीन से शादमान थी, और मेरी ख़ुशनूदी बनी आदम की सुहबत में थी।32~"इसलिए ऐ बेटो, मेरी सुनो, क्यूँकि मुबारक हैं वह जो मेरी राहों पर चलते हैं।33तरबियत की बात सुनो, और 'अक़्लमंद बनो, और इसको रद्द न करो।34~मुबारक है वह आदमी जो मेरी सुनता है, और हर रोज़ मेरे फाटकों पर इन्तिज़ार करता है, और मेरे दरवाज़ों की चौखटों पर ठहरा रहता है।35क्यूँकि जो मुझ को पाता है, ज़िन्दगी पाता है, और वह ख़ुदावन्द का मक़बूल होगा।36लेकिन जो मुझ से भटक जाता है, अपनी ही जान को नुक़सान पहुँचाता है;मुझ से 'अदावत रखने वाले, सब मौत से मुहब्बत रखते हैं।"
1~हिकमत ने अपना घर बना लिया, उसने अपने सातों सुतून तराश लिए हैं।2~उसने अपने जानवरों को ज़बह कर लिया, और अपनी मय मिला कर तैयार कर ली; उसने अपना दस्तरख़्वान भी चुन लिया।3~उसने अपनी सहेलियों को रवाना किया है; वह ख़ुद शहर की ऊँची जगहों पर पुकारती है,4~"जो सादा दिल है, इधर आ जाए!" और बे'अक़्ल से वह यह कहती है,5~'आओ, मेरी रोटी में से खाओ, और मेरी मिलाई हुई मय में से पियो।6~ऐ सादा दिलो, बाज़ आओ और ज़िन्दा रहो, और समझ की राह पर चलो।"7ठठ्ठा बाज़ को तम्बीह करने वाला ला'नतान उठाएगा, और शरीर को मलामत करने वाले पर धब्बा लगेगा।8ठठ्ठाबाज़ को मलामत न कर, ऐसा न हो कि वह तुझ से 'अदावत रखने लगे; 'अक़्लमंद को मलामत कर, और वह तुझ से मुहब्बत रख्खेगा।9~'अक़्लमंद की तरबियत कर, और वह और भी 'अक़्लमंद बन जाएगा; सादिक़ को सिखा और वह 'इल्म में तरक़्क़ी करेगा।10ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ हिकमत का शुरू' है, और उस क़ुद्दुस की पहचान समझ है।11क्यूँकि मेरी बदौलत तेरे दिन बढ़ जाएँगे, और तेरी ज़िन्दगी के साल ज़्यादा होंगे।12~अगर तू 'अक़्लमंदहै तो अपने लिए, और अगर तू ठठ्ठाबाज़ है तो ख़ुद ही भुगतेगा।13~बेवक़ूफ़ 'औरत गौग़ाई है; वह नादान है और कुछ नहीं जानती।14~वह अपने घर के दरवाज़े पर, शहर की ऊँची जगहों में बैठ जाती है;15ताकिआने जाने वालों को बुलाए, जो अपने अपने रास्ते पर सीधे जा रहें हैं,16~"सादा दिल इधर आ जाएँ, और बे'अक़्ल से वह यह कहती है,17"चोरी का पानी मीठा है, और पोशीदगी की रोटी लज़ीज़।'18~लेकिन वह नहीं जानता कि वहाँ मुर्दे पड़े हैं, और उस 'औरत के मेहमान पाताल की तह में हैं।
1~सुलेमान की अम्साल| 'अक़्लमंद बेटा बाप को ख़ुश रखता है, लेकिन बेवक़ूफ़ बेटा अपनी माँ का ग़म है।2~शरारत के ख़ज़ाने बेकार हैं, लेकिन सदाक़त मौत से छुड़ाती है।3~ख़ुदावन्द सादिक़ की जान को फ़ाक़ा न करने देगा, लेकिन शरीरों की हवस को दूर-ओ-दफ़ा' करेगा।4~जो ढीले हाथ से काम करता है, कंगाल हो जाता है; लेकिेन मेहनती का हाथ दौलतमंद बना देता है।5~वह जो गर्मी में जमा' करता है, 'अक़्लमंद बेटा है; लेकिन वह बेटा जो दिरौ के वक़्त सोता रहता है, शर्म का ज़रिया' है।6~सादिक़ के सिर पर बरकतें होती हैं, लेकिन शरीरों के मुँह को जु़ल्म ढाँकता है।7~रास्त आदमी की यादगार मुबारक है, लेकिन शरीरों का नाम सड़ जाएगा।8~'अक़्लमंद दिल फ़रमान बजा लाएगा, लेकिन बकवासी बेवक़ूफ़ पछाड़ खाएगा ।9~रास्त रौ बेखट के चलता है, लेकिन जो कजरवी करता है ज़ाहिर हो जाएगा।10आँख मारने वाला रंज पहुँचाता है, और बकवासी~बेवक़ूफ़~पछाड़ खाएगा।*11~सादिक़ का मुँह ज़िन्दगी का चश्मा है, लेकिन शरीरों के मुँह को जु़ल्म ढाँकता है।12'अदावत झगड़े पैदा करती है, लेकिन मुहब्बत सब ख़ताओं को ढाँक देती है।13~'अक़्लमंद के लबों पर हिकमत है, लेकिन बे'अक़्ल की पीठ के लिए लठ है।14~'अक़्लमंद आदमी 'इल्म जमा' करते हैं, लेकिन~बेवक़ूफ़ का मुँह क़रीबी हलाकत है।15~दौलतमंद की दौलत उसका मज़बूत शहर है, कंगाल की हलाकत उसी की तंगदस्ती है |16~सादिक़ की मेहनत ज़िन्दगानी का ज़रिया' है, शरीर की इक़बालमंदी गुनाह कराती है।17~तरबियत पज़ीर ज़िन्दगी की राह पर ~है, लेकिन मलामत को छोड़ने ~वाला गुमराह हो जाता है।18~'अदावत को छिपाने वाला दरोग़गो है, और तोहमत लगाने वाला~बेवक़ूफ़है।19~कलाम की कसरत ख़ता से ख़ाली नहीं, , लेकिन होंटों को क़ाबू में रखने वाला 'अक़्लमंद है|20~सादिक़ की ज़बान खालिस चाँदी है; शरीरों के दिल बेक़द्र हैं21~सादिक़ के होंट बहुतों को गिज़ा पहुँचाते है लेकिन~बेवक़ूफ़~बे'अक़्ली से मरते हैं।22~खुदावन्द ही की बरकत दौलत बख़्शती है, और वह उसके साथ दुख नहीं मिलाता।23~बेवक़ूफ़~के लिए शरारत खेल है, लेकिन हिकमत 'अक़्लमंद के लिए है।24~शरीर का ख़ौफ़ उस पर आ पड़ेगा, और सादिक़ों की मुराद पूरी होगी।25~जब बगोला गुज़रता है तो शरीर हलाक हो जाता है, लेकिन~~सादिक़ हमेशा की ~बुनियाद है।26जैसा दाँतों के लिए सिरका, और आँखों के लिए धुआँ~वैसा ही काहिल अपने भेजने वालों के लिए है।27~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़' उम्र की दराज़ी बख़्शता है लेकिन शरीरों की ज़िन्दगी कोताह कर दी जायेगी|28सादिक़ो की उम्मीद ख़ुशी लाएगी लेकिन शरीरों की उम्मीद ख़ाक में मिल जाएगी।29ख़ुदावन्द की राह रास्तबाज़ों के लिए पनाहगाह लेकिन बदकिरादारों के लिए हलाक़त ~है,30सादिक़ों को कभी जुम्बिश न होगी लेकिन शरीर ज़मीन पर क़ायम नहीं रहेंगे |31सादिक़ के मुँह से हिकमत निकलती है लेकिन झूठी ज़बान काट डाली जायेगी |32~सादिक़ के होंट पसन्दीदा बात से आशना है लेकिन शरीरों के मुंह झूट से|
1~दग़ा के तराजू़ से ख़ुदावन्द को नफ़रत~है, ~लेकिन पूरा बाट उसकी खु़शी है।2~तकब्बुर के साथ बुराई आती है, ~लेकिन ख़ाकसारों के साथ हिकमत है।3~रास्तबाज़ों की रास्ती उनकी राहनुमा होगी, लेकिन दग़ाबाज़ों की टेढ़ी राह उनको बर्बाद करेगी।4~क़हर के दिन माल काम नहीं आता, लेकिन सदाक़त मौत से रिहाई देती~है|5~कामिल की सदाक़त उसकी राहनुमाई करेगी~~लेकिन शरीर अपनी ही शरारत से~गिर पड़ेगा।6~रास्तबाज़ों की सदाक़त उनको रिहाई देगी, ~लेकिन दग़ाबाज़ अपनी ही बद नियती में फँँस जाएँगे।7~मरने पर शरीर का उम्मीद ख़ाक~में मिल जाता है, और ज़ालिमों की उम्मीद बर्बाद हो जाती है |8~सादिक़ मुसीबत से रिहाई पाता है, और शरीर उसमें पड़ जाता है।9~बेदीन अपनी बातों से अपने पड़ोसी को हलाक करता है लेकिन सादिक़ 'इल्म के ज़रिए' से रिहाई पाएगा।10~सादिक़ों की खु़शहाली से शहर ख़ुश होता है। और शरीरों की हलाकत पर ख़ुशी की ललकार होती है।11~रास्तबाज़ों की दु'आ से शहर सरफ़राज़ी पाता है, लेकिन शरीरों की बातों से बर्बाद ~होता है।12अपने पड़ोसी की बे'इज़्ज़ती करने वाला बे'अक़्ल है, लेकिन समझदार ख़ामोश रहता है।13जो कोई लुतरापन करता फिरता है राज़ ~खोलता है, लेकिन जिसमें वफ़ा की रूह है वह राज़दार है।14नेक सलाह के बगै़र लोग तबाह होते हैं, लेकिन सलाहकारों की कसरत में सलामती है।15~जो बेगाने का ज़ामिन होता है सख़्त नुक़्सान उठाएगा, लेकिन जिसको ज़मानत से नफ़रत है वह बेख़तर है।16~नेक सीरत 'औरत 'इज़्ज़त पाती है, और तुन्दखू़ आदमी माल हासिल करते हैं।17~रहम दिल अपनी जान के साथ नेकी करता है, लेकिन बे रहम अपने जिस्म को दुख देता है।18~शरीर की कमाई बेकार है, लेकिन सदाक़त बोलने वाला हक़ीक़ी अज्र पता है |19~सदाक़त पर क़ायम रहने वाला ज़िन्दगी हासिल करता है, और बदी का हिमायती अपनी मौत को पहुँचता ~है।20~कज दिलों से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, लेकिन कामिल रफ़्तार उसकी ख़ुशनूदी हैं।21~यक़ीनन शरीर बे सज़ा न छूटेगा, लेकिन सादिक़ों की नसल रिहाई पाएगी।22~बेतमीज़ 'औरत में खू़बसूरती, जैसे सूअर की नाक में सोने की नथ है।23~सादिक़ों की तमन्ना सिर्फ़ नेकी है; लेकिन शरीरों की उम्मीद ग़ज़ब है।24~कोई तो बिथराता है, लेकिन तो भी तरक़्क़ी करता है; और कोई सही ख़र्च से परहेज़ करता है, लेकिन तोभी कंगाल है।25~सख़ी दिल मोटा हो जाएगा, और सेराब करने वाला ख़ुद भी सेराब होगा।26जो ग़ल्ला रोक रखता है, लोग उस पर ला'नत करेंगे; लेकिन जो उसे बेचता है उसके सिर पर बरकत होगी।27~जो दिल से नेकी की तलाश में है मक़्बूलियत का तालिब है, लेकिन जो बदी की तलाश में है वह उसी के आगे आएगी।28~जो अपने माल पर भरोसा करता है गिर पड़ेगा, लेकिन सादिक़ हरे पत्तों की तरह सरसब्ज़ होंगे।29जो अपने घराने को दुख देता है, हवा का वारिस होगा, और बेवकू़फ़ 'अक़्ल दिल का ख़ादिम बनेगा।30~सादिक़ का फल ज़िन्दगी का दरख़्त है, और जो 'अक़्लमंद है दिलों को मोह लेता है।31~देख, सादिक़ को ज़मीन पर बदला दिया जाएगा, तो कितना ज़्यादा शरीर और गुनहगार को।
1~जो तरबियत को दोस्त रखता है, वह 'इल्म को दोस्त रखता है; लेकिन जो तम्बीह से नफ़रत रखता है, वह हैवान है।2~नेक आदमी ख़ुदावन्द का मक़बूल होगा, लेकिन बुरे मन्सूबे बाँधने वाले को वह मुजरिम ठहराएगा।3आदमी शरारत से पायेदार नहीं होगा लेकिन सादिक़ों की जड़ को कभी जुम्बिश न होगी |4नेक ~'औरत अपने शौहर के लिए ताज है लेकिन नदामत लाने वाली उसकी हड्डियों में बोसीदगी की तरह है |5सादिक़ों के ख़यालात दुरुस्त हैं, लेकिन शरीरों की मश्वरत धोखा है।6~शरीरों की बातें यही हैं कि खू़न करने के लिए ताक में बैठे, लेकिन सादिक़ों की बातें उनको रिहाई देंगी।7शरीर पछाड़ खाते और हलाक ~होते हैं, लेकिन सादिक़ों का घर क़ायम रहेगा।8~आदमी की ता'रीफ़ उसकी 'अक़्लमंदी के मुताबिक़ की जाती है, लेकिन बे'अक़्ल ज़लील होगा।9~जो छोटा समझा जाता है लेकिन उसके पास एक नौकर है, उससे बेहतर है जो अपने आप को बड़ा जानता और रोटी का मोहताज है।10~सादिक़ अपने चौपाए की जान का ख़याल रखता है, लेकिन शरीरों की रहमत भी 'ऐन जु़ल्म है।11~जो अपनी ज़मीन में काश्तकारी करता है, रोटी से सेर होगा; लेकिन बेकारी का हिमायती बे'अक़्ल है।12~शरीर बदकिरदारों के दाम का मुश्ताक़ है, लेकिन सादिक़ों की जड़ फलती है।13लबों की ख़ताकारी में शरीर के लिए फंदा है, लेकिन सादिक़ मुसीबत से बच निकलेगा।14~आदमी के कलाम का फल उसको नेकी से आसूदा करेगा, और उसके हाथों के किए का बदला उसको मिलेगा।15~बेवक़ूफ़ का चाल चलन उसकी नज़र में दुरस्त है, लेकिन 'अक़्लमंद नसीहत को सुनता है।16~बेवक़ूफ़~का ग़ज़ब फ़ौरन ज़ाहिर हो जाता है, लेकिन होशियार शर्मिन्दगी को छिपाता है।17रास्तगो सदाक़त ज़ाहिर करता है, लेकिन झूटा गवाह दग़ाबाज़ी।18~बिना समझे बोलने वाले की बातें तलवार की तरह छेदती हैं, लेकिन 'अक़्लमंद~की ज़बान सेहत बख़्श है।19~सच्चे होंट हमेशा तक क़ायम रहेंगे.लेकिन झूटी ज़बान सिर्फ़ दम भर की है।20बदी के मन्सूबे बाँधने वालों के दिल में दग़ा है, लेकिन सुलह की मश्वरत देने वालों के लिए ख़ुशी है।21सादिक़ पर कोई आफ़त नहीं आएगी, लेकिन शरीर बला में मुब्तिला होंगे।22~झूटे लबों से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, लेकिन रास्तकार उसकी ख़ुशनूदी, हैं।23~होशियार आदमी 'इल्म को छिपाता है, लेकिन~बेवक़ूफ़ का दिल~बेवक़ूफ़ी~का 'ऐलान करता है।24~मेहनती आदमी का हाथ हुक्मराँ होगा, लेकिन सुस्त आदमी बाज गुज़ार बनेगा।25आदमी का दिल फ़िक्रमंदी से दब जाता है, लेकिन अच्छी बात से ख़ुश होता है।26~सादिक़ अपने पड़ोसी की रहनुमाई करता है, लेकिन शरीरों का चाल चलन उनको गुमराह कर देता है।27सुस्त आदमी शिकार पकड़ कर कबाब नहीं करता, लेकिन इन्सान की गिरानबहा दौलत मेहनती पाता है।28~सदाक़त की राह में ज़िन्दगी है, और उसके रास्ते में हरगिज़ मौत नहीं।
1~'अक़्लमंद बेटा अपने बाप की ता'लीम को सुनता है, लेकिन ठठ्ठा बाज़ सरज़निश पर कान नहीं लगाता।2~आदमी अपने कलाम के फल से अच्छा खाएगा, लेकिन दग़ाबाज़ों की जान के लिए सितम है।3अपने मुँह की निगहबानी करने वाला अपनी जान की हिफ़ाज़त करता है लेकिन जो अपने होंट पसारता है, हलाक होगा।4सुस्त आदमी आरजू़ करता है लेकिन कुछ नहीं पाता, लेकिन मेहनती की जान सेर होगी।5~सादिक़ को झूट से नफ़रत है, लेकिन शरीर नफरत अंगेज़-ओ-रुस्वा होता है।6सदाक़त रास्तरौ की हिफाज़त करती ~है, लेकिन शरारत शरीर को गिरा देती है।7~कोई अपने आप को दौलतमंद जताता है लेकिन ग़रीब है, और कोई अपने आप को कंगाल बताता है लेकिन बड़ा मालदार है।8आदमी की जान का कफ़्फ़ारा उसका माल है, लेकिन कंगाल धमकी को नहीं सुनता।9~सादिक़ों का चिराग़ रोशन रहेगा, लेकिन शरीरों का दिया बुझाया जाएगा।10~तकब्बुर से सिर्फ़ झगड़ा पैदा होताहै, लेकिन मश्वरत पसंद के साथ हिकमत है।11~जो दौलत बेकारी से हासिल की जाए कम हो जाएगी, लेकिन मेहनत से जमा' करने वाले की दौलत बढ़ती रहेगी।12~उम्मीद के पूरा होने में ताख़ीर दिल को बीमार करती है, लेकिन आरजू़ का पूरा होना ज़िन्दगी का दरख़्त है।13~जो कलाम की तहक़ीर करता है, अपने आप पर हलाकत लाता है; लेकिन जो फ़रमान से डरता है, अज्र पाएगा।14'अक़्लमंद की ता'लीम ज़िन्दगी का चश्मा है, जो मौत के फंदो से छुटकारे का ज़रिया' हो।15~समझ की दुरुस्ती मक़्बूलियत बख़्शती है, लेकिन दग़ाबाज़ों की राह कठिन है।16~हर एक होशियार आदमी 'अक़्लमंदी से काम करता है, पर~बेवक़ूफ़~अपनी~बेवक़ूफ़ी~को फैला देता है।17~शरीर क़ासिद बला में गिरफ़्तार होता है, लेकिन ईमानदार एल्ची सिहत बख़्श है।18~तरबियत को रद्द करने वाला कंगालऔर रुस्वा होगा, लेकिन वह जो तम्बीह का लिहाज़ रखता है, 'इज़्ज़त पाएगा।19जब मुराद पूरी होती है तब जी बहुत ख़ुश होता है, लेकिन बदी को ~छोड़ने से~बेवक़ूफ़~को नफ़रत है।20~वह जो 'अक़्लमंदों~के साथ चलता है 'अक़्लमंद~होगा, पर~बेवक़ूफ़ों~का साथी हलाक किया जाएगा।21~बदी गुनहगारों का पीछा करती है, लेकिन सादिक़ों को नेक बदला मिलेगा।22~नेक आदमी अपने पोतों के लिए मीरास छोड़ता है, लेकिन गुनहगार की दौलत सादिक़ों के लिए फ़राहम की जाती है23कंगालों की खेती में बहुत ख़ुराक होती है, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो बे इन्साफ़ी से बर्बाद हो जाते हैं।24~वह जो अपनी छड़ी को बाज़ रखता है, अपने बेटे से नफ़रत रखता है, लेकिन वह जो उससे मुहब्बत रखता है, बरवक़्त उसको तम्बीह करता है।25~सादिक़ खाकर सेर हो जाता है, लेकिन शरीर का पेट नहीं भरता।
1~'अक़्लमंद~~'औरत अपना घर बनाती है, लेकिन बेवक़ूफ़~उसे अपने ही~हाथों से बर्बाद करती है।2~रास्तरौ ख़ुदावन्द से डरता है, लेकिन कजरौ उसकी हिक़ारत करता है।3~बेवक़ूफ़~में से गु़रूर फूट निकलता है, लेकिन 'अक़्लमंदों~के लब उनकी निगहबानी करते हैं।4जहाँ बैल नहीं, वहाँ चरनी साफ़ है, लेकिन ग़ल्ला की अफ़ज़ा इस ~बैल के ज़ोर से है।5ईमानदार गवाह झूट नहीं बोलता, लेकिन झूटा गवाह झूटी बातें बयान करता है।6~ठठ्ठा बाज़ हिकमत की तलाश करता और नहीं पाता, लेकिन समझदार को 'इल्म आसानी से हासिल होता है।7~बेवक़ूफ़~से किनारा कर, क्यूँकि तू उस में 'इल्म की बातें नहीं पाएगा।8होशियार की हिकमत यह है कि अपनी राह पहचाने, लेकिन~बेवक़ूफ़~की~बेवक़ूफ़ी~धोका है।9~बेवक़ूफ़~गुनाह करके हँसते हैं, । लेकिन रास्तकारों में रज़ामंदी है।10~अपनी तल्ख़ी को दिल ही खू़ब जानता है, और बेगाना उसकी खु़शी में दख़्ल नहीं रखता।11~शरीर का घर बर्बाद हो जाएगा, लेकिन रास्त आदमी का खे़मा आबाद रहेगा।12~ऐसी राह भी है जो इंसान को सीधी मा'लूम होती है, लेकिन उसकी इन्तिहा में मौत की राहें हैं।13हँसने में भी दिल ग़मगीन है, और शादमानी का अंजाम ग़म है।14~नाफ़रमान दिल अपने चाल चलन ~का बदला पाता है, और नेक आदमी अपने काम का।15~नादान हर बात का यक़ीन कर लेता है, लेकिन होशियार आदमी अपने चाल चलन को देखता भालता है।16~'अक़्लमंद ~डरता है और बदी से अलग रहता है, लेकिन बेवक़ूफ़~झुंझलाता है और बेख़ौफ़ रहता है।17~जूद रंज बेवक़ूफ़ी करता है, और बुरे मन्सुबे बाँधने वाला घिनौना है।18~नादान हिमाक़त की मीरास पाते हैं, लेकिन होशियारों के सिर लेकिन 'इल्म का ताज है।19शरीर नेकों के सामने झुकते हैं, और ख़बीस सादिक़ों के दरवाज़ों पर ।20~कंगाल से उसका पड़ोसी भी बेज़ार है, लेकिन मालदार के दोस्त बहुत हैं।21~अपने पड़ोसी को हक़ीर जानने वाला गुनाह करता है, लेकिन कंगाल पर रहम करने वाला मुबारक है।22क्या बदी के मूजिद गुमराह नहीं होते? लेकिन शफ़क़त और सच्चाई नेकी के मूजिद के लिए हैं।23हर तरह की मेहनत में नफ़ा' है, लेकिन मुँह की बातों में महज़ मुहताजी है।24~'अक़्लमंदों~~का ताज उनकी दौलत है, लेकिन~बेवक़ूफ़~की~बेवक़ूफ़ी~ही~बेवक़ूफ़ी~है।25~सच्चा गवाह जान बचाने वाला है, ~लेकिन झूठा गवाह दग़ाबाज़ी करता है।26ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ में क़वी उम्मीद है, और उसके फ़र्ज़न्दों को पनाह की जगह मिलती है।27~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ ज़िन्दगी का चश्मा है, जो मौत के फंदों से छुटकारे का ज़रिया' है।28रि'आया की कसरत में बादशाह की शान है, लेकिन लोगों की कमी में हाकिम की तबाही है।29जो क़हर करने में धीमा है, बड़ा 'अक़्लमन्द है लेकिन वह जो झक्की है हिमाकत को बढ़ाता है।30~मुत्मइन दिल, जिस्म की जान है, लेकिन जलन हड्डियों की बूसीदिगी है।31~ग़रीब पर जु़ल्म करने वाला उसके ख़ालिक़ की इहानत करता है, लेकिन उसकी ता'ज़ीम करने वाला मुहताजों पर रहम करता है।32~शरीर अपनी शरारत में पस्त किया जाता है, लेकिन सादिक़ मरने पर भी उम्मीदवार है।33~हिकमत 'अक़्लमंद के दिल में क़ायम रहती है, लेकिन बेवक़ूफ़ों~का~दिली राज़ खुल जाता है।34~सदाक़त कौम को सरफ़राज़ी बख़्शती है, लकिन~गुनाह से उम्मतों की रुस्वाई है।35'अक़्लमंद ख़ादिम पर बादशाह की नज़र-ए-इनायत है, लेकिन उसका क़हर उस पर है जो रुस्वाई का ज़रिया' है।
1~नर्म जवाब क़हर को दूर कर देता है, लेकिन कड़वी ~बातें ग़ज़ब अंगेज़ हैं।2~'अक़्लमंदों~~की ज़बान 'इल्म का दुरुस्त बयान करती है, लेकिन बेवक़ूफ़ों~का मुँह हिमाक़त उगलता है।3ख़ुदावन्द की आँखें हर जगह हैं और नेकों और बदों की निगरान हैं।4सिहत बख़्श ज़बान ज़िन्दगी का दरख़्त है, लेकिन उसकी कजगोई रूह की शिकस्तगी का ज़रिया है।5~बेवक़ूफ़~अपने बाप की तरबियत को हक़ीर जानता है, लेकिन तम्बीह का लिहाज़ रखने वाला होशियार हो जाता है।6सादिक़ के घर में बड़ा ख़ज़ाना है, लेकिन शरीर की आमदनी में परेशानी है।7~'अक़्लमंदों के लब 'इल्म फैलाते हैं, लेकिन बेवक़ूफ़ों~के दिल ऐसे नहीं।8~शरीरों के ज़बीहे से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, लेकिन रास्तकार की दु'आ उसकी ख़ुशनूदी है।9~शरीरों का चाल चलन से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, लेकिन वह सदाकत के पैरौ से मुहब्बत रखता है।10राह से भटकने वाले के लिए सख़्त तादीब है, और तम्बीह से नफ़रत करने वाला मरेगा।11~जब पाताल और जहन्नुम ख़ुदावन्द के सामने खुले हैं, तो बनी आदम के दिल का क्या ज़िक्र ?12~ठठ्ठाबाज़ तम्बीह को दोस्त नहीं रखता, और 'अक़्लमंदों की मजलिस में हरगिज़ नहीं जाता।13~ख़ुश दिली चेहरे की रौनक पैदा करती है, लेकिन दिल की ग़मगीनी से इन्सान शिकस्ता ख़ातिर होता है।14~समझदार का दिल 'इल्म का तालिब है, लेकिन बेवक़ूफ़ों~की ख़ुराक~बेवक़ूफ़ी~है।15मुसीबत ज़दा के तमाम दिन बुरे हैं, लेकिन ख़ुश दिल हमेशा जश्न करता है।16~थोड़ा जो ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ के साथ हो, उस बड़े ख़ज़ाने से जो परेशानी के साथ हो, बेहतर है।17~मुहब्बत वाले घर में ज़रा सा सागपात, 'अदावत वाले घर में पले हुए बैल से बेहतर है।18~ग़ज़बनाक आदमी फ़ितना खड़ा करता है, लेकिन जो क़हर में धीमा है झगड़ा मिटाता है।19काहिल की राह काँटो की आड़ सी है, लेकिन रास्तकारों का चाल चलन शाहराह की तरह है।20~'अक़्लमंद बेटा बाप को ख़ुश रखता है, लेकिन बेवक़ूफ़~अपनी माँ की~तहक़ीर करता है।21~बे'अक़्ल के लिए~बेवक़ूफ़ी~शादमानी का ज़रिया' है, लेकिन समझदार ~अपने चाल चलन को दुरुस्त करता है22~सलाह के बगै़र ~इरादे पूरे नहीं होते, लेकिन सलाहकारों की कसरत से क़याम पाते हैं।23आदमी अपने मुँह के जवाब से ख़ुश होता है, और बामौक़ा' बात क्या खू़ब है।24'अक़्लमंद के लिए ज़िन्दगी की राह ऊपर को जाती है, ताकि वह पाताल में उतरने से बच जाए।25ख़ुदावन्द मग़रूरों का घर ढा देता है, लेकिन वह बेवा के सिवाने को क़ायम करता है।26बुरे मन्सूबों से ख़ुदावन्द को नफ़रत है लेकिन पाक लोगों का कलाम पसंदीदा है।27~नफ़े' का लालची अपने घराने को परेशान करता है, लेकिन वह जिसकी रिश्वत से नफ़रत है ज़िन्दा रहेगा।28~सादिक़ का दिल सोचकर जवाब देता ~है, लेकिन शरीरों का मुँह बुरी बातें उगलता है।29ख़ुदावन्द शरीरों से दूर है, लेकिन वह सादिक़ों की दु'आ सुनता है।30आँखों का नूर दिल को ख़ुश करता है, और ख़ुश ख़बरी हड्डियों में फ़रबही पैदा करती है।31~जो ज़िन्दगी बख़्श तम्बीह पर कान लगाता है, 'अक़्लमंदों के बीच सुकूनत करेगा।32तरबियत को रद्द करने वाला अपनी ही जान का दुश्मन है, लेकिन तम्बीह पर कान लगाने वाला समझ हासिल करता है।33ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ हिकमत की तरबियत है, और सरफ़राज़ी से पहले फ़रोतनी है।
1दिल की तदबीरें इन्सान से हैं, लेकिन ज़बान का जवाब ख़ुदावन्द की तरफ़ से है।2~इन्सान की नज़र में उसके सब चाल चलन पाक हैं, लेकिन ख़ुदावन्द रूहों को जाँचता है।3~अपने सब काम ख़ुदावन्द पर छोड़ दे, तो तेरे इरादे क़ायम रहेंगे।4~ख़ुदावन्द ने हर एक चीज़ ख़ास मक़सद के लिए बनाई, हाँ शरीरों को भी उसने बुरे दिन के लिए बनाया |5हर एक से जिसके दिल में गु़रूर है, ख़ुदावन्द को नफ़रत है; यक़ीनन वह बे सज़ा न छूटेगा।6शफ़क़त और सच्चाई से बदी का और लोग ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ की वजह से बदी से बाज़ आते हैं।7~जब इन्सान का चाल चलन ख़ुदावन्द को पसंद आता है तो वह उसके दुश्मनों को भी उसके दोस्त बनाता है।8सदाक़त के साथ थोड़ा सा माल, बे इन्साफ़ी की बड़ी आमदनी से बेहतर है।9~आदमी का दिल आपनी राह ठहराता है लेकिन ख़ुदावन्द उसके क़दमों की रहनुमाई करता है।10~कलाम-ए-रब्बानी बादशाह के लबों से निकलता है, और उसका मुँह 'अदालत करने में ख़ता नहीं करता।11~ठीक तराजू़ और पलड़े ख़ुदावन्द के हैं, थैली के सब बाट उसका काम हैं।12~शरारत करने से बादशाहों को नफ़रत है, क्यूँकि तख़्त का क़याम सदाक़त से है।13~सादिक़ लब बादशाहों की ख़ुशनूदी हैं, और वह सच बोलने वालों को दोस्त रखते हैं।14~बादशाह का क़हर मौत का क़ासिद है, लेकिन 'अक़्लमंद आदमी उसे ठंडा करता है।15बादशाह के चेहरे के नूर में ज़िन्दगी है, और उसकी नज़र-ए-'इनायत आख़री बरसात के बादल की तरह है।16~हिकमत का हुसूल सोने से बहुत ~बेहतर है, और समझ का हुसूल चाँदी से बहुत पसन्दीदा है।17~रास्तकार आदमी की शाहराह यह है कि बदी से भागे, और अपनी राह का निगहबान अपनी जान की हिफ़ाजत करता है।18हलाकत से पहले तकब्बुर, और ज़वाल से पहले ख़ुदबीनी है।19~ग़रीबों के साथ फ़रोतन बनना, मुतकब्बिरों के साथ लूट का माल तक़सीम करने से बेहतर है।20~जो कलाम पर तवज्जुह करता है, भलाई देखेगा: और जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है, मुबारक है।21~'अक़्लमंद दिल होशियार कहलाएगा, और शीरीन ज़बानी से 'इल्म की फ़िरावानी होती है।22'अक्लमंद के लिए 'अक़्ल हयात का चश्मा है, लेकिन~बेवक़ूफ़ों~की~तरबियत~बेवक़ूफ़ी~है।23~'अक़्लमंद का दिल उसके मुँह की तरबियत करता है, और उसके लबों को 'इल्म बख़्शता है।24दिलपसंद बातें शहद का छत्ता हैं, वह जी को मीठी लगती हैं और हड्डियों के लिए शिफ़ा हैं।25~ऐसी राह भी है, जो इन्सान को सीधी मा'लूम होती है; लेकिन उसकी इन्तिहा में मौत की राहें हैं।26मेहनत करने वाले की ख़्वाहिश उससे काम कराती है, क्यूँकि उसका पेट उसको उभारता है।27ख़बीस आदमी शरारत को ~ख़ुद कर निकालता है, और उसके लबों में जैसे जलाने वाली आग है।28टेढ़ा आदमी फ़ितना ओंगेज़ है, और ग़ीबत करने वाला दोस्तों में जुदाई डालता है।29~तुन्दखू़ आदमी अपने पड़ोसियों को वरग़लाता है, और उसको बुरी राह पर ले जाता है।30~आँख मारने वाला कजी ईजाद करता है, और लब चबाने वाला फ़साद खड़ा करता है।31~सफ़ेद सिर शौकत का ताज है;वह सदाक़त की राह पर पाया जाएगा।32~जो क़हर करने में धीमा है पहलवान से बेहतर है, और वह जो अपनी रूह पर ज़ाबित है उस से जो शहर को ले लेता है।33~पर्ची गोद में डाली जाती है, लेकिन उसका सारा इन्तिज़ाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से है।
1~सलामती के साथ ख़ुश्क निवाला इस से बेहतर है, कि घर ने'मत से भरा हो और उसके साथ झगड़ा हो।2~'अक्लमन्द नौकर उस बेटे पर जी रुस्वा करता है हुक्मरान होगा, और भाइयों में शमिल होकर मीरास का हिस्सा लेगा।3~चाँदी के लिए कुठाली है और सोने केलिए भट्टी, लेकिन दिलों को ख़ुदावन्द जांचता है।4बदकिरदार झूटे लबों की सुनता है, और झूठा मुफ़सिद ज़बान का शनवा होता है।5~गरीब पर हँसने वाला, उसके ख़ालिक की बेक़द्री करता है; और जो औरों की मुसीबत से ख़ुश होता है, बे सज़ा न छूटेगा।6बेटों के बेटे बूढ़ों के लिए ताज हैं;और बेटों के फ़ख़्र का ज़रिया' उनके बाप-दादा हैं।7~ख़ुश गोई~बेवक़ूफ़~को नहीं सजती, तो किस क़दर कमदरोग़गोई~शरीफ़ को सजेगी।8~रिश्वत जिसके हाथ में है उसकी नज़रमें गिरान बहा जौहर है, और वह जिधर तवज्जुह करता है कामयाब होता है।9जो ख़ता पोशी करता है दोस्ती का तालिब है, लेकिन जो ऐसी बात को बार बार छेड़ता है, दोस्तों में जुदाई डालता है।10~समझदार ~पर एक झिड़की, बेवक़ूफ़ों~पर सौ कोड़ों से ज़्यादा असर करती है।11~शरीर महज़ सरकशी का तालिब है, उसके मुक़ाबले में संगदिल क़ासिद भेजा जाएगा।12~जिस रीछनी के बच्चे पकड़े गए हों आदमी का उस से दो चार होना, इससे बेहतर है के~बेवक़ूफ़~की~बेवक़ूफ़ी~में उसके~सामने~आए।13~जो नेकी के बदले में बदी करता है, उसके घर से बदी हरगिज़ जुदा न होगी।14~झगड़े का शुरू' पानी के फूट निकलने की तरह है, इसलिए लड़ाई से पहले झगड़े को छोड़ दे |15~जो शरीर को सादिक़ और जो सादिक़ को शरीर ठहराता है, ख़ुदावन्द को उन दोनों से नफ़रत है।16~हिकमत ख़रीदने को~बेवक़ूफ़~के हाथ में क़ीमत से क्या फ़ाइदा है, ~हालाँकि उसका दिल उसकी तरफ़ नहीं?17~दोस्त हर वक़्त मुहब्बत दिखाता है, और भाई मुसीबत के दिन के लिए पैदा हुआ है।18~बे'अक़्ल आदमी हाथ पर हाथ मारता है, और अपने पड़ोसी के सामने ज़ामिन होता है।19फ़साद पसंद ख़ता पसंद है, और अपने दरवाज़े को बलन्द करने वाला हलाकत का तालिब।20~कजदिला भलाई को न देखेगा, और जिसकी ज़बान कजगो है मुसीबत में पड़ेगा।21~बेवकूफ़ के वालिद के लिए ग़म है, क्यूँकि~बेवक़ूफ़~के बाप को ख़ुशी~नहीं।22~शादमान दिल शिफ़ा बख़्शता है, लेकिन अफ़सुर्दा दिली हड्डियों को ख़ुश्क कर देती है।23~शरीर बगल में रिश्वत रख लेता है, ताकि 'अदालत की राहें बिगाड़े।24~हिकमत समझदार ~के आमने सामने है, लेकिन~बेवक़ूफ़~की आँख~ज़मीन के किनारों पर लगी हैं।25~बेवक़ूफ़~बेटा अपने बाप के लिए ग़म, और अपनी माँ के लिए तल्ख़ी है।26~सादिक़ को सज़ा देना, और शरीफ़ों को उनकी रास्ती की वजह से मारना, खूब नहीं।27~साहिब-ए-इल्म कमगो है, और समझदार ~मतीन है।28बेवक़ूफ़~भी जब तक ख़ामोश है, 'अक्लमन्द गिना जाता है; जो अपने लब बलंद रखता है, होशियार है।
1जो अपने आप को सब से अलग रखता है, अपनी ख़्वाहिश का तालिब है, और हर मा'कूल बात से बरहम होता है।2बेवक़ूफ़~समझ से ख़ुश नहीं होता, लेकिन सिर्फ़ इस से कि अपने दिल का हाल ज़ाहिर करे।3~शरीर के साथ हिकारत आती है, और रुस्वाई के साथ ना क़द्री।4~इन्सान के मुँह की बातें गहरे पानी की तरह है और हिकमत का चश्मा बहता नाला है।5~शरीर की तरफ़दारी करना, या 'अदालत में सादिक़ से बेइन्साफ़ी करना, अच्छा नहीं।6~बेवक़ूफ़~के होंट फ़ितनाअंगेज़ी करते हैं, और उसका मुँह तमाँचों के लिए पुकारता है।7बेवक़ूफ़~का मुँह उसकी हलाकत है, और उसके होंट उसकी जान के लिए फन्दा हैं।8ग़ैबतगो की बातें लज़ीज़ निवाले हैं और वह खू़ब हज़्म हो जाती हैं।9~काम में सुस्ती करने वाला, फ़ुज़ूल ख़र्च का भाई है।10~ख़ुदावन्द का नाम मज़बूत बुर्ज है, सादिक़ उस में भाग जाता है और अम्न में रहता है11~दौलतमन्द आदमी का माल उसका मज़बूत शहर, और उसके तसव्वुर में ऊँची दीवार की तरह है।12~आदमी के दिल में तकब्बुर हलाकत का पेशरौ है, और फ़रोतनी 'इज़्ज़त की पेशवा।13~जो बात सुनने से पहले उसका जवाब दे, यह उसकी~बेवक़ूफ़ी~और शर्मिन्दगी है।14~इन्सान की रूह उसकी नातवानी में उसे संभालेगी, लेकिन अफ़सुर्दा दिली को कौन बर्दाश्त कर सकता है?15~होशियार का दिल 'इल्म हासिल करता है, और 'अक़्लमन्द के कान 'इल्म के तालिब हैं।16~आदमी का नज़राना उसके लिए जगह कर लेता है, और बड़े आदमियों के सामने उसकी रसाई कर देता है।17~जो पहले अपना दा'वा बयान करता है रास्त मा'लूम होता है, लेकिन दूसरा आकर उसकी हक़ीक़त ज़ाहिर करता है।18पर्ची झगड़ों को ख़त्म करती है, और ज़बरदस्तों के बीच फ़ैसला कर देती है।19~नाराज़ भाई को राज़ी करना मज़बूत शहर ले लेने से ज़्यादा मुश्किल है, और झगड़े क़िले' के बेंडों की तरह हैं।20~आदमी की पेट उसके मुँह के फल से भरता है, और वहअपने लबों की पैदावार से सेर होता है।21~मौत और ज़िन्दगी ज़बान के क़ाबू में हैं, और जो उसे दोस्त रखते हैं उसका फल खाते हैं।22~जिसको बीवी मिली उसने तोहफ़ा पाया, और उस पर ख़ुदावन्द का फ़ज़ल हुआ।23~मुहताज मिन्नत समाजत करता है, लेकिन दौलतमन्द सख़्त जवाब देता है।24जो बहुतों से दोस्ती करता है अपनी बर्बादी के लिए करता है, लेकिन ऐसा दोस्त भी है जो भाई से ज़्यादा मुहब्बत रखता है।
1~रास्तरौ ग़रीब, कजगो और~बेवक़ूफ़~से बेहतर है।2~ये भी अच्छा नहीं कि रूह 'इल्म से खाली रहे? जो चलने में जल्द बाज़ी करता है, भटक जाता है।3~आदमी की~बेवक़ूफ़ी~उसे गुमराह करती है, और उसका दिल~ख़ुदावन्द से बेज़ार होता है।4~दौलत बहुत से दोस्त पैदा करती है, लेकिन ग़रीब अपने ही दोस्त से बेगाना है।5~झूटा गवाह बे सज़ा न छूटेगा, और झूट बोलने वाला रिहाई न पाएगा।6~बहुत से लोग सख़ी की ख़ुशामद करते हैं, और हर एक आदमी इना'म देने वाले का दोस्त है।7जब मिस्कीन के सब भाई ही उससे नफ़रत करते है, तो उसके दोस्त कितने ज़्यादा उससे दूर भागेंगे। वह बातों से उनका पीछा करता है, लेकिन उनको नहीं पाता।8जो हिकमत हासिल करता है अपनी जान को 'अज़ीज़ रखता है; जो समझ की मुहाफ़िज़त करता है फ़ाइदा उठाएगा।9झूटा गवाह बे सज़ा न छूटेगा, और जो झूठ बोलता है फ़ना होगा।10~जब~बेवक़ूफ़~के लिए नाज़-ओ-ने'मत ज़ेबा नहीं तो ख़ादिम का~शहज़ादों पर हुक्मरान होनाऔर भी ~मुनासिब नहीं।11~आदमी की तमीज़ उसको क़हर करने में धीमा बनाती है, और ख़ता से दरगुज़र करने में उसकी शान है।12~बादशाह का ग़ज़ब शेर की गरज की तरह है, और उसकी नज़र-ए-'इनायत घास पर शबनम की तरह|13~बेवक़ूफ़~बेटा अपने बाप के लिए बला है, और बीवी का झगड़ा रगड़ा सदा का टपका।14~घर और माल तो बाप दादा से मीरास में मिलते हैं, लेकिन ~अक़्लमंद बीवी ख़ुदावन्द से मिलती है।15~काहिली नींद में गर्क़ कर देती है, और काहिल आदमी भूका रहेगा।16जो फ़रमान बजा लाता है अपनी जान की मुहाफ़ज़त पर जो अपनी राहों से ग़ाफ़िल है, मरेगा।17जो ग़रीबों पर रहम करता है, ख़ुदावन्द को क़र्ज़ देता है, और वह अपनी नेकी का बदला पाएगा।18~जब तक उम्मीद है अपने बेटे की तादीब किए जा और उसकी बर्बादी पर दिल न लगा।19~ग़ुस्सावर आदमी सज़ा पाएगा; क्यूँकि अगर तू उसे रिहाई दे तो तुझे बार बार ऐसा ही करना होगा।20~मश्वरत को सुन और तरबियत पज़ीर हो, ताकि तू आख़िर कार 'अक़्लमन्द हो जाए।21~आदमी के दिल में बहुत से मन्सूबे हैं, लेकिन सिर्फ़ ख़ुदावन्द का इरादा ही क़ायम रहेगा।22~आदमी की मक़बूलियत उसके एहसान से है, और कंगाल झूठे आदमी से बेहतर है।23ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ ज़िन्दगी बख़्श है, और ख़ुदा तरस सेर होगा, और बदी से महफ़ूज़ रहेगा।24~सुस्त आदमी अपना हाथ थाली में डालता है, और इतना भी नहीं करता की फिर उसे अपने मुँह तक लाए।25ठट्ठा करने वाले को मार, इससे सादा दिल होशियार हो जाएगा, और समझदार को तम्बीह कर, वह 'इल्म हासिल करेगा।26~जो अपने बाप से बदसुलूकी करता और माँ को निकाल देता है, शर्मिन्दगी का ज़रिया'और रुस्वाई लाने वाला बेटा है।27~ऐ मेरे बेटे, अगर तू 'इल्म से बरगश्ता होता है, तो ता'लीम सुनने से क्या फ़ायदा?28~ख़बीस गवाह 'अद्ल पर हँसता है, और शरीर का मुँह बदी निगलता रहता है।29ठठ्ठा करने वालों के लिए सज़ाएँ ठहराई जाती हैं, और~बेवक़ूफ़ों~की~पीठ के लिए कोड़े हैं।
1~मय मसख़रा और शराब हंगामा करने वाली है, और जो कोई इनसे फ़रेब खाता है, 'अक़्लमन्द नहीं।2बादशाह का रो'ब शेर की गरज की तरह है: जो कोई उसे गु़स्सा दिलाता है, अपनी जान से बदी करता है।3~झगड़े से अलग रहने में आदमी की 'इज्ज़त है, लेकिन हर एक~बेवक़ूफ़ झगड़ता रहता है, |4~काहिल आदमी जाड़े की वजह हल नहीं चलाता; इसलिए फ़सल काटने के वक़्त वह भीक माँगेगा, और कुछ न पाएगा।5आदमी के दिल की बात गहरे पानी की तरह है, लेकिन समझदार आदमी उसे खींच निकालेगा।6~अक्सर लोग अपना अपना एहसान जताते हैं, लेकिन वफ़ादार आदमी किसको मिलेगा?7~रास्तरौ सादिक़ के बा'द, उसके बेटे मुबारक होते हैं।8~बादशाह जो तख़्त-ए-'अदालत पर बैठता है, खुद देखकर हर तरह की बदी को फटकता है।9~कौन कह सकता है कि मैंने अपने दिल को साफ़ कर लिया है; और मैं अपने गुनाह से पाक हो गया हूँ?10~दो तरह के बाट और दो तरह के पैमाने, इन दोनों से ख़ुदा को नफ़रत है।11बच्चा भी अपनी हरकतों से पहचाना जाता है, कि उसके काम नेक-ओ-रास्त हैं कि नहीं।12~सुनने वाले कान और देखने वाली आँख दोनों को ख़ुदावन्द ने बनाया है।13~ख़्वाब दोस्त न हो, कहीं ऐसा तू कंगाल हो जाए; अपनी आँखें खोल कि तू रोटी से सेर होगा।14~ख़रीदार कहता है, "रद्दी है, रद्दी, "लेकिन जब चल पड़ता है तो फ़ख़्र करता है।15~ज़र-ओ-मरजान की तो कसरत है, लेकिन बेशबहा सरमाया 'इल्म वाले होंट हैं।16~जो बेगाने का ज़ामिन हो, उसके कपड़े छीन ले, और जो अजनबी का ज़ामिन हो, उससे कुछ गिरवी रख ले।17दग़ा की रोटी आदमी को मीठी लगती है, लेकिन आख़िर को उसका मुँह कंकरों से भरा जाता है।18~हर एक काम मश्वरत से ठीक होता है, और तू नेक सलाह लेकर जंग कर।19~जो कोई लुतरापन करता फिरता है, राज़ खोलता है; इसलिए तू मुँहफट से कुछ वास्ता न रख20~जो अपने बाप या अपनी माँ पर ला'नत करता है, उसका चिराग़ गहरी तारीकी में बुझाया जाएगा।21~अगरचे 'इब्तिदा में मीरास यकलख़्त हासिल हो, तो भी उसका अन्जाम मुबारक न होगा।22~तू यह न कहना, कि मैं बदी का बदला लूँगा। ख़ुदावन्द की आस रख और वह तुझे बचाएगा।23~दो तरह के बाट से ख़ुदावन्द को नफ़रत है, और दग़ा के तराजू ठीक नहीं।24आदमी की रफ़्तार ख़ुदावन्द की तरफ़ से है, लेकिन इन्सान अपनी राह को क्यूँकर जान सकता है?25~जल्द बाज़ी से किसी चीज़ को मुक़द्दस ठहराना, और मिन्नत मानने के बा'द दरियाफ़्त करना, आदमी के लिए फंदा है।26'अक़्लमन्द बादशाह शरीरों को फटकता है, और उन पर दावने का पहिया फिरवाता है।27आदमी का ज़मीर ख़ुदावन्द का चिराग़ है: जो उसके तमाम अन्दरूनी हाल को दरियाफ़्त करता है।28~शफ़क़त और सच्चाई बादशाह की निगहबान हैं, बल्कि ~शफ़क़त ही से उसका तख़्त क़ायम रहता है।29जवानों का ज़ोर उनकी शौकत है, और बूढ़ों के सफ़ेद बाल उनकी ज़ीनत हैं।30~कोड़ों के ज़ख़्म से बदी दूर होती है, और मार खाने से दिल साफ़ होता
1~बादशाह क़ा दिल खुदावन्द के हाथ में है वह उसको पानी के नालों की तरह जिधर चाहता है फेरता है।2~इन्सान का हर एक चाल चलन उसकी नज़र में रास्त है, लेकिन ख़ुदावन्द दिलों को जाँचता है।3~सदाक़त और 'अद्ल, ख़ुदावन्द के नज़दीक कु़र्बानी से ज़्यादा पसन्दीदा हैं।4~बलन्द नज़री और दिल का तकब्बुर, है।और शरीरों की इक़बालमंदी गुनाह है |5~मेहनती की तदबीरें यक़ीनन फ़िरावानी की वजह हैं, लेकिन हर एक जल्दबाज़ का अंजाम मोहताजी है।6~दरोग़गोई से ख़ज़ाने हासिल करना, बेठिकाना बुख़ारात और उनके तालिब मौत के तालिब हैं।7~शरीरों का जु़ल्म उनको उड़ा ले जाएगा, क्यूँकि उन्होंने इन्साफ़ करने से इंकार किया है।8~गुनाह आलूदा आदमी की राह बहुत टेढ़ी है, लेकिन जो पाक है उसका काम ठीक है।9~घर की छत पर एक कोने में रहना, झगड़ालू बीवी के साथ बड़े घर में रहने से बेहतर है।10शरीर की जान बुराई की मुश्ताक़ है, उसका पड़ोसी उसकी निगाह में मक़्बूल नहीं होता11~जब ठठ्ठा करने वाले को सज़ा दी जाती है, तो सादा दिल हिकमत हासिल करता है, और जब 'अक़्लमंद तरबियत पाता है, तो 'इल्म हासिल करता है।12~सादिक़ शरीर के घर पर ग़ौर करता है; शरीर कैसे गिर कर बर्बाद हो गए हैं।13जो ग़रीब की आह सुन कर अपने कान बंद कर लेता है, वह आप भी आह करेगा और कोई न सुनेगा।14पोशीदगी में हदिया देना क़हर को ठंडा करता है, और इना'म बग़ल में दे देना ग़ज़ब-ए-शदीद को।15~इन्साफ़ करने में सादिक़ की शादमानी है, लेकिन बदकिरदारों की हलाकत।16जो समझ की राह से भटकता है, मुर्दों के ग़ोल में पड़ा रहेगा।17~'अय्याश~कंगाल रहेगा;जो मय और तेल का मुश्ताक है मालदार न होगा।18~शरीर सादिक़ का फ़िदिया होगा, और दग़ाबाज़ रास्तबाज़ों के बदले में दिया जाएगा।19~वीराने में रहना, झगड़ालू और चिड़चिड़ी बीवी के साथ रहने से बेहतर है।20~क़ीमती ख़ज़ाना और तेल 'अक़्लमन्दों के घर में हैं, लेकिन~बेवक़ूफ़~उनको उड़ा देता है।21~जो सदाक़त और शफ़क़त की पैरवी करता है, ज़िन्दगी और सदाक़त-ओ-'इज़्ज़त पाता है।22~'अक़्लमन्द आदमी ज़बरदस्तों के शहर पर चढ़ जाता है, और जिस कु़व्वत पर उनका भरोसा है, उसे गिरा देता है।23~जो अपने मुँह और अपनी ज़बान की निगहबानी करता है, अपनी जान को मुसीबतों से महफ़ूज़ रखता है।24मुतकब्बिर-ओ-मग़रूर शख़्स जो बहुत तकब्बुर से काम करता है।25~काहिल की तमन्ना उसे मार डालती है, क्यूँकि उसके हाथ मेहनत से इंकार करते हैं।26~वह दिन भर तमन्ना में रहता है, लेकिन सादिक़ देता है और दरेग़ नहीं करता।27~शरीर की कु़र्बानी क़ाबिले नफ़रत है, ख़ासकर जब वह बुरी नियत से लाता है।28~झूटा गवाह हलाक होगा, लेकिन जिस शख़्स ने बात सुनी है, वह~ख़ामोश न रहेगा।29~शरीर अपने चहरे को सख़्त करता है, लेकिन सादिक़ अपनी राह पर ग़ौर करता है।30~कोई हिकमत, कोई समझ और कोई मश्वरत नहीं, जो ख़ुदावन्द के सामने ठहर सके।31~जंग के दिन के लिए घोड़ा तो तैयार किया जाता है, लेकिन फ़तहयाबी ख़ुदावन्द की तरफ़ से है।
1~नेक नाम बेक़यास ख़ज़ाने से और एहसान सोने चाँदी से बेहतर है।2~अमीर-ओ-ग़रीब एक दूसरे से मिलते हैं; उन सबका ख़ालिक़ ख़ुदावन्द ही है।3~होशियार बला को देख कर छिप जाता है; लेकिन नादान बढ़े चले जाते और नुक़्सान उठाते हैं।4~दौलत और 'इज़्ज़त-ओ-हयात, ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ और फ़रोतनी का अज्र हैं।5~टेढ़े आदमी की राह में काँटे और फन्दे हैं; जो अपनी जान की निगहबानी करता है, उनसे दूर रहेगा।6~लड़के की उस राह में तरबियत कर जिस पर उसे जाना है; वह बूढ़ा होकर भी उससे नहीं मुड़ेगा।7~मालदार ग़रीब पर हुक्मरान होता है, और क़र्ज़ लेने वाला कर्ज़ देने वाले का नौकर है।8~जो बदी बोता है मुसीबत काटेगा, और उसके क़हर की लाठी टूट जाएगी।9~जो नेक नज़र है बरकत पाएगा, क्यूँकि वह अपनी रोटी में से ग़रीबों को देता है।10~ठठ्ठा करने वाले को निकाल दे तो फ़साद जाता रहेगा; हाँ झगड़ा रगड़ा और रुस्वाई दूर हो जाएँगे।11~जो पाक दिली को चाहता है उसके होंटों में लुत्फ़ है, और बादशाह उसका दोस्तदार होगा।12~ख़ुदावन्द की आँखें 'इल्म की हिफ़ाज़त करती हैं; वह दग़ाबाज़ों के कलाम को उलट देता है।13सुस्त आदमी कहता है बाहर शेर खड़ा है! मैं गलियों में फाड़ा जाऊँगा।14~बेगाना 'औरत का मुँह गहरा गढ़ा है; उसमें वह गिरता है जिससे ख़ुदावन्द को नफ़रत है।15~हिमाक़त लड़के के दिल से वाबस्ता है, लेकिन तरबियत की छड़ी उसको उससे दूर कर देगी।16~जो अपने फ़ायदे के लिए ग़रीब पर ज़ुल्म करता है, और जो मालदार को देता है, यक़ीनन मोहताज हो जाएगा।17अपना कान झुका और 'अक़्लमंदों की बातें सुन, और मेरी ता'लीम पर दिल लगा;18क्यूँकि यह पसंदीदा है कि तू उनको अपने दिल में रख्खे, और वह तेरे लबों पर क़ायम रहें;19ताकि तेरा भरोसा ख़ुदावन्द पर हो, मैंने आज के दिन तुझ को हाँ तुझ ही को जता दिया है।20~क्या मैंने तेरे लिए मश्वरत और 'इल्म की लतीफ़ बातें इसलिए नहीं लिखी हैं, कि21~सच्चाई की बातों की हक़ीक़त तुझ पर ज़ाहिर कर दूँ, ताकि तू सच्ची बातें हासिल करके अपने भेजने वालों के पास वापस जाए?22ग़रीब को इसलिए न लूट की वह ग़रीब है, और मुसीबत ज़दा पर 'अदालत गाह में ज़ुल्म न कर;23क्यूँकि ख़ुदावन्द उनकी वकालत करेगा, और उनके ग़ारतगरों की जान को ग़ारत करेगा।24~गु़स्से वर आदमी से दोस्ती न कर, और ग़ज़बनाक शख़्स के साथ न जा,25~ऐसा ना हो ~तू उसका चाल चलन सीखे, और अपनी जान को फंदे में फंसाए।-26तू उनमें शामिल न हो जो हाथ पर हाथ मारते हैं, और न उनमें जो क़र्ज़ के ज़ामिन होते हैं।27क्यूँकि अगर तेरे पास अदा करने को कुछ न हो, तो वह तेरा बिस्तर तेरे नीचे से क्यूँ खींच ले जाए?28~उन पुरानी हदों को न सरका, जो तेरे बाप-दादा ने बाँधी हैं।29~तू किसी को उसके काम में मेहनती देखता है, वह बादशाहों के सामने खड़ा होगा; वह कम क़द्र लोगों की ख़िदमत न करेगा।
1~जब तू हाकिम के साथ खाने बैठे, तो खू़ब ग़ौर कर, कि तेरे सामने कौन है?2~अगर तू खाऊ है, तो अपने गले पर छुरी रख दे।3उसके मज़ेदार खानों की तमन्ना न कर, क्यूँकि वह दग़ा बाज़ी का खाना है।4मालदार होने के लिए परेशान न हो; अपनी इस 'अक़्लमन्दी से बाज़ आ।5क्या तू उस चीज़ पर आँख लगाएगा जो है ही नहीं? लेकिन लगा कर आसमान की तरफ़ उड़ जाती है?6तू तंग चश्म की रोटी न खा, और उसके मज़ेदार खानों की तमन्ना न कर;7क्यूँकि जैसे उसके दिल के ख़याल हैं वह वैसा ही है। वह तुझ से कहता है खा और पी, लेकिन उसका दिल तेरी तरफ़ नहीं8~जो निवाला तूने खाया है तू उसे उगल देगा, और तेरी मीठी बातें बे मतलब होंगी9अपनी बातें~बेवक़ूफ़~को न सुना, क्यूँकि वह तेरे 'अक़्लमंदी ~के कलाम की ना क़द्री करेगा।10~पुरानी हदों को न सरका, और यतीमों के खेतों में दख़ल न कर,11क्यूँकि उनका रिहाई बख़्शने वाला ज़बरदस्त है; वह खुद ही तेरे ख़िलाफ़ उनकी वक़ालत करेगा।12~तरबियत पर दिल लगा, और 'इल्म की बातें सुन।13लड़के से तादीब को दरेग़ न कर; अगर तू उसे छड़ी से मारेगा तो वह मर न जाएगा।14~तू उसे छड़ी से मारेगा, और उसकी जान को पाताल से बचाएगा।15ऐ मेरे बेटे, अगर तू 'अक़्लमंद दिल है, तो मेरा दिल, हाँ मेरा दिल ख़ुश होगा।16और जब तेरे लबों से सच्ची बातें निकलेंगी, तो मेरा दिल शादमान होगा।17तेरा दिल गुनहगारों पर रश्क न करे, बल्कि तू दिन भर ख़ुदावन्द से डरता रह।18क्यूँकि बदला यक़ीनी है, और तेरी आस नहीं टूटेगी।19~ऐ मेरे बेटे, तू सुन और 'अक़्लमंद बन, और अपने दिल की रहबरी कर।20~तू शराबियों में शामिल न हो, और न हरीस कबाबियों में,21क्यूँकि शराबी और खाऊ कंगाल हो जाएँगे और नींद उनको चीथड़े पहनाएगी।22अपने बाप का जिससे तू पैदा हुआ सुनने वाला हो, और अपनी माँ को उसके बुढ़ापे में हक़ीर न जान।23~सच्चाई की मोल ले और उसे बेच न डाल; हिकमत और तरबियत और समझ को भी।24सादिक़ का बाप निहायत ख़ुश होगा; और अक़्लमंद का बाप उससे शादमानी करेगा।25~अपने माँ बाप को ख़ुश कर, अपनी वालिदा को शादमान रख।26~ऐ मेरे बेटे, अपना दिल मुझ को दे, और मेरी राहों से तेरी आँखें ख़ुश हों।27क्यूँकि फ़ाहिशा गहरी ख़न्दक़ है, और बेगाना 'औरत तंग गढ़ा है।28~वह राहज़न की तरह घात में लगी है, और बनी आदम में बदकारों का शुमार बढ़ाती है।29~कौन अफ़सोस करता है? कौन ग़मज़दा है? कौन झगड़ालू है? कौन शाकी है? कौन बे वजह घायल है?और किसकी आँखों में सुर्ख़ी है?30~वही जो देर तक मयनोशी करते हैं; वही जो मिलाई हुई मय की तलाश में रहते हैं।31~जब मय लाल लाल हो, जब उसका 'अक्स जाम पर पड़े, और जब वह रवानी के साथ नीचे उतरे, तो उस पर नज़र न कर।32क्यूँकि अन्जाम कार वह साँप की तरह काटती, और अजदहे की तरह डस जाती है।33तेरी आँखें 'अजीब चीज़ें देखेंगी, और तेरे मुँह से उलटी सीधी बातें निकलेगी।34बल्कि तू उसकी तरह होगा जो समन्दर के बीच में लेट जाए, या उसकी तरह जो मस्तूल के सिरे पर सो रहे।35~तू कहेगा उन्होंने तो मुझे मारा है, लेकिन मुझ को चोट नहीं लगी; उन्होंने मुझे पीटा है लेकिन मुझे मा'लूम भी नहीं हुआ। मैं कब बेदार हूँगा? मैं फिर उसका तालिब हूँगा।
1~तू शरीरों पर रश्क न करना, और उनकी सुहबत की ख़्वाहिश न रखना;2क्यूँकि उनके दिल जुल्म की फ़िक्र करते हैं, और उनके लब शरारत का ज़िक्र।3~हिकमत से घर ता'मीर किया जाता है, और समझ से उसको क़याम होता है।4~और 'इल्म के वसीले से कोठरियाँ, नफ़ीस-ओ-लतीफ़ माल से मा'मूर की जाती हैं।5~'अक़्लमंद आदमी ताक़तवर है, बल्कि साहिब-ए-'इल्म का ताक़त बढ़ती रहती है।6~क्यूँकि तू नेक सलाह लेकर जंग कर सकता है, और सलाहकारों की कसरत में सलामती है।7हिकमत~बेवक़ूफ़~के लिए बहुत बलन्द है; वह फाटक पर मुँह नहीं~खोल सकता।8जो बदी के मन्सूबे बाँधता है, फ़ितनाअंगेज़ कहलाएगा।9बेवक़ूफ़ी~का मन्सूबा भी गुनाह है, और ठठ्ठा करने वाले से लोगों को नफ़रत है।10अगर तू मुसीबत के दिन बेदिल हो जाए, तो तेरी ताक़त बहुत कम है।11~जो क़त्ल के लिए घसीटे जाते हैं, उनको छुड़ा; जो मारे जाने को हैं उनको हवाले न कर ।12~अगर तू कहे, देखो, हम को यह मा'लूम न था, तो क्या दिलों को जाँचने वाला यह नहीं समझता? और क्या तेरी जान का निगहबान यह नहीं जानता? और क्या वह हर शख़्स को उसके काम के मुताबिक़ बदला न देगा?13ऐ मेरे बेटे, तू शहद खा, क्यूँकि वह अच्छा है, और शहद का छत्ता भी क्यूँकि वह तुझे मीठा लगता है।14हिकमत भी तेरी जान के लिए ऐसी ही होगी; अगर वह तुझे मिल जाए तो तेरे लिए बदला होगा, और तेरी उम्मीद नहीं टूटेगी।15~ऐ शरीर, तू सादिक़ के घर की घात में न बैठना, उसकी आरामगाह को ग़ारत न करना;16क्यूँकि सादिक़ सात बार गिरता है और फिर उठ खड़ा होता है; लेकिन शरीर बला में गिर कर पड़ा ही रहता है।17~जब तेरा दुश्मन गिर पड़े तो ख़ुशी न करना, और जब वह पछाड़ खाए तो दिलशाद न होना।18~ऐसा न हो ख़ुदावन्द इसे देखकर नाराज़ हो, और अपना क़हर उस पर से उठा ले।19~तू बदकिरदारों की वजह से बेज़ार न हो, और शरीरों पे रश्क न कर;20क्यूँकि बदकिरदार के लिए कुछ बदला नहीं। शरीरों का चिराग़ बुझा दिया जाएगा।21~ऐ मेरे बेटे, ख़ुदावन्द से और बादशाह से डर; और मुफ़सिदों के साथ सुहबत न रख;22क्यूँकि उन पर अचानक आफ़त आएगी, और उन दोनों की तरफ़ से आने वाली हलाकत को कौन जानता है?23~ये भी 'अक़्लमंदों की~बातें हैं : 'अदालत में तरफ़दारी करना अच्छा नहीं।24~जो शरीर से कहता है तू सादिक़ है, लोग उस पर ला'नत करेंगे और उम्मतें उस से नफ़रत रख्खेंगी;25~लेकिन जो उसको डाँटते हैं ख़ुश होंगे, और उनकी बड़ी बरकत मिलेगी।26~जो हक़ बात कहता है, लबों पर बोसा देता है।27~अपना काम बाहर तैयार कर, उसे अपने लिए खेत में दुरूस्त कर ले; और उसके बा'द अपना घर बना।28~बेवजह अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ गावाही न देना, और अपने लबों से धोखा न देना।29~यूँ न कह, "मैं उससे वैसा ही करूंगा जैसा उसने मुझसे किया; मैं उस आदमी से उसके काम के मुताबिक़ सुलूक करूँगा।"30~मैं काहिल के खेत के और बे'अक़्ल के ताकिस्तान के पास से गुज़रा,31~और देखो, वह सब का सब काँटों से भरा था, और बिच्छू बूटी से ढका था; और उसकी संगीन दीवार गिराई गई थी।32~तब मैंने देखा और उस पर ख़ूब ग़ौर किया; हाँ, मैंने उस पर निगह की और 'इब्रत पाई।33~थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, ज़रा पड़े रहने को हाथ पर हाथ,34~इसी तरह तेरी मुफ़लिसी राहज़न की तरह, और तेरी तंगदस्ती हथियारबंद आदमी की तरह, आ पड़ेगी।
1~ये भी सुलेमान की अम्साल हैं; जिनकी शाह-ए-यहूदाह हिज़कियाह के लोगों ने नक़ल की थी:2ख़ुदा का जलाल राज़दारी में है, लेकिन बादशाहों का जलाल मुआ'मिलात की तफ़्तीश में।3~आसमान की ऊँचाई और ज़मीन की गहराई, और बादशाहों के दिल की इन्तिहा नहीं मिलती।4~चाँदी की मैल दूर करने से, सुनार के लिए बर्तन बन जाता है।5~शरीरों को बादशाह के सामने से दूर करने से, उसका तख़्त सदाक़त पर क़ायम हो जाएगा।6~बादशाह के सामने अपनी बड़ाई न करना, और बड़े आदमियों की जगह खड़ा न होना;7क्यूँकिये बेहतर है कि हाकिम के आमने-सामने जिसको तेरी आँखों ने देखा है, तुझ से कहा जाए, "आगे बढ़ कर बैठ। न कि तू पीछे हटा दिया जाए।8~झगड़ा करने में जल्दी न कर, आख़िरकार जब तेरा पड़ोसी तुझको ज़लील करे, तब तू क्या करेगा?9~तू~पड़ोसी~के साथ अपने दा'वे का ज़िक्र कर, लेकिन किसी दूसरे का~राज़ ~न खोल;10~ऐसा न हो जो कोई उसे सुने तुझे रुस्वा करे, और तेरी बदनामी होती रहे।11~बामौक़ा' बातें, रूपहली टोकरियों में सोने के सेब हैं।12~'अक़्लमंद मलामत करने वाले की बात, सुनने वाले के कान में सोने की बाली और कुन्दन का ज़ेवर है।13~वफ़ादार क़ासिद अपने भेजने वालों के लिए, ऐसा है जैसे फ़सल काटने के दिनों में बर्फ़ की ठंडक, क्यूँकि वह अपने मालिकों की जान को ताज़ा दम करता है।14~जो किसी झूटी लियाक़त पर फ़ख़्र करता है, वह बेबारिश बादल और हवा की तरह है।15~तहम्मुल करने से हाकिम राज़ी हो जाता है, और नर्म ज़बान हड्डी को भी तोड़ डालती है।16क्या तूने शहद पाया? तू इतना खा जितना तेरे लिए काफ़ी है। ऐसा न हो तू ज़्यादा खा जाए और उगल डाल्ले17अपने~पड़ोसी~के घर बार बार जाने से अपने पाँवों को रोक, ऐसा न हो कि वह दिक़ होकर तुझ से नफ़रत करे।18~जो अपने~पड़ोसी~के खिलाफ़ झूटी गवाही देता है वह गुर्ज़ और~तलवार और तेज़ तीर है।19~मुसीबत के वक़्त बेवफ़ा आदमी पर 'ऐतमाद, टूटा दाँत और उखड़ा पाँव है।20जो किसी ग़मगीन के सामने गीत गाता है, वह गोया जाड़े में किसी के कपड़े उतारता और सज्जी पर सिरका डालता है।21~अगर तेरा दुश्मन भूका हो तो उसे रोटी खिला, और अगर वह प्यासा हो तो उसे पानी पिला;22क्यूँकि तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा, और ख़ुदावन्द तुझ को बदला देगा।23उत्तरी हवा मेह को लाती है, और ग़ैबत गो ज़बान तुर्शरूई को।24~घर की छत पर एक कोने में रहना, झगड़ालू बीवी के साथ कुशादा मकान में रहने से बेहतर है।25~वह ख़ुशख़बरी जो दूर के मुल्क से आए, ऐसी है जैसे थके मांदे की जान के लिए ठंडा पानी।26~सादिक़ का शरीर के आगे गिरना, गोया गन्दा नाला और नापाक सोता है।27बहुत शहद खाना अच्छा नहीं, और अपनी बुज़ुर्गी का तालिब होना ज़ेबा नहीं है।28जो अपने नफ़्स पर ज़ाबित नहीं, वह बेफ़सील और मिस्मारशुदा शहर की तरह है।
1जिस तरह गर्मी के दिनों में बर्फ़ और दिरौ के वक्त बारिश, उसी तरह बेवक़ूफ़ को 'इज़्ज़त ज़ेब नहीं देती।2~जिस तरह गौरय्या आवारा फिरती और अबाबील उड़ती रहती है, उसी तरह बे वजह ला'नत बेमतलब है।3~घोड़े के लिए चाबुक और गधे के लिए लगाम, लेकिन बेवक़ूफ़ की पीठ के लिए छड़ी है।4~बेवक़ूफ़~को उसकी हिमाक़त के मुताबिक़ जवाब न दे, मबादा तू भी उसकी तरह हो जाए।5~बेवक़ूफ़~को उसकी हिमाक़त के मुताबिक जवाब दे, ऐसा न हो कि वह अपनी नज़र में 'अक़्लमंद ठहरे।6~जो~बेवक़ूफ़~के हाथ पैग़ाम भेजता है, अपने पाँव पर कुल्हाड़ा मारता~और नुक़सान का प्याला पीता है।7~जिस तरह लंगड़े की टाँग लड़खड़ाती है, उसी तरह~बेवक़ूफ़~के मुँह~में तमसील है।8~बेवक़ूफ़~की ता'ज़ीम करने वाला, गोया जवाहिर को पत्थरों के ढेर में रखता है।9~बेवक़ूफ़~के मुँह में तमसील, शराबी के हाथ में चुभने वाले काँटे की तरह है।10~जो~बेवक़ूफ़ों~और राहगुज़रों को मज़दूरी पर लगाता है, उस तीरंदाज़~की तरह है जो सबको ज़ख़्मी करता है।11~जिस तरह कुत्ता अपने उगले हुए को फिर खाता है, उसी तरह~बेवक़ूफ़~अपनी~बेवक़ूफ़ी~को दोहराता है।12~क्या तू उसको जो अपनी नज़र में 'अक़्लमंद है देखता है? उसके मुक़ाबिले में~बेवक़ूफ़~से ज़्यादा उम्मीद है।13~सुस्त आदमी कहता है, "राह में शेर है, शेर-ए-बबर गलियों में है!"14~जिस तरह दरवाज़ा अपनी चूलों पर फिरता है, उसी तरह सुस्त आदमी अपने बिस्तर पर करवट बदलता रहता है।15सुस्त आदमी अपना हाथ थाली में डालता है, और उसे फिर मुँह तक लाना उसको थका देता है।16~काहिल अपनी नज़र में 'अक़्लमंद है, बल्कि दलील लाने वाले सात शख्सों से बढ़ कर।17~जो रास्ता चलते हुए पराए झगड़े में दख़्ल देता है, उसकी तरह है जो कुत्ते को कान से पकड़ता है।18~जैसा वह दीवाना जो जलती लकड़ियाँ और मौत के तीर फेंकता है,19~वैसा ही वह शख़्स है जो अपने पड़ोसी को दग़ा देता है, और कहता है, "मैं तो दिल्लगी कर रहा था।"20~लकड़ी न होने से आग बुझ जाती है, इसलिए जहाँ चुगलख़ोर नहीं वहाँ झगड़ा मौकूफ़ हो जाता है।21~जैसे अंगारों पर कोयले और आग पर ईंधन है, वैसे ही झगड़ालू झगड़ा खड़ा करने के लिए है।22~चुगलख़ोरकी बातें लज़ीज़ निवाले हैं, और वह खूब हज़म हो जाती हैं।23उलफ़ती, लब बदख़्वाह दिल के साथ, उस ठीकरे की तरह है जिस पर खोटी चाँदी मेंढ़ी हो।24~कीनावर दिल में दग़ा रखता है, लेकिन अपनी बातों से छिपाता है;25~जब वह मीठी मीठी बातें करे तो उसका यक़ीन न कर, क्यूँकि उसके दिल में कमाल नफ़रत है।26अगरचे उसकी बदख़्वाही मक्र में छिपी है, तो भी उसकी बदी जमा'अत के आमने सामने खोल दी जाएगी।27~जो गढ़ा खोदता है, आप ही उसमें गिरेगा; और जो पत्थर ढलकाता है, वह पलटकर उसी पर पड़ेगा।28झूटी ज़बान उनका कीना रखती है जिनको उस ने घायल किया है, और चापलूस मुँह तबाही करता है।
1~कल की बारे में घमण्ड़ न कर, क्यूँकि तू नहीं जानता कि एक ही दिन में क्या होगा।2~ग़ैर तेरी सिताइश करे न कि तेरा ही मुँह, बेगाना करे न कि तेरे ही लब।3~पत्थर भारी है और रेत वज़नदार है, लेकिन बेवक़ूफ़ का झुंझलाना इन दोनों से गिरॉतर है।4~ग़ुस्सा ~सख़्त बेरहमी और क़हर सैलाब है, लेकिन जलन के सामने कौन खड़ा रह सकता है?5~छिपी मुहब्बत से, खुली मलामत बेहतर है।6जो ज़ख़्म दोस्त के हाथ से लगें वफ़ा से भरे है, लेकिन दुश्मन के बोसे बाइफ़्रात हैं।7आसूदा जान को शहद के छत्ते से भी नफ़रत है, लेकिन भूके के लिए हर एक कड़वी चीज़ मीठी है।8अपने मकान से आवारा इन्सान, उस चिड़िया की तरह है जो अपने आशियाने से भटक जाए।9जैसे तेल और इत्र से दिल को फ़रहत होती है, वैसे ही दोस्त की दिली मश्वरत की शीरीनी से।10अपने दोस्त और अपने बाप के दोस्त को छोड़ न दे, और अपनी मुसीबत के दिन अपने भाई के घर न जा; क्यूँकि पड़ोसी जो नज़दीक हो उस भाई से जो दूर हो बेहतर है।11~ऐ मेरे बेटे, 'अक़्लमंद बन और मेरे दिल को शाद कर, ताकि मैं अपने मलामत करने वाले को जवाब दे सकूं।12होशियार बला को देखकर छिप जाता है; लेकिन नादान बढ़े चले जाते और नुक़सान उठाते हैं।13जो बेगाने का ज़ामिन हो उसके कपड़े छीन ले, और जो अजनबी का ज़ामिन हो उससे कुछ गिरवी रख ले।14~जो सुबह सवेरे उठकर अपने दोस्त के लिए बलन्द आवाज़ से दु'आ-ए-ख़ैर करता है, उसके लिए यह ला'नत महसूब होगी।15~झड़ी के दिन का लगातार टपका, और झगड़ालू बीवी यकसाँ हैं;16~जो उसको रोकता है, हवा को रोकता है; और उसका दहना हाथ तेल को पकड़ता है।17~जिस तरह लोहा लोहे को तेज़ करता है, उसी तरह आदमी के दोस्त के चहरे की आब उसी से है।18~जो अंजीर के दरख़्त की निगहबानी करता है उसका मेवा खाएगा, और जो अपने आक़ा की खिदमत करता है 'इज़्ज़त पाएगा।19~जिस तरह पानी में चेहरा चेहरे से मुशाबह है, उसी तरह आदमी का दिल आदमी से।20~जिस तरह पाताल और हलाकत को आसूदगी नहीं, उसी तरह इन्सान की आँखे सेर नहीं होतीं।21~जैसे चाँदी के लिए कुठाली और सोने के लिए भट्टी है, वैसे ही आदमी के लिए उसकी ता'रीफ़ है।22~अगरचे तू बेवक़ूफ़ को अनाज के साथ उखली में डाल कर मूसल से कूटे, तोभी उसकी हिमाक़त उससे कभी जुदा ~न होगी।23~अपने रेवड़ों का हाल दरियाफ़त करने में दिल लगा, और अपने ग़ल्लों को अच्छी तरह से देख;24क्यूँकि दौलत हमेशा नहीं रहती; और क्या ताजवरी नसल-दर-नसल क़ायम रहती है?25~सूखी घास जमा' की जाती है, फिर सब्ज़ा नुमायाँ होता है; और पहाड़ों पर से चारा काट कर जमा' किया जाता है।26बरें तेरी परवरिश के लिए हैं, और बक़रियाँँ तेरे मैदानों की क़ीमत हैं,27और बकरियों का दूध तेरी और तेरे ख़ान्दान की खू़राक और तेरी लौंडियों की गुज़ारा के लिए काफ़ी है।
1~अगरचे कोई शरीर का पीछा न करे तोभी वह भागता है, लेकिन सादिक़ शेर-ए-बबर की तरह दिलेर है।2~मुल्क की ख़ताकारी की वजह से हाकिम बहुत से हैं, लेकिन साहिब-ए- 'इल्म-ओ-समझ से इन्तिज़ाम बहाल रहेगा।3~ग़रीब पर ज़ुल्म करने वाला कंगाल, मूसलाधार मेंह है जो एक 'अक़्लमंद भी नहीं छोड़ता।4शरी'अत को छोड़ने वाले, शरीरों की तारीफ़ करते हैं लेकिन शरी'अत पर 'अमल करनेवाले, उनका मुक़ाबला करते हैं5शरीर 'अद्ल से आगाह नहीं, लेकिन ख़ुदावन्द के तालिब सब कुछ समझते हैं।6~रास्तरौ ग़रीब, टेढ़ा आदमी दौलतमंद से बेहतर है।7~ता'लीम पर 'अमल करने वाला 'अक़्लमंद बेटा है, लेकिन फ़ुज़ूलख़र्चों का दोस्त अपने बाप को रुस्वा करता है।8~जो नाजाइज़ सूद और नफ़े' से अपनी दौलत बढ़ाता है, वह ग़रीबों पर रहम करने वाले के लिए जमा' करता है।9~जो कान फेर लेता है कि शरी'अत को न सुने, उसकी दु'आ भी नफ़रतअंगेज़ है।10~जो कोई सादिक़ को गुमराह करता है, ताकि वह बुरी राह पर चले, वह अपने गढ़े में आप ही गिरेगा; लेकिन कामिल लोग अच्छी चीज़ों के वारिस होंगे।11~मालदार अपनी नज़र में 'अक़्लमंद है, लेकिन 'अक्लमंद ग़रीब उसे परख लेता है।12~जब सादिक़ फ़तहयाब होते हैं, तो बड़ी धूमधाम होती है; लेकिन जब शरीर खड़े होते हैं, तो आदमी ढूँँडे नहीं मिलते।13~जो अपने गुनाहों को छिपाता है, कामयाब न होगा; लेकिन जो उनका इक़रार करके, उनको छोड़ देता है; उस पर रहमत होगी।14~मुबारक है वह आदमी जो सदा डरता रहता है, लेकिन जो अपने दिल को सख़्त करता है, मुसीबत में पड़ेगा।15गरीबों पर शरीर हाकिम, गरजते हुए शेर और शिकार के तालिब रीछ की तरह है।16बे'अक़्ल हाकिम भी बड़ा ज़ालिम है, लेकिन जो लालच से नफ़रत रखता है, उसकी 'उम्र दराज़ होगी।17जिसके सिर पर किसी का खू़न है, वह गढ़े की तरफ़ भागेगा, उसे कोई न रोके।18~जो रास्तरौ है रिहाई पाएगा, लेकिन टेढ़ा आदमी नागहान गिर पड़ेगा।19~जो अपनी ज़मीन में काश्तकारी करता है, रोटी से सेर होगा, लेकिन बेमतलब के पीछे चलने वाला बहुत कंगाल हो जाएगा।20~दियानतदार आदमी बरकतों से मा'मूर होगा, लेकिन जो दौलतमंद होने के लिए जल्दी करता है, बे सज़ा न छूटेगा।21~तरफ़दारी करना अच्छा नहीं; और न यह कि आदमी रोटी के टुकड़े के लिए गुनाह करे।22~तंग चश्म दौलत जमा' करने में जल्दी करता है, और यह नहीं जानता कि मुफ़लिसी उसे आ दबाएगा।23आदमी को सरज़निश करनेवाला आखिरकार, ज़बानी ख़ुशामद करनेवाले से ज़्यादा मक्बूल ठहरेगा।24~जो कोई अपने वालिदैन को लूटता हैऔर कहता है, कि यह गुनाह नहीं, वह गारतगर का साथी है।25जिसके दिल में लालच है वह झगड़ा खड़ा करता है, लेकिन जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है वह तारो-ताज़ा किया जाएगा।26~जो अपने ही दिल पर भरोसा रखता है, बेवक़ूफ़ है; लेकिन जो 'अक़्लमंदी से चलता है, रिहाई पाएगा।27जो ग़रीबों को देता है, मुहताज न होगा; लेकिन जो आँख चुराता है, बहुत मला'ऊन होगा।28जब शरीर खड़े होते हैं, तो आदमी ढूँडे नहीं मिलते, लेकिन जब वह फ़ना होते हैं, तो सादिक़ तरक़्क़ी करते हैं।
1~जो बार बार तम्बीह पाकर भी गर्दनकशी करता है, अचानक बर्बाद किया जाएगा, और उसका कोई चारा न होगा।2जब सादिक़ इकबालमंद होते हैं, तो लोग ख़ुश होते हैं ~लेकिन जब शरीर इख़्तियार पाते हैं तो लोग आहें भरते हैं।3~जो कोई हिकमत से उलफ़त रखता है, अपने बाप को ख़ुश करता है, लेकिन जो कस्बियों से सुहबत रखता है, अपना माल उड़ाता है।4~बादशाह 'अद्ल से अपनी ममलुकत को क़याम बख़्शता है लेकिन रिश्वत सितान उसको वीरान करता है।5~जो अपने पड़ोसी की ख़ुशामद करता है, उसके पाँव के लिए जाल बिछाता है।6बदकिरदार के गुनाह में फंदा है, लेकिन सादिक़ गाता और ख़ुशी करता है।7सादिक़ ग़रीबों के मु'आमिले का ख़याल रखता है, लेकिन शरीर में उसको जानने की लियाकत नहीं।8ठठ्टेबाज़ शहर में आग लगाते हैं, लेकिन 'अक़्लमंद क़हर को दूर कर देते हैं |9~अगर 'अक़्लमंद बेवक़ूफ़ से बहस करे, तो ख़्वाह वह क़हर करे ख़्वाह हँसे, कुछ इत्मिनान होगा।10~खू़ँरेज़ लोग कामिल आदमी से कीना रखते हैं, लेकिन रास्तकार उसकी जान बचाने का इरादा करते हैं।11~बेवक़ूफ़ अपना क़हर उगल देता है, लेकिन 'अक़्लमंद उसको रोकता और पी जाता है।12~अगर कोई हाकिम झूट पर कान लगाता है, तो उसके सब ख़ादिम शरीर हो जाते हैं।13~ग़रीब और ज़बरदस्त एक दूसरे से मिलते हैं, और ख़ुदावन्द दोनों की आँखे रोशन करता है।14~जो बादशाह ईमानदारी से गरीबों की 'अदालत करता है, उसका तख़्त हमेशा क़ायम रहता है।15~छड़ी और तम्बीह हिकमत बख़्शती हैं, लेकिन जो लड़का बेतरबियत छोड़ दिया जाता है, अपनी माँ को रुस्वा करेगा।16~जब शरीर कामयाब होते हैं, तो बदी ज़्यादा होती है; लेकिन सादिक़ उनकी तबाही देखेंगे।17~अपने बेटे की तरबियत कर;और वह तुझे आराम देगा, और तेरी जान को शादमान करेगा।18~जहाँ रोया नहीं वहाँ लोग बेकैद हो जाते हैं, लेकिन शरी'अत पर 'अमल करने वाला मुबारक है।19~नौकर बातों ही से नहीं सुधरता, क्यूँकि अगरचे वह समझता है तो भी परवा नहीं करता।20~क्या तू बेताम्मुल बोलने वाले को देखता है? उसके मुक़ाबले में बेवक़ूफ़ से ज़्यादा उम्मीद है।21~जो अपने घर के लड़के को लड़कपन से नाज़ में पालता है, वह आखिरकार उसका बेटा बन बैठेगा।22~क़हर आलूदा आदमी फ़ितना खड़ा करता है, और ग़ज़बनाक गुनाह में ज़ियादती करता है।23~आदमी का ग़ुरूर उसको पस्त करेगा, लेकिन जो दिल से फ़रोतन है 'इज़्ज़त ~हासिल करेगा।24~जो कोई चोर का शरीक होता है, अपनी जान से दुश्मनी रखता है; वह हल्फ़ उठाता है और हाल बयान नहीं करता ।25~इन्सान का डर फंदा है, लेकिन जो कोई खुदावन्द पर भरोसा करता है महफ़ूज़ रहेगा।26हाकिम की मेहरबानी के तालिब बहुत हैं, लेकिन इन्सान का फैसला खुदावन्द की तरफ़ से है।27~सादिक़ को बेइन्साफ़ से नफ़रत है, और शरीर को रास्तरौ से।
1~याक़ा के बेटे अजूर के पैग़ाम की बातें: उस आदमी ने इतीएल, हाँ इतीएलऔर उकाल से कहा: ।2यक़ीनन मैं हर एक इन्सान से ज़्यादा और इन्सान का सा समझ मुझ में नहीं3मैंने हिकमत नहीं सीखी और न मुझे उस क़ुद्दूस का 'इरफ़ान हासिल है।4~कौन आसमान पर चढ़ा और फिर नीचे उतरा? किसने हवा को अपनी मुट्ठी में जमा'कर लिया? किसने पानी की चादर में बाँधा? किसने ज़मीन की हदें ठहराई? अगर तू जानता है, तो बता उसका क्या नाम है, और उसके बेटे का क्या नाम है?5~ख़ुदा का हर एक बात पाक है, वह उनकी सिपर है जिनका भरोसा उस पर है।6~तू उसके कलाम में कुछ न बढ़ाना, ऐसा न हो वह तुझ को तम्बीह करे और तू झूटा ठहरे।7~मैंने तुझ से दो बातों की दरख़्वास्त की है, मेरे मरने से पहले उनको मुझ से दरेग न कर।8~बतालत और दरोग़गोई को मुझ से दूर कर दे; और मुझ को न कंगाल कर न दौलतमंद, मेरी ज़रूरत के मुताबिक़ मुझे रोज़ी दे।9~ऐसा न हो कि मैं सेर होकर इन्कार करूं और कहूँ, ख़ुदावन्द कौन है? या ऐसा न हो मुहताज होकर चोरी करूं, और अपने ख़ुदा के नाम की तकफ़ीर करूं ।10~ख़ादिम पर उसके आक़ा के सामने तोहमत न लगा, ऐसा न हो कि वह तुझ पर ला'नत करे, और तू मुजरिम ठहरे।11~एक नसल ऐसी है, जो अपने बाप पर ला'नत करती है और अपनी माँ को मुबारक नहीं कहती।12~एक नसल ऐसी है, जो अपनी निगाह में पाक है, लेकिन उसकी गंदगी उससे धोई नहीं गई।13~एक नसल ऐसी है, कि वाह वाह क्या ही बलन्द नज़र है, और उनकी पलकें ऊपर को उठी रहती हैं।14~एक नसल ऐसी है, जिसके दाँत तलवारें है, और डाढ़े छुरियाँ ताकि ज़मीन के ग़रीबों और बनी आदम के कंगालों को खा जाएँ।15~जोंक की दो बेटियाँ हैं, जो "दे दे" चिल्लाती हैं; तीन हैं जो कभी सेर नहीं होतीं, बल्कि चार हैं जो कभी "बस" नहीं कहतीं।16पाताल और बाँझ का रिहम, और ज़मीन जो सेराब नहीं हुई, और आग जो कभी "बस" नहीं कहती।17~वह आँख जो अपने बाप की हँसी करती है, और अपनी माँ की फ़रमाँबरदारी को हक़ीर जानती है, वादी के कौवे उसको उचक ले जाएँगे, और गिद्ध के बच्चे उसे खाएँगे।18~तीन चीज़े मेरे नज़दीक़ बहुत ही 'अजीब हैं, बल्कि चार हैं, जिनको मैं नहीं जानता:19~'उकाब की राह हवा में, और साँप की राह चटान पर, और जहाज़ की राह समन्दर में, और मर्द का चाल चलन जवान 'औरत के साथ।20~ज़ानिया की राह ऐसी ही है;वह खाती है और अपना मुँह पोंछती है, और कहती है, मैंने कुछ बुराई नहीं की।21~तीन चीज़ों से ज़मीन लरज़ाँ है; बल्कि चार हैं, जिनकी वह बर्दाश्त नहीं कर सकती:22गुलाम से जो बादशाही करने लगे, और बेवक़ूफ़ से जब उसका पेट भरे,23~और नामक़बूल 'औरत से जब वह ब्याही जाए, और लौंडी से जो अपनी बीबी की वारिस हो।24~चार हैं, जो ज़मीन पर ना चीज़ हैं, लेकिन बहुत 'अक़्लमंद हैं:25चीटियाँ कमज़ोर मख़लूक़ हैं, तौ भी गर्मी में अपने लिए ख़ुराक जमा' कर रखती हैं;26~और साफ़ान अगरचे नातवान मख़्लूक़ हैं, तो भी चटानों के बीच अपने घर बनाते हैं;27और टिड्डियाँ जिनका कोई बादशाह नहीं, तोभी वह परे बाँध कर निकलती हैं;28और छिपकली जो अपने हाथों से पकड़ती है, और तोभी शाही महलों में है।29~तीन ख़ुश रफ़्तार हैं, बल्कि चार जिनका चलना ख़ुश नुमा है:30~एक तो शेर-ए-बबर जो सब हैवानात में बहादुर है, और किसी को पीठ नहीं दिखाता:31~जंगली घोड़ा और बकरा, और बादशाह, जिसका सामना कोई न करे।32अगर तूने बेवक़ूफ़ी से अपने आपको बड़ा ठहराया है, या तूने कोई बुरा मन्सूबा बाँधा है, तो हाथ अपने मुँह पर रख।33क्यूँकि यक़ीनन दूध बिलोने से मक्खन निकलता है, और नाक मरोड़ने से लहू, इसी तरह क़हर भड़काने से फ़साद खड़ा होता है।
1लमविएल बादशाह के पैग़ाम की बातें जो उसकी माँ ने उसको सिखाई:2~ऐ मेरे बेटे, ऐ मेरे रिहम के बेटे, तुझे, जिसे मैंने नज़्रे ~माँग कर पाया क्या कहूँ?3अपनी क़ुव्वत 'औरतों को न दे, और अपनी राहें बादशाहों को बिगाड़ने वालियों की तरफ़ न निकाल।4~बादशाहों को ऐ लमविएल, बादशाहों को मयख़्वारी ज़ेबा नहीं, और शराब की तलाश हाकिमों को शायान नहीं।5~ऐसा न हो ~वह पीकर क़वानीन को भूल जाए, और किसी मज़लूम की हक़ तलफ़ी करें।6शराब उसको पिलाओ जो मरने पर है, और मय उसको जो तल्ख़~जान है7ताकि वह पिए और अपनी तंगदस्ती फ़रामोश करे, और अपनी तबाह हाली को फिर याद न करे8अपना मुँह गूँगे के लिए खोल उन सबकी वकालत को जो बेकस हैं।9~अपना मुँह खोल, रास्ती से फ़ैसलाकर, और ग़रीबों और मुहताजों का इन्साफ़ कर।10नेकोकार बीवी किसको मिलती है? क्यूँकि उसकी क़द्र मरजान से भी बहुत ज़्यादा है।11~उसके शौहर के दिल को उस पर भरोसा है, और उसे मुनाफ़े' की कमी न होगी।12~वह अपनी 'उम्र के तमाम दिनों में, उससे नेकी ही करेगी, बदी न करेगी।13वह ऊन और कतान ढूंडती है, और ख़ुशी के साथ अपने हाथों से काम करती है।14वह सौदागरों के जहाज़ों की तरह है, वह अपनी ख़ुराक दूर से ले आती है।15~वह रात ही को उठ बैठती है, और अपने घराने को खिलाती है, और अपनी लौंडियों को काम देती है।16वह किसी खेत की बारे में सोचती हैऔर उसे ख़रीद लेती है; और अपने हाथों के नफ़े' से ताकिस्तान लगाती है।17~वह मज़बूती से अपनी कमर बाँधती है, और अपने बाज़ुओं को मज़बूत करती है।18~वह अपनी सौदागरी को सूदमंद पाती है। रात को उसका चिराग़ नहीं बुझता।19~वह तकले पर अपने हाथ चलाती है, और उसके हाथ अटेरन पकड़ते हैं।20~वह ग़रीबों की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाती है, हाँ, वह अपने हाथ मोहताजों की तरफ़ बढ़ाती है।21~वह अपने घराने के लिए बर्फ़ से नहीं डरती, क्यूँकि उसके ख़ान्दान में हर एक सुर्ख पोश है।22~वह अपने लिए निगारीन बाला पोश बनाती है; उसकी पोशाक महीन कतानी और अर्गवानी है।23~उसका शौहर फाटक में मशहूर है, जब वह मुल्क के बुज़ुगों के साथ बैठता है।24~वह महीन कतानी कपड़े बनाकर बेचती है; और पटके सौदागरों के हवाले करती है।25~'इज़्ज़त और हुर्मत उसकी पोशाक हैं, और वह आइंदा दिनों पर हँसती है।26~उसके मुँह से हिकमत की बातें निकलती हैं, उसकी ज़बान पर शफ़क़त की ता'लीम है।27~वह अपने घराने पर बख़ूबी निगाह रखती है, और काहिली की रोटी नहीं खाती।28उसके बेटे उठते हैं और उसे मुबारक कहते हैं; उसका शौहर भी उसकी ता'रीफ़ करता है:29~"कि बहुतेरी बेटियों ने फ़ज़ीलत दिखाई है, लेकिन तू सब से आगे बढ़ गई।"30~हुस्न, धोका और जमाल बेसबात है, लेकिन वह 'औरत जो ख़ुदावन्द से डरती है, सतुदा होगी।31~उसकी मेहनत का बदला उसे दो, और उसके कामों से मजलिस में उसकी ता'रीफ़ हो।|
1शाह-ए-यरुशलीम दाऊद के बेटे वा'इज़ की बातें।2~"बेकार ही बेकार," वा'इज़ कहता है, "बेकार ही बेकार! सब कुछ बेकार है।"3~इन्सान को उस सारी मेहनत से जो वह दुनिया' में करता है, क्या हासिल है?4~एक नसल जाती है और दूसरी नसल आती है, लेकिन~ज़मीन हमेशा क़ायम रहती है।5~सूरज निकलता है और सूरज ढलता भी है, और अपने तुलू' की जगह को जल्द चला जाता है।6~हवा दख्खिन की तरफ़ चली जाती है और चक्कर खाकर उत्तर की तरफ़ फिरती है; ये हमेशा चक्कर मारती है, और अपनी गश्त के मुताबिक़ दौरा करती है।7~सब नदियाँ समन्दर में गिरती हैं, लेकिन समन्दर भर नहीं जाता; नदियाँ जहाँ से निकलती हैं उधर ही को फिर जाती हैं।8~सब चीजें मान्दगी से भरी हैं, आदमी इसका बयान नहीं कर सकता। आँख देखने से आसूदा नहीं होती, और कान सुनने से नहीं भरता।9~जो हुआ वही फिर होगा, और जो चीज़ बन चुकी है वही है जो बनाई जाएगी, और दुनिया में कोई चीज़ नई नहीं।10~क्या कोई चीज़ ऐसी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि देखो ये तो नई है? वह तो साबिक़ में हम से पहले के ज़मानों में मौजूद थी।11अगलों की कोई यादगार नहीं,और आनेवालों की अपने बा'द के लोगों के बीच कोई याद न होगी।12~मैं वा'इज़ यरुशलीम में बनी-इस्राईल का बा'दशाह था।13~और मैंने अपना दिल लगाया कि जो कुछ आसमान के नीचे किया जाता है, उस सब की तफ़्तीश-ओ-तहक़ीक़ करूँ। ख़ुदा ने बनी आदम को ये सख़्त दुख दिया है कि वह दुख़ दर्द में मुब्तिला रहें।14~मैंने सब कामों पर जो दुनिया में किए जाते हैं नज़र की; और देखो, ये सब कुछ बेकार और हवा की चरान है।15वह जो टेढ़ा है सीधा नहीं हो सकता, और नाक़िस का शुमार नहीं हो सकता।16~मैंने ये बात अपने दिल में कही, "देख, मैंने बड़ी तरक़्क़ी की बल्कि उन सभों से जो मुझ से पहले यरुशलीम में थे, ज़्यादा हिकमत हासिल की; हाँ, मेरा दिल हिकमत और दानिश में बड़ा कारदान हुआ।"17~लेकिन जब मैंने हिकमत के जानने और हिमाक़त-ओ-जहालत के समझने पर दिल लगाया, तो मा'लूम किया कि ये भी हवा की चरान है।18~क्यूँकि बहुत हिकमत में बहुत ग़म है,और 'इल्म में~तरक़्क़ी~दुख की ज़्यादती है।
1मैंने अपने दिल से कहा, "आ, मैं तुझ को ख़ुशी में आज़माऊँगा, इसलिए 'इश्रत कर ले," लो ये भी बेकार है।2मैंने हँसी को "दीवाना" कहा और ख़ुशी के बारे में कहा, "इससे क्या हासिल?"3~मैंने दिल में सोचा कि जिस्म को मयनोशी से क्यूँकर ताज़ा करूँ और अपने दिल को हिकमत की तरफ़ मायल रखूँ और क्यूँ कर हिमाक़त को पकड़े रहूँ, जब तक मा'लूम करूँ कि बनी आदम की बहबूदी किस बात में है कि वह आसमान के नीचे 'उम्र भर यही किया करे।4~मैंने बड़े-बड़े काम किए मैंने अपने लिए 'इमारतें बनाईं और मैंने अपने लिए ताकिस्तान लगाए।5~मैंने अपने लिए बाग़ीचे और बाग़ तैयार किए और उनमें हर क़िस्म के मेवादार दरख़्त लगाए।6मैंने अपने लिए तालाब बनाए कि उनमें से बाग़ के दरख़्तों का ज़ख़ीरा सींचूँ।7~मैंने ग़ुलामों और लौंडियों को ख़रीदा और नौकर-चाकर मेरे घर में पैदा हुए, और जितने मुझ से पहले यरुशलीम में थे मैं उनसे कहीं ज़्यादा गाय-बैल और भेड़-बकरियों का मालिक था।8~मैंने सोना और चाँदी और बा'दशाहों और सूबों का ख़ास ख़ज़ाना अपने लिए जमा' किया; मैंने गानेवालों और गाने वालियों को रख्खा और बनी आदम के अस्बाब-ए-'ऐश या'नी लौंडियों को अपने लिए कसरत से इकठ्ठा किया।9इसलिए मैं बुज़ुर्ग हुआ और उन सभों से जो मुझ से पहले यरुशलीम में थे ज़्यादा बढ़ गया। मेरी हिकमत भी मुझ में क़ायम रही।10~और सब कुछ जो मेरी आँखें चाहती थीं मैंने उनसे बाज़ न रख्खा। मैंने अपने दिल को किसी तरह की ख़ुशी से न रोका, क्यूँकि मेरा दिल मेरी सारी मेहनत से ख़ुश हुआ और मेरी सारी मेहनत से मेरा हिस्सा यही था।11फिर मैंने उन सब कामों पर जो मेरे हाथों ने किए थे, और उस मशक़्क़त पर जो मैंने काम करने में खींची थी, नज़र की और देखा कि सब बेकार और हवा की चरान है, और दुनिया में कुछ फ़ायदा नहीं।12और मैं हिकमत और दीवानगी और हिमाक़त के देखने पर मुतवज्जिह हुआ, क्यूँकि वह शख़्स जो बा'दशाह के बा'द आएगा क्या करेगा? वही जो होता चला आया है।13और मैंने देखा कि जैसी रोशनी को तारीकी पर फ़ज़ीलत है, वैसी ही हिकमत हिमाक़त से अफ़ज़ल है।14'अक़्लमन्द अपनी आँखें अपने सिर में रखता है, लेकिन बेवक़ूफ़ अंधेरे में चलता है; तोभी मैं जान गया कि एक ही हादसा उन सब पर गुज़रता है।15~तब मैंने दिल में कहा, 'जैसा बेवक़ूफ़ पर हादसा होता है, वैसा ही मुझ पर भी होगा; फिर मैं क्यूँ ज़्यादा 'अक़्लमन्द हुआ?" इसलिए मैंने दिल में कहा कि ये भी बेकार है।16क्यूँकि न 'अक़्लमन्द और न बेवक़ूफ़ की यादगार हमेशा तक रहेगी, इसलिए कि आने वाले दिनों में सब कुछ फ़रामोश हो चुकेगा और 'अक़्लमन्द क्यूँकर बेवक़ूफ़ की तरह मरता है!17~फिर मैं ज़िन्दगी से बेज़ार हुआ, क्यूँकि जो काम दुनिया में किया जाता है मुझे बहुत बुरा मा'लूम हुआ; क्यूँकि सब बेकार और हवा की चरान है।18~बल्कि मैं अपनी सारी मेहनत से जो दुनिया में की थी बेज़ार हुआ, क्यूँकि ज़रूर है कि मैं उसे उस आदमी के लिए जो मेरे बा'द आएगा छोड़ जाऊँ;19और कौन जानता है कि वह 'अक़्लमन्द होगा या बेवक़ूफ़? बहरहाल वह मेरी सारी मेहनत के काम पर, जो मैंने किया और जिसमें मैंने दुनिया में अपनी हिकमत ज़ाहिर की, ज़ाबित होगा। ये भी~बेकार~है।20~तब मैं फिरा कि अपने दिल को उस सारे काम से जो मैंने दुनिया' में किया था ना उम्मीद करूँ,21~क्यूँकि ऐसा शख़्स भी है, जिसके काम हिकमत और दानाई और कामयाबी के साथ हैं, लेकिन वह उनको दूसरे आदमी के लिए जिसने उनमे कुछ मेहनत नहीं की उसकी मीरास के लिए छोड़ जाएगा। ये भी~बेकार~और बला-ए-'अज़ीम है।22~क्यूँकि आदमी को उसकी सारी मशक़्क़त और जानफ़िशानी से, जो उसने दुनिया' में की क्या हासिल है?23क्यूँकि उसके लिए 'उम्र भर ग़म है, और उसकी मेहनत मातम हैं; बल्कि उसका दिल रात को भी आराम नहीं पाता। ये भी~बेकार~है।24फिर इन्सान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं कि वह खाए और पिए और अपनी सारी मेहनत के बीच ख़ुश होकर अपना जी बहलाए। मैंने देखा ये भी ख़ुदा के हाथ से है;25~इसलिए कि मुझ से ज़्यादा कौन खा सकता और कौन मज़ा उड़ा सकता है?26~क्यूँकि वह उस आदमी को जो उसके सामने अच्छा है, हिकमत और दानाई और ख़ुशी बख़्शता है; लेकिन गुनहगार को ज़हमत देता है कि वह जमा' करे और अम्बार लगाए, ताकि उसे दे जो ख़ुदा का पसंदीदा है। ये भी~बेकार~और हवा की चरान है।
1हर चीज़ का एक मौक़ा' और हर काम का ~जो आसमान के नीचे होता है एक वक़्त है।2पैदा होने का एक वक़्त है,और मर जाने का एक वक़्त है; दरख़्त लगाने का एक वक़्त है,और लगाए हुए को उखाड़ने का एक वक़्त है;3मार डालने का एक वक़्त है, और शिफ़ा देने का एक वक़्त है; ढाने का एक वक़्त है,और ता'मीर करने का एक वक़्त है;4~रोने का एक वक़्त है, और हँसने का एक वक़्त है; ग़म खाने का एक वक़्त है, और नाचने का एक वक़्त है;5~पत्थर फेंकने का एक वक़्त है, और पत्थर बटोरने का एक वक़्त है; एक साथ होने का एक वक़्त है, और एक साथ होने से बाज़ रहने का एक वक़्त है;6हासिल करने का एक वक़्त है, और खो देने का एक वक़्त है; रख छोड़ने का एक वक़्त है, और फेंक देने का एक वक़्त है;7~फाड़ने का एक वक़्त है, और सोने का एक वक़्त है; चुप रहने का एक वक़्त है, और बोलने का एक वक़्त है;8~मुहब्बत का एक वक़्त है, और 'अदावत का एक वक़्त है; जंग का एक वक़्त है,और सुलह का एक वक़्त है।9काम करनेवाले को उससे जिसमें वह मेहनत करता है, क्या हासिल होता है?10~मैंने उस सख़्त दुख को देखा, जो ख़ुदा ने बनी आदम को दिया है कि वह मशक्क़त में मुब्तिला रहें।11~उसने हर एक चीज़ को उसके वक़्त में खू़ब बनाया और उसने अबदियत को भी उनके दिल में जागुज़ीन किया है; इसलिए कि इन्सान उस काम को जो ख़ुदा शुरू' से आख़िर तक करता हैं दरियाफ़्त नहीं कर सकता।12~मैं यक़ीनन जानता हूँ कि इन्सान के लिए यही बेहतर है कि खु़श वक़्त हो, और जब तक ज़िन्दा रहे नेकी करे ;13और ये भी कि हर एक इन्सान खाए और पिए और अपनी सारी मेहनत से फ़ायदा उठाए: ये भी ख़ुदा की बख़्शिश है।14और मुझ को यक़ीन है कि सब कुछ जो ख़ुदा करता है हमेशा के लिए है;उसमे कुछ कमी बेशी ~नहीं हो सकती और ख़ुदा ने ये इसलिए किया है कि लोग उसके सामने डरते रहें।15~जो कुछ है वह पहले हो चुका; और जो कुछ होने को है, वह भी हो चुका; और ख़ुदा गुज़िश्ता को फिर तलब करता है।16~फिर मैंने दुनिया में देखा कि 'अदालतगाह में ज़ुल्म है, और सदाक़त के मकान में शरारत है।17~तब मैंने दिल मे कहा कि ~ख़ुदा रास्तबाज़ों और शरीरों की 'अदालत करेगा क्यूँकि हर एक अम्र और ~हर काम का एक वक़्त है।18~मैंने दिल में कहा कि "ये बनी आदम के लिए है कि ख़ुदा उनको जाँचे और वह समझ लें कि हम ख़ुद हैवान हैं।"19क्यूँकि जो कुछ बनी आदम पर गुज़रता है, वही हैवान पर गुज़रता है; एक ही हादसा दोनों पर गुज़रता है, जिस तरह ये मरता है उसी तरह वह मरता है। हाँ, सब में एक ही साँस है, और इन्सान को ~हैवान पर कुछ मर्तबा नहीं; क्यूँकि सब~बेकार~है।20~सब के सब एक ही जगह जाते हैं; सब के सब ख़ाक से हैं, और सब के सब फिर ख़ाक से जा मिलते हैं।21~कौन जानता है कि इन्सान की रूह ऊपर चढ़ती और हैवान की रूह ज़मीन की तरफ़ नीचे को जाती है?22~फिर मैंने देखा कि इन्सान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं कि वह अपने कारोबार में ख़ुश रहे, इसलिए कि उसका हिस्सा यही है; क्यूँकि कौन उसे वापस लाएगा कि जो कुछ उसके बा'द होगा देख ले?
1तब मैंने फिर कर उस तमाम ज़ुल्म पर, जो दुनिया में होता है नज़र की। और मज़लूमों के आँसूओं को देखा, और उनको तसल्ली देनेवाला कोई न था; और उन पर ज़ुल्म करनेवाले ज़बरदस्त थे, लेकिन उनको तसल्ली देनेवाला कोई न था।2~तब मैंने मुर्दों को जो आगे मर चुके, उन ज़िन्दों से जो अब जीते हैं ज़्यादा मुबारक जाना;3बल्कि दोनों से नेक बख़्त वह है जो अब तक हुआ ही नहीं, जिसने वह बुराई जो दुनिया' में होती है नहीं देखी।4~फिर मैंने सारी मेहनत के काम और हर एक अच्छी दस्तकारी को देखा कि इसकी वजह से आदमी अपने पड़ोसी से हसद करता है। ये भी~बेकार~और हवा की चरान~है।5~बे-दानिश अपने हाथ समेटता' है और आप ही अपना गोश्त खाता है।6एक मुट्ठी भर जो चैन के साथ हो, उन दो मुट्ठियों से बेहतर है जिनके साथ मेहनत और हवा की चरान हो |7और मैंने फिर कर दुनिया' के~बेकारी~को देखा :8~कोई अकेला है और उसके साथ कोई दूसरा नहीं; उसके न बेटा है न भाई, तोभी उसकी सारी मेहनत की इन्तिहा नहीं; और उसकी आँख दौलत से सेर नहीं होती; वह कहता है मैं किसके लिए मेहनत करता और अपनी जान को 'ऐश से महरूम रखता हूँ? ये भी~बेकार~है; हाँ,~ये सख़्त दुख है।9~एक से दो बेहतर हैं, क्यूँकि उनकी मेहनत से उनको बड़ा फ़ायदा होता है।10क्यूँकि अगर वह गिरें तो एक अपने साथी को उठाएगा; लेकिन उस पर अफ़सोस जो अकेला है जब वह गिरता है, क्यूँकि कोई दूसरा नहीं जो उसे उठा खड़ा करे।11फिर अगर दो इकट्ठे लेटें तो गर्म होते हैं, लेकिन अकेला क्यूँकर गर्म हो सकता है?12~और अगर कोई एक पर ग़ालिब हो तो दो उसका सामना कर सकते है और तिहरी डोरी जल्द नहीं टूटती।13~ग़रीब और 'अक़्लमन्द लड़का उस बूढ़े बेवक़ूफ़ बा'दशाह से, जिसने नसीहत सुनना छोड़ दिया बेहतर है;14~क्यूँकि वह कै़द ख़ाने से निकल कर बा'दशाही करने आया बावजूद ये कि वह जो सल्तनत ही में पैदा हुआ ग़रीब हो चला।15~मैंने सब ज़िन्दों को जो दुनिया' में चलते फिरते हैं देखा कि वह उस दूसरे जवान के साथ थे जो उसका जानशीन होने के लिए खड़ा हुआ।16~उन सब लोगों का या'नी उन सब का जिन पर वह हुक्मरान था कुछ शुमार न था, तोभी वह जो उसके बा'द उठेंगे उससे ख़ुश न होंगे। यक़ीनन ये भी~बेकार~और~हवा की चरान है।
1जब तू ख़ुदा के घर को जाता है तो संजीदगी से क़दम रख, क्यूँकि सुनने के लिए जाना बेवक़ूफ़ों के जैसे ज़बीहे पेश करने से बेहतर है, इसलिए कि वह नहीं समझते कि बुराई करते हैं।2~बोलने में जल्दबाज़ी न कर और तेरा दिल जल्दबाज़ी से ख़ुदा के सामने कुछ न कहे; क्यूँकि ख़ुदा आसमान पर है और तू ज़मीन पर, इसलिए तेरी बातें मुख़्तसर हों।3क्यूँकि काम की कसरत की वजह से ख़्वाब देखा जाता है और बेवक़ूफ़ की आवाज़ बातों की कसरत होती है।4~जब तू ख़ुदा के लिए मन्नत माने, तो उसके अदा करने में देर न कर; क्यूँकि वह बेवकूफ़ों से ख़ुश नहीं है। तू अपनी मन्नत को पूरा कर।5~तेरा मन्नत न मानना इससे बेहतर है कि तू मन्नत माने और अदा न करे।6~तेरा मुँह तेरे जिस्म को गुनहगार न बनाए, और फ़िरिश्ते के सामने मत कह कि भूल-चूक थी; ख़ुदा तेरी आवाज़ से क्यूँ बेज़ार हो और तेरे हाथों का काम बर्बा'द करे?7~क्यूँकि ख़्वाबों की ज़ियादिती और बतालत और बातों की कसरत से ऐसा होता है; लेकिन तू ख़ुदा से डर।8~अगर तू मुल्क में ग़रीबों को मज़लूम और अद्ल-ओ-इन्साफ़ को मतरुक देखे, तो इससे हैरान न हो; क्यूँकि एक बड़ों से बड़ा है जो निगाह करता है, और कोई इन सब से भी बड़ा है।9ज़मीन का हासिल सब के लिए है, बल्कि काश्तकारी से बा'दशाह का भी काम निकलता है।10~ज़रदोस्त रुपये से आसूदा न होगा, और दौलत का चाहनेवाला उसके बढ़ने से सेर न होगा : ये भी~बेकार~है।11जब माल की ज़्यादती होती है, तो उसके खानेवाले भी बहुत हो जाते हैं; और उसके मालिक को अलावा इसके कि उसे अपनी आँखों से देखे और क्या फ़ायदा है?12~मेहनती की नींद मीठी है, चाहे वह थोड़ा खाए चाहे बहुत; लेकिन दौलत की फ़िरावानी दौलतमन्द को सोने नहीं देती।13~एक बला-ए-'अज़ीम है जिसे मैंने दुनिया में देखा, या'नी दौलत जिसे उसका मालिक अपने नुक़सान के लिए रख छोड़ता है,14और वह माल किसी बुरे हादसे से बर्बा'द होता है, और अगर उसके घर में बेटा पैदा होता है तो उस वक़्त ~उसके हाथ में कुछ नहीं होता।15~जिस तरह से वह अपनी माँ के पेट से निकला उसी तरह नंगा जैसा कि आया था फिर जाएगा, और अपनी मेहनत की मज़दूरी में कुछ न पाएगा जिसे वह अपने हाथ में ले जाए।16~और ये भी बला-ए-'अज़ीम है कि ठीक जैसा वह आया था वैसा ही जाएगा, और उसे इस फ़ुज़ूल मेहनत से क्या हासिल है?17~वह 'उम्र भर बेचैनी में खाता है, और उसकी दिक़दारी और बेज़ारी और ख़फ़्गी की इन्तिहा नहीं|18लो! मैंने देखा कि ये खू़ब है, बल्कि ख़ुशनुमा है कि आदमी खाए और पिये और अपनी सारी मेहनत से जो वह दुनिया में करता है, अपनी तमाम 'उम्र जो ख़ुदा ने उसे बख़्शी है राहत उठाए; क्यूँकि उसका हिस्सा यही है।19~नीज़ हर एक आदमी जिसे ख़ुदा ने माल-ओ-अस्बाब बख़्शा, और उसे तौफ़ीक़ दी कि उसमें से खाए और अपना हिस्सा ले और अपनी मेहनत से ख़ुश रहे; ये तो ख़ुदा की बख़्शिश है।20फिर वह अपनी ज़िन्दगी के दिनों को बहुत याद न करेगा, इसलिए कि ख़ुदा उसकी ख़ुशदिली के मुताबिक़ उससे सुलूक करता है।
1एक ज़ुबूनी है जो मैंने दुनिया में देखी, और वह लोगों पर गिराँ है:2कोई ऐसा है कि ख़ुदा ने उसे धन दौलत और 'इज़्ज़त बख़्शी है, यहाँ तक कि उसकी किसी चीज़ की जिसे उसका जी चाहता है कमी नहीं; तोभी ख़ुदा ने उसे तौफ़ीक़ नहीं दी कि उससे खाए, बल्कि कोई अजनबी उसे खाता है। ये~बेकार~और सख़्त बीमारी है।3~अगर आदमी के सौ फ़र्ज़न्द हों, और वह बहुत बरसों तक जीता रहे यहाँ तक कि उसकी 'उम्र के दिन बेशुमार हों, लेकिन उसका जी ख़ुशी से सेर न हो और उसका दफ़न न हो, तो मैं कहता हूँ कि वह हमल जो गिर जाए उससे बेहतर है।4~क्यूँकि वह बतालत के साथ आया और तारीकी में जाता है, और उसका नाम अंधेरे में छिपा रहता है।5~उसने सूरज को भी न देखा, न किसी चीज़ को जाना, फिर वह उस दूसरे से ज़्यादा आराम में है।6~हाँ, अगरचे वह दो हज़ार बरस तक ज़िन्दा रहे और उसे कुछ राहत न हो। क्या सब के सब एक ही जगह नहीं जाते?7आदमी की सारी मेहनत उसके मुँह के लिए है, तोभी उसका जी नहीं भरता;8क्यूँकि 'अक़्लमन्द को बेवक़ूफ़ पर क्या फ़ज़ीलत है? और ग़रीब को जी ज़िन्दों के सामने चलना जानता है, क्या हासिल है?9आँखों से देख लेना आरज़ू की आवारगी से बेहतर है: ये भी~बेकार~और हवा की चरान है।10जो कुछ हुआ है उसका नाम ज़माना-ए-क़दीम में रख्खा गया, और ये भी मा'लूम है कि वह इन्सान है, और वह उसके साथ जो उससे ताक़तवर है झगड़ नहीं सकता।11~चूँकि बहुत सी चीज़ें हैं जिनसे~बेकार~बहुतायत होती है,~फिर इन्सान को क्या फ़ायदा है?12~क्यूँकि कौन जानता है कि इन्सान के लिए उसकी ज़िन्दगी में, या'नी उसकी बेकार ज़िन्दगी के तमाम दिनों में जिनको वह परछाई की तरह बसर करता है, कौन सी चीज़ फ़ाइदेमन्द है? क्यूँकि इन्सान को कौन बता सकता है कि उसके बा'द दुनिया में क्या वाके़' होगा ?
1नेक नामी बेशबहा 'इत्र से बेहतर है, और मरने का दिन पैदा होने के दिन से।2मातम के घर में जाना दावत के घर में दाख़िल होने से बेहतर है क्यूँकि सब लोगों का अन्जाम यही है, और जो ज़िन्दा है अपने दिल में इस पर सोचेगा।3~ग़मगीनी हँसी से बेहतर है,क्यूँकि चेहरे की उदासी से दिल सुधर जाता है।4दाना का दिल मातम के घर में है लेकिन बेवक़ूफ़ का जी 'इश्रतखाने से लगा है।5~इन्सान के लिए 'अक़्लमन्द की सरज़निश सुनना बेवकूफ़ों का राग सुनने से बेहतर है।6~जैसा हाँडी के नीचे काँटों का चटकना वैसा ही बेवकूफ़ का हँसना है; ये भी~बेकार~है।7यक़ीनन ज़ुल्म 'अक़्लमन्द आदमी को दीवाना बना देता है और रिश्वत 'अक़्ल ~को तबाह करती है।8~किसी बात का अन्जाम उसके आग़ाज़ से बेहतर है और बुर्दबार मुतकब्बिर मिज़ाज से अच्छा है।9~तू अपने जी में ख़फ़ा होने में जल्दी न कर, क्यूँकि ख़फ़्गी बेवक़ूफ़ों के सीनों में रहती है।10~तू ये न कह कि, "अगले दिन इनसे क्यूँकर बेहतर थे?" क्यूँकि तू 'अक़्लमन्दी से इस अम्र की तहक़ीक़ नहीं करता।11~हिकमत खू़बी में मीरास के बराबर है, और उनके लिए जो सूरज को देखते हैं ज़्यादा सूदमन्द है।12~क्यूँकि हिकमत वैसी ही पनाहगाह है जैसे रुपया, लेकिन 'इल्म की ख़ास खू़बी ये है कि हिकमत साहिब-ए-हिकमत की जान की मुहाफ़िज़ है।13ख़ुदा के काम पर ग़ौर कर, क्यूँकि कौन उस चीज़ को सीधा कर सकता है जिसको उसने टेढ़ा किया है?14~इक़बालमन्दी के दिन ख़ुशी में मशग़ूल हो, लेकिन मुसीबत के दिन में सोच; बल्कि ख़ुदा ने इसको उसके मुक़ाबिल बना रख्खा है, ताकि इन्सान अपने बा'द की किसी बात को दरियाफ़्त न कर सके।15~मैंने अपनी बेकारी के दिनों में ये सब कुछ देखा; कोई~रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी में मरता है, और कोई बदकिरदार अपनी बदकिरदारी में 'उम्रदराज़ी पाता है।16हद से ज़्यादा नेकोकार न हो, और हिकमत में 'एतदाल से बाहर न जा; इसकी क्या ज़रूरत है कि तू अपने आप को बर्बाद करे?17~हद से ज़्यादा बदकिरदार न हो, और बेवक़ूफ़ न बन; तू अपने वक़्त से पहले काहे को मरेगा?18अच्छा है कि तू इसको भी पकड़े रहे, और उस पर से भी हाथ न उठाए; क्यूँकि जो ख़ुदा तरस है इन सब से बच निकलेगा।19~हिकमत साहिब-ए-हिकमत को शहर के दस हाकिमों से ज़्यादा ताक़तवर बना देती है।20~क्यूँकि ज़मीन पर ऐसा कोई रास्तबाज़ इन्सान नहीं कि नेकी ही करे और ख़ता न करे।21नीज़ उन सब बातों के सुनने पर जो कही जाएँ कान न लगा, ऐसा न हो कि तू सुन ले कि तेरा नौकर तुझ पर ला'नत करता है;22क्यूँकि तू तो अपने दिल से जानता है कि तूने आप इसी तरह से औरों पर ला'नत की है23~मैंने हिकमत से ये सब कुछ आज़माया है। मैंने कहा, "मैं 'अक़्लमन्द बनूँगा," लेकिन वह मुझ से कहीं दूर थी।24~जो कुछ है सो दूर और बहुत गहरा है, उसे कौन पा सकता25~मैंने अपने दिल को मुतवज्जिह किया कि जानूँ और तफ़्तीश करूँ और हिकमत और ख़िरद को दरियाफ़्त करूँ और समझूँ कि बुराई हिमाक़त है और हिमाक़त दीवानगी |26~तब मैंने मौत से तल्ख़तर उस 'औरत को पाया, जिसका दिल फंदा और जाल है और जिसके हाथ हथकड़ियाँ हैं। जिससे ख़ुदा ख़ुश है वह उस से बच जाएगा, लेकिन गुनहगार उसका शिकार होगा।27~देख, वा'इज़ कहता है, मैंने एक दूसरे से मुक़ाबला करके ये दरियाफ़्त किया है |28~जिसकी मेरे दिल को अब तक तलाश है पर मिला नहीं। मैंने हज़ार में एक मर्द पाया, लेकिन उन सभों में 'औरत एक भी न मिली।29~लो मैंने सिर्फ़ इतना पाया कि ख़ुदा ने इन्सान को रास्त बनाया, लेकिन उन्होंने बहुत सी बन्दिशें तज्वीज़ कीं।
1'अक़्लमन्द के बराबर कौन है? और किसी बात की तफ़्सीर करना कौन जानता है? इन्सान की हिकमत उसके चेहरे को रोशन करती है, और उसके चेहरे की सख़्ती उससे बदल जाती है।2मैं तुझे सलाह देता हूँ कि तू बा'दशाह के हुक्म को ख़ुदा की क़सम की वजह से मानता रह।3~तू जल्दबाज़ी करके उसके सामने से ग़ायब न हो और किसी बुरी बात पर इसरार न कर, क्यूँकि वह जो कुछ चाहता है करता है।4~इसलिए कि बा'दशाह का हुक्म बाइख़्तियार है, और उससे कौन कहेगा कि तू ये क्या करता है?5जो कोई हुक्म मानता है, बुराई को न देखेगा और दानिशमंद का दिल मौक़े' और इन्साफ को समझता है|6~इसलिए कि हर अम्र का मौक़ा' और क़ायदा है, लेकिन इन्सान की मुसीबत उस पर भारी है।7~क्यूँकि जो कुछ होगा उसको मा'लूम नहीं, और कौन उसे बता सकता है कि क्यूँकर होगा?8~किसी आदमी को रूह पर इख़्तियार नहीं कि उसे रोक सके, और मरने का दिन भी उसके इख़्तियार से बाहर है; और उस लड़ाई से छुट्टी नहीं मिलतीऔर न शरारत उसको~जो उसमे~ग़र्क़ हैं छुड़ाएगी9~ये सब मैंने देखा और अपना दिल सारे काम पर जो दुनिया' में किया जाता है लगाया। ऐसा वक़्त है जिसमें एक शख़्स दूसरे पर हुकूमत करके अपने ऊपर बला लाता है।10इसके 'अलावा मैंने देखा कि शरीर गाड़े गए, और लोग भी आए और रास्तबाज़ पाक मक़ाम से निकले और अपने शहर में फ़रामोश हो गए; ये भी~बेकारहै।11~क्यूँकि बुरे काम पर सज़ा का हुक्म फ़ौरन नहीं दिया जाता, इसलिए बनी आदम का दिल उनमें बुराई पर बाशिद्दत मायल है।12अगरचे गुनहगार सौ बार बुराई करें और उसकी 'उम्रदराज़ हो, तोभी मैं यक़ीनन जानता हूँ कि उन ही का भला होगा जो ख़ुदा तरस हैं और उसके सामने काँपते हैं;13लेकिन गुनहगार का भला कभी न होगा, और न वह अपने दिनों को साये की तरह बढ़ाएगा, इसलिए कि वह ख़ुदा के सामने काँपता नहीं।14~एक~बेकार~है जो ज़मीन पर वकू' में आती है, कि~नेकोकार लोग हैं जिनको वह कुछ पेश आता है जो चाहिए था कि बदकिरदारों को पेश आता; और शरीर लोग हैं जिनको वह कुछ मिलता है, जो चाहिये था कि नेकोकारों को मिलता। मैंने कहा कि ये भी~बेकार~है।15तब मैंने ख़ुर्रमी की ता'रीफ़ की, क्यूँकि दुनिया' में इन्सान के लिए कोई चीज़ इससे बेहतर नहीं कि खाए और पिए और ख़ुश रहे, क्यूँकि ये उसकी मेहनत के दौरान में उसकी ज़िन्दगी के तमाम दिनों में जो ख़ुदा ने दुनिया में उसे बख़्शी उसके साथ रहेगी।16~जब मैंने अपना दिल लगाया कि हिकमत सीखूँ और उस कामकाज को जो ज़मीन पर किया जाता है देखूँ (क्यूँकि कोई ऐसा भी है जिसकी आँखों में न रात को नींद आती है न दिन को)।17~तब मैंने ख़ुदा के सारे काम पर निगाह की और जाना कि इन्सान उस काम को, जो दुनिया में किया जाता है, दरियाफ़्त नहीं कर सकता। अगरचे इन्सान कितनी ही मेहनत से उसकी तलाश करे, लेकिन कुछ दरियाफ़्त न करेगा; बल्कि हर तरह 'अक़्लमन्द को गुमान हो कि उसको मा'लूम कर लेगा, लेकिन वह कभी उसको दरियाफ़्त नहीं कर सकेगा।
1इन सब बातों पर मैंने दिल से ग़ौर किया और सब हाल की तफ़्तीश की, और मा'लूम हुआ कि सादिक़ और 'अक़्लमन्द और उनके काम ख़ुदा के हाथ में हैं; सब कुछ इन्सान के सामने है, लेकिन वह न मुहब्बत जानता है न 'अदावत।2~सब कुछ सब पर एक जैसा गुज़रता है, सादिक़ और शरीर पर, नेकोकार, और पाक और नापाक पर, उस पर जो कु़र्बानी पेश करता है और उस पर जो क़ुर्बानी नहीं पेश करता एक ही हादसा वाक़े' होता है। जैसा नेकोकार है, वैसा ही गुनहगार है; जैसा वह जो क़सम खाता है, वैसा ही वह जो क़सम से डरता है।3~सब चीज़ों में जो दुनिया में होती हैं एक जुबूनी ये है कि एक ही हादसा सब पर गुज़रता है; हाँ, बनी आदम का दिल भी शरारत से भरा है, और जब तक वह जीते हैं हिमाक़त उनके दिल में रहती है, और इसके बा'द मुर्दों में शामिल होते हैं।4चूँकि जो ज़िन्दों के साथ है उसके लिए उम्मीद है, इसलिए ज़िन्दा कुत्ता मुर्दा शेर से बेहतर है।5~क्यूँकि ज़िन्दा जानते हैं कि वह मरेंगे, लेकिन मुर्दे कुछ भी नहीं जानते और उनके लिए और कुछ अज्र नहीं क्यूँकि उनकी याद जाती रही है ।6~अब उनकी मुहब्बत और 'अदावत-ओ-हसद सब हलाक हो गए, और ता हमेशा उन सब कामों में जो दुनिया में किए जाते हैं, उनका कोई हिस्सा ~नहीं।7अपनी राह चला जा, ख़ुशी से अपनी रोटी खा और ख़ुशदिली से अपनी मय पी; ~क्यूँकि ख़ुदा तेरे 'आमाल को क़ुबूल कर चुका है।8~तेरा लिबास हमेशा सफ़ेद हो, और तेरा सिर चिकनाहट से ख़ाली न रहे।9अपनी~बेकार~की ज़िन्दगी के सब दिन जो उसने दुनिया में~तुझे बख़्शी है, हाँ, अपनी~बेकारी~के सब दिन, उस~बीवी के साथ जो तेरी प्यारी है 'ऐश कर ले कि इस ज़िन्दगी में और तेरी उस मेहनत के दौरान में जो तू ने दुनिया में की तेरा यही हिस्सा है।10~जो काम तेरा हाथ करने को पाए उसे मक़दूर भर कर क्यूँकि पाताल में जहाँ तू जाता है न काम है न मन्सूबा, न 'इल्म न हिकमत |11~फिर मैंने तवज्जुह की और देखा कि दुनिया' में न तो दौड़ में तेज़ रफ़्तार को सबक़त है न जंग में ज़ोरआवर को फ़तह, और न रोटी 'अक़्लमन्द को मिलती है न दौलत 'अक़्लमन्दों को, और न 'इज़्ज़त 'अक़्ल वालों को; बल्कि उन सब के लिए वक़्त और हादिसा है।12~क्यूँकि इन्सान अपना वक़्त भी नहीं पहचानता; जिस तरह मछलियाँ जो मुसीबत के जाल में गिरफ़्तार होती हैं, और जिस तरह चिड़ियाँ फंदे में फसाई जाती है उसी तरह बनी आदम भी बदबख़्ती में, जब अचानक उन पर आ पड़ती है, फँस जाते हैं।13~मैंने ये भी देखा कि दुनिया में हिकमत है और ये मुझे बड़ी चीज़ मा'लूम हुई।14~एक छोटा शहर था और उसमें थोड़े से लोग थे, उस पर एक बड़ा बा'दशाह चढ़ आया और उसका घिराव किया और उसके मुक़ाबिल बड़े-बड़े दमदमे बाँधे।15~मगर उस शहर में एक कंगाल 'अक़्लमन्द मर्द पाया गया और उसने अपनी हिकमत से उस शहर को बचा लिया, तोभी किसी शख़्स ने इस ग़रीब मर्द को याद न किया।16तब मैंने कहा कि हिकमत ज़ोर से बेहतर है; तोभी ग़रीब की हिकमत की तहक़ीर होती है, और उसकी बातें सुनी नहीं जातीं।17~'अक़्लमन्दों की बातें जो आहिस्तगी से कही जाती हैं, बेवक़ूफ़ों के सरदार के शोर से ज़्यादा सुनी जाती है|18हिकमत लड़ाई के ~हथियारों से बेहतर है, लेकिन एक गुनहगार बहुत सी नेकी को बर्बा'द कर देता है ।
1मुर्दा मक्खियाँ 'अत्तार के 'इत्र को बदबूदार कर देती हैं, और थोड़ी सी हिमाक़त हिकमत-ओ-'इज्ज़त को मात कर देती है।2~'अक़्लमन्द का दिल उसके दहने हाथ है, लेकिन बेवक़ूफ़ का दिल उसकी बाईं तरफ़।3~हाँ, बेवक़ूफ़ जब राह चलता है तो उसकी अक़्ल उड़ जाती है और वह सब से कहता है कि मैं बेवकूफ़ हूँ।4~अगर हाकिम तुझ पर क़हर करे तो अपनी जगह न छोड़, क्यूँकि बर्दाश्त बड़े बड़े गुनाहों को दबा देती है।5~एक ज़ुबूनी है जो मैंने दुनिया में देखी, जैसे वह एक ख़ता है जो हाकिम से सरज़द होती है।6~हिमाक़त बालानशीन होती है, लेकिन दौलतमंद नीचे बैठते हैं।7~मैंने देखा कि नौकर घोड़ों पर सवार होकर फिरते हैं, और सरदार नौकरों की तरह ज़मीन पर पैदल चलते हैं।8गढ़ा खोदने वाला उसी में गिरेगा और दीवार में रख़ना करने वाले को साँप डसेगा।9~जो कोई पत्थरों को काटता है उनसे चोट खाएगा और जो लकड़ी चीरता है उससे ख़तरे में है।10अगर कुल्हाड़ा कुन्द हैं और आदमी धार तेज़ न करे तो बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है, लेकिन हिकमत हिदायत के लिए मुफ़ीद है।11~अगर साँप ने अफ़सून से पहले डसा है तो अफ़सूँनगर को कुछ फ़ायदा न होगा।12'अक़्लमन्द के मुँह की बातें लतीफ़ हैं लेकिन बेवक़ूफ़ के होंट उसी को निगल जाते हैं।13~उसके मुँह की बातों की इब्तिदा हिमाक़त है और उसकी बातों की इन्तिहा फ़ितनाअंगेज़ अबलही।14बेवक़ूफ़ भी बहुत सी बातें बनाता है लेकिन आदमी नहीं बता सकता है कि क्या होगा और जो कुछ उसके बा'द होगा उसे कौन समझा सकता है?15बेवक़ूफ़ों की मेहनत उसे थकाती है, क्यूँकि वह शहर को जाना भी नहीं जानता।16~ऐ ममलुकत तुझ पर अफ़सोस, जब नाबालिग़ तेरा बा'दशाह हो और तेरे सरदार सुबह को खाएँ।17~नेकबख़्त है तू ऐ सरज़मीन जब तेरा बा'दशाह शरीफ़ज़ादा हो और तेरे सरदार मुनासिब वक़्त पर तवानाई के लिए खाएँ और न इसलिए कि बदमस्त हों।18~काहिली की वजह से कड़ियाँ झुक जाती हैं, और हाथों के ढीले होने से छत टपकती है।19~हँसने के लिए लोग दावत करते हैं, और मय जान को ख़ुश करती है, और रुपये से सब मक़सद पूरे होते हैं।20~तू अपने दिल में भी बा'दशाह पर ला'नत न कर और अपनी ख़्वाबगाह में भी मालदार पर ला'नत न कर क्यूँकि हवाई चिड़िया बात को ले उड़ेगी और परदार उसको खोल देगा।
1अपनी रोटी पानी में डाल दे क्यूँकि तू बहुत दिनों के बा'द उसे पाएगा।2~सात को बल्कि आठ को हिस्सा दे क्यूँकि तू नहीं जानता कि ज़मीन पर क्या बला आएगी।3~जब बादल पानी से भरे होते हैं तो ज़मीन पर बरस कर ख़ाली हो जाते हैं और अगर दरख़्त दख्खिन की तरफ़ या उत्तर की तरफ़ गिरे तो जहाँ दरख़्त गिरता है वहीं पड़ा रहता है।4जो हवा का रुख़ देखता रहता है वह बोता नहीं और जो बा'दलों को देखता है वह काटता नहीं।5~जैसा तू नहीं जानता है कि हवा की क्या राह है और हामिला के रिहम में हड्डियाँ क्यूँकर बढ़ती हैं, वैसा ही तू ख़ुदा के कामों को जो सब कुछ करता है नहीं जानेगा।6~सुबह को अपना बीज बो और शाम को भी अपना हाथ ढीला न होने दे, क्यूँकि तू नहीं जानता कि उनमें से कौन सा कामयाब होगा, ये या वह या दोनों के दोनों बराबर कामयाब होंगे।7नूर शीरीन है और आफ़ताब को देखना आँखों को अच्छा लगता है।8~हाँ, अगर आदमी बरसों ज़िन्दा रहे, तो उनमें ख़ुशी करे; लेकिन तारीकी के दिनों को याद रख्खे, क्यूँकि वह बहुत होंगे। सब कुछ जो आता है~बेकार~है।9~ऐ जवान, तू अपनी जवानी में ख़ुश हो, और उसके दिनों में अपना जी बहला। और अपने दिल की राहों में, और अपनी आँखों की मन्ज़ूरी में चल। लेकिन याद रख~कि इन सब बातों के लिए ख़ुदा तुझ को 'अदालत में लाएगा।10फिर ग़म को अपने दिल से दूर कर, और बुराई अपने जिस्म से निकाल डाल; क्यूँकि लड़कपन और जवानी दोनों बेकार हैं।
1और अपनी जवानी के दिनों में अपने ख़ालिक़ को याद कर, जब कि बुरे दिन हुनूज़ नहीं आए और वह बरस नज़दीक नहीं हुए, जिनमें तू कहेगा कि इनसे मुझे कुछ ख़ुशी नहीं।2~जब कि हुनूज़ सूरज और रोशनी चाँद सितारे तारीक नहीं हुए, और बा'दल बारिश के बा'द फिर जमा' नहीं हुए;3~जिस रोज़ घर के निगाहबान थरथराने लगे और ताक़तवर लोग कुबड़े हो जाएँ और पीसने वालियाँ रुक जाएँ इसलिए कि वह थोड़ी सी हैं, और वह जो खिड़कियों से झाँकती हैं धुंदला जाए,4~और गली के किवाड़े बन्द हो जाएँ, जब चक्की की आवाज़ धीमी हो जाए और इन्सान चिड़िया की आवाज़ से चौंक उठे, और नग़मे की सब बेटियाँ ज़ईफ़ हो जाएँ।5~हाँ, जब वह चढ़ाई से भी डर जाए और दहशत राह में हो, और बा'दाम के फूल निकलें और टिड्डी एक बोझ मा'लूम हो, और ख़्वाहिश मिट जाए क्यूँकि इन्सान अपने हमेशा के मकान में चला जायेगा और मातम करने वाले गली गली फिरेंगें |6~पहले इससे कि चाँदी की डोरी खोली जाए,और सोने की कटोरी तोड़ी जाए और घड़ा चश्मे पर फोड़ा जाए, और हौज़ का चर्ख़ टूट जाए,7~और ख़ाक-ख़ाक से जा मिले जिस तरह आगे मिली हुई थी, और रूह ख़ुदा के पास जिसने उसे दिया था वापस जाए।8बेकार ही बेकार वा'इज़ कहता है, सब कुछ बेकार है।9ग़रज़ अज़बस की वा'इज़ 'अक़्लमन्द था, उसने लोगों को तालीम दी; हाँ, उसने बख़ूबी ग़ौर किया और ख़ूब तजवीज़ की और बहुत सी मसलें क़रीने से बयान कीं।10~वा'इज़ दिल आवेज़ बातों की तलाश में रहा, उन सच्ची बातों की जो रास्ती से लिखी गई।11~'अक़्लमन्द की बातें पैनों की तरह हैं, और उन खूँटियों की तरह जो साहिबान-ए-मजलिस ने लगाई हों, और जो एक ही चरवाहे की तरफ़ से मिली हों।12~इसलिए अब ऐ मेरे बेटे, इनसे नसीहत पज़ीर हो, बहुत किताबे बनाने की इन्तिहा नहीं है और बहुत पढ़ना जिस्म को थकाता है।13~अब सब कुछ सुनाया गया; हासिल-ए-कलाम ये है: ख़ुदा से डर और उसके हुक्मों को मान कि इन्सान का फ़र्ज़-ए-कुल्ली यही है।14~क्यूँकि ख़ुदा हर एक फ़े'ल को हर एक पोशीदा चीज़ के साथ, चाहे भली हो चाहे बुरी, 'अदालत में लाएगा।
1~सुलेमान की ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात।2~वह अपने मुँह के लबों से मुझे चूमे, क्यूँकि तेरा इश्क़ मय से बेहतर है।3~तेरे 'इत्र की खु़श्बू ख़ुशगवार है तेरा नाम 'इत्र रेख़्ता है; इसीलिए कुँवारियाँ तुझ पर 'आशिक़ हैं।4~मुझे खींच ले, हम तेरे पीछे दौड़ेंगी।~बादशाह मुझे अपने महल में ले आया।~हम तुझ में शादमान और मसरूर होंगी, हम तेरे 'इश्क़ का बयान मय से ज़्यादा करेंगी। वह सच्चे दिल से तुझ पर 'आशिक़ हैं।5~ऐ यरूशलीम की बेटियो, मैं सियाहफ़ाम लेकिन खू़बसूरत हूँ क़ीदार के खे़मों और सुलेमान के पर्दों की तरह।6~मुझे मत देखो कि मैं सियाहफ़ाम हूँ, क्यूँकि मैं धूप की जली हूँ।” मेरी माँ के बेटे मुझ से नाख़ुश थे, उन्होंने मुझ से खजूर के बाग़ों की निगाहबानी कराई; लेकिन मैंने अपने खजूर के बाग़ की निगहबानी नहीं की7~ऐ मेरी जान के प्यारे! मुझे बता, तू अपने ग़ल्ले को कहाँ चराता है, और दोपहर के वक़्त कहाँ बिठाता है? क्यूँकि मैं तेरे दोस्तों के ग़ल्लों के पास क्यूँ मारी-मारी फिरूँ?8~ऐ 'औरतों में सब से ख़ूबसूरत, अगर तू नहीं जानती तो ग़ल्ले के नक़्श-ए-क़दम पर चली जा, और अपने बुज़ग़ालों को चरवाहों के खे़मों के पास पास चरा।9~ऐ मेरी प्यारी, मैंने तुझे फ़िर'औन के रथ की घोड़ियों में से एक के साथ मिसाल दी है।10~तेरे गाल लगातार जु़ल्फ़ों में खु़शनुमाँ हैं, और तेरी गर्दन मोतियों के हारों में।11हम तेरे लिए सोने के तौक़ बनाएँगे, और उनमें चाँदी के फूल जड़ेंगे।12~जब तक बादशाह तनावुल फ़रमाता रहा, मेरे सुम्बुल की महक उड़ती रही।13~मेरा महबूब मेरे लिए दस्ता-ए-मुर है, जो रात भर मेरी सीने के बीच पड़ा रहता है।14~मेरा महबूब मेरे लिए ऐनजदी के अंगूरिस्तान से मेहन्दी के फूलों का गुच्छा है।15~देख, तू खू़बसूरत है ऐ मेरी प्यारी, देख तू ख़ूबसूरत है। तेरी आँखें दो कबूतर हैं।16~देख, तू ही खू़बसूरत है ऐ मेरे महबूब, बल्कि दिल पसन्द है;हमारा पलंग भी सब्ज़ है।17~हमारे घर के शहतीर देवदार के और हमारी कड़ियाँ सनोबर की हैं।
1मैं शारून की नर्गिस, और वादियों की सोसन हूँ।2~जैसी सोसन झाड़ियों में, वैसी ही मेरी महबूबा कुँँवारियों में है।3जैसा सेब का दरख़्त जंगल के दरख़्तों में, वैसा ही मेरा महबूब नौजवानों में है। मैं निहायत शादमानी से उसके साये में बैठी, और उसका फल मेरे मुँह में मीठा लगा।4~वह मुझे मयख़ाने के अंदर लाया, और उसकी मुहब्बत का झंडा मेरे ऊपर था|5~किशमिश से मुझे क़रार दो, सेबों से मुझे ताज़ादम करो, क्यूँकि मैं 'इश्क की बीमार हूँ।6~उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे है, और उसका दहना हाथ मुझे गले से लगाता है।7~ऐ यरूशलीम की बेटियो, मैं तुम को ग़ज़ालों और मैदान की हिरनियों की क़सम देती हूँ ~तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।8~मेरे महबूब की आवाज़! देख, वह आ रहा है। पहाड़ों पर से कूदता और टीलों पर से फाँदता हुआ चला आता है।9~मेरा महबूब आहू या जवान हिरन की तरह है। देख, वह हमारी दीवार के पीछे खड़ा है, वह खिड़कियों से झाँकता है, वह झाड़ियों से ताकता है।10~मेरे महबूब ने मुझ से बातें कीं और कहा, "उठ मेरी प्यारी, मेरी नाज़नीन चली आ!11~क्यूँकि देख जाड़ा गुज़र गया, मेंह बरस चुका और निकल गया।12~ज़मीन पर फूलों की बहार है, परिन्दों के चहचहाने का वक़्त आ पहुँचा, और हमारी सरज़मीन में कुमरियों की आवाज़ सुनाई देने लगी।13~अंजीर के दरख़्तों में हरे अंजीर पकने लगे, और ताकें फूलने लगीं; उनकी महक फैल रही है। इसलिए उठ मेरी प्यारी, मेरी जमीला, चली आ।14~ऐ मेरी कबूतरी, जो चट्टानों की दरारों में और कड़ाड़ों की आड़ में छिपी है; मुझे अपना चेहरा दिखा, मुझे अपनी आवाज़ सुना, क्यूँकि तू माहजबीन और तेरी आवाज़ मीठी है।15~हमारे लिए लोमड़ियों को पकड़ो, उन लोमड़ी बच्चों को जो खजूर के बाग़ को ख़राब करते हैं; क्यूँकि हमारी ताकों में फूल लगे हैं।"16~मेरा महबूब मेरा है और मैं उसकी हूँ, वह सोसनों के बीच ~चराता है।17जब तक दिन ढले और साया बढ़े, तू फिर आ ऐ मेरे महबूब। तू ग़ज़ाल या जवान हिरन की तरह होकर आ, जो बातर के पहाड़ों पर है।
1~मैंने रात को अपने ~पलंग पर उसे ढूँँडा जो मेरी जान का प्यारा है;मैंने उसे ढूँडा पर न पाया।2~अब मैं उठूँगी और शहर में फिरूँगी, गलियों में और बाज़ारों में, उसको ढूँडूंगी जो मेरी जान का प्यारा है।मैंने उसे ढूँडा पर न पाया।3~पहरेवाले जो शहर में फिरते हैं मुझे मिले। मैंने पूछा, "क्या तुम ने उसे देखा है, जो मेरी जान का प्यारा है?”4~अभी मैं उनसे थोड़ा ही आगे बढ़ी थी, कि मेरी जान का प्यारा मुझे मिल गया। मैंने उसे पकड़ रख्खा और उसे न छोड़ा; जब तक कि मैं उसे अपनी माँ के घर में और अपनी वालिदा के आरामगाह में न ले गई।5~ऐ यरूशलीम की बेटियो, मैं तुम को ग़ज़ालों और मैदान की हिरनियों की क़सम देती हूँ कि तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।6~यह~कौन है जो मुर और लुबान से और सौदागरों के तमाम 'इत्रों से मु'अत्तर होकर, बियाबान से धुंवे के खम्बे की तरह चला आता है।7देखो, यह सुलेमान की पालकी है! जिसके साथ इस्राईली बहादुरों में से साठ पहलवान हैं।8~वह सब के सब शमशीरज़न और जंग में माहिर हैं। रात के ख़तरे की वजह से हर एक की तलवार उसकी रान पर लटक रही है।9~सुलेमान बादशाह ने लुबनान की लकड़ियों से. अपने लिए एक पालकी बनवाई।10~उसके डंडे चाँदी के बनवाए, उसके बैठने की जगह सोने की और गद्दीअर्ग़वानी बनवाई; और उसके अंदर का फ़र्श, यरूशलीम की बेटियों ने 'इश्क़ से आरास्ता किया।11~ऐ सिय्यून की बेटियो, बाहर निकलो और सुलेमान बादशाह को देखो; उस ताज के साथ जो उसकी माँ ने उसके शादी के दिन और उसके दिल की शादमानी के दिन उसके सिर पर रख्खा।
1देख, तू ख़ूबसूरत है ऐ मेरी प्यारी! देख, तू ख़ूबसूरत है; तेरी आँखें तेरे नक़ाब के नीचे दो कबूतर हैं, तेरे बाल बकरियों के गल्ले की तरह हैं, जो कोह-ए-जिल्'आद पर बैठी हों।2~तेरे दाँत भेड़ों के ग़ल्ले की तरह हैं, जिनके बाल कतरे गए हों और जिनको गु़स्ल दिया गया हो, जिनमें से हर एक ने दो बच्चे दिए हों, और उनमें एक भी बाँझ न हो।3~तेरे होंठ किर्मिज़ी डोरे हैं, तेरा मुँह दिल फ़रेब है, तेरी कनपटियाँ तेरे नक़ाब के नीचे अनार के टुकड़ों की तरह हैं।4तेरी गर्दन दाऊद का बुर्ज है जो सिलाहख़ाने के लिए बना जिस पर हज़ार ढाल लटकाई गई हैं, वह सब की सब पहलवानों की ढालें हैं।5~तेरी दोनों छातियाँ दो तोअम आहू बच्चे हैं, जो सोसनों में चरते हैं।6~जब तक दिन ढले और साया बढ़े, मैं मुर के पहाड़ और लुबान के टीले पर जा रहूँगा।7~ऐ मेरी प्यारी, तू सरापा जमाल है; तुझ में कोई 'ऐब नहीं।8~लुबनान से मेरे साथ, ऐ दुल्हन! तू लुबनान से मेरे साथ चली आ। अमाना की चोटी पर से, सनीर और हरमून की चोटी पर से, शेरों की मांदों से, और चीतों के पहाड़ों पर से नज़र दौड़ा।9~ऐ मेरी प्यारी, मेरी ज़ोजा, तू ने मेरा दिल लूट लिया। अपनी एक नज़र से, अपनी गर्दन के एक तौक़ से तू ने मेरा दिल ग़ारत कर लिया।10~ऐ मेरी प्यारी, मेरी ज़ौजा, तेरा 'इश्क क्या ख़ूब है। तेरी मुहब्बत मय से ज़्यादा लज़ीज़ है, और तेरे इत्रों की महक हर तरह की ख़ुश्बू से बढ़कर है।11~ऐ मेरी ज़ोजा, तेरे होटों से शहद टपकता है; शहद-ओ-शीर तेरे ज़बान तले है तेरी पोशाक की खु़श्बू लुबनान की जैसी है।12~मेरी प्यारी, मेरी ज़ोजा एक महफ़ूज़ बाग़ीचा है; वह महफ़ूज़ सोता और सर बमुहर चश्मा है।13~तेरे बाग़ के पौधे लज़ीज़ मेवादार अनार हैं, मेहन्दी और सुम्बुल भी हैं।14~जटामासी और ज़ा'फ़रान, बेदमुश्क और दारचीनी और लोबान के तमाम दरख़्त, मुर और ऊद और हर तरह की ख़ास खु़श्बू।15~तू बाग़ों में एक मम्बा', आब-ए-हयात का चश्मा, और लुबनान का झरना है।16~ऐ शिमाली हवा बेदार हो, ऐ दख्खिनी हवा चली आ! मेरे बाग़ पर से गुज़र, ताकि उसकी ख़ुशबू फैले।मेरा महबूब अपने बाग़ में आए, और अपने लज़ीज़ मेवे खाए।
1मै अपने बाग़ में आया हूँ ऐ मेरी प्यारी ऐ मेरी ज़ौजा; मैंने अपना मुर अपने बलसान समेत जमा' कर लिया; मैंने अपना शहद छत्ते समेत खा लिया, मैंने अपनी मय दूध समेत पी ली है। ऐ दोस्तो, खाओ, पियो। पियो! हाँ, ऐ 'अज़ीज़ो, खू़ब जी भर के पियो!2~मैं सोती हूँ, लेकिन मेरा दिल जागता है। मेरे महबूब की आवाज़ है जो खटखटाता है, और कहता है, मेरे लिए दरवाज़ा खोल, मेरी महबूबा, मेरी प्यारी! मेरी कबूतरी, मेरी पाकीज़ा, क्यूँकि मेरा सिर शबनम से तर है, और मेरी जु़ल्फे़ रात की बूँदों से भरी हैं।"3मैं तो कपड़े उतार चुकी, अब फिर कैसे पहनूँ? मैं तो अपने पाँव धो चुकी, अब उनको क्यूँ मैला करूँ?4~मेरे महबूब ने अपना हाथ सूराख़ से अन्दर किया, और मेरे दिल-ओ-जिगर में उसके लिए हरकत हुई।5~मैं अपने महबूब के लिए दरवाज़ा खोलने को उठी, और मेरे हाथों से मुर टपका, और मेरी उँगलियों से रक़ीक़ मुर टपका, और कु़फ़्ल के दस्तों पर पड़ा।6~मैंने अपने महबूब के लिए दरवाज़ा खोला, लेकिन मेरा महबूब मुड़ कर चला गया था। जब वह बोला, तो मैं बदहवास हो गई। मैंने उसे ढूँडा पर न पाया; मैंने उसे पुकारा पर उसने मुझे कुछ जवाब न दिया।7~पहरेवाले जो शहर में फिरते हैं, मुझे मिले; उन्होंने मुझे मारा और घायल किया; शहरपनाह के मुहाफ़िज़ों ने मेरी चादर मुझ से छीन ली।8~ऐ यरूशलीम की बेटियो! मैं तुम को क़सम देती हूँ कि अगर मेरा महबूब तुम को मिल जाए, तो उससे कह देना कि मैं इश्क़ की बीमार हूँ।9~तेरे महबूब को किसी दूसरे महबूब पर क्या फ़ज़ीलत है, ऐ 'औरतों में सब से जमीला? तेरे महबूब को किसी दूसरे महबूब पर क्या फ़ौकियत है? जो तू हम को इस तरह क़सम देती है।10~मेरा महबूब सुर्ख़-ओ-सफ़ेद है, वह दस हज़ार में मुम्ताज़ है।11उसका सिर ख़ालिस सोना है, उसकी जुल्फें पेच-दर-पेचऔर कौवे सी काली हैं।12~उसकी आँखें उन कबूतरों की तरह हैं, जो दूध में नहाकर लब-ए-दरिया तमकनत से बैठे हों।13~उसके गाल फूलों के चमन और बलसान की उभरी हुई क्यारियाँ हैं। उसके होंट सोसन हैं, जिनसे रक़ीक़ मुर टपकता है।14~उसके हाथ ज़बरजद से आरास्ता सोने के हल्के हैं। उसका पेट हाथी दाँत का काम है, जिस पर नीलम के फूल बने हो।15~उसकी टांगे ~कुन्दन के पायों पर संग-ए-मरमर के खम्बे हैं। वह देखने में लुबनान और खू़बी में रश्क-ए-सरो है।16~उसका मुँह अज़बस शीरीन है; हाँ, वह सरापा 'इश्क अंगेज़ है। ऐ यरूशलीम की बेटियो, यह है मेरा महबूब, यह है मेरा प्यारा।
1तेरा महबूब कहाँ गया ऐ 'औरतों में सब से जमीला? तेरा महबूब किस तरफ़ को निकला कि हम तेरे साथ उसकी तलाश में जाएँ?2~मेरा महबूब अपने बोस्तान में बलसान की क्यारियों की तरफ़ गया है, ताकि बागों में चराये और सोसन जमा' करे।3~मैं अपने महबूब की हूँ और मेरा महबूब मेरा है। वह सोसनों में चराता है।4~ऐ मेरी प्यारी, तू तिर्ज़ा की तरह खू़बसूरत है।यरूशलीम की तरह खु़शमंज़र और 'अलमदार लश्कर की तरह दिल पसन्द है।5~अपनी आँखें मेरी तरफ़ से फेर ले, क्यूँकि वह मुझे घबरा देती हैं; तेरे बाल बकरियों के गल्ले की तरह हैं, जो कोह-ए-जिल्आद पर बैठी हों।6~तेरे दाँत भेड़ों के गल्ले की तरह हैं, जिनको गु़स्ल दिया गया हो; जिनमें से हर एक ने दो बच्चे दिए हों, और उनमें एक भी बाँझ न हो।7तेरी कनपटियाँ तेरे नक़ाब के नीचे, अनार के टुकड़ों की तरह हैं।8~साठ रानियाँ और अस्सी हरमें, और बेशुमार कुंवारियाँ भी हैं;9लेकिन मेरी कबूतरी, मेरी पाकीज़ा बेमिसाल है; वह अपनी माँ की इकलौती, वह अपनी वालिदा की लाडली है। बेटियों ने उसे देखा और उसे मुबारक कहा। रानियों और हरमों ने देखकर उसकी बड़ाई की।10~यह कौन है जिसका ज़हूर सुबह की तरह है, जो हुस्न में माहताब, और नूर में आफ़ताब, 'अलमदार लश्कर की तरह दिल पसन्द है?11~मैं चिलगोज़ों के बाग में गया, कि वादी की नबातात पर नज़र करूँ, और देखें कि ताक में गुंचे, और अनारों में फूल निकलें हैं कि नहीं।12~मुझे अभी ख़बर भी न थी कि मेरे दिल ने मुझे मेरे उमरा के रथों पर चढ़ा दिया।13~लौट आ, लौट आ, ऐ शूलिमीत!”लौट आ, लौट आ कि हम तुझ पर नज़र करें। तुम शूलिमीत पर क्यूँ नज़र करोगे, जैसे वह दो लश्करों का नाच है।
1~ऐ अमीरज़ादी तेरे पाँव जूतियों में कैसे खू़बसूरत हैं! तेरी रानों की गोलाई उन ज़ेवरों की तरह है, जिनको किसी उस्ताद कारीगर ने बनाया हो।2~तेरी नाफ़ गोल प्याला है, जिसमें मिलाई हुई मय की कमी नहीं। तेरा पेट गेहूँ का अम्बार है, जिसके आस-पास सोसन हों।3~तेरी दोनों छातियाँ दो आहू बच्चे हैं जो तोअम पैदा हुए हों।4~तेरी गर्दन हाथी दाँत का बुर्ज है।तेरी आँखें बैत-रबीम के फाटक के पास हस्बून के चश्मे हैं।~तेरी नाक लुबनान के बुर्ज की मिसाल है~जो दमिश्क़ के रुख़ बना है।5~तेरा सिर तुझ पर कर्मिल की तरह है, और तेरे सिर के बाल अर्ग़वानी हैं;बादशाह तेरी जुल्फ़ों में क़ैदी है।6~ऐ महबूबा" ऐश-ओ-इश्रत के लिए तू कैसी जमीला और जाँफ़ज़ा है।7~यह तेरी क़ामत खजूर की तरह है, और तेरी छातियाँ अंगूर के गुच्छे हैं।8~मैंने कहा, "मैं इस खजूर पर चढूँगा, और इसकी शाख़ों को पकड़ूँगा।~तेरी छातियाँ अंगूर के गुच्छे हों और तेरे साँस की ख़ुशबू सेब के जैसी हो,9और तेरा मुँह' बेहतरीन शराब की तरह हो~जो मेरे महबूब की तरफ़ सीधी चली जाती है, और सोने वालों के होंटों पर से आहिस्ता~आहिस्ता बह जाती है|~10~मैं अपने महबूब की हूँऔर वह मेरा मुश्ताक़ है।11ऐ मेरे महबूब, चल हम खेतों में सैर करेंऔर गाँव में रात काटें ।,12~फिर तड़के अंगूरिस्तानों में चलें, और देखें कि आया ताक शिगुफ़्ता है, और उसमे फूल निकले हैं, और अनार की कलियाँ खिली हैं या नहीं। वहाँ मैं तुझे अपनी मुहब्बत दिखाउंगी |13मर्दुमग्याह की ख़ुशबू फ़ैल रही है, और हमारे दरवाज़ों पर हर क़िस्म के तर-ओ-ख़ुश्क मेवे हैं जो मैंने तेरे लिए जमा' कर रख्खे हैं, ऐ मेरे महबूब|
1~काश कि तू मेरे भाई की तरह होता, जिसने मेरी माँ की छातियों से दूध पिया।~मैं जब तुझे बाहर पाती, तो तेरी मच्छियाँ लेती, और कोई मुझे हक़ीर न जानता।2~मैं तुझ को अपनी माँ के घर में ले जाती, वह मुझे सिखाती।~मैं अपने अनारों के रस से तुझे मम्जूज मय पिलाती।3~उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे होता, और दहना मुझे गले से लगाता!4~ऐ यरूशलीम की बेटियो, मैं तुम को क़सम देती हूँ कि तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।5~यह कौन है जो वीराने से, अपने महबूब पर तकिया किए~चली आती है?~मैंने तुझे सेब के दरख़्त के नीचे जगाया।~जहाँ तेरी पैदाइश हुई, जहाँ तेरी माँ ने तुझे पैदा किया।6~नगीन की तरह मुझे अपने दिल में लगा रख और~तावीज़ की तरह अपने बाज़ू पर, क्यूँकि 'इश्क़ मौत की तरह ज़बरदस्त है, और गै़रत पाताल सी बेमुरव्वत है~उसके शो'ले आग के शोले हैं, और ख़ुदावन्द के शोले की तरह।7~सैलाब 'इश्क़ को बुझा नहीं सकता, बाढ़ उसको डुबा नहीं सकती, अगर आदमी मुहब्बत के बदले अपना सब कुछ दे डाले~तो वह सरासर हिकारत के लायक़ ठहरेगा।8~हमारी एक छोटी बहन है, अभी उसकी छातियाँ नहीं उठीं।~जिस रोज़ उसकी बात चले, हम अपनी बहन के लिए क्या करें?9अगर वह दीवार हो, तो हम उस पर चाँदी का बुर्ज बनाएँगेऔर अगर वह दरवाज़ा हो;~हम उस पर देवदार के तख़्ते लगाएँगे।10मैं दीवार हूँ और मेरी छातियाँ बुर्ज हैं~और मैं उसकी नज़र में सलामती याफ़्ता, की तरह थी।11~बाल हामून में सुलेमान का खजूर का बाग़ था~उसने उस खजूर के बाग़ को बाग़बानों के सुपुर्द किया कि उनमें से हर एक उसके फल के बदले ~हज़ार मिस्क़ाल चाँदी अदा करे।12~मेरा खजूर का बाग़ जो मेरा ही है मेरे सामने है ऐ सुलेमान तू तो हज़ार ले, और उसके फल के निगहबान दो सौ पाएँ।13~ऐ बूस्तान में रहनेवाली, दोस्त तेरी आवाज़ सुनते हैं;~मुझ को भी सुना।14~ऐ मेरे महबूब जल्दी कर~और उस ग़ज़ाल या आहू बच्चे की~तरह हो जा, जो बलसानी पहाड़ियों पर है।
1यसा'याह बिन आमूस का ख़्वाब जो उसने यहूदाह और यरुशलीम के ज़रिए' यहूदाह के बादशाहों उज़ियाह और यूताम और आख़ज़ और हिज़क़ियाह के दिनों में देखा।2सुन ऐ आसमान,~और कान लगा ऐ ज़मीन,~कि~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "कि मैंने लड़कों को पाला और पोसा,~लेकिन उन्होंने मुझ से सरकशी की।3बैल अपने मालिक को पहचानता है और गधा अपने मालिक की चरनी को,~लेकिन बनी-इस्राईल नहीं जानते; मेरे लोग कुछ नहीं सोचते।"4आह,~ख़ताकार गिरोह,~बदकिरदारी से लदी हुई क़ौम बदकिरदारों की नसल मक्कार औलाद;~जिन्होंने ख़ुदावन्द को छोड़ दिया,~इस्राईल के क़ुददूस को हक़ीर जाना,~और गुमराह-ओ-बरगश्ता हो गए~!'5~तुम क्यूँ ज़्यादा बग़ावत करके और मार खाओगे? तमाम सिर बीमार है और दिल बिल्कुल सुस्त है।6~ तलवे से लेकर चाँदी तक उसमें कहीं सेहत नहीं सिर्फ़ ज़ख़्म और चोट और सड़े हुए घाव ही हैं; जो न दबाए गए, न बाँधे गए, न तेल से नर्म किए गए हैं।7~ तुम्हारा मुल्क उजाड़ है, तुम्हारी बस्तियाँ जल गईं; लेकिन परदेसी तुम्हारी ज़मीन को तुम्हारे सामने निगलते हैं, वह वीरान है, जैसे उसे अजनबी लोगों ने उजाड़ा है।8और सिय्यून की बेटी छोड़ दी गई है, जैसे झोपड़ी बाग़ में और छप्पर ककड़ी के खेत में या उस शहर की तरह जो महसूर हो गया हो।9~अगर रब्ब-उल-अफ़वाज हमारा थोड़ा सा बक़िया बाक़ी न छोड़ता, तो हम सदूम की तरह और 'अमूरा की तरह हो जाते।10सदूम के हाकिमो, का कलाम सुनो! के लोगों, ख़ुदा की शरी'अत पर कान लगाओ !11ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "तुम्हारे ज़बीहों की कसरत से मुझे क्या काम? मैं मेण्ढों की सोख़्तनी कु़र्बानियों से और फ़र्बा बछड़ों की चर्बी से बेज़ार हूँ; और बैलों और भेड़ों और बकरों के ख़ून में मेरी ख़ुशनूदी नहीं।12"जब तुम मेरे सामने आकर मेरे दीदार के तालिब होते हो, तो कौन तुम से ये चाहता है कि मेरी बारगाहों को रौंदो ?13आइन्दा को बातिल हदिये न लाना, ख़ुशबू से मुझे नफ़रत है, नये चाँद और सबत और 'ईदी जमा'अत से भी; क्यूँकि मुझ में बदकिरदारी के साथ 'ईद की बर्दाश्त नहीं।14~मेरे दिल को तुम्हारे नये चाँदों और तुम्हारी मुक़र्ररा 'ईदों से नफ़रत है; वह मुझ पर बार हैं; मैं उनकी बर्दाश्त नहीं कर सकता।15~जब तुम अपने हाथ फैलाओगे, तो मैं तुम से आँख फेर लूँगा; हाँ, जब तुम दु'आ पर दु'आ करोगे, तो मैं न सुनूँगा; तुम्हारे हाथ तो ख़ून आलूदा हैं।16अपने आपको धो, अपने आपको पाक करो; अपने बुरे कामों को मेरी आँखों के सामने से दूर करो, बदफ़ेली से बाज़ आओ,17~नेकोकारी सीखो; इन्साफ़ के तालिब हो मज़लूमों की मदद करो यतीमों की फ़रियादरसी करो, बेवाओं के हामी हो।"18अब ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "आओ, हम मिलकर हुज्जत करें; अगरचे तुम्हारे गुनाह क़िर्मिज़ी हों, वह बर्फ़ की तरह सफ़ेद हो जाएँगे; और हर चन्द वह अर्ग़़वानी हों, तोभी ऊन की तरह उजले होंगे।19अगर तुम राज़ी और फ़रमाबरदार हो, तो ज़मीन के अच्छे~अच्छे फल खाओगे;20~ लेकिन अगर तुम इन्कार करो और बाग़ी हो तो तलवार का लुक़्मा हो जाओगे क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने मुँह से ये फ़रमाया है।”21~वफ़ादार बस्ती कैसी बदकार हो गई ! वह तो इन्साफ़ से मा'मूर थी और रास्तबाज़ी उसमें बसती थी, लेकिन अब ख़ूनी रहते हैं।22तेरी चाँदी मैल हो गई, तेरी मय में पानी मिल गया।23तेरे सरदार गर्दनकश और चोरों के साथी हैं। उनमें से हर एक रिश्वत दोस्त और इन'आम का तालिब है। वह यतीमों का इन्साफ़ नहीं करते और बेवाओं की फ़रियाद उन तक नहीं पहुँचती।24~इसलिए ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का क़ादिर, यूँ फ़रमाता है : कि "आह मैं ज़रूर अपने मुख़ालिफ़ों से आराम पाऊँगा, और अपने दुश्मनों से इन्तक़ाम लूँगा।25और मैं तुझ पर अपना हाथ बढ़ाऊँगा, और तेरी गन्दगी बिल्कुल दूर कर दूँगा, और उस राँगे को जो तुझ में मिला है जुदा करूँगा;26और मैं तेरे क़ाज़ियों को पहले की तरह और तेरे सलाहकारों को पहले के मुताबिक़ बहाल करूँगा। इसके बा'द तू रास्तबाज़ बस्ती और वफ़ादार आबादी कहलाएगी।”27सिय्यून 'अदालत की वजह से और वह जो उसमें गुनाह से बाज़ आए हैं, रास्तबाज़ी के ज़रिए' नजात पाएँगे;28लेकिन गुनाहगार और बदकिरदार सब इकट्ठे हलाक होंगे, और जो ख़ुदावन्द से बाग़ी हुए फ़ना किए जाएँगे।29क्यूँकि वह उन बलूतों से, जिनको तुम ने चाहा शर्मिन्दा होंगे; और तुम उन बाग़ों से, ~जिनको तुम ने पसन्द किया है ख़जिल होगे।30और तुम उस बलूत की तरह हो जाओगे जिसके पत्ते झड़ जाएँ, और उस बाग़ की तरह जो बेआबी से सूख जाए।31वहाँ का पहलवान ऐसा हो जाएगा जैसा सन, और उसका काम चिंगारी हो जाएगा; वह दोनों एक साथ जल जाएँगे, और कोई उनकी आग न बुझाएगा।
1वह बात जो यसा'याह बिन आमूस ने यहूदाह और यरुशलीम के हक़ में ख़्वाब में देखा।2आख़िरी दिनों में यूँ होगा कि ख़ुदावन्द के घर का पहाड़ पहाड़ों की चोटी पर क़ायम किया जाएगा, और टीलों से बुलन्द होगा,और ~सब क़ौमें वहाँ पहुँचेंगी;3बल्कि बहुत सी उम्मतें आयेंगी और कहेंगी आओ~ख़ुदावन्द~के पहाड़ पर चढ़ें, या'नी या'क़ूब के ख़ुदा के घर में दाख़िल हों और वह अपनी राहें हम को बताएगा, और हम उसके रास्तों पर चलेंगे।" क्यूँकि शरी'अत सिय्यून से, और ख़ुदावन्द का कलाम यरुशलीम से सादिर होगा।4~और वह क़ौमों के बीच 'अदालत करेगा और बहुत सी उम्मतों को डांटेगा और वह अपनी तलवारों को तोड़ कर फालें, और अपने भालों को हँसुए बना डालेंगे और क़ौम क़ौम पर तलवार न चलाएगी और वह फिर कभी जंग करना न सींखेंगे |5~ऐ या'क़ूब के घराने, आओ हम ख़ुदावन्द की रोशनी में चलें।6तूने तो अपने लोगों या'नी या'क़ूब के घराने को छोड़ दिया, इसलिए कि वह अहल-ए-मशरिक़ की रसूम से पुर हैं और फ़िलिस्तियों की तरह शगुन लेते हैं और बेगानों की औलाद के साथ हाथ पर हाथ मारते हैं।7और उनका मुल्क सोने-चाँदी से मालामाल है, और उनके ख़ज़ाने बे शुमार हैं और उनका मुल्क घोड़ों से भरा है, उनके रथों का कुछ शुमार नहीं।8उनकी सरज़मीन बुतों से भी पुर है वह अपने ही हाथों की सन'अत, या'नी अपनी ही उगलियों की कारीगरी को सिज्दा करते हैं।9~इस वजह से छोटा आदमी पस्त किया जाता है,और बड़ा आदमी ज़लील होता है;और ~तू उनको हरगिज़ मुआफ़ न करेगा।10ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ से और उसके जलाल की शौकत से, चट्टान में घुस जा और ख़ाक में छिप जा |11~इन्सान की ऊँची निगाह नीची की जाएगी और बनी आदम का तकब्बुर पस्त हो जाएगा; और उस रोज़ ख़ुदावन्द ही सरबलन्द होगा|12क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज ~का दिन तमाम मग़रूरों बुलन्द नज़रों और मुतकब्बिरों पर आएगा और वह पस्त किए जाएँगे;13और ~लुबनान के सब देवदारों पर जो बुलन्द और ऊँचे हैं और बसन के सब बुलूतों पर |14और सब ऊँचे पहाड़ों और सब बुलन्द टीलों पर,15और हर एक ऊँचे बुर्ज पर, और हर एक फ़सीली दीवार पर,16~और तरसीस के सब जहाज़ों पर, ग़रज़ हर एक ख़ुशनुमा मन्ज़र पर;17~और आदमी का तकब्बुर ज़ेर किया जाएगा और लोगों की बुलंद बीनी पस्त की जायेगी और उस रोज़ ख़ुदावन्द ही सरबलन्द होगा।18तमाम बुत बिल्कुल फ़ना हो जायेंगे19~और जब ख़ुदावन्द उठेगा कि ज़मीन को शिद्दत से हिलाए, तो लोग उसके डर से और उसके जलाल की शौकत से पहाड़ों के ग़ारों और ज़मीन के शिगाफ़ों में घुसेंगे |20उस रोज़ लोग अपनी सोने-चाँदी की मूरतों को जो उन्होंने 'इबादत के लिए बनाई,छछुन्दारों और चमगादड़ों के आगे फेंक देंगे |21~ताकि जब ख़ुदावन्द ज़मीन को शिद्दत से हिलाने के लिए उठे, तो उसके ख़ौफ़ से और उसके जलाल की शौकत से चट्टानों के ग़ारों और नाहमवार पत्थरों के शिगाफ़ों में घुस जाएँ।22~तब तुम इन्सान से जिसका दम उसके नथनों में है बाज़ रहो,क्यूँकि उसकी क्या क़द्र है?
1~क्यूँकि देखो ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़्वाज यरुशलीम और यहूदाह से सहारा और भरोसा", रोटी का तमाम सहारा और पानी का तमाम भरोसा दूर कर देगा;2~या'नी बहादुर और साहिब-ए-जंग को क़ाज़ी और नबी को, फ़ालगीरों और बुज़ुर्ग को |3पचास ~पचास के सरदारों और 'इज्ज़तदारों और सलाहकारों और होशियार कारीगरों और माहिर जादूगरों को|4और मैं लड़कों को उनके सरदार बनाऊँगा और नन्हे बच्चे उन पर हुक्मरानी करेंगे |5लोगों ~में से हर एक दूसरे पर और हर एक अपने पड़ोसी पर सितम करेगा|और बच्चे बूढ़ों की और रज़ील शरीफ़ों की गुस्ताख़ी करेंगे |6~जब कोई आदमी अपने बाप के घर में अपने भाई का दामन पकड़कर कहे, कि तू पोशाकवाला है; आ तू हमारा हाकिम हो, और इस उजड़े देस पर क़ाबिज़ हो जा|7उस रोज़ वह बुलन्द आवाज़ से कहेगा, कि मुझसे इन्तिज़ाम नहीं होगा; क्यूँकि मेरे घर में न रोटी है न कपड़ा, मुझे लोगों का हाकिम न बनाओ।"8क्यूँकि यरुशलीम की बर्बादी हो गई और यहूदाह गिर गया, इसलिए कि उनकी बोल-चाल और चाल-चलन ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ हैं कि उसकी जलाली आँखों को ग़ज़बनाक करें|9~उनके मुँह की सूरत उन पर गवाही देती है वह अपने गुनाहों को सदूम की तरह ज़ाहिर करते हैं और छिपाते नहीं उनकी जानों पर वावैला है! क्यूँकि वह आप अपने ऊपर बला लाते हैं।10रास्तबाज़ों के ज़रिए' कहो कि भला होगा, क्यूँकि वह अपने कामों का फल खाएँगे।11शरीरों पर वावैला है कि उनको बदी पेश आयेगी क्यूँकि वह अपने हाथों का किया पाएँगे।12मेरे लोगों की ये हालत है कि लड़के उन पर ज़ुल्म करते हैं,और 'औरतें उन पर हुक्मरान हैं। ऐ मेरे लोगों तुम्हारे रहनुमा तुम को गुमराह करते हैं,और तुम्हारे चलने की राहों को बिगाड़ते हैं।13~ख़ुदावन्द खड़ा है कि मुक़द्दमा लड़े, और लोगों की 'अदालत करे|14~ख़ुदावन्द अपने लोगों के बुज़ुर्गों और उनके सरदारों की 'अदालत करने को~आएगा, तुम ही हो जो बाग़ चट कर गए हो और ग़रीबों की लूट तुम्हारे घरों में है।"15~ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है कि इसके क्या क्या मा'ना हैं कि तुम मेरे लोगों को दबाते और ग़रीबों के सिर कुचलते हो |16और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, चूँकि सिय्यून की बेटियाँ मुतकब्बिर हैं और गर्दनकशी और शोख़ चश्मी से ख़िरामाँ होती हैं और अपने पाँव से नाज़रफ़्तारी करती और घुंघरू बजाती जाती हैं |17इसलिए ख़ुदावन्द सिय्यून की बेटियों के सिर गंजे, और यहोवाह उनके बदन बेपर्दा कर देगा|18उस दिन ख़ुदावन्द उनके ख़लख़ाल की ज़ेबाइश, जालियाँ और चाँद ले लेगा,19~और आवेज़े और पहुँचियाँ, और नक़ाब|20और ताज और पाज़ेब और पटके और 'इत्रदान और ता'वीज़ |21और अंगूठियाँ और नथ |22~और नफ़ीस पोशाकें,और ओढ़नियाँ ,और दोपट्टे और कीसे ,23~और आर्सियाँ और बारीक़ कतानी लिबास और दस्तारे़ और बुर्के़ भी।24और ~यूँ होगा कि ख़ुशबू के बदले सड़ाहट होगी, और पटके के बदले रस्सी, और गुंधे हुए बालों की जगह चंदलापन और नफ़ीस लिबास के बदले टाट और हुस्न के बदले दाग़।25तेरे बहादुर हलाक होंगे और तेरे पहलवान जंग में क़त्ल होंगे।26~उसके फाटक मातम और नौहा करेंगे,और वह उजाड़ होकर ख़ाक पर बैठेगी।
1उस वक़्त सात 'औरतें एक मर्द को पकड़ कर कहेंगी, कि हम अपनी रोटी खाएँगी और अपने कपड़े पहनेंगी; तू हम सबसे सिर्फ़ इतना कर कि तेरे नाम से कहलायें ताकि हमारी शर्मिंदगी मिटे|2तब ख़ुदावन्द की तरफ़ से रोएदगी ख़ूबसूरत-ओ-शानदार होगी,~और ज़मीन का फल उनके लिए जो बनी-इस्राईल में से बच निकले,~लज़ीज़ और ख़ुशनुमा होगा।3और यूँ होगा कि जो कोई सिय्यून में छूट जाएगा,~और जो कोई यरुशलीम में बाक़ी रहेगा,~बल्कि हर एक जिसका नाम यरुशलीम के ज़िन्दों में लिखा होगा,~मुक़द्दस कहलाएगा।4~जब ख़ुदावन्द सिय्यून की बेटियों की गन्दगी को दूर करेगा और यरुशलीम का ख़ून रूह-ए-'अद्ल और रूह-ए-सोज़ान के ज़रिए' से धो डालेगा।5~तब ख़ुदावन्द फिर सिय्यून पहाड़ के हर एक मकान पर और उसकी मजलिसगाहों पर, दिन को बादल और धुवाँ और रात को रोशन शोला पैदा करेगा; तमाम जलाल पर एक सायबान होगा।6~और एक ख़ेमा होगा जो दिन को गर्मी में सायादार मकान, और आँधी और झड़ी के वक़्त आरामगाह और पनाह की जगह हो ।
1अब ~मैं अपने महबूब के लिए अपने महबूब का एक गीत, उसके बाग़ के ज़रिए' गाऊँगा : मेरे महबूब का बाग़ एक ज़रखे़ज़ पहाड़ पर था।2~और उसने उसे खोदा और उससे पत्थर निकाल फेंके और अच्छी से अच्छी ताकि उसमें लगाई, और उसमें बुर्ज बनाया और एक कोल्हू भी उसमें तराशा; और इन्तिज़ार किया कि उसमें अच्छे अंगूर लगें लेकिन उसमें जंगली अंगूर लगे।3अब ऐ यरुशलीम के बाशिन्दो और यहूदाह के लोगों,मेरे ~और मेरे बाग़ में तुम ही इन्साफ़ करो,4~कि मैं अपने बाग़ के लिए और क्या कर सकता था जो मैंने न किया? और अब जो मैंने अच्छे अंगूरों की उम्मीद की, तो इसमें जंगली अंगूर क्यूँ लगे?5~मैं तुम को बताता हूँ कि ~अब मैं अपने बाग़ से क्या करूँगा; मैं उसकी बाड़ गिरा दूँगा, और वह चरागाह होगा; उसका अहाता तोड़ डालूँगा, और वह पामाल किया जाएगा;6और ~मैं उसे बिल्कुल वीरान कर दूँगा वह न छाँटा जाएगा न निराया जाएगा, उसमें ऊँट कटारे और कॉटे उगेंगे; और मैं बादलों को हुक्म करूँगा कि उस पर मेंह न बरसाएँ।7~इसलिए रब्ब-उल-अफ़्वाज का बाग़ बनी-इस्राईल का घराना है, और बनी यहूदाह उसका ख़ुशनुमा पौधा है उसने इन्साफ़ का इन्तिज़ार किया, लेकिन ख़ूँरेज़ी देखी; वह दाद का मुन्तज़िर रहा,लेकिन फ़रियाद सुनी।8~उनपर अफ़सोस, जो घर से घर और खेत से खेत मिला देते हैं, यहाँ तक कि कुछ जगह बाक़ी न बचे, और मुल्क में वही अकेले बसें।9~रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मेरे कान में कहा,यक़ीनन बहुत से घर उजड़ जाएँगे और बड़े बड़े आलीशान और ख़ूबसूरत मकान भी बे चराग़ होंगे।10~क्यूँकि पन्द्रह बीघे बाग़ से सिर्फ़ एक बत मय हासिल होगी, और एक ख़ोमर' बीज से एक ऐफ़ा ग़ल्ला|11~उनपर अफ़सोस,जो सुबह सवेरे उठते हैं ताकि नशेबाज़ी के दरपै हों और जो रात को जागते हैं जब तक शराब उनको भड़का न दे!12~और उनके जश्न की महफ़िलों में बरबत और सितार और दफ़ और बीन और शराब हैं; लेकिन वह ख़ुदावन्द के काम को नहीं सोचते और उसके हाथों की कारीगरी पर ग़ौर नहीं करते।13~इसलिए मेरे लोग जहालत की वजह से ग़ुलामी में जाते हैं; उनके बुज़ुर्ग भूके मरते, और 'अवाम प्यास से जलते हैं।14फिर पाताल अपनी हवस बढ़ाता है और अपना मुँह बे इन्तहा फाड़ता है और उनके शरीफ़ और 'आम लोग और ग़ौग़ाई और जो कोई उनमें घमण्ड करता है, उसमें उतर जाएँगे।15~और छोटा आदमी झुकाया जाएगा, और बड़ा आदमी पस्त होगा और मग़रूरों की आँखे नीची हो जाएँगी।16~लेकिन रब्ब-उल-अफ़्वाज 'अदालत~में सरबलन्द होगा, और ख़ुदा-ए-क़ुद्दूस की तक़्दीस सदाक़त से की जाएगी।17~तब बर्रे जैसे अपनी चरागाहों में चरेंगे और दौलतमन्दों के वीरान खेत परदेसियों के गल्ले खाएँगे।18~उनपर अफ़सोस, जो बतालत की तनाबों से बदकिरदारी को और जैसे गाड़ी के रस्सों से गुनाह को खींच लाते हैं,19~और जो कहते हैं, कि जल्दी करें और फुर्ती से अपना काम करें कि हम देखें; और इस्राईल के क़ुद्दूस की मशवरत नज़दीक हो और आ पहुँचे ताकि हम उसे जानें।"20उन पर अफ़सोस, जो बदी को नेकी और नेकी को बदी कहते हैं, और नूर की जगह तारीकी को और तारीकी की जगह नूर को देते हैं; और शीरीनी के बदले तल्ख़ी और तल्ख़़ी के बदले शीरीनी रखते हैं!21~उनपर अफ़सोस,जो ~अपनी नज़र में अक़्लमन्द और अपनी निगाह में साहिब-ए-इम्तियाज़ हैं|22~उनपर अफ़सोस, जो मय पीने में ताक़तवर और शराब मिलाने में पहलवान हैं;23जो रिश्वत लेकर शरीरों की सादिक़ और सादिक़ों को नारास्त ठहराते हैं!24~फिर जिस तरह आग भूसे को खा जाती है और जलता हुआ फूस बैठ जाता है, उसी तरह उनकी जड़ बोसीदा होगी और उनकी कली गर्द की तरह उड़ जाएगी; क्यूँकि उन्होंने रब्ब-उल-अफ़वाज की शरी'अत को छोड़ दिया, और इस्राईल के क़ुददूस के कलाम को हक़ीर जाना।25~इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर उसके लोगों पर भड़का, और उसने उनके ख़िलाफ़ अपना हाथ बढ़ाया और उनको मारा; चुनाँचे पहाड़ कॉप गए और उनकी लाशें बाज़ारों में ग़लाज़त की तरह पड़ी हैं। बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।26और वह क़ौमों के लिए दूर से झण्डा खड़ा करेगा, और उनको ज़मीन की इन्तिहा से सुसकार कर बुलाएगा; और देख वह ~दौड़े चले आएँगें।27~न कोई उनमें थकेगा न फिसलेगा, न कोई ऊँघेगा न सोएगा, न उनका कमरबन्द खुलेगा और न उनकी जूतियों का तस्मा टूटेगा।28उनके तीर तेज़ हैं और उनकी सब कमानें कशीदा होंगी, उनके घोड़ों के सुम चक़माक़ और उनकी गाड़ियाँ गिर्दबाद की तरह होंगी।29~वह शेरनी की तरह गरजेंगे,हाँ वह जवान शेरों की तरह दहाड़ेंगे; वह गु़र्रा कर शिकार पकड़ेंगे और उसे बे रोकटोक ले जाएँगे, कोई बचानेवाला न होगा।30और उस रोज़ वह उन पर ऐसा शोर मचाएँगे जैसा समन्दर का शोर होता है;~और अगर कोई इस मुल्क पर नज़र करे,~तो बस,~अन्धेरा और तंगहाली है,~और रोशनी उसके बादलों से तारीक हो जाती है।
1जिस साल में उज़्ज़ियाह बादशाह ने वफ़ात पाई मैंने ख़ुदावन्द को एक बड़ी बुलन्दी पर ऊँचे तख़्त पर बैठे देखा, और उसके लिबास के दामन से हैकल मा'मूर हो गई।2~उसके आस-पास सराफ़ीम खड़े थे, जिनमें से हर एक के छ: बाज़ू थे; और हर एक दो से अपना मुँह ढाँपे था और दो से पाँव और दो से उड़ता था।3और एक ने दूसरे को पुकारा और कहा ,क़ुद्दूस ,क़ुद्दूस, क़ुद्दूस रब्ब-उल-अफ़वाज है; सारी ज़मीन उसके जलाल से मा'मूर है।"4~और पुकारने वाले की आवाज़ के ज़ोर से आस्तानों की बुनियादें हिल गईं, और मकान धुँवें से भर गया।5तब मैं बोल उठा, कि मुझ पर अफ़सोस! मैं तो बर्बाद हुआ! क्यूँकि मेरे होंट नापाक हैं और नजिस लब ~लोगों में बसता हूँ, क्यूँकि मेरी आँखों ने बादशाह रब्ब-उल-अफ़वाज को देखा!”6~उस वक़्त सराफ़ीम में से एक सुलगा हुआ कोयला जो उसने दस्तपनाह से मज़बह पर से उठा लिया, अपने हाथ में लेकर उड़ता हुआ मेरे पास आया,7और उससे मेरे मुँह को छुआ और कहा, "देख, इसने तेरे लबों को छुआ; इसलिए तेरी बदकिरदारी दूर हुई, और तेरे गुनाह का कफ़्फ़ारा हो गया।"8उस वक़्त मैंने ख़ुदावन्द की आवाज़ सुनी जिसने फ़रमाया मैं किसको भेजूँ और हमारी तरफ़ से कौन जाएगा?" तब मैंने 'अर्ज़ की, "मैं हाज़िर हूँ! मुझे भेज।"9और उसने फ़रमाया, "जा, और इन लोगों से कह, कि 'तुम सुना करो लेकिन समझो नहीं, तुम देखा करो लेकिन बूझो नहीं।'10~तू इन लोगों के दिलों को चर्बा दे, और उनके कानों को भारी कर, और उनकी आँखें बन्द कर दे; ऐसा न हो कि वह अपनी आँखों से देखें और अपने कानों से सुनें और अपने दिलों से समझ लें, और बाज़ आएँ और शिफ़ा पाएँ।"11~तब मैंने कहा, ऐ ख़ुदावन्द ये कब तक? "उसने जवाब दिया, जब तक बस्तियाँ वीरान न हों और कोई बसनेवाला न रहे, और घर बे-चराग़ न हों, और~ज़मीन सरासर उजाड़ न हो जाए;12और ख़ुदावन्द आदमियों को दूर कर दे, और इस सरज़मीन में मतरूक मक़ाम बकसरत हों।13~और अगर उसमें दसवाँ हिस्सा बाक़ी भी बच जाए, तो वह फिर भसम किया जाएगा; लेकिन वह बुत्म और बलूत की तरह होगा कि बावजूद यह कि वह काटे जाएँ तोभी उनका टुन्ड बच रहता है, इसलिए उसका टुन्ड एक मुक़द्दस तुख़्म होगा।"
1~और शाह-ए-यहूदाह आख़ज़ बिन यूताम बिन उज़्ज़ियाह के दिनों में यूँ हुआ कि रज़ीन,शाह-ए-इराम फ़िक़ह बिन रमलियाह,शाह-ए-इस्राईल ने यरुशलीम पर चढ़ाई की; लेकिन उस पर ग़ालिब न आ सके।2~उस वक़्त दाऊद के घराने को यह ख़बर दी गई कि अराम इफ़्राईम के साथ मुत्तहिद है इसलिए उसके दिल ने और उसके लोगों के दिलों ने यूँ जुम्बिश खाई, जैसे जंगल के दरख़्त आँधी से जुम्बिश खाते हैं।3तब ख़ुदावन्द ने यसा'याह को हुक्म किया, कि "तू अपने बेटे शियार याशूब को लेकर ऊपर के चश्मे की नहर के सिरे पर, जो धोबियों के मैदान के रास्ते में है, आख़ज़ से मुलाक़ात कर,4और उसे कह, 'ख़बरदार हो, और बेक़रार न हो; इन लुक्टियों के दो धुवें वाले टुकड़ों से, या'नी अरामी रज़ीन और रमलियाह के बेटे की क़हरअंगेज़ी से न डर, और तेरा दिल न घबराए।5~चूँकि अराम और इफ़्राईम और रमलियाह का बेटा तेरे ख़िलाफ़ मश्वरत करके कहते हैं,6कि आओ, हम यहूदाह पर चढ़ाई करें और उसे तंग करें, और अपने लिए उसमें रख़ना पैदा करे और ताबील के बेटे को उसके बीच तख़्तनशीन करें।7इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि इसको पायदारी नहीं, बल्कि ऐसा हो भी नहीं सकता।8~क्यूँकि अराम का दारुस-सल्तनत दमिश्क़ ही होगा, और दमिश्क़ का सरदार रज़ीन; और पैंसठ बरस के अन्दर इफ़्राईम ऐसा कट जाएगा कि क़ौम न रहेगी।9इफ़्राईम का भी दारुस-सल्तनत सामरिया ही होगा, और सामरिया का सरदार रमलियाह का बेटा। अगर तुम ईमान न लाओगे तो यक़ीनन तुम भी क़ायम न रहोगे।'10फिर ~ख़ुदावन्द ने आख़ज़ से फ़रमाया,11~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से कोई निशान तलब कर चाहे नीचे पाताल में चाहे ऊपर बुलन्दी पर।"12~लेकिन आख़ज़ ने कहा, कि मैं तलब नहीं करूँगा और ख़ुदावन्द को नहीं,आज़माऊँगा।”13तब उसने कहा, ऐ दाऊद के खान्दान, अब सुनो क्या तुम्हारा इन्सान को बेज़ार करना कोई हल्की बात है कि मेरे ख़ुदा को भी बेज़ार करोगे?14लेकिन ख़ुदावन्द आप तुम को एक निशान बख़्शेगा। देखो, एक कुँवारी हामिला होगी, और बेटा पैदा होगा और वह उसका नाम ' इम्मानुएल रख्खेगी।15~ वह दही और शहद खाएगा, जब तक कि वह नेकी और बदी के रद्द-ओ-क़ुबूल के क़ाबिल न हो।16लेकिन इससे पहले कि ये लड़का नेकी और बदी के रद्द-ओ-क़ुबूल के क़ाबिल हो, ये मुल्क जिसके दोनों बादशाहों से तुझ को नफ़रत है, वीरान हो जाएगा।17~ख़ुदावन्द तुझ पर और तेरे लोगों और तेरे बाप के घराने पर ऐसे दिन लाएगा जैसे उस दिन से जब इफ़्राईम यहूदाह से जुदा हुआ, आज तक कभी न लाया या'नी शाह-ए-असूर के दिन।18और उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द मिस्र की नहरों के उस सिरे पर से मक्खियों को, और असूर के मुल्क से ज़म्बूरों को सुसकार कर बुलाएगा।19इसलिए वह सब आएँगे और वीरान वादियों में, और चटटानों की दराड़ों में, और सब ख़ारिस्तानों में, और सब चरागाहों में छा जाएँगे।20~उसी रोज़ ख़ुदावन्द उस उस्तरे से जो दरिया-ए-फ़रात के पार से किराये पर लिया या'नी असूर के बादशाह से, सिर और पाँव के बाल मूण्डेगा और इससे दाढ़ी भी खुर्ची जाएगी।21~और उस वक़्त यूँ होगा कि आदमी सिर्फ़ एक गाय और दो भेड़ें पालेगा,22~और उनके दूध की फ़िरावानी से लोग मक्खन खाएँगे; क्यूँकि हर एक जो इस मुल्क में बच रहेगा मख्खन और शहद ही खाया करेगा |23~और उस वक़्त यह हालत हो जाएगी कि हर जगह हज़ारों रुपये के बाग़ों की जगह ख़ारदार झाड़ियाँ होंगी।24~लोग तीर और कमाने लेकर वहाँ आयेंगे क्यूँकि तमाम मुल्क काँटों और झाड़ियों से पुर होगा |25~मगर उन सब पहाड़ियों पर जो कुदाली से खोदी जाती थीं, झाड़ियों और काँटों के ख़ौफ़ से तू फिर न चढ़ेगा लेकिन वह गाय बैल और भेड़ बकरियों की चरागाह होंगी।
1फिर ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि एक बड़ी तख़्ती ले और उस पर साफ़ साफ़ लिख महीर शालाल हाश्बज़ के लिए,'2और दो दियानतदार गवाहों को या'नी ऊरियाह काहिन को और ज़करियाह बिन यबरकियाह को गवाह बना।"3और मैं नबीय्या के पास गया; तब वह हामिला हुई और बेटा पैदा हुआ। तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि उसका नाम महीर-शालाल हाशबज़ रख,4क्यूँकि इससे पहले कि ये लड़का अब्बा और अम्मा कहना सीखे दमिश्क़ का माल और सामरिया की लूट को उठवाकर शाह-ए-असूर के सामने ले जाएँगे।"5~फिर ख़ुदावन्द ने मुझ से फ़रमाया,6"चूँकि इन लोगों ने चश्मा-ए-शीलोख़ के आहिस्ता रो पानी को रद्द किया, और रज़ीन और रमलियाह के बेटे पर माइल हुए;7इसलिए अब देख, ख़ुदावन्द दरिया-ए-फ़रात के सख़्त शदीद सैलाब को या 'नी शाह-ए-असूर और उसकी सारी शौकत को, इन पर चढ़ा लाएगा; और वह अपने सब नालों पर और अपने सब किनारों से बह निकलेगा;8और वह यहूदाह में बढ़ता चला जाएगा, और उसकी तुग़ियानी बढ़ती जाएगी, वह गर्दन तक पहुँचेगा; और उसके परों के फैलाव से तेरे मुल्क की सारी वुस'अत ऐ इम्मानुएल, छिप जायेगी |9ऐ लोगों, धूम मचाओ, लेकिन तुम टुकड़े-टुकड़े किए जाओगे; और ऐ दूर-दूर के मुल्कों के बाशिन्दो, सुनो: कमर बाँधों, लेकिन तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े किए जाएँगे; कमर बाँधो, लेकिन तुम्हारे पुर्जे़-पुर्जे़ होंगे।10तुम मन्सूबा बाँधो, लेकिन वह बातिल होगा; तुम कुछ कहो, और उसे क़याम न होगा; क्यूँकि ख़ुदा हमारे साथ है।11~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने जब उसका हाथ मुझ पर ग़ालिब हुआ, और इन लोगों के रास्ते में चलने से मुझे मना' किया तो मुझ से यूँ फ़रमाया कि ,12"तुम उस सबको जिसे यह लोग साज़िश कहते हैं, साज़िश न कहो, और जिससे वह डरते हैं, तुम न डरो और न घबराओ।13तुम रब्ब-उल-अफ़वाज ही को पाक जानो, और उसी से डरो और उसी से ख़ाइफ़ रहो।14~और वह एक मक़दिस होगा, लेकिन इस्राईल के दोनों घरानों के लिए सदमा और ठोकर का पत्थर, और यरुशलीम के बाशिन्दों के लिए फन्दा और दाम होगा।15उनमें से बहुत से उससे ठोकर खायेंगे और गिरेंगे और पाश पाश होंगे, और दाम में फँसेंगे और पकड़े जाएँगे।16~शहादत नामा बन्द कर दो, और मेरे शागिर्दो के लिए शरी'अत पर मुहर करो।17मैं भी ख़ुदावन्द की राह देखूँगा, जो अब या'क़ूब के घराने से अपना मुँह छिपाता है; मैं उसका इन्तिज़ार करूँगा।18~देख, मैं उन लड़कों के साथ जो ख़ुदावन्द ने मुझे बख़्शे, रब्ब-उल-अफ़वाज की तरफ़ से जो सिय्यून पहाड़ में रहता है, बनी-इस्राईल के बीच निशानों और 'अजाइब-ओ-ग़राइब के लिए हूँ।19और जब वह तुमसे कहें, "तुम जिन्नात के यारों और अफ़सूंगरों की जो फुसफुसाते और बड़बड़ाते हैं तलाश करो," तो तुम कहो, "क्या लोगों को मुनासिब नहीं कि अपने ख़ुदा के तालिब हों? क्या ज़िन्दों के बारे में मुर्दों से सवाल करें?”20शरी'अत और शहादत पर नज़र करो! अगर वह इस कलाम के मुताबिक़ न बोलें तो उनके लिए सुबह न होगी।21तब वह मुल्क में भूके और ख़स्ताहाल फिरेंगे और यूँ होगा कि जब वह भूके हों तो जान से बेज़ार होंगे, और अपने बादशाह और अपने ख़ुदा पर ला'नत करेंगे और अपने मुँह आसमान की तरफ़ उठाएँगे;22~फिर ज़मीन की तरफ़ देखेंगे और नागहान तंगी और तारीकी, या'नी ज़ुल्मत-ए-अन्दोह और तीरगी में खदेड़े जाएँगें।
1~लेकिन अन्दोहगीन की तीरगी जाती रहेगी। उसने पिछले ज़माने में ज़बूलून और नफ़्ताली के 'इलाक़ों को ज़लील किया, लेकिन आख़िरी ज़माने में क़ौमों के ग़लील में दरिया की तरफ़ यरदन के पार बुज़ुर्गी देगा।2जो लोग तारीकी में चलते थे उन्होंने बड़ी रोशनी देखी, जो मौत के साये के मुल्क में रहते थे, उन पर नूर चमका।3तूने क़ौम को बढ़ाया, तूने उनकी शादमानी को ज़्यादा किया; वह तेरे सामने ऐसे ख़ुश हैं, जैसे फ़सल काटते वक़्त और ग़नीमत की तक़सीम के वक़्त लोग ख़ुश होते हैं।4क्यूँकि तूने उनके बोझ के जूए, उनके कन्धे के लठ, और उन पर ज़ुल्म करनेवाले की लाठी को ऐसा तोड़ा है जैसा मिदियान के दिन में किया था।5क्यूँकि जंग में मुसल्लह मर्दों के तमाम सिलाह और ख़ून आलूदा कपड़े जलाने के लिए आग का ईन्धन होंगे।6इसलिए हमारे लिए एक लड़का तवल्लुद हुआ और हम को एक बेटा बख़्शा गया, और सल्तनत उसके कंधे पर होगी, उसका नाम 'अजीब सलाहकार ख़ुदा-ए-क़ादिर अब्दियत ~का बाप, सलामती का शहज़ादा होगा।7~उसकी सल्तनत के इक़बाल और सलामती की कुछ इन्तिहा न होगी, वह दाऊद के तख़्त और उसकी ममलुकत पर आज से हमेशा तक हुक्मरान रहेगा और 'अदालत और सदाक़त से उसे क़याम बख़्शेगा रब्ब-उल-अफ़्वाज की ग़य्यूरी ये करेगी|8~ख़ुदावन्द ने या'क़ूब के पास पैग़ाम भेजा, और वह इस्राईल पर नाज़िल हुआ;9~और सब लोग मा'लूम करेंगे, या'नी बनी इफ़्राईम और अहल-ए-सामरिया जो तकब्बुर और सख़्त दिली से कहते हैं,10कि ईंटें गिर गईं लेकिन हम तराशे हुए पत्थरों की 'इमारत बनायेंगे गूलर के दरख़्त काटे गए, लेकिन हम देवदार लगाएँगे।"11इसलिए ख़ुदावन्द रज़ीन की मुख़ालिफ़ गिरोहों को उन पर चढ़ा लाएगा, और उनके दुश्मनों को ख़ुद मुसल्लह करेगा।12~आगे अरामी होंगे और पीछे फ़िलिस्ती, और वह मुँह फैलाकर इस्राईल को निगल जाएँगे; बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया, बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।13तोभी लोग अपने मारनेवाले की तरफ़ न फिरे और रब्ब-उल-अफ़वाज के तालिब न हुए।14इसलिए ख़ुदावन्द इस्राईल के सिर और दुम और ख़ास-ओ-'आम को एक ही दिन में काट डालेगा।15~बुज़ुर्ग और 'इज़्ज़तदार आदमी सिर है और जो नबी झूठी बातें सिखाता है वही दुम है;16क्यूँकि जो इन लोगों के पेशवा हैं इनसे ख़ताकारी कराते हैं और उनके पैरौ निगले जाएँगे।17ख़ुदावन्द उनके जवानों से ख़ुशनूद न होगा और वह उनके यतीमों और उनकी बेवाओं पर कभी रहम न करेगा क्यूँकि उनमें हर एक बेदीन और बदकिरदार है और हर एक मुँह हिमाक़त उगलता है बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है|18क्यूँकि शरारत आग की तरह जलाती है, वह ख़स-ओ-ख़ार को खा जाती है; बल्कि वह जंगल की गुन्जान झाड़ियों में शोलाज़न होती है, और वह धुंवें के बादल में ऊपर को उड़ जाती है।19रब्ब-उल-अफ़वाज~के क़हर से ये मुल्क जलाया गया, और लोग ईन्धन की तरह हैं; कोई अपने भाई पर रहम नहीं करता।20~और कोई दहनी तरफ़ से छीनेगा लेकिन भूका रहेगा, और वह बाएँ तरफ़ से खाएगा लेकिन सेर न होगा; उनमें से हर एक आदमी अपने बाज़ू का गोश्त खाएगा;21मनस्सी इफ़्राईम का और इफ़्राईम मनस्सी का और वह ~मिलकर यहूदाह के मुख़ालिफ़ होंगे। बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।
1उन पर अफ़सोस जो बे इन्साफ़ी से फ़ैसले करते हैं और उन पर जो ज़ुल्म की रूबकारें लिखते हैं;2ताकि ग़रीबों को 'अदालत से महरूम करें, और जो मेरे लोगों में मोहताज हैं उनका हक़ छीन लें, और बेवाओं को लूटें, और यतीम उनका शिकार हों!3इसलिए तुम मुताल्बे के दिन और उस ख़राबी के दिन, जो दूर से आएगी क्या करोगे? तुम मदद के लिए किसके पास दौड़ोगे? और तुम अपनी शौकत कहाँ रख छोड़ोगे?4वह क़ैदियों में घुसेंगे और मक़तूलों के नीचे छिपेंगे।~बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।5असूर या'नी मेरे क़हर की लाठी पर अफ़सोस! जो लठ उसके हाथ में है, वह मेरे क़हर का हथियार है।6मैं उसे एक रियाकार क़ौम पर भेजूंगा, और उन लोगों की मुख़ालिफ़त में जिन पर मेरा क़हर है; मैं उसे हुक्म-ए- क़तई दूँगा कि माल लूटे और ग़नीमत ले ले, और उनको बाज़ारों की कीचड़ की तरह लताड़े।7~लेकिन उसका ये ख़याल नहीं है, और उसके दिल में ये ख़्वाहिश नहीं कि ऐसा करे; बल्कि उसका दिल ये चाहता है कि क़त्ल करे और बहुत सी क़ौमों को काट डाले।8क्यूँकि वह कहता है, "क्या मेरे हाकिम सब के सब बादशाह नहीं?9~क्या कलनो करकिमीस की तरह नहीं और हमात अरफ़ाद की तरह नहीं और सामरिया दमिश्क़ की तरह नहीं है?10जिस तरह मेरे हाथ ने बुतों की ममलुकतें हासिल कीं, जिनकी खोदी हुई मूरतें यरुशलीम और सामरिया की मूरतों से कहीं बेहतर थीं;11क्या जैसा मैंने सामरिया से और उसके बुतों से किया, वैसा ही यरुशलीम और उसके बुतों से न करूँगा?"12~लेकिन यूँ होगा कि जब ख़ुदावन्द सिय्यून पहाड़ पर और यरुशलीम में अपना सब काम कर चुकेगा, तब वह फ़रमाता है)मैं शाह-ए-असूर को उसके गुस्ताख़ दिल के समरह की और उसकी बुलन्द नज़री और घमण्ड की सज़ा दूँगा।13क्यूँकि वह कहता है, "मैंने अपने बाज़ू की ताक़त से और अपनी 'अक़्ल से ये किया है, क्यूँकि मैं 'अक़्लमन्द हूँ, हाँ, मैंने क़ौमों की हदों को सरका दिया और उनके ख़ज़ाने लूट लिए, और मैंने जंगी मर्द की तरह तख़्त नशीनों को उतार दिया।14मेरे हाथ ने लोगों की दौलत को घोंसले की तरह पाया, और जैसे कोई उन अण्डों को जो मतरूक पड़े हों समेट ले, वैसे ही मैं सारी ज़मीन पर क़ाबिज़ हुआ और किसी को ये हिम्मत न हुई कि पर हिलाए या चोंच खोले या चहचहाये~|15क्या कुल्हाड़ा उसके रू-ब-रू जो उससे काटता है लाफ़ज़नी करेगा अर्राकश के सामने शेख़ी मारेगा जैसे 'असा अपने उठानेवाले को हरकत देता है और छड़ी आदमी को उठाती है।16~इस वजह से ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज उसके फ़र्बा जवानों पर लाग़री भेजेगा और उसकी शौकत के नीचे एक सोज़िश आग की सोज़िश की तरह भड़काएगा।17बल्कि इस्राईल का नूर ही आग बन जाएगा और उसका क़ुद्दूस एक शो'ला होगा, और वह उसके ख़स-ओ-ख़ार को एक दिन में जलाकर भसम कर देगा।18और उसके बन और बाग़ की ख़ुशनुमाई को बिल्कुल बर्बाद-ओ-हलाक कर देगा" और वह ऐसा हो जाएगा जैसा कोई मरीज़ जो ग़श खाए।19और उसके बाग़ के दरख़्त ऐसे थोड़े बाक़ी बचेंगे कि एक लड़का भी उनको गिन कर लिख ले।20और उस वक़्त यूँ होगा कि वह जो बनी इस्राईल में से बाक़ी रह जाएँगे और या'क़ूब के घराने में से बच रहेंगे, उस पर जिसने उनको मारा फिर भरोसा न करेंगे; बल्कि ख़ुदावन्द इस्राईल के क़ुद्दूस पर सच्चे दिल से भरोसा करेंगे।21एक बक़िया या'नी या'क़ूब का बक़िया ख़ुदा-ए-क़ादिर की तरफ़ फिरेगा।22क्यूँकि ऐ इस्राईल, तेरे लोग समन्दर की रेत की तरह हों, तोभी उनमें का सिर्फ़ एक बक़िया वापस आएगा; बर्बादी पूरे 'अद्ल से मुक़र्रर हो चुकी है।23क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज मुक़र्ररा बर्बादी तमाम इस ज़मीन पर ज़ाहिर करेगा।24~लेकिन~ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज~फ़रमाता है ऐ~मेरे लोगो, जो सिय्यून में बसते हो असूर से न डरो, अगरचे कि वह तुमको लठ से मारे और मिस्र की तरह तुम पर अपना 'असा उठाए |25लेकिन थोड़ी ही देर है कि जोश-ओ-ख़रोश ख़त्म होगा और उनकी हलाकत से मेरे क़हर की तस्कीन होगी।26क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज मिदियान की ख़ूँरेज़ी के मुताबिक़ जो 'ओरेब की चट्टान पर हुई, उस पर एक कोड़ा उठाएगा; उसका 'असा समन्दर पर होगा, हाँ वह उसे मिस्र की तरह उठाएगा।27~और उस वक़्त यूँ होगा कि उसका बोझ तेरे कंधे पर से और उसका बोझ तेरी गर्दन पर से उठा लिया जाएगा और वह बोझ मसह की वजह से तोड़ा जाएगा।"28~वह अय्यात में आया है, मज्रून में से होकर गुज़र गया; उसने अपना अस्बाब मिकमास में रख्खा29वह घाटी से पार गए उन्होंने जिब'आ में रात काटी, रामा परेशान है; जिब'आ-ए-साऊल भाग निकला है।30ऐ जल्लीम की बेटी, चीख़ मार! ऐ ग़रीब 'अन्तोत, अपनी आवाज़ लईस को सुना!31मदमीना चल निकला, जेबीम के रहने वाले निकल भागे।32~ वह आज के दिन नोब में ख़ेमाज़न होगा तब वह दुख़्तर-ए-सिय्यून के पहाड़ या'नी कोह-ए-यरुशलीम पर हाथ उठा कर धमकाएगा।33देखो, ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज हैबतनाक तौर से मार कर शाख़ों को छाँट डालेगा; क़द्दावर काट डाले जाएँगें और बलन्द पस्त किए जाएँगे।34~और वह जंगल की गुन्जान झाड़ियों को लोहे से काट डालेगा, और लुबनान एक ज़बरदस्त के हाथ से गिर जाएगा।
1~और यस्सी के तने से एक कोंपल निकलेगी और उसकी जड़ों से एक बारआवर शाख़ पैदा होगी।2और ख़ुदावन्द की रूह उस पर ठहरेगी हिकमत और ख़िरद की रूह, मसलहत और क़ुदरत की रूह, मा'रिफ़त और ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ की रूह।3और उसकी शादमानी ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ में होगी। और वह न अपनी आँखों के देखने के मुताबिक़ इन्साफ़ करेगा, और न अपने कानों के सुनने के मुवाफ़िक़ फ़ैसला करेगा;4बल्कि वह रास्ती से ग़रीबों का इन्साफ़ करेगा, और 'अद्ल से ज़मीन के ख़ाकसारों का फ़ैसला करेगा; और वह अपनी ज़बान के 'असा से ज़मीन को मारेगा, और अपने लबों के दम से शरीरों को फ़ना कर डालेगा।5~उसकी कमर का पटका रास्तबाज़ी होगी और उसके पहलू पर वफ़ादारी का पटका होगा।6तब भेड़िया बर्रे के साथ रहेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठेगा, और बछड़ा और शेर बच्चा और पला हुआ बैल पेशरवी करेगा।7गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे और शेर-ए-बबर बैल की तरह भूसा खाएगा।8और दूध पीता बच्चा सॉंप के बिल के पास खेलेगा, और वह लड़का जिसका दूध छुड़ाया गया हो अफ़ई के बिल में हाथ डालेगा।9वह मेरे तमाम पाक पहाड़ पर न नुक़्सान पहुँचाएँगें न हलाक करेंगे क्यूँकि जिस तरह समन्दर पानी से भरा है उसी तरह ज़मीन ख़ुदावन्द के इरफ़ान से मा'मूर होगी।10और उस वक़्त यूँ होगा कि लोग यस्सी की उस जड़ के तालिब होंगे, जो लोगों के लिए एक निशान है; और उसकी आरामगाह जलाली होगी।11उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द दूसरी मर्तबा अपना हाथ बढ़ाएगा कि अपने लोगों का बक़िया या जो बच रहा हो, असूर और मिस्र और फ़त्रूस और कूश और इलाम और सिन'आर और हमात और समन्दर की अतराफ़ से वापस लाए।12और वह क़ौमों के लिए एक झंडा खड़ा करेगा और उन इस्राईलियों को जो ख़ारिज किए गए हों जमा' करेगा; और सब बनी यहूदाह को जो तितर बितर होंगे, ज़मीन के चारों तरफ़ से इकठ्ठा करेगा।13तब बनी इफ़्राईम में हसद न रहेगा और बनी यहूदाह के दुश्मन काट डाले जाएँगे, बनी इफ़्राईम बनी यहूदाह पर हसद न करेंगे और बनी यहूदाह बनी इफ़्राईम से कीना न रख्खेंगे।14और वह पश्चिम की तरफ़ फ़िलिस्तियों के कंधों पर झपटेंगे, और वह मिलकर पूरब के बसनेवालों को लूटेंगे, और अदोम और मोआब पर हाथ डालेंगे; और बनी 'अम्मोन उनके फ़रमाबरदार होंगे।15तब ख़ुदावन्द बहर-ए-मिस्र की ख़लीज को बिल्कुल हलाक कर देगा, और अपनी बाद-ए-समूम से दरिया-ए-फ़रात पर हाथ चलाएगा और उसको सात नाले कर देगा, ऐसा करेगा कि लोग जूते पहने हुऐ पार चले जाएँगे।16और उसके बाक़ी लोगों के लिए जो असूर में से बच रहेंगे, एक ऐसी शाहराह होगी जैसी बनी-इस्राईल के लिए थी, जब वह मुल्क-ए-मिस्र से निकले।
1और उस वक़्त तू कहेगा, ऐ ख़ुदावन्द मैं तेरी तम्जीद करूँगा; कि अगरचे तू मुझ से नाख़ुश था, तोभी तेरा क़हर टल गया और तूने मुझे तसल्ली दी।2"देखो, ख़ुदा मेरी नजात है; मैं उस पर भरोसा करूँगा और न डरूँगा, क्यूँकि याह-यहोवाह मेरा ज़ोर और मेरा सरोद है और वह मेरी नजात हुआ है।"3फिर तुम ख़ुश होकर नजात के चश्मों से पानी भरोगे।4और उस वक़्त तुम कहोगे, ख़ुदावन्द की तम्जीद करो, उससे दू'आ करो लोगों के बीच उसके कामों का बयान करो, और कहो कि उसका नाम बुलन्द है।5~ख़ुदावन्द की मदह सराई करो; क्यूँकि उसने जलाली काम किये जिनको तमाम दुनिया जानती है |6ऐ सिय्यून की बसनेवाली, तू चिल्ला और ललकार; क्यूँकि तुझमें इस्राईल का क़ुद्दूस बुज़ुर्ग है।"
1~बाबुल के बारे में नबुव्वत जो यसा'याह-बिन-आमूस ने ख़्वाब में पाया।2तुम नंगे पहाड़ पर एक झण्डा खड़ा करो, उनको बुलन्द आवाज़ से पुकारो और हाथ से इशारा करो कि वह सरदारों के दरवाज़ों के अन्दर जाएँ।3मैंने अपने मख़्सूस लोगों को हुक्म किया; मैंने अपने बहादुरों को जो मेरी ख़ुदावन्दी से मसरूर हैं, बुलाया है कि वह मेरे क़हर को अन्जाम दें।4~पहाड़ों में एक हुजूम का शोर है, जैसे बड़े लश्कर का ! ममलुकत की क़ौमों के इजितमा'अ का ग़ोग़ा है। रब्ब-उल-अफ़वाज जंग के लिए लश्कर जमा' करता है|5वह दूर मुल्क से आसमान की इन्तिहा से आते हैं, हाँ ख़ुदावन्द और उसके क़हर के हथियार, ताकि तमाम मुल्क को बर्बाद करें।6~अब तुम वावैला करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन नज़दीक है; वह क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ से बड़ी हलाकत की तरह आएगा।7इसलिए सब हाथ ढीले होंगे, और हर एक का दिल पिघल जाएगा",8और वह परेशान होंगे जाँकनी और ग़मगीनी उनको आ लेगी वह ऐसे दर्द में मुब्तिला होंगे जैसे 'औरत ज़िह की हालत में। वह सरासीमा होकर एक दूसरे का मुँह देखेंगे, और उनके चहरे शो'लानुमा होंगे।9~देखो ख़ुदावन्द का वह दिन आता है जो ग़ज़ब में और क़हर-ए-शदीद में सख़्त दुरुस्त हैं, ताकि मुल्क को वीरान करे और गुनाहगारों को उस पर से बर्बाद-ओ-हलाक कर दे।10क्यूँकि आसमान के सितारे और कवाकिब बेनूर हो जायेंगे, और सूरज तुलू' होते होते तारीक हो जाएगा और चाँद अपनी रोशनी न देगा।11और मैं जहान को उसकी बुराई की वजह से, और शरीरों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा; और मैं मग़रूरों का गु़रूर हलाक और हैबतनाक लोगों का घमण्ड पस्त कर दूँगा।12मैं आदमी को ख़ालिस सोने से, बल्कि इन्सान को ओफ़ीर के कुन्दन से भी कमयाब बनाऊँगा।13इसलिए मैं आसमानों को लरज़ाऊँगा, और रब्ब-उल-अफ़वाज के ग़ज़ब से और उसके क़हर-ए-शदीद के रोज़ ज़मीन अपनी जगह से झटकी जाएगी।14और यूँ होगा कि वह खदेड़े हुए आहू, और लावारिस भेड़ों की तरह होंगे; उनमें से हर एक अपने लोगों की तरफ़ मुतवज्जिह होगा, और हर एक अपने वतन को भागेगा।15हर एक जो मिल जाए आर-पार छेदा जाएगा, और हर एक जो पकड़ा जाए तलवार से क़त्ल किया जाएगा।16और उनके बाल बच्चे उनकी आँखों के सामने पार-पारा होंगे; उनके घर लूटे जाएँगे, और उनकी 'औरतों की बेहुरमती होगी।17देखो मैं मादियों को उनके ख़िलाफ़ बरअंगेख़ता ~करूँगा, जो चाँदी को ख़ातिर में नहीं लाते और सोने से ख़ुश नहीं होते।18उनकी कमानें जवानों को टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगी और वह शीरख़्वारों पर तरस न खाएँगे, और छोटे बच्चों पर रहम की नज़र न करेंगे।19और बाबुल जो ममलुकतों की हशमत और कस्दियों की बुज़ुर्गी की रोनक़ है सदूम और 'अमूरा की तरह हो जाएगा जिनको ख़ुदा ने उलट दिया।20वह हमेशा तक आबाद न होगा और नसल-दर-नसल उसमें कोई न बसेगा; हरगिज़ 'अरब खे़में न लगाएँगे, वहाँ गड़रिये गल्लों को न भटकायेंगे21लेकिन जंगल के जंगली दरिन्दे वहाँ बैठेगे और उनके घरों में उल्लू भरे होंगे; वहाँ शुतरमुर्ग़ बसेंगे, और छगमानस वहाँ नाचेंगे।22और गीदड़ उनके 'आलीशान मकानों में और भेड़िये उनके रंगमहलों में चिल्लाएँगे; उसका वक़्त नज़दीक आ पहुँचा है, और उसके दिनों को अब तूल नहीं होगा।
1~क्यूँकि ख़ुदावन्द या'क़ूब पर रहम फ़रमाएगा, बल्कि वह इस्राईल को भी बरगुज़ीदा करेगा और उनको उनके मुल्क में फिर क़ायम करेगा और परदेसी उनके साथ मेल करेंगे और या'क़ूब के घराने से मिल जाएँगे"।2~और लोग उनको लाकर उनके मुल्क में पहुंचाएगे और ~इस्राईल का घराना ख़ुदावन्द की सरज़मीन में उनका मालिक होकर उनको गु़लाम और लौंडियाँ बनाएगा क्यूँकि वह अपने ग़ुलाम करने वालों को ग़ुलाम करेंगे, और अपने ज़ुल्म करने वालों पर हुकूमत करेंगे।3और यूँ होगा कि जब ख़ुदावन्द तुझे तेरी मेहनत-ओ-मशक़्क़त से, और सख़्त ख़िदमत से जो उन्होंने तुझ से कराई, राहत बख़्शेगा,4तब तू शाह-ए-बाबुल के ख़िलाफ़ यह मसल लाएगा और कहेगा, कि 'ज़ालिम कैसा हलाक हो गया, और ग़ासिब कैसा हलाक हुआ।5ख़ुदावन्द ने शरीरों का लठ, या'नी ~बेइन्साफ़ हाकिमों का 'असा तोड़ डाला;6वही जो लोगों को क़हर से मारता रहा और क़ौमों पर ग़ज़ब के साथ हुक्मरानी करता रहा, और कोई रोक न सका।7सारी ज़मीन पर आराम-ओ-आसाइश है, वह अचानक गीत गाने लगते हैं।8हाँ, सनोबर के दरख़्त और लुबनान के देवदार तुझ पर यह कहते हुए ख़ुशी करते हैं, कि 'जब से तू गिराया गया, तब से कोई काटनेवाला हमारी तरफ़ नहीं आया।'9पाताल नीचे से तेरी वजह से जुम्बिश खाता है कि तेरे आते वक़्त तेरा इस्तक़बाल करे; वह तेरे लिए मुर्दों को या'नी ज़मीन के सब सरदारों को जगाता है; वह क़ौमों के सब बादशाहों को उनके तख़्तों पर से उठा खड़ा करता है|10वह सब तुझ से कहेंगे, क्या तू भी हमारी तरह 'आजिज़ हो गया; तू ऐसा हो गया जैसे हम हैं?'11तेरी शान-ओ-शौकत और तेरे साज़ों की ख़ुश आवाज़ी पाताल में उतारी गई; ~तेरे नीचे कीड़ों का फ़र्श हुआ, और कीड़े ही तेरा बालापोश बने।12~ऐ सुबह ~के सितारे, तू क्यूँकर आसमान से गिर पड़ा। ऐ क़ौमों को पस्त करनेवाले, तू क्यूँकर ज़मीन पर पटका गया!13तू तो अपने दिल में कहता था, मैं आसमान पर चढ़ जाऊँगा; मैं अपने तख़्त को ख़ुदा के सितारों से भी ऊँचा करूँगा, और मैं उत्तरी अतराफ़ में जमा'अत के पहाड़ पर बैठूँगा;14मैं बादलों से भी ऊपर चढ़ जाऊँगा, मैं ख़ुदा त'आला की तरह हूँगा।'15लेकिन तू पाताल में गढ़े की तह में उतारा जाएगा।16और जिनकी नज़र तुझ पर पड़ेगी, तुझे ग़ौर से देखकर कहेंगे, 'क्या यह वही शख़्स है जिसने ज़मीन को लरज़ाया और ममलुकतों को हिला दिया;17जिसने जहान को वीरान किया और उसकी बस्तियाँ उजाड़ दीं, जिसने अपने ग़ुलामों को आज़ाद न किया कि घर की तरफ़ जाएँ?"18क़ौमों के तमाम बादशाह सब के सब अपने अपने घर में शौकत के साथ आराम करते हैं,19लेकिन तू अपनी क़ब्र से बाहर, निकम्मी शाख़ की तरह निकाल फेंका गया; तू उन मक़तूलों के नीचे दबा है जो तलवार से छेदे गए और गढ़े के पत्थरों पर गिरे हैं, उस लाश की तरह जो पाँवों से लताड़ी गई हो।20तू उनके साथ कभी क़ब्र में दफ़न न किया जाएगा, क्यूँकि तूने अपनी ममलुकत को वीरान किया और अपनी र'अय्यत को क़त्ल किया, "बदकिरदारों की नस्ल का नाम बाक़ी न रहेगा।21~उसके फ़र्ज़न्दों के लिए उनके बाप दादा के गुनाहों की वजह से क़त्ल का सामान तैयार करो, ताकि वह फिर उठ कर मुल्क के मालिक न हो जाएँ और इस ज़मीन को शहरों से मा'मूर न करें।”22क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज~फ़रमाता है, मैं उनकी मुख़ालिफ़त को उठूँगा, और मैं बाबुल का नाम मिटाऊँगा और उनको जो बाक़ी हैं, बेटों और पोतों के साथ काट डालूँगा; यह ~ख़ुदावन्द का फ़रमान है।23~रब्ब-उल-अफ़्वाज फरमाता है मैं उसे ख़ार पुश्त की मीरास और तालाब बना दूँगा और उसे फ़ना के झाड़ू से साफ़ कर दूँगा।"24~रब्ब-उल-अफ़्वाज~क़सम खाकर फ़रमाता है, कि यक़ीनन जैसा मैंने चाहा वैसा ही हो जाएगा; और जैसा मैंने इरादा किया है, वही वजूद में आयेगा |25मैं अपने ही मुल्क में असूरी को शिकस्त दूँगा, और अपने पहाड़ों पर उसे पाँव तले लताड़ूँगा; तब उसका जूआ उन पर से उतरेगा, और उसका बोझ उनके कंधों पर से टलेगा।"26सारी दुनिया के ज़रिए' यही है, और सब क़ौमों पर यही हाथ बढ़ाया गया है।27क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज~ने इरादा किया है, कौन उसे बातिल करेगा? और उसका हाथ बढ़ाया गया है, उसे कौन रोकेगा?28जिस साल आख़ज़ बादशाह ने वफ़ात पाई उसी साल यह बार-ए-नबुव्वत आया :29"ऐ कुल फ़िलिस्तीन, तू इस पर ख़ुश न हो कि तुझे मारने वाला लठ टूट गया; क्यूँकि साँप की अस्ल से एक नाग निकलेगा, और उसका फल एक उड़नेवाला आग का साँप होगा।30तब ग़रीबों के पहलौठे खाएँगे, और मोहताज आराम से सोएँगे; लेकिन मैं तेरी जड़ काल से बर्बाद कर दूँगा, और तेरे बाक़ी लोग क़त्ल किए जाएँगे।31ऐ फाटक, तू वावैला कर; ऐ शहर, तू चिल्ला; ऐ फ़िलिस्तीन, तू बिल्कुल गुदाज़ हो गई! क्यूँकि उत्तर से एक धुंवा उठेगा और उसके लश्करों में से कोई पीछे न रह जाएगा।"32उस वक़्त क़ौम के क़ासिदों को कोई क्या जवाब देगा? कि 'ख़ुदावन्द ने सिय्यून को ता'मीर किया है, और उसमें उसके ग़रीब बन्दे पनाह लेंगे।”
1मुआब के बारे में नबुव्वत: एक ही रात में 'आर-ए-मोआब ख़राब और हलाक हो गया; एक ही रात में क़ीर-ए-मोआब ख़राब और हलाक हो गया।2बैत और दीबोन ऊँचे मक़ामों पर रोने के लिए चढ़ गए हैं; नबू और मीदबा पर अहल-ए-मोआब वावैला करते हैं; उन सब के सिर मुण्डाए गए और हर एक की दाढ़ी काटी गई।3~वह अपनी राहों में टाट का कमरबन्द बाँधते हैं, और अपने घरों की छतों पर और बाज़ारों में नौहा करते हुए सब के सब ज़ार ज़ार रोते हैं।4हस्बोन और इल्या'ला वावैला करते हैं उनकी आवाज़ यहज़ तक सुनाई देती है; इस पर मोआब के मुसल्लह सिपाही चिल्ला चिल्ला कर रोते हैं~उसकी जान उसमें थरथराती है।5मेरा दिल मोआब के लिए फ़रियाद करता उसके भागने वाले ज़ुगर तक 'अजलत शलेशियाह तक पहुँचे हाँ वह ~लूहीत की चढ़ाई पर रोते हुए चढ़ जाते, और होरोनायम की राह में हलाकत पर वावैला करते हैं।6क्यूँकि निमरियम की नहरें ख़राब हो गईं क्यूँकि घास कुम्ला गई और सब्ज़ा मुरझा गया और रोयदगी का नाम न रहा।7इसलिए वह फ़िरावान माल जो उन्होंने हासिल किया था, और ज़ख़ीरा जो उन्होंने रख छोड़ा था, बेद की नदी के पार ले जाएँगे।8क्यूँकि फ़रियाद मोआब की सरहदों तक और उनका नौहा इजलाइम तक और उनका मातम बैर एलीम तक पहुँच गया है।9क्यूँकि ~दीमोन की नदियाँ ख़ून से भरी हैं मैं दीमोन पर ज़्यादा मुसीबत लाऊँगा क्यूँकि उस पर जो मोआब में से बचकर भागेगा और उस मुल्क के बाक़ी लोगों पर एक शेर-ए-बबर भेजूँगा |
1सिला' से वीराने ~की राह दुख़्तर-ए-सिय्यून के पहाड़ पर मुल्क के हाकिम के पास बर्रे भेजो।2क्यूँकि अरनून के घाटों पर मोआब की बेटियाँ, आवारा परिन्दों और उनके तितर बितर बच्चों की तरह होंगी।3सलाह दो, इन्साफ़ करो, अपना साया, दोपहर को रात की तरह बनाओ; जिलावतनों को पनाह दो; फ़रारियों को हवाले न करो।4मेरे जिलावतन तेरे साथ रहें, तू मोआब को ग़ारतगरों से छिपा ले; क्यूँकि सितमगर ख़त्म होंगे और ग़ारतगरी तमाम हो जाएगी और सब ज़ालिम मुल्क से फ़ना होंगे।5यूँ तख़्त रहमत से क़ायम न होगा, और एक शख़्स रास्ती से दाऊद के ख़ेमे में उस पर जुलूस फ़रमा कर 'अद्ल की पैरवी करेगा, और रास्तबाज़ी पर मुस्त'इद रहेगा|6हम ने मोआब के घमण्ड के ज़रिए' सुना है कि वह बड़ा घमण्डी है; उसका तकब्बुर और घमण्ड और क़हर भी सुना है, उसकी शेख़ी हेच है।7इसलिए मोआब वावैला करेगा, मोआब के लिए हर एक वावैला करेगा; क़ीर हिरासत की किशमिश की टिक्कियों पर तुम सख़्त तबाह हाली में मातम करोगे।8क्यूँकि हस्बोन के खेत सूख गए, क़ौमों के सरदारों ने सिबमाह की ताक की बहतरीन शाख़ों को तोड़ डाला; वह या'ज़ेर तक बढ़ीं, वह जंगल में भी फैलीं; उसकी शाख़ें दूर तक फैल गईं, वह दरिया पार गुज़री।9~फिर मैं या'ज़ेर के आह-ओ-नाले से सिबमाह की ताक के लिए ज़ारी करूँगा ऐ हस्बून ऐ इलीया'लाह मैं तुझे अपने आँसुओं से तर कर दूँगा, क्यूँकि तेरे दिनों गर्मीं ~के मेवों और ग़ल्ले की फ़सल को ग़ोग़ा-ए-जंग ने आ लिया;10और शादमानी छीन ली गई और हरे भरे खेतों की ख़ुशी जाती रही; और ताकिस्तानों में गाना और ललकारना बन्द हो जाएगा; पामाल करनेवाले अंगूरों को फिर हौज़ों में पामाल न करेंगे; मैंने अंगूर की फ़सल के ग़ल्ले को ख़त्म कर दिया।11इसलिए मेरा अन्दरून मोआब पर और मेरा दिल कीर हारस पर बरबत की तरह फ़ुग़ा खेज़ है।12~और यूँ होगा कि जब मोआब हाज़िर हो और ऊँचे मक़ाम पर अपने आपको थकाए बल्कि अपने मा'बद में जाकर दु'आ करे, उसे कुछ फ़ायदा न होगा।13यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द ने मोआब के हक़ में पिछले ज़माने में फ़रमाया था14लेकिन अब ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तीन बरस के अन्दर जो मज़दूरों के बरसों की तरह हों, मोआब की शौकत उसके तमाम लश्करों के साथ हक़ीर हो जाएगी; और बहुत थोड़े बाक़ी बचेंगे, और वह किसी हिसाब में न होंगे।
1दमिश्क़ के बारे में बार-ए-नबुव्वत, देखो दमिश्क़ अब तो शहर न रहेगा, बल्कि खण्डर का ढेर होगा।2'अरो'ईर की बस्तियाँ वीरान हैं और ग़ल्लों की चरागाहें होंगी; वह वहाँ बैठेगे, और कोई उनके डराने को भी वहाँ न होगा।3और इफ़्राईम में कोई क़िला' न रहेगा, दमिश्क़ और अराम के बक़िए से सल्तनत जाती रहेगी; रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, जो हाल बनी-इस्राईल की शौकत का हुआ वही उनका होगा।4और उस वक़्त यूँ होगा कि या'क़ूब की हश्मत घट जाएगी, और उसका चर्बीदार बदन दुबला हो जाएगा।5यह ऐसा होगा जैसा कोई खड़े खेत काटकर ग़ल्ला जमा' करे और अपने हाथ से बालें तोड़े; बल्कि ऐसा होगा जैसा कोई रफ़ाईम की वादी में ख़ोशाचीनी करे।6ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि तब उसका बक़िया बहुत ही थोड़ा होगा, जैसे ज़ैतून के दरख़्त का जब वह हिलाया जाए, या'नी दो तीन दाने चोटी की शाख़ पर, चार पाँच फलवाले दरख़्त की बैरूनी शाख़ों पर।7उस रोज़ इन्सान अपने ख़ालिक़ की तरफ़ नज़र करेगा और उसकी आँखें इस्राईल के क़ुद्दूस ~की तरफ़ देखेंगी;8और वह मज़बहों या'नी अपने हाथ के काम पर नज़र न करेगा, और अपनी दस्तकारी या'नी यसीरतों और बुतों की परवा न करेगा।9उस वक़्त उसके फ़सीलदार शहर उजड़े जंगल और पहाड़ की चोटी पर के मक़ामात की तरह होंगे; जो बनी-इस्राईल के सामने उजड़ गए, और वहाँ वीरानी होगी।10चूँकि तूने अपने नजात देनेवाले ख़ुदा को फ़रामोश किया, और अपनी तवानाई की चट्टान को याद न किया; इसलिए तू ख़ूबसूरत पौधे लगाता और 'अजीब कलमें उसमें जमाता है।11लगाते वक़्त उसके चारों तरफ़ अहाता बनाता है, और सुबह को उसमें फूल खिलते हैं; लेकिन उसका हासिल दुख और सख़्त मुसीबत के वक़्त बेकार है।12आह! बहुत~से लोगों का हंगामा है! जो समन्दर के शोर की तरह शोर मचाते हैं, और उम्मतों का धावा बड़े सैलाब के रेले की तरह है।13उम्मतें सैलाब-ए-'अज़ीम की तरह आ पड़ेंगी; लेकिन वह उनको डॉंटेगा, और वह दूर भाग जाएँगी, और उस भूसे की तरह जो टीलों के ऊपर आँधी से उड़ता फिरे और उस गर्द की तरह जो बगोले में चक्कर खाए रगेदी जाएँगी।14शाम के वक़्त तो हैबत है! सुबह होने से पहले वह हलाक हैं! ये हमारे ग़ारतगरों का हिस्सा और हम को लूटनेवालों का हिस्सा है।
1आह! परों के फड़फड़ाने की सर ज़मीन जो कूश की नदियों के पार है |2जो दरिया की राह से बुर्दी की क़श्तियों में सतह-ए-आब पर क़ासिद भेजती है! ऐ तेज़ रफ़्तार क़ासिदों, उस क़ौम ~के पास जाओ जो ताक़तवर और ख़ूबसूरत है; उस क़ौम के पास जो शुरू' से अब तक मुहीब है, ऐसी क़ौम जो ज़बरदस्त और फ़तहयाब है जिसकी ज़मीन नदियों से मुन्क़सम है|3ऐ जहान के तमाम बाशिन्दो, और ऐ ज़मीन के रहनेवालो, जब पहाड़ों पर झण्डा खड़ा किया जाए तो देखो और जब नरसिंगा फूँका जाए तो सुनो|4क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ फ़रमाया है: कि अपने घर में ताबिश-ए-आफ़ताब की तरह और मौसिम-ए-दिरौ~की गर्मी में शबनम के बादल की तरह सुकून के साथ नज़र करूँगा।"5क्यूँकि फ़सल से पहले जब कली खिल चुके और फूल की जगह अँगूर पकने पर हों, तो वह टहनियों को हसुवे से काट डालेगा और फैली हुई शाख़ों को छाँट देगा।6और वह पहाड़ के शिकारी परिन्दों और मैदान के दरिन्दों के लिए पड़ी रहेंगी; और शिकारी परिन्दे गर्मी के मौसम में उन पर बैठेगे, ज़मीन के सब दरिन्दे जाड़े के मौसम में उन पर लेटेंगे।7~उस वक़्त रब्ब-उल-अफ़वाज के सामने उस क़ौम की तरफ़ से जो ताक़तवर और ख़ूबसूरत है, गिरोह की तरफ़ से जो शुरू' से आज तक मुहीब है, उस क़ौम से जो ज़बरदस्त और ज़फ़रयाब है जिसकी ज़मीन नदियों से बँटी है एक हदिया रब्ब-उल-अफ़वाज के नाम के मकान पर जो सिय्यून पहाड़ में है पहुँचाया जाएगा।
1मिस्र के बारे में नबुव्वत देखो ख़ुदावन्द एक तेज़ रू ~बादल पर सवार होकर मिस्र में आता है, और मिस्र के बुत उसके सामने लरज़ाँ होंगे और मिस्र का दिल पिघल जाएगा।2और मैं मिस्रियों को आपस में मुख़ालिफ़ कर दूँगा; उनमें हर एक अपने भाई से और हर एक अपने पड़ोसी से लड़ेगा, शहर-शहर से और सूबे-सूबे से;3और मिस्र की रूह अफ़सुर्दा हो जाएगी, और मैं उसके मन्सूबे को फ़ना करूँगा; और वह बुतों और अफ़सूँगरों और जिन्नात के यारों और जादूगरों की तलाश करेंगे।4लेकिन मैं मिस्रियों को एक सितमगर हाकिम के क़ाबू में कर दूँगा, और ज़बरदस्त बादशाह उन पर सल्तनत करेगा; यह ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज का फ़रमान है।5और दरिया का पानी सूख जाएगा, और नदी ख़ुश्क और ख़ाली हो जाएगी |6और नाले बदबू हो जाएँगे, और मिस्र की नहरें ख़ाली होंगी और सूख जाएँगी, और बेद और नै मुरझा जाएँगे।7दरिया-ए-नील के किनारे की चरागाहें और वह सब चीज़ें जो उसके आस-पास बोई जाती हैं मुरझा जायेंगी और बिल्कुल बर्बाद-ओ-हलाक हो जाएँगी।8तब माहीगीर मातम करेंगे, और वह सब जो दरिया में शस्त डालते हैं ग़मगीन होंगे; और पानी में जाल डालने वाले बहुत बेताब हो जाएँगे।9और सन झाड़ने और कतान बुननेवाले घबरा जाएँगे।10~हाँ उसके अरकान शिकस्ता और तमाम मज़दूर रंजीदा ख़ातिर होंगे11सुन'आन के शहज़ादे बिल्कुल बेवक़ूफ़ हैं फ़िर'औन के ~सबसे 'अक़्लमन्द सलाहकारों की मश्वरत वहशियाना ठहरी।फिर तुम क्यूँकर फ़िर'औन से कहते हो, कि मैं 'अक़्लमन्दों का फ़र्ज़न्द और शाहान-ए-क़दीम की नसल हूँ"?12अब तेरे 'अक़्लमन्द कहाँ है? वह तुझे ख़बर दें, अगर वह जानते होते कि रब्ब-उल-अफ़वाज ने मिस्र के हक़ में क्या इरादा किया है।13जु़'अन के शहज़ादे बेवक़ूफ़ बन गए हैं, नूफ़ के शहज़ादों ने धोखा खाया और जिन पर मिस्री क़बाइल का भरोसा था उन्हीं ने उनको गुमराह किया।14~ख़ुदावन्द ने कजरवी की रूह उनमें डाल दी है और उन्होंने मिस्रियों को उनके सब कामों में उस मतवाले की तरह भटकाया जो उलटी करते हुए डगमगाता है।15और मिस्रियों का कोई काम न होगा, जो सिर या दुम या ख़ास-ओ-'आम कर सके।16~उस वक़्त रब्ब-उल-अफ़वाज के हाथ चलाने से जो वह मिस्र पर चलाएगा, मिस्री 'औरतों की तरह हो जायेंगे, और हैबतज़दह और परेशान होंगे।17तब यहूदाह का मुल्क मिस्र के लिए दहशत नाक होगा, हर एक जिससे उसका ज़िक्र हो ख़ौफ़ खाएगा; उस इरादे की वजह से जो रब्ब-उल-अफ़वाज ने उनके ख़िलाफ़ कर रख्खा है।18उस रोज़ मुल्क-ए-मिस्र में पाँच शहर होंगे जो कना'नी ज़बान बोलेंगे, और रब्ब-उल-अफ़वाज की क़सम खाएँगे; उनमें से एक का नाम शहर-ए-आफ़ताब होगा।19~उस वक़्त मुल्क-ए-मिस्र के वस्त में ख़ुदावन्द का एक मज़बह और उसकी सरहद पर ख़ुदावन्द का एक सुतून होगा।20और वह मुल्क-ए-मिस्र में रब्ब-उल-अफ़वाज के लिए निशान और गवाह होगा; इसलिए कि वह सितमगरों के ज़ुल्म से ख़ुदावन्द से फ़रियाद करेंगे, और वह उनके लिए रिहाई देने वाला और हामी भेजेगा, और वह उनको रिहाई देगा।21और ख़ुदावन्द अपने आपको मिस्रियों पर ज़ाहिर करेगा और उस वक़्त मिस्री ख़ुदावन्द को पहचानेंगे, और ज़बीहे और हदिये पेश करेंगे; हाँ, वह ख़ुदावन्द के लिए मिन्नत माँनेंगे और अदा करेंगे।22और ख़ुदावन्द मिस्रियों को मारेगा, मारेगा और शिफ़ा बख़्शेगा; और वह ख़ुदावन्द की तरफ़ रूजू' लाएँगे और वह उनकी दु'आ सुनेगा, और उनको सेहत बख़्शेगा।23उस वक़्त मिस्र से असूर तक एक शाह-ए-राह होगी और असूरी मिस्र में आएँगें और मिस्री असूर को जाएँगे, मिस्री असूरियों के साथ मिलकर 'इबादत करेंगे।24तब इस्राईल मिस्र और असूर के साथ तीसरा होगा, और इस ज़मीन पर बरकत का ज़रिए' आ ठहरेगा।25क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज उनको बरकत बख़्शेगा और फ़रमाएगा मुबारक हो मिस्री मेरी उम्मत असूर मेरे हाथ की सन'अत और इस्राईल मेरी मीरास।
1~जिस साल सरजून शाह-ए-असूर ने तरतान को अशदूद की तरफ़ भेजा, और उसने आकर अशदूद से लड़ाई की और उसे फ़तह कर लिया;2~उस वक़्त ख़ुदावन्द ने यसा'याह बिन आमूस के ज़रिए' यूँ फ़रमाया, "कि जा और टाट का लिबास अपनी कमर से खोल डाल और अपने पाँवों से जूते उतार," तब उसने ऐसा ही किया, वह बरहना और नंगे पाँव फिरा करता था |3~तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, जिस तरह मेरा बन्दा यसा'याह तीन बरस तक बरहना और नंगे पाँव फिरा किया, ताकि मिस्रियों और कूशियों के बारे में निशान और ता'अज्जुब हो |4उसी तरह शाह-ए-असूर मिस्री ग़ुलामों और कूशी जिलावतनों को क्या बूढ़े क्या जवान बरहना और नंगे पाँव और बेपर्दा सुरनियों के साथ मिस्रियों की रुस्वाई के लिए ले जाएगा।5तब वह परेशान होंगे और कूश से जो उनकी उम्मीदगाह थी, और मिस्र से जो उनका घमण्ड था, शर्मिन्दा होंगे|6और उस वक़्त इस साहिल के बाशिन्दे कहेंगे देखो हमारी उम्मीदगाह का यह हाल हुआ जिसमें हम मदद के लिए भागे ताकि असूर के बादशाह से बच जाएँ फिर हम किस तरह रिहाई पायें |
1दश्त-ए-दरिया के बारे में नबुवत: जिस तरह दक्खिनी हवा ज़ोर से चली आती है, उसी तरह वह दश्त से और मुहीब सरज़मीन से नज़दीक आ रहा है।2एक हौलनाक ख़्वाब मुझे नज़र आया; दग़ाबाज़ दग़ाबाज़ी करता है; और ग़ारतगर ग़ारत करता है ऐ ऐलाम, चढ़ाई कर; ऐ मादै, मुहासिरा कर; मैं वह सब कराहना जो उसकी वजह से हुआ, ख़त्म करता हूँ।3~इसलिए मेरी कमर में सख़्त दर्द है, मैं जैसे दर्द-ए-ज़िह में तड़पता हूँ, मैं ऐसा परेशान हूँ कि सुन नहीं सकता; मैं ऐसा परेशान हूँ कि देख नहीं सकता|~4मेरा दिल धड़कता है, और ख़ौफ़ अचानक मुझ पर ग़ालिब आ गया; शफ़क़-ए-शाम जिसका मैं आरज़ूमन्द था, मेरे लिए ख़ौफ़नाक हो गई।5दस्तरख़्वान बिछाया गया, निगहबान खड़ा किया गया, वह खाते हैं और पीते हैं; उठो ऐ सरदारो सिपर पर तेल मलो !6क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझे यूँ फ़रमाया, कि "जा निगहबान बिठा; वह जो कुछ देखे वही बताए।7उसने सवार देखे, जो दो-दो आते थे, और गधों और ऊँटों पर सवार और उसने बड़े ग़ौर से सुना।"8तब उसने शेर की तरह आवाज़ से पुकारा, "ऐ ख़ुदावन्द, मैं अपनी दीदगाह पर तमाम दिन खड़ा रहा, और मैंने हर रात पहरे की जगह पर काटी।9और देख, सिपाहियों के ग़ोल और उनके सवार दो-दो करके आते हैं!" फिर उसने यूँ कहा, "कि बाबुल गिर पड़ा, गिर पड़ा; और उसके मा'बूदों की सब तराशी हुई मूरतें बिल्कुल टूटी पड़ी हैं।"10~ऐ मेरे गाहे हुए और मेरे खलीहान के ग़ल्ले, जो कुछ मैंने रब्ब-उल-अफ़वाज इस्राईल के ख़ुदा से सुना, तुमसे कह दिया।11~दूमा के बारे में नबुव्वत किसी ने मुझ को श'ईर से पुकारा कि ऐ निगहबान, रात की क्या ख़बर है?12~निगाहबान ने कहा, सुबह होती है और रात भी अगर तुम पूछना चाहते हो तो पूछो तुम फिर आना?13'अरब के बारे में नबुव्वत ऐ ददानियों के क़ाफ़िलों, तुम 'अरब के जंगल में रात काटोगे।14वह प्यासे के पास पानी लाए, तीमा की सरज़मीन के बाशिन्दे, रोटी लेकर भागने वाले से मिलने को निकले।15क्यूँकि वह तलवारों के सामने से नंगी तलवार से, और खेंची हुई कमान से, और जंग की शिद्दत से भागे हैं।16क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ कहा कि मज़दूर के बरसों के मुताबिक़, एक बरस के अन्दर अन्दर क़ीदार की सारी हशमत जाती रहेगी |17और तीर अन्दाज़ों की ता'दाद का बक़िया या'नी बनी क़ीदार के बहादुर थोड़े से होंगे; क्यूँकि इस्राईल के ख़ुदा ने यूँ फ़रमाया है|
1~ख़्वाब की वादी के बारे में नबुव्वत अब तुम को क्या हुआ कि तुम सब के सब कोठों पर चढ़ गए?2ऐ पुर शोर और ग़ौग़ाई शहर ऐ शादमान बस्ती तेरे मक़तूल न तलवार से क़त्ल हुए और न लड़ाई में मारे गए।3~तेरे सब सरदार इकट्ठे भाग निकले, उनको तीर अन्दाज़ों ने ग़ुलाम कर लिया; जितने तुझ में पाए गए सब के सब, बल्कि वह भी जो दूर से भाग गए थे ग़ुलाम किए गए हैं।4~इसीलिए मैंने कहा, मेरी तरफ़ मत देखो, क्यूँकि मैं ज़ार-ज़ार रोऊँगा मेरी तसल्ली की फ़िक्र मत करो, क्यूँकि मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम बर्बाद हो गई।"5~क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज की तरफ़ से ख़्वाब की वादी में, यह दुख और पामाली ओ-बेक़रारी और दीवारों को गिराने और पहाड़ों तक फ़रियाद पहुँचाने का दिन है।6~क्यूँकि ऐलाम ने जंगी रथों और सवारों के साथ तरकश उठा लिया और क़ीर ने सिपर का ग़िलाफ़ उतार दिया।7और यूँ हुआ कि तेरी बेहतरीन वादियाँ जंगली रथों से मा'मूर हो गईं और सवारों ने फाटक पर सफ़आराई की;8और यहूदाह का नक़ाब उतारा गया। और तू अब दश्त-ए-महल के सिलाहख़ाने पर निगाह करता है,9~और तुम ने दाऊद के शहर के रख़ने देखे कि बेशुमार हैं; और तुम ने नीचे के हौज़ में पानी जमा' किया|10और तुम ने यरुशलीम के घरों को गिना और उनको गिराया ताकि शहर पनाह को मज़बूत करो,11और तुम ने पुराने हौज़ के पानी के लिए दोनों दीवारों के बीच एक और हौज़ बनाया; लेकिन तुम ने उसके पानी पर निगाह न की और उसकी तरफ़ जिसने पहले से उसकी तदबीर की मुतवज्जह न हुए।12और उस वक़्त ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज ने रोने और मातम करने, और सिर मुन्डाने और टाट से कमर बाँधने का हुक्म दिया था;13~लेकिन देखो, ख़ुशी और शादमानी, गाय बैल को ज़बह करना और भेड़-बकरी को हलाल करना और गोश्त ख़्वारी-ओ-मयनोशी कि आओ खाएँ और पियें क्यूँकि कल तो हम मरेंगे।14और रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मेरे कान में कहा, कि तुम्हारी इस बदकिरदारी का कफ़्फ़ारा तुम्हारे मरने तक भी न हो सकेगा यह ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज का फ़रमान है।15ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज यह फ़रमाता है कि उस ख़ज़ान्ची शबनाह के पास जो महल पर मु'अय्यन है, जा और कह:16~तू यहाँ क्या करता है? और तेरा यहाँ कौन है कि तू यहाँ अपने लिए क़ब्र तराश्ता है? बुलन्दी पर अपनी क़ब्र तराश्ता है और चट्टान में अपने लिए घर खुदवाता है|17~देख, ऐ ज़बरदस्त, ख़ुदावन्द तुझ को ज़ोर से दूर फेंक देगा; वह यक़ीनन तुझे पकड़ रख्खेगा।18वह बेशक तुझ को गेंद की तरह घुमा-घुमाकर बड़े मुल्क में उछालेगा; वहाँ तू मरेगा और तेरी हश्मत के रथ वहीं रहेंगे, ऐ अपने आक़ा के घर की रुस्वाई।19~और मैं तुझे तेरे मन्सब से बरतरफ़ करूँगा, हाँ वह तुझे तेरी जगह से खींच उतारेगा।20~और उस रोज़ यूँ होगा कि मैं अपने बन्दे इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह को बुलाऊँगा,21~और मैं तेरा ख़िल'अत उसे पहनाऊँगा और तेरा पटका उस पर कसूँगा, और तेरी हुकूमत उसके हाथ में हवाले कर दूँगा; और वह अहल-ए-यरुशलीम का और बनी यहूदाह का बाप होगा।22और मैं दाऊद के घर की कुंजी उसके कन्धे पर रख्खूँगा, तब वह खोलेगा और कोई बन्द न करेगा; और वह बन्द करेगा और कोई न खोलेगा।23और मैं उसको खूँटी की तरह मज़बूत जगह में मुहकम करूँगा, और वह अपने बाप के घराने के लिए जलाली तख़्त होगा।24~और उसके बाप के ख़ान्दान की सारी हशमत या'नी आल-ओ-औलाद और सब छोटे-बड़े बर्तन प्यालों से लेकर क़राबों तक सबको उसी से मन्सूब करेंगे।25रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है,उस वक़्त वह खूँटी जो मज़बूत जगह में लगाई गई थी हिलाई जाएगी, और वह काटी जाएगी और गिर जाएगी, और उस पर का बोझ गिर पड़ेगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यूँ फ़रमाया है|
1सूर के बारे में नबुव्वत ऐ तरसीस के जहाज़ो, वावैला करो क्यूँकि वह उजड़ गया, वहाँ कोई घर और कोई दाख़िल होने की जगह नहीं! कित्तीम की ज़मीन से उनको ये ख़बर पहुँची है|2~ऐ साहिल के बाशिन्दों, जिनको सैदानी सौदागरों ने जो समन्दर के पार आते जाते हैं मालामाल कर दिया है, ख़ामोश रहो |3समन्दर के पार से सीहोर' का ग़ल्ला और वादी-ए-नील की फ़सल उसकी आमदनी थी, तब वह क़ौमों की तिजारत-गाह बना।4ऐ सैदा, तू शरमा, क्यूँकि समन्दर ने कहा है, समन्दर की गढ़ी ने कहा, "मुझे दर्द-ए-ज़िह नहीं लगा, और मैंने बच्चे नहीं जने; मैं जवानों को नहीं पालती, और कुँवारियों की परवरिश नहीं करती हूँ।”5~जब अहल-ए-मिस्र को यह ख़बर पहुँचेगी, तो वह सूर की ख़बर से बहुत ग़मगीन होंगे |6ऐ साहिल के बाशिन्दो, तुम ज़ार-ज़ार रोते हुए तरसीस को चले जाओ।7क्या यह तुम्हारी शादमान बस्ती है, जिसकी हस्ती पहले से है? उसी के पाँव उसे दूर-दूर ले जाते हैं कि परदेस में रहे।8~किसी ने यह~मंसूबा सूर के ख़िलाफ़ बाँधा जो ताज बख़्श है जिसके सौदागर 'उमरा और जिसके ताजिर दुनिया भर के 'इज़्ज़तदार हैं|9रब्ब-उल-अफ़वाज ने ये इरादा किया है कि सारी हशमत के घमण्ड को हलाक करे और दुनिया भर के इज़्ज़तदारों को ज़लील करे।10ऐ दूख़्तर-ए-तरसीस दरया-ए-नील ~की तरह अपनी सरज़मीन पर फैल जा अब कोई बन्द बाक़ी नहीं रहा।11~ उसने समन्दर पर अपना हाथ बढ़ाया, उसने ममलुकतों को हिला दिया; ख़ुदावन्द ने कना'न के हक़ में हुक्म किया है कि उसके क़िले' मिस्मार किए जाएँ।12और उसने कहा, "ऐ मज़लूम कुँवारी, दुख़्तर-ए-सैदा, तू फिर कभी घमण्ड न करेगी; उठ क़ित्तीम में चली जा, तुझे वहाँ भी चैन न मिलेगा।"13कसदियों के मुल्क को देख! यह क़ौम मौजूद न थी; असूर ने उसे वीरान के रहनेवालों का हिस्सा ठहराया। उन्होंने अपने बुर्ज बनाए उन्होंने उसके महल ग़ारत किये और उसे वीरान किया।14ऐ तरसीस के जहाज़ों वावैला करो क्यूँकि तुम्हारा क़िला' उजाड़ा गया|15और उस वक़्त यूँ होगा कि सूर किसी बादशाह के दिनों के मुताबिक़, सत्तर बरस तक फ़रामोश हो जाएगा; और ~सत्तर बरस के बा'द सूर की हालत फ़ाहिशा के गीत के मुताबिक़ होगी |16ऐ फ़ाहिशा तू जो फ़रामोश हो गई है, बर्बत उठा ले और शहर में फिरा कर राग को छेड़ और बहुत-सी ग़ज़लें गा कि लोग तुझे याद करें|17और सत्तर बरस के बा'द यूँ होगा कि ख़ुदावन्द सूर की ख़बर लेगा, और वह उजरत पर जाएगी और इस ज़मीन पर की तमाम ममलुकतों से बदकारी करेगी |18~ लेकिन उसकी तिजारत और उसकी उजरत ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस होगी और उसका माल न ज़ख़ीरा किया जाएगा और न जमा' रहेगा बल्कि उसकी तिजारत का हासिल उनके लिए होगा, जो ख़ुदावन्द के सामने रहते हैं कि खाकर सेर हों और नफ़ीस पोशाक पहने |
1~देखो ख़ुदावन्द ज़मीन को ख़ाली और सरनगूँ करके वीरान करता है और उसके बाशिन्दों को तितर-बितर कर देता है।2और यूँ होगा कि जैसा र'इयत का हाल, वैसा ही काहिन का; जैसा नौकर का, वैसा ही उसके साहिब का; जैसा लौंडी का, वैसा ही उसकी बीबी का; जैसा ख़रीदार का, वैसा ही बेचनेवाले का; जैसा क़र्ज़ देनेवाले का, वैसा ही क़र्ज़ लेनेवाले का; जैसा सूद देनेवाले का, वैसा ही सूद लेनेवाले का।3ज़मीन बिल्कुल ख़ाली की जाएगी, और बशिद्दत ग़ारत होगी; क्यूँकि यह कलाम ख़ुदावन्द का है।4ज़मीन ग़मगीन होती और मुरझाती है, जहाँ बेताब और पज़मुर्दा होता है, ज़मीन के 'आली क़द्र लोग नातवान होते हैं।5ज़मीन अपने बाशिन्दों से नापाक हुई, क्यूँकि उन्होंने शरी'अत को 'उदूल किया, क़ानून से मुन्हरिफ़ हुए, हमेशा के 'अहद को तोड़ा।6इस वजह से ला'नत ने ज़मीन को निगल लिया और उसके बाशिन्दे मुजरिम ठहरे, और इसीलिए ज़मीन के लोग भसम हुए और थोड़े से आदमी बच गए।7मय ग़मज़दा, ताक पज़मुर्दा है; और सब जो दिलशाद थे आह भरते हैं।8ढोलकों की ख़ुशी बन्द हो गई, ख़ुशी मनानेवालों का गु़ल-ओ-शोर तमाम हुआ, बरबत की शादमानी जाती रही।9वह फिर गीत के साथ मय नहीं पीते, पीनेवालों को शराब तल्ख़ मा'लूम होगी।10~सुनसान शहर वीरान हो गया, हर एक घर बन्द हो गया कि कोई अन्दर न जा सके।11~मय के लिए बाज़ारों में वावैला हो रहा है; सारी ख़ुशी पर तारीकी छा गई, मुल्क की 'इश्रत जाती रही।12~शहर में वीरानी ही वीरानी है, और फाटक तोड़ फोड़ दिए गए।13क्यूँकि ज़मीन में लोगों के बीच यूँ होगा जैसा जै़तून का दरख़्त झाड़ा जाए, जैसे अंगूर तोड़ने के बा'द ख़ोशा-चीनी।14वह अपनी आवाज़ बलन्द करेंगे, वह गीत गाएँगे; ख़ुदावन्द के जलाल की वजह से समन्दर से ललकारेंगे।15तुम पूरब में ख़ुदावन्द की और समन्दर के जज़ीरों में ख़ुदावन्द के नाम की, जो इस्राईल का ख़ुदा है, तम्जीद करो|16~इन्तिहा-ए-ज़मीन से नग़मों की आवाज़ हम को सुनाई देती है, जलाल-ओ-'अज़मत सादिक़ के लिए। लेकिन मैंने कहा, "मैं गुदाज़ हो गया, मैं हलाक हुआ; मुझ पर अफ़सोस! दग़ाबाज़ों ने दग़ा की; हाँ, दग़ाबाज़ों ने बड़ी दग़ा की।”17ऐ ज़मीन के बाशिन्दे, ख़ौफ़ और गढ़ा और दाम तुझ पर मुसल्लित हैं।18~और यूँ होगा कि जो ख़ौफ़नाक आवाज़ सुन कर भागे, गढ़े में गिरेगा; और जो गढ़े से निकल आए, दाम में फँसेगा; क्यूँकि आसमान की खिड़कियाँ खुल गईं, और ज़मीन की बुनियादें हिल रही हैं |19ज़मीन बिल्कुल उजड़ गई, ज़मीन यकसर शिकस्ता हुई, और शिद्दत से हिलाई गई।20~वह मतवाले की तरह डगमगाएगी और झोपड़ी की तरह आगे पीछे सरकाई जाएगी; क्यूँकि उसके गुनाह का बोझ उस पर भारी हुआ, वह गिरेगी और फिर न उठेगी।21और उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द आसमानी लश्कर को आसमान पर और ज़मीन के बादशाहों को ज़मीन पर सज़ा देगा।22और वह उन कै़दियों की तरह जो गढ़े में डाले जाएँ, जमा' किए जाएँगे और वह कै़दख़ाने में कै़द किए जाएँगे, और बहुत दिनों के बा'द उनकी ख़बर ली जाएगी।23और जब रब्ब-उल-अफ़वाज सिय्यून पहाड़ पर और यरुशलीम में अपने बुज़ुर्ग बन्दों के सामने हश्मत के साथ सल्तनत करेगा, तो चाँद मुज़्तरिब' सूरज शर्मिन्दा होगा।
1ऐ ख़ुदावन्द तू मेरा ख़ुदा है; मैं तेरी तम्जीद करूँगा; तेरे नाम की 'इबादत करूँगा क्यूँकि तूने 'अजीब काम किए हैं, तेरी मसलहत क़दीम से वफ़ादारी और सच्चाई हैं।2क्यूँकि तूने शहर को ख़ाक का ढेर किया; हाँ, फ़सीलदार शहर को खण्डर बना दिया और परदेसियों के महल को भी, यहाँ तक कि शहर न रहा; वह फिर ता'मीर न किया जाएगा।3~इसलिए ज़बरदस्त लोग तेरी 'इबादत करेंगे और हैबतनाक क़ौमों का शहर तुझ से डरेगा।4क्यूँकि तू ग़रीब के लिए क़िला' और मोहताज के लिए परेशानी के वक़्त मल्जा और ऑधी से पनाहगाह और गर्मी ~से बचाने को साया हुआ, जिस वक़्त ज़ालिमों की साँस दिवारकन तूफ़ान की तरह हो।5तू परदेसियों के शोर को ख़ुश्क मकान की गर्मी की तरह दूर करेगा और जिस तरह अब्र के साये से गरमी हलाक होती है उसी तरह ज़ालिमों का शादियाना बजाना ख़त्म होगा|6और~~रब्ब-उल-अफ़वाज इस पहाड़ पर सब क़ौमों के लिए फ़रबा चीज़ों से एक ज़ियाफ़त तैयार करेगा बल्कि एक ज़ियाफ़त तलछट पर से निथरी हुई मय से; हाँ फ़रबा चीज़ों से जो पुरमग़्ज़ हों और मय से जो तलछट पर से ख़ूब निथरी हुई हो।7और वह इस पहाड़ पर उस पर्दे को, जो तमाम लोगों पर पड़ा है और उस नक़ाब को, जो सब क़ौमों पर लटक रहा है, दूर कर देगा।8वह मौत को हमेशा के लिए हलाक करेगा और~ख़ुदावन्द खुदा सब के~चहरों से आँसू पोंछ डालेगा, और अपने लोगों की रुस्वाई तमाम सरज़मीन पर से मिटा देगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।9और उस वक़्त यूँ कहा जाएगा, "लो, यह हमारा ख़ुदा है; हम उसकी राह तकते थे और वही हम को बचाएगा। यह ख़ुदावन्द है, हम उसके इन्तिज़ार में थे। हम उसकी नजात से ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम होंगे।"10क्यूँकि इस पहाड़ पर ख़ुदावन्द का हाथ बरक़रार रहेगा और मोआब अपनी ही जगह में ऐसा कुचला जाएगा जैसे मज़बले के पानी में घास कुचली जाती है।11~और वह उसमें उसकी तरह जो तैरते हुए हाथ फैलाता है, अपने हाथ फैलाएगा; लेकिन वह उसके ग़ुरूर को उसके हाथों के फ़न-धोखे के साथ पस्त करेगा।12और वह तेरी फ़सील के ऊँचे बुर्जों को तोड़कर पस्त करेगा, और ज़मीन के बल्कि ख़ाक के बराबर कर देगा।
1~उस वक़्त यहूदाह के मुल्क में ये गीत गाया जाएगा: हमारा एक मुहकम शहर है, जिसकी फ़सील और नसलों ~की जगह वह नजात ही को मुक़र्रर करेगा।2~तुम दरवाज़े खोलो ताकि सादिक़ क़ौम जो वफ़ादार रही दाख़िल हो।3~जिसका दिल क़ायम है तू उसे सलामत रख्खेगा क्यूँकि उसका भरोसा तुझ पर है।4~हमेशा तक ख़ुदावन्द पर ऐ'तमाद रख्खो क्यूँकि ख़ुदावन्द यहूदाह हमेशा की चट्टान है।5~क्यूँकि उसने बुलन्दी पर बसनेवालों को नीचे उतारा, बुलन्द शहर को ज़ेर किया, उसने उसे ज़ेर करके ख़ाक में मिलाया।6वह पाँव तले रौदा जाएगा; हाँ, ग़रीबों के पाँव और मोहताजों के क़दमों से।"7~सादिक़ की राह रास्ती है; तू जो हक़ है, सादिक़ की रहबरी करता है।8~हाँ तेरी 'अदालत की राह में, ऐ ख़ुदावन्द, हम तेरे मुन्तज़िर रहे; हमारी जान का इश्तियाक़ तेरे नाम और तेरी याद की तरफ़ है।9रात को मेरी जान तेरी मुश्ताक़ है; हाँ, मेरी रूह तेरी जुस्तजू में कोशाँ रहेगी; क्यूँकि जब तेरी 'अदालत ज़मीन पर जारी है, तो दुनिया के बाशिन्दे सदाक़त सीखते हैं।10~हर चन्द शरीर पर मेहरबानी की जाए, लेकिन वह सदाक़त न सीखेगा; रास्ती के मुल्क में नारास्ती करेगा, और ख़ुदावन्द की 'अज़मत को न देखेगा।11~ ऐ ख़ुदावन्द, तेरा हाथ बुलन्द है लेकिन वह नहीं देखते, लेकिन वह लोगों के लिए तेरी गै़रत को देखेंगे और शर्मसार होंगे, बल्कि आग तेरे दुश्मनों को खा जाएगी।12~ऐ ख़ुदावन्द, तू ही हम को सलामती बख़्शेगा; क्यूँकि तू ही ने हमारे सब कामों को हमारे लिए अन्जाम दिया है।13~ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, तेरे अलावा दूसरे हाकिमों ने हम पर हुकूमत की है; लेकिन तेरी मदद से हम सिर्फ़ तेरा ही नाम लिया करेंगे।14वह मर गए, फिर ज़िन्दा न होंगे; वह रहलत कर गए, फिर न उठेंगे; क्यूँकि तूने उन पर नज़र की और उनको हलाक किया, और उनकी याद को भी मिटा दिया है।15ऐ ख़ुदावन्द तूने इस क़ौम को कसरत बख़्शी है; तूने इस क़ौम को बढ़ाया है, तूही ज़ुल-जलाल है तूही ने मुल्क की हदों को बढ़ा दिया है।16~ऐ ख़ुदावन्द, वह मुसीबत में तेरे तालिब हुए जब तूने उनको तादीब की तो उन्होंने गिरया-ओ-ज़ारी की।17~ऐ ख़ुदावन्द तेरे~सामने हम उस हामिला की तरह हैं, जिसकी ~विलादत का वक़्त नज़दीक हो, जो दुख में है और अपने दर्द से चिल्लाती है।18~हम हामिला हुए, हम को दर्द-ए-ज़िह लगा, लेकिन पैदा क्या हुआ? हवा! हम ने ज़मीन पर आज़ादी को क़ायम नहीं किया, और न दुनिया में बसनेवाले ही पैदा हुए।19~तेरे मुर्दे जी उठेंगे,मेरी ~लाशें उठ खड़ी होंगी। तुम जो ख़ाक में जा बसे हो, जागो और गाओ! क्यूँकि तेरी ओस उस ओस की तरह है जो नबातात पर पड़ती है, और ज़मीन मुर्दों को उगल देगी।20ऐ ~मेरे लोगो! अपने ख़िलवत ख़ानों में दाख़िल हो, और अपने पीछे दरवाज़े बन्द कर लो और अपने आपको थोड़ी देर तक छिपा रख्खो जब तक कि ग़ज़ब टल न जाए।21~क्यूँकि देखो, ख़ुदावन्द अपने मक़ाम से चला आता है, ताकि ज़मीन के बाशिन्दों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दे; और ज़मीन उस ख़ून को ज़ाहिर करेगी जो उसमें है और अपने मक़तूलों को हरगिज़ न छिपाएगी।
1~उस वक़्त ख़ुदावन्द अपनी सख़्त और बड़ी और मज़बूत तलवार से अज़दहा या'नी तेज़रू साँप को और अज़दहा या'नी पेचीदा साँप को सज़ा देगा; और दरियाई अज़दहे को क़त्ल करेगा।2~उस वक़्त तुम ख़ुशनुमा ताकिस्तान का गीत गाना।3~मैं ख़ुदावन्द उसकी हिफ़ाज़त करता हूँ, मैं उसे हर दम सींचता रहूँगा। मैं दिन रात उसकी निगहबानी करूँगा कि उसे नुक़्सान न पहुँचे।4~मुझ में क़हर नहीं; तोभी काश के जंगगाह में झाड़ियाँ और काँटे मेरे ख़िलाफ़ होते, मैं उन पर ख़ुरूज करता और उनको बिल्कुल जला देता।5लेकिन अगर कोई मेरी ताक़त का दामन पकड़े तो मुझ से सुलह करे; हाँ वह मुझ से सुलह करे।6अब आइन्दा दिनों में या'क़ूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राईल पनपेगा और फूलेगा और इस ज़मीन को मेवों से मालामाल करेगा।7~क्या उसने उसे मारा, जिस तरह उसने उसके मारनेवालों को मारा है? या क्या वह क़त्ल हुआ, जिस तरह उसके क़ातिल क़त्ल हुए?8~तूने इन्साफ़ के साथ उसको निकालते वक़्त उससे हुज्जत की; उसने पूरबी हवा के दिन अपने सख़्त तूफ़ान से उसको निकाल दिया |9इसलिए इससे या'क़ूब के गुनाह का कफ़्फ़ारा होगा और उसका गुनाह दूर करने का कुल नतीजा यही है; जिस ~वक़्त वह मज़बह के सब पत्थरों को टूटे कंकरों की तरह टुकड़े-टुकड़े करे कि यसीरतें और सूरज के बुत फिर क़ायम न हों।10क्यूँकि फ़सीलदार शहर वीरान है, और वह बस्ती उजाड़ और वीरान की तरह ख़ाली है; वहाँ बछड़ा चरेगा और वहीं लेट रहेगा और उसकी डालियाँ बिलकुल काट खायेगा|11जब उसकी शाख़े मुरझा जायेंगी तो तोड़ी जायेंगी 'औरतें आयेंगी और उनको जलाएँगी; क्यूँकि लोग अक़्ल से ख़ाली हैं, इसलिए उनका ख़ालिक़ उन पर रहम नहीं करेगा और उनका बनाने वाला उन पर तरस नहीं खाएगा|12~और उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द दरया-ए-फ़रात की गुज़रगाह से रूद-ए-मिस्र तक झाड़ डालेगा; और तुम ऐ बनी इस्राईल एक एक करके जमा' किए जाओगे |13और उस वक़्त यूँ होगा कि बड़ा नरसिंगा फूँका जाएगा, और वह जो असूर के मुल्क में क़रीब-उल-मौत थे, और वह जो मुल्क-ए-मिस्र में जिला वतन थे आएँगें और यरुशलीम के मुक़द्दस पहाड़ पर ख़ुदावन्द की 'इबादत करेंगे।
1अफ़सोस इफ़्राईम के मतवालों के घमण्ड के ताज पर और उसकी शानदार शौकत के मुरझाये हुए फूल पर जो उन लोगों की शादाब वादी के सिरे पर है जो मय के मग़लूब हैं|2देखो ख़ुदावन्द के पास एक ज़बरदस्त और ताक़तवर शख़्स है, जो उस आँधी की तरह जिसके साथ ओले हों और बाद समूम की तरह और सैलाब-ए-शदीद की तरह ज़मीन पर हाथ से पटक देगा।3इफ़्राईम के मतवालों के घमण्ड का ताज पामाल किया जाएगा;4और उस शानदार शौकत का मुरझाया हुआ फूल जो उस शादाब वादी के सिरे पर है, पहले पक्के अंजीर की तरह होगा जो गर्मी के दिनों से पहले ~लगे; जिस पर किसी की निगाह पड़े और वह उसे देखते ही और हाथ में लेते ही निगल जाए।5उस ~वक़्त रब्ब-उल-अफ़वाज अपने लोगों के बक़िये के लिए शौकत का अफ़सर और हुस्न का ताज होगा|6और 'अदालत की कुर्सी पर बैठने वाले के लिए इन्साफ़ की रूह, और फाटकों से लड़ाई को दूर करने वालों के लिए ताक़त होगा।7~लेकिन यह भी मयख़्वारी से डगमगाते और नशे में लड़खड़ाते हैं; काहिन और नबी भी नशे में चूर और मय में ग़र्क़ हैं, वह नशे में झूमते हैं; वह रोया में ख़ता करते और 'अदालत में लगज़िश खाते हैं|8~क्यूँकि सब दस्तरख़्वान क़य और गन्दगी से भरे हैं कोई जगह बाक़ी नहीं|9वह ~किसको अक़्ल सिखाएगा? किसको तक़रीर करके समझाएगा? क्या उनको ~जिनका दूध छुड़ाया गया,जो छातियों से जुदा किए गए?10~क्यूँकि हुक्म पर हुक्म, हुक्म पर हुक्म; क़ानून पर क़ानून, क़ानून पर क़ानून है; थोड़ा यहाँ थोड़ा वहाँ |11लेकिन वह बेगाना लबों और अजनबी ज़बान से इन लोगों से कलाम करेगा|12जिनको उसने फ़रमाया, यह आराम है, तुम थके मान्दों को आराम दो,और ~यह ताज़गी है;" लेकिन वह सुनने वाले न हुए।13~तब ख़ुदावन्द का कलाम उनके लिए हुक्म पर हुक्म, हुक्म पर हुक्म, क़ानून पर क़ानून, क़ानून पर क़ानून, थोड़ा यहाँ, थोड़ा वहाँ होगा; ताकि वह चले जाएँ और पीछे गिरें और सिकश्त खाएँ और दाम में फसें और गिरफ़्तार हों|14इसलिए ऐ ठट्ठा करने वालो,जो यरुशलीम के इन बाशिन्दों पर हुक्मरानी करते हो; ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:15चूँकि तुम कहा करते हो, कि "हम ने मौत से 'अहद बाँधा, और पाताल से पैमान कर लिया है; जब सज़ा का सैलाब आएगा तो हम तक नहीं पहुँचेगा, क्यूँकि हम ने झूठ को अपनी पनाहगाह बनाया है और दरोग़गोई की आड़ में छिप गए हैं;"16इसलिए~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है देखो मैं सिय्यून~में बुनियाद के लिए एक पत्थर रख्खूँगा, आज़मूदा पत्थर मुहकम बुनियाद के लिए कोने के सिरे का क़ीमती पत्थर: जो कोई ईमान लाता है क़ायम रहेगा |17और मैं 'अदालत को सूत, सदाक़त को साहूल बनाऊँगा; और ओले झूठ की पनाहगाह को साफ़ कर देंगे, और पानी छिपने के मकान पर फैल जायेगा|18और तुम्हारा 'अहद जो मौत से हुआ मन्सूख़ हो जाएगा और तुम्हारा पैमान जो पाताल से हुआ क़ायम न रहेगा; जब सज़ा का सैलाब आएगा, तो तुम को पामाल करेगा।19और ~गुज़रते वक़्त तुम को बहा ले जाएगा सुबह और शब-ओ-रोज़ आएगा ~बल्कि उसका ज़िक्र सुनना भी ख़ौफ़नाक होगा|20~क्यूँकि पलंग ऐसा छोटा है कि आदमी उस पर दराज़ नहीं हो सकता; और लिहाफ़ ऐसा तंग है कि वह अपने आपको उसमें लपेट नहीं सकता।21क्यूँकि ख़ुदावन्द उठेगा जैसा कोह-ए-पराज़ीम में, और वह ग़ज़बनाक होगा जैसा जिबा'ऊन की वादी में; ताकि अपना काम बल्कि अपना 'अजीब काम करे और अपना काम, हाँ अपना अनोखा, काम पूरा करे।22~इसलिए अब तुम ठठ्ठा न करो, ऐसा न हो कि तुम्हारे बंद सख़्त हो जाएं क्यूँकि मैंने ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़्वाज से सुना है कि उसने कामिल और मुसमम्म इरादा किया है कि सारी सर ज़मीन को तबाह करे |23कान लगा कर मेरी आवाज़ सुनो, सुनने वाले होकर मेरी बात पर दिल लगाओ।24~क्या किसान बोने के लिए हर रोज़ हल चलाया करता है? क्या वह हर वक़्त अपनी ज़मीन को खोदता और उसके ढेले फोड़ा करता है?25~जब उसको हमवार कर चुका, तो क्या वह अजवायन को नहीं छांटता, और ज़ीरे को डाल नहीं देता, और गेहूँ को कतारों में नहीं बोता, और जौ को उसके मु'अय्यन मकान में, और कठिया गेहूँ को उसकी ख़ास क्यारी में नहीं बोता?26~क्यूँकि उसका ख़ुदा उसको तरबियत करके उसे सिखाता है।27कि अजवाइन को दावने के हेंगे से नहीं दावते, और ज़ीरे के ऊपर गाड़ी के पहिये नहीं घुमाते; बल्कि अजवाइन को लाठी से झाड़ते है और ज़ीरे को छड़ी से।28~रोटी के ग़ल्ले पर दाँय चलाता है,लेकिन वह हमेशा उसे कूटता नहीं रहता; और अपनी गाड़ी के पहियों और घोड़ों को उस पर हमेशा फिराता नहीं उसे सरासर नहीं कुचलेगा।29~यह भी रब्ब-उल-अफ़वाज से मुक़र्रर हुआ है, जिसकी मसलहत 'अजीब और दानाई 'अज़ीम है।
1~अरीएल पर अफ़सोस अरीएल उस शहर पर जहाँ दाऊद ख़ेमाज़न हुआ साल पर साल ज़्यादा करो, 'ईद पर 'ईद मनाई जाए।2तोभी मैं अरीएल को दुख दूँगा,~और वहाँ नौहा और मातम होगा लेकिन मेरे लिए वह अरीएल ही ठहरेगा।3~मैं तेरे ख़िलाफ़ चारों तरफ़ ख़ेमाज़न हूँगा और मोर्चा बंदी करके तेरा मुहासरा करूँगा और तेरे ख़िलाफ़ दमदमा बाँधूँगा |4~और तू पस्त होगा, और ज़मीन पर से बोलेगा, और ख़ाक पर से तेरी आवाज़ धीमी आयेगी तेरी सदा भूत की सी होगी जो ज़मीन के अन्दर से निकलेगी, और तेरी बोली ख़ाक पर से चुरुगने की आवाज़ मा'लूम होगी।5~लेकिन तेरे दुश्मनों का ग़ोल बारीक गर्द की तरह होगा, और उन ज़ालिमों के गिरोह उड़नेवाले भूसे की तरह होगी; और यह अचानक एक दम में वाके़' होगा6रब्ब-उल-अफ़वाज ख़ुद गरजने और ज़लज़ले के साथ,और बड़ी आवाज़ और बड़ी आँधी और तूफ़ान और आग के मुहलिक़ शो'ले के साथ तुझे सज़ा देने को आएगा।7~और उन सब क़ौमों का गिरोह जो अरीएल से लड़ेगा, या'नी वह सब जो उससे और उसके क़िले' से जंग करेंगे और उसे दुख देंगे, ख़्वाब या रात के ख़्वाब की तरह हो जायेंगे |8~जैसे भूका आदमी ख़्वाब में देखे कि खा रहा है, जाग उठे और उसका जी न भरा हो; प्यासा आदमी ख़्वाब में देखे कि पानी पी रहा है, जाग उठे और प्यास से बेताब हो' उसकी जान आसूदा न हो; ऐसा ही उन सब क़ौमों के गिरोह का हाल होगा जो सिय्यून पहाड़ से जंग करती हैं।9ठहर जाओ और त'अज्जुब करो, ऐश-ओ-'इशरत करो और अन्धे हो जाओ, वह मस्त हैं लेकिन मय से नहीं, वह लड़खड़ाते हैं लेकिन नशे में नहीं|10~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुम पर गहरी नींद की रूह भेजी है, और तुम्हारी आँखों या'नी नबियों को नाबीना कर दिया; और तुम्हारे सिरों या'नी ग़ैबबीनों पर हिजाब डाल दिया:11और सारी रोया तुम्हारे नज़दीक सरबमुहर किताब के मज़मून की तरह होगी, जिसे लोग किसी पढ़े लिखे को दें और कहें कि इसको पढ़ और वह कहे, पढ़ नहीं सकता,क्यूँकि यह सर-ब-मुहर है|12और ~फिर वह किताब किसी नाख़्वान्दा को दें और कहें, इसको पढ़ और वह कहे,मैं तो पढ़ना नहीं जानता।"13फिर ख़ुदावन्द फ़रमाता है, चूँकि यह लोग ज़बान से मेरी नज़दीकी चाहते हैं और होठों से मेरी ता'ज़ीम करते हैं लेकिन इनके दिल मुझसे दूर हैं मेरा ख़ौफ़ जो इनको हुआ सिर्फ़ आदियों की ता'लीम सुनने से हुआ |14~इसलिए मैं इन लोगों के साथ 'अजीब सुलूक करूँगा, जो हैरत अंगेज़ और ता'अज्जुब ख़ेज़ होगा और इनके 'आक़िलों की 'अक़्ल ज़ायल हो जाएगी और इनके समझदारों की समझ जाती रहेगी।”15उन पर अफ़सोस जो अपनी मश्वरत ख़ुदावन्द से छिपाते हैं', जिनका कारोबार अन्धेरे में होता है और कहते हैं, कौन हम को देखता है? कौन हम को पहचानता है?"16~आह तुम कैसे टेढे हो! क्या कुम्हार मिट्टी के बराबर गिना जाएगा या मसनू'अ अपने सानि'अ से कहेगा, कि मैं तेरी सन'अत नहीं क्या मख़लूक़ अपने ख़ालिक़ से कहेगा, कि तू कुछ नहीं जानता"?17~क्या थोड़ा ही 'अरसा बाक़ी नहीं कि लुबनान शादाब मैदान हो जाएगा, शादाब मैदान जंगल गिना जाएगा?18~और उस वक़्त बहरे किताब की बातें सुनेंगे और अंधों की आँखें तारीकी और अन्धेरे में से देखेंगी।19तब ग़रीब ख़ुदावन्द में ज़्यादा ख़ुश होंगे~और ग़रीब मोहताज इस्राईल के क़ुद्दूस में शादमान होंगे |20क्यूँकि ज़ालिम फ़ना हो जाएगा, और ठठ्ठा करनेवाला हलाक होगा; और सब जो बदकिरदारी के लिए बेदार रहते हैं, काट डाले जाएँगे;21या'नी जो आदमी को उसके मुक़द्दमे में मुजरिम ठहराते, और उसके लिए जिसने 'अदालत से फाटक पर मुक़द्दमा फै़सल किया फंदा लगाते और रास्तबाज़ को बेवजह बरगश्ता करते हैं।22इसलिए ख़ुदावन्द जो इब्राहीम का नजात देनेवाला है, या'क़ूब के ख़ान्दान के हक़ में यूँ फ़रमाता है, कि या'क़ूब अब शर्मिन्दा न होगा, वह हरगिज़ ज़र्द रू न होगा।23बल्कि ~उसके फ़र्ज़न्द अपने बीच मेरी दस्तकारी देख कर मेरे नाम की तक़दीस करेंगे; हाँ या'क़ूब के क़ुद्दूस ~की तक़्दीस करेंगे और इस्राईल के ख़ुदा से डरेंगे।24~और वह भी जो रूह में गुमराह हैं, फ़हम हासिल करेंगे और बुड़बुड़ाने वाले ता'लीम पज़ीर होंगे।"
1ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन बाग़ी लड़कों पर अफ़सोस जो ऐसी तदबीर करते हैं जो मेरी तरफ़ से नहीं,और 'अहद-ओ-पेमान ~करते हैं जो मेरी रूह की हिदायत से नहीं; ताकि गुनाह पर गुनाह करें।2वह मुझ से पूँछे बग़ैर मिस्र को जाते हैं ताकि फ़िर'औन के पास पनाह लें और मिस्र के साये में अम्न से रहें।3लेकिन फ़िरऔन की हिमायत तुम्हारे लिए ख़जालत होगी और मिस्र के साये में पनाह लेना तुम्हारे वास्ते रुस्वाई होगा|4~क्यूँकि उसके सरदार जु़'अन में हैं और उसके कासिद हनीस में जा पहुँचे।5~वह उस क़ौम से जो उनको कुछ फ़ाइदा न पहुँचा सके, और मदद ओयारी नहीं बल्कि खजालत और मलामत का ज़रि'आ हो शर्मिन्दा होंगे।"6दक्खिन के जानवरों के बारे में दुख और मुसीबत की सरज़मीन में, जहाँ से नर-ओ-मादा शेर-ए-बबर और अफ़'ई और उड़नेवाले आग के साँप आते हैं वह अपनी दौलत गधों की पीठ पर, और अपने ख़ज़ाने ऊँटों के कोहान पर लाद कर उस क़ौम के पास ले जाते हैं जिससे उनको कुछ फ़ायदा न पहुँचेगा।7~क्यूँकि मिस्रियों की मदद बातिल और बेफ़ायदा होगी, इसी वजह से मैंने उसे, राहब कहा जो सुस्त बैठी है।"8~अब जाकर उनके सामने इसे तख़्ती पर लिख और किताब में लिख ताकि आइन्दा हमेशा से हमेशा ~तक क़ायम रहे|9क्यूँकि यह बाग़ी लोग और झूठे फ़र्ज़न्द हैं, जो ख़ुदावन्द की शरी'अत को सुनने से इन्कार करते हैं;10जो गै़बबीनों से कहते हैं, "ग़ैबबीनी न करो," और नबियों से, कि "हम पर सच्ची नबुव्वतें ज़ाहिर न करो, हम को ~ ख़ुशगवार बातें सुनाओ, और हम से झूठी नबुव्वत करो,11रास्ते से बाहर जाओ, रास्ते से बरगश्ता हो, और इस्राईल के क़ुद्दूस ~को हमारे बीच से ख़त्म करो।"12~फिर इस्राईल का क़ुददूस यूँ फ़रमाता है, "चूँकि ~तुम इस कलाम को हक़ीर जानते, और ज़ुल्म और कजरवी पर भरोसा रखते, और उसी पर क़ायम हो;13इसलिए यह बदकिरदारी तुम्हारे लिए ऐसी होगी जैसे फटी हुई दीवार जो गिरना चाहती है ऊँची उभरी हुई दीवार जिसका गिरना अचानक एक दम में हो।14~वह इसे कुम्हार के बर्तन की तरह तोड़ डालेगा, इसे बे दरेग़ चकनाचूर करेगा; चुनाँचे ~इसके टुकड़ों में एक ठीकरा भी न मिलेगा जिसमें चूल्हे पर से आग उठाई जाए,या होज़ से पानी लिया जाए।"15~क्यूँकि ख़ुदावन्द यहोवाह, इस्राईल का क़ुददूस यूँ फ़रमाता है, कि वापस आने और ख़ामोश बैठने में तुम्हारी सलामती है; ख़ामोशी और भरोसे में तुम्हारी ताक़त है।" लेकिन तुम ने यह न चाहा।16~तुम ने कहा, "नहीं, हम तो घोड़ों पर चढ़ के भागेंगे;" इसलिए तुम भागोगे; और कहा, "हम तेज़ रफ़्तार जानवरों पर सवार होंगे; "फिर तुम्हारा पीछा करनेवाले तेज़ रफ़्तार होंगे।17एक की झिड़की से एक हज़ार भागेंगे पाँच की झिडकी से तुम ऐसा भागोगे कि तुम उस 'अलामत की तरह जो पहाड़ की चोटी पर और उस निशान की तरह जो कोह पर नसब किया गया हो रह जाओगे।18~तोभी ख़ुदावन्द तुम पर मेहरबानी करने के लिए इन्तिज़ार करेगा, और तुम पर रहम करने के लिए बुलन्द होगा। क्यूँकि ख़ुदावन्द ~इन्साफ़ करने वाला ख़ुदा है, मुबारक हैं वह सब जो उसका इन्तिज़ार करते हैं।19क्यूँकि ऐ सिय्यूनी क़ौम, जो यरुशलीम में बसेगी,तो ~फिर न रोएगी; वह तेरी फ़रियाद की आवाज़ सुन कर यक़ीनन तुझ पर रहम फ़रमाएगा; वह सुनते ही तुझे जवाब देगा।20और अगरचे ख़ुदावन्द तुझ को तंगी की रोटी और मुसीबत का पानी देता है, तोभी तेरा मु'अल्लिम फिर तुझ से रूपोश न होगा; बल्कि तेरी ऑखें उसको देखेंगी।21और जब तू दहनी या बाँई तरफ़ मुड़े, तो तेरे कान तेरे पीछे से यह आवाज़ सुनेंगे, कि "राह यही है, इस पर चल।”22उस ~वक़्त तू अपनी खोदी हुई मूरतों पर मढ़ी हुई चाँदी, और ढाले हुए बुतों पर चढ़े हुए सोने को नापाक करेगा। तू उसे हैज़ के लते की तरह फेंक देगा तू उसे कहेगा, निकल दूर हो|23~तब वह तेरे बीज के लिए जो तू ज़मीन में बोए, बारिश भेजेगा; और ज़मीन की अफ़ज़ाइश की रोटी का ग़ल्ला, 'उम्दा और कसरत से होगा। उस वक़्त तेरे जानवर वसी' चरागाहों में चरेंगे।24और ~बैल और जवान गधे जिनसे ज़मीन जोती जाती है, लज़ीज़ चारा खाएँगे जो बेल्चे और छाज से फटका गया हो।25~और जब बुर्ज गिर जाएँगे और बड़ी ख़ूँरेज़ी होगी, तो हर एक ऊँचे पहाड़ और बुलन्द टीले पर चश्मे और पानी की नदियाँ होंगी।26~और जिस वक़्त ख़ुदावन्द अपने लोगों की शिकस्तगी को दुरुस्त करेगा और उनके ज़ख़्मों को अच्छा करेगा; तो चाँद की चाँदनी ऐसी होगी जैसी सूरज की रोशनी, और सूरज की रोशनी सात गुनी बल्कि सात दिन की रोशनी के बराबर होगी।27देखो ख़ुदावन्द दूर से चला आता है, उसका ग़ज़ब भड़का और धुंवें का बादल उठा उसके लब क़हर आलूदा और उसकी ज़बान भसम करने वाली आग की तरह है|28~उसका दम नदी के सैलाब की तरह है, जो गर्दन तक पहुँच जाए; वह क़ौमों को हलाकत के छाज में फटकेगा और लोगों के जबड़ों में लगाम डालेगा, ताकि उनको गुमराह करे।29~तब तुम गीत गाओगे, जैसे उस रात गाते हो जब मुक़द्दस 'ईद मनाते हो; और दिल की ऐसी ख़ुशी होगी जैसी उस शख़्स की जो बाँसुरी लिए हुए खिरामान हो कि ख़ुदावन्द के पहाड़ में इस्राईल की चट्टान के पास जाए।30क्यूँकि ख़ुदावन्द अपनी जलाली आवाज़ सुनाएगा,~और अपने क़हर की शिद्दत और आतिश-ए-सोज़ान के शो'ले,~और सैलाब और आँधी और ओलों के साथ अपना बाज़ू नीचे लाएगा।31हाँ ख़ुदावन्द की आवाज़ ही से असूर तबाह हो जाएगा वह उसे लठ से मारेगा।32और उस क़ज़ा के लठ की हर एक ज़र्ब जो ख़ुदावन्द उस पर लगाएगा,~दफ़ और बरबत के साथ होगी और वह उससे सख़्त लड़ाई लड़ेगा।33क्यूँकि तूफ़त मुद्दत से तैयार किया गया है;~हाँ, वह बादशाह के लिए गहरा और वसी'~बनाया गया है;~उसका ढेर आग और बहुत सा ईधन है,~और ख़ुदावन्द की साँस गन्धक के सैलाब की तरह उसको सुलगाती है।
1~उसपर अफ़सोस, जो मदद के लिए मिस्र को जाते और घोड़ों पर एतमाद करते हैं और रथों पर भरोसा रखते हैं इसलिए कि वह बहुत हैं, और सवारों पर इसलिए कि वह बहुत ताक़तवर हैं; लेकिन इस्राईल के क़ुददूस पर निगाह नहीं करते और ख़ुदावन्द के तालिब नहीं होते।2~लेकिन वह भी तो 'अक़्लमन्द है और बला नाज़िल करेगा, और अपने कलाम को बातिल न होने देगा वह शरीरों के घराने पर और उन पर जो बदकिरदारों की हिमायत करते हैं चढ़ाई करेगा|3~क्यूँकि मिस्री तो इन्सान हैं ख़ुदा नहीं। और उनके घोड़े गोश्त हैं रूह नहीं सो जब ख़ुदावन्द अपना हाथ बढ़ाएगा तो हिमायती गिर जाएगा , और वह जिसकी हिमायत की गई पस्त हो जाएगा, और वह सब के सब इकट्ठे हलाक हो जायेंगे |4क्यूँकि ~ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ फ़रमाया है कि जिस तरह शेर बबर हाँ जवान शेर बबर अपने शिकार पर से ग़ुर्राता है और अगर बहुत से गड़रिये उसके मुक़ाबिले को बुलाए जाएँ तो उनकी ललकार से नहीं डरता,और ~उनके हुजूम से दब नहीं जाता; उसी तरह रब्ब-उल-अफ़वाज सिय्यून पहाड़ और उसके टीले पर लड़ने को उतरेगा |5~मंडलाते हुए परिन्दे की तरह रब्ब-उल-अफ़्वाज यरुशलीम की हिमायत करेगा;वह ~हिमायत करेगा और रिहाई बख़्शेगा, रहम करेगा और बचा लेगा।”6~ऐ बनी इस्राईल तुम उसकी तरफ़ फिरो जिससे तुम ने सख़्त बग़ावत की है।7~क्यूँकि उस वक़्त उनमें से हर एक अपने चाँदी के बुत और अपनी सोने की मूरतें, जिनको तुम्हारे हाथों ने ख़ताकारी के लिए बनाया, निकाल फेंकेगा8~तब असूर उसी तलवार से गिर जाएगा जो इन्सान की नहीं, और वही तलवार जो आदमी की नहीं उसे हलाक करेगी; वह तलवार के सामने से भागेगा और उसके जवान मर्द ख़िराज गुज़ार बनेंगे |9~और वह ख़ौफ़ की वजह से अपने हसीन मकान से गुज़र जाएगा, और उसके सरदार झण्डे से ख़ौफ़ज़दह हो जाएँगे," ये ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जिसकी आग सिय्यून में और भट्टी यरुशलीम में है।
1~देख एक बादशाह सदाक़त से सल्तनत करेगा और शहज़ादे 'अदालत से हुक्मरानी करेंगे।2और ~एक शख़्स ऑधी से पनाहगाह की तरह होगा, और तूफ़ान से छिपने की जगह; और ख़ुश्क ज़मीन में पानी की नदियों की तरह और मान्दिगी की ज़मीन में ~बड़ी चट्टान के साये की तरह होगा3~उस वक़्त देखनेवालों की आँखें धुन्धली न होंगी, और सुननेवालों के कान सुनने वाले होंगे |4जल्दबाज़ ~का दिल इरफ़ान हासिल करेगा, और लुकनती की ज़बान साफ़ बोलने में मुस्त'इद होगी।5~तब बेवक़ूफ़ बा-मुरव्वत न कहलाएगा और बख़ील को कोई सखी न कहेगा।6~क्यूँकि बेवक़ूफ़ हिमाक़त की बातें करेगा और उसका दिल बदी का मंसूबा बाँधेगा कि बेदीनी करे और ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ दरोग़गोई करे और भूके के पेट को ख़ाली करे और प्यासे को पानी से महरूम रख्खे7~और बख़ील के हथियार ज़बून हैं; वह बुरे मंसूबे बाँधा करता है ताकि झूटी बातों से ग़रीब को और मोहताज को, जब कि ~ वह हक़ बयान करता हो, हलाक करे |8~लेकिन साहब-ए-मुरव्वत सख़ावत की बातें सोचता है, और वह सख़ावत के कामों में साबित क़दम रहेगा।9~ऐ 'औरतों तुम जो आराम में हो, उठो मेरी आवाज़ सुनो;ऐ बे परवा बेटियो, मेरी बातों पर कान लगाओ।10~ऐ बे परवाह 'औरतो, साल से कुछ ज़्यादा 'अर्से में तुम बेआराम हो जाओगी; क्यूँकि अंगूर की फ़स्ल जाती रहेगी फल जमा' करने की नौबत न आयेगी |11ऐ 'औरतों तुम जो आराम में हो थरथराओ , ऐ बेपर्वाओ मुज़्तरिब हो कपड़े उतार कर बरहना हो जाओ, कमर पर टाट बाँधो।12वह ~दिल पज़ीर खेतों और मेवादार ताकों के लिए छाती पीटेंगी।13~मेरे लोगों की सर ज़मीन में काँटे और झाड़ियाँ होंगी बल्कि ख़ुशवक़्त शहर के तमाम ख़ुश घरों में भी।14~क्यूँकि क़स्र ~ख़ाली हो जाएगा,और आबाद शहर तर्क ~किया जाएगा; 'ओफल और दीद बानी का बुर्ज हमेशा तक मांद बनकर गोख़रों की आरामगाहें और गल्लों की चरागाहें होंगे |15~ता वक़्त ये कि आलम-ए-बाला~से हम पर रूह नाज़िल न हो और वीरान शादाब मैदान न बने, और शादाब मैदान जंगल न गिना जाए।16तब ~वीरान में 'अद्ल बसेगा और सदाक़त शादाब मैदान में रहा करेगी।17~और सदाक़त का अंजाम सुलह होगा, और सदाक़त का फल हमेशा आराम-ओ-इत्मीनान होगा18~और मेरे लोग सलामती के मकानों में और बेख़तर घरों में, और आसूदगी और आसाइश के काशानों में रहेंगे |19~लेकिन जंगल की बर्बादी के वक़्त ओले पड़ेंगे औए शहर बिलकुल पस्त हो जायेगा |20~तुम ख़ुशनसीब हो, जो सब नहरों के आसपास बोते हो और बैलों और गधों को उधर ले जाते हो |
1~तुझ पर अफ़सोस कि तू ग़ारत करता है, और ~ग़ारत न किया गया था! तू दगाबाज़ी करता है और किसी ने तुझ से दग़ाबाज़ी न की थी? जब तू ग़ारत~कर चुकेगा तो तू~ग़ारत~ किया जाएगा; और जब तू दग़ाबाज़ी कर चुकेगा, तो और लोग तुझ से दग़ाबाज़ी करेंगे।2ऐ ख़ुदावन्द हम ~पर रहम कर; क्यूँकि ~हम तेरे मुन्तज़िर हैं। तू हर सुबह उनका बाज़ू हो और मुसीबत के वक़्त हमारी नजात।3हंगामे ~की आवाज़ सुनते ही लोग भाग गए, तेरे उठते ही क़ौमें तितर-बितर हो गई।4और ~तुम्हारी लूट का माल इसी तरह बटोरा जायेगा जिस तरह कीड़े बटोर लेते हैं, लोग उस पर टिड्डी की तरह टूट पड़ेंगे।5ख़ुदावन्द ~सरफ़राज़ है, क्यूँकि वह बलन्दी पर रहता है; उसने 'अदालत और सदाक़त से सिय्यून को मा'मूर कर दिया है।6और तेरे ज़माने में अमन होगा नजात व हिकमत और 'अक़्ल ~की फ़िरावानी होगी;~ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ उसका ख़ज़ाना है।7~देख उनके बहादुर बाहर फ़रियाद करते हैं और सुलह के क़ासिद फूट-फूटकर रोते हैं।8~शाहराहें सुनसान हैं,कोई ~चलनेवाला न रहा; उसने 'अहद शिकनी की शहरों को हक़ीर जाना,और ~इन्सान को हिसाब में नहीं लाता |9~ज़मीन कुढ़ती और मुरझाती है। लुबनान रुस्वा हुआ और मुरझा गया,शादून वीराने की तरह है; बसन और कर्मिल बे-बर्ग हो गए |10ख़ुदावन्द~फ़रमाता है, अब मैं उठूँगा; अब मैं सरफ़राज़ हूँगा; अब मैं सर बलन्द हूँगा।11~तुम भूसे से बारदार होगे, फूस तुम से पैदा होगा; तुम्हारा दम आग की तरह तुम को भसम करेगा।12और ~लोग जले चूने की तरह होंगे; वह उन काँटों की तरह होंगे,जो ~काटकर आग में जलाए जाएँ।”13तुम जो दूर हो, सुनो कि मैंने क्या किया; और तुम जो नज़दीक हो, मेरी क़ुदरत का इक़रार करो।14~ वह गुनाहगार जो सिय्यून में हैं डर गए; कपकपी ने बेदीनों को आ दबाया है : 'कौन हम में से उस मुहलिक़ आग में रह सकता है? और कौन हम में से हमेशा के शो'लों के बीच बस सकता है?"15जो रास्तरफ़्तार और दुरुस्तगुफ़्तार हैं जो ~ज़ुल्म के नफ़े' हक़ीर जानता है, जो रिश्वत से दस्तबरदार है, जो अपने कान बन्द करता है ताकि ख़ूँरेज़ी के मज़मून न सुने, और आँखें मून्दता है ताकि बुराई न देखे।16वह बलन्दी पर रहेगा, उसकी पनाहगाह पहाड़ का क़िला' होगी, उसको रोटी दी जाएगी, उसका पानी मुक़र्रर होगा।17~तेरी आँखें बादशाह का जमाल देखेंगी: वह बहुत दूर तक वसी' मुल्क पर नज़र करेंगी।18~तेरा दिल उस दहशत पर सोचेगा कहाँ है वह गिनने वाला कहाँ हैं वह ~तोलनेवाला? कहाँ है वह जो बुर्जों को गिनता था?19तू ~फिर उन तुन्दर्खूँ लोगों को न देखेगा जिनकी बोली तू समझ नहीं सकता उनकी ज़बान बेगाना है जो तेरी समझ में नहीं आती।20~हमारी ईदगाह सिय्यून पर नज़र कर; तेरी आँखें यरुशलीम को देखेंगी जो सलामती का मक़ाम है, बल्कि ऐसा ख़ेमा जो हिलाया न जाएगा, जिसकी मेख़ों में से एक भी उखाड़ी न जाएगी, और उसकी डोरियों में से एक भी तोड़ी न जाएगी।21~बल्कि वहाँ ज़ुलजलाल ख़ुदावन्द, बड़ी नदियों और नहरों के बदले हमारी गुन्जाइश के लिए आप मौजूद होगा कि वहाँ डॉंड की कोई नाव न जाएगी, और न शानदार जहाज़ों का गुज़र उसमें होगा।22~क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारा हाकिम है,ख़ुदावन्द हमारा शरी'अत देने वाला है~ख़ुदावन्द हमारा बादशाह है~~वही हम को बचाएगा।23~तेरी रस्सियाँ ढीली हैं; लोग मस्तूल की चूल को मज़बूत न कर सके, वह बादबान न फैला सके; सो लूट का वाफ़िर माल तक़सीम किया गया, लंगड़े भी ग़नीमत पर क़ाबिज़ हो गए।24वहाँ के बाशिन्दों में भी कोई न कहेगा, कि ‘मैं बीमार हूँ;"~और उनके गुनाह बख़्शे जाएँगे।
1~ऐ क़ौमों नज़दीक आकर सुनो, ऐ उम्मतों कान लगाओ ! ज़मीन और उसकी मा'मूरी, दुनिया और सब चीजें जो उसमें हैं सुने ,2क्यूँकि ~ख़ुदावन्द का क़हर तमाम क़ौमों पर और उसका ग़ज़ब उनकी सब फ़ौजों पर है;उसने ~उनको हलाक कर दिया, उसने उनको ज़बह होने के लिए हवाले किया|3~और उनके मक़तूल फेंक दिए जायेंगे बल्कि उनकी लाशों से बदबू उठेगी और पहाड़ उनके ख़ून से बह जाएँगे।4और ~तमाम अजराम-ए-फ़लक गुदाज़ हो जायेंगे और आसमान तूमार की ~तरह लपेटे जाएँगे; और उनकी तमाम अफ़्वाज ~ताक और अंजीर के मुरझाये हुए पत्तों की तरह गिर जाएँगी।5~क्यूँकि मेरी तलवार आसमान में मस्त हो गई है; देखो, वह अदोम पर और उन लोगों पर जिनको मैंने मल'ऊन किया है सज़ा देने को नाज़िल होगी।6ख़ुदावन्द की तलवार ख़ून आलूदा है; वह चर्बी ~और बर्रों और बकरों के ख़ून से, और मेढ़ों के गुर्दों ~की चर्बी से चिकना गई। क्यूँकि ख़ुदावन्द के लिए बुसराह में एक क़ुर्बानी और अदोम के मुल्क में बड़ी ख़ूँरेज़ी है।7~और उनके साथ जंगली साँड और बछड़े और बैल ज़बह होंगे और उनका मुल्क ख़ून से सेराब हो जाएगा और उनकी गर्द चर्बी ~से चिकना जाएगी।8~क्यूँकि ये ख़ुदावन्द का इन्तक़ाम लेने का दिन और बदला लेने का साल है, जिसमें वह सिय्यून का इन्साफ़ करेगा।9~और उसकी नदियाँ राल होजाएगी और उसकी ख़ाक गंधक और उसकी ज़मीन जलती हुई राल होगी।10~जो शब-ओ-रोज़ कभी न बुझेगी; उससे हमेशा तक धुँवा उठता रहेगा। नस्ल-दर-नस्ल वह उजाड़ रहेगी, हमेशा से हमेशा तक कोई उधर से न गुज़रेगा।11~लेकिन हवासिल और ख़ारपुश्त उसके मालिक होंगे उल्लू और कौवे उसमें बसेंगे; और उस पर वीरानी का सूत' पड़ेगा, और सुनसानी का साहूल डाला जाएगा।12उसके ~अशराफ़ में से कोई न होगा जिसे वह बुलाएँ कि हुक्मरानी करे और उसके सब सरदार नाचीज़ होंगे।13~और उसके क़स्रों ~में कॉटे और उसके क़िलों' में बिच्छू बूटी और ऊँट कटारे उगेंगे और वह गीदड़ों की माँदें और शुतरमुर्ग़ के रहने का मक़ाम होगा|14~और दश्ती दरिन्दे भेड़ियों से मुलाक़ात करेंगे और छगमास अपने साथी को पुकारेगा;हाँ इफ़रात-ए-शब ~वहाँ आराम करेगा और अपने टिकने की जगह पायेगा |15~वहाँ उड़नेवाले साँप का आशियाना होगा और अंडे देना और सैना और अपने साए में जमा' करना होगा वहाँ गिद्ध जमा' होंगे और हर एक के साथ उसकी मादा होगी।16तुम ख़ुदावन्द की किताब में ढूंडो और पढ़ो ~: इनमें से एक भी कम न होगा, और कोई बेजुफ़्त न होगा; क्यूँकि मेरे मुँह ने यही हुक्म किया है और उसकी रूह ने इनको जमा' किया है।17~और उसने इनके लिए पर्ची डाली और उसके हाथ ने इनके लिए उसको ~जरीब से तक़सीम किया। इसलिए वह हमेशा तक उसके मालिक होंगे और नसल दर नसल उसमें बसेगे।
1~जंगल और वीराना शादमान होंगे दश्त ~ख़ुशी करेगा और नरगिस की तरह शगुफ़्ता होगा।2उसमें कसरत से कलियाँ निकलेंगी, वह शादमानी से गा कर ख़ुशी करेगा। लुबनान की शौकत और कर्मिल और शारून की ज़ीनत उसे दी जाएगी; वह ख़ुदावन्द का जलाल और हमारे ख़ुदा की हश्मत देखेंगे।3~कमज़ोर हाथों को ताक़त और नातवान घुटनों को तवानाई दो।4उनको ~जो घबराने वाले हैं कहो, हिम्मत बांधो मत डरो देखो तुम्हारा ख़ुदा सज़ा और जज़ा लिए आता है। हाँ, ख़ुदा ही आएगा और तुम को बचाएगा।"5~उस वक़्त अन्धों की आँखें खोली जायेगी और बहरों के कान खोले जाएँगे।6तब ~लंगड़े हरन की तरह चौकड़ियाँ भरेंगे और गूँगे की ज़बान गाएगी क्यूँकि वीरान में पानी और दश्त में नदियाँ फूट निकलेंगी।7बल्कि ~सराब तालाब हो जाएगा और प्यासी ज़मीन चश्मा बन जाएगी; गीदड़ों की मान्दों में जहाँ वह पड़े थे ने और नल का ठिकाना होगा।8और ~वहाँ एक शाहराह और गुज़रगाह होगी जो पाक राह कहलाएगी; जिससे कोई नापाक गुज़र न करेगा लेकिन ये मुसाफ़िरों के लिए होगी, बेवक़ूफ़ भी उसमें गुमराह न होंगे।9~वहाँ शेर बबर न होगा और न कोई दरिन्दा उस पर चढ़ेगा न वहाँ पाया जाएगा; लेकिन जिनका फ़िदया दिया गया वहाँ सैर करेंगे |10और ~जिनको ख़ुदावन्द ने मख़लसी बख़्शी लौटेंगे और सिय्यून में गाते हुए आएँगे, और हमेशा सुरूर उनके सिरों पर होगा वह ख़ुशी और शादमानी हासिल करेंगे, और ग़म व अंदोह काफू़र हो जाएँगे।
1और ~हिज़क़ियाह बादशाह की सल्तनत के चौदहवें बरस यूँ हुआ कि शाह-ए-असूर ~सनहेरिब ने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों पर चढ़ाई की और उनको ले लिया।2और~शाह-ए-असूर~~ने रबशाक़ी को एक बड़े लश्कर के साथ लकीस से हिज़क़ियाह के पास यरुशलीम को भेजा, और उसने ऊपर के तालाब की नाली पर धोबियों के मैदान की राह में मक़ाम किया।3~तब इलयाक़ीम बिन ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुंशी और मुहर्रिर यूआख़ बिन आसिफ़ निकल कर उसके पास आए।4~और रबशाक़ी ने उनसे कहा,तुम ~हिज़क़ियाह से कहो : कि मलिक-ए-मु'अज्ज़म शाह-ए-असूर यूँ ~फ़रमाता है कि तू क्या एतमाद किए बैठा है?5~क्या मशवरत और जंग की ताक़त मुँह की बातें ही हैं आख़िर किस के भरोसे पर तूने मुझ से सरकशी की है?6~देख, तुझे उस मसले हुए सरकंडे के 'असा या'नी मिस्र पर भरोसा है; उस पर अगर कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में गड़ जाएगा और उसे छेद देगा। शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन उन सब के लिए, जो उस पर भरोसा करते हैं ऐसा ही है।7फ़िर अगर तू मुझ से यूँ कहे कि हमारा तवक्कुल ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा पर है,तो क्या वह वही नहीं है जिसके ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को ढाकर हिज़क़ियाह ने यहूदाह और यरुशलीम से कहा है कि तुम इस मज़बह के आगे सिज्दा किया करो|8~इसलिए अब ज़रा मेरे आक़ा शाह-ए-असूर के साथ शर्त बाँध और मैं तुझे दो हज़ार घोड़े दूँगा, बशर्ते कि तू अपनी तरफ़ से उन पर सवार चढ़ा सके।9~भला तू क्यूँकर मेरे आक़ा के कमतरीन मुलाज़िमों में से एक सरदार का भी मुँह फेर सकता है? और तू रथों और सवारों के लिए मिस्र पर भरोसा करता है?10~और क्या अब मैंने ख़ुदावन्द के बे कहे ही इस मक़ाम को ग़ारत करने के लिए इस पर चढ़ाई की है? ख़ुदावन्द ही ने तो मुझ से कहा कि इस मुल्क पर चढ़ाई कर और इसे ग़ारत करदे11~तब इलियाक़ीम और शबनाह और यूआख़ ने रबशाक़ी से 'अर्ज़ की कि अपने ख़ादिमों से अरामी ज़बान में बात कर, क्यूँकि हम उसे समझते हैं, और दीवार पर के लोगों के सुनते हुए यहूदियों की ज़बान में हम से बात न कर।"12लेकिन रबशाक़ी ने कहा, "क्या मेरे आक़ा ने मुझे ये बातें कहने को तेरे आक़ा के पास या तेरे पास भेजा है? क्या उसने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा, जो तुम्हारे साथ अपनी ही नजासत खाने और अपना ही क़ारूरा पीने को दीवार पर बैठे हैं?13~फिर रबशाक़ी खड़ा हो गया और यहूदियों की ज़बान में बलन्द आवाज़ से यूँ कहने लगा, कि मुल्क-ए-मु'अज्ज़म शाह-ए-असूर का कलाम सुनो!14~ बादशाह यूँ फ़रमाता है : कि हिज़क़ियाह तुम को धोखा न दे, क्यूँकि वह तुम को छुड़ा नहीं सकेगा।15~और न वह ये कह कर तुम से ख़ुदावन्द पर भरोसा कराए कि ख़ुदावन्द ज़रूर हम को छुड़ाएगा, और ये शहर शाह-ए-असूर के हवाले न किया जाएगा।16हिज़क़ियाह~की न सुनो; क्यूँकि~ शाह-ए-असूर यूँ फ़रमाता है कि तुम मुझ से सुलह कर लो,और ~निकलकर मेरे पास आओ; तुम में से हर एक अपनी ताक और अपने अँजीर के दरख़्त का मेवा खाता और अपने हौज़ का पानी पीता रहे।17जब तक कि मैं आकर तुम को ऐसे मुल्क में न ले जाऊँ, जो तुम्हारे मुल्क की तरह ग़ल्ला ~और मय का मुल्क, रोटी और ताकिस्तानों का मुल्क है।18~ख़बरदार ऐसा न हो कि हिज़क़ियाह तुम को ये कह कर तरग़ीब दे, कि ख़ुदावन्द हम को छुड़ाएगा। क्या क़ौमों के मा'बूदों में से किसी ने भी अपने मुल्क को~ शाह-ए-असूर के हाथ से छुड़ाया है?19~हमात और अरफ़ाद के मा'बूद कहाँ हैं? सिफ़वाईम के मा'बूद कहाँ हैं? क्या उन्होंने सामरिया को मेरे हाथ से बचा लिया?20~इन मुल्कों के तमाम मा'बूदों में से किस किस ने अपना मुल्क मेरे हाथ से छुड़ा लिया, जो ख़ुदावन्द भी यरुशलीम को मेरे हाथ से छुड़ा लेगा?" "21~लेकिन वह ख़ामोश रहे और उसके जवाब में उन्होंने एक बात भी न कही; क्यूँकि बादशाह का हुक्म ये था कि उसे जवाब न देना।22~और इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुंशी और यूआख़-बिन-आसफ़ मुहर्रिर अपने कपड़े चाक किए हुए हिज़क़ियाह के पास आए और रबशाक़ी की बातें उसे सुनाई।
1जब हिज़क़ियाह बादशाह ने ये सुना तो अपने कपड़े फाड़े और टाट ओढ़कर ~ख़ुदावन्द के घर में गया।2और उसने घर के दीवान इलियाक़ीम और शबनाह मुंशी और काहिनों के बुज़ुर्गों को टाट उढ़ा कर आमूस के बेटे यसा'याह नबी के पास भेजा।3~और उनहोंने उससे कहा कि~हिज़क़ियाह यूँ कहता है कि आज का~दिन दुख और मलामत और तौहीन का दिन है क्यूँकि बच्चे पैदा होने पर हैं और विलादत की ताक़त नहीं।4~शायद ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा रबशाक़ी की बातें सुनेगा जिसे उसके आक़ा~शाह-ए-असूर ने भेजा है कि ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करे; और जो बातें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने सुनीं, उनपर वह मलामत करेगा। फिर तू उस बक़िये के लिए जो मौजूद है दू'आ कर | ''5~तब ~हिज़क़ियाह बादशाह के मुलाज़िम यसा'याह के पास आए।6और यसा'याह ने उनसे कहा, "तुम अपने आक़ा से यूँ कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू उन बातों से जो तूने सुनी हैं,~जिनसे शाह-ए-असूर के मुलाज़िमों ने मेरी तकफ़ीर की है,~परेशान न हो।7~देख मैं उसमें एक रूह डाल दूँगा,और वह एक अफ़वाह सुनकर अपने मुल्क को लौट जाएगा, मैं उसे उसी के मुल्क में तलवार से मरवा डालूँगा।'8इसलिए रबशाक़ी लौट गया और उसने~शाह-ए-असूर को लिबनाह से लड़ते पाया, क्यूँकि उसने सुना था कि वह लकीस से चला गया है।9और उसने कूश के बादशाह तिरहाक़ा के ज़रिए' सुना कि वह तुझ से लड़ने को निकला है; और जब उसने ये सुना, तो हिज़क़ियाह के पास क़ासिद भेजे और कहा,10~"शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह से यूँ कहना, कि तेरा ख़ुदा जिस पर तेरा यक़ीन है, तुझे ये कह कर धोखा न दे कि यरुशलीम शाह-ए-असूर के क़ब्ज़े में न किया जाएगा।11देख तूने सुना है कि असूर के बादशाहों ने तमाम मुल्कों को बिलकुल ग़ारत करके उनका क्या हाल बनाया है; इसलिए क्या तू बचा रहेगा?12क्या ~उन क़ौमों के मा'बूदों ने उनको, या'नी जूज़ान और हारान और रसफ़ और बनी 'अदन को जो तिलसार में थे, जिनको हमारे बाप-दादा ने हलाक किया, छुड़ाया|13~हमात का बादशाह, और अरफ़ाद का बादशाह, और शहर सिफ्रवाईम और हेना' और 'इवाह का बादशाह कहाँ है|14हिज़क़ियाह~ने क़ासिदों के हाथ से ख़त लिया और उसे पढ़ा और~हिज़क़ियाह ने ~ख़ुदावन्द के घर जाकर उसे ख़ुदावन्द के सामने फैला दिया।15~और हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द से यूँ दु'आ की,16~"ऐ रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल के ख़ुदा करूबियों के ऊपर बैठनेवाले; तू ही अकेला ज़मीन की सब सल्तनतों का ख़ुदा है, तू ही ने आसमान और ज़मीन को पैदा किया।17~ऐ ख़ुदावन्द कान लगा और सुन; ऐ ख़ुदावन्द अपनी आँखें खोल और देख;और ~सनहेरिब की इन सब बातों को जो उसने ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करने के लिए कहला भेजी हैं,सुनले18~ऐ ख़ुदावन्द, दर-हक़ीक़त असूर के बादशाहों ने सब क़ौमों को उनके मुल्कों" के साथ तबाह किया,19और उनके मा'बूदों को आग में डाला, क्यूँकि वह ख़ुदा न थे बल्कि आदमियों की दस्तकारी थे, लकड़ी और पत्थर; इसलिए उन्होंने उनको हलाक किया है।20इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, हम को उसके हाथ से बचा ले, ताकि ज़मीन की सब सल्तनतें जान लें कि तू ही अकेला ख़ुदावन्द है।21~तब यसा'याह बिन आमूस ने हिज़क़ियाह को कहला भेजा,कि ख़ुदावन्द ~इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है ~चूँकि तूने शाह-ए-असूर सनहेरिब के ख़िलाफ़ मुझ से दु'आ की है,22~इसलिए ख़ुदावन्द ने उसके हक़ में यूँ फ़रमाया है, कि 'कुँवारी दुख़्तर-ए-सिय्यून ने तेरी तहक़ीर की और तेरा मज़ाक़ उड़ाया है। यरुशलीम की बेटी ने तुझ पर सिर हिलाया है।23~तूने किस की तौहीन-ओ-तक्फ़ीर की है? तूने किसके ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बलन्द की और अपनी आँखें ऊपर उठाई? इस्राईल के क़ुददूस के ख़िलाफ़।24~तूने अपने ख़ादिमों के ज़रीए से ख़ुदावन्द की तौहीन की और कहा कि मैं अपने बहुत से रथों को साथ लेकर पहाड़ों की चोटियों पर बल्कि लुबनान के बीच ~हिस्सों तक चढ़ आया हूँ, और मैं उसके ऊँचे ऊँचे देवदारों और अच्छे से अच्छे सनोबर के दरख़्तों को काट डालूँगा, और मैं उसके चोटी पर के ज़रखे़ज़ जंगल में जा घुसूंगा।25~मैंने खोद खोद कर पानी पिया है और मैं अपने पाँव के तल्वे से मिस्र की सब नदियाँ सुखा डालूँगा।26~क्या तूने नहीं सुना कि मुझे ये किए हुए मुद्दत हुई;~और मैंने पिछले दिनों से ठहरा दिया था?~अब मैंने उसी को पूरा किया है कि तू फ़सीलदार शहरों को उजाड़ कर खण्डर बना देने के लिए खड़ा हो।27इसी वजह से उनके बाशिन्दे कमज़ोर हुए और घबरा गए, और शर्मिन्दा हुए; और मैदान की घास और पौध, छतों पर की घास , खेत के अनाज की तरह हो गए जो अभी बढ़ा न हो।28मैं तेरी निशस्त और आमद-ओ-रफ़्त और तेरा मुझ पर झुंझलाना जानता हूँ|29~तेरे मुझ पर झुंझलाने की वजह से और इसलिए कि तेरा घमण्ड मेरे कानों तक पहुँचा है, मैं अपनी नकेल तेरी नाक में और अपनी लगाम तेरे मुँह में डालूँगा , और तू जिस राह से आया है मैं तुझे उसी राह से वापस लौटा दूँगा।'30और तेरे लिए ये निशान होगा कि तुम इस साल वह चीज़ें जो अज़-ख़ुद उगती हैं,और दूसरे साल वह चीज़ें जो उनसे पैदा हों खाओगे; और तीसरे साल तुम बोना और काटना और बाग़ लगा कर उनका फल खाना|31और वह बक़िया जो यहूदाह के घराने से बच रहा है, फिर नीचे की तरफ जड़ पकड़ेगा और ऊपर की तरफ़ फल लाएगा;32~क्यूँकि एक बक़िया यरुशलीम में से और वह जो बच रहे हैं। सिय्यून पहाड़ से निकलेंगे; रब्ब-उल-अफ़वाज की ग़य्यूरी ये कर दिखाएगी।33~"इसलिए ख़ुदावन्द शाह-ए-असूर के हक़ में यूँ फ़रमाता है कि वह इस शहर में आने या यहाँ तीर चलाने न पाएगा; वह न तो सिपर लेकर उसके सामने आने और न उसके सामने दमदमा बाँधने पाएगा।34~बल्कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि जिस रास्ते से वह आया उसी रास्ते से लौट जाएगा, और इस शहर में आने न पाएगा।35~क्यूँकि मैं अपनी ख़ातिर और अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, इस शहर की हिमायत करके इसे बचाऊँगा।"36~फिर ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने असूरियों की लश्करगाह में जाकर एक लाख पिच्चासी हज़ार आदमी जान से मार डाले; और सुबह ~को जब लोग सवेरे उठे, तो देखा कि वह सब पड़े हैं।37~तब शाह-ए-असूर सनहेरिब रवानगी करके वहाँ से चला गया और लौटकर नीनवाह में रहने लगा |38और ~जब वह अपने ~मा'बूद निसरूक के मंदिर में 'इबादत कर रहा था तो अदरम्मलिक और शराज़र, उसके बेटों ने उसे तलवार से क़त्ल किया और अरारात की सर ज़मीन को भाग गए। और उसका बेटाअसरहद्दन उसकी जगह बादशाह हुआ
1उन ही दिनों में~हिज़क़ियाह ऐसा बीमार पड़ा कि मरने के क़रीब हो गया और यसा'याह नबी आमूस के बेटे ने उसके पास आकर उससे कहा कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू अपने घर का इन्तिज़ाम करदे क्यूँकि तू मर जाएगा और बचने का नहीं |2तब~हिज़क़ियाह ने अपना मुँह दीवार की तरफ़ किया और ख़ुदावन्द से दु'आ की |3~और कहा ऐ ख़ुदावन्द मैं ~तेरी मिन्नत करता हूँ याद फ़रमा कि ~मैं तेरे सामने सच्चाई और पूरे दिल से चलता रहा हूँ, और जो तेरी नज़र में अच्छा ~है वही किया है और ~हिज़क़ियाह ज़ार-ज़ार रोया|4तब ~ख़ुदावन्द का ये कलाम यसायाह पर नाज़िल हुआ5~कि जा और हिज़क़ियाह~से कह कि~ख़ुदावन्द तेरे बाप दाऊद का ख़ुदा यूँ~फ़रमाता है कि मैंने तेरी~दू'आ सुनी,मैंने तेरे आँसू देखे इसलिए देख मैं तेरी 'उम्र पन्द्रह बरस और बढ़ा दूँगा |6और ~मैं तुझ को और इस शहर को~शाह-ए-असूर के हाथ से बचा लूँगा;और मैं इस शहर की हिमायत करूँगा।7और ख़ुदावन्द की तरफ़ से तेरे लिए ये निशान ~होगा कि ख़ुदावन्द इस बात को जो उसने फ़रमाई पूरा करेगा|8देख मैं आफ़ताब के ढले हुए साए के दर्जों में से आख़ज़ की धूप घड़ी के मुताबिक़ दस दर्जे पीछे को लौटा दूँगा चुनाँचे आफ़ताब जिन दर्जों से ढल गया था उनमें के दस दर्जे फिर लौट गया |9शाह-ए-यहूदाह ~हिज़क़ियाह की तहरीर, जब ~वह बीमार था और अपनी बीमारी से शिफ़ायाब हुआ |10~मैंने कहा मैं अपनी आधी 'उम्र में पाताल के फाटकों में दाख़िल हूँगा, मेरी ज़िन्दगी के बाक़ी बरस मुझसे छीन लिए गए|11मैंने कहा मैं ख़ुदावन्द को हाँ ख़ुदावन्द को ज़िन्दों की ज़मीन में फिर न देखूँगा, इन्सान और दुनिया के बाशिन्दे मुझे फिर दिखाई न देंगे|12मेरा घर उजड़ गया है और गडरिए के ख़ेमा की तरह मुझसे दूर किया गया मैंने जुलाहे की तरह अपनी ज़िन्दगानी को लपेट लिया है वह मुझको तांत से काट डालेगा सुबह से शाम तक तू मुझको तमाम कर डालता है|13मैंने ~सुबह तक तहम्मुल किया;तब वह शेर बबर की तरह मेरी सब हड्डियाँ चूर कर डालता है सुबह से शाम तक तू मुझे तमाम कर डालता है |14मैं अबाबील और सारस की तरह चीं-चीं करता रहा; मैं कबूतर की तरह कुढ़ता रहा; मेरी ऑखें ऊपर देखते-देखते पथरा गईं ऐ ख़ुदावन्द, मैं बे-कस हूँ, तू मेरा कफ़ील हो।15मैं क्या कहूँ? उसने तो मुझ से वा'दा किया, और उसी ने उसे पूरा किया; मैं अपनी बाक़ी उम्र अपनी जान की तल्ख़ी की वजह से आहिस्ता आहिस्ता बसर करूँगा|16ऐ ख़ुदावन्द, इन्हीं चीज़ों से इन्सान की ज़िन्दगी है, और इन्ही में मेरी रूह की हयात है; इसलिए तू ही शिफ़ा बख़्श और मुझे ज़िन्दा रख।17देख, मेरा सख़्त रन्ज राहत से तब्दील हुआ;और मेरी जान पर मेहरबान होकर तूने उसे हलाकी के गढे से रिहाई दी; क्यूँकि तूने मेरे सब गुनाहों को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया।18इसलिए कि पाताल तेरी 'इबादत नहीं कर सकता; और मौत से तेरी हम्द नहीं हो सकती। वह जो क़ब्र में उतरने वाले हैं तेरी सच्चाई के उम्मीदवार नहीं हो सकते।19ज़िन्दा,' हाँ, ज़िन्दा ही तेरी तम्जीद करेगा~जैसा आज के दिन मैं करता हूँ, बाप अपनी औलाद को तेरी सच्चाई की ख़बर देगा।20ख़ुदावन्द मुझे बचाने को तैयार है; इसलिए हम अपने तारदार साज़ों के साथ 'उम्र भर ख़ुदावन्द के घर में सरोदख़्वानी करते रहेंगे।21यसा'याह ने कहा था, कि'अंजीर की टिकिया लेकर फोड़े पर बाँधे, और वह शिफ़ा पाएगा।"22और हिज़क़ियाह ने कहा था, इसका क्या निशान है कि मैं ख़ुदावन्द के घर में जाऊँगा|
1उस वक़्त मरूदक बल्दान-बिन-बल्दान,शाह-ए-बाबुल ने हिज़क़ियाह के लिए नामे और तहाइफ़ भेजे; क्यूँकि उसने सुना था कि वह बीमार था और शिफ़ायाब हुआ।2और हिज़क़ियाह उनसे बहुत ख़ुश हुआ और अपने ख़ज़ाने, या'नी चाँदी और सोना और मसालेह और बेश क़ीमत 'इत्र और तमाम सिलाह ख़ाना, और जो कुछ उसके ख़ज़ानों में मौजूद था उनको दिखाया। उसके घर में और उसकी सारी ममलुकत में ऐसी कोई चीज़ न थी, जो हिज़क़ियाह ने उनको न दिखाई।3तब यसा'याह नबी ने हिज़क़ियाह बादशाह के पास आकर उससे कहा, कि "ये लोग क्या कहते थे, और ये कहाँ से तेरे पास आए?" हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, कि "ये एक दूर के मुल्क, या'नी बाबुल से मेरे पास आए हैं।"4तब उसने पूछा, कि "उन्होंने तेरे घर में क्या-क्या देखा?" हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, "सब कुछ जो मेरे घर में है, उन्होंने देखा : मेरे ख़ज़ानों में ऐसी कोई चीज़ नहीं जो मैंने उनको दिखाई न हो।"5तब यसा'याह ने हिज़क़ियाह से कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज का कलाम सुन ले :6देख, वह दिन आते हैं कि सब कुछ जो तेरे घर में है, और जो कुछ तेरे बाप दादा ने आज के दिन तक जमा' कर रख्खा है बाबुल को ले जायेंगे ;ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कुछ भी बाक़ी न रहेगा।7और वह तेरे बेटों में से जो तुझ से पैदा होंगे और जिनका बाप तू ही होगा, कितनों को ले जाएँगे; और वह शाह-ए-बाबुल के महल में ख्वाजासरा होंगे |8तब हिज़क़ियाह ने यसा'याह से कहा, 'ख़ुदावन्द का कलाम जो तूने सुनाया भला है।" और उसने ये भी कहा, "मेरे दिनों में तो सलामती और अम्न होगा।
1तसल्ली दो तुम मेरे लोगों को तसल्ली दो; तुम्हारा ख़ुदा फ़रमाता है।2यरुशलीम को दिलासा दो; और उसे पुकार कर कहो कि उसकी मुसीबत के दिन जो जंग-ओ-जदल के थे गुज़र गए, उसके गुनाह का कफ़्फ़ारा हुआ; और उसने ख़ुदावन्द के हाथ से अपने सब गुनाहों का बदला दो चन्द पाया ।3पुकारनेवाले की आवाज़ : "वीरान में ख़ुदावन्द की राह दुरुस्त करो, सहरा में हमारे ख़ुदा के लिए शाहराह हमवार करो ।4हर एक नशेब ऊँचा किया जाए, और हर एक पहाड़ और टीला पस्त किया जाए; और हर एक टेढ़ी चीज़ सीधी और हर एक नाहमवार जगह हमवार की जाए।5और ख़ुदावन्द का जलाल आशकारा होगा और तमाम बशर उसको देखेगा क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने मुँह से फ़रमाया है |6एक आवाज़ आई कि 'ऐलान कर, और मैंने कहा मैं क्या 'ऐलान करूँ, हर बशर घास की तरह है और उसकी सारी रौनक़ मैदान के फूल की तरह |7घास मुरझाती है, फूल कुमलाता है; क्यूँकि ख़ुदावन्द की हवा उस पर चलती है; यक़ीनन लोग घास हैं।8हाँ, घास मुरझाती है, फूल कुमलाता है; लेकिन हमारे ख़ुदा का कलाम हमेशा तक क़ायम है।9ऐ सिय्यून को ख़ुशख़बरी सुनाने वाली, ऊँचे पहाड़ पर चढ़ जा; और ऐ यरुशलीम को बशारत देनेवाली, ज़ोर से अपनी आवाज़ बलन्द कर, ख़ूब पुकार, और मत डर; यहूदाह की बस्तियों से कह, 'देखो, अपना ख़ुदा !"10देखो, ख़ुदावन्द ख़ुदा बड़ी कु़दरत के साथ आएगा, और उसका बाज़ू उसके लिए सल्तनत करेगा; देखो, उसका सिला उसके साथ है, और उसका अज्र उसके सामने।11वह चौपान की तरह अपना गल्ला चराएगा, वह बर्रों को अपने बाज़ूओं में जमा' करेगा और अपनी बग़ल में लेकर चलेगा, और उनको जो दूध पिलाती हैं आहिस्ता आहिस्ता ले जाएगा।12किसने समन्दर को चुल्लू से नापा और आसमान की पैमाइश बालिश्त से की,और ज़मीन की गर्द को पैमाने में भरा, और पहाड़ों को पलड़ों में वज़न किया और टीलों को तराजू़ में तोला।13किसने ख़ुदावन्द की रूह की हिदायत की, या उसका सलाहकार होकर उसे सिखाया?14उसने किससे मश्वरत ली है जो उसे ता'लीम दे, और उसे 'अदालत की राह सुझाए और उसे मा'रिफ़त की बात बताए, और उसे हिकमत की राह से आगाह करे?15देख, क़ौमें डोल की एक बूँद की तरह हैं, और तराजू़ की बारीक गर्द की तरह गिनी जाती हैं; देख, वह जज़ीरों को एक ज़र्रें की तरह उठा लेता है।16लुबनान ईंधन के लिए काफ़ी नहीं और उसके जानवर सोख्तनी क़ुर्बानी के लिए बस नहीं।17इसलिए सब क़ौमें उसकी नज़र में हेच हैं, बल्कि वह उसके नज़दीक बतालत और नाचीज़ से भी कमतर गिनी जाती हैं।18तुम ख़ुदा को किससे तशबीह दोगे और कौन सी चीज़ उससे मुशाबह ठहराओगे?19तराशी हुई मूरत! कारीगर ने उसे ढाला, और सुनार उस पर सोना मढ़ता है और उसके लिए चाँदी की जज़ीरें बनाता है।20और जो ऐसा तहीदस्त है कि उसके पास नजर गुज़रानने को कुछ नहीं, वह ऐसी लकड़ी चुन लेता है जो सड़ने वाली न हो; वह होशियार कारीगर की तलाश करता है, ताकि ऐसी मूरत बनाए जो क़ायम रह सके।21क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? क्या ये बात इब्तिदा ही से तुम को बताई नहीं गई? क्या तुम बिना-ए-'आलम से नहीं समझे?22वह मुहीत-ए-ज़मीन पर बैठा है, और उसके बाशिन्दे टिड्डों की तरह हैं; वह आसमान को पर्दे की तरह तानता है, और उसको सुकूनत के लिए खे़मे की तरह फैलाता है।23जो शहज़ादों को नाचीज़ कर डालता, और दुनिया के हाकिमों को हेच ठहराता है।24वह अभी लगाए न गए, वह अभी बोए न गए; उनका तना अभी ज़मीन में जड़ न पकड़ चुका कि वह सिर्फ़ उन पर फूँक मारता है और वह ख़ुश्क हो जाते है और हवा का झोंका ~उनको भूसे की तरह उड़ा ले जाता है।25वह क़ुद्दूस फ़रमाता है तुम मुझे किससे तशबीह दोगे और मैं किस चीज़ से मशाबह हूँगा|26अपनी आँखें ऊपर उठाओ और देखो कि इन सबका ख़ालिक़ कौन है? वही जो इनके लश्कर को शुमार करके निकालता है, और उन सबको नाम-ब-नाम बुलाता है। उसकी क़ुदरत की 'अज़मत और उसके बाज़ू की ~तवानाई की वजह से एक भी ग़ैर हाज़िर नहीं रहता।27तब ऐ या'क़ूब ! तू क्यूँ यूँ कहता है; और ऐ इस्राईल! तू किस लिए ऐसी बात करता है, कि "मेरी राह ख़ुदावन्द से पोशीदा है और मेरी 'अदालत मेरे ख़ुदा से गुज़र गई"?28क्या तू नहीं जानता, क्या तूने नहीं सुना ? कि ख़ुदावन्द हमेशा का ख़ुदा~व तमाम ज़मीन का ख़ालिक़ थकता नहीं और मांदा नहीं होता उसकी हिकमत इदराक से बाहर है।29वह थके हुए को ज़ोर बख़्शता है और नातवान की तवानाई को ज़्यादा करता है।30नौजवान भी थक जाएँगे,और ~मान्दा होंगे और सूर्मा बिल्कुल गिर पड़ेंगे;31लेकिन ख़ुदावन्द का इन्तिज़ार करने वाले, अज़-सर-ए-नौ ज़ोर हासिल करेंगे; वह उक़ाबों की तरह बाल-ओ-पर से उड़ेंगे", वह दौड़ेंगे और न थकेंगे, वह चलेंगे और मान्दा न होंगे।
1ऐ जज़ीरो, मेरे सामने ख़ामोश रहो; और उम्मतें अज़-सर-ए-नौ-ज़ोर ~हासिल करें; वह नज़दीक आकर 'अर्ज़ करें; आओ, हम मिलकर 'अदालत के लिए नज़दीक हों।2किसने पूरब से उसको खड़ा किया, जिसको वह सदाक़त से अपने क़दमों में बुलाता है? वह क़ौमों को उसके हवाले करता और उसे बादशाहों पर मुसल्लित करता है; और उनको ख़ाक की तरह उसकी तलवार की तरफ़ उड़ती हुई भूसी की तरह उसकी कमान के हवाले करता है, |3वह उनका पीछा करता और उस राह से जिस पर पहले क़दम न रख्खा था, सलामत गुज़रता है।4ये किसने किया और इब्तिदाई नस्लों को तलब करके अन्जाम दिया? मैं ख़ुदावन्द ने, जो अव्वल-ओ-आख़िर हूँ, वह मैं ही हूँ।5ज़मीन के किनारे थर्रा गए वह नज़दीक आते गए |6उनमें से हर एक ने अपने पड़ौसी की मदद की और अपने भाई से कहा, "हौसला रख!”7बढ़ई ने सुनार की और उसने जो हथौड़ी से साफ़ करता है उसकी जो निहाई पर पीटता है, हिम्मत बढ़ाई और कहा जोड़ तो अच्छा है, इसलिए उनहोंने उसको मैंख़ों से मज़बूत किया ताकि क़ायम रहे|8~लेकिन तू ऐ इस्राईल, मेरे बन्दे! ऐ या'क़ूब, जिसको मैंने पसन्द किया, जो मेरे दोस्त इब्राहीम की नस्ल से है।~ܗ9तू जिसको मैंने ज़मीन की इन्तिहा से बुलाया और उसके अतराफ़ से तलब किया और तुझको कहा कि तू मेरा बंदा है मैंने तुझको पसन्द किया और तुझको रद्द न किया |10तू मत डर, क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ; परेशान न हो, क्यूँकि मैं तेरा ख़ुदा हूँ, मैं तुझे ज़ोर बख़्शूँगा, मैं यक़ीनन तेरी मदद करूँगा , और मैं अपनी सदाक़त के दहने हाथ से तुझे संभालूँगा।11देख, वह सब जो तुझ पर ग़ज़बनाक हैं, पशेमान और रूस्वा होंगे; वह जो तुझ से झगड़ते हैं, नाचीज़ हो जाएँगे और हलाक होंगे।12तू अपने मुख़ालिफ़ों को ढूँड़ेगा और न पाएगा, तुझ से लड़नेवाले नाचीज़-ओ-हलाक हो जाएँगे।13क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरा दहना हाथ पकड़ कर कहूँगा "मत डर, मैं तेरी मदद करूँगा ।14परेशान न हो, ऐ कीड़े या'क़ूब ! ऐ ~इस्राईल की क़लील जमा'अत मैं तेरी मदद करूँगा ,~ख़ुदावन्द फ़रमाता है; हाँ मैं जो इस्राईल~का कु़ददूस तेरा फ़िदिया देनेवाला हूँ।~,15देख, मैं तुझे गहाई का नया और तेज़ दन्दानादार आला बनाऊँगा; तू पहाड़ों को कूटेगा और उनको रेज़ा-रेज़ा करेगा, और टीलों को भूसे की तरह बनाएगा।16तू उनको उसाएगा और हवा उनको उड़ा ले जाएगी, धूल उनको तितर-बितर करेगी; लेकिन तू ख़ुदावन्द से ख़ुश होगा और इस्राईल के क़ुददूस पर फ़ख्ऱ करेगा।17मुहताज और ग़रीब पानी ढूँडते फिरते हैं लेकिन मिलता नहीं, उनकी ज़बान प्यास से ख़ुश्क है; मैं ख़ुदावन्द उनकी सुनूँगा, मैं इस्राईल का ख़ुदा उनको तर्क न करूँगा ।18मैं नंगे टीलों पर नहरें और वादियों में चश्मे खोलूँगा, सहरा को तालाब और ख़ुश्क ज़मीन को पानी का चश्मा बना दूँगा।19वीराने में देवदार और बबूल और आस और जै़तून के दरख़्त लगाऊँगा" सेहरा में चीड़ और सरो व सनोबर इकठ्ठा लगाऊँगा|,20ताकि वह सब देखें और जानें और ग़ौर करें, और समझे के ख़ुदावन्द ही के हाथ ने ये बनाया और इस्राईल के कु़ददूस ने ये पैदा किया।21ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अपना दा'वा पेश करो," या'क़ूब का बादशाह फ़रमाता है, "अपनी मज़बूत दलीलें लाओ।"22वह उनको हाज़िर करें ताकि वह हम को होने वाली चीज़ों की ख़बर दें: हम से अगली बातें बयान करो कि क्या थीं, ताकि हम उन पर सोचें और उनके अंजाम को समझें या आइंदा की होने वाली बातों से हम को आगाह करो।23बताओ कि आगे को क्या होगा, ताकि हम जानें कि तुम इलाह हो; हाँ, भला या बुरा कुछ तो करो ताकि हम मुताज्जिब हों और एक साथ उसे देखें।24देखो, तुम हेच और बेकार हो, तुम को पसन्द करनेवाला मकरूह है।25मैंने उत्तर से एक को खड़ा किया है, वह आ पहुँचा; वह आफ़ताब के मतले' से होकर मेरा नाम लेगा, और शाहज़ादों को गारे की तरह लताड़ेगा जैसे कुम्हार मिट्टी गूँधता है।26किसने ये इब्तिदा से बयान किया कि हम जानें? और किसने आगे से ख़बर दी कि हम कहें कि सच है? कोई उसका बयान करने वाला नहीं, कोई उसकी ख़बर देने वाला नहीं कोई नहीं जो तुम्हारी बातें सुने।27मैं ही ने पहले सिय्यून से कहा, कि "देख, उनको देख!” और मैं ही यरुशलीम को एक बशारत देनेवाला बख़्शूँगा ।28क्यूँकि मैं देखता हूँ कि उनमें कोई सलाहकार नहीं जिससे पूछूँ ,और वह मुझे जवाब दे।29देखो, वह सब के सब बतालत हैं; उनके काम हेच हैं; उनकी ढाली हुई मूरतें बिल्कुल नाचीज़ हैं।
1देखो मेरा ख़ादिम, जिसको मैं संभालता हूँ, मेरा बरगुज़ीदा, जिससे मेरा दिल ख़ुश है; मैंने अपनी रूह उस पर डाली, वह क़ौमों में 'अदालत जारी करेगा।2वह न चिल्लाएगा और न शोर करेगा और न बाज़ारों में उसकी आवाज़ सुनाई देगी।3वह मसले हुए सरकंडे को न तोड़ेगा और टमटमाती बत्ती को न बुझाएगा, वह रास्ती से 'अदालत करेगा।4वह थका न होगा और हिम्मत न हारेगा, जब तक कि 'अदालत को ज़मीन पर क़ायम न करे; जज़ीरे उसकी शरी'अत का इन्तिज़ार करेंगे।5जिसने आसमान को पैदा किया और तान दिया, जिसने ज़मीन को और उनको जो उसमें से निकलते हैं फैलाया, जो उसके बाशिन्दों को साँस और उस पर चलनेवालों को रूह 'इनायत करता है, या'नी ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है6"मैं ख़ुदावन्द ने तुझे सदाक़त से बुलाया, मैं ही तेरा हाथ पकडुंगा और तेरी हिफ़ाज़त करूँगा , और लोगों के 'अहद और क़ौमों के नूर के लिए तुझे दूँगा;7कि तू अन्धों की आँखें खोले, और ग़ुलामों को क़ैद से निकाले, और उनको जो अन्धेरे में बैठे हैं क़ैदखाने से छुड़ाए।8यहोवाह मैं हूँ, यही मेरा नाम है; मैं अपना जलाल किसी दूसरे के लिए, और अपनी हम्द खोदी हुई मूरतों के लिए रवा न रखखूँगा।9देखो, पुरानी बातें पूरी हो गईं और मैं नई बातें बताता हूँ, इससे पहले कि वाक़े' हों, मैं तुम से बयान करता हूँ।"10ऐ समन्दर पर गुज़रने वालो और उसमें बसनेवालों, ऐ जज़ीरो और उनके बाशिन्दों, ख़ुदावन्द के लिए नया गीत गाओ, ज़मीन पर सिर-ता-सिर उसी की 'इबादत करो।11वीराना और उसकी बस्तियाँ, क़ीदार के आबाद गाँव, अपनी आवाज़ बलन्द करें; सिला' के बसनेवाले गीत गाएँ, पहाड़ों की चोटियों~पर से ललकारें।12वह ख़ुदावन्द का जलाल ज़ाहिर करें और जज़ीरों में उसकी सनाख़्वानी करें।13ख़ुदावन्द बहादुर की तरह निकलेगा, वह जंगी मर्द की तरह अपनी गै़रत दिखाएगा; वह ना'रा मारेगा, हाँ, वह ललकारेगा; वह अपने दुश्मनों पर ग़ालिब आएगा।14मैं बहुत मुद्दत से चुप रहा, मैं ख़ामोश हो रहा और ज़ब्त करता रहा; लेकिन अब मैं दर्द-ए-ज़िह वाली की तरह चिल्लाऊँगा; मैं हॉपूँगा और ज़ोर-ज़ोर से साँस लूँगा।15मैं पहाड़ों और टीलों को वीरान कर डालूँगा और उनके सब्ज़ाज़ारों को ख़ुश्क करूँगा ; और उनकी नदियों को जज़ीरे बनाऊँगा और तालाबों को सुखा दूँगा।16और अन्धों को उस राह से जिसे वह नहीं जानते ले जाऊँगा, मैं उनको उन रास्तों पर जिनसे वह आगाह नहीं ले चलूँगा; मैं उनके आगे तारीकी को रोशनी और ऊँची नीची जगहों को हमवार कर दूँगा, मैं उनसे ये सुलूक करूँगा और उनको तर्क न करूँगा ।17जो खोदी हुई मूरतों पर भरोसा करते और ढाले हुए बुतों से कहते हैं तुम हमारे मा'बूद हो वह पीछे हटेंगे और बहुत शर्मिन्दा होंगे |18ऐ बहरो सुनो ऐ अन्धो नज़र करो ताकि तुम देखो |19मेरे ख़ादिम के सिवा अँधा कौन है और कौन ऐसा बहरा है जैसा मेरा रसूल जिसे मैं भेजता हूँ मेरे दोस्त की और ख़ुदावन्द के ख़ादिम की तरह नाबीना कौन है|20तू बहुत सी चीज़ों पर नज़र करता है पर देखता नहीं कान तो खुले हैं पर सुनता नहीं |21ख़ुदावन्द को पसन्द आया कि अपनी सदाक़त की ख़ातिर शरी'अत को बुज़ुर्गी दे, और उसे क़ाबिल-ए-ता'ज़ीम बनाए।22लेकिन ये वह लोग हैं जो लुट गए और ग़ारत हुए, वह सब के सब ज़िन्दानों में गिरफ़्तार और कै़दख़ानों में छिपे हैं; वह शिकार हुए और कोई नहीं छुड़ाता; वह लुट गए और कोई नहीं कहता, 'फेर दो!"23तुम में कौन है जो इस पर कान लगाए? जो आइन्दा के बारे में तवज्जुह से सुने?24किसने या'क़ूब को हवाले किया के ग़ारत हो, और इस्राईल को कि लुटेरों के हाथ में पड़े? क्या ख़ुदावन्द ने नहीं, जिसके ख़िलाफ़ हम ने गुनाह किया? क्यूँकि उन्होंने न चाहा कि उसकी राहों पर चलें, और वह उसकी शरी'अत के ताबे' न हुए।25इसलिए उसने अपने क़हर की शिद्दत, और जंग की सख़्ती को उस पर डाला ~; और उसे हर तरफ़ से आग लग गई पर वह उसे दरियाफ़्त नहीं करता, वह उससे जल जाता है पर ख़ातिर में नहीं लाता।
1और अब, ऐ या'क़ूब, ख़ुदावन्द जिसने तुझ को पैदा किया, और जिसने, ऐ इस्राईल, तुझ को बनाया यूँ फ़रमाता है कि ख़ौफ़ न कर क्यूँकि तेरा फ़िदया दिया है~~मैंने तेरा नाम लेकर तुझे बुलाया है, तू मेरा है।2जब तू सैलाब में से गुज़रेगा, तो मैं तेरे साथ हूँगा; और जब तू नदियों को उबूर करेगा, तो वह तुझे न डुबाएँगी; जब तू आग पर चलेगा, तो तुझे आँच न लगेगी और शोला तुझे न जलाएगा।3क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द तेरा खुदा, इस्राईल का क़ुददूस, तेरा नजात देनेवाला हूँ। मैंने तेरे फ़िदिये में मिस्र को और तेरे बदले कूश और सबा को दिया।4चूँकि तू मेरी निगाह में बेशक़ीमत और मुकर्रम ठहरा और मैंने तुझ से मुहब्बत रख्खी, इसलिए मैं तेरे बदले लोग और तेरी जान के बदले में उम्मतें दे दूँगा।5तू ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ; मैं तेरी नस्ल को पूरब से ले आऊँगा, और मग़रिब से तुझे फ़राहम करूँगा ।6मैं उत्तर से कहूँगा कि दे डाल, और जुनूब से कि रख न छोड़; मेरे बेटों को दूर से और मेरी बेटियों को ज़मीन की इन्तिहा से लाओ7हर एक को जो मेरे नाम से कहलाता है और जिसको मैंने अपने जलाल के लिए पैदा किया, जिसे मैंने पैदा किया; हाँ, जिसे मैंने ही बनाया।”8उन अन्धे लोगों को जो आँखें रखते हैं और उन बहरों को जिनके कान हैं बाहर लाओ।9तमाम क़ौमें फ़राहम की जाएँ और सब उम्मतें जमा' हों। उनके बीच कौन है जो उसे बयान करे या हम को पिछली बातें बताए? वह अपने गवाहों को लाएँ ताकि वह सच्चे साबित हों, और लोग सुनें और कहें कि ये सच है।10ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "तुम मेरे गवाह हो और मेरे ख़ादिम भी, जिन्हें मैंने बरगुज़ीदा किया, ताकि तुम जानो और मुझ पर ईमान लाओ और समझो कि मैं वही हूँ। मुझ से पहले कोई ख़ुदा न हुआ और मेरे बा'द भी कोई न होगा।11मैं ही यहोवाह हूँ और मेरे सिवा कोई बचानेवाला नहीं।12मैंने 'ऐलान किया और मैंने नजात बख्शी और मैं ही ने ज़ाहिर किया, जब तुम में कोई अजनबी मा'बूद न था; इसलिए तुम मेरे गवाह हो," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि "मैं ही ख़ुदा हूँ।13आज से मैं ही हूँ; और कोई नहीं जो मेरे हाथ से छुड़ा सके; मैं काम करूँगा , कौन है जो उसे रद्द कर सके ?”14ख़ुदावन्द तुम्हारा नजात देनेवाला इस्राईल का क़ुद्दूस यूँ फ़रमाता है, कि "तुम्हारी ख़ातिर मैंने बाबुल पर ख़ुरूज कराया, और मैं उन सबको फ़रारियों की हालत में और कसदियों को भी जो अपने जहाज़ों में ललकारते थे, ले आऊँगा।15मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा क़ुददूस, इस्राईल का ख़ालिक़, तुम्हारा बादशाह हूँ।16जिसने समन्दर में राह और सैलाब में गुज़रगाह बनाई,17जो जंगी रथों और घोड़ों और लश्कर और बहादुरों को निकाल लाता है, ( वह सब के सब लेट गए, वह फिर न उठेगे, वह बुझ गए, हाँ, वह बत्ती की तरह बुझ गए।)18या'नी ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि पिछली बातों को याद न करो और पुरानी बातों पर सोचते न रहो।19देखो, मैं एक नया काम करूँगा ; अब वह ज़हूर में आएगा, क्या तुम उससे ना-वाक़िफ़ रहोगे? हाँ, मैं वीराने में एक राह और सहरा में नदियाँ जारी करूँगा ।20जंगली जानवर, गीदड़ और शुतरमुर्ग़, मेरी ताज़ीम करेंगे; क्यूँकि मैं वीराने में पानी और सहरा में नदियाँ जारी करूँगा ताकि मेरे लोगों के लिए, या'नी मेरे बरगुज़ीदों के पीने के लिए हों;21मैंने इन लोगों को अपने लिए बनाया ताकि वह मेरी हम्द करें।22"तोभी , ऐ या'क़ूब, तूने मुझे न पुकारा; बल्कि ऐ इस्राईल, तू मुझ से तंग आ गया।23तू बर्रों को अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए मेरे सामने नहीं लाया, और तूने अपने ज़बीहों से मेरी ताज़ीम नहीं की। मैंने तुझे हदिया लाने पर मजबूर नहीं किया, और लुबान जलाने की तक्लीफ़ नहीं दी।24तूने रुपये से मेरे लिए अगर को नहीं ख़रीदा, और तूने मुझे अपने ज़बीहों की चर्बी से सेर नहीं किया; लेकिन तूने अपने गुनाहों से मुझे ज़ेरबार किया और अपनी ख़ताओं से मुझे बेज़ार कर दिया।25"मैं ही वह हूँ जो अपने नाम की ख़ातिर तेरे गुनाहों को मिटाता हूँ, और मैं तेरी ख़ताओं को याद नहीं रख्खूंगा।26मुझे याद दिला, हम आपस में बहस करें; अपना हाल बयान कर ताकि तू सादिक़ ठहरे।27तेरे बड़े बाप ने गुनाह किया, और तेरे तफ़्सीर करनेवालों ने मेरी मुख़ालिफ़त की है।28इसलिए मैंने मक़दिस के अमीरों को नापाक ठहराया, और या'क़ूब को ला'नत और इस्राईल को तानाज़नी के हवाले किया।
1"लेकिन अब ऐ या'क़ूब, मेरे ख़ादिम और इस्राईल, मेरे बरगुज़ीदा, सुन!2ख़ुदावन्द तेरा ख़ालिक़ जिसने रहम ही से तुझे बनाया और तेरी मदद करेगा, यूँ फ़रमाता है :कि ऐ या'क़ूब, मेरे ख़ादिम और यसूरून मेरे बरगुज़ीदा, ख़ौफ़ न कर!3क्यूँकि मैं प्यासी ज़मीन पर पानी उँडेलूँगा, और ख़ुश्क ज़मीन में नदियाँ जारी करूँगा ; मैं अपनी रूह तेरी नस्ल पर और अपनी बरकत तेरी औलाद पर नाज़िल करूँगा4और वह घास के बीच उगेंगे, जैसे बहते पानी के किनारे पर बेद हो।5एक तो कहेगा, 'मैं ख़ुदावन्द का हूँ," और दूसरा अपने आपको या'क़ूब के नाम का ठहराएगा, और तीसरा अपने हाथ पर लिखेगा, 'मैं ख़ुदावन्द का हूँ,' और अपने आपको इस्राईल के नाम से मुलक़्क़ब करेगा।"6ख़ुदावन्द, इस्राईल का बादशाह और उसका फिदया देने वाला रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ही अव्वल और मैं ही आख़िर हूँ; और मेरे सिवा कोई ख़ुदा नहीं।7और जब से मैंने पुराने लोगों की बिना डाली, कौन मेरी तरह बुलाएगा और उसको बयान करके मेरे लिए तरतीब देगा? हाँ, जो कुछ हो रहा है और जो कुछ होने वाला है, उसका बयान करे।8तुम न डरो, और परेशान न हो; क्या मैंने पहले ही से तुझे ये नहीं बताया और ज़ाहिर नहीं किया? तुम मेरे गवाह हो। क्या मेरे 'अलावाह कोई और ख़ुदा है? नहीं, कोई चट्टान नहीं; मैं तो कोई नहीं जानता।"9खोदी हुई मूरतों के बनानेवाले, सबके सब बेकार हैं और उनकी पसंदीदा चीज़ें बे नफ़ा"; उन ही के गवाह देखते नहीं और समझते नहीं, ताकि पशेमाँ हों।10किसने कोई बुत बनाया या कोई मूरत ढाली जिससे कुछ फ़ाइदा हो?11देख, उसके सब साथी शर्मिन्दा होंगे क्यूँकि बनानेवाले तो इन्सान हैं; वह सब के सब जमा' होकर खड़े हों, वह डर जाएँगे, वह सब के सब शर्मिन्दा होंगे।12लुहार कुल्हाड़ा बनाता है और अपना काम अंगारों से करता है, और उसे हथौड़ों से दुरुस्त करता और अपने बाज़ू की क़ुव्वत से गढ़ता है; हाँ वह भूका हो जाता हैं और उसका ज़ोर घट जाता है वह पानी नहीं पीता और थक जाता है |13बढ़ई सूत फैलाता है और नुकेले हथियार से उसकी सूरत खींचता है, वह उसको रंदे से साफ़ करता है और परकार से उस पर नक़्श बनाता है; वह उसे इन्सान की शक्ल बल्कि आदमी की ख़ूबसूरत शबीह बनाता है, ताकि उसे घर में खड़ा करें।14वह देवदारों को अपने लिए काटता है और क़िस्म-क़िस्म के बलूत को लेता है, और जंगल के दरख़्तों से जिसको पसन्द करता है; वह सनोबर का दरख़्त लगाता है और मेंह उसे सींचता है।15तब वह आदमी के लिए ईधन होता है; वह उसमें से कुछ सुलगाकर तापता है, वह उसको जलाकर रोटी पकाता है, बल्कि उससे बुत बना कर उसको सिज्दा करता~ वह खोदी हुई मूरत बनाता है और उसके आगे मुँह के बल गिरता है।16उसका एक टुकड़ा लेकर आग में जलाता है, और उसी के एक टुकड़े पर गोश्त कबाब करके खाता और सेर होता है; फिर वह तापता और कहता है, अहा, मैं गर्म हो गया, मैंने आग देखी!"17फिर उसकी बाक़ी लकड़ी से देवता या'नी खोदी हुई मूरत बनाता है, और उसके आगे मुँह के बल गिर जाता है और उसे सिज्दा करता है और उससे इल्तिजा करके कहता है "मुझे नजात दे, क्यूँकि तू मेरा ख़ुदा है!"18वह नहीं जानते और नहीं समझते; क्यूँकि उनकी आँखें बन्द हैं तब वह देखते नहीं, और उनके दिल सख़्त हैं लेकिन वह समझते नहीं।19बल्कि कोई अपने दिल में नहीं सोचता़ और न किसी को मा'रिफ़त और तमीज़ है कि "मैंने तो इसका एक टुकड़ा आग में जलाया, और मैंने इसके अंगारों पर रोटी भी पकाई, और मैंने गोश्त भूना और खाया; अब क्या मैं इसके बक़िये" से एक मकरूह चीज़ बनाऊँ? क्या मैं दरख़्त के कुन्दे को सिज्दा करूँ?"20वह राख खाता है; फ़रेबख़ुर्दा ने उसको ऐसा गुमराह कर दिया है कि वह अपनी जान बचा नहीं सकता और नहीं कहता ~क्या मेरे दहने हाथ में बतालत नहीं?"21ऐ या'क़ूब, ऐ इस्राईल, इन बातों को याद रख; क्यूँकि तू मेरा बन्दा है, मैंने तुझे बनाया है, तू मेरा ख़ादिम है; ऐ इस्राईल, मैं तुझ को फ़रामोश न करूँगा ।22मैंने तेरी ख़ताओं को घटा की तरह और तेरे गुनाहों को बादल की तरह मिटा डाला; मेरे पास वापस आ जा, क्यूँकि मैंने तेरा फ़िदिया दिया है।23ऐ आसमानो, गाओ कि ख़ुदावन्द ने ये किया, ऐ असफ़ल-ए-ज़मीन, ललकार; ऐ पहाड़ो, ऐ जंगल और उसके सब दरख़्तो, नग़मापरदाज़ी करो! क्यूँकि ख़ुदावन्द ने या'क़ूब का फ़िदिया दिया, और इस्राईल में अपना जलाल ज़ाहिर करेगा।24ख़ुदावन्द तेरा फ़िदिया देनेवाला, जिसने रहम ही से तुझे बनाया यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ख़ुदावन्द सबका ख़ालिक़ हूँ, मैं ही अकेला आसमान को तानने और ज़मीन को बिछाने वाला हूँ, कौन मेरा शरीक है?25मैं झूटों के निशानों को बातिल करता, और फ़ालगीरों को दीवाना बनाता हूँ और हिकमत वालों को रद्द करता और उनकी हिकमत को हिमाक़त ठहराता हूँ26अपने ख़ादिम के कलाम को साबित करता, और अपने रसूलों की मसलहत को पूरा करता हूँ जो यरुशलीम के ज़रिए' कहता हूँ, कि ' वह आबाद हो जाएगा," और यहूदाह के शहरों के ज़रिए' , कि ' वह ता'मीर किए जाएँगे, और मैं उसके खण्डरों को ता'मीर करूँगा ।27जो समन्दर को कहता हूँ, 'सूख जा और मैं तेरी नदियाँ सुखा डालूँगा ;"28जो ख़ोरस के हक़ में कहता हूँ, कि ~वह मेरा चरवाहा है और मेरी मर्ज़ी ~बिल्कुल पूरी करेगा;' और यरुशलीम के ज़रिए' कहता हूँ, ' वह ता'मीर किया जाएगा,"और हैकल के ज़रिए' कि उसकी बुनियाद डाली जायेगी |
1ख़ुदावन्द अपने मम्सूह ख़ोरस के हक़ में यूँ फ़रमाता है कि मैंने उसका दहना हाथ पकड़ा कि उम्मतों को उसके सामने ज़ेर करूँ और बादशाहों की कमरें खुलवा डालूँ और दरवाज़ों को उसके लिए खोल दूँ और फाटक बन्द न किए जाएँ,2"मैं तेरे आगे आगे चलूँगा और ना-हमवार जगहों को हमवार बना दूँगा, मैं पीतल के दरवाज़ों को टुकड़े-टुकड़े करूँगा और लोहे के बेन्डों को काट डालूँगा ;3~और मैं ज़ुल्मात के ख़ज़ाने और छिपे मकानों के दफ़ीने तुझे दूँगा, ताकि तू जाने कि मैं ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा हूँ जिसने तुझे नाम लेकर बुलाया है।4मैंने अपने ख़ादिम या'क़ूब और अपने बरगुज़ीदा इस्राईल की ख़ातिर तुझे नाम लेकर बुलाया; मैंने तुझे एक लक़ब बख़्शा अगरचे तू मुझ को नहीं जानता।5मैं ही ख़ुदावन्द हूँ और कोई नहीं,मेरे अलावाह कोई ख़ुदा नहीं मैंने तेरी कमर बाँधी अगरचे तूने मुझे न पहचाना;6ताकि पूरब से पश्चिम तक लोग जान ले कि मेरे अलावह कोई नहीं; मैं ही ख़ुदावन्द हूँ, मेरे अलावाह कोई दूसरा नहीं।7मैं ही रोशनी का मूजिद और तारीकी का ख़ालिक़ हूँ, मैं सलामती का बानी और बला को पैदा करने वाला हूँ, मैं ही ख़ुदावन्द ये सब कुछ करनेवाला हूँ।8"ऐ आसमान, ऊपर से टपक पड़; हाँ बादल रास्तबाज़ी बरसाएँ," ज़मीन खुल जाए, और नजात और सदाक़त का फल लाए; वह उनको इकट्ठे उगाए; मैं ख़ुदावन्द उसका पैदा करनेवाला हूँ।9"अफ़सोस उस पर जो अपने ख़ालिक़ से झगड़ता है! ठीकरा तो ज़मीन के ठीकरों में से है! क्या मिट्टी कुम्हार से कहे, 'तू क्या बनाता है?" क्या तेरी दस्तकारी कहे, 'उसके तो हाथ नहीं?"10उस पर अफ़सोस जो बाप से कहे, 'तू किस चीज़ का वालिद है?' और माँ से कहे, 'तू किस चीज़ की वालिदा है?' "11ख़ुदावन्द इस्राईल का क़ुददूस और ख़ालिक़ यूँ फ़रमाता है, कि"क्या तुम आनेवाली चीज़ों के ज़रिए' मुझ से पूछोगे? क्या तुम मेरे बेटों या मेरी दस्तकारी के ज़रिए' मुझे हुक्म दोगे?12मैंने ज़मीन बनाई, और उस पर इन्सान को पैदा किया; और मैं ही ने, हाँ, मेरे हाथों ने आसमान को ताना, और उसके सब लश्करों पर मैंने हुक्म किया।"13रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है मैंने उसको सदाक़त में खड़ा किया है और मैं उसकी तमाम राहों को हमवार करूँगा ; वह मेरा शहर बनाएगा, और मेरे ग़ुलामों को बगै़र क़ीमत और इवज़ लिए आज़ाद कर देगा।"14ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"मिस्र की दौलत, और कूश की तिजारत, और सबा के कद्दावर लोग तेरे पास आएँगे और तेरे होंगे; वह तेरी पैरवी करेंगे, वह बेड़ियाँ पहने हुए अपना मुल्क छोड़कर आयेंगे और तेरे सामने सिज्दा करेंगे; वह तेरी मिन्नत करेंगे और कहेंगे,यक़ीनन ख़ुदा तुझमें है और कोई दूसरा नहीं और उसके सिवा कोई ख़ुदा नहीं।' "15ऐ इस्राईल के ख़ुदा, ऐ नजात देनेवाले, यक़ीनन तू पोशीदा ख़ुदा है।16बुत बनानेवाले सब के सब पशेमाँ और सरासीमा होंगे, वह सब के सब शर्मिन्दा होंगे।17लेकिन ख़ुदावन्द इस्राईल को बचा कर हमेशा की नजात बख़्शेगा; तुम हमेशा से हमेशा तक कभी पशेमाँ और सरासीमा न होगे।18क्यूँकि ख़ुदावन्द जिसने आसमान पैदा किए, वही ख़ुदा है; उसी ने ज़मीन बनाई और तैयार की, उसी ने उसे क़ायम किया; उसने उसे सुन्सान पैदा नहीं किया बल्कि उसको आबादी के लिए आरास्ता किया। वह यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ख़ुदावन्द हूँ, और मेरे 'अलावाह और कोई नहीं।19मैंने ज़मीन की किसी तारीक जगह में, पोशीदगी में तो कलाम नहीं किया; मैंने या'क़ूब की नस्ल को नहीं फ़रमाया कि 'अबस मेरे तालिब हो। मैं ख़ुदावन्द सच कहता हूँ, और रास्ती की बातें बयान फ़रमाता हूँ।20"तुम जो क़ौमों में से बच निकले हो! जमा' होकर आओ मिलकर नज़दीक हो वह जो अपनी लकड़ी की खोदी हुई मूरत लिए फिरते हैं, और ऐसे मा'बूद से जो बचा नहीं सकता दु'आ करते हैं, अक़्ल से ख़ाली हैं।21तुम 'ऐलान करो और उनको नज़दीक लाओ; हाँ, वह एक साथ मशवरत करें, किसने पहले ही से ये ज़ाहिर किया? किसने पिछले दिनों में इसकी ख़बर पहले ही से दी है? क्या मैं ख़ुदावन्द ही ने ये नहीं किया? इसलिए मेरे 'अलावाह कोई ख़ुदा नहीं है; सादिक़-उल-क़ौल और नजात देनेवाला ख़ुदा मेरे 'अलावाह कोई नहीं।22'ऐ इन्तिहा-ए-ज़मीन के सब रहनेवालो, तुम मेरी तरफ़ मुत्वज्जिह हो और नजात पाओ, क्यूँकि मैं ख़ुदा हूँ और मेरे 'अलावाह कोई नहीं।23मैंने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, कलाम-ए-सिद्क़ मेरे मुँह से निकला है और वह टलेगा नहीं', कि 'हर एक घुटना मेरे सामने झुकेगा और हर एक ज़बान मेरी क़सम खाएगी।'24"मेरे हक़ में हर एक कहेगा कि यक़ीनन ख़ुदावन्द ही में रास्तबाज़ी और तवानाई है, उसी के पास वह आएगा और सब जो उससे बेज़ार थे पशेमाँ होंगे।25इस्राईल की कुल नस्ल ख़ुदावन्द में सादिक़ ठहरेगी और उस पर फ़ख़्र करेगी।
1बेल झुकता है नबूख़म होता उनके बुत जानवरों और चौपायों पर लदे हैं; जो चीजें तुम उठाए फिरते थे, थके हुए चौपायों पर लदी हैं।2वह झुकते और एक साथ ख़म होते हैं; वह उस बोझ को बचा न सके, और वह आप ही ग़ुलामी में चले गए हैं।3"ऐ या'क़ूब के घराने, और ऐ इस्राईल~के घर के सब बाक़ी थके लोगो, जिनको बत्न ही से मैंने उठाया और जिनको रहम ही से मैंने गोद में लिया, मेरी सुनो4मैं तुम्हारे बुढ़ापे तक वही हूँ और सिर सफ़ेद होने तक तुम को उठाए फिरूँगा। मैंने तुम्हें बनाया और मैं ही उठाता रहूँगा, मैं ही लिए चलूँगा और रिहाई दूँगा।5"तुम मुझे किससे तशबीह दोगे, और मुझे किसके बराबर ठहराओगे, और मुझे किसकी तरह कहोगे ताकि हम मुशाबह हों?6जो थैली से बाइफ़रात सोना निकालते और चाँदी को तराज़ू में तोलते हैं, वह सुनार को उजरत पर लगाते हैं और वह उससे एक बुत बनाता है; फिर वह उसके सामने झुकते, बल्कि सिज्दा करते हैं।7वह उसे कँधे पर उठाते हैं, वह उसे ले जाकर उसकी जगह पर खड़ा करते हैं और वह खड़ा रहता है, वह अपनी जगह से सरकता नहीं; बल्कि अगर कोई उसे पुकारे, तो वह न जवाब दे सकता है और न उसे मुसीबत से छुड़ा सकता है |8"ऐ गुनाहगारो, इसको याद रख्खो और मर्द बनो, इस पर फिर सोचो ।9पहली बातों को जो क़दीम से हैं, याद करो कि मैं ख़ुदा हूँ और कोई दूसरा नहीं ~मैं ख़ुदा हूँ और मुझ सा कोई नहीं।10जो इब्तिदा ही से अंजाम की ख़बर देता हूँ, और पहले ~दिनों से वह बातें जो अब तक वजूद में नहीं आई, बताता हूँ; और कहता हूँ, कि 'मेरी मसलहत क़ायम रहेगी और मैं अपनी मर्ज़ी ~बिल्कुल पूरी करूँगा ।'11जो पूरब से उक़ाब को या'नी उस शख़्स को जो मेरे इरादे को पूरा करेगा, दूर के मुल्क से बुलाता हूँ, मैंने ही ~कहा और मैं ही इसको वजूद में लाऊँगा; मैंने इसका इरादा किया और मैं ही इसे पूरा करूँगा |12"ऐ सख़्त दिलो, जो सदाक़त से दूर हो मेरी सुनो,13मैं अपनी सदाक़त को नज़दीक लाता हूँ, वह दूर नहीं होगी और मेरी नजात ताख़ीर न करेगी; और मैं सिय्यून को नजात और इस्राईल को अपना जलाल बख़्शूँगा ।"
1ऐ कुँवारी दूख़्तर-ए-बाबुल उतर आ और ख़ाक पर बैठ ऐ कसदियों की दुख़्तर, तू बे-तख़्त ज़मीन पर बैठ; क्यूँकि अब तू नर्म अन्दाम और नाज़नीन न कहलाएगी।2चक्की ले और आटा पीस, अपना निक़ाब उतार और दामन समेट ले, टाँगे नंगी करके नदियों को पार कर।3तेरा बदन बे-पर्दा किया जाएगा, बल्कि तेरा सत्र भी देखा जाएगा। मैं बदला लूँगा और किसी पर शफ़क़त न करूँगा ”।4हमारा फ़िदिया देनेवाले का नाम रब्ब-उल-अफ़वाज या'नी इस्राईल का क़ुददूस है।5ऐ कसदियों की बेटी, चुप होकर बैठ और अन्धेरे में दाख़िल हो; क्यूँकि अब तू मम्लुकतों की ख़ातून न कहलाएगी।6मैं अपने लोगों पर ग़ज़बनाक हुआ, मैंने अपनी मीरास को नापाक किया और उनको तेरे हाथ में सौंप दिया; तूने उन पर रहम न किया, तूने बूढ़ों पर भी अपना भारी जूआ रख्खा।7और तूने कहा भी, कि "मैं हमेशा तक ख़ातून बनी रहूँगी," इसलिए तूने अपने दिल में इन बातों का ख़याल न किया और इनके अन्जाम को न सोचा।8इसलिए अब ये बात सुन, ऐ तू जो 'इश्रत में ग़र्क है, जो बेपर्वा रहती है, जो अपने दिल में कहती है, कि"मैं हूँ, और मेरे 'अलावाह कोई नहीं; मैं बेवा की तरह न बैठूँगी, और न बेऔलाद होने की हालत से वाक़िफ़ हूँगी;"9इसलिए अचानक एक ही दिन में ये दो मुसीबतें तुझ पर आ पड़ेंगी, या'नी तू बेऔलाद और बेवा हो जाएगी। तेरे जादू की इफ़रात और तेरे सहर की कसरत के बावजूद ये मुसीबतें पूरे तौर से तुझ पर आ पड़ेंगी।10क्यूँकि तूने अपनी शरारत पर भरोसा किया, तूने कहा, "मुझे कोई नहीं देखता; "तेरी हिकमत और तेरी अक़्ल ने तुझे बहकाया, और तूने अपने दिल में कहा, "मैं ही हूँ। मेरे 'अलावाह और कोई नहीं।"11इसलिए तुझ पर मुसीबत आ पड़ेगी जिसका मंतर तू नहीं जानती, और ऐसी बला तुझ पर नाज़िल होगी जिसको तू दूर न कर सकेगी; यकायक तबाही तुझ पर आएगी जिसकी तुझ को कुछ ख़बर नहीं।12अब अपना जादू और अपना सारा सेहर, जिसकी तूने बचपन ही से मश्क कर"रख्खी है इस्ते'माल कर; शायद तू उनसे नफ़ा' पाए, शायद तू ग़ालिब आए।13तू अपनी मश्वरतों की कसरत से थक गई, अब अफ़लाक-पैमा और मुनज्जिम और वह जो माह-ब-माह आइन्दा हालात दरियाफ़त करते हैं, उठें और जो कुछ तुझ पर आनेवाला है उससे तुझ को बचाएँ।14देख, वह भूसे की तरह होंगे; आग उनको जलाएगी। वह अपने आपको शो'ले की शिद्दत से बचा न सकेंगे, ये आग न तापने के अंगारे होगी, न उसके पास बैठ सकेंगे।15जिनके लिए तूने मेहनत की, तेरे लिए ऐसे ही होंगे; जिनके साथ तूने अपनी जवानी ही से तिजारत की, उनमें से हर एक अपनी राह लेगा; तुझ को बचानेवाला कोई न रहेगा।
1ये बात सुनो ऐ या'क़ूब के घराने जो इस्राईल के नाम से कहलाते हो और यहूदाह के चश्मे से निकले हो, जो ख़ुदावन्द का नाम लेकर क़सम खाते हो, और इस्राईल के ख़ुदा का इक़रार करते हो, बल्कि अमानत और सदाक़त से नहीं।2क्यूँकि वह शहर-ए- क़ुददूस के लोग कहलाते हैं और इस्राईल के ख़ुदा पर तवक्कुल करते हैं जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है |3'मैंने पहले से होने वाली बातों की ख़बर दी है हाँ वह मेरे मुंह से निकली मैंने उनको ज़ाहिर किया मैं नागहा उनको 'अमल में लाया और वह ज़हूर में आईं |4चूँकि मैं जानता था कि तू ज़िद्दी है और तेरी गर्दन का पट्ठा लोहे का है और तेरी पेशानी पीतल की है।5इसलिए मैंने पहले ही से ये बातें तुझे कह सुनाई, और उनके बयान" होने से पहले तुझ पर ज़ाहिर कर दिया; ता न हो कि तू कहे, 'मेरे बुत ने ये काम किया, और मेरे खोदे हुए सनम ने और मेरी ढाली हुई मूरत ने ये बातें फ़रमाईं।"6"तूने ये सुना है, इसलिए इस सब पर तवज्जुह कर; क्या तुम इसका इक़रार न करोगे? अब मैं तुझे नई चीजें और छिपी बातें, जिनसे तू वाक़िफ़ न था दिखाता हूँ।7वह अभी ख़ल्क की गई हैं, पहले से नहीं; बल्कि आज से पहले तूने उनको सुना भी न था; ता न हो कि तू कहे, 'देख, मैं जानता था।8हाँ, तूने न सुना न जाना; हाँ, पहले ही से तेरे कान खुले न थे। क्यूँकि मैं जानता था कि तू भी बिल्कुल बेवफ़ा है, और रहम ही से ख़ताकार कहलाता है।9'मैं अपने नाम की ख़ातिर अपने ग़ज़ब में ताख़ीर करूँगा , और अपने जलाल की ख़ातिर तुझ से बाज़ रहूँगा, कि तुझे काट न डालूँ।10देख, मैंने तुझे साफ़ किया, लेकिन चाँदी की तरह नहीं; मैंने मुसीबत की कुठाली से तुझे साफ़ किया |11मैंने अपनी ख़ातिर, हाँ, अपनी ही ख़ातिर ये किया है; क्यूँकि मेरे नाम की तक्फ़ीर क्यूँ हो? मैं तो अपनी शौकत दूसरे को नहीं देने का।12"ऐ या'क़ूब, आ मेरी सुन, और ऐ इस्राईल जो मेरा बुलाया हुआ है; मैं वही हूँ, मैं ही अव्वल और मैं ही आख़िर हूँ।13यक़ीनन मेरे ही हाथ ने ज़मीन की बुनियाद डाली, और मेरे दहने हाथ ने आसमान को फैलाया; मैं उनको पुकारता हूँ और वह हाज़िर हो जाते हैं।14"तुम सब जमा' होकर सुनो। उनमें~किसने इन बातों की ख़बर दी है? वह जिसे ख़ुदावन्द ने पसन्द किया है; उसकी ख़ुशी को बाबुल के मुताल्लिक 'अमल में लाएगा, और उसी का हाथ कसदियों की मुख़ालिफ़त में होगा।15मैंने, हाँ मैं ही ने कहा; मैंने ही उसे बुलाया, मैं उसे लाया हूँ; और वह अपनी चाल चलन में बरोमन्द होगा।16मेरे नज़दीक आओ और ये सुनो, मैंने शुरू' ही से पोशीदगी में कलाम नहीं किया, जिस वक़्त से कि वह था मैं वहीं था।” और अब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने और उसकी रूह ने मुझ को भेजा है।17ख़ुदावन्द तेरा फ़िदिया देनेवाला, इस्राईल का क़ुददूस , यूँ फ़रमाता है, कि"मैं ही ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ। जो तुझे मुफ़ीद ता'लीम देता हूँ और तुझे उस राह में जिसमें तुझे जाना है, ले चलता हूँ।18काश कि तू मेरे हुक्मों का सुनने वाला होता, और तेरी सलामती नहर की तरह और तेरी सदाक़त समन्दर की मौजों की तरह होती;19तेरी नस्ल रेत की तरह होती और तेरे सुल्बी फ़र्ज़न्द उसके ज़र्रों की तरह बा-कसरत होते; और उसका नाम मेरे सामने से काटा और मिटाया न जाता।”,20तुम बाबुल से निकलो, कसदियों के बीच से भागो; नग़मे की आवाज़ से बयान करो इसे मशहूर करों हाँ इसकी ख़बर ज़मीन के ~किनारों तक पहुँचाओ; कहते जाओ, कि "ख़ुदावन्द ने अपने ख़ादिम या'क़ूब का फ़िदिया दिया।"21और जब वह उनको वीराने में से ले गया, तो वह प्यासे न हुए; उसने उनके लिए चटटान में से पानी निकाला, उसने चटटान को चीरा और पानी फूट निकला।22ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि "शरीरों के लिए सलामती नहीं।"
1ऐ जज़ीरों मेरी सुनों ऐ उम्मतों जो दो हो कान लगाओ ख़ुदावन्द ने मुझे रहम ही से बुलाया, बत्न-ए-मादर ही से उसने मेरे नाम का ज़िक्र किया।2और उसने मेरे मुँह को तेज़ तलवार की तरह बनाया, और मुझ को अपने हाथ के साये तले छिपाया; उसने मुझे तीर-ए-आबदार किया और अपने तरकश में मुझे छिपा रख्खा;3और उसने मुझ से कहा, "तू मेरा ख़ादिम है, तुझ में ऐ इस्राईल, मैं अपना जलाल ज़ाहिर करूँगा ।”4तब मैंने कहा, "मैंने बेफ़ाइदा मशक्क़त उठाई मैंने अपनी क़ुव्वत बेफ़ाइदा बतालत में सर्फ़ की; तोभी यक़ीनन मेरा हक़ ख़ुदावन्द के साथ और मेरा 'अज्र मेरे ख़ुदा के पास है।"5चूँकि मैं ख़ुदावन्द की नज़र में जलील-उल-क़द्र हूँ और वह मेरी तवानाई है, इसलिए वह जिसने मुझे रहम ही से बनाया, ताकि उसका ख़ादिम होकर या'क़ूब को उसके पास वापस लाऊँ और इस्राईल को उसके पास जमा' करूँ, यूँ फ़रमाता है।6हाँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि "ये तो हल्की सी बात है कि तू या'क़ूब के क़बाइल को खड़ा करने और महफ़ूज़ इस्राईलियों को वापस लाने के लिए मेरा ख़ादिम हो, बल्कि मैं तुझ को क़ौमों के लिए नूर बनाऊँगा कि तुझ से मेरी नजात ज़मीन के किनारों तक पहुँचे।"7ख़ुदावन्द इस्राईल का फ़िदिया देने वाला और उसका क़ुददूस उसको जिसे इन्सान हक़ीर जानता है और जिससे क़ौम को नफ़रत है और जो हाकिमों का चाकर है, यूँ फ़रमाता है, कि 'बादशाह देखेंगे और उठ खड़े होंगे, और उमरा सिज्दा करेंगे; ख़ुदावन्द के लिए जो सादिक़-उल-क़ौल और इस्राईल का क़ुददूस है, जिसने तुझे बरगुज़ीदा किया है।"8ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"मैंने क़ुबूलियत के वक़्त तेरी सुनी, और नजात के दिन तेरी मदद की; और मैं तेरी हिफ़ाज़त करूँगा और लोगों के लिए तुझे एक 'अहद ठहराऊँगा, ताकि मुल्क को बहाल करे और वीरान मीरास वारिसों को दे;9ताकि तू कै़दियों को कहे, कि 'निकल चलो,' और उनको जो अन्धेरे में हैं, कि 'अपने आपको दिखलाओ।" वह रास्तों में चरेंगे और सब नंगे टीले उनकी चरागाहें होंगे।10वह न भूके होंगे न प्यासे, और न गर्मी और धूप से उनको ज़रर पहुँचेगा; क्यूँकि वह जिसकी रहमत उन पर है उनका रहनुमा होगा, और पानी के सोतों की तरफ़ उनकी रहबरी करेगा।11और मैं अपने सारे पहाड़ों को एक रास्ता बना दूँगा, और मेरी शाहराहें ऊँची की जाएँगी।12देख, ये दूर से और ये उत्तर और मग़रिब से, और ये सिनीम के मुल्क से आएँगे।"13ऐ आसमानो, गाओ; ऐ ज़मीन, ख़ुश हो; ऐ पहाड़ो, नग़मा परदाज़ी करो! क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने लोगों को तसल्ली बख़्शी है और अपने रंजूरों पर रहम फ़रमाएगा।14लेकिन सिय्यून कहती है, "यहोवाह ने मुझे छोड़ दिया है, और ख़ुदावन्द मुझे भूल गया है।”15~'क्या ये मुम्किन है कि कोई माँ अपने शीरख़्वार बच्चे को भूल जाए, और अपने रहम के फ़र्ज़न्द पर तरस न खाए? हाँ, वह शायद भूल जाए, पर मैं तुझे न भूलूँगा।16~देख, मैंने तेरी सूरत अपनी हथेलियों पर खोद रख्खी है; और तेरी शहरपनाह हमेशा मेरे सामने है।17~तेरे फ़र्ज़न्द जल्दी करते हैं, और वह जो तुझे बर्बाद करने और उजाड़ने वाले थे, तुझ से निकल जाएँगे।18अपनी आँखें उठा कर चारों तरफ़ नज़र कर, ये सब के सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और तेरे पास आते हैं। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम कि तू यक़ीनन इन सबको ज़ेवर की तरह पहन लेगी, और इनसे दुल्हन की तरह आरास्ता होगी।19~"क्यूँकि तेरी वीरान और उजड़ी जगहों में, और तेरे बर्बाद मुल्क में अब यक़ीनन बसनेवाले गुंजाइश से ज़्यादा होंगे, और तुझ को ग़ारत करनेवाले दूर हो जाएँगे।20बल्कि तेरे वह बेटे जो तुझ से ले लिए गए थे, तेरे कानों में फिर कहेंगे, कि बसने की जगह बहुत तंग है, हम को बसने की जगह दे।'21तब तू अपने दिल में कहेगी, 'कौन मेरे लिए इनका बाप हुआ? कि मैं तो बेऔलाद हो गई और अकेली थी, मैं तो जिलावतनी और आवारगी में रही, सो किसने इनको पाला? देख, मैं तो अकेली रह गई थी; फिर ये कहाँ थे?' "22~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि "देख, मैं क़ौमों पर हाथ उठाऊँगा, और उम्मतों पर अपना झण्डा खड़ा करूँगा ; और वह तेरे बेटों को अपनी गोद में लिए आएँगे, और तेरी बेटियों को अपने कंधों पर बिठाकर पहुँचाएँगे।23और बादशाह तेरे मुरब्बी होंगे और उनकी बीवियाँ तेरी दाया होंगी। वह तेरे सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरेंगे, और तेरे पाँव की खाक चाटेंगे; और तू जानेगी कि मैं ही ख़ुदावन्द हूँ, जिसके मुन्तज़िर शर्मिन्दा न होंगे।”24~क्या ज़बरदस्त से शिकार छीन लिया जाएगा? और क्या रास्तबाज़ के कै़दी छुड़ा लिए जाएँगे?25~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि 'ताक़तवर के ग़ुलाम भी ले लिए जाएँगे, और मुहीब का शिकार छुड़ा लिया जाएगा; क्यूँकि मैं उससे जो तेरे साथ झगड़ता है, झगड़ा करूँगा और तेरे बच्चों को बचा लूँगा।26~और मैं तुम पर ज़ुल्म करनेवालों को उन ही का गोश्त खिलाऊँगा, और वह मीठी शराब की तरह अपना ही ख़ून पीकर बदमस्त हो जाएँगे; और हर फ़र्द-ए-बशर जानेगा कि मैं ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला, और या'क़ूब का क़ादिर तेरा फ़िदिया देनेवाला हूँ।
1ख़ुदावन्दयूँ फ़रमाता है कि तेरी माँ का तलाक़ नामा जिसे लिख कर मैंने उसे~छोड़ दिया कहाँ है? या अपने क़र्ज़ ख़्वाहों में से किसके हाथ मैंने तुम को बेचा? देखो, तुम अपनी शरारतों की वजह से बिक गए, और तुम्हारी ख़ताओं के ज़रिए' तुम्हारी माँ को तलाक़ दी गई।2~फ़िर किस लिए, जब मैं आया तो कोई आदमी न था? और जब मैंने पुकारा, तो कोई जवाब देनेवाला न हुआ? क्या मेरा हाथ ऐसा कोताह हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? और क्या मुझ में नजात देने की क़ुदरत नहीं? देखो, मैं अपनी एक धमकी से समन्दर को सुखा देता हूँ, और नहरों को सहरा कर डालता हूँ, उनमें की मछलियाँ पानी के न होने से बदबू हो जाती हैं और प्यास से मर जाती हैं।3मैं आसमान को सियाह पोश करता हूँ और उसको टाट उढाता हूँ4ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझ को शागिर्द की ज़बान बख़्शी, ताकि मैं जानूँ कि कलाम के वसीले से किस तरह थके माँदे की मदद करूँ । वह मुझे हर सुबह जगाता है, और मेरा कान लगाता है ताकि शागिदों की तरह सुनूँ।5~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मेरे कान खोल दिए, और मैं बाग़ी -ओ-बरगश्ता न हुआ।6मैंने अपनी पीठ पीटने वालों के और अपनी दाढ़ी नोचने वालों के हवाले की, मैंने अपना मुँह रुस्वाई और थूक से नहीं छिपाया।7लेकिन ख़ुदावन्द ख़ुदा मेरी हिमायत करेगा, और इसलिए मैं शर्मिन्दा न हूँगा; और इसीलिए मैंने अपना मुँह संग-ए-ख़ारा की तरह बनाया और मुझे यक़ीन है कि मैं शर्मसार न हूँगा।8मुझे रास्तबाज़ ठहरानेवाला नज़दीक है। कौन मुझ से झगड़ा करेगा? आओ, हम आमने-सामने खड़े हों, मेरा मुख़ालिफ़ कौन है? वह मेरे पास आए।9~देखो, ख़ुदावन्द ख़ुदा मेरी हिमायत करेगा; कौन मुझे मुजरिम ठहराएगा? देख, वह सब कपड़े की तरह पुराने हो जाएँगे, उनको कीड़े खा जाएँगे।10~तुम्हारे बीच कौन है जो ख़ुदावन्द से डरता और उसके ख़ादिम की बातें सुनता है? जो अन्धेरे में चलता और रोशनी नहीं पाता, वह ख़ुदावन्द ~के नाम पर तवक्कुल करे और अपने ख़ुदा पर भरोसा रख्खे।11~देखो, तुम सब जो आग सुलगाते हो और अपने आपको अँगारों से घेर लेते हो, अपनी ही आग के शोलों में और अपने सुलगाए हुए अंगारों में चलो। तुम मेरे हाथ से यही पाओगे, तुम 'अज़ाब में लेट रहोगे।
1"ऐ लोगो, जो सदाक़त की पैरवी करते हो और ख़ुदावन्द के जोयान हो, मेरी सुनो। उस चटटान पर जिसमें से तुम काटे गए हो और उस गढ़े के सूराख़ पर जहाँ से तुम खोदे गए हो, नज़र करो।2अपने बाप इब्राहीम पर और सारा पर जिससे तुम पैदा हुए निगाह करो कि जब मैंने उसे बुलाया वह अकेला था, पर मैंने उसको बरकत दी और उसको कसरत बख़्शी।3यक़ीनन ख़ुदावन्द सिय्यून को तसल्ली देगा, वह उसके तमाम वीरानों की दिलदारी करेगा, वह उसका वीराना 'अदन की तरह और उसका सहरा ख़ुदावन्द के बाग़ की तरह बनाएगा; ख़ुशी और शादमानी उसमें पाई जाएगी, शुक्रगुज़ारी और गाने की आवाज़ उसमें होगी।4"मेरी तरफ़ मुत्वज्जिह हो, ऐ मेरे लोगो; मेरी तरफ़ कान लगा, ऐ मेरी उम्मत: क्यूँकि शरी'अत मुझ से सादिर होगी और मैं अपने 'अद्ल को लोगों की रोशनी के लिए क़ायम करूँगा ।5मेरी सदाक़त नज़दीक है, मेरी नजात ज़ाहिर है, और मेरे बाज़ू लोगों पर हुक्मरानी करेंगे, जज़ीरे मेरा इन्तिज़ार करेंगे और मेरे बाज़ू पर उनका तवक्कुल होगा।6अपनी आँखें आसमान की तरफ़ उठाओ और नीचे ज़मीन पर निगाह करो; क्यूँकि आसमान धुँवें ~की तरह ग़ायब हो जायेंगे और ज़मीन कपड़े की तरह पुरानी हो जाएगी, और उसके बाशिन्दे मच्छरों की तरह मर जाएँगे; लेकिन मेरी नजात हमेशा तक रहेगी, और मेरी सदाक़त ख़त्म न होगी।7"ऐ सच्चाई के जाननेवालों, मेरी सुनो, ऐ लोगो, जिनके दिल में मेरी शरी'अत है; इन्सान की मलामत से न डरो और उनकी ता'नाज़नी से परेशान न हो।8क्यूँकि कीड़ा उनको कपड़े की तरह खाएगा और किर्म उनको पश्मीने की तरह खा जाएगा, लेकिन मेरी सदाक़त हमेशा तक रहेगी और मेरी नजात नस्ल-दर-नस्ल।"9जाग, जाग, ऐ ख़ुदावन्द के बाज़ू तवानाई से मुलब्बस हो; जाग जैसा पुराने ज़माने में और गुज़िश्ता नस्लों में क्या तू वही नहीं जिसने रहब' को टुकड़े-टुकड़े किया और अज़दहे को छेदा?10क्या तू वही नहीं जिसने समन्दर या'नी बहर-ए-'अमीक़ के पानी को सुखा डाला; जिसने बहर की तह को रास्ता बना डाला, ताकि जिनका फ़िदिया दिया गया उसे उबूर करें?11फ़िर वह जिनको ख़ुदावन्द ने मख़लसी बख़्शी लौटेंगे और गाते हुए सिय्यून में आएँगे, और हमेशा सुरूर उनके सिरों पर होगा; वह ख़ुशी और शादमानी हासिल करेंगे और ग़म-ओ-अन्दोह काफ़ूर हो जाएँगे।12"तुम को तसल्ली देनेवाला मैं ही हूँ, तू कौन है जो फ़ानी इन्सान से, और आदमज़ाद से जो घास की तरह हो जाएगा डरता है,13और ख़ुदावन्द अपने ख़ालिक़ को भूल गया है, जिसने आसमान को ताना और ज़मीन की बुनियाद डाली; और तू हर वक़्त ज़ालिम के जोश-ओ-ख़रोश से कि जैसे वह हलाक करने को तैयार है, डरता है? पर ज़ालिम का जोश-ओ-ख़रोश कहाँ है?14जिलावतन ग़ुलाम जल्दी से आज़ाद किया जाएगा, वह ग़ार में न मरेगा और उसकी रोटी कम न होगी।15क्यूँकि मैं ही ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ, जो मौजज़न समन्दर को थमा देता हूँ; मेरा नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है।16और मैंने अपना कलाम तेरे मुँह में डाला, और तुझे अपने हाथ के साये तले छिपा रख्खा ताकि अफ़लाक को खड़ा करूँ” और ज़मीन की बुनियाद डालूँ, और अहल-ए-सिय्यून से कहूँ, 'तुम मेरे लोग हो।'17जाग, जाग, उठ ऐ यरुशलीम ; तूने ख़ुदावन्द के हाथ से उसके ग़ज़ब का प्याला पिया, तूने डगमगाने का जाम तलछट के साथ पी लिया।18उन सब बेटों में जो उससे पैदा हुए, कोई नहीं जो उसका रहनुमा हो; और उन सब बेटों में जिनको उसने पाला, एक भी नहीं जो उसका हाथ पकड़े।19ये दो हादिसे तुझ पर आ पड़े, कौन तेरा ग़मख़्वार होगा? वीरानी और हलाकत, काल और तलवार; मैं क्यूँकर तुझे तसल्ली दूँ?20तेरे बेटे हर कूंचे के मदख़ल में ऐसे बेहोश पड़े हैं, जैसे हरन दाम में, वह ख़ुदावन्द के ग़ज़ब और तेरे ख़ुदा की धमकी से बेख़ुद हैं'।21इसलिए अब तू जो बदहाल और मस्त है पर मय से नहीं, ये बात सुन;22तेरा"ख़ुदावन्द यहोवाह हाँ तेरा ख़ुदा जो ~अपने लोगों की वकालत करता है यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं डगमगाने का प्याला और अपने क़हर का जाम तेरे हाथ से ले लूँगा; तू उसे फिर कभी न पिएगी।23और मैं उसे उनके हाथ में दूँगा जो तुझे दुख देते, और जो तुझ से कहते थे, 'झुक जा ताकि हम तेरे ऊपर से गुज़रें', और तूने अपनी पीठ को जैसे ज़मीन, बल्कि गुज़रने वालों के लिए सड़क बना दिया।"
1जाग जाग ऐ सिय्यून, अपनी शौकत से मुलब्बस हो; ऐ यरुशलीम पाक शहर, अपना ख़ुशनुमा लिबास पहन ले; क्यूँकि आगे को कोई नामख़्तून या नापाक तुझ में कभी दाख़िल न होगा।2अपने ऊपर से गर्द झाड़ दे, उठकर बैठ; ऐ यरुशलीम , ऐ ग़ुलाम दुख़्तर -ए-सिय्यून, अपनी गर्दन के बंधनों को खोल डाल।3क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "तुम मुफ़्त बेचे गए, और तुम बेज़र ही आज़ाद किए जाओगे।"4ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि "मेरे लोग इब्तिदा में मिस्र को गए कि वहाँ मुसाफ़िर होकर रहें, असूरियों ने भी बे वजह उन पर ज़ुल्म किया।"5ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"अब मेरा यहाँ क्या काम, हालाँकि मेरे लोग मुफ़्त ग़ुलामी में गए हैं? वह जो उन पर मुसल्लत हैं लल्कारतें हैं ख़ुदावन्द फ़रमाता हैं और हर रोज़ मुतवातिर मेरे नाम की तकफ़ीर की जाती है।6यक़ीनन मेरे लोग मेरा नाम जानेंगे, और उस रोज़ समझेंगे कि कहनेवाला मैं ही हूँ, देखो, मैं हाज़िर हूँ।"7उसके पाँव पहाड़ों पर क्या ही ख़ुशनुमा हैं जो ख़ुशख़बरी लाता है और सलामती का 'ऐलान करता है और खैरियत की ख़बर और नजात का इश्तिहार देता है जो सिय्यून से कहता है तेरा ख़ुदा सल्तनत करता है |8अपने निगहबानों की आवाज़ सुन, वह अपनी आवाज़ बलन्द करते हैं, वह आवाज़ मिलाकर गाते हैं; क्यूँकि जब ख़ुदावन्द सिय्यून को वापस आएगा तो वह उसे रू-ब-रू देखेंगे।9ऐ यरुशलीम के वीरानो, ख़ुशी से ललकारो, मिलकर नग़मा सराई करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपनी क़ौम को दिलासा दिया उसने यरुशलीम का फ़िदिया दिया।10ख़ुदावन्द ने अपना पाक बाज़ू तमाम क़ौमों की आँखों के सामने नंगा किया है और ज़मीन सरासर हमारे ख़ुदा की नजात को देखेगी |11ऐ ख़ुदावन्द के ज़ुरूफ़ उठाने वालो , रवाना हो, रवाना हो; वहाँ से चले जाओ, नापाक चीज़ों को हाथ न लगाओ, उसके बीच से निकल जाओ और पाक हो।12क्यूँकि तुम न तो जल्द निकल जाओगे, और न भागनेवाले की तरह चलोगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुम्हारा हरावल, और इस्राईल का खुदा तुम्हारा चन्डावल होगा।13देखो, मेरा ख़ादिम इक़बालमन्द होगा, वह आला-ओ-बरतर और निहायत बलन्द होगा।14जिस तरह बहुतेरे तुझ को देखकर दंग हो गए (उसका चहरा हर एक बशर से ज़ाइद, और उसका जिस्म बनी आदम से ज़्यादा बिगड़ गया था),15उसी तरह वह बहुत सी क़ौमों को पाक करेगा और बादशाह उसके सामने ख़ामोश होंगे; क्यूँकि जो कुछ उनसे कहा न गया था, वह देखेंगे; और जो कुछ उन्होंने सुना न था, वह समझेंगे।
1हमारे पैग़ाम पर कौन ईमान लाया? और ख़दावन्द का बाज़ू किस पर ज़ाहिर हुआ?2लेकिन वह उसके आगे कोंपल की तरह, और ख़ुश्क ज़मीन से जड़ की तरह फूट निकला है; न उसकी कोई शक्ल और सूरत है, न ख़ूबसूरती; और जब हम उस पर निगाह करें, तो कुछ हुस्न-ओ-जमाल नहीं कि हम उसके मुश्ताक़ हों।3वह आदमियों में हक़ीर-ओ-मर्दूद; मर्द-ए-ग़मनाक, और रंज का आशना था; लोग उससे जैसे रूपोश थे। उसकी तहक़ीर की गई, और हम ने उसकी कुछ क़द्र न जानी।4तोभी उसने हमारी मशक़्क़तें उठा लीं, और हमारे हमारे ग़मों को बर्दाश्त किया; लेकिन हमने उसे ख़ुदा का मारा-कूटा और सताया हुआ समझा।5हालाँकी वह हमारी ख़ताओं की वजह से घायल किया गया, और हमारी बदकिरदारी के ज़रिए' कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई, ताकि उसके मार खाने से हम शिफ़ा पाएँ।6हम सब भेड़ों की तरह भटक गए, हम में से हर एक अपनी राह को फिरा; लेकिन ख़ुदावन्द ने हम सबकी बदकिरदारी उस पर लादी।7वह सताया गया, तोभी उसने बर्दाश्त की और मुँह न खोला; जिस तरह बर्रा जिसे ज़बह करने को ले जाते हैं, और जिस तरह भेड़ अपने बाल कतरनेवालों के सामने बेज़बान है, उसी तरह वह ख़ामोश रहा।8वह ज़ुल्म करके और फ़तवा लगाकर उसे ले गए; फ़िर उसके ज़माने के लोगों में से किसने ख़याल किया कि वह ज़िन्दों की ज़मीन से काट डाला गया? मेरे लोगों की ख़ताओं की वजह से उस पर मार पड़ी।9उसकी क़ब्र भी शरीरों के बीच ठहराई गई, और वह अपनी मौत में दौलतमन्दों के साथ हुआ; हालाँकि उसने किसी तरह का ज़ुल्म न किया, और उसके मुँह में हरगिज़ छल न था।10लेकिन ख़ुदावन्द को पसन्द आया कि उसे कुचले, उसने उसे ग़मगीन किया; जब उसकी जान गुनाह की क़ुर्बानी के लिए पेश की जाएगी, तो वह अपनी नस्ल को देखेगा; उसकी 'उम्र दराज़ होगी और ख़ुदावन्द की मर्ज़ी उसके हाथ के वसीले से पूरी होगी।11अपनी जान ही का दुख उठाकर वह उसे देखेगा और सेर होगा; अपने ही इरफ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा, क्यूँकि वह उनकी बदकिरदारी खुद उठा लेगा।12इसलिए मैं उसे बुज़ुर्गों के साथ हिस्सा दूँगा, और वह लूट का माल ताक़तवरों के साथ बाँट लेगा; क्यूँकि उसने अपनी जान मौत के लिए उडेल दी, और वह ख़ताकारों के साथ शुमार किया गया, तोभी उसने बहुतों के गुनाह उठा लिए और ख़ताकारों की शफ़ा'अत की।
1ऐ बाँझ, तू जो बे-औलाद थी नग़मा सराई ~कर, तू जिसने विलादत का दर्द बर्दाश्त नहीं किया, ख़ुशी से गा और ज़ोर से चिल्ला," क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि बे कस छोड़ी हुई औलाद शौहर वाली की औलाद से ज़्यादा है।2अपनी ख़ेमागाह को वसी' कर दे, हाँ, अपने घरों के पर्दे फैला; दरेग़ न कर, अपनी डोरियाँ लम्बी और अपनी मेंख़ें मज़बूत कर।3इसलिए कि तू दहनी और बाँई तरफ़ बढ़ेगी और तेरी नस्ल क़ौमों की वारिस होगी और वीरान शहरों को बसाएगी।4ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि तू फिर पशेमाँ न होगी; तू न घबरा, क्यूँकि तू फिर रूस्वा न होगी; और अपनी जवानी का नंग भूल जाएगी, और अपनी बेवगी की 'आर को फिर याद न करेगी।5क्यूँकि तेरा ख़ालिक़ तेरा शौहर है, उसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है; और तेरा फ़िदिया देनेवाला इस्राईल का क़ुददूस है, वह तमाम इस ज़मीन का ख़ुदा कहलाएगा।6क्यूँकि तेरा ख़ुदा फ़रमाता है कि ख़ुदावन्द ने तुझ को मतरूका और दिल आज़ुर्दा बीवी की तरह; हाँ, जवानी की मतलूक़ा बीवी की तरह फिर बुलाया है।7मैंने एक दम के लिए तुझे छोड़ दिया, लेकिन रहमत की फ़िरावानी से तुझे ले लूँगा।”8ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला फ़रमाता है, कि क़हर की शिद्दत में मैंने एक दम के लिए तुझ से मुँह छिपाया, लेकिन अब मैं हमेशा शफ़क़त से तुझ पर रहम करूँगा ।9क्यूँकि मेरे लिए ये तूफ़ान-ए-नूह का सा मु'आमिला है, कि जिस तरह मैंने क़सम खाई थी कि फिर ज़मीन पर नूह जैसा तूफ़ान कभी न आएगा, उसी तरह अब मैंने क़सम खाई है कि मैं तुझ से फिर कभी आज़ुर्दा न हूँगा और तुझ को न घुड़कूँगा।"10ख़ुदावन्द तुझ पर रहम करने वाला यूँ फ़रमाता है कि पहाड़ तो जाते रहें और टीले टल जाएँ लेकिन मेरी शफ़क़त कभी तुझ पर से जाती न रहेगी, और मेरा सुलह का 'अहद न टलेगा।11"ऐ मुसीबतज़दा और तूफ़ान की मारी और तसल्ली से महरूम! देख, मैं तेरे पत्थरों को स्याह रेख्ता में लगाऊँगा और तेरी बुनियाद नीलम से डालूँगा।12मैं तेरे कुंगुरों को लालों, और तेरे फाटकों को शब चिराग़, और तेरी सारी फ़सील बेशक़ीमत पत्थरों से बनाऊँगा।13और तेरे सब फ़र्ज़न्द ख़ुदावन्द से तालीम पाएँगे और तेरे फ़र्ज़न्दों की सलामती कामिल होगी।14तू रास्तबाज़ी से पायदार हो जाएगी, तू ज़ुल्म से दूर रहेगी क्यूँकि तू बेख़ौफ़ होगी, और दहशत से दूर रहेगी क्यूँकि वह तेरे क़रीब न आएगी।15मुम्किन है कि वह कभी इकट्ठे हों, लेकिन मेरे हुक्म से नहीं, जो तेरे ख़िलाफ़ जमा' होंगे, वह तेरे ही वजह से गिरेंगे।16देख, मैंने लुहार को पैदा किया जो कोयलों की आग धौंकता और अपने काम के लिए हथियार निकालता है; और ग़ारतगरों को मैंने ही पैदा किया कि लूट मार करें।17~ कोई हथियार जो तेरे ख़िलाफ़ बनाया जाए काम न आएगा, और जो ज़बान 'अदालत में तुझ पर चलेगी तू उसे मुजरिम ठहराएगी। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ये मेरे बन्दों की मीरास है और उनकी रास्तबाज़ी मुझ से है।"
1ऐ सब प्यासो, पानी के पास आओ, और वह भी जिसके पास पैसा न हो, आओ, मोल लो, और खाओ, हाँ आओ! शराब और दूध बेज़र और बेक़ीमत ख़रीदो।2तुम किस लिए अपना रुपया उस चीज़ के लिए जो रोटी नहीं, और अपनी मेहनत उस चीज़ के वास्ते जो आसूदा नहीं करती, ख़र्च करते हो? तुम ग़ौर से मेरी सुनो, और वह चीज़ जो अच्छी है खाओ; और तुम्हारी जान फ़रबही से लज़्ज़त उठाए।3कान लगाओ और मेरे पास आओ, सुनो और तुम्हारी जान ज़िन्दा रहेगी; और मैं तुम को अबदी 'अहद या'नी दाऊद की सच्ची नेमतें बख़्शूँगा ।4देखो, मैंने उसे उम्मतों के लिए गवाह मुक़र्रर किया, बल्कि उम्मतों का पेशवा और फ़रमॉंरवा।5देख, तू एक ऐसी क़ौम को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और एक ऐसी क़ौम जो तुझे नहीं जानती थी, ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा और इस्राईल के क़ुददूस की ख़ातिर तेरे पास दौड़ी आएगी; क्यूँकि उसने तुझे जलाल बख्शा है।6"जब तक ख़ुदावन्द मिल सकता है उसके तालिब हो, जब तक वह नज़दीक है उसे पुकारो।7शरीर अपनी राह को तर्क करे और बदकिरदार अपने ख़यालों को, और वह ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरे और वह उस पर रहम करेगा; और हमारे ख़ुदा की तरफ़ क्यूँकि वह कसरत से मु'आफ़ करेगा।8ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मेरे ख़याल तुम्हारे ख़याल नहीं, और न तुम्हारी राहें मेरी राहें हैं।9क्यूँकि जिस क़दर आसमान ज़मीन से बलन्द है, उसी क़दर मेरी राहें तुम्हारी राहों से और मेरे ख़याल तुम्हारे ख़यालों से बलन्द हैं।10"क्यूँकि जिस तरह आसमान से बारिश होती और बर्फ़ पड़ती है, और फिर वह वहाँ वापस नहीं जाती बल्कि ज़मीन को सेराब करती है, और उसकी शादाबी और रोईदगी ~का ज़रि'आ होती है ताकि बोनेवाले को बीज और खाने वाले को रोटी दे;11उसी तरह मेरा कलाम जो मेरे मुँह से निकलता है होगा, वह बेअन्जाम मेरे पास वापस न आएगा, बल्कि जो कुछ मेरी ख़्वाहिश होगी वह उसे पूरा करेगा और उस काम में जिसके लिए मैंने उसे भेजा मो'अस्सिर होगा।12क्यूँकि तुम ख़ुशी से निकलोगे और सलामती के साथ रवाना किए जाओगे; पहाड़ और टीले तुम्हारे सामने नग़मापर्दाज़ होंगे, और मैदान के सब दरख़्त ताल देंगे13काँटों की जगह सनौबर निकलेगा, और झाड़ी के बदले उसका दरख़्त होगा; और ये ख़ुदावन्द के लिए नाम और हमेशा निशान होगा जो कभी' न मिटेगा।"
1ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि 'अद्ल को क़ायम रख्खो, और सदाक़त को 'अमल में लाओ, क्यूँकि मेरी नजात नज़दीक है और मेरी सदाक़त ज़ाहिर होने वाली है।2मुबारक है वह इन्सान, जो इस पर 'अमल करता है और वह आदमज़ाद जो इस पर क़ायम रहता है, जो सबत को मानता और उसे नापाक नहीं करता, और अपना हाथ हर तरह की बुराई से बाज़ रखता है।"3और बेगाने का फ़र्ज़न्द जो ख़ुदावन्द से मिल गया हरगिज़ न कहे, "ख़ुदावन्द मुझ को अपने लोगों से जुदा कर देगा;" और ख़ोजा न कहे, कि "देखो, मैं तो सूखा दरख़्त हूँ।”4क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है,कि " वह ख़ोजे जो मेरे सबतों को मानते हैं और उन कामों को जो मुझे पसन्द हैं ~इख्तियार करते हैं5मैं उनको अपने घर में और अपनी चार दीवारी के अन्दर, ऐसा नाम-ओ-निशान बख़्शूँगा जो बेटों और बेटियों से भी बढ़ कर होगा; मैं हर एक को एक अबदी नाम दूँगा जो मिटाया न जाएगा।6'और बेगाने की औलाद भी जिन्होंने अपने आपको ख़ुदावन्द से पैवस्ता किया है कि उसकी ख़िदमत करें, और ख़ुदावन्द के नाम को 'अज़ीज़ रख्खें और उसके बन्दे हों, वह सब जो सबत को हिफ़्ज़ करके उसे नापाक न करें और मेरे 'अहद पर क़ायम रहें;7मैं उनको भी अपने पाक पहाड़ पर लाऊँगा और अपनी 'इबादतगाह में उनको शादमान करूँगा और उनकी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और उनके ज़बीहे मेरे मज़बह पर मक़बूल होंगे; क्यूँकि मेरा घर सब लोगों की 'इबादतगाह कहलाएगा।”8ख़ुदावन्द ख़ुदा, जो इस्राईल के तितर-बितर लोगों को जमा' करनेवाला है, यूँ फ़रमाता है, कि "मैं उनके सिवा जो उसी के होकर जमा' हुए हैं, औरों को भी उसके पास जमा' करूँगा ।"9ऐ दश्ती हैवानो, तुम सब के सब खाने को आओ ! हाँ, ऐ जंगल के सब दरिन्दो।10उसके निगहबान अन्धे हैं, वह सब जाहिल हैं, वह सब गूँगे कुत्ते हैं जो भौंक नहीं सकते, वह ख़्वाब देखनेवाले हैं जो पड़े रहते हैं और ऊँघते रहना पसन्द करते हैं।11और वह लालची कुत्ते हैं जो कभी सेर नहीं होते। वह नादान चरवाहे हैं, वह सब अपनी अपनी राह को फिर गए; हर एक हर तरफ़ से अपना ही नफ़ा' ढूंडता है।12हर एक कहता है, "तुम आओ, मैं शराब लाऊँगा, और हम ख़ूब नशे में चूर होंगे; और कल भी आज ही की तरह होगा बल्कि इससे बहुत बेहतर।"
1सादिक़ हलाक होता है, और कोई इस बात को ख़ातिर में नहीं लाता; और नेक लोग उठा लिए जाते हैं और कोई नहीं सोचता कि सादिक़ उठा लिया गया ताकि आनेवाली आफ़त से बचे;2वह सलामती में दाख़िल होता है। हर एक रास्त रू अपने बिस्तर पर आराम पाएगा।3लेकिन तुम, ऐ जादूगरनी के बेटो, ऐ ज़ानी और फ़ाहिशा के बच्चों , इधर आगे आओ।4तुम किस पर ठट्ठा मारते हो? तुम किस पर मुँह फाड़ते और ज़बान निकालते हो? क्या तुम बाग़ी औलाद और दग़ाबाज़ नस्ल नहीं हो,5जो बुतों के साथ हर एक हरे दरख़्त के नीचे अपने आपको बरअंगेख़्ता करते और वादियों में चट्टानों के शिगाफ़ों के नीचे बच्चों को ज़बह करते हो?6वादी के चिकने पत्थर तेरा हिस्सा हैं, वही तेरा हिस्सा हैं"; हाँ, तूने उनके लिए तपावन दिया और हदिया पेश किया है; क्या मुझे इन कामों से तिस्कीन होगी?7एक ऊँचे और बलन्द पहाड़ पर तूने अपना बिस्तर बिछाया है, और उसी पर ज़बीहा ज़बह करने को चढ़ गई।8और तूने दरवाज़ों और चौखटों के पीछे अपनी यादगार की 'अलामतें नस्ब कीं, और तू मेरे सिवा दूसरे के आगे बेपर्दा हुई; हाँ, तू चढ़ गई और तूने अपना बिछौना भी बड़ा बनाया और उनके साथ 'अहद कर लिया है; तूने उनके बिस्तर को जहाँ देखा पसन्द किया।9तू ख़ुशबू लगाकर बादशाह के सामने चली गई और अपने आपको ख़ूब मु'अत्तर किया, और अपने क़ासिद दूर दूर भेजे बल्कि तूने अपने आपको पाताल तक पस्त किया।10तू अपने सफ़र की दराज़ी से थक गई, तोभी तूने न कहा, कि "इससे कुछ फ़ाइदा नहीं", तूने अपनी क़ुव्वत की ताज़गी पाई इसलिए तू अफ़सुर्दा न हुई।11तब तू किससे डरी और किसके ख़ौफ़ से तूने झूट बोला, और मुझे याद न किया और ख़ातिर में न लाई? क्या मैं एक मुद्दत से ख़ामोश नहीं रहा? तोभी तू मुझ से न डरी।12मैं तेरी सदाक़त की तरफ़ तेरे कामों को फ़ाश करूँगा और उनसे तुझे कुछ नफ़ा' न होगा |13जब तू फ़रियाद करे, तो जिनको तूने जमा' किया है वह तुझे छुड़ाएँ; ये हवा उन~सबको उड़ा ले जाएगी, एक झोंका उनको ले जाएगा; लेकिन मुझ पर तवक्कुल करनेवाला ज़मीन का मालिक होगा और मेरे पाक पहाड़ का वारिस होगा।14तब यूँ कहा जाएगा, "राह ऊँची करो, ऊँची करो, हमवार करो, मेरे लोगों के रास्ते से ठोकर का ज़रि'आ दूर करो।"15क्यूँकि वह जो 'आली और बलन्द है और हमेशा से हमेशा ~तक क़ायम है, जिसका नाम क़ुददूस है, यूँ फ़रमाता है, "मैं बलन्द और मुक़द्दस मक़ाम में रहता हूँ, और उसके साथ भी जो शिकस्ता दिल और फ़रोतन है; ताकि फ़रोतनों की रूह को ज़िन्दा करूँ और शिकस्ता दिलों को हयात बख़्शूँ।16क्यूँकि मैं हमेशा न झगड़ूँगा और हमेशा ग़ज़बनाक न रहूँगा, इसलिए कि मेरे सामने रूह और जानें जो मैंने पैदा की हैं बेताब हो जाती हैं।17कि मैं उसके लालच के गुनाह से ग़ज़बनाक हुआ, इसलिए मैंने उसे मारा, मैंने अपने आपको छिपाया और ग़ज़बनाक हुआ; इसलिए कि वह उस राह पर जो उसके दिल ने निकाली, भटक गया था।18मैंने उसकी राहें देखीं, और मैं ही उसे शिफ़ा बख़्शूँगा ; मैं उसकी रहबरी करूँगा , और उसको और उसके ग़मख़्वारों को फिर दिलासा दूँगा।19ख़ुदावन्द फ़रमाता हैं, "मैं लबों का फल पैदा करता हूँ, सलामती! सलामती उसको जो दूर है, और उसको जो नज़दीक है, और मैं ही उसे सिहत बख़्शूँगा ।20लेकिन शरीर तो समन्दर की तरह हैं जो हमेशा~मौजज़न और बेक़रार है, जिसका पानी कीचड़ और गन्दगी उछालता है।21मेरा ख़ुदा फ़रमाता है, कि "शरीरों के लिए सलामती नहीं।"
1गला फाड़ कर चिल्ला दरेग़ न कर नरसिंगे की तरह अपनी आवाज़ बलन्द कर,और मेरे लोगों पर उनकी ख़ता और या'क़ूब के घराने पर उनके गुनाहों को ज़ाहिर कर।2वह रोज़-ब-रोज़ मेरे तालिब हैं और उस क़ौम की तरह जिसने सदाक़त के काम किए और अपने ख़ुदा के अहकाम को तर्क न किया, मेरी राहों को दरियाफ़्त करना चाहते हैं; वह मुझ से सदाक़त के अहकाम तलब करते हैं, वह ख़ुदा की नज़दीकी चाहते हैं।3वह कहते है, 'हम ने किस लिए रोज़े रख्खे, जब कि तू नज़र नहीं करता; और हम ने क्यूँ अपनी जान को दुख दिया, जब कि तू ख़याल में नहीं लाता?" देखो, तुम अपने रोज़े के दिन में अपनी ख़ुशी के तालिब रहते हो, और सब तरह की सख़्त मेहनत लोगों से कराते हो।4देखो, तुम इस मक़सद से रोज़ा रखते हो कि झगड़ा-रगड़ा करो, और शरारत के मुक्के मारो; फ़िर अब तुम इस तरह का रोज़ा नहीं रखते हो कि तुम्हारी आवाज़ 'आलम-ए-बाला पर सुनी जाए।5क्या ये वह रोज़ा है जो मुझ को पसन्द है? ऐसा दिन कि उसमें आदमी अपनी जान को दुख दे और अपने सिर को झाऊ की तरह झुकाए, और अपने नीचे टाट और राख बिछाए; क्या तू इसको रोज़ा और ऐसा दिन कहेगा जो ख़ुदावन्द का मक़बूल हो ?6"क्या वह रोज़ा जो मैं चाहता हूँ ये नहीं कि ज़ुल्म की ज़ंजीरें तोड़ें और जूए के बन्धन खोलें, और मज़लूमों को आज़ाद करें बल्कि हर एक जूए को तोड़ डालें?7क्या ये नहीं कि तू अपनी रोटी भूकों को खिलाए, और ग़रीबों को जो आवारा हैं अपने घर में लाए; और जब किसी को नंगा देखे तो उसे पहिनाए, और तू अपने हमजिन्स से रूपोशी न करे?8तब तेरी रोशनी सुबह की तरह फूट निकलेगी और तेरी सेहत की तरक्की जल्द जाहिर होगी; तेरी सदाक़त तेरी हरावल होगी और ख़ुदावन्द का जलाल तेरा चन्डावल होगा।9तब तू पुकारेगा और ख़ुदावन्द जवाब देगा, तू चिल्लाएगा और वह फ़रमाएगा, 'मैं यहाँ हूँ"। अगर तू उस जूए को और उंगलियों से इशारा करने की, और हरज़ागोई को अपने बीच से दूर करेगा,10और अगर तू अपने दिल को भूके की तरफ़ माइल करे और आज़ुर्दा दिल को आसूदा करे, तो तेरा नूर तारीकी में चमकेगा और तेरी तीरगी दोपहर की तरह हो जाएगी।11और ख़ुदावन्द हमेशा तेरी रहनुमाई करेगा, और ख़ुश्क साली में तुझे सेर करेगा और तेरी हड्डियों को कु़व्वत बख़्शेगा; तब तू सेराब बाग़ की तरह होगा और उस चश्मे की तरह जिसका पानी कम न हो |12और तेरे लोग पुराने वीरान मकानों को ता'मीर करेंगे, और तू पुश्त-दर-पुश्त की बुनियादों को खड़ा करेगा, और तू रख़ने का~बन्द करनेवाला और आबादी के लिए राह का दुरुस्त करने वाला कहलाएगा।13"अगर तू सबत के रोज़ अपना पाँव रोक रख्खे, और मेरे मुक़द्दस दिन में अपनी ख़ुशी का तालिब न हो, और सबत को राहत और ख़ुदावन्द का मुक़द्दस और मु'अज़्ज़म कहे और उसकी ता'ज़ीम करे, अपना कारोबार न करे, और अपनी ख़ुशी और बेफ़ाइदा बातों से दस्तबरदार रहे;14तब तू ख़ुदावन्द में मसरूर होगा और मैं तुझे दुनिया की बलन्दियों पर ले चलूँगा, और मैं तुझे तेरे बाप या'क़ूब की मीरास से खिलाऊँगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ही के मुँह से ये इरशाद हुआ है।”
1देखो ख़ुदावन्द का हाथ छोटा नहीं हो गया कि बचा न सके, और उसका कान भारी नहीं कि सुन न सके;2~बल्कि तुम्हारी बदकिरदारी ने तुम्हारे और तुम्हारे ख़ुदा के बीच जुदाई कर दी है, और तुम्हारे गुनाहों ने उसे तुम से छिपा लिया , ऐसा कि वह नहीं सुनता।3क्यूँकि तुम्हारे हाथ ख़ून से और तुम्हारी उंगलियाँ बदकिरदारी से आलूदा हैं तुम्हारे लब झूट बोलते और तुम्हारी ज़बान शरारत की बातें बकती है।4कोई इन्साफ़ की बातें पेश नहीं करता और कोई सच्चाई से हुज्जत नहीं करता, वह झूट पर भरोसा करते हैं और झूट बोलते हैं वह ज़ियानकारी से बारदार होकर बदकिरदारी को जन्म देते हैं ।5वह अज़दहे ~के अण्डे सेते और मकड़ी का जाला तनते हैं; जो उनके अण्डों में से कुछ खाए मर जाएगा, और जो उनमें से तोड़ा जाए उससे अज़दहा निकलेगा।6उनके जाले से पोशाक नहीं बनेगी, वह अपनी दस्तकारी से मुलब्बस न होंगे। उनके आ'माल बदकिरदारी के हैं, और ज़ुल्म का काम उनके हाथों में है।7उनके पाँव बुराई की तरफ़ दौड़ते हैं, और वह बेगुनाह का ख़ून बहाने के लिए जल्दी करते हैं; उनके ख़यालात बदकिरदारी के हैं, तबाही और हलाकत उनकी राहों में है।8वह सलामती का रास्ता नहीं जानते, और उनके चाल चलन ~में इन्साफ़ नहीं; वह अपने लिए टेढ़ी राह बनाते हैं जो कोई उसमें जाएगा सलामती को न देखेगा।9इसलिए इन्साफ़ हम से दूर है, और सदाक़त हमारे नज़दीक नहीं आती; हम नूर का ~इन्तिज़ार करते हैं, लेकिन देखो तारीकी है; और रोशनी का, लेकिन अन्धेरे में चलते हैं।10हम दीवार को अन्धे की तरह टटोलते हैं, हाँ, यूँ टटोलते हैं कि जैसे हमारी ऑखें नहीं; हम दोपहर को यूँ ठोकर खाते हैं जैसे रात हो गई, हम तन्दरुस्तों के बीच जैसे मुर्दा हैं।11हम सब के सब रीछों की तरह गु़र्राते हैं और कबूतरों की तरह कुढ़ते हैं, हम इन्साफ़ की राह तकते हैं, लेकिन वह कहीं नहीं; और नजात के मुन्तज़िर हैं, लेकिन वह हम से दूर है।12क्यूँकि हमारी खताएँ तेरे सामने बहुत हैं और हमारे गुनाह हम पर गवाही देते हैं, क्यूँकि हमारी ख़ताएँ हमारे साथ हैं और हम अपनी बदकिरदारी को जानते हैं;13कि हम ने ख़ता की, ख़ुदावन्द का इन्कार किया, और अपने ख़ुदा की पैरवी से बरगश्ता हो गए; हम ने ज़ुल्म और सरकशी की बातें कीं, और दिल में झूठ तसव्वुर करके दरोग़ोई की।14'अदालत हटाई गई और इन्साफ़ दूर खड़ा हो रहा; सदाक़त बाज़ार में गिर पड़ी, और रास्ती दाख़िल नहीं हो सकती।15~हाँ, रास्ती गुम हो गई, और वह जो बुराई से भागता है शिकार हो जाता है।ख़ुदावन्द ने ये देखा और उसकी नज़र में बुरा मा'लूम हुआ कि 'अदालत जाती रही |16और उसने देखा कि कोई आदमी नहीं, और ता'अज्जुब किया कि कोई शफ़ा'अत करने वाला नहीं; इसलिए उसी के बाज़ू ने उसके लिए नजात हासिल की और उसी की रास्तबाज़ी ने उसे सम्भाला।17हाँ, उसने रास्तबाज़ी का बक्तर पहना और नजात का खूद अपने सिर पर रख्खा, और उसने लिबास की जगह इन्तक़ाम की पोशाक पहनी और गै़रत के जुब्बे से मुलब्बस हुआ।18वह उनको उनके 'आमाल के मुताबिक़ बदला देगा, अपने मुख़ालिफ़ों पर क़हर करेगा और अपने दुश्मनों को सज़ा देगा, और जज़ीरों को बदला देगा।19तब पश्चिम के बाशिन्दे ख़ुदावन्द के नाम से डरेंगे, और पूरब के बाशिन्दे उसके जलाल से; क्यूँकि वह दरिया के सैलाब की तरह आएगा जो ख़ुदावन्द के दम से रवाँ हो।20और ख़ुदावन्द फ़रमाता है,कि "सिय्यून में और उनके पास जो या'क़ूब में ख़ताकारी से बाज़ आते हैं, एक फ़िदिया देनेवाला आएगा।21क्यूँकि उनके साथ मेरा 'अहद ये है," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि"मेरी रूह जो तुझ पर है और मेरी बातें जो मैंने तेरे मुँह में डाली हैं,तेरे मुँह से और तेरी नस्ल के मुँह से, और तेरी नस्ल की नस्ल के मुँह से अब से लेकर हमेशा तक जाती न रहेंगी;" ख़ुदावन्द का यही इरशाद है।
1उठ मुनव्वर हो क्यूँकि तेरा नूर आगया और ख़ुदावन्द का जलाल तुझ पर ज़ाहिर हुआ।2क्यूँकि देख, तारीकी ज़मीन पर छा जाएगी और तीरगी उम्मतों पर; लेकिन ख़ुदावन्द तुझ पर ताले' होगा और उसका जलाल तुझ पर नुमायाँ होगा।3और क़ौमें तेरी रोशनी की तरफ़ आयेंगी और सलातीन तेरे तुलू की तजल्ली में चलेंगे।4अपनी आँखें उठाकर चारों तरफ़ देख, वह सब के सब इकट्ठे होते हैं और तेरे पास आते हैं; तेरे बेटे दूर से आएँगे और तेरी बेटियों को गोद में उठाकर लाएँगे।5तब तू देखेगी और मुनव्वर होगी; हाँ, तेरा दिल उछलेगा और कुशादा होगा क्यूँकि समन्दर की फ़िरावानी तेरी तरफ फिरेगी और क़ौमों की दौलत तेरे पास फ़राहम होगी।6ऊँटों की कतारें और मिदयान और 'ऐफ़ा की सांडनियाँ आकर तेरे गिर्द बेशुमार होंगी; वह सब सबा से आएँगे,और सोना और लुबान लायेंगे और ख़ुदावन्द की हम्द का 'ऐलान करेंगे।7क़ीदार की सब भेड़ें तेरे पास जमा' होंगी, नबायोत के मेंढे तेरी ख़िदमत में हाज़िर होंगे; वह मेरे मज़बह पर मक़बूल होंगे और मैं अपनी शौकत के घर को जलाल बख़्शूँगा।8ये कौन हैं जो बादल की तरह उड़े चले आते हैं, और जैसे कबूतर अपनी काबुक की तरफ़?9यक़ीनन जज़ीरे मेरी राह देखेंगे,और तरसीस के जहाज़ पहले आएँगे कि तेरे बेटों को उनकी चाँदी और उनके सोने के साथ दूर से ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा और इस्राईल के क़ुददूस के नाम के लिए लाएँ; क्यूँकि उसने तुझे बुज़ुर्गी बख़्शी है।10और बेगानों के बेटे तेरी दीवारें बनाएँगे और उनके बादशाह तेरी ख़िदमत गुज़ारी करेंगे अगरचे मैंने अपने क़हर से तुझे मारा पर अपनी महरबानी से मैं तुझ पर रहम करूँगा ।11और तेरे फाटक हमेशा खुले रहेंगे, वह दिन रात कभी बन्द न होंगे; ताकि क़ौमों की दौलत और उनके बादशाहों को तेरे पास लाएँ।12क्यूँकि वह क़ौम और वह ममलुकत जो तेरी ख़िदमत गुज़ारी न करेगी, बर्बाद हो जाएगी; हाँ, वह क़ौमें बिल्कुल हलाक की जाएँगी।13लुबनान का जलाल तेरे पास आएगा, सरौ और सनौबर और देवदार सब आएँगे ताकि मेरे घर को आरास्ता करें; और मैं अपने पाँव की कुर्सी को रौनक़ बख़्शूँगा।14और तेरे ग़ारत गरों के बेटे तेरे सामने झुकते हुए आयेंगे और तेरी तह्क़ीर करने वाले सब तेरे कदमों पर गिरेंगे; और वह तेरा नाम ख़ुदावन्द का शहर, इस्राईल के क़ुददूस का सिय्यून रखेंगे।15इसलिए कि तू तर्क की गई और तुझसे नफ़रत हुई ऐसा कि~किसी आदमी ने~तेरी तरफ़ गुज़र भी न किया मैं तुझे हमेशा की ~फ़ज़ीलत और नसल दर नसल की ख़ुशी का ज़रिया' बनाऊंगा|16तू क़ौमों का दूध भी पी लेगी;हाँ बादशाहों की छाती चूसेगी और तू जानेगी कि मैं ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला और या'क़ूब का क़ादिर तेरा फ़िदिया देने वाला हूँ।17मैं पीतल के बदले सोना लाऊँगा,और लोहे के बदले चाँदी और लकड़ी के बदले पीतल और पत्थरों के बदले लोहा; और मैं तेरे हाकिमों को सलामती, और तेरे 'आमिलों को सदाक़त बनाऊँगा18फिर कभी तेरे मुल्क में ज़ुल्म का ज़िक्र न होगा, और न तेरी हदों के अन्दर ख़राबी या बर्बादी का; बल्कि तू अपनी दीवारों का नाम नजात और अपने फाटकों का हम्द रख्खेगी।19फिर तेरी रोशनी न दिन को सूरज से होगी न चाँद के चमकने से, बल्कि ख़ुदावन्द तेरा हमेशा का ~नूर और तेरा ख़ुदा तेरा जलाल होगा।20तेरा सूरज फिर कभी न ढलेगा और तेरे चाँद को ज़वाल न होगा", क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा हमेशा का नूर होगा और तेरे मातम के दिन ख़त्म हो जाएँगे।21और तेरे लोग सब के सब रास्तबाज़ होंगे; वह हमेशा तक मुल्क के वारिस होंगे, या'नी मेरी लगाई हुई शाख़ और मेरी दस्तकारी ठहरेंगे ताकि मेरा जलाल ज़ाहिर हो।22~सबसे छोटा एक हज़ार हो जाएगा और सबसे हक़ीर एक ज़बरदस्त क़ौम। मैं ख़ुदावन्द ठीक वक़्त पर ये सब कुछ जल्द करूँगा ।
1ख़ुदावन्द ख़ुदा की रूह मुझ पर है क्यूँकि उसने मुझे मसह किया ताकि हलीमों को ख़ुशख़बरी सुनाऊँ; उसने मुझे भेजा है कि शिकस्ता दिलों को तसल्ली दूँ, ़कैदियों के लिए रिहाई और ग़ुलामों के लिए आज़ादी का 'ऐलान करूँ,2ताकि ख़ुदावन्द के साल-ए- मक़बूल का और अपने ख़ुदा के इन्तक़ाम के दिन का इश्तिहार दूँ, और सब ग़मगीनों को दिलासा दूँ।3सिय्यून के ग़मज़दों के लिए ये मुक़र्रर कर दूँ कि उनको राख के बदले सेहरा और मातम की जगह ख़ुशी का रौग़न, और उदासी के बदले 'इबादत का ख़िल'अत बख़्शूं, ताकि वह सदाक़त के दरख़्त और ख़ुदावन्द के लगाए हुए कहलाएँ कि उसका जलाल ज़ाहिर हो।4तब वह पुराने उजाड़ मकानों को ता'मीर करेंगे और पुरानी वीरानियों को फिर बिना करेंगे, और उन उजड़े शहरों की मरम्मत करेंगे जो नसल -दर-नसल उजाड़ पड़े थे।5परदेसी आ खड़े होंगे और तुम्हारे गल्लों को चराएँगे, और बेगानों के बेटे तुम्हारे हल चलानेवाले और ताकिस्तानों में काम करनेवाले होंगे।6लेकिन तुम ख़ुदावन्द के काहिन कहलाओगे, वह तुम को हमारे खुदा के ख़ादिम कहेंगे; तुम क़ौमों का माल खाओगे और तुम उनकी शौकत पर फ़ख़्र करोगे।7तुम्हारी शर्मिन्दगी का बदले दो चन्द मिलेगा, वह अपनी रुस्वाई के बदले अपने हिस्से से ख़ुश होंगे; तब वह अपने मुल्क में दो चन्द के मालिक होंगे और उनको हमेशा की ~ख़ुशी होगी।8क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द इन्साफ़ को 'अज़ीज़ रखता हूँ और ग़ारतगरी और ज़ुल्म से नफ़रत करता हूँ; सो मैं सच्चाई से उनके कामों का अज्र दूँगा और उनके साथ हमेशा का 'अहद बाँधुंगा।9उनकी नस्ल क़ौमों के बीच नामवर होगी, और उनकी औलाद लोगों के बीच ; वह सब जो उनको देखेंगे, इक़रार करेंगे कि ये वह नस्ल है जिसे ख़ुदावन्द ने बरकत बख़्शी है।10मैं ख़ुदावन्द से बहुत खुश हूँगा, मेरी जान मेरे ख़ुदा में मसरूर होगी, क्यूँकि उसने मुझे नजात के कपड़े पहनाए, उसने रास्तबाज़ी के ख़िल'अत से मुझे मुलब्बस किया जैसे दूल्हा सेहरे से अपने आपको आरास्ता करता है और दुल्हन अपने ज़ेवरों से अपना सिंगार करती है।11~क्यूँकि जिस तरह ज़मीन अपने नबातात को पैदा करती है, और जिस तरह बाग़ उन चीज़ों को जो उसमें बोई गई हैं उगाता है; उसी तरह ख़ुदावन्द ख़ुदा सदाक़त और 'इबादत को तमाम क़ौमों के सामने ज़हूर में लाएगा।
1सिय्यून की ख़ातिर मैं चुप न रहूँगा और यरुशलीम की ख़ातिर मैं दम न लूँगा, जब तक कि उसकी सदाक़त नूर की तरह न चमके और उसकी नजात रोशन चराग़ की तरह जलवागर न हो।2तब क़ौमों पर तेरी सदाक़त और सब बादशाहों पर तेरी शौकत ज़ाहिर होगी, और तू एक नये नाम से कहलाएगी जो ख़ुदावन्द के मुँह से निकलेगा।3और तू ख़ुदावन्द के हाथ में जलाली ताज और अपने ख़ुदा की हथेली में शाहाना अफ़सर होगी।4तू आगे को मतरूका न कहलाएगी, और तेरे मुल्क का नाम फिर कभी ख़राब न होगाः बल्कि तू प्यारी' और तेरी सरज़मीन सुहागन कहलाएगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुझ से ख़ुश है, और तेरी ज़मीन ख़ाविन्द वाली होगी।5क्यूँकि जिस तरह जवान मर्द कुँवारी 'औरत को ब्याह लाता है, उसी तरह तेरे बेटे तुझे ब्याह लेंगे; और जिस तरह दुल्हा दुल्हन में राहत पाता है, उसी तरह तेरा ख़ुदा तुझ में मसरूर होगा।6ऐ यरुशलीम , मैंने तेरी दीवारों पर निगहबान मुक़र्रर किए हैं; वह दिन रात कभी ~ख़ामोश न होंगे। ऐ ख़ुदावन्द का ज़िक्र करनेवालो , ख़ामोश न हो|7और जब तक वह यरुशलीम को क़ायम करके इस ज़मीन पर महमूद न बनाए, उसे आराम न लेने दो।8ख़ुदावन्द ने अपने दहने हाथ और अपने क़वी बाज़ू की क़सम खाई है, कि"यक़ीनन मैं आगे को तेरा ग़ल्ला तेरे दुश्मनों के खाने को न दूँगा; और बेगानों के बेटे तेरी मय, जिसके लिए तूने मेहनत की, नहीं पीएँगे;9बल्कि वही जिन्होंने फ़स्ल जमा' की है, उसमें से खाएँगे और ख़ुदावन्द की हम्द करेंगे, और वह जो ज़ख़ीरे में लाए हैं उसे मेरे मक़दिस की बारगाहों में पीएँगे।10गुज़र जाओ, फाटकों में से गुज़र जाओ, लोगों के लिए राह दुरुस्त करो, और शाहराह ऊँची और बलन्द करो, पत्थर चुनकर साफ़ कर दो, लोगों के लिए झण्डा खड़ा करो।11देख, ख़ुदावन्द ने इन्तिहा-ए-ज़मीन तक ऐलान कर दिया है, दुख़्तर-ए-सिय्यून से कहो, "देख, तेरा नजात देनेवाला आता है; देख, उसका बदला उसके साथ और उसका काम उसके सामने है।"12~~और वह पाक लोग और ख़ुदावन्द के ख़रीदे हुए कहलाएँगे, और तू मत्लूबा या'नी ग़ैर -मतरूक शहर कहलाएगी।
1ये कौन है जो अदोम से और सुर्ख़ लिबास पहने बुसराह से आता है? ये जिसका लिबास दरखशां है और अपनी तवानाई की बुज़ुर्गी से ख़रामान है ये मैं हूँ, जो सादिक़-उल-क़ौल और नजात देने पर क़ादिर हूँ।”2तेरी लिबास क्यूँ सुर्ख़ ~है? तेरा लिबास क्यूँ उस शख़्स की तरह है जो अँगूर हौज़ में रौंदता है?3"मैंने तन-ए-तन्हा अंगूर हौज़ में रौंदें और लोगों में से मेरे साथ कोई न था; हाँ, मैंने उनको अपने क़हर में लताड़ा, और अपने जोश में उनको रौंदा; और उनका ख़ून मेरे लिबास पर छिड़का गया, और मैंने अपने सब कपड़ों को आलूदा किया।4क्यूँकि इन्तक़ाम का दिन मेरे दिल में है, और मेरे ख़रीदे हुए लोगों का साल आ पहुँचा है।5मैंने निगाह की और कोई मददगार न था, और मैंने ता'अज्जुब किया कि कोई संभालने वाला न था; पस मेरे ही बाज़ू से नजात आई, और मेरे ही क़हर ने मुझे संभाला।6हाँ, मैंने अपने क़हर से लोगों को लताड़ा, और अपने ग़ज़ब से उनको मदहोश किया और उनका ख़ून ज़मीन पर बहा दिया।”7मैं ख़ुदावन्द की शफ़क़त का ज़िक्र करूँगा , ख़ुदावन्द ही की 'इबादत का, उस सबके मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द ने हम को इनायत किया है; और उस बड़ी मेहरबानी का जो उसने इस्राईल के घराने पर अपनी ख़ास रहमत और फ़िरावान शफ़क़त के मुताबिक़ ज़ाहिर की है।8क्यूँकि उसने फ़रमाया, यक़ीनन वह मेरे ही लोग हैं, ऐसी औलाद जो बेवफ़ाई न करेगी; चुनाँचे वह उनका बचानेवाला हुआ।9उनकी तमाम मुसीबतों में वह मुसीबतज़दा हुआ और उसके सामने के फ़रिश्ते ने उनको बचाया, उसने अपनी उलफ़त और रहमत से उनका फ़िदिया दिया; उसने उनको उठाया और पहले से हमेशा उनको लिए फिरा।10लेकिन वह बाग़ी हुए, और उन्होंने उसकी रूह-ए-क़ुद्दूस को ग़मगीन किया; इसलिए वह उनका दुश्मन हो गया और उनसे लड़ा।11फिर उसने अगले दिनों को और मूसा को और अपने लोगों को याद किया, और फ़रमाया, वह कहाँ है, जो उनको अपने गल्ले के चौपानों के साथ समन्दर में से निकाल लाया ? वह कहाँ है, जिसने अपनी रूह-ए-क़ुददूस उनके अन्दर डाली?12जिसने मूसा के दहने हाथ पर अपने जलाली बाज़ू को साथ कर दिया”, और उनके आगे पानी को चीरा ताकि अपने लिए हमेशा का नाम पैदा करे,13जो गहराओ में से उनको इस तरह ले गया जिस तरह वीराने में से घोड़ा, ऐसा कि उन्होंने ठोकर न खाई?14जिस तरह मवेशी वादी में चले जाते हैं, उसी तरह ख़ुदावन्द की रूह उनको आरामगाह में लाई; और उसी तरह तूने अपनी क़ौम को हिदायत की, ताकि तू अपने लिए जलील नाम पैदा करे।15आसमान पर से निगाह कर, और अपने पाक और जलील घर से देख। तेरी गै़रत और तेरी क़ुदरत के काम कहाँ हैं? तेरी दिली रहमत और तेरी शफ़क़त जो मुझ पर थी ख़त्म हो गई।16यक़ीनन तू हमारा बाप है, अगरचे इब्राहीम हम से नावाक़िफ़ हो और इस्राईल हम को न पहचाने; तू, ऐ ख़ुदावन्द,हामारा बाप और फ़िदया देने वाला है तेरा नाम अज़ल से यही है।17ऐ ख़ुदावन्द, तूने हम को अपनी राहों से क्यूँ गुमराह किया, और हमारे दिलों को सख़्त किया कि तुझ से न डरें? अपने बन्दों की ख़ातिर अपनी मीरास के क़बाइल की ख़ातिर बाज़ आ।18तेरे पाक लोग थोड़ी देर तक क़ाबिज़ रहे; अब हमारे दुश्मनों ने तेरे मक़दिस को पामाल कर डाला है।19हम तो उनकी तरह हुए जिन पर तूने कभी हुकूमत न की, और जो तेरे नाम से नहीं कहलाते।
1काश कि तू आसमान को फाड़े और उतर आए कि तेरे सामने पहाड़ लरज़िश खाएँ।2जिस तरह आग सूखी डालियों को जलाती है और पानी आग से जोश मारता है ताकि तेरा नाम तेरे मुख़ालिफ़ों में मशहूर हो और क़ौमें तेरे सामने में लरज़ाँ हों।3जिस वक़्त तूने बड़े काम किए जिनके हम मुन्तज़िर न थे, तू उतर आया और पहाड़ तेरे सामने काँप गए।4क्यूँकि शुरू' ही से न किसी ने सुना, न किसी के कान तक पहुँचा और न आँखों ने तेरे सिवा ऐसे ख़ुदा को देखा, जो अपने इन्तिज़ार करनेवाले के लिए कुछ कर दिखाए।5तू उससे मिलता है जो ख़ुशी से सदाक़त के काम करता है, और उनसे जो तेरी राहों में तुझे याद रखते हैं; देख, तू ग़ज़बनाक हुआ क्यूँकि हम ने गुनाह किया, और मुद्दत तक उसी में रहे; क्या हम नजात पाएँगे?6और हम तो सब के सब ऐसे हैं जैसे नापाक चीज़ और हमारी तमाम रस्तबाज़ी नापाक लिबास की तरह है। और हम सब पत्ते की तरह कुमला जाते हैं, और हमारी बदकिरदारी आँधी की तरह हम को उड़ा ले जाती है।7और कोई नहीं जो तेरा नाम ले, जो अपने आपको आमादा करे कि तुझ से लिपटा ~रहे; क्यूँकि हमारी बदकिरदारी की वजह से तू हम से ~छिपा रहा और हम को पिघला डाला।8तोभी ऐ ख़ुदावन्द, तू हमारा बाप है; हम मिट्टी है और तू हमारा कुम्हार है, और हम सब के सब तेरी दस्तकारी हैं।9ऐ ख़ुदावन्द, ग़ज़बनाक न हो और बदकिरदारी को हमेशा तक याद न रख; देख, हम तेरी मिन्नत करते हैं, हम सब तेरे लोग हैं।10तेरे पाक शहर वीराने बन गए, सिय्यून सुनसान और यरुशलीम वीरान है।11हमारा ख़ुशनुमा मक़दिस जिसमें हमारे बाप दादा तेरी 'इबादत करते थे, आग से जलाया गया और हमारी उम्दा चीज़ें बर्बाद हो गईं।12~ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू इस पर भी अपने आप को रोकेगा? क्या तू ख़ामोश रहेगा और हम को यूँ बदहाल करेगा?
1जो मेरे तालिब न थे, मैं उनकी तरफ़ मुतवज्जिह हुआ; जिन्होंने मुझे ढूँढा न था, मुझे पा लिया; मैंने एक क़ौम से जो मेरे नाम से नहीं कहलाती थी, फ़रमाया, "देख, मैं हाज़िर हूँ।"2मैंने नाफ़रमान लोगों की तरफ़ जो अपनी फ़िक्रों की पैरवी में बुरी राह पर चलते हैं, हमेशा हाथ फैलाए;3ऐसे लोग जो हमेशा मेरे सामने, बाग़ों में क़ुर्बानियाँ करने और ईटों पर ख़ुशबू जलाने से मुझे ग़ुस्सा दिलाते ~हैं;4जो क़ब्रों में बैठते, और पोशीदा जगहों में रात काटते, और सूअर का गोश्त खाते हैं; और जिनके बर्तनों में नफ़रती चीज़ों का शोर्बा मौजूद है;5जो कहते तू अलग ही खड़ा रह मेरे नज़दीक न आ ~क्यूँकि मैं तुझ से ज़्यादा पाक हूँ।" ये मेरी नाक में धुंवें की तरह और दिन भर जलने वाली आग की तरह हैं।6देखो, मेरे सामने ही लिखा हुआ है तब मैं ख़ामोश न रहूँगा~बल्कि बदला दूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है; हाँ,उनकी गोद में डाल दूँगा7तुम्हारी और तुम्हारे बाप ~दादा की बदकिरदारी का बदला इकट्ठा दूँगा, जो पहाड़ों पर ख़ुशबू जलाते और टीलों पर मेरा इन्कार करते थे; इसलिए मैं पहले उनके कामों को उनकी गोद में नाप कर दूँगा।"8ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "जिस तरह शीरा ख़ोशा-ए-अँगूर में मौजूद है, और कोई कहे, उसे ख़राब न कर क्यूँकि उसमें बरकत है, उसी तरह मैं अपने बन्दों की ख़ातिर करूँगा ताकि उन सबको हलाक न करूँ ।9और मैं या'क़ूब में से एक नस्ल और यहूदाह में से अपने कोहिस्तान का वारिस खड़ा करूँगा ~और मेरे बर्गुज़ीदा लोग उसके वारिस होंगे और मेरे बन्दे वहाँ बसेंगे।10और शारून गल्लों का घर होगा, और 'अकूर की वादी बैलों के बैठने का मक़ाम , मेरे उन लोगों के लिए जो मेरे तालिब हुए।11लेकिन तुम जो ख़ुदावन्द को छोड़ देते और उसके पाक पहाड़ को फ़रामोश करते, और मुश्तरी के लिए दस्तरख़्वान चुनते और ज़ुहरा के लिए शराब-ए-मम्जू़ज का जाम पुर करते हो;12मैं तुम को गिन गिनकर तलवार के हवाले करूँगा , और तुम सब ज़बह होने के लिए ~झुकोगे; क्यूँकि जब मैंने बुलाया तो तुम ने जवाब न दिया, जब मैंने कलाम किया तो तुम ने न सुना; बल्कि तुम ने वही किया जो मेरी नज़र में बुरा था, और वह चीज़ पसन्द की जिससे मैं ख़ुश न था।”13इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि "देखो, मेरे बन्दे खाएँगे, लेकिन तुम भूके रहोगे; मेरे बन्दे पिएँगे, लेकिन तुम प्यासे रहोगे;मेरे बन्दे ख़ुश होंगे लेकिन तुम शर्मिंदा होगे |14और मेरे बन्दे दिल की ख़ुशी से गाएँगे, लेकिन तुम दिलगीरी की वजह से नालाँ होगे और जान का ही मातम करोगे|15और तुम अपना नाम मेरे बरगुज़ीदों की ला'नत के लिए छोड़ जाओगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा तुम को क़त्ल करेगा; और अपने बन्दों को एक दूसरे नाम से बुलाएगा16यहाँ तक कि जो कोई इस ज़मीन पर अपने लिए दु'आ-ए-ख़ैर करे, ख़ुदाए-बरहक़ के नाम से करेगा और जो कोई ज़मीन में क़सम खाए, ख़ुदा-ए-बरहक़ के नाम से खाएगा; क्यूँकि गुज़री हुई मुसीबतें फ़रामोश हो गईं और वह मेरी आँखों से पोशीदा हैं।17क्यूँकि देखो, मैं नये आसमान और नई ज़मीन को पैदा करता हूँ; और पहली चीज़ों का फिर ज़िक्र न होगा और वह ख़याल में न आएँगी।18बल्कि तुम मेरी इस नई पैदाइश से हमेशा की ख़ुशी और शादमानी करो, क्यूँकि देखो, मैं यरुशलीम को ख़ुशी और उसके लोगों को खु़र्रमी बनाऊँगा।19और मैं यरुशलीम से ख़ुश और अपने लोगों से मसरूर हूँगा,और उसमें रोने की पुकार और नाला की आवाज़ फिर कभी सुनाई न देगी।20फिर कभी वहाँ कोई ऐसा लड़का न होगा जो कम 'उम्र रहे, और न कोई ऐसा बूढ़ा जो अपनी 'उम्र पूरी न करे; क्यूँकि लड़का सौ बरस का होकर मरेगा, और जो गुनाहगार सौ बरस का हो जाए, मला'ऊन होगा।21वह घर बनाएँगे और उनमें बसेंगे, वह ताकिस्तान लगाएँगे और उनके मेवे खाएँगे;22न कि वह बनाएँ और दूसरा बसे, वह लगाएँ और दूसरा खाए; क्यूँकि मेरे बन्दों के दिन दरख़्त के दिनों की तरह होंगे, और मेरे बरगुज़ीदा अपने हाथों के काम से मुद्दतों तक फ़ायदा उठाएंगे23उनकी मेहनत बेकार न होगी, और उनकी औलाद अचानक हलाक न होगी; क्यूँकि वह अपनी औलाद के साथ ख़ुदावन्द के मुबारक लोगों की नसल हैं |24और यूँ होगा कि मैं उनके पुकारने से पहले जवाब दूँगा, और वह अभी कह न चुकेंगे कि मैं सुन लूँगा।25~भेड़िया और बर्रा इकट्ठे चरेंगे, और शेर-ए-बबर बैल की तरह भूसा खाएगा, और साँप की ख़ुराक ख़ाक होगी। वह मेरे तमाम पाक पहाड़ पर न ज़रर पहुँचाएँगे न हलाक करेंगे," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
1ख़ुदावन्द यूँ फरमाता है कि आसमान मेरा तख़्त है और ज़मीन मेरे पाँव की चौकी ; तुम मेरे लिए कैसा घर बनाओगे, और कौन सी जगह मेरी आरामगाह होगी?2क्यूँकि ये सब चीजें तो मेरे हाथ ने बनाई और यूँ मौजूद हुई, ख़ुदावन्द फ़रमाता है। लेकिन मैं उस शख़्स पर निगाह करूँगा , उसी पर जो ~ग़रीब और शिकश्ता दिल है और मेरे कलाम से कॉप जाता है।3"जो बैल ज़बह करता है, उसकी तरह है जो किसी आदमी को मार डालता है; और जो बर्रे की क़ुर्बानी करता है, उसके बराबर है जो कुत्ते की गर्दन काटता है; जो हदिया लाता है, जैसे सूअर का ख़ून पेश करता है; जो लुबान जलाता है, उसकी तरह है जो बुत को मुबारक कहता है। हाँ, उन्होंने अपनी अपनी राहें चुन लीं और उनके दिल उनकी नफ़रती चीज़ों से मसरूर हैं |4मैं भी उनके लिए आफ़तों को चुन लूँगा और जिन बातों से वह डरते हैं उन पर लाऊँगा क्यूँकि जब मैंने कलाम किया तो उनहोंने न सुना; बल्कि उन्होंने वही किया जो मेरी नज़र में बुरा था, और वह चीज़ पसन्द की जिससे मैं ख़ुश न था।”5ख़ुदावन्द की बात सुनो, ऐ तुम जो उसके कलाम से काँपते हो; "तुम्हारे भाई जो तुम से कीना रखते हैं, और मेरे नाम की ख़ातिर तुम को ख़ारिज कर देते हैं, कहते हैं, 'ख़ुदावन्द की तम्जीद करो, ताकि हम तुम्हारी ख़ुशी को देखें'; लेकिन वही शर्मिन्दा होंगे।6"शहर से भीड़ का शोर ! हैकल की तरफ़ से एक आवाज़! ख़ुदावन्द की आवाज़ है, जो अपने दुश्मनों को बदला देता है!7पहले इससे कि उसे दर्द लगे, उसने जन्म दिया; और इससे पहले कि उसको दर्द हो, उससे बेटा पैदा हुआ।8ऐसी बात किसने सुनी ? ऐसी चीजें किसने देखीं? क्या एक दिन में कोई मुल्क पैदा हो सकता है? क्या एक ही साथ एक क़ौम पैदा हो जाएगी? क्यूँकि सिय्यून को दर्द लगे ही थे कि उसकी औलाद पैदा हो गई।”9ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "क्या मैं उसे विलादत के वक़्त तक लाऊँ और फिर उससे विलादत न कराऊँ?" तेरा ख़ुदा फ़रमाता है, "क्या मैं जो विलादत तक लाता हूँ, विलादत से बा'ज़ रख्खूँ?"10"तुम यरुशलीम के साथ ख़ुशी मनाओ और उसकी वजह से ख़ुश हो, उसके सब दोस्तो ; जो उसके लिए मातम करते थे, उसके साथ बहुत ख़ुश हो;11ताकि तुम दूध पियो और उसकी तसल्ली के पिस्तानों से सेर हो; ताकि तुम निचोड़ो और उसकी शौकत की इफ़रात से फ़ायदा उठाओ।”12क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"देख, मैं सलामती नहर की तरह , और क़ौमों की दौलत सैलाब की तरह उसके पास रवाँ करूँगा ; तब तुम दूध पियोगे, और बग़ल में उठाए जाओगे और घुटनों पर कुदाए जाओगे।13~जिस तरह माँ अपने बेटे को दिलासा देती है, उसी तरह मैं तुम को दिलासा दूँगा; यरुशलीम ही में तुम तसल्ली पाओगे।14और तुम देखोगे और तुम्हारा दिल ख़ुश होगा, और तुम्हारी हड्डियाँ सब्ज़ा की तरह नशोंनुमा पाएँगी, और ख़ुदावन्द का हाथ अपने बन्दों पर ज़ाहिर होगा, लेकिन उसका क़हर उसके दुश्मनों पर भड़केगा।15"क्यूँकि देखो, ख़ुदावन्द आग के साथ आएगा, और उसके रथ उड़ती धूल की तरह होंगे, ताकि अपने क़हर को जोश के साथ और अपनी तम्बीह को आग के शो'ले में ज़ाहिर करे।16क्यूँकि आग से और अपनी तलवार से ख़ुदावन्द तमाम बनी आदम का मुक़ाबिला करेगा; और ख़ुदावन्द के मक़तूल बहुत से होंगे।17वह जो बाग़ों की वस्त में किसी के पीछे खड़े होने के लिए अपने आपको पाक-ओ-साफ़ करते हैं, जो सूअर का गोश्त और मकरूह चीजें और चूहे खाते हैं; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, वह एक साथ फ़ना हो जाएँगे।18और मैं उनके काम और उनके मन्सूबे जानता हूँ। वह वक़्त आता है कि मैं तमाम क़ौमों और अहल-ए-लुग़त को जमा' करूँगा और वह आयेंगे और मेरा जलाल देखेंगे,19तब मैं उनके बीच एक निशान खड़ा करूँगा ; और मैं उनको जो उनमें से बच निकलें, क़ौमों की तरफ़ भेजूँगा, या'नी तरसीस और पूल और लूद को जो तीरअन्दाज़ हैं, और तूबल और यावान को, और दूर के जज़ीरों को जिन्होंने मेरी शोहरत नहीं सुनी और मेरा जलाल नहीं देखा; और वह क़ौमों के बीच मेरा जलाल बयान करेंगे।20और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि वह तुम्हारे सब भाइयों को तमाम क़ौमों में से घोड़ों और रथों पर, और पालकियों में और खच्चरों पर, और साँडनियों पर बिठा कर ख़ुदावन्द के हदिये के लिए यरुशलीम में मेरे पाक पहाड़ को लाएँगे, जिस तरह से बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द के घर में पाक बर्तनों में हदिया लाते हैं।21और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मैं उनमें से भी काहिन और लावी होने के लिए लूँगा।22"ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जिस तरह नया आसमान और नई ज़मीन जो मैं बनाऊँगा, मेरे सामने क़ायम रहेंगे उसी तरह तुम्हारी नसल और तुम्हारा नाम बाक़ी रहेगा।23और यूँ होगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि एक नये चाँद से दूसरे तक, और एक सबत से दूसरे तक हर फ़र्द-ए-बशर 'इबादत के लिए मेरे सामने आएगा।24~'और वह निकल निकल कर उन लोगों की लाशों पर जो मुझ से बाग़ी हुए नज़र करेंगे; क्यूँकि उनका कीड़ा न मरेगा और उनकी आग न बुझेगी, और वह तमाम बनी आदम के लिए नफ़रती होंगे।"
1यरमियाह-बिन-ख़िलक़ियाह की बातें जो- बिनयमीन की ममलुकत में 'अन्तोती काहिनों में से था;2जिस पर ख़ुदावन्द का कलाम शाह-ए-यहूदाह यूसियाह-बिन-अमून के दिनों में उसकी सल्तनत के तेरहवें साल में नाज़िल हुआ।3~शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम बिन-यूसियाह के दिनों में भी, शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह-बिन-यूसियाह के ग्यारहवें साल के पूरे होने तक अहल-ए-यरुशलीम के ग़ुलामी में जाने तक जो पाँचवें महीने में था, नाज़िल होता रहा।4~तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,5~"इससे पहले कि मैंने तुझे बत्न में ख़ल्क़ किया, मैं तुझे जानता था और तेरी पैदाइश से पहले मैंने तुझे ख़ास किया, और क़ौमों के लिए तुझे नबी ठहराया।"6~तब मैंने कहा, "हाय, ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, मैं बोल नहीं सकता, क्यूँकि मैं तो बच्चा हूँ।"7~लेकिन ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "यूँ न कह कि मैं बच्चा हूँ; क्यूँकि जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूँगा तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँगा तू कहेगा।8~तू उनके चेहरों को देखकर न डर क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं तुझे ~छुड़ाने को तेरे साथ हूँ।"9~तब ख़ुदावन्द ने अपना हाथ बढ़ाकर मेरे मुँह को छुआ; और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया देख मैंने अपना कलाम तेरे मुँह में डाल दिया।10~देख, आज के दिन मैंने तुझे क़ौमों पर, और सल्तनतों पर मुक़र्रर किया कि उखाड़े और ढाए, और हलाक करे और गिराए, और ता'मीर करे और लगाए।"11~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया, "ऐ यरमियाह, तू क्या देखता है?" मैंने 'अर्ज़ की कि "बादाम के दरख़्त की एक शाख़ देखता हूँ।"12और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "तू ने ख़ूब देखा, क्यूँकि मैं अपने कलाम को पूरा करने के लिए बेदार' रहता हूँ।"13~दूसरी बार ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रामाया तू क्या देखता है मैंने अर्ज़ की कि उबलती ~हुई देग देखता हूँ, जिसका मुँह उत्तर की तरफ़ से है।"14~तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "उत्तर की तरफ़ से इस मुल्क के तमाम बाशिन्दों पर आफ़त आएगी।15~क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, मैं उत्तर की सल्तनतों के तमाम ख़ान्दानों को बुलाऊँगा, और वह आएँगे और हर एक अपना तख़्त यरुशलीम के फाटकों के मदख़ल पर, और उसकी सब दीवारों के चारों तरफ़, और यहूदाह के तमाम शहरों के सामने क़ायम करेगा।16~और मैं उनकी सारी शरारत की वजह से उन पर फ़तवा दूँगा; क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और ग़ैर-मा'बूदों के सामने लुबान जलाया और अपनी ही दस्तकारी को सिज्दा किया।17~इसलिए तू अपनी कमर कसकर उठ खड़ा हो, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँ उनसे कह। उनके चेहरों को देखकर न डर, ऐसा न हो कि मैं तुझे उनके सामने शर्मिंदा करूँ।18~क्यूँकि देख, मैं आज के दिन तुझ को इस तमाम मुल्क, और यहूदाह के बादशाहों और उसके अमीरों और उसके काहिनों और मुल्क के लोगों के सामने, एक फ़सीलदार शहर और लोहे का सुतून और पीतल की दीवार बनाता हूँ।19और वह तुझ से लड़ेंगे, लेकिन तुझ पर ग़ालिब न आएँगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुझे छुड़ाने को तेरे साथ हूँ।"
1~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल~हुआ और उसने फ़रमाया कि2~"तू जा और यरुशलीम के कान में पुकार कर कह कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि 'मैं तेरी जवानी की उल्फ़त, और तेरी शादी की मुहब्बत को याद करता हूँ कि तू वीरान या'नी बंजर ज़मीन में मेरे पीछे पीछे चली|3~इस्राईल ख़ुदावन्द का पाक, और उसकी अफ़्ज़ाइश का पहला फल था; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उसे निगलने वाले सब मुजरिम ठहरेंगे, उन पर आफ़त आएगी।"4~ऐ अहल-ए-या'क़ूब और अहल-ए-इस्राईल के सब ख़ानदानों ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:5~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "तुम्हारे बाप-दादा ने मुझ में कौन सी बे-इन्साफ़ी पाई, जिसकी वजह से वह मुझसे दूर हो गए और झूठ की पैरवी करके बेकार हुए?6~और उन्होंने यह न कहा कि ~'ख़ुदावन्द कहाँ है जो हमको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, और वीरान और बंजर और गढ़ों की ज़मीन में से, ख़ुश्की और मौत के साये की सरज़मीन में से, जहाँ से न कोई गुज़रता और न कोई क़याम करता था, हमको ले आया?"7~और मैं तुम को बाग़ों वाली ज़मीन में लाया कि तुम उसके मेवे और उसके अच्छे फल खाओ; लेकिन जब तुम दाख़िल हुए, तो तुम ने मेरी ज़मीन को नापाक कर दिया और मेरी मीरास को मकरूह बनाया।8~काहिनों ने न कहा,कि 'ख़ुदावन्द कहाँ है?' और अहल-ए- शरी'अत ने मुझे न जाना; और चरवाहों ने मुझसे सरकशी की, और नबियों ने बा'ल के नाम से नबुव्वत की और उन चीज़ों की पैरवी की जिनसे कुछ फ़ायदा नहीं।9"इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं फिर तुम से झगड़ूँगा और तुम्हारे बेटों के बेटों से झगड़ा करूँगा।10क्यूँकि पार गुज़रकर कित्तीम के जज़ीरों में देखो, और क़ीदार में क़ासिद भेजकर दरियाफ़्त करो, और देखो कि ऐसी बात कहीं हुई है?11क्या किसी क़ौम ने अपने मा'बूदों को, हालाँकि वह ख़ुदा नहीं, बदल डाला? लेकिन मेरी क़ौम ने अपने जलाल को बेफ़ायदा चीज़ से बदला।12~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ आसमानो, इससे हैरान हो; शिद्दत से थरथराओ और बिल्कुल वीरान हो जाओ'।13~क्यूँकि मेरे लोगों ने दो बुराइयाँ कीं: उन्होंने मुझ आब-ए-हयात के चश्मे को छोड़ दिया और अपने लिए हौज़ खोदे हैं शिकस्ता हौज़ जिनमें पानी नहीं ठहर सकता।14"क्या इस्राईल ग़ुलाम है? क्या वह ख़ानाज़ाद है? वह किस लिए लूटा गया?15जवान शेर-ए-बबर उस पर गु़र्राए और गरजे, और उन्होंने उसका मुल्क उजाड़ दिया। उसके शहर जल गए, वहाँ कोई बसने वाला न रहा।16बनी नूफ़ और बनी तहफ़नीस ने भी तेरी खोपड़ी फोड़ी।17क्या तू ख़ुद ही यह अपने ऊपर नहीं लाई कि तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को छोड़ दिया, जब कि वह तेरी रहबरी करता था?18और अब सीहोर" का पानी पीने को मिस्र की राह में तुझे क्या काम? और दरिया-ए-फ़रात का पानी पीने को असूर की राह में तेरा क्या मतलब?19तेरी ही शरारत तेरी तादीब करेगी, और तेरी नाफ़रमानी तुझ को सज़ा देगी। ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, फ़रमाता है, देख और जान ले कि यह बुरा और बहुत ही ज़्यादा बेजा काम है कि तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को छोड़ दिया, और तुझ को मेरा ख़ौफ़ नहीं।20क्यूँकि मुद्दत हुई कि तूने अपने जुए को तोड़ डाला और अपने बन्धनों के टुकड़े कर डाले, और कहा, 'मैं ताबे' न रहूँगी।" हाँ, हर एक ऊँचे पहाड़ पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे तू बदकारी के लिए लेट गई।21मैंने तो तुझे कामिल ताक लगाया और उम्दा बीज बोया था, फिर तू क्यूँकर मेरे लिए बेहक़ीक़त जंगली अंगूर का दरख़्त हो गई?22हर तरह तू अपने को सज्जी से धोए और बहुत सा साबुन इस्ते'माल करे, तो भी ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, तेरी शरारत का दाग़ मेरे सामने ज़ाहिर है।23तू क्यूँकर कहती है, 'मैं नापाक नहीं हूँ, मैंने बा'लीम की पैरवी नहीं की'? वादी में अपने चाल-चलन देख, और जो कुछ तूने किया है मा'लूम कर। तू तेज़रौ ऊँटनी की तरह है जो इधर-उधर दौड़ती है;24मादा गोरख़र की तरह जो वीराने की 'आदी है, जो शहवत के जोश में हवा को सूँघती है; उसकी मस्ती की हालत में कौन उसे रोक सकता है? उसके तालिब मान्दा न होंगे, उसकी मस्ती के दिनों में" वह उसे पा लेंगे।25तू अपने पाँव को नंगे पन से और अपने हलक़ को प्यास से बचा। लेकिन तूने कहा, 'कुछ उम्मीद नहीं, हरगिज़ नहीं; क्यूँकि मैं बेगानों पर आशिक़ हूँ और उन्हीं के पीछे जाऊँगी।"26जिस तरह चोर पकड़ा जाने पर रुस्वा होता है, उसी तरह इस्राईल का घराना रुस्वा हुआ; वह और उसके बादशाह, और हाकिम और काहिन, और नबी;27जो लकड़ी से कहते हैं, 'तू मेरा बाप है," और पत्थर से, 'तू ने मुझे पैदा किया।" क्यूँकि उन्होंने मेरी तरफ़ मुँह न किया बल्कि पीठ की; लेकिन अपनी मुसीबत के वक़्त वह कहेंगे, 'उठकर हमको बचा!"28लेकिन तेरे बुत कहाँ हैं, जिनको तूने अपने लिए बनाया? अगर वह तेरी मुसीबत के वक़्त तुझे बचा सकते हैं तो उठें; क्यूँकि ऐ यहूदाह, जितने तेरे शहर हैं उतने ही तेरे मा'बूद हैं।29"तुम मुझसे क्यूँ हुज्जत करोगे? तुम सब ने मुझसे बग़ावत की है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।30मैंने बेफ़ायदा तुम्हारे बेटों को पीटा, वह तरबियत पज़ीर न हुए; तुम्हारी ही तलवार फाड़ने वाले शेर-ए-बबर की तरह तुम्हारे" नबियों को खा गई।31ऐ इस नसल के लोगों, ख़ुदावन्द के कलाम का लिहाज़ करो। क्या मैं इस्राईल के लिए वीरान या तारीकी की ज़मीन हुआ? मेरे लोग क्यूँ कहते हैं, 'हम आज़ाद हो गए, फिर तेरे पास न आएँगे?'32क्या कुँवारी अपने ज़ेवर, या दुल्हन अपनी आराइश भूल सकती है? लेकिन मेरे लोग तो मुद्दत-ए-मदीद से मुझ को भूल गए।33"तू तलब-ए-इश्क़ में अपनी राह को कैसी आरास्ता करती है। यक़ीनन तूने फ़ाहिशा 'औरतों को भी अपनी राहें सिखाई हैं।34तेरे ही दामन पर बेगुनाह ग़रीबों का ख़ून भी पाया गया; तूने उनको नक़ब लगाते नहीं पकड़ा; बल्कि इन्हीं सब बातों की वजह से,35तो भी तू कहती है, 'मैं बेक़ुसूर हूँ, उसका ग़ज़ब यक़ीनन मुझ पर से टल जाएगा;" देख, मैं तुझ पर फ़तवा दूँगा क्यूँकि तू कहती है, 'मैंने गुनाह नहीं किया।'36~तू अपनी राह बदलने को ऐसी बेक़रार क्यूँ फिरती है? तू मिस्र से भी शर्मिन्दा होगी, जैसे असूर से हुई।37वहाँ से भी तू अपने सिर पर हाथ रख कर निकलेगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको जिन पर तूने भरोसा किया हक़ीर जाना, और तू उनसे कामयाब न होगी।
1कहते हैं कि 'अगर कोई मर्द अपनी बीवी को तलाक दे दे, और वह उसके यहाँ से जाकर किसी दूसरे मर्द की हो जाए, तो क्या वह पहला फिर उसके पास जाएगा?’ क्या वह ज़मीन बहुत नापाक न होगी? लेकिन तूने तो बहुत से यारों के साथ बदकारी की है; क्या अब भी तू मेरी तरफ़ फिरेगी? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।2पहाड़ों की तरफ़ अपनी आँखें उठा और देख! कौन सी जगह है जहाँ तूने बदकारी नहीं की? तू राह में उनके लिए इस तरह बैठी, जिस तरह वीराने में 'अरब। तूने अपनी बदकारी और शरारत से ज़मीन को नापाक किया।3इसलिए बारिश नहीं होती और आख़िरी बरसात नहीं हुई तेरी पेशानी ~फ़ाहिशा की है और तुझ को शर्म नहीं आती'।4क्या तू अब से मुझे पुकार कर न कहेगी, "ऐ मेरे बाप, तू मेरी जवानी का रहबर था?5क्या उसका क़हर हमेशा रहेगा? क्या वह उसे हमेशा तक रख छोड़ेगा?" देख, तू ऐसी बातें तो कह चुकी, लेकिन जहाँ तक तुझ से हो सका तूने बुरे काम किए।"6और यूसियाह बादशाह के दिनों में ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, "क्या तूने देखा, नाफ़रमान इस्राईल ने क्या किया है? वह हर एक ऊँचे पहाड़ पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे गई, और वहाँ बदकारी की।7और जब वह ये सब कुछ कर चुकी तो मैंने कहा, वह मेरी तरफ़ वापस आएगी; लेकिन वह न आई, और उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह ने ये हाल देखा।8~फिर मैंने देखा कि जब फिरे हुए इस्राईल की ज़िनाकारी की वजह से मैंने उसको तलाक़ दे दिया, और उसे तलाक़नामा लिख दिया तो भी उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह न डरी; बल्कि उसने भी जाकर बदकारी की।9और ऐसा हुआ कि उसने अपनी बदकारी की बुराई से ज़मीन को नापाक किया, और पत्थर और लकड़ी के साथ ज़िनाकारी की।10और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि बावजूद इस सब के उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह सच्चे दिल से मेरी तरफ़ न फिरी, बल्कि रियाकारी से।"11और ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, "नाफ़रमान इस्राईल ने बेवफ़ा यहूदाह से ज़्यादा अपने आपको सच्चा साबित किया है।12जा और उत्तर की तरफ़ यह बात पुकारकर कह दे कि 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ ~नाफ़रमान इस्राईल, वापस आ; मैं तुझ पर क़हर की नज़र नहीं करूँगा क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं रहीम हूँ मेरा क़हर हमेशा का नहीं |13सिर्फ़ अपनी बदकारी का इक़रार कर कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से 'आसी हो गई, और हर एक हरे दरख़्त के नीचे ग़ैरों के साथ इधर-उधर आवारा फिरी; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तुम मेरी आवाज़ के सुनने वाले न हुए।14"ख़ुदावन्द फ़रमाता है, 'ऐ नाफ़रमान बच्चों, वापस आओ; क्यूँकि मैं ख़ुद तुम्हारा मालिक हूँ, और मैं तुम को हर एक शहर में से एक, और हर एक घराने में से दो लेकर सिय्यून में लाऊँगा।15"और मैं तुम को अपने ख़ातिर ख़्वाह चरवाहे दूँगा, और वह तुम को समझदारी और 'अक़्लमन्दी से चराएँगे।16और यूँ होगा कि ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि जब उन दिनों में तुम मुल्क में बढ़ोगे और बहुत होगे, तब वह फिर न कहेंगे कि 'ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़'; उसका ख़याल भी कभी उनके दिल में न आएगा, वह हरगिज़ उसे याद न करेंगे और उसकी ज़ियारत को न जाएँगे, और उसकी मरम्मत न होगी।17उस वक़्त यरुशलीम ख़ुदावन्द का तख़्त कहलाएगा, और उसमें या'नी यरुशलीम में, सब क़ौमें ख़ुदावन्द के नाम से जमा' होंगी; और वह फिर अपने बुरे दिल की सख़्ती की पैरवी न करेंगे।18उन दिनों में यहूदाह का घराना इस्राईल के घराने के साथ चलेगा, वह मिलकर उत्तर के मुल्क में से उस मुल्क में जिसे मैंने तुम्हारे बाप-दादा को मीरास में दिया, आएँगे।19'आह, मैंने तो कहा था, मैं तुझ को फ़र्ज़न्दों में शामिल करके ख़ुशनुमा मुल्क या'नी क़ौमों की नफ़ीस मीरास तुझे दूँगा; और तू मुझे बाप कह कर पुकारेगी, और तू फिर मुझसे न फिरेगी।20लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ इस्राईल के घराने, जिस तरह बीवी बेवफ़ाई से अपने शौहर को छोड़ देती है, उसी तरह तूने मुझसे बेवफ़ाई की है।'21पहाड़ों पर बनी-इस्राईल की गिरया-ओ-ज़ारी और मिन्नत की आवाज़ सुनाई देती है क्यूँकि उन्होंने अपनी राह टेढ़ी की और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल गए।22'ऐ नाफ़रमान फ़र्ज़न्द वापस आओ मैं तुम्हारी नाफ़रमानी का चारा करूँगा। देख, हम तेरे पास आते हैं; क्यूँकि तू ही, ऐ ख़ुदावन्द, हमारा ख़ुदा है।23हक़ीक़त में टीलों और पहाड़ों पर के हुजूम से कुछ उम्मीद रखना बेफ़ायदा है। यक़ीनन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ही में इस्राईल की नजात है।24लेकिन इस रुस्वाई की वजह ने हमारी जवानी के वक़्त से हमारे बाप-दादा के माल को, और उनकी भेड़ों और उनके बैलों और उनके बेटे और बेटियों को निगल लिया है।25~हम अपनी शर्म में लेटें और रुस्वाई हमको छिपा ले, क्यूँकि हम और हमारे बाप-दादा अपनी जवानी के वक़्त से आज तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़ताकार हैं। और हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ के सुनने वाले नहीं हुए।"
1"ऐ इस्राईल, अगर तू वापस आए, ख़ुदावन्द फ़रमाता है अगर तू मेरी तरफ़ वापस आए; और अपनी मकरूहात को मेरी नज़र से दूर करे तो तू आवारा न होगा;2और अगर तू सच्चाई और 'अदालत और सदाक़त से ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम खाए, तो क़ौमें उसकी वजह से अपने आपको मुबारक कहेंगी और उस पर फ़ख़्र करेंगी।”3क्यूँकि ख़ुदावन्द यहूदाह और यरुशलीम के लोगों को यूँ फ़रमाता है: "अपनी उम्दा ज़मीन पर हल चलाओ, और काँटों में बीज न बोया करो।4'ऐ यहूदाह के लोगों, और यरुशलीम के बाशिन्दो, ख़ुदावन्द के लिए अपना ख़तना कराओ; हाँ, अपने दिल का ख़तना करो; ऐसा न हो कि तुम्हारी बद'आमाली की वजह से मेरा क़हर आग की तरह शो'लाज़न हो, और ऐसा भड़के के कोई बुझा न सके।"5यहूदाह में इश्तिहार दो, और यरुशलीम में इसका 'ऐलान करो और कहो, "तुम मुल्क में नरसिंगा फूँको, बलन्द आवाज़ से पुकारो और कहो कि "जमा' हो", कि हसीन शहरों में चलें।'6तुम सिय्यून ही में झण्डा खड़ा करो, पनाह लेने को भागो और देर न करो, क्यूँकि मैं बला और हलाकत-ए-शदीद को उत्तर की तरफ़ से लाता हूँ।7शेर-ए-बबर झाड़ियों से निकला है, और क़ौमों के हलाक करने वाले ने रवानगी की है; वह अपनी जगह से निकला है कि तेरी ज़मीन को वीरान करे, ताकि तेरे शहर वीरान हों और कोई बसने वाला न रहे।8इसलिए टाट ओढ़कर छाती पीटो और वावैला करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर-ए- शदीद हम पर से टल नहीं गया।”9और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "उस वक़्त यूँ होगा कि बादशाह और सरदार बे-दिल हो जायेंगे और काहिन हैरतज़दा और नबी शर्मिंदा होंगे।"10तब मैंने कहा, "अफ़सोस, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, यक़ीनन तूने इन लोगों और यरुशलीम को ये कह कर दग़ा दी कि तुम सलामत रहोगे; हालाँकि तलवार जान तक पहुँच गई है।"11उस वक़्त इन लोगों और यरुशलीम से ये कहा जाएगा कि 'वीराने के पहाड़ों पर से एक ख़ुश्क हवा मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की तरफ़ चलेगी, उसाने और साफ़ करने के लिए नहीं,12बल्कि वहाँ से एक बहुत तुन्द हवा मेरे लिए चलेगी; अब मैं भी उन पर फ़तवा दूँगा।"13देखो, वह घटा की तरह चढ़ आएगा, उसके रथ गिर्दबाद की तरह और उसके घोड़े 'उक़ाबों के जैसे तेज़तर हैं। हम पर अफ़सोस के हाय, हम बर्बाद हो गए!14~ऐ यरुशलीम, तू अपने दिल को शरारत से पाक कर ताकि तू रिहाई पाए। बुरे ख़यालात कब तक तेरे दिल में रहेंगे?15क्यूँकि दान से एक आवाज़ आती है, और इफ़्राईम के पहाड़ से मुसीबत की ख़बर देती है;16क़ौमों को ख़बर दो, देखो, यरुशलीम के बारे में 'ऐलान करो कि ~"घिराव करने वाले दूर के मुल्क से आते हैं, और यहूदाह के शहरों के सामने ललकारेंगे17खेत के रखवालों की तरह वह उसे चारों तरफ़ से घेरेंगे, क्यूँकि उसने मुझसे बग़ावत की, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।18तेरी चाल और तेरे कामों से यह मुसीबत तुझ पर आयी है। यह तेरी शरारत है, यह बहुत तल्ख़ है, क्यूँकि यह तेरे दिल तक पहुँच गई है।"19हाय, मेरा दिल! मेरे पर्दा-ए-दिल में दर्द है! मेरा दिल बेताब है, मैं चुप नहीं रह सकता; क्यूँकि ऐ मेरी जान, तूने नरसिंगे की आवाज़ और लड़ाई की ललकार सुन ली है।20शिकस्त पर शिकस्त की ख़बर आती है, यक़ीनन तमाम मुल्क बर्बाद हो गया; मेरे ख़ेमे अचानक और मेरे पर्दे एक दम में बर्बाद किए गए।21मैं कब तक ये झण्डा देखूँ और नरसिंगे की आवाज़ सुनूँ?22"हक़ीक़त में मेरे लोग बेवक़ूफ़ हैं, उन्होंने मुझे नहीं पहचाना; वह बेश'ऊर बच्चे हैं और फ़र्क़ नहीं रखते बुरे काम करने में होशियार हैं, लेकिन नेक काम की समझ नहीं रखते।"23मैंने ज़मीन पर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि वीरान और सुनसान है; आसमानों को भी बेनूर पाया।24मैंने पहाड़ों पर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि वह काँप गए, और सब टीले लर्ज़िश खा गए।25मैंने नज़र की, और क्या देखता हूँ कि कोई आदमी नहीं, और सब हवाई परिन्दे उड़ गए।26फिर मैंने नज़र की और क्या देखता हूँ कि ज़रखेत ज़मीन वीरान हो गई, और उसके सब शहर ख़ुदावन्द की हुज़ूरी और उसके क़हर की शिद्दत से बर्बाद हो गए।27क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि तमाम मुल्क वीरान होगा तोभी मैं उसे बिल्कुल बर्बाद न करूँगा।28इसीलिए ज़मीन मातम करेगी और ऊपर से आसमान तारीक हो जाएगा; क्यूँकि मैं कह चुका, मैंने इरादा किया है, मैं उससे पशेमान न हूँगा और उससे बाज़ न आऊँगा।"29सवारों और तीरअंदाज़ों के शोर से तमाम शहरी भाग जाएँगे; वह घने जंगलों में जा घुसेंगे, और चट्टानों पर चढ़ जाएँगे, सब शहर छोड़ दिए जायेंगे और कोई आदमी उनमें न रहेगा।30तब ऐ ग़ारतशुदा, तू क्या करेगी? अगरचे तू लाल जोड़ा पहने, अगरचे तू ज़र्रीन ज़ेवरों से आरास्ता हो, अगरचे तू अपनी आँखों में सुरमा लगाए, तू 'अबस अपने आपको ख़ूबसूरत बनाएगी; तेरे 'आशिक़ तुझ को हक़ीर जानेंगे, वह तेरी जान के तालिब होंगे।31क्यूँकि मैंने उस 'औरत की जैसी आवाज़ सुनी है जिसे दर्द लगे हों, और उसकी जैसी दर्दनाक आवाज़ जिसके पहला बच्चा पैदा हो, या'नी दुख़्तर-ए-सिय्यून की आवाज़, जो हाँपती और अपने हाथ फैलाकर कहती है, 'हाय! क़ातिलों के सामने मेरी जान बेताब है।”
1अब यरुशलीम की गलियों में इधर-उधर गश्त करो; और देखो और दरियाफ़्त करो, और उसके चौकों में ढूँडो, अगर कोई आदमी वहाँ मिले जो इन्साफ़ करनेवाला और सच्चाई का तालिब हो, तो मैं उसे मु'आफ़ करूँगा।2और अगरचे वह कहते हैं, "ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम," तो भी यक़ीनन वह झूटी क़सम खाते हैं।3ऐ ख़ुदावन्द, क्या तेरी आँखें सच्चाई पर नही हैं? तूने उनको मारा है, लेकिन उन्होंने अफ़सोस नहीं किया; तूने उनको बर्बाद किया, लेकिन वह तरबियत-पज़ीर न हुए; उन्होंने अपने चेहरों को चट्टान से भी ज़्यादा सख़्त बनाया, उन्होंने वापस आने से इन्कार किया है।4तब मैंने कहा कि "यक़ीनन ये बेचारे जाहिल हैं, क्यूँकि ये ख़ुदावन्द की राह और अपने ख़ुदा के हुक्मों को नहीं जानते।5मैं बुज़ुर्गों के पास जाऊँगा, और उनसे कलाम करूँगा; क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की राह और अपने ख़ुदा के हुक्मों को जानते हैं।" लेकिन इन्होंने जूआ बिल्कुल तोड़ डाला, और बन्धनों के टुकड़े कर डाले।6इसलिए जंगल का शेर-ए-बबर उनको फाड़ेगा वीराने का भेड़िया हलाक करेगा, चीता उनके शहरों की घात में बैठा रहेगा; जो कोई उनमें से निकले फाड़ा जाएगा, क्यूँकि उनकी सरकशी बहुत हुई और उनकी नाफ़रमानी बढ़ गई।7"मैं तुझे क्यूँकर मु'आफ़ करूँ? तेरे फ़र्ज़न्दों ने' मुझ को छोड़ा, और उनकी क़सम खाई जो ख़ुदा नहीं हैं। जब मैंने उनको सेर किया, तो उन्होंने बदकारी की और परे बाँधकर क़हबाख़ानों में इकट्ठे हुए।8वह पेट भरे घोड़ों की तरह हो गए, हर एक सुबह के वक़्त अपने पड़ोसी की बीवी पर हिनहिनाने लगा।9ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए सज़ा न दूँगा, और क्या मेरी रूह ऐसी क़ौमों से इन्तक़ाम न लेगी?10'उसकी दीवारों पर चढ़ जाओ और तोड़ डालो, लेकिन बिल्कुल बर्बाद न करो, उसकी शाख़ें काट दो, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की नहीं हैं।11इसलिए कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने मुझसे बहुत बेवफ़ाई की।12"उन्होंने ख़ुदावन्द का इन्कार किया और कहा कि 'वह नहीं है, हम पर हरगिज़ आफ़त न आएगी, और तलवार और काल को हम न देखेंगे;13और नबी महज़ हवा हो जाएँगे, और कलाम उनमें नहीं है; उनके साथ ऐसा ही होगा।"14~फिर इसलिए कि तुम यूँ कहते हो, " ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज़ यूँ फ़रमाता है कि, देख, मैं अपने कलाम को तेरे मुँह में आग और इन लोगों को लकड़ी बनाऊँगा और वह इनको भसम कर देगी।15ऐ इस्राईल के घराने, देख, मैं एक क़ौम को दूर से तुझ पर चढ़ा लाऊँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है वह ज़बरदस्त क़ौम है, वह क़दीम क़ौम है, वह ऐसी क़ौम है जिसकी ज़बान तू नहीं जानता और उनकी बात को तू नहीं समझता।16उनके तरकश खुली क़ब्रे हैं, वह सब बहादुर मर्द हैं।17और वह तेरी फ़सल का अनाज और तेरी रोटी, जो तेरे बेटों और बेटियों के खाने की थी, खा जाएँगे; तेरे गाय-बैल और तेरी भेड़ बकरियों को चट कर जाएँगे, तेरे अंगूर और अंजीर निगल जाएँगे, तेरे हसीन शहरों को जिन पर तेरा भरोसा है, तलवार से वीरान कर देंगे।"18~"लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में भी मैं तुम को बिल्कुल बर्बाद न करूँगा।19और यूँ होगा कि जब वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने यह सब कुछ हम से क्यूँ किया?' तो तू उनसे कहेगा, "जिस तरह तुम ने मुझे छोड़ दिया और अपने मुल्क में ग़ैर मा'बूदों की 'इबादत की, उसी तरह तुम उस मुल्क में जो तुम्हारा नहीं है, अजनबियों की ख़िदमत करोगे।' "20~या'क़ूब के घराने में इस बात का इश्तिहार दो, और यहूदाह में इसका 'ऐलान करो और कहो,21"अब ज़रा सुनो, ऐ नादान और बे'अक़्ल लोगों, जो आँखें रखते हो लेकिन देखते नहीं, जो कान रखते हो लेकिन सुनते नहीं।22ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या तुम मुझसे नहीं डरते? क्या तुम मेरे सामने थरथराओगे नहीं, जिसने रेत को समन्दर की हद पर हमेशा के हुक्म से क़ायम किया कि वह उससे आगे नहीं बढ़ सकता और हरचन्द उसकी लहरें उछलती हैं, तोभी ग़ालिब नहीं आतीं; और हरचन्द शोर करती हैं, तो भी उससे आगे नहीं बढ़ सकतीं।23~लेकिन इन लोगों के दिल बाग़ी और सरकश हैं; इन्होंने सरकशी की और दूर हो गए।24इन्होंने अपने दिल में न कहा कि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से डरें, जो पहली और पिछली बरसात वक़्त पर भेजता है, और फ़सल के मुक़र्ररा हफ़्तों को हमारे लिए मौजूद कर रखता है।25तुम्हारी बदकिरदारी ने इन चीज़ों को तुम से दूर कर दिया, और तुम्हारे गुनाहों ने अच्छी चीज़ों को तुम से बाज़ रखा'।26क्यूँकि मेरे लोगों में शरीर पाए जाते हैं; वह फन्दा लगाने वालों की तरह घात में बैठते हैं, वह जाल फैलाते और आदमियों को पकड़ते हैं।27जैसे पिंजरा चिड़ियों से भरा हो, वैसे ही उनके घर फ़रेब से भरे हैं, तब वह बड़े और मालदार हो गए।28वह मोटे हो गए, वह चिकने हैं। वह बुरे कामों में सबक़त ले जाते हैं, वह फ़रियाद या'नी यतीमों की फ़रियाद, नहीं सुनते ताकि उनका भला हो और मोहताजों का इन्साफ़ नहीं करते।29ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए सज़ा न दूँगा? और क्या मेरी रूह ऐसी क़ौम से इन्तक़ाम न लेगी?”30मुल्क में एक हैरतअफ़ज़ा और हौलनाक बात हुई;31नबी झूठी नबुव्वत करते हैं, और काहिन उनके वसीले से हुक्मरानी करते हैं, और मेरे लोग ऐसी हालत को पसन्द करते हैं, अब तुम इसके आख़िर में क्या करोगे?
1ऐ बनी बिनयमीन, यरुशलीम में से पनाह के लिए भाग निकलो, और तक़ू'अ में नरसिंगा फूँको और बैत हक्करम में आतिशीन 'अलम बलन्द करो; क्यूँकि उत्तर की तरफ़ से बला और बड़ी तबाही आनेवाली है।2मैं दुख़्तर-ए-सिय्यून को जो शकील और नाज़नीन है, हलाक करूँगा।3चरवाहे अपने गल्लों को लेकर उसके पास आएँगे और चारों तरफ़ उसके सामने ख़ेमे खड़े करेंगे हर एक अपनी जगह में चराएगा।4"उससे जंग के लिए अपने आपको ख़ास करो; उठो, दोपहर ही को चढ़ चलें! हम पर अफ़सोस, क्यूँकि दिन ढलता जाता है, और शाम का साया बढ़ता जाता है!5उठो, रात ही को चढ़ चलें और उसके क़स्रों को ढा दें!"6क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: 'दरख़्त काट डालो, और यरुशलीम के सामने दमदमा बाँधो; यह शहर सज़ा का सज़ावार है, इसमें ज़ुल्म ही ज़ुल्म हैं।7~जिस तरह पानी चश्मे से फूट निकलता है, उसी तरह शरारत इससे जारी है; ज़ुल्म और सितम की हमेशा इसमें सुनी जाती है, हर दम मेरे सामने दुख दर्द और ज़ख़्म हैं।8ऐ यरुशलीम, तरबियत-पज़ीर हो; ऐसा न हो कि मेरा दिल तुझ से हट जाए, न हो कि मैं तुझे वीरान और ग़ैरआबाद ज़मीन बना दूँ।"9रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: "वह इस्राईल के बक़िये को अंगूर की तरह ढूँडकर तोड़ लेंगे। तू अंगूर तोड़ने वाले की तरह फिर अपना हाथ शाख़ों में डाल।”10मैं किससे कहूँ और किसको जताऊँ, ताकि वह सुनें? देख, उनके कान नामख़्तून हैं और वह सुन नहीं सकते; देख, ख़ुदावन्द का कलाम उनके लिए हिक़ारत का ज़रिया' है, वह उससे ख़ुश नहीं होते।11इसलिए मैं ख़ुदावन्द के क़हर से लबरेज़ हूँ, मैं उसे ज़ब्त करते करते तंग आ गया। बाज़ारों में बच्चों पर और जवानों की जमा'अत पर उसे उँडेल दे, क्यूँकि शौहर अपनी बीवी के साथ और बूढ़ा कुहनसाल के साथ गिरफ़्तार होगा।12और उनके घर खेतों और बीवियों के साथ औरों के हो जायेंगे क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं अपना हाथ इस मुल्क के बाशिन्दों पर बढ़ाऊँगा।13इसलिए कि छोटों से बड़ों तक सब के सब लालची हैं, और नबी से काहिन तक हर एक दग़ाबाज़ है।14क्यूँकि वह मेरे लोगों के ज़ख़्म को यूँही 'सलामती सलामती' कह कर अच्छा करते हैं, हालाँकि सलामती नहीं है।15क्या वह अपने मकरूह कामों की वजह से शर्मिन्दा हुए? वह हरगिज़ शर्मिन्दा न हुए, बल्कि वह लजाए तक नहीं; इस वास्ते वह गिरने वाले के साथ गिरेंगे ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "जब मैं उनको सज़ा दूँगा, तो पस्त हो जाएँगे।"16ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: 'रास्तों पर खड़े हो और देखो, और पुराने रास्तों के बारे में पूछो कि अच्छी राह कहाँ है, उसी पर चलो और तुम्हारी जान राहत पाएगी। लेकिन उन्होंने कहा, 'हम उस पर न चलेंगे।'17और मैंने तुम पर निगहबान भी मुक़र्रर किए और कहा, 'नरसिंगे की आवाज़ सुनो!' लेकिन उन्होंने कहा, 'हम न सुनेंगे।"18~इसलिए ऐ क़ौमों, सुनो, और ऐ अहल-ए-मजमा', मा'लूम करो कि उनकी क्या हालत है।19ऐ ज़मीन सुन; देख, मैं इन लोगों पर आफ़त लाऊँगा जो इनके अन्देशों का फल है, क्यूँकि इन्होंने मेरे कलाम को नहीं माना और मेरी शरी'अत को रद्द कर दिया है।20इससे क्या फ़ायदा के सबा से लुबान और दूर के मुल्क से अगर मेरे सामने लाते हैं? तुम्हारी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ मुझे पसन्द नहीं, और तुम्हारी क़ुर्बानियों से मुझे ख़ुशी नहीं।21इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि 'देख, मैं ठोकर खिलाने वाली चीजें इन लोगों की राह में रख दूँगा; और बाप और बेटे बाहम उनसे ठोकर खायेंगे पड़ोसी और उनके दोस्त हलाक होंगे।' "22ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'देख, उत्तरी मुल्क से एक गिरोह आती है, और इन्तिहाए-ज़मीन से एक बड़ी क़ौम बरअंगेख़्ता की जाएगी।23वह तीरअन्दाज़ और नेज़ाबाज़ हैं, वह संगदिल और बेरहम हैं, उनके ना'रों की हमेशा समन्दर की जैसी है और वह घोड़ों पर सवार हैं; ऐ दुख़्तर-ए-सिय्यून, वह जंगी मर्दों की तरह तेरे सामने सफ़आराई करते हैं।"24हमने इसकी शोहरत सुनी है, हमारे हाथ ढीले हो गए, हम ज़चा की तरह मुसीबत और दर्द में गिरफ़्तार हैं।25मैदान में न निकलना और सड़क पर न जाना, क्यूँकि हर तरफ़ दुश्मन की तलवार का ख़ौफ़ है।26ऐ मेरी बिन्त-ए-क़ौम, टाट औढ़ और राख में लेट, अपने इकलौतों पर मातम और दिलख़राश नोहा कर; क्यूँकि ग़ारतगर हम पर अचानक आएगा।27"मैंने तुझे अपने लोगों में आज़माने वाला और बुर्ज मुक़र्रर किया ताकि तू उनके चाल चलनो~को मा'लूम करे और परखे।28वह सब के सब बहुत सरकश हैं, वह ग़ीबत करते हैं, वह तो ताँबा और लोहा हैं, वह सब के सब मु'आमिले के खोटे हैं।29धौंकनी जल गई, सीसा आग से भसम हो गया; साफ़ करनेवाले ने बेफ़ायदा साफ़ किया, क्यूँकि शरीर अलग नहीं हुए।30वह मरदूद चाँदी कहलाएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको रद्द कर दिया है।”
1यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,2"तू ख़ुदावन्द के घर के फाटक पर खड़ा हो, और वहाँ इस कलाम का इश्तिहार दे, और कह, ऐ यहूदाह के सब लोगों, जो ख़ुदावन्द की 'इबादत के लिए इन फाटकों से दाख़िल होते हो , ख़ुदावन्द का कलाम सुनो ।3रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: अपने चाल चलन और अपने आ'माल दुरुस्त करो, तो मैं तुम को इस मकान में बसाऊँगा।4झूटी बातों पर भरोसा न करो और यूँ न कहते जाओ, 'यह है ख़ुदावन्द की हैकल, ख़ुदावन्द की हैकल, ख़ुदावन्द की हैकल।'5"क्यूँकि अगर तुम अपने चाल चलन और अपने आ'माल सरासर दुरुस्त करो, अगर हर आदमी और उसके पड़ोसी में पूरा इन्साफ़ करो,6~अगर परदेसी और यतीम और बेवा पर ज़ुल्म न करो, और इस मकान में बेगुनाह का ख़ून न बहाओ, और ग़ैर-मा'बूदों की पैरवी जिसमें तुम्हारा नुक़सान है, न करो,7~तो मैं तुम को इस मकान में और इस मुल्क में बसाऊँगा, जो मैंने तुम्हारे बाप-दादा को पहले से हमेशा के लिए दिया।8"देखो, तुम झूटी बातों पर जो बेफ़ायदा हैं, भरोसा करते हो।9क्या तुम चोरी करोगे, ख़ून करोगे, ज़िनाकारी करोगे, झूटी क़सम खाओगे, और बा'ल के लिए ख़ुशबू जलाओगे और ग़ैर मा'बूदों की जिनको तुम नहीं जानते थे, पैरवी करोगे।10और मेरे सामने इस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, आकर खड़े होगे और कहोगे कि "हम ने छुटकारा पाया," ताकि यह सब नफ़रती काम करो?11क्या यह घर जो मेरे नाम से कहलाता है, तुम्हारी नज़र में डाकुओं का ग़ार बन गया? देख, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैंने खु़द यह देखा है।12इसलिए, अब मेरे उस मकान को जाओ जो सैला में था, जिस पर पहले मैंने अपने नाम को क़ायम किया था; और देखो कि मैंने अपने लोगों या'नी बनी-इस्राईल की शरारत की वजह से उससे क्या किया?13और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, अब चूँकि तुम ने यह सब काम किए, मैंने बर वक़्त' तुम को कहा और ताकीद की, लेकिन तुम ने न सुना; और मैंने तुम को बुलाया लेकिन तुम ने जवाब न दिया,14इसलिए मैं इस घर से जो मेरे नाम से कहलाता है, जिस पर तुम्हारा ~भरोसा है, और इस मकान से जिसे मैंने तुम को और तुम्हारे बाप-दादा को दिया, वही करूँगा जो मैने सैला से किया है।15और मैं तुम को अपने सामने से निकाल दूँगा, जिस तरह तुम्हारी सारी बिरादरी इफ़्राईम की कुल नसल को निकाल दिया है।16"इसलिए तू इन लोगों के लिए दु'आ न कर, और इनके वास्ते आवाज़ बुलन्द न कर, और मुझसे मिन्नत और शफ़ा'अत न कर क्यूँकि मैं तेरी न सुनूँगा।17क्या तू नहीं देखता कि वह यहूदाह के शहरों में और यरुशलीम के कूचों में क्या करते हैं?18बच्चे लकड़ी जमा' करते हैं और बाप आग सुलगाते हैं, और औरतें आटा गूँधती हैं ताकि आसमान की मलिका के लिए रोटी पकाएँ, और ग़ैर मा'बूदों के लिए तपावन तपाकर मुझे ग़ज़बनाक करें।19ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या वह मुझ ही को ग़ज़बनाक करते हैं? क्या वह अपनी ही रूसियाही के लिए नहीं करते?20इसी वास्ते ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, मेरा क़हर-ओ-ग़ज़ब इस मकान पर, और इन्सान और हैवान और मैदान के दरख़्तों पर, और ज़मीन की पैदावार पर उँडेल दिया जाएगा; और वह भड़केगा और बुझेगा नहीं।"21रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: "अपने ज़बीहों पर अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ भी बढ़ाओ और गोश्त खाओ।22क्यूँकि जिस वक़्त मैं तुम्हारे बाप दादा को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, उनको सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहे के बारे में कुछ नहीं कहा और हुक्म नहीं दिया;23बल्कि मैंने उनको ये हुक्म दिया, और फ़रमाया कि मेरी आवाज़ के शिनवा हो, और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा और तुम मेरे लोग होगे; और जिस राह की मैं तुम को हिदायत करूँ, उस पर चलो ताकि तुम्हारा भला हो।24लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया, बल्कि अपनी मसलहतों और अपने बुरे दिल की सख़्ती पर चले और फिर गए और आगे न बढ़े।25जब से तुम्हारे बाप-दादा मुल्क-ए-मिस्र से निकल आए, अब तक मैंने तुम्हारे पास अपने सब ख़ादिमों या'नी नबियों को भेजा, मैंने उनको हमेशा सही वक़्त पर भेजा।26लेकिन उन्होंने मेरी न सुनी और कान न लगाया, बल्कि अपनी गर्दन सख़्त की; उन्होंने अपने बाप-दादा से बढ़कर बुराई की।27"तू ये सब बातें उनसे कहेगा, लेकिन वह तेरी न सुनेंगे; तू उनको बुलाएगा, लेकिन वह तुझे जवाब न देंगे।28तब तू उनसे कह दे, 'यह वह क़ौम है जो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ की शिनवा, और तरबियत पज़ीर न हुई; सच्चाई बर्बाद हो गई, और उनके मुँह से जाती रही।29'अपने बाल काटकर फेंक दे, और पहाड़ों पर जाकर नौहा कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उन लोगों को जिन पर उसका क़हर है, रद्द और छोड़ दिया है।"30"इसलिए कि बनी यहूदाह ने मेरी नज़र में बुराई की, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन्होंने उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है अपनी मकरूहात रख्खी, ताकि उसे नापाक करें।31~और उन्होंने तूफ़त के ऊँचे मक़ाम बिन हिन्नोम की वादी में बनाए, ताकि अपने बेटे और बेटियों को आग में जलाएँ, जिसका मैंने हुक्म नहीं दिया और मेरे दिल में इसका ख़याल भी न आया था।32~इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, वह दिन आते हैं कि यह न तूफ़त कहलाएगी न बिन हिन्नोम की वादी, बल्कि वादी-ए-क़त्ल; और जगह न होने की वजह से तूफ़त में दफ़्न करेंगे।33और इस क़ौम की लाशें हवाई परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी, और उनको कोई न हँकाएगा।34तब मैं यहूदाह के शहरों में और यरुशलीम के बाज़ारों में ख़ुशी और ख़ुशी की आवाज़, दुल्हे और दुल्हन की आवाज़ ख़त्म करूँगा; क्यूँकि यह~मुल्क वीरान हो जाएगा।
1"ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि उस वक़्त वह यहूदाह के बादशाहों और उसके सरदारों और काहिनों और नबियों और यरुशलीम के बाशिन्दों की हड्डियाँ, उनकी क़ब्रों से निकाल लाएँगे;2~और उनको सूरज और चाँद और तमाम अजराम-ए-फ़लक के सामने, जिनको वह दोस्त रखते और जिनकी ख़िदमत-ओ-पैरवी करते थे जिनसे वह ~सलाह लेते थे और ~जिनको सिज्दा करते थे, बिछाएँगे; वह न जमा' की जाएँगी न दफ़्न होंगी, बल्कि इस ज़मीन पर खाद बनेंगी।3और वह सब लोग जो इस बुरे घराने में से बाक़ी बच रहेंगे, उन सब मकानों में जहाँ जहाँ मैं उनको हाँक दूँ, मौत को ज़िन्दगी से ज़्यादा चाहेंगे, रब्ब-उल-अफ़वाज~फ़रमाता है।4और तू उनसे कह दे कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, क्या लोग गिरकर फिर नहीं उठते? क्या कोई फिर कर वापस नहीं आता?5फिर यरुशलीम के यह लोग क्यूँ हमेशा की नाफ़रमानी पर अड़े हैं? वह फ़रेब से लिपटे रहते हैं और वापस आने से इन्कार करते हैं।6मैंने कान लगाया और सुना, उनकी बातें ठीक नहीं; किसी ने अपनी बुराई से तौबा करके नहीं कहा कि 'मैंने क्या किया?' हर एक अपनी राह को फिरता है, जिस तरह घोड़ा लड़ाई में सरपट दौड़ता है।7हाँ हवाई लक़लक़ अपने मुक़र्ररा वक़्तों को जानता है, और क़ुमरी और अबाबील और कुलंग अपने आने का वक़्त पहचान लेते हैं; लेकिन मेरे लोग ख़ुदावन्द के हुक्मों को नहीं पहचानते।8~"तुम क्यूँकर कहते हो कि हमतो 'अक़्लमन्द हैं और ख़ुदावन्द की शरी'अत ~हमारे पास है? लेकिन देख, लिखने वालों के बेकार क़लम ने बतालत पैदा की है।9'अक़्लमन्द शर्मिन्दा हुए, वह हैरान हुए और पकड़े गए; देख, उन्होंने ख़ुदावन्द के कलाम को रद्द किया; उनमें कैसी समझदारी है?10तब मैं उनकी बीवियाँ औरों को, और उनके खेत उनको दूँगा जो उन पर क़ाबिज़ होंगे; क्यूँकि वह सब छोटे से बड़े तक लालची हैं, और नबी से काहिन तक हर एक दग़ाबाज़ है।11और वह मेरी बिन्त-ए-क़ौम के ज़ख़्म को यूँ ही 'सलामती सलामती' कह कर अच्छा करते हैं, हालाँकि सलामती नहीं है।12क्या वह अपने मकरूह कामों की वजह से शर्मिन्दा हुए? वह हरगिज़ शर्मिन्दा न हुए, बल्कि वह लजाए तक नहीं। इस लिए वह गिरने वालों के साथ गिरेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब उनको सज़ा मिलेगी तो वह पस्त हो जाएँगे।13ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उनको बिल्कुल फ़ना करूँगा। न ताक में अंगूर लगेंगे और न अंजीर के दरख़्त में अंजीर, बल्कि पत्ते भी सूख जाएँगे; और जो कुछ मैंने उनको दिया, जाता रहेगा।"14हम क्यूँ चुपचाप बैठे हैं? आओ, इकट्ठे होकर मज़बूत शहरों में भाग चलें और वहाँ चुप हो रहें क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमको चुप कराया और हमको इन्द्रायन का पानी पीने को दिया है; इसलिए कि हम ख़ुदावन्द के गुनाहगार हैं।15सलामती का इन्तिज़ार था पर कुछ फ़ायदा न हुआ; और शिफ़ा के वक़्त का, लेकिन देखो दहशत!16"उसके घोड़ों के फ़र्राने की आवाज़ दान से सुनाई देती है, उसके जंगी घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज़ से तमाम ज़मीन काँप गई; क्यूँकि वह आ पहुँचे हैं और ज़मीन को और सब कुछ जो उसमें है, और शहर को भी उसके बाशिन्दों के साथ खा जाएँगे।"17~क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "देखो, मैं तुम्हारे बीच साँप और अज़दहे भेजूँगा जिन पर मन्तर कारगर न होगा और वह तुम को काटेंगे।”18काश कि मैं फ़रियाद से तसल्ली पाता; मेरा दिल मुझ में सुस्त हो गया।19देख, मेरी बिन्त-ए-क़ौम की ग़म की आवाज़ दूर के मुल्क से आती है,'क्या ख़ुदावन्द सिय्यून में नहीं? क्या उसका बादशाह उसमें नहीं? "उन्होंने क्यूँ अपनी तराशी हुई मूरतों से, और बेगाने मा'बूदों से मुझ को ग़ज़बनाक किया?"20"फ़सल काटने का वक़्त गुज़रा, गर्मी के दिन ख़त्म हुए, और हम ने रिहाई नहीं पाई।"21अपनी बिन्त-क़ौम की शिकस्तगी की वजह से मैं शिकस्ताहाल हुआ; मैं कुढ़ता रहता हूँ, हैरत ने मुझे दबा लिया।22क्या जिल'आद में रौग़न-ए-बलसान नहीं है? क्या वहाँ कोई हकीम नहीं? मेरी बिन्त-ए-क़ौम क्यूँ शिफ़ा नहीं पाती?
1काश कि मेरा सिर पानी होता, और मेरी आँखें आँसुओं का चश्मा, ताकि मैं अपनी बिन्त-ए-क़ौम के मक़्तूलों पर रात दिन मातम करता!2काश कि मेरे लिए वीराने में मुसाफ़िर ख़ाना होता, ताकि मैं अपनी क़ौम को छोड़ देता और उनमें से निकल जाता! क्यूँकि वह सब बदकार और दग़ाबाज़ जमा'अत हैं।3वह अपनी ज़बान को नारास्ती की कमान बनाते हैं, वह मुल्क में ताक़तवर हो गए हैं लेकिन रास्ती के लिए नहीं; क्यूँकि वह बुराई से बुराई तक बढ़ते जाते हैं और मुझ को नहीं जानते, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।4हर एक अपने पड़ोसी से होशियार रहे, और तुम किसी भाई पर भरोसा न करो, क्यूँकि हर एक भाई दग़ाबाज़ी से दूसरे की जगह ले लेगा, और हर एक पड़ोसी ग़ीबत करता फिरेगा।5और हर एक अपने पड़ोसी को फ़रेब देगा और सच न बोलेगा, उन्होंने अपनी ज़बान को झूट बोलना सिखाया है; और बदकारी में जॉफ़िशानी करते हैं।6तेरा घर फ़रेब के बीच है; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, फ़रेब ही से वह मुझ को जानने से इन्कार करते हैं।7इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है:कि "देख, मैं उनको पिघला डालूँगा और उनको आज़माऊँगा; क्यूँकि अपनी बिन्त-ए-क़ौम से और क्या करूँ ?8उनकी ज़बान हलाक करने वाला तीर है, उससे दग़ा की बातें निकलती हैं, अपने पड़ोसी को मुँह से तो सलाम कहते हैं पर बातिन में उसकी घात में बैठते हैं।9ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए उनको सज़ा न दूँगा? क्या मेरी रूह ऐसी क़ौम से इन्तक़ाम न लेगी?10"मैं पहाड़ों के लिए गिरया-ओ-ज़ारी, और वीराने की चरागाहों के लिए नौहा करूँगा, क्यूँकि वह यहाँ तक जल गई कि कोई उनमे क़दम नहीं रखता चौपायों की आवाज़ सुनाई नहीं देती; हवा के परिन्दे और मवेशी भाग गए, वह चले गए।11मैं यरुशलीम को खण्डर और गीदड़ों का घर बना दूँगा, और यहूदाह के शहरों को ऐसा वीरान करूँगा कि कोई बाशिन्दा न रहेगा।"12साहिब-ए-हिकमत आदमी कौन है कि इसे समझे? और वह जिससे ख़ुदावन्द के मुँह ने फ़रमाया कि इस बात का 'ऐलान करे।ये सरज़मीन किस लिए वीरान हुई, और वीराने की तरह जल गई कि कोई इसमें क़दम नहीं रखता?13और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "इसलिए कि उन्होंने मेरी शरी'अत को जो मैंने उनके आगे रख्खी थी, छोड़ दिया और मेरी आवाज़ को न सुना और उसके मुताबिक़ न चले,14बल्कि उन्होंने अपने हट्टी दिलों की और बा'लीम की पैरवी की, जिसकी उनके बाप-दादा ने उनको ता'लीम दी थी।15इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं इनको, हाँ, इन लोगों को नागदौना खिलाऊँगा, और इन्द्रायन का पानी पिलाऊँगा।16और इनको उन क़ौमों में, जिनको न यह न इनके बाप-दादा जानते थे, तितर-बितर करूँगा और तलवार इनके पीछे भेजकर इनको हलाक कर डालूँगा।"17रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "सोचो और मातम करने वाली 'औरतों को बुलाओ कि आएँ, और माहिर 'औरतों को बुलवा भेजो कि वह भी आएँ;18और जल्दी करें और हमारे लिए नोहा उठायें ताकि हमारी ~आँखों से आँसू जारी हों और हमारी पलकों से आसुवों का सैलाब बह निकले।19~यक़ीनन सिय्यून से नोहे की आवाज़ सुनाई देती है, 'हम कैसे बर्बाद हुए! हम सख़्त रुस्वा हुए, क्यूँकि हम वतन से आवारा हुए और हमारे घर गिरा दिए गए।' "20ऐ 'औरतो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो और तुम्हारे कान उसके मुँह की बात क़ुबूल करें; और तुम अपनी बेटियों को नोहागरी और अपनी पड़ोसनो को मर्सिया-ख़्वानी सिखाओ।21क्यूँकि मौत हमारी खिड़कियों में चढ़ आई है और हमारे क़स्रों में घुस बैठी है, ताकि बाहर बच्चों को और बाज़ारों में जवानों को काट डाले।22कह दे, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: 'आदमियों की लाशें मैदान में खाद की तरह गिरेंगी, और उस मुट्ठी भर की तरह होंगी जो फ़सल काटनेवाले के पीछे रह जाये जिसे कोई जमा नहीं करता |23ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "न साहिब-ए-हिकमत अपनी हिकमत पर, और न क़वी अपनी क़ुव्वत पर, और न मालदार अपने माल पर फ़ख़्र करे;24लेकिन जो फ़ख़्र करता है, इस पर फ़ख़्र करे कि वह समझता और मुझे जानता है कि मैं ही ख़ुदावन्द हूँ, जो दुनिया में शफ़क़त-ओ-'अद्ल और रास्तबाज़ी को 'अमल में लाता हूँ; क्यूँकि मेरी ख़ुशी इन्हीं बातों में है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।25"देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं सब मख़्तूनों को नामख़्तूनों के तौर पर सज़ा दूँगा;26मिस्र और यहूदाह और अदोम और बनी 'अम्मोन और मोआब को, और उन सब को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं, "जो वीरान के बाशिन्दे हैं; क्यूँकि यह सब क़ौमें नामख़्तून हैं, और इस्राईल का सारा घराना दिल का नामख़्तून है।"
1ऐ इस्राईल के घराने, वह कलाम जो ख़ुदावन्द तुम से करता है सुनो।2ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "तुम दीगर क़ौमों के चाल चलन न सीखो, और आसमानी 'अलामात से हिरासान न हो; अगरचे दीगर क़ौमें उनसे हिरासान होती हैं।3~क्यूँकि उनके क़ानून बेकार हैं। चुनाँचे कोई जंगल में कुल्हाड़ी से दरख़्त काटता है, जो बढ़ई ~के हाथ का काम है।4~वह उसे चाँदी और सोने से आरास्ता करते हैं, और उसमें हथोड़ों से मेखे़ं लगाकर उसे मज़बूत करते हैं ताकि क़ायम रहे।5वह खजूर की तरह मख़रूती सुतून हैं पर बोलते नहीं, उनको उठा कर ले जाना पड़ता है क्यूँकि वह चल नहीं सकते; उनसे न डरो क्यूँकि वह नुक़सान नहीं पहुँचा सकते, और उनसे फ़ायदा भी नहीं पहुँच सकता।"6ऐ ख़ुदावन्द, तेरा कोई नज़ीर नहीं, तू 'अज़ीम है और क़ुदरत की वजह से तेरा नाम बुज़ुर्ग है।7ऐ क़ौमों के बादशाह, कौन है जो तुझ से न डरे? यक़ीनन यह तुझ ही को ज़ेबा है; क्यूँकि क़ौमों के सब हकीमों में, और उनकी तमाम ममलुकतों में तेरा जैसा कोई नहीं।8~मगर वह सब हैवान ख़सलत और बेवक़ूफ़ हैं; बुतों की ता'लीम क्या, वह तो लकड़ी हैं।9तरसीस से चाँदी का पीटा हुआ पत्तर, और ऊफ़ाज़ से सोना आता है जो कारीगर की कारीगरी और सुनार की दस्तकारी है; उनका लिबास नीला और अर्ग़वानी है, और ये सब कुछ माहिर उस्तादों की दस्तकारी है।10~लेकिन ख़ुदावन्द सच्चा ख़ुदा है, वह ज़िन्दा ख़ुदा और हमेशा का बादशाह है; उसके क़हर से ~ज़मीन ~थरथराती है और क़ौमों में उसके क़हर की ताब नहीं।11~तुम उनसे यूँ कहना कि "यह मा'बूद जिन्होंने आसमान और ज़मीन को नहीं बनाया, ज़मीन पर से और आसमान के नीचे से हलाक हो जाएँगे।”12उसी ने अपनी क़ुदरत से ज़मीन को बनाया, उसी ने अपनी हिकमत से जहान को क़ायम किया और अपनी 'अक़्ल से आसमान को तान दिया है।13उसकी आवाज़ से आसमान में पानी की बहुतायत होती है, और वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है। वह बारिश के लिए बिजली चमकाता है और अपने ख़ज़ानों से हवा चलाता है।14हर आदमी हैवान ख़सलत और बे-'इल्म हो गया है; हर एक सुनार अपनी खोदी हुई मूरत से रुस्वा है क्यूँकि उसकी ढाली हुई मूरत बेकार है, उनमें दम नहीं।15वह बेकार, फ़े'ल-ए-फ़रेब हैं, सज़ा के वक़्त बर्बाद हो जाएँगी।16~या'क़ूब का हिस्सा उनकी तरह नहीं, क्यूँकि वह सब चीज़ों का ख़ालिक़ है और इस्राईल उसकी मीरास का 'असा है; रब्बउल-अफ़वाज उसका नाम है।17ऐ घिराव में रहने वाली, ज़मीन पर से अपनी गठरी उठा ले!18क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "देख, मैं इस मुल्क के बाशिन्दों को अब की बार जैसे फ़लाख़न में रख कर फेंक दूँगा, और उनको ऐसा तंग करूँगा कि जान लें।"19हाय मेरी ख़स्तगी! मेरा ज़ख़्म दर्दनाक है और मैंने समझ लिया, "यक़ीनन मुझे यह दुख बरदाश्त करना है।"20मेरा ख़ेमा बर्बाद किया गया, और मेरी सब तनाबें तोड़ दी गईं, मेरे बच्चे मेरे पास से चले गए, और वह हैं नहीं, अब कोई न रहा जो मेरा ख़ेमा खड़ा करे और मेरे पर्दे लगाए।21क्यूँकि चरवाहे हैवान बन गए और ख़ुदावन्द के तालिब न हुए, इसलिए वह कामयाब न हुए और उनके सब गल्ले तितर-बितर हो गए।22देख, उत्तर के मुल्क से बड़े ग़ौग़ा और हंगामे की आवाज़ आती है ताकि यहूदा के शहरों को उजाड़ कर गीदड़ों का घर बनाए।23ऐ ख़ुदावन्द, मैं जानता हूँ कि इन्सान की राह उसके इख़्तियार में नहीं; इन्सान अपने चाल चलन में अपने क़दमों की रहनुमाई नहीं कर सकता।24ऐ ख़ुदावन्द, मुझे हिदायत कर लेकिन अन्दाज़े से; अपने क़हर से नहीं, न हो कि तू मुझे हलाक कर दे'।25ऐ ख़ुदावन्द, उन क़ौमों पर जो तुझे नहीं जानतीं, और उन घरानों पर जो तेरा नाम नहीं लेते, अपना क़हर उँडेल दे; क्यूँकि वह या'क़ूब को खा गए, वह उसे निगल गए और चट कर गए, और उसके घर को उजाड़ दिया।
1यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से ~यरमियाह पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,2कि "तुम इस 'अहद की बातें सुनो, और बनी यहूदाह और यरुशलीम के बाशिन्दों से बयान करो;3और तू उनसे कह, ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि ला'नत उस इन्सान पर जो इस 'अहद की बातें नहीं सुनता।4जो मैंने तुम्हारे बाप-दादा से उस वक़्त फ़रमाईं, जब मैं उनको मुल्क-ए-मिस्र से लोहे के तनूर से, यह कह कर निकाल लाया कि तुम मेरी आवाज़ की फ़रमाँबरदारी करो, और जो कुछ मैंने तुम को हुक्म दिया है उस पर 'अमल करो, तो तुम मेरे लोग होगे और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा;5ताकि मैं उस क़सम को जो मैंने तुम्हारे बाप-दादा से खाई कि मैं उनको ऐसा मुल्क दूँगा जिसमें दूध और शहद बहता हो, जैसा कि आज के दिन है, पूरा करूँ।" तब मैंने जवाब में कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, आमीन।"6फिर ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के कूचों में इन सब बातों का 'ऐलान कर और कह: इस 'अहद की बातें सुनो और उन पर 'अमल करो।7क्यूँकि मैं तुम्हारे बाप-दादा को जिस दिन से मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, आज तक ताकीद करता और वक़्त पर जताता और कहता रहा कि मेरी सुनो।8लेकिन उन्होंने कान न लगाया और शिनवा न हुए, बल्कि हर एक ने अपने बुरे दिल की सख़्ती की पैरवी की; इसलिए मैंने इस 'अहद की सब बातें, जिन पर 'अमल करने का उनको हुक्म दिया था और उन्होंने न किया, उन पर पूरी कीं।”9तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "यहूदाह के लोगों और यरुशलीम के बाशिन्दों में साज़िश पाई जाती है।10वह अपने बाप-दादा की तरफ़ जिन्होंने मेरी बातें सुनने से इन्कार किया, फिर गए और ग़ैर मा'बूदों के पैरौ होकर उनकी 'इबादत की, इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने उस 'अहद को जो मैंने उनके बाप-दादा से किया था तोड़ दिया।11इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं उन पर ऐसी बला लाऊँगा जिससे वह भाग न सकेंगे, और वह मुझे पुकारेंगे पर मैं उनकी न सुनूँगा।12तब यहूदाह के शहर और यरुशलीम के बाशिन्दे जाएँगे और उन मा'बूदों को जिनके आगे वह ख़ुशबू जलाते हैं पुकारेंगे, लेकिन वह मुसीबत के वक़्त उनको हरगिज़ न बचाएँगे।13क्यूँकि ऐ यहूदाह, जितने तेरे शहर हैं उतने ही तेरे मा'बूद हैं, और जितने यरुशलीम के कूचे हैं उतने ही तुम ने उस रुस्वाई की वजह के लिए मज़बहे बनाए, या'नी बा'ल के लिए~ख़ुशबू~~जलाने की क़ुर्बानगाहें।14"इसलिए तू इन लोगों के लिए दु'आ न कर और न इनके लिए अपनी आवाज़ बलन्द कर और न मिन्नत कर, क्यूँकि जब वह अपनी मुसीबत में मुझे पुकारेंगे मैं इनकी न सुनूँगा।15मेरे घर में मेरी महबूबा को क्या काम जब कि वह बहुत ज़्यादा शरारत कर चुकी? क्या मन्नत और पाक गोश्त तेरी शरारत को दूर करेंगे? क्या तू इनके ज़रिए' से रिहाई पाएगी? तू शरारत करके ख़ुश होती है।16ख़ुदावन्द ने ख़ुशमेवा हरा ज़ैतून, तेरा नाम रखा; उसने बड़े हंगामे की आवाज़ होते होते ही उसे आग लगा दी और उसकी डालियाँ तोड़ दी गईं।17क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज ने जिसने तुझे लगाया, तुझ पर बला का हुक्म किया", उस बदी की वजह से जो इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने अपने हक़ में की कि बा'ल के लिए~ख़ुशबू~~जला कर मुझे ग़ज़बनाक किया।"18ख़ुदावन्द ने मुझ पर ज़ाहिर किया और मैं जान गया, तब तूने मुझे उनके काम दिखाए।19लेकिन मैं उस पालतू बर्रे ~की तरह था, जिसे ज़बह करने को ले जाते हैं; और मुझे मा'लूम न था कि उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ मंसूबे बाँधे हैं कि आओ, दरख़्त को उसके फल के साथ हलाक करें और उसे ज़िन्दों की ज़मीन से काट डालें, ताकि उसके नाम का ज़िक्र तक बाक़ी न रहे।"20ऐ रब्बउल-अफ़वाज, जो सदाक़त से 'अदालत करता है, जो दिल-ओ-दिमाग़ को जाँचता है, उनसे इन्तक़ाम लेकर मुझे दिखा क्यूँकि मैंने अपना दावा तुझ ही पर ज़ाहिर किया।21इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अन्तोत के लोगों के बारे में, जो यह कहकर तेरी जान के तलबगार हैं कि ख़ुदावन्द का नाम लेकर नबुव्वत न कर, ताकि तू हमारे हाथ से न मारा जाए।"22रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि "देख, मैं उनको सज़ा दूँगा, जवान तलवार से मारे जाएँगे, उनके बेटे-बेटियाँ काल से मरेंगे;23और उनमें से कोई बाक़ी न रहेगा। क्यूँकि मैं 'अन्तोत के लोगों पर उनकी सज़ा के साल में आफ़त लाऊँगा।"
1ऐ ख़ुदावन्द अगर मैं तेरे साथ बहस करूँ तो तू ही सच्चा ठहरेगा; तो भी मैं तुझ से इस अम्र पर बहस करना चाहता हूँ कि शरीर अपने चाल चलन में क्यूँ कामयाब होते हैं? सब दग़ाबाज़ क्यूँ आराम से रहते हैं?2~तूने उनको लगाया और उन्होंने जड़ पकड़ ली, वह बढ़ गए बल्कि कामयाब हुए; तू उनके मुँह से नज़दीक पर उनके दिलों से दूर है।3लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझे जानता है; तूने मुझे देखा और मेरे दिल को, जो तेरी तरफ़ है आज़माया है; तू उनको भेड़ों की तरह ज़बह होने के लिए खींच कर निकाल और क़त्ल के दिन के लिए उनको मख़्सूस कर।4अहल-ए-ज़मीन की शरारत से ज़मीन कब तक मातम करे, और तमाम मुल्क की रोएदगी पज़मुर्दा हो? चरिन्दे और परिन्दे हलाक हो गए, क्यूँकि उन्होंने कहा, "वह हमारा अंजाम न देखेगा।"5'अगर तू प्यादों के साथ दौड़ा और उन्होंने तुझे थका दिया, तो फिर तुझ में यह ताब कहाँ कि सवारों की बराबरी करे? तू सलामती की सरज़मीन में तो बे-ख़ौफ़ है, लेकिन यरदन के जंगल में क्या करेगा?6क्यूँकि तेरे भाइयों और तेरे बाप के घराने ने भी तेरे साथ बेवफ़ाई की है; हाँ, उन्होंने बड़ी आवाज़ से तेरे पीछे ललकारा, उन पर भरोसा न कर, अगरचे वह तुझ से मीठी मीठी बातें करें।”7मैंने अपने लोगों को छोड़ दिया, मैंने अपनी मीरास को रद्द कर दिया, मैंने अपने दिल की महबूबा को उसके दुश्मनों के हवाले किया।8मेरी मीरास मेरे लिए जंगली शेर बन गई, उसने मेरे ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बलन्द की; इसलिए मुझे उससे नफ़रत है।9क्या मेरी मीरास मेरे लिए अबलक़ शिकारी परिन्दा है? क्या शिकारी परिन्दे उसको चारों तरफ़ घेरे हैं? आओ, सब जंगली जानवरों को जमा' करो; उनको लाओ कि वह खा जाएँ।10बहुत से चरवाहों ने मेरे ताकिस्तान को ख़राब किया, उन्होंने मेरे हिस्से को पामाल किया, मेरे दिल पसन्द हिस्से को उजाड़ कर वीरान बना दिया।11उन्होंने उसे वीरान किया, वह वीरान होकर मुझसे फ़रयादी है। सारी ज़मीन वीरान हो गई तो भी कोई इसे ख़ातिर में नहीं लाता,12वीराने के सब पहाड़ों पर ग़ारतगर आ गए हैं; क्यूँकि ख़ुदावन्द की तलवार मुल्क के एक सिरे से दूसरे सिरे तक निगल जाती है और किसी बशर को सलामती नहीं।13उन्होंने गेहूँ बोया, लेकिन काँटे जमा' किये उन्होंने मशक़्क़त खींची लेकिन फ़ायदा न उठाया; ख़ुदावन्द के बहुत ग़ुस्से की वजह से अपने अंजाम से शर्मिन्दा हो।"14मेरे सब शरीर पड़ोसियों के ख़िलाफ़ ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "देख, जिन्होंने उस मीरास को छुआ जिसका मैंने अपनी क़ौम इस्राईल को वारिस किया, मैं उनको उनकी सरज़मीन से उखाड़ डालूँगा और यहूदाह के घराने को उनके बीच से निकाल फेकूँगा।15और इसके बा'द कि मैं उनको उखाड़ डालूँगा, यूँ होगा कि मैं फिर उन पर रहम करूँगा और हर एक को उसकी मीरास में और हर एक को उसकी ज़मीन में फिर लाऊँगा;16और यूँ होगा कि अगर वह दिल लगा कर मेरे लोगों के तरीके़ सीखेंगे, कि मेरे नाम की क़सम खाएँ कि ख़ुदावन्द ज़िन्दा है। जैसा कि उन्होंने मेरे लोगों को सिखाया कि बा'ल की क़सम खाएँ, तो वह मेरे लोगों में शामिल होकर क़ायम हो जाएँगे'।17~लेकिन अगर वह शर्मिंदा न होंगे, तो मैं उस क़ौम को बिल्कुल उखाड़ डालूँगा और हलाक-ओ-बर्बाद कर दूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है |"
1ख़ुदावन्द ने ~मुझे यूँ फ़रमाया कि "तू जाकर अपने लिए एक कतानी कमरबन्द ख़रीद ले और अपनी कमर पर बाँध, लेकिन उसे पानी में मत भिगो।"2तब मैंने ख़ुदावन्द के कलाम के मुवाफ़िक़ एक कमरबन्द ख़रीद लिया और अपनी कमर पर बाँधा।3और ख़ुदावन्द का कलाम दोबारा मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया,4कि "इस कमरबन्द को जो तूने ख़रीदा और जो तेरी कमर पर है, लेकर उठ और फ़रात को जा और वहाँ चट्टान के एक शिगाफ़ में उसे छिपा दे।"5चुनाँचे मैं गया और उसे फ़रात के किनारे छिपा दिया, जैसा ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया था।6और बहुत दिनों के बा'द यूँ हुआ कि ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया,कि "उठ, फ़रात की तरफ़ जा और उस कमरबन्द को जिसे तूने मेरे हुक्म से वहाँ छिपा रख्खा है, निकाल ले।'7तब मैं फ़रात को गया और खोदा और कमरबन्द को उस जगह से जहाँ मैंने उसे गाड़ दिया था, निकाला और देख, वह कमरबन्द ऐसा ख़राब हो गया था कि किसी काम का न रहा।8तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:9कि "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि इसी तरह मैं यहूदाह के ग़ुरूर और यरुशलीम के बड़े ग़ुरूर को तोड़ दूँगा।10यह शरीर लोग जो मेरा कलाम सुनने से इन्कार करते हैं और अपने ही दिल की सख़्ती के पैरौ होते, और ग़ैर मा'बूदों के तालिब होकर उनकी 'इबादत करते और उनको पूजते हैं, वह इस कमरबन्द की तरह होंगे जो किसी काम का नहीं।11क्यूँकि जैसा कमरबन्द इन्सान की कमर से लिपटा रहता है वैसा ही, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैंने इस्राईल के तमाम घराने और यहूदाह के तमाम घराने को लिया कि मुझसे लिपटे रहें; ताकि वह मेरे लोग हों और उनकी वजह से मेरा नाम हो, और मेरी सिताइश की जाए और मेरा जलाल हो; लेकिन उन्होंने न सुना।12तब तू उनसे ये बात भी कह दे कि ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि 'हर एक मटके में मय भरी जाएगी।' और वह तुझ से कहेंगे, 'क्या हम नहीं जानते कि हर एक मटके में मय भरी जाएगी?"13तब तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं इस मुल्क के सब बाशिन्दों को, हाँ, उन बादशाहों को जो दाऊद के तख़्त पर बैठते हैं, और कहिनों और नबियों और यरुशलीम के सब बाशिन्दों को मस्ती से भर दूँगा।14और मैं उनको एक दूसरे पर, यहाँ तक कि बाप को बेटों पर दे मारूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं न शफ़कत करूँगा, न रि'आयत और न रहम करूँगा कि उनको हलाक न करूँ।' "15सुनो और कान लगाओ, ग़ुरूर न करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।16ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तम्जीद करो, इससे पहले के वह तारीकी लाए और तुम्हारे पाँव गहरे अन्धेरे में ठोकर खाएँ; और जब तुम रोशनी का इन्तिज़ार करो, तो वह उसे मौत के साये से बदल डाले और उसे सख़्त तारीकी बना दे।17लेकिन अगर तुम न सुनोगे, तो मेरी जान तुम्हारे ग़ुरूर की वजह से ख़िल्वतख़ानों में ग़म खाया करेगी; हाँ, मेरी आँखें फूट फूटकर रोएँगी और आँसू बहाएँगी, क्यूँकि ख़ुदावन्द का गल्ला ग़ुलामी में चला गया।18बादशाह और उसकी वालिदा से कह, ''आजिज़ी करो और नीचे बैठो, क्यूँकि तुम्हारी बुज़ुर्गी का ताज तुम्हारे सिर पर से उतार लिया गया है।"19दख्खिन के शहर बन्द हो गए और कोई नहीं खोलता, सब बनी यहूदाह ग़ुलाम हो गए; सबको ग़ुलाम करके ले गए।20'अपनी आँखें उठा और उनको जो उत्तर से आते हैं, देख। वह गल्ला जो तुझे दिया गया था, तेरा ख़ुशनुमा गल्ला कहाँ है?21जब वह तुझ पर उनको मुक़र्रर करेगा जिनको तूने अपनी हिमायत की ता'लीम दी है, तो तू क्या कहेगी? क्या तू उस 'औरत की तरह जिसे पैदाइश का दर्द हो, दर्द में मुब्तिला न होगी?22और अगर तू अपने दिल में कहे कि यह हादसे मुझ पर क्यूँ गुज़रे? तेरी बदकिरदारी की शिद्दत से तेरा दामन उठाया गया और तेरी एड़ियाँ जबरन बरहना की गईं।23हब्शी अपने चमड़े को या चीता अपने दाग़ों को बदल सके, तो तुम भी जो बदी के 'आदी हो नेकी कर सकोगे।24इसलिए मैं उनको उस भूसे की तरह जो वीराने की हवा से उड़ता फिरता है, तितर-बितर करूँगा।25ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मेरी तरफ़ से यही तेरा हिस्सा, तेरा नपा हुआ हिस्सा है; क्यूँकि तूने मुझे फ़रामोश करके बेकारी पर भरोसा किया है।26फिर मैं भी तेरा दामन तेरे सामने से उठा दूँगा, ताकि तू बेपर्दा हो।27मैंने तेरी बदकारी, तेरा हिनहिनाना, तेरी हरामकारी और तेरे नफ़रतअंगेज़ काम जो तूने पहाड़ों पर और मैदानों में किए, देखे हैं। ऐ यरुशलीम, तुझ पर अफ़सोस! तू अपने आपको कब तक पाक-ओ-साफ़ न करेगी?”
1ख़ुदावन्द का कलाम जो~ख़ुश्कसाली के बारे में यरमियाह पर नाज़िल हुआ2"यहूदाह मातम करता है और उसके फाटकों पर उदासी छाई है, वह मातमी लिबास में ख़ाक पर बैठे हैं; और यरुशलीम का नाला बलन्द हुआ है।3उनके हाकिम अपने अदना लोगों को पानी के लिए भेजते हैं; वह चश्मों तक जाते हैं पर पानी नहीं पाते, और ख़ाली घड़े लिए लौट आते हैं, वह शर्मिन्दा-ओ-पशेमान होकर अपने सिर ढाँपते हैं।4चूँकि मुल्क में बारिश न हुई, इसलिए ज़मीन फट गई और किसान सरासीमा हुए, वह अपने सिर छिपाते हैं।5चुनाँचे हिरनी मैदान में बच्चा देकर उसे छोड़ देती है क्यूँकि घास नहीं मिलती।6और गोरख़र ऊँची जगहों पर खड़े होकर गीदड़ों की तरह हाँफते हैं उनकी आँखे रह जाती हैं, क्यूँकि घास नहीं है।7'अगरचे हमारी बदकिरदारी हम पर गवाही देती है, तो भी ऐ ख़ुदावन्द अपने नाम की ख़ातिर कुछ कर; क्यूँकि हमारी नाफ़रमानी बहुत है, हम तेरे ख़ताकार हैं।8ऐ इस्राईल की उम्मीद, मुसीबत के वक़्त उसके बचानेवाले, तू क्यूँ मुल्क में परदेसी की तरह बना, और उस मुसाफ़िर की तरह जो रात काटने के लिए डेरा डाले?9तू क्यूँ इन्सान की तरह हक्का-बक्का है, और उस बहादुर की तरह जो रिहाई नहीं दे सकता? बहर-हाल, ऐ ख़ुदावन्द, तू तो हमारे बीच है और हम तेरे नाम से कहलाते हैं; तू हमको मत छोड़।"10ख़ुदावन्द इन लोगों से यूँ फ़रमाता है कि "इन्होंने गुमराही को यूँ दोस्त रख्खा है और अपने पाँव को नहीं रोका, इसलिए ख़ुदावन्द इनको क़ुबूल नहीं करता; अब वह इनकी बदकिरदारी याद करेगा और इनके गुनाह की सज़ा देगा।"11और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "इन लोगों के लिए दु'आ-ए-ख़ैर न कर।12क्यूँकि जब यह रोज़ा रख्खें तो मैं इनकी फ़रियाद न सुनूँगा और जब सोख़्तनी क़ुर्बानी और हदिया पेश करें तो क़ुबूल न करूँगा, बल्कि मैं तलवार और काल और वबा से इनको हलाक करूँगा।"13तब मैंने कहा, 'आह, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, देख, अम्बिया उनसे कहते हैं, "तुम तलवार न देखोगे, और तुम में काल न पड़ेगा; बल्कि मैं इस मक़ाम में तुम को हक़ीक़ी सलामती बख्शूँगा।'14तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि अम्बिया मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते हैं; मैंने न उनको भेजा और न हुक्म दिया और न उनसे कलाम किया, वह झूठा ख़्वाब और झूठा 'इल्म-ए-ग़ैब और बतालत और अपने दिलों की मक्कारी, नबुव्वत की सूरत में तुम पर ज़ाहिर करते हैं।15इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि वह नबी जिनको मैंने नहीं भेजा, जो मेरा नाम लेकर नबुव्वत करते और कहते हैं कि तलवार और काल इस मुल्क में न आएँगे, वह तलवार और काल ही से हलाक होंगे।16और जिन लोगों से वह नबुव्वत करते हैं, तो काल और तलवार की वजह से यरुशलीम के गलियों में फेंक दिए जाएँगे; उनको और उनकी बीवियों और उनके बेटों और उनकी बेटियों को दफ़्न करने वाला कोई न होगा। मैं उनकी बुराई उन पर उँडेल दूँगा।17"और तू उनसे यूँ कहना: 'मेरी आँखें रात दिन आँसू बहाएँ और हरगिज़ न थमें, क्यूँके मेरी कुँवारी दुख़्तर-ए-क़ौम ख़श्तगी और ज़र्ब-ए-शदीद से शिकस्ता है।18अगर मैं बाहर मैदान में जाऊँ, तो वहाँ तलवार के मक़्तूल हैं; और अगर मैं शहर में दाख़िल होऊँ, तो वहाँ काल के मारे हैं! हाँ, नबी और काहिन दोनों एक ऐसे मुल्क को जाएँगे, जिसे वह नहीं जानते।' "19क्या तूने यहूदाह को बिल्कुल रद्द कर दिया? क्या तेरी जान को सिय्यून से नफ़रत है? तूने हमको क्यूँ मारा और हमारे लिए शिफ़ा नहीं? सलामती का इन्तिज़ार था, लेकिन कुछ फ़ायदा न हुआ; और शिफ़ा के वक़्त का, लेकिन देखो, दहशत!20ऐ ख़ुदावन्द, हम अपनी शरारत और अपने बाप-दादा की बदकिरदारी का इक़रार करते हैं; क्यूँकि हम ने तेरा गुनाह किया है।21अपने नाम की ख़ातिर रद्द न कर, और अपने जलाल के तख़्त की तहक़ीर न कर; याद फ़रमा और हम से रिश्ता-ए-'अहद को न तोड़।22क़ौमों के बुतों में कोई है जो मेंह बरसा सके? या आसमान बरिश पर क़ादिर हैं? ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, क्या वह तू ही नहीं है? इसलिए हम तुझ ही पर उम्मीद रख्खेंगे, क्यूँकि तू ही ने यह सब काम किए हैं।
1तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि "अगरचे ~मूसा और समुएल मेरे सामने खड़े होते तो मेरा दिल इन लोगों की तरफ़ मुतवज्जिह न होता। इनको मेरे सामने से निकाल दे कि चले जाएँ!2और जब वह तुझसे कहें कि 'हम किधर जाएँ?' तू उनसे कहना कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि जो मौत के लिए हैं वह मौत की तरफ़ जाएँ, और जो तलवार के लिए हैं वह तलवार की तरफ़, और जो काल के लिए हैं वह काल को, और जो ग़ुलामी के लिए हैं वह ग़ुलामी में।'3और मैं चार चीज़ों' को उन पर मुसल्लत करूँगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है: तलवार को कि क़त्ल करे, और कुत्तों को कि फाड़ डालें, और आसमानी परिन्दों को, और ज़मीन के दरिन्दों को कि निगल जाएँ और हलाक करें।4और मैं उनको शाह-ए-यहूदाह मनस्सी-बिन-हिज़क़ियाह की वजह से, उस काम के ज़रिये' जो उसने यरुशलीम में किया, छोड़ दूँगा कि ज़मीन की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरें।5"अब ऐ यरुशलीम, कौन तुझ पर रहम करेगा? कौन तेरा हमदर्द होगा? या कौन तेरी तरफ़ आएगा कि तेरी ख़ैर-ओ- 'आफ़ियत पूछे?6ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तूने मुझे छोड़ दिया और नाफ़रमान हो गई, इसलिए मैं तुझ पर अपना हाथ बढ़ाऊँगा और तुझे बर्बाद करूँगा, मैं तो तरस खाते खाते तंग आ गया।7और मैंने उनको मुल्क के फाटकों पर छाज से फटका, मैंने उनके बच्चे छीन लिए, मैंने अपने लोगों को हलाक किया, क्यूँकि वह अपनी राहों से न फिरे।8उनकी बेवाएँ मेरे आगे समन्दर की रेत से ज़्यादा हो गईं; मैंने दोपहर के वक़्त जवानों की माँ पर ग़ारतगर को मुसल्लत किया; मैंने उस पर अचानक 'अज़ाब-ओ-दहशत को डाल दिया।9सात बच्चों की वालिदा निढाल हो गई, उसने जान दे दी; दिन ही को उसका सूरज डूब गया, वह पशेमान और शर्मिंदा हो गई है; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उनके बाक़ी लोगों को उनके दुश्मनों के आगे तलवार के हवाले करूँगा।"10ऐ मेरी माँ, मुझ पर अफ़सोस कि मैं तुझ से तमाम दुनिया कि लिए लड़ाका आदमी और झगड़ालू शख़्स पैदा हुआ! मैंने तो न सूद पर क़र्ज़ दिया और न क़र्ज़ लिया, तो भी उनमें से हर एक मुझ पर ला'नत करता है।11ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "यक़ीनन मैं तुझे ताक़त बख़्शूँगा कि तेरी ख़ैर हो; यक़ीनन मैं मुसीबत और तंगी के वक़्त दुश्मनों से तेरे सामने इल्तिजा कराऊँगा।12क्या कोई लोहे को या'नी उत्तरी फ़ौलाद और पीतल को तोड़ सकता है?13'तेरे माल और तेरे ख़ज़ानों को मुफ़्त लुटवा दूँगा, और यह~तेरे सब गुनाहों की वजह से तेरी तमाम सरहदों में होगा।14और मैं तुझ को तेरे दुश्मनों के साथ ऐसे मुल्क में ले जाऊँगा जिसे तू नहीं जानता, क्यूँकि मेरे ग़ज़ब की आग भड़केगी और तुम को जलाएगी।”15ऐ ख़ुदावन्द, तू जानता है; मुझे याद फ़रमा और मुझ पर शफ़क़त कर, और मेरे सतानेवालों से मेरा इन्तक़ाम ले। तू बर्दाश्त करते-करते मुझे न उठा ले, जान रख कि मैंने तेरी ख़ातिर मलामत उठाई है।16तेरा कलाम मिला और मैंने उसे नोश किया, और तेरी बातें मेरे दिल की ख़ुशी और ख़ुर्रमी थीं; क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, रब्ब-उल-अफ़वाज मैं तेरे नाम से कहलाता हूँ।17न मैं ख़ुशी मनानेवालों की महफ़िल में बैठा और न ख़ुश हुआ,तेरे हाथ की वजह से मैं तन्हा बैठा, क्यूँकि तूने मुझे क़हर-से-लबरेज़ कर दिया है।18~मेरा दर्द क्यूँ हमेशा का और मेरा ज़ख़्म क्यूँ ला-'इलाज है कि सिहत पज़ीर नहीं होता? क्या तू मेरे लिए सरासर धोके की नदी के जैसा~हो गया है, उस पानी की तरह जिसको क़याम नहीं?19इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि अगर तू बाज़ आये तों मैं तुझे फेर लाऊँगा और तू मेरे सामने खड़ा होगा। और अगर तू लतीफ़ को कसीफ़ से जुदा करे, तो तू मेरे मुँह की तरह होगा। वह तेरी तरफ़ फिरें, लेकिन तू उनकी तरफ़ न फिरना।20और मैं तुझे इन लोगों के सामने पीतल की मज़बूत दीवार ठहराऊँगा; और यह तुझ से लड़ेंगे लेकिन तुझ पर ग़ालिब न आएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं तेरे साथ हूँ कि तेरी हिफ़ाज़त करूँ और तुझे रिहाई दूँ।21हाँ, मैं तुझे शरीरों के हाथ से रिहाई दूँगा और ज़ालिमों के पंजे से तुझे छुड़ाऊँगा।"
1ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,2"तू बीवी न करना, इस जगह तेरे यहाँ बेटे-बेटियाँ न हों।3~क्यूँकि ख़ुदावन्द उन बेटों और बेटियों के बारे में जो इस जगह पैदा हुए हैं, और उनकी माँओं के बारे में जिन्होंने उनको पैदा किया, और उनके बापों के बारे में जिनसे वह पैदा हुए, यूँ फ़रमाता है:4कि वह बुरी मौत मरेंगे, न उन पर कोई मातम करेगा और न वह दफ़्न किए जाएँगे, वह सतह-ए-ज़मीन पर खाद की तरह होंगे; वह तलवार और काल से हलाक होंगे और उनकी लाशें हवा के परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी।5'इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू मातम वाले घर में दाख़िल न हो, और न उन पर रोने के लिए जा, न उन पर मातम कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मैंने अपनी सलामती और शफ़क़त-ओ-रहमत को इन लोगों पर से उठा लिया है।6और इस मुल्क के छोटे बड़े सब मर जाएँगे; न वह दफ़्न किए जाएँगे, न लोग उन पर मातम करेंगे, और न कोई उनके लिए ज़ख़्मी होगा, न सिर मुण्डाएगा;7न लोग मातम करनेवालों को खाना खिलाएँगे, ताकि उनको मुर्दों के बारे में तसल्ली दें; और न उनकी दिलदारी का प्याला देंगे कि वह अपने माँ-बाप के ग़म में पिएँ।8और तू ज़ियाफ़त वाले घर में दाख़िल न होना कि उनके साथ बैठकर खाए पिए।9क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं इस जगह से तुम्हारे देखते हुए और तुम्हारे ही दिनों में ख़ुशी और शादमानी की आवाज़ दुल्हे और दुल्हन की आवाज़ ख़त्म कराऊँगा।10"और जब तू यह सब बातें इन लोगों पर ज़ाहिर करे और वह तुझ से पूछे कि 'ख़ुदावन्द ने क्यूँ यह~सब बुरी बातें हमारे ख़िलाफ़ कहीं? हमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ कौन सी बुराई और कौन सा गुनाह किया है?"11तब तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: इसलिए कि तुम्हारे बाप-दादा ने मुझे छोड़ दिया, और ग़ैरमा'बूदों के तालिब हुए और उनकी 'इबादत और परस्तिश की, और मुझे छोड़ दिया और मेरी शरी'अत पर 'अमल नहीं किया;12और तुमने अपने बाप-दादा से बढ़कर बुराई की; क्यूँकि देखो, तुम में से हर एक अपने बुरे दिन की सख़्ती की पैरवी करता है कि मेरी न सुने,13~इसलिए मैं तुमको इस मुल्क से ख़ारिज करके ऐसे मुल्क में आवारा करूँगा, जिसे न तुम और न तुम्हारे बाप-दादा जानते थे; और वहाँ तुम रात दिन ग़ैर मा'बूदों की 'इबादत करोगे, क्यूँकि मैं तुम पर रहम न करूँगा।"14"लेकिन देख," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "वह दिन आते हैं कि लोग कभी न कहेंगे कि "ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम जो बनी-इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया";15बल्कि ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम जो बनी-इस्राईल को उत्तर की सरज़मीन से और उन सब ममलुकतों से, जहाँ-जहाँ उसने उनको हॉक दिया था, निकाल लाया; और मैं उनको फिर उस मुल्क में लाऊँगा जो मैंने उनके बाप-दादा को दिया था।16आनेवाली सज़ा~'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख बहुत से माहीगीरों को बुलवाऊँगा और वह उनको शिकार करेंगे, और फिर मैं बहुत से शिकारियों को बुलवाऊँगा और वह हर पहाड़ से और हर टीले से और चट्टानों के शिगाफ़ों से उनको पकड़ निकालेंगे।17क्यूँकि मेरी ऑखें उनके सब चाल चलन पर लगी हैं, वह मुझसे छिपी नहीं हैं और उनकी बदकिरदारी मेरी ऑखों से छिपी नहीं।18और मैं पहले उनकी बदकिरदारी और ख़ताकारी की दूनी सज़ा दूँगा क्यूँकि उन्होंने मेरी सरज़मीन को अपनी मकरूह चीज़ों की लाशों से नापाक किया और मेरी मीरास को अपनी मकरूहात से भर दिया है।"19यरमियाह की दु'आ~ऐ ख़ुदावन्द, मेरी क़ुव्वत और मेरे गढ़ और मुसीबत के दिन में मेरी पनाहगाह, दुनिया कि किनारों से क़ौमें तेरे पास आकर कहेंगी कि "हक़ीक़त में हमारे बाप-दादा ने महज़ झूट की मीरास हासिल की, या'नी बेकार और बेसूद चीज़ें ।20~क्या इन्सान अपने लिए मा'बूद बनाए जो ख़ुदा नहीं हैं!"21~"इसलिए देख, मैं इस मर्तबा उनको आगाह करूँगा; मैं अपने हाथ और अपना ज़ोर उनको दिखाऊँगा, और वह जानेंगे कि मेरा नाम यहोवाह है।"
1"यहूदाह का गुनाह लोहे के क़लम~और हीरे की नोक से लिखा गया है; उनके दिल की तख़्ती पर, और उनके मज़बहों के सींगों पर खुदवाया गया है;2क्यूँकि उनके बेटे अपने मज़बहों और यसीरतों को याद करते हैं, जो हरे दरख़्तों के पास ऊँचे पहाड़ों पर हैं।3ऐ मेरे पहाड़, जो मैदान में है; मैं तेरा माल और तेरे सब ख़ज़ाने और तेरे ऊँचे मक़ाम जिनको तूने अपनी तमाम सरहदों पर गुनाह के लिए बनाया, लुटाऊँगा।4और तू अज़ख़ुद उस मीरास से जो मैंने तुझे दी, अपने क़ुसूर की वजह से हाथ उठाएगा; और मैं उस मुल्क में जिसे तू नहीं जानता, तुझ से तेरे दुश्मनों की ख़िदमत कराऊँगा; क्यूँकि तुमने मेरे क़हर की आग भड़का दी है जो हमेशा तक जलती रहेगी।"5~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "मला'ऊन है वह आदमी जो इन्सान" पर भरोसा करता है, और बशर को अपना बाज़ू जानता है, और जिसका दिल ख़ुदावन्द से फिर जाता है।6~क्यूँकि वह रतमा की तरह, होगा जो वीराने में है और कभी भलाई न देखेगा; बल्कि वीराने की बे पानी जगहों में और ग़ैर-आबाद ज़मीन-ए-शोर में रहेगा।7~"मुबारक है वह आदमी जो ख़ुदावन्द पर भरोसा करता है, और जिसकी उम्मीदगाह ख़ुदावन्द है।8~क्यूँकि वह उस दरख़्त की तरह होगा जो पानी के पास लगाया जाए, और अपनी जड़ दरिया की तरफ़ फैलाए, और जब गर्मी आए तो उसे कुछ ख़तरा न हो बल्कि उसके पत्ते हरे रहें, और ख़ुश्कसाली का उसे कुछ ख़ौफ़ न हो, और फल लाने से बाज़ न रहे।"9~दिल सब चीज़ों से ज़्यादा हीलाबाज़ और ला'इलाज है, उसको कौन दरियाफ़्त कर सकता है?10"मैं ख़ुदावन्द दिल-ओ-दिमाग़ को जाँचता और आज़माता हूँ, ताकि हर एक आदमी को उसकी चाल के मुवाफ़िक़ और उसके कामों के फल के मुताबिक़ बदला दूँ।"11बेइन्साफ़ी से दौलत हासिल करनेवाला, उस तीतर की तरह है जो किसी दूसरे के अण्डों पर बैठे; वह आधी 'उम्र में उसे खो बैठेगा और आख़िर को बेवक़ूफ़ ठहरेगा।12हमारे हैकल का मकान इब्तिदा ही से मुक़र्रर किया हुआ जलाली तख़्त है।13ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल की उम्मीदगाह, तुझको छोड़ने वाले सब शर्मिन्दा होंगे; मुझको छोड़ने वाले ख़ाक में मिल जाएँगे, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द को, जो आब-ए-हयात का चश्मा है छोड़ दिया।14ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझे शिफ़ा बख़्शे तो मैं शिफ़ा पाऊँगा; तू ही बचाए तो बचूँगा, क्यूँकि तू मेरा फ़ख़्र है'।15देख, वह मुझे कहते हैं, "ख़ुदावन्द का कलाम कहाँ है? अब नाज़िल हो।"16मैंने तो तेरी पैरवी में गड़रिया बनने से इन्कार नहीं किया, और मुसीबत के दिन की आरज़ू नहीं की; तू ख़ुद जानता है कि जो कुछ मेरे लबों से निकला, तेरे सामने था।17तू मेरे लिए दहशत की वजह न हो, मुसीबत के दिन तू ही मेरी पनाह है।18मुझ पर सितम करने वाले शर्मिन्दा हों, लेकिन मुझे शर्मिन्दा न होने दे; वह हिरासान हों, लेकिन मुझे हिरासान न होने दे; मुसीबत का दिन उन पर ला और उनको शिकस्त पर शिकस्त दे!19ख़ुदावन्द ने मुझसे यूँ फ़रमाया है कि: 'जा और उस फाटक पर जिससे 'आम लोग और शाहान-ए-यहूदाह आते जाते हैं, बल्कि यरुशलीम के सब फाटकों पर खड़ा हो20और उनसे कह दे, 'ऐ शाहान-ए-यहूदाह, और ऐ सब बनी यहूदाह, और यरुशलीम के सब बाशिन्दों, जो इन फाटकों में से आते जाते हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।21ख़ुदावन्द यू फ़रमाता है कि तुम ख़बरदार रहो, और सबत के दिन बोझ न उठाओ और यरुशलीम के फाटकों की राह से अन्दर न लाओ;22और तुम सबत के दिन बोझ अपने घरों से उठा कर बाहर न ले जाओ, और किसी तरह का काम न करो; बल्कि सबत के दिन को पाक जानो, जैसा मैंने तुम्हारे बाप-दादा को हुक्म दिया था।23लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया, बल्कि अपनी गर्दन को सख़्त किया कि सुनने न हों और तरबियत न पाएँ।24"और यूँ होगा कि अगर तुम दिल लगाकर मेरी सुनोगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और सबत के दिन तुम इस शहर के फाटकों के अन्दर बोझ न लाओगे बल्कि सबत के दिन को पाक जानोगे, यहाँ तक कि उसमें कुछ काम न करो;25तो इस शहर के फाटकों से दाऊद के जानशीन बादशाह और हाकिम दाख़िल होंगे; वह और उनके हाकिम यहूदाह के लोग और यरुशलीम के बाशिन्दे, रथों और घोड़ों पर सवार होंगे और यह शहर हमेशा तक आबाद रहेगा।26और यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के 'इलाक़े और बिनयमीन की सरज़मीन, और मैदान और पहाड़ और दख्खिन से सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और ज़बीहे और हदिये और लुबान लेकर आएँगे, और ख़ुदावन्द के घर में शुक्रगुज़ारी के हदिये लाएँगे।27~लेकिन अगर तुम मेरी न सुनोगे कि सबत के दिन को पाक जानो,और बोझ उठा कर~सबत के दिन यरुशलीम के फाटकों में दाख़िल होने से~बाज़ न रहो; तो मैं उसके फाटकों में आग सुलगाऊँगा, जो उसके क़स्रों को भसम कर देगी और हरगिज़ न बुझेगी।"
1ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:2कि "उठ और कुम्हार~के घर जा, और मैं वहाँ अपनी बातें तुझे सुनाऊँगा।"3तब मैं कुम्हार के घर गया और क्या देखता हूँ कि वह चाक पर कुछ बना रहा है।4उस वक़्त वह मिट्टी का बर्तन जो वह बना रहा था, उसके हाथ में बिगड़ गया; तब उसने उससे जैसा मुनासिब समझा एक दूसरा बर्तन बना लिया।5तब ख़ुदावन्द का यह कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:6"ऐ इस्राईल के घराने, क्या मैं इस कुम्हार की तरह तुम से सुलूक नहीं कर सकता हूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है। देखो, जिस तरह मिट्टी कुम्हार के हाथ में है उसी तरह, ऐ इस्राईल के घराने, तुम मेरे हाथ में हो।7अगर किसी वक़्त मैं किसी क़ौम और किसी सल्तनत के हक़ में कहूँ कि उसे उखाड़ूँ और तोड़ डालूँ और वीरान करूँ,8और अगर वह क़ौम, जिसके हक़ में मैंने ये कहा, अपनी बुराई से बाज़ आए, तो मैं भी उस बुराई से जो मैंने उस पर लाने का इरादा किया था बाज़ आऊँगा।9और फिर, अगर मैं किसी क़ौम और किसी सल्तनत के बारे में कहूँ कि उसे बनाऊँ और लगाऊँ;10और वह मेरी नज़र में बुराई करे और मेरी आवाज़ को न सुने, तो मैं भी उस नेकी से बाज़ रहूँगा जो उसके साथ करने को कहा था।11और अब तू जाकर यहूदाह के लोगों और यरुशलीम के बाशिन्दों से कह दे, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं तुम्हारे लिए मुसीबत तजवीज़ करता हूँ और तुम्हारी मुख़ालिफ़त में ~मनसूबा बाँधता हूँ। इसलिए अब तुम में से हर एक अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, और अपनी राह और अपने 'आमाल को दुरुस्त करे।'12लेकिन वह कहेंगे, 'यह तो फ़ुज़ूल है, क्यूँकि हम अपने मन्सूबों पर चलेंगे, और हर एक अपने बुरे दिल की सख़्ती के मुताबिक़ 'अमल करेगा।'13"इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: दरियाफ़्त करो कि क़ौमों में से किसी ने कभी ऐसी बातें सुनी हैं? इस्राईल की कुँवारी ने बहुत हौलनाक काम किया।14क्या लुबनान की बर्फ़ जो चट्टान से मैदान में बहती है, कभी बन्द होगी? क्या वह ठंडा बहता पानी जो दूर से आता है, सूख जाएगा?15लेकिन मेरे लोग मुझ को भूल गए, और उन्होंने बेकार के लिए~ख़ुशबू~~जलाया; और उसने उनकी राहों में या'नी~क़दीम राहों में उनको गुमराह किया, ताकि वह पगडंडियों में जाएँ और ऐसी राह में जो बनाई न गई।16कि वह अपनी सरज़मीन की वीरानी और हमेशा की हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाएँ; हर एक जो उधर से गुज़रे दंग होगा और सिर हिलाएगा।17मैं उनको दुश्मन के सामने जैसे पूरबी हवा से तितर-बितर कर दूँगा; उनकी मुसीबत के वक़्त उनको मुँह नहीं, बल्कि पीठ दिखाऊँगा।"18तब उन्होंने कहा, "आओ, हम यरमियाह की मुख़ालिफ़त में मंसूबे बाँधे, क्यूँकि शरी'अत काहिन से जाती न रहेगी, और न मश्वरत मुशीर से और न कलाम नबी से। आओ, हम उसे ज़बान से मारें, और उसकी किसी बात पर तव्ज्जुह न करें।"19ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझ पर तवज्जुह कर और मुझसे झगड़ने वालों की आवाज़ सुन।20क्या नेकी के बदले बदी की जाएगी? क्यूँकि उन्होंने मेरी जान के लिए गढ़ा खोदा। याद कर कि मैं तेरे सामने खड़ा हुआ कि उनकी शफ़ा'अत करूँ और तेरा क़हर उन पर से टला दूँ।21इसलिए उनके बच्चों को काल के हवाले कर, और उनको तलवार की धार के सुपुर्द कर, उनकी बीवियाँ बेऔलाद और बेवा हों, और उनके मर्द मारे जाएँ, उनके जवान मैदान-ए-जंग में तलवार से क़त्ल हों।22जब तू अचानक उन पर फ़ौज चढ़ा लाएगा, उनके घरों से मातम की सदा निकले! क्यूँकि उन्होंने मुझे फँसाने को गढ़ा खोदा और मेरे पाँव के लिए फन्दे लगाए।23लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तू उनकी सब साज़िशों को जो उन्होंने मेरे क़त्ल पर कीं जानता है। उनकी बदकिरदारी को मु'आफ़ न कर, और उनके गुनाह को अपनी नज़र से दूर न कर; बल्कि वह तेरे सामने पस्त हों, अपने क़हर के वक़्त तू उनसे यूँ ही कर।
1ख़ुदावन्द ने यूँ फ़रमाया है कि:"तू जाकर~कुम्हार से मिट्टी की सुराही मोल ले, और क़ौम के बुज़ुर्गों और काहिनों के सरदारों को साथ ले,2और बिन-हिनूम की वादी में कुम्हारों के फाटक के मदख़ल पर निकल जा, और जो बातें मैं तुझ से कहूँ वहाँ उनका 'ऐलान कर,3और कह, 'ऐ यहूदाह के बादशाहों और यरुशलीम के बाशिन्दो, ख़ुदा का कलाम सुनो। रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं इस जगह पर ऐसी बला नाज़िल करूँगा कि जो कोई उसके बारे में सुने उसके कान भन्ना जाएँगे।4क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया, और इस जगह को ग़ैरों के लिए ठहराया और इसमें ग़ैरमा'बूदों के लिए~ख़ुशबू~~जलायी~जिनको न वह, न उनके बाप-दादा, न यहूदाह के बादशाह जानते थे; और इस जगह को बेगुनाहों के ख़ून से भर दिया,5और बा'ल के लिए ऊँचे मक़ाम बनाए, ताकि अपने बेटों को बा'ल की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए आग में जलाएँ जो न मैंने फ़रमाया न उसका ज़िक्र किया, और न कभी यह मेरे ख़याल में आया।6इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि यह जगह न तूफ़त कहलाएगी और न बिनहिनूम की वादी, बल्कि वादी-ए-क़त्ल।7और इसी जगह मैं यहूदाह और यरुशलीम का मन्सूबा बर्बाद करूँगा और मैं ऐसा करूँगा कि वह अपने दुश्मनों के आगे और उनके हाथों से जो उनकी जान के तलबगार हैं, तलवार से क़त्ल होंगे; और मैं उनकी लाशें हवा के परिन्दों को और ज़मीन के दरिन्दों को खाने को दूँगा,8और मैं इस शहर को हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँगा; हर एक जो इधर से गुज़रे दंग होगा, और उसकी सब आफ़तों की वजह से सुस्कारेगा।9और मैं उनको उनके बेटों और उनकी बेटियों का गोश्त खिलाऊँगा, बल्कि हर एक दूसरे का गोश्त खाएगा, घिराव के वक़्त उस तंगी में जिससे उनके दुश्मन और उनकी जान के तलबगार उनको तंग करेंगे।'10"तब तू उस सुराही को उन लोगों के सामने जो तेरे साथ जाएँगे, तोड़ डालना11और उनसे कहना के 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि मैं इन लोगों और इस शहर को ऐसा तोडूंगा, जिस तरह कोई कुम्हार के बर्तन को तोड़ डाले जो फिर दुरुस्त नहीं हो सकता; और लोग तूफ़त में दफ़्न करेंगे, यहाँ तक कि दफ़्न करने की जगह न रहेगी।12मैं इस जगह और इसके बाशिन्दों से ऐसा ही करूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है चुनाँचे मैं इस शहर को तूफ़त की तरह कर दूँगा;13और यरुशलीम के घर और यहूदाह के बादशाहों के घर तूफ़त के मक़ाम की तरह नापाक हो जाएँगे; हाँ, वह सब घर जिनकी छतों पर उन्होंने तमाम अजराम-ए-फ़लक के लिए~ख़ुशबू जलायी और ग़ैरमा'बूदों के लिए तपावन~तपाए।' "14तब यरमियाह तूफ़त से, जहाँ ख़ुदावन्द ने उसे नबुव्वत करने को भेजा था वापस आया; और ख़ुदावन्द के घर के सहन में खड़ा होकर तमाम लोगों से कहने लगा,15रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं इस शहर पर और इसकी सब बस्तियों पर वह तमाम बला, जो मैं ने उस पर भेजने को कहा था लाऊँगा: इसलिए कि उन्होंने बहुत बग़ावत की ताकि मेरी बातों को न सुनें |"
1फ़शहूर-बिन-इम्मेर काहिन ने, जो ख़ुदावन्द के घर में सरदार नाज़िम था, यरमियाह को यह बातें नबुव्वत से कहते सुना।2तब फ़शहूर ने यरमियाह नबी को मारा और उसे उस काठ में डाला, जो बिनयमीन के बालाई फाटक में ख़ुदावन्द के घर में था।3और दूसरे दिन यूँ हुआ कि फ़शहूर ने यरमियाह को काठ से निकाला। तब यरमियाह ने उसे कहा, "ख़ुदावन्द ने तेरा नाम फ़शहूर नहीं, बल्कि मजूरमिस्साबीब रखा है।4क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं तुझ को तेरे लिए और तेरे सब दोस्तों के लिए दहशत का ज़रिया' बनाऊँगा; और वह अपने दुश्मनों की तलवार से क़त्ल होंगे और तेरी आँखे देखेंगी और मैं तमाम यहूदाह को शाह-ए-बाबुल के हवाले कर दूँगा, और वह उनको ग़ुलाम करके बाबुल में ले जाएगा और उनको तलवार से क़त्ल करेगा।5और मैं इस शहर की सारी दौलत और इसके तमाम महासिल और इसकी सब नफ़ीस चीज़ों को, और यहूदाह के बादशाहों के सब ख़ज़ानों को दे डालूँगा; हाँ, मैं उनको उनके दुश्मनों के हवाले कर दूँगा, जो उनको लूटेंगे और बाबुल को ले जाएँगे।6और ऐ फ़शहूर, तू और तेरा सारा घराना ग़ुलामी में जाओगे, और तू बाबुल में पहुँचेगा और वहाँ मरेगा और वहीं दफ़्न किया जाएगा ~तू और तेरे सब दोस्त जिनसे तूने झूटी~नबुव्वत की।"7ऐ ख़ुदावन्द, तूने मुझे तरग़ीब दी है और मैंने मान लिया; तू मुझसे तवाना था, और तू ग़ालिब आया। मैं दिन भर हँसी का ज़रिया' बनता हूँ, हर एक मेरी हँसी उड़ाता है।8क्यूँकि जब-जब मैं कलाम करता हूँ, ज़ोर से पुकारता हूँ, मैंने ग़ज़ब और हलाकत का 'ऐलान किया, क्यूँकि ख़ुदावन्द का कलाम दिन भर मेरी मलामत और हँसी का ज़रिया' होता है।9और अगर मैं कहूँ कि 'मैं उसका ज़िक्र न करूँगा, न फिर कभी उसके नाम से कलाम करूँगा," तो उसका कलाम मेरे दिल में जलती आग की तरह है जो मेरी हड्डियों में छिपा है, और मैं ज़ब्त करते करते थक गया और मुझसे रहा नहीं जाता।10क्यूँकि मैंने बहुतों की तोहमत सुनी। चारों तरफ़ दहशत है! "उसकी शिकायत करो! वह कहते हैं, हम उसकी शिकायत करेंगे," मेरे सब दोस्त मेरे ठोकर खाने के मुन्तज़िर हैं और कहते हैं, "शायद वह ठोकर खाए", तब हम उस पर ग़ालिब आएँगे और उससे बदला लेंगे।”11लेकिन ख़ुदावन्द बड़े बहादुर की तरह मेरी तरफ़ है, इसलिए मुझे सताने वालों ने ठोकर खाई और ग़ालिब न आए, वह बहुत शर्मिन्दा हुए इसलिए कि उन्होंने अपना मक़सद न पाया; उनकी शर्मिन्दगी हमेशा तक रहेगी, कभी फ़रामोश न होगी।12~इसलिए, ऐ रब्बउल-अफ़वाज, तू जो सादिक़ों को आज़माता और दिल-ओ-दिमाग़ को देखता है, उनसे बदला लेकर मुझे दिखा; इसलिए कि मैंने अपना दा'वा तुझ पर ज़ाहिर किया है।13ख़ुदावन्द की मदहसराई करो; ख़ुदावन्द की सिताइश करो! क्यूँकि उसने ग़रीब की जान को बदकिरदारों के हाथ से छुड़ाया है।14ला'नत उस दिन पर जिसमें मैं पैदा हुआ! वह दिन जिस में मेरी माँ ने मुझ को पैदा किया, हरगिज़ मुबारक न हो!15ला'नत उस आदमी पर जिसने मेरे बाप को ये कहकर ख़बर दी, "तेरे यहाँ बेटा पैदा हुआ," और उसे बहुत ख़ुश किया।16हाँ, वह आदमी उन शहरों की तरह हो, जिनको ख़ुदावन्द ने शिकस्त दी और अफ़सोस न किया; और वह सुबह को ख़ौफ़नाक शोर सुने और दोपहर के वक़्त बड़ी ललकार,17इसलिए कि उसने मुझे रिहम ही में क़त्ल न किया, कि मेरी माँ मेरी क़ब्र होती, और उसका रिहम हमेशा तक भरा रहता।18मैं पैदा ही क्यूँ हुआ कि मशक़्क़त और रंज देखूँ, और मेरे दिन रुस्वाई में कटें?
1~वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, जब सिदक़ियाह बादशाह ने फ़शहूर-बिन-मलकियाह और सफ़नियाह-बिन-मासियाह काहिन को उसके पास ये कहने को भेजा,2कि "हमारी ख़ातिर ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त कर क्यूँकि शाहे-ए-बाबुल नबूकदरज़र हमारे साथ लड़ाई करता है; शायद ख़ुदावन्द हम से अपने तमाम 'अजीब कामों के मुवाफ़िक़ ऐसा सुलूक करे कि वह हमारे पास से चला जाए।"3~तब यरमियाह ने उनसे कहा, "तुम सिदक़ियाह से यूँ कहना,4कि ~'ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं लड़ाई के हथियारों को जो तुम्हारे हाथ में हैं, जिनसे तुम शाह-ए-बाबुल और कसदियों के ख़िलाफ़ जो फ़सील के बाहर तुम्हारा घिराव किए हुए हैं लड़ते हो फेर दूँगा और मैं उनको इस शहर के बीच में इकट्ठे करूँगा;5और मैं आप अपने बढ़ाए हुए हाथ से और क़ुव्वत-ए-बाज़ू से तुम्हारे ख़िलाफ़ लड़ूँगा, हाँ, क़हर-ओ-ग़ज़ब से बल्कि ग़ज़बनाक ग़ुस्से से।6और मैं इस शहर के बाशिन्दों को, इन्सान और हैवान दोनों को मारूँगा, वह बड़ी वबा से फ़ना हो जाएँगे।7और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, फिर मैं शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह को और उसके मुलाज़िमों और 'आम लोगों को, जो इस शहर में वबा और तलवार और काल से बच जाएँगे, शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र और उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले करूँगा। और वह उनको हलाक करेगा; न उनको छोड़ेगा, न उन पर तरस खाएगा और न रहम करेगा।'8~'और तू इन लोगों से कहना ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं तुम को हयात की राह और मौत की राह दिखाता हूँ।9~जो कोई इस शहर में रहेगा, वह तलवार और काल और वबा से मरेगा, लेकिन जो निकलकर कसदियों में जो तुम को घेरे हुए हैं, चला जाएगा, वह जिएगा और उसकी जान उसके लिए ग़नीमत होगी।10~क्यूँकि मैंने इस शहर का रुख़ किया है कि इससे बुराई करूँ, और भलाई न करूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; वह शाह-ए-बाबुल के हवाले किया जाएगा और वह उसे आग से जलाएगा।11~'और शाह-ए-यहूदाह के ख़ान्दान के बारे में ख़ुदावन्द का कलाम सुनो,12~'ऐ दाऊद के घराने! ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम सवेरे उठ कर इन्साफ़ करो और मज़लूम को ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ, ऐसा तुम्हारे कामों की बुराई की वजह से मेरा क़हर आग की तरह भड़के, और ऐसा तेज़ हो कि कोई उसे ठंडा न कर सके।'13~ऐ वादी की बसनेवाली, ऐ मैदान की चट्टान पर रहने वाली, जो कहती है कि कौन हम पर हमला करेगा? या हमारे घरों में कौन आ घुसेगा?' ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ,14~और तुम्हारे कामों के फल के मुवाफ़िक़ मैं तुम को सज़ा दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं उसके बन में आग लगाऊँगा, जो उसके सारे 'इलाक़े को भसम करेगी।"
1~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "शाह-ए-यहूदाह के घर को जा, और वहाँ ये कलाम सुना2और कह, 'ऐ शाह-ए-यहूदाह जो दाऊद के तख़्त पर बैठा है, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, तू और तेरे मुलाज़िम और तेरे लोग जो इन दरवाज़ों से दाख़िल होते हैं।3~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: 'अदालत और सदाक़त के काम करो, और मज़लूम को ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ; और किसी से बदसुलूकी न करो, और मुसाफ़िर-ओ- यतीम और बेवा पर ज़ुल्म न करो, इस जगह बेगुनाह का ख़ून न बहाओ।4~क्यूँकि अगर तुम इस पर 'अमल करोगे, तो दाऊद के जानशीन बादशाह रथों पर और घोड़ों पर सवार होकर इस घर के फाटकों से दाख़िल होंगे, बादशाह और उसके मुलाज़िम और उसके लोग।5~लेकिन अगर तुम इन बातों को न सुनोगे, तो ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुझे अपनी ज़ात की क़सम यह~घर वीरान हो जाएगा6~क्यूँकि शाह-ए-यहूदाह के घराने के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगरचे तू मेरे लिए जिल'आद है और लुबनान की चोटी, तो भी मैं यक़ीनन तुझे उजाड़ दूंगा और ग़ैर-आबाद शहर बनाऊँगा।7~और मैं तेरे ख़िलाफ़ ग़ारतगरों को मुक़र्रर करूँगा ,हर एक को उसके हथियारों के साथ, और वह तेरे नफ़ीस देवदारों को काटेंगे और उनको आग में डालेंगे।8~और बहुत सी क़ौमें इस शहर की तरफ़ से गुज़रेंगी और उनमें से एक दूसरे से कहेगा कि 'ख़ुदावन्द ने इस बड़े शहर से ऐसा क्यूँ किया है?"9~तब वह जवाब देंगे, "इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद को छोड़ दिया और ग़ैरमा'बूदों की 'इबादत और परस्तिश की।' "10~मुर्दे पर न रो, न नौहा करो, मगर उस पर जो चला जाता है ज़ार-ज़ार नाला करो, क्यूँकि वह फिर न आएगा, न अपने वतन को देखेगा।11~क्यूँकि शाह-ए-यहूदाह सलूम-बिन-यूसियाह के बारे में जो अपने बाप यूसियाह का जानशीन हुआ और इस जगह से चला गया, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "वह फिर इस तरफ़ न आएगा;12~बल्कि वह उसी जगह मरेगा, जहाँ उसे ग़ुलाम करके ले गए हैं और इस मुल्क को फिर न देखेगा।"13~"उस पर अफ़सोस, जो अपने घर को बे-इन्साफ़ी से और अपने बालाख़ानों को ज़ुल्म से बनाता है; जो अपने पड़ोसी से बेगार लेता है, और उसकी मज़दूरी उसे नहीं देता;14~जो कहता है, 'मैं अपने लिए बड़ा मकान और हवादार बालाख़ाना बनाऊँगा," और वह अपने लिए इांझरियाँ बनाता है और देवदार की लकड़ी की छत लगाता हैं और उसे शंगर्फ़ी करता है।15~क्या तू इसीलिए सल्तनत करेगा कि तुझे देवदार के काम का शौक़ है? क्या तेरे बाप ने नहीं खाया-पिया और 'अदालत-ओ-सदाक़त नहीं की जिससे उसका भला हुआ?16~उसने ग़रीब और मुहताज का इन्साफ़ किया, इसी से उसका भला हुआ। क्या यही मेरा इरफ़ान न था? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।17लेकिन तेरी आँखें और तेरा दिल, सिर्फ़ लालच और बेगुनाह का ख़ून बहाने और ज़ुल्म-ओ-सितम पर लगे हैं।"18इसीलिए ख़ुदावन्द यहूयक़ीम शाह-ए-यहूदाह-बिन-यूसियाह के बारे में यूँ फ़रमाता है कि "उस पर 'हाय मेरे भाई! या हाय बहन!' कह कर मातम नहीं करेंगे, उसके लिए 'हाय आक़ा! या हाय मालिक!' कह कर नौहा नहीं करेंगे।19~उसका दफ़्न गधे के जैसा होगा, उसको घसीटकर यरुशलीम के फाटकों के बाहर फेंक देंगे।"20~"तू लुबनान पर चढ़ जा और चिल्ला, और बसन में अपनी आवाज़ बुलन्द कर; और 'अबारीम पर से फ़रियाद कर, क्यूँकि तेरे सब चाहने वाले मारे गए।21~मैंने तेरी इक़बालमन्दी के दिनों में तुझ से कलाम किया, लेकिन तूने कहा, 'मैं न सुनूँगी।' तेरी जवानी से तेरी यही चाल है कि तू मेरी आवाज़ को नहीं सुनती।22~एक आँधी तेरे चरवाहों को उड़ा ले जाएगी, और तेरे 'आशिक़ ग़ुलामी में जाएँगे; तब तू अपनी सारी शरारत के लिए शर्मसार और पशेमान होगी।23~ऐ लुबनान की बसनेवाली, जो अपना आशियाना देवदारों पर बनाती है, तू कैसी 'आजिज़ होगी, जब तू ज़च्चा की तरह पैदाइश के दर्द में मुब्तिला होगी ।"24~'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, अगरचे तू ऐ शाह-ए-यहूदाह कूनियाह-बिन-यहूयक़ीम मेरे दहने हाथ की अँगूठी होता, तो भी मैं तुझे निकाल फेंकता;25~और मैं तुझ को तेरे जानी दुश्मनों के जिनसे तू डरता है, या'नी शाह-ए-बाबुल नबुकदरज़र और कसदियों के हवाले करूँगा।26~हाँ, मैं तुझे और तेरी माँ को जिससे तू पैदा हुआ, ग़ैर मुल्क में जो तुम्हारी ज़ादबूम नहीं है, हाँक दूँगा और तुम वहीं मरोगे।27~जिस मुल्क में वह वापस आना चाहते हैं, हरगिज़ लौटकर न आएँगे।"28~क्या यह शख़्स कूनियाह, नाचीज़ टूटा बर्तन है या ऐसा बर्तन जिसे कोई नहीं पूछता? वह और उसकी औलाद क्यूँ निकाल दिए गए और ऐसे मुल्क में जिलावतन किए गए जिसे वह नहीं जानते?29~ऐ ज़मीन, ज़मीन, ज़मीन! ख़ुदावन्द का कलाम सुन!30~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "इस आदमी को बे-औलाद लिखो, जो अपने दिनों में इक़बालमन्दी का मुँह न देखेगा; क्यूँकि उसकी औलाद में से कभी कोई ऐसा इक़बालमन्द न होगा कि दाऊद के तख़्त पर बैठे और यहूदाह पर सल्तनत करे।"
1~ख़ुदावन्द फ़रमाता है: "उन चरवाहों पर अफ़सोस, जो मेरी चरागाह की भेड़ों को हलाक और तितर-बितर करते हैं!"2~इसलिए ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा उन चरवाहों की मुख़ालिफ़त में जो मेरे लोगों की चरवाही करते हैं, यूँ फ़रमाता है कि "तुमने मेरे गल्ले को तितर-बितर किया, और उनको हाँक कर निकाल दिया और निगहबानी नहीं की; देखो, मैं तुम्हारे कामों की बुराई तुम पर लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।3~लेकिन मैं उनको जो मेरे गल्ले से बच रहे हैं, तमाम मुमालिक से जहाँ-जहाँ मैंने~उनको हाँक दिया था जमा' कर लूँगा, और उनको फिर उनके गल्ला ख़ानों में~लाऊँगा,~और वह फैलेंगे और बढ़ेंगे।4और मैं उन पर ऐसे चौपान मुक़र्रर करूँगा जो उनको चराएँगे; और वह फिर न डरेंगे, न घबराएँगे, न गुम होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।5~"देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि: मैं दाऊद के लिए एक सादिक़ शाख़ पैदा करूँगा और उसकी बादशाही मुल्क में इक़बालमन्दी और 'अदालत और सदाक़त के साथ होगी।6~उसके दिनों में यहूदाह नजात पाएगा, और इस्राईल सलामती से सुकूनत करेगा; और उसका नाम यह रख्खा जाएगा, 'ख़ुदावन्द हमारी सदाक़त'।7~'इसी लिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि वह फिर न कहेंगे, "ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम, जो बनी-इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया,"8~बल्कि, "ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम, जो इस्राईल के घराने की औलाद को उत्तर की सरज़मीन से, और उन सब ममलुकतों से जहाँ-जहाँ मैंने उनको हाँक दिया था निकाल लाया," और वह अपने मुल्क में बसेंगे।"9~नबियों के बारे में: मेरा दिल मेरे अन्दर टूट गया, मेरी सब हड्डियाँ थरथराती हैं; ख़ुदावन्द और उसके पाक कलाम की वजह से मैं मतवाला सा हूँ, और उस शख़्स की तरह जो मय से मग़लूब हो।10~यक़ीनन ज़मीन बदकारों से भरी है; ला'नत की वजह से ज़मीन मातम करती है मैदान की चारागाहें सूख गयीं क्यूँकि उनके चाल चलन बुरे और उनका ज़ोर नाहक़ है।11~कि "नबी और काहिन, दोनों नापाक हैं, हाँ, मैंने अपने घर के अन्दर उनकी शरारत देखी, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।12~इसलिए उनकी राह उनके हक़ में ऐसी होगी, जैसे तारीकी में फिसलनी जगह, वह उसमे दौड़ाये जायेंगे और वहां गिरेंगे ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं उन पर बला लाऊँगा, या'नी उनकी सज़ा का साल।13और मैंने सामरिया के नबियों में हिमाक़त देखी है: उन्होंने बा'ल के नाम से नबुव्वत की और मेरी क़ौम इस्राईल को गुमराह किया।14~मैंने यरुशलीम के नबियों में भी एक हौलनाक बात देखी: वह ज़िनाकार, झूठ के पैरौ और बदकारों के हामी हैं, यहाँ तक कि कोई अपनी शरारत से बाज़ नहीं आता; वह सब मेरे नज़दीक सदूम की तरह और उसके बाशिन्दे 'अमूरा की तरह हैं।"15~इसीलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, नबियों के बारे में यूँ फ़रमाता है कि: "देख, मैं उनको नागदौना खिलाऊँगा और इन्द्रायन का पानी पिलाऊँगा; क्यूँकि यरुशलीम के नबियों ही से तमाम मुल्क में बेदीनी फैली है।"16~रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "उन नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से नबुव्वत करते हैं, वह तुम को बेकार की ता'लीम देते हैं, वह अपने दिलों के इल्हाम बयान करते हैं, न कि ख़ुदावन्द के मुँह की बातें।17~वह मुझे हक़ीर जाननेवालों से कहते रहते हैं, 'ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है कि: तुम्हारी सलामती होगी;" और हर एक से जो अपने दिल की सख़्ती पर चलता है, कहते हैं कि 'तुझ पर कोई बला न आएगी।' "18लेकिन उनमें से कौन ख़ुदावन्द की मजलिस में शामिल हुआ कि उसका कलाम सुने और समझे? किसने उसके कलाम की तरफ़ तवज्जुह की और उस पर कान लगाया?19~देख, ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से का तूफ़ान जारी हुआ है, बल्कि तूफ़ान का बगोला शरीरों के सिर पर टूट पड़ेगा।20~ख़ुदावन्द का ग़ज़ब फिर ख़त्म न होगा, जब तक उसे अंजाम तक न पहुँचाए और उसके दिल के इरादे को पूरा न करे। तुम आने वाले दिनों में उसे बख़ूबी मा'लूम करोगे।21'मैंने इन नबियों को नहीं भेजा, लेकिन ये दौड़ते फिरे; मैंने इनसे कलाम नहीं किया, लेकिन इन्होंने नबुव्वत की।22लेकिन अगर वह मेरी मजलिस में शामिल होते, तो मेरी बातें मेरे लोगों को सुनाते; और उनको उनकी बुरी राह से और उनके कामों की बुराई से बाज़ रखते।23~"ख़ुदावन्द फ़रमाता है: क्या मैं नज़दीक ही का ख़ुदा हूँ और दूर का ख़ुदा नहीं?24क्या कोई आदमी पोशीदा जगहों में छिप सकता है कि मैं उसे न देखूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है। क्या ज़मीन-ओ-आसमान मुझसे मा'मूर नहीं हैं? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।25~मैंने सुना जो नबियों ने कहा, जो मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते और कहते हैं कि 'मैंने ख़्वाब देखा, मैने ख़्वाब देखा!'26~कब तक ये नबियों के दिल में रहेगा कि झूटी नबुव्वत करें? हाँ, वह अपने दिल की फ़रेबकारी के नबी हैं।27जो गुमान रखते हैं कि अपने ख़्वाबों से, जो उनमें से हर एक अपने पड़ोसी से बयान करता है, मेरे लोगों को मेरा नाम भुला दें, जिस तरह उनके बाप-दादा बा'ल की वजह से मेरा नाम भूल गए थे।28~जिस नबी के पास ख़्वाब है, वह ख़्वाब बयान करे; और जिसके पास मेरा कलाम है, वह मेरे कलाम को दियानतदारी से सुनाए। गेहूँ को भूसे से क्या निस्बत? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।29~क्या मेरा कलाम आग की तरह नहीं है? ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और हथौड़े की तरह जो चट्टान को चकनाचूर कर डालता है?30इसलिए देख, मैं उन नबियों का मुख़ालिफ़ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जो एक दूसरे से मेरी बातें चुराते हैं।31~देख, मैं उन नबियों का मुख़ालिफ़ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जो अपनी ज़बान को इस्ते'माल करते हैं और कहते हैं कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है।'32~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, मैं उनका मुख़ालिफ़ हूँ जो झूटे ख़्वाबों को नबुव्वत कहते और बयान करते हैं और अपनी झूटी बातों से और बकवास से मेरे लोगों को गुमराह करते हैं; लेकिन मैंने न उनको भेजा न हुक्म दिया; इसलिए इन लोगों को उनसे हरगिज़ फ़ायदा न होगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।33~"और जब यह लोग या नबी या काहिन तुझ से पूछे कि 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत क्या है?' तब तू उनसे कहना, 'कौन सा बार-ए-नबुव्वत! ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुम को फेंक दूँगा।"34और नबी और काहिन और लोगों में से जो कोई कहे, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत, "मैं उस शख़्स को और उसके घराने को सज़ा दूँगा।35~चाहिए कि हर एक अपने पड़ोसी और अपने भाई से यूँ कहे कि 'ख़ुदावन्द ने क्या जवाब दिया?' और 'ख़ुदावन्द ने क्या फ़रमाया है?"36~लेकिन ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत का ज़िक्र तुम कभी न करना; इसलिए कि हर एक आदमी की अपनी ही बातें उस पर बार होंगी, क्यूँकि तुम ने ज़िन्दा ख़ुदा रब्ब-उलअफ़वाज, हमारे ख़ुदा के कलाम को बिगाड़ डाला है।37~तू नबी से यूँ कहना कि 'ख़ुदावन्द ने तुझे क्या जवाब दिया?' और 'ख़ुदावन्द ने क्या फ़रमाया?'38लेकिन चूँकि तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुवत;" इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुम कहते हो, ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत, और मैंने तुम को कहला भेजा, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत न कहो;"39इसलिए देखो, मैं तुम को बिल्कुल फ़रामोश कर दूँगा और तुमको और इस शहर को, जो मैंने तुम को और तुम्हारे बाप दादा को दिया, अपनी नज़र से दूर कर दूँगा।40~और मैं तुमको हमेशा की मलामत का निशाना बनाऊँगा, और हमेशा की शर्मिंदगी तुम पर लाऊँगा जो कभी फ़रामोश न होगी।"
1~जब शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र शाह-ए- यहूदाह यकूनियाह-बिन-यहूयक़ीम को और यहूदाह के हाकिम को, कारीगरों और लुहारों के साथ यरुशलीम से ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया, तो ख़ुदावन्द ने मुझ पर नुमायाँ किया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द की हैकल के सामने अंजीर की दो टोकरियाँ धरी थीं।2~एक टोकरी में अच्छे से अच्छे अंजीर थे, उनकी तरह जो पहले पकते हैं; और दूसरी टोकरी में बहुत ख़राब अंजीर थे, ऐसे ख़राब कि खाने के क़ाबिल न थे।3और ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, "ऐ यरमियाह! तू क्या देखता है?" और मैंने 'अर्ज़ की, अंजीर अच्छे अंजीर बहुत अच्छे और ख़राब अंजीर बहुत ख़राब, ऐसे ख़राब कि खाने के क़ाबिल नहीं।"4~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ कि:5"ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: इन अच्छे अंजीरों की तरह मैं यहूदाह के उन ग़ुलामों पर जिनको मैंने इस मक़ाम से कसदियों के मुल्क में भेजा है, करम की नज़र रखूँगा।6~क्यूँकि उन पर मेरी नज़र-ए-'इनायत होगी, और मैं उनको इस मुल्क में वापस लाऊँगा, और मैं उनको बर्बाद नहीं बल्कि आबाद करूँगा; मैं उनको लगाऊँगा और उखाड़ूँगा नहीं।7~और मैं उनको ऐसा दिल दूँगा कि मुझे पहचानें कि मैं ख़ुदावन्द हूँ! और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा, इसलिए कि वह पूरे दिल से मेरी तरफ़ फिरेंगे।8"लेकिन उन ख़राब अंजीरों के बारे में, जो ऐसे ख़राब हैं कि खाने के क़ाबिल नहीं; ख़ुदावन्द यक़ीनन यूँ फ़रमाता है कि इसी तरह मैं शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह को, और उसके हाकिम को, और यरुशलीम के बाक़ी लोगों को, जो इस मुल्क में बच रहे हैं और जो मुल्क-ए-मिस्र में बसते हैं, छोड़ दूँगा।9~हाँ, मैं उनको छोड़ दूँगा कि दुनिया की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरें, ताकि वह हर एक जगह में जहाँ-जहाँ मैं उनको हॉक दूँगा, मलामत और मसल और तान और ला'नत का ज़रिया' हों।10और मैं उनमें तलवार और काल और वबा भेजूँगा यहाँ तक कि वह उस मुल्क से जो मैंने उनको और उनके बाप-दादा को दिया, हलाक हो जाएँगे।"
1~वह कलाम जो शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह के चौथे बरस में, जो शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र का पहला बरस था, यहूदाह के सब लोगों के बारे में यरमियाह पर नाज़िल हुआ;2जो यरमियाह नबी ने यहूदाह के सब लोगों और यरुशलीम के सब बाशिन्दों को सुनाया, और कहा,3कि "शाह-ए- यहूदाह यूसियाह-बिन-अमून के तेरहवें बरस से आज तक यह तेईस बरस ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल होता रहा, और मैं तुम को सुनाता और सही वक़्त पर" जताता रहा पर तुम ने न सुना।4~और ख़ुदावन्द ने अपने सब ख़िदमतगुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, उसने उनको~सही वक़्त पर~भेजा, लेकिन तुम ने न सुना और न~कान लगाया;5उन्होंने कहा, 'तुम सब अपनी-अपनी बुरी राह से, और अपने बुरे कामों से बाज़ आओ, और उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द ने तुम को और तुम्हारे बाप-दादा को पहले से हमेशा के लिए दिया है, बसो;6~और ग़ैर मा'बूदों की पैरवी न करो कि उनकी 'इबादत-ओ-परस्तिश करो, और अपने हाथों के कामों से मुझे ग़ज़बनाक न करो; और मैं तुम को कुछ नुक़सान न पहुँचाऊँगा।'7~लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तुम ने मेरी न सुनी; ताकि अपने हाथों के कामों से अपने ज़ियान के लिए मुझे ग़ज़बनाक करो।8~'इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुम ने मेरी बात न सुनी,9~देखो, मैं तमाम उत्तरी क़बीलों को और अपने ख़िदमत गुज़ार शाह-ए-बाबुल नाबूकदरज़र को बुला भेजूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं उनको इस मुल्क और इसके बाशिन्दों पर, और उन सब क़ौमों पर जो आस-पास हैं चढ़ा लाऊँगा; और इनको बिल्कुल हलाक-ओ-बर्बाद कर दूँगा और इनको हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँगा और हमेशा के लिए वीरान करूँगा।10~बल्कि मैं इनमें से ख़ुशी-ओ-शादमानी की आवाज़ दूल्हे और दूल्हन की आवाज़, चक्की की आवाज़ और चराग़ की रोशनी ख़त्म कर दूँगा।11और यह सारी सरज़मीन वीरान और हैरानी का ज़रिया' हो जाएगी, और यह क़ौमें सत्तर बरस तक शाह-ए-बाबुल की ग़ुलामी करेंगी।12~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब सत्तर बरस पूरे होंगे, तो मैं शाह-ए-बाबुल को और उस क़ौम को और कसदियों के मुल्क को, उनकी बदकिरदारी की वजह से सज़ा दूँगा; और मैं उसे ऐसा उजाड़ूँगा कि हमेशा तक वीरान रहे।13~और मैं उस मुल्क पर अपनी सब बातें जो मैंने उसके बारे में कहीं, या'नी वह सब जो इस किताब में लिखी हैं, जो यरमियाह ने नबुव्वत करके सब क़ौमों को कह सुनाई, पूरी करूँगा14~कि उनसे, हाँ, उन्हीं से बहुत सी क़ौमें और बड़े-बड़े बादशाह ग़ुलाम के जैसी ख़िदमत लेंगे; तब मैं उनके आ'माल के मुताबिक़ और उनके हाथों के कामों के मुताबिक़ उनको बदला दूँगा।"15चूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने मुझे फ़रमाया, "ग़ज़ब की मय का यह प्याला मेरे हाथ से ले और उन सब क़ौमों को जिनके पास मैं तुझे भेजता हूँ, पिला,16~कि वह पिएँ और लड़खड़ाएँ, और उस तलवार की वजह से जो मैं उनके बीच चलाऊँगा बेहवास हों।'17~इसलिए मैंने ख़ुदावन्द के हाथ से वह प्याला लिया, और उन सब क़ौमों को जिनके पास ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा था पिलाया;18~या'नी यरुशलीम और यहूदाह के शहरों को और उसके बादशाहों और हाकिम को, ताकि वह बर्बाद हों और हैरानी और सुस्कार और ला'नत का ज़रिया' ठहरें, जैसे अब हैं;19~शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन को, और उसके मुलाज़िमों और उसके हाकिम और उसके सब लोगों को;20और सब मिले-जुले लोगों, और 'ऊज़ की ज़मीन के सब बादशाहों और फ़िलिस्तियों की सरज़मीन के सब बादशाहों, और अश्क़लोंन और ग़ज़्ज़ा और अक्रून और अश्दूद के बाक़ी लोगों को;21~अदोम और मोआब और बनी 'अम्मोन को;22और सूर के सब बादशाहों, और सैदा के सब बादशाहों, और समन्दर पार के बहरी मुल्कों के बादशाहों को;23~ददान और तैमा और बूज़, और उन सब को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं;24~और 'अरब के सब बादशाहों, और उन मिले-जुले लोगों के सब बादशाहों को जो वीराने में बसते हैं;25~और ज़िमरी के सब बादशाहों और 'ऐलाम के सब बादशाहों और मादै के सब बादशाहों को;26~और उत्तर के सब बादशाहों को जो नज़दीक और जो दूर हैं, एक दूसरे के साथ, और दुनिया की सब सल्तनतों को जो इस ज़मीन पर हैं; और उनके बा'द शेशक" का बादशाह पिएगा।27~"और तू उनसे कहेगा कि 'इस्राईल का ख़ुदा, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि तुम पियो और मस्त हो और तय करो, और गिर पड़ो और फिर न उठो, उस तलवार की वजह से जो मैं तुम्हारे बीच भेजूँगा।28~"और यूँ होगा कि अगर वह पीने को तेरे हाथ से प्याला लेने से इन्कार करें, तो उनसे कहना कि रब्ब-उल-अफ्वाज़ यूँ फ़रमाता है कि: यक़ीनन तुम को पीना होगा।29~क्यूँकि~देख, मैं इस शहर पर जो मेरे नाम से कहलाता है आफ़त लाना शुरू' करता हूँ और क्या तुम साफ़ बेसज़ा छूट जाओगे? तुम बेसज़ा न छूटोगे, क्यूँकि मैं ज़मीन के सब बाशिन्दों पर तलवार को तलब करता हूँ, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।"30~इसलिए तू यह सब बातें उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत से बयान कर, और उनसे कह दे कि: 'ख़ुदावन्द बुलन्दी पर से गरजेगा और अपने पाक मकान से ललकारेगा, वह बड़े ज़ोर-ओ-शोर से अपनी चरागाह पर गरजेगा; अंगूर लताड़ने वालों की तरह वह ज़मीन के सब बाशिन्दों को ललकारेगा।31~एक ग़ौग़ा जमीन की शरहदों तक पहुँचा है क्यूँकि ख़ुदावन्द क़ौमों से झगड़ेगा, वह तमाम बशर को 'अदालत में लाएगा, वह शरीरों को तलवार के हवाले करेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"32~'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: देख, क़ौम से क़ौम तक बला नाज़िल होगी, और ज़मीन की सरहदों से एक सख़्त तूफ़ान खड़ा होगा।33~और ख़ुदावन्द के मक़्तूल उस रोज़ ज़मीन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पड़े होंगे; उन पर कोई नौहा न करेगा, न वह जमा' किए जाएँगे, न दफ़्न होंगे; वह खाद की~तरह इस ज़मीन पर पड़े रहेंगे।34~ऐ चरवाहो, वावैला करो और चिल्लाओ; और ऐ गल्ले के सरदारों, तुम ख़ुद राख में लेट जाओ, क्यूँकि तुम्हारे क़त्ल के दिन आ पहुँचे हैं। मैं तुम को चकनाचूर करूँगा, तुम नफ़ीस बर्तन की तरह गिर जाओगे।35~और न चरवाहों को भागने की कोई राह मिलेगी, न गल्ले के सरदारों को बच निकलने की।36~चरवाहों की फ़रियाद की आवाज़ और गल्ले के सरदारों का नौहा है; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनकी चरागाह को बर्बाद किया है,37~और सलामती के भेड़ ख़ाने ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से से बर्बाद हो गए।38~वह जवान शेर की तरह अपनी कमीनगाह से निकला है; यक़ीनन सितमगर के ज़ुल्म से और उसके क़हर की शिद्दत से उनका मुल्क वीरान हो गया।”
1~ शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह की बादशाही के शुरू' में यह कलाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से नाज़िल हुआ,2कि "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तू ख़ुदावन्द के घर के सहन में खड़ा हो, और यहूदाह के सब शहरों के लोगों से जो ख़ुदावन्द के घर में सिज्दा करने को आते हैं, वह सब बातें जिनका मैंने तुझे हुक्म दिया है कि उनसे कहे, कह दे; एक लफ़्ज़ भी कम न कर।3~शायद वह सुने और हर एक अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, और मैं भी उस 'अज़ाब को जो उनकी बद'आमाली की वजह से उन पर लाना चाहता हूँ, बाज़ रखूँ।4और तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: अगर तुम मेरी न सुनोगे कि मेरी शरी'अत पर, जो मैंने तुम्हारे सामने रखी 'अमल करो,5~और मेरे ख़िदमतगुज़ार नबियों की बातें सुनो जिनको मैंने तुम्हारे पास भेजा मैंने उनको सही वक़्त पर" भेजा, लेकिन तुम ने न सुना;6तो मैं~इस घर को सैला कि तरह कर डालूँगा, और इस शहर को ज़मीन की सब क़ौमों के नज़दीक ला'नत का ज़रिया' ठहराऊँगा।' "7~चुनाँचे काहिनों और नबियों और सब लोगों ने यरमियाह को ख़ुदावन्द के घर में यह बातें कहते सुना।8और यूँ हुआ कि जब यरमियाह वह सब बातें कह चुका जो ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया था कि सब लोगों से कहे, तो काहिनों और नबियों और सब लोगों ने उसे पकड़ा और कहा कि तू यक़ीनन क़त्ल किया जाएगा!9~तू ने क्यूँ ख़ुदावन्द का नाम लेकर नबुव्वत की और कहा, 'यह घर सैला की तरह होगा, और यह शहर वीरान और ग़ैरआबाद होगा'?" और सब लोग ख़ुदावन्द के घर में यरमियाह के पास जमा' हुए।10~और यहूदाह के हाकिम यह बातें सुनकर बादशाह के घर से ख़ुदावन्द के घर में आए, और ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर बैठे।11~और काहिनों और नबियों ने हाकिम से और सब लोगों से मुख़ातिब होकर कहा कि यह शख़्स वाजिब-उल-क़त्ल है क्यूँकि इसने इस शहर के ख़िलाफ़ नबुव्वत की है, जैसा कि तुम ने अपने कानों से सुना।"12~तब यरमियाह ने सब हाकिम और तमाम लोगों से मुख़ातिब होकर कहा कि "ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा कि इस घर और इस शहर के ख़िलाफ़ वह सब बातें जो तुम ने सुनी हैं, नबुव्वत से कहूँ।13~इसलिए अब तुम अपने चाल चलन और अपने आ'माल को दुरूस्त करो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ को सुनो, ताकि ख़ुदावन्द उस 'अज़ाब से जिसका तुम्हारे ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है बाज़ रहे।14~और देखो, मैं तो तुम्हारे क़ाबू में हूँ जो कुछ तुम्हारी~नज़र में ख़ूब-ओ-रास्त हो मुझसे करो।15~लेकिन यक़ीन जानो कि अगर तुम मुझे क़त्ल करोगे, तो बेगुनाह का ख़ून अपने आप पर और इस शहर पर और इसके बाशिन्दों पर लाओगे; क्यूँकि हक़ीक़त में ख़ुदावन्द ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है कि तुम्हारे कानों में ये सब बातें कहूँ।"16~तब हाकिम और सब लोगों ने काहिनों और नबियों से कहा, "यह शख़्स वाजिब-उल-क़त्ल नहीं क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के नाम से हम से कलाम किया।"17~तब मुल्क के चंद बुज़ुर्ग उठे और कुल जमा'अत से मुख़ातिब होकर कहने लगे,18कि "मीकाह मोरश्ती ने शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह के दिनों में नबुव्वत की, और यहूदाह के सब लोगों से मुख़ातिब होकर यूँ कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: सिय्यून खेत की तरह जोता जाएगा और यरुशलीम खण्डर हो जाएगा, और इस घर का पहाड़ जंगल की ऊँची जगहों की तरह होगा।'19~क्या शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह और तमाम यहूदाह ने उसको क़त्ल किया? क्या वह ख़ुदावन्द से न डरा, और ख़ुदावन्द से मुनाजात न की? और ख़ुदावन्द ने उस 'अज़ाब को जिसका उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया था, बाज़ न रख्खा? तब यूँ हम अपनी जानों पर बड़ी आफ़त लाएँगे।”20~फिर एक और शख़्स ने ख़ुदावन्द के नाम से नबुवत की, या'नी ऊरियाह-बिनसमा'याह ने जो करयत या'रीम का था; उसने इस शहर और मुल्क के ख़िलाफ़ यरमियाह की सब बातों के मुताबिक़ नबुव्वत की;21और जब यहूयक़ीम बादशाह और उसके सब जंगी मर्दों और हाकिम ने उसकी बातें सुनीं,~तो बादशाह ने उसे क़त्ल करना चाहा; लेकिन ऊरियाह यह सुनकर डरा और मिस्र को भाग गया।22और यहूयक़ीम बादशाह ने चंद आदमियों या'नी इलनातन-बिन-'अक्बूर और उसके साथ कुछ और आदमियों को मिस्र में भेजा:23और वह ऊरियाह को मिस्र से निकाल लाए, और उसे यहूयक़ीम बादशाह के पास पहुँचाया; और उसने उसको तलवार से क़त्ल किया और उसकी लाश को 'अवाम के क़ब्रिस्तान में फिकवा दिया।24लेकिन अख़ीक़ाम-बिन-साफ़न यरमियाह का दस्तगीर था, ताकि वह क़त्ल होने के लिए लोगों के हवाले न किया जाए।
1शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह-बिन-यूसियाह~की सल्तनत के शुरू' में ख़ुदावन्द की तरफ़ से यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ,2~कि ख़ुदावन्द ने मुझे यूँ फ़रमाया कि: "बन्धन और जुए बनाकर अपनी गर्दन पर डाल,3~और उनको शाह-ए-अदोम, शाह-ए-मोआब, शाह-ए-बनी 'अम्मोन, शाह-ए-सूर और शाह-ए-सैदा के पास उन क़ासिदों के हाथ भेज, जो यरुशलीम में शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह के पास आए हैं;4और तू उनको उनके आक़ाओं के वास्ते ताकीद कर, 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम अपने आक़ाओं से यूँ कहना5~कि मैंने ज़मीन को और इन्सान-ओ-हैवान को जो इस ज़मीन पर हैं, अपनी बड़ी क़ुदरत और बलन्द बाज़ू से पैदा किया; और उनको जिसे मैंने मुनासिब जाना बख़्शा6~और अब मैंने यह सब ममलुकतें अपने ख़िदमत गुज़ार शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र के क़ब्ज़े में कर दी हैं, और मैदान के जानवर भी उसे दिए, कि उसके काम आएँ।7~और सब क़ौमें उसकी और उसके बेटे और उसके पोते की ख़िदमत करेंगी, जब तक कि उसकी ममलुकत का वक़्त न आए; तब बहुत सी क़ौमें और बड़े-बड़े बादशाह उससे ख़िदमत करवाएँगे।8~ ख़ुदावन्द फ़रमाता है: जो क़ौम और जो सल्तनत उसकी, या'नी शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र की ख़िदमत न करेगी और अपनी गर्दन शाह-ए-बाबुल के जूए तले न झूकाएगी, उस क़ौम को मैं तलवार और काल और वबा से सज़ा दूँगा, यहाँ तक कि मैं उसके हाथ से उनको हलाक कर डालूँगा।9~इसलिए तुम अपने नबियों और ग़ैबदानो और ख्व़ाबबीनों और शगूनियों और जादूगरों की न सुनो, जो तुम से कहते हैं कि तुम शाह-ए-बाबुल की ख़िदमतगुज़ारी न करोगे।10क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, ताकि तुम को तुम्हारे मुल्क से आवारा करें, और मैं तुम को निकाल दूँ और तुम हलाक हो जाओ।11~लेकिन जो क़ौम अपनी गर्दन शाह-ए-बाबुल के जूए तले रख देगी और उसकी ख़िदमत करेगी, उसको मैं उसकी ममलुकत में रहने दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और वह उसमें खेती करेगी और उसमें बसेगी।' "12~इन सब बातों के मुताबिक़ मैंने शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह से कलाम किया और कहा कि "अपनी गर्दन शाह-ए-बाबुल के जूए तले रख कर उसकी और उसकी क़ौम की ख़िदमत करो और ज़िन्दा रहो।13~तू और तेरे लोग तलवार और काल और वबा से क्यूँ मरोगे, जैसा कि ख़ुदावन्द ने उस क़ौम के बारे में फ़रमाया है, जो शाह-ए-बाबुल की ख़िदमत न करेगी?14~और उन नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से कहते हैं कि तुम शाह-ए-बाबुल की ख़िदमत न करोगे; क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं।15~क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैंने उनकों नहीं भेजा , लेकिन वह मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते हैं; ताकि मैं तुम को निकाल दूँ और तुम उन नबियों के साथ जो तुम से नबुव्वत करते हैं हलाक हो जाओ।"16मैंने काहिनों से और उन सब लोगों से भी मुख़ातिब होकर कहा, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: अपने नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से नबुव्वत करते और कहते हैं कि 'देखो, ख़ुदावन्द के घर के बर्तन अब थोड़ी ही देर में बाबुल से वापस आ जाएँगे," क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं।17~उनकी न सुनो, शाह-ए-बाबुल की ख़िदमतगुज़ारी करो और ज़िन्दा रहो; यह शहर क्यूँ वीरान हो?18~लेकिन अगर वह नबी हैं, और ख़ुदावन्द का कलाम उनकी अमानत में है, तो वह रब्ब-उल-अफ़वाज से शफ़ा'अत करें, ताकि वह बर्तन जो ख़ुदावन्द के घर में और शाह-ए- यहूदाह के घर में और यरुशलीम में बाक़ी हैं, बाबुल को न जाएँ।19क्यूँकि सुतूनों के बारे में और बड़े हौज़ और कुर्सियों और बर्तनों के बारे में जो इस शहर में बाक़ी हैं, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है,20~या'नी जिनको शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र नहीं ले गया, जब वह यहूदाह के बादशाह यकूनियाह-बिन-यहूयक़ीम को यरुशलीम से, और यहूदाह और यरुशलीम के सब शुरफ़ा को ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया;21~हाँ, रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, उन बर्तनों के बारे में जो ख़ुदावन्द के घर में और शाह-ए-यहूदाह के महल में और यरुशलीम में बाक़ी हैं, यूँ फ़रमाता है22कि वह बाबुल में पहुँचाए जाएँगे; और उस दिन तक कि मैं उनको याद फ़रमाऊँ वहाँ रहेंगे ,ख़ुदावन्द ~फ़रमाता है उस वक़्त मैं उनको उठा लाऊँगा और फिर इस मकान में रख दूँगा।"
1और उसी साल शाह-ए-यहूदाह सिद्क़ियाह ~की सल्तनत के शुरू' में, चौथे बरस के पाँचवें महीने में, यूँ हुआ कि जिबा'ऊनी 'अज़्जूर के बेटे हननियाह नबी ने ख़ुदावन्द के घर में काहिनों और सब लोगों के सामने मुझसे मुख़ातिब होकर कहा,2~'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: मैंने शाह-ए-बाबुल का जुआ तोड़ डाला है,3~दो ही बरस के अन्दर मैं ख़ुदावन्द के घर के सब बर्तन, जो शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र इस मकान से बाबुल को ले गया, इसी मकान में वापस लाऊँगा।4शाह-ए-यहूदाह यकूनियाह-बिन-यहूयक़ीम को और यहूदाह के सब ग़ुलामों को जो बाबुल को गए थे, फिर इसी जगह लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि मैं शाह-ए-बाबुल के जूए को तोड़ डालूँगा।"5~तब यरमियाह नबी ने काहिनों और सब लोगों के सामने, जो ख़ुदावन्द के घर में खड़े थे, हननियाह नबी से कहा,6~"हाँ," यरमियाह नबी ने कहा, "आमीन! ख़ुदावन्द ऐसा ही करे, ख़ुदावन्द तेरी बातों को जो तू ने नबुव्वत से कहीं, पूरा करे कि ख़ुदावन्द के घर के बर्तनों को और सब ग़ुलामों को बाबुल से इस मकान में वापस लाए।7~तो भी अब यह बात जो मैं तेरे और सब लोगों के कानों में कहता हूँ सुन;8~उन नबियों ने जो मुझसे और तुझ से पहले गुज़रे ज़माने में थे, बहुत से मुल्कों और बड़ी-बड़ी सल्तनतों के हक़ में, जंग और बला और वबा की नबुव्वत की है।9~वह नबी जो सलामती की ख़बर देता है, जब उस नबी का कलाम पूरा हो जाए तो मा'लूम होगा कि हक़ीक़त में ख़ुदावन्द ने उसे भेजा है।”10~तब हननियाह नबी ने यरमियाह नबी की गर्दन पर से जुआ उतारा और उसे तोड़ डाला;11~और हननियाह ने सब लोगों के सामने इस तरह कलाम किया, "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: मैं इसी तरह शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र का जुआ सब क़ौमों की गर्दन पर से, दो ही बरस के अन्दर तोड़ डालूँगा।" तब यरमियाह नबी ने अपनी राह ली।12जब हननियाह नबी यरमियाह नबी की गर्दन पर से जुआ तोड़ चुका था, तो ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:13~कि "जा, और हननियाह से कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तूने लकड़ी के जुओं को तो तोड़ा, लेकिन उनके बदले में लोहे के जूए बना दिए।14~क्यूँकि रब्ब-उलअफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मैंने इन सब क़ौमों की गर्दन पर लोहे का जुआ डाल दिया है, ताकि वह शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र की ख़िदमत करें; तब वह उसकी ख़िदमतगुज़ारी करेंगी, और मैंने मैदान के जानवर भी उसे दे दिए हैं।' "15~तब यरमियाह नबी ने हननियाह नबी से कहा, "ऐ हननियाह, अब सुन; ख़ुदावन्द ने तुझे नहीं भेजा, लेकिन तू इन लोगों को झूटी उम्मीद दिलाता है।16इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "देख, मैं तुझे इस ज़मीन पर से निकाल दूँगा; तू इसी साल मर जाएगा क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ फ़ितनाअंगेज़ बातें कही हैं।' "17~चुनाँचे उसी साल के सातवें महीने हननियाह नबी मर~गया।
1अब यह उस ख़त की बातें हैं जो यरमियाह नबी ने यरुशलीम से, बाक़ी बुज़ुर्गों को जो ग़ुलाम हो गए थे, और काहिनों और नबियों और उन सब लोगों को जिनको नबूकदनज़र यरुशलीम से ग़ुलाम करके बाबुल ले गया था2(उसके बा'द के यकूनियाह बादशाह और उसकी वालिदा और ख़्वाजासरा और यहूदाह और यरुशलीम के हाकिम और कारीगर और लुहार यरुशलीम से चले गए थे)3~अल'आसा-बिन-साफ़न और जमरियाह-बिन-ख़िलक़ियाह के हाथ (जिनको शाह-ए- यहूदाह सिदक़ियाह ने बाबुल में शाह-ए-बाबुल नबूकदनज़र के पास भेजा) इरसाल किया और उसने कहा,4'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, उन सब ग़ुलामों से जिनको मैंने यरुशलीम से ग़ुलाम करवा कर बाबुल भेजा है, यूँ फ़रमाता है:5~तुम घर बनाओ और~उन में बसों ,और बाग़ लगाओ और उनके~फल खाओ,6~बीवियाँ करो ताकि तुम से बेटे-बेटियाँ पैदा हों, और अपने बेटों के लिए बीवियाँ लो और अपनी बेटियाँ शौहरों को दो ताकि उनसे बेटे-बेटियाँ पैदा हों, और तुम वहाँ फलो-फूलो और कम न हो।7और उस शहर की ख़ैर मनाओ, जिसमें मैंने तुम को ग़ुलाम करवा कर भेजा है, और उसके लिए ख़ुदावन्द से दु'आ करो; क्यूँकि उसकी सलामती में तुम्हारी सलामती होगी।8क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: वह नबी जो तुम्हारे बीच हैं और तुम्हारे ग़ैबदान तुम को गुमराह न करें, और अपने ख़्वाबबीनों को, जो तुम्हारे ही कहने से ख़्वाब देखते हैं न मानो;9क्यूँकि वह मेरा नाम लेकर तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, मैंने उनको नहीं भेजा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।10"क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जब बाबुल में सत्तर बरस गुज़र चुकेंगे, तो मैं तुम को याद फ़रमाऊँगा और तुम को इस मकान में वापस लाने से अपने नेक क़ौल को पूरा करूँगा।11क्यूँकि मैं तुम्हारे हक़ में अपने ख़यालात को जानता हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, या'नी सलामती के ख़यालात, बुराई के नहीं; ताकि मैं तुम को नेक अन्जाम की उम्मीद बख़्शूँ।12~तब तुम मेरा नाम लोगे, और मुझसे दु'आ करोगे और मैं तुम्हारी सुनूँगा।13~और तुम मुझे ढूंडोगे और पाओगे, जब पूरे दिल से मेरे तालिब होगे।14~और मैं तुम को मिल जाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं तुम्हारी ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा और तुम को उन सब क़ौमों से और सब जगहों से, जिनमें मैंने तुम को हाँक दिया है, जमा' कराऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं तुम को उस जगह में जहाँ से मैंने तुम को ग़ुलाम करवाकर भेजा, वापस लाऊँगा।15~"क्यूँकि तुम ने कहा कि 'ख़ुदावन्द ने बाबुल में हमारे लिए नबी खड़े किए।'16~इसलिए ख़ुदावन्द उस बादशाह के बारे में जो दाऊद के तख़्त पर बैठा है, और उन सब लोगों के बारे में जो इस शहर में बसते हैं, या'नी तुम्हारे भाइयों के बारे में जो तुम्हारे साथ ग़ुलाम होकर नहीं गए, यूँ फ़रमाता है:17~'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं उन पर तलवार और काल और वबा भेजूँगा और उनको ख़राब अंजीरों की तरह बनाऊँगा जो ऐसे ख़राब हैं कि खाने के क़ाबिल नहीं।18~और मैं तलवार और काल और वबा से उनका पीछा करूँगा, और मैं उनको ज़मीन की सब सल्तनतों के हवाले करूँगा कि धक्के खाते फिरें और सताए जाएँ, और सब क़ौमों के बीच जिनमें मैंने उनको हाँक दिया है, ला'नत और हैरत और सुस्कार और मलामत का ज़रिया' हों;19~इसलिए कि उन्होंने मेरी बातें नहीं सुनी ख़ुदावन्द फ़रमाता है जब मैंने अपने ख़िदमतगुज़ार नबियों को उनके पास भेजा, हाँ, मैंने उनको सही वक़्त पर भेजा, लेकिन तुम ने न सुना, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"20~'इसलिए तुम, ऐ ग़ुलामी के सब लोगों, जिनको मैंने यरुशलीम से बाबुल को भेजा, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:21'रब्ब-उल-अफ़वाज इस्राईल का ख़ुदा अखीअब-बिन-क़ुलायाह के बारे में और सिदक़ियाह-बिन-मासियाह के बारे में, जो मेरा नाम लेकर तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं उनको शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हवाले करूँगा, और वह उनको तुम्हारी आँखों के सामने क़त्ल करेगा;22~और यहूदाह के सब ग़ुलाम जो बाबुल में हैं, उनकी ला'नती मसल बनाकर कहा करेंगे,कि ख़ुदावन्द तुझे सिद्क़ियाह और अख़ीअब की तरह करे, जिनको शाह-ए-बाबुल ने आग पर कबाब किया,"23~क्यूँकि उन्होंने इस्राईल में बेवक़ूफ़ी की और अपने पड़ोसियों की बीवियों से ज़िनाकारी की, और मेरा नाम लेकर झूठी बातें कहीं जिनका मैंने उनको हुक्म नहीं दिया था, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं जानता हूँ और गवाह हूँ।24और नख़लामी समा'याह से कहना,25कि "रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: इसलिए कि तूने यरुशलीम के सब लोगों को, और सफ़नियाह-बिन-मासियाह काहिन और सब काहिनों को अपने नाम से यूँ ख़त लिख भेजे,26~कि 'ख़ुदावन्द ने यहूयदा' काहिन की जगह तुझको काहिन मुक़र्रर किया कि तू ख़ुदावन्द के घर के नाज़िमों में हो, और हर एक मजनून और नबुव्वत के मुद्द'ई को क़ैद करे और काठ में डाले।27तब तूने 'अन्तोती यरमियाह की जो कहता है कि मैं तुम्हारा नबी हूँ, गोशमाली क्यूँ नहीं की?28क्यूँकि उसने बाबुल में यह कहला भेजा है कि ये मुद्दत दराज़ है; तुम घर बनाओ और बसो, और बाग़ लगाओ और उनका फल खाओ।' '29और सफ़नियाह काहिन ने यह खत पढ़ कर यरमियाह नबी को सुनाया।30~तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ कि:31~"ग़ुलामी के सबलोगों को कहला भेज, 'ख़ुदावन्द नख़लामी समायाह के बारे में यूँ फ़रमाता है: इसलिए कि समा'याह ने तुम से नबुव्वत की, हालाँकि मैंने उसे नहीं भेजा, और उसने तुम को झूटी उम्मीद दिलाई;32~इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं नख़लामी समा'याह को और उसकी नसल को सज़ा दूँगा; उसका कोई आदमी न होगा जो इन लोगों के बीच बसे, और वह उस नेकी को जो मैं अपने लोगों से करूँगा हरगिज़ न देखेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ फ़ितनाअंगेज़ बातें कही हैं |
1~वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ2~"ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: यह सब बातें जो मैंने तुझ से कहीं किताब में लिख।3क्यूँकि देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं अपनी क़ौम इस्राईल और यहूदाह की ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं उनको उस मुल्क में वापस लाऊँगा, जो मैंने उनके बाप-दादा को दिया, और वह उसके मालिक होंगे।"4~और वह बातें जो ख़ुदावन्द ने इस्राईल और यहूदाह के बारे में फ़रमाईं यह हैं:5कि "ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: हम ने हड़बड़ी की आवाज़ सुनी, ख़ौफ़ है और सलामती नहीं।6अब पूछो और देखो, क्या कभी किसी मर्द को पैदाइश का दर्द लगा? क्या वजह है कि मैं हर एक मर्द को ज़च्चा की तरह अपने हाथ कमर पर रख्खे देखता हूँ और सबके चेहरे ज़र्द हो गए हैं?7~अफ़सोस! वह दिन बड़ा है, उसकी मिसाल नहीं; वह या'क़ूब की मुसीबत का वक़्त है, लेकिन वह उससे रिहाई पाएगा।8और उस रोज़ यूँ होगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, कि मैं उसका जूआ तेरी गर्दन पर से तोड़ूँगा और तेरे बन्धनों को खोल डालूँगा; और बेगाने तुझ से फिर ख़िदमत न कराएँगे।9~लेकिन वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की और अपने बादशाह दाऊद की, जिसे मैं उनके लिए खड़ा करूँगा, ख़िदमत करेंगे।10~"इसलिए ऐ मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासान न हो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और ऐ इस्राईल, घबरा न जा; क्यूँकि देख, मैं तुझे दूर~से और तेरी औलाद को ग़ुलामी की सरज़मीन से छुड़ाऊँगा; और या'क़ूब वापस आएगा और आराम-ओ-राहत से रहेगा और कोई उसे न डराएगा।11~क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ताकि तुझे बचाऊँ: अगरचे मैं सब क़ौमों को जिनमें मैंने तुझे तितर-बितर किया तमाम कर डालूँगा तोभी तुझे तमाम न करूँगा; बल्कि तुझे मुनासिब तम्बीह करूँगा और हरगिज़ बे सज़ा न छोड़ूँगा।12~"क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तेरी ख़स्तगी ला-इलाज और तेरा ज़ख़्म सख़्त दर्दनाक है।13तेरा हिमायती कोई नहीं जो तेरी मरहम पट्टी करे तेरे पास कोई शिफ़ा बख़्श दवा नहीं।14~तेरे सब चाहने वाले तुझे भूल गए, वह तेरे तालिब नहीं हैं, हक़ीक़त में मैंने तुझे दुश्मन की तरह घायल किया और संग दिल की तरह तादीब की; इसलिए कि तेरी बदकिरदारी बढ़ गई और तेरे गुनाह ज़्यादा हो गए।15~तू अपनी ख़स्तगी की वजह से क्यूँ चिल्लाती है, तेरा दर्द ला-इलाज है; इसलिए कि तेरी बदकिरदारी बहुत बढ़~गई और तेरे गुनाह ज़्यादा हो गए, मैंने तुझसे ऐसा किया।16~तो भी वह सब जो तुझे निगलते हैं, निगले जाएँगे, और तेरे सब दुश्मन ग़ुलामी में जाएँगे, और जो तुझे ग़ारत करते हैं, ख़ुद ग़ारत होंगे; और मैं उन सबको जो तुझे लूटते हैं लुटा दूँगा।17क्यूँकि मैं फिर तुझे तंदुरुस्ती और तेरे ज़ख्मों से शिफ़ा बख़्शूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है क्यूँकि उन्होंने तेरा मरदूदा रख्खा कि यह सिय्यून है, जिसे कोई नहीं पूछता18"ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं या'क़ूब के ख़ेमों की ग़ुलामी को ख़त्म~कराऊँगा, और उसके घरों पर रहमत करूँगा; और शहर अपने ही पहाड़ पर बनाया जाएगा और क़स्र अपने ही मक़ाम पर आबाद हो जाएगा।19~और उनमें से शुक्रगुज़ारी और ख़ुशी करने वालों की आवाज़ आएगी; और मैं उनको अफ़ज़ाइश बख़्शूँगा, और वह थोड़े न होंगे; मैं उनको शौकत बख़्शूँगा और वह हक़ीर न होंगे।20और उनकी औलाद ऐसी होगी जैसी पहले थी, और उनकी जमा'अत मेरे हुज़ूर में क़ायम होगी, और मैं उन सबको जो उन पर ज़ुल्म करें सज़ा दूँगा।21~और उनका हाकिम उन्हीं में से होगा, और उनका फ़रमॉरवाँ उन्हीं के बीच से पैदा होगा और मैं उसे क़ुर्बत बख़्शूँगा, और वह मेरे नज़दीक आएगा; क्यूँकि कौन है जिसने ये जुर'अत की हो कि मेरे पास आए? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।22~और तुम मेरे लोग होगे,और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा।”23~देख, ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से की आँधी चलती है! यह तेज़ तूफ़ान शरीरों के सिर पर टूट पड़ेगा।24जब तक यह सब कुछ न हो ले, और ख़ुदावन्द अपने दिल के मक़सद पूरे न कर ले, उसका ग़ज़बनाक ग़ुस्सा ख़त्म न होगा; तुम आख़िरी दिनों में इसे समझोगे।
1ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं उस वक़्त इस्राईल के सब घरानों का ख़ुदा हूँगा और वह मेरे लोग होंगे।"2~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "इस्राईल में से जो लोग तलवार से बचे, जब वह राहत की तलाश में गए तो वीराने में मक़बूल ठहरे।3~"ख़ुदावन्द फहले से मुझ पर ज़ाहिर हुआ और कहा कि मैंने तुझ से हमेशा की मुहब्बत रख्खी; इसीलिए मैंने अपनी शफ़क़त तुझ पर बढ़ाई।4~ऐ इस्राईल की कुँवारी! मैं तुझे फिर आबाद करूँगा और तू आबाद हो जाएगी; तू फिर दफ़ उठाकर आरास्ता होगी, और ख़ुशी करने वालों के नाच में शामिल होने को निकलेगी।5~तू फिर सामरिया के पहाड़ों पर ताकिस्तान लगाएगी,बाग़ लगाने वाले लगायेंगे और उसका फल खाएँगे।6~क्यूँकि एक दिन आएगा कि इफ़्राईम की पहाड़ियों पर निगहबान पुकारेंगे कि 'उठो, हम सिय्यून पर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने चलें।' "7~क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "या'क़ूब के लिए ख़ुशी से गाओ और क़ौमों के सरताज के लिए ललकारो; 'ऐलान करो, हम्द करो और कहो, 'ऐ ख़ुदावन्द, अपने लोगों को, या'नी इस्राईल के बक़िये को बचा।'8~देखो, मैं उत्तरी मुल्क से उनको लाऊँगा, और ज़मीन की सरहदों से उनको जमा' करूँगा, और उनमें अंधे, और लंगड़े, और हामिला और ज़च्चा सब होंगे; उनकी बड़ी जमा'अत यहाँ वापस आएगी।9~वह रोते और मुनाजात करते हुए आएँगे, मैं उनकी रहबरी करूँगा; मैं उनको पानी की नदियों की तरफ़ राह-ए-रास्त पर चलाऊँगा, जिसमें वह ठोकर न खाएँगे; क्यूँकि मैं इस्राईल का बाप हूँ और इफ़्राईम मेरा पहलौठा है।10"ऐ क़ौमों, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो, और दूर के जज़ीरों में 'ऐलान करो; और कहो, 'जिसने इस्राईल को तितर-बितर किया, वही उसे जमा' करेगा और उसकी ऐसी निगहबानी करेगा, जैसी गड़रिया अपने गल्ले की,"11क्यूँकि ख़ुदावन्द ने या'क़ूब का फ़िदिया दिया है, और उसे उसके हाथ से जो उससे ताक़तवर था रिहाई बख़्शी है।12~तब वह आएँगे और सिय्यून की चोटी पर गाएँगे, और ख़ुदावन्द की ने'मतों या'नी अनाज और मय और तेल, और गाय-बैल के और भेड़-बकरी के बच्चों की तरफ़ इकट्ठे रवाँ होंगे; और उनकी जान सैराब बाग़ की तरह होगी, और वह फिर कभी ग़मज़दा न होंगे।13~उस वक़्त कुवाँरियाँ और पीर-ओ-जवान ख़ुशी से रक़्स करेंगे, क्यूँकि मैं उनके ग़म को ख़ुशी से बदल दूँगा और उनको तसल्ली देकर ग़म के बा'द ख़ुश करूँगा।14~मैं काहिनों की जान को चिकनाई से सेर करूँगा, और मेरे लोग मेरी ने'मतों से आसूदा होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"15ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "रामा में एक आवाज़ सुनाई दी, नौहा और ज़ार-ज़ार रोना; राख़िल अपने बच्चों को रो रही है, वह अपने बच्चों के बारे में तसल्ली पज़ीर नहीं होती, क्यूँकि वह नहीं हैं।"16~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "अपनी रोने की आवाज़ को रोक, और अपनी आँखों को आँसुओं से बाज़ रख; क्यूँकि तेरी मेहनत के लिए बदला है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और वह दुश्मन के मुल्क से वापस आएँगे।17~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तेरी 'आक़बत के बारे में उम्मीद है क्यूँकि तेरे बच्चे फिर अपनी हदों में दाख़िल होंगे।18~हक़ीक़त में मैंने इफ़्राईम को अपने आप पर यूँ मातम करते सुना, 'तू ने मुझे तम्बीह की, और मैंने उस बछड़े की तरह जो सधाया नहीं गया तम्बीह पाई। तू मुझे फेर तो मैं फिरूँगा, क्यूँकि तू ही मेरा ख़ुदावन्द ख़ुदा है।19~क्यूँकि फिरने के बा'द मैंने तौबा की, और तरबियत पाने के बा'द मैंने अपनी रान पर हाथ मारा; मैं शर्मिन्दा बल्कि परेशान ख़ातिर हुआ, इसलिए कि मैंने अपनी जवानी की मलामत उठाई थी।'20~क्या इफ़्राईम मेरा प्यारा बेटा है? क्या वह पसन्दीदा फ़र्ज़न्द है? क्यूँकि जब-जब मैं उसके ख़िलाफ़ कुछ कहता हूँ, तो उसे जी जान से याद करता हूँ। इसलिए मेरा दिल उसके लिए बेताब है; मैं यक़ीनन उस पर रहमत करूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।21~"अपने लिए सुतून खड़े कर, अपने लिए खम्बे बना; उस शाहराह पर दिल लगा, हाँ, उसी राह से जिससे तू गई थी वापस आ। ऐ इस्राईल की ~कुँवारी, अपने इन शहरों में वापस आ।22~ऐ नाफ़रमान बेटी, तू कब तक आवारा फिरेगी? क्यूँकि ख़ुदावन्द ने ज़मीन पर एक नई चीज़ पैदा की है, कि 'औरत मर्द की हिमायत करेगी।"23रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: "जब मैं उनके ग़ुलामों को वापस लाऊँगा, तो वह यहूदाह के मुल्क और उसके शहरों में फिर यूँ कहेंगे, "ऐ सदाक़त के घर, ऐ कोह-ए-मुक़द्दस, ख़ुदावन्द तुझे बरकत बख़्शे।"24~और यहूदाह और उसके सब शहर उसमें इकट्ठे आराम करेंगे, किसान और वह जो गल्ले लिए फिरते हैं।25क्यूँकि मैंने थकी जान को आसूदा, और हर ग़मगीन रूह को सेर किया है।"26अब मैंने बेदार होकर निगाह की, और मेरी नींद मेरे लिए मीठी थी।27~"देखो, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं इस्राईल के घर में और यहूदाह के घर में इन्सान का बीज और हैवान का बीज बोऊँगा।28~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जिस तरह मैंने उनकी घात में बैठ कर उनको उखाड़ा और ढाया और गिराया और बर्बाद किया और दुख दिया; उसी तरह मैं निगहबानी करके उनको बनाऊँगा और लगाऊँगा।29~उन दिनों में फिर यूँ न कहेंगे, 'बाप-दादा ने कच्चे अंगूर खाए और औलाद के दाँत खट्टे हो गए।30~क्यूँकि हर एक अपनी ही बदकिरदारी की वजह से मरेगा; हर एक जो कच्चे अँगूर खाता है, उसी के दाँत खट्टे होंगे।31~"देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने के साथ नया 'अहद बाँधूँगा;32~उस 'अहद के मुताबिक़ नहीं, जो मैंने उनके बाप-दादा से किया जब मैंने उनकी दस्तगीरी की, ताकि उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाऊँ; और उन्होंने मेरे उस 'अहद को तोड़ा अगरचे मैं उनका मालिक था, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।33~बल्कि यह वह 'अहद है जो मैं उन दिनों के बा'द इस्राईल के घराने से बाँधूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं अपनी शरी'अत उनके बातिन में रख्खूँगा, और उनके दिल पर उसे लिखूँगा; और मैं उनका ख़ुदा हूँगा, और वह मेरे लोग होंगे;34~और वह फिर अपने-अपने पड़ोसी और अपने-अपने भाई को यह कह कर ता'लीम नहीं देंगे कि ख़ुदावन्द को पहचानो, क्यूँकि छोटे से बड़े तक वह सब मुझे जानेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; इसलिए कि मैं उनकी बदकिरदारी को बख़्श दूँगा और उनके गुनाह को याद न करूँगा।"35~ख़ुदावन्द जिसने दिन की रोशनी के लिए सूरज को मुक़र्रर किया, और जिसने रात की रोशनी के लिए चाँद और सितारों का निज़ाम क़ायम किया, जो समन्दर को मौजज़न करता है जिससे उसकी लहरें शोर करतीं है यूँ फ़रमाता है; उसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है।36~ख़ुदावन्द फ़रमाता है: "अगर यह निज़ाम मेरे सामने से ख़त्म हो जाए, तो इस्राईल की नसल भी मेरे सामने से जाती रहेगी कि हमेशा तक फिर क़ौम न हो।"37~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "अगर कोई ऊपर आसमान को नाप सके और नीचे ज़मीन की बुनियाद का पता लगा ले, तो मैं भी बनी-इस्राईल को उनके सब 'आमाल की वजह से रद्द कर दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”38~"देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि "यह शहर हननेल के बुर्ज से कोने के फाटक तक ख़ुदावन्द के लिए ता'मीर किया जाएगा।39~और फिर जरीब सीधी कोह-ए- जारेब पर से होती हुई जोआता को घेर लेगी।40~और लाशों और राख की तमाम वादी और सब खेत क़िद्रोन के नाले तक, और घोड़े फाटक के कोने तक पूरब की तरफ़ ख़ुदावन्द के लिए पाक होंगे; फिर वह हमेशा तक न कभी उखाड़ा, न गिराया जाएगा।"
1वह कलाम जो शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह के दसवें बरस में जो नबूकदरज़र का अट्ठारहवाँ बरस था, ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ।2उस वक़्त शाह-ए-बाबुल की फ़ौज यरुशलीम का घिराव किए पड़ी थी, और यरमियाह नबी शाह-ए-यहूदाह के घर में क़ैदख़ाने के सहन में बन्द था।3क्यूँकि शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह ने उसे यह कह कर क़ैद किया, "तू क्यूँ नबुव्वत करता और कहता है, कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को शाह-ए-बाबुल के हवाले कर दूँगा, और वह उसे ले लेगा;4और शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह कसदियों के हाथ से न बचेगा, बल्कि ज़रूर शाह-ए-बाबुल के हवाले किया जाएगा, और उससे आमने-सामने बातें करेगा और दोनों की आँखें सामने होंगी।5और वह सिदक़ियाह को बाबुल में ले जाएगा, और जब तक मैं उसको याद न फ़रमाऊँ वह वहीं रहेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है। हरचन्द तुम कसदियों के साथ जंग करोगे, लेकिन कामयाब न होगे"?"6तब यरमियाह ने कहा कि "ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया7देख, तेरे चचा सलूम का बेटा हनमएल तेरे पास आकर कहेगा कि 'मेरा खेत जो 'अन्तोत में है, अपने लिए ख़रीद ले; क्यूँकि उसको छुड़ाना तेरा हक़ है।'8तब मेरे चचा का बेटा हनमएल क़ैदख़ाने के सहन में मेरे पास आया, और जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, मुझसे कहा कि, "मेरा खेत जो 'अन्तोत में बिनयमीन के 'इलाक़े में है, ख़रीद ले; क्यूँकि यह तेरा मौरूसी हक़ है और उसको छुड़ाना तेरा काम है, उसे अपने लिए ख़रीद ले।" तब मैंने जाना कि ये ख़ुदावन्द का कलाम है।9'और मैंने उस खेत को जो 'अन्तोत में था, अपने चचा के बेटे हनमएल से ख़रीद लिया और नक़द सत्तर मिस्काल चांदी तोल कर उसे दी।10और मैंने एक कबाला लिखा और उस पर मुहर की और गवाह ठहराए, और चाँदी तराजू में तोलकर उसे दी11तब मैंने उस क़बाले को लिया, या'नी वह जो क़ानून और दस्तूर के मुताबिक़ सर-ब-मुहर था, और वह जो खुला था;12और मैंने उस क़बाले को अपने चचा के बेटे हनमएल के सामने और उन गवाहों के सामने जिन्होंने अपने नाम क़बाले पर लिखे थे, उन सब यहूदियों के सामने जो क़ैदख़ाने के सहन में बैठे थे, बारूक-बिन-नैयिरियाह-बिन-महसियाह को सौंपा।13और मैंने उनके सामने बारूक की ताकीद की14कि 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: यह काग़ज़ात ले, या'नी यह क़बाला जो सर-ब-मुहर है, और यह जो खुला है, और उनको मिट्टी के बर्तन में रख ताकि बहुत दिनों तक महफ़ूज़ रहें।15क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: इस मुल्क में फिर घरों और ताकिस्तानों की ख़रीद-ओ-फ़रोख्त होगी।'16'बारूक-बिन-नैयिरियाह को क़बाला देने के बा'द, मैंने ख़ुदावन्द से यूँ दु'आ की:17'आह, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, तूने अपनी 'अज़ीम क़ुदरत और अपने बुलन्द बाज़ू से आसमान और ज़मीन को पैदा किया, और तेरे लिए कोई काम मुश्किल नहीं है;18तू हज़ारों पर शफ़क़त करता है, और बाप-दादा की बदकिरदारी का बदला उनके बा'द उनकी औलाद के दामन में डाल देता है; जिसका नाम ख़ुदा-ए- 'अज़ीम-ओ-क़ादिर रब्ब-उल-अफ़वाज है;19मश्वरत में बुज़ुर्ग, और काम में क़ुदरत वाला है; बनी-आदम की सब राहें तेरे ज़ेर-ए-नज़र हैं; ताकि हर एक को उसके चाल चलन के मुवाफ़िक़ और उसके 'आमाल के फल के मुताबिक़ बदला दे।20जिसने मुल्क-ए-मिस्र में आज तक, और इस्राईल और दूसरे लोगों में निशान और 'अजाइब दिखाए और अपने लिए नाम पैदा किया, जैसा कि इस ज़माने में है।21क्यूँकि तू अपनी क़ौम इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से निशानों और 'अजाइब और क़वी हाथ और बलन्द बाज़ू से, और बड़ी हैबत के साथ निकाल लाया;22और यह मुल्क उनको दिया जिसे देने की तूने उनके बाप-दादा से क़सम खायी थी ऐसा मुल्क जिसमे दूध और शहद बहता है।23और वह आकर उसके मालिक हो गए, लेकिन वह न तेरी आवाज़ को सुना और न तेरी शरी'अत पर चले, और जो कुछ तूने करने को कहा उन्होंने नहीं किया। इसलिए तू यह सब मुसीबत उन पर लाया।24दमदमों को देख, वह शहर तक आ पहुँचे हैं कि उसे फ़तह कर लें, और शहर तलवार और काल और वबा की वजह से कसदियों के हवाले कर दिया गया है, जो उस पर चढ़ आए और जो कुछ तूने फ़रमाया पूरा हुआ, और तू आप देखता है।25तो भी, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तूने मुझसे फ़रमाया कि वह खेत रुपया देकर अपने लिए ख़रीद ले और गवाह ठहरा ले, हालाँकि यह शहर कसदियों के हवाले कर दिया गया।' "26तब ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:27~"देख, मैं ख़ुदावन्द, तमाम बशर का ख़ुदा हूँ, क्या मेरे लिए कोई काम दुश्वार है?28इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को कसदियों के और शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हवाले कर दूँगा, और वह इसे ले लेगा;29और कसदी जो इस शहर पर चढ़ाई करते हैं, आकर इसको आग लगाएँगे और इसे उन घरों के साथ जलाएँगे, जिनकी छतों पर लोगों ने बा'ल के लिए ख़ुशबू जलायी और ग़ैरमा'बूदों के लिए तपावन तपाए कि मुझे ग़ज़बनाक करें।30क्यूँकि बनी-इस्राईल और बनी यहूदाह अपनी जवानी से अब तक सिर्फ़ वही करते आए हैं जो मेरी नज़र में बुरा है; क्यूँकि बनी-इस्राईल ने अपने 'आमाल से मुझे ग़ज़बनाक ही किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।31क्यूँकि यह शहर जिस दिन से उन्होंने इसे ता'मीर किया, आज के दिन तक मेरे क़हर और ग़ज़ब का ज़रिया' हो रहा है; ताकि मैं इसे अपने सामने से दूर करूँ32बनी-इस्राईल और बनी यहूदाह की तमाम बुराई के ज़रिए' जो उन्होंने और उनके बादशाहों ने, और हाकिम और काहिनों और नबियों ने, और यहूदाह के लोगों और यरुशलीम के बशिन्दों ने की, ताकि मुझे ग़ज़बनाक करें।33~क्यूँकि उन्होंने मेरी तरफ़ पीठ की और मुँह न किया, हर चन्द मैंने उनको सिखाया और वक़्त पर ता'लीम दी, तो भी उन्होंने कान न लगाया कि तरबियत पज़ीर हों,34बल्कि उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, अपनी मकरूहात रख्खीं ताकि उसे नापाक करें।35और उन्होंने बा'ल के ऊँचे मक़ाम जो बिन हिनूम की वादी में हैं बनाए, ताकि अपने बेटों और बेटियों को मोलक के लिए आग में से गुज़ारें, जिसका मैंने उनको हुक्म नहीं दिया और न मेरे ख़याल में आया कि वह ऐसा मकरूह काम करके यहूदाह को गुनाहगार बनाएँ।36"और अब इस शहर के बारे में, जिसके हक़ में तुम कहते हो, 'तलवार और काल और वबा के वसीले से वह शाह-ए- बाबुल के हवाले किया जाएगा," ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है:37देख, मैं उनको उन सब मुल्कों से जहाँ मैंने उनको गैज़-ओ-ग़ज़ब और बड़े ग़ुस्से से हॉक दिया है, जमा' करूँगा और इस मक़ाम में वापस लाऊँगा और उनको अम्न से आबाद करूँगा।38और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।39मैं उनको यकदिल और यकरविश बना दूँगा, और वह अपनी और अपने बा'द अपनी औलाद की भलाई कि लिए हमेशा मुझसे डरते रहेंगे।40मैं उनसे हमेशा का 'अहद करूँगा कि उनके साथ भलाई करने से बाज़ न आऊँगा, और मैं अपना ख़ौफ़ उनके दिल में डालूँगा ताकि वह मुझसे फिर न जाएँ|41हाँ, मैं उनसे ख़ुश होकर उनसे नेकी करूँगा, और यक़ीनन दिल-ओ-जान से उनको इस मुल्क में लगाऊँगा।42"क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जिस तरह मैं इन लोगों पर यह तमाम बला-ए-'अज़ीम लाया हूँ, उसी तरह वह तमाम नेकी जिसका मैंने उनसे वा'दा किया है, उनसे करूँगा।43और इस मुल्क में जिसके बारे में तुम कहते हो कि 'वह वीरान है, वहाँ न इन्सान है न हैवान, वह कसदियों के हवाले किया गया,' फिर खेत ख़रीदे जाएँगे।44बिनयमीन के ''इलाक़े में और यरुशलीम के 'इलाक़े में और यहूदाह के शहरों में और पहाड़ी के, और वादी के, और दख्खिन के शहरों में लोग रुपया देकर खेत ख़रीदेंगे; और क़बाले लिखाकर उन पर मुहर लगाएँगे और गवाह ठहराएँगे, क्यूँकि मैं उनकी ग़ुलामी को ख़त्म कर दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
1हुनुज़ यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में~बन्द था कि ख़ुदावन्द का कलाम दोबारा उस पर नाज़िल हुआ कि:2"ख़ुदावन्द जो पूरा करता और बनाता और क़ायम करता है, जिसका नाम यहोवाह है, यूँ फ़रमाता है:3कि मुझे पुकार और मैं तुझे जवाब दूँगा, और बड़ी-बड़ी और गहरी बातें जिनको तू नहीं जानता, तुझ पर ज़ाहिर करूँगा।4क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, इस शहर के घरों के बारे में, और शाहान-ए-यहूदाह के घरों के बारे में जो दमदमों और तलवार के ज़रिए' गिरा दिए गए हैं, यूँ फ़रमाता है:5कि वह कसदियों से लड़ने आए हैं, और उनको आदमियों की लाशों से भरेंगे, जिनको मैंने अपने क़हर-ओ-ग़ज़ब से क़त्ल किया है, और जिनकी तमाम शरारत की वजह से मैंने इस शहर से अपना मुँह छिपाया है।6देख, मैं उसे सिहत और तंदुरुस्ती बख़्शूँगा मैं उनको ~शिफ़ा दूँगा और अम्न-ओ-सलामती की कसरत उन पर ज़ाहिर करूँगा।7और मैं यहूदाह और इस्राईल को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा और उनको पहले की तरह बनाऊँगा।8और मैं उनको उनकी सारी बदकिरदारी से जो उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ की है, पाक करूँगा और मैं उनकी सारी बदकिरदारी जिससे वह मेरे गुनाहगार हुए और जिससे उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ बग़ावत की है, मु'आफ़ करूँगा।9और यह मेरे लिए इस ज़मीन की सब क़ौमों के सामने ख़ुशी बख़्श नाम और शिताइश-ओ-जलाल का ज़रिया' होगा; वह उस सब भलाई का जो मैं उनसे करता हूँ, ज़िक्र सुनेंगी और उस भलाई और सलामती की वजह से जो मैं इनके लिए मुहय्या करता हूँ, डरेंगी और काँपेंगी।10"ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: इस मक़ाम में जिसके बारे में तुम कहते हो, 'वह वीरान है, वहाँ न इन्सान है न हैवान," या'नी यहूदाह के शहरों में और यरुशलीम के बाज़ारों में जो वीरान हैं, जहाँ न इन्सान हैं न बाशिन्दे न हैवान,11ख़ुशी और शादमानी की आवाज़, दुल्हे और दुल्हन की आवाज़, और उनकी आवाज़ सुनी जाएगी जो कहते हैं, 'रब्ब-उल-अफ़वाज की सिताइश करो क्यूँकि ख़ुदावन्द भला है और उसकी शफ़क़कत हमेशा की है!" हाँ, उनकी आवाज़ जो ख़ुदावन्द के घर में शुक्रगुजारी की क़ुर्बानी लायेंगे क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं इस मुल्क के ग़ुलामों को वापस लाकर बहाल करूँगा।12'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: इस वीरान जगह और इसके सब शहरों में जहाँ न इन्सान है न हैवान, फिर चरवाहों के रहने के मकान होंगे जो अपने गल्लों को बिठाएँगे।13कोहिस्तान के शहरों में और वादी के और दख्खिन के शहरों में, और बिनयमीन के 'इलाक़ों में और यरुशलीम के 'इलाक़े में, और यहूदाह के शहरों में फिर गल्ले गिनने वाले के हाथ के नीचे से गुज़रेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।14"देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि 'वह नेक बात जो मैंने इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने के हक़ में फ़रमाई है, पूरी करूँगा।'15उन्हीं दिनों में और उसी वक़्त मैं दाऊद के लिए सदाक़त की शाख़ पैदा करूँगा, और वह मुल्क में 'अदालत-ओ-सदाक़त से 'अमल करेगा।16उन दिनों में यहूदाह नजात पाएगा और यरुशलीम सलामती से सुकूनत करेगा; और 'ख़ुदावन्द हमारी सदाक़त' उसका नाम होगा।17"क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: इस्राईल के घराने के तख़्त पर बैठने के लिए दाऊद को कभी आदमी की कमी न होगी,18और न लावी काहिनों को आदमियों की कमी होगी, जो मेरे सामने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करे और हदिये चढ़ाएँ और हमेशा क़ुर्बानी करें।”19फिर ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:20"ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगर तुम मेरा वह 'अहद, जो मैंने दिन से और रात से किया, तोड़ सको कि दिन और रात अपने अपने वक़्त पर न हों,21तो मेरा वह 'अहद भी जो मैंने अपने ख़ादिम दाऊद से किया, टूट सकता है कि उसके तख़्त पर बादशाही करने को बेटा न हो और वह 'अहद भी जो अपने ख़िदमतगुज़ार लावी काहिनों से किया।22जैसे अजराम-ए-फ़लक बेशुमार हैं और समन्दर की रेत बे अन्दाज़ा है, वैसे ही मैं अपने बन्दे दाऊद की नसल की और लावियों को जो मेरी ख़िदमत करते हैं, फ़िरावानी बख्शूँगा"23~फिर ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:24कि "क्या तू नहीं देखता कि ये लोग क्या कहते हैं कि ~'जिन दो घरानों को ख़ुदावन्द ने चुना, उनको उसने रद्द कर दिया'? यूँ वह मेरे लोगों को हक़ीर जानते हैं कि जैसे उनके नज़दीक वह क़ौम ही नहीं रहे।25ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगर दिन और रात के साथ मेरा 'अहद न हो, और अगर मैंने आसमान और ज़मीन का निज़ाम मुक़र्रर न किया हो;26तो मैं या'क़ूब की नसल को और अपने ख़ादिम दाऊद की नसल को रद्द कर दूँगा, ताकि मैं इब्राहीम और इस्हाक़ और या'क़ूब की नसल पर हुकूमत करने के लिए उसके फ़र्ज़न्दों में से किसी को न लूँ बल्कि मैं तो उनको ग़ुलामी से वापस लाऊँगा और उन पर रहम करूँगा।"
1जब शाह-ए-बाबुल नबूक़दनज़र और उसकी तमाम फ़ौज और इस ज़मीन की तमाम सल्तनतें जो उसकी फरमाँरवाई में थीं, और सब क़ौमें यरुशलीम और उसकी सब बस्तियों के ख़िलाफ़ जंग कर रही थीं, तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ2कि "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जा और शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह से कह दे, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को शाह-ए-बाबुल के हवाले कर दूंगा, और वह इसे आग से जलाएगा;3और तू उसके हाथ से न बचेगा, बल्कि ज़रूर पकड़ा जाएगा और उसके हवाले किया जाएगा; और तेरी आँखें शाह-ए-बाबुल की आँखों को देखेंगी और वह सामने तुझ से बातें करेगा, और तू बाबुल को जाएगा।'4तो भी, ऐ शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह, ख़ुदावन्द का कलाम सुन; तेरे बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तू तलवार से क़त्ल न किया जाएगा।5तू अम्न की हालत में मरेगा और जिस तरह तेरे बाप-दादा या'नी तुझ से पहले बादशाहों के लिए ख़ुशबू जलाते थे, उसी तरह तेरे लिए भी जलाएँगे, और तुझ पर नौहा करेंगे और कहेंगे, "हाय, आक़ा!" क्यूँकि मैंने यह बात कही है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।' "6तब यरमियाह नबी ने यह सब बातें शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह से यरुशलीम में कहीं,7जब कि शाह-ए-बाबुल की फ़ौज यरुशलीम और यहूदाह के शहरों से जो बच रहे थे, या'नी लकीस और 'अज़ीक़ाह से लड़ रही थी; क्यूँकि यहूदाह के शहरों में से यही हसीन शहर बाक़ी थे।8वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, जब सिदक़ियाह बादशाह ने यरुशलीम के सब लोगों से 'अहद-ओ-पैमान किया कि आज़ादी का 'ऐलान किया जाए|9कि हर एक अपने ग़ुलाम को और अपनी लौंडी को, जो 'इब्रानी मर्द या 'औरत हो, आज़ाद कर दे कि कोई अपने यहूदी भाई से ग़ुलामी न कराए।10और जब सब हाकिम और सब लोगों ने जो इस 'अहद में शामिल थे, सुना कि हर एक को लाज़िम है कि अपने ग़ुलाम और अपनी लौंडी को आज़ाद करे और फिर उनसे ग़ुलामी न कराए, तो उन्होंने इता'अत की और उनको आज़ाद कर दिया।11लेकिन उसके बा'द वह फिर गए और उन ग़ुलामों और लौंडियों को जिनको उन्होंने आज़ाद कर दिया था, फिर वापस ले आए और उनको ताबे' करके ग़ुलाम और लौंडियाँ बना लिया।12इसलिए ख़ुदावन्द की तरफ़ से यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:13कि ~"ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: मैंने तुम्हारे बाप-दादा से, जिस दिन मैं उनको मुल्क-ए-मिस्र से और ग़ुलामी के घर से निकाल लाया, यह 'अहद बाँधा,14कि 'तुम में से हर एक अपने 'इब्रानी भाई को जो उसके हाथ बेचा गया हो, सात बरस के आख़िर में या'नी जब वह छ: बरस तक ख़िदमत कर चुके, तो आज़ाद कर दे; लेकिन तुम्हारे बाप-दादा ने मेरी न सुनी और कान न लगाया।15और आज ही के दिन तुम रूजू' लाए, और वही किया जो मेरी नज़र में भला है कि हर एक ने अपने पड़ोसी को आज़ादी का मुज़दा दिया; और तुम ने उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, मेरे सामने 'अहद बाँधा;16लेकिन तुम ने नाफ़रमान हो कर मेरे नाम को नापाक किया, और हर एक ने अपने ग़ुलाम को और अपनी लौंडी को, जिनको तुमने आज़ाद करके उनकी मर्ज़ी पर छोड़ दिया था, फिर पकड़कर ताबे' किया कि तुम्हारे लिए ग़ुलाम और लौंडियाँ हों।17"इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने मेरी न सुनी कि हर एक अपने भाई और अपने पड़ोसी को आज़ादी का मुज़दा सुनाए, देखो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुम को तलवार और वबा और काल के लिए आज़ादी का मुज़दा देता हूँ और मैं ऐसा करूँगा कि तुम इस ज़मीन की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरोगे।18~और मैं उन आदमियों को जिन्होंने मुझसे 'अहदशिकनी की और उस 'अहद की बातें, जो उन्होंने मेरे सामने बाँधा है पूरी नहीं कीं, जब बछड़े को दो टुकड़े किया और उन दो टुकड़ों के बीच से होकर गुज़रे;19या'नी यहूदाह के और यरुशलीम के हाकिम और ख़्वाजासरा और काहिन और मुल्क के सब लोग जो बछड़े के टुकड़ों के बीच से होकर गुज़रे;20हाँ, मैं उनको उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले करूँगा, और उनकी लाशें हवाई परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी।21और मैं शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह को और उसके हाकिम को, उनके ~मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों और शाह-ए-बाबुल की फ़ौज के, जो तुम को छोड़कर चली गई, हवाले कर दूँगा।22~देखो, मैं हुक्म करूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है और उनको फिर इस शहर की तरफ़ वापस लाऊँगा, और वह इससे लड़ेंगे और फ़तह करके आग से जलाएँगे; और मैं यहूदाह के शहरों को वीरान कर दूँगा कि ग़ैरआबाद हों।"
1वह कलाम जो शाह-ए-यहूदाह "यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह के दिनों में ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ:2कि "तू रैकाबियों के घर जा और उनसे कलाम कर, और उनको ख़ुदावन्द के घर की एक कोठरी में लाकर मय पिला।”3तब मैंने याज़नियाह-बिन-यर्मियाह-बिन हबसिनयाह और उसके भाइयों और उसके सब बेटों और रैकाबियों के तमाम घराने को साथ लिया।4और मैं उनको ख़ुदावन्द के घर में बनी हनान-बिन-यजदलियाह मर्द-ए-ख़ुदा की कोठरी में लाया, जो हाकिम की कोठरी के नज़दीक मासियाह-बिन-सलूम दरबान की कोठरी के ऊपर थी।5और मैंने मय से लबरेज़ प्याले और जाम रैकाबियों के घराने के बेटों के आगे रख्खे और उनसे कहा, 'मय पियो।”6लेकिन उन्होंने कहा, "हम मय न पियेंगे, क्यूँकि हमारे बाप यूनादाब-बिन-रैकाब ने हमको यूँ हुक्म दिया, 'तुम हरगिज़ मय न पीना; न तुम न तुम्हारे बेटे;7और न घर बनाना, न बीज बोना, न ताकिस्तान लगाना, न उनके मालिक होना; बल्कि 'उम्र भर ख़ेमों में रहना ताकि जिस सरज़मीन में तुम मुसाफ़िर हो, तुम्हारी 'उम्र दराज़ हो।'8~ चुनाँचे हम ने अपने बाप यूनादाब-बिन-रैकाब की बात मानी; उसके हुक्म के मुताबिक़ हम और हमारी बीवियाँ और हमारे बेटे बेटियाँ कभी मय नहीं पीते|9और हम न रहने के लिए घर बनाते और न ताकिस्तान और खेत और बीज रखते हैं |10लेकिन हम ख़ेमों में बसे हैं, और हमने फ़रमाँबरदारी की और जो कुछ हमारे बाप यूनादाब ने हमको हुक्म दिया हम ने उस पर 'अमल किया है।11लेकिन यूँ हुआ कि जब शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र इस मुल्क पर चढ़ आया, तो हम ने कहा कि 'आओ, हम कसदियों और अरामियों की फ़ौज के डर से यरुशलीम को चले जाएँ," यूँ हम यरुशलीम में बसते हैं।”12तब ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:13कि 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जा, और यहूदाह के आदमियों और यरुशलीम के बाशिन्दों से यूँ कह कि क्या तुम तरबियत पज़ीर न होगे कि मेरी बातें सुनो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है?14जो बातें यूनादाब-बिन-रैकाब ने अपने बेटों को फ़रमाईं कि मय न पियो, वह बजा लाए और आज तक मय नहीं पीते, बल्कि उन्होंने अपने बाप के हुक्म को माना; लेकिन मैंने तुम से कलाम किया और वक़्त पर तुम को फ़रमाया, और तुम ने मेरी न सुनी।15मैंने अपने तमाम ख़िदमतगुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, और उनको वक़्त पर ये कहते हुए भेजा कि तुम हर एक अपनी बुरी राह से बाज़ आओ, और अपने 'आमाल को दुरुस्त करो और ग़ैर मा'बूदों की पैरवी और ~'इबादत न करो, और जो मुल्क मैंने तुमको और तुम्हारे बाप-दादा को दिया है, तुम उसमें बसोगे; लेकिन तुम ने न कान लगाया न मेरी सुनी।16इस वजह से कि यूनादाब बिन रैकाब के बेटे अपने बाप के हुक्म को जो उसने उनको दिया था बजा लाये लेकिन इन लोगों ने मेरी न सुनी |17इसलिए ख़ुदावन्द, रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं यहूदाह पर और यरुशलीम के तमाम बाशिन्दों पर वह सब मुसीबत, जिसका मैंने उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है, लाऊँगा; क्यूँकि मैंने उनसे कलाम किया लेकिन उन्होंने न सुना, और मैंने उनको बुलाया पर उन्होंने जवाब न दिया।”18और यरमियाह ने रैकाबियों के घराने से कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुमने अपने बाप यूनादाब के हुक्म को माना, और उसकी सब वसीयतों पर 'अमल किया है, और जो कुछ उसने तुम को फ़रमाया तुम बजा लाए;19इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: यूनादाब-बिन-रैकाब के लिए मेरे सामने में खड़े होने को कभी आदमी की कमी न होगी।"
1शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह~के चौथे बरस में यह कलाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ:2कि "किताब का एक तूमार ले और वह सब कलाम जो मैंने इस्राईल और यहूदाह और तमाम क़ौमों के ख़िलाफ़ तुझ से किया, उस दिन से लेकर जब से मैं तुझ से कलाम करने लगा, या'नी यूसियाह के दिन से आज के दिन तक उसमें लिख।3शायद यहूदाह का घराना उस तमाम मुसीबत का हाल जो मैं उन पर लाने का इरादा रखता हूँ सुने, ताकि वह सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ; और मैं उनकी बदकिरदारी और गुनाह को मु'आफ़ करूँ।"4तब यरमियाह ने बारूक-बिन-नैयिरियाह को बुलाया, और बारूक ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उसने यरमियाह से किया था, उसकी ज़बानी किताब के उस तूमार में लिखा।5और यरमियाह ने बारूक को हुक्म दिया और कहा, "मैं तो मजबूर हूँ, मैं ख़ुदावन्द के घर में नहीं जा सकता;6लेकिन तू जा और ख़ुदावन्द का वह कलाम जो तूने मेरे मुँह से इस तूमार में लिखा है, ख़ुदावन्द के घर में रोज़े के दिन लोगों को पढ़ कर सुना; और तमाम यहूदाह के लोगों को भी जो अपने शहरों से आए हों, तू वही कलाम पढ़ कर सुना।7शायद वह ख़ुदा के सामने मिन्नत करें और सब के सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर-ओ-ग़ज़ब जिसका उसने इन लोगों के ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है, शदीद है।"8और बारूक-बिन-नैयिरियाह ने सब कुछ जैसा यरमियाह नबी ने उसको फ़रमाया था वैसा ही किया, और ख़ुदावन्द के घर में ख़ुदावन्द का कलाम उस किताब से पढ़ कर सुनाया।9और ~शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह के पाँचवें बरस के नौवें महीने में यूँ हुआ कि यरुशलीम के सब लोगों ने और उन सब ने जो यहूदाह के शहरों से यरुशलीम में आए थे, ख़ुदावन्द के सामने रोज़े का 'ऐलान किया।10~तब बारूक ने किताब से यरमियाह की बातें, ख़ुदावन्द के घर में जमरियाह-बिन-साफ़न मुन्शी की कोठरी में ऊपर के सहन के बीच, ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर सब लोगों के सामने पढ़ सुनाईं।11जब मीकायाह-बिन-जमरियाह-बिनसाफ़न ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उस किताब में था सुना,12तो वह उतर कर बादशाह के घर मुन्शी की कोठरी में गया, और सब हाकिम या'नी इलीसमा' मुन्शी, और दिलायाह बिन समयाह और इलनातन बिन अक़बूर और जमरियाह बिन साफ़न और सिदक़ियाह-बिन-हननियाह, और सब हाकिम वहाँ बैठे थे।13तब मीकायाह ने वह सब बातें जो उसने सुनी थीं, जब बारूक किताब से पढ़ कर लोगों को सुनाता था, उनसे बयान कीं।14और सब हाकिम ने यहूदी-बिन-नतनियाह-बिन-सलमियाह-बिन-कूशी को बारूक के पास यह कहकर भेजा, कि "वह तूमार जो तूने लोगों को पढ़कर सुनाया है, अपने हाथ में ले और चला आ।” तब बारूक-बिन-नैयिरियाह वह तूमार लेकर उनके पास आया।15और उन्होंने उसे कहा, कि "अब बैठ जा और हमको यह पढ़ कर सुना।" और बारूक ने उनको पढ़कर सुनाया।16जब उन्होंने वह सब बातें सुनीं, तो डरकर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे और बारूक से कहा कि "हम यक़ीनन यह सब बातें बादशाह से बयान करेंगे।”17और उन्होंने यह कह कर बारूक से पूछा, "हम से कह कि तूने यह सब बातें उसकी ज़बानी क्यूँकर लिखीं?"18तब बारूक ने उनसे कहा, "वह यह सब बातें मुझे अपने मुँह से कहता गया और मैं स्याही से किताब में लिखता गया।”19तब हाकिम ने बारूक से कहा, "जा, अपने आपको और यरमियाह को छिपा, और कोई न जाने कि तुम कहाँ हो।"20और वह बादशाह के पास सहन में गए, लेकिन उस तूमार को इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में रख गए, और वह बातें बादशाह को कह सुनाईं।21तब बादशाह ने यहूदी को भेजा कि तूमार लाए, और वह उसे इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में से ले आया। और यहूदी ने बादशाह और सब हाकिम को जो बादशाह के सामने खड़े थे, उसे पढ़कर सुनाया।22और बादशाह ज़मिस्तानी महल में बैठा था, क्यूँकि नवाँ महीना था और उसके सामने अंगेठी जल रही थी।23जब यहूदी ने तीन चार वर्क़ पढ़े, तो उसने उसे मुन्शी के क़लम तराश से काटा और अंगेठी की आग में डाल दिया, यहाँ तक कि तमाम तूमार अंगेठी की आग में भसम हो गया।24लेकिन वह न डरे, न उन्होंने अपने कपड़े फाड़े, न बादशाह ने न उसके मुलाज़िमों में से किसी ने जिन्होंने यह सब बातें सुनी थीं।25लेकिन इलनातन, और दिलायाह, और जमरियाह ने बादशाह से 'अर्ज़ की कि तूमार को न जलाए, लेकिन उसने उनकी एक न सुनी।26और बादशाह ने शाहज़ादे यरहमिएल को और शिरायाह-बिन अजरिएल और सलमियाह बिन अबदिएल ~को हुक्म दिया कि बारूक मुन्शी और यरमियाह नबी को गिरफ़्तार करें, लेकिन ख़ुदावन्द ने उनको छिपाया।27और जब बादशाह तूमार और उन बातों को जो बारूक ने यरमियाह की ज़बानी लिखी थीं, जला चुका तो ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:28कि "तू दूसरा तूमार ले, और उसमें वह सब बातें लिख जो पहले तूमार में थीं, जिसे शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम ने जला दिया।29और शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम से कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: तूने तूमार को जला दिया और कहा है,"तू ने उसमें यूँ क्यूँ लिखा कि शाह-ए-बाबुल यक़ीनन आएगा और इस मुल्क को हलाक करेगा, और न इसमें इन्सान बाक़ी छोड़ेगा न हैवान?"30इसलिए शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: उसकी नसल में से कोई न रहेगा जो दाऊद के तख़्त पर बैठे, और उसकी लाश फेंकी जाएगी, ताकि दिन की गर्मी में और रात को पाले में पड़ी रहे;31और मैं उसको और उसकी नसल को और उसके मुलाज़िमों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा। मैं उन पर और यरुशलीम के बाशिन्दों पर और यहूदाह के लोगों पर वह सब मुसीबत लाऊँगा, जिसका मैंने उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया लेकिन उन्होंने न सुना।' "32तब यरमियाह ने दूसरा तूमार लिया और बारूक-बिन-नैयिरियाह मुन्शी को दिया, और उसने उस किताब की सब बातें जिसे शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम ने आग में जलाया था, यरमियाह की ज़बानी उसमें लिखीं और उनके अलावा वैसी ही और बहुत सी बातें उनमें बढ़ा दी गईं।
1और सिदक़ियाह बिन यूसियाह जिसको शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने मुल्क-ए- यहूदाह पर बादशाह मुक़र्रर किया था, कूनियाह बिन यहुयक़ीम की जगह बादशाही~करने लगा।2लेकिन न उसने, न उसके मुलाज़िमों ने, न मुल्क के लोगों ने ख़ुदावन्द की वह बातें सुनीं, जो उसने यरमियाह नबी के~ज़रिए' फ़रमाई थीं।3और सिदक़ियाह बादशाह ने यहूकल-बिन सलमियाह और सफ़नियाह-बिन-मासियाह काहिन के ज़रिए' यरमियाह नबी को कहला भेजा कि अब हमारे लिए ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से दु'आ कर।"4हुनूज़ यरमियाह लोगों के बीच आया जाया करता था, क्यूँकि उन्होंने अभी उसे क़ैदख़ाने में नहीं डाला था।5इस वक़्त फ़िर'औन की फ़ौज ने मिस्र से चढ़ाई की; और जब कसदियों ने जो यरुशलीम का घिराव किए थे इसकी शोहरत सुनी, तो वहाँ से चले गए।6तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ:7कि "ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम शाह-ए-यहूदाह से जिसने तुम को मेरी तरफ़ भेजा कि मुझसे दरियाफ़्त करो, यूँ कहना कि "देख, फ़िर'औन की फ़ौज जो तुम्हारी मदद को निकली है, अपने मुल्क-ए-मिस्र को लौट जाएगी।8और कसदी वापस आकर इस शहर से लड़ेंगे, और इसे फ़तह करके आग से जलाएँगे।9ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम यह कह कर अपने आपको फ़रेब न दो, "कसदी ज़रूर हमारे पास से चले जाएँगे," क्यूँकि वह न जाएँगे।10और अगरचे तुम कसदियों की तमाम फ़ौज को जो तुम से लड़ती है, ऐसी शिकस्त देते कि उनमें से सिर्फ़ ज़ख़्मी बाक़ी रहते, तो भी वह सब अपने-अपने ख़ेमे से उठते और इस शहर को जला देते।' "11और जब कसदियों की फ़ौज फ़िर'औन की फ़ौज के डर से यरुशलीम के सामने से रवाना हो गई,12तो यरमियाह यरुशलीम से निकला कि बिनयमीन के 'इलाक़े में जाकर वहाँ लोगों के बीच अपना हिस्सा ले।13और जब वह बिनयमीन के फाटक पर पहुँचा, तो वहाँ पहरेवालों का दारोग़ा था, जिसका नाम इर्रियाह-बिन-सलमियाह-बिन-हननियाह था, और उसने यरमियाह नबी को पकड़ा और कहा तू क़सदियों की तरफ़ भागा जाता है।"14तब यरमियाह ने कहा, "यह झूट है; मैं कसदियों की तरफ़ भागा नहीं जाता हूँ, लेकिन उसने उसकी एक न सुनी; तब इर्रियाह यरमियाह को पकड़ कर हाकिम के पास लाया।15और हाकिम यरमियाह पर ग़ज़बनाक हुए और उसे मारा, और यूनतन मुन्शी के घर में उसे क़ैद किया; क्यूँकि उन्होंने उस घर को क़ैदख़ाना बना रख्खा था।16जब यरमियाह क़ैदख़ाने में और उसके तहख़ानों में दाख़िल होकर बहुत दिनों तक वहाँ रह चुका;17तो सिदक़ियाह बादशाह ने आदमी भेजकर उसे निकलवाया, और अपने महल में उससे ख़ुफ़िया तौर से दरियाफ़्त किया कि"क्या ख़ुदावन्द की तरफ़ से कोई कलाम है?" और यरमियाह ने कहा है कि "क्यूँकि उसने फ़रमाया है कि तू शाह-ए-बाबुल के हवाले किया जाएगा।"18और यरमियाह ने सिदक़ियाह बादशाह से कहा, "मैंने तेरा, और तेरे मुलाज़िमों का, और इन लोगों का क्या गुनाह किया है कि तुमने मुझे क़ैदख़ाने में डाला है?19अब तुम्हारे नबी कहाँ हैं, जो तुम से नबुव्वत करते और कहते थे, 'शाह-ए-बाबुल तुम पर और इस मुल्क पर चढ़ाई नहीं करेगा'?20अब ऐ बादशाह, मेरे आक़ा मेरी सुन; मेरी दरख़्वास्त क़ुबूल फ़रमा और मुझे यूनतन मुन्शी के घर में वापस न भेज, ऐसा न हो कि मैं वहाँ मर जाऊँ।"21तब सिदक़ियाह बादशाह ने हुक्म दिया, और उन्होंने यरमियाह को क़ैदख़ाने के सहन में रख्खा; और हर रोज़ उसे नानबाइयों के महल्ले से एक रोटी ले कर देते रहे, जब तक कि शहर में रोटी मिल सकती थी। इसलिए यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा।
1फिर सफ़तियाह बिन मत्तान और जिदलियाह बिन फ़शहूर और यूकुल बिन सलमियाह और फ़शहूर बिन मलकियाह ने वह बातें जो यरमियाह सब लोगों से कहता था, सुनीं, वह कहता था,2"ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जो कोई इस शहर में रहेगा, वह तलवार और काल और वबा से मरेगा; और जो कसदियों में जा मिलेगा, वह ज़िन्दा रहेगा और उसकी जान उसके लिए ग़नीमत होगी और वह ज़िन्दा रहेगा।3ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "यह शहर यक़ीनन शाह-ए-बाबुल की फ़ौज के हवाले कर दिया जाएगा और वह इसे ले लेगा।"4इसलिए हाकिम ने बादशाह से कहा, "हम तुझ से 'अर्ज़ करते हैं कि इस आदमी को क़त्ल करवा, क्यूँकि यह जंगी मर्दों के हाथों को, जो इस शहर में बाक़ी हैं और सब लोगों के हाथों को, उनसे ऐसी बातें कह कर सुस्त करता है। क्यूँकि यह शख़्स इन लोगों का ख़ैरख़्वाह नहीं, बल्कि बदचाहे है।"5तब सिदक़ियाह बादशाह ने कहा, "वह तुम्हारे क़ाबू में है; क्यूँकि बादशाह तुम्हारे ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकता।”6तब उन्होंने यरमियाह को पकड़ कर मलकियाह शाहज़ादे के हौज़ में, जो क़ैदख़ाने के सहन में था डाल दिया; और उन्होंने यरमियाह को रस्से से बाँध कर लटकाया। और हौज़ में कुछ पानी न था बल्कि कीच थी; और यरमियाह कीच में धंस गया।7जब 'अब्द मलिक कूशी ने जो शाही महल के ख़्वाजासराओं में से था, सुना कि उन्होंने यरमियाह को हौज़ में डाल दिया है - जब कि बादशाह बिनयमीन के फाटक में बैठा था।8तो 'अब्द मलिक बादशाह के महल से निकला और बादशाह से यूँ 'अर्ज़ की,9कि "ऐ बादशाह, मेरे आक़ा, इन लोगों ने यरमियाह नबी से जो कुछ किया बुरा किया, क्यूँकि उन्होंने उसे हौज़ में डाल दिया है, और वह वहाँ भूक से मर जाएगा क्यूँकि शहर में रोटी नहीं है।"10तब बादशाह ने 'अब्द मलिक कूशी को यूँ हुक्म दिया,कि "तू यहाँ से तीस आदमी अपने साथ ले, और यरमियाह नबी को इससे पहले कि वह मर जाए हौज़ में से निकाल।"11और 'अब्द मलिक उन आदमियों को जो उसके पास थे, अपने साथ लेकर बादशाह के महल में ख़ज़ाने के नीचे गया, और पुराने चीथड़े और पुराने सड़े हुए लत्ते वहाँ से लिए और उनको रस्सियों के वसीले से हौज़ में यरमियाह के पास लटकाया।12और 'अब्द मलिक कूशी ने यरमियाह से कहा कि इन पुराने चीथड़ों और सड़े हुए लत्तों को रस्सी के नीचे अपनी बगल तले रख।” और यरमियाह ने वैसा ही किया।13और उन्होंने रस्सियों से यरमियाह को खींचा और हौज़ से बाहर निकाला; और यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा।14तब सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह नबी को ख़ुदावन्द के घर के तीसरे मदखल में अपने पास बुलाया; और बादशाह ने यरमियाह से कहा, "मैं तुझ से एक बात पूछता हूँ, तू मुझसे कुछ न छिपा।"15और यरमियाह ने सिदक़ियाह से कहा, "अगर मैं तुझ से खोलकर बयान करूँ, तो क्या तू मुझे यक़ीनन क़त्ल न करेगा? और अगर मैं तुझे सलाह दूँ, तो तू न मानेगा।"16तब सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह के सामने तन्हाई में कहा, "ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम, जो हमारी जानों का ख़ालिक़ है, कि न मैं तुझे क़त्ल करूँगा, और न उनके हवाले करूँगा जो तेरी जान के तलबगार हैं।”17तब यरमियाह ने सिदक़ियाह से कहा कि "ख़ुदावन्द, लश्करों का ख़ुदा, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: यक़ीनन अगर तू निकल कर शाह-ए-बाबुल के हाकिम के पास चला जाएगा, तो तेरी जान बच जाएगी और यह शहर आग से जलाया न जाएगा, और तू और तेरा घराना ज़िन्दा रहेगा।18लेकिन अगर तू शाह-ए-बाबुल के हाकिम के पास न जाएगा, तो यह शहर कसदियों के हवाले कर दिया जाएगा, और वह इसे जला देंगे और तू उनके हाथ से रिहाई न पाएगा।"19सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह से कहा कि "मैं उन यहूदियों से डरता हूँ जो कसदियों से जा मिले हैं, ऐसा न हो कि वह मुझे उनके हवाले करें, और वह मुझ पर ता'ना मारें।"20और यरमियाह ने कहा, "वह तुझे हवाले न करेंगे; मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, तू ख़ुदावन्द की बात, जो मैं तुझ से कहता हूँ मान ले। इससे तेरा भला होगा और तेरी जान बच जाएगी।21लेकिन अगर तू जाने से इन्कार करे, तो यही कलाम है जो ख़ुदावन्द ने मुझ पर ज़ाहिर किया:22कि देख, वह सब 'औरतें जो शाह-ए-यहूदाह के महल में बाक़ी हैं शाह-ए-बाबुल के हाकिम के पास पहुँचाई जाएँगी और कहेंगी कि तेरे दोस्तों ने तुझे फ़रेब दिया और तुझ पर ग़ालिब आए; जब तेरे पाँव कीच में धँस गए, तो वह उल्टे फिर गए।'23और वह तेरी सब बीवियों को, और तेरे बेटों को कसदियों के पास निकाल ले जाएँगे; और तू भी उनके हाथ से रिहाई न पाएगा, बल्कि शाह-ए-बाबुल के हाथ में गिरफ़्तार होगा और तू इस शहर के आग से जलाए जाने का ज़रिया' होगा।"24तब सिदक़ियाह ने यरमियाह से कहा कि ~"इन बातों को कोई न जाने, तो तू मारा न जाएगा।25लेकिन अगर हाकिम सुन लें कि मैंने तुझ से बातचीत की, और वह तेरे पास आकर कहें, कि "जो कुछ तूने बादशाह से कहा, और जो कुछ बादशाह ने तुझ से कहा अब हम पर ज़ाहिर कर, यह हम से न छिपा और हम तुझे क़त्ल न करेंगे;"26तब तू उनसे कहना कि 'मैंने बादशाह से 'अर्ज़ की थी कि मुझे फिर यूनतन के घर में वापस न भेज कि वहाँ मरूँ।' "27तब सब हाकिम यरमियाह के पास आए और उससे पूछा, और उसने इन सब बातों के मुताबिक़, जो बादशाह ने फ़रमाई थीं, उनको जवाब दिया। और वह उसके पास से चुप होकर चले गए; क्यूँकि असल मुआ'मिला उनको मा'लूम न हुआ।28~और जिस दिन तक यरुशलीम फ़तह न हुआ, यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा, और जब यरुशलीम फ़तह हुआ तो वह वहीं था।
1शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह के नवें बरस के दसवें महीने में, शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र अपनी तमाम फ़ौज लेकर यरूशलीम पर चढ़ आया और उसका घिराव किया।2सिदक़ियाह के ग्यारहवें बरस के चौथे महीने की नवीं तारीख़ को शहर-की- फ़सील में रख़ना हो गया;3और शाह-ए- बाबुल के सब सरदार या'नी नैयिरीगल सराज़र, समगर नबू, सरसकीम, ख़्वाजासराओ का सरदार नैयिरीगल सराज़र मजूसियों का सरदार और शाह-ए-बाबुल के बाक़ी सरदार दाख़िल हुए और बीच के फाटक पर बैठे।4और शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह और सब जंगी मर्द उनको देख कर भागे, और दोनों दीवारों के बीच जो फाटक शाही बाग़ के बराबर था, उससे वह रात ही रात भाग निकले और वीराने की राह ली।5लेकिन कसदियों की फ़ौज ने उनका पीछा किया और यरीहू के मैदान में सिदक़ियाह को जा लिया, और उसको पकड़~कर रिब्ला में शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के पास हमात के 'इलाक़े में ले गए; और उसने उस पर फ़तवा दिया।6और शाह-ए-बाबुल ने सिदक़ियाह के बेटों को रिब्ला में उसकी ऑखों के सामने ज़बह किया, और यहूदाह के सब शुरफ़ा को भी क़त्ल किया।7और उसने सिदक़ियाह की आँखें निकाल डालीं और बाबुल को ले जाने के लिए उसे ज़ंजीरों से जकड़ा।8और कसदियों ने शाही महल को और लोगों के घरों को आग से जला दिया, और यरुशलीम की फ़सील को गिरा दिया।9इसके बा'द जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान बाक़ी लोगों को, जो शहर में रह गए थे और उनको जो उसकी तरफ़ होकर उसके पास भाग आए थे, या'नी क़ौम के सब बाक़ी लोगों को ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया।10लेकिन क़ौम के ग़रीबों को जिनके पास कुछ न था, जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने यहूदाह के मुल्क में रहने दिया और उसी वक़्त उनको ताकिस्तान और खेत बख़्शे।11और शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने यरमियाह के बारे में जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान को ताकीद करके यूँ कहा,12कि "उसे लेकर उस पर ख़ूब निगाह रख, और उसे कुछ दुख न दे, बल्कि तू उससे वही कर जो वह तुझे कहे।"13तब जिलौदारों के सरदार नब्बूज़रादान, नाबूशज़बान ख़्वाजासराओं के~सरदार, और नैयिरिगल सराज़र, मजूसियों के सरदार, और बाबुल के सब सरदारों ने आदमी भेजकर14यरमियाह को क़ैदख़ाने के सहन से~निकलवा लिया, और जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम-बिन-साफ़न के सुपुर्द किया कि उसे घर ले जाए। इसलिए वह लोगों के साथ रहने लगा।15और जब यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में बन्द था, ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ:16कि "जा, 'अब्द मलिक कूशी से कह, 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं अपनी बातें इस शहर की भलाई कि लिए नहीं, बल्कि ख़राबी के लिए पूरी करूँगा; और वह उस रोज़ तेरे सामने पूरी होंगी।17लेकिन उस दिन मैं तुझे रिहाई दुँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और तू उन लोगों के हवाले न किया जाएगा जिनसे तू डरता है।18~क्यूँकि मैं तुझे ज़रूर बचाऊँगा और तू तलवार से मारा न जाएगा, बल्कि तेरी जान तेरे लिए ग़नीमत होगी; इसलिए कि तूने मुझ पर भरोसा किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।' "
1वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से~यरमियाह पर नाज़िल हुआ, इसके बा'द के जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने उसको रामा से रवाना कर दिया, जब उसने उसे हथकड़ियों से जकड़ा हुआ उन सब ग़ुलामों के बीच पाया जो यरुशलीम और यहूदाह के थे, जिनको ग़ुलाम करके बाबुल को ले जा रहे थे2और जिलौदारों के सरदार ने यरमियाह को लेकर उससे कहा,कि "ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने इस बला की, जो इस जगह पर आई ख़बर दी थी।3इसलिए ख़ुदावन्द ने उसे नाज़िल किया, और उसने अपने क़ौल के मुताबिक़ किया; क्यूँकि तुम लोगों ने ख़ुदावन्द का गुनाह किया और उसकी नहीं सुनी, इसलिए तुम्हारा ये हाल हुआ।4और देख, आज मैं तुझे इन हथकड़ियों से जो तेरे हाथों में हैं रिहाई देता हूँ। अगर मेरे साथ बाबुल चलना तेरी नज़र में बेहतर हो, तो चल, और मैं तुझ पर ख़ूब निगाह रखूँगा; और अगर मेरे साथ बाबुल चलना तेरी नज़र में बुरा लगे, तो यहीं रह; तमाम मुल्क तेरे सामने है जहाँ तेरा जी चाहे और तू मुनासिब जाने वहीं चला जा।"5वह वहीं था कि उसने फिर कहा, "तू जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम बिन साफ़न के पास जिसे शाह-ए-बाबुल ने यहूदाह के शहरों का हाकिम किया है, चला जा और लोगों के बीच उसके साथ रह; वर्ना जहाँ तेरी नज़र में बेहतर हो वहीं चला जा।" और जिलौदारों के सरदार ने उसे ख़ुराक और इन'आम देकर रुख़्सत किया।6तब यरमियाह जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम के पास मिस्फ़ाह में गया, और उसके साथ उन लोगों के बीच, जो उस मुल्क में बाक़ी रह गए थे रहने लगा।7जब लश्करों के सब सरदारों ने और उनके आदमियों ने जो मैदान में रह गए थे, सुना के शाह-ए-बाबुल ने जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम को मुल्क का हाकिम मुक़र्रर किया है; और मर्दों और 'औरतों और बच्चों को, और ममलुकत के ग़रीबों को जो ग़ुलाम होकर बाबुल को न गए थे, उसके सुपुर्द किया है;8तो इस्माईल-बिन-नतनियाह और यूहनान और यूनतन बनी क़रिह और सिरायाह- बिन-तनहुमत और बनी 'ईफ़ी नतुफ़ाती और~यज़नियाह-बिन-मा'काती अपने आदमियों के साथ जिदलियाह के पास मिस्फ़ाह में आए।9और जिद्लियाह-बिन-अखिक़ाम-बिन-साफ़न ने उन से और उन के आदमियों से क़सम खाकर कहा, "तुम कसदियों की ख़िदमत गुज़ारी से न डरो। अपने मुल्क में बसो, और शाह-ए-बाबुल की ख़िदमत करो तो तुम्हारा भला होगा।10देखो, मैं तो इसलिए मिस्फ़ाह में रहता हूँ कि जो कसदी हमारे पास आएँ, उनकी ख़िदमत में हाज़िर रहूँ पर तुम मय और ताबिस्तानी मेवे, और तेल जमा' करके अपने बर्तनों में रख्खो, और अपने शहरो में जिन पर तुम ने क़ब्ज़ा किया है बसो।"11और इसी तरह जब उन सब यहूदियों ने जो मोआब और बनी 'अम्मोन और अदोम' और तमाम मुमालिक में थे, सुना कि शाह-ए-बाबुल ने यहूदाह के चन्द लोगों को रहने दिया है, और जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम-बिन-साफ़न को उन पर हाकिम मुक़र्रर किया है;12तो सब यहूदी हर जगह से, जहाँ वह तितर-बितर किए गए थे, लौटे और यहूदाह के मुल्क में मिस्फ़ाह में जिदलियाह के पास आए, और मय और ताबिस्तानी मेवे कसरत से जमा' किए।13और यूहनान-बिन-क़रीह और लश्करों के सब सरदार जो मैदानों में थे, मिस्फ़ाह में जिदलियाह के पास आए14और उससे कहने लगे, "क्या तू जानता है कि बनी 'अम्मोन के बादशाह बा'लीस ने इस्माईल-बिन-नतनियाह को इसलिए भेजा है कि तुझे क़त्ल करे?" लेकिन जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम ने उनका यक़ीन न किया।15और यूहनान-बिन-क़रीह ने मिस्फ़ाह में जिदलियाह से तन्हाई में कहा, "इजाज़त हो तो मैं इस्माईल-बिन-नतनियाह को क़त्ल करूँ, और इसको कोई न जानेगा; वह क्यूँ तुझे क़त्ल करे, और सब यहूदी जो तेरे पास जमा' हुए हैं, तितर-बितर किए जाएँ, और यहूदाह के बाक़ी मान्दा लोग हलाक हों?"16लेकिन~जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम ने यूहनान-बिन-क़रीह से कहा, "तू ऐसा काम हरगिज़ न करना, क्यूँकि तू इस्माईल के बारे में झूट कहता है।"
1और सातवें महीने में यूँ हुआ कि इस्माईल बिन-नतनियाह-बिन-इलीसमा' जो शाही नसल से और बादशाह के सरदारों में से था, दस आदमी साथ लेकर जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम के पास मिस्फ़ाह में आया; और उन्होंने वहाँ मिस्फ़ाह में मिल कर खाना खाया।2तब इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह उन दस आदमियों के साथ जो उसके साथ थे उठा और~जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम बिन साफ़न को~जिसे शाह-ए-बाबुल ने मुल्क का हाकिम मुक़र्रर किया था, तलवार से मारा और उसे क़त्ल किया।3और इस्माईल ने उन सब यहूदियों को जो जिदलियाह के साथ मिस्फ़ाह में थे, और कसदी सिपाहियों को जो वहाँ हाज़िर थे क़त्ल किया।4जब वह जिदलियाह को मार चुका, और किसी को ख़बर न हुई, तो उसके दूसरे दिन यूँ हुआ|5कि सिक्म और सैला और सामरिया से कुछ लोग जो सब के सब अस्सी आदमी थे, दाढ़ी मुंडाए और कपड़े फाड़े और अपने आपको घायल किए और हदिये और लुबान हाथों में लिए हुए वहाँ आए, ताकि ख़ुदावन्द के घर में पेश करें।6और इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह मिस्फ़ाह से उनके इस्तक़बाल को निकला, और रोता हुआ चला; और यूँ हुआ कि जब वह उनसे मिला तो उनसे कहने लगा कि जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम के पास चलो।"7और फिर जब वह शहर के वस्त में पहुँचे, तो इस्माईल-बिन-नतनियाह और उसके साथियों ने उनको क़त्ल करके हौज़ में फेंक दिया।8लेकिन उनमें से दस आदमी थे जिन्होंने इस्मा'ईल से कहा, "हम को क़त्ल न कर, क्यूँकि हमारे गेहूँ और जौ और तेल और शहद के ज़ख़ीरे खेतों में पोशीदा हैं।" इसलिए वह बाज़ रहा और उनको उनके भाइयों के साथ क़त्ल न किया।9वह हौज़ जिसमें इस्माईल ने उन लोगों की लाशों को फेंका था, जिनको उसने जिदलियाह के साथ क़त्ल किया (वही है जिसे आसा बदशाह ने शाह-ए-इस्राईल बाशा के डर से बनाया था) और इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह ने उसको मक़्तूलों की लाशों से भर दिया।10तब इस्माईल बाक़ी सब लोगों को, या'नी शहज़ादियों और उन सब लोगों को जो मिस्फ़ाह में रहते थे जिनको जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम के सुपुर्द किया था, ग़ुलाम करके ले गया; इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह उनको ग़ुलाम करके रवाना हुआ कि पार होकर बनी 'अम्मोन में जा पहुँचे।11लेकिन जब यूहनान-बिन-क़रीह ने और लश्कर कि सब सरदारों ने जो उसके साथ थे, इस्माईल-बिन-नतनियाह की तमाम शरारत के बारे में जो उसने की थी सुना,12तो वह सब लोगों को लेकर उससे लड़ने को गए और जिबा'ऊन के बड़े तालाब पर उसे जा लिया।13और यूँ हुआ कि जब उन सब लोगों ने जो इस्माईल के साथ थे यूहनान-बिन-क़रीह को और उसके साथ सब फ़ौजी सरदारों को देखा, तो वह ख़ुश हुए।14तब वह सब लोग जिनको इस्मा'ईल मिस्फ़ाह से पकड़ ले गया था, पलटे और यूहनान-बिनक़रीह के पास वापस आए।15लेकिन इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह आठ आदमियों के साथ यूहनान के सामने से भाग निकला और बनी 'अमोन की तरफ़ चला गया।16तब यूहनान-बिन" क़रीह और वह फ़ौजी सरदार जो उसके हमराह थे, सब बाक़ी मान्दा लोगों को वापस लाए, जिनको इस्माइल बिन नतनियाह जिदलियाह बिन-अख़ीक़ाम को क़त्ल करने के बा'द मिस्फ़ाह से ले गया था या'नी जंगी मर्दों और 'औरतों और लड़कों और ख़्वाजासराओं को, जिनको वह जिबा'ऊन से वापस लाया था।17और वह रवाना हुए और सराय-ए-किमहाम में जो बैतलहम के नज़दीक है,आ रहे ताकि मिस्र को जाएँ।18क्यूँकि वह कसदियों से डरे; इसलिए कि इस्मा'ईल-बिन-नतनियाह ने जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम को, जिसे शाहए-बाबुल ने उस मुल्क पर हाकिम मुक़र्रर किया था, क़त्ल कर डाला।
1तब सब फ़ौजी सरदार और यूहनान बिन क़रीह और यजनियाह बिन हूसाइयाह और अदना-ओ-'आला, सब लोग आए2~और यरमियाह नबी से कहा, "तू देखता है कि हम बहुतों में से चन्द ही रह गए हैं; हमारी दरख़्वास्त क़ुबूल कर और अपने ख़ुदावन्द ख़ुदा से हमारे लिए, हाँ, इस तमाम बक़िये के लिए दु'आ कर,3~ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, हमको, वह राह जिसमें हम चलें और वह काम जो हम करें बतला दे।"4~तब यरमियाह नबी ने उनसे कहा, "मैंने सुन लिया, देखो, अब मैं ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा से तुम्हारे कहने के मुताबिक़ दु'आ करूँगा; और जो जवाब ख़ुदावन्द तुम को देगा, मैं तुम को सुनाऊँगा। मैं तुम से कुछ न छिपाऊँगा।"5~और उन्होंने यरमियाह से कहा कि "जो कुछ ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, तेरे ज़रिए' हम से फ़रमाए, अगर हम उस पर 'अमल न करें तो ख़ुदावन्द हमारे ख़िलाफ़ सच्चा और वफ़ादार गवाह हो।6चाहे भला मा'लूम हो चाहे बुरा, हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का हुक्म, जिसके सामने हम तुझे भेजते हैं मानेंगे; ताकि जब हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़रमाँबरदारी करें तो हमारा भला हो।"7~अब दस दिन के बा'द यूँ हुआ कि ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ।8~और उसने यूहनान-बिन-क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों को जो उसके साथ थे, और अदना-ओ-आ'ला सबको बुलाया,9~और उनसे कहा, "ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, जिसके पास तुम ने मुझे भेजा कि मैं उसके सामने तुम्हारी दरख़्वास्त पेश करूँ, यूँ फ़रमाता है:10अगर तुम इस मुल्क में ठहरे रहोगे, तो मैं तुम को बर्बाद नहीं बल्कि आबाद करूँगा और उखाड़ूँ नहीं लगाऊँगा, क्यूँकि मैं उस बुराई से जो मैंने तुम से की है बाज़ आया।11शाह-ए-बाबुल से, जिससे तुम डरते हो, न डरो ख़ुदावन्द फ़रमाता है; उससे न डरो, क्यूँकि मैं तुम्हारे साथ हूँ कि तुम को बचाऊँ और उसके हाथ से छुड़ाऊँ।12मैं तुम पर रहम करूँगा, ताकि वह तुम पर रहम करे और तुम को तुम्हारे मुल्क में वापस जाने की इजाज़त दे।13~लेकिन अगर तुम कहो कि 'हम फिर इस मुल्क में न रहेंगे,' और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात न मानेंगे;14~और कहो कि 'नहीं, हम तो मुल्क-ए-मिस्र में जाएँगे, जहाँ न लड़ाई देखेंगे न तुरही की आवाज़ सुनेंगे, न भूक से रोटी को तरसेंगे और हम तो वहीं बसेंगे,"15~तो ऐ यहूदाह के बाक़ी लोगों, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो। रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: अगर तुम वाक़'ई मिस्र में जाकर बसने पर आमादा हो,16तो यूँ होगा कि वह तलवार जिससे तुम डरते हो, मुल्क-ए-मिस्र में तुम को जा लेगी, और वह काल जिससे तुम हिरासान हो, मिस्र तक तुम्हारा पीछा करेगा और तुम वहीं मरोगे।17बल्कि यूँ होगा कि वह सब लोग जो मिस्र का रुख़ करते हैं कि वहाँ जाकर रहें, तलवार और काल और वबा से मरेंगे: उनमें से कोई बाक़ी न रहेगा और न कोई उस बला से जो मैं उन पर नाज़िल करूँगा बचेगा।18~"क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जिस तरह मेरा क़हर-ओ-ग़ज़ब यरुशलीम के बाशिन्दों पर नाज़िल हुआ, उसी तरह मेरा क़हर तुम पर भी, जब तुम मिस्र में दाख़िल होगे, नाज़िल होगा और तुम ला'नत-ओ-हैरत और तान-ओ-तशनी' का ज़रिया' होगे; और इस मुल्क को तुम फिर न देखोगे।19ऐ यहूदाह के बाक़ी मान्दा लोगों, ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बारे में फ़रमाया है, कि 'मिस्र में न जाओ," यक़ीन जानो कि मैंने आज तुम को जता दिया है।20~हक़ीक़त में तुमने अपनी जानों को फ़रेब दिया है, क्यूँकि तुम ने मुझ को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने यूँ कहकर भेजा, कि 'तू ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से हमारे लिए दु'आ कर और जो कुछ ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा कहे, हम पर ज़ाहिर कर और हम उस पर 'अमल करेंगे।'21और मैंने आज तुम पर यह ज़ाहिर कर दिया है; तो भी तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ को, या किसी बात को जिसके लिए उसने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, नहीं माना।22~अब तुम यक़ीन जानो कि तुम उस मुल्क में जहाँ जाना और रहना चाहते हो, तलवार और काल और वबा से मरोगे।"
1~और यूँ हुआ कि जब यरमियाह सब लोगों से वह सब बातें, जो ख़ुदावन्द उनके ख़ुदा ने उसके ज़रिए' फ़रमाईं थीं, या'नी यह सब बातें कह चुका,2~तो अज़रियाह बिन होसियाह और यूहनान बिन क़रीह और सब मग़रूर लोगों ने यरमियाह से यूँ कहा कि, "तू झूट बोलता है; ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने तुझे यह कहने को नहीं भेजा, 'मिस्र में बसने को न जाओ,'3~बल्कि बारूक-बिन-नैयिरियाह तुझे उभारता है कि तू हमारे मुखालिफ़ हो, ताकि हम कसदियों के हाथ में गिरफ़्तार हों और वह हमको क़त्ल करें और ग़ुलाम करके बाबुल को ले जाएँ।"4तब यूहनान-बिन-क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों और सब लोगों ने ख़ुदावन्द का यह हुक्म कि वह यहूदाह के मुल्क में रहें, न माना।5~~लेकिन यूहनान-बिन-क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों ने यहूदाह के सब बाक़ी लोगों को, जो तमाम क़ौमों में से जहाँ-जहाँ वह तितर-बितर किए गए थे और यहूदाह के मुल्क में बसने को वापस आए थे, साथ लिया;6~या'नी मर्दों और 'औरतों और बच्चों और शाहज़ादियों और जिस किसी को जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने जिदलियाह-बिन-अख़ीक़ाम-बिन-साफ़न के साथ छोड़ा था, और यरमियाह नबी और बारूक-बिन-नैयिरियाह को साथ लिया;7~और वह मुल्क-ए-मिस्र में आए, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द का हुक्म न माना, इसलिए वह तहफ़नहीस में पहुँचे।8~तब ख़ुदावन्द का कलाम तहफ़नहीस में यरमियाह पर नाज़िल हुआ:9~कि "बड़े पत्थर अपने हाथ में ले, और उनको फ़िर'औन के महल के मदख़ल पर जो तहफ़नहीस में है, बनी यहूदाह की आँखों के सामने चूने से फ़र्श में लगा;10और उनसे कह कि ~'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: देखो, मैं अपने ख़िदमत गुज़ार शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र को बुलाऊँगा, और इन पत्थरों पर जिनको मैंने लगाया है, उसका तख़्त रख्खूंगा, और वह इन पर अपना क़ालीन बिछाएगा।11~और वह आकर मुल्क-ए- मिस्र को शिकस्त देगा; और जो मौत के लिए हैं मौत के, और जो ग़ुलामी के लिए हैं ग़ुलामी के, और जो तलवार के लिए हैं तलवार के हवाले करेगा।12और मैं मिस्र के बुतख़ानों में आग भड़काऊँगा, और वह उनको जलाएगा और ग़ुलाम करके ले जाएगा; और जैसे चरवाहा अपना कपड़ा लपेटता है, वैसे ही वह ज़मीन-ए-मिस्र को लपेटेगा; और वहाँ से सलामत चला जाएगा।13~और वह बैतशम्स के सुतूनों को, जो मुल्क-ए-मिस्र में हैं तोड़ेगा और मिस्रियों के बुतख़ानों को आग से जला देगा।'~
1~ वह कलाम जो उन सब यहूदियों के बारे में जो मुल्क-ए-मिस्र में मिजदाल के 'इलाक़े और तहफ़नीस और नूफ़ और फ़तरूस में बसते थे, यरमियाह पर नाज़िल हुआ:2~कि 'रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने वह तमाम मुसीबत जो मैं यरुशलीम पर और यहूदाह के सब शहरों पर लाया हूँ, देखी; और देखो, अब वह वीरान और ग़ैर आबाद हैं।3उस शरारत की वजह से जो उन्होंने मुझे गज़बनाक करने को की, क्यूँकि वह ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू ~जलाने को गए, और उनकी 'इबादत की जिनको न वह जानते थे, न तुम न तुम्हारे बाप-दादा।4और मैंने अपने तमाम ख़िदमत-गुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, उनको वक़्त पर यूँ कह कर भेजा कि तुम यह नफ़रती काम, जिससे मैं नफ़रत रखता हूँ, न करो।5~लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया कि अपनी बुराई से बाज़ आएँ, और ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू न जलाएँ।6~इसलिए मेरा क़हर-ओ-ग़ज़ब नाज़िल हुआ, और यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के बाज़ारों पर भड़का;" और वह ख़राब और वीरान हुए जैसे अब हैं।7और अब ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम क्यूँ अपनी जानों से ऐसी बड़ी बुराई करते हो, कि यहूदाह में से मर्द-ओ-ज़न और तिफ़्ल-ओ-शीर ख़्वार काट डालें जाएँ और तुम्हारा कोई बाक़ी न रहे;8~कि तुम मुल्क-ए-मिस्र में, जहाँ तुम बसने को गए हो, अपने 'आमाल से और ग़ैर-मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाकर मुझको ग़ज़बनाक करते हो, कि हलाक किए जाओ और इस ज़मीन की सब क़ौमों के बीच ला'नत-ओ-मलामत का ज़रिया' बनो।9~क्या तुम अपने बाप-दादा की शरारत और यहूदाह के बादशाहों और उनकी बीवियों की और ख़ुद अपनी और अपनी बीवियों की शरारत, जो तुम ने यहूदाह के मुल्क में और यरुशलीम के बाज़ारों में की, भूल गए हो?10~वह आज के दिन तक न फ़रोतन हुए, न डरे और मेरी शरी'अत-ओ-आईन पर, जिनको मैंने तुम्हारे और तुम्हारे बाप-दादा के सामने रख्खा, न चले।11~"इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: देखो, मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ ज़ियानकारी पर आमादा हूँ ताकि तमाम यहूदाह को हलाक करूँ ।12और मैं यहूदाह के बाक़ी लोगों को, जिन्होंने मुल्क-ए-मिस्र का रुख़ किया है कि वहाँ जाकर बसें, पकड़ूँगा; और वह मुल्क-ए-मिस्र ही में हलाक होंगे, वह तलवार और काल से हलाक होंगे; उनके अदना-ओ-'आला हलाक होंगे और वह तलवार और काल से फ़ना हो जाएँगे; और ला'नत-ओ-हैरत और ता'न-ओ-तशनी' का ज़रिया' होंगे।13~और मैं उनको जो मुल्क-ए- मिस्र में बसने को जाते हैं, उसी तरह सज़ा दूँगा जिस तरह मैंने यरुशलीम को तलवार और काल और वबा से सज़ा दी है;14तब यहूदाह के बाक़ी लोगों में से, जो मुल्क-ए- मिस्र में बसने को जाते हैं, न कोई बचेगा, न बाक़ी रहेगा कि वह यहूदाह की सरज़मीन में वापस आएँ, जिसमें आकर बसने के वह मुश्ताक़ हैं; क्यूँकि भाग कर बच निकलने वालों के अलावा कोई वापस न आएगा।"15तब सब मर्दों ने, जो जानते थे कि उनकी बीवियों ने ग़ैर-मा'बूदों के लिए ख़ुशबू ~जलायी है, और सब 'औरतों ने जो पास खड़ी थीं, एक बड़ी जमा'अत या'नी सब लोगों ने जो मुल्क-ए-मिस्र में फ़तरूस में जा बसे थे, यरमियाह को यूँ जवाब दिया:16कि "यह बात जो तूने ख़ुदावन्द का नाम लेकर हम से कही, हम कभी न मानेंगे।17बल्कि हम तो उसी बात पर 'अमल करेंगे, जो हम ख़ुद कहते हैं कि हम आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाएँगे और तपावन तपाएँगे, जिस तरह हम और हमारे बाप-दादा, हमारे बादशाह और हमारे सरदार, यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के बाज़ारों में किया करते थे; क्यूँकि उस वक़्त हम ख़ूब खाते-पीते और ख़ुशहाल और मुसीबतों से महफ़ूज़ थे।18लेकिन जबसे हम ने आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाना और तपावन तपाना छोड़ दिया, तब से हम हर चीज़ के मोहताज हैं, और तलवार और काल से फ़ना हो रहे हैं।19और जब हम आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाती और तपावन तपाती थीं, तो क्या हम ने अपने शौहरों के बग़ैर, उसकी 'इबादत के लिए कुल्चे पकाए और तपावन तपाए थे?"20~तब यरमियाह ने उन सब मर्दों और 'औरतों या'नी उन सब लोगों से, जिन्होंने उसे~जवाब दिया था, कहा,21~"क्या वह ख़ुशबू, जो तुम ने और तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बादशाहों और हाकिम ने र'इयत के साथ यहूदाह के शहरों और यरुशलीम के बाज़ारों में जलाया, ख़ुदावन्द को याद नहीं? क्या वह उसके ख़याल में नहीं आया?22इसलिए तुम्हारे बद'आमाल और नफ़रती कामों की वजह से ख़ुदावन्द बर्दाश्त न कर सका; इसलिए तुम्हारा मुल्क वीरान हुआ और हैरत-ओ-ला'नत का ज़रिया' बना, जिसमें कोई बसने वाला न रहा, जैसा कि आज के दिन है।23~चूँकि तुम ने ख़ुशबू जलाया और ख़ुदावन्द के गुनाहगार ठहरे, और उसकी आवाज़ को न सुना और न उसकी शरी'अत, न उसके क़ानून, न उसकी शहादतों पर चले; इसलिए यह मुसीबत जैसी कि अब है, तुम पर आ पड़ी।"24~और यरमियाह ने सब लोगों और~सब 'औरतों से यूँ कहा कि "ऐ तमाम बनी यहूदाह, जो मुल्क-ए-मिस्र में हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।25रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने और तुम्हारी बीवियों ने अपनी ज़बान से कहा कि 'आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाने और तपावन तपाने की जो नज़्रें हम ने मानी हैं, ज़रूर अदा करेंगे," और तुमने अपने हाथों से ऐसा ही किया; इसलिए अब तुम अपनी~नज़्रों~को क़ायम रख्खो और अदा करो26~इसलिए ऐ तमाम बनी यहूदाह, जो मुल्क-ए-मिस्र में बसते हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो; देखो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैंने अपने बुज़ुर्ग नाम की क़सम खाई है कि अब मेरा नाम यहूदाह के लोगों में तमाम मुल्क-ए-मिस्र में किसी के मुँह से न निकलेगा, कि वह कहें ज़िन्दा ख़ुदावन्द ख़ुदा की क़सम।27~देखो, मैं नेकी कि लिए नहीं, बल्कि बुराई के लिए उन पर निगरान हूँगा; और यहूदाह के सब लोग, जो मुल्क-ए-मिस्र में हैं, तलवार और काल से हलाक होंगे यहाँ तक कि बिल्कुल नेस्त हो जाएँगे।28और वह जो तलवार से बचकर मुल्क-ए-मिस्र से यहूदाह के मुल्क में वापस आएँगे, थोड़े से होंगे और यहूदाह के तमाम बाक़ी लोग, जो मुल्क-ए-मिस्र में बसने को गए, जानेंगे कि किसकी बात क़ायम रही, मेरी या उनकी।29~और तुम्हारे लिए यह निशान है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं इसी जगह तुम को सज़ा दूँगा, ताकि तुम जानो कि तुम्हारे ख़िलाफ़ मेरी बातें मुसीबत के बारे में यक़ीनन क़ायम रहेंगी:30~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि देखो, मैं शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन हुफ़रा' को उसके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले कर दूँगा; जिस तरह मैंने शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह को शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हवाले कर दिया, जो उसका मुख़ालिफ़ और जानी दुश्मन था।"
1शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम बिन यूसियाह के चौथे बरस में, जब बारूक-बिन-नैयिरियाह यरमियाह की ज़बानी कलाम की किताब में लिख रहा था, जो यरमियाह ने उससे कहा:2"ऐ बारूक, ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, तेरे बारे में यूँ फ़रमाता है:3~कि तूने कहा, 'मुझ पर अफ़सोस! कि ख़ुदावन्द ने मेरे दुख-दर्द पर ग़म भी बढ़ा दिया; मैं कराहते-कराहते थक गया और मुझे आराम न मिला।'4~तू उससे यूँ कहना, कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख, इस तमाम मुल्क में, जो कुछ मैंने बनाया गिरा दूँगा, और जो कुछ मैंने लगाया उखाड़ फेकूँगा।5~और क्या तू अपने लिए उमूर-ए-'अज़ीम की तलाश में है? उनकी तलाश छोड़ दे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख, मैं तमाम बशर पर बला नाज़िल करूँगा ; लेकिन जहाँ कहीं तू जाए तेरी जान तेरे लिए ~ग़नीमत ठहराऊँगा।"
1ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह नबी पर क़ौमों के बारे में नाज़िल हुआ।2मिस्र के बारे में शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन निकोह की फ़ौज के बारे में जो दरिया-ए-फ़रात के किनारे पर करकिमीस में थी, जिसको शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम-बिन-यूसियाह के चौथे बरस में शिकस्त दी:3सिपर और ढाल को तैयार करो, और लड़ाई पर चले आओ।4घोड़ों पर साज़ लगाओ; ऐ सवारो, तुम सवार हो और ख़ोद पहनकर निकलो, नेज़ों को सैक़ल करो, बक्तर पहिनो!5मैं उनको घबराए हुए क्यूँ देखता हूँ? वह पलट गए; उनके बहादुरों ने शिकस्त खाई, वह भाग निकले और पीछे फिरकर नहीं देखते क्यूँकि चारों तरफ़ खौफ़ है ख़ुदावन्द फ़रमाता है।6न सुबुकपा भागने पाएगा, न बहादुर बच निकलेगा; उत्तर में दरिया-ए-फ़रात के किनारे उन्होंने ठोकर खाई और गिर पड़े।7'यह~कौन है जो दरिया-ए-नील की तरह बढ़ा चला आता है, जिसका पानी सैलाब की तरह मौजज़न है?8मिस्र नील की तरह उठता है, और उसका पानी सैलाब की तरह मौजज़न है; और वह कहता है, 'मैं चढ़ूँगा और ज़मीन को छिपा लूँगा मैं शहरों को और उनके बशिन्दों को हलाक कर दूँगा।'9घोड़े बरअन्गेख़ता हों, रथ हवा हो जाएँ, और कूश-ओ-फ़ूत के बहादुर जो सिपरबरदार हैं, और लूदी जो कमानकशी और तीरअन्दाज़ी में माहिर हैं, निकलें।10क्यूँकि यह ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज का दिन, या'नी इन्तक़ाम का रोज़ है, ताकि वह अपने दुश्मनों से इन्तक़ाम ले। इसलिए तलवार खा जाएगी और सेर होगी, और उनके ख़ून से मस्त होगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज के लिए उत्तरी सरज़मीन में दरिया-ए-फ़रात के किनारे एक ज़बीहा है।11ऐ कुँवारी दुख़्तर-ए-मिस्र, जिल'आद को चढ़ जा और बलसान ले, तू बे-फ़ायदा तरह तरह की दवाएँ इस्ते'माल करती है तू शिफ़ा न पाएगी।12क़ौमों ने तेरी रुस्वाई का हाल सुना, और ज़मीन तेरी फ़रियाद से मा'मूर हो गई, क्यूँकि बहादुर एक दूसरे से टकराकर एक साथ गिर गए।"13वह कलाम जो ख़ुदावन्द ने यरमियाह नबी को शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के आने और मुल्क-ए-मिस्र को शिकस्त देने के बारे में फ़रमाया:14"मिस्र में आशकारा करो, मिजदाल में इश्तिहार दो; हाँ, नूफ़ और तहफ़नहीस में 'ऐलान करो; कहो कि 'अपने आपको तैयार कर; क्यूँकि तलवार तेरी चारों तरफ़ खाये जाती है।'15तेरे बहादुर क्यूँ भाग गए? वह खड़े न रह सके, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको गिरा दिया।16उसने बहुतों को गुमराह किया, हाँ, वह एक दूसरे पर गिर पड़े; और उन्होंने कहा, 'उठो, हम मुहलिक तलवार के ज़ुल्म से अपने लोगों में और अपने वतन को फिर जाएँ।'17वह वहाँ चिल्लाए कि 'शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन बर्बाद हुआ; उसने मुक़र्ररा वक़्त को गुज़र जाने दिया।'18'वह बादशाह, जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है, यूँ फ़रमाता है कि मुझे अपनी हयात की क़सम, जैसा तबूर पहाड़ों में और जैसा कर्मिल समन्दर के किनारे है, वैसा ही वह आएगा।19ऐ बेटी, जो मिस्र में रहती है ग़ुलामी में जाने का सामान कर; क्यूँकि नूफ़ वीरान और भसम होगा, उसमें कोई बसने वाला न रहेगा।20"मिस्र बहुत ख़ूबसूरत बछिया है; लेकिन उत्तर से तबाही आती है, बल्कि आ पहुँची।21उसके मज़दूर सिपाही भी उसके बीच मोटे बछड़ों की तरह हैं; लेकिन वह भी शुमार हुए, वह इकट्ठे भागे, वह खड़े न रह सके; क्यूँकि उनकी हलाकत का दिन उन पर आ गया, उनकी सज़ा का वक़्त आ पहुँचा।22'वह साँप की तरह चिलचिलाएगी; क्यूँकि वह फ़ौज लेकर चढ़ाई करेंगे, और कुल्हाड़े लेकर लकड़हारों की तरह उस पर चढ़ आएँगे।23वह उसका जंगल काट डालेंगे, अगरचे वह ऐसा घना है कि कोई उसमें से गुज़र नहीं सकता ख़ुदावन्द फ़रमाता है क्यूँकि वह टिड्डियों से ज़्यादा बल्कि बेशुमार हैं।24दुख़्तर-ए-मिस्र रुस्वा होगी, वह उत्तरी लोगों के हवाले की जाएगी।"25रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, फ़रमाता है: "देख, मैं आमून-ए-नो को, और फ़िर'औन और मिस्र और उसके मा'बूदों, और उसके बादशाहों को; या'नी फ़िर'औन और उनको जो उस पर भरोसा रखते हैं, सज़ा दूँगा;26और मैं उनको उनके जानी दुश्मनों, और शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र और उसके मुलाज़िमों के हवाले कर दूँगा; लेकिन इसके बा'द वह फिर ऐसी आबाद होगी, जैसी अगले दिनों में थी, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।27"लेकिन मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासाँ न हो; और ऐ इस्राईल, घबरा न जा; क्यूँकि देख, मैं तुझे दूर से, और तेरी औलाद को उनकी ग़ुलामी की ज़मीन से रिहाई दूँगा; और या'क़ूब वापस आएगा और आराम-ओ-राहत से रहेगा, और कोई उसे न डराएगा।28ऐ मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासाँ न हो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ। अगरचे मैं उन सब क़ौमों को जिनमें मैंने तुझे हाँक दिया, हलाक-ओ-बर्बाद करूँ तों भी मै तुझे~हलाक-ओ-बर्बाद~न करूँगा; बल्कि मुनासिब तम्बीह करूँगा और हरगिज़ बे-सज़ा~न छोड़ूँगा
1ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह नबी पर फ़िलिस्तियों के बारे में नाज़िल हुआ, इससे पहले कि फ़िर'औन ने ग़ज़्ज़ा को फ़तह किया |2"ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, उत्तर से पानी चढ़ेंगे और सैलाब की तरह होंगे, और मुल्क पर और सब पर जो उसमें है, शहर पर और उसके बाशिन्दों पर, बह निकलेंगे। उस वक़्त लोग चिल्लाएँगे, और मुल्क के सब बाशिन्दे फ़रियाद करेंगे।3उसके ताकतवर घोड़ों के खुरों की टाप की आवाज़ से, उसके रथों के रेले और उसके पहियों की गड़गड़ाहट से बाप कमज़ोरी की वजह से अपने बच्चों की तरफ़ लौट कर न देखेंगे।4~यह उस दिन की वजह से होगा, जो आता है कि सब फ़िलिस्तियों को ग़ारत करे, और सूर और सैदा से हर मददगार को जो बाक़ी रह गया है हलाक करे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़िलिस्तियों को या'नी कफ़तूर के जज़ीरे के बाक़ी लोगों को ग़ारत करेगा।5~ग़ज़्ज़ा पर चन्दलापन आया है, अस्क़लोन अपनी वादी के बक़िये के साथ हलाक किया गया, तू कब तक अपने आप को काटता जाएगा6~"ऐ ख़ुदावन्द की तलवार, तू कब तक न ठहरेगी? तू चल, अपने ग़िलाफ़ में आराम ले, और साकिन हो!7~वह कैसे ठहर सकती है, जब कि ख़ुदावन्द ने अस्क़लोन और समन्दर के साहिल के ख़िलाफ़ उसे हुक्म दिया है? उसने उसे वहाँ मुक़र्रर किया है।"
1मोआब के बारे में। रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: "नबू पर अफ़सोस, कि वह वीरान हो गया! क़रयताइम रुस्वा हुआ, और ले लिया गया; मिसजाब ख़जिल और पस्त हो गया।2अब मोआब की ता'रीफ़ न होगी। हस्बोन में उन्होंने यह कह कर उसके ख़िलाफ़ मंसूबे बाँधे हैं कि: 'आओ, हम उसे बर्बाद करें कि वह क़ौम न कहलाए," ऐ मदमेन तू भी काट डाला जाएगा; तलवार तेरा पीछा करेगी।3'होरोनायिम में चीख़ पुकार, 'वीरानी और बड़ी तबाही होगी।'4~मोआब बर्बाद हुआ; उसके बच्चों के नौहे की आवाज़ सुनाई देती है।5~क्यूँकि लूहीत की चढ़ाई पर आह-ओ-नाला करते हुए चढ़ेंगे यक़ीनन होरोनायिम की उतराई पर मुख़ालिफ़ हलाकत के जैसी आवाज़ सुनते हैं।6भागो! अपनी जान बचाओ! वीराने में रतमा के दरख़्त की तरह हो जाओ!7और चूँकि तूने अपने कामों और ख़ज़ानों पर भरोसा किया इसलिए तू भी गिरफ़्तार होगा; और कमोस अपने काहिनों और हाकिम के साथ ग़ुलाम होकर जाएगा।8और ग़ारतगर हर एक शहर पर आएगा, और कोई शहर न बचेगा; वादी भी वीरान होगी, और मैदान उजाड़ हो जाएगा; जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।9"मोआब को पर लगा दो, ताकि उड़ जाए क्यूँकि उसके शहर उजाड़ होंगे और उनमे कोई बसनेवाला न होगा।10"जो ख़ुदावन्द का काम बेपरवाई से करता है, और जो अपनी तलवार को ख़ूँरेज़ी से बाज़ रखता है, मला'ऊन हो।11मोआब बचपन ही से आराम से रहा है, और उसकी तलछट तहनशीन रही, न वह एक बर्तन से दूसरे में उँडेला गया और न ग़ुलामी में गया; इसलिए उसका मज़ा उसमें क़ायम है और उसकी बू नहीं बदली।12इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं उण्डेलने वालों को उसके पास भेजूँगा कि वह उसे उलटाएँ; और उसके बर्तनों को ख़ाली और मटकों को चकनाचूर करें।13तब मोआब कमोस से शर्मिन्दा होगा, जिस तरह इस्राईल का घराना बैतएल से जो उसका भरोसा था, ख़जिल हुआ।14"तुम क्यूँकर कहते हो, कि 'हम पहलवान हैं और जंग के लिए ज़बरदस्त सूर्मा हैं'?15मोआब ग़ारत हुआ; उसके शहरों का धुवाँ उठ रहा है, और उसके चीदा जवान क़त्ल होने को उतर गए; वह बादशाह फ़रमाता है जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है।16नज़दीक है कि मोआब पर आफ़त आए, और उनका वबाल दौड़ा आता है।17ऐ उसके आस-पास वालों, सब उस पर अफ़सोस करो; और तुम सब जो उसके नाम से वाक़िफ़ हो कहो कि यह मोटा 'असा और ख़ूबसूरत डंडा क्यूँकर टूट गया।'18"ऐ बेटी, जो दीबोन में बसती है! अपनी शौकत से नीचे उतर और प्यासी बैठ; क्यूँकि मोआब का ग़ारतगर तुझ पर चढ़ आया है और उसने तेरे क़िलों' को तोड़ डाला।19ऐ अरो'ईर की रहने वाली' तू राह पर खड़ी हो, और निगाह कर! भागने वाले से और उससे जो बच निकली हो; पूछ कि ~'क्या माजरा है?'20मोआब रुस्वा हुआ, क्यूँकि वह पस्त कर दिया गया, तुम वावैला मचाओ और चिल्लाओ! अरनोन में इश्तिहार दो, कि मोआब ग़ारत हो गया।21और कि "सहरा की अतराफ़ पर, होलून पर, और यहसाह पर, और मिफ़'अत पर,22और दीबोन पर, और नबू पर, और बैत-दिब्बलताइम पर,23और करयताइम पर, और बैत-जमूल पर, और बैत-म'ऊन पर,24और करयोत पर, और बुसराह, और मुल्क-ए-मोआब के दूर-ओ-नज़दीक के सब शहरों पर 'अज़ाब नाज़िल हुआ है।25मोआब का सींग काटा गया, और उसका बाज़ू तोड़ा गया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।26"तुम उसको मदहोश करो, क्यूँकि उसने अपने आपको ख़ुदावन्द के सामने बुलन्द किया; मोआब अपनी क़य में लोटेगा और मस्ख़रा बनेगा।27क्या इस्राईल तेरे आगे मस्ख़रा न था? क्या वह चोरों के बीच पाया गया कि जब कभी तू उसका नाम लेता था, तू सिर हिलाता था?28"ऐ मोआब के बाशिन्दों, शहरों को छोड़ दो और चट्टान पर जा बसो; और कबूतर की तरह बनो जो गहरे ग़ार के मुँह के किनारे पर आशियाना बनाता है।29हम ने मोआब का तकब्बुर सुना है, वह बहुत मग़रूर है, उसकी गुस्ताख़ी भी, और उसकी शेख़ी और उसका ग़ुरूर और उसके दिल का तकब्बुर30मैं उसका क़हर जानता हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; वह कुछ नहीं और उसकी शेख़ी से कुछ बन न पड़ा।31इसलिए मैं मोआब के लिए वावैला करूँगा; हाँ, सारे मोआब के लिए मैं ज़ार-ज़ार रोऊँगा; कोर हरस के लोगों के लिए मातम किया जाएगा।32ऐ सिबमाह की ताक, मैं या'ज़ेर के रोने से ज़्यादा तेरे लिए रोऊँगा; तेरी शाख़ें समन्दर तक फैल गईं, वह या'ज़ेर के समन्दर तक पहुँच गईं, ग़ारतगर तेरे ताबिस्तानी मेवों पर और तेरे अंगूरों पर आ पड़ा है33ख़ुशी और शादमानी हरे भरे खेतों से और मोआब के मुल्क से उठा ली गई; और मैंने अंगूर के हौज़ में मय बाक़ी नहीं छोड़ी, अब कोई ललकार कर न लताड़ेगा; उनका ललकारना, ललकारना न होगा।34'हस्बोन के रोने से वह अपनी आवाज़ को इली'आला और यहज़ तक और ज़ुग़र से होरोनायिम तक 'इजलत शलीशियाह तक बुलन्द करते हैं; क्यूँकि नमरियम के चश्मे भी ख़राब हो गए हैं।35और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि जो कोई ऊँचे मक़ाम पर क़ुर्बानी चढ़ाता है, और जो कोई अपने मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाता है, मोआब में से हलाक कर दूँगा।36इसलिए मेरा दिल मोआब के लिए बाँसरी की तरह आहें भरता, और क़ीर हरस के लोगों के लिए शहनाओं की तरह फुग़ान करता है, क्यूँकि उसका फ़िरावान ज़ख़ीरा तलफ़ हो गया।37हक़ीक़त में हर एक सिर मुंडा है, और हर एक दाढ़ी कतरी गई; हर एक के हाथ पर ज़ख्म है और हर एक की कमर पर टाट।38मोआब के सब घरों की छतों पर और उसके सब बाज़ारों में बड़ा मातम होगा, क्यूँकि मैंने मोआब को उस बर्तन की तरह जो पसन्द न आए तोड़ा है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।39वह वावैला करेंगे और कहेंगे, कि उसने कैसी शिकस्त खाई है! मोआब ने शर्म के मारे क्यूँकर अपनी पीठ फेरी! तब मोआब सब आस-पास वालों के लिए हँसी और ख़ौफ़ का ज़रिया' होगा।"40क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "देख, वह 'उक़ाब की तरह उड़ेगा और मोआब के ख़िलाफ़ बाज़ू फैलाएगा।41वहाँ के शहर और क़िले' ले लिए जायेंगे और उस दिन मोआब के बहादुरों के दिल ज़च्चा के दिल की तरह होंगे।42~और मोआब हलाक किया जाएगा और क़ौम न कहलाएगा, इसलिए कि उसने ख़ुदावन्द के सामने अपने आपको बुलन्द किया।43ख़ौफ़ और गढ़ा और दाम तुझ पर मुसल्लत होंगे, ऐ साकिन-ए-मोआब, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।44जो कोई दहशत से भागे, गढ़े में गिरेगा, और जो गढ़े से निकले, दाम में फँसेगा; क्यूँकि मैं उन पर, हाँ, मोआब पर उनकी सियासत का बरस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।45"जो भागे, इसलिए हस्बोन के साये तले बेताब खड़े हैं; लेकिन हस्बोन से आग और सीहून के वस्त से एक शो'ला निकलेगा और मोआब की दाढ़ी के कोने को और हर एक फ़सादी की चाँद को खा जाएगा।46हाय, तुझ पर ऐ मोआब! कमोस के लोग हलाक हुए, क्यूँकि तेरे बेटों को ग़ुलाम करके ले गए और तेरी बेटियाँ भी ग़ुलाम हुईं।47बावजूद इसके मैं आख़री दिनों में मोआब के ग़ुलामों को वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।" मोआब की 'अदालत यहाँ तक हुई।
1बनी 'अम्मोन के बारे में ख़ुदावन्द का इन्साफ़ फ़रमाता है कि: "क्या इस्राईल के बेटे नहीं हैं? क्या उसका कोई वारिस नहीं? फिर मिलकूम ने क्यूँ जद्द पर क़ब्ज़ा कर लिया, और उसके लोग उसके शहरों में क्यूँ बसते हैं?2इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं बनी 'अम्मोन के रब्बह में लड़ाई का हुल्लड़ बर्पा करूँगा; और वह खंडर हो जाएगा और उसकी बेटियाँ आग से जलाई जाएँगी; तब इस्राईल उनका जो उसके वारिस बन बैठे थे, वारिस होगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।3"ऐ हस्बोन, वावैला कर, कि 'ऐ बर्बाद की गई। ऐ रब्बाह की बेटियो, चिल्लाओ, और टाट ओढ़कर मातम करो और इहातों में इधर उधर दौड़ो, क्यूँकि मिलकूम ग़ुलामी में जाएगा और उसके काहिन और हाकिम भी साथ जाएँगे।4तू क्यूँ वादियों पर फ़ख़्र करती है? तेरी वादी सेराब है, ऐ बरगश्ता बेटी, तू अपने ख़ज़ानों पर भरोसा करती है, कि ~'कौन मुझ तक आ सकता है?'5देख, ख़ुदावन्द, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है: मैं तेरे सब इर्दगिर्द वालों का ख़ौफ़ तुझ पर ग़ालिब करूँगा; और तुम में से हर एक आगे हाँका जाएगा, और कोई न होगा जो आवारा फिरने वालों को जमा' करे।6मगर उसके बा'द मैं बनी 'अम्मोन को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"7अदोम के बारे में। रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "क्या तेमान में ख़िरद मुतलक़ न रही? क्या तदबीरों की मसलहत जाती रही? क्या उनकी 'अक़्ल उड़ गई?8ऐ ददान के बाशिन्दों, भागो, लौटो, और नशेबों में जा बसो! क्यूँकि मैं इन्तक़ाम के वक़्त उस पर ऐसौ की जैसी मुसीबत लाऊँगा।9अगर अँगूर तोड़ने वाले तेरे पास आएँ, तो क्या कुछ दाने बाक़ी न छोड़ेंगे? या अगर रात को चोर आएँ, तो क्या वह हस्ब-ए-ख़्वाहिश ही न तोड़ेंगे?10लेकिन मैं ऐसौ को बिल्कुल नंगा करूँगा, उसके पोशीदा मकानों को बे-पर्दा कर दूँगा कि वह छिप न सके; उसकी नसल और उसके भाई और उसके पड़ोसी सब बर्बाद किए जाएँगे, और वह न रहेगा।11तू अपने यतीम फ़र्ज़न्दों को छोड़, मैं उनको ज़िन्दा रख्खूंगा; और तेरी बेवाएँ मुझ पर भरोसा करें।"12~क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि "देख, जो सज़ावार न थे कि प्याला पीएँ, उन्होंने ख़ूब पिया; क्या तू बे-सज़ा छूट जाएगा? तू बेसज़ा न छूटेगा, बल्कि यक़ीनन उसमें से पिएगा।13क्यूँकि मैंने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि बुसराह जा-ए-हैरत और मलामत और वीरानी और ला'नत होगा; और उसके सब शहर अबद-उल-आबाद वीरान रहेंगे।"14मैंने ख़ुदावन्द से एक ख़बर सुनी है, बल्कि एक क़ासिद यह कहने को क़ौमों के बीच भेजा गया है: जमा' हो और उस पर जा पड़ो, और लड़ाई कि लिए उठो।15क्यूँकि देख, मैंने तुझे क़ौमों के बीच हक़ीर, और आदमियों के बीच ज़लील किया।16तेरी हैबत और तेरे दिल के ग़ुरूर ने तुझे फ़रेब दिया है। ऐ तू जो चट्टानों के शिगाफ़ों में रहती है, और पहाड़ों की चोटियों पर क़ाबिज़ है; अगरचे तू 'उक़ाब की तरह अपना आशियाना बुलन्दी पर बनाए, तो भी मैं वहाँ से तुझे नीचे उतारूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।17"अदोम भी जा-ए-हैरत होगा, हर एक जो उधर से गुज़रेगा हैरान होगा, और उसकी सब आफ़तों की वजह से सुस्कारेगा।18जिस तरह सदूम और 'अमूरा और उनके आस पास के शहर ग़ारत हो गए, उसी तरह उसमें भी न कोई आदमी बसेगा, न आदमज़ाद वहाँ सुकूनत करेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।19देख, वह शेर-ए-बबर की तरह यरदन के जंगल से निकलकर मज़बूत बस्ती पर चढ़ आएगा; लेकिन मैं अचानक उसको वहाँ से भगा दूँगा, और अपने बरगुज़ीदा को उस पर मुक़र्रर करूँगा; क्यूँकि मुझ सा कौन है? कौन है जो मेरे लिए वक़्त मुक़र्रर करे? और वह चरवाहा कौन है जो मेरे सामने खड़ा हो सके ?20तब ख़ुदावन्द की मसलहत को, जो उसने अदोम के ख़िलाफ़ ठहराई है और उसके इरादे को जो उसने तेमान के बाशिन्दों के ख़िलाफ़ किया है, सुनो, उनके गल्ले के सबसे छोटों को भी घसीट ले जाएँगे, यक़ीनन उनका घर भी उनके साथ बर्बाद होगा।21उनके गिरने की आवाज़ से ज़मीन काँप जाएगी, उनके चिल्लाने का शोर बहर-ए-क़ुलज़ुम तक सुनाई देगा।22देख, वह चढ़ आएगा और 'उक़ाब की तरह उड़ेगा, और बुसराह के ख़िलाफ़ बाज़ू फैलाएगा; और उस दिन अदोम के बहादुरों का दिल ज़च्चा के दिल की तरह होगा।"23दमिश्क़ के बारे में: "हमात और अरफ़ाद शर्मिन्दा हैं क्यूँकि उन्होंने बुरी ख़बर सुनी, वह पिघल गए समन्दर ने जुम्बिश खाई, वह ठहर नहीं सकता।24दमिश्क़ का ज़ोर टूट गया, उसने भागने के लिए मुँह फेरा, और थरथराहट ने उसे आ लिया; ज़च्चा के से रंज-ओ-दर्द ने उसे आ पकड़ा।25यह क्यूँकर हुआ कि वह नामवर शहर, मेरा शादमान शहर, नहीं बचा?26~इसलिए उसके जवान उसके बाज़ारों में गिर जाएँगे, और सब जंगी मर्द उस दिन काट डाले जाएँगे, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।27और मैं दमिश्क़ की शहरपनाह में आग भड़काऊँगा, जो बिन-हदद के महलों को भसम कर देगी।"28क़ीदार के बारे में और हसूर की सल्तनतों के बारे में जिनको शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने शिकस्त दी। ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "उठो, क़ीदार पर चढ़ाई करो, और अहल-ए-मशरिक़ को हलाक करो।29~वह उनके ख़ेमों और गल्लों को ले लेंगे; उनके पर्दों और बर्तनों और ऊँटो को छीन ले जाएँगे; और वह चिल्ला कर उनसे कहेंगे कि चारों तरफ़ ख़ौफ़ है!"30भागो, दूर निकल जाओ, नशेब में बसो, ऐ हसूर के बाशिन्दो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने तुम्हारी मुखालिफ़त में मश्वरत की और तुम्हारे ख़िलाफ़ इरादा किया है।31ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उठो, उस आसूदा क़ौम पर, जो बे-फ़िक्र रहती है, जिसके न ~किवाड़े हैं न अड्बंगे और अकेली है चढ़ाई करो32उनके ऊँट ग़नीमत के लिए होंगे, और उनके चौपायों की कसरत लूट के लिए; और मैं उन लोगों को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं, हर तरफ़ हवा में तितर-बितर करूँगा; और मैं उन पर हर तरफ़ से आफ़त लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।33हसूर गीदड़ों का मक़ाम, हमेशा का वीराना होगा; न कोई आदमी वहाँ बसेगा, और न कोई आदमज़ाद उसमें सुकूनत करेगा।"34~ख़ुदावन्द का कलाम जो शाह-ए- यहूदाह सिदक़ियाह की सल्तनत के शुरू' में 'ऐलाम के बारे में यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ।35~कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: देख मैं एलाम की कमान उनकी बड़ी तवानाई को तोड़ डालूँगा।36और चारों हवाओं को आसमान के चारों कोनों से ऐलाम पर लाऊँगा, और उन चारों हवाओं की तरफ़ उनको तितर-बितर करूँगा; और कोई ऐसी क़ौम न होगी, जिस तक ऐलाम के जिलावतन न पहुँचेंगे।37क्यूँकि मैं ऐलाम को उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के आगे हिरासाँ करूँगा; और उन पर एक बला या'नी क़हर-ए-शदीद को नाज़िल करूँगा। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और तलवार को उनके पीछे लगा दूँगा, यहाँ तक कि उनको नाबूद कर डालूँगा;38~और मैं अपना तख़्त 'ऐलाम में रखूंगा, और वहाँ से बादशाह और हाकिम को नाबूद करूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।39"लेकिन आख़िरी दिनों में यूँ होगा, कि मैं ऐलाम को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
1वह कलाम जो ख़ुदावन्द ने बाबुल और कसदियों के मुल्क के बारे में यरमियाह नबी की ज़रिए' फ़रमाया:2"क़ौमों में 'ऐलान करो, और इश्तिहार दो, और झण्डा खड़ा करो, 'ऐलान करो, पोशीदा न रख्खो; कह दो कि बाबुल ले लिया गया, बेल रुस्वा हुआ, मरोदक सरासीमा हो गया; उसके बुत ख़जिल हुए, उसकी मूरतें तोड़ी गईं।3क्यूँकि उत्तर से एक क़ौम उस पर चढ़ी चली आती है, जो उसकी सरज़मीन को उजाड़ देगी, यहाँ तक कि उसमें कोई न रहेगा, वह भाग निकले, वह चल दिए, क्या इन्सान क्या हैवान।4'ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में बल्कि उसी वक़्त बनी-इस्राईल आएँगे; वह और बनी यहूदाह इकट्ठे रोते हुए चलेंगे और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के तालिब होंगे।5वह सिय्यून की तरफ़ मुतवज्जिह होकर उसकी राह पूछेंगे, 'आओ, हम ख़ुदावन्द से मिल कर उससे अबदी 'अहद करें, जो कभी फ़रामोश न हो।'6"मेरे लोग भटकी हुई भेड़ों की तरह हैं; उनके चरवाहों ने उनको गुमराह कर दिया, उन्होंने उनको पहाड़ों पर ले जाकर छोड़ दिया; वह पहाड़ों से टीलों पर गए और अपने आराम का मकान भूल गए हैं।7सब जिन्होंने उनको पाया उनको निगल गए, और उनके दुश्मनों ने कहा, " हम क़ुसूरवार नहीं हैं क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है; वह ख़ुदावन्द जो सदाक़त का मस्कन और उनके बाप-दादा की उम्मीदगाह है।8"बाबुल में से भागो, और कसदियों की सरज़मीन से निकलो, और उन बकरों की तरह हो जो गल्लों के आगे आगे चलते हैं।9क्यूँकि देख, मैं उत्तर की सरज़मीन से बड़ी क़ौमों के अम्बोह को बर्पा करूँगा और बाबुल पर चढ़ा लाऊँगा, और वह उसके सामने सफ़-आरा होंगे; वहाँ से उस पर क़ब्ज़ा कर लेंगे उनके तीरकार आज़मूदा बहादुर के से होंगे जो ख़ाली हाथ नहीं लौटता।10कसदिस्तान लूटा जाएगा, उसे लूटने वाले सब आसूदा होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।11"ऐ मेरी मीरास को लूटनेवालों, चूँकि तुम शादमान और ख़ुश हो और दावने वाली बछिया की तरह कूदते फाँदते और ताक़तवर घोड़ों की तरह हिनहिनाते हो;12इसलिए तुम्हारी माँ बहुत शर्मिन्दा होगी, तुम्हारी वालिदा ख़जालत उठाएगी। देखो, वह क़ौमों में सबसे आख़िरी ठहरेगी और वीरान-ओ- ख़ुश्क ज़मीन और रेगिस्तान होगी।13ख़ुदावन्द के क़हर की वजह से वह आबाद न होगी, बल्कि बिल्कुल वीरान हो जाएगी; जो कोई बाबुल से गुज़रेगा हैरान होगा, और उसकी सब आफ़तों के बाइस सुस्कारेगा।14ऐ सब तीरअन्दाज़ो, बाबुल को घेर कर उसके ख़िलाफ़ सफ़आराई करो, उस पर तीर चलाओ, तीरों को दरेग़ न करो, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है।15उसे घेर कर तुम उस पर ललकारो, उसने इता'अत मन्ज़ूर कर ली; उसकी बुनियादें धंस गई, उसकी दीवारें गिर गई। क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का इन्तक़ाम है, उससे इन्तक़ाम लो; जैसा उसने किया, वैसा ही तुम उससे करो।16बाबुल में हर एक बोनेवाले को और उसे जो दिरौ के वक़्त दरॉती पकड़े, काट डालो; ज़ालिम की तलवार की हैबत से हर एक अपने लोगों में जा मिलेगा, और हर एक अपने वतन को भाग जाएगा।17"इस्राईल तितर-बितर भेड़ों की तरह है, शेरों ने उसे रगेदा है। पहले शाह-ए- असूर ने उसे खा लिया और फिर यह शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र उसकी हड्डियाँ तक चबा गया।18इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं शाह-ए-बाबुल और उसके मुल्क को सज़ा दूँगा, जिस तरह मैंने शाह-ए-असूर को सज़ा दी है।19लेकिन मैं इस्राईल को फिर उसके घर में लाऊँगा, और वह कर्मिल और बसन में चरेगा, और उसकी जान कोह-ए- इफ़्राईम और जिल'आद पर आसूदा होगी।20ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में और उसी वक़्त इस्राईल की बदकिरदारी ढूँडे न मिलेगी; और यहूदाह के गुनाहों का पता न मिलेगा जिनको मैं बाक़ी रखूँगा उनको मु'आफ़ करूँगा।21"मरातायम" की सरज़मीन पर और फ़िक़ोद के बाशिन्दों पर चढ़ाई कर। उसे वीरान कर और उनको बिल्कुल नाबूद कर, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और जो कुछ मैंने तुझे फ़रमाया है, उस सब के मुताबिक़ 'अमल कर।22मुल्क में लड़ाई और बड़ी हलाकत की आवाज़ है।23तमाम दुनिया का हथौड़ा, क्यूँकर काटा और तोड़ा गया! बाबुल क़ौमों के बीच कैसा जा-ए-हैरत हुआ!24मैंने तेरे लिए फन्दा लगाया, और ऐ बाबुल, तू पकड़ा गया, और तुझे ख़बर न थी। तेरा पता मिला और तू गिरफ़्तार हो गया, क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द से लड़ाई की है।25ख़ुदावन्द ने अपना सिलाहख़ाना खोला और अपने क़हर के हथियारों को निकाला है; क्यूँकि कसदियों की सरज़मीन में ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज को कुछ करना है।26सिरे से शुरू' करके उस पर चढ़ो, और उसके अम्बारख़ानों को खोलो, उसको खण्डर कर डालो और उसको बर्बाद करो, उसकी कोई चीज़ बाक़ी न छोड़ो।27उसके सब बैलों को ज़बह करो, उनको मसलख़ में जाने दो; उन पर अफ़सोस! कि उनका दिन आ गया, उनकी सज़ा का वक़्त आ पहुँचा।28~"सरज़मीन-ए-बाबुल से फ़रारियों की आवाज़! वह भागते और सिय्यून में ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के इन्तक़ाम, या'नी उसकी हैकल के इन्तक़ाम का ऐलान करते हैं।29"तीरअन्दाज़ों को बुलाकर इकट्ठा करो कि बाबुल पर जाएँ, सब कमानदारों को हर तरफ़ से उसके सामने ख़ेमाज़न करो। वहाँ से कोई बच न निकले, उसके काम के मुवाफ़िक़ उसको बदला दो। सब कुछ जो उसने किया उसे करों क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द ~इस्राईल के क़ुद्दूस के सामने बहुत तकब्बुर किया।30इसलिए उसके जवान बाज़ारों में गिर जाएँगे, और सब जंगी मर्द उस दिन काट डाले जाएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।31"ऐ मग़रूर, देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है क्यूँकि तेरा वक़्त आ पहुँचा, हाँ, वह वक़्त जब मैं तुझे सज़ा दूँ।32और वह मग़रूर ठोकर खाएगा, वह गिरेगा और कोई उसे न उठाएगा; और मैं उसके शहरों में आग भड़काऊँगा, और वह उसके तमाम 'इलाक़े को भसम कर देगी।33'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि बनी-इस्राईल और बनी यहूदाह दोनों मज़लूम हैं; और उनको ग़ुलाम करने वाले उनको क़ैद में रखते हैं, और छोड़ने से इन्कार करते हैं।34उनका छुड़ानेवाला ज़ोरआवर है; रब्ब-उल-अफ़वाज उसका नाम है; वह उनकी पूरी हिमायत करेगा ताकि ज़मीन को राहत बख़्शे, और बाबुल के बाशिन्दों को परेशान करे।35"ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि तलवार कसदियों पर और बाबुल के बाशिन्दों पर, और उसके हाकिम और हुक्मा पर है।36लाफ़ज़नों पर तलवार है, वह बेवकूफ़ हो जाएँगे; उसके बहादुरों पर तलवार है, वह डर जाएँगे।37उसके घोड़ों और रथों और सब मिले-जुले लोगों पर जो उसमें हैं, तलवार है, वह 'औरतों की तरह होंगे; उसके ख़ज़ानों पर तलवार है, वह लूटे जाएँगे।38उसकी नहरों पर ख़ुश्कसाली है, वह सूख जाएँगी; क्यूँकि वह तराशी हुई मूरतों की ममलुकत है और वह बुतों पर शेफ़्ता हैं।39"इसलिए दश्ती दरिन्दे गीदड़ों के साथ वहाँ बसेंगे और शुतुरमुर्ग उसमें बसेरा करेंगे, और वह फिर अबद तक आबाद न होगी, नसल-दर-नसल कोई उसमें सुकूनत न करेगा।40जिस तरह ख़ुदा ने सदूम और 'अमूरा और उनके आसपास के शहरों को उलट दिया ख़ुदावन्द फ़रमाता है उसी तरह कोई आदमी वहाँ न बसेगा, न आदमज़ाद उसमें रहेगा।41"देख, उत्तरी मुल्क से एक गिरोह आती है; और इन्तिहा-ए-ज़मीन से एक बड़ी क़ौम और बहुत से बादशाह बरअन्गेख़ता किए जाएँगे।42वह तीरअन्दाज़-ओ-नेज़ा बाज़ हैं, वह संगदिल-ओ-बेरहम हैं, उनके ना'रों की आवाज़ हमेशा समन्दर की जैसी है, वह घोड़ों पर सवार हैं; ऐ दुख़्तर-ए-बाबुल, वह जंगी मर्दों की तरह तेरे सामने सफ़-आराई करते हैं।43शाह-ए-बाबुल ने उनकी शोहरत सुनी है, उसके हाथ ढीले हो गए, वह ज़च्चा की तरह मुसीबत और दर्द में गिरफ़्तार है।44"देख, वह शेर-ए-बबर की तरह यरदन के जंगल से निकलकर मज़बूत बस्ती पर चढ़ आएगा; लेकिन मैं अचानक उसको वहाँ से भगा दूँगा, और अपने बरगुज़ीदा को उस पर मुक़र्रर करूँगा; क्यूँकि मुझ सा कौन है? कौन है जो मेरे लिए वक़्त मुक़र्रर करे? और वह चरवाहा कौन है जो मेरे सामने खड़ा हो सके ?45इसलिए ख़ुदावन्द की मसलहत को जो उसने बाबुल के ख़िलाफ़ ठहराई है, और उसके इरादे को जो उसने कसदियों की सरज़मीन के ख़िलाफ़ किया है, सुनो, यक़ीनन उनके गल्ले के सब से छोटों को भी घसीट ले जाएँगे; यक़ीनन उनका घर भी उनके साथ बर्बाद होगा।46~बाबुल की शिकस्त के शोर से ज़मीन काँपती है,और फ़रियाद को क़ौमों ने सुना है।"
1ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "देख, मैं बाबुल पर और उस मुखालिफ़ दार-उस-सल्तनत के रहनेवालों पर एक मुहलिक हवा चलाऊँगा।2और मैं उसाने वालों को बाबुल में भेजूँगा कि उसे उसाएँ, और उसकी सरज़मीन को ख़ाली करें; यक़ीनन उसकी मुसीबत के दिन वह उसके दुश्मन बनकर उसे चारों तरफ़ से घेर लेंगे।3उसके कमानदारों और ज़िरहपोशों पर तीरअन्दाज़ी करो; तुम उसके जवानों पर रहम न करो, उसके तमाम लश्कर को बिल्कुल हलाक करो।4~मक़्तूल कसदियों की सरज़मीन में गिरेंगे, और छिदे हुए उसके बाज़ारों में पड़े रहेंगे।5क्यूँकि इस्राईल और यहूदाह को उनके ख़ुदा रब्ब-उल-अफ़वाज ने तर्क नहीं किया; अगरचे इनका मुल्क इस्राईल के क़ुद्दूस की नाफ़रमानी से पुर है।6"बाबुल से निकल भागो, और हर एक अपनी जान बचाए, उसकी बदकिरदारी की सज़ा में शरीक होकर हलाक न हो, क्यूँकि यह ख़ुदावन्द के इन्तक़ाम का वक़्त है; वह उसे बदला देता है।7बाबुल ख़ुदावन्द के हाथ में सोने का प्याला था, जिसने सारी दुनिया को मतवाला किया; क़ौमों ने उसकी मय पी, इसलिए वह दीवाने हैं।8~बाबुल अचानक गिर गया और ग़ारत हुआ, उस पर वावैला करो; उसके ज़ख़्म के लिए बलसान लो, शायद वह शिफ़ा पाए।9हम तो बाबुल की शिफ़ायाबी चाहते थे लेकिन वह शिफ़ायाब न हुआ, तुम उसको छोड़ो, आओ, हम सब अपने अपने वतन को चले जाएँ, क्यूँकि उसकी आवाज़ आसमान तक पहुँची और अफ़लाक तक बुलन्द हुई।10ख़ुदावन्द ने हमारी रास्तबाज़ी को आशकारा किया; आओ, हम सिय्यून में ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के काम का बयान करें।11"तीरों को सैक़ल करो, सिपरों को तैयार रख्खो; ख़ुदावन्द ने मादियों के बादशाहों की रूह को उभारा है, क्यूँकि उसका इरादा बाबुल को बर्बाद करने का है; क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का, या'नी उसकी हैकल का इन्तक़ाम है।12बाबुल की दीवारों के सामने झंडा खड़ा करो पहरे की चौकियाँ मज़बूत करो, पहरेदारों को बिठाओ, कमीनगाहें तैयार करो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अहल-ए-बाबुल के हक़ में जो कुछ ठहराया और फ़रमाया था, इसलिए पूरा किया।13ऐ नहरों पर सुकूनत करने वाली, जिसके ख़ज़ाने फ़िरावान हैं; तेरी तमामी का वक़्त आ पहुँचा और तेरी ग़ारतगरी का पैमाना पुर हो गया।14~रब्ब-उल-अफ़वाज ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, कि यक़ीनन मैं तुझ में लोगों को टिड्डियों की तरह भर दूँगा, और वह तुझ पर जंग का नारा मारेंगे।15~"उसी ने अपनी क़ुदरत से ज़मीन को बनाया, उसी ने अपनी हिकमत से जहाँ को क़ायम किया, और अपनी 'अक़्ल से आसमान को तान दिया है;16उसकी आवाज़ से आसमान में पानी की फ़िरावानी होती है, और वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है; वह बारिश के लिए बिजली चमकाता है और अपने ख़ज़ानों से हवा चलाता है।17हर आदमी हैवान ख़सलत और बे-'इल्म हो गया है, सुनार अपनी खोदी हुई मूरत से रुस्वा है; क्यूँकि उसकी ढाली हुई मूरत बातिल है, उनमें दम नहीं।18वह बातिल-फ़े'ल-ए- फ़रेब हैं, सज़ा के वक़्त बर्बाद हो जाएँगी।19या'क़ूब का हिस्सा उनकी तरह नहीं, क्यूँकि वह सब चीज़ों का ख़ालिक़ है और इस्राईल उसकी मीरास का 'असा है; रब्बउल-अफ़वाज उसका नाम है।20"तू मेरा गुर्ज़ और जंगी हथियार है, और तुझी से मैं क़ौमों को तोड़ता और तुझी से सल्तनतों को बर्बाद करता हूँ।21तुझी से मैं घोड़े और सवार को कुचलता, और तुझी से रथ और उसके सवार को चूर करता हूँ;22तुझी से मर्द-ओ-ज़न और पीर-ओ-जवान को कुचलता, और तुझ ही से नौखेंज़ लड़कों और लड़कियों को पीस डालता हूँ;23और तुझी से चरवाहे और उसके गल्ले को कुचलता, और तुझी से किसान और उसके जोड़ी बैल को, और तुझी से सरदारों और हाकिमों को चूर-चूर कर देता हूँ।24और मैं बाबुल को और कसदिस्तान के सब बाशिन्दों को उस तमाम नुक़्सान का, जो उन्होंने सिय्यून को तुम्हारी आँखों के सामने पहुँचाया है इवज़ देता हूँ ख़ुदावन्द फ़रमाता है।25"देख ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ हलाक करने वाले पहाड़, जो तमाम इस ज़मीन को हलाक करता है ,मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और मैं अपना हाथ तुझ पर बढ़ाऊँगा, और चट्टानों पर से तुझे लुढ़काऊँगा, और तुझे जला हुआ पहाड़ बना दूँगा।26न तुझ से कोने का पत्थर, और न बुनियाद के लिए पत्थर लेंगे; बल्कि तू हमेशा तक वीरान रहेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।27~'मुल्क में झण्डा खड़ा करो, क़ौमों में नरसिंगा फूँको उनको उसके ख़िलाफ़ मख़सूस करो अरारात और मिन्नी और अश्कनाज़ की ममलुकतों को उस पर चढ़ा लाओ; उसके ख़िलाफ़ सिपहसालार मुक़र्रर करो और सवारों को मुहलिक टिड्डियों की तरह चढ़ा लाओ।28~क़ौमों को मादियों के बादशाहों को और सरदारों और हाकिमों और उनकी सल्तनत के तमाम मुमालिक को मख़सूस करो कि उस पर चढ़ाई करें।29~और ज़मीन काँपती और दर्द में मुब्तिला है, क्यूँकि ख़ुदावन्द के इरादे बाबुल की मुखालिफ़त में क़ायम रहेंगे, कि बाबुल की सरज़मीन को वीरान और ग़ैरआबाद कर दे।30~बाबुल के बहादुर लड़ाई से दस्तबरदार और क़िलों' में बैठे हैं, उनका ज़ोर घट गया, वह 'औरतों की तरह हो गए; उसके घर जलाए गए, उसके अड़बंगें तोड़े गए।31~हरकारा हरकारे से मिलने को और क़ासिद क़ासिद से मिलने को दौड़ेगा कि बाबुल के बादशाह को इत्तला दे, कि उसका शहर हर तरफ़ से ले लिया गया;32~और गुज़रगाहें ले ली गई, और नैस्तान आग से जलाए गए और फ़ौज हड़बड़ा गईं।33~क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: दुख़्तर-ए-बाबुल खलीहान की तरह है, जब उसे रौंदने का वक़्त आए, थोड़ी देर है कि उसकी कटाई का वक़्त आ पहुँचेगा।34~"शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने मुझे खा लिया, उसने मुझे शिकस्त दी है, उसने मुझे ख़ाली बर्तन की तरह कर दिया अज़दहा की तरह ~वह मुझे निगल गया, उसने अपने पेट को मेरी ने'मतों से भर लिया; उसने मुझे निकाल दिया;"35सिय्यून के रहनेवाले कहेंगे, "जो सितम हम पर और हमारे लोगों पर हुआ, बाबुल पर हो।" और यरुशलीम कहेगा, "मेरा ख़ून अहल-ए-कसदिस्तान पर हो।"36~इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: "देख, मैं तेरी हिमायत करूँगा और तेरा इन्तक़ाम लूँगा, और उसके बहर को सुखाऊँगा और उसके सोते को ख़ुश्क कर दूँगा;37और बाबुल खण्डर हो जाएगा, और गीदड़ों का मक़ाम और हैरत और सुस्कार का ज़रिया' होगी और उसमें कोई न बसेगा।38~"वह जवान बबरों की तरह इकटठे गरजेंगे, वह शेर बच्चों की तरह ग़ुर्राएँगे।39~उनकी हालत-ए-तैश में मैं उनकी ज़ियाफ़त करके उनको मस्त करूँगा, कि वह जद्द में आएँ और दाइमी ख़्वाब में पड़े रहें और बेदार न हों, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।40~मैं उनको बर्रों और मेंढों की तरह बकरों के साथ मसलख़ पर उतार लाऊँगा।41शेशक क्यूँकर ले लिया गया! हाँ, तमाम रु-ए-ज़मीन का खम्बा यकबारगी ले लिया गया। बाबुल क़ौमों के बीच कैसा वीरान हुआ!42समन्दर बाबुल पर चढ़ गया है, वह उसकी लहरों की कसरत से छिप गया।43उसकी बस्तियाँ उजड़ गईं, वह ख़ुश्क ज़मीन और सहरा हो गया ऐसी सरज़मीन जिसमें ~न कोई बसता हो और न वहाँ आदमज़ाद का गुज़र हो।44~क्यूँकि मैं बाबुल में बेल को सज़ा दूँगा, और जो कुछ वह निगल गया है उसके मुँह से निकालूँगा, और फिर क़ौमें उसकी तरफ़ रवाँ न होंगी; हाँ, बाबुल की फ़सील गिर जाएगी।45~"ऐ मेरे लोगों, उसमें से निकल आओ,और तुम में से हर एक ख़ुदावन्द के क़हर-ए- शदीद से अपनी जान बचाए।46~न हो कि तुम्हारा दिल सुस्त हो, और तुम उस अफ़वाह से डरो जो ज़मीन में सुनी जाएगी; एक अफ़वाह एक साल आएगी और फिर दूसरी अफ़वाह दूसरे साल में, और मुल्क में ज़ुल्म होगा और हाकिम हाकिम से लड़ेगा।47‘इसलिए देख, वह दिन आते हैं कि मैं बाबुल की तराशी हुई मूरतों से इन्तक़ाम लूँगा और उसकी तमाम सरज़मीँ रुस्वा होगी और उसके सब मक़्तूल उसी में पड़े रहेंगे।48~तब आसमान और ज़मीन और सब कुछ जो उनमें है, बाबुल पर शादियाना बजाएँगे; क्यूँकि ग़ारतगर उत्तर से उस पर चढ़ आएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।49~जिस तरह बाबुल में बनी-इस्राईल क़त्ल हुए, उसी तरह बाबुल में तमाम मुल्क के लोग क़त्ल होंगे।50~ "तुम जो तलवार से बच गए हो, खड़े न हो, चले जाओ! दूर ही से ख़ुदावन्द को याद करो, और यरुशलीम का ख़याल तुम्हारे दिल में आए |51~'हम परेशान हैं, क्यूँकि हम ने मलामत सुनी; हम शर्मआलूदा हुए, क्यूँकि ख़ुदावन्द के घर के हैकलों में अजनबी घुस आए।'52~"इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं उसकी तराशी हुई मूरतों को सज़ा दूँगा; और उसकी तमाम सल्तनत में घायल कराहेंगे।53~हरचन्द बाबुल आसमान पर चढ़ जाए और अपने ज़ोर की इन्तिहा तक मुस्तहकम हो बैठे तो भी ग़ारतगर मेरी तरफ़ से उस पर चढ़ आएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।54"बाबुल से रोने की और कसदियों की सरज़मीन से बड़ी हलाकत की आवाज़ आती है।55क्यूँकि ख़ुदावन्द बाबुल को ग़ारत करता है, और उसके बड़े शोर-ओ-ग़ुल को बर्बाद करेगा; उनकी लहरें समन्दर की तरह शोर मचाती हैं उनके शोर की आवाज़ बुलंद है;56इसलिए कि ग़ारतगर उस पर, हाँ, बाबुल पर चढ़ आया है, और उसके ताक़तवर लोग पकड़े जायेंगे उनकी कमाने तोड़ी जायेंगी क्यूँकि ख़ुदावन्द इन्तक़ाम लेनेवाला ख़ुदा है, वह ज़रूर बदला लेगा।57मैं हाकिम-ओ-हुक्मा को और उसके सरदारों और हाकिमों को मस्त करूँगा, और वह दाइमी ख़्वाब में पड़े रहेंगे और बेदार न होंगे, वह बादशाह फ़रमाता है, जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है।58"रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: बाबुल की चौड़ी फ़सील बिल्कुल गिरा दी जाएगी, और उसके बुलन्द फाटक आग से जला दिए जाएँगे। यूँ लोगों की मेहनत बे फ़ायदा ठहरेगी, और क़ौमों का काम आग के लिए होगा और वह मान्दा होंगे।"59यह वह बात है, जो यरमियाह नबी ने सिरायाह-बिन-नैयिरियाह-बिन-महसियाह से कही, जब वह शाह-ए-यहूदाह सिदक़ियाह के साथ उसकी सल्तनत के चौथे बरस बाबुल में गया, और यह सिरायाह ख़्वाजासराओं का सरदार था।60और यरमियाह ने उन सब आफ़तों को जो बाबुल पर आने वाली थीं, एक किताब में क़लमबन्द किया; या'नी इन सब बातों को जो बाबुल के बारे में लिखी गई हैं।61और यरमियाह ने सिरायाह से कहा,कि "जब तू बाबुल में पहुँचे, तो' इन सब बातों को पढ़ना,62और कहना, 'ऐ ख़ुदावन्द, तूने इस जगह की बर्बादी के बारे में फ़रमाया है कि मैं इसको बर्बाद करूँगा, ऐसा कि कोई इसमें न बसे, न इन्सान न हैवान, लेकिन हमेशा वीरान रहे।'63और जब तू इस किताब को पढ़ चुके, तो एक पत्थर इससे बाँधना और फ़रात में फेंक देना;64~और कहना, 'बाबुल इसी तरह डूब जाएगा, और उस मुसीबत की वजह से जो मैं उस पर डाल दूँगा, फिर न उठेगा और वह मान्दा होंगे।' "यरमियाह की बातें यहाँ तक हैं।
1जब सिदक़ियाह सल्तनत करने लगा,तो इक्कीस बरस का था; और उसने ग्यारह बरस यरुशलीम में सल्तनत की, और उसकी माँ का नाम हमूतल था जो लिबनाही यरमियाह की बेटी थी।2और जो कुछ यहूयक़ीम ने किया था, उसी के मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की।3क्यूँकि ख़ुदावन्द के ग़ज़ब की वजह से यरुशलीम और यहूदाह की यह नौबत आई कि आख़िर उसने उनको अपने सामने से दूर ही कर दिया।और सिदक़ियाह शाह-ए-बाबुल से मुन्हरिफ़ हो गया।4और उसकी सल्तनत के नवें बरस के दसवें महीने के दसवें दिन यूँ हुआ कि शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने अपनी सारी फ़ौज के साथ यरुशलीम पर चढ़ाई की, और उसके सामने खैमाज़न हुआ और उन्होंने उसके सामने हिसार बनाए।5और सिदक़ियाह बादशाह की सल्तनत के ग्यारहवें बरस तक शहर का घिराव रहा।6चौथे महीने के नवें दिन से शहर में काल ऐसा सख़्त हो गया कि मुल्क के लोगों के लिए ख़ुराक न रही।7तब शहरपनाह में रख़ना हो गया, और दोनों दीवारों के बीच जो फाटक शाही बाग़ के बराबर था, उससे सब जंगी मर्द रात ही रात भाग गए (इस वक़्त कसदी शहर को घेरे हुए थे) और वीराने की राह ली।8लेकिन कसदियों की फ़ौज ने बादशाह का पीछा किया, और उसे यरीहू के मैदान में जा लिया, और उसका सारा लश्कर उसके पास से तितर-बितर हो गया था।9तब वह बादशाह को पकड़ कर रिब्ला में शाह-ए-बाबुल के पास हमात के 'इलाक़े में ले गए, और उसने सिदक़ियाह पर फ़तवा दिया।10और शाह-ए-बाबुल ने सिदक़ियाह के बेटों को उसकी आँखों के सामने ज़बह किया, और यहूदाह के सब हाकिम को भी रिब्ला में क़त्ल किया।11और उसने सिदक़ियाह की आँखें निकाल डालीं, और शाह-ए-बाबुल उसको ज़ंजीरों से जकड़ कर बाबुल को ले गया, और उसके मरने के दिन तक उसे क़ैदख़ाने में रख्खा।12और शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के 'अहद के उन्नीसवें बरस के पाँचवें महीने के दसवें दिन जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान, जो शाह-ए-बाबुल के सामने में खड़ा रहता था, यरुशलीम में आया।13उसने ख़ुदावन्द का घर और बादशाह का महल और यरुशलीम के सब घर, या'नी हर एक बड़ा घर आग से जला दिया।14और कसदियों के सारे लश्कर ने जो जिलौदारों के सरदार के हमराह था, यरुशलीम की फ़सील को चारों तरफ़ से गिरा दिया।15और बाक़ी लोगों और मोहताजों को जो शहर में रह गए थे, और उनको जिन्होंने अपनों को छोड़कर शाह-ए- बाबुल की पनाह ली थी, और 'अवाम में से जितने बाक़ी रह गए थे, उन सबको नबूज़रादान जिलौदारों का सरदार ग़ुलाम करके ले गया।16लेकिन जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने मुल्क के कंगालों को रहने दिया, ताकि खेती और ताकिस्तानों की बागबानी करें।17और पीतल के उन सुतूनों को जो ख़ुदावन्द के घर में थे, और कुर्सियों को और पीतल के बड़े हौज़ को, जो ख़ुदावन्द के घर में था, कसदियों ने तोड़कर टुकड़े टुकड़े किया और उनका सब पीतल बाबुल को ले गए।18और देगें और बेल्चे और गुलगीर और लगन और चमचे और पीतल के तमाम बर्तन,जो वहाँ काम आते थे, ले गए।19और बासन और अंगेठियाँ और लगन और देगें और शमा'दान और चमचे और प्याले ग़र्ज़ जो सोने के थे उनके सोने को, और जो चाँदी के थे उनकी चाँदी को जिलौदारों का सरदार ले गया।20वह दो सुतून और वह बड़ा हौज़ और वह पीतल के बारह बैल जो कुर्सियों के नीचे थे, जिनको सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द के घर के लिए बनाया था; इन सब चीज़ों के पीतल का वज़्न बेहिसाब था।21हर सुतून अट्ठारह हाथ ऊँचा था, और बारह हाथ का सूत उसके चारों तरफ़ आता था, और वह चार ऊंगल मोटा था; यह खोखला था।22और उसके ऊपर पीतल का एक ताज था, और वह ताज पाँच हाथ बुलन्द था, उस ताज पर चारों तरफ़ जालियाँ और अनार की कलियाँ, सब पीतल की बनी हुई थीं, और दूसरे सुतून के लवाज़िम भी जाली के साथ इन्हीं की तरह थे।23और चारों हवाओं के रुख़ अनार की कलियाँ छियानवे थीं, और चारों तरफ़ जालियों पर एक सौ थीं।24और जिलौदारों के सरदार ने सिरायाह सरदार काहिन को, और काहिन-ए-सानी सफ़नियाह को, और तीनों दरबानों को पकड़ लिया;25और उसने शहर में से एक सरदार को पकड़ लिया जो जंगी मर्दों पर मुक़र्रर था, और जो लोग बादशाह के सामने हाज़िर रहते थे, उनमें से सात आदमियों को जो शहर में मिले; और लश्कर के सरदार के मुहर्रिर को जो अहल-ए-मुल्क की मौजूदात लेता था; और मुल्क के आदमियों में से साठ आदमियों को जो शहर में मिले।26~इनको जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान पकड़कर शाह-ए-बाबुल के सामने रिब्ला में ले गया।27और शाह-ए-बाबुल ने हमात के 'इलाक़े के रिब्ला में इनको क़त्ल किया। इसलिए यहूदाह अपने मुल्क से ग़ुलाम होकर चला गया।28यह वह लोग हैं जिनको नबूकदरज़र ग़ुलाम करके ले गया: सातवें बरस में तीन हज़ार तेईस यहूदी,29नबूकदरज़र के अट्ठारहवें बरस में वह यरुशलीम के बाशिन्दों में से आठ सौ बत्तीस आदमी ग़ुलाम करके ले गया,30नबूकदरज़र के तेईसवें बरस में जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान सात सौ पैंतालीस आदमी यहूदियों में से पकड़कर ले गया; यह सब आदमी चार हज़ार छ: सौ~थे ।31और यहूयाकीन शाह-ए-यहूदाह की ग़ुलामी के सैतीसवें बरस के बारहवें महीने के पच्चीसवें दिन यूँ हुआ, कि शाह-ए-बाबुल अवील मरूदक ने अपनी सल्तनत के पहले साल यहूयाकीन शाह-ए-यहूदाह को क़ैदख़ाने से निकालकर सरफ़राज़ किया;32और उसके साथ मेहरबानी से बातें कीं, और उसकी कुर्सी उन सब बादशाहों की कुर्सियों से जो उसके साथ बाबुल में थे, बुलन्द की।33वह अपने क़ैदख़ाने के कपड़े बदलकर 'उम्र भर बराबर उसके सामने खाना खाता रहा।34~~और उसकी 'उम्र भर, या'नी मरने तक शाह-ए-बाबुल की तरफ़ से वज़ीफ़े के तौर पर हर रोज़ रसद मिलती रही।
1वह बस्ती जो लोगों से भरी थी, कैसी ख़ाली पड़ी है! वह क़ौमों की 'ख़ातून बेवा की तरह ~हो गई! वह कुछ गुज़ारे के लिए मुल्क की ~मलिका बन गई!2वह रात को ज़ार-ज़ार रोती है, उसके आँसू चेहरे पर बहते हैं; उसके चाहने वालों में कोई नहीं जो उसे तसल्ली दे; उसके सब दोस्तों ने उसे धोका दिया, वह उसके दुश्मन हो गए।3यहूदाह ज़ुल्म और सख़्त मेहनत की वजह ~से जिलावतन हुआ, वह क़ौमों के बीच रहते और बे-आराम है, उसके सब सताने वालों ने उसे घाटियों में जा लिए।4सिय्यून के रास्ते मातम करते हैं, क्यूँकि ख़ुशी के लिए कोई नहीं आता; उसके सब दरवाज़े सुनसान हैं, उसके काहिन आहें भरते हैं;उसकी कुँवारियाँ मुसीबत ज़दा हैं और वह ख़ुद ग़मगीन है |5~उसके मुख़ालिफ़ ग़ालिब आए और दुश्मन खु़शहाल हुए; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसके गुनाहों की ज़्यादती ~के ज़रिए' उसे ग़म में डाला; उसकी औलाद को दुश्मन ग़ुलामी में पकड़ ले गए।6~सिय्यून की बेटियों की सब शान-ओ-शौकत जाती रही; उसके हाकिम उन हरनों की तरह हो गए हैं,जिनको चरागाह नहीं मिलती, और शिकारियों के सामने बे बस हो जाते हैं।7यरुशलीम को अपने ग़म-ओ-मुसीबत के दिनों में, जब उसके रहने वाले दुश्मन का शिकार हुए,और किसी ने मदद न की, अपने गुज़रे ~ज़माने की सब ने'मतें याद आईं, दुश्मनों ने उसे देखकर उसकी बर्बादी पर हँसी उड़ाई।8~यरुशलीम सख़्त गुनाह करके नापाक हो गया; जो उसकी 'इज़्ज़त करते थे, सब उसे हक़ीर जानते हैं, हाँ, वह ख़ुद आहें भरता, और मुँह फेर लेता है।9उसकी नापाकी उसके दामन में है,उसने अपने अंजाम का ख़्याल न किया; इसलिए वह बहुत बेहाल हुआ;और उसे तसल्ली देने वाला कोई न रहा; ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मुसीबत पर नज़र कर; क्यूँकि दुश्मन ने ग़ुरूर किया है।10दुश्मन ने उसकी तमाम 'उम्दा चीज़ों पर हाथ बढ़ाया है; उसने अपने मक़्दिस में क़ौमों को दाख़िल होते देखा है। जिनके बारे में तू ने फ़रमाया था, कि वह तेरी जमा'अत में~दाख़िल न हों।11उसके सब रहने वाले ~कराहते और रोटी ढूंडते हैं, उन्होंने अपनी 'उम्दा चीज़े दे डालीं, ताकि रोटी से ताज़ा दम हों;ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर नज़र कर; क्यूँकि मैं ज़लील हो गया12ऐ सब आने जाने वालों, क्या तुम्हारे नज़दीक ये कुछ नहीं? नज़र करो और देखो; क्या कोई ग़म मेरे ग़म की तरह है, जो मुझ पर आया है जिसे ख़ुदावन्द ने अपने बड़े ग़ज़ब के वक़्त नाज़िल किया।13उसने 'आलम-ए-बाला से मेरी हड्डियों में आग भेजी, और वह उन पर ग़ालिब आई; उसने मेरे पैरों के लिए जाल बिछाया,उस ने मुझे पीछे लौटाया: उसने मुझे दिन भर वीरान-ओ-बेताब किया।14मेरी ख़ताओं का बोझ उसी के हाथ से बाँधा गया है; वह बाहम पेचीदा मेरी गर्दन पर हैं उसने मुझे कमज़ोर कर दिया है; ख़ुदावन्द ने मुझे उनके हवाले किया है, जिनके मुक़ाबिले की मुझ में हिम्मत नहीं।15~ख़ुदावन्द ने मेरे अन्दर ही मेरे बहादुरों को नाचीज़ ठहराया; उसने मेंरे ख़िलाफ़ एक ख़ास जमा'अत को बुलाया, कि मेरे बहादुरों को कुचले; ख़ुदावन्द ने यहूदाह की कुँवारी बेटी को गोया कोल्हू में कुचल डाला।16~इसीलिए मैं रोती हूँ, मेरी आँखें आँसू से भरी हैं, जो मेरी रूह को ताज़ा करे, मुझ से दूर है; मेरे बाल-बच्चे बे सहारा हैं, क्यूँकि दुश्मन ग़ालिब आ गया।17~सिय्यून ने हाथ फैलाए; उसे तसल्ली देने वाला कोई नहीं; या'कू़ब के बारे में ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है, कि उसके इर्दगिर्द वाले उसके दुश्मन हों, यरुशलीम उनके बीच नजासत की तरह है।18~ख़ुदावन्द सच्चा है, क्यूँकि मैंने उसके हुक्म से नाफ़रमानी की है; ऐ सब लोगों, मैं मिन्नत करता हूँ, सुनो, और मेरे दुख़ पर नज़र करो, मेरी कुँवारिया और जवान ग़ुलाम होकर चले गए।19मैंने अपने दोस्तों को पुकारा, उन्होंने मुझे धोका दिया; मेरे काहिन और बुज़ुर्ग अपनी रूह को ताज़ा करने के लिए, शहर में खाना ढूंडते-ढूंडते हलाक हो गए।20ऐ ख़ुदावन्द देख: मैं तबाह हाल हूँ, मेरे अन्दर पेच-ओ-ताब है; मेरा दिल मेरे अन्दर मुज़तरिब है; क्यूँकि मैंने सख़्त बग़ावत की है; बाहर तलवार बे-औलाद करती है और घर में मौत का सामना है।21उन्होंने मेरी आहें सुनी हैं; मुझे तसल्ली देनेवाला कोई नहीं; मेरे सब दुश्मनों ने मेरी मुसीबत सुनी; वह ख़ुश हैं कि तू ने ऐसा किया; तू वह दिन लाएगा, जिसका तू ने 'ऐलान किया है, और वह मेरी तरह हो जाएँगे।22उनकी तमाम शरारत तेरे सामने आयें; उनसे वही कर जो तू ने मेरी तमाम ख़ताओं के ज़रिए' मुझसे किया है; क्यूँकि मेरी आहें बेशुमार हैं और मेरा दिल बेबस है|
1ख़ुदावन्द ने अपने क़हर में ~सिय्यून की बेटी को कैसे बादल से छिपा दिया! उसने इस्राईल की खू़बसूरती को आसमान से ज़मीन पर गिरा दिया, और अपने ग़ज़ब के दिन भी अपने पैरों की चौकी को याद न किया।2ख़ुदावन्द ने या'कू़ब के तमाम घर हलाक किए, और रहम न किया; उसने अपने क़हर में ~यहूदाह की बेटी के तमाम क़िले' गिराकर ख़ाक में मिला दिए उसने मुल्कों और उसके हाकिमों को नापाक ठहराया ।3उसने बड़े ग़ज़ब में इस्राईल का सींग बिल्कुल काट डाला; उसने दुश्मन के सामने से दहना हाथ खींच लिया; और उसने जलाने वाली आग की तरह, जो चारों तरफ़ ख़ाक करती है, या'कू़ब को जला दिया।4उसने दुश्मन की तरह कमान खींची, मुख़ालिफ़ की तरह दहना हाथ बढ़ाया, और सिय्यून की बेटी के खे़में में सब हसीनों को क़त्ल किया! उसने अपने क़हर की आग को उँडेल दिया।5ख़ुदावन्द दुश्मन की तरह हो गया, वह इस्राईल को निगल गया, वह उसके तमाम महलों को निगल गया, उसने उसके क़िले' मिस्मार कर दिए, और उसने दुख़्तर-ए-यहूदाह में मातम-ओ नौहा बहुतायत से कर दिया।6~और उसने अपने घर को एक बार में ही बर्बाद कर दिया, गोया ख़ैमा-ए-बाग़ था; और अपने मजमे' के मकान को बर्बाद कर दिया; ख़ुदावन्द ने मुक़द्दस 'ईदों और सबतों को सिय्यून से फ़रामोश करा दिया, और अपने क़हर के जोश में बादशाह और काहिन को ज़लील किया।7~ख़ुदावन्द ने अपने मज़बह को रद्द किया, उसने अपने मक़दिस से नफ़रत की, उसके महलों की दीवारों को दुश्मन के हवाले कर दिया; उन्होंने ख़ुदावन्द के घर में ऐसा शोर मचाया, जैसा 'ईद के दिन।8~ख़ुदावन्द ने दुख़्तर-ए-सिय्यून की दीवार गिराने का इरादा किया है; उसने डोरी डाली है, और बर्बाद करने से दस्तबरदार नहीं हुआ; उसने फ़सील और दीवार को मग़मूम किया; वह एक साथ ~मातम करती हैं।9~उसके दरवाज़े ज़मीन में गर्क़ हो गए; उसने उसके बेन्डों को तोड़कर बर्बाद कर दिया; उसके बादशाह और उमरा बे-शरी'अत क़ौमों में हैं; उसके नबी भी ख़ुदावन्द की तरफ़ से कोई ख़्वाब नहीं देखते।10दुख़्तर-ए-सिय्यून के बुज़ुर्ग ख़ाक नशीन और ख़ामोश हैं; वह अपने सिरों पर ख़ाक डालते और टाट ओढ़ते हैं; यरुशलीम की कुँवारियाँ ज़मीन पर सिर झुकाए हैं।11मेरी आँखें रोते-रोते धुंदला गईं, मेरे अन्दर पेच-ओ-ताब है, मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की बर्बादी के ज़रिए' मेरा कलेजा निकल आया; क्यूँकि छोटे बच्चे और दूध पीने वाले शहर की गलियों में बेहोश हैं।12~जब वह शहर की गलियों में के ज़ख्मियों की तरह ग़श खाते, और जब अपनी माँओं की गोद में जाँ बलब होते हैं; तो उनसे कहते हैं, कि ग़ल्ला और मय कहाँ है?13ऐ दुख़्तर-ए-यरुशलीम, मैं तुझे क्या नसीहत करूँ, और किससे मिसाल दूँ? ऐ कुँवारी दुख्त़र-ए-सिय्यून, तुझे किस की तरह जान कर तसल्ली दूँ? क्यूँकि तेरा ज़ख़्म समुन्दर सा बड़ा है; तुझे कौन शिफ़ा देगा?14तेरे नबियों ने तेरे लिए, बातिल और बेहूदा ख़्वाब देखे: और तेरी बदकिरदारी ज़ाहिर न की,ताकि तुझे ग़ुलामी ~से वापस लाते: बल्कि तेरे लिए झूटे पैग़ाम और जिलावतनी के सामान देखे।15सब आने जानेवाले तुझ पर तालियाँ बजाते हैं; वह दुख़्तर-ए-यरुशलीम पर सुसकारते और सिर हिलाते हैं, के क्या, ये वही शहर है, जिसे लोग कमाल-ए-हुस्न और फ़रहत-ए-जहाँ कहते थे?16तेरे सब दुश्मनों ने तुझ पर मुँह पसारा है; वह सुसकारते और दाँत पीसते हैं;वो कहते हैं, हम उसे निगल गए; बेशक हम इसी दिन के मुन्तज़िर थे; इसलिए आ पहुँचा, और हम ने देख लिया17ख़ुदावन्द ने जो तय किया वही किया; उसने अपने कलाम को, जो पुराने दिनों में फ़रमाया था, पूरा किया; उसने गिरा दिया, और रहम न किया; और उसने दुश्मन को तुझ पर शादमान किया, उसने तेरे मुख़ालिफ़ों का सींग बलन्द किया।18उनके दिलों ने ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, ऐ दुख़्तर-ए-सिय्यून की फ़सील,शब-ओ-रोज़ ऑसू नहर की तरह जारी रहें; तू बिल्कुल आराम न ले; तेरी आँख की पुतली आराम न करे।19उठ रात को पहरों के शुरू' में फ़रियाद कर; ख़ुदावन्द के हुजू़र अपना दिल पानी की तरह उँडेल दे; अपने बच्चों की ज़िन्दगी के लिए, जो सब गलियों में भूक से बेहोश पड़े हैं, उसके सामने में दस्त-ए-दु'आ बलन्द कर।20~ऐ ख़ुदावन्द, नज़र कर, और देख, कि तू ने किससे ये किया ! क्या 'औरतें अपने फल या'नी अपने लाडले बच्चों को खाएँ? क्या काहिन और नबी ख़ुदावन्द के मक़्दिस में क़त्ल किए जाएँ?21बुज़ुर्ग-ओ-जवान गलियों में ख़ाक पर पड़े हैं; मेरी कुँवारियाँ और मेरे जवान तलवार से क़त्ल हुए; तू ने अपने क़हर के दिन उनको क़त्ल किया; तूने उनको काट डाला, और रहम न किया।22तूने मेरी दहशत को हर तरफ से गोया 'ईद के दिन बुला लिया, और ख़ुदावन्द के क़हर के दिन न कोई बचा, न बाक़ी रहा; जिनको मैंने गोद में खिलाया और पला पोसा, मेरे दुश्मनों ने फ़ना कर दिया|
1~मैं ही वह शख़्स हूँ जिसने उसके ग़ज़ब की लाठी से दुख पाया।2वह मेरा रहबर हुआ, और मुझे रौशनी में नहीं, बल्कि तारीकी में चलाया;3यक़ीनन उसका हाथ दिन भर मेरी मुख़ालिफ़त करता रहा।4~उसने मेरा गोश्त और चमड़ा ख़ुश्क कर दिया, और मेरी हड्डियाँ तोड़ डालीं,5उसने मेरे चारों तरफ़ दीवार खेंची और मुझे कड़वाहट और-मशक़्क़त से घेर लिया;6~उसने मुझे लम्बे वक़्त से मुर्दों की तरह तारीक मकानों में रख्खा।7~उसने मेरे गिर्द अहाता बना दिया,कि मैं बाहर नहीं निकल सकता; उसने मेरी ज़ंजीर भारी कर दी।8बल्कि जब मैं पुकारता और दुहाई देता हूँ, तो वह मेरी फ़रियाद नहीं सुनता।9~उसने तराशे हुए पत्थरों से मेरे रास्तेबन्द कर दिए, उसने मेरी राहें टेढ़ी कर दीं।10वह मेरे लिए घात में बैठा हुआ रीछ और कमीनगाह का शेर-ए-बब्बर है।11उसने मेरी राहें तंग कर दीं और मुझे रेज़ा-रेज़ा करके बर्बाद कर दिया।12उसने अपनी कमान खींची और मुझे अपने तीरों का निशाना बनाया।13उसने अपने तर्कश के तीरों से मेरे गुर्दों को छेद डाला।14मैं अपने सब लोगों के लिए मज़ाक़, और दिन भर उनका चर्चा हूँ।15उसने मुझे तल्ख़ी से भर दिया और नाग़दोने ~से मदहोश किया।16उसने संगरेज़ों से मेरे दाँत तोड़े और मुझे ज़मीन की तह में लिटाया।17~तू ने मेरी जान को सलामती से दूरकर दिया, मैं ख़ुशहाली को भूल गया;18और मैंने कहा, "मैं नातवाँ हुआ, और ख़ुदावन्द से मेरी उम्मीद जाती रही।"19~मेरे दुख का ख़्याल कर; मेरी मुसीबत, या'नी तल्ख़ी और नाग़दोने को याद कर।20इन बातों की याद से मेरी जान मुझ में बेताब है।21~मैं इस पर सोचता रहता हूँ, इसीलिए मैं उम्मीदवार हूँ।22ये ख़ुदावन्द की शफ़क़त है, कि हम फ़ना नहीं हुए, क्यूँकि उसकी रहमत ला ज़वाल है।23वह हर सुबह ताज़ा है; तेरी वफ़ादारी 'अज़ीम है24~मेरी जान ने कहा, "मेरा हिस्सा ख़ुदावन्द है, इसलिए मेरी उम्मीद उसी से है।”25ख़ुदावन्द उन पर महरबान है, जो उसके मुन्तज़िर हैं; उस जान पर जो उसकी तालिब है।26~ये खू़ब है कि आदमी उम्मीदवार रहे और ख़ामोशी से ख़ुदावन्द की नजात का इन्तिज़ार करे।27आदमी के लिए बेहतर है कि अपनी जवानी के दिनों में फ़रमॉबरदारी करे।28~वह तन्हा बैठे और ख़ामोश रहे, क्यूँकि ये ख़ुदा ही ने उस पर रख्खा है।29वह अपना मुँह ख़ाक पर रख्खे, कि शायद कुछ उम्मीद की सूरत निकले।30~वह अपना गाल उसकी तरफ़ फेर दे, जो उसे तमाँचा मारता है और मलामत से खू़ब सेर हो31क्यूँकि ख़ुदावन्द हमेशा के लिए रद्द न करेगा,32क्यूँकि अगरचे वह दुख़ दे, तोभी अपनी शफ़क़त की दरयादिली से रहम करेगा।33~क्यूँकि वह बनी आदम पर खु़शी से दुख़ मुसीबत नहीं भेजता।34रू-ए-ज़मीन के सब कै़दियों को पामाल करना35हक़ ताला के सामने किसी इन्सान की हक़ तल्फ़ी करना,36और किसी आदमी का मुक़द्दमा बिगाड़ना,ख़ुदावन्द देख नहीं सकता।37~वह कौन है जिसके कहने के मुताबिक़ होता है, हालाँकि ख़ुदावन्द नहीं फ़रमाता?38~क्या भलाई और बुराई हक़ ताला ही के हुक्म से नहीं हैं ?39~इसलिए आदमी जीते जी क्यूँ शिकायत करे, जब कि उसे गुनाहों की सज़ा मिलती हो?40हम अपनी राहों को ढूंडें और जाँचें, और ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरें।41हम अपने हाथों के साथ दिलों को भी ख़ुदा के सामने आसमान की तरफ़ उठाएँ:42हम ने ख़ता और सरकशी की, तूने मु'आफ़ नहीं किया।43तू ने हम को क़हर से ढाँपा और रगेदा; तूने क़त्ल किया, और रहम न किया।44तू बादलों में मस्तूर हुआ, ताकि हमारी दु'आ तुझ तक न पहुँचे।45~तूने हम को क़ौमों के बीच कूड़े करकट और नजासत सा बना दिया।46हमारे सब दुश्मन हम पर मुँह पसारते हैं;47ख़ौफ़-और-दहशत और वीरानी-और-हलाकत ने हम को आ दबाया।48~मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की तबाही के ज़रिए' मेरी आँखों से आँसुओं की नहरें जारी हैं।49मेरी ऑखें अश्कबार हैं और थमती नहीं, उनको आराम नहीं,50जब तक ख़ुदावन्द आसमान पर से नज़र करके न देखे;51मेरी आँखें मेरे शहर की सब बेटियों के लिए मेरी जान को आज़ुर्दा करती हैं।52~मेरे दुश्मनों ने बे वजह मुझे परिन्दे की तरह दौड़ाया;53उन्होंने चाह-ए-ज़िन्दान में मेरी जान लेने को मुझ पर पत्थर रख्खा;54पानी मेरे सिर से गुज़र गया, मैंने कहा, 'मैं मर मिटा।'55ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तह दिल से तेरे नाम की दुहाई दी;56तू ने मेरी आवाज़ सुनी है, मेरी आह-ओ- फ़रियाद से अपना कान बन्द न कर"।57जिस रोज़ मैने तुझे पुकारा, तू नज़दीक आया; और तू ने फ़रमाया, "परेशान न हो!"58ऐ ख़ुदावन्द, तूने मेरी जान की हिमायत की और उसे छुड़ाया।59~ऐ ख़ुदावन्द, तू ने मेरी मज़लूमी देखी; मेरा इन्साफ़ कर।60~तूने मेरे ख़िलाफ़ उनके तमाम इन्तक़ामऔर सब मन्सूबों को देखा है।61ऐ ख़ुदावन्द, तूने मेरे ख़िलाफ़ उनकी मलामत और उनके सब मन्सूबों को सुना है;62जो मेरी मुख़ालिफ़त को उठे उनकी बातें और दिन भर मेरी मुख़ालिफ़त में उनके मन्सूबे।63उनकी महफ़िल-ओ-बरख़ास्त को देख कि मेरा ही ज़िक्र है।64ऐ ख़ुदावन्द, उनके 'आमाल के मुताबिक़ उनको बदला दे।65~उनको कोर दिल बना कि तेरी ला'नत उन पर हो।66क़हर से उनको भगा और रू-ए-ज़मीन से नेस्त-ओ-नाबूद कर दे|"
1~सोना कैसा बेआब हो गया! कुन्दन कैसा बदल गया! मक़्दिस के पत्थर तमाम गली कूचों में पड़े हैं!2सिय्यून के 'अज़ीज़ फ़र्ज़न्द,जो ख़ालिस सोने की तरह थे, कैसे कुम्हार के बनाए हुए बर्तनों के बराबर ठहरे!3गीदड़ भी अपनी छातियों से अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं; लेकिन मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम वीरानी शुतरमुर्ग़ की तरह बे-रहम है।4दूध पीते बच्चों की ज़बान प्यास के मारे तालू से जा लगी; बच्चे रोटी मांगते हैं लेकिन उनको कोई नहीं देता।5जो नाज़ पर्वरदा थे, गलियों में तबाह हाल हैं; जो बचपन से अर्ग़वानपोश थे, मज़बलों पर पड़े हैं।6~क्यूँकि मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की बदकिरदारी सदूम के गुनाह से बढ़कर है, जो एक लम्हे में बर्बाद हुआ,और किसी के हाथ उस पर दराज़ न हुए।7उसके शुर्फ़ा बर्फ़ से ज़्यादा साफ़ और दूध से सफ़ेद थे, उनके बदन मूंगे से ज़्यादा सुर्ख थे, उन की झलक नीलम की सी थी;8अब उनके चेहरे सियाही से भी काले हैं; वह बाज़ार में पहचाने नहीं जाते; उनका चमड़ा हड्डियों से सटा है; वह सूख कर लकड़ी सा हो गया।9~तलवार से क़त्ल होने वाले, भूकों मरने वालों से बहतर हैं; क्यूँकि ये खेत का हासिल न मिलने से कुढ़कर हलाक होते हैं।10~रहमदिल 'औरतों के हाथों ने अपने बच्चों को पकाया; मेरी दुख़्तर-ए-क़ौम की तबाही में वही उनकी खू़राक हुए।11~ख़ुदावन्द ने अपने ग़ज़ब को अन्जाम दिया; उसने अपने क़हर-ए-शदीद को नाज़िल किया। और उसने सिय्यून में आग भड़काई जो उसकी बुनियाद को चट कर गई।12~रू-ए-ज़मीन के बादशाह और दुनिया के बाशिन्दे बावर नहीं करते थे, कि मुख़ालिफ़ और दुश्मन यरुशलीम के फाटकों से घुस आएँगे।13ये उसके नबियों के गुनाहों और काहिनों की बदकिरदारी की वजह से हुआ, जिन्होंने उसमें सच्चों का खू़न बहाया।14वह अन्धों की तरह गलियों में भटकते, और खू़न से आलूदा होते हैं, ऐसा कि कोई उनके लिबास को भी छू नहीं सकता।15~वह उनको पुकार कर कहते थे, "दूर रहो! नापाक, दूर रहो! दूर रहो, छूना मत!" जब वह भाग जाते और आवारा फिरते, तो लोग कहते थे, 'अब ये यहाँ न रहेंगे।"16~ख़ुदावन्द के क़हर ने उनको पस्त किया, अब वह उन पर नज़र नहीं करेगा; उन्होंने काहिनों की 'इज़्ज़त न की, और बुज़ुगों का लिहाज़ न किया।17~हमारी आँखें बातिल मदद के इन्तिज़ार में थक गईं, हम उस क़ौम का इन्तिज़ार करते रहे जो बचा नहीं सकती थी।18उन्होंने हमारे पाँव ऐसे बाँध रख्खे हैं, कि हम बाहर नहीं निकल सकते; हमारा अन्जाम नज़दीक है, हमारे दिन पूरे हो गए; हमारा वक़्त आ पहुँचा।19हम को दौड़ाने वाले आसमान के उक़ाबों से भी तेज़ हैं; उन्होंने पहाड़ों पर हमारा पीछा किया; वह वीराने में हमारी घात में बैठे।20~हमारी ज़िन्दगी का दम ख़ुदावन्द का मम्सूह,उनके गढ़ों में गिरफ़्तार हो गया; जिसकी वजह हम कहते थे, कि उसके साये तले हम क़ौमों के बीच ज़िन्दगी बसर करेंगे।21~ऐ दुख़्तर-ए-अदोम, जो 'ऊज़ की सरज़मीन में बसती है, ख़ुश-और-ख़ुर्रम हो; ये प्याला तुझ तक भी पहुँचेगा; तू मस्त और बरहना हो जाएगी।22ऐ दुख़्तर-ए-सिय्यून, तेरी बदकिरदारी की सज़ा तमाम हुई; वह मुझे फिर ग़ुलाम करके नहीं ले जाएगा; ऐ~दुख़्तर-ए-अदोम, वह तेरी बदकिरदारी की सज़ा देगा; वह तेरे गुनाह वाश करेगा|
1~ऐ ख़ुदावन्द, जो कुछ हम पर गुज़रा~उसे याद कर; नज़र कर और हमारी रुस्वाई को देख।2~हमारी मीरास अजनबियों के हवाले की गई, हमारे घर बेगानों ने ले लिए।3हम यतीम हैं, हमारे बाप नहीं,~हमारी माँए बेवाओं की तरह हैं।4~हम ने अपना पानी मोल लेकर पिया;~अपनी लकड़ी भी हम ने दाम देकर ली।5~हम को रगेदने वाले हमारे सिर पर हैं;~हम थके हारे और बेआराम हैं।6हम ने मिस्रियों और असूरियों की इता'अत क़ुबूल की ताकि रोटी से सेर और आसूदा हों।7~हमारे बाप दादा गुनाह करके चल बसे, और हम उनकी बदकिरदारी की सज़ा पा रहे हैं।8गु़लाम हम पर हुक्मरानी करते हैं;~उनके हाथ से छुड़ाने वाला कोई नहीं।9सहरा नशीनों की तलवार के ज़रिए',~हम जान पर खेलकर रोटी हासिल करते हैं।10क़हत की झुलसाने वाली आग के ज़रिए',हमारा चमड़ा तनूर की तरह ~सियाह हो गया है।11~उन्होंने सिय्यून में 'औरतों को बेहुरमत किया और यहूदाह के शहरों में कुँवारी~लड़कियों को ।12हाकिम को उनके हाथों से लटका दिया;~बुज़ुगों की रू-दारी न की गई।13जवानों ने चक्की पीसी,~और बच्चों ने गिरते पड़ते लकड़ियाँ ढोईं।14बुज़ुर्ग फाटकों पर दिखाई नहीं देते,~जवानों की नग़मा परदाज़ी सुनाई नहीं देती।15हमारे दिलों से खुशी जाती रही;~हमारा रक़्स मातम से बदल गया।16ताज हमारे सिर पर से गिर पड़ा;~हम पर अफ़सोस! कि हम ने गुनाह किया।17~इसीलिए हमारे दिल बेताब हैं;~इन्हीं बातों के ज़रिए' हमारी आँखें धुंदला गई,18कोह-ए-सिय्यून की वीरानी के ज़रिए', उस पर गीदड़ फिरते हैं।19लेकिन तू, ऐ ख़ुदावन्द, हमेशा तक क़ायम है;~और तेरा तख़्त नसल-दर-नसल।20फिर तू क्यूँ हम को हमेशा के लिए भूल जाता है, और हम को लम्बे वक़्त तक तर्क करता है?21~ऐ ख़ुदावन्द, हम को अपनी तरफ़ फिरा,~तो हम फिरेंगे; हमारे दिन बदल दे, जैसे पहले से थे।22क्या तू ने हमको बिल्कुल रद्द कर दिया है? क्या तू हमसे शख़्त नाराज़ है?
1तेइसवीं बरस के चौथे महीने की पाँचवीं तारीख़ को यूँ हुआ कि जब मैं नहर-ए-किबार के किनारे पर ग़ुलामों के बीच था तो आसमान खुल गया और मैंने ख़ुदा की रोयतें देखीं|2उस महीने की पाँचवीं को यहूयाकीम बादशाह की ग़ुलामी के पाँचवीं बरस|3ख़ुदावन्द का कलाम बूज़ी के बेटे हिज़क़िएल काहिन पर जो कसदियों के मुल्क में नहर-ए-किबार के किनारे पर था नाज़िल हुआ, और वहाँ ख़ुदावन्द का हाथ उस पर था|4और मैंने नज़र की तो क्या देखता हूँ कि उत्तर से आँधी उठी एक बड़ी घटा और लिपटती हुई आग और उसके चारों तरफ़ रोशनी चमकती थी और उसके बीच से या'नी उस आग में से सैक़ल किये हुए पीतल की तरह सूरत जलवागर हुई|5और उसमें से चार जानदारों की एक शबीह नज़र आई और उनकी शक्ल यूँ थी कि वह इंसान से मुशाबह थे|6और हर एक चार चेहरे और चार पर थे |7और उनकी टाँगे सीधी थीं और उनके पाँव के तलवे बछड़े की पाँव के तलवे की तरह थे और वह मंजे हुए पीतल की तरह झलकते थे|8और उनके चारों तरफ़ परों के नीचे इन्सान के हाथ थे और चारों के चेहरे और पर यूँ थे |9कि उनके पर एक दूसरे के साथ जुड़े थे और वह चलते हुए मुड़ते न थे बल्कि सब सीधे आगे बढ़े चले जाते थे|10उनके चेहरों की मुशाबिहत यूँ थी कि उन चारों का एक एक चेहरा इन्सान का एक शेर बबर का उनकी दहिनी तरफ़ और उन चारों का एक एक चेहरा सांड का बाईं तरफ़ और उन चारों का एक एक चेहरा 'उक़ाब का था|11उनके चेहरे यूँ थे और उनके पर ऊपर से अलग-अलग थे हर एक के ऊपर दूसरे के दो परों से मिले हुए थे और दो दो से उनका बदन छिपा हुआ था|12उनमें से हर एक सीधा आगे को चला जाता था जिधर को जाने की ख़्वाहिश होती थी वह जाते थे, वह चलते हुए मुड़ते न थे|13रही उन जानदारों की सूरत तो उनकी शक्ल आग के सुलगे हुए कोयलों और मशा'लों की तरह थी, वह उन जानदारों के बीच इधर उधर आती जाती थी और वह आग नूरानी थी और उसमे से बिजली निकलती थी |14और वह जानदार ऐसे हटते बढ़ते थे जैसे बिजली कौंध जाती है|15जब मैंने उन जानदारों की तरफ़ नज़र की तो क्या देखता हूँ कि उन चार चार चेहरों वाले जानदारों के हर चेहरे के पास ज़मीन पर एक पहिया है|16उन पहियों की सूरत और और बनावट ज़बरजद के जैसी थी और वह चारों एक ही वज़ा' के थे और उनकी शक्ल और उनकी बनावट ऐसी थी जैसे पहिया पहटे के बीच में है|17वह चलते वक़्त अपने चारों पहलुओं पर चलते थे और पीछे नहीं मुड़ते थे |18और उनके हलक़े बहुत ऊँचे और डरावने थे और उन चारों के हलक़ों के चारों तरफ़ आँखें ही आँखें थीं|19जब वह जानदार चलते थे तो पहिये भी उनके साथ चलते थे और जब वह जानदार ज़मीन पर से उठाये जाते थे तो पहिये भी उठाये जाते थे|20जहाँ कहीं जाने की ख़्वाहिश होती थी जाते थे, उनकी ख़्वाहिश उनको उधर ही ले जाती थी और पहिये उनके साथ उठाये जाते थे, क्यूँकि जानदार की रूह पहियों में थी|21जब वह चलते थे, यह चलते थे; और जब वह ठहरते थे, यह ठरते थे; और जब वह ज़मीन पर से उठाये जाते थे तो पहिये भी उनके साथ उठाये जाते थे, क्यूँकि पहियों में जानदार की रूह थी|22जानदारों के सरो के ऊपर की फ़ज़ा बिल्लोर की तरह चमक थी और उनके सरों के ऊपर फ़ैली थी|23और उस फ़ज़ा के नीचे उनके पर एक दूसरे की सीध में थे हर एक दो परों से उनके बदनो का एक पहलू और दो परों से दूसरा हिस्सा छिपा था24और जब वह चले तो मैंने उनके परों की आवाज़ सुनी जैसे बड़े सैलाब की आवाज़ या'नी क़ादिर-ए-मुतलक़ की आवाज़ और ऐसी शोर की आवाज़ हुई जैसी लश्कर की आवाज़ होती है जब वह ठहरते थे तो अपने परों को लटका देते थे|25और उस फ़ज़ा के ऊपर से जो उनके सरो के ऊपर थी, एक आवाज़ आती थी और वह जब ठहरते थे तो अपने बाज़ुओं को लटका देते थे|26और उस फ़ज़ा से ऊपर जो उनके सरों के ऊपर थी तख़्त की सूरत थी और उसकी सूरत नीलम के पत्थर की तरह थी और उस तख़्त नुमा सूरत पर किसी इन्सान की तरह शबीह उसके ऊपर नज़र आयी|27और मैंने उसकी कमर से लेकर ऊपर तक सैक़ल किये हुए पीतल के जैसा रंग और शो'ला सा जलवा उसके बीच और चारों तरफ़ देखा और उसकी कमर से लेकर नीचे तक मैंने शो'ला की तरह तजल्ली देखी, और उसकी चारों तरफ़ जगमगाहट थी|28जैसी उस कमान की सूरत है जो बारिश के दिन बादलों में दिखाई देती है वैसी ही आस-पास की उस जगमगाहट ज़ाहिर थी यह ख़ुदावन्द के जलाल का इज़हार था, और देखते ही मैं सिज्दे में गिरा और मैंने एक आवाज़ सुनी जैसे कोई बातें करता है|
1और उसने मुझे कहा, ऐ आदमज़ाद अपने पाँव पर खड़ा हो कि मैं तुझसे बातें करूँ।"2जब उसने मुझे यूँ कहा, तो रूह मुझ में दाख़िल हुई और मुझे पाँव पर खड़ा किया; तब मैंने उसकी सुनी जो मुझ से बातें करता था।3चुनाँचे उसने मुझ से कहा, कि "ऐआदमज़ाद , मैं तुझे बनी-इस्राईल के पास, या'नी उस सरकश क़ौम के पास जिसने मुझ से सरकशी की है भेजता हूँ वह और उनके बाप दादा आज के दिन तक मेरे गुनाहगार होते आए हैं।4क्यूँकि जिनके पास मैं तुझ को भेजता हूँ, वह सख़्त दिल और बेहया फ़र्ज़न्द हैं; तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है।"5तो चाहे वह सुनें या न सुने (क्यूँकि वह तो सरकश ख़ान्दान हैं) तोभी इतना तो होगा कि वह जानेंगे कि उनमें से एक नबी खड़ा हुआ।6तू ऐ आदमज़ाद उनसे परेशान न हो और उनकी बातों से न डर, हर वक़्त तू ऊँट कटारों और काँटों से घिरा है और बिच्छुओं के बीच रहता है। उनकी बातों से तरसान न हो और उनके चेहरों से न घबरा, अगरचे वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।7तब तू मेरी बातें उनसे कहना, चाहे वह सुनें चाहे न सुनें, क्यूँकि वह बहुत बाग़ी हैं।8"लेकिन ऐ आदमज़ाद , तू मेरा कलाम सुन। तू उस सरकश ख़ान्दान की तरह सरकशी न कर, अपना मुँह खोल और जो कुछ मैं तुझे देता हूँ खा ले।"9और मैंने निगाह की, तो क्या देखता हूँ कि एक हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाया हुआ है, और उसमें किताब का तूमार है।10~और उसने उसे खोल कर मेरे सामने रख दिया। उसमें अन्दर बाहर लिखा हुआ था,और उसमें नोहा और मातम और आह और नाला मरकूम था।
1फिर उसने मुझे कहा, कि "ऐ आदमज़ाद , जो कुछ तूने पाया सो खा। इस तूमार को निगल जा, और जा कर इस्राईल के ख़ान्दान से कलाम कर।"2तब मैंने मुँह खोला और उसने वह तूमार मुझे खिलाया।3फिर उसने मुझे कहा, कि "ऐ आदमज़ाद , इस तूमार को जो मैं तुझे देता हूँ खा जा, और उससे अपना पेट भर ले।" तब मैंने खाया और वह मेरे मुँह में शहद की तरह मीठा था।4फिर उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद , तू बनी-इस्राईल के पास जा और मेरी यह बातें उनसे कह।5क्यूँकि तू ऐसे लोगों की तरफ़ नहीं भेजा जाता जिनकी ज़बान बेगाना और जिनकी बोली सख़्त है; बल्कि इस्राईल के ख़ान्दान की तरफ़;6न बहुत सी उम्मतों की तरफ़ जिनकी ज़बान बेगाना और जिनकी बोली सख़्त है; जिनकी बात तू समझ नहीं सकता। यक़ीनन अगर मैं तुझे उनके पास भेजता, तो वह तेरी सुनतीं।7लेकिन बनी इस्राईल तेरी बात न सुनेंगे, क्यूँकि वह मेरी सुनना नहीं चाहते, क्यूँकि सब बनी-इस्राईल सख़्त पेशानी और पत्थर दिल हैं।8देख, मैंने उनके चेहरों के सामने तेरा चेहरा दुरुश्त किया है, और तेरी पेशानी उनकी पेशानियों के सामने सख़्त कर दी है।9मैंने तेरी पेशानी को हीरे की तरह चकमाक से भी ज़्यादा सख़्त कर दिया है; उनसे न डर और उनके चेहरों से परेशान न हो, अगरचे वह सरकश ख़ान्दान हैं।"10फिर उसने मुझ से कहा, कि "ऐ आदमज़ाद , मेरी सब बातों को जो मैं तुझ से कहूँगा, अपने दिल से कु़बूल कर और अपने कानों से सुन।11अब उठ, ग़ुलामों या'नी अपनी क़ौम के लोगों के पास जा, और उनसे कह, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है,' चाहे वह सुनें चाहे न सुनें।"12और रूह ने मुझे उठा लिया, और मैंने अपने पीछे एक बड़ी कड़क की आवाज़ सुनी जो कहती थी: कि 'ख़ुदावन्द का जलाल उसके घर से मुबारक हो।"13और जानदारों के परों के एक दूसरे से लगने की आवाज़ और उनके सामने पहियों की आवाज़ और एक बड़े धड़ाके की आवाज़ सुनाई दी।14और रूह मुझे उठा कर ले गई, इसलिए मैं तल्ख़ दिल और ग़ज़बनाक होकर रवाना हुआ, और ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर ग़ालिब था;15~और मैं तल अबीब में ग़ुलामों के पास, जो नहर-ए-किबार के किनारे बसते थे पहुँचा; और जहाँ वह रहते थे, मैं सात दिन तक उनके बीच परेशान बैठा रहा।16और सात दिन के बा'द ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:17कि "ऐ आदमज़ाद, मैंने तुझे बनी-इस्राईल का निगहबान मुक़र्रर किया। इसलिए तू मेरे मुँह का कलाम सुन, और मेरी तरफ़ से उनको आगाह कर दे।18जब मैं शरीर से कहूँ, कि 'तू यक़ीनन मरेगा," और तू उसे आगाह न करे और शरीर से न कहे कि वह अपनी बुरी चाल चलन से ख़बरदार हो, ताकि वह उससे बाज़ आकर अपनी जान बचाए, तो वह शरीर अपनी शरारत में मरेगा, लेकिन मैं उसके खू़न का सवाल-ओ-जवाब तुझ से करूँगा।19लेकिन अगर तूने शरीर को आगाह कर दिया और वह अपनी शरारत और अपनी बुरी चाल चलन से बाज़ न आया तो वह अपनी बदकिरदारी में मरेगा पर तूने अपनी जान को बचा लिया |20और अगर रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी छोड़ दे और गुनाह करे, और मैं उसके आगे ठोकर खिलाने वाला पत्थर रख्खूँ तो वह मर जाएगा; इसलिए कि तूने उसे आगाह नहीं किया, तो वह अपने गुनाह में मरेगा और उसकी सदाक़त के कामों का लिहाज़ न किया जाएगा, लेकिन मैं उसके खू़न का सवाल-ओ-जवाब तुझ से करूँगा।21लेकिन अगर तू उस रास्तबाज़ को आगाह कर दे, ताकि गुनाह न करे और वह गुनाह से बाज़ रहे तो वह यक़ीनन जिएगा; इसलिए के नसीहत पज़ीर हुआ और तूने अपनी जान बचा ली।"22और वहाँ ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था, और उसने मुझे फ़रमाया, "उठ, मैदान में निकल जा और वहाँ मैं तुझ से बातें करूँगा।"23तब मैं उठ कर मैदान में गया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द का जलाल उस शौकत~की तरह , जो मैंने नहर-ए-किबार के किनारे देखी थी खड़ा है; और मैं मुँह के बल गिरा।24तब रूह मुझ में दाख़िल हुई और उसने मुझे मेरे पाँव पर खड़ा किया, और मुझ से हमकलाम होकर फ़रमाया, कि"अपने घर जा, और दरवाज़ा बन्द करके अन्दर बैठ रह।25और ऐ आदमज़ाद देख, वह तुझ पर बंधन डालेंगे और उनसे तुझे बाँधेंगे और तू उनके बीच बाहर न जाएगा।26और मैं तेरी ज़बान तेरे तालू से चिपका दूँगा कि तू गूँगा~~हो जाए; और उनके लिए नसीहत गो न हो, क्यूँकि वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।27~~लेकिन जब मैं तुझ से हमकलाम हूँगा, तो तेरा मुँह खोलूँगा, तब तू उनसे कहेगा, कि 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है," जो सुनता है सुने और जो नहीं सुनता न सुने, क्यूँकि वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।
1और ऐ आदमज़ाद , तू एक खपरा ले और अपने सामने रख कर उस पर एक शहर, हाँ, यरुशलीम ही की तस्वीर खींच।2और उसका घेराव कर, और उसके सामने बुर्ज बना, और उसके सामने दमदमा बाँध और उसके चारों तरफ़ ख़ेमें खड़े कर और उसके चारों तरफ़ मन्जनीक लगा।3फिर तू लोहे का एक तवा ले, और अपने और शहर के बीच उसे नस्ब कर कि वह लोहे की दीवार ठहरे और तू अपना मुँह उसके सामने कर और वह घेराव की हालत में हो, और तू उसको घेरने वाला होगा; यह बनी इस्राईल के लिए निशान है।4"फिर तू अपनी ईं करवट पर लेट रह और बनी-इस्राईल की बदकिरदारी इस पर रख दे; जितने दिनों तक तू लेटा रहेगा, तू उनकी बदकिरदारी बर्दाश्त करेगा।5और मैंने उनकी बदकिरदारी के बरसों को उन दिनों के शुमार के मुताबिक़ जो तीन-सौ- नब्बे दिन हैं तुझ पर रख्खा है, इसलिए तू बनी-इस्राईल की बदकिरदारी बर्दाश्त करेगा।6और जब तू इनको पूरा कर चुके तो फिर अपनी दहनी करवट पर लेट रह, और चालीस दिन तक बनी यहूदाह की बदकिरदारी को बर्दाश्त कर; मैंने तेरे लिए एक एक साल के बदले एक एक दिन मुक़र्रर किया है।7फिर तू यरुशलीम के घेराव की तरफ़ मुँह कर और अपना बाज़ू नंगा कर और उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर।8और देख, मैं तुझ पर बन्धन डालूँगा कि तू करवट न ले सके, जब तक अपने घेराव के दिनों को पूरा न कर ले।9"और तू अपने लिए गेहूँ और जौ और बाक़ला और मसूर और चना और बाजरा ले, और उनको एक ही बर्तन में रख, और उनकी इतनी रोटियाँ पका जितने दिनों तक तू पहली करवट पर लेटा रहेगा; तू तीन सौ नब्बे दिन तक उनको खाना।10और तेरा खाना वज़न करके बीस मिस्काल" रोज़ाना होगा जो तू खाएगा, तू थोड़ा-थोड़ा खाना।11तू पानी भी नाप कर एक हीन का छटा हिस्सा पिएगा, तू थोड़ा-थोड़ा पीना।12और तू जौ के फुल्के खाना, और तू उनकी आँखों के सामने इन्सान की नजासत से उनको पकाना।”13और ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, कि "इसी तरह से बनी-इस्राईल अपनी नापाक रोटियों को उन क़ौमों के बीच जिनमें मैं उनको आवारा करूँगा, खाया करेंगे।”14तब मैंने कहा,कि "हाय, ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, मेरी जान कभी नापाक नहीं हुई; और अपनी जवानी से अब तक कोई मुरदार चीज़ जो आप ही मर जाए या किसी जानवर से फाड़ी जाए, मैंने हरगिज़ नहीं खाई, और हराम गोश्त मेरे मुँह में कभी नहीं गया।"15तब उसने मुझे फ़रमाया, "देख, मैं इन्सान की नजासत के बदले तुझे गोबर देता हूँ, इसलिए तू अपनी रोटी उससे पकाना।"16~उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद , देख, मैं यरुशलीम में रोटी का 'असा तोड़ डालूँगा; और वह रोटी तौल कर फ़िक्रमन्दी से खाएँगे, और पानी नाप कर हैरत से पिएँगे।17ताकि~वह रोटी पानी के मोहताज हों, और एक साथ शर्मिन्दा हों और अपनी बदकिरदारी में हलाक हों।
1ऐ~आदमज़ाद , तू एक तेज़ तलवार ले और हज्जाम के उस्तरे की तरह उस से अपना सिर और अपनी दाढी मुड़ा और तराज़ू ले और बालों को तौल कर उनके हिस्से बना।2फिर जब घेराव के दिन पूरे हो जाएँ, तो शहर के बीच में उनका एक हिस्सा लेकर आग में जला। और दूसरा हिस्सा लेकर तलवार से इधर उधर बिखेर दे। और तीसरा हिस्सा हवा में उड़ा दे, और मैं तलवार खींच कर उनका पीछा करूँगा।3और उनमें से थोड़े से बाल गिन कर ले और उनको अपने दामन में बाँध।4फिर उनमें से कुछ निकाल कर आग में डाल और जला दे; इसमें से एक आग निकलेगी जो इस्राईल के तमाम घराने में फैल जाएगी।5~"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि यरुशलीम यही है। मैंने उसे क़ौमों और मम्लुकतों के बीच, जो उसके आस-पास हैं रख्खा है।6लेकिन उसने दीगर क़ौमों से ज़्यादा शरारत कर के मेरे हुक्मों की मुख़ालिफ़त की और मेरे क़ानून को आसपास की मम्लुकतों से ज़्यादा रद्द किया, क्यूँकि उन्होंने मेरे हुक्मों को रद्द किया और मेरे क़ानून की पैरवी न की।7इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि तुम अपने आस-पास की क़ौम से बढ़ कर फ़ितना अंगेज़ हो और मेरे क़ानून की पैरवी नहीं की और मेरे हुक्मों पर 'अमल नहीं किया, और अपने आस-पास की क़ौम के क़ानून और हुक्मों पर भी 'अमल नहीं किया;8इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं, हाँ मैं ही तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और तेरे बीच सब क़ौमों की आँखों के सामने तुझे सज़ा दूँगा।9और मैं तेरे सब नफ़रती कामों की वजह से तुझमें वही करूँगा, जो मैंने अब तक नहीं किया और कभी न करूँगा।10अगर तुझमें बाप बेटे को और बेटा बाप को खा जाएगा, और मैं तुझे सज़ा दूँगा और तेरे बक़िये को हर तरफ़ तितर-बितर करूँगा।11इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: कि ~मुझे अपनी हयात की क़सम, चूँकि तूने अपनी तमाम मकरूहात से और अपने नफ़रती कामों से मेरे मक़्दिस को नापाक किया है, इसलिए मैं भी तुझे घटाऊँगा, मेरी आँखें रि'आयत न करेंगी, मैं हरगिज़ रहम न करूँगा।12तेरा एक हिस्सा वबा से मर जाएगा और काल से तेरे अन्दर हलाक हो जाएगा और दूसरा हिस्सा तेरी चारों तरफ़ तलवार से मारा जाएगा, और तीसरे हिस्से को मैं हर तरफ़ तितर बितर करूँगा और तलवार खींच कर उनका पीछा करूँगा।13"मेरा क़हर यूँ पूरा होगा, तब मेरा ग़ज़ब उन पर धीमा हो जाएगा और मेरी तस्कीन होगी; और जब मैं उन पर अपना क़हर पूरा करूँगा, तब वह जानेंगे कि मुझ ख़ुदावन्द ने अपनी गै़रत से यह सब कुछ फ़रमाया था।14इसके 'अलावा मैं तुझको उन क़ौमों के बीच जो तेरे आस-पास हैं, और उन सब की निगाहों में जो उधर से गुज़र करेंगे वीरान और मलामत की वजह बनाऊँगा।15इसलिए जब मैं क़हर-ओ-ग़ज़ब और सख़्त मलामत से तेरे बीच 'अदालत करूँगा, तो तू अपने आसपास की क़ौम के लिए जा-ए-मलामत-ओ-इहानत और मक़ाम-ए-'इबरत-ओ-हैरत होगी; मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।16या'नी जब मैं सख़्त सूखे के तीर जो उनकी हलाकत के लिए हैं, उनकी तरफ़ रवाना करूँगा जिनको मैं तुम्हारे हलाक करने के लिए चलाऊँगा, और मैं तुम में सूखे को ज़्यादा करूँगा और तुम्हारी रोटी की लाठी को तोड़ डालूँगा।17और मैं तुम में सूखा और बुरे दरिन्दे भेजूँगा, और वह तुझे बेऔलाद करेंगे; और मेरी और ख़ूँरेज़ी तेरे बीच आएगी मैं तलवार तुझ पर लाऊँगा; मैं ख़ुदावन्द ही ने फ़रमाया है।”
1और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|2~कि "ऐ आदमज़ाद, इस्राईल के पहाड़ों की तरफ़ मुँह करके उनके ख़िलाफ़~नबुव्वत कर3और यूँ कह, कि ऐ इस्राईल के पहाड़ों, खु़दावन्द खु़दा का कलाम सुनो! खु़दावन्द ख़ुदा पहाड़ों और टीलों को और नहरों और वादियों को यूँ फ़रमाता है: कि देखो, मैं, हाँ मैं ही तुम पर तलवार चलाऊँगा, और तुम्हारे ऊँचे मक़ामों को ग़ारत करूँगा।4~और तुम्हारी कु़र्बानगाहें उजड़ जाएँगी और तुम्हारी सूरज की मूरतें तोड़ डाली जाएगी और मैं तुम्हारे मक़तूलों को तुम्हारे बुतों के आगे डाल दूँगा।5और बनी-इस्राईल की लाशें उनके बुतों के आगे फेंक दूँगा, और मैं तुम्हारी हड्डियों को तुम्हारी कु़र्बानगाहों के चारों तरफ़ तितर-बितर करूँगा।6~तुम्हारे क़याम के तमाम इलाक़ों के शहर वीरान होंगे और ऊँचे मक़ाम उजाड़े जायेंगे ताकि तुम्हारी क़ुर्बानगाहें ख़राब और वीरान हों और तुम्हारे बुत तोड़े जाएँ और बाक़ी न रहें और तुम्हारी सूरज की मूरतें काट डाली जाएँ और तुम्हारी दस्तकारियाँ हलाक हों।7और मक़्तूल तुम्हारे बीच गिरेंगे, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।8"लेकिन मैं एक बक़िया छोड़ दूँगा, या'नी वह चन्द लोग जो क़ौमों के बीच तलवार से बच निकलेंगे जब तुम ग़ैर मुल्कों में तितर बितर हो जाओगे।9और जो तुम में से बच रहेंगे उन क़ौमों के बीच जहाँ जहाँ वह ग़ुलाम होकर जाएँगे मुझको याद करेंगे, जब मैं उनके बेवफ़ा दिलों को जो मुझ से दूर हुए और उनकी आँखों को जो बुतों की पैरवी में नाफ़रमान हुईं, शिकस्त करूँगा और वह ख़ुद अपनी तमाम बद'आमाली की वजह से जो उन्होंने अपने तमाम घिनौने कामों में की, अपनी ही नज़र में नफ़रती ठहरेंगे।10तब वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, और मैंने यूँ ही नहीं फ़रमाया था कि मैं उन पर यह बला लाऊँगा।"11~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "हाथ पर हाथ मार और पाँव ज़मीन पर पटक कर कह, कि बनी-इस्राईल के तमाम घिनौने कामों पर अफ़सोस! क्यूँकि वह तलवार और काल और वबा से हलाक होंगे।12जो दूर हैं वह वबा से मरेगा और जो नज़दीक है तलवार से क़त्ल किया जाएगा, और जो बाक़ी रहे और महसूर हो वह काल से मरेगा, और मैं उन पर अपने क़हर को यूँ पूरा करूँगा।13~और जब उनके मक़्तूल हर ऊँचे टीले पर और पहाड़ों की सब चोटियों पर, और हर एक हरे दरख़्त और घने बलूत के नीचे, हर जगह जहाँ वह अपने सब बुतों के लिए ख़ुशबू जलाते थे; उनके बुतों के पास उनकी कु़र्बानगाहों के चारों तरफ़ पड़े हुए होंगे, तब वह पहचानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।14और मैं उन पर हाथ चलाऊँगा, और वीराने से दिबला तक उनके मुल्क की सब बस्तियाँ वीरान और सुनसान करूँगा। तब वह पहचानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।”
1~और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ2~कि "ऐ आदमज़ाद, ख़ुदावन्द ख़ुदा इस्राईल के मुल्क से यूँ फ़रमाता है: कि तमाम हुआ! मुल्क के चारों कोनों पर ख़ातिमा आन पहुँचा है।3अब तेरी मौत आई और मैं अपना ग़ज़ब तुझ पर नाज़िल करूँगा, और तेरी चाल चलन के मुताबिक़ तेरी 'अदालत करूँगा और तेरे सब घिनौने कामों की सज़ा तुझ पर लाऊँगा।4मेरी आँख तेरी रि'आयत न करेगी और मैं तुझ पर रहम न करूँगा, बल्कि मैं तेरी चाल चलन के मुताबिक़ तुझे सज़ा दूँगा और तेरे घिनौने कामों के अन्जाम तेरे बीच होंगे, ताकि तुम जानो कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।5"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि एक बला या'नी बला-ए-'अज़ीम! देख, वह आती है।6ख़ातमा आया, ख़ातमा आ गया! वह तुझ पर आ पहुँचा, देख वह आ पहुँचा।7ऐ ज़मीन पर बसने वाले, तेरी शामत आ गई, वक़्त आ पहुँचा, हँगामे का दिन क़रीब हुआ; यह पहाड़ों पर ख़ुशी की ललकार का दिन नहीं।8अब मैं अपना क़हर तुझ पर उँडेलने को हूँ और अपना ग़ज़ब तुझ पर पूरा करूँगा और तेरे चाल चलन के मुताबिक़ तेरी 'अदालत करूँगा और तेरे सब घिनौने कामों की सज़ा तुझ पर लाऊँगा |9मेरी आँख रिआयत न करेगी और मैं हरगिज़ रहम न करूँगा, मैं तुझे तेरी चाल चलन के मुताबिक़ सज़ा दूँगा और तेरे घिनौने कामों के अन्जाम तेरे बीच होंगे, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द सज़ा देने वाला हूँ|10~"देख, वह दिन, देख वह आ पहुँचा है तेरी शामत आ गई, 'असा में कलियाँ निकलीं, गु़रूर में गुन्चे निकले।11सितमगरी निकली कि शरारत के लिए छड़ी हो, कोई उनमें से न बचेगा, न उनके गिरोह में से कोई और न उनके माल में से कुछ, और उन पर मातम न होगा।12वक़्त आ गया, दिन क़रीब है, न ख़रीदने वाला खु़श हो न बेचने वाला उदास, क्यूँकि उनके तमाम गिरोह पर ग़ज़ब नाज़िल होने को है।13क्यूँकि बेचने वाला बिकी हुई चीज़ तक फिर न पहुँचेगा, अगरचे अभी वह ज़िन्दों के बीच हों, क्यूँकि यह ख़्वाब उनके तमाम गिरोह के लिए है, एक भी न लौटेगा और न कोई बदकिरदारी से अपनी जान को क़ायम रख्खेगा।14नरसिंगा फूंका गया और सब कुछ तैयार है, लेकिन कोई जंग को नहीं निकलता, क्यूँकि मेरा ग़ज़ब उनके तमाम गिरोह पर है।15~बाहर तलवार है और अन्दर वबा और क़हत हैं, जो खेत में है तलवार से क़त्ल होगा, और जो शहर में है सूखा और वबा उसे निगल जाएँगे।16लेकिन जो उनमें से भाग जाएँगे वह बच निकलेंगे, और वादियों के~कबूतरों की तरह पहाड़ों पर रहेंगे और सब के सब फ़रियाद करेंगे, हर एक अपनी बदकिरदारी की वजह से।17सब हाथ ढीले होंगे और सब घुटने पानी की तरह कमज़ोर हो जाएँगे।18वह टाट से कमर कसेंगे और ख़ौफ़ उन पर छा जाएगा, और सब के मुँह पर शर्म होगी और उन सब के सिरों पर चन्दलापन होगा।19~और वह अपनी चाँदी सड़कों पर फेंक देंगे और उनका सोना नापाक चीज़ की तरह ~होगा~ख़ुदावन्द के ग़ज़ब के दिन में उनका सोना चाँदी उनको न बचा सकेगा। उनकी जानें आसूदा न होंगी और उनके पेट न भरेंगे, क्यूँकि उन्होंने उसी से ठोकर खाकर बदकिरदारी की थी।20और उनके खू़बसूरत ज़ेवर शौकत के लिए थे लेकिन उन्होंने उनसे अपनी नफ़रती मूरतें और मकरूह चीज़े बनाई, इसलिए मैंने उनके लिए उनको नापाक चीज़ की तरह कर दिया।21~और मैं उनको ग़नीमत के लिए परदेसियों के हाथ में और लूट के लिए ज़मीन के शरीरों के हाथ में सौंप दूँगा, और वह उनको नापाक करेंगे।22और मैं उनसे मुँह फेर लूँगा और वह मेरे ख़िल्वतखाने को नापाक करेंगे। उसमें ग़ारतगर आएँगे और उसे नापाक करेंगे।23'ज़न्जीर बना क्यूँकि मुल्क खू़ँरेज़ी के गुनाहों से पुर है और शहर जु़ल्म से भरा है।24इसलिए मैं गै़र क़ौमों में से बुराई को लाऊँगा और वह उनके घरों के मालिक होंगे, और मैं ज़बरदस्तों का घमण्ड मिटाऊँगा और उनके पाक मक़ाम नापाक किए जाएँगे।25हलाकत आती है, और वह सलामती को ढूँढेंगे लेकिन न पाएँगे।26बला पर बला आएगी और अफ़वाह पर अफ़वाह होगी, तब वह नबी से ख़्वाब की तलाश करेंगे, लेकिन शरी'अत काहिन से और मसलहत बुजु़र्गों से जाती रहेगी।27बादशाह मातम करेगा और हाकिम पर हैरत छा जाएगी, और र'अय्यत के हाथ काँपेंगे। मैं उनके चाल चलन के मुताबिक़ उनसे सुलूक करूँगा और उनके 'आमाल के मुताबिक़ उन पर फ़तवा दूँगा, ताकि वह जानें कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
1और ~छठे बरस के छठे महीने की पाँचवी तारीख़ को यूँ हुआ कि मैं अपने घर में बैठा था, और यहूदाह के बुज़ुर्ग मेरे सामने बैठे थे कि वहाँ ख़ुदावन्द ख़ुदा का हाथ मुझ पर ठहरा।2तब मैंने निगाह की और क्या देखता हूँ कि एक शबीह आग की तरह नज़र आती है; उसकी कमर से नीचे तक आग और उसकी कमर से ऊपर तक जल्वा-ए-नूर ज़ाहिर हुआ जिसका रंग शैकल किए हुए पीतल की तरह था|3और उसने एक हाथ को शबीह की तरह बढ़ा कर मेरे सिर के बालों से मुझे पकड़ा, और रूह ने मुझे आसमान और ज़मीन के बीच बुलन्द किया और मुझे इलाही ख़्वाब में यरुशलीम में उत्तर की तरफ़ अन्दरूनी फाटक पर, जहाँ गै़रत की मूरत का घर था जो गै़रत भड़काती है ले आई।4और क्या देखता हूँ कि वहाँ इस्राईल के ख़ुदा का जलाल, उस ख़्वाब के मुताबिक़ जो मैंने उस वादी में देखा था मौजूद है।5तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद अपनी आँखें उत्तर की तरफ उठा और मैंने उस तरफ़ आँखें उठाई और क्या देखता हूँ कि उत्तर की तरफ़ मज़बह के दरवाज़े पर गै़रत की वही मूरत दहलीज़ में हैं।6और उसने मुझे फिर फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, तू उनके काम देखता है? या'नी वह मकरूहात-ए-'अज़ीम जो बनी-इस्राईल यहाँ करते हैं, ताकि मैं अपने हैकल को छोड़ कर उससे दूर हो जाऊँ; लेकिन तू अभी इनसे भी बड़ी मकरूहात देखेगा।"7तब वह मुझे सहन के फाटक पर लाया, और मैंने नज़र की और क्या देखता हूँ कि दीवार में एक छेद है।8तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, दीवार खोद।" और जब मैंने दीवार को खोदा, तो एक दरवाज़ा देखा।9~फिर उसने मुझे फ़रमाया, "अन्दर जा, और जो नफ़रती काम वह यहाँ करते हैं देख।”10तब मैंने अन्दर जा कर देखा। और क्या देखता हूँ कि हरनू' के सब रहने वाले कीड़ों और मकरूह जानवरों की सब सूरतें और बनी-इस्राईल के बुत चारों तरफ़ दीवार पर मुनक़्क़श हैं |11और बनी-इस्राईल के बुजु़र्गों में से सत्तर शख़्स उनके आगे खड़े हैं और याज़नियाह-बिन-साफ़न उनके बीच में खड़ा है, और हर एक के हाथ में एक ख़ुशबू दान है और ख़ुशबू का बादल उठ रहा है।12तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐआदमज़ाद, क्या तूने देखा कि बनी-इस्राईल के सब बुज़ुर्ग तारीकी में या'नी अपने मुनक्क़्श काशानों में क्या करते हैं? क्यूँकि वह कहते हैं कि ख़ुदावन्द हम को नहीं देखता; ख़ुदावन्द ने मुल्क को छोड़ दिया है।"13और उसने मुझे यह भी फ़रमाया, कि "तू अभी इनसे भी बड़ी मकरूहात, जो वह करते हैं देखेगा।"14तब वह मुझे ख़ुदावन्द के घर के उत्तरी फाटक पर लाया, और क्या देखता हूँ कि वहाँ 'औरतें बैठी तम्मूज़ पर नोहा कर रही हैं।15तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, क्या तूने यह देखा है? तू अभी इनसे भी बड़ी मकरूहात देखेगा।”16~फिर वह मुझे ख़ुदावन्द के घर के अन्दरूनी सहन में ले गया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द की हैकल के दरवाज़े पर आस्ताने और मज़बह के बीच, क़रीबन पच्चीस लोग हैं जिनकी पीठ ख़ुदावन्द की हैकल की तरफ़ है और उनके मुँह पूरब की तरफ़ हैं ; और पूरब का रुख़ करके आफ़ताब को सिज्दा कर रहे हैं।17~तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, क्या तूने यह देखा है? क्या बनी यहूदाह के नज़दीक यह छोटी सी बात है कि वह यह मकरूह काम करें जो यहाँ करते हैं क्यूँकि उन्होंने तो मुल्क को जु़ल्म से भर दिया और फिर मुझे ग़ज़बनाक किया, और देख, वह अपनी नाक से डाली लगाते हैं ।18फिर मैं भी क़हर से पेश आऊँगा। मेरी आँख रि'आयत न करेगी और मैं हरगिज़ रहम न करूँगा, और अगरचे वह चिल्ला चिल्ला कर मेरे कानों में आह-व-नाला करें तोभी में उनकी न सुनूँगा "
1फिर उसने बुलन्द आवाज़ से पुकार कर मेरे कानों में कहा कि , "उनको जो शहर के मुन्तज़िम हैं मैं नज़दीक बुला हर एक शख़्स अपना मुहलिक हथियार हाथ में लिए हो|"2और देखो छ: मर्द ऊपर के फाटक के रास्ते से जो उत्तर की तरफ़ है चले आए और हर एक मर्द के हाथ में उसका खूँरेज़ हथियार था और उनके बीच एक आदमी कतानी लिबास पहने था और उसकी कमर पर लिखने की दवात थी तब वह अन्दर गए और पीतल के मज़बह के पास खड़े हुए|3और इस्राईल के ख़ुदावन्द का जलाल करूबी पर से जिस पर वह था उठ कर घर के आस्ताना पर गया और उसने उस मर्द को जो कतानी लिबास पहने था और जिसके पास लिखने की दवात थी पुकारा|4और ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया, कि "शहर के बीच से, हाँ, यरुशलीम के बीच से गुज़र और उन लोगों की पेशानी पर जो उन सब नफ़रती कामों की वजह से जो उसके बीच किए जाते हैं, आहें मारते और रोते हैं, निशान कर दे।”5और उसने मेरे सुनते हुए दूसरों से फ़रमाया, "उसके पीछे पीछे शहर में से गुज़र करो और मारो। तुम्हारी आँखें रि'आयत न करें, और तुम रहम न करो।6तुम बूढ़ों और जवानों और लड़कियों और नन्हें बच्चों और 'औरतों को बिल्कुल मार डालो, लेकिन जिनपर निशान है उनमें से किसी के पास न जाओ; और मेरे हैकल से शुरू' करो।" तब उन्होंने उन बुजुर्गों से जो हैकल के सामने थे शुरू' किया।7और उसने उनको फ़रमाया, "हैकल को नापाक करो, और मक़्तूलों से सहनों को भर दो। चलो, बाहर निकलो।" इसलिए वह निकल गए और शहर में क़त्ल करने लगे।8और जब वह उनको क़त्ल कर रहे थे और मैं बच रहा था, तो यूँ हुआ कि मैं मुँह के बल गिरा और चिल्ला कर कहा, "आह! ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, क्या तू अपना क़हर-ए-शदीद यरुशलीम पर नाज़िल कर के इस्राईल के सब बाक़ी लोगों को हलाक करेगा?"9तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "इस्राईल और यहूदाह के ख़ान्दान की बदकिरदारी बहुत 'अज़ीम है, मुल्क खू़ँरेज़ी से पुर है और शहर बे इन्साफ़ी से भरा है; क्यूँकि वह कहते हैं, कि 'ख़ुदावन्द ने मुल्क को छोड़ दिया है और वह नहीं देखता।'10फिर मेरी आँख रि'आयत न करेगी, और मैं हरगिज़ रहम न करूँगा; मैं उनकी चाल चलन का बदला उनके सिर पर लाऊँगा।”11और देखो, उस आदमी ने जो कतानी लिबास पहने था और जिसके पास लिखने की दवात थी, यूँ कै़फ़ियत बयान की, "जैसा तूने मुझे हुक्म दिया, मैंने किया।”
1तब मैंने निगाह की और क्या देखता हूँ,कि उस फ़ज़ा पर जो करूबियों के सिर के ऊपर थी, एक चीज़ नीलम की तरह दिखाई दी और उसकी सूरत तख़्त की जैसी थी।2और उसने उस आदमी को जो कतानी लिबास पहने था फ़रमाया, "उन पहियों के अन्दर जा जो करूबी के नीचे हैं, और आग के अंगारे जो करूबियों के बीच हैं मुट्ठी भर कर उठा और शहर के ऊपर बिखेर दे।” और वह गया और मैं देखता था।3जब वह शख़्स अन्दर गया, तब करूबी हैकल की दहनी तरफ़ खड़े थे, और अन्दरूनी सहन बादल से भर गया।4तब ख़ुदावन्द का जलाल करूबी पर से बुलन्द होकर हैकल के आस्ताने पर आया, और हैकल बादल से भर गई; और सहन ख़ुदावन्द के जलाल के नूर से मा'मूर हो गया।5और करूबियों के परों की आवाज़ बाहर के सहन तक सुनाई देती थी, जैसे क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा की आवाज़ जब वह कलाम करता है।6और यूँ हुआ कि जब उसने उस शख़्स को, जो कतानी लिबास पहने था, हुक्म किया कि वह पहिए के अन्दर से और करूबियों के बीच से आग ले; तब वह अन्दर गया और पहिए के पास खड़ा हुआ।7और करूबियों में से एक करूबी ने अपना हाथ उस आग की तरफ़, जो करूबियों के बीच थी, बढ़ाया और आग लेकर उस शख़्स के हाथों पर, जो कतानी लिबास पहने था रख्खी; वह लेकर बाहर चला गया।8और करूबियों के बीच उनके परों के नीचे इन्सान के हाथ की तरह सूरत नज़र आई9और मैंने निगाह की तो क्या देखता हूँ कि चार पहिए करूबियों के आस पास हैं, एक करूबी के पास एक पहिया और दूसरे करूबी के पास दूसरा पहिया था; और उन पहियों का जलवा देखने में ज़बरजद की तरह था।10और उनकी शक्ल एक ही तरह की थी, जैसे पहिया पहिये के अन्दर हो।11जब वह चलते थे तो अपनी चारों तरफ़ पर चलते थे; वह चलते हुए मुड़ते न थे, जिस तरफ़ को सिर का रुख़ होता था उसी तरफ़ उसके पीछे पीछे जाते थे; वह चलते हुए मुड़ते न थे।12और उनके तमाम बदन और पीठ और हाथों और परों और उन पहियों में चारों तरफ़ आँखें ही आँखें थीं, या'नी उन चारों के पहियों में।13इन पहियों को मेरे सुनते हुए चर्ख कहा गया।14और हर एक के चार चेहरे थे: पहला चेहरा करूबी का, दूसरा इन्सान का, तीसरा शेर-ए-बबर का, और चौथा 'उक़ाब का|15और करूबी बुलन्द हुए। यह वह जानदार था, जो मैंने नहर-ए-किबार के पास देखा था।16और जब करूबी चलते थे, तो पहिए भी उनके साथ-साथ चलते थे; और जब करूबियों ने अपने बाज़ू फैलाए ताकि ज़मीन से ऊपर बुलन्द हों, तो वह पहिए उनके पास से जुदा न हुए।17जब वह ठहरते थे, तो यह भी ठहरते थे; और जब वह बुलन्द होते थे, तो यह भी उनके साथ बुलन्द हो जाते थे; क्यूँकि जानदार की रूह उनमें थी।18और ख़ुदावन्द का जलाल घर के आस्ताने पर से रवाना हो कर करूबियों के ऊपर ठहर गया।19तब करूबियों ने अपने बाज़ू फैलाए, और मेरी आँखों के सामने ज़मीन से बुलन्द हुए और चले गए; और पहिए उनके साथ साथ थे, और वह ख़ुदावन्द के घर के पूरबी फाटक के आसताने पर ठहरे और इस्राईल के ख़ुदा का जलाल उनके ऊपर जलवागर था ।20यह वह जानदार है जो ~मैंने इस्राईल के ख़ुदा के नीचे नहर-ए-किबार के किनारे पर देखा था और मुझे मा'लूम था कि करूबी हैं|21हर एक के चार चेहरे थे और चार बाज़ू और उनके बाजु़ओं के नीचे इन्सान के जैसा हाथ था।22रही उनके चेहरों की सूरत, यह वही चेहरे थे जो मैंने नहर-ए-किबार के किनारे पर देखे थे, या'नी उनकी सूरत और वह ख़ुद, वह सब के सब सीधे आगे ही को चले जाते थे।
1~और रूह मुझ को उठा कर ख़ुदावन्द के घर के पूरबी फाटक पर जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है ले गई, और क्या देखता हूँ कि उस फाटक के आस्ताने पर पच्चीस शख़्स हैं। और मैंने उनके बीच याज़नियाह बिन अज़ूर और फ़िल्तियाह बिन बिनायाह, लोगों के हाकिमों को देखा।2और उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, यह वह लोग हैं जो इस शहर में बदकिरदारी की तदबीर और बुरी मश्वरत करते हैं।3जो कहते हैं, कि 'घर बनाना नज़दीक नहीं है, यह शहर तो देग है और हम गोश्त हैं।'4इसलिए तू उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर; ऐ आदमज़ाद, नबुव्वत कर।"5और ख़ुदावन्द की रूह मुझ पर नाज़िल हुई और उसने मुझे कहा कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि ऐ बनी-इस्राईल तुम ने यूँ कहा है, मैं तुम्हारे दिल के ख़्यालात को जानता हूँ।6तुम ने इस शहर में बहुतों को क़त्ल किया,बल्कि उसकी सड़कों को मक़तूलों से भर दिया है|7~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तुम्हारे मक़्तूल जिनकी लाशें तुम ने शहर में रख छोड़ी हैं, यह वही गोश्त है और यह शहर वही देग है; लेकिन तुम इस से बाहर निकाले जाओगे।8तुम तलवार से डरे हो, और ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, कि मैं तलवार तुम पर लाऊँगा।9और मैं तुम को उस से बाहर निकालूँगा और तुम को परदेसियों के हवाले कर दूँगा, और तुम को सज़ा दूँगा।10तुम तलवार से क़त्ल होगे, इस्राईल की हदों के अन्दर मैं तुम्हारी 'अदालत करूँगा, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।11यह शहर तुम्हारे लिए देग न होगा, न तुम इसमें का गोश्त होगे; बल्कि मैं बनी-इस्राईल की हदों के अन्दर तुम्हारा फ़ैसला करूँगा।12और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, जिसके क़ानून पर तुम नहीं चले और जिसके हुक्मों पर तुम ने 'अमल नहीं किया; बल्कि तुम उन क़ौमों के हुक्मों पर जो तुम्हारे आस पास हैं ~'अमल किया।”13और जब मैं नबुव्वत कर रहा था, तो यूँ हुआ कि~फ़लतियाह-बिन-बिनायाह मर गया। तब मैं मुँह के बल गिरा और बुलन्द आवाज़ से चिल्ला कर कहा, कि "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा ! क्या तू बनी-इस्राईल के बक़िये को बिल्कुल मिटा डालेगा?"14तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:15कि "ऐ आदमज़ाद, तेरे भाइयों, हाँ, तेरे भाइयों या'नी तेरे क़राबतियों बल्कि सब बनी-इस्राईल से, हाँ, उन सब से यरुशलीम के बाशिन्दों ने कहा है, 'ख़ुदावन्द से दूर रहो। यह मुल्क हम को मीरास में दिया गया है।'16इसलिए तू कह, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि हर चन्द मैंने उनको क़ौमों के बीच हाँक दिया है और गै़र-मुल्कों में तितर बितर किया लेकिन मैं उनके लिए थोड़ी देर तक उन मुल्कों में जहाँ जहाँ वह गए एक हैकल हूँगा|17~इसलिए तू कह, 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: मैं तुम को उम्मतों में से जमा' कर लूँगा, और उन मुल्कों में से जिनमें तुम~तितर बितर हुए तुम को जमा' करूँगा और इस्राईल का मुल्क तुम को दूँगा।'18और वह वहाँ आयेंगे और उसकी तमाम नफ़रती और मकरूह चीज़ें उस से दूर कर देंगे।19~और मैं उनको नया दिल दूँगा और नई रूह तुम्हारे बातिन में डालूँगा, और संगीन दिल उनके जिस्म से निकाल कर दूँगा और उनको गोश्त का दिल 'इनायत करूँगा;20ताकि वह मेरे तौर तरीक़े पर चलें और मेरे हुक्मों पर 'अमल करें और उन पर 'अमल करें, और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।21लेकिन जिनका दिल अपनी नफ़रती और मकरूह चीज़ों का तालिब होकर उनकी पैरवी में है, उनके बारे में ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: कि मैं उनके चाल चलन को उन ही के सिर पर लाऊँगा।"22~तब करूबियों ने अपने अपने बाज़ू बुलन्द किए, और पहिए उनके साथ साथ चले, और इस्राईल के ख़ुदा का जलाल उनके ऊपर जलवागर था।23और ख़ुदावन्द का जलाल शहर में से उठा, और शहर की पूरबी तरफ़ के पहाड़ पर जा ठहरा।24तब रूह ने मुझे उठाया और ख़ुदा के रूह ने ख़्वाब में मुझे फिर कसदियों के मुल्क में ग़ुलामों के पास पहुँचा दिया। और वह ख़्वाब जो मैंने देखा था मुझ से ग़ायब हो गया।25और मैंने ग़ुलामों से ख़ुदावन्द की वह सब बातें बयान कीं, जो उसने मुझ पर ज़ाहिर की थीं।
1और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|2~ कि "ऐ आदमज़ाद, तू एक बाग़ी घराने के बीच रहता है, जिनकी आँखें हैं कि देखें पर वह नहीं देखते, और उनके कान हैं कि~सुनें पर वह नहीं सुनते; क्यूँकि वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।3इसलिए ऐ आदमज़ाद, सफ़र का सामान तैयार कर और दिन को उनके देखते हुए अपने मकान से रवाना हो, तू उनके सामने अपने मकान से दूसरे मकान को जा; मुम्किन है कि वह सोचें, अगरचे वह बाग़ी ख़ान्दान हैं।4और तू दिन को उनकी आँखों के सामने अपना सामान बाहर निकाल, जिस तरह नक़्ल-ए-मकान के लिए सामान निकालते हैं और शाम को उनके सामने उनकी तरह जो ग़ुलाम होकर निकल जाते हैं निकल जा |5उनकी आँखों के सामने दीवार में सूराख़ कर और उस रास्ते से सामान निकाल।6उनकी आँखों के सामने तू उसे अपने कान्धे पर उठा, और अन्धेरे में उसे निकाल ले जा, तू अपना चेहरा छिपा ताकि ज़मीन को न देख सके; क्यूँकि मैंने तुझे बनी-इस्राईल के लिए एक निशान मुक़र्रर किया है।7चुनाँचे जैसा मुझे हुक्म हुआ था वैसा ही मैंने किया। मैंने दिन को अपना सामान निकाला, जैसे नक़्ल-ए-मकान के लिए निकालते हैं; और शाम को मैंने अपने हाथ से दीवार में सूराख किया, मैंने अन्धेरे में उसे निकाला और उनके देखते हुए काँधे पर उठा लिया।8और ~सुबह को ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:9कि "ऐ आदमज़ाद, क्या बनी इस्राईल ने जो बाग़ी ख़ान्दान हैं, तुझ से नहीं~पूछा, 'तू क्या करता है?"10उनको जवाब दे, कि 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ~यरुशलीम के हाकिम और तमाम बनी-इस्राईल के लिए जो उसमें हैं, यह बार-ए-नबुव्वत है।'11उनसे कह दे, कि 'मैं तुम्हारे लिए निशान हूँ: जैसा मैंने किया, वैसा ही उनसे सुलूक किया जाएगा। वह जिलावतन होंगे और ग़ुलामी में जाएँगे।"12और जो उनमें हाकिम हैं, वह शाम को अन्धेरे में उठ कर अपने काँधे पर सामान उठाए हुए निकल जाएगा। वह दीवार में सूराख़ करेंगे कि उस रास्ते से निकाल ले जाएँ। वह अपना चेहरा छिपाएगा, क्यूँकि अपनी आँखों से ज़मीन को न देखेगा।13और मैं अपना जाल उस पर बिछाऊँगा और वह मेरे फन्दे में फंस जाएगा। और मैं उसे कसदियों के मुल्क में~बाबुल में पहुचाऊँगा, लेकिन वह उसे न देखेगा, अगरचे वहीं मरेगा।14और मैं उसके आस पास के सब हिमायत करने वालों और उसके सब ग़ोलों की तमाम अतराफ़ में तितर बितर करूँगा, और मैं तलवार खींच कर उनका पीछा करूँगा।15और जब मैं उनकी क़ौम में तितर बितर और मुल्कों में तितर-बितर करूँगा, तब वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।16लेकिन मैं उनमें से कुछ को तलवार और काल से और वबा से बचा रख्खूँगा, ताकि वह क़ौमों के बीच जहाँ कहीं जाएँ अपने तमाम नफ़रती कामों को बयान करें, और वह मा'लूम करेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"17और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:18कि "ऐआदमज़ाद! तू थरथराते हुए रोटी खा, और काँपते हुए फ़िक्रमन्दी से पानी पी।19और इस मुल्क के लोगों से कह कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यरुशलीम और मुल्क-ए- इस्राईल के बाशिन्दों के हक़ में यूँ फ़रमाता है: कि वह फ़िक्रमन्दी से रोटी खाएँगे और परेशानी से पानी पिएँगे, ताकि उसके बाशिन्दों की सितमगरी की वजह से मुल्क अपनी मा'मूरी से ख़ाली हो जाए।20और वह बस्तियाँ जो आबाद हैं उजाड़ हो जायेंगी और मुल्क वीरान होगा और तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"21~फिर ख़ुदा वन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:22कि "ऐ आदमज़ाद! मुल्क-ए-इस्राईल में यह क्या मिसाल जारी है, कि 'वक़्त गुज़रता जाता है, और किसी ख़्वाब का कुछ अन्जाम नहीं होता'?23इसलिए उनसे कह दे, कि 'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैं इस मिसाल को ख़त्म करूँगा और फिर इसे इस्राईल में इस्ते'माल न करेंगे।' बल्कि तू उनसे कह, वक़्त आ गया है और हर ख़्वाब का अन्जाम क़रीब है |24क्यूँकि आगे को बनी इस्राईल के बीच बेमतलब के ख़्वाब और ख़ुशामद की ग़ैबदानी न होगी |25क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द हूँ मैं कलाम करूँगा और मेरा कलाम ज़रूर पूरा होगा उसके पूरा होने में देर न होगी बल्कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि ऐ बाग़ी ख़ान्दान मैं तुम्हारे दिनों में कलाम करके उसे पूरा करूँगा |26और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ |27कि "ऐ आदमज़ाद देख बनी इस्राईल कहते हैं कि जो ख़्वाब उसने देखा है बहुत ज़मानों में ज़ाहिर होगा और वह उन दिनों की ख़बर देता है जो बहुत दूर हैं|28इसलिए उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँफ़रमाता है: कि आगे की मेरी किसी बात को पूरा होने में देर न होगी, बल्कि ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, कि जो बात मैं कहूँगा पूरी हो जाएगी।"
1और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ |2कि "ऐ आदमज़ाद, इस्राईल के नबी जो नबुव्वत करते हैं, उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर और जो अपने दिल से बात बनाकर नबुव्वत करते हैं उनसे कह, 'ख़ुदावन्द का कलाम सुनो!"3ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि ~बेवक़ूफ़ नबियों पर अफ़सोस जो अपनी ही रूह की पैरवी करते हैं और उन्होंने कुछ नहीं देखा।4ऐ इस्राईल, तेरे नबी उन लोमड़ियों की तरह हैं, जो वीरानों में रहती हैं।5तुम रुखनों पर नहीं गए और न बनी-इस्राईल के लिए फ़सील बनाई, ताकि वह ख़ुदावन्द के दिन जंगगाह में खड़े हों।6उन्होंने बातिल और झूठा शगुन देखा है, जो कहते हैं, कि 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अगरचे ख़ुदावन्द ने उनको नहीं भेजा, और लोगों को उम्मीद दिलाते हैं कि उनकी बात पूरी हो जाएगी।7क्या तुम ने बातिल ख़्वाब नहीं देखा? क्या तुम ने झूठी गै़बदानी नहीं की? क्यूँकि तुम कहते हो कि ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है, अगरचे मैंने नहीं फ़रमाया।"8इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: "चूँकि ~तुम ने झूट कहा है और बुतलान देखा, इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि मैं तुम्हारा मुख़ालिफ़ हूँ।9और मेरा हाथ उन नबियों पर, जो बुतलान देखते हैं और झूटी ग़ैबदानी करते हैं, चलेगा; न वह मेरे लोगों के मजमे' में शामिल होंगे और न इस्राईल के ख़ान्दान के दफ़्तर में लिखे जाएँगे और न वह इस्राईल के मुल्क में दाख़िल होंगे, और तुम जान लोगे कि मैं ख़ुदावन्द ख़ुदा हूँ।10इस वजह से कि उन्होंने मेरे लोगों को यह कह कर वरग़लाया है कि सलामती है हालाँकि सलामती नहीं; जब कोई दीवार बनाता है, तो वह उस पर कच्चा गारा लगाते हैं।11तू उनसे जो उस पर गारा लगाते हैं कह, वह गिर जाएगी क्यूँकि मूसलाधार बारिश होगी और बड़े बड़े ओले पड़ेंगे और आँधी उसे गिरा देगी।12और जब वह दीवार गिरेगी तो क्या लोग तुम से न पूछेगे, कि 'वह गारा कहाँ है, जो तुम ने उस पर की थी?"13इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैं अपने ग़ज़ब के तूफ़ान से उसे तोड़ दूँगा, और मेरे क़हर से झमाझम मेंह बरसेगा और मेरे क़हर के ओले पड़ेंगे ताकि उसे हलाक करें।14इसलिए मैं उस दीवार को जिस पर तुम ने कच्चा गारा किया है तोड़ डालूँगा और ज़मीन पर गिराऊँगा, यहाँ तक कि उसकी बुनियाद ज़ाहिर हो जाएगी। हाँ, वह गिरेगी और तुम उसी में हलाक होगे, और जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।15मैं अपना क़हर उस दीवार पर और उन पर जिन्होंने उस पर कच्चा गारा किया है पूरा करूँगा, और तब मैं तुम से कहूँगा, कि न दीवार रही और न वह रहे जिन्होंने उस पर गारा किया,16या'नी इस्राईल के नबी जो यरुशलीम के बारे में नबुव्वत करते हैं, और उसकी सलामती के ख़्वाब देखते हैं हालाँकि सलामती नहीं है ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।17~"और ऐ आदमज़ाद, तू अपनी क़ौम की बेटियों की तरफ़, जो अपने दिल बात बना कर नबुव्वत करती हैं मुतवज्जह हो कर उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर,18और कह ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि अफ़सोस तुम पर जो सब कोहनियों के नीचे की गद्दी सीते हो, और हर एक क़द के मुवाफ़िक़ सिर के लिए बुर्क़ा' बनाती हो कि जानों को शिकार करो! क्या तुम मेरे लोगों की जानों का शिकार करोगी और अपनी जान बचाओगी?19और तुम ने मुट्ठी भर जौ के लिए और रोटी के टुकड़ों के लिए मुझे मेरे लोगों में नापाक ठहराया, ताकि तुम उन जानों को मार डालो जो मरने के लायक़ नहीं, और उनको ज़िन्दा रख्खो जो ज़िन्दा रहने के लायक़ नहीं हैं; क्यूँकि तुम मेरे लोगों से जो झूट सुनते हैं झूट बोलती हो।20'फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देखो, मैं तुम्हारी गद्दियों का दुश्मन हूँ जिनसे तुम जानों को परिन्दों की तरह शिकार करती हो, और मैं उनको तुम्हारी कोहनियों के नीचे से फाड़ डालूँगा, और उन जानों को जिनको तुम परिन्दों की तरह शिकार करती हो आज़ाद कर दूँगा।21मैं तुम्हारे बुरक़ों को भी फाड़ूँगा और अपने लोगों को तुम्हारे हाथ से छुड़ाऊँगा, और फिर कभी तुम्हारा बस न चलेगा कि उनको शिकार करो, और तुम जानोगी कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।22इसलिए कि तुम ने झूट बोलकर सादिक़ के दिल को उदास किया, जिसको मैंने ग़मगीन नहीं किया; और शरीर की मदद की है, ताकि वह अपनी जान बचाने के लिए अपनी बुरी चाल चलन से बाज़ न आए।23इसलिए तुम आगे को न बतालत देखोगी और न गै़बगोई करोगी, क्यूँकि मैं अपने लोगों को तुम्हारे हाथ से छुड़ाऊँगा, तब तुम जानोगी कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
1फिर इस्राईल के बुज़ुर्गों में से चन्द आदमी मेरे पास आए और मेरे सामने बैठ गए।2तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ3कि "ऐ आदमज़ाद, इन मर्दों ने अपने बुतों को अपने दिल में नसब किया है, और अपनी ठोकर खिलाने वाली बदकिरदारी को अपने सामने रख्खा है; क्या ऐसे लोग मुझ से कुछ दरियाफ़्त कर सकते हैं?4इसलिए तू उनसे बातें कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: बनी इस्राईल में से हर एक जो अपने बुतों को अपने दिल में नस्ब करता है, और अपनी ठोकर खिलाने वाली बदकिरदारी को अपने सामने रखता है और नबी के पास आता है, मैं ख़ुदावन्द उसके बुतों की कसरत के मुताबिक़ उसको जवाब दूँगा;5ताकि मैं बनी-इस्राईल को उन्हीं के ख़्यालात में पकड़ें, क्यूँकि वह सब के सब अपने बुतों की वजह से मुझ से दूर हो गए हैं।6इसलिए तू बनी-इस्राईल से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: तोबा करो और अपने बुतों से बाज़ आओ, और अपनी तमाम मकरूहात से मुँह मोड़ो।7क्यूँकि हर एक जो बनी-इस्राईल में से या उन बेगानों में से जो इस्राईल में रहते हैं, मुझ से जुदा हो जाता है और अपने दिल में अपने बुत को नसब करता है, और अपनी ठोकर खिलाने वाली बदकिरदारी को अपने सामने रखता है, और नबी के पास आता है कि उसके ज़रिए' मुझ से दरियाफ़्त करे, उसको मैं ख़ुदावन्द ख़ुद ही जवाब दूँगा।8और मेरा चेहरा उसके ख़िलाफ़ होगा और मैं उसको हैरत की वजह और अन्गुश्तनुमा और जरब-उल-मिसाल बनाउँगा और अपने लोगों में से काट डालूँगा; और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।9और अगर नबी धोका खाकर कुछ कहे, तो मैं ख़ुदावन्द ने उस नबी को धोका दिया, और मैं अपना हाथ उस पर चलाऊँगा और उसे अपने इस्राइली लोगों में से हलाक कर दूँगा।10और वह अपनी बदकिरदारी की सज़ा को बर्दाश्त करेंगे, ~नबी की बदकिरदारी की सज़ा वैसी ही होगी, जैसी सवाल करने वाले की बदकिरदारी की -11ताकि बनी-इस्राईल फिर मुझ से भटक न जाएँ, और अपनी सब ख़ताओं से फिर अपने आप को नापाक न करें; बल्कि: ख़ुदा वन्द ख़ुदा फ़रमाता है, कि वह मेरे लोग हों और मैं उनका ख़ुदा हूँ|12~और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:13कि "ऐ आदमज़ाद, जब कोई मुल्क सख़्त ख़ता करके मेरा गुनाहगार हो, और मैं अपना हाथ उस पर चलाऊँ और उसकी रोटी का 'असा तोड़ डालें, और उसमें सूखा भेज़ें और उसके इन्सान और हैवान को हलाक करूँ|,14तो अगरचे यह तीन शख़्स, नूह और दानीएल और अय्यूब, उसमें मौजूद हों तोभी ख़ुदावन्द फ़रमाता है, वह अपनी सदाक़त से सिर्फ़ अपनी ही जान बचाएँगे।15'अगर मैं किसी मुल्क में मुहलिक दरिन्दे भेजे कि उसमें गश्त करके उसे तबाह करें, और वह यहाँ तक वीरान हो जाए कि दरिन्दों की वजह से कोई उसमें से गुज़र न सके,16तो ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम, अगरचे यह तीन शख़्स उसमें हों तोभी वह न बेटों को बचा सकेंगे न बेटियों को; सिर्फ़ वह खु़द ही बचेंगे और मुल्क वीरान हो जाएगा।17"या अगर मैं उस मुल्क पर तलवार भेजूँ और कहूँ कि ऐ तलवार मुल्क में गुज़र कर और मैं उसके इन्सान और हैवान को काट डालें,18तो ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम अगरचे यह तीन शख़्स उसमें हों, तोभी न बेटों को बचा सकेंगे न बेटियों को, बल्कि सिर्फ वह ख़ुद ही बच जाएँगे।19‘या अगर मैं उस मुल्क में वबा भेजूँ और खू़ँरेज़ी करा कर अपना क़हर उस पर नाज़िल' करूँ कि वहाँ के इन्सान और हैवान को काट डालें,20अगरचे नूह और दानिएल और अय्यूब उसमें हों तो भी ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है मुझे अपनी हयात की क़सम वह न बेटे को बचा सकेंगे न बेटी को, बल्कि अपनी सदाक़त से सिर्फ़ अपनी ही जान बचाएँगे।21फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जब मैं अपनी चार बड़ी बलाएँ, या'नी तलवार और सूखा और मुहलिक दरिन्दे और वबा यरुशलीम पर भेजूँ कि उसके इन्सान और हैवान को काट डालें, तो क्या हाल होगा?22तोभी वहाँ थोड़े से बेटे-बेटियाँ बच रहेंगे जो निकालकर तुम्हारे पास पहुँचाए जाएँगे, और तुम उनके चाल चलन और उनके कामों को देखकर उस आफ़त के बारे में, जो मैंने यरुशलीम पर भेजी और उन सब आफ़तों के बारे में जो मैं उस पर लाया हूँ तसल्ली पाओगे।23और वह भी जब तुम उनके चाल चलन को और उनके कामों को देखोगे, तुम्हारी तसल्ली का ज़रिया' होंगे और तुम जानोगे कि जो कुछ मैंने उसमें किया है बे वजह नहीं किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"
1और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि "ऐ आदमज़ाद, क्या ताक की लकड़ी और दरख़्तों की लकड़ी से, या'नी शाख़-ए-अंगूर जंगल के दरख़्तों से कुछ बेहतर है?3क्या उसकी लकड़ी कोई लेता है कि उससे कुछ बनाए, या लोग उसकी खूंटियाँ बना लेते हैं कि उन पर बर्तन लटकाएँ?4देख, वह आग में ईन्धन के लिए डाली जाती है, जब आग उसके दोनों सिरों को खा गई और बीच के हिस्से को भसम कर चुकी, तो क्या वह किसी काम की है?5देख, जब वह सही थी तो किसी काम की न थी, और जब आग से जल गई तो किस काम की है?6फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जिस तरह मैंने जंगल के दरख़्तों में से अंगूर के दरख़्त को आग का ईन्धन बनाया, उसी तरह यरुशलीम के बाशिन्दों को बनाऊँगा।7और मेरा चेहरा उनके ख़िलाफ़ होगा, वह आग से निकल भागेंगे पर आग उनको भसम करेगी; और जब मेरा चेहरा उनके ख़िलाफ़ होगा, तो तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।8और मैं मुल्क को उजाड़ डालूँगा, इसलिए कि उन्होंने बड़ी बेवफ़ाई की है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।"
1~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि "ऐ आदमज़ाद! यरुशलीम को उसके नफ़रती कामों से आगाह कर,3और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यरुशलीम से यूँ फ़रमाता है: तेरी विलादत और तेरी पैदाइश कना'न की सरज़मीन की है; तेरा बाप अमूरी था और तेरी माँ हित्ती थी।4और तेरी पैदाइश का हाल यूँ है कि जिस दिन तू पैदा हुई तेरी नाफ़ काटी न गई, और न सफ़ाई के लिए तुझे पानी से गु़स्ल मिला, और न तुझ पर नमक मला गया, और तू कपड़ों में लपेटी न गई।5किसी की आँख ने तुझ पर रहम न किया कि तेरे लिए यह काम करे और तुझ पर मेहरबानी दिखाए बल्कि तू अपनी विलादत के दिन बाहर मैदान में फेंकी गई, क्यूँकि तुझ से नफ़रत रखते थे।6"तब मैंने तुझ पर गुज़र किया और तुझे तेरे ही ख़ून में लोटती देखा, और मैंने तुझे जब तू अपने खू़न में आग़िश्ता थी कहा, 'जीती रह!" हाँ, मैंने तुझ खू़न आलूदा से कहा, 'जीती रह!"7मैंने तुझे चमन के शगूफ़ों की तरह हज़ार चन्द बढ़ाया, इसलिए तू बढ़ीं, और कमाल और जमाल को पहुँची तेरी छातियाँ उठीं और तेरी ज़ुल्फें बढ़ीं लेकिन तू नंगी और बरहना थी।8फिर मैंने तेरी तरफ़ गुज़र किया और तुझ पर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि तू 'इश्क़ अंगेज़ 'उम्र को पहुँच गई है; फिर मैंने अपना दामन तुझ पर फैलाया और तेरी बरहनगी को छिपाया, और क़सम खाकर तुझ से 'अहद बाँधा ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है और तू मेरी हो गई।9फिर मैंने तुझे पानी से गु़स्ल दिया, और तेरा खू़न बिल्कुल धो डाला और तुझ पर 'इत्र मला।10और मैंने तुझे ज़र-दोज़ लिबास से मुलब्बस किया, और तुख़स की खाल की जूती पहनाई, नफ़ीस कतान से तेरा कमरबन्द बनाया और तुझे सरासर रेशम से मुलब्बस किया।11मैंने तुझे ज़ेवर से आरास्ता किया, तेरे हाथों में कंगन पहनाए और तेरे गले में तौक़ डाला।12और मैंने तेरी नाक में नथ और तेरे कानों में बालियाँ पहनाई, और एक खू़बसूरत ताज तेरे सिर पर रख्खा।13और तू सोने-चाँदी से आरास्ता हुई, और तेरी पोशाक कतानी और रेशमी और चिकन-दोज़ी की थी; और तू मैदा और शहद और चिकनाई खाती थी, और तू बहुत खू़बसूरत और इक़बालमन्द मलिका हो गई।14और क़ौम-ए-'आलम में तेरी खू़बसूरती की शोहरत फैल गई, क्यूँकि , ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, कि तू मेरे उस जलाल से जो मैंने तुझे बख़्शा कामिल हो गई थी।15"लेकिन तूने अपनी खू़बसूरती पर भरोसा किया और अपनी शोहरत के वसीले से बदकारी करने लगी, और हर एक के साथ जिसका तेरी तरफ़ गुज़र हुआ ख़ूब फ़ाहिशा बनी और उसी की हो गई।16तूने अपनी पोशाक से अपने ऊँचे मक़ाम मुनक़्क़श और आरास्ता किए, और उन पर ऐसी बदकारी की, कि न कभी हुई और न होगी।17और तूने अपने सोने-चाँदी के नफ़ीस ज़ेवरों से जो मैंने तुझे दिए थे, अपने लिए मर्दों की मूरतें बनाई और उनसे बदकारी की।18और अपनी ज़र-दोज़ पोशाकों से उनको मुलब्बस किया, और मेरा 'इत्र और ख़ुशबू उनके सामने रख्खा।19और मेरा खाना जो मैंने तुझे दिया, या'नी मैदा और चिकनाई और शहद जो मैं तुझे खिलाता था, तूने उनके सामने ख़ुशबू के लिए रख्खा: ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि यूँ ही हुआ।20और तूने अपने बेटों और अपनी बेटियों को, जिनको तूने मेरे लिए पैदा किया लेकर उनके आगे कु़र्बान किया, ताकि वह उनको खा जाएँ, क्या तेरी बदकारी कोई छोटी बात थी,21कि तूने मेरे बच्चों को भी ज़बह किया और उनको बुतों के लिए आग के हवाले किया?22और तूने अपनी तमाम मकरूहात और बदकारी में अपने बचपन के दिनों को, जब कि तू नंगी और बरहना अपने खू़न में लोटती थी, कभी याद न किया|23'और ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि अपनी इस सारी बदकारी के 'अलावा अफ़सोस! तुझ पर अफ़सोस!24तूने अपने लिए गुम्बद बनाया और हर एक बाज़ार में ऊँचा मक़ाम तैयार किया।25~तूने रास्ते के हर कोने पर अपना ऊँचा मक़ाम ता'मीर किया, और अपनी खू़बसूरती को नफ़रत अंगेज़ किया, और हर एक राह गुज़र के लिए अपने पाँव पसारे और बदकारी में तरक़्क़ी की।26तूने अहल-ए-मिस्र और अपने पड़ोसियों से जो बड़े क़दआवर हैं बदकारी की और अपनी बदकारी की ज़्यादती से मुझे ग़ज़बनाक किया।27फिर देख, मैंने अपना हाथ तुझ पर चलाया और तेरे वज़ीफ़े को कम कर दिया, और तुझे तेरी बदख़्वाह फ़िलिस्तियों की बेटियों के क़ाबू में कर दिया जो तेरी ख़राब चाल चलन से शर्मिन्दा होती थीं।28फिर तूने अहल-ए-असूर से बदकारी की, क्यूँकि तू सेर न हो सकती थी; हाँ, तूने उन से भी बदकारी की लेकिन तोभी तू आसूदा न हुई।29और तूने मुल्क-ए-कन'आन से कसदियों के मुल्क तक अपनी बदकारी को फैलाया, लेकिन इस से भी सेर न हुई।30"ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, तेरा दिल कैसा बे-इख़्तियार है कि तू यह सब कुछ करती है, जो बेलगाम फ़ाहिशा 'औरत का काम है,31इसलिए कि तू हर एक सड़क के सिरे पर अपना गुम्बद बनाती है, और हर एक बाज़ार में अपना ऊँचा मक़ाम तैयार करती है, और तू कस्बी की तरह नहीं क्यूँकि तू उजरत लेना बेकार जानती है।32बल्कि बदकार बीवी की तरह है, जो अपने शौहर के बदले गै़रों को कु़बूल करती है।33लोग सब कस्बियों को हदिए देते हैं; लेकिन तू अपने यारों को हदिए और तोहफ़े देती है, ताकि वह चारों तरफ़ से तेरे पास आएँ और तेरे साथ बदकारी करें।34और तू बदकारी में और 'औरतों की तरह नहीं, क्यूँकि बदकारी के लिए तेरे पीछे कोई नहीं आता। तू उजरत नहीं लेती बल्कि ख़ुद उजरत देती है, इसलिए तू अनोखी है।35"इसलिए ऐ बदकार, तू ख़ुदावन्द का कलाम सुन,36ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि तेरी नापाकी बह निकली और तेरी बरहनगी तेरी बदकारी के ज़रिए' जो तूने अपने यारों से की, और तेरे सब नफ़रती बुतों की वजह से और तेरे बच्चों के खू़न की वजह से जो तूने उनके आगे पेश किया, ज़ाहिर हो गई।37इसलिए देख, मैं तेरे सब यारों को तू लज़ीज़ थी, और उन सब को जिनको तू चाहती थी और उन सबको जिनसे तू कीना रखती है जमा' करूँगा; मैं उनको चारों तरफ़ से तेरी मुख़ालिफ़त पर जमा' करूँगा और उनके आगे तेरी बरहनगी खोल दूँगा ताकि वह तेरी तमाम बरहनगी देखें।38और मैं तेरी ऐसी 'अदालत करूँगा जैसी बेवफ़ा और ख़ूनी बीवी की और मैं ग़ज़ब और ग़ैरत की मौत तुझ पर लाऊँगा।39और मैं तुझे उनके हवाले कर दूँगा, और वह तेरे गुम्बद और ऊँचे मक़ामों को मिस्मार करेंगे और तेरे कपड़े उतारेंगे और तेरे ख़ुशनुमा ज़ेवर छीन लेंगे, और तुझे नंगी और बरहना छोड़ जाएँगे।40वह तुझ पर एक हुजूम चढ़ा लाएँगे, और तुझे संगसार करेंगे और अपनी तलवारों से तुझे छेद डालेंगे।41और वह तेरे घर आग से जलाएँगे और बहुत सी 'औरतों के सामने तुझे सज़ा देंगे, और मैं तुझे बदकारी से रोक दूँगा और तू फिर उजरत न देगी।42तब मेरा क़हर तुझ पर धीमा हो जाएगा, और मेरी गै़रत तुझ से जाती रहेगी; और मैं तस्कीन पाऊँगा और फिर ग़ज़बनाक न हूँगा।43चूँकि ~तूने अपने बचपन के दिनों को याद न किया, और इन सब बातों से मुझ को अफ़रोख़्ता किया, इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, देख, मैं तेरी बदराही का नतीजा तेरे सिर पर लाऊँगा और तू आगे को अपने सब घिनौने कामों के 'अलावा ऐसी बदज़ाती नहीं कर सकेगी।44‘देख, सब मिसाल कहने वाले तेरे बारे में यह मिसाल कहेंगे, कि 'जैसी माँ, वैसी बेटी।45~तू अपनी उस माँ की बेटी है जो अपने शौहर और अपने बच्चों से घिन खाती थी, और तू अपनी उन बहनों की बहन है जो अपने शौहरों और अपने बच्चों से नफ़रत रखती थीं; तेरी माँ हित्ती और तेरा बाप अमूरी था।46और तेरी बड़ी बहन सामरिया है जो तेरी बाईं तरफ़ रहती है, वह और उसकी बेटियाँ, और तेरी छोटी बहन जो तेरी दहनी तरफ़ रहती हैं, सदूम और उसकी बेटियाँ हैं।47लेकिन तू सिर्फ उनकी राह पर नहीं चली और सिर्फ़ उन ही के जैसे घिनौने काम नहीं किए, क्यूँकि यह तो अगरचे छोटी बात थी, बल्कि तू अपनी तमाम चाल चलन में उनसे बदतर हो गई।48ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम कि तेरी बहन सदूम ने ऐसा नहीं किया, न उसने न उसकी बेटियों ने जैसा तूने और तेरी बेटियों ने किया है।49देख, तेरी बहन सदूम की तक़्सीर यह थी, गु़रूर और रोटी की सेरी और राहत की कसरत उसमें और उसकी बेटियों में थी; उसने ग़रीब और मोहताज की दस्तगीरी न की।50वह मग़रूर थीं और उन्होंने मेरे सामने घिनौने काम किए, इसलिए जब मैंने देखा तो उनको उखाड़ फेंका।51और सामरिया ने तेरे गुनाहों के आधे भी नहीं किए, तूने उनके बदले अपनी मकरूहात को फ़िरावान किया है, और तूने अपनी इन मकरूहात से अपनी बहनों को बेक़ुसूर ठहराया है।52फिर तू ख़ुद जो अपनी बहनों को मुजरिम ठहराती है, इन गुनाहों की वजह से जो तूने किए जो उनके गुनाहों से ज़्यादा नफ़रतअंगेज़ हैं, मलामत उठा; वह तुझ से ज़्यादा बेकु़सूर हैं। इसलिए तू भी रूस्वा हो और शर्म खा, क्यूँकि तूने अपनी बहनों को बेकु़सूर ठहराया है।53'और मैं उनकी ग़ुलामी को बदल दूँगा, या'नी सदूम और उसकी बेटियों की ग़ुलामी को और सामरिया और उसकी बेटियों की ग़ुलामी की, और उनके बीच तेरे ग़ुलामों की ग़ुलामी को,54ताकि तू अपनी रूस्वाई उठाए और अपने सब कामों से शर्मिंदा हो, क्यूँकि तू उनके लिए तसल्ली के ज़रिए' है।55तेरी बहनें सदूम और सामरिया, अपनी अपनी बेटियों के साथ अपनी पहली हालत पर बहाल हो जाएँगी, और तू और तेरी बेटियाँ अपनी पहली हालत पर बहाल हो जाओगी।56तू अपने ग़ुरूर के दिनों में, अपनी बहन सदूम का नाम तक ज़बान पर न लाती थी।57उससे पहले कि तेरी शरारत फ़ाश हुई, जब अराम की बेटियों ने और उन सब ने जो उनके आस-पास थीं तुझे मलामत की, और फ़िलिस्तियों की बेटियों ने चारों तरफ़ से तेरी हिकारत की।58ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तूने अपनी बदज़ाती और घिनौने कामों की सज़ा पाई।59"क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैं तुझ से जैसा तूने किया वैसा ही सुलूक करूँगा, इसलिए कि तूने क़सम को बेकार जाना और 'अहद शिकनी की|60लेकिन मैं अपने उस 'अहद को जो मैंने तेरी जवानी के दिनों में तेरे साथ बाँधा, याद रख्खूँगा और हमेशा का 'अहद तेरे साथ क़ायम करूँगा।61और जब तू अपनी बड़ी और छोटी बहनों को कु़बूल करेगी, तब तू अपनी राहों को याद करके शर्मिंदा होगी और मैं उनको तुझे दूँगा कि तेरी बेटियाँ हों, लेकिन यह तेरे 'अहद के मुताबिक़ नहीं।62और मैं अपना 'अहद तेरे साथ क़ायम करूँगा, और तू जानेगी कि ख़ुदावन्द मैं हूँ|63~ताकि तू याद करे और शर्मिंदा हो और शर्म के मारे फिर कभी मुँह न खोले, जब कि मैं सब कुछ जो तूने किया मु'आफ़ कर दूँ, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।"
1और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|2~"कि ऐ आदमज़ाद, एक पहेली निकाल और अहल-ए-इस्राईल से एक मिसाल बयान कर,3और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: एक बड़ा उक़ाब जो बड़े बाज़ू और लम्बे पर रखता था, अपने रंगा-रंग के बाल-ओ-पर में छिपा हुआ लुबनान में आया, और उसने देवदार की चोटी तोड़ ली।4वह सब से ऊँची डाली तोड़ कर सौदागरी के मुल्क में ले गया, और सौदागरों के शहर में उसे लगाया।5और वह उस सर-ज़मीन में से बीज ले गया और उसे ज़रखेज़ ज़मीन में बोया; उसने उसे आब-ए-फ़िरावाँ के किनारे, बेद के दरख़्त की तरह लगाया।6और वह उगा और अंगूर का एक पस्त-क़द शाख़दार दरख़्त हो गया और उसकी शाख़ें उसकी तरफ़ झुकी थीं, और उसकी जड़ें उसके नीचे थीं, चुनाँचे वह अँगूर का एक दरख़्त हुआ; उसकी शाख़ें निकलीं और उसकी कोपलें बढ़ीं7'और एक और बड़ा 'उक़ाब था, जिसके बाज़ू बड़े बड़े और पर-ओ-बाल बहुत थे, और इस ताक ने अपनी जड़ें उसकी तरफ़ झुकाई और अपनी क्यारियों से अपनी शाख़ें उसकी तरफ़ बढ़ईं ताकि वह उसे सींचे।8यह आब-ए-फ़िरावाँ के किनारे ज़रखेज़ ज़मीन में लगाई गई थी, ताकि उसकी शाख़ें निकलें और इसमें फल लगें और यह नफ़ीस ताक हो।9तू कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि क्या यह कामयाब होगी? क्या वह इसको उखाड़ न डालेगा और इसका फल न तोड़ डालेगा कि यह ख़ुश्क हो जाए, और इसके सब ताज़ा पत्ते मुरझा जाएँ? इसे जड़ से उखाड़ने के लिए बहुत ताक़त और बहुत से आदमियों की ज़रूरत न होगी।10देख, यह लगाई तो गई, पर क्या यह कामयाब होगी? क्या यह पूरबी हवा लगते ही बिल्कुल सूख न जाएगी? यह अपनी क्यारियों ही में पज़मुर्दा हो जाएगी।"11और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ12~"इस बाग़ी ख़ान्दान से कह, क्या तुम इन बातों का मतलब नहीं जानते? इनसे कह, देखो, शाह-ए-बाबुल ने यरुशलीम पर चढ़ाई की और उसके बादशाह को और उसके ''हाकिमों को ग़ुलाम करके अपने साथ बाबुल को ले गया।13और उसने शाही नसल में से एक को लिया और उसके साथ 'अहद बाँधा और उससे क़सम ली और मुल्क के बहादुरों को भी ले गया,14ताकि वह मम्लकत पस्त हो जाए और फिर सिर न उठा सके, बल्कि उसके 'अहद को क़ायम रखने से क़ायम रहे।15लेकिन उसने बहुत से आदमी और घोड़े लेने के लिए मिस्र में क़ासिद भेज कर उससे शरकशी की क्या वह कामयाब होगा क्या ऐसे काम करने वाला बच सकता है क्या वह 'अहद शिकनी करके बच जाएगा |16"ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम, वह उसी जगह जहाँ उस बादशाह का घर है जिसने उसे बादशाह बनाया और जिसकी क़सम को उसने बेकार जाना और जिसका 'अहद उसने तोड़ा, या'नी बाबुल में उसी के पास मरेगा।17और फ़िर'औन अपने बड़े लश्कर और बहुत से लोगों को लेकर लड़ाई में उसके साथ शरीक न होगा, जब दमदमा बाँधते हों और बुर्ज बनाते हों कि बहुत से लोगों को क़त्ल करें।18चूँकि उसने क़सम को बेकार जाना और उस 'अहद को तोड़ा, और हाथ पर हाथ मार कर भी यह सब कुछ किया, इसलिए वह बच न सकेगा।19इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ~मुझे अपनी हयात की क़सम वह मेरी ही क़सम है, जिसको उसने बेकार जाना और वह मेरा ही 'अहद है जो उसने तोड़ा; मैं ज़रूर यह उसके सिर पर लाऊँगा।20और मैं अपना जाल उस पर फैलाऊँगा और वह मेरे फन्दे में पकड़ा जाएगा, और मैं उसे बाबुल को ले आऊँगा, और जो मेरा गुनाह उसने किया है उसके बारे मैं वहाँ उससे हुज्जत करूँगा।21और उसके लश्कर के सब फ़रारी तलवार से क़त्ल होंगे, और जो बच रहेंगे वह चारों तरफ़ तितर बितर हो जाएँगे; और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।22~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: "मैं भी देवदार की बुलन्द चोटी लूँगा और उसे लगाऊँगा, फिर उसकी नर्म शाख़ों में से एक कोंपल काट लूँगा और उसे एक ऊँचे और बुलन्द पहाड़ पर लगाऊँगा।23मैं उसे इस्राईल के ऊँचे पहाड़ पर लगाऊँगा, और वह शाख़ें निकालेगा और फल लाएगा और 'आलीशान देवदार होगा। और हर क़िस्म के परिन्दे उसके नीचे बसेंगे, वह उसकी डालियों के साये में बसेरा करेंगे।24और मैदान के सब दरख़्त जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द ने बड़े दरख़्त को पस्त किया और छोटे दरख़्त को बुलन्द किया; हरे दरख़्त को सुखा दिया और सूखे दरख़्त को हरा किया; मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया और कर दिखाया।"
1और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2" कि तुम इस्राईल के मुल्क के हक़ में क्यूँ यह मिसाल कहते हो, कि 'बाप-दादा ने कच्चे अँगूर खाए और औलाद के दाँत खट्टे हुए'?3ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम कि तुम फिर इस्राईल में यह मिसाल न कहोगे।4देख, सब जाने मेरी हैं,जैसी बाप की जान वैसी ही बेटे की जान भी मेरी है; जो जान गुनाह करती है वही मरेगी।5'लेकिन जो इन्सान सादिक़ है, और उसके काम 'अदालत और इन्साफ़ के मुताबिक़ हैं।6जिसने बुतों की कु़र्बानी से नहीं खाया, और बनी-इस्राईल के बुतों की तरफ़ अपनी आँखें नहीं उठाई; और अपने पड़ोसी की बीवी को नापाक नहीं किया, और 'औरत की नापाकी के वक़्त उसके पास नहीं गया,7और किसी पर सितम नहीं किया, और क़र्ज़दार का गिरवी वापस कर दिया और जु़ल्म से कुछ छीन नहीं लिया; भूकों को अपनी रोटी खिलाई और नंगों को कपड़ा पहनाया;8सूद पर लेन-देन नहीं किया, बदकिरदारी से दस्तबरदार हुआ और लोगों में सच्चा इन्साफ़ किया;9मेरे क़ानून पर चला और मेरे हुक्मों पर 'अमल किया, ताकि रास्ती से मु'आमिला करे; वह सादिक़़ है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा।10'लेकिन अगर उसके यहाँ बेटा पैदा हो, जो राहज़नी या खू़ँरेज़ी करे और इन गुनाहों में से कोई गुनाह करे,11और इन फ़राइज़ को बजा न लाए, बल्कि बुतों की कु़र्बानी से खाए और अपने पड़ोसी की बीवी को नापाक करे;12ग़रीब और मोहताज पर सितम करे, जु़ल्म करके छीन ले, गिरवी वापस न दे, और बुतों की तरफ़ अपनी आँखें उठाये और घिनौने काम करे;13सूद पर लेन देन करे, तो क्या वह ज़िन्दा रहेगा ? वह ज़िन्दा न रहेगा, उसने यह सब नफ़रती काम किए हैं; वह यक़ीनन मरेगा, उसका खू़न उसी पर होगा।14"लेकिन अगर उसके यहाँ ऐसा बेटा पैदा हो, जो उन तमाम गुनाहों को जो उसका बाप करता है देखे और ख़ौफ़ खाकर उसके से काम न करे15और बुतों की कु़र्बानी से न खाए, और बनी-इस्राईल के बुतों की तरफ़ अपनी आँखें न उठाए और अपने पड़ोसी की बीवी को नापाक न करे;16और किसी पर सितम न करे, गिरवी न ले, और जु़ल्म करके कुछ छीन न ले, भूके को अपनी रोटी खिलाए और नंगे को कपड़े पहनाए;17ग़रीब से दस्तबरदार हो, और सूद पर लेन-देन न करे, लेकिन मेरे हुक्मों पर 'अमल करे और मेरे क़ानून पर चले, वह अपने बाप के गुनाहों के लिए न मरेगा; वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा।18लेकिन उसका बाप, क्यूँकि उसने बेरहमी से सितम किया और अपने भाई को जु़ल्म से लूटा, और अपने लोगों के बीच बुरे काम किए; इसलिए वह अपनी बदकिरदारी के ज़रिए' मरेगा।19"तोभी तुम कहते हो, 'बेटा बाप के गुनाह का बोझ क्यूँ नहीं उठाता?" जब बेटे ने वही जो जाएज़ और रवा है किया, और मेरे सब क़ानून को याद करके उन पर 'अमल किया; तो वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा।20जो जान गुनाह करती है वही मरेगी, बेटा बाप के गुनाह का बोझ न उठाएगा और न बाप बेटे के गुनाह का बोझ; सादिक़ की सदाक़त उसी के लिए होगी, और शरीर की शरारत शरीर के लिए।21"लेकिन अगर शरीर अपने तमाम गुनाहों से जो उसने किए हैं, बाज़ आए और मेरे सब तौर तरीक़े पर चलकर, जो जाएज़ और रवा है करे तो वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा, वह न मरेगा।22वह सब गुनाह जो उसने किए हैं, उसके ख़िलाफ़ महसूब न होंगे। वह अपनी रास्तबाज़ी में जो उसने की ज़िन्दा रहेगा।23ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, क्या शरीर की मौत में मेरी खु़शी है, और इसमें नहीं कि वह अपनी चाल चलन से बाज़ आए और ज़िन्दा रहे?24लेकिन अगर सादिक़ अपनी सदाक़त से बाज़ आए, और गुनाह करे और उन सब घिनौने कामों के मुताबिक़ जो शरीर करता है करे, तो क्या वह ज़िन्दा रहेगा? उसकी तमाम सदाक़त जो उसने की फ़रामोश होगी; वह अपने गुनाहों में जो उसने किए हैं और अपनी ख़ताओं में जो उसने की हैं मरेगा।25~"तोभी तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की रविश रास्त नहीं।' ऐ बनी-इस्राईल सुनो तो, क्या मेरा चाल चलन रास्त नहीं? क्या तुम्हारा चाल चलन नारास्त नहीं?26जब सादिक़ अपनी सदाक़त से बाज़ आए और बदकिरदारी करे और उसमें मरे, तो वह अपनी बदकिरदारी की वजह से जो उसने की है मरेगा।27और अगर शरीर अपनी शरारत से, जो वह करता है बा'ज़ आए, और वह काम करे जो जाएज़ और रवा है; तो वह अपनी जान ज़िन्दा रख्खेगा।28इसलिए कि उसने सोचा और अपने सब गुनाहों से जो करता था बा'ज़ आया; वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा, वह न मरेगा।29तोभी बनी-इस्राईल कहते हैं, 'ख़ुदावन्द की रविश रास्त नहीं?" ऐ बनी इस्राईल, क्या मेरा चाल चलन रास्त नहीं? क्या तुम्हारा चाल चलन नारास्त नहीं?30इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ बनी इस्राईल मैं हर एक के चाल चलन के मुताबिक़ तुम्हारी 'अदालत करूँगा; तोबा करो और अपने तमाम गुनाहों से बाज़ आओ, ताकि बदकिरदारी तुम्हारी हलाकत का ज़रिया' न हो।31उन तमाम गुनाहों को, जिनसे तुम गुनहगार हुए दूर करो और अपने लिए नया दिल और नई रूह पैदा करो! ऐ बनी-इस्राईल, तुम क्यूँ हलाक होगे?32क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे मरने वाले की मौत से ख़ुशी नहीं, इसलिए बाज़ आओ और ज़िन्दा रहो।"
1अब तू इस्राईल के ''हाकिमों पर नौहा कर,2और कह, तेरी माँ कौन थी? एक शेरनी जो शेरों के बीच लेटी थी और जवान शेरों के बीच उसने अपने बच्चों को पाला।3और उसने अपने बच्चों में से एक को पाला, तो वह जवान शेर हुआ और शिकार करना सीख गया और आदमियों को निगलने लगा।4और क़ौमों के बीच उसका ज़िक्र हुआ तो वह उनके गढ़े में पकड़ा गया, और वह उसे ज़न्जीरों से जकड़ कर ज़मीन-ए-मिस्र में लाए।5और जब शेरनी ने देखा कि उसने बेफ़ाइदा इन्तिज़ार किया और उसकी उम्मीद जाती रही, तो उसने अपने बच्चों में से दूसरे को लिया और उसे पाल कर जवान शेर किया।6और वह शेरों के बीच सैर करता फिरा और जवान शेर हुआ, और शिकार करना सीख गया और आदमियों को निगलने लगा।7और उसने उनके महलों को बर्बाद किया, और उनके शहरों को वीरान किया; उसकी ग़रज़ से मुल्क उजड़ गया और उसकी आबादी न रही।8तब बहुत सी क़ौमें तमाम मुल्कों से उसकी घात में बैठीं, और उन्होंने उस पर अपना जाल फैलाया; वह उनके गढ़े में पकड़ा गया।9और उन्होंने उसे ज़न्जीरों से जकड़ कर पिंजरे में डाला और शाह-ए-बाबुल के पास ले आए। उन्होंने उसे क़िले' में बन्द किया, ताकि उसकी आवाज़ इस्राईल के पहाड़ों पर फिर सुनी न जाए।10तेरी माँ उस ताक से' मुशाबह थी, जो तेरी तरह पानी के किनारे लगाई गई; वह पानी की बहुतायत के ज़रिए' फलदार और शाख़दार हुई।11और उसकी शाख़ें ऐसी मज़बूत हो गई के बादशाहों के 'असा उन से बनाए गए, और घनी शाख़ों में उसका तना बुलन्द हुआ और वह अपनी घनी शाख़ों के साथ ऊँची दिखाई देती थी |12लेकिन वह ग़ज़ब से उखाड़ कर ज़मीन पर गिराई गई, और पूरबी हवा ने उसका फल खु़श्क कर डाला, और उसकी मज़बूत डालियाँ तोड़ी गई और सूख गई और आग से भसम हुई।13और अब वह वीरान में सूखी और प्यासी ज़मीन में लगाई गई।14और एक छड़ी से जो उसकी डालियों से बनी थी, आग निकलकर उसका फल खा गई और उसकी कोई ऐसी मज़बूत डाली न रही कि सल्तनत का 'असा हो। यह नोहा है और नोहे के लिए रहेगा।
1और सातवें बरस के पाँचवें महीने की दसवीं तारीख को यूँ हुआ कि इस्राईल के चन्द बुजु़र्ग ख़ुदावन्द से कुछ दरियाफ़्त करने को आए और मेरे सामने बैठ गए।2तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ3कि "ऐ आदमज़ाद! इस्राईल के बुजु़र्गों से कलाम कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि क्या तुम मुझ से दरियाफ़्त करने आए हो? ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि मुझे अपनी हयात की क़सम, तुम मुझ से कुछ दरियाफ़्त न कर सकोगे।4क्या तू उन पर हुज्जत क़ायम करेगा? ऐ आदमज़ाद, क्या तू उन पर हुज्जत क़ायम करेगा? उनके बाप दादा के नफ़रती कामों से उनको आगाह कर।5उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जिस दिन मैंने इस्राईल को बरगुज़ीदा किया, और बनी या'कू़ब से क़सम खाई और मुल्क-ए-मिस्र में अपने आपको उन पर ज़ाहिर किया; मैंने उनसे क़सम खा कर कहा, मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ |6जिस दिन मैंने उनसे क़सम खाई, ताकि उनको मुल्क-ए-मिस्र से उस मुल्क में लाऊँ जो मैंने उनके लिए देख कर ठहराया था, जिसमें दूध और शहद बहता है और जो तमाम मुल्कों की शौकत है।7और मैंने उनसे कहा, तुम में से हर एक शख़्स उन नफ़रती चीज़ों को जो उसकी मन्जू़र-ए-नज़र हैं, दूर करे और तुम अपने आपको मिस्र के बुतों से नापाक न करो; मैं ख़ुदावन्द, तुम्हारा ख़ुदा हूँ।8लेकिन वह मुझ से बाग़ी हुए और न चाहा कि मेरी सुनें। उनमें से किसी ने उन नफ़रती चीज़ों को, जो उसकी मंजू़र-ए-नज़र थीं, छोड़ न दिया और मिस्र के बुतों को न छोड़ा।" तब मैंने कहा,कि मैं अपना क़हर उन पर उण्डेल दूँगा, ताकि अपने ग़ज़ब को मुल्क-ए- मिस्र में उन पर पूरा करूँ ।9लेकिन मैंने अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया ताकि मेरा नाम उन क़ौमों की नज़र में, जिनके बीच वह रहते थे और जिनकी निगाहों में मैं उन पर ज़ाहिर हुआ जब उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, नापाक न किया जाए।10इसलिए मैं उनको मुल्क-ए-मिस्र से निकालकर वीरान में लाया।11और मैंने अपने क़ानून उनको दिए और अपने हुक्मों को ~उनको सिखाए कि इन्सान उन पर 'अमल करने से ज़िन्दा रहे।12और मैंने अपने सबत भी उनको दिए, ताकि वह मेरे और उनके बीच निशान हों; ताकि वह जानें कि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।13लेकिन बनी-इस्राईल वीरान में मुझ से बाग़ी हुए, वह मेरे क़ानून पर न चले और मेरे हुक्मों को रद्द किया, जिन पर अगर इन्सान 'अमल करे तो उनकी वजह से ज़िन्दा रहे, और उन्होंने मेरे सबतों को बहुत ही नापाक किया।"तब मैंने कहा,कि मैं वीरान में अपना क़हर उन पर नाज़िल कर के उनको फ़ना करूँगा।14~लेकिन मैंने अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया, ताकि वह उन क़ौमों की नज़र में जिनकी आँखों के सामने मैं उनको निकाल लाया नापाक न किया जाए।15और मैंने वीरान में भी उनसे क़सम खाई कि मैं उनको उस मुल्क में न लाऊँगा जो मैंने उनको दिया, जिसमें दूध और शहद बहता है और जो तमाम मुल्कों की शौकत है।16क्यूँकि उन्होंने मेरे हुक्मों को रद्द किया और मेरे क़ानून पर न चले और मेरे सबतों को नापाक किया, इसलिए कि उनके दिल उनके बुतों के मुश्ताक़ थे।17तोभी मेरी आँखों ने उनकी रि'आयत की और मैंने उनको हलाक न किया, और मैंने वीरान में उनको बिल्कुल बर्बाद-ओ-हलाक न किया।18और मैंने वीरान में उनके फ़र्ज़न्दों से कहा, तुम अपने बाप-दादा के क़ानून-ओ-हुक्मों पर न चलो और उनके बुतों से अपने आपको नापाक न करो।19मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, मेरे क़ानून पर चलो और मेरे हुक्मों को मानो और उन पर 'अमल करो।20और मेरे सबतों को पाक जानो कि वह मेरे और तुम्हारे बीच निशान हों, ताकि तुम जानो कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।21लेकिन फ़र्ज़न्दों ने भी मुझ से बग़ावत की; वह मेरे क़ानून पर न चले, न मेरे हुक्मों को मानकर उन पर 'अमल किया जिन पर अगर इन्सान 'अमल करे तो उनकी वजह से ज़िन्दा रहे; उन्होंने मेरे सबतों को नापाक किया।"तब मैंने कहा कि मैं अपना क़हर उन पर नाज़िल करूँगा और वीरान में अपने ग़ज़ब को उन पर पूरा करूँगा।22~तोभी मैंने अपना हाथ खींचा और अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया, ताकि वह उन क़ौमों की नज़र में जिनके देखते हुए मैं उनको निकाल लाया, नापाक न किया जाए।23फिर मैंने वीराने में उनसे क़सम खाई कि मैं उनको क़ौमों में आवारा और मुल्कों में तितर बितर करूँगा।24इसलिए कि वह मेरे हुक्मों पर 'अमल न करते थे, बल्कि मेरे क़ानून को रद्द करते थे और मेरे सबतों को नापाक करते थे, और उनकी आँखें उनके बाप-दादा के बुतों पर थीं।25इसलिए मैंने उनको बुरे क़ानून और ऐसे अहकाम दिए जिनसे वह ज़िन्दा न रहें;26और मैंने उनको उन्हीं के हदियों से या'नी सब पहलौठों को आग पर से गुज़ार कर, नापाक किया ताकि मैं उनको वीरान करूँ और वह जानें कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।27इसलिए, ऐ आदमज़ाद, तू बनी इस्राईल से कलाम कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि इसके 'अलावा तुम्हारे बाप-दादा ने ऐसे काम करके मेरी बुराई की और मेरा गुनाह करके ख़ताकार हुए;28कि जब मैं उनको उस मुल्क में लाया जिसे उनको देने की मैंने क़सम खाई थी, तो उन्होंने जिस ऊँचे पहाड़ और जिस घने दरख़्त को देखा वहीं अपने ज़बीहों को ज़बह किया, और वहीं अपनी ग़ज़ब अंगेज़ नज़र को गुज़राना, और वहीं अपनी ख़ुशबू जलाई और अपने तपावन तपाए।29तब मैंने उनसे कहा, यह कैसा ऊँचा मक़ाम है जहाँ तुम जाते हो? और उन्होंने उसका नाम बामाह रख्खा जो आज के दिन तक है।30'इसलिए, तू बनी-इस्राईल से कह, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: क्या तुम भी अपने बाप-दादा की तरह नापाक होते हो? और उनके नफ़रत अंगेज़ कामों की तरह तुम भी बदकारी करते हो?31~और जब अपने हदिए चढ़ाते और अपने बेटों को आग पर से गुज़ार कर अपने सब बुतों से अपने आपको आज के दिन तक नापाक करते हो, तो ऐ बनी-इस्राईल क्या तुम मुझ से कुछ दरियाफ़्त कर सकते हो? ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, मुझ से कुछ दरियाफ़्त न कर सकोगे।32"और वह जो तुम्हारे जी में आता है हरगिज़ वजूद में न आएगा, क्यूँकि तुम सोचते हो, 'तुम भी दीगर क़ौम-ओ-क़बाइल-ए- 'आलम की तरह लकड़ी और पत्थर की 'इबादत करोगे ।'ख़ुदावन्द सज़ा देता और मु'आफ़ भी करता है33"ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, मैं ताक़तवर हाथ से और बुलन्द बाज़ू से क़हर नाज़िल' कर के तुम पर सल्तनत करूँगा।34और मैं ताक़तवर हाथ और बुलन्द बाज़ू से क़हर नाज़िल' करके तुम को क़ौमों में से निकाल लाऊँगा, और उन मुल्कों में से जिनमें तुम तितर बितर हुए हो जमा' करूँगा।35और मैं तुम को क़ौमों के वीराने में लाऊँगा और वहाँ आमने सामने तुम से हुज्जत करूँगा।36जिस तरह मैंने तुम्हारे बाप-दादा के साथ मिस्र के वीरान में हुज्जत की, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, उसी तरह मैं तुम से भी हुज्जत करूँगा।37और मैं तुम को छड़ी के नीचे से गुज़ारूँगा और 'अहद के बन्द में लाऊँगा।38और मैं तुम में से उन लोगों को जो सरकश और मुझ से बाग़ी हैं, जुदाकरूँगा; मैं उनको उस मुल्क से जिसमें उन्होंने क़याम किया, निकाल लाऊँगा पर वह इस्राईल के मुल्क में दाख़िल न होंगे और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।39~और "तुम से ऐ बनी-इस्राईल, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि जाओ और अपने अपने बुत की 'इबादत करो, और आगे को भी, अगर तुम मेरी न सुनोगे; लेकिन अपनी कु़र्बानियों और अपने बुतों से मेरे पाक नाम की बुराई न करोगे।40'क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मेरे पाक पहाड़ या'नी इस्राईल के ऊँचे पहाड़ पर तमाम बनी-इस्राईल, सब के सब मुल्क में मेरी 'इबादत करेंगे; वहाँ मैं उनको कु़बूल करूँगा, और तुम्हारी कु़र्बानियाँ और तुम्हारी नज़रों के पहले फल और तुम्हारी सब मुक़द्दस चीज़ें तलब करूँगा।41जब मैं तुम को क़ौमों में से निकाल लाऊँगा और उन मुल्कों में से जिनमें मैंने तुम को तितर बितर किया जमा' करूँगा, तब मैं तुम को ख़ुशबू के साथ कु़बूल करूँगा और क़ौमों के सामने तुम मेरी तक़्दीस करोगे।42~और जब मैं तुम को इस्राईल के मुल्क में या'नी उस सरज़मीन में जिसके लिए मैंने क़सम खाई कि तुम्हारे बाप-दादा को दूँ, ले आऊँगा तब तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।43और वहाँ तुम अपने चाल चलन और अपने सब कामों को, जिनसे तुम नापाक हुए हो, याद करोगे और तुम अपनी तमाम बुराई की वजह से जो तुम ने की है, अपनी ही नज़र में घिनौने होगे।44ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, ऐ बनी-इस्राईल जब मैं तुम्हारे बुरे चाल चलन और बद-आ'माली के मुताबिक़ नहीं बल्कि अपने नाम के ख़ातिर तुम से सुलूक करूँगा, तो तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"45और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:46कि "ऐ आदमज़ाद, दक्खिन का रुख़ कर और दक्खिन ही से मुख़ातिब हो कर उसके मैदान के जंगल के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर;47और दक्खिन के जंगल से कह, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, मैं तुझ में आग भड़काऊँगा और वह हर एक हरा दरख़्त और हर एक सूखा दरख़्त जो तुझ में है, खा जाएगी; भड़कता हुआ शो'ला न बुझेगा और दक्खिन से उत्तर तक सबके मुँह उससे झुलस जाएँगे।48और हर इन्सान देखेगा कि मैं ख़ुदावन्द ने उसे भड़काया है, वह न बुझेगी।"49तब मैंने कहा, 'हाय ख़ुदावन्द ख़ुदा! वह तो मेरे बारे में कहते हैं,क्या वह मिसालें नहीं कहता?"
1~फिर ख़ुदा वन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि~"ऐ आदमज़ाद, यरुशलीम का रुख़ कर और पाक मकानों से मुख़ातिब होकर मुल्क-ए-इस्राईल के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर3और उस से कह, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि देख मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और अपनी तलवार मियान से निकाल लूँगा, और तेरे सादिक़ों और तेरे शरीरों को तेरे बीच से काट डालूँगा।4इसलिए चूँकि मैं तेरे बीच से सादिक़ों और शरीरों को काट डालूँगा, इसलिए मेरी तलवार अपने मियान से निकल कर दक्खिन से उत्तर तक तमाम बशर पर चलेगी|5और सब जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द ने अपनी तलवार मियान से खींची है वह फिर उसमें न जायेगी |6इसलिए "ऐ आदमज़ाद कमर की शिगास्तगी से आँहें ~मार और तल्ख़ कामी से उनकी आँखों के सामने ठण्डी साँस भर |7और जब वह पूँछें कि तू क्यूँ हाए हाए करता है तो यूँ जवाब देना कि उसकी आमद की अफ़वाह की वजह से और हर एक दिल पिघल जायेगा और सब हाथ ढीले हो जायेंगे और हर एक जी डूब जाएगा और सब घुटने पानी की तरह कमज़ोर हो जायेंगे ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है उसकी आमद आमद है यह वजूद में आएगा |8फिर~ख़ुदावन्द का कलाम मुझपर नाज़िल हुआ |9"ऐ आदमज़ाद, ~नबुव्वत कर और कह ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू कह तलवार बल्कि तेज़ और सैकल की हुई तलवार है |10वह तेज़ की गई है ताकि उससे बड़ी खूंरेज़ी की जाये वह सैकल की गई है ताकि चमके फिर क्या हम ख़ुश हो सकते हैं मेरे बेटे का 'असा हर लकड़ी को बेकार जानता है |11और उसने उसे सैकल करने को दिया है ताकि हाथ में ली जाये वह तेज़ और सैकल की गई ताकि क़त्ल करने वाले के हाथ में दी जाए |12~"ऐ आदमज़ाद, तू रो और नाला कर क्यूँकि वह मेरे लोगों पर चलेगी वह इस्राईल के सब हाकिमों पर होगी वह मेरे लोगों के सात तलवार के हवाले किए गए हैं इसलिए तू अपनी रान पर हाथ मार |13यक़ीनन वह आज़माई गई और अगर लाठी उसे बेकार जाने तो क्या वह हलाक होगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है |14और~"ऐ आदमज़ाद, तू नबुव्वत कर और ताली बजा और तलवार दो गुना बल्कि तीन गुना हो जाए वह तलवार जो मक़तूलों पर कारगर हुई बड़ी खूँरेज़ी की तलवार है जो उनको घेरती है|15मैंने यह तलवार उनके सब फाटकों के ख़िलाफ़ क़ायम की है ताकि उनके दिल पिघल जायें और उनके गिरने के सामान ज़्यादा हों हाए बर्क़ तेग यह क़त्ल करने को खींची गई|16तैयार हो; दाहनी तरफ़ जा, आमादा हो ,बाईं तरफ़ जा ,जिधर तेरा रुख़ ,|17और मैं भी ताली बजाऊँगा और अपने क़हर को ठण्डा करूँगा मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है|18और ख़ुदावन्द का कलाम मुझपर नाज़िल हुआ|19कि~"ऐ आदमज़ाद, तू दो रास्ते खींच जिनसे शाह-ए-बाबुल की तलवार आये एक ही मुल्क से वह दोनों रास्ते निकाल और एक हाथ निशान के लिए शहर की रास्ते के सिरे पर लगा|20एक रास्ता निकाल जिससे तलवार बनी'अम्मून की रब्बा पर और फिर एक और जिससे यहूदाह के मासूर शहर यरुशलीम पर आये|21क्यूँकि शाह-ए-बाबुल दोनों रास्तों के नुक़्त-ए-इतसाल पर फ़ालगीरी के लिए खड़ा हुआ और तीरों को हिला कर बुत से सवाल करेगा और जिगर पर नज़र करेगा|22उसके दहने हाथ में यरुशलीम का पर्ची पड़ेगी कि मंजनीक़ लगाये और कुश्त-ओ-ख़ून के लिए मुँह खोले ललकार की आवाज़ बुलन्द करे और फाटकों पर मंजनीक़ लगाए और दमदमा बांधे और बुर्ज़ बनाए|23~लेकिन उनकी नज़र में यह ऐसा होगा जैसा झूटा शगुन या'नी उनके लिए जिन्होंने क़सम खाई थी, पर वह बदकिरदारी को याद करेगा ताकि वह गिरफ़्तार हों।24"इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि तुम ने अपनी बदकिरदारी याद दिलाई और तुम्हारी ख़ताकारी ज़ाहिर हुई यहाँ तक कि तुम्हारे सब कामों में तुम्हारे गुनाह अयाँ हैं; और चूँकि तुम ख़याल में आ गए इसलिए गिरफ़्तार हो जाओगे।25और तू ऐ मजरूह शरीर शाह-ए-इस्राईल, जिसका ज़माना बदकिरदारी के अन्जाम को पहुँचने पर आया है।26ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि कुलाह दूर कर और ताज उतार, यह ऐसा न रहेगा, पस्त को बलन्द कर और उसे जो बुलन्द है पस्त कर।27मैं ही उसे उलट उलट उलट दूँगा, पर यूँ भी न रहेगा और वह आएगा जिसका हक़ है, और मैं उसे दूँगा।28"और तू ऐ आदमज़ाद नबुव्वत कर और कह ख़ुदावन्द ख़ुदा बनी अम्मून और उनकी ताना ज़नी के बारे में यूँ फ़रमाता है: कि तू कह तलवार बल्कि खींची हुई तलवार खूंरेजी के लिए सैकल की गई है, ताकि बिजली की तरह भसम करे।29जबकि वह तेरे लिए धोका देखते हैं और झूटे फ़ाल निकालते हैं कि तुझ को उन शरीरों की गर्दनों पर डाल दें जो मारे गए, जिनका ज़माना उनकी बदकिरदारी के अंजाम को पहुँचने पर आया है।30उसको मियान में कर। मैं तेरी पैदाइश के मकान में और तेरी ज़ाद बूम में तेरी 'अदालत करूँगा।31और मैं अपना क़हर तुझ पर नाज़िल करूँगा और अपने ग़ज़ब की आग तुझ पर भड़काऊँगा, और तुझ को हैवान ख़सलत आदमियों के हवाले करूँगा जो बर्बाद करने में माहिर हैं।32तू आग के लिए ईधन होगा और तेरा खू़न मुल्क में बहेगा, और फिर तेरा ज़िक्र भी न किया जाएगा, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।"
1फिर ख़ुदा वन्द का कलाम मुझ पर नाजिल हुआ:2~कि "ऐ आदमज़ाद, क्या तू इल्ज़ाम न लगाएगा? क्या तू इस खू़नी शहर को मुल्ज़िम न ठहराएगा? तू इसके सब नफ़रती काम इसको दिखा,3और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ऐ शहर, तू अपने अन्दर खूँरेज़ी करता है ताकि तेरा वक़्त आजाए और तू अपने वास्ते बुतों को अपने नापाक करने के लिए बनाता है।4तू उस खू़न की वजह से जो तूने बहाया मुजरिम ठहरा, और तू बुतों के ज़रिए' जिनको तूने बनाया है नापाक हुआ; तू अपने वक़्त को नज़दीक लाता है और अपने दिनों के ख़ातिमे तक पहुँचा है इसलिए मैंने तुझे क़ौमों की मलामत का निशाना और मुल्कों का ठठ्ठा बनाया है।5तुझ से दूर-ओ-नज़दीक के सब लोग तेरी हँसी उड़ायेंगे क्यूँकि तू झगड़ालू और बदनाम मशहूर है।6"देख, इस्राईल के हाकिम सब के सब जो तुझ में हैं, मक़दूर भर खू़ँरेज़ी पर मुसत'इद थे।7तेरे अन्दर उन्होंने माँ बाप को बेकार ~जाना है, तेरे अन्दर उन्होंने परदेसियों पर ज़ुल्म किया तेरे अन्दर उन्होंने यतीमों और बेवाओं पर सितम किया है।8तूने मेरी पाक चीज़ों को नाचीज़ जाना, और मेरे सबतों को नापाक किया।9तेरे अन्दर वह लोग हैं जो चुगलखोरी करके खू़न करवाते हैं, और तेरे अन्दर वह हैं जो बुतों की क़ुर्बानी से खाते हैं; तेरे अन्दर वह हैं जो बुराई करते हैं।10~तेरे अन्दर वह भी हैं जिन्होंने अपने बाप की लौंडी शिकनी की, तुझ में उन्होंने उस 'औरत से जो नापाकी की हालत में थी मुबाश्रत की।11किसी ने दूसरे की बीवी से बदकारी की, और किसी ने अपनी बहू से बदज़ाती की, और किसी ने अपनी बहन अपने बाप की बेटी को तेरे अन्दर रुस्वा किया।12तेरे अन्दर उन्होंने खूँरेज़ी के लिए रिश्वत ख़्वारी की तूने ब्याज और सूद लिया और ज़ुल्म करके अपने पड़ोसी को लूटा और मुझे फ़रामोश किया ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है|13"देख, तेरे नारवा नफ़े' की वजह से जो तूने लिया, और तेरी खू़ँरेज़ी के ज़रिए' जो तेरे अन्दर हुई, मैंने ताली बजाई।14क्या तेरा दिल बर्दाश्त करेगा और तेरे हाथों में ज़ोर होगा, जब मैं तेरा मु'आमिले का फ़ैसला करूँगा? मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, और मैं ही कर दिखाऊँगा।15~हाँ, मैं तुझ को क़ौमों में तितर बितर और मुल्कों में तितर-बितर करूँगा, और तेरी गन्दगी तुझ में से हलाक कर दूँगा |16~और तू क़ौमों के सामने अपने आप में नापाक ठहरेगा, और मा'लूम करेगा कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"17और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:18कि ऐ आदमज़ाद, बनी इस्राईल मेरे लिए मैल हो गए हैं; वह सब के सब पीतल और रॉगा और लोहा और सीसा हैं जो भट्टी में हैं, वह चाँदी की मैल हैं।19इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि तुम सब मैल हो गए हो, इसलिए देखो, मैं तुम को यरुशलीम में जमा' करूँगा।20~जिस तरह लोग चाँदी और पीतल और लोहा और शीशा और राँगा भट्ठी में जमा' करते हैं और उनपर धौंकते हैं ताकि उनको ~पिघला डालें, उसी तरह मैं अपने क़हर और अपने ग़ज़ब में तुम को जमा' करूँगा, और तुम को वहाँ रखकर पिघलाऊँगा।21हाँ, मैं तुम को इकट्ठा करूँगा और अपने ग़ज़ब की आग तुम पर धौंकूँगा, और तुम को उसमें पिघला डालूँगा।22~जिस तरह चाँदी भट्टी में पिघलाई जाती है, उसी तरह तुम उसमें पिघलाए जाओगे, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द ने अपना क़हर तुम पर नाज़िल किया है।23और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:24कि "ऐ आदमज़ाद, उससे कह, तू वह सरज़मीन है जो पाक नहीं की गई और जिस पर ग़ज़ब के दिन में बारिश नहीं हुई।25जिसमें उसके नबियों ने साज़िश की है, शिकार को फाड़ते हुए गरजने वाले शेर-ए-बबर की तरह वह जानों को खा गए हैं; वह माल और क़ीमती चीज़ों को छीन लेते हैं; उन्होंने उसमें बहुत सी 'औरतों को बेवा बना दिया है।26उसके काहिनों ने मेरी शरी'अत को तोड़ा और मेरी पाक चीज़ों को नापाक किया है। उन्होंने पाक और 'आम में कुछ फ़र्क़ नहीं रख्खा और मैं उनमें बे'इज़्ज़त हुआ |27उसके हाकिम उसमें शिकार को फाड़ने वाले भेड़ियों की तरह हैं, जो नाजाएज़ नफ़ा' की ख़ातिर खूँरेज़ी करते हैं और जानों को हलाक करते हैं।28और उसके नबी उनके लिए कच्च गारा करते हैं; बातिल ख़्वाब देखते और झूटी फ़ालगीर करते हैं और कहते हैं कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, "हालाँकि ख़ुदावन्द ने नहीं फ़रमाया।29इस मुल्क के लोगों ने सितमगरी और लूट मार की है, और ग़रीब और मोहताज को सताया है और परदेसियों पर नाहक सख़्ती की है।30मैंने उनके बीच तलाश की, कि कोई ऐसा आदमी मिले जो फ़सील बनाए, और उस सरज़मीन के लिए उसके रखने में मेरे सामने खड़ा हो ताकि मैं उसे वीरान न करूँ, लेकिन कोई न मिला।31इसलिए मैंने अपना क़हर उन पर नाज़िल किया, और अपने ग़ज़ब की आग से उनको फ़ना कर दिया; और मैं उनके चाल चलन को उनके सिरों पर लाया, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।"
1~और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि "ऐ आदमज़ाद, दो 'औरतें एक ही माँ की बेटियाँ थीं।3उन्होंने मिस्र में बदकारी की, वह अपनी जवानी में बदकार बनी वहाँ उनकी छातियाँ मली गईं और वहीं उनकी ~दोशीज़गी के पिस्तान मसले गए।4उनमें से बड़ी का नाम ओहोला और उसकी बहन का नाम ओहोलीबा था वह दोनों मेरी हो गईं और उनसे बेटे बेटियाँ पैदा हुए और उनके यह नाम ओहोला और ओहोलीबा सामरिया व यरुशलीम हैं|5और ओहोला जब कि वह मेरी थी, बदकारी करने लगी और अपने यारों पर या'नी असूरियों पर जो पड़ोसी थे, 'आशिक़ हुई।6वह सरदार और हाकिम और सबके सब दिल पसन्द जवाँ मर्द और सवार थे, जो घोड़ों पर सवार होते और अर्गवानी पोशाक पहनते थे।7और उसने उन सबके साथ जो असूर के बरगुज़ीदा मर्द थे बदकारी की, और उन सबके साथ जिनसे वह 'इश्कबाज़ी करती थी, और उनके सब बुतों के साथ नापाक हुई।8उसने जो बदकारी मिस्र में की थी उसे न छोड़ा , क्यूँकि उसकी जवानी में वह उससे हम-अगोश हुए और उन्होंने उसकी दोशीज़्गी के पिस्तानों को मसला और अपनी बदकारी उस पर उण्डेल दी।9इसलिए मैंने उसे उसके यारों या'नी असूरियों के हवाले कर दिया जिन पर वह मरती थी।10उन्होंने उसको बरहना किया और उसके बेटों-बेटियों को छीन लिया और उसे तलवार से क़त्ल किया; इसलिए वह 'औरतों में अंगुश्त नुमा हुई क्यूँकि उन्होंने उसे 'अदालत से सज़ा दी।11'और उसकी बहन अहोलीबा ने यह सब कुछ देखा, लेकिन वह शहवत परस्ती में उससे बदतर हुई और उसने अपनी बहन से बढ़ कर बदकारी की।12वह असूरियों पर 'आशिक़ हुई जो सरदार और हाकिम और उसके पड़ोसी थे, जो भड़कीली पोशाक पहनते और घोड़ों पर सवार होते और सबके सब दिल पसन्द जवान मर्द थे।13और मैंने देखा, कि वह भी नापाक हो गई; उन दोनों की एक ही चाल चलन थी।14और उसने बदकारी में तरक़्क़ी की क्यूँकि जब उसने दीवार पर मर्दों की सूरतें देखीं, या'नी कसदियों की तस्वीरें जो शन्गर्फ़ से खिंची हुई थीं,15जो पटकों से कमरबस्ता और सिरों पर रंगीन पगड़ियाँ पहने थे, और सब के सब देखने में हाकिम अहल-ए-बाबुल की तरह थे जिनका वतन कसदिस्तान है।16तो देखते ही वह उन पर मरने लगी, और उनके पास कसदिस्तान में क़ासिद भेजे।17तब अहल-ए-बाबुल उसके पास आकर 'इश्क़ के बिस्तर पर चढ़े, और उन्होंने उससे बदकारी करके उसे आलूदा किया और वह उनसे नापाक हुई, तो उसकी जान उनसे बेज़ार हो गई।18तब उसकी बदकारी 'ऐलानिया हुई और उसकी बरहनगी बेसत्र हो गई; तब मेरी जान उससे बेज़ार हुई जैसी उसकी बहन से बेज़ार हो चुकी थी।19तोभी उसने अपनी जवानी के दिनों की याद करके जब वह मिस्र की सरज़मीन में बदकारी करती थी, बदकारी पर बदकारी की।20~इसलिए वह फिर अपने उन यारों पर मरने लगी, जिनका बदन गधों के जैसा बदन और जिनका इन्ज़ाल घोड़ों के जैसा इन्ज़ाल था।21इस तरह तूने अपनी जवानी की शहवत परस्ती को, जबकि मिस्री तेरी जवानी की छातियों की वजह से तेरे पिस्तान मलते थे, फिर याद किया।”22इसलिए ऐ अहोलीबा, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "देख, मैं उन यारों को जिनसे तेरी जान बेज़ार हो गई है उभारूंगा कि तुझ से मुख़ालिफ़त करें, और उनको बुला लाऊँगा कि तुझे चारों तरफ़ से घेर लें।23अहल-ए-बाबुल और सब कसदियों को फ़िकू़द और शो'अ और को'अ और उनके साथ तमाम असूरियों को, सब के सब दिल पसन्द जवाँ मर्दों को, सरदारों और हाकिमों को, और बड़े बड़े अमीरों और नामी लोगों को जो सबके सब घोड़ों पर सवार होते हैं तुझ पर चढ़ा लाऊँगा।24और वह असलह-ए-जंग और रथों और छकड़ों और उम्मतों के गिरोह के साथ तुझ पर हमला करेंगे, और ढाल और फरी पकड़ कर और खू़द पहनकर चारों तरफ़ से तुझे घेर लेंगे; मैं 'अदालत उनको ~सुपुर्द करूँगा, और वह अपने क़ानून के मुताबिक़ तेरा फ़ैसला करेंगे।25और मैं अपनी गै़रत को तेरी मुख़ालिफ़ बनाऊँगा और वह ग़ज़बनाक होकर तुझ से पेश आयेंगे और तेरी नाक और तेरे कान काट डालेंगे और तेरे बाक़ी लोग तलवार से मारे जाएँगे। वह तेरे बेटे और बेटियों को पकड़ लेंगे. और तेरा बक़िया आग से भसम होगा।26वह तेरे कपड़े भी उतार लेंगे और तेरे नफ़ीस ज़ेवर लूट ले जायेंगे27और मैं तेरी शहवत परस्ती और तेरी बदकारी जो तूने मुल्क-ए-मिस्र में सीखी मौकू़फ़ करूँगा, यहाँ तक कि तू उनकी तरफ़ फिर आँख न उठाएगी और फिर मिस्र को याद न करेगी।28'क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं तुझे उनके हाथ में जिनसे तुझे नफ़रत है, हाँ, उन्हीं के हाथ में जिनसे तेरी जान बेज़ार है दे दूँगा।29और वह तुझ से नफ़रत के साथ पेश आएँगे, और तेरा सब माल जो तूने मेहनत से पैदा किया है छीन लेंगे और तुझे 'ऊरियान और बरहना छोड़ जायेंगे यहाँ तक कि तेरी शहवत परस्ती-ओ-ख़बासत और तेरी बदकारी फ़ाश हो जाएगी।30यह सब कुछ तुझ से इसलिए होगा कि तूने बदकारी के लिए दीगर क़ौम का पीछा किया और उनके बुतों से नापाक हुई।31तू अपनी बहन के रस्ते पर चली, इसलिए मैं उसका प्याला तेरे हाथ में दूँगा।32ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तू अपनी बहन के प्याले से जो गहरा और बड़ा है पियेगी तेरी हँसी होगी और तू ठठ्ठों में उड़ाई जाएगी, क्यूँकि उसमें बहुत सी समाई है।33तू मस्ती और सोग से भर जाएगी; वीरानी और हैरत का प्याला, तेरी बहन सामरिया का प्याला है।34~तू उसे पियेगी और निचोड़ेगी और उसकी ठेकरियाँ भी चबाई जाएगी, और अपनी छातियाँ नोचेगी क्यूँकि मैं ही ने यह फ़रमाया है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।35फिर ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि चूँकि तू मुझे भूल गई और मुझे अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया इसलिए अपनी बदज़ाती और बदकारी की सज़ा उठा।”36फिर ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया: कि "ऐ आदमज़ाद, क्या तू अहोला और अहोलीबा पर इल्ज़ाम न लगाएगा? तू उनके घिनौने काम उन पर ज़ाहिर कर।37क्यूँकि उन्होंने बदकारी की और उनके हाथ ख़ूनआलूदा हैं हाँ उन्होंने अपने बुतों से बदकारी की और अपने बेटों को जो मुझ से पैदा हुए आग से गुज़ारा कि बुतों की नज़र होकर हलाक हों।38इसके 'अलावा उन्होंने मुझ से यह किया कि उसी दिन उन्होंने मेरे हैकल को नापाक किया, और मेरे सबतों की बेहुर्मती की।39क्यूँकि जब वह अपनी औलाद को बुतों के लिए ज़बह कर चुकीं, तो उसी दिन मेरे हैकल में दाख़िल हुई, ताकि उसे नापाक करें और देख, उन्होंने मेरे घर के अन्दर ऐसा काम किया।40~बल्कि तुम ने दूर से मर्द बुलाए जिनके पास क़ासिद भेजा, और देख, वह आए जिनके लिए तूने गु़स्ल किया और आँखों में काजल लगाया और बनाओ सिंगार किया;41और तू नफ़ीस पलंग पर बैठी और उसके पास दस्तरख़्वान तैयार किया, और उस पर तूने मेरी ख़ुशबू और मेरा 'इत्र रख्खा।42और एक 'अय्याशी जमा'अत की आवाज़ उसके साथ थी और आम लोगों के 'अलावा वीरान से शराबियों को लाए और उन्होंने उनके हाथों में कंगन और सिरों पर ख़ुशनुमा ताज पहनाए।43"तब मैंने उसके ज़रिए' जो बदकारी करते करते बुढ़िया हो गई थीं, कहा, अब यह लोग उससे बदकारी करेंगे और वह उनसे करेगी।44और वह उसके पास गए जिस तरह किसी कस्बी के पास जाते हैं, उसी तरह वह उन बदज़ात 'औरतों, अहोला और अहोलीबा के पास गए।45लेकिन सादिक़ आदमी उन पर वह फ़तवा देंगे जो बदकार और खू़नी 'औरतों पर दिया जाता है, क्यूँकि वह बदकार 'औरतें हैं और उनके हाथ खू़न आलूदा हैं।"46क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "मैं उन पर एक गिरोह चढ़ा लाऊँगा, और उनको छोड़ दूँगा कि ~इधर-उधर धक्के खाती फिरें और ग़ारत हों।47और वह गिरोह से उनको पथराव करेगी और अपनी तलवारों से क़त्ल करेगी, उनके बेटों-बेटियों को हलाक करेगी और उनके घरों को आग से जला देगी।48~यूँ मैं बदकारी को मुल्क से ख़त्म करूँगा ताकि सब 'औरतें 'इबरत पज़ीर हों और तुम्हारी तरह बदकारी न करें।49~और वह तुम्हारे बुराई का बदला तुम को देंगे, और तुम अपने बुतों के गुनाहों की सज़ा का बोझ उठाओगे, ताकि तुम जानों कि ख़ुदावन्द ख़ुदा मैं ही हूँ।"
1फिर नवें बरस के दसवें महीने की दसवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ2कि "ऐ आदमज़ाद, आज के दिन, हाँ, इसी दिन का नाम लिख रख; शाह-ए-बाबुल ने ऐन इसी दिन यरुशलीम पर ख़रूज किया।3और इस बाग़ी ख़ान्दान के लिए एक मिसाल बयान कर और इनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि एक देग चढ़ा दे, हाँ, उसे चढ़ा और उसमें पानी भर दे।4टुकड़े उसमें इकट्ठे कर, हर एक अच्छा टुकड़ा या'नी रान और शाना और अच्छी अच्छी हड्डियाँ उसमें भर दे|5और गल्ले में से चुन-चुन कर ले, और उसके नीचे लकड़ियों का ढेर लगा दे, और ख़ूब जोश दे ताकि उसकी हड्डियाँ उसमें ख़ूब उबल जाएँ।6~"इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि उस खू़नी शहर पर अफ़सोस और उस देग पर जिसमें ज़न्ग लगा है, और उसका ज़न्ग उस पर से उतारा नहीं गया! एक एक टुकड़ा करके उसमें से निकाल, और उस पर पर्ची पड़े।7क्यूँकि उसका खू़न उसके बीच है, उसने उसे साफ़ चट्टान पर रख्खा, ज़मीन पर नहीं गिराया ताकि खाक में छिप जाए।8इसलिए कि ग़ज़ब नाज़िल हो और इन्तक़ाम लिया जाए, मैंने उसका खू़न साफ़ चट्टान पर रख्खा ताकि वह छिप न जाए।9इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि खू़नी शहर पर अफ़सोस ! मैं भी बड़ा ढेर लगाऊँगा।10लकड़ियाँ ख़ूब झोंक, आग सुलगा, गोश्त को ख़ूब उबाल और शोरबा गाढ़ा कर और हड्डियाँ भी जला दे |11तब उसे ख़ाली करके अँगारों पर रख, ताकि उसका पीतल गर्म हो और जल जाए और उसमें की नापाकी गल जाए और उसका ज़न्ग दूर हो।12वह सख़्त मेहनत से हार गई, लेकिन उसका बड़ा ज़न्ग उससे दूर नहीं हुआ; आग से भी उसका ज़न्ग दूर नहीं होता।13तेरी नापाकी में ख़बासत है, क्यूँकि मैं तुझे पाक करना चाहता हूँ लेकिन तू पाक होना नहीं चाहती, तू अपनी नापाकी से फिर पाक न होगी, जब तक मैं अपना क़हर तुझ पर पूरा न कर चुकूँ।14~मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है, यूँ ही होगा और मैं कर दिखाऊँगा, न दस्तबरदार हूँगा न रहम करूँगा न बाज़ आऊँगा; तेरे चाल चलन और तेरे कामों के मुताबिक़ वह तेरी 'अदालत करेंगे ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है|15फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:16कि "ऐ आदमज़ाद, देख, मैं तेरी मन्जूर-ए-नज़र को एक ही मार में तुझ से जुदा करूँगा, लेकिन तू न मातम करना, न रोना और न आँसू बहाना।17~चुपके चुपके ऑहें भरना, मुर्दे पर नोहा न करना, सिर पर अपनी पगड़ी बाँधना और पाँव में जूती पहनना और अपने होटों को न छिपाना और लोगों की रोटी न खाना।”18इसलिए मैंने सुबह को लोगों से कलाम किया और शाम को मेरी बीवी मर गई, और सुबह को मैंने वही किया जिसका मुझे हुक्म मिला था।19तब लोगों ने मुझ से पूछा, "क्या तू हमें न बताएगा कि जो तू करता है उसको हम से क्या रिश्ता है?"20तब मैंने उनसे कहा, कि "ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:21~कि 'इस्राईल के घराने से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है,कि देखो, मैं अपने हैकल को जो तुम्हारे ज़ोर का फ़ख़्र और तुम्हारा मंज़ूर-ए-नज़र है जिसके लिए तुम्हारे दिल तरसते हैं नापाक करूँगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ, जिनको तुम पीछे छोड़ आए हो, तलवार से मारे जाएँगे।22और तुम ऐसा ही करोगे जैसा मैंने किया; तुम अपने होटों को न छिपाओगे, और लोगों की रोटियाँ न खाओगे।23और तुम्हारी पगड़ियाँ तुम्हारे सिरों पर और तुम्हारी जूतियाँ तुम्हारे पाँव में होंगी, और तुम नोहा और ज़ारी न करोगे लेकिन अपनी शरारत की वजह से घुलोगे, और एक दूसरे को देख देख कर ठन्डी साँस भरोगे।24चुनाँचे हिज़क़ीएल तुम्हारे लिए निशान है; सब कुछ जो उसने किया तुम भी करोगे, और जब यह वजूद में आएगा तो तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द ख़ुदा मैं हूँ।'25~"और तू ऐ आदमज़ाद, देख, कि जिस दिन मैं उनसे उनका ज़ोर और उनकी शान-ओ-शौकत और उनके मन्जूर-ए-नज़र को, और उनके मरगू़ब-ए-ख़ातिर उनके बेटे और उनकी बेटियाँ ले लूँगा,26उस दिन वह जो भाग निकले, तेरे पास आएगा कि तेरे कान में कहे।27उस दिन तेरा मुँह उसके सामने, जो बच निकला है खुल जाएगा और तू बोलेगा, और फिर गूँगा न रहेगा; इसलिए तू उनके लिए एक निशान होगा और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
1और ख़ुदावन्द ख़ुदा का कलाम मुझपर नाज़िल हुआ|2कि "ऐ आदमज़ाद~बनी 'अम्मून की तरफ़ मुतवज्जिह हो और उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर।3और बनी 'अम्मून से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा का कलाम सुनो, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: चूँकि तूने मेरे हैकल पर जब वह नापाक किया गया, और इस्राईल के मुल्क पर जब वह उजाड़ा गया, और बनी यहूदाह पर जब वह ग़ुलाम हो कर गए, अहा हा ! कहा।4इसलिए मैं तुझे अहल-ए-पूरब के हवाले कर दूँगा कि तू उनकी मिल्कियत हो, और वह तुझ में अपने ख़ेमे लगाएँगे और तेरे अन्दर अपने मकान बनाएँगे, और तेरे मेवे खाएँगे और तेरा दूध पिएँगे।5और मैं रब्बा को ऊँटों का अस्तबल और बनी 'अम्मून की सर-ज़मीन को भेड़साला बना दूँगा, और तू जानेगा कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।6क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि चूँकि तूने तालियाँ बजाई और पाँव पटके, और इस्राईल की मम्लकत की बर्बादी पर अपनी कमाल 'अदावत से बड़ी ख़ुशी की;7इसलिए देख, मैं अपना हाथ तुझ पर चलाऊँगा और तुझे दीगर क़ौम के हवाले करूँगा, ताकि वह तुझ को लूट लें और मैं तुझे उम्मतों में से काट डालूँगा, और मुल्कों में से तुझे बर्बाद-ओ-हलाक करूँगा; मैं तुझे हलाक करूँगा और तू जानेगा कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।8"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि मोआब और श'ईर कहते हैं कि बनी यहूदाह तमाम क़ौमों की तरह हैं,9इसलिए देख, मैं मोआब के पहलू को उसके शहरों से, उसकी सरहद के शहरों से जो ज़मीन की शौकत हैं, बैत-यसीमोत और बालम'ऊन और क़रयताइम से खोल दूँगा।10~और मैं अहल-ए-पूरब को उसके और बनी 'अम्मून के ख़िलाफ़ चढ़ा लाऊँगा कि उन पर क़ाबिज़ हों, ताकि क़ौमों के बीच बनी 'अम्मून का ज़िक्र बाक़ी न रहे।11और मैं मोआब को सज़ा दूँगा, और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।12~'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि अदोम ने बनी यहूदाह से कीना कशी की, और उनसे इन्तक़ाम लेकर बड़ा गुनाह किया।13इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि मैं अदोम पर हाथ चलाऊँगा; उसके इन्सान और हैवान को हलाक करूँगा, और तीमान से लेकर उसे वीरान करूँगा और वह ददान तक तलवार से क़त्ल होंगे।14~और मैं अपनी क़ौम बनी-इस्राईल के हाथ से अदोम से इन्तक़ाम लूँगा, और वह मेरे ग़ज़ब-ओ-क़हर के मुताबिक़ अदोम से सुलूक करेंगे, और वह मेरे इन्तक़ाम को मा'लूम करेंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।15'ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि फ़िलिस्तियों ने कीनाकशी की, और दिल की कीना वरी से इन्तक़ाम लिया, ताकि दाइमी 'अदावत से उसे हलाक करें।16~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि देख, मैं फ़िलिस्तियों पर हाथ चलाऊँगा और करेतियों को काट डाल्लूँगा, और समन्दर के साहिल के बाक़ी लोगों को हलाक करूँगा|17और मैं सख़्त सज़ा देकर उनसे बड़ा इन्तक़ाम लूँगा, और जब मैं उनसे इन्तक़ाम लूँगा तो वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"
1~और ग्यारवें बरस में महीने के पहले दिन ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि "ऐ आदमज़ाद, चूँकि सूर ने यरुशलीम पर कहा है, 'अहा हा! वह क़ौमों का फाटक तोड़ दिया गया है, अब वह मेरी तरफ़ मुतवज्जिह होगी, अब उसकी बर्बादी से मेरी मा'मूरी होगी।'3इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है,कि देख, ऐ सूर मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और बहुत सी क़ौमों को तुझ पर चढ़ा लाऊँगा, जिस तरह समन्दर अपनी मौजों को चढ़ाता है।4और वह सूर की शहर पनाह को तोड़ डालेंगे, और उसके बुरजों को ढादेंगे और मैं उसकी मिट्टी तक ख़ुर्च फेंकूँगा और उसे साफ़ चट्टान बना दूँगा।5वह समन्दर में जाल फैलाने की जगह होगा क्यूँकि मैं ही ने फ़रमाया, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, और वह क़ौमों के लिए ग़नीमत होगा।6और उसकी बेटियाँ जो मैदान में हैं, तलवार से क़त्ल होंगी और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।7"क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र को जो शहनशाह है, घोड़ों और रथों और सवारों और फ़ौजों और बहुत से लोगों के गिरोह के साथ उत्तर से सूर पर चढ़ा लाऊँगा;8वह तेरी बेटियों को मैदान में तलवार से क़त्ल करेगा और तेरे चारों तरफ़ मोर्चाबन्दी करेगा, और तेरे सामने दमदमा बाँधेगा और तेरी मुख़ालिफ़त में ढाल उठाएगा।9वह अपने मन्जनीक को तेरी शहर पनाह पर चलाएगा, और अपने तबरों से तेरे बुर्जों को ढा देगा।10उसके घोड़ों की कसरत की वजह से इतनी गर्द उड़ेगी कि तुझे छिपा लेगी जब वह तेरे फाटकों में घुस आएगा, जिस तरह रखना करके शहर में घुस जाते हैं, तो सवारों और गाड़ियों और रथों की गड़गड़ाहट की आवाज़ से तेरी शहरपनाह हिल जाएगी।11~वह अपने घोड़ों के सुमों से तेरी सब सड़कों को रौन्द डालेगा, और तेरे लोगों की तलवार से क़त्ल करेगा और तेरी ताक़त के सुतून ज़मीन पर गिर जाएँगे।12और वह तेरी दौलत लूट लेंगे, और तेरे माल-ए-तिजारत को ग़ारत करेंगे और तेरे शहर पनाह तोड़ डालेंगे तेरे रंगमहलों को ढा देंगे, और तेरे पत्थर और लकड़ी और तेरी मिट्टी समन्दर में डाल देंगे।13और तेरे गाने की आवाज़ बंद कर दूँगा और तेरी सितारों की आवाज़ फिर सुनी न जायेगी |14~और मैं तुझे साफ़ चट्टान बना दूँगा तू जाल फैलाने की जगह होगा और फिर ता'मीर न किया जाएगा क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।15"ख़ुदावन्द ख़ुदा सूर से यूँ फ़रमाता है: कि जब तुझ में क़त्ल का काम जारी होगा और ज़ख्मी कराहते होंगे, तो क्या बहरी मुल्क तेरे गिरने के शोर से न थरथराएँगे?16~तब समन्दर के हाकिम अपने तख़्तों पर से उतरेंगे और अपने जुब्बे उतार डालेंगे और अपने ज़रदोज़ पैराहन उतार फेकेंगे, वह थरथराहट से मुलब्बस होकर ख़ाक पर बैठेगे, वह हरदम काँपेंगे और तेरी वजह से हैरत ज़दा होंगे।17और वह तुझ पर नोहा करेंगे और कहेंगे, 'हाय, तू कैसा हलाक हुआ जो बहरी मुल्कों से आबाद और मशहूर शहर था, जो समन्दर में ताक़तवर था; जिसके बाशिन्दों से सब उसमें आमद-ओ-रफ़त करने वाले ख़ौफ़ खाते थे !18अब बहरी मुल्क तेरे गिरने के दिन थरथरायेंगे हाँ, समन्दर के सब बहरी मुल्क तेरे अन्जाम से परेशान होंगे।'19~"क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जब मैं तुझे उन शहरों की तरह जो बे चराग़ हैं, वीरान कर दूँगा; जब मैं तुझ पर समन्दर बहा दूँगा और जब समन्दर तुझे छिपा लेगा,20तब मैं तुझे उनके साथ जो पाताल में उतर जाते हैं, पुराने वक़्त के लोगों के बीच नीचे उतारूँगा, और ज़मीन के तह में और उन उजाड़ मकानों में जो पहले से हैं, उनके साथ जो पाताल में उतर जाते हैं; तुझे बसाऊँगा ताकि तू फिर आबाद न हो, लेकिन मैं ज़िन्दों के मुल्क को जलाल बख़्सूँगा।21मैं तुझे जा-ए-'इबरत करूँगा और तू हलाक होगा, हर चन्द तेरी तलाश की जाए तो तू कहीं हमेशा तक न मिलेगा, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
1फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझपर नाज़िल हुआ|2कि "ऐ आदमज़ाद, तू सूर पर नोहा शुरू' कर|3और सूर से कह तुझे, जिसने समन्दर के मदख़ल में जगह पाई और बहुत से बहरी मुल्क ~के लोगों के लिए तिजारत गाह है, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "ऐ सूर, तू कहता है, "मेरा हुस्न ~कामिल है।' किया।4तेरी सरहदें समन्दर के बीच हैं, तेरे मिस्तिरियों ने तेरी ख़ुशनुमाई को कामिल किया है|5~उन्होंने सनीर के सरोओं से लाकर तेरे~जहाज़ों के तख़्ते बनाए,और लुबनान से देवदार काटकर तेरे लिए मस्तूल बनाए |6~बसन के बलूत से टाट बनाए तेरे तख़्ते~जज़ाइर-ए-कित्तीम के सनूबर से हाथी दांत जड़कर तैयार किये गए|7तेरा ~बादबान मिस्री मुनक़्क़श कतान का था ताकि तेरे लिए झन्डे का काम दे, तेरा शामियाना जज़ाईरे इलीशा के कबूदी व अर्गवानी रंग का था |8~सैदा और अर्वद के रहने वाले तेरे मल्लाह थे~और ऐ सूर तेरे 'अक़्लमन्द तुझ में तेरे नाख़ुदा थे।9~जबल के बुजु़र्ग और 'अक़्लमन्द तुझ में थे कि~रखना बन्दी करें,समन्दर के सब जहाज़ और उनके मल्लाह तुझमें हाज़िर थे कि तेरे लिए तिजारत का काम करें|10~"फ़ारस और लूद और फूत के लोग तेरे लिए लश्कर के जंगी बहादुर थे। वह तुझ में सिपर और खूद को लटकाते और तुझे रौनक बख़्शाते थे।11अर्वद के मर्द तेरी ही फ़ौज के साथ चारों तरफ़ तेरी शहरपनाह पर मौजूद थे और बहादुर तेरे बुर्जों पर हाज़िर थे,उन्होंने अपनी सिप्परें चारों तरफ़ तेरी दीवारों पर लटकाई और तेरे जमाल को कामिल किया |12'तरसीस ने हर तरह के माल की कसरत की वजह से तेरे साथ तिजारत की, ~वह चाँदी और लोहा और रॉगा और सीसा लाकर तेरे~बाज़ारों में सौदागरी करते थे।13~यावान तूबल और मसक तेरे ताजिर थे, वह तेरे बाज़ारों में और लुबनान ~तेरे बाज़ारों में गु़लामों और पीतल के बर्तनों की सौदागरी करते थे।14अहल-ए-तजर्मा ने तेरे बाज़ारों में घोड़ों, जंगी घोड़ों और खच्चरों की तिजारत की।15अहल~ए-ददान तेरे ताजिर थे बहुत से बहरी मुल्क तिजारत के लिए~~तेरे इख़्तियार में वह~हाथी दान्त~और आबनूस मुबादला के लिए तेरे पास लाते थे16अरामी तेरी दस्तकारी की ~कसरत की वजह से तेरे साथ तिजारत करते थे वह गौहर-ए-शब-चराग़ और अर्गवानी रंग और चिकनदोज़ी और कतान और मूंगा और मल्लाह थे लाल लाकर तुझ से ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त करते थे|17यहूदाह और इस्राईल का मुल्क तेरे ताजिर थे, वह मिनीत और पन्नग का गेहूँ और शहद और रोगन और बिलसान लाकर तेरे साथ तिजारत करते थे|18~अहल-ए-दमिश्क़ तेरी दस्तकारी की कसरत की वजह से, और क़िस्म क़िस्म के माल की ज़्यादती के ज़रिए' हलबून की मय और सफ़ेद ऊन की तिजारत तेरे यहाँ करते थे|19~ददान और यावान ऊज़ाल से तज और आबदार फ़ौलाद और अगर तेरे बाज़ारों में लाते थे।20ददान तेरा ताजिर था, जो सवारी के चार-जामे तेरे हाथ बेचता था।21~'अरब और कीदार के सब अमीर तिजारत की राह से तेरे हाथ में थे, वह बर्रे ~और मेंढे और बकरियाँ लाकर तेरे साथ तिजारत करते थे।22सबा और रा'माह के सौदागर तेरे साथ सौदागरी करते थे; वह हर क़िस्म के नफ़ीस मसाल्हे और हर तरह के क़ीमती पत्थर और सोना, तेरे बाज़ारों में लाकर ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त करते थे।23हरान और कन्ना और 'अदन और सबा के सौदागर, और असूर और किलमद के बाशिन्दे तेरे साथ सौदागरी करते थे।24यही तेरे सौदागर थे, जो लाजूर्दी कपड़े और कम ख़्वाब और नफ़ीस लिबासों से भरे देवदार के सन्दूक़, डोरी से कसे हुए तेरी तिजारतगाह में बेचने को लाते थे।25तरसीस के जहाज़ तेरी तिजारत के कारवान थे, तू मा'मूर और वस्त-ए-बहर में बहुत शान-ओ-शौकत रखता था।26~"तेरे मल्लाह तुझे गहरे पानी में लाए,पूरबी हवा ने तुझ को वस्त-ए-बहर में तोड़ा है।27तेरा माल-ओ-अस्बाब और तेरी अजनास-ए-तिजारत और तेरे अहल-ए-जहाज़ व ना ख़ुदा तेरे रखना बन्दी करनेवाले और तेरे कारोबार के गुमाश्ते और सब जंगी मर्द जो तुझ में हैं, उस तमाम जमा'अत के साथ जो तुझ में है,तेरी तबाही के दिन समन्दर के बीच में गिरेंगे।28तेरे नाख़ुदाओं के चिल्लाने के शोर से तमाम 'इलाक़े थर्रा जायेंगे।29और तमाम मल्लाह और अहल-ए-जहाज़ और समन्दर के सब नाख़ुदा,अपने जहाज़ों पर से उतर आएँगे; वह ख़ुश्की पर खड़े होंगे।30और अपनी आवाज़ बुलन्द करके तेरी वजह से चिल्लाएँगे,और अपने सिरों पर ख़ाक डालेंगे और राख में लोटेंगे।31~वह तेरी वजह से सिर मुंडाएँगे और टाट ओढेंगे वह तेरे लिए दिल शिकस्ता होकर रोएँगे और जॉगुदाज़ नोहा करेंगे।32और नोहा करते हुए तुझ पर मरसिया ख़वानी करेंगे और तुझ पर यूँ रोएँगे; 'कौन सूर की तरह है,जो समन्दर के बीच में तबाह हुआ?33जब तेरा माल-ए-तिजारत समन्दर पर से जाता था,तब तुझ से बहुत सी क़ौमें मालामाल होती थीं; तू अपनी दौलत और अजनास-ए-तिजारत की कसरत से इस ज़मीन के बादशाहों को दौलतमन्द बनाता था।34लेकिन अब तू समन्दर की गहराई में पानी के ज़ोर से टूट गया है, तेरी अजनास-ए-तिजारत।और तेरे अन्दर की तमाम जमा'अत गिर गई।35बहरी मुल्क के सब रहने वाले तेरे ज़रिए' हैरत ~ज़दह होंगे~और उनके बादशाह बहुत तरसान होंगे और उनका चेहरा ज़र्द हो जाएगा।36क़ौमों के सौदागर तेरा ज़िक्र सुनकर सुसकारेंगे, तू जा-ए-'इबरत होगा और बाक़ी न रहेगा।"
1फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|2~कि "ऐआदमज़ाद, वाली-ए-सूर से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, इसलिए कि तेरे दिल में ग़ुरूर समाया और तूने कहा, 'मैं ख़ुदा हूँ, और समन्दर के किनारे में इलाही तख़्त पर बैठा हूँ," और तूने अपना दिल इलाह के जैसा बनाया है, अगरचे तू इलाह नहीं बल्कि इन्सान है।3देख, तू दानीएल से ज़्यादा 'अक़्लमन्द है, ऐसा कोई राज़ नहीं जो तुझ से छिपा हो।4तूने अपनी हिकमत और ख़िरद से माल हासिल किया, और सोने चाँदी से अपने ख़ज़ाने भर लिए।5तूने अपनी बड़ी हिकमत से और अपनी सौदागरी से अपनी दौलत बहुत बढ़ाई, और तेरा दिल तेरी दौलत के ज़रिए' फूल गया है।6इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: चूँकि तूने अपना दिल इलाह के जैसा बनाया।7इसलिए देख, मैं तुझ पर परदेसियों को जो क़ौमों में हैबतनाक हैं, चढ़ा लाऊँगा; वह तेरी समझदारी की ख़ूबी के ख़िलाफ़ तलवार खींचेंगे और तेरे जमाल को ख़राब करेंगे।8~वह तुझे पाताल में उतारेंगे और तू उनकी मौत मरेगा जो समन्दर के बीच में क़त्ल होते हैं।9क्या तू अपने क़ातिल के सामने यूँ कहेगा, कि 'मैं इलाह हूँ'? हालाँकि तू अपने क़ातिल के हाथ में इलाह नहीं, बल्कि इन्सान है।10तू अजनबी के हाथ से नामख़्तून की मौत मरेगा, क्यूँकि मैंने फ़रमाया है ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है |11और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ12कि "ऐआदमज़ाद, सूर के बादशाह पर यह नोहा कर और उससे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तू ख़ातिम-उल-कमाल 'अक़्ल से मा'मूर और हुस्न में कामिल है।13~तू 'अदन में बाग़-ए-ख़ुदा में रहा करता था, हर एक क़ीमती पत्थर तेरी पोशिश के लिए था; मसलन याकू़त-ए-सुर्ख़ और पुखराज और इल्मास और फ़िरोज़ा और संग-ए-सुलेमानी और ज़बरजद और नीलम और जुमर्रद और गौहर-ए-शबचराग़ और सोने से, तुझ में ख़ातिमसाज़ी और नगीनाबन्दी की सन'अत तेरी पैदाइश ही के रोज़ से जारी रही।14तू मम्सूह करूबी था जो साया।अफ़गन था, और मैंने तुझे ख़ुदा के कोह-ए-मुक़द्दस पर क़ायम किया; तू वहाँ आतिशी पत्थरों के बीच चलता फिरता था।15तू अपनी पैदाइश ही के रोज़ से अपनी राह-ओ-रस्म में कामिल था, जब तक कि तुझ में नारास्ती न पाई गई।16तेरी सौदागरी की फ़िरावानी की वजह से उन्होंने तुझ में ज़ुल्म भी भर दिया और तूने गुनाह किया; इसलिए मैंने तुझ को ख़ुदा के पहाड़ पर से गन्दगी की तरह फेंक दिया, और तुझ साया-अफ़गन करूबी को आतिशी पत्थरों के बीच से फ़ना कर दिया।17तेरा दिल तेरे हुस्न पर ग़ुरूर करता था, तूने अपने जमाल की वजह से अपनी हिकमत खो दी; मैंने तुझे ज़मीन पर पटख दिया और बादशाहों के सामने रख दिया है, ताकि वह तुझे देख लें।18तूने अपनी बदकिरदारी की कसरत, और अपनी सौदागरी की नारास्ती से अपने हैकलों को नापाक किया है। इसलिए मैं तेरे अन्दर से आग निकालूँगा जो तुझे भसम करेगी, और मैं तेरे सब देखने वालों की आँखों के सामने तुझे ज़मीन पर राख कर दूँगा।19क़ौमों के बीच वह सब जो तुझ को जानते हैं, तुझे देख कर हैरान होंगे; तू जा-ए-'इबरत होगा और बाक़ी न रहेगा।"20~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:21कि "ऐआदमज़ाद, सैदा का रुख़ करके उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर |22और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ, ऐ सैदा; और तेरे अन्दर मेरी तम्जीद होगी, और जब मैं उसको सज़ा दूँगा तो लोग मा'लूम कर लेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, और उसमें मेरी तक़्दीस होगी।23मैं उसमें वबा भेजूँगा, और उसकी गलियों में खू़ँरेज़ी करूँगा, और मक़्तूल उसके बीच उस तलवार से जो चारों तरफ़ से उस पर चलेगी गिरेंगे, और वह मा'लूम करेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।24"तब बनी-इस्राईल के लिए उनके चारों तरफ़ के सब लोगों में से, जो उनको बेकार जानते थे, कोई चुभने वाला काँटा या दुखाने वाला ख़ार न रहेगा, और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द ख़ुदा मैं हूँ।25"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जब मैं बनी-इस्राईल को क़ौमों में से, जिनमें वह तितर बितर हो गए जमा' करूँगा, तब मैं क़ौमों की आँखों के सामने उनसे अपनी तक़दीस कराऊँगा; और वह अपनी सरज़मीन में जो मैंने अपने बन्दे या'क़ूब को दी थी बसेंगे।26~और वह उसमें अम्न से सकूनत करेंगे, बल्कि मकान बनाएँगे और अंगूरिस्तान लगाएँगे और अम्न से सकूनत करेंगे; जब मैं उन सब को जो चारों तरफ़ से उनकी हिक़ारत करते थे, सज़ा दूँगा तो वह जानेंगे के मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।
1~दसवें बरस के दसवें महीने की बारहवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि "ऐ आदमज़ाद, तू शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन के ख़िलाफ़ हो, और उसके और तमाम मुल्क-ए-मिस्र के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर3कलाम कर और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "देख, ऐ शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ; उस बड़े घड़ियाल का जो अपने दरियाओं में लेट रहता है और कहता है कि 'मेरा दरिया मेरा ही है,और मैंने उसे अपने लिए बनाया है।'4लेकिन मैं तेरे जबड़ों में काँटे ~अटकाऊँगा,और तेरी~~दरियाओं की मछलियाँ तेरी~खाल पर चिमटाऊँगा,और तुझे~तेरी~तेरे दरियाओं~से बाहर से बाहर खींच निकालूँगा और ~तेरे दरियाओं की सब ~मछलियाँ तेरी खाल पर चिमटी होंगी।5~और मैं तुझ को और तेरे दरियाओं की मछलियों को वीराने में फेंक दूँगा, तू खुले मैदान में पड़ा रहेगा,तू न बटोरा जाएगा न जमा' किया जाएगा; मैंने तुझे मैदान के दरिन्दों और आसमान के परिन्दों की ख़ुराक कर दिया है।6और मिस्र के तमाम बाशिन्दे जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।'इसलिए कि वह बनी-इस्राईल के लिए सिर्फ़ सरकंडे का 'असा थे |7जब उन्होंने तुझे हाथ में लिया, तो तू टूट गया और उन सबके कन्धे ज़ख्मी कर डाले; फिर जब उन्होंने तुझ पर भरोसा किया, तो तू टुकड़े-टुकड़े हो गया और उन सब की कमरें हिल गई।8इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं एक तलवार तुझ पर लाऊँगा और तुझ में इन्सान और हैवान को काट डालूँगा।9और मुल्क-ए-मिस्र उजाड़ और वीरान हो जाएगा, और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"क्यूँकि उसने कहा है, कि 'दरिया मेरा ही है, और मैंने ही उसे बनाया है।'10~इसलिए देख, मैं तेरा और तेरे दरियाओं का मुख़ालिफ़ हूँ, और मुल्क-ए-मिस्र को मिजदाल से असवान बल्कि कूश की सरहद तक महज़ वीरान और उजाड़ कर दूँगा।11किसी इन्सान का पाँव उधर न पड़ेगा और न उसमें किसी हैवान के पाँव का गुज़र होगा क्यूँकि वह चालीस बरस तक आबाद न होगा |12और मैं वीरान मुल्कों के साथ मुल्क-ए-मिस्र को वीरान करूँगा, और उजड़े शहरों के साथ उसके शहर चालीस बरस तक उजाड़ रहेंगे। और मैं मिस्रियों को क़ौमों में तितर बितर और मुख़तलिफ़ मुल्कों में तितर-बितर करूँगा।13"क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चालीस बरस के आख़िर में मैं मिस्रियों की उन क़ौमों के बीच से, जहाँ वह तितर बितर हुए जमा' करूँगा;14और मैं मिस्र के ग़ुलामों को वापस लाऊँगा, और उनकी फ़तरूस की ज़मीन उनके वतन में वापस पहुँचाऊँगा, और वह वहाँ बेकार मम्लुकत होंगे।15यह ममलुकत तमाम मम्लुकतों से ज़्यादा बेकार होगी, और फिर क़ौमों पर अपने आप बुलन्द न करेगी;क्यूँकि मैं उनको पस्त करूँगा ताकि फिर क़ौमों पर हुक्मरानी न करें।16और वह आइंदा को बनी-इस्राईल की भरोसे की जगह न होगी, जब वह उनकी तरफ़ देखने लगे तो उनकी बदकिरदारी याद दिलाएँगें और जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।”17सत्ताइसवें बरस के पहले महीने की पहली तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:18कि "ऐ आदमज़ाद, शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र ने अपनी फ़ौज से सूर की मुख़ालिफ़त में बड़ी ख़िदमत करवाई है; हर एक सिर बेबाल हो गया और हर एक का कन्धा छिल गया, लेकिन न उसने न उसके लश्कर ने सूर से उस ख़िदमत के वास्ते, जो उसने उसकी मुख़ालिफ़त में की थी कुछ मजदूरी पाई |19इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं मुल्क-ए-मिस्र शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हाथ में कर दूँगा, वह उसके लोगों को पकड़ ले जाएगा, और उसको लूट लेगा और उसकी ग़नीमत को ले लेगा, और यह उसके लश्कर की मजदूरी होगी।20~मैंने मुल्क-ए-मिस्र उस मेहनत के सिले में जो उसने की उसे दिया क्यूँकि उन्होंने मेरे लिए मशक़्क़त खींची थी; ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है21"मैं उस वक़्त इस्राईल के ख़ान्दान का सींग उगाऊँगा और उनके बीच तेरा मुँह खोलूँगा; और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
1और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ|2कि "ऐ आदमज़ाद, नबुव्वत कर और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि चिल्ला कर कहो: अफ़सोस उस दिन पर !'3इसलिए कि वह दिन क़रीब है,हाँ, ख़ुदावन्द का दिन या'नी बादलों का दिन क़रीब है।वह क़ौमों की सज़ा का वक़्त होगा।4क्यूँकि तलवार मिस्र पर आएगी,और जब लोग मिस्र में क़त्ल होंगे और ग़ुलामी में जाएँगे और उसकी बुनियादें बर्बाद की जायेंगी तो अहल-ए-कूश सख़्त दर्द में मुब्तिला होंगे।5कूश और फूत और लूद और तमाम मिले जुले लोग, और कूब और उस सरज़मीन के रहने वाले जिन्होंने मु'आहिदा किया है, उनके साथ तलवार से क़त्ल होंगे।6"ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि मिस्र के मददगार गिर जाएँगे और उसके ताक़त का ग़ुरूर जाता रहेगा", मिजदाल से असवान तक वह उसमें तलवार से क़त्ल होंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।7~और वह वीरान मुल्कों के साथ वीरान होंगे,और उसके शहर उजड़े शहरों के साथ उजाड़ रहेंगे।8और जब मैं मिस्र में आग भड़काऊँगा, और उसके सब मददगार हलाक किए जाएँगे तो वह मा'लूम करेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।9उस रोज़ बहुत से क़ासिद जहाज़ों पर सवार होकर, मेरी तरफ़ से रवाना होंगे कि ग़ाफ़िल कूशियों को डराएँ, और वह सख़्त दर्द में मुब्तिला होंगे जैसे मिस्र की सज़ा के वक़्त, क्यूँकि देख वह दिन आता है।10"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "मैं मिस्र के गिरोह को शाह-ए-बाबुल नबूकदरज़र के हाथ से बर्बाद-ओ-हलाक कर दूँगा।11~वह और उसके साथ उसके लोग जो क़ौमों में हैबतनाक हैं, मुल्क उजाड़ने को भेजे जाएँगे और वह मिस्र पर तलवार खींचेंगे और मुल्क को मक़्तूलों से भर देंगे।12और मैं नदियों को सुखा दूँगा और मुल्क को शरीरों के हाथ बेचूँगा और मैं उस सर ज़मीन को और उसकी तमाम मा'मूरी को अजनबियों के हाथ से वीरान करूँगा, मैं ~ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।13"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "मैं बुतों को भी~बर्बाद-ओ-हलाक~करूँगा और नूफ़ में से मूरतों को मिटा डालूँगा और आइंदा को मुल्क-ए-मिस्र से कोई बादशाह खड़ा न होगा, और मैं मुल्क-ए-मिस्र में दहशत डाल दूँगा।14और फ़तरूस को वीरान करूँगाऔर जुअन में आग भड़काऊँगा और नो पर फ़तवा दूँगा।15और मैं सीन पर जो मिस्र का किला' है,अपना क़हर नाज़िल करूँगा और नो के गिरोह को काट डालूँगा।16~और मैं मिस्र में आग लगा दूँगा,सीन को सख़्त दर्द होगा, और नो में रखने हो जाएँगे और नूफ़ पर हर दिन मुसीबत होगी।17आवन और फ़ीबसत के जवान तलवार से क़त्ल होंगे और यह दोनों बस्तियाँ ग़ुलामी में जाएँगी।18और तहफ़नहीस में भी दिन अँधेरा होगा, जिस वक़्त मैं वहाँ मिस्र के जूओं को तोडूँगा और उसकी क़ुव्वत की शौकत मिट जाएगी और उस पर घटा छा जाएगी और उसकी बेटियाँ ग़ुलाम होकर जाएँगी।19इसी तरह से मिस्र को सज़ा दूँगा और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।"20ग्यारहवें बरस के पहले महीने की सातवीं तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:21कि "ऐ आदमज़ाद, मैंने शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन का बाज़ू तोड़ा, और देख, वह बाँधा न गया, दवा लगा कर उस पर पट्टियाँ न कसी गई कि तलवार पकड़ने के लिए मज़बूत हो।22इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन का मुख़ालिफ़ हूँ, और उसके बाज़ू ओं को या'नी मज़बूत और टूटे को तोडूँगा, और तलवार उसके हाथ से गिरा दूँगा।23~और मिस्रियों को क़ौमों में तितर बितर और मुमालिक में तितर बितर करूँगा।24और मैं शाह-ए-बाबुल के बाज़ूओं को कु़व्वत बख़्शूँगा और अपनी तलवार उसके हाथ में दूँगा, लेकिन फ़िर'औन के बाज़ूओं को तोडूँगा और वह उसके आगे, उस घायल की तरह जो मरने पर ही आहें मारेगा।25हाँ शाह-ए-बाबुल के बाज़ूओं को सहारा दूँगा और फिर'औन के बाज़ू गिर जायेंगे और जब मैं अपनी तलवार शाह-ए-बाबुल के हाथ में दूँगा और वह उसको मुल्क-ए-मिस्र पर चलाएगा, तो वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।26और मैं मिस्रियों को क़ौमों में तितर बितर और ममलिक में तितर-बितर कर दूँगा, और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
1~फिर ग्यारहवें बरस के तीसरे महीने की पहली तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2~कि "ऐ आदमज़ाद शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन और उसके लोगों से कह,"तुम अपनी बुजु़र्गी में किसकी तरह हो?3देख असूर लुबनान का बुलन्द देवदार था, जिसकी डालियाँ ख़ूबसूरत थीं, और पत्तियों की कसरत से वह ~ख़ूब सायादार था और उसका क़द बुलन्द था, और उसकी चोटी घनी शाख़ों के बीच थी।4पानी ने उसकी परवरिश की, गहराव ने उसे बढ़ाया,उसकी नहरें चारों तरफ़ जारी थीं,और उसने अपनी नालियों को मैदान के सब दरख़्तों तक पहुँचाया।5~इसलिए पानी की कसरत से उसका क़द मैदान के सब दरख़्तों से बुलन्द हुआ, और जब वह लहलहाने लगा, तो उसकी शाख़ें फ़िरावान और उसकी डालियाँ दराज़ हुई।6हवा के सब परिन्दे उसकी शाख़ों परअपने घोंसले बनाते थे, और उसकी डालियों के नीचे सब दश्ती हैवान बच्चे देते थे, और सब बड़ी बड़ी क़ौमें उसके साये में बसती थीं।7यूँ वह अपनी बुजु़र्गी में अपनी डलियों की दराज़ी की वजह से ख़ुशनुमा था, क्यूँकि उसकी जड़ों के पास पानी की कसरत थी।8ख़ुदा के बाग़ के देवदार उसे छिपा न सके, सरो उसकी शाख़ों और चिनार उसकी डालियों के बराबर न थे और ख़ुदा के बाग़ का कोई दरख़्त ख़ूबसूरती में उसकी तरह न था।9~मैंने उसकी डालियों की फ़िरावानी से उसे हुस्न बख़्शा, यहाँ तक कि 'अदन के सब दरख़्तों को जो ख़ुदा के बाग़ में थे उस पर रश्क आता था।10"इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि उसने आपको बुलन्द और अपनी चोटी को घनी शाख़ों के बीच ऊँचा किया, और उसके दिल में उसकी बूलन्दी पर गु़रूर समाया।11इसलिए मैं उसको क़ौमों में से एक ज़बरदस्त के हवाले कर दूँगा, यक़ीनन वह उसका फ़ैसला करेगा, मैंने उसे उसकी शरारत की वजह से निकाल दिया।12और अजनबी लोग जो क़ौमों में से हैबतनाक हैं,उसे काट डालेंगे और फेंक देंगे पहाड़ों और सब वादियों पर उसकी शाख़ें गिर पड़ेगी, और ज़मीन की सब नहरों के आस-पास उसकी डालियाँ तोड़ी जाएँगी, और इस ज़मीन के सब लोग उसके साये से निकल जाएँगे और उसे छोड़ देंगे।13हवा के सब परिन्दे उसके टूटे तने में बसेंगे, और तमाम दश्ती जानवर उसकी शाख़ों पर होंगे।14ताकि लब-ए-आब के सब दरख़्तों में से कोई अपनी बुलन्दी पर मग़रूर न हो, और अपनी चोटी घनी शाख़ों के बीच ऊँची न करे, और उनमें से बड़े बड़े और पानी जज़्ब करने वाले सीधे खड़े न हों, क्यूँकि वह सबके सब मौत के हवाले किए जाएँगे, या'नी ज़मीन के तह में बनी आदम के बीच जो पाताल में उतरते हैं।15~"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जिस रोज़ वह पाताल में उतरे मैं मातम कराऊँगा, मैं उसकी वजह से गहराव को छिपा दूँगा और उसकी नहरों को रोक दूँगा और बड़े सैलाब थम जाएँगे; हाँ, मैं लुबनान को उसके लिए सियाह पोश कराऊँगा, और उसके लिए मैदान के सब दरख़्त ग़शी में आएँगे।16जिस वक़्त मैं उसे उन सब के साथ जो गढ़े में गिरते हैं, पाताल में डालूँगा, तो उसके गिरने के शोर से तमाम क़ौम लरज़ाँ होंगी; और 'अदन के सब दरख़्त, लुबनान के चीदा और नफ़ीस, वह सब जो पानी जज़्ब करते हैं ज़मीन के तह में तसल्ली पाएँगे।17वह भी उसके साथ उन तक, जो तलवार से मारे गए, पाताल में उतर जाएँगे और वह भी जो उसके बाज़ू थे, और क़ौमों के बीच उसके साये में बसते थे वहीं होंगे।18~"तू शान-ओ-शौकत में 'अदन के दरख़्तों में से किसकी तरह है? लेकिन तू 'अदन के दरख़्तों के साथ ज़मीन के तह में डाला जाएगा, तू उनके साथ जो तलवार से क़त्ल हुए, नामख़्तूनों के बीच पड़ा रहेगा; ~यही फ़िर'औन और उसके सब लोग हैं, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
1~बारहवें बरस के~बारहवें~महीने की पहली तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि "ऐ आदमज़ाद, शाह-ए-मिस्र फिर'औन पर नोहा उठा और उसे कह: "तू क़ौमों के बीच जवान शेर-ए-बबर~की तरह था,और तू दरियाओं के घड़ियाल जैसा है;~तू अपनी नहरों में से नागाह निकल~आता है,~तूने अपने पाँव से पानी को तह-बाला किया और उनकी नहरों को गदला कर दिया |3~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि~मैं उम्मतों के गिरोह के साथ तुझ पर~अपना जाल डालूँगा और वह तुझे मेरे ही जाल में बाहर निकालेंगे |4~तब मैं तुझे खु़श्की में छोड़ दूँगा और खुले मैदान पर तुझे फेकूँगा, और हवा के सब परिन्दों को तुझ पर बिठाऊँगा और तमाम इस ज़मीन के दरिन्दों को तुझ से सेर करूँगा।5और तेरा गोश्त पहाड़ों पर डालूँगा,और वादियों को तेरी बुलन्दी से भर दूँगा |6और मैं उस सरज़मीन को जिसे पानी में तू तैरता था,~पहाड़ों तक तेरे ख़ून से तर करूँगा और नहरें तुझ से लबरेज़ होंगी।7और जब मैं तुझे हलाक करूँगा, तो आसमान को तारीक~और उसके सितारों को बे-नूर करूँगा सूरज को बादल से छिपाऊँगा और चाँद अपनी रोशनी न देगा|8और मैं तमाम नूरानी अजराम-ए-फ़लक को तुझपर तारीक करूँगा और मेरी तरफ़ से तेरी ज़मीन पर तारीकी छा जायेगी ख़ुदावन्द खुदा फ़रमाता |9और जब मैं तेरी शिकस्ता हाली की ख़बर को क़ौमों के बीच उन मुल्कों में जिनसे तू ना वाक़िफ़ है पहुँचाऊँगा तो उम्मतों का दिल~आज़ुर्दा करूँगा10~बल्कि बहुत सी उम्मतों को तेरे हाल से हैरान करूँगा, और उनके बादशाह तेरी वजह से सख़्त परेशान होंगे;~~जब मैं उनके सामने अपनी तलवार~चमकाऊँगा, तो उनमें से हर एक अपनी जान की ख़ातिर तेरे गिरने के दिन हर दम थरथराएगा11क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि शाह-ए-बाबुल की तलवार तुझ पर चलेगी।12~मैं तेरी जमियत को ज़बरदस्तों की तलवार से, जो सब के सब क़ौमों में हैबतनाक हैं हलाक करूँगा,वह मिस्र की शौकत को ख़त्म और उसकी तमाम जमियत को मिटा देंगे।13और मैं उसके सब जानवरों को आब-ए-कसीर के पास से हलाक करूँगा, और आगे को न इन्सान के पाँव उसे गदला करेंगे न हैवान के खुर।14तब मैं उनका पानी साफ़ कर दूँगा,और उनकी नदियाँ रौग़न की तरह जारी होंगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।15जब मैं मुल्क-ए-मिस्र को वीरान और सूनसान करूँगा और वह अपनी मा'मूरी से ख़ाली हो जाएगा, जब मैं उसके तमाम बाशिन्दों को हलाक करूँगा तब वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।16~ये वह नोहा है जिससे उस पर मातम करेंगे क़ौमों की बेटियाँ इससे मातम करेंगी वह मिस्र और उसकी तमाम जमियत पर इसी से मातम करेंगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।"17फिर बारहवें बरस में महीने के पन्द्रहवें दिन, ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:18कि "ऐ आदमज़ाद, मिस्र की जमियत पर वावैला कर, और उसको और नामदार क़ौमों की बेटियों को पाताल में उतरने वालों के साथ ज़मीन की तह में गिरा दे19"तू हुस्न ~में किस से बढ़कर था? उतर और नामख़्तूनों के साथ पड़ा रह।20वह उनके बीच गिरेंगे जो तलवार से क़त्ल हुए, वह तलवार के हवाले किया गया है, उसे और उसकी तमाम जमियत को घसीट ले जा।21वह जो ताक़तवरो में सब से तवाना हैं, पाताल में उस से और उसके मददगारों से मुख़ातिब होंगे: 'वह पाताल में उतर गए, वह बे हिस पड़े हैं, या'नी वह नामख़्तून जो तलवार से क़त्ल हुए।'22"असूर और उसकी तमाम जमियत वहाँ हैं उसकी चारों तरफ़ उनकी क़ब्रें हैं सब के सब तलवार से क़त्ल हुए हैं,23~जिनकी क़ब्रें ~पाताल की तह में हैं और उसकी तमाम जमियत उसकी क़ब्र ~के चारो तरफ़ है; सब के सब तलवार से क़त्ल हुए, जो ज़िन्दों की ज़मीन में हैबत का ज़रि'अ थे।24'ऐलाम और उसकी तमाम गिरोह, जो उसकी क़ब्र के चारो तरफ़ हैं वहाँ हैं; सब के सब तलवार से क़त्ल हुए हैं, वह ~ज़मीन की तह में नामख़्तून उतर गए जो ज़िन्दों की ज़मीन में हैबत के ज़रिए' थे, और उन्होंने पाताल में उतरने वालों के साथ ख़जालत उठाई है।25उन्होंने उसके लिए और उसकी तमाम गिरोह के लिए मक़्तूलों के बीच बिस्तर लगाया है, उसकी क़ब्रें उसके चारों तरफ़ हैं, सब के सब नामख़्तून तलवार से क़त्ल हुए हैं; वह ज़िन्दों की ज़मीन में हैबत की वजह थे, और उन्होंने पाताल में उतरने वालों के साथ रुस्वाई उठाई, वह मक़्तूलों में रख्खे गए।26"मस्क और तूबल और उसकी तमाम ज'मिय्यत वहाँ हैं, उसकी क़ब्रें उसके चारों तरफ़ हैं, सब के सब नामख़्तून और तलवार के मक़्तूल हैं; अगरचे ज़िन्दों की ज़मीन में हैबत के ज़रिए' थे।27क्या वह उन बहादुरों के साथ जो नामख़्तूनों में से क़त्ल हुए, जो अपने जंग के हथियारों के साथ पाताल में उतर गए पड़े न रहेंगे? उनकी तलवारें उनके सिरों के नीचे रख्खी हैं, और उनकी बदकिरदारी उनकी हड्डियों पर है; क्यूँकि वह ~ज़िन्दों की ज़मीन में बहादुरों के लिए हैबत का ज़रि'अ थे।28और तू नामख़्तूनों के बीच तोड़ा जाएगा, और तलवार के मक़्तूलों के साथ पड़ा रहेगा।29"वहाँ अदूम भी है, उसके बादशाह और उसके सब 'उमरा जो बावजूद अपनी कुव्वत के तलवार के मक़्तूलोंमें रख्खे गए हैं; वह नामख़्तूनों और पाताल में उतरने वालों के साथ पड़े रहेंगे।30"उत्तर के तमाम 'उमरा और तमाम सैदानी, जो मक़्तूलों के साथ पाताल में उतर गए, बावजूद अपने रौब के अपनी ताक़तवरों से शर्मिन्दा हुए; वह तलवार के मक़्तूलों के साथ नामख्तून~पड़े रहेंगे और पाताल में उतरने वालों के साथ रुसवाई उठायेंगे31"फ़िर'औन उनको देख कर अपनी तमाम जमियत के ज़रिए' तसल्ली पज़ीर होगा हाँ~~फ़िर'औन और तमाम लश्कर~जो तलवार से क़त्ल हुए, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।32क्यूँकि मैंने ज़िन्दों की ज़मीन में उसकी हैबत क़ायम की और वह तलवार के मक़्तूलों के साथ नामख़्तूनों में रख्खा जाएगा; हाँ, फ़िर'औन और~उसकी जमियत, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
1~फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि "ऐआदमज़ाद, तू अपनी क़ौम के फ़र्ज़न्दों से मुख़ातिब हो और उनसे कह, जिस वक़्त मैं किसी सरज़मीन पर तलवार चलाऊँ, और उसके लोग अपने बहादुरों में से एक को लें और उसे अपना निगहबान ठहराएँ।3और वह तलवार को अपनी सरज़मीन पर आते देख कर नरसिंगा फूँके और लोगों को होशियार करे।4तब जो कोई नरसिंगे की आवाज़ सुने और होशियार न हो, और तलवार आए और उसे क़त्ल करे, तो उसका खू़न उसी की गर्दन पर होगा।5उसने नरसिंगे की आवाज़ सुनी और होशियार न हुआ, उसका खू़न उसी पर होगा, हालाँकि अगर वह होशियार होता तो अपनी जान बचाता।6लेकिन अगर निगहबान तलवार को आते देखे और नरसिंगा न फूँके, और लोग होशियार न किए जाएँ, और तलवार आए और उनके बीच से किसी को ले जाए, तो वह तो अपनी बदकिरदारी में हलाक हुआ लेकिन मैं निगहबान से उसके ख़ून का सवाल-ओ-जवाब करूँगा |7~"फ़िर तू ऐ आदमज़ाद, इसलिए कि मैंने तुझे बनी-इस्राईल का निगहबान मुक़र्रर किया, मेरे मुँह का कलाम सुन रख और मेरी तरफ़ से उनको होशियार कर।8जब मैं शरीर से कहूँ, ऐ शरीर, तू यक़ीनन मरेगा, उस वक़्त अगर तू शरीर से न कहे और उसे उसके चाल चलन से आगाह न करे, तो वह शरीर तो अपनी बदकिरदारी में मरेगा लेकिन मैं तुझ से उसके खू़न की सवाल-ओ-जवाब करूँगा।9लेकिन अगर तू उस शरीर को जताए कि वह अपनी चाल चलन से बाज़ आए और वह अपनी चाल चलन से बाज़ न आए, तो वह तो अपनी बदकिरदारी में मरेगा लेकिन तूने अपनी जान बचा ली।10"इसलिए ऐ आदमज़ाद, तू बनी इस्राईल से कह तुम यूँ कहते हो कि हक़ीक़त में हमारी ख़ताएँ और हमारे गुनाह हम पर हैं और हम उनमें घुलते रहते हैं पस हम क्यूँकर ज़िन्दा रहेंगे |11तू उनसे कह ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम शरीर के मरने में मुझे कुछ ख़ुशी नहीं बल्कि इसमें है कि शरीर अपनी राह से बाज़ आए और ज़िन्दा रहे ऐ बनी इस्राईल ~बाज़ आओ तुम अपनी बुरी चाल चलन से बाज़ आओ तुम क्यूँ मरोगे |12~"इसलिए ऐ आदमज़ाद, अपनी क़ौम के फ़र्ज़न्दों से यूँ कह, कि सादिक़़ की सदाक़त उसकी ख़ताकारी के दिन उसे न बचाएगी, और शरीर की शरारत जब वह उससे बाज़ आए तो उसके गिरने की वजह न होगी; और सादिक़ जब गुनाह करे तो अपनी सदाक़त की वजह से ज़िन्दा न रह सकेगा।13जब मैं सादिक़़ से कहूँ कि तू यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा, अगर वह अपनी सदाक़त पर भरोसा करके बदकिरदारी करे तो उसकी सदाक़त के काम फ़रामोश हो जाएँगे, और वह उस बदकिरदारी की वजह से जो उसने की है मरेगा।14और जब शरीर से कहूँ, तू यक़ीनन मरेगा, अगर वह अपने गुनाह से बाज़ आए और वही करे जायज़-ओ- रवा है|15अगर वह शरीर गिरवी वापस कर दे और जो उसने लूट लिया है वापस दे दे, और ज़िन्दगी के क़ानून पर चले और नारास्ती न करे, तो वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा वह नहीं मरेगा।16~जो गुनाह उसने किए हैं उसके ख़िलाफ़ महसूब न होंगे, उसने वही किया जो जायज़-ओ-रवा है, वह यक़ीनन ज़िन्दा रहेगा।17'लेकिन तेरी क़ौम के फ़र्ज़न्द कहते हैं, कि ख़ुदावन्द के चाल चलन रास्त नहीं," हालाँकि ख़ुद उन ही के चाल चलन नारास्त है |'18~अगर सादिक़ अपनी सदाक़त छोड़कर बदकिरदारी करे, तो वह यक़ीनन उसी की वजह से मरेगा।19और अगर शरीर अपनी शरारत से बाज़ आए और वही करे जो जायज़-ओ-रवा है, तो उसकी वजह से ज़िन्दा रहेगा।20फिर भी तुम कहते हो कि ख़ुदावन्द के चाल चलन रास्त नहीं है। ऐ बनी-इस्राईल मैं तुम में से हर एक की चाल चलन के मुताबिक़ तुम्हारी 'अदालत करूँगा।"21हमारी ग़ुलामी के बारहवें बरस के दसवें महीने की पाँचवीं तारीख़ को, यूँ हुआ कि एक शख़्स जो यरुशलीम से भाग निकला था, मेरे पास आया और कहने लगा, कि "शहर मुसख़र हो गया।”22~और शाम के वक़्त उस भगोड़े के पहुँचने से पहले ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था; और उसने मेरा मुँह खोल दिया। उसने सुबह ~को उसके मेरे पास आने से पहले मेरा मुँह खोल दिया और मैं फिर गूंगा न रहा।23तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:24~कि "ऐ आदमज़ाद, मुल्क-ए- इस्राईल के वीरानों के बाशिन्दे यूँ कहते हैं, कि इब्राहीम एक ही था और वह इस मुल्क का वारिस हुआ, लेकिन हम तो बहुत से हैं; मुल्क हम को मीरास में दिया गया है।'25इसलिए तू उनसे कह दे, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तुम ख़ून के साथ खाते और अपने बुतों की तरफ़ आँख उठाते हो और खूँरेज़ी करते हो क्या तुम मुल्क के वारिस होगे?26तुम अपनी तलवार पर भरोसा करते हो, तुम मकरूह काम करते हो और तुम में से हर एक अपने पड़ोसी की बीवी को नापाक करता है; क्या तुम मुल्क के वारिस होगे?27~तू उनसे यूँ कहना, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मुझे अपनी हयात की क़सम वह जो वीरानों में हैं, तलवार से क़त्ल होंगे; और उसे जो खुले मैदान में हैं, दरिन्दों को दूँगा कि निगल जाएँ; और वह जो किलों' और गारों में हैं, वबा से मरेंगे।28क्यूँकि मैं इस मुल्क को उजाड़ा और हैरत का ज़रि'अ बनाऊँगा, और इसकी ताक़त का ग़ुरूर जाता रहेगा, और इस्राईल के पहाड़ वीरान होंगे यहाँ तक कि कोई उन पर से गुज़र नहीं करेगा।29और जब मैं उनके तमाम मकरूह कामों की वजह से जो उन्होंने किए हैं, मुल्क को वीरान और हैरत का ज़रि'अ बनाऊँगा, तो वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।30~'लेकिन ऐ आदमज़ाद, फ़िलहाल तेरी कौम के फ़र्ज़न्द दीवारों के पास और घरों के आस्तानों पर तेरे ज़रिए' गुफ़्तगू करते हैं, और एक दूसरे से कहते हैं, हाँ, हर एक अपने भाई से यूँ कहता है, 'चलो, वह कलाम सुनें जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से नाज़िल हुआ है।'31वह उम्मत की तरह तेरे पास आते और मेरे लोगों की तरह तेरे आगे बैठते और तेरी बातें सुनते हैं, लेकिन उन लेकिन 'अमल नहीं करते; क्यूँकि वह अपने मुँह से तो बहुत मुहब्बत ज़ाहिर करते हैं, पर उनका दिल लालच पर दौड़ता है।32और देख, तू उनके लिए बहुत मरगू़ब सरोदी की तरह है, जो ख़ुश इल्हान और माहिर साज़ बजाने वाला हो, क्यूँकि वह तेरी बातें सुनते हैं लेकिन उन पर 'अमल नहीं करते।33और जब यह बातें वजूद में आएँगी (देख, वह जल्द वजूद में आने वाली हैं), तब वह जानेंगे कि उनके बीच एक नबी था।"
1और ख़ुदावन्द का कलाम उसपर नाज़िल हुआ |2~कि "ऐ आदमज़ाद, इस्राईल के चरवाहों के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर, हाँ नबुव्वत कर और उनसे कह~ख़ुदावन्द ख़ुदा,चरवाहों को यूँ फ़रमाता है: कि इस्राईल के चरवाहों पर अफ़सोस, जो अपना ही पेट भरते हैं! क्या चरवाहों को मुनासिब नहीं कि भेड़ों को चराएँ?3तुम चिकनाई खाते और ऊन पहनते हो और जो मोटे हैं उनको ज़बह करते हो, लेकिन गल्ला नहीं चराते।4तुम ने कमज़ोरों को तवानाई और बीमारों की शिफ़ा नहीं दी और टूटे हुए को नहीं बाँधा, और वह जो निकाल दिए गए उनको वापस नहीं लाए और गुमशुदा की तलाश नहीं की, बल्कि ज़बरदस्ती और सख़्ती से उन पर हुकूमत की।5और वह तितर-बितर हो गए क्यूँकि कोई पासबान न था, और वह तितर बितर होकर मैदान के सब दरिन्दों की ख़ुराक हुए।6मेरी भेड़े तमाम पहाड़ों पर और हर एक ऊँचे टीले पर भटकती फिरती थीं; हाँ, मेरी भेड़े तमाम इस ~ज़मीन पर तितर-बितर हो गई और किसी ने न उनको ढूँढा न उनकी तलाश की।7इसलिए ऐ पासबानो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:8ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम चूँकि मेरी भेंड़े शिकार हो गई; हाँ, मेरी भेड़े हर एक जंगली दरिन्दे की ख़ुराक हुई, क्यूँकि कोई पासबान न था और मेरे पासबानों ने मेरी भेड़ों की तलाश न की, बल्कि उन्होंने अपना पेट भरा और मेरी भेड़ों को न चराया।9इसलिए ऐ पासबानो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो10ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं चरवाहों का मुख़ालिफ़ हूँ और अपना गल्ला उनके हाथ से तलब करूँगा और उनको गल्लेबानी से माजूल करूँगा, और चरवाहे आइंदा को अपना पेट न भर सकेंगे क्यूँकि मैं अपना गल्ला उनके मुँह से छुड़ा लूँगा, ताकि वह उनकी ख़ुराक न हो।11~"क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: देख, मैं ख़ुद अपनी भेड़ों की तलाश करूँगा और उनको ढूँढ निकालूगा।12जिस तरह चरवाहा अपने गल्ले की तलाश करता है, जबकि वह अपनी भेड़ों के बीच हो जो तितर बितर हो गई हैं; उसी तरह मैं अपनी भेड़ों को ढूँढूँगा, और उनको हर जगह से जहाँ वह बादल तारीकी के दिन तितर बितर हो गई हैं छुड़ा लाऊँगा।13और मैं उनको सब उम्मतों के बीच से वापस लाऊँगा, और सब मुल्कों में से जमा' करूँगा और उन ही के मुल्क में पहुचाऊँगा, और इस्राईल के पहाड़ों पर नहरों के किनारे और ज़मीन के तमाम आबाद मकानों में चराऊँगा।14और उनको अच्छी चरागाह में चराऊँगा और उनकी आरामगाह इस्राईल के ऊँचे पहाड़ों पर होगी, वहाँ वह 'उम्दा आरामगाह में लेटेंगी और हरी चराहगाह में इस्राईल के पहाड़ों पर चरेंगी।15मैं ही अपने गल्ले को चराऊँगा और उनको लिटाऊँगा~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।16मैं गुमशुदा की तलाश करूँगा और ख़ारिज शुदा को वापस लाऊँगा और शिकस्ता को बाँधूँगा और बीमारों को तक़वियत दूँगा,लेकिन मोटों और ज़बरदस्तों को हलाक करूँगा, मैं उनकी सियासत का खाना खिलाऊँगा।17"और तुम्हारे हक़ में ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: ऐ मेरी भेड़ो, देखो, मैं भेड़ बकरियों और मेंढों और बकरों के बीच इम्तियाज़ करके इन्साफ़ करूँगा।18क्या तुम को यह हल्की सी बात मा'लूम हुई कि तुम अच्छा सब्ज़ाज़ार खाजाओ और बाक़ी मान्दा को पाँवों से लताड़ो, और साफ़ पानी में से पिओ और बाक़ी मान्दा को पाँवों से गंदला करो?19~और जो तुम ने पाँव से लताड़ा है वह मेरी भेड़ें खाती हैं, और जो तुम ने पाँव से गंदला किया पीती हैं।20'इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा उनको यूँ फ़रमाता है: देखो, मैं हाँ मैं, मोटी और दुबली भेड़ों के बीच इन्साफ़ करूँगा।21क्यूँकि तुम ने पहलू और कन्धे से धकेला है और तमाम बीमारों को अपने सींगों से रेला है, यहाँ तक कि वह तितर-बितर हुए।22इसलिए मैं अपने गल्ले को बचाऊँगा, वह फिर कभी शिकार न होंगे और मैं भेड़ बकरियों के बीच इन्साफ़ करूँगा।23और मैं उनके लिए एक चौपान मुक़र्रर करूँगा और वह उनको चराएगा, या'नी मेरा बन्दा दाऊद, वह उनको चराएगा और वही उनका चौपान होगा।24और मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँगा और मेरा बन्दा दाऊद उनके बीच फ़रमारवा होगा, मैं ख़ुदावन्द ने यूँ फ़रमाया है।25"मैं उनके साथ सुलह का 'अहद बाँधूँगा और सब बुरे दरिन्दों को मुल्क से हलाक करूँगा, और वह वीरान में सलामती से रहा करेंगे और जंगलों में सोएँगे।26और मैं उनको और उन जगहों को जो मेरे पहाड़ के आसपास हैं, बरकत का ज़रि'अ बनाऊँगा; और मैं वक़्त पर मेंह बरसाऊँगा, बरकत की बारिश होगी।27और मैदान के दरख़्त अपना मेवा देंगे और ज़मीन अपनी पैदावार देगी, और वह सलामती के साथ अपने मुल्क में बसेंगे और जब मैं उनके जुए का बन्धन तोड़ूँगा और उनके हाथ से जो उनसे ख़िदमत करवाते हैं छुड़ाऊँगा, तो वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।28और वह आगे को क़ौमों का शिकार न होंगे और ज़मीन के दरिन्दे उनको निगल न सकेंगे, बल्कि वह अम्न से बसेंगे और उनको कोई न डराएगा।29और मैं उनके लिए एक नामवर पौदा खड़ा करूँगा, और वह फिर कभी अपने मुल्क में सूखे से हलाक न होंगे और आगे को क़ौमों का ताना न उठाएँगे।30और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा उनके साथ हूँ, और वह या'नी बनी-इस्राईल मेरे लोग हैं, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।31और तुम ऐ मेरे भेंड़ो मेरी चरागाह की भेड़ो इंसान हो और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँ फ़रमाता है~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।।
1~और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ2कि "ऐ आदमज़ाद, कोह-ए-श'ईर की तरफ़ मुतवज्जिह हो और उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर,3और उससे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, ऐ कोह-ए-श'ईर, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और तुझ पर अपना हाथ चलाऊँगा, और तुझे वीरान और बेचराग़ करूँगा।4मैं तेरे शहरों को उजाडूँगा, और तू वीरान होगा और जानेगा कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।5चूँकि तू पहले से 'अदावत रखता है, और तूने बनी-इस्राईल को उनकी मुसीबत के दिन उनकी बदकिरदारी के आख़िर में तलवार की धार के हवाले किया है।6इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: कि मुझे अपनी हयात की क़सम, मैं तुझे खू़न के लिए हवाले करूँगा और खू़न तुझे दौड़ाएगा; चूँकि तूने खू़ँरेज़ी से नफ़रत न रख्खी, इसलिए खू़न तेरा पीछा करेगा।7यूँ मैं कोह-ए-श'ईर को वीरान और बेचराग़ करूँगा, और उसमें से गुज़रने वाले और वापस आने वाले को हलाक करूँगा।8और उसके पहाड़ों को उसके मक़्तूलों से भर दूँगा, तलवार के मक़्तूल तेरे टीलों और तेरी वादियों और तेरी तमाम नदियों में गिरेंगे।9मैं तुझे हमेशा तक वीरान रख्खूँगा और तेरी बस्तियाँ फिर आबाद न होंगी, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।10"चूँकि तूने कहा, कि 'यह दो क़ौमें और यह दो मुल्क मेरे होंगे, और हम उनके मालिक होंगे," बावजूद यह कि ख़ुदावन्द वहाँ था।11इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम, मैं तेरे क़हर और हसद के मुताबिक़, जो तूने अपनी कीनावरी से उनके ख़िलाफ़ ज़ाहिर किया, तुझ से सुलूक करूँगा और जब मैं तुझ पर फ़तवा दूँगा तो उनके बीच मशहूर हूँगा।12~"और तू जानेगा कि मैं ख़ुदावन्द ने तेरी तमाम हिक़ारत की बातें, जो तूने इस्राईल के पहाड़ों की मुख़ालिफ़त में कहीं, कि 'वह वीरान हुए, और हमारे क़ब्ज़े में कर दिए गए कि हम उनको निगल जाएँ,' सुनी हैं।13इसी तरह तुम ने मेरे ख़िलाफ़ अपनी ज़बान से लाफ़ज़नी की और मेरे सामने बकवास की है, जो मैं सुन चुका हूँ।14ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जब तमाम दुनिया खु़शी करेगी, मैं तुझे वीरान करूँगा।15जिस तरह तूने बनी इस्राईल की मीरास पर, इसलिए कि वह वीरान थी, ख़ुशी की उसी तरह मैं भी तुझ से करूँगा, ऐ कोह-ए-श'ईर, तू और तमाम अदोम बिल्कुल वीरान होगे, और लोग जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
1~कि "ऐ आदमज़ाद! इस्राईल के पहाड़ों से नबुव्वत कर और कह, ऐ इस्राईल के पहाड़ो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।2ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि दुश्मन ने तुम पर, 'अहा हा!' कहा और यह कि, 'वह ऊँचे ऊँचे पुराने मक़ाम हमारे ही हो गए।'3इसलिए नबुव्वत कर और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि इस वजह से, हाँ, इसी वजह से कि उन्होंने तुम को वीरान किया और हर तरफ़ से तुम को निगल गए, ताकि जो क़ौमों में से बाक़ी हैं तुम्हारे मालिक हों और तुम्हारे हक़ में बकवासियों ने ज़बान खोली है, और तुम लोगों में बदनाम हुए हो।4इसलिए ऐ इस्राईल के पहाड़ो, ख़ुदावन्द ख़ुदा का कलाम सुनो,ख़ुदावन्द ख़ुदा पहाड़ों और टीलों नालों और वादियों और उजाड़ वीरानों से और मत्रूक शहरों से जो आसपास की क़ौमों के बाक़ी लोगों के लिए लूट और मज़ाक़ की जगह हुए हैं, यूँ फ़रमाता है।5हाँ, इसी लिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि यक़ीनन मैंने क़ौम के बाक़ी लोगों का और तमाम अदोम का मुख़ालिफ़ होकर जिन्होंने अपने पूरे दिल की खु़शी से और क़ल्बी 'अदावत से अपने आपको मेरी सर-ज़मीन के मालिक ठहराया ताकि उनके लिए ग़नीमत हो, अपनी गै़रत के जोश में फ़रमाया है।6इसलिए तू इस्राईल के मुल्क के बारे में नबुव्वत कर और पहाड़ों और टीलों और नालों और वादियों से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देखो, मैंने अपनी गै़रत और अपने क़हर में कलाम किया, कि इसलिए कि तुम ने क़ौमों की मलामत उठाई है।7तब ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैंने क़सम खाई है" कि यक़ीनन तुम्हारे आसपास की क़ौम ख़ुद ही मलामत उठाएँगीं।8"लेकिन तुम ऐ इस्राईल के पहाड़ों, अपनी शाख़ें निकालोगे और मेरी उम्मत इस्राईल के लिए फल लाओगे, क्यूँकि वह जल्द आने वाले हैं।9~इसलिए देखो, मैं तुम्हारी तरफ़ हूँ और तुम पर तवज्जुह करूँगा, और तुम जोते और बोए जाओगे;10और मैं आदमियों को, हाँ, इस्राईल के तमाम घराने को, तुम पर बहुत बढ़ाऊँगा और शहर आबाद होंगे और खंडर फिर ता'मीर किए जाएँगे।11और मैं तुम पर इन्सान-ओ-हैवान की फ़िरावानी करूँगाऔर वह बहुत होंगे, और फैलेंगे और मैं तुम को ऐसे आबाद करूँगा जैसे तुम पहले थे, और तुम पर तुम्हारी शुरू' के दिनों से ज़्यादा एहसान करूँगा, और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।12~हाँ, मैं ऐसा करूँगा कि आदमी या'नी मेरे इस्राइली लोग तुम पर चलें फिरेंगे, और तुम्हारे मालिक होंगे और तुम उनकी मीरास होगे और फिर उनको बेऔलाद न करोगे।13ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि चूँकि वह तुझ से कहते हैं, 'ऐ ज़मीन, तू इन्सान को निगलती है और तूने अपनी क़ौमों को बेऔलाद किया।'14इसलिए आइन्दा न तू इन्सान को निगलेगी न अपनी क़ौमों को बेऔलाद करेगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।15और मैं ऐसा करूँगा कि लोग तुझ पर कभी दीगर क़ौम का ता'ना न सुनेंगे, और तू क़ौमों की मलामत न उठाएगी और फिर अपने लोगों की ग़लती का ज़रि'अ न होगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”16और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:17~कि "ऐ आदमज़ाद, जब बनी इस्राईल अपने मुल्क में बसते थे उन्होंने अपनी चाल चलन और अपने 'आमाल से उसको नापाक किया उनके चाल चलन मेरे नज़दीक 'औरत की नापाकी की हालत की तरह थी|18~इसलिए मैंने उस खू़ँरेज़ी की वजह से जो उन्होंने उस मुल्क में की थी, और उन बुतों की वजह से जिनसे उन्होंने उसे नापाक किया था, अपना क़हर उन पर नाज़िल किया।19और मैंने उनको क़ौमों में तितर बितर किया, और वह मुल्कों में तितर-बितर हो गए, और उनके चाल चलन और उनके 'आमाल के मुताबिक़ मैंने उनकी 'अदालत की।20और जब वह दीगर क़ौमों के बीच जहाँ-जहाँ वह गए थे पहुँचे, तो उन्होंने मेरे मुक़द्दस नाम को नापाक किया, क्यूँकि लोग उनकी बारे में कहते थे, 'यह ख़ुदावन्द के लोग हैं, और उसके मुल्क से निकल आए हैं।'21लेकिन मुझे अपने पाक नाम पर, जिसको बनी-इस्राईल ने उन क़ौमों के बीच जहाँ वह गए थे नापाक किया, अफ़सोस हुआ।22"इसलिए तू बनी-इस्राईल से कह दे, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: ऐ बनी इस्राईल तुम्हारी ख़ातिर नहीं बल्कि अपने पाक नाम की ख़ातिर, जिसको तुम ने उन क़ौमों के बीच जहाँ तुम गए थे नापाक किया, यह करता हूँ।23मैं अपने बुजु़र्ग़ नाम की, जो क़ौमों के बीच नापाक किया गया, जिसको तुम ने उनके बीच नापाक किया था तक़दीस करूँगा और जब उनकी आँखों के सामने तुम से मेरी तक़दीस होगी तब वह क़ौमें जानेंगी कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।24क्यूँकि मैं तुम को उन क़ौमों में से निकाल लूँगा और तमाम मुल्कों में से जमा'~करूँगा, और तुम को तुम्हारे वतन में वापस लाऊँगा।25~तब तुम पर साफ़ पानी छिड़कूँगा और तुम पाक साफ़ होगे, और मैं तुम को तुम्हारी तमाम गन्दगी से और तुम्हारे सब बुतों से पाक करूँगा।26और मैं तुम को नया दिल बख़्शूँगा और नई रूह तुम्हारे बातिन में डालूँगा, और तुम्हारे जिस्म में से शख़्त दिल को निकाल डालूँगा और गोश्त का दिल तुम को 'इनायत करूँगा।27और मैं अपनी रूह तुम्हारे बातिन में डालूँगा, और तुम सेअपने क़ानून की पैरवी कराऊँगा और तुम मेरे हुक्मों पर 'अमल करोगे और उनको बजा लाओगे।28तुम उस मुल्क में जो मैंने तुम्हारे बाप-दादा को दिया सुकूनत करोगे, और तुम मेरे लोग होगे और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा।29और मैं तुम को तुम्हारी तमाम नापाकी से छुड़ाऊँगा और अनाज मंगवाऊँगा और इफ़रात बख़्शूँगा और तुम पर सूखा न भेजूँगा।30और मैं दरख़्त के फलों में और खेत के हासिल में अफ़ज़ाइश बख़्शूँगा, यहाँ तक कि तुम आइंदा को क़ौमों के बीच क़हत की वजह से मलामत न उठाओगे।31तब तुम अपनी बुरी चाल चलन और बद'आमाली को याद करोगे और अपनी बदकिरदारी व मकरूहात~की वजह से अपनी नज़र में घिनौने ठहरोगे।32मैं यह तुम्हारी ख़ातिर नहीं करता हूँ, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, यह तुम को याद रहे। तुम अपनी राहों की वजह से ख़िजालत उठाओ और शर्मिन्दा हो, ऐ बनी इस्राईल।33"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जिस दिन मैं तुम को तुम्हारी तमाम बदकिरदारी से पाक करूँगा, उसी दिन तुम को तुम्हारे शहरों में बसाऊँगा और तुम्हारे खण्डर ता'मीर हो जाएँगे।34और वह वीरान ज़मीन जो तमाम राह गुज़रों की नज़र में वीरान पड़ी थी जोती जाएगी।35और वह कहेंगे, कि 'ये सरज़मीन जो ख़राब पड़ी थी, बाग-ए-'अदन की तरह हो गई, और उजाड़ और वीरान और ख़राब शहर मुहकम और आबाद हो गए।36तब वह क़ौमें जो तुम्हारे आसपास बाक़ी हैं, जानेंगी कि मैं ख़ुदावन्द ने उजाड़ मकानों को ता'मीर किया है और वीराने को बाग़ बनाया है; मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है और मैं ही कर दिखाऊँगा।37"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि बनी-इस्राईल मुझ से यह दरख़्वास्त भी कर सकेंगे, और मैं उनके लिए ऐसा करूँगा कि उनके लोगों को भेड़-बकरियों की तरह फ़िरावान करूँ ।38जैसा पाक गल्ला था और जिस तरह यरुशलीम का गल्ला उसकी मुक़र्ररा 'ईदों में था, उसी तरह उजाड़ शहर आदमियों के ग़ोलों से मा'मूर होंगे, और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"
1~ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था, और उसने मुझे अपनी रूह में उठा लिया और उस वादी में जो हड्डियों से पुर थी, मुझे उतार दिया।2और मुझे उनके आसपास चारों तरफ़ फिराया, और देख, वह वादी के मैदान में ब-कसरत और बहुत सूखी थीं।3और उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, क्या यह हड्डियाँ ज़िन्दा हो सकती हैं मेंने जवाब दिया, कि "ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तू ही जानता है।”4फिर उसने मुझे फ़रमाया, "तू इन हड्डियों पर नबुव्वत कर और इनसे कह, ऐ सूखी हड्डियों, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।5ख़ुदावन्द ख़ुदा इन हड्डियों को यूँ फ़रमाता है: कि मैं तुम्हारे अन्दर रूह डालूँगा और तुम ज़िन्दा हो जाओगी।6और तुम पर नसें फैलाऊँगा और गोश्त चढ़ाऊँगा, और तुम को चमड़ा पहनाऊँगा और तुम में दम फूकूँगा, और तुम ज़िन्दा होगी और जानोगी कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।"7तब मैंने हुक्म के मुताबिक़ नबुव्वत की, और जब मैं नबुव्वत कर रहा था तो एक शोर हुआ, और देख, ज़लज़ला आया और हड्डियाँ आपस में मिल गई, हर एक हड्डी अपनी हड्डी से।8और मैंने निगाह की तो क्या देखता हूँ कि नसें और गोश्त उन पर चढ़ आए, और उन पर चमड़े की पोशिश हो गई, लेकिन उनमें दम न था।9तब उसने मुझे फ़रमाया, "नबुव्वत कर, तू हवा से नबुव्वत कर ऐ आदमज़ाद, और हवा से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ऐ दम, तू चारों तरफ़ से आ और इन मक़्तूलों पर फूँक कि ज़िन्दा हो जाएँ।"10~इसलिए मैंने हुक्म के मुताबिक़ नबुव्वत की और उनमें दम आया, और वह ज़िन्दा होकर अपने पाँव पर खड़ी हुई; एक बहुत बड़ा लश्कर !11तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, यह हड्डियाँ तमाम बनी-इस्राईल हैं; देख, यह कहते हैं, 'हमारी हड्डियाँ सूख गई और हमारी उम्मीद जाती रही, हम तो बिल्कुल फ़ना हो गए।'12इसलिए तू नबुव्वत कर और इनसे कह ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि ऐ मेरे ~लोगो, देखो मैं तुम्हारी क़ब्रों को खोलूँगा और तुम को उनसे बाहर निकालूँगा और इस्राईल के मुल्क में लाऊँगा |13और ऐ मेरे लोगों जब मैं तुम्हारी क़ब्रों को खोलूँगा~और तुम को उनसे बाहर निकालूँगा, तब तुम जानोगे कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।14और मैं अपनी रूह तुम में डालूँगा और तुम ज़िन्दा हो जाओगे, और मैं तुम को तुम्हारे मुल्क में बसाऊँगा, तब तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द ने फ़रमाया और पूरा किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।"15~फिर ख़ुदा वन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:16कि "ऐ आदमज़ाद, एक छड़ी ले और उस पर लिख, 'यहूदाह और उसके~रफ़ीक़ बनी-इस्राईल के लिए; फिर दूसरी छड़ी ले और उस पर यह लिख, 'इफ़्राईम की छड़ी यूसुफ़ और उसके रफ़ीक़ तमाम बनी इस्राईल के लिए।'17और उन दोनों को जोड़ दे कि एक ही छड़ी तेरे लिए हों, और वह तेरे हाथ में एक होंगी।18और जब तेरी क़ौम के लोग तुझ से पूछे और कहें, कि "इन कामों से तेरा क्या मतलब है? क्या तू हमें नहीं बताएगा?"19तो तू उनसे कहना, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं यूसुफ़ की छड़ी को जो इफ़्राईम ~के हाथ में है, और उसके रफ़ीकों को जो इस्राईल के क़बीले हैं, लूँगा और यहूदाह की छड़ी के साथ जोड़ दूँगा और उनको एक ही छड़ी बना दूँगा और वह मेरे हाथ में एक होंगी।20और वह छड़ियाँ जिन पर तू लिखता है, उनकी आँखों के सामने तेरे हाथ में होंगी।21और तू उनसे कहना, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मैं बनी इस्राईल को क़ौमों के बीच से जहाँ जहाँ वह गए हैं निकाल लाऊँगा और हर तरफ़ से उनको इकठ्ठा करूँगा और उनको उनके मुल्क में लाऊँगा|22और मैं उनको उस मुल्क में इस्राईल के पहाड़ों पर एक ही क़ौम बनाऊँगा, और उन सब पर एक ही बादशाह होगा, और वह आगे को न दो क़ौमें होंगे और न दो मम्लकतों में तक़सीम किए जाएँगे।23और वह फिर अपने बुतों से और अपनी नफ़रत अन्गेज़ चीज़ों से और अपनी ख़ताकारी से, अपने आपको नापाक न करेंगे बल्कि मैं उनको उनके तमाम घरों से, जहाँ उन्होंने गुनाह किया है, छुड़ाऊँगा और उनको पाक करूँगा और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।24'और मेरा बन्दा दाऊद उनका बादशाह होगा और उन सबका एक ही चरवाहा होगा, और वह मेरे हुक्मों पर चलेंगे और मेरे क़ानून को मानकर उन पर 'अमल करेंगे।25और वह उस मुल्क में जो मैंने अपने बन्दा या'क़ूब को दिया जिसमें तुम्हारे बाप दादा बसते थे, बसेंगे और वह और उनकी औलाद और उनकी औलाद की औलाद हमेशा तक उसमें सुकूनत करेंगे और मेरा बन्दा दाऊद हमेशा के लिए उनका फरमारवा होगा |26~और मैं उनके साथ सलामती का 'अहद बाँधूँगा जो उनके साथ हमेशा का 'अहद होगा, और मैं उनको बसाऊँगा और फ़िरावानी बख्शूँगा और उनके बीच अपने हैकल को हमेशा के लिए क़ायम करूँगा।27मेरा खे़मा भी उनके साथ होगा, मैं उनका ख़ुदा हूँगा और वह मेरे लोग होंगे।28और जब मेरा हैकल हमेशा के लिए उनके बीच रहेगा तो क़ौमें जानेंगी कि मैं ख़ुदावन्द इस्राईल को पाक करता हूँ |
1और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:2कि "ऐ आदमज़ाद, जूज की तरफ़ जो माजूज की सरज़मीन का है, और रोश और मसक और तूबल का फ़रमारवा है, मुतवज्जिह हो और उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर,3और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यू फ़रमाता है: कि देख, ऐ जूज, रोश और मसक और तूबल के फ़रमारवा, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ।4और मैं तुझे फिरा दूँगा, और तेरे जबड़ों में आँकड़े डालकर तुझे और तेरे तमाम लश्कर और घोड़ों और सवारों को, जो सब के सब मुसल्लह लश्कर हैं, जो फरियाँ और सिपरे लिए हैं और सब के सब तेग़ज़न हैं खींच निकालूँगा।5और उनके साथ फ़ारस और कूश और फूत, जो सब के सब सिपर बरदार और खू़दपोश हैं,6जु़मर और उसका तमाम लश्कर, और उत्तर की दूर अतराफ़ के अहल-ए-तुजर्मा और उनका तमाम लश्कर, या'नी बहुत से लोग जो तेरे साथ हैं।7"तू तैयार हो और अपने लिए तैयारी कर, तू और तेरी तमाम जमा'अत जो तेरे पास जमा' हुई है, और तू उनका रहनुमा ~हो।8और बहुत दिनों के बा'द तू याद किया जाएगा, और आख़िरी बरसों में उस सरज़मीन पर जो तलवार के ग़ल्बे से छुड़ाई गई है और जिसके लोग बहुत सी क़ौमों के बीच से जमा' किए गए हैं, इस्राईल के पहाड़ों पर जो पहले से वीरान थे, चढ़ आएगा; लेकिन वह तमाम क़ौम से आज़ाद है, और वह सब के सब अमन-ओ-अमान से सुकूनत करेंगे।9और तू चढ़ाई करेगा और आँधी की तरह आएगा, तू बादल की तरह ज़मीन को छिपाएगा, तू और तेरा तमाम लश्कर और बहुत से लोग तेरे साथ।10"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि उस वक़्त यूँ होगा कि बहुत से ख़याल तेरे दिल में आएँगे और तू एक बुरा मंसूबा बाँधेगा;11~और तू कहेगा, कि 'मैं देहात की सरज़मीन पर हमला करूँगा, मैं उन पर हमला करूँगा जो राहत-ओ-आराम से बसते हैं; जिनकी न फ़सील है और न अड़बंगे और न फाटक हैं।'12ताकि तू लूटे और माल को छीन ले, और उन वीरानों पर जो अब आबाद हैं, और उन लोगों पर जो तमाम क़ौमों में से जमा' हुए हैं, जो मवेशी और माल के मालिक हैं और ज़मीन की नाफ़ पर बसते हैं, अपना हाथ चलाए।13सबा और ददान और तरसीस के सौदागर और उनके तमाम जवान शेर-ए-बबर तुझ से पूछेंगे, 'क्या तू ग़ारत करने आया है? क्या तूने अपना ग़ोल इसलिए जमा' किया है कि माल छीन ले, और चाँदी सोना लूटे और मवेशी और माल ले जाए और बड़ी ग़नीमत हासिल करे।'14'इसलिए, ऐ आदमज़ाद, नबुव्वत कर और जूज से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जब मेरी उम्मत इस्राईल, अम्न से बसेगी क्या तुझे ख़बर न होगी|15और तू अपनी जगह से उत्तर की दूर अतराफ़ से आएगा, तू और बहुत से लोग तेरे साथ, जो सब के सब घोड़ों पर सवार होंगे एक बड़ी फ़ौज और भारी लश्कर।16तू मेरी उम्मत इस्राईल के सामनेे को निकलेगा और ज़मीन को बादल की तरह छिपा लेगा; यह आख़िरी दिनों में होगा और मैं तुझे अपनी सरज़मीन पर चढ़ा लाऊँगा, ताकि क़ौमें मुझे जाने जिस वक़्त मैं ऐ जूज उनकी आँखों के सामने तुझसे अपनी तक़दीस कराऊँ17"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि क्या में वही नहीं जिसके बारे में मैंने पहले ज़माने में अपने ख़िदमत गुज़ार इस्राइली नबियों के ज़रिए', जिन्होंने उन दिनों में सालों साल तक नबुव्वत की फ़रमाया था कि मैं तुझे उन पर चढ़ा लाऊँगा?18और यूँ होगा कि जब जूज इस्राईल की मम्लुकत पर चढ़ाई करेगा तो मेरा क़हर मेरे चेहरे से नुमाया होगा, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है|19क्यूँकि मैंने अपनी ग़ैरत और आतिशी क़हर में फ़रमाया कि यक़ीनन उस रोज़ इस्राईल की सरज़मीन में सख़्त ज़लज़ला आएगा।20~ यहाँ तक कि समन्दर की मछलियाँ और आसमान के परिन्दे और मैदान के चरिन्दे, और सब कीड़े मकौड़े जो ज़मीन पर रेंगते फिरते हैं और तमाम इन्सान जो इस ज़मीन पर हैं, मेरे सामने थरथराएँगे और पहाड़ गिर पड़ेंगे और किनारे बैठ जायेंगे और हर एक दीवार ज़मीन पर गिर पड़ेगी।21और मैं अपने सब पहाड़ों से उस पर तलवार तलब करूँगा, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, और हर एक इन्सान की तलवार उसके भाई पर चलेगी ।22और मैं वबा भेजकर और खू़ँरेज़ी करके उसे सज़ा दूँगा, और उस पर और उसके लश्करों पर और उन बहुत से लोगों पर जो उसके साथ हैं शिद्दत का मेंह और बड़े- बड़े -ओले और आग और गन्धक बरसाऊँगा।23और अपनी बुज़ुर्ग़ी और अपनी तक़्दीस कराऊँगा, और बहुत सी क़ौमों की नज़रों में मशहूर होंगे और वह जानेगे कि~ख़ुदावन्द मैं हूँ |
1इसलिए ऐ आदमज़ाद, तू जूज के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर और कह, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, ऐ जूज, रोश और मसक और तूबल के फ़रमारवा, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ।2और मैं तुझे फिरा दूँगा और तुझे लिए फिरूँगा और उत्तर की दूर 'अतराफ़ से चढ़ा लाऊँगा और तुझे इस्राईल के पहाड़ों पर पहुचाऊँगा।3और तेरी कमान तेरे बाएँ हाथ से छुड़ा दूँगा और तेरे तीर तेरे दहने हाथ से गिरा दूँगा।4तू इस्राईल के पहाड़ों पर अपने सब लश्कर और हिमायतियों के साथ गिर जाएगा, और मैं तुझे हर क़िस्म के शिकारी परिन्दों और मैदान के दरिन्दों को दूँगा कि खा जाएँ।5तू खुले मैदान में गिरेगा, क्यूँकि मैंने ही कहा, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।6और मैं माजूज पर और उन पर जो समन्दरी मुल्कों में अमन से सुकूनत करते हैं, आग भेजूँगा और वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।7~और मैं अपने मुक़द्दस नाम को अपनी उम्मत इस्राईल में ज़ाहिर करूँगा, और फिर अपने मुक़द्दस नाम की बेहुरमती न होने दूँगा; और क़ौमे जानेंगी कि मैं ख़ुदावन्द इस्राईल का क़ुददूस हूँ।8देख, वह पहुँचा और वजूद में आया, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है; यह वही दिन है जिसके ज़रिए' मैंने फ़रमाया था।9तब इस्राईल के शहरों के बसने वाले निकलेंगे और आग लगाकर हथियारों को जलाएँगे, या'नी सिपरों और फरियों को, कमानों और तीरों को, और भालों और बर्छियों को, और वह सात बरस तक उनको जलाते रहेंगे।10यहाँ तक कि न वह मैदानों से लकड़ी लाएँगे और न जंगलों से काटेंगे क्यूँकि वह हथियार ही जलाएँगे, और वह अपने लूटने वालों को लूटेंगे और अपने ग़ारत करने वालों को ग़ारत करेंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।11~"और उसी दिन यूँ होगा कि मैं वहाँ इस्राईल में जूज को एक क़ब्रिस्तान दूँगा, या'नी रहगुज़रों की वादी जो समन्दर के पूरब में वहाँ जूज को और उसकी तमाम जमियत को दफ़न करेंगे, और जमियत-ए-जूज की वादी उसका नाम रख्खेंगे।12और सात महीनों तक बनी इस्राइल उनको दफ़न करते रहेंगे ताकि मुल्क को साफ़ करें।13हाँ, उस मुल्क के सब लोग उनको दफ़न करेंगे; और यह उनके लिए उनका भी नाम ~होगा जिस रोज़ मेरी बड़ाई होगी, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।14और वह चन्द आदमियों को चुन लेंगे जो इस काम में हमेशा मशगू़ल रहेंगे, और वह ज़मीन पर से गुज़रते हुए रहगुज़रों की मदद से, उनको जो सतह-ए-ज़मीन पर पड़े रह गए हों, दफ़न करेंगे ताकि उसे साफ़ करें, पूरे सात महीनों के बा'द तलाश करेंगे।15और जब वह मुल्क में से गुज़रें और उनमें से कोई किसी आदमी की हड्डी देखे, तो उसके पास एक निशान खड़ा करेगा, जब तक दफ़न करने वाले जमियत-ए-जूज की वादी में उसे दफ़न न करें ।16और शहर भी ज'मिय्यत कहलाएगा। यूँ वह ज़मीन को पाक करेंगे।17"और ऐ आदमज़ाद, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: कि हर क़िस्म के परिन्दे और मैदान के हर एक जानवर से कह, जमा' होकर आओ, मेरे उस ज़बीहे पर जिसे मैं तुम्हारे लिए ज़बह करता हूँ; हाँ, इस्राईल के पहाड़ों पर एक बड़े ज़बीहे पर हर तरफ़ से जमा' हो, ताकि तुम गोश्त खाओ और खू़न पियो।18~तुम बहादुरों का गोश्त खाओगे और ज़मीन के 'उमरा का खू़न पिओगे, हाँ, मेंढों, बर्रों, बकरों और बैलों का वह सब के सब बसन के फ़र्बा हैं।19और तुम मेरे ज़बीहे की जिसे मैंने तुम्हारे लिए ज़बह किया यहाँ तक खाओगे कि सेर हो जाओगे, और इतना खू़न पिओगे कि मस्त हो जाओगे।20और तुम मेरे दस्तरख़्वान पर घोड़ों और सवारों से, और बहादुरों और तमाम जंगीमर्दों से सेर होगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।21'और मैं क़ौमों के बीच अपनी बुज़ुर्गी ज़ाहिर करूँगा और तमाम क़ोमें मेरी सज़ा को जो मैंने दी और मेरे हाथ को जो मैंने उन पर रख्खा देखेंगी।22और बनी-इस्राईल जानेंगे कि उस दिन से लेकर आगे को मैं ही ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।23और क़ौमें जानेंगी कि बनी-इस्राईल अपनी बदकिरदारी की वजह से ग़ुलामी में गए, चूँकि वह मुझ से बाग़ी हुए, इसलिए मैंने उनसे मुँह छिपाया; और उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दिया, और वह सब के सब तलवार से क़त्ल हुए।24उनकी नापाकी और ख़ताकारी के मुताबिक़, मैंने उनसे सुलूक किया और उनसे अपना मुँह छिपाया।25"लेकिन ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि अब मैं या'क़ूब की ग़ुलामी को ख़त्म करूँगा, और तमाम बनी इस्राईल पर रहम करूँगा और अपने पाक नाम के लिए ग़य्यूर हूँगा।26और वह अपनी रुस्वाई और तमाम ख़ताकारी, जिससे वह मेरे गुनहगार हुए बर्दाश्त करेंगे; जब वह अपनी सरज़मीन में अमन से क़याम करेंगे, तो कोई उनको न डराएगा।27जब मैं उनकी उम्मतों में से वापस लाऊँगा, और उनके दुश्मनों के मुल्कों से जमा' करूँगा, और बहुत सी क़ौमों की नज़रों में उनके बीच मेरी तक़दीस होगी।28तब वह जानेंगे कि मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ, इसलिए कि मैंने उनको क़ौम के बीच ग़ुलामी में भेजा और मैं ही ने उनको उनके मुल्क में जमा' किया और उनमें से एक को भी वहाँ न छोड़ा।29और मैं फिर कभी उनसे मुँह न छिपाऊँगा, क्यूँकि मैंने अपनी रूह बनी-इस्राईल पर नाज़िल की है ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है|
1~हमारी ग़ुलामी के पच्चीसवें बरस के शुरू' में और महीने की दसवीं तारीख़ को, जो शहर की तस्ख़ीर का चौदहवाँ साल था, उसी दिन ख़ुदावन्द का हाथ मुझ पर था, और वह मुझे वहाँ ले गया।2वह मुझे ख़ुदा की रोयतों में इस्राईल के मुल्क में ले गया और उसने मुझे एक बहुत बुलन्द पहाड़ पर उतारा, और उसी पर दक्खिन की तरफ़ जैसे एक शहर का सा नक़्शा था।3जब वह मुझे वहाँ ले गया तो क्या देखता हूँ कि एक शख़्स है जिसकी झलक पीतल के जैसी है, और वह सन की डोरी और पैमाइश का सरकण्डा हाथ में लिए फाटक पर खड़ा है।4और उस शख़्स ने मुझे कहा, कि "ऐ आदमज़ाद, अपनी आँखों से देख और कानों से सुन, और जो कुछ मैं तुझे दिखाऊँ उस सब पर ख़ूब ग़ौर कर, क्यूँकि तू इसी लिए यहाँ पहुँचाया गया है कि मैं यह सब कुछ तुझे दिखाऊँ; इसलिए जो कुछ तू देखता है, बनी इस्राईल से बयान कर।"5और क्या देखता हूँ कि घर के चारों तरफ़ दीवार है, और उस शख़्स के हाथ में पैमाइश का सरकण्डा है, छ: हाथ लम्बा और हर एक हाथ पूरे हाथ से चार उँगल बड़ा था; इसलिए उसने उस दीवार की चौड़ाई नापी, वह एक सरकण्डा हुई और ऊँचाई एक सरकण्डा।6तब वह पूरब रूया फाटक पर आया, और उसकी सीढ़ी पर चढ़ा और उस फाटक के आस्ताने को नापा, जो एक सरकण्डा चौड़ा था और दूसरे आस्ताने का 'अर्ज़ भी एक सरकण्डा था।7~और हर एक कोठरी एक सरकण्डा लम्बी और एक सरकण्डा चौड़ी थी, और कोठरियों के बीच पाँच पाँच हाथ का फ़ासिला था, और फाटक की डयोढ़ी के पास अन्दर की तरफ़ फाटक का आस्ताना एक सरकण्डा था|8और उसने फाटक के आँगन अन्दर से एक सरकण्डा नापी।9तब उसने फाटक के~आँगन~~आठ हाथ नापी, और उसके सुतून दो हाथ और फाटक~के~आँगन~अन्दर की तरफ़ थी।10और पूरब रूया फाटक की कोठरियाँ तीन इधर और तीन उधर थीं, यह तीनों पैमाइश में बराबर थीं, और इधर-उधर के सुतूनों का एक ही नाप था।11और उसने फाटक के दरवाज़े की चौड़ाई दस हाथ और लम्बाई तेरह हाथ नापी।12और कोठरियों के आगे का हाशिया हाथ भर इधर और हाथ भर उधर था, और कोठरियाँ छ: हाथ इधर और छ: हाथ उधर थीं।13तब उसने फाटक की एक कोठरी की छत से दूसरी की छत तक पच्चीस हाथ चौड़ा नापा दरवाज़े के सामने का दरवाज़ा |14~और उसने सुतून साठ हाथ नापे और सहन के सुतून दरवाज़े के चारों तरफ़ थे।15और मदख़ल के फाटक के सामने से~लेकर, अन्दरूनी फाटक~के~आँगन~तक पचास हाथ का फ़ासिला था।16~और कोठरियों में और उनके सुतूनों में फाटक के अन्दर चारों तरफ़ झरोके थे, वैसे ही~~आँगन~के अन्दर भी चारों तरफ़ झरोके थे, और सुतूनों पर खजूर की सूरतें थीं।17फिर वह मुझे बाहर के सहन में ले गया, और क्या देखता हूँ कि कमरे हैं और चारों तरफ़ सहन में फ़र्श लगा था, और उस फ़र्श पर तीस कमरे थे।18और वह फ़र्श या'नी नीचे का फ़र्श फाटकों के साथ साथ बराबर लगा था।19~तब उसने उसकी चौड़ाई नीचे के फाटक के सामने से अन्दर के सहन के आगे, पूरब और उत्तर की तरफ़ बाहर बाहर सौ हाथ नापी ।20फिर उसने बाहर के सहन के उत्तर रूया फाटक की लम्बाई और चौड़ाई नापी।21और उसकी कोठरियाँ तीन इस तरफ़ और तीन उस तरफ़ और उसके सुतून और मेहराब पहले फाटक के नाप के मुताबिक़ थे; उसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई पच्चीस हाथ थी।22और उसके दरीचे और आँगन और खजूर के दरख़्त पूरब रूया फाटक के नाप के मुताबिक़ थे, और ऊपर जाने के लिए सात ज़ीने थे; उसके आँगन उनके आगे थी |23~और अन्दर के सहन का फाटक उत्तर रूया और पूरब रूया फाटकों के सामने था, और उसने फाटक से फाटक तक सौ हाथ नापा ।24और वह मुझे दक्खिन की राह से ले गया, और क्या देखता हूँ कि दक्खिन की तरफ़ एक फाटक है, और उसने उसके सुतूनों को और उसके आँगन को इन्हीं नापों के मुताबिक़ नापा।25और उसमें और उसके आँगन में चारों तरफ़ उन दरीचों की तरह दरीचे थे; लम्बाई पचास हाथ, चौड़ाई पच्चीस हाथ।26और उसके ऊपर जाने के लिए सात ज़ीने थे, और उसके आँगन उनके आगे थी और सुतूनों~पर खजूर की सूरते थीं, एक इस तरफ़ और एक उस तरफ़।27और दक्खिन की तरफ़ अन्दरूनी सहन का फाटक था, और उसने दक्खिन की तरफ़ फाटक से फाटक तक सौ हाथ नापा |28~और वह दक्खिनी फाटक की रास्ते से मुझे अन्दरूनी सहन में लाया, और इन्हीं नापों के मुताबिक़ उसने दक्खिनी फाटक को नापा |29और उसकी कोठरियों और उसके सुतूनों और उसके आँगन को इन्हीं नापों के मुताबिक पाया और उसमें और उसके आँगन में चारों तरफ़ दरीचे थे; लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई पच्चीस हाथ थी।30और आँगन चारों तरफ़ पच्चीस हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी थी।31उसकी आँगन बैरूनी सहन की तरफ़ थी और उसके सुतूनों पर खजूर की सूरतें थीं और ऊपर जाने के लिए आठ ज़ीने थे।32और वह मुझे पूरब की तरफ़ अन्दरूनी सहन में लाया और इन्हीं नापों के मुताबिक़ फाटक को पाया।33और उसकी कोठरियों और सुतूनों और आँगन को इन्हीं नापों के मुताबिक़ पाया, और उसमें और उसके आँगन में चारों तरफ़ दरीचे थे; लम्बाई पचास हाथ चौड़ाई पच्चीस हाथ थी।34और उसका आँगन बैरूनी सहन की तरफ़ था और उसके~सुतूनों पर इधर-उधर खजूर की सूरतें थीं, और ऊपर जाने के लिए आठ ज़ीने थे।35और वह मुझे उत्तरी फाटक की तरफ़ ले गया और इन्हीं नापों के मुताबिक़ उसे पाया|36उसकी कोठरियों और उसके सुतूनों और उसके आँगन को जिनमें चारों तरफ़ दरीचे थे, लम्बाई पचास हाथ चौड़ाई पच्चीस हाथ थी।37और उसके सुतून बैरूनी सहन की तरफ़ थे, और उसके सुतूनों ~पर इधर उधर खजूर की सूरतें थीं और ऊपर जाने के लिए आठ जीने थे |38~और फाटकों के सुतूनों के पास दरवाज़ेदार हुजरा था, जहाँ सोख़्तनी कु़र्बानियाँ धोते थे।39और फाटक के आँगन में दो मेज़े इस तरफ़ और दो उस तरफ़ थीं, कि उन पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी ज़बह करें।40और बाहर की तरफ़ उत्तरी फाटक के मदख़ल के पास दो मेज़ें थीं, और फाटक की डयोढ़ी की दूसरी तरफ़ दो मेजें।41फाटक के पास चार मेज़ें इस तरफ़ और चार उस तरफ़ थीं, या'नी आठ मेज़े जिन पर ज़बह करें।42सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए तराशे हुए पत्थरों की चार मेजें थीं, जो डेढ़ हाथ लम्बी और डेढ़ हाथ चौड़ी और एक हाथ ऊँची थीं, जिन पर वह सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहे को ज़बह करने के हथियार रखते थे।43और उसके अन्दर चारों तरफ़ चार उंगल लम्बी अंकड़ियाँ लगी थीं और क़ुर्बानी का गोश्त मेज़ों पर था।44और अन्दरूनी फाटक से बाहर अन्दरूनी सहन में जो उत्तरी फाटक की जानिब था, गाने वालों के कमरे थे और उनका रुख़ दक्खिन की तरफ़ था, और एक पूरबी फाटक की जानिब था जिसका रुख़ उत्तर की तरफ़ था।45और उसने मुझ से कहा, कि "यह कमरा जिसका रुख़ दक्खिन की तरफ़ है, उन काहिनों के लिए है जो घर की निगहबानी करते हैं;46और वह कमरा जिसका रुख़ उत्तर की तरफ़ है, उन काहिनों के लिए है जो मज़बह की मुहाफ़िज़त में हाज़िर हैं; यह बनी सदूक़ हैं जो बनी लावी में से ख़ुदावन्द के सामने आते हैं कि उसकी ख़िदमत करें।”47और उसने सहन को सौ हाथ लम्बा और सौ हाथ चौड़ा मुरब्बा नापा और मज़बह घर के सामने था।48फिर वह मुझे घर के आँगन में लाया और आँगन को नापा; पाँच हाथ इधर पाँच हाथ उधर और फाटक की चौड़ाई तीन हाथ इस तरफ़ थी और तीन हाथ उस तरफ़।49आँगन की लम्बाई बीस हाथ और चौड़ाई ग्यारह हाथ की और सीढ़ी के ज़ीने जिनसे उस पर चढ़ते थे और सुतूनों ~के पास पील पाए थे, एक इस तरफ़ और एक उस तरफ़|
1और वह मुझे हैकल में लाया और सुतूनों को नापा, छ: हाथ की चौड़ाई एक तरफ़ और छ: हाथ की दूसरी तरफ़, यही ख़ेमे की चौड़ाई थी।2और दरवाज़े की चौड़ाई दस हाथ, और उसका एक पहलू पाँच हाथ का और दूसरा भी पाँच हाथ का था; और उसने उसकी लम्बाई चालीस हाथ और चौड़ाई बीस हाथ नापी।3तब वह अन्दर गया और दरवाज़े के हर सुतून को दो हाथ नापा, और दरवाज़े को छ: हाथ और दरवाज़े की चौड़ाई सात हाथ थी।4और उसने हैकल के सामने की लम्बाई को बीस हाथ और चौड़ाई को बीस हाथ नापा, और मुझ से कहा, कि "यही पाक-तरीन मक़ाम है।5और उसने घर की दीवार छ: हाथ नापी, और पहलू के हर एक कमरे की चौड़ाई घर के चारों तरफ़ चार हाथ थी।6और पहलू के कमरे तीन मंज़िला थे; कमरे के ऊपर कमरा क़तार में तीस, और वह उस दीवार में जो घर के चारों तरफ़ के कमरों के लिए थी, दाख़िल किए गए थे ताकि मज़बूत हों; लेकिन वह घर की दीवार से मिले हुए न थे।7और वह पहलू पर के कमरे ऊपर तक चारों तरफ़ ज़्यादा चौड़े होते जाते थे, क्यूँकि घर चारों तरफ़ से ऊँचा होता चला जाता था। घर की चौड़ाई ऊपर तक बराबर थी, और ऊपर के कमरों का रास्ता बीच के कमरों के बीच से था।8और मैंने घर के चारों तरफ़ ऊँचा चबूतरा देखा, पहलू के कमरों की बुनियाद छ: बड़े हाथ के पूरे सरकण्डे की थी।9और पहलू के कमरों की बैरूनी दीवार की चौड़ाई पाँच हाथ थी, और जो जगह बाक़ी बची वह घर के पहलू के कमरों के बीच थी।10और कमरों के बीच घर के चारों तरफ़ बीस हाथ का फ़ासला था।11और पहलू के कमरों के दरवाज़े उस ख़ाली जगह की तरफ़ थे, एक दरवाज़ा उत्तर की तरफ़ और एक दक्खिन की तरफ़ और ख़ाली जगह की चौड़ाई चारों तरफ़ पाँच हाथ थी।12और वह 'इमारत जो अलग जगह के सामने पश्चिम की तरफ़ थी उसकी चौड़ाई सत्तर हाथ थी और उस 'इमारत की दीवार चारों तरफ़ पाँच हाथ मोटी और नब्बे हाथ लम्बी थी।13इसलिए उसने घर को सौ हाथ लम्बा नापा और अलग जगह और 'इमारत उसकी दीवारों के साथ सौ हाथ लम्बी थी।14नेज़, घर के सामने की तरफ़ उस पूरबी जानिब की अलग जगह की चौड़ाई सौ हाथ थी।15और अलग जगह के सामने की 'इमारत की लम्बाई को, जो उसके पीछे थी, और उसकी जानिब के बरामदे इस तरफ़ से और उस तरफ़ से, और अन्दर की तरफ़ हैकल को और सहन के आँगनों को उसने सौ हाथ नापा।16आस्तानों और झरोकों और चारों तरफ़ के बरामदों को जो सहमंज़िला और आस्तानों के सामने थे, और चारों तरफ़ लकड़ी से मढ़े हुए थे, और ज़मीन से खिड़कियों तक और खिड़कियाँ भी मढ़ी हुई थीं।17दरवाज़े के ऊपर तक और अन्दरूनी घर तक और उसके बाहर भी, चारों तरफ़ की तमाम दीवार तक घर के अन्दर बाहर सब ठीक अन्दाज़े से थे।18और करूबी और खजूर बने थे, और एक खजूर दो करूबियों के बीच में था और हर एक करूबी के दो चेहरे थे।19चुनाँचे एक तरफ़ इन्सान का चेहरा खजूर की तरफ़ था, और दूसरी तरफ़ जवान शेर-ए-बबर का चेहरा भी खजूर की तरफ़ था; घर की चारों तरफ़ इसी तरह का काम था।20ज़मीन से दरवाजे के ऊपर तक, और हैकल की दीवार पर करूबी और खजूर बने थे।21और हैकल के दरवाज़े के सुतून चहार गोशा थे, और हैकल के सामने की सूरत भी इसी तरह की थी।22मज़बह लकड़ी का था, उसकी ऊँचाई तीन हाथ और लम्बाई दो हाथ थी, और उसके कोने और उसकी कुर्सी और उसकी दीवारें लकड़ी की थीं, और उसने मुझ से कहा, "यह ख़ुदावन्द के सामने की मेज़ है।"23और हैकल और हैकल के दो दो दरवाज़े थे।24और दरवाज़ों के दो दो पल्ले थे जो मुड़ सकते थे; दो पल्ले एक दरवाज़े के लिए और दो दूसरे के लिए।25और उन पर या'नी हैकल के दरवाज़ों पर करूबी और खजूर बने थे, जैसे कि दीवारों पर बने थे और बाहर के आँगन के रुख़ पर तख़्ता बन्दी थी।26और आँगन की अन्दरूनी और बैरूनी जानिब पहलू में झरोके और खजूर के दरख़्त बने थे, और हैकल के पहलू के कमरों और तख़्ता बन्दी की यही सूरत थी।
1फिर वह मुझे उत्तरी रास्ते से बैरूनी सहन में ले गया, और उस कोठरी में जो अलग जगह और 'इमारत के सामने उत्तर की तरफ़ थी ले आया।2सौ हाथ की लम्बाई की जगह के सामने उत्तरी दरवाज़ा था, और उसकी चौड़ाई पचास हाथ थी।3बीस हाथ के सामने जो अन्दरूनी सहन के लिए थे, और बैरूनी सहन के फ़र्श के सामने कोठरियाँ तीन तबक़ों में एक दूसरे के सामने थीं।4और कोठरियों के सामने अन्दर की तरफ़ दस हाथ चौड़ा रास्ता था, और एक रास्ता एक हाथ का और उनके दरवाज़े उत्तर की तरफ़ थे।5ऊपर की कोठरियाँ छोटी थीं, क्यूँकि उनके बरामदों ने 'इमारत की निचली और बीच की मंज़िल के सामनेे इनसे ज़्यादा जगह रोक ली थी।6क्यूँकि वह तीन दर्जों की थीं, लेकिन उनके सुतून सहन के सुतूनों की तरह न थे; इसलिए वह निचली और बीच मंज़िन्ल से तंग थीं |7और कोठरियों के पास की बैरूनी सहन की तरफ़, कोठरियों के सामने की बैरूनी दीवार पचास हाथ लम्बी थी।8क्यूँकि बैरूनी सहन की कोठरियों की लम्बाई पचास हाथ थी, और हैकल के सामने सौ हाथ की लम्बाई थी।9और उन कोठरियों के नीचे पूरब की तरफ़ वह मदख़ल था, जहाँ से बैरूनी सहन से दाख़िल होते थे।10पूरबी सहन की चौड़ी दीवार में और अलग जगह और उस 'इमारत के सामने कोठरियाँ थीं।11और उनके सामने एक ऐसा रास्ता था, जैसा उत्तर की तरफ़ की कोठरियों के सामने था; उनकी लम्बाई और चौड़ाई बराबर थी, और उनके तमाम~मख़रज उनकी तरतीब और उनके दरवाज़ों के मुताबिक़ थे।12और दक्खिन की तरफ़ की कोठरियों के दरवाज़ों के मुताबिक़ एक दरवाज़ा रास्ते के सिरे पर था, या'नी सीधी दीवार के रास्ते पर पूरब की तरफ़ जहाँ से उनमें दाख़िल होते थे।13और उसने मुझ से कहा, कि "उत्तरी और दक्खिनी कोठरियाँ जो अलग जगह के मुक़ाबिल हैं पाक कोठरियाँ हैं जहाँ काहिन जो ख़ुदावन्द के सामने जाते हैं अक़दस चीजें खायेंगे और अक़दस चीज़ें और नज़र की क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी वहाँ रख्खेंगे, क्यूँकि वह मकान पाक है।14जब काहिन दाख़िल हों तो वह हैकल से बैरूनी सहन में न जाएँ, बल्कि अपनी ख़िदमत के लिबास वहीं उतार दें क्यूँकि वह पाक हैं, और वह दूसरे कपड़े पहन कर 'आम मकान में जाएँ।”15फिर जब वह अन्दरूनी घर को नाप चुका, तो मुझे उस फाटक के रास्ते से लाया जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है और घर को चारों तरफ़ से नापा।16उसने पैमाइश के सरकण्डे से पूरब की तरफ़ चारो तरफ़ पाँच सौ सरकण्डे नापे।17उसने पैमाइश के सरकण्डे से उत्तर की तरफ़ चारो तरफ़ पाँच सौ सरकण्डे नापे।18उसने पैमाइश के सरकण्डे से दक्खिन की तरफ़ भी पाँच सौ सरकण्डे नापे।19उसने पच्छिम की तरफ़ मुड़ कर पैमाइश के सरकण्डे से पाँच सौ सरकण्डे नापे।20उसने उसको चारों तरफ़ से नापा, उसकी चारों तरफ़ एक दीवार पाँच सौ सरकण्डे लम्बी और पाँच सौ चौड़ी थी, ताकि पाक को 'आम से जुदा करे।
1~फिर वह मुझे फाटक पर ले आया, या'नी उस फाटक पर जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है,;2और क्या देखता हूँ कि इस्राईल के ख़ुदा का जलाल पूरब की तरफ़ से आया, और उसकी आवाज़ सैलाब के शोर के जैसी थी, और ज़मीन उसके जलाल से मुनव्वर हो गई।3और यह उस ख़्वाब की नुमाइश के मुताबिक़ था जो मैंने देखा था, हाँ, उस ख़्वाब के मुताबिक़ जो मैंने उस वक़्त देखा था जब मैं शहर को बर्बाद करने आया था, और यह रोयतें उस ख़्वाब की तरह थीं जो मैंने नहर-ए-किबार के किनारे पर देखा था; तब मैं मुँह के बल गिरा।4और ख़ुदावन्द का जलाल उस फाटक की राह से, जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है हैकल में दाख़िल हुआ |5और रूह ने मुझे उठा कर अन्दरूनी सहन में पहुँचा दिया, और क्या देखता हूँ कि हैकल ख़ुदावन्द के जलाल से मा'मूर है।6और मैंने किसी की आवाज़ सुनी, जो हैकल में से मेरे साथ बातें करता था, और एक शख़्स मेरे पास खड़ा था।7और उसने मुझे फ़रमाया, कि "ऐ आदमज़ाद, यह मेरी तख़्तगाह और मेरे पाँव की कुर्सी है जहाँ मैं बनी-इस्राईल के बीच हमेशा तक रहूँगा और बनी इस्राईल और उनके बादशाह फिर कभी मेरे पाक नाम को अपनी बदकारी और अपने बादशाहों की लाशों से उनके मरने पर नापाक न करेंगे।8क्यूँकि वह अपने आस्ताने मेरे आस्तानों के पास, और अपनी चौखटें मेरी चौखटों के पास लगाते थे, और मेरे और उनके बीच सिर्फ़ एक दीवार थी; उन्होंने अपने उन घिनौने कामों से जो उन्होंने किए मेरे पाक नाम को नापाक किया, इसलिए मैंने अपने क़हर में उनको हलाक किया।9अगरचे अब वह अपनी बदकारी और अपने बादशाहों की लाशें मुझ से दूर कर दें, तो मैं हमेशा तक उनके बीच रहूँगा।10~"ऐ आदमज़ाद, तू बनी-इस्राईल को यह घर दिखा, ताकि वह अपनी बदकिरदारी से शर्मिन्दा हो जाएँ और इस नमूने को नापें।11और अगर वह अपने सब कामों से शर्मिंदा हों, तो उस घर का नक़्शा और उसकी तरतीब और उसके मख़ारिज और मदख़ल और उसकी तमाम शक्ल और उसके कुल हुक्मों और उसकी पूरी वज़ह और तमाम क़वानीन उनको दिखा, और उनकी आँखों के सामने उसको लिख, ताकि वह उसका कुल~नक़्शा~~और उसके तमाम हुक्मों को मानकर उन पर 'अमल करें।12इस घर का क़ानून यह है कि इसकी तमाम सरहदें पहाड़ की चोटी पर और इसके चारों तरफ़ बहुत पाक होंगी; देख, यही इस घर का क़ानून है।13'और हाथ के नाप से मज़बह के यह नाप हैं, और इस हाथ की लम्बाई एक हाथ चार उँगल है। पाया एक हाथ का होगा, और चौड़ाई एक हाथ और उसके चारो तरफ़ बालिश्त भर चौड़ा हाशिया, और मज़बह का पाया यही है।14और ज़मीन पर के इस पाये से लेकर नीचे की कुर्सी तक दो हाथ, और उसकी चौड़ाई एक हाथ और छोटी कुर्सी से बड़ी कुर्सी तक चार हाथ और चौड़ाई एक हाथ।15और ऊपर का मज़बह चार हाथ का होगा, और मज़बह के ऊपर चार सींग होंगे।16और मज़बह बारह हाथ लम्बा होगा और बारह हाथ चौड़ा मुरब्बा"।17और कुर्सी चौदह हाथ लम्बी और चौदह हाथ चौड़ी मुरब्बा' और चारों तरफ़ उसका किनारा आधा हाथ, उसका पाया चारो तरफ़ एक हाथ और उसका ज़ीना पूरब रू होगा।”18और उसने मुझ से कहा, ~"ऐ आदमज़ाद, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि मज़बह के यह हुक्म उस दिन~जारी होंगे जब वह उसे बनाएँगे, ताकि उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करें और उस पर ख़ून छिड़कें।19और तू लावी काहिनों को जो सदूक़ की नसल से हैं, जो मेरी ख़िदमत के लिए मेरे सामने आते हैं,ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बछड़ा देना, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।20और तू उसके खू़न में से लेना और मज़बह के चारों सींगों पर, उसकी कुर्सी के चारों कोनों पर और उसके चारो तरफ़ के हाशिए पर लगाना; इसी तरह कफ़्फ़ारा देकर उसे पाक-ओ-साफ़ करना।21और ख़ता की क़ुर्बानी के लिए बछड़ा लेना, और वह घर की मुक़र्रर जगह में हैकल के बाहर जलाया जाएगा।22और तू दूसरे दिन एक बे'ऐब बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए पेश करना, और वह मज़बह को कफ़्फ़ारा देकर उसी तरह पाक करेंगे, जिस तरह बछड़े से पाक किया था।23और जब तू उसे पाक कर चुके तो एक बे'ऐब बछड़ा और गल्ले का एक बे'ऐब मेंढा पेश करना।24और तू उनको ख़ुदावन्द के सामने लाना और काहिन उनपर नमक छिड़कें और उनको सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए ख़ुदावन्द के सामने पेश करें।25और तू सात दिन तक हर रोज़ एक बकरा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए तैयार कर रखना, वह एक बछड़ा और गल्ले का एक मेंढा भी जो बे'ऐब हों तैयार कर रख्खें।26सात दिन तक वह मज़बह को कफ़्फ़ारा देकर ~पाक-ओ-साफ़ करेंगे और उसको मख़्सूस करेंगे।27और जब यह दिन पूरे होंगे, तो यूँ होगा कि आठवें दिन और आइन्दा काहिन तुम्हारी सोख़्तनी कुर्बानियों को और तुम्हारी सलामती की कु़र्बानियों को मज़बह पर पेश करूँगे, और मैं तुम को क़ुबूल करूँगा; ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।”
1तब वह मुझको हैकल के बैरूनी फाटक के रास्ते से, जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है वापस लाया, और वह बन्द था।2और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि "यह फाटक बन्द रहेगा और खोला न जाएगा, और कोई इन्सान इससे दाख़िल न होगा; चूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा इससे दाख़िल हुआ है, इसलिए यह बन्द रहेगा।3मगर फ़रमारवाँ~इसलिए कि फ़रमारवाँ है, ख़ुदावन्द के सामने रोटी खाने को इसमें बैठेगा; वह इस फाटक के आस्ताने के रास्ते से अन्दर आएगा, और इसी रास्ते से बाहर जाएगा।”4फिर वह मुझे उत्तरी फाटक के रास्ते से हैकल के सामने लाया, और मैंने निगाह की और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द के जलाल ने ख़ुदावन्द के घर को मा'मूर कर दिया; और मैं मुँह के बल गिरा।5और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, ~"ऐ आदमज़ाद, ख़ूब ग़ौर कर और अपनी आँखों से देख, और जो कुछ ख़ुदावन्द के घर के हुक्मों और क़वानीन के ज़रिए' तुझ से कहता हूँ अपने कानों से सुन, और घर के मदख़ल को और हैकल के सब मख़रजों को ख़याल में रख।6और तू बनी इस्राईल के बाग़ी लोगों से कहना कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता कि ऐ बनी इस्राईल तुम अपनी मकरूहात को अपने लिए काफ़ी समझो |7चुनाँचे जब तुम मेरी रोटी और चर्बी ~और ख़ून अदा करते ~थे, तो दिल के नामख़्तून और जिस्म के नामख़्तून अजनबीज़ादों को मेरे हैकल में लाए, ताकि वह मेरी हैकल में आकर मेरे घर को नापाक करें, और उन्होंने तुम्हारे तमाम नफ़रतअंगेज़ कामों की वजह से मेरे 'अहद को तोड़ा।8और तुम ने मेरी पाक चीज़ों की हिफ़ाज़त न की, बल्कि तुम ने गै़रों को अपनी तरफ़ से मेरी हैकल में निगहबान मुक़र्रर किया।9"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि उन अजनबीज़ादों में से जो बनी इस्राईल के बीच हैं, कोई दिल का नामख़्तून या जिस्म का नामख़्तून अजनबीज़ादा मेरी हैकल में दाख़िल न होगा।10"और बनी लावी जो मुझ से दूर हो गए जब इस्राईल गुमराह हुआ, क्यूँकि वह अपने बुतों की पैरवी करके मुझ से गुमराह हुए वह भी अपनी बदकिरदारी की सज़ा पाएँगे।11तोभी वह मेरे हैकल में ख़ादिम होंगे और मेरे घर के फाटकों पर निगहबानी करेंगे और मेरे घर में ख़िदमत गुज़ारी करेंगे; वह लोगों के लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहा ज़बह करेंगे और उनके सामने उनकी ख़िदमत के लिए खड़े रहेंगे।12चूँकि उन्होंने उनके लिए बुतों की ख़िदमत की और बनी इस्राईल के लिए बदकिरदारी में ठोकर का जरि'अ हुए, इसलिए मैंने उन पर हाथ चलाया और वह अपनी बदकिरदारी की सज़ा पाएँगे; ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है:13और वह मेरे नज़दीक न आ सकेंगे कि मेरे सामने कहानत करें, न वह मेरी पाक चीज़ों के पास आएँगे या'नी पाक तरीन चीज़ों के पास; बल्कि वह अपनी रुसवाई उठायेंगे और अपने घिनौने कामों ~की, जो उन्होंने किए हैं सज़ा पाएँगे।14तोभी मैं उनको हैकल की हिफ़ाज़त के लिए और उसकी तमाम ख़िदमत के लिए, और उस सब के लिए जो उसमें किया जाएगा, निगहबान मुक़र्रर करूँगा।15लेकिन लावी काहिन या'नी बनी सदूक़ जो मेरी हैकल की हिफ़ाज़त करते थे, जब बनी इस्राईल मुझ से गुमराह हो गए, मेरी ख़िदमत के लिए मेरे नज़दीक आएँगे और मेरे सामने खड़े रहेंगे ताकि मेरे सामने चर्बी और ख़ून पेश करेंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।16वही मेरे हैकल में दाख़िल होंगे और वही ख़िदमत के लिए मेरी मेज़ के पास आएँगे और मेरे अमानतदार होंगे।17और यूँ होगा कि जिस वक़्त वह अन्दरूनी सहन के फाटकों से दाख़िल होंगे, तो कतानी लिबास से मुलब्बस होंगे, और जब तक अन्दरूनी सहन के फाटकों के बीच और घर में ख़िदमत करेंगे कोई ऊनी चीज़ न पहनेंगे।18वह अपने सिरों पर कतानी 'अमामे और कमरों पर कतानी पायजामे पहनेंगे, और जो कुछ पसीने के ज़रिए' हो उसे अपनी कमर पर न बाँधे।19और जब बैरूनी सहन में या'नी 'अवाम के बैरूनी सहन में निकल आएँ, तो अपनी ख़िदमत की पोशाक उतार कर पाक कमरों में रख्खेंगे; और दूसरी पोशाक पहनेंगे, ताकि अपने लिबास से 'अवाम की तक़दीस न करें।20और वह न सिर मुंडाएँगे और न बाल बढ़ाएँगे, वह सिर्फ़ अपने सिरों के बाल कतराएँगे।21और जब अन्दरूनी सहन में दाख़िल हों, तो कोई काहिन शराब न पिए।22और वह बेवा या मुतल्लक़ा से ब्याह न करेंगे, बल्कि बनी-इस्राईल की नसल की कुँवारियों से या उस बेवा से जो किसी काहिन की बेवा हो।23और वह मेरे लोगों को पाक और 'आम में फ़र्क बताएँगे, और उनको नजिस और ताहिर में इम्तियाज़ करना सिखाएँगे।24और वह झगड़ों के फ़ैसले के लिए खड़े होंगे, और मेरे हुक्मों के मुताबिक़ 'अदालत करेंगे, और वह मेरी तमाम मुक़र्ररा 'ईदों में मेरी शरी'अत और मेरे क़ानून पर 'अमल करेंगे, और मेरे सबतों को पाक जानेंगे।25और वह किसी मुर्दे के पास जाने से अपने आपको नापाक न करेंगे; मगर सिर्फ़ बाप या माँ या बेटे या बेटी या भाई या कुँवारी बहन के लिए वह अपने आपको नापाक कर सकते हैं।26और वह उसके पाक होने के बा'द उसके लिए और सात दिन शुमार करेंगे,27और जिस रोज़ वह हैकल के अन्दर अन्दरूनी सहन में ख़िदमत करने को जाए, तो अपने लिए ख़ता की क़ुर्बानी पेश करेगा; ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।28और उनके लिए एक मीरास होगी मैं ही उनकी मीरास हूँ, और तुम इस्राईल में उनकी कोई मिल्क़ियत न देना - मैं ही उनकी मिल्क़ियत हूँ।29और वह नज़र की क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी और जुर्म की क़ुर्बानी खाएँगे, और हर एक चीज़ जो इस्राईल में मख़्सूस की जाए उन ही की होगी।30और सब पहले फलों का पहला और तुम्हारी तमाम चीज़ों की हर एक क़ुर्बानी काहिन के लिए हों, और तुम अपने पहले गुन्धे आटे से कहिन को देना, ताकि तेरे घर पर बरकत हो।31अगर वह जो अपने आप ही मर गया हो या दरिन्दों का फाड़ा हुआ, क्या परिन्द क्या चरिन्द, काहिन उसे न खाएँ।
1और जब तुम ज़मीन को पर्ची डाल कर मीरास के लिए तक़सीम करो तो उसका एक पाक हिस्सा ख़ुदावन्द के सामने हदिया देना उसकी लम्बाई पच्चीस हज़ार और चौड़ाई दस हज़ार होगी वह अपने चारों तरफ़ की तमाम हदों में पाक होगा।2उसमें से एक कित'आ जिसकी लम्बाई पाँच सौ और चौड़ाई पाँच सौ, जो चारों तरफ़ बराबर है हैकल के लिए होगा, और उसके अहाते के लिए चारों तरफ़ पचास पचास हाथ की चौड़ाई होगी।3और तू इस पैमाइश की पच्चीस हज़ार की लम्बाई और दस हज़ार की चौड़ाई नापेगा और उसमें हैकल होगा जो बहुत पाक है।4ज़मीन का यह पाक हिस्सा उन काहिनों के लिए होगा जो हैकल के ख़ादिम हैं, और जो ख़ुदावन्द के सामने ख़िदमत करने को आते हैं; और यह मक़ाम उनके घरों के लिए होगा, और हैकल के लिए पाक जगह होगी।5और पच्चीस हज़ार लम्बा और दस हज़ार चौड़ा, बनी लावी हैकल के ख़ादिमों के लिए होगा, ताकि बीस बस्तियों की जगह उनकी मिल्यक़ित हो।6"और तुम शहर का हिस्सा पाँच हज़ार चौड़ा और पच्चीस हज़ार लम्बा हैकल के हदिये वाले हिस्से के पास मुक़र्रर करना, यह तमाम बनी इस्राईल के लिए होगा।7"और पाक हदिये वाले हिस्से की तरफ़ शहर के हिस्से की दोनों तरफ़, पाक हदिये वाले हिस्से के सामने और शहर के हिस्से के सामने दक्खिनी गोशे ~मग़रिब की तरफ़ और पूरबी गोशे पूरब की तरफ़ फ़रमरवाँ के लिए होगा; और लम्बाई में पच्छिमी सरहद से पूरबी सरहद तक उन हिस्सों में से एक के सामने होगा।8इस्राईल के बीच ज़मीन में से उसका यही हिस्सा होगा, और मेरे हाकिम फिर मेरे लोगों पर सितम न करेंगे; और ज़मीन को बनी-इस्राईल में उनके क़बीले के मुताबिक़ तक़सीम करेंगे।9"ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि ऐ इस्राईल के हाकिमों, तुम्हारे लिए यही काफ़ी है; ज़ुल्म और लूट मार को दूर करो, 'अदालत-ओ-सदाक़त को 'अमल में लाओ, और मेरे लोगों पर से अपनी ज़ियादिती को ख़त्म करो; ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।10"और तुम पूरी तराज़ू और पूरा एफ़ा और पूरा बत रख्खा करो।11एफ़ा और बत एक ही वज़न का हो, ताकि बत में ख़ोमर का दसवाँ हिस्सा हो; और एफ़ा भी ख़ोमर का दसवाँ हिस्सा हो, उसका अन्दाज़ा ख़ोमर के मुताबिक़ हो।12और मिस्क़ाल बीस जीरा हो; और बीस मिस्क़ाल, पच्चीस मिस्क़ाल, पन्द्रह मिस्क़ाल का तुम्हारा माना होगा।13'और हदिया जो तुम पेश करोगे फ़िर यह है: गेहूँ के ख़ोमर से एफ़ा का छटा हिस्सा, और जौ के ख़ोमर से एफ़ा का छटा हिस्सा देना।14और तेल या'नी तेल के बत के बारे में यह हुक्म है कि तुम कुर में से, जो दस बत का ख़ोमर है, एक बत का दसवाँ हिस्सा देना क्यूँकि खोमर में दस बत हैं |15और गल्ला में से हर दोसो पीछे इस्राईल की सेराब चरागाह का एक बर्रा नज़र की क़ुर्बानी के लिए और सलामती की क़ुर्बानी के लिए ताकि उनके लिए कफ़्फ़ारा हो ख़ुदावन्द फ़रमाता है|16मुल्क के सब लोग उस फ़रमारवाँ के लिए जो इस्राईल में है यही हदिया देंगे|17और फ़रमारवाँ सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और नज़र की क़ुर्बानियाँ और तपावन 'अहदों और नए चाँद के वक़्तों और सबतों और बनी इस्राईल की तमाम मुक़र्रा~'ईदों में देगा वह ख़ता की क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी और सलामती की क़ुर्बानियाँ बनी इस्राईल के~कफ़्फ़ाराके लिए तैयार होगा |18ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि पहले महीने की पहली तारीख़ को तू एक बे 'ऐब बछड़ा लेना और हैकल को पाक करना19और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी के बछड़े का ख़ून लेगा और उसमें से कुछ घर के सुतूनों पर और मज़बह की कुर्सी के चारों कोनों पर और अंदरूनी सहन के दरवाज़े की चौखटों पर लगाएगा |20और तू महीने की सातवीं तारीख़ को हर एक के लिए जो ख़ता करे और उसके लिए भी जो नादान है ऐसा ही करेगा इसी तरह तुम घर का कफ़्फ़ारा ~दिया करोगे |21तुम पहले महीने की चौदवीं तारीख़ को 'ईद फ़सह मनाना जो सात दिन की 'ईद है और उसमें बेख़मीरी रोटी खाई जाएगी |22और उसी दिन फ़रमारवाँ अपने लिए और तमाम अहल-ए-मम्लुकत के लिए ख़ता की क़ुर्बानी के वास्ते एक बछड़ा तैयार कर रख्खेगा|23और 'ईद के सातों दिन में वह हर रोज़ या'नी सात दिन तक सात बे'ऐब बछड़े और सात मेंढे मुहय्या करेगा ताकि ख़ुदावन्द के सामने सोख़्तनी क़ुर्बानी हों और हर रोज़ ख़ता की क़ुर्बानी के लिए एक बकरा|24और हर एक बछड़े के लिए एक एफ़ा भर नज़र की क़ुर्बानी और हर मेंढे के लिए एक एफ़ा और फ़ी एफ़ा एक हींन तेल तैयार करेगा |25सातवें महीने की पन्दर्वीं तारीख़ को भी वह 'ईद के लिए जिस तरह से उसने इन सात दिनों में किया था तैयारी करेगा ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और तेल के मुताबिक़ |
1~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि अन्दरूनी सहन का फाटक जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है,काम काज के छ: बन्द रहेगा;लेकिन सबत के दिन खोला जाएगा,और नए चाँद के दिन भी खोला जाएगा।2~और फ़रमारवा बैरूनी फाटक के आस्ताने के रास्ते से दाख़िल होगा, फाटक की चौखट के पास खड़ा रहेगा;और काहिन उसकी सोख़्तनी क़ुर्बानी और उसकी सलामती की क़ुर्बानियाँ पेशकरेंगे, वह फाटक के आसताने पर सिज्दा करके बाहर निकलेगा लेकिन फाटक शाम तक बन्द न होगा|3और मुल्क के लोग उसी फाटक के दरवाज़े पर, सबतों और नए चाँद के वक़्तों में ख़ुदावन्द के सामने सिज्दा किया करेंगे4और सोख़्तनी क़ुर्बानी जो फ़रमारवा सबत के दिन ख़ुदावन्द के सामने पेश करेगा , छ: बे'ऐब बर्रे और एक बे'ऐब बर्रा|5और नज़र की कु़र्बानी मेंढे के लिए एक एफ़ा और बर्रों के लिए नज़र की कु़र्बानी उसकी तौफ़ीक़ के एक एफ़ा के लिए एक हीन तेल।6~और नए चाँद के रोज़ एक बे'ऐब बछड़ा और छ: बर्रे और एक मेंढा, सब के सब बे'ऐब7~और वह नज़र की कु़र्बानी तैयार करेगा या'नी बछड़े के लिए एक एफ़ा और मेंढे के लिए एक एफ़ा और बर्रों के लिए उसकी तौफ़ीक़ के मुताबिक़, हर एक एफ़ा के लिए एक हीन तेल।8जब फ़रमारवा अन्दर आए, फाटक के आस्ताने के रास्ते से दाख़िल होगा और उसी रास्ते से निकलेगा|9लेकिन जब मुल्क के लोग मुक़र्ररा ईदों के वक़्त ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर होंगे, जो उत्तरी फाटक के रास्ते से सिज्दा करने को दाख़िल होगा वह दक्खिन फाटक के रास्ते से बाहर जाएगा, जो दक्खिनी फाटक के रास्ते से अन्दर आता है वह उत्तरी फाटक के रास्ते से बाहर जाएगा; जिस फाटक के रास्ते से वह अन्दर आया उससे वापस न जाएगा, बल्कि सीधा अपने सामने के फाटक के रास्ते से निकल जाएगा।10~और जब वह अन्दर जाएँगे तो फ़रमारवा भी उनके बीच होकर जाएगा, और जब वह बाहर निकलेंगे तो सब इकट्ठे जाएँगे।11और ईदों और मज़हबी तहवारों के वक़्त में नज़र की कु़र्बानी बैल के लिए एक एफ़ा, मेंढे के लिए एक एफ़ा होगी, और बर्रों के लिए उसकी तौफ़ीक़ के मुताबिक़ और हर एक एफ़ा के लिए एक हीन तेल।12~और जब फ़रमारवा रज़ा की कु़र्बानी तैयार करे या'नी सोख़्तनी कु़बानी या सलामती की कु़र्बानी ख़ुदावन्द के सामने रज़ा की कु़र्बानी के तौर पर लाए तो वह फाटक जिसका रुख पूरब की तरफ़ उसके लिए खोला जाएगा और सबत के दिन की तरह वह अपनी सोख़्तनी कु़र्बानी और सलामती की कु़र्बानी पेश करेगा, तब वह बाहर निकल आएगा और उसके निकलने के बा'द फाटक बन्द किया जाएगा।13तो हर रोज़ ख़ुदावन्द के सामने पहले साल का एक बे'ऐब बर्रा सोख़्तनी कु़र्बानी के लिए पेश करेगा, तू हर सुबह पेश करेगा।14और तू उसके साथ हर सुबह नज़र की कु़र्बानी पेश करेगा या'नी एफ़ा का छटा हिस्सा, और मैदे के साथ मिलाने को तेल के हीन की एक तिहाई,दाइमी हुक्म के मुताबिक़ हमेशा के लिए ख़ुदावन्द के सामने यह नज़र की कु़र्बानी होगी।15इसी तरह वह बर्रे और नज़र की कु़र्बानी और तेल हर सुबह हमेशा की~सोख़्तनी कु़र्बानी के लिए अदा करेंगे।16~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि अगर फ़रमारवा अपने बेटों में से किसी को कोई हदिया दे, वह उसकी मीरास उसके बेटों की होगी; वह उनका मौरूसी माल है।17लेकिन अगर वह अपने गु़लामों में से किसी को अपनी मीरास में से हदिया दे, तो वह आज़ादी के साल तक उसका होगा; उसके बा'द फिर फ़रमारवा का हो जाएगा। मगर उसकी मीरास उसके बेटों के लिए होगी।18और फ़रमारवा लोगों की मीरास में से ज़ुल्म करके न लेगा, ताकि उनको उनकी मिल्कियत से बेदख़्ल करे; लेकिन वह अपनी ही मिल्कियत में से अपने बेटों को मीरास देगा, ताकि मेरे लोग अपनी अपनी मिलिकयत से जुदा न हो जाएँ।"19फिर वह मुझे उस मदख़ल के रास्ते से जो फाटक के पहलू में था, काहिनों के पाक कमरों में जिनका रुख उत्तर की तरफ़ था, लाया और क्या देखता हूँ कि पच्छिम की तरफ़ पीछे कुछ ख़ाली जगह है।20तब उसने मुझे फ़रमाया, "देख, यह वह जगह है जिसमें काहिन जुर्म की क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानी को जोश देंगे और नज़र की क़ुर्बानी पकायेंगे ताकि उनको ~बैरूनी सहन में ले जाकर लोगों की तक़दीस करें।”21फिर वह मुझे बैरूनी सहन में लाया और सहन के चारों कोनों की तरफ़ मुझे ले गया, और देखो, सहन के हर कोने में एक और सहन था;22सहन के चारों कोनों में चालीस चालीस हाथ लम्बे और तीस तीस हाथ चौड़े सहन मुत्तसिल थे, यह चारों कोने वाले एक ही नाप के थे।23और उनके चारों तरफ़ या'नी उन चारों के चारों ~तरफ़ दीवार थी, और चारों तरफ़ दीवार के नीचे चूल्हे बने थे।24~तब उसने मुझे फ़रमाया, कि "यह चूल्हे हैं, जहाँ हैकल के ख़ादिम लोगों के ज़बीहे उबालेंगे।”
1फिर वह मुझे हैकल के दरवाज़े पर वापस लाया, और क्या देखता हूँ कि हैकल के आस्ताने के नीचे से पानी पूरब की तरफ़ निकल रहा है क्यूँकि हैकल का सामना पूरब की तरफ़ था और पानी हैकल के दाहनी तरफ़ के नीचे से मज़बह के दक्खिनी जानिब से बहता था |2तब वह मुझे उत्तरी फाटक की राह से बाहर लाया, और मुझे उस राह से जिसका रुख़ पूरब की तरफ़ है, बैरूनी फाटक पर वापस लाया या'नी पूरब रूया फाटक पर; और क्या देखता हूँ कि दहनी तरफ़ से पानी जारी है।3और उस मर्द ने जिसके हाथ में पैमाइश की डोरी थी, पूरब की तरफ़ बढ़ कर हज़ार हाथ नापा, और मुझे पानी में से चलाया और पानी टखनों तक था।4फिर उसने हज़ार हाथ और नापा और मुझे उसमें से चलाया, और पानी घुटनों तक था; फिर उसने एक हज़ार हाथ और नापा और मुझे उसमें से चलाया, और पानी कमर तक था।5फिर उसने एक हज़ार और नापा, और वह ऐसा दरिया था कि मैं उसे पार नहीं कर सकता था, क्यूँकि पानी चढ़ कर तैरने के दर्जे को पहुँच गया और ऐसा दरिया बन गया जिसको पार करना मुम्किन न था।6और उसने मुझ से कहा, ~"ऐ आदमज़ाद ! क्या तूने यह देखा?"तब वह मुझे लाया और दरिया के किनारे पर वापस पहुँचाया।7और जब मैं वापस आया तो क्या देखता हूँ कि दरिया के किनारे दोनों तरफ़ बहुत से दरख़्त हैं।8तब उसने मुझे फ़रमाया कि यह पानी पूरबी 'इलाक़े ~की तरफ़ बहता है, और मैदान में से होकर समन्दर में जा मिलता है, और समन्दर में मिलते ही उसके पानी को शीरीं कर देगा |9और यूँ होगा कि जहाँ कहीं यह दरिया" पहुँचेगा, हर एक चलने फिरने वाला जानदार ज़िन्दा रहेगा और मछलियों की बड़ी कसरत ~होगी क्यूँकि यह पानी वहाँ पहुँचा और वह शीरीं हो गया इसलिए जहाँ कहीं यह दरया पहुँचेगा ज़िन्दगी बख्शेगा |10और यूँ होगा कि शिकारी उसके किनारे खड़े रहेंगे, 'ऐन जदी से ऐन 'अजलईम तक जाल बिछाने की जगह होगी, उसकी मछलियाँ अपनी अपनी जिन्स के मुताबिक़ बड़े समन्दर की मछलियों की तरह कसरत से होंगी।11लेकिन उसकी कीच की जगहें और दलदले शीरीं न की जायेंगी वह नमक ज़ार ही रहेंगी |12और दरया के क़रीब उसके दोनों किनारों पर हर क़िस्म के मेवादार दरख़्त उगेंगे जिनके पत्ते कभी न मुरझायेंगे और जिनके मेवे कभी ख़त्म न होंगे वह हर महीने नए मेवे लायेंगे क्यूँकि उनका पानी हैकल में से जारी है और उनके मेवे खाने के लिए और उनके पत्ते दवा के लिए होंगे |13ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि "यह वह सरहद है जिसके मुताबिक़ तुम ज़मीन को तक़सीम करोगे, ताकि इस्राईल के बारह क़बीलों की मीरास हो; यूसुफ़ के लिए दो हिस्से होंगे।14और तुम सब यकसाँ उसे मीरास में पाओगे, जिसके ज़रिए मैंने क़सम खाई" कि तुम्हारे बाप-दादा को दूँ और यह ज़मीन तुम्हारी मीरास होगी।15'और ज़मीन की हदें यह होंगी: उत्तर की तरफ़ बड़े समन्दर से लेकर हतलून से होती हुई सिदाद के मदख़ल तक,16हमात बैरूत-सिबरैम जो दमिश्क़ की सरहद और हमात की सरहद के बीच है, और हसर हतीकून जो हौरान के किनारे पर है।17और समन्दर से सरहद यह होगी: या'नी हसर 'ऐनान दमिश्क़ की सरहद, और उत्तर की उत्तरी अतराफ़, हमात की सरहद उत्तरी जानिब यही है ।18और पूरबी सरहद हौरान और दमिश्क़, और जिल'आद के बीच से और इस्राईल की सरज़मीन के बीच से यरदन पर होगी; उत्तरी सरहद से पूरबी समन्दर तक नापना पूरबी जानिब यही है।19और दक्खिन की तरफ़ दक्खिनी सरहद यह है: या'नी तमर से मरीबूत के क़ादिस के पानी से और नहर-ए-मिस्र से होकर बड़े समन्दर तक, पच्छिमी जानिब यही है।20और उसी सरहद से हमात के मदख़ल के सामने बड़ा समन्दर दक्खिनी सरहद होगा दक्खिनी जानिब यही है।21इसी तरह तुम क़बाइल-ए-इस्राईल के मुताबिक़ ज़मीन को आपस में तक़सीम करोगे।22और यूँ होगा कि तुम अपने और उन बेगानों के बीच, जो तुम्हारे साथ बसते हैं और जिनकी औलाद तुम्हारे बीच पैदा हुई जो तुम्हारे लिए देसी बनी-इस्राईल की तरह होंगे; मीरास तक़सीम करने के लिए पर्ची डालोगे, वह तुम्हारे साथ क़बाइल-ए-इस्राईल के बीच मीरास पाएँगे।23और यूँ होगा कि जिस जिस क़बीले में कोई बेगाना बसता होगा, उसी में तुम उसे मीरास दोगे। ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
1"और क़बीलों के नाम यह हैं: इन्तिहा-ए- उत्तर पर हतल्लून के रास्ते के साथ साथ हमात के मदख़ल से होते हुए हसर 'ऐनान तक, जो दमिश्क़ की उत्तरी सरहद पर हमात के पास है, पूरब से पच्छिम तक दान के लिए एक हिस्सा।2और दान की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, आशर के लिए एक हिस्सा।3और आशर की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, नफ़्ताली के लिए एक हिस्सा।4और नफ़्ताली की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, मनस्सी के लिए एक हिस्सा।5और मनस्सी की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, इफ़्राईम के लिए एक हिस्सा।6और इफ़्राईम की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, रूबिन के लिए एक हिस्सा।7और रूबिन की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, यहूदाह के लिए एक हिस्सा।8"और यहूदाह की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, हदिये का हिस्सा होगा जो तुम वक्फ़ करोगे; उसकी चौड़ाई पच्चीस हज़ार और लम्बाई बाक़ी हिस्सों ~में से एक के बराबर पूरबी सरहद से दक्खिनी सरहद तक और हैकल उसके बीच में होगा |9हदिये का हिस्सा जो तुम ख़ुदावन्द के लिए वक़्फ़ करोगे, पच्चीस हज़ार लम्बा और दस हज़ार चौड़ा होगा।10और यह पाक हदिये का हिस्सा उनके लिए, हाँ, काहिनों के लिए होगा; उत्तर की तरफ़ पच्चीस हज़ार उसकी लम्बाई होगी और दस हज़ार उसकी चौड़ाई पच्छिम की तरफ़ और दस हज़ार उसकी चौडाई पूरब की तरफ़ और पच्चीस हज़ार उसकी लम्बाई दक्खिन की तरफ़ और ख़ुदावन्द का हैकल उसके बीच में होगा।11यह उन काहिनों के लिए होगा जो सदूक़ के बेटों में से पाक किए गए हैं; जिन्होंने मेरी अमानतदारी की तरफ़ गुमराह न हुए, जब बनी-इस्राईल गुमराह हो गए जैसे बनी लावी गुमराह हुए।12और ज़मीन के हदिये में से बनी लावी के हिस्से से मुत्तसिल , यह उनके लिए हदिया होगा जो बहुत पाक ठहरेगा।13और काहिनों की सरहद के सामने बनी लावी के लिए एक हिस्सा होगा, पच्चीस हज़ार लम्बा और दस हज़ार चौड़ा; उसकी कुल लम्बाई पच्चीस हज़ार और चौड़ाई दस हज़ार होगी।14और वह उसमें से न बेचे और न बदलें और न ज़मीन का पहला फल अपने क़ब्ज़े से निकलने दें, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द के लिए पाक है।15और वह पाँच हज़ार की चौड़ाई का बाक़ी हिस्सा, उस पच्चीस हज़ार के सामने बस्ती और उसकी 'इलाक़े के लिए 'आम जगह होगी; और शहर उसके बीच में होगा।16और~उसकी पैमाइश यह होगी, उत्तर की तरफ़ चार हज़ार पाँच सौ ,और दक्खिन की तरफ़ चार हज़ार पाँच सौ,और पूरब ~की तरफ़ चार हज़ार पाँच सौ,और पच्छिम की तरफ़ चार हज़ार पाँच सौ,17और शहर के 'इलाक़े उत्तर की तरफ़ दो सौ पचास, और दक्खिन की तरफ़ दो सौ पचास, और पूरब की तरफ़ दो सौ पचास, और पच्छिम की तरफ़ दो सौ पचास।18और वह पाक हदिये के सामने बाक़ी लम्बाई पूरब की तरफ़ दस हज़ार और~पच्छिम की तरफ़ दस हज़ार होगी,~और वह पाक हदिये के सामने~होगी और उसका हासिल उनकी ख़ुराक के लिए होगा जो शहर में काम करते हैं |19और शहर में काम करने वाले इस्राईल के सब क़बीलों में से उसमें काश्तकारी करेंगे।20हदिये के तमाम हिस्से की लम्बाई पच्चीस हज़ार और चौड़ाई~पच्चीस हज़ार होगी; तुम पाक हदिये के हिस्से को मुरब्बा' शक्ल में शहर की मिल्क़ियत के साथ वक़्फ़ करोगे।21"और बाक़ी जो पाक हदिये का हिस्सा और शहर की मिल्क़ियत की दोनों तरफ़ जो हदिये के हिस्से के पच्चीस हज़ार के सामने पच्छिम की तरफ़ फ़रमरवा के हिस्सों के सामने है; वह फ़रमारवा के लिए होगा और वह पाक हदिये का हिस्सा होगा, और पाक ~घर उसके बीच में होगा।22और बनी लावी की मिल्क़ियत से और शहर की मिल्क़ियत से जो फ़रमरवा की मिल्क़ियत के बीच में है, यहूदाह की सरहद और बिनयमीन की सरहद के बीच फ़रमरवा के लिए होगी।23और बाक़ी क़बाइल के लिए यूँ होगा: कि पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, बिनयमीन के लिए एक हिस्सा।24और बिनयमीन की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, शमा'ऊन के लिए एक हिस्सा।25और शमाऊन की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, इश्कार के लिए एक हिस्सा |26और इश्कार की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, ज़बूलून के लिए एक हिस्सा।27और ज़बूलून की सरहद से मुत्तसिल पूरबी सरहद से पच्छिमी सरहद तक, जद्द के लिए एक हिस्सा।28और जद्द की सरहद से मुत्तसिल दक्खिन की तरफ़ दक्खिनी किनारे की सरहद तमर से लेकर मरीबूत क़ादिस के पानी से नहर-ए- मिस्र से होकर बड़े समन्दर तक होगी।29यह वह सरज़मीन है जिसको तुम मीरास के लिए पर्ची डालकर क़बाइल-ए-इस्राईल में तक्सीम करोगे और यह उनके हिस्से हैं, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।30और शहर के मख़ारिज यह हैं: उत्तर की तरफ़ की पैमाइश चार हज़ार पाँच सौ।31और शहर के फाटक क़बाइल-ए-इस्राईल से नामज़द होंगे: तीन फाटक उत्तर की तरफ़ - एक फाटक रूबिन का, एक यहूदाह का, एक लावी का;32और~पूरब की तरफ़ की पैमाईश चार हज़ार पाँच सौ,और तीन फाटक एक यूसुफ़ का एक बिनयमीन का और एक दान का |33और दक्खिन की तरफ़ की पैमाईश चार हज़ार पाँच सौ, ~और तीन फाटक - एक शमा'ऊन का, एक इश्कार का, और एक ज़बूलून का|34और पच्छिम की तरफ़ की पैमाइश चार हज़ार पाँच सौ और तीन फाटक - एक जद्द का, एक आशर का और एक नफ़्ताली का।35उसका मुहीत अठारह हज़ार और शहर का नाम उसी दिन से यह होगा कि "ख़ुदावन्द वहाँ है"।
1~शाह-ए-यहूदाह यहूयक़ीम की सल्तनत के तीसरे साल में शाह-ए-बाबुल नबूकद नज़र ने यरूशलीम पर चढ़ाई करके उसका घिराव किया।2~और ख़ुदावन्द ने शाह ~यहूदाह यहूयक़ीम को और ख़ुदा के घर के बा'ज़ ~बर्तनों को उसके हवाले कर दिया और उनको ~सिन'आर की सरज़मीन में अपने बुतख़ाने ~में ले गया, चुनाँचे उसने बर्तनों ~को अपने बुत के ख़ज़ाने ~में दाख़िल किया।3~और बादशाह ने अपने ख़्वाजासराओं के सरदार असपनज़ को हुक्म किया कि बनी इस्राईल में से और बादशाह की नस्ल में से और शरीफ़ों में से लोगों को हाज़िर करे।4वह बे'ऐब जवान बल्कि खू़बसूरत और हिकमत में माहिर और हर तरह से 'अक़्लमन्द और 'आलिम हों, जिनमें ये लियाक़त हो कि शाही महल ~में खड़े रहें, और वह उनको क़सदियों के 'इल्म और उनकी ज़बान की ता'लीम दें।5और बादशाह ने उनके लिए शाही ख़ुराक में से और अपने पीने की मय में से रोज़ाना वज़ीफ़ा मुक़र्रर किया कि तीन साल तक उनकी परवरिश हो, ताकि इसके बा'द वह बादशाह के सामने खड़े हो सकें।6और उनमें बनी यहूदाह में से दानीएल और हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह थे।7और ख़्वाजासराओं के सरदार ने उनके नाम रख्खे; उसने दानीएल को बेल्तशज़र, हननियाह को सदरक, और मीसाएल को मीसक, और 'अज़रियाह को 'अबदनजू कहा।8लेकिन दानीएल ने अपने दिल में इरादा किया कि अपने आप को शाही खु़राक से और उसकी शराब से, जो वह पीता था, नापाक न करे; तब उसने ख़्वाजासराओं के सरदार से दरख़्वास्त की कि वह अपने आप को नापाक करने से मा'जू़र रखा जाए।9~और ख़ुदा ने दानीएल को ख़्वाजासराओं के सरदार की नज़र में मक़्बूल-ओ-महबूब ठहराया।10चुनाँचे ख़्वाजासराओं के सरदार ने दानीएल से कहा, "मैं अपने ख़ुदावन्द बादशाह से, जिसने तुम्हारा खाना पीना मुक़र्रर किया है डरता हूँ; तुम्हारे चेहरे उसकी नज़र में तुम्हारे हम 'उम्रों के चेहरों से क्यूँ ज़बून हों, और यूँ तुम मेरे सिर को बादशाह के सामने ख़तरे में डालो।"11तब दानीएल ने दारोग़ा से जिसको ख़्वाजासराओं के सरदार ने दानीएल और~हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह पर मुक़र्रर किया था कहा,12"मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू दस दिन तक अपने ख़ादिमों को आज़मा कर देख, और खाने को साग-पात और पीने को पानी हम को दिलवा।13~तब हमारे चेहरे और उन जवानों के चेहरे जो शाही खाना खाते हैं, तेरे सामने देखें जाएँ फिर अपने ख़ादिमों से जो तू मुनासिब समझे वह कर।"14~चुनाँचे उसने उनकी ये बात क़ुबूल की और दस दिनों तक उनको आज़माया।15~और दस दिन के बा'द उनके चेहरों पर उन सब जवानों के चेहरों की निस्बत जो शाही खाना खाते थे, ज़्यादा रौनक़ और ताज़गी नज़र आई।16तब दारोग़ा ने उनकी ख़ुराक और शराब को जो उनके लिए मुक़र्रर थी रोक दिया, और उनको साग-पात खाने को दिया।17~तब ख़ुदा ने उन चारों जवानों को मा'रिफ़त और हर तरह की हिकमत और 'इल्म में महारत बख़्शी, और दानीएल हर तरह की रोया और ख़्वाब में साहब-ए-'इल्म था।18~और जब वह दिन गुज़र गए जिनके बा'द बादशाह के फ़रमान के मुताबिक़ उनको हाज़िर होना था, तो ख़्वाजासराओं का सरदार उनको नबूकदनज़र के सामने ले गया।19और बादशाह ने उनसे बातें कीं और उनमें से दानीएल और हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह की तरह कोई न था, इसलिए वह बादशाह के सामने खड़े रहने लगे।20और हर तरह की ख़ैरमन्दी और अक़्लमन्दी के बारे ~में जो कुछ बादशाह ने उनसे पूछा, उनको तमाम फ़ालगीरों और नजूमियों से जो उसके तमाम मुल्क में थे, दस दर्जा बेहतर पाया।21और दानीएल ख़ोरस बादशाह के पहले साल तक ज़िन्दा था।
1और नबूकदनज़र ने अपनी सल्तनत के दूसरे साल में ऐसे ख़्वाब देखे जिनसे उसका दिल घबरा गया और उसकी नींद जाती रही।2~तब बादशाह ने हुक्म दिया कि फ़ालगीरों और नजूमियों और जादूगरों और कसदियों को बुलाएँ कि बादशाह के ख़्वाब उसे बताएँ। चुनाँचे वह आए और बादशाह के सामने खड़े हुए।3और बादशाह ने उनसे कहा, कि "मैने एक ख़्वाब देखा है, और उस ख़्वाब को दरियाफ़्त करने के लिए मेरी जान बेताब है।”4तब कसदियों ने बादशाह के सामने अरामी ज़बान में 'अर्ज़ किया, "कि ऐ बादशाह, हमेशा ~तक जीता रह! अपने ख़ादिमों से ख़्वाब बयान कर, और हम उसकी ता'बीर करेंगे।"5बादशाह ने कसदियों को जवाब दिया, 'मैं तो ये हुक्म दे चुका हूँ कि अगर तुम ख़्वाब न बताओ और उसकी ता'बीर न करो, तो टुकड़े टुकड़े किए जाओगे और तुम्हारे घर मज़बले हो जाएँगे।6लेकिन अगर ख़्वाब और उसकी ता'बीर बताओ, तो मुझ से इन'आम और बदला और बड़ी 'इज़्ज़त हासिल करोगे; इसलिए ख़्वाब और उसकी ता'बीर मुझ से बयान करो।"7उन्होंने फिर 'अर्ज़ किया, कि "बादशाह अपने ख़ादिमों से ख़्वाब बयान करे, तो हम उसकी ता'बीर करेंगे।"8बादशाह ने जवाब दिया, कि "मैं खू़ब जानता हूँ कि तुम टालना चाहते हो, क्यूँकि तुम जानते हो कि मैं हुक्म दे चुका हूँ।9लेकिन अगर तुम मुझ को ख़्वाब न बताओगे, तो तुम्हारे लिए एक ही हुक्म है, क्यूँकि तुम ने झूट और बहाने की बातें बनाई ताकि मेरे सामने बयान करो कि वक़्त टल जाए; इसलिए ख़्वाब बताओ तो मैं जानूँ कि तुम उसकी ता'बीर भी बयान कर सकते हो।”10कसदियों ने बादशाह से 'अर्ज़ किया, कि "इस ज़मीन पर ऐसा तो कोई भी नहीं जो बादशाह की बात बता सके, और न कोई बादशाह या अमीर या हाकिम ऐसा हुआ है जिसने कभी ऐसा सवाल किसी फ़ालगीर या नजूमी या कसदी से किया हो।11और जो बात बादशाह तलब करता है, निहायत मुश्किल है, और मा'बूदों के सिवा जिनकी सुकूनत इन्सान के साथ नहीं, बादशाह के सामने कोई उसको बयान नहीं कर सकता।"12~इसलिए ~बादशाह ग़ज़बनाक और सख़्त ग़ुस्सा हुआ और उसने हुक्म किया कि बाबुल के तमाम हकीमों को हलाक करें।13~तब यह हुक्म जगह जगह पहुँचा कि हकीम क़त्ल किए जाएँ, तब दानीएल और उसके साथियों को भी ढूँडने लगे कि उनको क़त्ल करें।14तब दानीएल ने बादशाह के जिलौदारों के सरदार अरयूक को, जो बाबुल के हकीमों को क़त्ल करने को निकला था, खै़रमन्दी और 'अक़्ल से जवाब दिया।15~उसने बादशाह के जिलौदारों के सरदार अरयूक से पूछा, "बादशाह ने ऐसा सख़्त हुक्म क्यूँ जारी किया?" तब अरयूक ने दानीएल से इसकी हक़ीक़त बताई।16और दानीएल ने अन्दर जाकर बादशाह से 'अर्ज़ किया कि मुझे मुहलत मिले, तो मैं बादशाह के सामने ता'बीर बयान करूँगा।17तब दानीएल ने अपने घर जाकर हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह अपने साथियों को ख़बर दी,18~ताकि वह इस राज़ के बारे में आसमान के ख़ुदा से रहमत तलब करें कि दानीएल और उसके साथी बाबुल के बाक़ी हकीमों के साथ हलाक न हों।19फिर रात को ख़्वाब में दानीएल पर वह राज़ खुल गया, और उसने आसमान के ख़ुदा को मुबारक कहा।20~दानीएल ने कहा: "ख़ुदा का नाम हमेशा तक मुबारक हो, क्यूँकि हिकमत और कु़दरत उसी की है।21~वही वक़्तों और ज़मानों को तब्दील करता है, वही बादशाहों को मा'जू़ल और क़ायम करता है, वही हकीमों को हिकमत और अक़्लमन्दों को 'इल्म इनायत करता है।22~वही गहरी और छुपी चीज़ों को ज़ाहिर करता है, और जो कुछ अँधेरे में है उसे जानता है और नूर उसी के साथ है।23मैं तेरा शुक्र करता हूँ और तेरी 'इबा'दत करता हूँ ऐ मेरे बाप-दादा के ख़ुदा, जिसने मुझे हिकमत और कु़दरत बख़्शी और जो कुछ हम ने तुझ से माँगा तू ने मुझ पर ज़ाहिर किया, क्यूँकि तू ने बादशाह का मुआ'मिला हम पर ज़ाहिर किया है।"24तब दानीएल अरयूक के पास गया, जो बादशाह की तरफ़ से बाबुल के हकीमों के क़त्ल पर मुक़र्रर हुआ था, और उस से यूँ कहा, कि "बाबुल के हकीमों को हलाक न कर, मुझे बादशाह के सामने ले चल, मैं बादशाह को ता'बीर बता दूँगा।"25तब अरयूक दानीएल को जल्दी से बादशाह के सामने ले गया और 'अर्ज़ किया, कि "मुझे यहूदाह के ग़ुलामों ~में एक शख़्स मिल गया है, जो बादशाह को ता'बीर बता देगा।"26बादशाह ने दानीएल से जिसका लक़ब बेल्तशज़र था पूछा, "क्या तू उस ख़्वाब को जो मैने देखा, और उसकी ता'बीर को मुझ से बयान कर सकता है?"27दानीएल ने बादशाह के सामने 'अर्ज़ किया, कि "वह राज़ जो बादशाह ने पूछा, हुक्मा और नजूमी और जादूगर और फ़ालगीर बादशाह को बता नहीं सकते।28~लेकिन आसमान पर एक ख़ुदा है जो राज़ की बातें ज़ाहिर करता है, और उसने नबूकदनज़र बादशाह पर ज़ाहिर किया है कि आख़िरी दिनों में क्या होने को आएगा; तेरा ख़्वाब और तेरे दिमाग़ी ख़्याल जो तू ने अपने पलंग पर देखे यह हैं:29~ऐ बादशाह, तू अपने पलंग पर लेटा हुआ ख़्याल करने लगा कि आइन्दा को क्या होगा, तब~वह जो राज़ों का खोलने वाला है, तुझ पर ज़ाहिर करता है कि क्या कुछ होगा।30लेकिन इस राज़ के मुझ पर ज़ाहिर होने की वजह यह नहीं कि मुझ में किसी और ज़ी हयात से ज़्यादा हिकमत है, बल्कि यह कि इसकी ता'बीर बादशाह से बयान की जाए और तू अपने दिल के ख़्यालात ~को पहचाने।31~"ऐ बादशाह, तू ने एक बड़ी मूरत देखी; वह बड़ी मूरत जिसकी रौनक़ बेनिहायत थी, तेरे सामने खड़ी हुई और उसकी सूरत हैबतनाक थी।32~उस मूरत का सिर ख़ालिस सोने का था, उसका सीना और उसके बाज़ू चाँदी के, उसका शिकम और उसकी राने तॉम्बे की थीं;33~उसकी टाँगे लोहे की, और उसके पाँव कुछ लोहे के और कुछ मिट्टी के थे।34तू उसे देखता रहा, यहाँ तक कि एक पत्थर हाथ लगाए बगै़र ही काटा गया, और उस मूरत के पाँव पर जो लोहे और मिट्टी के थे लगा और उनको टुकड़े-टुकड़े कर दिया।35~तब लोहा और मिट्टी और ताँम्बा और चाँदी और सोना, टुकड़े टुकड़े किए गए और ताबिस्तानी खलीहान के भूसे की तरह ~हुए, और हवा उनको उड़ा ले गई, यहाँ तक कि उनका पता न मिला; और वह पत्थर जिसने उस मूरत को तोड़ा, एक बड़ा पहाड़ बन गया और सारी ~ज़मीन में फैल गया।36"वह ख़्वाब यह है; और उसकी ता'बीर बादशाह के सामने बयान करता हूँ।37~ऐ बादशाह, तू शहनशाह है, जिसको आसमान के ख़ुदा ने बादशाही और-तवानाई और कु़दरत-ओ-शौकत बख़्शी है।38और जहाँ कहीं बनी आदम रहा करते हैं, उसने मैदान के जानवर और हवा के परिन्दे तेरे हवाले करके तुझ को उन सब का हाकिम बनाया है; वह सोने का सिर तू ही है।39~और तेरे बा'द एक और सल्तनत खड़ी होगी, जो तुझ से छोटी होगी और उसके बा'द एक और सल्तनत ताम्बे की जो पूरी ज़मीन पर हुकूमत करेगी।40~और चौथी सल्तनत लोहे की तरह मज़बूत होगी, और जिस तरह लोहा तोड़ डालता है और सब चीज़ों पर ग़ालिब आता है; हाँ, जिस तरह लोहा सब चीज़ों को टुकड़े-टुकड़े करता और कुचलता है उसी तरह वह टुकड़े-टुकड़े करेगी और कुचल डालेगी।41और जो तू ने देखा कि उसके पाँव और उँगलियाँ, कुछ तो कुम्हार की मिट्टी की और कुछ लोहे की थी; इसलिए उस सल्तनत में फ़ूट होगी, मगर जैसा तू ने देखा कि उसमें लोहा मिट्टी से मिला हुआ था, उसमें लोहे की मज़बूती होगी।42और चूँकि पाँव की उँगलियाँ कुछ लोहे की और कुछ मिट्टी की थीं,~इसलिए सल्तनत कुछ मज़बूत और कुछ कमज़ोर होगी।43~और जैसा तूने देखा कि लोहा मिट्टी से मिला हुआ था, वह बनी आदम से मिले हुए होंगे, लेकिन जैसे लोहा मिट्टी से मेल नहीं खाता वैसे ही वह भी आपस में मेल न खाएँगे।44और उन बादशाहों के दिनों में आसमान का ख़ुदा एक सल्तनत खड़ा करेगा, जो हमेशा बर्बाद न होगी और उसकी हुकूमत किसी दूसरी क़ौम के हवाले न की जाएगी, बल्कि वह इन तमाम हुकूमतों को टुकड़े-टुकड़े और बर्बाद करेगी, और वही हमेशा तक क़ायम रहेगी।45~जैसा तू ने देखा कि वह पत्थर हाथ लगाए बगै़र ही पहाड़ से काटा गया, और उसने लोहे और ताँम्बे और मिट्टी और चाँदी और सोने को टुकड़े-टुकड़े किया; ख़ुदा त'आला ने बादशाह को वह कुछ दिखाया जो आगे को होने वाला हैं, और यह ख़्वाब यक़ीनी है और उसकी ता'बीर यक़ीनी।"46~तब नबूकदनज़र बादशाह ने मुँह के बल गिर कर दानीएल को सिज्दा किया, और हुक्म दिया कि उसे हदिया दें और उसके सामने ख़ुशबू जलाएँ।47बादशाह ने दानीएल से कहा, "हक़ीक़त में तेरा ख़ुदा मा'बूदों का मा'बूद और बादशाहों का ख़ुदावन्द और राज़ों का खोलने वाला है, क्यूँकि तू इस राज़ को खोल सका।"48~तब बादशाह ने दानीएल को सरफ़राज़ किया, और उसे बहुत से बड़े-बड़े तोहफ़े 'अता किए; और उसको बाबुल के तमाम सूबों पर इख़्तियार दिया, और बाबुल के तमाम हकीमों पर हुक्मरानी 'इनायत की।49तब दानीएल ने बादशाह से दरख़्वास्त की और उसने सदरक मीसक और 'अबदनजू को बाबुल के सूबे की ज़िम्मेदारी पर मुक़र्रर किया, लेकिन दानीएल बादशाह के दरबार में रहा।
1नबूकदनज़र बादशाह ने एक सोने की मूरत बनवाई जिसकी लम्बाई साठ हाथ और चौड़ाई छ: हाथ थी, और उसे दूरा के मैदान सूबा-ए-बाबुल में खड़ा किया।2तब नबूकदनज़र बादशाह ने लोगों को भेजा कि नाज़िमों और हाकिमों और सरदारों और क़ाज़ियों और ख़ज़ाँचियों और सलाहकारों और मुफ़्तियों और तमाम सूबों के 'उहदेदारों को जमा' करें, ताकि वह उस मूरत की 'इज़्ज़त को हाज़िर हों जिसको नबूकदनज़र बादशाह ने खड़ा किया था।3तब नाज़िम, और हाकिम, और सरदार, और क़ाज़ी, और ख़ज़ाँची, और सलाहकार, और मुफ़्ती और सूबों के तमाम 'उहदेदार, उस मूरत की 'इज़्ज़त के लिए जिसे नबूकदनज़र बादशाह ने खड़ा किया था जमा' हुए; और वह उस मूरत के सामने जिसको नबूकदनज़र ने खड़ा किया था, खड़े हुए।4~तब एक 'ऐलान करने वाले ने बलन्द आवाज़ से पुकार कर कहा, "ऐ लोगों, ऐ उम्मतों, और ऐ मुख़्तलिफ़ ज़बानें बोलने वालों! तुम्हारे लिए यह हुक्म है कि5जिस वक़्त क़रना, और नै, और सितार, और रबाब, और बरबत, और चग़ाना, और हर तरह के साज़ की आवाज़ सुनो, तो उस सोने की मूरत के सामने जिसको नबूकदनज़र बादशाह ने खड़ा किया है गिर कर सिज्दा करो।6और जो कोई गिर कर सिज्दा न करे, उसी वक़्त आग की जलती भट्टी में डाला जाएगा।”7इसलिए जिस वक़्त सब लोगों ने क़रना, और नै, और सितार, और रबाब, और बरबत, और हर तरह के साज़ की आवाज़ सुनी, तो सब लोगों और उम्मतों और मुख़्तलिफ़ ज़बानें बोलने वालों ने उस मूरत के सामने , जिसको नबूकदनज़र बादशाह ने खड़ा किया था, गिर कर सिज्दा किया।8~तब उस वक़्त चन्द कसदियों ने आकर यहूदियों पर इल्ज़ाम लगाया।9उन्होंने नबूकदनज़र बादशाह से कहा, "ऐ बादशाह, हमेशा तक जीता रह!10~ऐ बादशाह, तूने यह फ़रमान जारी किया है कि जो कोई क़रना, और नै, और सितार, और रबाब, और बरबत, और चुग़ाना, और हर तरह के साज़ की आवाज़ सुने, गिर कर सोने की मूरत को सिज्दा करे।11और जो कोई गिर कर सिज्दा न करे, आग की जलती भट्टी में डाला जाएगा।12अब चन्द यहूदी हैं, जिनको तू ने बाबुल के सूबे की ज़िम्मेदारी पर मुक़र्रर किया है, या'नी सदरक और मीसक और 'अबदनजू, इन आदमियों ने, ऐ बादशाह, तेरी ता'ज़ीम नहीं की। वह तेरे मा'बूदों की 'इबादत नहीं करते, और उस सोने की मूरत को जिसे तू ने खड़ा किया सिज्दा नहीं करते।"13तब नबूकदनज़र ने क़हर-ओ-ग़ज़ब से हुक्म किया कि सदरक और मीसक और 'अबदनजू को हाज़िर करें। और उन्होंने उन आदमियों को बादशाह के सामने हाज़िर किया।14नबूकदनज़र ने उनसे कहा, "ऐ सदरक और मीसक और 'अबदनजू क्या यह सच है कि तुम मेरे मा'बूदों की 'इबादत नहीं करते हो, और उस सोने की मूरत को जिसे मैने खड़ा किया सिज्दा नहीं करते?15अब अगर तुम तैयार रहो कि जिस वक़्त क़रना, और नै, और सितार, और रबाब, और बरबत, और चग़ाना, और हर तरह के साज़ की आवाज़ सुनो, तो उस मूरत के सामने जो मैने बनवाई है गिर कर सिज्दा करो तो बेहतर, लेकिन अगर सिज्दा न करोगे, तो उसी वक़्त आग की जलती भट्टी में डाले जाओगे और कौन सा मा'बूद तुम को मेरे हाथ से छुड़ाएगा?"16~सदरक और मीसक और 'अबदनजू ने बादशाह से 'अर्ज़ किया कि "ऐ नबूकदनज़र, इस हुक्म में हम तुझे जवाब देना ज़रूरी नहीं समझते।17~देख, हमारा ख़ुदा जिसकी हम 'इबादत करते हैं, हम को आग की जलती भट्टी से छुड़ाने की क़ुदरत रखता है, और ऐ बादशाह वही हम को तेरे हाथ से छुड़ाएगा।18और नहीं, तो ऐ बादशाह तुझे मा'लूम हो कि हम तेरे मा'बूदों की 'इबादत नहीं करेंगे, और उस सोने की मूरत को जो तूने खड़ी की है सिज्दा नहीं करेंगे।19तब नबूकदनज़र ग़ुस्से से भर गया, और उसके चेहरे का रंग सदरक और मीसक और 'अबदनजू पर बदल गया, और उसने हुक्म दिया कि भट्टी की आँच मा'मूल से सात गुना ज़्यादा करें।20और उसने अपने लश्कर के चन्द ~ताक़तवर ~पहलवानों को हुक्म दिया कि सदरक और मीसक और 'अबदनजू को बाँध कर आग की जलती भट्टी में डाल दें।21~तब यह मर्द अपने पैजामों-क़मीसों और 'अमामों के साथ बाँधे गए, और आग की जलती भट्टी में फेंक दिए गए।22इसलिए चूँकि बादशाह का हुक्म ताकीदी था और भट्टी की ऑच निहायत तेज़ थी, इसलिए सदरक और मीसक और अबदनजू को उठाने वाले आग के शो'लों से हलाक हो गए;23और यह तीन आदमी या'नी सदरक और मीसक और अबदनजू, बँधे हुए आग की जलती भट्टी में जा पड़े।24तब नबूकदनज़र बादशाह सरासीमा होकर जल्द उठा, और अरकान-ए-दौलत से मुख़ातिब होकर कहने लगा, "क्या हम ने तीन शख़्सों को बँधवा कर आग में नहीं डलवाया?" उन्होंने जवाब दिया,"बादशाह ने सच फ़रमाया है।"25उसने कहा, "देखो, मैं चार शख़्स आग में खुले फिरते देखता हूँ, और उनको कुछ नुक़सान नहीं पहुँचा; और चौथे की सूरत इलाहज़ादे की तरह है।"26तब नबूकदनज़र ने आग की जलती भट्टी के दरवाज़े पर आकर कहा, "ऐ सदरक और मीसक और अबदनजू, ख़ुदा-त'आला के बन्दो! बाहर निकलो और इधर आओ!” इसलिए सदरक और मीसक और अबदनजू आग से निकल आए।27~तब नाज़िमों और हाकिमों और सरदारों और बादशाह के सलाहकारों ने जमा' होकर उन शख़्सों पर नज़र की, और देखा कि आग ने उनके बदनों पर कुछ असर न किया और उनके सिर का एक बाल भी न जलाया, और उनकी पोशाक में कुछ फ़र्क़ न आया और उनसे आग से जलने की बू भी न आती थी।28तब नबूकदनज़र ने पुकार कर कहा, कि "सदरक और मीसक और 'अबदनजू का ख़ुदा मुबारक हो, जिसने अपना फ़रिश्ता भेज कर अपने बन्दों को रिहाई बख़्शी, जिन्होंने उस पर भरोसा करके बादशाह के हुक्म को टाल दिया, और अपने बदनों को निसार किया कि अपने ख़ुदा के अलावा किसी दूसरे मा'बूद की 'इबादत और बन्दगी न करें।29~इसलिए मैं यह फ़रमान जारी करता हूँ कि जो क़ौम या उम्मत या अहल-ए-ज़ुबान, सदरक और मीसक और 'अबदनजू के ख़ुदा के हक़ में कोई ना मुनासिब बात कहें उनके टुकड़े-टुकड़े किए जाएँगे और उनके घर मज़बला हो जाएँगे, क्यूँकि कोई दूसरा मा'बूद नहीं जो इस तरह रिहाई दे सके।"30फिर बादशाह ने सदरक और मीसक और 'अबदनजू को सूबा-ए-बाबुल में सरफ़राज़ किया।
1नबूकदनज़र बादशाह की तरफ़ से तमाम लोगों, उम्मतों और अहल-ए-ज़ुबान के लिए जो तमाम इस ज़मीन पर रहते हैं: तुम्हारी सलामती होती रहे।2~मैने मुनासिब जाना कि उन निशानों और 'अजाइब को ज़ाहिर करूँ जो ख़ुदा-त'आला ने मुझ पर ज़ाहिर ~किए हैं।3~उसके निशान कैसे 'अज़ीम, और उसके 'अजाइब कैसे पसंदीदा हैं! उसकी ममलुकत ~हमेशा की ममलुकत है,और उसकी सल्तनत नसल-दर-नसल।4~मैं, नबूकदनज़र, अपने घर में मुतम'इन और अपने महल में कामयाब था।5~मैने एक ख़्वाब देखा, जिससे मैं परेशान ~हो गया और उन ख़्यालात से जो मैने पलंग पर किए और उन ख़्यालों से जो मेरे दिमाग़ में आए, मुझे परेशानी हुई।6~इसलिए मैने फ़रमान जारी किया कि बाबुल के तमाम हकीम मेरे सामने हाज़िर किए जाएँ, ताकि मुझसे उस ख़्वाब की ता'बीर बयान करें।7~चुनाँचे जादूगर और नजूमी और कसदी और फ़ालगीर हाज़िर हुए, और मैने उनसे अपने ख़्वाब का बयान किया, पर उन्होंने उसकी ता'बीर मुझ से बयान न की।8आख़िरकार दानीएल मेरे सामने आया, जिसका नाम बेल्तशज़र है, जो मेरे मा'बूद का भी नाम है, उसमें मुक़द्दस इलाहों की रूह है; इसलिए मैने उसके आमने-सामने ख़्वाब का बयान किया और कहा :9~"ऐ बेल्तशज़र, जादूगरों के सरदार, चूँकि मैं जानता हूँ कि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमे है, और कि कोई राज़ की बात तेरे लिए मुश्किल नहीं;~इसलिए~जो ख़्वाब मैने देखा उसकी कैफ़ियत और ता'बीर बयान कर।10पलंग पर मेरे दिमाग़ की रोया ये थी: मैने निगाह की और क्या देखता हूँ कि ज़मीन के तह में एक निहायत ऊँचा दरख़्त है।11~वह दरख़्त बढ़ा और मज़बूत हुआ और उसकी चोटी आसमान तक पहुँची, और वह ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देने लगा।12उसके पत्ते खु़शनुमा थे और मेवा फ़िरावान था, और उसमें सबके लिए ख़ुराक थी; मैदान के जानवर उसके साये में और हवा के परिन्दे उसकी शाखों पर बसेरा करते थे, और तमाम बशर ने उस से परवरिश पाई।13"मैने अपने पलंग पर अपनी दिमाग़ी रोया पर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि एक निगहबान, हाँ एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा।14~उसने बलन्द आवाज़ से पुकार कर यूँ कहा कि 'दरख़्त को काटो, उसकी शाखें तराशो, और उसके पत्ते झाड़ो, और उसका फल बिखेर दो; जानवर उसके नीचे से चले जाएँ और परिन्दे उसकी शाखों पर से उड़ जाएँ।15~लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो, हाँ, लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ मैदान की हरी घास में रहने दो, और वह आसमान की शबनम से तर हो, और उसका हिस्सा ज़मीन की घास में हैवानों के साथ हो।16~उसका दिल इन्सान का दिल न रहे, बल्कि उसको हैवान का दिल दिया जाए; और उस पर सात दौर गुज़र जाएँ।17यह हुक्म निगहबानों के फ़ैसले से है, और यह हुक्म फ़रिश्तों के कहने के मुताबिक़ है, ताकि सब जानदार पहचान लें कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और जिसको चाहता है उसे देता है, बल्कि आदमियों में से अदना आदमी को उस पर क़ायम करता है।'18मैं नबूकदनज़र बादशाह ने यह ख़्वाब देखा है। ऐ बेल्तशज़र, तू इसकी ता'बीर बयान कर, क्यूँकि मेरी ममलुकत के तमाम हकीम मुझसे उसकी ता'बीर बयान नहीं कर सकते, लेकिन तू कर सकता है; क्यूँकि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमें मौजूद है।"19तब दानीएल जिसका नाम बेल्तशज़र है, एक वक़्त तक ख़ामोश रहा, और अपने ख़्यालात में परेशान हुआ। बादशाह ने उससे कहा, "ऐ बेल्तशज़र, ख़्वाब और उसकी ता'बीर से तू परेशान न हो।" बेल्तशज़र ने जवाब दिया, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, ये ख़्वाब तुझसे कीना रखने वालों के लिए और उसकी ता'बीर तेरे दुश्मनों के लिए हो!20~वह दरख़्त जो तूने देखा कि बढ़ा और मज़बूत हुआ, जिसकी चोटी आसमान तक पहुँची और ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देता था;21जिसके पत्ते ख़ुशनुमा थे और मेवा फ़रावान था, जिसमें सबके लिए ख़ुराक थी। जिसके साये में मैदान के जानवर और शाखों पर हवा के परिन्दे बसेरा करते थे।22ऐ बादशाह, वह तू ही है जो बढ़ा और मज़बूत हुआ, क्यूँकि तेरी बुज़ुर्गी बढ़ी और आसमान तक पहुँची और तेरी सल्तनत ज़मीन की इन्तिहा तक।23और जो बादशाह ने देखा कि एक निगहबान, यहाँ, एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा और कहने लगा, 'दरख़्त को काट डालों और उसे बर्बाद करो, लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो; बल्कि उसे लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ, मैदान की हरी घास में रहने दो कि वह आसमान की शबनम से तर हो, और जब तक उस पर सात दौर न गुज़र जाएँ उसका हिस्सा ज़मीन के हैवानों के साथ हो।'24ऐ बादशाह, इसकी ता'बीर और हक़-त'आला का वह हुक्म, जो बदशाह मेरे खुदावन्द के हक़ में हुआ है यही है,25~कि तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा, और तू बैल की तरह घास खाएगा और आसमान की शबनम से तर होगा, और तुझ पर सात दौर गुज़र जाएँगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला इन्सान की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और उसे जिसको चाहता है देता है|26और यह जो उन्होंने हुक्म किया कि दरख़्त की जड़ों के हिस्से को बाक़ी रहने दो, उसका मतलब ये है कि जब तू मा'लूम कर चुकेगा कि बादशाही का इख़्तियार आसमान की तरफ़ से है, तो तू अपनी सल्तनत पर फिर क़ायम हो जाएगा।27इसलिए~ऐ बादशाह, तेरे सामने मेरी सलाह क़ुबूल हो और तू अपनी ख़ताओं को सदाक़त से और अपनी बदकिरदारी को मिस्कीनों पर रहम करने से दूर कर, मुम्किन है इससे तेरा इत्मिनान ज़्यादा हो।"28यह सब कुछ नबूकदनज़र बादशाह पर गुज़रा।29~एक साल बा'द वह बाबुल के शाही महल में टहल रहा था।30~बादशाह ने फ़रमाया, "क्या यह बाबुल-ए-आज़म नहीं, जिसको मैने अपनी तवानाई ~की कु़दरत से ता'मीर किया है कि दार-उस-सल्तनत और मेरे जाह-ओ-जलाल का नमूना हो?”31~बादशाह यह बात कह ही रहा था कि आसमान से आवाज़ आई, "ऐ नबूकदनज़र बादशाह, तेरे हक़ में यह फ़तवा है कि सल्तनत तुझ से जाती रही।32और तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा और बैल की तरह घास खाएगा, और सात दौर तुझ पर गुज़ेरेंगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है, और उसे जिसको चाहता है, देता है।"33~उसी वक़्त नबूकदनज़र बादशाह पर यह बात पूरी हुई, और वह आदमियों में से निकाला गया और बैलों की तरह घास खाता रहा और उसका बदन आसमान की शबनम से तर हुआ, यहाँ तक कि उसके बाल उक़ाब के परों की तरह और उसके नाख़ून परिन्दों के चँगुल की तरह बढ़ गए।34और इन दिनों के गुज़रने के बा'द, मैं ~नबूकदनज़र ने आसमान की तरफ़ आँखें उठाई~और मेरी 'अक़्ल मुझमे फिर आई और मैने हक़-त'आला का शुक्र किया, और उस हय्युल-क़य्यूम ~की बड़ाई-ओ-सना की, जिसकी सल्तनत हमेशा और जिसकी ममलुकत नसल-दर-नसल है।35~और ज़मीन के तमाम बाशिन्दे नाचीज़ गिने जाते हैं और वह आसमानी लश्कर और ज़मीन के रहने वालों के साथ जो कुछ चाहता है करता है; और कोई नहीं जो उसका हाथ रोक सके। या उससे कहे कि "तू क्या करता है?"36उसी वक़्त मेरी 'अक़्ल मुझ में फिर आई, और मेरी सल्तनत की शौकत के लिए मेरा रौ'ब और दबदबा फिर मुझमे बहाल हो गया, और मेरे सलाहकारों और अमीरों ने मुझे फिर ढूँडा और मैं अपनी ममलुकत में क़ायम हुआ और मेरी 'अज़मत में अफ़ज़ूनी हुई।37~अब मैं नबूकदनज़र, आसमान के बादशाह की बड़ाई और 'इज़्ज़त-ओ-ता'ज़ीम करता हूँ, क्यूँकि वह अपने सब कामों में रास्त और अपनी सब राहों में 'इन्साफ़ करता है; और जो मग़रूरी में चलते हैं उनको ज़लील कर सकता है।
1~बेलशज़र बादशाह ने अपने एक हज़ार हाकिमों की बड़ी धूमधाम से मेहमान नवाज़ी ~की, और उनके सामने शराबनोशी की।2बेलशज़र ने शराब से मसरूर होकर हुक्म किया कि सोने चाँदी के बर्तन जो नबूकदनज़र उसका बाप यरुशलीम की~हैकल से निकाल लाया था, लाएँ ताकि बादशाह और उसके हाकिमों और उसकी बीवियाँ और बाँदियाँ उनमें मयख़्वारी करें।3~तब सोने के बर्तन को जो हैकल से, या'नी ख़ुदा के घर से जो यरूशलीम में हैं ले गए थे, लाए और बादशाह और उसके हाकिमों और उसकी बीवियों और बाँदियों ~ने उनमें शराब पी।4उन्होंने शराब पी और सोने और चाँदी और पीतल और लोहे और लकड़ी और पत्थर के बुतों की बड़ाई की।5~उसी वक़्त आदमी के हाथ की उंगलियाँ ज़ाहिर हुईं और उन्होंने शमा'दान के मुक़ाबिल बादशाही महल की दीवार के गच पर लिखा, और बादशाह ने हाथ का वह ~हिस्सा जो लिखता था देखा।6~तब बादशाह के चेहरे का रंग उड़ गया और उसके ख़्यालात उसको परेशान करने लगे, यहाँ तक कि उसकी कमर के जोड़ ढीले हो गए और उसके घुटने एक दूसरे से टकराने लगे।7~बादशाह ने चिल्ला कर कहा कि नजूमियों और कसदियों और फ़ालगीरों को हाज़िर करें। बादशाह ने बाबुल के हकीमों से कहा, "जो कोई इस लिखे हुए को पढ़े और इसका मतलब मुझ से बयान करे, अर्ग़वानी ख़िल'अत पाएगा और उसकी गर्दन में ज़र्रीन तौक़ पहनाया जाएगा, और वह ममलुकत में तीसरे दर्जे का हाकिम होगा।"8तब बादशाह के तमाम हकीम हाज़िर हुए, लेकिन न उस लिखे हुए को पढ़ सके और न बादशाह से उसका मतलब बयान कर सके।9~तब बेलशज़र बादशाह बहुत घबराया और उसके चेहरे का रंग उड़ गया, और उसके हाकिम परेशान हो गए।10अब बादशाह और उसके हाकिमों की बातें सुनकर बादशाह की वालिदा जश्नगाह में आई और कहने लगी, "ऐ बादशाह, हमेशा तक जीता रह! तेरे ख़्यालात तुझको परेशान न करें और तेरा चेहरा उदास न हो।11~तेरी ममलुकत में एक शख़्स है जिसमें पाक इलाहों की रूह है, और तेरे बाप के दिनों में नूर और 'अक़्ल और हिकमत, इलाहों की हिकमत की तरह उसमें पाई जाती थी; और उसको नबूकदनज़र बादशाह, तेरे बाप ने जादूगरों और नजूमियों और कसदियों और फ़ालगीरों का सरदार बनाया था।12~क्यूँकि उसमें एक फ़ाज़िल रूह और दानिश और 'अक़्ल और ख़्वाबों की ता'बीर और 'उक़्दा कुशाई और मुश्किलात के हल की ताक़त थी-उसी दानीएल में जिसका नाम बादशाह ने बेल्तशज़र रख्खा था - इसलिए दानीएल को बुलवा, वह मतलब बताएगा।"13~तब दानीएल बादशाह के सामने हाज़िर किया गया। बादशाह ने दानीएल से पूछा, "क्या तू वही दानीएल है जो यहूदाह के ग़ुलामों में से है, जिनको बादशाह मेरा बाप यहूदाह से लाया?14मैने तेरे बारे में सुना है कि इलाहों की रूह तुझमें है, और नूर और~'अक़्ल~और कामिल हिकमत तुझ में है।15हकीम और नजूमी मेरे सामने हाज़िर किए गए, ताकि इस लिखे हुए को पढ़ें और इसका मतलब मुझ से बयान करें, लेकिन वह इसका मतलब बयान नहीं कर सके।16~और मैने तेरे बारे में सुना है कि तू ता'बीर और मुश्किलात के हल पर क़ादिर है। इसलिए अगर तू इस लिखे हुए को पढ़े और इसका मतलब मुझ से बयान करे, तो अर्ग़वानी खिल'अत पाएगा और तेरी गर्दन में ज़र्रीन तौक़ पहनाया जाएगा और तू ममलुकत में तीसरे दर्जे का हाकिम होगा।”17~तब दानीएल ने बादशाह को जवाब दिया, "तेरा इन'आम तेरे ही पास रहे और अपना सिला किसी दूसरे को दे, तोभी मैं बादशाह के लिए इस लिखे हुए को पढूँगा और इसका मतलब उससे बयान करूँगा।18ऐ बादशाह, ख़ुदा त'आला ने नबूकदनज़र, तेरे बाप को सल्तनत और हशमत और शौकत और 'इज़्ज़त बख़्शी।19~और उस हशमत की वजह ~से जो उसने उसे बख़्शी तमाम लोग और उम्मतें और अहल-ए-ज़ुबान उसके सामने काँपने और डरने लगे। उसने जिसको चाहा हलाक किया और जिसको चाहा ज़िन्दा रख्खा, जिसको चाहा सरफ़राज़ किया और जिसको चाहा ज़लील किया ।20लेकिन जब उसकी तबी'अत में ग़ुरूर समाया और उसका दिल ग़ुरूर से सख़्त हो गया, तो वह तख़्त-ए-सल्तनत से उतार दिया गया और उसकी हशमत जाती रही।21~और वह बनी आदम के बीच से हॉक कर निकाल दिया गया, और उसका दिल हैवानों का सा बना और गोरख़रों के साथ रहने लगा और उसे बैलों की तरह घास खिलाते थे और उसका बदन आसमान की शबनम से तर हुआ; जब तक उसने मा'लूम न किया कि ख़ुदा-त'आला इन्सान की ममलुकत में हुक्मरानी करता है, और जिसको चाहता है उस पर क़ायम करता है।22लेकिन तू, ऐ बेलशज़र, जो उसका बेटा है; बावजूद यह कि तू इस सब को जानता था तोभी तूने अपने दिल से 'आजिज़ी न की।23बल्कि आसमान के ख़ुदावन्द के सामने अपने आप को बलन्द किया, और उसकी हैकल के बर्तन तेरे पास लाए और तूने अपने हाकिमों और अपनी बीवियों और बाँदियों के साथ उनमें मय-ख़्वारी की, और तूने सोने और चाँदी और पीतल और लोहे और लकड़ी और पत्थर के बुतों की बड़ाई की, जो न देखते न सुनते और न जानते हैं; और उस ख़ुदा की तम्जीद न की जिसके हाथ में तेरा दम है, और जिसके क़ाबू में तेरी सब राहें हैं।24"इसलिए उसकी तरफ से हाथ का वह ~हिस्सा भेजा गया, और यह नविश्ता लिखा गया।25और यूँ लिखा है: मिने, मिने, तक़ील-ओ-फ़रसीन।26और उसके मानी यह हैं : मिने, या'नी ख़ुदा ने तेरी ममलुकत महसूब किया और उसे तमाम कर डाला |27~तक़ील, या'नी तू तराज़ू में तोला गया और कम निकला।28फ़रीस, या'नी तेरी ममलुकत फ़ारसियों को दी गई।"29~तब बेलशज़र ने हुक्म किया, और दानीएल को अर्ग़वानी लिबास पहनाया गया और ज़र्रीन तौक़ उसके गले में डाला गया, और 'ऐलान कराया गया कि वह ममलुकत में तीसरे दर्जे का हाकिम हो।30उसी रात को बेलशज़र, कसदियों का बादशाह क़त्ल हुआ।31~और दारा मादी ने बासठ बरस की 'उम्र में उसकी सल्तनत हासिल की।
1दारा को पसन्द आया कि ममलुकत पर एक सौ बीस नाज़िम मुक़र्रर करे, जो सारी ममलुकत पर हुकूमत करें।2और उन पर तीन वज़ीर हों जिनमें से एक दानीएल था, ताकि नाज़िम उनको हिसाब दें और बादशाह नुक़सान न उठाए।3और चूँकि दानीएल में फ़ाज़िल रूह थी, इसलिए वह उन वज़ीरों और नाज़िमों पर सबक़त ले गया और बादशाह ने चाहा कि उसे सारे मुल्क पर मुख़्तार ठहराए।4तब उन वज़ीरों और नाज़िमों ने चाहा कि हाकिमदारी में दानीएल पर कु़सूर साबित करें, लेकिन वह कोई मौक़ा' या कु़सूर न पा सके, क्यूँकि वह ईमानदार था और उसमें कोई ख़ता या बुराई~न थी।5तब उन्होंने कहा, कि "हम इस दानीएल को उसके ख़ुदा की शरी'अत के अलावा किसी और बात में कु़सूरवार न पाएँगे।”6इसलिए यह वज़ीर और नाज़िम बादशाह के ~सामने जमा' हुए और उससे इस तरह कहने लगे, कि "ऐ दारा बादशाह, हमेशा ~तक जीता रह !7ममलुकत के तमाम वज़ीरों और हाकिमों और नाज़िमों और सलाहकारों और सरदारों ने एक साथ मशवरा किया है कि एक ख़ुस्रवाना तरीक़ा मुक़र्रर करें, और एक इम्तिनाई फ़रमान जारी करें, ताकि ऐ बादशाह, तीस रोज़ तक जो कोई तेरे अलावा किसी मा'बूद या आदमी से कोई दरख़्वास्त करे, शेरों की माँद में डाल दिया जाए।8अब ऐ बादशाह, इस फ़रमान को क़ायम कर और लिखे हुए पर दस्तख़त कर, ताकि तब्दील न हो जैसे मादियों और फ़ारसियों के तौर तरीक़े जो तब्दील नहीं होते।"9तब दारा बदशाह ने उस लिखे हुए और फ़रमान पर दस्तख़त कर दिए।10और जब दानीएल ने मा'लूम किया कि उस लिखे हुए पर दस्तख़त हो गए, तो अपने घर में आया और उसकी कोठरी का दरीचा यरूशलीम की तरफ़ खुला था, वह दिन में तीन मरतबा हमेशा की तरह ~घुटने टेक कर ख़ुदा के ~सामने दु'आ और उसकी शुक्रगुज़ारी करता रहा।11तब यह लोग जमा' हुए और देखा कि दानीएल अपने ख़ुदा के ~सामने दु'आ और इल्तिमास कर रहा है।12~तब उन्होंने बादशाह के पास आकर उसके ~सामने उसके फ़रमान का यूँ ज़िक्र किया, कि "ऐ बादशाह, क्या तूने इस फ़रमान पर दस्तख़त नहीं किए, कि~तीस रोज़ तक जो कोई तेरे अलावा किसी मा'बूद या आदमी से कोई दरख़्वास्त करे, शेरों की मान्द में डाल दिया जाएगा?" बादशाह ने जवाब दिया, "मादियों और फ़ारसियों के ना बदलने वाले तौर तरीक़े के मुताबिक़ यह बात सच है।"13~तब उन्होंने बादशाह के सामने 'अर्ज़ किया, कि "ऐ बादशाह, यह दानीएल जो यहूदाह के ग़ुलामों में से है, न तेरी परवा करता है और न उस इम्तिनाई फ़रमान को जिस पर तूने दस्तख़त किए हैं काम में लाता है, बल्कि हर रोज़ तीन बार दु'आ करता है।"14जब बादशाह ने यह बातें सुनीं, तो निहायत रन्जीदा हुआ और उसने दिल में चाहा कि दानीएल को छुड़ाए, और सूरज डूबने तक उसके छुड़ाने में कोशिश करता रहा।15~फिर यह लोग बादशाह के ~सामने जमा' ~हुए और बादशाह से कहने लगे, कि "ऐ बादशाह, तू समझ ले कि मादियों और फ़ारसियों के तौर तरीक़े यूँ हैं कि जो फ़रमान और क़ानून बादशाह मुक़र्रर करे कभी नहीं बदलता।"16~तब बादशाह ने हुक्म दिया, और वह दानीएल को लाए और शेरों की माँद में डाल दिया, पर बादशाह ने दानीएल से कहा, 'तेरा खुदा, जिसकी तू हमेशा 'इबादत करता है तुझे छुड़ाएगा।"17~और एक पत्थर लाकर उस माँद के मुँह पर रख दिया, और बादशाह ने अपनी और अपने अमीरों की मुहर उस पर कर दी, ताकि वह बात जो दानीएल के हक़ में ठहराई गई थी न बदले।18तब बादशाह अपने महल में गया और उसने सारी रात फ़ाक़ा किया, और मूसीक़ी के साज़ उसके सामने न लाए और उसकी नींद जाती रही।19और बादशाह सुबह बहुत सवेरे उठा, और जल्दी से शेरों की माँद की तरफ़ चला।20~और जब माँद पर पहुँचा, तो ग़मनाक आवाज़ से दानीएल को पुकारा। बादशाह ने दानीएल को ख़िताब करके कहा, "ऐ दानीएल, ज़िन्दा ख़ुदा के बन्दे, क्या तेरा ख़ुदा जिसकी तू हमेशा 'इबादत करता है, क़ादिर हुआ कि तुझे शेरों से छुड़ाए?"21~तब दानीएल ने बादशाह से कहा, "ऐ बादशाह, हमेशा तक जीता रह!22~मेरे ख़ुदा ने अपने फ़रिश्ते को भेजा और शेरों के मुँह बन्द कर दिए, और उन्होंने मुझे नुक़सान नहीं पहुँचाया क्यूँकि मैं उसके सामने बे-गुनाह साबित हुआ, और तेरे सामने भी ऐ बादशाह, मैने ख़ता नहीं की।"23इसलिए बादशाह निहायत ख़ुश हुआ और हुक्म दिया कि दानीएल को उस माँद से निकालें। तब दानीएल उस माँद से निकाला गया, और मा'लूम हुआ कि उसे कुछ नुक़सान नहीं पहुँचा, क्यूँकि उसने अपने ख़ुदा पर भरोसा किया था।24और बादशाह ने हुक्म दिया और वह उन शख़्सों को जिन्होंने दानीएल की शिकायत की थी लाए, और उनके बच्चों और बीवियों के साथ उनको शेरों की मान्द में डाल दिया; और शेर उन पर ग़ालिब आए और इससे पहले कि मान्द की तह तक पहुँचें, शेरों ने उनकी सब हड्डियाँ तोड़ डालीं।25~तब दारा बादशाह ने सब लोगों और क़ौमों और अहल-ए-ज़ुबान को जो इस ज़मीन पर बसते थे, ख़त लिखा: "तुम्हारी सलामती बढ़ती जाये !26मैं यह फ़रमान जारी करता हूँ कि मेरी ममलुकत के हर एक सूबे के लोग, दानीएल के ख़ुदा के सामने डरते और काँपते हों क्यूँकि वही ज़िन्दा ख़ुदा है और हमेशा क़ायम है; और उसकी सल्तनत लाज़वाल है और उसकी ममलुकत हमेशा तक रहेगी।27वही छुड़ाता और बचाता है, और आसमान और ज़मीन में वही निशान और 'अजाइब दिखाता है, उसीने दानीएल को शेरों के पंजों से छुड़ाया है।"28इसलिए यह दानीएल दारा की सल्तनत और ख़ोरस फ़ारसी की सल्तनत में कामयाब रहा।,
1~शाह-ए-बाबुल बेलशज़र के पहले साल में दानीएल ने अपने बिस्तर पर ख़्वाब में अपने सिर के दिमाग़ी ख़्यालात की रोया देखी। तब उसने उस ख़्वाब को लिखा, और उन ख़्यालात का मुकम्मल बयान किया।2दानीएल ने यूँ कहा, कि "मैने रात को एक ख्व़ाब देखा, और क्या देखता हूँ कि आसमान की चारों हवाएँ समन्दर पर ज़ोर से चलीं।3और समन्दर से चार बड़े हैवान, जो एक दूसरे से मुख़्तलिफ़ थे निकले।4पहला शेर-ए-बबर की तरह था, और उक़ाब के से बाज़ू रखता था; और मैं देखता रहा, जब तक उसके पर उखाड़े गए और वह ज़मीन से उठाया गया, और आदमी की तरह पाँव पर खड़ा किया गया और इन्सान का दिल उसे दिया गया।5और क्या देखता हूँ कि एक दूसरा हैवान रीछ की तरह है, और वह एक तरफ़ सीधा खड़ा हुआ; और उसके मुँह में उसके दाँतों के बीच तीन पसलियाँ थीं, और उन्होंने उससे कहा, 'कि उठ, और कसरत से गोश्त खा।'6फिर मैने निगाह की, और क्या देखता हूँ कि एक और हैवान तेंदवे की तरह उठा, जिसकी पीठ पर परिन्दे के से चार बाज़ू थे और उस हैवान के चार सिर थे; और सल्तनत उसे दी गई।7फिर मैने रात को ख़्वाब में देखा, और क्या देखता हूँ कि चौथा हैवान हौलनाक और हैबतनाक और निहायत ज़बरदस्त है, और उसके दाँत लोहे के बड़े-बड़े थे; वह निगल जाता और टुकड़े टुकड़े करता था, और जो कुछ बाक़ी बचता उसको पाँव से लताड़ता था, और यह उन सब पहले हैवानों से मुख़्तलिफ़ था और उसके दस सींग थे।8~मैं ने उन सींगो पर ग़ौर से नज़र की, और क्या देखता हूँ कि उनके बीच ~से एक और छोटा सा सींग निकला, जिसके आगे पहलों में से तीन सींग जड़ से उखाड़े गए, और क्या देखता हूँ कि उस सींग में इन्सान के सी आँखे ~हैं और एक मुँह है जिस से ग़ुरूर की बातें निकलती हैं।9"मेरे देखते हुए तख़्त लगाए गए, और पुराने दिनों में बैठ गया; उसका लिबास बर्फ़ की तरह सफ़ेद था, और उसके सिर के बाल ख़ालिस ऊन की तरह थे; उसका तख़्त आग के शोले की तरह था, और उसके पहिये जलती आग की तरह थे।10~उसके सामने से एक आग का दरिया जारी था, हज़ारों हज़ार उसकी ख़िदमत में हाज़िर थे और लाखों लाख उसके सामने खड़े थे, 'अदालत हो रही थी, और किताबें खुली थी।11'मैं देख ही रहा था कि उस सींग की ग़ुरूर की बातों की आवाज़ की वजह से, मेरे देखते हुए वह हैवान मारा गया और उसका बदन हलाक करके शोलाज़न आग में डाला गया।12~और बाक़ी हैवानों की सल्तनत भी उन से ले ली गई, लेकिन वह एक ज़माना और एक दौर ज़िन्दा रहे।13~'मैने रात को ख़्वाब में देखा, और क्या देखता हूँ एक शख़्स आदमज़ाद की तरह आसमान के बा'दलों के साथ आया और गुज़रे दिनों तक पहुँचा,वह उसे उसके सामने लाए।14और सल्तनत और हशमत और ममलुकत उसे दी गई, ताकि सब लोग और उम्मतें और अहल-ए-ज़ुबान उसकी ख़िदमत गुज़ारी करें उसकी सल्तनत हमेशा की सल्तनत है जो जाती न रहेगी और उसकी ममलुकत लाज़वाल होगी।15~"मुझ दानीएल की रूह मेरे बदन में मलूल हुई, और मेरे दिमाग़ के ख़्यालात ने मुझे परेशान कर दिया।16जो मेरे नज़दीक खड़े थे, मैं उनमें से एक के पास गया और उससे इन सब बातों की हक़ीक़त दरियाफ़्त की, इसलिए उसने मुझे बताया और इन बातों का मतलब समझा दिया,17~'यह चार बड़े हैवान चार बादशाह हैं, जो ज़मीन पर बर्पा ~होंगे।18लेकिन हक़-त'आला के पाक लोग सल्तनत ले लेंगे और हमेशा तक हाँ हमेशा से हमेशा तक उस सल्तनत के मालिक रहेंगे।19" तब मैने चाहा कि चौथे हैवान की हक़ीक़त समझूँ, जो उन सब से मुख़्तलिफ़ और निहायत हौलनाक था, जिसके दाँत लोहे के और नाख़ून पीतल के थे, जो निगलता और टुकड़े-टुकड़े करता और जो कुछ बचता उसको पाँव से लताड़ता था।20और दस सींगों की हक़ीक़त जो उसके सिर पर थे, और उस सींग की जो निकला और जिसके आगे तीन गिर गए, या'नी जिस सींग की आँखें थीं और एक मुँह था जो बड़े ग़ुरूर की बातें करता था, और जिसकी सूरत उसके साथियों से ज़्यादा रो'ब दार थी।21~मैं ने देखा कि वही सींग मुक़द्दसों से जंग करता और उन पर ग़ालिब आता रहा।22जब तक कि पुराने दिन न आये, और हक़ त'आला के पाक लोगों का इन्साफ़ न किया गया, और वक़्त आ न पहुँचा कि पाक लोग सल्तनत के मालिक हों।23~"उसने कहा, कि चौथा हैवान दुनिया की चौथी सल्तनत जो तमाम सल्तनतों से मुख़तलिफ़ है,और ज़मीन को निगल जायेगी और उसे लताड़ कर टुकड़े-टुकड़े करेगी।24और वह दस सींग दस बादशाह हैं, जो उस सल्तनत में खड़े होंगे; और उनके बा'द एक और खड़ा होगा, और वह पहलों से मुख़्तलिफ़ होगा और तीन बादशाहों को पस्त करेगा।25और वह हक़-त'आला के ख़िलाफ़ बातें करेगा, और हक़ त'आला के मुक़द्दसों को तंग करेगा और मुक़र्ररा वक़्त व शरी'अत को बदलने की कोशिश करेगा, और वह एक दौर और दौरों और नीम दौर तक उसके हवाले किए जाएँगे।26~तब 'अदालत क़ायम होगी,और उसकी सल्तनत उससे ले लेंगे कि उसे हमेशा के लिए नेस्त-ओ-नाबूद करें।27और तमाम आसमान के नीचे सब मुल्कों की सल्तनत और ममलुकत और सल्तनत की हशमत हक़ त'आला के मुक़द्दस लोगों को बख़्शी जाएगी, उसकी सल्तनत हमेशा की सल्तनत है और तमाम ममलुकत उसकी ,ख़िदमत गुज़ार और फ़रमाबरदार होंगी |28"यहाँ पर यह हुक्म पूरा हुआ, मैं दानीएल अपने शकों से निहायत घबराया और मेरा चेहरा मायूस हुआ, लेकिन मैने यह बात दिल ही में रख्खी।"
1बेलशज़र बादशाह की सल्तनत के तीसरे साल में मुझ को, हाँ, मुझ दानीएल को एक ख़्वाब नज़र आया, या'नी मेरे पहले~ख़्वाब~के बा'द।2और मैंने~'आलम-ए-रोया~में देखा, और जिस वक़्त मैने देखा, ऐसा मा'लूम हुआ कि मैं महल-ए-सोसन में था, जो सूबा-ए- 'ऐलाम में है। फिर मैने 'आलम-ए-रोया ही में देखा कि मैं दरिया-ए-ऊलाई के किनारे पर हूँ।3~तब मैने आँख उठा कर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि दरिया के पास एक मेंढा खड़ा है जिसके दो सींग हैं, दोनों सींग ऊँचे थे, लेकिन एक दूसरे से बड़ा था और बड़ा दूसरे के बा'द निकला था।4मैने उस मेंढे को देखा कि पश्चिम-और-उत्तर-और-दक्खिन की तरफ़ सींग मारता है, यहाँ तक कि न कोई जानवर उसके सामने खड़ा हो सका और न कोई उससे छुड़ा सका, पर वह जो कुछ चाहता था करता था, यहाँ तक कि वह बहुत बड़ा हो गया |5~और मैं सोच ही रहा था कि एक बकरा पश्चिम की तरफ़ से आकर तमाम ज़मीन पर ऐसा फिरा कि ज़मीन को भी न छुआ, और उस बकरे की दोनों आँखों के बीच एक 'अजीब सींग था।6और वह उस दो सींग वाले मेंढ़े के पास, जिसे मैने दरिया के किनारे खड़ा देखा था आया और अपने ज़ोर के क़हर से उस पर हमलावर हुआ।7~और मैने देखा कि वह मेंढे के क़रीब पहुँचा और उसका ग़ज़ब उस पर भड़का और उसने मेंढे को मारा और उसके दोनों सींग तोड़ डाले और मेंढे में उसके मुक़ाबले की हिम्मत न थी, तब उसने उसे ज़मीन पर पटख़ दिया और उसे लताड़ा और कोई न था कि मेंढे को उससे छुड़ा सके।8~और वह बकरा निहायत बुज़ुर्ग हुआ, और जब वह निहायत ताक़तवर हुआ तो उसका बड़ा सींग टूट गया और उसकी जगह चार अजीब सींग आसमान की चारों हवाओं की तरफ़ निकले।9और उनमें से एक से एक छोटा सींग निकला, जो दक्खिन और पूरब और जलाली मुल्क की तरफ़ बे निहायत बढ़ गया।10और वह बढ़ कर अजराम-ए-फ़लक तक पहुँचा, और उसने कुछ अजराम-ए-फ़लक और सितारों को ज़मीन पर गिरा दिया और उनको लताड़ा।11~बल्कि उसने अजराम के फ़रमाँरवाँ तक अपने आप को बलन्द किया, और उससे दाइमी क़ुर्बानी को छीन लिया और उसका मक़दिस गिरा दिया।12और अजराम ख़ताकारी की वजह से क़ायम रहने वाली क़ुर्बानी के साथ उसके हवाले किए गए, और उसने सच्चाई को ज़मीन पर पटख़ दिया और वह कामयाबी के साथ यूँ ही करता रहा।13~तब मैने एक फ़रिश्ते को कलाम करते सुना, और दूसरे फ़रिश्ते ने उसी फ़रिश्ते से जो कलाम करता था पूँछा कि दाइमी क़ुर्बानी और वीरान करने वाली ख़ताकारी की रोया जिसमें मक़दिस और अजराम पायमाल होते हैं, कब तक रहेगी?"14~और उसने मुझ से कहा, कि"दो हज़ार तीन सौ सुबह-और-शाम तक, उसके बा'द मक़दिस पाक किया जाएगा।"15~फिर यूँ हुआ कि जब मैं दानीएल ने यह रोया देखी, और इसकी ता'बीर की फ़िक्र में था, तो क्या देखता हूँ कि मेरे सामने कोई इन्सान सूरत खड़ा है।16और मैने ऊलाई में से आदमी की आवाज़ सुनी, जिसने बलन्द आवाज़ से कहा, कि"ऐ जबराईल, इस शख़्स को इस रोया के मा'ने ~समझा दे।"17चुनाँचे वह जहाँ मैं खड़ा था नज़दीक आया, और उसके आने से मैं डर गया और मुँह के बल गिरा, पर उसने मुझसे कहा, "ऐ आदमज़ाद! समझ ले कि यह रोया आख़िरी ज़माने के ज़रिए' है।"18~और जब वह मुझसे बातें कर रहा था, मैं गहरी नींद में मुँह के बल ज़मीन पर पड़ा था, लेकिन उसने मुझे पकड़ कर सीधा खड़ा किया,19और कहा कि"देख, मैं तुझे समझाऊँगा कि क़हर के आख़िर में क्या होगा, क्यूँकि यह हुक्म आख़िरी मुक़र्ररा वक़्त के बारे है।20~जो मेंढा तू ने देखा, उसके दोनों सींग मादी और फ़ारस के बादशाह हैं।21और वह जसीम बकरा यूनान का बादशाह है, और उसकी आँखों के बीच का बड़ा सींग पहला बादशाह है।22~और उसके टूट जाने के बा'द, उसकी जगह जो चार और निकले वह चार सल्तनतें हैं जो उसकी क़ौम में क़ायम होंगी, लेकिन उनका इख़्तियार उसकी तरह न होगा।23और उनकी सल्तनत के आख़िरी दिनों में जब ख़ताकार लोग हद तक पहुँच जाएँगे, तो एक सख़्त और बेरहम बादशाह खड़ा होगा।24~यह बड़ा ज़बरदस्त होगा लेकिन अपनी ताक़त से नहीं, और 'अजीब तरह से बर्बाद करेगा और कामयाब होगा और काम करेगा और ताक़तवरों और मुक़द्दस लोगों को हलाक करेगा।25~और अपनी चतुराई से ऐसे काम करेगा कि उसकी फ़ितरत के मन्सूबे उसके हाथ में खू़ब अन्जाम पाएँगे, और दिल में बड़ा ग़ुरूर करेगा और सुलह के वक़्त में बहुतों को हलाक करेगा; वह बादशाहों के बादशाह से भी मुक़ाबिला करने के लिए उठ खड़ा होगा, लेकिन बे हाथ हिलाए ही शिकस्त खाएगा।26~और यह सुबह शाम की रोया जो बयान हुई यक़ीनी है, लेकिन तू इस रोया को बन्द कर रख, क्यूँकि इसका 'इलाक़ा बहुत दूर के दिनों से है।"27और मुझ दानीएल को ग़श आया, और मैं कुछ रोज़ तक बीमार पड़ा रहा; फिर मैं उठा और बादशाह का कारोबार करने लगा, और मैं ~ख़्वाब~से परेशान था लेकिन इसको कोई न समझा।
1दारा-बिन-'अख़्सूयरस जो मादियों की नसल से था, और कसदियों की ममलुकत पर बादशाह मुक़र्रर हुआ, उसके पहले साल में,2या'नी उसकी सल्तनत के पहले साल में, मैं दानीएल, ने किताबों में उन बरसों का हिसाब समझा, जिनके ज़रिए' ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ कि यरूशलीम की बर्बादी पर सत्तर बरस पूरे गुज़रेंगे।3और मैने ख़ुदावन्द ख़ुदा की तरफ़ रुख़ किया, और मैं मिन्नत और मुनाजात करके और रोज़ा रखकर और टाट ओढ़कर और राख पर बैठकर उसका तालिब हुआ।4और मैने खुदावन्द अपने ख़ुदा से दु'आ की और इक़रार किया और कहा, कि"ऐ ख़ुदावन्द अज़ीम और मुहीब ख़ुदा तू अपने फ़रमाबरदार मुहब्बत रखनेवालों के लिए अपने 'अहद-ओ-रहम को क़ायम रखता है;5~हम ने गुनाह किया, हम बरगश्ता हुए, हम ने शरारत की, हम ने बग़ावत की बल्कि हम ने तेरे हुक्मों और तौर तरीक़े को तर्क किया है;6और हम तेरे ख़िदमतगुज़ार नबियों के फ़रमाबरदार नहीं हुए, जिन्होंने तेरा नाम लेकर हमारे बादशाहों और हाकिमों से और हमारे बाप-दादा और मुल्क के सब लोगों से कलाम किया।7ऐ खुदावन्द, सदाक़त तेरे लिए है और रूस्वाई हमारे लिए, जैसे अब यहूदाह के लोगों और यरूशलीम के बाशिन्दों और दूर-ओ-नज़दीक के तमाम बनी-इस्राईल के लिए है, जिनको तूने तमाम मुमालिक में हाँक दिया क्यूँकि उन्होंने तेरे ख़िलाफ़ गुनाह किया|।8~ऐ ख़ुदावन्द, मायूसी हमारे लिए है; हमारे बादशाहों, हमारे उमरा और हमारे बाप-दादा के लिए, क्यूँकि हम तेरे गुनहगार हुए।9ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा रहीम-ओ-ग़फू़र है, अगरचे हमने उससे बग़ावत की।10हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ के सुनने वाले नहीं हुए कि उसकी शरी'अत पर, जो उसने अपने ख़िदमतगुज़ार नबियों की मा'रिफ़त हमारे लिए मुक़र्रर की, 'अमल करें।11हाँ, तमाम बनी-इस्राईल ने तेरी शरी'अत को तोड़ा और ना फ़रमानी इख़्तियार की ताकि तेरी आवाज़ के फ़रमाबरदार न हों, इसलिए वह ला'नत और क़सम, जो ख़ुदा के ख़ादिम मूसा की तौरेत में लिखी हैं हम पर पूरी हुई, क्यूँकि हम उसके गुनहगार हुए।12और उसने जो कुछ हमारे और हमारे क़ाज़ियों के ख़िलाफ़ जो हमारी 'अदालत करते थे फ़रमाया था, हम पर बलाए-'अज़ीम लाकर साबित कर दिखाया, क्यूँकि जो कुछ यरूशलीम से किया गया वह तमाम जहान में' और कहीं नहीं हुआ।13जैसा मूसा की तौरेत में लिखा है, यह तमाम मुसीबत हम पर आई, तोभी हम ने अपने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से इल्तिजा न की कि हम अपनी बदकिरदारी से बा'ज़ आते और तेरी सच्चाई को पहचानते।14~इसलिए ख़ुदावन्द ने बला को निगाह में रखा और उसको हम पर अपने सब कामों में जो वह करता है सच्चा है, लेकिन हम उसकी आवाज़ के फरमाबरदार न हुए।15और अब, ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा जो ताक़तवर बाज़ू से अपने लोगों को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, और अपने लिए नाम पैदा किया जैसा आज के दिन है, हमने गुनाह किया, हमने शरारत की।16ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू अपनी तमाम सदाक़त के मुताबिक़ अपने क़हर-ओ-ग़ज़ब को अपने शहर यरूशलीम, या'नी अपने कोह-ए-मुक़द्दस से ख़त्म कर, क्यूँकि हमारे गुनाहों और हमारे बाप-दादा की बदकिरदारी की वजह से यरूशलीम और तेरे लोग अपने सब आसपास वालों के नज़दीक जा-ए-मलामत हुए।17~इसलिए अब ऐ हमारे ख़ुदा, अपने ख़ादिम की दु'आ और इल्तिमास सुन, और अपने चेहरे को अपनी ही ख़ातिर अपने मक़दिस पर जो वीरान है जलवागर फ़रमा।18ऐ मेरे ख़ुदा, वीरानों को, और उस शहर को जो तेरे नाम से कहलाता है देख कि हम तेरे सामने अपनी रास्तबाज़ी पर नहीं बल्कि तेरी बेनिहायत रहमत पर भरोसा करके मुनाजात करते हैं।19ऐ ख़ुदावन्द, सुन, ऐ खुदावन्द, मु'आफ़ फ़रमाए ख़ुदावन्द, सुन ले और कुछ कर; ऐ मेरे ख़ुदा, अपने नाम की ख़ातिर देर न कर, क्यूँकि तेरा शहर और तेरे लोग तेरे ही नाम से कहलाते हैं।”20~और जब मैं यह कहता और दु'आ करता, और अपने और अपनी क़ौम इस्राईल के गुनाहों का इक़रार करता था, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने अपने ख़ुदा के कोह-ए- मुक़द्दस के लिए मुनाजात कर रहा था;21~हाँ, मैं दु'आ में यह कह ही रहा था कि वही शख़्स जिबराईल जिसे मैने शुरू' में रोया में देखा था, हुक्म के मुताबिक़ तेज़ परवाज़ी करता हुआ आया, और शाम की क़ुर्बानी ~पेश करने के वक़्त के क़रीब मुझे छुआ।22और उसने मुझे समझाया, और मुझ से बातें कीं और कहा, "ऐ दानीएल, मैं अब इसलिए आया हूँ कि तुझे अक़्ल-ओ-समझ बख़्शूँ।23तेरी मुनाजात के शुरू' ही में हुक्म जारी हुआ, और मैं आया हूँ कि तुझे बताऊँ, क्यूँकि तू बहुत 'अज़ीज़ है; इसलिए तू ग़ौर कर और ख्व़ाब को समझ ले।24"तेरे लोगों और तेरे मुक़द्दस शहर के लिए सत्तर हफ़्ते मुक़र्रर किए गए कि ख़ताकारी और गुनाह का ख़ातिमा हो जाए, बदकिरदारी का कफ़्फ़ारा दिया जाए, हमेशा रास्तबाज़ी क़ायम ' हो, रोया-ओ-नबुव्वत पर मुहर हो और पाक तरीन मक़ाम मम्सूह किया जाए।25इसलिए तू मा'लूम कर और समझ ले कि यरूशलीम की बहाली और ता'मीर का हुक्म जारी~होने से मम्सूह फ़रमाँरवाँ तक सात हफ़्ते और बासठ हफ़्ते होंगे; तब फिर बाज़ार ता'मीर किए जाएँगे और फ़सील बनाई जाएगी, मगर मुसीबत के दिनों में।26और बासठ हफ़्तों के बा'द वह मम्सूह क़त्ल किया जाएगा, और उसका कुछ न रहेगा, और एक बादशाह आएगा जिसके लोग शहर और मक़दिस को बर्बाद करेंगे, और उसका अन्जाम गोया तूफ़ान के साथ होगा, और आख़िर तक लड़ाई रहेगी; बर्बादी मुक़र्रर हो चुकी है।27~और वह एक हफ़्ते के लिए बहुतों से 'अहद क़ायम करेगा, और निस्फ़ हफ़्ते में ज़बीहे और हदिये मौकू़फ़ करेगा, और फ़सीलों पर उजाड़ने वाली मकरूहात रखी जाएँगी; यहाँ तक कि बर्बादी कमाल को पहुँच जाएगी, और वह बला जो मुक़र्रर की गई है उस उजाड़ने वाले पर वाके़' होगी।"
1शाह-ए-फ़ारस ख़ोरस के तीसरे साल में दानीएल पर, जिसका नाम बेल्तशज़र रखा गया, एक बात ज़ाहिर की गई और वह बात सच और बड़ी लश्करकशी की थी; और उसने उस बात पर ग़ौर किया, और उस ख्व़ाब का राज़ समझा।2~मैं दानीएल उन दिनों में तीन हफ़्तों तक मातम करता रहा।3न मैने लज़ीज़ खाना खाया, न गोश्त और मय ने मेरे मुँह में दख़ल पाया और न मैने तेल मला, जब तक कि पूरे तीन हफ़्ते गुज़र न गए।4और पहले महीने की चौबीसवीं तारीख़ को जब मैं बड़े दरिया, या'नी दरिया-ए-दजला के किनारे पर था,5~मैने आँख उठा कर नज़र की और क्या देखता हूँ कि एक शख़्स कतानी लिबास पहने और ऊफ़ाज़ के ख़ालिस सोने का पटका कमर पर बाँधे खड़ा है।6उसका बदन ज़बरजद की तरह, और उसका चेहरा बिजली सा था, और उसकी आँखें आग के चराग़ों की तरह थीं; उसके बाज़ू और पाँव रंगत में चमकते हुए पीतल से थे, और उसकी आवाज़ अम्बोह के शोर की तरह थी।7~मैं दानीएल ही ने यह ख़्वाब देखा, क्यूँकि मेरे साथियों ने~ख़्वाब न देखा, लेकिन उन पर बड़ी कपकपी तारी हुई और वह अपने आप को छिपाने को भाग गए।8इसलिए मैं अकेला रह गया और यह बड़ा~ख्व़ाब देखा, और मुझ में हिम्मत न रही क्यूँकि मेरी ताज़गी मायूसी से बदल गई और मेरी ताक़त जाती रही।9लेकिन मैने उसकी आवाज़ और बातें सुनीं, और मैं उसकी आवाज़ और बातें सुनते वक़्त मुँह के बल भारी नींद में पड़ गया और मेरा मुँह ज़मीन की तरफ़ था।10और देख एक हाथ ने मुझे छुआ, और मुझे घुटनों और हथेलियों पर बिठाया।11~और उसने मुझ से कहा, "ऐ दानीएल, 'अज़ीज़ मर्द, जो बातें मैं तुझ से कहता हूँ समझ ले; और सीधा खड़ा हो जा, क्यूँकि अब मैं तेरे पास भेजा गया हूँ।" और जब उसने मुझ से यह बात कही, तो मैं कॉपता हुआ खड़ा हो गया।12तब उसने मुझ से कहा, ~"ऐ दानीएल, ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि जिस दिन से तू ने दिल लगाया कि समझे, और अपने ख़ुदा के ~सामने 'आजिज़ी करे; तेरी बातें सुनी गईं और तेरी बातों की वजह से मैं आया हूँ।13पर फ़ारस की ममलुकत के मुवक्किल ने इक्कीस दिन तक मेरा मुक़ाबला किया। फिर मीकाएल, जो मुक़र्रब फ़रिश्तों में से है, मेरी मदद को पहुँचा और मैं शाहान-ए-फ़ारस के पास रुका रहा।14~लेकिन अब मैं इसलिए आया हूँ कि जो कुछ तेरे लोगों पर आख़िरी दिनों में आने को है, तुझे उसकी ख़बर दूँ क्यूँकि अभी ये रोया ज़माना-ए-दराज़ के लिए है।"15~और जब उसने यह बातें मुझ से कहीं, मैं सिर झुका कर ख़ामोश हो रहा।16तब किसी ने जो आदमज़ाद की तरह था मेरे होटों को छुआ, और मैने मुँह खोला, और जो मेरे सामने खड़ा था उस से कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, इस ख्व़ाब की वजह से मुझ पर ग़म का हुजूम है, और मैं नातवाँ ~हूँ।17इसलिए यह ख़ादिम, अपने ख़ुदावन्द से क्यूँकर हम कलाम हो सकता है? इसलिए मैं बिल्कुल बेताब-ओ-बेदम हो गया।”18तब एक और ने जिसकी सूरत आदमी की सी थी, आकर मुझे छुआ और मुझको ताक़त दी;19और उसने कहा, "ऐ 'अज़ीज़ मर्द, ख़ौफ़ न कर, तेरी सलामती हो, मज़बूत-और-तवाना हो।" और जब उसने मुझसे यह कहा, तो मैने तवानाई पाई और कहा, "ऐ मेरे ख़ुदावन्द, फ़रमा, क्यूँकि तू ही ने मुझे ताक़त बख़्शी है।"20~तब उसने कहा, "क्या तू जानता है कि मैं तेरे पास किस लिए आया हूँ? और अब मैं फ़ारस के मुवक्किल से लड़ने को वापस जाता हूँ; और मेरे जाते ही यूनान का मुवक्किल आएगा।21~लेकिन जो कुछ सच्चाई की किताब में लिखा है, तुझे बताता हूँ; और तुम्हारे मुवक्किल मीकाएल के सिवा इसमें मेरा कोई मददगार नहीं है।
1~"और दारा मादी की सल्तनत के पहले साल में, मैं ही उसको क़ायम करने और ताक़त देने को खड़ा हुआ।2~"और अब मैं तुझको हक़ीक़त बताता हूँ। फ़ारस में अभी तीन बादशाह और खड़े होंगे, और चौथा उन सबसे ज़्यादा दौलतमन्द होगा, और जब वो अपनी दौलत से ताक़त पाएगा, तो सब को यूनान की सल्तनत के ख़िलाफ़ उभारेगा।3~लेकिन एक ज़बरदस्त बादशाह खड़ा होगा, जो बड़े तसल्लुत से हुक्मरान होगा और जो कुछ चाहेगा करेगा।4और उसके खड़े होते ही उसकी सल्तनत को ज़वाल आएगा ,और आसमान की चारों हवाओं की अतराफ़ पर तक़सीम हो जाएगी लेकिन न उसकी नसल को मिलेगी न उसका एक बाल भी बाक़ी रहेगा बल्कि वह सल्तनत जड़ से उखड़ जाएगी और ग़ैरों के लिए होगी|5~"और शाह-ए-जुनूब ज़ोर पकड़ेगा, और उसके हाकिम में से एक उससे ज़्यादा ताक़त-ओ-इख़्तियार हासिल करेगा और उसकी सल्तनत बहुत बड़ी होगी।6और चन्द साल के बा'द वह आपस में मेल करेंगे, क्यूँकि ~शाह-ए-जुनूब की बेटी शाह-ए-शिमाल के पास आएगी, ताकि इत्तिहाद क़ायम हो; लेकिन उसमें क़ुव्वत-ए-बाज़ू न रहेगी और न वह बादशाह क़ायम रहेगा न उसकी ताक़त, बल्कि उन दिनों में वह अपने बाप और अपने लाने वालों और ताक़त देने वाले के साथ छोड़ दी जाएगी।7"लेकिन उसकी जड़ों की एक शाख़ से एक शख़्स उसकी जगह खड़ा ~होगा, वह सिपहसालार होकर शाह-ए-शिमाल के क़िले' में दाख़िल होगा, और उन पर हमला करेगा और ग़ालिब आएगा।8और उनके बुतों और ढाली हुई मूरतों को, सोने चाँदी के क़ीमती बर्तन के साथ ग़ुलाम करके मिस्र को ले जाएगा; और चन्द साल तक शाह-ए-शिमाल से अलग रहेगा।9~फिर वह शाह-ए-जुनूब की ममलुकत में दाख़िल होगा, पर अपने मुल्क को वापस जाएगा।10"लेकिन उसके बेटे बरअंगेख़्ता होंगे, जो बड़ा लश्कर जमा' करेंगे और वह चढ़ाई करके फैलेगा, और गुज़र जाएगा और वह लौट कर उसके क़िले' तक लड़ेंगे।11~और शाह-ए-जुनूब ग़ज़बनाक होकर निकलेगा और शाह-ए-शिमाल से जंग करेगा, और वह बड़ा लश्कर लेकर आएगा और वह बड़ा लश्कर उसके हवाले कर दिया जाएगा।12और जब वह लश्कर तितर बितर कर दिया जाएगा, तो उसके दिल में ग़ुरूर समाएगा; वह लाखों को गिराएगा लेकिन ग़ालिब न आएगा।13और शाह-ए-शिमाल फिर हमला करेगा और पहले से ज़्यादा लश्कर जमा' करेगा, और कुछ साल के बा'द बहुत से लश्कर-और-माल के साथ फिर हमलावर होगा।14'और उन दिनों में बहुत से शाह-ए- जुनूब पर चढ़ाई करेंगे, और तेरी क़ौम के क़ज़्ज़ाक़ भी उठेंगे कि उस ख्व़ाब को पूरा करें; लेकिन वह गिर जाएँगे।15~चुनाँचे शाह-ए-शिमाल आएगा और दमदमा बाँधेगा और हसीन शहर ले लेगा, और जुनूब की ताक़त क़ायम न रहेगी और उसके चुने हुए मर्दों में मुक़ाबले की हिम्मत न होगी।16~और हमलावर जो कुछ चाहेगा करेगा, और कोई उसका मुक़ाबला न कर सकेगा; वह उस जलाली मुल्क में क़याम करेगा, और उसके हाथ में तबाही होगी।17और वह यह इरादा करेगा कि अपनी ममलुकत की तमाम शौकत के साथ उसमें दाख़िल हो, और सच्चे उसके साथ होंगे; वह कामयाब होगा और वह उसे जवान कुँवारी देगा कि उसकी बर्बादी का ज़रिया' हो, लेकिन यह तदबीर क़ायम न रहेगी और उसको इससे कुछ फ़ाइदा न होगा।18~फिर वह समंदरी-मुमालिक का रुख़ करेगा और बहुत से ले लेगा, लेकिन एक सरदार उसकी मलामत को मौकू़फ़ करेगा, बल्कि उसे उसी के सिर पर डालेगा।19तब वह अपने मुल्क के क़िलों' की तरफ़ मुड़ेगा, लेकिन ठोकर खाकर गिर पड़ेगा और मादूम हो जाएगा।20~"और उसकी जगह एक और खड़ा होगा, जो उस खू़बसूरत ममलुकत में महसूल लेने वाले को भेजेगा; लेकिन वह चन्द रोज़ में बे क़हर-ओ-जंग ही हलाक हो जाएगा।21~"फिर उसकी जगह एक पाजी खड़ा ~होगा जो सल्तनत की. 'इज़्ज़त का हक़दार न होगा, लेकिन वह अचानक आएगा और चापलूसी करके ममलुकत पर क़ाबिज़ हो जाएगा।22और वह सैलाब-ए-अफ़वाज को अपने सामने दौड़ाएगा और शिकस्त देगा, और अमीर-ए-'अहद को भी न छोड़ेगा।23और जब उसके साथ 'अहद-ओ-पैमान हो जाएगा तो दग़ाबाज़ी करेगा, क्यूँकि वह बढ़ेगा और एक छोटी ~जमा'अत की मदद से ताक़त हासिल करेगा।24और हुक्म के दिनों में मुल्क के वीरान मक़ामात में दाख़िल होगा, और जो कुछ उसके बाप-दादा और उनके आबा-ओ-अजदाद से न हुआ था कर दिखाएगा; वह ग़नीमत और लूट और माल उनमें तक़सीम करेगा और कुछ 'अरसे तक मज़बूत क़िलों' के ख़िलाफ़ मन्सूबे बाँधेगा।25~वह अपनी ताक़त और दिल को ऊभारेगा कि बड़ी फ़ौज के साथ शाह-ए-जुनूब पर हमला करे, और शाह-ए-जुनूब निहायत बड़ा और ज़बरदस्त लश्कर लेकर उसके मुक़ाबिले को निकलेगा लेकिन वह न ठहरेगा, क्यूँकि वह उसके ख़िलाफ़ मन्सूबे बाँधेंगे।26बल्कि जो उसका दिया खाते हैं, वही उसे शिकस्त देंगे और उसकी फ़ौज तितर बितर होगी और बहुत से क़त्ल होंगे।27और इन दोनों बादशाहों के दिल शरारत की तरफ़ माइल होंगे, वह एक ही दस्तरख़्वान पर बैठ कर झूट बोलेंगे लेकिन कामयाबी न होगी, क्यूँकि ख़ातिमा मुक़र्ररा वक़्त पर होगा।28~तब वह बहुत सी ग़नीमत लेकर अपने मुल्क को वापस जाएगा; और उसका दिल 'अहद-ए-मुक़द्दस के ख़िलाफ़ होगा, और वह अपनी मर्ज़ी ~पूरी करके अपने मुल्क को वापस जाएगा।29"मुक़र्ररा वक़्त पर वह फिर जुनूब की तरफ़ ख़ुरूज करेगा, लेकिन ये हमला पहले की तरह न होगा।30~क्यूँकि अहल-ए-कित्तीम के जहाज़ उसके मुक़ाबिले को निकलेंगे, और वह रंजीदा होकर मुड़ेगा और 'अहद-ए-मुक़द्दस पर उसका ग़ज़ब भड़केगा, और वह उसके मुताबिक़ 'अमल करेगा; बल्कि वह मुड़ कर उन लोगों से जो 'अहद-ए-मुक़द्दस को छोड़ देंगे , इत्तफ़ाक़ करेगा।31~और अफ़वाज उसकी मदद करेंगी, और वह मज़बूत मक़दिस को नापाक और दाइमी क़ुर्बानी को रोकेंगे और उजाड़ने वाली मकरूह चीज़ को उसमें नस्ब करेंगे।32और वह 'अहद-ए-मुक़द्दस के ख़िलाफ़ शरारत करने वालों को खु़शामद करके बरगश्ता करेगा, लेकिन अपने ख़ुदा को पहचानने वाले ताक़त पाकर कुछ कर दिखाएँगे।33~और वह जो लोगों में 'अक़्लमन्द हैं बहुतों को ता'लीम देंगे, लेकिन वह कुछ मुद्दत तक तलवार और आग और ग़ुलामी और लूट मार से तबाह हाल रहेंगे।34और जब तबाही में पड़ेंगे तो उनको थोड़ी सी मदद से ताक़त पहुँचेगी, लेकिन बहुतेरे खु़शामद गोई से उनमें आ मिलेंगे।35और बा'ज़ अहल-ए-फ़हम तबाह हाल होंगे ताकि पाक और साफ़ और बुर्राक़ हो जाएँ जब तक आख़िरी वक़्त न आ जाए, क्यूँकि ये मुक़र्ररा वक़्त तक मना' है।36"और बादशाह अपनी मर्ज़ी ~के मुताबिक़ चलेगा, और तकब्बुर करेगा और सब मा'बूदों से बड़ा बनेगा, और इलाहों के इलाह के ख़िलाफ़ बहुत सी हैरत-अंगेज़ बातें कहेगा, और इक़बाल मन्द होगा यहाँ तक कि क़हर की तस्कीन हो जाएगी; क्यूँकि जो कुछ मुक़र्रर हो चुका है वाके़' होगा।37~वह अपने बाप-दादा के मा'बूदों की परवाह न करेगा, और न 'औरतों की पसन्द को और न किसी और मा'बूद को मानेगा; बल्कि अपने आप ही को सबसे बेहतर जानेगा।38~और अपने मकान पर मा'बूद-ए-हिसार की ताज़ीम करेगा, और जिस मा'बूद को उसके बाप-दादा न जानते थे, सोना और चाँदी और क़ीमती पत्थर और नफ़ीस तोहफ़े दे कर उसकी तकरीम करेगा।39वह बेगाना मा'बूद की मदद से मुहकम क़िलों' पर हमला करेगा; जो उसको कु़बूल करेंगे उनको बड़ी 'इज़्ज़त बख़्शेगा और बहुतों पर हाकिम बनाएगा और रिश्वत में मुल्क को तक़सीम करेगा।40' और ख़ातिमे के वक़्त में शाह-ए-जुनूब उस पर हमला करेगा, और शाह-ए-शिमाल रथ और सवार और बहुत से जहाज़ लेकर हवा के झोंके की तरह उस पर चढ़ आएगा, और ममालिक में दाख़िल होकर सैलाब की तरह गुज़रेगा।41~और जलाली मुल्क में भी दाख़िल होगा और बहुत से मग़लूब हो जाएँगे, लेकिन अदूम और मोआब और बनी- 'अम्मून के ख़ास लोग उसके हाथ से छुड़ा लिए जाएँगे।42~वह दीगर मुमालिक पर भी हाथ चलाएगा और मुल्क-ए-मिस्र भी बच न सकेगा।43बल्कि वह सोने चाँदी के ख़ज़ानों और मिस्र की तमाम नफ़ीस चीज़ों पर क़ाबिज़ होगा, और लूबी और कूशी भी उसके हम-रक़ाब होंगे।44लेकिन पश्चिमी और उत्तरी अतराफ़ से अफ़वाहें उसे परेशान करेंगी, और वह बड़े ग़ज़ब से निकलेगा कि बहुतों को नेस्त-ओ-नाबूद करे।45और वह शानदार मुक़द्दस पहाड़ और समुन्दर के बीच शाही ख़ेमे लगाएगा, लेकिन उसका ख़ातिमा हो जाएगा और कोई उसका मददगार न होगा।
1और उस वक़्त मीकाईल मुक़र्रब फ़रिश्ता जो तेरी क़ौम के फ़रज़न्दों की हिमायत के लिए खड़ा है उठेगा और वह ऐसी तकलीफ़ का वक़्त होगा कि इब्तिदाई क़ौम से उस वक़्त तक कभी न हुआ होगा, और उस वक़्त तेरे लोगों में से हर एक, जिसका नाम किताब में लिखा होगा रिहाई पाएगा।2और जो ख़ाक में सो रहे हैं उनमें से बहुत से जाग उठेगे, कुछ हमेशा की ज़िन्दगी के लिए और कुछ रुस्वाई और हमेशा की ज़िल्लत के लिए।3और 'अक़्लमन्द नूर-ए-फ़लक की तरह चमकेंगे, और जिनकी कोशिश से बहुत से रास्तबाज़ हो गए, सितारों की तरह हमेशा से हमेशा तक रोशन होंगे।4लेकिन तू ऐ दानीएल, इन बातों को बन्द कर रख, और किताब पर आख़िरी ज़माने तक मुहर लगा दे। बहुत से इसकी तफ़्तीश-ओ-तहक़ीक़ करेंगे और~'अक़्ल~बढ़ती रहेगी।"5फिर मैं दानिएल ने नज़र की, और क्या देखता हूँ कि दो शख़्स और खड़े थे; एक दरिया के इस किनारे पर और दूसरा दरिया के उस किनारे पर।6~और एक ने उस शख़्स से जो कतानी लिबास पहने था और दरिया के पानी पर खड़ा था पूछा, कि "इन 'अजाइब के अन्जाम तक कितनी मुद्दत है?"7और मैने सुना कि उस शख़्स ने जो कतानी लिबास पहने था, जो दरिया के पानी के ऊपर खड़ा था, दोनों हाथ आसमान की तरफ़ उठा कर" हय्युल क़य्यूम की क़सम खाई और कहा कि एक दौर और दौर और नीम दौर। और जब वह मुक़द्दस लोगों की ताक़त को नेस्त कर चुके तो यह सब कुछ पूरा हो जाएगा |8और मैंने सुना लेकिन समझ न सका तब मैंने कहा ऐ मेरे ख़ुदावन्द इनका अंजाम क्या होगा |9उसने कहा ऐ दानिएल तू अपनी राह ले क्यूँकि यह बातें आख़िरी वक़्त तक बन्द-ओ-सरबमुहर रहेंगी |10और बहुत लोग पाक किए जायेंगे और साफ़-ओ-बर्राक़ होंगे लेकिन शरीर शरारत करते रहेंगे और शरीरों में से कोई न समझेगा लेकिन 'अक़्लमन्द~समझेंगे |11और जिस वक़्त से दाइमी क़ुर्बानी ख़त्म की जायेगी और वह उजाड़ने वाली मकरूह चीज़ खड़ी की जायेगी एक हज़ार दो सौ नव्वे दिन होंगे |12मुबारक है वह जो एक हज़ार तीन सौ पैतीस रोज़ तक इन्तिज़ार करता है |13लेकिन तू अपनी राह ले जब तक कि मुद्दत पूरी न हो क्यूँकि तू आराम करेगा और दिनों के ख़ातिमे पर अपनी मीरास में उठ खड़ा होगा |
1शाहान-ए-यहूदाह 'उज्ज़ियाह और यूताम और आख़ज़ और हिज़क़ियाह और शाह ए-इस्राईल युरब'आम-बिन-यूआस के दिनों में ख़ुदावन्द का कलाम होसे'अ-बिन-बैरी पर नाज़िल हुआ।2जब ख़ुदावन्द ने शुरू' में होसे'अ के ज़रिए' कलाम किया, तो उसको फ़रमाया, "जा, एक बदकार बीवी और बदकारी की औलाद अपने लिए ले, क्यूँकि मुल्क ने ख़ुदावन्द को छोड़कर बड़ी बदकारी की है।"3~तब उसने जाकर जुमर बिन्त दिबलाईम को लिया; वह हामिला हुई, और बेटा पैदा हुआ।4और ख़ुदावन्द ने उसे कहा, "उसका नाम यज़र'एल रख, क्यूँकि मैं 'अनक़रीब ही याहू के घराने से यज़र'एल के खू़न का बदला लूँगा, और इस्राईल के घराने की सल्तनत को ख़त्म करूँगा।5~और उसी वक़्त यज़र'एल की वादी में इस्राईल की कमान तोडूँगा।"6वह फिर हामिला हुई, और बेटी पैदा हुई। और ख़ुदावन्द ने उसे फ़रमाया, कि "उसका नाम लूरहामा रख, क्यूँकि मैं इस्राईल के घराने पर फिर रहम न करूँगा कि उनको मु'आफ़ करूँ।7लेकिन यहूदाह के घराने पर रहम करूँगा, और मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा उनको रिहाई दूँगा और उनको कमान और तलवार और लड़ाई और घोड़ों और सवारों के वसीले से नहीं छुड़ाऊँगा।"8और लूरहामा का दूध छुड़ाने के बा'द, वह फिर हामिला हुई और बेटा पैदा हुआ।9और उसने फ़रमाया, कि उसका नाम लो'अम्मी रख; क्यूँकि तुम मेरे लोग नहीं हो, और मैं तुम्हारा नहीं हूँगा।10तोभी बनी-इस्राईल दरिया की रेत की तरह बेशुमार-ओ-बेक़ियास होंगे, और जहाँ उनसे ये कहा जाता था, "तुम मेरे लोग नहीं हो," ज़िन्दा ख़ुदा के फ़र्ज़न्द कहलाएँगे।11और बनी यहूदाह और बनी-इस्राईल आपस में एक होंगे,और अपने लिए एक ही सरदार ~मुक़र्रर करेंगे। और इस मुल्क से खुरूज करेंगे, क्यूँकि यज़र'एल का दिन 'अज़ीम होगा।
1अपने भाइयों से 'अम्मी कहो, और अपनी बहनों से रुहामा।2"तुम अपनी माँ से हुज्जत करो - क्यूँकि न वह मेरी बीवी है, और न मैं उसका शौहर हूँ - वह अपनी बदकारी अपने सामने से, अपनी ज़िनाकारी अपने पिस्तानों से दूर करे;3ऐसा न हो कि मैं उसे बेपर्दा करूँ,और उस तरह डाल दूँ जिस तरह वह अपनी पैदाइश के दिन थी, और उसको बियाबान और खु़श्क ज़मीन की तरह बना कर प्यास से मार डालूँ।4मैं उसके बच्चों पर रहम न करूँगा, क्यूँकि वह हलालज़ादे नहीं हैं।5उनकी माँ ने धोखा किया; उनकी वालिदा ने रूस्याही की। क्यूँकि उसने कहा, 'मैं अपने यारों के पीछे जाऊँगी, जो मुझ को रोटी-पानी और ऊनी, और कतानी कपड़े और रौग़न-ओ-शरबत देते हैं।'6इसलिए देखो, मैं उसकी राह काँटों से बन्द करूँगा, और उसके सामने दीवार बना दूँगा, ताकि उसे रास्ता न मिले।7और वह अपने यारों के पीछे जाएगी, पर उनसे जा न मिलेगी; और उनको ढूँडेगी पर न पाएगी। तब वह कहेगी, 'मैं अपने पहले शौहर के पास वापस जाऊँगी, क्यूँकि मेरी वह हालत अब से बेहतर थी।'8क्यूँकि उसने न जाना कि मैं ने ही उसे ग़ल्ला-ओ-मय और रौग़न दिया,और सोने चाँदी की फ़िरवानी बख़्शी जिसको उन्होंने बा'ल पर ख़र्च किया9इसलिए मैं अपना ग़ल्ला फ़सल के वक़्त, और अपनी मय को उसके मौसम में वापस ले लूँगा, और अपने ऊनी और कतानी कपड़े जो उसकी सत्रपोशी करते हैं, छीन लूँगा।10अब मैं उसकी फ़ाहिशागरी उसके यारों के सामने फ़ाश करूँगा,और कोई उसको मेरे हाथ से नहीं छुड़ाएगा।11अलावा इसके मैं उसकी तमाम ख़ुशियों,और ज़शनो और नए चाँद और सबत के दिनों और तमाम मु'अय्यन 'ईदों को ख़त्म करूँगा |12और मैं उसके अंगूर और अंजीर के दरख़्तों को, जिनके बारे में उसने कहा है, ‘ये मेरी उजरत है, जो मेरे यारों ने मुझे दी है,' बर्बाद करूँगा और उनको जंगल बनाऊँगा, और जंगली जानवर उनको खाएँगे।13और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उसे बा'लीम के दिनों के लिए सज़ा दूँगा जिनमें उसने उनके लिए ख़ुशबू जलाई, जब वह बालियों और ज़ेवरों से आरास्ता होकर अपने यारों के पीछे गई, और मुझे भूल गई।14~"तोभी मैं उसे फ़रेफ़्ता कर लूँगा,और बियावान में लाकर, उससे तसल्ली की बातें कहूँगा।15और वहाँ से उसके ताकिस्तान उसे दूँगा, और 'अकूर की वादी भी, ताकि वह उम्मीद का दरवाज़ा हो, और वह वहाँ गाया करेगी जैसे अपनी जवानी के दिनों में,और मुल्क-ए-मिस्र से निकल आने के दिनों में गाया करती थी16"और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तब वह मुझे ईशी कहेगी और फिर बाली न कहेगी।17~क्यूँकि मैं बा'लीम के नाम उसके मुँह से दूर~करूँगा, और फिर कभी उनका नाम न लिया जाएगा।18तब मैं उनके लिए जंगली जानवरों, और हवा के परिन्दों, और ज़मीन~पर रेंगने वालों से 'अहद करूँगा; और कमान और तलवार और लड़ाई को मुल्क से नेस्त~करूँगा, और लोगों को अम्न-ओ-अमान से लेटने का मौक़ा दूँगा।19और तुझे अपनी अबदी नामज़द करूँगा| हाँ,तुझे सदाक़त और 'अदालत और शफ़क़त-ओ-रहमत से अपनी नामज़द करूँगा।20मैं तुझे वफ़ादारी से अपनी नामज़द बनाऊँँगा और तू ख़ुदावन्द को ~पहचानेगी।21~"और उस वक़्त मैं सुनूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं आसमान की सुनूँगा और आसमान ज़मीन की सुनेगा;22और ज़मीन अनाज और मय और तेल की सुनेगी, और वह यज़र'एल की सुनेंगे;23और मैं उसको ~उस सरज़मीन मेंअपने लिए बोऊँगा। और लूरहामा पर रहम करूँगा,और लो'अम्मी से कहूँगा, 'तुम मेरे लोग हो; और वह कहेंगे, 'ऐ हमारे ख़ुदा।'"
1~ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "जा,उस 'औरत से जो अपने यार की प्यारी और बदकार है, मुहब्बत रख; जिस तरह कि ख़ुदावन्द बनी-इस्राईल से जो गै़र-मा'बूदों पर निगाह करते हैं और किशमिश के कुल्चे चाहते हैं, मुहब्बत रखता है।"2~इसलिए, मैने उसे पन्द्रह रुपये और डेढ़ ख़ोमर जौ देकर अपने लिए मोल लिया |3और उसे कहा,"तू मुद्दत-ए-दराज़ तक मुझ पर क़ना'अत करेगी, और हरामकारी से बाज़ रहेगी और किसी दूसरे की बीवी न बनेगी, और मैं भी तेरे लिए यूँ ही रहूँगा|"4~क्यूँकि बनी-इस्राईल बहुत दिनों तक बादशाह और हाकिम और कु़र्बानी और सुतून और अफू़द और तिराफ़ीम के बगै़र रहेंगे।5~इसके बा'द बनी-इस्राईल रुजू' लाएँगे, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को और अपने बादशाह दाउद को ढूँडेंगे और आख़िरी दिनों ~में डरते हुए ख़ुदावन्द और उसकी मेहरबानी के तालिब होंगे।
1ऐ बनी इस्राईल ख़ुदावन्द का कलाम सुनों क्यूँकि इस मुल्क में रहने वालों से ख़ुदावन्द का झगड़ा है; क्यूँकि ये मुल्क रास्ती-ओ-शफ़क़त, और ख़ुदाशनासी से ख़ाली है।2बदज़बानी वा'दा ख़िलाफ़ी~और खु़ँरेज़ी और चोरी और हरामकारी के अलावा और कुछ नहीं होता; वह जु़ल्म करते हैं, और खू़न पर खू़न होता है।”3~इसलिए मुल्क मातम करेगा,और उसके तमाम रहने वाले जंगली जानवरों, और हवा के परिन्दों के साथ नातवाँ हो जाएँगे; बल्कि समन्दर की मछलियाँ भी ग़ायब हो जाएँगी।4तोभी कोई दूसरे के साथ बहस न करे, और न कोई उसे इल्ज़ाम दे; क्यूँकि तेरे लोग उनकी तरह हैं, जो काहिन से बहस करते हैं।5इसलिए तू दिन को गिर पड़ेगा, और तेरे साथ नबी भी रात को गिरेगा; और मैं तेरी माँ को तबाह करूँगा।6~मेरे लोग 'अदम-ए-मा'रिफ़त से हलाक हुए; चूँकि तू ने ज़रिए' को रद्द किया, इसलिए मैं भी तुझे रद्द करूँगा ताकि तू मेरे सामने काहिन न हो; और चूंकि तू अपने ख़ुदा की शरी'अत को भूल गया है, इसलिए मैं भी तेरी औलाद को भूल जाऊँगा।7जैसे जैसे वह बड़ते गए, मेरे ख़िलाफ़ ज़्यादा गुनाह करने लगे; फिर मैं उनकी हश्मत को रुस्वाई से बदल डालूँगा।8~वह मेरे लोगों के गुनाह पर गुज़रान करते हैं; और उनकी बदकिरदारी के आरज़ूमंद हैं।9फिर जैसा लोगों का हाल, वैसा ही काहिनों का हाल होगा; मैं उनके चालचलन की सज़ा और उनके 'आमाल का बदला उनको दूँगा।10चूँकि उनको ख़ुदावन्द का ख़याल नहीं, इसलिए वह~खाएँगे, पर आसूदा न होंगे; वह बदकारी करेंगे, लेकिन ज़्यादा न होंगे।11बदकारी और मय और नई मय से बसीरत जाती रहती है।12मेरे लोग अपने काठ के पुतले से सवाल करते हैं उनकी लाठी उनको जवाब देती है। क्यूँकि बदकारी की रूह ने उनको गुमराह किया है, और अपने ख़ुदा की पनाह को छोड़ कर बदकारी करते हैं।13पहाड़ों की चोटियों पर वह कु़र्बानियाँ और टीलों पर और बलूत-ओ-चिनार-ओ-बतम के नीचे खु़शबू जलाते हैं, क्यूँकि उनका साया अच्छा है। पस बहू बेटियाँ बदकारी करती हैं।14जब तुम्हारी बहू बेटियाँ बदकारी करेंगी, तो मैं उनको सज़ा नहीं दूँगा; क्यूँकि वह आप ही बदकारों के साथ खि़ख़िल्वत में जाते हैं, और कस्बियों के साथ क़ुर्बानियाँ गुज़रानते हैं। तब जो लोग 'अक़्ल से ख़ाली हैं, बर्बाद किए जाएँगे।15~ऐ इस्राईल, अगरचे तू बदकारी करे, तोभी ऐसा न हो कि यहूदाह भी गुनहगार हो। तुम जिल्जाल में न आओ और बैतआवन पर न जाओ, और ख़ुदावन्द की हयात की क़सम न खाओ।16क्यूँकि इस्राईल ने सरकश बछिया की तरह सरकशी की है; क्या अब खुदावन्द उनको कुशादा जगह में बर्रे की तरह चराएगा?17इफ़्राईम बुतों से मिल गया है; उसे छोड़ दो ।18वह मयख़्वारी से सेर होकर बदकारी में मशग़ूल होते हैं; उसके हाकिम रुस्वाई दोस्त हैं।19~हवा ने उसे अपने दामन में उठा लिया, वह अपनी कु़र्बानियों से शर्मिन्दा होंगे।
1ऐ काहिनो, ये बात सुनो ! ऐ बनी-इस्राईल, कान लगाओ ! ऐ बादशाह के घराने, सुनो ! इसलिए कि फ़तवा तुम पर है; क्यूँकि तुम मिस्फ़ाह में फंदा और तबूर पर दाम बने हो।2बाग़ी खू़ँरेज़ी में ग़र्क हैं, लेकिन मैं उन सब की तादीब करूँगा।3~मैं इफ़्राईम को जानता हूँ, और इस्राईल भी मुझ से छिपा नहीं; क्यूँकि ऐ इफ़्राईम, तू ने बदकारी की है;इस्राईल नापाक हुआ।4उनके 'आमाल उनको ख़ुदा की तरफ़ रुजू' नहीं होने देते क्यूँकि बदकारी की रूह उनमें मौजूद है और ख़ुदावन्द को नहीं जानते |5और फ़र्ख़-ए-इस्राईल उनके मुँह पर गवाही देता है, और इस्राईल और इफ़्राईम अपनी बदकिरदारी में गिरेंगे, और यहूदाह भी उनके साथ गिरेगा।6वह अपने रेवड़ों और गल्लों के वसीले से ख़ुदावन्द के तालिब होंगे, लेकिन उसको न पाएँगे; वह उनसे दूर हो गया है।7~उन्होंने ख़ुदावन्द के साथ बेवफ़ाई की, क्यूँकि उनसे अजनबी बच्चे पैदा हुए। अब एक महीने का 'अर्सा उनकी जायदाद के साथ उनको खा जाएगा।8जिब'आ में क़र्ना फूँको और रामा में तुरही। बैतआवन में ललकारो, कि ऐ बिनयमीन, ख़बरदार पीछे देख!9तादीब के दिन~इफ़्राईम~वीरान होगा। जो कुछ यक़ीनन होने वाला है मैंने इस्राईली क़बीलों को जता दिया है।10यहूदाह के 'उमरा सरहदों को सरकाने वालों की तरह हैं। मैं उन पर अपना क़हर पानी की तरह उँडेलँगा।11~इफ़्राईम मज़लूम और फ़तवे से दबा है क्यूँकि उसने पैरवी पर सब्र किया।12तब मैं~इफ़्राईम के लिए कीड़ा हूँगा और यहूदाह के घराने के लिए घुन।13जब~इफ़्राईम ने अपनी बीमारी और यहूदाह ने अपने ज़ख़्म को देखा तो~इफ़्राईम~असूर को गया और उस मुख़ालिफ़ बादशाह को दा'वत दी लेकिन वह न तो तुम को शिफ़ा दे सकता है और न तुम्हारे ज़ख़्म का 'इलाज कर सकता है।14क्यूँकि मैं~इफ़्राईम के लिए शेर-ए-बबर और बनी यहूदाह के लिए जवान शेर की तरह हूँगा। मैं हाँ मैं ही फाड़ूूँगा और चला जाऊँगा। मैं उठा ले जाऊँगा और कोई छुड़ाने वाला न होगा।15मैं रवाना हूँगा और अपने घर को चला जाऊँगा जब तक कि वह अपने गुनाहों का इक़रार करके मेरे चहरे के तालिब न हों। वह अपनी मुसीबत में बड़ी सर गर्मी से मेरे तालिब होंगे।
1आओ ख़ुदवन्द की तरफ़ रुजू' करें क्यूँकि उसी ने फाड़ा है और वही हम को शिफ़ा बख़्शेगा। उसी ने मारा है और वही हमारी मरहम पट्टी करेगा।2वह दो दिन के बा'द हम को हयात-ए-ताज़ा बख़्शेगा और तीसरे दिन उठा खड़ा करेगा और हम उसके सामने ज़िन्दगी बसर करेंगे।3आओ हम दरियाफ़्त करें और ख़ुदावन्द के 'इरफ़ान में तरक़्क़ी करें। उसका ज़हूर सुबह की तरह यक़ीनी है और वह हमारे पास बरसात की तरह या'नी आख़िरी बरसात की तरह जो ज़मीन को सेराब करती है, आएगा।4ऐ एफ़्राईम मैं तुझ से क्या करूँ? ऐ यहूदाह मैं तुझ से क्या करूँ? क्यूँकि तुम्हारी नेकी सुबह के बादल और शबनम की तरह जल्द जाती रहती है।5इसलिए मैंने उनके नबियों के वसीले से काट डाला और अपने कलाम से क़त्ल किया है और मेरा 'अद्ल नूर की तरह चमकता है।6क्यूँकि मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि रहम पसन्द करता हूँ और खु़दा शनासी को सोख़्तनी कु़र्बानियों से ज़्यादा चाहता हूँ।7लेकिन वह 'अहद शिकन आदमियों की तरह हैं। उन्होंने वहाँ मुझ से बेवफ़ाई की है।8जिलआ'द बदकिरदारी की बस्ती है। वह खू़नआलूदा है।9~जिस तरह के रहज़नों के ग़ोल किसी आदमी की धोखे में बैठते हैं उसी तरह काहिनों की गिरोह सिक्म की राह में क़त्ल करती है, हाँ उन्होंने बदकारी की है।10मैंने इस्राईल के घराने में एक ख़तरनाक चीज़ देखी।इफ़्राईम में बदकारी पाई जाती है और इस्राईल नापाक हो गया।11~ऐ यहूदाह तेरे लिए भी कटाई का वक़्त मुक़र्रर है जब मैं अपने लोगों को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा
1जब मैं इस्राईल को शिफ़ा बख़्शने को था तो~इफ़्राईम की बदकिरदारी और सामरिया की शरारत ज़ाहिर हुई क्यूँकि वह दग़ा करते हैं । अन्दर चोर घुस आए हैं और बाहर डाकुओं का ग़ोल लूट रहा है।2~वह ये नहीं सोचते के मुझे उनकी सारी शरारत मा'लूम है। अब उनके 'आमाल ने जो मुझ पर ज़ाहिर हैं उनको घेर लिया है।3वह बादशाह को अपनी शरारत और उमरा को दरोग़ गोई से खु़श करते हैं।4वह सब के सब बदकार हैं। वह उस तनूर की तरह हैं जिसको नानबाई गर्म करता है और आटा गूंधने के वक़्त से ख़मीर उठने तक आग भड़काने से बाज़ रहता है।5~हमारे बादशाह के जश्न के दिन उमरा तो गर्मी-ए-मय से बीमार हुए और वह ठठ्ठाबाज़ों के साथ बेतकल्लुफ़ हुआ।6धोखे में बैठे उनके दिल तनूर की तरह हैं। उनका क़हर रात भर सुलगता रहता है। वह सुबह के वक़्त आग की तरह भड़कता है।7~वह सब के सब तनूर की तरह दहकते हैं और अपने क़ाज़ियों को खा जाते हैं। उनके सब बादशाह मारे गए। उनमें कोई न रहा जो मुझ से दु'आ करे।8~इफ़्राईम दूसरे लोगों से मिल जुल गया। इफ़्राईम एक चपाती है जो उलटाई न गई।9अजनबी उसकी तवानाई को निगल गए और उसकी ख़बर नहीं और बाल सफ़ेद होने लगे पर वह बेख़बर है।10और फ़ख़्र-ए-इस्राईल उसके मुँह पर गवाही देता है तोभी वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू' नहीं लाए और बावजूद इस सब के उसके तालिब नहीं हुए।11इफ़्राईम~बेवकूफ़-ओ-नासमझ फ़ाख़्ता है वह मिस्र की दुहाई देते और असूर को जाते हैं।12~जब वह जाएँगे तो मैं उन पर अपना जाल फैला दूँगा। उनकी हवा के परिन्दों की तरह नीचे उतारूँगा और जैसा उनकी जमा'अत सुन चुकी है उनकी तादीब करूँगा।13उन पर अफ़सोस क्यूँकि वह~मुझ से आवारा हो गए, वह बर्बाद हों क्यूँकि वह मुझ से बाग़ी हुए। अगरचे मैं उनका फ़िदिया देना चाहता हूँ वह मेरे खिलाफ़ दरोग़ गोई करते हैं।14और वह हुजूर-ए-क़ल्ब के साथ मुझ से फ़रियाद नहीं करते बल्कि अपने बिस्तरों पर पड़े चिल्लाते हैं। वह अनाज और मय के लिये तो जमा' हो जाते हैं पर मुझ से बाग़ी रहते हैं।15~अगरचे मैंने उनकी तरबियत की और उनको ताक़तवर बाज़ू किया तोभी वह मेरे हक़ में बुरे ख़याल करते हैं।16वह रुजू' होते हैं पर हक़ ताला की तरफ़ नहीं। वह दग़ा देने वाली कमान की तरह हैं। उनके उमरा अपनी ज़बान की गुस्ताख़ी की वजह से बर्बाद होंगे। इससे मुल्क-ए-मिस्र में उनकी हँसी होगी।
1तुरही अपने मुँह से लगा! वह 'उक़ाब की तरह ख़ुदावन्द के घर पर टूट पड़ा है, क्यूँकि उन्होंने मेरे अहद से तजावुज़ किया और मेरी शरी'अत के ख़िलाफ़ चले।2वह मुझे यूँ पुकारते हैं कि ऐ हमारे ख़ुदा, हम बनी-इस्राईल तुझे पहचानते हैं।3इस्राईल ने भलाई को छोड़ दिया, दुश्मन उसका पीछा करेंगे।4उन्होंने बादशाह मुक़र्रर किए लेकिन मेरी तरफ़ से नहीं। उन्होंने उमरा को ठहराया है और मैंने उनको न जाना। उन्होंने अपने सोने चाँदी से बुत बनाए ताकि बर्बाद हों।5ऐ सामरिया, तेरा बछड़ा मरदूद है। मेरा क़हर उन पर भड़का है। वह कब तक गुनाह से पाक न होंगे।6क्यूँकि ये भी इस्राईल ही की करतूत है। कारीगर ने उसको बनाया है। वह ख़ुदा नहीं। सामरिया का बछड़ा यक़ीनन टुकड़े-टुकड़े किया जाएगा।7~बेशक उन्होंने हवा बोई। वह गर्दबाद काटेंगे, न उसमें डंठल निकलेगा न उसकी बालों से ग़ल्ला पैदा होगा और अगर पैदा हो भी तो अजनबी उसे चट कर जाएँगे।8~इस्राईल निगला गया। अब वह क़ौमों के बीच ना पसंदीदा बर्तन की तरह होंगे।9क्यूँकि वह तन्हा गोरख़र की तरह असूर को चले गए हैं।~इफ़्राईम ने उजरत पर यार बुलाए।10अगरचे उन्होंने क़ौमों को उजरत दी है तो भी अब मै उनको जमा' करूँगा और वह बादशाह-ओ-उमरा के बोझ से ग़मग़ीन होंगे।11~चूँकि इफ़्राईम ने गुनहगारी के लिए बहुत सी क़ुर्बानगाहें बनायीं इसलिए वह क़ुर्बानगाहें उसकी गुनहगारी का ज़रिया' हुई।12अगरचे मैंने अपनी शरी'अत के अहकाम को उनके लिए हज़ारों बार लिखा, लेकिन वह उनको अजनबी ख़्याल करते हैं।13वह मेरे तोहफ़ों की क़ुर्बानियों के लिए गोश्त पेश करते और खाते हैं, लेकिन ख़ुदावन्द उनको क़ुबूल नहीं करता। अब वह उनकी बदकिरदारी की याद करेगा और उनको उनके गुनाहों की सज़ा देगा। वह मिस्र को वापस जाएँगे।14~इस्राईल ने अपने ख़ालिक़ को फ़रामोश करके बुतख़ाने बनाए हैं और यहूदाह ने बहुत से हसीन शहर ता'मीर किए हैं, लेकिन मैं उसके शहरों पर आग भेजूँगा और वह उनके कस्रों को भसम कर देगी।
1ऐ इस्राईल, दूसरी क़ौमों की तरह ख़ुशी-ओ-शादमानी न कर, क्यूँकि तू ने अपने ख़ुदा से बेवफ़ाई की है। तूने हर एक खलीहान में उजरत तलाश की है।2~खलीहान और मय के हौज़ उनकी परवरिश के लिए काफ़ी न होंगे और नई मय किफ़ायत न करेगी।3~वह ख़ुदावन्द के मुल्क में न बसेंगे, बल्कि~इफ़्राईम मिस्र को वापस जाएगा और वह असूर में नापाक चीज़ें खाएँगे।4~वह मय को ख़ुदावन्द के लिए न तपाएँगे और वह उसके मक़बूल न होंगे,उनकी क़ुर्बानियाँ उनके लिए नौहागरों की रोटी की तरह होंगी। उनको खाने वाले नापाक होंगे, क्यूँकि उनकी रोटियाँ उन ही की भूक के लिए होंगी और ख़ुदावन्द के घर में दाख़िल न होंगी।5मजमा'-ए-मुक़द्दस के दिन और ख़ुदावन्द की 'ईद के दिन क्या करोगे?6~क्यूँकि वो तबाही के ख़ौफ़ से चले गए, लेकिन मिस्र उनको समेटेगा। मोफ़ उनको दफ़न करेगा। उनकी चाँदी के अच्छे ख़ज़ानों पर बिच्छू बूटी क़ाबिज़ होगी। उनके खे़मों में काँटे उगेंगे।7~सज़ा के दिन आ गए, बदले का वक़्त आ पहुँचा। इस्राईल को मा'लूम हो जाएगा कि उसकी बदकिरदारी की कसरत और 'अदावत की ज़्यादती के ज़रिए' नबी बेवक़ूफ़ है। रूहानी आदमी दीवाना है।8~इफ़्राईम मेरे ख़ुदा की तरफ़ से निगहबान है। नबी अपनी तमाम राहों में चिड़ीमार का जाल है। वह अपने ख़ुदा के घर में 'अदावत है।9उन्होंने अपने आप को निहायत ख़राब किया जैसा जिब'आ के दिनों में हुआ था। वह उनकी बदकिरदारी को याद करेगा और उनके गुनाहों की सज़ा देगा।10मैंने इस्राईल को बियाबानी अंगूरों की तरह पाया। तुम्हारे बाप-दादा को अंजीर के पहले पक्के फल की तरह देखा जो दरख़्त के पहले मौसम में लगा हो, लेकिन वह बा'ल फ़गूर के पास गए और अपने आप को उस ज़रिए' रुस्वाई के लिए मख़्सूस किया और अपने उस महबूब की तरह मकरूह हुए।11~अहल-ए-इफ़्राईम की शौकत परिन्दे की तरह उड़ जाएगी, विलादत-ओ-हामिला का बुजूद उनमें न होगा और क़रार-ए-हमल ख़त्म हो जाएगा।12अगरचे वह अपने बच्चों को पालें, तोभी मैं उनको छीन लूँगा, ताकि कोई आदमी बाकी न रहे। क्यूँकि जब मैं भी उनसे दूर हो जाऊँ, तो उनकी हालत क़ाबिल-ए-अफ़सोस~होगी।13~इफ़्राईम को मैं देखता हूँ कि वो सूर की तरह उम्दा जगह में लगाया गया, लेकिन इफ़्राईमअपने बच्चों को क़ातिल के सामने ले जाएगा।14ऐ ख़ुदावन्द, उनको दे; तू उनको क्या देगा? उनको इस्क़ात-ए-हमल और ख़ुश्क पिस्तान दे।15~उनकी सारी शरारत जिल्जाल में है। हाँ, वहाँ मैंने उनसे नफ़रत की। उनकी बदआ'माली की वजह से मैं उनको अपने घर से निकाल दूँगा और फिर उनसे मुहब्बत न रख्खूँगा। उनके सब उमरा बाग़ी हैं।16~बनी~इफ़्राईम तबाह हो गए। उनकी जड़ सूख गई। उनके यहाँ औलाद न होगी और अगर औलाद हो भी तो मैं उनके प्यारे बच्चों को हलाक करूँगा।17~मेरा ख़ुदा उनको ~छोड़ देगा, क्यूँकि वो उसके सुनने वाले नहीं हुए और वह अक़वाम-ए-'आलम में आवारा फिरेंगे।
1इस्राईल लहलहाती ताक है जिसमें फल लगा, जिसने अपने फल की कसरत के मुताबिक़ बहुत सी कु़र्बानगाहें ता'मीर की और अपनी ज़मीन की खू़बी के मुताबिक़ अच्छे अच्छे सुतून बनाए।2उनका दिल दग़ाबाज़ है। अब वह मुजरिम ठहरेंगे। वह उनके मज़बहों को ढाएगा और उनके सुतूनों को तोड़ेगा।3~यक़ीनन अब वह कहेंगे,हमारा कोई बादशाह नहीं क्यूँकि जब हम ख़ुदावन्द से नहीं डरते तो बादशाह हमारे लिए क्या कर सकता है?”4~उनकी बातें बेकार हैं। वह 'अहद-ओ-पैमान में झूटी क़सम खाते हैं। इसलिए बला ऐसी फूट निकलेगी जैसे खेत की रेघारियों में इन्द्रायन।5बैतआवन की बछियों की वजह से सामरिया के रहने वाले ख़ौफ़ज़दा होंगे, क्यूँकि वहाँ के लोग उस पर मातम करेंगे, और वहाँ के काहिन भी जो उसकी पहले की शौकत की वजह से शादमान थे।6~इसको भी असूर में ले जाकर, उस मुख़ालिफ़ बादशाह की नज़र करेंगे।~इफ़्राईम शर्मिन्दगी उठाएगा और इस्राईल अपनी मश्वरत से शर्मिन्दा होगा।7सामरिया का बादशाह कट गया है, वह पानी पर तैरती शाख़ की तरह है।8~और आवन के ऊँचे मक़ाम, जो इस्राईल का गुनाह हैं, बर्बाद किए जाएँगे; और उनके मज़बहों पर काँटे और ऊँट कटारे उगेंगे और वह पहाड़ों से कहेंगे, हम को छिपा लो,और टीलों से कहेंगे, हम पर आ गिरो।9ऐ इस्राईल, तू जिब'आ के दिनों से गुनाह करता आया है। वो वहीं ठहरे रहे, ताकि लड़ाई जिब'आ में बदकिरदारों की नस्ल तक न पहुँचे।10मैं जब चाहूँ उनको सज़ा दूँगा और जब मैं उनके दो गुनाहों कीे सज़ा दूँगा तो लोग उन पर हुजूम करेंगे।11इफ़्राईम सधाई हुई बछिया है, जो दाओना पसन्द करती है, और मैंने उसकी ख़ुशनुमा गर्दन की दरेग़ किया लेकिन मैं~इफ़्राईम~पर सवार बिठाऊँगा। यहूदाह हल चलाएगा और या'कू़ब ढेले तोड़ेगा।12~अपने लिए सच्चाई से बीज बोया करो। शफ़क़त से फ़स्ल काटो और अपनी उफ़्तादा ज़मीन में हल चलाओ, क्यूँकि अब मौक़ा' है कि तुम ख़ुदावन्द के तालिब हो,ताकि वह आए और रास्ती को तुम पर बरसाए।13तुम ने शरारत का हल चलाया। बदकिरदारी की फ़सल काटी और झूट का फल खाया, क्यूँकि तू ने अपने चाल चलन में अपने बहादुरों के अम्बोह पर तकिया किया।14~इसलिए तेरे लोगों के ख़िलाफ़ हंगामा खड़ा होगा, और तेरे सब किले' ढा दिए जाएँगे, जिस तरह शल्मन ने लड़ाई के दिन बैत अर्बेल को ढा दिया था; जब कि माँ अपने बच्चों के साथ टुकड़े-टुकड़े हो गई।15~तुम्हारी बेनिहायत शरारत की वजह से बैतएल में तुम्हारा यही हाल होगा। शाह-ए-इस्राईल अलस् सबाह बिल्कुल फ़ना हो जाएगा।
1जब इस्राईल अभी बच्चा ही था, मैने उससे मुहब्बत रख्खी, और अपने बेटे को मिस्र से बुलाया।2~उन्होंने जिस क़द्र उनको बुलाया, उसी क़द्र वह दूर होते गए; उन्होंने बा'लीम के लिए कु़र्बानियाँ पेश कीं और तराशी हुई मूरतों के लिए ख़ुशबू जलाया।3मैंने बनी~इफ़्राईम को चलना सिखाया; मैंने उनको गोद में उठाया, लेकिन उन्होंने न जाना कि मैं ही ने उनको सेहत बख़्शी।4मैंने उनको इंसानी रिश्तों और मुहब्बत की डोरियों से खींचा; मैं उनके हक़ में उनकी गर्दन पर से जूआ उतारने वालों की तरह हुआ, और मैंने उनके आगे खाना रख्खा।5~वह फिर मुल्क-ए-मिस्र में न जाएँगे, बल्कि असूर उनका बादशाह होगा; क्यूँकि वह वापस आने से इन्कार करते हैं।6~तलवार उनके शहरों पर आ पड़ेगी, और उनके अड़बंगों को खा जाएगी और ये उन ही की मश्वरत का नतीजा होगा।7~क्यूँकि मेरे लोग मुझ से नाफ़रमानी पर आमादा हैं, बावुजूद ये कि उन्होंने उनको बुलाया कि हक़ ता'ला की तरफ़ रुजू' लाए; लेकिन किसी ने न चाहा कि उसकी इबादत करें।8~ऐ इफ़्राईम, मैं तुझ से क्यूँकर दस्तबरदार हो जाऊँ? ऐ इस्राईल, मैं तुझे क्यूँकर तर्क करूं? मैं क्यूँकर तुझे अदमह की तरह बनाऊ?और ज़िबू'ईम तरह बनाऊँ ~मेरा दिल मुझ में पेच खाता है; मेरी शफ़क़त मौजज़न है।9मैं अपने क़हर की शिद्दत के मुताबिक़ 'अमल नहीं करूँगा, मैं हरगिज़~इफ़्राईम को हलाक न करूँगा; क्यूँकि मैं इन्सान नहीं, ख़ुदा हूँ |तेरे बीच सुकूनत करने वाला कु़द्दूस, और मैं क़हर के साथ नहीं आऊँगा।10वह ख़ुदावन्द की पैरवी करेंगे, जो शेर-ए-बबर की तरह गरजेगा, क्यूँकि वह गरजेगा, और उसके फ़र्ज़न्द मग़रिब की तरफ़ से काँपते हुए आएँगे।11वह मिस्र से परिन्दे की तरह, और असूर के मुल्क से कबूतर की तरह काँपते हुए आएँगे; और मैं उनको उनके घरों में बसाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।12~इफ़्राईम ने दरोगगोई से और इस्राईल के घराने ने मक्कारी से मुझ को घेरा है, लेकिन यहूदाह अब तक ख़ुदा के साथ हाँ उस क़ुद्दूस वफ़ादार के साथ हुक्मरान हैं |
1~इफ़्राईम हवा चरता है; वह पूरबी हवा के पीछे दौड़ता है। वह मुत्वातिर झूट पर झूट बोलता, और जु़ल्म करता है। वह असूरियों से 'अहद-ओ-पैमान करते, और मिस्र को तेल भेजते हैं।2ख़ुदावन्द का यहूदाह के साथ भी झगड़ा है, और या'कू़ब को चाल चलन के मुताबिक़ उसकी सज़ा देगा; और उसके आ'माल के मुवाफ़िक़ उसका बदला देगा।3~उसने रिहम में अपने भाई की एड़ी पकड़ी, और वह अपनी जवानी के दिनों में ख़ुदा से कुश्ती लड़ा।4~हाँ, वह फ़रिश्ते से कुश्ती लड़ा और ग़ालिब आया। उसने रोकर दु'आ की। उसने उसे बैतएल में पाया और वहाँ वह हम से हम कलाम हुआ5या'नी ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, यहोवा उसकी यादगार है:6"अब तू अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू' ला; नेकी और रास्ती पर क़ायम, और हमेशा अपने ख़ुदा का उम्मीदवार रह।”7~वह सौदागर है, और दग़ा की तराजू उसके हाथ में है; वह जु़ल्म दोस्त है।8~इफ़्राईम तो कहता है, 'मैं दौलतमंद और मैंने बहुत सा माल हासिल किया है। मेरी सारी कमाई में बदकिरदारी का गुनाह न पाएँगे।"9लेकिन मैं मुल्क-ए-मिस्र से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ; मैं फिर तुझ को 'ईद-ए-मुक़द्दस के दिनों के दस्तूर पर ख़ेमों में बसाऊँगा।10मैंने तो नबियों से कलाम किया; और रोया पर रोया दिखाई, और नबियों के वसील से तशबिहात इस्तेमाल कीं।11~यक़ीनन जिल्आदि में बदकिरदारी है, वो बिल्कुल बतालत हैं; वो जिल्जाल में बैल क़ुर्बान करते हैं,उनकी क़ुर्बानगाहे खेत की रेखारियों ~पर के तूदों की तरह हैं।12और याकूब अराम की ज़मीन को भाग गया; इस्राईल बीवी के ख़ातिर नौकर बना, उसने बीवी की ख़ातिर चरवाही ~की।13~एक नबी के वसीले से ख़ुदावन्द इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया और नबी ही के वसीले से वह महफ़ूज़ रहा।14~इफ़्राईम ने बड़े सख़्त ग़ज़बअंगेज़ काम किए; इसलिए उसका खू़न उसी की गर्दन पर होगा और उसका ख़ुदावन्द उसकी मलामत उसी के सिर पर लाएगा।
1इफ़्राईम~के कलाम में ख़ौफ़ था, वह इस्राईल के बीच सरफ़राज़ किया गया; लेकिन बा'ल की वजह से गुनहगार होकर फ़ना हो गया।2और अब वह गुनाह पर गुनाह करते हैं, उन्होंने अपने लिए चाँदी की ढाली हुई मुरते बनाई और अपनी समझ के मुताबिक़ बुत तैयार किए जो सब के सब कारीगरों का काम हैं। वो उनके बारे कहते हैं, "जो लोग क़ुर्बानी पेश करते हैं, बछड़ों को चूमें!"3इसलिए वह सुबह के बादल और शबनम की तरह जल्द जाते रहेंगे, और भूसी की तरह, जिसको बगोला खलीहान पर से उड़ा ले जाता है, और उस धुंवें की तरह जो दूदकश से निकलता है।4~लेकिन मैं मुल्क-ए-मिस्र ही से, ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ और मेरे अलावा तू किसी मा'बूद को नहीं जानता था, क्यूँकि मेरे अलावा कोई और नजात देने वाला नहीं है।5~मैंने बियाबान में, या'नी खु़श्क ज़मीन में तेरी ख़बर गीरी की।6वह अपनी चरागाहों में सेर हुए, और सेर होकर उनके दिल में घमंड समाया और मुझे भूल गए।7इसलिए मैं उनके लिए शेर-ए-बबर की तरह हुआ; चीते की तरह राह में उनकी घात में बैठूँगा।8मैं उस रीछनी की तरह जिसके बच्चे छिन गए हों, उनसे दो चार हूँगा, और उनके दिल का पर्दा चाक करके शेर-ए-बबर की तरह, उनको वहीं निगल जाऊँगा; जंगली जानवर उनको फाड़ डालेंगे।9ऐ इस्राईल, यही तेरी हलाकत है कि तू मेरा यानी अपने मदद गार का मुख़ालिफ़ बना।10अब तेरा बादशाह कहाँ है कि तुझे तेरे सब शहरों में बचाए और तेरे क़ाज़ी कहाँ हैं जिनके बारे तू कहता था कि मुझे बादशाह और उमरा इनायत कर?11~मैंने अपने क़हर में तुझे बादशाह दिया, और ग़ज़ब से उसे उठा लिया।12~इफ़्राईम की बदकिरदारी बाँध रखी गई, और उसके गुनाह ज़ख़ीरे में जमा' किए गए।13~वह जैसे दर्द-ए-ज़िह में मुब्तिला होगा, वो बे अक़्ल फ़र्ज़न्द है; अब मुनासिब है कि पैदाइश की जगह में देर न करे।14~मैं उनको पाताल के क़ाबू से नजात दूँगा; मैं उनकी मौत से छुड़ाऊँगा। ऐ मौत तेरी वबा कहाँ है? ऐ पाताल तेरी हलाकत कहाँ है? मैं हरगिज़ रहम न करूँगा।15~अगरचे वह अपने भाइयों में कामियाब हो, तोभी पूरबी हवा आएगी; ख़ुदावन्द का दम बियाबान से आएगा, और उसका सोता सूख जाएगा, और उसका चश्मा ख़ुश्क हो जाएगा। वह सब पसंदीदा बर्तनों का ख़ज़ाना लूट लेगा।16सामरिया अपने जुर्म की सज़ा पाएगा, क्यूँकि उसने अपने ख़ुदा से बग़ावत की है; वह तलवार से गिर जाएँगे। उनके बच्चे पारा-पारा होंगे और हामला 'औरतों के पेट चाक किए जाएँगे।
1~ऐ इस्राईल, ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू' ला, क्यूँकि तू अपनी बदकिरदारी की वजह से गिर गया है।2कलाम लेकर ख़ुदावन्द की तरफ़ रुजू लाओ, और कहो, "हमारी तमाम बदकिरदारी को दूर कर, और फ़ज़ल से हम को कु़बूल फ़रमा; तब हम अपने लबों से कु़र्बानियाँ पेश करेंगे।3~असूर हम को नहीं बचाएगा; हम घोड़ों पर सवार नहीं होंगे; और अपनी दस्तकारी को ख़ुदा न कहेंगे क्यूँकि यतीमों पर रहम करने वाला तू ही है।"4~मैं उनकी नाफ़रमानी का चारा करूँगा; मैं कुशादा दिली से उनसे मुहब्बत रखूँगा, क्यूँकि मेरा क़हर उन पर से टल गया है।5मैं इस्राईल के लिए ओस की तरह हूँगा; वह सोसन की तरह फूलेगा, और लुबनान की तरह अपनी जड़ें फैलाएगा;6~उसकी डालियाँ फैलेंगी, और उसमें ज़ैतून के दरख़्त की खू़बसूरती और लुबनान की सी खु़शबू होगी।7उसके मातहत में रहने वाले कामियाब हो जाएँगे; वह गेहूँ की तरह तर-ओ-ताज़ा और ताक की तरह शिगुफ़्ता होंगे। उनकी शुहरत लुबनान की मय की सी होगी।8~इफ़्राईम कहेगा, "अब मुझे बुतों से क्या काम?' मैं ख़ुदावन्द ने उसकी सुनी है, और उस पर निगाह करूँगा। मैं सर सब्ज़ सरो की तरह हूँ, तू मुझ ही से कामयाब हुआ।9'अक़्लमन्द कौन है कि वह ये बातें समझे और समझदार कौन है जो इनको जाने? क्यूँकि ख़ुदावन्द की राहें रास्त है और सादिक़ उनमें चलेंगे; लेकिन ख़ताकर उनमें गिर पड़ेंगे।
1~ख़ुदावन्द का कलाम जो यूएल-बिनफ़तूएल पर नाज़िल हुआ :2~ऐ बूढ़ो, सुनो,ऐ ज़मीन के सब रहने वालों, कान लगाओ! क्या तुम्हारे या तुम्हारे बाप-दादा के दिनों में कभी ऐसा हुआ?3~तुम अपनी औलाद से इसका तज़किरा करो, और तुम्हारी औलाद अपनी औलाद से, और उनकी औलाद अपनी नसल से बयान करे।4~जो कुछ टिड्डियों के एक ग़ोल से बचा, उसे दूसरा ग़ोल निगल गया; और जो कुछ दूसरे से बचा, उसे तीसरा ग़ोल चट कर गया; और जो कुछ तीसरे से बचा, उसे चौथा ग़ोल खा गया।5~ऐ मतवालो, जागो और मातम करो; ऐ मयनौशी करने वालों,नई मय के लिए चिल्लाओ, क्यूँकि वह तुम्हारे मुँह से छिन गई है।6~क्यूँकि मेरे मुल्क पर एक क़ौम चढ़ आई है,उनके दाँत शेर-ए-बबर के जैसे हैं, और उनकी दाढ़ें शेरनी की जैसी हैं।7~उन्होंने मेरे ताकिस्तान को उजाड़ डाला, और मेरे अंजीर के दरख़्तों को तोड़ डाला; उन्होंने उनको बिल्कुल छील छालकर फेंक दिया, उनकी डालियाँ सफ़ेद निकल आईं।8~तुम मातम करो, जिस तरह दुल्हन अपनी जवानी के शौहर के लिए टाट ओढ़ कर मातम करती है।9नज़्र की कु़र्बानी और तपावन ख़ुदावन्द के घर से मौकूफ़ हो गए।ख़ुदावन्द के ख़िदमत गुज़ार,काहिन मातम करते हैं।10~खेत उजड़ गए, ज़मीन मातम करती है, क्यूँकि ग़ल्ला ख़राब हो गया है; नई मय ख़त्म हो गई, और तेल बर्बाद हो गया।11~ऐ किसानो, शर्मिन्दगी उठाओ,ऐ ताकिस्तान के बाग़बानों, मातम ~करो, क्यूँकि गेहूँ और जौ और मैदान के तैयार खेत बर्बाद ~हो गए।12~ताक ख़ुश्क हो गई;अंजीर का दरख़्त मुरझा गया। अनार और खजूर और सेब के दरख़्त, हाँ मैदान के तमाम दरख़्त मुरझा गए; और बनी आदम से खुशी जाती रही'।13~ऐ काहिनो, कमरें कस कर मातम करो, ऐ मज़बह पर ख़िदमत करने वालो, वावैला करो। ऐ मेरे ख़ुदा के ख़ादिमों, आओ रात भर टाट ओढ़ो !क्यूँकि नज़्र की क़ुर्बानी और तपावन तुम्हारे ख़ुदा के घर से मौक़ूफ़ हो गए।14~रोज़े के लिए एक दिन मुक़द्दस करो; पाक महफ़िल ~बुलाओ।बुज़ुर्गों और मुल्क के तमाम बाशिंदों को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर में जमा' करके उससे फ़रियाद करो15~उस दिन पर अफ़सोस !क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन नज़दीक है, वह क़ादिर-ए-मुतलक़ की तरफ़ से बड़ी हलाकत की तरह आएगा।16~क्या हमारी आँखों के सामने रोज़ी मौक़ूफ़ नहीं हुई ,और हमारे ख़ुदा के घर से खु़शीओ-शादमानी जाती नहीं रही?17~बीज ढेलों के नीचे सड़ गया; ग़ल्लाख़ाने ख़ाली पड़े हैं, खत्ते तोड़ डाले गए; क्यूँकि खेती सूख गई।18~जानवर कैसे कराहते हैं! गाय-बैल के गल्ले परेशान हैं क्यूँके उनके लिए चरागाह नहीं है; हाँ, भेड़ों के गल्ले भी बर्बाद हो गए हैं।19~ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे सामने फ़रियाद करता हूँ। क्यूँकि आग ने वीराने की चरागाहों को जला दिया, और शो'ले ने मैदान के सब दरख़्तों को राख कर दिया है।20जंगली जानवर भी तेरी तरफ़ निगाह रखते हैं, क्यूँकि पानी की नदियाँ सूख गई,और आग वीराने की चरागाहों को खा गईं।
1~सिय्यून में नरसिंगा फूँको; मेरे पाक पहाड़ी पर साँस बाँध कर ज़ोर से फूँको! मुल्क के तमाम रहने वाले थरथराएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन चला आता है; बल्कि आ पहुँचा है।2~अंधेरे और तारीकी का दिन, काले बादल और जु़ल्मात का दिन है! एक बड़ी और ज़बरदस्त उम्मत जिसकी तरह न कभी हुई और न सालों तक उसके बा'द होगी; पहाड़ों पर सुब्ह-ए-सादिक़ की तरह फैल जाएगी।3~जैसे उनके आगे आगे आग भसम करती जाती है, और उनके पीछे पीछे शो'ला जलाता जाता है। उनके आगे ज़मीन बाग़-ए-'अदन की तरह है और उनके पीछे वीरान बियाबान है; हाँ, उनसे कुछ नहीं बचता।4~उनके पैरों का निशान घोड़ों के जैसे हैं,और सवारों की तरह दौड़ते हैं।5~पहाड़ों की चोटियों पर रथों के खड़खड़ाने और भूसे को ख़ाक करने वाले जलाने वाली आग के शोर की तरह बलन्द होते हैं। वह जंग के लिए तरतीब में ज़बरदस्त क़ौम की तरह हैं।6उनके आमने सामने लोग थरथराते हैं; सब चेहरों का रंग उड़ जाता है।7~वह पहलवानों की तरह दौड़ते,और जंगी मर्दों की तरह दीवारों पर चढ़ जाते हैं। सब अपनी अपनी राह पर चलते हैं, और लाइन नहीं तोड़ते।8~वह एक दूसरे को नहीं ढकेलते,हर एक अपनी राह पर चला जाता है; वो जंगी हथियारों से गुज़र जाते हैं, और बेतरतीब नहीं होते।9~वो शहर में कूद पड़ते,और दीवारों और घरों पर चढ़कर चोरों की तरह खिड़कियों से घुस जाते हैं।10~उनके सामने ज़मीन-ओ-आसमान काँपते और थरथराते हैं। सूरज और चाँद तारीक, और सितारे बेनूर हो जाते हैं।11~और ख़ुदावन्द अपने लश्कर के सामने ललकारता है, क्यूँकि उसका लश्कर बेशुमार है और उसके हुक्म को अंजाम देने वाला ज़बरदस्त है; क्यूँकि ख़ुदावन्द का रोज़-ए-'अज़ीम बहुत ख़ौफ़नाक है। कौन उसकी बर्दाश्त कर सकता है?12~लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अब भी पूरे दिल से और रोज़ा रख कर और गिर्या-ओ-ज़ारी-ओ-मातम करते हुए मेरी तरफ़ फ़िरो।13~और अपने कपड़ों को नहीं,बल्कि दिलों को चाक करके,” ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ मुतवज्जिह हो; क्यूँकि वह रहीम-ओ-मेहरबान, क़हर करने में धीमा, और शफ़क़त में ग़नी है; और 'अज़ाब नाज़िल करने से बाज़ रहता है।14~कौन जानता है कि वह बाज़ रहे,और बरकत बाक़ी छोड़े जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा के लिए नज़्र की कु़र्बानी और तपावन हो।15~सिय्यून में नरसिंगा फूँको,और रोज़े के लिए एक दिन पाक करो; पाक महफ़िल इकठ्ठा करो।16~तुम लोगों को जमा' करो। जमा'अत को पाक करो, बुज़ुर्गों को इकट्ठा करो; बच्चों और शीरख़्वारों को भी ~बुलाओ। दुल्हा अपनी कोठरी से और दुल्हन अपने तन्हाई के घर ~से निकल आए।17काहिन या'नी ख़ुदावन्द के ख़ादिम, डयोढ़ी और कु़र्बानगाह के बीच गिर्या-ओ-ज़ारी करें कहें, "ऐ खुदावन्द, अपने लोगों पर रहम कर, और अपनी मीरास की तौहीन न होने दे। ऐसा न हो कि दूसरी क़ौमें उन पर हुकूमत करें। वह उम्मतों के बीच क्यूँ कहें, उनका ख़ुदा कहाँ है?18~तब ख़ुदावन्द को अपने मुल्क के लिए गै़रत आई और उसने अपने लोगो पर रहम किया।19~फिर ख़ुदावन्द ने अपने लोगों से फ़रमाया, "मैं तुम को अनाज और नई मय और तेल 'अता फ़रमाऊँगा ~और तुम उनसे सेर होगे और मैं फिर तुम को क़ौमों में रुस्वा न करूँगा।20~"और शिमाली लश्कर को तुम से दूर करूँगा और उसे खु़श्क वीराने में हाँक दूँगा; उसके अगले मशरिक़ी समुंदर में होंगे, और पिछले मग़रिबी समुंदर में होंगे; उससे बदबू उठेगी~और 'उफ़ूनत फैलेगी,क्यूँकि उसने बड़ी गुस्ताख़ी की है।21~'ऐ ज़मीन, न घबरा;खु़शी और शादमानी कर, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने बड़े बड़े काम किए हैं!22~ऐ दश्ती जानवरो, न घबरा; क्यूँकि वीरान की चारागाह सब्ज़ होती है, और दरख़्त अपना फल लाते हैं। अंजीर और ताक अपनी पूरी पैदावार देते हैं।23~"तब ऐ बनी सिय्यून, खुश हो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा में शादमानी करो; क्यूँकि वह तुम को पहली बरसात कसरत से बख़्शेगा; वही तुम्हारे लिए बारिश, या'नी पहली और पिछली बरसात वक़्त पर भेजेगा।24~"यहाँ तक कि खलीहान गेहूँ से भर जाएँगे, और हौज़ नई मय और तेल से लबरेज़ होंगे।25~और उन बरसों का हासिल जो मेरी तुम्हारे ख़िलाफ़ भेजीं हुई फ़ौज़ -ए-मलख़ निगल गई, और खाकर चट कर गई; तुम को वापस दूँगा।26"और तुम खू़ब खाओगे और सेर होगे, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम की, जिसने तुम से 'अजीब सुलूक किया, 'इबादत करोगे और मेरे लोग हरगिज़ शर्मिन्दा न होंगे।27~तब तुम जानोगे कि मैं इस्राईल के बीच हूँ,और मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, और कोई दूसरा नहीं; और मेरे लोग कभी शर्मिन्दा न होंगे।28~'और इसके बा'द मैं हर फ़र्द-ए-बशर पर अपना रूह नाज़िल करूँगा, और तुम्हारे बेटे बेटियाँ नबुव्वत करेंगे; तुम्हारे बूढे ख़्वाब और जवान रोया देखेंगे।29~बल्कि मैं उन दिनों में गु़लामों और लौंडियों पर अपना रूह नाज़िल करूँगा।30' और मैं ज़मीन-ओ-आसमान में 'अजाइब ज़ाहिर करूँगा, या'नी खू़न और आग और धुंवें के खम्बे।31~इस से पहले कि ख़ुदावन्द का ख़ौफ़नाक रोज़-ए-'अज़ीम आए, सूरज तारीक और चाँद ख़ून हो जाएगा।32~और जो कोई ख़ुदावन्द का नाम लेगा नजात पाएगा, क्यूँकि कोह-ए-सिय्यून और यरूशलीम में, जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है बच निकलने वाले होंगे, और बाक़ी लोगों में वह जिनको ख़ुदावन्द बुलाता है।
1"उन दिनों में और उसी वक़्त, जब मैं यहूदाह और यरूशलीम के क़ैदियों को वापस लाऊँगा;2तो सब क़ौमों को जमा' करूँगा और उन्हें यहूसफ़त की वादी में उतार लाऊँगा, और वहाँ उन पर अपनी क़ौम और मीरास, इस्राईल के लिए, जिनको ~उन्होंने क़ौमों के बीच हलाक किया और मेरे मुल्क को बाँट लिया, दलील साबित करूँगा।3~हाँ, उन्होंने मेरे लोगों पर पर्ची डाली, और एक कस्बी के बदले एक लड़का दिया, और मय के लिए एक लड़की बेची ताकि मयख़्वारी करें।4"फिर ऐ सूर-ओ-सैदा और फ़िलिस्तीन के तमाम 'इलाक़ो, मेरे लिए तुम्हारी क्या हक़ीक़त है? क्या तुम मुझ को बदला दोगे? और अगर दोगे, तो मैं वहीं फ़ौरन तुम्हारा बदला तुम्हारे सिर पर फेंक दूँगा।5क्यूँकि तुम ने मेरा सोना चाँदी ले लिया है, और मेरी लतीफ़-ओ-नफ़ीस चीज़ें अपने हैकलों में ले गए हो।6~और तुम ने यहूदाह और यरूशलीम की औलाद को यूनानियों के हाथ बेचा है, ताकि उनको उनकी हदों से दूर करो।7~इसलिए मैं उनको उस जगह से जहाँ तुम ने बेचा है, बरअंगेख़्ता करूँगा और तुम्हारा बदला तुम्हारे सिर पर लाऊँगा।8और तुम्हारे बेटे बेटियों को बनी यहूदाह के हाथ बेचूँगा, और वह उनको अहल-ए-सबा के हाथ, जो दूर के मुल्क में रहते हैं, बेचेंगे, क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का फ़रमान है।"9क़ौमों के बीच इस बात का 'ऐलान करो: लड़ाई की तैयारी करो" ~बहादुरों को बरअंगेख़्ता करो, जंगी जवान हाज़िर हों, वह ~चढ़ाई करें।10अपने हल की फालों को पीटकर तलवारें बनाओ और हँसुओं को पीट कर भाले, कमज़ोर कहे, "मैं ताक़तवर हूँ।"11~ऐ आस पास की सब क़ौमों,जल्द आकर जमा' हो जाओ। ऐ ख़ुदावन्द, अपने बहादुरों को वहाँ भेज दे।12~क़ौमें बरअंगेख़्ता हों, और यहूसफ़त की वादी में आएँ;क्यूँकि मैं वहाँ बैठकर आस पास की सब क़ौमों की 'अदालत करूँगा।13~हँसुआ लगाओ, क्यूँकि खेत पक गया है। आओ रौंदो, क्यूँकि हौज़ लबालब।और कोल्हू लबरेज़ है क्यूँकि उनकी शरारत 'अज़ीम है।14~गिरोह पर गिरोह इनफ़िसाल की वादी में है, क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन इनफ़िसाल की वादी में आ पहुँचा।15~सूरज और चाँद तारीक हो जाएँगे,और सितारों का चमकना बंद हो जाएगा। अपने लोगों को ख़ुदावन्द बरकत देगा16~क्यूँकि खुदावन्द सिय्यून से ना'रा मारेगा, और यरूशलीम से आवाज़ बुलंद करेगा और आसमान और ज़मीन काँपेंगे। लेकिन ख़ुदावन्द अपने लोगों की पनाहगाह और बनी-इस्राईल का क़िला' है।17"तब तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ ,जो सिय्यून में अपने पाक पहाड़ पर रहता हूँ। तब यरूशलीम भी पाक होगा और फिर उसमे किसी अजनबी का गुज़र न होगा।18~और उस दिन पहाड़ों पर से नई मय टपकेगी, और टीलों पर से दूध बहेगा, और यहूदाह की सब नदियों में पानी जारी होगा; और ख़ुदावन्द के घर से एक चश्मा फूट निकलेगा और वादी-ए-शित्तीम को सेराब करेगा।19मिस्र वीराना होगा और अदूम सुनसान बियाबान, क्यूँकि उन्होंने बनी यहूदाह पर ज़ुल्म किया, और उनके मुल्क में बेगुनाहों का ख़ून बहाया।20~लेकिन यहूदाह हमेशा आबाद और यरुशलीम नसल-दर-नसल क़ायम रहेगा।21~क्यूँकि मैं उनका ख़ून पाक क़रार दूँगा, जो मैंने अब तक पाक क़रार नहीं दिया था; क्यूँकि ख़ुदावन्द सिय्यून में सुकूनत करता है|"
1~तक़ू'अ के चरवाहों में से 'आमूस का कलाम, जो उस पर शाह-ए-यहूदाह 'उज़्जियाह और शाह-ए-इस्राईल युरब'आम- बिन-यूआस के दिनों में इस्राईल के बारे में भौंचाल से दो साल पहले ख़्वाब में नाज़िल हुआ।2~उसने कहा: "ख़ुदावन्द सिय्यून से नारा मारेगा और यरूशलीम से आवाज़ बलन्द करेगा; और चरवाहों की चरागाहें मातम करेंगी, और कर्मिल की चोटी सूख जायेगी|"3ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "दमिश्क़ के तीन बल्कि चार गुनाहों~की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने जिलआद को ख़लीहान में दाउने के आहनी औज़ार से रौंद डाला है |4और मैं हज़ाएल के घराने में आग भेजूँगा, जो बिन-हदद के क़स्रों को खा जाएगी।5~और मैं दमिश्क़ का अड़बंगा तोड़ूँगा और वादी-ए-आवन के बाशिंदों और बैत-'अदन के फ़रमाँरवाँ को काट डालूँगा और अराम के लोग ग़ुलाम होकर क़ीर को जाएँगे," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।6ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि ग़ज़्ज़ा के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि वह सब लोगों को ग़ुलाम करके ले गए ताकि उनको अदूम के हवाले करें।7~इसलिए मैं ग़ज़्ज़ा की शहरपनाह पर आग भेजूँगा, जो उसके क़स्रों को खा जाएगी।8~और अशदूद के बाशिन्दों और अस्क़लोन के फ़रमाँरवाँ को काट डलूँगा और 'अक़्रून पर हाथ चलाऊँगा और फ़िलिस्तियों के बाक़ी लोग बर्बाद हो जायेंगे| ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।9~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि सूर के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने सब लोगों को अदूम के हवाले किया और बिरादराना 'अहद को याद न किया।10~इसलिए मैं सूर की शहरपनाह पर आग भेजूँगा, जो उसके क़स्रों को खा जाएगी।"11ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि अदोम के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उसने तलवार लेकर अपने भाई को दौड़ाया और रहमदिली को छोड़ ~दिया और उसका क़हर हमेशा फाड़ता रहा और उसका ग़ज़ब ख़त्म न हुआ |12~इसलिए मैं तेमान पर आग भेजूँगा,और वह बुसराह के क़स्रों को खा जाएगी।13~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है ~कि बनी 'अम्मोन ~के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोडूँगा, क्यूँकि उन्होंने अपनी हुदूद को बढ़ाने के लिए जिलआद की बारदार 'औरतों के पेट चाक किए।14~इसलिए मैं रब्बा की शहरपनाह पर आग भड़काऊँगा, जो उसके क़स्रों को लड़ाई के दिन ललकार और आँधी के दिन गिर्दबाद के साथ खा जाएगी;15~और उनका बादशाह बल्कि वह अपने हाकिमों के साथ ग़ुलाम होकर जाएगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
1~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "मोआब के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोडूँगा, क्यूँकि उसने शाह-ए-अदूम की हड्डियों को जलाकर चूना बना दिया है।2~इसलिए मैं मोआब पर आग भेजूँगा,और वह करयूत के क़स्रों को खा जाएगी; और मोआब ललकार और नरसिंगे की आवाज़, और शोर-ओ-ग़ौग़ा के बीच मरेगा।3~और मैं क़ाज़ी को उसके बीच से काट डालूँगा और उसके तमाम हाकिमों को उसके साथ क़त्ल करूँगा,” ख़ुदावन्द फ़रमाता है।4~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है ~कि "यहूदाह के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न~छोडूँगा~क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द की शरी'अत को रद्द किया, और उसके अहकाम की पैरवी न की और उनके झूटे मा'बूदों ने जिनकी पैरवी उनके बाप-दादा ने की, उनको गुमराह किया है।5~इसलिए मैं यहूदाह पर आग भेजूँगा, जो यरूशलीम के क़स्रों को खा जाएगी।"6~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "इस्राईल के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न~छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने सादिक़~को रुपये की ख़ातिर, और ग़रीब को जूतियों के जोड़े की ख़ातिर बेच डाला।7~वह ग़रीबों के सिर पर की गर्द का भी लालच रखते हैं, और हलीमों को उनकी राह से गुमराह करते हैं और बाप बेटा एक ही 'औरत के पास जाने से मेरे पाक नाम की तकफ़ीर करते हैं।8और वह हर मज़बह के पास गिरवी लिए हुए कपड़ों पर लेटते हैं, और अपने ख़ुदा के घर में जुर्माने से ख़रीदी हुई मय पीते हैं।9~हालाँकि मैं ही ने उनके सामने से अमोरियों को हलाक किया, जो देवदारों की तरह बलंद और बलूतों की तरह मज़बूत थे; हाँ, मैं ही ने ऊपर से उनका फल बर्बाद किया,और नीचे से उनकी जड़ें काटीं।10~और मैं ही तुमको ~मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, और चालीस बरस तक वीराने में तुम्हारी रहबरी की, ताकि तुम अमोरियों के मुल्क पर क़ाबिज़ हो जाओ।11~और मैंने तुम्हारे बेटों में से नबी,और तुम्हारे जवानों में से नज़ीर खड़े किए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "ऐ बनी इस्राईल, क्या ये सच नहीं?12लेकिन तुम ने नज़ीरों को मय पिलाई, और नबियों को हुक्म दिया के नबुव्वत न करें।13~देखो, मैं तुम को ऐसा दबाऊँगा, जैसे पूलों से लदी हुई गाड़ी दबाती है।14~तब तेज़ रफ़्तार से भागने की ताक़त जाती रहेगी, और ताक़तवर का ज़ोर बेकार होगा, और बहादुर अपनी जान न बचा सकेगा।15और कमान खींचने वाला खड़ा न रहेगा, और तेज़ क़दम और सवार अपनी जान न बचा सकेंगे;16और पहलवानों में से जो कोई दिलावर है, नंगा निकल भागेगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
1~ऐ बनी इस्राईल, ऐ सब लोगों जिनको मैं मिल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, ये बात सुनो जो ख़ुदावन्द तुम्हारे बारे में फ़रमाता है :2~"दुनिया के सब घरानों में से मैंने सिर्फ़ तुम को चुना है, इसलिए मैं तुम को तुम्हारी सारी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा।3~अगर दो शख़्स आपस में मुत्तफ़िक़ न हों, तो क्या इकट्ठे चल सकेंगे?4~क्या शेर-ए-बबर जंगल में गरजेगा, जबकि उसे शिकार न मिला हो? और अगर जवान शेर ने कुछ न पकड़ा हो, तो क्या वह ग़ार में से अपनी आवाज़ को बलंद करेगा?5~क्या कोई चिड़िया ज़मीन पर दाम में फँस सकती है, जबकि उसके लिए दाम ही न बिछाया गया हो? क्या फंदा जब तक कि कुछ न कुछ उसमें फँसा न ~हो, ज़मीन पर से उछलेगा?6~क्या ये मुम्किन है कि शहर में नरसिंगा फूँका जाए, और लोग न काँपें? या कोई बला शहर पर आए, और ख़ुदावन्द ने उसे न भेजा हो?7यक़ीनन ख़ुदावन्द ख़ुदा कुछ नहीं करता, जब तक अपना राज़ अपने ख़िदमत गुज़ार नबियों पर पहले आशकारा न करे।8शेर-ए-बबर गरजा है, कौन न डरेगा? ख़ुदावन्द ख़ुदा ने फ़रमाया है, कौन नबुव्वत न करेगा?"9~अशदूद के क़स्रों में और मुल्क-ए-मिस्र के क़स्रों में 'ऐलान करो,और कहो, "सामरिया के पहाड़ों पर जमा' हो जाओ, और देखो उसमें कैसा हंगामा और ज़ुल्म है।10~क्यूँकि वह नेकी करना नहीं जानते, ख़ुदावन्द फ़रमाता है जो अपने क़स्रो में ज़ुल्म और लूट को जमा' करते हैं।"11~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि "दुश्मन मुल्क का घिराव करेगा, और तेरी क़ुव्वत को तुझ से दूर करेगा, और तेरे क़स्र लूटे जाएँगे।"12~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि ~जिस तरह से चरवाहा दो टाँगें , या कान का एक टुकड़ा, शेर-ए-बबर के मुँह से छुड़ा लेता है~उसी तरह~बनी~इस्राईल~जो सामरिया में पलंग के गोशे में और रेशमीन फ़र्श पर बैठे रहते हैं, छुड़ा लिए जाएँगे।13~ख़ुदावन्द ख़ुदा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "सुनो और बनी या'क़ूब के खिलाफ़ गवाही दो।14क्यूँकि जब मैं इस्राईल के गुनाहों की सज़ा दूँगा, तो बैतएल के मज़बहों को भी देख लूँगा, और मज़बह के सींग कट कर ज़मीन पर गिर जाएँगे।"15~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है :"मैं ज़मिस्तानी और ताबिस्तानी घरों को बर्बाद करूँगा,और हाथी दाँत के घर मिस्मार किए जायेंगे और बहुत से मकान वीरान होंगे।
1ऐ बसन की गायों, जो कोह-ए-सामरिया पर रहती हो, और ग़रीबों को सताती और ग़रीबों को कुचलती और अपने मालिकों से कहती हो, 'लाओ, हम पियें,' तुम ये बात सुनो।2~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने अपनी पाकीज़गी की क़सम खाई है कि तुम पर वह दिन आएँगे, जब तुम को आंकड़ियों से और तुम्हारी औलाद को शस्तों से खींच ले जाएँगे।3~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तुम में से हर एक उस रख़ने से जो उसके सामने होगा निकल भागेगी, और तुम क़ैद में डाली जाओगी।4~बैतएल में आओ और गुनाह करो, और जिल्जाल में कसरत से गुनाह करो, और हर सुबह अपनी क़ुर्बानियाँ और तीसरे रोज़ दहेकी लाओ,5~और शुक्रगुज़ारी का हदिया ख़मीर के साथ आग पर पेश करो, और रज़ा की क़ुर्बानी का 'ऐलान करो, और उसको मशहूर करो, क्यूँकि ऐ बनी इस्राईल, ये सब काम तुम को पसंद हैं," ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।6~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अगरचे मैंने तुम को तुम्हारे हर शहर में दाँतों की सफ़ाई, और तुम्हारे हर मकान में रोटी की कमी दी है; तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए।7और अगरचे मैंने मेंह को, जबकि फ़सल पकने में तीन महीने बाक़ी थे तुम से रोक लिया; और एक शहर पर बरसाया और दूसरे से रोक रख्खा, एक~क़िता' ज़मीन पर बरसा और दूसरा क़िता' बारिश न होने की वजह से सूख गया;8~और दो तीन बस्तियाँ आवारा हो कर एक बस्ती में आईं, ताकि लोग पानी पिएँ पर वह आसूदा न हुए, तो भी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।9"फिर मैंने तुम पर बाद-ए-समूम और गेरोई की आफ़त भेजी, और तुम्हारे बेशुमार बाग़ और ताकिस्तान और अंजीर और जै़तून के दरख़्त, टिड्डियों ने खा लिए; तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।10~मैंने मिस्र के जैसी वबा तुम पर भेजी और तुम्हारे जवानों को तलवार से क़त्ल किया; तुम्हारे घोड़े छीन लिए और तुम्हारी लश्करगाह की बदबू तुम्हारे नथनों में पहुँची, तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।11~"मैंने तुम में से कुछ को उलट दिया, जैसे ख़ुदा ने सदूम और 'अमूरा को उलट दिया था; और तुम उस लुक्टी की तरह हुए जो आग से निकाली जाए, तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।12~"इसलिए ऐ इस्राईल, मैं तुझ से यूँ ही करूँगा, और चूँकि मैं तुझ से यूँ करूँगा, इसलिए ऐ इस्राईल, तू अपने ख़ुदा से मुलाक़ात की तैयारी कर!"13~क्यूँकि देख, उसी ने पहाड़ों को बनाया और हवा को पैदा किया, वह इन्सान पर उसके ख़यालात को ज़ाहिर करता है और सुबह को तारीक बना देता है और ज़मीन के ऊँचे मक़ामात पर चलता है; उसका नाम ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज है।
1~ऐ इस्राईल के ख़ान्दान, इस कलाम को जिससे मैं तुम पर नौहा करता हूँ, सुनो:2~"इस्राईल की कुँवारी गिर पड़ी, वह फिर न उठेगी; वह अपनी ज़मीन पर पड़ी है, उसको उठाने वाला कोई नहीं।"3~क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है ~कि "इस्राईल के घराने के लिए, जिस शहर से एक हज़ार निकलते थे, उसमें एक सौ रह जाएँगे; और जिससे एक सौ निकलते थे, उसमें दस रह जाएँगे।"4~क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल के घराने से यूँ फ़रमाता है ~कि ~"तुम मेरे तालिब हो और ज़िन्दा रहो;5~लेकिन बैतएल के तालिब न हो, और जिल्जाल में दाख़िल न हो, और बैरसबा' को न जाओ, क्यूँकि जिल्जाल ग़ुलामी में जाएगा और बैतएल नाचीज़ होगा।"6~तुम ख़ुदावन्द के तालिब हो और ज़िन्दा रहो, ऐसा न हो कि वह यूसुफ़ के घराने में आग की तरह भड़के और उसे खा जाए और बैतएल में उसे बुझाने वाला कोई न हो।7~ऐ 'अदालत को नागदौना बनाने वालों, और सदाक़त को ख़ाक में मिलाने वालों!8~वही सुरैया और जब्बार सितारों का ख़ालिक़ है जो मौत के साये को मतला'-ए-नूर, और रोज़-ए-रोशन को शब-ए-दैजूर बना देता है, और समन्दर के पानी को बुलाता और इस ज़मीन पर फैलाता है,जिसका नाम ख़ुदावन्द है;9~वह जो ज़बरदस्तों पर नागहानी हलाकत लाता है, जिससे क़िलों' पर तबाही आती है।10~वह फाटक में मलामत करने वालों से कीना रखते हैं, और रास्तगो से नफ़रत करते हैं।11~इसलिए चूँकि तुम ग़रीबों को पायमाल करते हो और ज़ुल्म करके उनसे गेहूँ छीन लेते हो, इसलिए जो तराशे हुए पत्थरों के मकान तुम ने बनाए उनमें न बसोगे, और जो नफ़ीस ताकिस्तान तुम ने लगाए उनकी मय न पियोगे।12~क्यूँकि मैं तुम्हारी बेशुमार ख़ताओं और तुम्हारे बड़े-बड़े गुनाहों से आगाह हूँ तुम सादिक़ों को सताते और रिश्वत लेते हो, और फाटक में ग़रीबों की हक़तलफ़ी करते हो।13~इसलिए इन दिनों में पेशबीन ख़ामोश हो रहेंगे क्यूँकि ये बुरा वक़्त है।14~बुराई के नहीं बल्कि नेकी के तालिब हो, ताकि ज़िन्दा रहो और ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज ~तुम्हारे साथ रहेगा, जैसा कि तुम कहते हो।15~बुराई से 'अदावत और नेकी से मुहब्बत रख्खो, और फाटक में 'अदालत को क़ायम करो; शायद ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज बनी यूसुफ़ के बक़िये पर रहम करे।16~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "सब बाज़ारों में नौहा होगा, और सब गलियों में अफ़सोस अफ़सोस कहेंगे; और किसानों को मातम के लिए, और उनको जो नौहागरी में महारत रखते हैं नौहे के लिए बुलाएँगे;17और सब ताकिस्तानों में मातम होगा, क्यूँकि मैं तुझमें से होकर गुज़रूँगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।18~तुम पर अफ़सोस जो ख़ुदावन्द के दिन की आरज़ू करते हो! तुम ख़ुदावन्द के दिन की आरजू क्यूँ करते हो? वह तो तारीकी का दिन है, रोशनी का नहीं;19~जैसे कोई शेर-ए-बबर से भागे और रीछ उसे मिले, या घर में जाकर अपना हाथ दीवार पर रख्खे और उसे साँप काट ले।20~क्या ख़ुदावन्द का दिन तारीकी न होगा? उसमें रोशनी न होगी, बल्कि सख़्त ज़ुल्मत होगी और नूर मुतलक़ न होगा।21~"मैं तुम्हारी 'ईदों को मकरूह जानता,और उनसे नफ़रत रखता हूँ; और मैं तुम्हारी पाक महफ़िलों से भी ख़ुश न हूँगा।22और अगरचे तुम मेरे सामने सोख़्तनी और नज़्र की क़ुर्बानियाँ पेश करोगे तोभी मैं उनको क़ुबूल न करूँगा; और तुम्हारे फ़र्बा जानवरों की शुक्राने की क़ुर्बानियों को ख़ातिर में न लाऊँगा।23~तू अपने सरोद का शोर मेरे सामने से दूर कर, क्यूँकि मैं तेरे रबाब की आवाज़ न सुनूँगा।24लेकिन 'अदालत को पानी की तरह और सदाक़त को बड़ी नहर की तरह जारी रख।25~ऐ बनी-इस्राईल, क्या तुम चालीस बरस तक वीराने में, मेरे सामने ज़बीहे और नज़्र की क़ुर्बानियाँ पेश करते रहे?26~तुम तो मिल्कूम का खे़मा और कीवान के बुत, जो तुम ने अपने लिए बनाए, उठाए फिरते थे,"27~इसलिए ख़ुदावन्द जिसका नाम रब्ब-उल-अफ़वाज है फ़रमाता है, "मैं तुम को दमिश्क़ से भी आगे ग़ुलामी में भेजूँगा।
1~उन पर अफ़सोस जो सिय्यून में बा राहत और कोहिस्तान-ए-सामरिया में बेफ़िक्र हैं, या'नी क़ौमों के रईस के शुर्फ़ा जिनके पास बनी-इस्राईल आते हैं!2~तुम कलना तक जाकर देखो,और वहाँ से हमात-ए-'आज़म तक सैर करो, और फिर फ़िलिस्तियों के जात को जाओ। क्या वह इन ममलुकतों से बेहतर हैं? क्या उनकी हुदूद तुम्हारी हुदूद से ज़्यादा वसी' हैं? "3~तुम जो बुरे दिन का ख़याल मुल्तवी करके, ज़ुल्म की कुर्सी नज़दीक करते हो।4~'जो हाथी दाँत के पलंग पर लेटते और चारपाइयों पर दराज़ होते, और गल्ले में से बर्रों को और तवेले में से बछड़ों को लेकर खाते हो।5~और रबाब की आवाज़ के साथ गाते, और अपने लिये दाऊद की तरह मूसीक़ी के साज़ ईजाद करते हो;6~जो प्यालों में से मय पीते और अपने बदन पर बेहतरीन 'इत्र मलते हो; लेकिन यूसुफ़ की शिकस्ताहाली से ग़मगीन नहीं होते!7~इसलिए वह पहले ग़ुलामों के साथ ग़ुलाम होकर जाएँगे, और उनकी 'ऐश-ओ-निशात का ख़ातिमा हो जाएगा।"8~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: "कि मैं या'क़ूब की हश्मत से नफ़रत रखता हूँ और उसके क़स्रों से मुझे 'अदावत है। इसलिए मैं शहर को उसकी सारी मा'मूरी के साथ हवाले कर दूँगा।”9~बल्कि यूँ होगा कि अगर किसी घर में दस आदमी बाक़ी होंगे, तो वह भी मर जाएँगे।10~और जब किसी का रिश्तेदार जो उसको जलाता है, उसे उठाएगा ताकि उसकी हड्डियों को घर से निकाले, और उससे जो घर के अन्दर पूछेगा, "क्या कोई और तेरे साथ ~है?" तो वह जवाब देगा, "कोई नहीं,” तब वह कहेगा, "चुप रह, ऐसा न हो कि हम ख़ुदावन्द के नाम का ज़िक्र करें।”11~क्यूँकि देख, ख़ुदावन्द ने हुक्म दे दिया है,और बड़े-बड़े घर रख़नों से, और छोटे शिगाफ़ों से बर्बाद होंगे।12~क्या चटानों पर घोड़े दौड़ेंगे,या कोई बैलों से वहाँ हल चलाएगा? तोभी तुम ने 'अदालत को इंद्रायन और समरा-ए-सदाक़त को नागदौना बना रख्खा है;13~तुम बेहक़ीक़त चीज़ों पर फ़ख़्र करते,और कहते हो, "क्या हम ने अपने लिए, अपनी ताक़त से सींग नहीं निकाले?"14~लेकिन ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "ऐ बनी-इस्राईल, देखो, मैं तुम पर एक क़ौम को चढ़ा लाऊँगा, और वह तुम को हमात के मदख़ल से, वादी-ए-अरबा तक परेशान करेगी।”
1ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया और क्या ~देखता हूँ कि उसने ज़रा'अत की आख़िरी रोईदगी की शुरू' में टिड्डियाँ पैदा कीं; और देखो, ये शाही कटाई के बा'द~आख़िरी~रोईदगी थी।2~और जब वह ज़मीन की घास को बिल्कुल खा चुकीं, तो मैंने~'अर्ज़ की, "कि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, मेहरबानी से मु'आफ़ फ़रमा! या'क़ूब की क्या हक़ीक़त है कि वह क़ायम रह सके?क्यूँकि वह छोटा है!"3~ख़ुदावन्द इससे बाज़ आया, और उसने फ़रमाया : "यूँ न होगा।”4~फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आग को बुलाया कि मुक़ाबला करे, और वह बहर-ए-'अमीक़ को निगल गई, और नज़दीक था कि ज़मीन को खा जाए।5~तब मैंने 'अर्ज़ की, "कि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, मेहरबानी से बाज़ आ, या'क़ूब की क्या हक़ीक़त है कि वह क़ायम रह सके? क्यूँकि वह छोटा है!"6~ख़ुदावन्द इससे बाज़ आया, और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने फ़रमाया: "यूँ भी न होगा।"7~फिर उसने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द एक दीवार पर, जो साहूल से बनाई गई थी खड़ा है, और साहूल उसके हाथ में है।8~और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "कि ऐ 'आमूस, तू क्या देखता है?" मैंने 'अर्ज़ की, "कि साहूल।" तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया,"देख, मैं अपनी क़ौम इस्राईल में साहूल लटकाऊँगा, और मैं फिर उनसे दरगुज़र न करूँगा;9~और इस्हाक़ के ऊँचे मक़ाम बर्बाद होंगे, और इस्राईल के मक़दिस वीरान हो जाएँगे; और मैं युरब'आम के घराने के ख़िलाफ़ तलवार लेकर उढूँगा।"10~तब बैतएल के काहिन इम्सियाह ने शाह-ए-इस्राईल युरब'आम को कहला भेजा कि 'आमूस ने तेरे ख़िलाफ़ बनी-इस्राईल में फ़ितना खड़ा किया है, और मुल्क में उसकी बातों की बर्दाश्त नहीं।11~क्यूँकि 'आमूस यूँ कहता है, "'कि युरब'आम तलवार से मारा जाएगा, और इस्राईल यक़ीनन अपने वतन से ग़ुलाम होकर जाएगा।'"12~और इम्सियाह ने 'आमूस से कहा, "ऐ गै़बगो, तू यहूदाह के मुल्क को भाग जा; वहीं खा पी और नबुव्वत कर,13~लेकिन बैतएल में फिर कभी नबुव्वत न करना, क्यूँकि ये बादशाह का मक़दिस और शाही महल है।"14~तब 'आमूस ने इम्सियाह को जवाब दिया, "कि मैं न नबी हूँ, न नबी का बेटा; बल्कि चरवाहा और गूलर का फल बटोरने वाला हूँ।15और जब मैं गल्ले के पीछे-पीछे जाता था, तो ख़ुदावन्द ने मुझे लिया और फ़रमाया, कि ~'जा, मेरी क़ौम इस्राईल से नबुव्वत कर।'"16इसलिए अब तू ख़ुदावन्द का कलाम सुन। तू कहता है, ~'कि इस्राईल के ख़िलाफ़ नबुव्वत और इस्हाक़ के घराने के ख़िलाफ़ कलाम न कर।'17इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि तेरी बीवी शहर में कस्बी बनेगी, और तेरे बेटे और तेरी बेटियाँ तलवार से मारे जाएँगे; और तेरी ज़मीन जरीब से बाँटी जाएगी, और तू एक नापाक मुल्क में मरेगा; और इस्राईल यक़ीनन अपने वतन से ग़ुलाम होकर जाएगा।"
1~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ताबिस्तानी मेवों की टोकरी है।2~और उसने फ़रमाया, "ऐ 'आमूस, तू क्या देखता है?" मैंने 'अर्ज़ की, "ताबिस्तानी मेवों की टोकरी।" तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि "मेरी क़ौम इस्राईल का वक़्त आ पहुँचा है; अब मैं उससे दरगुज़र न करूँगा।3और उस वक़्त हैकल के नग़मे नौहे हो जायेंगे," ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता, " बहुत सी लाशें पड़ी होंगी वह चुपके-चुपके उनको हर जगह निकाल फेकेंगे "4~तुम जो चाहते हो कि मुहताजों को निगल जाओ, और ग़रीबों को मुल्क से हलाक करो,5~और ऐफ़ा को छोटा और मिस्क़ाल को बड़ा बनाते, और फ़रेब की तराजू से दग़ाबाज़ी करते,और कहते हो, "कि नये चाँद का दिन कब गुज़रेगा, ताकि हम ग़ल्ला बेचें, और सबत का दिन कब ख़त्म होगा के गेहूँ के खत्ते खोलें,6ताकि ग़रीब को रुपये से और मुहताज को एक जोड़ी जूतियों से ख़रीदें, और गेहूँ की फटकन बेचें," ये बात सुनो,7~ख़ुदावन्द ने या'क़ूब की हश्मत की क़सम खाकर फ़रमाया है: "मैं उनके कामों में से एक को भी हरगिज़ न भूलूँगा।8~क्या इस वजह से ज़मीन न थरथराएगी, और उसका हर एक बाशिंदा मातम न करेगा? हाँ, वह बिल्कुल दरिया-ए-नील की तरह उठेगी और रोद-ए-मिस्र की तरह फैल कर फिर सुकड़ जाएगी।"9और ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, "उस रोज़ आफ़ताब दोपहर ही को ग़ुरूब हो जाएगा और मैं रोज़-ए-रोशन ही में ज़मीन को तारीक कर दूँगा।10~तुम्हारी 'ईदों को मातम से और तुम्हारे नामों को नौहों से बदल दुँगा, और हर एक की कमर पर टाट बँधवाऊँगा और हर एक के सिर पर चँदलापन भेजूँगा और ऐसा मातम खड़ा करूँगा जैसा इकलौते बेटे पर होता है और उसका अंजाम रोज़-ए-तल्ख़ सा होगा।"11~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, "देखो, वह दिन आते हैं कि मैं इस मुल्क में क़हत डालूँगा न पानी की प्यास और न रोटी का क़हत, बल्कि ख़ुदावन्द का कलाम सुनने का।12तब लोग समन्दर से समन्दर तक और उत्तर से पूरब तक भटकते फिरेंगे,और ख़ुदावन्द के कलाम की तलाश में इधर उधर दौड़ेंगे लेकिन कहीं न पाएँगे।13और उस रोज़ हसीन कुँवारियाँ और जवान मर्द प्यास से बेताब हो जाएँगे।14जो सामरिया के बुत की क़सम खाते हैं, और कहते हैं, 'ऐ दान, तेरे मा'बूद की क़सम' और 'बैर सबा' के तरीक़े की क़सम,' वह गिर जाएँगे और फिर हरगिज़ न उठेंगे।"
1~मैंने ख़ुदावन्द को मज़बह के पास खड़े देखा, और उसने फ़रमाया :"सुतूनों के सिर पर मार, ताकि आस्ताने हिल जाएँ; और उन सबके सिरों पर उनको पारा-पारा कर दे, और उनके बक़िये को मैं तलवार से क़त्ल करूँगा; उनमें से एक भी भाग न सकेगा, उनमें से एक भी बच न निकलेगा।2अगर वह पाताल में घुस जाएँ, तो मेरा हाथ वहाँ से उनको खींच निकालेगा; और अगर आसमान पर चढ़ जाएँ, तो मैं वहाँ से उनको उतार लाऊँगा3~अगर वह कोह-ए-कर्मिल की चोटी पर जा छिपें, तो मैं उनको वहाँ से ढूंड निकालूँगा; और अगर समन्दर की तह में मेरी नज़र से ग़ायब हो जाए तो मैं वहाँ साँप को हुक्म करूँगा और वह उनको काटेगा।4और अगर दुश्मन उनको ग़ुलाम करके ले जाएँ, तो वहाँ तलवार को हुक्म करूँगा, और वह उनको क़त्ल करेगी; और मैं उनकी भलाई के लिए नहीं, बल्कि बुराई के लिए उन पर निगाह रखूँगा ।"5~क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज वह है कि अगर ज़मीन को छू दे तो वह गुदाज़ हो जाए, और उसकी सब मा'मूरी मातम करे; वह बिल्कुल दरिया-ए-नील की तरह उठे और रोद-ए-मिस्र की तरह फिर सुकड़ जाए।6~वही आसमान पर अपने बालाख़ाने ता'मीर करता है, उसी ने ज़मीन पर अपने गुम्बद की बुनियाद रख्खी है; वह समन्दर के पानी को बुलाकर इस ज़मीन पर फैला देता है; उसी का नाम ख़ुदावन्द है।7~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "ऐ बनी-इस्राईल,क्या तुम मेरे लिए अहल-ए-कूश की औलाद की तरह नहीं हो? क्या मैं इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से, और फ़िलिस्तियों को कफ़तूर से, और अरामियों को क़ीर से नहीं निकाल लाया हूँ?8~देखो, ख़ुदावन्द ख़ुदा की आँखें इस गुनाहगार मम्लुकत पर लगी हैं," ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं उसे इस ज़मीन से हलाक-ओ-बर्बाद कर दूँगा, मगर या'क़ूब के घराने को बिल्कुल हलाक न करूँगा।9~क्यूँकि देखो, मैं हुक्म करूँगा और बनी-इस्राईल को सब क़ौमों में जैसे छलनी से छानते हैं, छानूँगा और एक दाना भी ज़मीन पर गिरने न पाएगा।10~मेरी उम्मत के सब गुनहगार लोग जो कहते हैं कि 'हम पर न पीछे से आफ़त आएगी न आगे से,' तलवार से मारे जाएँगे।11~मैं उस रोज़ दाऊद के गिरे हुए घर को खड़ा करके, उसके रख़नों को बंद करूँगा; और उसके खंडर की मरम्मत करके, उसे पहले की तरह ता'मीर करूँगा;12~ताकि वह अदूम के बक़िये और उन सब क़ौमों पर जो मेरे नाम से कहलाती हैं क़ाबिज़ हो उसको वुक़ू' में लाने वाला ख़ुदावन्द फ़रमाता है।13~देखो, वह दिन आते हैं," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "जोतने वाला काटने वाले को, और अंगूर कुचलने वाला बोने वाले को जा लेगा; और पहाड़ों से नई मय टपकेगी, और सब टीले गुदाज़ होंगे।14~और मैं बनी-इस्राईल, अपने लोगों को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा; वह उजड़े शहरों को ता'मीर करके उनमें क़याम करेंगे और बाग़ लगाकर उनकी मय पिएँगे। वह बाग़ लगाएँगे और उनके फल खाएँगे।15~क्यूँकि मैं उनको उनके मुल्क में क़ायम करूँगा और वह फिर कभी अपने वतन से जो मैने उनको बख़्शा है, निकाले न जाएँगे," ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा फ़रमाता है।
1'अबदियाह का ख़्वाब; हम ने ख़ुदावन्द से यह ख़बर सुनी, और क़ौमों के बीच क़ासिद यह पैग़ाम ले गया: कि चलो उस पर हमला करें। ”खु़दावन्द खु़दा अदोम के बारे में यूँ फ़रमाता है|2~कि देख मैंने तुझे क़ौमों के बीच हक़ीर कर दिया है, तू बहुत ज़लील है।3~ऐ चट्टानों के शिगाफ़ों में रहने वाले, तेरे दिल के घमंड ने तुझे धोका दिया है; तेरा मकान ऊँचा है और तू दिल में कहता है, "कौन मुझे नीचे उतारेगा?"4~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, अगरचे तू 'उक़ाब की तरह ~ऊँची परवाज़ हो और सितारों में अपना आशियाना बनाए, तोभी मैं तुझे वहाँ से नीचे उतारूँगा।5अगर तेरे घर में चोर आएँ, या रात को डाकू आ घुसें, (तेरी कैसी बर्बादी है) तो क्या वह हस्ब-ए-ख़्वाहिश ही न लेंगे? अगर अंगूर तोड़ने वाले तेरे पास आएँ, तो क्या कुछ दाने बाक़ी न छोड़ेंगे?6~'ऐसौ का माल कैसा ढूँड निकाला गया ,और उसके छुपे हुए ख़ज़ानों की कैसी तलाश हुई!7~तेरे सब हिमायतियों ने तुझे सरहद तक हाँक दिया है, और उन लोगों ने जो तुझ से मेल रखते थे तुझे धोका दिया और मग़लूब किया, और उन्होंने जो तेरी रोटी खाते थे, तेरे नीचे जाल बिछाया; उसमें थोड़े भी होशियार नहीं।8~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं उस दिन अदोम से होशियारों को और 'अक़्लमन्दी को पहाड़ी-ए-'ऐसौ से हलाक न करूँगा?9~ऐ तीमान, तेरे बहादुर घबरा जाएँगे,यहाँ तक के पहाड़ी-ए-'ऐसौ के रहने वालों में से हर एक काट डाला जाएगा।10~उस क़त्ल की वजह और उस जु़ल्म की वजह से जो तू ने अपने भाई या'क़ूब पर किया है, तू शर्मिन्दगी से भरपूर और हमेशा के लिए बर्बाद होगा।11~जिस दिन तू उसके मुख़ालिफ़ों केसाथ खड़ा था, जिस दिन अजनबी उसके लश्कर को ग़ुलाम करके ले गए और बेगानों ने उसके फाटकों से दाखि़ल होकर यरूशलीम पर पर्ची डाली, तू भी उनके साथ था12~तुझे ज़रूरी न था कि तू उस दिन अपने भाई की जिलावतनी को खड़ा देखता रहता, और बनी यहूदाह की हलाकत के दिन ख़ुश होता और मुसीबत के रोज़ बड़ी ज़ुबान बकता ।13~तुझे मुनासिब न था कि तू मेरे लोगों की मुसीबत के दिन उनके फाटकों में घुसता, और उनकी मुसीबत के रोज़ उनकी बदहाली को खड़ा देखता रहता, और उनके लशकर पर हाथ बढ़ाता।14~तुझे ज़रूरी न था कि घाटी में खड़ा होकर, उसके फ़रारियों को क़त्ल करता, और उस दुख के दिन में उसके बाक़ी थके लोगों को हवाले करता।15~क्यूँकि सब क़ौमों पर ख़ुदावन्द का दिन आ पहुँचा है। जैसा तू ने किया है, वैसा ही तुझ से किया जाएगा। तेरा किया तेरे सिर पर आएगा।16~क्यूँकि जिस तरह तुम ने मेरे कोह-ए-मुक़द्दस पर पिया, उसी तरह सब कौमें पिया करेंगी, हाँ पीती और निगलती रहेगी; और वह ऐसी होंगी जैसे कभी थीं ही नहीं।17~लेकिन जो बच निकलेंगे सिय्यून पहाड़ी पर रहेंगे, और वह पाक होगा और या'कूब का घराना अपनी मीरास पर क़ाबिज़ होगा।18~तब या'कू़ब का घराना आग होगा,और यूसुफ़ का घराना शो'ला, और 'ऐसौ का घराना फूस; और वह उसमें भड़केंगे और उसको खा जाएँगे, और 'ऐसौ के घराने में से कोई न बचेगा; क्यूँकि ये ख़ुदावन्द का फ़रमान है।19~और दख्खिन के रहने वाले पहाड़ी-ए-'ऐसौ, और मैदान के रहने वाले फ़िलिस्तीन के मालिक होंगे; और वह इफ़्राईम और सामरिया के खेतों पर काबिज़ होंगे, और बिनयमीन जिलआद का वारिस होगा।20~और बनी-इस्राईल के लशकर के सब ग़ुलाम, जो कना'नियों में सारपत तक हैं, और यरूशलीम के ग़ुलाम जो सिफ़ाराद में हैं, दखिन के शहरों पर क़ाबिज़ हो जाएँगे।21और रिहाई देने वाले सिय्यून की पहाड़ी पर चढ़ेंगे ताकि पहाड़ी-ए-'ऐसौ की 'अदालत करें, और बादशाही ख़ुदावन्द की होगी।
1ख़ुदावन्द का कलाम यूनाह बिन अमितै पर नाज़िल हुआ |2~कि उठ, उस बड़े शहर निनवे को जा और उसके ख़िलाफ़ 'ऐलान कर; क्यूँकि उनकी बुराई मेरे सामने पहुँची है |3लेकिन ~यूनाह ख़ुदावन्द के सामने से तरसीस को भागा, और याफ़ा में पहुँचा और वहाँ उसे तरसीस को जाने वाला जहाज़ मिला ;और वह किराया देकर उसमे सवार हुआ ताकि ख़ुदावन्द के सामने से तरसीस को~जहाज़ वालों के साथ जाए |4~लेकिन ख़ुदावन्द ने समन्दर पर बड़ी आँधी भेजी, और समन्दर में सख़्त तूफ़ान बर्पा~हुआ, और अँदेशा था कि जहाज़ तबाह हो जाए |5तब मल्लाह हैरान हुए और हर एक ने अपने मा'बूद को ~पुकारा; और वह सामान जो जहाज़ में था समन्दर में डाल दिया ताकि उसे हल्का करें, लेकिन यूनाह जहाज़ के अन्दर पड़ा सो रहा था |6तब ना ख़ुदा उसके पास जाकर कहने लगा, "तू क्यों पड़ा सो रहा है? उठ अपने मा'बूद को पुकार! शायद हम को याद करे और हम हलाक न हों |"7~और उन्होंने आपस में कहा, "आओ, हम पर्ची डालकर देखें कि यह आफ़त हम पर किस की वजह से आई|" चुनाँचे उन्होंने पर्ची डाला, और यूनाह का नाम निकला |8~तब उन्होंने उस से कहा, "तू हम को बता कि यह आफ़त हम पर किस की वजह से आई है ? तेरा क्या पेशा है, और तू कहाँ से आया है?, तेरा वतन कहाँ है, और तू किस क़ौम का है ?,|9उसने उनसे कहा , "मैं इब्रानी हूँ और ख़ुदावन्द आसमान के ख़ुदा बहर-ओ-बर्र के ख़ालिक़ से डरता हूँ |"10तब वह ख़ौफ़ज़दा होकर उस से कहने लगे, "तू ने यह क्या किया?" क्यूँकि उनको मा'लूम था कि वह ख़ुदावन्द के सामने से भागा है, इसलिए कि उस ने ख़ुद उन से कहा था|11तब उन्होंने उस से पूछा, " हम तुझ से क्या करें कि समन्दर हमारे लिए ठहर जाए?" क्यूँकि समन्दर ज़्यादा तूफ़ानी होता जाता था12तब उस ने उन से कहा, "मुझे उठा कर समन्दर में फ़ेंक दो, तो तुम्हारे लिए समन्दर ठहर जाएगा ;क्यूँकि मै जानता हूँ कि यह बड़ा तूफ़ान तुम पर मेरी ही वजह से आया है |"13तो भी मल्लाहों ने डंडा चलाने में बड़ी मेहनत की कि किनारे पर पहुँचें, लेकिन न पहुँच सके, क्यूँकि समन्दर उनके ख़िलाफ़ और भी ज़्यादा तूफ़ानी होता जाता था |14तब उन्होंने ख़ुदावन्द के सामने~गिड़गिड़ा ~कर कहा, "ऐ खुदावन्द हम तेरी मिन्नत करते हैं कि हम इस आदमी की जान की वजह से हलाक न हों ,और तू ख़ून-ए-नाहक़ को हमारी गर्दन पर न डाले; क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, तूने जो चाहा वही किया |15और उन्होंने यूनाह को उठा कर समन्दर में फेंक दिया और समन्दर के मौजों का ज़ोर रुक गया |16~तब वह ख़ुदावन्द से बहुत डर गए ,और उन्होंने उसके सामने क़ुर्बानी पेश कीं और नज़्रें मानीं17लेकिन ख़ुदावन्द ने एक बड़ी मछली मुक़र्रर कर रख्खी थी कि यूनाह को निगल जाए; और यूनाह तीन दिन रात मछली के पेट में रहा |
1तब यूनाह ने मछली के पेट में ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से यह दु'आ की |2"मैंने अपनी मुसीबत में ख़ुदावन्द से दु'आ की, और उसने मेरी सुनी; मैंने पताल की गहराई से दुहाई दी, तूने मेरी फ़रियाद सुनी |3तूने मुझे गहरे समन्दर की गहराई में फेंक दिया, और सैलाब ने मुझे घेर लिया| तेरी सब मौजें और लहरें मुझ पर से गुज़र गईं4और मै समझा कि तेरे सामने से दूर हो गया हूँ लेकिन मै फिर तेरी मुक़द्दस हैकल को देखूँगा |5सैलाब ने मुझे घेर लिया; समन्दर मेरी चारों तरफ़ था; समन्दरी नबात मेरी सर पर लिपट गई |6मैं पहाड़ों की गहराई तक ग़र्क हो गया ज़मीन के रास्ते हमेशा के लिए मुझ पर बंद हो गए; तो भी ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा तूने मेरी जान पाताल से बचाई |7जब मेरा दिल बेताब हुआ, तो मै ने ख़ुदावन्द को याद ~किया; और मेरी दु'आ तेरी मुक़द्दस हैकल में तेरे सामने पहुँची8जो लोग झूटे मा'बूदों को मानते हैं, वह शफ़क़त से महरूम हो जाते है |9मै हम्द करता हुआ तेरे सामने क़ुर्बानी पेश करूँगा; मैं अपनी नज़्रें अदा करूँगा नजात ख़ुदावन्द की तरफ़ से है |"10और ख़ुदावन्द ने मछली को हुक्म दिया, और उस ने यूनाह को ~खुश्की पर उगल दिया |
1और ख़ुदावन्द का कलाम दूसरी बार यूनाह पर नाज़िल हुआ |2कि उठ उस बड़े शहर निनवा को जा और वहाँ उस बात का 'ऐलान कर जिसका मैं तुझे हुक्म देता हूँ |3तब यूनाह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ उठ कर निनवा को गया ,और निनवा बहुत बड़ा शहर था|उसकी~दूरी तीन दिन की राह थी4और यूनाह शहर में दाख़िल हुआ और एक दिन की राह चला| उस ने 'ऐलान किया और कहा, " चालीस रोज़ के बा'द निनवा बर्बाद किया जायेगा |"5~तब निनवा के बाशिंदों ने ख़ुदा पर ईमान लाकर रोज़ा का 'ऐलान किया और छोटे और बड़े सब ने टाट ओढा |6और यह ख़बर निनवा के बादशाह को पहुँची; और वह अपने तख़्त पर से उठा और बादशाही लिबास को उतार डाला और टाट ओढ़ कर राख पर बैठ गया |7और बादशाह और उसके अर्कान-ए-दौलत के फ़रमान से निनवा में यह 'ऐलान किया गया और इस बात का 'ऐलान हुआ कि कोइ इन्सान या हैवान ग़ल्ला या शराब कुछ न चखें और न खाए पिए |8लेकिन इन्सान और हैवान टाट से मुलब्बस हों और ख़ुदा के सामने रोना पीटना करें बल्कि हर शख़्स अपनी बुरे चाल चलन और अपने हाथ के ज़ुल्म से बाज़ आए |9शायद ख़ुदा रहम करे और अपना इरादा बदले, और अपने क़हर शदीद से बाज़ आए और हम हलाक न हों ~|10जब ख़ुदा ने उनकी ये हालत देखी कि वह अपने अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, तो वह उस 'अज़ाब से जो उसने उन पर नाज़िल करने को कहा था, बाज़ आया और उसे नाज़िल न किया |
1लेकिन यूनाह इस से बहुत नाख़ुश और नाराज़ हुआ |2और उस ने ख़ुदावन्द से यूँ दु'आ की कि ऐ ख़ुदावन्द, जब ~मैं अपने वतन ही में था और तरसीस को भागने वाला था, तो क्या मैने यही न कहा था? मैं जानता था कि तू रहीम-ओ-करीम ख़ुदा है जो क़हर करने में धीमा और शफ़क़त में ग़नी है और अज़ाब नाज़िल करने से बाज़ रहता है |3अब ऐ ख़ुदावन्द मै तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरी जान ले ले, क्यूँकि मेरे इस जीने से मर जाना बेहतर है |4तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, "क्या तू ऐसा नाराज़ है ?|5और यूनाह शहर से बाहर मशरिक़ की तरफ़ जा बैठा; और वहाँ अपने लिए एक छप्पर बना कर उसके साये में बैठ रहा, कि देखें शहर का क्या हाल होता है |6तब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कद्दू की बेल उगाई, और उसे यूनाह के ऊपर फैलाया कि उसके सर पर साया हो और वह तकलीफ़ से बचे और यूनाह उस बेल की वजह से निहायत ख़ुश हुआ |7लेकिन दूसरे दिन सुबह के वक़्त ख़ुदा ने एक कीड़ा भेजा, जिस ने उस बेल को काट डाला और वह सूख़ गई |8~और जब आफ़ताब ~बलन्द हुआ, तो ख़ुदा ने पूरब से लू चलाई और आफ़ताब कि गर्मी ने यूनाह के सर में असर किया और वह बेताब हो गया और मौत का आरज़ूमन्द होकर कहने लगा कि मेरे इस जीने से मर जाना बेहतर है |9और ख़ुदा ने यूनाह से फ़रमाया, "क्या तू इस बेल की वजह से ऐसा नाराज़ है ?" ~उस ने कहा," मै यहाँ तक नाराज़ हूँ कि मरना चाहता हूँ |"10तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि तुझे इस बेल का इतना ख़याल है, जिसके लिए तूने न कुछ मेहनत की और न उसे उगाया|जो एक ही रात में उगी और एक ही रात में सूख गई |11और क्या मुझे ज़रूरी न था कि मैं इतने बड़े शहर निनवा का ख़याल करूँ, जिस में एक लाख बीस हज़ार से ज़्यादा ऐसे हैं जो अपने दहने और बाई हाथ में फ़र्क़ नहीं कर सकते, और बे शुमार मवेशी है? |
1सामरिया और यरुशलीम के बारे में ख़ुदावन्द का कलाम जो शाहान-ए-यहूदाह यूताम, आख़ज़-ओ-हिज़क़ियाह के दिनों~में मीकाह मोरशती पर ख्व़ाब में नाज़िल हुआ।2~ऐ सब लोगों, सुनो! ऐ ज़मीन और उसकी मा'मूरी कान लगाओ! हाँ ख़ुदावन्द अपने मुक़द्दस घर से तुम पर गवाही दे।3~क्यूँकि देख, ख़ुदावन्द अपने घर से बाहर आता है, और नाज़िल होकर ज़मीन के ऊँचे मक़ामों को पायमाल करेगा।4और पहाड़ उनके नीचे पिघल जाएँगे, और वादियाँ फट जाएँगी, जैसे मोम आग से पिघल जाता और पानी कराड़े पर से बह जाता है।5~ये सब या'क़ूब की ख़ता और इस्राईल के घराने के गुनाह का नतीजा है। या'क़ूब की ख़ता क्या है? क्या सामरिया नहीं? और यहूदाह के ऊँचे मक़ाम क्या हैं? क्या यरुशलीम नहीं?6~इसलिए मैं सामरिया को खेत के तूदे की तरह, और ताकिस्तान लगाने की जगह की तरह बनाऊँगा, और मैं उसके पत्थरों को वादी में ढलकाऊँगा और उसकी बुनियाद उखाड़ दूँगा।7~और उसकी सब खोदी हुई मूरतें चूर-चूर की जाएँगी, और जो कुछ उसने मज़दूरी में पाया आग से जलाया जाएगा; और मैं उसके सब बुतों को तोड़ डालूँगा क्यूँकि उसने ये सब कुछ कस्बी की मज़दूरी से पैदा किया है; और वह फिर कस्बी की मज़दूरी हो जाएगा।8~इसलिए मैं मातम-ओ-नौहा करूँगा ; मैं नंगा और बरहना होकर फिरूँगा; मैं गीदड़ों की तरह चिल्लाऊँगा और शुतरमुर्ग़ों की तरह ग़म करूँगा ।9~क्यूँकि उसका ज़ख़्म लाइलाज़ है, वह यहूदाह तक भी आया; वह मेरे लोगों के फाटक तक बल्कि यरुशलीम तक पहुँचा।10~जात में उसकी ख़बर न दो,और हरगिज़ नौहा न करो; बैत 'अफ़रा में ख़ाक पर लोटो।11~ऐ सफ़ीर की रहने वाली, तू बरहना-ओ-रुस्वा होकर चली जा; ज़ानान की रहने वाली निकल नहीं सकती। बैतएज़ल के मातम के ज़रिए' उसकी पनाहगाह तुम से ले ली जाएगी।12~मारोत की रहने वाली भलाई के इन्तिज़ार में तड़पती है, क्यूँकि ख़ुदावन्द की तरफ़ से बला नाज़िल हुई, जो यरुशलीम के फाटक तक पहुँची।13~ऐ लकीस की रहने वाली बादपा घोड़ों को रथ में जोत; तू बिन्त-ए-सिय्यून के गुनाह का आग़ाज़~हुई क्यूँकि इस्राईल की ख़ताएँ भी तुझ में पाई गईं।14~इसलिए तू मोरसत जात को तलाक़ देगी;अकज़ीब के घराने इस्राईल के बादशाहों से दग़ाबाज़ी करेंगे।15~ऐ मरेसा की रहने वाली, तुझ पर क़ब्ज़ा करने वाले को तेरे पास लाऊँगा; इस्राईल की शौकत 'अदुल्लाम में आएगी।16अपने प्यारे बच्चों के लिए सिर मुंडाकर चंदली हो जा; गिद्ध की तरह अपने चंदलेपन को ज़्यादा कर क्यूँकि वह तेरे पास से ग़ुलाम होकर चले गए।
1~उन पर अफ़सोस, जो बदकिरदारी के मंसूबे बाँधते और बिस्तर पर पड़े-पड़े शरारत की तदबीरें ईजाद करते हैं, और सुबह होते ही उनको 'अमल में लाते हैं; क्यूँकि उनको इसका इख़्तियार है।2~वह लालच से खेतों को ज़ब्त करते,और घरों को छीन लेते हैं; और यूँ आदमी और उसके घर पर, हाँ, मर्द और उसकी मीरास पर ज़ुल्म करते हैं।3~इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं इस घराने पर आफ़त लाने की तदबीर करता हूँ जिससे तुम अपनी गर्दन न बचा सकोगे, और गर्दनकशी से न चलोगे; क्यूँकि ये बुरा वक़्त होगा।4~उस वक़्त कोई तुम पर ये मसल लाएगा और पुरदर्द नौहे से मातम करेगा, और कहेगा, "हम बिल्कुल ग़ारत हुए; उसने मेरे लोगों का हिस्सा बदल डाला; उसने कैसे उसको मुझ से जुदा कर दिया! उसने हमारे खेत बाग़ियों को बाँट दिए।”5इसलिए तुम में से कोई न बचेगा,जो ख़ुदावन्द की जमा'अत में पैमाइश की रस्सी डाले।6~बकवासी कहते हैं, "बकवास न करो! इन बातों के बारे में बकवास न करो। ऐसे लोगों से रुस्वाई जुदा न होगी।"7~ऐ बनी या'क़ूब , क्या ये कहा जाएगा कि ख़ुदावन्द की रूह क़ासिर हो गई? क्या उसके यही काम हैं? क्या मेरी बातें रास्तरौ के लिए फ़ायदेमन्द नहीं।8~अभी कल की बात है कि मेरे लोग दुश्मन की तरह उठे; तुम सुलह पसंद-ओ-बेफ़िक्र राहगीरों की चादर उतार लेते हो।9~तुम मेरे लोगों की 'औरतों को उनके मरग़ूब घरों से निकाल देते हो, और तुमने मेरे जलाल को उनके बच्चों पर से हमेशा के लिए दूर कर दिया।10~उठो, और चले जाओ,क्यूँकि ला'इलाज-ओ-मोहलिक नापाकी की वजह से ये तुम्हारी आरामगाह नहीं है।11अगर कोई झूट और बतालत का पैरो कहे कि मैं शराब-ओ-नशा की बातें करूँगा, तो वही इन लोगों का नबी होगा।12~ऐ या'क़ूब, मैं यक़ीनन तेरे सब लोगों को इकठ्ठा करूँगा , मैं यक़ीनन इस्राईल के बक़िये को जमा' करूँगा मैं उनको बुसराह की भेड़ों और चरागाह के गल्ले की तरह इकठ्ठा करूँगा और आदमियों का बड़ा शोर होगा।13~तोड़ने वाला उनके आगे-आगे गया है; वह तोड़ते हुए फाटक तक चले गए, और उसमें से गुज़र गए; और उनका बादशाह उनके आगे-आगे गया, या'नी ख़ुदावन्द उनका पेशवा।
1और मैंने कहा: ऐ या'क़ूब के सरदारों और बनी-इस्राईल के हाकिमों, सुनो। क्या मुनासिब नहीं कि तुम 'अदालत से वाक़िफ़ हो?2~तुम नेकी से दुश्मनी और बुराई से मुहब्बत रखते हो; और लोगों की खाल उतारते, और उनकी हड्डियों पर से गोश्त नोचते हो।3~और मेरे लोगों का गोश्त खाते हो, और उनकी खाल उतारते, और उनकी हड्डियों को तोड़ते और उनको टुकड़े-टुकड़े करते हो; जैसे वह हाँडी और देग़ के लिए गोश्त हैं।4तब वह ख़ुदावन्द को पुकारेंगे, लेकिन वह उनकी न सुनेगा; हाँ, वह उस वक़्त उनसे मुँह फेर लेगा क्यूँकि उनके 'आमाल बुरे हैं।5~उन नबियों के हक़ में जो मेरे लोगों को गुमराह करते हैं, जो लुक़्मा पाकर 'सलामती सलामती पुकारते हैं, लेकिन अगर कोई खाने को न दे तो उससे लड़ने को तैयार होते है, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है।6"कि अब तुम पर रात हो जाएगी, जिसमें ख्व़ाब न देखोगे और तुम पर तारीकी छा जाएगी; और ग़ैबबीनी न कर सकोगे, और नबियों पर आफ़ताब ग़ुरूब होगा, और उनके लिए दिन अंधेरा हो जाएगा।7तब ग़ैबबीन पशेमान और फ़ालगीर शर्मिन्दा होंगे, बल्कि सब लोग मुँह पर हाथ रख्खेंगे, क्यूँकि ख़ुदा की तरफ़ से कुछ जवाब न होगा।8लेकिन मैं ख़ुदावन्द की रूह के ज़रिए' क़ुव्वत-ओ-'अदालत-ओ-दिलेरी से मा'मूर हूँ, ताकि या'क़ूब को उसका गुनाह और इस्राईल को उसकी ख़ता जताऊँ।9~ऐ बनी या'क़ूब के सरदारों, और ऐ बनी-इस्राईल के हाकिमों, जो 'अदालत से 'अदावत रखते हो, और सारी रास्ती को मरोड़ते हो, इस बात को सुनो।10~तुम जो सिय्यून को ख़ूँरेज़ी से और यरुशलीम को बेइन्साफ़ी से ता'मीर करते हो।11उसके सरदार रिश्वत लेकर 'अदालत करते हैं, और उसके काहिन मज़दूरी लेकर ता'लीम देते हैं, और उसके नबी रुपया लेकर फ़ालगीरी करते हैं; तोभी वह ख़ुदावन्द पर भरोसा करते हैं और कहते हैं, "क्या ख़ुदावन्द हमारे बीच नहीं? इसलिए हम पर कोई बला न आएगी।"12~इसलिए सिय्यून तुम्हारी ही वजह से खेत की तरह जोता जाएगा; और इस घर का पहाड़ जंगल की ऊँची जगहों की तरह होगा।
1~लेकिन आख़िरी दिनों में यूँ होगा कि ख़ुदावन्द के घर का पहाड़ पहाड़ों की चोटियों पर क़ायम किया जाएगा, और सब टीलों से बलंद होगा और उम्मतें वहाँ पहुँचेंगी।2~और बहुत सी क़ौमें आएँगी, और कहेंगी, 'आओ, ख़ुदावन्द के पहाड़ पर चढ़ें, और या'क़ूब के ख़ुदा के घर में दाख़िल हों, और वह अपनी राहें हम को बताएगा और हम उसके रास्तों पर चलेंगे। क्यूँकि शरी'अत सिय्यून से, और ख़ुदावन्द का कलाम यरुशलीम से सादिर होगा।3~और वह बहुत सी उम्मतों के बीच 'अदालत करेगा, और दूर की ताक़तवर क़ौमों को डाँटेगा; और वह अपनी तलवारों को तोड़ कर फालें, और अपने भालों को हँसुवे बना डालेंगे; और क़ौम-क़ौम पर तलवार न चलाएगी, और वह फिर कभी जंग करना न सीखेंगे।4तब हर एक आदमी अपनी ताक और अपने अंजीर के दरख़्त के नीचे बैठेगा, और उनको कोई न डराएगा, क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज ने अपने मुँह से ये फ़रमाया है।5~क्यूँकि सब उम्मतें अपने-अपने मा'बूद के नाम से चलेंगी, लेकिन हम हमेशा से हमेशा तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम से चलेंगे।6~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "कि मैं उस रोज़ लंगड़ों को जमा' करूँगा और जो हाँक दिए गए और जिनको मैंने दुख दिया, इकठ्ठा करूँगा ;7~और लंगड़ों को बक़िया,और जिलावतनों को ताक़तवर क़ौम बनाऊँगा; और ख़ुदावन्द कोह-ए-सिय्यून पर अब से हमेशा हमेश तक उन पर सल्तनत करेगा।8~ऐ गल्ले की दीदगाह, ऐ बिन्त-ए-सिय्यून की पहाड़ी, ये तेरे ही लिए है; क़दीम सल्तनत, या'नी दुख्तर-ए- यरुशलीम की बादशाही तुझे मिलेगी।9~अब तू क्यूँ चिल्लाती है,जैसे ~दर्द-ए-ज़िह में मुब्तिला है? क्या तुझ में कोई बादशाह नहीं? क्या तेरा सलाहकार हलाक हो गया?10ऐ बिन्त-ए-सिय्यून, ज़च्चा की तरह तकलीफ़ उठा और पैदाइश के दर्द में मुब्तिला हो; क्यूँकि अब तू शहर से निकल कर ~मैदान में रहेगी और बाबुल तक जाएगी वहाँ तू रिहाई पायेगी। और वहीं ख़ुदावन्द तुझ को तेरे दुश्मनों के हाथ से छुड़ाएगा।11अब बहुत सी क़ौमें तेरे ख़िलाफ़ जमा' हुई हैं और कहती हैं सिय्यून नापाक हो और हमारी आँखें उसकी रुस्वाई देखें।"12~लेकिन वह ख़ुदावन्द की तदबीर से आगाह नहीं, और उसकी मसलहत को नहीं समझतीं; क्यूँकि वह उनको खलीहान के पूलों की तरह जमा' करेगा।13~ऐ बिन्त-ए-सिय्यून, उठ और पायमाल कर, क्यूँकि मैं तेरे सींग को लोहा और तेरे खुरों को पीतल बनाऊँगा, और तू बहुत सी उम्मतों को टुकड़े-टुकड़े करेगी; उनके ज़ख़ीरे ख़ुदावन्द को नज़्र करेगी और उनका माल रब्ब-उल-'आलमीन के सामने लाएगी।
1ऐ बिन्त-ए-अफ़वाज,अब फ़ौजों में जमा' हो; हमारा घिराव किया जाता है। वह इस्राईल के हाकिम के गाल पर छड़ी से मारते हैं।2~लेकिन ऐ बैतलहम इफ़राताह, अगरचे तू यहूदाह के हज़ारों में शामिल होने के लिए छोटा है, तोभी तुझ में से एक शख़्स निकलेगा; और मेरे सामने इस्राईल का हाकिम होगा, और उसका मसदर ज़माना-ए-साबिक़, हाँ क़दीम-उल-अय्याम से है।3~इसलिए वह उनको छोड़ देगा, जब तक कि ज़च्चा दर्द-ए-ज़िह से फ़ारिग़ न हो; तब उसके बाक़ी भाई बनी-इस्राईल में आ मिलेंगे।4~और वह खड़ा होगा और ख़ुदावन्द की क़ुदरत से, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के नाम की बुज़ुर्गी से गल्ले बानी करेगा। और वह क़ायम रहेंगे, क्यूँकि वह उस वक़्त इन्तिहा-ए-ज़मीन तक बुज़ुर्ग होगा।5~और वही हमारी सलामती होगा। जब असूर हमारे मुल्क में आएगा और हमारे क़स्रों में क़दम रख्खेगा, तो हम उसके ख़िलाफ़ सात चरवाहे और आठ सरगिरोह खड़े करेंगे;6~और वह असूर के मुल्क को,और नमरूद की सरज़मीन के मदखलों को तलवार से वीरान करेंगे; और जब असूर हमारे मुल्क में आकर हमारी हदों को पायमाल करेगा, तो वह हम को रिहाई बख़्शेगा।7~और या'क़ूब का बक़िया बहुत सी उम्मतों के लिए ऐसा होगा,जैसे ख़ुदावन्द की तरफ़ से ओस और घास पर बारिश, जो न इंसान का इन्तिज़ार करती है, और न बनी आदम के लिए ठहरती है।8~और या'क़ूब का~बक़िया या बहुत सी क़ौमों और उम्मतों में, ऐसा होगा जैसे शेर-ए-बबर जंगल के जानवरों में, और जवान शेर भेड़ों के गल्ले में, जब वह उनके बीच से गुज़रता है, तो पायमाल करता और फाड़ता है, और कोई छुड़ा नहीं सकता।9~तेरा हाथ तेरे दुश्मनों पर उठे,और तेरे सब मुख़ालिफ़ हलाक हो जाएँ।10~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उस रोज़ मैं तेरे घोड़ों को जो तेरे बीच हैं काट डालूँगा, और तेरे रथों को बर्बाद करूँगा ;11~और तेरे मुल्क के शहरों को बर्बाद, और तेरे सब क़िलो' को मिस्मार करूँगा ।12~और मैं तुझ से जादूगरी दूर करूँगा , और तुझ में फ़ालगीर न रहेंगे;13~और तेरी खोदी हुई मूरतें और तेरे सुतून तेरे बीच से बर्बाद कर दूँगा और फिर तू अपनी दस्तकारी की 'इबादत न करेगा;14~और मैं तेरी यसीरतों को तेरे बीच से उखाड़ डालूँगा और तेरे शहरों को तबाह करूँगा ।15~और उन क़ौमों पर जिसने सुना नहीं, अपना क़हर-ओ-ग़ज़ब नाज़िल करूँगा ।
1~अब ख़ुदावन्द का फ़रमान सुन: उठ, पहाड़ों के सामने मुबाहसा कर, और सब टीले तेरी आवाज़ सुनें।2~ऐ पहाड़ों, और ऐ ज़मीन की मज़बूत बुनियादों, खुदावन्द का दा'वा सुनो, क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों पर दा'वा करता है, और वह इस्राईल पर हुज्जत साबित करेगा।3ऐ मेरे लोगों मैंने तुम से क्या किया है और तुमको किस बात में आज़ुर्दा किया है मुझ पर साबित करो |4~क्यूँकि मैं तुम को मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, और ग़ुलामी के घर से फ़िदिया देकर छुड़ा लाया; और तुम्हारे आगे मूसा और हारून और मरियम को भेजा।5~ऐ मेरे लोगों, याद करो कि शाह-ए-मोआब बलक़ ने क्या मश्वरत की, और बल'आम-बिन-ब'ऊर ने उसे क्या जवाब दिया; और शित्तीम से जिलजाल तक क्या-क्या हुआ, ताकि ख़ुदावन्द की सदाक़त से वाकिफ़ हो जाओ।6मैं क्या लेकर ख़ुदावन्द के सामने आऊँ,और ख़ुदा ताला को क्यूँकर सिज्दा करूँ? क्या सोख़्तनी क़ुर्बानियों और यकसाला बछड़ों को लेकर उसके सामने आऊँ?7~क्या ख़ुदावन्द हज़ारों मेंढों से या तेल की दस हज़ार नहरों से ख़ुश होगा ? क्या मैं अपने पहलौठे को अपने गुनाह के बदले में, और अपनी औलाद को अपनी जान की ख़ता के बदले में दे दूँ?8~ऐ इंसान, उसने तुझ पर नेकी ज़ाहिर कर दी है; ख़ुदावन्द तुझ से इसके सिवा क्या चाहता है कि तू इंसाफ़ करे और रहमदिली को 'अज़ीज़ रख्खे, और अपने ख़ुदा के सामने फ़रोतनी से चले?9~ख़ुदावन्द की आवाज़ शहर को पुकारती है और 'अक़्लमंद उसके नाम का लिहाज़ रखता है: 'असा और उसके मुक़र्रर करने वाले की सुनो।10~क्या शरीर के घर में अब तक नाजायज़ नफ़े' के ख़ज़ाने और नाक़िस-ओ-नफ़रती पैमाने नहीं हैं |11क्या वह दग़ा की तराज़ू और झूटे बाटों का थैला रखता हुआ, बेगुनाह ठहरेगा।12~क्यूँकि वहाँ के दौलतमंद ज़ुल्म से भरे हैं; और उसके बाशिन्दे झूट बोलते हैं, बल्कि उनके मुँह में दग़ाबाज़ ज़बान है।13~इसलिए मैं तुझे मुहलिक ज़ख़्म लगाऊँगा,और तेरे गुनाहों की वजह से तुझ को वीरान कर डालूँगा|14~तू खाएगा लेकिन आसूदा न होगा, क्यूँकि तेरा पेट ख़ाली रहेगा; तू छिपाएगा लेकिन बचा न सकेगा, और जो कुछ कि तू बचाएगा मैं उसे तलवार के हवाले करूँगा ।15~तू बोएगा, लेकिन फ़सल न काटेगा; ज़ैतून को रौदेंगा, लेकिन तेल मलने न पाएगा; तू अंगूर को कुचलेगा, लेकिन मय न पिएगा।16~क्यूँकि उमरी के क़वानीन और अख़ीअब के ख़ान्दान के आ'माल की पैरवी होती है, और तुम उनकी मश्वरत पर चलते हो, ताकि मैं तुम को वीरान करूँ, और उसके रहने वालों को सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँ; इसलिए तुम मेरे लोगों की रुस्वाई उठाओगे।"
1~मुझ पर अफ़सोस! मैं ताबिस्तानी मेवा जमा' होने और अंगूर तोड़ने के बा'द की ख़ोशाचीनी की तरह हूँ, न खाने को कोई ख़ोशा, और न पहला पक्का दिलपसंद अंजीर है।2~दीनदार आदमी दुनिया से जाते रहे, लोगों में कोई रास्तबाज़ नहीं; वह सब के सब घात में बैठे हैं कि ख़ून करें हर शख़्स जाल बिछा कर अपने ~भाई का शिकार करता है।3उनके हाथ बुराई में फुर्तीले हैं; हाकिम रिश्वत माँगता है और क़ाज़ी भी यही चाहता है, और बड़े आदमी अपने दिल की हिर्स की बातें करते हैं; और यूँ साज़िश करते हैं।4उनमें सबसे अच्छा तो ऊँट कटारे की तरह है, और सबसे रास्तबाज़ ख़ारदार झाड़ी से बदतर है। उनके निगहबानों का दिन, हाँ उनकी सज़ा का दिन आ गया है; अब उनको परेशानी होगी।5~किसी दोस्त पर भरोसा न करो; हमराज़ पर भरोसा न रख्खो; हाँ, अपने मुँह का दरवाज़ा अपनी बीवी के सामने बंद रख्खो6~क्यूँकि बेटा अपने बाप को हक़ीर जानता है,और बेटी अपनी माँ के और बहू अपनी सास के ख़िलाफ़ होती है; और आदमी के दुश्मन उसके घर ही के लोग हैं।7~लेकिन मैं ख़ुदावन्द की राह देखूँगा,और अपने नजात देने वाले ख़ुदा का इन्तिज़ार करूँगा, मेरा ख़ुदा मेरी सुनेगा।8~ऐ मेरे दुश्मन, मुझ पर ख़ुश न हो, क्यूँकि जब मैं गिरूँगा, तो उठ खड़ा हूँगा; जब अंधेरे में बैठूँगा, तो ख़ुदावन्द मेरा नूर होगा।9~मैं ख़ुदावन्द के क़हर को बर्दाश्त करूँगा, क्यूँकि मैंने उसका गुनाह किया है जब तक वह मेरा दा'वा साबित करके मेरा इंसाफ़ न करे। वह मुझे रोशनी में लाएगा, और मैं उसकी सदाक़त को देखूँगा।10तब मेरा दुश्मन जो मुझ से कहता था, ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा कहाँ है ये देखकर रुस्वा होगा। मेरी आँखें उसे देखेंगी वह गलियों की कीच की तरह पायमाल किया जाएगा।11~तेरी फ़सील की ता'मीर के रोज़, तेरी हदें बढ़ाई जाएँगी।12~उसी रोज़ असूर से और मिस्र के शहरों से, और मिस्र से दरिया-ए-फ़रात तक, और समन्दर से समन्दर तक और कोहिस्तान से कोहिस्तान तक, लोग तेरे पास आएँगे।13और ज़मीन अपने बाशिन्दों के 'आमाल की वजह से वीरान होगी।14~अपने 'असा से अपने लोगों, या'नी अपनी मीरास की गल्लेबानी कर, जो कर्मिल के जंगल में तन्हा रहते हैं, उनको बसन और जिलआद में पहले की तरह चरने दे।15जैसे तेरे मुल्क-ए-मिस्र से निकलते वक़्त दिखाए, वैसे ही अब मैं उसे 'अजाइब दिखाऊँगा।16~क़ौमें देखकर अपनी तमाम तवानाई से शर्मिन्दा होंगी; वह मुँह पर हाथ रख्खेंगी, और उनके कान बहरे हो जाएँगे।17~वह साँप की तरह ख़ाक चाटेंगी, और अपने छिपने की जगहों से ज़मीन के कीड़ों की तरह थरथराती हुई आएँगी; वह ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने डरती हुई आयेंगी हाँ वह तुझ से परेशान होंगी।18~तुझ सा ख़ुदा कौन है,जो बदकिरदारी मु'आफ़ करे और अपनी मीरास के बक़िये की ख़ताओं से दरगुज़रे? वह अपना क़हर हमेशा तक नहीं रख छोड़ता, क्यूँकि वह शफ़क़त करना पसंद करता है।19~वह फिर हम पर रहम फ़रमाएगा; वही हमारी बदकिरदारी को पायमाल करेगा और उनके सब गुनाह समन्दर की तह में डाल देगा।20~तू या'क़ूब से वफ़ादारी करेगा और इब्राहीम को वह शफ़कत दिखाएगा, जिसके बारे में तू ने पुराने ज़माने में हमारे बाप-दादा से क़सम खाई थी।
1नीनवा के बारे में बार-ए-नबुव्वत। इलकूशी नाहूम की रोया की किताब।2~ख़ुदावन्द ग़य्यूर और इन्तक़ाम लेनेवाला ख़ुदा है; हाँ ख़ुदावन्द इन्तक़ाम लेने वाला और क़ह्हार है; ख़ुदावन्द अपने मुख़ालिफ़ों से इन्तक़ाम लेता है और अपने दुश्मनों के लिए क़हर को क़ायम रखता है।3~ख़ुदावन्द क़हर करने में धीमा और क़ुदरत में बढ़कर है, और मुजरिम को हरगिज़ बरी न करेगा। ख़ुदावन्द की राह गिर्दबाद और आँधी ~में है,और बादल उसके पाँव की गर्द हैं।4~वही समन्दर को डाँटता और सुखा देता है, और सब नदियों को ख़ुश्क कर डालता है; बसन और कर्मिल कुमला जाते हैं, और लुबनान की कोंपलें मुरझा जाती हैं।5~उसके ख़ौफ़ से पहाड़ काँपते और टीले पिघल जाते हैं; उसके सामने ज़मीन हाँ, दुनिया और उसकी सब मा'मूरी थरथराती है।6~किसको उसके क़हर की ताब है? उसके ग़ज़बनाक ग़ुस्से की कौन बर्दाश्त कर सकता है? उसका क़हर आग की तरह नाज़िल होता है वह चट्टानों को तोड़ डालता है |7ख़ुदावन्द भला है और मुसीबत के दिन पनाहगाह ~है वह अपने भरोसा करने वालों को जानता है|8लेकिन अब वह उसके मकान को बड़े सैलाब से हलाक-ओ-बर्बाद करेगा और तारीकी उसके दुश्मनों को दौड़ायेगी |9~तुम ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ क्या मंसूबा बाँधते हो वह बिल्कुल हलाक कर डालेगा अज़ाब दोबारा न आएगा |10अगरचे वह उलझे हुए काँटों की तरह पेचीदा, और अपनी मय से तर हो तो भी वह ~सूखे भूसे की तरह बिलकुल जला दिए जायेंगे |11तुझसे एक ऐसा शख़्स निकला है जो ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ बुरे मंसूबे बाँधता और शरारत की सलाह देता है |12ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि अगरचे वह ज़बरदस्त और बहुत से हों तों भी वह काटे जायेंगे और वह बर्बाद हो जाएगा अगरचे मैंने तुझे दुख दिया तोभी फिर कभी तुझे दुख न दूँगा |13और अब मैं उसका जुआ तुझ पर से तोड़ डालूँगा और तेरे बंधनों को टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा|14लेकिन ख़ुदावन्द ने तेरे बारे में ये हुक्म सादिर फ़रमाया है कि तेरी नसल बाक़ी न रहे मैं तेरे बुतख़ाने से खोदी हुई और ढाली हुई मूरतों को बर्बाद करूँगा, मैं तेरे लिए क़ब्र तैयार करूँगा क्यूँकि तू निकम्मा है15देख जो ख़ुशख़बरी लाता और सलामती का 'ऐलान करता है उसके पाँव पहाड़ों पर हैं , ऐ यहूदाह अपनी 'ईदें मना और अपनी नज़्रे अदा कर क्यूँकि फिर ख़बीस तेरे बीच से नहीं गुज़रेगा वह साफ़ काट डाला गया गया है |
1बिखेरने वाला तुझ पर चढ़ आया है, क़िले' को महफ़ूज़ रख: राह की निगहबानी कर: कमर बस्ता हो और ख़ूब मज़बूत रह।2क्यूँकि ख़ुदावन्द या'क़ूब की रौनक़ को इस्राईल की रौनक़ की तरह, फिर बहाल करेगा: अगरचे ग़ारतगरों ने उनको ग़ारत किया है, और उनकी ताक की शाख़ें तोड़ डालीं हैं |3उसके बहादुरों की ढालें सुर्ख़ हैं; जंगी मर्द क़िरमिज़ी वर्दी पहने हैं। उसकी तैयारी के वक़्त रथ फ़ौलाद से झलकते हैं, और देवदार के नेज़े बशिद्दत हिलते हैं।4रथ सड़कों पर तुन्दी से दौड़ते,और मैदान में बेतहाशा जाते हैं; वह मशा'लों की तरह चमकते, और बिजली की तरह कोंदते हैं।5~वह अपने सरदारों को बुलाता है, वह टक्करें खाते आते हैं; वह जल्दी-जल्दी फ़सील पर चढ़ते हैं, और अड़तला तैयार किया जाता है।6नहरों के फाटक खुल जाते हैं, और क़स्र गुदाज़ हो जाता है;7~हुस्सब बेपर्दा हुई और ग़ुलामी में चली गई; उसकी लौंडियाँ कुमारियों की तरह कराहती हुई मातम करती और छाती पीटती हैं।8~नीनवा तो पहले ही से हौज़ की तरह है, तोभी वह भागे चले जाते हैं। वह पुकारते हैं, "ठहरो, ठहरो!" लेकिन कोई मुड़कर नहीं देखता।9~चाँदी लूटो! सोना लूटो!~क्यूँकि माल की कुछ इन्तिहा नहीं सब नफ़ीस चीज़ें कसरत से हैं।10वह ख़ाली, सुनसान और वीरान है! उनके दिल पिघल गए और घुटने टकराने लगे हर एक की कमर में शिद्दत से दर्द है और इन सबके चेहरे जर्द हो गए |11~शेरों की माँद, और जवान बबरों की खाने की जगह कहाँ है जिसमें शेर-ए-बबर और शेरनी और उनके बच्चे बेख़ौफ़ फिरते थे?12~शेर-ए-बबर अपने बच्चों की ख़ुराक के लिए फाड़ता था, और अपनी शेरनियों के लिए गला घोंटता था; और अपनी माँदों को शिकार से, और ग़ारों को फाड़े हुओं से भरता था।13~रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और उसके रथों को जलाकर धुवाँ बना दूँगा और तलवार तेरे जवान बबरों को खा जाएगी। और मैं तेरा शिकार ज़मीन पर से मिटा डालूँगा, और तेरे क़ासिदों की आवाज़ फिर कभी सुनाई न देगी।।
1ख़ूँरेज़ शहर पर अफ़सोस, वह झूट और लूट से बिल्कुल भरा है; वह लूटमार से बाज़ नहीं आता।2~सुनो, चाबुक की आवाज़, और पहियों की खड़खड़ाहट और घोड़ों का कूदना और रथों के हिचकोले!3~देखो, सवारों का हमला और तलवारों की चमक और भालों की झलक और मक़्तूलों के ढेर, और लाशों के तूदे; लाशों की इन्तिहा नहीं, लाशों से ठोकरें खाते हैं।4~ये उस ख़ूबसूरत जादूगरनी फ़ाहिशा की बदकारी की कसरत का नतीजा है, क्यूँकि वह क़ौमों को अपनी बदकारी से, और घरानों को अपनी जादूगरी से बेचती है।5~रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और तेरे सामने से तेरा दामन उठा दूँगा, और क़ौमों को तेरी बरहनगी और ममलुकतों को तेरा सत्र दिखलाऊँगा।6~और नजासत तुझ पर डालूँगा, और तुझे रुस्वा करूँगा, हाँ तुझे अन्गुश्तनुमा कर दूँगा।7~और जो कोई तुझ पर निगाह करेगा, तुझ से भागेगा और कहेगा, नीनवा वीरान हुआ; इस पर कौन तरस खाएगा? मैं तेरे लिए तसल्ली देने वाले कहाँ से लाऊँ।8~क्या तू नोआमून से बेहतर हैं, जो नहरों के बीच बसा था और पानी उसकी चारों तरफ़ था; जिसकी शहरपनाह दरिया-ए-नील था, और जिसकी फ़सील पानी था?9कूश और मिस्र उसकी बेइन्तिहा तवानाई थे; फ़ूत और लूबीम उसके हिमायती थे।10~तोभी वह जिलावतन और ग़ुलाम हुआ; उसके बच्चे सब कूचों में पटक दिए गए, और उनके शुर्फ़ा पर पर्चा डाला गया, और उसके सब बुज़ुर्ग ज़ंजीरों से जकड़े गए।11~तू भी मस्त होकर अपने आप को छिपाएगा, और दुश्मन के सामने से पनाह ढूँडेगा।12तेरे सब क़िले' अंजीर के दरख़्त की तरह हैं, जिस पर पहले पक्के फल लगे हों, जिसको अगर कोई हिलाए तो वह खाने वाले के मुँह में गिर पड़ें।13~देख, तेरे अन्दर तेरे मर्द 'औरतें बन गए,तेरी मम्लुकत के फाटक तेरे दुश्मनों के सामने खुले हैं; आग तेरे अड़बंगों को खा गई।14~तू अपने घिराव के वक़्त के लिए पानी भर ले, और अपने क़िलों' को मज़बूत कर; गढ़े में उतरकर मिट्टी तैयार कर, और ईंट का साँचा हाथ में ले।15~वहाँ आग तुझे खा जाएगी, तलवार तुझे काट डालेगी। वह टिड्डी की तरह तुझे चट कर जाएगी।अगरचे तू अपने आप को चट कर जाने वाली टिड्डियों की तरह फ़िरावान करे, और फ़ौज-ए-मलख़ की तरह बेशुमार हो जाए।16~तू ने अपने सौदागरों को आसमान के सितारों से ज़्यादा फ़िरावान किया। चट कर जाने वाली टिड्डी, ख़राब करके उड़ जाती है।17~तेरे हाकिम मलख़ और तेरे सरदार टिड्डियों का हुजूम हैं, जो सर्दी के वक़्त झाड़ियों में रहती हैं; और जब आफ़ताब निकलता है तो उड़ जाती हैं, और उनका मकान कोई नहीं जानता।18~ऐ शाह-ए-असूर, तेरे चरवाहे सो गए; तेरे सरदार लेट गए। तेरी रि'आया पहाड़ों पर बिखर गई, और उसको इकठ्ठा करने वाला कोई नहीं।19~तेरी शिकस्तगी ला'इलाज है, तेरा ज़ख़्म कारी है; तेरा हाल सुनकर सब ताली बजाएँगे। क्यूँकि कौन है जिस पर हमेशा तेरी शरारत का बार न था?
1~हबक़्क़ूक़क़ नबी के ख़्वाब की नबुव्वत के बारे में:2ऐ ख़ुदावन्द, मैं कब तक फ़रियाद करूँगा,और तू न सुनेगा? मैं तेरे सामने कब तक चिल्लाऊँगा "जु़ुल्म, जु़ुल्म" और तू न बचाएगा ?3तू क्यूँ मुझे बद किरदारी और टेढ़ी रविश दिखाता है? क्यूँकि~ज़ुल्म और सितम मेरे सामने हैं फ़ितना-ओ-फ़साद खड़े होते रहते हैं।4इसलिए शरी'अत कमज़ोर हो गई, और इन्साफ़ मुतलक़ जारी नहीं होता। क्यूँकि शरीर सादिक़ो को घेर लेते हैं; इसलिए~इन्साफ़~का खू़न हो रहा है।5क़ौमों पर नज़र करो, और देखो; और हैरान हो; क्यूँकि मैं तुम्हारे दिनों में एक ऐसा काम करने को हूँ कि अगर कोई तुम से उसका बयान करे तो तुम हरगिज़ उम्मीद न करोगे।6क्यूँकि देखो, मैं कसदियों को चढ़ालाऊँगा: वह गु़स्सावर और कम'अक़्ल क़ौम हैं, जो चौड़ी ज़मीन से होकर गुज़रते हैं, ताकि उन बस्तियों पर जो उनकी नहीं हैं, क़ब्ज़ा कर लें।7~वह डरावने और ख़ौफ़नाक हैं: वह खु़द ही अपनी 'अदालत और शान का मसदर हैं।8उनके घोड़े चीतों से भी तेज़ रफ़्तार, और शाम को निकलने वाले भेड़ियों से ज़्यादा खू़ँख़्वार हैं; और उनके सवार कूदते फाँदते आते हैं| हाँ, वह दूर से चले आते हैं, वह उक़ाब की तरह हैं, जो अपने शिकार पर झपटता है।9~वह सब ग़ारतगरी को आते हैं, वह सीधे बढ़े चले आते हैं; और उनके गु़लाम रेत के ज़र्रों की तरह बेशुमार होते हैं।10वह बादशाहों को ठठ्ठों में उड़ाते, और 'उमरा को मसख़रा बनाते हैं। वह क़िलों' को हक़ीर जानते हैं, क्यूँकि वह मिट्टी से दमदमें बाँधकर उनको फ़तह कर लेते हैं।11~तब वह हवा के झोंके की तरह गुज़रते और ख़ता करके गुनहगार होते हैं, क्यूँकि उनका ज़ोर ही उनका ख़ुदा है।12~ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे कु़द्दूस, क्या तू अज़ल से नहीं है? हम नहीं मरेंगे। ऐ ख़ुदावन्द, तूने उनको 'अदालत के लिए ठहराया है, और ऐ चट्टान, तू ने उनको तादीब के लिए मुक़र्रर किया है।13तेरी आँखें ऐसी पाक हैं कि तू गुनाह को देख नहीं सकता, और टेढ़ी रविश पर निगाह नहीं कर सकता। फिर तू दग़ाबाज़ों पर क्यूँ नज़र करता है, और जब शरीर अपने से ज़्यादा सादिक़ को निगल जाता है, तब तू क्यूँ ख़ामोश रहता है?14और बनी आदम को समन्दर की मछलियों, और कीड़े-मकौड़ों की तरह बनाता है जिन पर कोई हुकूमत करने वाला नहीं?15वह उन सब को शस्त से उठा लेते हैं, और अपने जाल में फँसाते हैं; और महाजाल में जमा' करते हैं, इसलिए वह शादमान और ख़ुश वक़्त हैं।16इसीलिए वह अपने जाल के आगे~क़ुर्बानी अदा करते हैं और अपने बड़े जाल के आगे ~ख़ुश्बू जलाते हैं, क्यूँकि इनके वसीले से उनका हिस्सा लज़ीज़, और उनकी ग़िज़ा चिकनी है।17इसलिए क्या वह अपने जाल को ख़ाली करने और क़ौमों को बराबर क़त्ल करने से बाज़ न आएँगे?
1और मैं अपनी दीदगाह पर खड़ा रहूँगा और बुर्ज पर चढ़कर इन्तिज़ार करूँगा कि वह मुझ से क्या कहता है, और मैं अपनी फ़रियाद के बारे में क्या जवाब दूँ।2तब ख़ुदावन्द ने मुझे जवाब दिया और फ़रमाया कि "ख्व़ाब को तख़्तियों पर ऐसी सफ़ाई से लिख कि लोग दौड़ते हुए भी पढ़ सकें।3क्यूँकि ये ख़्वाब एक मुक़र्ररा वक़्त के लिए है; ये जल्द ज़हूर में आएगा और ख़ता न करेगा। अगरचे इसमें देर हो, तोभी इसके इन्तिज़ार में रह, क्यूँकि ये यक़ीनन नाज़िल होगा, देर ~न करेगा|4देख, घमण्डी आदमी का दिल रास्त नहीं है, लेकिन सच्चा अपने ईमान से ज़िन्दा रहेगा।5बेशक, घमण्डी आदमी शराब की तरह दग़ाबाज़ है, वह अपने घर में नहीं रहता। वह पाताल की तरह अपनी ख़्वाहिश बढ़ाता है; वह मौत की तरह है, कभी आसूदा नहीं होता; बल्कि सब क़ौमों को अपने पास जमा' करता है, और सब उम्मतों को अपने नज़दीक इकठ्ठा करता है।"6क्या ये सब उस पर मिसाल न लाएँगे, और तनज़न न कहेंगे~कि "उस पर अफ़सोस, जो औरों के माल से मालदार होता है, लेकिन ये कब तक? और उस पर जो कसरत से गिरवी लेता है।"7क्या वह मुझे खा जाने को अचानक न उठेंगे, और तुझे परेशान करने को बेदार न होंगे, और उनके लिए लूट न होगा?8क्यूँकि तूने बहुत सी क़ौमों को लूट लिया, और मुल्क-ओ-शहर-ओ-बाशिंदों में खू़ँरेज़ी और सितमगरी की है, इसलिए बाक़ी माँदा लोग तुझे ग़ारत करेंगे|9"उस पर अफ़सोस जो अपने घराने के लिए नाजायज़ नफ़ा' उठाता है ,ताकि अपना आशियाना बुलन्दी पर बनाये,और मुसीबत से महफ़ूज़ रहे|10तूने बहुत सी उम्मतों को बर्बाद करके अपने घराने के लिए रुसवाई हासिल की, और अपनी जान का गुनहगार हुआ |11क्यूँकि दीवार से पत्थर चिल्लायेंगे, और छत से शहतीर जवाब देंगे |12उस पर अफ़सोस, जो क़स्बे को खू़ँरेज़ी से और शहर को बादकिरदारी से ता'मीर करता है !13क्या यह रब्ब-उल-अफ़्वाज की तरफ़ से नहीं कि लोगों की मेहनत आग के लिए हो, और क़ौमों की मशक़्क़त बतालत के लिए हो?14क्यूँकि जिस तरह समन्दर पानी से भरा है , उसी तरह ज़मीन ख़ुदावन्द के जलाल के 'इल्म से मा'मूर है|15उस पर अफ़सोस जो अपने पड़ोसी को अपने क़हर का जाम पिलाकर मतवाला करता है, ताकि उसको बे पर्दा करे !16तू 'इज़्ज़त के 'इवज़ रुसवाई से भर गया है। तू भी पीकर अपनी नामख़्तूनी ज़ाहिर कर! ख़ुदावन्द के दहने हाथ का प्याला अपने दौर में तुझ तक पहुँचेगा , और रुसवाई तेरी शौकत को ढाँप लेगी |17चूँकि तूने मुल्क-ओ-शहर-ओ-बाशिन्दों में खूँरेज़ी और सितमगरी की है, इसलिए वह ज़ियादती जो लुबनान पर हुई और वह हलाकत जिसमें जानवर डर गए, तुझ पर आएगी|18खोदी हुई मूरत से क्या हासिल कि उसके बनाने वाले ने उसे खोदकर बनाया? ढली हुई मूरत और झूट सिखाने वाले से क्या फ़ायदा कि उसका बनाने वाला उस पर भरोसा रखता और गूँगे बुतों को बनाता है?19उस पर अफ़सोस जो लकड़ी से कहता है, जाग, और बे ज़बान पत्थर से कि उठ, क्या वह ता'लीम दे सकता है? देख वह तो सोने और चाँदी से मढ़ा है लेकिन उसमें कुछ भी ताक़त नहीं|20~मगर ख़ुदावन्द अपनी मुक़द्दस हैकल में है; सारी ज़मीन उसके सामने ख़ामोश रहे।"
1शिगायूनोत के सुर पर ~हबक़्क़ूक़ नबी की दु'आ:2ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तेरी शोहरत सुनी,और डर गया; ऐ ख़ुदावन्द, इसी ज़माने में अपने काम को पूरा कर। इसी ज़माने में उसको ज़ाहिर कर; ग़ज़ब के वक़्त रहम को याद फ़रमा।3~ख़ुदा तेमान से आया,और कु़द्दूस फ़ारान के पहाड़ से। उसका जलाल आसमान पर छा गया, और ज़मीन उसकी ता'रीफ़ से मा'मूर हो गई ।4~उसकी जगमगाहट नूर की तरह थी, उसके हाथ से किरनें निकलती थीं, और इसमें उसकी क़ुदरत छिपी हुई थी,5बीमारी उसके आगे-आगे चलती थी,और आग के तीर उसके क़दमों से निकलते थे।6वह खड़ा हुआ और ज़मीन थर्रा गई, उसने निगाह की और क़ौमें तितर-बितर हो गईं। अज़ली पहाड़ टुकड़े-टुकड़े हो गए; पुराने टीले झुक गए, उसके रास्ते अज़ली हैं।7मैंने कूशन के खे़मों को मुसीबत में देखा: मुल्क-ए-मिदियान के पर्दे हिल गए।8ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू नदियों से बेज़ार था? क्या तेरा ग़ज़ब दरियाओं पर था? क्या तेरा ग़ज़ब समन्दर पर था कि तू अपने घोड़ों और फ़तहयाब रथों पर सवार हुआ?9तेरी कमान ग़िलाफ़ से निकाली गई, तेरा 'अहद क़बाइल के साथ उस्तवार था। सिलाह, तूने ज़मीन को नदियों से चीर डाला।10पहाड़ तुझे देखकर काँप गए: सैलाब गुज़र गए; समन्दर से शोर उठा, और मौजें बुलन्द हुई।11तेरे उड़ने वाले तीरों की रोशनी से, तेरे चमकीले भाले की झलक से, चाँद-ओ-सूरज अपने बुर्जों में ठहर गए।12तू ग़ज़बनाक होकर मुल्क में से गुज़रा; तूने ग़ज़ब से क़ौमों को पस्त किया।13~तू अपने लोगों की नजात की ख़ातिर~निकला, हाँ, अपने मम्सूह की नजात की ख़ातिर तूने शरीर के घर की छत गिरा दी, और उसकी बुनियाद बिल्कुल खोद डाली।14तूने उसी की लाठी से उसके बहादुरों के सिर फोड़े; वह मुझे बिखेरने को हवा के झोके की तरह आए, वह ग़रीबों को तन्हाई में निगल जाने पर ख़ुश थे।15~तू अपने घोड़ों पर सवार होकर समन्दर से, हाँ, बड़े सैलाब से पार हो गया।16~मैंने सुना और मेरा दिल दहल गया, उस शोर की वजह से मेरे लब हिलने लगे; मेरी हड्डियाँ बोसीदा हो गईं, और मैं खड़े-खड़े काँपने लगा। लेकिन मैं सुकून से उनके बुरे दिन का मुन्तज़िर हूँ, जो इकट्ठा होकर हम~पर हमला करते हैं।17अगरचे अंजीर का दरख़्त न फूले,और डाल में फल न लगें, और जै़तून का फल ज़ाय' हो जाए, और खेतों में कुछ पैदावार न हो, और भेड़ख़ाने से भेड़ें जाती रहें, और तवेलों में जानवर न हों,18तोभी मैं ख़ुदावन्द से ख़ुश रहूँगा, और अपनी नजात बख़्श ख़ुदा से खु़श वक़्त हूँगा।19ख़ुदावन्द ख़ुदा, मेरी ताक़त है; वह मेरे पैर हरनी के से बना देता है, और मुझे मेरी ऊँची जगहों में चलाता है।
1ख़ुदावन्द का कलाम जो यहूदाह बादशाह यूसाह बिन अमून के दिनों ~में सफ़नियाह बिन कूशी बिन जदलियाह बिन अमरयाह बिन हिज़क़ियाह पर नाज़िल हुआ|2~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं इस ज़मीन से सब कुछ बिल्कुल हलाक करूँगा।3इन्सान और हैवान को हलाक करूँगा; हवा के परिन्दों और समन्दर की मछलियों को और शरीरों और उनके बुतों को हलाक करूँगा, और इन्सान को इस ज़मीन से फ़ना करूँगा|" ख़ुदावन्द फ़रमाता है|4"मैं यहूदाह पर और यरूशलीम के सब रहने वालों पर हाथ चलाऊँगा, और इस मकान में से बा'ल के बक़िया को और कमारीम के नाम को पुजारियों के साथ हलाक करूँगा;5और उनको भी जी कोठों पर चढ़ कर अज्राम-ए-फ़लक की 'इबादत ~करते हैं, और उनको जो ख़ुदावन्द की 'इबादत का 'अहद करते हैं, लेकिन मिल्कूम की क़सम खाते हैं।6~और उनको भी जो ख़ुदावन्द से नाफ़रमान होकर न उसके तालिब हुए और न उन्होंने उससे मश्वरत ~ली।"7तुम ख़ुदावन्द ख़ुदा के सामने ख़ामोश रहो, क्यूँकि ख़ुदावन्द का दिन नज़दीक है; और उसने ज़बीहा तैयार किया है, और अपने मेहमानों को मख़्सूस किया है।8और ख़ुदावन्द के ज़बीहे के दिन यूँ होगा, "कि मैं उमरा और शहज़ादों को, और उन सब को जो अजनबियों की पोशाक पहनते हैं, सज़ा दूँगा।9~मैं उसी रोज़ उन सब को,जो लोगों के घरों में घुस कर अपने मालिक ~के घर को लूट और धोखे से भरते हैं सज़ा दूँगा।"10और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "उसी रोज़ मछली फाटक से रोने की आवाज़, और मिशना से मातम की, और टीलों पर से बड़े शोर की आवाज़ उठेगी।11~ऐ मकतीस के रहने वालो, मातम करो! क्यूँकि सब सौदागर मारे गए। जो चाँदी से लदे थे, सब हलाक हुए।12फिर मैं चराग़ लेकर यरूशलीम में तलाश करूँगा, और जितने अपनी तलछट पर जम गए हैं, और दिल में कहते हैं, ~'कि ख़ुदावन्द सज़ा-और-जज़ा न देगा,' उनको सज़ा दूँगा।13~तब उनका माल लुट जाएगा, और उनके घर उजड़ जाएँगे। वह घर तो बनाएँगे, लेकिन उनमें बूद-ओ-बाश न करेंगे; और बाग़ तो लगाएँगे, लेकिन उनकी मय न पिएँगे।”14~ख़ुदावन्द का बड़ा दिन क़रीब है, हाँ, वह नज़दीक आ गया, वह आ पहुँचा; सुनो, खुदावन्द के दिन का शोर; ज़बरदस्त आदमी फूट-फूट कर रोएगा।15वह दिन क़हर का दिन है, दुख और ग़म का दिन, वीरानी और ख़राबी का दिन, तारीकी और उदासी का दिन, बादल और तीरगी का दिन;16~हसीन शहरों और ऊँचे बुर्जों के ख़िलाफ़, नरसिंगे और जंगी ललकार का दिन।17और मैं बनी आदम पर मुसीबत लाऊँगा, यहाँ तक कि वह अंधों की तरह चलेंगे, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द के गुनहगार हुए; उनका खू़न धूल की तरह गिराया जाएगा, और उनका गोश्त नजासत की तरह।18ख़ुदावन्द के क़हर के दिन,उनका सोना चाँदी उनको बचा न सकेगा; बल्कि तमाम मुल्क को उसकी गै़रत की आग खा जाएगी, क्यूँकि वह एक पल में मुल्क के सब बाशिन्दों को तमाम कर डालेगा।
1~ऐ बेहया क़ौम, जमा' हो, जमा' हो;2~इससे पहले के फ़रमान-ए-इलाही ज़ाहिर हो, और वह दिन भुस की तरह जाता रहे, और ख़ुदावन्द का बड़ा क़हर तुम पर नाज़िल हो, और उसके ग़ज़ब का दिन तुम पर आ पहुँचे।3~ऐ मुल्क के सब हलीम लोगों, जो खुदावन्द के हुक्मों पर चलते हो, उसके तालिब हो, रास्तबाज़ी को ढूँढों, फ़रोतनी की तलाश करो; शायद ख़ुदावन्द के ग़ज़ब के दिन तुम को पनाह मिले।4~क्यूँकि ग़ज़्ज़ा मतरूक होगा, और अस्क़लोन वीरान किया जाएगा, और अशदूद दोपहर को ख़ारिज कर दिया जाएगा, और 'अक्रू़न की बेख़कनी की जाएगी।5~समन्दर के साहिल के रहने वालो, या'नी करेतियों की क़ौम पर अफ़सोस! ऐ कना'न, फ़िलिस्तियों की सरज़मीन, ख़ुदावन्द का कलाम तेरे ख़िलाफ़ है; मैं तुझे हलाक-ओ-बर्बाद करूँगा यहाँ तक कि कोई बसने वाला न रहे।6और समन्दर के साहिल, चरागाहें होंगे, जिनमें चरवाहों की झोपड़ियाँ और भेड़ख़ाने होंगे।7और वही साहिल, यहूदाह के घराने के बक़िया के लिए होंगे; वह उनमें चराया करेंगे, वह शाम के वक़्त अस्क़लून के मकानों में लेटा करेंगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा, उन पर फिर नज़र करेगा, और उनकी ग़ुलामी को ख़त्म करेगा।8मैंने मोआब की मलामत और बनी 'अम्मोन की लान'तान सुनी है उन्होंने मेरी क़ौम को मलामत की और उनकी हुदूद को दबा लिया है |9~~इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम यक़ीनन मोआब सदूम की तरह होगा, और बनी 'अम्मोन 'अमूरा की तरह; वह पुरख़ार और नमकज़ार और हमेशा से हमेशा तक बर्बाद रहेंगे। मेरे लोगों के बाक़ी ~उनको ग़ारत करेंगे, और मेरी क़ौम के बाक़ी लोग उनके वारिस होंगे।10ये सब कुछ उनके तकब्बुर की वजह ~से उन पर आएगा, क्यूँकि उन्होंने रब्ब-उल-अफ़वाज के लोगों को मलामत की और उन पर ज़ियादती की।11~ख़ुदावन्द उनके लिए हैबतनाक होगा, और ज़मीन के तमाम मा'बूदों को लाग़र कर देगा, और बहरी ममालिक के सब बाशिन्दे अपनी अपनी जगह में उसकी 'इबादत करेंगे।12~ऐ कूश के बाशिन्दो, तुम भी मेरी तलवार से मारे जाओगे।13और वह शिमाल की तरफ़ अपना हाथ बढ़ायेगा और असूर को हलाक करेगा, और नीनवा को वीरान और सेहरा की तरह ख़ुश्क कर देगा।14और जंगली जानवर उसमें लेटेंगे,और हर क़िस्म के हैवान, हवासिल और ख़ारपुश्त उसके सुतूनों के सिरों पर मक़ाम करेंगे; उनकी आवाज़ उसके झरोकों में होगी, उसकी दहलीज़ों में वीरानी होगी, क्यूँकि देवदार का काम खुला छोड़ा गया है।15~ये वह शादमान शहर है जो बेफ़िक्र था, जिसने दिल में कहा, "मैं हूँ, और मेरे अलावा कोई दूसरा नहीं।” वह कैसा वीरान हुआ, हैवानों के बैठने की जगह! हर एक जो उधर से गुज़रेगा सुसकारेगा और हाथ हिलाएगा।
1उस सरकश और नापाक व ज़ालिम शहर पर अफ़सोस!2उसने कलाम को न सुना, वह तरबियत पज़ीर न हुआ। उसने ख़ुदावन्द पर भरोसा न किया,और अपने ख़ुदा की क़ुरबत क़ी आरज़ू न की।3~उसके उमरा उसमें गरजने वाले बबर हैं; उसके क़ाज़ी भेड़िये हैं जो शाम को निकलते हैं, और सुबह तक कुछ नहीं छोड़ते।4~उसके नबी लाफ़ज़न और दग़ाबाज़ हैं, उसके काहिनों ने पाक को नापाक ठहराया, और उन्होंने शरी'अत को मरोड़ा है।5ख़ुदावन्द जो सच्चा है, उसके अंदर है; वह बेइन्साफ़ी न करेगा; वह हर सुबह बिला नाग़ा अपनी 'अदालत ज़ाहिर करता है, मगर बेइन्साफ़ आदमी शर्म को नहीं जानता ।6मैंने क़ौमों को काट डाला, उनके बुर्ज बर्बाद किए गए; मैंने उनके कूचों को वीरान किया, यहाँ तक कि उनमें कोई नहीं चलता; उनके शहर उजाड़ हुए और उनमें कोई इन्सान नहीं कोई बाशिन्दा नहीं |7मैंने कहा, 'कि सिर्फ़ मुझ से डर, और तरबियत पज़ीर हो; ताकि उसकी बस्ती काटी न जाए। उस सब के मुताबिक़ जो मैंने उसके हक़ में ठहराया था।' लेकिन उन्होंने 'अमदन अपनी चाल को बिगाड़ा।8~"इसलिए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मेरे मुन्तज़िर रहो, जब तक कि मैं लूट के लिए न उठूँ, क्यूँकि मैंने ठान लिया है कि क़ौमों को जमा' करूँ और ममलुकतों को इकट्ठा करूँ, ताकि अपने ग़ज़ब या'नी तमाम क़हर को उन पर नाज़िल करूँ, क्यूँकि मेरी गै़रत की आग सारी ज़मीन को खा जाएगी।9और मैं उस वक़्त लोगों के होंट पाक कर दूँगा, ताकि वह सब ख़ुदावन्द से दु'आ करें, और एक दिल होकर उसकी 'इबादत करें।10~कूश की नहरों के पार से मेरे 'आबिद, या'नी मेरी बिखरी क़ौम मेरे लिए हदिया लाएगी11~उसी रोज़ तू अपने सब आ'माल की वजह से जिनसे तू मेरी गुनहगार हुई, शर्मिन्दा न होगी: क्यूँकि मैं उस वक़्त तेरे बीच से तेरे मग़रूर लोगों को निकाल दूँगा, और फिर तू मेरे मुक़द्दस पहाड़ पर तकब्बुर न करेगी।12~और मैं तुझ में एक मज़लूम और मिस्कीन बक़िया छोड़ दूँगा और वह ख़ुदावन्द के नाम पर भरोसा करेंगे,13~इस्राईल के बाक़ी लोग न गुनाह करेंगे, न झूट बोलेंगे और न उनके मुँह में दग़ा की बातें पाई जाएँगी बल्कि वह खाएँगे और लेट रहेंगे, और कोई उनको न डराएगा।”14~ऐ बिन्त-ए-सिय्यून, नग़मा सराई कर; ऐ इस्राईल, ललकार! ऐ दुख़्तर-ए-यरूशलीम, पूरे दिल से ख़ुशी मना और शादमान हो।15~ख़ुदावन्द ने तेरी सज़ा को दूर कर दिया, उसने तेरे दुश्मनों को निकाल दिया ख़ुदावन्द इस्राईल का बादशाह तेरे अन्दर है तू फिर मुसीबत को न देखेगी |16उस रोज़ यरूशलीम से कहा जाएगा, "परेशान न हो, ऐ सिय्यून; तेरे हाथ ढीले न हों।17ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, जो तुझ में है,क़ादिर है, वही बचा लेगा; वह तेरी वजह से शादमान होकर खु़शी करेगा; वह~अपनी मुहब्बत में मसरूर रहेगा; वह गाते हुए तेरे लिए शादमानी करेगा।18मैं तेरे उन लोगों को जो 'ईदों से महरूम होने की वजह से ग़मगीन और मलामत से ज़ेरबार हैं, जमा' करूँगा।19देख, मैं उस वक़्त तेरे सब सतानेवालों को सज़ा दूँगा, और लंगड़ों को रिहाई दूँगा; और जो हाँक दिए गए उनको इकट्ठा करूँगा और जो तमाम जहान में रुस्वा हुए, उनको सितूदा और नामवर करूँगा।20उस वक़्त मैं तुम को जमा' करके मुल्क में लाऊँगा; क्यूँकि जब तुम्हारी हीन हयात ही में तुम्हारी ग़ुलामी को ख़त्म करूँगा, तो तुम को ज़मीन की सब क़ौमों के बीच नामवर और सितूदा करूँगा।" ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
1दारा बादशाह की सल्तनत के दूसरे साल के छठे महीने की पहली तारीख़ को, यहूदाह के नाज़िम ज़रुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल और सरदार काहिन यशू'अ-बिन-यहूसदक़ को, हज्जी नबी के ज़रिए' ख़ुदावन्द का कलाम पहुँचा,2कि 'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि यह लोग कहते हैं, अभी ख़ुदावन्द के घर की ता'मीर का वक़्त नहीं आया।"3तब ख़ुदावन्द का कलाम हज्जी नबी के ज़रिए' पहुँचा,4"क्या तुम्हारे लिए महफ़ूज़ घरों में रहने का वक़्त है, जब कि यह घर वीरान पड़ा है?5और अब रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: तुम अपने चाल चलन पर ग़ौर करो।6तुम ने बहुत सा बोया, पर थोड़ा काटा। तुम खाते हो, पर आसूदा नहीं होते; तुम पीते हो, लेकिन प्यास नहीं बुझती। तुम कपड़े पहनते हो, पर गर्म नहीं होते; और मज़दूर अपनी मज़दूरी सूराख़दार थैली में जमा' करता है।7"रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ ~फ़रमाता है: कि अपने चाल चलन पर ग़ौर करो।8~पहाड़ों से लकड़ी लाकर यह घर ता'मीर करो, और मैं उसको देखकर ख़ुश हूँगा और मेरी तम्जीद होगी रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है।9तुम ने बहुत की उम्मीद रख्खी, और देखो, थोड़ा मिला; और जब तुम उसे अपने घर में लाए, तो मैंने उसे उड़ा दिया। रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है; क्यूँ? इसलिए कि मेरा घर वीरान है, और तुम में से हर एक अपने घर को दौड़ा चला जाता है।10~इसलिए न आसमान से शबनम गिरती है, और न ज़मीन अपनी पैदावार देती है।11~और मैंने ख़ुश्क साली को तलब किया कि मुल्क और पहाड़ों पर, और अनाज और नई मय और तेल और ज़मीन की सब पैदावार पर, और इंसान-ओ- हैवान पर, और हाथ की सारी मेहनत पर आए।"12तब~ज़रुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल~और सरदार काहिन यशू'अ-बिन-यहूसदक़~और लोगों के बक़िया ख़ुदावन्द ख़ुदा अपने कलाम और उसके भेजे हुए हज्जी नबी की बातों को सुनने लगे: और लोग ख़ुदावन्द के सामने ख़ौफ़ ज़दा हुए|13तब ख़ुदावन्द के पैग़म्बर हज्जी ने ख़ुदावन्द का पैग़ाम उन लोगों को सुनाया, "ख़ुदावन्द फ़रमाता है : मैं तुम्हारे साथ हूँ14~फिर ख़ुदावन्द ने यहूदाह के नाज़िम ज़रुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल के, सरदार काहिन यशूअ'-बिन-यहूसदक़ की और लोगों के बक़िया की रूह की हिदायत दी। इसलिए ~वह आकर रब्ब-उल-अफ़वाज, अपने ख़ुदा के घर की ता'मीर में मशगू़ल हुए;15और यह वाक़े'आ दारा बादशाह की सल्तनत के दूसरे साल के छटे महीने की चौबीसवीं तारीख़ का है।
1सातवें महीने की इक्कीसवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम हज्जी नबी के ज़रिए' पहुँचा,2कि "यहूदाह के नाज़िम ज़ारुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल और सरदार काहिन यशूअ' बिन यहूसदक़ और लोगों के बक़िया से यूँ कह,3कि 'तुम में से किसने इस हैकल की पहली रौनक़ को देखा? और अब कैसी दिखाई देती है? क्या यह तुम्हारी नज़र में सही नहीं है?4लेकिन ऐ ज़रुब्बाबुल, हिम्मत रख, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और ऐ सरदार काहिन, यशू'अ-बिन यहूसदक़ हिम्मत रख, और ऐ मुल्क के सब लोगों हिम्मत रख्खो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और काम करो क्यूँकि मैं तुम्हारे साथ हूँ रब्ब-उल-अफ़वाज़ फ़रमाता है|5मिस्र से निकलते वक़्त मैंने तुम से जो 'अहद किया था, उसके मुताबिक़ मेरी वह रूह तुम्हारे साथ रहती है; हिम्मत न हारो।6क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि मैं थोड़ी देर में फिर एक बार~ज़मीन-ओ-आसमान-ओर-खु़श्की-ओर-तरी को हिला दूँगा।7~मैं सब क़ौमों को हिला दूँगा, और उनकी पसंदीदा चीज़ें आएँगी; और मैं इस घर को जलाल से मा'मूर करूँगा, रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है।8~चाँदी मेरी है और सोना मेरा है, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।9इस पिछले घर की रौनक़, पहले घर की रौनक़ से ज़्यादा होगी; रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, और मैं इस मकान में सलामती बख़्शूँगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।”10दारा बादशाह की सल्तनत के दूसरे साल के नवें महीने की चौबीसवीं तारीख़ को, ख़ुदावन्द का कलाम हज्जी नबी के ज़रिए' पहुँचा,11~'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि शरी'अत के बारे में काहिनों से मा'लूम कर:12'अगर कोई पाक गोश्त को अपनी लिबास के दामन में लिए जाता हो, और उसका दामन रोटी या दाल या शराब या तेल या किसी तरह के खाने की चीज़ को छू जाए; तो क्या वह चीज़ पाक हो जाएगी?" काहिनों ने जवाब दिया, "हरगिज़ नहीं।"13~फिर हज्जी ने पूछा,कि अगर कोई किसी मुर्दे को छूने से नापाक हो गया हो, और इनमें से किसी चीज़ को छूए; तो क्या वह चीज़ नापाक हो जाएगी? काहिनों ने जवाब दिया, "ज़रूर नापाक हो जाएगी।"14~फिर हज्जी ने कहा, कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मेरी नज़र में इन लोगों, और इस क़ौम और इनके आ'माल का यही हाल है,15~और जो कुछ इस जगह अदा करते हैं नापाक हैं ~इसलिए आइन्दा को उस वक़्त का ख़याल रख्खो, जब कि अभी ख़ुदावन्द की हैकल का पत्थर पर पत्थर न रख्खा गया था;16~उस पूरे ज़माने में जब कोई बीस पैमानों की उम्मीद रखता, तो दस ही मिलते थे; और जब कोई शराब के हौज़ से पचास पैमाने निकालने जाता, तो बीस ही निकलते थे।17मैंने तुम को तुम्हारे सब कामों में ठण्डी हवा और गेरूई और ओलों से मारा, लेकिन तुम मेरी तरफ़ ध्यान न लाए, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।18अब और आइन्दा इसका~ख़याल रख्खो, आज ख़ुदावन्द की हैकल की~बुनियाद के डाले जाने या'नी नवें महीने की चौबीसवीं तारीख़ से इसका~ख़याल~रख्खो:19~क्या इस वक़्त बीज खत्ते में है? अभी तो अंगूर की बेल और अंजीर और अनार और जै़तून में फल नहीं लगे। आज ही से मैं तुम को बरकत दूँगा।"20~फिर इसी महीने की चौबीसवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम हज्जी नबी पर नाज़िल हुआ,21कि यहूदाह के नाज़िम ज़रुब्बाबुल से कह दे, कि मैं आसमान और ज़मीन को हिलाऊँगा;22~और सल्तनतों के तख़्त उलट दूँगा; और क़ौमों की सल्तनतों की ताक़तों को ख़त्म कर दूँगा, और रथों को सवारों के साथ उलट दूँगा और घोड़े और उनके सवार गिर जायेंगे और हर शख़्स अपने भाई की तलवार से क़त्ल होगा।23रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, ऐ मेरे ख़ादिम ज़रुब्बाबुल-बिन-सियालतिएल, उसी दिन मैं तुझे लूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं तुझे एक मिसाल ठहराऊँगा: क्यूँकि मैंने तुझे मुक़र्रर किया है, रब्ब-उल-अफ़वाज़ फ़रमाता है।
1~दारा के दूसरे बरस के आठवें महीने में ख़ुदावन्द का कलाम ज़करियाह नबी बिन बरकियाह-बिन-'इददू पर नाज़िल हुआ:2कि ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप-दादा से सख़्त नाराज़ रहा।3इसलिए तू उनसे कह, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि ~तुम मेरी तरफ़ रुजू' हो, रब्ब-उल-अफ़वाज का फ़रमान है, तो मैं तुम्हारी तरफ़ से रुजू' हूँगा रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।4तुम अपने बाप-दादा की तरह न बनो, जिनसे अगले नबियों ने बा आवाज़-ए- बुलन्द कहा, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है,कि तुम अपनी बुरे चाल चलन और बद'आमाली से बाज़ आओ; लेकिन उन्होंने न सुना और मुझे न माना, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।5तुम्हारे बाप दादा कहाँ हैं? क्या अम्बिया हमेशा ज़िन्दा रहते हैं?6लेकिन मेरा कलाम और मेरे क़ानून, जो मैंने अपने ख़िदमत गुज़ार नबियों को फ़रमाए थे, क्या वह तुम्हारे बाप-दादा पर पूरे नहीं हुए? चुनाँचे उन्होंने रुजू' लाकर कहा,कि रब्ब-उल-अफ़वाज ने अपने इरादे के मुताबिक़ हमारी 'आदात और हमारे 'आमाल का बदला दिया है।"7दारा के दूसरे बरस और ग्यारहवें महीने या'नी माह-ए-सबात की चौबीसवीं तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम ज़करियाह नबी बिन-बरकियाह-बिन-'इद्दु पर नाज़िल हुआ8कि मैंने रात को रोया में देखा कि एक शख़्स सुरंग घोड़े पर सवार, मेंहदी के दरख़्तों के बीच नशेब में खड़ा था, और उसके पीछे सुरंग और कुमैत और नुक़रह घोड़े थे।9तब मैंने कहा, "ऐ मेरे आक़ा, यह क्या हैं?' इस पर फ़रिश्ते ने, जो मुझ से गुफ़्तगू करता था कहा, 'मैं तुझे दिखाऊँगा कि यह क्या हैं।"10और जो शख़्स मेंहदी के दरख़्तों के बीच खड़ा था, कहने लगा, 'ये वह हैं जिनको ख़ुदावन्द ने भेजा है कि सारी दुनिया में सैर करें।'11और उन्होंने ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते से, जो मेंहदी के दरख़्तों के बीच खड़ा था कहा, "हम ने सारी दुनिया की सैर की है, और देखा कि सारी ज़मीन में अमन-ओ-अमान है।'12~फिर ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने कहा, 'ऐ रब्ब-उल-अफ़वाज तू यरुशलीम और यहूदाह के शहरों पर, जिनसे तू सत्तर बरस से नाराज़ है, कब तक रहम न करेगा?"13और ख़ुदावन्द ने उस फ़रिश्ते को जो मुझ से गुफ़्तगू करता था, मुलायम और तसल्ली बख़्श जवाब दिया।14तब उस फ़रिश्ते ने जो मुझ से गुफ़्तगू करता था, मुझ से कहा, बुलन्द आवाज़ से कह, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि मुझे यरुशलीम और सिय्यून के लिए बड़ी गै़रत है।15और मैं उन क़ौमों से जो आराम में हैं, निहायत नाराज़ हूँ; क्यूँकि जब मैं थोड़ा नाराज़ था, तो उन्होंने उस आफ़त को बहुत ज़्यादा कर दिया।16इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि मैं रहमत के साथ यरुशलीम को वापस आया हूँ; उसमें मेरा घर ता'मीर किया जाएगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, और यरुशलीम पर फिर सूत खींचा जाएगा।17फिर बुलन्द आवाज़ से कह, रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: मेरे शहर दोबारा ख़ुशहाली से मा'मूर होंगे, क्यूँकि खुदावन्द फिर सिय्यून को तसल्ली बख़्शेगा, और यरुशलीम को क़ुबूल फ़रमाएगा।18~फिर मैंने आँख उठाकर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि चार सींग हैं।19और मैंने उस फ़रिश्ते से जो मुझ से गुफ़्तगू करता था पूछा, कि "यह क्या हैं?" उसने मुझे जवाब दिया, 'यह वह सींग हैं, जिन्होंने यहूदाह और इस्राईल और यरुशलीम को तितर-बितर ~किया है।"20फिर ख़ुदावन्द ने मुझे चार कारीगर दिखाए।21~तब मैंने कहा, "यह क्यूँ आए हैं?" उसने जवाब दिया, 'यह वह सींग हैं, जिन्होंने यहूदाह को ऐसा~तितर-बितर ~किया कि कोई सिर न उठा सका; लेकिन यह इसलिए आए हैं कि उनको डराएँ, और उन क़ौमों के सींगों को पस्त करें जिन्होंने यहूदाह के मुल्क को~तितर-बितर ~करने के लिए सींग उठाया है।"
1फिर मैने आँख उठाकर निगाह की और क्या देखता हूँ कि एक शख़्स जरीब हाथ में लिए खड़ा है।2और मैंने पूछा, "तू कहाँ जाता है?" उसने मुझे जवाब दिया, यरुशलीम की पैमाइश को, ताकि देखें कि उसकी चौड़ाई और लम्बाई कितनी है।”3और देखो, वह फ़रिश्ता जो मुझ से गुफ़्तगू करता था। रवाना हुआ, और दूसरा फ़रिश्ता उसके पास आया,4और उससे कहा, "दौड़ और इस जवान से कह, कि यरुशलीम इंसान और हैवान की कसरत के ज़रिए' बेफ़सील बस्तियों की तरह आबाद होगा।5क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है में उसके लिए चारों तरफ़ आतिशी दीवार हूँगा और उसके अन्दर उसकी शोकत|6"सुनो "ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "शिमाल की सर ज़मीन से, जहाँ तुम आसमान की चारों हवाओं की तरह तितर-बितर ~किए गए, निकल भागो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।7ऐ सिय्यून, तू जो दुख़्तर-ए-बाबुल के साथ बसती है, निकल भाग!8क्यूँकि रब्बुल-अफ़वाज जिसने मुझे अपने जलाल की ख़ातिर उन क़ौमों के पास भेजा है, जिन्होंने तुम को ग़ारत किया, यूँ फ़रमाता है, जो कोई तुम को छूता है, मेरी आँख की पुतली को छूता है।9~क्यूँकि देख, मैं उन पर अपना हाथ हिलाऊँगा और वह अपने गु़लामों के लिए लूट होंगे। तब तुम जानोगे कि रब्बुल-अफ़वाज ने मुझे भेजा है।10ऐ दुख़्तर-ए-सिय्यून, तू गा और ख़ुशी कर, क्यूँकि देख, मैं आकर तेरे अंदर सुकूनत करूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है।11और उस वक़्त बहुत सी क़ौमें ख़ुदावन्द से मेल करेंगी और मेरी उम्मत होंगी, और मैं तेरे अंदर सुकूनत करूँगा, तब तू जानेगी कि रब्ब-उल-अफ़वाज ने मुझे तेरे पास भेजा है।12और ख़ुदावन्द यहूदाह को मुल्क-ए-मुक़द्दस में अपनी मीरास का हिस्सा ठहराएगा, और यरुशलीम को क़ुबूल फ़रमाएगा।"13ऐ बनी आदम, ख़ुदावन्द के सामने ख़ामोश रहो, क्यूँकि वह अपने मुक़द्दस घर से उठा है।
1और उसने मुझे यह दिखाया कि सरदार काहिन यशु' ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते के सामने खड़ा है और शैतान उसके दाहिने हाथ इस्तादा है ताकि उसका सामना करे|2~और ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, "ऐ शैतान, ख़ुदावन्द तुझे मलामत करे! हाँ, वह ख़ुदावन्द जिसने यरुशलीम को क़ुबूल किया है, तुझे मलामत करे ! क्या यह वह लुकटी नहीं जो आग से निकाली गई है?"3और यशू'अ मैले कपड़े पहने फ़रिश्ते के सामने खड़ा था।4फिर उसने उनसे जो उसके सामने खड़े थे कहा, "इसके मैले कपड़े उतार दो।" और उससे कहा, "देख, मैंने तेरी बदकिरदारी तुझ से दूर की, और मैं तुझे नफ़ीस लिबास पहनाऊँगा।”5और उसने कहा, कि "उसके सिर पर साफ़ 'अमामा रख्खो।" तब उन्होंने उसके सिर पर साफ़ 'अमामा रख्खा और पोशाक पहनाई, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उसके पास खड़ा रहा।6और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने यशू'अ से ता'कीद करके कहा,7'रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: अगर तू मेरी राहों पर चले और मेरे अहकाम पर 'अमल करे, तो मेरे घर पर हुकूमत करेगा और मेरी बारगाहों का निगहबान होगा; और मैं तुझे इनमें खड़े हैं आने जाने की इजाज़त दूँगा|8अब ऐ यशू'अ सरदार काहिन, सुन, तू और तेरे रफ़ीक़ जो तेरे सामने बैठे हैं, वह इस बात का ईमा हैं कि मैं अपने बन्दे या'नी शाख़ को लाने वाला हूँ।9क्यूँकि उस पत्थर को जो मैंने यशू'अ के सामने रख्खा है, देख, उस पर सात आँखें हैं। देख, मैं इसे तितर-बितर करूँगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, और मैं इस मुल्क की बदकिरदारी को एक ही दिन में दूर करूँगा।10रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, उसी दिन तुम में से हर एक अपने हम साये को ताक और अंजीर के नीचे बुलाएगा।"
1और वह फ़रिश्ता जो मुझ से बातें करता था, फिर आया और उसने जैसे मुझे नींद से जगा दिया,2और पूछा, "तू क्या देखता है?" और मैंने कहा, कि "मैं एक सोने का शमा'दान देखता हूँ जिसके सिर पर एक कटोरा है और उसके ऊपर सात चिराग़ हैं, और उन सातों चिराग़ों पर उनकी सात सात नलियाँ।3और उसके पास ज़ेतून के दो दरख़्त हैं, एक तो कटोरे की दहनी तरफ़ और दूसरा बाई तरफ़।”4और मैंने उस फ़रिश्ते से जो मुझ से कलाम करता था, पूछा, "ऐ मेरे आक़ा, यह क्या हैं?"5तब उस फ़रिश्ते ने जो मुझ से कलाम करता था कहा, "क्या तू नहीं जानता यह क्या है?" मैंने कहा, ‘नहीं, ऐ मेरे आक़ा।”6तब उसने मुझे जवाब दिया, कि यह ज़रुब्बाबुल के लिए ख़ुदावन्द का कलाम है: कि न तो ताक़त से, और न तवानाई से, बल्कि मेरी रूह से, रब्बु-ल-अफ़वाज फ़रमाता है।7ऐ बड़े पहाड़, तू क्या है? तू ज़रुब्बाबुल के सामने मैदान हो जाएगा, और जब वह चोटी का पत्थर निकाल लाएगा, तो लोग पुकारेंगे, कि उस पर फ़ज़ल हो फ़ज़ल हो |8फिर खुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ,9कि ज़रुब्बाबुल के हाथों ने इस घर की नींव डाली, और उसी के हाथ इसे तमाम भी करेंगे। तब तू जानेगा कि रब्ब-उल-अफ़वाज ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।10क्यूँकि कौन है जिसने छोटी चीज़ों के दिन की तहक़ीर की है? "क्यूँकि ख़ुदावन्द की वह सात आँखें, जो सारी ज़मीन की सैर करती हैं, खुशी से उस साहूल को देखती हैं जो ज़रुब्बाबुल के हाथ में है।"11तब मैंने उससे पूछा, कि यह दोनों ज़ैतून के दरख़्त जो शमा'दान के दहने बाएँ हैं, क्या हैं?"12और मैंने दोबारा उससे पूछा, कि ज़ैतून की यह दो शाख़ क्या हैं, जो सोने की दो नलियों के मुत्तसिल हैं, जिनकी राह से सुन्हेला तेल निकला चला जाता है?"13उसने मुझे जवाब दिया, "क्या तू नहीं जानता, यह क्या हैं?” मैंने कहा, "नहीं, ऐ मेरे आक़ा।"14उसने कहा, 'यह वह दो मम्सूह हैं, जो रब्ब-उल-'आलमीन के सामने खड़े रहते हैं।"
1फिर मैंने आँख उठाकर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि एक उड़ता हुआ तूमार है।2उसने मुझ से पूछा, "तू क्या देखता है, मैंने जवाब दिया एक उड़ता हुआ तूमार देखता हूँ, जिसकी लम्बाई बीस और चौड़ाई दस हाथ है।”3फिर उसने मुझ से कहा, "यह वह ला'नत है जो तमाम मुल्क पर नाज़िल' होने को है, और इसके मुताबिक़ हर एक चोर और झूठी क़सम खाने वाला यहाँ से काट डाला जाएगा।4रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, मैं उसे भेजता हूँ, और वह चोर के घर में और उसके घर में, जो मेरे नाम की झूठी क़सम खाता है, घुसेगा और उसके घर में रहेगा; और उसे उसकी लकड़ी और पत्थर के साथ बर्बाद करेगा।"5वह फिर फ़रिश्ता जो मुझ से कलाम करता था निकला, और उसने मुझ से कहा, कि "अब तू आँख उठाकर देख, क्या निकल रहा है?”6मैंने पूछा, "यह क्या है?" उसने जवाब दिया, ~"यह एक ऐफ़ा निकल रहा है।” और उसने कहा, कि तमाम मुल्क में यही उनकी शबीह है।"7और सीसे का एक गोल सरपोश उठाया गया, और एक 'औरत ऐफ़ा में बैठी नज़र आई!8और उसने कहा, कि यह शरारत है।" और उसने उसको ऐफ़ा में नीचे दबाकर, सीसे के उस सरपोश को ऐफ़ा के मुँह पर रख दिया।9फिर मैंने आँख उठाकर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि दो 'औरतें निकल आई और हवा उनके बाजू़ओं में भरी थी, क्यूँकि उनके लक़लक़ के से बा'ज़ु थे, और वह ऐफ़ा की आसमान और ज़मीन के बीच उठा ले गई।10तब मैंने उस फ़रिश्ते से जो मुझ से कलाम करता था, पूछा, कि "यह ऐफ़ा को कहाँ लिए जाती हैं?"11उसने मुझे जवाब दिया कि "सिन'आर के मुल्क को, ताकि इसके लिए घर बनाएँ, और जब वह तैयार हो तो यह अपनी जगह में रख्खी जाए।”
1तब फिर मैंने ऑख उठाकर निगाह की तो क्या देखता हूँ कि दो पहाड़ों के बीच ~से चार रथ निकले, और वह पहाड़ पीतल के थे।2पहले रथ के घोड़े सुरंग, ~दूसरे के मुशकी ,3तीसरे के नुक़रा और चौथे के अबलक़ थे।4तब मैंने उस फ़रिश्ते से जो मुझ से कलाम करता था पूछा, "ऐ मेरे आक़ा, यह क्या हैं?"5और फ़रिश्ते ने मुझे जवाब दिया, कि 'यह आसमान की चार हवाएँ हैं' जो रब्बुल-'आलमीन के सामने से निकली हैं।6और मुशकी घोड़ों वाला रथ उत्तरी मुल्क को निकला चला जाता है, और नुकरा घोड़ों वाला उसके पीछे और अबलक़ घोड़ों वाला दक्खिनी मुल्क को।”7और सुरंग घोड़ों वाला भी निकला, और उन्होंने चाहा कि दुनिया की सैर करें; और उसने उनसे कहा, "जाओ, दुनिया की सैर करो।” और उन्होंने दुनिया की सैर की।8तब उसने बुलन्द आवाज़ से मुझ से कहा, "देख, जो उत्तरी मुल्क को गए हैं, उन्होंने वहाँ मेरा जी ठंडा किया है।”9फिर खुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ :10कि तू आज ही ख़ल्दी और तूबियाह और यद'अयाह के पास जा, जो बाबुल के ग़ुलामों की तरफ़ से आकर यूसियाह-बिन-सफ़निया के घर में उतरे हैं।11और उनसे सोना-चाँदी लेकर ताज बना, और यशू'अबिन-यहूसदक़ सरदार काहिन को पहना;12और उससे कह, 'कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है, कि देख, वह शख्स जिसका नाम शाख़ है, उसके ज़ेर-ए-साया ख़ुशहाली होगी और वह ख़ुदावन्द की हैकल को ता'मीर करेगा।13हाँ, वही ख़ुदावन्द की हैकल को बनाएगा और वह साहिब-ए-शौकत होगा, और तख़्त नशीन होकर हुकूमत करेगा और उसके साथ काहिन भी तख़्त नशीन होगा; और दोनों में सुलह-ओ-सलामती की मशवरत होगी।'14और यह ताज हीलम और तूबियाह और यद'अयाह और हेन-बिन-सफ़नियाह के लिए ख़ुदावन्द की हैकल में यादगार होगा।15और वह जो दूर हैं आकर ख़ुदावन्द की हैकल को ता'मीर करेंगे, तब तुम जानोगे कि रब्बु -उल-अफ़वाज ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है; और अगर तुम दिल से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़रमाबरदारी करोगे तो यह बातें पूरी होंगी।"
1दारा बादशाह की सल्तनत के चौथे बरस के नवें महीने, या'नी किसलेव महीने की चौथी तारीख़ को ख़ुदावन्द का कलाम ज़करियाह पर नाज़िल हुआ।2और बैतएल के बाशिन्दों ने शराज़र और रजममलिक और उसके लोगों को भेजा कि ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करें,3और रब्ब-उल-अफ़वाज के घर के काहिनों और नबियों से पूछे, कि "क्या मैं पाँचवें महीने में गोशानशीन होकर मातम करूँ, जैसा कि मैंने सालहाँ साल से किया है?"4तब रब्ब-उल-अफ़वाज का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ :5कि मम्लुकत के सब लोगों और काहिनों से कह कि जब तुम ने पाँचवें और सातवें महीने में, इन सत्तर बरस तक रोज़ा रख्खा और मातम किया, तो क्या था कभी मेरे लिए ख़ास मेरे ही लिए रोज़ा रख्खा था?6और जब तुम खाते-पीते थे तो अपने ही लिए न खाते-पीते थे?7क्या यह वही कलाम नहीं जो ख़ुदावन्द ने गुज़िश्ता नबियों की मा'रिफ़त फ़रमाया, जब यरुशलीम आबाद और आसूदा हाल था, और उसके 'इलाक़े के शहर और दक्खिन की सर ज़मीन और सैदान आबाद थे?"8फिर ख़ुदावन्द का कलाम जक़रियाह पर नाज़िल हुआ :9कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाया था, कि रास्ती से 'अदालत करो, और हर शख़्स अपने भाई पर करम और रहम किया करे,10और बेवा और यतीम और मुसाफ़िर और मिस्कीन पर ज़ुल्म न करो, और तुम में से कोई अपने भाई के ख़िलाफ़ दिल में बुरा मन्सूबा न बाँधे।"11~लेकिन वह सुनने वाले न हुए, बल्कि उन्होंने गर्दनकशी की तरफ़ अपने कानों को बंद किया ताकि न सुनें।12और उन्होंने अपने दिलों को अल्मास की तरह सख़्त किया, ताकि शरी'अत और उस कलाम को न सुनें जो रब्बुल-अफ़वाज ने गुज़िश्ता नबियों पर अपने रूह की मा'रिफ़त नाज़िल फ़रमाया था। इसलिए रब्ब-उल-अफ़वाज की तरफ़ से क़हर-ए-शदीद नाज़िल हुआ।13और रब्ब-उल-अफ़वाज ने फ़रमाया था: "जिस तरह मैंने पुकार कर कहा और वह सुनने वाले न हुए, उसी तरह वह पुकारेंगे और मैं नहीं सुनूँगा।14बल्कि उनको सब क़ौमों में जिनसे वह नावाक़िफ़ हैं तितर-बितर ~करूँगा। यूँ उनके बा'द मुल्क वीरान हुआ, यहाँ तक कि किसी ने उसमें आमद-ओ-रफ़्त न की, क्यूँकि उन्होंने उस दिलकुशा मुल्क को वीरान कर दिया।”
1फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ :2कि रब्ब-उल-अफ़्वाज़ यूँ फ़रमाता है कि मुझे सिय्यून के लिए बड़ी गै़रत है बल्कि मैं गै़रत से सख़्त ग़ज़बनाक हुआ3ख़ुदावन्द यु फ़रमात है कि मैं सिय्यून में वापस आया हुआ और यरुशलीम में सकूनत करूँगा और यरुशलीम शहर-ए-सिदक़ होगा और रब्ब-उल-अफ़्वाज़ का पहाड़ कोहे मुक़द्दस कहलाएगा4रब्बु-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि यरुशलीम के गलियों में 'उम्र रसीदा मर्द-ओ- ज़न बुढ़ापे की वजह से हाथ में 'असा लिए हुए फिर बैठे होंगे।5~और शहर की गलियों में खेलने वाले लड़के-लड़कियों से मा'मूर होंगे।6और रब्ब-उल-अफवाज यूँ फ़रमाता है कि अगरचे उन दिनों में यह 'अम्र इन लोगों के बक़िये की नज़र में हैरत अफ़ज़ा हो, तोभी क्या मेरी नज़र में हैरत अफ़ज़ा होगा? रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।7रब्ब उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: देख, मैं अपने लोगों को पूरबी और पश्चिमी ममालिक से छुड़ा लूगा।8और मैं उनको वापस लाऊँगा और वह यरुशलीम में सुकूनत करेंगे, और वह मेरे लोग होंगे और मैं रास्ती-और -सदाक़त से उनका ख़ुदा हूँगा।"9रब्बु-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: "कि ऐ लोगो, अपने हाथों को मज़बूत करो; तुम जो इस वक़्त यह कलाम सुनते हो, जो रब्ब उल-अफ़वाज के घर या'नी हैकल की ता'मीर के लिए बुन्नियाद डालते वक़्त नबियों के ज़रिए' नाज़िल हुआ।10क्यूँकि उन दिनों से पहले, न इंसान के लिए मज़दूरी थी और न हैवान का किराया था, और दुश्मन की वजह से आने-जाने वाले महफू़ज़ न थे, क्यूँकि मैंने सब लोगों में निफ़ाक डाल दिया।11लेकिन अब मैं इन लोगों के बक़िये के साथ पहले की तरह पेश न आऊँगा, रब्बुल-उल-अफ़वाज फ़रमाता है|12बल्कि ज़िरा'अत सलामती से होगी, अपना फल देगी और ज़मीन अपना हासिल और आसमान से ओस पड़ेगी, मैं इन लोगों के बकिये को इन सब बरकतों का वारिस बनाऊँगा।13ऐ बनी यहूदाह और ऐ बनी-इस्राईल, तरह तुम दूसरी क़ौमों में ला'नत तरह मैं तुम को छुड़ाऊँगा और तुम बरकत होगे। परेशान न हो, तुम्हारे हाथ मज़बूत हों।"14क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि "जिस तरह मैंने क़स्द किया था कि तुम पर आफ़त लाऊँ, तुम्हारे बाप-दादा ने मुझे ग़ज़बनाक किया और मैं अपने इरादे से बाज़ न रहा, फ़रमाता है;15उसी तरह मैंने अब इरादा किया है कि यरुशलीम और यहूदाह के घराने से नेकी करूँ; लेकिन तुम परेशान न हो।16~फ़िर लाज़िम है कि तुम इन बातों पर 'अमल करो। तुम सब अपने पड़ौसियों से सच बोलो, अपने फाटकों में रास्ती से करो ताकि सलामती हो,17और तुम में से कोई अपने भाई के ख़िलाफ़ दिल में बुरा मंसूबा न बाँधे, झूटी क़सम को 'अज़ीज़ न रख्खे; मैं इन सब बातों से नफ़रत रखता हूँ ख़ुदावन्द फ़रमाता है |18फिर रब्ब-उल-अफ़वाज का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:19~कि रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि चौथे और पाँचवें और सातवें और दसवें महीने का रोज़ा , यहूदाह के लिए खुशी और ख़ुर्रमी का दिन और शादमानी की 'ईद होगा; तुम सच्चाई और सलामती को 'अज़ीज़ रक्खो|20रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि फिर क़ौम में और बड़े बड़े शहरों के बाशिन्दे ~आएँगे।21एक शहर के बाशिन्दे दूसरे शहर में जाकर कहेंगे, जल्द ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करें और रब्ब-उल-अफ़वाज के तालिब हों, भी चलता हूँ।'22बहुत सी उम्मातें और ज़बरदस्त क़ौमें रब्ब-उल-अफ्वाज की तालिब होंगी, ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त करने को यरुशलीम में आएँगी।23~रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि उन दिनों में मुख़्तलिफ़ अहल-ए-लुग़त में से दस आदमी हाथ बढ़ाकर एक यहूदी का दामन पकड़ेंगे और कहेंगे कि हम तुम्हारे साथ जायेंगे क्यूँकि हम ने सुना है कि ख़ुदा तुम्हारे साथ है।'
1बनी आदम और ख़ुसूसन कुल क़बाइल- ए-इस्राईल की आँखें ख़ुदावन्द पर लगी हैं। ख़ुदावन्द की तरफ़ से सर ज़मीन-ए- और दमिश्क़ के ख़िलाफ़ बार-ए-नबूव्वत;2हमात के खिलाफ़ जो उनसे सूर और सैदा के खिलाफ़ जो अपनी नज़र में बहुत 'अक़्लमन्द हैं।3~सूर ने अपने लिए मज़बूत क़िला' मिट्टी की तरह चाँदी के तूदे लगाए और गलियों की कीच की तरह सोने के ढेर।4~देखो ख़ुदावन्द उसे ख़ारिज कर देगा, उसके ग़ुरूर को समुन्दर में डाल देगा: और आग उसको खा जाएगी।5~अस्क़लोन देखकर डर जाएगा ग़ज़्ज़ा भी सख़्त दर्द में मुब्तिला होगा, 'अक्रून भी क्यूँकि उसकी उम्मीद टूट गई और ग़ज़्ज़ा से बादशाही जाती रहेगी,अस्क़लोन~बे चिराग़ हो जाएगा। ~6और एक अजनबी ज़ादा अशदूद में तख़्त नशीन होगा और मैं ~फ़िलिस्तियों का ग़ुरूर मिटाऊँगा।7~और मैं उसके खू़न को उसके मुँह से और उसकी मकरूहात उसके दाँतों से निकाल डाललूँगा, और वह भी हमारे ख़ुदा के लिए बक़िया होगा और वह यहूदाह में सरदार होगा और 'अक्रूनी यबूसियों की तरह होंगे।8~और मैं मुख़ालिफ़ फ़ौज के मुक़ाबिल अपने घर की चारों तरफ़ खै़माज़न हूँगा ताकि कोई उसमें से आमद-ओ-रफ़्त न कर सके; फिर कोई ज़ालिम उनके बीच से न गुज़रेगा क्यूँकि अब मैंने अपनी आँखों से देख लिया है।9ऐ बिन्त-ए-सिय्यून तू निहायत शादमान हो! ऐ दुख़्तर-ए-यरुशलीम, ख़ूब ललकार क्यूँकि देख तेरा बादशाह तेरे पास आता है; वह सादिक है, नजात उसके हाथ में है वह हलीम है और गधे पर बल्कि जवान गधे पर सवार है।10और मैं इफ़्राईम से रथ, यरुशलीम से घोड़े काट डालूँगा और जंगी कमान तोड़ डाली जाएगी और वह क़ौमों को सुलह का मुज़दा देगा और उसकी सल्तनत समुन्दर से समन्दर तक और दरिया-ए-फ़ुरात से इन्तिहाए-ज़मीन तक होगी।;11~और तेरे बारे में यूँ है कि तेरे 'अहद के खू़न की वजह से, तेरे ग़ुलामों को अंधे कुंए से निकाल लाया।12मैं आज बताता हूँ कि तुझ को दो बदला दूँगा, ऐ उम्मीदवार, ग़ुलामों क़िले' वापस आओ।"13क्यूँकि मैंने यहूदाह को कमान की तरह झुकाया और इफ़्राईम को तीर की तरह लगाया, और ऐ सिय्यून, मैं तेरे फ़र्ज़न्दों को यूनान के फ़र्ज़न्दों के ख़िलाफ़ बरअन्गेख़ता करूँगा, तुझे पहलवान की तलवार की तरह बनाऊँगा।14और ख़ुदावन्द उनके ऊपर दिखाई देगा उसके तीर बिजली की तरह निकलेंगे; हाँ ख़ुदावन्द ख़ुदा नरसिंगा फूँकेगा और दक्खिनी बगोलों के साथ खुरूज करेगा |15और रब्ब-उल-अफ़वाज उनकी हिमायत करेगा और वह दुश्मनों को निगलेंगे,और फ़लाख़न के पत्थरों को पायमाल करेंगे और पीकर मतवालों की तरह शोर मचायेंगे और कटोरों और मज़बह के कोनों की तरह मा'मूर होंगे।16और ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा उस दिन उनको अपनी भेंड़ों की तरह बचा लेगा, क्यूँकि वह ताज के जवाहर की तरह होंगे, जो उसके मुल्क में सरफ़राज़17~क्यूँकि उनकी खुशहाली 'अज़ीम और उनका जमाल खू़ब है, नौजवान ग़ल्ले से बढ़ेंगे और लड़कियाँ नई शराब से नश्व-ओ-नुमा पाएँगी|
1पिछली बरसात की बारिश के लिए ख़ुदावन्द से दू'आ करो ख़ुदावन्द से जो बिजली चमकाता है वह बारिश भेजेगा और मैदान में सबके लिए घास उगाएगा |2क्यूँकि तराफीम ने बतालत की बातें कहीं हैं और गै़बबीनों ने बतालत देखी और झूठे ख़्वाब बयान किये हैं उनकी तसल्ली बे हक़ीक़त है ~इसलिए वह भेड़ों की तरह भटक गए। उन्होंने दुख पाया क्यूँकि उनका कोई चरवाहा न था।3~मेरा ग़ज़ब चरवाहों पर भड़का है, मैं पेशवाओं को सज़ा दूँगा; तोभी रब्ब-उल-अफ़वाज ने अपने गल्ले या'नी बनी यहूदाह पर नज़र की है, उनको गोया अपना खू़बसूरत जंगी घोड़ा बनाएगा।4उन्ही में से कोने का पत्थर और खूंटी जंगी कमान और सब हाकिम निकलेंगे।5और वह पहलवानों की तरह लड़ाई में दुश्मनों को गलियों की कीच की तरह लताड़ेंगे और वह लड़ेंगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द उनके साथ हैं और सवार सरासीमा हो जाएँगे।6और मैं यहूदाह के घराने की तकवियत करूँगा और यूसुफ़ के घराने को रिहाई बख़्शूँगा और उनको वापस लाऊँगा,क्यूँकि मैं उन पर रहम करता हूँ, वह ऐसे होंगे गोया मैंने कभी उनको तर्क नहीं किया था, मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ और उनकी सुनूँगा।7~और बनी इफ़्राईम पहलवानों की तरह होंगे और उनके दिल गोया मय से मसरूर होंगे, बल्कि उनकी औलाद भी देखेगीऔर शादमानी करेगी; उनके दिल ख़ुदावन्द से ख़ुश होंगे।8~मैं सीटी बजाकर उनको इकठ्ठा करूँगा, क्यूँकि मैंने उनका फ़िदिया दिया है; वह बहुत हो जाएँगे जैसे पहले9~अगरचे मैंने उन्हें क़ौमों में तितर-बितर किया तोभी वह उन दूर के मुल्कों में मुझे याद करेंगे और अपने बाल बच्चों साथ ज़िन्दा रहेंगे और वापस आएँगे।10~मैं उनको मुल्क-ए-मिस्र से वापस लाऊँगा असूर से जमा' करूँगा और जिल'आद और लुबनान की सरज़मीन में पहुँचाऊँगा,यहाँ तक कि उनके लिए गुंजाइश न होगी।11~और वह मुसीबत के समुन्दर से गुज़र जाएगा और उसकी लहरों को मारेगा, और दरया-ए-नील तक सूख जाएगा, असूर का तकब्बुर टूट जाएगा और मिस्र का 'असा जाता रहेगा।12~और मैं उनको ख़ुदावन्द में तक़वियत बख़्शूँगा और वह उसका नाम लेकर इधर उधर चलेंगे।”~
1ऐ ~लुबनान, तू अपने दरवाज़ों को खोलदे ताकि आग तेरे देवदारों को खा जाए।2ऐ सरो के दरख़्त, नौहा कर क्यूँकि देवदार गिर गया, शानदार गारत हो गए। ऐ बसनी बलूत के दरख़्तो, फ़ुगां करो क्यूँकि दुशवार गुज़ार जंगल साफ़ हो3चरवाहों के नौहे की आवाज़ आती है, क्यूँकि उनकी हशमत ग़ारत हुई! जवान बबरों की गरज़ सुनाई देती है क्यूँकि यरदन का जंगल बर्बाद हो गया!4~ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: "कि जो भेड़ें ज़बह हो रही हैं उनको चरा|5~जिनके मालिक उनको ज़बह करते और अपने आप को बेक़ुसूर समझते हैं, और जिनके बेचने वाले कहते हैं,ख़ुदावन्द का शुक्र हो कि हम मालदार हुए," और उनके चरवाहे उन पर रहम नहीं करते |6~क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुल्क के बाशिन्दों पर फिर रहम नहीं करूँगा, बल्कि हर शख़्स को उसके हमसाये और उसके बादशाह के हवाले कर दूँगा; वह मुल्क को तबाह करेंगे और मैं उनको उनके हाथ से नहीं छुड़ाऊँगा|7~तब मैंने उन भेड़ों को जो ज़बह हो रही थीं, या'नी गल्ले के मिस्कीनों को चराया और मैंने दो लाठियाँ लीं; एक का नाम फ़ज़ल रख्खा और दूसरी का इत्तिहाद,और गल्ले को चराया।8और मैंने एक महीने में तीन चरवाहों को हलाक किया, क्यूँकि मेरी जान उनसे बेज़ार थी; उनके दिल में मुझ से कराहियत थी |9तब मैंने कहा, "कि अब मैं तुम को न चराऊँगा। मरने वाला मरजाए और हलाक होने वाला हलाक हो, बाक़ी एक दूसरे का गोश्त खाएँ।10~तब मैंने फ़ज़ल नामी लाठी को लिया और उसे काट डाला कि अपने 'अहद को जो मैंने सब लोगों से बाँधा था, मन्सूख़ करूँ।11और वह उसी दिन मन्सूख़ हो गया; तब गल्ले के मिस्कीनों ने जो मेरी सुनते थे, मा'लूम किया कि यह ख़ुदावन्द का कलाम है;12और मैंने उनसे कहा,कि "अगर तुम्हारी नज़र में ठीक हो, तो मेरी मज़दूरी मुझे दो नहीं तो मत दो।" और उन्होंने मेरी मज़दूरी के लिए तीस रुपये तोल कर दिए।13और ख़ुदावन्द ने मुझे हुक्म दिया, कि "उसे कुम्हार के सामने फेंक दे," या'नी इस बड़ी क़ीमत को जो उन्होंने मेरे लिए ठहराई, और मैंने यह तीस रुपये लेकर ख़ुदावन्द के घर में कुम्हार के सामने फेंक दिए।14तब मैंने दूसरी लाठी या'नी इत्तिहाद नामी को काट डाला, ताकि उस बिरादरी को जो यहूदाह और इस्राईल में है ख़त्म करूँ15और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि "तू फिर नादान चरवाहे का सामान ले।16~क्यूँकि देख, मैं मुल्क में ऐसा चौपान बर्पा करूँगा, जो हलाक होने वाले की ख़बर गीरी, और भटके हुए की तलाश और ज़ख़्मी का 'इलाज न करेगा, और तन्दुरुस्त को न चराएगा लेकिन मोटों का गोश्त खाएगा,और उनके खुरों को तोड़ डालेगा।17उस नाबकार चरवाहे पर अफ़सोस,जो ग़ल्ले को छोड़ जाता है, तलवार उसके बाजू़ और उसकी दहनी आँख पर आ पड़ेगी। उसका बाजू़ बिल्कुल सूख जाएगा और उसकी दहनी आँख फूट जाएगी।”
1~इस्राईल के बारे में ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार-ए-नबुव्वत: ख़ुदावन्द जो आसमान को तानता और ज़मीन की नियु डालता और इंसान के अन्दर उसकी रूह पैदा करता है, यूँ फ़रमाता है :2देखो, मैं यरुशलीम को चारों तरफ़ के सब लोगों के लिए लड़खड़ाहट का प्याला बनाऊँगा, और यरुशलीम के मुहासिरे के वक़्त यहूदाह का भी यही हाल होगा।3और मैं उस दिन यरुशलीम को सब क़ौमों के लिए एक भारी पत्थर बना दूँगा, और जो उसे उठाएँगे सब घायल होंगे, और दुनिया की सब क़ौमें उसके सामने जमा' होंगी।4ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उस दिन हर घोड़े को हैरतज़दा और उसके सवार को दीवाना कर दूँगा, लेकिन यहूदाह के घराने पर निगाह रख्खूँगा, और क़ौमों के सब घोड़ों को अंधा कर दूँगा।5तब यहूदाह के फ़रमारवाँ दिल में कहेंगे, कि 'यरुशलीम के बाशिन्दे अपने ख़ुदा रब्ब-उल-अफ़वाज की वजह से हमारी ताक़त हैं।'6मैं उस दिन यहूदाह के फ़रमारवाओं को लकड़ियों में जलती अंगेठी और पूलों में मश'अल की तरह बनाऊँगा, और वह दहने बाएँ चारों तरफ़ की सब क़ौमों को खा जाएँगे, और अहल-ए-यरुशलीम फिर अपने मक़ाम पर यरुशलीम में ही आबाद होंगे।7और ख़ुदावन्द यहूदाह के ख़ैमों को पहले रिहाई बख़्शेगा, ताकि दाउद का घराना और यरुशलीम के बाशिन्दे यहूदाह के ख़िलाफ़ ग़ुरूर न करें।8उस दिन ख़ुदावन्द यरुशलीम के बाशिन्दों की हिमायत करेगा, और उनमें का सबसे कमज़ोर उस दिन दाऊद की तरह होगा; और दाऊद का घराना ख़ुदा की तरह , या'नी ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते की तरह जो उनके आगे आगे चलता हो।9और मैं उस दिन यरुशलीम की सब मुख़ालिफ़ क़ौमों की हलाकत का क़सद करूँगा।10और मैं दाऊद के घराने और यरुशलीम के बाशिन्दों पर फ़ज़ल और मुनाजात की रूह नाज़िल करूँगा, और वह उस पर जिसको उन्होंने छेदा है नज़र करेंगे और उसके लिए मातम करेंगे जैसा कौई अपने एकलौते के लिए करता है और उसके लिए तल्ख़ काम होंगे जैसे कोई अपने पहलौठे के लिए होता है |11और उस दिन यरुशलीम में बड़ा मातम होगा, हदद रिम्मोन के मातम की तरह जो मजिहोन की वादी में हुआ|12और तमाम मुल्क मातम करेगा, हर एक घराना अलग; दाऊद का घराना अलग, और उनकी बीवियाँ अलग; नातन का घराना अलग, और उनकी बीवियाँ अलग;13~लावी का घराना अलग, और उनकी बीवियाँ अलग; सिम'ई का घराना अलग, और उनकी बीवियाँ अलग;14बाक़ी सब घराने अलग-अलग, और उनकी बीवियाँ अलग अलग !'
1उस रोज़ गुनाह और नापाकी धोने को दाऊद के घराने और यरुशलीम के बशिन्दों के लिए एक सोता फूट निकले गा2और रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, मैं उसी दिन मुल्क से बुतों का नाम मिटा दूँगा, और उनको फिर कोई याद न करेगा; और मैं नबियों को और नापाक रूह को मुल्क से ख़ारिज कर दूँगा।3और जब कोई नबुव्वत करेगा, तो उसके माँ-बाप जिनसे वह पैदा हुआ उससे कहेंगे तू ज़िन्दा न रहेगा क्यूँकि तू ख़ुदावन्द का नाम लेकर झूठ बोलता है और जब एह नबुव्वत करेगा तो उसके माँ बाप जिनसे वह पैदा हुआ छेद डालेगें |4और उस दिन नबियों में से हर एक नबुव्वत करते वक़्त अपनी ख़्वाब से शर्मिन्दा होगा, और कभी धोखा देने के लिए कम्बल के कपड़े न पहनेगे,5बल्कि हर एक कहेगा, कि मैं नबी नहीं किसान हूँ, क्यूँकि मैं लड़कपन ही से गु़लाम रहा हूँ।'6और जब कोई उससे पूछेगा, कि तेरी छाती" पर यह ज़ख़्म कैसे हैं?" तो वह जवाब देगा यह वह ज़ख्म हैं जो मेरे दोस्तों के घर में लगे |7रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "ऐ तलवार, तू मेरे चरवाहे, या'नी उस इन्सान पर जो मेरा रफ़ीक़ है बेदार हो। 'चरवाहे को मार कि ग़ल्ला तितर-बितर हो। जाए, और मैं छोटों पर हाथ चलाऊँगा।8और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, सारे मुल्क में दो तिहाई क़त्ल किए जाएँगे और मरेंगे, लेकिन एक तिहाई बच रहेंगे।9और मैं इस तिहाई को आग में डालकर चाँदी की तरह साफ़ करूँगा और सोने की ताऊँगा। वह मुझ से दु'आ करेंगे, और मैं उनकी सुनूँगा। मैं कहूँगा, 'यह मेरे लोग हैं," और वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द ही हमारा ख़ुदा है।"
1~देख, ख़ुदावन्द का दिन आता है, जब तेरा माल लूटकर तेरे अन्दर बाँटा जाएगा।2क्यूँकि मैं सब क़ौमों को जमा' करूँगा कि यरुशलीम से जंग करें, और शहर ले लिया जाएगा और घर लूटे जाएँगे और 'औरतें बे हुरमत की जायेंगी और आधा शहर ग़ुलामी में जाएगा, लेकिन बाक़ी लोग शहर ही में रहेंगे।3तब ख़ुदावन्द ख़ुरूज करेगा और उन क़ौमों से लड़ेगा, जैसे जंग के दिन लड़ा करता था।4और उस दिन वह को-हए-जै़तून पर जो यरुशलीम के पूरब में वाक़े' है खड़ा होगा और कोह-ए-ज़ैतून बीच से फट जाएगा; और उसके पूरब से पशचिम तक एक बड़ी वादी हो जाएगी, क्यूँकि आधा पहाड़ उत्तर को सरक जाएगा और आधा दक्खिन को।5और तुम मेरे पहाड़ों की वादी से होकर भागोगे, क्यूँकि पहाड़ों की वादी अज़ल तक होगी; जिस तरह तुम शाह-ए- यहूदाह उज़ियाह के दिनों में ज़लज़ले से भागे थे, उसी तरह भागोगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा आएगा और सब कु़दसी उसके साथ6और उस दिन रोशनी न होगी, और अजराम-ए-फ़लक छिप जाएँगे।7लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जो ख़ुदावन्द ही को मा'लूम है। वह न दिन होगा न रात, लेकिन शाम के वक़्त रोशनी होगी।8और उस दिन यरुशलीम से आब-ए- हयात जारी होगा, जिसका आधा बहर-ए- पूरब की तरफ़ बहेगा और आधा बहर-ए- पच्छिम की तरफ़, गमीं सदी में जारी रहेगा।9और ख़ुदावन्द सारी दुनिया का बादशाह होगा। उस दिन एक ही ख़ुदावन्द होगा, और उसका नाम वाहिद होगा।10~और यरुशलीम के दक्खिन में तमाम मुल्क जिबा' से रिम्मोन तक मैदान की तरह हो जाएगा। लेकिन यरुशलीम बुलन्द होगा, और बिनयमीन के फाटक से पहले फाटक के मक़ाम या'नी कोने के फाटक तक, और हननएल के बुर्ज से बादशाह के अंगूरी हौज़ों तक, अपने मक़ाम पर आबाद होगा।11और लोग इसमें सुकूनत करेंगे और फिर ला'नत मुतलक़ न होगी, बल्कि यरुशलीम ~अमन-ओ-अमान से आबाद रहेगा।12और ख़ुदावन्द यरुशलीम से जंग करने वाली सब क़ौमों पर यह 'अज़ाब नाज़िल करेगा, कि खड़े खड़े उनका गोश्त सूख जाएगा,और उनकी आँखे चश्म खानों में गल जायेंगी और उनकी ज़बान उनके मुँह में सड़ जाएगी।13और उस दिन ख़ुदावन्द की तरफ़ से उनके बीच बड़ी हलचल होगी और एक दूसरे का हाथ पकड़ेंगे और एक दूसरे के ख़िलाफ़ हाथ उठाएगा।14और यहूदाह भी यरुशलीम के पास लड़ेगा, और चारों तरफ़ की सब क़ौमों का माल या'नी सोना-चाँदी और पोशाक बड़ी कसरत से इकठ्ठा किया जाएगा।15और घोड़ों, खच्चरों, ऊँटों, गधों और सब हैवानों पर भी जो उन लश्करगाहों में होंगे, वही 'अज़ाब नाज़िल होगा16~और यरुशलीम से लड़ने वाली क़ौमों में से जो बच रहेंगे, साल-ब-साल बादशाह रब्ब-उल-अफ़वाज को सिज्दा करने और 'ईद-ए-ख़ियाम मनाने को आएँगे।17और दुनिया के उन तमाम क़बाइल पर जो बादशाह रब्ब-उल-अफ़वाज के सामने सिज्दा करने को यरुशलीम में न आएँगे, मेंह न बरसेगा।18और अगर क़बाइल-ए-मिस्र जिन पर बारिश नहीं होती न आएँ, तो उन पर वही 'अज़ाब नाज़िल होगा जिसको ख़ुदावन्द उन गै़र-क़ौमों पर नाज़िल करेगा, जो 'ईद-ए-ख़ियाम मनाने को न आएँगी।19अहल-ए-मिस्र और उन सब क़ौमों की, जो ईद-ए-ख़ियाम मनाने की न जाएँ यही सज़ा होगी।20उस दिन घोड़ों की घंटियों पर लिखा होगा, "ख़ुदावन्द के लिये पाक।” और ख़ुदावन्द के घर को देगें, मज़बह के प्यालों की तरह पाक ~होंगें।21बल्कि यरुशलीम और यहूदाह में की सब देगें, रब्ब-उल-अफ़वाज के लिए पाक होंगी, और सब ज़बीहे पेश करने वाले आयेंगे और उनको लेकर उनमें पकायेंगे और उस रोज़ फिर कोई कन'आनी रब्ब-उल-अफ़वाज के घर में न होगा।|
1~ख़ुदावन्द की तरफ़ से मलाकी के ज़रिए' इस्राईल के लिए बार-ए-नबुव्वत :2~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैंने तुम से मुहब्बत रख्खी, तोभी तुम कहते हो, 'तूने किस बात में हम से मुहब्बत ज़ाहिर की?" ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "क्या 'एसौ या'क़ूब का भाई न था? लेकिन मैंने या'क़ूब से मुहब्बत रख्खी,3~और 'एसौ से 'अदावत रखी, और उसके पहाड़ों को वीरान किया और उसकी मीरास वीराने के गीदड़ों को दी।”4~अगर अदोम कहे, "हम बर्बाद तो हुए, लेकिन वीरान जगहों को फिर आकर ता'मीर करेंगे," तो रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "अगरचे वह ता'मीर करें, लेकिन मैं ढाऊँगा, और लोग उनका ये नाम रख्खेंगे, 'शरारत का मुल्क', 'वह लोग जिन पर हमेशा ख़ुदावन्द का क़हर है।'"5~और तुम्हारी आँखें देखेंगी और तुम कहोगे कि ~"ख़ुदावन्द की तम्जीद, इस्राईल की हदों से आगे तक हो।"6रब्बुल-उल-अफ़वाज तुम को फ़रमाता है: "ऐ मेरे नाम की तहक़ीर करने वाले काहिनों, बेटा अपने बाप की, और नौकर अपने आक़ा की ता'ज़ीम करता है। इसलिए अगर मैं बाप हूँ, तो मेरी 'इज़्ज़त कहाँ है? और अगर आक़ा हूँ, तो मेरा ख़ौफ़ कहाँ है? लेकिन तुम कहते हो, 'हमने किस बात में तेरे नाम की तहक़ीर की?'7~तुम मेरे मज़बह पर नापाक रोटी पेश करते हो और कहते हो कि 'हमने किस बात में तेरी तौहीन की?' इसी में जो कहते हो, ख़ुदावन्द की मेज़ हक़ीर है।8~जब तुम अंधे की क़ुर्बानी करते हो, तो कुछ बुराई नहीं? और जब लंगड़े और बीमार को पेश करते हो, तो कुछ नुक़सान नहीं? अब यही अपने हाकिम की नज़्र कर, क्या वह तुझ से ख़ुश होगा और तू उसका मंज़ूर-ए-नज़र होगा? रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।9~अब ज़रा ख़ुदा को मनाओ, ताकि वह हम पर रहम फ़रमाए। तुम्हारे ही हाथों ने ये पेश किया है; क्या तुम उसके मंज़ूर-ए-नज़र होगे? रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।10~काश कि तुम में कोई ऐसा होता जो दरवाज़े बंद करता, और तुम मेरे मज़बह पर 'अबस आग न जलाते, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, मैं तुम से ख़ुश नहीं हूँ और तुम्हारे हाथ का हदिया हरगिज़ क़ुबूल न करूँगा।11~क्यूँकि आफ़ताब के तुलू' से ग़ुरुब तक क़ौमों में मेरे नाम की तम्जीद होगी, और हर जगह मेरे नाम पर ख़ुशबू जलाएँगे और पाक हदिये पेश करेंगे; क्यूँकि क़ौमों में मेरे नाम की तम्जीद होगी, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।12~लेकिन तुम इस बात में उसकी तौहीन करते हो, कि तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की मेज़ पर क्या है, उस पर के हदिये बेहक़ीक़त हैं।'13~और तुम ने कहा, 'ये कैसी ज़हमत है,' और उस पर नाक चढ़ाई रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है। फिर तुम लूट का माल और लंगड़े और बीमार ज़बीहे लाए, और इसी तरह के हदिये पेश करे! क्या मैं इनको तुम्हारे हाथ से क़ुबूल करूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।14~ला'नत उस दग़ाबाज़ पर जिसके गल्ले में नर है, लेकिन ख़ुदावन्द के लिए 'ऐबदार जानवर की नज़्र मानकर पेश करता है; क्यूँकि मैं शाह-ए-'अज़ीम हूँ और क़ौमों में मेरा नाम मुहीब है, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।
1~"और अब ऐ काहिनों, तुम्हारे लिए ये हुक्म है।2~रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, अगर तुम नहीं सुनोगे, और मेरे नाम की तम्जीद को मद्द-ए-नज़र न रखोगे, तो मैं तुम को और तुम्हारी ने'मतों को मला'ऊन करूँगा; बल्कि इसलिए कि तुमने उसे मद्द-ए-नज़र न रख्खा, मैं मला'ऊन कर चुका हूँ।3~देखो, मैं तुम्हारे बाज़ू बेकार कर दूँगा, और तुम्हारे मुँह पर नापाकी या'नी तुम्हारी क़ुर्बानियों की नापाकी फेकूँगा, और तुम उसी के साथ फेंक दिए जाओगे।4~और तुम जान लोगे कि मैंने तुम को ये हुक्म इसलिए दिया है के मेरा 'अहद लावी के साथ क़ायम रहे; रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।5उसके साथ मेरा 'अहद ज़िन्दगी और सलामती का था, और मैंने ज़िन्दगी और सलामती इसलिए बख़्शी कि वह डरता रहे; चुनाँचे वह मुझ से डरा और मेरे नाम से तरसान रहा।6~सच्चाई की शरी'अत उसके मुँह में थी, और उसके लबों पर नारास्ती न पाई गई। वह मेरे सामने सलामती और रास्ती से चलता रहा, और वह बहुतों को बदी की राह से वापस लाया।7~क्यूँकि लाज़िम है कि काहिन के लब मा'रिफ़त को महफ़ूज़ रख्खें, और लोग उसके मुँह से शर'ई मसाइल पूछें, क्यूँकि वह रब्ब-उल-अफ़वाज का रसूल है।8~लेकिन तुम राह से फिर गए। तुम शरी'अत में बहुतों के लिए ठोकर का ज़रिया' हुए। तुम ने लावी के 'अहद को ख़राब किया, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है,9~इसलिए मैंने तुम को सब लोगों की नज़र में ज़लील और हक़ीर किया, क्यूँकि तुम मेरी राहों पर क़ायम न रहे, बल्कि तुम ने शर'ई मुआ'मिलात में रूदारी की।"10~क्या हम सबका एक ही बाप नहीं? क्या एक ही ख़ुदा ने हम सब को पैदा नहीं किया? फिर क्यूँ हम अपने भाइयों से बेवफ़ाई करके अपने बाप-दादा के 'अहद की बेहुरमती करते हैं?11~यहूदाह ने बेवफ़ाई की, इस्राईल और यरुशलीम में मकरूह काम हुआ है। यहूदाह ने ख़ुदावन्द की पाकीज़गी को, जो उसको 'अज़ीज़ थी बेहुरमत किया, और एक ग़ैर मा'बूद की बेटी ब्याह लाया।12~ख़ुदावन्द ऐसा करने वाले को, ज़िन्दा और जवाब दहिन्दा और रब्ब-उल-अफ़वाज के सामने क़ुर्बानी पेश करने वाले, या'क़ूब के ख़ेमों से मुनक़ता' कर देगा।13~फिर तुम्हारे 'आमाल की वजह से, ख़ुदावन्द के मज़बह पर आह-ओ-नाला और आँसुओं की ऐसी कसरत है कि वह न तुम्हारे हदिये को देखेगा और न तुम्हारे हाथ की नज़्र को ख़ुशी से क़ुबूल करेगा।14तोभी तुम कहते हो, "वजह क्या है?" वजह ये है कि ख़ुदावन्द तेरे और तेरी जवानी की बीवी के बीच गवाह है, तूने उससे बेवफ़ाई की है, अगरचे वह तेरी दोस्त और मनकूहा बीवी है।15~और क्या उसने एक ही को पैदा नहीं किया, बावजूद कि उसके पास और भी अरवाह मौजूद थीं? फिर क्यूँ एक ही को पैदा किया? इसलिए कि ख़ुदातरस नस्ल पैदा हो। इसलिए तुम अपने नफ़्स से ख़बरदार रहो, और कोई अपनी जवानी की बीवी से बेवफ़ाई न करे।16क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है, "मैं तलाक़ से बेज़ार हूँ, और उससे भी जो अपनी बीवी पर ज़ुल्म करता है, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, इसलिए तुम अपने नफ़्स से ख़बरदार रहो ताकि बेवफ़ाई न करो।"17~तुमने अपनी बातों से ख़ुदावन्द को बेज़ार कर दिया; तोभी तुम कहते हो, "किस बात में हम ने उसे बेज़ार किया?" इसी में जो कहते हो कि ~"हर शख़्स जो बुराई करता है, ख़ुदावन्द की नज़र में नेक है, और वह उससे ख़ुश है," और ये के 'अद्ल का ख़ुदा कहाँ है?”
1देखो मैं अपने रसूल को भेजूँगा और वह मेरे आगे राह दुरुस्त करेगा, और ख़ुदावन्द, जिसके तुम तालिब हो, वह अचानक अपनी हैकल में आ मौजूद होगा। हाँ, 'अहद का रसूल, जिसके तुम आरज़ूमन्द हो आएगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।2~लेकिन उसके आने के दिन की किसमें ताब है? और जब उसका ज़हूर होगा, तो कौन खड़ा रह सकेगा? क्यूँकि वह सुनार की आग और धोबी के साबुन की तरह है।3~और~वह चाँदी को ताने और पाक-साफ़ करने वाले की तरह बैठेगा, और बनी लावी को सोने और चाँदी की तरह पाक-साफ़ करेगा ताकि रास्तबाज़ी से ख़ुदावन्द के सामने हदिये पेश करें।4~तब यहूदाह और यरुशलीम का हदिया ख़ुदावन्द को पसन्द आएगा, जैसा गुज़रे दिनों और गुज़रे ज़माने में।5~और मैं 'अदालत के लिए तुम्हारे नज़दीक आऊँगा और जादूगरों और बदकारों और झूटी क़सम खाने वालों के ख़िलाफ़, और उनके ख़िलाफ़ भी जो मज़दूरों को मज़दूरी नहीं देते, और बेवाओं और यतीमों पर सितम करते और मुसाफ़िरों की हक़ तल्फ़ी करते हैं और मुझ से नहीं डरते हैं, मुस्त'इद गवाह हूँगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।6"क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द ला-तब्दील हूँ, इसीलिए ऐ बनी या'क़ूब, तुम हलाक नहीं हुए।7~तुम अपने बाप-दादा के दिनों से मेरे तौर तरीक़े से फिरे रहे और उनको नहीं माना। तुम मेरी तरफ़ रुजू' हो, तो मैं तुम्हारी तरफ़ रुजू' हूँगा रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है लेकिन तुम कहते हो कि ~'हम किस बात में रुजू' हों?'8~क्या कोई आदमी ख़ुदा को ठगेगा? लेकिन तुम मुझको ठगते हो और कहते हो, 'हम ने किस बात में तुझे ठगा?" दहेकी और हदिये में।9~इसलिए तुम सख़्त मला'ऊन हुए, क्यूँकि तुमने बल्कि तमाम क़ौम ने मुझे ठगा।10~पूरी दहेकी ज़ख़ीरेख़ाने में लाओ, ताकि मेरे घर में ख़ुराक हो। और इसी से मेरा इम्तिहान करो रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, कि मैं तुम पर आसमान के दरीचों को खोल कर बरकत बरसाता हूँ कि नहीं, यहाँ तक कि तुम्हारे पास उसके लिए जगह न रहे।11और मैं तुम्हारी ख़ातिर टिड्डी को डाटूँगा और वह तुम्हारी ज़मीन की फ़सल को बर्बाद न करेगी, और तुम्हारे ताकिस्तानों का फल कच्चा न झड़ जाएगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।12और सब क़ौमें तुम को मुबारक कहेंगी, क्यूँकि तुम दिलकुशा मम्लुकत होगे, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।13~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "तुम्हारी बातें मेरे ख़िलाफ़ बहुत सख़्त हैं। तोभी तुम कहते हो, 'हम ने तेरी मुख़ालिफ़त में क्या कहा?'"14तुमने तो कहा, 'ख़ुदा की 'इबादत करना 'अबस है। रब्ब-उल-अफ़वाज के हुक्मों पर 'अमल करना, और उसके सामने मातम करना बे-फ़ायदा है।15~और अब हम मग़रूरों को नेकबख़्त कहते हैं।शरीर कामयाब होते हैं और ख़ुदा को आज़माने पर भी रिहाई पाते हैं |16~तब ख़ुदातरसों ने आपस में गुफ़्तगू की, और ख़ुदावन्द ने मुतवज्जिह होकर सुना और उनके लिए जो ख़ुदावन्द से डरते और उसके नाम को याद करते थे, उसके सामने यादगार का दफ़्तर लिखा गया।17~रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है उस रोज़ वह मेरे लोग, बल्कि मेरी ख़ास मिल्कियत होंगे; और मैं उन पर ऐसा रहीम हूँगा जैसा बाप अपने ख़िदमतगुज़ार बेटे पर होता है।18~तब तुम रुजू' लाओगे, और सादिक़ और शरीर में और ख़ुदा की 'इबादत करने वाले और न करने वाले में फ़र्क़ करोगे।
1क्यूँकि देखो वह दिन आता है जो भट्टी ~की तरह सोज़ान होगा। तब सब मग़रूर और बदकिरदार भूसे की तरह होंगे और वह दिन उनको ऐसा जलाएगा कि शाख़-ओ-बुन कुछ न छोड़ेगा, रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।2"लेकिन तुम पर जो मेरे नाम की ता'ज़ीम करते हो, आफ़ताब-ए-सदाक़त ताली'अ होगा, और उसकी किरनों में शिफ़ा होगी; और तुम गावख़ाने के बछड़ों की तरह कूदो-फाँदोगे।3~और तुम शरीरों को पायमाल करोगे, क्यूँकि उस रोज़ वह तुम्हारे पाँव तले की राख होंगे," रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।4~"तुम मेरे बन्दे मूसा की शरी'अत या'नी ' उन फ़राइज़-ओ-अहकाम को, जो मैंने होरिब पर तमाम बनी-इस्राईल के लिए फ़रमाए, याद रख्खो ।5देखो, ख़ुदावन्द के बुज़ुर्ग और ग़ज़बनाक दिन के आने से पहले, मैं एलियाह नबी को तुम्हारे पास भेजूँगा।6~और वह बाप का दिल बेटे की तरफ़, और बेटे का बाप की तरफ़ माइल करेगा; मुबादा मैं आऊँ और ज़मीन को मला'ऊन करूँ।"
1ईसा' मसीह इब्न- ए दाऊद इब्न- ए इब्राहीम का नसबनामा।2इब्राहीम से इज़्हाक़ पैदा हुआ, और इज़्हाक़ से या'क़ूब पैदा हुआ, और या'क़ूब से यहूदा और उस के भाई पैदा हुए;3और यहूदा से फ़ारस और ज़ारह तमर से पैदा हुए, और फ़ारस से हसरोंन पैदा हुआ, और हसरोन से राम पैदा हुआ;4और राम से अम्मीनदाब पैदा हुआ, और अम्मीनदाब से नह्सोन पैदा हुआ, और नह्सोन से सलमोन पैदा हुआ;5और सलमोन से बो'अज़ राहब से पैदा हुआ, और बो'अज़ से ओबेद रूत से पैदा हुआ, और ओबेद से यस्सी पैदा हुआ;6और यस्सी से दाऊद बादशाह पैदा हुआ| और दाऊद से सुलैमान उस 'औरत से पैदा हुआ जो पहले ऊरिय्याह की बीवी थी;7और सुलैमान से रहुब'आम पैदा हुआ, और रहुब'आम से अबियाह पैदा हुआ, और अबियाह से आसा पैदा हुआ;8और आसा से यहूसफ़त पैदा हुआ,और यहूसफ़त से यूराम पैदा हुआ, और यूराम से उज़्ज़ियाह पैदा हुआ;9उज़्ज़ियाह से यूताम पैदा हुआ,और यूताम से आख़ज़ पैदा हुआ, और आख़ज़ से हिज़क़ियाह पैदा हुआ;10और हिज़क़ियाह से मनस्सी पैदा हुआ, और मनस्सी से अमून पैदा हुआ, और अमून से यूसियाह पैदा हुआ;11और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने के ज़माने में यूसियाह से यकुनियाह और उस के भाई पैदा हुए;12और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने के बा'द यकूनियाह से सियाल्तीएल पैदा हुआ, और सियाल्तीएल से ज़रुब्बाबुल पैदा हुआ।13और ज़रुब्बाबुल से अबीहूद पैदा हुआ, और अबिहूद से इलियाक़ीम पैदा हुआ, और इलियाक़ीम से आज़ोर पैदा हुआ;14और आज़ोर से सदोक़ पैदा हुआ, और सदोक़ से अख़ीम पैदा हुआ, और अख़ीम से इलीहूद पैदा हुआ;15और इलीहूद से इलीअज़र पैदा हुआ, और अलीअज़र से मत्तान पैदा हुआ, और मत्तान से याक़ूब पैदा हुआ;16और याक़ूब से यूसुफ़ पैदा हुआ,ये उस मरियम का शौहर था जिस से ईसा' पैदा हुआ, जो मसीह कहलाता है|17पस सब पुश्तें इब्राहीम से दाऊद तक चौदह पुश्तें हुईं, और दाऊद से लेकर गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने तक चौदह पुश्तें, और गिरफ़्तार होकर बाबुल जाने से लेकर मसीह तक चौदह पुश्तें हुईं।18अब ईसा' मसीह की पैदाइश इस तरह हुई कि जब उस की माँ मरियम की मंगनी यूसुफ़ के साथ हो गई: तो उन के एक साथ होने से पहले वो रूह-उल क़ुद्स की क़ुदरत से हामिला पाई गई।19पस उस के शौहर यूसुफ़ ने जो रास्तबाज़ था, और उसे बदनाम नहीं करना चाहता था। उसे चुपके से छोड़ देने का इरादा किया।20वो ये बातें सोच ही रहा था, कि ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे ख़्वाब में दिखाई देकर कहा,"ऐ यूसुफ़" इब्न -ए दाऊद अपनी बीवी मरियम को अपने यहाँ ले आने से न डर; क्यूँकि जो उस के पेट में है, वो रूह- उल -कुद्दूस की क़ुदरत से है।21उस के बेटा होगा और तू उस का नाम ईसा' रखना, क्योंकि वह अपने लोगों को उन के गुनाहों से नजात देगा।22यह सब कुछ इस लिए हुआ कि जो ख़ुदावन्द ने नबी के ज़रिये कहा था, वो पूरा हो कि |23“देखो एक कुंवारी हामिला होगी। और बेटा जनेंगी और उस का नाम इम्मानुएल रखेंगे,” जिसका मतलब है- ख़ुदा हमारे साथ।24पस यूसुफ़ ने नींद से जाग कर वैसा ही किया जैसा ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे हुक्म दिया था, और अपनी बीवी को अपने यहाँ ले गया।25और उस को न जाना जब तक उस के बेटा न हुआ और उस का नाम ईसा' रख्खा ।
1ईसा' मसीह इब्ने ख़ुदा की ख़ुशख़बरी की शुरुआत|2जैसा यसायाह नबी की किताब में लिखा है: “देखो, मैं अपना पैग़ंबर पहले भेजता हूँ, जो तुम्हारे लिए रास्ता तैयार करेगा।3वीराने में पूकारने वाले की आवाज़ आती है कि ख़ुदावन्द के लिए राह तैयार करो, और उसके रास्ते सीधे बनाओ|”4यूहन्ना आया और वीरानों में बपितस्मा देता और गुनाहों की मुआफ़ी। के लिए तौबा के बपितस्मे का ऐलान करता था5और यहूदिया के मुल्क के सब लोग, और यरूशलीम के सब रहनेवाले निकल कर उस के पास गए, और उन्होंने अपने गुनाहों को कुबूल करके दरिया-ए-यर्दन में उससे बपतिस्मा लिया ।6ये यूहन्ना ऊँटों के बालों से बनी पोशाक पहनता और चमड़े का पटटा अपनी कमर से बाँधे रहता था। और वो टिड्डियाँ और जंगली शहद खाता था।7और ये ऐलान करता था,“कि मेरे बा'द वो शख़्स आनेवाला है जो मुझ से ताक़तवर है मैं इस लायक़ नहीं कि झुक कर उसकी जूतियों का फीता खोलूँ।8मैंने तो तुम को पानी से बपतिस्मा दिया मगर वो तुम को रूह-उल-क़ुद्स से बपतिस्मा देगा।”9उन दिनों में ऐसा हुआ कि ईसा' ने गलील के नासरत नाम कि जगह से आकर यरदन नदी में यहून्ना से बपतिस्मा लिया।10और जब वो पानी से निकल कर ऊपर आया तो फ़ौरन उसने आसमान को खुलते और रूह को कबूतर की तरह अपने ऊपर आते देखा।11और आसमान से ये आवाज़ आई, “तू मेरा प्यारा बेटा है, तुझ से मैं ख़ुश हूँ।”12और उसके बाद रूह ने उसे वीराने में भेज दिया।13और वो उस सूनसान जगह में चालीस दिन तक शैतान के ज़रिए आज़माया गया, और वह जंगली जानवरों के साथ रहा किया और फ़रिश्ते उसकी ख़िदमत करते रहे।14फिर यूहन्ना के पकड़वाए जाने के बा'द ईसा' गलील में आया और ख़ुदा की ख़ुशख़बरी का ऐलान करने लगा।15“और उसने कहा ”कि वक़्त पूरा हो गया है और ख़ुदा की बादशाही नज़दीक आ गई है, तौबा करो और ख़ुशख़बरी पर ईमान लाओ।16गलील की झील के किनारे किनारे जाते हुए, शमा'ऊन और शमा'ऊन के भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते हुए देखा; क्यूंकि वो मछली पकड़ने वाले थे।17और ईसा' ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ ,तो मैं तुम को आदमी पकड़ने वाला बनाऊँगा।”18वो फ़ौरन जाल छोड़ कर उस के पीछे हो लिए।19और थोड़ी दूर जाकर कर उसने ज़ब्दी के बेटे याक़ूब और उसके भाई यूहन्ना को नाव पर जालों की मरम्मत करते देखा।20उसने फौरन उनको अपने पास बुलाया, और वो अपने बाप ज़ब्दी को नाव पर मज़दूरों के साथ छोड़ कर उसके पीछे हो लिए।21फिर वो कफ़रनहूम में दाख़िल हुए, और वो फ़ौरन सब्त के दिन इबादतख़ाने में जाकर ता'लीम देने लगा।22और लोग उसकी ता'लीम से हैरान हुए, क्यूंकि वो उनको आलिमों की तरह नहीं बल्कि इख़्तियार के साथ ता'लीम देता था।23और फ़ौरन उनके इबादतख़ाने में एक आदमी ऐसा मिला जिस के अंदर बदरूह थी वो यूँ कह कर पुकार उठा।24“ऐ ईसा' नासरी हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें तबाह करने आया है में तुझको जानता हूँ कि तू कौन है? ख़ुदा का क़ुद्दूस है।”25ईसा' ने उसे झिड़क कर कहा, “चुप रह , और इस में से निकल जा!।”26तब वो बदरूह उसे मरोड़ कर बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर उस में से निकल गई।27और सब लोग हैरान हुए “और आपस में ये कह कर बहस करने लगे " ये कौन है । ये तो नई ता'लीम है? वो बदरूहों को भी इख़्तियार के साथ हुक्म देता है, और वो उसका हुक्म मानती हैं।”28और फ़ौरन उसकी शोहरत गलील के आस पास में हर जगह फैल गई।29और वो फ़ौरन इबादतख़ाने से निकल कर शमा'ऊन और अन्द्रियास के घर आए।30शमाऊन की सास बुखार में पड़ी थी,और उन्होंने फ़ौरन उसकी ख़बर उसे दी।31उसने पास जाकर और उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाया, और बुखार उस पर से उतर गया, और वो उठकर उसकी ख़िदमत करने लगी।32शाम को सूरज डूबने के बाद लोग बहुत से बीमारों को उसके पास लाए।33और सारे शहर के लोग दरवाज़े पर जमा हो गए ।34और उसने बहुतों को जो तरह तरह की बीमारियों में गिरफ़्तार थे, अच्छा किया और बहुत सी बदरूहों को निकाला और बदरूहों को बोलने न दिया, क्यूंकि वो उसे पहचानती थीं।35और सुबह होने से बहुत पहले वो उठा , और एक वीरान जगह में गया, और वहाँ दुआ की।36और शमा'ऊन और उसके साथी उसके पीछे गए।37और जब वो मिला तो उन्होंने उससे कहा,“सब लोग तुझे ढूँड रहे हैं!”38उसने उनसे कहा“आओ हम और कहीं आस पास के शहरों में चलें ताकि में वहाँ भी ऐलान करूँ, क्यूंकि में इसी लिए निकला हूँ।”39और वो पूरे गलील में उनके इबादतख़ाने में जा जाकर ऐलान करता और बदरूहों को निकालता रहा।40और एक कोढ़ी ने उस के पास आकर उसकी मिन्नत की और उसके सामने घुटने टेक कर उस से कहा “अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है।”41उसने उसपर तरस खाकर हाथ बढ़ाया और उसे छूकर उस से कहा।“मैं चाहता हूँ, तू पाक साफ हो जा।”42और फ़ौरन उसका कोढ़ जाता रहा और वो पाक साफ हो गया।43और उसने उसे हिदायत कर के फ़ौरन रुख़्सत किया।44और उससे कहा “ख़बरदार! किसी से कुछ न कहना जाकर अपने आप को इमामों को दिखा, और अपने पाक साफ़ हो जाने के बारे में उन चीज़ो को जो मूसा ने मुक़रर्र की हैं नज़्र गुजार ताकि उनके लिए गवाही हो।”45लेकिन वो बाहर जाकर बहुत चर्चा करने लगा, और इस बात को इस क़दर मशहूर किया कि ईसा शहर में फिर खुलेआम दाख़िल न हो सका; बल्कि बाहर वीरान मुक़ामों में रहा, और लोग चारों तरफ़ से उसके पास आते थे।
1चूँकि बहुतों ने इस पर कमर बाँधी है कि जो बातें हमारे दरमियान वाक़े ' हुईं उनको सिलसिलावार बयान करें .2जैसा कि उन्होंने जो शुरू ' से ख़ुद देखने वाले और कलाम के ख़ादिम थे उनको हम तक पहुँचाया।3इसलिए ऐ मु'अज़्ज़िज़ थियुफ़िलूस ! मैंने भी मुनासिब जाना कि सब बातों का सिलसिला शुरू ' से ठीक-ठीक मालूम करके उनको तेरे लिए तरतीब से लिखूँ ।4ताकि जिन बातों की तूने तालीम पाई है उनकी पुख़्तगी तुझे मालूम हो जाए।5यहूदिया के बादशाह हेरोदेस के ज़माने में अबिय्याह के फ़रीक़ में से ज़करियाह नाम एक काहिन था और उसकी बीवी हारून की औलाद में से थी और उसका नाम इलीशिबा 'था ।6और वो दोनों ख़ुदा के सामने रास्तबाज़ और ख़ुदावन्द के सब अहकाम-ओ-क़वानीन पर बे- 'ऐब चलने वाले थे .7और उनके औलाद न थी क्यूँकि इलीशिबा ' बाँझ थी और दोनों 'उम्र रसीदा थे।8जब वो ख़ुदा के हुज़ूर अपने फ़रीक़ की बारी पर इमामत का काम अन्जाम देता था तो ऐसा हुआ , ।9कि इमामत के दस्तूर के मुवाफिक उसके नाम की पर्ची निकली कि ख़ुदावन्द के हुज़ूरी में जाकर ख़ुशबू जलाए ।10और लोगों की सारी जमा 'अत ख़ुशबू जलाते वक़्त बाहर दुआ कर रही थी ।11अचानक ख़ुदा का एक फ़रिश्ता ज़ाहिर हुआ जो ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह के दहनी तरफ़ खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया ।12उसे देख कर ज़करियाह घबराया और बहुत डर गया।13लेकिन फ़रिश्ते ने उस से कहा, “ज़करियाह, मत डर! ख़ुदा ने तेरी दुआ सुन ली है। तेरी बीवी इलीशिबा के बेटा होगा। उस का नाम युहन्ना रखना।14वह न सिर्फ़ तेरे लिए ख़ुशी और मुसर्रत का बाइस होगा, बल्कि बहुत से लोग उस की पैदाइश पर ख़ुशी मनाएँगे।15क्यूँकि वह ख़ुदा के नज़्दीक अज़ीम होगा। ज़रूरी है कि वह मय और शराब से परहेज़ करे। वह पैदा होने से पहले ही रूह-उल-क़ुद्दूस से भरपूर होगा|16और इस्राईली क़ौम में से बहुतों को ख़ुदा उन के ख़ुदा के पास वापस लाएगा।17वह एलियाह की रूह और क़ुव्वत से ख़ुदावन्द के आगे आगे चलेगा। उस की ख़िदमत से वालिदों के दिल अपने बच्चों की तरफ़ माइल हो जाएँगे और नाफ़रमान लोग रास्तबाज़ों की अक़्लमंदी की तरफ़ फिरेंगे | यूँ वह इस क़ौम को ख़ुदा के लिए तय्यार करेगा।”18ज़करियाह ने फ़रिश्ते से पूछा, “मैं किस तरह जानूँ कि यह बात सच् है? मैं ख़ुद बूढ़ा हूँ और मेरी बीवी भी उम्र रसीदा है।”19फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “मैं जिब्राईल हूँ जो ख़ुदावंद के सामने खड़ा रहता हूँ। मुझे इसी मक़्सद के लिए भेजा गया है कि तुझे यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ।20लेकिन तूने मेरी बात का यक़ीन नहीं किया इस लिए तू ख़ामोश रहेगा और उस वक़्त तक बोल नहीं सकेगा जब तक तेरे बेटा पैदा न हो। मेरी यह बातें अपने वक़्त पर ही पूरी होंगी।”21इस दौरान बाहर के लोग ज़करियाह के इन्तिज़ार में थे। वह हैरान होते जा रहे थे कि उसे वापस आने में क्यूँ इतनी देर हो रही है।22आख़िरकार वह बाहर आया, लेकिन वह उन से बात न कर सका। तब उन्हों ने जान लिया कि उस ने ख़ुदा के घर में ख़्वाब देखा है। उस ने हाथों से इशारे तो किए, लेकिन ख़ामोश रहा।23ज़करियाह अपने वक़्त तक ख़ुदा के घर में अपनी ख़िदमत अन्जाम देता रहा, फिर अपने घर वापस चला गया।24थोड़े दिनों के बाद उस की बीवी इलीशिबा हामिला हो गई और वह पाँच माह तक घर में छुपी रही।25उस ने कहा, “ख़ुदावन्द ने मेरे लिए कितना बड़ा काम किया है, क्यूँकि अब उस ने मेरी फ़िक्र की और लोगों के सामने से मेरी रुस्वाई दूर कर दी।”26इलीशिबा छः माह से हामिला थी जब ख़ुदा ने जिब्राईल फ़रिश्ते को एक कुंवारी के पास भेजा जो नासरत में रहती थी। नासरत गलील का एक शहर है और कुंवारी का नाम मरियम था।27उस की मंगनी एक मर्द के साथ हो चुकी थी जो दाऊद बादशाह की नसल से था और जिस का नाम यूसुफ़ था।28फ़रिश्ते ने उस के पास आ कर कहा, “ऐ ख़ातून जिस पर ख़ुदा का ख़ास फ़ज़्ल हुआ है, सलाम! ख़ुदा तेरे साथ है।”29मरियम यह सुन कर घबरा गई और सोचा, “यह किस तरह का सलाम है?”30लेकिन फ़रिश्ते ने अपनी बात जारी रखी और कहा, “ऐ मरियम, मत डर, क्यूँकि तुझ पर ख़ुदा का फ़ज़ल हुआ है।31तू हमिला हो कर एक बेटे को पैदा करेगी । तू उस का नाम ईसा (नजात देने वाला) रखना।32वह बड़ा होगा और ख़ुदावंद का बेटा कहलाएगा। ख़ुदा हमारा ख़ुदा उसे उस के बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाएगा33और वह हमेशा तक इस्राईल पर हुकूमत करेगा। उस की सल्तनत कभी ख़त्म न होगी।”34मरियम ने फ़रिश्ते से कहा, “यह क्यूँकर हो सकता है? अभी तो मैं कुंवारी हूँ।”35फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “रूह-उल-क़ुद्दूस तुझ पर नाज़िल होगा, ख़ुदावंद की क़ुदरत का साया तुझ पर छा जाएगा। इस लिए यह बच्चा क़ुद्दूस होगा और ख़ुदा का बेटा कहलाएगा।36और देख, तेरी रिश्तेदार इलीशिबा के भी बेटा होगा हालाँकि वह उम्ररसीदा है। गरचे उसे बाँझ क़रार दिया गया था, लेकिन वह छः माह से हामिला है।37क्यूँकि ख़ुदा के नज़्दीक कोई काम नामुम्किन नहीं है।”38मरियम ने जवाब दिया, “मैं ख़ुदा की ख़िदमत के लिए हाज़िर हूँ। मेरे साथ वैसा ही हो जैसा आप ने कहा है।” इस पर फ़रिश्ता चला गया।39उन दिनों में मरियम यहूदिया के पहाड़ी इलाक़े के एक शहर के लिए रवाना हुई। उस ने जल्दी जल्दी सफ़र किया।40वहाँ पहुँच कर वह ज़करियाह के घर में दाख़िल हुई और इलीशिबा को सलाम किया।41मरियम का यह सलाम सुन कर इलीशिबा का बच्चा उस के पेट में उछल पड़ा और इलीशिबा ख़ुद रूह-उल-क़ुद्दूस से भर गई।42उस ने बुलन्द आवाज़ से कहा, “तू तमाम औरतों में मुबारक है और मुबारक है तेरा बच्चा!43मैं कौन हूँ कि मेरे ख़ुदावन्द की माँ मेरे पास आई!44जैसे ही मैं ने तेरा सलाम सुना बच्चा मेरे पेट में ख़ुशी से उछल पड़ा।45तू कितनी मुबारक है, क्यूँकि तू ईमान लाई कि जो कुछ ख़ुदा ने फ़रमाया है वह पूरा होगा ।”46इस पर मरियम ने कहा, “मेरी जान ख़ुदा की बड़ाई करती है47और मेरी रूह मेरे मुन्जी ख़ुदावंद से बहुत ख़ुश है।48क्यूँकि उस ने अपनी ख़ादिमा की पस्ती पर नज़र की है। हाँ, अब से तमाम नसलें मुझे मुबारक कहेंगी,49क्यूँकि उस क़ादिर ने मेरे लिए बड़े-बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पाक है |50और ख़ौफ़ रहम उन पर जो उससे डरते हैं, पुश्त-दर-पुश्त रहता है |51उसने अपने बाज़ू से ज़ोर दिखाया, और जो अपने आपको बड़ा समझते थे उनको तितर बितर किया |52उसने इख़्तियार वालों को तख़्त से गिरा दिया, और पस्तहालों को बुलंद किया |53उसने भूखों को अच्छी चीज़ों से सेर कर दिया, और दौलतमंदों को ख़ाली हाथ लौटा दिया |54उसने अपने ख़ादिम इस्राईल को संभाल लिया, ताकि अपनी उस रहमत को याद फ़रमाए |55जो अब्राहम और उसकी नस्ल पर हमेशा तक रहेगी, जैसा उसने हमारे बाप-दादा से कहा था |”56और मरियम तीन महीने के क़रीब उसके साथ रहकर अपने घर को लौट गई |57और इलीशिबा' के वज़'ए हम्ल का वक़्त आ पहुँचा और उसके बेटा हुआ |58उसके पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने ये सुनकर कि ख़ुदावन्द ने उस पर बड़ी रहमत की, उसके साथ ख़ुशी मनाई |59और आठवें दिन ऐसा हुआ कि वो लड़के का ख़तना करने आए और उसका नाम उसके बाप के नाम पर ज़करियाह रखने लगे |60मगर उसकी माँ ने कहा, "नहीं बल्कि उसका नाम युहन्ना रखा जाए |"61उन्होंने कहा, "तेरे ख़ानदान में किसी का ये नाम नहीं |"62और उन्होंने उसके बाप को इशारा किया कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है?63उसने तख़्ती माँग कर ये लिखा, "उसका नाम युहन्ना है," और सब ने ता'ज्जुब किया |64उसी दम उसका मुँह और ज़बान खुल गई और वो बोलने और ख़ुदा की हम्द करने लगा |65और उनके आसपास के सब रहने वालों पर दहशत छा गई और यहूदिया के तमाम पहाड़ी मुल्क में इन सब बातों की चर्चा फैल गई |66और उनके सब सुनने वालों ने उनको सोच कर दिलों में कहा, "तो ये लड़का कैसा होने वाला है?" क्यूँकि ख़ुदावन्द का हाथ उस पर था |67और उस का बाप ज़किरयाह रुह-उल-क़ुद्दूस से भर गया और नबुव्वत की राह से कहने लगा कि :68ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हम्द हो क्यूँकि उसने अपनी उम्मत पर तवज्जो करके उसे छुटकारा दिया |69और अपने ख़ादिम दाऊद के घराने में हमारे लिए नजात का सींग निकाला,70(जैसा उसने अपने पाक नबियों की ज़बानी कहा था जो कि दुनिया के शुरू' से होते आए है )71या'नी हम को हमारे दुश्मनों से और सब बुग़्ज़ रखने वालों के हाथ से नजात बख्शी |72ताकि हमारे बाप-दादा पर रहम करे और अपने पाक 'अहद को याद फ़रमाए |73या'नी उस कसम को जो उसने हमारे बाप अब्राहम से खाई थी,74कि वो हमें ये बख़्शिश देगा कि अपने दुश्मनों के हाथ से छूटकर,75उसके सामने पाकीज़गी और रास्तबाज़ी से 'उम्र भर बेख़ौफ़ उसकी 'इबादत करें76और ऐ लड़के तू ख़ुदा ता'ला का नबी कहलाएगा क्यूँकि तू ख़ुदावन्द की राहें तैयार करने को उसके आगे आगे चलेगा,77ताकि उसकी उम्मत को नजात का 'इल्म बख़्शे जो उनको गुनाहों की मु'आफ़ी से हासिल हो |78ये हमारे ख़ुदा की 'ऐन रहमत से होगा; जिसकी वजह से 'आलम-ए-बाला का सूरज हम पर निकलेगा,79ताकि उनको जो अन्धेरे और मौत के साये में बैठे हैं रोशनी बख़्शे, और हमारे क़दमों को सलामती की राह पर डाले |"80और वो लड़का बढ़ता और रूह में क़ुव्वत पाता गया, और इस्राईल पर ज़ाहिर होने के दिन तक जंगलों में रहा |
1इब्तिदा में कलाम था, और कलाम ख़ुदा के साथ था, और कलाम ही ख़ुदा था।2यही शुरू में ख़ुदा के साथ था।3सब चीज़ें उसके वसीले से पैदा हुईं, और जो कुछ पैदा हुआ है उसमें से कोई चीज़ भी उसके बग़ैर पैदा नहीं हुई ।4उसमें ज़िन्दगी थी और वो ज़िन्दगी आदमियों का नूर थी।5और नूर तारीकी में चमकता है, और तारीकी ने उसे क़ुबूल न किया |6एक आदमी युहन्ना नाम आ मौजूद हुआ, जो ख़ुदा की तरफ़ से भेजा गया था;7ये गवाही के लिए आया कि नूर की गवाही दे, ताकि सब उसके वसीले से ईमान लाएँ।8वो ख़ुद तो नूर न था, मगर नूर की गवाही देने आया था |9हक़ीक़ी नूर जो हर एक आदमी को रौशन करता है, दुनियाँ में आने को था |10वो दुनियाँ में था, और दुनियाँ उसके वसीले से पैदा हुई, और दुनियाँ ने उसे न पहचाना |।11वो अपने घर आया और और उसके अपनों ने उसे क़ुबूल न किया।12लेकिन जितनों ने उसे क़ुबूल किया, उसने उन्हें ख़ुदा के फ़र्ज़न्द बनने का हक़ बख़्शा, या'नी उन्हें जो उसके नाम पर ईमान लाते हैं |13वो न खून से, न जिस्म की ख़्वाहिश से, न इंसान के इरादे से, बल्कि ख़ुदा से पैदा हुए |14और कलाम मुजस्सिम हुआ फ़ज़ल और सच्चाई से भरकर हमारे दरमियान रहा, और हम ने उसका ऐसा जलाल देखा जैसा बाप के इकलौते का जलाल |15युहन्ना ने उसके बारे में गवाही दी, और पुकार कर कहा है, "ये वही है, जिसका मैंने ज़िक्र किया कि जो मेरे बा'द आता है, वो मुझ से मुक़द्दम ठहरा क्यूँकि वो मुझ से पहले था |"16क्यूँकि उसकी भरपूरी में से हम सब ने पाया, या'नी फ़ज़ल पर फ़ज़ल।17इसलिए कि शरी'अत तो मूसा के ज़रिये दी गई, मगर फ़ज़ल और सच्चाई ईसा' मसीह के ज़रिये पहुँची।18ख़ुदा को किसी ने कभी नहीं देखा, इकलौता बेटा जो बाप की गोद में है उसी ने ज़ाहिर किया |19और युहन्ना की गवाही ये है, कि जब यहूदी अगुवो ने यरूशलीम से काहिन और लावी ये पूछने को उसके पास भेजे, "तू कौन है? "20तो उसने इक़रार किया, "और इन्कार न किया बल्कि , इक़रार किया, "मैं तो मसीह नहीं हूँ |"21उन्होंने उससे पूछा, " फिर तू कौन है ? क्या तू एलियाह है?" उसने कहा, "मैं नहीं हूँ |" "क्या तू वो नबी है?" उसने जवाब दिया,कि "नहीं |"22पस उन्होंने उससे कहा, "फिर तू है कौन? ताकि हम अपने भेजने वालों को जवाब दें कि, तू अपने हक़ में क्या कहता है?"23“मैं जैसा यसायाह नबी ने कहा ,वीराने में एक पुकारने वाले की आवाज़ हूँ ,'तुम ख़ुदा वन्द की राह को सीधा करो' ।”24ये फ़रीसियों की तरफ़ से भेजे गए थे |25उन्होंने उससे ये सवाल किया, "अगर तू न मसीह है, न एलियाह, न वो नबी, तो फिर बपतिस्मा क्यूँ देता है ?"26युहन्ना ने जवाब में उनसे कहा, "मैं पानी से बपतिस्मा देता हूँ, तुम्हारे बीच एक शख़्स खड़ा है जिसे तुम नहीं जानते।27या'नी मेरे बा'द का आनेवाला, जिसकी जूती का फ़ीता मैं खोलने के लायक़ नहीं |"28ये बातें यरदन के पार बैत'अन्नियाह में वाक़े' हुईं, जहाँ युहन्ना बपतिस्मा देता था |29दूसरे दिन उसने ईसा' 'को अपनी तरफ़ आते देखकर कहा, "देखो, ये ख़ुदा का बर्रा है जो दुनियाँ का गुनाह उठा ले जाता है !30ये वही है जिसके बारे मैंने कहा था, 'एक शख़्स मेरे बा'द आता है, जो मुझ से मुक़द्दम ठहरा है, क्योंकि वो मुझ से पहले था |'31और मैं तो उसे पहचानता न था, मगर इसलिए पानी से बपतिस्मा देता हुआ आया कि वो इस्राईल पर ज़ाहिर हो जाए |"32और युहन्ना ने ये गवाही दी : "मैंने रूह को कबूतर की तरह आसमान से उतरते देखा है, और वो उस पर ठहर गया।33मैं तो उसे पहचानता न था, मगर जिसने मुझे पानी से बपतिस्मा देने को भेजा उसी ने मुझ से कहा, 'जिस पर तू रूह को उतरते और ठहरते देखे, वही रूह-उल-क़ुद्दूस से बपतिस्मा देनेवाला है।'34चुनाँचे मैंने देखा, और गवाही दी है कि ये ख़ुदा का बेटा है |"35दूसरे दिन फिर युहन्ना और उसके शागिर्दों में से दो शख़्स खड़े थे,।36उसने ईसा' पर जो जा रहा था निगाह करके कहा, "देखो, ये ख़ुदा का बर्रा है !"37वो दोनों शागिर्द उसको ये कहते सुनकर ईसा' के पीछे हो लिए |38ईसा' ने फिरकर और उन्हें पीछे आते देखकर उनसे कहा, "तुम क्या ढूँढ़ते हो ?" उन्होंने उससे कहा, "ऐ रब्बी (या'नी ऐ उस्ताद), तू कहाँ रहता है? "39उसने उनसे कहा, "चलो, देख लोगे |" पस उन्होंने आकर उसके रहने की जगह देखी और उस रोज़ उसके साथ रहे, और ये चार बजे के क़रीब था|40उन दोनों में से जो यूहन्ना की बात सुनकर ईसा' के पीछे हो लिए थे, एक शमा'ऊन पतरस का भाई अन्द्रियास था।41उसने पहले अपने सगे भाई शमा'ऊन से मिलकर उससे कहा, "हम को ख़्रितुस, या'नी मसीह मिल गया |"42वो उसे ईसा' के पास लाया ईसा' ने उस पर निगाह करके कहा, "तू यूहन्ना का बेटा शमा'ऊन है; तू कैफ़ा या'नी पतरस कहलाएगा |"43दूसरे दिन ईसा ने गलील में जाना चाहा, और फिलिप्पुस से मिलकर कहा,"मेरे पीछे हो ले |"44फ़िलिप्पुस, अन्द्रियास और पतरस के शहर, बैतसैदा का रहने वाला था।45फ़िलिप्पुस से नतनएल से मिलकर उससे कहा, "जिसका ज़िक्र मूसा ने तौरेत में और नबियों ने किया है, वो हम को मिल गया; वो यूसुफ़ का बेटा ईसा' नासरी है |"46नतनएल ने उससे कहा, "क्या नासरत से कोई अच्छी चीज़ निकल सकती है ?" फिलिप्पुस ने कहा, "चलकर देख ले |"47ईसा' ने नतनएल को अपनी तरफ़ आते देखकर उसके हक़ में कहा, "देखो, ये फ़िल हक़ीक़त इस्राईली है ! इसमें मक्र नहीं |"48नतनएल ने उससे कहा, "तू मुझे कहाँ से जानता है?" ईसा' ने उसके जवाब में कहा, "इससे पहले के फ़िलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के दरख़्त के नीचे था, मैंने तुझे देखा |"49नतनएल ने उसको जवाब दिया, "ऐ रब्बी, तू ख़ुदा का बेटा है ! तू बादशाह का बादशाह है !"50ईसा' ने जवाब में उससे कहा, "मैंने जो तुझ से कहा, 'तुझ को अंजीर के दरख़्त के नीचे देखा, 'क्या। तू इसीलिए ईमान लाया है? तू इनसे भी बड़े-बड़े मो'जिज़े देखेगा |"51फिर उससे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि आसमान को खुला और ख़ुदा के फ़रिश्तों को ऊपर जाते और इब्न-ए-आदम पर उतरते देखोगे।”
1ऐ थियुफ़िलुस" मैने पहली किताब उन सब बातों के बयान में लिखी जो ईसा' शुरू; में करता और सिखाता रहा |2उस दिन तक जिसमें वो उन रसूलों को जिन्हें उसने चुना था रूह-उल- क़ुद्दूस के वसीले से हुक्म देकर ऊपर उठाया गया |3ईसा ने तकलीफ़ सहने के बा'द बहुत से सबूतों से अपने आपको उन पर ज़िन्दा ज़ाहिर भी किया, चुनाँचे वो चालीस दिन तक उनको नज़र आता और ख़ुदा की बादशाही की बातें कहता रहा।4और उनसे मिलकर उन्हें हुक्म दिया, “यरूशलीम से बाहर न जाओ, बल्कि बाप के उस वा'दे के पूरा होने का इन्तिज़ार करो, जिसके बारे में तुम मुझ से सुन चुके हो ,5क्यूँकि युहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया मगर तुम थोड़े दिनों के बाद रुह-उल-क़ुद्दूस से बपतिस्मा पाओगे।”6पस उन्होंने इकठठा होकर पूछा, “ऐ ख़ुदावन्द! क्या तू इसी वक्त़ इस्राईल को बादशाही फिर' अता करेगा?”7उसने उनसे कहा, “ उन वक़्तों और मी'आदों का जानना, जिन्हें बाप ने अपने ही इख़्तियार में रख्खा है, तुम्हारा काम नहीं|”8लेकिन जब रूह-उल-क़ुद्दूस तुम पर नाज़िल होगा तो तुम ताकत पाओगे; और यरूशलीम और तमाम यहूदिया और सामरिया में, बल्कि ज़मीन के आख़ीर तक मेरे गवाह होगे|9ये कहकर वो उनको देखते देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादलो ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया|10उसके जाते वक़्त वो आसमान की तरफ़ ग़ौर से देख रहे थे, तो देखो, दो मर्द सफ़ेद पोशाक पहने उनके पास आ खड़े हुए,11और कहने लगे, “ ऐ गलीली मर्दो। तुम क्यूँ खड़े आसमान की तरफ़ देखते हो ?यही ईसा' जो तुम्हारे पास से आसमान पर उठाया गया है, इसी तरह फिर आएगा जिस तरह तुम ने उसे आसमान पर जाते देखा है।”12तब वो उस पहाड़ से जो ज़ैतून का कहलाता है और यरूशलीम के नज़दीक सबत की मन्ज़िल के फ़ासले पर है यरूशलीम को फिरे।13और जब उसमें दाख़िल हुए तो उस बालाख़ाने पर चढ़े जिस में वो या'नी पतरस और यूहन्ना, और या'क़ूब और अन्द्रियास और फ़िलिप्युस, तोमा, बरतुलमाई, मत्ती, हलफ़ी का बेटा या'कूब, शमा'ऊन ज़ेलोतेस और या'कूब का बेटा यहूदाह रहते थे।14ये सब के सब चन्द 'औरतों और ईसा' की माँ मरियम और उसके भाइयों के साथ एक दिल होकर दु'आ में मशग़ूल रहे|15उन्ही दिनों पतरस भाइयों में जो तक़रीबन एक सौ बीस शख़्सों की जमा'अत थी खड़ा होकर कहने लगा,16“ऐ भाइयों उस नबूव्वत का पूरा होना ज़रूरी था जो रूह -उल -क़ुद्दूस ने दाऊद के ज़बानी उस यहूदा के हक़ में पहले कहा था, जो ईसा' के पकड़ने वालों का रहनुमा हुआ।17क्यूँकि वो हम में शुमार किया गया और उस ने इस ख़िदमत का हिस्सा पाया।”18उस ने बदकारी की कमाई से एक खेत ख़रीदा ,और सिर के बल गिरा और उसका पेट फ़ट गया और उसकी सब आँतें निकल पड़ीं।19और ये यरूशलीम के सब रहने वालों को मा'लूम हुआ, यहां तक कि उस खेत का नाम उनकी ज़बान में हैक़लेदमा पड़ गया या'नी [ख़ून का खेत] |20क्यूँकि ज़बूर में लिखा है, 'उसका घर उजड़ जाए , और उसमें कोई बसनें वाला न रहे और उसका मर्तबा दुसरा ले ले।'21पस जितने 'अर्से तक ख़ुदावन्द ईसा' हमारे साथ आता जाता रहा, यानी यूहन्ना के बपतिस्मे से लेकर ख़ुदावन्द के हमारे पास से उठाए जाने तक-जो बराबर हमारे साथ रहे,।22चाहिए कि उन में से एक आदमी हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह बने।23फिर उन्होंने दो को पेश किया। एक यूसुफ़ को जो बरसबा कहलाता है और जिसका लक़ब यूसतुस है। दूसरा मत्तय्याह को।24और ये कह कर दु'आ की, “ऐ ख़ुदावन्द! तू जो सब के दिलों को जानता है, ये ज़ाहिर कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है25ताकि वह इस ख़िदमत और रसूलो की जगह ले, जिसे यहूदाह छोड़ कर अपनी जगह गया।”26फिर उन्होंने उनके बारे में पर्ची डाली, और पर्ची मत्तय्याह के नाम की निकली। पस वो उन ग्यारह रसूलों के साथ शुमार किया गया।
1पौलुस की तरफ़ से जो ईसा' मसीह का बन्दा है और रसूल होने के लिए बुलाया गया और ख़ुदा की उस ख़ुशख़बरी के लिए अलग किया गया |2पस मैं तुम को भी जो रोमा में हों ख़ुशख़बरी सुनाने को जहाँ तक मेरी ताक़त है मैं तैयार हुँ।3अपने बेटे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के बारे में वा'दा किया था जो जिस्म के ऐ'तिबार से तो दाऊद की नस्ल से पैदा हुआ।4लेकिन पाकीज़गी की रूह के ऐतबार से मुर्दों में से जी उठने की वजह से क़ुदरत के साथ ख़ुदा का बेटा ठहरा।5जिस के ज़रिए हम को फ़ज़ल और रिसालत मिली ताकि उसके नाम की ख़ातिर सब क़ौमों में से लोग ईमान के ताबे हों।6जिन में से तुम भी ईसा' मसीह के होने के लिए बुलाए गए हो।7उन सब के नाम जो रोम में ख़ुदा के प्यारे हैं और मुक़द्दस होने के लिए बुलाए गए हैं; हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मीनान हासिल होता रहे।8पहले , तो मैं तुम सब के बारे में ईसा' मसीह के वसीले से अपने ख़ुदा का शुक्र करता हूँ कि तुम्हारे ईमान का तमाम दुनिया में नाम हो रहा है।9चुनाँचे ख़ुदा जिस की इबादत में अपनी रूह से उसके बेटे की ख़ुशख़बरी देने में करता हूँ वही मेरा गवाह है कि में बिला नाग़ा तुम्हें याद करता हूँ।10और अपनी दुआओं में हमेशा ये गुज़ारिश करता हूँ कि अब आख़िरकार ख़ुदा की मर्ज़ी से मुझे तुम्हारे पास आने में किसी तरह कामयाबी हो।11क्यूँकि में तुम्हारी मुलाक़ात का मुश्ताक़ हूँ, ताकि तुम को कोई रूहानी ने'मत दूँ जिस से तुम मज़बूत हो जाओ।12ग़रज़ मैं भी तुम्हारे दर्मियान हो कर तुम्हारे साथ उस ईमान के ज़रिए तसल्ली पाऊँ जो तुम में और मुझ में दोनों में है।13और ऐ भाइयो; मैं इस से तुम्हारा ना वाक़िफ़ रहना नहीं चाहता कि मैंने बार बार तुम्हारे पास आने का इरादा किया ताकि जैसा मुझे और ग़ैर क़ौमों में फल मिला वैसा ही तुम में भी मिले मगर आज तक रुका रहा।14मैं युनानियों और ग़ैर यूनानियों दानाओं और नादानों का क़र्ज़दार हूँ|15पस मैं तुम को भी जो रोमा में हों ख़ुशख़बरी सुनाने को जहाँ तक मेरी ताक़त है मैं तैयार हूँ।16क्यूँकि मैं इन्जील से शर्माता नहीं इसलिए कि वो हर एक ईमान लानेवाले के वास्ते पहले यहूदियों फिर यूनानी के वास्ते नजात के लिए ख़ुदा की क़ुदरत है।17इस वास्ते कि उसमें ख़ुदा की रास्तबाज़ी ईमान से “और ईमान के लिए ज़ाहिर होती है जैसा लिखा है ”रास्तबाज़ ईमान से जीता रहेगा'18क्यूँकि ख़ुदा का ग़ज़ब उन आदमियों की तमाम बेदीनी और नारास्ती पर आसमान से ज़ाहिर होता है।19क्यूँकि जो कुछ ख़ुदा के बारे में मालूम हो सकता है वो उनको बातिन में ज़ाहिर है इसलिए कि ख़ुदा ने उनको उन पर ज़ाहिर कर दिया।20क्यूँकि उसकी अनदेखी सिफ़तें या'नी उसकी अज़ली क़ुदरत और खुदाइयत दुनिया की पैदाइश के वक़्त से बनाई हुई चीज़ों के ज़रि'ए मा'लूम हो कर साफ़ नज़र आती हैं यहाँ तक कि उन को कुछ बहाना बाक़ी नहीं।21इसलिए कि अगर्चे ख़ुदाई के लायक़ उसकी बड़ाई और शुक्रगुज़ारी न की बल्कि बेकार के ख़याल में पड़ गए, और उनके नासमझ दिलों पर अँधेरा छा गया।22वो अपने आप को अक़्लमन्द समझ कर बेवक़ूफ़ बन गए।23और ग़ैर फ़ानी ख़ुदा के जलाल को फ़ानी इन्सान और परिन्दों और चौपायों और कीड़ों मकोड़ों की सूरत में बदल डाला24इस वास्ते ख़ुदा ने उनके दिलों की ख़्वाहिशों के मुताबिक़ उन्हें नापाकी में छोड़ दिया कि उन के बदन आपस में बेइज़्ज़त किए जाएँ।25इसलिए कि उन्होंने ख़ुदा की सच्चाई को बदल कर झूठ बना डाला और मख़्लूक़ात की ज़्यादा 'इबादत की बनिस्बत उस ख़ालिक़ के जो हमेशा तक महमूद है; आमीन।26इसी वजह से ख़ुदा ने उनको गन्दी आदतों में छोड़ दिया यहाँ तक कि उनकी औरतों ने अपने तब;ई काम को ख़िलाफ़'ए तब'आ काम से बदल डाला।27इसी तरह मर्द भी औरतों से तब;ई काम छोड़ कर आपस की शहवत से मस्त हो गए; या'नी आदमियों ने आदमियों के साथ रुसिहाई का काम कर के अपने आप में अपने काम के मुआफ़िक़ बदला पाया।28और जिस तरह उन्होंने ख़ुदा को पहचानना नापसन्द किया उसी तरह ख़ुदा ने भी उनको नापसन्दीदा अक़्ल के हवाले कर दिया कि नालायक़ हरक़तें करें।29पस वो हर तरह की नारासती बदी लालच और बदख़्वाही से भर गए, ख़ूनरेजी, झगड़े, मक्कारी और अदावत से मा'मूर हो गए, और ग़ीबत करने वाले।30बदग़ो ख़ुदा की नज़र में नफ़रती औरो को बे'इज़्ज़त करनेवाला, मग़रूर, शेख़ीबाज़, बदियों के बानी, माँ बाप के नाफ़रमान,31बेवक़ूफ़, वादा ख़िलाफ़, तबई तौर से मुहब्बत से ख़ाली और बे रहम हो गए।32हालाँकि वो ख़ुदा का हुक्म जानते हैं कि ऐसे काम करने वाले मौत की सज़ा के लायक़ हैं फिर भी न सिर्फ़ ख़ुद ही ऐसे काम करते हैं बल्कि और करनेवालो से भी ख़ुश होते हैं।
1पौलुस रसूल की तरफ़ से, जो ख़ुदा की मर्ज़ी से ईसा' मसीह का रसूल होने के लिए बुलाया गया है और भाई सोस्थिनेस की तरफ़ से,ये ख़त ,2ख़ुदा की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस शहर में है, या'नी उन के नाम जो मसीह ईसा' में पाक किए गए, और मुक़द्दस होने के लिए बुलाए गए हैं, और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपने ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का नाम लेते हैं।3हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मिनान हासिल होता रहे।4मैं तुम्हारे बारे में ख़ुदा के उस फ़ज़ल के ज़रिए जो मसीह ईसा' में तुम पर हुआ हमेशा अपने ख़ुदा का शुक्र करता हूँ।5कि तुम उस में होकर सब बातों में कलाम और इल्म की हर तरह की दौलत से दौलतमन्द हो गए, हो।6चुनाँचे मसीह की गवाही तुम में क़ायम हुई।7यहाँ तक कि तुम किसी ने'मत में कम नहीं, और हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के ज़हूर के मुन्तज़िर हो।8जो तुम को आख़िर तक क़ायम भी रख्खेगा, ताकि तुम हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा'' मसीह के दिन बे'इल्ज़ाम ठहरो।9ख़ुदा सच्चा है जिसने तुम्हें अपने बेटे हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा मसीह की शराकत के लिए बुलाया है।10अब ऐ भाइयो! ईसा' मसीह जो हमारा ख़ुदावन्द है, उसके नाम के वसीले से मैं तुम से इल्तिमास करता हूँ कि सब एक ही बात कहो, और तुम में तफ़्रके़ न हों, बल्कि एक साथ एक दिल और एक राय हो कर कामिल बने रहो।11क्यूँकि ऐ भाइयों! तुम्हारे ज़रिए मुझे ख़लोए के घर वालों से मा'लूम हुआ कि तुम में झगड़े हो रहे हैं।12मेरा ये मतलब है कि तुम में से कोई तो अपने आपको पौलुस का कहता है कोई अपुल्लोस का कोई कैफ़ा का कोई मसीह का।13क्या मसीह बट गया? क्या पौलुस तुम्हारी ख़ातिर मस्लूब हुआ? या तुम ने पौलुस के नाम पर बपतिस्मा लिया?।14ख़ुदा का शुक्र करता हूँ कि क्रिस्पुस और गयुस के सिवा मैंने तुम में से किसी को बपतिस्मा नहीं दिया।15ताकि कोई ये न कहे कि तुम ने मेरे नाम पर बपतिस्मा लिया।16हाँ स्तिफ़नास के ख़ानदान को भी मैंने बपतिस्मा दिया बाक़ी नहीं जानता कि मैंने किसी और को बपतिस्मा दिया हो।17क्यूँकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने को नहीं भेजा बल्कि ख़ुशख़बरी सुनाने को और वो भी कलाम की हिक्मत से नहीं ताकि मसीह की सलीबी मौत बे'ताशीर न हो।18क्यूँकि सलीब का पैग़ाम हलाक होने वालों के नज़दीक तो बे'वक़ूफ़ी है मगर हम नजात पानेवालों के नज़दीक ख़ुदा की क़ुदरत है।19क्यूँकि लिखा है, “मैं हकीमों की हिक्मत को नेस्त और अक़्लमन्दों की अक़्ल को रद्द करूँगा। ”20कहाँ का हकीम? कहाँ का आलिम? कहाँ का इस जहान का बहस करनेवाला? क्या ख़ुदा ने दुनिया की हिक्मत को बे'वक़ूफ़ी नहीं ठहराया?।21इसलिए कि जब ख़ुदा की हिक्मत के मुताबिक़ दुनियाँ ने अपनी हिक्मत से ख़ुदा को न जाना तो ख़ुदा को ये पसन्द आया कि इस मनादी की बेवक़ूफ़ी के वसीले से ईमान लानेवालों को नजात दे।22चुनाँचे यहूदी निशान चाहते हैं और यूनानी हिक्मत तलाश करते हैं।23मगर हम उस मसीह मस्लूब का ऐलान करते हैं जो यहूदियों के नज़दीक ठोकर और ग़ैर क़ौमों के नज़दीक बेवक़ूफ़ी है।24लेकिन जो बुलाए हुए हैं यहूदी हों या यूनानी उन के नज़दीक मसीह ख़ुदा की क़ुदरत और ख़ुदा की हिक्मत है।25क्यूँकि ख़ुदा की बेवक़ूफ़ी आदमियो की हिक्मत से ज्यादा हिक्मत वाली है और ख़ुदा की कमज़ोरी आदमियों के ज़ोर से ज़्यादा ताक़तवर है।26ऐ भाइयो! अपने बुलाए जाने पर तो निगाह करो कि जिस्म के लिहाज़ से बहुत से हकीम बहुत से इख़्तियार वाले बहुत से अशराफ़ नहीं बुलाए गए।27बल्कि ख़ुदा ने दुनिया के बेवक़ूफ़ों चुन लिया कि हकीमों को शर्मिन्दा करे और ख़ुदा ने दुनिया के कमज़ोरों को चुन लिया कि ज़ोरआवरों को शर्मिन्दा करे।28और ख़ुदा ने दुनिया के कमीनों और हक़ीरों को बल्कि बे वजूदों को चुन लिया कि मौजूदों को नेस्त करे।29ताकि कोई बशर ख़ुदा के सामने फ़ख़्र न करे।30लेकिन तुम उसकी तरफ़ से मसीह ईसा' में हो, जो हमारे लिए ख़ुदा की तरफ़ से हिक्मत ठहरा, या'नी रास्तबाज़ी और पाकीज़गी और मख़्लसी।31ताकि जैसा लिखा है“वैसा ही हो जो फ़ख़्र करे वो ख़ुदावन्द पर फ़ख़्र करे।”
1पौलुस की तरफ़ जो ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह ईसा' का रसूल है और भाई तिमुथियुस की तरफ़ से ख़ुदा की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस शहर में है और तमाम अख़्या के सब मुक़द्दसों के नाम पौलुस का ख़त |2हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मिनान हासिल होता रहे; आमीन।3हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो जो रहमतों का बाप और हर तरह की तसल्ली का ख़ुदा है।4वो हमारी सब मुसीबतों में हम को तसल्ली देता है; ताकि हम उस तसल्ली की वजह से जो ख़ुदा हमें बख़्शता है उनको भी तसल्ली दे सकें जो किसी तरह की मुसीबत में हैं।5क्यूँकि जिस तरह मसीह के दु:ख हम को ज़्यादा पहुँचते हैं; उसी तरह हमारी तसल्ली भी मसीह के वसीले से ज़्यादा होती है।6अगर हम मुसीबत उठाते हैं तो तुम्हारी तसल्ली और नजात के वास्ते और अगर तसल्ली पाते हैं तो तुम्हारी तसल्ली के वास्ते; जिसकी तासीर से तुम सब के साथ उन दुखों को बर्दाश्त कर लेते हो; जो हम भी सहते हैं।7और हमारी उम्मीद तुम्हारे बारे में मज़बूत है; क्यूँकि हम जानते हैं कि जिस तरह तुम दु:खों में शरीक हो उसी तरह तसल्ली में भी हो।8ऐ, भाइयो! हम नहीं चाहते कि तुम उस मुसीबत से ना वाक़िफ़ रहो जो आसिया में हम पर पड़ी कि हम हद से ज़्यादा और ताक़त से बाहर पस्त हो गए; यहाँ तक कि हम ने ज़िन्दगी से भी हाथ धो लिए।9बल्कि अपने ऊपर मौत के हुक्म का यक़ीन कर चुके थे ताकि अपना भरोसा न रख्खें बल्कि खुदा का जो मुर्दो को जिलाता है।10चुनाँचे उसी ने हम को ऐसी बड़ी हलाकत से छुड़ाया और छुड़ाएगा; और हम को उसी से ये उम्मीद है कि आगे को भी छुड़ाता रहेगा।11अगर तुम भी मिलकर दुआ से हमारी मदद करोगे ताकि जो नेअ'मत हम को बहुत लोगों के वसीले से मिली उसका शुक्र भी बहुत से लोग हमारी तरफ़ से करें।12क्यूँकि हम को अपने दिल की इस गवाही पर फ़ख़्र है कि हमारा चाल चलन दुनिया में और ख़ासकर तुम में जिस्मानी हिकमत के साथ नहीं बल्कि ख़ुदा के फ़ज़ल के साथ ऐसी पाकीज़गी और सफ़ाई के साथ रहा जो ख़ुदा के लायक़ है।13हम और बातें तुम्हे नहीं लिखते सिवा उन के जिन्हें तुम पढ़ते या मानते हो, और मुझे उम्मीद है कि आख़िर तक मानते रहोगे।14चुनाँचे तुम में से कितनों ही ने मान भी लिया है कि हम तुम्हारा फ़ख़्र हैं; जिस तरह हमारे ख़ुदावन्द ईसा' के दिन तुम भी हमारा फ़ख़्र रहोगे।15और इसी भरोसे पर मैंने ये इरादा किया था, कि पहले तुम्हारे पास आऊँ; ताकि तुम्हें एक और नेअ'मत मिले।16और तुम्हारे शहर से होता हुआ मकिदुनिया सूबे को जाऊँ और मकिदुनिया से फिर तुम्हारे पास आऊँ,और तुम मुझे यहूदिया की तरफ़ रवाना कर दो।17पस मैंने जो इरादा किया था शोखमिज़ाजी से किया था ? या जिन बातों का इरादा करता हूँ क्या जिस्मानी तौर पर करता हूँ कि हाँ हाँ भी करूँ और नहीं नहीं भी करूँ ?18ख़ुदा की सच्चाई की क़सम कि हमारे उस कलाम में जो तुम से किया जाता है हाँ और नहीँ दोनों पाई नहीं जातीं।19क्यूँकि ख़ुदा का बेटा ईसा' मसीह जिसकी मनादी हम ने या'नी मैंने और सिलवानुस और तिमुथियुस ने तुम में की उस में हाँ और नहीं दोनों न थीं बल्कि उस में हाँ ही हाँ हुई।20क्यूँकि ख़ुदा के जितने वा'दे हैं वो सब उस में हाँ के साथ हैं | इसी लिए उसके ज़रि'ये से आमीन भी हुई ; ताकि हमारे वसीले से ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर हो।21और जो हम को तुम्हारे साथ मसीह में क़ायम करता है और जिस ने हम को मसह किया वो ख़ुदा है।22जिसने हम पर मुहर भी की और पेशगी में रूह को हमारे दिलों में दिया।23मैं ख़ुदा को गवाह करता हूँ कि मैं अब तक कुरिन्थुस में इस वास्ते नहीं आया कि मुझे तुम पर रहम आता है।24ये नहीं कि हम ईमान के बारे में तुम पर हुकूमत जताते हैं बल्कि ख़ुशी में तुम्हारे मददगार हैं क्यूँकि तुम ईमान ही से क़ायम रहते हो।
1पौलुस की तरफ से जो ना इन्सानों की जानिब से ना इन्सान की वजह से, बल्कि ईसा 'मसीह और ख़ुदा बाप की वजह से जिसने उसको मुर्दों मे से जिलाया,रसूल है;2और सब भाइयों की तरफ से जो मेरे साथ हैं, गलतिया सूबे की कालीसियाओ को ख़त :3ख़ुदा बाप और हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इतमिनान हासिल होता रहे|4उसी ने हमारे गुनाहों के लिए अपने आप को दे दिया;ताकि हमारे ख़ुदा और बाप की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ हमें इस मौजूदा ख़राब जहान से ख़लासी बख्शे|5उसकी बड़ाई हमेशा से हमेशा तक होती रहे आमीन |6मैं ताअ'ज्जुब करता हूँ कि जिसने तुम्हें मसीह के फ़ज़ल से बुलाया, उससे तुम इस क़दर जल्द फिर कर किसी और तरह की ख़ुशख़बरी की तरफ़ माइल होने लगे,7मगर वो दूसरी नही; अलबत्ता कुछ ऐसे हैं जो तुम्हें उलझा देते और मसीह की ख़ुशख़बरी को बिगाड़ना चाहते हैं|8लेकिन हम या आसमान का कोई फ़रिश्ता भी उस ख़ुशख़बरी के सिवा जो हमने तुम्हें सुनाई,कोई और ख़ुशख़बरी सुनाए तो मला'उन हो|9जैसा हम पहले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूँ कि उस ख़ुशख़बरी के सिवा जो तुम ने क़ुबूल की थी, अगर तुम्हें और कोई ख़ुशख़बरी सुनाता है तो मला'उन हो |10अब मैं आदमियों को दोस्त बनाता हूँ या ख़ुदा को?क्या आदमियों को ख़ुश करना चाहता हूँ?अगर अब तक आदिमयों को ख़ुश करता रहता,तो मसीह का बन्दा ना होता|11ऐ भाइयों! मैं तुम्हें बताए देता हूँ कि जो ख़ुशख़बरी मैं ने सुनाई वो इंसान की नहीं|12क्यूँकि वो मुझे इन्सान की तरफ़ से नही पहूँची, और न मुझे सिखाई गई, बल्कि ख़ुदा' मसीह की तरफ़ से मुझे उसका मुकाशफ़ा हुआ|13चुनांचे यहूदी तरीक़े में जो पहले मेरा चाल-चलन था, तुम सुन चुके हो कि मैं ख़ुदा की कलीसिया को अज़हद सताता और तबाह करता था |14और मैं यहूदी तरीक़े में अपनी क़ौम के अक्सर हम 'उम्रों से बढ़ता जाता था, और अपने बुज़ुर्गों की रिवायतों में निहायत सरगर्म था |15लेकिन जिस ख़ुदा ने मेरी माँ के पेट ही से मख़्सूस कर लिया, और अपने फ़ज़ल से बुला लिया,जब उसकी ये मर्ज़ी हुई16कि अपने बेटे को मुझ में ज़ाहिर करे ताकि मैं ग़ैर-क़ौमों मे उसकी ख़ुशख़बरी दूँ,तो न मैंने गोश्त और ख़ून से सलाह ली,17और न युरुशलीम में उनके पास गया जो मुझ से पहले रसूल थे, बल्कि फ़ौरन अरब मुल्क को चला गया फिर वहाँ से दमिश्क़ शहर को वापस आया18फिर तीन बरस के बाद मै कैफ़ा से मुलाक़ात करने को गया और पन्द्र्ह दिन तक उसके पास रहा |19मगर और रसूलों में से ख़ुदावन्द के भाई या'क़ूब के सिवा किसी से न मिला |20जो बातें मैं तुम को लिखता हूँ, ख़ुदा को हाज़िर जान कर कहता हूँ कि वो झूठी नही |21इसके बा'द मैं सूरिया और किलिकीया के इलाक़ों में आया;22और यहूदिया सूबा की कालीसियाएँ, जो मसीह में थीं मुझे सूरत से न जानती थी,23मगर ये सुना करती थीं, "जो हम को पहले सताता था, वो अब उसी दीन की ख़ुशख़बरी देता है जिसे पहले तबाह करता था | "24और वो मेरे ज़रि'ए ख़ुदा की बड़ाई करती थी |
1पौलुस की तरफ़ से जो ख़ुदा की मर्ज़ी से ईसा' मसीह का रसूल है, उन मुक़द्दसों के नाम ख़त जो इफ़िसुस शहर में हैं और ईसा' मसीह 'में ईमान्दार हैं:2हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मिनान हासिल होता रहे ।3हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो, जिसने हम को मसीह में आसमानी मुक़ामों पर हर तरह की रूहानी बरकत बख़्शी |4चुनाँचे उसने हम को दुनियाँ बनाने से पहले उसमें चुन लिया, ताकि हम उसके नज़दीक मुहब्बत में पाक और बे'ऐब हों!5ख़ुदा अपनी मर्ज़ी के नेक इरादे के मुवाफ़िक़ हमें अपने लिए पहले से मुक़र्रर किया कि ईसा' मसीह के वसीले से ख़ुदा लेपालक बेटे हों,6ताकि उसके उस फ़ज़ल के जलाल की सिताइश हो जो हमें उस 'अज़ीज़ में मुफ़्त बख़्शा।7हम को उसमें 'ईसा के ख़ून के वसीले से मख़लसी, या'नी क़ुसूरों की मु'आफ़ी उसके उस फ़ज़ल की दौलत के मुवाफ़िक़ हासिल है,8जो ख़ुदा ने हर तरह की हिक्मत और दानाई के साथ कसरत से हम पर नाज़िल किया9चुनाँचे उसने अपनी मर्ज़ी के राज़ को अपने उस नेक इरादे के मुवाफ़िक़ हम पर ज़ाहिर किया, जिसे अपने में ठहरा लिया था10ताकि ज़मानों के पूरे होने का ऐसा इन्तिज़ाम हो कि मसीह में सब चीज़ों का मजमू'आ हो जाए, चाहे वो आसमान की हों चाहे ज़मीन की।11उसी में हम भी उसके इरादे के मुवाफ़िक़ जो अपनी मर्ज़ी की मसलेहत से सब कुछ करता है, पहले से मुक़र्रर होकर मीरास बने।12ताकि हम जो पहले से मसीह की उम्मीद में थे, उसके जलाल की सिताइश का ज़रि'या हो13और उसी में तुम पर भी, जब तुम ने कलाम-ए-हक़ को सुना जो तुम्हारी नजात की ख़ुशख़बरी है और उस पर ईमान लाए, वादा की हुई पाक रूह की मुहर लगी।14पाक रूह ही ख़ुदा की मिल्कियत की मख़लसी के लिए हमारी मीरास की पेशगी है, ताकि उसके जलाल की सिताइश हो |15इस वजह से मैं भी उस ईमान का, जो तुम्हारे दरमियान ख़ुदावन्द ईसा'' पर है और सब मुक़द्दसों पर ज़ाहिर है, हाल सुनकर |16तुम्हारे ज़रि'ए शुक्र करने से बा'ज़ नही आता, और अपनी दु'आओं में तुम्हें याद किया करता हूँ।17कि हमारे ख़ुदावन्द ईसा' ' मसीह का ख़ुदा जो जलाल का बाप है, तुम्हें अपनी पहचान में हिक्मत और मुकाशफ़ा की रूह बख़्शे;18और तुम्हारे दिल की आँखें रौशन हो जाएँ ताकि तुम को मालूम हो कि उसके बुलाने से कैसी कुछ उम्मीद है, और उसकी मीरास के जलाल की दौलत मुक़द्दसों में कैसी कुछ है,19और हम ईमान लानेवालों के लिए उसकी बड़ी क़ुदरत क्या ही अज़ीम है| उसकी बड़ी क़ुव्वत की तासीर के मुवाफ़िक़,20जो उसने मसीह में की, जब उसे मुर्दों में से जिला कर अपनी दहनी तरफ़ आसमानी मुक़ामों पर बिठाया,21और हर तरह की हुकूमत और इख़्तियार और क़ुदरत और रियासत और हर एक नाम से बहुत ऊँचा किया, जो न सिर्फ़ इस जहान में बल्कि आनेवाले जहान में भी लिया जाएगा;22और सब कुछ उसके पाँव तले कर दिया; और उसको सब चीज़ों का सरदार बनाकर कलीसिया को दे दिया,23ये 'ईसा का बदन है, और उसी की मा'मूरी जो हर तरह से सबका मा'मूर करने वाला है।
1मसीह ईसा' के बन्दों पौलुस और तिमुथियुस की तरफ़ से,फ़िलिप्पियों शहर के सब मुक़द्दसों के नाम जो मसीह ईसा में हैं;निगहबानों और ख़ादिमों समेत ख़त |2हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावान्द 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मिनान हासिल होता रहे|3मैं जब कभी तुम्हें याद करता हूँ, तो अपने ख़ुदा का शुक्र बजा लाता हूँ;4और हर एक दु'आ में जो तुम्हारे लिए करता हूँ, हमेशा ख़ुशी के साथ तुम सब के लिए दरख़्वास्त करता हूँ|5इस लिए कि तुम पहले दिन से लेकर आज तक ख़ुशख़बरी के फैलाने में शरीक रहे हो |6और मुझे इस बात का भरोसा है कि जिस ने तुम में नेक काम शुरू किए है, वो उसे ईसा' मसीह के आने तक पूरा कर देगा|7चुनांचे ज़रूरी है कि मैं तुम सब के बारे में ऐसा ही ख़याल करूँ, क्यूँकि तुम मेरे दिल में रहते हो,और क़ैद और ख़ुशख़बरी की जवाब दिही और सुबूत में तुम सब मेरे साथ फ़ज़ल में शरीक हो|8ख़ुदा मेरा गवाह है कि मैं ईसा ' जैसी मुहबत करके तुम सब को चाहता हूँ|9और ये दु'आ करता हूँ कि तूम्हारी मुहब्बत 'इल्म और हर तरह की तमीज़ के साथ और भी ज़्यादा होती जाए,|10ताकि 'अच्छी अच्छी बातों को पसन्द कर सको, और मसीह के दीन में पाक साफ़ दिल रहो,और ठोकर न खाओ;|11और रास्तबाजी के फल से जो ईसा' मसीह के ज़रिए से है, भरे रहो, ताकि ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर हो और उसकी सिताइश की जाए|12ए भाइयों !मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि जो मुझ पर गुज़रा ,वो ख़ुशख़बरी की तरक़्क़ी का ज़रिए हुआ|13यहाँ तक कि मैं क़ैसरी सिपाहियों की सारी पलटन और बाक़ी सब लोगों में मशहूर हो गया कि मैं मसीह के वास्ते क़ैद हूँ;|14और जो ख़ुदावन्द में भाई हैं, उनमें अक्सर मेरे क़ैद होने के ज़रिए से दिलेर होकर बेख़ौफ़ ख़ुदा का कलाम सुनाने की ज़्यादा हिम्मत करते हैं|15कुछ तो हसद और झगड़े की वजह से मसीह का ऐलान करते हैं और कुछ नेक नियती से|16एक तो मुहब्बत की वजह से मसीह का ऐलान करते हैं कि मैं ख़ुशख़बरी की जवाबदेही के वास्ते मुक़र्रर हूँ|17अगर दूसरे तफ़्रक़े की वजह से न कि साफ़ दिली से,बल्कि इस ख़याल से कि मेरी क़ैद में मेरे लिए मुसीबत पैदा करें|18पस क्या हुआ? सिर्फ़ ये की हर तरह से मसीह की मनादी होती है, चाहे बहाने से हो चाहे सच्चाई से, और इस से मैं ख़ुश हूँ और रहूँगा भी|19क्यूँकि मैं जानता हूँ कि तूम्हारी दु;आ और 'ईसा' मसीह के रूह के इन'आम से इन का अन्जाम मेरी नजात होगा|20चुनाँचे मेरी दिली आरज़ू और उम्मीद यही है कि, मैं किसी बात में शरमिंदा न हूँ बल्कि मेरी कमाल दिलेरी के ज़रिए जिस तरह मसीह की ताज़ीम मेरे बदन की वजह से हमेशा होती रही है उसी तरह अब भी होगी,चाहे मैं ज़िंदा रहूँ चाहे मरूँ|21क्यूँकि ज़िंदा रहना मेरे लिए मसीह और मरना नफ़ा'|22लेकिन अगर मेरा जिस्म में ज़िंदा रहना ही मेरे काम के लिए फ़ायदा है, तो मैं नही जानता किसे पसन्द करूँ|23मैं दोनों तरफ़ फँसा हुआ हूँ;मेरा जी तो ये चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूँ, क्यूँकि ये बहुत ही बेहतर है;24मगर जिस्म में रहना तुम्हारी ख़ातिर ज़्यादा ज़रूरी है|25और चूँकि मुझे इसका यक़ीन है इसलिए मैं जानता हूँ कि ज़िंदा रहूँगा,ताकि तुम ईमान में तरक़्क़ी करो और उस में खुश रहो;26और जो तुम्हे मुझ पर फ़ख़्र है वो मेरे फिर तुम्हारे पास आनेसे मसीह ईसा' में ज़्यादा हो जाए27सिर्फ़ ये करो कि मसीह में तुम्हारा चाल चलन मसीह के ख़ुशख़बरी के मुवाफ़िक़ रहे ताकि; चाहे मैं आऊँ और तूम्हें देखूँ चाहे न आऊँ,तूम्हारा हाल सुनूँ कि तुम एक रूह में क़ायम हो, और ईन्जील के ईमान के लिए एक जान होकर कोशिश करते हो,|28और किसी बात में मुख़ालिफ़ों से दहशत नहीं खाते|ये उनके लिए हलाकत का साफ़ निशान है;लेकिन तुम्हारी नजात का और ये ख़ुदा की तरफ़ से है|29क्यूँकि मसीह की ख़ातिर तुम पर ये फ़ज़ल हुआ कि न सिर्फ उस पर ईमान लाओ बल्कि उसकी ख़ातिर दुख भी सहो;30और तुम उसी तरह मेहनत करते रहो जिस तरह मुझे करते देखा था,और अब भी सुनते हो की मैं वैसा ही करता हूँ|
1यह ख़त पौलुस की तरफ़ से है जो ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह ईसा का रसूल है। साथ ही यह भाई तीमुथियुस की तरफ़ से भी है।2मैं कुलुस्से शहर के मुक़द्दस भाइयों को लिख रहा हूँ जो मसीह पर ईमान लाए हैं : ख़ुदा हमारा बाप आप को फ़ज़ल और सलामती बख़्शे।3जब हम तुम्हारे लिए दुआ करते हैं तो हर वक़्त ख़ुदा अपने ख़ुदावन्द ईसा मसीह के बाप का शुक्र करते हैं,4क्यूँकि हमने तुम्हारे मसीह ईसा' पर ईमान और तुम्हारी तमाम मुक़द्दसीन से मुहब्बत के बारे में सुन लिया है।5तुम्हारा यह ईमान और मुहब्बत वह कुछ ज़ाहिर करता है जिस की तुम उम्मीद रखते हो और जो आस्मान पर तुम्हारे लिए मह्फ़ूज़ रखा गया है। और तुम ने यह उम्मीद उस वक़्त से रखी है जब से तुम ने पहली मर्तबा सच्चाई का कलाम यानी ख़ुदा की ख़ुशख़बरी सुनी।6यह पैग़ाम जो तुम्हारे पास पहुँच गया पूरी दुनिया में फल ला रहा और बढ़ रहा है, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह यह तुम में भी उस दिन से काम कर रहा है जब तुम ने पहली बार इसे सुन कर ख़ुदा के फ़ज़ल की पूरी हक़ीक़त समझ ली।7तुम ने हमारे अज़ीज़ हमख़िदमत इपफ़्रास से इस ख़ुशख़बरी की तालीम पा ली थी। मसीह का यह वफ़ादार ख़ादिम हमारी जगह तुम्हारी ख़िदमत कर रहा है।8उसी ने हमें तुम्हारी उस मुहब्बत के बारे में बताया जो रूह-उल-क़ुद्दूस ने तुम्हारे दिलों में डाल दी है।9इस वजह से हम तुम्हारे लिए दुआ करने से बाज़ नहीं आए बल्कि यह माँगते रहते हैं कि ख़ुदा तुम को हर रुहानी हिक्मत और समझ से नवाज़ कर अपनी मर्ज़ी के इल्म से भर दे।10क्यूँकि फिर ही तुम अपनी ज़िन्दगी ख़ुदावन्द के लायक़ गुज़ार सकोगे और हर तरह से उसे पसन्द आओगे। हाँ, तुम हर क़िस्म का अच्छा काम करके फल लाओगे और ख़ुदा के इल्म-ओ-'इरफ़ान में तरक़्क़ी करोगे।11और तुम उस की जलाली क़ुदरत से मिलने वाली हर क़िस्म की ताक़त से मज़बूती पा कर हर वक़्त साबितक़दमी और सब्र से चल सकोगे।12और बाप का शुक्र करते रहो जिस ने तुम को उस मीरास में हिस्सा लेने के लायक़ बना दिया जो उसकी रोशनी में रहने वाले मुक़द्दसीन को हासिल है।13क्यूँकि वही हमें अँधेरे की गिरफ़्त से रिहाई दे कर अपने प्यारे फ़र्ज़न्द की बादशाही में लाया,14उस एक शख़्स के इख़्तियार में जिस ने हमारा फ़िदया दे कर हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर दिया।15ख़ुदा को देखा नहीं जा सकता, लेकिन हम मसीह को देख सकते हैं जो ख़ुदा की सूरत और कायनात का पहलौठा है।16क्यूँकि ख़ुदा ने उसी में सब कुछ पैदा किया, चाहे आस्मान पर हो या ज़मीन पर, आँखों को नज़र आए या न नज़र आएं, चाहे शाही तख़्त, क़ुव्वतें, हुक्मरान या इख़्तियार वाले हों। सब कुछ मसीह के ज़रिए और उसी के लिए पैदा हुआ।17वही सब चीज़ों से पहले है और उसी में सब कुछ क़ायम रहता है।18और वह बदन यानी अपनी जमाअत का सर भी है। वही शुरुआत है, और चूँकि पहले वही मुर्दों में से जी उठा इस लिए वही उन में से पहलौठा भी है ताकि वह सब बातों में पहले हो।19क्यूँकि ख़ुदा को पसन्द आया कि मसीह में उस की पूरी मामूरी सुकूनत करे20और वह मसीह के ज़रीए सब बातों की अपने साथ सुलह करा ले, चाहे वह ज़मीन की हों चाहे आस्मान की। क्यूँकि उस ने मसीह के सलीब पर बहाए गए ख़ून के वसीले से सुलह-सलामती क़ायम की।21तुम भी पहले ख़ुदा के सामने अजनबी थे और दुश्मन की तरह सोच रख कर बुरे काम करते थे।22लेकिन अब उस ने मसीह के इन्सानी बदन की मौत से तुम्हारे साथ सुलह कर ली है ताकि वह तुमको मुक़द्दस, बेदाग़ और बेइल्ज़ाम हालत में अपने सामने खड़ा करे।23बेशक अब ज़रूरी है कि तुम ईमान में क़ायम रहो, कि तुम ठोस बुन्याद पर मज़्बूती से खड़े रहो और उस ख़ुशख़बरी की उम्मीद से हट न जाओ जो तुम ने सुन ली है। यह वही पैग़ाम है जिस का एलान दुनिया में हर मख़्लूक़ के सामने कर दिया गया है और जिस का ख़ादिम मैं पौलुस बन गया हूँ।24अब मैं उन दुखों के ज़रिए ख़ुशी मनाता हूँ जो मैं तुम्हारी ख़ातिर उठा रहा हूँ। क्यूँकि मैं अपने जिस्म में मसीह के बदन यानी उस की जमाअत की ख़ातिर मसीह की मुसीबतों की वह कमियाँ पूरी कर रहा हूँ जो अब तक रह गई हैं।25हाँ, ख़ुदा ने मुझे अपनी जमाअत का ख़ादिम बना कर यह ज़िम्मेंदारी दी कि मैं तुम को ख़ुदा का पूरा कलाम सुना दूँ,26वह बातें जो शुरू से तमाम गुज़री नसलों से छुपा रहा था लेकिन अब मुक़द्दसीन पर ज़ाहिर की गयी हैं।27क्यूँकि ख़ुदा चाहता था कि वह जान लें कि ग़ैरयहूदियों में यह राज़ कितना बेशक़ीमती और जलाली है। और यह राज़ है क्या? यह कि मसीह तुम में है। वही तुम में है जिस के ज़रिए हम ख़ुदा के जलाल में शरीक होने की उम्मीद रखते हैं।28यूँ हम सब को मसीह का पैग़ाम सुनाते हैं। हर मुम्किन हिक्मत से हम उन्हें समझाते और तालीम देते हैं ताकि हर एक को मसीह में कामिल हालत में ख़ुदा के सामने पेश करें।29यही मक़्सद पूरा करने के लिए मैं सख़्त मेहनत करता हूँ। हाँ, मैं पूरे जद्द-ओ-जह्द करके मसीह की उस ताक़त का सहारा लेता हूँ जो बड़े ज़ोर से मेरे अन्दर काम कर रही है।
1पौलूस और सिलास और तीमुथियुस की तरफ़ से थिस्सलोनिकियो शहर की कलीसिया के नाम ख़त , जो ख़ुदा बाप और ख़ुदा वंद ईसा' मसीह में है, फ़ज़ल और इत्मिनान तुम्हें हासिल होता रहे |2तुम सब के बारे में हम ख़ुदा का शुक्र बजा लाते हैं और अपनी दु'आओं में तुम्हें याद करते हैं ।3और अपने ख़ुदा और बाप के हज़ूर तुम्हारे ईमान के काम और मुहब्बत की मेहनत और उस उम्मीद के सब्र को बिला नाग़ा याद करते हैं जो हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह की वजह से है।4और ऐ भाइयो! ख़ुदा के प्यारों हम को मा'लूम है; कि तुम चुने हुए हो ।5इसलिए कि हमारी ख़ुशख़बरी तुम्हारे पास न फ़क़त लफ़ज़ी तौर पर पहुँची बल्कि क़ुदरत और रूह-उल-क़ुद्दूस और पूरे यक़ीन के साथ भी चुनाँचे" तुम जानते हो कि हम तुम्हारी ख़ातिर तुम में कैसे बन गए थे।6और तुम कलाम को बड़ी मुसीबत में रूह-उल-क़ुद्दूस की ख़ुशी के साथ क़ुबूल करके हमारी और "ख़ुदावन्द" की मानिन्द बने।7यहाँ तक कि मकिदुनिया और अख़्या के सब ईमानदारों के लिए नमूना बने।8क्योंकि तुम्हारे हाँ से न फ़क़त मकिदुनिया और अख़्या में ख़ुदावन्द के कलाम का चर्चा फ़ैला है, बल्कि तुम्हारा ईमान जो"ख़ुदा"पर है हर जगह ऐसा मशहूर हो गया है कि हमारे कहने की कुछ ज़रुरत नहीं।9इसलिए कि वो आप हमारा ज़िक्र करते हैं कि तुम्हारे पास हमारा आना कैसा हुआ और तुम बुतों से फिर कर "ख़ुदा"की तरफ़ मुख़ातिब हुए ताकि ज़िन्दा और हक़ीक़ी"ख़ुदा"की बन्दगी करो।10और उसके बेटे के आसमान पर से आने के इन्तिज़ार मे रहो, जिसे उस ने मुर्दों में से जिलाया या'नी ईसा' मसीह" के जो हम को आने वाले ग़ज़ब से बचाता है।
1पौलुस, और सिलास और तीमुथियुस की तरफ़ से थिस्सलुनीकियों शहर की कलीसिया के नाम ख़त जो हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह में है ।2फ़ज़ल और इत्मीनान ख़ुदा' बाप और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें हासिल होता रहे।3ऐ भाईयो! तुम्हारे बारे में हर वक़्त ख़ुदा का शुक्र करना हम पर फ़र्ज़ है, और ये इसलिए मुनासिब है, कि तुम्हारा ईमान बहुत बढ़ता जाता है; और तुम सब की मुहब्बत आपस में ज़्यादा होती जाती है।4यहाँ तक कि हम आप ख़ुदा की कलीसियाओं में तुम पर फ़ख़्र करते हैं कि जितने ज़ुल्म और मुसीबतें तुम उठाते हो उन सब में तुम्हारा सब्र और ईमान ज़ाहिर होता है।5ये ख़ुदा की सच्ची अदालत का साफ़ निशान है ; ताकि तुम ख़ुदा की बादशाही के लायक़ ठहरो जिस के लिए तुम तकलीफ़ भी उठाते हो।6क्यूँकि ख़ुदा के नज़दीक ये इन्साफ़ है के बदले में तुम पर मुसीबत लाने वालों को मुसीबत।7और तुम मुसीबत उठाने वालों को हमारे साथ आराम दे; जब ख़ुदावन्द 'ईसा' अपने मज़बूत फ़रिश्तों के साथ भड़कती हुई आग में आसमान से ज़ाहिर होगा।8और जो ख़ुदा को नहीं पहचानते और हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' की ख़ुशख़बरी को नहीं मानते उन से बदला लेगा।9वह ख़ुदावंद का चेहरा और उसकी क़ुदरत के जलाल से दूर हो कर हमेशा हलाकत की सज़ा पायंगे10ये उस दिन होगा जबकि वो अपने मुक़द्दसों में जलाल पाने और सब ईमान लाने वालों की वजह से ता'अज्जुब का बाइस होने के लिए आएगा; क्यूँकि तुम हमारी गवाही पर ईमान लाए।11इसी वास्ते हम तुम्हारे लिए हर वक़्त दु'आ भी करते रहते हैं कि हमारा ख़ुदा तुम्हें इस बुलावे के लायक़ जाने और नेकी की हर एक ख़्वाहिश और ईमान के हर एक काम को क़ुदरत से पूरा करे।12ताकि हमारे ख़ुदा और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के फ़ज़ल के मुवाफ़िक़ हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' का नाम तुम में जलाल पाए और तुम उस में।
1पौलुस की तरफ़ से जो हमारे मुन्जी ख़ुदा और हमारे उम्मीद गाह मसीह ईसा'के हुक्म से मसीह ईसा'का रसूल है,।2तीमुथियुस के नाम जो ईमान के लिहाज़ से मेरा सच्चा बेटा है: फ़ज़ल,रहम और इत्मिनान ख़ुदा बाप और हमारे ख़ुदावन्द मसीह ईसा' की तरफ़ से तुझे हासिल होता रहे ।3जिस तरह मैंने मकिदुनिया जाते वक़्त तुझे नसीहत की थी,कि ईफ़िसुस में रह कर कुछ को शख़्सों हुक्म कर दे कि और तरह की ता'लीम न दें,।4और उन कहानियों और बे इन्तिहा नसब नामों पर लिहाज़ न करें,जो तकरार का ज़रिया होते हैं,और उस इंतज़ाम-ए-इलाही के मुवाफ़िक़ नहीं जो ईमान पर मब्नी है,उसीतरहअब भी करता हूँ ।5हुक्म का मक़सद ये है कि पाक दिल और नेक नियत और बिना दिखावा ईमान से मुहब्बत पैदा हो।6इनको छोड़ कर कुछ शख़्स बेहूदा बकवास की तरफ़ मुतवज्जह हो गए,7और शरी'अत के मु'अल्लिम बनना चाहते हैं, हालाँकि जो बातें कहते हैं और जिनका यक़ीनी तौर से दावा करते हैं,उनको समझते भी नहीं।8मगर हम जानते हैं कि शरी'अत अच्छी है,बशरते कि कोई उसे शरी'अत के तौर पर काम में लाए।9या'नी ये समझकर कि शरी'अत रास्तबाज़ों के लिए मुक़र्रर नहीं हुई,बल्कि बेशरा' और सरकश लोगों, और बेदीनों, और गुनहगारों, और नापाकों, और रिन्दों, और माँ-बाप के क़ातिलों,और ख़ूनियों,10और हारामकारों,और लौंडे-बाज़ों,और बर्दा-फ़रोशों,और झूटों,और झूटी क़सम खानेवालों,और इनके सिवा सही ता'लीम के और बरखिलाफ़ काम करनेवालों के वास्ते है।11ये ख़ुदा-ए-मुबारक के जलाल की उस ख़ुशखबरी के मुवाफ़िक़ है जो मेरे सुपुर्द हुई।12मैं अपनी ताक़त बख़्शने वाले ख़ुदावन्द मसीह ईसा' का शुक्र करता हूँ कि उसने मुझे दियाननदार समझकर अपनी ख़िदमत के लिए मुक़र्रर किया|13अगरचे मैं पहले कुफ़्र बकनेवाला,और सताने वाला,और बे'इज़्ज़त करने वाला था;तोभी मुझ पर रहम हुआ,इस वास्ते कि मैंने बेईमानी की हालत में नादानी से ये काम किए थे।14और हमारे ख़ुदावन्द का फ़ज़ल उस ईमान और मुहब्बत के साथ जो मसीह ईसा' में है बहुत ज़्यादा हुआ।15ये बात सच और हर तरह से क़ुबूल करने के लायक़ है कि मसीह ईसा' गुनहगारों को नजात देने के लिए दुनिया में आया,उन गुनहगारों में से सब से बड़ा मैं हूँ,16लेकिन मुझ पर रहम इसलिए हुआ कि ईसा' मसीह मुझ बड़े गुनहगार में अपना सब्र ज़ाहिर करे,ताकि जो लोग हमेशाकी ज़िन्दगी के लिए उस पर ईमान लाएँगेउनकेलिए मैं नमूना बनूँ।17अब हमेशा कि बादशाही या'नी ना मिटने वाली, नादीदा, एक ख़ुदा की 'इज़्ज़त और बड़ाई हमेशा से हमेशा तक होती रहे। आमीन|18ऐ फ़र्ज़न्द तीमुथियुस! उन पेशीनगोइयों के मुवाफ़िक़ जो पहले तेरे ज़रिए की गई थीं, मैं ये हुक्म तेरे सुपुर्द करता हूँताकितू उनके मुताबिक़ अच्छी लड़ाई लड़ता रहे;और ईमान और उस नेक नियत पर क़ायम रहे,19जिसको दूर करने की वजह से कुछ लोगों के ईमान का जहाज़ ग़र्क़ हो गया।20उन ही में से हिमुन्युस और सिकन्दर है,जिन्हें मैंने शैतान के हवाले किया ताकि कुफ़्र से बा'ज़ रहना सीखें।
1पौलुस की तरफ़ से जो उस ज़िन्दगी के वा'दे के मुताबिक़ जो मसीह ईसा' में है ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह 'ईसा' का रसूल है।2प्यारे बेटे तीमुथियुस के नाम ख़त : फ़ज़ल रहम और इत्मीनान ख़ुदा बाप और हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुझे हासिल होता रहे।3जिस ख़ुदा की इबादत में साफ़ दिल से बाप दादा के तौर पर करता हूँ; उसका शुक्र है कि अपनी दुआओं में बिला नाग़ा तुझे याद रखता हूँ।4और तेरे आँसुओं को याद करके रात दिन तेरी मुलाक़ात का मुशताक़ रहता हूँ ताकि ख़ुशी से भर जाऊँ।5और मुझे तेरा वो बे रिया ईमान याद दिलाया गया है जो पहले तेरी नानी लूइस और तेरी माँ यूनीके रखती थीं और मुझे यक़ीन है कि तू भी रखता है।6इसी वजह से मै तुझे याद दिलाता हूँ कि तू "ख़ुदा"की उस ने'अमत को चमका दे जो मेरे हाथ रखने के ज़रिये तुझे हासिल है।7क्यूँकि ख़ुदा ने हमें दहशत की रूह नहीं बल्कि क़ुदरत और मुहब्बत और तरबियत की रूह दी है।8पस, हमारे ख़ुदावन्द की गवाही देने से और मुझ से जो उसका क़ैदी हूँ शर्म न कर बल्कि ख़ुदा की क़ुदरत के मुताबिक़ ख़ुशख़बरी की ख़ातिर मेरे साथ दु:ख उठा।9जिस ने हमें नजात दी और पाक बुलावे से बुलाया हमारे कामों के मुताबिक़ नहीं बल्कि अपने ख़ास इरादा और उस फ़ज़ल के मुताबिक़ जो मसीह 'ईसा' में हम पर शुरू से हुआ।10मगर अब हमारे मुन्जी मसीह 'ईसा' के आने से ज़ाहिर हुआ जिस ने मौत को बर्बाद और बाक़ी ज़िन्दगी को उस ख़ुशख़बरी के वसीले से रौशन कर दिया।11जिस के लिए मैं ऐलान करने वाला और रसूल और उस्ताद मुक़र्रर हुआ।12इसी वजह से मैं ये दु:ख भी उठाता हूँ, लेकिन शर्माता नहीं क्यूँकि जिसका मैं ने यक़ीन किया है उसे जानता हूँ और मुझे यक़ीन है कि वो मेरी अमानत की उस दिन तक हिफ़ाज़त कर सकता है।13जो सही बातें तू ने मुझ से सुनी उस ईमान और मुहब्बत के साथ जो "मसीह ईसा में है उन का ख़ाका याद रख ।14रूह -उल -क़ुद्दुस के वसीले से जो हम में बसा हुआ है इस अच्छी अमानत की हिफ़ाज़त कर।15तू ये जानता है कि आसिया सूबे के सब लोग मुझ से ख़फ़ा हो गए; जिन में से फ़ूगलुस और हरमुगिनेस हैं।16ख़ुदावन्द उनेस्फिरुस के घराने पर रहम करे क्यूँकि उस ने बहुत मर्तबा मुझे ताज़ा दम किया और मेरी क़ैद से शर्मिन्दा न हुआ।17बल्कि जब वो रोमा शहर में आया तो कोशिश से तलाश करके मुझ से मिला।18ख़ुदावन्द उसे ये बख़्शे कि उस दिन उस पर ख़ुदावन्द का रहम हो और उस ने इफ़िसुस में जो जो ख़िदमतें कीं तू उन्हें ख़ूब जानता है।
1पौलुस की तरफ़ से तीतुस को ख़त ,जो ख़ुदा का बन्दा और 'ईसा' मसीह का रसूल है। ख़ुदा के बरगुज़ीदों के ईमान और उस हक़ की पहचान के मुताबिक़ जो दीनदारी के मुताबिक़ है।2उस हमेशा की ज़िन्दगी की उम्मीद पर जिसका वा'दा शुरु ही से ख़ुदा ने किया है जो झूट नहीं बोल सकता ।3और उस ने मुनासिब वक़्तों पर अपने कलाम को जो हमारे "मुन्जी ख़ुदा"के हुक्म के मुताबिक़ मेरे सुपुर्द हुआ।4ईमान की शिरकत के रूह से सच्चे फ़र्ज़न्द तितुस के नाम फ़ज़ल और इत्मीनान ख़ुदा बाप और हमारे मुन्जी 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुझे हासिल होता रहे।5मैंने तुझे करेते में इस लिए छोड़ा था, कि तू बक़िया बातों को दुरुस्त करे और मेरे हुक्म के मुताबिक़ शहर बा शहर ऐसे बुज़ुर्गों को मुक़र्रर करे।6जो बे इल्ज़ाम और एक एक बीवी के शौहर हों और उन के बच्चे ईमान्दार और बदचलनी और सरकशी के इल्ज़ाम से पाक हों।7क्यूँकि निगेहबान को "ख़ुदा"का मुख़्तार होने की वजह से बेइल्ज़ाम होना चाहिए; न ख़ुदराय हो न ग़ुस्सावर, न नशे में ग़ुल मचानेवाला, न मार पीट करने वाला और न नाजायज़ नफ़े का लालची;8बल्कि मुसाफ़िर परवर, ख़ैर दोस्त, परहेज़गार, मुन्सिफ़ मिज़ाज, पाक़ और सब्र करने वाला हो ;9और ईमान के कलाम पर जो इस ता'लीम के मुवाफ़िक़ है क़ायम हो ताकि सही ता'लीम के साथ नसीहत भी कर सके और मुख़ालिफ़ों को क़ायल भी कर सके।10क्यूँकि बहुत से लोग सरकश और बेहूदा गो और दग़ाबाज़ हैं ख़ासकर ईमानदार यहूदी मख़्तूनों में से।11इन का मुँह बन्द करना चाहिए ये लोग नाजायज़ नफ़े की ख़ातिर नशाइस्ता बातें सीखकर घर के घर तबाह कर देते हैं।12उन ही में से एक शख़्स ने कहा है, जो ख़ास उन का नबी था “करेती हमेशा झूटे, मूज़ी जानवर, वादा ख़िलाफ़ होते हैं।”13ये गवाही सच है, पस, उन्हें सख़्त मलामत किया कर ताकि उन का ईमान दुरुस्त होजाए।14और वो यहूदियों की कहानियों और उन आदमियों के हुक्मों पर तवज्जह न करें, जो हक़ से गुमराह होते हैं।15पाक लोगों के लिए सब चीज़ें पाक हैं, मगर गुनाह आलूदा और बेईमान लोगों के लिए कुछ भी पाक नहीं, बल्कि उन की 'अक़्ल और दिल दोनों गुनाह आलूदा हैं।16वो ख़ुदा की पहचान का दा'वा तो करते है, मगर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं क्यूँकि वो मकरूह और नाफ़रमान हैं, और किसी नेक काम के क़ाबिल नहीं।
1पौलुस की तरफ़ से जो मसीह ईसा' का क़ैदी है,और भाई तीमुथियुस की तरफ़ से अपने 'अज़ीज़ और हम ख़िदमत फ़िलेमोन ,2और बहन अफ़िया, और अपने हम सफ़र आर्ख़िप्पुस और फ़िलेमोन के घर की कलीसिया के नाम ख़त :3फ़ज़ल और इत्मिनान हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह की तरफ़ से तुम्हें हासिल होता रहे |4मैं तेरी उस मुहब्बत का और ईमान का हाल सुन कर, जो सब मुक़द्दसों के साथ और ख़ुदावन्द ईसा' पर है '5हमेशा अपने ख़ुदा का शुक्र करता हूँ, और अपनी दु'आओं में तुझे याद करता हूँ |6ताकि तेरे ईमान की शिराकत तुम्हारी हर ख़ूबी की पहचान में मसीह के वास्ते मु' अस्सिर हो |7क्योंकि ऐ भाई ! मुझे तेरी मुहब्बत से बहुत ख़ुशी और तसल्ली हुई, इसलिए कि तेरी वजह से मुक़द्दसों के दिल ताज़ा हुए हैं |8पस अगरचे मुझे मसीह में बड़ी दिलेरी तो है कि तुझे मुनासिब हुक्म दूँ |9मगर मुझे ये ज़्यादा पसंद है कि मैं बूढ़ा पौलुस, बल्कि इस वक़्त मसीह 'ईसा' का क़ैदी भी होकर मुहब्बत की राह से इल्तिमास करूं |10सो अपने फ़र्ज़न्द उनेस्मुस के बारे में जो क़ैद की हालत में मुझ से पैदा हुआ , तुझसे इल्तिमास करता हूँ |11पहले तो तेरे कुछ काम का ना था मगर अब तेरे और मेरे दोनों के काम का है |12ख़ुद उसी को या'नी अपने कलेजे के टुकड़े को, मैने तेरे पास वापस भेजा है|13उसको मैं अपने ही पास रखना चाहता था,ताकि तेरी तरफ़ से इस क़ैद में जो ख़ुशखबरी के ज़रिये है मेरी ख़िदमत करे |14लेकिन तेरी मर्ज़ी के बग़ैर मेने कुछ करना न चाहा ,ताकि तेरे नेक काम लाचारी से नही बल्कि ख़ुशी से हों |15क्योंकि मुम्किन है कि वो तुझ से इसलिए थोड़ी देर के वास्ते जुदा हुआ हो कि हमेशा तेरे पास रहे |16मगर अब से गुलाम की तरह नही बल्कि गुलाम से बेहतर होकर या'नी ऐसे भाई की तरह रहे जो जिस्म में भी और खुदावन्द में भी मेरा निहायत 'अज़ीज़ हो और तेरा इससे भी कही ज़्यादा |17पस अगर तू मुझे शरीक जानता है, तो उसे इस तरह क़ुबूल करना जिस तरह मुझे |18और अगर उस ने तेरा कुछ नुक़सान किया है, या उस पर तेरा कुछ आता है,तो उसे मेरे नाम से लिख ले।19मैं पौलुस अपने हाथ से लिखता हूँ कि ख़ुद अदा करूँगा, इसके कहने की कुछ ज़रूरत नहीं कि मेरा क़र्ज़ जो तुझ पर है वो तू ख़ुद है20ऐ भाई ! मैं चाहता हूँ कि मुझे तेरी तरफ़ से ख़ुदावन्द में ख़ुशी हासिल हो | मसीह में मेरे दिल को ताज़ा कर |21मैं तेरी फ़रमाँबरदारी का यक़ीन करके तुझे लिखता हूँ, और जानता हूँ कि जो कुछ मैं कहता हूँ ,तू उस से भी ज़्यादा करेगा |22इसके सिवा मेरे लिए ठहरने की जगह तैयार कर, क्योंकि मुझे उम्मीद है कि मैं तुम्हारी दु' आओं के वसीले से तुम्हें बख़्शा जाऊंगा |23इपफ़्रास जो मसीह ईसा' में मेरे साथ क़ैद है,24और मरक़ुस और अरिस्तर्ख़ुस और दोमास और लुक़ा, जो मेरे हम ख़िदमत हैं तुझे सलाम कहते है |25हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम्हारी रूह पर होता रहे |आमीन |
1पुराने ज़माने में ख़ुदा ने बाप- दादा से हिस्सा-ब-हिस्सा और तरह-ब-तरह नबियों के ज़रिए कलाम करके,2इस ज़माने के आख़िर में हम से बेटे के ज़रिए कलाम किया, जिसे उसने सब चीज़ों का वारिस ठहराया और जिसके वसीले से उसने आलम भी पैदा किए |3वो उसके जलाल की रोशनी और उसकी ज़ात का नक़्श होकर सब चीज़ों को अपनी क़ुदरत के कलाम से सम्भालता है | वो गुनाहों को धोकर 'आलम-ए-बाला पर ख़ुदा की दहनी तरफ़ जा बैठा;4और फ़रिश्तों से इस क़दर बड़ा हो गया ,जिस क़दर उसने मीरास में उनसे अफ़ज़ल नाम पाया |5क्यूँकि फ़रिश्तों में से उसने कब किसी से कहा, "तू मेरा बेटा है, आज तू मुझ से पैदा हुआ?" और फिर ये, "मैं उसका बाप हूँगा?"6और जब पहलौठे को दुनियाँ में फिर लाता है, तो कहता है, "ख़ुदा के सब फ़रिश्ते उसे सिज्दा करें |"7और "वो अपने फ़रिश्तों के बारे में ये कहता है, "वो अपने फ़रिश्तों को हवाएँ, और अपने ख़ादिमों को आग के शो'ले बनाता है |"8मगर बेटे के बारे में कहता है, "ऐ ख़ुदा, तेरा तख़्त हमेशा से हमेशा तक रहेगा, और तेरी बादशाही की 'लाठी रास्तबाज़ी की 'लाठी है |9तू ने रास्तबाज़ी से मुहब्बत और बदकारी से 'अदावत रख्खी, इसी वजह से ख़ुदा, या'नी तेरे ख़ुदा ने ख़ुशी के तेल से तेरे साथियों की बनिस्बत तुझे ज़्यादा मसह किया |"10और ये कि , "ऐ ख़ुदावन्द ! तू ने शुरू में ज़मीन की नीव डाली, और आसमान तेरे हाथ की कारीगरी है |11वो मिट जाएँगे, मगर तू बाक़ी रहेगा; और वो सब पोशाक की तरह पुराने हो जाएँगे |12तू उन्हें चादर की तरह लपेटेगा, और वो पोशाक की तरह बदल जाएँगे : मगर तू वही है और तेरे साल ख़त्म न होंगे |"13लेकिन उसने फ़रिश्तों में से किसी के बारे में कब कहा, "तू मेरी दहनी तरफ़ बैठ, जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँव तले की चौकी न कर दूँ" ?14क्या वो सब ख़िदमत गुज़ार रूहें नहीं, जो नजात की मीरास पानेवालों की ख़ातिर ख़िदमत को भेजी जाती हैं ?
1ख़ुदा के और ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के बन्दे या'क़ूब की तरफ़ से उन बारह ईमानदारों के क़बीलों को जो जगह-ब-जगह रहते हैं सलाम पहुँचे।2ऐ, मेरे भाइयो जब तुम तरह तरह की आज़माइशों में पड़ो।3तो इसको ये जान कर कमाल ख़ुशी की बात समझना कि तुम्हारे ईमान की आज़माइश सब्र पैदा करती है।4और सब्र को अपना पूरा काम करने दो ताकि तुम पूरे और कामिल हो जाओ और तुम में किसी बात की कमी न रहे।5लेकिन अगर तुम में से किसी में हिकमत की कमी हो तो ख़ुदा से माँगे जो बग़ैर मलामत किए सब को बहुतायत के साथ देता है। उसको दी जाएगी।6मगर ईमान से माँगे और कुछ शक न करे क्यूँकि शक करने वाला समुन्दर की लहरों की तरह होता है जो हवा से बहती और उछलती हैं।7ऐसा आदमी ये न समझे कि मुझे ख़ुदावन्द से कुछ मिलेगा।8वो शख़्स दो दिला है और अपनी सब बातों में बे'क़याम।9अदना भाई अपने आ'ला मर्तबे पर फ़ख्र करे।10और दौलतमन्द अपनी अदना हालत पर इसलिए कि घास के फ़ूलों की तरह जाता रहेगा।11क्यूँकि सूरज निकलते ही सख़्त धूप पड़ती और घास को सुखा देती है और उसका फ़ूल गिर जाता है और उसकी ख़ुबसूरती जाती रहती है इस तरह दौलतमन्द भी अपनी राह पर चलते चलते ख़ाक में मिल जाएगा।12मुबारक वो शख़्स है जो आज़माइश की बर्दाश्त करता है क्यूँकि जब मक़बूल ठहरा तो ज़िन्दगी का वो ताज हासिल करेगा जिसका ख़ुदावन्द ने अपने मुहब्बत करने वालों से वा'दा किया है13जब कोई आज़माया जाए तो ये न कहे कि मेरी आज़माइश ख़ुदा की तरफ़ से होती है क्यूँ कि न तो ख़ुदा बदी से आज़माया जा सकता है और न वो किसी को आज़माता है।14हाँ हर शख़्स अपनी ही ख़्वाहिशों में खिंचकर और फ़ँस कर आज़माया जाता है।15फिर ख़्वाहिश हामिला हो कर गुनाह को पैदा करती है और गुनाह जब बढ़ गया तो मौत पैदा करता है।16ऐ, मेरे प्यारे भाइयों धोका न खाना।17हर अच्छी बख़्शिश और कामिल इनाम ऊपर से है और नूरों के बाप की तरफ़ से मिलता है जिस में न कोई तब्दीली हो सकती है और न गरदिश के वजह से उस पर साया पड़ता है।18उसने अपनी मर्ज़ी से हमें कलाम-ऐ-हक़ के वसीले से पैदा किया ताकि उसकी मुख़ालिफत में से हम एक तरह के फ़ल हो ।19ऐ, मेरे प्यारे भाइयो ये बात तुम जानते हो; पस हर आदमी सुनने में तेज़ और बोलने में धीमा और क़हर में धीमा हो।20क्यूँकि इन्सान का क़हर ख़ुदा की रास्तबाज़ी का काम नहीं करता।21इसलिए सारी नजासत और बदी की गंदगी को दूर करके उस कलाम को नरमदिली से क़ुबूल कर लो जो दिल में बोया गया और तुम्हारी रूहों को नजात दे सकता है।22लेकिन कलाम पर अमल करने वाले बनो, न महज़ सुनने वाले जो अपने आपको धोका देते हैं।23क्यूँकि जो कोई कलाम का सुनने वाला हो और उस पर अमल करने वाला न हो वो उस शख़्स की तरह है जो अपनी क़ुदरती सूरत आइँना में देखता है।24इसलिए कि वो अपने आप को देख कर चला जाता और भूल जाता है कि मैं कैसा था।25लेकिन जो शख़्स आज़ादी की कामिल शरी'अत पर ग़ौर से नज़र करता रहता है वो अपने काम में इसलिए बर्कत पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं बल्कि अमल करता है।26अगर कोई अपने आपको दीनदार समझे और अपनी ज़बान को लगाम न दे बल्कि अपने दिल को धोका दे तो उसकी दीनदारी बातिल है।27हमारे ख़ुदा और बाप के नज़दीक ख़ालिस और बेऐब दीनदारी ये है कि यतीमों और बेवाओं की मुसीबत के वक़्त उनकी ख़बर लें; और अपने आप को दुनिया से बे'दाग़ रख़ें।
1पतरस की तरफ़ से जो ईसा' मसीह का रसूल है, उन मुसाफ़िरों के नाम ख़त ,जो पुन्तुस , गलतिया ,क्प्प्दुकिया ,असिया और बीथुइनिया सूबे में जा बजा रहते है ,2और ख़ुदा बाप के 'इल्म-ए-साबिक़ के मुवाफ़िक़ रूह के पाक करने से फ़रमाँबरदार होने और ईसा' मसीह का ख़ून छिड़के जाने के लिए बरगुज़ीदा हुए है| फज़ल और इत्मीनान तुम्हें ज़्यादा हासिल होता रहे|3हमारे ख़ुदावंद ईसा' मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो, जिसने ईसा' मसीह के मुर्दों में से जी उठने के ज़रिये, अपनी बड़ी रहमत से हमे जिन्दा उम्मीद के लिए नए सिरे से पैदा किया,4ताकि एक ग़ैरफ़ानी और बेदाग़ और लाज़वाल मीरास को हासिल करें ;5वो तुम्हारे वास्ते [जो ख़ुदा की क़ुदरत से ईमांन के वसीले से , उस नजात के लिए जो आख़री वक़्त में ज़ाहिर होने को तैयार है, हिफ़ाज़त किये जाते हो ] आसमान पर महफ़ूज़ है |6इस की वजह से तुम ख़ुशी मनाते हो,अगरचे अब चंद रोज़ के लिये ज़रूरत की वजह से, तरह तरह की आज़्माइशों की वजह से ग़मज़दा हो ;7और ये इस लिए कि तुम्हारा आज़माया हुआ ईमान, जो आग से आज़माए हुए फ़ानी सोने से भी बहुत ही बेशक़ीमत है, ईसा' मसीह के ज़हुर के वक़्त तारीफ़ और जलाल और 'इज़्ज़त का ज़रिया ठहरे|8उससे तुम अनदेखी मुहब्बत रखते हो और अगरचे इस वक़्त उसको नहीं देखते तो भी उस पर ईमान लाकर ऐसी ख़ुशी मानाते हो जो बयान से बाहर और जलाल से भरी है;9और अपने ईमान का मक़सद या'नी रूहों की नजात हासिल करते हो|10इसी नजात के बारे में नबियों ने बड़ी तलाश और तहक़ीक़ की, जिन्होंने उस फ़ज़ल के बारे में जो तुम पर होने को था नबूव्वत की|11उन्होंने इस बात की तहक़ीक़ की कि मसीह का रूह जो उस में था,और पहले मसीह के दुखों और उनके ज़िन्दा हो उठने के बा'द उसके के जलाल की गवाही देता था, वो कौन से और कैसे वक़्त की तरफ़ इशारा करता था|12उन पर ये ज़ाहिर किया गया कि वो न अपनी बल्कि तुम्हारी ख़िदमत के लिए ये बातें कहा करते थे,जिनकी ख़बर अब तुम को उनके ज़रिये मिली जिन्होंने रूह-उल-क़ुद्दुस के वसीले से, जो आसमान पर से भेजा गया तुम को ख़ुशख़बरी दी; और फ़रिश्ते भी इन बातों पर गौर से नज़र करने के मुश्ताक़ हैं|13इस वास्ते अपनी 'अक़्ल की कमर बाँधकर और होशियार होकर,उस फ़ज़ल की पूरी उम्मीद रख्खो जो ईसा' मसीह के ज़हूर के वक़्त तुम पर होने वाला है|14और फ़रमाँबरदार बेटा होकर अपनी जहालत के ज़माने की पुरानी ख़्वाहिशों के ताबे' न बनो |15बल्कि जिस तरह तुम्हारा बुलानेवाला पाक, है, उसी तरह तुम भी अपने सारे चाल-चलन में पाक बनो;16क्योंकि पाक कलाम में लिखा है, "पाक हो, इसलिए कि मैं पाक हूँ |"17और जब कि तुम 'बाप' कह कर उससे दु'आ करते हो, जो हर एक के काम के मुवाफिक़ बग़ैर तरफ़दारी के इन्साफ करता है, तो अपनी मुसाफ़िरत का ज़माना ख़ौफ के साथ गुज़ारो |18क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन जो बाप-दादा से चला आता था, उससे तुम्हारी ख़लासी फ़ानी चीज़ों या'नी सोने चाँदी के ज़रि'ए से नहीं हुई;19बल्कि एक बे'ऐब और बेदाग़ बर्रे, या'नी मसीह के बेश क़ीमत खून से |20उसका 'इल्म तो दुनियाँ बनाने से पहले से था, मगर ज़हूर आख़िरी ज़माने में तुम्हारी ख़ातिर हुआ,21कि उस के वसीले से ख़ुदा पर ईमान लाए हो, जिसने उस को मुर्दों में से जिलाया और जलाल बख़्शा ताकि तुम्हारा ईमान और उम्मीद ख़ुदा पर हो |22चूँकि तुम ने हक़ की ताबे 'दारी से अपने दिलों को पाक किया है,जिससे भाइयों की बे'रिया मुहब्बत पैदा हुई, इसलिए दिल-ओ-जान से आपस में बहुत मुहब्बत रख्खो|23क्योंकि तुम मिटने वाले बीज से नही बल्कि ग़ैर फ़ानी से ख़ुदा के कलाम के वसीले से, जो जिंदा और क़ायम है , नए सिरे से पैदा हुए हो |24चुनाँचे हर आदमी घास की तरह है, और उसकी सारी शान-ओ-शौकत घास के फूल की तरह | घास तो सूख जाती है, और फूल गिर जाता है|25लेकिन ख़ुदावंद का कलाम हमेशा तक क़ायम रहेगा | ये वही ख़ुशख़बरी का कलाम है जो तुम्हें सुनाया गया था|
1शमा'ऊन पतरस की तरफ़ से ,जो ईसा' मसीह का बन्दा और रसूल है , उन लोगों के नाम ख़त ,जिन्होंने हमारे ख़ुदा और मुंजी ईसा' मसीह की रास्तबाज़ी में हमारा सा क़ीमती ईमान पाया है |2ख़ुदा और हमारे ख़ुदावन्द ईसा' की पहचान की वजह से फ़ज़ल और इत्मीनान तुम्हें ज़्यादा होता रहे |3क्योंकि खुदा की इलाही क़ुदरत ने वो सब चीज़ें जो ज़िन्दगी और दीनदारी के मुता'ल्लिक़ हैं ,हमें उसकी पहचान के वसीले से 'इनायत की ,जिसने हम को अपने ख़ास जलाल और नेकी के ज़रि'ए से बुलाया |4जिनके ज़रिए उसने हम से क़ीमती और निहायत बड़े वा'दे किए ; ताकि उनके वसीले से तुम उस ख़राबी से छूटकर ,जो दुनिया में बुरी ख़्वाहिश की वजह से है ,ज़ात-ए-इलाही में शरीक हो जाओ |5पस इसी ज़रिये तुम अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करके अपने ईमान से नेकी ,और नेकी से मा'रिफ़त ,6और मा'रिफ़त से परहेज़गारी ,और परहेज़गारी से सब्र और सब्र से दीनदारी ,7और दीनदारी से बिरादराना उल्फ़त , और बिरादराना उल्फ़त से मुहब्बत बढ़ाओ |8क्यूँकि अगर ये बातें तुम में मौजूद हों और ज़्यादा भी होती जाएँ ,तो तुम को हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के पहचानने में बेकार और बेफल न होने देंगी |9और जिसमें ये बातें न हों ,वो अन्धा है और कोताह नज़र अपने पहले गुनाहों के धोए जाने को भूले बैठा है |10पस ऐ भाइयों !अपने बुलावे और बरगुज़ीदगी को साबित करने की ज़्यादा कोशिश करो ,क्यूँकि अगर ऐसा करोगे तो कभी ठोकर न खाओगे ;11बल्कि इससे तुम हमारे ख़ुदावन्द और मुन्जी ईसा'मसीह की हमेशा बादशाही में बड़ी 'इज़्ज़त के साथ दाख़िल किए जाओगे |12इसलिए मैं तुम्हें ये बातें याद दिलाने को हमेशा मुस्त'इद रहूँगा ,अगरचे तुम उनसे वाक़िफ़ और उस हक़ बात पर क़ायम हो जो तुम्हें हासिल है |13और जब तक मैं इस ख़ेमे में हूँ ,तुम्हें याद दिला दिला कर उभारना अपने ऊपर वाजिब समझता हूँ |14क्यूँकि हमारे ख़ुदावन्द ईसा' मसीह के बताने के मुवाफ़िक़, मुझे मा'लूम है कि मेरे ख़ेमे के गिराए जाने का वक़्त जल्द आनेवाला है |15पस मैं ऐसी कोशिश करूँगा कि मेरे इन्तक़ाल के बा'द तुम इन बातों को हमेशा याद रख सको |16क्योंकि जब हम ने तुम्हे अपने ख़ुदा वन्द ईसा' मसीह की क़ुदरत और आमद से वाक़िफ़ किया था, तो दग़ाबाज़ी की गढ़ी हुई कहानियो की पैरवी नही की थी बल्कि ख़ुद उस कि अज़मत को देखा था17कि उसने ख़ुदा बाप से उस वक़्त 'इज़्ज़त और जलाल पाया, जब उस अफ़ज़ल जलाल में से उसे ये आवाज़ आई, "ये मेरा प्यारा बेटा है, जिससे मैं ख़ुश हूँ |"18और जब हम उसके साथ मुक़द्दस पहाड़ पर थे ,तो आसमान से यही आवाज़ आती सुनी |19और हमारे पास नबियों का वो कलाम है जो ज़्यादा मौ'तबर ठहरा |और तुम अच्छा करते हो ,जो ये समझ कर उसी पर ग़ौर करते हो कि वो एक चराग़ है जो अन्धेरी जगह में रौशनी बख़्शता है,जब तक सुबह की रौशनी और सुबह का सितारा तुम्हारे दिलों में न चमके |20और पहले ये जान लो कि किताब-ए-मुक़द्दस की किसी नबुव्वत की बात की तावील किसी के ज़ाती इख़्तियार पर मौक़ूफ़ नहीं ,21क्योंकि नबुव्वत की कोई बात आदमी की ख़्वाहिश से कभी नहीं हुई ,बल्कि आदमी रूह-उल-क़ुद्दुस की तहरीक की वजह से ख़ुदा की तरफ़ से बोलते थे |
1उस ज़िन्दगी के कलाम के बारे में जो शुरू से था ,और जिसे हम ने सुना और अपनी आँखों से देखा बल्कि ,ग़ौर से देखा और अपने हाथों से छुआ |2[ये ज़िन्दगी ज़ाहिर हुई और हम ने देखा और उसकी गवाही देते हैं ,और इस हमेशा की ज़िन्दगी की तुम्हें ख़बर देते हैं जो बाप के साथ थी और हम पर ज़ाहिर हुई है।]3जो कुछ हम ने देखा और सुना है तुम्हें भी उसकी ख़बर देते है ,ताकि तुम भी हमारे शरीक हो ,और हमारा मेल मिलाप बाप के साथ और उसके बेटे ईसा' मसीह के साथ है |4और ये बातें हम इसलिए लिखते है कि हमारी ख़ुशी पूरी हो जाए |5उससे सुन कर जो पैग़ाम हम तुम्हें देते हैं ,वो ये है कि ख़ुदा नूर है और उसमे ज़रा भी तारीकी नहीं |6अगर हम कहें कि हमारा उसके साथ मेल मिलाप है और फिर तारीकी में चलें ,तो हम झूटे हैं और हक़ पर 'अमल नहीं करते |7लेकिन जब हम नूर में चलें जिस तरह कि वो नूर में हैं , तो हमारा आपस मे मेल मिलाप है ,और उसके बेटे ईसा' का खून हमें तमाम गुनाह से पाक करता है |8अगर हम कहें कि हम बेगुनाह हैं तो अपने आपको धोका देते हैं ,और हम में सच्चाई नहीं |9अगर अपने गुनाहों का इक़रार करें ,तो वो हमारे गुनाहों को मु'आफ़ करने और हमें सारी नारास्ती से पाक करने में सच्चा और 'आदिल है |10अगर कहें कि हम ने गुनाह नहीं किया ,तो उसे झूठा ठहराते हैं और उसका कलाम हम में नहीं है |
1मुझ बुज़ुर्ग की तरफ़ से उस बरगुजीदा बीवी और उसके फ़र्ज़न्दों के नाम ख़त ,जिनसे मैं उस सच्चाई की वजह से सच्ची मुहब्बत रखता हूँ ,जो हम में क़ामय रहती है ,और हमेशा तक हमारे साथ रहेगी ,2और सिर्फ़ मैं ही नहीं बल्कि वो सब भी मुहब्बत रखते हैं ,जो हक़ से वाक़िफ़ हैं |3ख़ुदा बाप और बाप के बेटे 'ईसा' मसीह की तरफ़ से फ़ज़ल और रहम और इत्मीनान , सच्चाई और मुहब्बत समेत हमारे शामिल-ए-हाल रहेंगे |4मैं बहुत ख़ुश हुआ कि मैंने तेरे कुछ लड़कों को उस हुक्म के मुताबिक़, जो हमें बाप की तरफ़ से मिला था, हक़ीक़त में चलते हुए पाया |5अब ऐ बीवी! मैं तुझे कोई नया हुक्म नहीं ,बल्कि वही जो शुरू' से हमारे पास है लिखता और तुझ से मिन्नत करके कहता हूँ कि आओ ,हम एक दूसरे से मुहब्बत रख्खें |6और मुहब्बत ये है कि हम उसके हुक्मों पर चलें |ये वही हुक्म है जो तुम ने शुरू' से सुना है कि तुम्हें इस पर चलना चाहिए |7क्यूँकि बहुत से ऐसे गुमराह करने वाले दुनिया मे निकल खड़े हुए हैं ,जो 'ईसा' मसीह के मुजस्सिम होकर आने का इक़रार नहीं करते |गुमराह करनेवाला मुख़ालिफ़-ए-मसीह यही है |8अपने आप में ख़बरदार रहो ,ताकि जो मेहनत हम ने की है वो तुम्हारी वजह से ज़ाया न हो जाए, बल्कि तुम को पूरा अज्र मिले |9जो कोई आगे बढ़ जाता है और मसीह की ता'लीम पर क़ायम नहीं रहता ,उसके पास ख़ुदा नहीं |जो उस ता'लीम पर क़ायम रहता है, उसके पास बाप भी है और बेटा भी |10अगर कोई तुम्हारे पास आए और ये ता'लीम न दे ,तो न उसे घर में आने दो और न सलाम करो |11क्यूँकि जो कोई ऐसे शख़्श को सलाम करता है, वो उसके बुरे कामों में शरीक होता है |12मुझे बहुत सी बातें तुम को लिखना है ,मगर काग़ज़ और स्याही से लिखना नहीं चाहता ;बल्कि तुम्हारे पास आने और रू-ब-रू बातचीत करने की उम्मीद रखता हूँ ,ताकि तुहारी ख़ुशी कामिल हो |13तेरी बरगुज़ीदा बहन के लड़के तुझे सलाम कहते हैं।
1मुझ बुज़ुर्ग की तरफ़ से उस प्यारे गियुस के नाम ख़त ,जिससे मैं सच्ची मुहब्बत रखता हूँ |2ऐ प्यारे ! मैं ये दु'आ करता हूँ कि जिस तरह तू रूहानी तरक़्क़ी कर रहा है ,इसी तरह तू सब बातों में तरक़्क़ी करे और तन्दुरुस्त रहे |3क्योंकि जब भाइयों ने आकर तेरी उस सच्चाई की गवाही दी, जिस पर तू हक़ीक़त में चलता है ,तो मैं निहायत ख़ुश हुआ |4मेरे लिए इससे बढ़कर और कोई ख़ुशी नहीं कि मैं अपने बेटो को हक़ पर चलते हुए सुनूँ |5ऐ प्यारे !जो कुछ तू उन भाइयों के साथ करता है जो परदेसी भी हैं ,वो ईमानदारी से करता है |6उन्होंने कलीसिया के सामने तेरी मुहब्बत की गवाही दी थी |अगर तू उन्हें उस तरह रवाना करेगा ,जिस तरह ख़ुदा के लोगों को मुनासिब है तो अच्छा करेगा |7क्योकि वो उस नाम की ख़ातिर निकले हैं ,और ग़ैर-क़ौमों से कुछ नहीं लेते |8पस ऐसों की ख़ातिरदारी करना हम पर फ़र्ज़ है, ताकि हम भी हक़ की ताईद में उनके हम ख़िदमत हों |9मैंने कलीसिया को कुछ लिखा था , मगर दियुत्रिफ़ेस जो उनमे बड़ा बनना चाहता है ,हमें क़ुबूल नहीं करता |10पस जब मैं आऊँगा तो उसके कामों को जो वो कर रहा है ,याद दिलाऊँगा ,कि हमारे हक़ में बुरी बातें बकता है ; और इन पर सब्र न करके ख़ुद भी भाइयों को क़ुबूल नहीं करता ,और जो क़ुबूल करना चाहते हैं उनको भी मना' करता है और कलीसिया से निकाल देता है |11ऐ प्यारे !बदी की नहीं बल्कि नेकी की पैरवी कर |नेकी करनेवाला ख़ुदा से है; बदी करनेवाले ने ख़ुदा को नहीं देखा |12देमेत्रियुस के बारे में सब ने और ख़ुद हक़ ने भी गवाही दी, और हम भी गवाही देते हैं ,और तू जानता है कि हमारी गवाही सच्ची है |13मुझे लिखना तो तुझ को बहुत कुछ था ,मगर स्याही और क़लम से तुझे लिखना नहीं चाहता |14बल्कि तुझ से जल्द मिलने की उम्मीद रखता हूँ , उस वक़्त हम रू-ब-रू बातचीत करेंगे |15तुझे इत्मीनान हासिल होता रहे |यहाँ के दोस्त तुझे सलाम कहते हैं |तू वहाँ के दोस्तों से नाम-ब-नाम सलाम कह |
1यहूदाह की तरफ़ से जो मसीह 'ईसा' का बन्दा और या'क़ूब का भाई ,और उन बुलाए हुओं के नाम जो ख़ुदा बाप में प्यारे और 'ईसा' मसीह के लिए महफ़ूज़ हैं |2रहम , इत्मीनान और मुहब्बत तुम को ज़्यादा हासिल होती रहे |3ऐ प्यारों! जिस वक़्त मैं तुम को उस नजात के बारे में लिखने में पूरी कोशिश कर रहा था जिसमें हम सब शामिल हैं , तो मैंने तुम्हें ये नसीहत लिखना ज़रूर जाना कि तुम उस ईमान के वास्ते मेहनत करो जो मुक़द्दसों को एक बार सौंपा गया था |4क्यूँकि कुछ ऐसे शख़्स चुपके से हम में आ मिले हैं ,जिनकी इस सज़ा का ज़िक्र पाक कलाम में पहले से लिखा गया था :ये बेदीन हैं ,और हमारे ख़ुदा के फ़ज़ल को बुरी आदतों से बदल डालते हैं ,और हमारे वाहिद मालिक और ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का इन्कार करते हैं |5पस अगरचे तुम सब बातें एक बार जान चुके हो ,तोभी ये बात तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ कि ख़ुदावन्द ने एक उम्मत को मुल्क-ए-मिस्र में से छुड़ाने के बा'द ,उन्हें हलाक किया जो ईमान न लाए |6और जिन फ़रिश्तों ने अपनी हुकुमत को क़ायम न रख्खा बल्कि अपनी ख़ास जगह को छोड़ दिया ,उनको उसने हमेशा की क़ैद में अंधेरे के अन्दर रोज़-ए-'अज़ीम की 'अदालत तक रख्खा है7इसी तरह सदोम और 'अमूरा और उसके आसपास के शहर ,जो इनकी तरह ज़िनाकारी में पड़ गए और ग़ैर जिस्म की तरफ़ राग़िब हुए ,हमेशा की आग की सज़ा में गिरफ़्तार होकर जा-ए-'इबरत ठहरे हैं |8तोभी ये लोग अपने वहमों में मशग़ूल होकर उनकी तरह जिस्म को नापाक करते, और हुकूमत को नाचीज़ जानते ,और 'इज़्ज़तदारों पर ला'न ता'न करते हैं |9लेकिन मुक़र्रब फ़रिश्ते मीकाईल ने मूसा की लाश के बारे मे इब्लीस से बहस-ओ-तकरार करते वक़्त, ला'न ता'न के साथ उस पर नालिश करने की हिम्मत न की ,बल्कि ये कहा, " ख़ुदावन्द तुझे मलामत करे |"10मगर ये जिन बातों को नहीं जानते उन पर ला'न ता'न करते हैं ,और जिनको बे अक़्ल जानवरों की तरह मिज़ाजी तौर पर जानते हैं ,उनमें अपने आप को ख़राब करते हैं |11इन पर आफ़सोस! कि ये क़ाईन की राह पर चले ,और मज़दूरी के लिए बड़ी लालच से बिल'आम की सी गुमराही इख़्तियार की ,और कोरह की तरह मुख़ालिफ़त कर के हलाक हुए |12ये तुम्हारी मुहब्बत की दावतों में तुम्हारे साथ खाते -पीते वक़्त ,गोया दरिया की छिपी चटानें हैं |ये बेधड़क अपना पेट भरनेवाले चरवाहे हैं |ये बे-पानी के बादल हैं ,जिन्हें हवाएँ उड़ा ले जाती हैं |ये पतझड़ के बे-फल दरख्त हैं ,जो दोनों तरफ़ से मुर्दा और जड़ से उखड़े हुए13ये समुन्दर की पुर जोश मौजें ,जो अपनी बेशर्मी के झाग उछालती हैं |ये वो आवारा गर्द सितारे हैं ,जिनके लिए हमेशा तक बेहद तारीकी धरी है |14इनके बारे में हनूक ने भी ,जो आदम से सातवीं पुश्त में था ,ये पेशीनगोई की थी, "देखो ,ख़ुदावन्द अपने लाखों मुक़द्दसों के साथ आया ,15ताकि सब आदमियों का इन्साफ करे ,और सब बेदीनो को उनकी बेदीनी के उन सब कामों के ज़रिये से ,जो उन्होंने बेदीनी से किए हैं ,और उन सब सख़्त बातों की वजह से जो बेदीन गुनाहगारों ने उसकी मुख़ालिफ़त में कही हैं कुसूरवार ठहराए |"16ये बड़बड़ाने वाले और शिकायत करने वाले हैं ,और अपनी ख़्वाहिशों के मुवाफ़िक़ चलते हैं ,और अपने मुँह से बड़े बोल बोलते हैं ,और फ़ायदे ' के लिए लोगों की ता'रीफ़ करते हैं |17लेकिन ऐ प्यारो! उन बातों को याद रख्खो जो हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के रसूल पहले कह चुके हैं |18वो तुम से कहा करते थे कि, "आख़िरी ज़माने में ऐसे ठठ्ठा करने वाले होंगे ,जो अपनी बेदीनी की ख़्वाहिशों के मुवाफ़िक़ चलेंगे |"19ये वो आदमी हैं जो फूट डालते हैं ,और नफ़सानी हैं और रूह से बे-बहरा |20मगर तुम ऐ प्यारों! अपने पाक तरीन ईमान में अपनी तरक़्क़ी करके और रूह-उल-क़ुद्दूस में दु'आ करके ,21अपने आपको 'ख़ुदा' की मुहब्बत में क़ायम रख्खो; और हमेशा की ज़िन्दगी के लिए हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह की रहमत के इन्तिज़ार में रहो |22और कुछ लोगों पर जो शक में हैं रहम करो;23और कुछ को झपट कर आग में से निकालो ,और कुछ पर ख़ौफ़ खाकर रहम करो ,बल्कि उस पोशाक से भी नफ़रत करो जो जिस्म की वजह से दाग़ी हो गई हो |24अब जो तुम को ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपने पुर जलाल हुज़ूर में कमाल ख़ुशी के साथ बे'ऐब करके खड़ा कर सकता है ,25उस ख़ुदा-ए-वाहिद का जो हमारा मुन्जी है ,जलाल और 'अज़मत और सल्तनत और इख़्तियार ,हमारे ख़ुदावन्द 'ईसा' मसीह के वसीले से ,जैसा पहले से है ,अब भी हो और हमेशा रहे।आमीन।
1ईसा ' मसीह का मुकाशिफा, जो उसे ख़ुदा की तरफ़ से इसलिए हुआ कि अपने बन्दों को वो बातें दिखाए जिनका जल्द होना ज़रूरी है; और उसने अपने फ़रिश्ते को भेज कर उसकी मा'रिफ़त उन्हें अपने अपने बन्दे युहन्ना पर ज़ाहिर किया |2यूहन्ना ने ख़ुदा का कलाम और ईसा' मसीह की गवाही की या'नी उन सब चीज़ों की जो उसने देखीं थीं गवाही दी |3इस नबू'व्वत की किताब का पढ़ने वाले और उसके सुनने वाले और जो कुछ इस में लिखा है, उस पर अमल करने वाले मुबारक हैं; क्यूँकि वक़्त नज़दीक है |4युहन्ना की जानिब से उन सात कलीसियाओं के नाम जो आसिया सूबा में हैं | उसकी तरफ़ से जो है, और जो था, और जो आनेवाला है, और उन सात रुहों की तरफ़ से जो उसके तख़्त के सामने हैं |5और ईसा ' मसीह की तरफ़ से जो सच्चे गवाह और मुर्दों में से जी उठनेवालों में पहलौठा और दुनियाँ के बादशाहों पर हाकिम है, तुम्हें फ़ज़ल और इत्मीनान हासिल होता रहे | जो हम से मुहब्बत रखता है, और जिसने अपने ख़ून के वसीले से हम को गुनाहों से मु'आफ़ी बख्शी,6और हम को एक बादशाही भी दी और अपने ख़ुदा और बाप के लिए काहिन भी बना दिया | उसका जलाल और बादशाही हमेशा से हमेशा तक रहे| आमीन |7देखो, वो बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, और जिहोंने उसे छेदा था वो भी देखेंगे, और ज़मीन पर के सब क़बीले उसकी वजह से सीना पीटेंगे | बेशक | आमीन |8ख़ुदावंद ख़ुदा जो है और जो था और जो आनेवाला है, या'नी क़ादिर-ए-मुत्ल्क फ़रमाता है, "मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ |"9मैं युहन्ना, जो तुम्हारा भाई और ईसा ' की मुसीबत और बादशाही और सब्र में तुम्हारा शरीक हूँ, ख़ुदा के कलाम और ईसा ' के बारे में गवाही देने के ज़रिए उस टापू में था, जो पत्मुस कहलाता है, कि10ख़ुदावन्द के दिन रूह में आ गया और अपने पीछे नरसिंगे की सी ये एक बड़ी आवाज़ सुनी,11“जो कुछ तू देखता है उसे एक किताब में लिख कर उन सातों शहरों की सातों कलीसियाओं के पास भेज दे या'नी इफ़िसुस, और सुमरना, और परिगमुन, और थुवातीरा,और सरदीस,और फ़िलदिल्फ़िया,और लौदोकिया में |”12मैंने उस आवाज़ देनेवाले को देखने के लिए मुँह फेरा, जिसने मुझ से कहा था; और फिर कर सोने के सात चिराग़दान देखे,13और उन चिराग़दानों के बीच में आदमज़ाद सा एक आदमी देखा, जो पाँव तक का जामा पहने हुए था |14उसका सिर और बाल सफ़ेद ऊन बल्कि बर्फ़ की तरह सफ़ेद थे, और उसकी आँखें आग के शो'ले की तरह थीं |15और उसके पाँव उस ख़ालिस पीतल के से थे जो भट्टी में तपाया गया हो, और उसकी आवाज़ ज़ोर के पानी की सी थी |16और उसके दहने हाथ में सात सितारे थे, और उसके मुँह में से एक दोधारी तेज़ तलवार निलकती थी; और उसका चेहरा ऐसा चमकता था जैसे तेज़ी के वक़्त आफ़ताब |17जब मैंने उसे देखा तो उसके पाँव में मुर्दा सा गिर पड़ा| और उसने ये कहकर मुझ पर अपना दहना हाथ रख्खा, " ख़ौफ़ न कर ; मैं अव्वल और आख़िर,"18और ज़िन्दा हूँ | मैं मर गया था, और देख हमेशा से हमेशा तक रहूँगा; और मौत और 'आलम-ए-अर्वाह की कुन्जियाँ मेरे पास हैं |19पस जो बातें तू ने देखीं और जो हैं और जो इनके बा'द होने वाली हैं, उन सब को लिख ले |20या'नी उन सात सितारों का भेद जिन्हें तू ने मेरे दहने हाथ में देखा था , और उन सोने के सात चिराग़दानों का : वो सात सितारे तो सात कलीसियाओं के फ़रिश्ते हैं, और वो सात चिराग़दान कलीसियाएँ हैं |