1 अब्राहम की सन्तान, दाऊद की सन्तान, यीशु मसीह* की वंशावली*। 2 अब्राहम से इसहाक उत्पन्न हुआ, इसहाक से याकूब उत्पन्न हुआ, और याकूब से यहूदा और उसके भाई उत्पन्न हुए। 3 यहूदा और तामार से पेरेस व जेरह उत्पन्न हुए, और पेरेस से हेस्रोन उत्पन्न हुआ, और हेस्रोन से एराम उत्पन्न हुआ। 4 एराम से अम्मीनादाब उत्पन्न हुआ, और अम्मीनादाब से नहशोन, और नहशोन से सलमोन उत्पन्न हुआ। (रूत 4:19-20) 5 सलमोन और राहाब से बोआज उत्पन्न हुआ, और बोआज और रूत से ओबेद उत्पन्न हुआ, और ओबेद से यिशै उत्पन्न हुआ। 6 और यिशै से दाऊद राजा उत्पन्न हुआ। और दाऊद से सुलैमान उस स्त्री से उत्पन्न हुआ जो पहले ऊरिय्याह की पत्नी थी। (2 शमू. 12:24) 7 सुलैमान से रहबाम उत्पन्न हुआ, और रहबाम से अबिय्याह उत्पन्न हुआ, और अबिय्याह से आसा उत्पन्न हुआ। 8 आसा से यहोशाफात उत्पन्न हुआ, और यहोशाफात से योराम उत्पन्न हुआ, और योराम से उज्जियाह उत्पन्न हुआ। 9 उज्जियाह से योताम उत्पन्न हुआ, योताम से आहाज उत्पन्न हुआ, और आहाज से हिजकिय्याह उत्पन्न हुआ। 10 हिजकिय्याह से मनश्शे उत्पन्न हुआ, मनश्शे से आमोन उत्पन्न हुआ, और आमोन से योशिय्याह उत्पन्न हुआ। 11 और बन्दी होकर बाबेल जाने के समय में योशिय्याह से यकुन्याह*, और उसके भाई उत्पन्न हुए। (यिर्म. 27:20) 12 बन्दी होकर बाबेल पहुँचाए जाने के बाद यकुन्याह से शालतियेल उत्पन्न हुआ, और शालतियेल से जरुब्बाबेल उत्पन्न हुआ। 13 जरुब्बाबेल से अबीहूद उत्पन्न हुआ, अबीहूद से एलयाकीम उत्पन्न हुआ, और एलयाकीम से अजोर उत्पन्न हुआ। 14 अजोर से सादोक उत्पन्न हुआ, सादोक से अखीम उत्पन्न हुआ, और अखीम से एलीहूद उत्पन्न हुआ। 15 एलीहूद से एलीआजार उत्पन्न हुआ, एलीआजार से मत्तान उत्पन्न हुआ, और मत्तान से याकूब उत्पन्न हुआ। 16 याकूब से यूसुफ उत्पन्न हुआ, जो मरियम का पति था, और मरियम से* यीशु उत्पन्न हुआ जो मसीह कहलाता है। 17 अब्राहम से दाऊद तक सब चौदह पीढ़ी हुई, और दाऊद से बाबेल को बन्दी होकर पहुँचाए जाने तक चौदह पीढ़ी, और बन्दी होकर बाबेल को पहुँचाए जाने के समय से लेकर मसीह तक चौदह पीढ़ी हुई।
18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उसकी माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उनके इकट्ठे होने के पहले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। 19 अतः उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की। 20 जब वह इन बातों की सोच ही में था तो परमेश्वर का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, “हे यूसुफ! दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। 21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु* रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।” 22 यह सब कुछ इसलिए हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था, वह पूरा हो (यशा. 7:14) 23 “देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा,” जिसका अर्थ है - परमेश्वर हमारे साथ। 24 तब यूसुफ नींद से जागकर परमेश्वर के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आया। 25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा।
पद 1-17 में यीशु के पूर्वजों के नाम दिए गए हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, "दाऊद का वंशज जो अब्राहम का वंशज था"। अब्राहम और उसके वंशज दाऊद के मध्य अनेक पीढ़ियाँ थी और दाऊद और उसके वंशज यीशु के मध्य अनेक पीढ़ियां रही हैं। "दाऊद का पुत्र" एक पदनाम स्वरूप काम में लिया गया है, तथा अन्य स्थानों में परन्तु यह केवल उसकी वंशावली को दर्शाने के लिए काम में लिया गया है।
वैकल्पिक अनुवाद, "अब्राहम इसहाक का पिता था" या अब्राहम का पुत्र था इसहाक"। इसमें से एक अनुवाद को काम में लेने से आपके पाठकों के लिए अधिक स्पष्ट होगा और इसी को शेष सूची में काम में लें।
जिस भाषा में इस शब्द के पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों शब्द है उसमें स्त्रीलिंग शब्द ही काम में लें।
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती .में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
"सलमोन बोअज का पिता था और बोअज की माता राहाब थी"। या "बोअज के माता-पिता राहाब और सलमोन थे"।
बोअज ओबेद का पिता था और माता रूत थी "या ओबेद के माता-पिता रूत और बोअज थे।"
जिन भाषाओं में इन शब्दों के पुल्लिंग और स्त्रीलिंग शब्द हैं। उनमें इन शब्दों के केवल स्त्रीलिंग रूप ही काम में लिए जाए।
"दाऊद का पुत्र सुलैमान था और सुलैमान की माता उरिय्याह की पत्नी थी। या दाऊद और उरिय्याह की पत्नी सुलैमान के माता-पिता थे"।
"उरिय्याह की विधवा।"
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
कभी-कभी उसके नाम का अनुवाद "आसाप" किया जाता है।
योराम वास्तव में उज्जियाह के दादा का दादा था। अतः दादा के स्थान पर "पूर्वज" लिखा जा सकता है।(यू.डी.बी)
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती .में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
कहीं-कहीं इसका अनुवाद आमोस किया गया है।
योशिय्याह वास्तव में यकुन्याह का दादा था।(देखें: यू.डी.बी)
जब वे बेबीलोन ले जाए गए। या "जब बेबीलोन की सेना ने उन्हें बेबीलोन में बसने पर विवश किया"। यदि आपकी भाषा में स्पष्ट करना है कि कौन बेबीलोन ले जाए गए तो आप कह सकते हैं, "इस्राएली" या यहूदा के रहने वाले इस्राएली"।
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती .में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
शब्दावली वही काम में ले जो में काम में ली गई है।
शालतिएल वास्तव में जरूब्बाबिल का दादा था।(देखे: यू.डी.बी.)
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
मरियम जिससे यीशु का जन्म हुआ। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य रूप में किया जा सकता है, "मरियम ने यीशु को जन्म दिया"।
शब्दावली वही काम में ले जो में काम में ली गई है।
यहाँ उन घटनाओं का वर्णन है जो यीशु के जन्म से सम्बन्धित हैं। यदि आपकी भाषा में विषय परिवर्तन दिखाने की विधि है तो उसे यहाँ काम में लें।
मरिमय की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई थी। "विवाह की प्रतिज्ञा कर चुकी थी" (यू.डी.बी.) या "विवाह के लिए समर्पित की जा चुकी थी"। माता-पिता सामान्यतः सन्तान के विवाह का प्रबन्ध करते हैं।
इस शिष्टोक्ति का अर्थ है, "इससे पूर्व कि उनमें यौन सम्बन्ध होता"।
"उन्हें पता चला कि वह शिशु को जन्म देने वाली है"।(देखें:: )
"पवित्र आत्मा ने मरियम को शिशु जनने योग्य किया"।
यहाँ यीशु के जन्म से संबन्धित घटनाओं का वर्णन है।
अचानक से ही एक स्वर्गदूत यूसुफ के पास आया।
"मरियम के गर्भ में जो शिशु है वह पवित्र आत्मा से है।"
क्योंकि परमेश्वर ने अपने स्वर्गदूत को भेजा था इसलिए वह जानता था कि वह शिशु पुत्र है।
यह एक आज्ञा हैः "तू उसका नाम रखना" या "उसे नाम देना" या "उसे पुकारना"।
"अपने लोगों का" यहूदियों से संदर्भ है।
मत्ती उस भविष्यद्वाणी का संदर्भ देता है जिसे यीशु पूरी करेगा।
जो कर्तृवाच्य रूप में व्यक्त किया जा सकता है, "प्रभु ने भविष्यद्वक्ता यशायाह को बहुत पहले से लिखने को कहा था।"
वैकल्पिक अनुवाद, "देखो" या "सुनो" या "जो मैं कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दो"।
यह पद यशायाह का उद्धरण है।
यह अंश यीशु के जन्म से संबन्धित घटनाओं की चर्चा करता है।
स्वर्गदूत ने उसे आज्ञा दी कि वह मरियम को अपने यहाँ ले आए और उस पुत्र का नाम यीशु रखे। (पद 20-21)
उसके पास न गया "उसके साथ यौन सम्बन्ध नहीं बनाए"।
यूसुफ ने अपने पुत्र का नाम यीशु रखा।
जिन दो पूर्वजों की सबसे पहले सूची दी गई है वे दाऊद और अब्राहम है।
मरियम, यूसुफ की पत्नी का नाम दिया गया है क्योंकि उसके द्वारा यीशु का जन्म हुआ था।
यूसुफ के साथ सम्बन्ध बनाने से पूर्व मरियम पवित्र-आत्मा से गर्भवती हुई थी।
यूसुफ एक धर्मी जन था।
यूसुफ ने गुप्त में मरियम के साथ मंगनी तोड़ देने की इच्छा की थी।
एक स्वर्गदूत ने यूसुफ को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वह मरियम को अपना ले क्योंकि उसका गर्भ धारण पवित्र-आत्मा से है।
यूसुफ से कहा गया कि वह शिशु का नाम यीशु रखे क्योंकि वह अपने लोगों का पाप से उद्धार करेगा।
पुराने नियम की भविष्यद्वाणी थी कि एक कुंवारी पुत्र को जन्म देगी और वह इम्मानुएल कहलाएगा जिसका अर्थ है, "परमेश्वर हमारे साथ है।"
यीशु के जन्म तक यूसुफ अति सावधान रहा कि वह मरियम के निकट न जाए।
1 हेरोदेस राजा के दिनों में जब यहूदिया के बैतलहम* में यीशु का जन्म हुआ, तब, पूर्व से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछने लगे, 2 “यहूदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है? क्योंकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको झुककर प्रणाम करने आए हैं।” (गिन. 24:17) 3 यह सुनकर हेरोदेस राजा और उसके साथ सारा यरूशलेम घबरा गया। 4 और उसने लोगों के सब प्रधान याजकों और शास्त्रियों* को इकट्ठा करके उनसे पूछा, “मसीह का जन्म कहाँ होना चाहिए?” 5 उन्होंने उससे कहा, “यहूदिया के बैतलहम में; क्योंकि भविष्यद्वक्ता के द्वारा लिखा गया है :
6 “हे बैतलहम, यहूदा के प्रदेश, तू किसी भी रीति से यहूदा के अधिकारियों में सबसे छोटा नहीं; क्योंकि तुझ में से एक अधिपति निकलेगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा बनेगा।” (मीका 5:2) 7 तब हेरोदेस ने ज्योतिषियों को चुपके से बुलाकर उनसे पूछा, कि तारा ठीक किस समय दिखाई दिया था। 8 और उसने यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, “जाकर उस बालक के विषय में ठीक-ठीक मालूम करो और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उसको प्रणाम करूँ।” 9 वे राजा की बात सुनकर चले गए, और जो तारा उन्होंने पूर्व में देखा था, वह उनके आगे-आगे चला; और जहाँ बालक था, उस जगह के ऊपर पहुँचकर ठहर गया। 10 उस तारे को देखकर वे अति आनन्दित हुए। (लूका 2:20) 11 और उस घर में पहुँचकर उस बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा, और दण्डवत् होकर बालक* की आराधना की, और अपना-अपना थैला खोलकर उसे सोना, और लोबान, और गन्धरस की भेंट चढ़ाई। 12 और स्वप्न में यह चेतावनी पा कर कि हेरोदेस के पास फिर न जाना, वे दूसरे मार्ग से होकर अपने देश को चले गए।
13 उनके चले जाने के बाद, परमेश्वर के एक दूत ने स्वप्न में प्रकट होकर यूसुफ से कहा, “उठ! उस बालक को और उसकी माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा; और जब तक मैं तुझ से न कहूँ, तब तक वहीं रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बालक को ढूँढ़ने पर है कि इसे मरवा डाले।” 14 तब वह रात ही को उठकर बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र को चल दिया। 15 और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा। इसलिए कि वह वचन जो प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था पूरा हो “मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया।” (होशे 11:1)
16 जब हेरोदेस ने यह देखा, कि ज्योतिषियों ने उसके साथ धोखा किया है, तब वह क्रोध से भर गया, और लोगों को भेजकर ज्योतिषियों से ठीक-ठीक पूछे हुए समय के अनुसार बैतलहम और उसके आस-पास के स्थानों के सब लड़कों को जो दो वर्ष के या उससे छोटे थे, मरवा डाला। 17 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हुआ
18 “रामाह में एक करुण-नाद सुनाई दिया,
रोना और बड़ा विलाप,
राहेल अपने बालकों के लिये रो रही थी;
और शान्त होना न चाहती थी, क्योंकि वे अब नहीं रहे।” (यिर्म. 31:15)
19 हेरोदेस के मरने के बाद, प्रभु के दूत ने मिस्र में यूसुफ को स्वप्न में प्रकट होकर कहा, 20 “उठ, बालक और उसकी माता को लेकर इस्राएल के देश में चला जा; क्योंकि जो बालक के प्राण लेना चाहते थे, वे मर गए।” (निर्ग. 4:19) 21 वह उठा, और बालक और उसकी माता को साथ लेकर इस्राएल के देश में आया। 22 परन्तु यह सुनकर कि अरखिलाउस* अपने पिता हेरोदेस की जगह यहूदिया पर राज्य कर रहा है, वहाँ जाने से डरा; और स्वप्न में परमेश्वर से चेतावनी पा कर गलील प्रदेश में चला गया। 23 और नासरत नामक नगर में जा बसा, ताकि वह वचन पूरा हो, जो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा गया थाः “वह नासरी* कहलाएगा।” (लूका 18:7)
इस अध्याय में यहूदियों के राजा के रूप में यीशु के जन्म का वर्णन है।
यहूदिया के बैतलहम में , "यहूदिया क्षेत्र के बैतलहम नगर में"।(यु.डी.बी)
"ज्योतिषी - सितारों का ज्ञान रखने वाले"। (यू.डी.बी.)
हेरोदेस यह हेरोदेस महान है।
वे जानते थे कि जो राजा होगा उसका जन्म हो चुका है। वे जानने का प्रयत्न कर रहे थे कि वह कहाँ है। "एक शिशु जो यहूदियों का राजा होगा, उसका जन्म हुआ है, वह कहाँ है"?
"तारा जो उसके बारे में प्रकट करता है", या "उसके जन्म से संबन्धित तारा", उनके कहने का अर्थ यह नहीं था वह शिशु उस तारे का स्वामी है।
इस शब्द के संभावित अर्थ हैं, (1) उनका प्रयोजन था कि उस दिव्य शिशु को प्रणाम करें", या (2) वे उसे मानवीय राजा के रूप में "सम्मान" देना चाहते थे। यदि आपकी भाषा में ऐसा शब्द है जिसका अर्थ इन दोनों अर्थों से निकलता है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
"वह चिन्तित हो गया" कि उसके स्थान पर किसी और को यहूदियों का राजा बनाया जायेगा।
"यरूशलेम में अधिकांश जन" (यू.डी.बी.) भयभीत हो गये कि हेरोदेस अब क्या करेगा।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
वैकल्पिक अनुवाद "बैतलहम नगर में जो यहूदिया प्रदेश में है"।
इसे क्रियाशील रूप में व्यक्त किया जा सकता है, "भविष्यद्वक्ता ने लिखा है।"
भविष्यद्वक्ता के द्वारा यों लिखा गया है , वैकल्पिक अनुवाद, "भविष्यद्वक्ता मीका द्वारा यह लिखा गया है"।
"तुम जो बैतलहम में निवास करते हो, तुम्हारा नगर निश्चय ही बहुत महत्त्वपूर्ण है।" (यू.डी.बी.) या "हे बैतलहम तू सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नगरों में से एक है"। (देखें )
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
इसका अर्थ है कि हेरोदेस ने ज्योतिषियों से अकेले में बात की।
बालक अर्थात शिशु यीशु।
यहाँ अनुवाद में वही शब्द काम में लें जो आपने में काम में लिया है।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
राजा की बात सुनकर , "तब" (यू.डी.बी.) या "राजा की बात सुनने के बाद ज्योतिषी"।
वैकल्पिक अनुवाद, "उनका मार्गदर्शन किया"।
ठहर गया, वैकल्पिक अनुवाद, "रूक गया"।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
ज्योतिषियों ने
यहाँ अनुवाद में वही शब्द काम में लें जो आपने में काम में लिया है।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
"ज्योतिषी चले गए"।
परमेश्वर यूसुफ से बात कर रहा है अतः ये एक वचन शब्द है ।
जब तक हेरोदेस की मृत्यु नहीं हो जाती । इस वाक्य द्वारा उनके मिस्र में रहने का समय प्रकट होता है परन्तु यह नहीं कहा गया है कि इस समय हेरोदस की मृत्यु हुई।
यह होशे का उद्धरण है मत्ती में यूनानी अभिलेख के शब्द होशे की इब्रानी भाषा के शब्दों से भिन्न हैं क्योंकि यहाँ "मिस्र से" पर बल दिया गया है, अन्य किसी देश को नहीं: "मिस्र से ही मैंने अपने पुत्र को बुलाया।"
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
यूसुफ मरियम और यीशु को लेकर चला गया तब हेरोदेस ने क्या किया, इसका यहाँ वर्णन है अब तक हेरोदेस की मृत्यु नहीं हुई है।
"ज्योतिषियों ने उसे धोखा देकर क्रोधित किया"। (देखें यू.डी.बी.)
उसने सब बालकों को मरवा डाला, वैकल्पिक अनुवादः "उसने सब बालाकों की हत्या करने की आज्ञा दी" या "उसने सब बालकों को मार डालने के लिए सैनिक भेजे"(यू.डी.बी.)।
पद 18 यिर्मयाह का उद्धरण है। मत्ती में यूनानी अभिलेख यिर्मयाह के इब्रानी अभिलेख से कुछ भिन्न है।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
जो बालक के प्राण लेना चाहते थे - "जो उस बालक को मार डालना चाहते थे"।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
परन्तु यह सुनकर, "परन्तु जब यूसुफ ने सुना"।
अपने पिता हेरोदेस अरखिलाउस का पिता
वहाँ जाने से डरा , यूसुफ का संदर्भ है।
वह नासरी कहलाएगा , यहाँ "वह" अर्थात यीशु है।
यीशु का जन्म यहूदिया के बैतलहम में हुआ था।
पूर्वी क्षेत्र से आने वाले ज्योतिषियों ने यीशु को "यहूदियों का राजा" उपाधि दी थी।
ज्योतिषियों ने पूर्व में यहूदियों के राजा का तारा देखा था।
ज्योतिषियों से यह समाचार सुनकर राजा हेरोदेस परेशान हो गया था।
बैतलहम में मसीह के जन्म की भविष्यद्वाणी को वे जानते थे।
पूर्व में जो तारा दिखाई दिया था वह उनके आगे-आगे चला जब तक कि वह उस स्थान पर ठहर न गया जहाँ यीशु का जन्म हुआ था।
जब ज्योतिषी यीशु के पास आए तब वह एक बालक था।
ज्योतिषियों ने यीशु को सोना, लोबान और गन्धरस भेंट में दिया।
ज्योतिषी दूसरे मार्ग से घर लौट गए क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें स्वप्न में सतर्क कर दिया था कि वे हेरोदेस के पास न जाएं।
यूसुफ को चेतावनी दी गई कि वह यीशु और मरियम को लेकर मिस्र चला जाए क्योंकि हेरोदेस यीशु की हत्या करने की खोज में था।
बाद में जब यीशु मिस्र से लौटा तब यह भविष्यद्वाणी पूरी हुई, "मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बुलवाया।"
हेरोदेस ने बैतलहेम में दो वर्ष और दो वर्ष से कम आयु के सब लडकों को मरवा दिया।
यूसुफ को स्वप्न में कहा गया कि वह इस्राएल लौट जाए।
यूसुफ मरियम और यीशु के साथ गलील के नासरत नामक नगर में रहने लगा।
यह भविष्यद्वाणी कि मसीह नासरी कहलाएगा पूरी हुई।
1 उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आकर यहूदिया के जंगल* में यह प्रचार करने लगा : 2 “मन फिराओ*, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” 3 यह वही है जिसके बारे में यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा था :
“जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा है, कि प्रभु का मार्ग तैयार करो,
उसकी सड़कें सीधी करो।” (यशा. 40:3)
4 यह यूहन्ना ऊँट के रोम का वस्त्र पहने था, और अपनी कमर में चमड़े का कमरबन्द बाँधे हुए था, और उसका भोजन टिड्डियाँ और वनमधु था। (2 राजा. 1:8) 5 तब यरूशलेम के और सारे यहूदिया के, और यरदन के आस-पास के सारे क्षेत्र के लोग उसके पास निकल आए। 6 और अपने-अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उससे बपतिस्मा लिया। 7 जब उसने बहुत से फरीसियों* और सदूकियों* को बपतिस्मा के लिये अपने पास आते देखा, तो उनसे कहा, “हे साँप के बच्चों, तुम्हें किसने चेतावनी दी कि आनेवाले क्रोध से भागो? 8 मन फिराव के योग्य फल लाओ; 9 और अपने-अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता अब्राहम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिये सन्तान उत्पन्न कर सकता है। 10 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है।
11 “मैं तो पानी से तुम्हें मन फिराव का बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु जो मेरे बाद आनेवाला है, वह मुझसे शक्तिशाली है; मैं उसकी जूती उठाने के योग्य नहीं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा। 12 उसका सूप उसके हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं।”
13 उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास उससे बपतिस्मा लेने आया। 14 परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, “मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?” 15 यीशु ने उसको यह उत्तर दिया, “अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।” तब उसने उसकी बात मान ली। 16 और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और उसके लिये आकाश खुल गया; और उसने परमेश्वर की आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते देखा। 17 और यह आकाशवाणी हुई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।”* (भज. 2:7)
यह बाइबल अंश अनेक वर्ष बाद का वृत्तान्त है जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला व्यस्क हो गया था और उसने अपनी प्रचार सेवा आरंभ कर दी थी।
सर्वनाम "वही" यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की पहचान है।
वैकल्पिक अनुवाद, "यशायाह भविष्यद्वक्ता यूहन्ना ही के बारे में कह रहा था जब उसने कहा"।
प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो। - यह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के सन्देश में उदाहरण का प्रयोग है, वह लोगों को मन फिराव के लिए तैयार होने की पुकार करता था। वैकल्पिक अनुवाद, "अपनी जीवनशैली को बदलने के लिए तैयार हो जाओ कि तुम्हारा जीवन परमेश्वर को ग्रहण योग्य हो"।
यूहन्ना की प्रचार सेवा आरंभ है।
उन्होंने उससे बपतिस्मा लिया, "यूहन्ना ने उन्हें बपतिस्मा दिया"।
यरूशलेम, यहूदिया और यरदन नदी के आस-पास के क्षेत्र के लोग।
यूहन्ना की प्रचार सेवा आरंभ है।
यह एक उपमा है जहरीले साँप खतरनाक होते हैं और बुराई का प्रतीक हैं। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम दुष्ट जहरीले सांपों" या "तुम जहरीले सांपों के समान दुष्ट हो"।
इस प्रश्न के द्वारा यूहन्ना उन लोगों को झिड़क रहा था क्योंकि वे उससे बपतिस्मा इसलिए लेना चाहते थे कि परमेश्वर उन्हें दण्ड न दे, परन्तु वे पाप करना छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। "तुम इस प्रकार परमेश्वर के क्रोध से बच नहीं सकते", या "यह न सोचो कि बपतिस्मा लेकर तुम परमेश्वर के क्रोध से बच जाओगे"।
वैकल्पिक अनुवाद, "आने वाले दण्ड से" या "परमेश्वर के क्रोध से जिसे वह कार्य रूप देने वाला है"। यहाँ "क्रोध" शब्द को काम में लिया गया है जो परमेश्वर के दण्ड को दर्शाता है क्योंकि उसका क्रोध दण्ड से पहले है।
"अब्राहम हमारा पूर्वज है", या "हम अब्राहम का वंश हैं"।
"परमेश्वर इन पत्थरों से सन्तान उत्पन्न करके अब्राहम को दे सकता है"।
यूहन्ना की प्रचार सेवा आरंभ है।
कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है, - यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, "परमेश्वर तुम्हें दण्ड देने के लिए तैयार है यदि तुम अपने पाप के व्यवहार से मन नहीं फिराओगे, जैसे मनुष्य जिस पेड़ को काटना चाहता है उसकी जड़ पर कुल्हाड़ा रखता है"।
यूहन्ना मन फिराने वालों को बपतिस्मा देता था।
यीशु ही है जो यूहन्ना के बाद आनेवाला था।
यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, "परमेश्वर तुममें पवित्र आत्मा का अन्तर्वास करायेगा और तुम्हें आग से लेकर चलेगा कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने वालों का न्याय करो और उनका शोधन करो"।
यीशु तुम्हें बपतिस्मा देगा।
यह रूपक यीशु द्वारा धर्मियों और अधर्मियों को अलग करने की रीति की तुलना गेहूँ और भूसे को अलग करने से करती है। संबन्ध को स्पष्ट करने के लिए इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, "मसीह उस मनुष्य के समान है जिसके हाथ में सूप है"।
वैकल्पिक अनुवाद, "मसीह के हाथ में सूप है क्योंकि वह तैयार है।"
इससे गेहूँ को उछाला जाता है कि दाना भूसे से अलग हो। गेहूँ का दाना भारी होने के कारण नीचे गिर जाता है और भूसा हवा में उड़ जाता है। ये वैसा ही है जैसा लोहे का पंजा।
भूसे से गेहूँ अलग करने का स्थान। वैकल्पिक अनुवाद, "उसका स्थल" या "वह स्थान जहाँ वह गेहूँ को भूसे से अलग करता है।"
गेहूँ को खत्ते में इकट्ठा करेगा परन्तु भूसी को उस आग में जलायेगा जो बुझने की नहीं। -यह एक रूपक है जिसके द्वारा सचित्र वर्णन किया जा रहा है कि परमेश्वर धर्मियों को अधर्मियों से कैसे अलग करेगा। धर्मी जन स्वर्ग में जाएगे जैसे गेहूँ किसान के खत्ते में सुरक्षित रख दिया जाए और परमेश्वर उन अधर्मियों को जिनकी तुलना भूसी से की गयी है, उन्हें अनंत आग में जलने के लिए डाल देगा।
यहाँ यूहन्ना द्वारा यीशु के बपतिस्मे का वृत्तान्त है।
मुझे तो तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है , "मुझे" यूहन्ना के लिए है और "तेरे" यीशु के लिए है।
यह एक प्रश्न हैजिसके उत्तर की अपेक्षा नहीं की जा रही है। वैकल्पिक अनुवाद, "क्योंकि तू पापी नहीं है, इसलिए तुझे मेरे पास आने की आवश्यकता नहीं कि बपतिस्मा ले"। ध्यान दे कि "तू" यीशु के लिए काम में लिया गया है और "मेरे" यूहन्ना के लिए
यहाँ यूहन्ना द्वारा यीशु के बपतिस्मे का वर्णन किया गया है।
यीशु बपतिस्मा लेकर , इसका अनुवाद किया जा सकता है, "यूहन्ना ने यीशु को बपतिस्मा दे दिया तब"।
वैकल्पिक अनुवाद, "उसने आकाश को खुला देखा" या उसने "उसने स्वर्ग को खुला देखा"
कबूतर समान उतरते, (1) यह एक सरल वाक्य हो सकता है कि परमेश्वर का आत्मा कबूतर के रूप में था। (2) यह एक उपमा हो सकती है कि आत्मा की तुलना कबूतर से की जाए जो यीशु पर बड़ी कोमलता से उतरा।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
यूहन्ना प्रचार करता था, "मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।"
यूहन्ना के बारे में यह भविष्यद्वाणी की गई थी कि वह प्रभु का मार्ग तैयार करेगा।
बपतिस्मा लेते समय लोग अपने पापों का अंगीकार करते थे।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने फरीसियों और सदूकियों से कहा कि वे मन-फिराव के योग्य फल लाएं।
यूहन्ना ने फरीसियों और सदूकियों को चेतावनी दी कि वे इस भ्रम में न रहें कि उनका पिता अब्राहम है।
यूहन्ना कहता था कि जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता वह काटा और आग में झोंका जाता है।
यूहन्ना के बाद जो आएगा वह पवित्र-आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।
यीशु ने कहा कि यूहन्ना द्वारा उसका बपतिस्मा धार्मिकता को पूरा करने के लिए उचित है।
नदी के पानी से बाहर आने पर यीशु ने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर के समान उतरते और उस पर आते देखा।
आकाशवाणी हुई, "यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।"
1 तब उस समय आत्मा यीशु को एकांत में ले गया ताकि शैतान से उसकी परीक्षा हो।* 2 वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। (निर्ग. 34:28) 3 तब परखनेवाले ने पास आकर उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।” 4 यीशु ने उत्तर दिया, “लिखा है,
‘मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं,
परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।’ ”
5 तब शैतान उसे पवित्र नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया। (लूका 4:9) 6 और उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे*।’ ” (भज. 91:11-12) 7 यीशु ने उससे कहा, “यह भी लिखा है, ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।’ ” (व्य. 6:16) 8 फिर शैतान उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर 9 उससे कहा, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा*।” 10 तब यीशु ने उससे कहा, “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।’ ” (व्य. 6:13) 11 तब शैतान उसके पास से चला गया, और स्वर्गदूत आकर उसकी सेवा करने लगे।
12 जब उसने यह सुना कि यूहन्ना पकड़वा दिया गया, तो वह गलील को चला गया। 13 और नासरत को छोड़कर कफरनहूम में जो झील के किनारे जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र में है जाकर रहने लगा। 14 ताकि जो यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो।
15 “जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र,
झील के मार्ग से यरदन के पास अन्यजातियों का गलील-
16 जो लोग अंधकार में बैठे थे उन्होंने बड़ी ज्योति देखी; और जो मृत्यु के क्षेत्र और छाया में बैठे थे, उन पर ज्योति चमकी।”
17 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।”
18 उसने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे। 19 और उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊँगा।” 20 वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। 21 और वहाँ से आगे बढ़कर, उसने और दो भाइयों अर्थात् जब्दी के पुत्र* याकूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधारते देखा; और उन्हें भी बुलाया। 22 वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
23 और यीशु सारे गलील में फिरता हुआ उनके आराधनालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और लोगों की हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। 24 और सारे सीरिया देश में उसका यश फैल गया; और लोग सब बीमारों को, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों और दुःखों में जकड़े हुए थे, और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और मिर्गीवालों और लकवे के रोगियों को उसके पास लाए और उसने उन्हें चंगा किया। 25 और गलील, दिकापुलिस*, यरूशलेम, यहूदिया और यरदन के पार से भीड़ की भीड़ उसके पीछे हो ली।
इस अंश में शैतान द्वारा यीशु की परीक्षा का वर्णन है।
यह उसी व्यक्तित्व के संदर्भ में है, आपको दोनों अनुवाद में वही शब्द काम में लेने होंगे।
यह यीशु के संदर्भ में है।
(1) यह अपने लाभ के लिए आश्चर्यकर्म करने की परीक्षा है, "तू परमेश्वर का पुत्र है इसलिए आज्ञा दे सकता है"। या (2) चुनौती या दोषारोपण, "आज्ञा देकर सिद्ध कर कि तू परमेश्वर का पुत्र है"। (देखें यू.डी.बी.) उत्तम तो यही होगा कि माना जाए कि शैतान जानता था कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
"इन पत्थरों से कह कि वे रोटियाँ बन जाएं।"
शैतान द्वारा यीशु की परीक्षा की चर्चा चल रही है।
(1) या तो यह उसके अपने लाभ के निमित्त आश्चर्यकर्म की परीक्षा है, "क्योंकि तू सच में परमेश्वर का पुत्र है तो अपने आपको नीचे गिरा सकता है", या (2) एक चुनौती या दोषारोपण है, "अपने आप को नीचे गिराकर परमेश्वर का सच्चा पुत्र होना सिद्ध कर"। (देखें यू.डी.बी.) यह मानना उत्तम होगा कि शैतान जानता था कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
भूमि पर
वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा वह तुझे हाथों-हाथ उठा लेंगे"। या "परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा कि तुझे संभाल लें।
शैतान द्वारा यीशु की परीक्षा की चर्चा चल रही है।
यह भी लिखा है , इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, "मैं तुझ से फिर कहता हूँ कि धर्मशास्त्र में लिखा है"।
उससे कहा , "शैतान ने यीशु से कहा"।
मैं यह सब कुछ तुझे दे दूंगा , "मैं तुझे यह सब दे दूंगा"। परीक्षा लेने वाले का कहने का अर्थ है कि उसमें से कुछ भाग नहीं परन्तु पूरा का पूरा।
यह तीसरी बार है कि यीशु ने धर्मशास्त्र के संदर्भ से शैतान को झिड़का।
मत्ती शैतान के लिए एक भिन्न शब्द काम में लेता है परन्तु उसका अर्थ भी शैतान ही है।
"देखो" शब्द यहाँ हमें सतर्क करता है कि आगे जो नई महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है उस पर ध्यान दें।
इस अंश में गलील क्षेत्र में यीशु की सेवा का वर्णन है।
"यूहन्ना बन्दी बना लिया गया है"।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
इसका अनुवाद आप वैसे ही करेंगे जैसे आपने इस विचार का अनुवाद में किया है।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
"जाल डालते देखा।"
यीशु ने अन्द्रियास और शमौन को अपने अनुसरण हेतु आंमन्त्रित किया कि उसके साथ रहें और उसके शिष्य बन जायें। वैकल्पिक अनुवाद, "मेरे शिष्य हो जाओ"।
वैकल्पिक अनुवाद, "जिस प्रकार तुम मछलियां पकड़ते हो वैसे ही मैं तुम्हें परमेश्वर के लिए मनुष्यों को लाना सिखाऊंगा"।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
वे... अपने जालों को सुधार रहे थे। "वे"अर्थात जबदी और उसके दो पुत्र या केवल ये दोनों भाई।
"यीशु याकूब और यूहन्ना को बुलाता है", इस वाक्यांश का अर्थ भी यही है कि यीशु ने उन्हें अपने साथ रहकर और शिष्य बनने का निमंत्रण दिया।
तुरन्त , "उसी पल"।
यहाँ स्पष्ट किया जाता है कि यह जीवन परिवर्तन है। ये लोग अब मछुवे नहीं रहेंगे, अब वे अपने पारिवारिक व्यवसाय को त्याग कर आजीवन यीशु के अनुयायी होंगे।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
"हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता", "बीमारी" और "दुर्बलता" संबन्धित शब्द है परन्तु संभव हो तो इन्हें दो अलग-अलग शब्दों में ही अनुवाद करना है। "बीमारी" मनुष्य को रोगी बनाती है। दुर्बलता शारीरिक विकार या कष्ट है जो बीमारी के परिणाम स्वरूप होती है।
"दस नगरों" (देखें यू.डी.बी.) गलील सागर के दक्षिण पूर्व में बसा एक क्षेत्र।
पवित्र-आत्मा यीशु को जंगल में ले गया कि शैतान उसकी परीक्षा ले।
जंगल में यीशु ने चालीस दिन और चालीस रात उपवास किया।
शैतान ने यीशु की परीक्षा लेते हुए कहा कि वह पत्थर को रोटी बना दे।
यीशु ने कहा कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।
शैतान ने यीशु से कहा कि वह मंदिर के कंगूरे पर से स्वयं को गिरा दे।
यीशु ने उत्तर दिया, तू अपने प्रभु परमेश्वर की परीक्षा न कर।
शैतान ने परीक्षा ली कि यीशु उसे दण्डवत् करके जगत का राज्य ले ले।
यीशु ने कहा कि केवल प्रभु परमेश्वर की उपासना करना और उसकी ही सेवा करना अनिवार्य है।
यशायाह की भविष्यद्वाणी पूरी हुई कि गलीलवासी अन्धकार में ज्योति देखेंगे।
यीशु प्रचार करने लगा, "मन फिराओ क्योंकि परमेश्वर का राज्य निकट आया है।"
पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना सब मछुवारे थे।
यीशु ने कहा था कि वह पतरस और अन्द्रियास को मनुष्यों के पकड़ने वाले बनाएगा।
यीशु गलील क्षेत्र के आराधनालयों में शिक्षा देता था।
सब रोगी और दुष्टात्माग्रस्त लोग यीशु के पास लाए गए और यीशु ने उन्हें चंगा किया।
उस समय विशाल जनसमूह यीशु के पीछे चलता गया।
1 वह इस भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए। 2 और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा :
3 “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
4 “धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शान्ति पाएँगे।
5 “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। (भज. 37:11)
6 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जाएँगे।
7 “धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
8 “धन्य हैं वे, जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
9 “धन्य हैं वे, जो मेल करवानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।
10 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
11 “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। 12 आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। इसलिए कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था।
13 “तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए। 14 तुम जगत की ज्योति हो। जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। 15 और लोग दिया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उससे घर के सब लोगों को प्रकाश पहुँचता है। 16 उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें।
17 “यह न समझो, कि मैं व्यवस्था* या भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षाओं को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ। (रोम. 10:4) 18 क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा। 19 इसलिए जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उनका पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा। 20 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे।
21 “तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि ‘हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।’ (निर्ग. 20:13) 22 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई को निकम्मा* कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे ‘अरे मूर्ख’ वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा। 23 इसलिए यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, 24 तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर, और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा। 25 जब तक तू अपने मुद्दई के साथ मार्ग में हैं, उससे झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा न हो कि मुद्दई तुझे न्यायाधीश को सौंपे, और न्यायाधीश तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए। 26 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तू पाई-पाई चुका न दे तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।
27 “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’ (व्य. 5:18, निर्ग. 20:14) 28 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका। 29 यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए। 30 और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसको काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।
31 “यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को त्याग दे, तो उसे त्यागपत्र दे।’ (व्य. 24:1-14) 32 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से तलाक दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है।
33 “फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, ‘झूठी शपथ न खाना, परन्तु परमेश्वर के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।’ (व्य. 23:21) 34 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है। (यशा. 66:1) 35 न धरती की, क्योंकि वह उसके पाँवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है। (यशा. 66:1) 36 अपने सिर की भी शपथ न खाना क्योंकि तू एक बाल को भी न उजला, न काला कर सकता है। 37 परन्तु तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इससे अधिक होता है वह बुराई से होता है।
38 “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत। (व्य. 19:21) 39 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे। 40 और यदि कोई तुझ पर मुकद्दमा करके तेरा कुर्ता* लेना चाहे, तो उसे अंगरखा* भी ले लेने दे। 41 और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा। 42 जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उससे मुँह न मोड़।
43 “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर। (लैव्य. 19:18) 44 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो। (रोम. 12:14) 45 जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी पर मेंह बरसाता है। 46 क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या चुंगी लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते?
47 “और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते? 48 इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है। (लैव्य. 19:2)
अध्याय 5-7 एक ही घटना है। यीशु एक पहाड़ पर चढ़कर अपने शिष्यों को शिक्षा देने के लिए बैठ गया।
"यीशु ने कहना आरंभ किया"।
"उन्हें" अर्थात शिष्यों को।
"वे जो समझते थे कि उन्हें परमेश्वर की आवश्यकता है।"
जो शोक करते थे क्योंकि (1) संसार पापी था या (2) उनके अपने पाप थे या (3) किसी की मत्यु। जब तक आपकी भाषा में शोक के कारण की आवश्यकता नहीं तब तक कारण स्पष्ट न करें।
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर उन्हें शान्ति देगा"।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"जितनी उन्हें भोजन-पानी की लालसा थी उतनी ही धर्मी जीवन की आवश्यकता थी।"
"परमेश्वर उन्हें परिपूर्ण करेगा"।
"जिन मनुष्यों के मन साफ हैं"।
"उन्हें परमेश्वर के साथ रहने की अनुमति दी जाएगी" या "परमेश्वर उनके साथ रहने की अनुमति देगा"।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
ये वे लोग हैं जो मनुष्यों को आपस में मेल मिलाप से रहना सिखाते हैं।
ये परमेश्वर की अपनी सन्तान हैं
वैकल्पिक अनुवाद, "जिनके साथ मनुष्य अनुचित व्यवहार करता है।"
"क्योंकि वे परमेश्वर की इच्छा पर चलते हैं।"
"परमेश्वर उन्हें स्वर्ग के राज्य में रहने देगा"। वे स्वर्ग के राज्य के स्वामी तो नहीं हैं परन्तु परमेश्वर उन्हें अपनी उपस्थिति में रहने का अधिकार देता है।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"जो तुम्हारे बारे में सच नहीं परन्तु मेरे अनुसरण के कारण" या मुझमें विश्वास करने की अपेक्षा तुम्हारा कोई दोष नहीं है।
"आनन्दित और मगन" का अर्थ लगभग एक ही है। यीशु चाहता था कि उसके अनुयायी आनन्दित ही नहीं कही अधिक आनन्दित हों।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"तुम पृथ्वी के निवासियों के लिए नमक के समान हो"। या जैसा नमक भोजन में वैसा ही तुम संसार में हो"। इसके अर्थ हो सकते हैं (1) ठीक वैसे ही जैसे नमक भोजन को स्वादिष्ट बनाता है, तुम्हें संसार में लोगों को प्रभावित करना है कि वे भले मनुष्य हों" या (2) जिस प्रकार नमक भोजन को परिरक्षित करता है वैसे ही तुम भी मनुष्य को भ्रष्ट होने से बचाए रखो"।
इसका अर्थ है "यदि नमक की नमकीन करने की क्षमता चली जाए" (जैसा यू.डी.बी. में है) या (2) यदि नमक अपने स्वाद से वंचित हो जाए"।
"वह उपयोगी कैसे किया जाए"? या "उसे उपयोगी बनाने का कोई उपाय नहीं"
"वह एक काम का रह जाता है कि सड़क पर फेंक दिया जाए जहाँ लोग चलते हैं"।
"तुम संसार में लोगों के लिए ज्योति के समान हो"।
"पहाड़ पर बसे नगर की बत्तियां रात में छिप नहीं सकती है"। या "पहाड़ पर बसे नगर की बत्तियां सब देख सकते हैं"। (देखें: और )
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"मनुष्य दीया नहीं जलाते।"
यह एक छोटी कटोरी है जिसमें जैतून के तेल में एक बत्ती डूबी हुई रहती है। महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि वह प्रकाश देता है।
"दीया टोकरी के नीचे रखें" यह एक कहावत है कि प्रकाश उत्पन्न करके उसे छिपाएँ कि लोग दीये का प्रकाश नहीं देख पाएँ।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"छोटे से छोटा लिखित अक्षर या अक्षर का "छोटे से छोटा अंश" या ”वे नियम जो महत्त्वहीन प्रतीत होते हैं"।
"वह सब जो परमेश्वर ने सृजा है"।
"व्यवस्था में जो कुछ लिखा था वह सब परमेश्वर ने कर दिया है"।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"जो एक भी आज्ञा तोड़े चाहे वह महत्त्व में सबसे कम क्यों न हो"।
"परमेश्वर भी कहेगा कि वे सबसे कम महत्त्व के हैं।"
"महत्त्व में सबसे कम"
परमेश्वर की कोई आज्ञा सिखाएगा।
महत्त्वपूर्ण
ये शब्द बहुवचन हैं।
यीशु लोगों के समूह से बातें कर रहा है कि उनके साथ व्यक्तिगत रूप में क्या होगा, "तुम सुन चुके हो", "मैं तुमसे कहता हूँ" ये वाक्यांश जनसमूह से कहे गए हैं अतः बहुवचन में हैं, "हत्या न करना" एक वचन है परन्तु आप इसे बहुवचन में अनुवाद कर सकते हैं।
यहाँ "मैं" पर बल दिया गया है अर्थात यीशु जो कह रहा है वह परमेश्वर की आज्ञाओं के बराबर महत्त्वपूर्ण है। अतः इस वाक्यांश को इस प्रकार अनुवाद करें कि यह बल उभर आए।
यह शब्द हत्या करने के लिए है हत्या के हर एक रूप के लिए नहीं है।
यह शब्द सहविश्वासी के लिए है, न कि भाई या पड़ोसी के लिए है।
यह उन लोगों के लिए अपमान के शब्द हैं जो उचित रूप में सोच नहीं सकते "निकम्मा" शब्द निर्बुद्धि के निकट है जबकि "मूर्ख" में परमेश्वर की अवज्ञा का विचार है।
यह स्थानीय सभा है, न कि यरूशलेम की महासभा।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
यीशु जनसमूह से कह रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनका क्या होगा। "तू" और "तेरा" सब शब्द एकवचन में हैं परन्तु आपकी भाषा में इन्हें बहुवचन में अनुवाद करने की आवश्यकता होगी।
"भेंट चढाएं" या "भेंट लेकर आएं"।
"वेदी के निकट खड़ा हो और तुझे याद आये।"
"यदि किसी को तेरे द्वारा की गई हानि स्मरण हो"।
"अपनी भेंट चढ़ाने से पहले अपने भाई से मेल कर।"
यीशु जनसमूह से कह रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनका क्या होगा। "तू" और "तेरा" सब शब्द एकवचन में हैं परन्तु आपकी भाषा में इन्हें बहुवचन में अनुवाद करने की आवश्यकता होगी।
"इसका परिणाम हो सकता है कि तेरा दोष लगानेवाला तुझे न्यायी को सौंप दे" या "क्योंकि तेरा दोष लगानेवाला तुझे पकड़वा दे"।
"तुझे न्यायालय में पेश करे"।
हाकिम जिस व्यक्ति को न्यायाधीश के निर्णय लेने का अधिकार है।
बन्दीगृह।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम सुन चुके हो" और "मैं तुम से यह कहता हूँ", बहुवचन में हैं। "न करना" एकवचन में है परन्तु आपको इसका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता होगी।
इस शब्द का अर्थ है कार्य रूप देना या कुछ करना।
यहाँ "मैं" पर बल दिया गया है, अर्थात यीशु जो कह रहा है वह परमेश्वर की आज्ञा के बराबर है। इस वाक्यांश को अपनी भाषा में इस प्रकार अनुवाद करें कि उसमें यह बल उभर आए। जैसा में है।
इस रूपक से प्रकट होता है कि किसी स्त्री पर कुदृष्टि डालने वाला पुरूष उतना ही दोषी है जितना कि वास्तव में व्यभिचार करने वाला।
मन में अन्य स्त्री का लालच करने वाला।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है, "तुम" और "तू" के सब शब्द एकवचन हैं परन्तु आपकी भाषा में उनका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता हो सकती है।
बाएँ हाथ या बाईं आँख की तुलना में दाहिनी आँख और हाथ अधिक महत्त्वपूर्ण है। आपको इसका अनुवाद करना होगा "दाहिना" या "सबसे अच्छा" या "एकमात्र"
"यदि तू जो देखता है, वह तुझे ठोकर खिलाए" या "यदि तू जो देखता है उसके कारण तू पाप करना चाहे"। ठोकर खाना एक रूपक है जो "पाप करने के लिए काम में लिया जाता है। यीशु यहाँ व्यंग का उपयोग कर रहा है क्योंकि मनुष्य ठोकर खाने से बचने के लिए आंखें काम में लेता है।
"उसे बलपूर्वक निकाल दे" या "उसे नष्ट कर दे" (देखें यू.डी.बी.) यदि दाहिनी आँख विशेष करके व्यक्त की जाए तो आपको अनुवाद करना होगा, "उसे निकाल दे", यदि "आँखों" शब्द काम में लिया गया है तो आपको अनुवाद करना होगा, "उन्हें निकाल दे"। (देखें यू.डी.बी.)
"उससे छुटकारा पा ले"।
"तुझे अपनी देह का एक अंग नष्ट होने देना होगा"।
यह लाक्षणिक प्रयोग संपूर्ण व्यक्तित्व के कार्यों से हाथ का संबन्ध जताने के लिए हैं।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
परमेश्वर ने "कहा" था (देखें यू.डी.बी.) यीशु यहाँ कर्मवाच्य वाक्य काम में ले रहा है, वह स्पष्ट करना चाहता है कि न तो परमेश्वर से और न ही परमेश्वर के वचन के से असहमत है, इसकी अपेक्षा वह कह रहा है कि तलाक का कारण उचित है तो वह मान्य है। तलाक देना अन्याय है चाहे पुरूष ने लिखित रूप दिया हो।
यह तलाक के लिए शिष्टोक्ति है।
यह एक आज्ञा है, "उसे देना है"।
यदि संकेत दे रहा है कि वह "जो कहा गया है" उससे अलग कुछ कहना चाहता है। यहाँ "मैं" पर बल दिया गया है क्योंकि वह दावा करता है कि वह उससे अधिक महत्त्वपूर्ण है जिसने पहले "कहा" है।
जो पुरूष स्त्री को अनुचित तलाक देता है, वह "उससे व्यभिचार करवाता है" (यहाँ व्यभिचार के लिए वही शब्द काम में ले जो ). में काम में लिए हैं। अनेक संस्कृतियों में उसके लिए दूसरे पुरूष से विवाह करना सामान्य बात है परन्तु यदि तलाक अनुचित है तो ऐसा पुनः विवाह व्यभिचार है। (देखें यू.डी.बी.)
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनका क्या हो सकता है। "तुम सुन चुके हो" में "तुम" और "मैं तुम से यह कहता हूँ" में "मैं" बहुवचन हैं।
"तुम्हारे धर्मगुरूओं ने तुमसे कहा है, पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, झूठी शपथ न खाना, यीशु यहाँ कर्मवाच्य वाक्य काम में ले रहा है कि स्पष्ट कर दे कि वह न तो परमेश्वर न ही परमेश्वर के वचन से असहमत है। इसकी अपेक्षा वह अपने श्रोताओं को कह रहा है कि जो उनका नहीं उसे काम में लेने के लिए मनुष्यों को अपने शब्दों पर विश्वास दिलाएं।
कहा गया या इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा में किया गया है।
इसका अर्थ है (1) परमेश्वर और मनुष्यों से कहें कि आप वही करेंगे जो परमेश्वर चाहता है (देखें: यू.डी.बी.) या (2) मनुष्यों से कहें कि परमेश्वर जानता है कि आपने जो देखा है उसके बारे में आप जो कह रहे हैं वह सच है।
परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ , इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा आपने में किया है।
और भ. से लिया गया यह रूपक परमेश्वर के लिए है कि वह "महाराजा" है जिस प्रकार यीशु के श्रोता नहीं सोच सकते कि सांसारिक राजा का सुन्दर सिंहासन या उसके पाँवों की चौकी या उसके निवासनगर को उसका अपना नहीं सोच सकते कि उसके शब्दों को महत्त्वपूर्ण बनाए, अतः उन्हें स्वर्ग या पृथ्वी या यरूशलेम की शपथ खाकर अपने शब्दों को विश्वासयोग्य बनाएं।
यदि आपकी भाषा में आज्ञा का बहुवचन है तो उसे यहाँ काम में लें। "तू झूठी शपथ न खाना" (पद 33) इससे श्रोता को शपथ खाने की अनुमति है परन्तु झूठी शपथ की नहीं। "कभी शपथ न खाना" किसी भी शपथ का विरोध करता है।
इसका अनुवाद वैसा करें जैसा पद 33 में किया है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। यहाँ "तू" का उपयोग एकवचन में है परन्तु आपको इसका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता हो सकती है, "तुम्हारी बात" में "तुम्हारी" शब्द बहुवचन है। में यीशु ने अपने श्रोताओं से कहा है कि परमेश्वर का सिंहासन, पाँवों की चौकी, उसका निवास स्थान उनका अपना नहीं कि उसकी शपथ खाएं। वह तो यहाँ तक कहता है कि हमारे सिर भी हमारे नहीं कि उनकी शपथ खाएं।
इसके अनुवाद में वही शब्द काम में ले जो में काम में लिया है।
"यदि तुम हाँ कहना चाहते हो तो "हाँ" कहो और यदि नहीं कहना चाहते हो तो "नहीं" कहो।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनका क्या हो सकता है।
इसका अनुवाद वैसा ही करे जैसा में किया है।
यहाँ "तुम" एकवचन में है।
उन्हें बदला लेने की अनुमति थी परन्तु हानि की सीमा तक ही।
इसका अनुवाद वैसा ही करे जैसा में किया है।
"बुरा जन" या "तुम्हें हानि पहुंचाने वाला"। (यू.डी.बी.)
यह सब बहुवचन में हैं।
यीशु की संस्कृति में किसी को थप्पड़ मारना अपमानजनक था। जिस प्रकार आँख और हाथ उपमा दी गई है उसी प्रकार दाहिना गाल रूपक स्वरूप अधिक महत्त्वपूर्ण गाल है और उस पर थप्पड़ मारना अत्यधिक संभावित अपमान था।
क्रिया शब्द से स्पष्ट होता है कि थप्पड़ हथेली के पीछे वाले भाग से मारा गया है।
"उसे दूसरे गाल पर भी मारने दे"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनका क्या हो सकता है। "तुम" तुझ, "तेरे" आदि सब एकवचन हैं जैसे "दे" "जा" "मुँह न मोड़" परन्तु आपको इनका अनुवाद बहुवचन में करना होगा।
कुरता ऊपरी शरीर पर पहना जाता था जैसे शर्ट या बनियान। दोहर इन दोनों में अधिक कीमती थी जो कुर्ते के ऊपर पहना जाता था कि शरीर गर्म रहे, रात में गर्मी के लिए भी इसका उपयोग कम्बल स्वरूप किया जाता था।
"उस मनुष्य को दे दे"।
जो कोई - कोई भी मनुष्य
कोस भर - एक हज़ार कदम, रोमी सैनिक को कानूनी अधिकार प्राप्त था कि किसी को भी अपना समान उठाकर एक कोस चलने के लिए विवश कर सकता था।
वह जो किसी को समान उठाकर चलने के लिए विवश करता है ।
"एक मील चलने के लिए उसने तुझे विवश किया परन्तु एक मील और चला जा"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि उनके साथ क्या हो सकता है। "अपने पड़ोसी से प्रेम रखना और अपने बैरी से बैर" यह एकवचन में है परन्तु आपको इसका अनुवाद बहुवचन में करना होगा। "तुम" के सब उदाहरण तथा आज्ञाएं "प्रेम करना" "प्रार्थना करो", बहुवचन में हैं।
इसका अनुवाद वैसा ही करे जैसा में किया है। यहाँ "पड़ोसी" शब्द का अर्थ है समुदाय के सदस्य या वह जनसमूह जिसके साथ उदारता प्रकट करने की इच्छा हो या सहायता करना आवश्यक हो। इसका संदर्भ पास में रहनेवालों से नहीं है। आपको इसका अनुवाद बहुवचन में करना होगा।
परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ , इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा आपने में किया है।
"तुम्हारा चरित्र अपने पिता का सा होगा"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम", "तुमसे" के सब उदाहरण बहुवचन में हैं।
यह एक सामान्य शब्द है जो श्रोता के कल्याण की मनोकामना प्रकट करता है। इन पदों में चार प्रश्न हैं। यू.डी.बी. में दिखाया गया है कि उन्हें अभिकथन कैसे बनाया गया है।
मन के दीन जन धन्य हैं क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
शोक करने वाले धन्य हैं क्योंकि वे शान्ति पाएंगे।
नम्र जन धन्य हैं क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
धर्म के भूखे और प्यासे धन्य हैं क्योंकि वे तृप्त किए जाएंगे।
यीशु के कारण जिनकी निन्दा की जाए और उन्हें सताया जाए वे धन्य हैं क्योंकि उनके लिए स्वर्ग में बड़ा फल है।
विश्वासी भले कामों द्वारा मनुष्यों के सामने अपना उजियाला चमकाएं।
यीशु पुराने नियम की व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं की वाणी को पूरा करने आया था।
जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करेगा और उन्हें मनुष्यों को सिखाएगा वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा कहलाएगा।
यीशु की शिक्षा थी कि हत्यारे ही नहीं, अपने भाई पर क्रोध करने वाले भी दण्ड पाने के संकट में हैं।
यीशु ने सिखाया कि यदि हमारे भाई के मन में हमारे विरुद्ध कुछ है तो हमें उससे मेल-मिलाप करना है।
यीशु ने सिखाया कि हमें न्यायालय में जाने से पूर्व ही अपने आरोपी से समझौता कर लेना चाहिए।
यीशु ने सिखाया कि व्यभिचार ही गलत नहीं स्त्री की लालसा करना भी अनुचित है।
यीशु ने सिखाया कि हमें उस हर एक बात से मुक्ति पाना है जो हमसे पाप करवाती है।
यीशु ने व्यभिचार के कारण तलाक को स्वीकार किया था।
यदि कोई पति अपनी पत्नी को अनुचित तलाक दे और वह पत्नी पुनर्विवाह कर लें तो वह उससे व्यभिचार करवाता है।
यीशु का कहना था कभी किसी भी बात की शपथ नहीं खाना चाहिए परन्तु हमारी बात "हाँ" की "हाँ" और "नहीं" की "नहीं" हो।
यीशु ने सिखाया कि हमें बुरे का सामना नहीं करना चाहिए।
यीशु ने सिखाया कि हमें अपने बैरियों से प्रेम करना है और अपने सताने वालों के लिए प्रार्थना करना है।
यीशु ने कहा कि यदि हम केवल अपने प्रेम करने वालों से ही प्रेम रखें तो हमें प्रतिफल नहीं मिलेगा क्योंकि हम वही करते हैं जो अन्य जातियाँ करती हैं।
1 “सावधान रहो! तुम मनुष्यों को दिखाने के लिये अपने धार्मिकता के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्गीय पिता से कुछ भी फल न पाओगे।
2 “इसलिए जब तू दान करे, तो अपना ढिंढोरा न पिटवा, जैसे कपटी*, आराधनालयों और गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करें, मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। 3 परन्तु जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायाँ हाथ न जानने पाए। 4 ताकि तेरा दान गुप्त रहे; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
5 “और जब तू प्रार्थना करे, तो कपटियों के समान न हो क्योंकि लोगों को दिखाने के लिये आराधनालयों में और सड़कों के चौराहों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उनको अच्छा लगता है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। 6 परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा। 7 प्रार्थना करते समय अन्यजातियों के समान बक-बक न करो; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बार-बार बोलने से उनकी सुनी जाएगी। 8 इसलिए तुम उनके समान न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या-क्या आवश्यकताएँ है।
9 “अतः तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो:
‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में हैं; तेरा नाम पवित्र* माना जाए। (लूका 11:2)
10 ‘तेरा राज्य आए*। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।
11 ‘हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे।
12 ‘और जिस प्रकार हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर।
13 ‘और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा; [क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही है।’ आमीन।]
14 “इसलिए यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। 15 और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा।
16 “जब तुम उपवास करो, तो कपटियों के समान तुम्हारे मुँह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुँह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। 17 परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुँह धो। 18 ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने। इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
19 “अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर सेंध लगाते और चुराते हैं। 20 परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहाँ न तो कीड़ा, और न काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं। 21 क्योंकि जहाँ तेरा धन है वहाँ तेरा मन भी लगा रहेगा।
22 “शरीर का दीया आँख है: इसलिए यदि तेरी आँख अच्छी हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा। 23 परन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अंधियारा होगा; इस कारण वह उजियाला जो तुझ में है यदि अंधकार हो तो वह अंधकार कैसा बड़ा होगा!
24 “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, या एक से निष्ठावान रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते। 25 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे, और क्या पीएँगे, और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहनेंगे, क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं? 26 आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तो भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते? 27 तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपने जीवनकाल में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?
28 “और वस्त्र के लिये क्यों चिन्ता करते हो? सोसनों के फूलों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं, वे न तो परिश्रम करते हैं, न काटते हैं। 29 तो भी मैं तुम से कहता हूँ, कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में उनमें से किसी के समान वस्त्र पहने हुए न था। 30 इसलिए जब परमेश्वर मैदान की घास को, जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहनाता है, तो हे अल्पविश्वासियों, तुम को वह क्यों न पहनाएगा?
31 “इसलिए तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहनेंगे? 32 क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएँ चाहिए। 33 इसलिए पहले तुम परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ तुम्हें मिल जाएँगी। (लूका 12:31) 34 अतः कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुःख बहुत है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम", "तू", "तेरा" सब बहुवचन में हैं।
अपने आगे तुरही न बजवा - आकर्षण का केन्द्र नहीं बनना जैसे भीड़ के बीच तुरही बजाने वाला करता है।
वही शब्द काम में ले जो में काम में लिए हैं।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि उसके साथ व्यक्तिगत रूप में क्या हो सकता है। "तू", "तेरा" बहुवचन में हैं।
यह पूर्ण गोपनीयता का रूपक है। जिस प्रकार कि हाथ एक साथ काम करते है और कहा जा सकता है कि वे सदैव एक दूसरे के काम जानते हैं। तुम्हें अपने निकटतम व्यक्ति पर भी प्रकट नहीं होने देना है कि तुम गरीबों को कब दान देते हो।
"तू गरीबों को दान दे तो कोई भी जान न पाए"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि उनके साथ व्यक्तिगत रूप में क्या हो सकता है। पद 5 और 7 में "तू" "तुम" बहुवचन में हैं। पद 6 में वे एकवचन में है परन्तु आपको उनका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ"।
वैकल्पिक अनुवाद, "किसी एकान्तवास में जा" या "भीतरी कमरे में जा"
इसका अनुवाद ऐसे किया जा सकता है, "तेरा पिता देखता है कि मनुष्य गुप्त में क्या करते हैं।"
अर्थहीन शब्दों को दोहराना।
"लम्बी प्रार्थनाएं" या "अनेक शब्द"
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि उनके साथ व्यक्तिगत रूप में क्या हो सकता है। वह उनके साथ सामूहिक वार्तालाप कर रहा है, जहाँ तक "इस रीति से प्रार्थना करने का विषय है, "पिता" के साथ जुड़े "तुम्हारा" शब्द सब एकवचन में है।
"हम चाहते हैं कि सबको ज्ञात हो कि तू पवित्र है"।
तेरा राज्य आए -देखना चाहते हैं कि तू सब मनुष्यों और सब वस्तुओं पर राज करे।
"हम", "हमारे" के सब उपयोग उस जनसमूह से संदर्भित हैं जिनसे यीशु बातें कर रहा है। (देखें: : )
अपराध के लिए "कर्ज़" शब्द को भी रूपक स्वरूप काम में लिया गया है जबकि कर्ज़ का अर्थ है किसी से कुछ उधार लेना।
जो किसी का ऋणी है। पापियों के लिए रूपक है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तू" और "तेरा" के सब संदर्भ बहुवचन में हैं।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। पद 17 और 18में "तू", "तेरा" तुझ के सब संदर्भ एकवचन है। आप संभवतः इनका अनुवाद बहुवचन में करना चाहेंगे कि पद 16 में "तुम" से सुसंगत हो।
"यह भी।"
"वैसे ही दिखाई दो जैसे सामान्यतः दिखते थे"। तेल मलने का अर्थ है सामान्य रूप से केश संवारना। इसका अर्थ "मसीह" अर्थात "अभिषिक्त जन" से कुछ नहीं है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है।"तेरा" एकवचन में है।
धन मौलिक वस्तुएं है जिनसे हम प्रसन्न होते हैं।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तेरी", "तेरा" एकवचन में है परन्तु आपको इनका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता हो सकती है।
"दीये के सदृश्य आँख आपको स्पष्ट देखने में सहायक होती है"।
यदि आपकी आंखें स्वस्थ हैं, यदि आप देख सकते है तो आपका संपूर्ण शरीर उचित रूप से काम करेगा, अर्थात आप चल सकते हैं, काम कर सकते हैं आदि। यह एक रूपक है जो परमेश्वर के समान देखने के लिए काम में लिया गया है, विशेष करके उदारता और लालसा के संबन्ध में। (देखें यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद बहुवचन में करना होगा।
यह समझ के लिए रूपक है।
यह जादू नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद, "तू वैसे नहीं देख सकता जैसे परमेश्वर देखता है"। यह लालसा के लिए भी रूपक हो सकता है। देखें यू.डी.बी., "तू कैसा लालची हो गया" और ).
"जिसे तू ज्योति समझता है वह वास्तव में अन्धकार है।" यह एक रूपक है जिसका अभिप्राय है कि मनुष्य सोचता है कि उसका समझना ऐसा ही है जैसा परमेश्वर का समझना है जबकि वह वास्तव में वैसा समझता नहीं हैं।
अन्धकार में रहना बुरा है। अन्धकार में रहकर सोचना कि ज्योति में हैं तो वह और भी अधिक बुरा है।
ये दो वाक्यांश एक ही बात का संदर्भ देते हैं, परमेश्वर और धन दोनों ही से प्रेम एवं भक्ति दिखाने में अयोग्य होना।
"तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा एक साथ नहीं कर सकते।"
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
भोजन और वस्त्र जीवन में सर्वाधिक महत्त्व के नहीं हैं यह अलंकृत प्रश्न का अभिप्राय है, "तुम्हारा जीवन तुम्हारे खाने से और वेशभूषा से बढ़कर है"। वैकल्पिक अनुवाद, "जीवन भोजन से बढ़कर है, नहीं है क्या? और देह वेशभूषा से बढ़कर है, नहीं है क्या"?
फसल रखने का स्थान
इस अलंकृत प्रश्न का अभिप्राय है, "तुम आकाश के पक्षियों से अधिक मूल्यवान हो"। वैकल्पिक अनुवाद: "तुम चिड़ियों से अधिक मूल्यवान हो, नहीं हो क्या"?
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
इस प्रश्न का अभिप्राय है कि मनुष्य चिन्ता करके अधिक नहीं जी सकता। देखें:
एक घड़ी यहाँ रूपक स्वरूप काम में ली गई है यह जीवन का समय बढ़ाने के लिए काम में लिया गया है। (देखें: और )
इस प्रश्न का अभिप्राय है, "तुम्हें चिन्ता नहीं करना है कि क्या पहनेंगे।"
"विचार करो"।
यह जंगल का एक फूल है
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
यदि आपकी भाषा में घास के लिए शब्द है और में आने सोसन के लिए जो शब्द काम में लिया है, उन्हें यहाँ काम में लें।
यीशु के समय यहूदी खाना पकाने के लिए घास जलाते थे। (देखें यू.डी.बी.) वैकल्पिक अनुवाद "आग में डाली जायेगी" या "जलाई जायेगी"।
यीशु उन्हें झिड़क रहा था क्योंकि उनको परमेश्वर पर पूरा भरोसा नहीं था। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम जिनका विश्वास ऐसा कम है“ या एक नया वाक्य, ”तुम्हारा विश्वास इतना कम क्यों है"?
वैकल्पिक अनुवाद "इन बातों के कारण"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
प्रत्येक शब्द एक नये वाक्य का आरंभ करता है तो का वर्णन करता है। अर्थात अन्यजातीय इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, अतः "चिन्ता न करना", "तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है "अतः चिन्ता न करना"।
वैकल्पिक अनुवाद "इन बातों के कारण"।
दिन का व्यक्तिवाचक संबोधन वास्तव में उस मनुष्य का प्रतीक है जो "कल के दिन के लिए जीता है।" (देखें यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, "आज के दिन के लिए आज की परेशनियाँ ही बहुत हैं"।
हमें गुप्त में धार्मिकता के काम करना है।
जो लोग मनुष्यों को दिखाने के लिए धार्मिकता के काम करते हैं उनका प्रतिफल मनुष्य की प्रशंसा है।
पाखंडी मनुष्यों को दिखाने के लिए प्रार्थना करते हैं तो उनका प्रतिफल मनुष्यों की प्रशंसा है।
जो गुप्त में प्रार्थना करते हैं उनका प्रतिफल पिता से है।
यीशु ने कहा कि हमें व्यर्थ के शब्दों को दोहराते हुए प्रार्थना नहीं करना है क्योंकि स्वर्गीय पिता हमारे मांगने से पहले ही जानता है कि हमें क्या चाहिए।
हमें स्वर्गीय पिता से प्रार्थना करना है कि जैसे उसकी इच्छा स्वर्ग में पूरी होती है वैसे ही पृथ्वी पर भी पूरी हो।
यदि हम किसी के अपराध क्षमा नहीं करेंगे तो स्वर्गीय पिता हमारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।
जब हम उपवास करें तो मुंह लटकाकर मनुष्यों के सामने प्रदर्शन न करें तो स्वर्गीय पिता हमें प्रतिफल देगा।
हमें स्वर्ग में धन एकत्र करना है, क्योंकि वहाँ न तो वह नष्ट होगा न ही चुराया जाएगा।
हमारा मन वहीं होगा जहाँ हमारा धन है।
हमें धन और परमेश्वर में से एक को अपना स्वामी बनाना है।
हमें खाने, पीने और पहनने की चिन्ता नहीं करना है क्योंकि हमारा स्वर्गीय पिता पक्षियों की भी सुधि लेता है और हम तो उनसे कहीं अधिक मूल्यवान हैं।
यीशु हमें स्मरण करवाता है कि हम चिन्ता करके अपने जीवन में एक घड़ी भी बढ़ा नहीं सकते।
हमें सर्वप्रथम परमेश्वर के राज्य की और उसकी धार्मिकता की खोज करना है तब हमारी सब सांसारिक आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी।
1 “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। 2 क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।
3 “तू क्यों अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है, और अपनी आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? 4 जब तेरी ही आँख में लट्ठा है, तो तू अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘ला मैं तेरी आँख से तिनका निकाल दूँ?’ 5 हे कपटी, पहले अपनी आँख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आँख का तिनका भली भाँति देखकर निकाल सकेगा।
6 “पवित्र वस्तु कुत्तों को न दो, और अपने मोती सूअरों के आगे मत डालो; ऐसा न हो कि वे उन्हें पाँवों तले रौंदें और पलटकर तुम को फाड़ डालें।
7 “माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। 8 क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा।
9 “तुम में से ऐसा कौन मनुष्य है, कि यदि उसका पुत्र उससे रोटी माँगे, तो वह उसे पत्थर दे? 10 या मछली माँगे, तो उसे साँप दे? 11 अतः जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को अच्छी वस्तुएँ क्यों न देगा? (लूका 11:13) 12 इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा यही है।
13 “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश की ओर ले जाता है; और बहुत सारे लोग हैं जो उससे प्रवेश करते हैं। 14 क्योंकि संकरा है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।
15 “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेड़िए हैं। (यहे. 22:27) 16 उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या झाड़ियों से अंगूर, या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? 17 इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। 18 अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है। 19 जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। 20 अतः उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।
21 “जो मुझसे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। 22 उस दिन बहुत लोग मुझसे कहेंगे; ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?’ 23 तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।’ (लूका 13:27)
24 “इसलिए जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। 25 और बारिश और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गई थी। 26 परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस मूर्ख मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर रेत पर बनाया। 27 और बारिश, और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।”
28 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो ऐसा हुआ कि भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई। 29 क्योंकि वह उनके शास्त्रियों के समान नहीं परन्तु अधिकारी के समान उन्हें उपदेश देता था।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यकितगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है "तुम", "तुम्हारे" और आज्ञाएं बहुवचन में है।
तुम पर भी दोष लगाया जायेगा, इसे कर्तृवाच्य रूप में व्यक्त किया जा सकता है, "परमेश्वर तुम पर दोष लगायेगा"। (यू.डी.बी.) या "मनुष्य तुम पर दोष लगायेंगे"।
इससे सुनिश्चित होता है कि पाठक को समझना है कि पद 2 पद 1 पर निर्भर है।
इसका संदर्भ (1) दण्ड के परिमाण से (देखें यू.डी.बी.) या (2)दण्ड के मानदण्ड से हो सकता है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तू", "तेरी" एकवचन में हैं परन्तु आपको उनका अनुवाद बहुवचन में करना होगा।
यीशु उन्हें चुनौती दे रहा है कि पहले अपने ही दोष/पाप पर ध्यान दें।
ये दोनों रूपक है जो मनुष्य के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े दोष के लिए काम में लिए गए हैं।
यह शब्द सहविश्वासी के लिए है, न कि भाई या पड़ोसी के लिए है।
यह रूपक जीवन के लिए काम में लिया गया है।
"तिनका" (यू.डी.बी.) या "किरच" या "धूल" सामान्यतः आँख में जो कुछ चला जाता है उसका शब्द काम में लें।
पेड़ का सबसे बड़ा भाग। एक ऐसी बड़ी वस्तु जो आँख में नहीं जा सकती।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
संभव है कि सूअर "रौदेगें" और कुत्ते "फाड़ डालेगे"(यू.डी.बी)
इन जानवरों को अशुद्ध माना जाता था और परमेश्वर ने उन्हें खाना मना किया था। ये उन अधर्मियों के लिए रूपक है जो पवित्र वस्तुओं को मान प्रदान नहीं करते है। इन शब्दों को अनुवाद में ज्यों का त्यों रखना ही उचित होगा।
ये अनमोल नगीने हैं। ये परमेश्वर के ज्ञान (देखें यू.डी.बी.) या सामान्यतः बहुमूल्य वस्तुओं के लिए काम में लिए जाते हैं।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
ये तीन रूपक लगातार प्रार्थना करने के लिए हैं। यदि आपकी भाषा में बार-बार करने के लिए कोई शब्द है तो उसका उपयोग करें।
परमेश्वर से विनती करना (देखें यू.डी.बी.)
"अपेक्षा" (यू.डी.बी.) या "खोज करो"।
खटखटाना एक नम्र निवेदन है कि घर में उपस्थित जन द्वार खोल दे। यदि खटखटाना आपकी भाषा में अभद्र शब्द है तो आपकी भाषा में द्वार खोलने के नम्र निवेदन के लिए जो शब्द है उसे काम में ले या अनुवाद करें, "परमेश्वर से कहें कि आप उससे द्वार खोलने का निवेदन करते हैं"।
यीशु अपनी बातों को दूसरे शब्दों में कहने जा रहा है इन्हें छोड़ा जा सकता है। (यू.डी.बी.)
इस अलंकृत प्रश्न का अभिप्राय है कि "ऐसा कोई भी नहीं है" (देखें यू.डी.बी. )
इनको ज्यों का त्यों रखें।
"भोजन"
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
"तुम अपने लिए मनुष्यों से जैसा व्यवहार चाहते हो"(यू.डी.बी.)।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है। अनुवाद करने में "चौड़ा" और "बड़ा" के लिए उचित शब्दों का उपयोग करें जो "सकरा" के विपरीत हैं। यथासंभव इन दोनों फाटकों में गहन अन्तर को उभारें।
आपके लिए इस वाक्यांश को पद 14 के अन्त में रखने की आवश्यकता हो सकती है, "इसलिए सकेत फाटक से प्रवेश करो"।
यह रूपक, अति संभव है कि उन मनुष्यों के लिए है जो "मार्ग" में चलकर "फाटक" तक पहुचते हैं और "जीवन" या "विनाश" में प्रवेश करते हैं (देखें यू.डी.बी. ))। अतः आपको संभवतः अनुवाद इस प्रकार करना होगा, "चौड़ा मार्ग वह है जो विनाश की ओर ले जाता है और चौड़ा फाटक वह है जिससे होकर मनुष्य उसमें प्रवेश करता है"। कुछ लोग "फाटक" और "मार्ग" को hendiadys मानते हैं जिसके उल्लेख की आवश्यकता नहीं है।
यू.एल.बी. में क्रियाओं से पहले विशेषणों का उपयोग किया गया है कि विशेषणों में विरोधाभास प्रकट हो। अपनी अनुवाद की रचना इस प्रकार करें कि आपकी भाषा में विशेषणों का विरोधाभास प्रकट हो।
यह मनुष्यों के संहार के लिए एक सामान्य शब्द है। यहाँ संदर्भ के आधार पर यह वास्तव में शारीरिक मृत्यु है। (देखें यू.डी.बी.) जो सदाकालीन मृत्यु का रूपक है। यह शारीरिक "जीवन" का विलोम है, "जीवन" अनन्त जीवन का रूपक है।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"बचे रहो"
यीशु भविष्यद्वक्ताओं के कार्यों की तुलना पेड़ के फलों से करता है। वैकल्पिक अनुवाद "उनके कामों से"।
"मनुष्य .... से नहीं तोड़ते हैं" यीशु जिन लोगों से बातें कर रहा है वे जानते हैं कि उसके प्रश्न का उत्तर "नहीं" है।
यीशु फल के रूपक द्वारा सच्चे भविष्यद्वक्ताओं का चित्रण करता है जो अच्छे काम और अच्छे शब्द उत्पन्न करते हैं।
यीशु फल के रूपक द्वारा ही झूठे भविष्यद्वक्ताओं के कामों और शब्दों का चित्रण प्रस्तुत करता है।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
यीशु फल के वृक्ष की उपमा द्वारा झूठे भविष्यद्वक्ताओं का अनावरण करता है, यहाँ वह मात्र इतना ही कहता है कि निकम्मे वृक्ष का क्या होता है। यहाँ अभिप्राय अन्तर्निहित हे कि झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी ऐसा ही होगा।
"उनके फलों से" या तो भविष्यद्वक्ता या पेड़ों के संदर्भ में है। इस रूपक का अभिप्राय है कि पेड़ों के फल और भविष्यद्वक्ताओं के काम दोनों ही से प्रकट होता है कि वे अच्छे हैं या बुरे। यदि संभव हो तो इसका अनुवाद इस प्रकार करें कि उसका संदर्भ दोनों ही से हो।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"मेरे पिता की इच्छा को पूरा करनेवाला"।
इसमें यीशु नहीं है।
यीशु ने केवल "उस दिन" कहा क्योंकि उसके श्रोता समझते थे कि उसके कहने का अर्थ है, न्याय के दिन। आपको इस तथ्य को उजागर करना है (जैसा यू.डी.बी. में है) यदि आपके पाठक नहीं समझें कि यीशु के श्रोता समझते थे कि यीशु किस दिन की चर्चा कर रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"इस कारण"
यीशु उसके वचनों पर चलने वालों की तुलना उस व्यक्ति से करता है जिसने पक्का घर बनाया। ध्यान दें कि वर्षा, आँधी और बाढ़ उस घर को ढा नहीं पाए।
भूमि की अपनी सतह के नीचे की ठोस पत्थरीली परत है, न कि एक चट्टान जो उभरी हुई हो।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
यीशु उसी उपमा को काम में ले रहा है जो उसने में काम में ली है। वह उन लोगों की तुलना एक मूर्ख गृह निर्माता से कर रहा है जो उसके वचनों पर नहीं चलते। केवल एक मूर्ख ही बालू पर मकान खड़ा करेगा कि वर्षा, बाढ़, आंधी बालू को बहा ले जाए।
सामान्य उपयोग का शब्द काम में ले जो यह दर्शाता है कि मकान के गिर जाने पर क्या होता है।
वर्षा, बाढ़ और आंधी से घर बिखर गया।
यदि आपकी भाषा में कहानी के नए मोड़ को दर्शाने का प्रवाधान है तो उसे यहाँ काम में लें। (देखें:TAlink:Discourse))
अपने भाई की सहायता करने से पहले हमें अपने आपको देखकर अपनी आँख का लट्ठा निकालना है।
आप कुत्तों को पवित्र वस्तुएं दे तो वे उसे रौंदेगे और आपको काट लेंगे।
पिता से कुछ प्राप्त करने के लिए हमें मांगना है, ढूंढना है और खटखटाना है।
स्वर्गीय पिता मांगने वालों को भली वस्तुएं देता है।
व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता सिखाते हैं कि जैसा हम चाहते हैं कि मनुष्य हमारे साथ करे वैसा ही हम उनके साथ भी करें।
चौड़ा रास्ता विनाश की ओर ले जाता है।
सकेत मार्ग जीवन की ओर ले जाता है।
हम झूठे भविष्यद्वक्ताओं को उनके जीवन के फलों से पहचान सकते हैं।
स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलने वाले स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।
यीशु कहेगा, "मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।"
यीशु की बातों को सुनकर उनका पालन करने वाला एक बुद्धिमान मनुष्य के समान है।
यीशु के शब्दों को सुनकर उनका पालन न करने वाला मूर्ख है।
यीशु शास्त्रियों के समान नहीं, पूरे अधिकार से शिक्षा देता था।
1 जब यीशु उस पहाड़ से उतरा, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 2 और, एक कोढ़ी* ने पास आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “हे प्रभु यदि तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 3 यीशु ने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ, और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा” और वह तुरन्त कोढ़ से शुद्ध हो गया। 4 यीशु ने उससे कहा, “देख, किसी से न कहना, परन्तु जाकर अपने आप को याजक को दिखा और जो चढ़ावा मूसा ने ठहराया है उसे चढ़ा, ताकि उनके लिये गवाही हो।” (लैव्य. 14:2-32)
5 और जब वह कफरनहूम* में आया तो एक सूबेदार ने उसके पास आकर उससे विनती की, 6 “हे प्रभु, मेरा सेवक घर में लकवे का मारा बहुत दुःखी पड़ा है।” 7 उसने उससे कहा, “मैं आकर उसे चंगा करूँगा।” 8 सूबेदार ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए, पर केवल मुँह से कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। 9 क्योंकि मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ, और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक से कहता हूँ, जा, तो वह जाता है; और दूसरे को कि आ, तो वह आता है; और अपने दास से कहता हूँ, कि यह कर, तो वह करता है।”
10 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और जो उसके पीछे आ रहे थे उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। 11 और मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत सारे पूर्व और पश्चिम से आकर अब्राहम और इसहाक और याकूब के साथ स्वर्ग के राज्य में बैठेंगे। 12 परन्तु राज्य के सन्तान* बाहर अंधकार में डाल दिए जाएँगे: वहाँ रोना और दाँतों का पीसना होगा।” 13 और यीशु ने सूबेदार से कहा, “जा, जैसा तेरा विश्वास है, वैसा ही तेरे लिये हो।” और उसका सेवक उसी समय चंगा हो गया।
14 और यीशु ने पतरस के घर में आकर उसकी सास को तेज बुखार में पड़ा देखा। 15 उसने उसका हाथ छुआ और उसका ज्वर उतर गया; और वह उठकर उसकी सेवा करने लगी। 16 जब संध्या हुई तब वे उसके पास बहुत से लोगों को लाए जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और उसने उन आत्माओं को अपने वचन से निकाल दिया, और सब बीमारों को चंगा किया। 17 ताकि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हो: “उसने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।” (1 पत. 2:24)
18 यीशु ने अपने चारों ओर एक बड़ी भीड़ देखकर झील के उस पार जाने की आज्ञा दी। 19 और एक शास्त्री ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, जहाँ कहीं तू जाएगा, मैं तेरे पीछे-पीछे हो लूँगा।” 20 यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तु मनुष्य के पुत्र* के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।” 21 एक और चेले ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे, कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” (1 राजा. 19:20-21) 22 यीशु ने उससे कहा, “तू मेरे पीछे हो ले; और मुर्दों को अपने मुर्दे गाड़ने दे*।”
23 जब वह नाव पर चढ़ा, तो उसके चेले उसके पीछे हो लिए। 24 और, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढँपने लगी; और वह सो रहा था। 25 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “हे प्रभु, हमें बचा, हम नाश हुए जाते हैं।” 26 उसने उनसे कहा, “हे अल्पविश्वासियों, क्यों डरते हो?” तब उसने उठकर आँधी और पानी को डाँटा, और सब शान्त हो गया। 27 और लोग अचम्भा करके कहने लगे, “यह कैसा मनुष्य है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं।”
28 जब वह उस पार गदरेनियों के क्षेत्र में पहुँचा, तो दो मनुष्य जिनमें दुष्टात्माएँ थीं कब्रों से निकलते हुए उसे मिले, जो इतने प्रचण्ड थे, कि कोई उस मार्ग से जा नहीं सकता था। 29 और, उन्होंने चिल्लाकर कहा, “हे परमेश्वर के पुत्र, हमारा तुझ से क्या काम? क्या तू समय से पहले हमें दुःख देने यहाँ आया है?” (लूका 4:34) 30 उनसे कुछ दूर बहुत से सूअरों का झुण्ड चर रहा था। 31 दुष्टात्माओं ने उससे यह कहकर विनती की, “यदि तू हमें निकालता है, तो सूअरों के झुण्ड में भेज दे।” 32 उसने उनसे कहा, “जाओ!” और वे निकलकर सूअरों में घुस गई और सारा झुण्ड टीले पर से झपटकर पानी में जा पड़ा और डूब मरा। 33 और चरवाहे भागे, और नगर में जाकर ये सब बातें और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं; उनका सारा हाल कह सुनाया। 34 और सारे नगर के लोग यीशु से भेंट करने को निकल आए और उसे देखकर विनती की, कि हमारे क्षेत्र से बाहर निकल जा।
यीशु द्वारा अनेकों की चमत्कारी चंगाई का वृत्तान्त यहाँ आरंभ होता है।
वैकल्पिक अनुवादः "यीशु पहाड़ से उतर कर नीचे आ गया तो एक विशाल जनसमूह उसके पीछे चलने लगा"। यहाँ जनसमूह शब्द से अभिप्राय यह हो सकता है कि जो लोग पहाड़ पर उसके साथ थे और जो यहाँ नीचे थे सब उसके पीछे चलने लगे।
यह शब्द "देखो" कहानी में नए मोड़ की हमें सूचना देता है। आपकी भाषा में इसका प्रावधान होगा।
"कोढ़ रोग से पीड़ित मनुष्य" या "चर्म रोग से ग्रस्त मनुष्य" (यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद, "यदि तेरी इच्छा है" या "यदि तू उचित समझे"। वह रोगी जानता था कि यीशु में चंगाई का सामर्थ्य था परन्तु यीशु उसे स्पर्श करेगा उसका विश्वास उसे नहीं था।
वैकल्पिक अनुवाद, "मुझे निरोग कर सकता है" या "कृपया मेरा रोग निवारण कर"(यू.डी.बी.)।
"तत्काल"
यीशु ने कहा, "शुद्ध हो जा" परिणाम स्वरूप वह रोग मुक्त हो गया। वैकल्पिक अनुवाद, "वह चंगा हो गया" या "उसका कोढ़ चला गया" या "कोढ़ का अन्त हो गया"।
यह भी यीशु द्वारा कोढ़ी की चंगाई का वृत्तान्त है।
रोग मुक्त कोढ़ी से।
चढ़ावा चढ़ाते समय तो उसे याजकों से कहना ही था (देखें यू.डी.बी.) यीशु के कहने का अर्थ था सबको नहीं बताना। इसका अनुवाद ऐसा हो सकता है, "सार्वजनिक चर्चा नहीं करना" या "यह और किसी से नहीं नहीं कहना कि मैंने तुझे रोग मुक्त किया है"।
यहूदियों की व्यवस्था के अनुसार रोग मुक्त मनुष्य याजक को अपनी त्वचा दिखाए जो उसे जन संपर्क की अनुमति दे।
मूसा की व्यवस्था में था कि जब मनुष्य कोढ़ से मुक्ति पाए तब वह याजक के पास धन्यवाद की बली चढ़ाए। याजक उस भेंट को स्वीकार करेगा तो सब जान लेंगे कि वह रोग मुक्त हो चुका है।
यह (1) याजकों के लिए हो सकता है या (2) सबके लिए या (3) यीशु के आलोचकों के लिए। यदि संभव हो तो ऐसा सर्वनाम काम में लें जो वर्ग विशेष का द्योतक हो।
यह यीशु द्वारा अनेकों की चंगाई का वृत्तान्त है।
यीशु
रोग के कारण असमर्थ
"यीशु ने उस सूबेदार से कहा, "मैं तेरे घर आकर उसे निरोग करूँगा"।
यह अनेकों की चंगाई का ही वृत्तान्त है।
"मेरे घर में प्रवेश करे"।
"आज्ञा दे दे"
"प्रशिक्षित योद्धा"
यीशु के श्रोता सोचते थे कि इस्राएल के यहूदी जो परमेश्वर की सन्तान होने का दावा करते थे, उनका विश्वास सबसे अधिक था। यीशु कहता है कि उनका सोचना गलत है, इस सूबेदार का विश्वास उनसे अधिक है।
यह यीशु द्वारा रोमी सेना के सूबेदार के सेवक की रोग मुक्ति का ही वृत्तान्त है।
यह यीशु के पीछे चल रहे लोगों के संदर्भ में है अतः बहुवचन है।
यह उक्ति एक रूपक है जो सम्पूर्णता को प्रकट करती हैः हर जगह से,अर्थात दूर दूर से, न की पूर्व में किसी एक स्थान से और न पश्चिम में किसी एक स्थान से। इसका अनुवाद हो सकता है, "सब जगहों से" या "दूर-दूर से"।
उस संस्कृति में भोजन करते समय मनुष्य आधा लेटकर खाता था। यह प्रथा परिवार और मित्रों की घनिष्ठता को दर्शाने का लाक्षणिक शब्द है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "उसके साथ परिवार और घनिष्ठ मित्रों के समान रहेंगे"।
"परमेश्वर राज्य के संतान को बाहर डाल देगा"।
"के सन्तान" किसी के होने को दर्शाता है यहाँ परमेश्वर के राज्य के होने को दर्शाता है। यहाँ व्यंग भी है कि सन्तान बाहर की जा रही है और परदेशियों का स्वागत किया जा रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "वे जिन्होंने परमेश्वर को अपने जीवन में राज करने दिया होता"
यह अभिव्यक्ति परमेश्वर को अस्वीकार करने वालों की अनन्त नियति को दर्शाती है। "परमेश्वर से अलग अन्धकार का स्थान"।
"मैं वैसा ही तेरे लिए करता हूँ"।
सेवक उसी घड़ी चंगा होगा, "यीशु ने उसे चंगा कर दिया"।
"ठीक उसी पल जब यीशु ने कहा कि वह उसे चंगा करता है"।
यह अनेकों की चंगाई का ही वृत्तान्त है।
यीशु के साथ संभवतः उसके शिष्य थे (जिन्हें उसने "निर्देश दिए" देखें: यू.डी.बी.) यहाँ मुख्य बात है यीशु ने क्या कहा और किया, अतः शिष्यों का उल्लेख तब ही करें जब गलत अर्थ से बचना हो।
"पतरस की पत्नी की माता"
यदि आपकी भाषा में इसका अर्थ यह समझा जाए कि ज्वर सोचने और करने की क्षमता रखता है तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "वह स्वस्थ हो गई" या "यीशु ने उसे चंगा किया"।
"बिस्तरा छोड़ कर"
इसके साथ ही यीशु द्वारा अनेकों की चंगाई का वृत्तान्त समाप्त होता है।
यू.डी.बी. अनुवाद में और से निष्कर्ष निकाला गया है कि जब यीशु कफरनहूम में आया तब वह सब्त का दिन था क्योंकि यहूदी उस दिन न तो काम करते थे और न ही यात्रा करते थे, वे शाम तक रूके रहे कि यीशु के पास रोमियों को लेकर आएं। आपका सब्त के दिन का उल्लेख नहीं करता है जब तक कि गलत अर्थ से बचना न हो।
यह अत्युक्ति है, यीशु ने एक से अधिक शब्दों का उपयोग किया होगा। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "यीशु को एक ही बार कहने की आवश्यकता पड़ी और दुष्टात्माएं निकल गईं"।
"यीशु ने उस भविष्यद्वाणी को पूरा किया जो परमेश्वर ने यशायाह को इस्त्राएल पर प्रकट करने हेतु दी थी"।
"जो यशायाह ने कहा था"
"मनुष्यों को रोगमुक्त किया और स्वाथ्य प्रदान किया"।
यीशु अपने शिष्यों को समझाता है कि वह उनसे क्या अपेक्षा करता है।
ये शब्द यीशु के लिए हैं, और
उसने उन्हें बताया कि क्या करना है।
चेलों को आज्ञा देने के बाद परन्तु नाव में चढ़ने से पूर्व (देखें यू.डी.बी.)
"जिस जिस स्थान में"
कहने का अर्थ है कि सब पशु पक्षियों के अपने अपने घर होते है।
लोमड़ियों, कुत्तों जैसी दिखती है और चिड़ियों के बच्चे तथा अन्य छोटे जानवरों को खाती हैं। यदि आपके यहाँ लोमड़ी नहीं हैं तो कुत्ते जैसे जानवर या अन्य किसी मांसाहारी छोटे जानवर का शब्द काम में लें।
लोमड़ियाँ धरती में छेद करके उसमें रहती हैं। आप यदि लोमड़ियों के स्थान पर दूसरे कोई जानवर का नाम लिख रहें हैं तो उसके रहने के स्थान का नाम लिखें।
"सोने के लिए भी अपनी जगह नहीं"
यीशु अपने शिष्यों से क्या अपेक्षा करता है उसी का वृत्तान्त चल रहा है।
यह एक नम्र निवेदन है। यहूदियों की प्रथा में मृतक को उसी दिन गाड़ने की प्रथा थी। अतः उस पुरूष का पिता संभवतः जीवित था। अतः उसने "गाड़ देना" एक अस्पष्ट (या गोल मोल वचन) स्वरूप काम में लिया कि जब तक उसका पिता जीवित है, कुछ दिन या कुछ वर्ष तब तक उसकी सेवा करे। (देखें यू.डी.बी.) यदि उसका पिता मृतक होता तो वह कुछ ही समय की अनुमति मांगता। पिता के मरने या जीवित रहने का उल्लेख तब ही करें जब गलत अर्थ निकल रहा हो।
यह सार गर्भित है, पूर्ण कथन नहीं है। अत: कम से कम शब्दों को काम में लें और कम से कम व्याख्या करें। यहाँ "गाड़ने" के लिए वही शब्द काम में ले जो उस युवक के निवेदन में काम में लिया है।
यह पिता की सेवा के उसके उत्तरदायित्व का इन्कार करने के प्रबल शब्द है। "मृतकों को गाड़़ने दे" से भी अधिक प्रबल या "मृतकों को गाड़ने दे"। इसका अर्थ अधिक स्पष्टता में है, "मृतकों को किसी बात का चुनाव नहीं करने दे, केवल अपने मृतकों को स्वयं गाड़ें।"
"मुरदों" परमेश्वर के राज्य से अलग जनों का रूपक है, उनके पास अनन्त जीवन नहीं है। "अपने मुरदे" का अर्थ है परमेश्वर के राज्य से अलग जनों के परिजन जो सचमुच में मर जाते हैं।
अब यीशु द्वारा आंधी को शान्त करने का वृत्तान्त आरंभ होता है।
जब वह नाव पर चढ़ा , "यीशु नाव में प्रवेश कर गया "
"शिष्य" और "पीछे हो लिए" के लिए वही शब्द काम में लें जो आपने और में काम में लिए हैं।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
"झील में तूफान उठा"।
"कि लहरें नाव में आने लगी।"
उन्होंने "हमें बचा" कह कर उसे नहीं जगाया था परन्तु जगा कर कहा, "हमें बचा"।
"हम मरने पर हैं।"
यीशु द्वारा आँधी को शान्त करने का वृत्तान्त यहाँ समाप्त होता है।
चेले
बहुवचन
इस प्रश्न के द्वारा यीशु शिष्यों को झिड़क रहा था। इसका अर्थ है "तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं है"।
यह बहुवचन है। इसका अनुवाद भी वैसा ही करे जैसा में किया है।
इस प्रश्न से प्रकट होता है कि शिष्य आश्चर्यचकित थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, यह कैसा मनुष्य है"? या "हमने ऐसा मनुष्य नहीं देखा"। कि आंधी पानी भी उसकी आज्ञा मानें"।
मनुष्य और जानवर आज्ञा माने या न माने, आश्चर्य की बात नहीं है परन्तु आँधी और पानी आज्ञा माने, यह तो वास्तव में आश्चर्यजनक है। मानव फिर से प्राकृतिक बातों को मनुष्य के सदृश्य सुनने और आज्ञा मानने वाला दर्शाता है।
अब दो दुष्टात्माग्रस्त मनुष्यों की चंगाई का वृत्तान्त आरंभ होता है।
"गलील सागर के दूसरी ओर"
गदरेनियों के देश में, गदरेनियों का अर्थ है गदारा नगर के निवासी।
उनमें अन्तर्वासी दुष्टात्माएं ऐसी भयंकर थी कि मनुष्यों का वहाँ से आना जाना असंभव हो गया था।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
यह पहला प्रश्न प्रतिरोधी है।
दुष्टात्माएं उसके इस नाम से प्रकट करती हैं कि यीशु का स्वागत नहीं है क्योंकि वह जो है सो है।
यह दूसरा प्रश्न भी विरोधी है जिसका अर्थ है "तू हमसे परमेश्वर द्वारा निर्धारित समय से पूर्व दण्ड देकर परमेश्वर की अवहेलना नहीं कर सकता"।
यीशु द्वारा दो दुष्टात्मा ग्रस्त मनुष्यों की चंगाई का वृत्तान्त चल रहा है।
इसका अर्थ है कि लेखक पाठकों को कहानी को आगे बढ़ाने से पूर्व कुछ जानकारी देना चाहता है। यीशु के आगमन से पूर्व वहाँ सूअर चर रहे थे।
इसका अर्थ यह भी हो सकता है, "क्योंकि तू हमें निकालने जा रहा है"
विशेषता सूचक शब्द
दुष्टात्माओं से जो उन मनुष्यों में थी।
"दुष्टात्माएं उन पुरूषों में से निकल कर उन जानवरों में प्रवेश कर गई।"
यहाँ "देखो" शब्द हमें अग्रिम जानकारी के प्रति सचेत करता है।
"पहाड़ी ढलान पर से भागे"
"डूब गया"।
दुष्टात्मा ग्रस्त दोनों पुरूषों की मुक्ति का वृत्तान्त वहाँ समाप्त होता है।
"सूअरों को संभालने वाले सेवक"
जिनमें दुष्टात्माएं थी उनका सारा हाल कह सुनाया , यीशु ने उन दुष्टात्माग्रस्त पुरूषों के साथ क्या किया।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
इसका अर्थ यह नहीं कि नगर का हर एक जन परन्तु यह कि अधिकांश जन।
सीमा , "नगर और आसपास का क्षेत्र।"
यीशु ने कोढ़ी को चंगा करके कहा कि वह जाकर याजक को दिखाए कि मनुष्यों में गवाही हो।
यीशु ने कहा कि वह सूबेदार के घर जाकर उसके सेवक को चंगा करेगा।
उस सूबेदार ने कहा कि वह इस योग्य नहीं कि यीशु उसके पास आए, उसके मुख का वचन ही रोगहरण का कारण होगा।
यीशु ने कहा कि संपूर्ण इस्राएल में उसने ऐसा विश्वासी नहीं देखा था।
यीशु ने कहा कि पूर्व और पश्चिम दिशाओं से अनेक जन आकर स्वर्ग के राज्य में साथ बैठेंगे।
यीशु ने कहा कि राज्य के सन्तान बाहर अन्धकार में डाल दिए जाएंगे।
पतरस के घर में यीशु ने उसकी सास को चंगा किया था।
यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी हुई, "उसने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।"
यीशु ने कहा कि उसके पास अपना स्थाई आवास नहीं है।
यीशु ने अपने चेले से कहा, मुरदों को अपने मुरदे गाड़ने दे, तू मेरे पीछे हो ले।
झील में आंधी उठी, उस समय यीशु नाव में सो रहा था।
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "हे अल्प-विश्वासियों क्यों डरते हो?"
आंधी और पानी ने जब यीशु की आज्ञा मानी तो शिष्य यह देख दंग रह गए।
दो उग्र स्वभाव दुष्टात्माग्रस्त पुरुषों का सामना यीशु से हुआ।
दुष्टात्माएं परेशान हो गईं कि यीशु समय से पहले ही उन्हें दण्ड देने आ गया है।
यीशु ने उनमें से दुष्टात्माएं निकालीं तो वे सूअरों के झुंड में घुस गईं और सूअर झील में डूब मरे।
वहाँ के निवासियों ने यीशु से निवेदन किया कि वह चला जाए।
1 फिर वह नाव पर चढ़कर पार गया, और अपने नगर में आया। 2 और कई लोग एक लकवे के मारे हुए को खाट पर रखकर उसके पास लाए। यीशु ने उनका विश्वास देखकर, उस लकवे के मारे हुए से कहा, “हे पुत्र, धैर्य रख; तेरे पाप क्षमा हुए।” 3 और कई शास्त्रियों ने सोचा, “यह तो परमेश्वर की निन्दा* करता है।” 4 यीशु ने उनके मन की बातें जानकर कहा, “तुम लोग अपने-अपने मन में बुरा विचार क्यों कर रहे हो? 5 सहज क्या है? यह कहना, ‘तेरे पाप क्षमा हुए’, या यह कहना, ‘उठ और चल फिर।’ 6 परन्तु इसलिए कि तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।” उसने लकवे के मारे हुए से कहा, “उठ, अपनी खाट उठा, और अपने घर चला जा।” 7 वह उठकर अपने घर चला गया। 8 लोग यह देखकर डर गए और परमेश्वर की महिमा करने लगे जिसने मनुष्यों को ऐसा अधिकार दिया है।
9 वहाँ से आगे बढ़कर यीशु ने मत्ती* नामक एक मनुष्य को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” वह उठकर उसके पीछे हो लिया। 10 और जब वह घर में भोजन करने के लिये बैठा तो बहुत सारे चुंगी लेनेवाले और पापी आकर यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे। 11 यह देखकर फरीसियों ने उसके चेलों से कहा, “तुम्हारा गुरु चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाता है?” 12 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, “वैद्य भले-चंगों को नहीं परन्तु बीमारों के लिए आवश्यक है। 13 इसलिए तुम जाकर इसका अर्थ सीख लो, कि मैं बलिदान नहीं परन्तु दया चाहता हूँ; क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ।” (होशे 6:6)
14 तब यूहन्ना के चेलों ने उसके पास आकर कहा, “क्या कारण है कि हम और फरीसी इतना उपवास करते हैं, पर तेरे चेले उपवास नहीं करते?” 15 यीशु ने उनसे कहा, “क्या बाराती, जब तक दुल्हा उनके साथ है शोक कर सकते हैं? पर वे दिन आएँगे कि दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, उस समय वे उपवास करेंगे। 16 नये कपड़े का पैबन्द पुराने वस्त्र पर कोई नहीं लगाता, क्योंकि वह पैबन्द वस्त्र से और कुछ खींच लेता है, और वह अधिक फट जाता है। 17 और नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरते हैं; क्योंकि ऐसा करने से मशकें फट जाती हैं, और दाखरस बह जाता है और मशकें नाश हो जाती हैं, परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरते हैं और वह दोनों बची रहती हैं।”
18 वह उनसे ये बातें कह ही रहा था, कि एक सरदार ने आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “मेरी पुत्री अभी मरी है; परन्तु चलकर अपना हाथ उस पर रख, तो वह जीवित हो जाएगी।” 19 यीशु उठकर अपने चेलों समेत उसके पीछे हो लिया। 20 और देखो, एक स्त्री ने जिसके बारह वर्ष से लहू बहता था, उसके पीछे से आकर उसके वस्त्र के कोने को छू लिया। (मत्ती 14:36) 21 क्योंकि वह अपने मन में कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी तो चंगी हो जाऊँगी।” 22 यीशु ने मुड़कर उसे देखा और कहा, “पुत्री धैर्य रख; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” अतः वह स्त्री उसी समय चंगी हो गई। 23 जब यीशु उस सरदार के घर में पहुँचा और बाँसुरी बजानेवालों और भीड़ को हुल्लड़ मचाते देखा, 24 तब कहा, “हट जाओ, लड़की मरी नहीं, पर सोती है।” इस पर वे उसकी हँसी उड़ाने लगे। 25 परन्तु जब भीड़ निकाल दी गई, तो उसने भीतर जाकर लड़की का हाथ पकड़ा, और वह जी उठी। 26 और इस बात की चर्चा उस सारे देश में फैल गई।
27 जब यीशु वहाँ से आगे बढ़ा, तो दो अंधे उसके पीछे यह पुकारते हुए चले, “हे दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” 28 जब वह घर में पहुँचा, तो वे अंधे उसके पास आए, और यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम्हें विश्वास है, कि मैं यह कर सकता हूँ?” उन्होंने उससे कहा, “हाँ प्रभु।” 29 तब उसने उनकी आँखें छूकर कहा, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो।” 30 और उनकी आँखें खुल गई और यीशु ने उन्हें सख्ती के साथ सचेत किया और कहा, “सावधान, कोई इस बात को न जाने।” 31 पर उन्होंने निकलकर सारे क्षेत्र में उसका यश फैला दिया।
32 जब वे बाहर जा रहे थे, तब, लोग एक गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी उसके पास लाए। 33 और जब दुष्टात्मा निकाल दी गई, तो गूंगा बोलने लगा। और भीड़ ने अचम्भा करके कहा, “इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।” 34 परन्तु फरीसियों ने कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।”
35 और यीशु सब नगरों और गाँवों में फिरता रहा और उनके आराधनालयों* में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। 36 जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई चरवाहा न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे। (1 राजा. 22:17) 37 तब उसने अपने चेलों से कहा, “फसल तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। 38 इसलिए फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत में काम करने के लिये मजदूर भेज दे।”
अब यीशु द्वारा लकवे के रोगी की चंगाई का वृत्तान्त आरंभ होता है।
यीशु नाव पर चढ़कर सम्भवतः उसके चेले भी साथ थे।
वही नाव जो में थी। यदि उलझन दूर करना हो तब ही स्पष्ट करें।
"जिस नगर में वह ठहरा हुआ था" (यू.डी.बी.)
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
जो लकवे के रोगी को यीशु के पास लाए। उनमें लकवे का रोगी भी था।
वह यीशु का पुत्र नहीं था। यीशु उसके साथ कोमलता का व्यवहार कर रहा था। यदि इससे उलझन उत्पन्न हो तो अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "मेरे मित्र", "हे युवक" या इसे छोड़ा भी जा सकता है।
"परमेश्वर ने तेरे पाप क्षमा किए" या "मैंने तेरे पाप क्षमा किए"।
यीशु द्वारा लकवे के रोगी की चंगाई का ही वृत्तान्त चल रहा है।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
इसका अर्थ है, "आपस में" अपने विचारों में या "एक दूसरे से" कहने लगे। यीशु का दावा प्रकट है कि वह ऐसे काम कर सकता है जो शास्त्रियों की समझ में केवल परमेश्वर ही करता है।
यीशु उनके मन की बातें दिव्य शक्ति से जान गया था या उनकी काना पूसी के कारण समझ गया था।
इस प्रश्न द्वारा यीशु शास्त्रियों को झिड़कता है।
बहुवचन
यह नैतिक बुराई या दुष्टता है न कि मात्र गलती।
यीशु ने शास्त्रियों को स्मरण कराने के लिए यह प्रश्न पूछा था क्योंकि उनके विचार में वह अपने पापों के कारण रोगी हो गया था और पाप क्षमा द्वारा वह फिर से चलने फिरने लगेगा, अतः जब वह उस रोगी को चंगा करेगा तो शास्त्री जान लेंगे कि वह पाप भी क्षमा कर सकता है।
यह कहना आसान है, "तेरे पाप क्षमा हुए, या यह कहना, उठ और चल फिर"?
इसका अर्थ हो सकता है (1) "मैं तेरे पाप क्षमा करता हूँ"। (यू.डी.बी.) या (2) "परमेश्वर तेरे पास क्षमा कर रहा है"।
"मैं सिद्ध करता हूँ" "तुम" बहुवचन में है।
एकवचन
यीशु उसे अन्य कहीं जाने से मना नहीं कर रहा है, वह उसे घर जाने का अवसर प्रदान कर रहा है।
यह लकवे के रोगी की चंगाई के वृत्तान्त का अन्त है। यीशु चूंगी लेने वाले को अपना शिष्य होने के लिए बुलाता है।
वही शब्द काम में ले जो में काम में लिए हैं।
पाप क्षमा का अधिकार।
कलीसिया की परम्परा के अनुसार यही मत्ती, मत्ती रचित सुसमाचार का लेखक है परन्तु अभिलेख में ऐसा कोई कारण प्रकट नहीं होता की "वह" और "उसके" को "मुझे" और "मै" में बदला गया है।
"यीशु ने मत्ती से कहा"।
यहाँ इस वाक्यांश द्वारा घटना का आरंभ वैसे ही होता है जैसे "देखो" से होता है में। यदि आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान है तो उसे यहाँ काम में लें।
जाने के लिए कोई सामान्य उपयोग का शब्द काम में लें। यहाँ यह स्पष्ट नहीं है कि यीशु पहाड़ पर चढ़ रहा था या उतर रहा था या कफरनहूम की ओर जा रहा था या उसकी विपरीत दिशा में जा रहा था।
"मत्ती उठा और यीशु के पीछे चलने लगा", यीशु के शिष्य रूप में,(देखें यू.डी.बी) न कि उसके साथ तक कहीं जाने के लिए।
यह घटना चूंगी लेने वाले मत्ती के घर की है।
संभवतः मत्ती का घर (देखें यू.डी.बी.) परन्तु यह यीशु का घर भी हो सकता है (भोजन करने के लिए बैठा) आवश्यकता पड़ने पर ही स्पष्ट करें।
यह शब्द "देखो" हमें कहानी में नए लोगों के प्रति सचेत करता है। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान हो सकता है। अंग्रेजी में है "देयर वॉज़ ए मॅन हू वज़..."
वे "जब फरीसियो ने देखा कि यीशु चुंगी लेने वालों और पापियों के साथ भोजन कर रहा है"।
यह घटना चूंगी लेने वाले मत्ती के घर की है।
"यह" अर्थात फरीसियों का प्रश्न सुनकर, चूंगी लेने वालों और पापियों के साथ भोजन करना।
"स्वस्थ मनुष्यों"
डॉक्टर (यू.डी.बी.)
"रोगियों को डॉक्टर की आवश्यकता होती है।"
"तुम्हारे लिए इसका अर्थ समझना आवश्यक है।"
"तुम" सर्वनाम शब्द फरीसियों के लिए है।
यूहन्ना के चेलों ने उसके पास आकर कहा, "तेरे चेले उपवास नहीं करते"।
दुल्हें के साथ हाने पर कोई भी बरातियों से उपवास के लिए नहीं कहेगा।
यीशु के शिष्यों के लिए एक रूपक का प्रयोग है।
"दुल्हा" यीशु है, जीवित होने के कारण वह "उनके साथ है"।
"जब कोई दुल्हें को उनसे अलग कर देगा"। यह मारे जाने के लिए रूपक है।
"विलाप करना... दुःख मनाना"। (यू.डी.बी.)
यीशु यूहन्ना के शिष्यों द्वारा पूछे गए प्रश्न का ही उत्तर दे रहा है।
पुरानी परम्पराओं का पालन करने वाले नई परम्परा को स्वीकार करने के लालायित नहीं होते हैं।
वस्त्र , "परिधान"
"कपड़े का टुकड़ा, जो फटे कपड़े पर लगाया जाता है"।
यीशु यूहन्ना के शिष्यों द्वारा पूछे गए प्रश्न का ही उत्तर दे रहा है।
यूहन्ना के शिष्यों के प्रश्न का उत्तर देने के लिए यह रूपक या दृष्टान्त का उपयोग है, हम और फरीसी इतना उपवास करते हैं पर तेरे चेले उपवास नहीं करते।
"नहीं कोई.... मैं डालता हूँ" (यू.डी.बी.) "लोग नहीं डालते"।
"अंगूर का रस" वह बस जिसका किंणवन नहीं हुआ है। यदि आपके क्षेत्र में अंगूर उगाए जाते हैं तो वहीं नाम काम में ले जो प्रचलित है।
वे मशकें जो कई बार काम में ली जा चुकी हैं।
ये पशुओं के चमड़े से बनी होती थी उन्हें "दाख रस के थैले" या "चमड़े के थैले"(यू.डी.बी.) भी कह सकते हैं।
दाखरस जब किंणवन होता है तब वह फैलता है जिससे पुरानी मशकें जो और अधिक नहीं फैल सकती फट जाती है।
"फट जाती है"। (यू.डी.बी)
"दाखरस के नये थेले" जो कभी काम में नहीं लिए गए।
यहूदी सरदार की पुत्री की चंगाई के वृत्तान्त का आरंभ।
अर्थात यूहन्ना के शिष्यों को दिए गए उत्तर के बाद समय।
"देखो" शब्द हमें कहानी में एक नए व्यक्ति को प्रवेश के प्रति सतर्क करता है। अपनी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
यह यहूदी संस्कृति में सम्मान प्रकट करने की रीति थी।
इसका अर्थ यह हुआ कि वह यहूदी उस पर विश्वास करता था कि यीशु उसकी पुत्री को पुनजीर्वित कर सकता है।
यीशु के शिष्य।
यहाँ यहूदी सरदार के घर जाते समय यीशु द्वारा एक स्त्री की चंगाई का वर्णन है।
"देखो" शब्द हमें कहानी में एक नए व्यक्ति को प्रवेश के प्रति सतर्क करता है। अपनी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
"उस का बहुत लहू बहता था" संभवतः लगातार मासिक धर्म का स्राव। कुछ संस्कृतियों में इसको व्यक्त करने की भद्र शब्दावली होगी। (देखें: )
उसका विश्वास वस्त्र में नहीं यीशु में था कि वह चंगा करेगा।
"बागा"
"इसकी अपेक्षा" इस स्त्री ने जो सोचा था वैसा हुआ नहीं।
वह यीशु की पुत्री नहीं थी, यीशु उसको कोमलता दिखा रहा था। यदि इससे उलझन होती है तो "युवती" काम में लें या छोड़ दें।
यहाँ भी यहूदी सरदार की पुत्री को जीवित करने का ही वृत्तान्त चल रहा है।
यह उस यहूदी सरदार का घर है।
यह एक खोखले बांस का वाद्य यन्त्र है जिसको बजाने के लिए एक सिरे से हवा फूंकी जाती है।
" बाँसुरी बजाने वाले लोग"।
यीशु अनेकों से कह रहा है अतः बहुवचन काम में लें यदि आपकी भाषा में है।
यीशु सोने का रूपक काम में ले रहा है क्योंकि उसकी मृत्यु अधिक है। वह उसे मृतकों में से जीवित करेगा।
यीशु द्वारा यहूदी सरदार की पुत्री की चंगाई का वृत्तान्त इसके साथ समाप्त होता है
"जब यीशु ने भीड़ को हटा दिया" या "जब परिवार वालों ने लोगों को बाहर भेज दिया"।
"बिस्तर छोड़ दिया" यह भावार्थ वही है जो में है।
यहाँ चर्चा का मानवीकरण का अर्थ है कि जो वहाँ थे उन लोगों ने सबको बता दिया। "उस संपूर्ण क्षेत्र के निवासियों को इसका समाचार प्राप्त हुआ" (यू.डी.बी.) या "जिन लोगों ने उस बालिका को जीवित देखा जाकर उस क्षेत्र में सबको इसके बारे में सुनाया"।
अब यीशु द्वारा दो अंधे मनुष्यों की चंगाई का वृत्तान्त आरंभ होता है।
यीशु उस क्षेत्र से निकल रहा था।
स्पष्ट नहीं है कि यीशु ऊपर की ओर जा रहा था या नीचे की ओर जा रहा था, इसलिए जाने के लिए साधारण शब्द का उपयोग करें।
यीशु यथार्थ में दाऊद का पुत्र नहीं था। अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है "हे दाऊद के वंशज" (यू.डी.बी.) परन्तु "दाऊद की सन्तान" यीशु को दिया गया पदनाम है। संभव है कि वे यीशु को इसी पदनाम से पुकार रहे थे।
यह या तो यीशु का अपना घर था (यू.डी.बी.) या का घर था।
"हाँ प्रभु, हमें विश्वास है कि तू हमें चंगा कर सकता है।"
इसके साथ ही उन दोनों अंधों की चंगाई का वृत्तान्त समाप्त होता है।
यहाँ स्पष्ट नहीं है कि उसने दोनों की आंखों को एक साथ स्पर्श किया या अपने दाहिने हाथ से एक को स्पर्श किया फिर दूसरे को, क्योंकि बायां हाथ अशुद्ध काम में लिया जाता था। अतः अति संभव है कि उसने केवल दाहिना हाथ काम में लिया। यह भी स्पष्ट नहीं है कि उसने उन्हें स्पर्श करते समय कहा या पहले स्पर्श किया फिर कहा।
"परमेश्वर ने उनकी आंखें स्वस्थ कर दीं" या "वे दोनों अंधे देखने लगे"
"इसके विपरीत" उन्होंने यीशु के आदेशानुसार नहीं किया।
"बहुतों को बता दिया कि उनके साथ क्या हुआ"।
यीशु द्वारा उसके अधिवास में चंगाई का वृत्तान्त चालू है।
"देखो" शब्द हमें कहानी में एक नए व्यक्ति को प्रवेश के प्रति सतर्क करता है। अपनी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
जो बात नहीं कर सकता है।
"वह गूंगा व्यक्ति बोलने लगा" या "वह व्यक्ति जो गूंगा था बोलने लगा" या "वह व्यक्ति जो अब गूंगा नहीं था बोलने लगा"।
"लोग अचम्भा करने लगे"।
इसका अर्थ हो सकता है, "ऐसा कभी नहीं हुआ" या "किसी ने ऐसा कभी नहीं किया"।
"वह दुष्टात्माओं को निकलने पर विवश करता है"। यहाँ सर्वनाम "वह" यीशु के लिए है।
यह अंश गलील क्षेत्र में यीशु शिक्षा, उपदेश और चंगाई की सेवा का सारांश है।
"अनेक नगरों में"
"बड़े गाँवों और छोटे गाँवों" या "बड़े नगरों और छोटे नगरों"
"हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता", "बीमारी" और "दुर्बलता" संबन्धित शब्द है परन्तु संभव हो तो इन्हें दो अलग-अलग शब्दों में ही अनुवाद करना है। "बीमारी" मनुष्य को रोगी बनाती है। दुर्बलता शारीरिक विकार या कष्ट है जो बीमारी के परिणाम स्वरूप होती है।
"उन लोगों का कोई अगुआ न था"।
यीशु कटनी रूपक द्वारा उन्हें समझाता है कि उन्हें पिछले अंश में दर्शाए गए लोगों की आवश्यकता के प्रति कैसा व्यवहार करना है।
यह रूपक मनुष्यों की एक बहुत बड़ी संख्या को दर्शाता है, वे जो परमेश्वर में विश्वास करके उसके राज्य में प्रवेश करेंगे। ये लोग खेतों के सदृश्य हैं और जो परमेश्वर का प्रचार करते हैं वे मजदूर हैं। इस रूपक का अर्थ है कि इतने अधिक लोगों को परमेश्वर के बारे में बताने वाले बहुत कम हैं
"पक्का फल एकत्र करने के लिए"
"कर्मी"
खेत के स्वामी से विनती करो वही कर्ताधर्ता है।
यीशु ने लकवे के रोगी से कहा कि उसके पाप क्षमा हुए तो शास्त्रियों ने सोचा कि यीशु परमेश्वर की निन्दा कर रहा है।
यीशु ने उस लकवे के रोगी से कहा कि उसके पाप क्षमा हुए क्योंकि वह दिखाना चाहता था कि उसे पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।
लोग यह देखकर डर गए और परमेश्वर की महिमा की कि मनुष्य को ऐसा अधिकार दिया है।
यीशु का चेला बनने से पूर्व मत्ती महसूल लेने वाला था।
यीशु और उसके चेले महसूल लेने वालों और पापियों के साथ भोजन करते थे।
यीशु ने कहा कि वह पापियों को मनफिराव के लिए बुलाने आया है।
यीशु ने कहा कि उसके चेले उपवास नहीं करते क्योंकि वह उनके साथ था।
यीशु ने कहा कि उसके चले जाने के बाद उसके चेले भी उपवास करेंगे।
एक स्त्री जिसे लहू बहने का रोग था, उसने यीशु के वस्त्र का छोर छू लिया क्योंकि उसको विश्वास था कि उसके वस्त्र के स्पर्श से ही उसका रोग दूर हो जाएगा।
यीशु ने कहा कि उस लहू बहने की रोगी स्त्री के विश्वास ने उसे चंगा किया।
यीशु ने उस मृतक बालिका के लिए कहा कि वह सोती है तो लोग उस पर हंसने लगे।
उस मृतक बालिका को जीवित करने का समाचार उस पुरे क्षेत्र में फैल गया।
दो अंधे पुरुष पुकार रहे थे, "हे दाऊद की सन्तान हम पर दया कर।"
यीशु ने उन दोनों अंधों को उनके विश्वास के आधार पर चंगा किया था।
फरीसी यीशु पर दोष लगाते थे कि वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
यीशु को जनसमूह पर तरस आया क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए।
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे खेत के स्वामी से शीघ्रता से प्रार्थना करें वह खेत काटने के लिए मजदूर भेजे।
1 फिर उसने अपने बारह चेलों को पास बुलाकर, उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया, कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें। 2 इन बारह प्रेरितों* के नाम ये हैं पहला शमौन, जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र याकूब, और उसका भाई यूहन्ना; 3 फिलिप्पुस और बरतुल्मै, थोमा, और चुंगी लेनेवाला मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब और तद्दै। 4 शमौन कनानी*, और यहूदा इस्करियोती, जिसने उसे पकड़वाया।
5 इन बारहों को यीशु ने यह निर्देश देकर भेजा, “अन्यजातियों की ओर न जाना, और सामरियों के किसी नगर में प्रवेश न करना। (यिर्म. 50:6) 6 परन्तु इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों के पास जाना। 7 और चलते-चलते प्रचार करके कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। 8 बीमारों को चंगा करो: मरे हुओं को जिलाओ, कोढ़ियों को शुद्ध करो, दुष्टात्माओं को निकालो। तुम ने सेंत-मेंत पाया है, सेंत-मेंत दो। 9 अपने बटुवो में न तो सोना, और न रूपा, और न तांबा रखना। 10 मार्ग के लिये न झोली रखो, न दो कुर्ता, न जूते और न लाठी लो, क्योंकि मजदूर को उसका भोजन मिलना चाहिए।
11 “जिस किसी नगर या गाँव में जाओ तो पता लगाओ कि वहाँ कौन योग्य है? और जब तक वहाँ से न निकलो, उसी के यहाँ रहो। 12 और घर में प्रवेश करते हुए उसे आशीष देना। 13 यदि उस घर के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारा कल्याण उन पर पहुँचेगा परन्तु यदि वे योग्य न हों तो तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आएगा। 14 और जो कोई तुम्हें ग्रहण न करे, और तुम्हारी बातें न सुने, उस घर या उस नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो। 15 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि न्याय के दिन उस नगर की दशा से सदोम और अमोरा के नगरों की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
16 “देखो, मैं तुम्हें भेड़ों की तरह भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ इसलिए साँपों की तरह बुद्धिमान और कबूतरों की तरह भोले बनो। 17 परन्तु लोगों से सावधान रहो, क्योंकि वे तुम्हें सभाओं में सौंपेंगे, और अपने आराधनालयों में तुम्हें कोड़े मारेंगे। 18 तुम मेरे लिये राज्यपालों और राजाओं के सामने उन पर, और अन्यजातियों पर गवाह होने के लिये पेश किये जाओगे। 19 जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे तो यह चिन्ता न करना, कि तुम कैसे बोलोगे और क्या कहोगे; क्योंकि जो कुछ तुम को कहना होगा, वह उसी समय तुम्हें बता दिया जाएगा। 20 क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो परन्तु तुम्हारे पिता का आत्मा तुम्हारे द्वारा बोलेगा।
21 “भाई अपने भाई को और पिता अपने पुत्र को, मरने के लिये सौंपेंगे, और बच्चे माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे। (मीका 7:6) 22 मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, पर जो अन्त तक धीरज धरेगा उसी का उद्धार होगा। 23 जब वे तुम्हें एक नगर में सताएँ, तो दूसरे को भाग जाना। मैं तुम से सच कहता हूँ, तुम मनुष्य के पुत्र के आने से पहले इस्राएल के सब नगरों में से गए भी न होंगे।
24 “चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं; और न ही दास अपने स्वामी से। 25 चेले का गुरु के, और दास का स्वामी के बराबर होना ही बहुत है; जब उन्होंने घर के स्वामी को शैतान* कहा तो उसके घरवालों को क्यों न कहेंगे?
26 “इसलिए उनसे मत डरना, क्योंकि कुछ ढँका नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा। 27 जो मैं तुम से अंधियारे में कहता हूँ, उसे उजियाले में कहो; और जो कानों कान सुनते हो, उसे छतों पर से प्रचार करो। 28 जो शरीर को मार सकते है, पर आत्मा को मार नहीं सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है। 29 क्या पैसे में दो गौरैये नहीं बिकती? फिर भी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। 30 तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। (लूका 12:7) 31 इसलिए, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर मूल्यवान हो।
32 “जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूँगा। 33 पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूँगा।
34 “यह न समझो, कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूँ; मैं मिलाप कराने को नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूँ। 35 मैं तो आया हूँ, कि मनुष्य को उसके पिता से, और बेटी को उसकी माँ से, और बहू को उसकी सास से अलग कर दूँ। 36 मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे।
37 “जो माता या पिता को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं और जो बेटा या बेटी को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं। (लूका 14:26) 38 और जो अपना क्रूस लेकर* मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं। 39 जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा।
40 “जो तुम्हें ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है। 41 जो भविष्यद्वक्ता को भविष्यद्वक्ता जानकर ग्रहण करे, वह भविष्यद्वक्ता का बदला पाएगा; और जो धर्मी जानकर धर्मी को ग्रहण करे, वह धर्मी का बदला पाएगा। 42 जो कोई इन छोटों में से एक को चेला जानकर केवल एक कटोरा ठण्डा पानी पिलाए, मैं तुम से सच कहता हूँ, वह अपना पुरस्कार कभी नहीं खोएगा।”
यहाँ यीशु द्वारा शिष्यों को सेवा में भेजने का वृत्तान्त आरंभ होता है।
"अपने बारह चेलों को एकत्र किया"
सुनिश्चित करें कि अनुवाद में यह अधिकार स्पष्ट हो (1) अशुद्ध आत्माओं को निकालना और (2) बीमारियों और दुर्बलताओं को चंगा करना।
अशुद्ध आत्माओं का निष्कासन करें
"हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता", "बीमारी" और "दुर्बलता" संबन्धित शब्द है परन्तु संभव हो तो इन्हें दो अलग-अलग शब्दों में ही अनुवाद करना है। "बीमारी" मनुष्य को रोगी बनाती है। दुर्बलता शारीरिक विकार या कष्ट है जो बीमारी के परिणाम स्वरूप होती है।
यीशु द्वारा अपनी सेवा के निमित्त बारह चेलों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ था।
क्रम में न कि पद में।
इसके संभावित अर्थ हैं (1) "जेलोतेस" या (2) "जोशीला"। जेलोतेस का अर्थ है कि वह उस समूह का सदस्य था जो यहूदियों को रोमी साम्राज्य से मुक्त करना चाहते थे। वैकल्पिक अनुवाद, "देशभक्त" या "राष्ट्रवादी" या "स्वतंत्रता सेनानी"। दूसरा अर्थ, "जोशीला" से समझ में आता है कि वह परमेश्वर के सम्मान के लिए जोशीला था, इसका वैकल्पिक अनुवाद हो सकता है, "उत्साही"।
"मत्ती जो चूंगी लेनेवाला था"।
"जो यीशु के साथ विश्वासघात करेगा"।
यीशु द्वारा अपनी सेवा के निमित्त बाहर शिष्यों के भेजने का वृत्तान्त चल रहा है।
"यीशु ने इन बारह शिष्यों को भेजा", या "यीशु ने जिन बारहों शिष्यों को भेजा वे ये हैं"।
यीशु ने इन बारहों को एक विशेष उद्देश्य से भेजा था। "भेजा" "प्रेरित" का क्रियारूप है जिस शब्द का उपयोग में किया गया है।
यीशु ने यह आज्ञा देकर ,"उसने उन्हें कहा कि उन्हें क्या करना होगा" इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, "उसने उन्हें आदेश दिया"।
यह एक रूपक है जो इस्राएल राष्ट्र की तुलना ऐसी भेड़ों से करता है जो चरवाहे से अलग होकर भटक गई हैं।
यह निर्देश इस्त्राएल जाति से संबन्धित है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "इस्त्राएलियों" या "इस्राएलवंशियों"
यह बारह शिष्यों के संदर्भ में है।
इसका अनुवाद आप वैसे ही करेंगे जैसे आपने इस विचार का अनुवाद में किया है।
यीशु द्वारा अपने सेवाकार्य के निमित्त बारह शिष्यों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ है।
अर्थात बारह प्रेरित (शिष्य)
"सोना, चाँदी, ताँबा कुछ नहीं रखना"।
"प्राप्त करना", "ग्रहण करना" या "लेना”
ये वे धातु थी जिनसे मुद्रा बनती थी। यह पैसों के लिए लाक्षणिक प्रयोग है। यदि आपके लिए ये धातुएं अनजान है तो इनका अनुवाद "पैसा" करें। (यू.डी.बी.)
पटुका का अर्थ है "पैसा रखने वाले कमरबंध" या इसका अभिप्राय पैसा रखने की थैली से भी हो सकता है। "पटुका" कम में बांधने का कपड़े या चमड़े का पट्टा होता था। वह काफी चौड़ा होता था कि यदि उसे मोड़ लें तो उसमें पैसा रखा जा सकता था।
झोली , यात्रा में सामान लेकर चलने के लिए थैला या भोजन या पैसा मांगने के लिए झोली।
यहाँ कुरते के लिए वही शब्द काम में ले जो में काम में लिया गया है।
"कर्मी"
"आवश्यकता की वस्तुएं"
यीशु द्वारा अपने सेवाकार्य के निमित्त बारह शिष्यों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ है।
यह सर्वनाम प्रेरितों के लिए काम में लिया गया है।
जिस किसी नगर या गाँव में आओ , "जब किसी नगर या गाँव में प्रवेश करो", या "उस हर एक नगर या गाँव जिसमें तुम प्रवेश करो"।
"बड़ा गाँव.... छोटा गाँव" या "बड़ा नगर.... छोटा नगर" ये शब्द वही हैं जिसको में काम में लिया गया है।
"उसी मनुष्य के घर में रहना जब तक कि नगर या गाँव से प्रस्थान न करो"।
"घर में प्रवेश करते ही वहाँ रहनेवालों को आशिष देना"। उस समय का प्रचलित आशीर्वाद था, "इस परिवार को शान्ति मिले"।
"यदि उस घर के लोग तुम्हारा अच्छा स्वागत करें" (यू.डी.बी.) या "उस घर के लोग तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करें"।
"उन्हें शान्ति मिलेगी" या "उस घर के लोग शान्ति में जीएंगे"।(देखें: यू.डी.बी.)
वह शान्ति जिसके लिए प्रेरित परमेश्वर से विनती करें कि वह उस परिवार को दे।
"यदि वे तुम्हारा अच्छा स्वागत न करें" (यू.डी.बी.) या "यदि वे तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार न करें"।
इसका अर्थ दो में से एक हो सकता है, (1) यदि वह परिवार योग्य न हुआ तो परमेश्वर अपनी शान्ति या आशिष उस परिवार से रोक लेगा, जैसा यू.डी.बी में व्यक्त किया गया है या (2) यदि वह परिवार योग्य न हुआ तो प्रेरितों से कुछ करने की अपेक्षा की गई है, जैसे, परमेश्वर से विनती करना कि उनका अभिवादन स्वीकार न करे। यदि आपकी भाषा में आशिष को वापस लेने का या उसके प्रभाव को निष्फल करने का शब्द है, जो उसे काम में लें।
यीशु द्वारा अपने सेवाकार्य के निमित्त बारह शिष्यों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ है।
"यदि उस नगर में तुम्हें कोई ग्रहण न करे या तुम्हारी बातें न सुने।"
अर्थात बारह प्रेरित (शिष्य)
"तुम्हारा सन्देश न सुने" (यू.डी.बी.) या "तुम्हें जो कहना है, न सुने"।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"उस घर या नगर की धूल अपने पाँवों में से झाड़ दो" यह एक चिन्ह है कि परमेश्वर ने उस घर या नगर के लोगों को त्याग दिया है। (देखें यू.डी.बी.)
पीड़ा कम होगी।
"सदोम और अमोरा के निवासियों से" जिन्हें परमेश्वर ने स्वर्ग से आग गिराकर भस्म कर दिया था।
जिस नगर के लोग प्रेरितों को ग्रहण न करें या उनका सन्देश न सुने।
यीशु अपने बारह शिष्यों के उस सताव के बारे में चर्चा करता है जो अपने सेवाकार्य को करने के कारण उन्हें सहना होगा।
"देखो" शब्द यहाँ अग्रिम चर्चा पर बल डालता है, इसका वैकल्पिक अनुवाद होगा, "ध्यान दो" या "सुनो" या "जो मैं कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दो"। (देखें यू.डी.बी.)
यीशु उन्हें एक उद्देश्य विशेष के निमित्त भेज रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को जिन्हें वह भेज रहा है उनकी तुलना असुरक्षित भेड़ों से करता है, जो ऐसी जगह जाएंगी जहाँ उन पर वन पशुओं के आक्रमण की संभावना है।
असुरक्षित
आप इस उपमा को स्पष्ट करके कह सकते है, "ऐसे मनुष्यों के मध्य जो खतरनाक भेड़ियें हैं"। या "ऐसे मनुष्यों के मध्य जो खतरनाक पशुओं का सा व्यवहार करते हैं", या सादृश्य व्यक्त करें "उन लोगों के मध्य जो तुम पर आक्रमण करेंगे।"
यहाँ इस उपमा को काम में नहीं लेना ही अच्छा है, "समझदारी और सावधानी से काम करना साथ ही साथ भोलेपन एवं सद्गुणों का प्रदर्शन करना"।
"सावधान रहना क्योंकि वे तुम्हें पकड़वाएंगे"।
"चौकस रहो", "सतर्क रहो",या "अत्यधिक सोच समझ कर चलना",
यीशु के साथ यहूदा ने जो किया उसके लिए यही शब्द है (देखें यू.डी.बी.) वैकल्पिक अनुवादः "धोखे से पकड़वायेंगे" या "तुम्हें पकड़वायेंगे", या "तुम्हें बन्दी बनवाकर मुकदमा चलाएंगे"।
पंचायत , अर्थात स्थानीय धार्मिक अगुवे या जो अगुवे समुदाय में शान्ति बनाए रखते हैं। वैकल्पिक अनुवाद है, "न्यायालयों"।
"कोड़ों से पीटेंगे"।
"तुम्हें लाएंगे" या "तुम्हें घसीटेंगे"
"क्योंकि तुम मेरे हो" (यू.डी.बी.) या "क्योंकि तुम मेरा अनुकरण करते हो"।
सर्वनाम "उन" से अभिप्राय है "हाकिमों और राजाओं" या यहूदी दोष लगाने वाले। (10:17)
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
"जब मनुष्य तुम्हें पकड़वाए" यहाँ वे अर्थात मनुष्य वही है जो में हैं।
इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा में "पकड़वाने" का किया है।
इस संपूर्ण गद्यांश में "तुम" और "तुम्हारे" का संदर्भ प्रेरितों से है।
"विचलित न होना"
"तुम्हें कैसे और क्या कहना है; दोनों विचारों को जोड़ा जा सकता है", "तुम्हें क्या कहना होगा"।
"उसी समय"
यदि आवश्यक हो तो इसका अनुवाद हो सकता है, "तुम्हारे स्वर्गीय पिता की आत्मा" या पद-टिप्पणी लिखी जाए कि यह परमेश्वर पिता का पवित्र आत्मा है, न कि सांसारिक पिता की आत्मा।
"तुम्हारे माध्यम से"
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
वैकल्पिक अनुवाद "भाई-भाई को मरवाने के लिए पकड़़वाएगा और पिता अपनी सन्तान को मरवाने के लिए पकड़वाएगा"।
इसका अनुवाद वैसा ही करना होगा जैसा में "सौपेंगे" का किया है।
"विद्रोह करेंगे" (यू.डी.बी.) या "विरूद्ध हो जायेंगे"
"उन्हें घात करवाएंगे" या "अधिकारियों द्वारा उन्हें मृत्यु दण्ड दिलवाएंगे।"
वैकल्पिक अनुवाद, "सब तुमसे घृणा करेंगे" या "मनुष्य तुमसे घृणा करेंगे"।
अर्थात बारह प्रेरित (शिष्य)
"मेरे कारण" या "क्योंकि तुम मुझमें विश्वास करते हो"।(यू.डी.बी.)
"जो विश्वासी बना रहेगा"।
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर उसे बचा लेगा"।
"दूसरे नगर में चले जाना"
"पहुँच जायेगा"।
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
यह एक सामान्य तथ्य है न कि किसी शिष्य विशेष या उसके गुरू के बारे में है। शिष्य अपने गुरू से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। इसका कारण है कि वह "गुरू से अधिक ज्ञान नहीं रखता है" या उसका "पद बड़ा नहीं है" या "अधिक उत्तम नहीं है"। वैकल्पिक अनुवाद है, "शिष्य सदैव ही गुरू से कम महत्त्वपूर्ण होता है" या "गुरू सदैव ही शिष्य से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।"
"दास अपने स्वामी पर अधिकारी नहीं होता है"यह भी एक सामान्य तथ्य है, न कि किसी दास विशेष या उसके स्वामी से संबन्धित है। दास अपने स्वामी से न तो "अधिक बड़ा" होता है न ही "अधिक महत्त्वपूर्ण" होता है। वैकल्पिक अनुवाद, "दास सदैव ही अपने स्वामी से कम महत्त्वपूर्ण होता है", या "स्वामी सदैव ही दास से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है"।
"दास"
"स्वामी"
"शिष्य" को अपने गुरू के जैसा होने में ही सन्तोष करना है"।
"अपने गुरु के तुल्य ज्ञानवान" या "जैसा गुरू वैसा चेला" होना ही पर्याप्त है।
.... और दास को अपने स्वामी के तुल्य महत्त्वपूर्ण होना ही पर्याप्त है“।
यीशु के साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा था अतः यीशु के शिष्यों को भी वैसे ही व्यवहार वरन् उससे भी बुरे की अपेक्षा करना है।(देखें यू.डी.बी)
वैकल्पिक अनुवाद, "क्योंकि उन्होंने... कहा है।"
यीशु "घर के स्वामी" को अपने लिए उपमा स्वरूप काम में ले रहा है।
मूल भाषा में इसका अर्थ हो सकता है, (1) बालज़बूल (2) या इसका अभिप्रेत अर्थ शैतान होता है।
यीशु "घरवालों को" रूपक स्वरूप शिष्यों के लिए काम में ले रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
"वे" सर्वनाम उन मनुष्यों का बोध करती है जो यीशु के शिष्यों को सताते थे।
इस सादृश्य का अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, "परमेश्वर मनुष्यों की गुप्त बातों को प्रकट कर देगा"। (देखें: : )
इस सादृश्य का अनुवाद हो सकता है, "मैं जो अन्धेरे में कहा उसका दिन में प्रचार करो और जो कान में धीमे स्वर में सुनते हो उसका छतों पर से प्रचार करो"।
“जो मैं तुमसे गुप्त रूप से कहता हूँ“ या ”जो बातें मैं तुमसे अकेले में कहता हूँ” ।
"खुलकर कहो" या "सबको सुनाओं" (देखें यू.डी.बी.)
"मैं तुम्हारे कानों में जो मन्द स्वर में कहता हूँ।"
"सबको ऊंचे शब्दों में सुनाओ" यीशु के युग में घर की छतें समतल होती थी और यदि वहाँ से कोई कुछ कह ले सब सुन सकते थे।
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
"मनुष्यों से मत डरना क्योंकि वे शरीर को घात करते हैं आत्मा को नहीं"।
शरीर को मार सकते हैं यदि ये शब्द अनुचित प्रतीत हों तो इसका अनुवाद हो सकता है, "जो तुम्हारी हत्या करते हैं" या "मनुष्यों की हत्या करते हैं"।
मनुष्य का वह भाग जो हुआ जा सकता है।
मनुष्य के मरने के बाद हानि नहीं पहुंचा सकते।
मनुष्य का वह भाग जिसको स्पर्श नहीं किया जा सकता और जो मरणोपरान्त जीवित रहता है।
इस प्रश्न का अनुवाद हो सकता है, "गौरैयों को देखो। उनका मूल्य कितना कम है कि एक पैसे में दो खरीदी जा सकती हैं"(यू.डी.बी.)।
इन छोटे दाना चुगने वाले पक्षियों को रूपक स्वरूप उन वस्तुओं के लिए काम में लिया जाता है जिन्हें महत्त्वहीन समझा जाता है।
इसका अनुवाद लक्षित भाषा में सबसे छोटी मुद्रा के लिए किया जाए। यह एक ताँबे का सिक्का था जो मजदूर की एक दिन की मजदूरी सौलहवें भाग के बराबर था। इसका अनुवाद "बहुत कम पैसों में" भी हो सकता है।
इस अभिव्यक्ति का अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, "उनमें से एक भी मरेगी तो पिता को उसकी जानकारी होगी"। या "केवल पिता की जानकारी से ही एक भी मरेगी"।
"एक भी गौरैया"
"नहीं मर सकती"
"परमेश्वर जानता है कि तुम्हारे सिर पर कितने बाल हैं।"
"गणना की हुई है"।
परमेश्वर तुम्हें बहुत अधिक गौरैयों से बढ़कर मानता है।
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
“जो मनुष्यों के सामने प्रकट करे कि वह मेरा शिष्य है” या “जो कोई मनुष्यों के समक्ष मेरे प्रति स्वामि-भक्ति स्वीकार करेगा”।
"स्वीकार करेगा" (यू.डी.बी.)
"मनुष्यों के समक्ष" या "दूसरों के समक्ष"
यीशु स्वर्गीय पिता परमेश्वर के बारे में कह रहा है।
जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इंकार करेगा "जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा त्याग करेगा" या "जो मनुष्यों के समक्ष तुमसे विमुख होगा" या "जो मनुष्य के समक्ष मेरा शिष्य होना स्वीकार नहीं करेगा" या "जो मेरे प्रति स्वामिभक्ति का इन्कार करेगा"।
यीशु अपने शिष्यों से उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
"ऐसा नहीं सोचना" या "यह नहीं मानना"
इस रूपक का अर्थ हो सकता है, (1) हिंसक मृत्यु (देखें क्रूस 10:37/10:38) या (2) विभाजन कारी कलह
"बदल दूँ", या "विभाजित कर दूं" या "पृथक कर दूँ"।
"पुत्र को पिता के विरूद्ध"
मनुष्य के बैरी या "मनुष्य के सबसे बड़े दुश्मन"
"उसके परिवार के अपने सदस्य"
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
वैकल्पिक अनुवाद, "जो .... प्रिय जानते हैं वे .... योग्य नहीं" या "यदि तुम.... प्रेम करते हो तो .... योग्य नहीं।"
इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, "जो कोई" या "वह जो" या "जो मनुष्य"। (देखें यू.डी.बी.)
यहाँ "प्रिय" का अर्थ है "भाईचारे का प्रेम" "या" "मित्र का प्रेम" इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, "चिन्ता करता है" या "समर्पित है” या "लगाव रखता है"।
इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, "मेरा होने के योग्य नहीं" या "मेरा होने के योग्य नहीं" या "मेरा शिष्य होने के योग्य नहीं" या "मेरा होने का नहीं"।(देखें यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद, "जो अपना क्रूस न उठाएं वे .... योग्य नहीं" या "यदि तुम अपना क्रूस न उठाओ तो ...योग्य नहीं" या जब तक तुम अपना क्रूस न उठाओ तब तक ... योग्य नहीं"।
यह मरने के लिए तैयार रहने का रूपक है। आपको सामान उठाकर किसी के पीछे चलने का कोई साधारण शब्द काम में लेना होगा। (देखें: Metaphor)
"लेकर" या "उठाकर चलना"।
इनका अनुवाद यथा संभव कम से कम शब्दों में करना होगा। वैकल्पिक अनुवादः "जो खोज में रहेंगे....खोएंगे और जो खोएंगे.... पाएंगे" या "यदि तुम खोजते हो तो खोओगे.... खोओगे तो .... पाओगे"।
यह "रखने" या "बचाने" के लिए लाक्षणिक प्रयोग है। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, "रखने का प्रयास करता है" या "सुरक्षा करने का प्रयास करता है"।
इसका अर्थ यह नहीं कि मनुष्य मर जायेगा। यह "सच्चा जीवन नहीं पाएगा" के लिए प्रयुक्त रूपक है।
वैकल्पिक अनुवाद हैः "त्यागता है" या "त्यागने के लिए तैयार हैं"।
"क्योंकि वह मुझ में विश्वास करता है" (देखें यू.डी.बी.) या "मेरे लिए", या "मेरे लिए"। यह वही विचार है जो में व्यक्त है।
इस रूपक का अर्थ है "सच्चा जीवन पाएगा"
यीशु अब अपने शिष्यों से कहना आरंभ करता है कि जब वे निकलेंगे तब उनकी सहायता करने वालों को वह प्रतिफल देगा।
इसका अनुवाद हो सकता है, "जो कोई" या "हर एक जो" या "वह जो"। (देखें: यू.डी.बी.)
यह वही शब्द है, जो में आया है, "ग्रहण" जिसका अर्थ है अतिथि स्वरूप ग्रहण करना।
"तुम्हें" सर्वनाम का अर्थ है वे शिष्य जिनसे यीशु बातें कर रहा है।"
"मेरे पिता परमेश्वर को ग्रहण करता है जिसने मुझे भेजा है"।
इसके साथ ही यीशु अपने प्रेरितों को ग्रहण करने वालों के प्रतिफल की चर्चा समाप्त करता है।
"जो कोई भी पिलाए"
इन छोटों में से एक को मेरा चेला जानकर एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए । इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, "क्योंकि वह मेरा शिष्य है इन छोटों में से किसी एक को भी" या "मेरे शिष्यों में छोटे से छोटे को भी ठंडा पानी पिलाए"।
"वह मनुष्य निश्चय ही अपना प्रतिफल पाएगा"।
"इन्कार किया जाएगा" अधिकार से इसका कोई संबन्ध नहीं है।
यीशु ने अपने बाहर शिष्यों को अधिकार दिया कि वे अशुद्ध आत्माओं को निकालें और सब रोगों को चंगा करें।
यीशु के साथ विश्वासघात करने वाले चेले का नाम यहूदा इस्करियोती था।
यीशु ने अपने चेलों को केवल इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा था।
चेलों को न पैसा न अधिक कपड़े साथ रखने थे।
चेले गांव में जब तक रहें वे किसी योग्य व्यक्ति के घर ठहरें।
जिन नगरों में चेलों को ग्रहण नहीं किया और उनके वचनों को नहीं सुना गया उनका दण्ड सदोम और अमोरा से अधिक बुरा होगा।
यीशु ने कहा था कि लोग चेलों को पकड़ कर सभाओं में सौंपेंगे, कोड़े मारेंगे और राजाओं और हाकिमों के सामने पहुंचाए जाएंगे।
उनके दोषारोपण के समय परमेश्वर का आत्मा उनके मुख से बोलेगा।
यीशु ने कहा कि जो अन्त समय तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।
यीशु के चेलों से लोग घृणा करेंगे क्योंकि उन्होंने यीशु से भी घृणा की थी।
हमें देह को नष्ट करने वालों से नहीं डरना है क्योंकि वे आत्मा को नष्ट नहीं कर सकते।
हमें उससे डरना है जो आत्मा और देह दोनों को नरक में नष्ट कर देगा।
यीशु स्वर्ग में पिता के सामने उसे स्वीकार करेगा।
यीशु स्वर्ग में पिता के सामने उसका इन्कार करेगा।
यीशु ने कहा कि वह तो परिवारों में भी विभाजन करने आया है।
यीशु के लिए जो जान दे देगा वह जीवन पाएगा।
छोटे से छोटे को यीशु का चेला मानकर को एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए तो उसे प्रतिफल अवश्य मिलेगा।
1 जब यीशु अपने बारह चेलों को निर्देश दे चुका, तो वह उनके नगरों में उपदेश और प्रचार करने को वहाँ से चला गया। 2 यूहन्ना ने बन्दीगृह में मसीह के कामों का समाचार सुनकर अपने चेलों को उससे यह पूछने भेजा, 3 “क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की प्रतीक्षा करें?” 4 यीशु ने उत्तर दिया, “जो कुछ तुम सुनते हो और देखते हो, वह सब जाकर यूहन्ना से कह दो। 5 कि अंधे देखते हैं और लँगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं और बहरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाए जाते हैं, और गरीबों को सुसमाचार सुनाया जाता है। 6 और धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।”
7 जब वे वहाँ से चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को? 8 फिर तुम क्या देखने गए थे? जो कोमल वस्त्र पहनते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं। 9 तो फिर क्यों गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को देखने को? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, वरन् भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को। 10 यह वही है, जिसके विषय में लिखा है, कि
‘देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे भेजता हूँ,
जो तेरे आगे तेरा मार्ग तैयार करेगा।’ (मला. 3:1)
11 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है वह उससे बड़ा* है। 12 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश होता रहा है, और बलवान उसे छीन लेते हैं। 13 यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यद्वाणी करते रहे। 14 और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है*। (मला. 4:5) 15 जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।
16 “मैं इस समय के लोगों की उपमा किस से दूँ? वे उन बालकों के समान हैं, जो बाजारों में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं। 17 कि हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजाई, और तुम न नाचे; हमने विलाप किया, और तुम ने छाती नहीं पीटी। 18 क्योंकि यूहन्ना न खाता आया और न ही पीता, और वे कहते हैं कि उसमें दुष्टात्मा है। 19 मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया, और वे कहते हैं कि देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों और पापियों का मित्र! पर ज्ञान अपने कामों में सच्चा ठहराया गया है।”
20 तब वह उन नगरों को उलाहना देने लगा, जिनमें उसने बहुत सारे सामर्थ्य के काम किए थे; क्योंकि उन्होंने अपना मन नहीं फिराया था। 21 “हाय, खुराजीन*! हाय, बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सूर और सैदा में किए जाते, तो टाट ओढ़कर, और राख में बैठकर, वे कब के मन फिरा लेते। 22 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ; कि न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सूर और सैदा की दशा अधिक सहने योग्य होगी। 23 और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा; जो सामर्थ्य के काम तुझ में किए गए है, यदि सदोम में किए जाते, तो वह आज तक बना रहता। 24 पर मैं तुम से कहता हूँ, कि न्याय के दिन तेरी दशा से सदोम के नगर की दशा अधिक सहने योग्य होगी।”
25 उसी समय यीशु ने कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया है। 26 हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।
27 “मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे।
28 “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे* लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। 29 मेरा जूआ* अपने ऊपर उठा लो; और मुझसे सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। 30 क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।”
1 उस समय यीशु सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेलों को भूख लगी, और वे बालें तोड़-तोड़ कर खाने लगे। 2 फरीसियों ने यह देखकर उससे कहा, “देख, तेरे चेले वह काम कर रहे हैं, जो सब्त के दिन करना उचित नहीं।” 3 उसने उनसे कहा, “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने, जब वह और उसके साथी भूखे हुए तो क्या किया? 4 वह कैसे परमेश्वर के घर में गया, और भेंट की रोटियाँ* खाई, जिन्हें खाना न तो उसे और न उसके साथियों को, पर केवल याजकों को उचित था? 5 या क्या तुम ने व्यवस्था में नहीं पढ़ा, कि याजक सब्त के दिन मन्दिर में सब्त के दिन की विधि को तोड़ने पर भी निर्दोष ठहरते हैं? (गिन. 28:9-10, यूह. 7:22-23) 6 पर मैं तुम से कहता हूँ, कि यहाँ वह है, जो मन्दिर से भी महान है। 7 यदि तुम इसका अर्थ जानते कि मैं दया से प्रसन्न होता हूँ, बलिदान से नहीं, तो तुम निर्दोष को दोषी न ठहराते। (होशे 6:6) 8 मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।” (मर. 2:28)
9 वहाँ से चलकर वह उनके आराधनालय में आया। 10 वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूखा हुआ था; और उन्होंने उस पर दोष लगाने के लिए उससे पूछा, “क्या सब्त के दिन चंगा करना* उचित है?” 11 उसने उनसे कहा, “तुम में ऐसा कौन है, जिसकी एक भेड़ हो, और वह सब्त के दिन गड्ढे में गिर जाए, तो वह उसे पकड़कर न निकाले? 12 भला, मनुष्य का मूल्य भेड़ से कितना बढ़ कर है! इसलिए सब्त के दिन भलाई करना उचित है।” 13 तब उसने उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने बढ़ाया, और वह फिर दूसरे हाथ के समान अच्छा हो गया। 14 तब फरीसियों ने बाहर जाकर उसके विरोध में सम्मति की, कि उसे किस प्रकार मार डाले?
15 यह जानकर यीशु वहाँ से चला गया। और बहुत लोग उसके पीछे हो लिये, और उसने सब को चंगा किया। 16 और उन्हें चेतावनी दी, कि मुझे प्रगट न करना। 17 कि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो:
18 “देखो, यह मेरा सेवक है, जिसे मैंने चुना है; मेरा प्रिय, जिससे मेरा मन प्रसन्न है: मैं अपना आत्मा उस पर डालूँगा; और वह अन्यजातियों को न्याय का समाचार देगा। 19 वह न झगड़ा करेगा, और न धूम मचाएगा;
और न बाजारों में कोई उसका शब्द सुनेगा।
20 वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा;
और धूआँ देती हुई बत्ती को न बुझाएगा,
जब तक न्याय को प्रबल न कराए।
21 और अन्यजातियाँ उसके नाम पर आशा रखेंगी।”
22 तब लोग एक अंधे-गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी, उसके पास लाए; और उसने उसे अच्छा किया; और वह गूँगा बोलने और देखने लगा। 23 इस पर सब लोग चकित होकर कहने लगे, “यह क्या दाऊद की सन्तान है?” 24 परन्तु फरीसियों ने यह सुनकर कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार शैतान की सहायता के बिना दुष्टात्माओं को नहीं निकालता।” 25 उसने उनके मन की बात जानकर उनसे कहा, “जिस किसी राज्य में फूट होती है, वह उजड़ जाता है, और कोई नगर या घराना जिसमें फूट होती है, बना न रहेगा। 26 और यदि शैतान ही शैतान को निकाले, तो वह अपना ही विरोधी हो गया है; फिर उसका राज्य कैसे बना रहेगा? 27 भला, यदि मैं शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो तुम्हारे वंश किसकी सहायता से निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारा न्याय करेंगे। 28 पर यदि मैं परमेश्वर के आत्मा की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुँचा है। 29 या कैसे कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट सकता है जब तक कि पहले उस बलवन्त को न बाँध ले? और तब वह उसका घर लूट लेगा। 30 जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है; और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है। 31 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर पवित्र आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी। 32 जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न ही आनेवाले में क्षमा किया जाएगा।
33 “यदि पेड़ को अच्छा कहो, तो उसके फल को भी अच्छा कहो, या पेड़ को निकम्मा कहो, तो उसके फल को भी निकम्मा कहो; क्योंकि पेड़ फल ही से पहचाना जाता है। 34 हे साँप के बच्चों, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुँह पर आता है। 35 भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है। 36 और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो-जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। 37 क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।”
38 इस पर कुछ शास्त्रियों और फरीसियों ने उससे कहा, “हे गुरु, हम तुझ से एक चिन्ह* देखना चाहते हैं।” 39 उसने उन्हें उत्तर दिया, “इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं; परन्तु योना भविष्यद्वक्ता के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उनको न दिया जाएगा। 40 योना तीन रात-दिन महा मच्छ के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात-दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा। 41 नीनवे के लोग न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएँगे, क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर, मन फिराया और यहाँ वह है जो योना से भी बड़ा* है। 42 दक्षिण की रानी* न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएँगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने के लिये पृथ्वी की छोर से आई, और यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है।
43 “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है, तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और पाती नहीं। 44 तब कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी, लौट जाऊँगी, और आकर उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है। 45 तब वह जाकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें पैठकर वहाँ वास करती है, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है। इस युग के बुरे लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी।”
46 जब वह भीड़ से बातें कर ही रहा था, तो उसकी माता और भाई बाहर खड़े थे, और उससे बातें करना चाहते थे। 47 किसी ने उससे कहा, “देख तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हैं, और तुझ से बातें करना चाहते हैं।” 48 यह सुन उसने कहनेवाले को उत्तर दिया, “कौन हैं मेरी माता? और कौन हैं मेरे भाई?” 49 और अपने चेलों की ओर अपना हाथ बढ़ा कर कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये हैं। 50 क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और बहन, और माता है।”
1 उसी दिन यीशु घर से निकलकर झील के किनारे जा बैठा। 2 और उसके पास ऐसी बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई कि वह नाव पर चढ़ गया, और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी रही। 3 और उसने उनसे दृष्टान्तों* में बहुत सी बातें कही “एक बोनेवाला बीज बोने निकला। 4 बोते समय कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया। 5 कुछ बीज पत्थरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें बहुत मिट्टी न मिली और नरम मिट्टी न मिलने के कारण वे जल्द उग आए। 6 पर सूरज निकलने पर वे जल गए, और जड़ न पकड़ने से सूख गए। 7 कुछ बीज झाड़ियों में गिरे, और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला। 8 पर कुछ अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना। 9 जिसके कान हों वह सुन ले।”
10 और चेलों ने पास आकर उससे कहा, “तू उनसे दृष्टान्तों में क्यों बातें करता है?” 11 उसने उत्तर दिया, “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उनको नहीं। 12 क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिसके पास कुछ नहीं है, उससे जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा। 13 मैं उनसे दृष्टान्तों में इसलिए बातें करता हूँ, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते। 14 और उनके विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है:
‘तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आँखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा।
15 क्योंकि इन लोगों के मन सुस्त हो गए है,
और वे कानों से ऊँचा सुनते हैं और उन्होंने अपनी आँखें मूंद लीं हैं;
कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें,
और कानों से सुनें और मन से समझें,
और फिर जाएँ, और मैं उन्हें चंगा करूँ।’
16 “पर धन्य है तुम्हारी आँखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं। 17 क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और धर्मियों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो, देखें पर न देखीं; और जो बातें तुम सुनते हो, सुनें, पर न सुनीं।
18 “अब तुम बोनेवाले का दृष्टान्त सुनो 19 जो कोई राज्य का वचन* सुनकर नहीं समझता, उसके मन में जो कुछ बोया गया था, उसे वह दुष्ट आकर छीन ले जाता है; यह वही है, जो मार्ग के किनारे बोया गया था। 20 और जो पत्थरीली भूमि पर बोया गया, यह वह है, जो वचन सुनकर तुरन्त आनन्द के साथ मान लेता है। 21 पर अपने में जड़ न रखने के कारण वह थोड़े ही दिन रह पाता है, और जब वचन के कारण क्लेश या उत्पीड़न होता है, तो तुरन्त ठोकर खाता है। 22 जो झाड़ियों में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनता है, पर इस संसार की चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबाता है, और वह फल नहीं लाता। 23 जो अच्छी भूमि में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।”
24 यीशु ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, “स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के समान है जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया। 25 पर जब लोग सो रहे थे तो उसका बैरी आकर गेहूँ के बीच जंगली बीज बोकर चला गया। 26 जब अंकुर निकले और बालें लगी, तो जंगली दाने के पौधे भी दिखाई दिए। 27 इस पर गृहस्थ के दासों ने आकर उससे कहा, ‘हे स्वामी, क्या तूने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? फिर जंगली दाने के पौधे उसमें कहाँ से आए?’ 28 उसने उनसे कहा, ‘यह किसी शत्रु का काम है।’ दासों ने उससे कहा, ‘क्या तेरी इच्छा है, कि हम जाकर उनको बटोर लें?’ 29 उसने कहा, ‘नहीं, ऐसा न हो कि जंगली दाने के पौधे बटोरते हुए तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो। 30 कटनी तक दोनों को एक साथ बढ़ने दो, और कटनी के समय मैं काटनेवालों से कहूँगा; पहले जंगली दाने के पौधे बटोरकर जलाने के लिये उनके गट्ठे बाँध लो, और गेहूँ को मेरे खत्ते में इकट्ठा करो।’ ”
31 उसने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, “स्वर्ग का राज्य राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपने खेत में बो दिया। 32 वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग-पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं।”
33 उसने एक और दृष्टान्त उन्हें सुनाया, “स्वर्ग का राज्य ख़मीर के समान है जिसको किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिला दिया और होते-होते वह सब ख़मीर हो गया।”
34 ये सब बातें यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों से कहीं, और बिना दृष्टान्त वह उनसे कुछ न कहता था। 35 कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: “मैं दृष्टान्त कहने को अपना मुँह खोलूँगा मैं उन बातों को जो जगत की उत्पत्ति से गुप्त रही हैं प्रगट करूँगा।”
36 तब वह भीड़ को छोड़कर घर में आया, और उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “खेत के जंगली दाने का दृष्टान्त हमें समझा दे।” 37 उसने उनको उत्तर दिया, “अच्छे बीज का बोनेवाला मनुष्य का पुत्र है। 38 खेत संसार है, अच्छा बीज राज्य के सन्तान, और जंगली बीज दुष्ट के सन्तान हैं। 39 जिस शत्रु ने उनको बोया वह शैतान है; कटनी जगत का अन्त है: और काटनेवाले स्वर्गदूत हैं। 40 अतः जैसे जंगली दाने बटोरे जाते और जलाए जाते हैं वैसा ही जगत के अन्त में होगा। 41 मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करनेवालों को इकट्ठा करेंगे। 42 और उन्हें आग के कुण्ड* में डालेंगे, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा। 43 उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य के समान चमकेंगे। जिसके कान हों वह सुन ले।
44 “स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पा कर छिपा दिया, और आनन्द के मारे जाकर अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।
45 “फिर स्वर्ग का राज्य एक व्यापारी के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था। 46 जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उसने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।
47 “फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियों को समेट लाया। 48 और जब जाल भर गया, तो मछवे किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी-अच्छी तो बरतनों में इकट्ठा किया और बेकार-बेकार फेंक दी। 49 जगत के अन्त में ऐसा ही होगा; स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, 50 और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे। वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
51 “क्या तुम ये सब बातें समझ गए?” चेलों ने उत्तर दिया, “हाँ।” 52 फिर यीशु ने उनसे कहा, “इसलिए हर एक शास्त्री जो स्वर्ग के राज्य का चेला बना है, उस गृहस्थ के समान है जो अपने भण्डार से नई और पुरानी वस्तुएँ निकालता है।”
53 जब यीशु ये सब दृष्टान्त कह चुका, तो वहाँ से चला गया। 54 और अपने नगर में आकर उनके आराधनालय में उन्हें ऐसा उपदेश देने लगा; कि वे चकित होकर कहने लगे, “इसको यह ज्ञान और सामर्थ्य के काम कहाँ से मिले? 55 क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं? और क्या इसकी माता का नाम मरियम और इसके भाइयों के नाम याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा नहीं? 56 और क्या इसकी सब बहनें हमारे बीच में नहीं रहती? फिर इसको यह सब कहाँ से मिला?”
57 इस प्रकार उन्होंने उसके कारण ठोकर खाई, पर यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता अपने नगर और अपने घर को छोड़ और कहीं निरादर नहीं होता।” 58 और उसने वहाँ उनके अविश्वास के कारण बहुत सामर्थ्य के काम नहीं किए।
1 उस समय चौथाई देश के राजा* हेरोदेस ने यीशु की चर्चा सुनी। 2 और अपने सेवकों से कहा, “यह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला है: वह मरे हुओं में से जी उठा है, इसलिए उससे सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।”
3 क्योंकि हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, यूहन्ना को पकड़कर बाँधा, और जेलखाने में डाल दिया था। 4 क्योंकि यूहन्ना ने उससे कहा था, कि इसको रखना तुझे उचित नहीं है। 5 और वह उसे मार डालना चाहता था, पर लोगों से डरता था, क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता मानते थे। 6 पर जब हेरोदेस का जन्मदिन आया, तो हेरोदियास की बेटी ने उत्सव में नाच दिखाकर हेरोदेस को खुश किया। 7 इसलिए उसने शपथ खाकर वचन दिया, “जो कुछ तू माँगेगी, मैं तुझे दूँगा।” 8 वह अपनी माता के उकसाने से बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर थाल में यहीं मुझे मँगवा दे।” 9 राजा दुःखित हुआ, पर अपनी शपथ के, और साथ बैठनेवालों के कारण, आज्ञा दी, कि दे दिया जाए। 10 और उसने जेलखाने में लोगों को भेजकर यूहन्ना का सिर कटवा दिया। 11 और उसका सिर थाल में लाया गया, और लड़की को दिया गया; और वह उसको अपनी माँ के पास ले गई। 12 और उसके चेलों ने आकर उसके शव को ले जाकर गाड़ दिया और जाकर यीशु को समाचार दिया।
13 जब यीशु ने यह सुना, तो नाव पर चढ़कर वहाँ से किसी सुनसान जगह को, एकान्त में चला गया; और लोग यह सुनकर नगर-नगर से पैदल उसके पीछे हो लिए। 14 उसने निकलकर एक बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, और उसने उनके बीमारों को चंगा किया। 15 जब सांझ हुई, तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह तो सुनसान जगह है और देर हो रही है, लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें।” 16 यीशु ने उनसे कहा, “उनका जाना आवश्यक नहीं! तुम ही इन्हें खाने को दो।” 17 उन्होंने उससे कहा, “यहाँ हमारे पास पाँच रोटी और दो मछलियों को छोड़ और कुछ नहीं है।” 18 उसने कहा, “उनको यहाँ मेरे पास ले आओ।” 19 तब उसने लोगों को घास पर बैठने को कहा, और उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लिया; और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़कर चेलों को दीं, और चेलों ने लोगों को। 20 और सब खाकर तृप्त हो गए, और उन्होंने बचे हुए टुकड़ों से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाई। 21 और खानेवाले स्त्रियों और बालकों को छोड़कर* पाँच हजार पुरुषों के लगभग थे।
22 और उसने तुरन्त अपने चेलों को नाव पर चढ़ाया, कि वे उससे पहले पार चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। 23 वह लोगों को विदा करके, प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चढ़ गया; और सांझ को वह वहाँ अकेला था। 24 उस समय नाव झील के बीच लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि हवा सामने की थी। 25 और वह रात के चौथे पहर* झील पर चलते हुए उनके पास आया। 26 चेले उसको झील पर चलते हुए देखकर घबरा गए, और कहने लगे, “वह भूत है,” और डर के मारे चिल्ला उठे। 27 यीशु ने तुरन्त उनसे बातें की, और कहा, “धैर्य रखो, मैं हूँ; डरो मत।” 28 पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, यदि तू ही है, तो मुझे अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे।” 29 उसने कहा, “आ!” तब पतरस नाव पर से उतरकर यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा। 30 पर हवा को देखकर डर गया, और जब डूबने लगा तो चिल्लाकर कहा, “हे प्रभु, मुझे बचा।” 31 यीशु ने तुरन्त हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया, और उससे कहा, “हे अल्प विश्वासी, तूने क्यों सन्देह किया?” 32 जब वे नाव पर चढ़ गए, तो हवा थम गई। 33 इस पर जो नाव पर थे, उन्होंने उसकी आराधना करके कहा, “सचमुच, तू परमेश्वर का पुत्र है।”
34 वे पार उतरकर गन्नेसरत प्रदेश में पहुँचे। 35 और वहाँ के लोगों ने उसे पहचानकर आस-पास के सारे क्षेत्र में कहला भेजा, और सब बीमारों को उसके पास लाए। 36 और उससे विनती करने लगे कि वह उन्हें अपने वस्त्र के कोने ही को छूने दे; और जितनों ने उसे छुआ, वे चंगे हो गए।
1 तब यरूशलेम से कुछ फरीसी और शास्त्री यीशु के पास आकर कहने लगे, 2 “तेरे चेले प्राचीनों की परम्पराओं* को क्यों टालते हैं, कि बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?” 3 उसने उनको उत्तर दिया, “तुम भी अपनी परम्पराओं के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो? 4 क्योंकि परमेश्वर ने कहा, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’, और ‘जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह मार डाला जाए।’ 5 पर तुम कहते हो, कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, ‘जो कुछ तुझे मुझसे लाभ पहुँच सकता था, वह परमेश्वर को भेंट चढ़ाई जा चुका’ 6 तो वह अपने पिता का आदर न करे, इस प्रकार तुम ने अपनी परम्परा के कारण परमेश्वर का वचन टाल दिया। 7 हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक ही की है:
8 ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं,
पर उनका मन मुझसे दूर रहता है।
9 और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं,
क्योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।’ ”
10 और उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “सुनो, और समझो। 11 जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुँह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” 12 तब चेलों ने आकर उससे कहा, “क्या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई?” 13 उसने उत्तर दिया, “हर पौधा जो मेरे स्वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा। 14 उनको जाने दो; वे अंधे मार्ग दिखानेवाले हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड्ढे में गिर पड़ेंगे।”
15 यह सुनकर पतरस ने उससे कहा, “यह दृष्टान्त हमें समझा दे।” 16 उसने कहा, “क्या तुम भी अब तक नासमझ हो? 17 क्या तुम नहीं समझते, कि जो कुछ मुँह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और शौच से निकल जाता है? 18 पर जो कुछ मुँह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। 19 क्योंकि बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती है। 20 यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।”
21 यीशु वहाँ से निकलकर, सूर* और सैदा के देशों की ओर चला गया। 22 और देखो, उस प्रदेश से एक कनानी* स्त्री निकली, और चिल्लाकर कहने लगी, “हे प्रभु! दाऊद के सन्तान, मुझ पर दया कर, मेरी बेटी को दुष्टात्मा बहुत सता रहा है।” 23 पर उसने उसे कुछ उत्तर न दिया, और उसके चेलों ने आकर उससे विनती करके कहा, “इसे विदा कर; क्योंकि वह हमारे पीछे चिल्लाती आती है।” 24 उसने उत्तर दिया, “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया।” 25 पर वह आई, और उसे प्रणाम करके कहने लगी, “हे प्रभु, मेरी सहायता कर।” 26 उसने उत्तर दिया, “लड़कों की* रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं।” 27 उसने कहा, “सत्य है प्रभु, पर कुत्ते भी वह चूरचार खाते हैं, जो उनके स्वामियों की मेज से गिरते हैं।” 28 इस पर यीशु ने उसको उत्तर देकर कहा, “हे स्त्री, तेरा विश्वास बड़ा है; जैसा तू चाहती है, तेरे लिये वैसा ही हो” और उसकी बेटी उसी समय चंगी हो गई।
29 यीशु वहाँ से चलकर, गलील की झील के पास आया, और पहाड़ पर चढ़कर वहाँ बैठ गया। 30 और भीड़ पर भीड़ उसके पास आई, वे अपने साथ लँगड़ों, अंधों, गूँगों, टुण्डों, और बहुतों को लेकर उसके पास आए; और उन्हें उसके पाँवों पर डाल दिया, और उसने उन्हें चंगा किया। 31 अतः जब लोगों ने देखा, कि गूंगे बोलते और टुण्डे चंगे होते और लँगड़े चलते और अंधे देखते हैं, तो अचम्भा करके इस्राएल के परमेश्वर की बड़ाई की।
32 यीशु ने अपने चेलों को बुलाकर कहा, “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है; क्योंकि वे तीन दिन से मेरे साथ हैं और उनके पास कुछ खाने को नहीं; और मैं उन्हें भूखा विदा करना नहीं चाहता; कहीं ऐसा न हो कि मार्ग में थककर गिर जाएँ।” 33 चेलों ने उससे कहा, “हमें इस निर्जन स्थान में कहाँ से इतनी रोटी मिलेगी कि हम इतनी बड़ी भीड़ को तृप्त करें?” 34 यीशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात और थोड़ी सी छोटी मछलियाँ।” 35 तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी। 36 और उन सात रोटियों और मछलियों को ले धन्यवाद करके तोड़ा और अपने चेलों को देता गया, और चेले लोगों को। 37 इस प्रकार सब खाकर तृप्त हो गए और बचे हुए टुकड़ों से भरे हुए सात टोकरे उठाए। 38 और खानेवाले स्त्रियों और बालकों को छोड़ चार हजार पुरुष थे। 39 तब वह भीड़ को विदा करके नाव पर चढ़ गया, और मगदन* क्षेत्र में आया।
1 और फरीसियों और सदूकियों* ने पास आकर उसे परखने के लिये उससे कहा, “हमें स्वर्ग का कोई चिन्ह दिखा।” 2 उसने उनको उत्तर दिया, “सांझ को तुम कहते हो, कि मौसम अच्छा रहेगा, क्योंकि आकाश लाल है। 3 और भोर को कहते हो, कि आज आँधी आएगी क्योंकि आकाश लाल और धुमला है; तुम आकाश का लक्षण देखकर भेद बता सकते हो, पर समय के चिन्हों का भेद क्यों नहीं बता सकते? 4 इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं पर योना के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा।” और वह उन्हें छोड़कर चला गया।
5 और चेले झील के उस पार जाते समय रोटी लेना भूल गए थे। 6 यीशु ने उनसे कहा, “देखो, फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना।” 7 वे आपस में विचार करने लगे, “हम तो रोटी नहीं लाए। इसलिए वह ऐसा कहता है।” 8 यह जानकर, यीशु ने उनसे कहा, “हे अल्पविश्वासियों, तुम आपस में क्यों विचार करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं? 9 क्या तुम अब तक नहीं समझे? और उन पाँच हजार की पाँच रोटी स्मरण नहीं करते, और न यह कि कितनी टोकरियाँ उठाई थीं? 10 और न उन चार हजार की सात रोटियाँ, और न यह कि कितने टोकरे उठाए गए थे? 11 तुम क्यों नहीं समझते कि मैंने तुम से रोटियों के विषय में नहीं कहा? परन्तु फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना।” 12 तब उनको समझ में आया, कि उसने रोटी के ख़मीर से नहीं, पर फरीसियों और सदूकियों की शिक्षा से सावधान रहने को कहा था।
13 यीशु कैसरिया फिलिप्पी* के प्रदेश में आकर अपने चेलों से पूछने लगा, “लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?” 14 उन्होंने कहा, “कुछ तो यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं और कुछ एलिय्याह, और कुछ यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।” 15 उसने उनसे कहा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” 16 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीविते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।” 17 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है; क्योंकि माँस और लहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है। 18 और मैं भी तुझ से कहता हूँ, कि तू पतरस* है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। 19 मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बँधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।” 20 तब उसने चेलों को चेतावनी दी, “किसी से न कहना! कि मैं मसीह हूँ।”
21 उस समय से यीशु अपने चेलों को बताने लगा, “मुझे अवश्य है, कि यरूशलेम को जाऊँ, और प्राचीनों और प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुःख उठाऊँ; और मार डाला जाऊँ; और तीसरे दिन जी उठूँ।” 22 इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर डाँटने लगा, “हे प्रभु, परमेश्वर न करे! तुझ पर ऐसा कभी न होगा।” 23 उसने फिरकर पतरस से कहा, “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो! तू मेरे लिये ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”
24 तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले। 25 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा। 26 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले में क्या देगा? 27 मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा, और उस समय ‘वह हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा।’ 28 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कितने ऐसे हैं, कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।”
1 छः दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया, और उन्हें एकान्त में किसी ऊँचे पहाड़ पर ले गया। 2 और वहाँ उनके सामने उसका रूपांतरण हुआ और उसका मुँह सूर्य के समान चमका और उसका वस्त्र ज्योति के समान उजला हो गया। 3 और मूसा और एलिय्याह* उसके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए। 4 इस पर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, हमारा यहाँ रहना अच्छा है; यदि तेरी इच्छा हो तो मैं यहाँ तीन तम्बू बनाऊँ; एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” 5 वह बोल ही रहा था, कि एक उजले बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं प्रसन्न हूँ: इसकी सुनो।” 6 चेले यह सुनकर मुँह के बल गिर गए और अत्यन्त डर गए। 7 यीशु ने पास आकर उन्हें छुआ, और कहा, “उठो, डरो मत।” 8 तब उन्होंने अपनी आँखें उठाकर यीशु को छोड़ और किसी को न देखा। 9 जब वे पहाड़ से उतर रहे थे तब यीशु ने उन्हें यह निर्देश दिया, “जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से न जी उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है किसी से न कहना।” 10 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “फिर शास्त्री क्यों कहते हैं, कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?” 11 उसने उत्तर दिया, “एलिय्याह तो अवश्य आएगा और सब कुछ सुधारेगा। 12 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि एलिय्याह आ चुका*; और उन्होंने उसे नहीं पहचाना; परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया। इसी प्रकार से मनुष्य का पुत्र भी उनके हाथ से दुःख उठाएगा।” 13 तब चेलों ने समझा कि उसने हम से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के विषय में कहा है।
14 जब वे भीड़ के पास पहुँचे, तो एक मनुष्य उसके पास आया, और घुटने टेककर कहने लगा। 15 “हे प्रभु, मेरे पुत्र पर दया कर! क्योंकि उसको मिर्गी आती है, और वह बहुत दुःख उठाता है; और बार-बार आग में और बार-बार पानी में गिर पड़ता है। 16 और मैं उसको तेरे चेलों के पास लाया था, पर वे उसे अच्छा नहीं कर सके।” 17 यीशु ने उत्तर दिया, “हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” 18 तब यीशु ने उसे डाँटा, और दुष्टात्मा उसमें से निकला; और लड़का उसी समय अच्छा हो गया।
19 तब चेलों ने एकान्त में यीशु के पास आकर कहा, “हम इसे क्यों नहीं निकाल सके?” 20 उसने उनसे कहा, “अपने विश्वास की कमी के कारण: क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर* भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, ‘यहाँ से सरककर वहाँ चला जा’, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अनहोनी न होगी। 21 [पर यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकलती।]”
22 जब वे गलील में थे, तो यीशु ने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा। 23 और वे उसे मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।” इस पर वे बहुत उदास हुए।
24 जब वे कफरनहूम में पहुँचे, तो मन्दिर के लिये कर लेनेवालों ने पतरस के पास आकर पूछा, “क्या तुम्हारा गुरु मन्दिर का कर नहीं देता?” 25 उसने कहा, “हाँ, देता है।” जब वह घर में आया, तो यीशु ने उसके पूछने से पहले उससे कहा, “हे शमौन तू क्या समझता है? पृथ्वी के राजा चुंगी या कर किन से लेते हैं? अपने पुत्रों से या परायों से?” 26 पतरस ने उनसे कहा, “परायों से।” यीशु ने उससे कहा, “तो पुत्र बच गए। 27 फिर भी हम उन्हें ठोकर न खिलाएँ, तू झील के किनारे जाकर बंसी डाल, और जो मछली पहले निकले, उसे ले; तो तुझे उसका मुँह खोलने पर एक सिक्का मिलेगा, उसी को लेकर मेरे और अपने बदले उन्हें दे देना।”
1 उसी समय चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है?” 2 इस पर उसने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच में खड़ा किया, 3 और कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। 4 जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा। 5 और जो कोई मेरे नाम से एक ऐसे बालक को ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है।
6 “पर जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं एक को ठोकर खिलाएँ, उसके लिये भला होता, कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह गहरे समुद्र में डुबाया जाता। 7 ठोकरों के कारण संसार पर हाय! ठोकरों का लगना अवश्य है; पर हाय उस मनुष्य पर जिसके द्वारा ठोकर लगती है।
8 “यदि तेरा हाथ या तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाएँ, तो काटकर फेंक दे; टुण्डा या लँगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो हाथ या दो पाँव रहते हुए तू अनन्त आग में डाला जाए। 9 और यदि तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसे निकालकर फेंक दे। काना होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो आँख रहते हुए तू नरक की आग में डाला जाए।
10 “देखो, तुम इन छोटों में से किसी को तुच्छ न जानना; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि स्वर्ग में उनके स्वर्गदूत मेरे स्वर्गीय पिता का मुँह सदा देखते हैं। 11 [क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को बचाने आया है।]
12 “तुम क्या समझते हो? यदि किसी मनुष्य की सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक भटक जाए, तो क्या निन्यानवे को छोड़कर, और पहाड़ों पर जाकर, उस भटकी हुई को न ढूँढ़ेगा? 13 और यदि ऐसा हो कि उसे पाए, तो मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वह उन निन्यानवे भेड़ों के लिये जो भटकी नहीं थीं इतना आनन्द नहीं करेगा, जितना कि इस भेड़ के लिये करेगा। 14 ऐसा ही तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं, कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।
15 “यदि तेरा भाई तेरे विरुद्ध अपराध करे, तो जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा; यदि वह तेरी सुने तो तूने अपने भाई को पा लिया। 16 और यदि वह न सुने, तो और एक दो जन को अपने साथ ले जा, कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुँह से ठहराई जाए। 17 यदि वह उनकी भी न माने, तो कलीसिया से कह दे, परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने, तो तू उसे अन्यजाति और चुंगी लेनेवाले के जैसा जान।
18 “मैं तुम से सच कहता हूँ, जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधोगे, वह स्वर्ग पर बँधेगा और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे, वह स्वर्ग में खुलेगा। 19 फिर मैं तुम से कहता हूँ, यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिये जिसे वे माँगें, एक मन के हों, तो वह मेरे पिता की ओर से जो स्वर्ग में है उनके लिये हो जाएगी। 20 क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ।”
21 तब पतरस ने पास आकर, उससे कहा, “हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ, क्या सात बार तक?” 22 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, वरन् सात बार के सत्तर गुने* तक।
23 “इसलिए स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा। 24 जब वह लेखा लेने लगा, तो एक जन उसके सामने लाया गया जो दस हजार तोड़े का कर्जदार था। 25 जब कि चुकाने को उसके पास कुछ न था, तो उसके स्वामी ने कहा, कि यह और इसकी पत्नी और बाल-बच्चे और जो कुछ इसका है सब बेचा जाए, और वह कर्ज चुका दिया जाए। 26 इस पर उस दास ने गिरकर उसे प्रणाम किया, और कहा, ‘हे स्वामी, धीरज धर, मैं सब कुछ भर दूँगा।’ 27 तब उस दास के स्वामी ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका कर्ज क्षमा किया।
28 “परन्तु जब वह दास बाहर निकला, तो उसके संगी दासों में से एक उसको मिला, जो उसके सौ दीनार* का कर्जदार था; उसने उसे पकड़कर उसका गला घोंटा और कहा, ‘जो कुछ तू धारता है भर दे।’ 29 इस पर उसका संगी दास गिरकर, उससे विनती करने लगा; कि धीरज धर मैं सब भर दूँगा। 30 उसने न माना, परन्तु जाकर उसे बन्दीगृह में डाल दिया; कि जब तक कर्ज को भर न दे, तब तक वहीं रहे। 31 उसके संगी दास यह जो हुआ था देखकर बहुत उदास हुए, और जाकर अपने स्वामी को पूरा हाल बता दिया। 32 तब उसके स्वामी ने उसको बुलाकर उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास, तूने जो मुझसे विनती की, तो मैंने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया। 33 इसलिए जैसा मैंने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था?’ 34 और उसके स्वामी ने क्रोध में आकर उसे दण्ड देनेवालों के हाथ में सौंप दिया, कि जब तक वह सब कर्जा भर न दे, तब तक उनके हाथ में रहे।
35 “इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा।”
1 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो गलील से चला गया; और यहूदिया के प्रदेश में यरदन के पार आया। 2 और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, और उसने उन्हें वहाँ चंगा किया। 3 तब फरीसी उसकी परीक्षा करने के लिये पास आकर कहने लगे, “क्या हर एक कारण से अपनी पत्नी को त्यागना उचित है?” 4 उसने उत्तर दिया, “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि जिसने उन्हें बनाया, उसने आरम्भ से नर और नारी बनाकर कहा, 5 ‘इस कारण मनुष्य अपने माता पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे?’ 6 अतः वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” 7 उन्होंने यीशु से कहा, “फिर मूसा ने क्यों यह ठहराया, कि त्यागपत्र देकर उसे छोड़ दे?” 8 उसने उनसे कहा, “मूसा ने तुम्हारे मन की कठोरता के कारण तुम्हें अपनी पत्नी को छोड़ देने की अनुमति दी, परन्तु आरम्भ में ऐसा नहीं था। 9 और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से अपनी पत्नी को त्याग कर, दूसरी से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है: और जो उस छोड़ी हुई से विवाह करे, वह भी व्यभिचार करता है।”
10 चेलों ने उससे कहा, “यदि पुरुष का स्त्री के साथ ऐसा सम्बन्ध है, तो विवाह करना अच्छा नहीं।” 11 उसने उनसे कहा, “सब यह वचन ग्रहण नहीं कर सकते, केवल वे जिनको यह दान दिया गया है। 12 क्योंकि कुछ नपुंसक ऐसे हैं जो माता के गर्भ ही से ऐसे जन्मे; और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य ने नपुंसक बनाया: और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्होंने स्वर्ग के राज्य के लिये अपने आप को नपुंसक बनाया है, जो इसको ग्रहण कर सकता है, वह ग्रहण करे।”
13 तब लोग बालकों को उसके पास लाए, कि वह उन पर हाथ रखे और प्रार्थना करे; पर चेलों ने उन्हें डाँटा। 14 यीशु ने कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है।” 15 और वह उन पर हाथ रखकर, वहाँ से चला गया।
16 और एक मनुष्य ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, मैं कौन सा भला काम करूँ, कि अनन्त जीवन पाऊँ?” 17 उसने उससे कहा, “तू मुझसे भलाई के विषय में क्यों पूछता है? भला तो एक ही है; पर यदि तू जीवन में प्रवेश करना चाहता है, तो आज्ञाओं को माना कर।” 18 उसने उससे कहा, “कौन सी आज्ञाएँ?” यीशु ने कहा, “यह कि हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना; 19 अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना*।” 20 उस जवान ने उससे कहा, “इन सब को तो मैंने माना है अब मुझ में किस बात की कमी है?” 21 यीशु ने उससे कहा, “यदि तू सिद्ध* होना चाहता है; तो जा, अपना सब कुछ बेचकर गरीबों को बाँट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा; और आकर मेरे पीछे हो ले।” 22 परन्तु वह जवान यह बात सुन उदास होकर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
23 तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि धनवान का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कठिन है। 24 फिर तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।” 25 यह सुनकर, चेलों ने बहुत चकित होकर कहा, “फिर किस का उद्धार हो सकता है?” 26 यीशु ने उनकी ओर देखकर कहा, “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।” 27 इस पर पतरस ने उससे कहा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिये हैं तो हमें क्या मिलेगा?” 28 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि नई उत्पत्ति में जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिये हो, बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे। 29 और जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहनों या पिता या माता या बाल-बच्चों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उसको सौ गुना मिलेगा, और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा। 30 परन्तु बहुत सारे जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, पहले होंगे।
1 “स्वर्ग का राज्य किसी गृहस्थ के समान है, जो सवेरे निकला, कि अपने दाख की बारी में मजदूरों को लगाए। 2 और उसने मजदूरों से एक दीनार रोज पर ठहराकर, उन्हें अपने दाख की बारी में भेजा। 3 फिर पहर* एक दिन चढ़े, निकलकर, अन्य लोगों को बाजार में बेकार खड़े देखकर, 4 और उनसे कहा, ‘तुम भी दाख की बारी में जाओ, और जो कुछ ठीक है, तुम्हें दूँगा।’ तब वे भी गए। 5 फिर उसने दूसरे और तीसरे पहर के निकट निकलकर वैसा ही किया। 6 और एक घंटा दिन रहे फिर निकलकर दूसरों को खड़े पाया, और उनसे कहा ‘तुम क्यों यहाँ दिन भर बेकार खड़े रहे?’ उन्होंने उससे कहा, ‘इसलिए, कि किसी ने हमें मजदूरी पर नहीं लगाया।’ 7 उसने उनसे कहा, ‘तुम भी दाख की बारी में जाओ।’
8 “सांझ को दाख बारी के स्वामी ने अपने भण्डारी से कहा, ‘मजदूरों को बुलाकर पिछलों से लेकर पहलों तक उन्हें मजदूरी दे-दे।’ 9 जब वे आए, जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उन्हें एक-एक दीनार मिला। 10 जो पहले आए, उन्होंने यह समझा, कि हमें अधिक मिलेगा; परन्तु उन्हें भी एक ही एक दीनार मिला। 11 जब मिला, तो वह गृह स्वामी पर कुड़कुड़ा के कहने लगे, 12 ‘इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया, और तूने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जिन्होंने दिन भर का भार उठाया और धूप सही?’ 13 उसने उनमें से एक को उत्तर दिया, ‘हे मित्र, मैं तुझ से कुछ अन्याय नहीं करता; क्या तूने मुझसे एक दीनार न ठहराया? 14 जो तेरा है, उठा ले, और चला जा; मेरी इच्छा यह है कि जितना तुझे, उतना ही इस पिछले को भी दूँ। 15 क्या यह उचित नहीं कि मैं अपने माल से जो चाहूँ वैसा करूँ? क्या तू मेरे भले होने के कारण बुरी दृष्टि से देखता है?’ 16 इस प्रकार जो अन्तिम हैं, वे प्रथम हो जाएँगे* और जो प्रथम हैं वे अन्तिम हो जाएँगे।”
17 यीशु यरूशलेम को जाते हुए बारह चेलों को एकान्त में ले गया, और मार्ग में उनसे कहने लगा। 18 “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं; और मनुष्य का पुत्र प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा और वे उसको घात के योग्य ठहराएँगे। 19 और उसको अन्यजातियों के हाथ सौंपेंगे, कि वे उसे उपहास में उड़ाएँ, और कोड़े मारें, और क्रूस पर चढ़ाएँ, और वह तीसरे दिन जिलाया जाएगा।”
20 जब जब्दी के पुत्रों की माता ने अपने पुत्रों के साथ उसके पास आकर प्रणाम किया, और उससे कुछ माँगने लगी। 21 उसने उससे कहा, “तू क्या चाहती है?” वह उससे बोली, “यह कह, कि मेरे ये दो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरे दाहिने और एक तेरे बाएँ बैठे।” 22 यीशु ने उत्तर दिया, “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो। जो कटोरा मैं पीने* पर हूँ, क्या तुम पी सकते हो?” उन्होंने उससे कहा, “पी सकते हैं।” 23 उसने उनसे कहा, “तुम मेरा कटोरा तो पीओगे पर अपने दाहिने बाएँ किसी को बैठाना मेरा काम नहीं, पर जिनके लिये मेरे पिता की ओर से तैयार किया गया, उन्हीं के लिये है।”
24 यह सुनकर, दसों चेले उन दोनों भाइयों पर क्रुद्ध हुए। 25 यीशु ने उन्हें पास बुलाकर कहा, “तुम जानते हो, कि अन्यजातियों के अधिपति उन पर प्रभुता करते हैं; और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं। 26 परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने; 27 और जो तुम में प्रधान होना चाहे वह तुम्हारा दास बने; 28 जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि अपनी सेवा करवाए, परन्तु इसलिए आया कि सेवा करे और बहुतों के छुटकारे के लिये अपने प्राण दे।”
29 जब वे यरीहो* से निकल रहे थे, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 30 और दो अंधे, जो सड़क के किनारे बैठे थे, यह सुनकर कि यीशु जा रहा है, पुकारकर कहने लगे, “हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” 31 लोगों ने उन्हें डाँटा, कि चुप रहे, पर वे और भी चिल्लाकर बोले, “हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” 32 तब यीशु ने खड़े होकर, उन्हें बुलाया, और कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?” 33 उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, यह कि हमारी आँखें खुल जाएँ।” 34 यीशु ने तरस खाकर उनकी आँखें छूई, और वे तुरन्त देखने लगे; और उसके पीछे हो लिए।
यीशु मजदूरों को मजदूरी देने वाले के दृष्टान्त आरंभ करता है।
परमेश्वर पर राज करता है जैसे गृहस्वामी अपनी भूमि पर राज करता है।
देखें कि आपने में इसका अनुवाद कैसे किया है
"जब गृहस्वामी सहमत हो गया"
"एक दिन की मज़दूरी"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मजदूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"वह गृहस्वामी फिर गया"
"कुछ नहीं कर रहे थे" या "जिनके पास काम नहीं था"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मज़दूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"गृहस्वामी फिर बाहर गया"
"कुछ नहीं कर रहे थे" या "उनके पास काम नहीं था"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मजदूरों को मजदूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"जिन्होंने दिन समाप्त होने से एक घंटा पहले आए थे"
"एक दिन की मज़दूरी"
"जिन मज़दूरों ने सबसे अधिक काम किया था उन्होंने सोचा"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मज़दूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"जब सबसे अधिक काम करने वाले मजदूरों को मज़दूरी मिली तो"
"भू स्वामि पर" या "दाख की बारी के स्वामी पर"
"हमने पूरा दिन धूप में काम किया"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मज़दूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"पूरा दिन काम करने वाले मज़दूरों में से एक"
किसी को कोमलता से झिड़कने का शब्द काम में लें।
वैकल्पिक अनुवाद, "हम सहमत थे कि मैं तुझे एक दीनार दूं।"
"एक दिन की मज़दूरी"
"मैं देने में प्रसन्न हूँ" या "मैं देकर प्रसन्न हूँ"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मज़दूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैं अपने माल के साथ जैसा चाहूंगा वैसा ही करूंगा" कर सकता हूँ।
"विधि सम्मत" या "निष्पक्ष" या "सही"
"तुझे निराश नहीं होना चाहिए कि मैं उनके साथ भलाई कर रहा हूँ, जिन्होंने कमाया नहीं"।
यरूशलेम की यात्रा के समय यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है
यीशु शिष्यों को भी जोड़ रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "कोई है जो मनुष्य के पुत्र को पकड़वायेगा"
"महायाजक और शास्त्री उसे मृत्युदण्ड के योग्य कहकर अन्यजातियों के समक्ष रखेंगे जो उसका ठट्ठा करेंगे"।
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर उसे जीवित करेगा"
दो शिष्यों की माता यीशु से एक निवेदन करती है
अधिकार के स्थानों पर
यीशु उन दोनों शिष्यों की माता को उत्तर देता है
वे दोनों शिष्य और उनकी माता
"क्या तुम्हारे लिए संभव है कि ..." यीशु केवल पुत्रों से कह रहा है
"जिस कष्ट को मैं उठाने जा रहा हूँ तुम उठा सकते हो"?
दोनों शिष्यों ने
"मेरे साथ बैठने का सम्मान उन्हीं के लिए है जिनके लिए मेरे पिता ने यह सम्मान रखा है"
"निश्चित किया है"
यीशु ने उनकी माता से जो कहा उसके द्वारा शिष्यों को शिक्षा देता है
"अन्य जातियों के शासक उनसे अपनी इच्छा पूरी करवाते हैं"
जिन्हें शासकों ने अधिकार दिया है
"उनके नियंत्रण में रखते है"
"इच्छा रखे" या "लालसा करे"
"मरने के लिए तैयार रहे"
यीशु द्वारा वे अंधों को दृष्टि दान का वृत्तान्त आरंभ होता है।
यह यीशु और उसके शिष्य के बारे में है
"यीशु का अनुसरण करने लगी"
परमेश्वर पाठक का ध्यान आकर्षित करता है कि कोई विस्मयकारी जानकारी आगे है। आपकी भाषा में इसको व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
"उनके पास से निकल रहा है"
"अंधों ने पहले से भी अधिक चिल्लाना आरंभ कर दिया" या "वे और ऊंचे शब्द में चिल्लाए"
यीशु द्वारा दो अंधों को दृष्टि दान का वृत्तान्त चल रहा है।
"उन अंधे मनुष्यों को बुलाया"
"ढूँढ़ते"
वैकल्पिक अनुवाद, "हमारी इच्छा है कि तू हमें देखने योग्य बना दे" या "हम देखने के योग्य होना चाहते है"। (देखें:
"अनुकंपा से" या "उनके लिए करूणा से भरकर"
दाख की बारी के स्वामी ने सुबह लाए गये मजदूरों को एक दीनार पर ठहराया।
बारी के स्वामी ने कहा कि वह उन्हें उचित मजदूरी देगा।
ग्यारहवें घंटे में लाए गए मजदूरों को एक दीनार मिला।
उन्होंने शिकायत की कि उन्होंने पूरा दिन काम किया और उन्हें उतना ही मिला जितना एक घंटे काम करने वाले को।
स्वामी ने उत्तर दिया कि सुबह काम पर लगाए गए मजदूरों को उसने ठहराई गई मजदूरी एक दीनार दी है और अन्य मजदूरों को भी उतनी ही मजदूरी देना उसकी अपनी इच्छा है।
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वह महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जायेगा और वे उसे मृत्यु दण्ड देंगे, और क्रूस पर चढ़ाएंगे परन्तु वह तीसरे दिन जी उठेगा।
वह चाहती थी कि यीशु आज्ञा दे कि उसके पुत्र यीशु के राज्य में उसकी दाहिनी ओर एक और बाईं ओर दूसरा बैठे।
यीशु ने उसे उत्तर दिया, कि स्वर्गीय पिता ने इन स्थानों को उन्हीं के लिए रखा है जिन्हें उसने चुना है।
यीशु ने कहा कि जो बड़ा बनना चाहे वह सेवक बने।
यीशु ने कहा कि वह सेवा करने और अनेकों की छुडौती के लिए अपने प्राण दे।
दो अंधे पुकार रहे थे, "हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर"।
यीशु ने उन दोनों अंधों को चंगा किया क्योंकि उसे उन पर तरस आ गया था।
1 जब वे यरूशलेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ पर बैतफगे के पास आए, तो यीशु ने दो चेलों को यह कहकर भेजा, 2 “अपने सामने के गाँव में जाओ, वहाँ पहुँचते ही एक गदही बंधी हुई, और उसके साथ बच्चा तुम्हें मिलेगा; उन्हें खोलकर, मेरे पास ले आओ। 3 यदि तुम से कोई कुछ कहे, तो कहो, कि प्रभु को इनका प्रयोजन है: तब वह तुरन्त उन्हें भेज देगा।” 4 यह इसलिए हुआ, कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो:
5 “सिय्योन की बेटी से कहो,
‘देख, तेरा राजा तेरे पास आता है;
वह नम्र है और गदहे पर बैठा है;
वरन् लादू के बच्चे पर।’ ”
6 चेलों ने जाकर, जैसा यीशु ने उनसे कहा था, वैसा ही किया। 7 और गदही और बच्चे को लाकर, उन पर अपने कपड़े डाले, और वह उन पर बैठ गया। 8 और बहुत सारे लोगों ने अपने कपड़े मार्ग में बिछाए, और लोगों ने पेड़ों से डालियाँ काटकर मार्ग में बिछाईं। 9 और जो भीड़ आगे-आगे जाती और पीछे-पीछे चली आती थी, पुकार-पुकारकर कहती थी, “दाऊद के सन्तान को होशाना; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना।” 10 जब उसने यरूशलेम में प्रवेश किया, तो सारे नगर में हलचल मच गई; और लोग कहने लगे, “यह कौन है?” 11 लोगों ने कहा, “यह गलील के नासरत का भविष्यद्वक्ता यीशु है।”
12 यीशु ने परमेश्वर के मन्दिर* में जाकर, उन सब को, जो मन्दिर में लेन-देन कर रहे थे, निकाल दिया; और सर्राफों के मेज़ें और कबूतरों के बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं। 13 और उनसे कहा, “लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा’; परन्तु तुम उसे लुटेरों का अड्डा बनाते हो।”
14 और अंधे और लँगड़े, मन्दिर में उसके पास आए, और उसने उन्हें चंगा किया। 15 परन्तु जब प्रधान याजकों और शास्त्रियों ने इन अद्भुत कामों को, जो उसने किए, और लड़कों को मन्दिर में दाऊद की सन्तान को होशाना’ पुकारते हुए देखा, तो क्रोधित हुए, 16 और उससे कहने लगे, “क्या तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?” यीशु ने उनसे कहा, “हाँ; क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा: ‘बालकों और दूध पीते बच्चों के मुँह से तूने स्तुति सिद्ध कराई?’ ” 17 तब वह उन्हें छोड़कर नगर के बाहर बैतनिय्याह* को गया, और वहाँ रात बिताई।
18 भोर को जब वह नगर को लौट रहा था, तो उसे भूख लगी। 19 और अंजीर के पेड़ को सड़क के किनारे देखकर वह उसके पास गया, और पत्तों को छोड़ उसमें और कुछ न पा कर उससे कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे।” और अंजीर का पेड़ तुरन्त सुख गया। 20 यह देखकर चेलों ने अचम्भा किया, और कहा, “यह अंजीर का पेड़ तुरन्त कैसे सूख गया?” 21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं तुम से सच कहता हूँ; यदि तुम विश्वास रखो, और सन्देह न करो; तो न केवल यह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ से किया गया है; परन्तु यदि इस पहाड़ से भी कहोगे, कि उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़, तो यह हो जाएगा। 22 और जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास से माँगोगे वह सब तुम को मिलेगा।”
23 वह मन्दिर में जाकर उपदेश कर रहा था, कि प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने उसके पास आकर पूछा, “तू ये काम किस के अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किस ने दिया है?” 24 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; यदि वह मुझे बताओगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ। 25 यूहन्ना का बपतिस्मा कहाँ से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से था?” तब वे आपस में विवाद करने लगे, “यदि हम कहें ‘स्वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेगा की, ‘फिर तुम ने उसका विश्वास क्यों न किया?’ 26 और यदि कहें ‘मनुष्यों की ओर से’, तो हमें भीड़ का डर है, क्योंकि वे सब यूहन्ना को भविष्यद्वक्ता मानते हैं।” 27 अतः उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” उसने भी उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता, कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ।
28 “तुम क्या समझते हो? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे; उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘हे पुत्र, आज दाख की बारी में काम कर।’ 29 उसने उत्तर दिया, ‘मैं नहीं जाऊँगा’, परन्तु बाद में उसने अपना मन बदल दिया और चला गया। 30 फिर दूसरे के पास जाकर ऐसा ही कहा, उसने उत्तर दिया, ‘जी हाँ जाता हूँ’, परन्तु नहीं गया। 31 इन दोनों में से किस ने पिता की इच्छा पूरी की?” उन्होंने कहा, “पहले ने।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि चुंगी लेनेवाले और वेश्या तुम से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करते हैं। 32 क्योंकि यूहन्ना धार्मिकता के मार्ग से तुम्हारे पास आया, और तुम ने उस पर विश्वास नहीं किया: पर चुंगी लेनेवालों और वेश्याओं ने उसका विश्वास किया: और तुम यह देखकर बाद में भी न पछताए कि उसका विश्वास कर लेते।
33 “एक और दृष्टान्त सुनो एक गृहस्थ था, जिसने दाख की बारी लगाई; और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा; और उसमें रस का कुण्ड खोदा; और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। 34 जब फल का समय निकट आया, तो उसने अपने दासों को उसका फल लेने के लिये किसानों के पास भेजा। 35 पर किसानों ने उसके दासों को पकड़ के, किसी को पीटा, और किसी को मार डाला; और किसी को पत्थराव किया। 36 फिर उसने और दासों को भेजा, जो पहलों से अधिक थे; और उन्होंने उनसे भी वैसा ही किया। 37 अन्त में उसने अपने पुत्र को उनके पास यह कहकर भेजा, कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। 38 परन्तु किसानों ने पुत्र को देखकर आपस में कहा, ‘यह तो वारिस है, आओ, उसे मार डालें: और उसकी विरासत ले लें।’ 39 और उन्होंने उसे पकड़ा और दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला।
40 इसलिए जब दाख की बारी का स्वामी आएगा, तो उन किसानों के साथ क्या करेगा?” 41 उन्होंने उससे कहा, “वह उन बुरे लोगों को बुरी रीति से नाश करेगा; और दाख की बारी का ठेका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।” 42 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम ने कभी पवित्रशास्त्र में यह नहीं पढ़ा:
‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने बेकार समझा था,
वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया?
यह प्रभु की ओर से हुआ, और हमारे
देखने में अद्भुत है।’
43 “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। 44 जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चकनाचूर हो जाएगा: और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” 45 प्रधान याजकों और फरीसी उसके दृष्टान्तों को सुनकर समझ गए, कि वह हमारे विषय में कहता है। 46 और उन्होंने उसे पकड़ना चाहा, परन्तु लोगों से डर गए क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता जानते थे।
1 इस पर यीशु फिर उनसे दृष्टान्तों में कहने लगा। 2 “स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने पुत्र का विवाह किया। 3 और उसने अपने दासों को भेजा, कि निमंत्रित लोगों को विवाह के भोज में बुलाएँ; परन्तु उन्होंने आना न चाहा। 4 फिर उसने और दासों को यह कहकर भेजा, ‘निमंत्रित लोगों से कहो: देखो, मैं भोज तैयार कर चुका हूँ, और मेरे बैल और पले हुए पशु मारे गए हैं और सब कुछ तैयार है; विवाह के भोज में आओ।’ 5 परन्तु वे उपेक्षा करके चल दिए: कोई अपने खेत को, कोई अपने व्यापार को। 6 अन्य लोगों ने जो बच रहे थे उसके दासों को पकड़कर उनका अनादर किया और मार डाला। 7 तब राजा को क्रोध आया, और उसने अपनी सेना भेजकर उन हत्यारों को नाश किया, और उनके नगर को फूँक दिया। 8 तब उसने अपने दासों से कहा, ‘विवाह का भोज तो तैयार है, परन्तु निमंत्रित लोग योग्य न ठहरे। 9 इसलिए चौराहों में जाओ, और जितने लोग तुम्हें मिलें, सब को विवाह के भोज में बुला लाओ।’ 10 अतः उन दासों ने सड़कों पर जाकर क्या बुरे, क्या भले, जितने मिले, सब को इकट्ठा किया; और विवाह का घर अतिथियों से भर गया।
11 “जब राजा अतिथियों के देखने को भीतर आया; तो उसने वहाँ एक मनुष्य को देखा, जो विवाह का वस्त्र नहीं पहने था*। 12 उसने उससे पूछा, ‘हे मित्र; तू विवाह का वस्त्र पहने बिना यहाँ क्यों आ गया?’ और वह मनुष्य चुप हो गया। 13 तब राजा ने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पाँव बाँधकर उसे बाहर अंधियारे में डाल दो, वहाँ रोना, और दाँत पीसना होगा।’ 14 क्योंकि बुलाए हुए तो बहुत है परन्तु चुने हुए थोड़े हैं।”
15 तब फरीसियों ने जाकर आपस में विचार किया, कि उसको किस प्रकार बातों में फँसाएँ। 16 अतः उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास यह कहने को भेजा, “हे गुरु, हम जानते हैं, कि तू सच्चा है, और परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता। 17 इसलिए हमें बता तू क्या समझता है? कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं।” 18 यीशु ने उनकी दुष्टता जानकर कहा, “हे कपटियों, मुझे क्यों परखते हो? 19 कर का सिक्का मुझे दिखाओ।” तब वे उसके पास एक दीनार ले आए। 20 उसने, उनसे पूछा, “यह आकृति और नाम किस का है?” 21 उन्होंने उससे कहा, “कैसर का।” तब उसने उनसे कहा, “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” 22 यह सुनकर उन्होंने अचम्भा किया, और उसे छोड़कर चले गए।
23 उसी दिन सदूकी जो कहते हैं कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं उसके पास आए, और उससे पूछा, 24 “हे गुरु, मूसा ने कहा था, कि यदि कोई बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी को विवाह करके अपने भाई के लिये वंश उत्पन्न करे। 25 अब हमारे यहाँ सात भाई थे; पहला विवाह करके मर गया; और सन्तान न होने के कारण अपनी पत्नी को अपने भाई के लिये छोड़ गया। 26 इसी प्रकार दूसरे और तीसरे ने भी किया, और सातों तक यही हुआ। 27 सब के बाद वह स्त्री भी मर गई। 28 अतः जी उठने पर वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि वह सब की पत्नी हो चुकी थी।” 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम पवित्रशास्त्र और परमेश्वर की सामर्थ्य नहीं जानते; इस कारण भूल में पड़ गए हो। 30 क्योंकि जी उठने पर विवाह-शादी न होगी; परन्तु वे स्वर्ग में दूतों के समान होंगे। 31 परन्तु मरे हुओं के जी उठने के विषय में क्या तुम ने यह वचन नहीं पढ़ा जो परमेश्वर ने तुम से कहा: 32 ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ?’ वह तो मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवितों का परमेश्वर है।” 33 यह सुनकर लोग उसके उपदेश से चकित हुए।
34 जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने सदूकियों का मुँह बन्द कर दिया; तो वे इकट्ठे हुए। 35 और उनमें से एक व्यवस्थापक ने परखने के लिये, उससे पूछा, 36 “हे गुरु, व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?” 37 उसने उससे कहा, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख*। 38 बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। 39 और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। 40 ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था एवं भविष्यद्वक्ताओं* का आधार है।”
41 जब फरीसी इकट्ठे थे, तो यीशु ने उनसे पूछा, 42 “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो? वह किस की सन्तान है?” उन्होंने उससे कहा, “दाऊद की।” 43 उसने उनसे पूछा, “तो दाऊद आत्मा में होकर उसे प्रभु क्यों कहता है? 44 ‘प्रभु ने, मेरे प्रभु से कहा, मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे की चौकी न कर दूँ।’ 45 भला, जब दाऊद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका पुत्र कैसे ठहरा?” 46 उसके उत्तर में कोई भी एक बात न कह सका। परन्तु उस दिन से किसी को फिर उससे कुछ पूछने का साहस न हुआ।
1 तब यीशु ने भीड़ से और अपने चेलों से कहा, 2 “शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं; 3 इसलिए वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना, परन्तु उनके जैसा काम मत करना; क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं। 4 वे एक ऐसे भारी बोझ को जिनको उठाना कठिन है, बाँधकर उन्हें मनुष्यों के कंधों पर रखते हैं*; परन्तु आप उन्हें अपनी उँगली से भी सरकाना नहीं चाहते। 5 वे अपने सब काम लोगों को दिखाने के लिये करते हैं वे अपने तावीजों* को चौड़े करते, और अपने वस्त्रों की झालरों को बढ़ाते हैं। 6 भोज में मुख्य-मुख्य जगहें, और आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन, 7 और बाजारों में नमस्कार और मनुष्य में रब्बी* कहलाना उन्हें भाता है। 8 परन्तु तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है: और तुम सब भाई हो। 9 और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। 10 और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात् मसीह। 11 जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने। 12 जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।
13 “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो आप ही उसमें प्रवेश करते हो और न उसमें प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो। 14 [हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम विधवाओं के घरों को खा जाते हो, और दिखाने के लिए बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हो: इसलिए तुम्हें अधिक दण्ड मिलेगा।]
15 “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है, तो उसे अपने से दुगुना नारकीय बना देते हो।
16 “हे अंधे अगुओं, तुम पर हाय, जो कहते हो कि यदि कोई मन्दिर की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की सौगन्ध खाए तो उससे बन्ध जाएगा। 17 हे मूर्खों, और अंधों, कौन बड़ा है, सोना या वह मन्दिर जिससे सोना पवित्र होता है? 18 फिर कहते हो कि यदि कोई वेदी की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु जो भेंट उस पर है, यदि कोई उसकी शपथ खाए तो बन्ध जाएगा। 19 हे अंधों, कौन बड़ा है, भेंट या वेदी जिससे भेंट पवित्र होती है? 20 इसलिए जो वेदी की शपथ खाता है, वह उसकी, और जो कुछ उस पर है, उसकी भी शपथ खाता है। 21 और जो मन्दिर की शपथ खाता है, वह उसकी और उसमें रहनेवालों की भी शपथ खाता है। 22 और जो स्वर्ग की शपथ खाता है, वह परमेश्वर के सिंहासन की और उस पर बैठनेवाले की भी शपथ खाता है।
23 “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम पोदीने और सौंफ और जीरे का दसवाँ अंश देते हो, परन्तु तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों अर्थात् न्याय, और दया, और विश्वास को छोड़ दिया है; चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते, और उन्हें भी न छोड़ते। 24 हे अंधे अगुओं, तुम मच्छर को तो छान डालते हो, परन्तु ऊँट को निगल जाते हो।
25 “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर से तो माँजते हो परन्तु वे भीतर अंधेर असंयम से भरे हुए हैं। 26 हे अंधे फरीसी, पहले कटोरे और थाली को भीतर से माँज कि वे बाहर से भी स्वच्छ हों*।
27 “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम चूना फिरी हुई कब्रों* के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं। 28 इसी रीति से तुम भी ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो।
29 “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रें संवारते और धर्मियों की कब्रें बनाते हो। 30 और कहते हो, ‘यदि हम अपने पूर्वजों के दिनों में होते तो भविष्यद्वक्ताओं की हत्या में उनके सहभागी न होते।’ 31 इससे तो तुम अपने पर आप ही गवाही देते हो, कि तुम भविष्यद्वक्ताओं के हत्यारों की सन्तान हो। 32 अतः तुम अपने पूर्वजों के पाप का घड़ा भर दो। 33 हे साँपो, हे करैतों के बच्चों, तुम नरक के दण्ड से कैसे बचोगे? 34 इसलिए देखो, मैं तुम्हारे पास भविष्यद्वक्ताओं और बुद्धिमानों और शास्त्रियों को भेजता हूँ; और तुम उनमें से कुछ को मार डालोगे, और क्रूस पर चढ़ाओगे; और कुछ को अपनी आराधनालयों में कोड़े मारोगे, और एक नगर से दूसरे नगर में खदेड़ते फिरोगे। 35 जिससे धर्मी हाबिल से लेकर बिरिक्याह के पुत्र जकर्याह तक, जिसे तुम ने मन्दिर और वेदी के बीच में मार डाला था, जितने धर्मियों का लहू पृथ्वी पर बहाया गया है, वह सब तुम्हारे सिर पर पड़ेगा। 36 मैं तुम से सच कहता हूँ, ये सब बातें इस पीढ़ी के लोगों पर आ पड़ेंगी।
37 “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम! तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थराव करता है, कितनी ही बार मैंने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठा कर लूँ, परन्तु तुम ने न चाहा। 38 देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है। 39 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि अब से जब तक तुम न कहोगे, ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम से आता है’ तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।”
1 जब यीशु मन्दिर से निकलकर जा रहा था, तो उसके चेले उसको मन्दिर की रचना दिखाने के लिये उसके पास आए। 2 उसने उनसे कहा, “क्या तुम यह सब नहीं देखते? मैं तुम से सच कहता हूँ, यहाँ पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।”
3 और जब वह जैतून पहाड़* पर बैठा था, तो चेलों ने अलग उसके पास आकर कहा, “हम से कह कि ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” 4 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “सावधान रहो! कोई तुम्हें न बहकाने पाए। 5 क्योंकि बहुत से ऐसे होंगे जो मेरे नाम से आकर कहेंगे, ‘मैं मसीह हूँ’, और बहुतों को बहका देंगे। 6 तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे; देखो घबरा न जाना क्योंकि इनका होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा। 7 क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह-जगह अकाल पड़ेंगे, और भूकम्प होंगे। 8 ये सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ* होंगी। 9 तब वे क्लेश दिलाने के लिये तुम्हें पकड़वाएँगे, और तुम्हें मार डालेंगे और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे। 10 तब बहुत सारे ठोकर खाएँगे, और एक दूसरे को पकड़वाएँगे और एक दूसरे से बैर रखेंगे। 11 बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बहुतों को बहकाएँगे। 12 और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा। 13 परन्तु जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा। 14 और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार* किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।
15 “इसलिए जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जिसकी चर्चा दानिय्येल भविष्यद्वक्ता के द्वारा हुई थी, पवित्रस्थान में खड़ी हुई देखो, (जो पढ़े, वह समझे)। 16 तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएँ। 17 जो छत पर हो, वह अपने घर में से सामान लेने को न उतरे। 18 और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे।
19 “उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय, हाय। 20 और प्रार्थना करो; कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े। 21 क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा। 22 और यदि वे दिन घटाए न जाते, तो कोई प्राणी न बचता; परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएँगे। 23 उस समय यदि कोई तुम से कहे, कि देखो, मसीह यहाँ हैं! या वहाँ है! तो विश्वास न करना।
24 “क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएँगे, कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी बहका दें। 25 देखो, मैंने पहले से तुम से यह सब कुछ कह दिया है। 26 इसलिए यदि वे तुम से कहें, ‘देखो, वह जंगल में है’, तो बाहर न निकल जाना; ‘देखो, वह कोठरियों में हैं’, तो विश्वास न करना।
27 “क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती जाती है, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा। 28 जहाँ लाश हो, वहीं गिद्ध इकट्ठे होंगे।
29 “उन दिनों के क्लेश के बाद तुरन्त सूर्य अंधियारा हो जाएगा, और चाँद का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। 30 तब मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे। 31 और वह तुरही के बड़े शब्द के साथ, अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे आकाश के इस छोर से उस छोर तक, चारों दिशा से उसके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे।
32 “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो जब उसकी डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। 33 इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, वरन् द्वार पर है। 34 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का अन्त नहीं होगा। 35 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरे शब्द कभी न टलेंगी।
36 “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूतों, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता। 37 जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। 38 क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी। 39 और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उनको कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। 40 उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। 41 दो स्त्रियाँ चक्की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। 42 इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा। 43 परन्तु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता होता कि चोर किस पहर आएगा, तो जागता रहता; और अपने घर में चोरी नहीं होने देता। 44 इसलिए तुम भी तैयार रहो*, क्योंकि जिस समय के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी समय मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।
45 “अतः वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर-चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे? 46 धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। 47 मैं तुम से सच कहता हूँ; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। 48 परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे, कि मेरे स्वामी के आने में देर है। 49 और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए-पीए। 50 तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा, और ऐसी घड़ी कि जिसे वह न जानता हो, 51 और उसे कठोर दण्ड देकर, उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
1 “तब स्वर्ग का राज्य उन दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। 2 उनमें पाँच मूर्ख और पाँच समझदार थीं। 3 मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया। 4 परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। 5 जब दुल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब उँघने लगीं, और सो गई।
6 “आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो। 7 तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं। 8 और मूर्खों ने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं।’ 9 परन्तु समझदारों ने उत्तर दिया कि कही हमारे और तुम्हारे लिये पूरा न हो; भला तो यह है, कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो। 10 जब वे मोल लेने को जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चलीं गई और द्वार बन्द किया गया। 11 इसके बाद वे दूसरी कुँवारियाँ भी आकर कहने लगीं, ‘हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे।’ 12 उसने उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता। 13 इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस समय को।
14 “क्योंकि यह उस मनुष्य के समान दशा है जिसने परदेश को जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी संपत्ति उनको सौंप दी। 15 उसने एक को पाँच तोड़, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उसकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया। 16 तब, जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन-देन किया, और पाँच तोड़े और कमाए। 17 इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए। 18 परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी का धन छिपा दिए।
19 “बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा। 20 जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने पाँच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी, तूने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे, देख मैंने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’ 21 उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
22 “और जिसको दो तोड़े मिले थे, उसने भी आकर कहा, ‘हे स्वामी तूने मुझे दो तोड़े सौंपें थे, देख, मैंने दो तोड़े और कमाए।’ 23 उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा, मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
24 “तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा, ‘हे स्वामी, मैं तुझे जानता था, कि तू कठोर मनुष्य है: तू जहाँ कहीं नहीं बोता वहाँ काटता है, और जहाँ नहीं छींटता वहाँ से बटोरता है।’ 25 इसलिए मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया; देख, ‘जो तेरा है, वह यह है।’ 26 उसके स्वामी ने उसे उत्तर दिया, कि हे दुष्ट और आलसी दास; जब तू यह जानता था, कि जहाँ मैंने नहीं बोया वहाँ से काटता हूँ; और जहाँ मैंने नहीं छींटा वहाँ से बटोरता हूँ। 27 तो तुझे चाहिए था, कि मेरा धन सर्राफों को दे देता, तब मैं आकर अपना धन ब्याज समेत ले लेता। 28 इसलिए वह तोड़ा उससे ले लो, और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसको दे दो। 29 क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा: परन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा। 30 और इस निकम्मे दास को बाहर के अंधेरे में डाल दो, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
31 “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। 32 और सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएँगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। 33 और वह भेड़ों को अपनी दाहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा*। 34 तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है। 35 क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया, मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया; 36 मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहनाए; मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली, मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझसे मिलने आए।’
37 “तब धर्मी उसको उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया? या प्यासा देखा, और पानी पिलाया? 38 हमने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया या नंगा देखा, और कपड़े पहनाए? 39 हमने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए?’ 40 तब राजा उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से* किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।’ 41 “तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, ‘हे श्रापित लोगों, मेरे सामने से उस अनन्त आग* में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है। 42 क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया; 43 मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली।’
44 “तब वे उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की?’ 45 तब वह उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम ने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया।’ 46 और ये अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”
1 जब यीशु ये सब बातें कह चुका, तो अपने चेलों से कहने लगा। 2 “तुम जानते हो, कि दो दिन के बाद फसह* का पर्व होगा; और मनुष्य का पुत्र क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिये पकड़वाया जाएगा।” 3 तब प्रधान याजक और प्रजा के पुरनिए कैफा नामक महायाजक के आँगन में इकट्ठे हुए। 4 और आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें। 5 परन्तु वे कहते थे, “पर्व के समय नहीं; कहीं ऐसा न हो कि लोगों में दंगा मच जाए।”
6 जब यीशु बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर में था। 7 तो एक स्त्री* संगमरमर के पात्र में बहुमूल्य इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था, तो उसके सिर पर उण्डेल दिया। 8 यह देखकर, उसके चेले झुँझला उठे और कहने लगे, “इसका क्यों सत्यनाश किया गया? 9 यह तो अच्छे दाम पर बेचकर गरीबों को बाँटा जा सकता था।” 10 यह जानकर यीशु ने उनसे कहा, “स्त्री को क्यों सताते हो? उसने मेरे साथ भलाई की है। 11 गरीब तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदैव न रहूँगा। 12 उसने मेरी देह पर जो यह इत्र उण्डेला है, वह मेरे गाड़े जाने के लिये किया है। 13 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।”
14 तब यहूदा इस्करियोती ने, बारह चेलों में से एक था, प्रधान याजकों के पास जाकर कहा, 15 “यदि मैं उसे तुम्हारे हाथ पकड़वा दूँ, तो मुझे क्या दोगे?” उन्होंने उसे तीस चाँदी के सिक्के तौलकर दे दिए। 16 और वह उसी समय से उसे पकड़वाने का अवसर ढूँढ़ने लगा।
17 अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करें?” 18 उसने कहा, “नगर में फलाने के पास जाकर उससे कहो, कि गुरु कहता है, कि मेरा समय निकट है, मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहाँ फसह मनाऊँगा।” 19 अतः चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी, और फसह तैयार किया।
20 जब सांझ हुई, तो वह बारह चेलों के साथ भोजन करने के लिये बैठा। 21 जब वे खा रहे थे, तो उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।” 22 इस पर वे बहुत उदास हुए, और हर एक उससे पूछने लगा, “हे गुरु, क्या वह मैं हूँ?” 23 उसने उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है, वही मुझे पकड़वाएगा। 24 मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य के लिये शोक है जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है: यदि उस मनुष्य का जन्म न होता, तो उसके लिये भला होता।” 25 तब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने कहा, “हे रब्बी, क्या वह मैं हूँ?” उसने उससे कहा, “तू कह चुका।”
26 जब वे खा रहे थे, तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” 27 फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, “तुम सब इसमें से पीओ, 28 क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के लिए बहाया जाता है। 29 मैं तुम से कहता हूँ, कि दाख का यह रस उस दिन तक कभी न पीऊँगा, जब तक तुम्हारे साथ अपने पिता के राज्य में नया न पीऊँ।” 30 फिर वे भजन गाकर जैतून पहाड़ पर गए।
31 तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम सब आज ही रात को मेरे विषय में ठोकर खाओगे; क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा; और झुण्ड की भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’ 32 परन्तु मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।” 33 इस पर पतरस ने उससे कहा, “यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाएँ तो खाएँ, परन्तु मैं कभी भी ठोकर न खाऊँगा।” 34 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि आज ही रात को मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझसे मुकर जाएगा।” 35 पतरस ने उससे कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी हो, तो भी, मैं तुझ से कभी न मुकरूँगा।” और ऐसा ही सब चेलों ने भी कहा।
36 तब यीशु ने अपने चेलों के साथ गतसमनी* नामक एक स्थान में आया और अपने चेलों से कहने लगा “यहीं बैठे रहना, जब तक कि मैं वहाँ जाकर प्रार्थना करूँ।” 37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा। 38 तब उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मेरे प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।” 39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुँह के बल गिरकर, और यह प्रार्थना करने लगा, “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा* मुझसे टल जाए, फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” 40 फिर चेलों के पास आकर उन्हें सोते पाया, और पतरस से कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक घण्टे भर न जाग सके? 41 जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो! आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।” 42 फिर उसने दूसरी बार जाकर यह प्रार्थना की, “हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।” 43 तब उसने आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं। 44 और उन्हें छोड़कर फिर चला गया, और वही बात फिर कहकर, तीसरी बार प्रार्थना की। 45 तब उसने चेलों के पास आकर उनसे कहा, “अब सोते रहो, और विश्राम करो: देखो, समय आ पहुँचा है, और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। 46 उठो, चलें; देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है।”
47 वह यह कह ही रहा था, कि यहूदा जो बारहों में से एक था, आया, और उसके साथ प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों की ओर से बड़ी भीड़, तलवारें और लाठियाँ लिए हुए आई। 48 उसके पकड़वानेवाले ने उन्हें यह पता दिया था: “जिसको मैं चूम लूँ वही है; उसे पकड़ लेना।” 49 और तुरन्त यीशु के पास आकर कहा, “हे रब्बी, नमस्कार!” और उसको बहुत चूमा। 50 यीशु ने उससे कहा, “हे मित्र, जिस काम के लिये तू आया है, उसे कर ले।” तब उन्होंने पास आकर यीशु पर हाथ डाले और उसे पकड़ लिया। 51 तब यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के दास पर चलाकर उसका कान काट दिया। 52 तब यीशु ने उससे कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएँगे। 53 क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह सैन्य-दल से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा? 54 परन्तु पवित्रशास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, कैसे पूरी होंगी?” 55 उसी समय यीशु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिये निकले हो? मैं हर दिन मन्दिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा। 56 परन्तु यह सब इसलिए हुआ है, कि भविष्यद्वक्ताओं के वचन पूरे हों।” तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए।
57 और यीशु के पकड़नेवाले उसको कैफा नामक महायाजक के पास ले गए, जहाँ शास्त्री और पुरनिए इकट्ठे हुए थे। 58 और पतरस दूर से उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन तक गया, और भीतर जाकर अन्त देखने को सेवकों के साथ बैठ गया। 59 प्रधान याजकों और सारी महासभा* यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में झूठी गवाही की खोज में थे। 60 परन्तु बहुत से झूठे गवाहों के आने पर भी न पाई। अन्त में दो जन आए, 61 और कहा, “इसने कहा कि मैं परमेश्वर के मन्दिर को ढा सकता हूँ और उसे तीन दिन में बना सकता हूँ।”
62 तब महायाजक ने खड़े होकर उससे कहा, “क्या तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” 63 परन्तु यीशु चुप रहा। तब महायाजक ने उससे कहा “मैं तुझे जीविते परमेश्वर की शपथ देता हूँ*, कि यदि तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे।” 64 यीशु ने उससे कहा, “तूने आप ही कह दिया; वरन् मैं तुम से यह भी कहता हूँ, कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।” 65 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “इसने परमेश्वर की निन्दा की है, अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन? देखो, तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है! 66 तुम क्या समझते हो?” उन्होंने उत्तर दिया, “यह मृत्यु दण्ड होने के योग्य है।” 67 तब उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसे घूँसे मारे, दूसरों ने थप्पड़ मार के कहा, 68 “हे मसीह, हम से भविष्यद्वाणी करके कह कि किस ने तुझे मारा?”
69 पतरस बाहर आँगन में बैठा हुआ था कि एक दासी ने उसके पास आकर कहा, “तू भी यीशु गलीली के साथ था।” 70 उसने सब के सामने यह कहकर इन्कार किया और कहा, “मैं नहीं जानता तू क्या कह रही है।” 71 जब वह बाहर द्वार में चला गया, तो दूसरी दासी ने उसे देखकर उनसे जो वहाँ थे कहा, “यह भी तो यीशु नासरी के साथ था।” 72 उसने शपथ खाकर फिर इन्कार किया, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।” 73 थोड़ी देर के बाद, जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर उससे कहा, “सचमुच तू भी उनमें से एक है; क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है।” 74 तब वह कोसने और शपथ खाने लगा, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।” और तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी। 75 तब पतरस को यीशु की कही हुई बात स्मरण आई, “मुर्गे के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” और वह बाहर जाकर फूट-फूट कर रोने लगा।
1 जब भोर हुई, तो सब प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने यीशु के मार डालने की सम्मति की। 2 और उन्होंने उसे बाँधा और ले जाकर पिलातुस राज्यपाल के हाथ में सौंप दिया।
3 जब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह पछताया और वे तीस चाँदी के सिक्के प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास फेर लाया। 4 और कहा, “मैंने निर्दोषी को मृत्यु के लिये पकड़वाकर पाप किया है?” उन्होंने कहा, “हमें क्या? तू ही जाने।” 5 तब वह उन सिक्कों को मन्दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आप को फाँसी दी।
6 प्रधान याजकों ने उन सिक्कों को लेकर कहा, “इन्हें, भण्डार में रखना उचित नहीं, क्योंकि यह लहू का दाम है।” 7 अतः उन्होंने सम्मति करके उन सिक्कों से परदेशियों के गाड़ने के लिये कुम्हार का खेत मोल ले लिया। 8 इस कारण वह खेत आज तक लहू का खेत* कहलाता है। 9 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हुआ “उन्होंने वे तीस सिक्के अर्थात् उस ठहराए हुए मूल्य को (जिसे इस्राएल की सन्तान में से कितनों ने ठहराया था) ले लिया। 10 और जैसे प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी वैसे ही उन्हें कुम्हार के खेत के मूल्य में दे दिया।”
11 जब यीशु राज्यपाल के सामने खड़ा था, तो राज्यपाल ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने उससे कहा, “तू आप ही कह रहा है।” 12 जब प्रधान याजक और पुरनिए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उसने कुछ उत्तर नहीं दिया। 13 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “क्या तू नहीं सुनता, कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” 14 परन्तु उसने उसको एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहाँ तक कि राज्यपाल को बड़ा आश्चर्य हुआ।
15 और राज्यपाल की यह रीति थी, कि उस पर्व में लोगों के लिये किसी एक बन्दी को जिसे वे चाहते थे, छोड़ देता था। 16 उस समय बरअब्बा नामक उन्हीं में का, एक नामी बन्धुआ था। 17 अतः जब वे इकट्ठा हुए, तो पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम किसको चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूँ? बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है?” 18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है। 19 जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा हुआ था तो उसकी पत्नी ने उसे कहला भेजा, “तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना; क्योंकि मैंने आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दुःख उठाया है।”
20 प्रधान याजकों और प्राचीनों ने लोगों को उभारा, कि वे बरअब्बा को माँग ले, और यीशु को नाश कराएँ। 21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “इन दोनों में से किस को चाहते हो, कि तुम्हारे लिये छोड़ दूँ?” उन्होंने कहा, “बरअब्बा को।” 22 पिलातुस ने उनसे पूछा, “फिर यीशु को जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?” सब ने उससे कहा, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।” 23 राज्यपाल ने कहा, “क्यों उसने क्या बुराई की है?” परन्तु वे और भी चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।” 24 जब पिलातुस ने देखा, कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इसके विपरीत उपद्रव होता जाता है, तो उसने पानी लेकर भीड़ के सामने अपने हाथ धोए, और कहा, “मैं इस धर्मी के लहू से निर्दोष हूँ; तुम ही जानो।” 25 सब लोगों ने उत्तर दिया, “इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो!”
26 इस पर उसने बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े* लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए।
27 तब राज्यपाल के सिपाहियों ने यीशु को किले* में ले जाकर सारे सैनिक उसके चारों ओर इकट्ठी की। 28 और उसके कपड़े उतारकर उसे लाल चोगा पहनाया। 29 और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा; और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे उपहास में उड़ाने लगे, “हे यहूदियों के राजा नमस्कार!” 30 और उस पर थूका; और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। 31 जब वे उसका उपहास कर चुके, तो वह चोगा उस पर से उतारकर फिर उसी के कपड़े उसे पहनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले।
32 बाहर जाते हुए उन्हें शमौन नामक एक कुरेनी मनुष्य मिला, उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। 33 और उस स्थान पर जो गुलगुता* नाम की जगह अर्थात् खोपड़ी का स्थान कहलाता है पहुँचकर। 34 उन्होंने पित्त मिलाया हुआ दाखरस उसे पीने को दिया, परन्तु उसने चखकर पीना न चाहा। 35 तब उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया; और चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। 36 और वहाँ बैठकर उसका पहरा देने लगे। 37 और उसका दोषपत्र, उसके सिर के ऊपर लगाया, कि “यह यहूदियों का राजा यीशु है।” 38 तब उसके साथ दो डाकू एक दाहिने और एक बाएँ क्रूसों पर चढ़ाए गए। 39 और आने-जानेवाले सिर हिला-हिलाकर उसकी निन्दा करते थे। 40 और यह कहते थे, “हे मन्दिर के ढानेवाले और तीन दिन में बनानेवाले, अपने आप को तो बचा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ।” 41 इसी रीति से प्रधान याजक भी शास्त्रियों और प्राचीनों समेत उपहास कर करके कहते थे, 42 “इसने दूसरों को बचाया, और अपने आप को नहीं बचा सकता। यह तो ‘इस्राएल का राजा’ है। अब क्रूस पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्वास करें। 43 उसने परमेश्वर का भरोसा रखा है, यदि वह इसको चाहता है, तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इसने कहा था, कि ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’ ” 44 इसी प्रकार डाकू भी जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे उसकी निन्दा करते थे।
45 दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अंधेरा छाया रहा। 46 तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “एली, एली, लमा शबक्तनी*?” अर्थात् “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” 47 जो वहाँ खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, “वह तो एलिय्याह को पुकारता है।” 48 उनमें से एक तुरन्त दौड़ा, और पनसोख्ता लेकर सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया। 49 औरों ने कहा, “रह जाओ, देखें, एलिय्याह उसे बचाने आता है कि नहीं।” 50 तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए। 51 तब, मन्दिर का परदा* ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया: और धरती डोल गई और चट्टानें फट गईं। 52 और कब्रें खुल गईं, और सोए हुए पवित्र लोगों के बहुत शव जी उठे। 53 और उसके जी उठने के बाद वे कब्रों में से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए। 54 तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भूकम्प और जो कुछ हुआ था, देखकर अत्यन्त डर गए, और कहा, “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था!” 55 वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ जो गलील से यीशु की सेवा करती हुईं उसके साथ आईं थीं, दूर से देख रही थीं। 56 उनमें मरियम मगदलीनी और याकूब और योसेस की माता मरियम और जब्दी के पुत्रों की माता थीं।
57 जब सांझ हुई तो यूसुफ नाम अरिमतियाह का एक धनी मनुष्य जो आप ही यीशु का चेला था, आया। 58 उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा। इस पर पिलातुस ने दे देने की आज्ञा दी। 59 यूसुफ ने शव को लेकर उसे साफ़ चादर में लपेटा। 60 और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उसने चट्टान में खुदवाई थी, और कब्र के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़काकर चला गया। 61 और मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहाँ कब्र के सामने बैठी थीं।
62 दूसरे दिन जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, प्रधान याजकों और फरीसियों ने पिलातुस के पास इकट्ठे होकर कहा। 63 “हे स्वामी, हमें स्मरण है, कि उस भरमानेवाले ने अपने जीते जी कहा था, कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूँगा। 64 अतः आज्ञा दे कि तीसरे दिन तक कब्र की रखवाली की जाए, ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे चुरा ले जाएँ, और लोगों से कहने लगें, कि वह मरे हुओं में से जी उठा है: तब पिछला धोखा पहले से भी बुरा होगा।” 65 पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम्हारे पास पहरेदार तो हैं जाओ, अपनी समझ के अनुसार रखवाली करो।” 66 अतः वे पहरेदारों को साथ लेकर गए, और पत्थर पर मुहर लगाकर कब्र की रखवाली की।
1 सब्त के दिन के बाद सप्ताह के पहले दिन पौ फटते ही मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आई। 2 तब एक बड़ा भूकम्प हुआ, क्योंकि परमेश्वर का एक दूत स्वर्ग से उतरा, और पास आकर उसने पत्थर को लुढ़का दिया, और उस पर बैठ गया। 3 उसका रूप बिजली के समान और उसका वस्त्र हिम के समान उज्ज्वल था। 4 उसके भय से पहरेदार काँप उठे, और मृतक समान हो गए। 5 स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, “मत डरो, मैं जानता हूँ कि तुम यीशु को जो क्रूस पर चढ़ाया गया था ढूँढ़ती हो। 6 वह यहाँ नहीं है, परन्तु अपने वचन के अनुसार* जी उठा है; आओ, यह स्थान देखो, जहाँ प्रभु रखा गया था। 7 और शीघ्र जाकर उसके चेलों से कहो, कि वह मृतकों में से जी उठा है; और देखो वह तुम से पहले गलील को जाता है, वहाँ उसका दर्शन पाओगे, देखो, मैंने तुम से कह दिया।” 8 और वे भय और बड़े आनन्द के साथ कब्र से शीघ्र लौटकर उसके चेलों को समाचार देने के लिये दौड़ गई।
9 तब, यीशु उन्हें मिला और कहा; “सुखी रहो” और उन्होंने पास आकर और उसके पाँव पकड़कर उसको दण्डवत् किया। 10 तब यीशु ने उनसे कहा, “मत डरो; मेरे भाइयों से जाकर कहो, कि गलील को चलें जाएँ वहाँ मुझे देखेंगे।”
11 वे जा ही रही थी, कि पहरेदारों में से कितनों ने नगर में आकर पूरा हाल प्रधान याजकों से कह सुनाया। 12 तब उन्होंने प्राचीनों के साथ इकट्ठे होकर सम्मति की, और सिपाहियों को बहुत चाँदी देकर कहा। 13 “यह कहना कि रात को जब हम सो रहे थे, तो उसके चेले आकर उसे चुरा ले गए। 14 और यदि यह बात राज्यपाल के कान तक पहुँचेगी, तो हम उसे समझा लेंगे और तुम्हें जोखिम से बचा लेंगे।” 15 अतः उन्होंने रुपये लेकर जैसा सिखाए गए थे, वैसा ही किया; और यह बात आज तक यहूदियों में प्रचलित है।
16 और ग्यारह चेले गलील में उस पहाड़ पर गए, जिसे यीशु ने उन्हें बताया था। 17 और उन्होंने उसके दर्शन पा कर उसे प्रणाम किया, पर किसी-किसी* को सन्देह हुआ। 18 यीशु ने उनके पास आकर कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार* मुझे दिया गया है। 19 इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, 20 और उन्हें सब बातें जो मैंने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग* हूँ।”
1 परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के सुसमाचार का आरम्भ। 2 जैसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक में लिखा है:
“देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे भेजता हूँ,
जो तेरे लिये मार्ग सुधारेगा। (मत्ती 11:10, मला. 3:1)
3 जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा है कि
प्रभु का मार्ग तैयार करो, और उसकी
सड़कें सीधी करो।” (यशा. 40:3)
4 यूहन्ना आया, जो जंगल में बपतिस्मा देता, और पापों की क्षमा के लिये मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करता था। 5 सारे यहूदिया के, और यरूशलेम के सब रहनेवाले निकलकर उसके पास गए, और अपने पापों को मानकर यरदन नदी* में उससे बपतिस्मा लिया। 6 यूहन्ना ऊँट के रोम का वस्त्र पहने और अपनी कमर में चमड़े का कमरबन्द बाँधे रहता था और टिड्डियाँ और वनमधु खाया करता था। (2 राजा. 1:8, मत्ती 3:4) 7 और यह प्रचार करता था, “मेरे बाद वह आनेवाला है, जो मुझसे शक्तिशाली है; मैं इस योग्य नहीं कि झुककर उसके जूतों का फीता खोलूँ। 8 मैंने तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा दिया है पर वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देगा।”
9 उन दिनों में यीशु ने गलील के नासरत से आकर, यरदन में यूहन्ना से बपतिस्मा लिया। 10 और जब वह पानी से निकलकर ऊपर आया, तो तुरन्त उसने आकाश को खुलते और आत्मा को कबूतर के रूप में अपने ऊपर उतरते देखा। 11 और यह आकाशवाणी हुई, “तू मेरा प्रिय पुत्र है, तुझ से मैं प्रसन्न हूँ।”
12 तब आत्मा ने तुरन्त उसको जंगल की ओर भेजा। 13 और जंगल में चालीस दिन तक शैतान ने उसकी परीक्षा की; और वह वन-पशुओं के साथ रहा; और स्वर्गदूत उसकी सेवा करते रहे।
14 यूहन्ना के पकड़वाए जाने के बाद यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। 15 और कहा, “समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है*; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो।”
16 गलील की झील* के किनारे-किनारे जाते हुए, उसने शमौन और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछुवारे थे। 17 और यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ; मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊँगा।” 18 वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। 19 और कुछ आगे बढ़कर, उसने जब्दी के पुत्र याकूब, और उसके भाई यूहन्ना को, नाव पर जालों को सुधारते देखा। 20 उसने तुरन्त उन्हें बुलाया; और वे अपने पिता जब्दी को मजदूरों के साथ नाव पर छोड़कर, उसके पीछे हो लिए।
21 और वे कफरनहूम में आए, और वह तुरन्त सब्त के दिन आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा। 22 और लोग उसके उपदेश से चकित हुए; क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियों की तरह नहीं, परन्तु अधिकार के साथ उपदेश देता था। 23 और उसी समय, उनके आराधनालय में एक मनुष्य था, जिसमें एक अशुद्ध आत्मा थी। 24 उसने चिल्लाकर कहा, “हे यीशु नासरी, हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं तुझे जानता हूँ, तू कौन है? परमेश्वर का पवित्र जन!” 25 यीशु ने उसे डाँटकर कहा, “चुप रह; और उसमें से निकल जा।” 26 तब अशुद्ध आत्मा उसको मरोड़कर, और बड़े शब्द से चिल्लाकर उसमें से निकल गई। 27 इस पर सब लोग आश्चर्य करते हुए आपस में वाद-विवाद करने लगे “यह क्या बात है? यह तो कोई नया उपदेश है! वह अधिकार के साथ अशुद्ध आत्माओं को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी आज्ञा मानती हैं।” 28 और उसका नाम तुरन्त गलील के आस-पास के सारे प्रदेश में फैल गया।
29 और वह तुरन्त आराधनालय में से निकलकर, याकूब और यूहन्ना के साथ शमौन और अन्द्रियास के घर आया। 30 और शमौन की सास तेज बुखार से पीड़ित थी, और उन्होंने तुरन्त उसके विषय में उससे कहा। 31 तब उसने पास जाकर उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया; और उसका ज्वर उस पर से उतर गया, और वह उनकी सेवा-टहल करने लगी। 32 संध्या के समय जब सूर्य डूब गया तो लोग सब बीमारों को और उन्हें, जिनमें दुष्टात्माएँ थीं, उसके पास लाए। 33 और सारा नगर द्वार पर इकट्ठा हुआ। 34 और उसने बहुतों को जो नाना प्रकार की बीमारियों से दुःखी थे, चंगा किया; और बहुत से दुष्टात्माओं को निकाला; और दुष्टात्माओं को बोलने न दिया, क्योंकि वे उसे पहचानती थीं।
35 और भोर को दिन निकलने से बहुत पहले, वह उठकर निकला, और एक जंगली स्थान में गया और वहाँ प्रार्थना करने लगा। 36 तब शमौन और उसके साथी उसकी खोज में गए। 37 जब वह मिला, तो उससे कहा; “सब लोग तुझे ढूँढ़ रहे हैं।” 38 यीशु ने उनसे कहा, “आओ; हम और कहीं आस-पास की बस्तियों में जाएँ, कि मैं वहाँ भी प्रचार करूँ, क्योंकि मैं इसलिए निकला हूँ।” 39 और वह सारे गलील में उनके आराधनालयों में जा जाकर प्रचार करता और दुष्टात्माओं को निकालता रहा।
40 एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उससे विनती की, और उसके सामने घुटने टेककर, उससे कहा, “यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 41 उसने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।” 42 और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया। 43 तब उसने उसे कड़ी चेतावनी देकर तुरन्त विदा किया, 44 और उससे कहा, “देख, किसी से कुछ मत कहना, परन्तु जाकर अपने आप को याजक को दिखा, और अपने शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने ठहराया है उसे भेंट चढ़ा, कि उन पर गवाही हो।” (लैव्य. 14:1-32) 45 परन्तु वह बाहर जाकर इस बात को बहुत प्रचार करने और यहाँ तक फैलाने लगा, कि यीशु फिर खुल्लमखुल्ला नगर में न जा सका, परन्तु बाहर जंगली स्थानों में रहा; और चारों ओर से लोग उसके पास आते रहे।
एकवचन
इन दोनों आज्ञाओं का अर्थ एक ही हैः "तैयार करो" अर्थात किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से भेंट करने की तैयारी करो। यदि आपकी भाषा में ये दोनों उक्तियाँ एक ही हैं तो आप दूसरी उक्ति को छोड़ सकते हैं जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
सुनिश्चित करें कि यह वही यूहन्ना है जिसकी चर्चा में की गई है।
यूहन्ना
यहूदिया और यरूशलेम से बहुत से लोग
यूहन्ना प्रचार करता था।
यूहन्ना कहता है कि वह एक दास का सबसे तुच्छ कार्य करने योग्य भी नहीं है।
"झुककर"
पवित्र-आत्मा का बपतिस्मा मनुष्य को पवित्र-आत्मा के संपर्क में लाता है जैसे जल का बपतिस्मा मनुष्यों को पानी के संपर्क में लाता है।
यीशु को जाने के लिए विवश किया।
वह जंगल में रहा
"40 दिन"
"के मध्य"
"यूहन्ना के बन्दीगृह में डाले जाने के बाद" वैकल्पिक अनुवाद, "जब उन्होंने यूहन्ना को बन्दी बना लिया।"
"परमेश्वर से आने वाले सुसमाचार का प्रचार किया"
"अब समय आ गया है"
"यीशु ने शमौन और अन्द्रियास को देखा"
"जाल फैलाते"
"क्योंकि वे मछली पकड़ने वाले थे"
"मेरा अनुसरण करो"
वह उन्हें सिखाएगा कि मनुष्यों को कैसे एकत्र करें जैसे वे मछलियों को एकत्र करते हैं।
"उन्होंने अपने मछली पकड़ने के व्यवसाय का त्याग कर यीशु का अनुसरण किया।"
"उनकी नाव में"
"जाल सुधार रहे थे"
"उनके लिए काम करने वाले"
"याकूब और यूहन्ना यीशु के साथ चले गए"
यीशु और शिष्य आराधनालय में गए, यह वही स्थान है जहाँ उसने उपदेश देना आरंभ किया था।
वैकल्पिक अनुवाद, "हमें नष्ट नहीं करना"
यीशु, शमौन और अन्द्रियास के प्रस्थान के बाद
वैकल्पिक अनुवाद, "शमौन की सास को ज्वर से चंगाई प्राप्त हुई"
वैकल्पिक अनुवाद, "उसने उन्हें भोजन पानी करवाया"
यीशु
"उस नगर के बहुत से लोग द्वार पर एकत्र थे"
"एक ऐसा स्थान जहाँ वह अकेला रह सकता था"
वैकल्पिक अनुवाद, "लोग तेरी प्रतीक्षा में हैं"
यीशु
"हमें कहीं और जाना चाहिए"
"वह गलील में अनेक स्थानों में गया"
"एक कोढ़ी यीशु के पास आया, वह कोढ़ी घुटने टेककर यीशु से विनती करने लगा, उस कोढ़ी ने यीशु से कहा।"
"यदि तू मुझे शुद्ध करना चाहे"
"मुझे निरोग कर सकता है" कोढ़ियों को अशुद्ध माना जाता था। उन्हें समाज से बहिष्कृत किया गया था परन्तु रोग मुक्त होने पर वह समाज में रह सकता था।
"मैं तुझे शुद्ध करने की इच्छा रखता हूँ"
उस कोढ़ी से जो शुद्ध हुआ था
"अपनी त्वचा दिखा"
"वह मनुष्य बाहर गया और प्रचार किया"
"लोगों को वचन बताने लगा"
वह जिससे भी भेंट करता था
"जनसमूह ने यीशु का नगर प्रवेश कठिन कर दिया"
"संपूर्ण क्षेत्र से" (देखें: यू.डी.बी.)
यशायाह ने भविष्यद्वाणी की थी कि परमेश्वर एक दूत को भेजेगा- जंगल में पुकारने वाले का शब्द कि प्रभु का मार्ग तैयार किया जाए।
यूहन्ना पापों की क्षमा के लिए मनफिराव के बपतिस्में का प्रचार करता था।
यूहन्ना से बपतिस्मा पाते समय मनुष्य अपने पापों का अंगीकार करते थे।
यूहन्ना टिड्डियाँ और वन मधु खाता था।
यूहन्ना कहता था कि उसके बाद आने वाला पवित्र-आत्मा का बपतिस्मा देगा।
यूहन्ना से बपतिस्मा पाने के बाद यीशु ने आकाश को खुलते और आत्मा को कबूतर के रूप में उस पर उतरते देखा।
तब आकाशवाणी हुई "तू मेरा प्रिय पुत्र है, तुझसे मैं प्रसन्न हूँ।"
आत्मा यीशु को जंगल में ले गया।
यीशु चालीस दिन जंगल में रहा और शैतान ने उसकी परीक्षा ली।
यीशु प्रचार करता था कि परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है, मनुष्यों को मन फिराकर सुसमाचार ग्रहण करना है।
शमौन, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना सब मछुवे थे।
यीशु ने कहा कि वह शमौन और अन्द्रियास को मनुष्यों का मछुवा बनाएगा।
यीशु की शिक्षा पर लोग आश्चर्य करते थे क्योंकि वह अधिकार के साथ शिक्षा देता था।
आराधनालय में अशुद्ध आत्मा ने यीशु को परमेश्वर का पवित्र जन कहा था।
यीशु के बारे में समाचार सब स्थानों में कैसे फैल गया।
शमौन के घर में यीशु ने उसकी सास को चंगा किया।
संध्या समय लोग सब रोगियों और दुष्टात्माग्रस्त मनुष्यों को लाए और यीशु ने उन्हें चंगा किया।
सूर्योदय से पूर्व यीशु एकान्तवास में प्रार्थना करने चला गया था।
यीशु ने कहा कि वह आसपास की बस्तियों में प्रचार करने आया है।
यीशु को उस कोढ़ी पर तरस आया और उसने उसे चंगा किया।
यीशु ने उस कोढ़ी से कहा कि वह जाकर गवाही स्वरूप मूसा की आज्ञा के अनुसार चढ़ावा चढ़ाए।
1 कई दिन के बाद वह फिर कफरनहूम में आया और सुना गया, कि वह घर में है। 2 फिर इतने लोग इकट्ठे हुए, कि द्वार के पास भी जगह नहीं मिली; और वह उन्हें वचन सुना रहा था। 3 और लोग एक लकवे के मारे हुए को चार मनुष्यों से उठवाकर उसके पास ले आए। 4 परन्तु जब वे भीड़ के कारण उसके निकट न पहुँच सके, तो उन्होंने उस छत को जिसके नीचे वह था, खोल दिया और जब उसे उधेड़ चुके, तो उस खाट को जिस पर लकवे का मारा हुआ पड़ा था, लटका दिया। 5 यीशु ने, उनका विश्वास देखकर, उस लकवे के मारे हुए से कहा, “हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।” 6 तब कई एक शास्त्री जो वहाँ बैठे थे, अपने-अपने मन में विचार करने लगे, 7 “यह मनुष्य क्यों ऐसा कहता है? यह तो परमेश्वर की निन्दा करता है! परमेश्वर को छोड़ और कौन पाप क्षमा कर सकता है?” (यशा. 43:25) 8 यीशु ने तुरन्त अपनी आत्मा में जान लिया, कि वे अपने-अपने मन में ऐसा विचार कर रहे हैं, और उनसे कहा, “तुम अपने-अपने मन में यह विचार क्यों कर रहे हो? 9 सहज क्या है? क्या लकवे के मारे से यह कहना कि तेरे पाप क्षमा हुए, या यह कहना, कि उठ अपनी खाट उठाकर चल फिर? 10 परन्तु जिससे तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के मारे हुए से कहा, 11 “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” 12 वह उठा, और तुरन्त खाट उठाकर सब के सामने से निकलकर चला गया; इस पर सब चकित हुए, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमने ऐसा कभी नहीं देखा।”
13 वह फिर निकलकर झील के किनारे गया, और सारी भीड़ उसके पास आई, और वह उन्हें उपदेश देने लगा। 14 जाते हुए यीशु ने हलफईस के पुत्र लेवी को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” और वह उठकर, उसके पीछे हो लिया।
15 और वह उसके घर में भोजन करने बैठा; और बहुत से चुंगी लेनेवाले और पापी भी उसके और चेलों के साथ भोजन करने बैठे, क्योंकि वे बहुत से थे, और उसके पीछे हो लिये थे। 16 और शास्त्रियों और फरीसियों ने यह देखकर, कि वह तो पापियों और चुंगी लेनेवालों के साथ भोजन कर रहा है, उसके चेलों से कहा, “वह तो चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ खाता पीता है!” 17 यीशु ने यह सुनकर, उनसे कहा, “भले चंगों को वैद्य की आवश्यकता नहीं, परन्तु बीमारों को है: मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ*।”
18 यूहन्ना के चेले, और फरीसी उपवास करते थे; अतः उन्होंने आकर उससे यह कहा; “यूहन्ना के चेले और फरीसियों के चेले क्यों उपवास रखते हैं, परन्तु तेरे चेले उपवास नहीं रखते?” 19 यीशु ने उनसे कहा, “जब तक दुल्हा बारातियों के साथ रहता है क्या वे उपवास कर सकते हैं? अतः जब तक दूल्हा उनके साथ है, तब तक वे उपवास नहीं कर सकते। 20 परन्तु वे दिन आएँगे, कि दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा; उस समय वे उपवास करेंगे। 21 नये कपड़े का पैबन्द पुराने वस्त्र पर कोई नहीं लगाता; नहीं तो वह पैबन्द उसमें से कुछ खींच लेगा, अर्थात् नया, पुराने से, और वह और फट जाएगा। 22 नये दाखरस को पुरानी मशकों में कोई नहीं रखता, नहीं तो दाखरस मशकों को फाड़ देगा, और दाखरस और मशकें दोनों नष्ट हो जाएँगी; परन्तु दाख का नया रस नई मशकों में भरा जाता है।”
23 और ऐसा हुआ कि वह सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था; और उसके चेले चलते हुए बालें तोड़ने लगे। (व्य. 23:25) 24 तब फरीसियों ने उससे कहा, “देख, ये सब्त के दिन वह काम क्यों करते हैं जो उचित नहीं?” 25 उसने उनसे कहा, “क्या तुम ने कभी नहीं पढ़ा, कि जब दाऊद को आवश्यकता हुई और जब वह और उसके साथी भूखे हुए, तब उसने क्या किया था? 26 उसने क्यों अबियातार महायाजक के समय, परमेश्वर के भवन में जाकर, भेंट की रोटियाँ खाई, जिसका खाना याजकों को छोड़ और किसी को भी उचित नहीं, और अपने साथियों को भी दीं?” 27 और उसने उनसे कहा, “सब्त का दिन मनुष्य के लिये बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के दिन के लिये*। 28 इसलिए मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी स्वामी है।”
वहाँ लोगों ने सुना कि वह उस घर में है
"किसी के लिए भी स्थान नहीं था"
"एक मनुष्य को लाए जो चलने में असमर्थ और उसके हाथ-पाव काम नहीं करते थे"
"4 मनुष्य"
"यीशु जहाँ था वहाँ नहीं पहुंच सके"
"यह देखकर कि उनमें विश्वास है" इसके अर्थ हो सकते हैं; (1) उस लकवे के रोगी को लाने वालों का विश्वास या (2) लकवे के रोगी और उसे लाने वालों का विश्वास।
"उस मनुष्य से जो चल नहीं सकता था"
यीशु एक पिता के समान सुधि लेते हुए जैसे एक पिता अपने बेटे की सुधि लेता है।
इसका अर्थ है, (1) परमेश्वर ने तेरे पाप क्षमा किए (देखें: 2:7) या (2) "मैंने तेरे पाप क्षमा किए"
"सोचने लगे"
"इस व्यक्ति को ऐसा नहीं कहना चाहिए"
"केवल परमेश्वर पाप क्षमा कर सकता है"
शास्त्री एक-दूसरे से बातें नहीं कर रहे थे परन्तु अपने मनों में सोच रहे थे।
यीशु शास्त्रियों को झिड़क रहा है क्योंकि उन्होंने उसके अधिकार पर सन्देह किया। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम शास्त्रियों ने मेरे अधिकार पर प्रश्न उठाया।"
यीशु ने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि शास्त्रियों को स्मरण कराए कि उन्हें उस मनुष्य के लकवाग्रस्त होने का विश्वास था कि वह पाप का परिणाम है और यदि उसके पाप क्षमा हो जाएं तो चलने योग्य हो जाएगा अतः जब उसने उस लकवाग्रस्त मनुष्य को चंगा किया तो शास्त्रियों को समझ में आ जाए कि उसे पाप क्षमा करने का अधिकार है।
"क्या यह कहना आसान है... ‘तेरे पाप क्षमा हुए’? या यह कहना आसान है, ‘उठ... चल फिर’?"
"मैं तुम पर सिद्ध करूंगा"
शास्त्री और जनसमूह
"उसने उस मनुष्य से जो चलने योग्य न था, उससे कहा"
"वहाँ उपस्थित जनसमूह की आँखों के सामने"
"लोग वहाँ आ गए जहाँ वह था"
"लेवी के घर"
"अनेक चुंगी लेने वाले और पापी जन जो यीशु के पीछे आए थे, उसके और उसके शिष्यों के साथ भोजन करने बैठे थे।"
शास्त्री और फरीसी प्रकट कर रहे थे कि वे यीशु के इस कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं।(देखें: वैकल्पिक अनुवाद, "उसे पापियों और चुंगी लेने वालों के साथ खाना-पीना नहीं चाहिए।"
"उसने फरीसियों से कहा"
यीशु एक रूपक काम में ले रहा है जिसकी व्याख्या वह अगले अध्याय में करेगा। यीशु उन लोगों के लिए आया है जो स्वीकार करते हैं कि वे पापी हैं, उनके लिए नहीं जो अपने आपको धर्मी मानते हैं।
"मैं उन लोगों के लिए आया हूँ जो अपने को पापी मानते हैं, उनके लिए नहीं जो अपने को धर्मी मानते हैं।"
यीशु अपने प्रश्न द्वारा कटाक्ष कर रहा है। "जब कोई पुरुष किसी स्त्री से ब्याह करता है तब उसके मित्र निश्चय ही भोजन का त्याग नहीं करेंगे, जब वह उनके साथ है।" (यू.डी.बी.)
यीशु अपनी मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के संदर्भ में पूछ रहा है, परन्तु न तो उसके हत्यारे न ही उसे पुनर्जीवित करने वाला परमेश्वर जो उसे स्वर्ग ले जाएगा। दूल्हे को अलग करने वाले नहीं हैं। यदि आपकी भाषा में नायक को स्पष्ट करने की आवश्यकता है वो यथासंभव साधारण भाषा का उपयोग करें। वैकल्पिक अनुवाद, "वे दूल्हे को अलग कर देंगे" या "मनुष्य दूल्हे को ले जाएंगे" या "दूल्हा चला जाएगा।" (देखें: और )
बराती
पुराने वस्त्र पर नए कपड़े का पैबन्द लगाने से वस्त्र और अधिक फट जाता है, यदि पैबन्द का कपड़ा पहले से सिकोड़ा हुआ न हो। पैबन्द और वस्त्र दोनों नष्ट हो जाएंगे।
यह एक रूपक या दृष्टान्त है जो उनके प्रश्न का उत्तर देता है, "यूहन्ना के चेले और फरीसियों के चेले क्यों उपवास रखते हैं, परन्तु तेरे चेले उपवास नहीं रखते?" ( ; देखें: )
"अंगूर के रस को" अर्थात जिस दाखरस का नहीं हुआ है यदि आपके यहाँ अंगूर हैं तो वही शब्द काम में लें।
अर्थात जिन मशकों को पहले काम में लिया जा चुका है
पशुओं के चमड़े से बनाए गए थैले। इन्हें दाखरस के थैले या "चमड़े के थैले" (यू.डी.बी.) भी कहा जा सकता है।
जब नया दाखरस के कारण फैलता है तब वे फट जाएंगी। क्योंकि उनकी फैलने की क्षमता समाप्त हो चुकी है।
"व्यर्थ चले जाएंगे"(यू.डी.बी.)
"नए दाखरस के थैलों में" जिन मशकों को कभी काम में नहीं लिया गया है।
"देख वे सब्त के यहूदी कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।"
किसी के खेत से गेहूं तोड़कर खाना चोरी नहीं मानी जाती थी (देखें यू.डी.बी.) परन्तु प्रश्न इस बात का था कि क्या सब्त के दिन ऐसा विधि-सम्मत काम किया जा सकता है।
गेहूं की बालें
गेहूं के पौधे का सबसे ऊपर का भाग जिसमें उस पौधे के पके हुए बीज होते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, "ध्यान दो कि मैं क्या कहने जा रहा हूँ"
यीशु शास्त्रियों और फरीसियों को सब्त के दिन के बारे में शिक्षा दे रहा है।
यीशु जानता था कि शास्त्रियों और फरीसियों ने यह वृत्तान्त पढ़ा है। वह उन्हें दोष दे रहा है कि वे जानबूझकर इसे गलत समझ रहे हैं। वैकल्पिक अनुवाद "तुम्हें स्मरण है कि दाऊद...उसके साथी...जाकर" या "यदि तुम समझ गए कि दाऊद... उसके साथी- और वह कैसे मन्दिर में गया"
यहूदियों के इतिहास में दाऊद के युग में एक महायाजक था।
"दाऊद परमेश्वर के भवन में गया" (यू.डी.बी.)
यीशु शास्त्रियों और फरीसियों को सब्त के दिन के बारे में शिक्षा दे रहा था।
लोगों ने छत हटाकर लकवे के रोगी को यीशु के पास नीचे उतारा।
यीशु ने उससे कहा, "पुत्र तेरे पाप क्षमा हुए।"
शास्त्रियों में से कुछ सोचने लगे कि पाप क्षमा तो केवल परमेश्वर करता है, अतः यीशु परमेश्वर की निन्दा करता है।
यीशु ने लकवे के रोगी से कहा कि वह अपनी खाट उठाकर घर चला जाए, और उसने ऐसा ही किया।
यीशु ने लेवी को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा तो उसे बुलाया।
यीशु पापियों और चुंगी लेने वालों के साथ भोजन कर रहा था।
यीशु ने कहा कि वह पापियों को बुलाने आया है।
उन्होंने यीशु से कहा कि यूहन्ना के चेले और फरीसियों के चेले उपवास रखते हैं परन्तु उसके चेले उपवास नहीं रखते, क्यों?
यीशु ने कहा कि जब दूल्हा बारातियों के साथ होता है तब वे उपवास नहीं करते, जब दूल्हा चला जाएगा तब वे उपवास करेंगे।
यीशु के चेलों ने सब्त के दिन गेहूं की बालें तोड़कर खाईं।
यीशु ने दाऊद का उदाहरण दिया कि उसने भेंट की रोटियां खाई थीं जबकि उन रोटियों को केवल याजक ही खा सकता था।
यीशु ने कहा कि सब्त मनुष्यों के लिए बनाया गया है।
यीशु ने कहा कि वह सब्त का प्रभु है।
1 और वह फिर आराधनालय में गया; और वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूख गया था। 2 और वे उस पर दोष लगाने के लिये उसकी घात में लगे हुए थे, कि देखें, वह सब्त के दिन में उसे चंगा करता है कि नहीं। 3 उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा, “बीच में खड़ा हो।” 4 और उनसे कहा, “क्या सब्त के दिन भला करना उचित है या बुरा करना, प्राण को बचाना या मारना?” पर वे चुप रहे। 5 और उसने उनके मन की कठोरता से उदास होकर, उनको क्रोध से चारों ओर देखा, और उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने बढ़ाया, और उसका हाथ अच्छा हो गया। 6 तब फरीसी बाहर जाकर तुरन्त हेरोदियों के साथ उसके विरोध में सम्मति करने लगे, कि उसे किस प्रकार नाश करें।
7 और यीशु अपने चेलों के साथ झील की ओर चला गया: और गलील से एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 8 और यहूदिया, और यरूशलेम और इदूमिया से, और यरदन के पार, और सूर और सैदा के आस-पास से एक बड़ी भीड़ यह सुनकर, कि वह कैसे अचम्भे के काम करता है, उसके पास आई। 9 और उसने अपने चेलों से कहा, “भीड़ के कारण एक छोटी नाव मेरे लिये तैयार रहे ताकि वे मुझे दबा न सकें।” 10 क्योंकि उसने बहुतों को चंगा किया था; इसलिए जितने लोग रोग से ग्रसित थे, उसे छूने के लिये उस पर गिरे पड़ते थे। 11 और अशुद्ध आत्माएँ भी, जब उसे देखती थीं, तो उसके आगे गिर पड़ती थीं, और चिल्लाकर कहती थीं कि तू परमेश्वर का पुत्र है। 12 और उसने उन्हें कड़ी चेतावनी दी कि, मुझे प्रगट न करना।
13 फिर वह पहाड़ पर चढ़ गया, और जिन्हें वह चाहता था उन्हें अपने पास बुलाया; और वे उसके पास चले आए। 14 तब उसने बारह को नियुक्त किया, कि वे उसके साथ-साथ रहें, और वह उन्हें भेजे, कि प्रचार करें। 15 और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार रखें। 16 और वे ये हैं शमौन जिसका नाम उसने पतरस रखा। 17 और जब्दी का पुत्र याकूब, और याकूब का भाई यूहन्ना, जिनका नाम उसने बुअनरगिस*, अर्थात् गर्जन के पुत्र रखा। 18 और अन्द्रियास, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, और मत्ती, और थोमा, और हलफईस का पुत्र याकूब; और तद्दै, और शमौन कनानी। 19 और यहूदा इस्करियोती, जिस ने उसे पकड़वा भी दिया।
20 और वह घर में आया और ऐसी भीड़ इकट्ठी हो गई, कि वे रोटी भी न खा सके। 21 जब उसके कुटुम्बियों ने यह सुना, तो उसे पकड़ने के लिये निकले; क्योंकि कहते थे, कि उसका सुध-बुध ठिकाने पर नहीं है। 22 और शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, यह कहते थे, “उसमें शैतान है,” और यह भी, “वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” 23 और वह उन्हें पास बुलाकर, उनसे दृष्टान्तों* में कहने लगा, “शैतान कैसे शैतान को निकाल सकता है? 24 और यदि किसी राज्य में फूट पड़े, तो वह राज्य कैसे स्थिर रह सकता है? 25 और यदि किसी घर में फूट पड़े, तो वह घर क्या स्थिर रह सकेगा? 26 और यदि शैतान अपना ही विरोधी होकर अपने में फूट डाले, तो वह क्या बना रह सकता है? उसका तो अन्त ही हो जाता है।
27 “किन्तु कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट नहीं सकता, जब तक कि वह पहले उस बलवन्त को न बाँध ले; और तब उसके घर को लूट लेगा।
28 “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मनुष्यों की सन्तान के सब पाप और निन्दा जो वे करते हैं, क्षमा की जाएगी। 29 परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरुद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा: वरन् वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है।” 30 क्योंकि वे यह कहते थे, कि उसमें अशुद्ध आत्मा है।
31 और उसकी माता और उसके भाई आए, और बाहर खड़े होकर उसे बुलवा भेजा। 32 और भीड़ उसके आस-पास बैठी थी, और उन्होंने उससे कहा, “देख, तेरी माता और तेरे भाई बाहर तुझे ढूँढ़ते हैं।” 33 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरी माता और मेरे भाई कौन हैं?” 34 और उन पर जो उसके आस-पास बैठे थे, दृष्टि करके कहा, “देखो, मेरी माता और मेरे भाई यह हैं। 35 क्योंकि जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर चले*, वही मेरा भाई, और बहन और माता है।”
"यीशु ने आराधनालय में प्रवेश किया।"
"हाथों से विकलांग एक मनुष्य"
"फरीसी यीशु की प्रतीज्ञा में थे कि वह हाथों से विकलांग उस मनुष्य को चंगा करे"
"भीड़ के बीच में खड़ा हो"
क्योंकि लेखक लिखता है कि वे चुप रहे, इसका अर्थ है कि यीशु उन्हें चुनौती देकर उत्तर की प्रतीक्षा में था। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें जानना है कि सब्त के दिन भलाई करना व्यवस्था-सम्मत है, जीवन बचाना, हत्या न करना।"
मूसा की व्यवस्था के अनुसार उचित
"अपने हाथ आगे कर"
"यीशु ने उसके हाथ को स्वस्थ कर दिया" या "यीशु ने उसका हाथ वैसा ही कर दिया जैसा पहले था"
वैकल्पिक अनुवाद, "हेरोदियों के साथ सभा की" या "हेरोदियों से भेंट करके षड्यन्त्र रचा"
"यीशु द्वारा किए गए आश्चर्यकर्मों की चर्चा सुनकर।"
"जनसमूह वहाँ पहुंचा जहाँ यीशु था"
यीशु ने शिष्यों से कहा, "मेरे लिए नाव तैयार करो"
"भीड़ उसका स्पर्श करने के लिए आगे आ रही थी।"
"सब रोगी उसके स्पर्श हेतु धक्का दे रहे थे।"
"दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य भी"
"कि वे उसके साथ रहेंगे और वह उन्हें प्रचार के लिए भेजेगा" या, "उसके साथ रहने और उसके द्वारा प्रचार के लिए भेजे जाने के लिए" (यू.डी.बी.)
"भीड़ इतनी अधिक हो गई थी कि उन्हें भोजन करने का समय भी नहीं मिला" या "जहाँ वह रह रहा था वहाँ बहुत भीड़ एकत्र हो गई। लोगों ने उसे घेर लिया था। उसे और उसके चेलों को खाना खाने का समय भी नहीं मिला।" (यू.डी.बी.)
"उसके परिजन उस स्थान पर गए जहाँ वह था कि उसे पकड़ कर घर ले आएं।"
"शैतान अपने आपको कैसे निकाल सकता है" या "शैतान अपनी ही दुष्टात्मा के विरुद्ध काम नहीं करेगा।"
"यीशु की माता और छोटे भाइयों ने किसी को भीतर भेजा कि उससे कहें कि वे बाहर है और उसे उनके पास बाहर ले आएं।"
वे प्रतीक्षा में थे कि यीशु सब्त के दिन चंगा करने का काम करे और वे उसे दोषी ठहराएं।
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वे चुप रहे तो यीशु को क्रोध आ गया।
फरीसियों ने बाहर जाकर यीशु की हत्या का षड्यंत्र रचा।
यीशु के पीछे चलने वाला एक विशाल जनसमूह था।
दुष्टात्माओं ने चिल्लाकर कहा कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
यीशु ने बारह चलों को नियुक्त किया कि उसके साथ रहें, प्रचार करें और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार उन्हें दिया।
यीशु के साथ विश्वासघात करने वाला चेला यहूदा था।
यीशु के परिवार ने सोचा कि वह मानसिक सन्तुलन खो बैठा है।
शास्त्रियों ने यीशु पर दोष लगाया कि वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माएं निकालता है।
यीशु ने उनसे कहा कि विभाजित राज्य स्थिर नहीं रह सकता है।
यीशु ने कहा कि पवित्र-आत्मा की निन्दा ना क्षमा किया जानेवाला है।
यीशु ने कहा कि उसकी माता और उसके भाई वे हैं जो परमेश्वर की इच्छा पर चलते हैं।
1 यीशु फिर झील के किनारे उपदेश देने लगा: और ऐसी बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई, कि वह झील में एक नाव पर चढ़कर बैठ गया, और सारी भीड़ भूमि पर झील के किनारे खड़ी रही। 2 और वह उन्हें दृष्टान्तों में बहुत सारी बातें सिखाने लगा, और अपने उपदेश में उनसे कहा, 3 “सुनो! देखो, एक बोनेवाला, बीज बोने के लिये निकला। 4 और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पक्षियों ने आकर उसे चुग लिया। 5 और कुछ पत्थरीली भूमि पर गिरा जहाँ उसको बहुत मिट्टी न मिली, और नरम मिट्टी मिलने के कारण जल्द उग आया। 6 और जब सूर्य निकला, तो जल गया, और जड़ न पकड़ने के कारण सूख गया। 7 और कुछ तो झाड़ियों में गिरा, और झाड़ियों ने बढ़कर उसे दबा दिया, और वह फल न लाया। 8 परन्तु कुछ अच्छी भूमि पर गिरा; और वह उगा, और बढ़कर फलवन्त हुआ; और कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा और कोई सौ गुणा फल लाया।” 9 और उसने कहा, “जिसके पास सुनने के लिये कान हों वह सुन ले।”
10 जब वह अकेला रह गया, तो उसके साथियों ने उन बारह समेत उससे इन दृष्टान्तों के विषय में पूछा। 11 उसने उनसे कहा, “तुम को तो परमेश्वर के राज्य के भेद की समझ दी गई है, परन्तु बाहरवालों के लिये सब बातें दृष्टान्तों में होती हैं। 12 इसलिए कि
“वे देखते हुए देखें और उन्हें दिखाई न पड़े
और सुनते हुए सुनें भी और न समझें;
ऐसा न हो कि वे फिरें, और क्षमा किए जाएँ।” (यशा. 6:9-10, यिर्म. 5:21)
13 फिर उसने उनसे कहा, “क्या तुम यह दृष्टान्त नहीं समझते? तो फिर और सब दृष्टान्तों को कैसे समझोगे? 14 बोनेवाला वचन* बोता है। 15 जो मार्ग के किनारे के हैं जहाँ वचन बोया जाता है, ये वे हैं, कि जब उन्होंने सुना, तो शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उनमें बोया गया था, उठा ले जाता है। 16 और वैसे ही जो पत्थरीली भूमि पर बोए जाते हैं, ये वे हैं, कि जो वचन को सुनकर तुरन्त आनन्द से ग्रहण कर लेते हैं। 17 परन्तु अपने भीतर जड़ न रखने के कारण वे थोड़े ही दिनों के लिये रहते हैं; इसके बाद जब वचन के कारण उन पर क्लेश या उपद्रव होता है, तो वे तुरन्त ठोकर खाते हैं। 18 और जो झाड़ियों में बोए गए ये वे हैं जिन्होंने वचन सुना, 19 और संसार की चिन्ता, और धन का धोखा, और वस्तुओं का लोभ उनमें समाकर वचन को दबा देता है और वह निष्फल रह जाता है। 20 और जो अच्छी भूमि में बोए गए, ये वे हैं, जो वचन सुनकर ग्रहण करते और फल लाते हैं, कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा, और कोई सौ गुणा।”
21 और उसने उनसे कहा, “क्या दीये को इसलिए लाते हैं कि पैमाने या खाट के नीचे रखा जाए? क्या इसलिए नहीं, कि दीवट पर रखा जाए? 22 क्योंकि कोई वस्तु छिपी नहीं, परन्तु इसलिए कि प्रगट हो जाए; और न कुछ गुप्त है, पर इसलिए कि प्रगट हो जाए। 23 यदि किसी के सुनने के कान हों, तो सुन ले।”
24 फिर उसने उनसे कहा, “चौकस रहो, कि क्या सुनते हो? जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा, और तुम को अधिक दिया जाएगा। 25 क्योंकि जिसके पास है, उसको दिया जाएगा; परन्तु जिसके पास नहीं है उससे वह भी जो उसके पास है; ले लिया जाएगा।”
26 फिर उसने कहा, “परमेश्वर का राज्य ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे, 27 और रात को सोए, और दिन को जागे और वह बीज ऐसे उगें और बढ़े कि वह न जाने। 28 पृथ्वी आप से आप फल लाती है पहले अंकुर, तब बालें, और तब बालों में तैयार दाना। 29 परन्तु जब दाना पक जाता है, तब वह तुरन्त हँसिया लगाता है, क्योंकि कटनी आ पहुँची है।” (योए. 3:13)
30 फिर उसने कहा, “हम परमेश्वर के राज्य की उपमा किससे दें, और किस दृष्टान्त से उसका वर्णन करें? 31 वह राई के दाने के समान हैं; कि जब भूमि में बोया जाता है तो भूमि के सब बीजों से छोटा होता है। 32 परन्तु जब बोया गया, तो उगकर सब साग-पात से बड़ा हो जाता है, और उसकी ऐसी बड़ी डालियाँ निकलती हैं, कि आकाश के पक्षी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।” 33 और वह उन्हें इस प्रकार के बहुत से दृष्टान्त दे देकर उनकी समझ के अनुसार वचन सुनाता था। 34 और बिना दृष्टान्त कहे उनसे कुछ भी नहीं कहता था; परन्तु एकान्त में वह अपने निज चेलों को सब बातों का अर्थ बताता था।
35 उसी दिन जब सांझ हुई, तो उसने चेलों से कहा, “आओ, हम पार चलें।” 36 और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ, और भी नावें थीं। 37 तब बड़ी आँधी आई, और लहरें नाव पर यहाँ तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती थी। 38 और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था; तब उन्होंने उसे जगाकर उससे कहा, “हे गुरु, क्या तुझे चिन्ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं?” 39 तब उसने उठकर आँधी को डाँटा, और पानी से कहा, “शान्त रह, थम जा!” और आँधी थम गई और बड़ा चैन हो गया। 40 और उनसे कहा, “तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं?” (भज. 107:29) 41 और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले, “यह कौन है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं?”
"कि वह नाव में चढ़कर झील में चला गया"
"नाव में बैठ गया"
उन्हें दृष्टान्तों में बहुत सी बातें सिखाने लगा
यीशु दृष्टान्त में सुना रहा था
"झुलस गया"
यीशु दृष्टान्त सुना रहा है
"जो ध्यान से सुनेगा वह इस दृष्टान्त का अर्थ समझेगा"
जब यीशु दृष्टान्त सुना चुका
"परमेश्वर ने तुम्हें समझ दी है" या "मैंने तुम्हें समझ दी है"
वे देखते तो हैं परन्तु अन्तर्ग्रहण नहीं करते "देखते हैं परन्तु देखना नहीं चाहते" या "वे देखते हैं परन्तु समझते नहीं"
यीशु अपने शिष्यों को उस दृष्टान्त का अर्थ समझाता है।
"यदि तुम इस दृष्टान्त को समझ नहीं सकते तो अन्य दृष्टान्तों को भी नहीं समझ पाओगे।"
यीशु अपने शिष्यों को उस दृष्टान्त का अर्थ समझाता है।
यीशु अपने शिष्यों को उस दृष्टान्त का अर्थ समझाता है।
यीशु दृष्टान्त का अर्थ समझाना समाप्त करता है और उन्हें एक और दृष्टान्त सुनाता है।
"आप दीया घर में इसलिए नहीं लाते कि उसे पैमाने या खाट के नीचे रखें"
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे आपने में किया है।
यीशु अपने शिष्यों को दृष्टान्त सुना रहा है
तुम जिस नाप को काम में लेते हो उसी के अनुसार तुम प्राप्त करोगे वरन् अधिक पाओगे तुम जितना अधिक अच्छा सुनोगे, परमेश्वर उतनी ही अधिक समझ तुम्हें देगा।"
जिसके पास है "जिसने मेरे वचनों को समझ लिया है"
यीशु अपने शिष्यों को दृष्टान्त सुना रहा है
"जैसे किसान बीज बोता है"
कटनी में काम में आने वाली अर्धचन्द्रकार कतरनी
यीशु अपने शिष्यों को दृष्टान्त सुना रहा है
"इस दृष्टान्त से मैं वर्णन कर सकता हूँ कि परमेश्वर का राज्य कैसा है।"
"वे जितना समझ सकते थे उतना ही"
यीशु और उसके शिष्य झील पार कर रहे थे जब आंधी आई।
"परिस्थिति पर ध्यान दें: हम मरने वाले हैं!"-
"हम" अर्थात यीशु और शिष्य
"कठोरता से सुधारा" या "झिड़कना"
"शान्त रह" और "थम जा" समानार्थक शब्द है।
यीशु और उसके शिष्य झील पार कर रहे थे जब आंधी आई।
"तुम्हें डरता हुआ देखकर मैं निराश हूँ"
"हमें सावधानी-पूर्वक समझाना है कि यह मनुष्य है कौन!"
यीशु उपदेश करने के लिए नाव पर चढ़ गया क्योंकि भीड़ विशाल थी।
चिड़ियों ने उसे चुग लिया।
वे शीघ्र उगे और गहरी जड़ न होने के कारण सूख गए।
कंटीली झाड़ियों ने उन्हें दबा दिया।
बीज तीस, साठ और सौ गुणा फल लाए।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर के राज्य का भेद चेलों पर प्रकट किया गया है, अन्यों पर नहीं।
बीज परमेश्वर का वचन है।
ये वे लोग हैं जो वचन को सुनते तो हैं परन्तु शैतान वचन को उठा ले जाता है।
ये वे लोग हैं जो सहर्ष वचन को सुनते हैं परन्तु सताव के समय वे ठोकर खाते हैं।
ये वे लोग हैं जो वचन को ग्रहण करते हैं परन्तु संसारिक चिन्ताएं उसे दबा देती हैं।
ये वे लोग हैं जो वचन को सुनकर ग्रहण करते हैं और फल लाते हैं।
यीशु ने कहा कि छिपी और गुप्त बातें प्रकट हो जाएंगी।
मनुष्य भूमि में बीज डालता है परन्तु बीजों का उगना और बढ़ना वह नहीं जानता, जब फसल तैयार हो जाती है तब वह कटनी करता है।
राई का दाना सबसे छोटा होता है परन्तु उगकर वह एक बड़ा वृक्ष हो जाता है जिसमें पक्षी बसेरा करते हैं।
झील में ऐसी बड़ी आंधी उठी कि पानी नाव में भरने लगा।
यीशु सो रहा था।
चेलों ने यीशु से कहा कि उसे चिन्ता नहीं कि वे डूब रहे हैं।
यीशु ने आंधी को झिड़का और झील के पानी को शान्त किया।
?
1 वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुँचे, 2 और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा, थी कब्रों से निकलकर उसे मिला। 3 वह कब्रों में रहा करता था और कोई उसे जंजीरों से भी न बाँध सकता था, 4 क्योंकि वह बार-बार बेड़ियों और जंजीरों से बाँधा गया था, पर उसने जंजीरों को तोड़ दिया, और बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था। 5 वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ों में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था। 6 वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया। 7 और ऊँचे शब्द से चिल्लाकर कहा, “हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूँ, कि मुझे पीड़ा न दे।” (मत्ती 8:29, 1 राजा. 17:18) 8 क्योंकि उसने उससे कहा था, “हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।” 9 यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने उससे कहा, “मेरा नाम सेना है*; क्योंकि हम बहुत हैं।” 10 और उसने उससे बहुत विनती की, “हमें इस देश से बाहर न भेज।” 11 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। 12 और उन्होंने उससे विनती करके कहा, “हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उनके भीतर जाएँ।” 13 अतः उसने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर घुस गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा। 14 और उनके चरवाहों ने भागकर नगर और गाँवों में समाचार सुनाया, और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए। 15 यीशु के पास आकर, वे उसको जिसमें दुष्टात्माएँ समाई थी, कपड़े पहने और सचेत बैठे देखकर, डर गए। 16 और देखनेवालों ने उसका जिसमें दुष्टात्माएँ थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उनको कह सुनाया। 17 और वे उससे विनती कर के कहने लगे, कि हमारी सीमा से चला जा। 18 और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिसमें पहले दुष्टात्माएँ थीं, उससे विनती करने लगा, “मुझे अपने साथ रहने दे।” 19 परन्तु उसने उसे आज्ञा न दी, और उससे कहा, “अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।” 20 वह जाकर दिकापुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे।
21 जब यीशु फिर नाव से पार गया, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई; और वह झील के किनारे था। 22 और याईर नामक आराधनालय के सरदारों* में से एक आया, और उसे देखकर, उसके पाँवों पर गिरा। 23 और उसने यह कहकर बहुत विनती की, “मेरी छोटी बेटी मरने पर है: तू आकर उस पर हाथ रख, कि वह चंगी होकर जीवित रहे।” 24 तब वह उसके साथ चला; और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, यहाँ तक कि लोग उस पर गिरे पड़ते थे। 25 और एक स्त्री, जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था। 26 और जिस ने बहुत वैद्यों से बड़ा दुःख उठाया और अपना सब माल व्यय करने पर भी कुछ लाभ न उठाया था, परन्तु और भी रोगी हो गई थी। 27 यीशु की चर्चा सुनकर, भीड़ में उसके पीछे से आई, और उसके वस्त्र को छू लिया, 28 क्योंकि वह कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी, तो चंगी हो जाऊँगी।” 29 और तुरन्त उसका लहू बहना बन्द हो गया; और उसने अपनी देह में जान लिया, कि मैं उस बीमारी से अच्छी हो गई हूँ। 30 यीशु ने तुरन्त अपने में जान लिया, कि मुझसे सामर्थ्य निकली है*, और भीड़ में पीछे फिरकर पूछा, “मेरा वस्त्र किसने छुआ?” 31 उसके चेलों ने उससे कहा, “तू देखता है, कि भीड़ तुझ पर गिरी पड़ती है, और तू कहता है; कि किसने मुझे छुआ?” 32 तब उसने उसे देखने के लिये जिस ने यह काम किया था, चारों ओर दृष्टि की। 33 तब वह स्त्री यह जानकर, कि उसके साथ क्या हुआ है, डरती और काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर, उससे सब हाल सच-सच कह दिया। 34 उसने उससे कहा, “पुत्री, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह।” (लूका 8:48) 35 वह यह कह ही रहा था, कि आराधनालय के सरदार के घर से लोगों ने आकर कहा, “तेरी बेटी तो मर गई; अब गुरु को क्यों दुःख देता है?” 36 जो बात वे कह रहे थे, उसको यीशु ने अनसुनी करके, आराधनालय के सरदार से कहा, “मत डर; केवल विश्वास रख।” 37 और उसने पतरस और याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को छोड़, और किसी को अपने साथ आने न दिया। 38 और आराधनालय के सरदार के घर में पहुँचकर, उसने लोगों को बहुत रोते और चिल्लाते देखा। 39 तब उसने भीतर जाकर उनसे कहा, “तुम क्यों हल्ला मचाते और रोते हो? लड़की मरी नहीं, परन्तु सो रही है।” 40 वे उसकी हँसी करने लगे, परन्तु उसने सब को निकालकर लड़की के माता-पिता और अपने साथियों को लेकर, भीतर जहाँ लड़की पड़ी थी, गया। 41 और लड़की का हाथ पकड़कर उससे कहा, “तलीता कूमी*”; जिसका अर्थ यह है “हे लड़की, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ।” 42 और लड़की तुरन्त उठकर चलने फिरने लगी; क्योंकि वह बारह वर्ष की थी। और इस पर लोग बहुत चकित हो गए। 43 फिर उसने उन्हें चेतावनी के साथ आज्ञा दी कि यह बात कोई जानने न पाए और कहा; “इसे कुछ खाने को दो।”
"उसके पांवों को लोहे की जंजीर से बांधा गया"
"नियन्त्रण में रख सकता था"
"उस दृष्टात्मा ने चिल्लाकर कहा।"
वैकल्पिक अनुवाद, "मुझे तुझसे कोई काम नहीं है"
"मुझे कष्ट मत दे"
उस मनुष्य में उपस्थित दुष्टात्मा ने यीशु से कहा कि उस मनुष्य में एक ही नहीं, अनेक दुष्टात्माएं हैं।
"यीशु ने उन दुष्टात्माओं को अनुमति दे दी।"
"लगभग 2000 सूअर थे।"
"सामान्य मानसिक अवस्था"
"जिस व्यक्ति पर दुष्टात्माओं का अधिकार था।"
गलील सागर के दक्षिण पूर्व का क्षेत्र
"बारह वर्ष से"
वैकल्पिक अनुवाद, "हमें आश्चर्य हो रहा है कि तू कहता है, किसने मुझे छुआ।"
यीशु उस विश्वासी स्त्री के लिए इस शब्द को रूपक स्वरूप काम में ले रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "हमें गुरु को अब कष्ट नहीं देना है"
"दुःख के कारण विलाप करते देखा"
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें दुःखी नहीं होना है, न ही रोना है"
"वह 12 वर्ष की थी"
"उसने उन्हें कठोरता से कहा"
एक दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य यीशु के सामने आया।
वह मनुष्य कब्रों में रहता था, वह सांकलों को तोड़ देता था और अपने को पत्थरों से घायल करता था।
उस अशुद्ध आत्मा ने यीशु को परम प्रधान परमेश्वर का पुत्र कहा।
यीशु ने कहा, "अशुद्ध आत्मा इस मनुष्य में से निकल आ।"
उस अशुद्ध आत्मा का नाम सेना था क्योंकि वे बहुत थीं।
दुष्टात्माएं उसमें से निकलकर सूअरों में घुस गई और वे झील में डूबकर मर गए।
वह पुरुष वस्त्र पहना यीशु के पास सचेत बैठा था।
वे लोग बहुत डर गए और यीशु से चले जाने की विनती की।
यीशु ने उस मनुष्य से कहा कि वह जाकर अपने लोगों को बताए कि प्रभु ने उसके लिए क्या किया है।
याईर ने यीशु से विनती की कि वह उसके पुत्री पर हाथ रखे क्योंकि वह मरने पर है।
वह स्त्री बारह वर्षों से रक्तस्राव से पीड़ित थी।
वह स्त्री सोचती थी कि यीशु के वस्त्र के स्पर्श मात्र से ही वह रोगमुक्त हो जायेगी।
यीशु को अपने में से सामर्थ्य बहने का बोध हुआ, अतः उसने देखा कि उसका स्पर्श किसने किया।
यीशु ने उससे कहा कि उसके विश्वास ने उसे चंगा किया है, वह कुशलता से जाए।
याईर की पुत्री मर गई।
यीशु ने याईर से कहा, "मत डर केवल विश्वास रख"।
यीशु ने उस बालिका के माता-पिता और पतरस, याकूब, यूहन्ना को साथ लिया।
यीशु ने कहा कि याईर की पुत्री सोती है तो लोग उसका ठट्ठा करने लगे।
इस घटना से लोग भयातुर और चकित थे।
1 वहाँ से निकलकर वह अपने देश में आया, और उसके चेले उसके पीछे हो लिए। 2 सब्त के दिन वह आराधनालय में उपदेश करने लगा; और बहुत लोग सुनकर चकित हुए और कहने लगे, “इसको ये बातें कहाँ से आ गई? और यह कौन सा ज्ञान है जो उसको दिया गया है? और कैसे सामर्थ्य के काम इसके हाथों से प्रगट होते हैं? 3 क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब और योसेस और यहूदा और शमौन का भाई है? और क्या उसकी बहनें यहाँ हमारे बीच में नहीं रहतीं?” इसलिए उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई। 4 यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता का अपने देश और अपने कुटुम्ब और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता।” 5 और वह वहाँ कोई सामर्थ्य का काम न कर सका, केवल थोड़े बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। 6 और उसने उनके अविश्वास पर आश्चर्य किया और चारों ओर से गाँवों में उपदेश करता फिरा।
7 और वह बारहों को अपने पास बुलाकर उन्हें दो-दो करके भेजने लगा; और उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया। 8 और उसने उन्हें आज्ञा दी, कि “मार्ग के लिये लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न झोली, न पटुके में पैसे। 9 परन्तु जूतियाँ पहनो और दो-दो कुर्ते न पहनो।” 10 और उसने उनसे कहा, “जहाँ कहीं तुम किसी घर में उतरो, तो जब तक वहाँ से विदा न हो, तब तक उसी घर में ठहरे रहो। 11 जिस स्थान के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, और तुम्हारी न सुनें, वहाँ से चलते ही अपने तलवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो।” 12 और उन्होंने जाकर प्रचार किया, कि मन फिराओ, 13 और बहुत सी दुष्टात्माओं को निकाला, और बहुत बीमारों पर तेल मलकर* उन्हें चंगा किया।
14 और हेरोदेस राजा ने उसकी चर्चा सुनी, क्योंकि उसका नाम फैल गया था, और उसने कहा, कि “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला मरे हुओं में से जी उठा है, इसलिए उससे ये सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।” 15 और औरों ने कहा, “यह एलिय्याह है*”, परन्तु औरों ने कहा, “भविष्यद्वक्ता या भविष्यद्वक्ताओं में से किसी एक के समान है।” 16 हेरोदेस ने यह सुन कर कहा, “जिस यूहन्ना का सिर मैंने कटवाया था, वही जी उठा है।” 17 क्योंकि हेरोदेस ने आप अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, जिससे उसने विवाह किया था, लोगों को भेजकर यूहन्ना को पकड़वाकर बन्दीगृह में डाल दिया था। 18 क्योंकि यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा था, “अपने भाई की पत्नी को रखना तुझे उचित नहीं।” (लैव्य. 18:16, लैव्य. 20:21) 19 इसलिए हेरोदियास उससे बैर रखती थी और यह चाहती थी, कि उसे मरवा डाले, परन्तु ऐसा न हो सका, 20 क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरुष जानकर उससे डरता था, और उसे बचाए रखता था, और उसकी सुनकर बहुत घबराता था, पर आनन्द से सुनता था। 21 और ठीक अवसर पर जब हेरोदेस ने अपने जन्मदिन में अपने प्रधानों और सेनापतियों, और गलील के बड़े लोगों के लिये भोज किया। 22 और उसी हेरोदियास की बेटी भीतर आई, और नाचकर हेरोदेस को और उसके साथ बैठनेवालों को प्रसन्न किया; तब राजा ने लड़की से कहा, “तू जो चाहे मुझसे माँग मैं तुझे दूँगा।” 23 और उसने शपथ खाई, “मैं अपने आधे राज्य तक जो कुछ तू मुझसे माँगेगी मैं तुझे दूँगा।” (एस्ते. 5:3,6, एस्ते. 7:2) 24 उसने बाहर जाकर अपनी माता से पूछा, “मैं क्या माँगूँ?” वह बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर।” 25 वह तुरन्त राजा के पास भीतर आई, और उससे विनती की, “मैं चाहती हूँ, कि तू अभी यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर एक थाल में मुझे मँगवा दे।” 26 तब राजा बहुत उदास हुआ, परन्तु अपनी शपथ के कारण और साथ बैठनेवालों के कारण उसे टालना न चाहा। 27 और राजा ने तुरन्त एक सिपाही को आज्ञा देकर भेजा, कि उसका सिर काट लाए। 28 उसने जेलखाने में जाकर उसका सिर काटा, और एक थाल में रखकर लाया और लड़की को दिया, और लड़की ने अपनी माँ को दिया। 29 यह सुनकर उसके चेले आए, और उसके शव को उठाकर कब्र में रखा।
30 प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उसको बता दिया। 31 उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग किसी एकान्त स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो।” क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। 32 इसलिए वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। 33 और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहाँ पैदल दौड़े और उनसे पहले जा पहुँचे। 34 उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। (2 इति. 18:16, 1 राजा. 22:17) 35 जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। 36 उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।” 37 उसने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने उससे कहा, “क्या हम सौ दीनार की रोटियाँ मोल लें, और उन्हें खिलाएँ?” 38 उसने उनसे कहा, “जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने मालूम करके कहा, “पाँच रोटी और दो मछली भी।” 39 तब उसने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर समूह में बैठा दो। 40 वे सौ-सौ और पचास-पचास करके समूह में बैठ गए। 41 और उसने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं। 42 और सब खाकर तृप्त हो गए, 43 और उन्होंने टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भर कर उठाई, और कुछ मछलियों से भी। 44 जिन्होंने रोटियाँ खाई, वे पाँच हजार पुरुष थे।
45 तब उसने तुरन्त अपने चेलों को विवश किया कि वे नाव पर चढ़कर उससे पहले उस पार बैतसैदा को चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। 46 और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। 47 और जब सांझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। 48 और जब उसने देखा, कि वे खेते-खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उनके पास आया; और उनसे आगे निकल जाना चाहता था। 49 परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, 50 क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उसने तुरन्त उनसे बातें की और कहा, “धैर्य रखो : मैं हूँ; डरो मत।” 51 तब वह उनके पास नाव पर आया, और हवा थम गई: वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। 52 क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में न समझे थे परन्तु उनके मन कठोर हो गए थे।
53 और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुँचे, और नाव घाट पर लगाई। 54 और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उसको पहचान कर, 55 आस-पास के सारे देश में दौड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहाँ-जहाँ समाचार पाया कि वह है, वहाँ-वहाँ लिए फिरे। 56 और जहाँ कहीं वह गाँवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, तो लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उससे विनती करते थे, कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आँचल ही को छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे।
"यह तो एक साधारण बढ़ई है। हम तो इसे और इसके परिवार को जानते हैं! हम इसकी माता मरियम को जानते हैं। हम इसके छोटे भाइयों याकूब, योसेस, यहूदा और शमौन को भी तो जानते हैं! और इसकी छोटी बहनें यहाँ हमारे बीच में ही तो रहती हैं!" (यू.डी.बी.) यह सन्देह का प्रश्न है कि यीशु ऐसे काम कैसे कर सकता है।
"यह निश्चय ही सच है कि मनुष्य अन्य स्थानों में मेरा और अन्य भविष्यद्वक्ताओं का सम्मान करते हैं। परन्तु अपने ही जन्म-स्थान में नहीं करते! यहाँ तक कि हमारे परिजन और घर के सदस्य हमारा सम्मान नहीं करते" (यू.डी.बी.)
"एक साथ दो दो" या "जोड़े में"
"अतिरिक्त कुरता भी नहीं लेना"
"उस नगर से प्रस्थान करने तक उसी घर में रहना।"
"परमेश्वर ने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को जीवित किया है।"
"उसके भाई फिलिप्पुस की पत्नी"
"उसके विरुद्ध थी"
"उसके विरुद्ध थी"
"वह विमूढ़ था"
"एक परात में"
"क्योंकि उसके अतिथियों ने उसे शपथ खाते सुना था"
"एक परात में"
"पाँच रोटियों और दो मछलियाँ"
"सौ और पचास की संख्या में"
"5 रोटियां और 2 मछलियाँ"
"2 मछलियाँ"
"12 टोकरिया"
वैकल्पिक अनुवादः "पाँच हजार पुरुष और उनके परिवार"
गलील सागर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक नगर
"उन्हें समझना था कि वह कैसा सामर्थी है परन्तु वे समझ नहीं पाए।"
"रोगियों को उठाकर लाने के लिए दरी"
"उसके वस्त्र का छोर" या "उसके बागे का सिरा"
?
यीशु ने कहा कि भविष्यद्वक्ता का अपने देश, और अपने कुटुम्ब, और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता है।
यीशु अपने देश में लोगों के अविश्वास पर चकित था।
यीशु ने बारहों को अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया।
बारहों ने लाठी, जूते और एक ही वस्त्र साथ लिया।
यीशु ने बारहों से कहा कि यदि किसी गांव में उनका स्वागत न हो तो गवाही स्वरूप अपने जूतों की धूल वहाँ झाड़कर निकल जाएं।
लोग सोचते थे कि यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला या एलिय्याह या कोई भविष्यद्वक्ता है।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला ने हेरोदेस से कहा कि अपने भाई की पत्नी को रखना व्यवस्था विरोधी है।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की बातों से हेरोदेस परेशान तो होता था परन्तु फिर भी उसे सुनना उसे अच्छा लगता था।
हेरोदेस ने शपथ खाकर कहा कि वह उसे मुंह मांगा वर देगा, अपना आधा राज्य भी दे देगा।
हेरोदियास ने यूहन्ना का सिर थाल में मांगा।
हेरोदेस दुखी तो हुआ परन्तु अतिथियों के समक्ष अपनी शपथ के कारण उसके आग्रह को ठुकरा नहीं पाया।
लोगों ने यीशु और उसके चेलों को पहचान लिया और उनसे पहले वहाँ पहुंच गए।
यीशु को उन पर तरस आया क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों के समान थे।
चेलों के विचार में उनके लिए रोटी खरीदने के लिए दो सौ दीनार की आवश्यकता थी।
चेलों के पास पांच रोटियां और दो मछलियां ही थी।
यीशु ने रोटियां और मछलियां लेकर स्वर्ग की ओर देखकर उन्हें आशीष दी और रोटी तोड़कर चेलों को दी।
सब खाकर तृप्त हो गए तब बचे हुए भोजन, रोटी और मछलियों से बारह टोकरियां भर गईं।
खाना खाने वालों में केवल पुरूष ही पांच हजार थे।
यीशु झील के पानी पर चलकर चेलों के पास आया।
यीशु ने चेलों से कहा कि वे डरें नहीं ढाढ़स बांधें।
रोटियों के चमत्कार को चेले समझ नहीं पाए क्योंकि उनके मन कठोर हो गए थे।
लोगों ने जब-जब यीशु के आने का समाचार सुना तब-तब वे अपने रोगियों को खाटों पर ले आए।
जो रोगी यीशु के वस्त्र का स्पर्श करते थे वे रोग मुक्त हो जाते थे।
1 तब फरीसी और कुछ शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, उसके पास इकट्ठे हुए, 2 और उन्होंने उसके कई चेलों को अशुद्ध अर्थात् बिना हाथ धोए रोटी खाते देखा। 3 (क्योंकि फरीसी और सब यहूदी, प्राचीन परम्परा का पालन करते है और जब तक भली भाँति हाथ नहीं धो लेते तब तक नहीं खाते; 4 और बाजार से आकर, जब तक स्नान नहीं कर लेते, तब तक नहीं खाते; और बहुत सी अन्य बातें हैं, जो उनके पास मानने के लिये पहुँचाई गई हैं, जैसे कटोरों, और लोटों, और तांबे के बरतनों को धोना-माँजना।) 5 इसलिए उन फरीसियों और शास्त्रियों ने उससे पूछा, “तेरे चेले क्यों पूर्वजों की परम्पराओं पर नहीं चलते, और बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?” 6 उसने उनसे कहा, “यशायाह ने तुम कपटियों के विषय में बहुत ठीक भविष्यद्वाणी की; जैसा लिखा है:
‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं,
पर उनका मन मुझसे दूर रहता है। (यशा. 29:13)
7 और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं,
क्योंकि मनुष्यों की आज्ञाओं को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।’ (यशा. 29:13)
8 क्योंकि तुम परमेश्वर की आज्ञा को टालकर मनुष्यों की रीतियों को मानते हो।” 9 और उसने उनसे कहा, “तुम अपनी रीतियों को मानने के लिये परमेश्वर आज्ञा कैसी अच्छी तरह टाल देते हो! 10 क्योंकि मूसा ने कहा है, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर कर;’ और ‘जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह अवश्य मार डाला जाए।’ (निर्ग. 20:12, व्य. 5:16) 11 परन्तु तुम कहते हो कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, ‘जो कुछ तुझे मुझसे लाभ पहुँच सकता था, वह कुरबान* अर्थात् संकल्प हो चुका।’ 12 तो तुम उसको उसके पिता या उसकी माता की कुछ सेवा करने नहीं देते। 13 इस प्रकार तुम अपनी रीतियों से, जिन्हें तुम ने ठहराया है, परमेश्वर का वचन टाल देते हो; और ऐसे-ऐसे बहुत से काम करते हो।”
14 और उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम सब मेरी सुनो, और समझो। 15 ऐसी तो कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य में बाहर से समाकर उसे अशुद्ध करे; परन्तु जो वस्तुएँ मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं। 16 यदि किसी के सुनने के कान हों तो सुन ले।” 17 जब वह भीड़ के पास से घर में गया, तो उसके चेलों ने इस दृष्टान्त के विषय में उससे पूछा। 18 उसने उनसे कहा, “क्या तुम भी ऐसे नासमझ हो? क्या तुम नहीं समझते, कि जो वस्तु बाहर से मनुष्य के भीतर जाती है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकती? 19 क्योंकि वह उसके मन में नहीं, परन्तु पेट में जाती है, और शौच में निकल जाती है?” यह कहकर उसने सब भोजन वस्तुओं को शुद्ध ठहराया। 20 फिर उसने कहा, “जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। 21 क्योंकि भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से, बुरे-बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, 22 लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। 23 ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।”
24 फिर वह वहाँ से उठकर सूर और सैदा के देशों में आया; और एक घर में गया, और चाहता था, कि कोई न जाने; परन्तु वह छिप न सका। 25 और तुरन्त एक स्त्री जिसकी छोटी बेटी में अशुद्ध आत्मा थी, उसकी चर्चा सुन कर आई, और उसके पाँवों पर गिरी। 26 यह यूनानी और सुरूफिनिकी जाति की थी; और उसने उससे विनती की, कि मेरी बेटी में से दुष्टात्मा निकाल दे। 27 उसने उससे कहा, “पहले लड़कों को तृप्त होने दे, क्योंकि लड़को की रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना उचित नहीं है।” 28 उसने उसको उत्तर दिया; “सच है प्रभु; फिर भी कुत्ते भी तो मेज के नीचे बालकों की रोटी के चूर चार खा लेते हैं।” 29 उसने उससे कहा, “इस बात के कारण चली जा; दुष्टात्मा तेरी बेटी में से निकल गई है।” 30 और उसने अपने घर आकर देखा कि लड़की खाट पर पड़ी है, और दुष्टात्मा निकल गई है।
31 फिर वह सूर और सैदा के देशों से निकलकर दिकापुलिस देश से होता हुआ गलील की झील पर पहुँचा। 32 और लोगों ने एक बहरे को जो हक्ला भी था, उसके पास लाकर उससे विनती की, कि अपना हाथ उस पर रखे। 33 तब वह उसको भीड़ से अलग ले गया, और अपनी उँगलियाँ उसके कानों में डाली, और थूककर उसकी जीभ को छुआ। 34 और स्वर्ग की ओर देखकर आह भरी, और उससे कहा, “इप्फत्तह*!” अर्थात् “खुल जा!” 35 और उसके कान खुल गए, और उसकी जीभ की गाँठ भी खुल गई, और वह साफ-साफ बोलने लगा। 36 तब उसने उन्हें चेतावनी दी कि किसी से न कहना; परन्तु जितना उसने उन्हें चिताया उतना ही वे और प्रचार करने लगे। 37 और वे बहुत ही आश्चर्य में होकर कहने लगे, “उसने जो कुछ किया सब अच्छा किया है; वह बहरों को सुनने की, और गूँगों को बोलने की शक्ति देता है।”
खाते समय उस युग के यहूदी आधा लेटकर खाना खाते थे। वैकल्पिक अनुवाद, "पात्र और यहाँ तक कि खाने के लिए बैठने के आसन भी।"
"तेरे शिष्य पूर्वजों की परम्परा पर नहीं चलते हैं। उन्हें हमारी रीति के अनुसार हाथ धोना चाहिए।"
भोजन
यशायाह के वचन...
प्रभावी रूप से
मान-हर शब्दों का उपयोग करने वाला
शास्त्रियों की परम्परा के अनुसार मन्दिर को यदि कुछ भेंट कर दिया गया (पैसा या वस्तु) तो उसका उपयोग किसी और बात में नहीं किया जा सकता।
लेखक चाहता था कि पाठक को इस शब्द का उच्चारण समझ में आए, अतः अपनी भाषा में इस शब्द के उच्चारण हेतु अक्षरों का उपयोग करें।
"सुनो" और "समझो" अर्थ में समरूप हैं, यीशु बल देने के लिए इन दोनों शब्दों का उपयोग करता है
"यह मनुष्य का आन्तरिक व्यक्तित्व है" या "यह मनुष्य का सोचना, बोलना और करना है।"
इस वाक्य का उद्देश्य है यीशु के कट्टर सिद्धान्त के अधिकार को दर्शाने तथा प्रत्येक निष्ठावान अनुयायी उसके अभी-अभी सिखाई गई बात को समझने की अवश्यकरणीयता पर बल देता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैंने जो कुछ कहा और किया, मैं तुमसे उसे समझने की अपेक्षा करता हूँ।"
"घुटने टेके"
वह सीरिया के फिनिके नगर में जन्मी थी।
"बच्चों को पहले भोजन करना है" या "मुझे पहले बच्चों को भोजन देना है।"
यहूदियों को वैकल्पिक अनुवाद, "मुझे पहले यहूदियों की सेवा करना है।"
भोजन
अन्य जातियों को
"तू मुझ, अन्य जाति को इस प्रकार तुच्छ जानकर सेवा का पात्र बना दे"
रोटी के छोटे टुकड़े
"से चलता हुआ"
"दस नगर" (देखें: यू.डी.बी.) गलील सागर के दक्षिण-पूर्वक का क्षेत्र।
"सुनने में असमर्थ था"
"स्पष्ट बोल नहीं पाता था"
लेखक चाहता था कि पाठक इस शब्द का उच्चारण समझें। अतः अपनी भाषा के अक्षरों द्वारा इस शब्द का निकटतम् उच्चारण लिखें।
दुःख के कारण लम्बी सांस लेना
"उसकी जीभ में जो भी रुकावट का कारण था उसे यीशु ने दूर कर दिया" या "स्पष्ट बोलने में जो भी रुकावट का कारण था उसे यीशु ने चंगा किया।"
चेले बिना हाथ धोए भोजन करते थे।
पुरनियों की परम्परा के अनुसार, हाथ, कटोरे, पात्र, तांबे के बर्तन और भोजन की मेज़ को भोजन करने से पहले धोना आवश्यक था।
यीशु ने कहा कि फरीसी और शास्त्री पाखंडी थे कि वे परमेश्वर की आज्ञाओं को अनदेखा कर मनुष्यों की परम्परा सिखाते थे।
वे अपने माता-पिता के उत्तरदायित्व वहन के खर्चे को कुर्बान कह कर परमेश्वर की आज्ञा को टाल देते थे?
यीशु ने कहा कि जो कुछ मनुष्य के पेट में जाता है वह उसे अशुद्ध नहीं करता है।
यीशु ने कहा कि मनुष्य के मन से निकलने वाली बात उसे अशुद्ध करती है।
यीशु ने सब भोजन वस्तुओं को शुद्ध कहा है।
यीशु ने कहा कि बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता मनुष्य के मन से बाहर निकलती है।
जिस स्त्री की पुत्री में अशुद्ध आत्मा थी वह यूनानी थी।
उस स्त्री ने कहा कि कुत्ते भी बच्चों के गिरे टुकड़़े खाते हैं।
यीशु ने उस स्त्री की पुत्री में से दुष्टात्मा निकाल दी।
यीशु ने उस बहरे और गूंगे मनुष्य के कानों में उंगलियां डालीं और थूक कर उसकी जीभ को छुआ और स्वर्ग की ओर देखकर कहा, "खुल जा"।
यीशु ने लोगों को जितना अधिक चुप रहने को कहा उतना ही अधिक उन्होंने उसकी चर्चा की।
1 उन दिनों में, जब फिर बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और उनके पास कुछ खाने को न था, तो उसने अपने चेलों को पास बुलाकर उनसे कहा, 2 “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है, क्योंकि यह तीन दिन से बराबर मेरे साथ हैं, और उनके पास कुछ भी खाने को नहीं। 3 यदि मैं उन्हें भूखा घर भेज दूँ, तो मार्ग में थककर रह जाएँगे; क्योंकि इनमें से कोई-कोई दूर से आए हैं।” 4 उसके चेलों ने उसको उत्तर दिया, “यहाँ जंगल में इतनी रोटी कोई कहाँ से लाए कि ये तृप्त हों?” 5 उसने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात।”
6 तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी, और वे सात रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके तोड़ी, और अपने चेलों को देता गया कि उनके आगे रखें, और उन्होंने लोगों के आगे परोस दिया। 7 उनके पास थोड़ी सी छोटी मछलियाँ भी थीं; और उसने धन्यवाद करके उन्हें भी लोगों के आगे रखने की आज्ञा दी। 8 अतः वे खाकर तृप्त हो गए और शेष टुकड़ों के सात टोकरे भरकर उठाए। 9 और लोग चार हजार के लगभग थे, और उसने उनको विदा किया। 10 और वह तुरन्त अपने चेलों के साथ नाव पर चढ़कर दलमनूता* देश को चला गया।
11 फिर फरीसी आकर उससे वाद-विवाद करने लगे, और उसे जाँचने के लिये उससे कोई स्वर्गीय चिन्ह माँगा। 12 उसने अपनी आत्मा में भरकर कहा, “इस समय के लोग क्यों चिन्ह ढूँढ़ते हैं? मैं तुम से सच कहता हूँ, कि इस समय के लोगों को कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा।” 13 और वह उन्हें छोड़कर फिर नाव पर चढ़ गया, और पार चला गया।
14 और वे रोटी लेना भूल गए थे, और नाव में उनके पास एक ही रोटी थी। 15 और उसने उन्हें चेतावनी दी, “देखो, फरीसियों के ख़मीर* और हेरोदेस के ख़मीर से सावधान रहो।” 16 वे आपस में विचार करके कहने लगे, “हमारे पास तो रोटी नहीं है।” 17 यह जानकर यीशु ने उनसे कहा, “तुम क्यों आपस में विचार कर रहे हो कि हमारे पास रोटी नहीं? क्या अब तक नहीं जानते और नहीं समझते? क्या तुम्हारा मन कठोर हो गया है? 18 क्या आँखें रखते हुए भी नहीं देखते, और कान रखते हुए भी नहीं सुनते? और तुम्हें स्मरण नहीं? 19 कि जब मैंने पाँच हजार के लिये पाँच रोटी तोड़ी थीं तो तुम ने टुकड़ों की कितनी टोकरियाँ भरकर उठाई?” उन्होंने उससे कहा, “बारह टोकरियाँ।” 20 उसने उनसे कहा, “और जब चार हजार के लिए सात रोटियाँ थी तो तुम ने टुकड़ों के कितने टोकरे भरकर उठाए थे?” उन्होंने उससे कहा, “सात टोकरे।” 21 उसने उनसे कहा, “क्या तुम अब तक नहीं समझते?”
22 और वे बैतसैदा में आए; और लोग एक अंधे को उसके पास ले आए और उससे विनती की कि उसको छूए। 23 वह उस अंधे का हाथ पकड़कर उसे गाँव के बाहर ले गया। और उसकी आँखों में थूककर उस पर हाथ रखे, और उससे पूछा, “क्या तू कुछ देखता है?” 24 उसने आँख उठाकर कहा, “मैं मनुष्यों को देखता हूँ; क्योंकि वे मुझे चलते हुए दिखाई देते हैं, जैसे पेड़।” 25 तब उसने फिर दोबारा उसकी आँखों पर हाथ रखे, और उसने ध्यान से देखा। और चंगा हो गया, और सब कुछ साफ-साफ देखने लगा। 26 और उसने उससे यह कहकर घर भेजा, “इस गाँव के भीतर पाँव भी न रखना।”
27 यीशु और उसके चेले कैसरिया फिलिप्पी के गाँवों में चले गए; और मार्ग में उसने अपने चेलों से पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?” 28 उन्होंने उत्तर दिया, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला; पर कोई-कोई, एलिय्याह; और कोई-कोई, भविष्यद्वक्ताओं में से एक भी कहते हैं।” 29 उसने उनसे पूछा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने उसको उत्तर दिया, “तू मसीह है।” 30 तब उसने उन्हें चिताकर कहा कि मेरे विषय में यह किसी से न कहना।
31 और वह उन्हें सिखाने लगा, कि मनुष्य के पुत्र के लिये अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें और वह तीन दिन के बाद जी उठे। 32 उसने यह बात उनसे साफ-साफ कह दी। इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर डाँटने लगा। 33 परन्तु उसने फिरकर, और अपने चेलों की ओर देखकर पतरस को डाँटकर कहा, “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो; क्योंकि तू परमेश्वर की बातों पर नहीं, परन्तु मनुष्य की बातों पर मन लगाता है।”
34 उसने भीड़ को अपने चेलों समेत पास बुलाकर उनसे कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आप से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले। 35 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा। 36 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? 37 और मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा? 38 जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझसे और मेरी बातों से लजाएगा*, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उससे भी लजाएगा।”
"3 दिन से"
संभावित अर्थः (1) "वे बेहोश हो जाएंगे" या (2) "वे थककर चूर हो जाएंगे"
चेले आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे कि यीशु उसे इतने भोजन का प्रबन्ध करने के लिए कह रहा था। वैकल्पिक अनुवाद, "यह स्थान तो ऐसा निर्जन प्रदेश है कि हम इन लोगों के भोजन का प्रबन्ध कहाँ से करें!" (यू.डी.बी.)
मेज़ न होने पर आपकी संस्कृति में लोग भोजन करने कैसे बैठते हैं, उसे व्यक्त करें।
गलील सागर के उत्तर-पश्चिमी तट का प्रदेश
"ढूंढते हैं"
देखें कि आपने इस अनुवाद में कैसे किया है।
यीशु उनको झिड़क रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, "इस पीढ़ी को चिन्ह खोजने की आवश्यकता नहीं है"
"क्या तुम सबको"
इसका उद्देश्य बल देना है।
वैकल्पिक अनुवाद "फरीसियों की झूठी शिक्षा और हेरोदेस की झूठी शिक्षा।"(देखें: )
यीशु उनके न समझने के कारण निराश है। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम यह न सोचो कि मैं रोटी के बारे में कह रहा हूँ।"
यीशु उनके न समझने के कारण निराश है। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हारे पास आँखें है परन्तु तुम जो देखते हो उसे समझते नहीं! तुम्हारे पास कान हैं परन्तु तुम जो सुनते हो उसे नहीं समझते! तुम्हें स्मरण रखना है।"(देखें:
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें अब तक समझने योग्य हो जाना था कि मैं रोटी के बारे में नहीं कर रहा हूँ।"(देखें: और )
यरदन नदी के पूर्व में स्थित एक नगर
वैकल्पिक अनुवाद, "पुरनिये और प्रधानयाजक और शास्त्री मनुष्य के पुत्र को त्यागकर उसे मार डालें और परमेश्वर उसे फिर जीवित कर दे।"
"3 दिन से"
यीशु पतरस की भर्त्सना का उत्तर दे रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को कारण समझा रहा है कि उन्हें क्यों स्वयं को मृत्यु-दण्ड प्राप्त अपराधी के समान समझना है ।
यीशु ने अपने शिष्यों को और जनसमूह को अभी-अभी बताया है कि उसका अनुसरण करना संपूर्ण संसार से अधिक मूल्यवान क्यों है।
यीशु ने कहा कि उसे चिन्ता इस बात की है कि जनसमूह ने भोजन नहीं किया है।
चेलों के पास सात रोटियां थी।
यीशु ने धन्यवाद देकर रोटियां तोड़ी और चेलों को दीं कि लोगों में बांट दें।
जब सब खा चुके तब सात टोकरे भोजन बचा।
खाने वालों में चार हजार पुरूष थे।
फरीसी यीशु से स्वर्गिक चिन्ह मांग रहे थे।
यीशु ने अपने चेलों को फरीसियों के खमीर से सावधान रहने की शिक्षा दी।
चेलों ने सोचा कि यीशु उनसे रोटी के बारे में कह रहा है क्योंकि वे रोटी लाना भूल गए थे।
यीशु ने उन्हें पांच हज़ार और चार हज़ार पुरूषों को भोजन करवाने का स्मरण करवाया।
यीशु ने पहले उसकी आंखों में थूका और उस पर हाथ रखे तब उसकी आंखों पर फिर हाथ रखा।
लोग कहते थे कि यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, एलिय्याह या कोई भविष्यद्वक्ता था।
पतरस ने कहा कि यीशु मसीह है।
यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि मनुष्य के पुत्र के लिए अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, तुच्छ समझा जाए और मार डाला जाए और तीन दिन बाद जी उठे।
यीशु ने पतरस से कहा, "हे शैतान मेरे सामने से दूर हो क्योंकि तू परमेश्वर की बातों पर नहीं, परन्तु मनुष्य की बातों पर मन लगाता है"।
यीशु ने कहा कि जो उसके पीछे आना चाहता है वह स्वयं का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए।
यीशु ने कहा, "जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा"।
यीशु ने कहा कि उसके पुनः आगमन पर वह उन लोगों से लजाएगा जो इस संसार में उसके नाम से और उसके वचन से लजाते हैं।
1 और उसने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कोई ऐसे हैं, कि जब तक परमेश्वर के राज्य को सामर्थ्य सहित आता हुआ न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद कदापि न चखेंगे।” 2 छः दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और यूहन्ना को साथ लिया, और एकान्त में किसी ऊँचे पहाड़ पर ले गया; और उनके सामने उसका रूप बदल गया। 3 और उसका वस्त्र ऐसा चमकने लगा और यहाँ तक अति उज्ज्वल हुआ, कि पृथ्वी पर कोई धोबी भी वैसा उज्ज्वल नहीं कर सकता। 4 और उन्हें मूसा के साथ एलिय्याह* दिखाई दिया; और वे यीशु के साथ बातें करते थे। 5 इस पर पतरस ने यीशु से कहा, “हे रब्बी, हमारा यहाँ रहना अच्छा है: इसलिए हम तीन मण्डप बनाएँ; एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” 6 क्योंकि वह न जानता था कि क्या उत्तर दे, इसलिए कि वे बहुत डर गए थे। 7 तब एक बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है; इसकी सुनो।” (2 पत. 1:17, भज. 2:7) 8 तब उन्होंने एकाएक चारों ओर दृष्टि की, और यीशु को छोड़ अपने साथ और किसी को न देखा। 9 पहाड़ से उतरते हुए, उसने उन्हें आज्ञा दी, कि जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से जी न उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है वह किसी से न कहना। 10 उन्होंने इस बात को स्मरण रखा; और आपस में वाद-विवाद करने लगे, “मरे हुओं में से जी उठने का क्या अर्थ है?” 11 और उन्होंने उससे पूछा, “शास्त्री क्यों कहते हैं, कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?” 12 उसने उन्हें उत्तर दिया, “एलिय्याह सचमुच पहले आकर सब कुछ सुधारेगा, परन्तु मनुष्य के पुत्र के विषय में यह क्यों लिखा है, कि वह बहुत दुःख उठाएगा, और तुच्छ गिना जाएगा? 13 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि एलिय्याह तो आ चुका, और जैसा उसके विषय में लिखा है, उन्होंने जो कुछ चाहा उसके साथ किया।”
14 और जब वह चेलों के पास आया, तो देखा कि उनके चारों ओर बड़ी भीड़ लगी है और शास्त्री उनके साथ विवाद कर रहें हैं। 15 और उसे देखते ही सब बहुत ही आश्चर्य करने लगे, और उसकी ओर दौड़कर उसे नमस्कार किया। 16 उसने उनसे पूछा, “तुम इनसे क्या विवाद कर रहे हो?” 17 भीड़ में से एक ने उसे उत्तर दिया, “हे गुरु, मैं अपने पुत्र को, जिसमें गूंगी आत्मा समाई है, तेरे पास लाया था। 18 जहाँ कहीं वह उसे पकड़ती है, वहीं पटक देती है; और वह मुँह में फेन भर लाता, और दाँत पीसता, और सूखता जाता है। और मैंने तेरे चेलों से कहा, कि वे उसे निकाल दें, परन्तु वे निकाल न सके।” 19 यह सुनकर उसने उनसे उत्तर देके कहा, “हे अविश्वासी लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? और कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे मेरे पास लाओ।” 20 तब वे उसे उसके पास ले आए। और जब उसने उसे देखा, तो उस आत्मा ने तुरन्त उसे मरोड़ा, और वह भूमि पर गिरा, और मुँह से फेन बहाते हुए लोटने लगा। 21 उसने उसके पिता से पूछा, “इसकी यह दशा कब से है?” और उसने कहा, “बचपन से। 22 उसने इसे नाश करने के लिये कभी आग और कभी पानी में गिराया; परन्तु यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर।” 23 यीशु ने उससे कहा, “यदि तू कर सकता है! यह क्या बात है? विश्वास करनेवाले के लिये सब कुछ हो सकता है।” 24 बालक के पिता ने तुरन्त पुकारकर कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ; मेरे अविश्वास का उपाय कर।” 25 जब यीशु ने देखा, कि लोग दौड़कर भीड़ लगा रहे हैं, तो उसने अशुद्ध आत्मा को यह कहकर डाँटा, कि “हे गूंगी और बहरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ, उसमें से निकल आ, और उसमें फिर कभी प्रवेश न करना।” 26 तब वह चिल्लाकर, और उसे बहुत मरोड़ कर, निकल आई; और बालक मरा हुआ सा हो गया, यहाँ तक कि बहुत लोग कहने लगे, कि वह मर गया। 27 परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया, और वह खड़ा हो गया। 28 जब वह घर में आया, तो उसके चेलों ने एकान्त में उससे पूछा, “हम उसे क्यों न निकाल सके?” 29 उसने उनसे कहा, “यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती।”
30 फिर वे वहाँ से चले, और गलील में होकर जा रहे थे, वह नहीं चाहता था कि कोई जाने, 31 क्योंकि वह अपने चेलों को उपदेश देता और उनसे कहता था, “मनुष्य का पुत्र, मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मार डालेंगे; और वह मरने के तीन दिन बाद जी उठेगा।” 32 पर यह बात उनकी समझ में नहीं आई, और वे उससे पूछने से डरते थे।
33 फिर वे कफरनहूम में आए; और घर में आकर उसने उनसे पूछा, “रास्ते में तुम किस बात पर विवाद कर रहे थे?” 34 वे चुप रहे क्योंकि, मार्ग में उन्होंने आपस में यह वाद-विवाद किया था, कि हम में से बड़ा कौन है? 35 तब उसने बैठकर बारहों को बुलाया, और उनसे कहा, “यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सबसे छोटा और सब का सेवक बने।” 36 और उसने एक बालक को लेकर उनके बीच में खड़ा किया, और उसको गोद में लेकर उनसे कहा, 37 “जो कोई मेरे नाम से ऐसे बालकों में से किसी एक को भी ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता, वह मुझे नहीं, वरन् मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।” 38 तब यूहन्ना ने उससे कहा, “हे गुरु, हमने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा और हम उसे मना करने लगे, क्योंकि वह हमारे पीछे नहीं हो लेता था।” 39 यीशु ने कहा, “उसको मना मत करो; क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से सामर्थ्य का काम करे, और आगे मेरी निन्दा करे, 40 क्योंकि जो हमारे विरोध में नहीं, वह हमारी ओर है। 41 जो कोई एक कटोरा पानी तुम्हें इसलिए पिलाए कि तुम मसीह के हो तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह अपना प्रतिफल किसी तरह से न खोएगा।”
42 “जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं, किसी को ठोकर खिलाएँ तो उसके लिये भला यह है कि एक बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वह समुद्र में डाल दिया जाए। 43 यदि तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे काट डाल टुण्डा होकर जीवन में प्रवेश करना, तेरे लिये इससे भला है कि दो हाथ रहते हुए नरक के बीच उस आग में डाला जाए जो कभी बुझने की नहीं। 44 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती। 45 और यदि तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे काट डाल। लँगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो पाँव रहते हुए नरक में डाला जाए। 46 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती 47 और यदि तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे निकाल डाल, काना होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो आँख रहते हुए तू नरक में डाला जाए। 48 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती। (यशा. 66:24) 49 क्योंकि हर एक जन आग से नमकीन किया जाएगा। 50 नमक अच्छा है, पर यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो उसे किससे नमकीन करोगे? अपने में नमक रखो, और आपस में मेल मिलाप से रहो।”
यीशु अभी-अभी अपने शिष्यों और श्रोताओं से अपने अनुसरण की चर्चा कर रहा था।
"बहुत अधिक श्वेत"
कपड़ों पर से दाग हटाने और उन्हें उज्जवल बनाने के लिए एक रसायन काम में लिया जाता है। धोबी कपड़ों में से धाग को हटाता है।
"अत्यधिक भयभीत हो गए"
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को अपने साथ एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया जहाँ यीशु के वस्त्र उज्जवल हो गए थे।
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया जहाँ वह मूसा और एलिय्याह के साथ उज्जवल वस्त्रों में दिखाई देने लगा था।
उन्होंने इस घटना की चर्चा किसी से नहीं की, जिन्होंने इसे देखा नहीं था।
"मरकर जी उठने तक"
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया जहाँ यीशु मूसा और एलिय्याह के साथ उज्जवल वस्त्रों में दिखाई देने लगा था।
भविष्यद्वाणी थी कि एलिय्याह फिर से स्वर्ग से उतरेगा तब मसीह, मनुष्य का पुत्र, राज करने आएगा। अन्य भविष्यद्वाणियां भी थी कि मनुष्य का पुत्र बहुत दुःख उठाएगा और तुच्छ गिना जाएगा। शिष्य विमूढ़ थे कि ये दोनों बातें कैसे होंगी।
भविष्यद्वाणी में प्रायः दो पूर्तियां होती हैं।
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया जहाँ यीशु मूसा और एलिय्याह के साथ उज्जवल वस्त्रों में दिखाई देने लगा था।
"तर्क-वितर्क", या "झगड़ा" या "पूछताछ करना"
यीशु वहां पहुंचता है जहां उसके अन्य शिष्य विधि शास्त्रियों के साथ विवाद में उलझे हुए थे।
"मेरे पुत्र से इस दुष्टात्मा को निकाल दे", या "इस दुष्टात्मा को बाहर कर दे"।
"सहन करूंगा" या "तुम्हारे साथ निर्वाह करूंगा"।
उस बालक का पिता यीशु से कहता है कि उसके शिष्य उसके पुत्र को चंगा नहीं कर पाए।
"दया कर" या "कृपा कर"
यीशु उस मनुष्य के सन्देह की भर्त्सना कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, "यीशु ने उससे कहा", तू क्यों कहता है, यदि तू कर सकता है?...विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ हो सकता है" या "यीशु ने उससे कहा", तुझे ऐसा नहीं कहना था, यदि तू कर सकता है?.... सब कुछ संभव है।"
यीशु ने उस बालक में से अभी-अभी दुष्टात्मा को निकाला है।
"वह बालक मृतक सा प्रतीत होने लगा" या "वह बालक मरा हुआ सा हो गया"।
यीशु ने उस दुष्टात्माग्रस्त बालक को चंगा किया जिसे उसके शिष्य चंगा न कर पाये थे।
उस दुष्टात्माग्रस्त बालक को चंगा करने के बाद यीशु और उसके शिष्य उस स्थान से कूच करते हैं।
"निकल रहे थे" या "आगे जा रहे थे"
"3 दिन से"
यीशु और उसके शिष्य गलील से निकल आये कि वह उन्हें जनसमूह की अनुपस्थिति में शिक्षा दे पायें।
यीशु न अपने शिष्यों को शिक्षा दी कि वे स्वयं को उसमें विश्वास करने वाले बालकों से अधिक न समझें।
"दुष्टात्माओं को बहिष्कृत करते देखा है।"
अन्न का आटा पीसने वाली चक्की
"आग बुझाई नहीं जा सकती"
कुछ प्राचीन लेखों में यह पद है परन्तु कुछ में नहीं है।
"परमेश्वर तुझे नरक में डाले"।
कुछ प्राचीन लेखों में यह पद है परन्तु कुछ में नहीं है।
"उनकी मृतक देह को खाने वाले कीड़े"
यीशु ने कहा कि वहाँ खड़े हुए लोगों में ऐसे जन हैं जो परमेश्वर के राज्य को सामर्थ्य में आता देखे बिना मृत्यु का स्वाद नहीं चखेंगे।
यीशु का रूपान्तरण हुआ और उसके वस्त्र चमकने लगे।
एलिय्याह और मूसा यीशु के साथ बातें कर रहे थे।
वहाँ बादल में से ये शब्द निकले, “यह मेरा प्रिय पुत्र है; उसकी सुनो।”
यीशु ने उनसे कहा कि मनुष्य के पुत्र के मृतकोत्थान तक किसी से कुछ न कहें।
यीशु ने कहा कि एलिय्याह सचमुच पहले आकर सब कुछ सुधारेगा और एलिय्याह आ चुका है।
चेले उस पिता के पुत्र में से दुष्टात्मा नहीं निकाल पाए थे।
वह दुष्टात्मा उस बालक को कभी आग में कभी पानी में गिरा देता था कि वह नष्ट हो जाए।
उस बालक पुत्र ने कहा, "हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अविश्वास का उपाय कर"।
चेले उस दुष्टात्मा को निकालने में असमर्थ रहे क्योंकि उसके लिए प्रार्थना की आवश्यकता थी।
यीशु ने उनसे कहा कि वह मारा जायेगा परन्तु तीन दिन बाद फिर जी उठेगा।
चेले आपस में विवाद कर रहे थे कि उनमें बड़ा कौन है।
यीशु ने कहा कि प्रथम वही है जो सबका सेवक हो।
यदि कोई किसी छोटे बालक को यीशु के नाम में ग्रहण करे तो वह यीशु को और यीशु के भेजने वाले को ग्रहण करता है।
इसके लिए उचित हो कि उसके गले में चक्की का पाट बांधकर उसे गहरे समुद्र में डाल दिया जाए।
यीशु ने कहा कि प्रत्येक ठोकर के कारण को दूर कर दें।
यीशु ने कहा कि नरक में कीड़े नहीं मरते न ही आग कभी बुझती है।
1 फिर वह वहाँ से उठकर यहूदिया के सीमा-क्षेत्र और यरदन के पार आया, और भीड़ उसके पास फिर इकट्ठी हो गई, और वह अपनी रीति के अनुसार उन्हें फिर उपदेश देने लगा। 2 तब फरीसियों* ने उसके पास आकर उसकी परीक्षा करने को उससे पूछा, “क्या यह उचित है, कि पुरुष अपनी पत्नी को त्यागे?” 3 उसने उनको उत्तर दिया, “मूसा ने तुम्हें क्या आज्ञा दी है?” 4 उन्होंने कहा, “मूसा ने त्याग-पत्र लिखने और त्यागने की आज्ञा दी है।” (व्य. 24:1-3) 5 यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे मन की कठोरता के कारण उसने तुम्हारे लिये यह आज्ञा लिखी। 6 पर सृष्टि के आरम्भ से, परमेश्वर ने नर और नारी करके उनको बनाया है। (उत्प. 1:27, उत्प. 5:2) 7 इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा, 8 और वे दोनों एक तन होंगे’; इसलिए वे अब दो नहीं, पर एक तन हैं। (उत्प. 2:24) 9 इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” 10 और घर में चेलों ने इसके विषय में उससे फिर पूछा। 11 उसने उनसे कहा, “जो कोई अपनी पत्नी को त्याग कर दूसरी से विवाह करे तो वह उस पहली के विरोध में व्यभिचार करता है। 12 और यदि पत्नी अपने पति को छोड़कर दूसरे से विवाह करे, तो वह व्यभिचार करती है।”
13 फिर लोग बालकों को उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; पर चेलों ने उनको डाँटा। 14 यीशु ने यह देख क्रुद्ध होकर उनसे कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है। 15 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक की तरह ग्रहण न करे, वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।” 16 और उसने उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।
17 और जब वह निकलकर मार्ग में जाता था, तो एक मनुष्य उसके पास दौड़ता हुआ आया, और उसके आगे घुटने टेककर उससे पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?” 18 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात् परमेश्वर। 19 तू आज्ञाओं को तो जानता है: ‘हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना*, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना।’ (निर्ग. 20:12-16, रोम. 13:9) 20 उसने उससे कहा, “हे गुरु, इन सब को मैं लड़कपन से मानता आया हूँ।” 21 यीशु ने उस पर दृष्टि करके उससे प्रेम किया, और उससे कहा, “तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेचकर गरीबों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।” 22 इस बात से उसके चेहरे पर उदासी छा गई, और वह शोक करता हुआ चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
23 यीशु ने चारों ओर देखकर अपने चेलों से कहा, “धनवानों को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!” 24 चेले उसकी बातों से अचम्भित हुए। इस पर यीशु ने फिर उनसे कहा, “हे बालकों, जो धन पर भरोसा रखते हैं, उनके लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है! 25 परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है!” 26 वे बहुत ही चकित होकर आपस में कहने लगे, “तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?” 27 यीशु ने उनकी ओर देखकर कहा, “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।” (अय्यू. 42:2, लूका 1:37) 28 पतरस उससे कहने लगा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।” 29 यीशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं, जिस ने मेरे और सुसमाचार के लिये घर या भाइयों या बहनों या माता या पिता या बाल-बच्चों या खेतों को छोड़ दिया हो, 30 और अब इस समय* सौ गुणा न पाए, घरों और भाइयों और बहनों और माताओं और बाल-बच्चों और खेतों को, पर सताव के साथ और परलोक में अनन्त जीवन। 31 पर बहुत सारे जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, वे पहले होंगे।”
32 और वे यरूशलेम को जाते हुए मार्ग में थे, और यीशु उनके आगे-आगे जा रहा था : और चेले अचम्भा करने लगे और जो उसके पीछे-पीछे चलते थे वे डरे हुए थे, तब वह फिर उन बारहों को लेकर उनसे वे बातें कहने लगा, जो उस पर आनेवाली थीं। 33 “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और मनुष्य का पुत्र प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उसको मृत्यु के योग्य ठहराएँगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे। 34 और वे उसका उपहास करेंगे, उस पर थूकेंगे, उसे कोड़े मारेंगे, और उसे मार डालेंगे, और तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।”
35 तब जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना ने उसके पास आकर कहा, “हे गुरु, हम चाहते हैं, कि जो कुछ हम तुझ से माँगे, वही तू हमारे लिये करे।” 36 उसने उनसे कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?” 37 उन्होंने उससे कहा, “हमें यह दे, कि तेरी महिमा में हम में से एक तेरे दाहिने और दूसरा तेरे बाएँ बैठे।” 38 यीशु ने उनसे कहा, “तुम नहीं जानते, कि क्या माँगते हो? जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, क्या तुम पी सकते हो? और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूँ, क्या तुम ले सकते हो?” 39 उन्होंने उससे कहा, “हम से हो सकता है।” यीशु ने उनसे कहा, “जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, तुम पीओगे; और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूँ, उसे लोगे। 40 पर जिनके लिये तैयार किया गया है, उन्हें छोड़ और किसी को अपने दाहिने और अपने बाएँ बैठाना मेरा काम नहीं।” 41 यह सुनकर दसों याकूब और यूहन्ना पर रिसियाने लगे। 42 तो यीशु ने उनको पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि जो अन्यजातियों के अधिपति समझे जाते हैं, वे उन पर प्रभुता करते हैं; और उनमें जो बड़े हैं, उन पर अधिकार जताते हैं। 43 पर तुम में ऐसा नहीं है, वरन् जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने; 44 और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने। 45 क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिए नहीं आया, कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिए आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों के छुटकारे के लिये अपना प्राण दे।”
46 वे यरीहो में आए, और जब वह और उसके चेले, और एक बड़ी भीड़ यरीहो से निकलती थी, तब तिमाई का पुत्र बरतिमाई एक अंधा भिखारी, सड़क के किनारे बैठा था। 47 वह यह सुनकर कि यीशु नासरी है, पुकार-पुकारकर कहने लगा “हे दाऊद की सन्तान, यीशु मुझ पर दया कर।” 48 बहुतों ने उसे डाँटा कि चुप रहे, पर वह और भी पुकारने लगा, “हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर।” 49 तब यीशु ने ठहरकर कहा, “उसे बुलाओ।” और लोगों ने उस अंधे को बुलाकर उससे कहा, “धैर्य रख, उठ, वह तुझे बुलाता है।” 50 वह अपना कपड़ा फेंककर शीघ्र उठा, और यीशु के पास आया। 51 इस पर यीशु ने उससे कहा, “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिये करूँ?” अंधे ने उससे कहा, “हे रब्बी, यह कि मैं देखने लगूँ।” 52 यीशु ने उससे कहा, “चला जा, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा कर दिया है।” और वह तुरन्त देखने लगा, और मार्ग में उसके पीछे हो लिया।
यीशु और उसके शिष्यों ने कफरनहूम से कूच किया।
"तुम्हारे हठ के कारण"
यह रूपक पति-पत्नी की शारीरिक एकता को व्यक्त करता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "तेरे कहने का अभिप्राय क्या है उस पर ध्यान दे (या तेरे कहने का अभिप्राय है कि मैं परमेश्वर हूं), मुझे उत्तम कह रहा है, उत्तम तो केवल परमेश्वर ही है।" देखें:
ऊंट का सूई के छिद्र में से निकल जाना असंभव होता है। धनवानों के लिए अपने जीवन को परमेश्वर के अधीन रखना उतना ही कठिन है।
"सूई के नाके" अर्थात सूई के छिद्र।
"तब तो किसी का भी उद्धार नहीं हो सकता"!
"जिसने भी छोड़ दिया है....वह पाएगा"।
"मेरे लाभ के लिए" या "मेरे कारण"
"इस जीवन को" या "इस वर्तमान युग को"
"आने वाले जीवन" या "आने वाले युग"
"लोग मनुष्य के पुत्र को पकड़वायेंगे" या "लोग मनुष्य के पुत्र को....हाथों में दे देंगे"।
याकूब और यूहन्ना ने यीशु से निवेदन किया कि जब वह पृथ्वी पर राज करे तब क्या वे उसे दाहिने बाएं बैठाएं जाएगे।
यीशु इस वाक्यांश में अपनी आने वाली पीड़ा का संदर्भ दे रहा है।
यीशु इस वाक्यांश में अपनी आने वाली पीड़ा का संदर्भ दे रहा है।
"वे जो शासक माने जाते हैं"
"अधीन रखते हैं" या "उन पर अधिकार होता है"
"अधिकार का उपयोग करते हैं"
"सम्मान पाना चाहे" या "प्रशंसा पाना चाहे"
कोई भी
"क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिए नहीं आया कि लोगों से अपनी सेवा करवाए।"
यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम की ओर अग्रसर है।
एक व्यक्ति का नाम
उस अन्धे भिखारी का नाम
यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम की ओर अग्रसर हैं और यरीहो के बाहर एक अंधा व्यक्ति यीशु को पुकारता है।
"उसे बुलाने के लिए लोगों से कहा"
"डर मत"
यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम के लिए अग्रसर हैं।
"देखने की क्षमता प्राप्त करूं"
"तत्काल" या "अविलम्ब"
फरीसियों ने यीशु से पूछा कि पत्नी को तलाक देना क्या उचित है।
तलाक पत्र देने की व्यवस्था मूसा ने की थी।
मूसा ने उनके मनकी कठोरता के कारण ऐसी आज्ञा दी थी।
यीशु ने विवाद के बारे में परमेश्वर की मूल व्यवस्था व्यक्त करने के लिए आरंभ में नर-नारी की सृष्टि का संदर्भ दिया।
यीशु ने कहा कि पति-पत्नी एक देह होंगे।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर ने जिसे जोड़ा है उसे कोई अलग न करे।
यीशु चेलों पर क्रोधित हुआ और कहा कि बच्चों को उसके पास आने दें।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए बालकों के सदृश्य उसे ग्रहण करना है।
यीशु ने उससे कहा, हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना अपने माता-पिता का आदर करना।
यीशु ने उससे कहा कि वह सब कुछ बेचकर उसके पीछे आ जाए।
वह व्यक्ति दुखी होकर चला गया क्योंकि उसके पास बहुत धन संपदा थी।
यीशु ने कहा कि धनवान का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है।
यीशु ने कहा कि मनुष्यों के लिए तो असंभव है परन्तु परमेश्वर के लिए संभव है।
यीशु ने कहा कि वे इस समय सौ गुना पाएंगे पर सताव के साथ और परलोक में अनन्त जीवन पाएंगे।
यीशु और उसके चेले यरूशलेम के मार्ग पर थे।
यीशु ने अपने चेलों से कहा कि उसे घात किया जायेगा परन्तु वह तीन दिन बाद फिर जी उठेगा।
याकूब और यूहन्ना ने यीशु से निवेदन किया कि उसकी महिमा में वे उसके दहिनी ओर बाई ओर बैठाएं जाएं।
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यीशु ने कहा कि उन्हें दहिनी और बाई ओर बैठाना यीशु का काम नहीं है।
यीशु ने कहा कि अन्यजाति के शासक अपनी प्रजा पर प्रभुता करते हैं।
यीशु ने कहा कि उसके चेलों में जो बड़ा होना चाहे वह सबका सेवक बने।
अंधा बरतिमाई और भी अधिक पुकारने लगा, "हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर" |
यीशु ने कहा कि बरतिमाई के विश्वास ने उसे चंगा कर दिया है।
1 जब वे यरूशलेम के निकट, जैतून पहाड़ पर बैतफगे* और बैतनिय्याह के पास आए, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहकर भेजा, 2 “सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा, जिस पर कभी कोई नहीं चढ़ा, बंधा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोल लाओ। 3 यदि तुम से कोई पूछे, ‘यह क्यों करते हो?’ तो कहना, ‘प्रभु को इसका प्रयोजन है,’ और वह शीघ्र उसे यहाँ भेज देगा।” 4 उन्होंने जाकर उस बच्चे को बाहर द्वार के पास चौक में बंधा हुआ पाया, और खोलने लगे। 5 उनमें से जो वहाँ खड़े थे, कोई-कोई कहने लगे “यह क्या करते हो, गदही के बच्चे को क्यों खोलते हो?” 6 चेलों ने जैसा यीशु ने कहा था, वैसा ही उनसे कह दिया; तब उन्होंने उन्हें जाने दिया। 7 और उन्होंने बच्चे को यीशु के पास लाकर उस पर अपने कपड़े डाले और वह उस पर बैठ गया। 8 और बहुतों ने अपने कपड़े मार्ग में बिछाए और औरों ने खेतों में से डालियाँ काट-काट कर फैला दीं। 9 और जो उसके आगे-आगे जाते और पीछे-पीछे चले आते थे, पुकार-पुकारकर कहते जाते थे, “होशाना*; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है। (भज. 118:26) 10 हमारे पिता दाऊद का राज्य जो आ रहा है; धन्य है! आकाश में होशाना।” (मत्ती 23:39) 11 और वह यरूशलेम पहुँचकर मन्दिर में आया, और चारों ओर सब वस्तुओं को देखकर बारहों के साथ बैतनिय्याह गया, क्योंकि सांझ हो गई थी।
12 दूसरे दिन जब वे बैतनिय्याह से निकले तो उसको भूख लगी। 13 और वह दूर से अंजीर का एक हरा पेड़ देखकर निकट गया, कि क्या जाने उसमें कुछ पाए: पर पत्तों को छोड़ कुछ न पाया; क्योंकि फल का समय न था। 14 इस पर उसने उससे कहा, “अब से कोई तेरा फल कभी न खाए।” और उसके चेले सुन रहे थे।
15 फिर वे यरूशलेम में आए, और वह मन्दिर में गया; और वहाँ जो लेन-देन कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा, और सर्राफों के मेज़ें और कबूतर के बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं।
16 और मन्दिर में से होकर किसी को बर्तन लेकर आने-जाने न दिया। 17 और उपदेश करके उनसे कहा, “क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।” (लूका 19:46, यिर्म. 7:11) 18 यह सुनकर प्रधान याजक और शास्त्री उसके नाश करने का अवसर ढूँढ़ने लगे; क्योंकि उससे डरते थे, इसलिए कि सब लोग उसके उपदेश से चकित होते थे। 19 और सांझ होते ही वे नगर से बाहर चले गए।
20 फिर भोर को जब वे उधर से जाते थे तो उन्होंने उस अंजीर के पेड़ को जड़ तक सूखा हुआ देखा। 21 पतरस को वह बात स्मरण आई, और उसने उससे कहा, “हे रब्बी*, देख! यह अंजीर का पेड़ जिसे तूने श्राप दिया था सूख गया है।” 22 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “परमेश्वर पर विश्वास रखो। 23 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे, ‘तू उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़,’ और अपने मन में सन्देह न करे, वरन् विश्वास करे, कि जो कहता हूँ वह हो जाएगा, तो उसके लिये वही होगा। 24 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कुछ तुम प्रार्थना करके माँगो तो विश्वास कर लो कि तुम्हें मिल गया, और तुम्हारे लिये हो जाएगा। 25 और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थना करते हो, तो यदि तुम्हारे मन में किसी की ओर से कुछ विरोध हो, तो क्षमा करो: इसलिए कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करे। 26 परन्तु यदि तुम क्षमा न करो तो तुम्हारा पिता भी जो स्वर्ग में है, तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा।”
27 वे फिर यरूशलेम में आए, और जब वह मन्दिर में टहल रहा था तो प्रधान याजक और शास्त्री और पुरनिए उसके पास आकर पूछने लगे। 28 “तू ये काम किस अधिकार से करता है? और यह अधिकार तुझे किसने दिया है कि तू ये काम करे?” 29 यीशु ने उनसे कहा, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; मुझे उत्तर दो, तो मैं तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ। 30 यूहन्ना का बपतिस्मा क्या स्वर्ग की ओर से था या मनुष्यों की ओर से था? मुझे उत्तर दो।” 31 तब वे आपस में विवाद करने लगे कि यदि हम कहें ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह कहेगा, ‘फिर तुम ने उसका विश्वास क्यों नहीं की?’ 32 और यदि हम कहें, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तो लोगों का डर है, क्योंकि सब जानते हैं कि यूहन्ना सचमुच भविष्यद्वक्ता था। 33 तब उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं भी तुम को नहीं बताता, कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ।”
1 फिर वह दृष्टान्तों में उनसे बातें करने लगा: “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा, और रस का कुण्ड खोदा, और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। 2 फिर फल के मौसम में उसने किसानों के पास एक दास को भेजा कि किसानों से दाख की बारी के फलों का भाग ले। 3 पर उन्होंने उसे पकड़कर पीटा और खाली हाथ लौटा दिया। 4 फिर उसने एक और दास को उनके पास भेजा और उन्होंने उसका सिर फोड़ डाला और उसका अपमान किया। 5 फिर उसने एक और को भेजा, और उन्होंने उसे मार डाला; तब उसने और बहुतों को भेजा, उनमें से उन्होंने कितनों को पीटा, और कितनों को मार डाला। 6 अब एक ही रह गया था, जो उसका प्रिय पुत्र था; अन्त में उसने उसे भी उनके पास यह सोचकर भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। 7 पर उन किसानों ने आपस में कहा; ‘यही तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, तब विरासत हमारी हो जाएगी।’ 8 और उन्होंने उसे पकड़कर मार डाला, और दाख की बारी के बाहर फेंक दिया।
9 “इसलिए दाख की बारी का स्वामी क्या करेगा? वह आकर उन किसानों का नाश करेगा, और दाख की बारी औरों को दे देगा। 10 क्या तुम ने पवित्रशास्त्र में यह वचन नहीं पढ़ा:
‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था,
वही कोने का सिरा* हो गया;
11 यह प्रभु की ओर से हुआ,
और हमारी दृष्टि में अद्भुत है’!” (भज. 118:23)
12 तब उन्होंने उसे पकड़ना चाहा; क्योंकि समझ गए थे, कि उसने हमारे विरोध में यह दृष्टान्त कहा है: पर वे लोगों से डरे; और उसे छोड़कर चले गए।
13 तब उन्होंने उसे बातों में फँसाने के लिये कई एक फरीसियों और हेरोदियों को उसके पास भेजा। 14 और उन्होंने आकर उससे कहा, “हे गुरु, हम जानते हैं, कि तू सच्चा है, और किसी की परवाह नहीं करता; क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता, परन्तु परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से बताता है। तो क्या कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं? 15 हम दें, या न दें?” उसने उनका कपट जानकर उनसे कहा, “मुझे क्यों परखते हो? एक दीनार मेरे पास लाओ, कि मैं देखूँ।” 16 वे ले आए, और उसने उनसे कहा, “यह मूर्ति और नाम किस का है?” उन्होंने कहा, “कैसर का।” 17 यीशु ने उनसे कहा, “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्वर का है परमेश्वर को दो।” तब वे उस पर बहुत अचम्भा करने लगे।
18 फिर सदूकियों* ने भी, जो कहते हैं कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, उसके पास आकर उससे पूछा, 19 “हे गुरु, मूसा ने हमारे लिये लिखा है, कि यदि किसी का भाई बिना सन्तान मर जाए, और उसकी पत्नी रह जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी से विवाह कर ले और अपने भाई के लिये वंश उत्पन्न करे। (उत्प. 38:8, व्य. 25:5) 20 सात भाई थे। पहला भाई विवाह करके बिना सन्तान मर गया। 21 तब दूसरे भाई ने उस स्त्री से विवाह कर लिया और बिना सन्तान मर गया; और वैसे ही तीसरे ने भी। 22 और सातों से सन्तान न हुई। सब के पीछे वह स्त्री भी मर गई। 23 अतः जी उठने पर वह उनमें से किस की पत्नी होगी? क्योंकि वह सातों की पत्नी हो चुकी थी।”
24 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम इस कारण से भूल में नहीं पड़े हो कि तुम न तो पवित्रशास्त्र ही को जानते हो, और न परमेश्वर की सामर्थ्य को? 25 क्योंकि जब वे मरे हुओं में से जी उठेंगे, तो उनमें विवाह-शादी न होगी; पर स्वर्ग में दूतों के समान होंगे। 26 मरे हुओं के जी उठने के विषय में क्या तुम ने मूसा की पुस्तक* में झाड़ी की कथा में नहीं पढ़ा कि परमेश्वर ने उससे कहा: ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ?’ 27 परमेश्वर मरे हुओं का नहीं, वरन् जीवितों का परमेश्वर है, तुम बड़ी भूल में पड़े हो।”
28 और शास्त्रियों में से एक ने आकर उन्हें विवाद करते सुना, और यह जानकर कि उसने उन्हें अच्छी रीति से उत्तर दिया, उससे पूछा, “सबसे मुख्य आज्ञा कौन सी है?” 29 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है: ‘हे इस्राएल सुन, प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है। 30 और तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से, और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।’ 31 और दूसरी यह है, ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।’ इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।” 32 शास्त्री ने उससे कहा, “हे गुरु, बहुत ठीक! तूने सच कहा कि वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं। (यशा. 45:18, व्य. 4:35) 33 और उससे सारे मन, और सारी बुद्धि, और सारे प्राण, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना; और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमबलियों और बलिदानों से बढ़कर है।” (व्य. 6:4-5, लैव्य. 19:18, होशे 6:6) 34 जब यीशु ने देखा कि उसने समझ से उत्तर दिया, तो उससे कहा, “तू परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं।” और किसी को फिर उससे कुछ पूछने का साहस न हुआ।
35 फिर यीशु ने मन्दिर में उपदेश करते हुए यह कहा, “शास्त्री क्यों कहते हैं, कि मसीह दाऊद का पुत्र है? 36 दाऊद ने आप ही पवित्र आत्मा में होकर कहा है:
‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा, “मेरे दाहिने बैठ,
जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों की चौकी न कर दूँ।”’ (भज. 110:1)
37 दाऊद तो आप ही उसे प्रभु कहता है, फिर वह उसका पुत्र कहाँ से ठहरा?” और भीड़ के लोग उसकी आनन्द से सुनते थे।
38 उसने अपने उपदेश में उनसे कहा, “शास्त्रियों से सावधान रहो, जो लम्बे वस्त्र पहने हुए फिरना और बाजारों में नमस्कार, 39 और आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन और भोज में मुख्य-मुख्य स्थान भी चाहते हैं। 40 वे विधवाओं के घरों को खा जाते हैं, और दिखाने के लिये बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हैं, ये अधिक दण्ड पाएँगे।”
41 और वह मन्दिर के भण्डार के सामने बैठकर देख रहा था कि लोग मन्दिर के भण्डार में किस प्रकार पैसे डालते हैं, और बहुत धनवानों ने बहुत कुछ डाला। 42 इतने में एक गरीब विधवा ने आकर दो दमड़ियाँ, जो एक अधेले के बराबर होती है, डाली। 43 तब उसने अपने चेलों को पास बुलाकर उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से इस गरीब विधवा ने सबसे बढ़कर डाला है; 44 क्योंकि सब ने अपने धन की बढ़ती में से डाला है, परन्तु इसने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात् अपनी सारी जीविका डाल दी है।”
1 जब वह मन्दिर से निकल रहा था, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, देख, कैसे-कैसे पत्थर और कैसे-कैसे भवन हैं!” 2 यीशु ने उससे कहा, “क्या तुम ये बड़े-बड़े भवन देखते हो: यहाँ पत्थर पर पत्थर भी बचा न रहेगा जो ढाया न जाएगा।”
3 जब वह जैतून के पहाड़ पर मन्दिर के सामने बैठा था, तो पतरस और याकूब और यूहन्ना और अन्द्रियास ने अलग जाकर उससे पूछा, 4 “हमें बता कि ये बातें कब होंगी? और जब ये सब बातें पूरी होने पर होंगी उस समय का क्या चिन्ह होगा?” 5 यीशु उनसे कहने लगा, “सावधान रहो* कि कोई तुम्हें न भरमाए। 6 बहुत सारे मेरे नाम से आकर कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और बहुतों को भरमाएँगे। 7 और जब तुम लड़ाइयाँ, और लड़ाइयों की चर्चा सुनो, तो न घबराना; क्योंकि इनका होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा। 8 क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा। और हर कहीं भूकम्प होंगे, और अकाल पड़ेंगे। यह तो पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा। (यिर्म. 6:24)
9 “परन्तु तुम अपने विषय में सावधान रहो, क्योंकि लोग तुम्हें सभाओं में सौंपेंगे और तुम आराधनालयों में पीटे जाओगे, और मेरे कारण राज्यपालों और राजाओं के आगे खड़े किए जाओगे, ताकि उनके लिये गवाही हो। 10 पर अवश्य है कि पहले सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाए। 11 जब वे तुम्हें ले जाकर सौंपेंगे, तो पहले से चिन्ता न करना, कि हम क्या कहेंगे। पर जो कुछ तुम्हें उसी समय बताया जाए, वही कहना; क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो, परन्तु पवित्र आत्मा है। 12 और भाई को भाई, और पिता को पुत्र मरने के लिये सौंपेंगे, और बच्चे माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे। (लूका 21:16, मीका 7:6) 13 और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे; पर जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।
14 “अतः जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु* को जहाँ उचित नहीं वहाँ खड़ी देखो, (पढ़नेवाला समझ ले) तब जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जाएँ। (दानि. 9:27, दानि. 12:11) 15 जो छत पर हो, वह अपने घर से कुछ लेने को नीचे न उतरे और न भीतर जाए। 16 और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने के लिये पीछे न लौटे। 17 उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय! हाय! 18 और प्रार्थना किया करो कि यह जाड़े में न हो। 19 क्योंकि वे दिन ऐसे क्लेश के होंगे, कि सृष्टि के आरम्भ से जो परमेश्वर ने रची है अब तक न तो हुए, और न कभी फिर होंगे। (मत्ती 24:21) 20 और यदि प्रभु उन दिनों को न घटाता, तो कोई प्राणी भी न बचता; परन्तु उन चुने हुओं के कारण जिनको उसने चुना है, उन दिनों को घटाया। 21 उस समय यदि कोई तुम से कहे, ‘देखो, मसीह यहाँ है!’ या ‘देखो, वहाँ है!’ तो विश्वास न करना। 22 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें। (मत्ती 24:24) 23 पर तुम सावधान रहो देखो, मैंने तुम्हें सब बातें पहले ही से कह दी हैं।
24 “उन दिनों में, उस क्लेश के बाद सूरज अंधेरा हो जाएगा, और चाँद प्रकाश न देगा; 25 और आकाश से तारागण गिरने लगेंगे, और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। (प्रका. 6:13, यशा. 34:4) 26 तब लोग मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और महिमा के साथ बादलों में आते देखेंगे। (दानि. 7:13, प्रका. 1:17) 27 उस समय वह अपने स्वर्गदूतों* को भेजकर, पृथ्वी के इस छोर से आकाश के उस छोर तक चारों दिशा से अपने चुने हुए लोगों को इकट्ठा करेगा। (व्य. 30:4, मत्ती 24:31)
28 “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो जब उसकी डाली कोमल हो जाती; और पत्ते निकलने लगते हैं; तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। 29 इसी रीति से जब तुम इन बातों को होते देखो, तो जान लो, कि वह निकट है वरन् द्वार ही पर है। 30 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो लेंगी, तब तक यह लोग जाते न रहेंगे। 31 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी। (यशा. 40:8, लूका 21:33)
32 “उस दिन या उस समय के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र; परन्तु केवल पिता। 33 देखो, जागते और प्रार्थना करते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा। 34 यह उस मनुष्य के समान दशा है, जो परदेश जाते समय अपना घर छोड़ जाए, और अपने दासों को अधिकार दे: और हर एक को उसका काम जता दे, और द्वारपाल को जागते रहने की आज्ञा दे। 35 इसलिए जागते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का स्वामी कब आएगा, सांझ को या आधी रात को, या मुर्गे के बाँग देने के समय या भोर को। 36 ऐसा न हो कि वह अचानक आकर तुम्हें सोते पाए। 37 और जो मैं तुम से कहता हूँ, वही सबसे कहता हूँ: जागते रहो।”
1 दो दिन के बाद फसह* और अख़मीरी रोटी का पर्व होनेवाला था। और प्रधान याजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उसे कैसे छल से पकड़कर मार डालें। 2 परन्तु कहते थे, “पर्व के दिन नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोगों में दंगा मचे।”
3 जब वह बैतनिय्याह* में शमौन कोढ़ी के घर भोजन करने बैठा हुआ था तब एक स्त्री संगमरमर के पात्र में जटामांसी का बहुमूल्य शुद्ध इत्र लेकर आई; और पात्र तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर उण्डेला। 4 परन्तु कुछ लोग अपने मन में झुँझला कर कहने लगे, “इस इत्र का क्यों सत्यनाश किया गया? 5 क्योंकि यह इत्र तो तीन सौ दीनार से अधिक मूल्य में बेचकर गरीबों को बाँटा जा सकता था।” और वे उसको झिड़कने लगे। 6 यीशु ने कहा, “उसे छोड़ दो; उसे क्यों सताते हो? उसने तो मेरे साथ भलाई की है। 7 गरीब तुम्हारे साथ सदा रहते हैं और तुम जब चाहो तब उनसे भलाई कर सकते हो; पर मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा। (व्य. 15:11) 8 जो कुछ वह कर सकी, उसने किया; उसने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में पहले से मेरी देह पर इत्र मला है। 9 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम की चर्चा भी उसके स्मरण में की जाएगी।”
10 तब यहूदा इस्करियोती जो बारह में से एक था, प्रधान याजकों के पास गया, कि उसे उनके हाथ पकड़वा दे। 11 वे यह सुनकर आनन्दित हुए, और उसको रुपये देना स्वीकार किया, और यह अवसर ढूँढ़ने लगा कि उसे किसी प्रकार पकड़वा दे।
12 अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, जिसमें वे फसह का बलिदान करते थे, उसके चेलों ने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है, कि हम जाकर तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करे?” (निर्ग. 12:6, निर्ग. 12:15) 13 उसने अपने चेलों में से दो को यह कहकर भेजा, “नगर में जाओ, और एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा, उसके पीछे हो लेना। 14 और वह जिस घर में जाए उस घर के स्वामी से कहना: ‘गुरु कहता है, कि मेरी पाहुनशाला जिसमें मैं अपने चेलों के साथ फसह खाऊँ कहाँ है?’ 15 वह तुम्हें एक सजी-सजाई, और तैयार की हुई बड़ी अटारी दिखा देगा, वहाँ हमारे लिये तैयारी करो।” 16 तब चेले निकलकर नगर में आए और जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया, और फसह तैयार किया। 17 जब सांझ हुई, तो वह बारहों के साथ आया। 18 और जब वे बैठे भोजन कर रहे थे, तो यीशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम में से एक, जो मेरे साथ भोजन कर रहा है, मुझे पकड़वाएगा।” (भज. 41:9) 19 उन पर उदासी छा गई और वे एक-एक करके उससे कहने लगे, “क्या वह मैं हूँ?” 20 उसने उनसे कहा, “वह बारहों में से एक है, जो मेरे साथ थाली में हाथ डालता है। 21 क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो, जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य पर हाय जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है! यदि उस मनुष्य का जन्म ही न होता तो उसके लिये भला होता।”
22 और जब वे खा ही रहे थे तो उसने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और उन्हें दी, और कहा, “लो, यह मेरी देह है।” 23 फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें दिया; और उन सब ने उसमें से पीया। 24 और उसने उनसे कहा, “यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये बहाया जाता है। (निर्ग. 24:8, जक. 9:11) 25 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि दाख का रस उस दिन तक फिर कभी न पीऊँगा, जब तक परमेश्वर के राज्य में नया न पीऊँ।” 26 फिर वे भजन गाकर बाहर जैतून के पहाड़ पर गए।
27 तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम सब ठोकर खाओगे, क्योंकि लिखा है: ‘मैं चरवाहे को मारूँगा, और भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’ 28 परन्तु मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।” 29 पतरस ने उससे कहा, “यदि सब ठोकर खाएँ तो खाएँ, पर मैं ठोकर नहीं खाऊँगा।” 30 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि आज ही इसी रात को मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझसे मुकर जाएगा।” 31 पर उसने और भी जोर देकर कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी पड़े फिर भी तेरा इन्कार कभी न करूँगा।” इसी प्रकार और सब ने भी कहा।
32 फिर वे गतसमनी नाम एक जगह में आए; और उसने अपने चेलों से कहा, “यहाँ बैठे रहो, जब तक मैं प्रार्थना करूँ। 33 और वह पतरस और याकूब और यूहन्ना को अपने साथ ले गया; और बहुत ही अधीर और व्याकुल होने लगा, 34 और उनसे कहा, “मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मैं मरने पर हूँ: तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो।” (भज. 42:5) 35 और वह थोड़ा आगे बढ़ा, और भूमि पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, कि यदि हो सके तो यह समय मुझ पर से टल जाए। 36 और कहा, “हे अब्बा, हे पिता*, तुझ से सब कुछ हो सकता है; इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले: फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, पर जो तू चाहता है वही हो।” 37 फिर वह आया और उन्हें सोते पा कर पतरस से कहा, “हे शमौन, तू सो रहा है? क्या तू एक घंटे भी न जाग सका? 38 जागते और प्रार्थना करते रहो कि तुम परीक्षा में न पड़ो। आत्मा तो तैयार है, पर शरीर दुर्बल है।” 39 और वह फिर चला गया, और वही बात कहकर प्रार्थना की। 40 और फिर आकर उन्हें सोते पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं; और नहीं जानते थे कि उसे क्या उत्तर दें। 41 फिर तीसरी बार आकर उनसे कहा, “अब सोते रहो और विश्राम करो, बस, घड़ी आ पहुँची; देखो मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। 42 उठो, चलें! देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है!”
43 वह यह कह ही रहा था, कि यहूदा जो बारहों में से था, अपने साथ प्रधान याजकों और शास्त्रियों और प्राचीनों की ओर से एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए तुरन्त आ पहुँची। 44 और उसके पकड़नेवाले ने उन्हें यह पता दिया था, कि जिसको मैं चूमूं वही है, उसे पकड़कर सावधानी से ले जाना। 45 और वह आया, और तुरन्त उसके पास जाकर कहा, “हे रब्बी!” और उसको बहुत चूमा। 46 तब उन्होंने उस पर हाथ डालकर उसे पकड़ लिया। 47 उनमें से जो पास खड़े थे, एक ने तलवार खींचकर महायाजक के दास पर चलाई, और उसका कान उड़ा दिया। 48 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम डाकू जानकर मुझे पकड़ने के लिये तलवारें और लाठियाँ लेकर निकले हो? 49 मैं तो हर दिन मन्दिर में तुम्हारे साथ रहकर उपदेश दिया करता था, और तब तुम ने मुझे न पकड़ा: परन्तु यह इसलिए हुआ है कि पवित्रशास्त्र की बातें पूरी हों।” 50 इस पर सब चेले उसे छोड़कर भाग गए। (भज. 88:18) 51 और एक जवान अपनी नंगी देह पर चादर ओढ़े हुए उसके पीछे हो लिया; और लोगों ने उसे पकड़ा। 52 पर वह चादर छोड़कर नंगा भाग गया।
53 फिर वे यीशु को महायाजक के पास ले गए; और सब प्रधान याजक और पुरनिए और शास्त्री उसके यहाँ इकट्ठे हो गए। 54 पतरस दूर ही दूर से उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन के भीतर तक गया, और प्यादों के साथ बैठ कर आग तापने लगा। 55 प्रधान याजक और सारी महासभा यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में गवाही की खोज में थे, पर न मिली। 56 क्योंकि बहुत से उसके विरोध में झूठी गवाही दे रहे थे, पर उनकी गवाही एक सी न थी। 57 तब कितनों ने उठकर उस पर यह झूठी गवाही दी, 58 “हमने इसे यह कहते सुना है ‘मैं इस हाथ के बनाए हुए मन्दिर को ढा दूँगा, और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा, जो हाथ से न बना हो’।” 59 इस पर भी उनकी गवाही एक सी न निकली। 60 तब महायाजक ने बीच में खड़े होकर यीशु से पूछा; “तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” 61 परन्तु वह मौन साधे रहा, और कुछ उत्तर न दिया। महायाजक ने उससे फिर पूछा, “क्या तू उस परमधन्य का पुत्र मसीह है?” 62 यीशु ने कहा, “हाँ मैं हूँ: और तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों के साथ आते देखोगे।” (दानि. 7:13, भज. 110:1) 63 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन है? (मत्ती 26:65) 64 तुम ने यह निन्दा सुनी। तुम्हारी क्या राय है?” उन सब ने कहा यह मृत्यु दण्ड के योग्य है। (लैव्य. 24:16) 65 तब कोई तो उस पर थूकने, और कोई उसका मुँह ढाँपने और उसे घूँसे मारने, और उससे कहने लगे, “भविष्यद्वाणी कर!” और पहरेदारों ने उसे पकड़कर थप्पड़ मारे।
66 जब पतरस नीचे आँगन में था, तो महायाजक की दासियों में से एक वहाँ आई। 67 और पतरस को आग तापते देखकर उस पर टकटकी लगाकर देखा और कहने लगी, “तू भी तो उस नासरी यीशु के साथ था।” 68 वह मुकर गया, और कहा, “मैं तो नहीं जानता और नहीं समझता कि तू क्या कह रही है”। फिर वह बाहर डेवढ़ी में गया; और मुर्गे ने बाँग दी। 69 वह दासी उसे देखकर उनसे जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी, कि “यह उनमें से एक है।” 70 परन्तु वह फिर मुकर गया। और थोड़ी देर बाद उन्होंने जो पास खड़े थे फिर पतरस से कहा, “निश्चय तू उनमें से एक है; क्योंकि तू गलीली भी है।” 71 तब वह स्वयं को कोसने और शपथ खाने लगा, “मैं उस मनुष्य को, जिसकी तुम चर्चा करते हो, नहीं जानता।” 72 तब तुरन्त दूसरी बार मुर्गे ने बाँग दी पतरस को यह बात जो यीशु ने उससे कही थी याद आई, “मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” वह इस बात को सोचकर रोने लगा।
1 और भोर होते ही तुरन्त प्रधान याजकों, प्राचीनों, और शास्त्रियों ने वरन् सारी महासभा ने सलाह करके यीशु को बन्धवाया, और उसे ले जाकर पिलातुस के हाथ सौंप दिया। 2 और पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” उसने उसको उत्तर दिया, “तू स्वयं ही कह रहा है।” 3 और प्रधान याजक उस पर बहुत बातों का दोष लगा रहे थे। 4 पिलातुस ने उससे फिर पूछा, “क्या तू कुछ उत्तर नहीं देता, देख ये तुझ पर कितनी बातों का दोष लगाते हैं?” 5 यीशु ने फिर कुछ उत्तर नहीं दिया; यहाँ तक कि पिलातुस को बड़ा आश्चर्य हुआ।
6 वह उस पर्व में किसी एक बन्धुए को जिसे वे चाहते थे, उनके लिये छोड़ दिया करता था। 7 और बरअब्बा नाम का एक मनुष्य उन बलवाइयों के साथ बन्धुआ था, जिन्होंने बलवे में हत्या की थी। 8 और भीड़ ऊपर जाकर उससे विनती करने लगी, कि जैसा तू हमारे लिये करता आया है वैसा ही कर। 9 पिलातुस ने उनको यह उत्तर दिया, “क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?” 10 क्योंकि वह जानता था, कि प्रधान याजकों ने उसे डाह से पकड़वाया था। 11 परन्तु प्रधान याजकों ने लोगों को उभारा, कि वह बरअब्बा ही को उनके लिये छोड़ दे। 12 यह सुन पिलातुस ने उनसे फिर पूछा, “तो जिसे तुम यहूदियों का राजा कहते हो, उसको मैं क्या करूँ?” 13 वे फिर चिल्लाए, “उसे क्रूस पर चढ़ा दे!” 14 पिलातुस ने उनसे कहा, “क्यों, इसने क्या बुराई की है?” परन्तु वे और भी चिल्लाए, “उसे क्रूस पर चढ़ा दे।” 15 तब पिलातुस ने भीड़ को प्रसन्न करने की इच्छा से, बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए।
16 सिपाही उसे किले के भीतर आँगन में ले गए जो प्रीटोरियुम कहलाता है, और सारे सैनिक दल को बुला लाए। 17 और उन्होंने उसे बैंगनी वस्त्र पहनाया और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, 18 और यह कहकर उसे नमस्कार करने लगे, “हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!” 19 वे उसके सिर पर सरकण्डे मारते, और उस पर थूकते, और घुटने टेककर उसे प्रणाम करते रहे। 20 जब वे उसका उपहास कर चुके, तो उस पर बैंगनी वस्त्र उतारकर उसी के कपड़े पहनाए; और तब उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिये बाहर ले गए।
21 सिकन्दर और रूफुस का पिता शमौन, नाम एक कुरेनी* मनुष्य, जो गाँव से आ रहा था उधर से निकला; उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। 22 और वे उसे गुलगुता* नामक जगह पर, जिसका अर्थ खोपड़ी का स्थान है, लाए। 23 और उसे गन्धरस मिला हुआ दाखरस देने लगे, परन्तु उसने नहीं लिया। 24 तब उन्होंने उसको क्रूस पर चढ़ाया*, और उसके कपड़ों पर चिट्ठियाँ डालकर, कि किस को क्या मिले, उन्हें बाँट लिया। (भज. 22:18) 25 और एक पहर दिन चढ़ा था, जब उन्होंने उसको क्रूस पर चढ़ाया। 26 और उसका दोषपत्र लिखकर उसके ऊपर लगा दिया गया कि “यहूदियों का राजा”। 27 उन्होंने उसके साथ दो डाकू, एक उसकी दाहिनी और एक उसकी बाईं ओर क्रूस पर चढ़ाए। 28 तब पवित्रशास्त्र का वह वचन कि वह अपराधियों के संग गिना गया, पूरा हुआ। (यशा. 53:12) 29 और मार्ग में जानेवाले सिर हिला-हिलाकर और यह कहकर उसकी निन्दा करते थे, “वाह! मन्दिर के ढानेवाले, और तीन दिन में बनानेवाले! (भज. 22:7, भज. 109:25) 30 क्रूस पर से उतर कर अपने आप को बचा ले।” 31 इसी तरह से प्रधान याजक भी, शास्त्रियों समेत, आपस में उपहास करके कहते थे; “इसने औरों को बचाया, पर अपने को नहीं बचा सकता। 32 इस्राएल का राजा, मसीह, अब क्रूस पर से उतर आए कि हम देखकर विश्वास करें।” और जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे, वे भी उसकी निन्दा करते थे।
33 और दोपहर होने पर सारे देश में अंधियारा छा गया, और तीसरे पहर तक रहा। 34 तीसरे पहर यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी?” जिसका अर्थ है, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” 35 जो पास खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, “देखो, यह एलिय्याह को पुकारता है।” 36 और एक ने दौड़कर पनसोख्ता को सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया, और कहा, “ठहर जाओ; देखें, एलिय्याह उसे उतारने के लिये आता है कि नहीं।” (भज. 69:21) 37 तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिये। 38 और मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया। 39 जो सूबेदार उसके सामने खड़ा था, जब उसे यूँ चिल्लाकर प्राण छोड़ते हुए देखा, तो उसने कहा, “सचमुच यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र था!”
40 कई स्त्रियाँ भी दूर से देख रही थीं: उनमें मरियम मगदलीनी, और छोटे याकूब और योसेस की माता मरियम, और सलोमी थीं। 41 जब वह गलील में था तो ये उसके पीछे हो लेती थीं और उसकी सेवा-टहल किया करती थीं; और भी बहुत सी स्त्रियाँ थीं, जो उसके साथ यरूशलेम में आई थीं।
42 जब संध्या हो गई, तो इसलिए कि तैयारी का दिन था, जो सब्त के एक दिन पहले होता है, 43 अरिमतियाह का रहनेवाला यूसुफ* आया, जो प्रतिष्ठित मंत्री और आप भी परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा में था। वह साहस करके पिलातुस के पास गया और यीशु का शव माँगा। 44 पिलातुस ने आश्चर्य किया, कि वह इतना शीघ्र मर गया; और उसने सूबेदार को बुलाकर पूछा, कि “क्या उसको मरे हुए देर हुई?” 45 जब उसने सूबेदार के द्वारा हाल जान लिया, तो शव यूसुफ को दिला दिया। 46 तब उसने एक मलमल की चादर मोल ली, और शव को उतारकर उस चादर में लपेटा, और एक कब्र में जो चट्टान में खोदी गई थी रखा, और कब्र के द्वार पर एक पत्थर लुढ़का दिया। 47 और मरियम मगदलीनी और योसेस की माता मरियम देख रही थीं कि वह कहाँ रखा गया है।
1 जब सब्त का दिन बीत गया, तो मरियम मगदलीनी, और याकूब की माता मरियम, और सलोमी ने सुगन्धित वस्तुएँ मोल लीं, कि आकर उस पर मलें। 2 सप्ताह के पहले दिन बड़े भोर, जब सूरज निकला ही था, वे कब्र पर आईं, 3 और आपस में कहती थीं, “हमारे लिये कब्र के द्वार पर से पत्थर कौन लुढ़काएगा?” 4 जब उन्होंने आँख उठाई, तो देखा कि पत्थर लुढ़का हुआ है! वह बहुत ही बड़ा था। 5 और कब्र के भीतर जाकर, उन्होंने एक जवान को श्वेत वस्त्र पहने हुए दाहिनी ओर बैठे देखा, और बहुत चकित हुई। 6 उसने उनसे कहा, “चकित मत हो, तुम यीशु नासरी को, जो क्रूस पर चढ़ाया गया था, ढूँढ़ती हो। वह जी उठा है, यहाँ नहीं है; देखो, यही वह स्थान है, जहाँ उन्होंने उसे रखा था। 7 परन्तु तुम जाओ, और उसके चेलों और पतरस से कहो, कि वह तुम से पहले गलील को जाएगा; जैसा उसने तुम से कहा था, तुम वही उसे देखोगे।” 8 और वे निकलकर कब्र से भाग गईं; क्योंकि कँपकँपी और घबराहट उन पर छा गई थीं। और उन्होंने किसी से कुछ न कहा, क्योंकि डरती थीं।
9 सप्ताह के पहले दिन भोर होते ही वह जी उठ कर पहले-पहल मरियम मगदलीनी को जिसमें से उसने सात दुष्टात्माएँ निकाली थीं, दिखाई दिया। 10 उसने जाकर उसके साथियों को जो शोक में डूबे हुए थे और रो रहे थे, समाचार दिया। 11 और उन्होंने यह सुनकर कि वह जीवित है और उसने उसे देखा है, विश्वास न की।
12 इसके बाद वह दूसरे रूप में उनमें से दो को जब वे गाँव की ओर जा रहे थे, दिखाई दिया। 13 उन्होंने भी जाकर औरों को समाचार दिया, परन्तु उन्होंने उनका भी विश्वास न किया।
14 पीछे वह उन ग्यारहों को भी, जब वे भोजन करने बैठे थे दिखाई दिया, और उनके अविश्वास और मन की कठोरता पर उलाहना दिया, क्योंकि जिन्होंने उसके जी उठने के बाद उसे देखा था, इन्होंने उसका विश्वास न किया था। 15 और उसने उनसे कहा, “तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो। 16 जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उद्धार होगा, परन्तु जो विश्वास न करेगा वह दोषी ठहराया जाएगा। 17 और विश्वास करनेवालों में ये चिन्ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे; नई-नई भाषा बोलेंगे; 18 साँपों को उठा लेंगे, और यदि वे प्राणनाशक वस्तु भी पी जाएँ तो भी उनकी कुछ हानि न होगी; वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएँगे।”
19 तब प्रभु यीशु उनसे बातें करने के बाद स्वर्ग पर उठा लिया गया, और परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठ गया। (1 पत. 3:22) 20 और उन्होंने निकलकर हर जगह प्रचार किया, और प्रभु उनके साथ काम करता रहा और उन चिन्हों के द्वारा जो साथ-साथ होते थे, वचन को दृढ़ करता रहा। आमीन।
1 बहुतों ने उन बातों का जो हमारे बीच में बीती हैं, इतिहास लिखने में हाथ लगाया है। 2 जैसा कि उन्होंने जो पहले ही से इन बातों के देखनेवाले और वचन के सेवक थे हम तक पहुँचाया। 3 इसलिए हे श्रीमान थियुफिलुस मुझे भी यह उचित मालूम हुआ कि उन सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक-ठीक जाँच करके उन्हें तेरे लिये क्रमानुसार लिखूँ। 4 कि तू यह जान ले, कि वे बातें जिनकी तूने शिक्षा पाई है, कैसी अटल हैं।
5 यहूदिया के राजा हेरोदेस के समय अबिय्याह के दल में जकर्याह नाम का एक याजक था, और उसकी पत्नी हारून के वंश की थी, जिसका नाम एलीशिबा था। 6 और वे दोनों परमेश्वर के सामने धर्मी थे, और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियों पर निर्दोष चलने वाले थे। 7 उनके कोई सन्तान न थी, क्योंकि एलीशिबा बाँझ थी, और वे दोनों बूढ़े थे।।
8 जब वह अपने दल की पारी पर परमेश्वर के सामने याजक का काम करता था। 9 तो याजकों की रीति के अनुसार उसके नाम पर चिट्ठी निकली, कि प्रभु के मन्दिर में जाकर धूप जलाए। (निर्ग. 30:7) 10 और धूप जलाने के समय लोगों की सारी मण्डली बाहर प्रार्थना कर रही थी। 11 कि प्रभु का एक स्वर्गदूत धूप की वेदी की दाहिनी ओर खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया। 12 और जकर्याह देखकर घबराया और उस पर बड़ा भय छा गया। 13 परन्तु स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे जकर्याह, भयभीत न हो क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरी पत्नी एलीशिबा से तेरे लिये एक पुत्र उत्पन्न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना। 14 और तुझे आनन्द और हर्ष होगा और बहुत लोग उसके जन्म के कारण आनन्दित होंगे। 15 क्योंकि वह प्रभु के सामने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पीएगा; और अपनी माता के गर्भ ही से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाएगा। (इफि. 5:18, न्याय. 13:4-5) 16 और इस्राएलियों में से बहुतों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर फेरेगा। 17 वह एलिय्याह की आत्मा और सामर्थ्य में होकर उसके आगे-आगे चलेगा, कि पिताओं का मन बाल-बच्चों की ओर फेर दे; और आज्ञा न माननेवालों को धर्मियों की समझ पर लाए; और प्रभु के लिये एक योग्य प्रजा तैयार करे।” (मला. 4:5-6) 18 जकर्याह ने स्वर्गदूत से पूछा, “यह मैं कैसे जानूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ; और मेरी पत्नी भी बूढ़ी हो गई है।” 19 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “मैं जिब्राईल* हूँ, जो परमेश्वर के सामने खड़ा रहता हूँ; और मैं तुझ से बातें करने और तुझे यह सुसमाचार सुनाने को भेजा गया हूँ। (दानि. 8:16, दानि. 9:21) 20 और देख, जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो लें, उस दिन तक तू मौन रहेगा, और बोल न सकेगा, इसलिए कि तूने मेरी बातों की जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास न किया।” 21 लोग जकर्याह की प्रतीक्षा करते रहे और अचम्भा करने लगे कि उसे मन्दिर में ऐसी देर क्यों लगी? 22 जब वह बाहर आया, तो उनसे बोल न सका अतः वे जान गए, कि उसने मन्दिर में कोई दर्शन पाया है; और वह उनसे संकेत करता रहा, और गूँगा रह गया। 23 जब उसकी सेवा के दिन पूरे हुए, तो वह अपने घर चला गया। 24 इन दिनों के बाद उसकी पत्नी एलीशिबा गर्भवती हुई; और पाँच महीने तक अपने आप को यह कह के छिपाए रखा। 25 “मनुष्यों में मेरा अपमान दूर करने के लिये प्रभु ने इन दिनों में कृपादृष्टि करके मेरे लिये ऐसा किया है।” (उत्प. 30:23)
26 छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में, 27 एक कुँवारी के पास भेजा गया। जिसकी मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरुष से हुई थी: उस कुँवारी का नाम मरियम था। 28 और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, “आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर परमेश्वर का अनुग्रह हुआ है! प्रभु तेरे साथ है!” 29 वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी कि यह किस प्रकार का अभिवादन है? 30 स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। 31 और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। (यशा. 7:14) 32 वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा। (भज. 132:11, यशा. 9:6-7) 33 और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (2 शमू. 7:12,16, इब्रा. 1:8, दानि. 2:44) 34 मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं।” 35 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी; इसलिए वह पवित्र* जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा। 36 और देख, और तेरी कुटुम्बिनी एलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बाँझ कहलाती थी छठवाँ महीना है। 37 परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।” (मत्ती 19:26, यिर्म. 32:27) 38 मरियम ने कहा, “देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, तेरे वचन के अनुसार मेरे साथ ऐसा हो।” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
39 उन दिनों में मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई। 40 और जकर्याह के घर में जाकर एलीशिबा को नमस्कार किया। 41 ज्योंही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, त्योंही बच्चा उसके पेट में उछला, और एलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई। 42 और उसने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है! 43 और यह अनुग्रह मुझे कहाँ से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई? 44 और देख ज्योंही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा त्योंही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा। 45 और धन्य है, वह जिस ने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उससे कही गई, वे पूरी होंगी।”
46 तब मरियम ने कहा,
“मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
47 और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले
परमेश्वर से आनन्दित हुई। (1 शमू. 2:1)
48 क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर
दृष्टि की है;
इसलिए देखो, अब से सब युग-युग
के लोग मुझे धन्य कहेंगे। (1 शमू. 1:11, लूका 1:42, मला. 3:12)
49 क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े-
बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
50 और उसकी दया उन पर,
जो उससे डरते हैं,
पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। (भज. 103:17)
51 उसने अपना भुजबल दिखाया,
और जो अपने मन में घमण्ड करते थे,
उन्हें तितर-बितर किया। (2 शमू. 22:28, भज. 89:10)
52 उसने शासकों को सिंहासनों से
गिरा दिया;
और दीनों को ऊँचा किया। (1 शमू. 2:7, अय्यू. 5:11, भज. 113:7-8)
53 उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से
तृप्त किया,
और धनवानों को खाली हाथ निकाल दिया। (1 शमू. 2:5, भज. 107:9)
54 उसने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल
लिया कि अपनी उस दया को स्मरण करे, (भज. 98:3, यशा. 41:8-9)
55 जो अब्राहम और उसके वंश पर सदा रहेगी,
जैसा उसने हमारे पूर्वजों से कहा था।” (उत्प. 22:17, मीका 7:20)
56 मरियम लगभग तीन महीने उसके साथ रहकर अपने घर लौट गई।
57 तब एलीशिबा के जनने का समय पूरा हुआ, और वह पुत्र जनी। 58 उसके पड़ोसियों और कुटुम्बियों ने यह सुन कर, कि प्रभु ने उस पर बड़ी दया की है, उसके साथ आनन्दित हुए। 59 और ऐसा हुआ कि आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए और उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकर्याह रखने लगे। (उत्प. 17:12, लैव्य. 12:3) 60 और उसकी माता ने उत्तर दिया, “नहीं; वरन् उसका नाम यूहन्ना रखा जाए।” 61 और उन्होंने उससे कहा, “तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं।” 62 तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है? 63 और उसने लिखने की पट्टी मंगाकर लिख दिया, “उसका नाम यूहन्ना है,” और सभी ने अचम्भा किया। 64 तब उसका मुँह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर की स्तुति करने लगा। 65 और उसके आस-पास के सब रहनेवालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई। 66 और सब सुननेवालों ने अपने-अपने मन में विचार करके कहा, “यह बालक कैसा होगा?” क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था।
67 और उसका पिता जकर्याह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्वाणी करने लगा।
68 “प्रभु इस्राएल का परमेश्वर धन्य हो,
कि उसने अपने लोगों पर दृष्टि की
और उनका छुटकारा किया है, (भज. 111:9, भज. 41:13)
69 और अपने सेवक दाऊद के घराने में
हमारे लिये एक उद्धार का सींग*
निकाला, (भज. 132:17, यिर्म. 30:9)
70 जैसे उसने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं
के द्वारा जो जगत के आदि से होते
आए हैं, कहा था,
71 अर्थात् हमारे शत्रुओं से, और हमारे सब
बैरियों के हाथ से हमारा उद्धार किया है; (भज. 106:10)
72 कि हमारे पूर्वजों पर दया करके अपनी
पवित्र वाचा का स्मरण करे,
73 और वह शपथ जो उसने हमारे पिता
अब्राहम से खाई थी, (उत्प. 17:7, भज. 105:8-9)
74 कि वह हमें यह देगा, कि हम अपने
शत्रुओं के हाथ से छूटकर,
75 उसके सामने पवित्रता और धार्मिकता
से जीवन भर निडर रहकर उसकी सेवा करते रहें।
76 और तू हे बालक, परमप्रधान का
भविष्यद्वक्ता कहलाएगा*,
क्योंकि तू प्रभु के मार्ग तैयार करने
के लिये उसके आगे-आगे चलेगा, (मला. 3:1, यशा. 40:3)
77 कि उसके लोगों को उद्धार का ज्ञान दे,
जो उनके पापों की क्षमा से प्राप्त होता है।
78 यह हमारे परमेश्वर की उसी बड़ी करुणा से होगा;
जिसके कारण ऊपर से हम पर भोर का प्रकाश उदय होगा।
79 कि अंधकार और मृत्यु की छाया में बैठनेवालों को ज्योति दे,
और हमारे पाँवों को कुशल के मार्ग में सीधे चलाए।” (यशा. 58:8, यशा. 60:1-2, यशा. 9:2)
80 और वह बालक यूहन्ना, बढ़ता और आत्मा में बलवन्त होता गया और इस्राएल पर प्रगट होने के दिन तक जंगलों में रहा।
“विवरण” या “वृत्तान्त” या “सच्ची कहानी”
हमारे यहाँ “हमारे” में थियुफिलुस नहीं आता है परन्तु अभिलेख इसे स्पष्ट नहीं करता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है इन बातों को उसी समय देखा जब वे पहले-पहले हुई थी।
इसके अन्य संभावित अर्थ हैं, “मनुष्यों में परमेश्वर का सन्देश सुनाने की सेवा की है” या “मनुष्यों को यीशु का शुभ सन्देश सुनाया है”
इस वाक्य में “हम” एक अलग शब्द है जो थियुफिलुस को समाहित नहीं करता है।
अर्थात वह घटनाओं की यथा उचित जांच करने में अत्यधिक सावधान रहा है। उसने संभवतः अनेक अलग-अलग मनुष्यों से विचार-विमर्श किया, जिन्होंने इन घटनाओ को अपनी आंखों से देखा था, कि वह इन घटनाओं को लिखे तो वे सही हों। इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, हर एक घटना की सावधानीपूर्वक खोज की है”।
लूका इस शब्द के उपयोग द्वारा थियुफिलुस के प्रति सम्मान एवं आदर व्यक्त कर रहा है। ऐसे संबोधन का अर्थ यह भी होता है कि थियुफिलुस एक महत्त्वपूर्ण सरकारी अधिकारी था। इसके अन्य अनुवाद हो सकते है, “माननीय” या “श्रेष्ठ” कुछ लोग ऐसे संबोधन को आरंभ में रखना अधिक उत्तम समझते है, “थियुफिलुस” या “प्रिय .... थियुफिलुस”।
इस नाम का अर्थ है, “परमेश्वर का मित्र” इससे उसका चरित्र प्रकट होता है या यह वास्तव में उसका नाम रहा होगा। अधिकांश अनुवादों में इस शब्द को उसका नाम माना गया है।
“जिस समय राजा हेरोदेस यहूदिया में राज कर रहा था”।
इसका अनुवाद “यहूदिया के क्षेत्र में” किया जा सकता है या “यहूदिया प्रदेश” कुछ भाषाओं में अधिक उत्तम माना जाता है कि इसका अनुवाद “यहूदिया वासियों पर” किया जाता है।
“नाम का एक" या "एक.. था" यह एक विशिष्ट नायक को प्रवेश कराने की विधि है। आपकी भाषा में यह कैसे हो” उस पर ध्यान दें।
इसको इस प्रकार अनुवाद कर सकते है “याजक मंडल” या “याजको का समूह”
“अबिय्याह के वंशजों में हो” अबिय्याह इस याजक समूह का पूर्वज था। वे सब हारून के वंशज थे। हारून इस्राएल का सर्वप्रथम याजक था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जकरयाह की पत्नी”
“वह .... वंशजों में से एक थी” या “वह हारून की वंशज थी” या इसको इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है। “जकरयाह और उसकी पत्नी दोनों हारून के वंश के थे”।
“परमेश्वर की दृष्टि में” या “परमेश्वर के विचार में”
“आज्ञाकारी”
इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर की सब आज्ञाओं और अनिवार्यताओ”।
इस विषमतासूचक शब्द का अर्थ है कि आगे जो आनेवाला है वह अपेक्षा के विपरीत है। मनुष्यों का मानना था कि यदि वे परमेश्वर की दृष्टि में उचित जीवन रखेंगे तो परमेश्वर उन्हें सन्तान देगा परन्तु यह दम्पत्ति यद्यपि धर्मी था, उनके पास सन्तान नहीं थी।
“परमेश्वर की उपस्थिति में” स्पष्टता के लिए कुछ अनुवादक सलंग्न जानकारी भी जोड़ देते हैं, “यरूशलेम के मन्दिर में”।
“उनकी प्रथा के अनुसार” या “उनके द्वारा महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के अभ्यास के अनुसार”।
यह वास्तव में एक पत्थर होता था जिस पर निशान होते थे। निर्णय लेने के लिए उसे फर्श पर डाला जाता था। उनका मानना था कि वह पत्थर परमेश्वर के नियन्त्रण में रहता था कि जिस याजक को वह चाहता है वह उसके नाम पर गिरे।
“बहुत लोग” या “लोगों की बड़ी संख्या”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मन्दिर के बाहर” या “मन्दिर के बाहर परिसर में”। मन्दिर के बाहर का घिरा हुआ भाग परिसर था।
“प्रभु की ओर से” या “जो प्रभु की सेवा करे” या “जिसे परमेश्वर ने भेजा था”।
“अचानक ही उसके पास आया” या “अचानक ही जकरयाह के साथ प्रकट हुआ”।
“तेरी प्रार्थना सुन ली गई है” -“तूने परमेश्वर से जो मांगा है वह स्वीकार किया गया है” इसका संलग्न अर्थ है, “और वह करेगा” इसे अनुवाद में जोड़ा जा सकता है। परमेश्वर ने जकरयाह की प्रार्थना सुनी ही नहीं पूरी की है।
“उसे यूहन्ना नाम देगा” या “उसे यूहन्ना नाम से पुकारेगा”।
(स्वर्गदूत जकरयाह से बातें कर रहा है)
“इसका कारण है” या “इसके अतिरिक्त” कुछ अनुवादों में यह शब्द नहीं होगा।
इसका अनुवाद हो सकता है, “वह परमेश्वर के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करेगा।"
“खमीर किया हुआ दाखरस” या “नशीला पेय” इसका संदर्भ उन पेय पदार्थों से है जिनसे नशा होता है।
“पवित्र-आत्मा उसे शक्ति देगा” या यदि आप अनुवाद में व्यक्त करते हैं कि “पवित्र-आत्मा उसे वश में रखेगा” तो ध्यान रखें कि इसका अर्थ यह न निकले कि दुष्टात्मा के सदृश्य वशीभूत होगा।
“ही से” दर्शाता है कि यह एक विशेष आश्चर्य का समाचार है। मनुष्यों को पहले भी पवित्र-आत्मा मिला है परन्तु एक शिशु जिसका जन्म नहीं हुआ वह पवित्र-आत्मा से पूर्ण हो, कभी सुना नहीं गया है।
(स्वर्गदूत जकरयाह से बातें कर रहा है)
यदि इससे अर्थ निकलता है कि जकरयाह उनमें से नहीं है तो इसका अनुवाद करें, “तुम इस्राएल के वंशजों में से अनेकों को” या “तुम परमेश्वर के लोगों में से अनेकों को यदि अनुवाद में द्वितीय पुरूष काम में ले रहे हैं तो सुनिश्चित करे कि” "उनके प्रभु" के स्थान पर "तुम्हारे (बहुवचन) प्रभु" का उपयोग करें।
वह पहले से घोषणा करेगा कि प्रभु उनके मध्य रहने के लिए आएगा।
“वही आत्मा और सामर्थ्य जो एलिय्याह में था”। आत्मा का अर्थ या तो यह है की वह परमेश्वर का आत्मा है या एलिय्याह का स्वभाव अथवा या विचार विधा। यहाँ सुनिश्चित करें कि "आत्मा" शब्द का अभिप्राय "प्रेत" या “दुष्टात्मा” न हो।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पिताओं को सन्तान की फिर से सुधि लेने के लिए प्रेरित करेगा” या “पिताओं को विवश” करेगा कि अपनी-अपनी सन्तान के साथ संबन्धों का पुनः स्थापन करें”, इसका संदर्भ माताओं से भी है परन्तु केवल पिताओं का उल्लेख किया गया है।
इसका अनुवाद हो सकता है “प्रभु का सन्देश सुनने के लिए तैयार करे” या “प्रभु की आज्ञा मानने के लिए तैयार करे”। (यह स्वर्गदूत की बातों का अन्त है)
इसका अनुवाद हो सकता है, “मैं कैसे निश्चित जान सकता हूँ कि तूने जो कहा है अवश्य होगा”?
“मेरा बातों का विश्वास नहीं किया”
“सही समय पर” या यह भी हो सकता है, “नियुक्त समय पर”।
इसका अनुवाद, "और" हो सकता है या “जब स्वर्गदूत और जकरयाह में वार्तालाप हो रहा था”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे चकित थे वह मन्दिर में इतना समय क्यों लगा रहा है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जब वह मन्दिर से बाहर आया”
“जकरयाह की पत्नी”
“गर्भधारण किया” (यू.डी.बी.) यहाँ ऐसी अभिव्यक्ति काम में लें जो स्वीकार्य हो और मनुष्यों को लजाए नहीं।
यह अभिव्यक्ति इस तथ्य का संदर्भ देती है कि परमेश्वर उसे गर्भ धारण की अनुमति दी है।
एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “मुझे दया का पात्र समझा है” या “मुझ पर दया की” या “मुझ पर तरस खाया”।
इसे कर्तृवाच्य में अनुवाद किया जा सकता है, “परमेश्वर ने जिब्राईल स्वर्गदूत से कहा कि वह जाये।”
“विवाह करने की प्रतिज्ञा” या “शपथ” ली थी। अर्थात मरियम के माता पिता ने मरियम का विवाह युसूफ के साथ करने का वचन दे दिया था।
“जहाँ मरियम थी वहां आया" या “जहाँ मरियम थी वहां गया”।
“आनन्द” या “मगन हो” यह उस समय के सामान्य अभिवादन थे।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तू जो अनुग्रह में सर्वोच्च है” या “तू जिसे अनुग्रह प्राप्त हुआ है" या “तू जिसने दया प्राप्त की है”।
“विचलित हुई” या “डर कर विमूढ़ हो गई”
मरियम शब्दों का अर्थ तो समझती थी परन्तु वह समझ नहीं पा रही थी कि वह स्वर्गदूत ऐसा अभिवादन क्यों कर रहा है
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “परमेश्वर ने तुझ पर अनुग्रह करने का निर्णय लिया है” या “परमेश्वर तुझ पर अनुग्रहकारी है” या “परमेश्वर तुझ पर दया प्रकट कर रहा है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “मनुष्य उसे परम प्रधान का पुत्र कहेंगे” या “मनुष्य स्वीकार करेंगे फिर वह परम प्रधान परमेश्वर का पुत्र है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “उसके पूर्वज राजा दाऊद के समान राज करने का अधिकार देगा”। सिंहासन राजा के शासन का अधिकार प्रकट करता है
बाइबल में पूर्वजों के लिए सामान्यतः “पिता” शब्द का उपयोग किया गया है और वंशजों के लिए “पुत्र” शब्द का”। उसके शब्द का संदर्भ मरियम के पुत्र से है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यह कैसे संभव हो सकता है”, यदि मरियम को समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे होगा, उसने उस पर सन्देह नहीं किया।
यह वाक्यांश और अगला भी यही अर्थ रखता है कि पवित्र-आत्मा अलौकिक कार्य द्वारा मरियम को कुंवारी होते हुए भी गर्भवती करेगा। यहाँ आपको स्पष्ट करना होगा कि यह एक चमत्कार था। इसमें किसी प्रकार का शारीरिक संबन्ध नहीं था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “उसके सामर्थ्य द्वारा”
इसका अनुवाद हो सकता है “छाया के सदृश्य तुझे आच्छदित करेगा” या “तेरे साथ होगा” या “इसका कारण होगा”। यहाँ भी सावधान रहें कि शारीरिक संबन्ध भाव व्यक्त न हो।
“पवित्र शिशु” या “पवित्र बालक”
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्य कहेंगे कि वह है” या “मनुष्य स्वीकार करेंगे कि वह है”।
(स्वर्गदूत मरियम से बातें कर रहा है)
यदि आप अधिक स्पष्ट व्यक्त करना चाहते हैं तो इलीशिबा मरियम की मौसी या नानी थी।
“यद्यपि वह वृद्ध है उसने गर्भधारण किया है” या “यद्यपि वह वृद्ध है, उसने गर्भधारण किया है और पुत्र जनेगी”। यहाँ यह सुनिश्चित कीजिए कि पाठक को यह भ्रम न हो कि मरियम और इलीशिबा दोनों ही वृद्धावस्था में थी जब उन्होंने गर्भधारण किया था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “क्योंकि परमेश्वर कुछ भी कर सकता है। परमेश्वर ने इलीशिबा के लिए जो किया वह एक कारण है कि परमेश्वर कुछ भी कर सकता है और वह बिना किसी शारीरिक संबन्ध के मरियम के लिए भी गर्भधारण संभव कर सकता है।
इस वाक्यांश के लिए अपनी भाषा में ऐसे शब्दों को चयन करें जो उसकी दीनता एवं आज्ञाकारिता को स्पष्ट व्यक्त करें। वह परमेश्वर की दासी होने का घमण्ड नहीं कर रही थी।
“मेरे साथ ऐसा ही हो” मरियम स्वर्गदूत की भविष्यद्वाणी के प्रति अपना स्वीकरण व्यक्त कर रही थी।
`इन शब्दों के द्वारा कहानी में एक नया मोड़ लाया गया है। आपकी भाषा में इसे प्रकट करने की अभिव्यक्ति पर विचार करें। कुछ अनुवादों में यहाँ “अब” का प्रयोग है तो कुछ में नहीं है।
इसका अनुवाद हो सकता है “निकल पड़ी” या “तैयार होकर”
“पर्वतीय क्षेत्र” या “पहाड़ी प्रदेश” या “इस्राएल के पहाड़ी भाग में”।
इसका अनुवाद हो सकता है “और वह गई” या “जब वह पहुंची, वह गई”
“अकस्मात ही हिला”
यहाँ इलीशिबा का नाम लेना अधिक स्पष्ट एवं स्वाभाविक होगा। यह निर्भर करेगा कि अपने पिछले पद का अनुवाद किस प्रकार किया है।
इसका अनुवाद हो सकता है “तेरे गर्भ में जो शिशु है” या “वह शिशु जिसे तू जन्म देगी”। (यू.डी.बी) (देखे: )
इसका अनुवाद हो सकता है, “यह कैसी अद्भुत बात है कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई है”। इलिशिबा यहाँ जानकारी प्राप्त करने के लिए नहीं कह रही है।वह तो मरियम के आगमन पर चकित थी वरन अत्यधिक आनन्दित थी कि प्रभु की माता उसके पास आई।
इसका अनुवाद हो सकता है, “तू मेरे प्रभु की माता” क्योंकि इसका संदर्भ मरियम से है।
“अकस्मात ही उछला” या “प्रबल गतिविधि दिखाई”
इसका अनुवाद हो सकता है, “तूने विश्वास किया” इसलिए छाया है” या “क्योंकि तूने विश्वास किया है इसलिए तू आनन्दित होगी”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “प्रभु का जो सन्देश उसे दिया गया था” या “परमेश्वर ने तुझसे जो कहा”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “ओह, मैं कैसे” या “मैं कैसे यहाँ गहरी भावनाएं व्यक्त की गई हैं। मरियम काव्य रूप में एक ही बात को दो भिन्न रूपों में व्यक्त कर रही है। “प्राण” और “आत्मा” दोनों मनुष्य के आत्मिक परिप्रेक्ष्य का संदर्भ देते हैं। उसके कहने का अर्थ है कि उसकी भक्ति उसके अन्तरतम भाग से उभर रही है। यदि संभव हो तो इनके अनुवाद में दो परस्पर भिन्न वस्तु संबन्धित शब्दों का उपयोग करे जिनका अर्थ एक ही हो।
“सर्वोच्च सम्मान देता है” या “अत्यधिक स्तुति करता है”।
“बहुत हर्षित हूँ” या “अत्याधिक प्रसन्न है”
“परमेश्वर जो मेरा मोक्षदाता है” या “मेरा मुक्तिदाता परमेश्वर”
(मरियम परमेश्वर की स्तुति कर रही है)
“महत्त्वहीन” या “साधारण” या “सामान्य” या “दरिद्र” मरियम का सामाजिक स्तर ऊंचा नहीं था।
“ध्यान दिया” या “स्मरण किया”, इसका अनुवाद यह भी हो सकता है “भूला नहीं” यहाँ परमेश्वर की स्मरण-शक्ति की बात नहीं है परन्तु यह कि उसने मरियम पर ध्यान देने का चुनाव किया।
“अब और भविष्य में”
यह परमेश्वर के संदर्भ में है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर जो सर्व-शक्तिमान है”
“वह”
(मरियम परमेश्वर की स्तुति कर रही है)
कुछ भाषाओं में इस संयोजक शब्द का उपयोग नहीं किया गया है जो निर्भर करता है कि पिछले पद का अनुवाद किस प्रकार किया गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर की दया उन पर” या “वह उन पर दया करता है” या “वह उन पर कृपालु है”
इसका अनुवाद इस प्रकार होता है, “उन मनुष्यों की हर एक पीढ़ी तक” या “सब पीढ़ियों के मनुष्यों पर” या “हर एक युग के मनुष्यों पर”
इसका अर्थ मात्र भय से कही अधिक है। इसका अर्थ है, परमेश्वर का आदर करना, उसकी प्रतिष्ठा करना, उसकी आज्ञा मानना।
“उसकी भुजा के द्वारा” यह एक रूपक है जो परमेश्वर के सामर्थ्य का संदर्भ देता है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “(उन्हें) विभिन्न दिशाओं में भागने पर विवश किया” या “उन्हें खदेड़ा”
(मरियम परमेश्वर की स्तुति कर रही है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने राजाओं को उनके अधिकार से वंचित किया है” या “उसने शासकों को शासन करने से रोक दिया है”। सिंहासन राजा का आसन होता है और उसके अधिकार का द्योतक है। यदि किसी राजा को उसके सिंहासन से उतार दिया गया तो इसका अर्थ है कि उसके पास राज्य का अधिकार नहीं रहा”।
इस रूपक का अर्थ है, महत्त्वपूर्ण मनुष्य कम महत्त्व के मनुष्यों से बड़े नहीं हैं। यदि आपकी भाषा में इसके तुल्य कोई रूपक नहीं तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “विनम्र मनुष्यों को महत्त्व प्रदान किया” या “उन लोगों का सम्मान प्रदान किया जिन्हें मनुष्यों ने सम्मानित नहीं किया।”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “अच्छे भोजन की बहुतायत”
(मरियम परमेश्वर की स्तुति कर रही है)
“परमेश्वर ने संभाल लिया”
यहाँ “इस्राएल” का अर्थ है इस्राएल राष्ट्र या इस्राएल की प्रजा। यदि पाठक इसे एक मनुष्य इस्राएल समझने की भूल करें तो इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “अपने सेवक इस्राएल राष्ट्र को” या “उसके सेवकों इस्राएल को”
“क्योंकि उसने प्रतिज्ञा की थी”
“अब्राहम के वंश” (यह मरियम के स्तुतिगान का अंत है)
“मरियम अपने घर लौट आई”
“अपने शिशु को जन्म दिया” या “पुत्र उत्पन्न किया”
“इलीशिबा के पड़ोसियों और परिजनों”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “शिशु के जन्म के आठ दिन बाद” या “जब शिशु आठ दिन का हो गया”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जकरयाह और इलीशिबा के मित्र एवं परिजन” या केवल “लोग”
“शिशु के खतने के लिए” या “शिशु के खतने के संस्कार के लिए” शिशु का खतना तो एक ही व्यक्ति करता था परन्तु परिवार के साथ आनन्द मनाने के लिए लोग उपस्थित होते थे।
“वे उसका नाम रखने लगे” या “वे उसे नाम देना चाहते थे”।
“उसके पिता के जैसा नाम” या “उसके पिता के नाम के अनुसार”
इलीशिबा ने उसका नाम यूहन्ना बताया था इसलिए वे उससे कह रहे थे इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “उस नाम से हो”
“उन्होंने” अर्थात उन लोगों ने जो उसके खतना के समय वहां उपस्थित थे।
“शिशु के पिता से”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कि जकरयाह शिशु का क्या नाम रखना चाहता है” या “वह अपने पुत्र को क्या नाम देना चाहता है”।
“जकरयाह ने मांगी” उसने संकेत करके समझाया होगा।
इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “लिखने के लिए कुछ मंगाया” या कुछ अनुवादक यह भी जोड़ना चाहेंगे, “और जब उन्होंनें उसे वह दिया”
विस्मित हुए
ये मुहावरे हैं जिनका अर्थ है कि वह अब बोलने लगा था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जकर्याह और इलीशिबा के आसपास जितने लोग रहते थे सब पर भय छा गया” या “उनके आसपास रहने वाले सब लोग विस्मय एवं भय से अभिभूत हो गए” क्योंकि उन्होंने देखा कि परमेश्वर सामर्थी है “उसके आसपास के सब रहनेवालों” का अर्थ उनके निकट पड़ोसियों से ही नहीं, उस क्षेत्र के सब लोगों से है।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “सब लोग इन बातों की चर्चा कर रहे थे”।
सब सुनने वालों ने सुननेवालों का अर्थ है, जो कुछ वहां हुआ था उसे सुनकर
“सोचने लगे”
“सोचने लगे” या “पूछने लगे”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यह बालक बड़ा होकर कैसा महान मनुष्य होगा” या “यह बालक कैसा महान होगा।” इस प्रश्न से मनुष्यों का आश्चर्य व्यक्त होता है। उन्होंने शिशु के बारे में जो सुना उससे उन्हें यह अनुभूति हुई कि वह एक महापुरूष होगा।
“परमेश्वर का सामर्थ्य उस पर था” या “परमेश्वर उसमें सशक्ति कार्य कर रहा था” यह लाक्षणिक प्रयोग का एक उदाहरण है जिन्हें परमेश्वर के सामर्थ्य के स्थान में “प्रभु का हाथ” उपयोग किया गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “भविष्यद्वाणी करके कहा” अपनी भाषा में अपरोक्ष कथनों को व्यक्त करने की विधि खोजें।
“इस्राएल पर राज करने वाला परमेश्वर” या “जिस परमेश्वर की इस्राएल उपासना करता है” यहाँ इस्राएल से अभिप्राय है, इस्राएल राष्ट्र जकरयाह और वे सब जिससे वह बात कर रहा है सब इस्राएलवासी है।
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है “हमारी सहायता के लिए आया”
“परमेश्वर के लोगों पर”
(जकरयाह भविष्यद्वाणी कर रहा है)
अपने सेवक दाऊद “राजा दाऊद जो उसकी सेवा करता था”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर ने यही करने की तो प्रतिज्ञा की थी”।
अर्थात “अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं को प्रेरित किया कि कहें ”(यू.डी.बी.) जब परमेश्वर अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें करता था तब वाणी तो उनकी होती थी परन्तु सन्देश परमेश्वर देता था।
इन दोनों वाक्यांशों का अर्थ है, कि परमेश्वर के लोगों के विरोधी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो हमसे लड़ते और हमारी हानि करते हैं”।
“अधिपत्य” या “नियंत्रण” यहाँ “हाथ” शब्द परमेश्वर के लोगों की हानि के लिए काम में लिया जानेवाला सामर्थ्य या नियंत्रण।
(जकरयाह भविष्यद्वाणी कर रहा है)
“के प्रति दयालु” या “अपनी दया के अनुसार काम करना”
यहाँ "स्मरण" का अर्थ यह नहीं कि वह भूला नहीं। इसका अर्थ है, “समर्पण को पूरा करना” या “किसी बात को निभाना”
“हमारे बैरियों के अधिपत्य से” या “हमारे बैरियों द्वारा क्षतिग्रस्त किए जाने से या हमारे बैरियों द्वारा दासत्व में लिए जाने से”।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “हमारे बैरियों के भय से रहित रह कर”।
“पवित्र और धार्मिकता के मार्गों से (यू.डी.बी.) या “जब हम पवित्र और धर्म के मार्गों का जीवन जीयेंगे” या “जब हम पवित्र जीवन जीयेंगे और उचित काम करेंगे”।
“उसकी उपस्थिति में” या “उसकी इच्छा के अनुकूल”।
“संपूर्ण जीवन”
(जकरयाह भविष्यद्वाणी कर रहा है परन्तु अब वह अपने नवजात शिशु से सीधा कह रहा है।)
वह वास्तव में एक भविष्यद्वक्ता होगा और लोग उसे भविष्यद्वक्ता मानेंगे भी। इसे स्पष्ट करने के लिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तू एक भविष्यद्वक्ता होगा”।
इसका अनुवाद होगा “जो सर्वोच्च परमेश्वर की सेवा करेगा” या “जो सर्वोच्च परमेश्वर का वक्ता होगा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर उनके पाप क्षमा करके उनका उद्धार कैसे करेगा।”
(जकरयाह अपने नवजात शिशु से ही भविष्यद्वाणी कर रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “क्योंकि वह हम पर कृपालु और दयालु है”
ध्यान दें कि इन सब पदों में “हमारे” और “हम” समाहित हैं।
“उगते हुए सूर्य के समान” या “भोर के समान”
यह एक उपमा है जिसका अर्थ है, “वह ज्ञान प्रदान करेगा”। उसका अनुवाद हो सकता है, “वह आत्मिक ज्योति प्रदान करेगा।”
इस रूपक का अर्थ है, “सत्य से अनभिज्ञ जनों को”
इस पुस्तक का अर्थ है, “जो मरने पर है” या “जिन्हें भय है कि वे शीघ्र ही मर जायेंगे”।
यह रूपक शिक्षा देने को व्यक्त करता है।
यह एक अंग द्वारा दूसरे अंग का निर्देश है जो संपूर्ण मनुष्य का संदर्भ देता है, केवल पांव ही नहीं। इसका अनुवाद हो सकता है, “हमें”
इस रूपक का अर्थ है, “शान्ति के जीवन में” या “परमेश्वर के साथ मेल के जीवन में”। इसका अनुवाद हो सकता है, “शान्ति में लाने वाले मार्ग में चलायेगा” या “ऐसे जीवन में निर्वाह करायेगा जिसके कारण परमेश्वर से मेल होता है। सुनिश्चित करें कि आपका अनुवाद “हमारे पांवों” के अनुवाद से सुसंगत हो।
“आयु और शरीर में विकसित होता गया” (वयस्क हो गया) इसके अनुवाद में स्पष्ट करना होगा कि वह अब बालक नहीं था जब वह निर्जन स्थान में रह रहा था।
“आत्मिकता में परिपक्व हो गया” या “दृढ़ नैतिक चरित्र का विकास किया” या “परमेश्वर के साथ संबन्ध में अधिकाधिक दृढ़ होता गया”
इसका अर्थ यह नहीं कि यूहन्ना अब निर्जन स्थान में नहीं रह रहा था। अपनी सार्वजनिक सेवा आरंभ करने के बाद भी यूहन्ना निर्जन स्थान में ही रहता था। अतः अर्थ स्पष्ट करने के लिए इसका अनुवाद इस प्रकार करे, “के समय भी”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “सबके सामने आने तक” या “आम जनता में प्रचार करने के समय”
"प्रत्यक्ष साक्षी" वे थे जो यीशु के साथ उसकी सेवा के आरंभ से थे।
उन्होंने यीशु के कामों का वृत्तान्त लिखा है।
वह थियुफिलुस को उन बातों की सत्यता बताना चाहता था जो उसने सीखी थी।
परमेश्वर उन्हें धर्मी ठहराया, क्योंकि उन्होंने उसकी आज्ञाएं मानी थी।
वे निःसन्तान थे क्योंकि इलीशिबा बांझ थी और वे दोनों वृद्ध थे।
जकरयाह एक याजक था।
वह परमेश्वर के समक्ष धूप जलाता था।
सभी लोग बाहर आंगन में प्रार्थना कर रहे थे।
मन्दिर में परमेश्वर का एक दूत जकरयाह के समक्ष प्रकट हुआ।
स्वर्गदूत को देखकर जकरयाह डर गया।
स्वर्गदूत ने जकरयाह से कहा कि वह डरे नहीं उसकी पत्नी पुत्र जनेगी, उस पुत्र का नाम यूहन्ना होगा।
स्वर्गदूत ने कहा कि यूहन्ना इस्राएल के वंशजों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर फेर लायेगा।
प्रभु के लिए तैयार किए गए लोग योग्य प्रजा होंगे।
उस स्वर्गदूत का नाम जिब्राईल था वह परमेश्वर के सामने खड़ा रहता था।
पुत्र के जन्म लेने तक जकरयाह बोलने योग्य न रहा।
मरियम नामक एक कुंवारी थी जिसकी मंगनी दाऊदवंशी यूसुफ के साथ हुई थी।
स्वर्गदूत ने मरियम से कहा कि वह गर्भधारण करेगी।
उस बालक का नाम यीशु होगा और वह याकूब के वंशजों पर सर्वदा राज करेगा।
स्वर्गदूत ने कहा कि पवित्र आत्मा मरियम पर उतरेगा और परम प्रधान का सामर्थ्य उस पर छाया करेगा।
उस स्वर्गदूत ने कहा कि वह बालक परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।
कुछ नहीं।
बच्चा उसके पेट में उछला।
इलीशिबा ने कहा कि मरियम और उसका शिशु धन्य है ।
अब्राहम और उसके वंशजों से की गई परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं पूरी होंगी कि वह उन पर दयावान होगा और उन्हें संभालेगा।
जकरयाह।
जकरयाह ने लिखा, "इसका नाम यूहन्ना है" और तब बोलने लगा।
उन्हें समझ में आ गया कि प्रभु का हाथ उस पर है।
परमेश्वर ने अपनी प्रजा को मुक्त करवाने का मार्ग ले लिया है।
यूहन्ना मनुष्यों को बताएगा कि वे अपने पापों की क्षमा द्वारा कैसे बचाए जायेंगे।
यूहन्ना बड़ा होकर जंगल में रहने लगा।
1 उन दिनों में औगुस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे रोमी साम्राज्य के लोगों के नाम लिखे जाएँ। 2 यह पहली नाम लिखाई उस समय हुई, जब क्विरिनियुस* सीरिया का राज्यपाल था। 3 और सब लोग नाम लिखवाने के लिये अपने-अपने नगर को गए। 4 अतः यूसुफ भी इसलिए कि वह दाऊद के घराने और वंश का था, गलील के नासरत नगर से यहूदिया में दाऊद के नगर बैतलहम को गया। 5 कि अपनी मंगेतर मरियम के साथ जो गर्भवती थी नाम लिखवाए। 6 उनके वहाँ रहते हुए उसके जनने के दिन पूरे हुए। 7 और वह अपना पहलौठा पुत्र जनी और उसे कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा; क्योंकि उनके लिये सराय में जगह न थी।
8 और उस देश में कितने गड़ेरिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे। 9 और परमेश्वर का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ; और प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमका, और वे बहुत डर गए। 10 तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “मत डरो; क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ; जो सब लोगों के लिये होगा, 11 कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और वही मसीह प्रभु है। 12 और इसका तुम्हारे लिये यह चिन्ह है, कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।” 13 तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का दल परमेश्वर की स्तुति करते हुए और यह कहते दिखाई दिया,
14 “आकाश में परमेश्वर की महिमा और
पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है शान्ति हो।”
15 जब स्वर्गदूत उनके पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियों ने आपस में कहा, “आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें।” 16 और उन्होंने तुरन्त जाकर मरियम और यूसुफ को और चरनी में उस बालक को पड़ा देखा। 17 इन्हें देखकर उन्होंने वह बात जो इस बालक के विषय में उनसे कही गई थी, प्रगट की। 18 और सब सुननेवालों ने उन बातों से जो गड़ेरियों ने उनसे कहीं आश्चर्य किया। 19 परन्तु मरियम ये सब बातें अपने मन में रखकर सोचती रही। 20 और गड़ेरिये जैसा उनसे कहा गया था, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए।
21 जब आठ दिन पूरे हुए, और उसके खतने का समय आया, तो उसका नाम यीशु रखा गया, यह नाम स्वर्गदूत द्वारा, उसके गर्भ में आने से पहले दिया गया था। (उत्प. 17:12, लैव्य. 12:3) 22 और जब मूसा की व्यवस्था के अनुसार मरियम के शुद्ध होने के दिन पूरे हुए तो यूसुफ और मरियम उसे यरूशलेम में ले गए, कि प्रभु के सामने लाएँ। (लैव्य. 12:6) 23 जैसा कि प्रभु की व्यवस्था में लिखा है: “हर एक पहलौठा प्रभु के लिये पवित्र ठहरेगा।” (निर्ग. 13:2,12) 24 और प्रभु की व्यवस्था के वचन के अनुसार, “पण्डुकों का एक जोड़ा, या कबूतर के दो बच्चे लाकर बलिदान करें।” (लैव्य. 12:8)
25 उस समय यरूशलेम में शमौन नामक एक मनुष्य था, और वह मनुष्य धर्मी और भक्त था; और इस्राएल की शान्ति की प्रतीक्षा कर रहा था, और पवित्र आत्मा उस पर था। 26 और पवित्र आत्मा के द्वारा प्रकट हुआ, कि जब तक तू प्रभु के मसीह को देख न लेगा, तब-तक मृत्यु को न देखेगा। 27 और वह आत्मा के सिखाने से मन्दिर में आया; और जब माता-पिता उस बालक यीशु को भीतर लाए, कि उसके लिये व्यवस्था की रीति के अनुसार करें, 28 तो उसने उसे अपनी गोद में लिया और परमेश्वर का धन्यवाद करके कहा:
29 “हे प्रभु, अब तू अपने दास को अपने
वचन के अनुसार शान्ति से विदा कर दे;
30 क्योंकि मेरी आँखों ने तेरे उद्धार को देख
लिया है।
31 जिसे तूने सब देशों के लोगों के सामने
तैयार किया है। (यशा. 40:5)
32 कि वह अन्यजातियों को सत्य प्रकट करने के
लिए एक ज्योति होगा,
और तेरे निज लोग इस्राएल की महिमा हो।” (यशा. 42:6, यशा. 49:6)
33 और उसका पिता और उसकी माता इन बातों से जो उसके विषय में कही जाती थीं, आश्चर्य करते थे। 34 तब शमौन ने उनको आशीष देकर, उसकी माता मरियम से कहा, “देख, वह तो इस्राएल में बहुतों के गिरने, और उठने के लिये, और एक ऐसा चिन्ह होने के लिये ठहराया गया है, जिसके विरोध में बातें की जाएँगी (यशा. 8:14-15) 35 (वरन् तेरा प्राण भी तलवार से आर-पार छिद जाएगा) इससे बहुत हृदयों के विचार प्रगट होंगे।”
36 और अशेर के गोत्र में से हन्नाह नामक फनूएल की बेटी एक भविष्यद्वक्तिन* थी: वह बहुत बूढ़ी थी, और विवाह होने के बाद सात वर्ष अपने पति के साथ रह पाई थी। 37 वह चौरासी वर्ष से विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी। 38 और वह उस घड़ी वहाँ आकर परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी, और उन सभी से, जो यरूशलेम के छुटकारे की प्रतीक्षा कर रहे थे, उसके विषय में बातें करने लगी। (यशा. 52:9)
39 और जब वे प्रभु की व्यवस्था के अनुसार सब कुछ निपटा चुके तो गलील में अपने नगर नासरत को फिर चले गए। 40 और बालक बढ़ता, और बलवन्त होता, और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया; और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर था।
41 उसके माता-पिता प्रति वर्ष फसह के पर्व में यरूशलेम को जाया करते थे। (निर्ग. 12:24-27, व्य. 16:1-8) 42 जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए। 43 और जब वे उन दिनों को पूरा करके लौटने लगे, तो वह बालक यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे। 44 वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचान वालों में ढूँढ़ने लगे। 45 पर जब नहीं मिला, तो ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए। 46 और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उनकी सुनते और उनसे प्रश्न करते हुए पाया। 47 और जितने उसकी सुन रहे थे, वे सब उसकी समझ और उसके उत्तरों से चकित थे। 48 तब वे उसे देखकर चकित हुए और उसकी माता ने उससे कहा, “हे पुत्र, तूने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूँढ़ते थे।” 49 उसने उनसे कहा, “तुम मुझे क्यों ढूँढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में* होना अवश्य है?” 50 परन्तु जो बात उसने उनसे कही, उन्होंने उसे नहीं समझा। 51 तब वह उनके साथ गया, और नासरत में आया, और उनके वश में रहा; और उसकी माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं। 52 और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया। (1 शमू. 2:26, नीति. 3:4)
इस वाक्यांश से प्रकट होता है कि केवल एक नये विषय का उल्लेख करने जा रहा है।
इस वाक्यांश का अर्थ है कि यह एक वृत्तान्त का आरंभ है। यदि आपकी भाषा में किसी नये वृत्तान्त को आरंभ करने का प्रावधान है, तो आप उसका उपयोग करें। कुछ अनुवादों में इसे काम में नहीं लिया गया है।
“राजा औगस्तुस” या “सम्राट औगुस्तुस” औगुस्तुस रोम का सर्वप्रथम सम्राट था।
आज्ञा का अर्थ है आदेश या अध्यादेश निकाला इसका अनुवाद हो सकता है, राजाज्ञा निकाली” या “आदेश दिया” या “आज्ञा दी”
नाम लिखे जाएं अर्थात् सरकारी जनगणना। किसी क्षेत्र के सब लोगों के नाम लिखे जाएं कि कर भुगतान निर्धारित किया जाए।
सारे जगत के लोगों के नाम लिखे जाएं - इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है "सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य के निवासियों का पंजीकरण किया जाए" या “रोमी साम्राज्य के सब लोगों की गणना करके लेखा तैयार किया जाए।”
इसका अनुवाद हो सकता है, “रोम के अधीन जो संसार था” या "रोमी सम्राट के अधीनस्थ देशों की जनता" या “रोमी साम्राज्य के”।
क्विरिनियुस को सीरिया का प्रशासक नियुक्त किया गया था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “हर एक जन निकल पड़ा” या “हर एक जन जा रहा था”
“उसके पूर्वजों के नगर को”
“अपने अपने नाम का पंजीकरण करवाने के लिए” या “राजसी लेखे में नाम चढ़वाने के लिए”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यहूदिया में बैतलहम नगर गया” बैतलहम नासरत से ऊंचे पर था।
दाऊद के नगर -बैतलहम को उसके महत्त्व के कारण नगर कहा जाता था न कि जनसंख्या के कारण। राजा दाऊद का जन्म वहां हुआ था और भविष्यद्वाणी थी कि मसीह का जन्म उस नगर में होगा। “दाऊद के नगर” का अनुवाद “राजा दाऊद के नगर” किया जा सकता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने नाम का पंजीकरण करवाने” या “जनगणना में लिखवाने”।
मरियम नासरत से यूसुफ के साथ गई। यह एक संभावना है कि स्त्रियों पर भी कर लगाया जाता था। अतः आवश्यक था कि मरियम भी जाकर अपने नाम का पंजीकरण करवाएं।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “होने वाली पत्नी” या “जो उसके साथ वचनबद्ध थी” वहां मंगनी के बाद दम्पत्ति को वैधानिक रूप से विवाहित माना जाता था परन्तु उनमें शारीरिक संबन्ध नहीं था।
“जब यूसुफ और मरियम बैतलहम में थे”
“समय हो गया”
“शिशु के जन्म देने का समय” प्रचलित अभिव्यक्ति काम में लें कि पाठकों को संकोच न हो।
इसका अनुवाद किया जा सकता है “उसे सुविधापूर्वक चादर में लपेटा” या “उसको संभालकर चादर में लपेटा” यह कार्य नवजात शिशु के लिए प्रेम एवं चिन्ता की अभिव्यक्ति है।
यह एक पात्र होता था जिसमें पशुओं को खाने के लिए घास डाला जाता था। अति संभव है कि वह स्वच्छ था और उसमें शिशु के लिए गद्दे का काम करने के लिए सूखा चारा भी होगा। पशुओं को घर के पास ही रखा जाता था। कि वे सुरक्षित रहे और उन्हें चारा डालना आसान हो। स्पष्ट है कि यूसुफ और मरियम उस कक्ष में थे जहाँ पशुओं को रखा जाता था।
यह अतिथियों या यात्रियों के लिए एक पृथक स्थान होता था।
“उनके लिए धर्मशाला में ठहरने का स्थान नहीं था” इसका कारण था कि बैतलहम में जनगणना के लिए आने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक थी।
यह स्पष्ट नहीं है कि मरियम ने अपने प्रभु को चरनी में क्यों रखा। आप सलंग्न जानकारी को स्पष्ट व्यक्त कर सकते हैं कि वे पशुशाला में ठहरे हुए थे और पद 7 में जानकारी का क्रम बदल सकते हैं, उनके लिए सराय में स्थान उपलब्ध नहीं था। इसलिए उन्हें पशुशाला में ठहरना पड़ा। जब मरियम ने अपने पहिलौठे पुत्र को जन्म दिया तब उसने उसे कपड़े में अच्छी तरह लपेटा और चरनी में रख दिया।
“उसके परिवेश में” या “बैतलहम के पास”
“देखभाल कर रहे थे” या “उन्हें सुरक्षित रखने के लिए चौकसी कर रहे थे”।
“भेड़ों के समूह की”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सूर्यास्त के बाद जब अन्धेरा हो गया”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है “प्रभु की ओर से एक स्वर्गदूत” या “प्रभु का सेवक स्वर्गदूत” या “प्रभु का भेजा हुआ एक स्वर्गदूत”
“उनके निकट प्रकट हुआ”
“निडर रहो”
“क्योंकि मैं तुम्हारे लिये शुभ सन्देश लाया हूँ” या "मैं तुम्हे आनन्द का समाचार सुनाता हूँ।"
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जिसे सुनकर सब लोग अति आनन्दित होंगे।”
कुछ विचारकों के अनुसार इसका अर्थ है, “सब यहूदी” और कुछ के अनुसार “सब लोग”
इसका अनुवाद हो सकता है, “दाऊद के नगर बैतलहम में”
इसका अनुवाद हो सकता है “परमेश्वर तुम्हें यह चिन्ह देता है” या “तुम परमेश्वर का यह चिन्ह देखोगे”।
यह या तो स्वर्गदूत की बात को सत्य सिद्ध करने का पता है या शिशु की पहचान का पता है। इसका अनुवाद “प्रमाण” किया जा सकता है, पहली समझ के लिए और दूसरी समझ के लिए “विशिष्ट चिन्ह”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “जिसे चादर में अच्छी तरह लपेटा गया है।"
इसका अर्थ “स्वर्गदूतों की सेना” या रूपक माने तो “व्यवस्थित समूह” हो सकता है।
इसका अनुवाद हो सकता है, “वे परमेश्वर का गुणगान कर रहे थे।"
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “सर्वोच्च स्थान में परमेश्वर की स्तुति करते” या (2) “परमेश्वर की सर्वोत्तम स्थान में चर्चा करो” या “परमेश्वर की सर्वोत्तम स्थान में चर्चा करो” या “परमेश्वर की सर्वोत्तम स्तुति करो”।
“पृथ्वी पर जिन मनुष्यों से परमेश्वर प्रसन्न है उनमें शान्ति हो”
“चरवाहों के पास से”
“एक दूसरे से”
चरवाहे एक दूसरे से बातें कर रहे हैं, अतः जिन भाषाओं में “हम” और “हमें” के समावेशी रूप हैं तो उन रूपों का यहाँ प्रयोग करें।
“चरवाहों ने मनुष्यों में चर्चा की”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “स्वर्गदूत ने उन चरवाहों से जो कहा था”।
“उस शिशु”
“चरवाहे ने उन्हें जो बातें बताई थी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन सब बातों को सावधानीपूर्वक स्मरण रखा” या “उन्हें आनन्दपूर्वक स्मरण रखा” मन में रखने का अर्थ है, कि वह बात अत्यधिक महत्त्वपूर्ण समझा था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे भेड़ों के चारागाहों में लौट गए”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर की महानता का गुणगान करते हुए”
“उन्होंने उसे यीशु नाम दिया” या “उसे यीशु नाम से पुकारा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “स्वर्गदूत ने उसे जो नाम दिया था" या "स्वर्गदूत ने उसे यही नाम दिया था”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “परमेश्वर ने जितने दिन निर्धारित किए थे वे पूरे हुए”
“धार्मिक संस्कार के अनुसार शुद्ध होने के” या “परमेश्वर द्वारा उन्हें शुद्ध स्वीकार करने के दिन”
“उसे प्रभु को समर्पित करें” या “उसे प्रभु की उपस्थिति में प्रस्तुत करें” यह एक संस्कार था जिसमें स्वीकार किया जाता था कि पहिलौठे पुत्र पर परमेश्वर का अधिकार है
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्होंने ऐसा किया क्योंकि विधान में लिखा था।"
“पहला पुत्र” विधान के अनुसार मनुष्य हो या पशु सबकी प्रथम नर सन्तान, परन्तु यहाँ अनुवाद इस प्रकार करें, “पहला जन्मा पुत्र”
ये साधारणतः पाये जाने वाले पक्षी है जो अन्न खाते हैं और खुले स्थानों में रहते हैं। वे छोटे होते हैं कि हाथों से पकड़ लिए जाए। वे खाए भी जाते हैं।
ये भी अन्न-भक्षी पक्षी हैं, और अधिकतर पर्वतों में रहते है। ये छोटे पक्षी होते हैं कि हाथों में आ जाए और खाए भी जाते हैं।
“परमेश्वर का भक्त” या “परमेश्वर का निष्ठावान”
इसका अनुवाद हो सकता है, “इस्राएल के शान्तिदाता” यह “मसीह” या “ख्रीस्त का दूसरा नाम है।
“पवित्र आत्मा उसके साथ था”, परमेश्वर उसके साथ विशेष रूप से उपस्थित था और उसे जीवन में निर्देशन एवं बुद्धि देता था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पवित्र-आत्मा ने उस पर प्रकट किया था” या “पवित्र-आत्मा ने उससे कहा था”।
इसका अनुवाद होगा “वह मरने से पहले परमेश्वर के मसीह को देखेगा” या “वह परमेश्वर के मसीह को देखने के बाद ही मरेगा”। यहाँ “प्रभु” शब्द परमेश्वर के लिए काम में लिया गया है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “गया”
इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर के निर्देशानुसार” या “पवित्र-आत्मा की अगुवाई में”
“यीशु के माता-पिता”
“परमेश्वर के विधान के अनुसार”
“उसे लिया”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “मैं तेरा दास हूँ, मुझे शान्तिपूर्वक विदा होने दे, शमौन अपने बारे में कह रहा था।
यह अलंकृत शैली है, विदा का अर्थ है मृत्यु।
इसका अनुवाद हो सकता है, “जैसा तूने कहा है” या “क्योंकि तूने कहा है कि तू करेगा”
इसका संदर्भ यीशु से है, यीशु के द्वारा परमेश्वर मनुष्यों का उद्धार करेगा।
“योजना बनाई है” या “होने का कारण बताया है”
“संपूर्ण मानवजाति के देखने के लिए”
यह उद्धारकर्ता के संदर्भ में है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है “यह बालक मनुष्यों को समर्थ बनायेगा कि वे परमेश्वर के सत्य को अति उचित ग्रहण करें जैसे ज्योति मनुष्य को देखने में समर्थ बनाती है।
इसका अनुवाद हो सकता है, “तेरी प्रजा इस्राएल में ज्योति के आगमन का कारण होगा”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “इस्राएल में अनेकों को परमेश्वर से विमुख होने या परमेश्वर के निकट आने के लिए ठहराया गया है” इस रूपक में परमेश्वर से विमुख होने तथा परमेश्वर के निकट आने के विचार को “गिरने” तथा “उठने” द्वारा व्यक्त किया गया है। इसका अनुवाद हो सकता है, “उसके लिए परमेश्वर की योजना है कि वह कुछ को परमेश्वर से दूर तथा कुछ को परमेश्वर के निकट लाए”।
यह भी एक रूपक है जो मरियम के अपार दुःख को दर्शाता है। इसका अनुवाद हो सकता है, “तेरी हार्दिक वेदना सहनशक्ति के परे होगी” या "तेरा दुःख ऐसा होगा जैसे तेरा हृदय तलवार से बेधा गया है" या “तेरा हृदय विदीर्ण होगा”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “बहुत लोगों के विचार प्रकट होंगे” या “परमेश्वर के बारे में मनुष्य जो सोचते हैं वह प्रकट हो जायेगा”
“अपने विवाह के बाद”
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) वह चौरासी वर्षों से विधवा थी, (2) वह चौरासी वर्ष की विधवा थी।
यह एक अतिशयोक्ति है कि वह मन्दिर में इतना समय रहती थी कि जैसे वह वहां से कहीं जाती ही नहीं थी। इसका अनुवाद हो सकता है, “वह सदैव मन्दिर में रहती थी” या अतिशयोक्ति-रहित अर्थ व्यक्त किया जा सकता है, “वह प्रायः मन्दिर में ही रहती थी”।
“भोजन न करके प्रार्थना करती थी”
“उनके पास आई” या “मरियम और यूसुफ के पास आई”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यरूशलेम को मुक्त कराने वाले की” या “यरूशलेम के लिए परमेश्वर की आशिषों और अनुग्रह को लौटा लाने वाले की” यहाँ “छुटकारा” शब्द उसके कर्ता के लिए काम में लिया गया है।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “परमेश्वर के विधान के अनुसार जो अनिवार्य था” या (2) “परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उनके लिए जो आवश्यक था”।
“अधिकाधिक बुद्धिमान होता गया” या “बुद्धिमान होना सीखता गया”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर ने उसे आशीष दी” या “परमेश्वर उसके साथ विशेष रूप में था”।
“यीशु के माता-पिता”
यरूशलेम पहाड़ पर था, अतः उपासकों को ऊपर चढ़ना होता था।
“जब पर्व के दिन पूरे हो गए” या “पर्व के जितने दिन थे, उसके बाद”।
“उन्होंने सोचा”
“एक दिन की यात्रा कर चुके” या “एक दिन की पद यात्रा तक आगे निकल गए”।
“जब मरियम और यूसुफ को यीशु नहीं मिला”
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण घटना का बोध करवाया गया है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
इसका अनुवाद हो सकता है, “मन्दिर परिसर में” या “मन्दिर के द्वार”
इसका अर्थ उनके बीचों-बीच नहीं वरन “उनके साथ” या “उनकी संगति में” या “उनके मध्य” (यू.डी.बी.)
“धर्म के शिक्षकों” या “परमेश्वर की शिक्षा देने वालों”
इसका अनुवाद हो सकता है, “वह कितना अधिकार समझता था” या “कि वह परमेश्वर के बारे में इतनी समझ रखता है”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “उसके उचित उत्तरों” या “वह उनके प्रश्नों के ऐसे उचित उत्तर देता था।”
“जब मरियम और यूसुफ ने यीशु को वहां देखा”
इसका अनुवाद हो सकता है, “तू ऐसा कैसे कर सकता है” यह एक प्रकार की अप्रत्यक्ष डांट है क्योंकि वह घर लौटने में उनके साथ नहीं था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम मुझे अन्यत्र क्यों खोज रहे थे?”
यह शब्द एक नई घटना का सूचक है। इसके द्वारा कार्य का आरंभ भी दर्शाया जाता है। यदि आपकी भाषा में इसके लिए शब्द है तो देखें कि उनका उपयोग स्वभाविक होगा।
यह एक ऐसा प्रश्न है, जो जानकारी के लिए नहीं, प्रभाव डालने के लिए पूछा जाता है। यीशु उनकी जानकारी नहीं चाहता था परन्तु उन पर कुछ प्रकट कर रहा था इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम्हें जानता था”।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “मेरे पिता के भवन में” या (2) “मेरे पिता के काम में”, दोनों ही में यीशु जब कहता है, “मेरे पिता” तो वह परमेश्वर को संबोधित कर रहा है। “भवन” से उसका अभिप्राय था मन्दिर। “काम” से उसका तात्पर्य था, परमेश्वर प्रदत्त कार्य। क्योंकि अगले पद में कहा गया है कि उन्होंने उसे नहीं समझा इसलिए उचित होगा कि इसे व्यख्या द्वारा स्पष्ट करें।
“यीशु मरियम और यूसुफ के साथ लौट गया”
“उनकी आज्ञा मानता रहा” या “उनका आज्ञाकारी बना रहा”।
“सावधानीपूर्वक स्मरण रखा” या “आनन्द से विचार किया” मरियम ने अपने पुत्र के कामों और बातों को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण समझा था।
“अधिकाधिक बुद्धिमान और बलवन्त होता गया”
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्य उसे अधिकाधिक चाहने लगे थे और परमेश्वर भी उसे अधिकाधिक आशीष देता रहा था।
लोग नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने नगर को गए।
यूसुफ और मरियम बैतलहम गए क्योंकि यूसुफ दाऊद का वंशज था।
शिशु का जन्म होने पर मरियम ने उसे पशुओं की चरनी में रखा।
अपनी भेड़ो की रखवाली कर रहे चरवाहों को स्वर्गदूत दिखाई दिया।
चरवाहे बहुत डर गए थे।
स्वर्गदूत ने उन चरवाहों से कहा कि उद्धारकर्ता जन्मा है, यही मसीह प्रभु है।
चरवाहे उस नवजात बालक को देखने बैतलहम गए।
जन्म के आठवें दिन यीशु का खतना किया गया।
वे उसे परमेश्वर को समर्पित करने और बलि चढ़ाने के लिए मन्दिर गए जो मूसा की व्यवस्था में एक आज्ञा थी।
पवित्र आत्मा ने शमौन से कहा था कि जब तक वह प्रभु के मसीह को न देख ले तब तक यह नहीं मरेगा।
शमौन ने भविष्यद्वाणी की कि यीशु अन्यजातियों में सत्य प्रकाशन की ज्योति और परमेश्वर की प्रजा की महिमा होगा।
शमौन ने कहा कि उसका प्राण तलवार से छेदा जायेगा।
हन्नाह परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी और उस बालक के विषय में सबसे बातें करने लगी।
यीशु बढ़ता और बलवन्त होता गया और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर था।
उन्हें इसका बोध नहीं था क्योंकि उन्होंने सोचा कि यीशु साथ चल रहे समूह में ही होगा।
उसके माता-पिता ने उसे मन्दिर में पाया, वह मन्दिर में उपदेशकों की बातें सुन रहा था और उनसे प्रश्न पूछ रहा था।
"क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?"
वह उनका आज्ञाकारी रहा।
वह बुद्धि और शरीर में बढ़ता गया और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया।
1 तिबिरियुस कैसर के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष में जब पुन्तियुस पिलातुस यहूदिया का राज्यपाल था, और गलील में हेरोदेस इतूरैया, और त्रखोनीतिस में, उसका भाई फिलिप्पुस, और अबिलेने में लिसानियास चौथाई के राजा थे। 2 और जब हन्ना और कैफा महायाजक* थे, उस समय परमेश्वर का वचन जंगल में जकर्याह के पुत्र यूहन्ना के पास पहुँचा। 3 और वह यरदन के आस-पास के सारे प्रदेश में आकर, पापों की क्षमा के लिये मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करने लगा। 4 जैसे यशायाह भविष्यद्वक्ता के कहे हुए वचनों की पुस्तक में लिखा है:
“जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा है कि,
‘प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो।
5 हर एक घाटी भर दी जाएगी, और हर एक
पहाड़ और टीला नीचा किया जाएगा;
और जो टेढ़ा है सीधा, और जो ऊँचा नीचा
है वह चौरस मार्ग बनेगा।
6 और हर प्राणी परमेश्वर के उद्धार को देखेगा’।” (यशा. 40:3-5)
7 जो बड़ी भीड़ उससे बपतिस्मा लेने को निकलकर आती थी, उनसे वह कहता था, “हे साँप के बच्चों, तुम्हें किस ने चेतावनी दी, कि आनेवाले क्रोध से भागो। 8 अतः मन फिराव के योग्य फल लाओ: और अपने-अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता अब्राहम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिये सन्तान उत्पन्न कर सकता है। 9 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है।” 10 और लोगों ने उससे पूछा, “तो हम क्या करें?” 11 उसने उन्हें उतर दिया, “जिसके पास दो कुर्ते हों? वह उसके साथ जिसके पास नहीं हैं बाँट ले और जिसके पास भोजन हो, वह भी ऐसा ही करे।” 12 और चुंगी लेनेवाले भी बपतिस्मा लेने आए, और उससे पूछा, “हे गुरु, हम क्या करें?” 13 उसने उनसे कहा, “जो तुम्हारे लिये ठहराया गया है, उससे अधिक न लेना।” 14 और सिपाहियों ने भी उससे यह पूछा, “हम क्या करें?” उसने उनसे कहा, “किसी पर उपद्रव न करना, और न झूठा दोष लगाना, और अपनी मजदूरी पर सन्तोष करना।” 15 जब लोग आस लगाए हुए थे, और सब अपने-अपने मन में यूहन्ना के विषय में विचार कर रहे थे, कि क्या यही मसीह तो नहीं है। 16 तो यूहन्ना ने उन सब के उत्तर में कहा, “मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु वह आनेवाला है, जो मुझसे शक्तिशाली है; मैं तो इस योग्य भी नहीं, कि उसके जूतों का फीता खोल सकूँ, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा। 17 उसका सूप, उसके हाथ में है; और वह अपना खलिहान अच्छी तरह से साफ करेगा; और गेहूँ को अपने खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जो बुझने की नहीं जला देगा।” 18 अतः वह बहुत सी शिक्षा दे देकर लोगों को सुसमाचार सुनाता रहा।
19 परन्तु उसने चौथाई देश के राजा हेरोदेस को उसके भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के विषय, और सब कुकर्मों के विषय में जो उसने किए थे, उलाहना दिया। 20 इसलिए हेरोदेस ने उन सबसे बढ़कर यह कुकर्म भी किया, कि यूहन्ना को बन्दीगृह में डाल दिया।
21 जब सब लोगों ने बपतिस्मा लिया, और यीशु भी बपतिस्मा लेकर प्रार्थना कर रहा था, तो आकाश खुल गया। 22 और पवित्र आत्मा शारीरिक रूप में* कबूतर के समान उस पर उतरा, और यह आकाशवाणी हुई “तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्न हूँ।”
23 जब यीशु आप उपदेश करने लगा, तो लगभग तीस वर्ष की आयु का था और (जैसा समझा जाता था) यूसुफ का पुत्र था; और वह एली का, 24 और वह मत्तात का, और वह लेवी का, और वह मलकी का, और वह यन्ना का, और वह यूसुफ का, 25 और वह मत्तित्याह का, और वह आमोस का, और वह नहूम का, और वह असल्याह का, और वह नोगह का, 26 और वह मात का, और वह मत्तित्याह का, और वह शिमी का, और वह योसेख का, और वह योदाह का, 27 और वह यूहन्ना का, और वह रेसा का, और वह जरुब्बाबेल का, और वह शालतियेल का, और वह नेरी का, (एज्रा 3:2, नहे. 12:1) 28 और वह मलकी का, और वह अद्दी का, और वह कोसाम का, और वह इलमोदाम का, और वह एर का, 29 और वह येशू का, और वह एलीएजेर का, और वह योरीम का, और वह मत्तात का, और वह लेवी का, 30 और वह शमौन का, और वह यहूदा का, और वह यूसुफ का, और वह योनान का, और वह एलयाकीम का, 31 और वह मलेआह का, और वह मिन्नाह का, और वह मत्तता का, और वह नातान का, और वह दाऊद का, (2 शमू. 5:14) 32 और वह यिशै का, और वह ओबेद का, और वह बोआज का, और वह सलमोन का, और वह नहशोन का, (रूत 4:20-22) 33 और वह अम्मीनादाब का, और वह अरनी का, और वह हेस्रोन का, और वह पेरेस का, और वह यहूदा का, (1 इति. 2:1-14) 34 और वह याकूब का, और वह इसहाक का, और वह अब्राहम का, और वह तेरह का, और वह नाहोर का, (उत्प. 21:3, उत्प. 25:26, 1 इति. 1:28,34) 35 और वह सरूग का, और वह रऊ का, और वह पेलेग का, और वह एबिर का, और वह शिलह का, 36 और वह केनान का, वह अरफक्षद का, और वह शेम का, वह नूह का, वह लेमेक का, (उत्प. 11:10-26, 1 इति. 1:24-27) 37 और वह मथूशिलह का, और वह हनोक का, और वह यिरिद का, और वह महललेल का, और वह केनान का, 38 और वह एनोश का, और वह शेत का, और वह आदम का, और वह परमेश्वर का पुत्र था। (उत्प. 4:25-5:32, 1 इति. 1:1-4)
वे दोनों प्रधान पुरोहित का कार्यभार उठा रहे थे।
आकर "यूहन्ना ने वहां पहुचकर”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “प्रचार करता था कि मनुष्यों को अपने पापों के त्याग के प्रमाण हेतु बपतिस्मा लेना आवश्यक है।”
“कि उनके पाप क्षमा हों” या “कि परमेश्वर उनके पाप क्षमा करे”, “मन फिराव” पापों की क्षमा के लिए था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “यह वैसा ही हुआ जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने अपनी पुस्तक में लिखा था”, पद 4-6 यशायाह की पुस्तक के उद्धरण हैं। .
“पथ” या “सड़क”
यह अंश इब्रानी कविता का रूप है, जिसमें महत्त्वपूर्ण वाक्यांशों को पर्यायवाची शब्दों में दोहराया जाता है, अतः “प्रभु का मार्ग तैयार करो” को ही व्यक्त करने का दूसरा रूप है, “उसकी सड़के सीधी करो।” यहाँ मुख्य अन्तर है, पहला वाक्यांश प्रकट करता है कि ऐसा पहली बार हुआ है और दूसरा वाक्यांश प्रकट करता है कि ऐसा होते रहता है।
मार्ग के इस रूपक का अर्थ है, “पापों से विमुख होकर प्रभु के आगमन के लिए तैयार करो।”
सड़क की यह उपमा भी एक रूपक है जिसका अर्थ है, “प्रभु के आगमन के लिए लगातार तैयारी करते रहो”।
(यशायाह की भविष्यद्वाणी का उद्धरण अभी समाप्त नहीं हुआ है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मार्ग का हर एक नीचा स्थान भर दिया जायेगा” एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के आगमन की तैयारी में जब वे सड़के तैयार करते हैं तब ऊंचे नीचे स्थानों में मलवा डालकर सड़क को समतल कर दिया जाता है। यह उस रूपक का ही अंश है जिसका आरंभ पिछले पद में हुआ था।
इसका भी अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वे हर एक पर्वत एवं टीले को समतल कर देंगे” या “वे मार्ग के हर एक ऊंचे भाग को सीधा कर देंगे”।
इसका अनुवाद होगा, “सीखेगा कि परमेश्वर मनुष्यों का कैसे उद्धार करता है”।
“कि यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा दे”
यह भी एक रूपक है। विषैले सर्प खतरनाक होते है और बुराई के प्रतीक हैं। इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम दुष्ट विषैले सर्पों” या “तुम विषैले सर्पों के समान दुष्ट हो।”
यूहन्ना यह आलंकारिक प्रश्न पूछ रहा है, “क्योंकि वे बपतिस्मा इसलिए ले रहे थे कि परमेश्वर उन्हें पापों का दण्ड न दे परन्तु वे पाप करना नहीं छोड़ रहे थे”, इसलिये वह उन्हें झिड़क रहा है। इस संपूर्ण प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम इस प्रकार परमेश्वर के हाथ से बच नहीं पाओगे” या “क्या तुम यह सोच रहे हो कि बपतिस्मा लेकर तुम परमेश्वर के क्रोध से बच जाओगे”?
इसका अनुवाद हो सकता है, “आनेवाले दण्ड से” या “परमेश्वर के उस क्रोध से जिसे वह कार्य रूप देगा” या “क्योंकि परमेश्वर तुम्हें दण्ड देने वाला है” यहाँ “क्रोध” परमेश्वर के दण्ड का प्रतीक है क्योंकि दण्ड से पूर्व वह क्रोध करता है।
(यूहन्ना जनसमूह को संबोधित करके कह रहा है)
इसका अनुवाद ऐसे भी हो सकता है, “ऐसे फल लाओ कि तुम्हारा पाप त्याग प्रकट हो”, या “ऐसे भले काम करो जिससे प्रकट हो कि तुम पापों से विमुख हो गए थे” इस रूपक में मनुष्य के आचरण की तुलना फलों से की गई है। जिस प्रकार वृक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने फल उत्पन्न करे, उसी प्रकार मनुष्य जो पापों से विमुख होने का दावा करता है उससे अपेक्षा की जाती है कि वह धार्मिकता का जीवन जीये।
“अपने आपसे यह न कहो” या “मन में यह न कहो” या “मत सोचो”
“अब्राहम हमारा पूर्वज है” या “हम अब्राहम की सन्तान हैं” यह स्पष्ट नहीं कि वे ऐसा क्यों सोचेंगे, आप सलंग्न जानकारी व्यक्त कर सकते हैं, “कि परमेश्वर हमें दण्ड न दे”।
(यूहन्ना जनसमूह से बातें कर रहा है)
कुल्हाडा पेड़ों की जड़ों पर धरा है -, इस रूपक का अर्थ है कि दण्ड का आरंभ होने वाला है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यह ऐसा है कि कुल्हाडा पेड़ों की जड़ो पर प्रहार के लिए तैयार है” या “परमेश्वर उस मनुष्य के समान है जो पेड़ को काटकर गिराने क लिए कुल्हाड़ा उठा चुका है”।
यह कर्मवाच्य वाक्य है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “वह उस हर एक वृक्ष को काटकर गिरा देता है जो अच्छा फल नहीं लाता है।”
आग में झोंका जाता है - इसका अनुवाद कतृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “उसे आग में झोंकता है।”
“उससे प्रश्न किया” या “यूहन्ना से पूछा”
“उनसे प्रत्युत्तर में कहा” या “उनसे कहा” या “कहा”
“इसी प्रकार करो” यहाँ इसका अनुवाद किया जा सकता है, “जिसके पास भोजन नहीं है उसे भोजन दो”।
“कि यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा दे”
“अधिक वसूली मत करो” या “निर्धारित से अधिक कर न लो” चुंगी लेने वाले यथार्थ चुंगी से अधिक वसूल करते थे। उन्हें अपने पाप त्याग के परिणामस्वरूप ऐसा करना था।
“जितना तुम्हें अधिकार दिया गया है”
“सेना में सेवारत”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तूने लोगों को और चुंगी लेने वालो को तो बताया कि वे क्या करें परन्तु हम सैनिकों के बारे में क्या, हम क्या करें”? “हम” और “हमारे” में यूहन्ना नहीं आता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इसी प्रकार किसी पर झूठा दोष लगाकर रिश्वत मत लो” या “किसी निर्दोष को अवैध काम का दोषी मत बनाओ” सैनिक झूठा दोष लगाकर रिश्वत लेते थे।
“अपने वेतन से सन्तुष्ट रहो” या “जो तुम्हें दिया जाता है उसी में सन्तोष करो”।
वही लोग जो यूहन्ना के पास आए थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “क्योंकि मनुष्य”।
“मैं बपतिस्में के लिए पानी काम में लेता हूँ” या “मैं पानी के माध्यम से बपतिस्मा देता हूँ”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं तो उसके जूतों का बन्ध खोलने के लिए भी महत्त्व नहीं रखता”, जूतों का बन्ध खोलना दासों का काम होता था। यूहन्ना के कहने का तात्पर्य था कि वह ऐसा महान है कि यूहन्ना उसके लिए दास-योग्य भी नहीं।
उनके जूते ऐसे होते थे जिनको बन्ध पांव को जूते से बांधते थे जैसे आज की सैंडल।
यह उपमा पानी के बपतिस्में की तुलना आत्मिक बपतिस्में से करते हैं जो मनुष्य को पवित्र-आत्मा और आग के संपर्क में लाता है।
(यूहन्ना मसीह के बारे में ही चर्चा कर रहा था।)
इस रूपक द्वारा धर्मियों को अधर्मियों से चुन कर अलग करने की तुलना अन्न के दानों को भूसी से अलग करने के साथ की गई है। इसका अनुवाद उपमा रूप में किया जा सकता है कि संबन्ध को अधिक स्पष्ट व्यक्त किया जाए, “मसीह उस मनुष्य के सदृश्य है जिसके हाथ में ओसाई कांटा है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह ओसाई कांटा हाथ में लिए हुए है, क्योंकि वह तैयार है”।
यह मूल में ओसाई कांटा है जिसके द्वारा दांवनी किए हुए गेहूँ को हवा में उछाला जाता है, अन्न भारी होने के कारण नीचे गिरता है और भूसी हवा में उड़ जाती है।
यह वह स्थान है जहाँ किसान अन्न को भूसी से अलग करता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इसका स्थान” या “गेहूँ को भूसी से अलग करने का स्थान”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तब वह अन्न एकत्र करेगा”
“कोठार” या “अनाज भण्डार” यहाँ अन्न को भावी उपयोग के लिए सुरक्षित रखा जाता है।
भूसी किसी काम की नहीं होती थी इसलिए लोग उसे जला देते थे।
इसका अनुवाद हो सकता है, “उसके प्रबल प्रबोधनों” या “यूहन्ना ने अनेक बार मनुष्यों को पाप त्याग का प्रोत्साहन देकर और...”
“चौथाई क्षेत्र के राजा हेरोदेस को उसके पापों के बारे में बताया, हेरोदेस चौथाई प्रदेश का प्रशासक था, राजा नहीं। उसके हाथ में गलील का सीमित प्रशासन था।
“क्योंकि हेरोदेस ने अपने सगे भाई की पत्नी से विवाह किया था”।
“उसने अपने सैनिकों को आज्ञा देकर यूहन्ना को कारागार में डलवा दिया था।”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“सब लोगों का अर्थ है, यूहन्ना के साथ उपस्थित सब जन। इसका अनुवाद हो सकता है, “जब यूहन्ना सबको बपतिस्मा दे रहा था”
इसका अनुवाद हो सकता है, “यूहन्ना ने यीशु को भी बपतिस्मा दिया”
“आकाश खुल गया” या “आकाश खुला हो गया” यह बादलों के हटने से कहीं अधिक है परन्तु इसका अर्थ स्पष्ट नहीं है। इसका संभावित अर्थ होगा, कि आकाश में एक छेद दिखाई दिया।
“पवित्र आत्मा यीशु पर उतरा”
कबूतर एक छोटा पक्षी होता है जिसे वे मन्दिर में बलि चढ़ाने या खाने के काम में लेते थे। यह कबूतर जैसा है
“कबूतर के सदृश्य शारीरिक रूप में”
यहाँ कहानी में परिवर्तन आता है। यीशु की आयु और उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि दी गई है। इसका समापन लूका 3:37 में होता है यदि आपकी भाषा में प्रावधान है कि अग्रिम भाग पृष्ठभूमि आधारित जानकारी है तो उसका उपयोग करें।
“यह यीशु” या “यह व्यक्ति यीशु”
“वह भी यूसुफ का पुत्र कहलाता था” या “उसे यूसुफ का पुत्र माना जाता था” लोगों की समझ में वह यूसुफ का पुत्र था”।
कुछ अनुवादक यहाँ एक नया वाक्य आरंभ करना चाहेंगे, “यूसुफ एली का पुत्र था” या “एली यूसुफ का पिता था”।
“का पुत्र” संलग्न जानकारी है। सलंग्न में मात्र यही लिखा है, “एली का .... वह मतात का और वह लेवी का.... इस सूची का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,” वह एली का पुत्र था, और वह मतात का पुत्र था, और वह लेवी का पुत्र था....” या “यूसुफ एली का पुत्र था, एली मतात का पुत्र था, मतात लेवी का पुत्र था” या “एली का पिता मतात, मतात का पिता लेवी....” इस बात का ध्यान रखें कि आपकी भाषा में पूर्वजों की सूची कैसे बनाई जाती है। आप संपूर्ण सूची में वही भाषा काम में लें।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह मत्तियाह का पुत्र था, और वह आमोस का पुत्र था ...” या “यूसुफ मत्तियाह का पुत्र और मत्तियाह आमोस का पुत्र था....” या "युसूफ का पिता मत्तियाह था, मत्तियाह का पिता आमोस..." शब्दावली वही काम में लें जो आपने पिछले पदों में काम में ली है।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वह यूहन्ना का पुत्र था, और वह रेसा का पुत्र था.... “ या “योदाह यूहन्ना का पुत्र था, यूहन्ना रेसा का पुत्र था...” या “योह का पिता यूहन्ना था, यूहन्ना का पिता रेसा था....” शब्दावली वही काम में ले जो पिछले पदों में काम में ली है।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद हो सकता है, “वह शमौन का पुत्र था, और वह यहूदा का पुत्र था....” या “लेवी शमौन का पुत्र था, शमौन यहूदा का पुत्र था....” या “लेवी का पिता शमौन था, शमौन का पिता यहूदा था.....” शब्दावली वही काम में लें जो पिछले पदों में काम में ली है।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद हो सकता है, “वह अम्मीनादाब का पुत्र था और वह अरनी का पुत्र था....” या “लेवी (नहशोन) अम्मीनादाब का पुत्र था, अम्मीनादाब अरनी का पुत्र था....” या “नहशोन का पिता अम्मीनादाब था, अम्मीनादाब का पिता अरनी था....” शब्दावली वही काम में ले जो पिछले पदों में काम में ली है।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वह कनान का पुत्र था और वह अरफक्षद का पुत्र था....” या लेवी केनान का पुत्र था और केनान अरफक्षद का पुत्र था....” या “शिलह का पिता केनान या और केनान का पिता अरफक्षद था....” शब्दावली वही काम में लें जो पिछले पदों में काम में ली है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आदम परमेश्वर द्वारा सृजा गया था” या “आदम जो परमेश्वर से था” या “आदम, हम कह सकते हैं परमेश्वर का पुत्र था”।
यूहन्ना पापों की क्षमा के लिए मन फिराव के बपतिस्में का प्रचार करता था।
यूहन्ना ने कहा कि वह प्रभु का मार्ग तैयार कर रहा था।
यूहन्ना ने उससे कहा कि वे मन फिराने के योग्य फल लाएं।
यूहन्ना ने कहा कि वह काटकर आग में डाल दिया जाता है।
यूहन्ना ने कहा कि उन्हें वास्तविक राशी से अधिक कर नहीं लेना चाहिए।
यूहन्ना ने कहा कि कोई आ रहा है, वह पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।
यूहन्ना ने हेरोदेस को झिड़का क्योंकि उसने अपने भाई की पत्नी से विवाह किया था और अनेक दुष्कर्म किये थे।
हेरोदेस ने यूहन्ना को बन्दीगृह में डलवा दिया था।
यीशु जब यूहन्ना से बपतिस्मा ले चुका तब आकाश खुल गया और पवित्र आत्मा कबूतर के रूप में उस पर उतरा।
आकाशवाणी में कहा गया, "तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझसे प्रसन्न हूं"।
यीशु लगभग तीस वर्ष का था जब उसने प्रचार करना आरंभ किया।
1 फिर यीशु पवित्र आत्मा से भरा हुआ, यरदन से लौटा; और आत्मा की अगुआई से जंगल में फिरता रहा; 2 और चालीस दिन तक शैतान उसकी परीक्षा करता रहा*। उन दिनों में उसने कुछ न खाया और जब वे दिन पूरे हो गए, तो उसे भूख लगी। 3 और शैतान ने उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो इस पत्थर से कह, कि रोटी बन जाए।” 4 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है: ‘मनुष्य केवल रोटी से जीवित न रहेगा’।” (व्य. 8:3) 5 तब शैतान उसे ले गया और उसको पल भर में जगत के सारे राज्य दिखाए। 6 और उससे कहा, “मैं यह सब अधिकार, और इनका वैभव तुझे दूँगा, क्योंकि वह मुझे सौंपा गया है, और जिसे चाहता हूँ, उसे दे सकता हूँ। 7 इसलिए, यदि तू मुझे प्रणाम करे, तो यह सब तेरा हो जाएगा।” 8 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर; और केवल उसी की उपासना कर’।” (व्य. 6:13-14) 9 तब उसने उसे यरूशलेम में ले जाकर मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, और उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को यहाँ से नीचे गिरा दे। 10 क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, कि वे तेरी रक्षा करें’ 11 और ‘वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे ऐसा न हो कि तेरे पाँव में पत्थर से ठेस लगे’।” (भज. 91:11,12) 12 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यह भी कहा गया है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न करना’।” (व्य. 6:16) 13 जब शैतान सब परीक्षा कर चुका, तब कुछ समय के लिये उसके पास से चला गया*।
14 फिर यीशु आत्मा की सामर्थ्य से भरा हुआ, गलील को लौटा, और उसकी चर्चा आस-पास के सारे देश में फैल गई। 15 और वह उन ही आराधनालयों में उपदेश करता रहा, और सब उसकी बड़ाई करते थे।।
16 और वह नासरत में आया; जहाँ उसका पालन-पोषण हुआ था; और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ। 17 यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक* उसे दी गई, और उसने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहाँ यह लिखा था :
18 “प्रभु का आत्मा मुझ पर है,
इसलिए कि उसने कंगालों को सुसमाचार
सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है,
और मुझे इसलिए भेजा है, कि बन्धुओं
को छुटकारे का
और अंधों को दृष्टि
पाने का सुसमाचार प्रचार करूँ और
कुचले हुओं को छुड़ाऊँ, (यशा. 58:6, यशा. 61:1,2)
19 और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष* का प्रचार करूँ।”
20 तब उसने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथ में दे दी, और बैठ गया: और आराधनालय के सब लोगों की आँखें उस पर लगी थी। 21 तब वह उनसे कहने लगा, “आज ही यह लेख तुम्हारे सामने पूरा हुआ है।” 22 और सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुँह से निकलती थीं, उनसे अचम्भित हुए; और कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?” (लूका 2:42, भज. 45:2) 23 उसने उनसे कहा, “तुम मुझ पर यह कहावत अवश्य कहोगे, ‘कि हे वैद्य, अपने आप को अच्छा कर! जो कुछ हमने सुना है कि कफरनहूम में तूने किया है उसे यहाँ अपने देश में भी कर’।” 24 और उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कोई भविष्यद्वक्ता अपने देश में मान-सम्मान नहीं पाता। 25 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि एलिय्याह के दिनों में जब साढ़े तीन वर्ष तक आकाश बन्द रहा, यहाँ तक कि सारे देश में बड़ा आकाल पड़ा, तो इस्राएल में बहुत सी विधवाएँ थीं। (1 राजा. 17:1, 1 राजा. 18:1) 26 पर एलिय्याह को उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, केवल सैदा के सारफत में एक विधवा के पास। (1 राजा. 17:9) 27 और एलीशा भविष्यद्वक्ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर सीरिया वासी नामान को छोड़ उनमें से काई शुद्ध नहीं किया गया।” (2 राजा. 5:1-14) 28 ये बातें सुनते ही जितने आराधनालय में थे, सब क्रोध से भर गए। 29 और उठकर उसे नगर से बाहर निकाला, और जिस पहाड़ पर उनका नगर बसा हुआ था, उसकी चोटी पर ले चले, कि उसे वहाँ से नीचे गिरा दें। 30 पर वह उनके बीच में से निकलकर चला गया।।
31 फिर वह गलील के कफरनहूम नगर में गया, और सब्त के दिन लोगों को उपदेश दे रहा था। 32 वे उसके उपदेश से चकित हो गए क्योंकि उसका वचन अधिकार सहित था। 33 आराधनालय में एक मनुष्य था, जिसमें अशुद्ध आत्मा थी। 34 वह ऊँचे शब्द से चिल्ला उठा, “हे यीशु नासरी, हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं तुझे जानता हूँ तू कौन है? तू परमेश्वर का पवित्र जन है!” 35 यीशु ने उसे डाँटकर कहा, “चुप रह और उसमें से निकल जा!” तब दुष्टात्मा उसे बीच में पटककर बिना हानि पहुँचाए उसमें से निकल गई। 36 इस पर सब को अचम्भा हुआ, और वे आपस में बातें करके कहने लगे, “यह कैसा वचन है? कि वह अधिकार और सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आज्ञा देता है, और वे निकल जाती हैं।” 37 अतः चारों ओर हर जगह उसकी चर्चा होने लगी।
38 वह आराधनालय में से उठकर शमौन के घर में गया और शमौन की सास को तेज बुखार था, और उन्होंने उसके लिये उससे विनती की। 39 उसने उसके निकट खड़े होकर ज्वर को डाँटा और ज्वर उतर गया और वह तुरन्त उठकर उनकी सेवा-टहल करने लगी। 40 सूरज डूबते समय जिन-जिनके यहाँ लोग नाना प्रकार की बीमारियों में पड़े हुए थे, वे सब उन्हें उसके पास ले आएँ, और उसने एक-एक पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। 41 और दुष्टात्मा चिल्लाती और यह कहती हुई, “तू परमेश्वर का पुत्र है,” बहुतों में से निकल गई पर वह उन्हें डाँटता और बोलने नहीं देता था, क्योंकि वे जानती थी, कि यह मसीह है।
42 जब दिन हुआ तो वह निकलकर एक एकांत स्थान में गया, और बड़ी भीड़ उसे ढूँढ़ती हुई उसके पास आई, और उसे रोकने लगी, कि हमारे पास से न जा। 43 परन्तु उसने उनसे कहा, “मुझे और नगरों में भी परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना अवश्य है, क्योंकि मैं इसलिए भेजा गया हूँ।” 44 और वह गलील के आराधनालयों में प्रचार करता रहा।
अर्थात यूहन्ना द्वारा यीशु को बपतिस्मा देने के बाद। इसका अनुवाद हो सकता है, “फिर जब यीशु का बपतिस्मा हो गया”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “आत्मा उसे ले गया”
इसका अनुवाद हो सकता है, “शैतान ने परमेश्वर की आज्ञा न मानने के लिए उसे परखा”। स्पष्ट नहीं है कि संपूर्ण समय शैतान उसकी परीक्षा ले रहा था या केवल समय के अन्त में उसकी परीक्षा ली। इसका भी अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है। “वहां शैतान ने उसकी परीक्षा ली”।
“उसने” अर्थात यीशु ने।
शैतान संभव है कि यीशु को चुनौती दे रहा था कि वह स्वयं को परमेश्वर का पुत्र सिद्ध करके दिखाए।
शैतान या तो पत्थर हाथ में लिए हुए था या निकट में पड़े एक पत्थर की ओर संकेत कर रहा था।
“धर्मशास्त्र में लिखा है” या “धर्मशास्त्र कहता है” या “धर्मशास्त्र में परमेश्वर ने कहा है” यह उद्धरण व्यवस्थाविवरण की पुस्तक से है। .
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्य केवल रोटी ही से जीवित नहीं रहता है” या “मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन मात्र की ही आवश्यकता नहीं है”। रोटी का अर्थ है भोजन। मुख्य बात यह है कि भोजन ही जीवन नही है कि मनुष्य का पोषण हो। मनुष्य को परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना है। यीशु धर्मशास्त्र के उद्धरण द्वारा कह रहा था कि वह पत्थर को रोटी क्यों नहीं बनाएगा।
“एक ऊंचे पर्वत पर ले गया”
“पलक झपकते ही” या “तत्काल ही”
“अतः”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि तू मेरे सामने घुटने टेके” या “यदि तू झुक कर मेरी उपासना करे” या “यदि तू मुझे दण्डवत करके मेरी उपासना करे”।
इसका अनुवाद हो सकता है,“मैं यह संपूर्ण साम्राज्य तुझे दे दूंगा”।
“प्रतिक्रिया में कहा” या “उसकी बात काटते हुए कहा”
इसका अनुवाद ऐसा हो सकता है, “धर्मशास्त्र में लिखा है।” या “धर्मशास्त्र कहता है” या “धर्मशास्त्र में परमेश्वर ने कहा है” यीशु व्यवस्थाविवरण की पुस्तक से उद्धरण प्रस्तुत कर रहा है।
यीशु धर्मशास्त्र को एक विधान का संदर्भ दे रहा है, जो उसके लिए शैतान की उपासना न करने का कारण है।
तू अर्थात पुराने नियम के लोग जिन्हें परमेश्वर का विधि-विधान दिया गया था। आप “तू” को एकवचन में काम में लें क्योंकि विधान का पालन करना प्रत्येक जन के लिए अनिवार्य था।
उसे अर्थात प्रभु परमेश्वर की
यह मन्दिर की छत का कोना था यदि कोई वहां से गिरा या कूदा तो गंभीर रूप से घायल हो जाता या मर जाता।
शैतान संभव है कि यीशु को चुनौती दे रहा था कि वह स्वयं को परमेश्वर का पुत्र सिद्ध करके दिखाए।
यहाँ से नीचे गिरा दे - “नीचे कूद जा”
इसका अनुवाद होगा, “धर्मशास्त्र में लिखा है” या “धर्मशास्त्र क्या है” या “परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है” शैतान ने भजनसंहिता का आधा ही उद्धरण दिया था कि यीशु को कूदने पर विवश करे।
"वह" अर्थात परमेश्वर
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “धर्मशास्त्र कहता है”, या “लिखा है” यीशु व्यवस्थाविवरण की पुस्तक का उद्धरण दे रहा था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “अपने प्रभु परमेश्वर को नहीं परखना” यीशु ने धर्मशास्त्र के संदर्भ से स्पष्ट कर दिया कि वह परमेश्वर को परखेगा नहीं कि नीचे कूद जाए। यह आज्ञा परमेश्वर के लोगों के लिए है।
“किसी और अवसर तक के लिए”
आत्मा की सामर्थ्य से भरा हुआ - इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “और आत्मा उसे सामर्थ्य प्रदान कर रहा था” परमेश्वर विशेष रूप में यीशु के साथ था और उसे ऐसे काम करने में समर्थ कर रहा था जो मनुष्य नहीं कर सकता था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्यों ने यीशु की चर्चा चारों ओर की” या “लोगों ने सबको यीशु के बारे में बता दिया” या “उसकी जानकारी मनुष्य से मनुष्य को मिल गई” जिन्होंने यीशु की बातें सुनी उन्होंने दूसरों को उसके बारे में बताया और उन लोगों ने औरों को बताया।
गलील के परिक्षेत्र में सब स्थानों में
“सब उसके बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते थे” या “सब उसके बारे में प्रशंसा करते थे”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जहाँ उसके माता-पिता ने उसका पालन पोषण किया था” या “जहाँ वह बड़ा हुआ था” या “जहाँ उसका बाल्यकाल बीता था”।
“जैसा वह सामान्यतः करता था” सब्त के दिन आराधनालय में जाना उसका अभ्यास था।
उसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “किसी ने उसे यशायाह की पुस्तक दी”
यशायाह ने वर्षों पूर्व अपनी भविष्यद्वाणियां लिखी थी जिनकी नकल कुंडलीग्रन्थ में की गई थी। अत: यह उक्ति उसी पुस्तक के सन्दर्भ में है।
“उस कुंडलीग्रन्थ में वह स्थान जहाँ लिखा था” या “कुडलीग्रन्थ में जहाँ ये शब्द लिखे थे”
(यीशु ने यशायाह की पुस्तक से पढ़ा )
“परमेश्वर विशेष रूप में मेरे साथ है” किसी के द्वारा ऐसा कहने का अर्थ है कि परमेश्वर के वचनों का कहने का दावा करना।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बन्दी मनुष्यों को मुक्ति का सन्देश सुनाने के लिए” या “युद्ध बंदियों को मुक्त कराने के लिए”
“घोषणा करने के लिए कि अन्धे देखेंगे” या “अन्धों को दृष्टिदान करने के लिए” या “अन्धों को देखने योग्य बनाने के लिए”
“अत्याचार सहनेवालों को मुक्ति दिलाने के लिए”
इसका अनुवाद हो सकता है, “यह घोषणा करूं कि यही वह वर्ष है, जब परमेश्वर अपनी दया प्रकट करेगा” या “सबको बताऊं, कि परमेश्वर लोगों को आशिष देने के लिए तैयार है”।
“तब यीशु ने कुंडलीग्रन्थ लपेट दिया”
आराधनालयों में ऐसे सेवक होते थे, जो सुनिश्चित करते थे कि धर्मशास्त्र आदि पवित्र वस्तुओं को उचित देखरेख में रखा जाए।
“वे अपेक्षा से उसे देख रहे थे” या “उसे निहार रहे थे”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “धर्मशास्त्र में जो भविष्यद्वाणी की गई है वह आज तुम्हारे सुनते-सुनते पूरी हो गई है। यीशु के कहने का अर्थ था कि वह अपने कामों तथा वचनों के द्वारा उस समय ही इस भविष्यद्वाणी को पूरा कर रहा था।
“उसकी अच्छी-अच्छी बातें सुनकर वे चकित थे”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यह यूसुफ का ही तो पुत्र है”। या “यह उस यूसुफ का पुत्र नहीं है क्या? या “इसका पिता यूसुफ ही तो है”। वे उसे मानवीय स्तर पर आंक रहे थे कि वह एक साधारण मनुष्य यूसुफ का पुत्र है। यूसुफ एक धर्मगुरू नहीं या अतः वे आश्चर्य कर रहे थे कि उसका पुत्र ऐसा वचन सुना सकता है ।
अर्थात नासरत में, उसके अधिवास में
यीशु उन पर कटाक्ष कर रहा था, क्योंकि उन्होंने उसे अपने साथ का एक साधारण मनुष्य समझ कर विश्वास नहीं किया था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “अपने नगर में” या “अपने गांव में”
(यीशु आराधनालय में उपासकों से बातें कर रहा है)
“मैं तुमसे यथातथ कहता हूँ” इस उक्ति का उपयोग कथा के महत्त्व, सत्य और यार्थता पर बल देने के लिये किया गया था।
जिस स्त्री का पति मर गया तो वह विधवा कहलाती थी
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जब एलिय्याह इस्राएल में भविष्यद्वक्ता रूप में सेवा कर रहा था”, यीशु के श्रोता जानते थे कि एलिय्याह परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता था। यदि आपके पाठकों को एलिय्याह के बारे में समझ नहीं है तो इस अभिप्रेत जानकारी को स्पष्ट करे। जैसा कि यू.डी.बी. में किया गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब आकाश से वर्षा नहीं हुई थी” या “जब वर्षा नहीं हुई थी” यह एक रूपक है जिसका अर्थ है कि आकाश बन्द कर दिया गया था और वर्षा का जल ऊपर रोक दिया गया था कि पृथ्वी पर न आए।
“जब भोजन की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई थी” या “मनुष्य के पास खाने को भोजन नहीं था अकाल का अर्थ है फसल नष्ट हो जाना या फसल नहीं आना, जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य को भोजन की घटी हो जाती है।
सारफत नगर के लोग यहूदी नहीं थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, सारफल नगर की एक गैरयहूदी विधवा (यीशु के श्रोता जानते थे कि सारफल निवासी यहूदी नहीं थे।)
सीरियावासी अर्थात सीरिया देश का नागरिक। सीरिया के नागरिक भी यहूदी नहीं थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सीरिया देश का नामान नामक एक गैर यहूदी”
अनुवाद हो सकता है, “उसे नगर छोड़ने पर विवश किया”
“चट्टान के सिरे पर”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “उनके मध्य से” या “जो उसे मार डालना चाहते थे उनके बीच में से”। इसका अर्थ है कि उसे कोई रोक नहीं पाया।
“कूच कर गया” यीशु जहाँ जाना चाहता था, वहां चला गया, न कि वहां गया जहाँ वे उसे बलपूर्वक ले जाना चाहते थे।
कफरनहूम नासरत से नीचे है अतः यीशु पहाड़ पर से उतर कर कफरनहूम आ गया।
यीशु गलील क्षेत्र ही में था। अतः यहाँ अनुवाद इस प्रकार किया जाए, “गलील के दूसरे नगर कफरनूहम”
“आश्चर्यचकित थे” या “प्रभावित हुए”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसके वचन में एक अधिकार प्रगट होता था” या “वह अधिकार के साथ कहता था”।
“जो अशुद्ध आत्मा के वश में थे”
“वह चिल्लाया” कुछ भाषाओं में इसके लिए मुहावरा भी है जैसे “दिल दहलाने वाली आवाज निकली”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “हममें क्या मेल”? या “हमें तुमसे कुछ नहीं लेना देना” यह एक झगड़ालू प्रतिक्रिया है जिसका अर्थ है, “हमें परेशान करने का तुझे अधिकार नहीं है”
“यीशु ने उस दुष्टात्मा को झिड़कर कर कहा” या “यीशु ने उसे कठोर आज्ञा दी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसे अकेला छोड़ दे” या “उसे परेशान करना छोड़ दे”।
यह आलंकारिक प्रश्न है। लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे कि यीशु के पास दुष्टात्मा को निकल जाने की आज्ञा देने का अधिकार है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यह वचन आश्चर्यजनक है” या “उसका आदेश विस्मयकारी है”।
“उसके पास अशुद्ध आत्माओं को आज्ञा देने का अधिकार एवं सामर्थ्य है”।
“यीशु का समाचार चारों और फैल गया” या “लोगों ने सर्वत्र उसकी चर्चा की”
कुछ भाषाओं में कहा जाता है, “उसका शरीर तप रहा था”।
“शमौन की पत्नी की माता”
“बुखार को कठोर आज्ञा दी” या “बुखार को उतर जाने की आज्ञा दी” (यू.डी.बी.) इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “आज्ञा दी कि उसके शरीर का ताप सामान्य हो जाए”, या “रोग को शरीर त्याग की आज्ञा दी”।
“ऊंचे स्वर में” या “ऊंची आवाज में”
“यह दुष्टात्माओं से कठोरता से कहता”
“उन्हें अनुमति नहीं देता था”
“सूर्योदय के समय” या “भोर के समय”
“निर्जन स्थान में” या “जहाँ कोई नहीं रहता था” या “जहाँ मनुष्यों का आना जाना नहीं था”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “अन्य नगरों में अनेक लोगों को”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “मुझे परमेश्वर ने इसी लिए भेजा है”
पवित्र आत्मा यीशु को लेकर जंगल में गया।
जंगल में चालीस दिन एक शैतान ने यीशु की परीक्षा ली।
शैतान ने यीशु से कहा कि वह पत्थरों को रोटी बना दे।
मनुष्य केवल रोटी से ही जीवित नहीं रहेगा।
शैतान ने यीशु को संसार का संपूर्ण राज्य दिखाया।
शैतान चाहता था कि यीशु झुककर उसकी उपासना करे।
तू अपने प्रभु परमेश्वर ही की उपासना कर और उसी की सेवा करना।
उसने यीशु से कहा कि वह नीचे कूद जाए।
तू अपने प्रभु परमेश्वर की परीक्षा न करना।
शैतान कुछ समय के लिए यीशु को छोड़कर चला गया।
यीशु ने यशायाह की पुस्तक से पढ़ा।
यीशु ने कहा कि उसने यशायाह की पुस्तक से जो पढ़ा है वह उसी दिन पूरा हुआ।
यीशु ने कहा कि अपने देश में किसी भविष्यद्वक्ता को सम्मान नहीं मिलता है।
परमेश्वर ने एलिय्याह को सैदा के सारफत में एक विधवा के पास भेजा था।
परमेश्वर ने एलीशा द्वारा सीरिया के नामान की सहायता की थी।
वे क्रोध से भर गए और उसे पहाड़ की चोटी पर से नीचे गिराना चाहते थे।
यीशु उनके मध्य से होकर चला गया।
दुष्टात्मा ने कहा कि वह जानता है कि यीशु परमेश्वर का पवित्र जन है।
लोग आश्चर्यचकित होकर आपस में बातें करने लगे।
यीशु ने उनमें से हर एक पर हाथ रखा और उन्हें चंगा किया।
दुष्टात्मा कहते थे कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है और यीशु उन्हें बोलने नहीं देता था क्योंकि वे जानते थे कि वह मसीह है।
यीशु ने कहा कि वह परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार अनेक अन्य नगरों में सुनाने के लिए भेजा गया है।
1 जब भीड़ उस पर गिरी पड़ती थी, और परमेश्वर का वचन सुनती थी, और वह गन्नेसरत की झील* के किनारे पर खड़ा था, तो ऐसा हुआ। 2 कि उसने झील के किनारे दो नावें लगी हुई देखीं, और मछवे उन पर से उतरकर जाल धो रहे थे। 3 उन नावों में से एक पर, जो शमौन की थी, चढ़कर, उसने उससे विनती की, कि किनारे से थोड़ा हटा ले चले, तब वह बैठकर लोगों को नाव पर से उपदेश देने लगा। 4 जब वह बातें कर चुका, तो शमौन से कहा, “गहरे में ले चल, और मछलियाँ पकड़ने के लिये अपने जाल डालो।” 5 शमौन ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, हमने सारी रात मेहनत की और कुछ न पकड़ा; तो भी तेरे कहने से जाल डालूँगा।” 6 जब उन्होंने ऐसा किया, तो बहुत मछलियाँ घेर लाए, और उनके जाल फटने लगे। 7 इस पर उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे, संकेत किया, कि आकर हमारी सहायता करो: और उन्होंने आकर, दोनों नाव यहाँ तक भर लीं कि वे डूबने लगीं। 8 यह देखकर शमौन पतरस यीशु के पाँवों पर गिरा, और कहा, “हे प्रभु, मेरे पास से जा, क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूँ!” 9 क्योंकि इतनी मछलियों के पकड़े जाने से उसे और उसके साथियों को बहुत अचम्भा हुआ; 10 और वैसे ही जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना को भी, जो शमौन के सहभागी थे, अचम्भा हुआ तब यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर, अब से तू मनुष्यों को जीविता पकड़ा करेगा।” 11 और वे नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
12 जब वह किसी नगर में था, तो वहाँ कोढ़ से भरा हुआ एक मनुष्य आया, और वह यीशु को देखकर मुँह के बल गिरा, और विनती की, “हे प्रभु यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 13 उसने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।” और उसका कोढ़ तुरन्त जाता रहा। 14 तब उसने उसे चिताया, “किसी से न कह, परन्तु जा के अपने आप को याजक को दिखा, और अपने शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने चढ़ावा ठहराया है उसे चढ़ा कि उन पर गवाही हो।” (लैव्य. 14:2-32) 15 परन्तु उसकी चर्चा और भी फैलती गई, और बड़ी भीड़ उसकी सुनने के लिये और अपनी बीमारियों से चंगे होने के लिये इकट्ठी हुई। 16 परन्तु वह निर्जन स्थानों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था।
17 और एक दिन ऐसा हुआ कि वह उपदेश दे रहा था, और फरीसी और व्यवस्थापक वहाँ बैठे हुए थे, जो गलील और यहूदिया के हर एक गाँव से, और यरूशलेम से आए थे; और चंगा करने के लिये प्रभु की सामर्थ्य उसके साथ थी। 18 और देखो कई लोग एक मनुष्य को जो लकवे का रोगी था, खाट पर लाए, और वे उसे भीतर ले जाने और यीशु के सामने रखने का उपाय ढूँढ़ रहे थे। 19 और जब भीड़ के कारण उसे भीतर न ले जा सके तो उन्होंने छत पर चढ़कर और खपरैल हटाकर, उसे खाट समेत बीच में यीशु के सामने उतार दिया। 20 उसने उनका विश्वास देखकर उससे कहा, “हे मनुष्य, तेरे पाप क्षमा हुए।” 21 तब शास्त्री और फरीसी विवाद करने लगे, “यह कौन है, जो परमेश्वर की निन्दा करता है? परमेश्वर को छोड़ कौन पापों की क्षमा कर सकता है?” 22 यीशु ने उनके मन की बातें जानकर, उनसे कहा, “तुम अपने मनों में क्या विवाद कर रहे हो? 23 सहज क्या है? क्या यह कहना, कि ‘तेरे पाप क्षमा हुए,’ या यह कहना कि ‘उठ और चल फिर?’ 24 परन्तु इसलिए कि तुम जानो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के रोगी से कहा, “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ और अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” 25 वह तुरन्त उनके सामने उठा, और जिस पर वह पड़ा था उसे उठाकर, परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ अपने घर चला गया। 26 तब सब चकित हुए और परमेश्वर की बड़ाई करने लगे, और बहुत डरकर कहने लगे, “आज हमने अनोखी बातें देखी हैं।”
27 और इसके बाद वह बाहर गया, और लेवी नाम एक चुंगी लेनेवाले को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” 28 तब वह सब कुछ छोड़कर उठा, और उसके पीछे हो लिया।
29 और लेवी ने अपने घर में उसके लिये एक बड़ा भोज* दिया; और चुंगी लेनेवालों की और अन्य लोगों की जो उसके साथ भोजन करने बैठे थे एक बड़ी भीड़ थी। 30 और फरीसी और उनके शास्त्री उसके चेलों से यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, “तुम चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?”
31 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “वैद्य भले चंगों के लिये नहीं, परन्तु बीमारों के लिये अवश्य है। 32 मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूँ।” 33 और उन्होंने उससे कहा, “यूहन्ना के चेले तो बराबर उपवास रखते और प्रार्थना किया करते हैं, और वैसे ही फरीसियों के भी, परन्तु तेरे चेले तो खाते-पीते हैं।” 34 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम बारातियों से जब तक दूल्हा उनके साथ रहे, उपवास करवा सकते हो? 35 परन्तु वे दिन आएँगे, जिनमें दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।” 36 उसने एक और दृष्टान्त* भी उनसे कहा: “कोई मनुष्य नये वस्त्र में से फाड़कर पुराने वस्त्र में पैबन्द नहीं लगाता, नहीं तो नया फट जाएगा और वह पैबन्द पुराने में मेल भी नहीं खाएगा। 37 और कोई नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नया दाखरस मशकों को फाड़कर बह जाएगा, और मशकें भी नाश हो जाएँगी। 38 परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरना चाहिये। 39 कोई मनुष्य पुराना दाखरस पीकर नया नहीं चाहता क्योंकि वह कहता है, कि पुराना ही अच्छा है।”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
वे अपने जाल धो रहे थे कि मछली पकड़ने के लिए फिर से डालें।
“पतरस से कहा कि नाव को झील में थोड़ा अन्दर कर ले”।
बैठकर उपदेश देना गुरू की उचित मुद्रा थी।
“नाव में बैठकर लोगों को उपदेश दे रहा था” यीशु जिस नाव में बैठा था वह किनारे से कुछ ही दूर थी और जनसमूह किनारे पर खड़ा था।
“मनुष्यों को शिक्षा देने के बाद”
यहाँ "स्वामी" का अर्थ मूल भाषा यूनानी में मालिक नहीं है। इसका अर्थ है अधिकार संपन्न मनुष्य, न कि किसी का अधिकृत मालिक। आप इसका अनुवाद इस प्रकार भी कर सकते है, “साहब” या "अधिकर्मी" या किसी अधिकारी के लिए काम में लिया जानेवाला शब्द जैसे “श्रीमान जी”
“तू कहता है तो” या “तेरी बात रखने के लिए”
वे बहुत दूर थे अतः हाथ हिलाकर अन्य मछुवो को संकेत दिया कि नावें लाएं।
“नावें डूबने लगी” यदि समझने में कठिनाई हो तो सलंग्न जानकारी व्यक्त करें, “मछलियों के बोझ के कारण नावें डूबने लगी थी।
इसके संभावित अर्थ हैं (1) यीशु के चरणों में झुका” या (2) यीशु के चरणों में लेट गया या (3) “यीशु के सामने घुटने टेक दिए”। पतरस गिर नहीं गया था वह दीन होकर यीशु का सम्मान कर रहा था।
यहाँ “मनुष्य” का अर्थ है, “वयस्क” न कि सामान्य मनुष्य।
यहाँ “पकड़ेगा” एक रूपक है जिसका अर्थ है मसीह के लिए मनुष्यों को प्रेरित करेगा। इसका अनुवाद भी रूपक द्वारा ही किया जा सकता है, “मनुष्यों का मछुवा” या रूपक रहित अनुवाद होगा, “तू मनुष्यों को एकत्र करेगा” या “तू मनुष्यों को लेकर आयेगा”।
यहाँ कहानी में एक नया मनुष्य आता है। आपकी भाषा में इसकी अभिव्यक्ति हो सकती है। "एक सर्वांग कोढ़ी वहां था।"
“उसने साष्टांग प्रणाम किया” (यू.डी.बी.) या “घुटने टेक कर भूमि पर माथा टेका”
“उससे भीख मांगी” या “याचना की”(यू.डी.बी.)
“यदि तेरी इच्छा हो”
यहाँ सलंग्न जानकारी है, तू रोगमुक्त हो गया है अपने शुद्ध होने के विषय में .....चढ़ावा.... चढ़ा.
यहूदी विधान के अनुसार कोढ़ी को शुद्ध होने पर विशेष बलि चढ़ाना होती थी कि वह सांसारिक रूप से शुद्ध माना जाए और धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागी हो पाए।
“याजकों के लिए गवाही” या “याजक जान ले कि तू सच में शुद्ध हो गया है। मन्दिर में याजक इस तथ्य से अभिज्ञ होगा कि यीशु ने कोढ़ी को रोग मुक्त किया है।
“यीशु का समाचार” इसका अर्थ है, “उस कोढ़ी की रोग मुक्ति का समाचार” या “यीशु द्वारा रोगियों के निरोगीकरण का समाचार”
“उसका समाचार दूर-दूर तक फैल गया” या “मनुष्य विभिन्न स्थानों में यीशु की चर्चा करने लगे”।
“निर्जन स्थानों में” या “शान्त स्थानों में” या “वहां कोई आता जाता नहीं था”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
ये कहानी में नए नायक है। आपकी भाषा में नए मनुष्यों के प्रवेश को दर्शाने की अभिव्यक्ति हो सकती है। “कुछ लोग एक मनुष्य को लेकर आए” या “... को उठाए हुए कुछ लोग आए”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बिस्तर सहित” या “चोखट पर” या “तखत पर”
“निष्क्रिय मनुष्य”
कुछ भाषाओं में इसका रचना रूप बदलना आवश्यक होगा, “मनुष्यों की भीड़ के कारण वे उसे रोगी को भीतर ले जाने में सफल नहीं हुए, अतः....”
उन घरों की छतें समतल होती थी और कुछ घरों की छत पर जाने के लिए बाहर सीढ़ियां होती थी।
“सीधे यीशु के सामने” या “यीशु के समक्ष”
यह एक ऐसा संबोधन है जो अनजान मनुष्य के लिए काम में लिया जाता था। यह अशिष्ट शब्द तो नहीं है परन्तु सम्मान का शब्द भी नहीं है, कुछ भाषाओं में इसके स्थान में “मित्र” या “भाई” या “श्रीमान” शब्दों का प्रयोग होता है।
“तू क्षमा किया गया” या “मैं तेरे पाप क्षमा करता हूँ” (यू.डी.बी.)
“रोष प्रकट करने लगे” या “तर्क करके कहने लगे”, इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “आपस में कहने लगे क्या यीशु को पाप क्षमा करने का अधिकार है”?
इस आलंकारिक प्रश्न से स्पष्ट होता है कि वे यीशु की इस बात पर कैसे विस्मित एवं क्रोधित थे। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “यह मनुष्य परमेश्वर की निन्दा करता है”, या “यह अपने को क्या समझता है कि परमेश्वर की इस प्रकार निन्दा करे”?
इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “केवल परमेश्वर ही पाप क्षमा कर सकता है, अन्य कोई नहीं”, या “पाप क्षमा करने वाला केवल परमेश्वर है, यहाँ संलग्न विचार यह है कि यदि मनुष्य पाप क्षमा करने का दावा कर रहा है तो वह परमेश्वर होने का स्वांग रच रहा है”।(देखें: .)
इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “तुम्हें मन में ऐसा विचार नहीं करना चाहिए” या “तुम्हें सन्देह नहीं करना है कि मैं पाप क्षमा करने का अधिकार रखता हूँ”।
यह एक मुहावरा है जो मनुष्य के सोचने या विश्वास करने की इन्द्रियों की शक्ति का संदर्भ देता है। कुछ भाषाओं में इस उक्ति को काम में नहीं लेना और अधिक स्वाभाविक होता है।
यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा उन्हें तैयार कर रहा था कि वे पाप क्षमा के उसके अधिकार को उसके रोगमुक्ति के चमत्कार से जोड़ें। वह अब उस रोगी को स्वस्थ करेगा। यह संपूर्ण प्रश्न इस प्रकार अनुवाद किया जा सकता है, “यह कहना आसान है, तेरे पाप क्षमा किए गए, परन्तु परमेश्वर ही उस निश्चेष्ट मनुष्य को उठ कर चलने योग्य कर सकता है”।
यीशु विधि-शास्त्रियों और फरीसियों से बातें कर रहा था। यहाँ “तुम” शब्द बहुवचन में है।
यीशु अपरे बारे में कह रहा है
यीशु उस निष्क्रिय मनुष्य को संबोधित कर रहा था। यहाँ “तुम” एकवचन है
“तत्काल ही” या “उसी समय”
“देखने वाले सब विस्मित हो गए”
“भयातुर होकर” या “श्रद्धापूर्ण भय से भर कर”
“आश्चर्यजनक बातें” या “विचित्र बातें”
पिछले पदों में व्यक्त घटनाओं के बाद
“एक चुंगी लेने वाले पर ध्यान दिया” या “एक चुंगी लेने वाले को निहारा”
चुंगी कक्ष में” या “चुंगी स्थल में”, यह या तो एक प्रकार का कमरा था या सड़क के किनारे मेज़ लगा कर वे बैठा करते थे कि लोगों से सरकारी कर वसूल करें।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरा शिष्य हो जा” या “मुझे गुरू मान कर आजा”
“चुंगी लेने का काम त्याग कर”
यह इस प्रकार की दावत थी जिसमें अतिथियों के साथ खाना-पीना होता था।
लेवी के घर में
इसका अनुवाद हो सकता है, “भोजन हेतु आसन ग्रहण किया” या “भोजन आसन पर बैठा था।” यूनानी संस्कार में भोज में तखत पर बाई कोहनी के तकिए पर टिका कर आधा लेटकर भोजन किया जाता था।
“शिकायत करने लगे” या “असन्तोष व्यक्त कर रहे थे”
“यीशु के शिष्यों से”
विधि-शास्त्रियों और फरीसियों ने यह आलंकारिक प्रश्न द्वारा अपनी असहमति प्रकट की क्योंकि वे पापियों के साथ भोजन कर रहे थे। यह “तुम” शब्द बहुवचन में है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है। “तुम्हें पापियों के साथ भोजन नहीं करना है”
“डाक्टर” या "हकीम"
“धर्म गुरूओं ने यीशु से कहा”
यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा उनकी परिचित स्थिति पर विचार करवा रहा था। इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “दुल्हे के साथ विवाह में आनेवालों से उपवास करने के लिए कोई नहीं कहता है, क्योंकि दूल्हा उनके साथ है”।
“अतिथि” या “मित्र”। ये वे लोग है जो विवाह करने वाले पुरूष के साथी हैं।
“परन्तु एक दिन” (यू.डी.बी.) या “परन्तु शीघ्र ही”
यह एक रूपक है। यीशु अपने बारे में कहता था। इसे स्पष्ट करने के लिए इसमें जोड़ा जा सकता है, “इसी प्रकार जब तक मैं उनके साथ हूँ वे उपवास नहीं कर सकते”।
“कोई नया वस्त्र काट कर” या “मनुष्य नया वस्त्र फाड़कर” (यू.डी.बी.)
"सुधारता नहीं है"
“उचित नहीं होगा” या “वैसा ही नहीं होगा”
(यीशु धर्मगुरूओं को एक और शिक्षाप्रद कथा सुनाता है।)
“कोई.... नहीं रखता है” यू.डी.बी. या “मनुष्य कभी नहीं रखते”
“अंगूर का ताजा रस” अर्थात जिस दाखरस का खमीर नहीं उठा है।
ये पशुओं के चमड़े से बनी होती थी उन्हें "दाख रस के थैले" या "चमड़े के थैले"(यू.डी.बी.) भी कह सकते हैं।
“नया दाखरस खमीर होकर फैलेगा तो पुरानी मशकें लचीली न होने के कारण फट जायेंगी” यीशु के श्रोतागण को दाखरस के किणवन की प्रक्रिया की जानकारी थी कि वह फैलता है।
“दाखरस मशकों से बाहर निकल जाएगा
“नई मशकों” अर्थात जिन्हें पहले काम में नहीं लिया गया है।
“जिस दाखरस का खमीर उठ गया है।
यहाँ अतिरिक्त जानकारी देना सहायक सिद्ध होगा। “अतः वह नया दाखरस पीना नहीं चाहता है”। यह एक रूपक है जिसके माध्यम से धर्म-गुरूओं की पुरानी शिक्षा की तुलना यीशु की नई शिक्षा से की गई है। कहने का अर्थ यह है कि जो पुरानी शिक्षाओं के अभ्यास थे वे यीशु की शिक्षा को स्वीकार नहीं करते थे, क्योंकि वे नई थी।
यीशु ने उससे कहा कि गहरे में नाव ले जाकर जाल डाले।
उसने आज्ञा मानकर जाल डाला।
उनके जाल में इतनी मछलियां आई कि जाल फटने लगे।
शमौन ने यीशु से चले जाने को कहा क्योंकि वह जानता था कि वह (शमौन) पापी मनुष्य है।
यीशु ने उससे कहा कि अब आगे से वह मनुष्यों को पकड़ेगा।
यीशु के पास लोगों की भीड़ आ रही थी।
हे मनुष्य, तेरे पाप क्षमा हुए।
क्योंकि परमेश्वर ही पाप क्षमा कर सकता है।
यीशु ने उसे चंगा किया कि प्रकट करे कि उसे पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।
वह पापियों को मन फिराव के लिए बुलाने आया है।
यीशु के चले जाने के बाद उसके चेले उपवास करेंगे।
नया कपड़ा पुराने कपड़े में नहीं लगेगा क्योंकि वह उसे फाड़ देगा।
पुरानी मशकें फट जायेंगी और दाखरस गिर जायेगा।
नया दाखरस नई मशकों में रखना चाहिए।
1 फिर सब्त के दिन वह खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेले बालें तोड़-तोड़कर, और हाथों से मल-मल कर* खाते जाते थे। (व्य. 23:25) 2 तब फरीसियों में से कुछ कहने लगे, “तुम वह काम क्यों करते हो जो सब्त के दिन करना उचित नहीं?” 3 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम ने यह नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने जब वह और उसके साथी भूखे थे तो क्या किया? 4 वह कैसे परमेश्वर के घर में गया, और भेंट की रोटियाँ लेकर खाई, जिन्हें खाना याजकों को छोड़ और किसी को उचित नहीं, और अपने साथियों को भी दी?” (लैव्य. 24:5-9, 1 शमू. 21:6) 5 और उसने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी प्रभु है।”
6 और ऐसा हुआ कि किसी और सब्त के दिन को वह आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा; और वहाँ एक मनुष्य था, जिसका दाहिना हाथ सूखा था। 7 शास्त्री और फरीसी उस पर दोष लगाने का अवसर पाने के लिये उसकी ताक में थे, कि देखें कि वह सब्त के दिन चंगा करता है कि नहीं। 8 परन्तु वह उनके विचार जानता था; इसलिए उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा, “उठ, बीच में खड़ा हो।” वह उठ खड़ा हुआ। 9 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से यह पूछता हूँ कि सब्त के दिन क्या उचित है, भला करना या बुरा करना; प्राण को बचाना या नाश करना?” 10 और उसने चारों ओर उन सभी को देखकर उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने ऐसा ही किया, और उसका हाथ फिर चंगा हो गया। 11 परन्तु वे आपे से बाहर होकर आपस में विवाद करने लगे कि हम यीशु के साथ क्या करें?
12 और उन दिनों में वह पहाड़ पर प्रार्थना करने को निकला, और परमेश्वर से प्रार्थना करने में सारी रात बिताई। 13 जब दिन हुआ, तो उसने अपने चेलों को बुलाकर उनमें से बारह चुन लिए, और उनको प्रेरित कहा। 14 और वे ये हैं: शमौन जिसका नाम उसने पतरस भी रखा; और उसका भाई अन्द्रियास, और याकूब, और यूहन्ना, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, 15 और मत्ती, और थोमा, और हलफईस का पुत्र याकूब, और शमौन जो जेलोतेस कहलाता है, 16 और याकूब का बेटा यहूदा, और यहूदा इस्करियोती, जो उसका पकड़वानेवाला बना।
17 तब वह उनके साथ उतरकर चौरस जगह में खड़ा हुआ, और उसके चेलों की बड़ी भीड़, और सारे यहूदिया, और यरूशलेम, और सूर और सैदा के समुद्र के किनारे से बहुत लोग, 18 जो उसकी सुनने और अपनी बीमारियों से चंगा होने के लिये उसके पास आए थे, वहाँ थे। और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुए लोग भी अच्छे किए जाते थे। 19 और सब उसे छूना चाहते थे, क्योंकि उसमें से सामर्थ्य निकलकर सब को चंगा करती थी।
20 तब उसने अपने चेलों की ओर देखकर कहा,
“धन्य हो तुम, जो दीन हो,
क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है।
21 “धन्य हो तुम, जो अब भूखे हो;
क्योंकि तृप्त किए जाओगे।
“धन्य हो तुम, जो अब रोते हो,
क्योंकि हँसोगे। (मत्ती 5:4,5, भज. 126:5-6)
22 “धन्य हो तुम, जब मनुष्य के पुत्र के
कारण लोग तुम से बैर करेंगे,
और तुम्हें निकाल देंगे, और तुम्हारी निन्दा करेंगे,
और तुम्हारा नाम बुरा जानकर काट देंगे।
23 “उस दिन आनन्दित होकर उछलना, क्योंकि देखो, तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। उनके पूर्वज भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी वैसा ही किया करते थे।
24 “परन्तु हाय तुम पर जो धनवान हो,
क्योंकि तुम अपनी शान्ति पा चुके।
25 “हाय तुम पर जो अब तृप्त हो,
क्योंकि भूखे होंगे।
“हाय, तुम पर; जो अब हँसते हो,
क्योंकि शोक करोगे और रोओगे।
26 “हाय, तुम पर जब सब मनुष्य तुम्हें भला कहें,
क्योंकि उनके पूर्वज झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी ऐसा ही किया करते थे।
27 “परन्तु मैं तुम सुननेवालों से कहता हूँ, कि अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उनका भला करो*। 28 जो तुम्हें श्राप दें, उनको आशीष दो; जो तुम्हारा अपमान करें, उनके लिये प्रार्थना करो। 29 जो तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारे उसकी ओर दूसरा भी फेर दे; और जो तेरी दोहर छीन ले, उसको कुर्ता लेने से भी न रोक। 30 जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तेरी वस्तु छीन ले, उससे न माँग। 31 और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।
32 “यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखते हैं। 33 और यदि तुम अपने भलाई करनेवालों ही के साथ भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते हैं। 34 और यदि तुम उसे उधार दो, जिनसे फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएँ। 35 वरन् अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो, और फिर पाने की आसन रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। (लैव्य. 25:35-36, मत्ती 5:44-45) 36 जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो।
37 “दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: क्षमा करो, तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। 38 दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाम दबा-दबाकर और हिला-हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।”
39 फिर उसने उनसे एक दृष्टान्त कहा: “क्या अंधा, अंधे को मार्ग बता सकता है? क्या दोनों गड्ढे में नहीं गिरेंगे? 40 चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं, परन्तु जो कोई सिद्ध होगा, वह अपने गुरु के समान होगा। 41 तू अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? 42 और जब तू अपनी ही आँख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘हे भाई, ठहर जा तेरी आँख से तिनके को निकाल दूँ?’ हे कपटी*, पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आँख में है, भली भाँति देखकर निकाल सकेगा।
43 “कोई अच्छा पेड़ नहीं, जो निकम्मा फल लाए, और न तो कोई निकम्मा पेड़ है, जो अच्छा फल लाए। 44 हर एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है; क्योंकि लोग झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते, और न झड़बेरी से अंगूर। 45 भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुँह पर आता है।
46 “जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ कहते हो? (मला. 1:6) 47 जो कोई मेरे पास आता है, और मेरी बातें सुनकर उन्हें मानता है, मैं तुम्हें बताता हूँ कि वह किसके समान है? 48 वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने घर बनाते समय भूमि गहरी खोदकर चट्टान में नींव डाली, और जब बाढ़ आई तो धारा उस घर पर लगी, परन्तु उसे हिला न सकी; क्योंकि वह पक्का बना था। 49 परन्तु जो सुनकर नहीं मानता, वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने मिट्टी पर बिना नींव का घर बनाया। जब उस पर धारा लगी, तो वह तुरन्त गिर पड़ा, और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
भूमि के खण्ड जहाँ गेहूँ के दाने विसर्जित किए जाते थे कि अधिक उपज हो।
यह गेहूँ के पौधे का ऊपरी भाग है इसमें उस पौधे के बीज होते हैं, गेहूँ का पौधा बड़ी घास के जैसा होता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम सब्त के दिन गेहूँ क्यों दांवते हो? इस आलंकारिक प्रश्न का तात्पर्य है सब्त के दिन वर्जित कार्य करना। यह परमेश्वर के विधान के विरूद्ध है। “तुम” बहुवचन में है और यीशु के शिष्यों के संदर्भ में है।
यह आलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु उन्हें मीठा कटाक्ष कर रहा है कि उन्होंने धर्मशास्त्र पढ़ कर भी नहीं सीखा। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “निश्चय ही तुमने पढ़ा है” (यू.डी.बी.) या “तुम्हें पढ़ कर तो सीखना है”।
“पवित्र रोटियां” या “परमेश्वर को चढ़ाई हुई रोटियां”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं, मनुष्य का पुत्र हूँ”, यीशु अपने बारे में कह रहा था।
“सब्त का स्वामी है” इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “उसके पास अधिकार है कि सब्त के दिन मनुष्य के लिए निर्धारित करे कि उसे क्या करना है”(यू.डी.बी.)
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
उस मनुष्य का हाथ ऐसा क्षतिग्रस्त था कि वह उसे उठा नहीं सकता था। वह ऐसा मुड़ा हुआ था कि उसकी मुठ्ठी बन्द थी और सूखकर छोटा हो गया था।
“यीशु पर दृष्टि गड़ाए हुए थे”
इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “क्योंकि वे दोष खोजना चाहते थे।"
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सबके सामने” (यू.डी.बी.) यीशु चाहता था कि वह ऐसे स्थान में खड़ा हो जहाँ सब उसे देख सकते थे।
“फरीसियों से”
यह आलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु फरीसियों को सोचने पर विवश कर रहा था कि वे स्वीकार करे कि किसी को सब्त के दिन रोगमुक्त करना उचित है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “नियमोचित क्या है? “भला करना” या “मूसा का विधान किस बात की अनुमति देता है”?
“अपना हाथ आगे कर” या “अपना हाथ उठा”
“स्वस्थ हो गया”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“उसके कुछ ही समय बाद” या “इसके बाद अधिक समय नहीं हुआ था” “तब ही एक दिन”
“यीशु प्रार्थना करने बाहर गया”
“उनमें से बारह को चुन लिया” या “शिष्यों में से बारह को चुन लिया”
“और उसने उन्हें प्रेरित कहा” या “जिन्हें उसने प्रेरित नियुक्त किया” या “जिन्हें उसने प्रेरित बनाया”
(यह उन बारहों की सूची है जिन्हें यीशु ने अपने शिष्य होने के लिए चुना था)
नामों की यह सूची यू.एल.बी. में दी गई है कि सूची स्पष्ट की जाए। कुछ अनुवादक इसका उल्लेख करना आवश्क नहीं समझते।
"शमौन का भाई अन्द्रियास"
इसके संभावित अर्थ हैं (1) जेलोतेस (2) जोशीला पहला अर्थ प्रकट करता है कि वह उस पंथ का सदस्य था जो यहूदियों को रोमी राज्य से मुक्त कराना चाहता था। इसका अनुवाद “देशभक्त” या “राष्ट्रवादी” किया जा सकता है। दूसरे का अर्थ है, वह परमेश्वर का सम्मान करने के लिए जोशीला था। इसका अनुवाद “उत्साही” किया जा सकता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने साथी से विश्वासघात किया” या “अपने मित्र को बैरियों के हाथों पकड़वाया” या “बैरियों को उसकी जानकारी देकर अपने मित्र को संकट में डाल दिया”।
“जिन बारहों को उसने चुना था उनके साथ” या “उसके बारह प्रेरितों के साथ”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “यीशु के हाथों रोगमुक्ति हेतु” यदि आपके पाठकों के लिए इससे स्पष्ट न हो कि यीशु ने उन्हें वास्तव में रोगमुक्त किया तो आप स्पष्ट करके लिख सकते हैं कि यीशु ने उन्हें रोगमुक्त किया”।
“अशुद्ध आत्माओं से परेशान” इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “अशुद्ध आत्माग्रस्त” या “अशुद्ध आत्माओं के बन्धन में थे” कर्तृवाच्य में अनुवाद करने हेतु देखें यू.डी.बी.
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “यीशु ने उन्हें रोगमुक्त किया” अशुद्ध आत्माग्रस्त मनुष्यों के लिए “रोगमुक्त” शब्द का उपयोग अनुचित है इसलिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जाए, “यीशु ने उन्हें मुक्ति प्रदान की” या “यीशु ने अशुद्ध आत्माओं को निकाला”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसमें लोगों को रोगमुक्त करने का सामर्थ्य था” जब यीशु में से सामर्थ्य प्रवाहित होता था तब वह सामर्थ्य में कम नहीं होता था।
यह उक्ति तीन बार दोहराई गई है, प्रत्येक बार इसका अर्थ है कि परमेश्वर किसी को अनुग्रह प्रदान कर रहा है या उनकी स्थिति कपटरहित है या अच्छी है।
“तुम जो दीन हो परमेश्वर के अनुग्रहपात्र बनोगे” या “तुम जो दीन हो लाभ उठाओगे” या “तुम जो दीन हो, तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है”।
“परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है” इसके अर्थ हो सकते हैं, (1) तुम परमेश्वर के राज्य के हो” या (2) परमेश्वर के राज्य में तुम्हारे पास अधिकार होगा”। जिन भाषाओं में राज्य के लिए शब्द नहीं है, वे कह सकते हैं, “परमेश्वर तुम्हारा राजा होगा” या “परमेश्वर तुम पर राज करेगा”
“तुम आनन्द से हंसोगे” या “तुम आनन्दित होंगे”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
धन्य हो तुम, “तुम परमेश्वर के अनुग्रहपात्र होगे” या “तुम लाभ उठाओगे” या “तुम्हारे लिए कैसा भला है।”
“तुम्हारा बहिष्कार करेंगे” या “तुम्हारा परित्याग करेंगे”
“तुम्हारा अपमान करके आलोचना करेंगे”
“मनुष्य के पुत्र के नाम पर” या “क्योंकि तुम मनुष्य के पुत्र से संबन्धित हो” या “क्योंकि वे मनुष्य के पुत्र का त्याग करते हैं”।
“जब वे ऐसा करे” या “जब ऐसा हो”
“अच्छा लाभ” या “इसके कारण अच्छा उपहार है”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
यह उक्ति तीन बार दोहराई गई है यह “धन्य हो तुम” के विपरीत है। हर बार यह प्रकट करती है कि परमेश्वर का क्रोध उन पर है या उनके लिए भविष्य में कुछ हानि या बुराई है।
“तुम धनवालों का कैसा दुर्भाग्य है। या तुम धनवानों पर संकट आएगा, इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम धनवानों के लिए कैसी दुःख की बात है” या “तुम धनवानों को कैसा दुःख होगा”।
“तुम्हें तो सब कुछ बहुतायत से मिल रहा है” या “तुम्हें तो सब कुछ मिल रहा है।”
“तुम्हें सुख देनेवाली बात” या “तुम्हें सन्तोष प्रदान करनेवाली बात” या “तुम्हारा आनन्द”
“जिनके पेट भरे हुए हैं”, या “वो जो खूब खाते हो”
“अब आनन्दित हो”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“तुम्हारा कैसा दुर्भाग्य है”। या “तुम पर विपत्ति आएगी” या “तुम्हें कैसा दुःखी होना पड़ेगा” या “तुम्हें कैसा दुःख होगा”।
अर्थात “सब जन” या “हर एक जन”
झूठे भविष्यद्वक्ताओं की प्रशंसा करते थे।
(स्पष्ट है कि यीशु जनसमूह से बाते कर रहा है जिनमें वे थे जो उसके शिष्य नहीं)
इनमें से प्रत्येक आज्ञा को करते रहना है, न कि एक बार करके समाप्त कर दो।
“अपने बैरियों की सुधि लो” या “अपने बैरियों के लिए जो भला है वह करो”।
“जिनमें तुम्हें श्राप देने का स्वभाव है”
“जिनमें तुम्हारा अपमान करने का स्वभाव है”
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि वे अपने बैरी से प्रेम रखें।)
“यदि कोई तेरे गाल पर मारे”
“चेहरे के एक ओर”
इसका अनुवाद हो सकता है, “अपना चेहरा फेर दे कि वह दूसरी ओर भी मारे”।
“उसे लेने से मत रोक”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि कोई कुछ भी मांगे तो उसे दे”
“उससे लौटाने को मत कह” या “मांग मत रख”
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि वे अपने बैरी से प्रेम रखें।)
कुछ भाषाओं में इसके क्रम को विपरीत करना अधिक स्वाभाविक होता है, “तुम मनुष्यों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें” या “मनुष्यों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम उनसे चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें”।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। इसे कथन रूप में अनुवाद किया जा सकता है, “तुम्हें इसके लिए बड़ाई नहीं मिलेगी” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ऐसा करके तुम्हें क्या प्रशंसा प्राप्त होगी”? या “क्या कोई कहेगा कि तुमने प्रशंसनीय काम किया है”। इसका एक और संभावित अर्थ है, “तुम्हें क्या प्रतिफल मिलेगा”?
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि वे अपने बैरी से प्रेम रखें।)
“तुम्हें महान प्रतिफल मिलेगा”, या “तुम्हें अच्छा लाभ होगा” या “इस कारण तुम अच्छा उपहार पाओगे”।
यहाँ “... की सन्तान” एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है “” इसका तात्पर्य है कि अपने बैरियों से प्रेम करने वाले परमेश्वर के सदृश्य काम करते हैं। इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम परमेश्वर प्रधान के पुत्रों के सदृश्य व्यवहार करोगे” या “तुम परम प्रधान परमेश्वर के जैसे होंगे”, सुनिश्चित करे कि यदि पुत्र शब्द काम में ले रह हैं तो वह बहुवचन में हो कि पाठक उसे “परमेश्वर का पुत्र” यीशु न समझें।
“जो मनुष्य उसे धन्यवाद नहीं करते और जो बुरे हैं”
अर्थात परमेश्वर। इसे अधिक स्पष्ट किया जा सकता है, “तुम्हारा स्वर्गीय पिता”।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि वे दोष न लगाएं)
“किसी पर दोष मत लगाओ” या “किसी की आलोचना मत करो”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “और परिणाम स्वरूप”
यीशु ने यह स्पष्ट नहीं किया कि कौन दोष नहीं लगायेगा। इसके संभावित अर्थ हैं (1) “परमेश्वर तुम पर दोष नहीं लगायेगा”, (2) कोई तुम पर दोष नहीं लगायेगा” दोनों ही अनुवाद स्पष्ट करते हैं कि कौन दोष नहीं लगायेगा।
“किसी को अपराधी मत ठहराओ”
यीशु ने यह स्पष्ट नहीं किया कि कौन दोषी नहीं ठहराएगा। इसके संभावित अर्थ हैं (1) “परमेश्वर तुम्हें अपराधी नहीं ठहराएगा”, (2) कोई भी तुम्हें अपराधी नहीं ठहराएगा। दोनों अनुवादों में स्पष्ट है कि कौन अपराधी नहीं ठहराएगा।
यीशु ने स्पष्ट नहीं किया कि कौन क्षमा करेगा। इसके संभावित अर्थ हैं, (1) परमेश्वर क्षमा करेगा, (2) मनुष्य तुम्हें क्षमा करेंगे पहला अनुवाद स्पष्ट करता है कि कौन क्षमा करेगा।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि दोष न लगाएं)
यहाँ भी यीशु स्पष्ट नहीं करता है कि कौन तुम्हें देगा। इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “कोई तुम्हें देगा”, या (2) “परमेश्वर तुम्हें देगा” इन दोनों अनुवादों में देने वाले स्पष्ट हैं।
“बहुत अधिक मात्रा में”
इस वाक्य का क्रम बदला जा सकता है और कर्तृवाच्य रूप काम में लिया जा सकता है। “वे तुम्हारी गोद में इतना अधिक डालेंगे जो उन्होंने दबा-दबा कर और हिला-हिलाकर और उभरता हुआ डालेंगे”। यीशु ने अनाज भण्डार के एक व्यापारी की उदारता का रूपक काम में लिया है। इसका अनुवाद उपमा द्वारा भी किया जा सकता है, “एक अनाज के व्यापारी के सदृश्य जो अनाज को दबा-दबा कर और हिला-हिलाकर अधिक भरता है कि वह ऊपर से गिरने लगता है, वे तुम्हें बड़ी उदारता से देंगे।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वे तुम्हारे लिए भी इसी नाप से सब वस्तुएं नापेंगे” या “वे उसी मानक से तुम्हारे लिए भी वस्तुएं नापेंगे”।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि दोष न लगाएं)
यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा श्रोताओं को इस चिरपरिचित बात पर विचार करने के लिए उत्प्रेरित करता है। इसका अनुवाद हो सकता है, “अच्छा मनुष्य दूसरे अन्धे मनुष्य का पथ प्रदर्शन नहीं कर सकता है, कर सकता है क्या”? या “यह तो सब ही जानते हैं कि अन्धा अन्धे को रास्ता नहीं दिखा सकता है”।
कुछ भाषाओं के अनुवादक अधिक अच्छा समझते है कि इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “यदि कोई करे”।
यह एक और आलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद प्रकार किया जा सकता है, क्या वे दोनों खड्डे में नहीं गिरेंगे”? या "दोनों खड्ड में गिर जाएगे" (यू.डी.बी.)
इसका अर्थ हो सकता है (1) “शिष्य को अपने गुरू से अधिक ज्ञान नहीं होता” या (2) शिष्य के पास अपने गुरू से अधिक अधिकार नहीं होता है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “शिष्य अपने गुरू से आगे नहीं निकल सकता है”।
“हर एक शिष्य जो उचित प्रशिक्षण पा चुका है” इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में भी किया जा सकता है, “हर एक शिष्य जिसने अपने प्रशिक्षण में लक्ष्य प्राप्ति कर ली है” या “वह हर एक शिष्य जिसके गुरू ने उसे पूर्ण प्रशिक्षण प्रदान कर दिया है”।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि दोष न लगाएं)
यह मनुष्यों पर उंगली उठाने या उनका दोष देखने के संबन्ध में एक रूपक है। इसका अनुवाद एक उपमा द्वारा किया जा सकता है जैसे यू.डी.बी. “तुम उंगली क्यो उठाते हो .... जैसे कि ....
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “कण” या “लेश”
अर्थात यहूदी भाई या “यीशु में विश्वासी भाई”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “डंडा” या “फलक”
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि दोष न लगाएं)
यह एक तथ्य दर्शाता है कि हमारा चरित्र तर्क रूप में प्रकट किया जाएगा कि हमें अपने भाई पर दोष क्यों नहीं लगाना है।
“पोषित वृक्ष”
"सड़ा गला", इसका अनुवाद हो सकता है, “बुरा”
“उसकी पहचान” इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “मनुष्य वृक्ष को .... पहचानता है” या “मनुष्य .... वृक्ष को जान लेता है”।
एक मीठा फल होता है। इस वृक्ष में कांटे नहीं होते हैं।
“एक कंटीली झाड़ियां”
लता में लगने वाले छोटे-छोटे फलों का गुच्छा। इसमें भी कांटे नहीं होते।
कांटे वाली झाड़ी ये पद एक रूपक है जो मनुष्य के आचरण को व्यक्त करता है कि वे वास्तव में क्या है” (यदि आवश्यकता हो तो इसकी व्याख्या की जा सकती है, जैसी यू.डी.बी. के अन्तिम वाक्य में की गई है “उसी प्रकार”
ये पद एक रूपक है जो मनुष्य के विचारों की तुलना इस भण्डार (खजाने) से करता है जिसे मनुष्य छिपाकर सुरक्षित रखते हैं।
“एक सदाचारी मनुष्य”, यहाँ “भला” शब्द का अर्थ है, धार्मिक या नैतिक अच्छाई, “मनुष्य” अर्थ स्त्री/पुरूष। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सदाचारी मनुष्य” या “सदाचारी लोग”(यू.डी.बी)
“उसके मन में जो अच्छाई है” या “उसकी सदाचार संबन्धित मान्यताएं”
इसका अनुवाद रूपक रहित किया जा सकता है, “जीवन आचरण से” या “प्रकट करता है” या “दिखता है”(यू.डी.बी)
“सदाचार की बातें”
“इसके मन में जो है वही उसके मुंह से निकलता है” या “उसके मन में जो आचार संबन्धित मान्यताएं हैं वही उसके शब्दों को नियंत्रित करती है”। इसका अनुवाद “मन” और “मुंह” शब्दों के उपयोग के बिना भी किया जा सकता है। मनुष्य की बातें वही हैं जो उसके विचार हैं” या “उसके विचार उसके शब्दों पर प्रभाव डालते हैं”।
(यीशु जनसमूह को आज्ञाकारिता के महत्त्व की शिक्षा दे रहा है)
यह रूपक दृढ़ नीव पर घर बनाने वाले मनुष्य की तुलना यीशु की शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले मनुष्य से करता है।
“आधार” या “अवलंब”
यह भूमिगत एक बड़ी और दृढ़ चट्टान है।
“घर की नींव डालने के लिए ऐसी गहरी खुदाई की कि” या “ठोस चट्टान पर घर बनाया” कुछ संस्कृतियों में चट्टान पर घर बनाने का विचार प्रचलित न हो। ऐसी परिस्थिति में अनुवाद अधिक सामान्य परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है, “घर की नींव ठोस भूमि में डाली”।
“जल का प्रबल प्रवाह” या “नदी”
“इससे टकराई”
“क्योंकि उस मनुष्य ने उसे दृढ़ता से बनाया था”
(यीशु जनसमूह को उसकी आज्ञाकारिता की शिक्षा दे रहा है)
“आधार” या “अवलंब”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने गहरी खुदाई करके नींव नहीं डाली”
“जल का प्रबल प्रवाह” या “नदी”
“इससे टकराई”
“टूट गया” या “बिखर गया”
वे गेहूं की बालों को तोड़कर उन्हें हाथ से रगड़कर खा रहे थे।
यीशु ने इस पद का दावा किया, "सब्त का प्रभु"।
वे क्रोध से भर गए और विचार करने लगे कि यीशु के साथ क्या करें।
यीशु ने उन्हें प्रेरित कहा।
जो गरीब हैं, भूखे हैं, दुःखी हैं और मनुष्य के पुत्र के कारण सताए जाते हैं, वे धन्य हैं।
क्योंकि स्वर्ग में उनका बड़ा प्रतिफल है।
उन्हें अपने बैरियों से प्रेम करना है और जो घृणा करे उनका भला करे।
वह उन पर दयालु और कृपालु है।
पहले हमें अपनी आंख से लट्ठा निकालना होगा कि हम पाखंड़ी न हों।
एक भले मनुष्य के मन से भली बातें निकलती हैं।
बुरे मनुष्य के मन से बुराई निकलती है।
वह यीशु की बातें सुनकर उनका पालन करता है।
वह जो यीशु की बातों को सुनकर पालन नहीं करता।
1 जब वह लोगों को अपनी सारी बातें सुना चुका, तो कफरनहूम में आया। 2 और किसी सूबेदार का एक दास जो उसका प्रिय था, बीमारी से मरने पर था। 3 उसने यीशु की चर्चा सुनकर यहूदियों के कई प्राचीनों को उससे यह विनती करने को उसके पास भेजा, कि आकर मेरे दास को चंगा कर। 4 वे यीशु के पास आकर उससे बड़ी विनती करके कहने लगे, “वह इस योग्य है, कि तू उसके लिये यह करे, 5 क्योंकि वह हमारी जाति से प्रेम रखता है, और उसी ने हमारे आराधनालय को बनाया है।” 6 यीशु उनके साथ-साथ चला, पर जब वह घर से दूर न था, तो सूबेदार ने उसके पास कई मित्रों के द्वारा कहला भेजा, “हे प्रभु दुःख न उठा, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए। 7 इसी कारण मैंने अपने आप को इस योग्य भी न समझा, कि तेरे पास आऊँ, पर वचन ही कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। 8 मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ; और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक को कहता हूँ, ‘जा,’ तो वह जाता है, और दूसरे से कहता हूँ कि ‘आ,’ तो आता है; और अपने किसी दास को कि ‘यह कर,’ तो वह उसे करता है।” 9 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उसने मुँह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही थी कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।” 10 और भेजे हुए लोगों ने घर लौटकर, उस दास को चंगा पाया।
11 थोड़े दिन के बाद वह नाईन* नाम के एक नगर को गया, और उसके चेले, और बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी। 12 जब वह नगर के फाटक के पास पहुँचा, तो देखो, लोग एक मुर्दे को बाहर लिए जा रहे थे; जो अपनी माँ का एकलौता पुत्र था, और वह विधवा थी: और नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे। 13 उसे देखकर प्रभु को तरस आया, और उसने कहा, “मत रो।” 14 तब उसने पास आकर अर्थी को छुआ; और उठानेवाले ठहर गए, तब उसने कहा, “हे जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ!” 15 तब वह मुर्दा उठ बैठा, और बोलने लगा: और उसने उसे उसकी माँ को सौंप दिया। 16 इससे सब पर भय छा गया*; और वे परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है, और परमेश्वर ने अपने लोगों पर कृपादृष्टि की है।” 17 और उसके विषय में यह बात सारे यहूदिया और आस-पास के सारे देश में फैल गई।।
18 और यूहन्ना को उसके चेलों ने इन सब बातों का समाचार दिया। 19 तब यूहन्ना ने अपने चेलों में से दो को बुलाकर प्रभु के पास यह पूछने के लिये भेजा, “क्या आनेवाला तू ही है, या हम किसी और दूसरे की प्रतीक्षा करे?” 20 उन्होंने उसके पास आकर कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास यह पूछने को भेजा है, कि क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की प्रतीक्षा करे?” 21 उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों और पीड़ाओं, और दुष्टात्माओं से छुड़ाया; और बहुत से अंधों को आँखें दी। 22 और उसने उनसे कहा, “जो कुछ तुम ने देखा और सुना है, जाकर यूहन्ना से कह दो; कि अंधे देखते हैं, लँगड़े चलते-फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं, बहरे सुनते है, और मुर्दे जिलाए जाते है, और कंगालों को सुसमाचार सुनाया जाता है। (यशा. 35:5-6, यशा. 61:1) 23 धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।”
24 जब यूहन्ना के भेजे हुए लोग चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को? 25 तो तुम फिर क्या देखने गए थे? क्या कोमल वस्त्र पहने हुए मनुष्य को? देखो, जो भड़कीला वस्त्र पहनते, और सुख-विलास से रहते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं। 26 तो फिर क्या देखने गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, वरन् भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को। 27 यह वही है, जिसके विषय में लिखा है:
‘देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे-आगे भेजता हूँ, जो तेरे आगे मार्ग सीधा करेगा।’ (मला. 3:1, यशा. 40:3)
28 मैं तुम से कहता हूँ, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना से बड़ा कोई नहीं पर जो परमेश्वर के राज्य में छोटे से छोटा है, वह उससे भी बड़ा है।” 29 और सब साधारण लोगों ने सुनकर और चुंगी लेनेवालों ने भी यूहन्ना का बपतिस्मा लेकर परमेश्वर को सच्चा मान लिया। 30 पर फरीसियों और व्यवस्थापकों ने उससे बपतिस्मा न लेकर परमेश्वर की मनसा को अपने विषय में टाल दिया।
31 “अतः मैं इस युग के लोगों की उपमा किस से दूँ कि वे किस के समान हैं? 32 वे उन बालकों के समान हैं जो बाजार में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं, ‘हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजाई, और तुम न नाचे, हमने विलाप किया, और तुम न रोए!’ 33 क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न रोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, उसमें दुष्टात्मा है। 34 मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया है; और तुम कहते हो, ‘देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों का और पापियों का मित्र।’ 35 पर ज्ञान अपनी सब सन्तानों से सच्चा ठहराया गया है।”
36 फिर किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; अतः वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा। 37 वहाँ उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई। 38 और उसके पाँवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पाँवों को आँसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पाँव बार-बार चूमकर उन पर इत्र मला। 39 यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, “यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान जाता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिन है।” 40 यह सुन यीशु ने उसके उत्तर में कहा, “हे शमौन, मुझे तुझ से कुछ कहना है।” वह बोला, “हे गुरु, कह।” 41 “किसी महाजन के दो देनदार थे, एक पाँच सौ, और दूसरा पचास दीनार देनदार था। 42 जब कि उनके पास वापस लौटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनों को क्षमा कर दिया। अतः उनमें से कौन उससे अधिक प्रेम रखेगा?” 43 शमौन ने उत्तर दिया, “मेरी समझ में वह, जिसका उसने अधिक छोड़ दिया।” उसने उससे कहा, “तूने ठीक विचार किया है।” 44 और उस स्त्री की ओर फिरकर उसने शमौन से कहा, “क्या तू इस स्त्री को देखता है? मैं तेरे घर में आया परन्तु तूने मेरे पाँव धोने के लिये पानी न दिया, पर इसने मेरे पाँव आँसुओं से भिगाए, और अपने बालों से पोंछा।” (उत्प. 18:4) 45 तूने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूँ तब से इसने मेरे पाँवों का चूमना न छोड़ा। 46 तूने मेरे सिर पर तेल नहीं मला*; पर इसने मेरे पाँवों पर इत्र मला है। (भज. 23:5) 47 “इसलिए मैं तुझ से कहता हूँ; कि इसके पाप जो बहुत थे, क्षमा हुए, क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया; पर जिसका थोड़ा क्षमा हुआ है, वह थोड़ा प्रेम करता है।” 48 और उसने स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए।” 49 तब जो लोग उसके साथ भोजन करने बैठे थे, वे अपने-अपने मन में सोचने लगे, “यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?” 50 पर उसने स्त्री से कहा, “तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है, कुशल से चली जा।”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “श्रोताओं को” या "लोगो को" या “सुनने वाले लोगो को”
“जो उसके लिए मूल्यवान था” या “जिसे वह बहुत मानता था”
“उसने यीशु के बारे में सुना तो ....”
“उसको मरने से बचा ले” या “कुछ कर कि वह न मरे”
“वह शतपति इस योग्य है”
“हमारे लोगों से” अर्थात यहूदियों से
“मरे घर आने का कष्ट न कर” इसका अनुवाद ऐसे भी हो सकता है, “मैं तुझे कष्ट देना नहीं चाहता” वह शतपति यीशु से विनम्र निवेदन कर रहा था।
“मेरे घर में आए”, “छत तले आए” एक मुहावरा है। यदि आपकी भाषा में ऐसा कोई मुहावरा है तो यहाँ उसके उपयोग के औचित्य पर विचार करें।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बस आज्ञा दे”। वह शतपति समझता था कि यीशु कह कर ही उसके सेवक को बचा सकता है।
यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद "सेवक" किया गया है उसका सामान्य अनुवाद “बालक” होता है। इसका अर्थ है कि वह सेवक या तो अल्पायु था या वह शतपति का अति प्रिय सेवक था।
यहाँ दास के मूल यूनानी शब्द का अर्थ “सेवक” है, जो अधीनस्थ काम करने वाले के लिए एक विशिष्ट शब्द है।
यीशु यह कह कर अपनी आगे की आश्चर्यजनक बात पर बल दे रहा है।
कहने का अभिप्राय यह है कि यीशु को इस्त्राएलियों में ऐसे विश्वास की आशा थी परन्तु उनमें ऐसा विश्वास नहीं था। गैरयहूदियों से तो उसे विश्वास की आशा ही नहीं थी परन्तु इस मनुष्य में वह विश्वास था। आपको यह अभिप्रेत जानकारी देने की आवश्यकता होगी जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
“वे लोग जिनसे सूबेदार ने यीशु के पास जाकर निवेदन करने का आग्रह किया था”।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“देखो” शब्द हमें सतर्क करता है कि कहानी में एक मृतक का उल्लेख किया जा रहा है। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति हो सकती है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “नगर के प्रवेश द्वार पर”
“उस स्त्री का एक ही पुत्र”
उसका पति मर चुका था
“उसके लिए उसे बहुत दुःख हुआ”
कुछ भाषाओं में इसका अनुवाद है, “आगे बढ़ कर” या “उस समूह के निकट आकर”
यह एक प्रकार का चौखटा होता है जिस पर शव को रखकर कब्रिस्तान ले जाते थे, यह शव को दफन करने की वस्तु नहीं थी।
यीशु अपने अधिकार को व्यक्त करने के लिए ऐसा कहा था। इसका अर्थ है, “सुन”।
“वह मनुष्य जो मर चुका था”, वह अब मृतक न रहा, वह अब जीवित था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “सब भयातुर हो गए” या “सब भयभीत हो गए”
वे यीशु के बारे में कह रहे थे न कि किसी अन्य भविष्यद्वक्ता के बारे में, अतः इसका अनुवाद होगा, “यह बड़ा भविष्यद्वक्ता”
“हमारे साथ रहने आया है” या “हम पर प्रकट हुआ है” या “हमने आज देखा है”।
हमारी सुधि ली है
"यह वचन" या “यह संदेश” या “यह समाचार”
“पहुंच गई” या “प्रसारित हो गई”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “लोगों ने यीशु की इस बात को सबमें फैला दिया” या "लोगों ने सब लोगों में यीशु के इस काम की चर्चा की", "यह बात"अर्थात पद 16 में लोग यीशु के बारे में जो कह रहे थे।
“यूहन्ना को सुनाया”
“यीशु के कामों का”
(यूहन्ना ने) उन्हें प्रभु के पास भेजा और उनसे कहा कि वे (प्रभु से) पूछें।
“(यूहन्ना) ने हमें तेरे पास भेजा है क्योंकि वह पूछता है, “क्या तू ही वह है जो आनेवाला है”? या “यूहन्ना ने हमें भेजा कि तुझसे पूछें 'क्या तू ही वह है जो आनेवाला है'”? (यू.डी.बी.)
“किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें” या “किसी दूसरे के आने की आशा रखें”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने दुष्टात्माग्रस्त मनुष्यों को मुक्ति दिलाई”
“दिया”
“गरीब लोगों को”
“यूहन्ना को बता दो”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उस मनुष्य का कैसा सौभाग्य है जो मेरे कामों के कारण मुझमें विश्वास करने से टलता नहीं”
यह किसी मनुष्य विशेष के संदर्भ में नहीं है इसलिए इसका अनुवद होगा, “जो मनुष्य” या “जो कोई भी” या “जो भी”
(यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में जनसमूह से कह रहा है)
यीशु ने तीन आलंकारिक प्रश्न पूछे कि श्रोता यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के बारे में पूछें। इसका अनुवाद हो सकता है, “क्या तुम... देखने गए थे? कदापि नहीं”। या “तुम निश्चय ही देखने नहीं गए थे”।
इस रूपक का अनुवाद उपमा द्वारा भी किया जा सकता है, “हवा से हिलते हुए सरकण्डे सदृश्य मनुष्य को” इसकी दो संभावित व्याख्याएं हैं, (1) सरकण्डे हवा में आसानी से हिलते हैं, अतःऐसा मनुष्य जो आसानी से मनोदशा बदल लेते हैं, (2) हवा में सरकण्डे सरसराहट उत्पन्न करते हैं, अतः वह मनुष्य जो अधिक बातें करे परन्तु उसकी बातों का महत्त्वपूर्ण परिणाम न हो ।
“मूल्यवान वस्त्र धारण किए हुए मनुष्य को”, धनवान मनुष्य ऐसे वस्त्र पहनते हैं।
राजभवन वह विशाल स्थान होता है जहाँ राजा रहता है।
तो फिर क्या देखने गए थे?
यीशु इस उक्ति द्वारा अपनी अगली बात के महत्त्व पर बल दे रहा है
“साधारण भविष्यद्वक्ता को नहीं” या “एक भविष्यद्वक्ता से भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण मनुष्य को”।
(यीशु जनसमूह से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में ही चर्चा कर रहा है)
“इसी भविष्यद्वक्ता के विषय में भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा था” या “यूहन्ना ही के बारे में वर्षों पूर्व भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा था”
उस पद में यीशु भविष्यद्वक्ता मलाकी का उद्धरण दे रहा है, और वह कह रहा है कि यूहन्ना ही वह व्यक्ति है, जिसके बारे में मलाकी ने भविष्यद्वाणी की थी।
“तुमसे पहले” या “तेरे आगे चलने के लिए” या “तेरे” एकवचन में है क्योंकि इस भविष्यद्वाणी में परमेश्वर मसीह के बारे में कह रहा है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा था इसलिए यहाँ “तुम” बहुवचन है। इस उक्ति के उपयोग द्वारा यीशु अपनी अगली बात के महत्त्व पर बल दे रहा था।
“जिन्हें कभी किसी स्त्री ने जन्म दिया” यह एक अलंकार है जो सब मनुष्यों के संदर्भ में है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जितने भी लोग इस दुनिया में आए है”,
इसका सकारात्मक अनुवाद किया जा सकता है, “यूहन्ना महानतम है”।
यह उस मनुष्य के संदर्भ में है जो परमेश्वर द्वारा स्थापित राज्य का सदस्य है। इसका अनुवाद हो सकता है, “जो परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर चुका है।
“यूहन्ना से भी बड़े आत्मिक स्तर पर”
(इस पुस्तक का लेखक लूका यूहन्ना और यीशु के प्रति मनुष्यों की प्रतिक्रिया पर टिप्पणी कर रहा है।)
“उन्होंने कहा कि परमेश्वर ने स्वयं को धर्मी सिद्ध कर दिया है” या “उन्होंने घोषणा की कि परमेश्वर ने अपनी धार्मिकता प्रकट की है”
“जिन्हें यूहन्ना ने बपतिस्मा दिया था” या “जिनका बपतिस्मा यूहन्ना के हाथों हुआ था”
“जिन्हें यूहन्ना ने बपतिस्मा नहीं दिया था” या “जिन्होंने यूहन्ना से बपतिस्मा लेना स्वीकार नहीं किया था” या “जिन्होंने यूहन्ना के बपतिस्मे को तुच्छ जाना था”
“उनके लिए परमेश्वर के उद्देश्य को” या “उनके लिए परमेश्वर की योजना को” या “उनके लिए परमेश्वर की इच्छा को”
“परमेश्वर की अवज्ञा की” या “परमेश्वर की इच्छा पर विश्वास न करने की ठानी”
इसका सलंग्न अर्थ हो सकता है, क्योंकि उन्होंने यूहन्ना के बपतिस्में को तुच्छ समझा था, वे अपने लिए परमेश्वर की इच्छा को स्वीकार करने के लिए आत्मिक परिप्रेक्ष्य में तैयार नहीं थे।
(यीशु उन लोगों के बारे कह रहा है जिन्होंने उसे और यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले को परित्याग किया है)
यह आलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु यह प्रश्न पूछ कर तुलना कर रहा था जिसका उल्लेख वह अगले पद में करेगा। इस संपूर्ण प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है, “मैं इस पीढ़ी की तुलना करते हुए कहता हूँ कि वे उन बालकों के जैसे हैं....”
“आज के लोग” या “ये लोग” या “तुम जो इस पीढ़ी के हो”।
यह यीशु की तुलना का आरंभ है। यह एक उपमा है । यीशु कह रहा था कि उसकी पीढ़ी के लोग उन बालकों के सदृश्य हैं जो अन्य बालकों के खेल से सन्तुष्ट नहीं थे।
यह एक खुला मैदान होता या जहाँ व्यापारी अपना सामान बैचने आते थे।
यह एक लम्बा खोखला संगीत वाद्य़ है जिसमें एक सिरे से हवा फूंक कर बजाया जाता था।
“तुमने संगीत पर नृत्य नहीं किया”
“तुम हमारे साथ दुखी नहीं हुए”
(यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है। वह समझा रहा है कि उसने उनकी तुलना इन बालकों से क्यों की)
यीशु लोगों की बातों का उद्धरण दे रहा है कि वे यूहन्ना के लिए ऐसा कहते थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम कहते हो कि उसमें दुष्टात्मा है,” या “तुम उसे दुष्टात्मा ग्रस्त होने का दोष देते हो”।
“खाना नहीं खाता था” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह अधिकतर उपवास रखता था” इसका अर्थ यह नहीं कि यूहन्ना खाना ही नहीं खाता था।
यीशु चाहता था कि उसके श्रोता जानें कि वह मनुष्य का पुत्र है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं, मनुष्य का पुत्र”।
यीशु अपने मनुष्य के पुत्र के बारे में मनुष्यों की राय व्यक्त कर रहा है, इसका अनुवाद बिना उद्धरण चिन्ह के किया जा सकता है। “तुम कहते हो कि वह पेटू है” या “तुम उसे बहुत खाने का दोष देते हो”। यदि आप “मनुष्य के पुत्र” का “मैं, मनुष्य का पुत्र” लिखते हैं तो अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम कहते हो कि मैं पेटू हूँ”
“वह खाने का लोभी है”, या “उसे बहुत खाने की आदत है”।
“मद्यव्यसनी” या “पीने का आदि”
यह संभवतः एक लोकोक्ति है जिसे यीशु इस परिस्थिति में प्रासंगिक बना रहा था, क्योंकि उसका और यूहन्ना का परित्याग करने वाले बुद्धिमान नहीं थे।
यह एक नया वृत्तान्त का आरंभ है
“भोजन के लिए तख्त पर आधा लेटा” उनकी प्रथा में आराम से आधा लेट कर भोजन किया जाता था।
“जिसकी जीवनशैली पाप की थी” या “जिसकी छवि थी कि वह पापी है”। अति संभव है कि वह एक वैश्या थी।
यह एक लम्बा वाक्य है, कुछ भाषाओं में अधिक स्वभाविक होगा कि इसके छोटे-छोटे वाक्य बनाए जाएं। जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
“मुलायम पत्थर का पात्र” संगमरमर एक मुलायम सफेद चट्टान होती है जिसमें सुराही आदि जैसे बर्तन बनते थे और लोग उनमें बहुमूल्य पदार्थ रखते थे।
“उसके सुगन्धित द्रव्य” इत्र एक तेल होता है जिसकी सुगन्ध मनमोहक होती हे। लोग उसे अपने शरीर पर या वस्त्रों में लगाते थे कि उनके आसपास अच्छी सुंगन्ध व्याप्त हो।
“अपने केश से”
“अपने मन में कहा”
उस फरीसी ने सोचा कि यीशु भविष्यद्वक्ता नहीं है क्योंकि वह उस पापी स्त्री को स्पर्श करने दे रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “स्पष्ट है कि यीशु भविष्यद्वक्ता नहीं है यदि होता तो इस स्त्री को पहचान लेता”।
यह इस फरीसी का नाम है जिसने यीशु को भोजन के लिए अपने घर में आमंत्रित किया था। वह शमौन पतरस नहीं था।
(यीशु ने शमौन फरीसी को क्षमा प्राप्त मनुष्यों की एक कहानी सुनाई।)
"एक महाजन के दो ऋणी थे"
“पांच सौ दिन की मजदूरी” अर्थात एक "दीनार" प्रति दिन
"पचास दिन की मजदूरी"
“ऋण चुकाने के लिए कुछ न था”
उसने उनके ऋण क्षमा कर दिए।
शमौन ने बड़ी सावधानी से उत्तर दिया था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “संभवतः ....”
“तू सही कहता है”
“उस स्त्री को देखकर”, उसकी ओर देखकर यीशु ने शमौन का ध्यान उसकी ओर आकर्षित किया।
अतिथि के लिए शिष्टाचार व्यक्त करने की कुछ मुख्य विधियां थी। (यीशु शमौन में शिष्टाचार की कमी की तुलना उस स्त्री की आभार व्यक्ति से कर रहा है।)
इसका सकारात्मक अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह मेरे पांवों को लगातार चूम रही है”
(यीशु शमौन ही से बातें कर रहा है)
“मेरे सिर में तेल नहीं डाला” यह माननीय अतिथि के स्वागत की रीति थी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरे सिर पर तेल मल कर मेरा स्वागत नहीं किया”
यद्यपि यह एक आम अभ्यास नहीं था, उस स्त्री ने ऐसा करके यीशु को अति सम्मानित किया।
उसका अनुवाद भी कर्तृवाच्य रूप में किया जा सकता है। “जिसने अधिक क्षमादान प्राप्त किया”, या “परमेश्वर ने उसके अधिक पाप क्षमा किया है”।
“इसे क्षमा करनेवाले से अधिक प्रेम किया है” या “परमेश्वर से अधिक प्रेम किया है”। कुछ भाषाओं में आवश्यकता होती है कि जिससे प्रेम किया गया उसका उल्लेख किया जाए।
“जिसे कम क्षमादान प्राप्त है” या “जिसे कम पाप क्षमा हुए”, इस वाक्य में यीशु एक सामान्य सिद्धान्त व्यक्त करता है। तथापि शमौन को समझ जाना था कि उसने यीशु से कम प्रेम किया।
“तू क्षमा की गई है” इसे भी कर्तृवाच्य रूप में अनुवाद किया जा सकता है, “मैं तेरे पाप क्षमा करता हूँ”।
“तेरे विश्वास से तुझे उद्धार हुआ है”, विश्वास को विचार को क्रिया रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है, “क्योंकि तू विश्वास करती है, इसलिए तू उद्धार पाती है”।
यह अलविदा करने का एक रूप है जिसमें आशीर्वाद भी है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जा और चिन्ता मत कर”, या “जा परमेश्वर तुझे शांति दे”।(यू.डी.बी)
उसने यीशु से कहा कि वह उसके घर आकर उसके दास को चंगा करे।
उस सूबेदार ने कहा कि वह इस योग्य नहीं कि यीशु उसके घर आए।
उस सूबेदार ने यीशु से निवेदन किया कि वह बस कह दे कि उसका दास चंगा हो जाएं।
यीशु ने कहा कि उसने इस्राएल में किसी में ऐसा विश्वास नहीं देखा।
उसे उस पर तरस आया।
उन्होंने कहा, हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है और परमेश्वर ने अपने लोगों पर कृपा दृष्टि की है।
यीशु ने अंधों को, लंगड़ों को, कोढ़ियों को, बहरों को चंगा किया और मृतकों को जिलाया।
यीशु ने कहा कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता से भी बढ़कर है।
उन्होंने परमेश्वर के अभिप्राय को टाल दिया।
उन्होंने कहा, उसमें दुष्टात्मा है।
वे यीशु को कहते थे कि वह पेटू और पियक्कड़ मनुष्य है।
उसने आंसुओं से यीशु के पांव धोए और अपने बालों से उन्हें पौंछा, उसके पावों को चूमकर उन पर इत्र मला।
उसने बहुत प्रेम किया।
?
1 इसके बाद वह नगर-नगर और गाँव-गाँव प्रचार करता हुआ, और परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा, और वे बारह उसके साथ थे, 2 और कुछ स्त्रियाँ भी जो दुष्टात्माओं से और बीमारियों से छुड़ाई गई थीं, और वे यह हैं मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी*, जिसमें से सात दुष्टात्माएँ निकली थीं, 3 और हेरोदेस के भण्डारी खोजा की पत्नी योअन्ना और सूसन्नाह और बहुत सी और स्त्रियाँ, ये तो अपनी सम्पत्ति से उसकी सेवा करती थीं।।
4 जब बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और नगर-नगर के लोग उसके पास चले आते थे, तो उसने दृष्टान्त में कहा: 5 “एक बोनेवाला बीज बोने निकला: बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पक्षियों ने उसे चुग लिया। 6 और कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु नमी न मिलने से सूख गया। 7 कुछ झाड़ियों के बीच में गिरा, और झाड़ियों ने साथ-साथ बढ़कर उसे दबा लिया। 8 “और कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया।” यह कहकर उसने ऊँचे शब्द से कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन लें।”
9 उसके चेलों ने उससे पूछा, “इस दृष्टान्त का अर्थ क्या है?” 10 उसने कहा, “तुम को परमेश्वर के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर औरों को दृष्टान्तों में सुनाया जाता है, इसलिए कि
‘वे देखते हुए भी न देखें,
और सुनते हुए भी न समझें।’ (मत्ती 4:11, यशा. 6:9-10)
11 “दृष्टान्त का अर्थ यह है: बीज तो परमेश्वर का वचन है। 12 मार्ग के किनारे के वे हैं, जिन्होंने सुना; तब शैतान आकर उनके मन में से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करके उद्धार पाएँ। 13 चट्टान पर के वे हैं, कि जब सुनते हैं, तो आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं, परन्तु जड़ न पकड़ने से वे थोड़ी देर तक विश्वास रखते हैं, और परीक्षा के समय बहक जाते हैं। 14 जो झाड़ियों में गिरा, यह वे हैं, जो सुनते हैं, पर आगे चलकर चिन्ता और धन और जीवन के सुख-विलास में फँस जाते हैं, और उनका फल नहीं पकता। 15 पर अच्छी भूमि में के वे हैं, जो वचन सुनकर भले और उत्तम मन में सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं।
16 “कोई दिया जला कर* बर्तन से नहीं ढाँकता, और न खाट के नीचे रखता है, परन्तु दीवट पर रखता है, कि भीतर आनेवाले प्रकाश पाएँ। 17 कुछ छिपा नहीं, जो प्रगट न हो; और न कुछ गुप्त है, जो जाना न जाए, और प्रगट न हो। 18 इसलिए सावधान रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो? क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जिसे वह अपना समझता है।”
19 उसकी माता और उसके भाई पास आए, पर भीड़ के कारण उससे भेंट न कर सके। 20 और उससे कहा गया, “तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए तुझ से मिलना चाहते हैं।” 21 उसने उसके उत्तर में उनसे कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये ही है, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।”
22 फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उसने उनसे कहा, “आओ, झील के पार चलें।” अतः उन्होंने नाव खोल दी। 23 पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया: और झील पर आँधी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे। 24 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं।” तब उसने उठकर आँधी को और पानी की लहरों को डाँटा और वे थम गए, और शान्त हो गया। 25 और उसने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्वास कहाँ था?” पर वे डर गए, और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, “यह कौन है, जो आँधी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं?”
26 फिर वे गिरासेनियों के देश में पहुँचे, जो उस पार गलील के सामने है। 27 जब वह किनारे पर उतरा, तो उस नगर का एक मनुष्य उसे मिला, जिसमें दुष्टात्माएँ थीं। और बहुत दिनों से न कपड़े पहनता था और न घर में रहता था वरन् कब्रों में रहा करता था। 28 वह यीशु को देखकर चिल्लाया, और उसके सामने गिरकर ऊँचे शब्द से कहा, “हे परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र यीशु! मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे पीड़ा न दे।” 29 क्योंकि वह उस अशुद्ध आत्मा को उस मनुष्य में से निकलने की आज्ञा दे रहा था, इसलिए कि वह उस पर बार-बार प्रबल होती थी। और यद्यपि लोग उसे जंजीरों और बेड़ियों से बाँधते थे, तो भी वह बन्धनों को तोड़ डालता था, और दुष्टात्मा उसे जंगल में भगाए फिरती थी। 30 यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने कहा, “सेना,” क्योंकि बहुत दुष्टात्माएँ उसमें समा गई थीं। 31 और उन्होंने उससे विनती की, “हमें अथाह गड्ढे में जाने की आज्ञा न दे।” 32 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था, अतः उन्होंने उससे विनती की, “हमें उनमें समाने दे।” अतः उसने उन्हें जाने दिया। 33 तब दुष्टात्माएँ उस मनुष्य से निकलकर सूअरों में समा गई और वह झुण्ड कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा गिरा और डूब मरा।
34 चरवाहे यह जो हुआ था देखकर भागे, और नगर में, और गाँवों में जाकर उसका समाचार कहा। 35 और लोग यह जो हुआ था उसको देखने को निकले, और यीशु के पास आकर जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं, उसे यीशु के पाँवों के पास कपड़े पहने और सचेत बैठे हुए पा कर डर गए। 36 और देखनेवालों ने उनको बताया, कि वह दुष्टात्मा का सताया हुआ मनुष्य किस प्रकार अच्छा हुआ। 37 तब गिरासेनियों के आस-पास के सब लोगों ने यीशु से विनती की, कि हमारे यहाँ से चला जा; क्योंकि उन पर बड़ा भय छा गया था। अतः वह नाव पर चढ़कर लौट गया। 38 जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं वह उससे विनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे, परन्तु यीशु ने उसे विदा करके कहा। 39 “अपने घर में लौट जा और लोगों से कह दे, कि परमेश्वर ने तेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए हैं।” वह जाकर सारे नगर में प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए।
40 जब यीशु लौट रहा था, तो लोग उससे आनन्द के साथ मिले; क्योंकि वे सब उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। 41 और देखो, याईर नाम एक मनुष्य जो आराधनालय का सरदार था, आया, और यीशु के पाँवों पर गिरके उससे विनती करने लगा, “मेरे घर चल।” 42 क्योंकि उसके बारह वर्ष की एकलौती बेटी थी, और वह मरने पर थी। जब वह जा रहा था, तब लोग उस पर गिरे पड़ते थे। 43 और एक स्त्री ने जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जीविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी और फिर भी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी, 44 पीछे से आकर उसके वस्त्र के आँचल को छुआ, और तुरन्त उसका लहू बहना थम गया। 45 इस पर यीशु ने कहा, “मुझे किस ने छुआ?” जब सब मुकरने लगे, तो पतरस और उसके साथियों ने कहा, “हे स्वामी, तुझे तो भीड़ दबा रही है और तुझ पर गिरी पड़ती है।” 46 परन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है क्योंकि मैंने जान लिया है कि मुझ में से सामर्थ्य निकली है।” 47 जब स्त्री ने देखा, कि मैं छिप नहीं सकती, तब काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर सब लोगों के सामने बताया, कि मैंने किस कारण से तुझे छुआ, और कैसे तुरन्त चंगी हो गई। 48 उसने उससे कहा, “पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है, कुशल से चली जा।” 49 वह यह कह ही रहा था, कि किसी ने आराधनालय के सरदार के यहाँ से आकर कहा, “तेरी बेटी मर गई: गुरु को दुःख न दे।” 50 यीशु ने सुनकर उसे उत्तर दिया, “मत डर; केवल विश्वास रख; तो वह बच जाएगी*।” 51 घर में आकर उसने पतरस, और यूहन्ना, और याकूब, और लड़की के माता-पिता को छोड़ और किसी को अपने साथ भीतर आने न दिया। 52 और सब उसके लिये रो पीट रहे थे, परन्तु उसने कहा, “रोओ मत; वह मरी नहीं परन्तु सो रही है।” 53 वे यह जानकर, कि मर गई है, उसकी हँसी करने लगे। 54 परन्तु उसने उसका हाथ पकड़ा, और पुकारकर कहा, “हे लड़की उठ!” 55 तब उसके प्राण लौट आए और वह तुरन्त उठी; फिर उसने आज्ञा दी, कि उसे कुछ खाने को दिया जाए। 56 उसके माता-पिता चकित हुए, परन्तु उसने उन्हें चेतावनी दी, कि यह जो हुआ है, किसी से न कहना।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य रूप में किया जा सकता है, “जिन्हें यीशु ने प्रेत मुक्ति और रोग मुक्ति दिलाई थी।
तीन स्त्रियों के नामों का उल्लेख किया गया है, मरियम, योअन्ना और सूसन्नाह।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “यूहन्ना जो हेरोदेस के प्रबन्धक खुज़ा की पत्नी थी।" यूअन्ना खुजा की पत्नी थी और खुजा हेरोदेस का प्रबन्धक था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “एक किसान खेत में बीज डालने निकला”
“मार्ग पर” या “पगडंडी पर” मनुष्यों के आवागमन के कारण वह भूमि कठोर हो गई थी।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पांवों तले दबते रहने के कारण उग नहीं पाए” या कतृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी में है ।
“पक्षी उसे खा गए”
“पौधे सूख कर मर गए”
इसका अनुवाद हो सकता है, “भूमि सूखी होने के कारण”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
झाड़ियों ने खाद, पानी और सूर्य का प्रकाश लेकर उन्हें बढ़ने नहीं दिया”
“फसल लाया” या “कई गुणा बीज लाया”
कुछ भाषाओं में द्वितीय पुरूष काम में लेना अधिक स्वाभाविक होता है।
“जो सुन रहा है” या “जो मेरी वाणी सुनता है”
"वह ध्यान से सुन ले" या "वह मेरी बात पर ध्यान दे"।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य रूप में तथा अभिप्रेत जानकारी के साथ किया जा सकता है, “परमेश्वर ने तुम्हें समझने का वरदान दिया है” या “परमेश्वर ने तुम्हें समझने की क्षमता दी है”।(देखें: और )
ये सत्य छिपे हुए थे परन्तु यीशु ने उन्हें प्रकट किया है।
“यद्यपि वे देखते है, वे अंतर्ग्रहण नहीं कर पायंगे, यदि क्रिया को कर्म की आवश्यकता है तो उसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यद्यपि वे सब बातों को देखते हैं उन्हें समझेंगे नहीं” या “यद्यपि वे घटनाओं को देखेंगे, वे उनका अर्थ नहीं समझेंगे।”(देखें: the section about )
“यद्यपि वे सुनते हैं, वे समझेंगे नहीं, “यदि क्रिया को कर्म की आवश्यकता है तो इसकी रचना इस प्रकार की जाएगी, “यद्यपि वे निर्देशनों को सुनते हैं, वे सत्य को अंतर्ग्रहण नहीं कर पायेंगे”।
(यीशु अपने शिष्यों ही से बातें कर रहा है। वह उन्हें इस शिक्षाप्रद कथा का अर्थ समझा रहा है)
अर्थात उन्होंने परमेश्वर का वचन सुना परन्तु शैतान ने उनसे वह भुला दिया।
कथा में पक्षी द्वारा बीज चुगना एक रूपक है। अपनी भाषा में उन शब्दों का उपयोग करे जो इस रूपक को बनाए रखे।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है। “वे विश्वास करें और परमेश्वर उनका उद्धार करे। क्योंकि यह शैतान की युक्ति है। इसलिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “क्योंकि शैतान सोचता है, वे विश्वास न करें और उद्धार से वंचित हो जाएं”।
“कठिनाइयों के समय वे विश्वास से विमुख हो जाते हैं” या “कठिनाइयां आने पर वे विश्वास करना छोड़ देते हैं।”
(यीशु इस शिक्षाप्रद कथा का ही अर्थ समझा रहा है)
“इस जीवन की चिन्ता, घर का लालच और सुखभोग उनके विश्वास को कुंठित कर देता है” या “जिस प्रकार झाड़ियां अच्छे पौधे को बढ़ने नहीं देती, उसी प्रकार चिन्ताए, धन, लोलुपता और विलासिता की चाह इन मनुष्यों को विश्वास में परिपक्व नहीं होने देते”।
“जिन बातों के लिए मनुष्य परेशान होता है,”
“जीवन में मनुष्यों के सुख-भोग की बातें”
“वे पक्का फल नहीं लाते”, इस रूपक का अनुवाद उपमा द्वारा भी किया जा सकता है, “जैसे एक दृश्य परिपक्व होकर फल नहीं लाता, वे भी परिपक्व होकर भले काम नहीं करते”।
“धीरज से फल लाते हैं”, इस रूपक का अनुवाद उपमा के उपयोग से भी किया जा सकता है, “ऐसे फल लाते हें जैसे एक अच्छा वृक्ष अच्छे फल लाता है, वे यत्न करके भले काम करते हैं”
(यीशु अपने शिष्यों को समझा रहा है)
यह एक छोटी कटोरी होती थी जिसमें वे जैतून का तेल डाल कर उनमें बत्ती लगाकर जलाते थे।
“मेज” या “ताक”
इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में भी किया जा सकता है, “छिपी हुई हर एक बात प्रकट की जाएगी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “हर एक गुप्त बात जान ली जाएगी वरन प्रकाश में आएगी”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम मेरी बातों को किस प्रकार सुनते हो” या “तुम परमेश्वर के वचन को कैसे सुनते हो”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जिसमें समझ है” या “जो मेरी शिक्षाओं को ग्रहण करता है”।
“उसे और अधिक दिया जाएगा”,इसका अनुवाद कतृवाच्य क्रिया में भी किया जा सकता है, “परमेश्वर उसे और अधिक देगा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जिसमें समझ नहीं है” या “जो मेरी शिक्षा को ग्रहण नहीं करता है”।
यीशु के अपने छोटे भाई
“लोगों ने उससे कहा”, या “किसी ने उससे कहा”
“तुझसे भेंट करने की प्रतीक्षा में हैं”, या “वे तुझसे मिलना चाहते हैं”
इस रूपक को उपमा देकर अनुवाद किया जा सकता है, “परमेश्वर का वचन सुनकर उसका पालन करनेवाले मेरे लिए माता और भाई स्वरूप हैं”। या “जो परमेश्वर के वचन को सुनकर उसका पालन करते वे मेरे लिए माता और भाई का स्थान रखते हैं”।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“जब वे नाव में जा रहे थे”
“उसे नींद आ गई”
“अकस्मात की प्रचण्ड आंधी चलने लगी”
यहाँ "स्वामी" का अर्थ मूल भाषा यूनानी में मालिक नहीं है। इसका अर्थ है अधिकार संपन्न मनुष्य, न कि किसी का अधिकृत मालिक। आप इसका अनुवाद इस प्रकार भी कर सकते है, “साहब” या "अधिकर्मी" या किसी अधिकारी के लिए काम में लिया जानेवाला शब्द जैसे “श्रीमान जी”
“कठोरता से कहा”
“आंधी और विचलित पानी शान्त हो गए”।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है, “यीशु उनकी मृदु ताड़ना कर रहा था क्योंकि उनमे विश्वास नहीं था कि वे उसके साथ सुरक्षित है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “तुम्हें विश्वास करना था” या “तुम्हें मुझ पर तो विश्वास होना था”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यह कैसा मनुष्य है”?
यह एक नये वाक्य का आरंभ हो सकता है, “यह आज्ञा देता है......”
गिरासेनी गिरासा नगर के निवासी थे
“झील के पार गलील को देखता हुआ”
"गिरासा नगर का एक व्यक्ति"
“वह दुष्टात्माओं के वश में था”
“वह कपड़े नहीं पहनता था”
जहाँ वे अपने मृतक रखते थे। संभवतः गुफाएं। वह उनमें रहता था, तो इससे प्रकट होता है कि वे कब्र भूमिगत नहीं थी।
"जब उस दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य ने यीशु को देखा।"
“उसने ऊंची आवाज में कहा” या “चिल्लाया”
“भूमि पर लेट गया” वह ठोकर खाकर नहीं गिरा था अपितु डर के कारण भूमि पर लेट गया था।
"ऊंचे स्वर में बोला" या “पुकार कर कहा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तू मुझे कष्ट क्यों देता है”?
“वह उस व्यक्ति को वशीभूत करती थी” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह उसे दबाती रहती थी” यह वाक्य और अगला वाक्य स्पष्ट करते हैं कि यीशु के साक्षात्कार से पूर्व उन दुष्टात्माओं ने उस मनुष्य के माध्यम से क्या-क्या किया था।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “यद्यपि लोग उसे वश में करने के लिए जज़ीरों से बान्धते थे”
“इस शब्द का अनुवाद एक ऐसे शब्द से किया जाए जिसका अर्थ हो, बहुत संख्या में सैनिक या मनुष्य। इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “सैन्य दल” या “टोली”
“उस व्यक्ति से निकल कर नरक में जाने की आज्ञा न दे”।
“वहीं पास में पहाड़ पर बहुत से सुअर चर रहे थे”
“तेजी से दौड़कर”
“उन्होंने अतिशीघ्र जाकर”
“जिस व्यक्ति से दुष्टात्माएं निकली थी उसे देखा
“वह कपड़े पहने हुए था”
“वह उचित मानसिक अवस्था में था” या “उसका व्यवहार सामान्य था”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “भूमि पर बैठा यीशु की बातें सुन रहा था”।
“वे यीशु से डर गए”
ये वे लोग थे जो उस मनुष्य की प्रेत मुक्ति के समय वहां थे।
“बचाया गया” या “मुक्त किया गया” या “स्वस्थ किया गया”
“उस क्षेत्र के” या “गिरासेनियों के क्षेत्र के”
“भयभीत हो गए”
कुछ अनुवादक इस वाक्य का आरंभ इस प्रकार करना चाहते हैं, “यीशु और उसके शिष्यों के प्रस्थान से पूर्व, उस मनुष्य ने” या “यीशु और उसके शिष्यों के नाव में सवार होने से पूर्व”
“यीशु ने उसे घर भेज दिया”
“अपने परिवार में” या “अपने कुटुम्ब में”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जनसमूह ने बड़े आनन्द से उसका स्वागत किया”
“इतने में” कहानी में एक नये नायक, याईर की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति हो सकती है।
“स्थानीय आराधनालय का अगुआ” या “वहां के आराधनालय के सदस्यों का अगुआ”
(1) यीशु को दण्डवत किया” या (2) यीशु के चरणों में लेट गया” वह ठोकर खाकर नहीं गिरा था। उसने दीनता और श्रद्धा के साथ ऐसा किया था।
“वह मरनेवाली थी” या “वह मृत्यु के मुंह में थी”
कुछ अनुवादों में आवश्यक होगा कि पहले कहा जाए, “यीशु उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गया”
"लोग यीशु को छूते हुए चल रहे थे"
(यह घटना उस समय की है जब यीशु याईर की पुत्री को रोग-मुक्त करने जा रहा था)।
“रक्त बहता था” संभवतः लगातार रजोधर्म का स्राव। कुछ संस्कृतियों में इसके लिए मृदुभाषी शब्द होगा।
“कोई उसका सफल उपचार नहीं कर पाया”
“उसके चोगे के सिरे को छू लिया” यहूदी पुरूष अपने चोगे के सिरे पर झालन लगवाते थे जो उनके सांस्कारिक वस्त्र के द्योतक थे। यह परमेश्वर की ओर से आदेशित था। अति संभव है कि उसने वह झालन छू लिया था।
(यीशु याईर की पुत्री के रोगहरण हेतु जा रहा था)
यहाँ स्वामी का मूल शब्द है उसका अर्थ दास का स्वामी नहीं है। यह एक अधिकार संपन्न मनुष्य के लिए काम में लिया जाता था न कि किसी दास के मालिक के लिए। आप इसका अनुवाद इस प्रकार कर सकते हैं, “प्रधान जी” या “श्रीमान जी”
पतरस के कहने का अर्थ है कि सब तो उसका स्पर्श कर रहे हैं। यह निहितार्थ आवश्यकता के अनुसार व्यक्त किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
“मुझे अपने में से रोगहरण सामर्थ्य का प्रवाह होता प्रतीत हुआ है, “इसका अर्थ यह नहीं कि यीशु सामर्थ्य में कम या दुर्बल हुआ था। उसके सामर्थ्य से वह स्त्री रोग-मुक्त हो गयी थी।
(यीशु याईर की पुत्री के रोगहरण हेतु जा रहा है)
“उसने देखा कि उसके द्वारा यीशु को स्पर्श करना छिपा नहीं रह सकता”
“सबके समक्ष” या “सब के सुनते हुए” या “सबकी उपस्थिति में”
इसके संभावित अर्थ हें, (1) “यीशु को दण्डवत करके या (2) “वह यीशु के चरणों में नतमस्तक हुई” यहाँ गिरने का अर्थ ठोकर खाकर गिरना नहीं है। यह दीनता और श्रद्धा का चिन्ह है।
यह किसी स्त्री को संबोधित करने का एक दया का शब्द था। आपकी भाषा में इस प्रकार के दयापूर्ण शब्द का पयार्यवाची शब्द हो सकता है।
“यह तेरा विश्वास है जिसने रोग को हर लिया है” यहाँ विश्वास का अनुवाद क्रिया रूप में किया जा सकता है, “क्योंकि तू विश्वास करती है इसलिए तू निरोग हो गई है”।
यह एक प्रकार से आशिषों के साथ विदा करना है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “निश्चिन्त होकर जा” या “जा परमेश्वर तुझे शान्ति दे”(यू.डी.बी)।
(यीशु ने उस स्त्री को विदा किया ही था कि याईर के घर से एक सन्देशवाहक आया)
“यीशु उस स्त्री से अन्तिम वचन कह ही रहा था”
अर्थात याईर के। वह स्थानीय आराधनालय के अगुवों में से एक था।
यीशु ने याईर से कहा- यीशु सन्देशवाहक से नहीं आराधनालय के अगुवे से कह रहा था।
“वह स्वस्थ होगी” “वह जिएगी”(यू.डी.बी)
(उसकी पुत्री के मरने का समाचार सुनकर भी यीशु उसके घर जा रहा है)
यीशु के साथ अन्य लोग भी थे, अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब वे उसके घर पहुंचे तब यीशु .......”
“उसने केवल पतरस, यूहन्ना और याकूब तथा उस मृतक लड़की के माता पिता को भीतर आने दिया”।
“सब लोग उस बालिका की मृत्यु पर दुःख मना रहे थे”
“हे बालिका उठ”
“प्राण” का अनुवाद “सांसें” या “जीवन” भी किया जा सकता है। इस वाक्याँश का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह जीवित हो गई” या “उसमें जान आ गई”
कुछ स्त्रियां अपनी सम्पत्ति से उसकी सेवा करती थी।
बीज परमेश्वर का वचन है।
वे वचन को सुनते तो हैं परन्तु शैतान आकर उसे ले जाता है कि वे विश्वास करके बचाए न जाएं।
ये वे लोग है जो बड़े आनन्द से वचन को ग्रहण करते हैं परन्तु परीक्षा के समय विश्वास करना छोड़ देते हैं।
ये वे लोग हैं जो वचन को सुनते है परन्तु चिन्ता और धन और जीवन के सुख विलास के कारण वह दब जाते हैं और वे परिपक्व होकर फल नहीं लाते।
ये वे लोग हे जो वचन को सुनकर उसे थामते हैं और यत्न से फल उत्पन्न करते हैं।
ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का वचन सुनकर उस पर चलते हैं।
वे आश्चर्य करने लगे कि "यह कौन है जो आंधी और पानी को भी आज्ञा देता है और वे उसकी मानते हैं?"
वे उसे निर्वस्त्र कब्रों में रहने पर विवश करती थी और वह सांकलों और बेड़ियों को तोड़ देता था और वे उसे जंगलों में भगाती थी।
दुष्टात्माएं सूअरों के झुण्ड में चली गई और सूअर झील में डूब कर मर गए।
यीशु ने उससे कहा कि वह घर जाकर बताए कि परमेश्वर ने उसके लिए कैसे महान काम किए।
वह यीशु में विश्वास के कारण रोग मुक्त हो गई थी।
यीशु ने याईर की पुत्री को मृतक से जिलाया।
1 फिर उसने बारहों को बुलाकर उन्हें सब दुष्टात्माओं और बीमारियों को दूर करने की सामर्थ्य और अधिकार दिया। 2 और उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने, और बीमारों को अच्छा करने के लिये भेजा। 3 और उसने उनसे कहा, “मार्ग के लिये कुछ न लेना: न तो लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपये और न दो-दो कुर्ते। 4 और जिस किसी घर में तुम उतरो, वहीं रहो; और वहीं से विदा हो। 5 जो कोई तुम्हें ग्रहण न करेगा उस नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो।” 6 अतः वे निकलकर गाँव-गाँव सुसमाचार सुनाते, और हर कहीं लोगों को चंगा करते हुए फिरते रहे।
7 और देश की चौथाई का राजा हेरोदेस यह सब सुनकर घबरा गया, क्योंकि कितनों ने कहा, कि यूहन्ना मरे हुओं में से जी उठा है। 8 और कितनों ने यह, कि एलिय्याह दिखाई दिया है: औरों ने यह, कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है। 9 परन्तु हेरोदेस ने कहा, “यूहन्ना का तो मैंने सिर कटवाया अब यह कौन है, जिसके विषय में ऐसी बातें सुनता हूँ?” और उसने उसे देखने की इच्छा की।।
10 फिर प्रेरितों ने लौटकर जो कुछ उन्होंने किया था, उसको बता दिया, और वह उन्हें अलग करके बैतसैदा* नामक एक नगर को ले गया। 11 यह जानकर भीड़ उसके पीछे हो ली, और वह आनन्द के साथ उनसे मिला, और उनसे परमेश्वर के राज्य की बातें करने लगा, और जो चंगे होना चाहते थे, उन्हें चंगा किया। 12 जब दिन ढलने लगा, तो बारहों ने आकर उससे कहा, “भीड़ को विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर अपने लिए रहने को स्थान, और भोजन का उपाय करें, क्योंकि हम यहाँ सुनसान जगह में हैं।” 13 उसने उनसे कहा, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने कहा, “हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछली को छोड़ और कुछ नहीं; परन्तु हाँ, यदि हम जाकर इन सब लोगों के लिये भोजन मोल लें, तो हो सकता है।” 14 (क्योंकि वहाँ पर लगभग पाँच हजार पुरुष थे।) और उसने अपने चेलों से कहा, “उन्हें पचास-पचास करके पाँति में बैठा दो।” 15 उन्होंने ऐसा ही किया, और सब को बैठा दिया। 16 तब उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं, और स्वर्ग की और देखकर धन्यवाद किया, और तोड़-तोड़कर चेलों को देता गया कि लोगों को परोसें। 17 अतः सब खाकर तृप्त हुए, और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाई। (2 राजा. 4:44)
18 जब वह एकान्त में प्रार्थना कर रहा था, और चेले उसके साथ थे, तो उसने उनसे पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?” 19 उन्होंने उत्तर दिया, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, और कोई-कोई एलिय्याह, और कोई यह कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है।” 20 उसने उनसे पूछा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने उत्तर दिया, “परमेश्वर का मसीह*।” 21 तब उसने उन्हें चेतावनी देकर कहा, “यह किसी से न कहना।”
22 और उसने कहा, “मनुष्य के पुत्र के लिये अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें, और वह तीसरे दिन जी उठे।”
23 उसने सबसे कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इन्कार करे और प्रति-दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले। 24 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्तु जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा। 25 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपना प्राण खो दे, या उसकी हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? 26 जो कोई मुझसे और मेरी बातों से लजाएगा; मनुष्य का पुत्र भी जब अपनी, और अपने पिता की, और पवित्र स्वर्गदूतों की, महिमा सहित आएगा, तो उससे लजाएगा। 27 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कोई-कोई ऐसे हैं कि जब तक परमेश्वर का राज्य न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद न चखेंगे।”
28 इन बातों के कोई आठ दिन बाद वह पतरस, और यूहन्ना, और याकूब को साथ लेकर प्रार्थना करने के लिये पहाड़ पर गया। 29 जब वह प्रार्थना कर ही रहा था, तो उसके चेहरे का रूप बदल गया, और उसका वस्त्र श्वेत होकर चमकने लगा। 30 तब, मूसा और एलिय्याह*, ये दो पुरुष उसके साथ बातें कर रहे थे। 31 ये महिमा सहित दिखाई दिए, और उसके मरने की चर्चा कर रहे थे, जो यरूशलेम में होनेवाला था। 32 पतरस और उसके साथी नींद से भरे थे, और जब अच्छी तरह सचेत हुए, तो उसकी महिमा; और उन दो पुरुषों को, जो उसके साथ खड़े थे, देखा। 33 जब वे उसके पास से जाने लगे, तो पतरस ने यीशु से कहा, “हे स्वामी, हमारा यहाँ रहना भला है: अतः हम तीन मण्डप बनाएँ, एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” वह जानता न था, कि क्या कह रहा है। 34 वह यह कह ही रहा था, कि एक बादल ने आकर उन्हें छा लिया, और जब वे उस बादल से घिरने लगे, तो डर गए। 35 और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा पुत्र और मेरा चुना हुआ है, इसकी सुनो।” (2पत. 17-18, यशा. 42:1) 36 यह शब्द होते ही यीशु अकेला पाया गया; और वे चुप रहे, और जो कुछ देखा था, उसकी कोई बात उन दिनों में किसी से न कही।
37 और दूसरे दिन जब वे पहाड़ से उतरे, तो एक बड़ी भीड़ उससे आ मिली। 38 तब, भीड़ में से एक मनुष्य ने चिल्लाकर कहा, “हे गुरु, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मेरे पुत्र पर कृपादृष्टि कर; क्योंकि वह मेरा एकलौता है। 39 और देख, एक दुष्टात्मा उसे पकड़ती है, और वह एकाएक चिल्ला उठता है; और वह उसे ऐसा मरोड़ती है, कि वह मुँह में फेन भर लाता है; और उसे कुचलकर कठिनाई से छोड़ती है। 40 और मैंने तेरे चेलों से विनती की, कि उसे निकालें; परन्तु वे न निकाल सके।” 41 यीशु ने उत्तर दिया, “हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, और तुम्हारी सहूँगा? अपने पुत्र को यहाँ ले आ।” 42 वह आ ही रहा था कि दुष्टात्मा ने उसे पटककर मरोड़ा, परन्तु यीशु ने अशुद्ध आत्मा को डाँटा और लड़के को अच्छा करके उसके पिता को सौंप दिया। 43 तब सब लोग परमेश्वर के महासामर्थ्य से चकित हुए। परन्तु जब सब लोग उन सब कामों से जो वह करता था, अचम्भा कर रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा, 44 “ये बातें तुम्हारे कानों में पड़ी रहें, क्योंकि मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाने को है।” 45 परन्तु वे इस बात को न समझते थे, और यह उनसे छिपी रही; कि वे उसे जानने न पाएँ, और वे इस बात के विषय में उससे पूछने से डरते थे।
46 फिर उनमें यह विवाद होने लगा, कि हम में से बड़ा कौन है? 47 पर यीशु ने उनके मन का विचार जान लिया, और एक बालक को लेकर अपने पास खड़ा किया, 48 और उनसे कहा, “जो कोई मेरे नाम से इस बालक को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है, क्योंकि जो तुम में सबसे छोटे से छोटा है, वही बड़ा है।”
49 तब यूहन्ना ने कहा, “हे स्वामी, हमने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा, और हमने उसे मना किया, क्योंकि वह हमारे साथ होकर तेरे पीछे नहीं हो लेता।” 50 यीशु ने उससे कहा, “उसे मना मत करो; क्योंकि जो तुम्हारे विरोध में नहीं, वह तुम्हारी ओर है।”
51 जब उसके ऊपर उठाए जाने के दिन पूरे होने पर थे, तो उसने यरूशलेम को जाने का विचार दृढ़ किया। 52 और उसने अपने आगे दूत भेजे: वे सामरियों के एक गाँव में गए, कि उसके लिये जगह तैयार करें। 53 परन्तु उन लोगों ने उसे उतरने न दिया*, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था। 54 यह देखकर उसके चेले याकूब और यूहन्ना ने कहा, “हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे?” 55 परन्तु उसने फिरकर उन्हें डाँटा [और कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम कैसी आत्मा के हो। क्योंकि मनुष्य का पुत्र लोगों के प्राणों को नाश करने नहीं वरन् बचाने के लिये आया है।”] 56 और वे किसी और गाँव में चले गए।
57 जब वे मार्ग में चले जाते थे, तो किसी ने उससे कहा, “जहाँ-जहाँ तू जाएगा, मैं तेरे पीछे हो लूँगा।” 58 यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर रखने की भी जगह नहीं।” 59 उसने दूसरे से कहा, “मेरे पीछे हो ले।” उसने कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” 60 उसने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मुर्दे गाड़ने दे, पर तू जाकर परमेश्वर के राज्य की कथा सुना।” 61 एक और ने भी कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे पीछे हो लूँगा; पर पहले मुझे जाने दे कि अपने घर के लोगों से विदा हो आऊँ।” (1 राजा. 19:20) 62 यीशु ने उससे कहा, “जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।”
बारहों - उसके बारह शिष्य जिन्हें उसने चुनकर अलग कर लिया था कि वे उसके प्रेरित हों।
सामर्थ्य और अधिकार - इन दोनों शब्दों का उपयोग एक साथ इसलिए किया गया है कि उन बारहों को मनुष्यों के रोग हरण की क्षमता एवं अधिकार दिया गया था। इस वाक्यांश का अनुवाद इन दोनों शब्दों के अभिप्राय को एक साथ रख कर करें।
बिमारियों का अर्थ है मनुष्यों को दुर्बल बनाने के कारण
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्हें विभिन्न स्थानों में भेजा” या “उनसे कहा कि वे जाएं”
“यीशु ने उन बारहों से कहा”
कुछ न लेना - इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने साथ कुछ भी न लेना” या “कुछ भी साथ लेकर न चलना”
“अपनी प्रचार यात्रा में” या “जब तुम जाओ” जब तक वे यीशु के पास लौट कर न आ जाएं, उन्हें अपने गांव-गांव भ्रमण करने में कुछ भी पहले से साथ लेकर नहीं चलना था।
लाठी - “डंडा” या “चलने के लिए लकड़ी” लाठी या डंडा ऊंचे-नीचे रास्तों पर चलने के लिए संतुलन बनाने हेतु और आत्मरक्षा के लिए साथ रखा जाता था।
“जिस घर में प्रवेश करो”
"वहीं ठहरना" या "उसी परिवार का आतिथ्य स्वीकार करना"
“उस शहर से” या “उस स्थान से”
(यीशु अपने शिष्यों को निर्देश दे रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो लोग तुम्हारा स्वागत न करें उनके साथ जो व्यवहार तुम्हें करना है वह यह होगा.”
“जहाँ यीशु था वहां से प्रस्थान किया।”
“सर्वत्र भ्रमण किया”
हेरोदेस एन्तिपास जो चौथाई इस्राएल का प्रशासक था।
“परेशान हो गया” या “समाचार सुनकर बेचैन हो गया” या “विमूढ़ था”(यू.डी.बी)
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “यूहन्ना का तो सिर मैंने ही अपने सैनिकों से कटवाया था”।
“जिन बारहों को यीशु ने भेजा था”।
“यीशु के पास लौटकर आए”
“उन प्रेरितों ने यीशु को ब्योरा सुनाया”
विभिन्न स्थानों में उन्होंने जो शिक्षा दी और रोगियों को रोग-मुक्त किया, यह उसी के सन्दर्भ में है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह उन्हें अकेले में ले गया”, यीशु और उसके शिष्य अकेले गए थे।
“सूर्यास्त के समय” या “दिन के अन्त में” या “संध्या समय”
“जनसमूह को जाने दे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “या फिर हम जाकर भोजन मोल लें” या आप एक नया वाक्य रच सकते हैं, “यदि तू उन्हें भोजन करवाना चाहता है तो हमें जाकर भोजन मोल लेना पड़ेगा”।
स्त्रियों और बच्चों को जो उनके साथ थे नहीं गिना गया था।
“उनसे बैठने के लिए कहो”
शिष्यों ने उन्हें पचास-पचास के समूह में बैठा दिया।
यीशु ने
ये सिकी हुई रोटियों की संख्या है,अर्थात “पूरी रोटियां”
“स्वर्ग की ओर देखते हुए” या “स्वर्ग को देखकर”
अर्थात आकाश की ओर देखकर। यहूदियों का मानना था कि स्वर्ग आकाश के पार है।
“उनको दें” या “उनमें बांटें”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “पेट भर कर खा लिया”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
यह यीशु के सन्दर्भ में है
शिष्य यीशु के साथ थे परन्तु यीशु अपनी निज प्रार्थना कर रहा था
“उन्होंने उससे कहा”
कुछ भाषाओं में कहा जाता है, “कुछ लोग कहते है”, “तू यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला है”
“प्राचीन काल के”, “बहुत समय पहले का”
“जीवित हुआ है”
“यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा”
“पतरस ने कहा” या “इसका उत्तर पतरस ने दिया”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परन्तु यीशु ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा” या “यीशु ने उन्हें कठोर चेतावनी दी” (यू.डी.बी.)
“अपने तक ही रखना” या “किसी से कहने की आवश्यकता नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद: परन्तु यीशु ने चेतावनी देते हुए कहा, 'किसी से इसकी चर्चा न करना'
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “लोग मनुष्य के पुत्र को घोर पीड़ा देंगे” पद 22 का अनुवाद भी यू.डी.बी. के सदृश्य प्रथम पुरूष में किया जा सकता है।
“तीसरे दिन फिर जीवित हो”
“मरने के तीन दिन बाद” या “मृत्यु के बाद तीसरे दिन”
यह यीशु के सन्दर्भ में है
अर्थात यीशु के साथ जो शिष्य थे, उन सबसे।
“मेरा अनुसरण करे” या “मेरा अनुयायी होना चाहता है” या “मेरे शिष्य होना चाहता है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपनी लालसाओं के अधीन न रहे” या “अपनी लालसाओं का त्याग करे”
“अपना क्रूस उठाकर प्रतिदिन चले”, इसका अर्थ है, “प्रतिदिन दुःख उठाने को तैयार रहे”
“मेरे साथ चले” या “मेरे पीछे-पीछे चले और चलता रहे”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य को क्या लाभ” यह आलंकारिक प्रश्न का एक भाग है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “उससे मनुष्य को लाभ नहीं होता है”, या “मनुष्य की भलाई नहीं है”।
“वह संसार में सब कुछ पा ले”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह स्वयं ही भटक जाए या नष्ट हो जाए”।
(यीशु अपने शिष्यों को ही समझा रहा है)
“सो मैं कहता हूँ उससे” या “मेरी शिक्षा से”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य का पुत्र भी उससे लजाएगा”
यीशु अपने बारे में कह रहा है इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं मनुष्य का पुत्र”
यीशु अपने लिए तृतीय पुरूष काम में ले रहा था। इसका अनुवाद प्रथम पुरूष में किया जा सकता है, “जब मैं अपनी महिमा में आऊंगा”।
यहाँ यीशु अपने श्रोताओं में से कुछ के लिए कह रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम जो यहाँ खड़े हो उनमें से कुछ”।(यू.डी.बी)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मरने से पूर्व परमेश्वर का राज्य देखेंगे”।
“उनकी मृत्यु नहीं होगी” या “मरेंगे नहीं”।
आपका अनुवाद “कुछ” पर निर्भर करेगा। आप इसका अनुवाद इस प्रकार भी कर सकते हैं, “जब तक तुम परमेश्वर का राज्य न देख लो”
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण घटना का बोध करवाया गया है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
अर्थात पिछले पद में यीशु ने अपने शिष्यों से जो कहा।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पर्वत के ऊपर” यहाँ स्पष्ट नहीं है कि वह पर्वत पर कितना ऊपर गया था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसके मुखमण्डल की उपमा बदल गई”।
“चमकीला सफेद और उज्जवल” या “चमकीला सफेद और बिजली की सी चमक का” (यू.डी.बी.)
“देखो” शब्द का उपयोग हमें अग्रिम जानकारी के लिए सतर्क करता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अकस्मात ही वहां दो पुरूष बातें करते दिखाई दिए” या “दो पुरूष अकस्मात ही उसकी बातें करते दिखाई दिए”।
यह संबन्धवाचक शब्द वाक्य मूसा और एलिय्याह के बारे में जानकारी देता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “और वे महिमामय दिख रहे थे”
“इसके संसार से कूच करने की” या “वह इस संसार से कैसे कूच करेगा”, इसका अनुवाद किया जा सकता है, “उसकी मृत्यु की”
उसके चारों और उपस्थित तीव्र ज्योति। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्होंने यीशु से निकलनेवाली तीव्र ज्योति को देखा” या “उन्होंने यीशु से निकलने वाले तेज को देखा”
यह मूसा और एलिय्याह हैं।
यह उक्ति गतिविधियों का आरंभ दर्शाती है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसे यहाँ काम में लें
यहाँ "स्वामी" का मूल भाषा यूनानी शब्द सामान्यतः दासों के स्वामी के लिए काम में लिया जाने वाला सामान्य शब्द नहीं है यह शब्द अधिकार संपन्न मनुष्य के लिए काम में लिया जाता था न कि किसी दास के स्वामी के लिए। इसका अनुवाद “प्रधान जी” या “श्रीमान जी” किया जा सकता है या ऐसा शब्द काम में लिया जा सकता है जिसका अभिप्राय एक अधिकार सम्पन्न मनुष्य से हो जैसे "महोदय"।
मण्डप -“तम्बू” या “झोपड़ी”
“पतरस यह कह रही रहा था”
ये वयस्क शिष्य बादल से नहीं डरे थे। इसका वाक्यांश से प्रकट होता है कि बादल के कारण उन पर विचित्र भय छा गया था। इसका अनुवाद, “भयभीत हो गए” हो सकता है।
यदि आकाशवाणी को व्यक्त करना अस्वाभाविक हो तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बादल में से परमेश्वर ने कहा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरा पुत्र, जिसे मैंने चुना है”, (यू.डी.बी.) या “मेरा पुत्र, मेरा चुना हुआ”। “चुना हुआ” शब्द परमेश्वर के पुत्र के बारे में अतिरिक्त जानकारी दे रहा है। इसका अर्थ यह नहीं कि परमेश्वर के पास एक से अधिक पुत्र हैं। (देखें: information about Adjectives on )
अर्थात पुनरुत्थान के बाद यीशु के स्वर्गारोहण तक या संभव है कि यीशु के कथन के बाद।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“देखो” शब्द कहानी में एक नए मनुष्य का प्रवेश करवाता है। आपकी भाषा में इसके तुल्य कोई शब्द होगा। इस अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, "उस भीड़ में एक पुरुष था, उसने निवेदन किया"
“देख” शब्द उस मनुष्य की कहानी में दुष्टात्मा का विषय लाता है। आपकी भाषा में इसके तुल्य कोई शब्द होगा। इस अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, "इसमें एक दुष्टात्मा है...."
इसके संभावित अर्थ हैं (1) वह उसे कठिनाई से ही कभी छोड़ती है” (यू.डी.बी.) या (2) और जब वह उसे छोड़ती है तो मेरे पुत्र के लिए ऐसा कठिन हो जाता है कि”
जब मनुष्य के शरीर में अकड़न आती है तब उसे सांस लेने और निगलने में कठिनाई होती है। इसके कारण मनुष्य के मुंह से झाग निकलता है, यदि आपकी भाषा में इस स्थिति का वर्णन करने के लिए शब्द है तो उनका उपयोग करें।
“यीशु ने उन्हें संबोधित करके कहा”
यीशु ने जनसमूह से कहा था, अपने शिष्यों से नहीं
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। यीशु को इसके उत्तर की अपेक्षा नहीं थी। इसका अर्थ है, “मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ किया परन्तु तुम विश्वास नहीं करते”।
यहाँ यीशु उस दुष्टात्माग्रस्त युवक के पिता से कह रहा है।
“यीशु के पास आते-आते” या “यीशु के निकट आते समय”
“कठोरता से कहा”
प्रत्यक्ष में तो यीशु ने यह कार्य किया परन्तु दर्शकों ने समझ लिया था कि यह परमेश्वर का ही सामर्थ्य है।
“यीशु करता था”।
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “ध्यान से सुनो और स्मरण रखो” या “भूलना नहीं”।
यीशु स्वयं को तृतीय पुरूष में संबोधित कर रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं मनुष्य का पुत्र”।
“पकड़वाया” (यू.डी.बी.) इस संपूर्ण वाक्य का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य, मनुष्य के पुत्र को अधिकारियों के हाथों में दे देगे”।
परन्तु वे... न समझते थे , -इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “वे समझ नहीं पाए थे कि वह अपनी मृत्यु के बारे में कह रहा है।
“शिष्यों में”
“अपने-अपने मन में विचार करने लगे” या “सोच रहे थे”
“परमेश्वर को जिसने मुझे भेजा है”(यू.डी.बी)
“प्रति-उत्तर में यूहन्ना ने कहा” या “यूहन्ना ने यीशु से कहा” यीशु उन्हें समझा रहा था कि बड़ा कौन है तो यूहन्ना ने हस्तक्षेप करते हुए कहा। वह किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहा है वरन वह जानना चाहता था कि वह मनुष्य जो यीशु के नाम से दुष्टात्माएं निकाल रहा था, उसका शिष्यों में क्या स्थान है।
यहाँ "स्वामी" का अर्थ मूल भाषा यूनानी में मालिक नहीं है। इसका अर्थ है अधिकार संपन्न मनुष्य, न कि किसी का अधिकृत मालिक। आप इसका अनुवाद इस प्रकार भी कर सकते है, “साहब” या "अधिकर्मी" या किसी अधिकारी के लिए काम में लिया जानेवाला शब्द जैसे “श्रीमान जी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो तुम्हारे लिए बाधक नहीं वह सहायक जैसा है”, या “जो तुम्हारे विपरीत काम न करे वह तुम्हारे पक्ष में काम करता है”। कुछ आधुनिक भाषाओं में ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ यही है।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“उसके ऊपर जाने का समय आ रहा था” या “उसके ऊपर जाने का समय लगभग निकट था”।
“संकल्प किया” या “इच्छा की”
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “निश्चय किया” या “निर्णय लिया” या “दृढ़ संकल्प किया।”
उसके आगमन की तैयारी करें। संभवतः प्रचार के लिए, ठहरने और भोजन के लिए व्यवस्था करें।
“उसका स्वागत नहीं किया” या “उसके ठहरने की इच्छा न की”
“सामरियों का विरोध देख कर”
याकूब और यूहन्ना ने ऐसा सुझाव दिया क्योंकि वे जानते थे कि एलिय्याह ने परमेश्वर विरोधियों के साथ ऐसा ही किया था।
“यीशु ने याकूब और यूहन्ना को डांटा”। जैसा शिष्यों ने सोचा था, यीशु ने उसके विपरीत सामरियों को दोषी नहीं ठहराया।
शिष्यों में से किसी एक ने नहीं
यीशु के कहने का तात्पर्य था कि यदि वह यीशु के साथ चलेगा तो वह भी बेघर जो जाएगा। यहाँ सलंग्न जानकारी स्पष्ट की जा सकती है, “यह आशा न कर कि तेरे पास घर होगा”।
यह कुत्ते जैसे पशु होते हैं। वे भूमि में छेद करके उसमें रहते हैं।
“हवा में उड़ने वाले पक्षी”
यीशु स्वयं को तृतीय पुरूष में संबोधित कर रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मुझ, मनुष्य के पुत्र को”
“सिर टिकाने को भी नहीं” या “सोने के लिए भी जगह नहीं” यह अतिशयोक्ति है। यीशु इस तथ्य को समझाने के लिए बढ़ा चढ़ाकर कह रहा है कि उसके रहने के लिए कहीं भी उसका स्वागत नहीं है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरा अनुयायी हो जा” या “मेरा शिष्य होकर मेरे साथ चल”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इससे पहले कि में तेरे साथ चलूं मुझे जाकर ....” वह व्यक्ति यीशु से निवेदन कर रहा था।
“मुर्दे गाड़ने का काम मुर्दों के लिए छोड़ दे” मृतक तो कुछ करते नहीं अतः यहाँ अभिप्रेत अर्थ स्पष्ट दिया जा सकता है, “आत्मिकता में मृतकों को मृतक गाड़ने दे”
हे प्रभु मैं तेरे पीछे हो लूंगा - “मैं तेरा शिष्य बनूंगा” या “मैं तेरे साथ चलने को तैयार हूँ” या “मैं तेरे साथ चलने का प्रण करता हूँ”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तेरे साथ चलने से पहले में अपने परिजनों से विदा ले लूं”, या “मैं उन्हें बता दूं कि मैं तेरे साथ जा रहा हूँ”।
“मेरे कुटुम्ब से” या “परिजनों से”
यीशु सबके लिए लागू होने वाला एक सामान्य सिद्धान्त व्यक्त कर रहा था, तथापि उस मनुष्य के लिए अभिप्रेत जानकारी यह है, “यदि तू मेरे अनुसरण की अपेक्षा अपने अतीत के लोगों पर ध्यान देगा तो तू मेरे राज्य के योग्य नहीं है”।
“खेत जोतना आरंभ करके”, किसान बीज डालने से पहले खेत में हल चलाते है। जिन समुदायों को खेती का ज्ञान नहीं उनके लिए अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपना खेत तैयार करना आरंभ कर दे और....”
हल चलानेवाला यदि पीछे देखेगा तो वह हल को यथास्थान नहीं चला पाएगा और वह बैल के पांवों को भी चोट पहुंचायेगा। अतः उनका पूरा ध्यान आगे की ओर होना है।
“कामना” या “उचित”
यीशु ने उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने और रोगियों को चंगा करने भेजा।
कुछ लोग यीशु को पुनर्जीवित यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते थे, कुछ लोग कहते थे कि एलिय्याह आया है, कुछ कहते थे कि प्राचीनकाल का कोई भविष्यद्वक्ता है।
उनके पास पांच रोटियां और दो मछलियां थी।
वहाँ लगभग पांच हजार पुरुष थे।
उसने स्वर्ग को निहार कर उन्हें आशिष दी और रोटी तोड़कर चेलों को देता गया कि भीड़ में बांटें।
बचे हुए भोजन की बारह टोकरियां थी।
उसने कहा, "परमेश्वर का मसीह"।
उसे अपने आपका इन्कार करके प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर यीशु का अनुसरण करना है।
उसका रूप बदल गया और उसके वस्त्र श्वेत होकर चमकने लगे।
मूसा और एलिय्याह यीशु के साथ दिखाई दिए।
वहाँ एक वाणी सुनाई दी, "यह मेरा पुत्र और मेरा चुना हुआ है, इसकी सुनो"।
दुष्टात्मा ने चिल्लाने पर विवश किया, उसका शरीर ऐंठ कर उसके मुंह से फेंन निकाला।
उसने कहा, "कि मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों में पकड़वाया जायेगा।"
उनमें जो सबसे छोटा होगा वही सबसे बड़ा है।
उसने यरूशलेम जाने का निश्चय किया।
उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना है।
1 और इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस-जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो-दो करके अपने आगे भेजा। 2 और उसने उनसे कहा, “पके खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं इसलिए खेत के स्वामी से विनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे। 3 जाओ; देखों मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ। 4 इसलिए न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो। (मत्ती 10:9, 2 राजा. 4:29) 5 जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, ‘इस घर पर कल्याण हो।’ 6 यदि वहाँ कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा। 7 उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ-पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए; घर-घर न फिरना। 8 और जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें उतारें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ। 9 वहाँ के बीमारों को चंगा करो: और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’ 10 परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारों में जाकर कहो, 11 ‘तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पाँवों में लगी है, हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं, फिर भी यह जान लो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’ 12 मैं तुम से कहता हूँ, कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा अधिक सहने योग्य होगी। (उत्प. 19:24-25)
13 “हाय खुराजीन! हाय बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सूर और सैदा में किए जाते, तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते। 14 परन्तु न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सूर और सैदा की दशा अधिक सहने योग्य होगी। (योए. 3:4-8, जक. 9:2-4) 15 और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा। (यशा. 14:13,15)
16 “जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है, और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है।”
17 वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में है।” 18 उसने उनसे कहा, “मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था। (प्रका. 12:7-9, यशा. 14:12) 19 मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदने* का, और शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी। (भज. 91:13) 20 तो भी इससे आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।”
21 उसी घड़ी वह पवित्र आत्मा में होकर आनन्द से भर गया, और कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा। 22 मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंप दिया है; और कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है, केवल पिता और पिता कौन है यह भी कोई नहीं जानता, केवल पुत्र के और वह जिस पर पुत्र उसे प्रकट करना चाहे।”
23 और चेलों की ओर मुड़कर अकेले में कहा, “धन्य हैं वे आँखें, जो ये बातें जो तुम देखते हो देखती हैं, 24 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं।”
25 तब एक व्यवस्थापक उठा; और यह कहकर, उसकी परीक्षा करने लगा, “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूँ?” 26 उसने उससे कहा, “व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?” 27 उसने उत्तर दिया, “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्रेम रख।” (मत्ती 22:37-40, व्य. 6:5, व्य. 10:12, यहो. 22:5) 28 उसने उससे कहा, “तूने ठीक उत्तर दिया, यही कर तो तू जीवित रहेगा।” (लैव्य. 18:5) 29 परन्तु उसने अपने आप को धर्मी ठहराने* की इच्छा से यीशु से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?” 30 यीशु ने उत्तर दिया “एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मार पीटकर उसे अधमरा छोड़कर चले गए। 31 और ऐसा हुआ कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था, परन्तु उसे देखकर कतराकर चला गया। 32 इसी रीति से एक लेवी* उस जगह पर आया, वह भी उसे देखकर कतराकर चला गया। 33 परन्तु एक सामरी* यात्री वहाँ आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया। 34 और उसके पास आकर और उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकर* पट्टियाँ बाँधी, और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की। 35 दूसरे दिन उसने दो दीनार निकालकर सराय के मालिक को दिए, और कहा, ‘इसकी सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे दे दूँगा।’ 36 अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?” 37 उसने कहा, “वही जिस ने उस पर तरस खाया।” यीशु ने उससे कहा, “जा, तू भी ऐसा ही कर।”
38 फिर जब वे जा रहे थे, तो वह एक गाँव में गया, और मार्था नाम एक स्त्री ने उसे अपने घर में उतारा। 39 और मरियम नामक उसकी एक बहन थी; वह प्रभु के पाँवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी। 40 परन्तु मार्था सेवा करते-करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी, “हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सेवा करने के लिये अकेली ही छोड़ दिया है? इसलिए उससे कह, मेरी सहायता करे।” 41 प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है। 42 परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उससे छीना न जाएगा।”
कुछ अनुवादों में “बहत्तर” का उल्लेख किया गया है। आपको इसके लिए पद टिप्पणी लिखनी होगी।
“दो को एक साथ” या “दो-दो के दल में”
उनके प्रस्थान से पूर्व। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने उनसे जो कहा वह यह था” या “उनके प्रस्थान से पूर्व उसने उनसे कहा”।
“फसल तो बहुतायत से खड़ी है परन्तु काटने वालों की कमी है।” इस रूपक का अर्थ है कि परमेश्वर के राज्य में लाने के लिए बहुत लोग हैं। )
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को निर्देश दे रहा है जिन्हें वह भेजने पर है)।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “विभिन्न नगरों में जाओ” या “मनुष्यों में जाओ” या “जाकर मनुष्यों को लाओ”।
यह एक आज्ञा है जिसका अर्थ है कि जिन मनुष्यों के मध्य यीशु उन्हें भेज रहा था, वे उनको हानि पहुंचा सकते हैं। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “मैं तुम्हें भेज तो रहा हूँ परन्तु मनुष्य तुम्हें ऐसे हानि पहुंचा सकते हैं जैसे भेड़िये मेमनों को पहुंचाते हैं।
“भेड़ के बच्चे” वे हिसंक पशुओं से अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं होते हैं।
भेड़िये जंगली कुत्तों के समान बड़े हिंसक मांसाहारी पशु होते है जो छोटे पशुओं को मारकर खाते हैं। “भेड़ियों” का अनुवाद उसी जाति के, “जंगली कुत्ते” या हिंसक कुत्ते किया जा सकता है या कुत्ते जैसे किसी विशेष पशु का नाम रखा जा सकता है, जिससे पाठक परिचित है, जैसे सियार”।
“अपने साथ पैसों की थैली नहीं रखता”
यीशु जिस बात पर बल देता है, वह है, कि वे शीघ्र-अतिशीघ्र नगरों में जाकर प्रचार करें, न कि किसी के साथ रूष्ठ व्यवहार करें।
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को निर्देश दे रहा है जिन्हें वह भेजने पर है)।
“इस परिवार को शान्ति मिले” यह अभिवादन और आशीर्वाद दोनों है।
“शान्तिप्रिय मनुष्य” ऐसा मनुष्य परमेश्वर के साथ और मनुष्यों के साथ मेल करता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “आपका आशीर्वाद उसे शान्ति दिलाएगा”
“यदि वहां कोई शान्तिप्रिय नहीं है” या “यदि गृहस्वामी शान्तिप्रिय नहीं है”
“वह शान्ति तुम्हारे पास ही रह जाएगी”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वहीं रातें बिताना” यीशु के कहने का अर्थ है कि दिन भर प्रचार करके वहीं “लौट आना, यह नहीं कि उस घर से बाहर नहीं जाना।
यीशु एक सामान्य सिद्धान्त अपने द्वारा भेजे जाने वालों पर लागू कर रहा था। क्योंकि वे उनको शिक्षा देंगे और रोगियों को रोगमुक्ति प्रदान करेंगे इसलिए उनके ठहरने और भोजन-पानी का उत्तरदायित्व उन लोगों का है।
इसका अर्थ है कि हर रात एक नये परिवार में नहीं ठहरना।
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को निर्देश दे रहा है जिन्हें वह भेजने पर है)।
“यदि वे तुम्हारा स्वागत करें”
“वे जैसा भी भोजन दें उसे खाना”
इसका संदर्भ इस तथ्य से है कि शिष्यों द्वारा रोगमुक्ति के कार्य तथा यीशु की शिक्षाओं के माध्यम से परमेश्वर के राज्य का कार्य सर्वत्र हो रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “तुम इसी समय अपने चारों ओर परमेश्वर के राज्य को देख सकते हो”।
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को निर्देश दे रहा है जिन्हें वह भेजने पर है)।
“यदि वे तुम्हारा तिरस्कार करें”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जैसे तुम हमारा तिरस्कार करते हो वैसे ही हम भी तुम्हें पूर्णतः त्याग देते हैं। हम अपने पांवों से तुम्हारे नगर की धूल तक झाड़ रहे हैं, क्योंकि यीशु ने दो को साथ भेजा था इसलिए वे दोनों एक साथ कहेंगे। अतः जिन भाषाओं में प्रथम पुरूष (मैं) का द्विवचन है, उसका प्रयोग किया जाए।
यह एक चेतावनी है जिसका अर्थ है, “यद्यपि तुम हमें स्वीकार नहीं इसका अर्थ यह नहीं कि परमेश्वर के राज्य के आ जाने के तथ्य का इन्कार होता है।”
“परमेश्वर का राज्य तुम्हारे चारों ओर है,”
यीशु उन सत्तर मनुष्यों से कह रहा था। जिन्हें वह भेज रहा था उसने ऐसा इसलिए कहा कि उसकी अग्रिम महत्त्वपूर्ण बात की ओर उनका ध्यान आकर्षित हो।
शिष्य समझ गए थे कि इसका संदर्भ "उस दिन" से है जब पापियों का न्याय किया जाएगा।
“सदोम को उस नगर के तुल्य कठोर दण्ड नहीं दिया जाएगा, “इसका अर्थ हुआ कि वह नगर सदोम से अधिक कठोर दण्ड पाएगा।
(यीशु अब अपने उन सत्तर शिष्यों से हट कर तीन नगरों के निवासियों से कह रहा है)
यीशु इस प्रकार संबोधन कर रहा है कि मानों खुराजीन और बैतसदा के नगरवासी सुन रहे हैं जबकि वे सुन नहीं रहे थे।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है, “जो सामर्थ्य के काम मैंने तुम्हारे मध्य किए”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “यदि सूर और सैदा में कोई ऐसे कार्य करता”
“वहां के दुष्ट निवासी अपने पापों का दुख प्रकट करते”(यू.डी.बी)
उस युग में दुःख की अति को प्रकट करने के लिए लोग टाट के बने वस्त्र पहनते थे जो शरीर में चुभते थे और वे राख सिर में डालते थे वरन राख पर बैठते भी थे। जब उन्हें परमेश्वर के विरूद्ध पाप का बोध होता तब भी वे ऐसा ही करते थे।
“परमेश्वर तुम्हें सूर और सैदा के निवासियों से अधिक दण्ड देगा” इसका कारण यू.डी.बी में अधिक स्पष्ट किया जा सकता है, “क्योंकि तुमने मेरे सामर्थ्य के काम देखकर भी मुझ में विश्वास नहीं किया”
“उस दिन जब परमेश्वर सब मनुष्यों का न्याय करेगा”। (यू.डी.बी.)
अब यीशु कफरनहूम के निवासियों को संबोधित कर रहा है जैसे कि वे सुन रहें हों, जबकि यथास्थिति यह थी कि वे उसके समक्ष नहीं थे।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है, जिसके द्वारा यीशु कफरनूहम के निवासियों के घमण्ड पर कटाक्ष कर रहा है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “क्या तू स्वर्ग तक ऊंचा उठेगा”? या “तू क्या सोचता है कि परमेश्वर तेरा मान रखेगा”?
“ऊंचा किया जाना एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “प्रतिष्ठा पाना”।
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को शिक्षा देना समाप्त करता है।)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो तुम्हारी बात सुने वह वास्तव में मेरी बात सुनता है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कोई तुम्हें तुच्छ समझे तो वह वास्तव में मुझे तुच्छ समझता है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मुझे तुच्छ जानने का अर्थ है परमेश्वर को तुच्छ जानना”
अर्थात पिता परमेश्वर को। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर को जिसने मुझे भेजा है”। (यू.डी.बी.)
(कुछ समय बाद वे सत्तर शिष्य यीशु के पास लौट आते है)
यहाँ आप पद टिप्पणी लिखना चाहोगे, “कुछ संस्करणों में सत्तर के स्थान पर बहत्तर हैं”।
कुछ भाषाओं में आवश्यक होगा कि पहले सत्तर शिष्यों के जाने का उल्लेख किया जाए जैसा यू.डी.बी. में किया गया है। यह एक अन्तर्निहित जानकारी है जिसे स्पष्ट करना आवश्यक है।
यीशु उपमा देकर वर्णन कर रहा था कि जब वे सत्तर शिष्य प्रचार कर रहे थे तब परमेश्वर शैतान को हरा रहा था।
“सांपों को कुचलने और बिच्छुओं को नष्ट करने का अधिकार। इसके संभावित अर्थ हैं (1) यथार्थ में सांपों और बिच्छुओं को रौंदने का अधिकार या (2) सांप और बिच्छु दुष्टातमाओं के लिए रूपक हैं। यू.डी.बी. में इससका अनुवाद दुष्टात्माओं को रौंदना किया गया है, “मैंने तुम्हें दुष्टात्माओं पर वार करने का अधिकार दिया है।
इसका अभिप्राय है कि ऐसा करने पर उन्हें हानि नहीं होगी। आप इसे सुस्पष्ट कर सकते हें, “सांप और बिच्छुओं पर चल कर भी सुरक्षित रहोगे”।
“मैंने तुम्हें बैरी के सामर्थ्य का दमन करने का अधिकार दिया है” या “मैंने तुम्हें शत्रु को पराजित करने का अधिकार दे दिया है”बैरी शैतान है।
“इससे” अर्थात अगले वाक्यांश से, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर ने तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिख लिए हैं” या “तुम्हारे नाम स्वर्ग के नागरिकों की सूची में हैं”।
(यीशु अपने शिष्यों की उपस्थिति में अपने स्वर्गीय पिता से बातें कर रहा है)
“स्वर्ग और पृथ्वी की सब वस्तुओं के स्वामी”
इसका संदर्भ शिष्यों के अधिकार के संबन्ध में यीशु की पिछली शिक्षाओं से है। अति-उत्तम होगा कि मात्र यही कहा जाए, “इन बातों को” और पाठक पर इसका अर्थ निर्धारण छोड़ दिया जाए।
“बुद्धिमान और समझ रखनेवालों से” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन लोगों से छिपा रखा है जो स्वयं को बुद्धिमान समझते हैं”
यूनानी भाषा में बालक का मूल शब्द छोटे लड़के का बोध कराता है। इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “अशिक्षित बालक” (यू.डी.बी.) या (2) “जो तेरे सत्य को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेते हैं”।
यह निर्बुद्धि एवं अज्ञानियों के लिए उपमा है, या वे मनुष्य जो जानते हैं कि वे बुद्धिमान एवं ज्ञानवान नहीं हैं।
“क्योंकि तूने देखा कि यह अच्छा है”
(अब यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा है) आपको यहाँ टिप्पणी करने की आवश्यकता होगी, (यीशु ने अपने शिष्यों से कहा) (यू.डी.बी.)
यह कर्तृवाच्य में अनुवाद किया जा सकता है:"मेरे पिता ने सारा अधिकार मुझे दे दिया"।
यीशु स्वयं को तृतीय पुरूष में व्यक्त कर रहा है।
जिस शब्द का अनुवाद “जानता” किया गया है, उसका मूल अर्थ है व्यक्तिगत अनुभव द्वारा जानना। पिता परमेश्वर यीशु को ऐसी गहनता से जानता था।
इसका अर्थ है कि केवल परमेश्वर पिता जानता है कि पुत्र कौन है।
यहाँ जिस मूल शब्द का अनुवाद “जानता” किया गया है, इसका अर्थ है, व्यक्तिगत अनुभव से जानना। यीशु अपने पिता परमेश्वर को ऐसी गहनता में जानता था।
इसका अर्थ है कि केवल पुत्र जानता है कि पिता कौन है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य पिता परमेश्वर को तब ही जान सकते हैं जब पुत्र उन पर पिता को प्रकट करना चाहे”।
“निजि रूप में कहा”, यह संभवतः कुछ समय बाद की बात है। यू.डी.बी. इसे स्पष्ट करती है, “जब उसके शिष्य उसके साथ अकेले थे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "कैसा अहोभाग्य उनका जो उन बातों को देखते हैं जिन्हें तुम देखते हो", संभवतः वे सब जो यीशु की शिक्षाओं को सुनने आते थे।
"बातें तुमने मुझे करते देखा।"
“जो बातें तुमने मुझसे सुनी हैं”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
उस धनवाद मनुष्य ने जो अब राजा बन गया था। इसका अनुवाद ऐसे शब्दों में करें कि आपके पाठक समझ पाएं।
“जो लोग उसके पास खड़े थे”
देखें इसका अनुवाद अपने 19:13 में इसका अनुवाद कैसे किया है।
यह कुछ समय बाद की घटना है। आप इसे पाठकों के लिए स्पष्ट कर सकते है। जैसा यू.डी.बी. में है। “एक दिन जब यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा था”,
“देखो” शब्द हमारा ध्यान आकर्षित कराता है कि कहानी में एक नया मनुष्य है। आपकी भाषा में ऐसा शब्द या अभिव्यक्ति हो सकती है। इसका अनुवाद ऐसा भी हो सकता है," यहाँ एक विधिशास्त्री था..."
“यीशु को परखने का प्रयास किया”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “मूसा ने विधान में क्या लिखा है”? या “धर्मशास्त्र क्या कहता है”?
“तूने उसमें क्या पढ़ा है”। या “तू उससे क्या-क्या समझता है”?
उस मनुष्य ने व्यवस्थाविवरण और लैव्यव्यवस्था की पुस्तकों का उद्धरण सुनाया।
इसका संदर्भ समुदाय के सदस्य से है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने स्वदेशी नागरिक से” या “अपने समुदाय के लोगों से”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परन्तु वह स्वयं को धर्मी सिद्ध करना चाहता था, अतः उसने कहा......” या “धार्मिकता का स्वांग रचते हुए उसने कहा”,
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “प्रतिक्रिया में यीशु ने उसे एक कहानी सुनाई”
“लुटेरों में घिर गया” इसका अनुवाद कर्तृवाच्य रूप में किया जा सकता है, “उस पर लुटेरों ने आक्रमण कर दिया”।
“उसका सब कुछ लूट लिया” या “उसका सब कुछ चुरा लिया”।
(यीशु उसी मनुष्य के प्रश्न, "मेरा पड़ोसी कौन है?" के उत्तर में कहानी सुना रहा है)
इसका अर्थ है कि यह योजना के अनुसार नहीं था।
इस अभिव्यक्ति कहानी में किसी मनुष्य को लाती है परन्तु उसका नाम नहीं बताती है।
“जब उस याजक ने इस घायल मनुष्य को देखा” याजक एक धर्मी जन होता है, इसलिए श्रोताओं का पूर्वानुमान था कि वह उस घायल मनुष्य की सहायता अवश्य करेगा। क्योंकि उसने उसकी सहायता नहीं की इसलिए इसका अनुवाद हो सकता है, “परन्तु जब उसने उसे देखा” अप्रत्याशित परिणाम की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु।
“वह मार्ग की दूसरी ओर होकर चला गया”
निहितार्थ यह है कि उसने उस घायल मनुष्य की सहायता नहीं की। इसे स्पष्ट किया जा सकता है, “वह उस पागल मनुष्य की सहायता किए बिना चला गया”।
(यीशु उसी मनुष्य के प्रश्न, "मेरा पड़ोसी कौन है?" के उत्तर में कहानी सुना रहा है)
कहानी में एक नया मनुष्य प्रवेश करता है। उसका भी नाम नहीं दिया गया है। हमें केवल यही बताया गया है कि वह एक सामरियावासी है। यहूदी सामरियों से घृणा करते थे अतः उन्होंने यही सोचा कि वह उस घायल यहूदी की सहायता नहीं करेगा।
“उस घायल व्यक्ति को देखकर उस सामरियावासी”
“उसे देखकर उसे तरस आया”
उसने पहले तेल और दाखरस डाला होगा, इसलिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने उस मनुष्य के घावों पर दाखरस डालकर और तेल लगाकर पट्टियां बान्धी” दाखरस संक्रमण से बचाने के लिए काम में लिया जाता था।
“अपनी सवारी के पशु पर” समान ढोने के लिए वह जिस पशु को लाया था, संभवतः गधा।
दो दिन की मजदूरी के तुल्य पैसा देकर
“सराय का स्वामी” या “प्रबन्धक”
(यीशु उसी मनुष्य को कहानी सुना रहा है जिसने पूछा था, वे मेरा पड़ोसी कौन है)?
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तेरे विचार में इन तीनों में से ....”
“किसने सच्चा पड़ोसी सिद्ध किया”?(यू.डी.बी)
“लुटेरों का शिकार होने वाले का”
“जब यीशु और उसके शिष्य मार्ग में अग्रसर थे।” क्योंकि कहानी में नया परिदृश्य आता है इसलिए कुछ भाषाओं में “वे” को स्पष्ट करना अधिक स्वाभाविक होगा। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति होगी जो प्रकट करे कि यह कहानी का नया परिदृश्य है।
यहाँ गांव को एक नया स्थान दर्शाया गया है परन्तु उस गांव का नाम नहीं दिया गया है।
यहाँ मार्था एक नई नायिका है। आपकी भाषा में नए मनुष्यों को दर्शाने के लिए अभिव्यक्तियां होंगी।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “फर्श पर बैठकर यीशु की शिक्षाप्रद बातें सुन रही थी”। उस युग में सीखने वाले के द्वारा ऐसा स्थान ग्रहण करना सम्मान प्रदर्शन की मुद्रा थी।
मार्था शिकायत कर रही थी कि प्रभु मरियम को वहां बैठाकर उससे बातें करने के लिए मना नहीं कर रहा है जब कि उसे घर में कितना काम करना है। वह प्रभु का बहुत सम्मान करती थी, अतः उसने आलंकारिक प्रश्न पूछा कि उसकी शिकायत में विनम्रता आए। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ऐसा लगता है कि तुझे ज्ञात नहीं कि....”
इसके संभावित अर्थ हैं (1) “मैं उसे इस सौभाग्य से वंचित नहीं करूँगा” या (2) मेरी बातें सुनकर उसने जो लाभ उठाया है, वह कभी नहीं खोएगा”।
वे न बटुआ, न झोली, न जूते लें।
यीशु ने कहा कि वे रोगियों को चंगा करें और प्रचार करें कि परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है।
उनकी दशा सदोम के दण्ड से भी अधिक बुरी होगी।
यीशु ने कहा, "इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे हैं।"
पिता परमेश्वर को यही अच्छा लगा कि उसने इन बातों को अबोध बालकों पर प्रकट किया।
तू अपने प्रभु परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
वह कतराकर चला गया।
वह कतराकर चला गया।
उसने उसके घावों पर पट्टी बांधी और पीठ पर चढ़ाया उसे एक सराय में लाया और उसकी सेवा की।
जाकर दृष्टान्त के उस सामरी के सदृश्य कर।
वह यीशु के चरणों में बैठ कर उसकी बातें सुन रही थी।
वह भोजन तैयार करने में अत्यधिक व्यस्त थी।
यीशु ने कहा कि मरियम ने उत्तम भाग चुन लिया है।
1 फिर वह किसी जगह प्रार्थना कर रहा था। और जब वह प्रार्थना कर चुका, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा, “हे प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया वैसे ही हमें भी तू सीखा दे*।”
2 उसने उनसे कहा, “जब तुम प्रार्थना करो, तो कहो:
‘हे पिता,
तेरा नाम पवित्र माना जाए,
तेरा राज्य आए।
3 ‘हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर।
4 ‘और हमारे पापों को क्षमा कर,
क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं*,
और हमें परीक्षा में न ला’।”
5 और उसने उनसे कहा, “तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास जाकर उससे कहे, ‘हे मित्र; मुझे तीन रोटियाँ दे। 6 क्योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिये मेरे पास कुछ नहीं है।’ 7 और वह भीतर से उत्तर देता, कि मुझे दुःख न दे; अब तो द्वार बन्द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर हैं, इसलिए मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता। 8 मैं तुम से कहता हूँ, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, फिर भी उसके लज्जा छोड़कर माँगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। 9 और मैं तुम से कहता हूँ; कि माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। 10 क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। 11 तुम में से ऐसा कौन पिता होगा, कि जब उसका पुत्र रोटी माँगे, तो उसे पत्थर दे: या मछली माँगे, तो मछली के बदले उसे साँप दे? 12 या अण्डा माँगे तो उसे बिच्छू दे? 13 अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।”
14 फिर उसने एक गूँगी दुष्टात्मा को निकाला; जब दुष्टात्मा निकल गई, तो गूँगा बोलने लगा; और लोगों ने अचम्भा किया। 15 परन्तु उनमें से कितनों ने कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के प्रधान शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” 16 औरों ने उसकी परीक्षा करने के लिये उससे आकाश का एक चिन्ह माँगा। 17 परन्तु उसने, उनके मन की बातें जानकर, उनसे कहा, “जिस-जिस राज्य में फूट होती है, वह राज्य उजड़ जाता है; और जिस घर में फूट होती है, वह नाश हो जाता है। 18 और यदि शैतान अपना ही विरोधी हो जाए, तो उसका राज्य कैसे बना रहेगा? क्योंकि तुम मेरे विषय में तो कहते हो, कि यह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है। 19 भला यदि मैं शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो तुम्हारी सन्तान किस की सहायता से निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारा न्याय चुकाएँगे। 20 परन्तु यदि मैं परमेश्वर की सामर्थ्य से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुँचा। 21 जब बलवन्त मनुष्य हथियार बाँधे हुए अपने घर की रखवाली करता है, तो उसकी संपत्ति बची रहती है। 22 पर जब उससे बढ़कर कोई और बलवन्त चढ़ाई करके उसे जीत लेता है, तो उसके वे हथियार जिन पर उसका भरोसा था, छीन लेता है और उसकी संपत्ति लूटकर बाँट देता है। 23 जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरोध में है, और जो मेरे साथ नहीं बटोरता वह बिखेरता है।
24 “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और जब नहीं पाती तो कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी लौट जाऊँगी। 25 और आकर उसे झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है। 26 तब वह आकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें समाकर वास करती हैं, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है।” 27 जब वह ये बातें कह ही रहा था तो भीड़ में से किसी स्त्री ने ऊँचे शब्द से कहा, “धन्य है वह गर्भ जिसमें तू रहा और वे स्तन, जो तूने चूसे।” 28 उसने कहा, “हाँ; परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।”
29 जब बड़ी भीड़ इकट्ठी होती जाती थी तो वह कहने लगा, “इस युग के लोग बुरे हैं; वे चिन्ह ढूँढ़ते हैं; पर योना के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा। 30 जैसा योना नीनवे के लोगों के लिये चिन्ह ठहरा, वैसा ही मनुष्य का पुत्र भी इस युग के लोगों के लिये ठहरेगा। 31 दक्षिण की रानी न्याय के दिन इस समय के मनुष्यों के साथ उठकर, उन्हें दोषी ठहराएगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने को पृथ्वी की छोर से आई, और देखो यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है। (1 राजा. 10:1-10, 2 इति. 9:1) 32 नीनवे के लोग न्याय के दिन इस समय के लोगों के साथ खड़े होकर, उन्हें दोषी ठहराएँगे; क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर मन फिराया और देखो, यहाँ वह है, जो योना से भी बड़ा है। (योना 3:5-10)
33 “कोई मनुष्य दिया जला के तलघर में, या पैमाने के नीचे नहीं रखता, परन्तु दीवट पर रखता है कि भीतर आनेवाले उजियाला पाएँ। 34 तेरे शरीर का दिया तेरी आँख है, इसलिए जब तेरी आँख निर्मल है, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला है; परन्तु जब वह बुरी है, तो तेरा शरीर भी अंधेरा है। 35 इसलिए सावधान रहना, कि जो उजियाला तुझ में है वह अंधेरा न हो जाए। 36 इसलिए यदि तेरा सारा शरीर उजियाला हो, और उसका कोई भाग अंधेरा न रहे, तो सब का सब ऐसा उजियाला होगा, जैसा उस समय होता है, जब दिया अपनी चमक से तुझे उजाला देता है।”
37 जब वह बातें कर रहा था, तो किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे यहाँ भोजन कर; और वह भीतर जाकर भोजन करने बैठा। 38 फरीसी ने यह देखकर अचम्भा किया कि उसने भोजन करने से पहले हाथ-पैर नहीं धोये। 39 प्रभु ने उससे कहा, “हे फरीसियों, तुम कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर तो माँजते हो, परन्तु तुम्हारे भीतर अंधेर और दुष्टता भरी है। 40 हे निर्बुद्धियों, जिस ने बाहर का भाग बनाया, क्या उसने भीतर का भाग नहीं बनाया*? 41 परन्तु हाँ, भीतरवाली वस्तुओं को दान कर दो, तब सब कुछ तुम्हारे लिये शुद्ध हो जाएगा।।
42 “पर हे फरीसियों, तुम पर हाय! तुम पोदीने और सुदाब का, और सब भाँति के साग-पात का दसवाँ अंश देते हो, परन्तु न्याय को और परमेश्वर के प्रेम को टाल देते हो; चाहिए तो था कि इन्हें भी करते रहते और उन्हें भी न छोड़ते। (मत्ती 23:23, मीका 6:8, लैव्य. 27:30) 43 हे फरीसियों, तुम पर हाय! तुम आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन और बाजारों में नमस्कार चाहते हो। 44 हाय तुम पर! क्योंकि तुम उन छिपी कब्रों के समान हो, जिन पर लोग चलते हैं, परन्तु नहीं जानते।”
45 तब एक व्यवस्थापक ने उसको उत्तर दिया, “हे गुरु, इन बातों के कहने से तू हमारी निन्दा करता है।” 46 उसने कहा, “हे व्यवस्थापकों, तुम पर भी हाय! तुम ऐसे बोझ जिनको उठाना कठिन है, मनुष्यों पर लादते हो परन्तु तुम आप उन बोझों को अपनी एक उँगली से भी नहीं छूते। 47 हाय तुम पर! तुम उन भविष्यद्वक्ताओं की कब्रें बनाते हो, जिन्हें तुम्हारे पूर्वजों ने मार डाला था। 48 अतः तुम गवाह हो, और अपने पूर्वजों के कामों से सहमत हो; क्योंकि उन्होंने तो उन्हें मार डाला और तुम उनकी कब्रें बनाते हो। 49 इसलिए परमेश्वर की बुद्धि ने भी कहा है, कि मैं उनके पास भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को भेजूँगी, और वे उनमें से कितनों को मार डालेंगे, और कितनों को सताएँगे। 50 ताकि जितने भविष्यद्वक्ताओं का लहू जगत की उत्पत्ति से बहाया गया है, सब का लेखा, इस युग के लोगों से लिया जाए, 51 हाबिल की हत्या से लेकर जकर्याह की हत्या तक जो वेदी और मन्दिर के बीच में मारा गया: मैं तुम से सच कहता हूँ; उसका लेखा इसी समय के लोगों से लिया जाएगा। (उत्प. 4:8, 2 इति. 24:20-21) 52 हाय तुम व्यवस्थापकों पर! कि तुम ने ज्ञान की कुंजी* ले तो ली, परन्तु तुम ने आपही प्रवेश नहीं किया, और प्रवेश करनेवालों को भी रोक दिया।”
53 जब वह वहाँ से निकला, तो शास्त्री और फरीसी बहुत पीछे पड़ गए और छेड़ने लगे, कि वह बहुत सी बातों की चर्चा करे, 54 और उसकी घात में लगे रहे, कि उसके मुँह की कोई बात पकड़ें।
1 इतने में जब हजारों की भीड़ लग गई, यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे, तो वह सबसे पहले अपने चेलों से कहने लगा, “फरीसियों के कपटरूपी ख़मीर से सावधान रहना। 2 कुछ ढपा नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा। 3 इसलिए जो कुछ तुम ने अंधेरे में कहा है, वह उजाले में सुना जाएगा; और जो तुम ने भीतर के कमरों में कानों कान कहा है, वह छतों पर प्रचार किया जाएगा।
4 “परन्तु मैं तुम से जो मेरे मित्र हो कहता हूँ, कि जो शरीर को मार सकते हैं और उससे ज्यादा और कुछ नहीं कर सकते, उनसे मत डरो। 5 मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि तुम्हें किस से डरना चाहिए, मारने के बाद जिसको नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो; वरन् मैं तुम से कहता हूँ उसी से डरो। 6 क्या दो पैसे की पाँच गौरैयाँ नहीं बिकती? फिर भी परमेश्वर उनमें से एक को भी नहीं भूलता। 7 वरन् तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं, अतः डरो नहीं, तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।
8 “मैं तुम से कहता हूँ जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा उसे मनुष्य का पुत्र भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने मान लेगा। 9 परन्तु जो मनुष्यों के सामने मुझे इन्कार करे उसका परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने इन्कार किया जाएगा।
10 “जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहे, उसका वह अपराध क्षमा किया जाएगा। परन्तु जो पवित्र आत्मा की निन्दा करें, उसका अपराध क्षमा नहीं किया जाएगा।
11 “जब लोग तुम्हें आराधनालयों और अधिपतियों और अधिकारियों के सामने ले जाएँ, तो चिन्ता न करना कि हम किस रीति से या क्या उत्तर दें, या क्या कहें। 12 क्योंकि पवित्र आत्मा उसी घड़ी तुम्हें सीखा देगा, कि क्या कहना चाहिए।”
13 फिर भीड़ में से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, मेरे भाई से कह, कि पिता की संपत्ति मुझे बाँट दे*।” 14 उसने उससे कहा, “हे मनुष्य, किस ने मुझे तुम्हारा न्यायी या बाँटनेवाला नियुक्त किया है?” (निर्ग. 2:14) 15 और उसने उनसे कहा, “सावधान रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो; क्योंकि किसी का जीवन उसकी संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता।”
16 उसने उनसे एक दृष्टान्त कहा, “किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई। 17 “तब वह अपने मन में विचार करने लगा, कि मैं क्या करूँ, क्योंकि मेरे यहाँ जगह नहीं, जहाँ अपनी उपज इत्यादि रखूँ। 18 और उसने कहा, ‘मैं यह करूँगा: मैं अपनी बखारियाँ तोड़ कर उनसे बड़ी बनाऊँगा; और वहाँ अपना सब अन्न और संपत्ति रखूँगा; 19 ‘और अपने प्राण से कहूँगा, कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिये बहुत संपत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह।’ 20 परन्तु परमेश्वर ने उससे कहा, ‘हे मूर्ख! इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा; तब जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह किसका होगा?’ 21 ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।”
22 फिर उसने अपने चेलों से कहा, “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, अपने जीवन की चिन्ता न करो, कि हम क्या खाएँगे; न अपने शरीर की, कि क्या पहनेंगे। 23 क्योंकि भोजन से प्राण, और वस्त्र से शरीर बढ़कर है। 24 कौवों पर ध्यान दो; वे न बोते हैं, न काटते; न उनके भण्डार और न खत्ता होता है; फिर भी परमेश्वर उन्हें खिलाता है। तुम्हारा मूल्य पक्षियों से कहीं अधिक है (भज. 147:9) 25 तुम में से ऐसा कौन है, जो चिन्ता करने से अपने जीवनकाल में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है? 26 इसलिए यदि तुम सबसे छोटा काम भी नहीं कर सकते, तो और बातों के लिये क्यों चिन्ता करते हो? 27 सोसनों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं; वे न परिश्रम करते, न काटते हैं; फिर भी मैं तुम से कहता हूँ, कि सुलैमान भी अपने सारे वैभव में, उनमें से किसी एक के समान वस्त्र पहने हुए न था। 28 इसलिए यदि परमेश्वर मैदान की घास को जो आज है, और कल भट्ठी में झोंकी जाएगी, ऐसा पहनाता है; तो हे अल्पविश्वासियों, वह तुम्हें अधिक क्यों न पहनाएगा? 29 और तुम इस बात की खोज में न रहो, कि क्या खाएँगे और क्या पीएँगे, और न सन्देह करो। 30 क्योंकि संसार की जातियाँ इन सब वस्तुओं की खोज में रहती हैं और तुम्हारा पिता जानता है, कि तुम्हें इन वस्तुओं की आवश्यकता है। 31 परन्तु उसके राज्य की खोज में रहो, तो ये वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।
32 “हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे। 33 अपनी संपत्ति बेचकर* दान कर दो; और अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते, अर्थात् स्वर्ग पर ऐसा धन इकट्ठा करो जो घटता नहीं, जिसके निकट चोर नहीं जाता, और कीड़ा नाश नहीं करता। 34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहाँ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा।
35 “तुम्हारी कमर बंधी रहें, और तुम्हारे दीये जलते रहें। (निर्ग. 12:11, 2 राजा. 4:29, इफि. 6:14, मत्ती 5:16) 36 और तुम उन मनुष्यों के समान बनो, जो अपने स्वामी की प्रतीक्षा कर रहे हों, कि वह विवाह से कब लौटेगा; कि जब वह आकर द्वार खटखटाएँ तो तुरन्त उसके लिए खोल दें। 37 धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी आकर जागते पाए; मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वह कमर बाँध कर उन्हें भोजन करने को बैठाएगा, और पास आकर उनकी सेवा करेगा। 38 यदि वह रात के दूसरे पहर या तीसरे पहर में आकर उन्हें जागते पाए, तो वे दास धन्य हैं। 39 परन्तु तुम यह जान रखो, कि यदि घर का स्वामी जानता, कि चोर किस घड़ी आएगा, तो जागता रहता, और अपने घर में सेंध लगने न देता। 40 तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।”
41 तब पतरस ने कहा, “हे प्रभु, क्या यह दृष्टान्त तू हम ही से या सबसे कहता है।” 42 प्रभु ने कहा, “वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान भण्डारी कौन है, जिसका स्वामी उसे नौकर-चाकरों पर सरदार ठहराए कि उन्हें समय पर भोजन सामग्री दे। 43 धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। 44 मैं तुम से सच कहता हूँ; वह उसे अपनी सब संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। 45 परन्तु यदि वह दास सोचने लगे, कि मेरा स्वामी आने में देर कर रहा है, और दासों और दासियों को मारने-पीटने और खाने-पीने और पियक्कड़ होने लगे। 46 तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन, जब वह उसकी प्रतीक्षा न कर रहा हो, और ऐसी घड़ी जिसे वह जानता न हो, आएगा और उसे भारी ताड़ना देकर उसका भाग विश्वासघाती के साथ ठहराएगा। 47 और वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था*, और तैयार न रहा और न उसकी इच्छा के अनुसार चला, बहुत मार खाएगा। 48 परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा, इसलिए जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा; और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे बहुत लिया जाएगा।
49 “मैं पृथ्वी पर आग* लगाने आया हूँ; और क्या चाहता हूँ केवल यह कि अभी सुलग जाती! 50 मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है; और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी व्यथा में रहूँगा! 51 क्या तुम समझते हो कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ; नहीं, वरन् अलग कराने आया हूँ। 52 क्योंकि अब से एक घर में पाँच जन आपस में विरोध रखेंगे, तीन दो से दो तीन से। 53 पिता पुत्र से, और पुत्र पिता से विरोध रखेगा; माँ बेटी से, और बेटी माँ से, सास बहू से, और बहू सास से विरोध रखेगी।” (मीका 7:6)
54 और उसने भीड़ से भी कहा, “जब बादल को पश्चिम से उठते देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, कि वर्षा होगी; और ऐसा ही होता है। 55 और जब दक्षिणी हवा चलती देखते हो तो कहते हो, कि लूह चलेगी, और ऐसा ही होता है। 56 हे कपटियों, तुम धरती और आकाश के रूप में भेद कर सकते हो, परन्तु इस युग के विषय में क्यों भेद करना नहीं जानते?
57 “तुम आप ही निर्णय क्यों नहीं कर लेते, कि उचित क्या है? 58 जब तू अपने मुद्दई के साथ न्यायाधीश के पास जा रहा है, तो मार्ग ही में उससे छूटने का यत्न कर ले ऐसा न हो, कि वह तुझे न्यायी के पास खींच ले जाए, और न्यायी तुझे सिपाही को सौंपे और सिपाही तुझे बन्दीगृह में डाल दे। 59 मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक तू पाई-पाई न चुका देगा तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।”
1 उस समय कुछ लोग आ पहुँचे, और उससे उन गलीलियों की चर्चा करने लगे, जिनका लहू पिलातुस ने उन ही के बलिदानों के साथ मिलाया था। 2 यह सुनकर यीशु ने उनको उत्तर में यह कहा, “क्या तुम समझते हो, कि ये गलीली बाकी गलीलियों से पापी थे कि उन पर ऐसी विपत्ति पड़ी?” 3 मैं तुम से कहता हूँ, कि नहीं; परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे* तो तुम सब भी इसी रीति से नाश होंगे। 4 या क्या तुम समझते हो, कि वे अठारह जन जिन पर शीलोह का गुम्मट गिरा, और वे दबकर मर गए: यरूशलेम के और सब रहनेवालों से अधिक अपराधी थे? 5 मैं तुम से कहता हूँ, कि नहीं; परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम भी सब इसी रीति से नाश होंगे।”
6 फिर उसने यह दृष्टान्त भी कहा, “किसी की अंगूर की बारी* में एक अंजीर का पेड़ लगा हुआ था : वह उसमें फल ढूँढ़ने आया, परन्तु न पाया। (मत्ती 21:19-20, मर. 11:12-14) 7 तब उसने बारी के रखवाले से कहा, ‘देख तीन वर्ष से मैं इस अंजीर के पेड़ में फल ढूँढ़ने आता हूँ, परन्तु नहीं पाता, इसे काट डाल कि यह भूमि को भी क्यों रोके रहे?’ 8 उसने उसको उत्तर दिया, कि हे स्वामी, इसे इस वर्ष तो और रहने दे; कि मैं इसके चारों ओर खोदकर खाद डालूँ। 9 अतः आगे को फले तो भला, नहीं तो उसे काट डालना।”
10 सब्त के दिन वह एक आराधनालय में उपदेश दे रहा था। 11 वहाँ एक स्त्री थी, जिसे अठारह वर्ष से एक दुर्बल करनेवाली दुष्टात्मा लगी थी, और वह कुबड़ी हो गई थी, और किसी रीति से सीधी नहीं हो सकती थी। 12 यीशु ने उसे देखकर बुलाया, और कहा, “हे नारी, तू अपनी दुर्बलता से छूट गई।” 13 तब उसने उस पर हाथ रखे, और वह तुरन्त सीधी हो गई, और परमेश्वर की बड़ाई करने लगी। 14 इसलिए कि यीशु ने सब्त के दिन उसे अच्छा किया था*, आराधनालय का सरदार रिसियाकर लोगों से कहने लगा, “छः दिन हैं, जिनमें काम करना चाहिए, अतः उन ही दिनों में आकर चंगे हो; परन्तु सब्त के दिन में नहीं।” (निर्ग. 20:9-10, व्य. 5:13-14) 15 यह सुन कर प्रभु ने उत्तर देकर कहा, “हे कपटियों, क्या सब्त के दिन तुम में से हर एक अपने बैल या गदहे को थान से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता? 16 “और क्या उचित न था, कि यह स्त्री जो अब्राहम की बेटी है, जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बाँध रखा था, सब्त के दिन इस बन्धन से छुड़ाई जाती?” 17 जब उसने ये बातें कहीं, तो उसके सब विरोधी लज्जित हो गए, और सारी भीड़ उन महिमा के कामों से जो वह करता था, आनन्दित हुई।
18 फिर उसने कहा, “परमेश्वर का राज्य किसके समान है? और मैं उसकी उपमा किससे दूँ? 19 वह राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपनी बारी में बोया: और वह बढ़कर पेड़ हो गया; और आकाश के पक्षियों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया।” (मत्ती 13:31-32, यहे. 31:6, दानि. 4:21) 20 उसने फिर कहा, “मैं परमेश्वर के राज्य कि उपमा किस से दूँ? 21 वह ख़मीर के समान है, जिसको किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिलाया, और होते-होते सब आटा ख़मीर हो गया।”
22 वह नगर-नगर, और गाँव-गाँव होकर उपदेश देता हुआ यरूशलेम की ओर जा रहा था। 23 और किसी ने उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या उद्धार पानेवाले थोड़े हैं?” उसने उनसे कहा, 24 “सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से प्रवेश करना चाहेंगे, और न कर सकेंगे। 25 जब घर का स्वामी उठकर द्वार बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े हुए द्वार खटखटाकर कहने लगो, ‘हे प्रभु, हमारे लिये खोल दे,’ और वह उत्तर दे कि मैं तुम्हें नहीं जानता, तुम कहाँ के हो? 26 तब तुम कहने लगोगे, ‘कि हमने तेरे सामने खाया-पीया और तूने हमारे बजारों में उपदेश दिया।’ 27 परन्तु वह कहेगा, मैं तुम से कहता हूँ, ‘मैं नहीं जानता तुम कहाँ से हो। हे कुकर्म करनेवालों, तुम सब मुझसे दूर हो।’ (भज. 6:8) 28 वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा, जब तुम अब्राहम और इसहाक और याकूब और सब भविष्यद्वक्ताओं को परमेश्वर के राज्य में बैठे, और अपने आप को बाहर निकाले हुए देखोगे। 29 और पूर्व और पश्चिम; उत्तर और दक्षिण से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। (यशा. 66:18, प्रका. 7:9, भज. 107:3, मला. 1:11) 30 यह जान लो, कितने पिछले हैं वे प्रथम होंगे, और कितने जो प्रथम हैं, वे पिछले होंगे।”
31 उसी घड़ी कितने फरीसियों ने आकर उससे कहा, “यहाँ से निकलकर चला जा; क्योंकि हेरोदेस तुझे मार डालना चाहता है।” 32 उसने उनसे कहा, “जाकर उस लोमड़ी से कह दो, कि देख मैं आज और कल दुष्टात्माओं को निकालता और बीमारों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन अपना कार्य पूरा करूँगा। 33 तो भी मुझे आज और कल और परसों चलना अवश्य है, क्योंकि हो नहीं सकता कि कोई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम के बाहर मारा जाए।
34 “हे यरूशलेम! हे यरूशलेम! तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए उन्हें पत्थराव करता है; कितनी ही बार मैंने यह चाहा, कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे करूँ, पर तुम ने यह न चाहा। 35 देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है, और मैं तुम से कहता हूँ; जब तक तुम न कहोगे, ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम से आता है,’ तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।” (भज. 118:26, यिर्म. 12:7)
1 फिर वह सब्त के दिन फरीसियों के सरदारों में से किसी के घर में रोटी खाने गया: और वे उसकी घात में थे। 2 वहाँ एक मनुष्य उसके सामने था, जिसे जलोदर का रोग* था। 3 इस पर यीशु ने व्यवस्थापकों और फरीसियों से कहा, “क्या सब्त के दिन अच्छा करना उचित है, कि नहीं?” 4 परन्तु वे चुपचाप रहे। तब उसने उसे हाथ लगाकर चंगा किया, और जाने दिया। 5 और उनसे कहा, “तुम में से ऐसा कौन है, जिसका पुत्र या बैल कुएँ में गिर जाए और वह सब्त के दिन उसे तुरन्त बाहर न निकाल ले?” 6 वे इन बातों का कुछ उत्तर न दे सके।
7 जब उसने देखा, कि आमन्त्रित लोग कैसे मुख्य-मुख्य जगह चुन लेते हैं तो एक दृष्टान्त देकर उनसे कहा, 8 “जब कोई तुझे विवाह में बुलाए, तो मुख्य जगह में न बैठना, कहीं ऐसा न हो, कि उसने तुझ से भी किसी बड़े को नेवता दिया हो। 9 और जिस ने तुझे और उसे दोनों को नेवता दिया है, आकर तुझ से कहे, ‘इसको जगह दे,’ और तब तुझे लज्जित होकर सबसे नीची जगह में बैठना पड़े। 10 पर जब तू बुलाया जाए, तो सबसे नीची जगह जा बैठ, कि जब वह, जिस ने तुझे नेवता दिया है आए, तो तुझ से कहे ‘हे मित्र, आगे बढ़कर बैठ,’ तब तेरे साथ बैठनेवालों के सामने तेरी बड़ाई होगी। (नीति. 25:6-7) 11 क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”
12 तब उसने अपने नेवता देनेवाले से भी कहा, “जब तू दिन का या रात का भोज करे, तो अपने मित्रों या भाइयों या कुटुम्बियों या धनवान पड़ोसियों को न बुला, कहीं ऐसा न हो, कि वे भी तुझे नेवता दें, और तेरा बदला हो जाए। 13 परन्तु जब तू भोज करे, तो कंगालों, टुण्डों, लँगड़ों और अंधों को बुला। 14 तब तू धन्य होगा, क्योंकि उनके पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, परन्तु तुझे धर्मियों के जी उठने* पर इसका प्रतिफल मिलेगा।”
15 उसके साथ भोजन करनेवालों में से एक ने ये बातें सुनकर उससे कहा, “धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य में रोटी खाएगा।” 16 उसने उससे कहा, “किसी मनुष्य ने बड़ा भोज दिया और बहुतों को बुलाया। 17 जब भोजन तैयार हो गया, तो उसने अपने दास के हाथ आमन्त्रित लोगों को कहला भेजा, ‘आओ; अब भोजन तैयार है।’ 18 पर वे सब के सब क्षमा माँगने लगे, पहले ने उससे कहा, ‘मैंने खेत मोल लिया है, और अवश्य है कि उसे देखूँ; मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे क्षमा कर दे।’ 19 दूसरे ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़े बैल मोल लिए हैं, और उन्हें परखने जा रहा हूँ; मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे क्षमा कर दे।’ 20 एक और ने कहा, ‘मैंने विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’ 21 उस दास ने आकर अपने स्वामी को ये बातें कह सुनाईं। तब घर के स्वामी ने क्रोध में आकर अपने दास से कहा, ‘नगर के बाजारों और गलियों में तुरन्त जाकर कंगालों, टुण्डों, लँगड़ों और अंधों को यहाँ ले आओ।’ 22 दास ने फिर कहा, ‘हे स्वामी, जैसे तूने कहा था, वैसे ही किया गया है; फिर भी जगह है।’ 23 स्वामी ने दास से कहा, ‘सड़कों पर और बाड़ों की ओर जाकर लोगों को बरबस ले ही आ ताकि मेरा घर भर जाए। 24 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि उन आमन्त्रित लोगों में से कोई मेरे भोज को न चखेगा*’।”
25 और जब बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी, तो उसने पीछे फिरकर उनसे कहा। 26 “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता; (मत्ती 10:37, यूह. 12:25, व्य. 33:9) 27 और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता।
28 “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और पहले बैठकर खर्च न जोड़े, कि पूरा करने की सामर्थ्य मेरे पास है कि नहीं? 29 कहीं ऐसा न हो, कि जब नींव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखनेवाले यह कहकर उसका उपहास करेंगे, 30 ‘यह मनुष्य बनाने तो लगा, पर तैयार न कर सका?’ 31 या कौन ऐसा राजा है, कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हजार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हजार लेकर उसका सामना कर सकता हूँ, कि नहीं? 32 नहीं तो उसके दूर रहते ही, वह दूत को भेजकर मिलाप करना चाहेगा। 33 इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता।
34 “नमक तो अच्छा है, परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा। 35 वह न तो भूमि के और न खाद के लिये काम में आता है: उसे तो लोग बाहर फेंक देते हैं। जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले।”
1 सब चुंगी लेनेवाले और पापी उसके पास आया करते थे ताकि उसकी सुनें। 2 और फरीसी और शास्त्री कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “यह तो पापियों से मिलता है और उनके साथ खाता भी है।” 3 तब उसने उनसे यह दृष्टान्त कहा: 4 “तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक खो जाए तो निन्यानवे को मैदान में छोड़कर, उस खोई हुई को जब तक मिल न जाए खोजता न रहे? (यहे. 34:11-12,16) 5 और जब मिल जाती है, तब वह बड़े आनन्द से उसे काँधे पर उठा लेता है। 6 और घर में आकर मित्रों और पड़ोसियों को इकट्ठे करके कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है।’ 7 मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्यानवे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं।
8 “या कौन ऐसी स्त्री होगी, जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हों, और उनमें से एक खो जाए; तो वह दिया जलाकर और घर झाड़-बुहारकर जब तक मिल न जाए, जी लगाकर खोजती न रहे? 9 और जब मिल जाता है, तो वह अपने सखियों और पड़ोसिनियों को इकट्ठी करके कहती है, कि ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरा खोया हुआ सिक्का मिल गया है।’ 10 मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने आनन्द होता है।”
11 फिर उसने कहा, “किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। 12 उनमें से छोटे ने पिता से कहा ‘हे पिता, सम्पत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए।’ उसने उनको अपनी संपत्ति बाँट दी। 13 और बहुत दिन न बीते थे कि छोटा पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके एक दूर देश को चला गया और वहाँ कुकर्म में अपनी सम्पत्ति उड़ा दी। (नीति. 29:3) 14 जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया। 15 और वह उस देश के निवासियों में से एक के यहाँ गया, उसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने के लिये* भेजा। 16 और वह चाहता था, कि उन फलियों से जिन्हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे; क्योंकि उसे कोई कुछ नहीं देता था। 17 जब वह अपने आपे में आया, तब कहने लगा, ‘मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहाँ भूखा मर रहा हूँ। 18 मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा कि पिता जी मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। (भज. 51:4) 19 अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊँ, मुझे अपने एक मजदूर के समान रख ले।’
20 “तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला: वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा। 21 पुत्र ने उससे कहा, ‘पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है; और अब इस योग्य नहीं रहा, कि तेरा पुत्र कहलाऊँ।’ 22 परन्तु पिता ने अपने दासों से कहा, ‘झट अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहनाओ, और उसके हाथ में अँगूठी, और पाँवों में जूतियाँ पहनाओ, 23 और बड़ा भोज तैयार करो ताकि हम खाएँ और आनन्द मनाए। 24 क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी गया है: खो गया था*, अब मिल गया है।’ और वे आनन्द करने लगे।
25 “परन्तु उसका जेठा पुत्र खेत में था। और जब वह आते हुए घर के निकट पहुँचा, तो उसने गाने-बजाने और नाचने का शब्द सुना। 26 और उसने एक दास को बुलाकर पूछा, ‘यह क्या हो रहा है?’ 27 “उसने उससे कहा, ‘तेरा भाई आया है, और तेरे पिता ने बड़ा भोज तैयार कराया है, क्योंकि उसे भला चंगा पाया है।’ 28 यह सुनकर वह क्रोध से भर गया और भीतर जाना न चाहा: परन्तु उसका पिता बाहर आकर उसे मनाने लगा। 29 उसने पिता को उत्तर दिया, ‘देख; मैं इतने वर्ष से तेरी सेवा कर रहा हूँ, और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, फिर भी तूने मुझे कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया, कि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्द करता। 30 परन्तु जब तेरा यह पुत्र, जिस ने तेरी सम्पत्ति वेश्याओं में उड़ा दी है, आया, तो उसके लिये तूने बड़ा भोज तैयार कराया।’ 31 उसने उससे कहा, ‘पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है*। 32 परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था फिर जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है’।”
1 फिर उसने चेलों से भी कहा, “किसी धनवान का एक भण्डारी था, और लोगों ने उसके सामने भण्डारी पर यह दोष लगाया कि यह तेरी सब सम्पत्ति उड़ाए देता है। 2 अतः धनवान ने उसे बुलाकर कहा, ‘यह क्या है जो मैं तेरे विषय में सुन रहा हूँ? अपने भण्डारीपन का लेखा दे; क्योंकि तू आगे को भण्डारी नहीं रह सकता।’ 3 तब भण्डारी सोचने लगा, ‘अब मैं क्या करूँ? क्योंकि मेरा स्वामी अब भण्डारी का काम मुझसे छीन रहा है: मिट्टी तो मुझसे खोदी नहीं जाती; और भीख माँगने से मुझे लज्जा आती है। 4 मैं समझ गया, कि क्या करूँगा: ताकि जब मैं भण्डारी के काम से छुड़ाया जाऊँ तो लोग मुझे अपने घरों में ले लें।’ 5 और उसने अपने स्वामी के देनदारों में से एक-एक को बुलाकर पहले से पूछा, कि तुझ पर मेरे स्वामी का कितना कर्ज है? 6 उसने कहा, ‘सौ मन जैतून का तेल,’ तब उसने उससे कहा, कि अपनी खाता-बही ले और बैठकर तुरन्त पचास लिख दे। 7 फिर दूसरे से पूछा, ‘तुझ पर कितना कर्ज है?’ उसने कहा, ‘सौ मन गेहूँ,’ तब उसने उससे कहा, ‘अपनी खाता-बही लेकर अस्सी लिख दे।’
8 “स्वामी ने उस अधर्मी भण्डारी को सराहा, कि उसने चतुराई से काम किया है; क्योंकि इस संसार के लोग अपने समय के लोगों के साथ रीति-व्यवहारों में ज्योति के लोगों* से अधिक चतुर हैं। 9 और मैं तुम से कहता हूँ, कि अधर्म के धन से अपने लिये मित्र बना लो; ताकि जब वह जाता रहे, तो वे तुम्हें अनन्त निवासों में ले लें। 10 जो थोड़े से थोड़े में विश्वासयोग्य है, वह बहुत में भी विश्वासयोग्य है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है। 11 इसलिए जब तुम सांसारिक धन में विश्वासयोग्य न ठहरे, तो सच्चा धन तुम्हें कौन सौंपेगा? 12 और यदि तुम पराये धन में विश्वासयोग्य न ठहरे, तो जो तुम्हारा है, उसे तुम्हें कौन देगा?
13 “कोई दास दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता क्योंकि वह तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा; या एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा: तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।”
14 फरीसी जो लोभी थे, ये सब बातें सुनकर उसका उपहास करने लगे। 15 उसने उनसे कहा, “तुम तो मनुष्यों के सामने अपने आप को धर्मी ठहराते हो, परन्तु परमेश्वर तुम्हारे मन को जानता है, क्योंकि जो वस्तु मनुष्यों की दृष्टि में महान है, वह परमेश्वर के निकट घृणित है।
16 “जब तक यूहन्ना आया, तब तक व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता प्रभाव में थे। उस समय से परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया जा रहा है, और हर कोई उसमें प्रबलता से प्रवेश करता है। 17 आकाश और पृथ्वी का टल जाना व्यवस्था के एक बिन्दु के मिट जाने से सहज है।
18 “जो कोई अपनी पत्नी को त्याग कर दूसरी से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है, और जो कोई ऐसी त्यागी हुई स्त्री से विवाह करता है, वह भी व्यभिचार करता है।
19 “एक धनवान मनुष्य था जो बैंगनी कपड़े और मलमल पहनता और प्रति-दिन सुख-विलास और धूम-धाम के साथ रहता था। 20 और लाज़र* नाम का एक कंगाल घावों से भरा हुआ उसकी डेवढ़ी पर छोड़ दिया जाता था। 21 और वह चाहता था, कि धनवान की मेज पर की जूठन से अपना पेट भरे; वरन् कुत्ते भी आकर उसके घावों को चाटते थे। 22 और ऐसा हुआ कि वह कंगाल मर गया, और स्वर्गदूतों ने उसे लेकर अब्राहम की गोद में पहुँचाया। और वह धनवान भी मरा; और गाड़ा गया, 23 और अधोलोक* में उसने पीड़ा में पड़े हुए अपनी आँखें उठाई, और दूर से अब्राहम की गोद में लाज़र को देखा। 24 और उसने पुकारकर कहा, ‘हे पिता अब्राहम, मुझ पर दया करके लाज़र को भेज दे, ताकि वह अपनी उँगली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ।’ 25 परन्तु अब्राहम ने कहा, ‘हे पुत्र स्मरण कर, कि तू अपने जीवनकाल में अच्छी वस्तुएँ पा चुका है, और वैसे ही लाज़र बुरी वस्तुएँ परन्तु अब वह यहाँ शान्ति पा रहा है, और तू तड़प रहा है। 26 ‘और इन सब बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक बड़ी खाई ठहराई गई है कि जो यहाँ से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सके, और न कोई वहाँ से इस पार हमारे पास आ सके।’ 27 उसने कहा, ‘तो हे पिता, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज, 28 क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं; वह उनके सामने इन बातों की चेतावनी दे, ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आएँ।’ 29 अब्राहम ने उससे कहा, ‘उनके पास तो मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें हैं, वे उनकी सुनें।’ 30 उसने कहा, ‘नहीं, हे पिता अब्राहम; पर यदि कोई मरे हुओं में से उनके पास जाए, तो वे मन फिराएँगे।’ 31 उसने उससे कहा, ‘जब वे मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की नहीं सुनते, तो यदि मरे हुओं में से कोई भी जी उठे तो भी उसकी नहीं मानेंगे’।”
1 फिर उसने अपने चेलों से कहा, “यह निश्चित है कि वे बातें जो पाप का कारण है, आएँगे परन्तु हाय, उस मनुष्य पर जिसके कारण वे आती है! 2 जो इन छोटों में से किसी एक को ठोकर खिलाता है, उसके लिये यह भला होता कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह समुद्र में डाल दिया जाता। 3 सचेत रहो; यदि तेरा भाई अपराध करे तो उसे डाँट, और यदि पछताए तो उसे क्षमा कर। 4 यदि दिन भर में वह सात बार तेरा अपराध करे और सातों बार तेरे पास फिर आकर कहे, कि मैं पछताता हूँ, तो उसे क्षमा कर।”
5 तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ा।” 6 प्रभु ने कहा, “यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता।
7 “पर तुम में से ऐसा कौन है, जिसका दास हल जोतता, या भेड़ें चराता हो, और जब वह खेत से आए, तो उससे कहे, ‘तुरन्त आकर भोजन करने बैठ’? 8 क्या वह उनसे न कहेगा, कि मेरा खाना तैयार कर: और जब तक मैं खाऊँ-पीऊँ तब तक कमर बाँधकर मेरी सेवा कर; इसके बाद तू भी खा पी लेना? 9 क्या वह उस दास का एहसान मानेगा, कि उसने वे ही काम किए जिसकी आज्ञा दी गई थी? 10 इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुके हो जिसकी आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है’।”
11 और ऐसा हुआ कि वह यरूशलेम को जाते हुए सामरिया और गलील प्रदेश की सीमा से होकर जा रहा था। 12 और किसी गाँव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले। (लैव्य. 13:46) 13 और उन्होंने दूर खड़े होकर, ऊँचे शब्द से कहा, “हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर!” 14 उसने उन्हें देखकर कहा, “जाओ; और अपने आपको याजकों को दिखाओ*।” और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए। (लैव्य. 14:2-3) 15 तब उनमें से एक यह देखकर कि मैं चंगा हो गया हूँ, ऊँचे शब्द से परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ लौटा; 16 और यीशु के पाँवों पर मुँह के बल गिरकर उसका धन्यवाद करने लगा; और वह सामरी* था। 17 इस पर यीशु ने कहा, “क्या दसों शुद्ध न हुए, तो फिर वे नौ कहाँ हैं? 18 क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्वर की बड़ाई करता?” 19 तब उसने उससे कहा, “उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।”
20 जब फरीसियों ने उससे पूछा, कि परमेश्वर का राज्य कब आएगा? तो उसने उनको उत्तर दिया, “परमेश्वर का राज्य प्रगट रूप में नहीं आता। 21 और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहाँ है, या वहाँ है। क्योंकि, परमेश्वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।” 22 और उसने चेलों से कहा, “वे दिन आएँगे, जिनमें तुम मनुष्य के पुत्र के दिनों में से एक दिन को देखना चाहोगे, और नहीं देखने पाओगे। 23 लोग तुम से कहेंगे, ‘देखो, वहाँ है!’ या ‘देखो यहाँ है!’ परन्तु तुम चले न जाना और न उनके पीछे हो लेना। 24 क्योंकि जैसे बिजली आकाश की एक छोर से कौंधकर आकाश की दूसरी छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। 25 परन्तु पहले अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ। 26 जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा। (इब्रा. 4:7, मत्ती 24:37-39, उत्प. 6:5-12) 27 जिस दिन तक नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी; तब जल-प्रलय ने आकर उन सब को नाश किया। 28 और जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे; 29 परन्तु जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और सब को नाश कर दिया। (2 पत. 2:6, यहू. 1:7, उत्प. 19:24) 30 मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा।
31 “उस दिन जो छत पर हो; और उसका सामान घर में हो, वह उसे लेने को न उतरे, और वैसे ही जो खेत में हो वह पीछे न लौटे। 32 लूत की पत्नी को स्मरण रखो! (उत्प. 19:26, उत्प. 19:17) 33 जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, और जो कोई उसे खोए वह उसे बचाएगा। 34 मैं तुम से कहता हूँ, उस रात दो मनुष्य एक खाट पर होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। 35 दो स्त्रियाँ एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। 36 [दो जन खेत में होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ा जाएगा।]” 37 यह सुन उन्होंने उससे पूछा, “हे प्रभु यह कहाँ होगा?” उसने उनसे कहा, “जहाँ लाश हैं, वहाँ गिद्ध इकट्ठे होंगे।” (अय्यू. 39:30)
1 फिर उसने इसके विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और साहस नहीं छोड़ना चाहिए उनसे यह दृष्टान्त कहा: 2 “किसी नगर में एक न्यायी रहता था; जो न परमेश्वर से डरता था और न किसी मनुष्य की परवाह करता था। 3 और उसी नगर में एक विधवा भी रहती थी: जो उसके पास आ आकर कहा करती थी, ‘मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा।’ 4 उसने कितने समय तक तो न माना परन्तु अन्त में मन में विचार कर कहा, ‘यद्यपि मैं न परमेश्वर से डरता, और न मनुष्यों की कुछ परवाह करता हूँ; 5 फिर भी यह विधवा मुझे सताती रहती है, इसलिए मैं उसका न्याय चुकाऊँगा, कहीं ऐसा न हो कि घड़ी-घड़ी आकर अन्त को मेरी नाक में दम करे’।”
6 प्रभु ने कहा, “सुनो, कि यह अधर्मी न्यायी क्या कहता है? 7 अतः क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उसकी दुहाई देते रहते; और क्या वह उनके विषय में देर करेगा? 8 मैं तुम से कहता हूँ; वह तुरन्त उनका न्याय चुकाएगा; पर मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”
9 और उसने उनसे जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और दूसरों को तुच्छ जानते थे, यह दृष्टान्त कहा: 10 “दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेनेवाला। 11 फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि मैं और मनुष्यों के समान दुष्टता करनेवाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेनेवाले के समान हूँ। 12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ; मैं अपनी सब कमाई का दसवाँ अंश भी देता हूँ।’
13 “परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आँख उठाना भी न चाहा, वरन् अपनी छाती पीट-पीटकर* कहा, ‘हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर!’ (भज. 51:1) 14 मैं तुम से कहता हूँ, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहरा और अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”
15 फिर लोग अपने बच्चों को भी उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; और चेलों ने देखकर उन्हें डाँटा। 16 यीशु ने बच्चों को पास बुलाकर कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो: क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है। 17 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक के समान ग्रहण न करेगा वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।”
18 किसी सरदार ने उससे पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?” 19 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्थात् परमेश्वर। 20 तू आज्ञाओं को तो जानता है: ‘व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’।” 21 उसने कहा, “मैं तो इन सब को लड़कपन ही से मानता आया हूँ।” 22 यह सुन, “यीशु ने उससे कहा, तुझ में अब भी एक बात की घटी है, अपना सब कुछ बेचकर कंगालों को बाँट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।” 23 वह यह सुनकर बहुत उदास हुआ, क्योंकि वह बड़ा धनी था।
24 यीशु ने उसे देखकर कहा, “धनवानों का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है! 25 परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।” 26 और सुननेवालों ने कहा, “तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?” 27 उसने कहा, “जो मनुष्य से नहीं हो सकता, वह परमेश्वर से हो सकता है।” 28 पतरस ने कहा, “देख, हम तो घर-बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।” 29 उसने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं जिस ने परमेश्वर के राज्य के लिये घर, या पत्नी, या भाइयों, या माता-पिता, या बाल-बच्चों को छोड़ दिया हो। 30 और इस समय कई गुणा अधिक न पाए; और परलोक में अनन्त जीवन।”
31 फिर उसने बारहों को साथ लेकर उनसे कहा, “हम यरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें मनुष्य के पुत्र के लिये भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखी गई हैं* वे सब पूरी होंगी। 32 क्योंकि वह अन्यजातियों के हाथ में सौंपा जाएगा, और वे उसका उपहास करेंगे; और उसका अपमान करेंगे, और उस पर थूकेंगे। 33 और उसे कोड़े मारेंगे, और मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।” 34 और उन्होंने इन बातों में से कोई बात न समझी और यह बात उनसे छिपी रही, और जो कहा गया था वह उनकी समझ में न आया।
35 जब वह यरीहो के निकट पहुँचा, तो एक अंधा सड़क के किनारे बैठा हुआ भीख माँग रहा था। 36 और वह भीड़ के चलने की आहट सुनकर पूछने लगा, “यह क्या हो रहा है?” 37 उन्होंने उसको बताया, “यीशु नासरी जा रहा है।” 38 तब उसने पुकार के कहा, “हे यीशु, दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!” 39 जो आगे-आगे जा रहे थे, वे उसे डाँटने लगे कि चुप रहे परन्तु वह और भी चिल्लाने लगा, “हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!” 40 तब यीशु ने खड़े होकर आज्ञा दी कि उसे मेरे पास लाओ, और जब वह निकट आया, तो उसने उससे यह पूछा, 41 तू क्या चाहता है, “मैं तेरे लिये करूँ?” उसने कहा, “हे प्रभु, यह कि मैं देखने लगूँ।” 42 यीशु ने उससे कहा, “देखने लग, तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है।” 43 और वह तुरन्त देखने लगा; और परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ, उसके पीछे हो लिया, और सब लोगों ने देखकर परमेश्वर की स्तुति की।
1 वह यरीहो में प्रवेश करके जा रहा था। 2 वहाँ जक्कई* नामक एक मनुष्य था, जो चुंगी लेनेवालों का सरदार और धनी था। 3 वह यीशु को देखना चाहता था कि वह कौन सा है? परन्तु भीड़ के कारण देख न सकता था। क्योंकि वह नाटा था। 4 तब उसको देखने के लिये वह आगे दौड़कर एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि यीशु उसी मार्ग से जानेवाला था। 5 जब यीशु उस जगह पहुँचा, तो ऊपर दृष्टि कर के उससे कहा, “हे जक्कई, झट उतर आ; क्योंकि आज मुझे तेरे घर में रहना अवश्य है।” 6 वह तुरन्त उतरकर आनन्द से उसे अपने घर को ले गया। 7 यह देखकर सब लोग कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “वह तो एक पापी मनुष्य के यहाँ गया है।” 8 जक्कई ने खड़े होकर प्रभु से कहा, “हे प्रभु, देख, मैं अपनी आधी सम्पत्ति कंगालों को देता हूँ, और यदि किसी का कुछ भी अन्याय करके ले लिया है तो उसे चौगुना फेर देता हूँ।” (निर्ग. 22:1) 9 तब यीशु ने उससे कहा, “आज इस घर में उद्धार आया है, इसलिए कि यह भी अब्राहम का एक पुत्र* है। 10 क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।” (मत्ती 15:24, यहे. 34:16)
11 जब वे ये बातें सुन रहे थे, तो उसने एक दृष्टान्त कहा, इसलिए कि वह यरूशलेम के निकट था, और वे समझते थे, कि परमेश्वर का राज्य अभी प्रगट होनेवाला है। 12 अतः उसने कहा, “एक धनी मनुष्य दूर देश को चला ताकि राजपद पा कर लौट आए। 13 और उसने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं, और उनसे कहा, ‘मेरे लौट आने तक लेन-देन करना।’ 14 “परन्तु उसके नगर के रहनेवाले उससे बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतों के द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे।
15 “जब वह राजपद पा कर लौट आया, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने दासों को जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन-देन से क्या-क्या कमाया। 16 तब पहले ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरे मुहर से दस और मुहरें कमाई हैं।’ 17 उसने उससे कहा, ‘हे उत्तम दास, तू धन्य है, तू बहुत ही थोड़े में विश्वासयोग्य निकला अब दस नगरों का अधिकार रख।’ 18 दूसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरी मुहर से पाँच और मुहरें कमाई हैं।’ 19 उसने उससे कहा, ‘तू भी पाँच नगरों पर अधिकार रख।’ 20 तीसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, देख, तेरी मुहर यह है, जिसे मैंने अँगोछे में बाँध रखा था। 21 क्योंकि मैं तुझ से डरता था, इसलिए कि तू कठोर मनुष्य है: जो तूने नहीं रखा उसे उठा लेता है, और जो तूने नहीं बोया, उसे काटता है।’ 22 उसने उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास, मैं तेरे ही मुँह से* तुझे दोषी ठहराता हूँ। तू मुझे जानता था कि कठोर मनुष्य हूँ, जो मैंने नहीं रखा उसे उठा लेता, और जो मैंने नहीं बोया, उसे काटता हूँ; 23 तो तूने मेरे रुपये सर्राफों को क्यों नहीं रख दिए, कि मैं आकर ब्याज समेत ले लेता?’ 24 और जो लोग निकट खड़े थे, उसने उनसे कहा, ‘वह मुहर उससे ले लो, और जिसके पास दस मुहरें हैं उसे दे दो।’ 25 उन्होंने उससे कहा, ‘हे स्वामी, उसके पास दस मुहरें तो हैं।’ 26 ‘मैं तुम से कहता हूँ, कि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं, उससे वह भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा। 27 परन्तु मेरे उन बैरियों को जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर राज्य करूँ, उनको यहाँ लाकर मेरे सामने मार डालो’।”
28 ये बातें कहकर वह यरूशलेम की ओर उनके आगे-आगे चला। 29 और जब वह जैतून नाम पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास पहुँचा, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहके भेजा, 30 “सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, बन्धा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोलकर लाओ। 31 और यदि कोई तुम से पूछे, कि क्यों खोलते हो, तो यह कह देना, कि प्रभु को इसकी जरूरत है।”
32 जो भेजे गए थे, उन्होंने जाकर जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया। 33 जब वे गदहे के बच्चे को खोल रहे थे, तो उसके मालिकों ने उनसे पूछा, “इस बच्चे को क्यों खोलते हो?” 34 उन्होंने कहा, “प्रभु को इसकी जरूरत है।” 35 वे उसको यीशु के पास ले आए और अपने कपड़े उस बच्चे पर डालकर यीशु को उस पर बैठा दिया। 36 जब वह जा रहा था, तो वे अपने कपड़े मार्ग में बिछाते जाते थे। (2 राजा. 9:13) 37 और निकट आते हुए जब वह जैतून पहाड़ की ढलान पर पहुँचा, तो चेलों की सारी मण्डली उन सब सामर्थ्य के कामों के कारण जो उन्होंने देखे थे, आनन्दित होकर बड़े शब्द से परमेश्वर की स्तुति करने लगी: (जक. 9:9)
38 “धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम से आता है!
स्वर्ग में शान्ति और आकाश में महिमा हो!” (भज. 72:18-19, भज. 118:26)
39 तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” 40 उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।”
41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। 42 और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। (व्य. 32:29, यशा. 6:9-10) 43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे। 44 और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्टि की गई न पहचाना।”
45 तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा। 46 और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा,’ परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।” (यशा. 56:7, यिर्म. 7:11) 47 और वह प्रतिदिन मन्दिर में उपदेश देता था : और प्रधान याजक और शास्त्री और लोगों के प्रमुख उसे मार डालने का अवसर ढूँढ़ते थे। 48 परन्तु कोई उपाय न निकाल सके; कि यह किस प्रकार करें, क्योंकि सब लोग बड़ी चाह से उसकी सुनते थे।
1 एक दिन ऐसा हुआ कि जब वह मन्दिर में लोगों को उपदेश देता और सुसमाचार सुना रहा था, तो प्रधान याजक और शास्त्री, प्राचीनों के साथ पास आकर खड़े हुए। 2 और कहने लगे, “हमें बता, तू इन कामों को किस अधिकार से करता है, और वह कौन है, जिसने तुझे यह अधिकार दिया है?” 3 उसने उनको उत्तर दिया, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; मुझे बताओ 4 यूहन्ना का बपतिस्मा स्वर्ग की ओर से था या मनुष्यों की ओर से था?” 5 तब वे आपस में कहने लगे, “यदि हम कहें, ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह कहेगा; ‘फिर तुम ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ 6 और यदि हम कहें, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तो सब लोग हमें पत्थराव करेंगे, क्योंकि वे सचमुच जानते हैं, कि यूहन्ना भविष्यद्वक्ता था।” 7 अतः उन्होंने उत्तर दिया, “हम नहीं जानते, कि वह किस की ओर से था।” 8 यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि मैं ये काम किस अधिकार से करता हूँ।”
9 तब वह लोगों से यह दृष्टान्त कहने लगा, “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानों को उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनों के लिये परदेश चला गया। (मर. 12:1-12, मत्ती 21:33-46) 10 नियुक्त समय पर उसने किसानों के पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलों का भाग उसे दें, पर किसानों ने उसे पीटकर खाली हाथ लौटा दिया। 11 फिर उसने एक और दास को भेजा, ओर उन्होंने उसे भी पीटकर और उसका अपमान करके खाली हाथ लौटा दिया। 12 फिर उसने तीसरा भेजा, और उन्होंने उसे भी घायल करके निकाल दिया। 13 तब दाख की बारी के स्वामी ने कहा, ‘मैं क्या करूँ? मैं अपने प्रिय पुत्र को भेजूँगा, क्या जाने वे उसका आदर करें।’ 14 जब किसानों ने उसे देखा तो आपस में विचार करने लगे, ‘यह तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, कि विरासत हमारी हो जाए।’ 15 और उन्होंने उसे दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला: इसलिए दाख की बारी का स्वामी उनके साथ क्या करेगा? 16 वह आकर उन किसानों को नाश करेगा, और दाख की बारी दूसरों को सौंपेगा।” यह सुनकर उन्होंने कहा, “परमेश्वर ऐसा न करे।” 17 उसने उनकी ओर देखकर कहा, “फिर यह क्या लिखा है:
‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था,
वही कोने का सिरा हो गया।’ (भज. 118:22, 23)
18 जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा*, और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” (दानि. 2:34,35)
19 उसी घड़ी शास्त्रियों और प्रधान याजकों ने उसे पकड़ना चाहा, क्योंकि समझ गए थे, कि उसने उनके विरुद्ध दृष्टान्त कहा, परन्तु वे लोगों से डरे। 20 और वे उसकी ताक में लगे और भेदिये भेजे, कि धर्मी का भेष धरकर उसकी कोई न कोई बात पकड़ें, कि उसे राज्यपाल के हाथ और अधिकार में सौंप दें। 21 उन्होंने उससे यह पूछा, “हे गुरु, हम जानते हैं कि तू ठीक कहता, और सिखाता भी है, और किसी का पक्षपात नहीं करता; वरन् परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से बताता है। 22 क्या हमें कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं?” 23 उसने उनकी चतुराई को ताड़कर उनसे कहा, 24 “एक दीनार मुझे दिखाओ। इस पर किसकी छाप और नाम है?” उन्होंने कहा, “कैसर का।” 25 उसने उनसे कहा, “तो जो कैसर का है, वह कैसर को दो और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” 26 वे लोगों के सामने उस बात को पकड़ न सके, वरन् उसके उत्तर से अचम्भित होकर चुप रह गए।
27 फिर सदूकी जो कहते हैं, कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, उनमें से कुछ ने उसके पास आकर पूछा। 28 “हे गुरु, मूसा ने हमारे लिये यह लिखा है, ‘यदि किसी का भाई अपनी पत्नी के रहते हुए बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी से विवाह कर ले, और अपने भाई के लिये वंश उत्पन्न करे।’ (उत्प. 38:8, व्य. 25:5) 29 अतः सात भाई थे, पहला भाई विवाह करके बिना सन्तान मर गया। 30 फिर दूसरे, 31 और तीसरे ने भी उस स्त्री से विवाह कर लिया। इसी रीति से सातों बिना सन्तान मर गए। 32 सब के पीछे वह स्त्री भी मर गई। 33 अतः जी उठने पर वह उनमें से किस की पत्नी होगी, क्योंकि वह सातों की पत्नी रह चुकी थी।” 34 यीशु ने उनसे कहा, “इस युग के सन्तानों में तो विवाह-शादी होती है, 35 पर जो लोग इस योग्य ठहरेंगे, की उस युग को और मरे हुओं में से जी उठना प्राप्त करें, उनमें विवाह-शादी न होगी। 36 वे फिर मरने के भी नहीं; क्योंकि वे स्वर्गदूतों के समान होंगे, और पुनरुत्थान की सन्तान होने से परमेश्वर के भी सन्तान होंगे। 37 परन्तु इस बात को कि मरे हुए जी उठते हैं, मूसा ने भी झाड़ी की कथा में प्रगट की है, वह प्रभु को ‘अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर’ कहता है। (निर्ग. 3:2, निर्ग. 3:6) 38 परमेश्वर तो मुर्दों का नहीं परन्तु जीवितों का परमेश्वर है: क्योंकि उसके निकट सब जीवित हैं।” 39 तब यह सुनकर शास्त्रियों में से कितनों ने कहा, “हे गुरु, तूने अच्छा कहा।” 40 और उन्हें फिर उससे कुछ और पूछने का साहस न हुआ*।
41 फिर उसने उनसे पूछा, “मसीह को दाऊद की सन्तान कैसे कहते हैं? 42 दाऊद आप भजन संहिता की पुस्तक में कहता है:
‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा,
43 मेरे दाहिने बैठ,
जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों तले की चौकी न कर दूँ।’
44 दाऊद तो उसे प्रभु कहता है; तो फिर वह उसकी सन्तान कैसे ठहरा?”
45 जब सब लोग सुन रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा। 46 “शास्त्रियों से सावधान रहो*, जिनको लम्बे-लम्बे वस्त्र पहने हुए फिरना अच्छा लगता है, और जिन्हें बाजारों में नमस्कार, और आराधनालयों में मुख्य आसन और भोज में मुख्य स्थान प्रिय लगते हैं। 47 वे विधवाओं के घर खा जाते हैं, और दिखाने के लिये बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हैं, ये बहुत ही दण्ड पाएँगे।”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
यीशु ने कहा
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्यों को बपतिस्मा देने का अधिकार यूहन्ना को स्वर्ग से मिला था या मनुष्यों से? या “परमेश्वर ने यूहन्ना को बपतिस्मा देने के लिए कहा था या मनुष्यों ने”?
“परमेश्वर से” यहूदी परमेश्वर का नाम, “यहोवा” अपने मुंह पर नहीं लाते थे। वे परमेश्वर के लिए स्वर्ग शब्द का उपयोग करते थे। (देखें: metonymy)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्होंने आपस में विचार किया” या “उन्होंने उत्तर खोजा”
“परमेश्वर से”, यह निर्भर करता है कि पिछले पद में प्रश्न का अनुवाद कैसे किया गया है। इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर ने दिया” या “परमेश्वर ने अधिकार दिया” कुछ भाषाओं में परोक्ष अभिव्यक्ति अधिक उचित होती हे। इस वाक्य के आरंभ का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि हम कहते हैं कि परमेश्वर ने उसे अधिकार दिया है”।
“तो यीशु कहेगा”
“पत्थर मारकर हमारी हत्या कर देंगे। परमेश्वर के विधान में एक आज्ञा थी कि यदि कोई परमेश्वर की या उसके भविष्यद्वक्ताओं की निन्दा करे तो उसे पत्थरवाह किया जाए।
“प्रधान पुरोहित, विधि-शास्त्रियों तथा पुरनियों ने कहा”
कुछ भाषाओं में अपरोक्ष उद्धरण उचित होता है, “उन्होंने कहा, हम नहीं जानते”
“यूहन्ना का बपतिस्मा किसके अधिकार से था” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यूहन्ना को बपतिस्मा देने का अधिकार किसने दिया था” या “यूहन्ना किसके अधिकर से बपतिस्मा देता था”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं भी नहीं बताऊंगा” या “तुम मुझे बताना नहीं चाहते तो मैं भी तुम्हें नहीं बताऊंगा”।
“किसानों को किराए पर दे दिया” या “किसानों को सौंप दिया कि उसकी फसल संभालें ओर उसे लाभ का अंश दें”।
दाख की बारी को संभालने और दाख की उपज उठाने वाले लोग, “दाख उत्पादक”
“कुछ दाख” या “दाख की फसल का अंश” इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि दाख का उत्पाद या उसकी आय का पैसा।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसे कुछ नहीं दिया और भगा दिया” या “उसे दाख दिए बिना भेज दिया”।
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“उसके साथ बुरा व्यवहार करके”
“मार पीट कर”
यहाँ अनुवाद में “तौ भी” शब्द नहीं है जिसका अर्थ है कि उस दाख की बारी के स्वामी को दूसरा सेवक भेजने की आवश्यकता नहीं थी परन्तु उसने दूसरा ही नहीं तीसरा सेवक भी भेजा।
(यीशु वही शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“जब उन किसानों ने स्वामी के पुत्र को देखा”
(यीशु वही शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“किसानों ने उसके पुत्र को दाखकी बारी के बाहर ले जाकर मार डाला”
यीशु इस अलंकारिक प्रश्न द्वारा दाख की बारी के स्वामी की प्रतिक्रिया पर श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करवाना चाहता था। इसका अनुवाद आज्ञा सूचक वाक्य में किया जा सकता है, “अब सुनो कि दाख की बारी का स्वामी उसके साथ क्या करेगा”।
“परमेश्वर ऐसा न होने दे” या “ऐसा कभी न हो” श्रोता समझ गए थे कि परमेश्वर उन्हें यरूशलेम से विस्थापित करेगा क्योंकि उन्होंने मसीह को त्याग दिया था। अतः उन्होंने अपनी प्रबल इच्छा व्यक्त की कि ऐसा दुर्भाग्य उन पर आए।
(यीशु जनसमूह से ही बातें कर रहा है)
“यीशु ने उन्हें घूर कर” या “सीधा उनकी ओर देखकर”, यीशु ने ऐसा इसलिए किया कि वह उन्हें अपनी बात को समझने का लेखादायी माने।
इस अलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “धर्मशास्त्र का यह संदर्भ क्या अर्थ रखता है”? या “तुम्हें धर्मशास्त्र को समझना है”।
यह रूपक भजनसंहिता की भविष्यद्वाणी है कि मनुष्य मसीह का परित्याग करेंगे।
“जिस पत्थर को राज-मिस्त्रियों ने किसी काम का नहीं” कहा या “उस युग में गृह-निर्माण के लिए पत्थर काम में आते थे।
यह ईमारत को दृढ़ता प्रदान करने के लिए लगाया जाता था। इसका उनुवाद हो सकता है, “प्रमुख पत्थर” या “सबसे अधिक महत्वपूर्ण पत्थर”
“जो भी उस पत्थर पर गिरेगा” यह एक रूपक भी एक भविष्यद्वाणी है कि मसीह का त्याग करनेवाले हर एक मनुष्य का क्या होगा।
“टुकड़े-टुकड़ें हो जायेगा, “उस पत्थर पर गिरने का परिणाम ऐसा होगा।
यह मसीह का त्याग करनेवालों को दण्ड देने की भविष्यद्वाणी के लिए काम में लिया गया एक रूपक है।
“यीशु को बन्दी बनाने का उपाए खोजा” पकड़े का अर्थ है बन्दी बनाना।
“तुरन्त”
यीशु को उसी पल न पकड़ने का कारण यही था। लोग यीशु को मान प्रदान करते थे। जिसके कारण धर्म के अगुवे डरते थे कि यदि वे यीशु को बन्दी बनायेंगे तो जनता उसका क्या करेगी। कुछ अनुवादकों को इसे स्पष्ट करना होगा”, उन्होंने उसे बन्दी नहीं बनाया क्योंकि वे जनता से डरते थे।
“विधि-शास्त्रियों और प्रधान पुरोहितों ने यीशु की गतिविधियों की निगरानी हेतु गुप्त में मनुष्य नियुक्त किए”
“वे यीशु की किसी ऐसी बात को पकड़े जो नियम विरोधी हो”।
“उसे प्रशासक के समक्ष उपस्थित करने हेतु” या “कि वे उसे प्रशासक को सौंप दें”
“हाथ” ओर “अधिकार” एक ही बात को कहने की दो विधियां हैं। इसके अनुवाद में एक ही रखें। यीशु को प्रशासक के समक्ष उपस्थित करने का कारण स्पष्ट करने की आवश्यकता है, “कि प्रशासक यीशु को दण्ड दे”।
उस भेदिए ने यीशु के बारे में प्रचलित विचार व्यक्त किया
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) चाहे बड़े से बड़ा मनुष्य पसन्द न करे तू सच्ची बात ही बोलता है” (यू.डी.बी.) या “तू किसी एक का पक्ष नहीं लेता है”
वे सोच रहे थे कि यीशु, “हाँ” कहेगा तो यहूदी उसके विरुद्ध हो जायेंगे कि वह विदेशी सरकार का समर्थ है। यदि वह “नहीं” कहेगा तो धर्मगुरू रोमियों से कह देंगे कि वह रोमी नियम तोड़ने के लिए लोगों को भड़काता है।
वे परमेश्वर के विधान के अनुसार उचित जानना चाहते थे कैसर के विधान के अनुसार नहीं। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “क्या हमारा विधान अनुमति देता है”?
कैसर रोमी राज्य का सम्राट था। वे रोम के लिए मात्र कैसर का नाम लेते थे।
“यीशु उनकी धूर्तता को समझ गया” या “यीशु समझ गया कि वे उसे फसाना चाहते थे”
एक दिन की मजदूरी के बराबर मूल्य का एक सिक्का
“चित्र एवं नाम”
यीशु ने उन भेदियों से कहा
कैसर का अर्थ है रोमी सरकार
“उसकी बात में कोई गलती न पकड़ पाए”
“चकित हुए” या “हैरान हो गए” (यू.डी.बी.)
इस वाक्यांश से सदूकियों को यहूदियों का एक पंथ माना जाता है जो कहता था कि पुनरुत्थान नहीं होता है। इसका अर्थ यह नहीं समझा जाए कि सदूकियों में कुछ पुनरुत्थान को नहीं मानते थे और कुछ मानते थे।
“यदि किसी का भाई विवाह पश्चात निःसन्तान मर जाए”
“सन्तान न उत्पन्न करने से पहले”
“अपने मृतक भाई की पत्नी से विवाह करे”
(सदूकी यीशु को एक काल्पनिक कथा सुना रहे हैं)
ऐसा होना संभव था परन्तु यह संभवतः यीशु को परखने के लिए एक काल्पनिक कहानी थी।
“निःसन्तान मर गए” या “मर गए परन्तु सन्तान उत्पन्न नहीं कर पाए”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “दूसरे ने उससे विवाह किया और ऐसा ही हुआ” या “दूसरे ने अपने मृतक भाई की पत्नी से विवाह किया परन्तु वह भी निःसन्तान मर गया”।
“तीसरे भाई ने उस स्त्री से विवाह किया”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इसी प्रकार सातों भाई उस स्त्री के पति होकर निःसन्तान मर गए”
“जब मृतक जी उठेंगे” (यू.डी.बी.) या “पुनरुत्थान के दिन” कुछ भाषाओं में सदूकियों द्वारा पुनरुत्थान में विश्वास न करने को और स्पष्ट किया गया है जैसे “तथाकथित पुनरुत्थान के दिन”, (मृतकों का जी उठना माना जाता है)
“इस संसार के लोगों में” या इस युग के मनुष्यों में” यह स्वर्गिक प्राणियों या पुनरूत्थान के बाद के मनुष्यों में अन्तर प्रकट करता है।
उस संस्कृति में कहा जाता था कि पुरूष स्त्री से विवाह करता है और स्त्री विवाह में पुरूष को दी जाती है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “विवाह करते है”
“जिन्हें परमेश्वर ने योग्य स्वीकार किया है”
“पुनरुत्थान प्राप्त करे” या “फिर जी उठें”।
“विवाह नहीं करेंगे”, यह पुनरूत्थान के बाद है
इसका अनुवाद हो सकता है, “वे फिर कभी नहीं मरेंगे”, पुनरूत्थान के बाद।
“परमेश्वर की सन्तान”
“मृतकों में से जी उठे लोग”
इसका अनुवाद हो सकता है, “मृतकों में से जी उठने के द्वारा वे परमेश्वर की सन्तान होंगे”।
(यीशु अपने चेलों से ही बातें कर रहा है)
“परन्तु मूसा ने भी सिद्ध किया है कि मृतक जी उठते है”, यहाँ “भी” शब्द का उपयोग किया गया है क्योंकि सदूकियों के लिए धर्मशास्त्र में मृतकों के जी उठने का उल्लेख कोई आश्चर्य की बात नहीं थी परन्तु उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि मूसा ऐसा कुछ कहेगा।
“धर्मशास्त्र में जहाँ उसने जलती हुई भस्म न होने वाली झाड़ी का उल्लेख किया है” या “धर्मशास्त्र में अविनाशी जलती हुई झाड़ी की चर्चा करते समय”
“जब मूसा परमेश्वर को”
“अब्राहम, इसहाक और मूसा का परमेश्वर” कहता है”
“परमेश्वर मृतकों का परमेश्वर नहीं है” या “परमेश्वर मृतकों का परमेश्वर नहीं” जिनकी आत्माएं मर चुकी हैं”।
“जीवित मनुष्यों का परमेश्वर है” या “उन मनुष्यों का परमेश्वर है जिनकी आत्माएं अमर हैं”। यदि यह स्पष्ट न हो तो आपको संलग्न जानकारी व्यक्त करने की आवश्यकता होगी, “यद्यपि उनका शरीर मृतक है।
“क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में वे सब जीवित हैं” इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “क्योंकि परमेश्वर जानता है कि उनकी आत्माएं जीवित हैं”
“कुछ विधि-शास्त्रियों ने यीशु से कहा”
“वे उससे पूछने में डरे” या “उससे पूछने का साहस न किया” प्रश्नों के उद्देश्य का निहितार्थ और प्रश्न न पूछने का कारण स्पष्ट किया जा सकता है, “उन्होंने उससे और अधिक चतुराई के प्रश्न नहीं पूछे क्योंकि उन्हें डर था कि उसके उत्तर उन्हें मूर्ख सिद्ध कर देंगे”।
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे क्यों कहते हैं कि” या “मैं उनकी इस बात पर चर्चा करूंगा”
“राजा दाऊद का वंशज”, यहाँ सन्तान शब्द का अर्थ है, वंशज। यह परमेश्वर के राज्य में राज करनेवाले के विषय में कहा गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “प्रभु परमेश्वर ने मेरे प्रभु कहा” या “परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा। यह एक भजन का उद्धरण है, “यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा, परन्तु यहूदी “यहोवा” शब्द का उपयोग नहीं करते थे। वे इसके स्थान में “प्रभु” शब्द का उपयोग करते थे।
दाऊद मसीह को अपना प्रभु कह रहा हथा
दाहिनी ओर सम्मान का स्थान होता है। परमेश्वर मसीह को सम्मान देने के लिए कहता है, “मेरे दाहिने बैठ”
यह एक रूपक है। इसका अनुवाद किया जा सकता है, “जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों की चौकी सा न कर दूँ”, या “जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे लिए जीत न लूँ”।
“पाँवों के नीचे”
“तो मसीह दाऊद का वंशज कैसे हुआ”? यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इससे स्पष्ट होता है कि मसीह दाऊद की सन्तान मात्र नहीं है”।
“सावधान रहो”।
लम्बे वस्त्र उनके महत्त्व का प्रतीक थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जिनको सम्मानसूचक वस्त्र धारण करके बाहर निकलना अच्छा लगता है”।
“वे विधवाओं के घर लूटते हैं”। यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, “वे विधवाओं की सम्पदा हड़पते हैं”।
यहाँ “घर” का अर्थ है, सम्पदा।
“वे धर्मी होने का ढोंग रखकर देर तक प्रार्थना की मुद्रा में रहते है” या “वे देर तक प्रार्थना की मुद्रा में खड़े रहते हैं कि लोग उन्हें धर्मी समझें।
“कि मनुष्य उन्हें वह समझे जो वे नहीं हैं” या “कि मनुष्य उन्हें अपने से अधिक अच्छा समझें”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे अन्यों से अधिक दण्ड पाएंगे” या “परमेश्वर उन्हें दूसरों की तुलना में अधिक कठोर दण्ड देगा”
यीशु ने पूछा, "यूहन्ना का बपतिस्मा स्वर्ग से था या मनुष्यों से"?
वे सोचने लगे कि यीशु पूछेगा कि उन्होंने उसमें विश्वास क्यों नहीं किया।
वे सोचने लगे जन समूह उन पर पत्थराव करेगा।
उन्होंने दासों को मारा-पीटा, उन्हें लज्जित किया और खाली हाथ लौटा दिया।
अन्त में उसने अपने प्रिय पुत्र को भेजा।
उन्होंने उसे दाख की बारी के बाहर करके उसकी हत्या कर दी।
वह उन किसानों को नष्ट करके किसी और को दाख की बारी दे देगा?
उसने शास्त्रियों और महायाजकों पर यह दृष्टान्त सुनाये थे?
यीशु ने कहा जो कैसर का है वह कैसर को दो और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो।
वे मृतकों के पुनरूत्थान में विश्वास नहीं करते थे।
विवाह, इस संसार का है अनन्त जीवन का नहीं।
यीशु ने मूसा और जलती हुई झाड़ी का उदाहरण दिया जहां परमेश्वर को अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर कहा गया है।
यीशु ने उद्धारण दिया, "प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा, मेरे दहिने ओर बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों के तले न कर दूं"।
वे विधवाओं के घरों को खा जाते थे और दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी प्रार्थनाएं करते थे।
वे अधिक दण्ड पाएंगे।
1 फिर उसने आँख उठाकर धनवानों को अपना-अपना दान भण्डार में डालते हुए देखा। 2 और उसने एक कंगाल विधवा को भी उसमें दो दमड़ियाँ डालते हुए देखा। 3 तब उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि इस कंगाल विधवा ने सबसे बढ़कर डाला है। 4 क्योंकि उन सब ने अपनी-अपनी बढ़ती में से दान में कुछ डाला है, परन्तु इसने अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी है।”
5 जब कितने लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे, कि वह कैसे सुन्दर पत्थरों और भेंट* की वस्तुओं से संवारा गया है, तो उसने कहा, 6 “वे दिन आएँगे, जिनमें यह सब जो तुम देखते हो, उनमें से यहाँ किसी पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।”
7 उन्होंने उससे पूछा, “हे गुरु, यह सब कब होगा? और ये बातें जब पूरी होने पर होंगी, तो उस समय का क्या चिन्ह होगा?” 8 उसने कहा, “सावधान रहो, कि भरमाए न जाओ, क्योंकि बहुत से मेरे नाम से आकर कहेंगे, कि मैं वही हूँ; और यह भी कि समय निकट आ पहुँचा है: तुम उनके पीछे न चले जाना। (1 यूह. 4:1, मर. 13:21-23) 9 और जब तुम लड़ाइयों और बलवों की चर्चा सुनो, तो घबरा न जाना; क्योंकि इनका पहले होना अवश्य है; परन्तु उस समय तुरन्त अन्त न होगा।”
10 तब उसने उनसे कहा, “जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा। (2 इति. 15:5-6, यशा. 19:2) 11 और बड़े-बड़े भूकम्प होंगे, और जगह-जगह अकाल और महामारियाँ पड़ेंगी, और आकाश में भयंकर बातें और बड़े-बड़े चिन्ह प्रगट होंगे। 12 परन्तु इन सब बातों से पहले वे मेरे नाम के कारण तुम्हें पकड़ेंगे, और सताएँगे, और आराधनालयों में सौंपेंगे, और बन्दीगृह में डलवाएँगे, और राजाओं और राज्यपालों के सामने ले जाएँगे। 13 पर यह तुम्हारे लिये गवाही देने का अवसर हो जाएगा। 14 इसलिए अपने-अपने मन में ठान रखो कि हम पहले से उत्तर देने की चिन्ता न करेंगे। 15 क्योंकि मैं तुम्हें ऐसा बोल और बुद्धि दूँगा, कि तुम्हारे सब विरोधी सामना या खण्डन न कर सकेंगे। 16 और तुम्हारे माता-पिता और भाई और कुटुम्ब, और मित्र भी तुम्हें पकड़वाएँगे; यहाँ तक कि तुम में से कितनों को मरवा डालेंगे। 17 और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे। 18 परन्तु तुम्हारे सिर का एक बाल भी बाँका न होगा*। (मत्ती 10:30, लूका 12:7) 19 “अपने धीरज से तुम अपने प्राणों को बचाए रखोगे।
20 “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। 21 तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएँ, और जो यरूशलेम के भीतर हों वे बाहर निकल जाएँ; और जो गाँवों में हो वे उसमें न जाएँ। 22 क्योंकि यह पलटा लेने के ऐसे दिन होंगे, जिनमें लिखी हुई सब बातें पूरी हो जाएँगी। (व्य. 32:35, यिर्म. 46:10) 23 उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय, हाय! क्योंकि देश में बड़ा क्लेश और इन लोगों पर बड़ी आपत्ति होगी। 24 वे तलवार के कौर हो जाएँगे, और सब देशों के लोगों में बन्धुए होकर पहुँचाए जाएँगे, और जब तक अन्यजातियों का समय पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्यजातियों से रौंदा जाएगा। (एज्रा 9:7, भज. 79:1, यशा. 63:18, यिर्म. 21:7, दानि. 9:26)
25 “और सूरज और चाँद और तारों में चिन्ह दिखाई देंगे, और पृथ्वी पर, देश-देश के लोगों को संकट होगा; क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएँगे। (भज. 46:2-3, भज. 65:7, यशा. 13:10, यशा. 24:19, यहे. 32:7, योए. 2:30) 26 और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाँट देखते-देखते लोगों के जी में जी न रहेगा* क्योंकि आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। (लैव्य. 26:36, हाग्गै 2:6, हाग्गै 2:21) 27 तब वे मनुष्य के पुत्र को सामर्थ्य और बड़ी महिमा के साथ बादल पर आते देखेंगे। (प्रका. 1:7, दानि. 7:13) 28 जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा।”
29 उसने उनसे एक दृष्टान्त भी कहा, “अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो। 30 ज्यों ही उनकी कोंपलें निकलती हैं, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। 31 इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है। 32 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का कदापि अन्त न होगा। 33 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।
34 “इसलिए सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फन्दे के समान अचानक आ पड़े। 35 क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। (प्रका. 3:3, लूका 12:40) 36 इसलिए जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े* होने के योग्य बनो।”
37 और वह दिन को मन्दिर में उपदेश करता था; और रात को बाहर जाकर जैतून नाम पहाड़ पर रहा करता था। 38 और भोर को तड़के सब लोग उसकी सुनने के लिये मन्दिर में उसके पास आया करते थे।
1 अख़मीरी रोटी का पर्व जो फसह कहलाता है, निकट था। 2 और प्रधान याजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उसको कैसे मार डालें, पर वे लोगों से डरते थे।
3 और शैतान यहूदा में समाया*, जो इस्करियोती कहलाता और बारह चेलों में गिना जाता था। 4 उसने जाकर प्रधान याजकों और पहरुओं के सरदारों के साथ बातचीत की, कि उसको किस प्रकार उनके हाथ पकड़वाए। 5 वे आनन्दित हुए, और उसे रुपये देने का वचन दिया। 6 उसने मान लिया, और अवसर ढूँढ़ने लगा, कि बिना उपद्रव के उसे उनके हाथ पकड़वा दे।
7 तब अख़मीरी रोटी के पर्व का दिन आया, जिसमें फसह का मेम्ना बलि करना अवश्य था। (निर्ग. 12:3,6,8,14) 8 और यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा, “जाकर हमारे खाने के लिये फसह तैयार करो।” 9 उन्होंने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है, कि हम तैयार करें?” 10 उसने उनसे कहा, “देखो, नगर में प्रवेश करते ही एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा, जिस घर में वह जाए; तुम उसके पीछे चले जाना, 11 और उस घर के स्वामी से कहो, ‘गुरु तुझ से कहता है; कि वह पाहुनशाला कहाँ है जिसमें मैं अपने चेलों के साथ फसह खाऊँ?’ 12 वह तुम्हें एक सजी-सजाई बड़ी अटारी दिखा देगा; वहाँ तैयारी करना। 13 उन्होंने जाकर, जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया, और फसह तैयार किया।
14 जब घड़ी पहुँची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा। 15 और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी, कि दुःख-भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊँ। 16 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक वह परमेश्वर के राज्य में पूरा न हो तब तक मैं उसे कभी न खाऊँगा।” 17 तब उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया और कहा, “इसको लो और आपस में बाँट लो। 18 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक परमेश्वर का राज्य न आए तब तक मैं दाखरस अब से कभी न पीऊँगा।” 19 फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये दी जाती है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” 20 इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है। (निर्ग. 24:8, 1 कुरि. 11:25, मत्ती 26:28, जक. 9:11) 21 पर देखो, मेरे पकड़वानेवाले का हाथ मेरे साथ मेज पर है। (भज. 41:9) 22 क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके लिये ठहराया गया, जाता ही है, पर हाय उस मनुष्य पर, जिसके द्वारा वह पकड़वाया जाता है!” 23 तब वे आपस में पूछ-ताछ करने लगे, “हम में से कौन है, जो यह काम करेगा?”
24 उनमें यह वाद-विवाद भी हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है? 25 उसने उनसे कहा, “अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं। 26 परन्तु तुम ऐसे न होना; वरन् जो तुम में बड़ा है, वह छोटे के समान और जो प्रधान है, वह सेवक के समान बने। 27 क्योंकि बड़ा कौन है; वह जो भोजन पर बैठा या वह जो सेवा करता है? क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है? पर मैं तुम्हारे बीच में सेवक के समान हूँ।
28 “परन्तु तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे; 29 और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूँ। 30 ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पीओ; वरन् सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।
31 “शमौन, हे शमौन, शैतान ने तुम लोगों को माँग लिया है कि गेंहूँ के समान फटके*। 32 परन्तु मैंने तेरे लिये विनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे और जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।” 33 उसने उससे कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, वरन् मरने को भी तैयार हूँ।” 34 उसने कहा, “हे पतरस मैं तुझ से कहता हूँ, कि आज मुर्गा बाँग देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि मैं उसे नहीं जानता।”
35 और उसने उनसे कहा, “जब मैंने तुम्हें बटुए, और झोली, और जूते बिना भेजा था, तो क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुई थी?” उन्होंने कहा, “किसी वस्तु की नहीं।” 36 उसने उनसे कहा, “परन्तु अब जिसके पास बटुआ हो वह उसे ले, और वैसे ही झोली भी, और जिसके पास तलवार न हो वह अपने कपड़े बेचकर एक मोल ले। 37 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यह जो लिखा है, ‘वह अपराधी के साथ गिना गया,’ उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है; क्योंकि मेरे विषय की बातें पूरी होने पर हैं।” (गला. 3:13, 2 कुरि. 5:21, यशा. 53:12)
38 उन्होंने कहा, “हे प्रभु, देख, यहाँ दो तलवारें हैं।” उसने उनसे कहा, “बहुत हैं।”
39 तब वह बाहर निकलकर अपनी रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछे हो लिए। 40 उस जगह पहुँचकर उसने उनसे कहा, “प्रार्थना करो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।” 41 और वह आप उनसे अलग एक ढेला फेंकने की दूरी भर गया, और घुटने टेककर प्रार्थना करने लगा। 42 “हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, फिर भी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।” 43 तब स्वर्ग से एक दूत उसको दिखाई दिया जो उसे सामर्थ्य देता था*। 44 और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हार्दिक वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी-बड़ी बूँदों के समान भूमि पर गिर रहा था। 45 तब वह प्रार्थना से उठा और अपने चेलों के पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया। 46 और उनसे कहा, “क्यों सोते हो? उठो, प्रार्थना करो, कि परीक्षा में न पड़ो।”
47 वह यह कह ही रहा था, कि देखो एक भीड़ आई, और उन बारहों में से एक जिसका नाम यहूदा था उनके आगे-आगे आ रहा था, वह यीशु के पास आया, कि उसका चूमा ले। 48 यीशु ने उससे कहा, “हे यहूदा, क्या तू चूमा लेकर मनुष्य के पुत्र को पकड़वाता है?” 49 उसके साथियों ने जब देखा कि क्या होनेवाला है, तो कहा, “हे प्रभु, क्या हम तलवार चलाएँ?” 50 और उनमें से एक ने महायाजक के दास पर तलवार चलाकर उसका दाहिना कान उड़ा दिया। 51 इस पर यीशु ने कहा, “अब बस करो।” और उसका कान छूकर उसे अच्छा किया। 52 तब यीशु ने प्रधान याजकों और मन्दिर के पहरुओं के सरदारों और प्राचीनों से, जो उस पर चढ़ आए थे, कहा, “क्या तुम मुझे डाकू जानकर तलवारें और लाठियाँ लिए हुए निकले हो? 53 जब मैं मन्दिर में हर दिन तुम्हारे साथ था, तो तुम ने मुझ पर हाथ न डाला; पर यह तुम्हारी घड़ी है, और अंधकार का अधिकार है।”
54 फिर वे उसे पकड़कर ले चले, और महायाजक के घर में लाए और पतरस दूर ही दूर उसके पीछे-पीछे चलता था। 55 और जब वे आँगन में आग सुलगाकर इकट्ठे बैठे, तो पतरस भी उनके बीच में बैठ गया। 56 और एक दासी उसे आग के उजियाले में बैठे देखकर और उसकी ओर ताक कर कहने लगी, “यह भी तो उसके साथ था।” 57 परन्तु उसने यह कहकर इन्कार किया, “हे नारी, मैं उसे नहीं जानता।” 58 थोड़ी देर बाद किसी और ने उसे देखकर कहा, “तू भी तो उन्हीं में से है।” पतरस ने कहा, “हे मनुष्य मैं नहीं हूँ।” 59 कोई घंटे भर के बाद एक और मनुष्य दृढ़ता से कहने लगा, “निश्चय यह भी तो उसके साथ था; क्योंकि यह गलीली है।” 60 पतरस ने कहा, “हे मनुष्य, मैं नहीं जानता कि तू क्या कहता है?” वह कह ही रहा था कि तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी। 61 तब प्रभु ने घूमकर पतरस की ओर देखा, और पतरस को प्रभु की वह बात याद आई जो उसने कही थी, “आज मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” 62 और वह बाहर निकलकर फूट-फूट कर रोने लगा।
63 जो मनुष्य यीशु को पकड़े हुए थे, वे उसका उपहास करके पीटने लगे; 64 और उसकी आँखें ढाँपकर उससे पूछा, “भविष्यद्वाणी करके बता कि तुझे किसने मारा।” 65 और उन्होंने बहुत सी और भी निन्दा की बातें उसके विरोध में कहीं।
66 जब दिन हुआ तो लोगों के पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री इकट्ठे हुए, और उसे अपनी महासभा में लाकर पूछा, 67 “यदि तू मसीह है, तो हम से कह दे!” उसने उनसे कहा, “यदि मैं तुम से कहूँ तो विश्वास न करोगे। 68 और यदि पूछूँ, तो उत्तर न दोगे। 69 परन्तु अब से मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठा रहेगा।” (मर. 14:62, भज. 110:1) 70 इस पर सब ने कहा, “तो क्या तू परमेश्वर का पुत्र है?” उसने उनसे कहा, “तुम आप ही कहते हो, क्योंकि मैं हूँ।” 71 तब उन्होंने कहा, “अब हमें गवाही की क्या आवश्यकता है; क्योंकि हमने आप ही उसके मुँह से सुन लिया है।”
1 तब सारी सभा उठकर उसे पिलातुस के पास ले गई। 2 और वे यह कहकर उस पर दोष लगाने लगे, “हमने इसे लोगों को बहकाते और कैसर को कर देने से मना करते, और अपने आप को मसीह, राजा कहते हुए सुना है।” 3 पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” उसने उसे उत्तर दिया, “तू आप ही कह रहा है।” 4 तब पिलातुस ने प्रधान याजकों और लोगों से कहा, “मैं इस मनुष्य में कुछ दोष नहीं पाता।” 5 पर वे और भी दृढ़ता से कहने लगे, “यह गलील से लेकर यहाँ तक सारे यहूदिया में उपदेश दे देकर लोगों को भड़काता है।” 6 यह सुनकर पिलातुस ने पूछा, “क्या यह मनुष्य गलीली है?” 7 और यह जानकर कि वह हेरोदेस की रियासत* का है, उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्योंकि उन दिनों में वह भी यरूशलेम में था।
8 हेरोदेस यीशु को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुआ, क्योंकि वह बहुत दिनों से उसको देखना चाहता था : इसलिए कि उसके विषय में सुना था, और उसका कुछ चिन्ह देखने की आशा रखता था। 9 वह उससे बहुत सारी बातें पूछता रहा, पर उसने उसको कुछ भी उत्तर न दिया। 10 और प्रधान याजक और शास्त्री खड़े हुए तन मन से उस पर दोष लगाते रहे। 11 तब हेरोदेस ने अपने सिपाहियों के साथ उसका अपमान करके उपहास किया, और भड़कीला वस्त्र पहनाकर उसे पिलातुस के पास लौटा दिया। 12 उसी दिन पिलातुस और हेरोदेस मित्र हो गए। इसके पहले वे एक दूसरे के बैरी थे।
13 पिलातुस ने प्रधान याजकों और सरदारों और लोगों को बुलाकर उनसे कहा, 14 “तुम इस मनुष्य को लोगों का बहकानेवाला ठहराकर मेरे पास लाए हो, और देखो, मैंने तुम्हारे सामने उसकी जाँच की, पर जिन बातों का तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातों के विषय में मैंने उसमें कुछ भी दोष नहीं पाया है; 15 न हेरोदेस ने, क्योंकि उसने उसे हमारे पास लौटा दिया है: और देखो, उससे ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए। 16 इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” 17 पिलातुस पर्व के समय उनके लिए एक बन्दी को छोड़ने पर विवश था। 18 तब सब मिलकर चिल्ला उठे, “इसका काम तमाम कर, और हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।” 19 वह किसी बलवे के कारण जो नगर में हुआ था, और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था। 20 पर पिलातुस ने यीशु को छोड़ने की इच्छा से लोगों को फिर समझाया। 21 परन्तु उन्होंने चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” 22 उसने तीसरी बार उनसे कहा, “क्यों उसने कौन सी बुराई की है? मैंने उसमें मृत्यु दण्ड के योग्य कोई बात नहीं पाई! इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” 23 परन्तु वे चिल्ला-चिल्लाकर पीछे पड़ गए, कि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए, और उनका चिल्लाना प्रबल हुआ। 24 अतः पिलातुस ने आज्ञा दी, कि उनकी विनती के अनुसार किया जाए। 25 और उसने उस मनुष्य को जो बलवे और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था, और जिसे वे माँगते थे, छोड़ दिया; और यीशु को उनकी इच्छा के अनुसार सौंप दिया।
26 जब वे उसे लिए जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नाम एक कुरेनी को जो गाँव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस को लाद दिया कि उसे यीशु के पीछे-पीछे ले चले। 27 और लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली: और बहुत सारी स्त्रियाँ भी, जो उसके लिये छाती-पीटती और विलाप करती थीं। 28 यीशु ने उनकी ओर फिरकर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ; परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ। 29 क्योंकि वे दिन आते हैं, जिनमें लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बाँझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’
30 उस समय
‘वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो,
और टीलों से कि हमें ढाँप लो।’
31 क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?” 32 वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ मार डालने को ले चले। 33 जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया। 34 तब यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर*, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहें हैं?” और उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। (1 पत. 3:9, प्रका. 7:60, यशा. 53:12, भज. 22:18)
35 लोग खड़े-खड़े देख रहे थे, और सरदार भी उपहास कर-करके कहते थे, “इसने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।” (भज. 22:7) 36 सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका उपहास करके कहते थे। (भज. 69:21) 37 “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!” 38 और उसके ऊपर एक दोष पत्र भी लगा था : “यह यहूदियों का राजा है।”
39 जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!” 40 इस पर दूसरे ने उसे डाँटकर कहा, “क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है, 41 और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” 42 तब उसने कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।” 43 उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक* में होगा।”
44 और लगभग दोपहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अंधियारा छाया रहा, 45 और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच से फट गया, (आमो. 8:9, इब्रा.10:19) 46 और यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” और यह कहकर प्राण छोड़ दिए। 47 सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर परमेश्वर की बड़ाई की, और कहा, “निश्चय यह मनुष्य धर्मी था।” 48 और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई थी, इस घटना को देखकर छाती पीटती हुई लौट गई। 49 और उसके सब जान पहचान, और जो स्त्रियाँ गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं। (भज. 38:11, भज. 88:8)
50 और वहाँ, यूसुफ नामक महासभा का एक सदस्य था, जो सज्जन और धर्मी पुरुष था। 51 और उनके विचार और उनके इस काम से प्रसन्न न था; और वह यहूदियों के नगर अरिमतियाह का रहनेवाला और परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा करनेवाला था। 52 उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा, 53 और उसे उतारकर मलमल की चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खोदी हुई थी; और उसमें कोई कभी न रखा गया था। 54 वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था। 55 और उन स्त्रियों ने जो उसके साथ गलील से आई थीं, पीछे-पीछे, जाकर उस कब्र को देखा और यह भी कि उसका शव किस रीति से रखा गया हैं। 56 और लौटकर सुगन्धित वस्तुएँ और इत्र तैयार किया; और सब्त के दिन तो उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया। (निर्ग. 20:10, व्य. 5:14)
1 परन्तु सप्ताह के पहले दिन बड़े भोर को वे उन सुगन्धित वस्तुओं को जो उन्होंने तैयार की थी, लेकर कब्र पर आईं। 2 और उन्होंने पत्थर को कब्र पर से लुढ़का हुआ पाया, 3 और भीतर जाकर प्रभु यीशु का शव न पाया। 4 जब वे इस बात से भौचक्की हो रही थीं तब, दो पुरुष झलकते वस्त्र पहने हुए उनके पास आ खड़े हुए। 5 जब वे डर गईं, और धरती की ओर मुँह झुकाए रहीं; तो उन्होंने उनसे कहा, “तुम जीविते को मरे हुओं में क्यों ढूँढ़ती हो? (प्रका. 1:18, मर. 16:5-6) 6 वह यहाँ नहीं, परन्तु जी उठा है। स्मरण करो कि उसने गलील में रहते हुए तुम से कहा था, 7 ‘अवश्य है, कि मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ में पकड़वाया जाए, और क्रूस पर चढ़ाया जाए, और तीसरे दिन जी उठे’।” 8 तब उसकी बातें उनको स्मरण आईं, 9 और कब्र से लौटकर उन्होंने उन ग्यारहों को, और अन्य सब को, ये सब बातें कह सुनाई। 10 जिन्होंने प्रेरितों से ये बातें कहीं, वे मरियम मगदलीनी और योअन्ना और याकूब की माता मरियम और उनके साथ की अन्य स्त्रियाँ भी थीं। 11 परन्तु उनकी बातें उन्हें कहानी के समान लगी और उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया। 12 तब पतरस उठकर कब्र पर दौड़ा गया, और झुककर केवल कपड़े पड़े देखे, और जो हुआ था, उससे अचम्भा करता हुआ, अपने घर चला गया।
13 उसी दिन उनमें से दो जन इम्माऊस नामक एक गाँव को जा रहे थे, जो यरूशलेम से कोई सात मील की दूरी पर था। 14 और वे इन सब बातों पर जो हुईं थीं, आपस में बातचीत करते जा रहे थे। 15 और जब वे आपस में बातचीत और पूछ-ताछ कर रहे थे, तो यीशु आप पास आकर उनके साथ हो लिया। 16 परन्तु उनकी आँखें ऐसी बन्द कर दी गईं थी, कि उसे पहचान न सके*। 17 उसने उनसे पूछा, “ये क्या बातें हैं, जो तुम चलते-चलते आपस में करते हो?” वे उदास से खड़े रह गए। 18 यह सुनकर, उनमें से क्लियुपास नामक एक व्यक्ति ने कहा, “क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है; जो नहीं जानता, कि इन दिनों में उसमें क्या-क्या हुआ है?” 19 उसने उनसे पूछा, “कौन सी बातें?” उन्होंने उससे कहा, “यीशु नासरी के विषय में जो परमेश्वर और सब लोगों के निकट काम और वचन में सामर्थी भविष्यद्वक्ता* था। 20 और प्रधान याजकों और हमारे सरदारों ने उसे पकड़वा दिया, कि उस पर मृत्यु की आज्ञा दी जाए; और उसे क्रूस पर चढ़वाया। 21 परन्तु हमें आशा थी, कि यही इस्राएल को छुटकारा देगा, और इन सब बातों के सिवाय इस घटना को हुए तीसरा दिन है। 22 और हम में से कई स्त्रियों ने भी हमें आश्चर्य में डाल दिया है, जो भोर को कब्र पर गई थीं। 23 और जब उसका शव न पाया, तो यह कहती हुई आईं, कि हमने स्वर्गदूतों का दर्शन पाया, जिन्होंने कहा कि वह जीवित है। 24 तब हमारे साथियों में से कई एक कब्र पर गए, और जैसा स्त्रियों ने कहा था, वैसा ही पाया; परन्तु उसको न देखा।” 25 तब उसने उनसे कहा, “हे निर्बुद्धियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दमतियों! 26 क्या अवश्य न था, कि मसीह ये दुःख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करे?” 27 तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्रशास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया। (यूह. 1:45, लूका 24:44, व्य. 18:15)
28 इतने में वे उस गाँव के पास पहुँचे, जहाँ वे जा रहे थे, और उसके ढंग से ऐसा जान पड़ा, कि वह आगे बढ़ना चाहता है। 29 परन्तु उन्होंने यह कहकर उसे रोका, “हमारे साथ रह; क्योंकि संध्या हो चली है और दिन अब बहुत ढल गया है।” तब वह उनके साथ रहने के लिये भीतर गया। 30 जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया, और उसे तोड़कर उनको देने लगा। 31 तब उनकी आँखें खुल गईं*; और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उनकी आँखों से छिप गया। 32 उन्होंने आपस में कहा, “जब वह मार्ग में हम से बातें करता था, और पवित्रशास्त्र का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पन्न हुई?” 33 वे उसी घड़ी उठकर यरूशलेम को लौट गए, और उन ग्यारहों और उनके साथियों को इकट्ठे पाया। 34 वे कहते थे, “प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है।” 35 तब उन्होंने मार्ग की बातें उन्हें बता दीं और यह भी कि उन्होंने उसे रोटी तोड़ते समय कैसे पहचाना।
36 वे ये बातें कह ही रहे थे, कि वह आप ही उनके बीच में आ खड़ा हुआ; और उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” 37 परन्तु वे घबरा गए, और डर गए, और समझे, कि हम किसी भूत को देख रहे हैं। 38 उसने उनसे कहा, “क्यों घबराते हो? और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं? 39 मेरे हाथ और मेरे पाँव को देखो, कि मैं वहीं हूँ; मुझे छूकर देखो; क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।”
40 यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ पाँव दिखाए। 41 जब आनन्द के मारे उनको विश्वास नहीं हो रहा था, और आश्चर्य करते थे, तो उसने उनसे पूछा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास कुछ भोजन है?” 42 उन्होंने उसे भुनी मछली का टुकड़ा दिया। 43 उसने लेकर उनके सामने खाया। 44 फिर उसने उनसे कहा, “ये मेरी वे बातें हैं, जो मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।” 45 तब उसने पवित्रशास्त्र समझने के लिये उनकी समझ खोल दी। 46 और उनसे कहा, “यों लिखा है कि मसीह दुःख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा, (यशा. 53:5, लूका 24:7) 47 और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा। 48 तुम इन सब बातें के गवाह हो। 49 और जिसकी प्रतिज्ञा* मेरे पिता ने की है, मैं उसको तुम पर उतारूँगा और जब तक स्वर्ग से सामर्थ्य न पाओ, तब तक तुम इसी नगर में ठहरे रहो।”
50 तब वह उन्हें बैतनिय्याह तक बाहर ले गया, और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीष दी; 51 और उन्हें आशीष देते हुए वह उनसे अलग हो गया और स्वर्ग पर उठा लिया गया। (प्रेरि. 1:9, भज. 47:5) 52 और वे उसको दण्डवत् करके बड़े आनन्द से यरूशलेम को लौट गए। 53 और वे लगातार मन्दिर में उपस्थित होकर परमेश्वर की स्तुति किया करते थे।
1 आदि में* वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। 2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था। 3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई। 4 उसमें जीवन था*; और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। 5 और ज्योति अंधकार में चमकती है; और अंधकार ने उसे ग्रहण न किया। 6 एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्थित हुआ जिसका नाम यूहन्ना था। 7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएँ। 8 वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था। 9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी। 10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहचाना। 11 वह अपने घर में आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। 12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं 13 वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। 14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा। (1 यूह. 4:9) 15 यूहन्ना ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, “यह वही है, जिसका मैंने वर्णन किया, कि जो मेरे बाद आ रहा है, वह मुझसे बढ़कर है, क्योंकि वह मुझसे पहले था।” 16 क्योंकि उसकी परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात् अनुग्रह पर अनुग्रह। 17 इसलिए कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई, परन्तु अनुग्रह और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुँची। 18 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा*, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।
19 यूहन्ना की गवाही यह है, कि जब यहूदियों ने यरूशलेम से याजकों और लेवियों को उससे यह पूछने के लिये भेजा, “तू कौन है?” 20 तो उसने यह मान लिया, और इन्कार नहीं किया, परन्तु मान लिया “मैं मसीह नहीं हूँ।” 21 तब उन्होंने उससे पूछा, “तो फिर कौन है? क्या तू एलिय्याह है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।” “तो क्या तू वह भविष्यद्वक्ता है?” उसने उत्तर दिया, “नहीं।” 22 तब उन्होंने उससे पूछा, “फिर तू है कौन? ताकि हम अपने भेजनेवालों को उत्तर दें। तू अपने विषय में क्या कहता है?” 23 उसने कहा, “जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, ‘मैं जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हूँ कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो’।” (यशा. 40:3) 24 ये फरीसियों की ओर से भेजे गए थे। 25 उन्होंने उससे यह प्रश्न पूछा, “यदि तू न मसीह है, और न एलिय्याह, और न वह भविष्यद्वक्ता है, तो फिर बपतिस्मा क्यों देता है?” 26 यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “मैं तो जल से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु तुम्हारे बीच में एक व्यक्ति खड़ा है, जिसे तुम नहीं जानते। 27 अर्थात् मेरे बाद आनेवाला है, जिसकी जूती का फीता मैं खोलने के योग्य नहीं।” 28 ये बातें यरदन के पार बैतनिय्याह में हुई, जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देता था।
29 दूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना* है, जो जगत के पाप हरता है। (1 पत. 1:19, यशा. 53:7) 30 यह वही है, जिसके विषय में मैंने कहा था, कि एक पुरुष मेरे पीछे आता है, जो मुझसे श्रेष्ठ है, क्योंकि वह मुझसे पहले था। 31 और मैं तो उसे पहचानता न था, परन्तु इसलिए मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया, कि वह इस्राएल पर प्रगट हो जाए।” 32 और यूहन्ना ने यह गवाही दी, “मैंने आत्मा को कबूतर के रूप में आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया। 33 और मैं तो उसे पहचानता नहीं था, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझसे कहा, ‘जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है।’ 34 और मैंने देखा, और गवाही दी है कि यही परमेश्वर का पुत्र है।” (भज. 2:7)
35 दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलों में से दो जन खड़े हुए थे। 36 और उसने यीशु पर जो जा रहा था, दृष्टि करके कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है।” 37 तब वे दोनों चेले उसकी सुनकर यीशु के पीछे हो लिए। 38 यीशु ने मुड़कर और उनको पीछे आते देखकर उनसे कहा, “तुम किस की खोज में हो?” उन्होंने उससे कहा, “हे रब्बी, (अर्थात् हे गुरु), तू कहाँ रहता है?” 39 उसने उनसे कहा, “चलो, तो देख लोगे।” तब उन्होंने आकर उसके रहने का स्थान देखा, और उस दिन उसी के साथ रहे; और यह दसवें घंटे के लगभग था। 40 उन दोनों में से, जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था। 41 उसने पहले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उससे कहा, “हमको ख्रिस्त अर्थात् मसीह मिल गया।” (यूह. 4:25) 42 वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, “तू यूहन्ना का पुत्र शमौन है, तू कैफा* अर्थात् पतरस कहलाएगा।”
43 दूसरे दिन यीशु ने गलील को जाना चाहा, और फिलिप्पुस से मिलकर कहा, “मेरे पीछे हो ले।” 44 फिलिप्पुस तो अन्द्रियास और पतरस के नगर बैतसैदा का निवासी था। 45 फिलिप्पुस ने नतनएल से मिलकर उससे कहा, “जिसका वर्णन मूसा ने व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हमको मिल गया; वह यूसुफ का पुत्र, यीशु नासरी है।” (मत्ती 21:11) 46 नतनएल ने उससे कहा, “क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है?” फिलिप्पुस ने उससे कहा, “चलकर देख ले।” 47 यीशु ने नतनएल को अपनी ओर आते देखकर उसके विषय में कहा, “देखो, यह सचमुच इस्राएली है: इसमें कपट नहीं।” 48 नतनएल ने उससे कहा, “तू मुझे कैसे जानता है?” यीशु ने उसको उत्तर दिया, “इससे पहले कि फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था, तब मैंने तुझे देखा था।” 49 नतनएल ने उसको उत्तर दिया, “हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र हे; तू इस्राएल का महाराजा है।” 50 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैंने जो तुझ से कहा, कि मैंने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तू इसलिए विश्वास करता है? तू इससे भी बड़े-बड़े काम देखेगा।” (यूह. 11:40) 51 फिर उससे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखोगे।” (उत्प. 28:12)
आकाश और पृथ्वी की रचना से भी बहुत पहले का समय
अर्थात यीशु। यदि संभव होता तो "यह वचन" अनुवाद करें यदि आपकी भाषा में "वचन" स्त्रीलिंग शब्द है तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है "वह जो वचन कहलाता है"।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है, "परमेश्वर ने सब कुछ उसके द्वारा उत्पन्न किया है"।
"परमेश्वर ने उसके बिना कुछ नहीं सृजा" या "परमेश्वर ने सब कुछ उसके साथ सृजा है" (देखें: और )
"यह वही है जिसे वचन कहा गया है, वही है जिसने हर एक प्राणी को जीवन दिया"
"वह हम पर परमेश्वर के सत्य को वैसे ही प्रकट करता है जैसे ज्योति अन्धकार की वस्तुओं को प्रकट करती है।"
"मनुष्य नहीं चाहते कि वह उनकी बुराइयों को प्रकट करे, ठीक वैसे ही जैसे अन्धकार बुराई है, परन्तु जिस प्रकार कि अन्धकार ज्योति को दबा नहीं सकता उसी प्रकार दुष्ट उस ज्योति स्वरूप व्यक्ति को परमेश्वर के सत्य के प्रकटीकरण से रोक नहीं पाता है"।
प्रकाशित करती है, "प्रकाश देती है"
"यद्यपि वह इस संसार में था और परमेश्वर ने यहाँ पर जो कुछ है वह सब कुछ उसी के द्वारा सृजा मनुष्यों ने फिर भी उसे स्वीकार नहीं किया"।
"वह अपने ही स्वदेश-वासियों में आया और उसके अपने ही स्वदेश-वासियों ने भी उसे स्वीकार नहीं किया"।
"उसने उन्हें अधिकार दिया" या "उसने उनके लिए संभव कर दिया"।
"हमसे सदैव दयालु व्यवहार करता है जिसके हम योग्य नहीं"।
यह शब्द परमेश्वर के अनुग्रह के संदर्भ में है जिसका कोई अन्त नहीं।
"आशिषों पर आशिषें"
एकमात्र मनुष्य, स्वयं परमेश्वर, इसका अर्थ हो सकता है, (1) "एकमात्र परमेश्वर" या (2) "एकमात्र पुत्र"
"जो सदैव पिता के पास रहता है", घनिष्ट संबन्ध का अभिप्राय प्रकट करता है। (देखेः )
और उसने यह मान लिया, उसने उनसे सत्य कहा है और स्पष्ट व्यक्त किया। (देखें: और
"यदि तू मसीह नहीं तो सच क्या है"? या "तो फिर से क्या रहा है"? या "तो फिर तू क्या कह रहा है"?
"याजकों और लेवियों ने यूहन्ना से पूछा"
याजक और लेवी, यूहन्ना नहीं
"यहून्ना ने कहा"
"मैं उसके जैसा हूँ जो ऐसे स्थान में घोषणा कर रहा है जहाँ उसकी वाणी कोई न सुने"।
प्रभु के आगमन के लिए अपने आपको तैयार करो जैसे किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के आगमन के लिए लोग मार्ग तैयार करते हैं।
"मेरे बाद यही तुम्हारे लिए प्रचार करेगा"।
जिसकी जूती का बन्ध मैं खोलने के योग्य नहीं, यहून्ना कह रहा है कि वह एक सेवक का सबसे तुच्छ कार्य उसके लिए करना चाहे तो भी योग्य नहीं है।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"नीचे आते"
इस अभिलेख की कुछ प्रतिलिपियों में लिखा है, "परमेश्वर का पुत्र" और कुछ में लिखा है, "परमेश्वर का चुना हुआ"।
दसों घंटे, यह समय दोपहर के बाद, अन्धेरा होने से पूर्व का है जो किसी दूसरे नगर जाने का समय नहीं था।
यह यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला नहीं पर यूहन्ना उनमें एक प्रचलित नाम था।
"नासरत से कोई भी अच्छी वस्तु नहीं निकल सकती है"
"एक पूर्णतः सत्यवादी मनुष्य है"
किसी महत्त्वपूर्ण एवं सत्य बात को व्यक्त करने के लिए आपकी भाषा में जो भी अभिव्यक्ति है उसका उपयोग यहाँ करें।
आदि में वचन था।
वचन परमेश्वर के साथ था।
वचन परमेश्वर था।
सब कुछ उसके द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई है।
उसमें जीवन था।
उसका नाम यूहन्ना था।
वह गवाही देने आया कि ज्योति की गवाही दे ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं।
यूहन्ना जिस ज्योति की गवाही देने आया था उसे जगत ने नहीं पहचाना और इस ज्योति को अपनों ही ने उसे नहीं पहचाना।
जितनों ने उसे ग्रहण किया उन्हें उसने परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया।
वे परमेश्वर से उत्पन्न होकर परमेश्वर की सन्तान बन जाते हैं।
नहीं, वचन ही एक अद्वैत व्यक्तित्व था जो पिता की ओर से आने वाले वचन के सदृश्य था।
उसकी परिपूर्णता में से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात अनुग्रह पर अनुग्रह।
अनुग्रह और सत्य मसीह यीशु से आया।
"किसी भी मनुष्य ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा है।"
एकलौते पुत्र ने जो पिता परमेश्वर की गोद में है, उसी ने उसे हम पर प्रकट किया है।
उसने कहा, "जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, 'मैं जंगल में पुकारने वाले का शब्द हूँ कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो'"।
उसने कहा, "देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है।"
वह जल से बपतिस्मा देता हुआ आया, कि जगत का पाप उठा ले जाने वाला परमेश्वर का मेम्ना, मसीह यीशु इस्राएल पर प्रकट हो जाए।
यूहन्ना जिस पर आकाश से आत्मा को उतर कर ठहरते देखेगा, वही पवित्र आत्मा का बपतिस्मा देने वाले का चिन्ह होगा।
वे यीशु के पीछे हो लिए।
इन दोनों में से एक का नाम अन्द्रियास था।
अन्द्रियास ने शमौन से कहा, "हमको ख्रीस्त, अर्थात मसीह मिल गया है"।
यीशु ने कहा शमौन कैफा (अर्थात पतरस कहलाएगा)।
अन्द्रियास और पतरस बैतसैदा के निवासी थे।
नतनएल ने कहा, "हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है, तू इस्राएल का महाराजा है"।
यीशु ने नतनएल से कहा, कि वह स्वर्ग को खुला हुआ और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखेगा।
1 फिर तीसरे दिन गलील के काना* में किसी का विवाह था, और यीशु की माता भी वहाँ थी। 2 यीशु और उसके चेले भी उस विवाह में निमंत्रित थे। 3 जब दाखरस खत्म हो गया, तो यीशु की माता ने उससे कहा, “उनके पास दाखरस नहीं रहा*।” 4 यीशु ने उससे कहा, “हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? अभी मेरा समय* नहीं आया।” 5 उसकी माता ने सेवकों से कहा, “जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना।” 6 वहाँ यहूदियों के शुद्धीकरण के लिए पत्थर के छः मटके रखे थे, जिसमें दो-दो, तीन-तीन मन समाता था। 7 यीशु ने उनसे कहा, “मटको में पानी भर दो।” तब उन्होंने उन्हें मुहाँमुहँ भर दिया। 8 तब उसने उनसे कहा, “अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ।” और वे ले गए। 9 जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया था और नहीं जानता था कि वह कहाँ से आया हैं; (परन्तु जिन सेवकों ने पानी निकाला था वे जानते थे), तो भोज के प्रधान ने दूल्हे को बुलाकर, उससे कहा 10 “हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है, और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तूने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।” 11 यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहला चिन्ह दिखाकर अपनी महिमा प्रगट की और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया। 12 इसके बाद वह और उसकी माता, उसके भाई, उसके चेले, कफरनहूम को गए और वहाँ कुछ दिन रहे।
13 यहूदियों का फसह का पर्व निकट था, और यीशु यरूशलेम को गया। 14 और उसने मन्दिर में बैल, और भेड़ और कबूतर के बेचनेवालों ओर सर्राफों को बैठे हुए पाया। 15 तब उसने रस्सियों का कोड़ा बनाकर, सब भेड़ों और बैलों को मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफों के पैसे बिखेर दिये, और मेज़ें उलट दीं, 16 और कबूतर बेचनेवालों से कहा, “इन्हें यहाँ से ले जाओ। मेरे पिता के भवन को व्यापार का घर मत बनाओ।” 17 तब उसके चेलों को स्मरण आया कि लिखा है, “तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी*।” (भज. 69:9) 18 इस पर यहूदियों ने उससे कहा, “तू जो यह करता है तो हमें कौन सा चिन्ह दिखाता हैं?” 19 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “इस मन्दिर को ढा दो, और मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा।” 20 यहूदियों ने कहा, “इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हैं, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?” 21 परन्तु उसने अपनी देह के मन्दिर के विषय में कहा था। 22 फिर जब वह मुर्दों में से जी उठा फिर उसके चेलों को स्मरण आया कि उसने यह कहा था; और उन्होंने पवित्रशास्त्र और उस वचन की जो यीशु ने कहा था, विश्वास किया।
23 जब वह यरूशलेम में फसह के समय, पर्व में था, तो बहुतों ने उन चिन्हों को जो वह दिखाता था देखकर उसके नाम पर विश्वास किया। 24 परन्तु यीशु ने अपने आप को उनके भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था, 25 और उसे प्रयोजन न था कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप जानता था कि मनुष्य के मन में क्या है?
पुत्र द्वारा अपनी माता को महिला कहना अभद्र प्रतीत होगा, अतः अपनी भाषा में ऐसा शब्द काम में लें जो विनम्र एवं औपचारिक हो।
"इसका मुझ से क्या संबन्ध" या "मुझे मत कह कि क्या करना है"।
"अभी समय नहीं है"।
"80 से 120 लीटर" उनका जो नाप था टन वह लगभग 40 लीटर का होता था
अर्थात मुँह का या पूरा भर दो
अर्थात भोजन पानी का प्रबन्धक
यह अतिरिक्त जानकारी है।
दाखमधु के प्रभाव के कारण अच्छी और घटिया मय में अन्तर नहीं पहचान पाते हैं।
इसका मतलब यह है कि उन्होंने ऊँचे स्थान से नीचे स्थान की तरफ प्रस्थान किया। काना नगर कफरनहूम से ऊंचे पर स्थित था और दक्षिण-पश्चिम में था।
इस शब्द में भाई-बहन सब है। यीशु के सब भाई बहन उससे कम आयु के थे।
अर्थात वे नीचे से ऊपर की ओर गए यरूशलेम पहाड़ पर स्थित है।
यह मन्दिर का बाहरी आंगन है जहाँ गैर यहूदियों के लिए आराधना करने की व्यवस्था थी।
"परमेश्वर के लिए बलि चढ़ाने के लिए पशु बेचे जाते थे।"
यहूदी अधिकारियों ने अनिवार्य किया हुआ था कि बाहर का पैसा मन्दिर के पैसों में बदल कर ही पशु-पक्षी खरीदे जाएं अतः सर्राफ मुद्रा विनिमय करते थे।
यीशु इस अभिव्यक्ति द्वारा मन्दिर का संदर्भ देता था।
अर्थात परमेश्वर का मन्दिर-परमेश्वर का घर
अर्थात पूर्णतः अभिभूत कर देगी।
अर्थात मन्दिर के व्यापार को ध्वंस करता है
"तीन दिन में इसका पुनः निर्माण करना तेरे लिए संभव नहीं है"
इसका संदर्भ यूह. 02:17 में यीशु के वचन से है। 2:19
यह एक संयोजक शब्द है जो प्रकट करता है कि एक अनापेक्षित घटना आने वाली है, वैकल्पिक अनुवाद, "तथापि"
गलील के काना नगर में यीशु की माता और उसके शिष्य एक विवाह में आमंत्रित थे।
उसने यीशु को परिस्थिति से अवगत करवाया कि वह कुछ करे।
उसने कहा कि वे पानी के बर्तन पानी से भर दें, फिर उसने सेवकों से कहा कि वे उसमें से कुछ पानी लेकर भोज के प्रधान के पास ले जाए।
भोज के प्रधान ने कहा, "हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है, और जब लोग पीकर छक जाते है, तब मध्यम देता है; परन्तु तूने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है"।
यीशु के शिष्यों ने उसमें विश्वास किया।
उसने मन्दिर में बैल, भेड़ और कबूतर के बेचने वाले और सर्राफों को बैठे देखा।
उसने रस्सियों का कोड़ा बनाकर उन सबको मन्दिर से बाहर निकाला, भेड़ों और बैलों को भी, उसने सर्राफों के पैसे बिखेर दिए और उनके पीढ़ों को उलट दिया।
उसने कहा, "इन्हें यहां से ले जाओ, मेरे पिता के घर को व्यापार का घर मत बनाओ"।
उसने उत्तर दिया, "इस मन्दिर को ढा दो और तीन दिन में इसे खड़ा कर दूंगा"।
यीशु अपनी देह को मन्दिर कह रहा था।
लोगों ने उसके द्वारा किए गए चमत्कारी चिन्हों को देख कर विश्वास किया।
यीशु ने स्वयं को उनके भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सबको जानता था और उसे आवश्यकता नहीं थी कि मनुष्य के विषय में गवाही दे।
1 फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम का एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था*। 2 उसने रात को यीशु के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता।” 3 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ*, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।” 4 नीकुदेमुस ने उससे कहा, “मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो कैसे जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है?” 5 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे* तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। 6 क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। 7 अचम्भा न कर, कि मैंने तुझ से कहा, ‘तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है।’ 8 हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसकी आवाज़ सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहाँ से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।” (सभो. 11:5) 9 नीकुदेमुस ने उसको उत्तर दिया, “ये बातें कैसे हो सकती हैं?” 10 यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “तू इस्राएलियों का गुरु होकर भी क्या इन बातों को नहीं समझता? 11 मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि हम जो जानते हैं, वह कहते हैं, और जिसे हमने देखा है उसकी गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते। 12 जब मैंने तुम से पृथ्वी की बातें कहीं, और तुम विश्वास नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूँ, तो फिर क्यों विश्वास करोगे? 13 कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वहीं जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है। (यहू. 6:38) 14 और जिस तरह से मूसा ने जंगल में साँप को ऊँचे पर चढ़ाया, उसी रीती से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए। (यूह. 8:28) 15 ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनन्त जीवन पाए। 16 “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। 17 परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिए नहीं भेजा, कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परन्तु इसलिए कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। 18 जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; इसलिए कि उसने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया। (यूह. 5:10) 19 और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अंधकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे। 20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए। 21 परन्तु जो सच्चाई पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।”
22 इसके बाद यीशु और उसके चेले यहूदिया देश में आए; और वह वहाँ उनके साथ रहकर बपतिस्मा देने लगा। 23 और यूहन्ना भी सालेम के निकट ऐनोन* में बपतिस्मा देता था। क्योंकि वहाँ बहुत जल था, और लोग आकर बपतिस्मा लेते थे। 24 क्योंकि यूहन्ना उस समय तक जेलखाने में नहीं डाला गया था। 25 वहाँ यूहन्ना के चेलों का किसी यहूदी के साथ शुद्धि के विषय में वाद-विवाद हुआ। 26 और उन्होंने यूहन्ना के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साथ था, और जिसकी तूने गवाही दी है; देख, वह बपतिस्मा देता है, और सब उसके पास आते हैं।” 27 यूहन्ना ने उत्तर दिया, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए, तब तक वह कुछ नहीं पा सकता। 28 तुम तो आप ही मेरे गवाह हो, कि मैंने कहा, ‘मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ।’ (यूह. 1:20, मला. 3:1) 29 जिसकी दुल्हिन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उसकी सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हर्षित होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है। 30 अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ।
31 “जो ऊपर से आता है, वह सर्वोत्तम है, जो पृथ्वी से आता है वह पृथ्वी का है; और पृथ्वी की ही बातें कहता है: जो स्वर्ग से आता है, वह सब के ऊपर है। (यूह. 8:23) 32 जो कुछ उसने देखा, और सुना है, उसी की गवाही देता है; और कोई उसकी गवाही ग्रहण नहीं करता। 33 जिसने उसकी गवाही ग्रहण कर ली उसने इस बात पर छाप दे दी कि परमेश्वर सच्चा है। 34 क्योंकि जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर की बातें कहता है: क्योंकि वह आत्मा नाप नापकर नहीं देता। 35 पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उसने सब वस्तुएँ उसके हाथ में दे दी हैं। 36 जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।”
फरीसी समुदाय का एक सदस्य
महासभा, "सेनहेड्रिन" कहलाती थी जो एक यहूदी सभाओं में सर्वोपरि थी।
यहां "हम" विशिष्ट शब्द है जो केवल नीकेदेमुस और महासभा के सदस्यों के लिए है।
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"स्वर्ग से जन्म ले" या "परमेश्वर से जन्म ले"
उसने इस प्रश्न द्वारा इसकी असंभावना पर बल दिया था। वैकल्पिक अनुवाद, "मनुष्य वृद्धावस्था में फिर से जन्म कभी नहीं ले सकता है।"
"वह निश्चय ही अपनी माता के गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकता"।
"फिर से" या "पुनः"
स्त्री गर्भ के शरीर में भ्रूण विकास का स्थानं वैकल्पिक अनुवाद, "पेट"
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया गया है।
इसके तीन संभावित अर्थ हैं (1) पानी में बपतिस्मा लेना या (2) शारीरिक जन्म या (3) पवित्र आत्मा से जन्म लेना वैकल्पिक अनुवाद, "पवित्र आत्मा से आत्मिक जन्म लेना"।(देखें: और )
यीशु नीकुदेमुस से बातें कर रहा है।
"तुझे स्वार्गिक जन्म लेना है" या "परमेश्वर को तुझे जीवन दान देना है"। देखें पर टिप्पणी
इसके दो अर्थ हैं। मूल भाषा में हवा और आत्मा के लिए एक ही शब्द है। वैकल्पिक अनुवाद, "पवित्र आत्मा एक जैसा है वह जहाँ चाहता है वहाँ जाता है"।
यह प्रश्न कथन पर बल देता है। वैकल्पिक अनुवाद "ऐसा नहीं हो सकता" या "ऐसा होना संभव नहीं है"।
यह प्रश्न उसके कथन को बल देने के लिए है। वैकल्पिक अनुवाद, "तू इस्राएलियों का शिक्षक है और मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तू इन बातों को नहीं समझता।"
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
जब यीशु ने कहा, "हम" तो उसमें वह नीकुदेमुस को नहीं गिन रहा है।
दोनों जगह में "तुम" एकवचन में है
"यदि मैं स्वर्ग की बातें कहूँगा" तो तुम निश्चय ही विश्वास नहीं करोगे"।
आत्मिक बातें
वह वास्तविक सांप नहीं था। ताबें का बना सांप था।
जंगल एक निर्जल, निर्जन स्थान था परन्तु यहाँ वह उस स्थान का उल्लेख कर रहा है जहां मूसा और इब्रानी 40 वर्ष तक जंगल में थे।
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जगत अर्थात संसार का वह हर एक जन जो यीशु में विश्वास रखता है न कि हर एक जन जो संसार में है।
"एकमात्र पुत्र"
"दण्ड"
वैकल्पिक अनुवाद "कि ज्योति उसके कामों को उजागर न कर दे" या "कि ज्योति उसके कामों को प्रकट न कर दे"। (देखें: )
वैकल्पिक अनुवाद, "मनुष्य इसके कामों को स्पष्ट देख पाएं" या "वह जो करता है वह स्पष्ट दिखाई दे"।
"क्योंकि उस स्थान में जल के सोते अनेक थे"।
इसका अर्थ है जल का सोता
यरदन के निकट एक नगर
"यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा देता था" या "वह उन्हें बपतिस्मा देता था"।
"तब यूहन्ना के शिष्यों में और एक यहूदी में विवाद होने लगा"।
"विवाद आरंभ हुआ" या "होने लगा"
"शब्दों का झगड़ा"
यहाँ "देख" शब्द एक आज्ञा है अर्थात "ध्यान दे" वैकल्पिक अनुवाद, ध्यान दे कि वह भी बपतिस्मा देता है" या "उसे तो देख, वह भी बपतिस्मा दे रहा है"
"किसी में सामर्थ्य नहीं जब तक कि"
यहां "तुम" शब्द बहुवचन में है जिसका अर्थ है वे सब जिनसे यूहन्ना बातें कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम सब" या "तुम सब के सब"।
"परमेश्वर ने मुझे पहले आने के लिए भेजा है"
"दूल्हा दूल्हन से विवाह करता है" या "दूल्हे के पास ही दूल्हन होती है"
"अतः मैं बहुत आनन्दित हूँ" या "मेरा आनन्द बहुत है"।
शब्द "मेरा" अर्थात यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, वह जो कह रहा है
"वह" अर्थात दुल्हा, यीशु
वैकल्पिक अनुवाद, "जो मनुष्य पृथ्वी पर है" या "पृथ्वी का मनुष्य"
"जो" यीशु के संदर्भ में है।
"बहुत कम लोग उसकी गवाही स्वीकार करते हैं"।
"जिसने" उस व्यक्ति का संदर्भ देता है जो "यीशु की बातें सुनने वाला मनुष्य" है।
"सिद्ध करता है" या "सहमत होता है"
"यह यीशु, जिसे परमेश्वर ने अपना प्रतिनिधि होने के लिए भेजा है"।
"क्योंकि यह वही है जिसे परमेश्वर ने अपनी आत्मा का संपूर्ण सामर्थ्य दे दिया है"
"जो विश्वास करता है" या "विश्वास करने वाला कोई भी"
"परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है"
नीकुदेमुस एक फरीसी था, यहूदी महासभा का सदस्य।
नीकुदेमुस ने यीशु से कहा, "हे रब्बी, हम जानते हैं कि तू परमेश्वर की ओर से गुरू होकर आया है, क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो तो नहीं दिखा सकता"।
यीशु ने नीकुदेमुस से कहा, "यदि कोई नये सिरे से "न जन्में" अर्थात "जल और आत्मा से न जन्में" तो परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता।
नीकुदेमुस ने कहा, "मनुष्य जब बूढ़ा हो गया तो कैसे जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है"? उसने कहा, "ये बातें कैसे हो सकती है"?
यीशु ने नीकुदेमुस को झिड़क कर कहा, "तू इस्राएलियों का गुरू होकर भी इन बातों को नहीं समझता"? "जब मैंने पृथ्वी की बातें कही और तुम विश्वास नहीं करते तो यदि मैं स्वर्ग की बातें कहूँ तो फिर कैसे विश्वास करोगे"?
कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात मनुष्य का पुत्र।
अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए; ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनन्त जीवन पाए।
परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
नहीं, परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।
दण्ड की आज्ञा का कारण है कि जगत में ज्योति आई और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे।
जो बुराई करता है वह ज्योति से बैर रखता है और ज्योति में नहीं आता है क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसके काम प्रकट हों।
वह ज्योति में आता है ताकि उसके काम प्रगट हों कि वे परमेश्वर की आज्ञाओं के पालन के हैं।
यूहन्ना ने कहा, "अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूं"।
उन्होंने सिद्ध कर दिया कि परमेश्वर सच्चा है।
उसने सब वस्तुएं पुत्र के हाथ में दे दीं हैं।
उनमे अनन्त जीवन है।
वह जीवन को नहीं देखेगा, परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।
1 फिर जब प्रभु को मालूम हुआ कि फरीसियों ने सुना है कि यीशु यूहन्ना से अधिक चेले बनाता और उन्हें बपतिस्मा देता है। 2 (यद्यपि यीशु स्वयं नहीं वरन् उसके चेले बपतिस्मा देते थे), 3 तब वह यहूदिया को छोड़कर फिर गलील को चला गया, 4 और उसको सामरिया से होकर जाना अवश्य था। 5 इसलिए वह सूखार* नामक सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को दिया था। 6 और याकूब का कुआँ भी वहीं था। यीशु मार्ग का थका हुआ उस कुएँ पर यों ही बैठ गया। और यह बात लगभग दोपहर के समय हुई। 7 इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई। यीशु ने उससे कहा, “मुझे पानी पिला।” 8 क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे। 9 उस सामरी स्त्री ने उससे कहा, “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों माँगता है?” क्योंकि यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते। (प्रेरि. 108:28) 10 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है, ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उससे माँगती, और वह तुझे जीवन का जल* देता।” 11 स्त्री ने उससे कहा, “हे स्वामी, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कुआँ गहरा है; तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहाँ से आया? 12 क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कुआँ दिया; और आपही अपने सन्तान, और अपने पशुओं समेत उसमें से पीया?” 13 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा, 14 परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा*, वह उसमें एक सोता बन जाएगा, जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।” 15 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊँ और न जल भरने को इतनी दूर आऊँ।” 16 यीशु ने उससे कहा, “जा, अपने पति को यहाँ बुला ला।” 17 स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं बिना पति की हूँ।” यीशु ने उससे कहा, “तू ठीक कहती है, ‘मैं बिना पति की हूँ।’ 18 क्योंकि तू पाँच पति कर चुकी है, और जिसके पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तूने सच कहा है।” 19 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे लगता है कि तू भविष्यद्वक्ता है। 20 हमारे पूर्वजों ने इसी पहाड़ पर भजन किया, और तुम कहते हो कि वह जगह जहाँ भजन करना चाहिए यरूशलेम में है।” (व्य. 11:29) 21 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी, मेरी बात का विश्वास कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे, न यरूशलेम में। 22 तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम जिसे जानते हैं, उसका भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है। (यशा. 2:3) 23 परन्तु वह समय आता है, वरन् अब भी है, जिसमें सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही आराधकों को ढूँढ़ता है। 24 परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से आराधना करें।” 25 स्त्री ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रिस्त कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।” 26 यीशु ने उससे कहा, “मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ।”
27 इतने में उसके चेले आ गए, और अचम्भा करने लगे कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; फिर भी किसी ने न पूछा, “तू क्या चाहता है?” या “किस लिये उससे बातें करता है?” 28 तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चली गई, और लोगों से कहने लगी, 29 “आओ, एक मनुष्य को देखो, जिस ने सब कुछ जो मैंने किया मुझे बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं है?” 30 तब वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे। 31 इतने में उसके चेले यीशु से यह विनती करने लगे, “हे रब्बी, कुछ खा ले।” 32 परन्तु उसने उनसे कहा, “मेरे पास खाने के लिये ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते।” 33 तब चेलों ने आपस में कहा, “क्या कोई उसके लिये कुछ खाने को लाया है?” 34 यीशु ने उनसे कहा, “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूँ और उसका काम पूरा करूँ। 35 क्या तुम नहीं कहते, ‘कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं?’ देखो, मैं तुम से कहता हूँ, अपनी आँखें उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं। 36 और काटनेवाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिये फल बटोरता है, ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनों मिलकर आनन्द करें। 37 क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है: ‘बोनेवाला और है और काटनेवाला और।’ (मीका 6:15) 38 मैंने तुम्हें वह खेत काटने के लिये भेजा जिसमें तुम ने परिश्रम नहीं किया औरों ने परिश्रम किया और तुम उनके परिश्रम के फल में भागी हुए।”
39 और उस नगर के बहुत से सामरियों ने उस स्त्री के कहने से यीशु पर विश्वास किया; जिस ने यह गवाही दी थी, कि उसने सब कुछ जो मैंने किया है, मुझे बता दिया। 40 तब जब ये सामरी उसके पास आए, तो उससे विनती करने लगे कि हमारे यहाँ रह, और वह वहाँ दो दिन तक रहा। 41 और उसके वचन के कारण और भी बहुतों ने विश्वास किया। 42 और उस स्त्री से कहा, “अब हम तेरे कहने ही से विश्वास नहीं करते; क्योंकि हमने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है।” 43 फिर उन दो दिनों के बाद वह वहाँ से निकलकर गलील को गया। 44 क्योंकि यीशु ने आप ही साक्षी दी कि भविष्यद्वक्ता अपने देश में आदर नहीं पाता। 45 जब वह गलील में आया, तो गलीली आनन्द के साथ उससे मिले; क्योंकि जितने काम उसने यरूशलेम में पर्व के समय किए थे, उन्होंने उन सब को देखा था, क्योंकि वे भी पर्व में गए थे।
46 तब वह फिर गलील के काना में आया, जहाँ उसने पानी को दाखरस बनाया था। वहाँ राजा का एक कर्मचारी था जिसका पुत्र कफरनहूम में बीमार था। 47 वह यह सुनकर कि यीशु यहूदिया से गलील में आ गया है, उसके पास गया और उससे विनती करने लगा कि चलकर मेरे पुत्र को चंगा कर दे: क्योंकि वह मरने पर था। 48 यीशु ने उससे कहा, “जब तक तुम चिन्ह और अद्भुत काम न देखोगे तब तक कदापि विश्वास न करोगे।” (दानि. 4:2) 49 राजा के कर्मचारी ने उससे कहा, “हे प्रभु, मेरे बालक की मृत्यु होने से पहले चल।” 50 यीशु ने उससे कहा, “जा, तेरा पुत्र जीवित है।” उस मनुष्य ने यीशु की कही हुई बात पर विश्वास किया और चला गया। 51 वह मार्ग में जा ही रहा था, कि उसके दास उससे आ मिले और कहने लगे, “तेरा लड़का जीवित है।” 52 उसने उनसे पूछा, “किस घड़ी वह अच्छा होने लगा?” उन्होंने उससे कहा, “कल सातवें घण्टे में उसका ज्वर उतर गया।” 53 तब पिता जान गया कि यह उसी घड़ी हुआ जिस घड़ी यीशु ने उससे कहा, “तेरा पुत्र जीवित है,” और उसने और उसके सारे घराने ने विश्वास किया। 54 यह दूसरा चिन्ह था जो यीशु ने यहूदिया से गलील में आकर दिखाया।
"जब" शब्द यहाँ कहानी में परिवर्तन का संकेतक है, कहानी में पूर्व के अध्याय में यूहन्ना के शब्दों से परिवर्तित होकर यीशु के कार्यों का वर्णन करती है।
"असलमे यीशु लोगों को बपतिस्मा नहीं दे रहा था"। "स्वयं" शब्द यीशु पर बल देने के लिए है।
एक विनम्र निवेदन है, आज्ञा नहीं।
"संबन्ध नहीं रखते हैं"।
"तू हमारे पिता याकूब से बड़ा नहीं हो सकता"
"मैं समझ सकती हूं कि तू एक भविष्यद्वक्ता है"
हम उसे जानते हैं "क्योंकि जो मनुष्यों को परमेश्वर के दण्ड से बचाएगा वह जन्म से यहूदी है"।
वैकल्पिक अनुवाद, "परन्तु समय आ चुका है, जब"
"उसके आत्मा के निर्देशन में"
वैकल्पिक मनुष्य, "क्या यह मनुष्य मसीह हो सकता है"?
"जिस प्रकार भोजन भूखे मनुष्य को सन्तुष्ट करता है उसी प्रकार परमेश्वर की इच्छा का पालन करना मुझे सन्तुष्ट करता है"
"क्या यह तुम में प्रचलित कहावत नहीं"?
जिस प्रकार खेत में पकी हुई फसल कटनी के लिए तैयार होती है वैसे ही मनुष्य मेरा सन्देश स्वीकार करने के लिए तैयार हैं“
"तुम" शब्द "तुम" को पिछले उपयोग का फल प्रदान करने के लिए है। इसका अनुवाद अपनी भाषा में उस शब्द से करें जो किसी व्यक्ति को बल प्रदान करता है।
"आप" शब्द बल प्रदान करने के लिए काम में लिया गया है
यह जानकर कि फरीसियों को समाचार मिल गया है कि यीशु यूहन्ना से अधिक बपतिस्मा दे रहा है और शिष्य बना रहा है तो वह यहूदिया को छोड़कर गलील चला गया।
वह सूखार नामक सामरिया के एक नगर में याकूब के कुएँ के पास ठहर गया।
उस कुएँ पर एक सामरी स्त्री पानी भरने आई।
यीशु ने उससे कहा, "मुझे पानी पिला"।
वे नगर में भोजन लेने गए थे।
इस पर मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि यहूदी सामरियों से संबन्ध नहीं रखते थे।
यीशु ने उससे कहा कि यदि वह परमेश्वर के वरदान को जानती और पानी मांगने वाले को पहचानती तो वह उससे मांगती और वह उसे जीवन का जल देता।
उस स्त्री ने कहा, "हे प्रभु तेरे पास तो जल भरने को तो कुछ भी नहीं है और कुआं गहरा है, तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहाँ से आया?"
यीशु ने उस स्त्री से कहा कि जो उसके दिए हुए पानी को पीते हैं वे फिर कभी प्यासे नहीं होते और वह उनमें सोता बन जायेगा जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहेगा।
उसने वह जल मांगा कि उसे फिर प्यास न लगे और उसे पानी लेने कुएं के पास न आना पड़े।
यीशु ने उससे कहा, "जा अपने पति को यहां बुला ला"।
उस स्त्री ने यीशु से कहा कि उसका पति नहीं है।
यीशु ने उससे कहा कि उसने पांच पति किए हैं और जिसके साथ वह रहती है, वह भी उसका पति नहीं है।
अब वह आराधना के स्थान पर उनमें जो मतभेद था उसका विषय ले आती है।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर आत्मा है और सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे।
यीशु ने उससे कहा कि वही मसीह है।
उस स्त्री ने पानी का बर्तन वहीं छोड़ा और नगर में जाकर लोगों से कहा, आओ एक मनुष्य को देखो, जिसने सब कुछ जो मैंने किया मुझे बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं है?
वे सब नगर से निकल कर यीशु के पास आए।
यीशु ने कहा, मेरा भोजन यह है कि अपने भेजने वाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।
काटने वाला मजदूरी पाता है और अनन्त जीवन के लिए फल बटोरता है, ताकि बोने वाला और काटने वाला दोनों मिलकर आनन्द करें।
उस स्त्री की बातें सुनकर उस नगर में अनेक सामरियों ने यीशु में विश्वास किया और उसके वचन के कारण और भी बहुतों ने विश्वास किया।
उन्होंने कहा कि अब वे जान गए हैं कि यीशु निश्चय ही जगत का उद्धारकर्ता है।
उन्होंने उसका हार्दिक स्वागत किया क्योंकि उन्होंने पर्व के समय यरूशलेम में उसके द्वारा किए गए सब काम देखे थे।
राजा के एक कर्मचारी ने आकर विनती की, कि वह उसके घर आकर उसके पुत्र को चंगा करे।
यीशु ने उससे कहा, कि मनुष्य चिन्ह चमत्कार देखे बिना विश्वास नहीं करेंगे।
उसने यीशु की बात पर विश्वास किया और घर लौट गया।
परिणाम यह हुआ कि राजा के उस कर्मचारी ने और उसके पूरे घराने ने विश्वास किया।
1 इन बातों के पश्चात् यहूदियों का एक पर्व हुआ, और यीशु यरूशलेम को गया। 2 यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है, जो इब्रानी भाषा में बैतहसदा कहलाता है, और उसके पाँच ओसारे हैं। 3 इनमें बहुत से बीमार, अंधे, लँगड़े और सूखे अंगवाले (पानी के हिलने की आशा में) पड़े रहते थे। 4 क्योंकि नियुक्त समय पर परमेश्वर के स्वर्गदूत कुण्ड में उतरकर पानी को हिलाया करते थे: पानी हिलते ही जो कोई पहले उतरता, वह चंगा हो जाता था, चाहे उसकी कोई बीमारी क्यों न हो। 5 वहाँ एक मनुष्य था, जो अड़तीस वर्ष से बीमारी में पड़ा था। 6 यीशु ने उसे पड़ा हुआ देखकर और यह जानकर कि वह बहुत दिनों से इस दशा में पड़ा है, उससे पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” 7 उस बीमार ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, मेरे पास कोई मनुष्य नहीं, कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुँचते-पहुँचते दूसरा मुझसे पहले उतर जाता है।” 8 यीशु ने उससे कहा, “उठ, अपनी खाट उठा और चल फिर।” 9 वह मनुष्य तुरन्त चंगा हो गया, और अपनी खाट उठाकर चलने फिरने लगा। 10 वह सब्त का दिन था। इसलिए यहूदी उससे जो चंगा हुआ था, कहने लगे, “आज तो सब्त का दिन है, तुझे खाट उठानी उचित नहीं।” (यिर्म. 17:21) 11 उसने उन्हें उत्तर दिया, “जिस ने मुझे चंगा किया, उसी ने मुझसे कहा, ‘अपनी खाट उठाकर चल फिर’।” 12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कौन मनुष्य है, जिस ने तुझ से कहा, ‘खाट उठा और, चल फिर’?” 13 परन्तु जो चंगा हो गया था, वह नहीं जानता था कि वह कौन है; क्योंकि उस जगह में भीड़ होने के कारण यीशु वहाँ से हट गया था। 14 इन बातों के बाद वह यीशु को मन्दिर में मिला, तब उसने उससे कहा, “देख, तू तो चंगा हो गया है; फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इससे कोई भारी विपत्ति तुझ पर आ पड़े।” 15 उस मनुष्य ने जाकर यहूदियों से कह दिया, कि जिस ने मुझे चंगा किया, वह यीशु है। 16 इस कारण यहूदी यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह ऐसे-ऐसे काम सब्त के दिन करता था। 17 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूँ।” 18 इस कारण यहूदी और भी अधिक उसके मार डालने का प्रयत्न करने लगे, कि वह न केवल सब्त के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कहकर, अपने आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता था।
19 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन-जिन कामों को वह करता है, उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है। 20 क्योंकि पिता पुत्र से प्यार करता है* और जो-जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है; और वह इनसे भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो। 21 क्योंकि जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है, उन्हें जिलाता है। 22 पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है, 23 इसलिए कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें; जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिसने उसे भेजा है, आदर नहीं करता। 24 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
25 “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, वह समय आता है, और अब है, जिसमें मृतक परमेश्वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएँगे। 26 क्योंकि जिस रीति से पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उसने पुत्र को भी यह अधिकार दिया है कि अपने आप में जीवन रखे; 27 वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिए कि वह मनुष्य का पुत्र है। 28 इससे अचम्भा मत करो; क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। 29 जिन्होंने भलाई की है, वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्होंने बुराई की है, वे दण्ड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे। (दानि.12:2)
30 “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ, वैसा न्याय करता हूँ, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ। 31 यदि मैं आप ही अपनी गवाही दूँ; तो मेरी गवाही सच्ची नहीं। 32 एक और है जो मेरी गवाही देता है, और मैं जानता हूँ कि मेरी जो गवाही वह देता है, वह सच्ची है। 33 तुम ने यूहन्ना से पुछवाया और उसने सच्चाई की गवाही दी है। 34 परन्तु मैं अपने विषय में मनुष्य की गवाही नहीं चाहता*; फिर भी मैं ये बातें इसलिए कहता हूँ, कि तुम्हें उद्धार मिले। 35 वह तो जलता और चमकता हुआ दीपक था; और तुम्हें कुछ देर तक उसकी ज्योति में, मगन होना अच्छा लगा। 36 परन्तु मेरे पास जो गवाही है, वह यूहन्ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्थात् यही काम जो मैं करता हूँ, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है। 37 और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है; 38 और उसके वचन को मन में स्थिर नहीं रखते, क्योंकि जिसे उसने भेजा तुम उस पर विश्वास नहीं करते। 39 तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते* हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है; 40 फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते। 41 मैं मनुष्यों से आदर नहीं चाहता। 42 परन्तु मैं तुम्हें जानता हूँ, कि तुम में परमेश्वर का प्रेम नहीं। 43 मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ, और तुम मुझे ग्रहण नहीं करते; यदि कोई और अपने ही नाम से आए, तो उसे ग्रहण कर लोगे। 44 तुम जो एक दूसरे से आदर चाहते हो और वह आदर जो एकमात्र परमेश्वर की ओर से है, नहीं चाहते, किस प्रकार विश्वास कर सकते हो? 45 यह न समझो, कि मैं पिता के सामने तुम पर दोष लगाऊँगा, तुम पर दोष लगानेवाला तो है, अर्थात् मूसा है जिस पर तुम ने भरोसा रखा है। 46 क्योंकि यदि तुम मूसा पर विश्वास करते, तो मुझ पर भी विश्वास करते, इसलिए कि उसने मेरे विषय में लिखा है। (लूका 24:27) 47 परन्तु यदि तुम उसकी लिखी हुई बातों पर विश्वास नहीं करते, तो मेरी बातों पर क्यों विश्वास करोगे?”
राजा के कर्मचारी के पुत्र को जीवित करने के बाद
यरूशलेम पहाड़ पर बसा है। यरूशलेम का मार्ग छोटी पहाड़ियों पर ऊपर नीचे होता हुआ जाता है। यदि आपकी भाषा में ऐसा शब्द है जो समतल भूमि पर चलने की अपेक्षा पहाड़ पर चढ़ने को व्यक्त करता है तो उसका उपयोग करें।
भूमि में पानी का गड्डा
"बैतहसदा" का अर्थ है दया का घर
किसी इमारत से लगी छत जिसकी कम से कम एक दीवार नहीं होती है
अनेक
कुछ प्राचीन अभिलेखों में यह पद है परन्तु अन्यों में नहीं है, अतः हमारा सुझाव है कि आप वहां रिक्त स्थान छोड़ने की अपेक्षा पद 3 और पद 4 को जोड़ दें जैसा यू.एल.बी. और यू.डी.बी. में किया गया है।
"बैतहसदा के कुण्ड के पास।"
38 वर्षों से
"वह समझ गया"
"जब स्वर्गदूत पानी हिलाए"
"मुझसे पहले कोई और ही कुण्ड में उतर जाता है" उस कुण्ड में जल तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों से उतर कर जाना होता था।
"खड़ा हो"
"अपना बिछौना उठा"
"वह मनुष्य फिर से स्वस्थ हो गया"
अब मुख्य कहानी में अन्तराल आता है
जिस मनुष्य ने मुझे स्वास्थ्य प्रदान किया
"यहूदी गुरूओं ने स्वास्थ्य लाभ उठाने वाले से पूछा"
"यीशु को वह मनुष्य मिला जिसे उसने चंगा किया था"
वैकल्पिक अनुवाद, "देख" या "सुन" या "मैं जो कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दे"।
यहाँ कहानी में अन्तराल आता है और यूहन्ना कहानी का एक नये परिदृश्य प्रस्तुत करता है।
"कहता है कि वह परमेश्वर के समान है" या "कहता है कि उसके पास परमेश्वर के समान अधिकार है"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"तुम चकित हो जाओगे" या "तुम भौंचक्के रह जाओगे”।
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
यह बल देने के लिए है। इसका अनुवाद अपनी भाषा में किसी बात पर बल देने के शब्दों में करें
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"मनुष्य के पुत्र की वाणी सुनकर"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
इसका अनुवाद वैसा करें जैसा में किया है
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"मुझे मनुष्यों की गवाही की आवश्यकता नहीं"
"यूहन्ना ने परमेश्वर की पवित्रता को इस प्रकार प्रकट किया जिस प्रकार दीपक ज्योति प्रकट करता है"।
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"तुम उसमें विश्वास नहीं करते जिसे उसने भेजा है, इसी से मैं जानता हूं कि उसका वचन तुममे नहीं है।"
"तुममें अवस्थित"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"यदि तुम धर्मशास्त्र पढ़ो तो तुम्हें अनन्त जीवन प्राप्त होगा" या "धर्मशास्त्र तुम्हें अनन्त जीवन पाने का मार्ग दिखाएगा"।
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
"ग्रहण कर पाओगे"
इसके अर्थ हो सकते हैं (1) "तुम परमेश्वर से सच में प्रेम नहीं करते" (देखें यू.डी.बी.) या (2) "तुम्हें परमेश्वर का प्रेम वास्तव में मिला नहीं"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
"तुम किसी भी प्रकार विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि तुम एक दूसरे से प्रशंसा पाना चाहते हो .... एकमात्र परमेश्वर की ओर से है"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"तुम उसकी लिखी हुई बातों पर विश्वास करते नहीं तो मेरी बातों पर कैसे विश्वास करोगे"।
"जो मैं कहता हूं"
इस कुण्ड का नाम बैतहसदा था।
उस छत के नीचे बहुत से बीमार, अंधे, लंगड़े और सूखे अंग वाले पड़े रहते थे।
वहाँ अड़तीस वर्षों से एक रोगी पड़ा हुआ था यीशु ने उससे साक्षात्कार किया।
उस रोगी ने कहा, "हे प्रभु मेरे पास कोई मनुष्य नहीं कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुँचते-पहुँचते दूसरा मुझसे पहले उतर जाता है।"
वह तुरन्त चंगा हो गया और अपनी खाट उठाकर चलने लगा।
यह देख वे क्रोधित हुए क्योंकि वह सब्त का दिन था और उसे अपनी खाट उठाने की अनुमति नहीं थी।
यीशु ने उससे कहा, "देख, तू चंगा हो गया है। फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इससे भारी विपत्ति तुम पर आ पड़े।"
उसने यहूदियों के अगुवों से कहा कि उसे चंगा करने वाला यीशु था।
यीशु ने उनसे कहा, "मेरा पिता अब तक काम करता है और मैं भी काम करता हूँ"।
यह इसलिए हुआ कि यीशु ने (उनके विचार में) सब्त के दिन का उल्लंघन ही नहीं किया, परमेश्वर को अपना पिता कहा अर्थात उसकी बराबरी की।
उसने वही किया जो उसने पिता को करते देखा।
पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है जिलाता है।
पिता ने न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें।
यदि कोई पुत्र का आदर नहीं करता तो वह भेजने वाले पिता का भी आदर नहीं करता है।
यदि ऐसा है तो अनन्त जीवन उसका है और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
पिता ने पुत्र को अधिकार दिया है कि अपने आपमें जीवन रखे।
जिन्होंने भलाई की है, उनका पुनरूत्थान जीवन के लिए होगा और जिन्होंने बुराई की है, उनका पुनरूत्थान दण्ड के लिए होगा।
उसका न्याय सच्चा है क्योंकि वह अपनी इच्छा पूरी नहीं करता परन्तु उसको भेजने वाले की इच्छा पूरी करता है।
यीशु ने जो काम किया वह पिता ने उसे पूरा करने को सौंपा था, वे गवाही हैं कि पिता ने यीशु को भेजा है और पिता ही ने यीशु की गवाही दी है।
यहूदियों ने न तो कभी परमेश्वर का शब्द सुना न उसका रूप देखा।
वे धर्मशास्त्र में खोजते थे कि उन्हें अनन्त जीवन मिल जाए।
धर्मशास्त्र यीशु की गवाही देते थे।
एकमात्र आदर जो परमेश्वर की ओर से है उसे वे नहीं चाहते थे।
मूसा परमेश्वर के समक्ष यहूदी अगुवों पर दोष लगाएगा।
यीशु ने कहा कि यदि यहूदी अगुवे मूसा पर विश्वास करते तो उसका भी विश्वास करते क्योंकि उसने यीशु के विषय में लिखा था।
1 इन बातों के बाद यीशु गलील की झील अर्थात् तिबिरियुस की झील के पार गया। 2 और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि जो आश्चर्यकर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उनको देखते थे*। 3 तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपने चेलों के साथ वहाँ बैठा। 4 और यहूदियों के फसह का पर्व निकट था। 5 तब यीशु ने अपनी आँखें उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलिप्पुस से कहा, “हम इनके भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएँ?” 6 परन्तु उसने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह स्वयं जानता था कि वह क्या करेगा। 7 फिलिप्पुस ने उसको उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटी भी उनके लिये पूरी न होंगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए।” 8 उसके चेलों में से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उससे कहा, 9 “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं, परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं।” 10 यीशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। तब वे लोग जो गिनती में लगभग पाँच हजार के थे, बैठ गए। 11 तब यीशु ने रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालों को बाँट दी; और वैसे ही मछलियों में से जितनी वे चाहते थे बाँट दिया। 12 जब वे खाकर तृप्त हो गए, तो उसने अपने चेलों से कहा, “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।” 13 इसलिए उन्होंने बटोरा, और जौ की पाँच रोटियों के टुकड़े जो खानेवालों से बच रहे थे, उनकी बारह टोकरियाँ भरीं। 14 तब जो आश्चर्यकर्म उसने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि “वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है।” (मत्ती 21:11) 15 यीशु यह जानकर कि वे उसे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।
16 फिर जब संध्या हुई, तो उसके चेले झील के किनारे गए, 17 और नाव पर चढ़कर झील के पार कफरनहूम को जाने लगे। उस समय अंधेरा हो गया था, और यीशु अभी तक उनके पास नहीं आया था। 18 और आँधी के कारण झील में लहरें उठने लगीं। 19 तब जब वे खेते-खेते तीन चार मील के लगभग निकल गए, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते, और नाव के निकट आते देखा, और डर गए। 20 परन्तु उसने उनसे कहा, “मैं हूँ; डरो मत।” 21 तब वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिये तैयार हुए और तुरन्त वह नाव उसी स्थान पर जा पहुँची जहाँ वह जाते थे।
22 दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो झील के पार खड़ी थी, यह देखा, कि यहाँ एक को छोड़कर और कोई छोटी नाव न थी, और यीशु अपने चेलों के साथ उस नाव पर न चढ़ा, परन्तु केवल उसके चेले ही गए थे। 23 (तो भी और छोटी नावें तिबिरियुस से उस जगह के निकट आई, जहाँ उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई थी।) 24 जब भीड़ ने देखा, कि यहाँ न यीशु है, और न उसके चेले, तो वे भी छोटी-छोटी नावों पर चढ़ के यीशु को ढूँढ़ते हुए कफरनहूम को पहुँचे।
25 और झील के पार उससे मिलकर कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?” 26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिए कि तुम रोटियाँ खाकर तृप्त हुए। 27 नाशवान भोजन के लिये परिश्रम न करो*, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात् परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है।” 28 उन्होंने उससे कहा, “परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें?” 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो।” 30 तब उन्होंने उससे कहा, “फिर तू कौन सा चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तुझ पर विश्वास करें? तू कौन सा काम दिखाता है? 31 हमारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दी’।” (भज. 78:24) 32 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है। 33 क्योंकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।” 34 तब उन्होंने उससे कहा, “हे स्वामी, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।” 35 यीशु ने उनसे कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ*: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा। 36 परन्तु मैंने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तो भी विश्वास नहीं करते। 37 जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी न निकालूँगा। 38 क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन् अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूँ। 39 और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उसने मुझे दिया है, उसमें से मैं कुछ न खोऊँ परन्तु उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँ। 40 क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा।” 41 तब यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिए कि उसने कहा था, “जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूँ।” 42 और उन्होंने कहा, “क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो वह क्यों कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?” 43 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “आपस में मत कुड़कुड़ाओ। 44 कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उसको अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा। 45 भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, ‘वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।’ जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है। (यशा. 54:13) 46 यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा है परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है। 47 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है। 48 जीवन की रोटी मैं हूँ। 49 तुम्हारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए। 50 यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उसमें से खाए और न मरे। 51 जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूँगा, वह मेरा माँस है।” 52 इस पर यहूदी यह कहकर आपस में झगड़ने लगे, “यह मनुष्य कैसे हमें अपना माँस खाने को दे सकता है?” 53 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ जब तक मनुष्य के पुत्र का माँस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। 54 जो मेरा माँस खाता, और मेरा लहू पीता हैं, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अन्तिम दिन फिर उसे जिला उठाऊँगा। 55 क्योंकि मेरा माँस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है। 56 जो मेरा माँस खाता और मेरा लहू पीता है, वह मुझ में स्थिर बना रहता है*, और मैं उसमें। 57 जैसा जीविते पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूँ वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा। 58 जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, पूर्वजों के समान नहीं कि खाया, और मर गए; जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।” 59 ये बातें उसने कफरनहूम के एक आराधनालय में उपदेश देते समय कहीं।
60 इसलिए उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, “यह तो कठोर शिक्षा है; इसे कौन मान सकता है?” 61 यीशु ने अपने मन में यह जानकर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उनसे पूछा, “क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है? 62 और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहाँ वह पहले था, वहाँ ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा? (भज. 47:5) 63 आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं। जो बातें मैंने तुम से कहीं हैं वे आत्मा है, और जीवन भी हैं। 64 परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।” क्योंकि यीशु तो पहले ही से जानता था कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं; और कौन मुझे पकड़वाएगा। 65 और उसने कहा, “इसलिए मैंने तुम से कहा था कि जब तक किसी को पिता की ओर से यह वरदान न दिया जाए तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।”
66 इस पर उसके चेलों में से बहुत सारे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले। 67 तब यीशु ने उन बारहों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” 68 शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, हम किस के पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं। 69 और हमने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।” 70 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुन लिया? तो भी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है।” 71 यह उसने शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा के विषय में कहा, क्योंकि यही जो उन बारहों में से था, उसे पकड़वाने को था।
"इन बातों" अर्थात . की घटनाओं के बाद। वैकल्पिक अनुवाद, "कुछ समय बाद"।
"यीशु पार गया" (यू.डी.बी.) या "यीशु चलकर पहुंचा"
"विशाल जनसमूह"
यह शब्द का उपयोग करके अब मुख्य कहानी में अन्तराल आता है
यूहन्ना कुछ समय कहानी को रोकता है कि कहानी की पृष्ठ भूमि की जानकारी दे कि वह क्या समय था जब ये सब घटनाएं हो रही थी।
यूहन्ना कुछ समय के लिए कहानी की घटनाओं का क्रम रोक देता है कि यीशु द्वारा फिलिप्पुस से रोटी का प्रबन्ध करने की बात की व्याख्या करे।
यह शब्द "आप" स्पष्ट करता है कि "वह" शब्द यीशु के लिए काम में लिया गया है। यीशु जानता था कि वह क्या करेगा।
दो सौ दिनों की मजदूरी के पैसों से खरीदी गई रोटी"
जौ के आटे से बनी रोटी
ये पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ इतने लोगों को भोजन कराने के लिए क्या हैं?
"बैठा दो" आपकी भाषा में भोजन करने के लिए बैठने का शब्द काम में लें।
मनुष्यों के बैठने के लिए वह एक सुविधाजनक स्थान था
जनसमूह
जनसमूह में संभवतः स्त्रियां और बच्चे भी थे , परन्तु गणना केवल पुरूषों की है।
यीशु परमेश्वर से प्रार्थना करके रोटी और मछलियों के लिए उसे धन्यवाद दे रहा है।
यीशु ने रोटियाँ और मछलियाँ तोड़ी और अपने शिष्यों को दे दीं कि वे उन्हें लोगों में बांट दें।
"शिष्यों ने एकत्र किया"
जो भोजन किसी ने नहीं खाया था
यीशु द्वारा पाँच हजार लोगों को पांच रोटियाँ और दो मछलियाँ से भोजन करने का।
अपनी भाषा की अभिव्यक्ति द्वारा इसे व्यक्त करें कि यह जानकारी पृष्ठभूमि की है
नाव में प्रायः दो, चार, छः लोग पतवार चलाते थे। आपकी भाषा में पानी पर नाव चलाने के लिए भिन्न विधि हो सकती है।
भूल भाषा का शब्द है "स्टेडियम" अर्थात 185 मीटर।
गलील सागर
अपनी भाषा की अभिव्यक्ति द्वारा इसे व्यक्त करें कि यह जानकारी पृष्ठभूमि की है
शिष्यों के चले जाने के बाद नावें आई परन्तु इससे पूर्व कि लोग देखते कि "वहाँ कोई नांव न थी"।
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु लोगों से बातें कर रहा है .
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु अपनी तुलना रोटी से कर रहा है। जैसे हमारे शरीर के लिए रोटी आवश्यक है, वैसे ही यीशु हमारे आत्मिक जीवन के लिए आवश्यक है।
यीशु लोगों से बातें कर रहा है .
यीशु अपनी तुलना रोटी से कर रहा है। जैसे हमारे शरीर के लिए रोटी आवश्यक है, वैसे ही यीशु हमारे आत्मिक जीवन के लिए आवश्यक है।
"जो मेरे पास आयेंगे उनमें से हर एक को मैं अपने पास रखूंगा"।
यीशु लोगों से बातें कर रहा है .
"मेरा पिता जिसने मुझे भेजा है"
यीशु जब लोगों से बातें कर रहा था तब यहूदी मनुष्यों ने विघ्न डाला .
अप्रसन्न होकर कुड़कुड़ाना लगे
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु लोगों से बातें कर रहा है परन्तु यहूदी अगुवे भी हैं। .
इसके अर्थ हो सकते हैं, (1) "खींचता है" या (2) "आकर्षित करता है"
"भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा है"
अब यीशु श्रोताओं से बातें कर रहा है .
संभावित अर्थ, (1) यूहन्ना अपने शब्दों को जोड़ रहा है आप अपने शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं कि यह कहानी का महत्त्वपूर्ण भाग है। (देखें: [[rc://*/bible/team-info/training/quick-reference/discourse/background]]) यीशु यूह. 06:43/6:45) के संभावित भ्रम को दूर कर रहा है।
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु श्रोताओं से बातें कर रहा है।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे .में किया है।
यीशु श्रोताओं से बातें कर रहा है। .
देखें .
इसके अर्थ हैं, (1) जैसा में जीवन की रोटी का है या (2) "रोटी जो जीवित है" जैसे मनुष्य और पशु जीवित है, मृतक का विपरित।
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
मनुष्य के पुत्र को विश्वास के द्वारा ग्रहण करना ऐसा है जैसे जीवनदायक भोजन-पानी पीना
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
यीशु को विश्वास के द्वारा ग्रहण करना अनन्त जीवन उसी प्रकार देता है जिस प्रकार भोजन-पानी शरीर का पोषण करते हैं।
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
इसके अर्थ हो सकते हैं, (1) "पिता जो जीवन देता है" (देखें यू.डी.बी.) या (2) "पिता जो जीवित है" जैसे मनुष्य और पशु जीवित हैं। मृतक का विपरित। (यूह. 06:50/6:51)
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
"इसे कोई नहीं सुन सकता है" या "यह ग्रहण-योग्य नहीं"
वैकल्पिक अनुवादः "मुझे आश्चर्य होता है कि इससे तुम्हें बुरा लगा"।
"विश्वास त्याग करने पर विवश करता है"
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
"संभवतः तुम मेरा सन्देश स्वीकार करोगे जब तुम मुझे, जो स्वर्ग से आया है, वहीं जाते देखोगे जहां मैं पहले था"।
"सन्देश" संभावित अर्थ है, (1) यूह. 06:32/6:32-58) में उसके वचन/ या (2) उसकी सब शिक्षाएं
इन दोनों शब्दों का अर्थ अत्यधिक समान है। वैकल्पिक अनुवाद, "मैंने जो बातें तुमसे की हैं वे आत्मिक जीवन लाती हैं"।
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
"मेरे पीछे आओ"
यहाँ चेलों से अर्थ है यीशु के पीछे चलने वालों का समूह
ये 12 शिष्यों का एक विशिष्ट समूह था जो उसकी संपूर्ण सेवा में उसके साथ था। इसका अनुवाद किया जा सकता है, "12 शिष्य"
"मैंने तुम सबको स्वयं चुना है, परन्तु एक शैतान का दास है"।
गलील सागर तिबिरियास की झील भी कहलाता था।
वे उसके पीछे चलते थे, क्योंकि वे रोगियों की चंगाई के चिन्ह देखते थे जो यीशु करता था।
उसने एक विशाल जन समूह को आते देखा।
यीशु ने फिलिप्पुस को परखने के लिए यह कहा था।
फिलिप्पुस ने कहा, "दो सौ दीनार की रोटी भी उनके लिए पूरी न होगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए"।
अन्द्रियास ने कहा, "यहाँ एक लड़का है जिसके पास जौ की पाँच रोटियां और दो मछलियाँ हैं परन्तु इतने लोगों के लिए वे क्या हैं?"
वहाँ लगभग पुरूष ही पांच हजार थे।
यीशु ने रोटियां लीं और धन्यवाद करके बैठने वालों को बांट दी, और वैसे ही मछलियां भी बांट दीं।
वे खाकर तृप्त हो गए।
शिष्यों ने रोटी के बचे हुए टुकड़े उठाए तो बारह टोकरियाँ भर गई थी।
यीशु वहाँ से निकल गया क्योंकि वह जान गया था कि लोग इस चमत्कार(पांच हज़ार को भोजन से तृप्त करना) को देखकर उसे बल पूर्वक राजा बनाना चाहते हैं।
हवा तेज हो गई थी और झील में लहरें उठने लगी थी।
यीशु पानी पर चल कर नाव के पास आया तो वे डर गए।
यीशु ने कहा, "मैं हूँ, डरो मत"।
यीशु ने कहा कि वे आश्चर्यकर्मों के कारण उसे नहीं ढूंढ़ते परन्तु इसलिए कि वे रोटियां खाकर तृप्त हुए थे।
यीशु ने उनसे कहा कि वे नाशमान भोजन के लिए नहीं परन्तु उस भोजन के लिए परिश्रम करें जो अनन्त जीवन तक ठहरता है।
यीशु ने उनसे कहा कि परमेश्वर का कार्य यह है कि तुम उस पर जिसे उसने भेजा है विश्वास करो।
यीशु ने परमेश्वर द्वारा दी गई स्वर्ग की सच्ची रोटी की चर्चा की जो जगत को जीवन देती है और जीवन की वह रोटी वह है।
स्वर्गीय पिता यीशु को जो कुछ देता है वह सब उसके पास आएगा।
यीशु के पिता की इच्छा थी कि जो कुछ उसने यीशु को दिया है उसमें से वह कुछ न खोए। जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।
मनुष्य यीशु के पास तब ही आ सकता है जब पिता उसे खींचे।
जो परमेश्वर की ओर से है, उसी ने पिता को देखा है।
यीशु जो रोटी देगा वह जगत के जीवन के लिए उसकी देह है।
जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।
यीशु का मांस खाकर और उसका लहू पीकर हम उसमें स्थिर बने रहते हैं और वह हम में।
यीशु स्वर्गीय पिता के कारण जीवित है।
उसके अनुयायियों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, "यह कठोर बात है, इसे कौन सुन सकता है?" और उनमे से बहुतों ने यीशु का अनुसरण त्याग दिया।
शमौन पतरस ने कहा, "हे प्रभु, हम किसके पास जाए? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं और हमने विश्वास किया और जान गए हैं कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।"
यीशु ने शमौन इस्करियोती के पुत्र यूहदा के विषय में कहा था, क्योंकि वह बारहों मे से एक था जो उसे पकड़वाने को था।
1 इन बातों के बाद यीशु गलील में फिरता रहा, क्योंकि यहूदी उसे मार डालने का यत्न कर रहे थे, इसलिए वह यहूदिया में फिरना न चाहता था। 2 और यहूदियों का झोपड़ियों का पर्व निकट था। (लैव्य. 23:34) 3 इसलिए उसके भाइयों ने उससे कहा, “यहाँ से कूच करके यहूदिया में चला जा, कि जो काम तू करता है, उन्हें तेरे चेले भी देखें। 4 क्योंकि ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिपकर काम करे: यदि तू यह काम करता है, तो अपने आप को जगत पर प्रगट कर।” 5 क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे। 6 तब यीशु ने उनसे कहा, “मेरा समय अभी नहीं आया; परन्तु तुम्हारे लिये सब समय है। 7 जगत तुम से बैर नहीं कर सकता*, परन्तु वह मुझसे बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूँ, कि उसके काम बुरे हैं। 8 तुम पर्व में जाओ; मैं अभी इस पर्व में नहीं जाता, क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।” 9 वह उनसे ये बातें कहकर गलील ही में रह गया।
10 परन्तु जब उसके भाई पर्व में चले गए, तो वह आप ही प्रगट में नहीं, परन्तु मानो गुप्त होकर गया। 11 यहूदी पर्व में उसे यह कहकर ढूँढ़ने लगे कि “वह कहाँ है?” 12 और लोगों में उसके विषय चुपके-चुपके बहुत सी बातें हुई कितने कहते थे, “वह भला मनुष्य है।” और कितने कहते थे, “नहीं, वह लोगों को भरमाता है।” 13 तो भी यहूदियों के भय के मारे कोई व्यक्ति उसके विषय में खुलकर नहीं बोलता था।
14 और जब पर्व के आधे दिन बीत गए; तो यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश करने लगा। 15 तब यहूदियों ने अचम्भा करके कहा, “इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गई?” 16 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है। 17 यदि कोई उसकी इच्छा पर चलना चाहे*, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूँ। 18 जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बढ़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उसमें अधर्म नहीं। 19 क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? तो भी तुम में से कोई व्यवस्था पर नहीं चलता। तुम क्यों मुझे मार डालना चाहते हो?” 20 लोगों ने उत्तर दिया; “तुझ में दुष्टात्मा है! कौन तुझे मार डालना चाहता है?” 21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैंने एक काम किया, और तुम सब अचम्भा करते हो। 22 इसी कारण मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी है, यह नहीं कि वह मूसा की ओर से है परन्तु पूर्वजों से चली आई है, और तुम सब्त के दिन को मनुष्य का खतना करते हो। (उत्प. 17:10-13, लैव्य. 12:3) 23 जब सब्त के दिन मनुष्य का खतना किया जाता है ताकि मूसा की व्यवस्था की आज्ञा टल न जाए, तो तुम मुझ पर क्यों इसलिए क्रोध करते हो, कि मैंने सब्त के दिन एक मनुष्य को पूरी रीति से चंगा किया। 24 मुँह देखकर न्याय न करो, परन्तु ठीक-ठीक न्याय करो।” (यशा. 11:3, यूह. 8:15)
25 तब कितने यरूशलेमवासी कहने लगे, “क्या यह वह नहीं, जिसके मार डालने का प्रयत्न किया जा रहा है? 26 परन्तु देखो, वह तो खुल्लमखुल्ला बातें करता है और कोई उससे कुछ नहीं कहता; क्या सम्भव है कि सरदारों ने सच-सच जान लिया है; कि यही मसीह है? 27 इसको तो हम जानते हैं, कि यह कहाँ का है; परन्तु मसीह जब आएगा, तो कोई न जानेगा कि वह कहाँ का है।” 28 तब यीशु ने मन्दिर में उपदेश देते हुए पुकार के कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं तो आप से नहीं आया परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है, उसको तुम नहीं जानते। 29 मैं उसे जानता हूँ; क्योंकि मैं उसकी ओर से हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।” 30 इस पर उन्होंने उसे पकड़ना चाहा तो भी किसी ने उस पर हाथ न डाला, क्योंकि उसका समय अब तक न आया था। 31 और भीड़ में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया, और कहने लगे, “मसीह जब आएगा, तो क्या इससे अधिक चिन्हों को दिखाएगा जो इसने दिखाए?”
32 फरीसियों ने लोगों को उसके विषय में ये बातें चुपके-चुपके करते सुना; और प्रधान याजकों और फरीसियों ने उसे पकड़ने को सिपाही भेजे। 33 इस पर यीशु ने कहा, “मैं थोड़ी देर तक और तुम्हारे साथ हूँ; तब अपने भेजनेवाले के पास चला जाऊँगा। 34 तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु नहीं पाओगे; और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।” 35 यहूदियों ने आपस में कहा, “यह कहाँ जाएगा कि हम इसे न पाएँगे? क्या वह उनके पास जाएगा जो यूनानियों में तितर-बितर होकर रहते हैं, और यूनानियों को भी उपदेश देगा? 36 यह क्या बात है जो उसने कही, कि ‘तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु न पाओगे: और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”
37 फिर पर्व के अन्तिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकारकर कहा, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए। (यशा. 55:1) 38 जो मुझ पर विश्वास करेगा*, जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी’।” 39 उसने यह वचन उस आत्मा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्मा अब तक न उतरा था, क्योंकि यीशु अब तक अपनी महिमा को न पहुँचा था। (यशा. 44:3) 40 तब भीड़ में से किसी-किसी ने ये बातें सुन कर कहा, “सचमुच यही वह भविष्यद्वक्ता है।” (मत्ती 21:11) 41 औरों ने कहा, “यह मसीह है,” परन्तु किसी ने कहा, “क्यों? क्या मसीह गलील से आएगा? 42 क्या पवित्रशास्त्र में नहीं आया कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गाँव से आएगा, जहाँ दाऊद रहता था?” (यशा. 11:1, मीका 5:2) 43 अतः उसके कारण लोगों में फूट पड़ी। 44 उनमें से कितने उसे पकड़ना चाहते थे, परन्तु किसी ने उस पर हाथ न डाला। 45 तब सिपाही प्रधान याजकों और फरीसियों के पास आए, और उन्होंने उनसे कहा, “तुम उसे क्यों नहीं लाए?”
46 सिपाहियों ने उत्तर दिया, “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न की।” 47 फरीसियों ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम भी भरमाए गए हो? 48 क्या शासकों या फरीसियों में से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है? 49 परन्तु ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, श्रापित हैं।” 50 नीकुदेमुस ने, (जो पहले उसके पास आया था और उनमें से एक था), उनसे कहा, 51 “क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति को जब तक पहले उसकी सुनकर जान न ले कि वह क्या करता है; दोषी ठहराती है?” 52 उन्होंने उसे उत्तर दिया, “क्या तू भी गलील का है? ढूँढ़ और देख, कि गलील से कोई भविष्यद्वक्ता प्रगट नहीं होने का।” 53 तब सब कोई अपने-अपने घर चले गए।
"सब लोग" या "हर एक जन"
बहुवचन
यरूशलेम ऊंचे पर स्थित है
"हो ही नहीं सकता कि वह धर्मशास्त्र का इतना ज्ञान रखे"।
"उसका" अर्थात यीशु के स्वर्गीय पिता परमेश्वर का
"परन्तु मैं इसलिए ये काम करता हूं कि लोग मेरे भेजनेवाले का आदर करें, और मैं वही हूँ जो सच बोलता हूं। मैं कभी झूठ नहीं बोलता।"
"वह मूसा ही तो था जिसने तुम्हें व्यवस्था दी"
"तुम मुझे मार डालने की खोज में हो"।
"तू पागल है"।
"तुझे कोई भी मार डालना नहीं चाहता है"।
"एक आश्चर्यकर्म" या "एक चिन्ह"
यहाँ लेखक अतिरिक्त जानकारी दे रहा है।
"तुम्हें मुझसे क्रोधित नहीं होना है कि मैंने एक मनुष्य को सब्त के दिन स्वास्थ्य प्रदान किया"।
"यह यीशु है जिसे मार डालने की खोज में वे हैं"।
"तुम" बहुवचन है
"जिसने मुझे भेजा है वह सच्चा गवाह है"।
जब मसीह आयेगा तो क्या इससे अधिक आश्चर्यकर्म दिखायेगा, जो इसने दिखाए? "जब मसीह आयेगा तब वह इस मनुष्य द्वारा किए गए आश्चर्यकर्मों से अधिक चिन्ह नहीं दिखा पायेगा"।
"अब" शब्द का उपयोग यहाँ मुख्य कहानी में अन्तराल है
यह "महान दिन" है क्योंकि यह पर्व का अन्तिम या सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण दिन है।
परमेश्वर की बातों की लालसा करता हो, जैसे मनुष्य पानी की लालसा करता है या प्यासा होता है।
"कोई" शब्द का अर्थ है, "जो भी", "पीए" शब्द का अर्थ है, मसीह में आत्मिक पूर्ति पाना।
"पवित्रशास्त्र" मसीह के बारे में भविष्यद्वाणियों का द्योतक है। यह एक पुराने नियम के किसी एक गद्यांश का उद्धरण नहीं है।
मसीह आत्मिकता के प्यासों के लिए ऐसी राहत दिलाएगा कि वह प्रवाहित होकर आसपास के सब लोगों की सहायता करेगी।
इसके अर्थ हैं, (1) "पानी जो जीवन देता है" या "पानी जिससे मनुष्यों को जीवन मिलता है" या (2) सोते से बहनेवाला प्राकृतिक जल, कुएं से निकलने वाले जल से भिन्न।
“वह”यीशु को दर्शाता है
"मसीह गलील से नहीं आ सकता" (यू.डी.बी.)
"धर्मशास्त्र सिखाता है कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गांव से आयेगा, दाऊद का गांव"।
"भविष्यद्वक्ताओं ने धर्मशास्त्र में लिखा है"
यीशु कौन और क्या है, इस पर जनसमूह एकमत नहीं हो पाया।
"परन्तु किसी ने उसे नहीं पकड़ा"
मन्दिर के सुरक्षाकर्मी
तुम उसे क्यों नहीं लाए? "तुम" अर्थात मन्दिर के सुरक्षाकर्मी।
"उनको" अर्थात मन्दिर के सुरक्षाकर्मियों को।
"तुम भी धोखा खा गए"
"भरमाए गए" - धोखा खा गए
"एक भी सरदार या फरीसी ने उस पर विश्वास नहीं किया है"।
नीकुदेमुस के कहने का अर्थ था कि व्यवस्था के अनुसार चलने वाले अभियोग के बिना किसी पर दोष नहीं लगाते
"हमारी व्यवस्था हमें अनुमति नहीं देती कि .... किसी को दण्ड दें"।
"तू भी गलील के घटिया लोगों में से होगा"।
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं तो कुछ में नहीं है।
एक एक करके यह उन सब मनुष्यों के संदर्भ में है जिनका उल्लेख में किया गया है।
यीशु वहाँ नहीं जाना चाहता था क्योंकि यहूदी उसे मार डालना चाहते थे।
उन्होंने उससे आग्रह किया कि वह यहूदिया को जाए कि वहाँ भी उसके अनुयायी उसके आश्चर्यकर्मों को देखें और संसार पर वह प्रगट हों।
यीशु ने अपने भाइयों से कहा कि उसका समय अभी नहीं आया है और उसका समय पूरा नहीं हुआ है।
यीशु ने कहा कि संसार उससे घृणा करता है क्योंकि वह उसके विरोध में गवाही देता था कि उसके काम बुरे हैं।
उसके भाइयों के यहूदिया प्रस्थान के बाद यीशु गुप्त रूप में वहाँ गया।
कुछ ने कहा, "वह भला मनुष्य है", कुछ लोग कहते थे, "नहीं वह लोगों को भरमाता है"।
यहूदियों के भय के कारण किसी ने यीशु के विरूद्ध कुछ भी कहने का साहस नहीं किया।
पर्व के आधे दिन बीत जाने के बाद यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश करने लगा।
यीशु ने कहा यदि कोई यीशु को भेजने वाले की इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के बारे में जान जायेगा कि वह परमेश्वर की ओर से है।
यीशु ने कहा कि वह मनुष्य सच्चा है और उसमें अधर्म नहीं है।
यीशु ने कहा, तुम में से कोई व्यवस्था पर नहीं चलता है।
यीशु का तर्क था कि मूसा की व्यवस्था का पालन करने के लिए सब्त के दिन खतना कराना अनिवार्य है तो वे उसके द्वारा सब्त के दिन किसी को चंगा करने पर क्रोध क्यों करते थे।
यीशु ने कहा, मुंह देखकर न्याय न करो, परन्तु ठीक-ठीक न्याय करो।
महायाजक और फरीसियों ने यीशु को पकड़ने के लिए सैनिक भेजे।
यीशु ने पवित्र आत्मा के बारे में कहा था, जो उसमें विश्वास करने वालों को मिलना था।
उन सैनिकों ने कहा, "किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें नहीं की"।
नीकुदेमुस ने फरीसियों से कहा, "क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति को, पहले उसकी सुनकर जान न ले कि वह क्या करता है, दोषी ठहराती है?"
1 परन्तु यीशु जैतून के पहाड़* पर गया। 2 और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा। 3 तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उसको बीच में खड़ा करके यीशु से कहा, 4 “हे गुरु, यह स्त्री व्यभिचार करते पकड़ी गई है। 5 व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों को पत्थराव करें; अतः तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?” (लैव्य. 20:10) 6 उन्होंने उसको परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएँ, परन्तु यीशु झुककर उँगली से भूमि पर लिखने लगा। 7 जब वे उससे पूछते रहे, तो उसने सीधे होकर उनसे कहा, “तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे।” (रोम. 2:1) 8 और फिर झुककर भूमि पर उँगली से लिखने लगा। 9 परन्तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक-एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई। 10 यीशु ने सीधे होकर उससे कहा, “हे नारी, वे कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर दण्ड की आज्ञा न दी?” 11 उसने कहा, “हे प्रभु, किसी ने नहीं।” यीशु ने कहा, “मैं भी तुझ पर दण्ड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।”
12 तब यीशु ने फिर लोगों से कहा, “जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अंधकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।” (यूह. 12:46) 13 फरीसियों ने उससे कहा; “तू अपनी गवाही आप देता है; तेरी गवाही ठीक नहीं।” 14 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “यदि मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, तो भी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि मैं जानता हूँ, कि मैं कहाँ से आया हूँ* और कहाँ को जाता हूँ? परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आता हूँ या कहाँ को जाता हूँ। 15 तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता। 16 और यदि मैं न्याय करूँ भी, तो मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं पिता के साथ हूँ, जिस ने मुझे भेजा है। 17 और तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है; कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है। 18 एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिस ने मुझे भेजा।” (व्य. 19:15) 19 उन्होंने उससे कहा, “तेरा पिता कहाँ है?” यीशु ने उत्तर दिया, “न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदि मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।” 20 ये बातें उसने मन्दिर में उपदेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया था।
21 उसने फिर उनसे कहा, “मैं जाता हूँ, और तुम मुझे ढूँढ़ोगे और अपने पाप में मरोगे; जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।” 22 इस पर यहूदियों ने कहा, “क्या वह अपने आप को मार डालेगा, जो कहता है, ‘जहाँ मैं जाता हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते’?” 23 उसने उनसे कहा, “तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं। 24 इसलिए मैंने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वही हूँ, तो अपने पापों में मरोगे।” 25 उन्होंने उससे कहा, “तू कौन है?” यीशु ने उनसे कहा, “वही हूँ जो प्रारंभ से तुम से कहता आया हूँ। 26 तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैंने उससे सुना है, वही जगत से कहता हूँ।” 27 वे न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है। 28 तब यीशु ने कहा, “जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ, और अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूँ। 29 और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूँ, जिससे वह प्रसन्न होता है।” 30 वह ये बातें कह ही रहा था, कि बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
31 तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्होंने उस पर विश्वास किया था, कहा, “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। 32 और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” 33 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हम तो अब्राहम के वंश से हैं, और कभी किसी के दास नहीं हुए; फिर तू क्यों कहता है, कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे?” 34 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है। 35 और दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है। (गला. 4:30) 36 इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे। 37 मैं जानता हूँ कि तुम अब्राहम के वंश से हो; तो भी मेरा वचन तुम्हारे हृदय में जगह नहीं पाता, इसलिए तुम मुझे मार डालना चाहते हो। 38 मैं वही कहता हूँ, जो अपने पिता के यहाँ देखा है; और तुम वही करते रहते हो जो तुम ने अपने पिता से सुना है।” 39 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हमारा पिता तो अब्राहम है।” यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अब्राहम के सन्तान होते, तो अब्राहम के समान काम करते। 40 परन्तु अब तुम मुझ जैसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिस ने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना, यह तो अब्राहम ने नहीं किया था। 41 तुम अपने पिता के समान काम करते हो” उन्होंने उससे कहा, “हम व्यभिचार से नहीं जन्मे, हमारा एक पिता है अर्थात् परमेश्वर।” 42 यीशु ने उनसे कहा, “यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझसे प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्वर में से निकलकर आया हूँ; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा। 43 तुम मेरी बात क्यों नहीं समझते? इसलिए कि मेरा वचन सुन नहीं सकते। 44 तुम अपने पिता शैतान से हो*, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं; जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, वरन् झूठ का पिता है। (प्रेरि. 13:10) 45 परन्तु मैं जो सच बोलता हूँ, इसलिए तुम मेरा विश्वास नहीं करते। 46 तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूँ, तो तुम मेरा विश्वास क्यों नहीं करते? 47 जो परमेश्वर से होता है*, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिए नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो।”
48 यह सुन यहूदियों ने उससे कहा, “क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है?” 49 यीशु ने उत्तर दिया, “मुझ में दुष्टात्मा नहीं; परन्तु मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा निरादर करते हो। 50 परन्तु मैं अपनी प्रतिष्ठा नहीं चाहता, हाँ, एक है जो चाहता है, और न्याय करता है। 51 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु को न देखेगा।” 52 यहूदियों ने उससे कहा, “अब हमने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्मा है: अब्राहम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, ‘यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा।’ 53 हमारा पिता अब्राहम तो मर गया, क्या तू उससे बड़ा है? और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपने आप को क्या ठहराता है?” 54 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं आप अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्वर है। 55 और तुम ने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूँ; और यदि कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारे समान झूठा ठहरूँगा: परन्तु मैं उसे जानता, और उसके वचन पर चलता हूँ। 56 तुम्हारा पिता अब्राहम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उसने देखा, और आनन्द किया।” 57 यहूदियों ने उससे कहा, “अब तक तू पचास वर्ष का नहीं, फिर भी तूने अब्राहम को देखा है?” 58 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ।” 59 तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया।
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं परन्तु कुछ में नहीं।
अनेक लोग
"उन्होंने एक स्त्री को व्यभिचार करते पकड़ा था"
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं परन्तु कुछ में नहीं।
"ऐसे मनुष्यों पर" या "जो ऐसे काम करते है"
यहां पृष्ठभूमि आधारित जानकारी दी गई है जिसे यीशु और यहूदी अधिकारी समझते थे।
इसका अनुवाद आदेश सूचक वाक्य में भी किया जा सकता है, "तू हमें बता कि इसके साथ क्या किया जाए"?
"उसे फंसाने के लिए" इसका अर्थ है, छल का प्रश्न पूछना
कि उस पर दोष लगाने के लिए कोई विषय स्पष्ट सामने आए, जिससे कि वे उस पर किसी गलत बात का दोष लगा पाएं, या "जिससे कि वे उस पर मूसा की व्यवस्था या रोमी विधि के उल्लंघन का आरोप लगा पाएं"
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं परन्तु कुछ में नहीं।
"वे" का संदर्भ फरीसियों और शास्त्रियों से है (देखें यूह. 08:1/8:3)
"यदि तुममें कोई निष्पाप हो" या "तुम में से किसी ने कभी पाप न किया हो"
यीशु शास्त्रियों और फरीसियों और संभवतः जनसमूह से भी कह रहा था।
"वही व्यक्ति"
"वह झुका कि भूमि पर ऊंगली से लिखे"
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं परन्तु कुछ में नहीं।
"एक के बाद एक"
यीशु ने उसे नारी कह कर पुकारा तो उसका अर्थ यह नहीं कि वह उसे तुच्छ समझ रहा था या उसे लज्जित करना चाहता था। यदि कोई यह समझे कि वह ऐसा कर रहा था तो "नारी" शब्द को हटा दें।
देखें आपने "ज्योति" का अनुवाद यूह में कैसे किया है। वैकल्पिक अनुवाद, "मैं ही हूं जो जगत को ज्योति देता हूँ।"
"संसार के मनुष्यों"
"वह हर एक जन जो मेरा अनुसरण करेगा" यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, "वह हर एक जन जो मेरी शिक्षाओं पर चलता है“, या "मेरी आज्ञा मानने वाला हर एक जन"
अन्धकार में न चलेगा, यह पाप के जीवन के लिए एक रूपक है। वैकल्पिक अनुवाद, "उसका जीवन ऐसा नहीं रहेगा कि मानो वह अन्धकार में जी रहा है"
"तू तो अपनी ही प्रशंसा कर रहा है"।
"तेरी गवाही उचित नहीं है", "तू स्वयं अपना गवाह नहीं हो सकता" या "जो तू अपने बारे में कहता है वह हो सकता है कि सच न हो"।
"यद्यपि मैं ये बातें अपने पक्ष में कहता हूं"
मानवीय मानकों और मनुष्य की व्यवस्था(यु.डी.बी)
संभावित अर्थ, (1) "मैं अभी किसी का न्याय नहीं करता हूं" या (2) "मैं इस समय किसी का न्याय नहीं कर रहा हूं"।
"यदि मैं मनुष्यों का न्याय करूं", संभावित अर्थ है, (1) "जब मैं मनुष्यों का न्याय करूंगा" (भविष्य में) या (2) "मैं जब भी मनुष्यों का न्याय करूंगा" (अब) या (3) "मैं जब भी मनुष्यों का न्याय करूं" (अभी)
संभावित अर्थ हैं, (1) "मेरा न्याय उचित होगा या (2) मेरा न्याय सही है"।
यहाँ सलंग्न जानकारी है कि न्याय करने में वह अकेला नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद "मैं न्याय करने में अकेला नहीं हूं" या "मैं अकेला न्याय नहीं करता हूं"।
"पिता मेरे साथ न्याय करता है" या "जब मैं न्याय करता हूं तो पिता न्याय करता है"।
"जिसने मुझे भेजा है", पिता के बारे में अधिक जानकारी देता है। वैकल्पिक अनुवाद, "पिता ही है जिसने मुझे भेजा है"
यीशु फरीसियों तथा अन्यों से बातें कर रहा है।
"हाँ" यीशु ने पहले कहा है उसी संबन्ध में अब आगे कह रहा है
"मूसा ने लिखा है"
"यदि दो मनुष्य एक ही बात कहे तो लोग मान लेते हैं कि वह सही है।"
"मैं अपनी गवाही देता हूं" या "मैं अपने बारे में तुम्हारे समक्ष प्रमाण रखता हूं"(यु.डी.बी)
"पाप की दशा में ही मरोगे" या "पाप करते-करते ही मर जाओगे"
"तुम योग्य नहीं कि आओ"
इसका अनुवाद दो अलग-अलग प्रश्नों में किया जा सकता है। "क्या वह आत्म हत्या करेगा? उसने यही क्यों कहा क्या"?
यीशु श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर दे रहा है
"यदि तुम विश्वास नहीं करोगें कि मैं हूं तो अपने पापों में मरोगे।"
"कि मैं परमेश्वर हूं" (यू.डी.बी.)
"उन्होंने" अर्थात यहूदी अगुओं ने
"उसका पिता"
"जब तुम चढ़ाओगे", यह अभी तक नहीं हुआ है।
"वैसे ही जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया है"
शब्द "वह" यीशु का पिता परमेश्वर
"जब यीशु बातें कर ही रहा था"
"मैंने जो कहा है वैसा करोगे"।
सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा, "यदि तुम सत्य का पालन करोगे तो परमेश्वर तुम्हें स्वतंत्र करेगा"।
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"पाप के दास के समान है" इसका अभिप्राय है कि पाप मनुष्य का स्वामि है
"परिवार में"
उनकी प्रथा के अनुसार जेठा पुत्र पारिवारिक दास को स्वतंत्र कर सकता था। इसी प्रकार परमेश्वर का पुत्र मनुष्यों को स्वतंत्र कर सकता है।
मेरी शिक्षाएं
वैकल्पिक अनुवाद, "अब्राहम ने परमेश्वर का सत्य सुनाने वाले को कभी घात नहीं किया था।"
यीशु इस प्रश्न द्वारा मुख्यतः यहूदी अगुओं को झिड़क रहा है क्योंकि वे उसकी बात नहीं सुनते थे।
"तुम में से कोई भी मुझे पापी नहीं कह सकता" यीशु ने इस प्रश्न द्वारा अपने निष्पाप होने पर बल दिया।
"मुझमें विश्वास न करने का तुम्हारे पास कोई कारण नहीं है"। यीशु इस प्रश्न द्वारा यहूदी अगुओं के अविश्वास को झिड़क रहा है।
"मैं जो कहता हूं उसका पालन करेगा"
"तू पचास वर्ष से कम आयु का है। तू अब्राहम को देख ही नहीं सकता"
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
उस स्त्री को यीशु के समक्ष लाने का उनका मुख्य उद्देश्य था कि यीशु को किसी प्रकार उसी की बातों में फंसाकर उस पर दोष लगाएँ।
यीशु ने उनसे कहा, "तुम में जो निष्पाप हो वही पहले उसको पत्थर मारे।"
यीशु का उत्तर सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक सब एक-एक करके निकल गए।
यीशु ने उस स्त्री से कहा, "जा और फिर पाप न करना"।
यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है, एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है, जिसने मुझे भेजा है"।
यीशु ने उन्हीं के ज्ञान के आधार पर कहा, कि वे नीचे के हैं, और वह ऊपर का है, वे संसार के हैं और यीशु संसार का नहीं।
यीशु ने कहा कि वे अपने पापों में मरेंगे, यदि वे विश्वास करें कि यीशु "मैं ही हूं"।
यीशु संसार से वही कहता था जो वह पिता से सुनता था।
पिता परमेश्वर यीशु के साथ था, वह उसे अकेला नहीं छोड़ता था क्योंकि वह सर्वदा वही करता था जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता था।
यदि कोई यीशु के वचन में बना रहे तो वह सच में उसका शिष्य है।
यहूदियों ने सोचा कि यीशु मनुष्य का दास बनने के लिए कह रहा है।
यीशु पापों के दासत्व से स्वतंत्र होने के बारे में कह रहा था।
वे उसे मार डालना चाहते थे क्योंकि उसके वचन का उनके हृदय में स्थान नहीं था।
यीशु ने कहा कि वे अब्राहम की सन्तान नहीं क्योंकि उनके काम अब्राहम के समान नहीं थे। उन्होंने तो यीशु की हत्या करना चाहा।
यीशु ने उनसे कहा, "यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता तो तुम मुझसे प्रेम रखते क्योंकि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ। मै आप से नहीं आया हूँ, परन्तु उसी ने मुझे भेजा है।"
यीशु कहता है कि उनका पिता शैतान है।
यीशु ने कहा कि शैतान आरंभ ही से हत्यारा है और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं। शैतान झूठ बोलता है तो वह उसका स्वभाव है क्योंकि वह झूठा ही है वरन झूठ का पिता है।
जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर का वचन सुनता है।
यीशु का वचन मानने वाला कभी मृत्यु न देखेगा।
उन्होंने इसलिए ऐसा कहा कि यीशु ने उनसे कहा था, "मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु को न देखेगा"
वे ऐसा सोचते थे क्योंकि उनकी समझ में मृत्यु केवल शारीरिक मृत्यु थी। अब्राहम और भविष्यद्वक्ता भी तो मर गए थे (शरीर से)।
यीशु ने कहा, "तुम्हारा पिता अब्राहम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था और उसने देखा और आनन्द किया"। और "मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ"। (यीशु के इस कथन का अर्थ है कि अब्राहम जीवित है और मसीह यीशु उससे बड़ा है)
1 फिर जाते हुए उसने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म से अंधा था। 2 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “हे रब्बी, किस ने पाप किया था* कि यह अंधा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने?” 3 यीशु ने उत्तर दिया, “न तो इसने पाप किया था, न इसके माता पिता ने परन्तु यह इसलिए हुआ, कि परमेश्वर के काम उसमें प्रगट हों। 4 जिस ने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है। वह रात आनेवाली है जिसमें कोई काम नहीं कर सकता। 5 जब तक मैं जगत में हूँ, तब तक जगत की ज्योति हूँ।” (यूह. 8:12) 6 यह कहकर उसने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अंधे की आँखों पर लगाकर। 7 उससे कहा, “जा, शीलोह के कुण्ड में धो ले” (शीलोह का अर्थ भेजा हुआ है) अतः उसने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया। (यशा. 35:5) 8 तब पड़ोसी और जिन्होंने पहले उसे भीख माँगते देखा था, कहने लगे, “क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख माँगा करता था?” 9 कुछ लोगों ने कहा, “यह वही है,” औरों ने कहा, “नहीं, परन्तु उसके समान है” उसने कहा, “मैं वही हूँ।” 10 तब वे उससे पूछने लगे, “तेरी आँखों कैसे खुल गई?” 11 उसने उत्तर दिया, “यीशु नामक एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आँखों पर लगाकर मुझसे कहा, ‘शीलोह में जाकर धो ले,’ तो मैं गया, और धोकर देखने लगा।” 12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कहाँ है?” उसने कहा, “मैं नहीं जानता।”
13 लोग उसे जो पहले अंधा था फरीसियों के पास ले गए। 14 जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उसकी आँखें खोली थी वह सब्त का दिन था। 15 फिर फरीसियों ने भी उससे पूछा; तेरी आँखें किस रीति से खुल गई? उसने उनसे कहा, “उसने मेरी आँखों पर मिट्टी लगाई, फिर मैंने धो लिया, और अब देखता हूँ।” 16 इस पर कई फरीसी कहने लगे, “यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं*, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता।” औरों ने कहा, “पापी मनुष्य कैसे ऐसे चिन्ह दिखा सकता है?” अतः उनमें फूट पड़ी। 17 उन्होंने उस अंधे से फिर कहा, “उसने जो तेरी आँखें खोली, तू उसके विषय में क्या कहता है?” उसने कहा, “यह भविष्यद्वक्ता है।” 18 परन्तु यहूदियों को विश्वास न हुआ कि यह अंधा था और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिसकी आँखें खुल गई थी, बुलाकर 19 उनसे पूछा, “क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अंधा जन्मा था? फिर अब कैसे देखता है?” 20 उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, “हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अंधा जन्मा था। 21 परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब कैसे देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उसकी आँखें खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपने विषय में आप कह देगा।” 22 ये बातें उसके माता-पिता ने इसलिए कहीं क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे; क्योंकि यहूदी एकमत हो चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए। 23 इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, “वह सयाना है; उसी से पूछ लो।” 24 तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अंधा था दूसरी बार बुलाकर उससे कहा, “परमेश्वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।” 25 उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखता हूँ।” 26 उन्होंने उससे फिर कहा, “उसने तेरे साथ क्या किया? और किस तरह तेरी आँखें खोली?” 27 उसने उनसे कहा, “मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने न सुना; अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो?” 28 तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, “तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं। 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें की; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहाँ का है।” 30 उसने उनको उत्तर दिया, “यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते की कहाँ का है तो भी उसने मेरी आँखें खोल दीं। 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उसकी इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है। (नीति. 15:29) 32 जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्म के अंधे की आँखें खोली हों। 33 यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।” 34 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “तू तो बिलकुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।
35 यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उससे भेंट हुई तो कहा, “क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है?” 36 उसने उत्तर दिया, “हे प्रभु, वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूँ?” 37 यीशु ने उससे कहा, “तूने उसे देखा भी है; और जो तेरे साथ बातें कर रहा है वही है।” 38 उसने कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ*।” और उसे दण्डवत् किया। 39 तब यीशु ने कहा, “मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूँ, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएँ।” 40 जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने ये बातें सुन कर उससे कहा, “क्या हम भी अंधे हैं?” 41 यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अंधे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है।
”हमें" का अर्थ है यीशु और उसके शिष्यों को जिनसे वह बातें कर रहा है।
दिन .... रात यीशु मनुष्यों द्वारा परमेश्वर के काम करने के समय की तुलना दिन से कर रहा है। यीशु उस समय की तुलना रात से कर रहा है जब हम परमेश्वर का काम नहीं कर सकते।
"वह जो सत्य को उजागर करता है जैसे प्रकाश वास्तविकता को प्रकट करता है।"
देखें कि आपने इसका अनुवाद यूह. 09:06/9:6 में कैसे किया है।
सब्त के दिन के नियम का उल्लंघन नहीं करता है
यहूदियों ने उस मनुष्य को बुलाया (यूह. 09:16/9:18)
वे यीशु के लिए कह रहे हैं।
वह मनुष्य जो पहले अंधा था।
"मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं"
यहूदी अगुवे यीशु के बारे में उस मनुष्य से पूछताछ कर रहे हैं जो जन्म से अंधा था (यूह. 09:16/9:18)
यहूदी अगुवे यीशु के बारे में उस मनुष्य से पूछताछ कर रहे हैं जो जन्म से अंधा था (यूह. 09:16/9:18)
यहूदी अगुवे केवल अपने ही बारे में बातें कर रहे हैं।
पापियों की प्रार्थना का उत्तर नहीं देता है ..... उसकी प्रार्थना का उत्तर देता है।
"किसी ने कभी नहीं सुना कि .... आंखें खोली हैं"
"दृष्टिदान दिया कि जन्म का अंधा देखने लगा हो"
"तू तो पूर्णतः पापों में जन्मा है। तू हमें शिक्षा देने योग्य है ही नहीं"।
कि जो आंखों से नहीं देखते वे परमेश्वर को पहचानें और जो आंखों से देखते है वे परमेश्वर को नहीं पहचानें।
शिष्यों के विचार में या तो उस अंधे ने पाप किया था या उसके माता-पिता ने।
यीशु ने कहा कि उसके अंधे होने का कारण था कि परमेश्वर के काम उसमें प्रकट हों।
यीशु ने मिट्टी में थूक कर उसे गीला किया और उसकी आँखों पर लगाई और उससे कहा कि वह जाकर शीलोम के कुण्ड में धो ले।
वह लौटा तो वह देखता था।
उस मनुष्य ने गवाही दी कि वह अंधा भिखारी ही है।
वे उस व्यक्ति को फरीसियों के पास ले गए।
उस अंधे मनुष्य की चंगाई सब्त के दिन हुई थी।
कुछ फरीसियों ने कहा कि यीशु परमेश्वर की ओर से नहीं है, क्योंकि वह सब्त का पालन नहीं करता है (उसने सब्त के दिन चंगाई का काम किया है) अन्य फरीसियों ने कहा कि ऐसा पापी मनुष्य चिन्ह कैसे दिखा सकता है?
उस पूर्वकालिक अंधे ने कहा, "वह एक भविष्यद्वक्ता है।"
उन्होंने उसके माता-पिता को बुलवाया क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह मनुष्य पहले से अंधा था।
उसके माता पिता ने कहा कि वह निश्चय ही उनका पुत्र है और वह अन्धा ही जन्मा था।
उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते कि वह कैसे देख सकता है और उसे किसने दृष्टि दान दिया है?
उन्होंने इसलिए ऐसा कहा क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे क्योंकि यहूदियों ने यह निर्णय लिया था, कि यीशु को मसीह कहने वाले को आराधनालय से बाहर कर दिया जायेगा।
उन्होंने उससे कहा, "परमेश्वर की स्तुति कर। हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।"
उसने कहा, "मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं; मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखता हूँ"।
फरीसियों ने उसका ठट्ठा किया क्योंकि उसने कहा था, "मैं तुमसे कह चुका हूँ और तुमने नहीं सुना, अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो?"
उसने कहा, "यह तो आश्चर्य की बात है कि तुम नहीं जानते कि वह कहाँ का है, तौभी उसने मेरी आँखें खोल दीं। हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता, परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो और उसकी इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है, जगत के आरंभ से यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्म के अंधे की आँखे खोली हों। यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता"।
उन्होंने उससे कहा, तू तो बिल्कुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है? और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।
यीशु ने उसको खोजा और उसे पा लिया।
यीशु ने उससे पूछा कि क्या वह मनुष्य के पुत्र में विश्वास करता है और फिर उससे कहा कि वही (यीशु) मनुष्य का पुत्र है।
उस पूर्वकालिक अंधे मनुष्य ने यीशु से कहा, "हे प्रभु मैं विश्वास करता हूँ" और उसे दण्डवत किया।
यीशु ने उनसे कहा, "यदि तुम अंधे होते तो पापी न ठहरतेः परन्तु अब कहते हो कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है।
1 “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई द्वार से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, परन्तु और किसी ओर से चढ़ जाता है, वह चोर और डाकू है*। 2 परन्तु जो द्वार से भीतर प्रवेश करता है* वह भेड़ों का चरवाहा है। 3 उसके लिये द्वारपाल द्वार खोल देता है, और भेड़ें उसका शब्द सुनती हैं, और वह अपनी भेड़ों को नाम ले लेकर बुलाता है और बाहर ले जाता है। 4 और जब वह अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल चुकता है, तो उनके आगे-आगे चलता है, और भेड़ें उसके पीछे-पीछे हो लेती हैं; क्योंकि वे उसका शब्द पहचानती हैं। 5 परन्तु वे पराये के पीछे नहीं जाएँगी, परन्तु उससे भागेंगी, क्योंकि वे परायों का शब्द नहीं पहचानती।” 6 यीशु ने उनसे यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे न समझे कि ये क्या बातें हैं जो वह हम से कहता है।
7 तब यीशु ने उनसे फिर कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि भेड़ों का द्वार मैं हूँ। 8 जितने मुझसे पहले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ों ने उनकी न सुनी। (यिर्म. 23:1, यूह. 10:27) 9 द्वार मैं हूँ; यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया-जाया करेगा और चारा पाएगा। (भज. 118:20) 10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और हत्या करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ। 11 अच्छा चरवाहा मैं हूँ; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है। (भज. 23:1, यशा. 40:11, यहे. 34:15) 12 मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ों का मालिक है, भेड़िए को आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेड़िया उन्हें पकड़ता और तितर-बितर कर देता है। 13 वह इसलिए भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्ता नहीं। 14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ; मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ*, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं। 15 जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूँ। और मैं भेड़ों के लिये अपना प्राण देता हूँ। 16 और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उनका भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा। (यशा. 56:8, यहे. 34:23, यहे. 37:24) 17 पिता इसलिए मुझसे प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूँ, कि उसे फिर ले लूँ। 18 कोई उसे मुझसे छीनता नहीं*, वरन् मैं उसे आप ही देता हूँ। मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है। यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।” 19 इन बातों के कारण यहूदियों में फिर फूट पड़ी। 20 उनमें से बहुत सारे कहने लगे, “उसमें दुष्टात्मा है, और वह पागल है; उसकी क्यों सुनते हो?” 21 औरों ने कहा, “ये बातें ऐसे मनुष्य की नहीं जिसमें दुष्टात्मा हो। क्या दुष्टात्मा अंधों की आँखें खोल सकती है?”
22 यरूशलेम में स्थापन पर्व हुआ, और जाड़े की ऋतु थी। 23 और यीशु मन्दिर में सुलैमान के ओसारे में टहल रहा था। 24 तब यहूदियों ने उसे आ घेरा और पूछा, “तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।” 25 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने तुम से कह दिया, और तुम विश्वास करते ही नहीं, जो काम मैं अपने पिता के नाम से करता हूँ वे ही मेरे गवाह हैं। 26 परन्तु तुम इसलिए विश्वास नहीं करते, कि मेरी भेड़ों में से नहीं हो। 27 मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं। 28 और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। 29 मेरा पिता, जिस ने उन्हें मुझ को दिया है, सबसे बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। 30 मैं और पिता एक हैं।” 31 यहूदियों ने उसे पत्थराव करने को फिर पत्थर उठाए। 32 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैंने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उनमें से किस काम के लिये तुम मुझे पत्थराव करते हो?” 33 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझे पत्थराव नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण और इसलिए कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।” (लैव्य. 24:16) 34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है कि ‘मैंने कहा, तुम ईश्वर हो’? (भज. 82:6) 35 यदि उसने उन्हें ईश्वर कहा जिनके पास परमेश्वर का वचन पहुँचा (और पवित्रशास्त्र की बात लोप नहीं हो सकती।) 36 तो जिसे पिता ने पवित्र ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो, ‘तू निन्दा करता है,’ इसलिए कि मैंने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’ 37 यदि मैं अपने पिता का काम नहीं करता, तो मेरा विश्वास न करो। 38 परन्तु यदि मैं करता हूँ, तो चाहे मेरा विश्वास न भी करो, परन्तु उन कामों पर विश्वास करो, ताकि तुम जानो, और समझो, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूँ।” 39 तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उनके हाथ से निकल गया। 40 फिर वह यरदन के पार उस स्थान पर चला गया, जहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहा। 41 और बहुत सारे उसके पास आकर कहते थे, “यूहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इसके विषय में कहा था वह सब सच था।” 42 और वहाँ बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
यीशु फरीसियों से बातें कर रहा है
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
बाड़ा लगा हुआ वह सुरक्षित स्थान जहाँ चरवाहा भेड़ों को रखता है।
चोर और डाकू, इन दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है परन्तु यह बल देने के लिए काम में लिए गए हैं।
संभावित अर्थ (1) "शिष्य नहीं समझे" या 2)"जनसमूह नहीं समझा" अतः इसे ऐसे ही रहने दे तो ठीक होगा।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"मुझ से होकर भेड़ें भेड़शाला में प्रवेश करती हैं," यीशु के कहने का अर्थ है कि वह प्रवेश की अनुमति देता है। यहां ”भेड़“ शब्द परमेश्वर के लोगों के लिए काम में लिया गया है।
जितने मुझसे पहले आए वे सब चोर और डाकू है, "जितने मुझ से पहले आए", यह उक्ति उन उपदेशकों के संदर्भ में है जिन्होंने यीशु से पहले आकर शिक्षा दी। यीशु उन्हें "चोर और डाकू" कहता है। क्योंकि उनकी शिक्षा झूठी थी और वे परमेश्वर के लोगों को, सत्य की समझ से रहित होकर, पथभ्रष्ट करते थे।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है
स्वयं को "द्वार" कहने में यीशु का अभिप्राय है कि वह सच्चा मार्ग दिखाता है कि भेड़शाला जिसका प्रतीक है वहां कैसे पहुंचे।
चारा वह हरी घास है जिसे भेड़ें खाती है।
"वे" शब्द भेड़ों के संदर्भ में है, "जीवन" अर्थात अनन्त जीवन
यीशु अच्छे चरवाहे का दृष्टान्त ही सुना रहा है।
"मैं एक अच्छे चरवाहे के जैसा हूँ"।
अपना प्राण देता है //-// किसी बात को देने का अर्थ है उसको अपने वश से जाने देना। यह मृत्यु के लिए प्रयुक्त एक कोमल शब्द है, वैकल्पिक अनुवाद ”मर जाता है“।
यीशु अच्छे चरवाहे का दृष्टान्त ही सुना रहा है।
"मैं एक अच्छे चरवाहे के जैसा हूं"।
यह यीशु द्वारा कोमलता से कहता है कि वह अपनी भेड़ों की रक्षा करते हुए मर जायेगा। वैकल्पिक अनुवाद, मैं अपनी भेड़ों के लिए मर जाऊंगा“।
चरवाहे की भेड़ों का वृंद। भेड़शाला का अर्थ है, भेड़ों के रहने का स्थान।
यीशु जनसमूह से ही बातें कर रहा है।
यह यीशु के कोमल शब्द हैं जिनके द्वारा वह कह रहा है कि वह मर जायेगा और फिर स्वयं को मरने दूंगा कि फिर स्वयं को जीवित करूं"।
वैकल्पिक अनुवाद, "उसकी बातें मत सुनो"।
वैकल्पिक अनुवाद, "दुष्टात्मा अंधे को दृष्टिदान नहीं दे सकती है।"
यह आठ दिवसीय शीतकालीन अवकाश था। उसमें यहूदी परमेश्वर के चमत्कार को स्मरण करते थे कि परमेश्वर ने आठ दिन तक दीपों में तेल समाप्त होने न दिया, जब तक कि वे और तेल का प्रबन्ध करते थे। दीपदान इसलिए जलते थे कि परमेश्वर के लिए लोगों का समर्पण दर्शाएं। किसी वस्तु के समर्पण का अर्थ है कि उसे किसी विशेष उद्देश्य के निमित्त ही में लिया जाए।
ओसारे- इमारत से जुड़ी दीवार रहित छत
चमत्कार उसके लिए प्रमाण प्रस्तुत करते हैं जिस प्रकार कि न्यायालय में गवाह प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। वैकल्पिक अनुवाद, "ये चमत्कार मेरे लिए प्रमाण प्रस्तुत करते हैं"।
वैकल्पिक अनुवाद "मेरे अनुयायी नहीं" या "मेरे शिष्य नहीं" या मेरे लोग नहीं।
"हाथ" का अर्थ है पिता की सम्पदा या उसका नियंत्रण एवं सुरक्षा
"परमेश्वर होने का दावा करता है"
"ईश्वर" शब्द प्रायः झूठे देवी-देवताओं के लिए काम में लिया जाता है। सच्चे परमेश्वर के लिए अंग्रेजी में बड़ा "जी" लगता है। यहां यीशु धर्मशास्त्र के संदर्भ द्वारा दर्शाता है कि परमेश्वर ने अपने अनुयायियों को ईश्वर कहता है क्योंकि उसने पृथ्वी पर उसके प्रति निधित्व हेतु उन्हें चुना है।
यीशु ने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि उस जानकारी के उजागर करे जिसे यहूदी धर्मगुरूओं के लिए जानना आवश्यक था, ”लिखा है“।
पवित्रशास्त्र की बात असत्य नहीं हो सकती, यह वाक्य धर्मशास्त्र को हमारा नियंत्रक दर्शाता है और वह नियंत्रण तोड़ा नहीं जा सकता या नियंत्रण मुक्त नहीं किया जा सकता कि हम उसके सत्यवचन से बच पाएं। वैकल्पिक अनुवाद, "धर्मशास्त्र की किसी भी बात को झूठा नहीं कहा जा सकता है" (यू.डी.बी.) या "धर्मशास्त्र सत्य है"।
यीशु अपने विरोधी यहूदी धर्मगुरूओं के समक्ष प्रतिवाद प्रस्तुत कर रहा है।
यह शब्द जो सच है उसे दर्शाने को उपयोग किया गया है, वैकल्पिक अनुवाद-”सत्यता में” अथवा “सच-सच”
जो भेड़शाला में द्वार से प्रवेश नहीं करता परन्तु किसी दूसरी ओर से चढ़ जाता है तो वह चोर और डाकू है।
जो द्वार से भेड़शाला में प्रवेश करे वह उन भेड़ों का चरवाहा है।
भेड़ें चरवाहे के पीछे जाती हैं क्योंकि वह उसका शब्द पहचानती हैं।
नहीं, भेड़ें पराये के पीछे नहीं जाती हैं।
जो यीशु से पहले आए वे सब चोर और डाकू थे और भेड़ों ने उनकी न सुनी।
जो यीशु रूपी द्वार से प्रवेश करते हैं वे उद्धार पाएंगे और भीतर बाहर आया जाया करेंगे और चारा पाएंगे।
अच्छे चरवाहे यीशु अपनी भेड़ों के लिए जान देने को तैयार है।
यीशु ने कहा कि उसकी और भी भेड़ें हैं जो उस भेड़शाला की नहीं हैं, उनका लाना भी उसके लिए आवश्यक है कि एक ही भेड़शाला हो और एक ही चरवाहा हो।
परमेश्वर पिता यीशु से प्रेम करता है क्योंकि यीशु अपनी जान देता है वरन उसे फिर ले लेने का अधिकार भी उसे है।
नहीं, वह स्वयं ही जान देता है।
यीशु ने यह आज्ञा परमेश्वर पिता से प्राप्त की थी।
अनेक लोग कहने लगे, "उसमें दुष्टात्मा है और वह पागल है उसकी क्यों सुनते हो?" अन्यों ने कहा, "ये बातें ऐसे मनुष्य की नहीं जिसमें दुष्टात्मा हो, क्या दुष्टात्मा अंधों की आंखे खोल सकती हैं?"
उन्होंने कहा, "तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है तो हमसे साफ-साफ कह दे।"
यीशु ने कहा कि उसने तो पहले ही कह दिया था (कि वह मसीह है) परन्तु उन्होंने विश्वास नहीं किया क्योंकि वे उसकी भेड़ें नहीं थे।
यीशु ने कहा कि वह अपनी भेड़ों को अनन्त जीवन देता है, वे कभी नष्ट नहीं होंगी और उन्हें उसके हाथ से कोई छीन नहीं सकता।
पिता परमेश्वर ने यीशु को भेड़ें दी थी।
परमेश्वर पिता सबसे महान है।
क्योंकि उनका मानना था कि यीशु ईश्वर की निंदा कर रहा था और स्वयं को परमेश्वर के बराबर बताता था जबकि वह मात्र एक मनुष्य था।
यीशु स्वयं की रक्षा में कहता है, "क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है, मैंने कहा, तुम ईश्वर हो? यदि उसने उन्हें ईश्वर कहा जिनके पास परमेश्वर का वचन पहुंचा और पवित्रशास्त्र की बात असत्य नहीं हो सकती, तो जिसे पिता ने पवित्र ठहरा कर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो, "तू निन्दा करता है“ इसलिए कि मैंने कहा, "मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ"?
यीशु ने यहूदियों से कहा कि वे उसके कामों को देखें, यदि यीशु अपने पिता के काम नहीं कर रहा है तो उस पर विश्वास नहीं करें। यदि वह अपने पिता के काम कर रहा है तो उस पर विश्वास करें।
यीशु ने कहा कि वे जान सकते हैं और समझ सकते हैं कि पिता परमेश्वर यीशु में है और यीशु परमेश्वर में है।
यहूदियों ने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया।
यीशु फिर यरदन पार उस स्थान में चला गया जहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा देता था।
लोग उसके पास आकर कहते थे, "यूहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इसके विषय में कहा था, वह सब सच था"। अनेक मनुष्यों ने वहाँ यीशु में विश्वास किया।
1 मरियम और उसकी बहन मार्था के गाँव बैतनिय्याह का लाज़र नाम एक मनुष्य बीमार था। 2 यह वही मरियम थी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पाँवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाज़र बीमार था। 3 तब उसकी बहनों ने उसे कहला भेजा, “हे प्रभु, देख, जिससे तू प्यार करता है*, वह बीमार है।” 4 यह सुनकर यीशु ने कहा, “यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।” 5 और यीशु मार्था और उसकी बहन और लाज़र से प्रेम रखता था। 6 जब उसने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहाँ दो दिन और ठहर गया। 7 फिर इसके बाद उसने चेलों से कहा, “आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।” 8 चेलों ने उससे कहा, “हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्थराव करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है?” 9 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते? यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है। 10 परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उसमें प्रकाश नहीं।” 11 उसने ये बातें कहीं, और इसके बाद उनसे कहने लगा, “हमारा मित्र लाज़र सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूँ।” 12 तब चेलों ने उससे कहा, “हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।” 13 यीशु ने तो उसकी मृत्यु के विषय में कहा था : परन्तु वे समझे कि उसने नींद से सो जाने के विषय में कहा। 14 तब यीशु ने उनसे साफ कह दिया, “लाज़र मर गया है। 15 और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूँ कि मैं वहाँ न था जिससे तुम विश्वास करो। परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।” 16 तब थोमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपने साथ के चेलों से कहा, “आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें।”
17 फिर यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं। 18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर था। 19 और बहुत से यहूदी मार्था और मरियम के पास उनके भाई के विषय में शान्ति देने के लिये आए थे। 20 जब मार्था यीशु के आने का समाचार सुनकर उससे भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही। 21 मार्था ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता। 22 और अब भी मैं जानती हूँ, कि जो कुछ तू परमेश्वर से माँगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।” 23 यीशु ने उससे कहा, “तेरा भाई जी उठेगा।” 24 मार्था ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ, अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।” (प्रेरि. 24:15) 25 यीशु ने उससे कहा, “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ*, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तो भी जीएगा। 26 और जो कोई जीवित है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा। क्या तू इस बात पर विश्वास करती है?” 27 उसने उससे कहा, “हाँ, हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूँ, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला था, वह तू ही है।”
28 यह कहकर वह चली गई, और अपनी बहन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, “गुरु यहीं है, और तुझे बुलाता है।” 29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई। 30 (यीशु अभी गाँव में नहीं पहुँचा था, परन्तु उसी स्थान में था जहाँ मार्था ने उससे भेंट की थी।) 31 तब जो यहूदी उसके साथ घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिये। 32 जब मरियम वहाँ पहुँची जहाँ यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पाँवों पर गिरके कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।” 33 जब यीशु ने उसको और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास और व्याकुल हुआ, 34 और कहा, “तुम ने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, चलकर देख ले।” 35 यीशु रोया*। 36 तब यहूदी कहने लगे, “देखो, वह उससे कैसा प्यार करता था।” 37 परन्तु उनमें से कितनों ने कहा, “क्या यह जिस ने अंधे की आँखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता?” 38 यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा थी, और एक पत्थर उस पर धरा था। 39 यीशु ने कहा, “पत्थर को उठाओ।” उस मरे हुए की बहन मार्था उससे कहने लगी, “हे प्रभु, उसमें से अब तो दुर्गन्ध आती है, क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।” 40 यीशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।” 41 तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया, फिर यीशु ने आँखें उठाकर कहा, “हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मेरी सुन ली है। 42 और मैं जानता था, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस-पास खड़ी है, उनके कारण मैंने यह कहा, जिससे कि वे विश्वास करें, कि तूने मुझे भेजा है।” 43 यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, “हे लाज़र, निकल आ!” 44 जो मर गया था, वह कफन से हाथ पाँव बंधे हुए निकल आया और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, “उसे खोलकर जाने दो।”
45 तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा था, उनमें से बहुतों ने उस पर विश्वास किया। 46 परन्तु उनमें से कितनों ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया। 47 इस पर प्रधान याजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा के लोगों को इकट्ठा करके कहा, “हम क्या करेंगे? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है। 48 यदि हम उसे यों ही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएँगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।” 49 तब उनमें से कैफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उनसे कहा, “तुम कुछ नहीं जानते; 50 और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।” 51 यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वाणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा; 52 और न केवल उस जाति के लिये, वरन् इसलिए भी, कि परमेश्वर की तितर-बितर सन्तानों को एक कर दे। 53 अतः उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे। 54 इसलिए यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहाँ से जंगल के निकटवर्ती प्रदेश के एप्रैम नाम, एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा। 55 और यहूदियों का फसह निकट था, और बहुत सारे लोग फसह से पहले दिहात से यरूशलेम को गए कि अपने आप को शुद्ध करें। (2 इति. 30:17) 56 वे यीशु को ढूँढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, “तुम क्या समझते हो? क्या वह पर्व में नहीं आएगा?” 57 और प्रधान याजकों और फरीसियों ने भी आज्ञा दे रखी थी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहाँ है तो बताए, कि उसे पकड़ लें।
1 फिर यीशु फसह से छः दिन पहले बैतनिय्याह में आया, जहाँ लाज़र था; जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया था। 2 वहाँ उन्होंने उसके लिये भोजन तैयार किया, और मार्था सेवा कर रही थी, और लाज़र उनमें से एक था, जो उसके साथ भोजन करने के लिये बैठे थे। 3 तब मरियम ने जटामांसी का आधा सेर बहुमूल्य इत्र लेकर यीशु के पाँवों पर डाला, और अपने बालों से उसके पाँव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया। 4 परन्तु उसके चेलों में से यहूदा इस्करियोती नाम एक चेला जो उसे पकड़वाने पर था, कहने लगा, 5 “यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर गरीबों को क्यों न दिया गया?” 6 उसने यह बात इसलिए न कही, कि उसे गरीबों की चिन्ता थी, परन्तु इसलिए कि वह चोर था और उसके पास उनकी थैली रहती थी, और उसमें जो कुछ डाला जाता था, वह निकाल लेता था। 7 यीशु ने कहा, “उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिये रहने दे। 8 क्योंकि गरीब तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा।” (मर. 14:7)
9 यहूदियों में से साधारण लोग जान गए, कि वह वहाँ है, और वे न केवल यीशु के कारण आए परन्तु इसलिए भी कि लाज़र को देखें, जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया था। 10 तब प्रधान याजकों ने लाज़र को भी मार डालने की सम्मति की। 11 क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया।
12 दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आ रहा है। 13 उन्होंने खजूर की डालियाँ लीं, और उससे भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, “होशाना! धन्य इस्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।” (भज. 118:25-26) 14 जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो वह उस पर बैठा, जैसा लिखा है,
15 “हे सिय्योन की बेटी,
मत डर;
देख, तेरा राजा गदहे के बच्चे पर चढ़ा
हुआ चला आता है।”
16 उसके चेले, ये बातें पहले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उनको स्मरण आया, कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुई थीं; और लोगों ने उससे इस प्रकार का व्यवहार किया था। 17 तब भीड़ के लोगों ने जो उस समय उसके साथ थे यह गवाही दी कि उसने लाज़र को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया था। 18 इसी कारण लोग उससे भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना था, कि उसने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है। 19 तब फरीसियों ने आपस में कहा, “सोचो, तुम लोग कुछ नहीं कर पा रहे हो; देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।”
20 जो लोग उस पर्व में आराधना करने आए थे उनमें से कई यूनानी थे। 21 उन्होंने गलील के बैतसैदा के रहनेवाले फिलिप्पुस के पास आकर उससे विनती की, “श्रीमान हम यीशु से भेंट करना चाहते हैं।” 22 फिलिप्पुस ने आकर अन्द्रियास से कहा; तब अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने यीशु से कहा। 23 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “वह समय आ गया है*, कि मनुष्य के पुत्र कि महिमा हो। 24 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जब तक गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है। 25 जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनन्त जीवन के लिये उसकी रक्षा करेगा। 26 यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा सेवक भी होगा; यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा।
27 “अब मेरा जी व्याकुल हो रहा है*। इसलिए अब मैं क्या कहूँ? ‘हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा?’ परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुँचा हूँ। 28 हे पिता अपने नाम की महिमा कर।” तब यह आकाशवाणी हुई, “मैंने उसकी महिमा की है, और फिर भी करूँगा।” 29 तब जो लोग खड़े हुए सुन रहे थे, उन्होंने कहा; कि बादल गरजा, औरों ने कहा, “कोई स्वर्गदूत उससे बोला।” 30 इस पर यीशु ने कहा, “यह शब्द मेरे लिये नहीं परन्तु तुम्हारे लिये आया है। 31 अब इस जगत का न्याय होता है, अब इस जगत का सरदार* निकाल दिया जाएगा। 32 और मैं यदि पृथ्वी पर से ऊँचे पर चढ़ाया जाऊँगा, तो सब को अपने पास खीचूँगा।” 33 ऐसा कहकर उसने यह प्रगट कर दिया, कि वह कैसी मृत्यु से मरेगा। 34 इस पर लोगों ने उससे कहा, “हमने व्यवस्था की यह बात सुनी है, कि मसीह सर्वदा रहेगा, फिर तू क्यों कहता है, कि मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाया जाना अवश्य है? यह मनुष्य का पुत्र कौन है?” (दानि. 7:14) 35 यीशु ने उनसे कहा, “ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है तब तक चले चलो; ऐसा न हो कि अंधकार तुम्हें आ घेरे; जो अंधकार में चलता है वह नहीं जानता कि किधर जाता है। 36 जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के सन्तान बनो।” ये बातें कहकर यीशु चला गया और उनसे छिपा रहा।
37 और उसने उनके सामने इतने चिन्ह दिखाए, तो भी उन्होंने उस पर विश्वास न किया; 38 ताकि यशायाह भविष्यद्वक्ता का वचन पूरा हो जो उसने कहा:
“हे प्रभु, हमारे समाचार पर किस ने विश्वास किया है?
और प्रभु का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?” (यशा. 53:1)
39 इस कारण वे विश्वास न कर सके, क्योंकि यशायाह ने यह भी कहा है:
40 “उसने उनकी आँखें अंधी,
और उनका मन कठोर किया है;
कहीं ऐसा न हो, कि आँखों से देखें,
और मन से समझें,
और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूँ।” (यशा. 6:10)
41 यशायाह ने ये बातें इसलिए कहीं, कि उसने उसकी महिमा देखी; और उसने उसके विषय में बातें की। 42 तो भी सरदारों में से भी बहुतों ने उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियों के कारण प्रगट में नहीं मानते थे, ऐसा न हो कि आराधनालय में से निकाले जाएँ। 43 क्योंकि मनुष्यों की प्रशंसा उनको परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती थी।
44 यीशु ने पुकारकर कहा, “जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं, वरन् मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है। 45 और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है। 46 मैं जगत में ज्योति होकर आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अंधकार में न रहे। 47 यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। 48 जो मुझे तुच्छ जानता है* और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैंने कहा है, वह अन्तिम दिन में उसे दोषी ठहराएगा। 49 क्योंकि मैंने अपनी ओर से बातें नहीं की, परन्तु पिता जिस ने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या-क्या कहूँ और क्या-क्या बोलूँ? 50 और मैं जानता हूँ, कि उसकी आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिए मैं जो बोलता हूँ, वह जैसा पिता ने मुझसे कहा है वैसा ही बोलता हूँ।”
1 फसह के पर्व से पहले जब यीशु ने जान लिया, कि मेरा वह समय आ पहुँचा है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊँ, तो अपने लोगों से, जो जगत में थे, जैसा प्रेम वह रखता था, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा। 2 और जब शैतान शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह डाल चुका था, कि उसे पकड़वाए, तो भोजन के समय 3 यीशु ने, यह जानकर कि पिता ने सब कुछ उसके हाथ में कर दिया है और मैं परमेश्वर के पास से आया हूँ, और परमेश्वर के पास जाता हूँ। 4 भोजन पर से उठकर अपने कपड़े उतार दिए, और अँगोछा लेकर अपनी कमर बाँधी।
5 तब बर्तन में पानी भरकर चेलों के पाँव धोने* और जिस अँगोछे से उसकी कमर बंधी थी उसी से पोंछने लगा। 6 जब वह शमौन पतरस के पास आया तब उसने उससे कहा, “हे प्रभु, क्या तू मेरे पाँव धोता है?” 7 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “जो मैं करता हूँ, तू अभी नहीं जानता, परन्तु इसके बाद समझेगा।” 8 पतरस ने उससे कहा, “तू मेरे पाँव कभी न धोने पाएगा!” यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं तुझे न धोऊँ, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी भाग नहीं।” 9 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तो मेरे पाँव ही नहीं, वरन् हाथ और सिर भी धो दे।” 10 यीशु ने उससे कहा, “जो नहा चुका है, उसे पाँव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं।” 11 वह तो अपने पकड़वानेवाले को जानता था इसलिए उसने कहा, “तुम सब के सब शुद्ध नहीं।”
12 जब वह उनके पाँव धो चुका और अपने कपड़े पहनकर फिर बैठ गया तो उनसे कहने लगा, “क्या तुम समझे कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया? 13 तुम मुझे गुरु, और प्रभु, कहते हो, और भला कहते हो, क्योंकि मैं वहीं हूँ। 14 यदि मैंने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पाँव धोए; तो तुम्हें भी एक दूसरे के पाँव धोना चाहिए। 15 क्योंकि मैंने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो। 16 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ* अपने भेजनेवाले से। 17 तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो। 18 मैं तुम सब के विषय में नहीं कहता: जिन्हें मैंने चुन लिया है, उन्हें मैं जानता हूँ; परन्तु यह इसलिए है, कि पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हो, ‘जो मेरी रोटी खाता है, उसने मुझ पर लात उठाई।’ (भज. 41:9) 19 अब मैं उसके होने से पहले तुम्हें जताए देता हूँ कि जब हो जाए तो तुम विश्वास करो कि मैं वहीं हूँ। (यूह. 14:29) 20 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है, और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।”
21 ये बातें कहकर यीशु आत्मा में व्याकुल हुआ और यह गवाही दी, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।” 22 चेले यह संदेह करते हुए, कि वह किस के विषय में कहता है, एक दूसरे की ओर देखने लगे। 23 उसके चेलों में से एक जिससे यीशु प्रेम रखता था, यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा था। 24 तब शमौन पतरस ने उसकी ओर संकेत करके पूछा, “बता तो, वह किस के विषय में कहता है?” 25 तब उसने उसी तरह यीशु की छाती की ओर झुककर पूछा, “हे प्रभु, वह कौन है?” यीशु ने उत्तर दिया, “जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूँगा, वही है।” 26 और उसने टुकड़ा डुबोकर शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती को दिया। 27 और टुकड़ा लेते ही शैतान उसमें समा गया: तब यीशु ने उससे कहा, “जो तू करनेवाला है, तुरन्त कर।” 28 परन्तु बैठनेवालों में से किसी ने न जाना कि उसने यह बात उससे किस लिये कही। 29 यहूदा के पास थैली रहती थी, इसलिए किसी-किसी ने समझा, कि यीशु उससे कहता है, कि जो कुछ हमें पर्व के लिये चाहिए वह मोल ले, या यह कि गरीबों को कुछ दे। 30 तब वह टुकड़ा लेकर तुरन्त बाहर चला गया, और रात्रि का समय था।
31 जब वह बाहर चला गया तो यीशु ने कहा, “अब मनुष्य के पुत्र की महिमा हुई, और परमेश्वर की महिमा उसमें हुई; 32 और परमेश्वर भी अपने में उसकी महिमा करेगा, वरन् तुरन्त करेगा। 33 हे बालकों, मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूँ: फिर तुम मुझे ढूँढ़ोगे, और जैसा मैंने यहूदियों से कहा, ‘जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते,’ वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूँ। 34 मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ*, कि एक दूसरे से प्रेम रखो जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। 35 यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।”
36 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तू कहाँ जाता है?” यीशु ने उत्तर दिया, “जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तू अब मेरे पीछे आ नहीं सकता; परन्तु इसके बाद मेरे पीछे आएगा।” 37 पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, अभी मैं तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तो तेरे लिये अपना प्राण दूँगा।” 38 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू मेरे लिये अपना प्राण देगा? मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि मुर्गा बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा।
1 “तुम्हारा मन व्याकुल न हो*, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। 2 मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। 3 और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो।
4 और जहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।” 5 थोमा ने उससे कहा, “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है; तो मार्ग कैसे जानें?” 6 यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ*; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता। 7 यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।”
8 फिलिप्पुस ने उससे कहा, “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिये बहुत है।” 9 यीशु ने उससे कहा, “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिस ने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है: तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? 10 क्या तू विश्वास नहीं करता, कि मैं पिता में हूँ, और पिता मुझ में हैं? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। 11 मेरा ही विश्वास करो, कि मैं पिता में हूँ; और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्वास करो।
12 “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, वरन् इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ। 13 और जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वही मैं करूँगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो। 14 यदि तुम मुझसे मेरे नाम से कुछ माँगोगे, तो मैं उसे करूँगा।
15 “यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। 16 और मैं पिता से विनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। 17 अर्थात् सत्य की आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा।
18 “मैं तुम्हें अनाथ न छोडूँगा, मैं तुम्हारे पास वापस आता हूँ। 19 और थोड़ी देर रह गई है कि संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिए कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे। 20 उस दिन तुम जानोगे, कि मैं अपने पिता में हूँ, और तुम मुझ में, और मैं तुम में। 21 जिसके पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझसे प्रेम रखता है, और जो मुझसे प्रेम रखता है, उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूँगा, और अपने आप को उस पर प्रगट करूँगा।” 22 उस यहूदा ने जो इस्करियोती न था, उससे कहा, “हे प्रभु, क्या हुआ कि तू अपने आप को हम पर प्रगट करना चाहता है, और संसार पर नहीं?” 23 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यदि कोई मुझसे प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएँगे, और उसके साथ वास करेंगे। 24 जो मुझसे प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन् पिता का है, जिस ने मुझे भेजा।
25 “ये बातें मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही। 26 परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।”
27 मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ*, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। 28 तुम ने सुना, कि मैंने तुम से कहा, ‘मैं जाता हूँ, और तुम्हारे पास फिर आता हूँ’ यदि तुम मुझसे प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते, कि मैं पिता के पास जाता हूँ क्योंकि पिता मुझसे बड़ा है। 29 और मैंने अब इसके होने से पहले तुम से कह दिया है, कि जब वह हो जाए, तो तुम विश्वास करो। 30 मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूँगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ पर उसका कुछ अधिकार नहीं। 31 परन्तु यह इसलिए होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूँ, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूँ। उठो, यहाँ से चलें।
1 “सच्ची दाखलता मैं हूँ; और मेरा पिता किसान है। 2 जो डाली मुझ में है*, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छाँटता है ताकि और फले। 3 तुम तो उस वचन के कारण जो मैंने तुम से कहा है, शुद्ध हो। 4 तुम मुझ में बने रहो*, और मैं तुम में जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। 5 मैं दाखलता हूँ: तुम डालियाँ हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते*। 6 यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली के समान फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं। 7 यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो माँगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। 8 मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे। 9 जैसा पिता ने मुझसे प्रेम रखा, वैसे ही मैंने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो। 10 यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे जैसा कि मैंने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ। 11 मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।
12 “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। 13 इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे। 14 जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो। 15 अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं। 16 तुम ने मुझे नहीं चुना* परन्तु मैंने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से माँगो, वह तुम्हें दे। 17 इन बातों की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिए देता हूँ, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।
18 “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उसने तुम से पहले मुझसे भी बैर रखा। 19 यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं वरन् मैंने तुम्हें संसार में से चुन लिया है; इसलिए संसार तुम से बैर रखता है। 20 जो बात मैंने तुम से कही थी, ‘दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता,’ उसको याद रखो यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएँगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे। 21 परन्तु यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते। 22 यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते परन्तु अब उन्हें उनके पाप के लिये कोई बहाना नहीं। 23 जो मुझसे बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है। 24 यदि मैं उनमें वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनों को देखा, और दोनों से बैर किया। 25 और यह इसलिए हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उनकी व्यवस्था में लिखा है, ‘उन्होंने मुझसे व्यर्थ बैर किया।’ (भज. 69:4, भज. 109:3) 26 परन्तु जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूँगा, अर्थात् सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा। 27 और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साथ रहे हो।
1 “ये बातें मैंने तुम से इसलिए कहीं कि तुम ठोकर न खाओ। 2 वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन् वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा यह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूँ। 3 और यह वे इसलिए करेंगे कि उन्होंने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं। 4 परन्तु ये बातें मैंने इसलिए तुम से कहीं, कि जब उनके पूरे होने का समय आए तो तुम्हें स्मरण आ जाए, कि मैंने तुम से पहले ही कह दिया था,
“मैंने आरम्भ में तुम से ये बातें इसलिए नहीं कहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था। 5 अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जाता हूँ और तुम में से कोई मुझसे नहीं पूछता, ‘तू कहाँ जाता हैं?’ 6 परन्तु मैंने जो ये बातें तुम से कही हैं, इसलिए तुम्हारा मन शोक से भर गया। 7 फिर भी मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा। 8 और वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा। 9 पाप के विषय में इसलिए कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते; 10 और धार्मिकता के विषय में इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूँ, और तुम मुझे फिर न देखोगे; 11 न्याय के विषय में इसलिए कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है। (यूह. 12:31)
12 “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। 13 परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा। 14 वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा। 15 जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिए मैंने कहा, कि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा।
16 “थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे।” 17 तब उसके कितने चेलों ने आपस में कहा, “यह क्या है, जो वह हम से कहता है, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे?’ और यह ‘इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूँ’?” 18 तब उन्होंने कहा, “यह ‘थोड़ी देर’ जो वह कहता है, क्या बात है? हम नहीं जानते, कि क्या कहता है।” 19 यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझसे पूछना चाहते हैं, उनसे कहा, “क्या तुम आपस में मेरी इस बात के विषय में पूछ-ताछ करते हो, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे’? 20 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा: तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा। 21 जब स्त्री जनने लगती है तो उसको शोक होता है, क्योंकि उसकी दुःख की घड़ी आ पहुँची, परन्तु जब वह बालक को जन्म दे चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ, उस संकट को फिर स्मरण नहीं करती। (यशा. 26:17, मीका 4:9) 22 और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूँगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा। 23 उस दिन* तुम मुझसे कुछ न पूछोगे; मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ माँगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। 24 अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं माँगा; माँगो तो पाओगे* ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।।
25 “मैंने ये बातें तुम से दृष्टान्तों में कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्टान्तों में और फिर नहीं कहूँगा परन्तु खोलकर तुम्हें पिता के विषय में बताऊँगा। 26 उस दिन तुम मेरे नाम से माँगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिये पिता से विनती करूँगा। 27 क्योंकि पिता तो स्वयं ही तुम से प्रेम रखता है, इसलिए कि तुम ने मुझसे प्रेम रखा है, और यह भी विश्वास किया, कि मैं पिता कि ओर से आया। 28 मैं पिता कि ओर से जगत में आया हूँ, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास वापस जाता हूँ।” 29 उसके चेलों ने कहा, “देख, अब तो तू खुलकर कहता है, और कोई दृष्टान्त नहीं कहता। 30 अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और जरूरत नहीं की कोई तुझ से प्रश्न करे, इससे हम विश्वास करते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से आया है।” 31 यह सुन यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम अब विश्वास करते हो? 32 देखो, वह घड़ी आती है वरन् आ पहुँची कि तुम सब तितर-बितर होकर अपना-अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, फिर भी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है। (यूह. 8:29) 33 मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैंने संसार को जीत लिया है*।”
1 यीशु ने ये बातें कहीं और अपनी आँखें आकाश की ओर उठाकर कहा, “हे पिता, वह घड़ी आ पहुँची, अपने पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करे*, 2 क्योंकि तूने उसको सब प्राणियों पर अधिकार दिया, कि जिन्हें तूने उसको दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे। 3 और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जाने। 4 जो काम तूने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है। 5 और अब, हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत की सृष्टि पहले, मेरी तेरे साथ थी।
6 “मैंने तेरा नाम उन मनुष्यों पर प्रगट किया जिन्हें तूने जगत में से मुझे दिया। वे तेरे थे और तूने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है। 7 अब वे जान गए हैं, कि जो कुछ तूने मुझे दिया है, सब तेरी ओर से है। 8 क्योंकि जो बातें तूने मुझे पहुँचा दीं, मैंने उन्हें उनको पहुँचा दिया और उन्होंने उनको ग्रहण किया और सच-सच जान लिया है, कि मैं तेरी ओर से आया हूँ, और यह विश्वास किया है की तू ही ने मुझे भेजा। 9 मैं उनके लिये विनती करता हूँ, संसार के लिये विनती नहीं करता हूँ परन्तु उन्हीं के लिये जिन्हें तूने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं। 10 और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है वह मेरा है; और इनसे मेरी महिमा प्रगट हुई है। 11 मैं आगे को जगत में न रहूँगा, परन्तु ये जगत में रहेंगे, और मैं तेरे पास आता हूँ; हे पवित्र पिता, अपने उस नाम से जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा कर, कि वे हमारे समान एक हों। 12 जब मैं उनके साथ था, तो मैंने तेरे उस नाम से, जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा की, मैंने उनकी देख-रेख की और विनाश के पुत्र को छोड़ उनमें से कोई नाश न हुआ, इसलिए कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो। (यूह. 18:9) 13 परन्तु अब मैं तेरे पास आता हूँ, और ये बातें जगत में कहता हूँ, कि वे मेरा आनन्द अपने में पूरा पाएँ। 14 मैंने तेरा वचन उन्हें पहुँचा दिया है, और संसार ने उनसे बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। 15 मैं यह विनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख। 16 जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। 17 सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर*: तेरा वचन सत्य है। 18 जैसे तूने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैंने भी उन्हें जगत में भेजा। 19 और उनके लिये मैं अपने आप को पवित्र करता हूँ ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएँ।
20 “मैं केवल इन्हीं के लिये विनती नहीं करता, परन्तु उनके लिये भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, 21 कि वे सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिए कि जगत विश्वास करे, कि तू ही ने मुझे भेजा। 22 और वह महिमा जो तूने मुझे दी, मैंने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं। 23 मैं उनमें और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएँ, और जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तूने मुझसे प्रेम रखा, वैसा ही उनसे प्रेम रखा। 24 हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तूने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ हों कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तूने मुझे दी है, क्योंकि तूने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझसे प्रेम रखा। (यूह. 14:3) 25 हे धार्मिक पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैंने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा। 26 और मैंने तेरा नाम उनको बताया और बताता रहूँगा कि जो प्रेम तुझको मुझसे था, वह उनमें रहे और मैं उनमें रहूँ*।”
1 यीशु ये बातें कहकर अपने चेलों के साथ किद्रोन के नाले के पार गया, वहाँ एक बारी थी, जिसमें वह और उसके चेले गए। 2 और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी वह जगह जानता था, क्योंकि यीशु अपने चेलों के साथ वहाँ जाया करता था। 3 तब यहूदा सैन्य-दल को और प्रधान याजकों और फरीसियों की ओर से प्यादों को लेकर दीपकों और मशालों और हथियारों को लिए हुए वहाँ आया। 4 तब यीशु उन सब बातों को जो उस पर आनेवाली थीं, जानकर निकला, और उनसे कहने लगा, “किसे ढूँढ़ते हो?” 5 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यीशु नासरी को।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं हूँ।” और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी उनके साथ खड़ा था। 6 उसके यह कहते ही, “मैं हूँ,” वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पड़े। 7 तब उसने फिर उनसे पूछा, “तुम किस को ढूँढ़ते हो।” वे बोले, “यीशु नासरी को।” 8 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तो तुम से कह चुका हूँ कि मैं हूँ, यदि मुझे ढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो*।” 9 यह इसलिए हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उसने कहा था: “जिन्हें तूने मुझे दिया, उनमें से मैंने एक को भी न खोया।” 10 शमौन पतरस ने तलवार, जो उसके पास थी, खींची और महायाजक के दास पर चलाकर, उसका दाहिना कान काट दिया, उस दास का नाम मलखुस था। 11 तब यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार काठी में रख। जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे न पीऊँ?”
12 तब सिपाहियों और उनके सूबेदार और यहूदियों के प्यादों ने यीशु को पकड़कर बाँध लिया, 13 और पहले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस वर्ष के महायाजक कैफा का ससुर था। 14 यह वही कैफा था, जिसने यहूदियों को सलाह दी थी कि हमारे लोगों के लिये एक पुरुष का मरना अच्छा है।
15 शमौन पतरस और एक और चेला भी यीशु के पीछे हो लिए। यह चेला महायाजक का जाना पहचाना था और यीशु के साथ महायाजक के आँगन में गया। 16 परन्तु पतरस बाहर द्वार पर खड़ा रहा, तब वह दूसरा चेला जो महायाजक का जाना पहचाना था, बाहर निकला, और द्वारपालिन से कहकर, पतरस को भीतर ले आया। 17 उस दासी ने जो द्वारपालिन थी, पतरस से कहा, “क्या तू भी इस मनुष्य के चेलों में से है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।” 18 दास और प्यादे जाड़े के कारण कोयले धधकाकर खड़े आग ताप रहे थे और पतरस भी उनके साथ खड़ा आग ताप रहा था।
19 तब महायाजक ने यीशु से उसके चेलों के विषय में और उसके उपदेश के विषय में पूछा। 20 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैंने जगत से खुलकर बातें की; मैंने आराधनालयों और मन्दिर में जहाँ सब यहूदी इकट्ठा हुआ करते हैं सदा उपदेश किया और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा*। 21 तू मुझसे क्यों पूछता है? सुननेवालों से पूछ: कि मैंने उनसे क्या कहा? देख वे जानते हैं; कि मैंने क्या-क्या कहा।” 22 जब उसने यह कहा, तो प्यादों में से एक ने जो पास खड़ा था, यीशु को थप्पड़ मारकर कहा, “क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है?” (लूका 22:63, मीका 5:1) 23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मैंने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्यों मारता है?” 24 हन्ना ने उसे बंधे हुए कैफा महायाजक के पास भेज दिया।
25 शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था। तब उन्होंने उससे कहा; “क्या तू भी उसके चेलों में से है?” उसने इन्कार करके कहा, “मैं नहीं हूँ।” 26 महायाजक के दासों में से एक जो उसके कुटुम्ब में से था, जिसका कान पतरस ने काट डाला था, बोला, “क्या मैंने तुझे उसके साथ बारी में न देखा था?” 27 पतरस फिर इन्कार कर गया और तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी।
28 और वे यीशु को कैफा के पास से किले को ले गए और भोर का समय था, परन्तु वे स्वयं किले के भीतर न गए ताकि अशुद्ध न हों परन्तु फसह खा सके। 29 तब पिलातुस उनके पास बाहर निकल आया और कहा, “तुम इस मनुष्य पर किस बात का दोषारोपण करते हो?” 30 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपते।” 31 पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही इसे ले जाकर अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करो।” यहूदियों ने उससे कहा, “हमें अधिकार नहीं कि किसी का प्राण लें।” 32 यह इसलिए हुआ, कि यीशु की वह बात पूरी हो जो उसने यह दर्शाते हुए कही थी, कि उसका मरना कैसा होगा। 33 तब पिलातुस फिर किले के भीतर गया और यीशु को बुलाकर, उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है*?” 34 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू यह बात अपनी ओर से कहता है या औरों ने मेरे विषय में तुझ से कही?” 35 पिलातुस ने उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तेरी ही जाति और प्रधान याजकों ने तुझे मेरे हाथ सौंपा, तूने क्या किया है?” 36 यीशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहाँ का नहीं।” 37 पिलातुस ने उससे कहा, “तो क्या तू राजा है?” यीशु ने उत्तर दिया, “तू कहता है, कि मैं राजा हूँ; मैंने इसलिए जन्म लिया, और इसलिए जगत में आया हूँ कि सत्य पर गवाही दूँ जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।” (1 यूह. 4:6) 38 पिलातुस ने उससे कहा, “सत्य क्या है?” और यह कहकर वह फिर यहूदियों के पास निकल गया और उनसे कहा, “मैं तो उसमें कुछ दोष नहीं पाता।
39 पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह में तुम्हारे लिये एक व्यक्ति को छोड़ दूँ। तो क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?” 40 तब उन्होंने फिर चिल्लाकर कहा, “इसे नहीं परन्तु हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।” और बरअब्बा डाकू था।
1 इस पर पिलातुस ने यीशु को लेकर कोड़े लगवाए। 2 और सिपाहियों ने काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, और उसे बैंगनी वस्त्र पहनाया, 3 और उसके पास आ आकर कहने लगे, “हे यहूदियों के राजा, प्रणाम!” और उसे थप्पड़ मारे। 4 तब पिलातुस ने फिर बाहर निकलकर लोगों से कहा, “देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूँ; ताकि तुम जानो कि मैं कुछ भी दोष नहीं पाता।”
5 तब यीशु काँटों का मुकुट और बैंगनी वस्त्र पहने हुए बाहर निकला और पिलातुस ने उनसे कहा, “देखो, यह पुरुष।” 6 जब प्रधान याजकों और प्यादों ने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उसमें दोष नहीं पाता।” 7 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र* बताया।” (लैव्य. 24:16) 8 जब पिलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया। 9 और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, “तू कहाँ का है?” परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया। 10 पिलातुस ने उससे कहा, “मुझसे क्यों नहीं बोलता? क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है।” 11 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता; इसलिए जिस ने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।”
12 इससे पिलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा*, परन्तु यहूदियों ने चिल्ला चिल्लाकर कहा, “यदि तू इसको छोड़ देगा तो तू कैसर का मित्र नहीं; जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर का सामना करता है।” 13 ये बातें सुनकर पिलातुस यीशु को बाहर लाया और उस जगह एक चबूतरा था, जो इब्रानी में ‘गब्बता*’ कहलाता है, और न्याय आसन पर बैठा। 14 यह फसह की तैयारी का दिन था और छठे घंटे के लगभग था : तब उसने यहूदियों से कहा, “देखो, यही है, तुम्हारा राजा!” 15 परन्तु वे चिल्लाए, “ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा!” पिलातुस ने उनसे कहा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊँ?” प्रधान याजकों ने उत्तर दिया, “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।” 16 तब उसने उसे उनके हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।
17 तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्थान तक बाहर गया, जो ‘खोपड़ी का स्थान’ कहलाता है और इब्रानी में ‘गुलगुता’। 18 वहाँ उन्होंने उसे और उसके साथ और दो मनुष्यों को क्रूस पर चढ़ाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को। 19 और पिलातुस ने एक दोष-पत्र लिखकर क्रूस पर लगा दिया और उसमें यह लिखा हुआ था, “यीशु नासरी यहूदियों का राजा।” 20 यह दोष-पत्र बहुत यहूदियों ने पढ़ा क्योंकि वह स्थान जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था नगर के पास था और पत्र इब्रानी और लतीनी और यूनानी में लिखा हुआ था। 21 तब यहूदियों के प्रधान याजकों ने पिलातुस से कहा, “‘यहूदियों का राजा’ मत लिख परन्तु यह कि ‘उसने कहा, मैं यहूदियों का राजा हूँ’।” 22 पिलातुस ने उत्तर दिया, “मैंने जो लिख दिया, वह लिख दिया।” 23 जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपड़े लेकर चार भाग किए, हर सिपाही के लिये एक भाग और कुर्ता भी लिया, परन्तु कुर्ता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था; 24 इसलिए उन्होंने आपस में कहा, “हम इसको न फाड़े, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि वह किस का होगा।” यह इसलिए हुआ, कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो, “उन्होंने मेरे कपड़े आपस में बाँट लिए और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली।” (भज. 22:18)
25 अतः सिपाहियों ने ऐसा ही किया। परन्तु यीशु के क्रूस के पास उसकी माता और उसकी माता की बहन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थी। 26 यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिससे वह प्रेम रखता था पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा, “हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।” 27 तब उस चेले से कहा, “यह तेरी माता है।” और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया।
28 इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिए कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो कहा, “मैं प्यासा हूँ।” 29 वहाँ एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, इसलिए उन्होंने सिरके के भिगोए हुए पनसोख्ता को जूफे पर रखकर उसके मुँह से लगाया। (भज. 69:21) 30 जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा, “पूरा हुआ”; और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए। (लूका 23:46, मर. 15:37)
31 और इसलिए कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पिलातुस से विनती की, कि उनकी टाँगें तोड़ दी जाएँ और वे उतारे जाएँ ताकि सब्त के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन था। (मर. 15: 42, व्य. 21:22-23) 32 इसलिए सिपाहियों ने आकर पहले की टाँगें तोड़ी तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे। 33 परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उसकी टाँगें न तोड़ी। 34 परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उसमें से तुरन्त लहू और पानी निकला। 35 जिस ने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उसकी गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो। 36 ये बातें इसलिए हुईं कि पवित्रशास्त्र की यह बात पूरी हो, “उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।” (निर्ग. 12:46, गिन. 9:12, भज. 34:20) 37 फिर एक और स्थान पर यह लिखा है, “जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।” (जक. 12:10)
38 इन बातों के बाद अरिमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला था, (परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था), पिलातुस से विनती की, कि मैं यीशु के शव को ले जाऊँ, और पिलातुस ने उसकी विनती सुनी, और वह आकर उसका शव ले गया। 39 नीकुदेमुस भी जो पहले यीशु के पास रात को गया था पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया। 40 तब उन्होंने यीशु के शव को लिया और यहूदियों के गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साथ कफन में लपेटा। 41 उस स्थान पर जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिसमें कभी कोई न रखा गया था। 42 अतः यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी।
1 सप्ताह के पहले दिन मरियम मगदलीनी भोर को अंधेरा रहते ही कब्र पर आई, और पत्थर को कब्र से हटा हुआ देखा। 2 तब वह दौड़ी और शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास जिससे यीशु प्रेम रखता था आकर कहा, “वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहाँ रख दिया है।” 3 तब पतरस और वह दूसरा चेला निकलकर कब्र की ओर चले। 4 और दोनों साथ-साथ दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा चेला पतरस से आगे बढ़कर कब्र पर पहले पहुँचा। 5 और झुककर कपड़े पड़े देखे: तो भी वह भीतर न गया। 6 तब शमौन पतरस उसके पीछे-पीछे पहुँचा और कब्र के भीतर गया और कपड़े पड़े देखे। 7 और वह अँगोछा जो उसके सिर पर बन्धा हुआ था, कपड़ों के साथ पड़ा हुआ नहीं परन्तु अलग एक जगह लपेटा हुआ देखा। 8 तब दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहले पहुँचा था, भीतर गया और देखकर विश्वास किया। 9 वे तो अब तक पवित्रशास्त्र की वह बात न समझते थे, कि उसे मरे हुओं में से जी उठना होगा। (भज. 16:10) 10 तब ये चेले अपने घर लौट गए।
11 परन्तु मरियम रोती हुई कब्र के पास ही बाहर खड़ी रही और रोते-रोते कब्र की ओर झुककर, 12 दो स्वर्गदूतों को उज्ज्वल कपड़े पहने हुए एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठे देखा, जहाँ यीशु का शव पड़ा था। 13 उन्होंने उससे कहा, “हे नारी, तू क्यों रोती है?” उसने उनसे कहा, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गए और मैं नहीं जानती कि उसे कहाँ रखा है।” 14 यह कहकर वह पीछे फिरी और यीशु को खड़े देखा और न पहचाना कि यह यीशु है*। 15 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी तू क्यों रोती है? किस को ढूँढ़ती है?” उसने माली समझकर उससे कहा, “हे श्रीमान, यदि तूने उसे उठा लिया है तो मुझसे कह कि उसे कहाँ रखा है और मैं उसे ले जाऊँगी।” 16 यीशु ने उससे कहा, “मरियम!” उसने पीछे फिरकर उससे इब्रानी में कहा, “रब्बूनी*!” अर्थात् ‘हे गुरु।’ 17 यीशु ने उससे कहा, “मुझे मत छू क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया, परन्तु मेरे भाइयों के पास जाकर उनसे कह दे, कि मैं अपने पिता, और तुम्हारे पिता, और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूँ।” 18 मरियम मगदलीनी ने जाकर चेलों को बताया, “मैंने प्रभु को देखा और उसने मुझसे बातें कहीं।”
19 उसी दिन जो सप्ताह का पहला दिन था, संध्या के समय जब वहाँ के द्वार जहाँ चेले थे, यहूदियों के डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” 20 और यह कहकर उसने अपना हाथ और अपना पंजर उनको दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए। 21 यीशु ने फिर उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।” 22 यह कहकर उसने उन पर फूँका और उनसे कहा, “पवित्र आत्मा लो। 23 जिनके पाप तुम क्षमा करो* वे उनके लिये क्षमा किए गए हैं; जिनके तुम रखो, वे रखे गए हैं।”
24 परन्तु बारहों में से एक व्यक्ति अर्थात् थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, जब यीशु आया तो उनके साथ न था। 25 जब और चेले उससे कहने लगे, “हमने प्रभु को देखा है,” तब उसने उनसे कहा, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूँ, और कीलों के छेदों में अपनी उँगली न डाल लूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।”
26 आठ दिन के बाद उसके चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनके साथ था, और द्वार बन्द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” 27 तब उसने थोमा से कहा, “अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।” 28 यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” 29 यीशु ने उससे कहा, “तूने तो मुझे देखकर विश्वास किया है? धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।”
30 यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलों के सामने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए। 31 परन्तु ये इसलिए लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।
यीशु के दफन के बाद यह तीसरा दिन है
वैकल्पिक अनुवाद, "रविवार के दिन"
यह वाक्यांश, यूहन्ना द्वारा संपूर्ण पुस्तक में उसके स्वयं के बारे में कहने की विधि है।
"किसी ने प्रभु को कब्र से निकाल लिया"
मरियम ने पतरस और यूहन्ना को बताया कि किसी ने यीशु का शव कब्र से निकाल लिया है।
स्पष्ट है कि यूहन्ना अपना नाम लिखने की अपेक्षा स्वयं को इस प्रकार करता है तो वह उसकी विनम्रता है।
यह यीशु का कफन था। दफन के लिए शव पर लपेटे गए कपड़े।
मरियम ने पतरस और यूहन्ना को अभी-अभी बताया कि यीशु का शव कब्र में नहीं है।
देखें कि आपने "कपड़े" का अनुवाद में कैसे किया है।
सामान्यतः चेहरे पर से पसीना पोंछने का कपड़ा परन्तु इससे मृतक का मुंह भी ढांका जाता था।
पतरस और यूहन्ना आकर देखते हैं कि कब्र खाली है।
यूहन्ना स्वयं का नाम लिखने की अपेक्षा इस प्रकार संबोधित करता है वो यह उसकी विनम्रता है।
पतरस ने देखा
पतरस और यूहन्ना घर लौट आए।
पतरस और यूहन्ना के प्रस्थान के बाद मरियम मगदलीनी वहीं थी।
उसे अर्थात यीशु के शव को
रब्बूनी का अर्थ रब्बी या गुरू ही है। यह मरियम की भाषा का शब्द है जो अरामी मिश्रित इब्रानी थी।
यह रविवार था
यह एक सामान्य अभिवादन था।
"उसने उन्हें अपने हाथ और पसलियों के घाव दिखाए"।
की टिप्पणियां देखें
"परमेश्वर क्षमा कर देगा"।
"परमेश्वर क्षमा नहीं करेगा"
दिद्मुस - देखें इसका नाम का अनुवाद कैसे किया गया है,
उससे अर्थात थोमा से
उसके अर्थात यीशु के
उसके अर्थात यीशु के
की टिप्पणियां देखें
"विश्वास रहित" या "विश्वास से वंचित"
वैकल्पिक अनुवाद, "तूने विश्वास किया कि मैं जीवित हूं"
वैकल्पिक अनुवाद, "जिन्होंने मुझे जीवित नहीं देखा है"
वैकल्पिक अनुवाद, "यीशु के द्वारा तुम्हें जीवन मिले"
वह सप्ताह के पहले दिन यीशु की कब्र पर आई।
उसने देखा कि कब्र पर से पत्थर हटा हुआ है।
उसने कहा "वे प्रभु को कब्र से निकाल ले गए और हम नहीं जानते कि उसे कहाँ रखा है।"
वे दोनों भाग कर कब्र पर आए।
उन्होंने कपड़े वहाँ पड़े हुए देखे और जो अंगोछा सिर पर बंधा था वह अलग एक जगह लिपटा हुआ रखा देखा।
उसने देखा और विश्वास किया।
उसने वहाँ श्वेत वस्त्रों में दो स्वर्गदूत देखे एक उस स्थान के शीर्ष की ओर बैठा था और दूसरा वस्त्रों की ओर जहां यीशु का शव रखा था।
उन्होंने उससे पूछा हे नारी तू क्यों रोती है?
उसने वहाँ यीशु को खड़ा देखा परन्तु पहचाना नहीं।
उसने सोचा कि वह माली है।
उसने यीशु को तब पहचाना जब उसने उसका नाम लिया, "मरियम"।
यीशु ने मरियम से कहा कि वह उसे न छूए क्योंकि वह अभी पिता के पास नहीं गया है।
यीशु ने मरियम से कहा, "मेरे भाइयों के पास जाकर कह दे कि मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूं"।
यीशु आकर उनके मध्य खड़ा हो गया।
उसने उन्हें अपने हाथ और पसलियां दिखाई।
यीशु ने कहा कि वह शिष्यों को वैसे ही भेज रहा है जैसे उसके पिता ने उसे भेजा था।
यीशु ने उनसे कहा, "पवित्र आत्मा लो" जिनके पाप तुम क्षमा करो वे उनके लिए क्षमा किए गए है, जिनके तुम रखो, वे रखे गए हैं"।
थोमा जो दिदुमुस कहलाता है वह उस समय उनके साथ नहीं था, जब यीशु आया।
थोमा ने कहा, "जब तक मैं उनके हाथों में कीलों के छेद न देख लूं और कीलों के छेदों में अपनी उंगली न डाल लूं और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूं तब तक मैं विश्वास न करूंगा?
आठ दिन बाद चेले फिर घर के भीतर थे और थोमा उनके साथ था तब यीशु बन्द द्वार से प्रवेश करके उनके मध्य उपस्थित हुआ।
यीशु ने थोमा से कहा, "अपनी उंगली यहां लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो"।
थोमा ने कहा, "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर"।
यीशु ने कहा, "धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया"।
जी हां, यीशु ने शिष्यों की उपस्थिति में और भी अनेक चिन्ह दिखाए जो यूहन्ना की पुस्तक में नहीं लिखे गए हैं।
वे इसलिए लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है।
1 इन बातों के बाद यीशु ने अपने आप को तिबिरियुस झील के किनारे चेलों पर प्रगट किया और इस रीति से प्रगट किया। 2 शमौन पतरस और थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, और गलील के काना नगर का नतनएल और जब्दी के पुत्र, और उसके चेलों में से दो और जन इकट्ठे थे। 3 शमौन पतरस ने उनसे कहा, “मैं मछली पकड़ने जाता हूँ।” उन्होंने उससे कहा, “हम भी तेरे साथ चलते हैं।” इसलिए वे निकलकर नाव पर चढ़े, परन्तु उस रात कुछ न पकड़ा। 4 भोर होते ही यीशु किनारे पर खड़ा हुआ; फिर भी चेलों ने न पहचाना कि यह यीशु है। 5 तब यीशु ने उनसे कहा, “हे बालकों, क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है?” उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं।” 6 उसने उनसे कहा, “नाव की दाहिनी ओर जाल डालो, तो पाओगे।” तब उन्होंने जाल डाला, और अब मछलियों की बहुतायत के कारण उसे खींच न सके। 7 इसलिए उस चेले ने जिससे यीशु प्रेम रखता था पतरस से कहा, “यह तो प्रभु है*।” शमौन पतरस ने यह सुनकर कि प्रभु है, कमर में अंगरखा कस लिया, क्योंकि वह नंगा था, और झील में कूद पड़ा। 8 परन्तु और चेले डोंगी पर मछलियों से भरा हुआ जाल खींचते हुए आए, क्योंकि वे किनारे से अधिक दूर नहीं, कोई दो सौ हाथ पर थे। 9 जब किनारे पर उतरे, तो उन्होंने कोयले की आग, और उस पर मछली रखी हुई, और रोटी देखी। 10 यीशु ने उनसे कहा, “जो मछलियाँ तुम ने अभी पकड़ी हैं, उनमें से कुछ लाओ।” 11 शमौन पतरस ने डोंगी पर चढ़कर एक सौ तिरपन बड़ी मछलियों से भरा हुआ जाल किनारे पर खींचा, और इतनी मछलियाँ होने पर भी जाल न फटा। 12 यीशु ने उनसे कहा, “आओ, भोजन करो।” और चेलों में से किसी को साहस न हुआ, कि उससे पूछे, “तू कौन है?” क्योंकि वे जानते थे कि यह प्रभु है। 13 यीशु आया, और रोटी लेकर उन्हें दी, और वैसे ही मछली भी। 14 यह तीसरी बार है, कि यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलों को दर्शन दिए।
15 भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इनसे बढ़कर मुझसे प्रेम रखता है?” उसने उससे कहा, “हाँ प्रभु; तू तो जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, “मेरे मेम्नों को चरा।” 16 उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, “हे शमौन यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रेम रखता है?” उसने उनसे कहा, “हाँ, प्रभु तू जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, “मेरी भेड़ों* की रखवाली कर।” 17 उसने तीसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?” पतरस उदास हुआ, कि उसने उसे तीसरी बार ऐसा कहा, “क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?” और उससे कहा, “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा। 18 मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, जब तू जवान था, तो अपनी कमर बाँधकर जहाँ चाहता था, वहाँ फिरता था; परन्तु जब तू बूढ़ा होगा, तो अपने हाथ लम्बे करेगा, और दूसरा तेरी कमर बाँधकर जहाँ तू न चाहेगा वहाँ तुझे ले जाएगा।” 19 उसने इन बातों से दर्शाया कि पतरस कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा; और यह कहकर, उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।”
20 पतरस ने फिरकर उस चेले को पीछे आते देखा, जिससे यीशु प्रेम रखता था, और जिस ने भोजन के समय उसकी छाती की और झुककर पूछा “हे प्रभु, तेरा पकड़वानेवाला कौन है?” 21 उसे देखकर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, इसका क्या हाल होगा?” 22 यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं चाहूँ कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या? तू मेरे पीछे हो ले।” 23 इसलिए भाइयों में यह बात फैल गई, कि वह चेला न मरेगा; तो भी यीशु ने उससे यह नहीं कहा, कि यह न मरेगा, परन्तु यह कि “यदि मैं चाहूँ कि यह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे इससे क्या?”
24 यह वही चेला है, जो इन बातों की गवाही देता है* और जिस ने इन बातों को लिखा है और हम जानते हैं, कि उसकी गवाही सच्ची है। 25 और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक-एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं।
1 हे थियुफिलुस, मैंने पहली पुस्तिका उन सब बातों के विषय में लिखी, जो यीशु ने आरम्भ किया और करता और सिखाता रहा, 2 उस दिन तक जब वह उन प्रेरितों को जिन्हें उसने चुना था, पवित्र आत्मा के द्वारा आज्ञा देकर ऊपर उठाया न गया। 3 और उसने दुःख उठाने के बाद बहुत से पक्के प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा, और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा।
4 और चेलों से मिलकर उन्हें आज्ञा दी, “यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की प्रतीक्षा करते रहो, जिसकी चर्चा तुम मुझसे सुन चुके हो। (लूका 24:49) 5 क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।” (मत्ती 3:11)
6 अतः उन्होंने इकट्ठे होकर उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल का राज्य पुनः स्थापित करेगा?” 7 उसने उनसे कहा, “उन समयों या कालों को जानना, जिनको पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं। 8 परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ्य पाओगे*; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे।”
9 यह कहकर वह उनके देखते-देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादल ने उसे उनकी आँखों से छिपा लिया। (भज. 47:5) 10 और उसके जाते समय जब वे आकाश की ओर ताक रहे थे, तब, दो पुरुष श्वेत वस्त्र पहने हुए उनके पास आ खड़े हुए। 11 और कहने लगे, “हे गलीली पुरुषों, तुम क्यों खड़े स्वर्ग की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।” (1 थिस्स. 4:16)
12 तब वे जैतून नामक पहाड़ से जो यरूशलेम के निकट एक सब्त के दिन की दूरी पर है, यरूशलेम को लौटे। 13 और जब वहाँ पहुँचे तो वे उस अटारी पर गए, जहाँ पतरस, यूहन्ना, याकूब, अन्द्रियास, फिलिप्पुस, थोमा, बरतुल्मै, मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब, शमौन जेलोतेस और याकूब का पुत्र यहूदा रहते थे। 14 ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ एक चित्त होकर* प्रार्थना में लगे रहे।
15 और उन्हीं दिनों में* पतरस भाइयों के बीच में जो एक सौ बीस व्यक्ति के लगभग इकट्ठे थे, खड़ा होकर कहने लगा। 16 “हे भाइयों, अवश्य था कि पवित्रशास्त्र का वह लेख पूरा हो, जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यहूदा के विषय में जो यीशु के पकड़ने वालों का अगुआ था, पहले से कहा था। (भज. 41:9)
17 क्योंकि वह तो हम में गिना गया, और इस सेवकाई में भी सहभागी हुआ। 18 (उसने अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया; और सिर के बल गिरा, और उसका पेट फट गया, और उसकी सब अंतड़ियाँ निकल गई। 19 और इस बात को यरूशलेम के सब रहनेवाले जान गए, यहाँ तक कि उस खेत का नाम उनकी भाषा में ‘हकलदमा’ अर्थात् ‘लहू का खेत’ पड़ गया।)
20 क्योंकि भजन संहिता में लिखा है,
‘उसका घर उजड़ जाए,
और उसमें कोई न बसे’
और ‘उसका पद कोई दूसरा ले ले।’ (भज. 69:25, भज. 109:8)
21 इसलिए जितने दिन तक प्रभु यीशु हमारे साथ आता जाता रहा, अर्थात् यूहन्ना के बपतिस्मा से लेकर उसके हमारे पास से उठाए जाने तक, जो लोग बराबर हमारे साथ रहे, 22 उचित है कि उनमें से एक व्यक्ति हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह हो जाए।” 23 तब उन्होंने दो को खड़ा किया, एक यूसुफ को, जो बरसब्बास कहलाता है, जिसका उपनाम यूस्तुस है, दूसरा मत्तियाह को।
24 और यह कहकर प्रार्थना की, “हे प्रभु, तू जो सब के मन को जानता है, यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है, 25 कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई का पद ले, जिसे यहूदा छोड़कर अपने स्थान को गया।” 26 तब उन्होंने उनके बारे में चिट्ठियाँ डाली, और चिट्ठी मत्तियाह के नाम पर निकली, अतः वह उन ग्यारह प्रेरितों के साथ गिना गया।
पहली पुस्तिका का आशय लूका रचित सुसमाचार से है।
यह पुस्तिका लूका ने थियुफिलुस नामक व्यक्ति को लिखी थी। उसे संबोधित करने के लिए उसने “हे” शब्द का प्रयोग किया है। कुछ अनुवादों में संस्कृति उपयुक्त संबोधनों का प्रयोग करते हुए वाक्य के आरम्भ में “प्रिय थियुफिलुस” जैसे संबोधन का प्रयोग किया गया है। थियुफिलुस का शाब्दिक अर्थ “परमेश्वर का मित्र” होता है।
इसका आशय यीशु मसीह के स्वर्गारोहण से है।
विशिष्ट कार्यों में शिष्यों की अगुवाई के निमित्त पवित्र आत्मा यीशु की अगुआई करता था।
यह क्रूस पर उठाये गए यीशु के कष्टों व उसकी मृत्यु के विषय में है।
12 मूल शिष्यों के अतिरिक्त यीशु बहुत से अन्य लोगों पर भी प्रकट हुआ था।
अर्थात यीशु जब उनसे मिला।
“उनसे” का आशय यहाँ पर 11 शिष्यों से है।
“और उनसे मिलकर उन्हें आज्ञा दी, यरुशलेम को न छोडो।” इसे हम सीधे उद्धरण के समान भी अनुदित कर सकते हैं, जैसा कि यूडीबी में किया गया है।
इसका आशय पवित्र आत्मा से है।
यीशु यहाँ यूहन्ना द्वारा दिए जानेवाले पानी के बपतिस्मे की तुलना परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले बपतिस्मे से करते हैं जो कि पवित्र आत्मा के साथ दिया जाएगा।
जिन भाषाओं में “बपतिस्मा” को किसी वस्तु के साथ दिया जाना होता है, वहाँ हम ऐसे भी लिख सकते हैं कि, “यूहन्ना ने लोगों को पानी के साथ बपतिस्मा दिया” अथवा, “यूहन्ना ने उन्हें पानी से बपतिस्मा दिया।”
अनुवाद करते समय इसे सक्रिय क्रिया के साथ भी अनूदित किया जा सकता है: “परमेश्वर तुम्हे बप्तिस्मा देगा।”
क्या तू इसी समय इस्राएल राज्य को फेर देगा -“क्या तू इस्राएल को फिर से एक सामर्थी राज्य बना देगा?”
“समय या दिनों”
“तुम आत्मिक रूप से दृढ़ किये जाओंगे।”
यह सामर्थ पाने का परिणाम है। इसका अनुवाद करते समय “मेरे गवाह होने के लिए” भी लिख सकते हैं और बता सकते हैं कि सामर्थ पाने का उद्देश्य यही था।
“पूरे संसार में” अथवा “पृथ्वी के सुदूर प्रदेशों में भी”।
“उसके शिष्य आकाश की ओर देख रहे थे कि”
“वह बादलों में चला गया, और एक बादल ने उसे छिपा लिया और उसे आँखों से ओझल कर दिया।”
“आकाश की ओर टकटकी लगाये थे” अथवा “वे आकाश की ओर एकटक देख रहे थे”
विशेषकर “तुम शिष्यों।” हालाँकि स्वर्गदूतों ने बातचीत शिष्यों से की थी, लेकिन अन्य पदों से इस बात के संकेत मिलते हैं कि इस घटना के समय दूसरे स्त्री व पुरुष भी मौजूद थे।
यूडीबी के समान इस आलंकारिक प्रश्न को एक कथन के रूप में अभी अनूदित किया जा सकता है।
अर्थात “तब शिष्य.....लौटे गए”
सब्त के दिन लोगों को काम करने से रोकने हेतु फरीसियों द्वारा बनाया गया नियम।
“जब वे यरूशलेम में स्थित अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचे”
घर में ऊपर की सतह पर बनाया गया कमरा।
‘शमौन देशभक्त।” उस समय बहुत से जेलोतेस थे, लेकिन शमौन ही केवल अकेला ऐसा शिष्य था जो कि जेलोतेस था। जेलोतेस इस्राएल पर रोमियों का शासन समाप्त करना चाहते थे।
उनका दल एक था और उनमे किसी प्रकार का कोई मतभेद या मनमुटाव नहीं था।
“स्वयं को प्रार्थना के लिए समर्पित कर दिया”
“यीशु मसीह के स्वर्ग में जाने के कुछ ही दिनों बाद”
“भाइयों” शब्द का प्रयोग अधिकतर संगी विश्वासियों के लिए होता है और इसमें स्त्री व पुरुष दोनों शामिल हैं।
पतरस यहाँ विशेष रूप से यहूदा से जुड़ी भविष्यद्वाणियों के विषय में कह रहा है।
“दाऊद के शब्दों से।” “मुख” शब्द यहाँ “शब्दों” के लिए प्रयुक्त हुआ है हालाँकि दाऊद ने उन्हें लिखा था।
में शुरू की गयी अपनी बात को पतरस आगे बढाता है
अर्थात “यीशु के शत्रुओं द्वारा उसे पकड़वाने का अधर्म से भरा कार्य।” इससे यह स्पष्ट हो जायेगा कि कौन से “अधर्म” की बात हो रही है।
और इसी खेत पर यहूदा घातक रूप से सिर के बल गिरा और उसका शरीर फट कर खुल गया। वचन के दूसरे हिस्सों में उसके द्वारा फांसी लगा कर आत्महत्या करने के उल्लेख हैं।
इस मृत्यु के कारण लोग उस खेत को नए नाम से संबोधित करने लगे।
में शुरू की गयी अपनी बात को पतरस आगे बढाता है
यहूदा की इस घटना का विस्तृत ब्यौरा देते समय पतरस को भजन संहिता के कुछ पद याद आ रहे हैं जो कि उसके अनुसार वर्तमान स्थिति से सम्बंधित है।
अनुवाद करते समय हम “भजन पुस्तिका” अथवा “गीत-संहिता” भी लिख सकते हैं। यह पुस्तक वचन का एक हिस्सा है।
घर उजड़ने का आशय यहाँ घर के मालिक की मृत्यु से है।
अर्थात, यह भूमि अशुद्ध है; रहने के योग्य नहीं है।
“उसका पद किसी दूसरे को मिल जाए”
में शुरू की गयी अपनी बात को पतरस आगे बढाता है
पतरस यहाँ बतानेवाला है कि भजन संहिता के उन पदों का सन्दर्भ उसने क्यों दिया था और उसके विषय में अब उन्हें क्या करना चाहिए।
पतरस यहाँ यहूदा के स्थान पर प्रेरित नियुक्त होनेवाले व्यक्ति की अपेक्षित योग्यताओं के विषय में कह रहा है।
यहूदा के स्थान पर नियुक्ति करते समय उन्हें दो योग्य व्यक्ति मिलते हैं।
युसूफ को बर-सबा व यूस्तुस के नाम से भी जाना जाता था।
“तब विश्वासियों ने प्रार्थना की”
अर्थात, “हे प्रभु, तू जो सबके भीतर की प्रेरणाओं और विचारों को जानता है”
यह प्रगट कर कि इन दोनों में तूने किसको चुना है कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई का पद ले - “इसलिए, हे परमेश्वर, हमें दिखा कि प्रेरितों के बीच खाली हुए इस स्थान के लिए तूने किसे चुना है।”
यीशु को धोखा देकर, भाग जाने और मर जाने के बाद खाली हुए यहूदा के स्थान को भरने के लिए
ऐसा उन्होंने युसूफ और मत्तियाह के बीच चुनाव करने के लिए किया।
चिट्ठी ने संकेत दिया कि मत्तियाह को चुना जाना चाहिए।
“प्रेरितों ने उसे भी एक प्रेरित गिना”
लूका ने लूका रचित सुसमाचार और प्रेरितों के कार्य लिखीं।
चालीस दिन तक वह प्रेरितों को जीवित दिखाई देता रहा, और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा।
यीशु ने प्रेरितों को पिता की प्रतिज्ञा की बाट जोहते रहने की आज्ञा दी।
प्रेरितों को पवित्र-आत्मा से बपतिस्मा मिलने वाला था।
यीशु ने उनको उत्तर दिया कि उसे समयों या कालों को जानना उनका काम नहीं।
यीशु ने प्रेरितों से कहा कि वे पवित्र-आत्मा से सामर्थ्य पायेंगे।
यीशु ने कहा की उसके प्रेरित यहूदिया, सामरिया और पृथ्वी की छोर तक उसके गवाह होंगे।
यीशु को ऊपर उठा लिया गया और बादल ने उसे उनकी आँखों से छिपा लिया।
स्वर्गदूतों ने कहा कि यीशु उसी रीति से फिर से आयेगा जैसे वह स्वर्ग को गया है।
वे एक चित्त होकर प्रार्थना कर रहे थे।
यहूदा द्वारा पवित्र-शास्त्र का लेख पूरा हुआ।
यहूदा ने एक खेत मोल लिया, सिर के बल गिरा, उसका पेट फट गया और उसकी सब अन्तड़ियाँ बाहर निकल पड़ीं।
भजनसंहिता में लिखा है कि यहूदा की अगुवाई का पद किसी और को ले लेना चाहिए।
पद लेने वाला व्यक्ति यूहन्ना के बपतिस्मा लेने के समय से प्रेरितों के साथ रहा हो और यीशु के जी उठने का गवाह रहा हो।
प्रेरितों ने प्रार्थना की कि परमेश्वर अपना चुनाव प्रगट करे और फिर उन्होंने चिट्ठियाँ डालीं।
मत्तियाह ग्यारह प्रेरितों के साथ गिना गया।
1 जब पिन्तेकुस्त का दिन* आया, तो वे सब एक जगह इकट्ठे थे। (लैव्य. 23:15-21, व्य. 16:9-11) 2 और अचानक आकाश से बड़ी आँधी के समान सनसनाहट का शब्द हुआ, और उससे सारा घर जहाँ वे बैठे थे, गूँज गया। 3 और उन्हें आग के समान जीभें फटती हुई दिखाई दी और उनमें से हर एक पर आ ठहरी। 4 और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए*, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य-अन्य भाषा बोलने लगे।
5 और आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त-यहूदी यरूशलेम में रहतें थे। 6 जब वह शब्द सुनाई दिया, तो भीड़ लग गई और लोग घबरा गए, क्योंकि हर एक को यही सुनाई देता था, कि ये मेरी ही भाषा में बोल रहे हैं। 7 और वे सब चकित और अचम्भित होकर कहने लगे, “देखो, ये जो बोल रहे हैं क्या सब गलीली नहीं?
8 तो फिर क्यों हम में से हर एक अपनी-अपनी जन्मभूमि की भाषा सुनता है? 9 हम जो पारथी, मेदी, एलाम लोग, मेसोपोटामिया, यहूदिया, कप्पदूकिया, पुन्तुस और आसिया, 10 और फ्रूगिया और पंफूलिया और मिस्र और लीबिया देश जो कुरेने के आस-पास है, इन सब देशों के रहनेवाले और रोमी प्रवासी, 11 अर्थात् क्या यहूदी, और क्या यहूदी मत धारण करनेवाले, क्रेती और अरबी भी हैं, परन्तु अपनी-अपनी भाषा में उनसे परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चा सुनते हैं।”
12 और वे सब चकित हुए, और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे, “यह क्या हो रहा है?” 13 परन्तु दूसरों ने उपहास करके कहा, “वे तो नई मदिरा के नशे में हैं।”
14 पतरस उन ग्यारह के साथ खड़ा हुआ और ऊँचे शब्द से कहने लगा, “हे यहूदियों, और हे यरूशलेम के सब रहनेवालों, यह जान लो और कान लगाकर मेरी बातें सुनो। 15 जैसा तुम समझ रहे हो, ये नशे में नहीं है, क्योंकि अभी तो तीसरा पहर ही दिन चढ़ा है। 16 परन्तु यह वह बात है, जो योएल भविष्यद्वक्ता के द्वारा कही गई है:
17 ‘परमेश्वर कहता है, कि अन्त के दिनों में ऐसा होगा, कि
मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उण्डेलूँगा और
तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ भविष्यद्वाणी करेंगी,
और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे,
और तुम्हारे वृद्ध पुरुष स्वप्न देखेंगे।
18 वरन् मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों
में अपने आत्मा उण्डेलूँगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे।
19 और मैं ऊपर आकाश में अद्भुत काम*,
और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्थात्
लहू, और आग और धुएँ का बादल दिखाऊँगा।
20 प्रभु के महान और तेजस्वी दिन* के आने से पहले
सूर्य अंधेरा
और चाँद लहू सा हो जाएगा।
21 और जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा।’ (योए. 2:28-32)
22 “हे इस्राएलियों, ये बातें सुनो कि यीशु नासरी एक मनुष्य था जिसका परमेश्वर की ओर से होने का प्रमाण उन सामर्थ्य के कामों और आश्चर्य के कामों और चिन्हों से प्रगट है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखलाए जिसे तुम आप ही जानते हो। 23 उसी को, जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई योजना और पूर्व ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधर्मियों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वाकर मार डाला। 24 परन्तु उसी को परमेश्वर ने मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया: क्योंकि यह अनहोना था कि वह उसके वश में रहता। (2 शमू. 22:6, भज. 18:4, भज. 116:3)
25 क्योंकि दाऊद उसके विषय में कहता है,
‘मैं प्रभु को सर्वदा अपने सामने देखता रहा
क्योंकि वह मेरी दाहिनी ओर है, ताकि मैं डिग न जाऊँ।
26 इसी कारण मेरा मन आनन्दित हुआ, और मेरी जीभ मगन हुई;
वरन् मेरा शरीर भी आशा में बना रहेगा।
27 क्योंकि तू मेरे प्राणों को अधोलोक में न छोड़ेगा;
और न अपने पवित्र जन को सड़ने देगा!
28 तूने मुझे जीवन का मार्ग बताया है;
तू मुझे अपने दर्शन के द्वारा आनन्द से भर देगा।’ (भज. 16:8-11)
29 “हे भाइयों, मैं उस कुलपति दाऊद के विषय में तुम से साहस के साथ कह सकता हूँ कि वह तो मर गया और गाड़ा भी गया और उसकी कब्र आज तक हमारे यहाँ वर्तमान है। (1 राजा. 2:10) 30 वह भविष्यद्वक्ता था, वह जानता था कि परमेश्वर ने उससे शपथ खाई है, “मैं तेरे वंश में से एक व्यक्ति को तेरे सिंहासन पर बैठाऊँगा।” (2 शमू. 7:12-13, भज. 132:11) 31 उसने होनेवाली बात को पहले ही से देखकर मसीह के जी उठने के विषय में भविष्यद्वाणी की,
कि न तो उसका प्राण अधोलोक में छोड़ा गया, और न उसकी देह सड़ने पाई। (भज. 16:10)
32 इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिसके हम सब गवाह हैं। 33 इस प्रकार परमेश्वर के दाहिने हाथ से सर्वोच्च पद पा कर, और पिता से वह पवित्र आत्मा प्राप्त करके जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी, उसने यह उण्डेल दिया है जो तुम देखते और सुनते हो।
34 क्योंकि दाऊद तो स्वर्ग पर नहीं चढ़ा; परन्तु वह स्वयं कहता है,
‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा; मेरे दाहिने बैठ,
35 जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों तले की चौकी न कर दूँ।’ (भज. 110:1)
36 अतः अब इस्राएल का सारा घराना निश्चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी।”
37 तब सुननेवालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और अन्य प्रेरितों से पूछने लगे, “हे भाइयों, हम क्या करें?” 38 पतरस ने उनसे कहा, “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने-अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे। 39 क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्तानों, और उन सब दूर-दूर के लोगों के लिये भी है जिनको प्रभु हमारा परमेश्वर अपने पास बुलाएगा।” (योए. 2:32)
40 उसने बहुत और बातों से भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ। (व्य. 32:5, भज. 78:8) 41 अतः जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उनमें मिल गए।
42 और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे।
43 और सब लोगों पर भय छा गया, और बहुत से अद्भुत काम और चिन्ह प्रेरितों के द्वारा प्रगट होते थे। 44 और वे सब विश्वास करनेवाले इकट्ठे रहते थे, और उनकी सब वस्तुएँ साझे की थीं। 45 और वे अपनी-अपनी सम्पत्ति और सामान बेच-बेचकर जैसी जिसकी आवश्यकता होती थी बाँट दिया करते थे।
46 और वे प्रतिदिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, और घर-घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सिधाई से भोजन किया करते थे। 47 और परमेश्वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उनसे प्रसन्न थे; और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रतिदिन उनमें मिला देता था।
“वे” से यहाँ पर आशय संभवतः120 विश्वासियों के दल से था जो लूका 1: 15-26 में इकठ्ठे थे। इसमें बारह प्रेरित भी शामिल थे।
“आकाश से आता एक शोर सुनाई दिया”
“तेज़ वेग से चल रही हवा का स्वर” अथवा “तेज़ी से बह रही हवा का स्वर”
यह घर या बड़ी ईमारत हो सकता है.
संभावित आशय हैं 1) आग से बनी जीभें, अथवा 2) जीभ की शक्ल में आग की छोटी लपटें। लैंप जैसी छोटी जगह में जलते समय आग की लपटें जीभ की शक्ल में लापटती दिखाई दे सकती हैं।
वे भाषाओँ जिनका पहले से उन्हें कोई ज्ञान न था।
परमेश्वर को आदर देनेवाले और उसकी आराधना करनेवाले लोग
“संसार की हर एक जाति”
इसका आशय आंधी के स्वर है। इसका अनुवाद एक सक्रिय क्रियापद के रूप में किया जा सकता है: “जब उन्होंने आंधी का शब्द सुना।”
अर्थात “बहुत से लोगों का विशाल समूह”
अनुवाद करते समय इसे “गलीलवासी” भी लिख सकते हैं।
अनुवाद करते समय इसे 1) लोगों द्वारा असल में पूछे गए प्रश्न की भांति व्यक्त कर सकते हैं, या फिर 2) इसे लोगों के आश्चर्य को प्रकट करनेवाले एक आलंकारिक प्रश्न की भांति अनूदित कर सकते हैं।
अर्थात “पार्थिया, मेदिया और एलाम के लोग।”
“ऐसे गैर यहूदी लोग जो अब यहूदी हो गए हैं” अथवा “वे लोग जिन्होंने अपना धर्मत्याग के द्वारा यहूदी हो गए हैं” अथवा “यहूदी आस्था को अपना चुके लोग।”
सब चकित हुए, और घबरा कर - लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि वहाँ आखिर हो क्या रहा था (यूडीबी)। अनुवाद करते समय इसे “विस्मित और विमूढ़ हो गए” भी लिख सकते हैं।
कुछ लोगों ने इस घटना को गंभीरता से लिया।
“लेकिन दूसरों ने तिरस्कार करते हुए कहा” अथवा “उनका अपमान करते हुए”
अनुवाद करते समय इसे “नशे में धुत” लिख सकते हैं। कुछ लोगों ने इस आश्चर्यकर्म पर विश्वास न कर, प्रेरितों का मज़ाक उड़ाने का चुनाव किया।
सामान्य मदिरा से अधिक नशीली मदिरा
पतरस की कही बात का समर्थन सभी प्रेरितों ने किया।
“अभी तो सुबह के नौ ही बजे हैं” (यूडीबी)। पतरस अपने सुननेवालों से यह जानने की आशा रखता था कि सुबह-सुबह कोई नशे में धुत नहीं होता। यह जानकारी अन्तर्निहित थी, जिसे ज़रुरत पड़ने पर स्पष्ट रूप से व्यक्त किया जा सकता था।
“सुबह के नौ बजे” (यूडीबी)।
में शुरू की गयी अपनी बात को पतरस आगे बढाता है
“यही वह बात है जो परमेश्वर ने कही और योएल नबी से लिखने को कहा” अथवा “परमेश्वर द्वारा कही गयी इन्हीं बातों को योएल नबी ने लिखा था।”
इसे सक्रिय क्रियापद के रूप में भी लिखा जा सकता है: “जो परमेश्वर ने कही थी” या फिर “जिस विषय में परमेश्वर ने कहा था।”
अनुवाद के समय इसे हम “अंतिम दिनों में” भी लिख सकते हैं। जो बातें अब वह बतानेवाला है, वे अंतिम दिनों में घटेंगी। यह परमेश्वर की कही बात का पहला हिस्सा है। यूडीबी के समान, “परमेश्वर कहता है” शब्द को वाक्य में आरम्भ में लगाया गया है।
यह व्यक्त करने के लिए कि परमेश्वर किस प्रकार सभी लोगों को अपना आत्मा देगा, यहाँ आलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है
“सब लोगों पर।”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन में भविष्यद्वक्ता योएल की बात को पतरस आगे बढाता है
परमेश्वर अपना आत्मा पूरी भरपूरी के साथ देता है।
परमेश्वर उन्हें परमेश्वर से जुड़े सत्य बोलने की प्रेरणा देता है
"धूएं" का आशय यहाँ"धुंध अथवा "कोहरे" से है
यह किसी घड़े यह बाल्टी के पानी को तेज़ी से खाली करने के समान है। इसका अनुवाद भी पिछली बार की तरह करें।
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन में भविष्यद्वक्ता योएल की बात को पतरस आगे बढाता है
इस पद का सटीक आशय स्पष्ट नहीं है, इसलिए अपनी भाषा में इसका सशब्द अनुवाद ही करें।
अर्थात प्रार्थना या फिर विनती करेगा
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
परमेश्वर की ठहराई हुई योजना और पूर्व ज्ञान -मसीह की मृत्यु परमेश्वर की पूर्व योजना व पूर्वज्ञान के अनुसार थी।
यह तुम्हारे का बहुवचन रूप है। यदि आपकी भाषा में इसके लिए कोई विशिष्ट शब्द हो तो कृपया उसी का प्रयोग करें।
“लोगों ने उसे पकड़वाया,” “तुमने उसे पकड़वा दिया”
रस्सी के बंधन को खोलने के समान बंधनमुक्त किया
मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया -“मृत्यु की पीढा के बंधन से मुक्त किया।”
मृत्यु अंततः यीशु को बाँध कर न रख सकी
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
घटनाओं के होने से पूर्व दाऊद ने परमेश्वर को अपने जीवन में कार्य करते देखा
अपने सम्मुख, अपने साथ
दाहिने पक्ष को मज़बूत माना जाता था। दाहिनी ओर का व्यक्ति या तो सबसे मज़बूत सेवक, या फिर सबसे मज़बूत सहायक समझा जाता था।
भीतरी आनंद को बाह्य रूप से अभिव्यक्त किया गया है
“मैं जीवन भर परमेश्वर से आशा बांधे रहूँगा”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को, पतरस भजन संहिता में निहित दाऊद के उद्धरणों के साथ आगे बढाता है
“अपने अभिषिक्त अथवा चुने हुओं को”
उसका शरीर मृत न बना रहेगा कि वह सड़ने लगे। अनुवाद करते समय “सड़ने का अनुभव” भी लिख सकते हैं।
“जीवनदायी सत्य”
में प्रारम्भ किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
पिता, पूर्वज पिता
उद्घोषणा का गंभीर कथन
बात की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए एक गंभीर कथन कहना
अर्थात भाइयों और बहनों
प्रेरितों 1:27-28 में दाऊद ने पहले ही मसीह को देख लिया था और उसके विषय में कहा था
में प्रारम्भ किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“विश्वसनीयता, आदर, अनुमोदन, विश्वास, भरोसे, सामर्थ और परमेश्वर के विशेषाधिकारों का स्थान।”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“प्रभु (परमेश्वर) ने मेरे प्रभु (मसीह) से कहा”
मेरे पास “आदर, विश्वास, विशेषाधिकारों और सामर्थ का स्थान ग्रहण कर”,
“जब ताकि मैं तेरे बैरियों को ठिकाने न लगा दूं, या फिर, हरा न दूं”
यह बताने के लिए कि सुननेवालों के लिए इस बात को सुनना कितना कष्टदायी था, लूका आलंकारिक भाषा का प्रयोग करता है।
“यह प्रतिज्ञा तुम्हारे, और संतानों के लिए है”
अपने आप को .......से अलग करो
नैतिक और आत्मिक रूप से भ्रष्ट जाति से बचाओ
विश्वास किया, स्वीकार किया
यीशु के शिष्यों ने उन्हें बपतिस्मा दिया
“उन्होंने अपनी सब वस्तुएं सबके साथ, आपस में बाँट ली”
वस्तुएं दे देते थे, या कि उसे बेचने से मिले धन को बाँट लेते थे, या फिर उस धन को दे देते थे
भय -श्रृद्धापूर्ण भय
विश्वास में एक होकर इकट्ठे रहते थे
जब कोई विश्वासी अपनी आवश्यकता प्रकट करता था, या कि उसकी आवश्यकता दिखाई देती थी तो अन्य विश्वासी उस आवश्यकता को पूरा करते थे
“एक मनसा”
अर्थात “विश्वासी प्रतिदिन....एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे”
भोजन आपस में बाँटते थे, परभू भोज साँझा करते थे (यूडीबी)।
बिना किसी घमंड के, सरल भाव के साथ, बिना किसी औपचारिकता के, बिना किसी पद या विशेषाधिकार के भाव के
सब लोग उनका सम्मान करते थे
पिन्तेकुस्त के दिन प्रेरित इकट्ठे थे।
शिष्य अन्य-अन्य भाषा बोलने लगे।
यहूदी भक्त आकाश के नीचे के हर राष्ट्र से थे।
भीड़ विस्मित हो गई थी क्योंकि हर एक उन्हें अपनी भाषा में बोलते हुए सुनाई दे रहा था।
शिष्य परमेश्वर के बड़े-बड़े कार्यों के बारे में चर्चा कर रहे थे।
जो शिष्यों का ठठ्ठा कर रहे थे, उन्होंने सोचा कि वे नई मदिरा के नशे में हैं।
पतरस ने कहा कि योएल की भविष्यद्वाणी पूरी हो रही थी, क्योंकि परमेश्वर ने कहा था कि वह अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उण्डेलेगा।
योएल की भविष्यद्वाणी के अनुसार हर एक जो प्रभु का नाम लेता है, उद्धार पाया हुआ है।
यीशु की सेवकाई का प्रमाण सामर्थ्य के कामों और आश्चर्य के कर्मों और चिन्हों से प्रगट है जो परमेश्वर ने उसके द्वारा किये।
परमेश्वर की निर्धारित योजना के अनुसार ही यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था।
राजा दाऊद ने भविष्यवाणी की कि परमेश्वर अपने पवित्र जन का नाश नहीं होने देगा।
परमेश्वर ने राजा दाऊद से शपथ खाई कि उसके वंश में से एक सिंहासन पर बैठेगा।
परमेश्वर का वह पवित्र जन कौन था जिसने नाश नहीं देखा और जिसके लिए सिंहासन पर बैठने की भविष्यवाणी की गई?यीशु वह पवित्र जन था जिसके लिए भविष्यद्वाणी की गई थी कि वह राजा होगा।
परमेश्वर ने यीशु को प्रभु और मसीह दोनों बताया।
भीड़ ने पूछा कि वे क्या करें।
पतरस ने भीड़ से मन फिराने और अपने-अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लेने को कहा।
पतरस ने परमेश्वर की प्रतिज्ञा भीड़, उनकी सन्तानों और सब दूर-दूर के लोगों के लिए बताई।
करीब तीन हजार लोगों को बपतिस्मा दिया गया।
वे प्रेरितों से शिक्षा पाने और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे।
उन्होंने अपनी-अपनी सम्पत्ति और सामान बेचा और जैसी जिसको आवश्यकता होती थी, उनको बाँट दी।
विश्वासी मन्दिर में जा रहे थे।
प्रभु उद्धार पाये हुए लोगों को प्रतिदिन उनमें मिला देता था।
1 पतरस और यूहन्ना तीसरे पहर प्रार्थना के समय मन्दिर में जा रहे थे। 2 और लोग एक जन्म के लँगड़े को ला रहे थे, जिसको वे प्रतिदिन मन्दिर के उस द्वार पर जो ‘सुन्दर’ कहलाता है, बैठा देते थे, कि वह मन्दिर में जानेवालों से भीख माँगे। 3 जब उसने पतरस और यूहन्ना को मन्दिर में जाते देखा, तो उनसे भीख माँगी।
4 पतरस ने यूहन्ना के साथ उसकी ओर ध्यान से देखकर कहा, “हमारी ओर देख!” 5 अतः वह उनसे कुछ पाने की आशा रखते हुए उनकी ओर ताकने लगा। 6 तब पतरस ने कहा, “चाँदी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूँ; यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर।”
7 और उसने उसका दाहिना हाथ पकड़ के उसे उठाया; और तुरन्त उसके पाँवों और टखनों में बल आ गया। 8 और वह उछलकर खड़ा हो गया, और चलने-फिरने लगा; और चलता, और कूदता, और परमेश्वर की स्तुति करता हुआ उनके साथ मन्दिर में गया।
9 सब लोगों ने उसे चलते-फिरते और परमेश्वर की स्तुति करते देखकर, 10 उसको पहचान लिया कि यह वही है, जो मन्दिर के ‘सुन्दर’ फाटक पर बैठ कर भीख माँगा करता था; और उस घटना से जो उसके साथ हुई थी; वे बहुत अचम्भित और चकित हुए।
11 जब वह पतरस और यूहन्ना को पकड़े हुए था, तो सब लोग बहुत अचम्भा करते हुए उस ओसारे में जो सुलैमान का कहलाता है, उनके पास दौड़े आए। 12 यह देखकर पतरस ने लोगों से कहा, “हे इस्राएलियों, तुम इस मनुष्य पर क्यों अचम्भा करते हो, और हमारी ओर क्यों इस प्रकार देख रहे हो, कि मानो हमने अपनी सामर्थ्य या भक्ति से इसे चलने-फिरने योग्य बना दिया।
13 अब्राहम और इसहाक और याकूब के परमेश्वर*, हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने अपने सेवक यीशु की महिमा की, जिसे तुम ने पकड़वा दिया, और जब पिलातुस ने उसे छोड़ देने का विचार किया, तब तुम ने उसके सामने यीशु का तिरस्कार किया। 14 तुम ने उस पवित्र और धर्मी* का तिरस्कार किया, और चाहा की, एक हत्यारे को तुम्हारे लिये छोड़ दिया जाए।
15 और तुम ने जीवन के कर्ता को मार डाला, जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया; और इस बात के हम गवाह हैं।
16 और उसी के नाम ने, उस विश्वास के द्वारा जो उसके नाम पर है, इस मनुष्य को जिसे तुम देखते हो और जानते भी हो सामर्थ्य दी है; और निश्चय उसी विश्वास ने जो यीशु के द्वारा है, इसको तुम सब के सामने बिलकुल भला चंगा कर दिया है। 17 “और अब हे भाइयों, मैं जानता हूँ कि यह काम तुम ने अज्ञानता से किया, और वैसा ही तुम्हारे सरदारों ने भी किया। 18 परन्तु जिन बातों को परमेश्वर ने सब भविष्यद्वक्ताओं के मुख से पहले ही बताया था, कि उसका मसीह दुःख उठाएगा; उन्हें उसने इस रीति से पूरा किया।
19 इसलिए, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाएँ जाएँ, जिससे प्रभु के सम्मुख से विश्रान्ति के दिन आएँ। 20 और वह उस यीशु को भेजे जो तुम्हारे लिये पहले ही से मसीह ठहराया गया है।
21 अवश्य है कि वह स्वर्ग में उस समय तक रहे जब तक कि वह सब बातों का सुधार* न कर ले जिसकी चर्चा प्राचीनकाल से परमेश्वर ने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के मुख से की है। 22 जैसा कि मूसा ने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिये मुझ जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा, जो कुछ वह तुम से कहे, उसकी सुनना।’ (व्य.18:15-18)
23 परन्तु प्रत्येक मनुष्य जो उस भविष्यद्वक्ता की न सुने, लोगों में से नाश किया जाएगा। (लैव्य. 23:29, व्य. 18:19)
24 और शमूएल से लेकर उसके बाद वालों तक जितने भविष्यद्वक्ताओं ने बात कहीं उन सब ने इन दिनों का सन्देश दिया है। 25 तुम भविष्यद्वक्ताओं की सन्तान और उस वाचा के भागी हो, जो परमेश्वर ने तुम्हारे पूर्वजों से बाँधी, जब उसने अब्राहम से कहा, ‘तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएँगे।’ (उत्प. 12:3, उत्प. 18:18, उत्प. 22:18, उत्प. 26:4)
26 परमेश्वर ने अपने सेवक को उठाकर पहले तुम्हारे पास भेजा, कि तुम में से हर एक को उसकी बुराइयों से फेरकर आशीष दे।”
“मंदिर क्षेत्र में” या फिर, “मंदिर की ओर।” वे भीतरी भवन में नहीं गए थे, क्योंकि वहां केवल याजक जा सकते थे।
“दोपहर तीन बजे” (यूडीबी)।
“भीख” का आशय उन पैसों से है जो लोग गरीबों को देते हैं। व्यक्ति गरीब था और अपने लिए पैसे मांग रहा था।
“एकटक होकर देख कर” या फिर “उसे ध्यान से देख कर”
“लंगड़ा व्यक्ति उन्हें गौर से देखने लगा”
इन्हें वाक्य की शुरुआत में यह बताने के लिए रखा गया है कि उस लंगड़े व्यक्ति को बस इन्हीं चीज़ों की आस थी, जो कि पतरस के पास नहीं थी, और पतरस के पास जो वस्तु थी, उससे इसकी तुलना दिखाने के लिए भी ऐसा किया गया है।
इसका आशय मंदिर के प्रांगण से होगा। मंदिर के असल भवन के भीतर जाने की अनुमति केवल याजकों को थी।
“सुन्दर कहलाने वाले द्वार”
“देख लिया” अथवा “वे जान गए कि” अथवा “देखा”
“बहुत हैरान हुए” (यूडीबी) या फिर “आश्चर्य और विस्मय से भर उठे”
“जिस समय”
“सुलैमान के ओसारे में।” सुलैमान, बहुत समय पहले हुए इस्राएल के एक राजा का नाम था। ओसारे का आशय स्तंभों की पंक्ति से है जिनके ऊपर एक छत भी होती है, और केवल एक तरफ से खुला होता है। अनुवाद करते समय इसे “सुलैमान का आँगन” भी लिख सकते हैं। सुलैमान का ओसारा बहुत विशाल था।
“अचम्भे से भरे हुए” या फिर “चकित होकर” या फिर “विस्मय से भर कर”
“बढ़ती हुई भीड़ को देख कर पतरस ने” अथवा “लोगों को देख कर पतरस” (यूडीबी)
“हे मेरे संगी इस्राएलियों” (यूडीबी)। पतरस भीड़ को संबोधित कर रहा था, “इस्राएलियों” का आशय वहाँ मौजूद सभी इस्राएलियों से था।
यह आलंकारिक प्रश्न है। अनुवाद के समय यूं भी लिख सकते हैं कि “तुम्हे अचंभित नहीं होना चाहिए” यूडीबी।
इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस तरह भी किया जा सकता है कि, “तुम्हें हम पर यूं दृष्टि लगाने की आवश्यकता नहीं हैं” या फिर, “हमें इस तरह टकटकी लगा कर देखने का कोई कारण नहीं है।”
“हमारी” को यहाँ पतरस व यूहन्ना दोनों के लिए एक साथ और व्यक्तिगत रूप से प्रयुक्त किया गया है।
“हम” को यहाँ पतरस व यूहन्ना दोनों के लिए एक साथ और व्यक्तिगत रूप से प्रयुक्त किया गया है।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि “हमने इसे अपनी सामर्थ्य या भक्ति से नहीं चलाया।” नोट: मूल हिंदी अनुवाद में “चलने-फिरने के योग्य” लिखना बेहतर होगा। कृपया “के” शब्द का भी प्रयोग करें।
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“जिसे तुम पीलातुस के पास ले गए”
“तब तुमने पीलातुस के आगे उसका इनकार किया”
“जब पीलातुस ने यीशु को मुक्त करने का निर्णय लिया”
इसे सक्रिय क्रियापद की भांति अनूदित किया जा सकता है: “कि पीलातुस तुम्हें एक हत्यारा दे दे।”
“तुम्हे दे दे।” इसका आशय “कृपा के रूप में देने” से है। यहाँ बंधन से “मुक्त” करने का भाव नहीं है।
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
"जीवन के कर्ता" (यू.डी.बी)या “जीवन का शासक”
“इस मनुष्य को....जिसे तुम देखते जानते भी हो
कुछ भाषाओँ में “विश्वास” शब्द संज्ञा रूप में नहीं होता, ऐसे में उसे क्रिया रूप में व्यक्त करने की ज़रुरत हो सकती है। यदि वाक्य में कर्ता को लिखना ज़रूरी हो, तो “हम’ शब्द के उपयुक्त रूप का प्रयोग करें।
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“परमेश्वर की ओर फिरो”
“जिस से प्रभु तुम्हें सामर्थ्य दे।”
“दूर किये” अथवा “रद्द कर दिए”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
जैसा कि पहले ही उल्लिखित था कि यीशु स्वर्ग में रहेगा।
“जब तक कि परमेश्वर सभी बातों का सुधार न कर ले”
“परमेश्वर ने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं से सुधार के विषय बोलने को कहा”
“बहुत समय पहले हुए पवित्र भविष्यद्वक्ताओं”
“किसी को भविष्यद्वक्ता होने के लिए चुनेगा” अथवा “किसी को भविष्यद्वक्ता होने का अधिकार देगा”
“हटा दिया जाएगा” या कि “दूर किया जाएगा” अथवा “निकाल दिया जाएगा”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“शमूएल के बाद हुए भविष्यद्वक्ता”
“इस समय” अथवा “इस समय जो हो रहा है” या फिर “जो बातें हो रही हैं”
“तुम भविष्यद्वक्ताओं के वारिस हो।” अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं, कि “अपने भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से परमेश्वर ने जो प्रतिज्ञा की है, वे तुम्हें मिलेगी।”
“वाचा की संतान” या फिर, “वाचा के वारिस।” अनुवाद करते समय इसे यूं भी लिख सकते हैं, कि “परमेश्वर ने अपनी वाचा में जिसकी प्रतिज्ञा की है, वे तुम पाओगे।”
“तेरी संतान के कारण”
“परमेश्वर द्वारा अपने सेवक को चुनने के बाद” अथवा “परमेश्वर द्वारा अपने सेवक को अधिकार दिए जाने के बाद”
यहाँ पर आशय परमेश्वर के मसीह से है।
पतरस और यूहन्ना ने मंदिर के द्वार पर एक जन्म के लंगड़े को उनसे भीख माँगते देखा।
पतरस ने उस आदमी को चाँदी और सोना नहीं दिया।
पतरस ने उस आदमी को चलने-फिरने की सामर्थ्य दी।
वह मन्दिर में चलते, कूदते और परमेश्वर की स्तुति करते हुए गया।
लोग बहुत चकित और अचम्भित हुए।
पतरस ने लोगों को याद दिलाया कि उन्होंने यीशु को पीलातुस के लिए पकड़वा दिया, उसका इन्कार किया और उसको मार डाला।
पतरस ने कहा कि यीशु के नाम में उस आदमी के विश्वास ने उसको भला-चंगा कर दिया।
पतरस ने लोगों को मन फिराने के लिए कहा।
पतरस ने कहा कि वह स्वर्ग में उस समय तक रहे जब तक कि सब बातों का सुधार न कर ले।
मूसा ने कहा कि प्रभु परमेश्वर उस जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा, जिसको लोग सुनेंगे।
जो मनुष्य यीशु की न सुने वह पूर्ण रूप से नाश किया जाएगा।
पतरस ने लोगों को याद दिलाया कि वे भविष्यद्वक्ताओं की सन्तान और उस वाचा के भागी हैं जिसे परमेश्वर ने अब्राहम से बाँधा जब परमेश्वर ने कहा, "तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएंगे।"
परमेश्वर ने यहूदियों को आशीष देने की चाहत पहले यीशु को उनके पास भेजकर की ताकि वे अपनी बुराइयों से फिरें।
1 जब पतरस और यूहन्ना लोगों से यह कह रहे थे, तो याजक और मन्दिर के सरदार और सदूकी उन पर चढ़ आए। 2 वे बहुत क्रोधित हुए कि पतरस और यूहन्ना यीशु के विषय में सिखाते थे और उसके मरे हुओं में से जी उठने का प्रचार करते थे। 3 और उन्होंने उन्हें पकड़कर दूसरे दिन तक हवालात में रखा क्योंकि संध्या हो गई थी। 4 परन्तु वचन के सुननेवालों में से बहुतों ने विश्वास किया, और उनकी गिनती पाँच हजार पुरुषों के लगभग हो गई।
5 दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उनके सरदार और पुरनिए और शास्त्री। 6 और महायाजक हन्ना और कैफा और यूहन्ना और सिकन्दर और जितने महायाजक के घराने के थे, सब यरूशलेम में इकट्ठे हुए। 7 और पतरस और यूहन्ना को बीच में खड़ा करके पूछने लगे, “तुम ने यह काम किस सामर्थ्य से और किस नाम से किया है?”
8 तब पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उनसे कहा, 9 “हे लोगों के सरदारों और प्राचीनों*, इस दुर्बल मनुष्य के साथ जो भलाई की गई है, यदि आज हम से उसके विषय में पूछ-ताछ की जाती है, कि वह कैसे अच्छा हुआ। 10 तो तुम सब और सारे इस्राएली लोग जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, और परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया, यह मनुष्य तुम्हारे सामने भला चंगा खड़ा है।
11 यह वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना* और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया। (भज. 118:22-23, दानि. 2:34, 35) 12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सके।”
13 जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का साहस देखा, और यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उनको पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।
14 परन्तु उस मनुष्य को जो अच्छा हुआ था, उनके साथ खड़े देखकर, यहूदी उनके विरोध में कुछ न कह सके।
15 परन्तु उन्हें महासभा के बाहर जाने का आज्ञा देकर, वे आपस में विचार करने लगे, 16 “हम इन मनुष्यों के साथ क्या करें? क्योंकि यरूशलेम के सब रहनेवालों पर प्रगट है, कि इनके द्वारा एक प्रसिद्ध चिन्ह दिखाया गया है; और हम उसका इन्कार नहीं कर सकते। 17 परन्तु इसलिए कि यह बात लोगों में और अधिक फैल न जाए, हम उन्हें धमकाएँ, कि वे इस नाम से फिर किसी मनुष्य से बातें न करें।” 18 तब पतरस और यूहन्ना को बुलाया और चेतावनी देकर यह कहा, “यीशु के नाम से कुछ भी न बोलना और न सिखाना।”
19 परन्तु पतरस और यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “तुम ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्वर के निकट भला है, कि हम परमेश्वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें? 20 क्योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हमने देखा और सुना है, वह न कहें।”
21 तब उन्होंने उनको और धमकाकर छोड़ दिया, क्योंकि लोगों के कारण उन्हें दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला, इसलिए कि जो घटना हुई थी उसके कारण सब लोग परमेश्वर की बड़ाई करते थे। 22 क्योंकि वह मनुष्य, जिस पर यह चंगा करने का चिन्ह दिखाया गया था, चालीस वर्ष से अधिक आयु का था।
23 पतरस और यूहन्ना छूटकर अपने साथियों के पास आए, और जो कुछ प्रधान याजकों और प्राचीनों ने उनसे कहा था, उनको सुना दिया। 24 यह सुनकर, उन्होंने एक चित्त होकर ऊँचे शब्द से परमेश्वर से कहा, “हे प्रभु, तू वही है जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया। (निर्ग. 20:11, भज. 146:6) 25 तूने पवित्र आत्मा के द्वारा अपने सेवक हमारे पिता दाऊद के मुख से कहा,
‘अन्यजातियों ने हुल्लड़ क्यों मचाया?
और देश-देश के लोगों ने क्यों व्यर्थ बातें सोची?
26 प्रभु और उसके अभिषिक्त के विरोध में पृथ्वी के राजा खड़े हुए, और हाकिम एक साथ इकट्ठे हो गए।’ (भज. 2:1,2)
27 क्योंकि सचमुच तेरे पवित्र सेवक यीशु के विरोध में, जिसे तूने अभिषेक किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी अन्यजातियों और इस्राएलियों के साथ इस नगर में इकट्ठे हुए, (यशा. 61:1) 28 कि जो कुछ पहले से तेरी सामर्थ्य और मति से ठहरा था वही करें।
29 अब हे प्रभु, उनकी धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे कि तेरा वचन बड़े साहस से सुनाएँ। 30 और चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ा कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएँ।” 31 जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे हिल गया*, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन साहस से सुनाते रहे।
32 और विश्वास करनेवालों की मण्डली एक चित्त और एक मन के थे यहाँ तक कि कोई भी अपनी सम्पत्ति अपनी नहीं कहता था, परन्तु सब कुछ साझे का था। 33 और प्रेरित बड़ी सामर्थ्य से प्रभु यीशु के जी उठने की गवाही देते रहे और उन सब पर बड़ा अनुग्रह था।
34 और उनमें कोई भी दरिद्र न था, क्योंकि जिनके पास भूमि या घर थे, वे उनको बेच-बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्रेरितों के पाँवों पर रखते थे। 35 और जैसी जिसे आवश्यकता होती थी, उसके अनुसार हर एक को बाँट दिया करते थे।
36 और यूसुफ नामक, साइप्रस का एक लेवी था जिसका नाम प्रेरितों ने बरनबास अर्थात् (शान्ति का पुत्र) रखा था। 37 उसकी कुछ भूमि थी, जिसे उसने बेचा, और दाम के रुपये लाकर प्रेरितों के पाँवों पर रख दिए।
मंदिर के मुख्य पहरेदार
“उनके पास गए” अथवा “उनके पास पहुँच गए”
पतरस ने यीशु और उसके पुनरुत्थान के विषय में उपदेश दिया था। इस बात ने सदूकियों में क्रोध भर दिया था क्योंकि वे यीशु के पुनरुत्थान पर विश्वास नहीं करते थे।
विशेषकर पुरुषों की संख्या।
उन दिनों शाम के समय लोगों से तर्क-वितर्क न करने की परंपरा थी।
“पुरुषों की संख्या लगभग पांच हज़ार हो गयी थी” अथवा “पुरुषों की संख्या बढ़ कर लगभग पांच हज़ार हो गयी थी।”
“तुम्हें यह काम करने की सामर्थ्य किसने दी” (यूडीबी) अथवा “तुम्हें यह काम करने की सामर्थ्य कहाँ से मिली।” उन्हें यह मालूम था कि पतरस व यूहन्ना अपनी सामर्थ्य से उस व्यक्ति को चंगाई नहीं दे सकते थे।
“किसके सामर्थ देने से”
इस्राएलवासियों
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
कोने के सिरे का पत्थर - यहाँ पर रूपक अलंकार का प्रयोग है। जिस प्रकार कोने को बुनियाद में लगाया जाता है और आगे के निर्माण के लिए उसे आधार की तरह लिया जाता है। यीशु हमारे उद्धार की एकमात्र बुनियाद है।
“उन्होंने” का आशय समूह के अगुओं से है।
“समझ गए” अथवा “जान गए”
“ये” का आशय यहाँ पतरस व यूहन्ना से है
“प्रशिक्षित” अथवा “औपचारिक शिक्षा से रहित”
“हम इस आश्चर्यकर्म को नकार नहीं सकते।” यरूशलेम का हर व्यक्ति उस व्यक्ति की चंगाई के बारे में जान गया था।।
अर्थात पतरस व पौलुस
“किसी से और कुछ न कहें”
हम विवश हैं कि ....वह कहें.
परमेश्वर के समक्ष भला है और उसे आदर देता है
अगुओं यह समझ नहीं आया कि जो लोग उस व्यक्ति की चंगाई के गवाह थे, उनके बीच बिना किसी उपद्रव के वे किस प्रकार पतरस और यूहन्ना को दंड दें
अगुओं ने उन्हें आगे और दंड देने की धमकी डी
यह बात सभी जानते थे कि वह एक अपाहिज था और उसे हाल ही में चंगाई मिली थी।
अपने साथियों के पास आए -वे अन्य विश्वासियों के पास गए
एक चित्त होकर ऊँचें शब्द से परमेश्वर से कहा -वे मन-सबुद्धि से एक थे
बेकार की बातें, अवास्तविक बातें
में, भजन संहिता में निहित राजा दाऊद पर शुरु किये अपने उद्धरण को पतरस आगे बढाता है
वे साथ हो लिए। उन्होंने अपनी सेनायें मिला ली।
विश्वासी जन में शुरू की अपनी प्रार्थना को आगे बढ़ाते हैं
दाऊद ने केवल गैर-यहूदी जातियों को शामिल किया था, लेकिन पतरस में इस्राएल और उसके शासकों को भी मसीह के विरोधियों में गिना
अर्थात यरूशलेम में
विश्वासी जन में शुरू की अपनी प्रार्थना को आगे बढ़ाते हैं
उनकी धमकियों को देख कर -इसी कारण से शिष्यों को परमेश्वर का वचन बोलने का हियाव दिया गया था।
यह शिष्यों का पवित्र आत्मा से भरने का परिणाम था
“विश्वास करनेवालों बहुत से लोग...”
इसका आशय है कि 1)परमेश्वर बहुत से विश्वासियों पर बहुत से वरदान और हियाव उंडेल रहा था या फिर 2) यरूशलेम के अन्य सभी लोग विश्वासियों को आदर की दृष्टि से देखते थे।
बहुत से विश्वासियों ने ऐसा एक बार नहीं, वरन बार-बार ऐसा किया
ऐसा करने के द्वारा विश्वासी यह वयक्त करते थे कि : 1) उनका मन-पर्तिवर्तन हो चुका है और यह कि 2) वरदानों को बांटने का अधिकार वे प्रेरितों को दे रहे थे
ऐसा लगता है कि विश्वासियों की आवश्यकताओं पर नज़र रखी जाती थी; बस किसी के कहने भर से उनसे सामान नहीं दिया जाता था।
कहानी के इस अंश में बरनबास का प्रवेश होता है। आगे चल कर वह लूका रचित प्रेरितों के कार्य की पुस्तक में बड़ी भूमिका निभाता है। कहानी में इस नए व्यक्ति के प्रवेश को व्यक्त करते समय अपनी भाषा में शब्दों के चुनाव पर विशेष ध्यान दें।
इस प्रकार देना विश्वासियों के मध्य आम प्रथा थी, और यह इस बात का प्रतीक थी कि उपहार को अपने अनुसार प्रयोग करने का अधिकार प्रेरितों को सौंप दिया गया है।
पतरस और यूहन्ना यीशु और उसके मरे हुओं में से जी उठने के बारे में शिक्षा दे रहे थे।
उन्होंने पतरस और यूहन्ना को गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया।
करीब पाँच हजार (बहुत से) लोगों ने विश्वास किया।
फिलिप्पुस की चार कुंवारी पुत्रियाँ थीं जो भविष्यद्वाणी करतीं थीं।
पतरस ने उत्तर दिया कि उसने यीशु मसीह के नाम से उस मनुष्य को मन्दिर में चंगा किया।
पतरस ने कहा कि यीशु के अलावा और कोई दूसरा नाम नहीं, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें।
अगुवे कुछ न कह सके क्योंकि जिस मनुष्य को चंगा किया गया था, वह पतरस और यूहन्ना के साथ खड़ा था।
यहूदी अगुवे ने पतरस और यूहन्ना को चेतावनी दी कि यीशु के विषय में न बोलें और न सिखलाएं।
पतरस और यूहन्ना ने उत्तर दिया कि यह तो उनसे हो नहीं सकता कि जो बातें उन्होंने सुनी और देखी है, वह न कहें।
विश्वासियों ने मांगा कि वे यीशु के नाम में बड़े हियाव से वचन को सुना सकें, और चिन्ह और अद्भुत काम कर सकें।
जब विश्वासी अपनी प्रार्थना समाप्त कर चुके तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे हिल गया, वे सब पवित्र-आत्मा से भर गए और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।
विश्वासियों का सब कुछ साझे का था, और जिनके पास सम्पत्ति थी उन्होंने उसे बेचा और उसका दाम लाकर प्रेरितों को दे दिया ताकि आवश्यकता के अनुसार उसे बाँट दिया जाए।
बरनबास नामक व्यक्ति का अर्थ है "शान्ति का पुत्र" ।
1 हनन्याह नामक एक मनुष्य, और उसकी पत्नी सफीरा ने कुछ भूमि बेची। 2 और उसके दाम में से कुछ रख छोड़ा; और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी, और उसका एक भाग लाकर प्रेरितों के पाँवों के आगे रख दिया।
3 परन्तु पतरस ने कहा, “हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली है कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े? 4 जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न थी? और जब बिक गई तो क्या तेरे वश में न थी? तूने यह बात अपने मन में क्यों सोची? तूने मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला है।” 5 ये बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा*, और प्राण छोड़ दिए; और सब सुननेवालों पर बड़ा भय छा गया। 6 फिर जवानों ने उठकर उसकी अर्थी बनाई और बाहर ले जाकर गाड़ दिया।
7 लगभग तीन घंटे के बाद उसकी पत्नी, जो कुछ हुआ था न जानकर, भीतर आई। 8 तब पतरस ने उससे कहा, “मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची थी?” उसने कहा, “हाँ, इतने ही में।”
9 पतरस ने उससे कहा, “यह क्या बात है, कि तुम दोनों प्रभु के आत्मा की परीक्षा के लिए एक साथ सहमत हो गए? देख, तेरे पति के गाड़नेवाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँगे।” 10 तब वह तुरन्त उसके पाँवों पर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए; और जवानों ने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया। 11 और सारी कलीसिया पर और इन बातों के सब सुननेवालों पर, बड़ा भय छा गया।
12 प्रेरितों के हाथों से बहुत चिन्ह और अद्भुत काम लोगों के बीच में दिखाए जाते थे, और वे सब एक चित्त होकर सुलैमान के ओसारे में इकट्ठे हुआ करते थे। 13 परन्तु औरों में से किसी को यह साहस न होता था कि, उनमें जा मिलें; फिर भी लोग उनकी बड़ाई करते थे।
14 और विश्वास करनेवाले बहुत सारे पुरुष और स्त्रियाँ प्रभु की कलीसिया में और भी अधिक आकर मिलते रहे*। 15 यहाँ तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला-लाकर, खाटों और खटोलों पर लिटा देते थे, कि जब पतरस आए, तो उसकी छाया ही उनमें से किसी पर पड़ जाए। 16 और यरूशलेम के आस-पास के नगरों से भी बहुत लोग बीमारों और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुओं को ला-लाकर, इकट्ठे होते थे, और सब अच्छे कर दिए जाते थे।
17 तब महायाजक और उसके सब साथी जो सदूकियों के पंथ के थे, ईर्ष्या से भर कर उठे। 18 और प्रेरितों को पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया।
19 परन्तु रात को प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर लाकर कहा, 20 “जाओ, मन्दिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।” 21 वे यह सुनकर भोर होते ही मन्दिर में जाकर उपदेश देने लगे। परन्तु महायाजक और उसके साथियों ने आकर महासभा को और इस्राएलियों के सब प्राचीनों को इकट्ठा किया, और बन्दीगृह में कहला भेजा कि उन्हें लाएँ।
22 परन्तु अधिकारियों ने वहाँ पहुँचकर उन्हें बन्दीगृह में न पाया, और लौटकर संदेश दिया, 23 “हमने बन्दीगृह को बड़ी सावधानी से बन्द किया हुआ, और पहरेवालों को बाहर द्वारों पर खड़े हुए पाया; परन्तु जब खोला, तो भीतर कोई न मिला।”
24 जब मन्दिर के सरदार और प्रधान याजकों ने ये बातें सुनीं, तो उनके विषय में भारी चिन्ता में पड़ गए कि उनका क्या हुआ! 25 इतने में किसी ने आकर उन्हें बताया, “देखो, जिन्हें तुम ने बन्दीगृह में बन्द रखा था, वे मनुष्य मन्दिर में खड़े हुए लोगों को उपदेश दे रहे हैं।”
26 तब सरदार, अधिकारियों के साथ जाकर, उन्हें ले आया, परन्तु बलपूर्वक नहीं, क्योंकि वे लोगों से डरते थे, कि उन पर पत्थराव न करें। 27 उन्होंने उन्हें फिर लाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया और महायाजक ने उनसे पूछा, 28 “क्या हमने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम इस नाम से उपदेश न करना? फिर भी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो।”
29 तब पतरस और, अन्य प्रेरितों ने उत्तर दिया, “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्त्तव्य है। 30 हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटकाकर मार डाला था। (व्य. 21:22-23) 31 उसी को परमेश्वर ने प्रभु और उद्धारकर्ता ठहराकर, अपने दाहिने हाथ से सर्वोच्च किया, कि वह इस्राएलियों को मन फिराव और पापों की क्षमा प्रदान करे। (लूका 24:47) 32 और हम इन बातों के गवाह हैं, और पवित्र आत्मा भी, जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है, जो उसकी आज्ञा मानते हैं।”
33 यह सुनकर वे जल उठे, और उन्हें मार डालना चाहा। 34 परन्तु गमलीएल* नामक एक फरीसी ने जो व्यवस्थापक और सब लोगों में माननीय था, महासभा में खड़े होकर प्रेरितों को थोड़ी देर के लिये बाहर कर देने की आज्ञा दी।
35 तब उसने कहा, “हे इस्राएलियों, जो कुछ इन मनुष्यों से करना चाहते हो, सोच समझ के करना। 36 क्योंकि इन दिनों से पहले थियूदास यह कहता हुआ उठा, कि मैं भी कुछ हूँ; और कोई चार सौ मनुष्य उसके साथ हो लिए, परन्तु वह मारा गया; और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हुए और मिट गए। 37 उसके बाद नाम लिखाई के दिनों में यहूदा गलीली उठा, और कुछ लोग अपनी ओर कर लिए; वह भी नाश हो गया, और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हो गए।
38 इसलिए अब मैं तुम से कहता हूँ, इन मनुष्यों से दूर ही रहो और उनसे कुछ काम न रखो; क्योंकि यदि यह योजना या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा; 39 परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़नेवाले ठहरो।”
40 तब उन्होंने उसकी बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना। 41 वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के सामने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे। 42 इसके बाद हर दिन, मन्दिर में और घर-घर में, वे लगातार सिखाते और प्रचार करते थे कि यीशु ही मसीह है।
अथवा ‘’लेकिन अब’’। कहानी में आये नए मोड़ का संकेत देने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया गया है। हमें अपनी भाषोचित अभिव्यक्ति का प्रयोग करना है।
यह उस मनुष्य का परिचय देने का एक तरीका है। ध्यान दें कि कहानी में किसी नए व्यक्ति के प्रवेश को आपकी भाषा में किस प्रकार व्यक्त किया जाता है।
बेच कर प्राप्त हुई रकम के विषय में उसने प्रेरितों से झूठ बोला। इसमें अन्तर्निहित जानकारी को उभार कर इस प्रकार भी लिख सकते हैं: “बेच कर प्राप्त हुई रकम में से उसने कुछ राशि चुपके से अपने पास रख ली।”
इस प्रकार देना विश्वासियों के मध्य आम प्रथा थी, और यह इस बात का प्रतीक थी कि उपहार को अपने अनुसार प्रयोग करने का अधिकार प्रेरितों को सौंप दिया गया है।
उसकी पत्नी भी जानती थी -अनुवाद करते समय हम यह भी लिख सकते हैं कि, “उसकी पत्नी को यह बात मालूम थी और वह ऐसा करने के लिए तैयार हो गयी।”
पतरस ने भाषाडम्बर से भरा यह प्रश्न हनन्याह को फटकारने के लिए पूछा था
इस प्रश्न को पूछने के द्वारा पतरस हनन्याह को यह याद दिलाना चाहता है कि : पैसे तब भी हनन्याह के ही थे और वे तब भी हनन्याह के वश में ही थे।
इस प्रश्न के द्वारा पतरस हनन्याह को फटकार लगा रहा है।
यहाँ पर शाब्दिक अर्थ का प्रयोग है, अर्थात “जवान उठ कर आये...” यह किसी काम को करने की पहल को व्यक्त करता है।
किसी की मृत्यु पर शव को अंतिम गाड़ने से पहले तैयार किया जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि हनन्याह के मामले में ऐसा नहीं किया गया।
यह कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है
पतरस ने उसे हाँ या ना में जवाब देने का आदेश दिया
यह कहानी हनन्याह के छल के विषय में है, न कि लेखा देने के विषय में। लूका ने भूमि के असल दाम का उल्लेख नहीं किया है।
यह वास्तविक प्रश्न नहीं है। इसे इस तरह भी अनूदित किया जा सकता है, कि “तुम दोनों ने आत्मा की परीक्षा लेने का एका किया है।”
यह “और वह मर गयी” के लिए शिष्टोक्ति है।
यह आलंकारिक भाषा है। वह हनन्याह को गाड़नेवाले के पैरों पर गिर पड़ी।
“बहुत से आश्चर्यकर्म हो रहे थे” (यूडीबी देखें)
अर्थात, “जो भी कलीसिया का हिस्सा थे, उनमे से किसी को”
यह मंदिर प्रांगण के भीतर स्थित था
“बहुत सम्मान व आदर देते थे”
अर्थात, पतरस की छाया पड़ने पर वे चंगे हो जाएँ
यहाँ से कहानी में बदलाव आता है। इस बदलाव को दिखाते समय अपनी भाषा का एकदम सटीक और सही प्रयोग करें।
“ईर्ष्या” या कि “आक्रोश।” सदूकियों की ईर्ष्या का मुख्य कारण था प्रेरितों को मिल रही ख्याति।
अर्थात “प्रेरितों को बंदी बना कर।”
“उन्हें जेल से बाहर निकाल कर कहा”
रात में मंदिर बंद रहता था। प्रेरितों ने स्वर्गदूत की बात पर यथासम्भव तेज़ी से अमल किया।
(वचन के इस हिस्से के लिए कोई नोट्स नहीं है।)
“वे समझ नहीं पाए” या कि “वे विमूढ़ हो गए”
अर्थात “वे जो उन्होंने अभी-अभी सुनी थी” (कि प्रेरित जेल में नहीं थे)
‘तुमने’ यहाँ बहुवचन में है
कि हम पर पथराव न करें -अनुवाद करते समय इसे यूं भी लिखा जा सकता है कि, “कि मंदिर के रक्षकों पर पथराव न करें।”
“उस व्यक्ति की मृत्यु के लिए हमें ज़िम्मेदार ठहराना चाहते हों”
आज्ञा -आज्ञा (बहु.)
तुमने....भर दिया है -तुमने (बहु.)
इस्राएलियों को मन फिराव की शकित और पापों की क्षमा प्रदान करें -अनुवाद करते समय यूं भी लिखा सकते हैं,कि “इस्राएलियों को अपने पापों से मन फिराने और अपने पापों की क्षमा प्राप्त करने का अवसर दिया।”
और पवित्र आत्मा भी -पवित्र आत्मा को एक व्यक्ति के रूप में संबोधित किया गया है जो यीशु के आश्चर्यकर्म के कार्यों को प्रमाणित कर सकता है।
प्रेरितों द्वारा फटकारे जाने से परिषद् के सदस्यों को बहुत अधिक क्रोध आया।
“इस विषय में ध्यान से सोंचना” (यूडीबी), या फिर, “इस विषय में सावधान रहना”
में शुरू की अपनी बात को गमलीएल आगे बढाता है।
यीशु के लिए कष्ट भोगना एक सौभाग्य था।
हनन्याह और सफीरा ने यह कहकर झूठ बोला कि वे अपनी सम्पत्ति को बेचकर पूरा दाम दे रहे थे जबकि उन्होंने उसके दाम का एक ही भाग दिया।
पतरस ने बताया कि हनन्याह और सफीरा ने पवित्र-आत्मा से झूठ बोला।
परमेश्वर ने हनन्याह और सफीरा दोनों को मार दिया।
कलीसिया में हनन्याह और सफीरा के बारे में सुनने वालों पर बड़ा भय छा गया।
कुछ लोग बीमारों को सड़कों पर ले जा रहे थे, ताकि पतरस की छाया ही उन पर पड़ जाए, और दूसरे लोग दूसरे शहरों से यरूशलेम में बीमारों को ला रहे थे।
सब सदूकी डाह से भर उठे और प्रेरितों को बन्दीगृह में बन्द कर दिया।
एक स्वर्गदूत आया और उसने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर निकाला।
प्यादों में उन्हें बन्दीगृह में न पाया जबकि बन्दीगृह बड़ी चौकसी से बन्द किया गया था और पहरेदार द्वारों पर खड़े हुए थे।
प्यादे डरते थे कि कहीं लोग उन्हें पत्थरवाह न करें।
प्रेरितों ने उत्तर दिया, "हमें मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए।"
प्रेरितों ने उत्तर दिया कि महायाजक और महासभा के सदस्य यीशु को मार डालने के उत्तरदायी थे।
महासभा के सदस्य यह सुनकर जल गये और उन्हें मार डालना चाहा।
गमलीएल ने महासभा को प्रेरितों को अकेला छोड़ देने की सलाह दी।
गमलीएल ने महासभा को चेतावनी दी कि वे परमेश्वर से लड़ाई करना छोड़ दें।
महासभा ने प्रेरितों को पीटा और उन्हें यीशु के नाम से बातें न करने की आज्ञा देकर जाने दिया।
प्रेरित इस बात से आनन्दित हुए कि वे यीशु के नाम के लिए निरादर के योग्य ठहरे।
प्रेरितों ने प्रतिदिन उपदेश दिया और सुसमाचार सुनाया कि यीशु ही मसीह है।
1 उन दिनों में जब चेलों की संख्या बहुत बढ़ने लगी, तब यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानियों पर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रतिदिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती।
2 तब उन बारहों ने चेलों की मण्डली को अपने पास बुलाकर कहा, “यह ठीक नहीं कि हम परमेश्वर का वचन छोड़कर खिलाने-पिलाने की सेवा में रहें। 3 इसलिए हे भाइयों, अपने में से सात सुनाम पुरुषों को जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हो, चुन लो, कि हम उन्हें इस काम पर ठहरा दें। 4 परन्तु हम तो प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।”
5 यह बात सारी मण्डली को अच्छी लगी, और उन्होंने स्तिफनुस नामक एक पुरुष को जो विश्वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था, फिलिप्पुस, प्रुखुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया* वासी नीकुलाउस को जो यहूदी मत में आ गया था, चुन लिया। 6 और इन्हें प्रेरितों के सामने खड़ा किया और उन्होंने प्रार्थना करके उन पर हाथ रखे।
7 और परमेश्वर का वचन फैलता गया* और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के अधीन हो गया।
8 स्तिफनुस अनुग्रह और सामर्थ्य से परिपूर्ण होकर लोगों में बड़े-बड़े अद्भुत काम और चिन्ह दिखाया करता था। 9 तब उस आराधनालय में से जो दासत्व-मुक्त कहलाती थी, और कुरेनी और सिकन्दरिया और किलिकिया और आसिया के लोगों में से कई एक उठकर स्तिफनुस से वाद-विवाद करने लगे।
10 परन्तु उस ज्ञान और उस आत्मा का जिससे वह बातें करता था, वे सामना न कर सके। 11 इस पर उन्होंने कई लोगों को उकसाया जो कहने लगे, “हमने इसे मूसा और परमेश्वर के विरोध में निन्दा* की बातें कहते सुना है।”
12 और लोगों और प्राचीनों और शास्त्रियों को भड़काकर चढ़ आए और उसे पकड़कर महासभा में ले आए। 13 और झूठे गवाह खड़े किए, जिन्होंने कहा, “यह मनुष्य इस पवित्रस्थान और व्यवस्था के विरोध में बोलना नहीं छोड़ता। (यिर्म. 26:11) 14 क्योंकि हमने उसे यह कहते सुना है, कि यही यीशु नासरी इस जगह को ढा देगा, और उन रीतियों को बदल डालेगा जो मूसा ने हमें सौंपी हैं।” 15 तब सब लोगों ने जो महासभा में बैठे थे, उसकी ओर ताक कर उसका मुख स्वर्गदूत के समान देखा*।
यहाँ एक नए प्रकरण की शुरुआत हो रही है। अपनी भाषा के अनुसार उपयुक्त शब्दों का चुनाव करें।
“संख्या में बहुत वृद्धि होने लगी”
ये वे यहूदी थे जिन्होंने अपना लगभग पूरा जीवन इस्राएल से बाहर, रोमी साम्राज्य में कहीं बिताया था, और वे यूनानी भाषा बोलते हुए बड़े हुए थे। उनकी भाषा और संस्कृति भी इस्राएल के मूल यहूदियों से थोड़ी अलग थी। नोट: यहाँ पर “यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदी” लिखना बेहतर होगा।
ये इस्राएल में पले-बड़े अरामी बोलनेवाले यहूदी थे। इस समय तक कलीसिया में केवल यहूदी और यहूदी मत में आनेवाले लोगों को गिना जाता था।
सही मायनों में विधवा वह स्त्री है जिसके पति की मृत्यु हो चुकी है, आयु ढलने के कारण शादी नहीं कर सकती, और जिसकी देखभाल करनेवाला कोई सगा-सम्बन्धी न हो।
प्रेरितों को दी जानेवाली रकम का एक हिस्सा प्रारंभिक कलीसिया की विधवाओं के लिए भोजन खरीदने में लगाया जाता था।
“अवहेलना की गयी” या फिर, “भुला दिया गया।” इतने सारे ज़रूरतमंदों के बीच कभी-कभार ज़रूरतमंद छूट जाते थे।
इसका आशय लोगों को भोजन कराने से है।
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) उन लोगों में तीन गुण हों--अच्छी प्रतिष्ठा, आत्मा की भरपूरी, और बुद्धि की भरपूरी, अथवा 2) लोग अपने दो गुणों के लिए जाने जाते हों---आत्मा की परिपूर्णता, और बुद्धि की परिपूर्णता (यूडीबी)।
“लोग जिन्हें अच्छा मानते हों” अथवा “लोग जिन पर विश्वास करते थे”
उपयुक्त स्थान में अपनी भाषा की विशिष्ट अभिव्यक्ति का प्रयोग करें
उपयुक्त स्थान में अपनी भाषा में बहुवचन के लिए प्रयुक्त होनेवाले शब्दों का प्रयोग करें
यह बात साड़ी मंडली को मंज़ूर/स्वीकार्य थी
ये सभी यूनानी नाम हैं जिससे इस बात का संकेत मिलता है कि चुने गए अधिकतर अथवा सभी लोग यूनानी-यहूदी विश्वासियों में से थे।
अर्थात यहूदी मत को धारण करनेवाला एक गैर-यहूदी व्यक्ति
सात लोगों को आशीष दिया और उन्हें कार्य करने का उत्तरदायित्व व अधिकार दिया
इसका प्रभाव और अधिक फैलता गया
अर्थात यीशु के आज्ञापालकों व अनुयायियों की गिनती
अर्थात “इस नए मत के मार्ग का अनुकरण किया”
आराधनालय से जो लिबिरतीनों की कहलाती थी -:संभवतः ये अलग-अलग स्थान के पूर्व दास थे। यह स्पष्ट नहीं है कि आराधनालय में मौजूद बाकी लोग उस आराधनालय का हिस्सा थे या कि बस स्तिफनुस से वाद-विवाद का हिस्सा थे।
स्तिफनुस से वाद-विवाद करने लगे -“स्तिफनुस से तर्क करने लगे” (यूडीबी) अथवा “स्तिफनुस से चर्चा करने लगे”
“वे उससे बहस न कर सके”
अर्थात पवित्र आत्मा
अर्थात “कई लोगों को इस बात के लिए राज़ी किया कि वे”
अनुवाद करते समय इसे यूं भी लिख सकते हैं कि, “परमेश्वर और मूसा की व्यवस्था के विरोध में”
गुस्सा भड़काकर
“दबोच कर”
“उसे एकटक देखा।” यहाँ पर आलंकारिक भाषा का प्रयोग है।
यहाँ उपमा का प्रयोग है जिसका आशय “दमकता देखा” से है, जो कि यहाँ उल्लिखित नहीं है। अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं कि, “उसका चेहरा स्वर्गदूत के चेहरे सा दमक रहा था” (यूडीबी)।
यूनानी भाषा बोलने वालों ने शिकायत की कि दैनिक भोजन वितरण में उनकी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती।
चेलों (विश्वासियों) ने सात मनुष्य इस काम के लिए चुने।
इन सात मनुष्यों को सुनाम वाला, पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण होना था।
प्रेरित प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहे।
प्रेरितों ने प्रार्थना की और उनके सिर पर हाथ रखे।
यरूशलेम में चेलों की गिनती याजकों समेत बहुत बढ़ती गई।
अविश्वासी यहूदी उस ज्ञान और आत्मा से जिससे स्तिफनुस बातें करता था, सामना न कर सके।
झूठे गवाहों ने दावा किया कि स्तिफनुस ने कहा कि यीशु नासरी इस जगह को ढा देगा और मूसा की रीतियों को बदल डालेगा।
उन्होंने उसका मुखड़ा एक स्वर्गदूत का सा देखा।
1 तब महायाजक ने कहा, “क्या ये बातें सत्य है?” 2 उसने कहा,
“हे भाइयों, और पिताओं सुनो, हमारा पिता अब्राहम हारान में बसने से पहले जब मेसोपोटामिया में था; तो तेजोमय परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया। 3 और उससे कहा, ‘तू अपने देश और अपने कुटुम्ब से निकलकर उस देश में चला जा, जिसे मैं तुझे दिखाऊँगा।’ (उत्प. 12:1)
4 तब वह कसदियों के देश से निकलकर हारान में जा बसा; और उसके पिता की मृत्यु के बाद परमेश्वर ने उसको वहाँ से इस देश में लाकर बसाया जिसमें अब तुम बसते हो, (उत्प. 12:5) 5 और परमेश्वर ने उसको कुछ विरासत न दी, वरन् पैर रखने भर की भी उसमें जगह न दी, यद्यपि उस समय उसके कोई पुत्र भी न था। फिर भी प्रतिज्ञा की, ‘मैं यह देश, तेरे और तेरे बाद तेरे वंश के हाथ कर दूँगा।’ (उत्प. 13:15, उत्प. 15:18, उत्प. 16:1, उत्प. 24:7, व्य. 2:5, व्य. 11:5)
6 और परमेश्वर ने यों कहा, ‘तेरी सन्तान के लोग पराये देश में परदेशी होंगे, और वे उन्हें दास बनाएँगे, और चार सौ वर्ष तक दुःख देंगे।’ (उत्प. 15:13-14, निर्ग. 2:22) 7 फिर परमेश्वर ने कहा, ‘जिस जाति के वे दास होंगे, उसको मैं दण्ड दूँगा; और इसके बाद वे निकलकर इसी जगह मेरी सेवा करेंगे।’ (उत्प. 15:14, निर्ग. 3:12) 8 और उसने उससे खतने की वाचा* बाँधी; और इसी दशा में इसहाक उससे उत्पन्न हुआ; और आठवें दिन उसका खतना किया गया; और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह कुलपति उत्पन्न हुए। (उत्प. 17:10-11, उत्प. 21:4)
9 “और कुलपतियों ने यूसुफ से ईर्ष्या करके उसे मिस्र देश जानेवालों के हाथ बेचा; परन्तु परमेश्वर उसके साथ था। (उत्प. 37:11, उत्प. 37:28, उत्प. 39:2-3, उत्प. 45:4) 10 और उसे उसके सब क्लेशों से छुड़ाकर मिस्र के राजा फ़िरौन के आगे अनुग्रह और बुद्धि दी, उसने उसे मिस्र पर और अपने सारे घर पर राज्यपाल ठहराया। (उत्प. 39:21, उत्प. 41:40, उत्प. 41:43, उत्प. 41:46, भज. 105:21)
11 तब मिस्र और कनान के सारे देश में अकाल पड़ा; जिससे भारी क्लेश हुआ, और हमारे पूर्वजों को अन्न नहीं मिलता था। (उत्प. 41:54, 55, उत्प. 42:5) 12 परन्तु याकूब ने यह सुनकर, कि मिस्र में अनाज है, हमारे पूर्वजों को पहली बार भेजा। (उत्प. 42:2) 13 और दूसरी बार यूसुफ अपने भाइयों पर प्रगट हो गया, और यूसुफ की जाति फ़िरौन को मालूम हो गई। (उत्प. 45:1, उत्प. 45:3, उत्प. 45:16)
14 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब और अपने सारे कुटुम्ब को, जो पचहत्तर व्यक्ति थे, बुला भेजा। (उत्प. 45:9-11, उत्प. 45:18-19, निर्ग. 1:5, व्य. 10:22) 15 तब याकूब मिस्र में गया; और वहाँ वह और हमारे पूर्वज मर गए। (उत्प. 45:5,6, उत्प. 49:33, निर्ग. 1:6) 16 उनके शव शेकेम में पहुँचाए जाकर उस कब्र में रखे गए, जिसे अब्राहम ने चाँदी देकर शेकेम में हामोर की सन्तान से मोल लिया था। (उत्प. 23:16-17, उत्प. 33:19, उत्प. 49:29-30, उत्प. 50:13, यहो. 24:32)
17 “परन्तु जब उस प्रतिज्ञा के पूरे होने का समय निकट आया, जो परमेश्वर ने अब्राहम से की थी, तो मिस्र में वे लोग बढ़ गए; और बहुत हो गए। 18 तब मिस्र में दूसरा राजा हुआ जो यूसुफ को नहीं जानता था। (निर्ग. 1:7-8) 19 उसने हमारी जाति से चतुराई करके हमारे बाप-दादों के साथ यहाँ तक बुरा व्यवहार किया, कि उन्हें अपने बालकों को फेंक देना पड़ा कि वे जीवित न रहें। (निर्ग. 1:9-10, निर्ग. 1:18, निर्ग. 1:22) 20 उस समय मूसा का जन्म हुआ; और वह परमेश्वर की दृष्टि में बहुत ही सुन्दर था; और वह तीन महीने तक अपने पिता के घर में पाला गया। (निर्ग. 2:2) 21 परन्तु जब फेंक दिया गया तो फ़िरौन की बेटी ने उसे उठा लिया, और अपना पुत्र करके पाला। (निर्ग. 2:5, निर्ग. 2:10) 22 और मूसा को मिस्रियों की सारी विद्या पढ़ाई गई, और वह वचन और कामों में सामर्थी था।
23 “जब वह चालीस वर्ष का हुआ, तो उसके मन में आया कि अपने इस्राएली भाइयों से भेंट करे। (निर्ग. 2:11) 24 और उसने एक व्यक्ति पर अन्याय होते देखकर, उसे बचाया, और मिस्री को मारकर सताए हुए का पलटा लिया। (निर्ग. 2:12) 25 उसने सोचा, कि उसके भाई समझेंगे कि परमेश्वर उसके हाथों से उनका उद्धार करेगा, परन्तु उन्होंने न समझा।
26 दूसरे दिन जब इस्राएली आपस में लड़ रहे थे, तो वह वहाँ जा पहुँचा; और यह कहके उन्हें मेल करने के लिये समझाया, कि हे पुरुषों, ‘तुम तो भाई-भाई हो, एक दूसरे पर क्यों अन्याय करते हो?’ 27 परन्तु जो अपने पड़ोसी पर अन्याय कर रहा था, उसने उसे यह कहकर धक्का दिया, ‘तुझे किस ने हम पर अधिपति और न्यायाधीश ठहराया है? 28 क्या जिस रीति से तूने कल मिस्री को मार डाला मुझे भी मार डालना चाहता है?’ (निर्ग. 2:13-14)
29 यह बात सुनकर, मूसा भागा और मिद्यान देश में परदेशी होकर रहने लगा: और वहाँ उसके दो पुत्र उत्पन्न हुए। (निर्ग. 2:15-22, निर्ग. 18:3-4)
30 “जब पूरे चालीस वर्ष बीत गए, तो एक स्वर्गदूत ने सीनै पहाड़ के जंगल में उसे जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में दर्शन दिया। (निर्ग. 3:1) 31 मूसा ने उस दर्शन को देखकर अचम्भा किया, और जब देखने के लिये पास गया, तो प्रभु की यह वाणी सुनाई दी, (निर्ग. 3:2-3) 32 “मैं तेरे पूर्वज, अब्राहम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर हूँ।” तब तो मूसा काँप उठा, यहाँ तक कि उसे देखने का साहस न रहा। 33 तब प्रभु ने उससे कहा, ‘अपने पाँवों से जूती उतार ले, क्योंकि जिस जगह तू खड़ा है, वह पवित्र भूमि है। (निर्ग. 3:5) 34 मैंने सचमुच अपने लोगों की दुर्दशा को जो मिस्र में है, देखी है; और उनकी आहें और उनका रोना सुन लिया है; इसलिए उन्हें छुड़ाने के लिये उतरा हूँ। अब आ, मैं तुझे मिस्र में भेजूँगा। (निर्ग. 2:24, निर्ग. 3:7-10)
35 “जिस मूसा को उन्होंने यह कहकर नकारा था, ‘तुझे किस ने हम पर अधिपति और न्यायाधीश ठहराया है?’ उसी को परमेश्वर ने अधिपति और छुड़ानेवाला ठहराकर, उस स्वर्गदूत के द्वारा जिस ने उसे झाड़ी में दर्शन दिया था, भेजा। (निर्ग. 2:14, निर्ग. 3:2) 36 यही व्यक्ति मिस्र और लाल समुद्र और जंगल में चालीस वर्ष तक अद्भुत काम और चिन्ह दिखा दिखाकर उन्हें निकाल लाया। (निर्ग. 7:3, निर्ग. 14:21, गिन. 14:33) 37 यह वही मूसा है, जिस ने इस्राएलियों से कहा, ‘परमेश्वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिये मेरे जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा।’ (व्य. 18:15-18)
38 यह वही है, जिस ने जंगल में मण्डली के बीच उस स्वर्गदूत के साथ सीनै पहाड़ पर उससे बातें की, और हमारे पूर्वजों के साथ था, उसी को जीवित वचन मिले, कि हम तक पहुँचाए। (निर्ग. 19:1-6, निर्ग. 20:1-17, व्य. 5:4-22, व्य. 9:10-11) 39 परन्तु हमारे पूर्वजों ने उसकी मानना न चाहा; वरन् उसे ठुकराकर अपने मन मिस्र की ओर फेरे, (निर्ग. 23:20-21, गिन. 14:3-4) 40 और हारून से कहा, ‘हमारे लिये ऐसा देवता बना, जो हमारे आगे-आगे चलें; क्योंकि यह मूसा जो हमें मिस्र देश से निकाल लाया, हम नहीं जानते उसे क्या हुआ?’ (निर्ग. 32:1, निर्ग. 32:23)
41 उन दिनों में उन्होंने एक बछड़ा बनाकर, उसकी मूरत के आगे बलि चढ़ाया; और अपने हाथों के कामों में मगन होने लगे। (निर्ग. 32:4,6) 42 अतः परमेश्वर ने मुँह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया*, कि आकाशगण पूजें, जैसा भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखा है,
‘हे इस्राएल के घराने,
क्या तुम जंगल में चालीस वर्ष तक पशु बलि और अन्नबलि मुझ ही को
चढ़ाते रहे? (यिर्म. 7:18, यिर्म. 8:2, यिर्म. 19:13)
43 और तुम मोलेक* के तम्बू
और रिफान देवता के तारे को लिए फिरते थे,
अर्थात् उन मूर्तियों को जिन्हें तुम ने दण्डवत् करने के लिये बनाया था।
अतः मैं तुम्हें बाबेल के परे ले जाकर बसाऊँगा।’ (आमो. 5:25-26)
44 “साक्षी का तम्बू जंगल में हमारे पूर्वजों के बीच में था; जैसा उसने ठहराया, जिस ने मूसा से कहा, ‘जो आकार तूने देखा है, उसके अनुसार इसे बना।’ (निर्ग. 25:1-40, निर्ग. 25:40, निर्ग. 27:21, गिन. 1:50) 45 उसी तम्बू को हमारे पूर्वजों ने पूर्वकाल से पा कर यहोशू के साथ यहाँ ले आए; जिस समय कि उन्होंने उन अन्यजातियों पर अधिकार पाया, जिन्हें परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों के सामने से निकाल दिया, और वह दाऊद के समय तक रहा। (यहो. 3:14-17, यहो. 18:1, यहो. 23:9, यहो. 24:18) 46 उस पर परमेश्वर ने अनुग्रह किया; अतः उसने विनती की, कि मैं याकूब के परमेश्वर के लिये निवास स्थान बनाऊँ। (2 शमू. 7:2-16, 1 राजा. 8:17-18, 1 इति. 17:1-14, 2 इति. 6:7-8, भज. 132:5)
47 परन्तु सुलैमान ने उसके लिये घर बनाया। (1 राजा. 6:1,2, 1 राजा. 6:14, 1 राजा. 8:19-20, 2 इति. 3:1, 2 इति. 5:1, 2 इति. 6:2, 2 इति. 6:10)
48 परन्तु परमप्रधान हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने कहा,
49 ‘प्रभु कहता है, स्वर्ग मेरा सिंहासन
और पृथ्वी मेरे पाँवों तले की चौकी है,
मेरे लिये तुम किस प्रकार का घर बनाओगे?
और मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा?
50 क्या ये सब वस्तुएँ मेरे हाथ की बनाई नहीं?’ (यशा. 66:1-2)
51 “हे हठीले, और मन और कान के खतनारहित लोगों, तुम सदा पवित्र आत्मा का विरोध करते हो। जैसा तुम्हारे पूर्वज करते थे, वैसे ही तुम भी करते हो। (निर्ग. 32:9, निर्ग. 33:3-5, लैव्य. 26:41, गिन. 27:14, यशा. 63:10, यिर्म. 6:10, यिर्म. 9:26) 52 भविष्यद्वक्ताओं में से किसको तुम्हारे पूर्वजों ने नहीं सताया? और उन्होंने उस धर्मी के आगमन का पूर्वकाल से सन्देश देनेवालों को मार डाला, और अब तुम भी उसके पकड़वानेवाले और मार डालनेवाले हुए (2 इति. 36:16) 53 तुम ने स्वर्गदूतों के द्वारा ठहराई हुई व्यवस्था तो पाई, परन्तु उसका पालन नहीं किया।”
54 ये बातें सुनकर वे जल गए और उस पर दाँत पीसने लगे। (अय्यू. 16:9, भज. 35:16, भज. 37:12, भज. 112:10) 55 परन्तु उसने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर की महिमा को* और यीशु को परमेश्वर की दाहिनी ओर खड़ा देखकर 56 कहा, “देखों, मैं स्वर्ग को खुला हुआ, और मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़ा हुआ देखता हूँ।”
57 तब उन्होंने बड़े शब्द से चिल्लाकर कान बन्द कर लिए, और एक चित्त होकर उस पर झपटे। 58 और उसे नगर के बाहर निकालकर पत्थराव करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े शाऊल नामक एक जवान के पाँवों के पास उतार कर रखे।
59 और वे स्तिफनुस को पत्थराव करते रहे, और वह यह कहकर प्रार्थना करता रहा, “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर।” (भज. 31:5) 60 फिर घुटने टेककर ऊँचे शब्द से पुकारा, “हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा।” और यह कहकर सो गया।
परिषद् के सदस्यों को अपने परिवार के सदस्यों के सामन अभिनन्दन देकर स्तिफनुस उनके प्रति अपना आदर व्यक्त कर रहा था।
“हमारा पिता अब्राहम” कहने के द्वारा स्तिफनुस अपने सुननेवालों को भी शामिल कर रहा था
“अपने” का आशय अब्राहम से है (एकवचन)।
में शुरू किये परिषद् के संबोधन और बचाव को स्तिफनुस आगे बढ़ाता है
“तुम” का आशय यहूदी परिषद् के सदस्यों और सभी सुननेवालों से है
वह भूमि सदा अब्राहम की रहेगी
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
तेरे वंशज उनके दास होंगे”
कहानी अब्राहम की ओर मुड़ती है
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
“याकूब के ज्येष्ठ पुत्र” अथवा “युसूफ के बड़े भाई”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
“एक अकाल पड़ा,” भूमि ने कुछ न उपजा
“युसूफ के बड़े भाई”
अनुवाद करते समय इसे “भोजन” लिख सकते हैं
प्रगट हो गया -युसूफ ने स्वयं को अपने भाइयों पर ज़ाहिर कर दिया।
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
वह और हमारे बापदादे -अर्थात “याकूब और उसके बेटे, और हमारे बापदादे”
उनके शव शकेम में पहुंचाए जाकर - अर्थात “याकूब के वंशज, याकूब और उसके बेटों के शव को शकेम लेकर गए”
धन देकर
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
परमेश्वर द्वारा अब्राहम के साथ की प्रतिज्ञा को पूरे करने का समय निकट आया
यह आलंकारिक भाषा है। “युसूफ” का आशय यहाँ असल में युसूफ द्वारा किये कार्यों से है।
“हमारी” से आशय स्तिफनुस और उसके सुननेवालों से भी है।
“बुरा बर्ताव किया” अथवा, “शोषण किया”
अपने बालको को फेंक दिया ताकि वे मर जाएँ।
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
इन शब्दों का प्रयोग कहानी में नए व्यक्ति, मूसा के प्रवेश की भूमिका के रूप में हुआ है।
“परमेश्वर की दृष्टि में” का प्रयोग अतिश्योक्ति के रूप में हुआ है।
अर्थात “जब उसे फिरौन के आदेश पर फेंक दिया गया”
अर्थात “उसे लेपालक पुत्र बना लिया” (संभवतः यह आधिकारिक रूप से नहीं किया गया था)
“अपने पुत्र की तरह पाला”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
मूसा को....सारी विद्या सिखाई गयी अर्थात “मिस्रियों ने मूसा को सारी विद्या सिखाई”।
यहाँ पर अतिश्योक्ति का प्रयोग है। इसका आशय है कि कि “मिस्रियों की बहुत सी विद्या सिखाई गयी।
अर्थात ‘उसकी बातें और काम बहुत प्रभावी थे,” या फिर, “उसकी बातों और कामों में बहुत सामर्थ था” (यूडीबी), अथवा “उसकी बातों और कार्यों में बहुत प्रभाव था”
उनके रहन-सहन के विषय में पता लगाऊं
मूसा ने उस मिस्री को इतनी ज़ोर से मारा कि उसकी मृत्यु हो गयी
उसने विचारा
मेरे द्वारा
अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं कि, “उनका उद्धार कर रहा है”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
यह लड़ते हुए दो इस्राएली पुरुषों से कही गयी बात है
अन्याय का आशय व्यक्ति से किया गया दुर्व्यवहार और बेईमानी से है
यह वास्तविक प्रश्न नहीं है। इसका आशय है कि “तुम्हे बीच में आने का कोई अधिकार नहीं है”।
ऐसा कह हर उस इस्राएली ने मूसा को बहार का घोषित किया है।
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
इससे ज्ञात होता है कि, “मूसा ने सुन लिया था कि इस्राएली पुरुष जानते थे कि एक दिन पहले उसने एक मिस्री की ह्त्या की थी।”
यहाँ यह स्पष्ट है कि स्तिफनुस के सामने बैठे लोग जानते थे कि मूसा ने एक मिद्यानी स्त्री विवाह किया था।
“मूसा के मिस्र से भागने चालीस सालों के बाद
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
मूसा यह देख कर हैरान था कि झाड़ी में आग होने के बावजूद वह भस्म नहीं हो रही थी। यह बात स्तिफनुस के सुननेवालों को पहले से ज्ञात थी।
इसका संभावित अर्थ यह है कि मूसा पहले तो देखने के लिए उसके पास गया, लेकिन फिर भय के कारण पीछे हट गया
मूसा भयभीत हो गया
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
इसका आशय है कि परमेश्वर वहां उपस्थित है, और परमेश्वर के आसपास की सारी भूमि को परमेश्वर पवित्र जानता है, या कि, परमेश्वर की उपस्थिति से भूमि पवित्र हो गयी।
“देखने” पर ज़ोर दिया गया है
अब्राहम, इसहाक, और याकूब के वंशज
मैं स्वय उनके छुटकारे पर दृष्टि रखूंगा
35-38 तक, वचन में मूसा के विषय में आपस में सम्बंधित वाक्यों की श्रृंखला है। हर वाक्य की शुरुआत “जिस मूसा” या “यह वही मूसा”, अथवा यह वही है” जैसे शब्दों से होती है। संभव हो तो मूसा को उजागर करने के लिए ऐसे ही कथनों का प्रयोग करें।
यहाँ पर में घटित हुई घटना का सन्दर्भ है
इसका अनुवाद करते समय में किये अनुवाद का सन्दर्भ लें
“उन पर शासन करने और उन्हें दासत्व से छुडाने”
“स्वर्गदूत के माध्यम से”
“बीहड़ में इस्राएलियों के चालीस सालों के वास के दौरान”
“तुम्हारे अपने लोगों में से” (यूडीबी)
यह खंड में मूसा पर ज़ोर देने के लिए कहे गए वाक्यों को आगे बढ़ाता है
“यह वही मूसा है जो जंगल में इस्राएलियों के बीच” (यूडीबी)
अनुवाद करते समय इसे सक्रिय रूप में ऐसे भी लिख सकते हैं कि, “उसी से परमेश्वर ने जीवित वचन हमें देने के लिए कहे।”
संभावित आशय हैं, 1)“अखंड सन्देश” या फिर 2) “जीवनदायी शब्द।”
यह अलंकार मूसा को नकारे जाने पर ज़ोर देता है। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं को, “उसकी अगुआई को नकार कर”
“जब उन्होंने मिस्र की ओर लौटने का निर्णय किया”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
“उन्होंने बछड़े की एक मूरत बनायी”
“आकाश की ज्योतियों को पूजे”
यहाँ अलंकार का प्रयोग है, और आशय इस्राएल की समस्त जाति/देश से है।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है जो यह कह रहा है कि वे सारी बालियाँ परमेश्वर को नहीं चढ़ाई गयी थीं। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि “वो पशुबलि व अन्नबलि तुमने मुझे नहीं चढ़ाई।”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है। स्तिफनुस यहाँ आमोस के उस उद्धरण को आगे बढाता है जिसकी शुरुआत उसने में की थी
झूठे देवता मोलेक के तम्बू
रिफान देवता के प्रतीक तारे
उन्होंने पूजने के लिए मोलेक और रिफान देवताओं की मूर्तियाँ बनाईं थी।
“मैं तुम्हें बाबुल से हटा दूंगा”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है।
10 आज्ञाएं खुदी पत्थर की तख्तियों वाला वाचा का संदूक
इसमें अन्य जातियों की भूमि, भवन, फसल, पशु और बाकी सभी तरह की संपत्ति शामिल है जिन पर इस्राएल जय प्राप्त कर रहा था।
वाचा का वह संदूक, इस्राएल के राजा दाऊद के समय तक तम्बू में रहा था
दाऊद चाहता था कि वाचा का संदूक यरूशलेम में रहे, न कि इस्राएल का चक्कर लगाते तम्बू में।
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है।
अर्थात “लोगों द्वारा बनाए गए घरों में।”
परमेश्वर की उपस्थिति की महानता और विशालता का बखान करते समय भविष्यद्वक्ता कहता है कि पूरा विश्व उसका सिंहासन है, और एक मनुष्य के इतने इतने विराट और महान परमेश्वर का निवास स्थान बनाना असंभव है क्योंकि यह पृथ्वी तो बस उसके पैरों की पीढी जिंतनी बड़ी है।
मेरे लिए तुम किस प्रकार का घर बनाओगे यह कोई वास्तविक प्रश्न नहीं, वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। असल में इसका आशय है कि “तुम मेरे योग्य घर नहीं बना सकते”
अर्थात “मेरे विश्राम के योग्य स्थान कहीं नहीं है!”
यह वास्तविक प्रश्न नहीं वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। असल में इसका आशय है कि “इन सभी वस्तुएं स्वयं मैं ही ने बनाई हैं।”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है।
यहाँ स्तिफनुस उन यहूदी अगुओं को झिडकी दे रहा है।
“मन से अवज्ञाकारी लोगों।” शायद स्तिफनुस यहाँ उनकी तुलना गैर-यहूदियों से कर रहा है, जो उन्हें अपमानजनक लगता हो।
यह वास्तविक प्रश्न न होकर भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। इसका आशय असल में यह है कि “तुम्हारे बापदादों ने हरेक भविष्यद्वक्ता को सताया है।”
इसका आशय यीशु मसीह से है।
“उस धर्मी के हत्यारे” अथवा, “मसीह के हत्यारे।”
“वे अत्यंत क्रोधित हो उठे” के लिए भाषोक्ति का प्रयोग किया गया है।
ये बातें सुनकर -यहाँ कहानी में एक मोड़ है; इस बिंदु पर उपदेश समाप्त होता है और परिषद् प्रतिक्रिया करती है।
दांत पीसने लगे - यह एक मुहावरा है, जिसका प्रयोग भड़के हुए क्रोध के चरम यह घृणा को व्यक्त करता है। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि, “वे क्रोध में भड़क उठे और दांत पीसने लगे।”
“ऊपर आकाश की ओर देखा।” ऐसा प्रतीत होता है कि स्तिफ्नुस के आलावा और किसी को यह दर्शन नहीं दिखाई दिया था।
ध्यान दें कि यीशु परमेश्वर की दाहिनी ओर “बैठे” नहीं वरन “खड़े” थे। राजा का इस प्रकार किसी अतिथि के लिए खड़ा होना एक सम्मानजनक बात थी।
प्रकाश के समान परमेश्वर की महिमा अथवा तेज/भव्यता। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि, “परमेश्वर की ओर से एक तेज़ प्रकाश।”
स्तिफनुस यहाँ यीशु को “मनुष्य के पुत्र” की उपाधि से जोड़ रहा है।
उन्होंने अपने कान बंद कर लिए ताकि उन्हें स्तिफनुस की बातें न सुनाई दें।
“परिषद् ने स्तिफनुस को पकड़ कर जबरन नगर के बाहर ले गए”
कपड़ों से आशय जैकेट अथवा कोट के समान ऊपर पहननेवाले अंगरखों और लबादों से है।
रखवाली के लिए कपड़े “सामने” रख दिए।
“मेरी आत्मा को ले”
“मर गया” को कोमलता से अभिव्यक्त किया गया है।
स्तिफनुस ने अपना इतिहास परमेश्वर के अब्राहम को दिए गए वायदे से प्रारम्भ करते हुए बताना शुरु किया।
परमेश्वर ने अब्राहम और उसके बाद उसके वंश को वह देश देने की प्रतिज्ञा की थी।
परमेश्वर की प्रतिज्ञा असम्भव इसलिए लगती थी, क्योंकि अब्राहम के पास कोई सन्तान न थी।
परमेश्वर ने कहा अब्राहम के वंशज पराये देश में चार सौ वर्ष तक दास रहेंगे।
परमेश्वर ने अब्राहम से खतने की वाचा बाँधी।
उसके भाई उससे डाह करते थे और उसके मिस्र देश जाने वालों के हाथ बेच दिया।
परमेश्वर ने फिरौन को अनुग्रह और बुद्धि दी और उसने यूसुफ को मिस्र देश पर हाकिम ठहरा दिया।
याकूब ने अपने पुत्रों को मिस्र में भेजा क्योंकि उसने सुना कि वहाँ अनाज था।
यूसुफ ने अपने भाइयों द्वारा याकूब को मिस्र आने के लिए कहला भेजा था।
मिस्र में इस्राएलियों की संख्या बढ़ गयी और वे बहुत हो गये।
मिस्र के नये राजा ने इस्राएलियों को अपने नवजात शिशुओं को फेंक देने की जबरदस्ती की ताकि वे जीवित न रहें।
फिरौन की बेटी ने उसे उठा लिया और अपने बेटे की तरह उसे पाला।
मूसा को मिस्रियों की सारी विद्या पढ़ाई गई।
मूसा ने इस्राएली को बचाया और मिस्री को मार दिया।
मूसा वहां से भाग कर मिद्यान देश को चला गया।
मूसा ने जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में एक स्वर्गदूत को देखा।
परमेश्वर ने मूसा को मिस्र जाने की आज्ञा दी क्योंकि परमेश्वर इस्राएलियों को बचाने जा रहा था।
मूसा ने जंगल में इस्राएलियों की अगुवाई चालीस वर्ष तक की।
मूसा ने इस्राएलियों से भविष्यद्वाणी की कि ‘परमेश्वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिए मुझसा भविष्यद्वक्ता उठाएगा।
इस्राएलियों ने एक बछड़ा बनाया और उसकी मूरत के आगे बलि चढ़ाया।
परमेश्वर ने उनसे मुँह मोड़ लिया और उन्हें छोड़ दिया कि आकाशगण पूजें।
परमेश्वर ने इस्राएलियों को बाबुल के परे ले जाकर बसाने के लिए कहा।
इस्राएलियों ने जंगल में साक्षी का तंबू बनाया।
परमेश्वर ने अन्य जातियों को इस्राएलियों के साम्हने से निकाल दिया।
दाऊद ने परमेश्वर के लिए निवास-स्थान बनाने को कहा और सुलैमान ने परमेश्वर के लिए एक घर बनाया।
परम-प्रधान का सिंहासन स्वर्ग है।
स्तिफनुस ने लोगों पर पवित्र-आत्मा का विरोध करने का आरोप लगाया।
स्तिफनुस ने लोगों से कहा कि उन्होंने उस धर्मी जन के साथ विश्वासघात करके पकड़वा दिया और मार डाला।
महासभा के सदस्य जल गये और स्तिफनुस पर दाँत पीसने लगे।
स्तिफनुस ने कहा कि उसने यीशु को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़ा हुआ देखा।
महासभा के सदस्य एक चित्त होकर उस पर झपटे, और उसे नगर से बाहर निकालकर पत्थरवाह करने लगे।
गवाहों ने अपने बाहरी कपड़े शाऊल नामक एक जवान के पाँव के पास रख दिए।
स्तिफनुस ने परमेश्वर से कहा कि यह पाप उन पर मत लगा।
1 शाऊल उसकी मृत्यु के साथ सहमत था।
उसी दिन यरूशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव होने लगा और प्रेरितों को छोड़ सब के सब यहूदिया और सामरिया देशों में तितर-बितर हो गए। 2 और भक्तों ने स्तिफनुस को कब्र में रखा; और उसके लिये बड़ा विलाप किया। 3 पर शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर-घर घुसकर पुरुषों और स्त्रियों को घसीट-घसीट कर बन्दीगृह में डालता था।
4 मगर जो तितर-बितर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते हुए फिरे। 5 और फिलिप्पुस* सामरिया नगर में जाकर लोगों में मसीह का प्रचार करने लगा।
6 जो बातें फिलिप्पुस ने कहीं उन्हें लोगों ने सुनकर और जो चिन्ह वह दिखाता था उन्हें देख-देखकर, एक चित्त होकर मन लगाया। 7 क्योंकि बहुतों में से अशुद्ध आत्माएँ बड़े शब्द से चिल्लाती हुई निकल गई, और बहुत से लकवे के रोगी और लँगड़े भी अच्छे किए गए। 8 और उस नगर में बड़ा आनन्द छा गया।
9 इससे पहले उस नगर में शमौन* नामक एक मनुष्य था, जो जादू-टोना करके सामरिया के लोगों को चकित करता और अपने आप को कोई बड़ा पुरुष बनाता था। 10 और सब छोटे से लेकर बड़े तक उसका सम्मान कर कहते थे, “यह मनुष्य परमेश्वर की वह शक्ति है, जो महान कहलाती है।” 11 उसने बहुत दिनों से उन्हें अपने जादू के कामों से चकित कर रखा था, इसलिए वे उसको बहुत मानते थे।
12 परन्तु जब उन्होंने फिलिप्पुस का विश्वास किया जो परमेश्वर के राज्य और यीशु मसीह के नाम का सुसमाचार सुनाता था तो लोग, क्या पुरुष, क्या स्त्री बपतिस्मा लेने लगे। 13 तब शमौन ने स्वयं भी विश्वास किया और बपतिस्मा लेकर फिलिप्पुस के साथ रहने लगा और चिन्ह और बड़े-बड़े सामर्थ्य के काम होते देखकर चकित होता था।
14 जब प्रेरितों ने जो यरूशलेम में थे सुना कि सामरियों ने परमेश्वर का वचन मान लिया है तो पतरस और यूहन्ना को उनके पास भेजा। 15 और उन्होंने जाकर उनके लिये प्रार्थना की ताकि पवित्र आत्मा पाएँ। 16 क्योंकि पवित्र आत्मा अब तक उनमें से किसी पर न उतरा था, उन्होंने तो केवल प्रभु यीशु के नाम में बपतिस्मा लिया था। 17 तब उन्होंने उन पर हाथ रखे और उन्होंने पवित्र आत्मा पाया।
18 जब शमौन ने देखा कि प्रेरितों के हाथ रखने से पवित्र आत्मा दिया जाता है, तो उनके पास रुपये लाकर कहा, 19 “यह शक्ति मुझे भी दो, कि जिस किसी पर हाथ रखूँ, वह पवित्र आत्मा पाए।”
20 पतरस ने उससे कहा, “तेरे रुपये तेरे साथ नाश हों, क्योंकि तूने परमेश्वर का दान रुपयों से मोल लेने का विचार किया। 21 इस बात में न तेरा हिस्सा है, न भाग; क्योंकि तेरा मन परमेश्वर के आगे सीधा नहीं। (भज. 78:37) 22 इसलिए अपनी इस बुराई से मन फिराकर प्रभु से प्रार्थना कर, सम्भव है तेरे मन का विचार क्षमा किया जाए।
23 क्योंकि मैं देखता हूँ, कि तू पित्त की कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है।” (व्य. 29:18, विला. 3:15) 24 शमौन ने उत्तर दिया, “तुम मेरे लिये प्रभु से प्रार्थना करो कि जो बातें तुम ने कहीं, उनमें से कोई मुझ पर न आ पड़े।”
25 अतः पतरस और यूहन्ना गवाही देकर और प्रभु का वचन सुनाकर, यरूशलेम को लौट गए, और सामरियों के बहुत से गाँवों में सुसमाचार सुनाते गए।
26 फिर प्रभु के एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस से कहा, “उठकर दक्षिण की ओर उस मार्ग पर जा, जो यरूशलेम से गाज़ा को जाता है। यह रेगिस्तानी मार्ग है। 27 वह उठकर चल दिया, और तब, कूश देश का एक मनुष्य आ रहा था, जो खोजा* और कूशियों की रानी कन्दाके का मंत्री और खजांची था, और आराधना करने को यरूशलेम आया था।
28 और वह अपने रथ पर बैठा हुआ था, और यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ता हुआ लौटा जा रहा था। 29 तब आत्मा ने फिलिप्पुस से कहा, “निकट जाकर इस रथ के साथ हो ले।” 30 फिलिप्पुस उसकी ओर दौड़ा और उसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ते हुए सुना, और पूछा, “तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?” 31 उसने कहा, “जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं कैसे समझूँ?” और उसने फिलिप्पुस से विनती की, कि चढ़कर उसके पास बैठे।
32 पवित्रशास्त्र का जो अध्याय वह पढ़ रहा था, वह यह था :
“वह भेड़ के समान वध होने को पहुँचाया गया,
और जैसा मेम्ना अपने ऊन कतरनेवालों के सामने चुपचाप रहता है, वैसे ही
उसने भी अपना मुँह न खोला,
33 उसकी दीनता में उसका न्याय होने नहीं पाया,
और उसके समय के लोगों का वर्णन कौन करेगा?
क्योंकि पृथ्वी से उसका प्राण उठा लिया जाता है।” (यशा. 53:7-8)
34 इस पर खोजे ने फिलिप्पुस से पूछा, “मैं तुझ से विनती करता हूँ, यह बता कि भविष्यद्वक्ता यह किस के विषय में कहता है, अपने या किसी दूसरे के विषय में?” 35 तब फिलिप्पुस ने अपना मुँह खोला, और इसी शास्त्र से आरम्भ करके उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया।
36 मार्ग में चलते-चलते वे किसी जल की जगह पहुँचे, तब खोजे ने कहा, “देख यहाँ जल है, अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है?” 37 फिलिप्पुस ने कहा, “यदि तू सारे मन से विश्वास करता है तो ले सकता है।” उसने उत्तर दिया, “मैं विश्वास करता हूँ कि यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र है।” 38 तब उसने रथ खड़ा करने की आज्ञा दी, और फिलिप्पुस और खोजा दोनों जल में उतर पड़े, और उसने उसे बपतिस्मा दिया।
39 जब वे जल में से निकलकर ऊपर आए, तो प्रभु का आत्मा फिलिप्पुस को उठा ले गया, और खोजे ने उसे फिर न देखा, और वह आनन्द करता हुआ अपने मार्ग चला गया। (1 राजा. 18:12) 40 पर फिलिप्पुस अश्दोद में आ निकला, और जब तक कैसरिया में न पहुँचा, तब तक नगर-नगर सुसमाचार सुनाता गया।
लूका यहाँ पर कहानी को स्तिफनुस से शाऊल की ओर मोड़ रहा है। इस मोड़ को व्यक्त करने के लिए अनुवाद के समय अपनी भाषा के उपयुक्त शब्दों का चुनाव करें।
उन्हें बलपूर्वक ले जाया गया
अर्थात स्तिफनुस की मृत्यु के दिन
यरुशलेम में रहनेवाले बहुत से अथवा अधिकाँश विश्वासी तितर-बितर हो गए को अतिश्योक्ति के साथ व्यक्त किया गया है।
इसका आशय ही कि प्रेरित वहीँ यरूशलेम में ही बने रहे और वे इस बड़े सताव से बच गए थे।
“परमेश्वर का भय रखनेवाले लोगों ने” अथवा, “वे जो परमेश्वर का भय रखते थे”
“उसके लिए बहुत शोक मनाया” (यूडीबी)
शाऊल द्वारा कई घरों में घुसने की बात को यहाँ अतिश्योक्ति के साथ व्यक्त किया गया है। उसके पास यरूशलेम के हर घर में घुसने की अनुमति नहीं थी।
शाऊल ने यहूदी विश्वासियों को उनके घर से बलपूर्वक निकाल कर उन्हें जेल में डाल दिया।
“वे जो बड़े सताव के कारण तितर-बितर हुए थे।” तितर-बितर होने का कारण वह सताव था जिसके विषय में पहले बताया जा चुका है।
सामरिया नगर : यह स्पष्ट नहीं है कि यहाँ सामरिया के एक नगर (यूएलबी) की बात हो रही है या कि सामरिया नगर (यूडीबी) की ही बात हो रही है। इसलिए, अनुवाद करते समय “सामरिया नगर” लिखना ही सही रहेगा।
“सामरिया नगर के बहुत से लोगों में से।” स्थान की स्थिति पहले ही स्पष्ट की जा चुकी है।
फिलिप्पुस के माध्यम से होनेवाली चंगाइयों के चलते लोग सुनने लगे थे। इस बात को समझ लेना चाहिए।
लोगों के आनंद का कारण फिलिप्पुस के द्वारा मिलनेवाली चंगाइयां थी।
“शमौन नाम का एक मनुष्य था” में इन शब्दों के साथ ही कहानी में एक नए पात्र का प्रवेश है। आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि आपकी भाषा में नए पात्रों का प्रवेश दिखाने के लिए कौन से शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
अर्थात “सामरिया नगर”
यहाँ पर आशय सामरिया के सभी लोगों से प्रतीत होता है, लेकिन यह अतिश्योक्ति है। इसका आशय है “सामरिया के बहुत से लोगों” से है।
लोग कहते थे कि शमौन “महान शक्ति” नाम की अलौकिक शक्ति है।
बपतिस्मा लेने लगे -फिलिप्पुस ने नए विश्वासियों को बपतिस्मा दिया।
“फिलिप्पुस को चिन्ह और महान आश्चर्यकर्म करते देख आकर अचंभित होता था।”
सामरियों ने -सामरिया प्रदेश के बहुत से लोगों (यूडीबी) के स्थान पर “सामरियों ने” का प्रयोग किया गया है। आलंकारिक भाषा।
अर्थात “पतरस व यूहन्ना ने जाकर”
“पतरस और यूहन्ना ने जाकर सामरिया के विश्वासियों के लिए प्रार्थना की”
“कि सामरिया के विश्वासी लोग पवित्र आत्मा पा सकें।”
“फिलिप्पुस ने सामरिया के विश्वासियों को बस बपतिस्मा दिया था।”
तब उन्होंने उन पर हाथ रखे - अर्थात, स्तिफनुस द्वारा दिए सुसमाचार के उपदेश पर विश्वास करनेवालों पर हाथ रखे।
.....कि प्रेरितों के हाथ रखने से पवित्र आत्मा मिलता है.....
“कि जब मैं लोगों पर अपना हाथ रखूँ, तो उन्हें पवित्र आत्मा मिल जाए”
ये सभी सर्वनाम शमौन के लिए प्रयोग किये गए हैं
“तेरे विचार सही नहीं हैं”
अर्थात् लोगों पर हाथ रखने के द्वारा पवित्र आत्मा देने का दान
अर्थात “पवित्र आत्मा देने के दान को खरीदने का विचार”
उपमा अलंकार का प्रयोग। इसका आशय “बहुत अधिक डाह करने” से है। (यूडीबी)
“पाप का दास” अथवा “केवल पाप कर सकता है”
जो बातें तुमने कहीं, उनमें से कोई -यहाँ सन्दर्भ पतरस की झिड़की का है, “तेरी चांदी तेरे साथ नाश हो।”
“तुमने” का आशय पतरस व यूहन्ना से है।
पतरस व यूहन्ना ने सामरियों को वही बताया था जो वे यीशु के बारे में व्यक्तिगत तौर पर जानते थे।
पतरस व यूहन्ना ने सामरियों को बताया कि यीशु के विषय में वचन के कहता है
अर्थात “सामरिया के कई गाँवों के निवासियों को”
कहानी में नयी घटना का प्रारंभ।
ये शब्द कहानी में किसी नए पात्र के आगमन का संकेत देते हैं। अनुवाद करते समय अपनी भाषा के यथोचित शब्दों का चुनाव करें।
यहाँ पर ज़ोर उस व्यक्ति के नपुंसक होने पर नहीं, वरन उसके इथियोपिया के उच्च अधिकारी होने पर है।
जिस प्रकार मिस्र के राजाओं को फिरौन कहते थे, वैसे ही इथियोपिया की रानी को कन्दाके की उपाधि से संबोधित किया जाता था।
यहाँ पर “घोड़ागाड़ी” शब्द का प्रयोग अधिक उपयुक्त है। रथ को प्रायः युद्ध के सन्दर्भ में इस्तेमाल किया जाता था, न कि यातायात के वाहन के सन्दर्भ में।
अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं कि, “यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक में से पढ़ रहा था।” यह पुस्तक बाइबिल के पुराने नियम में है।
अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं, कि “तू जो पढ़ रहा है, क्या तुझे उसका अर्थ भी मालूम है?” इथियोपिया का वह वासी पढ़ सकता था और बुद्धिमान था। यहाँ पर आत्मिक समझ की बात हो रही है।
यह कोई वास्तविक प्रश्न नहीं है, वरन आलंकारिक भाषा का प्रयोग है। उसके कहने का आशय है कि “जब तक कोई मेरा मार्गदर्शन नहीं करेगा, तब तक मैं इसे नहीं समझ सकता।”
इसका आशय यह भी है कि फिलिप्पुस ने उसके साथ यात्रा करना स्वीकार कर लिया था।
जैसा मेम्ना अपने ऊन कतरनेवालों के सामने चुपचाप रहता है -ऊन कतरनेवाला व्यक्ति भेड़ के ऊन कतरता है ताकि उसका तरह-तरह से प्रयोग किया जा सके।
“उसका अपमान किया गया और उसका उचित न्याय नहीं किया”
“उस खोजे को यीशु के सुसमाचार की शिक्षा दी”
यह कोई वास्तविक प्रश्न नहीं है। इसका आशय है कि, “अब मुझे बपतिस्मा देने से तुझे कोई नहीं रोक सकता।”
यह पद हटा दिया गया है क्योंकि कुछ प्राचीन, और अधिक विश्वसनीय शास्त्रों में यह पद नहीं है।
“खोजे ने दोबारा कभी फिलिप्पुस को न देखा”
इस बात के कोई संकेत नहीं मिलते कि जहाँ फिलिप्पुस उस इथियोपियावासी से मिला था, वहां से लेकर अश्दोद तक वह यात्रा करके गया था। गाजा के ओर जाते मार्ग में वह अचानक ही अदृश्य हुआ और अश्दोद में दोबारा से दिखाई दिया।
फिलिप्पुस की कहानी यहाँ कैसरिया में समाप्त होती है
शाऊल स्तिफनुस के वध से सहमत था।
जिस दिन स्तिफनुस को पत्थरवाह किया गया उस दिन यरूशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव होने लगा।
यरूशलेम में विश्वासी यहूदिया और सामरिया देशों में तितर-बितर हो गये और सुसमाचार सुनाते हुए फिरे।
जब चेलों ने फिलिप्पुस द्वारा किए गए चिन्हों को देखा तो लोगों ने एक चित्त होकर मन लगाया।
जब उन्होंने उसका जादू-टोना देखा तो एक चित्त होकर मन लगाया।
शमौन ने भी विश्वास किया और बपतिस्मा लिया।
सामरिया में विश्वासियों ने पवित्र-आत्मा पाया।
शमौन ने प्रेरितों को रुपए दिए ताकि उसके बदले में उसको हाथ रखकर पवित्र-आत्मा देने का वरदान मिले।
पतरस ने कहा कि शमौन पित्त की सी कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है।
एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस को दक्षिण की ओर रेगिस्तानी मार्ग पर जाने को कहा जो गाजा को जाता है।
फिलिप्पुस कूश देश से अपने रथ पर बैठकर और यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़कर आते हुए एक महान अधिकारी खोजा से मिला।
फिलिप्पुस ने उस मनुष्य से पूछा, "तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?"
उस मनुष्य ने फिलिप्पुस को रथ में आकर वह समझाने को कहा जो वह पढ़ रहा था।
वह मनुष्य भेड़ के समान वध होने को पहुंचाया जाता है, किन्तु अपना मुंह नहीं खोलता।
उस मनुष्य ने फिलिप्पुस से पूछा कि क्या वह भविष्यद्वक्ता अपने विषय में कह रहा है या किसी दूसरे मनुष्य के विषय में।
फिलिप्पुस ने समझाया कि धर्मशास्त्र के यशायाह में वह मनुष्य यीशु था।
फिलिप्पुस और खोजा दोनों पानी में उतरे और फिलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया।
जब फिलिप्पुस पानी से बाहर आया तो प्रभु का आत्मा फिलिप्पुस को उठा ले गया।
जब खोजा पानी से बाहर आया तो वह आनन्द करते हुए अपने मार्ग पर चला गया।
1 शाऊल* जो अब तक प्रभु के चेलों को धमकाने और मार डालने की धुन में था, महायाजक के पास गया। 2 और उससे दमिश्क* के आराधनालयों के नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियाँ माँगी, कि क्या पुरुष, क्या स्त्री, जिन्हें वह इस पंथ पर पाए उन्हें बाँधकर यरूशलेम में ले आए।
3 परन्तु चलते-चलते जब वह दमिश्क के निकट पहुँचा, तो एकाएक आकाश से उसके चारों ओर ज्योति चमकी, 4 और वह भूमि पर गिर पड़ा, और यह शब्द सुना, “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?”
5 उसने पूछा, “हे प्रभु, तू कौन है?” उसने कहा, “मैं यीशु हूँ; जिसे तू सताता है। 6 परन्तु अब उठकर नगर में जा, और जो तुझे करना है, वह तुझ से कहा जाएगा।” 7 जो मनुष्य उसके साथ थे, वे चुपचाप रह गए; क्योंकि शब्द तो सुनते थे, परन्तु किसी को देखते न थे।
8 तब शाऊल भूमि पर से उठा, परन्तु जब आँखें खोलीं तो उसे कुछ दिखाई न दिया और वे उसका हाथ पकड़ के दमिश्क में ले गए। 9 और वह तीन दिन तक न देख सका, और न खाया और न पीया।
10 दमिश्क में हनन्याह नामक एक चेला था, उससे प्रभु ने दर्शन में कहा, “हे हनन्याह!” उसने कहा, “हाँ प्रभु।” 11 तब प्रभु ने उससे कहा, “उठकर उस गली में जा, जो ‘सीधी’ कहलाती है, और यहूदा के घर में शाऊल नामक एक तरसुस वासी को पूछ ले; क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है, 12 और उसने हनन्याह नामक एक पुरुष को भीतर आते, और अपने ऊपर हाथ रखते देखा है; ताकि फिर से दृष्टि पाए।”
13 हनन्याह ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैंने इस मनुष्य के विषय में बहुतों से सुना है कि इसने यरूशलेम में तेरे पवित्र लोगों के साथ बड़ी-बड़ी बुराइयाँ की हैं; 14 और यहाँ भी इसको प्रधान याजकों की ओर से अधिकार मिला है, कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सब को बाँध ले।” 15 परन्तु प्रभु ने उससे कहा, “तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्राएलियों के सामने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है। 16 और मैं उसे बताऊँगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा-कैसा दुःख उठाना पड़ेगा।”
17 तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, “हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात् यीशु, जो उस रास्ते में, जिससे तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।” 18 और तुरन्त उसकी आँखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया; 19 फिर भोजन करके बल पाया।
वह कई दिन उन चेलों के साथ रहा जो दमिश्क में थे।
20 और वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है। 21 और सब सुननेवाले चकित होकर कहने लगे, “क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो यरूशलेम में उन्हें जो इस नाम को लेते थे नाश करता था, और यहाँ भी इसलिए आया था, कि उन्हें बाँधकर प्रधान याजकों के पास ले जाए?” 22 परन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे-देकर कि यीशु ही मसीह है, दमिश्क के रहनेवाले यहूदियों का मुँह बन्द करता रहा।
23 जब बहुत दिन बीत गए, तो यहूदियों ने मिलकर उसके मार डालने की युक्ति निकाली। 24 परन्तु उनकी युक्ति शाऊल को मालूम हो गई: वे तो उसके मार डालने के लिये रात दिन फाटकों पर घात में लगे रहे थे। 25 परन्तु रात को उसके चेलों ने उसे लेकर टोकरे में बैठाया, और शहरपनाह पर से लटकाकर उतार दिया।
26 यरूशलेम में पहुँचकर उसने चेलों के साथ मिल जाने का उपाय किया परन्तु सब उससे डरते थे, क्योंकि उनको विश्वास न होता था, कि वह भी चेला है। 27 परन्तु बरनबास ने उसे अपने साथ प्रेरितों के पास ले जाकर उनसे कहा, कि इसने किस रीति से मार्ग में प्रभु को देखा, और उसने इससे बातें की; फिर दमिश्क में इसने कैसे साहस से यीशु के नाम का प्रचार किया।
28 वह उनके साथ यरूशलेम में आता-जाता रहा। 29 और निधड़क होकर प्रभु के नाम से प्रचार करता था; और यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों के साथ बातचीत और वाद-विवाद करता था; परन्तु वे उसे मार डालने का यत्न करने लगे। 30 यह जानकर भाइयों ने उसे कैसरिया में ले आए, और तरसुस को भेज दिया।
31 इस प्रकार सारे यहूदिया, और गलील, और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती गई।
32 फिर ऐसा हुआ कि पतरस हर जगह फिरता हुआ, उन पवित्र लोगों के पास भी पहुँचा, जो लुद्दा* में रहते थे।
33 वहाँ उसे ऐनियास नामक लकवे का मारा हुआ एक मनुष्य मिला, जो आठ वर्ष से खाट पर पड़ा था। 34 पतरस ने उससे कहा, “हे ऐनियास! यीशु मसीह तुझे चंगा करता है। उठ, अपना बिछौना उठा।” तब वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ। 35 और लुद्दा और शारोन के सब रहनेवाले उसे देखकर प्रभु की ओर फिरे।
36 याफा* में तबीता अर्थात् दोरकास नामक एक विश्वासिनी रहती थी, वह बहुत से भले-भले काम और दान किया करती थी। 37 उन्हीं दिनों में वह बीमार होकर मर गई; और उन्होंने उसे नहलाकर अटारी पर रख दिया।
38 और इसलिए कि लुद्दा याफा के निकट था, चेलों ने यह सुनकर कि पतरस वहाँ है दो मनुष्य भेजकर उससे विनती की, “हमारे पास आने में देर न कर।” 39 तब पतरस उठकर उनके साथ हो लिया, और जब पहुँच गया, तो वे उसे उस अटारी पर ले गए। और सब विधवाएँ रोती हुई, उसके पास आ खड़ी हुई और जो कुर्ते और कपड़े दोरकास ने उनके साथ रहते हुए बनाए थे, दिखाने लगीं।
40 तब पतरस ने सब को बाहर कर दिया, और घुटने टेककर प्रार्थना की; और शव की ओर देखकर कहा, “हे तबीता, उठ।” तब उसने अपनी आँखें खोल दी; और पतरस को देखकर उठ बैठी। 41 उसने हाथ देकर उसे उठाया और पवित्र लोगों और विधवाओं को बुलाकर उसे जीवित और जागृत दिखा दिया। 42 यह बात सारे याफा में फैल गई; और बहुतों ने प्रभु पर विश्वास किया। 43 और पतरस याफा में शमौन नामक किसी चमड़े के धन्धा करनेवाले के यहाँ बहुत दिन तक रहा।
कहानी पर फिलिप्पुस से हट कर शाऊल में केन्द्रित हो जाती है। “इस बीच शाऊल” (यूडीबी)
“घात” के स्थान पर हम यूं भी लिख सकते हैं : “अब बी प्रभु के चेलों को धमका रहा था, और उन्हें घात भी कर रहा था”।
“महा याजक से अनुमोदन की चिट्ठियां मांगीं”
“वह” का आशय शाऊल से है।
अर्थात “जिन्हें भी वह यीशु मसीह की शिक्षाओं का अनुकरण करते पाता”
“वह उन्हें यरूशलेम में बंधक बना कर ले आये।” पौलुस के उद्देश्य को स्पष्ट करने के लिए हम यह भी जोड़ सकते हैं कि, “ताकि यहूदी अगुवें उनका न्याय करें और दंड दे सकें।”
(महा याजक द्वारा चिट्ठियाँ देने के बाद , वह दमिश्क के लिए निकल पड़ा)
शाऊल इस समय दमिश्क की ओर यात्रा कर रहा है
कहानी में अचानक आनेवाले बदलाव को व्यक्त करने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया गया है।
आकाश से
यह सपष्ट नहीं है कि 1)”शाऊल स्वयं भूमि पर गिर पड़ा” या कि 2) “उस ज्योति के कारण वह भूमि पर गिर गया था” या 3) “शाऊल बेसुध सा होकर गिर पड़ा था।” यह तो स्पष्ट है कि शाऊल का गिरना संयोग नहीं था।
इस प्रश्न के द्वारा शाऊल को प्रभु झिड़की दे रहे थे। अनुवाद करते समय हम ऐसे भी लिख सकते हैं, कि “तू मुझे सता रहा है।”
“प्रभु” का आशय यहाँ 1) प्रभु, अथवा 2)स्वामी या कि “महोदय” हो सकता है, क्योंकि इस समय तक शाऊल को यह ज्ञात नहीं था कि उसका सामना यीशु मसीह से हुआ है।
“उठ और दमिश्क के नगर में जा....”
कोई तुझे बता देगा
ये सभी एकवचन हैं।
ज्योति का अनुभव केवल शाऊल को हुआ था।
शाऊल अँधा हो गया था
“उसने न खाने और पीने का फैसला किया” अथवा, “वह न खा सका और न पी सका”, क्योंकि उसे “भूख न थी।”
कहानी में एक नए पात्र के प्रवेश को दर्शाने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया गया है।
यीशु का एक चेला जिसने यीशु की आज्ञा मानते हुए शाऊल के पास गया, और उस पर हाथ रख कर उसे चंगाई दी।
“प्रभु ने हनन्याह से कहा”
यहूदा दमिश्क में उस घर का मालिक था जहां हनन्याह रुका था। हालाँकि नए नियम में बहुत से हनन्याह हैं, लेकिन संभव है कि यह हनन्याह हमें दोबारा दिखाई नहीं देता।
“तरसुस के नगर का एक वासी”
यह स्पष्ट है कि इस समय तक शाऊल का अधिकार केवल यहूदियों तक सीमित था।
“चुना हुआ पात्र” का आशय सेवा के लिए अलग किया है। अनुवाद करते समय ऐसे भी लिख सकते हैं, कि “मैंने इसे अपनी सेवा के लिए चुना है।”
“मेरा नाम प्रगट करने के लिए” का आशय यीशु के लिए बोलने और उससे जुड़ना है। अनुवाद करते समय हम “मेरे बारे में बोलने के लिए” भी लिख सकते हैं।
अर्थात “लोगों के मेरे विषय में बताने के लिए।”
हनन्याह ने शाऊल पर अपना हाथ रखकर कहा
हालाँकि यात्रा के दौरान शाऊल के साथ और लोग भी थे, लेकिन “तुझे” का आशय केवल शाऊल (एकवचन) से है।
इसे सक्रिय वाक्यांश के रूप में भी लिख सकते हैं, “उसी ने मुझे भेजा है कि तू फिर से देखने लगे और पवित्र आत्मा तुझमे भर जाए।”
“मछली के शरीर के छिलके जैसे कुछ गिरे”
अनुवाद करते समय ऐसे भी लिख सकते हैं, कि “वह उठा और हनन्याह ने उसे बप्तिस्मा दिया।”
“वह” अर्थात शाऊल
“वह” अर्थात यीशु।
अतिशयोक्ति का प्रयोग है। “सब” के स्थान पर “सुननेवाले कई लोगों” लिख सकते हैं।
यह वास्तविक प्रश्न नहीं वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। यहाँ पूरा ज़ोर इस बात पर है कि विश्वासियों को सताने वाला शाऊल ही था। इसे यूं भी लिख सकते हैं, कि “यह वही है जिसने यीशु का नाम लेनेवालों को यरूशलेम में नाश किया था।
“उसे” का आशय शाऊल से है।
इसे सक्रिय वाक्यांश के रूप में लिख सकते हैं, जैसे कि, “लेकिन किसी ने शाऊल को इस युक्ति की जानकारी दे दी।”
इस नगर के चारो ओर एक दीवार थी। आने-जाने के लिए लोगों को नगर के फाटक का इस्तेमाल करना होता था।
यीशु के विषय में शाऊल के उपदेश पर विश्वास करने और उसकी शिक्षा को माननेवाले लोग।
“सब” एक अतिशयोक्ति है। इसका आशय बहुत से या अधिकाँश से है। अनुवाद करते समय हम यूं लिख सकते हैं, कि “लगभग सभी उससे डरते थे।”
“परन्तु बरनबास ने शाऊल को साथ लिया और”
अर्थात शाऊल ने यीशु के सुसमाचार की शिक्षा दी।
“शाऊल प्रेरितों के साथ मिला और”
अर्थात यीशु मसीह के सुसमाचार के सन्देश का।
शाऊल ने यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों से तर्क-वितर्क किया
यरूशलेम से कैसरिया को जानेवाले मार्ग में ऊंचाई का अंतर था। लेकिन बोलते समय ऐसा कहना सामान्य बात थी कि ऊपर यरूशलेम की और मंदिर की ओर जा रहे है, और दूसरी ओर यरूशलेम से दूर जाते समय कहते थे कि यरूशलेम से नीचे की ओर।
परमेश्वर ने उन्हें उन्नति दी
“प्रभु को आदर व सम्मान देती रही”
“पवित्र आत्मा उन्हें सामर्थ व प्रोत्साहन देता था”
“सारे” शब्द के प्रयोग में संभवतः अतिशयोक्ति का प्रयोग है। इसका आशय “अधिकाँश” से हो सकता है।
यह यीशु मसीह के सुसमाचार पर विश्वास करनेवाले लोगों के लिए प्रयुक्त हुआ आलंकारिक शब्द है।
लुदिया यह याफा नगर के दक्षिणपूर्व में लगभग 18 किमी। पर स्थित था। पुराने नियम में, और आधुनिक इस्राएल में यह लोद कहलाता था।
“वहां पतरस को ऐनियास नामक लकवे का मारा हुआ एक मनुष्य मिला।” यह स्पष्ट है कि पतरस उससे मिलने की मंशा से नहीं गया था।
वह चल-फिर नहीं सकता था, शायद कमर से नीचे से उसका शरीर लाचार था
अर्थात “अपनी चटाई उठा” (यूडीबी)
यह “बहुत से लोगों” को अतिशयोक्तिपूर्ण दिखाया गया है
यहाँ पतरस की कहानी में नया अध्याय जुड़ता है
तबीता उस विश्वासिनी का अरामी और दोरकास यूनानी भाषा में नाम था। दोनों ही नाम का अर्थ है “हिरन” है।
अर्थ सुस्पष्ट है
अर्थात जिन दिनों पतरस लुदिया में था। यह अन्तर्निहित जानकारी है।
शिष्यों ने दो लोग पतरस के पास भेजे
अर्थात जिनके पतियों की मृत्यु हो चुकी है
अर्थात "जब वह जीवित थी और प्रेरितों के साथ थी” (यूडीबी)
अकेले में तबीता के लिए प्रार्थना करने के लिए पतरस ने सभी को बाहर कर दिया था।
पतरस द्वारा तबीता को जिलाए जाने के आश्चर्यकर्म की बात
अर्थात “प्रभु यीशु मसीह के सुसमाचार पर विश्वास किया”।
ऐसा हुआ कि पतरस……यहाँ बहुत दिन तक रहा
शाऊल ने महायाजक से दमिश्क आराधनालयों के नाम पर चिट्ठियाँ माँगी ताकि वह दमिश्क की यात्रा से इस पंथ के प्रत्येक को बाँधकर ला सके।
जब शाऊल दमिश्क के पास पहुँचा, उसने आकाश से अपने चारों ओर ज्योति चमकते हुए देखी।
आवाज ने शाऊल से कहा, "हे शाऊल, हे शाऊल तू मुझे क्यों सताता है? "
उत्तर था, "मैं यीशु हूँ; जिसे तू सताता है।"
जब शाऊल भूमि पर से उठा तो उसे कुछ दिखाई न दिया।
तब शाऊल दमिश्क को गया और तीन दिन तक न खाया न पिया।
प्रभु ने हनन्याह से कहा, जा और शाऊल पर हाथ रख ताकि शाऊल फिर से दृष्टि पाए।
हनन्याह को परवाह थी, कि शाऊल दमिश्क में उन सबको बाँधकर ले जाने आया है, जो प्रभु का नाम लेते हैं।
प्रभु ने कहा कि शाऊल उसके नाम को अन्य जातियों, राजाओं और इस्राएलियों के सामने प्रगट करने के लिए उसका चुना हुआ पात्र है।
प्रभु ने कहा कि शाऊल को उसके नाम के खातिर बहुत दुख उठाना पढ़ेगा।
शाऊल के ऊपर हनन्याह के हाथ रखने के बाद शाऊल ने दृष्टि पायी, बपतिस्मा लिया और खाया।
शाऊल ने तुरन्त आराधनालयों में यह प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
जब यहूदियों ने शाऊल को मार डालने की योजना बनाई तो वह भाग निकला। उसको एक टोकरे में उसके चेलों ने बैठाकर शहरपनाह पर से लटकाकर उसे उतार दिया।
यरूशलेम में शिष्य उससे डरते थे।
तब बरनबास शाऊल को प्रेरितों के पास लाया और समझाया कि दमिश्क में उसके साथ क्या हुआ।
शाऊल ने निधड़क होकर यीशु के नाम का प्रचार किया।
यहूदिया, गलील और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, उसकी बढ़ोत्तरी होती गई और संख्या बढ़ती गई।
लुद्दा में पतरस ने एक लकवे के मारे हुए मनुष्य से बात की जिसे यीशु ने चंगा किया था।
पतरस ने याफा में तबीता नाम की मरी हुई स्त्री के लिए प्रार्थना की और उसे जिंदा कर दिया।
1 कैसरिया में कुरनेलियुस* नामक एक मनुष्य था, जो इतालियानी नाम सैन्य-दल का सूबेदार था। 2 वह भक्त* था, और अपने सारे घराने समेत परमेश्वर से डरता था, और यहूदी लोगों को बहुत दान देता, और बराबर परमेश्वर से प्रार्थना करता था।
3 उसने दिन के तीसरे पहर के निकट दर्शन में स्पष्ट रूप से देखा कि परमेश्वर का एक स्वर्गदूत उसके पास भीतर आकर कहा, “हे कुरनेलियुस।” 4 उसने उसे ध्यान से देखा और डरकर कहा, “हे स्वामी क्या है?” उसने उससे कहा, “तेरी प्रार्थनाएँ और तेरे दान स्मरण के लिये परमेश्वर के सामने पहुँचे हैं। 5 और अब याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को, जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। 6 वह शमौन, चमड़े के धन्धा करनेवाले के यहाँ अतिथि है, जिसका घर समुद्र के किनारे हैं।”
7 जब वह स्वर्गदूत जिसने उससे बातें की थी चला गया, तो उसने दो सेवक, और जो उसके पास उपस्थित रहा करते थे उनमें से एक भक्त सिपाही को बुलाया, 8 और उन्हें सब बातें बताकर याफा को भेजा।
9 दूसरे दिन जब वे चलते-चलते नगर के पास पहुँचे, तो दोपहर के निकट पतरस छत पर प्रार्थना करने चढ़ा। 10 उसे भूख लगी और कुछ खाना चाहता था, परन्तु जब वे तैयार कर रहे थे तो वह बेसुध हो गया। 11 और उसने देखा, कि आकाश खुल गया; और एक बड़ी चादर, पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, पृथ्वी की ओर उतर रहा है। 12 जिसमें पृथ्वी के सब प्रकार के चौपाए और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी थे।
13 और उसे एक ऐसी वाणी सुनाई दी, “हे पतरस उठ, मार और खा।” 14 परन्तु पतरस ने कहा, “नहीं प्रभु, कदापि नहीं; क्योंकि मैंने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।” (लैव्य. 11:1-47, यहे. 4:14) 15 फिर दूसरी बार उसे वाणी सुनाई दी, “जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है*, उसे तू अशुद्ध मत कह।” 16 तीन बार ऐसा ही हुआ; तब तुरन्त वह चादर आकाश पर उठा लिया गया।
17 जब पतरस अपने मन में दुविधा में था, कि यह दर्शन जो मैंने देखा क्या है, तब वे मनुष्य जिन्हें कुरनेलियुस ने भेजा था, शमौन के घर का पता लगाकर द्वार पर आ खड़े हुए। 18 और पुकारकर पूछने लगे, “क्या शमौन जो पतरस कहलाता है, यहाँ पर अतिथि है?”
19 पतरस जो उस दर्शन पर सोच ही रहा था, कि आत्मा ने उससे कहा, “देख, तीन मनुष्य तुम्हें खोज रहे हैं। 20 अतः उठकर नीचे जा, और निःसंकोच उनके साथ हो ले; क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।” 21 तब पतरस ने नीचे उतरकर उन मनुष्यों से कहा, “देखो, जिसको तुम खोज रहे हो, वह मैं ही हूँ; तुम्हारे आने का क्या कारण है?”
22 उन्होंने कहा, “कुरनेलियुस सूबेदार जो धर्मी और परमेश्वर से डरनेवाला और सारी यहूदी जाति में सुनाम मनुष्य है, उसने एक पवित्र स्वर्गदूत से यह निर्देश पाया है, कि तुझे अपने घर बुलाकर तुझ से उपदेश सुने। 23 तब उसने उन्हें भीतर बुलाकर उनको रहने की जगह दी।
और दूसरे दिन, वह उनके साथ गया; और याफा के भाइयों में से कुछ उसके साथ हो लिए।
24 दूसरे दिन वे कैसरिया में पहुँचे, और कुरनेलियुस अपने कुटुम्बियों और प्रिय मित्रों को इकट्ठे करके उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।
25 जब पतरस भीतर आ रहा था, तो कुरनेलियुस ने उससे भेंट की, और उसके पाँवों पर गिरकर उसे प्रणाम किया। 26 परन्तु पतरस ने उसे उठाकर कहा, “खड़ा हो, मैं भी तो मनुष्य ही हूँ।”
27 और उसके साथ बातचीत करता हुआ भीतर गया, और बहुत से लोगों को इकट्ठे देखकर 28 उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि अन्यजाति की संगति करना या उसके यहाँ जाना यहूदी के लिये अधर्म है, परन्तु परमेश्वर ने मुझे बताया है कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहूँ। 29 इसलिए मैं जब बुलाया गया तो बिना कुछ कहे चला आया। अब मैं पूछता हूँ कि मुझे किस काम के लिये बुलाया गया है?”
30 कुरनेलियुस ने कहा, “चार दिन पहले, इसी समय, मैं अपने घर में तीसरे पहर को प्रार्थना कर रहा था; कि एक पुरुष चमकीला वस्त्र पहने हुए, मेरे सामने आ खड़ा हुआ। 31 और कहने लगा, ‘हे कुरनेलियुस, तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरे दान परमेश्वर के सामने स्मरण किए गए हैं। 32 इसलिए किसी को याफा भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुला। वह समुद्र के किनारे शमौन जो, चमड़े का धन्धा करनेवाले के घर में अतिथि है। 33 तब मैंने तुरन्त तेरे पास लोग भेजे, और तूने भला किया जो आ गया। अब हम सब यहाँ परमेश्वर के सामने हैं, ताकि जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा है उसे सुनें।”
34 तब पतरस ने मुँह खोलकर कहा,
अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, (व्य. 10:17, 2 इति. 19:7) 35 वरन् हर जाति में जो उससे डरता और धार्मिक काम करता है, वह उसे भाता है।
36 जो वचन उसने इस्राएलियों के पास भेजा, जब कि उसने यीशु मसीह के द्वारा जो सब का प्रभु है, शान्ति का सुसमाचार सुनाया। (भज. 107:20, भज. 147:18, यशा. 52:7, नहू. 1:15) 37 वह वचन तुम जानते हो, जो यूहन्ना के बपतिस्मा के प्रचार के बाद गलील से आरम्भ होकर सारे यहूदिया में फैल गया: 38 परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक किया; वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था। (यशा. 61:1)
39 और हम उन सब कामों के गवाह हैं; जो उसने यहूदिया के देश और यरूशलेम में भी किए, और उन्होंने उसे काठ पर लटकाकर मार डाला। (व्य. 21:22-23) 40 उसको परमेश्वर ने तीसरे दिन जिलाया, और प्रगट भी कर दिया है। 41 सब लोगों को नहीं वरन् उन गवाहों को जिन्हें परमेश्वर ने पहले से चुन लिया था, अर्थात् हमको जिन्होंने उसके मरे हुओं में से जी उठने के बाद उसके साथ खाया पीया;
42 और उसने हमें आज्ञा दी कि लोगों में प्रचार करो और गवाही दो, कि यह वही है जिसे परमेश्वर ने जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है। 43 उसकी सब भविष्यद्वक्ता गवाही देते है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, उसको उसके नाम के द्वारा पापों की क्षमा मिलेगी। (यशा. 33:24, यशा. 53:5-6, यिर्म. 31:34, दानि. 9:24)
44 पतरस ये बातें कह ही रहा था कि पवित्र आत्मा वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया*। 45 और जितने खतना किए हुए विश्वासी पतरस के साथ आए थे, वे सब चकित हुए कि अन्यजातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उण्डेला गया है।
46 क्योंकि उन्होंने उन्हें भाँति-भाँति की भाषा बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुना। इस पर पतरस ने कहा, 47 “क्या अब कोई इन्हें जल से रोक सकता है कि ये बपतिस्मा न पाएँ, जिन्होंने हमारे समान पवित्र आत्मा पाया है?” 48 और उसने आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह के नाम में बपतिस्मा दिया जाए। तब उन्होंने उससे विनती की, कि कुछ दिन और हमारे साथ रह।
कहानी में कुरनेलियुस नाम के एक नए पात्र का प्रवेश होता है।
“उसका नाम कुनेलियुस था। वह रोमी सेना के इतालवी खंड के 100 सिपाहियों के ऊपर प्रभारी-अधिकारी था।”
अर्थात, “वह परमेश्वर में आस्था रखता था और अपने जीवन में परमेश्वर को आदर देता था और उसकी आराधना करता था।”
“अपने पूरे परिवार के साथ”
अर्थात “गरीब यहूदी लोगों को।” परमेश्वर के प्रति अपने भय को प्रकट करने का उसका यह एक तरीका था।
यहूदियों के दोपहर की प्रार्थना का नियमित समय।
अर्थात “कुरनेलियुस ने स्पष्ट रूप से देखा”
अर्थात चर्मकार के यहाँ
अर्थात “कुरनेलियुस को मिले दर्शन के समाप्त होने पर”
अर्थात कुरनेलियुस ने अपने दो सेवकों और सिपाही को अपने दर्शन बताया
अपने दो सेवकों और सिपाही को याफा भेजा।
कुरनेलियुस के दो सेवक और सिपाही कुरनेलियुस की आज्ञा पर याफा की ओर यात्रा कर रहे थे।
यह वह दशा थी जिसमें दर्शन पाते समय पतरस भी था।
यह पतरस के दर्शन की शुरुआत थी
उस बड़े पात्र का आकार एक बड़ी चादर के समान था
अर्थात उस पात्र के भीतर बहुत तरह के जंतु थे
वक्ता स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह स्पष्ट है कि बोलनेवाला परमेश्वर की ओर से था, न कि शैतान की ओर से।
पतरस ने आदरपूर्वक इस शब्द का प्रयोग किया है।
यह स्पष्ट है कि पात्र में जो जीव-जंतु थे जो मूसा की व्यवस्था के अनुसार अशुद्ध थे और जिन्हें खाना वर्जित था।
अर्थात “घर के द्वार पर आ खड़े हुए।” स्पष्ट है कि घर में एक दीवार और प्रवेश के लिए एक बाड़ा लगा गेट था।
कुरनेलियुस के लोग द्वार के बाहर से ही पतरस के बारे में पूछताछ कर रहे थे।
अर्थ स्पष्ट है
पतरस जो उस दर्शन पर सोच ही रहा था “पतरस जब उस दर्शन पर विचार कर ही रहा था।”
“पवित्र आत्मा”
“सावधान, तीन मनुष्य” या फिर, “जा, तीन मनुष्य”
जिसकी खोज तुम.....तुम्हारे आने का कारण क्या है? “तुम” और “तुम्हारे” का आशय कुरनेलियुस द्वारा भेजे गए तीन लोगों से है.
कुरनेलियुस द्वारा भेजे गए तीन संदेशवाहकों ने पतरस से कहा
अर्थात बहुत से यहूदी लोग कुरनेलियुस के विषय में भली बातें कहते थे।
यहाँ बहुत से यहूदी लोग कुरनेलियुस के विषय में भली बातें कहते थे को अतिशयोक्ति के साथ व्यक्त किया गया है।
“तुझे” अर्थात पतरस को।
“वे” अर्थात पतरस, याफा से पतरस के साथ आया व्यक्ति, और कुरनेलियुस के तीन सेवक
“अपने” का आशय कुरनेलियुस से है।
पांवों पर गिरना यहाँ केवल आदर व्यक्त करने की नहीं, वरन आराधना की क्रिया है (यूडीबी)।
यहाँ पर पतरस की आराधना करने पर कुरनेलियुस को हल्की सी झिड़की दी गयी है।
अर्थात कुरनेलियुस से बातचीत करता हुआ
“बहुत से गैर यहूदी लोगों को इकट्ठे देखकर।” यह स्पष्ट है कि कुरनेलियुस ने जिन्हें बुलाया था वे गैर यहूदी थे।
“यहूदी के लिए वर्जित है”
पतरस यहाँ कुरनेलियुस और आमंत्रित लोगों को संबोधित कर रहा है।
पतरस यहाँ कुरनेलियुस और उपस्थित सभी गैर-यहूदियों से पूछ रहा है।
बाइबिल पर आधारित संस्कृति में वर्तमान दिन को भी शामिल किया जाता है। आज के अनुसार “तीन दिन पहले” लिखा जाएगा।
परमेश्वर से प्रार्थना करने का यहूदियों का समय।
कुछ प्राचीन प्रमाणित लेख “उपवास और प्रार्थना...” कहते हैं
यहाँ आशय केवल कुरनेलियुस (एकवचन) से है।
अर्थात “तेरे दान पर परमेश्वर का ध्यान लगाया है”
“पतरस कहलानेवाले शमौन से आने के लिए कह”
“तेरे” का आशय केवल पतरस (एकवचन) से है।
“हम” का आशय उन लोगों से है जिन्हें कुरनेलियुस ने पतरस को सुनने के लिए बुलाया था।
“तब पतरस ने उन्हें संबोधित करना शुरू किया” (यूडीबी)
“उसका भय रखनेवाले और धर्म के काम करनेवाला हर व्यक्ति उसे भाता है”
(पतरस अपनी बात आगे बढाता है)
“वचन” का आशय “वचन” से ही है
इसमें यहूदी और गैर-यहूदी सभी लोग शामिल हैं।
आशय कुरनेलियुस और उसके पाहुनों से है (बहुवचन)
अर्थात “उसके सभी काम जानते हो”
(पतरस अपनी बात आगे बढ़ाता है)
“हम प्रेरित....गवाह हैं.” इस संबोधन में पतरस ने अपने सुननेवालों को शामिल नहीं किया है।
“जो यीशु ने....में भी किये”
“जिसे यहूदी अगुओं ने मार डाला”
“यीशु को”
परमेश्वर ने यीशु को फिर से जीवित किया
परमेश्वर ने उसे स्वयं को प्रगट करने की अनुमति दी
(पतरस अपनी बात आगे बढ़ाता है)
परमेश्वर ने हम प्रेरितों को आज्ञा दी। इस “यहाँ” शब्द में पतरस को सुननेवाले शामिल नहीं हैं।
कि यीशु ही वही है जिसे परमेश्वर ने ....ठहराया है.
वे जो अब भी जीवित हैं और वे जो मर चुके हैं
सब भविष्यद्वक्ता यीशु की गवाही देते हैं
वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया “सब” का आशय संभवतः घर में मौजूद सब गैर-यहूदियों से है जो पतरस पर विश्वास रखते थे।
“मुफ्त का वरदान”
परमेश्वर ने पवित्र आत्मा का दान उंडेला है
ये लोगों द्वारा बोली जानेवाली भाषाएँ थीं जिससे यहुदियों को यह पता चल पाया कि “उन्हें” अर्थात अन्यजातीय लोग सचमुच परमेश्वर की बड़ाई कर रथे थे।
यह वास्तविक प्रश्न न होकर भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। इसका आशय है कि “किसी को उन्हें जल से दूर नहीं रखना चाहिए।”
पतरस यहाँ पर आलंकारिक भाषा का प्रयोग कर रहा है और प्रश्न वास्तविक न होकर केवल आलंकारिक है। कहने का आशय असल में है कि ये लोग बप्तिस्मा पाने के योग्य हैं।
“पतरस ने उन्हें अन्यजतीय लोगों को बप्तिस्मा देने की आज्ञा दी” (निष्क्रिय) अथवा “पतरस ने यहूदी मसीहियों को गैर-यहूदी विश्वासियों को बप्तिस्मा देने की आज्ञा दी”
“तब अन्यजातियों ने पतरस से विनती की”
कुरनेलियुस धर्मी और परमेश्वर से डरने वाला, दयावान और सदैव परमेश्वर से प्रार्थना करने वाला व्यक्ति था।
स्वर्गदूत ने कहा कि कुरनेलियुस की प्रार्थनाओं और निर्धनों को दिये गये दानों ने परमेश्वर को कुरनेलियुस का स्मरण कराया।
स्वर्गदूत ने कुरनेलियुस से पतरस को याफा से लाने के लिए आदमी भेजने को कहा।
पतरस ने एक बहुत बड़ी चादर सब प्रकार के चौपायों, रेंगने वाले जन्तुओं और आकाश के पक्षियों से भरी हुई देखी।
आवाज ने पतरस से कहा, "हे पतरस उठ, मार और खा।"
पतरस ने यह कहकर खाने से मना किया कि उसने कभी कोई अशुद्ध और अपवित्र वस्तु नहीं खाई है।
आवाज ने कहा, "जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अशुद्ध मत कर।"
पतरस से आत्मा ने नीचे जाने और भेजे हुए मनुष्यों के साथ हो लेने को कहा।
कुरनेलियुस के पास से आए हुए मनुष्यों ने कुरनेलियुस के घर आकर पतरस से वचन सुनाने की उम्मीद की।
पतरस ने कुरनेलियुस को खड़ा होने को कहा क्योंकि वह एक मनुष्य ही था।
पतरस अन्य जाति के लोगों से संगति कर रहा था क्योंकि परमेश्वर ने उसे बताया था कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहे।
पतरस ने कहा कोई भी जो परमेश्वर से डरता और धार्मिक कार्य करता है, वह परमेश्वर को स्वीकृत है।
लोगों ने पहले ही सुन रखा था कि यीशु का पवित्र-आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक हुआ था और उसने उन सबको चंगा किया था जो सताए हुए थे, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था।
पतरस ने गवाही दी कि परमेश्वर ने यीशु को तीसरे दिन जिलाया और पतरस ने उसके जी उठने के बाद उसके साथ खाया।
पतरस ने कहा, यीशु ने उनको आज्ञा दी है कि प्रचार करो कि यीशु को परमेश्वर ने जीवतों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है।
पतरस ने कहा कि प्रत्येक जो यीशु पर विश्वास करता है उसे पापों की क्षमा मिलेगी।
उन सभी पर जो पतरस से वचन को सुन रहे थे, पवित्र-आत्मा उतरा।
वे विश्वासी जो खतना किए हुए समूह के थे चकित इसलिए हुए क्योंकि पवित्र-आत्मा का वरदान अन्य जातियों पर भी उण्डेला गया।
वे लोग अन्य भाषाओं में बोल रहे थे और परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे जिससे दिखाई दे रहा था कि पवित्र-आत्मा उन पर उतरा है।
पतरस ने आज्ञा दी कि उन लोगों को यीशु के नाम में बपतिस्मा दिया जाए।
1 और प्रेरितों और भाइयों ने जो यहूदिया में थे सुना, कि अन्यजातियों ने भी परमेश्वर का वचन मान लिया है। 2 और जब पतरस यरूशलेम में आया, तो खतना किए हुए लोग उससे वाद-विवाद करने लगे, 3 “तूने खतनारहित लोगों के यहाँ जाकर उनके साथ खाया।”
4 तब पतरस ने उन्हें आरम्भ से क्रमानुसार कह सुनाया; 5 “मैं याफा नगर में प्रार्थना कर रहा था, और बेसुध होकर एक दर्शन देखा, कि एक बड़ी चादर, एक पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, आकाश से उतरकर मेरे पास आया। 6 जब मैंने उस पर ध्यान किया, तो पृथ्वी के चौपाए और वन पशु और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी देखे;
7 और यह आवाज़ भी सुना, ‘हे पतरस उठ मार और खा।’ 8 मैंने कहा, ‘नहीं प्रभु, नहीं; क्योंकि कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु मेरे मुँह में कभी नहीं गई।’ 9 इसके उत्तर में आकाश से दूसरी आवाज़ आई, ‘जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे अशुद्ध मत कह।’ 10 तीन बार ऐसा ही हुआ; तब सब कुछ फिर आकाश पर खींच लिया गया।
11 तब तुरन्त तीन मनुष्य जो कैसरिया से मेरे पास भेजे गए थे, उस घर पर जिसमें हम थे, आ खड़े हुए। 12 तब आत्मा ने मुझसे उनके साथ बेझिझक हो लेने को कहा, और ये छः भाई भी मेरे साथ हो लिए; और हम उस मनुष्य के घर में गए। 13 और उसने बताया, कि मैंने एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़ा देखा, जिसने मुझसे कहा, ‘याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। 14 वह तुझ से ऐसी बातें कहेगा, जिनके द्वारा तू और तेरा सारा घराना उद्धार पाएगा।’
15 जब मैं बातें करने लगा, तो पवित्र आत्मा उन पर उसी रीति से उतरा, जिस रीति से आरम्भ में हम पर उतरा था। 16 तब मुझे प्रभु का वह वचन स्मरण आया; जो उसने कहा, ‘यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।’
17 अतः जब कि परमेश्वर ने उन्हें भी वही दान दिया, जो हमें प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से मिला; तो मैं कौन था जो परमेश्वर को रोक सकता था?” 18 यह सुनकर, वे चुप रहे, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, “तब तो परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिये मन फिराव का दान दिया है।”
19 जो लोग उस क्लेश के मारे जो स्तिफनुस के कारण पड़ा था, तितर-बितर हो गए थे, वे फिरते-फिरते फीनीके और साइप्रस और अन्ताकिया में पहुँचे; परन्तु यहूदियों को छोड़ किसी और को वचन न सुनाते थे। 20 परन्तु उनमें से कुछ साइप्रस वासी और कुरेनी* थे, जो अन्ताकिया में आकर यूनानियों को भी प्रभु यीशु का सुसमाचार की बातें सुनाने लगे। 21 और प्रभु का हाथ उन पर था, और बहुत लोग विश्वास करके प्रभु की ओर फिरे।
22 तब उनकी चर्चा यरूशलेम की कलीसिया के सुनने में आई, और उन्होंने बरनबास* को अन्ताकिया भेजा। 23 वह वहाँ पहुँचकर, और परमेश्वर के अनुग्रह को देखकर आनन्दित हुआ; और सब को उपदेश दिया कि तन मन लगाकर प्रभु से लिपटे रहें। 24 क्योंकि वह एक भला मनुष्य था; और पवित्र आत्मा और विश्वास से परिपूर्ण था; और बहुत से लोग प्रभु में आ मिले।
25 तब वह शाऊल को ढूँढ़ने के लिये तरसुस को चला गया। 26 और जब उनसे मिला तो उसे अन्ताकिया में लाया, और ऐसा हुआ कि वे एक वर्ष तक कलीसिया के साथ मिलते और बहुत से लोगों को उपदेश देते रहे, और चेले सबसे पहले अन्ताकिया ही में मसीही कहलाए।
27 उन्हीं दिनों में कई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम से अन्ताकिया में आए। 28 उनमें से अगबुस* ने खड़े होकर आत्मा की प्रेरणा से यह बताया, कि सारे जगत में बड़ा अकाल पड़ेगा, और वह अकाल क्लौदियुस के समय में पड़ा।
29 तब चेलों ने निर्णय किया कि हर एक अपनी-अपनी पूँजी के अनुसार यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की सेवा के लिये कुछ भेजे। 30 और उन्होंने ऐसा ही किया; और बरनबास और शाऊल के हाथ प्राचीनों के पास कुछ भेज दिया।
1 उस समय हेरोदेस राजा* ने कलीसिया के कई एक व्यक्तियों को दुःख देने के लिये उन पर हाथ डाले। 2 उसने यूहन्ना के भाई याकूब को तलवार से मरवा डाला।
3 जब उसने देखा, कि यहूदी लोग इससे आनन्दित होते हैं, तो उसने पतरस को भी पकड़ लिया। वे दिन अख़मीरी रोटी के दिन थे। 4 और उसने उसे पकड़कर बन्दीगृह में डाला, और रखवाली के लिये, चार-चार सिपाहियों के चार पहरों में रखा, इस मनसा से कि फसह के बाद उसे लोगों के सामने लाए।
5 बन्दीगृह में पतरस की रखवाली हो रही थी; परन्तु कलीसिया उसके लिये लौ लगाकर परमेश्वर से प्रार्थना कर रही थी। 6 और जब हेरोदेस उसे उनके सामने लाने को था, तो उसी रात पतरस दो जंजीरों से बंधा हुआ, दो सिपाहियों के बीच में सो रहा था; और पहरेदार द्वार पर बन्दीगृह की रखवाली कर रहे थे।
7 तब प्रभु का एक स्वर्गदूत आ खड़ा हुआ और उस कोठरी में ज्योति चमकी, और उसने पतरस की पसली पर हाथ मार कर उसे जगाया, और कहा, “उठ, जल्दी कर।” और उसके हाथ से जंजीरें खुलकर गिर पड़ीं। 8 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “कमर बाँध, और अपने जूते पहन ले।” उसने वैसा ही किया, फिर उसने उससे कहा, “अपना वस्त्र पहनकर मेरे पीछे हो ले।”
9 वह निकलकर उसके पीछे हो लिया; परन्तु यह न जानता था कि जो कुछ स्वर्गदूत कर रहा है, वह सच है, बल्कि यह समझा कि मैं दर्शन देख रहा हूँ। 10 तब वे पहले और दूसरे पहरे से निकलकर उस लोहे के फाटक पर पहुँचे, जो नगर की ओर है। वह उनके लिये आप से आप खुल गया, और वे निकलकर एक ही गली होकर गए, इतने में स्वर्गदूत उसे छोड़कर चला गया।
11 तब पतरस ने सचेत होकर कहा, “अब मैंने सच जान लिया कि प्रभु ने अपना स्वर्गदूत भेजकर मुझे हेरोदेस के हाथ से छुड़ा लिया, और यहूदियों की सारी आशा तोड़ दी।” 12 और यह सोचकर, वह उस यूहन्ना की माता मरियम के घर आया, जो मरकुस कहलाता है। वहाँ बहुत लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना कर रहे थे।
13 जब उसने फाटक की खिड़की खटखटाई तो रूदे* नामक एक दासी सुनने को आई। 14 और पतरस का शब्द पहचानकर, उसने आनन्द के मारे फाटक न खोला; परन्तु दौड़कर भीतर गई, और बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है। 15 उन्होंने उससे कहा, “तू पागल है।” परन्तु वह दृढ़ता से बोली कि ऐसा ही है: तब उन्होंने कहा, “उसका स्वर्गदूत होगा।”
16 परन्तु पतरस खटखटाता ही रहा अतः उन्होंने खिड़की खोली, और उसे देखकर चकित रह गए*। 17 तब उसने उन्हें हाथ से संकेत किया कि चुप रहें; और उनको बताया कि प्रभु किस रीति से मुझे बन्दीगृह से निकाल लाया है। फिर कहा, “याकूब और भाइयों को यह बात कह देना।” तब निकलकर दूसरी जगह चला गया।
18 भोर को सिपाहियों में बड़ी हलचल होने लगी कि पतरस कहाँ गया। 19 जब हेरोदेस ने उसकी खोज की और न पाया, तो पहरुओं की जाँच करके आज्ञा दी कि वे मार डाले जाएँ: और वह यहूदिया को छोड़कर कैसरिया में जाकर रहने लगा।
20 हेरोदेस सूर और सैदा के लोगों से बहुत अप्रसन्न था। तब वे एक चित्त होकर उसके पास आए और बलास्तुस को जो राजा का एक कर्मचारी था, मनाकर मेल करना चाहा; क्योंकि राजा के देश से उनके देश का पालन-पोषण होता था। (1 राजा. 5:11, यहे. 27:17) 21 ठहराए हुए दिन हेरोदेस राजवस्त्र पहनकर सिंहासन पर बैठा; और उनको व्याख्यान देने लगा।
22 और लोग पुकार उठे, “यह तो मनुष्य का नहीं ईश्वर का शब्द है।” 23 उसी क्षण प्रभु के एक स्वर्गदूत ने तुरन्त उसे आघात पहुँचाया, क्योंकि उसने परमेश्वर की महिमा नहीं की और उसके शरीर में कीड़े पड़ गए और वह मर गया। (दानि. 5:20)
24 परन्तु परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया*।
25 जब बरनबास और शाऊल अपनी सेवा पूरी कर चुके तो यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेकर यरूशलेम से लौटे।
1 अन्ताकिया की कलीसिया में कई भविष्यद्वक्ता और उपदेशक थे; अर्थात् बरनबास और शमौन जो नीगर* कहलाता है; और लूकियुस कुरेनी, और चौथाई देश के राजा हेरोदेस का दूधभाई मनाहेम और शाऊल। 2 जब वे उपवास सहित प्रभु की उपासना कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने कहा, “मेरे लिये बरनबास और शाऊल को उस काम के लिये अलग करो जिसके लिये मैंने उन्हें बुलाया है।” 3 तब उन्होंने उपवास और प्रार्थना करके और उन पर हाथ रखकर उन्हें विदा किया।
4 अतः वे पवित्र आत्मा के भेजे हुए सिलूकिया को गए; और वहाँ से जहाज पर चढ़कर साइप्रस को चले। 5 और सलमीस* में पहुँचकर, परमेश्वर का वचन यहूदियों के आराधनालयों में सुनाया; और यूहन्ना उनका सेवक था।
6 और उस सारे टापू में से होते हुए, पाफुस तक पहुँचे। वहाँ उन्हें बार-यीशु* नामक एक जादूगर मिला, जो यहूदी और झूठा भविष्यद्वक्ता था। 7 वह हाकिम सिरगियुस पौलुस के साथ था, जो बुद्धिमान पुरुष था। उसने बरनबास और शाऊल को अपने पास बुलाकर परमेश्वर का वचन सुनना चाहा। 8 परन्तु एलीमास जादूगर ने, (क्योंकि यही उसके नाम का अर्थ है) उनका सामना करके, हाकिम को विश्वास करने से रोकना चाहा।
9 तब शाऊल ने जिसका नाम पौलुस भी है, पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उसकी ओर टकटकी लगाकर कहा, 10 “हे सारे कपट और सब चतुराई से भरे हुए शैतान की सन्तान, सकल धार्मिकता के बैरी, क्या तू प्रभु के सीधे मार्गों को टेढ़ा करना न छोड़ेगा? (नीति. 10:9, होशे 14:9)
11 अब देख, प्रभु का हाथ तुझ पर पड़ा है; और तू कुछ समय तक अंधा रहेगा और सूर्य को न देखेगा।” तब तुरन्त धुंधलापन और अंधेरा उस पर छा गया, और वह इधर-उधर टटोलने लगा ताकि कोई उसका हाथ पकड़कर ले चले। 12 तब हाकिम ने जो कुछ हुआ था, देखकर और प्रभु के उपदेश से चकित होकर विश्वास किया।
13 पौलुस और उसके साथी पाफुस से जहाज खोलकर पंफूलिया के पिरगा में* आए; और यूहन्ना उन्हें छोड़कर यरूशलेम को लौट गया। 14 और पिरगा से आगे बढ़कर पिसिदिया के अन्ताकिया में पहुँचे; और सब्त के दिन आराधनालय में जाकर बैठ गए। 15 व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक से पढ़ने के बाद आराधनालय के सरदारों ने उनके पास कहला भेजा, “हे भाइयों, यदि लोगों के उपदेश के लिये तुम्हारे मन में कोई बात हो तो कहो।”
16 तब पौलुस ने खड़े होकर और हाथ से इशारा करके कहा, “हे इस्राएलियों, और परमेश्वर से डरनेवालों, सुनो 17 इन इस्राएली लोगों के परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुन लिया, और जब ये मिस्र देश में परदेशी होकर रहते थे, तो उनकी उन्नति की; और बलवन्त भुजा से निकाल लाया। (निर्ग. 6:1, निर्ग. 12:51) 18 और वह कोई चालीस वर्ष तक जंगल में उनकी सहता रहा, (निर्ग. 16:35, गिन. 14:34, व्य. 1:31)
19 और कनान देश में सात जातियों का नाश करके उनका देश लगभग साढ़े चार सौ वर्ष में इनकी विरासत में कर दिया। (व्य. 7:1, यहो. 14:1) 20 इसके बाद उसने शमूएल भविष्यद्वक्ता तक उनमें न्यायी ठहराए। (न्याय. 2:16, 1 शमू. 2:16)
21 उसके बाद उन्होंने एक राजा माँगा; तब परमेश्वर ने चालीस वर्ष के लिये बिन्यामीन के गोत्र में से एक मनुष्य अर्थात् कीश के पुत्र शाऊल को उन पर राजा ठहराया। (1 शमू. 8:5,1 शमू. 8:19,1 शमू. 10:20-21, 1 शमू. 10:24, 1 शमू. 11:15)
22 फिर उसे अलग करके दाऊद को उनका राजा बनाया; जिसके विषय में उसने गवाही दी, ‘मुझे एक मनुष्य, यिशै का पुत्र दाऊद, मेरे मन के अनुसार मिल गया है। वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा।’ (1 शमू. 13:14, 1 शमू. 16:12-13, भज. 89:20, यशा. 44:28)
23 उसी के वंश में से परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस्राएल के पास एक उद्धारकर्ता, अर्थात् यीशु को भेजा। (2 शमू. 7:12-13, यशा. 11:1) 24 जिसके आने से पहले यूहन्ना ने सब इस्राएलियों को मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार किया। 25 और जब यूहन्ना अपनी सेवा पूरी करने पर था, तो उसने कहा, ‘तुम मुझे क्या समझते हो? मैं वह नहीं! वरन् देखो, मेरे बाद एक आनेवाला है, जिसके पाँवों की जूती के बन्ध भी मैं खोलने के योग्य नहीं।’
26 “हे भाइयों, तुम जो अब्राहम की सन्तान हो; और तुम जो परमेश्वर से डरते हो, तुम्हारे पास इस उद्धार का वचन भेजा गया है। 27 क्योंकि यरूशलेम के रहनेवालों और उनके सरदारों ने, न उसे पहचाना, और न भविष्यद्वक्ताओं की बातें समझी; जो हर सब्त के दिन पढ़ी जाती हैं, इसलिए उसे दोषी ठहराकर उनको पूरा किया।
28 उन्होंने मार डालने के योग्य कोई दोष उसमें न पाया, फिर भी पिलातुस से विनती की, कि वह मार डाला जाए। 29 और जब उन्होंने उसके विषय में लिखी हुई सब बातें पूरी की, तो उसे क्रूस पर से उतार कर कब्र में रखा।
30 परन्तु परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, 31 और वह उन्हें जो उसके साथ गलील से यरूशलेम आए थे, बहुत दिनों तक दिखाई देता रहा; लोगों के सामने अब वे ही उसके गवाह हैं।
32 और हम तुम्हें उस प्रतिज्ञा के विषय में जो पूर्वजों से की गई थी, यह सुसमाचार सुनाते हैं, 33 कि परमेश्वर ने यीशु को जिलाकर, वही प्रतिज्ञा हमारी सन्तान के लिये पूरी की; जैसा दूसरे भजन में भी लिखा है,
‘तू मेरा पुत्र है; आज मैं ही ने तुझे जन्माया है।’ (भज. 2:7) 34 और उसके इस रीति से मरे हुओं में से जिलाने के विषय में भी, कि वह कभी न सड़े, उसने यों कहा है,
‘मैं दाऊद पर की पवित्र और अटल कृपा तुम पर करूँगा।’ (यशा. 55:3)
35 इसलिए उसने एक और भजन में भी कहा है,
‘तू अपने पवित्र जन को सड़ने न देगा।’ (भज. 16:10) 36 क्योंकि दाऊद तो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार अपने समय में सेवा करके सो गया, और अपने पूर्वजों में जा मिला, और सड़ भी गया। (न्याय. 2:10, 1 राजा. 2:10) 37 परन्तु जिसको परमेश्वर ने जिलाया, वह सड़ने नहीं पाया।
38 इसलिए, हे भाइयों; तुम जान लो कि यीशु के द्वारा पापों की क्षमा का समाचार तुम्हें दिया जाता है। 39 और जिन बातों से तुम मूसा की व्यवस्था के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सबसे हर एक विश्वास करनेवाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है।
40 इसलिए चौकस रहो, ऐसा न हो, कि जो भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखित है, तुम पर भी आ पड़े:
41 ‘हे निन्दा करनेवालों, देखो, और चकित हो, और मिट जाओ;
क्योंकि मैं तुम्हारे दिनों में एक काम करता हूँ;
ऐसा काम, कि यदि कोई तुम से उसकी चर्चा करे, तो तुम कभी विश्वास न करोगे’।” (हब. 1:5)
42 उनके बाहर निकलते समय लोग उनसे विनती करने लगे, कि अगले सब्त के दिन हमें ये बातें फिर सुनाई जाएँ। 43 और जब आराधनालय उठ गई तो यहूदियों और यहूदी मत में आए हुए भक्तों में से बहुत से पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए; और उन्होंने उनसे बातें करके समझाया, कि परमेश्वर के अनुग्रह में बने रहो।
44 अगले सब्त के दिन नगर के प्रायः सब लोग परमेश्वर का वचन सुनने को इकट्ठे हो गए। 45 परन्तु यहूदी भीड़ को देखकर ईर्ष्या से भर गए, और निन्दा करते हुए पौलुस की बातों के विरोध में बोलने लगे।
46 तब पौलुस और बरनबास ने निडर होकर कहा, “अवश्य था, कि परमेश्वर का वचन पहले तुम्हें सुनाया जाता; परन्तु जब कि तुम उसे दूर करते हो, और अपने को अनन्त जीवन के योग्य नहीं ठहराते, तो अब, हम अन्यजातियों की ओर फिरते हैं। 47 क्योंकि प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है,
‘मैंने तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराया है,
ताकि तू पृथ्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो’।” (यशा. 49:6)
48 यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे, और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया। 49 तब प्रभु का वचन उस सारे देश में फैलने लगा।
50 परन्तु यहूदियों ने भक्त और कुलीन स्त्रियों को और नगर के प्रमुख लोगों को भड़काया, और पौलुस और बरनबास पर उपद्रव करवाकर उन्हें अपनी सीमा से बाहर निकाल दिया। 51 तब वे उनके सामने अपने पाँवों की धूल झाड़कर इकुनियुम को चले गए। 52 और चेले आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे।
1 इकुनियुम में ऐसा हुआ कि पौलुस और बरनबास यहूदियों की आराधनालय में साथ-साथ गए, और ऐसी बातें की, कि यहूदियों और यूनानियों दोनों में से बहुतों ने विश्वास किया। 2 परन्तु विश्वास न करनेवाले यहूदियों ने अन्यजातियों के मन भाइयों के विरोध में भड़काए, और कटुता उत्पन्न कर दी।
3 और वे बहुत दिन तक वहाँ रहे, और प्रभु के भरोसे पर साहस के साथ बातें करते थे: और वह उनके हाथों से चिन्ह और अद्भुत काम करवाकर अपने अनुग्रह के वचन पर गवाही देता था। 4 परन्तु नगर के लोगों में फूट पड़ गई थी; इससे कितने तो यहूदियों की ओर, और कितने प्रेरितों की ओर हो गए।
5 परन्तु जब अन्यजाति और यहूदी उनका अपमान और उन्हें पत्थराव करने के लिये अपने सरदारों समेत उन पर दौड़े। 6 तो वे इस बात को जान गए, और लुकाउनिया* के लुस्त्रा और दिरबे नगरों में, और आस-पास के प्रदेशों में भाग गए। 7 और वहाँ सुसमाचार सुनाने लगे।
8 लुस्त्रा में एक मनुष्य बैठा था, जो पाँवों का निर्बल था। वह जन्म ही से लँगड़ा था, और कभी न चला था। 9 वह पौलुस को बातें करते सुन रहा था और पौलुस ने उसकी ओर टकटकी लगाकर देखा कि इसको चंगा हो जाने का विश्वास है। 10 और ऊँचे शब्द से कहा, “अपने पाँवों के बल सीधा खड़ा हो।” तब वह उछलकर चलने फिरने लगा।
11 लोगों ने पौलुस का यह काम देखकर लुकाउनिया भाषा में ऊँचे शब्द से कहा, “देवता मनुष्यों के रूप में होकर हमारे पास उतर आए हैं।” 12 और उन्होंने बरनबास को ज्यूस, और पौलुस को हिर्मेस कहा क्योंकि वह बातें करने में मुख्य था। 13 और ज्यूस के उस मन्दिर का पुजारी जो उनके नगर के सामने था, बैल और फूलों के हार फाटकों पर लाकर लोगों के साथ बलिदान करना चाहता था।
14 परन्तु बरनबास और पौलुस प्रेरितों ने जब सुना, तो अपने कपड़े फाड़े, और भीड़ की ओर लपक गए, और पुकारकर कहने लगे, 15 “हे लोगों, तुम क्या करते हो? हम भी तो तुम्हारे समान दुःख-सुख भोगी मनुष्य हैं, और तुम्हें सुसमाचार सुनाते हैं, कि तुम इन व्यर्थ वस्तुओं से अलग होकर जीविते परमेश्वर की ओर फिरो, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया। (निर्ग. 20:11, भज. 146:6) 16 उसने बीते समयों में सब जातियों को अपने-अपने मार्गों में चलने दिया।
17 तो भी उसने अपने आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।” (भज. 147:8, यिर्म. 5:24) 18 यह कहकर भी उन्होंने लोगों को बड़ी कठिनाई से रोका कि उनके लिये बलिदान न करें।
19 परन्तु कितने यहूदियों ने अन्ताकिया और इकुनियुम से आकर लोगों को अपनी ओर कर लिया, और पौलुस को पत्थराव किया, और मरा समझकर उसे नगर के बाहर घसीट ले गए। 20 पर जब चेले उसकी चारों ओर आ खड़े हुए, तो वह उठकर नगर में गया और दूसरे दिन बरनबास के साथ दिरबे को चला गया।
21 और वे उस नगर के लोगों को सुसमाचार सुनाकर, और बहुत से चेले बनाकर, लुस्त्रा और इकुनियुम और अन्ताकिया को लौट आए। 22 और चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे कि विश्वास में बने रहो; और यह कहते थे, “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।”
23 और उन्होंने हर एक कलीसिया में उनके लिये प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्थना करके उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्होंने विश्वास किया था। 24 और पिसिदिया से होते हुए वे पंफूलिया में पहुँचे; 25 और पिरगा में वचन सुनाकर अत्तलिया में आए।
26 और वहाँ से जहाज द्वारा अन्ताकिया गये, जहाँ वे उस काम के लिये जो उन्होंने पूरा किया था परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपे गए। 27 वहाँ पहुँचकर, उन्होंने कलीसिया इकट्ठी की और बताया, कि परमेश्वर ने हमारे साथ होकर कैसे बड़े-बड़े काम किए! और अन्यजातियों के लिये विश्वास का द्वार खोल दिया*। 28 और वे चेलों के साथ बहुत दिन तक रहे।
1 फिर कुछ लोग यहूदिया से आकर भाइयों को सिखाने लगे: “यदि मूसा की रीति पर तुम्हारा खतना न हो तो तुम उद्धार नहीं पा सकते।” (लैव्य. 12:3) 2 जब पौलुस और बरनबास का उनसे बहुत मतभेद और विवाद हुआ तो यह ठहराया गया, कि पौलुस और बरनबास, और उनमें से कुछ व्यक्ति इस बात के विषय में प्रेरितों और प्राचीनों के पास यरूशलेम को जाएँ।
3 अतः कलीसिया ने उन्हें कुछ दूर तक पहुँचाया; और वे फीनीके और सामरिया से होते हुए अन्यजातियों के मन फिराने का समाचार सुनाते गए, और सब भाइयों को बहुत आनन्दित किया। 4 जब वे यरूशलेम में पहुँचे, तो कलीसिया और प्रेरित और प्राचीन उनसे आनन्द के साथ मिले, और उन्होंने बताया कि परमेश्वर ने उनके साथ होकर कैसे-कैसे काम किए थे।
5 परन्तु फरीसियों के पंथ में से जिन्होंने विश्वास किया था, उनमें से कितनों ने उठकर कहा, “उन्हें खतना कराने और मूसा की व्यवस्था को मानने की आज्ञा देनी चाहिए।” 6 तब प्रेरित और प्राचीन इस बात के विषय में विचार करने के लिये इकट्ठे हुए।
7 तब पतरस ने बहुत वाद-विवाद हो जाने के बाद खड़े होकर उनसे कहा,
“हे भाइयों, तुम जानते हो, कि बहुत दिन हुए, कि परमेश्वर ने तुम में से मुझे चुन लिया, कि मेरे मुँह से अन्यजातियाँ सुसमाचार का वचन सुनकर विश्वास करें।” 8 और मन के जाँचने वाले परमेश्वर ने उनको भी हमारे समान पवित्र आत्मा देकर उनकी गवाही दी; 9 और विश्वास के द्वारा उनके मन शुद्ध करके हम में और उनमें कुछ भेद न रखा।
10 तो अब तुम क्यों परमेश्वर की परीक्षा करते हो। कि चेलों की गर्दन पर ऐसा जूआ रखो, जिसे न हमारे पूर्वज उठा सकते थे और न हम उठा सकते है। 11 हाँ, हमारा यह तो निश्चय है कि जिस रीति से वे प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएँगे*; उसी रीति से हम भी पाएँगे।”
12 तब सारी सभा चुपचाप होकर बरनबास और पौलुस की सुनने लगी, कि परमेश्वर ने उनके द्वारा अन्यजातियों में कैसे-कैसे बड़े चिन्ह, और अद्भुत काम दिखाए।
13 जब वे चुप हुए, तो याकूब कहने लगा,
“हे भाइयों, मेरी सुनो। 14 शमौन ने बताया, कि परमेश्वर ने पहले पहल अन्यजातियों पर कैसी कृपादृष्टि की, कि उनमें से अपने नाम के लिये एक लोग बना ले।
15 और इससे भविष्यद्वक्ताओं की बातें भी मिलती हैं, जैसा लिखा है,
16 ‘इसके बाद मैं फिर आकर दाऊद का गिरा हुआ डेरा उठाऊँगा,
और उसके खंडहरों को फिर बनाऊँगा,
और उसे खड़ा करूँगा, (यिर्म. 12:15)
17 इसलिए कि शेष मनुष्य, अर्थात् सब अन्यजाति जो मेरे नाम के कहलाते हैं, प्रभु को ढूँढें,
18 यह वही प्रभु कहता है जो जगत की उत्पत्ति से इन बातों का समाचार देता आया है।’ (आमो. 9:9-12, यशा. 45:21)
19 इसलिए मेरा विचार यह है, कि अन्यजातियों में से जो लोग परमेश्वर की ओर फिरते हैं, हम उन्हें दुःख न दें; 20 परन्तु उन्हें लिख भेजें, कि वे मूरतों की अशुद्धताओं* और व्यभिचार और गला घोंटे हुओं के माँस से और लहू से परे रहें। (उत्प. 9:4, लैव्य. 3:17, लैव्य. 17:10-14) 21 क्योंकि पुराने समय से नगर-नगर मूसा की व्यवस्था के प्रचार करनेवाले होते चले आए है, और वह हर सब्त के दिन आराधनालय में पढ़ी जाती है।”
22 तब सारी कलीसिया सहित प्रेरितों और प्राचीनों को अच्छा लगा, कि अपने में से कुछ मनुष्यों को चुनें, अर्थात् यहूदा, जो बरसब्बास कहलाता है, और सीलास को जो भाइयों में मुखिया थे; और उन्हें पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें। 23 और उन्होंने उनके हाथ यह लिख भेजा: “अन्ताकिया और सीरिया और किलिकिया के रहनेवाले भाइयों को जो अन्यजातियों में से हैं, प्रेरितों और प्राचीन भाइयों का नमस्कार!
24 हमने सुना है, कि हम में से कुछ ने वहाँ जाकर, तुम्हें अपनी बातों से घबरा दिया; और तुम्हारे मन उलट दिए हैं परन्तु हमने उनको आज्ञा नहीं दी थी। 25 इसलिए हमने एक चित्त होकर ठीक समझा, कि चुने हुए मनुष्यों को अपने प्रिय बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजें। 26 ये तो ऐसे मनुष्य हैं, जिन्होंने अपने प्राण हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिये जोखिम में डाले हैं।
27 और हमने यहूदा और सीलास को भेजा है, जो अपने मुँह से भी ये बातें कह देंगे। 28 पवित्र आत्मा को, और हमको भी ठीक जान पड़ा कि इन आवश्यक बातों को छोड़; तुम पर और बोझ न डालें; 29 कि तुम मूरतों के बलि किए हुओं से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से दूर रहो। इनसे दूर रहो तो तुम्हारा भला होगा। आगे शुभकामना।” (उत्प. 9:4, लैव्य. 3:17, लैव्य. 17:10-14)
30 फिर वे विदा होकर अन्ताकिया में पहुँचे, और सभा को इकट्ठी करके उन्हें पत्री दे दी। 31 और वे पढ़कर उस उपदेश की बात से अति आनन्दित हुए। 32 और यहूदा और सीलास ने जो आप भी भविष्यद्वक्ता थे, बहुत बातों से भाइयों को उपदेश देकर स्थिर किया।
33 वे कुछ दिन रहकर भाइयों से शान्ति के साथ विदा हुए कि अपने भेजनेवालों के पास जाएँ। 34 (परन्तु सीलास को वहाँ रहना अच्छा लगा।) 35 और पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में रह गए: और अन्य बहुत से लोगों के साथ प्रभु के वचन का उपदेश करते और सुसमाचार सुनाते रहे।
36 कुछ दिन बाद पौलुस ने बरनबास से कहा, “जिन-जिन नगरों में हमने प्रभु का वचन सुनाया था, आओ, फिर उनमें चलकर अपने भाइयों को देखें कि कैसे हैं।” 37 तब बरनबास ने यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेने का विचार किया। 38 परन्तु पौलुस ने उसे जो पंफूलिया में उनसे अलग हो गया था, और काम पर उनके साथ न गया, साथ ले जाना अच्छा न समझा।
39 अतः ऐसा विवाद उठा कि वे एक दूसरे से अलग हो गए; और बरनबास, मरकुस को लेकर जहाज से साइप्रस को चला गया।
40 परन्तु पौलुस ने सीलास को चुन लिया, और भाइयों से परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपा जाकर वहाँ से चला गया। 41 और कलीसियाओं को स्थिर करता हुआ, सीरिया और किलिकिया से होते हुए निकला।
1 फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और वहाँ तीमुथियुस नामक एक चेला था। उसकी माँ यहूदी विश्वासी थी, परन्तु उसका पिता यूनानी था। 2 वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था। 3 पौलुस की इच्छा थी कि वह उसके साथ चले; और जो यहूदी लोग उन जगहों में थे उनके कारण उसे लेकर उसका खतना किया, क्योंकि वे सब जानते थे, कि उसका पिता यूनानी था।
4 और नगर-नगर जाते हुए वे उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराई थीं, मानने के लिये उन्हें पहुँचाते जाते थे। 5 इस प्रकार कलीसियाएँ विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रतिदिन बढ़ती गई।
6 और वे फ्रूगिया और गलातिया प्रदेशों में से होकर गए, क्योंकि पवित्र आत्मा ने उन्हें आसिया में वचन सुनाने से मना किया। 7 और उन्होंने मूसिया* के निकट पहुँचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्मा ने उन्हें जाने न दिया। 8 अतः वे मूसिया से होकर त्रोआस* में आए।
9 वहाँ पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा हुआ, उससे विनती करके कहता है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ, और हमारी सहायता कर।” 10 उसके यह दर्शन देखते ही हमने तुरन्त मकिदुनिया जाना चाहा, यह समझकर कि परमेश्वर ने हमें उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिये बुलाया है।
11 इसलिए त्रोआस से जहाज खोलकर हम सीधे सुमात्राके और दूसरे दिन नियापुलिस में आए। 12 वहाँ से हम फिलिप्पी* में पहुँचे, जो मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर, और रोमियों की बस्ती है; और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे। 13 सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए कि वहाँ प्रार्थना करने का स्थान होगा; और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे।
14 और लुदिया नाम थुआतीरा नगर की बैंगनी कपड़े बेचनेवाली एक भक्त स्त्री सुन रही थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर ध्यान लगाए। 15 और जब उसने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उसने विनती की, “यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो,” और वह हमें मनाकर ले गई।
16 जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली, जिसमें भावी कहनेवाली आत्मा थी; और भावी कहने से अपने स्वामियों के लिये बहुत कुछ कमा लाती थी। 17 वह पौलुस के और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी, “ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।” 18 वह बहुत दिन तक ऐसा ही करती रही, परन्तु पौलुस परेशान हुआ, और मुड़कर उस आत्मा से कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ, कि उसमें से निकल जा और वह उसी घड़ी निकल गई।”
19 जब उसके स्वामियों ने देखा, कि हमारी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़कर चौक में प्रधानों के पास खींच ले गए। 20 और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले जाकर कहा, “ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं; (1 राजा. 18:17) 21 और ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं, जिन्हें ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं।
22 तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उनके कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी। 23 और बहुत बेंत लगवाकर उन्होंने उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया और दरोगा को आज्ञा दी कि उन्हें सावधानी से रखे। 24 उसने ऐसी आज्ञा पा कर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए।
25 आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और कैदी उनकी सुन रहे थे। 26 कि इतने में अचानक एक बड़ा भूकम्प हुआ, यहाँ तक कि बन्दीगृह की नींव हिल गईं, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल गए।
27 और दरोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि कैदी भाग गए, अतः उसने तलवार खींचकर अपने आपको मार डालना चाहा। 28 परन्तु पौलुस ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, “अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यहीं हैं।”
29 तब वह दिया मँगवाकर भीतर आया और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा;
30 और उन्हें बाहर लाकर कहा, “हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?” 31 उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।”
32 और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया। 33 और रात को उसी घड़ी उसने उन्हें ले जाकर उनके घाव धोए, और उसने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया। 34 और उसने उन्हें अपने घर में ले जाकर, उनके आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्द किया।
35 जब दिन हुआ तब हाकिमों ने सिपाहियों के हाथ कहला भेजा कि उन मनुष्यों को छोड़ दो। 36 दरोगा ने ये बातें पौलुस से कह सुनाई, “हाकिमों ने तुम्हें छोड़ देने की आज्ञा भेज दी है, इसलिए अब निकलकर कुशल से चले जाओ।”
37 परन्तु पौलुस ने उससे कहा, “उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहराए बिना लोगों के सामने मारा और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या चुपके से निकाल देते हैं? ऐसा नहीं, परन्तु वे आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।” 38 सिपाहियों ने ये बातें हाकिमों से कह दीं, और वे यह सुनकर कि रोमी हैं, डर गए, 39 और आकर उन्हें मनाया, और बाहर ले जाकर विनती की, कि नगर से चले जाएँ।
40 वे बन्दीगृह से निकलकर लुदिया के यहाँ गए, और भाइयों से भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए।
1 फिर वे अम्फिपुलिस* और अपुल्लोनिया होकर थिस्सलुनीके में आए, जहाँ यहूदियों का एक आराधनालय था। 2 और पौलुस अपनी रीति के अनुसार उनके पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्रशास्त्रों से उनके साथ वाद-विवाद किया;
3 और उनका अर्थ खोल-खोलकर समझाता था कि मसीह का दुःख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; “यही यीशु जिसकी मैं तुम्हें कथा सुनाता हूँ, मसीह है।” 4 उनमें से कितनों ने, और भक्त यूनानियों में से बहुतों ने और बहुत सारी कुलीन स्त्रियों ने मान लिया, और पौलुस और सीलास के साथ मिल गए।
5 परन्तु यहूदियों ने ईर्ष्या से भरकर बाजारू लोगों में से कई दुष्ट मनुष्यों को अपने साथ में लिया, और भीड़ लगाकर नगर में हुल्लड़ मचाने लगे, और यासोन के घर पर चढ़ाई करके उन्हें लोगों के सामने लाना चाहा। 6 और उन्हें न पा कर, वे यह चिल्लाते हुए यासोन और कुछ भाइयों को नगर के हाकिमों के सामने खींच लाए, “ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आए हैं।
7 और यासोन ने उन्हें अपने यहाँ ठहराया है, और ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।” 8 जब भीड़ और नगर के हाकिमों ने ये बातें सुनीं, तो वे परेशान हो गये। 9 और उन्होंने यासोन और बाकी लोगों को जमानत पर छोड़ दिया।
10 भाइयों ने तुरन्त रात ही रात पौलुस और सीलास को बिरीया में भेज दिया, और वे वहाँ पहुँचकर यहूदियों के आराधनालय में गए। 11 ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रतिदिन पवित्रशास्त्रों में ढूँढ़ते रहे कि ये बातें ऐसी ही हैं कि नहीं। 12 इसलिए उनमें से बहुतों ने, और यूनानी कुलीन स्त्रियों में से और पुरुषों में से बहुतों ने विश्वास किया।
13 किन्तु जब थिस्सलुनीके के यहूदी जान गए कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्वर का वचन सुनाता है, तो वहाँ भी आकर लोगों को भड़काने और हलचल मचाने लगे। 14 तब भाइयों ने तुरन्त पौलुस को विदा किया कि समुद्र के किनारे चला जाए; परन्तु सीलास और तीमुथियुस वहीं रह गए। 15 पौलुस के पहुँचाने वाले उसे एथेंस तक ले गए, और सीलास और तीमुथियुस के लिये यह निर्देश लेकर विदा हुए कि मेरे पास अति शीघ्र आओ।
16 जब पौलुस एथेंस में उनकी प्रतीक्षा कर रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल उठा। 17 अतः वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उनसे हर दिन वाद-विवाद किया करता था।
18 तब इपिकूरी* और स्तोईकी दार्शनिकों में से कुछ उससे तर्क करने लगे, और कुछ ने कहा, “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” परन्तु दूसरों ने कहा, “वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है,” क्योंकि वह यीशु का और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था।
19 तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस* पर ले गए और पूछा, “क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? 20 क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि इनका अर्थ क्या है?” 21 (इसलिए कि सब एथेंस वासी और परदेशी जो वहाँ रहते थे नई-नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे।)
22 तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा,
“हे एथेंस के लोगों, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो। 23 क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, ‘अनजाने ईश्वर के लिये।’ इसलिए जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ।
24 जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। (1 राजा. 8:27, 2 इति. 6:18, भज. 146:6) 25 न किसी वस्तु की आवश्यकता के कारण मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और श्वांस और सब कुछ देता है। (यशा. 42:5, भज. 50:12, भज. 50:12)
26 उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उनके ठहराए हुए समय और निवास के सीमाओं को इसलिए बाँधा है, (व्य. 32:8) 27 कि वे परमेश्वर को ढूँढ़े, और शायद वे उसके पास पहुँच सके, और वास्तव में, वह हम में से किसी से दूर नहीं हैं। (यशा. 55:6, यिर्म. 23:23)
28 क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है,
“हम तो उसी के वंश भी हैं।” 29 अतः परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं कि ईश्वरत्व, सोने या चाँदी या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। (उत्प. 1:27, यशा. 40:18-20, यशा. 44:10-17)
30 इसलिए परमेश्वर ने अज्ञानता के समयों पर ध्यान नहीं दिया, पर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। 31 क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिसमें वह उस मनुष्य के द्वारा धार्मिकता से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” (भज. 9:8, भज. 72:2-4, भज. 96:13, भज. 98:9, यशा. 2:4)
32 मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो उपहास करने लगे, और कितनों ने कहा, “यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।” 33 इस पर पौलुस उनके बीच में से चला गया। 34 परन्तु कुछ मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया; जिनमें दियुनुसियुस जो अरियुपगुस का सदस्य था, और दमरिस नाम एक स्त्री थी, और उनके साथ और भी कितने लोग थे।
1 इसके बाद पौलुस एथेंस को छोड़कर कुरिन्थुस में आया। 2 और वहाँ अक्विला नामक एक यहूदी मिला, जिसका जन्म पुन्तुस में हुआ था; और अपनी पत्नी प्रिस्किल्ला के साथ इतालिया से हाल ही में आया था, क्योंकि क्लौदियुस ने सब यहूदियों को रोम से निकल जाने की आज्ञा दी थी, इसलिए वह उनके यहाँ गया। 3 और उसका और उनका एक ही व्यापार था; इसलिए वह उनके साथ रहा, और वे काम करने लगे, और उनका व्यापार तम्बू बनाने का था।
4 और वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद-विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को भी समझाता था। 5 जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस वचन सुनाने की धुन में लगकर यहूदियों को गवाही देता था कि यीशु ही मसीह है। 6 परन्तु जब वे विरोध और निन्दा करने लगे, तो उसने अपने कपड़े झाड़कर उनसे कहा, “तुम्हारा लहू तुम्हारी सिर पर रहे! मैं निर्दोष हूँ। अब से मैं अन्यजातियों के पास जाऊँगा।”
7 और वहाँ से चलकर वह तीतुस यूस्तुस नामक परमेश्वर के एक भक्त के घर में आया, जिसका घर आराधनालय से लगा हुआ था।
8 तब आराधनालय के सरदार क्रिस्पुस* ने अपने सारे घराने समेत प्रभु पर विश्वास किया; और बहुत से कुरिन्थवासी ने सुनकर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया। 9 और प्रभु ने रात को दर्शन के द्वारा पौलुस से कहा, “मत डर, वरन् कहे जा और चुप मत रह; 10 क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हानि न करेगा; क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।” (यशा. 41:10, यशा. 43:5, यिर्म. 1:8) 11 इसलिए वह उनमें परमेश्वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा।
12 जब गल्लियो अखाया देश का राज्यपाल था तो यहूदी लोग एका करके पौलुस पर चढ़ आए, और उसे न्याय आसन के सामने लाकर कहने लगे, 13 “यह लोगों को समझाता है, कि परमेश्वर की उपासना ऐसी रीति से करें, जो व्यवस्था के विपरीत है।”
14 जब पौलुस बोलने पर था, तो गल्लियो ने यहूदियों से कहा, “हे यहूदियों, यदि यह कुछ अन्याय या दुष्टता की बात होती तो उचित था कि मैं तुम्हारी सुनता। 15 परन्तु यदि यह वाद-विवाद शब्दों, और नामों, और तुम्हारे यहाँ की व्यवस्था के विषय में है, तो तुम ही जानो; क्योंकि मैं इन बातों का न्यायी बनना नहीं चाहता।”
16 और उसने उन्हें न्याय आसन के सामने से निकलवा दिया। 17 तब सब लोगों ने आराधनालय के सरदार सोस्थिनेस को पकड़ के न्याय आसन के सामने मारा। परन्तु गल्लियो ने इन बातों की कुछ भी चिन्ता न की।
18 अतः पौलुस बहुत दिन तक वहाँ रहा, फिर भाइयों से विदा होकर किंख्रिया में इसलिए सिर मुण्डाया, क्योंकि उसने मन्नत मानी थी और जहाज पर सीरिया को चल दिया और उसके साथ प्रिस्किल्ला और अक्विला थे। (गिन. 6:18) 19 और उसने इफिसुस* में पहुँचकर उनको वहाँ छोड़ा, और आप ही आराधनालय में जाकर यहूदियों से विवाद करने लगा।
20 जब उन्होंने उससे विनती की, “हमारे साथ और कुछ दिन रह।” तो उसने स्वीकार न किया; 21 परन्तु यह कहकर उनसे विदा हुआ, “यदि परमेश्वर चाहे तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊँगा।” तब इफिसुस से जहाज खोलकर चल दिया;
22 और कैसरिया में उतर कर (यरूशलेम को) गया और कलीसिया को नमस्कार करके अन्ताकिया में आया।
23 फिर कुछ दिन रहकर वहाँ से चला गया, और एक ओर से गलातिया और फ्रूगिया में सब चेलों को स्थिर करता फिरा।
24 अपुल्लोस नामक एक यहूदी जिसका जन्म सिकन्दरिया* में हुआ था, जो विद्वान पुरुष था और पवित्रशास्त्र को अच्छी तरह से जानता था इफिसुस में आया। 25 उसने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक-ठीक सुनाता और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था। 26 वह आराधनालय में निडर होकर बोलने लगा, पर प्रिस्किल्ला और अक्विला उसकी बातें सुनकर, उसे अपने यहाँ ले गए और परमेश्वर का मार्ग उसको और भी स्पष्ट रूप से बताया।
27 और जब उसने निश्चय किया कि पार उतरकर अखाया को जाए तो भाइयों ने उसे ढाढ़स देकर चेलों को लिखा कि वे उससे अच्छी तरह मिलें, और उसने पहुँचकर वहाँ उन लोगों की बड़ी सहायता की जिन्होंने अनुग्रह के कारण विश्वास किया था। 28 अपुल्लोस ने अपनी शक्ति और कौशल के साथ यहूदियों को सार्वजनिक रूप से अभिभूत किया, पवित्रशास्त्र से प्रमाण दे देकर कि यीशु ही मसीह है।
1 जब अपुल्लोस कुरिन्थुस में था, तो पौलुस ऊपर के सारे देश से होकर इफिसुस में आया और वहाँ कुछ चेले मिले। 2 उसने कहा, “क्या तुम ने विश्वास करते समय पवित्र आत्मा पाया*?” उन्होंने उससे कहा, “हमने तो पवित्र आत्मा की चर्चा भी नहीं सुनी।”
3 उसने उनसे कहा, “तो फिर तुम ने किसका बपतिस्मा लिया?” उन्होंने कहा, “यूहन्ना का बपतिस्मा।” 4 पौलुस ने कहा, “यूहन्ना ने यह कहकर मन फिराव का बपतिस्मा दिया, कि जो मेरे बाद आनेवाला है, उस पर अर्थात् यीशु पर विश्वास करना।”
5 यह सुनकर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा लिया। 6 और जब पौलुस ने उन पर हाथ रखे, तो उन पर पवित्र आत्मा उतरा, और वे भिन्न-भिन्न भाषा बोलने और भविष्यद्वाणी करने लगे। 7 ये सब लगभग बारह पुरुष थे।
8 और वह आराधनालय में जाकर तीन महीने तक निडर होकर बोलता रहा, और परमेश्वर के राज्य के विषय में विवाद करता और समझाता रहा। 9 परन्तु जब कुछ लोगों ने कठोर होकर उसकी नहीं मानी वरन् लोगों के सामने इस पंथ को बुरा कहने लगे, तो उसने उनको छोड़कर चेलों को अलग कर लिया, और प्रतिदिन तुरन्नुस की पाठशाला में वाद-विवाद किया करता था। 10 दो वर्ष तक यही होता रहा, यहाँ तक कि आसिया के रहनेवाले क्या यहूदी, क्या यूनानी सब ने प्रभु का वचन सुन लिया।
11 और परमेश्वर पौलुस के हाथों से सामर्थ्य के अद्भुत काम दिखाता था। 12 यहाँ तक कि रूमाल और अँगोछे उसकी देह से स्पर्श कराकर बीमारों पर डालते थे, और उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती थी; और दुष्टात्माएँ उनमें से निकल जाया करती थीं।
13 परन्तु कुछ यहूदी जो झाड़ा फूँकी करते फिरते थे, यह करने लगे कि जिनमें दुष्टात्मा हों उन पर प्रभु यीशु का नाम यह कहकर फूँकने लगे, “जिस यीशु का प्रचार पौलुस करता है, मैं तुम्हें उसी की शपथ देता हूँ।” 14 और स्क्किवा* नाम के एक यहूदी प्रधान याजक के सात पुत्र थे, जो ऐसा ही करते थे।
15 पर दुष्टात्मा ने उत्तर दिया, “यीशु को मैं जानती हूँ, और पौलुस को भी पहचानती हूँ; परन्तु तुम कौन हो?” 16 और उस मनुष्य ने जिसमें दुष्ट आत्मा थी; उन पर लपककर, और उन्हें काबू में लाकर, उन पर ऐसा उपद्रव किया, कि वे नंगे और घायल होकर उस घर से निकल भागे। 17 और यह बात इफिसुस के रहनेवाले यहूदी और यूनानी भी सब जान गए, और उन सब पर भय छा गया; और प्रभु यीशु के नाम की बड़ाई हुई।
18 और जिन्होंने विश्वास किया था, उनमें से बहुतों ने आकर अपने-अपने बुरे कामों को मान लिया और प्रगट किया। 19 और जादू टोना करनेवालों में से बहुतों ने अपनी-अपनी पोथियाँ इकट्ठी करके सब के सामने जला दीं; और जब उनका दाम जोड़ा गया, जो पचास हजार चाँदी के सिक्कों के बराबर निकला। 20 इस प्रकार प्रभु का वचन सामर्थ्यपूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।
21 जब ये बातें हो चुकी तो पौलुस ने आत्मा में ठाना कि मकिदुनिया और अखाया* से होकर यरूशलेम को जाऊँ, और कहा, “वहाँ जाने के बाद मुझे रोम को भी देखना अवश्य है।” 22 इसलिए अपनी सेवा करनेवालों में से तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया में भेजकर आप कुछ दिन आसिया में रह गया।
23 उस समय उस पन्थ के विषय में बड़ा हुल्लड़ हुआ। 24 क्योंकि दिमेत्रियुस नाम का एक सुनार अरतिमिस के चाँदी के मन्दिर बनवाकर, कारीगरों को बहुत काम दिलाया करता था। 25 उसने उनको और ऐसी वस्तुओं के कारीगरों को इकट्ठे करके कहा, “हे मनुष्यों, तुम जानते हो कि इस काम से हमें कितना धन मिलता है। 26 और तुम देखते और सुनते हो कि केवल इफिसुस ही में नहीं, वरन् प्रायः सारे आसिया में यह कह कहकर इस पौलुस ने बहुत लोगों को समझाया और भरमाया भी है, कि जो हाथ की कारीगरी है, वे ईश्वर नहीं। 27 और अब केवल इसी एक बात का ही डर नहीं कि हमारे इस धन्धे की प्रतिष्ठा जाती रहेगी; वरन् यह कि महान देवी अरतिमिस का मन्दिर तुच्छ समझा जाएगा और जिसे सारा आसिया और जगत पूजता है उसका महत्व भी जाता रहेगा।”
28 वे यह सुनकर क्रोध से भर गए और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “इफिसियों की अरतिमिस, महान है!” 29 और सारे नगर में बड़ा कोलाहल मच गया और लोगों ने गयुस और अरिस्तर्खुस, मकिदुनियों को जो पौलुस के संगी यात्री थे, पकड़ लिया, और एक साथ होकर रंगशाला में दौड़ गए।
30 जब पौलुस ने लोगों के पास भीतर जाना चाहा तो चेलों ने उसे जाने न दिया। 31 आसिया के हाकिमों में से भी उसके कई मित्रों ने उसके पास कहला भेजा और विनती की, कि रंगशाला में जाकर जोखिम न उठाना। 32 वहाँ कोई कुछ चिल्लाता था, और कोई कुछ; क्योंकि सभा में बड़ी गड़बड़ी हो रही थी, और बहुत से लोग तो यह जानते भी नहीं थे कि वे किस लिये इकट्ठे हुए हैं।
33 तब उन्होंने सिकन्दर को, जिसे यहूदियों ने खड़ा किया था, भीड़ में से आगे बढ़ाया, और सिकन्दर हाथ से संकेत करके लोगों के सामने उत्तर देना चाहता था।
34 परन्तु जब उन्होंने जान लिया कि वह यहूदी है, तो सब के सब एक स्वर से कोई दो घंटे तक चिल्लाते रहे, “इफिसियों की अरतिमिस, महान है।” 35 तब नगर के मंत्री ने लोगों को शान्त करके कहा, “हे इफिसियों, कौन नहीं जानता, कि इफिसियों का नगर बड़ी देवी अरतिमिस के मन्दिर, और आकाश से गिरी हुई मूरत का रखवाला है। 36 अतः जब कि इन बातों का खण्डन ही नहीं हो सकता, तो उचित है, कि तुम शान्त रहो; और बिना सोचे-विचारे कुछ न करो। 37 क्योंकि तुम इन मनुष्यों को लाए हो, जो न मन्दिर के लूटनेवाले है, और न हमारी देवी के निन्दक हैं।
38 यदि दिमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों को किसी से विवाद हो तो कचहरी खुली है, और हाकिम भी हैं; वे एक दूसरे पर आरोप लगाए। 39 परन्तु यदि तुम किसी और बात के विषय में कुछ पूछना चाहते हो, तो नियत सभा में फैसला किया जाएगा। 40 क्योंकि आज के बलवे के कारण हम पर दोष लगाए जाने का डर है, इसलिए कि इसका कोई कारण नहीं, अतः हम इस भीड़ के इकट्ठा होने का कोई उत्तर न दे सकेंगे।” 41 और यह कह के उसने सभा को विदा किया।
1 जब हुल्लड़ थम गया तो पौलुस ने चेलों को बुलवाकर समझाया, और उनसे विदा होकर मकिदुनिया की ओर चल दिया। 2 उस सारे प्रदेश में से होकर और चेलों को बहुत उत्साहित कर वह यूनान में आया। 3 जब तीन महीने रहकर वह वहाँ से जहाज पर सीरिया की ओर जाने पर था, तो यहूदी उसकी घात में लगे, इसलिए उसने यह निश्चय किया कि मकिदुनिया होकर लौट जाए।
4 बिरीया के पुरूर्स का पुत्र सोपत्रुस और थिस्सलुनीकियों में से अरिस्तर्खुस और सिकुन्दुस और दिरबे का गयुस, और तीमुथियुस और आसिया का तुखिकुस और त्रुफिमुस आसिया तक उसके साथ हो लिए। 5 पर वे आगे जाकर त्रोआस में हमारी प्रतीक्षा करते रहे। 6 और हम अख़मीरी रोटी के दिनों के बाद फिलिप्पी से जहाज पर चढ़कर पाँच दिन में त्रोआस में उनके पास पहुँचे, और सात दिन तक वहीं रहे।
7 सप्ताह के पहले दिन जब हम रोटी तोड़ने के लिये इकट्ठे हुए, तो पौलुस ने जो दूसरे दिन चले जाने पर था, उनसे बातें की, और आधी रात तक उपदेश देता रहा। 8 जिस अटारी पर हम इकट्ठे थे, उसमें बहुत दीये जल रहे थे।
9 और यूतुखुस नाम का एक जवान खिड़की पर बैठा हुआ गहरी नींद से झुक रहा था, और जब पौलुस देर तक बातें करता रहा तो वह नींद के झोके में तीसरी अटारी पर से गिर पड़ा, और मरा हुआ उठाया गया। 10 परन्तु पौलुस उतरकर उससे लिपट गया*, और गले लगाकर कहा, “घबराओ नहीं; क्योंकि उसका प्राण उसी में है।” (1 राजा. 17:21)
11 और ऊपर जाकर रोटी तोड़ी और खाकर इतनी देर तक उनसे बातें करता रहा कि पौ फट गई; फिर वह चला गया।
12 और वे उस जवान को जीवित ले आए, और बहुत शान्ति पाई।
13 हम पहले से जहाज पर चढ़कर अस्सुस को इस विचार से आगे गए, कि वहाँ से हम पौलुस को चढ़ा लें क्योंकि उसने यह इसलिए ठहराया था, कि आप ही पैदल जानेवाला था। 14 जब वह अस्सुस में हमें मिला तो हम उसे चढ़ाकर मितुलेने* में आए।
15 और वहाँ से जहाज खोलकर हम दूसरे दिन खियुस के सामने पहुँचे, और अगले दिन सामुस में जा पहुँचे, फिर दूसरे दिन मीलेतुस में आए। 16 क्योंकि पौलुस ने इफिसुस के पास से होकर जाने की ठानी थी, कि कहीं ऐसा न हो, कि उसे आसिया में देर लगे; क्योंकि वह जल्दी में था, कि यदि हो सके, तो वह पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में रहे।
17 और उसने मीलेतुस से इफिसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया। 18 जब वे उसके पास आए, तो उनसे कहा,
“तुम जानते हो, कि पहले ही दिन से जब मैं आसिया में पहुँचा, मैं हर समय तुम्हारे साथ किस प्रकार रहा। 19 अर्थात् बड़ी दीनता से, और आँसू बहा-बहाकर, और उन परीक्षाओं में जो यहूदियों के षड़यंत्र के कारण जो मुझ पर आ पड़ी; मैं प्रभु की सेवा करता ही रहा। 20 और जो-जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उनको बताने और लोगों के सामने और घर-घर सिखाने से कभी न झिझका। 21 वरन् यहूदियों और यूनानियों को चेतावनी देता रहा कि परमेश्वर की ओर मन फिराए, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करे।
22 और अब, मैं आत्मा में बंधा हुआ* यरूशलेम को जाता हूँ, और नहीं जानता, कि वहाँ मुझ पर क्या-क्या बीतेगा, 23 केवल यह कि पवित्र आत्मा हर नगर में गवाही दे-देकर मुझसे कहता है कि बन्धन और क्लेश तेरे लिये तैयार है। 24 परन्तु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझता कि उसे प्रिय जानूँ, वरन् यह कि मैं अपनी दौड़ को, और उस सेवा को पूरी करूँ, जो मैंने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिये प्रभु यीशु से पाई है।
25 और अब मैं जानता हूँ, कि तुम सब जिनमें मैं परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता फिरा, मेरा मुँह फिर न देखोगे। 26 इसलिए मैं आज के दिन तुम से गवाही देकर कहता हूँ, कि मैं सब के लहू से निर्दोष हूँ। 27 क्योंकि मैं परमेश्वर की सारी मनसा को तुम्हें पूरी रीति से बताने से न झिझका। 28 इसलिए अपनी और पूरे झुण्ड की देख-रेख करो; जिसमें पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने लहू से मोल लिया है। (भज. 74:2) 29 मैं जानता हूँ, कि मेरे जाने के बाद फाड़नेवाले भेड़िए तुम में आएँगे, जो झुण्ड को न छोड़ेंगे। 30 तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे-ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।
31 इसलिए जागते रहो, और स्मरण करो कि मैंने तीन वर्ष तक रात दिन आँसू बहा-बहाकर, हर एक को चितौनी देना न छोड़ा। 32 और अब मैं तुम्हें परमेश्वर को, और उसके अनुग्रह के वचन को सौंप देता हूँ; जो तुम्हारी उन्नति कर सकता है, और सब पवित्र किये गये लोगों में सहभागी होकर विरासत दे सकता है।
33 मैंने किसी के चाँदी, सोने या कपड़े का लालच नहीं किया। (1 शमू. 12:3) 34 तुम आप ही जानते हो कि इन्हीं हाथों ने मेरी और मेरे साथियों की आवश्यकताएँ पूरी की। 35 मैंने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना, और प्रभु यीशु की बातें स्मरण रखना अवश्य है, कि उसने आप ही कहा है: ‘लेने से देना धन्य है’।”
36 यह कहकर उसने घुटने टेके और उन सब के साथ प्रार्थना की। 37 तब वे सब बहुत रोए और पौलुस के गले लिपट कर उसे चूमने लगे। 38 वे विशेष करके इस बात का शोक करते थे, जो उसने कही थी, कि तुम मेरा मुँह फिर न देखोगे। और उन्होंने उसे जहाज तक पहुँचाया।
“हुल्लड़ के थमने के बाद”
एक-दूसरे से विदा ली
“चेलों का उत्साह बढाने के लिए बहुत सी बातें कहीं”
“तीन महीने रहने के बाद”
“यहूदियों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र किया”
“उसके विरुद्ध एक गुप्त योजना बना ली’
“सीरिया की ओर जाने को तैयार था”
“पौलुस के साथ यात्रा कर रहे हैं”
प्रेरितों का लेखक,लूका, दल में फिर से शामिल हो गया है। वैकल्पिक अनुवाद: हमसे आगे यात्रा की है।
“रविवार को”
प्रभु भोज के दौरान रोटी तोड़ी और खाई गयी (यूडीबी)
“बातें करता रहा”
यह शायद घर की मंजिल का तीसरा तल था।
वह गहरी नींद में सोया हुआ था
“भूतल से दो तल ऊपर”
मारा हुआ उठाया गया - जब वे उसे नीचे उठाने गए तो देख कि वह मर चुका है।
गले लगाकर - “छाती से लगाकर”(यूडीबी)
गले लगाकर कहा - “गले लगाकर पौलुस ने कहा”
“युतुखुस अभी जीवित है”
“पौलुस ऊपर गया”
“सबके साथ भोजन किया।” रोटी तोड़कर सबमे बांटना इसी में शामिल है।
“वह वहाँ से चला गया”
संभावित अर्थ: 1) 14 साल से बड़ा लड़का (यूडीबी), 2) सेवक या दास, 3) या फिर 9-14 के बीच की उम्र का कोई लड़का.
यहाँ ये शब्द बताते हैं कि लूका और सहयात्रियों को पौलुस से अलग करता है, जो जहाज से नहीं गया था।
“वह पैदल जाना चाहता था”
आधुनिक बेहराम, तुर्की के ठीक नीचे, एजियन समुद्र के तट पर स्थित एक नगर है।
“हम” शब्द का आशय लूका और उसके सहयात्रियों से है, लेकिन इसमें पौलुस शामिल नहीं है।
एजियन समुद्र के तट पर आधुनिक मितिलिनी, तुर्की में स्थित एक नगर।
“हम” का आशय पौलुस, लूका, और उनके सहयात्रियों से है।
खियुस एजियन समुद्र से घिरे आधुनिक तुर्की के तट से दूर स्थित टापू।
खियुस के दक्षिण में स्थित टापू। वैकल्पिक अनुवाद: “हम सामुस टापू पर पहुंचें”
मीलेतुस, पश्चिम एशिया माइनर में मीऐनडर नदी के मुहाने पर स्थित एक बंदरगाह है।
पौलुस इफिसुस से होते हुए आगे दक्षिण में मीलेतुस की ओर गया
प्रेरितों में मीलेतुस के अनुवाद का सन्दर्भ
आसिया में आते ही - “आसिया में प्रवेश करते ही”
“नम्रता” अथवा “विनय के साथ”
प्रभु की सेवा करते हुए मैं कई बार रोया
“न कतराया” अथवा “स्वयं को न रोका”
घर-घर सिखाने -अर्थात, उसने लोगों को उनके घरों में जाकर व्यक्तिगत रूप से सिखाया।
“अपने पाप से फिर कर परमेश्वर की ओर आना”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“पवित्र आत्मा द्वारा विवश होकर यरूशलेम को जाता हूँ”
“पवित्र आत्मा ये चेतावनियाँ मुझे देता है”
“कि मैं बंधनों में जकड़ कर कैद में डाला जानेवाला और शारीरिक कष्ट भोगनेवाला हूँ”
“परमेश्वर के दिए काम पूरे करूं”
“गवाह हूँ”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“मैं जानता हूँ कि तुम सभी”
“जिन्हें मैंने परमेश्वर के राज्य का उपदेश दिया”
“अब मुझे फिर न देखोगे”
“परमेश्वर द्वारा किसी को अपराधी ठहराए जाने पर मुझे दोष नहीं दिया जा सकता”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
यह एक आलंकारिक अभिव्यक्ति है। जिस प्रकार एक गडरिया भेडियों से अपनी भेड़ों की रक्षा करता है, वैसे ही कलीसिया के अगुओं को अपनी अगुवाई के अंतर्गत आनेवाले लोगों की देखरेख व शत्रु से रक्षा करनी चाहिए।
“क्रूस पर अपने लहू को बहा कर मसीह ने जिन्हें मोल लिया है।
“मसीह का अनुकरण करनेवालों को अपनी, झूठी शिक्षा का विश्वास दिलाने का प्रयास करेंगे”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“सावधान और सचेत रहो” या फिर, “रखवाली करते रहो” (यूडीबी)
“और लगातार याद करों” या फिर, “भूलो मत”
इसे यूं भी लिख सकते हैं कि : 1) “सतर्क रहो और याद करो” या फिर, 2) “याद करते समय जागते रहो” अथवा 3) याद करो और सतर्क रहो
पौलुस ने उन्हें तीन सालों तक लगातार शिक्षा नहीं दी थी, वरन तीन सालों के दौरान बीच-बीच में शिक्षा दी थी
संभावित अर्थ: 1) “चेताना न छोड़ा” या फिर 2) “मैंने सुधार करना और प्रोत्साहन देना न छोड़ा।”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“मैंने किसी की चांदी की इच्छा नहीं की” या फिर, “मुझे किसी की चांदी नहीं चाहिए”
कपड़ों को निधि समझा जाता था; जितने अधिक कपड़े आपके पास हैं, आप उतने ही अमीर है।
“आप ही” को बात में प्रभाव उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया गया है।
" मैं अपने हाँथों से काम करके पैसा कमाते है और अपना कर्चा उठाते हूँ।"
“कड़ा परिश्रम करो ताकि उन लोगों की मदद कर सकों जो लाचार हैं”
देने से व्यक्ति को पमरेश्वर के अनुग्रह एवं आनंद का अधिक अनुभव होता है।
“पौलुस से गले लग कर” या फिर, “पौलुस से गले मिले”
मध्यपूर्व में किसी को चूमना उसके प्रति भाईचारा और स्नेह व्यक्त करने का तरीका है।
"वे पौलुस को पृथ्वी पर फिर नहीं देख पाएगा" “ मुंह” पौलुस के सन्दर्भ में है
सीरिया की ओर जाने पर था, तो यहूदी उसकी घात में लगे, इसलिये उस ने यह सलाह की कि मकिदुनिया होकर लौट आए।
सप्ताह के पहले दिन पौलुस और अन्य विश्वासी रोटी तोड़ने के लिए इकट्ठे हुए।
जवान तीसरी अटारी पर से गिर पड़ा और मरा हुआ उठाया गया, पर पौलुस उतरकर उससे लिपट गया और लड़का जीवित हो गया।
पौलुस को यरूशलेम जाने की जल्दी थी क्योंकि वह वहां पिन्तेकुस्त के दिन रहना चाहता था।
पौलुस ने कहा कि उसने यहूदियों और यूनानियों दोनों को मन फिराने और प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने की चेतावनी दी।
पवित्र आत्मा पौलुस को गवाही दे रही थी कि बन्धन और क्लेश तेरे लिए तैयार है।
पौलुस की सेवकाई सुसमाचार पर गवाही देने के लिए जो उसने प्रभु यीशु से पाई है थी।
पौलुस ने कहा कि वह किसी भी मनुष्य के लहू से निर्दोष है क्योंकि उसने परमेश्वर के सारे अभिप्राय उन्हें पूरी रीति से बताए थे।
पौलुस ने प्राचीनों को पूरे झुंड की चौकसी से निगरानी करने का निर्देश दिया।
पौलुस ने कहा कि कुछ प्राचीन चेलों को अपने पीछे खींचने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें करेंगे।
पौलुस ने इफिसियों के प्राचीनों को परमेश्वर के हाथों में सौंपा।
पौलुस ने अपनी और अपने साथियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने हाथों से काम किया और निर्बलों की सहायता की।
इफिसियों के प्राचीनों ने सबसे अधिक इस बात का शोक किया कि पौलुस ने उनसे कहा कि तुम मेरा मुँह फिर न देखोगे।
1 जब हमने उनसे अलग होकर समुद्री यात्रा प्रारंभ किया, तो सीधे मार्ग से कोस में आए, और दूसरे दिन रूदुस में, और वहाँ से पतरा में; 2 और एक जहाज फीनीके को जाता हुआ मिला, और हमने उस पर चढ़कर, उसे खोल दिया।
3 जब साइप्रस दिखाई दिया, तो हमने उसे बाएँ हाथ छोड़ा, और सीरिया को चलकर सूर में उतरे; क्योंकि वहाँ जहाज का बोझ उतारना था। 4 और चेलों को पा कर हम वहाँ सात दिन तक रहे। उन्होंने आत्मा के सिखाए पौलुस से कहा कि यरूशलेम में पाँव न रखना।
5 जब वे दिन पूरे हो गए, तो हम वहाँ से चल दिए; और सब स्त्रियों और बालकों समेत हमें नगर के बाहर तक पहुँचाया और हमने किनारे पर घुटने टेककर प्रार्थना की। 6 तब एक दूसरे से विदा होकर, हम तो जहाज पर चढ़े, और वे अपने-अपने घर लौट गए।
7 जब हम सूर से जलयात्रा पूरी करके पतुलिमयिस* में पहुँचे, और भाइयों को नमस्कार करके उनके साथ एक दिन रहे। 8 दूसरे दिन हम वहाँ से चलकर कैसरिया में आए, और फिलिप्पुस सुसमाचार प्रचारक के घर में जो सातों में से एक था, जाकर उसके यहाँ रहे। 9 उसकी चार कुँवारी पुत्रियाँ थीं; जो भविष्यद्वाणी करती थीं। (योए. 2:28)
10 जब हम वहाँ बहुत दिन रह चुके, तो अगबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता यहूदिया से आया। 11 उसने हमारे पास आकर पौलुस का कमरबन्द लिया, और अपने हाथ पाँव बाँधकर कहा, “पवित्र आत्मा यह कहता है, कि जिस मनुष्य का यह कमरबन्द है, उसको यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बाँधेंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे।”
12 जब हमने ये बातें सुनी, तो हम और वहाँ के लोगों ने उससे विनती की, कि यरूशलेम को न जाए। 13 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “तुम क्या करते हो, कि रो-रोकर मेरा मन तोड़ते हो? मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिये यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने ही के लिये वरन् मरने के लिये भी तैयार हूँ।” 14 जब उसने न माना तो हम यह कहकर चुप हो गए, “प्रभु की इच्छा पूरी हो।”
15 उन दिनों के बाद हमने तैयारी की और यरूशलेम को चल दिए। 16 कैसरिया के भी कुछ चेले हमारे साथ हो लिए, और मनासोन नामक साइप्रस के एक पुराने चेले को साथ ले आए, कि हम उसके यहाँ टिकें।
17 जब हम यरूशलेम में पहुँचे, तो भाई बड़े आनन्द के साथ हम से मिले। 18 दूसरे दिन पौलुस हमें लेकर याकूब के पास गया, जहाँ सब प्राचीन इकट्ठे थे। 19 तब उसने उन्हें नमस्कार करके, जो-जो काम परमेश्वर ने उसकी सेवकाई के द्वारा अन्यजातियों में किए थे, एक-एक करके सब बताया।
20 उन्होंने यह सुनकर परमेश्वर की महिमा की, फिर उससे कहा, “हे भाई, तू देखता है, कि यहूदियों में से कई हजार ने विश्वास किया है; और सब व्यवस्था के लिये धुन लगाए हैं। 21 और उनको तेरे विषय में सिखाया गया है, कि तू अन्यजातियों में रहनेवाले यहूदियों को मूसा से फिर जाने को सिखाता है, और कहता है, कि न अपने बच्चों का खतना कराओ ओर न रीतियों पर चलो।
22 तो फिर क्या किया जाए? लोग अवश्य सुनेंगे कि तू यहाँ आया है। 23 इसलिए जो हम तुझ से कहते हैं, वह कर। हमारे यहाँ चार मनुष्य हैं, जिन्होंने मन्नत मानी है। 24 उन्हें लेकर उसके साथ अपने आप को शुद्ध कर; और उनके लिये खर्चा दे, कि वे सिर मुँड़ाएँ। तब सब जान लेंगे, कि जो बातें उन्हें तेरे विषय में सिखाई गईं, उनकी कुछ जड़ नहीं है परन्तु तू आप भी व्यवस्था को मानकर उसके अनुसार चलता है। (गिन. 6:5, गिन. 6:13-18, गिन. 6:21)
25 परन्तु उन अन्यजातियों के विषय में जिन्होंने विश्वास किया है, हमने यह निर्णय करके लिख भेजा है कि वे मूर्तियों के सामने बलि किए हुए माँस से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से, बचे रहें।” 26 तब पौलुस उन मनुष्यों को लेकर, और दूसरे दिन उनके साथ शुद्ध होकर मन्दिर में गया, और वहाँ बता दिया, कि शुद्ध होने के दिन, अर्थात् उनमें से हर एक के लिये चढ़ावा चढ़ाए जाने तक के दिन कब पूरे होंगे। (गिन. 6:13-21)
27 जब वे सात दिन पूरे होने पर थे, तो आसिया के यहूदियों ने पौलुस को मन्दिर में देखकर सब लोगों को भड़काया, और यों चिल्ला-चिल्लाकर उसको पकड़ लिया, 28 “हे इस्राएलियों, सहायता करो; यह वही मनुष्य है, जो लोगों के, और व्यवस्था के, और इस स्थान के विरोध में हर जगह सब लोगों को सिखाता है, यहाँ तक कि यूनानियों को भी मन्दिर में लाकर उसने इस पवित्रस्थान को अपवित्र किया है।” 29 उन्होंने तो इससे पहले इफिसुस वासी त्रुफिमुस* को उसके साथ नगर में देखा था, और समझते थे कि पौलुस उसे मन्दिर में ले आया है।
30 तब सारे नगर में कोलाहल मच गया, और लोग दौड़कर इकट्ठे हुए, और पौलुस को पकड़कर मन्दिर के बाहर घसीट लाए, और तुरन्त द्वार बन्द किए गए। 31 जब वे उसे मार डालना चाहते थे, तो सैन्य-दल के सरदार को सन्देश पहुँचा कि सारे यरूशलेम में कोलाहल मच रहा है।
32 तब वह तुरन्त सिपाहियों और सूबेदारों को लेकर उनके पास नीचे दौड़ आया; और उन्होंने सैन्य-दल के सरदार को और सिपाहियों को देखकर पौलुस को मारना-पीटना रोक दिया। 33 तब सैन्य-दल के सरदार ने पास आकर उसे पकड़ लिया; और दो जंजीरों से बाँधने की आज्ञा देकर पूछने लगा, “यह कौन है, और इसने क्या किया है?”
34 परन्तु भीड़ में से कोई कुछ और कोई कुछ चिल्लाते रहे और जब हुल्लड़ के मारे ठीक सच्चाई न जान सका, तो उसे गढ़ में ले जाने की आज्ञा दी। 35 जब वह सीढ़ी पर पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि भीड़ के दबाव के मारे सिपाहियों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा। 36 क्योंकि लोगों की भीड़ यह चिल्लाती हुई उसके पीछे पड़ी, “उसका अन्त कर दो।”
37 जब वे पौलुस को गढ़ में ले जाने पर थे, तो उसने सैन्य-दल के सरदार से कहा, “क्या मुझे आज्ञा है कि मैं तुझ से कुछ कहूँ?” उसने कहा, “क्या तू यूनानी जानता है? 38 क्या तू वह मिस्री नहीं, जो इन दिनों से पहले बलवाई बनाकर चार हजार हथियारबंद लोगों को जंगल में ले गया?”
39 पौलुस ने कहा, “मैं तो तरसुस का यहूदी मनुष्य हूँ! किलिकिया के प्रसिद्ध नगर का निवासी हूँ। और मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मुझे लोगों से बातें करने दे।” 40 जब उसने आज्ञा दी, तो पौलुस ने सीढ़ी पर खड़े होकर लोगों को हाथ से संकेत किया। जब वे चुप हो गए, तो वह इब्रानी भाषा में बोलने लगा:
1 “हे भाइयों और पिताओं, मेरा प्रत्युत्तर सुनो, जो मैं अब तुम्हारे सामने कहता हूँ।”
2 वे यह सुनकर कि वह उनसे इब्रानी भाषा में बोलता है, वे चुप रहे। तब उसने कहा:
3 “मैं तो यहूदी शिक्षा पाए हूँ, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल* के पाँवों के पास बैठकर शिक्षा प्राप्त की, और पूर्वजों की व्यवस्था भी ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो। 4 मैंने पुरुष और स्त्री दोनों को बाँधकर, और बन्दीगृह में डालकर, इस पंथ को यहाँ तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला। 5 स्वयं महायाजक और सब पुरनिए गवाह हैं; कि उनमें से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियाँ लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहाँ हों उन्हें दण्ड दिलाने के लिये बाँधकर यरूशलेम में लाऊँ।
6 “जब मैं यात्रा करके दमिश्क के निकट पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग अचानक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी। 7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह वाणी सुना, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?’ 8 मैंने उत्तर दिया, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ उसने मुझसे कहा, ‘मैं यीशु नासरी हूँ, जिसे तू सताता है।’
9 और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझसे बोलता था उसकी वाणी न सुनी। 10 तब मैंने कहा, ‘हे प्रभु, मैं क्या करूँ?’ प्रभु ने मुझसे कहा, ‘उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहाँ तुझे सब बता दिया जाएगा।’ 11 जब उस ज्योति के तेज के कारण मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया।
12 “तब हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहाँ के रहनेवाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया, 13 और खड़ा होकर मुझसे कहा, ‘हे भाई शाऊल, फिर देखने लग।’ उसी घड़ी मेरी आँखें खुल गई और मैंने उसे देखा।
14 तब उसने कहा, ‘हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने तुझे इसलिए ठहराया है कि तू उसकी इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुँह से बातें सुने। 15 क्योंकि तू उसकी ओर से सब मनुष्यों के सामने उन बातों का गवाह होगा, जो तूने देखी और सुनी हैं। 16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर*अपने पापों को धो डाल।’ (योए. 2:32)
17 “जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया। 18 और उसको देखा कि मुझसे कहता है, ‘जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा; क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे।’
19 मैंने कहा, ‘हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करनेवालों को बन्दीगृह में डालता और जगह-जगह आराधनालय में पिटवाता था। 20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लहू बहाया जा रहा था तब भी मैं वहाँ खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके हत्यारों के कपड़ों की रखवाली करता था।’ 21 और उसने मुझसे कहा, ‘चला जा: क्योंकि मैं तुझे अन्यजातियों के पास दूर-दूर भेजूँगा’।”
22 वे इस बात तक उसकी सुनते रहे; तब ऊँचे शब्द से चिल्लाए, “ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहना उचित नहीं!” 23 जब वे चिल्लाते और कपड़े फेंकते और आकाश में धूल उड़ाते थे*; 24 तो सैन्य-दल के सूबेदार ने कहा, “इसे गढ़ में ले जाओ; और कोड़े मारकर जाँचो, कि मैं जानूँ कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं।”
25 जब उन्होंने उसे तसमों से बाँधा तो पौलुस ने उस सूबेदार से जो उसके पास खड़ा था कहा, “क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारो?” 26 सूबेदार ने यह सुनकर सैन्य-दल के सरदार के पास जाकर कहा, “तू यह क्या करता है? यह तो रोमी मनुष्य है।”
27 तब सैन्य-दल के सरदार ने उसके पास आकर कहा, “मुझे बता, क्या तू रोमी है?” उसने कहा, “हाँ।” 28 यह सुनकर सैन्य-दल के सरदार ने कहा, “मैंने रोमी होने का पद बहुत रुपये देकर पाया है।” पौलुस ने कहा, “मैं तो जन्म से रोमी हूँ।” 29 तब जो लोग उसे जाँचने पर थे, वे तुरन्त उसके पास से हट गए; और सैन्य-दल का सरदार भी यह जानकर कि यह रोमी है, और उसने उसे बाँधा है, डर गया।
30 दूसरे दिन वह ठीक-ठीक जानने की इच्छा से कि यहूदी उस पर क्यों दोष लगाते हैं, इसलिए उसके बन्धन खोल दिए; और प्रधान याजकों और सारी महासभा को इकट्ठे होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया।
1 पौलुस ने महासभा की ओर टकटकी लगाकर देखा, और कहा, “हे भाइयों, मैंने आज तक परमेश्वर के लिये बिलकुल सच्चे विवेक से जीवन बिताया है।” 2 हनन्याह महायाजक ने, उनको जो उसके पास खड़े थे, उसके मुँह पर थप्पड़ मारने की आज्ञा दी। 3 तब पौलुस ने उससे कहा, “हे चूना फिरी हुई भीत, परमेश्वर तुझे मारेगा। तू व्यवस्था के अनुसार मेरा न्याय करने को बैठा है, और फिर क्या व्यवस्था के विरुद्ध मुझे मारने की आज्ञा देता है?” (लैव्य. 19:15, यहे. 13:10-15)
4 जो पास खड़े थे, उन्होंने कहा, “क्या तू परमेश्वर के महायाजक को बुरा-भला कहता है?” 5 पौलुस ने कहा, “हे भाइयों, मैं नहीं जानता था, कि यह महायाजक है; क्योंकि लिखा है,
‘अपने लोगों के प्रधान को बुरा न कह’।” (निर्ग. 22:28)
6 तब पौलुस ने यह जानकर, कि एक दल सदूकियों और दूसरा फरीसियों का हैं, महासभा में पुकारकर कहा, “हे भाइयों, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूँ, मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा मुकद्दमा हो रहा है।” 7 जब उसने यह बात कही तो फरीसियों और सदूकियों में झगड़ा होने लगा; और सभा में फूट पड़ गई। 8 क्योंकि सदूकी तो यह कहते हैं, कि न पुनरुत्थान है, न स्वर्गदूत और न आत्मा है; परन्तु फरीसी इन सबको मानते हैं।
9 तब बड़ा हल्ला मचा और कुछ शास्त्री जो फरीसियों के दल के थे, उठकर यों कहकर झगड़ने लगे, “हम इस मनुष्य में कुछ बुराई नहीं पाते; और यदि कोई आत्मा या स्वर्गदूत उससे बोला है तो फिर क्या?” 10 जब बहुत झगड़ा हुआ, तो सैन्य-दल के सरदार ने इस डर से कि वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर डालें, सैन्य-दल को आज्ञा दी कि उतरकर उसको उनके बीच में से जबरदस्ती निकालो, और गढ़ में ले आओ।
11 उसी रात प्रभु ने उसके पास आ खड़े होकर कहा, “हे पौलुस, धैर्य रख; क्योंकि जैसी तूने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी।”
12 जब दिन हुआ, तो यहूदियों ने एका किया, और शपथ खाई कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, यदि हम खाएँ या पीएँ तो हम पर धिक्कार। 13 जिन्होंने यह शपथ खाई थी, वे चालीस जन से अधिक थे।
14 उन्होंने प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास आकर कहा, “हमने यह ठाना है कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक यदि कुछ भी खाएँ, तो हम पर धिक्कार है। 15 इसलिए अब महासभा समेत सैन्य-दल के सरदार को समझाओ, कि उसे तुम्हारे पास ले आए, मानो कि तुम उसके विषय में और भी ठीक से जाँच करना चाहते हो, और हम उसके पहुँचने से पहले ही उसे मार डालने के लिये तैयार रहेंगे।”
16 और पौलुस के भांजे ने सुना कि वे उसकी घात में हैं, तो गढ़ में जाकर पौलुस को सन्देश दिया। 17 पौलुस ने सूबेदारों में से एक को अपने पास बुलाकर कहा, “इस जवान को सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाओ, यह उससे कुछ कहना चाहता है।”
18 अतः उसने उसको सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाकर कहा, “बन्दी पौलुस ने मुझे बुलाकर विनती की, कि यह जवान सैन्य-दल के सरदार से कुछ कहना चाहता है; इसे उसके पास ले जा।” 19 सैन्य-दल के सरदार ने उसका हाथ पकड़कर, और उसे अलग ले जाकर पूछा, “तू मुझसे क्या कहना चाहता है?”
20 उसने कहा, “यहूदियों ने एका किया है, कि तुझ से विनती करें कि कल पौलुस को महासभा में लाए, मानो तू और ठीक से उसकी जाँच करना चाहता है। 21 परन्तु उनकी मत मानना, क्योंकि उनमें से चालीस के ऊपर मनुष्य उसकी घात में हैं, जिन्होंने यह ठान लिया है कि जब तक वे पौलुस को मार न डालें, तब तक न खाएँगे और न पीएँगे, और अब वे तैयार हैं और तेरे वचन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
22 तब सैन्य-दल के सरदार ने जवान को यह निर्देश देकर विदा किया, “किसी से न कहना कि तूने मुझ को ये बातें बताई हैं।”
23 उसने तब दो सूबेदारों को बुलाकर कहा, “दो सौ सिपाही, सत्तर सवार, और दो सौ भालैत को कैसरिया जाने के लिये तैयार कर रख, तू रात के तीसरे पहर को निकलना।” 24 और पौलुस की सवारी के लिये घोड़े तैयार रखो कि उसे फेलिक्स राज्यपाल* के पास सुरक्षित पहुँचा दें।”
25 उसने इस प्रकार की चिट्ठी भी लिखी:
26 “महाप्रतापी फेलिक्स राज्यपाल को क्लौदियुस लूसियास को नमस्कार; 27 इस मनुष्य को यहूदियों ने पकड़कर मार डालना चाहा, परन्तु जब मैंने जाना कि वो रोमी है, तो सैन्य-दल लेकर छुड़ा लाया।
28 और मैं जानना चाहता था, कि वे उस पर किस कारण दोष लगाते हैं, इसलिए उसे उनकी महासभा में ले गया। 29 तब मैंने जान लिया, कि वे अपनी व्यवस्था के विवादों के विषय में उस पर दोष लगाते हैं, परन्तु मार डाले जाने या बाँधे जाने के योग्य उसमें कोई दोष नहीं। 30 और जब मुझे बताया गया, कि वे इस मनुष्य की घात में लगे हैं तो मैंने तुरन्त उसको तेरे पास भेज दिया; और मुद्दइयों को भी आज्ञा दी, कि तेरे सामने उस पर आरोप लगाए।”
31 अतः जैसे सिपाहियों को आज्ञा दी गई थी, वैसे ही पौलुस को लेकर रातों-रात अन्तिपत्रिस में लाए। 32 दूसरे दिन वे सवारों को उसके साथ जाने के लिये छोड़कर आप गढ़ को लौटे। 33 उन्होंने कैसरिया में पहुँचकर राज्यपाल को चिट्ठी दी; और पौलुस को भी उसके सामने खड़ा किया।
34 उसने पढ़कर पूछा, “यह किस प्रदेश का है?” 35 और जब जान लिया कि किलिकिया का है; तो उससे कहा, “जब तेरे मुद्दई भी आएँगें, तो मैं तेरा मुकद्दमा करूँगा।” और उसने उसे हेरोदेस के किले में, पहरे में रखने की आज्ञा दी।
1 पाँच दिन के बाद हनन्याह महायाजक कई प्राचीनों और तिरतुल्लुस नामक किसी वकील को साथ लेकर आया; उन्होंने राज्यपाल के सामने पौलुस पर दोषारोपण किया। 2 जब वह बुलाया गया तो तिरतुल्लुस उस पर दोष लगाकर कहने लगा, “हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरे द्वारा हमें जो बड़ा कुशल होता है; और तेरे प्रबन्ध से इस जाति के लिये कितनी बुराइयाँ सुधरती जाती हैं।
3 इसको हम हर जगह और हर प्रकार से धन्यवाद के साथ मानते हैं।
4 परन्तु इसलिए कि तुझे और दुःख नहीं देना चाहता, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि कृपा करके हमारी दो एक बातें सुन ले। 5 क्योंकि हमने इस मनुष्य को उपद्रवी और जगत के सारे यहूदियों में बलवा करानेवाला, और नासरियों के कुपंथ का मुखिया पाया है। 6 उसने मन्दिर को अशुद्ध करना चाहा*, और तब हमने उसे बन्दी बना लिया। [हमने उसे अपनी व्यवस्था के अनुसार दण्ड दिया होता;
7 परन्तु सैन्य-दल के सरदार लूसियास ने आकर उसे बलपूर्वक हमारे हाथों से छीन लिया, 8 और इस पर दोष लगाने वालों को तेरे सम्मुख आने की आज्ञा दी।] इन सब बातों को जिनके विषय में हम उस पर दोष लगाते हैं, तू स्वयं उसको जाँच करके जान लेगा।” 9 यहूदियों ने भी उसका साथ देकर कहा, ये बातें इसी प्रकार की हैं।
10 जब राज्यपाल ने पौलुस को बोलने के लिये संकेत किया तो उसने उत्तर दिया: “मैं यह जानकर कि तू बहुत वर्षों से इस जाति का न्याय करता है, आनन्द से अपना प्रत्युत्तर देता हूँ।, 11 तू आप जान सकता है, कि जब से मैं यरूशलेम में आराधना करने को आया, मुझे बारह दिन से ऊपर नहीं हुए। 12 उन्होंने मुझे न मन्दिर में, न आराधनालयों में, न नगर में किसी से विवाद करते या ना भीड़ लगाते पाया; 13 और न तो वे उन बातों को, जिनके विषय में वे अब मुझ पर दोष लगाते हैं, तेरे सामने उन्हें सच प्रमाणित कर सकते हैं।
14 परन्तु यह मैं तेरे सामने मान लेता हूँ, कि जिस पंथ को वे कुपंथ कहते हैं, उसी की रीति पर मैं अपने पूर्वजों के परमेश्वर* की सेवा करता हूँ; और जो बातें व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में लिखी है, उन सब पर विश्वास करता हूँ। 15 और परमेश्वर से आशा रखता हूँ जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा। (दानि. 12:2) 16 इससे मैं आप भी यत्न करता हूँ, कि परमेश्वर की और मनुष्यों की ओर मेरा विवेक सदा निर्दोष रहे।
17 बहुत वर्षों के बाद मैं अपने लोगों को दान पहुँचाने, और भेंट चढ़ाने आया था। 18 उन्होंने मुझे मन्दिर में, शुद्ध दशा में, बिना भीड़ के साथ, और बिना दंगा करते हुए इस काम में पाया। परन्तु वहाँ आसिया के कुछ यहूदी थे - और उनको उचित था, 19 कि यदि मेरे विरोध में उनकी कोई बात हो तो यहाँ तेरे सामने आकर मुझ पर दोष लगाते है।
20 या ये आप ही कहें, कि जब मैं महासभा के सामने खड़ा था, तो उन्होंने मुझ में कौन सा अपराध पाया? 21 इस एक बात को छोड़ जो मैंने उनके बीच में खड़े होकर पुकारकर कहा था, ‘मरे हुओं के जी उठने के विषय में आज मेरा तुम्हारे सामने मुकद्दमा हो रहा है’।”
22 फेलिक्स ने जो इस पंथ की बातें ठीक-ठीक जानता था, उन्हें यह कहकर टाल दिया, “जब सैन्य-दल का सरदार लूसियास आएगा, तो तुम्हारी बात का निर्णय करूँगा।” 23 और सूबेदार को आज्ञा दी, कि पौलुस को कुछ छूट में रखकर रखवाली करना, और उसके मित्रों में से किसी को भी उसकी सेवा करने से न रोकना।
24 कुछ दिनों के बाद फेलिक्स अपनी पत्नी द्रुसिल्ला* को, जो यहूदिनी थी, साथ लेकर आया और पौलुस को बुलवाकर उस विश्वास के विषय में जो मसीह यीशु पर है, उससे सुना। 25 जब वह धार्मिकता और संयम और आनेवाले न्याय की चर्चा कर रहा था, तो फेलिक्स ने भयभीत होकर उत्तर दिया, “अभी तो जा; अवसर पा कर मैं तुझे फिर बुलाऊँगा।”
26 उसे पौलुस से कुछ धन मिलने की भी आशा थी; इसलिए और भी बुला-बुलाकर उससे बातें किया करता था। 27 परन्तु जब दो वर्ष बीत गए, तो पुरकियुस फेस्तुस, फेलिक्स की जगह पर आया, और फेलिक्स यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को बन्दी ही छोड़ गया।
1 फेस्तुस उस प्रान्त में पहुँचकर तीन दिन के बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया। 2 तब प्रधान याजकों ने, और यहूदियों के प्रमुख लोगों ने, उसके सामने पौलुस पर दोषारोपण की; 3 और उससे विनती करके उसके विरोध में यह चाहा कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात* लगाए हुए थे।
4 फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में कैदी है, और मैं स्वयं जल्द वहाँ जाऊँगा।” 5 फिर कहा, “तुम से जो अधिकार रखते हैं, वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है, तो उस पर दोष लगाएँ।”
6 उनके बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया गया: और दूसरे दिन न्याय आसन पर बैठकर पौलुस को लाने की आज्ञा दी। 7 जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आस-पास खड़े होकर उस पर बहुत से गम्भीर दोष लगाए, जिनका प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। 8 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के और न मन्दिर के, और न कैसर के विरुद्ध कोई अपराध किया है।”
9 तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को उत्तर दिया, “क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहाँ मेरे सामने तेरा यह मुकद्दमा तय किया जाए?”
10 पौलुस ने कहा, “मैं कैसर के न्याय आसन के सामने खड़ा हूँ; मेरे मुकद्दमें का यहीं फैसला होना चाहिए। जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैंने कुछ अपराध नहीं किया।
11 यदि अपराधी हूँ और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है, तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उनमें से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उनके हाथ नहीं सौंप सकता। मैं कैसर की दोहाई देता हूँ।” 12 तब फेस्तुस ने मंत्रियों की सभा के साथ विचार करके उत्तर दिया, “तूने कैसर की दोहाई दी है, तो तू कैसर के पास ही जाएगा।”
13 कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा* और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। 14 उनके बहुत दिन वहाँ रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस के विषय में राजा को बताया, “एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्दी छोड़ गया है। 15 जब मैं यरूशलेम में था, तो प्रधान याजकों और यहूदियों के प्राचीनों ने उस पर दोषारोपण किया और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। 16 परन्तु मैंने उनको उत्तर दिया, कि रोमियों की यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक आरोपी को अपने दोष लगाने वालों के सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले।
17 अतः जब वे यहाँ उपस्थित हुए, तो मैंने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को की आज्ञा दी। 18 जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी बुरी बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था। 19 परन्तु अपने मत के, और यीशु नामक किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया था, और पौलुस उसको जीवित बताता था, विवाद करते थे। 20 और मैं उलझन में था, कि इन बातों का पता कैसे लगाऊँ? इसलिए मैंने उससे पूछा, ‘क्या तू यरूशलेम जाएगा, कि वहाँ इन बातों का फैसला हो?’
21 परन्तु जब पौलुस ने दोहाई दी, कि मेरे मुकद्दमें का फैसला महाराजाधिराज के यहाँ हो; तो मैंने आज्ञा दी, कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूँ, उसकी रखवाली की जाए।” 22 तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “मैं भी उस मनुष्य की सुनना चाहता हूँ। उसने कहा, “तू कल सुन लेगा।”
23 अतः दूसरे दिन, जब अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम से आकर सैन्य-दल के सरदारों और नगर के प्रमुख लोगों के साथ दरबार में पहुँचे। तब फेस्तुस ने आज्ञा दी, कि वे पौलुस को ले आएँ। 24 फेस्तुस ने कहा, “हे महाराजा अग्रिप्पा, और हे सब मनुष्यों जो यहाँ हमारे साथ हो, तुम इस मनुष्य को देखते हो, जिसके विषय में सारे यहूदियों ने यरूशलेम में और यहाँ भी चिल्ला-चिल्लाकर मुझसे विनती की, कि इसका जीवित रहना उचित नहीं।
25 परन्तु मैंने जान लिया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया कि मार डाला जाए; और जब कि उसने आप ही महाराजाधिराज की दोहाई दी, तो मैंने उसे भेजने का निर्णय किया। 26 परन्तु मैंने उसके विषय में कोई ठीक बात नहीं पाई कि महाराजाधिराज को लिखूँ*, इसलिए मैं उसे तुम्हारे सामने और विशेष करके हे राजा अग्रिप्पा तेरे सामने लाया हूँ, कि जाँचने के बाद मुझे कुछ लिखने को मिले। 27 क्योंकि बन्दी को भेजना और जो दोष उस पर लगाए गए, उन्हें न बताना, मुझे व्यर्थ समझ पड़ता है।”
1 अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तुझे अपने विषय में बोलने की अनुमति है।” तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा,
2 “हे राजा अग्रिप्पा, जितनी बातों का यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं, आज तेरे सामने उनका उत्तर देने में मैं अपने को धन्य समझता हूँ, 3 विशेष करके इसलिए कि तू यहूदियों के सब प्रथाओं और विवादों को जानता है*। अतः मैं विनती करता हूँ, धीरज से मेरी सुन ले।
4 “जैसा मेरा चाल-चलन आरम्भ से अपनी जाति के बीच और यरूशलेम में जैसा था, यह सब यहूदी जानते हैं। 5 वे यदि गवाही देना चाहते हैं, तो आरम्भ से मुझे पहचानते हैं, कि मैं फरीसी होकर अपने धर्म के सबसे खरे पंथ के अनुसार चला।
6 और अब उस प्रतिज्ञा की आशा के कारण जो परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से की थी, मुझ पर मुकद्दमा चल रहा है। 7 उसी प्रतिज्ञा के पूरे होने की आशा लगाए हुए, हमारे बारहों गोत्र अपने सारे मन से रात-दिन परमेश्वर की सेवा करते आए हैं। हे राजा, इसी आशा के विषय में यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं। 8 जब कि परमेश्वर मरे हुओं को जिलाता है*, तो तुम्हारे यहाँ यह बात क्यों विश्वास के योग्य नहीं समझी जाती?
9 “मैंने भी समझा था कि यीशु नासरी के नाम के विरोध में मुझे बहुत कुछ करना चाहिए। 10 और मैंने यरूशलेम में ऐसा ही किया; और प्रधान याजकों से अधिकार पा कर बहुत से पवित्र लोगों को बन्दीगृह में डाला, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उनके विरोध में अपनी सम्मति देता था। 11 और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला-दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता था, यहाँ तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया कि बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था।
12 “इसी धुन में जब मैं प्रधान याजकों से अधिकार और आज्ञा-पत्र लेकर दमिश्क को जा रहा था; 13 तो हे राजा, मार्ग में दोपहर के समय मैंने आकाश से सूर्य के तेज से भी बढ़कर एक ज्योति, अपने और अपने साथ चलनेवालों के चारों ओर चमकती हुई देखी। 14 और जब हम सब भूमि पर गिर पड़े, तो मैंने इब्रानी भाषा में, मुझसे कहते हुए यह वाणी सुनी, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है।’
15 मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है। 16 परन्तु तू उठ, अपने पाँवों पर खड़ा हो; क्योंकि मैंने तुझे इसलिए दर्शन दिया है कि तुझे उन बातों का भी सेवक और गवाह ठहराऊँ, जो तूने देखी हैं, और उनका भी जिनके लिये मैं तुझे दर्शन दूँगा। (यहे. 2:1) 17 और मैं तुझे तेरे लोगों से और अन्यजातियों से बचाता रहूँगा, जिनके पास मैं अब तुझे इसलिए भेजता हूँ। (1 इति. 16:35) 18 कि तू उनकी आँखें खोले, कि वे अंधकार से ज्योति की ओर*, और शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर फिरें; कि पापों की क्षमा, और उन लोगों के साथ जो मुझ पर विश्वास करने से पवित्र किए गए हैं, विरासत पाएँ।’ (व्य. 33:3-4, यशा. 35:5-6, यशा. 42:7, यशा. 42:16, यशा. 61:1)
19 अतः हे राजा अग्रिप्पा, मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की बात न टाली, 20 परन्तु पहले दमिश्क के, फिर यरूशलेम के रहनेवालों को, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियों को समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्वर की ओर फिर कर मन फिराव के योग्य काम करो। 21 इन बातों के कारण यहूदी मुझे मन्दिर में पकड़कर मार डालने का यत्न करते थे।
22 परन्तु परमेश्वर की सहायता से मैं आज तक बना हूँ और छोटे बड़े सभी के सामने गवाही देता हूँ, और उन बातों को छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होनेवाली हैं, 23 कि मसीह को दुःख उठाना होगा, और वही सबसे पहले मरे हुओं में से जी उठकर, हमारे लोगों में और अन्यजातियों में ज्योति का प्रचार करेगा।” (यशा. 42:6, यशा. 49:6)
24 जब वह इस रीति से उत्तर दे रहा था, तो फेस्तुस ने ऊँचे शब्द से कहा, “हे पौलुस, तू पागल है। बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है।” 25 परन्तु उसने कहा, “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परन्तु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूँ। 26 राजा भी जिसके सामने मैं निडर होकर बोल रहा हूँ, ये बातें जानता है, और मुझे विश्वास है, कि इन बातों में से कोई उससे छिपी नहीं, क्योंकि वह घटना तो कोने में नहीं हुई।
27 हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं का विश्वास करता है? हाँ, मैं जानता हूँ, कि तू विश्वास करता है।” 28 अब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “क्या तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है?” 29 पौलुस ने कहा, “परमेश्वर से मेरी प्रार्थना यह है कि क्या थोड़े में, क्या बहुत में, केवल तू ही नहीं, परन्तु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, मेरे इन बन्धनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाएँ।”
30 तब राजा और राज्यपाल और बिरनीके और उनके साथ बैठनेवाले उठ खड़े हुए; 31 और अलग जाकर आपस में कहने लगे, “यह मनुष्य ऐसा तो कुछ नहीं करता, जो मृत्यु-दण्ड या बन्दीगृह में डाले जाने के योग्य हो*। 32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “यदि यह मनुष्य कैसर की दोहाई न देता, तो छूट सकता था।”
1 जब यह निश्चित हो गया कि हम जहाज द्वारा इतालिया जाएँ, तो उन्होंने पौलुस और कुछ अन्य बन्दियों को भी यूलियुस नामक औगुस्तुस की सैन्य-दल के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। 2 अद्रमुत्तियुम* के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हमने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नामक थिस्सलुनीके का एक मकिदूनी हमारे साथ था।
3 दूसरे दिन हमने सैदा में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहाँ जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। 4 वहाँ से जहाज खोलकर हवा विरुद्ध होने के कारण हम साइप्रस की आड़ में होकर चले; 5 और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया* के मूरा में उतरे। 6 वहाँ सूबेदार को सिकन्दरिया का एक जहाज इतालिया जाता हुआ मिला, और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया।
7 जब हम बहुत दिनों तक धीरे-धीरे चलकर कठिनता से कनिदुस के सामने पहुँचे, तो इसलिए कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले; 8 और उसके किनारे-किनारे कठिनता से चलकर ‘शुभलंगरबारी’ नामक एक जगह पहुँचे, जहाँ से लसया नगर निकट था।
9 जब बहुत दिन बीत गए, और जलयात्रा में जोखिम इसलिए होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर चेतावनी दी, 10 “हे सज्जनों, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि, न केवल माल और जहाज की वरन् हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।” 11 परन्तु सूबेदार ने कप्तान और जहाज के स्वामी की बातों को पौलुस की बातों से बढ़कर माना।
12 वह बन्दरगाह जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था; इसलिए बहुतों का विचार हुआ कि वहाँ से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके तो फीनिक्स* में पहुँचकर जाड़ा काटें। यह तो क्रेते का एक बन्दरगाह है जो दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर खुलता है।
13 जब दक्षिणी हवा बहने लगी, तो उन्होंने सोचा कि उन्हें जिसकी जरूरत थी वह उनके पास थी, इसलिए लंगर उठाया और किनारे के किनारे, समुद्र तट के पास चल दिए।
14 परन्तु थोड़ी देर में जमीन की ओर से एक बड़ी आँधी उठी, जो ‘यूरकुलीन’ कहलाती है। 15 जब आँधी जहाज पर लगी, तब वह हवा के सामने ठहर न सका, अतः हमने उसे बहने दिया, और इसी तरह बहते हुए चले गए। 16 तब कौदा* नामक एक छोटे से टापू की आड़ में बहते-बहते हम कठिनता से डोंगी को वश में कर सके।
17 फिर मल्लाहों ने उसे उठाकर, अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बाँधा, और सुरतिस के रेत पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर बहते हुए चले गए। 18 और जब हमने आँधी से बहुत हिचकोले और धक्के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे;
19 और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का साज-सामान भी फेंक दिया। 20 और जब बहुत दिनों तक न सूर्य न तारे दिखाई दिए, और बड़ी आँधी चल रही थी, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही।
21 जब वे बहुत दिन तक भूखे रह चुके, तो पौलुस ने उनके बीच में खड़ा होकर कहा, “हे लोगों, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर, क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत्ति आती और न यह हानि उठाते।
22 परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूँ कि ढाढ़स बाँधो, क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, पर केवल जहाज की। 23 क्योंकि परमेश्वर जिसका मैं हूँ, और जिसकी सेवा करता हूँ, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा, 24 ‘हे पौलुस, मत डर! तुझे कैसर के सामने खड़ा होना अवश्य है। और देख, परमेश्वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है।’ 25 इसलिए, हे सज्जनों, ढाढ़स बाँधो; क्योंकि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, कि जैसा मुझसे कहा गया है, वैसा ही होगा। 26 परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा।”
27 जब चौदहवीं रात हुई, और हम अद्रिया समुद्र में भटक रहे थे, तो आधी रात के निकट मल्लाहों ने अनुमान से जाना कि हम किसी देश के निकट पहुँच रहे हैं। 28 थाह लेकर उन्होंने बीस पुरसा गहरा पाया और थोड़ा आगे बढ़कर फिर थाह ली, तो पन्द्रह पुरसा पाया। 29 तब पत्थरीली जगहों पर पड़ने के डर से उन्होंने जहाज की पीछे चार लंगर डाले, और भोर होने की कामना करते रहे।
30 परन्तु जब मल्लाह जहाज पर से भागना चाहते थे, और गलही से लंगर डालने के बहाने डोंगी समुद्र में उतार दी; 31 तो पौलुस ने सूबेदार और सिपाहियों से कहा, “यदि ये जहाज पर न रहें, तो तुम भी नहीं बच सकते।” 32 तब सिपाहियों ने रस्से काटकर डोंगी गिरा दी।
33 जब भोर होने पर थी, तो पौलुस ने यह कहकर, सब को भोजन करने को समझाया, “आज चौदह दिन हुए कि तुम आस देखते-देखते भूखे रहे, और कुछ भोजन न किया। 34 इसलिए तुम्हें समझाता हूँ कि कुछ खा लो, जिससे तुम्हारा बचाव हो; क्योंकि तुम में से किसी के सिर का एक बाल भी न गिरेगा।” 35 और यह कहकर उसने रोटी लेकर सब के सामने परमेश्वर का धन्यवाद किया और तोड़कर खाने लगा।
36 तब वे सब भी ढाढ़स बाँधकर भोजन करने लगे। 37 हम सब मिलकर जहाज पर दो सौ छिहत्तर जन थे। 38 जब वे भोजन करके तृप्त हुए, तो गेंहूँ को समुद्र में फेंककर जहाज हलका करने लगे।
39 जब दिन निकला, तो उन्होंने उस देश को नहीं पहचाना, परन्तु एक खाड़ी देखी जिसका चौरस किनारा था, और विचार किया कि यदि हो सके तो इसी पर जहाज को टिकाएँ। 40 तब उन्होंने लंगरों को खोलकर समुद्र में छोड़ दिया और उसी समय पतवारों के बन्धन खोल दिए, और हवा के सामने अगला पाल चढ़ाकर किनारे की ओर चले। 41 परन्तु दो समुद्र के संगम की जगह पड़कर उन्होंने जहाज को टिकाया, और गलही तो धक्का खाकर गड़ गई, और टल न सकी; परन्तु पिछली लहरों के बल से टूटने लगी।
42 तब सिपाहियों का यह विचार हुआ कि बन्दियों को मार डालें; ऐसा न हो कि कोई तैर कर निकल भागे। 43 परन्तु सूबेदार ने पौलुस को बचाने की इच्छा से उन्हें इस विचार से रोका, और यह कहा, कि जो तैर सकते हैं, पहले कूदकर किनारे पर निकल जाएँ। 44 और बाकी कोई पटरों पर, और कोई जहाज की और वस्तुओं के सहारे निकल जाए, और इस रीति से सब कोई भूमि पर बच निकले।
1 जब हम बच निकले, तो पता चला कि यह टापू माल्टा* कहलाता है। 2 और वहाँ के निवासियों ने हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह के कारण जो बरस रहा था और जाड़े के कारण, उन्होंने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया।
3 जब पौलुस ने लकड़ियों का गट्ठा बटोरकर आग पर रखा, तो एक साँप* आँच पा कर निकला और उसके हाथ से लिपट गया। 4 जब उन निवासियों ने साँप को उसके हाथ में लटके हुए देखा, तो आपस में कहा, “सचमुच यह मनुष्य हत्यारा है, कि यद्यपि समुद्र से बच गया, तो भी न्याय ने जीवित रहने न दिया।”
5 तब उसने साँप को आग में झटक दिया, और उसे कुछ हानि न पहुँची। 6 परन्तु वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह सूज जाएगा, या एकाएक गिरके मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे और देखा कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो और ही विचार कर कहा, “यह तो कोई देवता है।”
7 उस जगह के आस-पास पुबलियुस नामक उस टापू के प्रधान की भूमि थी: उसने हमें अपने घर ले जाकर तीन दिन मित्रभाव से पहुनाई की। 8 पुबलियुस के पिता तेज बुखार और पेचिश से रोगी पड़ा था। अतः पौलुस ने उसके पास घर में जाकर प्रार्थना की, और उस पर हाथ रखकर उसे चंगा किया। 9 जब ऐसा हुआ, तो उस टापू के बाकी बीमार आए, और चंगे किए गए। 10 उन्होंने हमारा बहुत आदर किया, और जब हम चलने लगे, तो जो कुछ हमारे लिये आवश्यक था, जहाज पर रख दिया।
11 तीन महीने के बाद हम सिकन्दरिया के एक जहाज पर चल निकले, जो उस टापू में जाड़े काट रहा था, और जिसका चिन्ह दियुसकूरी था। 12 सुरकूसा* में लंगर डाल करके हम तीन दिन टिके रहे।
13 वहाँ से हम घूमकर रेगियुम* में आए; और एक दिन के बाद दक्षिणी हवा चली, तब दूसरे दिन पुतियुली में आए। 14 वहाँ हमको कुछ भाई मिले, और उनके कहने से हम उनके यहाँ सात दिन तक रहे; और इस रीति से हम रोम को चले। 15 वहाँ से वे भाई हमारा समाचार सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन-सराए तक हमारी भेंट करने को निकल आए, जिन्हें देखकर पौलुस ने परमेश्वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बाँधा।
16 जब हम रोम में पहुँचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उसकी रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा हुई।
17 तीन दिन के बाद उसने यहूदियों के प्रमुख लोगों को बुलाया, और जब वे इकट्ठे हुए तो उनसे कहा, “हे भाइयों, मैंने अपने लोगों के या पूर्वजों की प्रथाओं के विरोध में कुछ भी नहीं किया, फिर भी बन्दी बनाकर यरूशलेम से रोमियों के हाथ सौंपा गया। 18 उन्होंने मुझे जाँच कर छोड़ देना चाहा, क्योंकि मुझ में मृत्यु के योग्य कोई दोष न था।
19 परन्तु जब यहूदी इसके विरोध में बोलने लगे, तो मुझे कैसर की दोहाई देनी पड़ी; यह नहीं कि मुझे अपने लोगों पर कोई दोष लगाना था। 20 इसलिए मैंने तुम को बुलाया है, कि तुम से मिलूँ और बातचीत करूँ; क्योंकि इस्राएल की आशा के लिये मैं इस जंजीर से जकड़ा हुआ हूँ।”
21 उन्होंने उससे कहा, “न हमने तेरे विषय में यहूदियों से चिट्ठियाँ पाई, और न भाइयों में से किसी ने आकर तेरे विषय में कुछ बताया, और न बुरा कहा। 22 परन्तु तेरा विचार क्या है? वही हम तुझ से सुनना चाहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें करते हैं।”
23 तब उन्होंने उसके लिये एक दिन ठहराया, और बहुत से लोग उसके यहाँ इकट्ठे हुए, और वह परमेश्वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा-समझाकर भोर से सांझ तक वर्णन करता रहा। 24 तब कुछ ने उन बातों को मान लिया, और कुछ ने विश्वास न किया।
25 जब आपस में एकमत न हुए, तो पौलुस के इस एक बात के कहने पर चले गए, “पवित्र आत्मा ने यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा तुम्हारे पूर्वजों से ठीक ही कहा, 26 ‘जाकर इन लोगों से कह,
कि सुनते तो रहोगे, परन्तु न समझोगे,
और देखते तो रहोगे, परन्तु न बुझोगे;
27 क्योंकि इन लोगों का मन मोटा,
और उनके कान भारी हो गए है,
और उन्होंने अपनी आँखें बन्द की हैं,
ऐसा न हो कि वे कभी आँखों से देखें,
और कानों से सुनें,
और मन से समझें
और फिरें,
और मैं उन्हें चंगा करूँ।’ (यशा. 6:9-10)
28 अतः तुम जानो, कि परमेश्वर के इस उद्धार की कथा अन्यजातियों के पास भेजी गई है, और वे सुनेंगे।” (भज. 67:2, भज. 98:3, यशा. 40:5)
29 जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहाँ से चले गए।
30 और पौलुस पूरे दो वर्ष अपने किराये के घर में रहा, 31 और जो उसके पास आते थे, उन सबसे मिलता रहा और बिना रोक-टोक बहुत निडर होकर* परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा।
1 पौलुस* की ओर से जो यीशु मसीह का दास है, और प्रेरित होने के लिये बुलाया गया, और परमेश्वर के उस सुसमाचार के लिये अलग किया गया है 2 जिसकी उसने पहले ही से अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्रशास्त्र में, 3 अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के विषय में प्रतिज्ञा की थी, जो शरीर के भाव से तो दाऊद के वंश से उत्पन्न हुआ।
4 और पवित्रता की आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्थ्य के साथ परमेश्वर का पुत्र ठहरा है। 5 जिसके द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली कि उसके नाम के कारण सब जातियों के लोग विश्वास करके उसकी मानें, 6 जिनमें से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिये बुलाए गए हो।
7 उन सब के नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने* के लिये बुलाए गए है: हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (इफि. 1:2)
8 पहले मैं तुम सब के लिये यीशु मसीह के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है। 9 परमेश्वर जिसकी सेवा मैं अपनी आत्मा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूँ, वही मेरा गवाह है, कि मैं तुम्हें किस प्रकार लगातार स्मरण करता रहता हूँ, 10 और नित्य अपनी प्रार्थनाओं में विनती करता हूँ, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आने को मेरी यात्रा परमेश्वर की इच्छा से सफल हो।
11 क्योंकि मैं तुम से मिलने की लालसा करता हूँ, कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक वरदान दूँ जिससे तुम स्थिर हो जाओ, 12 अर्थात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पाऊँ।
13 और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम इससे अनजान रहो कि मैंने बार-बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियों में फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्तु अब तक रुका रहा। 14 मैं यूनानियों और अन्यभाषियों का, और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूँ। 15 इसलिए मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूँ।
16 क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लज्जाता, इसलिए कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिये, पहले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये, उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ्य है। (2 तीमु. 1:8) 17 क्योंकि उसमें परमेश्वर की धार्मिकता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, “विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।” (हब. 2:4, गला. 3:11)
18 परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं। 19 इसलिए कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उनके मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
20 क्योंकि उसके अनदेखे गुण*, अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्वरत्व, जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहाँ तक कि वे निरुत्तर हैं। (अय्यू. 12:7-9, भज. 19:1) 21 इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहाँ तक कि उनका निर्बुद्धि मन अंधेरा हो गया।
22 वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए, (यिर्म. 10:14) 23 और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशवान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला। (व्य. 4:15-19, भज. 106:20)
24 इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उनके मन की अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें। 25 क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन। (यिर्म. 13:25, यिर्म. 16:19)
26 इसलिए परमेश्वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहाँ तक कि उनकी स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को उससे जो स्वभाव के विरुद्ध है, बदल डाला। 27 वैसे ही पुरुष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरुषों ने पुरुषों के साथ निर्लज्ज काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया। (लैव्य. 18:22, लैव्य. 20:13)
28 और जब उन्होंने परमेश्वर को पहचानना न चाहा, इसलिए परमेश्वर ने भी उन्हें उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।
29 वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैर-भाव से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर, 30 गपशप करनेवाले, निन्दा करनेवाले, परमेश्वर से घृणा करनेवाले, हिंसक, अभिमानी, डींगमार, बुरी-बुरी बातों के बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाले, 31 निर्बुद्धि, विश्वासघाती, प्रेम और दया का आभाव है और निर्दयी हो गए।
32 वे तो परमेश्वर की यह विधि जानते हैं कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले मृत्यु के दण्ड के योग्य हैं, तो भी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं वरन् करनेवालों से प्रसन्न भी होते हैं।
पौलुस की ओर से आपकी भाषा में पत्र के लेखक का अपना परिचय देने की अपनी ही विधि होगी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, मैं पौलुस इस पत्र को लिख रहा हूँ। आपको यह भी दर्शाने की आवश्यकता हो सकती है कि पत्र किसे लिखा जा रहा है। ( देखें यू.डी.बी
इसका अनुवाद एक नये वाक्य में कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है। “परमेश्वर ने मुझे एक प्रेरित होने के लिए बुलाया और मनुष्यों में शुभ सन्देश सुनाने के लिए मुझे चुन लिया है”।
परमेश्वर ने अपनी प्रजा से प्रतिज्ञा की थी कि वह अपना राज्य स्थापित करेगा। उसने भविष्यद्वक्ताओं से कह दिया था कि वे इन प्रतिज्ञाओं को धर्मशास्त्र में लिख लें।
यह “परमेश्वर के शुभ सन्देश” के संदर्भ में है। शुभ सन्देश यह है कि परमेश्वर अपने पुत्र को इस संसार में भेजने पर था।
यहाँ “शरीर” का अर्थ है यह पार्थिव शरीर। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “जो प्राकृतिक रूप से दाऊद का वंशज होगा” या “जिसका जन्म दाऊद के परिवार में होगा”।
“वह” अर्थात मसीह यीशु। “ठहरा” को कर्तृवाच्य क्रिया में व्यक्त किया जा सकता है”। परमेश्वर ने उसे घोषित किया है।
अर्थात पवित्र आत्मा से
“मरने के बाद उसे फिर जीवित करने के द्वारा”
“परमेश्वर ने अति करूणामय होकर मुझे एक वरदान दिया कि मुझे प्रेरित नियुक्त करे”। वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर ने मुझे प्रेरित होने का यह करूणामय वरदान दिया है”। यहाँ “हमें” का अर्थ है, पौलुस और यीशु के 12 शिष्य। इसमें रोम की कलीसिया को नहीं गिना गया है।
पौलुस यीशु के लिए “नाम” शब्द भी काम में लेता है। वैकल्पिक अनुवाद, “कि सब जातियों को उसमें विश्वास करने के कारण आज्ञा मानना सिखाएं”।
उन सबके नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिए बुलाए गए हैं। - इसका अनुवाद एक नए वाक्य में कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “मैं तुम सबको जो रोम में है यह पत्र लिख रहा हूँ, क्योंकि परमेश्वर तुमसे प्रेम करता है और तुम्हें अपने लोग होने के लिए चुन लिया है”।
तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जाता है “मेरा अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे”।
यह अतिशयोक्ति है जिसका अर्थ है उनका परिचित संसार अर्थात रोमी साम्राज्य
पौलुस इस बात पर बल देता है कि वह उनके लिए सच्चे दिल से प्रार्थना करता है और परमेश्वर उसे प्रार्थना करते हुए देखता भी है, यहाँ “क्योंकि” शब्द के अनुवाद में प्रार्थना को छोड़ दिया है।
“मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर से बातें करता हूँ”।
“मैं जब भी प्रार्थना करता हूँ तब परमेश्वर से यही माँगता हूँ कि मेरा तुम्हारे पास आना संभव हो जाए”।
“परमेश्वर कैसे भी करे”
“अन्ततः”, अन्त में” या “अन्ततोगत्वा”
“क्योंकि परमेश्वर चाहता है”
“क्योंकि मैं तुमसे भेंट करने की उत्कट अभिलाषा रखता हूँ”
“मेरे कहने का अर्थ है कि हम यीशु में विश्वास के अनुभवों को बाँटते हुए एक दूसरे को प्रोत्साहित करें।”
पौलुस उन्हें यह जानकारी देने पर बल देता है वैकल्पिक अनुवाद “मैं चाहता हूँ कि तुम निम्नलिखित बातें जान लोः
“कोई न कोई बात मुझे रोकती रही”
"फल" से पौलुस का अभिप्राय है रोम के निवासी जिन्हें पौलुस शुभ सन्देश में विश्वास करने के लिए प्रेरित करना चाहता था।
"जैसा अन्य स्थानों में विजातीय लोगों ने शुभ सन्देश में विश्वास किया।"
“मुझे शुभ सन्देश सुनाना है”
पौलुस रोम में शुभ सन्देश सुनाने का कारण बताता है।
इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “चाहे कितने भी लोग मेरे द्वारा सुनाए गए इस सन्देश का तिरस्कार कर दें, मैं आत्म-विश्वास के साथ सुनाता हूँ।” )
पौलुस समझता है कि वह आत्म-विश्वास से शुभ सन्देश क्यों सुनाता है।
“शुभ सन्देश के द्वारा परमेश्वर मसीह में विश्वास करने वाले हर एक मनुष्य का बड़े सामर्थ्य से उद्धार करता है”।
“यहूदियों को” और यूनानियों को”
यूनानियों से पूर्व यहूदियों को यह शुभ सन्देश सुनाया गया था। अतः यहाँ इसका मूल हो सकता है, 1) समय के क्रम में पूर्व परन्तु इसका अर्थ यह भी हो सकता है, 2) “अत्यधिक महत्त्व में”।
“परमेश्वर ने प्रकट कर दिया है कि आरंभ से अन्त तक विश्वास ही के द्वारा मनुष्य धर्मी ठहरता है”। दूसरा अनुवाद, “परमेश्वर ने अपनी न्यायनिष्ठा विश्वास करनेवाले पर प्रकट की है और इसका परिणाम यह हुआ कि उनका विश्वास और अधिक हो गया है”। या “क्योंकि परमेश्वर विश्वासयोग्य है, वह अपनी धार्मिकता प्रकट करता है जिससे मनुष्यों का विश्वास बढ़ता है”।
“परमेश्वर में विश्वास करनेवालों को परमेश्वर अपने साथ उचित संबन्ध में मानता है और वे सदा जीवित रहेंगे”।
पौलुस समझाता है कि मनुष्य को यह शुभ समाचार सुनना क्यों आवश्यक है।
दूसरा अनुवाद, “परमेश्वर अपना क्रोध प्रकट करता है,
“के लिए”
वैकल्पिक अनुवाद, “मनुष्य जो भी अभक्ति और अधर्म के काम करते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “वे परमेश्वर के बारे में सच्ची जानकारी को छिपाते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद, “वे परमेश्वर को जान सकते हैं क्योंकि वे देख सकते हैं”
पौलुस स्पष्ट करता है कि ये लोग परमेश्वर का ज्ञान कैसे रखते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने उन्हें दिखाया है”
पौलुस समझाता है कि परमेश्वर स्वयं को मनुष्यों पर कैसे प्रकट किया है।
“अनदेखे” का अर्थ जो दिखाई देता है वह सब “देखने में आते हैं” क्योंकि मनुष्य अब समझ गए हैं कि दिखाई न देते हुए भी वे हैं।
आकाश और पृथ्वी एवं सब कुछ जो उनमें है।
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर के सब गुण एवं लक्षण” या "परमेश्वर की वे बातें जो उसे परमेश्वर बताता है।”
विकल्प, “मनुष्य परमेश्वर की सृष्टि को देखकर उसके बारे में ज्ञान ग्रहण कर सकता है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “वे कभी नहीं कह सकते कि वे नहीं जानते।
“मानवजाति”
“मूर्खता की बातों में मन लगाया” (यू.डी.बी.)
इस अभिव्यक्ति में मन का अन्धेरा होने का अर्थ है उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई, विकल्प, “उनके मन में समझ ही नहीं रही”।
“बुद्धिमान होने का दावा करके, वे वास्तव में मूर्ख ही बने।”
“मानवजाति”
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर महिमा से पूर्ण है और अविनाशी है इस सत्य को बदल डाला” या “परमेश्वर को महिमामय एवं अविनाशी मानना त्याग दिया”
वैकल्पिक अनुवाद, “इसकी अपेक्षा मूर्तियों की उपासना करने का चुनाव किया ... जैसी दिखती थी”
“कुछ मनुष्य मर जायेंगे”
इसके लिए
“परमेश्वर ने उन्हें करने दिया” (देखें: “परमेश्वर ने अनुमति दे दी)
“मानवजाति”
“जिन अनैतिक बातों की उनके मन में अभिलाषा थी”
“उन्होंने यौन संबन्धित अनाचार एवं अनादर के काम किए”
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “कि अपेक्षा” या “अन्यथा” या 2.) “इसके साथ”
“मूर्तिपूजा और यौन संबन्धित पाप”।
“परमेश्वर ने उन्हें अनुमति दी”
“लज्जाजनक यौन अभिलाषाएँ”
“उनकी स्त्रियों ने भी”
मनुष्यों की स्त्रियाँ
“यौनाचार को वैसा बना दिया जैसा परमेश्वर ने नहीं रचा था।
“यौन वासना से जलने लगे”
“अपमानजनक” या “लज्जाजनक” या “पापी”
इसे एक नए वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, “उन्होंने अपने इस भ्रष्टाचार का परमेश्वर से उचित दण्ड पाया है”
व्यवहार जो बुरा और घृणित हो
“उन्होंने परमेश्वर को मानना उचित नहीं समझा”
“मानवजाति”
उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया “परमेश्वर ने उनके मन को अनाचार से भर जाने के लिए छोड़ दिया”
“नीच” या “निर्लज्ज” या “पापी”
“उनके मन में उत्कट अभिलाषाएं भरी हुई थी” या “ऐसे काम करने की लालसा में लिप्त थे”।
“मानवजाति”
वे जानते हैं कि परमेश्वर उनसे धर्मनिष्ठा की अपेक्षा करता है
“दुष्टता के काम करने वाले”
“वह मृत्यु के योग्य है”
इसे एक नए वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, “परन्तु वे ही ऐसे काम करते हैं।”
परमेश्वर ने पवित्र धर्मशास्त्र में अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा सुसमाचार की पूर्व प्रतिज्ञा की थी।
शरीर के अनुसार परमेश्वर का पुत्र दाऊद के वंशजों में जन्मा था।
मसीह यीशु पुनरुत्थान के द्वारा परमेश्वर का पुत्र कहलाया।
सब जातियों में आज्ञाकारिता और विश्वास के लिए पौलुस को अनुग्रह और प्रेरिताई मिली।
पौलुस परमेश्वर का धन्यवाद करता है कि उनके विश्वास की चर्चा संपूर्ण जगत में हो रही थी।
पौलुस उनसे भेंट करने की कामना करता है कि वह उन्हें कोई आत्मिक वरदान दे जिससे वे स्थिर हो जाएं।
पौलुस उनसे भेंट नहीं कर पाया था क्योंकि उसके मार्ग में अब तक बाधाएं आ रही थीं।
पौलुस कहता है कि हर एक विश्वासी के लिए सुसमाचार उद्धार के निमित्त परमेश्वर का सामर्थ्य है।
पौलुस धर्मशास्त्र का उद्धरण देता है, "विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।"
अभक्त और अधर्मी सत्य को दबाए रहते हैं जबकि परमेश्वर का ज्ञान उनके मनों में प्रकट किया जा चुका है।
परमेश्वर के बारे में अप्रत्यक्ष बातें सृजित वस्तुओं से स्पष्ट प्रकट है।
परमेश्वर का अनन्त सामर्थ्य और उसका दिव्य स्वभाव स्पष्ट प्रकट है।
जो परमेश्वर का महिमान्वन नहीं करते और न ही उसका धन्यवाद करते हैं, अपने विचारों में मूर्ख बनते हैं और उनके मन अन्धकारपूर्ण होते हैं।
परमेश्वर ने उन्हें अशुद्धता के लिए उनके मन की अभिलाषा के अनुसार छोड़ दिया कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।
स्त्रियां एक-दूसरे के लिए और पुरुष एक-दूसरे के लिए कामातुर होने लगे।
परमेश्वर उन्हें उनके भ्रष्ट मन पर छोड़ दिया कि वे अनुचित काम करें।
जिनके मन भ्रष्ट हैं वे डाह, हत्या, झगड़े और छल और सब बुरी अभिलाषाओं से घिरे रहते हैं।
जिनके मन भ्रष्ट हैं वे जानते हैं कि ऐसे काम करने वाले मृत्यु दण्ड के योग्य हैं।
वे फिर भी अधर्म के काम करते हैं और ऐसे काम करने वालों को मान्यता प्रदान करते हैं।
1 इसलिए हे दोष लगानेवाले, तू कोई क्यों न हो, तू निरुत्तर है*; क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपने आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिए कि तू जो दोष लगाता है, स्वयं ही वही काम करता है। 2 और हम जानते हैं कि ऐसे-ऐसे काम करनेवालों पर परमेश्वर की ओर से सच्चे दण्ड की आज्ञा होती है।
3 और हे मनुष्य, तू जो ऐसे-ऐसे काम करनेवालों पर दोष लगाता है, और स्वयं वे ही काम करता है; क्या यह समझता है कि तू परमेश्वर की दण्ड की आज्ञा से बच जाएगा? 4 क्या तू उसकी भलाई, और सहनशीलता, और धीरजरूपी धन* को तुच्छ जानता है? और क्या यह नहीं समझता कि परमेश्वर की भलाई तुझे मन फिराव को सिखाती है?
5 पर अपनी कठोरता और हठीले मन के अनुसार उसके क्रोध के दिन के लिये, जिसमें परमेश्वर का सच्चा न्याय प्रगट होगा, अपने लिये क्रोध कमा रहा है। 6 वह हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला देगा। (भज. 62:12, नीति. 24:12) 7 जो सुकर्म में स्थिर रहकर महिमा, और आदर, और अमरता की खोज में हैं, उन्हें वह अनन्त जीवन देगा;
8 पर जो स्वार्थी हैं और सत्य को नहीं मानते, वरन् अधर्म को मानते हैं, उन पर क्रोध और कोप पड़ेगा। 9 और क्लेश और संकट हर एक मनुष्य के प्राण पर जो बुरा करता है आएगा, पहले यहूदी पर फिर यूनानी पर;
10 परन्तु महिमा और आदर और कल्याण हर एक को मिलेगा, जो भला करता है, पहले यहूदी को फिर यूनानी को। 11 क्योंकि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता। (व्य. 10:17, 2 इति. 19:7) 12 इसलिए कि जिन्होंने बिना व्यवस्था पाए पाप किया, वे बिना व्यवस्था के नाश भी होंगे, और जिन्होंने व्यवस्था पा कर पाप किया, उनका दण्ड व्यवस्था के अनुसार होगा;
13 क्योंकि परमेश्वर के यहाँ व्यवस्था के सुननेवाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्था पर चलनेवाले धर्मी ठहराए जाएँगे। 14 फिर जब अन्यजाति लोग जिनके पास व्यवस्था नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों पर चलते हैं, तो व्यवस्था उनके पास न होने पर भी वे अपने लिये आप ही व्यवस्था हैं।
15 वे व्यवस्था की बातें अपने-अपने हृदयों में लिखी हुई दिखाते हैं और उनके विवेक भी गवाही देते हैं, और उनकी चिन्ताएँ परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है। 16 जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्यों की गुप्त बातों का न्याय करेगा।
17 यदि तू स्वयं को यहूदी कहता है, व्यवस्था पर भरोसा रखता है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड करता है, 18 और उसकी इच्छा जानता और व्यवस्था की शिक्षा पा कर उत्तम-उत्तम बातों को प्रिय जानता है; 19 यदि तू अपने पर भरोसा रखता है, कि मैं अंधों का अगुआ, और अंधकार में पड़े हुओं की ज्योति, 20 और बुद्धिहीनों का सिखानेवाला, और बालकों का उपदेशक हूँ, और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्था में है, मुझे मिला है।
21 क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, आप ही चोरी करता है? (मत्ती 23:3) 22 तू जो कहता है, “व्यभिचार न करना,” क्या आप ही व्यभिचार करता है? तू जो मूरतों से घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरों को लूटता है?
23 तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्था न मानकर, परमेश्वर का अनादर करता है? 24 “क्योंकि तुम्हारे कारण अन्यजातियों में परमेश्वर का नाम अपमानित हो रहा है,” जैसा लिखा भी है। (यशा. 52:5, यहे. 36:20)
25 यदि तू व्यवस्था पर चले, तो खतने से लाभ तो है, परन्तु यदि तू व्यवस्था को न माने, तो तेरा खतना* बिन खतना की दशा ठहरा। (यिर्म. 4:4) 26 तो यदि खतनारहित मनुष्य व्यवस्था की विधियों को माना करे, तो क्या उसकी बिन खतना की दशा खतने के बराबर न गिनी जाएगी? 27 और जो मनुष्य शारीरिक रूप से बिन खतना रहा यदि वह व्यवस्था को पूरा करे, तो क्या तुझे जो लेख पाने और खतना किए जाने पर भी व्यवस्था को माना नहीं करता है, दोषी न ठहराएगा?
28 क्योंकि वह यहूदी नहीं जो केवल बाहरी रूप में यहूदी है; और न वह खतना है जो प्रगट में है और देह में है। 29 पर यहूदी वही है, जो आंतरिक है; और खतना वही है, जो हृदय का और आत्मा में है; न कि लेख का; ऐसे की प्रशंसा मनुष्यों की ओर से नहीं, परन्तु परमेश्वर की ओर से होती है। (फिलि. 3:3)
पौलुस यहाँ एक काल्पनिक यहूदी से विवाद करता है
यहाँ मूल भाषा में “अतः” का जो शब्द है वह एक नया अंश का आरंभ दर्शाता है साथ ही जो कहा जा चुका है उसका समाप्त भी दर्शाता है वैकल्पिक अनुवाद“क्योंकि परमेश्वर पाप करने वाले को दण्ड देता है, इसलिए वह निश्चय ही तेरे पापों को क्षमा नहीं करेगा”।
यहाँ “तू” शब्द एक वचन में है। पौलुस यहां किसी वास्तविक मनुष्य से बातें नहीं कर रहा है, परन्तु वह विवाद करने वाले एक काल्पनिक मनुष्य से प्रतिवाद कर रहा है। पौलुस अपने श्रोतागण को सिखाने के लिए ऐसा विवाद कर रहा है कि परमेश्वर पाप करने वाले को अवश्य दण्ड देता है, वह चाहे यहूदी हो या अन्यजाति
यहाँ मूल भाषा में “तू” के स्थान में है मनुष्य तू जो उसकी झिड़की का संकेत देता है क्योंकि मनुष्य परमेश्वर का स्थान लेकर मनुष्य पर दोष लगाता है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तू केवल एक मनुष्य है, परन्तु तू फिर भी मनुष्यों का न्याय करके कहता है कि वे परमेश्वर के दण्ड के योग्य हैं।”
यहाँ एक नया वाक्य आरंभ किया जा सकता है, “सच तो यह है कि तू इस प्रकार अपना ही न्याय करता है क्योंकि तू भी तो वैसे ही दुष्टता के काम करता है”।
यहाँ “हम” में मसीही विश्वासी एवं अविश्वासी यहूदी दोनों आते हैं।
“परमेश्वर सच्चा एवं निष्कपट न्याय करता है”
“जो दुष्टता के ऐसे काम करते हैं”
पौलुस एक काल्पनिक यहूदी से विवाद कर रहा है, जिसे वह प्रभावजनक प्रश्नों के द्वारा झिड़कता है।
“अतः” (यू.डी.बी.)
“विचार कर कि मैं क्या कह रहा हूँ”
यहाँ मनुष्य के लिए सामान्य शब्द का उपयोग करें।वैकल्पिक अनुवाद, “तू जो भी है”
“जो ऐसा कहता है कि कोई परमेश्वर” जो किसी को परमेश्वर के दण्ड का दोषी ठहराता है परन्तु स्वयं ही ऐसे काम करता है”।
वैकल्पिक अनुवाद, “तू भी परमेश्वर के दण्ड से नहीं बचेगा”।
वैकल्पिक अनुवाद, “तू तो ऐसा दिखाता है जैसे परमेश्वर का भला होना अर्थहीन है और कि वह दण्ड देने से पहले बहुत प्रतीक्षा करता है।
“उनके धन .... धीरज को महत्त्वहीन समझता है” या “उनको किसी काम का नहीं समझता”
यहाँ एक नया वाक्य आरंभ किया जा सकता है, “तुझे समझ लेना है कि परमेश्वर तुझे दिखाता है कि वह भला है जिससे कि तू पापों से विमुख हो जाए”।
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
पौलुस परमेश्वर की वाणी नहीं सुनने वाले और उसकी आज्ञा नहीं मानने वाले की तुलना एक कठोर पत्थर से करता है। मन संपूर्ण व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि तू सुनना नहीं चाहता, पापों से विमुख होना नहीं चाहता है”।
“कमा रहा है” अर्थात धन सम्पदा एकत्र करके सुरक्षित करना। पौलुस के कहने का अर्थ है धन-संग्रह के स्थान पर परमेश्वर के दण्ड का भण्डारण करना। वे मन फिराव में जितना विलम्ब करेंगे उतना ही अधिक उनका दण्ड कठोर होता जाएगा, वैकल्पिक अनुवाद , “तू अपने दण्ड को अधिकाधिक कठोर बनाता जा रहा है”।
ये एक ही दिन होगा विकल्प, “जब परमेश्वर सब पर प्रकट करेगा कि वह क्रोधित है और सबका निष्पक्ष न्याय करेगा” (यू.डी.बी.)
“निष्पक्षता के साथ प्रतिफल देगा या दण्ड देगा”
“मनुष्यों ने जैसे काम किए हैं उसके अनुसार हर एक को बदला देगा”।
“जिन्होंने सदैव भले कामों के द्वारा दर्शाया है कि वे महिमा, प्रतिष्ठा और शाश्वत जीवन के खोजी है, उन्हें वह सदा का जीवन देगा”।
इसका अर्थ है कि उनके काम ऐसे हैं कि न्याय के दिन उनके लिए परमेश्वर का निर्णय सकरात्मक होगा।
वे परमेश्वर से सुनाम और महिमा पाना चाहते हैं, तथा अमर हो जाना चाहते हैं।
शारीरिक अनश्वरता, न कि नैतिक, क्षय
उसी काल्पनिक यहूदी से पौलुस का विवाद चल रहा है।
“स्वार्थी” या “केवल अपनी प्रसन्नता के खोजी हैं”
परमेश्वर के क्रोध को व्यक्त करने के दो रूप हैं वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर अपना भयानक क्रोध प्रकट करेगा
यहाँ भी दो रूपों में एक ही बात कही गई है कि परमेश्वर के अति भयानक क्रोध को प्रकट करे। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “और अतिभयानक क्रोध दण्ड दिया जायेगा”
यहाँ पौलुस संपूर्ण मनुष्य को दर्शाने के लिए “प्राण” शब्द का उपयोग करता है विकल्प “प्रत्येक मनुष्य”
“जो सदैव बुराई में लिप्त रहता है”
एक नए वाक्य में दूसरा अनुवाद: "परमेश्वर यहूदियों को पहले दण्ड देगा तदोपरान्त गैर यहूदियों को"
क्योंकि शुभ सन्देश अन्यजातियों से पूर्व यहूदियों को सुनाया गया था। यहाँ मूल अर्थ है, 1) समय के क्रम में प्रथम, या 2) “निश्चय ही” (यू.डी.बी.)
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
“परन्तु परमेश्वर की महिमा, सम्मान और शान्ति के पात्र होंगे
“जो भलाई करने से चूकता नहीं है”
यह एक नया वाक्य बनाया जा सकता है, “परमेश्वर पहले यहूदियों को प्रतिफल देगा उसके बाद अन्यजातियों को प्रतिफल मिलेगा”।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे
“परमेश्वर एक जाति को दूसरी जाति से बड़ा या छोटा नहीं मानता है” विकल्प, “परमेश्वर सबके साथ समता का व्यवहार करता है”
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “क्योंकि जिन्होंने... पाप किए”।
“बिना व्यवस्था “ पौलुस इसे दोहराता इसलिए है कि वे परमेश्वर प्रदत्त मूसा के नियमों को नहीं जानते हैं। यदि वे पाप करेंगे तब परमेश्वर उन्हें भी दण्ड देगा। विकल्प, “मूसा द्वारा दिए गए नियमों को नहीं जानने वाले फिर भी आत्मिक मृत्यु के वारिस होते हैं।”
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “और वे सब जिन्होंने मूसा के नियमों के रहते हुए पाप किया”
“जो मूसा के नियमों को जानते हैं, उनका न्याय उन नियमों के पालन के आधार पर किया जाएगा।”
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
“अतः” यदि आपकी भाषा में पद 14 का आरंभ दर्शाने की विधि है और पौलुस के प्रमुख विवाद की व्यवस्था करने में, पाठक को अतिरिक्त जानकारी देने का प्रावधान है। हो सकता है कि आपको 2:14-15 या तो 2:13 के पहले या 2:16 के बाद व्यक्त करने की आवश्यकता हो।
“मूसा के नियमों को सुननेवाले नहीं”
“जो परमेश्वर को प्रसन्न करेंगे”
“परन्तु मूसा प्रदत्त नियमों का पालन करने वाले”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर उन्हें ग्रहण करेगा” (देखें:
“उनके मन में परमेश्वर प्रदत्त नियम रहते हैं”
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
“स्वभाविक रूप से ही वे जो नियम दर्शाते हैं उनका पालन करते हैं”
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर ने उनके मन में अंकित कर दिया है कि नियमों का कैसे पालन करें” या “वे भलिभांति जानते हैं कि नियम उन्हें क्या करने की आज्ञा देते हैं”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से ही किया जाए, “नियम अनिवार्यता प्रकट करते है” या “नियमों के अनुसार परमेश्वर क्या चाहता है”
“उनके मन विवेक में प्रकट करते हैं कि वे गलत कर रहे हैं या सही”
यहाँ पौलुस के विचारों का अन्त होता है एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “जिस दिन परमेश्वर न्याय करेगा तब ऐसा होगा”।
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
अब इस पत्र का एक नया भाग आरंभ होता है। यहाँ “यदि” का अर्थ यह नहीं है कि पौलुस को सन्देह है या वह अनिश्चित है। वह इस कथन की यर्थाथता पर बल दे रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम स्वयं को यहूदी समुदाय का सदस्य मानते हो”
“और तू मूसा प्रदत्त नियमों पर निर्भर करता है तथा परमेश्वर पर घमण्ड करता है।”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “पथ-भ्रष्ट किए गए थे”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “क्योंकि तू जानता है कि मूसा ने जो नियम दिए उनकी शिक्षा क्या है”
यदि आपकी भाषा में 2:19-20 को पौलुस का मुख्य विचार दर्शाने की सुविधा है तो इसका यहाँ उपयोग करें। 2:17/17/18 और 02:21 (21) हो सकता है कि आपके अनुवाद में 2:19-20 को 2:17 के पहले रखने की आवश्यकता हो।
“तू निश्चय है”
इन दोनों उक्तियों का तात्पर्य एक ही है। एक यहूदी किसी को जो देख नहीं सकता, सहायता के लिए उसे यहूदी नियम बताता है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “तू उस मार्गदर्शक के तुल्य है जो किसी अंधे मनुष्य को मार्ग दिखाता है, और तू अन्धकार में भटके हुए मनुष्य के लिए प्रकाश जैसा है।
इसका अनुवाद एक नये वाक्य में किया जा सकता है, “तू अनुचित कार्य करने वालों को सुधारता है”
परमेश्वर प्रदत्त मूसा के नियमों के अज्ञानियों को पौलुस बालक कहता है। वैकल्पिक अनुवाद, “तू उनको शिक्षा देता है जो मूसा द्वारा लाए गए नियमों को नहीं जानते हैं।”
“क्योंकि तुझे विश्वास है कि तू मूसा द्वारा लाए गए नियमों में निहित सत्य को समझता है।”
पौलुस एक काल्पनिक यहूदी से विवाद कर रहा है जिसे वह प्रभावजनक प्रश्नों के द्वारा झिड़कता है।
पौलुस अपने श्रोता को झिड़कने के लिए इस प्रश्न का उपयोग कर रहा है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “परन्तु तू दूसरों को शिक्षा देता है स्वयं को क्यों नहीं सिखा पाता”
पौलुस अपने श्रोता को प्रश्न के माध्यम से झिड़कता है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तू चोरी न करने की शिक्षा देकर स्वयं चोरी करता है”।
पौलुस अपने श्रोता को झिड़कने के लिए प्रश्न का उपयोग कर रहा है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तू व्यभिचार न करने की शिक्षा देकर स्वयं व्यभिचार करता है”।
पौलुस अपने श्रोता को प्रश्न के माध्यम से झिड़कता है। इसके अनुवाद में एक नया वाक्य बनाया जा सकता है, “तू कहता है कि तुझे मूर्तियों से घृणा है परन्तु स्वयं मन्दिरों में चोरी करता है।”
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “स्थानीय मन्दिरों का सामान चुराकर बेचता है।" 2) "यरूशलेम के मन्दिर में जो पैसा परमेश्वर के लिए है उसे पूरा नहीं भेजता है।" 3)“स्थानीय देवताओं का उपहास करता है”
पौलुस एक काल्पनिक यहूदी से विवाद कर रहा है जिसे वह प्रभावजनक प्रश्नों द्वारा झिड़कता है।
पौलुस प्रश्न के माध्यम से अपने श्रोता को झिड़कता है। “तू व्यवस्था पर घमण्ड करता है तो वह तेरी दुष्टता है क्योंकि तू उसका उल्लंघन करके अन्यजातियों के मन में परमेश्वर के लिए लज्जा उत्पन्न करवाता है।
यहाँ “नाम” शब्द परमेश्वर की पूर्णता का प्रतीक है केवल नाम का ही नहीं। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “तुम्हारे ऐसी दुष्टता के काम अन्यजातियों के मन में परमेश्वर के लिए निन्दा उत्पन्न करते हैं।
पौलुस एक काल्पनिक यहूदी से विवाद कर रहा है जिसे वह प्रभावजनक प्रश्नों द्वारा झिड़कता है।
“मैं यह सच कहता हूँ, क्योंकि खतना करवाना निश्चय ही तुझे लाभ पहुँचाता है।”
यदि तू व्यवस्था न माने - “यदि तू उन नियमों का पालन करे जो विधान में निहित हैं”
यह नियमों के उल्लंघन करनेवाले की तुलना उस मनुष्य से करता है जिसका शारीरिक खतना हो गया परन्तु वह इस विधि को विपरीत कर देता है। वह चाहे यहूदी हो, वह वास्तव में एक अन्यजाति ही हुआ। “यह तो ऐसा है जैसे तेरा खतना नहीं हुआ”
“जिस मनुष्य का खतना नहीं हुआ”
“विधान में जो आज्ञाएं हैं उनका पालन करे”
पौलुस इस प्रश्न के द्वारा इस बात पर बल दे रहा है कि खतना अपने आप में मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष धर्मी नहीं बनाता है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में भी किया जा सकता है, “परमेश्वर तो उसे खतना किया हुआ ही मानेगा, “जिनका खतना नहीं हुआ वह तुझे... दोषी ठहराएगा”।
“जिसके पास लिखित धर्मशास्त्र है और जिसका खतना भी हुआ है परन्तु नियमों का पालन नहीं करता”।
अर्थात् दिखाई देने वाली यहूदी विधियों द्वारा
यह पुरूष के गुप्त अंग पर एक चिन्ह है जो एक धार्मिक संसार है।
यह दो प्रमाण हैं कि “जो मन से यहूदी है वही सच्चा यहूदी है। इससे इस उक्ति की परिभाषा समझ में आ जाती है, “खतना वही है जो हृदय का है।”
यह परमेश्वर द्वारा परिवर्तित मनुष्य के मान और अभिप्रेरणा को प्रकट करता है।
यह संभवतः मनुष्य के भीतर उसके आत्मिक मनुष्यत्व का संदर्भ देता है, बाहरी “विधान” की तुलना में। तथापि यह भी संभत है कि इसका संदर्भ पवित्र आत्मा से है (देखें यू.डी.बी.)
यहाँ “लेखा” से अभिप्राय है लिखित धर्मशास्त्र। वैकल्पिक अनुवाद, “पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार न कि नियमों की जानकारी के अनुसार”।
दोष लगाने वाले निरुत्तर हैं क्योंकि वे जिस बात का दोष लगाते हैं उसी के वे भी दोषी हैं।
परमेश्वर जब अधर्म के काम करने वालों का न्याय करता है तब वह सत्य के आधार पर ऐसा करता है।
परमेश्वर का धीरज और उसकी भलाई मनुष्य के मन फिराने के उद्देश्य से है।
कठोर और हठीले मन वाले लोग परमेश्वर के धर्मी न्याय के दिन के लिए क्रोध कमा रहे हैं।
जो लगातार अच्छे काम करते हैं उन्हें अनन्त जीवन का दान मिलेगा।
जो अधर्म को मानते हैं उन पर क्रोध और कोप और क्लेश और संकट आ पड़ेगा।
परमेश्वर पक्षपात नहीं करता है, यहूदी हो या यूनानी पाप करने वाला नष्ट ही होगा।
व्यवस्था पालन करने वाले परमेश्वर के सम्मुख धर्मी ठहराए जाएंगे।
अन्य जाति व्यवस्था की बातों को पूरा करके दिखाते है कि व्यवस्था की अनिवार्यताएं उसके मन में लिखी हैं।
पौलुस उन्हें चुनौती देता है कि जब वे किसी को व्यवस्था सिखाते हैं तो वे स्वयं को भी सिखाएं।
पौलुस चोरी और व्यभिचार और मन्दिर लूटने के पापों का उल्लेख करता है।
परमेश्वर के नाम की निन्दा होती है क्योंकि व्यवस्था के यहूदी शिक्षक व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं।
पौलुस कहता है कि यदि कोई यहूदी व्यवस्था का उल्लंघन करे तो उसका खतना खतनारहित हो सकता है।
पौलुस कहता है कि अन्य जाति मनुष्य को खतनाधारी माना जा सकता है यदि वह व्यवस्था की अनिवार्यताओं को पूरा करता है।
पौलुस कहता है कि एक सच्चा यहूदी मन से यहूदी होता है, उसके मन का खतना होता है।
एक सच्चा यहूदी परमेश्वर से प्रशंसा पाता है।
1 फिर यहूदी की क्या बड़ाई, या खतने का क्या लाभ? 2 हर प्रकार से बहुत कुछ। पहले तो यह कि परमेश्वर के वचन उनको सौंपे गए। (रोम. 9:4)
3 यदि कुछ विश्वासघाती निकले भी तो क्या हुआ? क्या उनके विश्वासघाती होने से परमेश्वर की सच्चाई व्यर्थ ठहरेगी? 4 कदापि नहीं! वरन् परमेश्वर सच्चा और हर एक मनुष्य झूठा ठहरे, जैसा लिखा है,
“जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे
और न्याय करते समय तू जय पाए।” (भज. 51:4, भज. 116:11)
5 पर यदि हमारा अधर्म परमेश्वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें? क्या यह कि परमेश्वर जो क्रोध करता है अन्यायी है? (यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ)। 6 कदापि नहीं! नहीं तो परमेश्वर कैसे जगत का न्याय करेगा?
7 यदि मेरे झूठ के कारण परमेश्वर की सच्चाई उसकी महिमा के लिये अधिक करके प्रगट हुई, तो फिर क्यों पापी के समान मैं दण्ड के योग्य ठहराया जाता हूँ? 8 “हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले*?” जैसा हम पर यही दोष लगाया भी जाता है, और कुछ कहते हैं कि इनका यही कहना है। परन्तु ऐसों का दोषी ठहराना ठीक है।
9 तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं। 10 जैसा लिखा है:
“कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। (सभो. 7:20)
11 कोई समझदार नहीं;
कोई परमेश्वर को खोजनेवाला नहीं।
12 सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए;
कोई भलाई करनेवाला नहीं, एक भी नहीं। (भज. 14:3, भज. 53:1)
13 उनका गला खुली हुई कब्र है:
उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है:
उनके होंठों में साँपों का विष है। (भज. 5:9, भज. 140:3)
14 और उनका मुँह श्राप और कड़वाहट से भरा है। (भज. 10:7)
15 उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं।
16 उनके मार्गों में नाश और क्लेश है।
17 उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना। (यशा. 59:8)
18 उनकी आँखों के सामने परमेश्वर का भय नहीं।” (भज. 36:1)
19 हम जानते हैं, कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के अधीन हैं इसलिए कि हर एक मुँह बन्द किया जाए, और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे। 20 क्योंकि व्यवस्था के कामों* से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिए कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहचान होती है। (भज. 143:2)
21 पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं, 22 अर्थात् परमेश्वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालों के लिये है। क्योंकि कुछ भेद नहीं;
23 इसलिए कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा* से रहित है, 24 परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत-मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।
25 उसे परमेश्वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए, और जिन पर परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से ध्यान नहीं दिया; उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे। 26 वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।
27 तो घमण्ड करना कहाँ रहा? उसकी तो जगह ही नहीं। कौन सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्वास की व्यवस्था के कारण। 28 इसलिए हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है।
29 क्या परमेश्वर केवल यहूदियों का है? क्या अन्यजातियों का नहीं? हाँ, अन्यजातियों का भी है।
30 क्योंकि एक ही परमेश्वर है, जो खतनावालों को विश्वास से और खतनारहितों को भी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा। 31 तो क्या हम व्यवस्था को विश्वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते हैं? कदापि नहीं! वरन् व्यवस्था को स्थिर करते हैं।
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद में ऐसे प्रश्नों का उत्तर दे रहा है जो वह पूछ सकता है।
वैकल्पिक अनुवाद, “अतः यहूदियों को परमेश्वर की वाचा का कोई लाभ नहीं जबकि परमेश्वर तो लाभ की प्रतिज्ञा की थी”
“लाभ तो बहुत है”
वैकल्पिक अनुवाद, “समय के क्रम में पहले” या “अति निश्चित रूप से” (देखें यू.डी.बी.) या “आवश्यक रूप से”
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद कर रहा है और ऐसे मनुष्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे रहा है।
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों द्वारा मनुष्यों को सोचने पर विवश करता है। कुछ यहूदियों के साथ स्वामिभक्ति नहीं निभाते तो कुछ का कहना था कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं करेगा।
“असंभव है”। या “निश्चय ही नहीं” यह अभिव्यक्ति दृढ़ता से इन्कार करती है कि ऐसा होने की संभावना है। आप अपनी भाषा में ऐसी ही अभिव्यक्ति को काम में लेना चाहेंगे।
“इसकी अपेक्षा हमें कहना है”
“यहूदी धर्मशास्त्र भी मेरी बात से सहमत है”
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद कर रहा है और ऐसे मनुष्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे रहा है।
पौलुस इन शब्दों को उस काल्पनिक यहूदी के मुँह में रख रहा है जिससे वह बात कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि हमारी ईश्वर-भक्ति दर्शाती है कि परमेश्वर न्यायोचित है मैं एक प्रश्न पूछता हूँ”
यदि आप यह वैकल्पिक अनुवाद काम में ले रहे हैं तो सुनिश्चित करें कि पाठक को समझ में आ जाए कि इसका उत्तर “नहीं” है। क्या परमेश्वर जो मनुष्यों पर क्रोध करता है, वह न्यायोचित नहीं है”?
“मैं एक अलग मनुष्य के सदृश्य कह रहा हूँ,
पौलुस इस प्रभावोत्पाद प्रश्न द्वारा दर्शाता है कि मसीही शुभ सन्देश के विरूद्ध विवाद करना बेतुका है, क्योंकि सब यहूदियों का मानना है कि परमेश्वर मुनष्यों का न्याय कर सकता है वरन करता भी है और हम सब जानते हैं कि परमेश्वर वास्तव के संसार का न्याय करेगा”।
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद कर रहा है और ऐसे मनुष्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे रहा है।
यहाँ पौलुस कल्पना करता है कि एक मनुष्य मसीही सुसमाचार का परित्याग करता है; तो बैरी विवाद करता है कि परमेश्वर उसे न्याय के दिन पापी न ठहराए यदि उदाहरणार्थ उसने झूठ कहा है।
यह पौलुस का अपना प्रश्न है जो दर्शाता है कि उसके काल्पनिक विरोधों का विवाद कैसा बेतुका है, वैकल्पिक अनुवाद, “उचित तो यह होगा कि मैं कहूँ कि हम बुरे काम करें कि परिणामस्वरूप भलाई उत्पन्न हो”।
वैकल्पिक अनुवाद
परमेश्वर, पौलुस के इन बैरियों को जब दण्ड देगा तब वह न्यायनिष्ठ ही होगा, क्योंकि वे पौलुस की शिक्षा के बारे में झूठी बातें कहते हैं।
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद कर रहा है और ऐसे मनुष्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे रहा है।
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) हम विश्वासी जन उन दुष्टता के कामों को नहीं छिपाते जिनके लिए हमें कहा जाता है कि हम करते हैं। या 2) हम यहूदियों को कल्पना करने की आवश्यकता नहीं कि हम परमेश्वर क दण्ड से बच जाएंगे क्योंकि हम यहूदी हैं। (यू.डी.बी.)
ये शब्द मात्र “नहीं” से अधिक प्रबल हैं परन्तु इतने प्रबल भी नहीं जितने “कदापि नहीं” होते हैं।
“कोई भी परमेश्वर के सत्य को नहीं समझता है”
“कोई भी नहीं है जो परमेश्वर के साथ न्यायोचित संबन्ध बनाने का प्रयास करता है”
“सबने परमेश्वर का त्याग करके उस धर्मपराण्यता इच्छा तिरस्कार किया है”।
“जहाँ तक उनके लिए परमेश्वर की इच्छा का प्रश्न है, सब निकम्मे हो गए हैं”
“यहूदियों और यूनानियों”
पौलुस एक अलंकार द्वारा दर्शा रहा है कि मनुष्य की हर एक बात धर्मविरोधी एवं घृणाजन्य है
“मनुष्य झूठ बोलते हैं”
“मनुष्य जो भी कहता है वह हानिकारक है और अन्यों की हानि के अभिप्राय से होता है”।
“यहूदी और यूनानी”
“वे मनुष्यों को हानि पहुंचाने और उनकी हत्या करने के लिए विलम्ब नहीं करते हैं”।
“हर एक मनुष्य की जीवनशैली ऐसी है कि वे जानबूझ अन्यों को नाश करना चाहते हैं और उन्हें कष्ट पहुँचाना चाहते हैं।
“मार्ग” अर्थात “रास्ता”, “पथ” इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “अन्यों के साथ मेल-मिलाप से कैसे रहना है” (देखें:
“परमेश्वर को उसके योग्य सम्मान अर्पित करने से सब इन्कार करते है”
“मनुष्यों के लिए नियमों के पालन की जो भी अनिवार्यता है वह उनके लिए ही है” या “मूसा ने विधान में जितनी भी आज्ञाएँ दी है, वे उनके लिए है”
“कि कोई भी अपने प्रतिवाद में कुछ भी न कहने पाए जो उचित हो” कर्तृवाच्य वाक्य में इसका अनुवाद हो सकता है, इस प्रकार परमेश्वर मनुष्य को इस योग्य नहीं छोड़ता है कि वह कहे, “मैं निर्दोष हूँ”
इसके अर्थ हो सकते हैं, 1) “कि” या 2) “और इस प्रकार” या 3) “वरन”
“जब मनुष्य को परमेश्वर के नियमों का ज्ञान होता है तो उसे यह बोध हो जाता है कि धार्मिकता नहीं, परमेश्वर की दृष्टि में पापी है”
पौलुस अपनी प्रस्तावना समाप्त करके अब अपना प्रमुख विचार व्यक्त करना चाहता है।
“अब” शब्द उस समय के संदर्भ में है जब से यीशु इस पृथ्वी पर आया।
इसका अनुवाद एक सक्रिय क्रिया के रूप में किया जा सकता है : "परमेश्वर ने प्रगट नहीं किया"
इसका संबन्ध “न्यायोचित होने” से है, न कि “ऐसी विधि प्रकट की है” से है।
“व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता” यहूदी धर्मशास्त्र के उस अंश को दर्शाते हैं जिसकी रचना मूसा और भविष्यद्वक्ताओं ने की है जिस प्रकार कि कोई न्यायालय में गवाही देने जा रहा है। इसका वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “मूसा और भविष्यद्वक्ताओं ने जो कहा वह इसको सत्यापित करते हैं
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “मैं इस धार्मिकता के विषय में कह रहा हूँ जो परमेश्वर हमें देता है जब हम मसीह यीशु में विश्वास करते है”।
“क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में यहूदी और अन्यजाति बराबर हैं”
उसके अनुग्रह उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है - इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है। “परमेश्वर ने अपनी करूणा के द्वारा उन्हें न्यायोचित ठहराया है क्योंकि मसीह यीशु ने उन्हें मुक्ति दिलाई है।
इसके अर्थ हो सकते हैं, 1) अनदेखा करना, या 2) क्षमा करना।
“उसने इस समय अपनी न्यायनिष्ठा को प्रकट करने के लिए ऐसा किया वह दर्शाता है कि वह न्यायनिष्ठ है और यीशु में विश्वास करने वाले हर एक मनुष्य को न्यायोचित ठहराता है।
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों का उत्तर देकर प्रबलता-पूर्वक दर्शाना चाहता है कि वह जो बात कह रहा है वह निश्चय ही सच है।
“किस कारण से? या “घमण्ड का निराकरण क्यों?” या “हम घमण्ड क्यों नहीं कर सकते हैं”?
“घमण्ड का निराकरण क्या नियमों के पालन करने के कारण है”
“क्योंकि हम यीशु में विश्वास करते हैं”
“पृथक होकर”
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों का ही उत्तर दे रहा है कि उसके द्वारा कही गई बात का महत्त्व प्रकट हो।
“यदि परमेश्वर केवल उसके नियमों का पालन करनेवालों ही को धर्मी ठहराता है तो क्या वह केवल यूहदियों का ही परमेश्वर नहीं हुआ”?
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों का ही उत्तर दे रहा है कि उसके द्वारा कही गई बात का महत्त्व प्रकट हो।
वैकल्पिक अनुवाद, “क्या हम विश्वास के कारण नियमों के विधान का निराकरण करें?
“यह तो सच हो ही नहीं सकता”। या “ऐसा कभी नहीं हो सकता” (यू.डी.बी.) यह उक्ति पूर्व व्यक्त प्रभावोत्पादक प्रश्न की अति प्रबल नकारात्मक अभिव्यक्ति है। आप अपनी भाषा में ऐसी ही अभिव्यक्ति काम में लेना चाहेंगे।
वैकल्पिक अनुवाद, “हम नियमों का पालन करते हैं”।
इस सर्वनाम का संदर्भ पौलुस से, अन्य विश्वासियों से तथा पाठकों से है।
यहूदियों के सौभाग्यों में सबसे पहला है, उन्हें परमेश्वर का प्रकाशन सौंपा गया है।
यद्यपि हर एक मनुष्य झूठा है, परमेश्वर सच्चा है।
क्योंकि परमेश्वर धर्मी है, वह संसार का न्याय करने योग्य है।
जो कहता है, "हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले" वे दोषी ठहराए जाएंगे।
लिखा है, कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
जो लिखा है उसके अनुसार कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं।
व्यवस्था के कामों से कोई धर्मी नहीं ठहरेगा।
पाप का बोध व्यवस्था से होता है।
व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की गवाही द्वारा व्यवस्थारहित धार्मिकता प्रकट हुई है।
व्यवस्थारहित धार्मिकता मसीह में विश्वास के द्वारा सब विश्वासियों के लिए परमेश्वर की धार्मिकता है।
मनुष्य मसीह यीशु में निहित उद्धार के द्वारा परमेश्वर के सम्मुख उसके अनुग्रह से निर्मोल धर्मी ठहरता है।
परमेश्वर ने विश्वास के द्वारा मसीह के लहू के कारण प्रायश्चित्त ठहराया है।
परमेश्वर ने प्रकट किया कि वही है जो किसी को भी यीशु में विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराता है।
मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराया जाता है।
परमेश्वर दोनों को विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराता है।
हम विश्वास के द्वारा व्यवस्था को स्थिर करते हैं।
1 तो हम क्या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता अब्राहम को क्या प्राप्त हुआ? 2 क्योंकि यदि अब्राहम कामों से धर्मी ठहराया जाता*, तो उसे घमण्ड करने का कारण होता है, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं। (उत्प. 15:6) 3 पवित्रशास्त्र क्या कहता है? यह कि “अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।”
4 काम करनेवाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु हक़ समझा जाता है।
5 परन्तु जो काम नहीं करता वरन् भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना जाता है।
6 जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाऊद भी धन्य कहता है:
7 “धन्य वे हैं, जिनके अधर्म क्षमा हुए,
और जिनके पाप ढांपे गए।
8 धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।” (भज. 32:2)
9 तो यह धन्य वचन, क्या खतनावालों ही के लिये है, या खतनारहितों के लिये भी? हम यह कहते हैं, “अब्राहम के लिये उसका विश्वास धार्मिकता गिना गया।” 10 तो वह कैसे गिना गया? खतने की दशा में या बिना खतने की दशा में? खतने की दशा में नहीं परन्तु बिना खतने की दशा में।
11 और उसने खतने का चिन्ह* पाया, कि उस विश्वास की धार्मिकता पर छाप हो जाए, जो उसने बिना खतने की दशा में रखा था, जिससे वह उन सब का पिता ठहरे, जो बिना खतने की दशा में विश्वास करते हैं, ताकि वे भी धर्मी ठहरें; (उत्प. 17:11) 12 और उन खतना किए हुओं का पिता हो, जो न केवल खतना किए हुए हैं, परन्तु हमारे पिता अब्राहम के उस विश्वास के पथ पर भी चलते हैं, जो उसने बिन खतने की दशा में किया था।
13 क्योंकि यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न अब्राहम को, न उसके वंश को व्यवस्था के द्वारा दी गई थी, परन्तु विश्वास की धार्मिकता के द्वारा मिली। 14 क्योंकि यदि व्यवस्थावाले वारिस हैं, तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी। 15 व्यवस्था तो क्रोध उपजाती है और जहाँ व्यवस्था नहीं वहाँ उसका उल्लंघन भी नहीं।
16 इसी कारण प्रतिज्ञा विश्वास पर आधारित है कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि वह सब वंश के लिये दृढ़ हो, न कि केवल उसके लिये जो व्यवस्थावाला है, वरन् उनके लिये भी जो अब्राहम के समान विश्वासवाले हैं वही तो हम सब का पिता है 17 जैसा लिखा है, “मैंने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है” उस परमेश्वर के सामने जिस पर उसने विश्वास किया* और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उनका नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं। (उत्प. 17:15)
18 उसने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिए कि उस वचन के अनुसार कि “तेरा वंश ऐसा होगा,” वह बहुत सी जातियों का पिता हो। 19 वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ, (इब्रा. 11:11)
20 और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की, 21 और निश्चय जाना कि जिस बात की उसने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में भी सामर्थी है। 22 इस कारण, यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।
23 और यह वचन, “विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया,” न केवल उसी के लिये लिखा गया*, 24 वरन् हमारे लिये भी जिनके लिये विश्वास धार्मिकता गिना जाएगा, अर्थात् हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। 25 वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया। (यशा. 53:5, यशा. 53:12)
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों का ही उत्तर दे रहा है कि उसके द्वारा कही गई बात का महत्त्व प्रकट हो।
“हमारे पूर्वज अब्राहम ने यही तो पाया। पौलुस पाठकों का ध्यानाकर्षित करने हेतु प्रश्न पूछ कर एक नई बात कहता है।
" हम इसे पवित्र शास्त्र में देख सकते है"
“और परमेश्वर अब्राहम को धर्मी कहा”।
वैकल्पिक अनुवाद: इसी कारण दाऊद भी उस मनुष्य को आशीषित कहता है जिसे परमेश्वर कर्मों बिना धर्मी कहता है”।
वैकल्पिक अनुवाद, “जिसके अपराध परमेश्वर ने ढाँप दिए... जिनके पापों का लेखा परमेश्वर ने मिटा दिया”। यहाँ एक ही विचार को तीन विभिन्न अभिव्यक्तियों में प्रकट किया गया है, दो भिन्नार्थक शब्द तीन भिन्नार्थक शब्द होते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, “क्या परमेश्वर केवल उनको ही आशीष देता है जिनका खतना हुआ है या जिनका खतना नहीं हुआ है उनको भी।
पौलुस यहूदियों और गैर यहूदियों दोनों ही के लिए कहता है।
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर ने अब्राहम के विश्वास को धर्मी माना था”।
“खतना एक प्रकट चिन्ह था कि परमेश्वर ने उसे खतना करवाने से पहले परमेश्वर में विश्वास करने के कारण न्यायोचित ठहरा दिया था।
वैकल्पिक अनुवाद, “उन्होंने खतना नहीं करवाया तौभी”
वैकल्पिक अनुवाद, “कि परमेश्वर उन्हें धर्मी माने।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर उन्हें ग्रहण करेगा” (देखें:
परन्तु विश्वास की धार्मिकता के द्वारा मिली इस वाक्य में परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की, छोड़ दिया गया है क्योंकि वह समझा जा सकता है। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु परमेश्वर ने इसमें विश्वास ही के कारण यह प्रतिज्ञा की थी जिसे वह न्यायोचित मानता है”।
वैकल्पिक अनुवाद, यदि परमेश्वर प्रदत्त मूसा के नियमों का पालन करनेवाले पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
तो विश्वास का कोई अर्थ नहीं और प्रतिज्ञा व्यर्थ हो गई”।
“परन्तु यदि नियम न हों तो उनके उल्लंघन का प्रश्न ही नहीं उठता है। इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में भी किया जा सकता है, मनुष्य नियमों का उल्लंघन तब ही करता है जब नियम हों”।
“परमेश्वर में विश्वास करने पर हमें आशिष पाने का कारण है कि वह उपहार हो”।
“कि अब्राहम का संपूर्ण वंश निश्चय ही प्रतिज्ञाओं के वारिस हों।
अर्थात यहूदी जो परमेश्वर प्रदत्त मूसा के नियमों को मानते हैं।
वे जो अब्राहम के सदृश्य विश्वास रखते हैं अर्थात उसके खतने से पूर्व का विश्वास ।
यहाँ “हम” का अभिप्राय पौलुस तथा सब विश्वासी चाहे वे यहूदी हैं या गैर यहूदी। अब्राहम यहूदियों का शारीरिक पूर्वज था परन्तु वह मसीह के विश्वासियों का आत्मिक पिता है।
जहाँ लिखा है वह स्पष्ट किया जा सकता हैः “जैसा धर्मशास्त्र में लिखा है”
यहाँ “तू” शब्द एक वचन है और अब्राहम का बोध करवाता है
इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “अब्राहम परमेश्वर की उपस्थिति में था जिस पर उसने विश्वास किया था और वह मृतकों को जीवन दान देता है”
इसका पूर्ण अर्थ स्पष्ट व्यक्त किया जा सकता है, “यद्यपि इसके लिए वंश उत्पन्न करना असंभव था”
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “और अब्राहम द्वारा विश्वास करने का परिणाम यह हुआ कि वह अनेक जातियों का पिता हुआ”।
“ठीक उसी बात पर जो परमेश्वर ने उससे कहीं थी”
यहाँ परमेश्वर की पूरी प्रतिज्ञा को स्पष्ट व्यक्त किया जा सकता है, “तेरा वंश अनगिनत होगा”
वैकल्पिक अनुवाद, “विश्वास में दृढ़ रहा”
यहाँ अब्राहम की वृद्धावस्था और सन्तानोत्पत्ति में सारा को अक्षम होने को मृतक तुल्य माना गया है। इसका बल इस बात पर है कि उनके लिए सन्तान उत्पन्न करना असंभव था। वैकल्पिक अनुवाद, “अब्राहम जानता था कि वह बहुत वृद्ध था और सारा सन्तान उत्पन्न नहीं कर सकती थी।
“सन्देह कभी नहीं किया”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, परन्तु उसका विश्वास दृढ़ होता गया”
“और परमेश्वर की स्तुति की”
“अब्राहम को पूर्ण निश्चय था”
“परमेश्वर में उसे पूरा करने की सामर्थ्य है
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर ने अब्राहम के विश्वास को धर्मी कहा” या “परमेश्वर ने अब्राहम को धर्मी कहा क्योंकि उसने विश्वास किया था।
इस शब्द के द्वारा पत्र के एक नए भाग का आरंभ होता है। पौलुस अब्राहम के बारे में बातें करने से हट कर अब मसीह के विश्वासियों के बारे में बातें करेगा।
“न केवल अब्राहम के लिए”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है, “परमेश्वर ने उसे धर्मी माना” या “परमेश्वर ने उसे धर्मी गिना”
“हमारे” का अभिप्राय है पौलुस और सब विश्वासी
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “यह हमारे लाभ के लिए भी था क्योंकि परमेश्वर हमें भी धर्मी कहेगा यदि हम विश्वास करें”।
“परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर ने उसे उसके हत्यारों के हाथों में दे दिया था”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “जिसे परमेश्वर ने पुनः जीवित किया कि हम परमेश्वर के साथ उचित संबन्ध में हो जाएं”।
यदि अब्राहम कामों द्वारा धर्मी ठहरता तो उसके पास गर्व करने का कारण होता।
पवित्र शास्त्र स्पष्ट कहता है कि अब्राहम ने परमेश्वर में विश्वास किया और वह उसके लिए धार्मिकता गिना गया।
परमेश्वर अधर्मी को धर्मी ठहराता है।
दाऊद कहता है कि धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म क्षमा हुए और धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।
अब्राहम के खतने से पूर्व वह विश्वास द्वारा धर्मी ठहराया गया था।
अब्राहम सब विश्वासियों का पिता है चाहे वे धर्मी खतना वाले हों या खतनारहित हों।
अब्राहम और उसके वंशजों से प्रतिज्ञा की गई थी कि वे संसार के उत्तराधिकारी होंगे।
यदि प्रतिज्ञा व्यवस्था द्वारा आई थी तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी।
प्रतिज्ञा विश्वास के कारण दी गई थी कि वह अनुग्रह के कारण हो वह सच हो।
पौलुस कहता है कि परमेश्वर मृतकों में जान डालता है और जो नहीं है उसे अस्तित्व में लाता है।
जब परमेश्वर ने अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी तब वह सौ वर्ष का था और सारा का गर्भ मरा हुआ था।
अब्राहम परमेश्वर पर लगातार विश्वास करता रहा और अविश्वास में संकोच नहीं किया।
यह वचन अब्राहम ही के लिए नहीं परन्तु हमारे लिए भी लिखा गया है।
हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने यीशु को मृतकों में से जिलाया, वह हमारे पापों के लिए पकड़वाया गया था और हमें धर्मी ठहराने के लिए जिलाया भी गया।
1 क्योंकि हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें, 2 जिसके द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक जिसमें हम बने हैं, हमारी पहुँच* भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें।
3 केवल यही नहीं, वरन् हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज, 4 और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है; 5 और आशा से लज्जा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।
6 क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा। 7 किसी धर्मी जन* के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है; परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का धैर्य दिखाए।
8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। 9 तो जब कि हम, अब उसके लहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा परमेश्वर के क्रोध से क्यों न बचेंगे?
10 क्योंकि बैरी होने की दशा में उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ, फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएँगे? 11 और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा, जिसके द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर में आनन्दित होते है।
12 इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया। (1 कुरि. 15:21-22) 13 क्योंकि व्यवस्था के दिए जाने तक पाप जगत में तो था, परन्तु जहाँ व्यवस्था नहीं, वहाँ पाप गिना नहीं जाता।
14 तो भी आदम से लेकर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगों पर भी राज्य किया*, जिन्होंने आदम की आज्ञाकारिता के समान पाप नहीं किया, जो उस आनेवाले का चिन्ह है।
15 पर जैसी अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुत से लोगों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ।
16 और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुत से अपराधों से ऐसा वरदान उत्पन्न हुआ कि लोग धर्मी ठहरे। 17 क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्मरूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे।
18 इसलिए जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धार्मिकता का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। 19 क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।
20 व्यवस्था* बीच में आ गई कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहाँ पाप बहुत हुआ, वहाँ अनुग्रह उससे भी कहीं अधिक हुआ, 21 कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिये धर्मी ठहराते हुए राज्य करे।
“इस कारण”
"हम और अपना" यह दो शब्द सब विश्वासियों के लिए हैं और समाविष्ट करना हैं
“अपने प्रभु यीशु मसीह के कारण”
पौलुस कृपा प्राप्त विश्वासियों की तुलना उस मनुष्य से करता है जो एक राजा के सम्मुख खड़ा होने के योग्य होता है। क्योंकि हम यीशु में विश्वास करते हैं परमेश्वर के कृपापात्र होकर उसके समक्ष उपस्थित हो सकते हैं।
“हम आनन्द करते है क्योंकि हमें परमेश्वर की महिमा के अनुभव की आशा है।”
“यह” शब्द उन विचारों के संदर्भ में है जिनके वर्णन में किया गया है।
"हम हमारा हमारे" शब्द सब विश्वासियों का संदर्भ देते हैं और आवश्यक है कि वे समावेशी हैं
अर्थात् परमेश्वर कहे, “अच्छा है”
वैकल्पिक अनुवाद, “आशा”
“हम” शब्द सब विश्वासियों के लिए है अतः इसे समावेशी होना है,
वैकल्पिक अनुवाद, “दर्शाता है” या “सिद्ध करता है”
“हम” और “हमारे”, ये सब शब्द समस्त विश्वासियों के लिए है। अतः इन्हें समावेश होना है।
वैकल्पिक अनुवाद, “अब क्योंकि हम उसके लहू के द्वारा धर्मी ठहरे तो वह हमारे लिए अब कितना अधिक कुछ करेगा”।
“हम” के सब रूप विश्वासियों का संदर्भ देते है, इसलिए इन्हें समावेश होना आवश्यक है।
“परमेश्वर के पुत्र... परमेश्वर के पुत्र के जीवन”
“अब क्योंकि हम पुनः उसके मित्र हैं” “वैकल्पिक अनुवाद, “अब क्योंकि परमेश्वर हमें पुनः अपना मित्र मानता है”
अग्रिम शब्द पौलुस के पिछला विवाद पर आधारित हैं कि सब विश्वासी विश्वास के द्वारा धर्मी माने जाते हैं। (यू.डी.बी.)
पौलुस “पाप” को एक घातक बात कहता है, जिसका आगमन “एक मनुष्य” आदम द्वारा स्थान देने से हुआ और “पाप” एक ऐसा द्वार बन गया जिसके द्वारा एक घातक बात, “मृत्यु” ने संसार में प्रवेश किया। (देखें: )
“तथापि” या “आदम के समय से लेकर मूसा तक लिखित नियमावली नहीं थी परन्तु”
पौलुस मृत्यु की तुलना एक राजा से करता है . वैकल्पिक अनुवाद, “मनुष्य तो आदम के समय से लेकर मूसा के समय तक उनके पापों के परिणामस्वरूप मर रहे थे”।
“जिन मनुष्यों के पाप आदम के पाप जैसे न थे वे भी मर रहे थे”।
आदम मसीह का प्रतिरूप था, मसीह जो बहुत बाद में आया। इसमें उसकी बहुत समानता थी।
“बहुत लोग मरे” महत्त्वपूर्ण है परन्तु “अनुग्रह और इसका जो दान... अधिकाई से हुआ और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
“अनुग्रह” और “दान” “पापों” से अधिक महान एवं प्रबल हैं।
“दान आदम के पाप का परिणाम नहीं है”
“क्योंकि एक ओर”
“क्योंकि” और “तो” किसी एक ही बात पर विचार करने की दो धाराएं हैं। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “एक मनुष्य के कारण दण्ड का निर्णय लिया गया, तो”
“अनेकों के पापों के कारण”
आदम के अपराध
“हर एक मनुष्य मरा”
“मसीह यीशु के जीवन द्वारा”
आदम के एक ही पाप के द्वारा। वैकल्पिक अनुवाद, “आदम के पाप के कारण”
मसीह यीशु का बलिदान
आदम की अवज्ञा
यीशु की आज्ञाकारिता के कारण
“नियमों ने प्रवेश किया” (देखें:
इसके अर्थ दोनों हो सकते हैं, “मनुष्य को अपने पाप के भयानक होने का बोध हो” (यू.डी.बी.) और “मनुष्य अधिक पाप करे”
“प्रचुर”
“जैसे पाप ने मृत्यु द्वारा राज किया”
“हमारे प्रभु यीशु मसीह की पवित्रता के द्वारा कृपा मनुष्यों को अनन्त जीवन प्रदान करती है”
'हमारे' अर्थात पौलुस के इस पत्र के पाठक और सब विश्वासी
क्योंकि विश्वासी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाते हैं, प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर से उनका मेल है।
क्लेश, धीरज, खराई और आशा उत्पन्न होती है।
परमेश्वर हम पर अपना प्रेम इस रीति से प्रकट करता है कि हम जब पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा।
मसीह के लहू द्वारा धर्मी ठहराए जाकर विश्वासी परमेश्वर के क्रोध से बचाए गए हैं।
मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल करवाने से पहले अविश्वासी परमेश्वर के बैरी है।
एक मनुष्य के पाप करने के कारण पाप संसार में आ गया और पाप के द्वारा मृत्यु आई और मृत्यु सब लोगों में फैल गई।
आदम वह एक मनुष्य था जिसके द्वारा पाप संसार में आया।
आदम के अपराध से बहुत लोग मरे परन्तु परमेश्वर को वदान्य अनुग्रह बहुतों पर बहुतायत से हुआ।
आदम के पाप के कारण दण्ड की आज्ञा हुई। परन्तु परमेश्वर के वरदान के कारण लोग धर्मी ठहरे।
आदम के अपराध के कारण मृत्यु ने राज किया, परन्तु जो परमेश्वर के वदान्य को पाते हैं वे मसीह यीशु के जीवन के द्वारा राज्य करेंगे।
आदम की अवज्ञा के कारण अनेक जन पापी हुए परन्तु मसीह की आज्ञाकारिता के द्वारा अनेक जन धर्मी ठहराए जायेंगे।
व्यवस्था बीच में आ गई कि अपराध बहुत हो।
परमेश्वर का अनुग्रह पाप से अधिक हुआ।
1 तो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें कि अनुग्रह बहुत हो? 2 कदापि नहीं! हम जब पाप के लिये मर गए* तो फिर आगे को उसमें कैसे जीवन बिताएँ? 3 क्या तुम नहीं जानते कि हम सब जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उसकी मृत्यु का बपतिस्मा लिया?
4 इसलिए उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नये जीवन के अनुसार चाल चलें। 5 क्योंकि यदि हम उसकी मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएँगे।
6 क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर नाश हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें। 7 क्योंकि जो मर गया, वह पाप से मुक्त हो गया है।
8 इसलिए यदि हम मसीह के साथ मर गए, तो हमारा विश्वास यह है कि उसके साथ जीएँगे भी, 9 क्योंकि हम जानते है कि मसीह मरे हुओं में से जी उठा और फिर कभी नहीं मरेगा। मृत्यु उस पर प्रभुता नहीं करती।
10 क्योंकि वह जो मर गया तो पाप के लिये एक ही बार मर गया; परन्तु जो जीवित है, तो परमेश्वर के लिये जीवित है। 11 ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो।
12 इसलिए पाप तुम्हारे नाशवान शरीर में राज्य न करे, कि तुम उसकी लालसाओं के अधीन रहो। 13 और न अपने अंगों को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आपको मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो। 14 तब तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हो।
15 तो क्या हुआ? क्या हम इसलिए पाप करें कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं! 16 क्या तुम नहीं जानते कि जिसकी आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों के समान सौंप देते हो उसी के दास हो: चाहे पाप के, जिसका अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिसका अन्त धार्मिकता है?
17 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे अब मन से उस उपदेश के माननेवाले हो गए, जिसके साँचे में ढाले गए थे, 18 और पाप से छुड़ाए जाकर* धार्मिकता के दास हो गए।
19 मैं तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूँ। जैसे तुम ने अपने अंगों को अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिये धार्मिकता के दास करके सौंप दो। 20 जब तुम पाप के दास थे, तो धार्मिकता की ओर से स्वतंत्र थे। 21 तो जिन बातों से अब तुम लज्जित होते हो, उनसे उस समय तुम क्या फल पाते थे? क्योंकि उनका अन्त तो मृत्यु है।
22 परन्तु अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिससे पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है। 23 क्योंकि पाप की मजदूरी* तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।
पौलुस ने कृपा (अनुग्रह) के बारे में जो लिखा है उस पर एक प्रश्न की कल्पना करता है कि कोई पूछ सकता है।
सर्वनाम “हम” का संदर्भ पौलुस उसके पाठकों और अन्य सब से है।
इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “बढ़ता जाए”
यह विश्वासी के पानी के बपतिस्मे की तुलना यीशु की मृत्यु और उसके दफन से की गई है। यहाँ इस बात को बल दिया गया है मसीह में विश्वास करने वाला मसीह की मृत्यु का लाभार्थी है। इसका अर्थ है कि पाप को अब विश्वासी पर अधिकार नहीं।
यहाँ विश्वासी के आत्मिक पुनर्जीवन की तुलना यीशु के पुनः जीवित होने से की गई है। विश्वासी का यह नया जीवन आत्मिक जीवन विश्वासी को परमेश्वर का आज्ञाकारी बनाता है। वैकल्पिक अनुवाद, में कर्तृवाच्य क्रिया का उपयोग किया जा सकता है, “जिस प्रकार पिता परमेश्वर ने यीशु के मरणोपरान्त पुनः जीवित किया, उसी प्रकार हमें भी नया आत्मिक जीवन मिलता है कि हम परमेश्वर की आज्ञाकारिता में रहें।
“हम उसकी मृत्यु की समानता में हो गए तो, मरणोपरान्त जीवन में भी उसकी समानता में होंगे।
यहाँ पौलुस कहता है कि विश्वासी यीशु के विश्वास में आने से पूर्व एक मनुष्य होता है तो विश्वास में आने के बाद वह एक सर्वथा भिन्न मनुष्य होता है। “पुराना मनुष्यत्व” अर्थात मसीह को ग्रहण करने से पूर्व का अविश्वासी मनुष्य वास्तव में आत्मिकता में मृतक होता है और मृत्यु के आधीन रहता है। पौलुस कहता है कि हमारा यह पापी मनुष्यत्व मसीह में विश्वास करने पर उसके साथ मर जाता है। वैकल्पिक अनुवाद, “हमारा पापी मनुष्यत्व यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका है”।
“मनुष्य का पूर्वकालिक जीवन”, मनुष्य जैसा पहले था वैसा अब नहीं है।
संपूर्ण पापी मनुष्य
“मर जाए”
पौलुस मनुष्य पर पाप की प्रभुता की तुलना एक स्वामी से करता है जो दास पर स्वामित्व दर्शाती है। पवित्र आत्मा से रहित मनुष्य सदैव पाप का चुनाव करता है। वह परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाले कामों का चुनाव नहीं कर सकता है। वैकल्पिक अनुवाद, “हमें अब पाप के दास नहीं रहना है”
वैकल्पिक अनुवाद, कर्तृवाच्य क्रिया के उपयोग से भी किया जा सकता है, “जो पाप की प्रभुता के लिए मर गया उसे परमेश्वर धर्मी ठहराता है”
यद्यपि मसीह की शारीरिक मृत्यु हुई परन्तु विश्वासियों की मृत्यु से उसका अर्थ है पाप के प्रति आत्मिक मृत्यु। वैकल्पिक अनुवाद, “हम मसीह की मृत्यु के साथ आत्मिकता में मर गए”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में भी किया जा सकता है, “परमेश्वर ने यीशु को मरने के बाद फिर जीवित किया”
यहाँ “मृत्यु” को एक राजा या शासक स्वरूप व्यक्त किया गया है जो मनुष्यों पर प्रभुता करती है, इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “वह फिर कभी नहीं मरेगा”
“एक ही बार” इस उक्ति का अर्थ है, किसी बात का सदा के लिए अन्त कर देना। इसका परिपूर्ण अर्थ स्पष्ट किया जा सकता हैः “क्योंकि जब मरा तब उसने पाप की प्रभुता का सदा के लिए अन्त कर दिया” (देखें: और )
“इसी प्रकार तुम भी.... समझो” या “इस प्रकार तुम भी समझो”
“स्वयं को समझो” या “ऐसा मान लो कि तुम भी”
यहाँ “पाप” का अर्थ है, वह व्यक्ति जो हम में निहित है और हमें पाप करने के लिए विवश करता है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “पाप की शक्ति के लिए मरा हुआ”
यहाँ “परन्तु” एक ही विचारधारा को विभाजित करके प्रकट करता है। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “पाप के लिए मृतक परन्तु परमेश्वर के लिए जीवित”
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर की आज्ञाकारिता के लिए मसीह यीशु के सामर्थ्य द्वारा जीवित।”
“पाप” .... को यहाँ मनुष्य का राजा या स्वामी जैसा दर्शाया गया है
यह उक्ति मनुष्य के शारीरिक अंगों के बारे में कहती है। जो वह मर जाएंगी। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “अपने को”
स्वामी “पाप” चाहता है कि पापी उसके स्वामी की आज्ञा मानकर बुरे काम करे”।
यहाँ परिदृश्य यह है कि पापी अपनी देह के अंग उसके स्वामी के अधीन करता है। वैकल्पिक अनुवाद, “अपने आप को पाप के अधीन मत करो कि जो उचित नहीं है वह करो”।
“परन्तु स्वयं को परमेश्वर के अधीन करो क्योंकि उसने तुम्हें नया आत्मिक जीवन दिया है”।
“परमेश्वर जिन बातों से प्रसन्न होता है उसके लिए अपनी देह को काम में आने दो”।
“पाप की अभिलाषाएं तुम पर प्रभुता करके तुमसे काम न कराने पाए” या “जिन पाप की बातों को तुम करना चाहते हो उन्हें मत होने दो”।
इसका संपूर्ण अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है, “क्योंकि तुम मूसा प्रदत्त विधान के अधीन नहीं जो तुम्हें पाप से बचने का सामर्थ्य प्रदत्त नहीं कर सकता है।
इसका पूर्ण अर्थ उजागर किया जा सकता है, “परन्तु तुम परमेश्वर की कृपा से बन्धे हो जो तुम्हें पाप से बचने का सामर्थ्य प्रदान करती है”।
पौलुस दासत्व को एक रूपक स्वरूप काम में लेता है कि परमेश्वर की आज्ञा पालन एवं अवज्ञा को स्पष्ट कर पाए।
पौलुस यह प्रश्न पूछ कर इस बात को महत्त्व प्रदान करता है कि कृपा पाकर जीने का अर्थ यह नहीं कि पाप करते रहें। वैकल्पिक अनुवाद हो सकता है, “तथापि, मूसा प्रदत्त विधान की अपेक्षा परमेश्वर की कृपा के अधीन होने का अर्थ निश्चय ही यह नहीं कि हमें पाप करने की छूट है”
“हम कभी नहीं चाहेंगे कि ऐसा हो” या “या परमेश्वर मेरी सहायता करे कि ऐसा न करूं”। इस अभिव्यक्ति से एक अत्यधिक प्रबल इच्छा प्रकट होती है कि ऐसा न हो। अपनी भाषा में भी ऐसी ही अभिव्यक्ति काम में लेना चाहेंगा देखें कि अपने यहाँ कैसा अनुवाद किया है।
पौलुस इस प्रश्न के द्वारा उस हर एक मनुष्य को झिड़कता है जो परमेश्वर की कृपा को पाप करते रहने का कारण बनाता है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम्हें इस तथ्य का ज्ञान होना चाहिए कि तुम जिसे स्वामी की आज्ञा मानने का चुनाव करते हो, उसके दास हो जाते हो।
यहाँ “पाप” और “आज्ञाकारिता” को दास के स्वामियों की उपमा दी गई है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तुम या तो पाप के दास हो, जिससे आत्मिक मृत्यु होती है, या तुम आज्ञाकारिता के दास हो जिससे परमेश्वर तुम्हें धार्मिकता कहता है।
पौलुस दासत्व की उपमा देकर परमेश्वर के आज्ञापालन एवं अवज्ञा पर चर्चा करता है।
“परन्तु मैं परमेश्वर का आभारी हूँ”
यहाँ पाप को एक स्वामी-स्वरूप दिखाया गया है। जिसकी दास सेवा करते हैं। यह भी कि “पाप” एक शक्ति है जो हम में वास करती है जो हमें पाप करने पर विवश करती है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम जो पाप की शक्तियों के अधीन दास बन कर जी रहे थे”। (देखें:
यहाँ “मन” से अभिप्राय है काम को करने के लिए सच्ची एवं निष्ठावान अभिप्रेरणा। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु तुमने सच में आज्ञा मानी”।
यहाँ “उस उपदेश” का अर्थ है धर्मनिष्ठा की ओर ले जाने वाला आचरण एवं जीवनशैली। विश्वासी अपनी पुरानी जीवनशैली को बदल कर इस नई जीवन शैली के अनुरूप हो जाता है जिसकी शिक्षा उन्हें मसीही अगुवे देते है। इसका वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से किया जा सकता है, “मसीही अगुओं ने जो तुम्हें शिक्षा दी”। (देखें:
कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा वैकल्पिक अनुवाद, “मसीह ने तुम्हें पाप की प्रभुता से मुक्त करा लिया।
“अब तुम उचित कामों को करने के लिए दास हो”
पौलुस परमेश्वर की आज्ञापालन और अवज्ञा के लिए दासत्व की उपमा दे रहा है।
पौलुस “पाप” और “आज्ञा पालन” को “दासत्व” के रूप में व्यक्त कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “मैं दासता की चर्चा करके पाप और आज्ञापान को समझाने का प्रयास कर रहा हूँ।
पौलुस प्रायः “अंग” शब्द को आत्मा के विपरीत काम में लेता है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि तुम आत्मिक बातों को पूर्णतः समझ नहीं पाते”।
यहाँ “अंगों” से अर्थ है संपूर्ण मनुष्यत्व। वैकल्पिक अनुवाद, “स्वयं को दास बनाकर हर एक बुरी एवं परमेश्वर को प्रसन्न न करने वाली बात।
“स्वामी को उचित काम के लिए परमेश्वर के समक्ष दास बनाओ जिससे कि वह तुम्हें पृथक करके उसकी सेवा के लिए सामर्थ्य प्रदान करे”।
अतः जिन बातों से अब तुम लज्जित होते हो, उनसे उस समय तुम क्या फल पाते थे? - पौलुस इस प्रश्न द्वारा इस बात पर बल देता है कि पाप का परिणाम भलाई कभी नहीं होता है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुमने उन बातों को करने में जिनसे अब तुम लज्जित होते हो कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं किया।
इसका वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया के साथ पूर्ण वाक्य में होगा, “परन्तु अब मसीह ने तुम्हें पाप से मुक्त करा दिया और परमेश्वर का दास बना दिया”
“इसका परिणाम है कि तुम परमेश्वर के साथ सदा जीवित रहोगे”।
यहाँ “मज़दूरी” का अभिप्रायः है काम करने का परिश्रमिक। वैकल्पिक अनुवाद “यदि तुम दास की सेवा करोगे तो तुम्हारा परिश्रमिक सदा के लिए मृत्यु है” या “यदि तुम पाप करते रहोगे तो परमेश्वर तुम्हें आत्मिक मृत्यु का दण्ड देगा।
“परन्तु परमेश्वर हमारे प्रभु यीशु मसीह के विश्वासियों को अनमोल अनन्त जीवन दान देता है।
कदापि नहीं।
जिन्होंने मसीह का बपतिस्मा लिया है उन्होंने उसकी मृत्यु में बपतिस्मा लिया है।
विश्वासियों को नये जीवन की चाल चलना है।
विश्वासी मसीह की मृत्यु और पुनरूत्थान में मसीह के साथ एक होंगे।
हमारा पुराना मनुष्यत्व मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका है कि हम आगे को पाप के बन्दी न रहें।
हम जानते हैं कि मसीह पर मृत्यु की प्रभुता नहीं है क्योंकि मसीह मृत्तकों में से जी उठा है।
मसीह मरा तो एक ही बार मरा।
विश्वासी स्वयं को पाप के लिए मरा हुआ समझे।
विश्वासी परमेश्वर के लिए जी रहा है।
विश्वासी के लिए आवश्यक है वह अपने अंगों को धार्मिकता के साधन होने के लिए परमेश्वर के हाथों में दे दे।
विश्वासी अनुग्रह के अधीन हैं जिससे वह पाप पर प्रभुता करता है।
जो मनुष्य स्वयं को पाप का दास होने के लिए दे देता है, उसका अन्त मृत्यु है।
जो मनुष्य स्वयं को परमेश्वर का दास होने के लिए दे देता है उसका फल धार्मिकता है।
परमेश्वर के दास होने का फल पवित्रता है।
पाप की मजदूरी मृत्यु है।
परमेश्वर का निर्मोल वरदान अनन्त जीवन है।
1 हे भाइयों, क्या तुम नहीं जानते (मैं व्यवस्था के जाननेवालों से कहता हूँ) कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है?
2 क्योंकि विवाहित स्त्री व्यवस्था के अनुसार अपने पति के जीते जी उससे बंधी है, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्था से छूट गई। 3 इसलिए यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरुष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्था से छूट गई, यहाँ तक कि यदि किसी दूसरे पुरुष की हो जाए तो भी व्यभिचारिणी न ठहरेगी।
4 तो हे मेरे भाइयों, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिये मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा: ताकि हम परमेश्वर के लिये फल लाएँ। 5 क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषाएँ जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं।
6 परन्तु जिसके बन्धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन् आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं।
7 तो हम क्या कहें? क्या व्यवस्था पाप है*? कदापि नहीं! वरन् बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहचानता व्यवस्था यदि न कहती, “लालच मत कर” तो मैं लालच को न जानता। (रोम. 3:20) 8 परन्तु पाप ने अवसर पा कर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया, क्योंकि बिना व्यवस्था के पाप मुर्दा है।
9 मैं तो व्यवस्था बिना पहले जीवित था, परन्तु जब आज्ञा आई, तो पाप जी गया, और मैं मर गया। 10 और वही आज्ञा जो जीवन के लिये थी*, मेरे लिये मृत्यु का कारण ठहरी। (लैव्य. 18:5)
11 क्योंकि पाप ने अवसर पा कर आज्ञा के द्वारा मुझे बहकाया, और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला। (रोम. 7:8) 12 इसलिए व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा पवित्र, धर्मी, और अच्छी है।
13 तो क्या वह जो अच्छी थी, मेरे लिये मृत्यु ठहरी? कदापि नहीं! परन्तु पाप उस अच्छी वस्तु के द्वारा मेरे लिये मृत्यु का उत्पन्न करनेवाला हुआ कि उसका पाप होना प्रगट हो, और आज्ञा के द्वारा पाप बहुत ही पापमय ठहरे। 14 क्योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शारीरिक हूँ और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ।
15 और जो मैं करता हूँ उसको नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वह नहीं किया करता, परन्तु जिससे मुझे घृणा आती है, वही करता हूँ। 16 और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूँ, तो मैं मान लेता हूँ कि व्यवस्था भली है।
17 तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, वरन् पाप है जो मुझ में बसा हुआ है। 18 क्योंकि मैं जानता हूँ, कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझसे बन नहीं पड़ते। (उत्प. 6:5)
19 क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ। 20 परन्तु यदि मैं वही करता हूँ जिसकी इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है। 21 तो मैं यह व्यवस्था पाता हूँ कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूँ, तो बुराई मेरे पास आती है।
22 क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूँ। 23 परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।
24 मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा*? 25 हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो। इसलिए मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ।
पौलुस इसका उदाहरण में देता है।
पौलुस ने जो सिद्धान्त प्रस्तुत किया है उसका उद्धरण में देता है।
कौन उसे व्यभिचारिणी कहता है, स्पष्ट नहीं है अतः यथासंभव सामान्य अभिव्यक्ति करें, “वे उसे व्यभिचारिणी कहेंगे”। वैकल्पिक अनुवाद है, “मनुष्य उसे व्यभिचारिणी कहते हैं”। या “परमेश्वर उसे व्यभिचारिणी कहता है।
इसका संबन्ध पूर्वोक्ति से है
परमेश्वर के लिए फल लाए - “हम ऐसे काम कर पाएंगे जिनसे परमेश्वर प्रसन्न होता है”।
यह सर्वनाम पौलुस और विश्वासियों के स्थान पर है।
मूसा द्वारा लाया गया विधान
पौलुस ने एक नया प्रसंग छेड़ा है
“निश्चय ही यह असत्य है”। पूर्वोक्त प्रभावोत्पादक प्रश्न का इस उक्ति द्वारा यथा संभव अतिप्रबल नकारात्मक उत्तर है। आप यहाँ अपनी भाषा में भी ऐसी ही उक्ति का उपयोग करना चाहेंगे। देखें कि आपने में इसका अनुवाद कैसे किया है।
पौलुस पाप की तुलना एक सक्रिय मनुष्य से करता है
परमेश्वर के विधान में हमें कुछ करना मना है तो इसका अर्थ है कि हम कुछ करना चाहते हैं जो वर्जित है और हम उसे अधिक करने की कामना करते हैं। “पाप ने मुझे उस आज्ञा का स्मरण कराया जो किसी न किसी अनुचित बात के लिए मना करती है, अतः मैं पहले से भी अधिक उस अनुचित काम की लालसा करता हूँ” या “क्योंकि मैं ने पाप करने की इच्छा की इसलिए जब मैंने अनुचित काम की लालसा को वर्जित पाया तब मैंने तुझ में लालसा उत्पन्न हुई”।
“पाप की मेरी अभिलाषा”
इस शब्द में पराई वस्तुओं का लालच (यू.डी.बी.) और यौन लालसा दोनों हैं।
“यदि विधान नहीं होता तो नियमों के उल्लंघन का प्रश्न ही नहीं उठता और पाप नहीं होता”।
इसका अर्थ हो सकता है, 1) “मुझे पाप का बोध हुआ”।
पौलुस वास्तव में मरा नहीं। वैकल्पिक अनुवाद “परमेश्वर ने तो मुझसे जीवित रहने के लिए आज्ञा दी थी परन्तु उसने मेरी हत्या कर दी”
जैसा में है पौलुस पाप को एक व्यक्तिस्वरूप दर्शा रहा है जो तीन काम कर सकता है, अवसर पाना, बहकाना, और हत्या करना। “क्योंकि मैं पाप करना चाहता था मैंने यह विचार करके स्वयं को धोखा दिया कि मैं पाप भी कर सकता हूँ और आज्ञा का पालन भी कर सकता हूँ परन्तु परमेश्वर ने मुझे अवज्ञा का दण्ड दिया जो उनसे पृथक होने का था।
“पाप करने की मेरी लालसा”
देखें कि आपने इसका अनुवाद कैसे किया है।
“परमेश्वर से मेरा संबन्ध विच्छेद कर दिया” (देखें यू.डी.बी. )
क्योंकि व्यवस्था पाप को धोखा देने वाला और हत्यारा कहता है
पौलुस एक नया प्रसंग छेड़ रहा है।
परमेश्वर का विधान
“मेरे लिए मृत्यु का कारण हुई”
“निश्चय ही यह असत्य है” यह उक्ति पूर्वोक्त प्रश्न का प्रबल नकारात्मक उत्तर है। आप यहां अपनी भाषा में ऐसी ही उक्ति काम में लेना चाहेंगे।
पौलुस पाप को एक कर्ता के रूप में दर्शा रहा है
“परमेश्वर से मेरा संबंध विच्छेद कर दिया।”
“क्योंकि मैंने आज्ञा का उल्लंघन किया”
“मुझे समझ में नहीं आता कि कुछ काम मैं करता हूँ तो क्यों करता हूँ”
“मैं समझ नहीं पाता कि मैं जो करता हूँ क्यों करता हूँ, क्योंकि”
वैकल्पिक अनुवाद, “जिन बातों को में जानता हूँ कि उचित नहीं हैं, उन्हीं को करता हूँ”
“तथापि”
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं जानता हूँ कि परमेश्वर प्रदत्त विधान उत्तम हैं
पौलुस पाप को एक जीवन्त वस्तु कहता है जिसमें उसे प्रभावित करने का सामर्थ्य है।
“मेरे मानवीय स्वभाव में”
“भले काम” या “उचित काम”
“बुरे काम” या “अनुचित कार्य”
शरीर की मृत्यु के बाद जो बचता है
“मैं वही कर पाता हूँ जो मेरा पुराना मनुष्यत्व कहता है, न कि आत्मा द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलता हूँ”।
पुराना मनुष्यत्व, मनुष्य जन्म से जैसा होता है
आत्मिकता का जीवित नया स्वभाव
“मेरा पापी स्वभाव, जिसको लेकर मेरा जन्म हुआ है”
“मेरी तो यही इच्छा है कि कोई मुझे मेरे शरीर की अभिलाषाओं से मुक्ति दिलाए”। (यू.डी.बी.) यदि आपकी भाषा में विस्मय और प्रश्न दोनों को सर्वोच्च भावनात्मक दर्शाने का प्रावधान है, तो उसका उपयोग अवश्य करें।
यह 7:24 के प्रश्न का उत्तर है।(देखे: यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद, “मेरा मन तो परमेश्वर को प्रसन्न करने का चुनाव करता है, परन्तु मेरा शरीर पाप की आज्ञा मानने का चुनाव करता है”। यहाँ मन और शरीर के उपयोग द्वारा दर्शाया गया है कि वे कैसे परमेश्वर के नियमों या पाप की आज्ञाओं का पालन करना चाहते हैं। मन या समझ के द्वारा तो मनुष्य परमेश्वर के आज्ञापालन का चुनाव करता है परन्तु शरीर या शारीरिक प्रकृति से पाप की सेवा करना चाहता है।
मनुष्य जब तक जीवित रहता है उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है।
एक विवाहित स्त्री पति की मृत्यु तक विवाह की व्यवस्था के अनुसार उससे बंधी है।
जब वह विवाह की व्यवस्था से मुक्त हो गई तो पुनर्विवाह कर सकती है।
विश्वासी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिए मर गए हैं।
व्यवस्था के लिए मर जाने से विश्वासी मसीह के साथ एक होते हैं।
व्यवस्था पाप का बोध करवाती है।
व्यवस्था पवित्र है, आज्ञा पवित्र, धर्मी और अच्छी है।
व्यवस्था की आज्ञाओं के माध्यम से पाप मनुष्य में लालच उत्पन्न करता है।
पौलुस कहता है कि पाप व्यवस्था के माध्यम से उसमें मृत्यु लाता है।
जब पौलुस वह काम करता है जिसे वह करना नहीं चाहता तो मान लेता है कि व्यवस्था भली है।
पौलुस में जो पाप है वह उससे अनिच्छा के काम करवाता है।
पौलुस की देह में कुछ भी अच्छा नहीं है।
पौलुस अपनी देह में एक सिद्धान्त देखता है, वह भले काम तो करना चाहता है परन्तु उसकी देह में केवल बुराई वास करती है।
पौलुस को यह बोध होता है कि उसकी अन्तरात्मा परमेश्वर की व्यवस्था से प्रसन्न है परन्तु उसकी देह के अंग पाप के बन्दी बने हुए है।
पौलुस मसीह यीशु के द्वारा उसकी युक्ति के लिए परमेश्वर को धन्यवाद चढ़ाता है।
1 इसलिए अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं*। 2 क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।
3 क्योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल होकर न कर सकी*, उसको परमेश्वर ने किया, अर्थात् अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप के बलिदान होने के लिये भेजकर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी। 4 इसलिए कि व्यवस्था की विधि हम में जो शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए। 5 क्योंकि शारीरिक व्यक्ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं।
6 शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है। 7 क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। 8 और जो शारीरिक दशा में हैं, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते।
9 परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं। 10 यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धार्मिकता के कारण जीवित है।
11 और यदि उसी का आत्मा जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है; तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी मरनहार देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा।
12 तो हे भाइयों, हम शरीर के कर्जदार नहीं, कि शरीर के अनुसार दिन काटें। 13 क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे, तो मरोगे, यदि आत्मा से देह की क्रियाओं को मारोगे, तो जीवित रहोगे।
14 इसलिए कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र* हैं। 15 क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिससे हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं।
16 आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं। 17 और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन् परमेश्वर के वारिस* और मसीह के संगी वारिस हैं, जब हम उसके साथ दुःख उठाए तो उसके साथ महिमा भी पाएँ।
18 क्योंकि मैं समझता हूँ, कि इस समय के दुःख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं। 19 क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की प्रतीक्षा कर रही है।
20 क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर अधीन करनेवाले की ओर से व्यर्थता के अधीन इस आशा से की गई। 21 कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पा कर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी। 22 क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।
23 और केवल वही नहीं पर हम भी जिनके पास आत्मा का पहला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं; और लेपालक होने की, अर्थात् अपनी देह के छुटकारे की प्रतीक्षा करते हैं। 24 आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहाँ रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उसकी आशा क्या करेगा? 25 परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उसकी आशा रखते हैं, तो धीरज से उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं।
26 इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये विनती करता है। 27 और मनों का जाँचनेवाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है।
28 और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। 29 क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहलौठा ठहरे। 30 फिर जिन्हें उनसे पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।
31 तो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? (भज. 118:6) 32 जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा?
33 परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है। 34 फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह वह है जो मर गया वरन् मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्वर की दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है।
35 कौन हमको मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? 36 जैसा लिखा है, “तेरे लिये हम दिन भर मार डाले जाते हैं; हम वध होनेवाली भेड़ों के समान गिने गए हैं।” (भज. 44:22)
37 परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, विजेता से भी बढ़कर हैं। 38 क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएँ, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊँचाई, 39 न गहराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।
“इस कारण” या “क्योंकि जो मैं अभी-अभी कहता हूँ वह सच है”
यहाँ “व्यवस्था” का संदर्भ स्वाभाविक क्रिया से है, मानवीय नियमों से इसका कोई अभिप्राय नहीं है ।
यहाँ परमेश्वर के विधान को एक कर्ता के रूप में दर्शाया गया है जो पाप की शक्ति से टकरा नहीं पाया। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि विधान में सामर्थ्य न था कि हमें पाप करने से रोक ले क्योंकि हम में जो पाप की शक्ति थी वह अत्यधिक प्रबल थी। परन्तु परमेश्वर ने हमें पाप करने से रोक लिया”।
“मनुष्यों के पापी स्वभाव के कारण”
वैकल्पिक अनुवाद, नया वाक्य आरंभ करके “वह किसी भी पापी मनुष्य के स्वरूप दिखता था”
“कि वह हमारे पापों के लिए मरे”।
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर ने अपने पुत्र के शरीर के द्वारा पाप की शक्ति को निरस्त किया”।
कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा वैकल्पिक अनुवाद, “हम परमेश्वर के विधान की अनिवार्यता पूरी करें”
“हम जो अपनी पापी अभिलाषाओं की पूर्ति नहीं करते”
“परन्तु पवित्र आत्मा की आज्ञा मानते हें”
“पापियों की मानसिकता... पवित्र आत्मा के आज्ञाकारियों की मानसिकता”
देखें कि इन वाक्यांशों का अनुवाद में कैसे किया गया है
ये सब पवित्र आत्मा के संदर्भ में है
इसका अर्थ यह नहीं कि पौलुस सन्देह में है कि किसी में परमेश्वर का आत्मा नहीं है। पौलुस उन्हें बोध कराना चाहता था कि उन सबमें परमेश्वर का आत्मा है। वैकल्पिक अनुवाद, “मान लो कि किसी में”
मसीह किसी में अन्तर्वास कैसे करता है स्पष्ट किया जा सकता है, “यदि मसीह पवित्र आत्मा के द्वारा तुम में वास करता है,
"एक ओर" और "किन्तु दूसरी ओर" व्यख्यांश द्वारा दो अलग-अलग तारीके पेश किया गया है। वैकल्पिक अनुवाद: " देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु ."
संभावित अर्थ है 1) मनुष्य आत्मिक रूप से मृतक है। या 2) पार्थिव देह तो पाप के कारण मरेगी ही।
इसके संभावित अर्थ हें 1) मनुष्य आत्मिक रूप से जीवन्त होकर परमेश्वर प्रदत्त सामर्थ्य में भले काम करता है। या 2) परमेश्वर विश्वासी को मरणोपरान्त पुनजीर्वित करेगा क्योंकि परमेश्वर, धर्मनिष्ठ है और विश्वासी को अनन्त जीवन देता है।
पौलुस यह मानता है कि उसके पाठकों में पवित्र-आत्मा का अन्तर्वास है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि उसका ही आत्मा... तुममें अन्तर्वासी है”
“परमेश्वर का आत्मा जिसने उसे मृतकों में से जिलाया।
“पार्थिव शरीर” या “मरणहार शरीर”
“क्योंकि मैंने तुमसे अभी-अभी जो कहा वह सच है”
“सहविश्वासियों में”
पौलुस आज्ञापालन की तुलना ऋण चुकाने से कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “हमें आज्ञा मानना है” (देखें:
“हमें अपनी पापी अभिलाषाओं का पालन नहीं करना है”
“क्योंकि यदि तुम केवल अपनी पापी अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए जीओगे”
“तो तुम निश्चय ही परमेश्वर से अलग हो जाओगे”
वैकल्पिक अनुवाद, एक नया वाक्य, “यदि पवित्र-आत्मा के सामर्थ्य से तुम अपनी पापी अभिलाषाओं का दमन करोगे”
कर्तृवाच्य क्रिया के साथ वैकल्पिक अनुवाद, “जिन्हें परमेश्वर ने चुन लिया है”।
“क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें वह आत्मा नहीं दी जो तुम्हें फिर से पाप का दास बनाए और परमेश्वर के दण्ड से डरनेवाला बनाए।”
“जो हमें पुकारने की प्रेरणा देती है”
अरामी भाषा में अब्बा का अर्थ है पिता
इन वाक्यांशों मे क्रिया का उपयोग नहीं किया गया है क्योंकि वह समझा जा सकता है। वैकल्पिक अनुवाद है, “यदि हम परमेश्वर की सन्तान हैं तो उसके उत्तराधिकारी भी हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर के वारिस तो हैं ही, साथ में मसीह के सहवारिस भी हैं”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया के साथ भी किया जा सकता है, “उसके साथ हमारी भी महिमान्वित करे।
“क्योंकि” शब्द द्वारा “मैं समझता हूँ” पर बल दिया गया है। इसका अर्थ सामान्य “क्योंकि” न समझें
मेरा तो मानना है कि.... तुलना के योग्य भी नहीं है।
कर्तृवाच्य क्रिया के साथ वैकल्पिक अनुवाद होगा, “परमेश्वर प्रकट करेगा” या “जब परमेश्वर का अनावरण करेगा”।
परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया है वह बड़ी जिज्ञासा से, एक मनुष्य के सदृश्य, प्रतिज्ञा कर रहा है।
“जिस समय परमेश्वर अपने पुत्रों को प्रकट करेगा”
कर्तृवाच्य क्रिया के साथ वैकल्पिक अनुवाद होगा, “क्योंकि परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया है उसे उस उद्देश्य प्राप्ति में अयोग्य कर दिया है जिसके उद्देश्य से उसकी रचना की गई थी।
यहाँ “सृष्टि को एक इच्छा रखने वाले मनुष्य का मान दिया गया है। इसका वैकल्पिक अनुवाद होगा, “इसलिए नहीं कि सृजित वस्तुएं स्वयं चाहती थी “परन्तु इसलिए कि परमेश्वर चाहता था”।
वैकल्पिक अनुवाद में कर्तृवाच्य क्रिया के साथ एक नया वाक्य रचा जा सकता है, “तथापि सृजित वस्तुएं पूर्णतः आश्वस्त है कि परमेश्वर उनका उद्धार करेगा।
पौलुस सृष्टि की हर एक वस्तु को उसके स्वामी के दासत्व में तथा “विनाश” के अधीन मानता है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्षय एवं अपक्षय से”
“जब वह अपनी सन्तानों का महिमान्वन करेगा तब वह उन्हें स्वतंत्र कर देगा।”
सृष्टि की तुलना एक स्त्री से की गई है जो प्रसव पीड़ा में है, “क्योंकि हम जानते है कि संपूर्ण सृष्टि इस समय भी पीड़ा के कारण कहराती है”
पौलुस विश्वासियों की तुलना द्वारा पवित्र आत्मा पाने की तुलना ऋतु के पहले फल तथा फसल से करता है।
स्पष्ट किया जा सकता है कि परमेश्वर हमें किससे छुटकारा दिलाएगा। “परमेश्वर के परिवार के पूर्ण सदस्य होने की प्रतिज्ञा में है कि वह हमारी देह को क्षय और मृत्यु से मुक्ति दिलाएगा।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “क्योंकि हमें विश्वास है कि परमेश्वर ने हमारा उद्धार किया है
पौलुस प्रश्न पूछ कर अपने पाठकों को समझाता है कि “आशा” क्या है। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “परन्तु यदि हमें आशा है तो इसका अर्थ है कि हमें अभी तक वह वस्तु प्राप्त नहीं हुई है जिसकी हम आशा करते हैं। यदि किसी के पास कुछ है तो वह उसकी आशा नहीं करता है”।
“इसकी आहों को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है”।
कर्तृवाच्य क्रिया के साथ वैकल्पिक अनुवाद, “जिन्हें परमेश्वर ने चुन लिया है”।
“जिन्हें उसने उनके सृजन से पहले से जान लिया है”।
“उसने उनकी नियति निर्धारित कर दी है” या “पहले ही से उनके लिए योजना बना ली है”।
इसका अनुवाद एक सक्रिय क्रिया के रूप में किया जा सकता है : "परमेश्वर ने प्रगट नहीं किया"
“कि उसका पुत्र पहिलौठा हो”
इसका अर्थ पूर्णतः स्पष्ट किया जा सकता है, “परमेश्वर के परिवार के अनेक भाइयों-बहनों में”
“जिनके लिए परमेश्वर ने पहले से योजना बनाई है”
यहां “महिमा” को भूतकाल में रखा गया है कि इसका होना निश्चित हो। वैकल्पिक अनुवाद, “उन्हें वह निश्चय ही महिमान्वित करेगा”।
पौलुस जब प्रश्न पूछता है तो वह अपनी पूर्वोक्त बात को महत्त्व देना चाहता है। वैकल्पिक अनुवाद, “इन सब बातों से हम यही निष्कर्ष निकालते हैं कि परमेश्वर हमारी ओर है तो हमें कौन पराजित कर सकता है।
“उसके बैरियों के हाथों में कर दिया”
यहाँ भी पौलुस बल देने के लिए प्रश्न पूछ रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “वह हमें सब कुछ निश्चय ही और बहुतायत से देगा”
यहाँ भी पौलुस बल देने के लिए प्रश्न पूछता है। वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर के समक्ष हमें कोई दोष नहीं दे सकता, क्योंकि परमेश्वर हमें न्यायोचित ठहराता है”।
पौलुस बल देने ही का प्रश्न पूछता है। वैकल्पिक अनुवाद, “हमें कोई दोष नहीं दे सकता क्योंकि मसीह यीशु ही है... और हमारी मध्यस्थता भी करता है”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “जिसे परमेश्वर ने अति विशिष्टता में मृतकों में से पुनजीर्वित किया” या “जो अति विशिष्ट रूप में मर कर जी उठा”
वैकल्पिक अनुवाद, “यदि कोई हमें कष्ट देना चाहे, हमें हानि पहुँचाना चाहे, हमें वस्त्र, भोजन विहीन कर दे या हत्या भी कर दे, तो यह संभव नहीं”
इन दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है।
यहाँ तुम्हारे”एक वचन में है और परमेश्वर के लिए काम में लिया गया है, वैकल्पिक अनुवाद, “तेरे लिए”
यहाँ “हम” धर्मशास्त्र के इस अंश के लेखक को संबोधित करता है और उसके साथ परमेश्वर के सब भक्तों को समाहित करता है, “दिन भर” यह उक्ति एक अतिशयोक्ति है जो इनके संकट को उजागर करती है। यहाँ पौलुस दर्शाना चाहता है कि जो परमेश्वर के हैं उन्हें विषम परिस्थितियों की अपेक्षा करता है आवश्यक है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से भी किया जा सकता है, “हमारे बैरी हमारी हत्या करने की खोज में लगे रहते हैं।”
परमेश्वर के भक्त जिन्हें लोग मार डालते हैं उनकी तुलना बलि के पशुओं से भी गई हे। इसका वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “हमारा जीवन तो उनके लिए ऐसा है जैसा भेड़ें जिन्हें वे वध करते हैं"
“हमें पूर्ण विजय प्राप्त है”।
यीशु ने हमसे जो प्रेम किया वह स्पष्ट किया जा सकता है, “यीशु के द्वारा जिसने हमसे इतना अधिक प्रेम किया कि हमारे लिए मर भी गया”।
“मुझे पूरा विश्वास है” या “मैं आश्वस्त हूँ”
इसके संभावित अर्थ हैं 1) दुष्टात्माएं (यू.डी.बी.) या मानवीय राजा एवं प्रशासक
इसके संभावित अर्थ हैं 1) सामर्थी आत्माएं या 2) सामर्थी मनुष्य
मसीह यीशु में जीवन की आत्मा के सिद्धान्त ने पौलुस को पाप और मृत्यु की व्यवस्था से मुक्ति दिला दी है।
व्यवस्था अक्षम थी क्योंकि देह के कारण वह दुर्बल थी।
जो आत्मा के अनुसार चलते हैं वे आत्मा की बातों में मन लगाते हैं।
देह परमेश्वर की विरोधी है इसलिए वह व्यवस्था के अधीन नहीं हो सकती है।
जो मनुष्य परमेश्वर के नहीं अन्तर्वासी मसीह की आत्मा से वंचित होते हैं।
परमेश्वर विश्वासी में अन्तर्वासी अपनी आत्मा के द्वारा उसकी नश्वर देह को जीवन देता है।
परमेश्वर के पुत्र परमेश्वर की आत्मा द्वारा चलाए जाते हैं।
विश्वासी परमेश्वर के परिवार में लेपालक है।
परमेश्वर की सन्तान होने के कारण विश्वासी परमेश्वर के उत्तराधिकारी वरन् मसीह के सह उत्तराधिकारी है।
वर्तमान कष्टों को सहना आवश्यक है जिससे कि विश्वासी परमेश्वर के पुत्रों के प्रकट होने पर मसीह के साथ महिमान्वित हों।
वर्तमान में सृष्टि विनाश के दासत्व में है।
सृष्टि परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।
विश्वासियों को विश्वास और धीरज धर कर देह के छुटकारे की प्रतीक्षा करना है।
आत्मा स्वयं ही परमेश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्रजनों की ओर से मध्यस्थता करती है।
परमेश्वर अपने प्रेम करने वालों के लिए सब बातों को मिलाकर भलाई ही को उत्पन्न करता है अर्थात जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए गए हैं उनके लिए।
क्योंकि परमेश्वर ने जिन्हें पहले से जान लिया है उन्हें पहले से निश्चित भी कर लिया है कि वे उसके पुत्र के स्वरूप में हों।
जिन्हें उसने पहले से निश्चित कर लिया है उन्हें बुलाया और धर्मी ठहराया और महिमा दी है।
विश्वासी जानते हैं कि परमेश्वर उन्हें सब कुछ वदान्य देगा क्योंकि उसने विश्वासियों के लिए अपना निज पुत्र दे दिया है।
मसीह परमेश्वर की दाहिनी ओर उपस्थित पवित्र जनों के लिए मध्यस्था करता है।
विश्वासी उसके द्वारा जो उनसे प्रेम करता है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं।
पौलुस को पूर्ण विश्वास है कि कोई भी सृजित वस्तु विश्वासी को परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती।
1 मैं मसीह में सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता और मेरा विवेक भी पवित्र आत्मा में गवाही देता है। 2 कि मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुःखता रहता है।
3 क्योंकि मैं यहाँ तक चाहता था, कि अपने भाइयों, के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से श्रापित और अलग हो जाता। (निर्ग. 32:32) 4 वे इस्राएली हैं, लेपालकपन का हक़, महिमा, वाचाएँ, व्यवस्था का उपहार, परमेश्वर की उपासना, और प्रतिज्ञाएँ उन्हीं की हैं। (भज. 147:19) 5 पूर्वज भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ, जो सब के ऊपर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य है। आमीन।
6 परन्तु यह नहीं, कि परमेश्वर का वचन टल गया, इसलिए कि जो इस्राएल के वंश हैं, वे सब इस्राएली नहीं; 7 और न अब्राहम के वंश होने के कारण सब उसकी सन्तान ठहरे, परन्तु (लिखा है) “इसहाक ही से तेरा वंश कहलाएगा।” (इब्रा. 11:18)
8 अर्थात् शरीर की सन्तान परमेश्वर की सन्तान नहीं, परन्तु प्रतिज्ञा के सन्तान वंश गिने जाते हैं। 9 क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है, “मैं इस समय के अनुसार आऊँगा, और सारा का एक पुत्र होगा।” (उत्प. 18:10, उत्प. 21:2)
10 और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी। (उत्प. 25:21) 11 और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था, इसलिए कि परमेश्वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं, परन्तु बुलानेवाले पर बनी रहे। 12 उसने कहा, “जेठा छोटे का दास होगा।” (उत्प. 25:23) 13 जैसा लिखा है, “मैंने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।” (मला. 1:2-3)
14 तो हम क्या कहें? क्या परमेश्वर के यहाँ अन्याय है? कदापि नहीं! 15 क्योंकि वह मूसा से कहता है, “मैं जिस किसी पर दया करना चाहूँ, उस पर दया करूँगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूँ उसी पर कृपा करूँगा।” (निर्ग. 33:19) 16 इसलिए यह न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्वर की बात है।
17 क्योंकि पवित्रशास्त्र में फ़िरौन से कहा गया, “मैंने तुझे इसलिए खड़ा किया है, कि तुझ में अपनी सामर्थ्य दिखाऊँ, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृथ्वी पर हो।” (निर्ग. 9:16) 18 तो फिर, वह जिस पर चाहता है, उस पर दया करता है; और जिसे चाहता है, उसे कठोर कर देता है।
19 फिर तू मुझसे कहेगा, “वह फिर क्यों दोष लगाता है? कौन उसकी इच्छा का सामना करता हैं?” 20 हे मनुष्य, भला तू कौन है, जो परमेश्वर का सामना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है, “तूने मुझे ऐसा क्यों बनाया है?” 21 क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं, कि एक ही लोंदे में से, एक बर्तन आदर के लिये, और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? (यशा. 64:8)
22 कि परमेश्वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ्य प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही। (नीति. 16:4) 23 और दया के बरतनों पर जिन्हें उसने महिमा के लिये पहले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की? 24 अर्थात् हम पर जिन्हें उसने न केवल यहूदियों में से वरन् अन्यजातियों में से भी बुलाया। (इफि. 3:6, रोम. 3:29)
25 जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है,
“जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूँगा,
और जो प्रिया न थी, उसे प्रिया कहूँगा; (होशे 2:23)
26 और ऐसा होगा कि जिस जगह में उनसे यह कहा गया था, कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो,
उसी जगह वे जीविते परमेश्वर की सन्तान कहलाएँगे।”
27 और यशायाह इस्राएल के विषय में पुकारकर कहता है, “चाहे इस्राएल की सन्तानों की गिनती समुद्र के रेत के बराबर हो, तो भी उनमें से थोड़े ही बचेंगे। (यहे. 6:8) 28 क्योंकि प्रभु अपना वचन पृथ्वी पर पूरा करके, धार्मिकता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा।” 29 जैसा यशायाह ने पहले भी कहा था,
“यदि सेनाओं का प्रभु हमारे लिये कुछ वंश न छोड़ता,
तो हम सदोम के समान हो जाते,
और अमोरा के सरीखे ठहरते।” (यशा. 1:9)
30 तो हम क्या कहें? यह कि अन्यजातियों ने जो धार्मिकता की खोज नहीं करते थे, धार्मिकता प्राप्त की अर्थात् उस धार्मिकता को जो विश्वास से है; 31 परन्तु इस्राएली; जो धार्मिकता की व्यवस्था की खोज करते हुए उस व्यवस्था तक नहीं पहुँचे।
32 किस लिये? इसलिए कि वे विश्वास से नहीं, परन्तु मानो कर्मों से उसकी खोज करते थे: उन्होंने उस ठोकर के पत्थर पर ठोकर खाई। 33 जैसा लिखा है,
“देखो मैं सिय्योन में एक ठेस लगने का पत्थर, और ठोकर खाने की चट्टान रखता हूँ,
और जो उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।” (यशा. 28:16)
यह वाक्यांश एक नए वाक्य में रचा जा सकता है, “पवित्र आत्मा मेरे विवेक को नियंत्रित करती है और जो मैं कहता हूँ उसके सत्यापित करती है”।
यह एक अलग वाक्य बनाया जा सकता है, “मुझे वास्तव में बहुत गहरा दुःख है”। यदि उस व्यक्ति की चर्चा की जाए जिसके पौलुस को गहरा दुःख है तो यू.डी.बी. अनुवाद को देखें
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं तो यह भी चाहता हूँ कि परमेश्वर शापित ठहराए और मसीह से सदा के लिए अलग कर दे यदि इससे मेरे इस्त्राएली भाइयों को, मेरी अपनी जाति को मसीह में विश्वास करने में सहायता मिले।”
वे, मेरे सदृश्य, इस्त्राएली हैं। परमेश्वर ने उन्हें याकूब के वंशज चुना है। (यू.डी.बी.)
“यही वह वंश है जिसमें मसीह के मानव रूप धारण करके जन्म लिया”।
इसका अनुवाद एक अलग वाक्य में किया जा सकता है, “मसीह सर्वेसर्वा है और परमेश्वर ने उसे सदा के लिए आशिषित किया है।
“परन्तु परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं में चूकता नहीं है”।
“परमेश्वर ने इस्राएल (याकूब) के सब वंशओं से प्रतिज्ञा नहीं की है। उसने इसके आत्मिक वंशजों से ही प्रतिज्ञा की है अर्थात उनसे जिन्हें यीशु में विश्वास है।
“नहीं वे सब अब्राहम की सन्तान होने के कारण परमेश्वर की सन्तान हैं।
यह अब्राहम के शारीरिक वंश के संदर्भ में है।
ये वे लोग हैं जो यीशु में विश्वास के द्वारा आत्मिक वंश हैं
अर्थात वे लोग जो प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी होंगे
“मैं सारा को एक पुत्र दूँगा”
हो सकता है कि आपको 9:17, 9:12 के बाद रखना हो, “हमारे पिता इसहाक, उसने कहा, जेठा छोटे का दास होगा। अभी तक न तो बालक जन्मे थे... बुलाने वाले के कारण है”
इसहाक पौलुस और रोम के विश्वासियों का पूर्वज था।
“गर्भवती हुई”
“सन्तान के जन्म से पूर्व और अच्छा या बुरा करने से पूर्व”
“फिर परमेश्वर के चुनाव के अनुसार जो होना है वह होकर रहे”।
“सन्तानोत्पत्ति से पूर्व”
“नही उनके कर्मो के कारण”
परमेश्वर के कारण
परमेश्वर ने रिबका से कहा, “बड़ा पुत्र छोटे की सेवा करेगा”
परमेश्वर ने एसाव को अप्रिय जाना अर्थात याकूब से प्रेम करने की तुलना में।(देखें: )
पौलुस उनसे उत्तर की खोज नहीं कर रहा है वह प्रश्न पूछने के द्वारा वह उस भ्रम को दूर कर रहा है कि परमेश्वर धर्मी नहीं है।
“असंभव है”। या “निश्चय ही नहीं” यह अभिव्यक्ति दृढ़ता से इन्कार करती है कि ऐसा होने की संभावना है। आप अपनी भाषा में ऐसी ही अभिव्यक्ति को काम में लेना चाहेंगे।
“क्योंकि परमेश्वर ने मूसा से कहा है”
“यह मनुष्यों के चाहने या उनके कठोर परिश्रम से नहीं”।
पौलुस एक धावक की तुलना लक्ष्य प्राप्ति के लिए कठोर परिश्रम करनेवाले से करता है।
यहाँ धर्मशास्त्र को मानव रूप दिया गया है जैसे परमेश्वर फिरौन से बात कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “धर्मशास्त्र में परमेश्वर ने कहा”
परमेश्वर अपने बारे में कहता है
एकवचन
“कि मनुष्य संपूर्ण पृथ्वी पर मेरा नाम ले”
“परमेश्वर जिसे चाहे हठीला बना देता है”
पौलुस उसकी शिक्षा के आलोचकों को संबोधित कर रहा है, वह एक मनुष्य से बात कर रहा है। आपको संभवतः बहुवचन काम में लेने की आवश्यकता हो सकती है।
परमेश्वर की
पौलुस तुम्हारे अधिकार का उदाहरण दे रहा है कि वह जैसा पात्र चाहे मिट्टी से बनाता है जो सृजनहार के अधिकार का एकरूपक है कि वह अपनी सृष्टि के साथ जैसा चाहे वैसा कर सकता है।
परमेश्वर.... परमेश्वर का/की
“क्रोध भाजक मनुष्य... दयापात्र मनुष्य”
“उसकी महिमा जो अपार है”।
“जिन्हें उसने समय से पहले महिमान्वन के लिए तैयार किया है”
पौलुस तथा उसके सहविश्वासी भाई
“जैसा परमेश्वर होशे रचित पुस्तक में भी कहता है”
होशे भविष्यद्वक्ता है
“मैं उन लोगों को चुन कर अपने लोग बना लूँगा जो मेरे लोग न थे”
“और मैं उसे चुनकर अपनी प्रिय बनाऊँगा जो मेरी प्रिय न थी”।
“जीवते” का अर्थ है कि परमेश्वर ही एकमात्र “सच्चा” परमेश्वर है, झूठी मूर्तियों के सदृश्य नहीं। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “सच्चे परमेश्वर की सन्तान”। (यू.डी.बी.)
“सार्वजनिक घोषणा करता है”
असंख्य
यहाँ “बचेंगे” आत्मिक अभिप्राय में है। मनुष्य बचाया जाता है तो वह क्रूस पर यीशु की मृत्यु के द्वारा है। परमेश्वर ने उसे क्षमा कर दिया और उसके पापों के दण्ड से बचा लिया।
सब कुछ जो परमेश्वर ने कहा और आज्ञा दी।
अर्थात यशायाह और इस्राएली
आप और अधिक स्पष्ट रूप से समझा सकते हैं कि इस्त्राएली सदोम और अमोरा के सदृश्य कैसे हो सकते थे, “हम सब का ठीक वैसे सर्वनाश हो जाता जैसे सदोम और अमोरा का हुआ था। (यू.डी.बी.)
“अतः हमें यही कहना होगा”
“हम कहेंगे कि अन्यजातियाँ”
“जो परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास नहीं करते थे”
“परमेश्वर के पुत्र मे विश्वास करके परमेश्वर को प्रसन्न किया”
“नियमों के पालन से न्यायोचित अवस्था को प्राप्त नहीं किया”।
“वे न्यायोचित अवस्था को प्राप्त क्यों नहीं कर पाए”?
“परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले कामों से” (देखें यू.डी.बी.) या “विधान के नियमों का पालन करके”।
“पत्थर जिससे लोगों को ठोकर लगती है”
“जैसा भविष्यद्वक्ता यशायाह ने लिखा है”।
यह वहाँ एक स्थान का नाम है
यह पत्थर एक मनुष्य के स्थान में आया है (देखें यू.डी.बी.) अतः आपके इस प्रकार अनुवाद करना होगा, “जो उस में विश्वास करेगा”
पौलुस को शरीर के भाव से अपने भाइयों, इस्राएलियों के लिए शोक और दुःख है।
?
पौलुस कहता है कि इस्राएल में हर एक जन परमेश्वर का नहीं है और अब्राहम के वंशज उसकी सच्ची सन्तान नहीं है।
शरीर से उत्पन्न परमेश्वर की सन्तान नहीं गिनी जाती है।
प्रतिज्ञा की सन्तान को परमेश्वर की सन्तान गिना जाता है।
सन्तानोत्पत्ति से पूर्व ही रिबका से कहा गया था, "जेठा छोटे का दास होगा," रिबका से कही गई इस बात में निहित उद्देश्य क्या था?"
परमेश्वर की दया और उसकी अनुकंपा के वरदान का कारण उसका चुनाव है।
परमेश्वर की दया और अनुकंपा के वरदान में निहित कारण वरदान प्राप्त करनेवालों की इच्छा और कार्य नहीं हैं।
पौलुस उत्तर देता है, "भला तू कौन है, जो परमेश्वर का साम्हना करता है?"
परमेश्वर ने विनाश के लिए तैयार किए गए मनुष्यों को अत्यधिक धीरज धर कर सहन किया है।
परमेश्वर ने उन पर अपनी महिमा का धन प्रकट किया है।
परमेश्वर ने यहूदियों और अन्य जातियों दोनों में से उनको बुलाया है जिन पर उसकी दया है।
इस्राएल की सन्तानों में से कुछ शेष जन बचे रहेंगे।
अन्यजातियों ने विश्वास के द्वारा धार्मिकता से उसे प्राप्त किया।
इस्राएली धार्मिकता प्राप्त नहीं कर पाए क्योंकि उन्होंने विश्वास से नहीं कर्मों से धार्मिकता की खोज की।
इस्राएलियों ने ठोकर खाने के पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान से ठोकर खाई थी।
जो ठोकर नहीं खाते, विश्वास करते है लज्जित नहीं होंगे।
1 हे भाइयों, मेरे मन की अभिलाषा और उनके लिये परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है, कि वे उद्धार पाएँ*। 2 क्योंकि मैं उनकी गवाही देता हूँ, कि उनको परमेश्वर के लिये धुन रहती है, परन्तु बुद्धिमानी के साथ नहीं। 3 क्योंकि वे परमेश्वर की धार्मिकता* से अनजान होकर, अपनी धार्मिकता स्थापित करने का यत्न करके, परमेश्वर की धार्मिकता के अधीन न हुए।
4 क्योंकि हर एक विश्वास करनेवाले के लिये धार्मिकता के निमित्त मसीह व्यवस्था का अन्त है। 5 क्योंकि मूसा व्यवस्था से प्राप्त धार्मिकता के विषय में यह लिखता है: “जो व्यक्ति उनका पालन करता है, वह उनसे जीवित रहेगा।” (लैव्य. 18:5)
6 परन्तु जो धार्मिकता विश्वास से है, वह यों कहती है, “तू अपने मन में यह न कहना कि स्वर्ग पर कौन चढ़ेगा?” (अर्थात् मसीह को उतार लाने के लिये), 7 या “अधोलोक में कौन उतरेगा?” (अर्थात् मसीह को मरे हुओं में से जिलाकर ऊपर लाने के लिये!)
8 परन्तु क्या कहती है? यह, कि
“वचन तेरे निकट है,
तेरे मुँह में और तेरे मन में है,”
यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं। 9 कि यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। (प्रेरि. 16:31) 10 क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार* किया जाता है।
11 क्योंकि पवित्रशास्त्र यह कहता है, “जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।” (यिर्म. 17:7) 12 यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं, इसलिए कि वह सब का प्रभु है; और अपने सब नाम लेनेवालों के लिये उदार है। 13 क्योंकि “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।” (प्रेरि. 2:21, योए. 2:32)
14 फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्यों लें? और जिसकी नहीं सुनी उस पर क्यों विश्वास करें? और प्रचारक बिना क्यों सुनें? 15 और यदि भेजे न जाएँ, तो क्यों प्रचार करें? जैसा लिखा है, “उनके पाँव क्या ही सुहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (यशा. 52:7, नहू. 1:15)
16 परन्तु सब ने उस सुसमाचार पर कान न लगाया। यशायाह कहता है, “हे प्रभु, किस ने हमारे समाचार पर विश्वास किया है?” (यशा. 53:1) 17 इसलिए विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।
18 परन्तु मैं कहता हूँ, “क्या उन्होंने नहीं सुना?” सुना तो सही क्योंकि लिखा है,
“उनके स्वर सारी पृथ्वी पर,
और उनके वचन जगत की छोर तक पहुँच गए हैं।” (भज. 19:4)
19 फिर मैं कहता हूँ। क्या इस्राएली नहीं जानते थे? पहले तो मूसा कहता है,
“मैं उनके द्वारा जो जाति नहीं, तुम्हारे मन में जलन उपजाऊँगा,
मैं एक मूर्ख जाति के द्वारा तुम्हें रिस दिलाऊँगा।” (व्य. 32:21)
20 फिर यशायाह बड़े साहस के साथ कहता है,
“जो मुझे नहीं ढूँढ़ते थे, उन्होंने मुझे पा लिया;
और जो मुझे पूछते भी न थे, उन पर मैं प्रगट हो गया।”
21 परन्तु इस्राएल के विषय में वह यह कहता है “मैं सारे दिन अपने हाथ एक आज्ञा न माननेवाली और विवाद करनेवाली प्रजा की ओर पसारे रहा।” (यशा. 65:1-2)
“मेरी उत्कट अभिलाषा है”
“परमेश्वर यहूदियों का उद्धार करे”
“क्योंकि मसीह ने विधान के नियमों का पूर्णतः पालन किया”
“कि वह उसमें विश्वास करनेवाले हर एक मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित बना दे”।
“जैसे विधान के नियम मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित ठहराते हैं”
“विधान के नियमों के पालन में सिद्ध मनुष्य जीवित रहेगा, क्योंकि नियम उसे परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित ठहराएंगे”
इसका संदर्भ 1) अनन्त जीवन से (यू.डी.बी.) या 2) परमेश्वर की संगति में नैतिक जीवन से है।
यहाँ “धार्मिकता के एक व्यक्ति की संज्ञा दी गई है कि वह बोलती है। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु मूसा लिखता है कि विश्वास मनुष्य को कैसे परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित ठहराता है”।
“तू यह न सोचना”, मूसा जनसमूह को एक वचन में संबोधित कर रहा है।
मूसा ऐसा प्रश्न पूछ कर अपने श्रोतागण को कुछ सिखाना चाहता है। इसका पूर्वाक्त निर्देश, मन में यह न कहना, को नकारात्क उत्तर की आवश्यकता है, वैकल्पिक अनुवाद, “स्वर्ग जाने का प्रयास कोई न करे”।
“कि वे मसीह को पृथ्वी पर ले आएं”
मूसा अपने श्रोतागण को सिखाने के लिए प्रश्न पूछता है। उसकी पूर्वोक्त उक्ति, “तू अपने मन में कहना” को नकारात्मक उत्तर की आवश्यकता है। वैकल्पिक अनुवाद, “जहाँ मृतकों की आत्माएं हैं वह किसी को उतरने की आवश्यकता नहीं है”
“कि वे मसीह को मृतकों में से ऊपर ले आएं”
“वह” अर्थात धर्मनिष्ठा 10:6 यहां पौलुस धर्मनिष्ठा को एक मनुष्य के रूप में व्यक्त कर रहा है, जो बोल सकता है। पौलुस प्रश्न पूछ कर जो उत्तर देगा उस पर बल देता है। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु मूसा जो कहता है, वह है कि”
“सन्देश ठीक यही है”
“मूँह” का अर्थ होता है शब्दोच्चारण। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “वचन तेरे शब्दोच्चारण में है”।
“मन” से अभिप्राय है, मनुष्य का मस्तिष्क या उसका सोचना। वैकल्पिक अनुवाद, “और वह तेरे सोचने में है”
“यदि तू स्वीकार करे कि यीशु प्रभु है”
“सच माने”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “परमेश्वर तेरा उद्धार करेगा”
“क्योंकि मन से विश्वास करके मनुष्य परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित ठहरता है और मुँह से वह स्वीकरण करता है तो परमेश्वर उसे न्यायोचित ठहराता है”
“उसमें विश्वास करनेवाला कोई भी मनुष्य लज्जित नहीं होगा”। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जाता है, “परमेश्वर उसमें विश्वास करनेवाले किसी भी मनुष्य को लज्जित नहीं होने देगा”। वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर उसमें विश्वास करनेवाले हर एक मनुष्य को महिमान्वित करेगा”।
“इस प्रकार, परमेश्वर यहूदियों और गैर यहूदियों के साथ समता का व्यवहार करता है”। (यू.डी.बी.)
“वह सब विश्वासियों को विपुल आशिषें देता है”
“नाम” का अभिप्राय संपूर्ण व्यक्ति से है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर उसमें विश्वास करनेवाले हर एक मनुष्य का उद्धार करेगा”।
पौलुस प्रश्न पूछने के द्वारा मसीह का शुभ सन्देश उन लोगों तक पहुँचाने के महत्त्व पर बल देता है, जिन्होंने अब तक शुभ सन्देश ही सुना है। यहां “वे” उन लोगों के संदर्भ में है जो परमेश्वर के लोग नहीं हैं। वैकल्पिक अनुवाद, “जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते उसका नाम नहीं ले सकते हैं”
पौलुस उसी कारण के निमित्त एक और प्रश्न पूछता है। वैकल्पिक अनुवाद, “और वे उसमें विश्वास नहीं कर पाते। “या” यदि उन्होंने उसका सन्देश नहीं सुना होता”। या “यदि उन्होंने उसका सन्देश नहीं सुना तो उसमें विश्वास करना संभव नहीं”।
पौलुस फिर उसी कारण प्रश्न पूछता है। वैकल्पिक अनुवाद, “और यदि कोई सुनाए नहीं तो वे सन्देश नहीं सुन पाएंगे”
पौलुस फिर उसी कारण से प्रश्न पूछता है। यह परमेश्वर के लोगों के संबन्ध में कहा गया है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “और वे शुभ सन्देश सुना नहीं सकते यदि कोई उन्हें भेजे नहीं”।
पौलुस का अभिप्राय “पांव” से है कि अमनशील प्रचारक उन लोगों में शुभ सन्देश सुनाते हैं, जिन्होंने कभी शुभ सन्देश नहीं सुना। वैकल्पिक अनुवाद, “यह अति मनोहर बात है कि सन्देशवाहक आकर हमें शुभ सन्देश सुनाते हैं”।
“परन्तु सब यहूदियों ने शुभ सन्देश सुनना नहीं चाहा”
पौलुस इस प्रश्न के संदर्भ द्वारा इस बात पर बल दे रहा है कि यशायाह ने धर्मशास्त्र में अपनी भविष्यद्वाणी लिख दी है कि अनेक यहूदी यीशु में विश्वास नहीं करेंगे। यहां “हमारे” परमेश्वर और यशायाह का बोध करवाता है। वैकल्पिक अनुवाद, “हे प्रभु, उनमें से कितने हैं जो हमारे सन्देश पर विश्वास नहीं करते हैं।
मैं कहता हूँ, क्या उन्होंने नहीं सुना? सुना तो सही , पौलुस बल देने के लिए प्रश्न करता है। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु मैं कहता हूँ कि यहूदियों ने निश्चय ही मसीह का शुभ सन्देश सुना है
इन दोनों कथनों का अर्थ एक ही है और महत्त्व उजागर करने के लिए हैं। “उनके सूर्य, चाँद और सितारों के लिए काम में लिया गया है। यहाँ उन्हें मानवीय सन्देशवाहक के रूप में व्यक्त किया गया है जो मनुष्यों को परमेश्वर का सन्देश सुनाते हैं। इसका अर्थ है कि उनका अस्तित्व परमेश्वर के सामर्थ्य और उसकी महिमा की गवाही देता है। स्पष्ट किया जा सकता है कि यहां पौलुस धर्मशास्त्र का संदर्भ दे रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “जैसा धर्मशास्त्र में लिखा है, सूर्य, चाँद, और सितारे परमेश्वर के सामर्थ्य और उसकी महिमा का प्रमाण हैं और संसार में हर एक जन उन्हें देखकर परमेश्वर के सत्य को जान पाता है”। (देखें: और और )
पौलुस महत्त्व उजागर करने के लिए ही प्रश्न का उपयोग कर रहा है। “इस्राएल शब्द उन लोगों के लिए है जो इस्राएल देश के निकले हैं, वैकल्पिक अनुवाद, “मैं पुनः कहता हूँ कि इस्राएलवासी निश्चय ही शुभ सन्देश का ज्ञान रखते थे”। (देखें: और )
इसका अर्थ है मूसा परमेश्वर की वाणी को लिख रहा था। “मैं” अर्थात परमेश्वर और “तुम्हारे” अर्थात इस्त्राएली। वैकल्पिक अनुवाद, “पहले तो मूसा कहता है कि परमेश्वर तुम्हें उपदेश दिलाता है.... परमेश्वर तुम्हें उत्तेजित करता है... ”
“जो एक जाति नहीं माने जाते हैं”। (यू.डी.बी.) या “उन लोगों के द्वारा जो किसी जाति के नहीं”।
“उस जाति के लोगों के द्वारा जो मुझे या मेरी आज्ञाओं को नहीं जानते”।
“मैं तुम्हें क्रोध करने पर विवश करूँगा”।
इसका अर्थ है कि यशायाह ने परमेश्वर के वचन लिखे।
“मुझे” अर्थात परमेश्वर को। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “यद्यपि अन्य जातियाँ मेरी खोज में नहीं थी, उन्होंने मुझे पा लिया”। भविष्यद्वक्ता भविष्य की बातों की इस प्रकार लिखते थे कि मानों वे हो रही हैं। यह भविष्यद्वाणी की सत्य पूर्ति पर बल देता है। वैकल्पिक अनुवाद, “यद्यपि अन्य जातियों मेरी खोज नहीं करेंगी। वे मुझे पा लेंगी”
“मैंने अपनी उपस्थिति का बोध करवाया” वैकल्पिक अनुवाद, “मैं अपनी उपस्थिति दर्शाऊंगा”
परमेश्वर यशायाह के माध्यम से कहता है
इस उक्ति द्वारा परमेश्वर को लगातार प्रयास पर बल दिया गया है। वैकल्पिक अनुवाद, “लगातार”
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं तुम्हारा स्वागत करने और तुम्हारी सहायता करने का प्रयास किया, परन्तु तुमने मेरी सहायता से इन्कार करके आज्ञा नहीं मानते रहे। “मैं” अर्थात परमेश्वर
पौलुस इस्राएलियों के उद्धार की इच्छा रखता था।
इस्राएली अपनी धार्मिकता स्थापित करने का यत्न करते थे।
इस्राएली परमेश्वर की धार्मिकता से अनजान हैं।
मसीह सब विश्वासियों के लिए धार्मिकता की व्यवस्था की पूर्ति है।
विश्वास का वचन निकट है, मुंह और मन में है।
पौलुस कहता है कि मनुष्य अपने मुंह से मसीह को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन में विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मृतकों में से जिलाया है।
मसीह का नाम लेने वाला हर एक जन उद्धार पायेगा।
पौलुस कहता है पहले प्रचारक भेजा जाता है तब सुसमाचार सुना जाता है और उस पर विश्वास किया जाता है जिससे कि मनुष्य मसीह का नाम लेता है।
मसीह का वचन सुना जाता है और विश्वास उत्पन्न करता है।
हां, इस्राएल ने सुसमाचार सुना था और जानते थे।
परमेश्वर ने कहा कि वह उन लोगों पर प्रकट होकर इस्राएल को रिस दिलाएगा जो उसे पूछते भी नहीं थे।
परमेश्वर ने इस्राएल की ओर हाथ फैलाए तो देखा कि वह आज्ञा न मानने वाली और हठीली प्रजा है।
1 इसलिए मैं कहता हूँ, क्या परमेश्वर ने अपनी प्रजा को त्याग दिया? कदापि नहीं! मैं भी तो इस्राएली हूँ; अब्राहम के वंश और बिन्यामीन के गोत्र में से हूँ। 2 परमेश्वर ने अपनी उस प्रजा को नहीं त्यागा, जिसे उसने पहले ही से जाना: क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्रशास्त्र एलिय्याह की कथा में क्या कहता है; कि वह इस्राएल के विरोध में परमेश्वर से विनती करता है। (भज. 94:14) 3 “हे प्रभु, उन्होंने तेरे भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला, और तेरी वेदियों को ढा दिया है; और मैं ही अकेला बच रहा हूँ, और वे मेरे प्राण के भी खोजी हैं।” (1 राजा. 19:10, 1 राजा. 19:14)
4 परन्तु परमेश्वर से उसे क्या उत्तर मिला “मैंने अपने लिये सात हजार पुरुषों को रख छोड़ा है जिन्होंने बाल के आगे घुटने नहीं टेके हैं।” (1 राजा. 19:18) 5 इसी रीति से इस समय भी, अनुग्रह से चुने हुए कुछ लोग बाकी हैं*।
6 यदि यह अनुग्रह से हुआ है, तो फिर कर्मों से नहीं, नहीं तो अनुग्रह फिर अनुग्रह नहीं रहा। 7 फिर परिणाम क्या हुआ? यह कि इस्राएली जिसकी खोज में हैं, वह उनको नहीं मिला; परन्तु चुने हुओं को मिला और शेष लोग कठोर किए गए हैं। 8 जैसा लिखा है, “परमेश्वर ने उन्हें आज के दिन तक* मंदता की आत्मा दे रखी है और ऐसी आँखें दी जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।” (व्य. 29:4, यशा. 6:9-10, यशा. 29:10, यहे. 12:2)
9 और दाऊद कहता है,
“उनका भोजन उनके लिये जाल, और फन्दा,
और ठोकर, और दण्ड का कारण हो जाए।
10 उनकी आँखों पर अंधेरा छा जाए ताकि न देखें,
और तू सदा उनकी पीठ को झुकाए रख।” (भज. 69:23)
11 तो मैं कहता हूँ क्या उन्होंने इसलिए ठोकर खाई, कि गिर पड़ें? कदापि नहीं परन्तु उनके गिरने के कारण अन्यजातियों को उद्धार मिला, कि उन्हें जलन हो। (व्य. 32:21) 12 अब यदि उनका गिरना जगत के लिये धन और उनकी घटी अन्यजातियों के लिये सम्पत्ति का कारण हुआ, तो उनकी भरपूरी से कितना न होगा।
13 मैं तुम अन्यजातियों से यह बातें कहता हूँ। जब कि मैं अन्यजातियों के लिये प्रेरित हूँ, तो मैं अपनी सेवा की बड़ाई करता हूँ, 14 ताकि किसी रीति से मैं अपने कुटुम्बियों से जलन करवाकर उनमें से कई एक का उद्धार कराऊँ।
15 क्योंकि जब कि उनका त्याग दिया जाना* जगत के मिलाप का कारण हुआ, तो क्या उनका ग्रहण किया जाना मरे हुओं में से जी उठने के बराबर न होगा? 16 जब भेंट का पहला पेड़ा पवित्र ठहरा, तो पूरा गुँधा हुआ आटा भी पवित्र है: और जब जड़ पवित्र ठहरी, तो डालियाँ भी ऐसी ही हैं।
17 और यदि कई एक डाली तोड़ दी गई, और तू जंगली जैतून होकर उनमें साटा गया, और जैतून की जड़ की चिकनाई का भागी हुआ है। 18 तो डालियों पर घमण्ड न करना; और यदि तू घमण्ड करे, तो जान रख, कि तू जड़ को नहीं, परन्तु जड़ तुझे सम्भालती है।
19 फिर तू कहेगा, “डालियाँ इसलिए तोड़ी गई, कि मैं साटा जाऊँ।” 20 भला, वे तो अविश्वास के कारण तोड़ी गई, परन्तु तू विश्वास से बना रहता है इसलिए अभिमानी न हो, परन्तु भय मान, 21 क्योंकि जब परमेश्वर ने स्वाभाविक डालियाँ न छोड़ी, तो तुझे भी न छोड़ेगा।
22 इसलिए परमेश्वर की दयालुता और कड़ाई को देख! जो गिर गए, उन पर कड़ाई, परन्तु तुझ पर दयालुता, यदि तू उसमें बना रहे, नहीं तो, तू भी काट डाला जाएगा।
23 और वे भी यदि अविश्वास में न रहें, तो साटे जाएँगे क्योंकि परमेश्वर उन्हें फिर साट सकता है। 24 क्योंकि यदि तू उस जैतून से, जो स्वभाव से जंगली है, काटा गया और स्वभाव के विरुद्ध* अच्छी जैतून में साटा गया, तो ये जो स्वाभाविक डालियाँ हैं, अपने ही जैतून में साटे क्यों न जाएँगे।
25 हे भाइयों, कहीं ऐसा न हो, कि तुम अपने आप को बुद्धिमान समझ लो; इसलिए मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो, कि जब तक अन्यजातियाँ पूरी रीति से प्रवेश न कर लें, तब तक इस्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा।
26 और इस रीति से सारा इस्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है,
“छुड़ानेवाला सिय्योन से आएगा,
और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा। (यशा. 59:20)
27 और उनके साथ मेरी यही वाचा होगी,
जब कि मैं उनके पापों को दूर कर दूँगा।” (यशा. 27:9, यशा. 43:25)
28 वे सुसमाचार के भाव से तो तुम्हारे लिए वे परमेश्वर के बैरी हैं, परन्तु चुन लिये जाने के भाव से पूर्वजों के कारण प्यारे हैं। 29 क्योंकि परमेश्वर अपने वरदानों से, और बुलाहट से कभी पीछे नहीं हटता।
30 क्योंकि जैसे तुम ने पहले परमेश्वर की आज्ञा न मानी परन्तु अभी उनके आज्ञा न मानने से तुम पर दया हुई। 31 वैसे ही उन्होंने भी अब आज्ञा न मानी कि तुम पर जो दया होती है इससे उन पर भी दया हो। 32 क्योंकि परमेश्वर ने सब को आज्ञा न मानने के कारण बन्द कर रखा ताकि वह सब पर दया करे।
33 अहा, परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गम्भीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!
34 “प्रभु कि बुद्धि को किस ने जाना?
या कौन उनका सलाहकार बन गया है? (अय्यू. 15:8, यिर्म. 23:18)
35 या किस ने पहले उसे कुछ दिया है
जिसका बदला उसे दिया जाए?” (अय्यू. 41:11)
36 क्योंकि उसकी ओर से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिये सब कुछ है: उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
1 इसलिए हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिलाकर विनती करता हूँ, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ; यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।
2 और इस संसार के सदृश न बनो*; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिससे तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।
3 क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूँ, कि जैसा समझना चाहिए, उससे बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे; पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बाँट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।
4 क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही जैसा काम नहीं; 5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न-भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिसको भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे। 7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखानेवाला हो, तो सिखाने में लगा रहे; 8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।
9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो। (आमो. 5:15) 10 भाईचारे के प्रेम* से एक दूसरे पर स्नेह रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।
11 प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरे रहो; प्रभु की सेवा करते रहो। 12 आशा के विषय में, आनन्दित; क्लेश के विषय में, धैर्य रखें; प्रार्थना के विषय में, स्थिर रहें। 13 पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उसमें उनकी सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो।
14 अपने सतानेवालों को आशीष दो; आशीष दो श्राप न दो। 15 आनन्द करनेवालों के साथ आनन्द करो, और रोनेवालों के साथ रोओ। (भज. 35:13) 16 आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनों के साथ संगति रखो; अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो। (नीति. 3:7, यशा. 5:21)
17 बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उनकी चिन्ता किया करो। 18 जहाँ तक हो सके, तुम भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो*।
19 हे प्रियों अपना बदला न लेना; परन्तु परमेश्वर को क्रोध का अवसर दो, क्योंकि लिखा है, “बदला लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूँगा।” (व्य. 32:35)
20 परन्तु “यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला,
यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला;
क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा।” (नीति. 25:21-22)
21 बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।
1 हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के अधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं। (तीतु. 3:1) 2 इसलिए जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का विरोध करता है, और विरोध करनेवाले दण्ड पाएँगे।
3 क्योंकि अधिपति अच्छे काम के नहीं, परन्तु बुरे काम के लिये डर का कारण हैं; क्या तू अधिपति से निडर रहना चाहता है, तो अच्छा काम कर* और उसकी ओर से तेरी सराहना होगी; 4 क्योंकि वह तेरी भलाई के लिये परमेश्वर का सेवक है। परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्योंकि वह तलवार व्यर्थ लिए हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है*; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे। 5 इसलिए अधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्तु डर से अवश्य है, वरन् विवेक भी यही गवाही देता है।
6 इसलिए कर भी दो, क्योंकि शासन करनेवाले परमेश्वर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं। 7 इसलिए हर एक का हक़ चुकाया करो; जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे चुंगी चाहिए, उसे चुंगी दो; जिससे डरना चाहिए, उससे डरो; जिसका आदर करना चाहिए उसका आदर करो।
8 आपस के प्रेम को छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदार न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है। 9 क्योंकि यह कि “व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, लालच न करना,” और इनको छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (निर्ग. 20:13-16, लैव्य. 19:18) 10 प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिए प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है।
11 और समय को पहचान कर ऐसा ही करो, इसलिए कि अब तुम्हारे लिये नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुँची है; क्योंकि जिस समय हमने विश्वास किया था, उस समय की तुलना से अब हमारा उद्धार निकट है। 12 रात* बहुत बीत गई है, और दिन निकलने पर है; इसलिए हम अंधकार के कामों को तजकर ज्योति के हथियार बाँध लें।
13 जैसे दिन में, वैसे ही हमें उचित रूप से चलना चाहिए; न कि लीलाक्रीड़ा, और पियक्कड़पन, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न झगड़े और ईर्ष्या में। 14 वरन् प्रभु यीशु मसीह को पहन लो, और शरीर की अभिलाषाओं को पूरा करने का उपाय न करो।
1 जो विश्वास में निर्बल है*, उसे अपनी संगति में ले लो, परन्तु उसकी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं। 2 क्योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग-पात ही खाता है।
3 और खानेवाला न-खानेवाले को तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है। 4 तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, वरन् वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।
5 कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर मानता है, और कोई सब दिन एक सा मानता है: हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले। 6 जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है।
7 क्योंकि हम में से न तो कोई अपने लिये जीता है, और न कोई अपने लिये मरता है। 8 क्योंकि यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं*; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं; फिर हम जीएँ या मरें, हम प्रभु ही के हैं। 9 क्योंकि मसीह इसलिए मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवितों, दोनों का प्रभु हो।
10 तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के सामने खड़े होंगे। 11 क्योंकि लिखा है,
“प्रभु कहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध कि हर एक घुटना मेरे सामने टिकेगा,
और हर एक जीभ परमेश्वर को अंगीकार करेगी।” (यशा. 45:23, यशा. 49:18)
12 तो फिर, हम में से हर एक परमेश्वर को अपना-अपना लेखा देगा।
13 इसलिए आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ पर तुम यही ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे।
14 मैं जानता हूँ, और प्रभु यीशु से मुझे निश्चय हुआ है, कि कोई वस्तु अपने आप से अशुद्ध नहीं, परन्तु जो उसको अशुद्ध समझता है, उसके लिये अशुद्ध है। 15 यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता; जिसके लिये मसीह मरा उसको तू अपने भोजन के द्वारा नाश न कर।
16 अब तुम्हारी भलाई की निन्दा न होने पाए। 17 क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना-पीना नहीं; परन्तु धार्मिकता और मिलाप और वह आनन्द है जो पवित्र आत्मा से होता है।
18 जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्वर को भाता है और मनुष्यों में ग्रहणयोग्य ठहरता है। 19 इसलिए हम उन बातों का प्रयत्न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो।
20 भोजन के लिये परमेश्वर का काम* न बिगाड़; सब कुछ शुद्ध तो है, परन्तु उस मनुष्य के लिये बुरा है, जिसको उसके भोजन करने से ठोकर लगती है।
21 भला तो यह है, कि तू न माँस खाए, और न दाखरस पीए, न और कुछ ऐसा करे, जिससे तेरा भाई ठोकर खाए।
22 तेरा जो विश्वास हो, उसे परमेश्वर के सामने अपने ही मन में रख*। धन्य है वह, जो उस बात में, जिसे वह ठीक समझता है, अपने आप को दोषी नहीं ठहराता। 23 परन्तु जो सन्देह कर के खाता है, वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह विश्वास से नहीं खाता, और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है।
1 निदान हम बलवानों को चाहिए, कि निर्बलों की निर्बलताओं में सहायता करे, न कि अपने आप को प्रसन्न करें। 2 हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उसकी भलाई के लिये सुधारने के निमित्त प्रसन्न करे।
3 क्योंकि मसीह ने अपने आप को प्रसन्न नहीं किया, पर जैसा लिखा है, “तेरे निन्दकों की निन्दा मुझ पर आ पड़ी।” (भज. 69:9) 4 जितनी बातें पहले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्रशास्त्र के प्रोत्साहन के द्वारा आशा रखें।
5 धीरज, और प्रोत्साहन का दाता परमेश्वर तुम्हें यह वरदान दे, कि मसीह यीशु के अनुसार आपस में एक मन रहो। 6 ताकि तुम एक मन* और एक स्वर होकर हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता परमेश्वर की स्तुति करो।
7 इसलिए, जैसा मसीह ने भी परमेश्वर की महिमा के लिये तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो।
8 मैं कहता हूँ, कि जो प्रतिज्ञाएँ पूर्वजों को दी गई थीं, उन्हें दृढ़ करने के लिये मसीह, परमेश्वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिये खतना किए हुए लोगों का सेवक बना। (मत्ती 15:24) 9 और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की स्तुति करो, जैसा लिखा है,
“इसलिए मैं जाति-जाति में तेरी स्तुति करूँगा,
और तेरे नाम के भजन गाऊँगा।” (2 शमू. 22:50, भज. 18:49)
10 फिर कहा है,
“हे जाति-जाति के सब लोगों, उसकी प्रजा के साथ आनन्द करो।”
11 और फिर,
“हे जाति-जाति के सब लोगों, प्रभु की स्तुति करो;
और हे राज्य-राज्य के सब लोगों; उसकी स्तुति करो।” (भज. 117:1)
12 और फिर यशायाह कहता है,
“यिशै की एक जड़* प्रगट होगी,
और अन्यजातियों का अधिपति होने के लिये एक उठेगा,
उस पर अन्यजातियाँ आशा रखेंगी।” (यशा. 11:11)
13 परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए।
14 हे मेरे भाइयों; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्चय जानता हूँ, कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को समझा सकते हो।
15 तो भी मैंने कहीं-कहीं याद दिलाने के लिये तुम्हें जो बहुत साहस करके लिखा, यह उस अनुग्रह के कारण हुआ, जो परमेश्वर ने मुझे दिया है। 16 कि मैं अन्यजातियों के लिये मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक के समान करूँ; जिससे अन्यजातियों का मानो चढ़ाया जाना, पवित्र आत्मा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए।
17 इसलिए उन बातों के विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, मैं मसीह यीशु में बड़ाई कर सकता हूँ। 18 क्योंकि उन बातों को छोड़ मुझे और किसी बात के विषय में कहने का साहस नहीं, जो मसीह ने अन्यजातियों की अधीनता के लिये वचन, और कर्म। 19 और चिन्हों और अद्भुत कामों की सामर्थ्य से, और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से मेरे ही द्वारा किए। यहाँ तक कि मैंने यरूशलेम से लेकर चारों ओर इल्लुरिकुम तक मसीह के सुसमाचार का पूरा-पूरा प्रचार किया।
20 पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहाँ-जहाँ मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनाऊँ; ऐसा न हो, कि दूसरे की नींव पर घर बनाऊँ। 21 परन्तु जैसा लिखा है, वैसा ही हो,
“जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुँचा, वे ही देखेंगे
और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।” (यशा. 52:15)
22 इसलिए मैं तुम्हारे पास आने से बार-बार रुका रहा। 23 परन्तु अब इन देशों में मेरे कार्य के लिए जगह नहीं रही, और बहुत वर्षों से मुझे तुम्हारे पास आने की लालसा है।
24 इसलिए जब इसपानिया को जाऊँगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जाऊँगा क्योंकि मुझे आशा है, कि उस यात्रा में तुम से भेंट करूँ, और जब तुम्हारी संगति से मेरा जी कुछ भर जाए, तो तुम मुझे कुछ दूर आगे पहुँचा दो। 25 परन्तु अभी तो पवित्र लोगों की सेवा करने के लिये यरूशलेम को जाता हूँ।
26 क्योंकि मकिदुनिया और अखाया के लोगों को यह अच्छा लगा, कि यरूशलेम के पवित्र लोगों के कंगालों के लिये कुछ चन्दा करें। 27 अच्छा तो लगा, परन्तु वे उनके कर्जदार भी हैं, क्योंकि यदि अन्यजाति उनकी आत्मिक बातों में भागी हुए, तो उन्हें भी उचित है, कि शारीरिक बातों में उनकी सेवा करें।
28 इसलिए मैं यह काम पूरा करके और उनको यह चन्दा सौंपकर तुम्हारे पास होता हुआ इसपानिया को जाऊँगा। 29 और मैं जानता हूँ, कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मसीह की पूरी आशीष के साथ आऊँगा।
30 और हे भाइयों; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्मा के प्रेम का स्मरण दिलाकर, तुम से विनती करता हूँ, कि मेरे लिये परमेश्वर से प्रार्थना करने में मेरे साथ मिलकर लौलीन रहो। 31 कि मैं यहूदिया के अविश्वासियों से बचा रहूँ, और मेरी वह सेवा जो यरूशलेम के लिये है, पवित्र लोगों को स्वीकार्य हो। 32 और मैं परमेश्वर की इच्छा से तुम्हारे पास आनन्द के साथ आकर तुम्हारे साथ विश्राम पाऊँ।
33 शान्ति का परमेश्वर तुम सब के साथ रहे। आमीन।
1 मैं तुम से फीबे के लिए, जो हमारी बहन और किंख्रिया की कलीसिया की सेविका है, विनती करता हूँ। 2 कि तुम जैसा कि पवित्र लोगों को चाहिए, उसे प्रभु में ग्रहण करो; और जिस किसी बात में उसको तुम से प्रयोजन हो, उसकी सहायता करो; क्योंकि वह भी बहुतों की वरन् मेरी भी उपकारिणी हुई है।
3 प्रिस्का* और अक्विला को जो यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, नमस्कार। 4 उन्होंने मेरे प्राण के लिये अपना ही सिर दे रखा था और केवल मैं ही नहीं, वरन् अन्यजातियों की सारी कलीसियाएँ भी उनका धन्यवाद करती हैं। 5 और उस कलीसिया को भी नमस्कार जो उनके घर में है। मेरे प्रिय इपैनितुस को जो मसीह के लिये आसिया का पहला फल है, नमस्कार।
6 मरियम को जिस ने तुम्हारे लिये बहुत परिश्रम किया, नमस्कार। 7 अन्द्रुनीकुस और यूनियास को जो मेरे कुटुम्बी हैं, और मेरे साथ कैद हुए थे, और प्रेरितों में नामी हैं, और मुझसे पहले मसीही हुए थे, नमस्कार। 8 अम्पलियातुस को, जो प्रभु में मेरा प्रिय है, नमस्कार।
9 उरबानुस को, जो मसीह में हमारा सहकर्मी है, और मेरे प्रिय इस्तखुस को नमस्कार। 10 अपिल्लेस को जो मसीह में खरा निकला, नमस्कार। अरिस्तुबुलुस के घराने को नमस्कार। 11 मेरे कुटुम्बी हेरोदियोन को नमस्कार। नरकिस्सुस के घराने के जो लोग प्रभु में हैं, उनको नमस्कार। 12 त्रूफैना और त्रूफोसा* को जो प्रभु में परिश्रम करती हैं, नमस्कार। प्रिय पिरसिस को जिस ने प्रभु में बहुत परिश्रम किया, नमस्कार। 13 रूफुस को जो प्रभु में चुना हुआ है, और उसकी माता को जो मेरी भी है, दोनों को नमस्कार। 14 असुंक्रितुस और फिलगोन और हर्मास, पत्रुबास, हिर्मेस और उनके साथ के भाइयों को नमस्कार। 15 फिलुलुगुस और यूलिया और नेर्युस और उसकी बहन, और उलुम्पास और उनके साथ के सब पवित्र लोगों को नमस्कार। 16 आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो: तुम को मसीह की सारी कलीसियाओं की ओर से नमस्कार।
17 अब हे भाइयों, मैं तुम से विनती करता हूँ, कि जो लोग उस शिक्षा के विपरीत जो तुम ने पाई है, फूट डालने, और ठोकर खिलने का कारण होते हैं, उन्हें ताड़ लिया करो; और उनसे दूर रहो। 18 क्योंकि ऐसे लोग हमारे प्रभु मसीह की नहीं, परन्तु अपने पेट की सेवा करते है; और चिकनी चुपड़ी बातों से सीधे सादे मन के लोगों को बहका देते हैं।
19 तुम्हारे आज्ञा मानने की चर्चा सब लोगों में फैल गई है; इसलिए मैं तुम्हारे विषय में आनन्द करता हूँ; परन्तु मैं यह चाहता हूँ, कि तुम भलाई के लिये बुद्धिमान, परन्तु बुराई के लिये भोले बने रहो। 20 शान्ति का परमेश्वर* शैतान को तुम्हारे पाँवों के नीचे शीघ्र कुचल देगा।
हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे। (उत्प. 3:15)
21 तीमुथियुस मेरे सहकर्मी का, और लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस मेरे कुटुम्बियों का, तुम को नमस्कार। 22 मुझ पत्री के लिखनेवाले तिरतियुस का प्रभु में तुम को नमस्कार।
23 गयुस का जो मेरी और कलीसिया का पहुनाई करनेवाला है उसका तुम्हें नमस्कार: इरास्तुस जो नगर का भण्डारी है, और भाई क्वारतुस का, तुम को नमस्कार। 24 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे।
25 अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्थात् यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्थिर कर सकता है, उस भेद* के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा। 26 परन्तु अब प्रगट होकर सनातन परमेश्वर की आज्ञा से भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों के द्वारा सब जातियों को बताया गया है, कि वे विश्वास से आज्ञा माननेवाले हो जाएँ।
27 उसी एकमात्र अद्वैत बुद्धिमान परमेश्वर की यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन।
1 पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा* से यीशु मसीह का प्रेरित होने के लिये बुलाया गया और भाई सोस्थिनेस की ओर से। 2 परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, अर्थात् उनके नाम जो मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिये बुलाए गए हैं; और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करते हैं। 3 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
4 मैं तुम्हारे विषय में अपने परमेश्वर का धन्यवाद सदा करता हूँ, इसलिए कि परमेश्वर का यह अनुग्रह तुम पर मसीह यीशु में हुआ। 5 कि उसमें होकर तुम हर बात में अर्थात् सारे वचन और सारे ज्ञान में धनी किए गए। 6 कि मसीह की गवाही तुम में पक्की निकली।
7 यहाँ तक कि किसी वरदान में तुम्हें घटी नहीं, और तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने की प्रतीक्षा करते रहते हो। 8 वह तुम्हें अन्त तक दृढ़ भी करेगा, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में निर्दोष ठहरो। 9 परमेश्वर विश्वासयोग्य है*; जिस ने तुम को अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाया है। (व्य. 7:9)
10 हे भाइयों, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा विनती करता हूँ, कि तुम सब एक ही बात कहो और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो। 11 क्योंकि हे मेरे भाइयों, खलोए के घराने के लोगों ने मुझे तुम्हारे विषय में बताया है, कि तुम में झगड़े हो रहे हैं।
12 मेरा कहना यह है, कि तुम में से कोई तो अपने आप को “पौलुस का,” कोई “अपुल्लोस का,” कोई “कैफा का,” कोई “मसीह का” कहता है। 13 क्या मसीह बँट गया? क्या पौलुस तुम्हारे लिये क्रूस पर चढ़ाया गया? या तुम्हें पौलुस के नाम पर बपतिस्मा मिला?
14 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, कि क्रिस्पुस और गयुस को छोड़, मैंने तुम में से किसी को भी बपतिस्मा नहीं दिया। 15 कहीं ऐसा न हो, कि कोई कहे, कि तुम्हें मेरे नाम पर बपतिस्मा मिला। 16 और मैंने स्तिफनास के घराने को भी बपतिस्मा दिया; इनको छोड़, मैं नहीं जानता कि मैंने और किसी को बपतिस्मा दिया।
17 क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने को नहीं, वरन् सुसमाचार सुनाने को भेजा है, और यह भी मनुष्यों के शब्दों के ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्थ ठहरे।
18 क्योंकि क्रूस की कथा नाश होनेवालों के निकट मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पानेवालों के निकट परमेश्वर की सामर्थ्य है। 19 क्योंकि लिखा है,
“मैं ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूँगा,
और समझदारों की समझ को तुच्छ कर दूँगा।” (यशा. 29:14)
20 कहाँ रहा ज्ञानवान? कहाँ रहा शास्त्री? कहाँ रहा इस संसार का विवादी? क्या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया? (रोम. 1:22) 21 क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करनेवालों को उद्धार दे।
22 यहूदी तो चिन्ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं, 23 परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियों के निकट मूर्खता है;
24 परन्तु जो बुलाए हुए हैं क्या यहूदी, क्या यूनानी, उनके निकट मसीह परमेश्वर की सामर्थ्य, और परमेश्वर का ज्ञान है। 25 क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता* मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है।
26 हे भाइयों, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए। 27 परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों* को चुन लिया है, कि ज्ञानियों को लज्जित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे।
28 और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को, वरन् जो हैं भी नहीं उनको भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए। 29 ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करने पाए।
30 परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात् धार्मिकता, और पवित्रता, और छुटकारा। (इफि. 1:7, रोम. 8:1) 31 ताकि जैसा लिखा है, वैसा ही हो, “जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।” (2 कुरि. 10:17)
इससे प्रकट होता है कि कुरिन्थ के विश्वासी और पौलुस दोनों ही सोस्थिनेस से परिचित थे। वैकल्पिक अनुवाद: “सोस्थिनेस जिसे तुम और मैं दोनों ही जानते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने उन्हें पवित्र जन होने के लिए बुलाया है”
सब विश्वासियों के साथ। वै.अ. “के साथ”
प्रभु यीशु पौलुस का, कुरिन्थ की कलीसिया का और सब कलीसियाओं का प्रभु है।
कुरिन्थ नगर के विश्वासी
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं पौलुस परमेश्वर को आभार व्यक्त करता हूं”।
“तुम जो मसीह यीशु में परमेश्वर के अनुग्रह के पात्र हो”
संभावित अर्थ है 1) “मसीह ने तुम्हें समृद्ध किया” या 2) “परमेश्वर ने तुम्हे संपन्न बनाया है”।
“अनेक आत्मिक आशिषों से समृद्ध किया”
परमेश्वर ने तुम्हें अनेक प्रकार से मनुष्यों में परमेश्वर का वचन सुनाने योग्य किया है।
परमेश्वर ने तुम्हें उसका सन्देश अनेक प्रकार से समझने योग्य किया है।
“मसीह का सन्देश”
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम्हारे जीवन स्पष्ट रूप से बदल गए”
“परिणाम स्वरूप”
“तुम्हारे पास हर एक आत्मिक वरदान है”।
संभावित अर्थ हैं 1) “जिस समय परमेश्वर मसीह यीशु को प्रगट करेगा” या 2) “जिस समय हमारा प्रभु यीशु मसीह प्रकट होगा”।
“तुम्हें दोषी ठहराने का परमेश्वर के पास कोई कारण न हो”।
परमेश्वर ने तुम्हें अपने पुत्र, मसीह यीशु की संगति में बुलाया है
“कि तुम परस्पर सामंजस्य में रहो”
“कि तुम में विभाजन न हो”
“एकता में”
परिवार के सदस्य, खलोए के कुटुम्ब के दास आदि सब, उनकी मुखिया एक स्त्री है।
“तुम लोग अलग-अलग गुट बनाकर झगड़ते हो”
पौलुस विभाजन की एक सामान्य मानसिकता व्यक्त कर रहा है
पौलुस तथ्य पर बल दे रहा है कि मसीह विभाजित नहीं है वह एक है। “तुम जैसा व्यवहार करते हो उसके अनुसार मसीह को भी विभाजित करना संभव नहीं है”।
पौलुस इस तथ्य पर बल देना चाहता है कि न पौलुस न अपुल्लोस क्रूस पर चढ़ाया गया, मसीह ही था जो क्रूस पर चढ़ाया गया। "उन्होंने तुम्हारे उद्धार के लिए पौलुस को क्रूस की मृत्यु नहीं दी थी।"
पौलुस इस बात पर बल देता है कि हम सब ने मसीह के नाम में बपतिस्मा पाया है। "तुम्हे पौलुस के नाम में बपतिस्मा नहीं दिया गया है।"
पौलुस कुछ बड़ा चड़ा कर ही कह रहा है कि वह अत्यधिक आभारी है कि उसने कुरिन्थ की कलीसिया में अधिक लोगों को बपतिस्मा नहीं दिया।
वह यहूदी आराधनालय का सरदार था जिसने मसीह को ग्रहण कर लिया था।
वह पौलुस के साथ यात्रा करके आया था।
"मैने अधिक लोगों को बपतिस्मा देने से अपने आप को रोका क्योंकि मैं डरता था कि वे आगे चलकर घमंड से कहे कि मैने उन्हें बपतिस्मा दिया था।"
स्तिफनास के घराने का अभिप्राय है, उसके परिवार के सदस्य और उसके दास
इसका अर्थ है कि बपतिस्मा देना पौलुस की मसीही सेवा का मुख्य लक्ष्य नहीं था।
"केवल मानवीय ज्ञान के शब्द"
वैकल्पिक अनुवाद: "मानवीय ज्ञान मसीह के क्रूस को सामर्थ्य से वंचित न कर दे।"
"मसीह के क्रूसीकरण का प्रचार" या "मसीह की क्रूस पर मृत्यु के बारे में संदेश"(यू.डी.बी.)
"निर्बुद्धि" या "मतिहीन"
नाश होने वालों के निकट - "नाश" का अर्थ है आत्मिक मृत्यु"
"परमेश्वर हम में सामर्थ्य का काम कर रहा है"
ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूंगा - वैकल्पिक अनुवाद: "ज्ञानवानों को उलझन में डाल दूंगा" या "बुद्धिमानों की योजना को पूर्णत: व्यर्थ कर दूंगा"
पौलुस इस बात पर बल दे रहा है कि सच्चे ज्ञानवान मनुष्य कही नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद: सुसमाचार की तुलना में कोई भी मनुष्य, ज्ञानवान नहीं है, चाहे कोई विद्वान हो या विवाद करने वाला हो।
वह व्यक्ति जिसने बहुत अधिक अध्ययन किया हो
वह व्यक्ति जो अपने ज्ञान के आधार पर विवद करता है या जो विवाद करने में दक्ष हो
पौलुस इस प्रश्न द्वारा बल देना चाहता है कि परमेश्वर ने इस संसार के ज्ञान का क्या कर दिया है। वैकल्पिक अनुवाद: "परमेश्वर ने निश्चय ही इस संसार के ज्ञान को मुर्खता ठहरा दिया है" या "परमेश्वर उस संदेश से प्रसन्न हुआ जिसे उन लोगो ने मुर्खता समझा था"(यू.डी.बी.)
इसके संभावित अर्थ है 1) "वे सब जो विश्वास करते है" (UDB) या 2) "जो उस मे विश्वास करते है"
यहाँ "हम" शब्द का अर्थ है पौलुस और अन्य सुसमाचार प्रचारक।
"मसीह के बारे में जो क्रूस पर मर गया था"(यू.डी.बी.)
ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य मार्ग में किसी पत्थर से ठोकर खाता है, यहूदियों के लिए क्रूस पर चढ़ाये गए मसीह के द्वारा उद्धार का संदेश भी ठोकर का कारण है। वैकल्पिक अनुवाद: "अस्वीकार्य" या "रोषकारी"।
“जिन्हें परमेश्वर ने बुलाया”
वैकल्पिक अनुवाद: “हम मसीह की शिक्षा देते हैं “ या “हम मनुष्यों में मसीह का सन्देश सुनाते हैं”।
“मसीह ही है जिसके द्वारा परमेश्वर अपना सामर्थ्य और ज्ञान प्रकट करता है”
यह परमेश्वर के स्वभाव और मनुष्य के स्वभाव में अन्तर है। यद्यपि परमेश्वर मूर्खता करे या दुर्बलता दिखाए तौभी वह मनुष्य के सर्वोत्तम स्वभाव से कहीं अधिक श्रेष्ठ होगी।
“परमेश्वर ने तुम्हें पवित्र जन होने के लिए कैसे बुलाया है”
“तुम में बहुत ही कम”
“मनुष्यों के विचार में” या “भलाई के विषय में मनुष्यों की समझ के अनुसार”
“परिवार के महत्वपूर्ण होने” या “राजसी” होने के द्वारा
परमेश्वर ने उन दीन जनों को चुन लिया जिन्हें यहूदी नगण्य मानते थे कि परमेश्वर की दृष्टि में उन जनमान्य अगुओं का महत्व नगण्य ठहरे।
यह पिछले वाक्य के विचार को दूसरे शब्दों में व्यक्त करना है।
संसार के परित्यक्त जन, वैकल्पिक अनुवाद: “दीन एवं त्यागे हुए लोग”
“जिन्हें मनुष्य अमान्य समझता है” (देखें:Active/Passive)
“उनका महत्व समाप्त कर दे”
“जिन्हें मनुष्य मूल्यवान मानता है” या “जिन्हें मनुष्य खरीदने योग्य या सम्मान के योग्य समझता है”
“परमेश्वर ने चुन लिया”
अर्थात क्रूस पर मसीह का कार्य
“हमारे” में पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को भी समाहित करता है।
“तुम ने मसीह यीशु के द्वारा उद्धार पा लिया है”
“मसीह यीशु ने हम पर स्पष्ट प्रकट कर दिया कि परमेश्वर कितना बुद्धिमान है”। (यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद: “यदि कोई घमण्ड करे तो वह प्रभु की महानता पर घमण्ड करे”
मसीह यीशु ने पौलुस को प्रेरित होने के लिए बुलाया था।
पौलुस कामना करता है कि हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से इस कलीसिया को अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
परमेश्वर ने उन्हें सारे वचन और सारे ज्ञान में धनी बनाया है।
उन्हें किसी भी आत्मिक वरदान में घटी नहीं थी।
वह तुम्हें अन्त तक दृढ़ भी करेगा, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में निर्दोष ठहरो।
पौलुस उनसे आग्रह करता है कि वे सब एक मन और एकमत होकर रहें और उनमें फूट न हो और एक चित्त तथा एक ही उद्देश्य के निमित्त संगठित होकर रहें।
खलोए के घराने के लोगों ने पौलुस को समाचार दिया था कि उनमें झगड़े हो रहे थे।
पौलुस के कहने का अर्थ था कि उनमें से कुछ लोग कहते थे कि वे पौलुस के दल के हैं; कुछ कहते थे कि वे अपुल्लोस के दल के हैं, तो कुछ कैफा के दल के तो कुछ मसीह के हैं।
पौलुस परमेश्वर का धन्यवाद करता है कि ऐसा समय नहीं आया कि कोई कहे कि उसने पौलुस के नाम में बपतिस्मा लिया है।
मसीह ने पौलुस को सुसमाचार सुनाने भेजा था।
क्रूस का सन्देश नाश होने वालों के लिए मूर्खता है।
यह उद्धार पाने वालों के लिए परमेश्वर का सामर्थ्य है।
परमेश्वर ने सांसारिक ज्ञान को मूर्खता बना दिया है।
परमेश्वर इससे प्रसन्न हुआ क्योंकि संसार ने अपने ज्ञान के कारण परमेश्वर को नहीं जाना।
परमेश्वर ने ऐसे अनेकों को नहीं बुलाया है।
परमेश्वर ने ऐसा इसलिये किया कि ज्ञानवान और बलवानों को लज्जित करे।
परमेश्वर ने नीचों और तुच्छों को वरन् जो हैं भी नहीं उनको भी चुन लिया।
वे मसीह में थे क्योंकि परमेश्वर ने ऐसा किया।
मसीह परमेश्वर की ओर से हमारे लिए ज्ञान ठहरा अर्थात धार्मिकता, और पवित्रता और छुटकारा।
जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।
1 हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। 2 क्योंकि मैंने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन् क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूँ।
3 और मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ तुम्हारे साथ रहा। 4 और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं*; परन्तु आत्मा और सामर्थ्य का प्रमाण था, 5 इसलिए कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर हो।
6 फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैं परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमों का ज्ञान नहीं; 7 परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया।
8 जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। (प्रेरि. 13:27) 9 परन्तु जैसा लिखा है,
“जो आँख ने नहीं देखी*,
और कान ने नहीं सुनी,
और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं,
जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं।” (यशा. 64:4)
10 परन्तु परमेश्वर ने उनको अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन् परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जाँचता है। 11 मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उसमें है? वैसे ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा। (नीति. 20:27)
12 परन्तु हमने संसार की आत्मा* नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं। 13 जिनको हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु पवित्र आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मा, आत्मिक ज्ञान से आत्मिक बातों की व्याख्या करती है।
14 परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उसकी दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उनकी जाँच आत्मिक रीति से होती है। 15 आत्मिक* जन सब कुछ जाँचता है, परन्तु वह आप किसी से जाँचा नहीं जाता।
16 “क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखाए?”
परन्तु हम में मसीह का मन है। (यशा. 40:13)
“विवश कराने वाले उत्तम शब्दों के साथ नहीं”
पौलुस का मुख्य विचार मानवीय ज्ञान की अपेक्षा मसीह के क्रूसीकरण पर था। “और किसी बात को न जानूं” अर्थात संपूर्ण एकाग्रता मसीह पर ही
“जब तुम्हारे मध्य रहा”
संभावित अर्थ हैं 1) “शारीरिक दुर्बलता”(देखें यू.डी.बी.), 2) “अपूर्ण शक्ति के बोध के साथ”
आश्वस्त कराने वाली या मनुष्य को कुछ करने या विश्वास करने के लिए विवश करने वाली बातें।
पौलुस का प्रचार और शुभ सन्देश
“ज्ञान की बातें सुनाते है”
वैकल्पिक अनुवाद:“परिपक्व विश्वासियों में”
“हमारी भावी महिमा सुनिश्चित करने के लिए”
“यीशु महिमामय प्रभु”
यहाँ मनुष्यत्व की इन तीन ईन्द्रीयों पर बल देने का अभिप्राय यह है कि कोई भी मनुष्य परमेश्वर द्वारा तैयार की गई बातों को कभी समझ नहीं पाया है।
परमेश्वर ने अपने प्रेमियों के लिए स्वर्ग में अद्भुत आश्चर्य की बातें रखी है
यीशु और उसके क्रूस के सत्य
पौलुस इस प्रश्न द्वारा इस तथ्य पर बल दे रहा है कि विचार करनेवाले को छोड़ और कोई उसके विचार नहीं जान सकता है या मनुष्य की अपनी आत्मा के अतिरिक्त कोई नहीं जो उसके विचारों को जान पाए”।
ध्यान दें, “आत्मा” मनुष्य की अशुद्ध एवं दुष्ट आत्मा का संदर्भ है जो परमेश्वर के आत्मा से भिन्न है।
“हम” अर्थात पौलुस एवं उसके पाठक
“परमेश्वर ने हमें बिना मोल दिया है” या “परमेश्वर ने हमें मुझ में दिया है”।
पवित्र आत्मा अपने ही शब्दों में मिलकर विश्वासी तक परमेश्वर का सत्य पहुंचाता है और उन्हें अपना ज्ञान प्रदान करता है।
अविश्वासी मनुष्य जिसने आत्मा नहीं पाया है
“क्योंकि इन बातों को स्वीकरण आत्मा की सहायता की आवश्यकता है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “आत्मा पाया हुआ विश्वासी”
प्रभु का मन किसने जाना है कि उसे सिखाए पौलुस इस प्रश्न के द्वारा इस तथ्य पर बल दे रहा है कि प्रभु का मन किसी ने नहीं जाना है? वैकल्पिक अनुवाद:“प्रभु का मन कोई नहीं जान सकता। अतः कोई उसे ऐसी बात नहीं सिखा सकता जो वह पहले से नहीं जानता है”।
पौलुस परमेश्वर का भेद सुनाने के लिए शब्दों और ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया था।
भण्डारियों को विश्वास योग्य होना चाहिये।
यह इसलिए कि उनका विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं परन्तु परमेश्वर के सामर्थ्य पर निर्भर हो।
उन्होंने गुप्त सत्यों में निहित परमेश्वर के ज्ञान को भेद की नीति पर बताया। गुप्त ज्ञान जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिए ठहराया।
यदि हाकिम उस ज्ञान को जान पाते तो वे तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते।
परमेश्वर ने आत्मा के द्वारा उन पर यह प्रकट किया था।
आत्मा परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।
उन्होंने आत्मा पाया जो परमेश्वर की ओर से है जिससे कि वे उन बातों को समझें जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
शारीरिक मनुष्य परमेश्वर की आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता है क्योंकि वे उसकी दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उनकी जांच आत्मिक रीति से होती है।
पौलुस कहता है कि उनमें मसीह का मन है।
1 हे भाइयों, मैं तुम से इस रीति से बातें न कर सका, जैसे आत्मिक लोगों से परन्तु जैसे शारीरिक लोगों से, और उनसे जो मसीह में बालक हैं। 2 मैंने तुम्हें दूध पिलाया*, अन्न न खिलाया; क्योंकि तुम उसको न खा सकते थे; वरन् अब तक भी नहीं खा सकते हो,
3 क्योंकि अब तक शारीरिक हो। इसलिए, कि जब तुम में ईर्ष्या और झगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं? और मनुष्य की रीति पर नहीं चलते? 4 इसलिए कि जब एक कहता है, “मैं पौलुस का हूँ,” और दूसरा, “मैं अपुल्लोस का हूँ,” तो क्या तुम मनुष्य नहीं?
5 अपुल्लोस कौन है? और पौलुस कौन है? केवल सेवक, जिनके द्वारा तुम लोगों ने विश्वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया।
6 मैंने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्वर ने बढ़ाया। 7 इसलिए न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर जो बढ़ानेवाला है।
8 लगानेवाला और सींचनेवाला दोनों एक हैं; परन्तु हर एक व्यक्ति अपने ही परिश्रम के अनुसार अपनी ही मजदूरी पाएगा। 9 क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्वर की खेती और परमेश्वर की रचना हो। 10 परमेश्वर के उस अनुग्रह के अनुसार, जो मुझे दिया गया, मैंने बुद्धिमान राजमिस्त्रि के समान नींव डाली, और दूसरा उस पर रद्दा रखता है। परन्तु हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह उस पर कैसा रद्दा रखता है। 11 क्योंकि उस नींव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है, कोई दूसरी नींव नहीं डाल सकता। (यशा. 28:16)
12 और यदि कोई इस नींव पर सोना या चाँदी या बहुमूल्य पत्थर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखे, 13 तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिए कि आग के साथ प्रगट होगा और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है।
14 जिसका काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा। 15 और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो वह हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते-जलते।
16 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में वास करता है? 17 यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नाश करेगा तो परमेश्वर उसे नाश करेगा; क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है, और वह तुम हो।
18 कोई अपने आप को धोखा न दे। यदि तुम में से कोई इस संसार में अपने आप को ज्ञानी समझे, तो मूर्ख बने कि ज्ञानी हो जाए। 19 क्योंकि इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है, जैसा लिखा है,
“वह ज्ञानियों को उनकी चतुराई में फँसा देता है,” (अय्यू. 5:13)
20 और फिर, “प्रभु ज्ञानियों के विचारों को जानता है, कि व्यर्थ हैं।” (भज. 94:11)
21 इसलिए मनुष्यों पर कोई घमण्ड न करे, क्योंकि सब कुछ तुम्हारा है। 22 क्या पौलुस, क्या अपुल्लोस, क्या कैफा, क्या जगत, क्या जीवन, क्या मरण, क्या वर्तमान, क्या भविष्य, सब कुछ तुम्हारा है, 23 और तुम मसीह के हो, और मसीह परमेश्वर का है।
आत्मा के सामर्थ्य से पूर्ण लोगों से
अपनी अभिलाषाओं के अनुसार चलने वालों में से
कुरिन्थ के विश्वासियों की उन बालकों से तुलना की गई है जो आयु में बहुत कम और अबोध हैं, जैसे मसीह में बहुत कम आयु के विश्वासी।
कुरिन्थ के विश्वासी नवजात शिशुओं के सदृश्य केवल दूध जैसे सत्य ही को ग्रहण कर सकते थे। वे विकसित बालकों की नाई ठोस आहार सदृश्य सत्य को अन्तर्ग्रहण नहीं कर सकते थे।
“तुम मसीह के अनुसरण की कठिन बातों को ग्रहण करने योग्य नहीं हो”
अब तब पापी या सांसारिक अभिलाषाओं के दास हो
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को उनकी पापी प्रकृति के लिए झिड़कता है। “तुम अपने पापी स्वभाव के अनुसार जीवन जी रहे हो”।
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को मानवीय मानकों के अनुसार जीवन निर्वाह हेतु झिड़कता है। वैकल्पिक अनुवाद: “तुम मानवीय मानकों पर जीवन आचरण रखते हो”।
पौलुस उन्हें पवित्र आत्मा रहित मनुष्यों का सा जीवन जीने के लिए झिड़कता है।
पौलुस जिस बात पर बल दे रहा है, वह है कि वह और अपुल्लोस सुसमाचार के मूल स्रोत नहीं हैं, अतः विश्वासियों के प्रचारक समूहों को सुसमाचार का स्रोत न बनाए। वैकल्पिक अनुवाद:"यह उचित नहीं कि विश्वासी पौलुस या अपुल्लोस के कारण अलग-अलग दल बनाकर सुसमाचार को विभाजित करे"
पौलुस स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर देता है कि वे दोनों ही परमेश्वर के सेवक हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “तुम ने पौलुस और अपुल्लोस की शिक्षाओं द्वारा शुभ सन्देश में विश्वास किया है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने पौलुस को और अपुल्लोस को अपना-अपना काम दिया है”।
परमेश्वर के ज्ञान की तुलना एक बीज से की गई है, जिसे विकसित होने के लिए बोना आवश्यक है।
जैसे बीज को विकसित होने के लिए पानी की आवश्यकता होती है वैसे ही विश्वास की उन्नति करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है।
जिस प्रकार पौधे विकसित होकर बढ़ते हैं उसी प्रकार विश्वास और परमेश्वर का ज्ञान विकसित होकर गहरा और अधिक दृढ़ होता है।
पौलुस बल देकर कह रहा है कि विश्वासियों के आत्मिक विकास के लिए न तो उस और न ही अप्पुलोस को श्रेय जाता है परन्तु केवल परमेश्वर ही का कार्य है।
लगाए और सींचना दोनों एक ही काम हैं जिसकी तुलना पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया में मसीह सेवा निमित्त उसके और अप्पुलोस के कामों से करता है।
मजदूर की मजदूरी उसके काम के अनुसार दी जाती है।
पौलुस और अप्पुलोस, कुरिन्थ की कलीसिया नहीं
परमेश्वर के सहकर्मी हैं पौलुस अप्पुलोस को और स्वयं को परमेश्वर का सहकर्मी मानता है साथ काम करने वाले।
परमेश्वर कुरिन्थ की कलीसिया की बागवानी करता है जैसे मनुष्य बगीचे की बागवानी करके उसे फल देने योग्य बनाते हैं।
परमेश्वर ने कुरिन्थ की कलीसिया को रूप देकर रचा है जैसे मनुष्य एक भवन का निर्माण करता है
“उस दायित्व के अनुसार जो परमेश्वर ने मुझे अनुग्रह करके दिया”।
पौलुस विश्वास और मसीह यीशु में उद्धार की अपनी शिक्षा की तुलना एक भवन की नींव डालने से करता है।
दूसरा प्रचारक इन विश्वासियों को आत्मिक सहायता प्रदान करते हुए कलीसिया में सुसमाचार प्रचार का निर्माण ही करता है।
सामान्य रूप में परमेश्वर के सेवक। वैकल्पिक अनुवाद:“परमेश्वर की सेवा करनेवाला हर एक मनुष्य”
नींव पर निर्माण हो जाने के बाद वह बदली नहीं जा सकती है। यहां मसीह रूपी नींव पर कुरिन्थ की कलीसिया का निर्माण जो पौलुस द्वारा किया गया है। “मुझ पौलुस ने जो नींव डाली उसके अतिरिक्त”
किसी भवन का नवनिर्माण सामग्री की तुलना उन आत्मिक बातो से की जा रही है जिनके द्वारा मनुष्य के संपूर्ण जीवन का व्यवहार एवं कार्य ढाले जाते हैं। “मनुष्य बहुमूल्य स्थाई सामग्री काम में लेता है या घटिया ज्वलनशील सामग्री काम में लेता है”
“मूल्यवान पत्थर”
“जिस प्रकार दिन का प्रकाश निर्माण में काम करने वाले के परिश्रम को प्रकट करता है उसी प्रकार परमेश्वर की उपस्थिति का प्रकाश मनुष्य के परिश्रम एवं कार्य की गुणवत्ता को प्रकट करेगा। “दिन का प्रकाश उसके काम की गुणवत्ता को प्रकट करेगा”।
“जिस प्रकार दिन का प्रकाश निर्माण में काम करने वाले के परिश्रम को प्रकट करता है उसी प्रकार परमेश्वर की उपस्थिति का प्रकाश मनुष्य के परिश्रम एवं कार्य की गुणवत्ता को प्रकट करेगा।वैकल्पिक अनुवाद “दिन का प्रकाश उसके काम की गुणवत्ता को प्रकट करेगा”।
“नष्ट न होगा” या “ज्यों का त्यों रहेगा”। (यू.डी.बी.)
“यदि आग किसी का काम भस्म कर देगी” या “किसी का काम आग में जल कर नष्ट हो गया”
ये शब्द उस मनुष्य से संदर्भित है जो सेवा करता है, वैकल्पिक अनुवाद “वह व्यक्ति” या “वह”(यू.डी.बी.)
“वह उस काम से वंचित हो जाएगा और उस प्रतिफल से भी जो अग्नि परीक्षा के बाद उसके काम के स्थिर रहने पर उसे मिलता, परन्तु परमेश्वर उसे बचा लेगा”
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम परमेश्वर का मन्दिर हो और परमेश्वर की आत्मा तुम में वास करता है”।
“नष्ट करेगा” या “क्षतिग्रस्त करेगा”
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर उसका सर्वनाश करेगा क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है और तुम भी पवित्र हो”।
कोई इस भ्रम में न रहे कि वही इस संसार में बुद्धिमान है
“इस समय”
“वह इस संसार द्वारा निर्धारित मूर्खता का अपनाए कि परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त करे”।
“वह ज्ञानियों को उनकी चतुराई में फंसा देता है और उन्हीं की योजनाओं को उनके लिए जाल बना देता है।
वैकल्पिक अनुवाद: “जो सोचते हैं कि वे बुद्धिमान है परन्तु परमेश्वर उनकी योजनाओं को जानता है”। या “परमेश्वर बुद्धिमानों की सब योजनाओं को सुनता है”। (यू.डी.बी.)
“व्यर्थ”, वैकल्पिक अनुवाद: “निकम्मी”, या “निरर्थक”
पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया को निर्देश दे रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “घमण्ड करना छोड़ दो कि हमारा अगुआ दूसरे से अधिक ज्ञानी है”।
“अत्यधिक गर्व करना” कुरिन्थ की कलीसिया में विभाजित दल मसीह यीशु की उपासना की अपेक्षा अपने नायकों पर गर्व करते थे।
“तुम मसीह के हो और मसीह परमेश्वर का है”
पौलुस उनसे आत्मिक मनुष्यों की नाईं बातें नहीं कर सकता था क्योंकि वे शारीरिक थे, उनमें डाह और झगड़े थे।
जिनके माध्यम से कुरिन्थ की कलीसिया ने मसीह में विश्वास किया वे परमेश्वर के सहकर्मी और सेवक थे।
परमेश्वर बढ़ाता है।
मसीह यीशु नींव है।
उसके काम दिन के प्रकाश में और आग से प्रकट होंगे।
आग हर एक के कामों की गुणकारिता प्रकट करेगी।
वह प्रतिफल पायेगा।
वह मनुष्य हानि तो उठाएगा पर वह आप बच जायेगा परन्तु जलते-जलते।
हम परमेश्वर के मन्दिर हैं और परमेश्वर का आत्मा हममें वास करता है।
परमेश्वर के मंदिर को नष्ट करने वालों को परमेश्वर नष्ट करेगा।
पौलुस कहता है, मनुष्य ".....मूर्ख बने कि ज्ञानी हो जाये।"
प्रभु ज्ञानियों के विचारों को जानता है कि वे व्यर्थ हैं।
उसने उनसे कहा कि घमण्ड करना छोड़ दें, "क्योंकि सब कुछ तुम्हारा है" क्योंकि "तुम मसीह के हो और मसीह परमेश्वर का है"।
1 मनुष्य हमें मसीह के सेवक और परमेश्वर के भेदों के भण्डारी समझे। 2 फिर यहाँ भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि विश्वासयोग्य निकले।
3 परन्तु मेरी दृष्टि में यह बहुत छोटी बात है, कि तुम या मनुष्यों का कोई न्यायी मुझे परखे, वरन् मैं आप ही अपने आप को नहीं परखता। 4 क्योंकि मेरा मन मुझे किसी बात में दोषी नहीं ठहराता, परन्तु इससे मैं निर्दोष नहीं ठहरता, क्योंकि मेरा परखनेवाला प्रभु है। (भज. 19:12)
5 इसलिए जब तक प्रभु न आए, समय से पहले किसी बात का न्याय न करो: वही तो अंधकार की छिपी बातें* ज्योति में दिखाएगा, और मनों के उद्देश्यों को प्रगट करेगा, तब परमेश्वर की ओर से हर एक की प्रशंसा होगी।
6 हे भाइयों, मैंने इन बातों में तुम्हारे लिये अपनी और अपुल्लोस की चर्चा दृष्टान्त की रीति पर की है, इसलिए कि तुम हमारे द्वारा यह सीखो,
कि लिखे हुए से आगे न बढ़ना,
और एक के पक्ष में और दूसरे के विरोध में गर्व न करना। 7 क्योंकि तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है? और तेरे पास क्या है जो तूने (दूसरे से) नहीं पाया और जब कि तूने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है, कि मानो नहीं पाया?
8 तुम तो तृप्त हो चुके; तुम धनी हो चुके, तुम ने हमारे बिना राज्य किया; परन्तु भला होता कि तुम राज्य करते कि हम भी तुम्हारे साथ राज्य करते। 9 मेरी समझ में परमेश्वर ने हम प्रेरितों को सब के बाद उन लोगों के समान ठहराया है, जिनकी मृत्यु की आज्ञा हो चुकी हो; क्योंकि हम जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिये एक तमाशा ठहरे हैं।
10 हम मसीह के लिये मूर्ख है*; परन्तु तुम मसीह में बुद्धिमान हो; हम निर्बल हैं परन्तु तुम बलवान हो। तुम आदर पाते हो, परन्तु हम निरादर होते हैं। 11 हम इस घड़ी तक भूखे-प्यासे और नंगे हैं, और घूसे खाते हैं और मारे-मारे फिरते हैं;
12 और अपने ही हाथों के काम करके परिश्रम करते हैं। लोग बुरा कहते हैं, हम आशीष देते हैं; वे सताते हैं, हम सहते हैं। 13 वे बदनाम करते हैं, हम विनती करते हैं हम आज तक जगत के कूड़े और सब वस्तुओं की खुरचन के समान ठहरे हैं। (विला. 3:45)
14 मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये ये बातें नहीं लिखता, परन्तु अपने प्रिय बालक जानकर तुम्हें चिताता हूँ। 15 क्योंकि यदि मसीह में तुम्हारे सिखानेवाले दस हजार भी होते, तो भी तुम्हारे पिता बहुत से नहीं, इसलिए कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ। 16 इसलिए मैं तुम से विनती करता हूँ, कि मेरी जैसी चाल चलो।
17 इसलिए मैंने तीमुथियुस को जो प्रभु में मेरा प्रिय और विश्वासयोग्य पुत्र है, तुम्हारे पास भेजा है, और वह तुम्हें मसीह में मेरा चरित्र स्मरण कराएगा, जैसे कि मैं हर जगह हर एक कलीसिया में उपदेश करता हूँ। 18 कितने तो ऐसे फूल गए हैं, मानो मैं तुम्हारे पास आने ही का नहीं।
19 परन्तु प्रभु चाहे तो मैं तुम्हारे पास शीघ्र ही आऊँगा, और उन फूले हुओं की बातों को नहीं, परन्तु उनकी सामर्थ्य को जान लूँगा। 20 क्योंकि परमेश्वर का राज्य बातों में नहीं, परन्तु सामर्थ्य में है। 21 तुम क्या चाहते हो? क्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊँ या प्रेम और नम्रता की आत्मा के साथ?
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि हम भण्डारी हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “हमारे लिए अनिवार्य है कि”
पौलुस मनुष्य के न्याय और परमेश्वर के न्याय में तुलना कर रहा है। परमेश्वर मनुष्य का न्याय करता है तब उसके सामने मनुष्य द्वारा किया गया न्याय कोई अर्थ नहीं रखता है।
वैकल्पिक अनुवाद: “मैंने अपने ऊपर कोई दोष लगाया गया नहीं सुना है”।
दोष न होना मेरी निर्दोषिता को सिद्ध नहीं करता है। केवल प्रभु जानता है कि मैं निर्दोष हूं या दोषी।
प्रभु जब आएगा तक वह न्याय करेगा, हमें न्याय करने की आवश्यकता नहीं है
प्रभु के पुनः आगमन तक
“मनुष्यों के आन्तरिक उद्देश्यों को”
परमेश्वर मनुष्य के मन के विचार और उद्देश्यों को सामने लाएगा। प्रभु के समक्ष कुछ भी छिपा नहीं है।
”तुम्हारे लाभ के लिए“
“धर्मशास्त्र में जो लिखा है उसके विपरीत कुछ न करना”
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को झिड़क रहा है क्योंकि वे सोचते थे कि पौलुस या अप्पुलोस द्वारा शुभ सन्देश सुनने के कारण वे दूसरों से अधिक अच्छे हैं। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम अन्य मनुष्यों से श्रेष्ठ नहीं”।
पौलुस बल देकर कहता है कि उनके पास जो है वह परमेश्वर ने उन्हें अनर्जित दिया है, वैकल्पिक अनुवाद, “तुम्हारे पास जो कुछ भी है, वह परमेश्वर ने तुम्हें दिया है”
पौलुस उन्हें झिड़क रहा है कि क्योंकि वे अपनी सम्पदा पर घमण्ड करते थे, “तुम्हें घमण्ड करने का अधिकार नहीं है” या “घमण्ड कभी नहीं करना”
पौलुस उपहास द्वारा अपनी बात समझाता है
परमेश्वर ने हम प्रेरितों को.... एक तमाशा ठहरे परमेश्वर दो प्रकार से व्यक्त करता है कि परमेश्वर ने संसार में प्रेरितों का प्रदर्शन कैसे किया।
रोमी सैनिक जुलूस के अन्त में बन्दियों को मृत्युदण्ड से पूर्व अपमानित किया जाता था वैसे ही परमेश्वर ने प्रेरितों के साथ किया है।
परमेश्वर ने प्रेरितों को मृत्युदण्ड प्राप्त मनुष्यों के सदृश्य प्रदर्शन में रख दिया है।
अलौकिक और लौकिक दोनों के लिए
पौलुस संसारिक दृष्टिकोण और मसीह में विश्वास के मसीही दृष्टिकोण में विषमता दर्शाता है।
मसीह में विश्वास करने के दृष्टिकोण और संसारिक दृष्टिकोण की विषमता पौलुस प्रकट करता है
“मनुष्य तुम कुरिन्थवासियों को सम्मान देते है”
“मनुष्य हम प्रेरितों का अनादर करते हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “अब तक” या “आज भी”
वैकल्पिक अनुवाद: “हमें कठोरता से पीटा जाता है”
“जब लोग हमारी निन्दा करते हैं तब हम उन्हें आशीर्वाद देते हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “ठट्ठा” संभवतः “अपशब्द” या “कोसते हैं” (यू.डी.बी.)
“जब मनुष्य हमें सताते हैं”
“जब लोग अनुचित रूप से हमें बुरा करने वाला कहते हैं”
हम आज तक जगत का कूड़ा “हम तो हो ही गए है और लोग हमें आज तक संसार का कूड़ा कहते है”।
पौलुस उनके अभिमानी स्वभाव को झिड़कने पर ध्यान देता है
“मैं तुम्हारे मध्य उपस्थित होऊंगा”
वैकल्पिक अनुवाद: “शब्दों का जाल नहीं है” या “तुम्हारे कहने ही से नहीं है”। (यू.डी.बी.)
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को उनकी चूक पर झिड़कते हुए अन्तिम बार आग्रह कर रहा है। “मुझे बताओ कि तुम अब क्या कहते हो कि किया जाए”।
पौलुस उनसे कह रहा है कि जब उनके मध्य आए तो दो से एक व्यवहार करे। “क्या तुम चाहते हो कि जब मैं आऊं तो कठोरता के साथ शिक्षा दूं या तुम चाहते हो कि तुम से तुम्हारे साथ प्रेम का सा नम्रता का व्यवहार करूं”?
वैकल्पिक अनुवाद: “दया” या “कोमलता”
वे उन्हें सेवक और परमेश्वर के भेद के भण्डारी समझें।
पौलुस कहता है कि प्रभु उसका न्याय करता है।
वह अंधकार की बातों को प्रकाश में लाकर मन के उद्देश्यों को उजागर करेगा।
पौलुस ने कुरिन्थ के विश्वासियों के लिए यह उदाहरण दिया कि वे उनसे सीखें कि लिखे हुए से आगे नहीं बढ़ना चाहिये, कि एक के पक्ष में और दूसरे के विरोध में गर्व न करें।
पौलुस कहता है, "भला होता कि राज्य करते कि हम भी तुम्हारे साथ राज्य करते।"
पौलुस कहता है, "हम मसीह के लिए मूर्ख हैं परन्तु तुम मसीह में बुद्धिमान हो, हम निर्बल हैं परन्तु तुम बलवान हो, तुम आदर पाते हो परन्तु हम निरादर होते हैं।"
पौलुस ने कहा कि वे भूखे, प्यासे और नंगे रहे, घूसे खाते रहे और मारे-मारे फिरते रहे।
जब उनकी निन्दा की गई तो उन्होंने आशिष दी, उन्हें सताया गया तो उन्होंने सहन किया, उन्हें बदनाम किया गया तो उन्होंने विनती की।
उसने उन्हें प्रिय बालकों की नाईं सुधारने के लिए यह पत्र लिखा।
पौलुस उनसे कहता है कि उसकी सी चाल चलें।
पौलुस ने तीमुथियुस को कुरिन्थ भेजा कि उन्हें मसीह में पौलुस का जो चरित्र है उसका स्मरण कराए।
उनमें से कुछ तो ऐसे घमण्डी हो गए थे कि मानो पौलुस वहाँ कभी नहीं जाएगा।
परमेश्वर का राज्य सामर्थ्य में है।
1 यहाँ तक सुनने में आता है, कि तुम में व्यभिचार होता है, वरन् ऐसा व्यभिचार जो अन्यजातियों में भी नहीं होता, कि एक पुरुष अपने पिता की पत्नी को रखता है। (लैव्य. 18:8, व्य. 22:30) 2 और तुम शोक तो नहीं करते, जिससे ऐसा काम करनेवाला तुम्हारे बीच में से निकाला जाता, परन्तु घमण्ड करते हो।
3 मैं तो शरीर के भाव से दूर था, परन्तु आत्मा के भाव से तुम्हारे साथ होकर, मानो उपस्थिति की दशा में ऐसे काम करनेवाले के विषय में न्याय कर चुका हूँ। 4 कि जब तुम, और मेरी आत्मा, हमारे प्रभु यीशु की सामर्थ्य के साथ इकट्ठे हों, तो ऐसा मनुष्य, हमारे प्रभु यीशु के नाम से। 5 शरीर के विनाश के लिये शैतान को सौंपा जाए, ताकि उसकी आत्मा प्रभु यीशु के दिन में उद्धार पाए।
6 तुम्हारा घमण्ड करना अच्छा नहीं; क्या तुम नहीं जानते, कि थोड़ा सा ख़मीर* पूरे गुँधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है। 7 पुराना ख़मीर निकालकर, अपने आप को शुद्ध करो कि नया गूँधा हुआ आटा बन जाओ; ताकि तुम अख़मीरी हो, क्योंकि हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है। 8 इसलिए आओ हम उत्सव में आनन्द मनायें, न तो पुराने ख़मीर से और न बुराई और दुष्टता के ख़मीर से, परन्तु सिधाई और सच्चाई की अख़मीरी रोटी से।
9 मैंने अपनी पत्री में तुम्हें लिखा है*, कि व्यभिचारियों की संगति न करना। 10 यह नहीं, कि तुम बिलकुल इस जगत के व्यभिचारियों, या लोभियों, या अंधेर करनेवालों, या मूर्तिपूजकों की संगति न करो; क्योंकि इस दशा में तो तुम्हें जगत में से निकल जाना ही पड़ता।
11 मेरा कहना यह है; कि यदि कोई भाई कहलाकर, व्यभिचारी, या लोभी, या मूर्तिपूजक, या गाली देनेवाला, या पियक्कड़, या अंधेर करनेवाला हो, तो उसकी संगति मत करना; वरन् ऐसे मनुष्य के साथ खाना भी न खाना। 12 क्योंकि मुझे बाहरवालों का न्याय करने से क्या काम*? क्या तुम भीतरवालों का न्याय नहीं करते? 13 परन्तु बाहरवालों का न्याय परमेश्वर करता है:
इसलिए उस कुकर्मी को अपने बीच में से निकाल दो।
“अन्यजाति लोग भी ऐसा व्यवहार स्वीकार नहीं करते हैं”।
“यौन संबन्ध रखता है”
उसके पिता की पत्नी जो संभवतः उसकी माता नहीं है
यह प्रभावोत्पादक प्रश्न उन्हें झिड़कने के लिए है, “इसकी अपेक्षा तुम्हें क्या शोक नहीं करना चाहिए”?
“उसे तुम अपनी संगति से बहिष्कृत कर दो”
पौलुस के मन में सदैव उनका विचार था। “मैं अपने विचारों में तुम्हारे मध्य था”।
“मैंने उसे दोषी पाया है”
“सभा करें”
मसीह यीशु की आराधना में एकत्र होने के लिए यह एक मुहावरा है।
उस मनुष्य को परमेश्वर के लोगों से अलग कर दिया जाए कि वह शैतान के राज्य में वास करे, कलीसिया के बाहर के संसार में।
कि वह रोग ग्रस्त हो जाए, परमेश्वर से पाप का दण्ड पाए।
जिस प्रकार कि थोड़ा सा खमीर पूरे गूंधे हुए आटे को खमीर कर देता है उसी प्रकार एक छोटा पाप भी संपूर्ण मसीही सहभागिता को दूषित कर देता है”।
“प्रभु परमेश्वर ने मसीह यीशु की बलि चढ़ाई”
जिस प्रकार फसह का मेमना इस्राएल के पापों को ढांप देता था विश्वास के द्वारा प्रतिवर्ष उसी प्रकार मसीह की मृत्यु मसीह में विश्वास करनेवालों के पाप अनन्तकाल के लिए ढांप देती है।
वे लोग जो मसीह में विश्वास का दावा करके ऐसी व्यवस्था करते हैं।
अविश्वासी जो अनैतिक जीवन जी रहें हैं।
“लालची लोग” या “दूसरों के पास जो है उसकी लालसा करते है”।
अंधेर करने वालों अर्थात वे लोग जो पैसे या सम्पदा के लिए धोखा करते हैं।
संसार में ऐसे व्यवहार से बचा कोई स्थान नहीं है, वैकल्पिक अनुवाद: “इससे बचने के लिए तुम्हें सब मनुष्यों से बचना होगा”
जो स्वयं को मसीह का विश्वासी कहे
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं कलीसिया से बाहर के मनुष्य का न्याय नहीं करता हूं”।
“तुम्हें कलीसिया के सदस्यों का न्याय करना है”। (देखे: )
पौलुस को समाचार मिला था कि वहां व्यभिचार था, एक मनुष्य ने अपने पिता की पत्नी को रखा था।
उसने अपने पिता की पत्नी के साथ पाप किया उसे कलीसिया से निकाल दिया जाए।
जब कुरिन्थ की कलीसिया प्रभु यीशु के नाम में एकत्र हो तब वे उस पाप करने वाले मनुष्य को देह के विनाश हेतु शैतान को सौंप दें जिससे कि प्रभु के दिन के लिए उसकी आत्मा बच जाए।
पौलुस उनकी तुलना खमीर से करता है।
पौलुस अखमीरी रोटी को विश्वासयोग्यता और सत्य की उपमा स्वरूप काम में लेता है।
पौलुस ने उन्हें लिखा कि व्यभिचारियों से संबन्ध न रखें।
पौलुस का अभिप्राय संसार के भौतिक लोगों से नहीं था क्योंकि ऐसे में तो उन्हें संसार से बाहर चले जाना होगा।
पौलुस के कहने का अर्थ क्या था कि कुरिन्थ के विश्वासी किसकी संगति न करें।
उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे कलीसिया के सदस्यों का न्याय करें।
बाहर वालों का न्याय परमेश्वर करता है।
1 क्या तुम में से किसी को यह साहस है, कि जब दूसरे के साथ झगड़ा* हो, तो फैसले के लिये अधर्मियों के पास जाए; और पवित्र लोगों के पास न जाए? 2 क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र लोग* जगत का न्याय करेंगे? और जब तुम्हें जगत का न्याय करना है, तो क्या तुम छोटे से छोटे झगड़ों का भी निर्णय करने के योग्य नहीं? (दानि. 7:22) 3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? तो क्या सांसारिक बातों का निर्णय न करे?
4 यदि तुम्हें सांसारिक बातों का निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं? 5 मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये यह कहता हूँ। क्या सचमुच तुम में से एक भी बुद्धिमान नहीं मिलता, जो अपने भाइयों का निर्णय कर सके? 6 वरन् भाई-भाई में मुकद्दमा होता है, और वह भी अविश्वासियों के सामने।
7 सचमुच तुम में बड़ा दोष तो यह है, कि आपस में मुकद्दमा करते हो। वरन् अन्याय क्यों नहीं सहते? अपनी हानि क्यों नहीं सहते? 8 वरन् अन्याय करते और हानि पहुँचाते हो, और वह भी भाइयों को।
9 क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। 10 न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अंधेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे। 11 और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।
12 सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुएँ लाभ की नहीं, सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित हैं, परन्तु मैं किसी बात के अधीन न हूँगा। 13 भोजन पेट के लिये, और पेट भोजन के लिये है, परन्तु परमेश्वर इसको और उसको दोनों को नाश करेगा, परन्तु देह व्यभिचार के लिये नहीं, वरन् प्रभु के लिये; और प्रभु देह के लिये है।
14 और परमेश्वर ने अपनी सामर्थ्य से प्रभु को जिलाया, और हमें भी जिलाएगा। 15 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह मसीह के अंग हैं? तो क्या मैं मसीह के अंग लेकर उन्हें वेश्या के अंग बनाऊँ? कदापि नहीं।
16 क्या तुम नहीं जानते, कि जो कोई वेश्या से संगति करता है, वह उसके साथ एक तन हो जाता है क्योंकि लिखा है, “वे दोनों एक तन होंगे।” (मर. 10:8) 17 और जो प्रभु की संगति में रहता है*, वह उसके साथ एक आत्मा हो जाता है।
18 व्यभिचार से बचे रहो जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर हैं, परन्तु व्यभिचार करनेवाला अपनी ही देह के विरुद्ध पाप करता है।
19 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है*; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? 20 क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिए अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो।
वैकल्पिक अनुवाद: “मतभेद” या “विवाद”
न्यायालय जहां न्यायाधीश अभियोग के निर्णय देता है
पौलुस कहता है कि विश्वासियों को अपने झगड़े स्वयं निपटा लेना चाहिए। वैकल्पिक अनुवाद: “अपने विश्वासी भाई पर लगाया गया आरोप एक अविश्वासी न्यायधीश के पास न ले जाएं। विश्वासी भाइयों को अपने झगड़े स्वयं निपटा लेना चाहिए।”
पौलुस संसार के न्याय के भावी परिप्रेक्ष्य की चर्चा कर रहा है।
पौलुस कहता है कि भविष्य में उन्हें संपूर्ण संसार का न्याय करने का उत्तरदायित्व एवं योग्यता प्रदान की जायेगी। इस कारण उन्हें वर्तमान के छोटे मोटे झगड़े आपस ही में निपटा लेने चाहिए। “तुम भविष्य में संसार का न्याय करोगे, अतः इन छोटी-छोटी बातो का न्याय उस समय स्वयं ही करो”।
“मतभेद” या “विवाद”
“तुम जानते हो कि हम स्वर्गदूतो का न्याय करेंगे”
पौलुस और कुरिन्थ की कलीसिया
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि हमें स्वर्गदूतों का न्याय करने का उत्तरदायित्व एवं योग्यता प्रदान की जाएगी इसलिए हम निश्चय ही इस जीवन की बातों का न्याय कर सकते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “यदि तुम्हें दैनिक जीवन की बातों का निर्णय करना हो” या “तुम्हें इस जीवन के विषयों के संबन्ध में निर्णय लेना हो”। (यू.डी.बी.)
“तुम्हें ऐसे लोगों को नहीं बैठाना है”
पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया को झिड़क रहा है कि वे इन बातों का कैसे न्याय कर रहे है”। इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “तुम्हें अपने विषय कलीसिया में उचित निर्णय लेने में अयोग्य मनुष्यों के समक्ष नहीं रखना चाहिए 2) “तुम्हें कलीसिया के बाहर के लोगों के समक्ष अपने विषय नहीं रखने चाहिए”। 3) “तुम इन विषयों को कलीसिया के उन सदस्यों के समक्ष भी रख सकते हो जिनका मान कलीसिया में नहीं है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम्हारे अपमान के लिए” या “तुम पर प्रकट करने के लिए कि तुम कैसे चूक गए हो”(यू.डी.बी)।
“तुम्हें एक बुद्धिमान विश्वासी को खोजकर विश्वासियों के विवाद सुलझाना चाहिए”।
“विवाद” या “मतभेद”
वैकल्पिक अनुवाद: “जैसा हो रहा है” या “इसकी अपेक्षा” (यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद: “आपस में झगड़ने वाले विश्वासी अविश्वासी न्यायधीशों के पास न्याय के लिए जाते है”।
“विश्वासी मुकद्दमा करता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “विफलता” या “क्षति”
वैकल्पिक अनुवाद: “धूर्तता” या “धोखा”
वैकल्पिक अनुवाद: उचित तो यह है कि न्यायालय में जाने की अपेक्षा अन्याय सह लो, हानि उठा लो।
सब मसीही विश्वासी आपस में भाई-बहन हैं,वैकल्पिक अनुवाद: “साथी विश्वासियों को”
वैकल्पिक अनुवाद: “कुछ लोग कहते हैं, मैं कुछ भी कर सकता हूं” या “मुझे कुछ भी करने की अनुमति है”।
“परन्तु मेरे लिए सब लाभकारी नहीं है”
वैकल्पिक अनुवाद: “मुझ पर कुछ भी स्वामी होकर प्रभुता नहीं करे”।
परमेश्वर दोनों का अन्त कर देगा “कुछ का कहना है, भोजन पेट के लिए और पेट भोजन के लिए, परन्तु परमेश्वर भोजन और पेट दोनों का अन्त कर देगा।
शरीर का अंग पेट
“अन्त कर देगा”
“यीशु को पुर्नजीवित किया”
जिस प्रकार हमारे हाथ और पैर हमारी देह के अंग हैं उसी प्रकार हमारी देह मसीह की देह अर्थात कलीसिया का अंग है। वैकल्पिक अनुवाद: “तुम्हारी देह मसीह का अंग है”।
वैकल्पिक अनुवाद:“तुम मसीह की देह का अंग हो, मैं तुम्हें वैश्या से जुड़ने नहीं दूंगा”?
वैकल्पिक अनुवाद: “ऐसा कभी ना हो”
“तुम जानते हो”। पौलुस इस तथ्य पर बल दे रहा है कि वे उस बात को जानते है।
वैकल्पिक अनुवाद: “जो प्रभु के साथ जुड़ता है, वह उसके साथ आत्मा में एक हो जाता है”।
मनुष्य वैसे संकट से दूर भागता है वैसे ही पाप से भागने का भाव यहां व्यक्त है। “दूर हो जाओ”।
वैकल्पिक अनुवाद: “करता है” या “भागी होता है”
व्यभिचार का पाप का परिणाम मनुष्य के शरीर को रोग ग्रस्त करता है, परन्तु अन्य पाप उसके अपने शरीर को ऐसी हानि नहीं पंहुचाते है।
“तुम जानते हो” पौलुस बल देकर कहता है कि वे इस सत्य से अभिज्ञ हैं।
प्रत्येक विश्वासी का शरीर पवित्र आत्मा का निवास स्थान है।
मन्दिर अलौकिक शक्ति को समर्पित किया जाता है और वह उसमें वास करती है। इसी प्रकार कुरिन्थ के प्रत्येक विश्वासी की देह एक मन्दिर है, जिसमें पवित्र आत्मा वास करता है।
परमेश्वर ने कुरिन्थ के विश्वासियों को दाम देकर पाप के दासत्व में से निकाल लिया था।। वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने तुम्हारी स्वतंत्रता के लिए कीमत दी है”
वैकल्पिक अनुवाद: “अतः” या “क्योंकि यह सच है इसलिए....” या “इस सत्य के कारण”
पौलुस कहता है कि उन्हें आपसी झगड़े बाहर नहीं ले जाने चाहिए स्वयं ही न्याय करें।
पवित्र जन जगत का और स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे।
विश्वासी विश्वासी के विरूद्ध न्यायलय में जाता है, वहां एक अविश्वासी न्यायधीश है।
यह उनकी पराजय का संकेत है।
अधर्मी; वेश्यागामी, मूर्तिपूजक, परस्त्रीगामी, लुच्चे, पुरूषगामी, चोर, लोभी, पियक्कड़, गाली देने वाले, अन्धेर करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।
वे यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।
पौलुस कहता है कि वह भोजन और यौनाचार के अधीन नहीं होगा।
विश्वासियों की देह मसीह के अंग हैं।
नहीं कदापि नहीं।
वह आपके साथ एक तन हो जाता है।
वह उसके साथ एक आत्मा हो जाता है।
व्यभिचार अपनी ही देह के विरूद्ध पाप है।
अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो क्योंकि वह पवित्र आत्मा का मन्दिर है और हम दाम देकर मोल लिए गए हैं।
1 उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छूए। 2 परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो।
3 पति अपनी पत्नी का हक़ पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। 4 पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी को।
5 तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति* से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो; ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे।
6 परन्तु मैं जो यह कहता हूँ वह अनुमति है न कि आज्ञा। 7 मैं यह चाहता हूँ, कि जैसा मैं हूँ, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष वरदान* मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का।
8 परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ, कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ। 9 परन्तु यदि वे संयम न कर सके, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है।
10 जिनका विवाह हो गया है, उनको मैं नहीं, वरन् प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्नी अपने पति से अलग न हो। 11 (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिना दूसरा विवाह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले) और न पति अपनी पत्नी को छोड़े।
12 दूसरों से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूँ, यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े। 13 और जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो; वह पति को न छोड़े। 14 क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे बाल-बच्चे अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं।
15 परन्तु जो पुरुष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्वर ने तो हमें मेल-मिलाप के लिये बुलाया है। 16 क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरुष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्नी का उद्धार करा लेगा?
17 पर जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है*; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ। 18 जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारहित न बने: जो खतनारहित बुलाया गया हो, वह खतना न कराए। 19 न खतना कुछ है, और न खतनारहित परन्तु परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है।
20 हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे। 21 यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर। 22 क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है। 23 तुम दाम देकर मोल लिये गए हो, मनुष्यों के दास न बनो। 24 हे भाइयों, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्वर के साथ रहे।
25 कुँवारियों के विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली, परन्तु विश्वासयोग्य होने के लिये जैसी दया प्रभु ने मुझ पर की है, उसी के अनुसार सम्मति देता हूँ। 26 इसलिए मेरी समझ में यह अच्छा है, कि आजकल क्लेश के कारण मनुष्य जैसा है, वैसा ही रहे।
27 यदि तेरे पत्नी है, तो उससे अलग होने का यत्न न कर: और यदि तेरे पत्नी नहीं, तो पत्नी की खोज न कर: 28 परन्तु यदि तू विवाह भी करे, तो पाप नहीं; और यदि कुँवारी ब्याही जाए तो कोई पाप नहीं; परन्तु ऐसों को शारीरिक दुःख होगा, और मैं बचाना चाहता हूँ।
29 हे भाइयों, मैं यह कहता हूँ, कि समय कम किया गया है, इसलिए चाहिए कि जिनके पत्नी हों, वे ऐसे हों मानो उनके पत्नी नहीं। 30 और रोनेवाले ऐसे हों, मानो रोते नहीं; और आनन्द करनेवाले ऐसे हों, मानो आनन्द नहीं करते; और मोल लेनेवाले ऐसे हों, कि मानो उनके पास कुछ है नहीं। 31 और इस संसार के साथ व्यवहार करनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।
32 मैं यह चाहता हूँ, कि तुम्हें चिन्ता न हो। अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को कैसे प्रसन्न रखे। 33 परन्तु विवाहित मनुष्य संसार की बातों की चिन्ता में रहता है, कि अपनी पत्नी को किस रीति से प्रसन्न रखे। 34 विवाहिता और अविवाहिता में भी भेद है: अविवाहिता प्रभु की चिन्ता में रहती है, कि वह देह और आत्मा दोनों में पवित्र हो, परन्तु विवाहिता संसार की चिन्ता में रहती है, कि अपने पति को प्रसन्न रखे।
35 यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिये कहता हूँ, न कि तुम्हें फँसाने के लिये, वरन् इसलिए कि जैसा उचित है; ताकि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो।
36 और यदि कोई यह समझे, कि मैं अपनी उस कुँवारी का हक़ मार रहा हूँ, जिसकी जवानी ढल रही है, और प्रयोजन भी हो, तो जैसा चाहे, वैसा करे, इसमें पाप नहीं, वह उसका विवाह होने दे। 37 परन्तु यदि वह मन में फैसला करता है, और कोई अत्यावश्यकता नहीं है, और वह अपनी अभिलाषाओं को नियंत्रित कर सकता है, तो वह विवाह न करके अच्छा करता है। 38 तो जो अपनी कुँवारी का विवाह कर देता है, वह अच्छा करता है और जो विवाह नहीं कर देता, वह और भी अच्छा करता है।
39 जब तक किसी स्त्री का पति जीवित रहता है, तब तक वह उससे बंधी हुई है, परन्तु जब उसका पति मर जाए, तो जिससे चाहे विवाह कर सकती है, परन्तु केवल प्रभु में। 40 परन्तु जैसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूँ, कि परमेश्वर का आत्मा मुझ में भी है।
पौलुस अपनी शिक्षा में एक नया प्रसंग आरंभ करता है।
उन्होंने कुछ बातों के बारे में पौलुस से पत्र लिखकर पूछा था
यहाँ कहने का अर्थ है पति
वैकल्पिक अनुवाद: “यह उचित एवं स्वीकार्य है”
“पति का पत्नी के साथ यौन संबन्ध नहीं बनाना भी कभी उचित होता है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि मनुष्य यौनाचार के पाप की परीक्षा में गिर सकता है”।
इसे बहु विवाह की संस्कृति के लिए इसे स्पष्ट करता है। “प्रत्येक पुरूष की एक ही पत्नी हो और प्रत्येक स्त्री का एक ही पति हो”।
पति-पत्नी दोनों ही परस्पर यौन दायित्व पूरा करें।
वैकल्पिक अनुवाद: “अपने जीवन साथी को यौनतुष्टि से वंचित मत करो”।
आपसी सहमति से यौनाचार से वंचित होना उचित है परन्तु केवल गहन प्रार्थना के लिए यहूदियों में यह अवकाश 1-2 सप्ताह का होता था।
“समर्पित रहो”
“यौन संबन्धों में लौट आओ”
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि कुछ समय पश्चात तुम्हारी वासना वश में नहीं रहेगी”।
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को परामर्श देता है कि प्रार्थना ही के लिए वे यौन संबन्ध में अन्तराल रखें परन्तु यह एक अलग बात है, एक सतत् अनिवार्यता नहीं है।
पौलुस के सदृश्य अविवाहित (या तो पूर्वकालिक विवाहित या अविवाहित)
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने एक मनुष्य को एक योग्यता से संवारा है तो दूसरे को दूसरी से”
“जो इस समय विवाह के बंधन में नहीं हैं” इसमें अविवाहित और विवाह विच्छेदित एवं विधुर सब हैं।
जिस स्त्री का पति मर गया है,
अच्छा है - यहां “अच्छा शब्द का अर्थ उचित एवं स्वीकार्य है। वैकल्पिक अनुवाद: “उचित एवं स्वीकार्य है”।
पति-पत्नी हो जाएं
कामातुर - लगातार यौन वासना के वश में रहने से”
जीवनसाथी से (पति या पत्नी)
अधिकांश यूनानी शब्द स्पष्ट नहीं करते कि वैध विवाह विच्छेद न हो मात्र अलग हों। अधिकांश दम्पतियों के लिए अलग रहने का अर्थ था विवाह विच्छेद।
इसका अर्थ भी विवाह विच्छेद से ही है। उपरोक्त टिप्पणी देखें। इसका तात्पर्य वैध विवाह विच्छेद या मात्र अलग रहने से है।
“वह अपने पति से समझौता करके लौट आए”
“इच्छुक हो” या “सन्तुष्ट है”
“परमेश्वर ने उस अविश्वासी पति को पवित्र कर दिया है”
“परमेश्वर ने इस अविश्वासी पत्नी को पवित्र कर दिया है” )
परमेश्वर ने उन्हें पवित्र कर दिया है।
“ऐसी स्थिति में विश्वासी पति/पत्नी पर विवाह का बन्धन नहीं है”
“तू नहीं जानती कि अपने अविश्वासी पति का उद्धार करा पाएगी या नहीं”?
“तू नहीं जानता कि अपनी अविश्वासी पत्नी का उद्धार करा पाएगा या नहीं”।
“प्रत्येक विश्वासी को”
पौलुस सब कलीसियाओं में विश्वासियों को ऐसी ही आचरण की शिक्षा दे रहा था।
पौलुस खतना वालों (यहूदियों से कह रहा है) जिन्होंने खतना करा लिया था वे बुलाहट के समय खतना की दशा में थे।
अब पौलुस खतनारहितों को कह रहा है। “खतनारहितों परमेश्वर ने जब तुम्हें बुलाया था तब तुम्हारा खतना नहीं हुआ था।”
यहां “बुलाया गया” का संदर्भ सेवावृत्ति या सामाजिक स्तर से है जिसमें आप थे “वैसे ही रहो और काम करो जैसे थे”।(यू.डी.बी)
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर की बुलाहट के समय दास था”
यह स्वतंत्रता प्रभु की देन है, अतः शैतान और पाप से मुक्त है
वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह ने अपनी जान देकर तुम्हें मोल लिया है
“जब परमेश्वर ने हमें बुलाया कि उसमें विश्वास करें”
सब विश्वासी
कुँवारियों के विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली - ऐसी स्थिति के बारे में पौलुस को प्रभु की शिक्षा स्मरण नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद: “जिन्होंने कभी विवाह नहीं किया उनके लिए मुझे प्रभु से कोई आज्ञा प्राप्त नही है”
पौलुस स्पष्टीकरण देता है कि विवाह संबन्धित ये निर्देशन उसके विचार से हैं, प्रभु की आज्ञाएं नहीं हैं।
वैकल्पिक अनुवाद: “अतः” या “ इस कारण”
वैकल्पिक अनुवाद: “आनेवाले विनाश के कारण”
पौलुस विवाहित पुरूषों से कह रहा है, वैकल्पिक अनुवाद: “यदि तू विवाहित है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “विवाह के बन्धन से मुक्त होने का प्रयास मत कर”
अब पौलुस अविवाहितों से कह रहा है, वैकल्पिक अनुवाद: “यदि इस समय तुम पत्नी रहित हो”
वैकल्पिक अनुवाद: “विवाह का विचार मत कर”
“किया” या “सहभागी”
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं नहीं चाहता कि...”
वैकल्पिक अमुवाद: “समय बहुत कम है” या “समय लगभग समाप्त हो गया है”
वैकल्पिक अनुवाद: “रोएं” या “आंसू बहाकर दुःखी हों”
वैकल्पिक अनुवाद: “उनके पास सम्पदा है ही नहीं”
वैकल्पिक अनुवाद:“जो प्रतिदिन अविश्वासियों के साथ लेन-देन करते है"
वैकल्पिक अनुवाद: “जैसे कि उन्होंने अविश्वासियों के साथ कोई व्यवहार नहीं किया”
क्योंकि संसार पर शैतान का राज शीघ्र ही समाप्त होगा
वैकल्पिक अनुवाद: “शान्ति मिले” या “निश्चिन्त रहो”
वैकल्पिक अनुवाद: “ध्यान में रहता है”
वैकल्पिक अनुवाद:“परमेश्वर को और अपनी पत्नी दोनों को प्रसन्न करना चाहता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “बोझ डालने के लिए” या “बन्धन में रखने के लिए”
वैकल्पिक अनुवाद: “प्रभु में ध्यान लगाए रहो”
“कठोरता का व्यवहार कर रहा हूं” या “मान प्रदान नहीं करता”
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “जिसे उसे मैंने उसे विवाह का वचन दिया है।” 2)“उसकी कुंवारी पुत्री”
संभावित अर्थ है, 1)“वह अपनी मंगेतर से विवाह करे।” 2) “अपनी पुत्री का विवाह कर दे।”
“जब तक वह मर न जाए”
वैकल्पिक अनुवाद: “अपनी इच्छा से”
वैकल्पिक अनुवाद: “यदि उसका दूसरा पति विश्वासी है”
“परमेश्वर के वचन की मेरी समझ में”
“अधिक आनन्दित है” या “अधिक संतुष्टि पाएगी”
वैकल्पिक अनुवाद:“अविवाहित रहे”
व्यभिचार के डर से प्रत्येक पुरूष की अपनी पत्नी हो और प्रत्येक स्त्री का अपना पुरूष हो।
नहीं, पति को अपनी पत्नी की देह पर अधिकार है और पत्नी को अपने पति की देह पर अधिकार है।
उचित तो यह है कि पति-पत्नी आपसी सहमति से निश्चित समय निकाल कर केवल प्रार्थना के लिए एक दूसरे से अलग हों।
पौलुस कहता है कि अविवाहित रहना उचित है।
यदि वे संयम न रख पायें और कामातुर हो तो विवाह करना ही उचित है।
पत्नी पति से अलग न हो, यदि पत्नी अलग हो तो या तो वह पुनः विवाह न करे और यदि करना चाहे तो अपने ही पति से मेल कर ले। पति भी अपनी पत्नी को तलाक न दे।
यदि अविश्वासी पति या पत्नी अपने जीवन साथी के साथ रहने से सन्तुष्ट है तो विश्वासी पक्ष अविश्वासी को तलाक न दे।
विश्वासी अविश्वासी जीवन साथी को जाने दे।
नियम यह हैः प्रत्येक जीवन परमेश्वर प्रदत्त जीवन जीए, जैसी परमेश्वर की बुलाहट है।
जो खतना किया हुआ बुलाया गया है वह खतनारहित न बने और जो खतनारहित बुलाया गया है वह खतना न कराए।
यदि परमेश्वर ने किसी दास को बुलाया है तो वह चिन्ता न करे, परन्तु यदि वह स्वतंत्र हो सके तो ऐसा ही करे क्योंकि दास परमेश्वर के लिए स्वतंत्र है, उन्हें मनुष्य का दास नहीं होना है।
पौलुस के अपने विचार में आनेवाले क्लेश के कारण मनुष्य के लिए अविवाहित रहना ही उचित है।
विवाहित पुरूषों को पत्नी से अलग होने का यत्न नहीं करना है।
पौलुस अविवाहितों और पत्नीरहितों से क्यों कहता है, "पत्नी की खोज न कर"?उसने ऐसा इसलिए कहा कि वह उन्हें उन अनेक समस्याओं से बचाना चाहता था जो विवाहितों पर आती हैं।
उन्हें ऐसा व्यवहार करना है क्योंकि इस संसार का तौर तरीका समाप्त हो जाता है।
यह कठिन है क्योंकि विश्वासी पति या पत्नी सांसारिक चिन्ता में लगे रहते हैं कि अपनी पत्नी या अपने पति को प्रसन्न कैसे करें।
जो अविवाहित रहने का चुनाव करे वह और भी अच्छा काम करता है।
वह जब तक जीवित है अपने पति से बंधी है।
यदि एक विश्वासी स्त्री का पति मर जाए तो वह किससे पुनः विवाह कर सकती है?वह जिससे चाहे विवाह कर सकती है परन्तु केवल उससे जो प्रभु में विश्वास रखता है।
1 अब मूरतों के सामने बलि की हुई* वस्तुओं के विषय में हम जानते हैं, कि हम सब को ज्ञान है: ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है, परन्तु प्रेम से उन्नति होती है। 2 यदि कोई समझे, कि मैं कुछ जानता हूँ, तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता। 3 परन्तु यदि कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है*, तो उसे परमेश्वर पहचानता है।
4 अतः मूरतों के सामने बलि की हुई वस्तुओं के खाने के विषय में हम जानते हैं, कि मूरत जगत में कोई वस्तु नहीं*, और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं। (व्य. 4:39) 5 यद्यपि आकाश में और पृथ्वी पर बहुत से ईश्वर कहलाते हैं, (जैसा कि बहुत से ईश्वर और बहुत से प्रभु हैं)।
6 तो भी हमारे निकट तो एक ही परमेश्वर है:
अर्थात् पिता जिसकी ओर से सब वस्तुएँ हैं, और हम उसी के लिये हैं,
और एक ही प्रभु है, अर्थात् यीशु मसीह
जिसके द्वारा सब वस्तुएँ हुई, और हम भी उसी के द्वारा हैं। (यूह. 1:3, रोम. 11:36)
7 परन्तु सब को यह ज्ञान नहीं; परन्तु कितने तो अब तक मूरत को कुछ समझने के कारण मूरतों के सामने बलि की हुई को कुछ वस्तु समझकर खाते हैं, और उनका विवेक निर्बल होकर अशुद्ध होता है।
8 भोजन हमें परमेश्वर के निकट नहीं पहुँचाता, यदि हम न खाएँ, तो हमारी कुछ हानि नहीं, और यदि खाएँ, तो कुछ लाभ नहीं। 9 परन्तु चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता कहीं निर्बलों के लिये ठोकर का कारण हो जाए। 10 क्योंकि यदि कोई तुझ ज्ञानी को मूरत के मन्दिर में भोजन करते देखे, और वह निर्बल जन हो, तो क्या उसके विवेक में मूरत के सामने बलि की हुई वस्तु के खाने का साहस न हो जाएगा।
11 इस रीति से तेरे ज्ञान के कारण वह निर्बल भाई जिसके लिये मसीह मरा नाश हो जाएगा। 12 तो भाइयों का अपराध करने से और उनके निर्बल विवेक को चोट देने से तुम मसीह का अपराध करते हो। 13 इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाएँ, तो मैं कभी किसी रीति से माँस न खाऊँगा, न हो कि मैं अपने भाई के ठोकर का कारण बनूँ।
पौलुस इस अभिव्यक्ति द्वारा कुरिन्थ की कलीसिया द्वारा पूछे गए अगले प्रश्न पर आता है
विजातियां अपने देवताओं को अन्न, मछली, मुर्गी या मांस चढ़ाते थे। पुजारी वेदी पर उसका एक अंश जला देता था परन्तु जो भाग शेष रहता था वह उपासक को लौटा दिया जाता था या बाजार में बेचा जाता था। पौलुस इसी के बारे में चर्चा कर रहा है।
पौलुस कुछ कुरिन्थ वासियों द्वारा की गई युक्ति का उद्धरण दे रहा है, वैकल्पिक अनुवाद: “हम सब जानते है, जैसा तुम स्वयं कहना चाहते हो कि” हम सब को ज्ञान है”।
“मनुष्य को घमण्डी बनाता है” या “मनुष्य जो वास्तव में है नहीं उससे अधिक स्वयं को समझे”।
“अपने विचार में कुछ बातों का सर्वज्ञानी है”
“परमेश्वर उसे जानता है”
पौलुस और कुरिन्थ के विश्वासी
“हम सब जानते हें, जैसा तुम स्वयं जानना चाहते हो, वैकल्पिक अनुवाद: “मूर्ति हमारे लिए असमर्थ एवं निरर्थक हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “संसार में मूर्ति कुछ भी नहीं है”
बहुत से ईश्वर और बहुत से प्रभु - पौलुस बहुदेववाद में विश्वास नहीं करता था परन्तु वह स्वीकार करता है कि विजातियों की यह मान्यता थी।
पौलुस और कुरिन्थ के विश्वासी
“हम विश्वास करते हैं”
“सब मनुष्यों को... कुछ मनुष्य तो”
“नष्ट” या “क्षतिग्रस्त”
“भोजन हमें परमेश्वर का अनुग्रह पात्र नहीं बनाता” या “हमारा भोजन परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करता है”।
“यदि हम खाएं तो हमें कोई हानि नहीं और खाएं तो कोई लाभ नहीं।”
“प्रोत्साहन न मिलेगा”
“विश्वास में अस्थिर भाई”
“भोज में” या “खाते देखें”(यू.डी.बी)
“भाई बहन जो विश्वास में दृढ़ नहीं वह पाप में गिरेगा/गिरेगी या विश्वास से भटक जाएगा/जाएगी”
“इस अन्तिम सिद्धान्त के कारण”
“यदि भोजन करने से” या “भोजन के प्रोत्साहन से”
पौलुस मूर्तियों को चढ़ाए हुए भोजन के बारे में कहता है।
ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है परन्तु प्रेम से उन्नति होती है।
नहीं, मूर्ति जगत में कोई वस्तु नहीं, एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं।
केवल एक ही परमेश्वर पिता है, उसी से सब कुछ है और हम उसी के लिए हैं।
एक ही प्रभु है अर्थात यीशु मसीह, जिसके द्वारा सब कुछ अस्तित्व में है और हम भी उसी के द्वारा हैं।
उनका विवेक निर्बल होने के कारण अशुद्ध हो जाता है।
भोजन हमें परमेश्वर के निकट नहीं पहुंचाता है, यदि हम नहीं खाएं तो कोई हानि नहीं और यदि खाएं तो कोई लाभ नहीं।
हमें सावधान अवश्य रहना है कि हमारी स्वतंत्रता विश्वास में दुर्बल जन के लिए ठोकर का कारण न हो।
हमारी स्वतंत्रता विश्वास में दुर्बल भाई या बहन के लिए विनाशक होती है।
हमारे कारण भाई या बहन ठोकर खाए तो हम उनके विरूद्ध अपराध करते हैं और मसीह के विरूद्ध अपराधी ठहरते है।
पौलुस कहता है कि यदि उसका मांसाहारी होना भाई या बहन के लिए ठोकर का कारण हो तो वह कभी मांस नहीं खाएगा।
1 क्या मैं स्वतंत्र नहीं*? क्या मैं प्रेरित नहीं? क्या मैंने यीशु को जो हमारा प्रभु है, नहीं देखा? क्या तुम प्रभु में मेरे बनाए हुए नहीं? 2 यदि मैं औरों के लिये प्रेरित नहीं, फिर भी तुम्हारे लिये तो हूँ; क्योंकि तुम प्रभु में मेरी प्रेरिताई पर छाप हो।
3 जो मुझे जाँचते हैं, उनके लिये यही मेरा उत्तर है। 4 क्या हमें खाने-पीने का अधिकार नहीं? 5 क्या हमें यह अधिकार नहीं, कि किसी मसीही बहन को विवाह कर के साथ लिए फिरें, जैसा अन्य प्रेरित और प्रभु के भाई और कैफा करते हैं? 6 या केवल मुझे और बरनबास को ही जीवन-निर्वाह के लिए काम करना चाहिए।
7 कौन कभी अपनी गिरह से खाकर सिपाही का काम करता है? कौन दाख की बारी लगाकर उसका फल नहीं खाता? कौन भेड़ों की रखवाली करके उनका दूध नहीं पीता? 8 क्या मैं ये बातें मनुष्य ही की रीति पर बोलता हूँ?
9 क्या व्यवस्था भी यही नहीं कहती? क्योंकि मूसा की व्यवस्था में लिखा है “दाँवते समय चलते हुए बैल का मुँह न बाँधना।” क्या परमेश्वर बैलों ही की चिन्ता करता है? (व्य. 25:4) 10 या विशेष करके हमारे लिये कहता है। हाँ, हमारे लिये ही लिखा गया, क्योंकि उचित है, कि जोतनेवाला आशा से जोते, और दाँवनेवाला भागी होने की आशा से दाँवनी करे। 11 यदि हमने तुम्हारे लिये आत्मिक वस्तुएँ बोई, तो क्या यह कोई बड़ी बात है, कि तुम्हारी शारीरिक वस्तुओं की फसल काटें।
12 जब औरों का तुम पर यह अधिकार है, तो क्या हमारा इससे अधिक न होगा? परन्तु हम यह अधिकार काम में नहीं लाए; परन्तु सब कुछ सहते हैं, कि हमारे द्वारा मसीह के सुसमाचार की कुछ रोक न हो। 13 क्या तुम नहीं जानते कि जो मन्दिर में सेवा करते हैं, वे मन्दिर में से खाते हैं; और जो वेदी की सेवा करते हैं; वे वेदी के साथ भागी होते हैं? (लैव्य. 6:16, लैव्य. 6:26, व्य. 18:1-3) 14 इसी रीति से प्रभु ने भी ठहराया, कि जो लोग सुसमाचार सुनाते हैं, उनकी जीविका सुसमाचार से हो।
15 परन्तु मैं इनमें से कोई भी बात काम में न लाया, और मैंने तो ये बातें इसलिए नहीं लिखीं, कि मेरे लिये ऐसा किया जाए, क्योंकि इससे तो मेरा मरना ही भला है; कि कोई मेरा घमण्ड व्यर्थ ठहराए। 16 यदि मैं सुसमाचार सुनाऊँ, तो मेरा कुछ घमण्ड नहीं; क्योंकि यह तो मेरे लिये अवश्य है; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊँ, तो मुझ पर हाय!
17 क्योंकि यदि अपनी इच्छा से यह करता हूँ, तो मजदूरी मुझे मिलती है, और यदि अपनी इच्छा से नहीं करता, तो भी भण्डारीपन मुझे सौंपा गया है। 18 तो फिर मेरी कौन सी मजदूरी है? यह कि सुसमाचार सुनाने में मैं मसीह का सुसमाचार सेंत-मेंत कर दूँ; यहाँ तक कि सुसमाचार में जो मेरा अधिकार है, उसको मैं पूरी रीति से काम में लाऊँ।
19 क्योंकि सबसे स्वतंत्र होने पर भी मैंने अपने आप को सब का दास बना दिया* है; कि अधिक लोगों को खींच लाऊँ। 20 मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना कि यहूदियों को खींच लाऊँ, जो लोग व्यवस्था के अधीन हैं उनके लिये मैं व्यवस्था के अधीन न होने पर भी व्यवस्था के अधीन बना, कि उन्हें जो व्यवस्था के अधीन हैं, खींच लाऊँ।
21 व्यवस्थाहीनों के लिये मैं (जो परमेश्वर की व्यवस्था से हीन नहीं, परन्तु मसीह की व्यवस्था के अधीन हूँ) व्यवस्थाहीन सा बना, कि व्यवस्थाहीनों को खींच लाऊँ। 22 मैं निर्बलों के लिये* निर्बल सा बना, कि निर्बलों को खींच लाऊँ, मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूँ, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊँ। 23 और मैं सब कुछ सुसमाचार के लिये करता हूँ, कि औरों के साथ उसका भागी हो जाऊँ।
24 क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो। 25 और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरझानेवाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुरझाने का नहीं। 26 इसलिए मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूँ, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूँ, परन्तु उसके समान नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है। 27 परन्तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूँ; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूँ।
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा पौलुस उन्हें अपने अधिकार स्मरण कराता है। वैकल्पिक अनुवाद: “मैं स्वतंत्र हूं”।
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा पौलुस उन्हें अपने प्रेरित होने का और अपने अधिकार का स्मरण कराता है, “मैं एक प्रेरित हूं”।
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा पौलुस उन्हें स्मरण कराता है कि वह कौन है। “मैंने अपने प्रभु यीशु को देखा है”।
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा पौलुस उन्हें उसके साथ उसके संबन्धों का स्मरण कराता है। “मसीह में तुम्हारा विश्वास मेरी मसीही सेवा का परिणाम है।”
वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह में तुम्हारा विश्वास पुष्टि करता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “हमें पूरा अधिकार है कि हम कलीसियाओं से भोजन-पानी लें”
अर्थात पौलुस और बरनबास
“यदि हमारे पास विश्वासी पत्नियां हों तो हमें अधिकार है कि उन्हें साथ लेकर यात्रा करें क्योंकि अन्य प्रेरित भी ऐसा ही करते हें, प्रभु का भाई और कैफा”
वैकल्पिक अनुवाद: “बरनबास और मुझे अधिकार है कि काम करना छोड़ दें” या “परन्तु तुम बरनबास और मुझ से अपेक्षा करते हो कि पैसा कमाने के लिए काम करें”।
“सैनिक अपने पैसे से सेवा नहीं करता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “दाख की बारी लगाने वालों निश्चय ही उसका फल खाएगा” या “दाख की बारी लगानेवाले से कोई भी उसका फल न खाने की अपेक्षा नहीं करता है”। )
“भेड़ों का रखवाला उनका ही दूध पीता है” या “भेड़ों को रखवाले से कोई अपेक्षा भी करता है कि उनका दूध न पीए”।
“मैं ये बातें मानवीय अभ्यास पर आधारित नहीं करता हूं”।
“मूसा के विधान में भी यही लिखा है”
“परमेश्वर केवल बैल ही की चिन्ता सबसे अधिक नहीं करता है”।
वैकल्पिक अनुवाद:“परमेश्वर निश्चय ही हमारे बारे में कह रहा है” )
“हमारे” अर्थात पौलुस और बरनबास
“तुम से भौतिक सहायता लेना हमारे लिए कोई अनहोनी बात नहीं है”।
“शुभ सन्देश सुनाने वाले अन्य सेवकों को”
पौलुस जिस अधिकार की बात कर रहा है वह है कि कुरिन्थ की कलीसिया पौलुस की जीविका का बोझ उठाए क्योंकि उन्हें सर्वप्रथम शुभ सन्देश सुनानेवाला वही था।
“हमारा” अर्थात पौलुस और बरनबास का “हमारा अधिकार और भी अधिक है”। (देखें:
“बोझ न हो” या “प्रचार में बाधा न हो”
“शुभ सन्देश सुनाने के द्वारा दैनिक सहयोग प्राप्त करे”
वैकल्पिक अनुवाद: “ये लाभ” या “जिनके हम योग्य हैं”
वैकल्पिक अनवाद: “तुमसे कुछ प्राप्त करूं” या “तुम मेरे लिए दैनिक प्रबन्ध करो”
वैकल्पिक अनुवाद: “वंचित करे” या “पहुंचने न दे”
“मुझे शुभ सन्देश सुनाना अनिवार्य है”
वैकल्पिक अनुवाद: “मेरा भाग्य फूटे”
“यदि स्वैच्छा से शुभ सन्देश सुनाता हूं”
वैकल्पिक अनुवाद: “सहर्ष” या “अपनी इच्छा पर निर्भर”
वैकल्पिक अनुवाद: “मुझे यह काम करना है क्योंकि परमेश्वर ने इसे संपन्न करने के लिए मुझ पर भरोसा किया है”
वैकल्पिक अनुवाद: “यह मेरा प्रतिफल है”
वैकल्पिक अनुवाद: “शुभ सन्देश सुनाने के मेरा जो प्रतिफल है वह है कि मैं किसी के भी आभार से मुक्त शुभ सन्देश सुना सकता हूं”
वैकल्पिक अनुवाद: “शुभ सन्देश सुनाने के निमित्त”
वैकल्पिक अनुवाद: “मेरी प्रचार यात्राओं के लिए विश्वासियों से आर्थिक सहयोग लूं”।
“मनुष्यों को विश्वास करने के लिए प्रेरित करूं” या “मनुष्यों को मसीह में विश्वास करने में सहायता करूं”
वैकल्पिक अनुवाद: “मैंने यहूदियों का सा व्यवहार किया” या “यहूदियों की परम्परा का पालन किया”
वैकल्पिक अनुवाद:“यहूदी अगुओं की आज्ञा के अधीन रहा और वे धर्मशास्त्र की जैसी भी व्याख्या करते थे, उसे स्वीकार किया”।
वे लोग मूसा प्रदत्त नियमों का पालन नहीं करते थे अर्थात अन्य जातियों के लिए, वैकल्पिक अनुवाद: “यहूदियों के विधि-विधान से मुक्त मनुष्यों के लिए”।
इस प्रश्न के तथ्यों की समझ की प्रतिक्रिया अपेक्षित है, “हां, मैं जानता हूं कि दौड़ प्रतियोगिता में अनेक प्रतिद्वंदी होते हैं, परन्तु इनाम पाने वाला एक ही होता है”।
पौलुस मसीही जीवन और परमेश्वर की सेवा की तुलना दौड़ और धावक से करता है। जैसे दौड़ का अनुशासन कठोर होता है उसी प्रकार मसीही जीवन और सेवा में भी कठोर अनुशासन तथा एक ही लक्ष्य होता है।
एक समर्पण के साथ दौड़ना कि सफलता प्राप्त हो, इसकी तुलना उस सेवा से की गई है जो परमेश्वर हमसे चाहता है।
मुकुट सफलता का प्रतीक है जो उस कार्यक्रम के अधिकारी द्वारा दिया जाता है। यह रूपक परमेश्वर को सम्मान प्रदान करने के जीवन की एक उपमा है। परमेश्वर उद्धार का प्रतीक मुकुट देता है।
इसका कर्तृवाच्य अनुवाद होगा, “न्यायी कहीं मुझे अयोग्य न घोषित कर दे”
पौलुस कहता है कि कुरिन्थ के विश्वासी प्रभु में उसके बनाए हुए हैं और वे प्रभु में उसकी प्रेरिताई पर छाप है।
पौलुस कहता है कि उन्हें खाने-पीने का और विश्वासी पत्नी ब्याहने का अधिकार है।
मजदूरी पाने के उदाहरणों में पौलुस सैनिकों, किसानों तथा चरवाहों का उदाहरण देता है।
पौलुस एक आज्ञा का उदहारण देता है कि अपने विवाद का पक्षपोषण करे, "दांवते समय चलते हुए बैल का मुंह न बांधना"।
पौलुस और उसके सहकर्मियों को कुरिन्थ की कलीसिया से शारीरिक वस्तुओं की फसल काटने का अधिकार है क्योंकि उन्होंने उनके लिए आत्मिक वस्तुएं बोई थी।
प्रभु ने आज्ञा दी है कि सुसमाचार प्रचारकों को सुसमाचार से ही जीविका चलाना है।
पौलुस कहता है कि सुसमाचार सुनाना उसके लिए घमण्ड की बात नहीं है, वह तो उसके लिए अनिवार्य है।
पौलुस सबका सेवक बना कि अधिकाधिक मनुष्यों को परमेश्वर के पास खींच लाए।
पौलुस यहूदियों के लिए यहूदी बना, व्यवस्था के अधीन होने वालों के लिए वह व्यवस्था के अधीन हुआ, व्यवस्था से बाहर वालों के लिए वह व्यवस्थाहीन सा बना कि सब मनुष्यों के लिए सब कुछ बनकर बहुतों का उद्धार कराए।
उसने ऐसा इसलिए किया कि वह सुसमाचार की आशिषों का भागी हो।
पौलुस ने कहा कि जीतने के लिए दौड़ो।
पौलुस दौड़ रहा था कि अविनाशी मुकुट पाए।
पौलुस इसलिए ऐसा करता था कि औरों को प्रचार करके स्वयं निकम्मा न ठहरे।
1 हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस बात से अज्ञात रहो, कि हमारे सब पूर्वज बादल के नीचे थे, और सब के सब समुद्र के बीच से पार हो गए। (निर्ग. 14:29) 2 और सब ने बादल में, और समुद्र में, मूसा का बपतिस्मा लिया। 3 और सब ने एक ही आत्मिक भोजन किया। (निर्ग. 16:35, व्य. 8:3) 4 और सब ने एक ही आत्मिक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे, जो उनके साथ-साथ चलती थी; और वह चट्टान मसीह था। (निर्ग. 17:6, गिन. 20:11)
5 परन्तु परमेश्वर उनमें से बहुतों से प्रसन्न ना था, इसलिए वे जंगल में ढेर हो गए। (इब्रा. 3:17) 6 ये बातें हमारे लिये दृष्टान्त ठहरी, कि जैसे उन्होंने लालच किया, वैसे हम बुरी वस्तुओं का लालच न करें।
7 और न तुम मूरत पूजनेवाले बनो; जैसे कि उनमें से कितने बन गए थे, जैसा लिखा है, “लोग खाने-पीने बैठे, और खेलने-कूदने उठे।” 8 और न हम व्यभिचार करें; जैसा उनमें से कितनों ने किया और एक दिन में तेईस हजार मर गये। (गिन. 25:1, गिन. 25:9)
9 और न हम प्रभु को परखें; जैसा उनमें से कितनों ने किया, और साँपों के द्वारा नाश किए गए। (गिन. 21:5-6) 10 और न तुम कुड़कुड़ाओ, जिस रीति से उनमें से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करनेवाले के द्वारा नाश किए गए।
11 परन्तु ये सब बातें, जो उन पर पड़ी, दृष्टान्त की रीति पर थीं; और वे हमारी चेतावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं। 12 इसलिए जो समझता है, “मैं स्थिर हूँ,” वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पड़े। 13 तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने के बाहर है: और परमेश्वर विश्वासयोग्य है: वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको। (2 पत. 2:9)
14 इस कारण, हे मेरे प्यारों मूर्ति पूजा से बचे रहो*। 15 मैं बुद्धिमान जानकर, तुम से कहता हूँ: जो मैं कहता हूँ, उसे तुम परखो। 16 वह धन्यवाद का कटोरा*, जिस पर हम धन्यवाद करते हैं, क्या वह मसीह के लहू की सहभागिता नहीं? वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या मसीह की देह की सहभागिता नहीं? 17 इसलिए, कि एक ही रोटी है तो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं।
18 जो शरीर के भाव से इस्राएली हैं, उनको देखो: क्या बलिदानों के खानेवाले वेदी के सहभागी नहीं? 19 फिर मैं क्या कहता हूँ? क्या यह कि मूर्ति का बलिदान कुछ है, या मूरत कुछ है?
20 नहीं, बस यह, कि अन्यजाति जो बलिदान करते हैं, वे परमेश्वर के लिये नहीं, परन्तु दुष्टात्माओं के लिये बलिदान* करते हैं और मैं नहीं चाहता, कि तुम दुष्टात्माओं के सहभागी हो। (व्य. 32:17) 21 तुम प्रभु के कटोरे, और दुष्टात्माओं के कटोरे दोनों में से नहीं पी सकते! तुम प्रभु की मेज और दुष्टात्माओं की मेज दोनों के सहभागी नहीं हो सकते। (मत्ती 6:24) 22 क्या हम प्रभु को क्रोध दिलाते हैं? क्या हम उससे शक्तिमान हैं? (व्य. 32:21)
23 सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं। सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुओं से उन्नति नहीं। 24 कोई अपनी ही भलाई को न ढूँढ़े वरन् औरों की।
25 जो कुछ कस्साइयों के यहाँ बिकता है, वह खाओ और विवेक के कारण कुछ न पूछो। 26 “क्योंकि पृथ्वी और उसकी भरपूरी प्रभु की है।” (भज. 24:1) 27 और यदि अविश्वासियों में से कोई तुम्हें नेवता दे, और तुम जाना चाहो, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ: और विवेक के कारण कुछ न पूछो।
28 परन्तु यदि कोई तुम से कहे, “यह तो मूरत को बलि की हुई वस्तु है,” तो उसी बतानेवाले के कारण, और विवेक के कारण न खाओ। 29 मेरा मतलब, तेरा विवेक नहीं, परन्तु उस दूसरे का। भला, मेरी स्वतंत्रता दूसरे के विचार से क्यों परखी जाए? 30 यदि मैं धन्यवाद करके सहभागी होता हूँ, तो जिस पर मैं धन्यवाद करता हूँ, उसके कारण मेरी बदनामी क्यों होती है?
31 इसलिए तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो। 32 तुम न यहूदियों, न यूनानियों, और न परमेश्वर की कलीसिया के लिये ठोकर के कारण* बनो। 33 जैसा मैं भी सब बातों में सब को प्रसन्न रखता हूँ, और अपना नहीं, परन्तु बहुतों का लाभ ढूँढ़ता हूँ, कि वे उद्धार पाएँ।
पौलुस निर्गमन की पुस्तक में मूसा के समय की बात कर रहा है जब वे मिस्री सेना के भय से लाल सागर पार कर रहे थे। यहां “हमारे” समाविष्ट है “सब यहूदियों के पूर्वज”
वैकल्पिक अनुवाद: “सब मूसा को समर्पित उसका अनुसरण कर रहे थे”
“मिस्र से पलायन करने के बाद उन सब ने लाल सागर पार किया”
दिन में उनकी अगुआई करनेवाला बादल परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक था।
“चट्टान” मसीह की अभेद्य शक्ति का प्रतीक है जो संपूर्ण यात्रा उनके साथ था। वे उसकी सुरक्षा एवं शान्ति पर निर्भर कर सकते थे।
“अप्रसन्न” या “क्रोधित” (यू.डी.बी.)
इस्राएलियों के पूर्वजों से
मिस्र और इस्राएल के मध्य का जंगल जिसमें वे 40 वर्ष भटक रहे थे।
इस्राएलियों के लिए शिक्षा या उदाहरण
परमेश्वर का सम्मान न करने वाली बातों की लालसा करना
“मूर्तियों की पूजा करने वाले”
“भोज के लिए बैठे”
“परमेश्वर ने एक ही दिन में तेईस हजार लोगों को मार डाला”
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि उन्होंने अवैध यौनाचार किया”
शिकायत करना और रोष प्रकट करना”
“मृत्यु के स्वर्गदूत ने उन्हें नष्ट किया”
वैकल्पिक अनुवाद:“मार डाला”
कुकर्मों के परिणाम स्वरूप दण्ड
“हमारी” अर्थात सब विश्वासियों
“अन्तिम दिनों”
पाप न करे या परमेश्वर का सम्मान करें
वैकल्पिक अनुवाद“तुम पर जो परीक्षाएं आती हैं, वे सब पर ही आती है” )
तुम्हारी शारीरिक और मानसिक शक्ति से परे नहीं
“मूर्तिपूजा से निश्चित रूप से अलग रहो”
पौलुस इस अभिव्यक्ति द्वारा दाखरस के कटोरे का संकेत देता है जो प्रभु भोज में काम में आता है।
जिस दाखरस के कटोरे में हम सहभागिता करते हैं वह मसीह के लहू में सहभागिता का प्रतीक है। “हम मसीह के लहू में सहभागी होते हैं”।
वह रोटी जिसे हम तोड़ते है, क्या वह मसीह की देह की सहभागिता नहीं? -वैकल्पिक अनुवाद: “रोटी में सहभागी होते समय हम मसीह की देह में सहभागी होते हैं” )
“उसमें भागीदार होना” या “सब के साथ बराबर की हिस्सेदारी करना”
पक्की हुई संपूर्ण रोटी जिसे बांटने के लिए तोड़ा जाता है
वैकल्पिक अनुवाद: जो बलि के भोज्य पदार्थों को खाते हैं वे वेदी के भागीदार होते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं अपनी बात दोहराता हूं” या “मेरे कहने का अर्थ यह है”
वैकल्पिक अनुवाद: “मूर्ति वास्तव में कुछ नहीं है” या “मूर्ति का कोई महत्व नहीं है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “मूर्ति पर चढ़ाया गया भोजन यह महत्व नहीं रखता है” या “मूर्ति को भेंट चढ़ाया हुआ भोजन अर्थहीन है”
किसी के द्वारा दिए गए कटोरे की सहभागिता प्रायः उसके पेय पदार्थ का संदर्भ देती है। यह “एक ही मान्यताओं की सहभागिता” के लिए एक रूपक है।
वैकल्पिक अनुवाद: “यदि तुम प्रभु की उपासना के साथ-साथ दुष्टात्माओं की उपासना करते हो तो प्रभु की तुम्हारी उपासना निष्ठावान नहीं है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “रोष दिलाते हो” या “भड़काते हो”
वैकल्पिक अनुवाद: “हम दुष्टात्माओं की संगति कर सकते हैं जबकि परमेश्वर नहीं करता है” या “हम परमेश्वर से अधिक शक्तिशाली नहीं हैं”
पौलुस कुछ कुरिन्थ वासियों की लोकोक्ति का उद्धारण दे रहा है। वैकल्पिक अनुवाद: “मैं जो चाहूं वह कर सकता हूं”।
अपना ही नहीं दूसरों का भी भला करो
वैकल्पिक अनुवाद: “लाभ”
मांस बेचने वालों की दुकान में
परमेश्वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को सृजा है
अपने विवेक के कारण मत पूछो कि भोजन कहां से आया है यह मान लो कि भोजन परमेश्वर देता है चाहे वह मूर्ति को चढ़ाया गया हो या नहीं
वैकल्पिक अनुवाद: “मेरी अपनी पसन्द किसी के सही या गलत मानने से क्यों बदली जाए।
यहां “मैं” पौलुस के लिए नहीं उनके लिए काम में लिया गया है जो धन्यवाद देकर मांस खाते हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “यदि मनुष्य.... सहभागी हो” या “जब मनुष्य खाए”
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “परमेश्वर की सराहना एवं धन्यवाद के साथ” 2) अतिथि सत्कार करने वाले की सराहना एवं धन्यवाद के साथ”।
“जब मैंने भोजन के लिए धन्यवाद किया तो तुम मेरी निन्दा क्यों करते हो? “वैकल्पिक अनुवाद, “मैं किसी को मुझ पर दोष लगाने नहीं दूंगा”
वैकल्पिक अनुवाद: “अप्रसन्न मत करो” या “ठोकर लगने का कारण मत बनो”
वैकल्पिक अनुवाद: “सब मनुष्यों को स्वीकार्य हूं”
वैकल्पिक अनुवाद: “अपनी ही लालसा पूर्ति नहीं करता हूं”
यथा संभव अधिकाधिक
सब बाप दादे बादल के नीचे थे सबके सब समुद्र के बीच से पार हो गए, सबने बादल में और समुद्र में मूसा का बपतिस्मा लिया और सबने एक ही आत्मिक भोजन किया, और सबने एक ही आत्मिक जल पीया।
जो चट्टान उनके साथ चलती थी वह मसीह था।
वे अनेक कारणों द्वारा मारे गए, कुछ सांपों के काटने से, कुछ नष्ट करने वाले मृत्यु के दूत से, उनके शव जंगल में बिखराए गए।
परमेश्वर उनसे प्रसन्न नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने लालच किया, व्यभिचार किया, उन्होंने प्रभु को परखा और कुड़कुड़ाए।
वे अनेक कारणों द्वारा मारे गए, कुछ सांपों के काटने से, कुछ नष्ट करने वाले मृत्यु के दूत से, उनके शव जंगल में बिखराए गए।
यह सब हमारे लिए दृष्टान्त की रीति पर और हमारी चेतावनी के लिये लिखी गईं हैं।
हम पर ऐसी कोई परीक्षा नहीं आई है जो सहने से बाहर मनुष्य के लिए असाधारण है।
उसने परीक्षा से बचने का मार्ग भी उपलब्ध करवाया है कि हम परीक्षा का सामना कर सकें।
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को किससे बचने की चेतावनी देता है।
कटोरा मसीह के लहू और रोटी मसीही की देह की सहभागिता है।
वे दुष्टात्माओं के लिए बलिदान चढ़ाते हैं परमेश्वर के लिए नहीं।
पौलुस उनसे कहता है कि वे प्रभु के कटोरे और दुष्टात्माओं के कटोरे से एक साथ पी नहीं सकते और प्रभु की मेज और दुष्टात्माओं की मेज के एक साथ साझी नहीं हो सकते।
हम प्रभु को क्रोध दिलाने का जोखिम उठाते हैं।
नहीं, हर एक को अपने पड़ोसी की भलाई की खोज में रहना है।
विवेक के कारण कुछ न पूछो बस खा लो।
यदि वह कहे कि वह भोजन मूर्ति को चढ़ाया हुआ है तो उसके कारण और विवेक के कारण मत खाओ।
हमें सब काम, खाना-पीना भी परमेश्वर की महिमा के निमित्त करना है।
कलीसिया के लिए ठोकर का कारण न बनो कि वे उद्धार पाएं।
1 तुम मेरी जैसी चाल चलो जैसा मैं मसीह के समान चाल चलता हूँ।
2 मैं तुम्हें सराहता हूँ, कि सब बातों में तुम मुझे स्मरण करते हो; और जो व्यवहार मैंने तुम्हें सौंप दिए हैं, उन्हें धारण करते हो। 3 पर मैं चाहता हूँ, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्वर है। 4 जो पुरुष सिर ढाँके हुए प्रार्थना या भविष्यद्वाणी करता है, वह अपने सिर का अपमान करता है।
5 परन्तु जो स्त्री बिना सिर ढके प्रार्थना या भविष्यद्वाणी करती है, वह अपने सिर का अपमान करती है, क्योंकि वह मुण्डी होने के बराबर है। 6 यदि स्त्री ओढ़नी न ओढ़े, तो बाल भी कटा ले; यदि स्त्री के लिये बाल कटाना या मुण्डाना लज्जा की बात है, तो ओढ़नी ओढ़े।
7 हाँ पुरुष को अपना सिर ढाँकना उचित नहीं, क्योंकि वह परमेश्वर का स्वरूप और महिमा है; परन्तु स्त्री पुरुष की शोभा है। (1 कुरि. 11:3) 8 क्योंकि पुरुष स्त्री से नहीं हुआ, परन्तु स्त्री पुरुष से हुई है। (उत्प. 2:21-23)
9 और पुरुष स्त्री के लिये नहीं सिरजा गया*, परन्तु स्त्री पुरुष के लिये सिरजी गई है। (उत्प. 2:18) 10 इसलिए स्वर्गदूतों के कारण स्त्री को उचित है, कि अधिकार अपने सिर पर रखे।
11 तो भी प्रभु में न तो स्त्री बिना पुरुष और न पुरुष बिना स्त्री के है। 12 क्योंकि जैसे स्त्री पुरुष से है*, वैसे ही पुरुष स्त्री के द्वारा है; परन्तु सब वस्तुएँ परमेश्वर से हैं।
13 तुम स्वयं ही विचार करो, क्या स्त्री को बिना सिर ढके परमेश्वर से प्रार्थना करना उचित है? 14 क्या स्वाभाविक रीति से भी तुम नहीं जानते, कि यदि पुरुष लम्बे बाल रखे, तो उसके लिये अपमान है। 15 परन्तु यदि स्त्री लम्बे बाल रखे; तो उसके लिये शोभा है क्योंकि बाल उसको ओढ़नी के लिये दिए गए हैं। 16 परन्तु यदि कोई विवाद करना चाहे, तो यह जाने कि न हमारी और न परमेश्वर की कलीसियाओं की ऐसी रीति है।
17 परन्तु यह निर्देश देते हुए, मैं तुम्हें नहीं सराहता, इसलिए कि तुम्हारे इकट्ठे होने से भलाई नहीं, परन्तु हानि होती है। 18 क्योंकि पहले तो मैं यह सुनता हूँ, कि जब तुम कलीसिया में इकट्ठे होते हो, तो तुम में फूट होती है और मैं कुछ-कुछ विश्वास भी करता हूँ। 19 क्योंकि विधर्म भी तुम में अवश्य होंगे, इसलिए कि जो लोग तुम में खरे निकले हैं, वे प्रगट हो जाएँ।
20 जब तुम एक जगह में इकट्ठे होते हो* तो यह प्रभु भोज खाने के लिये नहीं। 21 क्योंकि खाने के समय एक दूसरे से पहले अपना भोज खा लेता है, तब कोई भूखा रहता है, और कोई मतवाला हो जाता है। 22 क्या खाने-पीने के लिये तुम्हारे घर नहीं? या परमेश्वर की कलीसिया को तुच्छ जानते हो, और जिनके पास नहीं है उन्हें लज्जित करते हो? मैं तुम से क्या कहूँ? क्या इस बात में तुम्हारी प्रशंसा करूँ? मैं प्रशंसा नहीं करता।
23 क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुँची, और मैंने तुम्हें भी पहुँचा दी; कि प्रभु यीशु ने जिस रात पकड़वाया गया रोटी ली, 24 और धन्यवाद करके उसे तोड़ी, और कहा, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।”
25 इसी रीति से उसने बियारी के बाद कटोरा भी लिया, और कहा, “यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (लूका 22:20) 26 क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।
27 इसलिए जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लहू का अपराधी ठहरेगा। 28 इसलिए मनुष्य अपने आप को जाँच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए। 29 क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहचाने, वह इस खाने और पीने से अपने ऊपर दण्ड लाता है। 30 इसी कारण तुम में बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए।
31 यदि हम अपने आप को जाँचते, तो दण्ड न पाते। 32 परन्तु प्रभु हमें दण्ड देकर हमारी ताड़ना करता है इसलिए कि हम संसार के साथ दोषी न ठहरें।
33 इसलिए, हे मेरे भाइयों, जब तुम खाने के लिये इकट्ठे होते हो, तो एक दूसरे के लिये ठहरा करो। 34 यदि कोई भूखा हो, तो अपने घर में खा ले जिससे तुम्हारा इकट्ठा होना दण्ड का कारण न हो। और शेष बातों को मैं आकर ठीक कर दूँगा।
1 हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम आत्मिक वरदानों* के विषय में अज्ञात रहो। 2 तुम जानते हो, कि जब तुम अन्यजाति थे, तो गूंगी मूरतों के पीछे जैसे चलाए जाते थे वैसे चलते थे। (गला. 4:8) 3 इसलिए मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि जो कोई परमेश्वर की आत्मा की अगुआई से बोलता है, वह नहीं कहता कि यीशु श्रापित है; और न कोई पवित्र आत्मा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है।
4 वरदान तो कई प्रकार के हैं, परन्तु आत्मा एक ही है। 5 और सेवा भी कई प्रकार की है, परन्तु प्रभु एक ही है। 6 और प्रभावशाली कार्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमेश्वर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है।
7 किन्तु सब के लाभ पहुँचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है। 8 क्योंकि एक को आत्मा के द्वारा बुद्धि की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्मा के अनुसार ज्ञान की बातें।
9 और किसी को उसी आत्मा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्मा से चंगा करने का वरदान दिया जाता है। 10 फिर किसी को सामर्थ्य के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की; और किसी को आत्माओं की परख, और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्थ बताना। 11 परन्तु ये सब प्रभावशाली कार्य वही एक आत्मा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बाँट देता है।
12 क्योंकि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है। 13 क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या यूनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा* एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया।
14 इसलिए कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं। 15 यदि पाँव कहे: कि मैं हाथ नहीं, इसलिए देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं? 16 और यदि कान कहे, “मैं आँख नहीं, इसलिए देह का नहीं,” तो क्या वह इस कारण देह का नहीं? 17 यदि सारी देह आँख ही होती तो सुनना कहाँ से होता? यदि सारी देह कान ही होती तो सूँघना कहाँ होता?
18 परन्तु सचमुच परमेश्वर ने अंगों को अपनी इच्छा के अनुसार एक-एक करके देह में रखा है। 19 यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहाँ होती? 20 परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है।
21 आँख हाथ से नहीं कह सकती, “मुझे तेरा प्रयोजन नहीं,” और न सिर पाँवों से कह सकता है, “मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं।” 22 परन्तु देह के वे अंग जो औरों से निर्बल* देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं। 23 और देह के जिन अंगों को हम कम आदरणीय समझते हैं उन्हीं को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं, 24 फिर भी हमारे शोभायमान अंगों को इसका प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो।
25 ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें। 26 इसलिए यदि एक अंग दुःख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दुःख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साथ सब अंग आनन्द मनाते हैं। 27 इसी प्रकार तुम सब मिलकर मसीह की देह हो, और अलग-अलग उसके अंग हो।
28 और परमेश्वर ने कलीसिया में अलग-अलग व्यक्ति नियुक्त किए हैं; प्रथम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक, फिर सामर्थ्य के काम करनेवाले, फिर चंगा करनेवाले, और उपकार करनेवाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बोलनेवाले। 29 क्या सब प्रेरित हैं? क्या सब भविष्यद्वक्ता हैं? क्या सब उपदेशक हैं? क्या सब सामर्थ्य के काम करनेवाले हैं?
30 क्या सब को चंगा करने का वरदान मिला है? क्या सब नाना प्रकार की भाषा बोलते हैं? 31 क्या सब अनुवाद करते हैं? तुम बड़े से बड़े वरदानों की धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सबसे उत्तम मार्ग बताता हूँ।
1 यदि मैं मनुष्यों, और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झाँझ हूँ। 2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूँ, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूँ, और मुझे यहाँ तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूँ, परन्तु प्रेम न रखूँ, तो मैं कुछ भी नहीं*। 3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। 5 अशोभनीय व्यवहार नहीं करता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुँझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। 6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। 7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है*, सब बातों में धीरज धरता है। (1 कुरि. 13:4)
8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियाँ हों, तो समाप्त हो जाएँगी, भाषाएँ मौन हो जाएँगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। 9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी। 10 परन्तु जब सर्वसिद्ध* आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों के समान बोलता था, बालकों के समान मन था बालकों सी समझ थी; परन्तु सयाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी। 12 अब हमें दर्पण में धुँधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने-सामने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहचानूँगा, जैसा मैं पहचाना गया हूँ। 13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी* है, पर इनमें सबसे बड़ा प्रेम है।
1 प्रेम का अनुकरण करो*, और आत्मिक वरदानों की भी धुन में रहो विशेष करके यह, कि भविष्यद्वाणी करो। 2 क्योंकि जो अन्य भाषा* में बातें करता है; वह मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से बातें करता है; इसलिए कि उसकी बातें कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता है। 3 परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है। 4 जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपनी ही उन्नति करता है; परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह कलीसिया की उन्नति करता है।
5 मैं चाहता हूँ, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो, परन्तु अधिकतर यह चाहता हूँ कि भविष्यद्वाणी करो: क्योंकि यदि अन्य भाषा बोलनेवाला कलीसिया की उन्नति के लिये अनुवाद न करे तो भविष्यद्वाणी करनेवाला उससे बढ़कर है।
6 इसलिए हे भाइयों, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्य भाषा में बातें करूँ, और प्रकाश, या ज्ञान, या भविष्यद्वाणी, या उपदेश की बातें तुम से न कहूँ, तो मुझसे तुम्हें क्या लाभ होगा? 7 इसी प्रकार यदि निर्जीव वस्तुएँ भी, जिनसे ध्वनि निकलती है जैसे बाँसुरी, या बीन, यदि उनके स्वरों में भेद न हो तो जो फूँका या बजाया जाता है, वह क्यों पहचाना जाएगा? 8 और यदि तुरही का शब्द साफ न हो तो कौन लड़ाई के लिये तैयारी करेगा? 9 ऐसे ही तुम भी यदि जीभ से साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है? वह क्यों समझा जाएगा? तुम तो हवा से बातें करनेवाले ठहरोगे।
10 जगत में कितने ही प्रकार की भाषाएँ क्यों न हों, परन्तु उनमें से कोई भी बिना अर्थ की न होगी।
11 इसलिए यदि मैं किसी भाषा का अर्थ न समझूँ, तो बोलनेवाले की दृष्टि में परदेशी ठहरूँगा; और बोलनेवाला मेरी दृष्टि में परदेशी ठहरेगा। 12 इसलिए तुम भी जब आत्मिक वरदानों की धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे वरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो। 13 इस कारण जो अन्य भाषा बोले, तो वह प्रार्थना करे, कि उसका अनुवाद भी कर सके। 14 इसलिए यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्थना करूँ, तो मेरी आत्मा प्रार्थना करती है, परन्तु मेरी बुद्धि काम नहीं देती।
15 तो क्या करना चाहिए? मैं आत्मा से भी प्रार्थना करूँगा, और बुद्धि से भी प्रार्थना करूँगा; मैं आत्मा से गाऊँगा, और बुद्धि से भी गाऊँगा। 16 नहीं तो यदि तू आत्मा ही से धन्यवाद करेगा, तो फिर अज्ञानी तेरे धन्यवाद पर आमीन क्यों कहेगा? इसलिए कि वह तो नहीं जानता, कि तू क्या कहता है?
17 तू तो भली भाँति से धन्यवाद करता है, परन्तु दूसरे की उन्नति नहीं होती। 18 मैं अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, कि मैं तुम सबसे अधिक अन्य भाषा में बोलता हूँ। 19 परन्तु कलीसिया में अन्य भाषा में दस हजार बातें कहने से यह मुझे और भी अच्छा जान पड़ता है, कि औरों के सिखाने के लिये बुद्धि से पाँच ही बातें कहूँ।
20 हे भाइयों, तुम समझ में बालक न बनो: फिर भी बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ में सयाने बनो। 21 व्यवस्था में लिखा है,
कि प्रभु कहता है,
“मैं अन्य भाषा बोलनेवालों के द्वारा, और पराए मुख के द्वारा
इन लोगों से बात करूँगा
तो भी वे मेरी न सुनेंगे।” (यशा. 28:11-12)
22 इसलिए अन्य भाषाएँ विश्वासियों के लिये नहीं, परन्तु अविश्वासियों के लिये चिन्ह हैं, और भविष्यद्वाणी अविश्वासियों के लिये नहीं परन्तु विश्वासियों के लिये चिन्ह हैं। 23 तो यदि कलीसिया एक जगह इकट्ठी हो, और सब के सब अन्य भाषा बोलें, और बाहरवाले या अविश्वासी लोग भीतर आ जाएँ तो क्या वे तुम्हें पागल न कहेंगे?
24 परन्तु यदि सब भविष्यद्वाणी करने लगें, और कोई अविश्वासी या बाहरवाले मनुष्य भीतर आ जाए, तो सब उसे दोषी ठहरा देंगे और परख लेंगे। 25 और उसके मन के भेद प्रगट हो जाएँगे, और तब वह मुँह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत् करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है।
26 इसलिए हे भाइयों क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन, या उपदेश, या अन्य भाषा, या प्रकाश, या अन्य भाषा का अर्थ बताना रहता है: सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिए। 27 यदि अन्य भाषा में बातें करनी हों, तो दो-दो, या बहुत हो तो तीन-तीन जन बारी-बारी बोलें, और एक व्यक्ति अनुवाद करे*। 28 परन्तु यदि अनुवाद करनेवाला न हो, तो अन्य भाषा बोलनेवाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपने मन से, और परमेश्वर से बातें करे।
29 भविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उनके वचन को परखें। 30 परन्तु यदि दूसरे पर जो बैठा है, कुछ ईश्वरीय प्रकाश हो, तो पहला चुप हो जाए।
31 क्योंकि तुम सब एक-एक करके भविष्यद्वाणी कर सकते हो ताकि सब सीखें, और सब शान्ति पाएँ। 32 और भविष्यद्वक्ताओं की आत्मा भविष्यद्वक्ताओं के वश में है। 33 क्योंकि परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं*, परन्तु शान्ति का कर्ता है;
जैसा पवित्र लोगों की सब कलीसियाओं में है। 34 स्त्रियाँ कलीसिया की सभा में चुप रहें, क्योंकि उन्हें बातें करने की अनुमति नहीं, परन्तु अधीन रहने की आज्ञा है: जैसा व्यवस्था में लिखा भी है। 35 और यदि वे कुछ सीखना चाहें, तो घर में अपने-अपने पति से पूछें, क्योंकि स्त्री का कलीसिया में बातें करना लज्जा की बात है। 36 क्यों परमेश्वर का वचन तुम में से निकला? या केवल तुम ही तक पहुँचा है?
37 यदि कोई मनुष्य अपने आप को भविष्यद्वक्ता या आत्मिक जन समझे, तो यह जान ले, कि जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूँ, वे प्रभु की आज्ञायें हैं। 38 परन्तु यदि कोई न माने, तो न माने।
39 सो हे भाइयों, भविष्यद्वाणी करने की धुन में रहो और अन्य भाषा बोलने से मना न करो। 40 पर सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएँ।
1 हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूँ जो पहले सुना चुका हूँ, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था और जिसमें तुम स्थिर भी हो। 2 उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैंने तुम्हें सुनाया था स्मरण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ हुआ।
3 इसी कारण मैंने सबसे पहले तुम्हें वही बात पहुँचा दी, जो मुझे पहुँची थी, कि पवित्रशास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया*। 4 और गाड़ा गया; और पवित्रशास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा। (होशे 6:2)
5 और कैफा को तब बारहों को दिखाई दिया। 6 फिर पाँच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया, जिनमें से बहुत सारे अब तक वर्तमान हैं पर कितने सो गए। 7 फिर याकूब को दिखाई दिया तब सब प्रेरितों को दिखाई दिया।
8 और सब के बाद मुझ को भी दिखाई दिया, जो मानो अधूरे दिनों का जन्मा हूँ। 9 क्योंकि मैं प्रेरितों में सबसे छोटा हूँ, वरन् प्रेरित कहलाने के योग्य भी नहीं, क्योंकि मैंने परमेश्वर की कलीसिया को सताया था।
10 परन्तु मैं जो कुछ भी हूँ, परमेश्वर के अनुग्रह से हूँ। और उसका अनुग्रह जो मुझ पर हुआ, वह व्यर्थ नहीं हुआ परन्तु मैंने उन सबसे बढ़कर परिश्रम भी किया तो भी यह मेरी ओर से नहीं हुआ परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से जो मुझ पर था। 11 इसलिए चाहे मैं हूँ, चाहे वे हों, हम यही प्रचार करते हैं, और इसी पर तुम ने विश्वास भी किया।
12 सो जब कि मसीह का यह प्रचार किया जाता है, कि वह मरे हुओं में से जी उठा, तो तुम में से कितने क्यों कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं? 13 यदि मरे हुओं का पुनरुत्थान ही नहीं, तो मसीह भी नहीं जी उठा। 14 और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है; और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है।
15 वरन् हम परमेश्वर के झूठे गवाह ठहरे; क्योंकि हमने परमेश्वर के विषय में यह गवाही दी कि उसने मसीह को जिला दिया यद्यपि नहीं जिलाया, यदि मरे हुए नहीं जी उठते। 16 और यदि मुर्दे नहीं जी उठते, तो मसीह भी नहीं जी उठा। 17 और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो तुम्हारा विश्वास व्यर्थ है; और तुम अब तक अपने पापों में फँसे हो।
18 वरन् जो मसीह में सो गए हैं, वे भी नाश हुए। 19 यदि हम केवल इसी जीवन में मसीह से आशा रखते हैं तो हम सब मनुष्यों से अधिक अभागे हैं।
20 परन्तु सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उनमें पहला फल हुआ। 21 क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई*; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया।
22 और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएँगे। 23 परन्तु हर एक अपनी-अपनी बारी से; पहला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।
24 इसके बाद अन्त होगा; उस समय वह सारी प्रधानता और सारा अधिकार और सामर्थ्य का अन्त करके राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा। (दानि. 2:44) 25 क्योंकि जब तक कि वह अपने बैरियों को अपने पाँवों तले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है। (भज. 110:1) 26 सबसे अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है*।
27 क्योंकि “परमेश्वर ने सब कुछ उसके पाँवों तले कर दिया है,” परन्तु जब वह कहता है कि सब कुछ उसके अधीन कर दिया गया है तो स्पष्ट है, कि जिस ने सब कुछ मसीह के अधीन कर दिया, वह आप अलग रहा। (भज. 8:6) 28 और जब सब कुछ उसके अधीन हो जाएगा, तो पुत्र आप भी उसके अधीन हो जाएगा जिस ने सब कुछ उसके अधीन कर दिया; ताकि सब में परमेश्वर ही सब कुछ हो।
29 नहीं तो जो लोग मरे हुओं के लिये बपतिस्मा लेते हैं, वे क्या करेंगे? यदि मुर्दे जी उठते ही नहीं तो फिर क्यों उनके लिये बपतिस्मा लेते हैं? 30 और हम भी क्यों हर घड़ी जोखिम में पड़े रहते हैं?
31 हे भाइयों, मुझे उस घमण्ड की शपथ जो हमारे मसीह यीशु में मैं तुम्हारे विषय में करता हूँ, कि मैं प्रतिदिन मरता हूँ। 32 यदि मैं मनुष्य की रीति पर इफिसुस में वन-पशुओं से लड़ा, तो मुझे क्या लाभ हुआ? यदि मुर्दे जिलाए नहीं जाएँगे, “तो आओ, खाएँ-पीएँ, क्योंकि कल तो मर ही जाएँगे।” (यशा. 22:13)
33 धोखा न खाना, “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।”
34 धार्मिकता के लिये जाग उठो और पाप न करो; क्योंकि कितने ऐसे हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते, मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये यह कहता हूँ।
35 अब कोई यह कहेगा, “मुर्दे किस रीति से जी उठते हैं, और किस देह के साथ आते हैं?” 36 हे निर्बुद्धि, जो कुछ तू बोता है, जब तक वह न मरे जिलाया नहीं जाता।
37 और जो तू बोता है, यह वह देह नहीं जो उत्पन्न होनेवाली है, परन्तु निरा दाना है, चाहे गेहूँ का, चाहे किसी और अनाज का। 38 परन्तु परमेश्वर अपनी इच्छा के अनुसार उसको देह देता है; और हर एक बीज को उसकी विशेष देह। (उत्प. 1:11) 39 सब शरीर एक समान नहीं, परन्तु मनुष्यों का शरीर और है, पशुओं का शरीर और है; पक्षियों का शरीर और है; मछलियों का शरीर और है।
40 स्वर्गीय देह है, और पार्थिव देह भी है: परन्तु स्वर्गीय देहों का तेज और हैं, और पार्थिव का और। 41 सूर्य का तेज और है, चाँद का तेज और है, और तारागणों का तेज और है, क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है।
42 मुर्दों का जी उठना भी ऐसा ही है। शरीर नाशवान दशा में बोया जाता है, और अविनाशी रूप में जी उठता है। 43 वह अनादर के साथ बोया जाता है, और तेज के साथ जी उठता है; निर्बलता के साथ बोया जाता है; और सामर्थ्य के साथ जी उठता है। 44 स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्मिक देह जी उठती है: जब कि स्वाभाविक देह है, तो आत्मिक देह भी है।
45 ऐसा ही लिखा भी है, “प्रथम मनुष्य, अर्थात् आदम, जीवित प्राणी बना” और अन्तिम आदम, जीवनदायक आत्मा बना। 46 परन्तु पहले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इसके बाद आत्मिक हुआ।
47 प्रथम मनुष्य धरती से अर्थात् मिट्टी का था; दूसरा मनुष्य स्वर्गीय है। (यूह. 3:31) 48 जैसा वह मिट्टी का था वैसे ही वे भी हैं जो मिट्टी के हैं; और जैसा वह स्वर्गीय है, वैसे ही वे भी स्वर्गीय हैं। 49 और जैसे हमने उसका रूप जो मिट्टी का था धारण किया वैसे ही उस स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे। (1 यूह. 3:2)
50 हे भाइयों, मैं यह कहता हूँ कि माँस और लहू परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते, और न नाशवान अविनाशी का अधिकारी हो सकता है। 51 देखो, मैं तुम से भेद की बात कहता हूँ: कि हम सब तो नहीं सोएँगे, परन्तु सब बदल जाएँगे।
52 और यह क्षण भर में, पलक मारते ही अन्तिम तुरही फूँकते ही होगा क्योंकि तुरही फूँकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएँगे, और हम बदल जाएँगे। 53 क्योंकि अवश्य है, कि वह नाशवान देह अविनाश को पहन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहन ले।
54 और जब यह नाशवान अविनाश को पहन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहन लेगा, तब वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा,
“जय ने मृत्यु को निगल लिया। (यशा. 25:8)
55 हे मृत्यु तेरी जय कहाँ रहीं?
हे मृत्यु तेरा डंक कहाँ रहा?” (होशे 13:14)
56 मृत्यु का डंक पाप है; और पाप का बल व्यवस्था है। 57 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें जयवन्त करता है*।
58 इसलिए हे मेरे प्रिय भाइयों, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है। (गला. 6:9)
1 अब उस चन्दे के विषय में जो पवित्र लोगों के लिये किया जाता है, जैसा निर्देश मैंने गलातिया की कलीसियाओं को दी, वैसा ही तुम भी करो। 2 सप्ताह के पहले दिन तुम में से हर एक अपनी आमदनी के अनुसार कुछ अपने पास रख छोड़ा करे, कि मेरे आने पर चन्दा न करना पड़े।
3 और जब मैं आऊँगा, तो जिन्हें तुम चाहोगे उन्हें मैं चिट्ठियाँ देकर भेज दूँगा, कि तुम्हारा दान यरूशलेम पहुँचा दें। 4 और यदि मेरा भी जाना उचित हुआ, तो वे मेरे साथ जाएँगे।
5 और मैं मकिदुनिया होकर तुम्हारे पास आऊँगा, क्योंकि मुझे मकिदुनिया होकर जाना ही है। 6 परन्तु सम्भव है कि तुम्हारे यहाँ ही ठहर जाऊँ और शरद ऋतु तुम्हारे यहाँ काटूँ, तब जिस ओर मेरा जाना हो, उस ओर तुम मुझे पहुँचा दो।
7 क्योंकि मैं अब मार्ग में तुम से भेंट करना नहीं चाहता; परन्तु मुझे आशा है, कि यदि प्रभु चाहे तो कुछ समय तक तुम्हारे साथ रहूँगा। 8 परन्तु मैं पिन्तेकुस्त तक इफिसुस में रहूँगा। 9 क्योंकि मेरे लिये एक बड़ा और उपयोगी द्वार खुला है, और विरोधी बहुत से हैं।
10 यदि तीमुथियुस आ जाए, तो देखना, कि वह तुम्हारे यहाँ निडर रहे; क्योंकि वह मेरे समान प्रभु का काम करता है। 11 इसलिए कोई उसे तुच्छ न जाने, परन्तु उसे कुशल से इस ओर पहुँचा देना, कि मेरे पास आ जाए; क्योंकि मैं उसकी प्रतीक्षा करता रहा हूँ, कि वह भाइयों के साथ आए। 12 और भाई अपुल्लोस से मैंने बहुत विनती की है कि तुम्हारे पास भाइयों के साथ जाए; परन्तु उसने इस समय जाने की कुछ भी इच्छा न की, परन्तु जब अवसर पाएगा, तब आ जाएगा।
13 जागते रहो, विश्वास में स्थिर रहो, पुरुषार्थ करो, बलवन्त हो। (इफि. 6:10) 14 जो कुछ करते हो प्रेम से करो।
15 हे भाइयों, तुम स्तिफनास के घराने को जानते हो, कि वे अखाया के पहले फल हैं, और पवित्र लोगों की सेवा के लिये तैयार रहते हैं। 16 इसलिए मैं तुम से विनती करता हूँ कि ऐसों के अधीन रहो, वरन् हर एक के जो इस काम में परिश्रमी और सहकर्मी हैं।
17 और मैं स्तिफनास और फूरतूनातुस और अखइकुस के आने से आनन्दित हूँ, क्योंकि उन्होंने तुम्हारी घटी को पूरी की है। 18 और उन्होंने मेरी और तुम्हारी आत्मा को चैन दिया है* इसलिए ऐसों को मानो।
19 आसिया की कलीसियाओं की ओर से तुम को नमस्कार; अक्विला और प्रिस्का का और उनके घर की कलीसिया का भी तुम को प्रभु में बहुत-बहुत नमस्कार। 20 सब भाइयों का तुम को नमस्कार: पवित्र चुम्बन से आपस में नमस्कार करो।
21 मुझ पौलुस का अपने हाथ का लिखा हुआ नमस्कार: यदि कोई प्रभु से प्रेम न रखे तो वह श्रापित हो। 22 हमारा प्रभु आनेवाला है। 23 प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे। 24 मेरा प्रेम मसीह यीशु में* तुम सब के साथ रहे। आमीन।
1 पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुथियुस की ओर से परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, और सारे अखाया के सब पवित्र लोगों के नाम: 2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है। 4 वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सके, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।
5 क्योंकि जैसे मसीह के दुःख* हमको अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्ति में भी मसीह के द्वारा अधिक सहभागी होते है। 6 यदि हम क्लेश पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति और उद्धार के लिये है और यदि शान्ति पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति के लिये है; जिसके प्रभाव से तुम धीरज के साथ उन क्लेशों को सह लेते हो, जिन्हें हम भी सहते हैं। 7 और हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है*; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुःखों के वैसे ही शान्ति के भी सहभागी हो।
8 हे भाइयों, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ्य से बाहर था, यहाँ तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे। 9 वरन् हमने अपने मन में समझ लिया था, कि हम पर मृत्यु की सजा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, वरन् परमेश्वर का जो मरे हुओं को जिलाता है। 10 उसी ने हमें मृत्यु के ऐसे बड़े संकट से बचाया, और बचाएगा; और उससे हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा।
11 और तुम भी मिलकर प्रार्थना के द्वारा हमारी सहायता करोगे, कि जो वरदान बहुतों के द्वारा हमें मिला, उसके कारण बहुत लोग हमारी ओर से धन्यवाद करें।
12 क्योंकि हम अपने विवेक की इस गवाही पर घमण्ड करते हैं, कि जगत में और विशेष करके तुम्हारे बीच हमारा चरित्र परमेश्वर के योग्य ऐसी पवित्रता और सच्चाई सहित था, जो शारीरिक ज्ञान से नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह के साथ था। 13 हम तुम्हें और कुछ नहीं लिखते, केवल वह जो तुम पढ़ते या मानते भी हो, और मुझे आशा है, कि अन्त तक भी मानते रहोगे। 14 जैसा तुम में से कितनों ने मान लिया है, कि हम तुम्हारे घमण्ड का कारण है; वैसे तुम भी प्रभु यीशु के दिन हमारे लिये घमण्ड का कारण ठहरोगे।
15 और इस भरोसे से मैं चाहता था कि पहले तुम्हारे पास आऊँ; कि तुम्हें एक और दान मिले। 16 और तुम्हारे पास से होकर मकिदुनिया को जाऊँ, और फिर मकिदुनिया से तुम्हारे पास आऊँ और तुम मुझे यहूदिया की ओर कुछ दूर तक पहुँचाओ।
17 इसलिए मैंने जो यह इच्छा की थी तो क्या मैंने चंचलता दिखाई? या जो करना चाहता हूँ क्या शरीर के अनुसार करना चाहता हूँ, कि मैं बात में ‘हाँ, हाँ’ भी करूँ; और ‘नहीं, नहीं’ भी करूँ? 18 परमेश्वर विश्वासयोग्य है, कि हमारे उस वचन में जो तुम से कहा ‘हाँ’ और ‘नहीं’ दोनों पाए नहीं जाते।
19 क्योंकि परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह जिसका हमारे द्वारा अर्थात् मेरे और सिलवानुस और तीमुथियुस के द्वारा तुम्हारे बीच में प्रचार हुआ; उसमें ‘हाँ’ और ‘नहीं’ दोनों न थी; परन्तु, उसमें ‘हाँ’ ही ‘हाँ’ हुई। 20 क्योंकि परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएँ* हैं, वे सब उसी में ‘हाँ’ के साथ हैं इसलिए उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।
21 और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक* किया वही परमेश्वर है। 22 जिस ने हम पर छाप भी कर दी है और बयाने में आत्मा को हमारे मनों में दिया।
23 मैं परमेश्वर को गवाह करता हूँ, कि मैं अब तक कुरिन्थुस में इसलिए नहीं आया, कि मुझे तुम पर तरस आता था। 24 यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं क्योंकि तुम विश्वास ही से स्थिर रहते हो।
“पौलुस की ओर से” आपकी भाषा में पत्र लिखने वाले के परिचय की अपनी विधि होगी। “मैं, पौलुस यह पत्र लिख रहा हूं”
नये नियम में प्रेरित "भाई" शब्द का उपयोग करते थे जिसका अर्थ होता था सब विश्वासी क्योंकि मसीह में विश्वास करने वाले सब जन एक ही आत्मिक परिवार के सदस्य थे जिनका स्वार्गिक पिता परमेश्वर है।
यह एक रोमन प्रान्त का नाम है जो आज के यूनान का दक्षिण भाग है।
"तुम्हें" का सन्दर्भ कुरिन्थ की कलीसिया के सदस्यों से है वरन् उस क्षेत्र के सब विश्वासियों से। यह पौलुस के पत्रों में प्रयुक्त एक सामान्य अभिवादन है।
पौलुस और तीमुथियुस इस पत्र की प्रस्तावना ही में है।
"परमेश्वर जो हमारा पिता है"
ये वाक्यांश एक ही बात को व्यक्त करने की अभिन्न विधियाँ है। "पिता" और "परमेश्वर" शब्दों द्वारा "दाता" या "स्रोत" का वर्णन किया गया है जो हमारा परमेश्वर है, क्योंकि परमेश्वर ही तो सब बातों का स्रोत है। वैकल्पिक अनुवाद: "सम्पूर्ण दया एवं अनुकम्पा का स्रोत"
"हमारे"
पौलुस और तीमुथियुस कुरिन्थ की कलीसिया को प्रोत्साहित करते हैं।
"ठीक वैसे ही जैसे मसीह ने हमारे लिए बहुत कष्ट उठाया है
कुरिन्थ की कलीसिया तो कष्ट उठा रही थी परन्तु पौलुस अपने और अपने साथियों के सन्दर्भ में भी कह रहा है।
"जिसका तुम अनुभव करके"
पौलुस और तीमुथियुस पत्र लिख रहे हैं।
"हम चाहते है कि तुम्हें इसका बोध हो जाए"
"दब गये", इन शब्दों का सन्दर्भ घोर निराशा की अनुभूति से है। वैकल्पिक अनुवाद: "पूर्णत: हताश"
पौलुस और तीमुथियुस अपनी हताशा की भावनाओं के सन्दर्भ में कह रहे है कि वह एक बहुत भारी बोझ के समान थी।
पौलुस और तीमुथियुस के मन में हताशा ने ऐसा स्थान बना लिया था कि जैसे मानों किसी ने उन्हें मृत्यु दण्ड सुना दिया है। वैकल्पिक अनुवाद: "हम ऐसे हताश हो चुके थे जैसे मृत्यु दण्ड पाने वाले की मानसिक दशा हो जाती है"
"अपना भरोसा" इस वाक्य में नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद: "परन्तु हुआ यह की हमने परमेश्वर ही में भरोसा रखा"
"जो मृतकों को पुन: जीवन देता है"
पौलुस और तीमुथियुस अपनी हताशा को मृत्यु के संकट या विनाश बड़ी संकट की तुलना में प्रकट कर रहे है(यू.डी.बी)। वैकल्पिक अनुवाद: "हताशा"
"जब तुम, कुरिन्थ की कलीसिया हमारे लिए प्रार्थना करती है तो परमेश्वर संकटों से हमारा निवारण करता है"
यह प्रमाण पौलुस और तीमुथियुस अपने विवेक से अपने कामों के विषय में है।
“मानवीय ज्ञान”
“हम जो कुछ भी तुम्हें लिखते है, उसे तुम पढ़कर समझ सकते हो”
“ठीक वैसे तुम भी हमारे लिए गर्व का कारण होगे”।
यह पिछले पदों में कुरिन्थ की कलीसिया के बारे में पौलुस की टिप्पणियों के संदर्भ में है।
“यहूदिया जाने में मेरी सहायता करना”
पौलुस और तीमुथियुस इस प्रश्न द्वारा अपने निर्णय की निश्चितता प्रकट करते हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “जब मैं ऐसा सोच रहा था तो मैं अपने निर्णय में अटका था।”
“क्या मैं डांवाडोल था”
पौलुस अपनी एकनिष्ठा का प्रतिवाद प्रस्तुत करता है। वैकल्पिक अनुवाद: “मैं परमेश्वर की इच्छा के अनुसार योजना बनाता हूं। मैं “हां” या “नहीं” तब ही कहता हूँ जब मुझे यह बोध हो कि मेरा उत्तर सत्य है”।
पौलुस और तीमुथियुस यीशु द्वारा किसी अनुरोध का संदर्भ में दे रहे है। वैकल्पिक अनुवाद: उत्तर नहीं देता है।
यहां “हां” उस मनुष्य के संदर्भ में है जिसे विश्वास है कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उद्धार करेगा”।
“उसी में” अर्थात् मसीह यीशु में
पौलुस और तीमुथियुस कुरिन्थ की कलीसिया को ही पत्र लिख रहे हैं।
“छाप” का अभिप्राय है, “परमेश्वर द्वारा अनुमोदन”। वैकल्पिक अनुवाद:“हमें मान्यता प्रदान की”
“गवाह करके” यह उक्ति उस मनुष्य के संदर्भ में है जो आंखों देखी और स्वयं सुनी हुई बात की चर्चा करता है कि विवाद का निर्णय निश्चित हो “मैं परमेश्वर से विनती करता हूँ कि मेरी बात को सत्यता सिद्ध करे”।
“स्थिर” अर्थात अपरिवर्तनीय बात। वैकल्पिक अनुवाद: “अपने विश्वास में दृढ़ रहो”।
यह पत्र पौलुस और तीमुथियुस ने लिखा था।
यह पत्र कुरिन्थ नगर में परमेश्वर की कलीसिया और अखया के सब पवित्र जनों के लिए था।
पौलुस परमेश्वर को हमारे प्रभु मसीह का पिता, दया का पिता और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है।
वह हमें शान्ति दिलाता है कि हम भी उन लोगों को शान्ति दे पायें जो क्लेश में है, यह वह शान्ति है जो परमेश्वर ने हमें दी है।
वे अपनी सहनशक्ति से परे क्लेश में थे। उन पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी थी।
मृत्यु की इस आज्ञा के कारण उन्होंने सीखा कि अपने ऊपर नहीं परमेश्वर के ऊपर भरोसा रखें।
पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया से निवेदन किया कि वे उनके लिए प्रार्थना करें।
पौलुस और उसके साथी अपने विवेक की गवाही पर घमण्ड करते थे कि जगत में और विशेष करके कुरिन्थ की कलीसिया के साथ उनका व्यवहार पवित्रता और सत्यनिष्ठा था जो परमेश्वर से था अर्थात शारीरिक ज्ञान से नहीं परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से।
पौलुस को आशा थी कि पौलुस और उसके साथी प्रभु के दिन कुरिन्थ के पवित्र जनों के लिए घमण्ड का कारण ठहरेंगे।
वह उनसे भेंट करने के लिए दो बार आना चाहता था।
परमेश्वर ने हमारे भावी भाग के बयाने में हमें पवित्र आत्मा दिया है।
वह कुरिन्थ इसलिए नहीं आया था कि उसे उन पर तरस आता था।
पौलुस कहता है कि वह विश्वास के विषय में उन पर प्रभुता जताना नहीं चाहता था परन्तु उनके आनंद के लिए क्रियाशील था।
1 मैंने अपने मन में यही ठान लिया था कि फिर तुम्हारे पास उदास होकर न आऊँ। 2 क्योंकि यदि मैं तुम्हें उदास करूँ, तो मुझे आनन्द देनेवाला कौन होगा, केवल वही जिसको मैंने उदास किया?
3 और मैंने यही बात तुम्हें इसलिए लिखी, कि कहीं ऐसा न हो, कि मेरे आने पर जिनसे मुझे आनन्द मिलना चाहिए, मैं उनसे उदास होऊँ; क्योंकि मुझे तुम सब पर इस बात का भरोसा है, कि जो मेरा आनन्द है, वही तुम सब का भी है। 4 बड़े क्लेश, और मन के कष्ट* से, मैंने बहुत से आँसू बहा बहाकर तुम्हें लिखा था इसलिए नहीं, कि तुम उदास हो, परन्तु इसलिए कि तुम उस बड़े प्रेम को जान लो, जो मुझे तुम से है।
5 और यदि किसी ने उदास किया है, तो मुझे ही नहीं वरन् (कि उसके साथ बहुत कड़ाई न करूँ) कुछ-कुछ तुम सब को भी उदास किया है। (गला. 4:12) 6 ऐसे जन के लिये यह दण्ड जो भाइयों में से बहुतों ने दिया, बहुत है। 7 इसलिए इससे यह भला है कि उसका अपराध क्षमा करो; और शान्ति दो, न हो कि ऐसा मनुष्य उदासी में डूब जाए। (इफि. 4:32)
8 इस कारण मैं तुम से विनती करता हूँ, कि उसको अपने प्रेम का प्रमाण दो। 9 क्योंकि मैंने इसलिए भी लिखा था, कि तुम्हें परख लूँ, कि तुम सब बातों के मानने के लिये तैयार हो, कि नहीं।
10 जिसका तुम कुछ क्षमा करते हो उसे मैं भी क्षमा करता हूँ, क्योंकि मैंने भी जो कुछ क्षमा किया है, यदि किया हो, तो तुम्हारे कारण मसीह की जगह में होकर क्षमा किया है। 11 कि शैतान* का हम पर दाँव न चले, क्योंकि हम उसकी युक्तियों से अनजान नहीं।
12 और जब मैं मसीह का सुसमाचार, सुनाने को त्रोआस में आया, और प्रभु ने मेरे लिये एक द्वार खोल दिया। 13 तो मेरे मन में चैन न मिला, इसलिए कि मैंने अपने भाई तीतुस को नहीं पाया; इसलिए उनसे विदा होकर मैं मकिदुनिया को चला गया।
14 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हमको जय के उत्सव में लिये फिरता है, और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। 15 क्योंकि हम परमेश्वर के निकट उद्धार पानेवालों, और नाश होनेवालों, दोनों के लिये मसीह की सुगन्ध हैं।
16 कितनों के लिये तो मरने के निमित्त मृत्यु की गन्ध, और कितनों के लिये जीवन के निमित्त जीवन की सुगन्ध, और इन बातों के योग्य कौन है? 17 क्योंकि हम उन बहुतों के समान नहीं, जो परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं*।
पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया को पत्र लिख रहा है।
“मैंने निर्णय ले लिया”
वैकल्पिक अनुवाद: “जब तुम ऐसे काम करते हो जिसका मैं प्रबल विरोध करता हूं”।
पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया से कहता है कि वे उसे प्रसन्न करते हैं परन्तु यदि वह उन्हें आहत करे तो दोनों ही को दुःख होगा। “यदि मैंने तुम्हें दुःख दिया तो तुम्हारे दुःख से मुझे भी दुःख होगा”।
पौलुस वहां के कुछ विश्वासियों के व्यवहार के बारे में कह रहा है जिनके द्वारा उसे मानसिक वेदना हुई। वैकल्पिक अनुवाद:“मैं उनके कामों से दुःखी न हो जाऊं”।
इन शब्दों में पौलुस का महा दुःख प्रकट है और उसने बड़ी कठिनाई से यह पत्र कुरिन्थ की कलीसिया को लिखा है क्योंकि वह उनसे प्रेम करता था, वैकल्पिक अनुवाद: “बड़े दुःख के कारण जो तुम लोगों की चिन्ता से मेरे मन को हुआ मैं बड़ी परेशानी से लिख रहा हूं”।
“कुछ अंश तक”
“दयारहित”
यह बहुत अधिक दुःख की मानसिक प्रतिक्रिया है।
पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया को प्रोत्साहित करता है जिस सदस्य को उन्होंने दण्ड दिया था, उसे क्षमा कर दें।
अर्थात् उसे विश्वासियों की संगति में पुनः ले लो। वैकल्पिक अनुवाद: “अपनी सामूहिक सभा घोषणा करो कि तुम अब भी उससे प्रेम करते हो जैसे परिवार के सदस्यों को”।
इसका संदर्भ दोनों ही बातों से है दोषी को दण्ड देना और फिर उसे क्षमा करना। वैकल्पिक अनुवाद: “तुम्हें मैंने जो कुछ सिखाया तुम उसका आज्ञापालन करते हो”।
इसके संभावित अर्थ हैं 1) “तुम्हारे लिए मेरे प्रेम के कारण क्षमा करता हूं”। (यू.डी.बी.) या 2) “तुम्हारे लाभ के निमित्त क्षमा किए गए”।
“क्योंकि हम उसकी योजनाओं को जानते हैं”।(देखें: )
जिस प्रकार कि एक खुला हुआ द्वार किसी को पार जाने देता है, उसी प्रकार पौलुस को भी त्रोआस में शुभ सन्देश सुनाने का अवसर प्राप्त हुआ था।
पौलुस उसकी सेवा में सहभागी सब मनुष्यों को मसीह में अपना भाई कहता था।
“अतः मैं त्रोआस के विश्वासियों के पास से चलकर”
पौलुस मसीह को एक सैनिक अगुवा कहता है, जो सैनिकों को विजय दिलाता है। वैकल्पिक अनुवाद: “हमें विजय दिलाता है”। )
“अपने ज्ञान का सौरभ” पौलुस इस उक्ति, “ज्ञान की सुगन्ध” उस ज्ञान के संदर्भ में कहता है जो मनमोहक है” वैकल्पिक अनुवाद: “मनमोहक ज्ञान”
“मसीह का सौरभ” पौलुस इस उक्ति द्वारा मन मोहक ज्ञान के विषय कह रहा है”।
यहां “गन्ध” का अभिप्राय है, मसीह का ज्ञान। आत्मिकता में मृतकों के लिए, मसीह का ज्ञान मृतक शरीर की दुर्गन्ध जैसा है। “मृतकों के लिए मृत्यु का ज्ञान”।
“सुगन्ध” का तात्पर्य मसीह के ज्ञान से है। आत्मिकता में जीवित मनुष्यों के लिए मसीह का ज्ञान एक प्रकार से मनमोहक सुगन्ध है। वैकल्पिक अनुवाद: “जीवितों के लिए जीवन का ज्ञान”।
पौलुस इस प्रश्न के द्वारा मसीह के ज्ञान को परमेश्वर का वरदान प्रकट करता है जिसके योग्य कोई नहीं। वैकल्पिक अनुवाद: “इसके योग्य कोई नहीं है”।
“सत्यनिष्ठा में”
“मसीह में हमारे विश्वास से हम कहते हैं”
पौलुस दुखदायी परिस्थितियों में कुरिन्थ की कलीसिया के पास आने से बच रहा था।
उसने यह इसलिए लिखा कि उसने वहां आने पर जिनसे उसे आनन्द मिलना था उनसे उन्हें उदास होना पड़े।
पौलुस बड़े क्लेश और मन के कष्ट में था।
उसने यह पत्र इसलिए लिखा कि वे उसके प्रेम की गहराई को समझें जो उसके मन में उनके लिए थी।
पौलुस कहता है कि उस व्यक्ति को क्षमा करके शान्ति दी जाये।
यह इसलिए कि वह मनुष्य बहुत दुखी न हो।
पौलुस द्वारा इस पत्र को लिखने का एक और कारण यह भी था कि उनकी आज्ञाकारिता को परखे।
यह इसलिए कि शैतान का उन पर दांव न चले।
पौलुस का मन अशान्त था क्योंकि उसने त्रोआस में तीतुस को नहीं पाया था।
पौलुस और उसके साथियों के द्वारा परमेश्वर अपने ज्ञान की सुगन्ध हर जगह फैलाता है।
पौलुस और उसके साथी मन की सच्चाई से और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते थे।
1 क्या हम फिर अपनी बड़ाई करने लगे? या हमें कितनों के समान सिफारिश की पत्रियाँ तुम्हारे पास लानी या तुम से लेनी हैं? 2 हमारी पत्री तुम ही हो*, जो हमारे हृदयों पर लिखी हुई है, और उसे सब मनुष्य पहचानते और पढ़ते है। 3 यह प्रगट है, कि तुम मसीह की पत्री हो, जिसको हमने सेवकों के समान लिखा; और जो स्याही से नहीं, परन्तु जीविते परमेश्वर के आत्मा से पत्थर की पटियों पर नहीं, परन्तु हृदय की माँस रूपी पटियों पर लिखी है। (निर्ग. 24:12, यिर्म. 31:33, यहे. 11:19-20)
4 हम मसीह के द्वारा परमेश्वर पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं। 5 यह नहीं, कि हम अपने आप से इस योग्य हैं, कि अपनी ओर से किसी बात का विचार कर सके; पर हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है। 6 जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन् आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है। (निर्ग. 24:8, यिर्म. 31:31, यिर्म. 32:40)
7 और यदि मृत्यु की यह वाचा जिसके अक्षर पत्थरों पर खोदे गए थे, यहाँ तक तेजोमय हुई, कि मूसा के मुँह पर के तेज के कारण जो घटता भी जाता था, इस्राएल उसके मुँह पर दृष्टि नहीं कर सकते थे। 8 तो आत्मा की वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी?
9 क्योंकि जब दोषी ठहरानेवाली वाचा तेजोमय थी, तो धर्मी ठहरानेवाली वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी? 10 और जो तेजोमय था, वह भी उस तेज के कारण जो उससे बढ़कर तेजोमय था, कुछ तेजोमय न ठहरा। (निर्ग. 34:29-30) 11 क्योंकि जब वह जो घटता जाता था तेजोमय था, तो वह जो स्थिर रहेगा, और भी तेजोमय क्यों न होगा?
12 इसलिए ऐसी आशा रखकर हम साहस के साथ बोलते हैं। 13 और मूसा के समान नहीं, जिस ने अपने मुँह पर परदा डाला था ताकि इस्राएली उस घटनेवाले तेज के अन्त को न देखें। (निर्ग. 34:33,35)
14 परन्तु वे मतिमन्द हो गए, क्योंकि आज तक पुराने नियम के पढ़ते समय उनके हृदयों पर वही परदा पड़ा रहता है; पर वह मसीह में उठ जाता है। 15 और आज तक जब कभी मूसा की पुस्तक पढ़ी जाती है, तो उनके हृदय पर परदा पड़ा रहता है। 16 परन्तु जब कभी उनका हृदय प्रभु की ओर फिरेगा, तब वह परदा उठ जाएगा। (निर्ग. 34:34, यशा. 25:7)
17 प्रभु तो आत्मा है: और जहाँ कहीं प्रभु का आत्मा है वहाँ स्वतंत्रता है। 18 परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे* से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश-अंश कर के बदलते जाते हैं।
पौलुस कहना चाहता है कि वे अन्यों से उत्तम होने का दम नहीं भर रहे।
पौलुस के कहने का अर्थ है कि कुरिन्थ के विश्वासी उसकी और तीमुथियुस की साख को जानते थे।
कुरिन्थ की कलीसिया के लिए पौलुस और तीमुथियुस के प्रेम की तुलना सिफारिश के पत्र से की गई है जिससे कलीसिया पर प्रकट होता है कि पौलुस और तीमुथियुस पर भरोसा किया जा सकता है।
तुम मसीह की पत्री हो हमने ... लिखा... जीवते परमेश्वर के आत्मा से... हृदय पर लिखी है। - पौलुस कह रहा है कि कुरिन्थ की कलीसिया एक पत्र के सदृश्य है जो उनके उदहारण को प्रकट करता है यह भी प्रकट करता है कि पौलुस और तीमुथियुस ने मसीह का जो सुसमाचार उनके साथ बाटा है उसमे पवित्र आत्मा के द्वारा सामर्थ्य निवेश किया गया था कि उनके जीवनों को बदल दे।
“पत्थर” अर्थात् अपरिवर्तनीय बात और “हृदय” शब्द का प्रयोग इस लिए किया गया है कि उनमे परिवर्तन के लिए हृदय की कोमलता और मानवीय क्षमता थी।
प्राचीनकाल में प्रयुक्त पत्थर या मिट्टी के चौकोर समतल टुकड़े जिन पर लिखा जाता था।
पौलुस और तीमुथियुस कुरिन्थ की कलीसिया को ही पत्र लिख रहे हैं।
"ऐसा" शब्द पौलुस और तीमुथियुस की समझ का बोध करता है कि मसीह के ज्ञान के द्वारा कुरिन्थ की कलीसिया के विश्वासियों के जीवन में परिवर्तन आया।
“स्वयं में इस योग्य हैं”
“हमें योग्य ठहराया”
पौलुस “शब्द” के उपयोग द्वारा पुराने नियम के विधान को संदर्भित करता है क्योंकि वाक्यों की रचना शब्दों ही से होती है। शब्द से अर्थ है, पुराने नियम के विधान के नियमों का प्रत्येक अंश। वैकल्पिक अनुवाद: “विधान के पालन द्वारा नहीं, परन्तु पवित्रआत्मा के वरदान द्वारा”।
इस वाक्य का अर्थ है, पुराने नियम के विधान की सिद्धता में पालन जिससे चूकने का अर्थ है आत्मिक मृत्यु। (देखें:
पौलुस इस प्रश्न द्वारा दर्शाता है कि उत्तर को समझना आसान क्यों है। “यदि.... आत्मा की सेवा और भी अधिक महिमामय होगी”।
“उत्कीर्ण लेख”
पौलुस “वाचा” शब्द द्वारा यह दर्शाता है कि परमेश्वर ने हमारे लिए विधान द्वारा आत्मिक मृत्यु या आत्मा के द्वारा शाश्वत जीवन का प्रावधान किया है। वैकल्पिक अनुवाद: “मृत्यु का मार्ग... आत्मा का मार्ग उपलब्ध करवाया है”।
पौलुस मूसा प्रदत्त विधान की तुलना मसीही सेवा से कर रहा है।
अर्थात् मूसा प्रदत्त परमेश्वर का विधान। जिसके द्वारा परमेश्वर के समक्ष मनुष्य दोषी ही ठहराया जाता है और इस प्रकार वह मनुष्य को मृत्युदण्ड ही देता है।
यह उक्ति मसीह यीशु द्वारा प्रस्तुत क्षमा के सन्देश के संदर्भ में है। यह क्षमा तथा नया जीवन देती है जो विधान से भिन्न है, क्योंकि वह केवल मृत्युदण्ड देता है।
मसीह की न्यायोचित ठहराने की सेवा विधान से कहीं अधिक महिमामय है जबकि विधान तो महिमामय था ही।
“वह” अर्थात मूसा प्रदत्त विधान
“इस प्रकार”
“उससे अधिक उत्तम”
“अपने उद्देश्य को पूरा कर चुका था”
मूसा के चेहरे पर परमेश्वर की महिमा का प्रकाश था। वह चेहरे पर पर्दा डालता था कि इस्त्राएली उस प्रकाश के विलोपन को देख न पाएं। वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर की महिमा जो मूसा के चेहरे पर से विलोप होती जा रही थी”।
"इस्राएलियों के"
जिस प्रकार कि पर्दा चेहरे को छिपा देता है, उसी प्रकार पौलुस कहता है कि यहूदियों पर आत्मिक पर्दा पड़ा है जो उन्हें परमेश्वर के सन्देशों को समझने से बाधित करता है ।
अर्थात् मूसा द्वारा लिखी गई पुस्तकें बाइबल थी। वैकल्पिक अनुवाद: “जब भी मूसा के लेख पढ़े जाते हैं”।
“फिरेगा” अर्थात स्वभाव में परिवर्तन होगा। वैकल्पिक अनुवाद:“स्वयं पर भरोसा रखने की अपेक्षा परमेश्वर पर भरोसा रखना”।
“पर्दा” अर्थात परमेश्वर का सन्देश समझने की उनकी क्षमता। “उठना” अर्थात उन्हें अब अंतर्ग्रहण करने की क्षमता प्रदान की जा चुकी है।
इन दोनों उक्तियों का अर्थ है, परमेश्वर के सन्देश समझने की क्षमता।
चेहरे का उघाड़ा जाना दृष्टि को स्पष्टता प्रदान करता है और इसका अर्थ समझने की क्षमता भी है। “प्रगट” का अर्थ है किसी बात को समझने योग्य होना।
प्रभु की महिमा के सदृश्य था परमेश्वर की महिमा को प्रगट करने वाली बात।
“महिमा के एक अंश से दूसरे अंश तक”।
कुरिन्थ की कलीसिया उनकी सिफारिश की पत्री थे जिसे सब मनुष्य पहचानते और पढ़ते थे।
उनका भरोसा अपनी योग्यता पर नहीं परमेश्वर की पूर्णता पर था।
नई वाचा जीवनदायक आत्मा पर निर्भर है न कि शब्द पर जो मारता है।
वे उसके मुंह को देख नहीं पाते थे क्योंकि वह तेजोमय था परन्तु वह तेज घटता जा रहा था।
आत्मा की सेवा और भी अधिक तेजोमय है, धर्मी ठहराने वाली वाचा कहीं अधिक तेजोमय है। जो स्थिर रहता है वह और भी अधिक तेजोमय है।
जब इस्राएल प्रभु यीशु की ओर फिरेगा तब वह परदा उठ जायेगा, और उनके हृदय खुल जायेंगे।
उनकी समस्या थी कि वे मन्दमति थे और उनके हृदयों पर पर्दा पड़ा रहता था।
जहां प्रभु का आत्मा है वहां स्वतंत्रता है।
हम उसी के तेजस्वी रूप में अंश-अंश करके बदलते जाते हैं।
1 इसलिए जब हम पर ऐसी दया हुई, कि हमें यह सेवा मिली, तो हम साहस नहीं छोड़ते। 2 परन्तु हमने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया*, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं, परन्तु सत्य को प्रगट करके, परमेश्वर के सामने हर एक मनुष्य के विवेक में अपनी भलाई बैठाते हैं।
3 परन्तु यदि हमारे सुसमाचार पर परदा पड़ा है, तो यह नाश होनेवालों ही के लिये पड़ा है। 4 और उन अविश्वासियों के लिये, जिनकी बुद्धि को इस संसार के ईश्वर* ने अंधी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।
5 क्योंकि हम अपने को नहीं, परन्तु मसीह यीशु को प्रचार करते हैं, कि वह प्रभु है; और उसके विषय में यह कहते हैं, कि हम यीशु के कारण तुम्हारे सेवक हैं। 6 इसलिए कि परमेश्वर ही है, जिस ने कहा, “अंधकार में से ज्योति चमके,” और वही हमारे हृदयों में चमका, कि परमेश्वर की महिमा की पहचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो। (यशा. 9:2)
7 परन्तु हमारे पास यह धन मिट्टी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ्य हमारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्वर ही की ओर से ठहरे। 8 हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते। 9 सताए तो जाते हैं; पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते। 10 हम यीशु की मृत्यु को अपनी देह में हर समय लिये फिरते हैं*; कि यीशु का जीवन भी हमारी देह में प्रगट हो।
11 क्योंकि हम जीते जी सर्वदा यीशु के कारण मृत्यु के हाथ में सौंपे जाते हैं कि यीशु का जीवन भी हमारे मरनहार शरीर में प्रगट हो। 12 इस कारण मृत्यु तो हम पर प्रभाव डालती है और जीवन तुम पर।
13 और इसलिए कि हम में वही विश्वास की आत्मा है, “जिसके विषय में लिखा है, कि मैंने विश्वास किया, इसलिए मैं बोला”। (भज. 116:10) अतः हम भी विश्वास करते हैं, इसलिए बोलते हैं।
14 क्योंकि हम जानते हैं, जिस ने प्रभु यीशु को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागी जानकर जिलाएगा, और तुम्हारे साथ अपने सामने उपस्थित करेगा। 15 क्योंकि सब वस्तुएँ तुम्हारे लिये हैं, ताकि अनुग्रह बहुतों के द्वारा अधिक होकर परमेश्वर की महिमा के लिये धन्यवाद भी बढ़ाए।
16 इसलिए हम साहस नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तो भी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। 17 क्योंकि हमारा पल भर का हलका सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है। 18 और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएँ थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएँ सदा बनी रहती हैं।
“हम” शब्द के संभावित अर्थ हैं 1) पौलुस और उसका प्रचार का दल। 2) पौलुस तथा अन्य प्रचारक। 2) पौलुस और कुरिन्थ के मसीही विश्वासी।
इन दोनों वाक्यांशों का अर्थ है कि परमेश्वर हमारी कैसी सुधि लेता है और हमें अपने स्वरूप में बदलकर दया दर्शाता है।
“हमने इन्कार कर दिया है”।
इन दोनों शब्दों में एक ही विचार निहित है। वैकल्पिक अनुवाद: “लज्जा गर्मित” )
“छल का आचरण नहीं करते”
इस वाक्यांश में एक सकारात्मक विचार को व्यक्त करने के लिए दो नकारात्मक अभिव्यक्तियों का उपयोग किया गया है। वैकल्पिक अनुवाद: “हम परमेश्वर के वचन का सही उपयोग करते है”।
लेखक के सत्यवादिता को परमेश्वर द्वारा समझने को इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि मानों परमेश्वर देख रहा है।
“पर्दा” अर्थात समझ से परे। जब किसी बात पर पर्दा पड़ा हो तो वह समझ में नहीं आता है। दिखाई नहीं देने को नहीं समझना माना जाता है।
अर्थात् शैतान ने। हमे अपने सच्चे परमेश्वर में और झूठे परमेश्वर में अंतर दर्शाना आवश्यक है।
वैकल्पिक अनुवाद: “समझने में बाधा उत्पन्न की हुई है” )
यहां “प्रकाश” का अर्थ है, सत्य
यह इब्रानियों के लेखक की घोषणा के संदर्भ में है। “परन्तु हम मसीह यीशु को प्रभु कह कर प्रचार करते है, और हम घोषणा करते हैं कि हम तुम्हारे लाभ के निमित्त कार्य करेंगे”।
वैकल्पिक अनुवाद: “यीशु के सम्मान हेतु”
ज्योति समझ की द्योतक है। वैकल्पिक अनुवाद:“मनुष्य पहले जिस बात को नहीं समझते थे उस बात को अब वे समझ पाते है।"
यहां “चमका” का अर्थ है प्रकाश उत्पन्न करना और परमेश्वर द्वारा समझ प्रदान करना। “हृदयों” का अर्थ है मनुष्य में वह स्थानजिसके द्वारा वह किसी बात को सत्य मानकर विश्वास करता है। वैकल्पिक अनुवाद: उसने समझने की शक्ति प्रधान कर दी है"
“हृदय” से तात्पर्य है सत्य को अंतर्ग्रहण करने का आन्तरिक भाग। वैकल्पिक अनुवाद: “हमारे लिए”
लेखक “मसीह यीशु के समक्ष परमेश्वर की महिमा के ज्ञान” के संदर्भ में कह रहा है।
अर्थात मनुष्य के शरीर में
ये सब उक्तियां मनुष्यों द्वारा चुनौतियों का सामना करने के बारे में हैं, परन्तु वह हिम्मत नहीं हारता है।
“हमारी देह में अर्थात यीशु के विश्वासी का जीवन आचरण”। यीशु का जीवन हमारे जीवन से प्रकट हो”।
पौलुस हम सबके संदर्भ में कह रहा है जो मसीह में विश्वास करते और उसका प्रचार करते हैं, जो अभी मरे नहीं हैं।
“के संकट में हैं”
यह वाक्यांश यीशु के सत्त जीवन को और इब्रानियो के लेखक एवं सब विश्वासियों के लिए इसका जो अर्थ है उसके संदर्भ में है, क्योंकि वे यीशु को अपना प्रभु मानने के कारण मृत्यु के संकट में थे। “हमारा विश्वास है कि यीशु मृतकों में से जी उठा और हमसे अविनाशी जीवन की प्रतिज्ञा की, सिद्ध हो”।
इस वाक्यांश का संदर्भ है कि विश्वासी कैसा जीवन जी रहा है या कैसे चुनाव कर रहा है।
पौलुस मृत्यु को ऐसा प्रकट करता है कि जैसे वह कार्यशील है। कहने का अर्थ है कि जिन विश्वासियों को मृत्यु का भय दर्शाया जाता है, वे अन्यों पर सकारात्मक प्रभाव डालें।
यहाँ भी पौलुस जीवन को क्रियाशील दर्शाता है। कहने का अर्थ है कि अनन्त जीवन का ज्ञान यहूदी विश्वासियों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
पौलुस और तीमुथियुस कुरिन्थ की कलीसिया को पत्र लिख रहे हैं।
“हम” अर्थात पौलुस, तीमुथियुस तथा कुरिन्थ की कलीसिया।
“विश्वास की वही मनोवृत्ति”। “आत्मा” अर्थात मनुष्य का सोचना और निर्णय लेना। पौलुस और तीमुथियुस ने कहा है कि परमेश्वर में विश्वास करने की उनकी मनोवृत्ति भी कुरिन्थ के विश्वासियों की सी ही है।
यह राजा दाऊद का उद्धरण है
तुम्हारे साथ यहां “हमें भी” कुरिन्थ के विश्वासियों से अलग करता है।
कृपालु परमेश्वर ने जो उपकार किए उन्हें उसे समझना और उसका धन्यवाद करना।
पौलुस और तीमुथियुस अपने विषम परिस्थितियों में लिख रहे हैं।
वैकल्पिक अनुवाद: “हमारे द्वारा हिम्मत बांधे रहने का यही कारण है”।
अर्थात पौलुस और तीमुथियुस का बाहरी रूप। “नष्ट होता जाता है” अर्थात शरीर का स्वस्थ रूप समाप्त होना।
अर्थात आन्तरिक मानव-मनुष्य के सोचने की क्षमता। “नया होता जाता है अर्थात विचार सकारात्मक होते जाते हैं।
पौलुस और तीमुथियुस की महिमा को ऐसा भारी बोझ कहा गया है जिसे आंका नहीं जा सकता है। दूसरे शब्दों में, वे अपने सेवा कार्यों के लिए महान सम्मान पाएंगे। वैकल्पिक अनुवाद: “स्वर्ग में सदा का सम्मान पाएंगे”।
इस उक्ति का अर्थ है कि मनुष्य किसी बात के होने की इच्छा एवं आशा में है। वैकल्पिक अनुवाद:“आशा करते हैं”।
अर्थात सांसारिक वस्तुओं को नहीं जो जीवन में प्राप्त की जा सकती हैं।वैकल्पिक अनुवाद: “सम्पदा को नहीं”।
स्वर्गीय प्रतिफल। वैकल्पिक अनुवाद: “स्वर्ग में महान प्रतिफल को” पिछले वाक्यांश से स्पष्ट है कि पौलुस और तीमुथियुस इसी की आशा में हैं।
उन्होंने हियाव नहीं छोड़ा क्योंकि उन्हें दया के कारण ऐसी सेवा मिली।
उन्होंने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया, वे न तो चतुराई करते थे और न ही परमेश्वर के वचन में मिलावट करते थे।
वे सत्य को प्रकट करते थे।
यदि उनके द्वारा सुनाये जाने वाले सुसमाचार पर परदा पड़ा है तो वह नष्ट होने वालों के लिए ही है।
अविश्वासियों की बुद्धि इस संसार के ईश्वर ने अंधी कर दी है ताकि मसीह के सुसमाचार का प्रकाश उन पर न पड़े।
वे मसीह यीशु का प्रचार करते थे और यीशु के कारण उनके सेवक थे।
उनका यह धन मिट्टी के बरतनों में रखा था कि वह असीम सामर्थ्य उनकी ओर से नहीं वरन् परमेश्वर की ओर से ठहरे।
वे यीशु की मृत्यु को अपनी देह में हर समय लिए फिरते थे कि यीशु का जीवन उनकी देह से प्रकट हो।
पौलुस और उसके साथी तथा कुरिन्थ के विश्वासी उनके सामने उपस्थित किये जायेंगे जिसने प्रभु यीशु को जिलाया।
अनुग्रह बहुतों के द्वारा अधिक होकर परमेश्वर की महिमा के लिए धन्यवाद भी बढ़ायेगा।
वे हियाव नहीं छोड़ते थे यद्यपि उनका बाहरी मनुष्यत्व नष्ट होता जाता था।
वे हताश नहीं हुए क्योंकि उनका भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता था और फिर उनका पल भर का हलका सा क्लेश बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता था और अन्त में वे अनदेखी वस्तुओं को देख रहे थे।
1 क्योंकि हम जानते हैं, कि जब हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर* गिराया जाएगा तो हमें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा, जो हाथों से बना हुआ घर नहीं परन्तु चिरस्थाई है। (इब्रा. 9:11, अय्यू. 4:19) 2 इसमें तो हम कराहते, और बड़ी लालसा रखते हैं; कि अपने स्वर्गीय घर को पहन लें। 3 कि इसके पहनने से हम नंगे न पाए जाएँ।
4 और हम इस डेरे में रहते हुए बोझ से दबे कराहते रहते हैं; क्योंकि हम उतारना नहीं, वरन् और पहनना चाहते हैं, ताकि वह जो मरनहार है जीवन में डूब जाए। 5 और जिस ने हमें इसी बात के लिये तैयार किया है वह परमेश्वर है, जिस ने हमें बयाने में आत्मा भी दिया है।
6 इसलिए हम सदा ढाढ़स बाँधे रहते हैं और यह जानते हैं; कि जब तक हम देह में रहते हैं, तब तक प्रभु से अलग हैं। 7 क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं। 8 इसलिए हम ढाढ़स बाँधे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं।
9 इस कारण हमारे मन की उमंग यह है, कि चाहे साथ रहें, चाहे अलग रहें पर हम उसे भाते रहें। 10 क्योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने-अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों, पाए। (इफि. 6:8, मत्ती 16:27, सभो. 12:14)
11 इसलिए प्रभु का भय मानकर हम लोगों को समझाते हैं और परमेश्वर पर हमारा हाल प्रगट है; और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी प्रगट हुआ होगा। 12 हम फिर भी अपनी बड़ाई तुम्हारे सामने नहीं करते वरन् हम अपने विषय में तुम्हें घमण्ड करने का अवसर देते हैं, कि तुम उन्हें उत्तर दे सको, जो मन पर नहीं, वरन् दिखावटी बातों पर घमण्ड करते हैं।
13 यदि हम बेसुध हैं, तो परमेश्वर के लिये; और यदि चैतन्य हैं, तो तुम्हारे लिये हैं। 14 क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है; इसलिए कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिये मरा तो सब मर गए। 15 और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएँ परन्तु उसके लिये जो उनके लिये मरा और फिर जी उठा।
16 इस कारण अब से हम किसी को शरीर के अनुसार न समझेंगे, और यदि हमने मसीह को भी शरीर के अनुसार जाना था, तो भी अब से उसको ऐसा नहीं जानेंगे। 17 इसलिए यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं। (यशा. 43:18-19)
18 और सब बातें परमेश्वर की ओर से हैं*, जिस ने मसीह के द्वारा अपने साथ हमारा मेल मिलाप कर लिया, और मेल मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है। 19 अर्थात् परमेश्वर ने मसीह में होकर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उनके अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया और उसने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है।
20 इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो। (इफि. 6:10, मला. 2:7) 21 जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ।
हमारी पार्थिव देह
गिराया जायेगा - जब हमारा यह पार्थिव देह नष्ट हो जायेगी।
परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा जो हाथों का बना हुआ घर नहीं है”। - परमेश्वर हमारे लिए एक अविनाशी देह उपलब्ध करवाएगा।
इसमें तो हम कराहते - इस पार्थिव देह में हम संघर्षरत हैं।
इसके संभावित अर्थ हैं 1) हम परमेश्वर की पवित्रता पहन लेंगे। 2) परमेश्वर हमारे लिए नई देह एवं वस्त्र उपलब्ध करवाएगा।
“अपने इस सांसारिक शरीर में”
वैकल्पिक अनुवाद: “हम पाप से संघर्षरत रहते है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “मरना नहीं”
वैकल्पिक अनुवाद: “अपनी अविनाशी देह में रहना चाहते हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “हमारी सांसारिक देह हमारी नई स्वर्गिक देह में बदल जायेगी”।
वैकल्पिक अनुवाद: “जब हम इस सांसारिक देह में रहते है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “हम प्रभु के साथ नहीं हैं” या “हम स्वर्ग में प्रभु के साथ नहीं हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “स्वर्ग में प्रभु के साथ रहते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “पृथ्वी पर अपनी सांसारिक देह में रहेगें या स्वर्ग में”
“न्याय के लिऐ मसीह के समक्ष”
वैकल्पिक अनुवाद: “बदला या प्रतिफल पाए”
देह के द्वारा किए हों -वैकल्पिक अनुवाद: “इस सांसारिक देह में रहते हुए जो काम किऐ हैं”।
“भले कामों का या बुरे कामों का”
वैकल्पिक अनुवाद: “यह जानते हुए कि परमेश्वर पापों से घृणा करता है और हमें पाप का दण्ड देगा”।
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम भी यह जानते हो”
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों से पृथक अपने प्रचार दल के विषय में कह रहा है।
“मसीह का जो प्रेम हमारे लिए है हमें प्रेरित करता है”
सब मृतक स्वरूप हुए
मसीह हर एक मनुष्य के लिए मरा
उनकी पापी अभिलाषाओं के लिए
“परन्तु उसके लिए जीवन जीएं जो मरकर जी उठा”
वैकल्पिक अनुवाद: “जो भी मसीह में विश्वास करता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “उसका स्वभाव नया है”
वैकल्पिक अनुवाद: “जीवन आचरण एवं सोचने विचारने की पुरानी रीति समाप्त हो गई है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “अब हम मसीह को ग्रहण करने से पूर्व के आचरण और सोचने विचारने में भिन्न हो गए हैं।
“जो हमें लौटा लाया”
मसीह के साथ संबन्ध स्थापित करने के लिए मनुष्यों की अगुआई करने की सेवा
क्रूस पर मसीह की मृत्यु के द्वारा परमेश्वर मनुष्यों को अपने पास लौटा लाता है।
परमेश्वर के साथ मनुष्यों के संबन्ध के पुनः स्थापन के प्रयास हेतु परमेश्वर के सन्देश को प्रसारित करने का उत्तरदायित्व परमेश्वर ने पौलुस को सौंपा था।
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर के पास लौट आओ”
उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया - “परमेश्वर ने क्रूस पर मसीह की मृत्यु को स्वीकार्य बलि बनाया”।
वैकल्पिक अनुवाद: “कि हममें मसीह की धार्मिकता आ जाए”
पौलुस का कहना था कि उन्हें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा जो हाथों का बना हुआ नहीं, चिरस्थाई है।
पौलुस के कहने का अर्थ है कि इस घर में हम कहरते हैं और बड़ी लालसा रखते हैं कि अपने स्वर्गीय घर को पहन लें कि जो मरनहार है वह जीवन में डूब जाए।
परमेश्वर ने हमें इसी बात के लिए तैयार किया है और बयाने में आत्मा भी दिया है।
पौलुस कहता है, "हम ढ़ांढ़स बांधे रहते हैं कि और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं।"
पौलुस ने प्रभु को प्रसन्न करने का लक्ष्य साधा था।
पौलुस ने ऐसा लक्ष्य साधा था क्योंकि हम सबको मसीह के न्याय आसन के समक्ष उपस्थित होना है और अपने-अपने कामों का लेखा देना है, चाहे वे अच्छे हों या बुरे।
यही कारण था कि वे प्रभु का भय मानकर लोगों को समझते हैं।
वे कुरिन्थ के विश्वासियों को उनके विषय घमण्ड करने का अवसर देते थे कि वे उन्हें उत्तर दे सकें जो मन पर नहीं परन्तु दिखावटी बातों पर घमण्ड करते थे।
वे आगे को अपने लिए न जीयें परन्तु उसके लिए जो उनके लिए मरा और फिर जी उठा।
यह इसलिए कि मसीह सबके लिए मरा और हम अब स्वयं के लिए नहीं परन्तु मसीह के लिए जीवित हैं।
पुरानी बात बीत गई है; देखो सब बातें नई हो गई हैं।
परमेश्वर ने मसीह में होकर अपने साथ संसार का मेल-मिलाप कर लिया और उनके अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया।
वे कुरिन्थ की कलीसिया से आग्रह करते हैं कि वे मसीह के कारण परमेश्वर से मेल कर लें।
परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया कि मसीह में हम परमेश्वर की धार्मिकता बन जायें।
1 हम जो परमेश्वर के सहकर्मी हैं यह भी समझाते हैं, कि परमेश्वर का अनुग्रह जो तुम पर हुआ, व्यर्थ न रहने दो। 2 क्योंकि वह तो कहता है,
“अपनी प्रसन्नता के समय मैंने तेरी सुन ली,
और उद्धार के दिन* मैंने तेरी, सहायता की।”
देखो; अभी प्रसन्नता का समय है; देखो, अभी उद्धार का दिन है। (यशा. 49:8)
3 हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए।
4 परन्तु हर बात में परमेश्वर के सेवकों के समान अपने सद्गुणों को प्रगट करते हैं, बड़े धैर्य से, क्लेशों से, दरिद्रता से, संकटों से, 5 कोड़े खाने से, कैद होने से, हुल्लड़ों से, परिश्रम से, जागते रहने से, उपवास करने से, 6 पवित्रता से, ज्ञान से, धीरज से, कृपालुता से, पवित्र आत्मा से। 7 सच्चे प्रेम से, सत्य के वचन से, परमेश्वर की सामर्थ्य से; धार्मिकता के हथियारों से जो दाहिने, बाएँ हैं,
8 आदर और निरादर से, दुर्नाम और सुनाम से, यद्यपि भरमानेवालों के ऐसे मालूम होते हैं तो भी सच्चे हैं। 9 अनजानों के सदृश्य हैं; तो भी प्रसिद्ध हैं; मरते हुओं के ऐसे हैं और देखों जीवित हैं; मार खानेवालों के सदृश हैं परन्तु प्राण से मारे नहीं जाते। (1 कुरि. 4:9, भज. 118:18) 10 शोक करनेवालों के समान हैं, परन्तु सर्वदा आनन्द करते हैं, कंगालों के ऐसे हैं, परन्तु बहुतों को धनवान बना देते हैं*; ऐसे हैं जैसे हमारे पास कुछ नहीं फिर भी सब कुछ रखते हैं।
11 हे कुरिन्थियों, हमने खुलकर तुम से बातें की हैं, हमारा हृदय तुम्हारी ओर खुला हुआ है। 12 तुम्हारे लिये हमारे मन में कुछ संकोच नहीं, पर तुम्हारे ही मनों में संकोच है। 13 पर अपने बच्चे जानकर तुम से कहता हूँ, कि तुम भी उसके बदले में अपना हृदय खोल दो।
14 अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो*, क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल जोल? या ज्योति और अंधकार की क्या संगति? 15 और मसीह का बलियाल के साथ क्या लगाव? या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता? 16 और मूरतों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध? क्योंकि हम तो जीविते परमेश्वर के मन्दिर हैं; जैसा परमेश्वर ने कहा है
“मैं उनमें बसूँगा और उनमें चला फिरा करूँगा;
और मैं उनका परमेश्वर हूँगा,
और वे मेरे लोग होंगे।” (लैव्य. 26:11-12, यिर्म. 32:38, यहे. 37:27)
17 इसलिए प्रभु कहता है,
“उनके बीच में से निकलो
और अलग रहो;
और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ,
तो मैं तुम्हें ग्रहण करूँगा; (यशा. 52:11, यिर्म. 51:45)
18 और तुम्हारा पिता हूँगा,
और तुम मेरे बेटे और बेटियाँ होंगे;
यह सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर का वचन है।” (2 शमू. 7:14, यशा. 43:6, होशे 1:10)
“परमेश्वर के साथ काम करते हैं” पौलुस कहता है कि वह और तीमुथियुस परमेश्वर के साथ काम कर रहे हैं।
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को उत्प्रेरित करता है कि वे परमेश्वर के अनुग्रह को उनके जीवनों से प्रकट होने दें।
वैकल्पिक अनुवाद: “मैंने एक ही समय पर तेरी विनती सुनी है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “निःसन्देह अभी सही समय है और उद्धार का दिन भी यही है”।
वैकल्पिक अनुवाद: हमारा जीवन हम ऐसा रखते हैं कि हमारे द्वारा कोई ठोकर ना खाए या हमारी सेवा में दोष देखे”।
अर्थात पौलुस और तीमुथियुस।
हर बात में परमेश्वर के सेवकों के समान अपने सद्गुणों को प्रगट करते हैं - वैकल्पिक अनुवाद: “हम अपने जीवन एवं अपनी बातों से प्रकट करते हैं कि हम परमेश्वर के सेवक हैं।”
“सत्य के निष्ठावान प्रचार द्वारा”
पौलुस के कहने का अर्थ है कि सब परिस्थितियों में परमेश्वर द्वारा आत्मिक सामर्थ्य से परिपूर्ण।
“हम” अर्थात पौलुस और तीमुथियुस
दो पराकाष्ठाएं है कि मनुष्य पौलुस की सेवा को कैसा समझते हैं।
ये दो पराकाष्ठाएं हैं कि मनुष्य पौलुस की सेवा के बारे में क्या कहते हैं।
मरते हुओं के समान है और देखो जीवित हैं वैकल्पिक अनुवाद: “मरते हुए तो हैं तौभी जीवित हैं जैसा तुम देखते हो”
वैकल्पिक अनुवाद: “परन्तु मसीह यीशु के शुभ सन्देश के कारण सदा आनन्दित रहते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “हमारे पास कुछ भी नहीं है परन्तु परमेश्वर की संपूर्ण सम्पदा हमारी है”।
“तुमसे निष्कपट बातें की हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “हम तुमसे निर्बोध प्रेम करते हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम्हारे लिए हमारे प्रेम में कमी नहीं हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम किसी कारण से तो हमसे प्रेम करने में चूक रहे हो”।
वैकल्पिक अनुवाद: “बच्चे के अबोध शब्दों में कहता हूं कि तुम भी हम पर अपना प्रेम प्रकट करो तो निष्पक्षता ही होगी”।
“संगति करो” या “घनिष्ठ संबन्ध रखो”
विश्वासी के जीवन में अविश्वासी की सी मान्यताएं नहीं होती हैं, वैकल्पिक अनुवाद: “विश्वासी अविश्वासी के साथ जीवन के मूल्यों की क्या समानता रख सकता है”?
ज्योति और अन्धकार की क्या संगति? - ज्योति और अन्धकार दोनों एक साथ उपस्थित नहीं हो सकते। ज्योति के आते ही अंधकार मिट जाता है।
बलियाल शैतान का दूसरा नाम है
विश्वासियों और अविश्वासियों के जीवनों में मान्यताएं सर्वदा भिन्न होती हैं जो परस्पर विरोधी होती हैं।
पौलुस सब विश्वासियों को परमेश्वर के निवास हेतु मन्दिर कहता है। वैकल्पिक अनुवाद: “हममें परमेश्वर का पवित्र आत्मा वास करता है”।
मूसा प्रदत्त विधान में चर्चा की गई है कि कौन-कौन सी वस्तुएं हैं जिनके स्पर्श से मनुष्य अशुद्ध हो जाता है।
मैं तुम्हारा पिता हूंगा - “मैं तुम्हें ऐसे संभालूंगा जैसे एक प्रेम करने वाला पिता अपनी सन्तान को सम्भालता है”।देखें: (Metaphor)
“और तुम मेरी सन्तान होगे”
वे कुरिन्थ की कलीसिया से आग्रह करते थे कि वे परमेश्वर के उस अनुग्रह को जो उन पर हुआ व्यर्थ न जाने दें।
अभी वह प्रसन्नता का समय है, अभी वह उद्धार का दिन है।
उन्होंने किसी बात में ठोकर खाने का कोई अवसर नहीं दिया जिससे कि उनकी सेवा पर कोई दोष न आए।
उनके कामों से सिद्ध होता था कि वे परमेश्वर के दास है।
क्लेशों से, दरिद्रता से, संकटों से, कोड़े खाने से, कैद होने से, हुल्ल्डों से, परिश्रम से, जागते रहने से, उपवास करने से उन्होंने बड़े धीरज के साथ निर्वाह किया था।
उन्हें भरमाने वाले कहा गया।
पौलुस कहता है कि उनका हृदय कुरिन्थ की कलीसिया की ओर खुला है और पौलुस चाहता था कि निष्पक्ष प्रतिकार में वे भी उनके प्रति अपना हृदय खोल दें।
पौलुस निम्नलिखित कारण बताता हैः धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल-जोल? ज्योति और अंधकार की क्या संगति है? मसीह का बलियाल के साथ क्या लगाव? विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता? मूर्तियों के साथ परमेश्वर के मंदिर का क्या संबंध?
प्रभु कहता है कि वे उन्हें ग्रहण करेगा और उनका पिता होगा वे उनके बेटे-बेटियां होंगे।
1 हे प्यारों जब कि ये प्रतिज्ञाएँ हमें मिली हैं, तो आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।
2 हमें अपने हृदय में जगह दो: हमने न किसी से अन्याय किया, न किसी को बिगाड़ा, और न किसी को ठगा। 3 मैं तुम्हें दोषी ठहराने के लिये यह नहीं कहता* क्योंकि मैं पहले ही कह चूका हूँ, कि तुम हमारे हृदय में ऐसे बस गए हो कि हम तुम्हारे साथ मरने जीने के लिये तैयार हैं। 4 मैं तुम से बहुत साहस के साथ बोल रहा हूँ, मुझे तुम पर बड़ा घमण्ड है: मैं शान्ति से भर गया हूँ; अपने सारे क्लेश में मैं आनन्द से अति भरपूर रहता हूँ।
5 क्योंकि जब हम मकिदुनिया में आए, तब भी हमारे शरीर को चैन नहीं मिला, परन्तु हम चारों ओर से क्लेश पाते थे; बाहर लड़ाइयाँ थीं, भीतर भयंकर बातें थी। 6 तो भी दीनों को शान्ति देनेवाले परमेश्वर ने तीतुस के आने से हमको शान्ति दी। 7 और न केवल उसके आने से परन्तु उसकी उस शान्ति से भी, जो उसको तुम्हारी ओर से मिली थी; और उसने तुम्हारी लालसा, और तुम्हारे दुःख और मेरे लिये तुम्हारी धुन का समाचार हमें सुनाया, जिससे मुझे और भी आनन्द हुआ।
8 क्योंकि यद्यपि मैंने अपनी पत्री से तुम्हें शोकित किया, परन्तु उससे पछताता नहीं जैसा कि पहले पछताता था क्योंकि मैं देखता हूँ, कि उस पत्री से तुम्हें शोक तो हुआ परन्तु वह थोड़ी देर के लिये था। 9 अब मैं आनन्दित हूँ पर इसलिए नहीं कि तुम को शोक पहुँचा वरन् इसलिए कि तुम ने उस शोक के कारण मन फिराया, क्योंकि तुम्हारा शोक परमेश्वर की इच्छा के अनुसार था, कि हमारी ओर से तुम्हें किसी बात में हानि न पहुँचे। 10 क्योंकि परमेश्वर-भक्ति का शोक* ऐसा पश्चाताप उत्पन्न करता है; जिसका परिणाम उद्धार है और फिर उससे पछताना नहीं पड़ता: परन्तु सांसारिक शोक मृत्यु उत्पन्न करता है।
11 अतः देखो, इसी बात से कि तुम्हें परमेश्वर-भक्ति का शोक हुआ; तुम में कितनी उत्साह, प्रत्युत्तर, रिस, भय, लालसा, धुन और पलटा लेने का विचार उत्पन्न हुआ? तुम ने सब प्रकार से यह सिद्ध कर दिखाया, कि तुम इस बात में निर्दोष हो। 12 फिर मैंने जो तुम्हारे पास लिखा था, वह न तो उसके कारण लिखा, जिस ने अन्याय किया, और न उसके कारण जिस पर अन्याय किया गया, परन्तु इसलिए कि तुम्हारी उत्तेजना जो हमारे लिये है, वह परमेश्वर के सामने तुम पर प्रगट हो जाए।
13 इसलिए हमें शान्ति हुई;
और हमारी इस शान्ति के साथ तीतुस के आनन्द के कारण और भी आनन्द हुआ क्योंकि उसका जी तुम सब के कारण हरा भरा हो गया है। 14 क्योंकि यदि मैंने उसके सामने तुम्हारे विषय में कुछ घमण्ड दिखाया, तो लज्जित नहीं हुआ, परन्तु जैसे हमने तुम से सब बातें सच-सच कह दी थीं, वैसे ही हमारा घमण्ड दिखाना तीतुस के सामने भी सच निकला।
15 जब उसको तुम सब के आज्ञाकारी होने का स्मरण आता है, कि कैसे तुम ने डरते और काँपते हुए उससे भेंट की; तो उसका प्रेम तुम्हारी ओर और भी बढ़ता जाता है। 16 मैं आनन्द करता हूँ, कि तुम्हारी ओर से मुझे हर बात में भरोसा होता है।
पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया को संबोधित कर रहा है।
पौलुस के कहने का अर्थ है कि हम किसी भी प्रकार के पाप से दूर रहें कि परमेश्वर के साथ हमारे संबन्ध पर कुप्रभाव न पड़े।
पवित्र जीवन जीने की खोज करें
परमेश्वर के समक्ष दीन होकर
“अपने जीवन में हमें स्थापित कर लो”
यह नहीं कहता - वैकल्पिक अनूवाद: मैं तुम पर आरोप नहीं लगाता”
वैकल्पिक अनुवाद: “हम तुम से इतना प्रेम करते हैं कि तुम्हारे लिए जान दे सकते हैं और तुम्हारे लिए ही रहे हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “अपनी सब कठिनाइयों के बाद भी”
वैकल्पिक अनुवाद: “हम बहुत थक गए थे” या “हम कलान्त हो चुके थे।”
वैकल्पिक अनुवाद: उसने कुरिन्थ के विश्वासियों का जो समाचार प्राप्त किया था उससे प्रोत्साहित हुआ।
वैकल्पिक अनुवाद: “उसने मेरे प्रति तुम्हारे प्रेम की चर्चा की, और जो हुआ उसके लिए तुम्हारे दुख और मेरे कल्याण की तुम्हारी गहन चिन्ता का उल्लेख किया।
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं आनन्द से भर गया”
वैकल्पिक अनुवाद:: "परन्तु कुछ ही समय के लिए दु:खी थे"
ईश भक्ति का शोक मन फिराव की और लाता है।
ईश भक्ति का शोक हमे पाप से दूर ले जाता है।
उद्धार है - वैकल्पिक अनुवाद: "उद्धार की और ले जाता है"
वैकल्पिक अनुवाद: "परन्तु सांसारिक शोक से मन फिराव नहीं होता है, वह हमें आत्मिक मृत्यु की ओर ले जाता है।"
"समझों की यह कैसी बड़ी निश्चयता है"
वैकल्पिक अनुवाद: "तुम मे उत्पन्न हुआ कि सिद्ध करो की तुम निर्दोष हो"
"कैसा रोष"
और भय - वैकल्पिक अनुवाद': "कैसी व्याकुलता" या "कैसी हलचल"
"मुझे देखने की कैसी व्याकुलता"
और धुनl - "उद्देश्य की कैसी प्रबलता"
परन्तु इसलिये कि तुम्हारी उत्तेजना जो हमारे लिये है, वह परमेश्वर के साम्हने तुम पर प्रगट हो जाए। - वैकल्पिक अनुवाद: "परन्तु इसलिए कि तुम्हारी उत्तेजना है वह तुम जानते हो और परमेश्वर भी जानता है, हम पर प्रकट हो जाए"
वैकल्पिक अनुवाद: "परमेश्वर के प्रति और हमारे प्रति तुम्हारे इस उचित व्यवहार से हमे प्रोत्साहन मिला है"
"उसके सामने तुम्हारे विषय में मैने घमण्ड किया"
तो लज्ज़ित नहीं हुआ. - वैकल्पिक अनुवाद "और तुमने मुझे निराश होने नहीं दिया"
"तुमने प्रकट कर दिया की यह सच है"
वैकल्पिक अनुवाद: "अब तीतुस पहले से कही अधिक तुम्हारी चिंता करता है"
वैकल्पिक अनुवाद: "उसे स्मरण आता है कि तुम सब कैसे आज्ञाकारी रहे हो"
कयोंकि तुम ने डरते और कांपते हुए उस से भेंट की - वैकल्पिक अनुवाद: "जब तुमने उसका स्वागत किया और भी एवं कापते हुए उसकी आज्ञा मानी" या "जब तुमने बड़े सम्मान के साथ उसका स्वागत किया"
परमेश्वर का अनर्जित अनुग्रह
हमें उस हर एक बात से स्वयं को शुद्ध करना है जो हमें देह और आत्मा में अशुद्ध करती है।
पौलुस ने उनके समक्ष अपनी इच्छा प्रकट की, "हमें अपने हृदय में जगह दो।"
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों से कहता है कि वे उसके और उसके साथियों के मन में वास करते हैं और वे उनके साथ मरने जीने के लिए तैयार हैं।
तीतुस के आने से परमेश्वर ने उन्हें शक्ति दी क्योंकि तीतुस ने उन्हें कुरिन्थ की कलीसिया के बारे में शुभ सन्देश सुनाया था।
कुरिन्थ के विश्वासियों ने पौलुस का पत्र पढ़ा तो उन्हें दुख हुआ और उनका शोक परमेश्वर की इच्छा के अनुसार था।
परमेश्वर भक्ति के शोक ने उनमें पश्चाताप उत्पन्न किया और उन्होंने स्वयं को सिद्ध करने का दृढ संकल्प किया।
पौलुस ने कहा कि उसके द्वारा पत्र लिखने का उद्देश्य था कि उनका उत्साह जो पौलुस और उसके साथियों के लिए था परमेश्वर के समक्ष उन पर प्रकट हो।
वह आनन्दित हुआ क्योंकि कुरिन्थ के सब विश्वासियों के कारण उसका मन हरा-भरा हो गया था।
कुरिन्थ की कलीसिया के लिए तीतुस का प्रेम और भी बढ़ गया था जब उसने उनकी आज्ञाकारिता को स्मरण किया कि उन्होंने कैसे डरते और कांपते हुए उससे भेंट की।
1 अब हे भाइयों, हम तुम्हें परमेश्वर के उस अनुग्रह का समाचार देते हैं, जो मकिदुनिया की कलीसियाओं पर हुआ है। 2 कि क्लेश की बड़ी परीक्षा में उनके बड़े आनन्द* और भारी कंगालपन के बढ़ जाने से उनकी उदारता बहुत बढ़ गई।
3 और उनके विषय में मेरी यह गवाही है, कि उन्होंने अपनी सामर्थ्य भर वरन् सामर्थ्य से भी बाहर मन से दिया। 4 और इस दान में और पवित्र लोगों की सेवा में भागी होने के अनुग्रह के विषय में हम से बार-बार बहुत विनती की। 5 और जैसी हमने आशा की थी, वैसी ही नहीं, वरन् उन्होंने प्रभु को, फिर परमेश्वर की इच्छा से हमको भी अपने आपको दे दिया।
6 इसलिए हमने तीतुस को समझाया, कि जैसा उसने पहले आरम्भ किया था, वैसा ही तुम्हारे बीच में इस दान के काम को पूरा भी कर ले। 7 पर जैसे हर बात में अर्थात् विश्वास, वचन, ज्ञान और सब प्रकार के यत्न में, और उस प्रेम में, जो हम से रखते हो, बढ़ते जाते हो, वैसे ही इस दान के काम में भी बढ़ते जाओ।
8 मैं आज्ञा की रीति पर तो नहीं*, परन्तु औरों के उत्साह से तुम्हारे प्रेम की सच्चाई को परखने के लिये कहता हूँ। 9 तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह जानते हो, कि वह धनी होकर भी तुम्हारे लिये कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ।
10 और इस बात में मेरा विचार यही है: यह तुम्हारे लिये अच्छा है; जो एक वर्ष से न तो केवल इस काम को करने ही में, परन्तु इस बात के चाहने में भी प्रथम हुए थे। 11 इसलिए अब यह काम पूरा करो; कि जिस प्रकार इच्छा करने में तुम तैयार थे, वैसा ही अपनी-अपनी पूँजी के अनुसार पूरा भी करो। 12 क्योंकि यदि मन की तैयारी हो तो दान उसके अनुसार ग्रहण भी होता है जो उसके पास है न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं।
13 यह नहीं कि औरों को चैन और तुम को क्लेश मिले। 14 परन्तु बराबरी के विचार से इस समय तुम्हारी बढ़ती उनकी घटी में काम आए, ताकि उनकी बढ़ती भी तुम्हारी घटी में काम आए, कि बराबरी हो जाए। 15 जैसा लिखा है,
“जिसने बहुत बटोरा उसका कुछ अधिक न निकला
और जिस ने थोड़ा बटोरा उसका कुछ कम न निकला।” (निर्ग. 16:18)
16 परमेश्वर का धन्यवाद हो, जिसने तुम्हारे लिये वही उत्साह तीतुस के हृदय में डाल दिया है। 17 कि उसने हमारा समझाना मान लिया वरन् बहुत उत्साही होकर वह अपनी इच्छा से तुम्हारे पास गया है।
18 और हमने उसके साथ उस भाई को भेजा है जिसका नाम सुसमाचार के विषय में सब कलीसिया में फैला हुआ है; 19 और इतना ही नहीं, परन्तु वह कलीसिया द्वारा ठहराया भी गया कि इस दान के काम के लिये हमारे साथ जाए और हम यह सेवा इसलिए करते हैं, कि प्रभु की महिमा और हमारे मन की तैयारी प्रगट हो जाए।
20 हम इस बात में चौकस रहते हैं, कि इस उदारता के काम के विषय में जिसकी सेवा हम करते हैं, कोई हम पर दोष न लगाने पाए। 21 क्योंकि जो बातें केवल प्रभु ही के निकट नहीं, परन्तु मनुष्यों के निकट भी भली हैं हम उनकी चिन्ता करते हैं।
22 और हमने उसके साथ अपने भाई को भेजा है, जिसको हमने बार-बार परख के बहुत बातों में उत्साही पाया है; परन्तु अब तुम पर उसको बड़ा भरोसा है, इस कारण वह और भी अधिक उत्साही है। 23 यदि कोई तीतुस के विषय में पूछे, तो वह मेरा साथी, और तुम्हारे लिये मेरा सहकर्मी है, और यदि हमारे भाइयों के विषय में पूछे, तो वे कलीसियाओं के भेजे हुए और मसीह की महिमा हैं। 24 अतः अपना प्रेम और हमारा वह घमण्ड जो तुम्हारे विषय में है कलीसियाओं के सामने उन्हें सिद्ध करके दिखाओ।
यद्यपि मकिदुनिया की कलीसियाएं कष्ट और गरीबी में थी परमेश्वर के अनुग्रह से वे यरूशलेम के विश्वासियों के लिए आर्थिक सहयोग एकत्र करने के योग्य हुई
ये मकिदुनिया के कलिसियाँ के सन्दर्भ में है
"स्वेच्छा"
यहं पौलुस यरूशलेम के विश्वासियों के सन्दर्भ में कह रहा है
"और तब उन्होंने अपने आप को भी हमारे लिए दे दिया"
पौलुस यरूशलेम के विश्वासियों के लिए कुरिन्थ की कलीसिया के द्वारा दान एकत्र के सन्दर्भ कह रहा है. वैकल्पिक अनुवाद: "जैसा पहले उसने दान देने के विषय तुम्हे प्रोत्साहित किया था। ".
वैकल्पिक अनुवाद: "तुम्हारे मध्य लौट कर इस दानं की सेवा को पूरा करने के लिए तुम्हे प्रोत्साहित करता रहे वैसा ही तुम्हारे बीच में इस दान के काम को पूरा भी कर ले।"
वैकल्पिक अनुवाद: "क्योंकि तुम कई मायनो में अपेक्षा से अधिक अच्छा करते हो"
वैकल्पिक अनुवाद "परमेश्वर और हमारे प्रति तुम्हारी निष्ठा में"
वैकल्पिक अनुवाद: "जिस तरह तुम विचारों का आदान प्रदान करते हो"
वैकल्पिक अनुवाद: "समझने में" या "अंतर्ग्रहण"
वैकल्पिक अनुवाद: "उत्साह में" या "अथक प्रयास"
वैकल्पिक अनुवाद: "और जिस प्रकार तुम अपना प्रेम हम पर प्रकट करते हो"
वैकल्पिक अनुवाद: "सुनिश्चित करो कि तुम यरूशलेम के पीड़ित पवित्र जनों को आर्थिक सहायता पहुचाने में आत्मत्याग के साथ एक भला काम करते हो
वैकल्पिक अनुवाद: "प्रभु का प्रेम और अनर्जित अनुग्रह"
वैकल्पिक अनुवाद: "वह सब वस्तुओं का मालिक है और अधिकारी है"
तुम्हारे लिए कंगाल बन गया .- वैकल्पिक अनुवाद: "तुम्हारे कारण उसने अपना स्वर्गिक आवास और विशेषताओं को त्याग कर पृथ्वी पर मानव रूप में आया,"
वैकल्पिक अनुवाद: "उसके दीनता के जीवन और विनीत भाव के द्वारा तुम धनी और बहुतायत से आशीषित हो जाओं"
"इस बात" अर्थात् यरूशलेम के विश्वासियों के लिए दान एकत्र करना
वैकल्पिक अनुवाद: "दान देने के लिए तुमसे निवेदन करना"
वैकल्पिक अनुवाद: "बराबरी में विषमता न आये"
वैकल्पिक अनुवाद: "आगे चलकर कभी जब तुम आवश्यकता में हो तब तुम्हारे साथ बाटने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन हो"
"जैसा धर्मशास्त्र में लिखा है"
"वही उत्साह" या "वही गहन चिंता"
वैकल्पिक अनुवाद: "उसने हमारे निवेदन को स्वीकार किया की वह तुमसे पुन: भेंट करे,"
वैकल्पिक अनुवाद: "और वह तुमसे भेट करने के लिए बहुत अधिक उत्सुक है"
"तीतुस के साथ"
वैकल्पिक अनुवाद:"मसीह में यह भाई नियुक्त किया गया है"
की इस दान को लेकर यरूशलेम जाए. वैकल्पिक अनुवाद: "उदारता के इस काम को करने के लिए"
वैकल्पिक अनुवाद: "ये सेवा हम प्रभु की महिमा के निमित्त करते है"
वैकल्पिक अनुवाद: "आलोचना के कारण"
वैकल्पिक अनुवाद: "इस उदारता के इस दान के साथ हम ऐसा व्यवहार कर रहे है"
वैकल्पिक अनुवाद:: "हम इस दान को बड़े मान सम्मान के साथ भिजवा रहे है ,"
जो बातें केवल प्रभु ही के निकट नहीं, - जिससे की पौलुस का कार्य प्रभु के समक्ष माननीय ठहरे
जिससे की मनुष्यों पर यह प्रकट हो जाए कि पौलुस विश्वासयोग्य है
"उसके साथ" इसका सन्दर्भ तीतुस से है जिसके साथ कलीसिया द्वारा नियुक्त किया गया वह भाई दान लेकर जा रहा था।
तो वह मेरा साथी, और तुम्हारे लिये मेरा सहकर्मी है, - वैकल्पिक अनुवाद: "तुम्हारी सहायता के निमित्त मेरा सहकर्मी"
"हमारे अन्य भाइयों के बारे में"
पौलुस दक्षिणी यूनान के एक क्षेत्र की चर्चाकर रहा है जिसमे कुरिन्थ और आसपास के प्रदेश है
पौलुस उन्हें मकिदुनिया की कलीसियाओं पर हुए परमेश्वर के अनुग्रह का समाचार सुनाना चाहता था।
उनकी उदारता बहुत बढ़ गई थी, उन्होंने अपनी सामर्थ वरन् सामर्थ से बढ़कर मन से दिया था।
पौलुस ने तीतुस से आग्रह किया था कि जैसा उसने पहले आरंभ किया था, वैसा ही इस दान के काम को पूरा भी करे।
पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया से क्यों कहा, "दान के काम में भी बढ़ते जाओ।"?पौलुस ने यह इसलिए लिखा कि वे अपने प्रेम की सत्यता को अन्य विश्वासियों के यत्न की तुलना में रखें।
पौलुस कहता है कि कुरिन्थ के पवित्र जनों के लिए यह अच्छा वरन् ग्रहणयोग्य है कि उस काम में वे प्रथम हों।
नहीं, पौलुस कहता है कि उस समय कुरिन्थ के विश्वासियों की बहुतायत उस समय अन्य पवित्र जनों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती थी कि उनकी बहुतायत कुरिन्थ के पवित्र जनों की आवश्यकता पूरी करे कि बराबरी हो जाए।
तीतुस ने पौलुस की बात मानी और अपनी इच्छा से कुरिन्थ की कलीसिया में गया।
पौलुस और अन्य पवित्र जनों ने तीतुस को ही नहीं एक और भाई को वहाँ भेजा जो सुसमाचार की सेवा में सब कलीसियाओं में प्रशंसा का पात्र था। वह कलीसिया द्वारा ठहराया भी गया था कि इस दान के काम के लिए उनके साथ जाए।
पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया से कहा कि वे उन पर अपना प्रेम प्रकट करें और सिद्ध कर दें कि पौलुस अन्य कलीसियाओं में कुरिन्थ की कलीसिया और घमण्ड क्यों करता था।
1 अब उस सेवा के विषय में जो पवित्र लोगों के लिये की जाती है, मुझे तुम को लिखना अवश्य नहीं। 2 क्योंकि मैं तुम्हारे मन की तैयारी को जानता हूँ, जिसके कारण मैं तुम्हारे विषय में मकिदुनियों के सामने घमण्ड दिखाता हूँ, कि अखाया के लोग एक वर्ष से तैयार हुए हैं, और तुम्हारे उत्साह ने और बहुतों को भी उभारा है।
3 परन्तु मैंने भाइयों को इसलिए भेजा है, कि हमने जो घमण्ड तुम्हारे विषय में दिखाया, वह इस बात में व्यर्थ न ठहरे; परन्तु जैसा मैंने कहा; वैसे ही तुम तैयार हो रहो। 4 ऐसा न हो, कि यदि कोई मकिदुनी मेरे साथ आए, और तुम्हें तैयार न पाए, तो क्या जानें, इस भरोसे के कारण हम (यह नहीं कहते कि तुम) लज्जित हों। 5 इसलिए मैंने भाइयों से यह विनती करना अवश्य समझा कि वे पहले से तुम्हारे पास जाएँ, और तुम्हारी उदारता का फल जिसके विषय में पहले से वचन दिया गया था, तैयार कर रखें, कि यह दबाव से नहीं परन्तु उदारता के फल की तरह तैयार हो।
6 परन्तु बात तो यह है, कि जो थोड़ा बोता है वह थोड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा। (नीति. 11:24, नीति. 22:9) 7 हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़-कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है। (व्य. 18:10, नीति. 22:9, नीति. 11:25)
8 परमेश्वर सब प्रकार का अनुग्रह तुम्हें बहुतायत से दे सकता है*। जिससे हर बात में और हर समय, सब कुछ, जो तुम्हें आवश्यक हो, तुम्हारे पास रहे, और हर एक भले काम के लिये तुम्हारे पास बहुत कुछ हो। 9 जैसा लिखा है,
“उसने बिखेरा, उसने गरीबों को दान दिया,
उसकी धार्मिकता सदा बनी रहेगी।” (भज. 112:9)
10 अतः जो बोनेवाले को बीज, और भोजन के लिये रोटी देता है वह तुम्हें बीज देगा, और उसे फलवन्त करेगा; और तुम्हारे धार्मिकता के फलों को बढ़ाएगा। (यशा. 55:10, होशे 10:12) 11 तुम हर बात में सब प्रकार की उदारता के लिये जो हमारे द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करवाती है, धनवान किए जाओ।
12 क्योंकि इस सेवा के पूरा करने से, न केवल पवित्र लोगों की घटियाँ पूरी होती हैं, परन्तु लोगों की ओर से परमेश्वर का बहुत धन्यवाद होता है। 13 क्योंकि इस सेवा को प्रमाण स्वीकार कर वे परमेश्वर की महिमा प्रगट करते हैं*, कि तुम मसीह के सुसमाचार को मान कर उसके अधीन रहते हो, और उनकी, और सब की सहायता करने में उदारता प्रगट करते रहते हो। 14 और वे तुम्हारे लिये प्रार्थना करते हैं; और इसलिए कि तुम पर परमेश्वर का बड़ा ही अनुग्रह है*, तुम्हारी लालसा करते रहते हैं। 15 परमेश्वर को उसके उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो।
यह तीतुस और उन दो भाइयों के बारे में जिनके नामों की चर्चा नहीं की गई हैं
"इन भाइयों को तुम्हारे पास आना है"
पौलुस एक किसान के बीज बोने की उपमा के द्वारा कुरिन्थ की कलीसिया के दान की तुलना करता है। जिस प्रकार एक किसान जितना अधिक बीज बोता है उतना ही अधिक उपज प्राप्त करता है उसी प्रकार परमेश्वर की आशीषे भी कम या अधिक होंगी जो निर्भर करता है कि कुरिन्थ की कलीसिया कितना दान देती है।
परमेश्वर चाहता है कि उसके लोग स्वेच्छा से दें वरन सहर्ष से दें कि हर स्थान में उनके सह विश्वासियों की आवश्यकताओं की पूर्ति के निमित्त सहयोग प्रदान हो।
पौलुस के कहने का अर्थ है कि जिस प्रकार कोई अन्य विश्वासी को आर्थिक सहयोग प्रदान करता है परमेश्वर भी देनेवाले को अधिक अनुग्रह प्रदान करता है कि उसे घटी न हो।
पौलुस इस उपमा द्वारा अपने लोगों के मुक्ति के लिए परमेश्वर के प्रावधान का सन्दर्भ दे रहा है - .
वैकल्पिक अनुवाद: "तुम्हारे संसाधन"
"तुम्हारी धार्मिकता का फल"
जो हमारे द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करवाती है, - वैकल्पिक अनुवाद: "और जब तुम्हारा दान उन लोगों को देंगे जिन्हें इनकी आवश्यकता है, परमेश्वर को बहुत धन्यवाद करेंगे"
क्योंकि इस सेवा के पूरा करने से - वैकल्पिक अनुवाद: "तुम्हारे दान देने की सेवा के लिए"
"यरूशलेम के पवित्र लोगों की आवश्यकताएं"
वैकल्पिक अनुवाद: "परन्तु इसके कारण अनेक जन परमेश्वर को धन्यवाद देने कि प्रेरणा पाते है"
इस सेवा से प्रमाण लेकर वे परमेश्वर की महिमा प्रगट करते हैं, - वैकल्पिक अनुवाद: "तुम्हारी उदारता ने तुम्हारी आज्ञाकारिता और प्रेम को सिद्ध कर दिया है।"
कि तुम मसीह के सुसमाचार को मान कर उसके आधीन रहते हो, और उन की, और सब की सहायता करने में उदारता प्रगट करते रहते हो। l .- वैकल्पिक अनुवाद "तुम अपनी आज्ञाकारिता और उदारता से ही नहीं परन्तु मसीह के सुसमाचार का प्रचार करके भी परमेश्वर की महिमा प्रकट करते हो"
वैकल्पिक अनुवाद: "उस दान अर्थात् मसीह यीशु का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है"
"तुम को मसीह से प्राप्त नम्रता में"
पौलुस कहता है कि पवित्र जनों के लिए सेवा के बारे में लिखना आवश्यक नहीं है।
उसने भाइयों को भेजा कि कुरिन्थ के विश्वासियों के विषय में उसका घमण्ड करना व्यर्थ न हो और कि कुरिन्थ की कलीसिया तैयार हो जैसा पौलुस ने कहा कि वे रहेंगे।
पौलुस ने इसे आवश्यक समझा जिससे कि पौलुस के साथ यदि कोई आधुनिक विश्वासी आए तो कुरिन्थ की कलीसिया को तैयार न पाए और पौलुस और उसके साथियों को लज्जित होना पड़े।
पौलुस कहता है कि मुख्य बात यह है, "जो थोड़ा बोता है, वह थोड़ा काटेगा भी, और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा।"
हर एक जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे, न कुढ़कुढ़ के और न दबाव से कि उसे देते समय दुःख हो।
जो बोने वाले को बीज और भोजन के लिए रोटी देता है, वह तुम्हें बीज देगा और उसे फलवन्त करेगा; और तुम्हारे धर्म के फलों को बढ़ाएगा।
उन्होंने मसीह के सुसमाचार को मानकर उसकी अधीनता स्वीकार की और सबकी सहायता करने में उदारता प्रकट करके परमेश्वर की महिमा प्रकट की।
उन्होंने कुरिन्थ की कलीसिया पर परमेश्वर का बड़ा अनुग्रह था वे उनकी लालसा करते रहते थे।
1 मैं वही पौलुस जो तुम्हारे सामने दीन हूँ, परन्तु पीठ पीछे तुम्हारी ओर साहस करता हूँ; तुम को मसीह की नम्रता, और कोमलता* के कारण समझाता हूँ। 2 मैं यह विनती करता हूँ, कि तुम्हारे सामने मुझे निर्भय होकर साहस करना न पड़े; जैसा मैं कितनों पर जो हमको शरीर के अनुसार चलनेवाले समझते हैं, वीरता दिखाने का विचार करता हूँ।
3 क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तो भी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। 4 क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं।
5 हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊँची बात को, जो परमेश्वर की पहचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। 6 और तैयार रहते हैं कि जब तुम्हारा आज्ञा मानना पूरा हो जाए, तो हर एक प्रकार के आज्ञा न मानने का पलटा लें।
7 तुम इन्हीं बातों को देखते हो, जो आँखों के सामने हैं, यदि किसी का अपने पर यह भरोसा हो, कि मैं मसीह का हूँ, तो वह यह भी जान ले, कि जैसा वह मसीह का है, वैसे ही हम भी हैं। 8 क्योंकि यदि मैं उस अधिकार के विषय में और भी घमण्ड दिखाऊँ, जो प्रभु ने तुम्हारे बिगाड़ने के लिये नहीं पर बनाने के लिये हमें दिया है, तो लज्जित न हूँगा।
9 यह मैं इसलिए कहता हूँ, कि पत्रियों के द्वारा तुम्हें डरानेवाला न ठहरूँ। 10 क्योंकि वे कहते हैं, “उसकी पत्रियाँ तो गम्भीर और प्रभावशाली हैं; परन्तु जब देखते हैं, तो कहते है वह देह का निर्बल और वक्तव्य में हलका जान पड़ता है।”
11 इसलिए जो ऐसा कहता है, कि वह यह समझ रखे, कि जैसे पीठ पीछे पत्रियों में हमारे वचन हैं, वैसे ही तुम्हारे सामने हमारे काम भी होंगे।
12 क्योंकि हमें यह साहस नहीं कि हम अपने आप को उनके साथ गिनें, या उनसे अपने को मिलाएँ, जो अपनी प्रशंसा करते हैं, और अपने आप को आपस में नाप तौलकर एक दूसरे से तुलना करके मूर्ख ठहरते हैं।
13 हम तो सीमा से बाहर घमण्ड कदापि न करेंगे, परन्तु उसी सीमा तक जो परमेश्वर ने हमारे लिये ठहरा दी है, और उसमें तुम भी आ गए हो और उसी के अनुसार घमण्ड भी करेंगे। 14 क्योंकि हम अपनी सीमा से बाहर अपने आप को बढ़ाना नहीं चाहते, जैसे कि तुम तक न पहुँचने की दशा में होता, वरन् मसीह का सुसमाचार सुनाते हुए तुम तक पहुँच चुके हैं।
15 और हम सीमा से बाहर औरों के परिश्रम पर घमण्ड नहीं करते; परन्तु हमें आशा है, कि ज्यों-ज्यों तुम्हारा विश्वास बढ़ता जाएगा त्यों-त्यों हम अपनी सीमा के अनुसार तुम्हारे कारण और भी बढ़ते जाएँगे। 16 कि हम तुम्हारी सीमा से आगे बढ़कर सुसमाचार सुनाएँ, और यह नहीं, कि हम औरों की सीमा के भीतर बने बनाए कामों पर घमण्ड करें।
17 परन्तु जो घमण्ड करे, वह प्रभु पर घमण्ड करें। (1 कुरि. 1:31, यिर्म. 9:24)
18 क्योंकि जो अपनी बड़ाई करता है, वह नहीं, परन्तु जिसकी बड़ाई प्रभु करता है, वही ग्रहण किया जाता है।
"जो ऐसा समझते है"
वैकल्पिक अनुवाद: "हम मानवीय मनसा के अनुसार काम करते है"
वैकल्पिक अनुवाद: "मानवीय हथियारों से लड़ना"
वैकल्पिक अनुवाद: "क्योंकि हम परमेश्वर के सामर्थी हथियारों से लड़ते है, सांसारिक हथियारों से नहीं"
पर गढ़ों को ढा देने के लिए परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं - "उनमे दिव्य शक्ति है की गढ़ों को गिरा दे"
वैकल्पिक अनुवाद: "मानवीय तर्क वितर्क के दंभी विचार" या "प्रत्येक झूठा विवाद."
"परमेश्वर के विरुद्ध कही जाती है"
हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकरी बना देता है - वैकल्पिक अनुवाद: "हम प्रत्येक भावना को मसीह की आज्ञाकारी बना देते है" या "हम प्रत्येक विद्रोही विचार को बंदी बनाकर मसीह का आज्ञापालन सिखाते है।"
वैकल्पिक अनुवाद: "उसी बात पर मनन करो जो तुम्हारे लिए अति स्पष्ट है."
तो वह यह भी जान ले - "वह स्मरण रखे"
वैकल्पिक अनुवाद:"हम मसीह के है जिनका वह भी है"
"मसीह के अनुयायी होने के कारण तुम्हारी उन्नति को बढ़ावा दे'" या "मसीह के अनुयायी होकर उन्नति करने में तुम्हारी सहायता करे"
"मैं तुम्हे डराने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ "
"विवशकारी और व्यग्र,"
"सुनने में कठिन"
"हमारे" अर्थात् पौलुस का प्रचारक दल.
पौलुस कहता है जो निर्देशन उसने लिखे है वह उनके ही अनुसार जीवन जीने का प्रयास करता है
साथ गिने या उनसे अपने को मिलाए - "उनकी बराबरी करना या उनसे तुलना करना"
"अपना अज्ञान प्रकट करते है" या "विवेक की कमी दर्शाते है."
"हमारे अधिकार क्षेत्र के बाहर किये गए काम"
उसी सीमा तक जो परमेश्वर ने हमारे लिये ठहरा दी है - वैकल्पिक अनुवाद: "परमेश्वर के काम की सीमाएं"
वैकल्पिक अनुवाद: "इन सीमाओं के पार नहीं बड़े"
तुम तक पहुंच चुके हैं। - AT: "कुरिन्थ तक साथ गया"
के बारे में श्रेय का दावा.
वैकल्पिक अनुवाद: "जिससे की तुम्हारे मध्य हमारे कार्य की सीमाएं"
वैकल्पिक अनुवाद: "किसी और का अपना क्षेत्र."
केवल प्रभु मैं ही है कि किसी प्रकार का गर्व किया जाएं.
"सहन करना"
पौलुस ने उनसे विनती की कि उनके सामने निर्भय होकर साहस करना न पड़े।
पौलुस उन लोगों पर साहस दिखाने का विचार करता था जो उन्हें शरीर के अनुसार चलने वाले समझते थे।
पौलुस और उसके साथी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते थे।
पौलुस जिन हथियारों को काम में लेता था उनमें गढ़ों को ढा देने का दिव्य सामर्थ था।
परमेश्वर ने पौलुस और उसके साथियों को अधिकार दिया कि वे कुरिन्थ के पवित्र जनों को बिगाड़ने के लिए नहीं बनाएं।
कुछ का कहना था कि पौलुस के पत्र तो गंभीर और प्रभावशाली हैं परन्तु वह देह का निर्बल और वक्तव्य में सुनने योग्य नहीं हैं।
पौलुस ने कहा कि उसने दूर रहकर पत्र में जैसा लिखा वैसा ही वह कुरिन्थ की कलीसिया के मध्य उपस्थित रहने पर करेगा भी।
वे एक-दूसरे के साथ नाप-तौल कर और एक-दूसरे के मिलान करके मूर्ख ठहरते हैं।
पौलुस कहता है कि वे अपनी सीमा से बाहर घमण्ड कदापि न करेंगे, परन्तु उसी सीमा तक जो परमेश्वर ने उनके लिए ठहरा दी है। वे सीमा से बाहर दूसरों के परिश्रम पर घमण्ड नहीं करते थे।
जिसकी बड़ाई प्रभु करता है वही ग्रहण किया जाता है।
1 यदि तुम मेरी थोड़ी मूर्खता सह लेते तो क्या ही भला होता; हाँ, मेरी सह भी लेते हो। 2 क्योंकि मैं तुम्हारे विषय में ईश्वरीय धुन लगाए रहता हूँ, इसलिए कि मैंने एक ही पुरुष से तुम्हारी बात लगाई है, कि तुम्हें पवित्र कुँवारी के समान मसीह को सौंप दूँ।
3 परन्तु मैं डरता हूँ कि जैसे साँप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सिधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएँ। (1 थिस्स. 3:5, उत्प. 3:13) 4 यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिसका प्रचार हमने नहीं किया या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता।
5 मैं तो समझता हूँ, कि मैं किसी बात में बड़े से बड़े प्रेरितों से कम नहीं हूँ। 6 यदि मैं वक्तव्य में अनाड़ी हूँ, तो भी ज्ञान में नहीं; वरन् हमने इसको हर बात में सब पर तुम्हारे लिये प्रगट किया है।
7 क्या इसमें मैंने कुछ पाप किया; कि मैंने तुम्हें परमेश्वर का सुसमाचार सेंत-मेंत सुनाया; और अपने आप को नीचा किया, कि तुम ऊँचे हो जाओ? 8 मैंने और कलीसियाओं को लूटा अर्थात् मैंने उनसे मजदूरी ली, ताकि तुम्हारी सेवा करूँ। 9 और जब तुम्हारे साथ था, और मुझे घटी हुई, तो मैंने किसी पर भार नहीं डाला, क्योंकि भाइयों ने, मकिदुनिया से आकर मेरी घटी को पूरी की: और मैंने हर बात में अपने आप को तुम पर भार बनने से रोका, और रोके रहूँगा।
10 मसीह की सच्चाई मुझ में है, तो अखाया देश में कोई मुझे इस घमण्ड से न रोकेगा। 11 किस लिये? क्या इसलिए कि मैं तुम से प्रेम नहीं रखता? परमेश्वर यह जानता है।
12 परन्तु जो मैं करता हूँ, वही करता रहूँगा; कि जो लोग दाँव ढूँढ़ते हैं, उन्हें मैं दाँव पाने न दूँ, ताकि जिस बात में वे घमण्ड करते हैं, उसमें वे हमारे ही समान ठहरें। 13 क्योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से काम करनेवाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरनेवाले हैं।
14 और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप धारण करता है। 15 इसलिए यदि उसके सेवक भी धार्मिकता के सेवकों जैसा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं, परन्तु उनका अन्त उनके कामों के अनुसार होगा।
16 मैं फिर कहता हूँ, कोई मुझे मूर्ख न समझे; नहीं तो मूर्ख ही समझकर मेरी सह लो, ताकि थोड़ा सा मैं भी घमण्ड कर सकूँ। 17 इस बेधड़क में जो कुछ मैं कहता हूँ वह प्रभु की आज्ञा के अनुसार* नहीं पर मानो मूर्खता से ही कहता हूँ। 18 जब कि बहुत लोग शरीर के अनुसार घमण्ड करते हैं, तो मैं भी घमण्ड करूँगा।
19 तुम तो समझदार होकर आनन्द से मूर्खों की सह लेते हो। 20 क्योंकि जब तुम्हें कोई दास बना लेता है*, या खा जाता है, या फँसा लेता है, या अपने आप को बड़ा बनाता है, या तुम्हारे मुँह पर थप्पड़ मारता है, तो तुम सह लेते हो। 21 मेरा कहना अनादर की रीति पर है, मानो कि हम निर्बल से थे; परन्तु जिस किसी बात में कोई साहस करता है, मैं मूर्खता से कहता हूँ तो मैं भी साहस करता हूँ।
22 क्या वे ही इब्रानी हैं? मैं भी हूँ। क्या वे ही इस्राएली हैं? मैं भी हूँ; क्या वे ही अब्राहम के वंश के हैं? मैं भी हूँ। 23 क्या वे ही मसीह के सेवक हैं? (मैं पागल के समान कहता हूँ) मैं उनसे बढ़कर हूँ! अधिक परिश्रम करने में; बार-बार कैद होने में; कोड़े खाने में; बार-बार मृत्यु के जोखिमों में।
24 पाँच बार मैंने यहूदियों के हाथ से उनतालीस कोड़े खाए। 25 तीन बार मैंने बेंतें खाई; एक बार पत्थराव किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात दिन मैंने समुद्र में काटा। 26 मैं बार-बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जातिवालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों में के जोखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जोखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में रहा;
27 परिश्रम और कष्ट में; बार-बार जागते रहने में; भूख-प्यास में; बार-बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में। 28 और अन्य बातों को छोड़कर जिनका वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रतिदिन मुझे दबाती है। 29 किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता? किस के पाप में गिरने से मेरा जी नहीं दुःखता?
30 यदि घमण्ड करना अवश्य है, तो मैं अपनी निर्बलता की बातों पर घमण्ड करूँगा। 31 प्रभु यीशु का परमेश्वर और पिता जो सदा धन्य है, जानता है, कि मैं झूठ नहीं बोलता।
32 दमिश्क में अरितास राजा की ओर से जो राज्यपाल था, उसने मेरे पकड़ने को दमिश्कियों के नगर पर पहरा बैठा रखा था। 33 और मैं टोकरे में खिड़की से होकर दीवार पर से उतारा गया, और उसके हाथ से बच निकला।
1 यद्यपि घमण्ड करना तो मेरे लिये ठीक नहीं, फिर भी करना पड़ता है; पर मैं प्रभु के दिए हुए दर्शनों और प्रकशनों की चर्चा करूँगा। 2 मैं मसीह में एक मनुष्य को जानता हूँ, चौदह वर्ष हुए कि न जाने देहसहित, न जाने देहरहित, परमेश्वर जानता है, ऐसा मनुष्य तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया।
3 मैं ऐसे मनुष्य को जानता हूँ न जाने देहसहित, न जाने देहरहित परमेश्वर ही जानता है। 4 कि स्वर्गलोक पर उठा लिया गया, और ऐसी बातें सुनीं जो कहने की नहीं; और जिनका मुँह में लाना मनुष्य को उचित नहीं। 5 ऐसे मनुष्य पर तो मैं घमण्ड करूँगा, परन्तु अपने पर अपनी निर्बलताओं को छोड़, अपने विषय में घमण्ड न करूँगा।
6 क्योंकि यदि मैं घमण्ड करना चाहूँ भी तो मूर्ख न हूँगा, क्योंकि सच बोलूँगा; तो भी रुक जाता हूँ, ऐसा न हो, कि जैसा कोई मुझे देखता है, या मुझसे सुनता है, मुझे उससे बढ़कर समझे।
7 और इसलिए कि मैं प्रकशनों की बहुतायत से फूल न जाऊँ, मेरे शरीर में एक काँटा चुभाया गया अर्थात् शैतान का एक दूत कि मुझे घूँसे मारे ताकि मैं फूल न जाऊँ। (गला. 4:13, अय्यू. 2:6)
8 इसके विषय में मैंने प्रभु से तीन बार विनती की, कि मुझसे यह दूर हो जाए। 9 और उसने मुझसे कहा, “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होती है।*” इसलिए मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूँगा, कि मसीह की सामर्थ्य मुझ पर छाया करती रहे। 10 इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूँ; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ, तभी बलवन्त होता हूँ।
11 मैं मूर्ख तो बना, परन्तु तुम ही ने मुझसे यह बरबस करवाया: तुम्हें तो मेरी प्रशंसा करनी चाहिए थी, क्योंकि यद्यपि मैं कुछ भी नहीं, फिर भी उन बड़े से बड़े प्रेरितों से किसी बात में कम नहीं हूँ। 12 प्रेरित के लक्षण भी तुम्हारे बीच सब प्रकार के धीरज सहित चिन्हों, और अद्भुत कामों, और सामर्थ्य के कामों से दिखाए गए। 13 तुम कौन सी बात में और कलीसियाओं से कम थे, केवल इसमें कि मैंने तुम पर अपना भार न रखा मेरा यह अन्याय क्षमा करो।
14 अब, मैं तीसरी बार तुम्हारे पास आने को तैयार हूँ, और मैं तुम पर कोई भार न रखूँगा; क्योंकि मैं तुम्हारी सम्पत्ति नहीं, वरन् तुम ही को चाहता हूँ। क्योंकि बच्चों को माता-पिता के लिये धन बटोरना न चाहिए, पर माता-पिता को बच्चों के लिये। 15 मैं तुम्हारी आत्माओं के लिये बहुत आनन्द से खर्च करूँगा, वरन् आप भी खर्च हो जाऊँगा क्या जितना बढ़कर मैं तुम से प्रेम रखता हूँ, उतना ही घटकर तुम मुझसे प्रेम रखोगे?
16 ऐसा हो सकता है, कि मैंने तुम पर बोझ नहीं डाला, परन्तु चतुराई से तुम्हें धोखा देकर फँसा लिया। 17 भला, जिन्हें मैंने तुम्हारे पास भेजा, क्या उनमें से किसी के द्वारा मैंने छल करके तुम से कुछ ले लिया? 18 मैंने तीतुस को समझाकर उसके साथ उस भाई को भेजा, तो क्या तीतुस ने छल करके तुम से कुछ लिया? क्या हम एक ही आत्मा के चलाए न चले? क्या एक ही लीक पर न चले?
19 तुम अभी तक समझ रहे होंगे कि हम तुम्हारे सामने प्रत्युत्तर दे रहे हैं, हम तो परमेश्वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं, और हे प्रियों, सब बातें तुम्हारी उन्नति ही के लिये कहते हैं।
20 क्योंकि मुझे डर है, कहीं ऐसा न हो, कि मैं आकर जैसा चाहता हूँ, वैसा तुम्हें न पाऊँ; और मुझे भी जैसा तुम नहीं चाहते वैसा ही पाओ, कि तुम में झगड़ा, डाह, क्रोध, विरोध, ईर्ष्या, चुगली, अभिमान और बखेड़े हों। 21 और कहीं ऐसा न हो कि जब मैं वापस आऊँगा, मेरा परमेश्वर मुझे अपमानित करे और मुझे बहुतों के लिये फिर शोक करना पड़े, जिन्होंने पहले पाप किया था, और उस गंदे काम, और व्यभिचार, और लुचपन से, जो उन्होंने किया, मन नहीं फिराया।
1 अब तीसरी बार तुम्हारे पास आता हूँ: दो या तीन गवाहों के मुँह से हर एक बात ठहराई जाएगी। (व्य. 19:15) 2 जैसे मैं जब दूसरी बार तुम्हारे साथ था, वैसे ही अब दूर रहते हुए उन लोगों से जिन्होंने पहले पाप किया, और अन्य सब लोगों से अब पहले से कहे देता हूँ, कि यदि मैं फिर आऊँगा, तो नहीं छोडूँगा।
3 तुम तो इसका प्रमाण चाहते हो, कि मसीह मुझ में बोलता है, जो तुम्हारे लिये निर्बल नहीं; परन्तु तुम में सामर्थी है। 4 वह निर्बलता के कारण क्रूस पर चढ़ाया तो गया, फिर भी परमेश्वर की सामर्थ्य से जीवित है, हम भी तो उसमें निर्बल हैं; परन्तु परमेश्वर की सामर्थ्य से जो तुम्हारे लिये है, उसके साथ जीएँगे।
5 अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जाँचो*, क्या तुम अपने विषय में यह नहीं जानते, कि यीशु मसीह तुम में है? नहीं तो तुम निकम्मे निकले हो। 6 पर मेरी आशा है, कि तुम जान लोगे, कि हम निकम्मे नहीं।
7 और हम अपने परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, कि तुम कोई बुराई न करो*; इसलिए नहीं, कि हम खरे देख पड़ें, पर इसलिए कि तुम भलाई करो, चाहे हम निकम्मे ही ठहरें। 8 क्योंकि हम सत्य के विरोध में कुछ नहीं कर सकते, पर सत्य के लिये ही कर सकते हैं।
9 जब हम निर्बल हैं, और तुम बलवन्त हो, तो हम आनन्दित होते हैं, और यह प्रार्थना भी करते हैं, कि तुम सिद्ध हो जाओ। 10 इस कारण मैं तुम्हारे पीठ पीछे ये बातें लिखता हूँ, कि उपस्थित होकर मुझे उस अधिकार के अनुसार जिसे प्रभु ने बिगाड़ने के लिये नहीं पर बनाने के लिये मुझे दिया है, कड़ाई से कुछ करना न पड़े।
11 निदान, हे भाइयों, आनन्दित रहो; सिद्ध बनते जाओ; धैर्य रखो; एक ही मन रखो; मेल से रहो*, और प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा। 12 एक दूसरे को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो।
13 सब पवित्र लोग तुम्हें नमस्कार कहते हैं।
14 प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्र आत्मा की सहभागिता तुम सब के साथ होती रहे।
1 पौलुस की, जो न मनुष्यों की ओर से, और न मनुष्य के द्वारा, वरन् यीशु मसीह और परमेश्वर पिता के द्वारा, जिस ने उसको मरे हुओं में से जिलाया, प्रेरित है। 2 और सारे भाइयों की ओर से, जो मेरे साथ हैं; गलातिया की कलीसियाओं के नाम।
3 परमेश्वर पिता, और हमारे प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। 4 उसी ने अपने आप को हमारे पापों के लिये दे दिया, ताकि हमारे परमेश्वर और पिता की इच्छा के अनुसार हमें इस वर्तमान बुरे संसार से छुड़ाए। 5 उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
6 मुझे आश्चर्य होता है, कि जिस ने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उससे तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। 7 परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं।
8 परन्तु यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हमने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो। 9 जैसा हम पहले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूँ, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो श्रापित हो। 10 अब मैं क्या मनुष्यों को मानता हूँ या परमेश्वर को? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूँ? यदि मैं अब तक मनुष्यों को ही प्रसन्न करता रहता*, तो मसीह का दास न होता।
11 हे भाइयों, मैं तुम्हें जताए देता हूँ, कि जो सुसमाचार मैंने सुनाया है, वह मनुष्य का नहीं। 12 क्योंकि वह मुझे मनुष्य की ओर से नहीं पहुँचा*, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाशन से मिला।
13 यहूदी मत में जो पहले मेरा चाल-चलन था, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता था। 14 और मैं यहूदी धर्म में अपने साथी यहूदियों से अधिक आगे बढ़ रहा था और अपने पूर्वजों की परम्पराओं में बहुत ही उत्तेजित था।
15 परन्तु परमेश्वर की जब इच्छा हुई, उसने मेरी माता के गर्भ ही से मुझे ठहराया* और अपने अनुग्रह से बुला लिया, (यशा. 49:1,5, यिर्म. 1:5) 16 कि मुझ में अपने पुत्र को प्रगट करे कि मैं अन्यजातियों में उसका सुसमाचार सुनाऊँ; तो न मैंने माँस और लहू से सलाह ली; 17 और न यरूशलेम को उनके पास गया जो मुझसे पहले प्रेरित थे, पर तुरन्त अरब को चला गया और फिर वहाँ से दमिश्क को लौट आया।
18 फिर तीन बरस के बाद मैं कैफा से भेंट करने के लिये यरूशलेम को गया, और उसके पास पन्द्रह दिन तक रहा। 19 परन्तु प्रभु के भाई याकूब को छोड़ और प्रेरितों में से किसी से न मिला। 20 जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूँ, परमेश्वर को उपस्थित जानकर कहता हूँ, कि वे झूठी नहीं।
21 इसके बाद मैं सीरिया और किलिकिया के देशों में आया। 22 परन्तु यहूदिया की कलीसियाओं ने जो मसीह में थी, मेरा मुँह तो कभी नहीं देखा था। 23 परन्तु यही सुना करती थीं, कि जो हमें पहले सताता था, वह अब उसी विश्वास का सुसमाचार सुनाता है, जिसे पहले नाश करता था। 24 और मेरे विषय में परमेश्वर की महिमा करती थीं।
“जिसने मसीह यीशु को पुनःजीवित किया”
इसका अनुवाद हो सकता है, “प्रेरित पौलुस की ओर से” या “यह पत्र पौलुस की ओर से है जो एक प्रेरित है”।
“हमारे पापों का जो दण्ड हमारे लिए था उसे सहने के लिए”
इस वर्तमान बुरे संसार से छुड़ाए -कि वह हमें आज के संसार में क्रियाशील बुरी शक्तियों से बचाए”।
अर्थात “हमारे पिता परमेश्वर” वह हमारा परमेश्वर है और हमारा पिता भी है।
इसका एक और संभावित अर्थ है, “मुझे आश्चर्य होता है कि तुम इतनी शीघ्र कैसे.... बदल गए”।
“यह देखकर मै चकित हूँ”
फिर रहे हो -इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “तुम अपना मन बदलने लगे”। 2) “तुम अपनी स्वामिभक्ति बदलने लगे”।
“परमेश्वर जिसने तुम्हें बुलाया”
मसीह के अनुग्रह में - इसका अनुवाद हो सकता है, “मसीह के अनुग्रह के द्वारा” या “मसीह की अनुग्रहपूर्ण बलिदान के कारण”
“मनुष्य”
“सुनाए” या “सुनाता हो” अर्थात यह कि ऐसा नहीं हुआ है और होना भी नहीं चाहिए।
“शुभ सन्देश के अतिरिक्त” या “हमारे सन्देश के अतिरिक्त”
“परमेश्वर झूठा सन्देश सुनाने वाले को सदा का दण्ड दे” (यू.डी.बी.) यदि आपकी भाषा में किसी को श्राप देने की विधि है तो उसका यहां उपयोग करें।
इन प्रभावोत्पादक प्रश्नों से अपेक्षा की गई है कि उत्तर नकारात्मक हो। इसका अनुवाद हो सकता है, “मैं मनुष्यों का नहीं” परमेश्वर का अनुमोदन खोजता हूं। मैं मनुष्यों को प्रसन्न करने की खोज में नहीं हूं”।
“यदि” और “तो” दोनों ही तथ्यों के विपरीत है। इसका अनुवाद हो सकता है, “मैं अब तक मनुष्यों को प्रसन्न करने का प्रयास नहीं कर रहा हूं, मैं मसीह का सेवक हूं” या “यदि मैं मनुष्यों को प्रसन्न कर रहा हूं तो निश्चय ही मसीह का सेवक नहीं हूं”।
“मैंने न तो सुसमाचार सुना और ना ही मनुष्यों ने मुझे उसकी शिक्षा दी”।
इसका अर्थ हो सकता हैं 1) मसीह यीशु ने स्वयं मुझे यह शुभ सन्देश सौंपा” या 2) “परमेश्वर ने जब मुझे मसीह यीशु का दर्शन दिखाया तब उसने मुझे इस शुभ सन्देश से अवगत कराया।
“मानवीय मूल से”
“उन्नति करता जा रहा था” या “आगे निकल रहा था” इस रूपक में पूर्व यहूदी होना है। पौलुस अपने युग के यहूदियों से आगे बढ़ता हुआ उस परिपूर्णता के स्थान की ओर अग्रसर था।
“एक समय का व्यवहार” या “पूर्व का जीवन” या “पूर्वकालिक जीवन”।
“अत्यधिक” या “अत्यन्त” या “सीमा के परे”
“विनाश कर रहा था”
“समकालीन यहूदियों”
या “पूर्वजों”
संभावित अर्थ “परमेश्वर ने मुझे सेवा हेतु बुलाया क्योंकि वह अनुग्रहकारी है” या 2) “अपने अनुग्रह के कारण मुझे बुलाया है”।
संभावित अर्थ 1) “अपने पुत्र के ज्ञान की मुझे अनुभूति दे” या 2)“मेरे द्वारा संसार पर प्रकट करे कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है”।
“परमेश्वर के पुत्र की घोषणा करूं” या “परमेश्वर के पुत्र का शुभ सन्देश सुनाऊं”।
“शुभ सन्देश को समझने में मनुष्यों की सहायता नहीं ली”
“यात्रा की”
पौलुस गलातिया की कलीसियाओं पर स्पष्ट करना चाहता था कि वह पूर्णतः गंभीर है और कि परमेश्वर उसकी बातें सुन रहा है और यदि वह सत्य का बखान न करे तो दण्ड पायेगा।
“मैं जो लिख रहा हूं उसमें कुछ भी झूठ नहीं है”
“उस समय के संसार में आया”
"उस समय"
“परन्तु वे दूसरों से मेरे बारे में सुनते थे”
“उन कलीसियाओं में किसी ने मुझे नहीं देखा था”
पौलुस यीशु मसीह और परमेश्वर पिता के द्वारा प्रेरित बनाया गया।
मसीह यीशु में विश्वास करनेवाले इस वर्तमान बुरे संसार से छुडाएं गए हैं।
पौलुस को आश्चर्य हुआ कि वे अतिशीध्र और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे थे।
सच्चा सुसमाचार एक ही है, मसीह का सुसमाचार।
पौलुस कहता है कि यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है तो शापित है।
मसीह के दास को पहले परमेश्वर को प्रसन्न करना है।
पौलुस ने मसीह के सुसमाचार को सीधा मसीह के प्रकाशन से स्वयं प्राप्त किया था।
पौलुस यहूदी धर्म के पालन में बहुत ही उत्साही था, अत: वह परमेश्वर की कलीसिया को सता रहा था।
परमेश्वर ने पौलुस को माता के गर्भ से ही चुनकर अपने अनुग्रह से बुला लिया था।
परमेश्वर ने पौलुस को अन्यजातियों में मसीह का सुसमाचार सुनाने के लिए अपना प्रेरित चुना था।
अन्त में पौलुस ने यरूशलेम जाकर प्रेरित कैफा और याकूब से भेंट की।
यहूदिया की कलीसियाओं को समाचार मिल रहा था कि पौलुस जो कभी मसीह की कलीसियाओं को सताता था अब मसीह में विश्वास की घोषणा कर रहा है।
1 चौदह वर्ष के बाद मैं बरनबास के साथ यरूशलेम को गया और तीतुस को भी साथ ले गया। 2 और मेरा जाना ईश्वरीय प्रकाश के अनुसार हुआ* और जो सुसमाचार मैं अन्यजातियों में प्रचार करता हूँ, उसको मैंने उन्हें बता दिया, पर एकान्त में उन्हीं को जो बड़े समझे जाते थे, ताकि ऐसा न हो, कि मेरी इस समय की, या पिछली भाग-दौड़ व्यर्थ ठहरे।
3 परन्तु तीतुस भी जो मेरे साथ था और जो यूनानी है; खतना कराने के लिये विवश नहीं किया गया। 4 और यह उन झूठे भाइयों के कारण हुआ, जो चोरी से घुस आए थे, कि उस स्वतंत्रता का जो मसीह यीशु में हमें मिली है, भेद कर, हमें दास बनाएँ। 5 उनके अधीन होना हमने एक घड़ी भर न माना, इसलिए कि सुसमाचार की सच्चाई तुम में बनी रहे।
6 फिर जो लोग कुछ समझे जाते थे वे चाहे कैसे भी थे, मुझे इससे कुछ काम नहीं, परमेश्वर किसी का पक्षपात नहीं करता उनसे मुझे कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ। (2 कुरि. 11:5, व्य. 10:17) 7 परन्तु इसके विपरीत उन्होंने देखा, कि जैसा खतना किए हुए लोगों के लिये सुसमाचार का काम पतरस को सौंपा गया वैसा ही खतनारहितों के लिये मुझे सुसमाचार सुनाना सौंपा गया*। 8 क्योंकि जिस ने पतरस से खतना किए हुओं में प्रेरिताई का कार्य बड़े प्रभाव सहित करवाया, उसी ने मुझसे भी अन्यजातियों में प्रभावशाली कार्य करवाया।
9 और जब उन्होंने उस अनुग्रह को जो मुझे मिला था जान लिया, तो याकूब, और कैफा, और यूहन्ना ने जो कलीसिया के खम्भे समझे जाते थे, मुझ को और बरनबास को संगति का दाहिना हाथ देकर संग कर लिया, कि हम अन्यजातियों के पास जाएँ, और वे खतना किए हुओं के पास। 10 केवल यह कहा, कि हम कंगालों की सुधि लें, और इसी काम को करने का मैं आप भी यत्न कर रहा था।
11 पर जब कैफा अन्ताकिया में आया तो मैंने उसके मुँह पर उसका सामना किया, क्योंकि वह दोषी ठहरा था। (गला.2:14) 12 इसलिए कि याकूब की ओर से कुछ लोगों के आने से पहले वह अन्यजातियों के साथ खाया करता था, परन्तु जब वे आए, तो खतना किए हुए लोगों के डर के मारे उनसे हट गया और किनारा करने लगा। (प्रेरि. 10:28, प्रेरि. 11:2-3)
13 और उसके साथ शेष यहूदियों ने भी कपट किया, यहाँ तक कि बरनबास भी उनके कपट में पड़ गया। 14 पर जब मैंने देखा, कि वे सुसमाचार की सच्चाई पर सीधी चाल नहीं चलते, तो मैंने सब के सामने कैफा से कहा, “जब तू यहूदी होकर अन्यजातियों के समान चलता है, और यहूदियों के समान नहीं तो तू अन्यजातियों को यहूदियों के समान चलने को क्यों कहता है?”
15 हम जो जन्म के यहूदी हैं, और पापी अन्यजातियों में से नहीं। 16 तो भी यह जानकर कि मनुष्य व्यवस्था के कामों से नहीं, पर केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है, हमने आप भी मसीह यीशु पर विश्वास किया, कि हम व्यवस्था के कामों से नहीं पर मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरें; इसलिए कि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी धर्मी न ठहरेगा। (रोम. 3:20-22, फिलि. 3:9)
17 हम जो मसीह में धर्मी ठहरना चाहते हैं, यदि आप ही पापी निकलें, तो क्या मसीह पाप का सेवक है? कदापि नहीं! 18 क्योंकि जो कुछ मैंने गिरा दिया, यदि उसी को फिर बनाता हूँ, तो अपने आप को अपराधी ठहराता हूँ। 19 मैं तो व्यवस्था के द्वारा व्यवस्था के लिये मर गया, कि परमेश्वर के लिये जीऊँ।
20 मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, और अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है: और मैं शरीर में अब जो जीवित हूँ तो केवल उस विश्वास से जीवित हूँ, जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझसे प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया। 21 मैं परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं ठहराता, क्योंकि यदि व्यवस्था के द्वारा धार्मिकता होती, तो मसीह का मरना व्यर्थ होता।
“यात्रा की” यरूशलेम एक पहाड़ी प्रदेश है। यहूदी भी यरूशलेम को ऐसा स्थान मानते थे जो स्वर्ग के निकटतम है। अतः पौलुस अलंकृत भाषा काम में ले रहा है।
“यरूशलेम जाना” या “वहां जाना”
“विश्वासियो के अति महत्त्वपूर्ण अगुवे (यू.डी.बी.)
“लाभ की न हो” या “निरर्थक परिश्रम” (यू.डी.बी.)
“मसीही विश्वास का स्वांग रचते हुए गुप्त रूप से हानि करने आये थे”।
“हानि पहुचाने के उद्देश्य से विश्वासियों की गतिविधियों का निरीक्षण करें।
“मुक्त जीवन” (यू.डी.बी.)
“हमें विधान पालन के लिए विवश करें” यहां “विधान” का अर्थ है यहूदी रीति-रिवाज, विशेष करके खतना करवाना
“उनकी बात सुनना” या “उनकी शिक्षा के अधीन होना”
“तुम में अविनाशी रहे” या “तुम्हारे लिए अपरिवर्तनीय रहे”।
बहुवचन
“इन भेदियों की इच्छा थी” या “इन झूठे भाइयों की मनोकामना थी”
“बजाए, अगुवे”।
इसका अनुवाद कतृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है “परमेश्वर ने मुझे सौंपा”(देखें: )
“शुभ सन्देश प्रसारण के लिए”
“सहकर्मियों का स्वागत किया” या “सम्मानसहित स्वागत किया”
इसका अनुवाद बहुवचन में किया जाए और स्पष्ट किया जाए कि किसके दाहिने हाथ, “उनके दाहिने हाथ”
“गरीबों की आवश्यकताओं की पूर्ति करें”
“व्यक्तिगत रूप में उसका सामना किया” या “मैंने स्वयं उसके कामों की आलोचना की”
समय के परिप्रेक्षय में
“उनके साथ खाना खाना छोड़ दिया”
“वह डरता था कि वे लोग उस पर अनुचित काम करने का दोष लगायेंगे” या “वह डरता था कि उसे गलत काम करने का दोष दिया जायेगा।
यहूदी
“दूर हो गया” या “टालने लगा”
“अन्यजाति विश्वासियों को यहूदियों की प्रथाओं का पालन करने के लिए कहने में तू गलत है”।
कहता है
(कुछ अनुवादकों के विचार में ये पद भी उस समय पौलुस द्वारा पतरस की आलोचना है)।
"मसीह में विश्वास करके"
“कोई मनुष्य”
“ऐसा कभी नहीं हो सकता” यह वाक्य पूर्वोक्त प्रभावोत्पादक प्रश्न का प्रबल नकारात्मक उत्तर देता है। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका उपयोग करें।
“मैं निराकरण नहीं करता” (यू.डी.बी.) या “निरर्थक नहीं ठहराता”
अर्थात धार्मिकता विधान से नहीं प्राप्त होती है, इसलिए मसीह का मरना व्यर्थ नहीं है।
“मसीह मर कर कुछ भी उपलब्ध नहीं कर पाता”
पौलुस ने वरिष्ठ प्रेरितों को एकान्त में अपने सुसमाचार के बारे में बताया।
तीतुस को खतना करवाने की आवश्यक्ता नहीं थी।
पाखंडी भाई पौलुस और उसके साथियों को व्यवस्था का दास बनाना चाहते थे।
नहीं; उन्होने पौलुस के सन्देश में कुछ परिवर्तन नहीं किया।
पौलुस मुख्यतः खतना रहित मनुष्यों में सुसमाचार सुनाने के लिए भेजा गया था।
पतरस मुख्यतः खतना वालों में सुसमाचार सुनाने के लिए भेजा गया था।
यरूशलेम के अगुवों ने पौलुस और बरनबास को संगती का दाहिना हाथ देकर स्वीकार कर लिया।
पतरस ने अन्यजातियों के साथ बैठकर भोजन करना त्याग दिया क्योंकि वह खतनावालों से डरता था।
पौलुस ने कैफा से पूछा कि वह अन्यजाति विश्वासियों को यहूदी प्रथाओं का पालन करने के लिए विवश क्यों करता है जब वह स्वयं अन्यजातियों के सदृश्य आचरण रखता है।
पौलुस कहता था कि व्यवस्था के आधार पर कोई धर्मी नहीं ठहरेगा।
मनुष्य मसीह यीशु में विश्वास के द्वारा ही धर्मी ठहरता है।
पौलुस अपने आप को वास्तव में व्यवस्था का अपराधी ठहरता है।
पौलुस कहता है कि अब मसीह उसमे वास करता है।
पौलुस कहता है कि परमेश्वर के पुत्र ने उससे प्रेम किया और अपने आप को उसके लिए दे दिया।
1 हे निर्बुद्धि गलातियों*, किस ने तुम्हें मोह लिया? तुम्हारी तो मानो आँखों के सामने यीशु मसीह क्रूस पर दिखाया गया! 2 मैं तुम से केवल यह जानना चाहता हूँ, कि तुम ने आत्मा को, क्या व्यवस्था के कामों से, या विश्वास के समाचार से पाया? (गला. 3:5, प्रेरि. 15:8-10) 3 क्या तुम ऐसे निर्बुद्धि हो, कि आत्मा की रीति पर आरम्भ करके* अब शरीर की रीति पर अन्त करोगे?
4 क्या तुम ने इतना दुःख व्यर्थ उठाया? परन्तु कदाचित् व्यर्थ नहीं। 5 इसलिए जो तुम्हें आत्मा दान करता और तुम में सामर्थ्य के काम करता है, वह क्या व्यवस्था के कामों से या विश्वास के सुसमाचार से ऐसा करता है?
6 “अब्राहम ने तो परमेश्वर पर विश्वास किया और यह उसके लिये धार्मिकता गिनी गई।” (उत्प. 15:6) 7 तो यह जान लो, कि जो विश्वास करनेवाले हैं, वे ही अब्राहम की सन्तान हैं। 8 और पवित्रशास्त्र ने पहले ही से यह जानकर, कि परमेश्वर अन्यजातियों को विश्वास से धर्मी ठहराएगा, पहले ही से अब्राहम को यह सुसमाचार सुना दिया, कि “तुझ में सब जातियाँ आशीष पाएँगी।” (उत्प. 12:3, उत्प. 18:18) 9 तो जो विश्वास करनेवाले हैं, वे विश्वासी अब्राहम के साथ आशीष पाते हैं।
10 अतः जितने लोग व्यवस्था के कामों पर भरोसा रखते हैं, वे सब श्राप के अधीन हैं, क्योंकि लिखा है, “जो कोई व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हुई सब बातों के करने में स्थिर नहीं रहता, वह श्रापित है।” (याकू. 2:10,12, व्य. 27:26) 11 पर यह बात प्रगट है, कि व्यवस्था के द्वारा परमेश्वर के यहाँ कोई धर्मी नहीं ठहरता क्योंकि धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा। 12 पर व्यवस्था का विश्वास से कुछ सम्बन्ध नहीं; पर “जो उनको मानेगा, वह उनके कारण जीवित रहेगा।” (लैव्य. 18:5)
13 मसीह ने जो हमारे लिये श्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के श्राप से छुड़ाया* क्योंकि लिखा है, “जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह श्रापित है।” (व्य. 21:23) 14 यह इसलिए हुआ, कि अब्राहम की आशीष* मसीह यीशु में अन्यजातियों तक पहुँचे, और हम विश्वास के द्वारा उस आत्मा को प्राप्त करें, जिसकी प्रतिज्ञा हुई है।
15 हे भाइयों, मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ, कि मनुष्य की वाचा भी जो पक्की हो जाती है, तो न कोई उसे टालता है और न उसमें कुछ बढ़ाता है। 16 निदान, प्रतिज्ञाएँ अब्राहम को, और उसके वंश को दी गईं; वह यह नहीं कहता, “वंशों को,” जैसे बहुतों के विषय में कहा, पर जैसे एक के विषय में कि “तेरे वंश को” और वह मसीह है। (मत्ती 1:1)
17 पर मैं यह कहता हूँ कि जो वाचा परमेश्वर ने पहले से पक्की की थी, उसको व्यवस्था चार सौ तीस बरस के बाद आकर नहीं टाल सकती, कि प्रतिज्ञा व्यर्थ ठहरे। (निर्ग. 12:40) 18 क्योंकि यदि विरासत व्यवस्था से मिली है, तो फिर प्रतिज्ञा से नहीं, परन्तु परमेश्वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा के द्वारा दे दी है।
19 तब फिर व्यवस्था क्या रही? वह तो अपराधों के कारण बाद में दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिसको प्रतिज्ञा दी गई थी, और व्यवस्था स्वर्गदूतों के द्वारा एक मध्यस्थ के हाथ ठहराई गई। 20 मध्यस्थ तो एक का नहीं होता, परन्तु परमेश्वर एक ही है।
21 तो क्या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि नहीं! क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धार्मिकता व्यवस्था से होती। 22 परन्तु पवित्रशास्त्र ने सब को पाप के अधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिसका आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करनेवालों के लिये पूरी हो जाए।
23 पर विश्वास के आने से पहले व्यवस्था की अधीनता में हम कैद थे, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होनेवाला था, हम उसी के बन्धन में रहे। 24 इसलिए व्यवस्था मसीह तक पहुँचाने के लिए हमारी शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें। 25 परन्तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिक्षक के अधीन न रहे।
26 क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो।
27 और तुम में से जितनों ने मसीह में बपतिस्मा लिया है उन्होंने मसीह को पहन लिया है। 28 अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो। 29 और यदि तुम मसीह के हो, तो अब्राहम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।
पौलुस कटाक्ष और प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा कह रहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ने उन पर जादू कर दिया है। वह यह तो नहीं मानता है कि किसी ने उन पर जादू कर दिया है।
यह शब्द मूल भाषा में जादू टोने और जादू करने का शब्द है। यहां इसे एक रूपक स्वरूप काम में लिया गया है। (यदि आपकी भाषा में जादू करने का अन्य कोई शब्द है तो यहां काम में लें।)
यह भी एक प्रभावोत्पादक प्रश्न है। “मैंने तुम्हें स्पष्ट बताया कि उन्होंने मसीह यीशु को कैसे क्रूस पर चढ़ाया था”। (यू.डी.बी.)
यह पद 1 का कटाक्ष है। पौलुस जो प्रभावोत्पादक पूछने जा रहा है, उसका उत्तर वह जानता है अपने अनुवाद में “यह” पर और केवल - पर बदल दें क्येांकि ये दो शब्द वाक्य में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण शब्द हैं।
अग्रिम तीन प्रश्नों के संदर्भ में है
“तुमने विधान का पालन करके नहीं परन्तु जो सुना उस पर विश्वास करके आत्मा पाया है” इस प्रश्न का अनुवाद यथासंभव एक प्रश्न ही में करें क्योंकि पाठक यहां एक प्रश्न पूछे जाने ही की अपेक्षा करेगा और यह भी सुनिश्चित करें कि पाठक जानता है कि इसका उत्तर है “जो सुना उस पर विश्वास करके” "न कि विधान का पालन करके।"
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न में यही नहीं कहा गया है, “तुम (बहुवचन) बड़े मूर्ख हो” (यू.डी.बी.) वरन यह भी कि पौलुस उनकी मूर्खता पर चकित एवं क्रोधित है।
“अपने कामों पर”
पौलुस उस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा गलातिया के विश्वासियों को उनके द्वारा कष्ट सहन कर स्मरण कराता है
इसका अनुवाद हो सकता है, 1) “तुम्हारा संपूर्ण अनुभव अच्छा या बुरा” (यू.डी.बी.) 2) “इतना कष्ट सहा” क्योंकि मसीह को समर्पित हुए थे”। 3) “विधान के पालन में ऐसा परिश्रम किया”।
इसका अनुवाद हो सकता है, 1) “किसी काम का नहीं, यदि तुम मसीह में विश्वास नहीं करते।”(यू.डी.बी.) 2) यह मानकर कि गलातिया प्रदेश के विश्वासी विधान पालन में परिश्रम करते थे, “यदि तुम्हारे काम निष्फल रहे” अर्थात वे कर्मों पर निर्भर थे मसीह पर नहीं, और परमेश्वर उन्हें विश्वासी नहीं मानेगा।
पौलुस गलातिया प्रदेश के विश्वासियों को पवित्र आत्मा ग्रहण करने का स्मरण कराते हुए एक और प्रभावोत्पादक प्रश्न पूछता है। “विधान पालन से नहीं विश्वास से सुनने के द्वारा ऐसा करता है”।
“अर्थात विधान में जो कहा गया है उसे करके”
“जब हम शुभ सन्देश सुनकर यीशु में विश्वास करते हैं।
परमेश्वर ने उसमें अब्राहम के विश्वास को देखा अतः उसे धार्मिकता ठहराया।
“जो मनुष्य विश्वास करते हैं”
“अब्राहम के वंशज हैं” उससे उत्पन्न नहीं परन्तु अब्राहम के तुल्य धर्मनिष्ठ हैं।
“पूर्वज्ञान से” या “घटने से पूर्व देखा” क्योंकि परमेश्वर ने अब्राहम से प्रतिज्ञा की और उन्होंने उसे लिख लिया, इससे पूर्व की प्रतिज्ञा मसीह में पूरी हो। धर्मशास्त्र उस मनुष्य के सदृश्य है जो भावी घटना के होने से पहले जान लेता है।
“तूने जो किया उसके कारण” (यू.डी.बी.) या “क्योंकि मैंने तुझे आशिष दी है”।
“संसार की सब जातियों” (यू.डी.बी.) परमेश्वर इस बात पर बल दे रहा था कि वह केवल यहूदियों को ही नहीं उसके चुने हुओं को ही नहीं अनुग्रह प्रदान कर रहा है। उसके उद्धार की योजना यहूदियों और अन्यजाति सब के लिए होगी।
परमेश्वर पर विश्वास
विधान पर आधारित जीवन जीने वालों को सबको परमेश्वर सदाकालीन का दण्ड देगा।
“परमेश्वर ने स्पष्ट कह दिया है कि वह दण्ड देगा”।
“मनुष्य”
परमेश्वर के विधान
“के अनुसार जीवन जीएगा” या “उसके अधीन रहेगा” “निष्ठावान रहेगा” या “पालन करेगा” या “अनिवार्यता पूरी करेगा”
“संपूर्ण विधान की प्रत्येक आज्ञा मान लेगा”
“मनुष्य जिन्हें परमेश्वर धर्मी मानता है” या “धर्मी मनुष्य”
“विधान में लिखी हुई बातें”
अर्थात 1) प्रत्येक बात का पालन करना था (यू.डी.बी.) 2) वह जीवित रहेगा क्योंकि वह विधान की अनिवार्यताओं का पालन करता है।
“परमेश्वर ने हमारे स्थान पर उसे दण्ड दिया”।
अर्थात जो मर गया उसे एक विशेष वृक्ष पर लटकाया जाता था। पौलुस अपने पाठकों से अपेक्षा करता था कि वे उसकी बात को समझ पाएं कि वह क्रूस पर लटकाया गए यीशु के विषय में कह रहा है।
हो
समावेश, पौलुस स्वयं को भी अन्यजातियों के साथ गिन रहा था।
“मनुष्य के विचार से” या “व्यक्ति रूप में” या “एक मनुष्य होने के नाते”
“अनेक वंशजों को”
पौलुस एक सामान्य बात कह कर एक विशिष्ट बात कहता है।
“परमेश्वर ने वाचा बांधने के 430 वर्षों बाद विधान दिया परन्तु उसके द्वारा वाचा व्यर्थ नहीं हुई और इसी कारण प्रतिज्ञा अप्रभावी नहीं रही”।
“के माध्यम से” या “के द्वारा मिली”
“तो विधान क्यों दिया गया” या “फिर परमेश्वर को विधान स्थापित करने की क्या आवश्यकता थी”?
“परमेश्वर ने बाद में दिया”
“उन मनुष्यों”
“स्वर्गदूत विधान लेकर आए और एक मध्यस्थ ने उसे कार्यकारी किया”।
कार्यकारी करने का मार्ग तैयार किया
मूसा
“मध्यस्थ की उपस्थिति का अर्थ है कि मनुष्य एक से अधिक हैं”
“विरोधी है” या “स्पर्धा प्रतिवादी है”
“यदि परमेश्वर प्रदत्त विधान उसके पालकों को जीवनक्षक बनाता तो हम विधान पालन द्वारा ही धर्मी ठहरते”।
इसका अर्थ यह भी हो सकता है, क्योंकि हम पाप करते हैं, परमेश्वर ने सब बातें विधान के अधीन ऐसा कर दिया है जैसे कारागार में जिससे कि मसीह यीशु में विश्वास करने वालों से की गई प्रतिज्ञा परमेश्वर विश्वासियों को दे”। या “क्योंकि हम पाप करते हैं, परमेश्वर ने सब बातें विधान के अधीन बन्दी बना दी हैं। उसने ऐसा इसलिए किया कि उसने मसीह यीशु में विश्वास करने वालों से जो प्रतिज्ञा की है, उन्हें उनके लिए पूरी करे”।
धर्मशास्त्र का कर्ता परमेश्वर
विधान हमें कारागर के पहरूए के जैसा बन्धन में रखता था।
“जब तक परमेश्वर ने यह प्रकट नहीं कर दिया कि वह मसीह में विश्वास करनेवालों को धर्मी ठहराता है”। या “जब तक परमेश्वर ने यह स्पष्ट नहीं कर दिया कि वह मसीह में विश्वास करने वालों को धर्मी ठहराता है”।
“मसीह के आगमन तक”
“कि हमें धर्मी घोषित किया जाए”। परमेश्वर ने हमें धर्मी ठहराने की व्यवस्था मसीह तक पहुचने” से पूर्व ही तैयार कर ली थी। जब वह समय आ गया तब उसने हमें धर्मी ठहराने की योजना पूरी कर ली।
“यह मूल भाषा में एक शिक्षक से अधिक होता है। वह वास्तव में एक दास होता था जो सन्तान को नैतिक एवं फलदायी जीवन का प्रशिक्षण देता था।
इस गद्यांश में तुम सदैव बहुवचन में है।
इसके अर्थ हो सकते हें 1) “तुम वैसे ही मनुष्य हो गए हो जैसा मसीह है”, (यू.डी.बी.) या 2)“तुम्हारा संबन्ध परमेश्वर के साथ वैसा ही हो गया है जैसा मसीह का है”।
“अब” अन्तर नहीं रहा” या “परमेश्वर .... में कोई अन्तर नहीं देखता है।
“यदि तुम मसीह के हो तो ....”
अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया और वह उसके लिए धार्मिकता माना गया।
परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे अब्राहम की सन्तान हैं।
धर्मशास्त्र में भविष्यद्वाणी है कि अन्यजातियां विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरेंगी।
जो व्यवस्था पालन द्वारा धर्मी ठहरने का प्रयास करते हैं वे श्राप के अधीन हैं।
व्यवस्था के कामों द्वारा कोई भी धर्मी नहीं ठहरता है।
मसीह ने हमारे लिए शापित होकर हमारा उद्धार किया कि अब्राहम की आशिषों अन्यजातियों को प्राप्त हों।
अब्राहम की प्रतिज्ञा में जिस "वंशज" का उल्लेख किया गया है वह मसीह है।
नहीं व्यवस्था ने अब्राहम से की गई प्रतिज्ञा को निरस्त नहीं किया।
व्यवस्था अपराधों के कारण आई थी परन्तु अब्राहम के वंशज के आने तक ही थी।
धर्मशास्त्र में निहित व्यवस्था ने सबको पाप का दास बना दिया।
हम मसीह में विश्वास के द्वारा व्यवस्था के दासत्व से छुडाए गए है।
वे सब जो मसीह में बपतिस्मा पां चुके हैं, मसीह को धारण कर चुके हैं।
यहूदी, यूनानी, दास, स्वतंत्र, नर नारी सब मसीह में एक हैं।
1 मैं यह कहता हूँ, कि वारिस जब तक बालक है, यद्यपि सब वस्तुओं का स्वामी है, तो भी उसमें और दास में कुछ भेद नहीं। 2 परन्तु पिता के ठहराए हुए समय तक रक्षकों और भण्डारियों के वश में रहता है।
3 वैसे ही हम भी, जब बालक थे, तो संसार की आदि शिक्षा के वश में होकर दास बने हुए थे। 4 परन्तु जब समय पूरा हुआ*, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा, और व्यवस्था के अधीन उत्पन्न हुआ। 5 ताकि व्यवस्था के अधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले, और हमको लेपालक होने का पद मिले।
6 और तुम जो पुत्र हो, इसलिए परमेश्वर ने अपने पुत्र के आत्मा* को, जो ‘हे अब्बा, हे पिता’ कहकर पुकारता है, हमारे हृदय में भेजा है। 7 इसलिए तू अब दास नहीं, परन्तु पुत्र है; और जब पुत्र हुआ, तो परमेश्वर के द्वारा वारिस भी हुआ।
8 फिर पहले, तो तुम परमेश्वर को न जानकर उनके दास थे जो स्वभाव में देवता नहीं। (यशा. 37:19, यिर्म. 2:11) 9 पर अब जो तुम ने परमेश्वर को पहचान लिया वरन् परमेश्वर ने तुम को पहचाना, तो उन निर्बल और निकम्मी आदि-शिक्षा की बातों की ओर क्यों फिरते हो, जिनके तुम दोबारा दास होना चाहते हो?
10 तुम दिनों और महीनों और नियत समयों और वर्षों को मानते हो। 11 मैं तुम्हारे विषय में डरता हूँ, कहीं ऐसा न हो, कि जो परिश्रम मैंने तुम्हारे लिये किया है वह व्यर्थ ठहरे।
12 हे भाइयों, मैं तुम से विनती करता हूँ, तुम मेरे समान हो जाओ: क्योंकि मैं भी तुम्हारे समान हुआ हूँ; तुम ने मेरा कुछ बिगाड़ा नहीं। 13 पर तुम जानते हो, कि पहले पहल मैंने शरीर की निर्बलता के कारण तुम्हें सुसमाचार सुनाया। 14 और तुम ने मेरी शारीरिक दशा को जो तुम्हारी परीक्षा का कारण थी, तुच्छ न जाना; न उसने घृणा की; और परमेश्वर के दूत वरन् मसीह के समान मुझे ग्रहण किया।
15 तो वह तुम्हारा आनन्द कहाँ गया? मैं तुम्हारा गवाह हूँ, कि यदि हो सकता, तो तुम अपनी आँखें भी निकालकर मुझे दे देते। 16 तो क्या तुम से सच बोलने के कारण मैं तुम्हारा बैरी हो गया हूँ। (आमो. 5:10)
17 वे तुम्हें मित्र बनाना तो चाहते हैं, पर भली मनसा से नहीं; वरन् तुम्हें मुझसे अलग करना चाहते हैं, कि तुम उन्हीं के साथ हो जाओ। 18 पर उत्साही होना अच्छा है, कि भली बात में हर समय यत्न किया जाए, न केवल उसी समय, कि जब मैं तुम्हारे साथ रहता हूँ।
19 हे मेरे बालकों, जब तक तुम में मसीह का रूप न बन जाए, तब तक मैं तुम्हारे लिये फिर जच्चा के समान पीड़ाएँ सहता हूँ। 20 इच्छा तो यह होती है, कि अब तुम्हारे पास आकर और ही प्रकार से बोलूँ, क्योंकि तुम्हारे विषय में मैं विकल हूँ।
21 तुम जो व्यवस्था के अधीन होना चाहते हो, मुझसे कहो, क्या तुम व्यवस्था की नहीं सुनते? 22 यह लिखा है, कि अब्राहम के दो पुत्र हुए; एक दासी से, और एक स्वतंत्र स्त्री से। (उत्प. 16:5, उत्प. 21:2) 23 परन्तु जो दासी से हुआ, वह शारीरिक रीति से जन्मा, और जो स्वतंत्र स्त्री से हुआ, वह प्रतिज्ञा के अनुसार जन्मा।
24 इन बातों में दृष्टान्त है, ये स्त्रियाँ मानो दो वाचाएँ हैं, एक तो सीनै पहाड़ की जिससे दास ही उत्पन्न होते हैं; और वह हाजिरा है। 25 और हाजिरा मानो अरब का सीनै पहाड़ है, और आधुनिक यरूशलेम उसके तुल्य है, क्योंकि वह अपने बालकों समेत दासत्व में है।
26 पर ऊपर की यरूशलेम स्वतंत्र है, और वह हमारी माता है। 27 क्योंकि लिखा है,
“हे बाँझ, तू जो नहीं जनती आनन्द कर,
तू जिसको पीड़ाएँ नहीं उठती; गला खोलकर जयजयकार कर,
क्योंकि त्यागी हुई की सन्तान सुहागिन की सन्तान से भी अधिक है।” (यशा. 54:1)
28 हे भाइयों, हम इसहाक के समान प्रतिज्ञा की सन्तान* हैं। 29 और जैसा उस समय शरीर के अनुसार जन्मा हुआ आत्मा के अनुसार जन्मे हुए को सताता था, वैसा ही अब भी होता है। (उत्प. 21:9)
30 परन्तु पवित्रशास्त्र क्या कहता है? “दासी और उसके पुत्र को निकाल दे, क्योंकि दासी का पुत्र स्वतंत्र स्त्री के पुत्र के साथ उत्तराधिकारी नहीं होगा।” (उत्प. 21:10) 31 इसलिए हे भाइयों, हम दासी के नहीं परन्तु स्वतंत्र स्त्री की सन्तान हैं।
सब विश्वासी, पौलुस के पाठक भी )
इसका संदर्भ सूर्य, चांद और सितारों से भी हो सकता है जो कुछ लोगों के विचार में पृथ्वी की सब गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं या यह अवैयक्तिक बातों के संदर्भ में भी हो सकता है जैसे नियम और नैतिक सिद्धान्त।
या "क्या होगा"
“भेज दिया” या “पुत्र का अविर्भाव हुआ”
पौलुस की पारिवारिक भाषा में बच्चा अपने पिता को “अब्बा” कहता था परन्तु गलातिया वासियों की भाषा में नहीं। इस विदेशी भाषा के अभिप्राय को बनाए रखने के लिए अपनी भाषा में इस शब्द का अनुवाद आपसी भाषा में यथासंभव “अब्बा” का हो।
“अपने पुत्र की आत्मा को भेजा कि हमें सोचना एवं काम करना सिखाए”।
आत्मा पुकारता है
पौलुस पुत्र शब्द का उपयोग करता है क्योंकि यहां उत्तराधिकार की बात हो रही है। इसकी और उसके पाठकों की संस्कृति में प्रायः सदैव नहीं, उत्तराधिकार पुत्रों का होता था। यहां पर पुत्रियों की विशेष चर्चा नहीं कर रहा है परन्तु उनके अलग भी नहीं कर रहा है।
यहां तुम शब्द बहुवचन में है।
“वे बातें” या “वे आत्माएं”
“परमेश्वर तुम्हें जानता है”।
यह दो प्रभावोत्पादक प्रश्नों में पहला है इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम्हें लौटने की आवश्यकता नहीं...”
इस उक्ति का अनुवाद वैसे ही करे जैसे अपने
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “या “ऐसा प्रतीत होता है कि तुम दास होना चाहते हो”।
“पालन करते हो” या “मनाते हो” पौलुस उत्सवों एवं उपवासों के विषय में कह रहा है
“तुम्हें यीशु के बारे में शिक्षा देने में जो परिश्रम किया” यह शब्द नये नियम में बच्चों के लिए कभी काम में नहीं लिया गया है।
“निष्प्रभाव रहे” या “उद्देश्य प्राप्त न कर पाए”
बहुवचन
“निवेदन करता हूं” या “साग्रह अनुरोध करता हूं”। (यू.डी.बी.) यह शब्द पैसा या भोजन या सांसारिक वस्तुओं के निवेदन के लिए काम में नहीं लिया जाता था।
इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, “तुमने मेरा अच्छा सत्कार किया” तुमने मेरे साथ वैसा ही व्यवहार किया जैसा करना आवश्यक था”।
इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, “तुम्हारे लिए मेरी देह में देखना जो कठिन था”
बहुवचन
“उससे बहुत घृणा की”
“परन्तु अब तुम प्रसन्न नहीं।”.... “तुम सोचते हो कि मैं तुम्हारा शत्रु हो गया हूं” (यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम्हारा पीछा करते हैं कि तुम उनके पीछे हो लो.... भली बातों का पीछा किया जाए”। इन तीनों स्थानों में पौलुस द्वारा एक ही शब्द के उपयोग पर ध्यान दें।
स्वामिनिष्ठा में शारीरिक दूरी नहीं
“जो वे कहते हैं, उसी को करो”
“यह भी अच्छा है कि वे ऐसा चाहते है”।
जिस प्रकार प्रसव के समय एक स्त्री के प्रसव पीड़ा होती है उसी प्रकार पौलुस गलातिया प्रदेश के विश्वासियों के लिए कष्ट उठाता रहेगा कि वे मसीह के स्वरूप हो जाएं
“मैं प्रश्न को सकारात्मक रूप में अनुवाद करना चाहता हूँ तो ऐसे अनुवाद को मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं”।
“क्या तुमने नहीं सुना कि विधान में क्या लिखा है”? या “तुम्हें सीखने की आवश्यकता है कि विधान वास्तव में क्या व्यक्त करता है”। पौलुस पद 22-23 में जो कहने जा रहा है उसकी भूमिका बांध रहा है।
“इन दो पुत्रों की कहानी मैं जो कहने जा रहा हूं उसका प्रतिरूप है”।
सीनै पर्वत वह स्थान था जहां मूसा ने इस्राएलियों को परमेश्वर का विधान सौंपा था
“इस वाचा के अधीन जो मनुष्य हैं वे दास के स्वरूप हैं जिन्हें विधान का पालन करना आवश्यक है।
“का प्रतिरूप है”
हाजिरा दासी है और उसकी सन्तान भी दासी है, “हाजिरा के सदृश्य यरूशलेम भी एक दास है और उसके साथ उसकी सन्तान दास है”। (यू.डी.बी.)
बन्दी नहीं, दास नहीं
“हर्षित हो”
चुप रहने की अपेक्षा अकस्मात ही पुकारने लगा
“मानवीय प्रयास से” या “मनुष्यों की रीति के अनुसार” अर्थात हाजिरा से अब्राहम ने इश्माएल को जन्म दिया।
“आत्मा के कार्य द्वारा”
पुत्र पिता के ठहराए हुए समय तक संरक्षकों और प्रबन्धकों के वश में रहता था।
परमेश्वर को जानने से पहले हम संसार को नियन्त्रण करनेवाली आत्माओं के दास थे जो स्वभाव से ही परमेश्वर नहीं।
परमेश्वर ने ठहराए हुए समय अपने पुत्र को भेजा कि व्यवस्था के अधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले।
परमेश्वर ने व्यवस्था के अधीनों को लेपाकल पुत्र बना लिया।
परमेश्वर अपनी सन्तानों के ह्रदयों में अपने पुत्र का आत्मा भेजता है।
पौलुस आश्चर्य चकित था कि अन्यजाति विश्वासी संसार की आत्माओं (आदि शिक्षा) के दासत्व की ओर लौट रहे थे।
पौलुस को भय इस बात का था कि गलातिया के विश्वासी फिर से दास बन जाएंगे और उसका परिश्रम व्यर्थ हो जाएगा।
पौलुस तब गलातिया में पहली बार आया था जब वह शरीर से निर्बल था।
पौलुस की शारीरिक दुर्बलता के उपरान्त भी गलातिया के विश्वासियों ने उसे परमेश्वर के दूत वरन् स्वयं मसीह के सदृश्य ग्रहण किया।
पाखंडी शिक्षक गलातिया के विश्वासियों को पौलुस से अलग करना चाहते थे।
पाखंडी शिक्षक गलातिया के विश्वासियों को व्यवस्था के अधीन लाना चाहते थे।
अब्राहम के दो पुत्र थे, एक दासी से और एक स्वतंत्र स्त्री से।
ऊपर की यरूशलेम, स्वतंत्र स्त्री है और वह पौलुस और विश्वासी गलातियों की माता का स्वरूप है।
मसीह के विश्वासी प्रतिज्ञा की सन्तान हैं।
शरीर की सन्तान प्रतिज्ञा की सन्तान को कष्ट देते हैं।
दासी की सन्तान स्वतंत्र स्त्री की सन्तान के संगीवारिस नहीं हो सकती।
मसीह के विश्वासी स्वतंत्र स्त्री की सन्तान हैं।
1 मसीह ने स्वतंत्रता के लिये हमें स्वतंत्र किया है; इसलिए इसमें स्थिर रहो*, और दासत्व के जूए में फिर से न जुतो।
2 मैं पौलुस तुम से कहता हूँ, कि यदि खतना कराओगे, तो मसीह से तुम्हें कुछ लाभ न होगा।
3 फिर भी मैं हर एक खतना करानेवाले को जताए देता हूँ, कि उसे सारी व्यवस्था माननी पड़ेगी।
4 तुम जो व्यवस्था के द्वारा धर्मी ठहरना चाहते हो, मसीह से अलग और अनुग्रह से गिर गए हो। 5 क्योंकि आत्मा के कारण, हम विश्वास से, आशा की हुई धार्मिकता की प्रतीक्षा करते हैं। 6 और मसीह यीशु में न खतना, न खतनारहित कुछ काम का है, परन्तु केवल विश्वास का जो प्रेम के द्वारा प्रभाव करता है।
7 तुम तो भली भाँति दौड़ रहे थे, अब किस ने तुम्हें रोक दिया, कि सत्य को न मानो। 8 ऐसी सीख तुम्हारे बुलानेवाले की ओर से नहीं।
9 थोड़ा सा ख़मीर सारे गुँधे हुए आटे को ख़मीर कर डालता है। 10 मैं प्रभु पर तुम्हारे विषय में भरोसा रखता हूँ, कि तुम्हारा कोई दूसरा विचार न होगा; परन्तु जो तुम्हें घबरा देता है, वह कोई क्यों न हो दण्ड पाएगा।
11 हे भाइयों, यदि मैं अब तक खतना का प्रचार करता हूँ, तो क्यों अब तक सताया जाता हूँ; फिर तो क्रूस की ठोकर जाती रही। 12 भला होता, कि जो तुम्हें डाँवाडोल करते हैं, वे अपना अंग ही काट डालते!
13 हे भाइयों, तुम स्वतंत्र होने के लिये बुलाए गए हो*; परन्तु ऐसा न हो, कि यह स्वतंत्रता शारीरिक कामों के लिये अवसर बने, वरन् प्रेम से एक दूसरे के दास बनो। 14 क्योंकि सारी व्यवस्था इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (मत्ती 22:39-40, लैव्य. 19:18) 15 पर यदि तुम एक दूसरे को दाँत से काटते और फाड़ खाते हो, तो चौकस रहो, कि एक दूसरे का सत्यानाश न कर दो।
16 पर मैं कहता हूँ, आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे। 17 क्योंकि शरीर आत्मा के विरोध में* और आत्मा शरीर के विरोध में लालसा करता है, और ये एक दूसरे के विरोधी हैं; इसलिए कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ। 18 और यदि तुम आत्मा के चलाए चलते हो तो व्यवस्था के अधीन न रहे।
19 शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात् व्यभिचार, गंदे काम, लुचपन, 20 मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, 21 डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इनके जैसे और-और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम को पहले से कह देता हूँ जैसा पहले कह भी चुका हूँ, कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।
22 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, और दया, भलाई, विश्वास, 23 नम्रता, और संयम हैं; ऐसे-ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं। 24 और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है।
25 यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी। 26 हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें।
आपके अनुवाद में “स्वतंत्र” शब्द का महत्त्व प्रकट होना है जो पिछले पदों में व्यक्त दासत्व के विपरीत हो।
अतः - “हमारे लिए व्यक्त करो”
“जहां हो वही रहो” - चाहे कुछ मनुष्य तुम्हें पथभ्रष्ट होने पर विवश करें।
“यदि तुम यहूदी प्रथाओं में लौट कर आओगे” पौलुस “खतना” को यहूदी वाद के स्थान लें/काम में ले रहा है।
“घोषणा करता हूं” या “गवाही देता हूं”
“उस हर एक विश्वासी को जो यहूदी हो गया है” पौलुस “खतना को यहूदी के स्थान में काम में ले रहा है”
“बन्धक” या “विवश है” या “दास है”
“आज्ञा पालन द्वारा”
“तुमने मसीह से संबन्ध विच्छेद किया”
संविधान पालन द्वारा परमेश्वर की दृष्टि में उचित घोषित किए जाने का मार्ग खोजते हो”
मसीह के अनुग्रह की आवश्यकता को स्वीकार न करने वाले मनुष्य की तुलना पौलुस उस मनुष्य से करता है जो ऊंचे स्थान से एक बुरे नीचे स्थान में गिर गया है।
“इसलिए कि” यह पद “मसीह से अलग” “गिर गए हो” का कारण दे रहा है। पद 4
इसका अर्थ 1) “हम विश्वास करके धर्मी होने के विश्वास की प्रतीक्षा में हैं” 2) हम विश्वास द्वारा प्राप्त धर्मी होने के आत्मविश्वास की प्रतीक्षा में हैं”
पौलुस और सब खतना विरोधी विश्वासी। वह संभवतः गलातिया प्रदेश के विश्वासियों को भी इसमें देखता है।
अपेक्षा में हैं, उत्साहित हैं, धीरज पाते हैं।
“हमें पूरा विश्वास है कि परमेश्वर हमें धर्मी घोषित कर देगा”।
यहूदी और गैर यहूदियों के लिए लाक्षणिक शब्द
“इसकी अपेक्षा परमेश्वर हमारे विश्वास की चिन्ता करता है जो मनुष्यों से प्रेम के द्वारा प्रकट होता है”।
“तुम यीशु की शिक्षाओं पर चल रहे हो”
“जो तुम्हें ऐसी शिक्षा दे कर विवश करे वह परमेश्वर नहीं है, जिसने तुम्हें बुलाया” कि उसके हो।
किसी को कुछ करने के लिए विवश करना कि वह जिस बात को सच मानता है उसके विमुख होकर भिन्न व्यवहार करे।
“मुझे तुम पर भरोसा है क्योंकि परमेश्वर तुम्हारी सहायता करेगा”।
कुछ लोग इसका अनुवाद करते हैं, “तुम मेरी बातों के अतिरिक्त और कुछ नहीं सोचोगे”।
“विश्वास”
“मैं नहीं जानता कि तुम्हें भ्रमित करनेवाला कौन है परन्तु वह अवश्य दण्ड पाएगा”।
“सत्य के विषय में तुम्हें डावांडोल करता है” (देखें यू.डी.बी.) या “तुम्हारे मध्य समस्या उत्पन्न करता है”।
“परमेश्वर से दण्ड पाएगा”
इसका अर्थ 1) पौलुस उन मनुष्यों के नाम नहीं जानता था जो गलातिया प्रदेश की कलीसियाओं को व्यवस्था का दास बनाना चाहते थे। 2) पौलुस चाहता था कि गलातिया के विश्वासी उन्हें भ्रमित करने वालों को नगण्य समझें चाहे वे धनवान या गरीब या बड़े या छोटे, या धर्मी या धर्मरहित हों
“परन्तु जहां तक मेरी बात है, यदि मैं अब भी यह सिखाता कि उद्धार पाने के लिए खतना करवाना आवश्यक है तो वे मुझे सताते नहीं”। पौलुस प्रबल दावा करता है कि वह, पिछले पदों में चर्चित मनुष्यों के विपरीत गलातिया प्रदेश के विश्वासियों को खतना करवाने की शिक्षा नहीं दे रहा है
“भाइयों और बहनों” यदि आपकी भाषा में ऐसा कोई शब्द है जिसमें स्त्री-पुरूष दोनों का भाव व्यक्त हो तो उसका यहां उपयोग करें।
इसका अनुवाद कतृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है। “तब तो खतना क्रूस के रुकावट के कारण का निवारण कर देगा”।
इस रूपक का अर्थ है कि क्रूस का सन्देश कुछ लोगों को विश्वास करने से रोकता है जैसे एक रुकावट का पत्थर किसी को मार्ग में चलने में बाधित करता है।
बहुवचन
अर्थात 1) नपुंसक बन जाएं। 2) आत्मिक रूप से परमेश्वर के लोगों से पृथक हो जाएं।
पौलुस (देखें: अपनी बात का यहां कारण देता है।
अर्थात 1) परमेश्वर ने तुम्हें अपना होने के लिए चुन लिया कि तुम स्वतंत्र हो” या 2) परमेश्वर ने तुम्हें स्वतंत्र होने की आज्ञा दी”।
हे भाइयों - भाइयों और बहनों
पौलुस कहता है कि स्वतंत्रता “शारीरिक कामों के लिए अवसर बने” ऐसा नहीं होना है।
“तुम्हारे पापी स्वभाव को तुष्ट करने का अवसर विशेष करके स्वयं या पड़ोसियों को हानि पहुंचाने की बातें।
अर्थात 1)“तुम संपूर्ण विधान को एक ही आज्ञा में रख सकते हो और वह है....” या 2) एक भी आज्ञा पालन द्वारा तुम सब आज्ञाओं का पालन कर सकते हो और वह है....”
बहुवचन
आत्मा के अनुसार चलो -चलना जीवन आचरण का रूपक है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने जीवन को पवित्र आत्मा के सामर्थ्य में जीओ या “आत्मा पर निर्भर होकर जीवन जीओ”।
तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे - “तुम मानवीय प्रकृति की लालसा कि पाप को पूरी नहीं करोगे।
“मूसा के विधान पालन के लिए विवश न रहे”
बुरे मानवीय स्वभाव के काम”
“ऐसे-ऐसे काम करनेवालों को परमेश्वर प्रतिफल नहीं देता है” या “ऐसे काम करते रहने वालों को परमेश्वर प्रतिफल नहीं देता है”।
आत्मा का फल - आत्मा जो उत्पन्न करता है।
अर्थात 1) मूसा का विधान इनका विरोध नहीं करता है”, या 2) ऐसे विचार या कामों का विरोधी का नियम नहीं है। (यू.डी.बी.)
“हमारे सांसारिक स्वभाव से उसकी लालसाओं और बुरी इच्छाओं के साथ मार डाला कि जैसे हमने उसे क्रूस पर कीलों से ठोक दिया”
“अगर हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं तो....”? “क्योंकि परमेश्वर के आत्मा ने हमें जीवित रखा है”
यह शब्द सेना के साथ-साथ चलने का है और समुदाय में यीशु की शिक्षा का आचरण करने का रूपक है। (यू.डी.बी.)
चलें भी - “हमें करना है”
मसीह ने स्वतंत्रता के लिए हमें स्वतंत्र किया है।
पौलुस कहता है कि गलातिया के विश्वासी खतना कराएं तो उन्हे मसीह से कुछ लाभ नहीं।
पौलुस ने चेतावनी दी कि व्यवस्था पालन द्वारा धार्मिकता की खोज करनेवाले मसीह से अलग होकर अनुग्रह से वंचित हो जाएंगे।
मसीह में प्रेम के द्वारा विश्वास ही किसी काम का है।
पौलुस को पूरा विश्वास था कि जिसने गलातिया के विश्वासियों को सुसमाचार के बारे में घबरा देता है वह दण्ड पाएगा।
पौलुस कहता है कि खतना क्रूस की ठोकर को धोखा देता है।
विश्वासी मसीह में प्राप्त स्वतंत्रता को शारीरिक कामों के लिए अवसर न बनाएं।
विश्वासियों को मसीह में प्राप्त स्वतंत्रता पारस्परिक प्रेम में काम में लेना है।
संपूर्ण व्यवस्था एक ही आज्ञा में पूरी होती है, "तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख!"
विश्वासी आत्मा के अनुसार चले तो शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी नहीं करेंगे।
विश्वासी में आत्मा और शरीर एक दूसरे के विरोधी हैं।
शरीर के कामों में तीन निम्नलिखित सूची में हैं व्यभिचार, गन्देकाम, लुचपन, मूर्तिपूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट विधर्म, डाह मतवालापन, लीलाक्रीड़ा आदि।
शरीर के कामों के करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।
आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम हैं।
जो मसीह के हैं उन्होने शरीर और उसकी लालसाओं को क्रूस पर चढ़ा दिया है।
1 हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी देख-रेख करो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो। 2 तुम एक दूसरे के भार उठाओ*, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।
3 क्योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा देता है। 4 पर हर एक अपने ही काम को जाँच ले*, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा। 5 क्योंकि हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा।
6 जो वचन की शिक्षा पाता है, वह सब अच्छी वस्तुओं में सिखानेवाले को भागी करे। 7 धोखा न खाओ, परमेश्वर उपहास में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा। 8 क्योंकि जो अपने शरीर के लिये बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा; और जो आत्मा के लिये बोता है, वह आत्मा के द्वारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा।
9 हम भले काम करने में साहस न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे। 10 इसलिए जहाँ तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।
11 देखो, मैंने कैसे बड़े-बड़े अक्षरों में तुम को अपने हाथ से लिखा है। 12 जितने लोग शारीरिक दिखावा चाहते हैं वे तुम्हारे खतना करवाने के लिये दबाव देते हैं, केवल इसलिए कि वे मसीह के क्रूस के कारण सताए न जाएँ। 13 क्योंकि खतना करानेवाले आप तो, व्यवस्था पर नहीं चलते, पर तुम्हारा खतना कराना इसलिए चाहते हैं, कि तुम्हारी शारीरिक दशा पर घमण्ड करें।
14 पर ऐसा न हो, कि मैं और किसी बात का घमण्ड करूँ, केवल हमारे प्रभु यीशु मसीह के क्रूस का जिसके द्वारा संसार मेरी दृष्टि में और मैं संसार की दृष्टि में क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ। 15 क्योंकि न खतना, और न खतनारहित कुछ है, परन्तु नई सृष्टि महत्वपूर्ण है। 16 और जितने इस नियम पर चलेंगे उन पर, और परमेश्वर के इस्राएल पर, शान्ति और दया होती रहे।
17 आगे को कोई मुझे दुःख न दे, क्योंकि मैं यीशु के दागों को अपनी देह में लिये फिरता हूँ*।
18 हे भाइयों, हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा के साथ रहे। आमीन।
यदि कोई मनुष्य - “यदि कोई” या “हम में से कोई”
किसी अपराध में पकड़ा भी जाए - 1) किसी मनुष्य को उस कार्य में पकड़ा जाए, “पाप में देखा जाए”। या 2) किसी ने बुराई की इच्छा के बिना पाप किया, “हार कर पाप किया”।
तुम जो आत्मिक हो - तुम (बहुवचन) में से जो आत्मा की अगुवाई में हो”
“पाप करने वाले का सुधार करो” या “पाप करने वाले को शिक्षा देकर सही मार्ग पर ले आओ” या परमेश्वर के साथ उचित संबन्ध में ले आओ।
इसका अर्थ है कि सुधार करने वाले की अगुआई आत्मा कर रहा है। (देखें यू.डी.बी.) “नम्र स्वभाव के साथ” या “कोमलता के साथ”
इन शब्दों द्वारा पौलुस गलातिया के हर एक विश्वासी से बलपूर्वक कह रहा है कि वह सावधान रहे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “हर एक जन सतर्क रहे कि परीक्षा में न पड़े”। (यू.डी.बी.) “मैं तुम में से हर एक से कहता हूं कि अपने बारे में सावधान रहो...”
कि तुम भी परीक्षा में न पड़ों - अन्यथा तुम भी पाप करने की परीक्षा में गिरो” या “कि तुम पाप करने के लिए प्रलोभित न हो”। यदि आप कतृवाच्य क्रिया काम में लेना चाहें तो “शैतान” शब्द का उपयोग नहीं करना ही उचित होगा क्योंकि इस पत्री में शैतान शब्द का उपयोग कहीं नहीं किया गया है। अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “कि परीक्षा लेनेवाला तुम्हारी परीक्षा न ले”।
“क्योंकि” इसका अभिप्राय अग्रिम शब्द दर्शाते है कि गलातिया प्रदेश के विश्वासी क्यों 1) एक दूसरे का भार उठाओ”... या 2) “तुम परीक्षा में न पड़ो”। “अपने आपको कुछ समझता है”।
“महत्त्वपूर्ण मानता है” या “तुलना में अन्यों से कम है”
“महत्त्वहीन होने पर” या “अन्यों से उत्तम नहीं”
“प्रत्येक व्यक्ति”
“प्रत्येक विश्वासी अपने ही कामों से परखा जायेगा” या “प्रत्येक विश्वासी अपने ही कामों का लेखा देगा”
“प्रत्येक व्यक्ति”
“जो व्यक्ति”
“विश्वासी द्वारा किए गए कामों के संदर्भ में है”
यह रूपक मनुष्य के कामों के परिणाम का प्रतीक है
“जो मनुष्य.... वह मनुष्य” यहां पौलुस केवल पुरूषों के लिए नहीं कह रहा है।
“अपने पापी स्वभाव के काम करता है”
“उसके पापी शरीर ने जो किया उसका दण्ड पाएगा”।
“परमेश्वर के आत्मा को प्रसन्न करनेवाले काम करता है
“परमेश्वर के आत्मा का प्रतिफल पाएगा अर्थात अनन्त जीवन पाएगा”।
हम... साहस न छोड़े” -इसका अनुवाद किया जा सकता है”, “हम करते रहें”
भले काम - मनुष्य के कल्याण के लिए, भले काम करना।
ठीक समय पर - “समय आने पर” या “परमेश्वर द्वारा निर्धारित समय पर”
इसलिए - “इसके परिणाम स्वरूप” या “इसके कारण”
अवसर मिले - इसके अर्थ हो सकते है, 1) “हर समय अवसर मिलता है” या (यू.डी.बी.) 2) “प्रत्येक अवसर पर”
विशेष करके - “सबसे अधिक उनके साथ” या “विशेष करके उनके साथ”
“जो मसीह में विश्वास के कारण परमेश्वर के परिवार के हैं”
पौलुस 1) निम्नलिखित बातों पर बता देना चाहता है या 2) कि यह पत्र उसका ही है।
इसके अर्थ हो सकते हैं 1) पौलुस ने किसी से यह पत्र लिखवाया परन्तु वह अन्तिम भाग पौलुस ने लिखा था। 2) संपूर्ण पत्र ही पौलुस ने लिखा।
“मनुष्यों से प्रशंसा पाना चाहते है” या “मनुष्यों में अच्छी छवि बनाना चाहते हैं”।
“प्रकट प्रमाण” या “स्वयं के प्रयास द्वारा”
“विवश करते हैं” या “प्रबल प्रभाव डालते हैं”
“कि वे इस गवाही के कारण यहूदियों द्वारा सताए न जाएं कि केवल क्रूस के द्वारा उद्धार है।
“यीशु के क्रूस के काम” या “यीशु की मृत्यु एवं पुनरूत्थान” यहां अभिप्राय लकड़ी के क्रूस से नहीं है।
“जो तुम्हें खतना करवाने के लिए विवश करते हैं वे चाहते है”।
कि तुम्हें खतना के लिए विवश करने वालों के पास गर्व का कारण हो।
“मैं केवल क्रूस पर घमण्ड करूं”
“मैं नहीं चाहता कि कभी ऐसा हो” या “परमेश्वर दया करे कि मैं ऐसा कभी न करूं। इस अभिव्यक्ति द्वारा पौलुस की प्रबल इच्छा प्रकट होती है कि ऐसा न हो। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो यहां काम में ली जाए।
जिसके द्वारा - इसका संदर्भ है 1) मसीह या 2) “क्रूस” “जिसके द्वारा”
“मैं संपूर्ण संसार को मृतक मानता हूं” या “मैं संसार को एक अपराधी मानता हूं जिसे परमेश्वर ने क्रूस पर मार डाला”।
“संसार मुझे मृतक समझता है” या “संसार मुझे एक अपराधी मानता है जिसे परमेश्वर ने क्रूस पर मार डाला।
इसके अर्थ हैं 1) संसार के निवासी जो परमेश्वर की चिन्ता नहीं करते या 2) परमेश्वर को नहीं मानने वाले मनुष्यों के लिए महत्त्वपूर्ण बातें।
परमेश्वर के लिए “महत्त्वपूर्ण”
इसके अर्थ हैं 1) मसीह में नया विश्वासी 2) विश्वासी का नया जीवन
“वे सब”
इसके अर्थ हैं 1) विश्वासी सामान्यतः परमेश्वर का इस्राएल है (यू.डी.बी.) या 2) अन्य जाति विश्वासियों को परमेश्वर की दया और शान्ति प्राप्त हो तथा इस्राएल को भी परमेश्वर की दया और शान्ति प्राप्त हो।
आगे को -इसके अर्थ हैं “अन्ततः” या “इस पत्र के अन्त में”
इसके अर्थ हैं 1) पौलुस गलातिया के विश्वासियों से कह रहा है कि वे अब उसे दुःखी न करें। “मैं अन्त में यही कहता हूं कि मुझे दुःख न दो”। या 2) पौलुस गलातिया प्रदेश के विश्वासियों को लिख रहा है कि वह सबसे कहता है कि वे उसके लिए दुःख का कारण न उत्पन्न करें”। या 3) पौलुस अपनी इच्छा प्रकट कर रहा है मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे दुःख दे”।
अर्थात 1) “मुझसे इन बातों की चर्चा करे” (यू.डी.बी.) या 2) मुझे कष्ट दे। या “मुझे परिश्रम के लिए विवश करे”।
क्योंकि मैं मसीह के दागों को अपनी देह में लिए फिरता हूं - “यीशु की सेवा के कारण मेरी देह पर घावों के दाग हैं। 2) या “मेरी देह पर घावों के दाग हैं क्योंकि मैं यीशु का हूं”।
(1) युद्ध में जो घाव हुए उनके दाग या किसी जोखिम भरे काम के कारण सेवक की देह पर जो घाव आए उनके दाग या 2) दास पर दागे गए दाग
हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारे आत्मा के साथ रहे -मैं प्रार्थना करता हूं कि प्रभु यीशु तुम्हारी आत्मा पर दया करे”।
“भाइयों और बहनों” या “परमेश्वर के परिवार के सदस्यों”
जो आत्मिक हैं उनके लिए आवश्यक है कि वे उस व्यक्ति को दीनता की आत्मा में संभालें।
आत्मिक जन इस बात पर भी ध्यान दें कि वे परीक्षा में न पड़ें।
विश्वासी एक दूसरे का भार उठा कर मसीह की व्यवस्था पूरी करते हैं।
यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है तो अपने आप को धोखा देता है हर एक अपने ही काम को जांच ले, तब दूसरे के विषय में नहीं पर अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।
जिसे वचन की शिक्षा दी जा रही है वह सब अच्छी वस्तुओं में सिखाने वाले को भागी करें।
मनुष्य जो कुछ बोंता है वही काटेगा।
जो शरीर के लिए बोता है वह विनाश की कटनी काटेगा।
जो आत्मा के लिए बोता है वह अनन्त जीवन की कटनी काटेगा।
भले कामों में साहस न छोड़ने पर मनुष्य ठीक समय पर कटनी काटेंगे।
विश्वासियों को विशेष करके विश्वासियों के साथ भलाई करना है।
जो विश्वासियों को खतना करवाने के लिए विवश करते हैं वे मसीह के क्रूस के कारण सताए जाने से बचना चाहते हैं।
पौलुस कहता है कि वह हमारे प्रभु यीशु मसीह के क्रूस पर गर्व करता है।
महत्त्वपूर्ण तो नई सृष्टि है।
इस नियम पर चलनेवालों और परमेश्वर के इस्राएल पर शान्ति और दया होती रहें।
पौलुस अपनी देह पर यीशु के दागों को लिए फिरता था।
1 पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित है, उन पवित्र और मसीह यीशु में विश्वासी लोगों के नाम जो इफिसुस में हैं, 2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
3 हमारे परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह के पिता का धन्यवाद हो कि उसने हमें मसीह में स्वर्गीय स्थानों में सब प्रकार की आत्मिक आशीष* दी है। 4 जैसा उसने हमें जगत की उत्पत्ति से पहले उसमें चुन लिया कि हम उसकी दृष्टि में पवित्र और निर्दोष हों।
5 और प्रेम में उसने अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के अनुसार हमें अपने लिये पहले से ठहराया कि यीशु मसीह के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों, 6 कि उसके उस अनुग्रह की महिमा की स्तुति हो, जिसे उसने हमें अपने प्रिय पुत्र के द्वारा सेंत-मेंत दिया।
7 हमको मसीह में उसके लहू के द्वारा छुटकारा*, अर्थात् अपराधों की क्षमा, परमेश्वर के उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है, 8 जिसे उसने सारे ज्ञान और समझ सहित हम पर बहुतायत से किया।
9 उसने अपनी इच्छा का भेद, अपने भले अभिप्राय के अनुसार हमें बताया, जिसे उसने अपने आप में ठान लिया था, 10 कि परमेश्वर की योजना के अनुसार, समय की पूर्ति होने पर, जो कुछ स्वर्ग में और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ वह मसीह में एकत्र करे।
11 मसीह में हम भी उसी की मनसा से जो अपनी इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है, पहले से ठहराए जाकर विरासत बने। 12 कि हम जिन्होंने पहले से मसीह पर आशा रखी थी, उसकी महिमा की स्तुति का कारण हों।
13 और उसी में तुम पर भी जब तुम ने सत्य का वचन सुना, जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुम ने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी। 14 वह उसके मोल लिए हुओं के छुटकारे के लिये हमारी विरासत का बयाना है, कि उसकी महिमा की स्तुति हो।
15 इस कारण, मैं भी उस विश्वास जो तुम लोगों में प्रभु यीशु पर है और सब पवित्र लोगों के प्रति प्रेम का समाचार सुनकर, 16 तुम्हारे लिये परमेश्वर का धन्यवाद करना नहीं छोड़ता, और अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें स्मरण किया करता हूँ।
17 कि हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्वर जो महिमा का पिता है, तुम्हें बुद्धि की आत्मा और अपने ज्ञान का प्रकाश दे। (यशा.11:2) 18 और तुम्हारे मन की आँखें ज्योतिर्मय हों कि तुम जान लो कि हमारे बुलाहट की आशा क्या है, और पवित्र लोगों में उसकी विरासत की महिमा का धन कैसा है।
19 और उसकी सामर्थ्य हमारी ओर जो विश्वास करते हैं, कितनी महान है, उसकी शक्ति के प्रभाव के उस कार्य के अनुसार। 20 जो उसने मसीह के विषय में किया, कि उसको मरे हुओं में से जिलाकर स्वर्गीय स्थानों में अपनी दाहिनी ओर, (इब्रा. 10:22, भज. 110:1) 21 सब प्रकार की प्रधानता, और अधिकार, और सामर्थ्य, और प्रभुता के, और हर एक नाम के ऊपर*, जो न केवल इस लोक में, पर आनेवाले लोक में भी लिया जाएगा, बैठाया;
22 और सब कुछ उसके पाँवों तले कर दिया और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया, (कुलु. 2:10, भज. 8:6) 23 यह उसकी देह है, और उसी की परिपूर्णता है, जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है।
यह पत्र पौलुस ने इफिसुस की कलीसिया को लिखा था
“परमेश्वर के चुने हुए” या “परमेश्वर की इच्छा से”
“नैतिकता में निर्दोष” या “पवित्र किए हुए” या “पवित्र जन” वैकल्पिक अनुवाद, “पवित्र जन”
तुम्हें अर्थात इफिसुस के सब विश्वासी
“तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे” - यह पौलुस के पत्रों में एक सामान्य अभिनंदन एवं आशीर्वाद है।
इसको कर्तृवाच्य रूप में व्यक्त किया जा सकता है, “हम अपने प्रभु यीशु मसीह के पिता और परमेश्वर की स्तुति करें।”
“परमेश्वर ने हमें आशीष दी है”
यह एक समावेशी सर्वनाम है जिसमें पौलुस और इफिसुस के सब विश्वासी हैं।
“परमेश्वर की आत्मा से प्रवाहित सब आशीषों से”
पौलुस दो गुणों की चर्चा करता है जो हम परमेश्वर में विकसित कर सकते हैं।
“परमेश्वर ने हमें ग्रहण करने का संकल्प पहले ही से कर लिया था।”
“परमेश्वर ने आदिकाल ही से योजना बना ली थी” (यू.डी.बी.)
पौलुस स्वयं की इफिसुस के विश्वासियों को तथा सब मसीही विश्वासियों को “हम” में सम्मलित करता है
“लेपालक” अर्थात परमेश्वर के परिवार के सदस्य होना
परमेश्वर मसीह के काम के द्वारा विश्वासियों को अपने परिवार में लेता है।
ये सब सर्वनाम परमेश्वर के लिए हैं।
“परमेश्वर का प्रिय” अर्थात मसीह यीशु
परमेश्वर का प्रिय मसीह यीशु
हम अर्थात सब विश्वासी
“परमेश्वर के अनुग्रह की महानता” या “परमेश्वर के अनुग्रह की अनिश्चियता”
परमेश्वर ने विश्वासियों को महान समझ और ज्ञान प्रदान किया है। वैकल्पिक अनुवाद “ज्ञान और समझ की बहुतायत”
“उसकी योजना का अप्रकट सत्य”
“उसकी प्रसन्नता के अनुसार” (यू.डी.बी.)
“जब सब कुछ होने लगे”
“उसकी योजना पूर्ति के निमित्त”
“परमेश्वर की योजना”, “परमेश्वर की इच्छा”
“मसीह के शासन के अधीन”
“हम परमेश्वर का उत्तराधिकार ठहराए गए” या “हम चुने गए कि परमेश्वर के उत्तराधिकार प्राप्त करें”
यहां “हम” में केवल पौलुस और इसके यहूदी भाई हैं, अन्यजाति विश्वासी नहीं।
“परमेश्वर की योजना से”
“परमेश्वर की इच्छा से”
यहां भी पौलुस “हम” में अन्यजाति विश्वासियों को नहीं गिनता है।
वैकल्पिक अनुवाद, “मसीह में विश्वास के द्वारा ही तुमने सुना कि तुम उसके द्वारा उद्धार पाए हुए हो”।
“मसीह तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है”
जिस पर तुमने विश्वास किया
प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी जैसे किसी पत्र पर लाख लगाकर प्रेषक की मुहर लगाई जाती है उसी प्रकार परमेश्वर ने हम पर पवित्र आत्मा द्वारा उद्धार की मुहर लगाई है जिससे प्रकट होता है कि वह हमारा स्वामी है।
“पवित्र आत्मा एक प्रण है” परमेश्वर ने हमें पवित्र आत्मा दिया जो समय पर उसके अनन्त जीवन के वरदान की प्रतिज्ञा है
परमेश्वर ने हमें अपनाने के लिए मोल लिया है। वैकल्पिक अनुवाद, “अर्थात, परमेश्वर हमें क्षमा करता है और हमें ग्रहण करता है।
“इस उद्देश्य निमित्त”
मसीह के सब विश्वासियों के लिए तुम्हारे प्रेम “मसीह के सब पवित्र जनों के लिए तुम्हारा प्रेम”
इसका अनुवाद एक सकारात्मक वाक्य मे किया जा सकता है, मैं निरन्तर परमेश्वर को धन्यवाद कहता हूं”।
“उसके प्रकाश की समझ हेतु आत्मिक ज्ञान”
“मन की आंखें अर्थात समझ प्राप्त करने के लिए किसी की क्षमता को बढ़ाना।” कि तुम्हें समझ प्राप्त हो और तुम इस प्रकाश से पूर्ण हो जाओ।
“हमारी बुलाहट की आशा”
“उसके महिमामय उत्तराधिकार की प्रचुरता” या “उसके वैभवशाली उत्तराधिकार की बहुतायत”
“उसके पृथक किए गए लोगों में” इसमें नैतिकता में निर्दोष एवं पृथक किए हुए पवित्र लोगों का विचार निहित है।
परमेश्वर का सामर्थ्य व्यक्तियों के पार है
“हमारे निमित्त क्रियाशील उसका महान सामर्थ्य ”
“मसीह को दाहिनी ओर बैठाया”। यह सम्मान का सर्वोच्च स्थान है।
“इस समय”
“भविष्य में”
अलौकिक प्राणियों के ये विभिन्न पद है चाहे वे स्वर्गदूत हों या शैतानी शक्तियां हों। वैकल्पिक अनुवाद: सब प्रकार के अलौकिक प्राणियों के ऊपर।
“परमेश्वर ने....” (यू.डी.बी.) या “परमेश्वर ने ऐसा किया कि....”
यह मसीह प्रभुता, अधिकार और सामर्थ का वर्णन है। सब कुछ मसीह के सामर्थ के अधीन कर दिया”
शिरोमणि... यह उसकी देह है जिस प्रकार की मानवीय देह में शरीर के सब कामों को सिर नियंत्रित करता है, ठीक उसी प्रकार मसीह देह का अर्थात कलीसिया का सिर है।
शिरोमणि का अर्थ है अगुआ या कर्ता-धर्ता। वैकल्पिक अनुवाद: “कलीसिया में सर्वोसर्व शासक”
कलीसिया उसकी देह कहलाती है।
मसीह कलीसिया को उसके सामर्थ्य और जीवन से पूरिपूरित करता है।वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह कलीसिया को अपने जीवन एवं सामर्थ्य से भर देता है ठीक वैसे ही जैसे वह सब को जीवन देता है और संभालता है”
पौलुस अपने पत्र के प्राप्तिकर्ताओं को मसीह के लिए पवित्र किए गए और निष्ठापूर्वक मसीह यीशु में विश्वास करनेवाले कहता है।
पिता परमेश्वर ने विश्वासियों को मसीह में स्वर्गीय स्थानों में सब प्रकार की आत्मिक आशीष दी है।
परमेश्वर ने मसीह में विश्वास करनेवालों को जगत की उत्पत्ति से पहले ही चुन लिया था।
पिता परमेश्वर ने विश्वासियों को चुन लिया था कि वे उसकी दृष्टि में पवित्र और निर्दोष हों।
परमेश्वर ने विश्वासियों को अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के निमित्त पहले से ठहराया है।
परमेश्वर ने विश्वासियों को लेपालक होने के लिए पहले से ही ठहरा दिया था कि वह अपने महिमामय अनुग्रह के लिए स्तुति का पात्र ठहरे।
विश्वासी मसीह के लहू के द्वारा छुटकारा अर्थात पापों की क्षमा पाते हैं।
परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी पर जो कुछ है, सब कुछ मसीह में एकत्र कर देगा।
विश्वासियों पर प्रतिज्ञा के पवित्र आत्मा की छाप लगी थी।
आत्मा विश्वासियों के उत्तराधिकार का ब्याना है।
पौलुस प्रार्थना करता है कि इफिसुस की कलीसिया अपनी बुलाहट की आशा और पवित्र लोगों में उसकी मीरास की महिमा के धन को समझ पाएँ।
उसकी इसी सामर्थ्य के प्रभाव से मसीह मृतकों में से जिलाया गया और स्वर्गीय स्थानों में परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठाया गया।
परमेश्वर ने सब कुछ मसीह के पांवों तले कर दिया है।
मसीह कलीसिया में सब बातों पर शिरोमणि है।
कलीसिया मसीह की देह है।
1 और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। 2 जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के अधिपति* अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य करता है। 3 इनमें हम भी सब के सब पहले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएँ पूरी करते थे, और अन्य लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे।
4 परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण जिससे उसने हम से प्रेम किया, 5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, 6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया। 7 कि वह अपनी उस दया से जो मसीह यीशु में हम पर है, आनेवाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।
8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्वर का दान है; 9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे। 10 क्योंकि हम परमेश्वर की रचना हैं*; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहले से हमारे करने के लिये तैयार किया।
11 इस कारण स्मरण करो, कि तुम जो शारीरिक रीति से अन्यजाति हो, और जो लोग शरीर में हाथ के किए हुए खतने से खतनावाले कहलाते हैं, वे तुम को खतनारहित कहते हैं, 12 तुम लोग उस समय मसीह से अलग और इस्राएल की प्रजा के पद से अलग किए हुए, और प्रतिज्ञा की वाचाओं के भागी न थे, और आशाहीन और जगत में ईश्वर रहित थे।
13 पर अब मसीह यीशु में तुम जो पहले दूर थे, मसीह के लहू के द्वारा निकट हो गए हो।
14 क्योंकि वही हमारा मेल है, जिसने यहूदियों और अन्यजातियों को एक कर दिया और अलग करनेवाले दीवार को जो बीच में थी, ढा दिया। (गला.3:28, इफि. 2:15) 15 और अपने शरीर में बैर* अर्थात् वह व्यवस्था जिसकी आज्ञाएँ विधियों की रीति पर थीं, मिटा दिया कि दोनों से अपने में एक नई जाति उत्पन्न करके मेल करा दे, 16 और क्रूस पर बैर को नाश करके इसके द्वारा दोनों को एक देह बनाकर परमेश्वर से मिलाए।
17 और उसने आकर तुम्हें जो दूर थे, और उन्हें जो निकट थे, दोनों को मेल-मिलाप का सुसमाचार सुनाया। (इफि. 2:13, प्रेरि. 2:39) 18 क्योंकि उस ही के द्वारा हम दोनों की एक आत्मा में पिता के पास पहुँच होती है।
19 इसलिए तुम अब परदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के हो गए। 20 और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही है, बनाए गए हो। (यशा. 28:16, 1 कुरि. 12:28) 21 जिसमें सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है, 22 जिसमें तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवासस्थान होने के लिये एक साथ* बनाए जाते हो।
इससे समझ में आता है कि पापी मनुष्य कैसे परमेश्वर की आज्ञा मानने में असमर्थ थे, जैसे कोई मृतक मनुष्य शारीरिक प्रतिक्रिया नहीं दिखाते हैं।
इस उक्ति से प्रकट होता है मनुष्य परमेश्वर के विधान की अवज्ञा में कैसे धृष्ट थे।
“तुम चाहे इसी में जी रहे थे” यह मनुष्यों की जीवन शैली का वर्णन है।
पौलुस “संसार” शब्द द्वारा इस संसार के मनुष्यों के स्वार्थी स्वभाव और भ्रष्ट मान्यताओं का संदर्भ देता है। वैकल्पिक अनुवाद: “संसार के मनुष्यों की सदाचार की मान्यताओं के अनुसार” या “इस संसार के सिद्धान्तों के अनुसार”
अर्थात शैतान
अर्थात शैतान की आत्मा
ये दो शब्द “शरीर” और “मन” संपूर्ण देह के लिए लाक्षणिक उपयोग है।
“परमेश्वर दया का सागर है” या “परमेश्वर हम पर दया दर्शाता है।”
“हमारे लिए उसके अपार प्रेम के कारण” या “क्योंकि वह उससे अत्यधिक प्रेम करता है”
इससे प्रकट होता है कि एक पापी मनुष्य जब तक नया आत्मिक जीवन पाए, परमेश्वर की आज्ञा मानने में समर्थ नहीं जैसे एक मृतक शारीरिक प्रतिक्रिया नहीं दिखाता जब कि वह पुनः जीवित न हो।
परमेश्वर ने हमें मसीह में नया जीवन दिया है
परमेश्वर ने अपनी अपार दया के कारण हमारा उद्धार किया है।
जिस प्रकार उसने मसीह को जीवित किया ठीक उसी प्रकार वह हमें भी पुनःजीवित करेगा और हम स्वर्ग में मसीह के साथ होंगे।
“भविष्य में”
परमेश्वर की दया ही है कि उसने हमें दण्ड से बचाने के लिए यह संभव किया परन्तु जब हम यीशु में विश्वास करें।
“वह” अर्थात “अनुग्रह” विश्वास के द्वारा अनुग्रह से तुम्हारा उद्धार हुआ है”।
“तुम्हारी” सर्वनाम शब्द पौलुस और इफिसुस के सब मसीही विश्वासियों के लिए है।
“यह उद्धार हमारे कर्मों से प्राप्त नहीं है”।
“परमेश्वर ने हमें नए मनुष्य मनाया है जो मसीह यीशु से जुड़े हुए हैं”। हम परमेश्वर की रचना हैं। यहां “हम” सर्वनाम शब्द पौलुस और इफिसुस के सब विश्वासियों के लिए है
“जीवन के लिए” या “अनुसरण के लिए”
वे जो जन्म से यहूदी नहीं
अन्यजातियों का शिशु अवस्था में खतना नहीं किया जाता था, अतः उन्हें परमेश्वर के जन नहीं माना जाता था।
यह शब्द यहूदियों के लिए काम में लिया गया है क्योंकि उनके हर एक बालक का जन्म के आठवें दिन खतना किया जाता था।
“अविश्वासी”
“संबन्ध विच्छेदित” या “असम्म्लित”
“इस्राएलियों” या इस्राएली समुदाय”
“तुम परमेश्वर की वाचा की प्रतिज्ञाओं से अनभिज्ञ थे”
पौलुस इफिसुस के विश्वासियों के पूर्वकालिन जीवन और वर्तमान जीवन में प्रकट अन्तर व्यक्त कर रहा है।
विश्वासी अपने पाप के कारण परमेश्वर से दूर थे, परन्तु अब मसीह उन्हें परमेश्वर के निकट ले आया है, अपने लहू के द्वारा
“यीशु हमें अपनी शान्ति देता है”
“क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा”
“बुराई की दीवार” या “घृणा की दीवार”
“यहूदी एवं अन्यजाति विश्वासियों के मध्य उपस्थित दीवार
यीशु के लहू ने मूसा प्रदत्त विधान की अनिवार्यता पूरी की कि यहूदी और अन्यजाति उसमें शान्ति से जीएं
“यहूदियो और अन्यजातियों में एकता उत्पन्न करा दे”।
यीशु ने यहूदियों और अन्यजातियों के मध्य परस्पर बैर के कारण का निवारण कर दिया। अर्थात अब आवश्यक नहीं था कि वे मूसा प्रदत्त विधान के पालन का जीवन जीएं।
“शुभ सन्देश सुनाया” या “शुभ सन्देश का प्रचार किया”
“शान्ति का शुभ सन्देश”
अन्यजातियां या गैर यहूदी जन
अर्थात् यहूदी के प्रति
“हम दोनों.... अर्थात पौलुस विश्वासी यहूदी तथा विश्वासी अन्यजातियां।
सब विश्वासियों को पिता परमेश्वर की उपस्थिति में एक आत्मा या अधिकार में प्रवेश करने का अधिकार प्राप्त है।
यह अन्यजातियों के मसीही विश्वास में आने से पूर्व की और बाद की आत्मिक अवस्था का वर्णन है, जैसे एक विदेशी किसी देश का नागरिक बनता है।
“बाहरी लोग नहीं रहे”
“जो नागरिक नहीं हैं”
पौलुस परमेश्वर के परिवार की तुलना एक भवन से करता है जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु है और प्रेरित उसकी नींव है और विश्वासी उसकी निर्माण सामग्री है।
पौलुस मसीह के परिवार की तुलना भवन निर्माण से करता है जिसमें राज मिस्त्री पत्थरों को संयोजित करता है उसी प्रकार मसीह भी हमें संयोजित कर रहा है।
वह वर्णन करता है कि विश्वासी किस प्रकार एक साथ संयोजित किए जाकर एक स्थान बनते हैं जिनमें परमेश्वर स्थाई रूप से निवास करता है जैसे पृथ्वी पर मनुष्यों के निवास हेतु एक घर बनाया जाता है।
अविश्वासी सब अपने अपराधों और पापों में मरे हुए हैं।
आकाश के अधिकार के हाकिम का आत्मा आज्ञा न माननेवालों में काम करता है।
अविश्वासी स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान हैं।
परमेश्वर अपने महान प्रेम के कारण दया का धनी है।
विश्वासियों का उद्धार परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा है।
विश्वासी मसीह यीशु के साथ स्वर्गीय स्थानों में मसीह के साथ बैठाए गए हैं।
परमेश्वर ने विश्वासियों का उद्धार करके उठाया कि आनेवाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।
हम विश्वास के द्वारा अनुग्रह से उद्धार प्राप्त करते हैं जो परमेश्वर का वरदान है।
किसी भी विश्वासी को घमण्ड नहीं करना है क्योंकि उसका उद्धार उसके अपने कर्मों से नहीं है।
मसीह के सब विश्वासियों के लिए परमेश्वर का उद्देश्य है कि वे भले काम करें।
अविश्वासी अन्यजातियाँ मसीह से अलग हैं, इस्राएल के लिए परदेसी और वाचाओं के प्रति अनजान हैं तथा आशा से रहित और परमेश्वर रहित हैं।
कुछ अन्यजाति अविश्वासी मसीह के लहू के द्वारा परमेश्वर के निकट लाए गए हैं।
मसीह ने अन्यजातियों और यहूदियों को जो एक समुदाय में विश्वास करते हैं, विभाजन करने वाले बैरभाव को समाप्त करके मेल करा दिया।
मसीह ने आज्ञाओं और विधियों की व्यवस्था को निरस्त कर दिया कि यहूदियों और अन्यजातियों में मेल हो।
सब विश्वासियों को पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर की निकटता प्राप्त है।
परमेश्वर का परिवार प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर निर्मित है जिसके कोने का पत्थर मसीह है।
वे प्रभु के लिए एक पवित्र मंदिर बन रहे हैं।
परमेश्वर आत्मा द्वारा विश्वासी के भीतर वास करता है।
1 इसी कारण* मैं पौलुस जो तुम अन्यजातियों के लिये मसीह यीशु का बन्दी हूँ 2 यदि तुम ने परमेश्वर के उस अनुग्रह के प्रबन्ध का समाचार सुना हो, जो तुम्हारे लिये मुझे दिया गया।
3 अर्थात् यह कि वह भेद मुझ पर प्रकाश के द्वारा प्रगट हुआ, जैसा मैं पहले संक्षेप में लिख चुका हूँ। 4 जिससे तुम पढ़कर जान सकते हो कि मैं मसीह का वह भेद कहाँ तक समझता हूँ। 5 जो अन्य समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया हैं।
6 अर्थात् यह कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लोग विरासत में सहभागी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं। 7 और मैं परमेश्वर के अनुग्रह के उस दान के अनुसार, जो सामर्थ्य के प्रभाव के अनुसार मुझे दिया गया, उस सुसमाचार का सेवक बना।
8 मुझ पर जो सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा* हूँ, यह अनुग्रह हुआ कि मैं अन्यजातियों को मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार सुनाऊँ, 9 और सब पर यह बात प्रकाशित करूँ कि उस भेद का प्रबन्ध क्या है, जो सब के सृजनहार परमेश्वर में आदि से गुप्त था।
10 ताकि अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का विभिन्न प्रकार का ज्ञान, उन प्रधानों और अधिकारियों पर, जो स्वर्गीय स्थानों में हैं प्रगट किया जाए। 11 उस सनातन मनसा के अनुसार जो उसने हमारे प्रभु मसीह यीशु में की थीं।
12 जिसमें हमको उस पर विश्वास रखने से साहस और भरोसे से निकट आने का अधिकार है। 13 इसलिए मैं विनती करता हूँ कि जो क्लेश तुम्हारे लिये मुझे हो रहे हैं, उनके कारण साहस न छोड़ो, क्योंकि उनमें तुम्हारी महिमा है।
14 मैं इसी कारण उस पिता के सामने घुटने टेकता हूँ, 15 जिससे स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है, 16 कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्व में सामर्थ्य पा कर बलवन्त होते जाओ,
17 और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़कर और नींव डालकर, 18 सब पवित्र लोगों के साथ भली-भाँति समझने की शक्ति पाओ; कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊँचाई, और गहराई कितनी है। 19 और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी* तक परिपूर्ण हो जाओ।
20 अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ्य के अनुसार जो हम में कार्य करता है, 21 कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उसकी महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।
“परमेश्वर के अनुग्रह के कारण”
“परमेश्वर ने तुम्हारे लिए उसके अनुग्रह के प्रबन्ध को जो वरदान दिया है”
परमेश्वर ने मुझे प्रकाशन प्रदान किया” या “परमेश्वर ने मुझ पर प्रकट किया”
“मैंने पहले तुम्हें उस सत्य के बारे में संक्षेप में लिखा था जो पूर्वकाल में अज्ञात था”।
“जिसे” अर्थात वह गुप्त सत्य जिन्हें पौलुस इफिसुस के विश्वासियों पर प्रकट कर रहा है।
“तुम अंतर्ग्रहण करने योग्य हो जाओ” या “तुम उसका अनुभव करने पाओगे”
“इस पूर्वकाल में अज्ञात इस सत्य के प्रति मेरी समझ”
“जो पूर्वकाल में मनुष्यों पर प्रकट नहीं किया गया था”
“परन्तु अब अनावृत किया गया है” या “परन्तु अब स्पष्ट किया गया है”
यह एक गुप्त सत्य है जिसकी चर्चा पौलुस कर रहा है, वे उस पर तथा प्रेरितों पर प्रगट किया गया है।
मसीह के विश्वासियों की चर्चा करने के लिए पौलुस देह का रूपक काम में ले रहा है।
“मैं सुसमाचार शुभ सन्देश प्रसारण के निमित्त परमेश्वर की सेवा कर रहा हूं”
“यद्यपि मैं परमेश्वर के सब जनों में सबसे कम योग्य हूं, परमेश्वर ने मुझे यह अनूग्रहपूर्ण वरदान दिया है
“और सब को परमेश्वर की योजना से प्रगट कराऊं।"
“जिस बात को परमेश्वर ने आदिकाल से अर्थात संसार की सृष्टि के समय से छिपा रखा था”
“परमेश्वर का यह जटिल ज्ञान स्वर्गीय स्थानों में परमेश्वर के जटिल ज्ञान का प्रकाशन कलीसिया द्वारा हो”।
“अनन्त योजना के अनुरूप” या “अनन्त योजना से सुसंगत”
“जिसे उसने पूरा किया” या “संपन्न किया”
“विश्वास के साथ परमेश्वर की उपस्थिति में आने का” या “परमेश्वर की उपस्थिति में विश्वास से प्रवेश करने का”
“मसीह में हमारे विश्वास के कारण”
“अतः मेरा निवेदन है कि इसके कारण हिम्मत न हारो”।
“क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे लिए यह सब किया है”
“मैं पिता के सामने घुटने टेक कर विनती करता हूं” या “मैं दीन मन से पिता से प्रार्थना करता हूं”।
“कि वह तुम्हें प्रदान करे”
“द्वारा” यहां एक माध्यम का विचार है जिसका अर्थ है कि मसीह विश्वासियों के मन में परमेश्वर प्रदत्त विश्वास के वरदान द्वारा वास करता है।
पौलुस उनके विश्वास की तुलना एक वृक्ष से करता है जिसकी जड़े गहराई में है, और पत्थर पर नींव डाले हुए मकान से”
अर्थात सब विश्वासी। इसका अनुवाद किया जा सकता है, “सब पृथक किए हुए लोगों”
“कि तुम मसीह के प्रेम को समझ पाओ जो उस हर एक बात से बहुत ऊपर है जिसे हम अनुभव से अंतर्ग्रहण करते हैं।
“अब परमेश्वर जो”
हम जो मांगते हैं या कल्पना कर सकते हैं परमेश्वर उससे कहीं अधिक कर सकता है।
“हम” अर्थात पौलुस और उसके पाठक
परमेश्वर ने अन्यजातियों के लाभ के लिए पौलुस को यह दान दिया है।
पौलुस पर भेद का प्रकाशन प्रकट किया गया था।
परमेश्वर ने मसीह का गुप्त सत्य उसके प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रकट किया था।
गुप्त सत्य यह था कि अन्यजाति देह के संगी वारिस और साथी सदस्य हैं, और मसीह यीशु में प्रतिज्ञा के साझी हैं।
परमेश्वर के अनुग्रह का दान पौलुस को दिया गया था।
पौलुस को अन्यजातियों को उस रहस्य के प्रशासन को समझने में सहायता देने के लिए भेजा गया था जो परमेश्वर में युगों से छिपा हुआ था।
परमेश्वर का जटिल ज्ञान कलीसिया के द्वारा प्रकाशित किया जाएगा।
पौलुस कहता है कि विश्वासियों में मसीह में विश्वास के कारण परमेश्वर के निकट आने का साहस और आत्मविश्वास है।
स्वर्ग और पृथ्वी पर हर एक घराने का नाम पिता परमेश्वर पर रखा जाता है और वह रचा जाता है।
पौलुस प्रार्थना करता है कि विश्वासी परमेश्वर के आत्मा के सामर्थ्य द्वारा बल पाएं।
पौलुस प्रार्थना करता है कि विश्वासी मसीह के प्रेम की लम्बाई चौड़ाई, ऊँचाई और गहराई को समझें।
पौलुस प्रार्थना करता है कि कलीसिया में और मसीह यीशु में उसकी महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानयुग होती रहे।
1 इसलिए मैं जो प्रभु में बन्दी हूँ तुम से विनती करता हूँ कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो, 2 अर्थात् सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो, 3 और मेल के बन्धन में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो*।
4 एक ही देह है, और एक ही आत्मा; जैसे तुम्हें जो बुलाए गए थे अपने बुलाए जाने से एक ही आशा है। 5 एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा, 6 और सब का एक ही परमेश्वर और पिता है*, जो सब के ऊपर और सब के मध्य में, और सब में है।
7 पर हम में से हर एक को मसीह के दान के परिमाण से अनुग्रह मिला है। 8 इसलिए वह कहता है,
“वह ऊँचे पर चढ़ा,
और बन्दियों को बाँध ले गया,
और मनुष्यों को दान दिए।”
9 (उसके चढ़ने से, और क्या अर्थ पाया जाता है केवल यह कि वह पृथ्वी की निचली जगहों में उतरा भी था। (इब्रा. 2:9, यूह. 3:13) 10 और जो उतर गया यह वही है जो सारे आकाश के ऊपर चढ़ भी गया कि सब कुछ परिपूर्ण करे।)
11 और उसने कुछ को प्रेरित नियुक्त करके, और कुछ को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कुछ को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कुछ को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया। (2 कुरि. 12:28-29) 12 जिससे पवित्र लोग सिद्ध हो जाएँ और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। 13 जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाएँ, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएँ और मसीह के पूरे डील-डौल तक न बढ़ जाएँ।
14 ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उनके भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक वायु से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों। 15 वरन् प्रेम में सच बोलें और सब बातों में उसमें जो सिर है, अर्थात् मसीह में बढ़ते जाएँ, 16 जिससे सारी देह हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर, और एक साथ गठकर, उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक अंग के ठीक-ठीक कार्य करने के द्वारा उसमें होता है, अपने आप को बढ़ाती है कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए।
17 इसलिए मैं यह कहता हूँ और प्रभु में जताए देता हूँ कि जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ की रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो। 18 क्योंकि उनकी बुद्धि अंधेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उनमें है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं; 19 और वे सुन्न होकर लुचपन में लग गए हैं कि सब प्रकार के गंदे काम लालसा से किया करें।
20 पर तुम ने मसीह की ऐसी शिक्षा नहीं पाई। 21 वरन् तुम ने सचमुच उसी की सुनी, और जैसा यीशु में सत्य है, उसी में सिखाए भी गए। 22 कि तुम अपने चाल-चलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो।
23 और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ, 24 और नये मनुष्यत्व को पहन लो, जो परमेश्वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है। (कुलु. 3:10, 2 कुरि. 5:17)
25 इस कारण झूठ बोलना छोड़कर, हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं। (कुलु. 3:9, रोम. 12:5, जक. 8:16) 26 क्रोध तो करो, पर पाप मत करो; सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। (भज. 4:4) 27 और न शैतान को अवसर दो।*
28 चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; वरन् भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे; इसलिए कि जिसे प्रयोजन हो, उसे देने को उसके पास कुछ हो। 29 कोई गंदी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही निकले जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उससे सुननेवालों पर अनुग्रह हो। 30 परमेश्वर के पवित्र आत्मा को शोकित मत करो, जिससे तुम पर छुटकारे के दिन के लिये छाप दी गई है। (इफि. 1:13-14, यशा. 63:10)
31 सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैर-भाव समेत तुम से दूर की जाए। 32 एक दूसरे पर कृपालु, और करुणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।
प्रभु की सेवा करने का चुनाव करने के कारण एक बन्दी की नाई।
“मैं तुमसे निवेदन करता हूं कि अपनी बुलाहट के योग्य जीवन जीओ” इन सब पदों में “तुम” इफिसुस के सब विश्वासियों के लिए काम में लिया गया है।
“तुम्हें दीन, कोमल, धीरजवन्त होना तथा एक दूसरे को प्रेम में ग्रहण करना सीखना है।
“एक साथ शान्ति में निर्वाह करने की खोज में रहो कि आत्मा की एकता बनाए रहो”
परमेश्वर के परिवार में सब विश्वासी मानवीय शरीर के विभिन्न अंशों के सदृश्य है।
पवित्र आत्मा एक ही है
“विशेष करके एक ही में चुने हुए हो” या “एक ही में नियुक्त हो”
“एक ही निश्चित आशा है”
“सब का पिता.... हृदय के ऊपर... सबके मध्य... सब में है”
“हम” अर्थात पौलुस और इफिसस के विश्वासी”
“प्रत्येक विश्वासी को दान मिला है” या “परमेश्वर ने हममें से हर एक को दान दिया है” या “परमेश्वर ने हममें से हर एक को वरदान दिया है”
“जब मसीह स्वर्ग में गया” यहां “वह” शब्द पद के द्वारा मसीह के लिए है।
“वह ऊपर गया”
“वह नीचे भी गया” या “वह नीचे भी उतरा”
“पृथ्वी के नीचे के स्थानों में” या “पृथ्वी के नीचे के मार्गों में”
कि सब कुछ पूर्णता से भरो” या “सब इसके साथ परिपूरित हो जाएं”
“मसीह ने कलीसिया को ऐसे वरदान दिए”
सब विश्वासी
“मनुष्यों की सेवा”
यह रूपक आत्मिक विकास की तुलना शरीर के शक्तिवर्धन के लिए व्यायाम से करता है।
“विश्वास में बराबर के शक्तिशाली हो जाएं”
“परिपक्व विश्वासी हो जाएं”
“इसलिए मैं तुम्हें प्रभु में प्रबल प्रोत्साहन देता हूं”
“अन्य जातियों के निस्सार विचारों के अनुरूप जीवन निर्वाह त्याग दो”
उन्हें ईश्वरीय जीवन का बोध नहीं हो सकता क्योंकि उनके मन इच्छाओं से अंधे होकर कठोर हो गए है”
वे न तो स्पष्ट सोच रखते हैं न ही तर्क कर सकते हैं
“ईश्वर भक्ति के जीवन से दूर है”
“क्योंकि उन्हें परमेश्वर का ज्ञान नहीं”
“वे परमेश्वर की वाणी सुनने से इन्कार करते हैं और उसकी शिक्षाओं पर नहीं चलते है”
उन्होंने अपना हर एक अभिलाषा के निमित्त चरित्रहीन व्यवहार के द्वारा भोग विलास की निरकुंश कामनाओं में जीवन लिप्त कर लिया है”
“परन्तु तुमने मसीह के अनुसरण की शिक्षा में यह सब नहीं सीखा है”।
“तुमने तो मसीह यीशु के बारे में सुना और उसी के द्वारा सत्य का ज्ञान पाया है”।
“तुम्हारी पुरानी जीवनशैली का आचरण तुम्हें त्याग देना है जो तुम्हारी बुरी अभिलाषाओं के कारण अधिकधिक भ्रष्ट होता जाता है”।
वस्त्र बदलने के सदृश्य जिन्हें फैंक दिया जाता है अपने संपूर्ण पापी व्यवहार से मुक्त हो जाओ। “तुम्हें अपने आचरण को बदल देना है”
“तुम्हारे पुराने स्वभाव का आचरण” या “तुम्हारे पुराने मनुष्यत्व के अनुरूप जो आचरण था”
“जो शरीर की झूठी अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता था”
"बदल जाओ" या "मन को बदल डालो"
यह दर्शाता है कि जब एक विश्वासी परमेश्वर के सामर्थ्य से मसीह में विश्वास करता है तब वह कैसे पूर्णतः एक नया मनुष्य हो जाता है ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य नया वस्त्र धारण करके सर्वथा एक भिन्न मनुष्य दिखाई देता है।
“तुम्हें झूठ का त्याग करना है”
“विश्वासी अपने पड़ोसियों से सच बोलें”
“हम सब परमेश्वर के परिवार के सदस्य हैं”
“तुम क्रोधित हो सकते हो परन्तु पाप नहीं करना”
“रात आने से पूर्व तुम्हारा क्रोध समाप्त होना है”
“अपशब्दों का उपयोग मत करो” या “गन्दी बात मत करो”।
“ऐसे शब्द काम में लो जो विश्वासियों की उन्नति के लिए या बलवर्धन के लिए हों”।
“इस प्रकार तुम श्रोताओं पर अनुग्रह करो”
“अपने शब्दों द्वारा परमेश्वर के पवित्र आत्मा को दुःखी मत करो”
“क्योंकि उसने तुम पर छाप लगा दी है”
“परमेश्वर तुममें से सब प्रकार का बैर भाव समाप्त कर दे” या “परमेश्वर घृणा को मिटा दे”।
“प्रकोप और क्रोध को साथ रखने पर क्रोध की पराकाष्ठा का बोध होता है”। “अनियंत्रित क्रोध”।
“कठोर शाब्दिक अपमान”
“आपस में दया और कोमलता दर्शाओ” या “एक दूसरे के साथ अनुकंपा के साथ दया का व्यवहार करो”
पौलुस विश्वासियों से आग्रह करता है कि वे अपनी बुलाहट के योग्य आचरण रखें।
मसीह ने प्रत्येक विश्वासी को मसीह के दान के परिमाण के अनुसार अनुग्रह दिया है।
मसीह ने कलीसिया में प्रेरितों, भविष्यद्वक्ताओं, सुसमाचार सुनानेवालों और रखवालों और उपदेशकों को नियुक्त करके दे दिया है।
इन पांच प्रकार के सेवकों से अपेक्षा की जाती है कि वे सेवा कार्य हेतु देह के विकास के लिए विश्वासियों को तैयार करें।
विश्वासी आगे को बालक न रहें जो मनुष्यों की ठग विद्या और चतुराई से इधर उधर उछाले और घुमाए जाते हैं।
विश्वासियों की देह प्रत्येक के विकास के निमित्त प्रेम में गठी, हर एक जोड़ के द्वारा संयोजित होती है और देह के प्रत्येक अंग को विकास में इक्ट्ठा रखती है।
अन्यजातियाँ अपने मन की व्यर्थता में आचरण करती हैं।
अन्यजातियों की समझ अँधी हो गई है।
अन्यजातियों ने अपने आप को कामुकता के अधीन कर दिया है कि हर एक प्रकार की अशुद्धता करें।
विश्वासियों के लिए आवश्यक है कि वे पुराने मनुष्यत्व की बातों को त्याग दें।
विश्वासियों के लिए आवश्यक है कि वे नए मनुष्यत्व को धारण कर लें।
एक विश्वासी के लिए आवश्यक है कि वह शैतान को कभी अवसर न दे।
विश्वासियों के लिए आवश्यक है कि परिश्रम करें जिससे कि किसी आवश्यक्ता में पड़े हुए मनुष्य के साथ बाँटने के लिए योग्य हो सकें।
विश्वासियों के मुँह से अभद्र बातें न निकलें परन्तु वही निकले जो अन्यों की उन्नति के लिए हो।
विश्वासी पवित्र आत्मा को दुःखी न करें।
विश्वासी अन्यों को क्षमा करें क्योंकि परमेश्वर ने मसीह में उन्हे क्षमा किया है।
1 इसलिए प्रिय बच्चों के समान परमेश्वर का अनुसरण करो; 2 और प्रेम में चलो जैसे मसीह ने भी तुम से प्रेम किया; और हमारे लिये अपने आप को सुखदायक सुगन्ध के लिये परमेश्वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया। (यूह. 13:34, गला. 2:20)
3 जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में व्यभिचार, और किसी प्रकार के अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो। 4 और न निर्लज्जता, न मूर्खता की बातचीत की, न उपहास किया*, क्योंकि ये बातें शोभा नहीं देती, वरन् धन्यवाद ही सुना जाए।
5 क्योंकि तुम यह जानते हो कि किसी व्यभिचारी, या अशुद्ध जन, या लोभी मनुष्य की, जो मूर्तिपूजक के बराबर है, मसीह और परमेश्वर के राज्य में विरासत नहीं। 6 कोई तुम्हें व्यर्थ बातों से धोखा न दे; क्योंकि इन ही कामों के कारण परमेश्वर का क्रोध आज्ञा न माननेवालों पर भड़कता है। 7 इसलिए तुम उनके सहभागी न हो।
8 क्योंकि तुम तो पहले अंधकार थे* परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, अतः ज्योति की सन्तान के समान चलो। 9 (क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धार्मिकता, और सत्य है), 10 और यह परखो, कि प्रभु को क्या भाता है? 11 और अंधकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, वरन् उन पर उलाहना दो। 12 क्योंकि उनके गुप्त कामों की चर्चा भी लज्जा की बात है।
13 पर जितने कामों पर उलाहना दिया जाता है वे सब ज्योति से प्रगट होते हैं, क्योंकि जो सब कुछ को प्रगट करता है, वह ज्योति है। 14 इस कारण वह कहता है,
“हे सोनेवाले जाग
और मुर्दों में से जी उठ;
तो मसीह की ज्योति तुझ पर चमकेगी।” (रोम. 13:11-12, यशा. 60:1)
15 इसलिए ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियों के समान नहीं पर बुद्धिमानों के समान चलो। 16 और अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। (आमो. 5:13, कुलु. 4:5) 17 इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो, कि प्रभु की इच्छा क्या है।
18 और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इससे लुचपन होता है, पर पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ, (नीति. 23:31-32, गला. 5:21-25) 19 और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने-अपने मन में प्रभु के सामने गाते और स्तुति करते रहो। (कुलु. 3:16, 1 कुरि. 14:26) 20 और सदा सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो। 21 और मसीह के भय से एक दूसरे के अधीन रहो*।
22 हे पत्नियों, अपने-अपने पति के ऐसे अधीन रहो, जैसे प्रभु के। (कुलु. 3:18, 1 पत. 3:1, उत्प. 3:16) 23 क्योंकि पति तो पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्ता है। 24 पर जैसे कलीसिया मसीह के अधीन है, वैसे ही पत्नियाँ भी हर बात में अपने-अपने पति के अधीन रहें।
25 हे पतियों, अपनी-अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया, 26 कि उसको वचन के द्वारा जल के स्नान* से शुद्ध करके पवित्र बनाए, 27 और उसे एक ऐसी तेजस्वी कलीसिया बनाकर अपने पास खड़ी करे, जिसमें न कलंक, न झुर्री, न कोई ऐसी वस्तु हो, वरन् पवित्र और निर्दोष हो।
28 इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी-अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। 29 क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा वरन् उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है। 30 इसलिए कि हम उसकी देह के अंग हैं।
31 “इस कारण पुरुष माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे।” (उत्प. 2:24) 32 यह भेद तो बड़ा है; पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूँ। 33 पर तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्नी भी अपने पति का भय माने।
“तुम्हें परमेश्वर का स्वभाव आत्मसात करना है”
“हम परमेश्वर की सन्तान हैं इसलिए परमेश्वर चाहता है कि हम उसकी नकल करें”।
“प्रेम आधारित जीवन जीओ”
“परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली सुगन्ध भेंट एवं बलिदान।
“परमेश्वर के लोगों में यौन संबन्धित अनाचार या कैसी भी अशुद्धता या लालच का नाम भी नहीं होना है क्योंकि उनमें यह अशोभनीय है”
“यौन संबन्धित पाप” या “अनुचित यौन संबन्ध”
“कैसी भी अनैतिक बात”
“पराई वस्तु का लालच”
“तुममें इसका नाम भी न लिया जाए” या “तुम में दिखाई भी न दे”
“तुम्हारा आचरण परमेश्वर के पवित्र जनों का सा हो”
“तुम्हारी बातों में धन्यवाद छलकता हो न कि चरित्रहीन मूर्खता की बातें या अभद्र चुटकुले हों”
“झूठे विवाद से कोई तुम्हें ठग न ले” या “कोई तुम्हें अर्थहीन शब्दों द्वारा पथ भ्रष्ट न करे”
“ऐसे कामों के द्वारा मनुष्य परमेश्वर की अवज्ञा करता है तो उस पर परमेश्वर का क्रोध बरसता है”।
“सुनिश्चित कर लो कि तुम उनके साथ बुरे आचरण के सहभागी न हो”
जिस प्रकार मनुष्य अन्धकार में देख नहीं सकता उसी प्रकार पाप में जीवन जीने वाले आत्मिक समझ से वंचित होते हैं
जिस प्रकार मनुष्य अन्धकार में देख नहीं सकता उसी प्रकार पाप में जीवन जीने वाले आत्मिक समझ से वंचित होते हैं
विश्वासी के जीवन के काम (भलाई, सदाचार और सत्य) वैसे ही होते हैं जैसे एक अच्छे वृक्ष के उत्तम फल।
“पाप और अविश्वासियों के कुकर्मों में सहभागी ना हो”
आत्मिक अन्धकार में वास करने वालों के काम ऐसे होते हैं जैसे अन्धकार में छिपे काम करने वालों के कार्य
“उन्हें प्रकट करो कि वे अनुचित हैं”
संसार में अप्रकट वस्तुएं प्रकाश में दिखाई देती है, उसी प्रकार मसीह की ज्योति अविश्वासियों के आत्मिकता के दुष्ट कार्य आत्मिक संसार में प्रकट हो जाते है।
अविश्वासियों को आत्मिक मृत्यु से जी उठना है ठीक वैसे ही जैसे एक मृतक को प्रतिक्रिया दिखाने के लिए जीवित होना पड़ता है।
मसीह अविश्वासी की इस योग्य बनाएगा कि वह क्षमादान और नवजीवन के प्रावधान को समझे, ठीक वैसे ही जैसे प्रकाश अदृश्य वस्तुओं को अन्धकार में से प्रकट करता है।
“अतः तुम मूर्ख की अपेक्षा बुद्धिमान मनुष्य का सा जीवन जीओ”। मनुष्य पाप से बच तो नहीं सकता परन्तु बुद्धिमान मनुष्य पाप को पहचान कर उससे दूर भाग सकता है।
“समय का सुबुद्धि उपयोग करो”। हम पाप में जीवन जीने का चुनाव कर सकते है। जो समय का निर्बुद्धि पूर्ण उपयोग है। या हम वैसा जीवन जी सकते है जैसा प्रभु हमसे चाहता है तो हम अपना जीवन सुबुद्धि का उपयोग करते हैं
“दिन” अर्थात समय जिसमें वे वास कर रहे थे
“मदिरा पीकर बेसुध न हो”
“इसकी अपेक्षा पवित्र आत्मा से भर जाना अच्छा है”
“परमेश्वर की स्तुति में विभिन्न गीत गाओ”
“सदैव धन्यवाद देते रहो”
“दीनतापूर्वक अधीन रहो”
“मसीह विश्वासियों की देह का उद्धारक है” या “मसीह सब विश्वासियों का मुक्तिदाता है”
“पत्नियां भी सब बातों में पति के अधीन रहें”
“प्रेम” अर्थात निस्वार्थ, सेवाभावी परोपकारी प्रेम
“अपने आपको” अर्थात मसीह और “उसके” अर्थात कलीसिया के लिए (कलीसिया के सब विश्वासियों के लिए)
“कलीसिया के लिए मसीह ने सर्वस्व त्याग दिया”
इसके संभावित अर्थ हैं 1) परमेश्वर के वचन और मसीह में जल के बपतिस्में द्वारा शोधन या 2) मसीह ने परामेश्वर के वचन द्वारा हमें आत्मिक पवित्रता प्रदान की जैसे हम जल से स्नान करके देह का शोधन करते हैं।
“कि मसीह कलीसिया को अपने लिए तैयार करे”
एक ही विचार को दो शब्दों में व्यक्त किया गया है कि मसीह अपनी कलीसिया को सिद्ध बनायेगा।
“जैसे वे अपनी देह से प्रेम करते हैं”
“वह उसकी सुधि लेता है” या “उसका स्मरण करता है”
“हम” अर्थात पौलुस और सब विश्वासी
इसके संभावित अर्थ हैं 1) हम उसके विश्वासियों की देह के अंग हैं या 2) (अलौकिक अर्थ में) या 2) विश्वासी संगठित होकर मसीह की देह का निर्माण करते हैं जैसे शरीर के अंग संयोजित होकर मनुष्य की रचना करते है
“यही कारण है कि”
“अपनी” एक पुरूष के संबन्ध में हैं।
“पत्नी अपने पति का सम्मान करे” या “पत्नी अपने पति को श्रद्धा अर्पित करे”
विश्वासियों को सन्तान होने के कारण परमेश्वर का अनुकरण करना चाहिए।
मसीह ने विश्वासियों के लिए स्वयं को परमेश्वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया।
व्यभिचार और किसी प्रकार के अशुद्ध काम या लोभ की चर्चा तक विश्वासियों में नाममात्र के लिए भी न हो।
इसकी अपेक्षा विश्वासियों में धन्यवादी स्वभाव होना चाहिए।
व्यभिचारी, अशुद्ध जन और लोभी मनुष्य के लिए मसीह और परमेश्वर के राज्य में मीरास नहीं है।
अवज्ञाकारी की सन्तान पर परमेश्वर का क्रोध भड़कने वाला है।
ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धार्मिकता और सत्य है जो परमेश्वर को ग्रहण योग्य है।
विश्वासियों को अन्धकार के कामों में सहभागी नहीं होना है वरन् उन्हें उनका उजागर करना चाहिए।
ज्योति हर एक बात को प्रकट करती है।
विश्वासियों को अवसर को बहुमूल्य समझना चाहिए क्योंकि दिन बुरे हैं।
दाखरस से मतवाले बनने से लुचपन होता है।
विश्वासी आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करें।
पत्नियाँ इस प्रकार अपने अपने पति के अधीन रहें जैसे प्रभु के।
पति पत्नी का सिर है और मसीह कलीसिया का सिर है।
मसीह कलीसिया को वचन के द्वारा जल के स्नान से शुद्ध करके पवित्र बनाता है।
पति पत्नी को अपनी देह के जैसा प्रेम करें।
मनुष्य अपनी देह का पोषण करके उससे प्रेम करता है।
पति जब अपनी पत्नी के साथ जुड़ जाता है तब वे एक देह हो जाते हैं।
मसीह और उसकी कलीसिया के बारे में एक बड़ा भेद पति पत्नी के संबन्ध से प्रकट होता है।
1 हे बच्चों, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। 2 “अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहली आज्ञा है, जिसके साथ प्रतिज्ञा भी है), 3 कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।” (निर्ग. 20:12, व्य. 5:16)
4 और हे पिताओं, अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चेतावनी देते हुए, उनका पालन-पोषण करो। (व्य. 6:7, नीति. 3:11-12 नीति. 19:18, नीति. 22:6, कुलु. 3:2)
5 हे दासों, जो लोग संसार के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, अपने मन की सिधाई से डरते, और काँपते हुए, जैसे मसीह की, वैसे ही उनकी भी आज्ञा मानो। 6 और मनुष्यों को प्रसन्न करनेवालों के समान दिखाने के लिये सेवा न करो, पर मसीह के दासों के समान मन से परमेश्वर की इच्छा पर चलो, 7 और उस सेवा को मनुष्यों की नहीं, परन्तु प्रभु की जानकर सुइच्छा से करो। 8 क्योंकि तुम जानते हो, कि जो कोई जैसा अच्छा काम करेगा, चाहे दास हो, चाहे स्वतंत्र, प्रभु से वैसा ही पाएगा।
9 और हे स्वामियों, तुम भी धमकियाँ छोड़कर उनके साथ वैसा ही व्यवहार करो, क्योंकि जानते हो, कि उनका और तुम्हारा दोनों का स्वामी स्वर्ग में है, और वह किसी का पक्ष नहीं करता। (लूका 6:31, व्य. 10:17, 2 इति. 19:7)
10 इसलिए प्रभु में और उसकी शक्ति के प्रभाव में बलवन्त बनो*। 11 परमेश्वर के सारे हथियार बाँध लो* कि तुम शैतान की युक्तियों के सामने खड़े रह सको।
12 क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लहू और माँस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अंधकार के शासकों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। 13 इसलिए परमेश्वर के सारे हथियार बाँध लो कि तुम बुरे दिन में सामना कर सको, और सब कुछ पूरा करके स्थिर रह सको।
14 इसलिए सत्य से अपनी कमर कसकर, और धार्मिकता की झिलम पहनकर, (यशा. 11:5, यशा. 59:17) 15 और पाँवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहनकर; (यशा. 52:7, नहू. 1:15) 16 और उन सब के साथ विश्वास की ढाल लेकर स्थिर रहो जिससे तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको।
17 और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है, ले लो। (यशा. 49:2, इब्रा. 4:12, यशा. 59:17) 18 और हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना*, और विनती करते रहो, और जागते रहो कि सब पवित्र लोगों के लिये लगातार विनती किया करो,
19 और मेरे लिये भी कि मुझे बोलने के समय ऐसा प्रबल वचन दिया जाए कि मैं साहस से सुसमाचार का भेद बता सकूँ, 20 जिसके लिये मैं जंजीर से जकड़ा हुआ राजदूत हूँ। और यह भी कि मैं उसके विषय में जैसा मुझे चाहिए साहस से बोलूँ।
21 तुखिकुस जो प्रिय भाई और प्रभु में विश्वासयोग्य सेवक है, तुम्हें सब बातें बताएगा कि तुम भी मेरी दशा जानो कि मैं कैसा रहता हूँ। 22 उसे मैंने तुम्हारे पास इसलिए भेजा है, कि तुम हमारी दशा जानो, और वह तुम्हारे मनों को शान्ति दे।
23 परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह की ओर से भाइयों को शान्ति और विश्वास सहित प्रेम मिले। 24 जो हमारे प्रभु यीशु मसीह से अमर प्रेम रखते हैं, उन सब पर अनुग्रह होता रहे।
पौलुस सन्तानों से कह रहा है कि अपने सांसारिक माता-पिता की आज्ञाओं का पालन करो।
“तू” अर्थात इस्राएली जिन्हें मूसा संबोधित कर रहा था। “कि तू समृद्ध हो और पृथ्वी पर लम्बा जीवन पाए”
“पिता” ऐसे काम न करें कि सन्तान को क्रोध आए” या “पिता सन्तान को क्रोध न दिलाए”
“उन्हें प्रभु की शिक्षा और प्रशिक्षण में बड़ा करो”
“हे दासों अपने सांसारिक स्वामियों की आज्ञाओं का पालन करो”।
“दीनता में भय के साथ जैसे मसीह के प्रति”
एक ही स्वामी को सम्मान देने के लिए ये दो शब्द हैं
“सदैव ऐसे काम करो जैसे तुम मसीह ही के लिए काम कर रहे हो चाहे तुम्हारे स्वामी तुम्हें देखते न हों”।
“अपने सांसारिक स्वामी की ऐसी सेवा करो कि मानी वह मसीह स्वयं ही है”।
“सहर्ष सेवा करो क्योंकि तुम मनुष्यों मसीह के लिए सेवा करते हो”
“स्मरण रखो कि मनुष्य अपने अच्छे कामों का फल प्रभु से पायेगा।
“प्रभु पर पूर्णतः निर्भर करो कि वह तुम्हें आत्मिक शक्ति दे”
विश्वासी परमेश्वर प्रदत्त सब संसाधनों का उपयोग करें कि शैतान के सामने दृढ़ता से खड़े रहें, जैसे एक सैनिक हथियार बान्ध कर बैरी के आक्रमण से अपना बचाव करता है।
विश्वासी शैतान के साथ युद्ध करने के लिए परमेश्वर प्रदत्त सुरक्षात्मक सब संसाधनों का उपयोग जैसे एक सैनिक शत्रु से रक्षा के लिए हथियार बांधता है।
सत्य विश्वासी के लिए सब कुछ संयोजित करता है जैसे कमर बन्ध सैनिक के सब वस्त्र एक साथ थामे रखता है
धर्म का आचरण विश्वासी के सिर को वैसे ही सुरक्षित रखता है जैसे झिलम सैनिक के वक्ष को सुरक्षित रखती है।
जैसे सैनिक दृढ़ता से खड़े रहने के लिए जूते पहनता है वैसे ही विश्वासी भी शान्ति के शुभ सन्देश का ठोस ज्ञान रखता है कि वह सुनाने के लिए तैयार रहे।
परमेश्वर विश्वासी को विश्वास देता है कि शैतान के आक्रमण के समय उसका उपयोग ढाल के स्थान पर करें जैसे शत्रु के आक्रमण के समय एक सैनिक ढाल का उपयोग करता है।
विश्वासी पर शैतान का आक्रमण वैसा ही होता है जैसा शत्रु विरोधी सैनिक पर अग्निबाण चलाता है
परमेश्वर का उद्धार विश्वासी के मन की रक्षा करता है जैसे टोप सैनिक के सिर की रक्षा करता है।
“पवित्र आत्मा प्रेरित, परमेश्वर का वचन, विश्वासी की शैतान से रक्षा तथा लड़ने के लिए काम में आता है जैसे एक सैनिक शत्रु लड़ने और आत्म रक्षा के लिए तलवार काम में लेता है।
सदैव आत्मा में प्रार्थना करो और अपने विशेष निवेदन रखो”
“सब विश्वासियों के लिए लगातार सतर्कता के साथ प्रार्थना करो”
“कि परमेश्वर मुझे अपना वचन दे” या “परमेश्वर मुझे सुनाने के लिए सन्देश दे”
“जब मैं प्रचार करूं तो साहसपूर्वक घोषणा करूं”
“मैं शुभ सन्देश का प्रतिनिधि होने के कारण कारागार में हूं”
“कि मैं परमेश्वर का वचन कारागार में जैसा साहसपूर्वक वचन सुनाना है वैसे ही सुना पाऊं।
“मेरी परिस्थिति” या “मेरी दशा”
पौलुस के साथ सेवा करने वालों में एक तुखिकुस भी था
“तुम्हें संपूर्ण समाचार देगा” (यू.डी.बी.)
मसीही सन्तानों को अपने माता पिता की आज्ञा मानना है।
मसीही पिता अपनी सन्तान का पालन पोषण प्रभु के अनुशासन और निर्देशों में करें।
मसीही दास मन की सत्यनिष्ठा में अपने स्वामियों की आज्ञा माने जैसे प्रभु की।
विश्वासी को स्मरण रखना है कि वह जो भले काम करता है उनका प्रतिफल प्रभु उसे देगा।
एक मसीही स्वामी को स्मरण रखना है कि उसका और उसके दास का स्वामी स्वर्ग में है और वह किसी भी प्रकार का पक्षपात नहीं करता है।
एक विश्वासी को परमेश्वर के सब हथियार बांधना आवश्यक है कि वह शैतान की दुष्ट युक्तियों के सामने खड़ा रहे।
विश्वासी दुष्टता के अन्धकार के राज्य के प्रधानों से और आत्मिक अधिकारीयों से और हाकिमों युद्ध करता है।
एक विश्वासी को परमेश्वर के सब हथियार बाँधना आवश्यक है कि वह शैतान की दुष्ट युक्तियों के सामने खड़ा रहे।
विश्वास की ढाल दुष्ट के अग्निबाणों को बुझा देती है।
आत्मा की तलवार परमेश्वर का वचन है।
विश्वासियों को परमेश्वर का उत्तर पाने के लिए यत्न के साथ प्रतीक्षारत सदैव प्रार्थना करते रहना है।
पौलुस प्रचार में साहसपूर्वक सुसमाचार सुनाने हेतु वचन की कामना करता है।
इस पत्र को लिखते समय पौलुस बन्दीगृह में जंजीरों से जकड़ा हुआ है।
पौलुस प्रार्थना करता है कि परमेश्वर उन को विश्वास के साथ शान्ति और आपसी प्रेम प्रदान करे।
1 मसीह यीशु के दास पौलुस और तीमुथियुस की ओर से सब पवित्र लोगों के नाम, जो मसीह यीशु में होकर फिलिप्पी में रहते हैं, अध्यक्षों और सेवकों समेत, 2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
3 मैं जब-जब तुम्हें स्मरण करता हूँ, तब-तब अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, 4 और जब कभी तुम सब के लिये विनती करता हूँ, तो सदा आनन्द के साथ विनती करता हूँ 5 इसलिए कि तुम पहले दिन से लेकर आज तक सुसमाचार के फैलाने में मेरे सहभागी रहे हो। 6 मुझे इस बात का भरोसा है* कि जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा।
7 उचित है कि मैं तुम सब के लिये ऐसा ही विचार करूँ, क्योंकि तुम मेरे मन में आ बसे हो, और मेरी कैद में और सुसमाचार के लिये उत्तर और प्रमाण देने में तुम सब मेरे साथ अनुग्रह में सहभागी हो। 8 इसमें परमेश्वर मेरा गवाह है कि मैं मसीह यीशु के समान प्रेम करके तुम सब की लालसा करता हूँ।
9 और मैं यह प्रार्थना करता हूँ, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए, 10 यहाँ तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो*, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो, और ठोकर न खाओ; 11 और उस धार्मिकता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिससे परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे। (यशा. 15:8)
12 हे भाइयों, मैं चाहता हूँ, कि तुम यह जान लो कि मुझ पर जो बीता है, उससे सुसमाचार ही की उन्नति हुई है। (2 तीमु. 2:9) 13 यहाँ तक कि कैसर के राजभवन की सारी सैन्य-दल और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूँ, 14 और प्रभु में जो भाई हैं, उनमें से अधिकांश मेरे कैद होने के कारण, साहस बाँध कर, परमेश्वर का वचन बेधड़क सुनाने का और भी साहस करते हैं।
15 कुछ तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कुछ भली मनसा से। (फिलि. 2:3) 16 कई एक तो यह जानकर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूँ प्रेम से प्रचार करते हैं। 17 और कई एक तो सिधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह समझकर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्लेश उत्पन्न करें।
18 तो क्या हुआ? केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इससे आनन्दित हूँ, और आनन्दित रहूँगा भी। 19 क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम्हारी विनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्मा* के दान के द्वारा, इसका प्रतिफल, मेरा उद्धार होगा। (रोम. 8:28)
20 मैं तो यही हार्दिक लालसा और आशा रखता हूँ कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊँ, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ। 21 क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है*, और मर जाना लाभ है।
22 पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभदायक है तो मैं नहीं जानता कि किसको चुनूँ। 23 क्योंकि मैं दोनों के बीच असमंजस में हूँ; जी तो चाहता है कि देह-त्याग के मसीह के पास जा रहूँ, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है, 24 परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है।
25 और इसलिए कि मुझे इसका भरोसा है। अतः मैं जानता हूँ कि मैं जीवित रहूँगा, वरन् तुम सब के साथ रहूँगा, जिससे तुम विश्वास में दृढ़ होते जाओ और उसमें आनन्दित रहो; 26 और जो घमण्ड तुम मेरे विषय में करते हो, वह मेरे फिर तुम्हारे पास आने से मसीह यीशु में अधिक बढ़ जाए।
27 केवल इतना करो कि तुम्हारा चाल-चलन मसीह के सुसमाचार के योग्य हो कि चाहे मैं आकर तुम्हें देखूँ, चाहे न भी आऊँ, तुम्हारे विषय में यह सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में स्थिर हो, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिये परिश्रम करते रहते हो।
28 और किसी बात में विरोधियों से भय नहीं खाते। यह उनके लिये विनाश का स्पष्ट चिन्ह है, परन्तु तुम्हारे लिये उद्धार का, और यह परमेश्वर की ओर से है। 29 क्योंकि मसीह के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्वास करो पर उसके लिये दुःख भी उठाओ, 30 और तुम्हें वैसा ही परिश्रम करना है, जैसा तुम ने मुझे करते देखा है, और अब भी सुनते हो कि मैं वैसा ही करता हूँ।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “पौलुस और तीमुथियुस की ओर से” या “हम, पौलुस और तीमुथियुस यह लिखते हैं” यदि आपकी भाषा में पत्र के लेखक का परिचय देने की अपनी विशेष विधि है तो काम में ले।
“हम मसीह यीशु के दास है” यहां “हम” अभिप्रेत है।
“मसीह के सब विश्वासियों के नाम”
“कलीसिया के अगुवे”
मनुष्यों को आशीर्वाद देने की यह एक विधि थी
अर्थात फिलिप्पी की कलीसिया
“हमारे” अर्थात मसीह के सब विश्वासी पौलुस, तीमुथियुस और संपूर्ण फिलिप्पी की कलीसिया
“मैं” अर्थात पौलुस
अर्थात फिलिप्पी का विश्वासीगण
पौलुस परमेश्वर को धन्यवाद दे रहा था कि फिलिप्पी के विश्वासी भी उसमें जैसे शुभ सन्देश प्रसारण कर रहे थे। “तुम शुभ सन्देश का जो प्रसारण कर रहे थे उसके लिए मैं परमेश्वर को धन्यवाद कहता हूं”।
“मैं निश्चित हूं”
“परमेश्वर जिसने... आरंभ किया” या “परमेश्वर जिसने आरंभ किया”
“पूरा करने का काम करता रहेगा”
“मेरे लिए उचित है” या “मेरे लिए अच्छा होगा”
यह एक मुहावरा है जिसका अनुवाद होगा “मैं तुमसे अत्यधिक प्रेम रखता हूं”।
“मेरे साथ अनुग्रह के भागी हो” या “मेरे साथ अनुग्रह के' भागी हो”
“परमेश्वर जानता है” या “परमेश्वर समझता है”
“मसीह यीशु की सी प्रीति” यह एक मुहावरा है जो हमारे भीतर एक स्थान के संदर्भ में है जहां से हमारी भावनाओं का उदय होता है। इस का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मसीह यीशु ने मुझे जो प्रेम दिया उसकी संपूर्णता में”
“छलकता जाए”
आप उनके जलने योग्य बातों को स्पष्ट कर सकते हैं, “जब हम परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाली बातों को अधिकाधिक स्पष्टता में सीखते और समझते हो”
“मेरी प्रार्थना है कि”
“परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाली सर्वोत्तम बातें”
“सच्चे बने रहो और ठोकर न खाओ” यह मनुष्य की नैतिकता को बल देने के लिए एक ही धातु के दो शब्द हैं।
“प्रभु का दिन” या “न्याय का दिन”
“मैं” यह भी प्रार्थना करता हूं
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में भी किया जा सकता है, “मसीह यीशु तुम्हें परमेश्वर का अधिकाधिक आज्ञाकारी बनाए”
यहां विश्वासी द्वारा परमेश्वर को अधिकाधिक आज्ञापालन की तुलना वृक्ष के फलों से की गई है
इसका अनुवाद एक पृथक वाक्य में किया जा सकता है, “तुम्हारे भले कामों को देखकर मनुष्य परमेश्वर का गुणगान एवं सम्मान करें।
यह पत्र के एक नए भाग का आरंभ है
पौलुस अपने कारागार के समय की चर्चा कर रहा है। आप इसे स्पष्ट कर सकते हैं, “यीशु के बारे में सार्वजनिक चर्चा करने के कारण मैं जो कष्ट उठा रहा हूं”।
“इससे अधिक जनों ने यीशु के बारे में सुना है”
कैसर के राजभवन की सारी पलटन... मैं मसीह के लिए कैद में हूं।
इसका कतृवाच्य अनुवाद होगा, “राजभवन के रक्षक जानते हें कि मैं मसीह के प्रचार के कारण कारागार में हूं”
रोमी सम्राट की सुरक्षा हेतु सैनिकों का झुण्ड।
“रोम में और भी लोग हैं जो जानते हैं कि मैं कारागार में क्यों हूं?
“मेरे बन्दी बनाए जाने के कारण भाइयों में से अनेक विश्वासी परमेश्वर का वचन अधिक आत्मविश्वास, साहस और निर्भीकता से सुन रहें हैं”
“पूर्ण आत्म विश्वास के साथ”
“कुछ लोग मसीह का शुभ सन्देश सुनाते हैं”
“क्योंकि वे नहीं चाहते कि लोग मेरा प्रचार सुनें और वे परेशानी उत्पन्न करना चाहते हैं।
“कुछ लोग इसलिए प्रचार करते हैं कि वे दयालु है और सहायता करना चाहते हैं”
“प्रचारक”
इसका कतृवाच्य अनुवाद होगा, “परमेश्वर ने मुझे चुना है”।
“सिखाते हैं कि यीशु का सन्देश सच है”।
“परन्तु अन्य जन मसीह की चर्चा करते हैं”
“इसलिए नहीं कि वे मसीह से प्रेम करते हैं, परन्तु यह सोच कर कि इस प्रकार वे मेरे लिए कारागार में कष्ट उत्पन्न करेंगे”।
पौलुस कहता है कि यीशु के बारे में कोई शिक्षा दे तो कोई विशेष बात नहीं। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मुझे इसकी चिन्ता नहीं”
प्रचारकों का उद्देश्य भलाई का हो या बुराई का हो, उससे अन्तर नहीं पड़ता, मनुष्य मसीह का प्रचार तो करता है।
“मुझे तो प्रसन्नता होती है कि वे मसीह का प्रचार तो करते हैं”
“निश्चय ही” या “वास्तव में”
“मैं खुशी मनाऊंगा” या “मैं प्रफुल्लित होऊंगा”
“परमेश्वर मुझे कारागार से मुक्ति दिलायेगा”
क्योंकि तुम मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हो और मसीह यीशु का आत्मा मेरी सहायता कर रहा है”
इसका अनुवाद, “पवित्र आत्मा” भी किया जा सकता है
यह एक ही बात को दो भिन्न-भिन्न भावों में वक्त करना है कि पौलुस का जीवन मसीह यीशु को सम्मानित करने का है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, मैं निष्क्रिय ही विश्वास करता हूं”
“परन्तु मुझे अब भी वैसा ही साहस है जैसा पहले था”
पौलुस अपने जीवन या अपनी जीवनशैली के लिए “देह” शब्द काम में लेता है। “कि मैं जो कुछ करता हूं उस से मसीह की प्रतिष्ठा बढ़े”
“मेरे जीवन से या मेरी मृत्यु से भी”
यदि मैं जीवित रहूंगा तो मसीह के लिए और यदि मर गया तो और भी अच्छा है।
यह पौलुस की सेवा के अच्छे परिणाम के संदर्भ में है। इसका अनुवाद होगा “यदि इस सांसारिक देह में रहना मनुष्यों को मसीह के विश्वास हेतु प्रोत्साहित करने का अवसर है।
“मैं दुविधा में हूं कि मरूं या जीवित रहूं”
“कूच करके” अर्थात “मर कर”। “मैं मर जाना अधिक चाहता हूं क्योंकि मैं अपने मसीह के पास रहूंगा”
“परन्तु जीवित रहना तुम्हारे लाभ के लिए है”
“इसलिए मुझे पूरा विश्वास है”।
“मैं जानता हूं कि मैं मरूंगा नहीं” या “मैं जानता हूं कि मैं अभी जीवित रहूंगा”।
“मैं तुम्हारी सेवा करता रहूंगा”
“कि जब मैं तुम्हारे मध्य फिर उपस्थित हो जाऊं तो तुम इस बात पर गर्व करो कि मैंने मसीह यीशु के लिए कैसी सेवा की।
“अपना जीवन आचरण योग्य बनाओ”
इन दोनों उक्तियों द्वारा एक ही बात व्यक्त की गई है कि उनका आपस में सहमत होना और संगठित रहना कैसा महत्त्वपूर्ण है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “एकता में बने रहो” या “ऐसा जीवन रखो कि तुम सब एक हो”
“शुभ सन्देश की शिक्षा में सहकारी हो कि मनुष्य मसीह में विश्वास करे।
यह फिलिप्पी के विश्वासियों को दी गई आज्ञा है।
जो तुम्हारा विरोध करते हैं”
“तुम्हारा साहस उन पर प्रकट करेगा कि परमेश्वर उन्हें नाश कर देगा परन्तु तुम्हारा उद्धार करेगा।
इसका अनुवाद कतृवाच्य में भी किया जा सकता है “क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें मसीह में विश्वास करने का मान प्रदान ही नहीं किया, उसके लिए कष्ट उठाने को भी दिया है”।
“तुम भी वैसे ही कष्ट उठाते हो जैसे तुमने मुझे उठाते देखा है और तुम सुनते भी हो कि मैं इस समय भी कष्ट उठा रहा हूं”।
पौलुस यह पत्र फिलिप्पी में मसीह यीशु के लिए पृथक किए गए सब मनुष्यों को, पर्यवेक्षकों तथा सेवकों को लिखता है।
पौलुस पहले दिन से अब तक फिलिप्पी के विश्वासियों की संगति के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देता है।
पौलुस को पूर्ण विश्वास था कि जिसने उनमें अच्छा काम आरंभ किया वही उसे मसीह यीशु के दिन तक पूरा करेगा।
पौलुस की कैद में और सुसमाचार के लिए उत्तर और प्रमाण देने में वे सब उसके साथ अनुग्रह में सहभागी थे।
पौलुस प्रार्थना करता है कि फिलिप्पी की कलीसिया में परस्पर प्रेम बढ़ता जाए।
पौलुस की मनोकामना थी कि फिलिप्पी के विश्वासी धार्मिकता के फलों से परिपूर्ण हो जाएं।
मसीह के निमित्त पौलुस का बन्दी बनाया जाना सर्वविदित हो गया था और अधिकांश भाई अब और अधिक साहस से प्रचार कर रहे थे।
कुछ लोग डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार कर रहे थे, उनका उद्देश्य था कि कैद में पौलुस के लिए क्लेश उत्पन्न करें।
पौलुस इससे भी आनन्दित था कि मसीह का प्रचार तो किया जा रहा था।
पौलुस की मनोकामना तो यही थी कि वह जीए या मरे मसीह की महिमा होना चाहिए।
पौलुस ने कहा, "मेरे लिए जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।"
पौलुस कूच करके मसीह के पास जाने और उन विश्वासियों के लिए देह में रहने की आवश्यक्ता के बीच में लटका हुआ था।
पौलुस को विश्वास था कि वह जीवित रहेगा और उन सब के साथ रहेगा कि वे विश्वास में बढ़े और आनन्दित रहें।
पौलुस सुनना चाहता था कि फिलिप्पी के विश्वासी एक ही आत्मा में स्थिर हैं और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिए परिश्रम करते रहते हैं।
फिलिप्पी के विश्वासी किसी बात में विरोधियों से भय नहीं रखते थे यह उन के उद्धार का चिन्ह था।
मसीह के कारण उन पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्वास करें पर उसके लिए दुःख भी उठाएं।
1 अतः यदि मसीह में कुछ प्रोत्साहन और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करुणा और दया हो, 2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो* और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
3 स्वार्थ या मिथ्यागर्व के लिये कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। 4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो;
6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी
परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में
रखने की वस्तु न समझा।
7 वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया*,
और दास का स्वरूप धारण किया,
और मनुष्य की समानता में हो गया।
8 और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर
अपने आप को दीन किया, और यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ,
क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया,
और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है,
10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है;
वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें*,
11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये
हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
12 इसलिए हे मेरे प्रियों, जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साथ रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और काँपते हुए अपने-अपने उद्धार का कार्य पूरा करते जाओ। 13 क्योंकि परमेश्वर ही है, जिसने अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है।
14 सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो; 15 ताकि तुम निर्दोष और निष्कपट होकर टेढ़े और विकृत लोगों के बीच परमेश्वर के निष्कलंक सन्तान बने रहो, जिनके बीच में तुम जीवन का वचन* लिए हुए जगत में जलते दीपकों के समान दिखाई देते हो, 16 कि मसीह के दिन मुझे घमण्ड करने का कारण हो कि न मेरा दौड़ना और न मेरा परिश्रम करना व्यर्थ हुआ।
17 यदि मुझे तुम्हारे विश्वास के बलिदान और सेवा के साथ अपना लहू भी बहाना पड़े तो भी मैं आनन्दित हूँ, और तुम सब के साथ आनन्द करता हूँ। 18 वैसे ही तुम भी आनन्दित हो, और मेरे साथ आनन्द करो।
19 मुझे प्रभु यीशु में आशा है कि मैं तीमुथियुस को तुम्हारे पास तुरन्त भेजूँगा, ताकि तुम्हारी दशा सुनकर मुझे शान्ति मिले। 20 क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वभाव का और कोई नहीं, जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्ता करे। 21 क्योंकि सब अपने स्वार्थ की खोज में रहते हैं, न कि यीशु मसीह की।
22 पर उसको तो तुम ने परखा और जान भी लिया है कि जैसा पुत्र पिता के साथ करता है, वैसा ही उसने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साथ परिश्रम किया। 23 इसलिए मुझे आशा है कि ज्यों ही मुझे जान पड़ेगा कि मेरी क्या दशा होगी, त्यों ही मैं उसे तुरन्त भेज दूँगा। 24 और मुझे प्रभु में भरोसा है कि मैं आप भी शीघ्र आऊँगा।
25 पर मैंने इपफ्रुदीतुस को जो मेरा भाई, और सहकर्मी और संगी योद्धा और तुम्हारा दूत, और आवश्यक बातों में मेरी सेवा टहल करनेवाला है, तुम्हारे पास भेजना अवश्य समझा। 26 क्योंकि उसका मन तुम सब में लगा हुआ था, इस कारण वह व्याकुल रहता था क्योंकि तुम ने उसकी बीमारी का हाल सुना था। 27 और निश्चय वह बीमार तो हो गया था, यहाँ तक कि मरने पर था, परन्तु परमेश्वर ने उस पर दया की; और केवल उस पर ही नहीं, पर मुझ पर भी कि मुझे शोक पर शोक न हो।
28 इसलिए मैंने उसे भेजने का और भी यत्न किया कि तुम उससे फिर भेंट करके आनन्दित हो जाओ और मेरा भी शोक घट जाए। 29 इसलिए तुम प्रभु में उससे बहुत आनन्द के साथ भेंट करना, और ऐसों का आदर किया करना, 30 क्योंकि वह मसीह के काम के लिये अपने प्राणों पर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया था, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई उसे पूरा करे।
पौलुस “यदि” के उपयोग द्वारा यह सिद्ध करना चाहता है कि ऐसा होता है। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “क्योंकि”
“आत्मा के साथ चलना”
“ऐसा काम कभी न करो जिससे केवल तुम ही प्रसन्न हो या तुम अन्यों से अधिक महत्त्वपूर्ण प्रकट हो”।
दीनता अर्थात हमारा स्वभाव और मनुष्यों के बारे में हमारी मानसिकता। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “विनम्रता पूर्वक ध्यान दो”।
अर्थात “अपनी ही चिन्ता नहीं” या “अपनी ही स्वार्थ सिद्धि नहीं” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, अपनी ही आवश्यकताओं पर ध्यान न दो”
“यहां” स्वभाव से अभिप्राय है, व्यवहार या सोचने विचारने की शक्ति। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यीशु का सा स्वभाव” या “जिस प्रकार यीशु काम करता था उस पर ध्यान दो”।
पौलुस यीशु के स्वभाव का वर्णन करता है
“परमेश्वर ने यीशु को बहुत ऊंचा उठाया”
“नाम” अर्थात पद या प्रतिष्ठा। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “किसी भी पद से बड़ा पद” या “सर्वोच्च सम्मान”
“घुटना” अर्थात संपूर्ण मनुष्य। इसका अनुवाद है, “प्रत्येक मनुष्य” या “प्रत्येक प्राणी”
अर्थात वह स्थान जहां मनुष्य मरने के बाद जाते है जिसे “अधोलोक” कहा गया है। यही पर दुष्टात्माओं का वास है जिसे “अथाहकुण्ड” कहा गया है।
यहां जीभ का अर्थ भी संपूर्ण मनुष्य है, इसका अनुवाद, “प्रत्येक मनुष्य” या “प्रत्येक प्राणी” किया जा सकता है।
मेरे प्रिय विश्वासी भाइयों-बहनों
“जब मैं तुम्हारे साथ हूं”
“जब मैं तुम्हारे मध्य उपस्थित नहीं हूं”
“परमेश्वर की आज्ञाएं मानते रहो”
इन दोनों शब्दों का अर्थ मूल में एक ही है और परमेश्वर के समक्ष श्रद्धा पर बल दिया गया है, “गहन श्रद्धा” या “पूर्ण भय के साथ”
परमेश्वर हमें प्रेरित करता है और काम करने योग्य भी बनाता है।
“बिना कोसे”
इस प्रकार काम करो कि मनुष्य यह न कहे कि तुम ने गलत काम किया।
अर्थात विश्वासी नैतिकता में ऐसा सिद्ध हो जैसा पुराने नियम में परमेश्वर को बलि चढ़़ाए जाने वाला एक सर्वांग सिद्ध पशु। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर की सर्वथा भोली सन्तान”।
यह विश्वासियों की तुलना है कि परमेश्वर न मानने वाले मनुष्यों के मध्य परमेश्वर को सम्मानित करनेवाला जीवन जीना जो अन्धकार में प्रकाश स्वरूप हो। “ऐसा जीवन जीओ जो परमेश्वर की महिमा प्रकट करता है”।
परमेश्वर को न मानने वालों की मान्यताएं तथा आचरण।
दोनों शब्दों द्वारा वर्तमान पीढ़ी की दुष्टता का वर्णन किया गया है। “परमेश्वर को न मानने वाले दुष्टों के मध्य
“आनन्द” या “हर्षित होने का”
जब मसीह पुनः आएगा और पृथ्वी पर राज करेगा “जब मसीह लौट कर आयेगा”
यहां “दौड़ना.... परिश्रम करना” एक ही भाव को व्यक्त करने के दो रूप है। जिनसे प्रकट होता है कि मनुष्यों को मसीह के विश्वास में लाने के लिए पौलुस ने कैसे परिश्रम किया था। इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “मैंने व्यर्थ परिश्रम नहीं किया” इस नकारात्मक वाक्य और सकारात्मक वाक्य में भी बदला जा सकता है, “मेरा परिश्रम उद्देश्य के साथ था।"
पौलुस अपनी मृत्यु की तुलना पुराने नियम के बलिदान के साथ कर रहा है जिस में आराधक बलि पशु के ऊपर या पास में दाखमधु या जैतून का तेल डालता था। पौलुस के कहने का अर्थ है कि वह फिलिप्पी के विश्वासियों के लिए सहर्ष जान दे देगा यदि इससे वे परमेश्वर को अधिक ग्रहणयोग्य हो जाएं। यहां “लहू बहाना पड़े कर्तृवाच्य में है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “यदि रोमी लोग मुझे मृत्युदण्ड देने का निर्णय भी लें तो मैं आनन्द मनाऊंगा, यदि मेरी मृत्यु तुम्हारे विश्वास और आज्ञा पालन को परमेश्वर के समक्ष अधिक ग्रहणयोग्य बना दे”।
“इसी प्रकार तुम भी”
“मेरे साथ आनन्द करो” का उपयोग बल देने के लिए किया गया है”। मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ बहुत आनन्द मनाओ”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“यदि प्रभु की इच्छा हो तो मैं आशा करता हूं”।
अर्थात वे विश्वासी जिन पर पौलुस को भरोसा नहीं कि उन्हें फिलिप्पी की कलीसिया में भेजे पौलुस अपनी असहमति भी दर्शा रहा है कि आने वालों को सेवा हेतु वह विश्वासयोग्य नहीं समझता था।
तीमुथियुस कैसे योग्य सिद्ध हुआ, स्पष्ट किया जा सकता है, “तीमुथियुस ने स्पष्ट प्रकट किया है कि वह मसीह की बातों में रूचि रखता है”।
पौलुस उसके साथ तीमुथियुस की सेवा की तुलना एक पिता के लिए युवा पुत्र की सेवा से करता है। पौलुस दर्शा रहा है कि मसीह की सेवा में उन दोनों का संबन्ध पिता-पुत्र का सा है।
“मनुष्यों में शुभ सन्देश सुनाने में”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“मुझे पूरा विश्वास है कि प्रभु की इच्छा हुई तो मैं शीघ्र ही आऊंगा”।
इस व्यक्ति को फिलिप्पी की कलीसिया ने पौलुस के पास भेजा था कि वह कारागार में पौलुस की सेवा करे।
यहां युद्ध करने वाले के साथ एक आत्मिक योद्धा की तुलना की गई है। पौलुस इस बात को उजागर कर रहा है कि विश्वासी को शुभ सन्देश में संघर्ष करना पड़ता है। “मेरा विश्वासी भाई जो मेरे साथ काम करता है वरन संघर्ष करता है”
“और जो तुम्हारा सन्देश ले कर मेरे पास आया और मेरी आवश्यकताओं में मेरी सहायता की”। वह व्याकुल रहता था।
“वह बहुत चिन्तित रहता था और तुम्हारे पास आना चाहता था”।
इस उक्ति का अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है। “मेरे कारागार के दुःख पर और अधिक दुःख।"
“उस से भेंट कर के आनन्दित होना”
इसके संभावित अर्थ हैं 1) “मसीह में एक विश्वासी भाई के साथ सहर्ष “। या 2) उस महान आनन्द के साथ क्योंकि प्रभु यीशु उस से प्रेम करता है”।
“मसीह की सेवा के निमित्त” (यू.डी.बी.)
“मुझे जो आवश्यकता है उसे पूरी करे”
फिलिप्पी के विश्वासियों को एक ही मन, एक ही प्रेम, एक ही चित्त और एक ही मनसा रखनी थी।
फिलिप्पी के विश्वासी एक दूसरे को अपने से अच्छा समझें।
पौलुस कहता है कि हम में मसीह का मन होना है।
मसीह यीशु परमेश्वर का स्वरूप था।
मसीह यीशु ने दास का स्वरूप धारण किया और मनुष्य की समानता में हो गया।
मसीह यीशु दीन होकर यहां तक आज्ञाकारी रहा कि क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान किया और सब नामों में श्रेष्ठ नाम दिया।
हर एक जीभ अंगीकार करेगी कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
फिलिप्पी के विश्वासियों को डरते और कांपते हुए अपने उद्धार का कार्य पूरा करना था।
परमेश्वर ही है जिसने अपनी सुइच्छा निमित्त उनके मन में इच्छा और काम दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला था।
सब काम बिना कुडकुडाए और बिना विवाद किये करने चाहिएं।
पौलुस फिलिप्पी के विश्वासियों के बलिदान और सेवा के साथ अपना लहू बहाने के लिए तैयार था।
पौलुस आनन्दित था।
तीमुथियुस अद्वैत था क्योंकि वह अपने स्वार्थ की अपेक्षा फिलिप्पी के विश्वासियों की चिन्ता करता था।
हां, पौलुस शीघ्र ही फिलिप्पी की कलीसिया से भेंट करना चाहता था।
इपफ्रुदितुस मसीही सेवा में पौलुस की सेवा करते हुए और उसकी आवश्यक्ता पूर्ति करते हुए मरते बचा था।
1 इसलिए हे मेरे भाइयों, प्रभु में आनन्दित रहो*। वे ही बातें तुम को बार-बार लिखने में मुझे तो कोई कष्ट नहीं होता, और इसमें तुम्हारी कुशलता है। 2 कुत्तों से चौकस रहो, उन बुरे काम करनेवालों से चौकस रहो, उन काट-कूट करनेवालों से चौकस रहो। (2 कुरि. 11:13) 3 क्योंकि यथार्थ खतनावाले तो हम ही हैं जो परमेश्वर के आत्मा की अगुआई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं और शरीर पर भरोसा नहीं रखते।
4 पर मैं तो शरीर पर भी भरोसा रख सकता हूँ। यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उससे भी बढ़कर रख सकता हूँ। 5 आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूँ; इब्रानियों का इब्रानी हूँ; व्यवस्था के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूँ।
6 उत्साह के विषय में यदि कहो तो कलीसिया का सतानेवाला; और व्यवस्था की धार्मिकता के विषय में यदि कहो तो निर्दोष था। 7 परन्तु जो-जो बातें मेरे लाभ की थीं*, उन्हीं को मैंने मसीह के कारण हानि समझ लिया है*।
8 वरन् मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूँ। जिसके कारण मैंने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूँ, ताकि मैं मसीह को प्राप्त करुँ। 9 और उसमें पाया जाऊँ; न कि अपनी उस धार्मिकता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन् उस धार्मिकता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है, 10 ताकि मैं उसको और उसके पुनरुत्थान की सामर्थ्य को, और उसके साथ दुःखों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करुँ। 11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुँचूँ।
12 यह मतलब नहीं कि मैं पा चुका हूँ, या सिद्ध हो चुका हूँ; पर उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ा चला जाता हूँ, जिसके लिये मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था। 13 हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूँ; परन्तु केवल यह एक काम करता हूँ, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, 14 निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ, ताकि वह इनाम पाऊँ, जिसके लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।
15 अतः हम में से जितने सिद्ध हैं, यही विचार रखें, और यदि किसी बात में तुम्हारा और ही विचार हो तो परमेश्वर उसे भी तुम पर प्रगट कर देगा। 16 इसलिए जहाँ तक हम पहुँचे हैं, उसी के अनुसार चलें।
17 हे भाइयों, तुम सब मिलकर मेरी जैसी चाल चलो, और उन्हें पहचानों, जो इस रीति पर चलते हैं जिसका उदाहरण तुम हम में पाते हो। 18 क्योंकि अनेक लोग ऐसी चाल चलते हैं, जिनकी चर्चा मैंने तुम से बार-बार की है और अब भी रो-रोकर कहता हूँ, कि वे अपनी चाल-चलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं, 19 उनका अन्त विनाश है, उनका ईश्वर पेट है, वे अपनी लज्जा की बातों पर घमण्ड करते हैं, और पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं*।
20 पर हमारा स्वदेश स्वर्ग में है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की प्रतीक्षा करते हैं। 21 वह अपनी शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिसके द्वारा वह सब वस्तुओं को अपने वश में कर सकता है, हमारी दीन-हीन देह का रूप बदलकर, अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा।
“अब आगे यह है मेरे भाइयों” या “अन्य बातें ये है मेरे भाइयों”
“प्रभु ने जो कुछ किया उसमें आनन्द करो”
“मैं सहर्ष इन्हीं शिक्षाओं को पुनः लिख रहा हूं”।
“इसमें” अर्थात पौलुस की शिक्षाओं में। “वे कैसे उनकी कुशलता के लिए हैं अधिक स्पष्ट व्यक्त की जा सकती हैं” क्योंकि ये शिक्षाएं तुम्हें उन लोगों से सुरक्षित रखेंगी जो अनुचित शिक्षाएं देते है”।
“सावधान” या “सतर्क रहो”
यह झूठे शिक्षकों का वर्णन है।
यहूदी गैर यहूदियों को कुत्ता कहते थे। वे अशुद्ध माने जाते थे। पौलुस झूठे शिक्षकों की निन्दा के लिए कुत्ता शब्द काम में लेता है। इसकी अपेक्षा आप अन्य किसी पशु का नाम ले सकते है।
इसका अर्थ है तीव्रता से काटना। पौलुस खतना के लिए अतिशयोक्ति काम में लेते हुए झूठे शिक्षकों की निन्दा कर रहा है। उनकी शिक्षा थी कि परमेश्वर केवल खतना कर पाने वालों ही का उद्धार करेगा।
“हम” से पौलुस का अभिप्राय है, वह तथा सब मसीही विश्वासी फिलिप्पी के विश्वासी भी।
पौलुस इस शब्द द्वारा उन लोगों का संदर्भ दे रहा है जो शारीरिक नहीं आत्मिक खतना करवाए हुए हैं। अर्थात उन्होंने विश्वास करके पवित्र आत्मा पाया है। इसका अनुवाद किया जा सकता है, “वास्तव में परमेश्वर के लोग”
“विश्वास नहीं करते कि शरीर को काटना परमेश्वर को प्रसन्न करना होगा”
“और भी अधिक” या “तथापि”
यह एक काल्पनिक अवस्था है जिसे पौलुस संभव नहीं मानता है। पौलुस के कहने का अर्थ है कि यदि परमेश्वर मनुष्य को कर्मों से उसका उद्धार करेगा तो उसका उद्धार तो निश्चित था। “यदि कोई परमेश्वर को प्रसन्न करने के पर्याप्त कर्म करता तो वह मैं ही हूं। (यू.डी.बी.)
यहां पौलुस स्वयं पर बल दे रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “निश्चिय ही मैं”
इसका कर्तृवाच्य अनुवाद किया जा सकता है, “याजक ने मेरा खतना किया”
“मेरे जन्म के सात दिन बाद” (यू.डी.बी.)
“इब्रानी माता-पिता का इब्रानी पुत्र”
“फरीसी होने के कारण मै कट्टर व्यवस्था पालक था”
“मै मसीही विश्वासियो को हानि के निमित्त दृढ़ संकल्प था”
“पूर्णतः व्यवस्था का अनुपालन करने वाला”
“पौलुस अपने सब धार्मिक कृत्यों को मसीह के समक्ष हानि मानता है।
“कि मैं” या “यथार्थ में”
फरीसी से मसीही विश्वासी होने पर पौलुस में जो परिवर्तन आया यह उस पर बल देता है। इसकी व्याख्या की जा सकती है, “अब मसीह में विश्वास करके...”
पौलुस कहता है कि मसीह की अपेक्षा किसी भी बात में विश्वास करना व्यर्थ है। इसका अनुवाद होगा, “मैं सब बातों को अर्थहीन समझता हूं”
“क्योंकि मेरे प्रभु यीशु मसीह को जानना कहीं अधिक मूल्यवान है”
इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “उसके कारण मैंने सब कुछ त्याग दिया है”
मनुष्य जिन बातों में विश्वास करता है पौलुस उन सब को गन्दगी समझता है। यह उनकी निस्सारता पर बल है, “मैं उन्हें कचरा समझता हूं” या “मैं उन्हें पूर्णतः अर्थहीन समझता हूं”
“कि मुझे केवल मसीह मिले”
पाया जाऊं” अर्थात घनिष्ठ संबन्ध में या उसमें एक हो जाऊं। इसका कतृवाच्य अनुवाद होगा, “और अब मेरा संबन्ध मसीह से है” या “अब मैं मसीह से जुड़ गया हूं”
“मैं विधान के पालन द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करना नहीं चाहता हूं”।
“इसकी अपेक्षा मेरी धार्मिकता” या “इसके विपरीत मेरी धार्मिकता”
“परमेश्वर ने मुझे स्वीकार कर लिया क्योंकि मैंने मसीह में विश्वास किया”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“मैं जीवित मसीह को चाहता हूं कि उसे जानूं”
“जीवनदायक उसका सामर्थ्य”
“और उसके कष्टों में सहभागी होऊं”
यीशु की मृत्यु का परिणाम हुआ अनन्त जीवन। अब पौलुस चाहता है कि उसकी मृत्यु यीशु जैसी हो। कि उसे भी अनन्त जीवन प्राप्त हो। इसका कतृवाच्य अनुवाद होगा, “और मसीह ने मुझे उसकी मृत्यु की समानता में बदल दिया है”
“किसी भी तरह” अर्थात पौलुस नहीं जानता कि इस जीवन में उसका क्या होगा परन्तु जो भी हो उससे उसे अनन्त जीवन प्राप्त हो। “अतः इस जीवन में मेरे साथ कुछ भी हो, में मर कर फिर जीवित होऊंगा”
मसीह की पहचान उसके पुनरूत्थान का सामर्थ्य, मसीह के कष्टों में सहभागिता और उसकी मृत्यु एवं पुनरूत्थान में एकता।
“मैं अभी तक पूर्ण” या “परिपक्व नहीं हूं”
“मैं प्रयास करता जाता हूं”। (यू.डी.बी.)
“कि इन बातों को प्राप्त करूं”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “यही कारण है कि यीशु ने मुझे अपना कहा है”
अर्थात फिलिप्पी के विश्वासी। “विश्वासी भाइयों एवं बहनों”
“यह सब मेरा हो गया है”।
“जिस प्रकार कि एक धावक पार की हुई दूरी को नहीं आगे की दूरी पर ध्यान केन्द्रित करता है। उसी प्रकार पौलुस भी अपनी धार्मिकता के कामों पर ध्यान देते हुए उस दौड़ पर ध्यान केन्द्रित करता है जो मसीह ने उसके समक्ष रखी है”। मैं पिछली बातों की चिन्ता किए बिना आगे बढ़ रहा हूं”।
पौलुस यहाँ भी एक धावक के साथ तुलना कर रहा है कि वह लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है कि जीते उसी प्रकार पौलुस भी मसीही की सेवा और आज्ञापालन की ओर बढ़ता जाता है, “मैं मसीह में विश्वास करता हूं कि उसका होऊं और मरने के बाद परमेश्वर के पास चला जाऊं।
“मैं सब विश्वासियों को प्रोत्साहित करता हूं जो विश्वासियों में दृढ़ हैं ऐसा भी विचार रखें”। पौलुस सब विश्वासियों से यही लालसा चाहता है जिसकी उसने सूची दी है।
“तुम” अर्थात जो पौलुस से सहमत नहीं
“परमेश्वर तुम्हें स्पष्ट दर्शन देगा”
पौलुस अपने पत्र के इस भाग का अन्त कर रहा है और मुख्य बात पर बल दे रहा है। इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, “चाहे कुछ भी हो”
“हमने जो सत्य सुना है उसी का अनुपालन करें”
पौलुस फिलिप्पी के विश्वासियो को अपना मसीही भाई मानता है।
“जैसा मेरा स्वभाव है वैसे अपना स्वभाव भी रखो” या “मेरे जैसा जीवन जीओ”
“सावधानी से अवलोकन करो”
“जो मेरे जैसा जीवन जी रहे हैं” या “जो मेरे जैसे काम करते है”
“मैंने अनेक बार तुमसे कहा है”।
“और अब तक बड़े दुःख से कहता हूं”
यहां “मसीह के क्रूस” का अर्थ है मसीह के कष्ट और उसकी मृत्यु। बैरी वे है जो कहते हैं कि वे मसीह यीशु में विश्वास करते हैं परन्तु उसके जैसे कष्ट एवं मृत्यु भोगना नहीं चाहते हैं”। अनेकों का दावा है कि वे यीशु में विश्वास करते हैं परन्तु उनके व्यवहार से प्रकट होता है कि वे वास्तव में यीशु के विरोधी हैं जो कष्ट उठाकर क्रूस पर मरने के लिए भी तैयार था”।
“एक दिन परमेश्वर उनको नष्ट कर देगा”
यहां “पेट” का अर्थ है भौतिक सुख विलास की लालसा। इसका अनुवाद हो सकता है, “वे परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने से अधिक खाना-पीना और अन्य सांसारिक सुख की लालसा करते हैं।
“वे उन बातों पर गर्व करते हैं जो लज्जा की हैं”
यहां “पृथ्वी की बातों” का अर्थ है सांसारिक सुख की बातें जिनसे परमेश्वर का सामना नहीं होता है”, वे केवल अपने सुख को खोजते हैं परमेश्वर को प्रसन्न करने की खोज नहीं करते “हम”
“हम” में पौलुस अपने पाठकों को गिनता है
“हमारा परिवार स्वर्ग में है”
“और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु के वहां से लौट कर पृथ्वी पर आने की प्रतीक्षा में हैं”।
“वह.... हमारी दुर्बल पार्थिव देह को बदल देगा”
“जैसी उसकी महिमा की देह है वैसी बना देगा”
“इसका अनुवाद एक नए कतृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “वह हमारी देह का रूपान्तर उसी शक्ति से करेगा जिसके द्वारा वह सब वस्तुओं को अपने वश में रखता है”।
पौलुस ने उन्हे चेतावनी दी कि वे कुत्तो से चौकस रहें, बुरे काम करनेवालों से चौकस रहें, काट फूट करने वालों से चौकस रहें।
पौलुस खतना वाले उन्हे कहता है जो परमेश्वर के आत्मा की अगुआई में उपासना करते है और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं, और शरीर पर भरोसा नहीं रखते।
पौलुस व्यवस्था की धार्मिकता में निर्दोष होने के अपने यहूदी आचरण का वर्णन करता है।
अब पौलुस शरीर पर अपने भरोसे को मसीह के कारण व्यर्थ गिनता है।
पौलुस मसीह की पहचान की उत्तमता के आगे पिछली सब बातों को कूड़ा समझता है।
पौलुस को अब मसीह में विश्वास के द्वारा परमेश्वर से धार्मिकता प्राप्त हुई हैं।
पौलुस मसीह के दु:खों में सहभागी है।
पौलुस दौड़ा चला जाता है।
पौलुस निशाने की ओर दौड़ा चला जाता है कि उस इनाम को पाए जिसके लिए परमेश्वर ने उसे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।
पौलुस फिलिप्पी के विश्वासियों से कहता था कि वे उसके साथ होकर उसकी सी चाल चलें।
जिनका ईश्वर पेट है और जो पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाते हैं उनका अन्त विनाश है।
पौलुस कहता है कि विश्वासियों की नागरिकता स्वर्ग की है।
मसीह विश्वासियों की दीनहीन देह का रूप बदलकर अपनी महिमा की देह के अनुकूल कर देगा।
1 इसलिए हे मेरे प्रिय भाइयों, जिनमें मेरा जी लगा रहता है, जो मेरे आनन्द और मुकुट हो, हे प्रिय भाइयों, प्रभु में इसी प्रकार स्थिर रहो।
2 मैं यूओदिया को भी समझाता हूँ, और सुन्तुखे को भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें। 3 हे सच्चे सहकर्मी, मैं तुझ से भी विनती करता हूँ, कि तू उन स्त्रियों की सहायता कर, क्योंकि उन्होंने मेरे साथ सुसमाचार फैलाने में, क्लेमेंस और मेरे अन्य सहकर्मियों समेत परिश्रम किया, जिनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हुए हैं।
4 प्रभु में सदा आनन्दित रहो*; मैं फिर कहता हूँ, आनन्दित रहो। 5 तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो। प्रभु निकट है। 6 किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। 7 तब परमेश्वर की शान्ति, जो सारी समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी। (यशा. 26:3)
8 इसलिए, हे भाइयों, जो-जो बातें सत्य हैं, और जो-जो बातें आदरणीय हैं, और जो-जो बातें उचित हैं, और जो-जो बातें पवित्र हैं, और जो-जो बातें सुहावनी हैं, और जो-जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो-जो सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो। 9 जो बातें तुम ने मुझसे सीखी, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।
10 मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूँ कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इसका विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। 11 यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूँ; क्योंकि मैंने यह सीखा है कि जिस दशा में हूँ, उसी में सन्तोष करुँ। 12 मैं दीन होना भी जानता हूँ और बढ़ना भी जानता हूँ; हर एक बात और सब दशाओं में मैंने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। 13 जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ*।
14 तो भी तुम ने भला किया कि मेरे क्लेश में मेरे सहभागी हुए। 15 हे फिलिप्पियों, तुम आप भी जानते हो कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में जब मैंने मकिदुनिया से कूच किया तब तुम्हें छोड़ और किसी कलीसिया ने लेने-देने के विषय में मेरी सहायता नहीं की। 16 इसी प्रकार जब मैं थिस्सलुनीके में था; तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिये एक बार क्या वरन् दो बार कुछ भेजा था। 17 यह नहीं कि मैं दान चाहता हूँ परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूँ, जो तुम्हारे लाभ के लिये बढ़ता जाए।
18 मेरे पास सब कुछ है, वरन् बहुतायत से भी है; जो वस्तुएँ तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी थीं उन्हें पा कर मैं तृप्त हो गया हूँ, वह तो सुखदायक सुगन्ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है। (इब्रा. 13:16) 19 और मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा। 20 हमारे परमेश्वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
21 हर एक पवित्र जन को जो यीशु मसीह में हैं नमस्कार कहो। जो भाई मेरे साथ हैं तुम्हें नमस्कार कहते हैं। 22 सब पवित्र लोग, विशेष करके जो कैसर के घराने के हैं तुम को नमस्कार कहते हैं।
23 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा के साथ रहे।
“मेरे प्रिय भाइयों और बहनों, मैं तुमसे प्रेम करता हूं और तुमसे भेंट करने की लालसा करता हूं”
पौलुस “आनन्द” शब्द से प्रकट करता है कि फिलिप्पी की कलीसिया उसको प्रसन्नता का कारण है। “मुकुट” पत्तियों का बना होता था और जब कोई खिलाड़ी जीत जाता था तो उसके सम्मान में उसके सिर पर पहनाया जाता था यहां पौलुस के कहने का अर्थ है कि उन विश्वासियों ने उसे परमेश्वर के समक्ष सम्मान प्रदान किया है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तुम मसीह में विश्वास करके मुझे आनन्द प्रदान करते हो और मेरी सेवा का प्रतिफल एवं सम्मान हो”।
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “अतः जैसा मैंने सिखाया है उसी प्रकार प्रभु के लिए जीवन जीओ, मेरे मित्रों।
“ये दो स्त्रियां विश्वासी थी और कलीसिया में सेवारत थी। इसका अनुवाद होगा, “मैं यूओदिया और सुन्तुखे दोनों से विनती करता हूं”
“एक मन रहें” का अर्थ है, एक ही स्वभाव और एक ही विचार से रहो। इसका अनुवाद होगा, “एक दूसरे से सहमत रहो क्योंकि तुम सब एक ही प्रभु में विश्वास करते हो”।
यहां “तुम से” एक कथन है। पौलुस उस व्यक्ति का नाम नहीं लेता है। वह उसे केवल “सच्चे सहकर्मी” कहता है। वह सुसमाचार प्रसार में किसी निष्ठावान को संबोधित कर रहा है। “हां मेरे सच्चे सहकर्मी मैं तुम से भी कहता हूं”।
वह कलीसिया में एक विश्वासी एवं सेवक था।
“उनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे जा चुके हैं”
पौलुस सब विश्वासियों से कह रहा है वह आनन्द की आज्ञा को दोहरता है क्योंकि यह एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बात है। “प्रभु के काम के कारण आनन्दित रहो। मैं फिर से कहता हूं, आनन्दित रहो”।
“सब पर प्रगट होना है कि तुम कैसे दयालु हो”
इसको संभावित अर्थ हैं, 1) प्रभु यीशु आत्मा में विश्वासियों के निकट है। या 2) प्रभु का आना इस पृथ्वी पर निकट है।
“अपनी हर एक आवश्यकता प्रार्थना और धन्यवाद के साथ परमेश्वर के समक्ष रखो”
“जो हमारी मानवीय समझ के बाहर है”
यहाँ परमेश्वर की शान्ति को एक रक्षक सैनिक से तुल्य माना गया है जो हमारी भावना और विचारों को चिन्ता से सुरक्षित रखती है। इसका पूर्ण अर्थ स्पष्ट व्यक्त किया जा सकता है, “वह एक सैनिक के जैसे इस जीवन की चिन्ताओं ओर परेशानियों से तुम्हारे मन मस्तिष्क को सुरक्षित रखेगी”।
यहाँ पत्र का यह भाग समाप्त होता है। अब पौलुस सारांश में व्यक्त करता है कि विश्वासी परमेश्वर के साथ मेल का जीवन कैसे व्यतीत करें।
“जो बातें सुखदायक हैं”
“मनुष्य जिन बातों को सराहते हैं” या “मनुष्य मान प्रदान करें”
“जो नैतिकता में उचित हैं।”
“जो प्रशंसा के योग्य हैं”
“उन बातों पर चिन्तन करो”
“जो मैंने सिखाई और दिखाई”
“मैं जानता हूं कि तुम पहले मेरे बारे में सोचते थे परन्तु मेरी सहायता भेजने का कोई कारण उत्पन्न न हुआ”
“सन्तुष्ट हो जाऊं” या “प्रसन्न रहूं”।
“जो भी मेरी परिस्थिति हो”
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं” ने सीखा है कि उचित दृष्टिकोण कैसे रखूं”
“जब मेरे पास सब आवश्यकताओं की शर्तें न हो”
“जब मेरे पास आवश्यकता से अधिक हो”
“भूखा रहना और बढ़ना घटना” इनका अर्थ एक ही है उक्तियों से पौलुस का अर्थ है, “सब परिस्थितियों में” वैकल्पिक अनुवाद:“सब परिस्थितियों में सन्तोष करने का मार्ग”
“मैं सब कुछ कर सकता हूं क्योंकि मसीह मुझे शक्ति देता है”
“मेरे पास आवश्यकता की साड़ी वस्तुएं वरन उससे अधिक है”
फिलिप्पी की कलीसिया की भेंट की तुलना पौलुस पुराने नियम के बलिदानों से करता है। पुरोहित उन भेंटों को आग में डालते थे और उनकी सुगन्ध से परमेश्वर प्रसन्न होता था। “मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हारी ये भेंट परमेश्वर को प्रसन्न करती हैं”।
“तुम्हें जो भी आवश्यकता है, उसे परमेश्वर पूरी करेगा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“अपने उस महिमामय भण्डार से जिसमें से वह मसीह यीशु के द्वारा देता है”
यह अन्तिम प्रार्थना और समापन है
“वहां जो भी मसीह यीशु का है उसे नमस्कार कहना”
भाई के सहकर्मी या पौलुस की सेवा करने वाले। वैकल्पिक अनुवाद“साथी विश्वासी”।
कैसर (राजा) के महल के परिचारक व विशेष करके वे विश्वासी जो राज महल में सेवारत हैं”।
पौलुस विश्वासियों के लिए आत्मा शब्द काम में लेता है जिसके द्वारा विश्वासी परमेश्वर से संबन्ध स्थापित कर पाता है। “तुम्हारे साथ”
पौलुस चाहता था कि फिलिप्पी के विश्वासी प्रभु में स्थिर बने रहें।
पौलुस यूओदिया और सुन्तुखे को समझाता था कि वे प्रभु में एक मन रहें।
पौलुस उनसे कहता है कि वे प्रभु में सदा आनन्दित रहें।
पौलुस कहता है कि विश्वासी किसी भी बात की चिन्ता न करें परन्तु निवेदन प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ हर एक बात परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित की जाए।
यदि हम ऐसा करें तो परमेश्वर की शान्ति हमारे हृदय और विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।
पौलुस कहता है कि विश्वासियों को उन बातों पर विचार करना है जो सत्य हैं, आदरणीय हैं और उचित हैं, पवित्र हें, सुहावनी हैं, मन भावनी है, सद्गुण और प्रशंसा की बातें है।
फिलिप्पी के विश्वासियों को पौलुस की चिन्ता फिर से हो गई थी।
पौलुस ने हर बात में घटना बढ़ना सीखा था।
पौलुस ने अपने शक्तिदाता मसीह में हर एक परिस्थिति में सन्तुष्ट होना सीख लिया था।
पौलुस फिलिप्पी के विश्वासियों से ऐसा फल चाहता था जो उनके लाभ के लिए बढ़ता जाए।
पौलुस के लिए किए गए आत्मत्याग से परमेश्वर फिलिप्पी के विश्वासियों से प्रसन्न था।
पौलुस कहता है कि परमेश्वर फिलिप्पी की कलीसिया की हर एक आवश्यक्ता को महिमा सहित यीशु में उपलब्ध धन के अनुसार पूरी करेगा।
कैसर के घराने के लोग उन्हे नमस्कार कहते थे।
1 पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुथियुस की ओर से, 2 मसीह में उन पवित्र और विश्वासी भाइयों के नाम जो कुलुस्से में रहते हैं। हमारे पिता परमेश्वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त होती रहे।
3 हम तुम्हारे लिये नित प्रार्थना करके अपने प्रभु यीशु मसीह के पिता अर्थात् परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं।
4 क्योंकि हमने सुना है, कि मसीह यीशु पर तुम्हारा विश्वास है, और सब पवित्र लोगों से प्रेम रखते हो; 5 उस आशा की हुई वस्तु के कारण जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी हुई है, जिसका वर्णन तुम उस सुसमाचार के सत्य वचन में सुन चुके हो। 6 जो तुम्हारे पास पहुँचा है और जैसा जगत में भी फल लाता*, और बढ़ता जाता है; वैसे ही जिस दिन से तुम ने उसको सुना, और सच्चाई से परमेश्वर का अनुग्रह पहचाना है, तुम में भी ऐसा ही करता है।
7 उसी की शिक्षा तुम ने हमारे प्रिय सहकर्मी इपफ्रास से पाई, जो हमारे लिये मसीह का विश्वासयोग्य सेवक है। 8 उसी ने तुम्हारे प्रेम को जो आत्मा में है हम पर प्रगट किया।
9 इसलिए जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और विनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहचान में परिपूर्ण हो जाओ, 10 ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो*, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्वर की पहचान में बढ़ते जाओ,
11 और उसकी महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ्य से बलवन्त होते जाओ, यहाँ तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको। 12 और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिस ने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ विरासत में सहभागी हों।
13 उसी ने हमें अंधकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया, 14 जिसमें हमें छुटकारा अर्थात् पापों की क्षमा प्राप्त होती है।
15 पुत्र तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप* और सारी सृष्टि में पहलौठा है। 16 क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या प्रधानताएँ, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। 17 और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती हैं। (प्रका. 1:8)
18 वही देह, अर्थात् कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे। 19 क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उसमें सारी परिपूर्णता वास करे। 20 और उसके क्रूस पर बहे हुए लहू के द्वारा मेल-मिलाप करके, सब वस्तुओं को उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग की।
21 तुम जो पहले पराये थे और बुरे कामों के कारण मन से बैरी थे। 22 उसने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया ताकि तुम्हें अपने सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्थित करे। 23 यदि तुम विश्वास की नींव पर दृढ़ बने रहो, और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिसका प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया; और जिसका मैं पौलुस सेवक बना।
24 अब मैं उन दुःखों के कारण आनन्द करता हूँ, जो तुम्हारे लिये उठाता हूँ, और मसीह के क्लेशों की घटी उसकी देह के लिये, अर्थात् कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी किए देता हूँ, 25 जिसका मैं परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना, जो तुम्हारे लिये मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्वर के वचन को पूरा-पूरा प्रचार करूँ। 26 अर्थात् उस भेद को जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है। 27 जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है, और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है।
28 जिसका प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को जता देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्थित करें। 29 और इसी के लिये मैं उसकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ्य के साथ प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूँ।
(यह पत्र पौलुस और तीमुथियुस ने कुलुस्से की कलीसिया को लिखा था।)
“मसीह यीशु का प्रेरित होने के लिए परमेश्वर ने चुना है”।
सब विश्वासी पाठक
निर्दोष और अभिषिक्त या पवित्र जन “पवित्र जन”
आशीर्वाद देना
तुम्हें अर्थात् कुलुस्से के विश्वासी या निष्ठावान भाई
“हम तुम्हारे लिए सदैव प्रार्थना करते हैं वरन् सच्चे दिल से करते हैं”
“हम” में पौलुस के पाठक नहीं हैं
“तुम्हारा मसीही विश्वास”
“तुम्हारा” अर्थात कुलुस्से के विश्वासी
“तुम उन सबसे प्रेम रखते हों” (यू.डी.बी.)
अर्थात शुद्ध या पाप से मुक्त और परमेश्वर के लिए उपयोगी। “पवित्र जन”
“जो तुम्हारे लिए परमेश्वर द्वारा स्वर्ग में आरक्षित वस्तु की निश्चित आशा का परिणाम है”।
“जिस आशा को तुम संजोए हुए हो”
इस रूप में एक फलदायक एवं पल्लवित वृक्ष की तुलना मनुष्यों को बदलने वाले और संसार में विकासमान शुभ सन्देश में की गई है, क्योंकि अधिकाधिक मनुष्य उसमें विश्वास करते जा रहे हैं।
यह एक अतिशयोक्ति है। शुभ सन्देश उस समय के जाने हुए संसार में फैलता जा रहा था। (देखे: )
“परमेश्वर का सच्चा अनुग्रह” या “परमेश्वर की सच्ची कृपा”
“ठीक जैसा इपफ्रास ने तुम्हें सिखाया” या “तुमने इपफ्रास की शिक्षा को पूर्णतः समझ लिया”
अर्थात् उनके जीवन में शुभ सन्देश के परिणाम या फल
कुलुस्से के विश्वासियों ने
इपफ्रास ने कुलुस्से में शुभ सन्देश सुनाया था
“हमारे और हम पर” अर्थात् पौलुस और उसके सहकर्मी न कि कुलुस्से की कलीसिया
“इपफ्रास ने हमें बताया”
“पवित्र आत्मा ने तुम्हें परस्पर प्रेम के योग्य बनाया है”
“क्योंकि पवित्र आत्मा ने तुम्हें परस्पर प्रेम के योग्य बनाया है”
“जिस दिन से इपफ्रास ने हमें तुम्हारे बारे में बताया है”
पौलुस और तीमुथियुस ने सुना है, कुलुस्से के विश्वासियों ने नहीं
“हम परमेश्वर से बार-बार और सच्चे दिल से प्रार्थना करते हैं”
यहां परमेश्वर से विनती करते हैं कि वह अपनी इच्छा पूर्ति को निमित्त तुम्हें ज्ञान से भर दे”
“पवित्र आत्मा प्रदत्त ज्ञान और समझ”
“कि तुम्हारा जीवन प्रभु के अनुमोदन योग्य हो”
यहां फल की तुलना विश्वासी के भले कामों से की गई है। जिस प्रकार वृक्ष विकसित होकर फल लाता है उसी प्रकार विश्वासी परमेश्वर को जानने में विकसित हों तथा भले काम करके फल लाएं
“हम” पौलुस और तीमुथियुस, कुलुस्से को विश्वासी नहीं “विनती करते है।” (कुलुस्से के विश्वासियों से)
“उसके अनुग्रह की शक्ति के अनुसार हर एक क्षमता में सामर्थी हो जाओ”
“विश्वास करना और धीरज धरना कभी न छोड़ों
“जब तुम पिता को सहर्ष धन्यवाद कहते हो”
“पिता ने हमें सहभागिता में स्वीकार किया”
पौलुस कुलुस्से के विश्वासियों को भी गिन रहा है
“मीरास के भागी हों”
“उसकी उपस्थिति की महिमा में”
“नैतिक दोषों से मुक्त” या “विशेष प्रयोजन हेतु चुने गए” अनुवादः पवित्र जन”
“पिता के लिए”
“पिता परमेश्वर ने हमें छुड़ाया”
“भीतर लाया”। “हम अर्थात् पौलुस तथा कुलुस्से के विश्वासी”
“पिता परमेश्वर के प्रिय पुत्र, मसीह यीशु”
“उसके पुत्र ने हमें छुड़ा लिया”
“उसका पुत्र हमारे पाप क्षमा करता है”
यीशु जो पुत्र है उसको देखकर हम जान सकते हें, कि पिता परमेश्वर कैसा है
“पुत्र पहलौठा है”। उससे पहले कुछ नहीं था
“क्योंकि पुत्र के द्वारा”
“क्योंकि पुत्र ने सब कुछ सृजा”
पुत्र ने सब कुछ अपने लिए रचा, सिंहासन, प्रभुताएं, प्रधानताएं तथा अधिकार
राजाओं के राज्य
“वह सबसे पहले था”
“वह सब कुछ संयोजित रखता है (यू.डी.बी.)
“मसीह यीशु, परमेश्वर का पुत्र, सिर है”।
इस रूपक में कलीसिया में मसीह के स्थान की तुलना मनुष्य के सिर से की गई है। जिस प्रकार सिर मानवीय देह का नियंत्रण है उसी प्रकार मसीह कलीसिया का नियंत्रक है
प्रथम प्रधान या संस्थापक। यीशु ने कलीसिया का आरंभ किया।
यीशु पहला है जो मरकर जी उठा और अमर है।
“पिता परमेश्वर मसीह में सर्वस्व को निवेश करके प्रसन्न है”
यूनानी में इस शब्द का अभिप्राय है मार्ग जिससे प्रकट होता है कि परमेश्वर मनुष्यों के लिए शान्ति और मेल-मिलाप क्रूस पर बहे मसीह के लहू के मार्ग से उपलब्ध करवाता है। पद 20 में यह शब्द दो बार आया है।
“तुम कुलुस्से के विश्वासी भी”
इस यूनानी शब्द में चुनाव किए जाने का भाव है। अतः इसका अनुवाद होगा “परमेश्वर से विरक्त थे” या “परमेश्वर को अलग कर दिया था” या “परमेश्वर के साथ बैर रखते थे”
“अपने बुरे विचारों और कामों के कारण परमेश्वर के बैरी थे” (यू.डी.बी.)
जब परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे साथ मेल किया तब उसने मसीह को नहीं तुम्हें क्रूस पर देखा कि जब मसीह मरा तो उसने तुम्हें मरते हुए देखा”।
“दोषरहित”
“निरापराध” किसी पाप का दोषी नहीं
“स्वयं परमेश्वर के समक्ष”
“दृढ़ खड़ा करे” या “अटल खड़ा करे”
“अटल” या “सुरक्षित”
“सुसमाचार में दृढ़ निश्चय”
“मनुष्यों ने आकाश के नीचे संपूर्ण सृष्टि में शुभ सन्देश सुना दिया है। यह वही शुभ सन्देश है जिसकी चर्चा मैं पौलुस परमेश्वर की सेवा निमित्त कर चुका हूं”।
“अब मैं, पौलुस आनन्द करता हूं
तब कुलुस्से वासियों के लिए
मैं तुम्हारे लाभ के लिए कष्ट वहन करता हूं”
पौलुस अपने विरोध एवं कष्टों के बारे में कह रहा है जो कलीसिया के लिए वह भोग रहा है जब उसने मसीह को ग्रहण किया था। उसी समय प्रभु ने उस पर यह प्रकट कर दिया था।
“मैं पौलुस कलीसिया की आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रयास करता हूं”।
“वह गुप्त बात”
यह उस समय के संदर्भ में है जो सृष्टि से अन्य जातियों में पतरस द्वारा शुभ सन्देश सुनाने का था।
“उसके शिष्यों पर स्पष्ट किया” अर्थात् यहूदियों और अन्यजातियों पर
परमेश्वर चाहता है कि लोग जाने कि उसकी कितनी अद्भुत योजना है अन्यजातियों के लिए।
परमेश्वर की महिमा की सहभागिता का विश्वास
“यह वह मसीह है, जिसका हम पौलुस और तीमुथियुस प्रचार करते हैं”।
“हम सबको कोमलता से सतर्क करते हैं”
“कि हम हर एक मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष प्रस्तुत करें”
“आत्मिक परिपक्वता में”
“मैं, पौलुस परिश्रम करता हूं”
मसीह के उद्देश्य जो मुझ में क्रियाशील है।
पौलुस परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित हुआ था।
पौलुस ने यह पत्र कुलुस्से नगर में उन भाइयों को लिखा था, जो परमेश्वर के लिए पवित्र किए गए विश्वासी थे।
कुलुस्से के विश्वासियों ने सुसमाचार के सत्य वचन में अपनी आशा के बारे में सुना था।
पौलुस कहता है कि यह सुसमाचार जगत में भी फल लाता और बढ़ता जाता है।
मसीह के निष्ठावान सेवक, इपफ्रास ने उन्हे सुसमाचार सुनाया था।
पौलुस प्रार्थना करता है कि कुलुस्से के विश्वासी सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहचान में परिपूर्ण हो जाएँ।
पौलुस प्रार्थना करता है कि फिलिप्पी के विश्वासियों का चाल चलन प्रभु को ग्रहण योग्य हो और उनमें हर प्रकार के भले कामों का फल लगे और वे परमेश्वर की पहचान में बढ़ते जाएं।
जो परमेश्वर के लिए पृथक किए गए है, उन्हे उसने इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ मीरास में सहभागी हों।
उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।
हमें मसीह यीशु में छुटकारा अर्थात पापों की क्षमा प्राप्त होती है।
पुत्र अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है।
संपूर्ण सृष्टि मसीह यीशु के द्वारा और उसी के लिए सृजी गई है।
परमेश्वर ने मसीह के लहू के द्वारा मेल-मिलाप करके सब वस्तुओं का अपने साथ मेल कर लिया।
सुसमाचार में विश्वास करने से पहले कुलुस्से के विश्वासी निकाले हुए और बैरी थे।
कुलुस्से के विश्वासियों को विश्वास की नींव पर दृढ़ और सुसमाचार को थामे रहना था।
पौलुस कलीसिया के लिए कष्ट उठाता था और इससे आनन्दित था।
मसीह जो महिमा की आशा है और हम में वास करता है, यह भेद समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा है।
पौलुस का लक्ष्य था कि वह हर एक मनुष्य को मसीह में सिद्ध करके प्रस्तुत करे।
1 मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो, कि तुम्हारे और उनके जो लौदीकिया में हैं, और उन सब के लिये जिन्होंने मेरा शारीरिक मुँह नहीं देखा मैं कैसा परिश्रम करता हूँ। 2 ताकि उनके मनों को प्रोत्साहन मिले और वे प्रेम से आपस में गठे रहें*, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्थात् मसीह को पहचान लें। 3 जिसमें बुद्धि और ज्ञान के सारे भण्डार छिपे हुए हैं।
4 यह मैं इसलिए कहता हूँ, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभानेवाली बातों से धोखा न दे। 5 क्योंकि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूँ, तो भी आत्मिक भाव से तुम्हारे निकट हूँ, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्न होता हूँ।
6 इसलिए, जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो। 7 और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो।
8 चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न कर ले, जो मनुष्यों की परम्पराओं और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं। 9 क्योंकि उसमें ईश्वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है।
10 और तुम मसीह में भरपूर हो गए हो जो सारी प्रधानता और अधिकार का शिरोमणि है। 11 उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता*, परन्तु मसीह का खतना हुआ, जिससे पापमय शारीरिक देह उतार दी जाती है। 12 और उसी के साथ बपतिस्मा में गाड़े गए, और उसी में परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास करके, जिस ने उसको मरे हुओं में से जिलाया, उसके साथ जी भी उठे।
13 और उसने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारहित दशा में मुर्दा थे, उसके साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया। 14 और विधियों का वह लेख* और सहायक नियम जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में था मिटा डाला; और उसे क्रूस पर कीलों से जड़कर सामने से हटा दिया है। 15 और उसने प्रधानताओं और अधिकारों को अपने ऊपर से उतार कर उनका खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय-जयकार की ध्वनि सुनाई।
16 इसलिए खाने-पीने या पर्व या नये चाँद, या सब्त के विषय में तुम्हारा कोई फैसला न करे। 17 क्योंकि ये सब आनेवाली बातों की छाया हैं, पर मूल वस्तुएँ मसीह की हैं।
18 कोई मनुष्य दीनता और स्वर्गदूतों की पूजा करके तुम्हें दौड़ के प्रतिफल से वंचित न करे। ऐसा मनुष्य देखी हुई बातों में लगा रहता है और अपनी शारीरिक समझ पर व्यर्थ फूलता है। 19 और उस शिरोमणि को पकड़े नहीं रहता जिससे सारी देह जोड़ों और पट्ठों के द्वारा पालन-पोषण पा कर और एक साथ गठकर, परमेश्वर की ओर से बढ़ती जाती है।
20 जब कि तुम मसीह के साथ संसार की आदि शिक्षा की ओर से मर गए हो, तो फिर क्यों उनके समान जो संसार में जीवन बिताते हैं और ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो? 21 कि ‘यह न छूना,’ ‘उसे न चखना,’ और ‘उसे हाथ न लगाना’?, 22 क्योंकि ये सब वस्तु काम में लाते-लाते नाश हो जाएँगी क्योंकि ये मनुष्यों की आज्ञाओं और शिक्षाओं के अनुसार है। 23 इन विधियों में अपनी इच्छा के अनुसार गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक अभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इनसे कुछ भी लाभ नहीं होता।
“मैं पौलुस तुम कुलुस्से के विश्वासियों को बताना चाहता हूं”
पौलुस ने उनकी शुद्धता और सुसमाचार को समझाने में अत्यधिक परिश्रम किया है।
कुलुस्से के निकट का नगर। वहां की कलीसिया के लिए भी वह प्रार्थना करता था।
“मैंने उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा” या “उन्होंने मुझ से भेंट नहीं की”
“वे सब विश्वासी जिन्होंने पौलुस को साक्षात नहीं देखा, उन सबके मन में”
सच्ची एकता में रहें। “एक जुट हों” या “घनिष्ठता में रहें”
इन बातों को समझने का विश्वास
यह ज्ञान केवल परमेश्वर पिता द्वारा ही प्रकट होता है।
मसीह यीशु परमेश्वर द्वारा प्रकट भेद हैं
बुद्धि और ज्ञान के धन एवं भण्डार
किसी बात के तथ्य एवं जानकारी को प्राप्त करना ज्ञान है और उस जानकारी को काम में लेना समझ है और बुद्धि का अर्थ है उस जानकारी को कब काम में लेना या उपयोगी बनाना।
जिसमें अर्थात् मसीह में
“मैं पौलुस कहता हूं”
“तुम कुलुस्से के विश्वासियों को पथभ्रष्ट करे या गलत निर्णय लेने के लिए भ्रमित करे”
तुम्हें विश्वास दिलानेवाली बात या किसी धारणा को विश्वासयोग्य बताने वाली बात।
“तुम्हारे साथ साक्षात उपस्थित नहीं हूं”
“मैं सदैव तुम्हारे बारे में सोचता रहता हूं”
उनकी एकता और विश्वास की दृढ़ता के लिए पौलुस या मसीह में विश्वास के लिए पौलुस उनकी प्रशंसा करता है।
एक विशेष शैली या अपरिवर्तनीय विधि में जीवन जीने की अभिव्यक्ति है।
“तुम कुलुस्से के विश्वासियों ने मसीह को ग्रहण कर लिया है”
जिस प्रकार वृक्ष को अच्छा विकास करने के लिए गहराई से जड़ों के जाने की आवश्यकता होती है वैसे ही विश्वासी को आत्मिक परिपक्वता के लिए दृढ़ विश्वास की आवश्यकता होती है।
इस रूपक का अर्थ है कि मसीही जीवन को मसीह पर आधारित होना है जिस प्रकार से भवन को दृढ़ नींव पर आधारित होना है।
मसीह यीशु में विश्वास पर आधारित जीवन जीते रहो।
परमेश्वर के अत्यधिक आभारी बने रहो
सावधान रहो, इसका अनुवाद किया जा सकता है, “सतर्क रहो” या “जागते रहो”
यह रूपक किसी व्यक्ति के झूठी शिक्षा द्वारा मानसिक एवं आत्मिक धोखे में बन्दी बनाने की तुलना मनुष्य के अकस्मात ही बलपूर्वक पकड़े जाने एवं बन्दी बनाने से तुलना करता है।
“तुम कुलुस्से के विश्वासियों को बन्धी न बना लो”
धार्मिक शिक्षाएं एवं मान्यताएं जो परमेश्वर के वचन की नहीं अपितु परमेश्वर एवं जीवन के बारे में मनुष्य के विचार हैं।
पथभ्रष्ट करने वाले विचार जो मसीही जीवन के नहीं हैं उनसे कुछ लाभ नहीं वे निस्सार हैं और किसी काम के नहीं हैं।
यहूदी परम्पराएं और अन्यजातीय आस्थाएं किसी काम की नहीं हैं।
“मसीह के अनुसार” अर्थात विश्वास को मसीह का है वही अर्थपूर्क है।
“मसीह की देह में परमेश्वर का संपूर्ण स्वभाव है। इसे मसीह में परमेश्वर के व्यापक स्वभाव के अन्तर्वास से भ्रमित न करें (यह सच नहीं है)
“मसीह यीशु में”
“तुम कुलुस्से के विश्वासी परिपूर्ति हो”
“सिद्ध हो”
इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने विश्वासी के पाप इस प्रकार अलग कर दिए जैसे खतना में त्वचा अलग कर दी जाती है।
मुनष्य का पुराना स्वभाव उसी प्रकार समाप्त हो गया जिस प्रकार कि मृतक को मिट्टी में गाड़ दिया जाता है।
जैसे मृतक फिर जी उठे तो उसे नया जीवन प्राप्त होता है इसी प्रकार विश्वासियों को भी नया जीवन प्राप्त हुआ है।
“जब तुम कुलुस्से के विश्वासी आत्मिकता में मृतक थे”
तुम दो कारणों से मृतक थे 1) तुम मसीह के विरूद्ध जीवन जीते हुए मृतक थे। 2) तुम मूसा प्रदत्त विधान के अनुसार खतनारहित थे।
“मसीह यीशु ने तुम कुलुस्से के विश्वासियों को भी बनाया”
"मसीह यीशु ने हमें क्षमा किया, यहूदी और अन्यजातियों दोनों को।"
इस रूपक से दर्शाया गया है कि पापी जीवन से आत्मिक जीवन में प्रवेश वैसा ही है जैसे मृतक का पुनःजीवित होना।
इस रूपक द्वारा व्यक्त है और परमेश्वर के नियमो का उल्लंघन करने की क्षमा प्रदान करता है जैसे मनुष्य कुछ लिख कर मिटा देता है।
रोमी विजय यात्रा करते थे जिसमें वे युद्ध बन्दियों को और लूटे हुए माल का प्रदर्शन करते थे।
पौलुस यहूदियों के विरूद्ध अन्यजाति विश्वासियों को सतर्क कर रहा है क्योंकि वे अन्यजाति विश्वासियों को मूसा प्रदत्त विधान के पालन के लिए विवश करते थे।
मूसा के विधान के अनुसार खाने पीने के नियमों के संबन्ध में। “तुम क्या खाते हो और क्या पीते हो”
मूसा प्रदत्त विधान में उत्सव दिवस दर्शाए गए थे। आराधना दिवस और बलि चढ़ाने के दिन भी निर्दिष्ट थे।
जैसे छाया किसी वस्तु का अस्पष्ट आकार एवं प्रकृति दर्शाती है वैसी ही मूसा प्रदत्त विधान की धार्मिक परम्पराएं मसीह यीशु की वास्तविकता का अपूर्ण चित्रण करती हैं।
“प्रतिफल पाने से कोई तुम्हें धोखा न दे” यहां झूठी आत्महीनता और स्वर्गदूतों की पूजा करने की शिक्षा देने वालों की तुलना कुलुस्से के विश्वासियों के उद्धार को चुराने वालों से की गई है। इसका अनुवाद कतृवाच्य में किया जा सकता है, किसी को अपना प्रतिफल चुराने मत दो”
“स्वैच्छिक दीनता” ऐसे काम करने वाले मनुष्यों के समक्ष तुम्हें दीन दर्शाएं। इसका अनुवाद हो सकता है, “पावन आत्मत्याग”
ऐसे विचार जो सदैव मन को वश में रखते हैं या किसी बात में पहले से ही उलझे रहता है।
एक प्राकृतिक एवं पापी मनुष्य के जैसा सोचना न कि आत्मिक मनुष्य के समान।
“दृढ़ता से नहीं पकड़ता” या “थामे नहीं रहता” जैसे बच्चा अपने माता-पिता को पकड़े रहता है।
जिस प्रकार सिर संपूर्ण देह को नियंत्रण में रखकर चलाता है उसी प्रकार मसीह यीशु कलीसिया पर संपूर्ण अधिकार रखता है।
जिस प्रकार एक मृतक मनुष्य संसार की मांग (श्वास, भोजन, निन्द्रा) के प्रति निश्चेष्ट है उसी प्रकार आत्मिकता में मसीह के साथ मृतक मनुष्य संसार की आत्मिक अंगों के प्रति निश्चेष्ट होता है।
तुम ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो? पौलुस इस प्रश्न द्वारा कुलुस्से के विश्वासियों को संसार की झूठी आस्थाओं को मानने के लिए झिड़कता है। “सांसारिक आस्थाओं पर चलना छोड़ दो”।
“क्यों मानते हो” या “अधीन क्यों हो जाते हो” या “पालन क्यों करते हो”
नष्ट हो जाएंगी
ये नियम मानवीय दृष्टिकोण से समझदारी के प्रतीत होते हैं जिनमें दीनता और शारीकि योगाभ्यास है।
“शरीर को कष्ट देना” “कठोरता करना” “भीषणता करना”
“इनसे शरीर की अभिलाषाओं पर विजयी होने में सहायता नहीं मिलती है।”
परमेश्वर पिता के भेद मसीह है।
मसीह में बुद्धि और ज्ञान के सारे भंडार छिपे हैं।
पौलुस को चिन्ता इस बात की थी कि कुलुस्से के विश्वासियों को कोई लुभानेवाली बातों से धोखा न दे।
पौलुस कुलुस्से के विश्वासियों को पुकारता है कि वे अपना आचरण वैसा ही रखें जैसा उन्होने मसीह को ग्रहण किया है।
व्यर्थ धोखा मनुष्य की परम्पराओं और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार है।
मसीह में ईश्वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है।
मसीह सारी प्रधानता और अधिकार का शिरोमणि है।
पाप की शारीरिक देह मसीह के खतने में उतार दी जाती है।
मनुष्य बपतिस्में में मसीह के साथ गाड़ा जाता है।
मनुष्य अपने अपराधों में मरा हुआ था उसे मसीह ने अपने साथ जिलाया।
मसीह ने विधियों का वह लेखा जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में था उसे क्रूस पर कीलों से जड़कर सामने से हटा दिया।
मसीह ने प्रधानता और अधिकारों को ऊपर से उतारकर उनका खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और उन पर जय जयकार की ध्वनिं सुनाई।
पौलुस कहता है कि खाने-पीने या पर्व या नए चाँद या सब्त आदि सब आनेवाली बातों की छाया हैं।
छाया मसीह की सच्चाई की ओर संकेत करती हैं।
संपूर्ण देह मसीह जो सिर है उसके द्वारा पोषित होकर गठी हुई होती है।
"यह न छुना," "उसे न चखना" और "उसे हाथ न लगाना" आदि सब सांसारिक शिक्षाओं के अनुसार हैं।
सांसारिक मानवनिर्मित विधियां शारीरिक लालसाओं को रोकने में लाभ की नहीं हैं।
1 तो जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहाँ मसीह वर्तमान है और परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है। (मत्ती 6:20) 2 पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ। 3 क्योंकि तुम तो मर गए, और तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है। 4 जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साथ महिमा सहित प्रगट किए जाओगे।
5 इसलिए अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्ति पूजा के बराबर है। 6 इन ही के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है। 7 और तुम भी, जब इन बुराइयों में जीवन बिताते थे, तो इन्हीं के अनुसार चलते थे। 8 पर अब तुम भी इन सब को अर्थात् क्रोध, रोष, बैर-भाव, निन्दा, और मुँह से गालियाँ बकना ये सब बातें छोड़ दो। (इफि. 4:23-24)
9 एक दूसरे से झूठ मत बोलो क्योंकि तुम ने पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डाला है। 10 और नये मनुष्यत्व को पहन लिया है जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिये नया बनता जाता है। 11 उसमें न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न खतना, न खतनारहित, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र केवल मसीह सब कुछ और सब में है*।
12 इसलिए परमेश्वर के चुने हुओं के समान जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो; 13 और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। 14 और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बाँध लो।
15 और मसीह की शान्ति, जिसके लिये तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो। 16 मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने-अपने मन में कृतज्ञता के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ। 17 वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो*, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।
18 हे पत्नियों, जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने-अपने पति के अधीन रहो। (इफि. 5:22) 19 हे पतियों, अपनी-अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उनसे कठोरता न करो। 20 हे बच्चों, सब बातों में अपने-अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इससे प्रसन्न होता है। 21 हे पिताओं, अपने बच्चों को भड़काया न करो, न हो कि उनका साहस टूट जाए।
22 हे सेवकों, जो शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, सब बातों में उनकी आज्ञा का पालन करो, मनुष्यों को प्रसन्न करनेवालों के समान दिखाने के लिये नहीं, परन्तु मन की सिधाई और परमेश्वर के भय से। 23 और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो। 24 क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हें इसके बदले प्रभु से विरासत मिलेगी। तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो। 25 क्योंकि जो बुरा करता है, वह अपनी बुराई का फल पाएगा; वहाँ किसी का पक्षपात नहीं। (प्रेरि. 10:34, रोम. 2:11)
यहां कुलुस्से के विश्वासियों की तुलना मसीह के साथ की गई है। मसीह को मृतकों में से जीवित करने के कारण परमेश्वर उन्हें भी मृतकों में से जीवित मानता है।
"हम" मजदूरों के संदर्भ में है।
“स्वर्ग की बातें” या “ईश्वरीय बातें”
“सांसारिक बातें” या “पृथ्वी की बातें”
जहां कुलुस्से के विश्वासियों की तुलना मसीह से की गई है जिस प्रकार मसीह वास्तव में मर गया था उसी प्रकार परमेश्वर उन्हें मसीह के साथ मरा हुआ मानता है।
“उसके” अर्थात मसीह के साथ
यह एक रूपक है जिससे प्रकट होता है कि पाप की अभिलाषाओं का पूर्णतः एवं सदा के लिए दमन किया जाना है जैसे एक बुरे मनुष्य को मार डाला जाता है।
“अनुचित व्यवहार”
“प्रबल अभिलाषाएं”
लोग जो मूर्तिपूजा के बराबर है “और लालसा जो मूर्तिपूजा की है” या “लालच मत करो क्योंकि वह मूर्तिपूजा के तुल्य है” (यू.डी.बी.)
इन्हीं के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न मानने वालों पर पड़ता है - परमेश्वर का क्रोध ऐसे लाभ पानेवाले अविश्वासियों पर आता है “तुम उनमें सक्रियता से सहभागी थे”।
तुम भी जब इन बुराइयों में जीवन बिताते थे तो इन्हीं के अनुसार चलते थे - “तुम भी तो इन बातों में सक्रिय सहभागी होकर ऐसा ही जीवन बिताते थे”।
हिंसा
“क्रोधावेश”
“बुरे काम का संकल्प” इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “मन, जीवन एवं चरित्र की दुष्टता”
“बुराई करना” या “नाम बदनाम करना” या “बुरी-बुरी बातें कहना” किसी को दुख पहुंचाना या “हानि करने वाली बातें”।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, "अभ्रद भाषा का उपयोग करना"
कुलुस्से के विश्वासी जिलाए गए।
यहां एक विश्वासी की तुलना उस मनुष्य से की गई है जो गन्दे वस्त्र उतार कर नए वस्त्र धारण करता है।
यह यीशु के लिए लाक्षणिक उपयोग है।
मसीह यीशु को जानना और समझना
अर्थात् परमेश्वर की दृष्टि में सब बराबर हैं।, जाति, धर्म, नागरिकता, या जातिवर्ग (सामाजिक स्तर) कुछ नहीं। यहां जाति, धर्म, संस्कृति, सामाजिक स्तर आदि सब अर्थहीन हैं।
मसीह के अस्तित्व से बाहर कुछ नहीं है, “मसीह सर्वोच्च महत्वपूर्ण है”
जिस प्रकार मनुष्य वस्त्र धारण करता है, विश्वासियों को करूणा और भलाई और दीनता, और नम्रता और सहनशीलता अपनाना है। आपस में ऐसा ही व्यवहार करो।
पिछली परिचर्चा में या शिक्षा पर आधारित स्वभाव परिवर्तन या कार्य परिवर्तन को विशेष रूप से व्यक्त करने के लिए यहां उपदेश में स्पष्टता लाई गई है।
“परमेश्वर के पवित्र और प्रिय चयनित जनों के समान”
“अनुकंपा पूर्ण, दयालु, विनम्र, दीन और धीरजवन्त, आन्तरिक मनुष्य
“सहानुभूति” या “आदर”
“भलाई” या “कोमलता”
“मन की दीनता”, “निरंकार या “निराभिमान”
“सज्जनता”, आत्मा की शान्ति दिखाने की नहीं परमेश्वर के समक्ष
“सहनशीलता” या “घृति” या “आत्म संयम”
मेल-मिलाप और प्रेम में रहो। एक दूसरे को सहन करो या आपसी मेल रखो
“किसी से शिकायत हो”
“प्रेम रखो”
“जो हमें पूर्णतः बांधता है” या “जो हमें सामजंस्य में संयोजित करता है”
“तुम्हारे मन पर अधिकार करे”
“तुमने अर्थात कुलुस्से के विश्वासियों ने
“अन्तर्वास करे” “उपस्थित हो”
“एक दूसरे को सतर्क करो”
“परमेश्वर की स्तुति में गीत गाओ”
“आभारी मन”
“मसीह यीशु के द्वारा”
“पत्नियों आज्ञाकारी बनो”
“न्यायोचित है” या “सही है”
“निर्दयी न हो” या क्रोध न करो”
प्रभु इससे प्रसन्न होता है, “माता-पिता की आज्ञा मानोगे तो परमेश्वर प्रसन्न होता है”।
“कुपित न करो” या “क्रोध न दिलाओ”
“तुम्हारे” अर्थात कुलुस्से की कलीसिया में विश्वासी दास।
“तुम” मुख्यताः दासों के संदर्भ में है परन्तु सब विश्वासियों के लिए हो सकता है।
अपने सांसारिक स्वामियों की आज्ञा का पालन करो
“जब स्वामी देखता हो तब ही नहीं”
ये वे लोग है जो प्रभु की नहीं मनुष्य की प्रशंसा खोजते हैं। (यू.डी.बी.)
“संपूर्ण मन से” (यू.डी.बी.)
प्रभु के लिए - प्रभु की सेवा के निमित्त” (यू.डी.बी.)
“प्रभु की प्रतिज्ञानुसार हमारा भाग मिलेगा” (यू.डी.बी.)
नैतिक, सामाजिक एवं शारीरिक बुराई करनेवाला। “पूरा करने वाला” या “अनुचित काम करनेवाला”
“दण्ड पाएगा”
“किसी का पक्ष नहीं लेता” या “उसके अपने पसन्द के कोई नहीं है” या उसके चहेते नहीं हैं”
मसीह जीवित होकर परमेश्वर की दाहिनी ओर विराजमान है।
विश्वासियों को स्वर्गिक बातों की खोज में रहना है सांसारिक नहीं।
परमेश्वर ने विश्वासी के जीवन को मसीह के साथ छिपा लिया है।
जब मसीह प्रकट होगा तब विश्वासी भी उस के साथ महिमा में प्रकट होंगे।
विश्वासी के लिए आवश्यक है कि वह सांसारिक बातों को मार डाले।
परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है।
विश्वासियों को क्रोध, रोष, बैर भाव, निन्दा, अभद्र भाषा और झूठ बोलना आदि सब छोड़ देना चाहिए।
विश्वासी का नया मनुष्यत्व मसीह के स्वरूप में सृजा हुआ है।
विश्वासी में करुणा, भलाई और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता होना आवश्यक है।
विश्वासी वैसे ही क्षमा करे जैसे प्रभु ने उसे क्षमा किया है।
प्रेम सिद्धता का कटिबन्ध है।
विश्वासी के मन में मसीह की शान्ति वास करे।
विश्वासी अनुग्रह के साथ भजन, स्तुतिगान और आत्मिक गीतों द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करे।
विश्वासी के मन में मसीह का वचन अधिकाई से बसे।
पत्नी अपने पति के अधीन रहे।
पति अपनी पत्नी से प्रेम रखे और उसके साथ कठोरता का व्यवहार न करें।
सन्तान अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करे।
पिता अपने बालकों को तंग न करे।
विश्वासी लोग जो कुछ भी कार्य करते है वह प्रभु के लिए करते है।
अपने हर एक काम को प्रभु के लिए समझकर करने से विश्वासियों को प्रभु से मीरास मिलेगी।
बुरा करने वाला बुराई का फल पाएगा।
1 हे स्वामियों, अपने-अपने दासों के साथ न्याय और ठीक-ठीक व्यवहार करो, यह समझकर कि स्वर्ग में तुम्हारा भी एक स्वामी है। (लैव्य. 25:43, लैव्य. 25:53)
2 प्रार्थना में लगे रहो*, और धन्यवाद के साथ उसमें जागृत रहो; 3 और इसके साथ ही साथ हमारे लिये भी प्रार्थना करते रहो, कि परमेश्वर हमारे लिये वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सके जिसके कारण मैं कैद में हूँ। 4 और उसे ऐसा प्रगट करूँ, जैसा मुझे करना उचित है।
5 अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करो। 6 तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित* और सुहावना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।
7 प्रिय भाई और विश्वासयोग्य सेवक, तुखिकुस जो प्रभु में मेरा सहकर्मी है, मेरी सब बातें तुम्हें बता देगा। 8 उसे मैंने इसलिए तुम्हारे पास भेजा है, कि तुम्हें हमारी दशा मालूम हो जाए और वह तुम्हारे हृदयों को प्रोत्साहित करे। 9 और उसके साथ उनेसिमुस को भी भेजा है; जो विश्वासयोग्य और प्रिय भाई और तुम ही में से है, वे तुम्हें यहाँ की सारी बातें बता देंगे।
10 अरिस्तर्खुस जो मेरे साथ कैदी है, और मरकुस जो बरनबास का भाई लगता है। (जिसके विषय में तुम ने निर्देश पाया था कि यदि वह तुम्हारे पास आए, तो उससे अच्छी तरह व्यवहार करना।) 11 और यीशु जो यूस्तुस कहलाता है, तुम्हें नमस्कार कहते हैं। खतना किए हुए लोगों में से केवल ये ही परमेश्वर के राज्य के लिये मेरे सहकर्मी और मेरे लिए सांत्वना ठहरे हैं।
12 इपफ्रास जो तुम में से है, और मसीह यीशु का दास है, तुम्हें नमस्कार कहता है और सदा तुम्हारे लिये प्रार्थनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा पर स्थिर रहो। 13 मैं उसका गवाह हूँ, कि वह तुम्हारे लिये और लौदीकिया और हियरापुलिसवालों के लिये बड़ा यत्न करता रहता है। 14 प्रिय वैद्य लूका और देमास का तुम्हें नमस्कार।
15 लौदीकिया के भाइयों को और नुमफास और उसकी घर की कलीसिया को नमस्कार कहना। 16 और जब यह पत्र तुम्हारे यहाँ पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना। 17 फिर अरखिप्पुस से कहना कि जो सेवा प्रभु में तुझे सौंपी गई है, उसे सावधानी के साथ पूरी करना।
18 मुझ पौलुस का अपने हाथ से लिखा हुआ नमस्कार। मेरी जंजीरों को स्मरण रखना; तुम पर अनुग्रह होती रहे। आमीन।
अपने-अपने अर्थात दासों के स्वामी जो विश्वासी है
स्वामियों के लिए है कि वे अपने सेवकों के साथ उचित एवं निष्पक्ष व्यवहार करें।
अर्थात 1) परमेश्वर उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा वे अपने दासों के साथ करते हैं। या 2) जैसा तुम परमेश्वर से अपने प्रति व्यवहार चाहते हो वैसा ही अपने दासों के साथ करो”।
“निष्ठापूर्वक प्रार्थना करो” “लगातार प्रार्थना करते रहो”
“हमारे” अर्थात पौलुस और तीमुथियुस के लिए, कुलुस्से के विश्वासी उसके नहीं गिने गए हैं।
“परमेश्वर द्वारा अवसर प्रदान करने “हेतु यह एक मुहावरा है”
मसीह के आगमन से पूर्व मसीह यीशु का सन्देश जो समझ से परे था।
“मसीह का शुभ सन्देश सुनाने के कारण मैं कारागार में हूं”
“प्रार्थना करो कि मैं मसीह यीशु का सन्देश यथासंभव स्पष्ट व्यक्त कर पाऊंगा।”
“चतुराई से काम लो”
“अविश्वासियों के साथ”
कुलुस्से के विश्वासियों को निर्देश है
“बुद्धिमानी से काम करो”
तुम्हारा वचन सदा अनुग्रहसहित और सलोना हो - “तुम्हारा वार्तालाप सदैव अनुग्रह से पूर्ण एवं आकर्षक हो”
“तुम मसीह यीशु के बारे में किसी को भी उचित उत्तर देने योग्य हो”।
“मेरे साथ जो भी हो रहा है तुम्हें बता देगा”। (यू.डी.बी.)
“तुम्हें” अर्थात कुलुस्से की कलीसिया को
अर्थात् पौलुस की
पौलुस एक स्वतंत्र मनुष्य है परन्तु वह स्वयं को एक दास मानता है, मसीह का दास और तुखिकुस को सह सेवक। इसका अनुवाद हो सकता है, “साथी सेवक”
पौलुस और उसके सहकर्मियों की।
“तुम्हारे मन हृदयों को” अर्थात तुम्हें। “तुम्हें प्रोत्साहन प्रदान करेगा”
उनेसिमुस कुलुस्से में फिलेमोन का दास था। उसने फिलेमोन का पैसा चुराया और रोम भाग गया था। वहां पौलुस के प्रचार के द्वारा उसने मसीह को ग्रहण कर लिया था। तुखिकूस और उनेसिमुस पौलुस का पत्र लेकर कुलुस्से जा रहे हैं।
पौलुस उनेसिमुस को सहविश्वासी और मसीह का सेवक मानता है।
“ये” अर्थात तुखिकुस और उनेसिमुस
वे पौलुस की वर्तमान स्थिति का वर्णन कुलुस्से की कलीसिया को सुनाएंगे। परम्परा के अनुसार पौलुस गृह कारावास में या कारागार में था।
वह पौलुस के साथ इफिसुस के कारागार में था जब पौलुस यह पत्र लिख रहा था।
“यदि मरकुस आए।”
यह वह मनुष्य है जिसने पौलुस के साथ भी कार्य किया।
ये तीन पुरूष ही हैं जो मेरे साथ सेवारत यहूदी विश्वासी हैं जो मसीह के द्वारा परमेश्वर का प्रचार करते हैं कि यह राजा होगा। (यू.डी.बी.)
अरिस्तर्खुस, मरकुस और येस्तूस मात्र ही खतनावाले
इपफ्रास कुलुस्से में शुभ सन्देश प्रचारक था
“तुम्हारा सह नागरिक” या “तुम्हारा ही स्वेदशी” (यू.डी.बी.)
“मसीह यीशु का समर्पित दास”
सदा तुम्हारे लिए सच्चे दिल से प्रार्थना करता है
"तुम परिपक्व और आत्मविश्वासी हो जाओ"
“मैंने स्वयं देखा कि उसने तुम्हारे लिए कठोर परिश्रम किया है”। (यू.डी.बी.)
लौदिकिया की कलीसिया। लौदिकिया कुलुस्से के परिवेश में एक नगर था।
हियरापुलिस की कलीसिया यह स्थान भी कुलुस्से के परिवेश में था।
पौलुस का सहकर्मी
“तुम्हारा अभिवादन करते हैं”
“विश्वासी भाई-बहन को नमस्कार”।
कुलुस्से से तथा एक नगर, वहां भी मसीही कलीसिया थी।
नुमफास लौदिकिया में आवासीय कलीसिया की आयोजक थी। “नुमफास और उसके घर में आराधना हेतु एकत्र होने वाली कलीसिया”
कलीसिया अर्थात कुलुस्से के विश्वासी
पौलुस अर्खिप्पुस को उसके परमेश्वर प्रदत्त दायित्व का स्मरण करवा रहा है और वह परमेश्वर की ओर से इसकी पूर्ति का उत्तरदायी था।
पौलुस चाहता था कि कुलुस्से के विश्वासी जान लें कि यह पत्र पौलुस ही का है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मुझे स्मरण रखकर, मेरे लिए प्रर्थाना करना क्योंकि मैं कारागार में हूं”।
पौलुस इस पृथ्वी पर स्वामियों को स्मरण कराता है कि उनका भी एक स्वामी है जो स्वर्ग में है।
पौलुस चाहता था कि कुलुस्से के विश्वासी प्रार्थना में लगे रहें।
पौलुस कुलुस्से के विश्वासियों से निवेदन करता है कि वे प्रार्थना करते रहे कि परमेश्वर उसके लिए वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल कि वे मसीह के भेद का वर्णन कर पाएं।
पौलुस उन्हे आदेश देता है कि वे बाहर वालों के साथ बुद्धिमानी से व्यवहार करें और उनका वचन अनुग्रह सहित सलोना हो।
पौलुस ने उन्हे एक काम सौंपा कि वे कुलुस्से के विश्वासियों को उसकी सब बातें बता दें।
पौलुस ने कुलुस्से के विश्वासियों से कहा कि वे मरकुस के साथ अच्छा व्यवहार करें, यदि वह वहां आए।
वह प्रार्थना करता है कि वे सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा पर स्थिर रहें।
उस वैध का नाम लूका था।
लौदीकिया की कलीसिया किसी घर में आराधना करती थी।
पौलुस लौदीकिया की कलीसिया को भी पत्र लिखा था।
ने पत्र के अन्त में अपने हाथों से अपना नाम लिखा था।
1 पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनीकियों की कलीसिया के नाम जो पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में है। अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे।
2 हम अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें स्मरण करते और सदा तुम सब के विषय में परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, 3 और अपने परमेश्वर और पिता के सामने तुम्हारे विश्वास के काम, और प्रेम का परिश्रम, और हमारे प्रभु यीशु मसीह में आशा की धीरता को लगातार स्मरण करते हैं।
4 और हे भाइयों, परमेश्वर के प्रिय लोगों हम जानते हैं, कि तुम चुने हुए हो। (इफि. 1:4) 5 क्योंकि हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में वरन् सामर्थ्य* और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्चय के साथ पहुँचा है; जैसा तुम जानते हो, कि हम तुम्हारे लिये तुम में कैसे बन गए थे।
6 और तुम बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को मानकर हमारी और प्रभु के समान चाल चलने लगे। 7 यहाँ तक कि मकिदुनिया और अखाया के सब विश्वासियों के लिये तुम आदर्श बने।
8 क्योंकि तुम्हारे यहाँ से न केवल मकिदुनिया और अखाया में प्रभु का वचन सुनाया गया, पर तुम्हारे विश्वास की जो परमेश्वर पर है, हर जगह ऐसी चर्चा फैल गई है, कि हमें कहने की आवश्यकता ही नहीं। 9 क्योंकि वे आप ही हमारे विषय में बताते हैं कि तुम्हारे पास हमारा आना कैसा हुआ; और तुम क्यों मूरतों से परमेश्वर की ओर फिरें ताकि जीविते और सच्चे परमेश्वर की सेवा करो। 10 और उसके पुत्र के स्वर्ग पर से आने की प्रतीक्षा करते रहो जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया, अर्थात् यीशु को, जो हमें आनेवाले प्रकोप से बचाता है।
यू.डी.बी. में स्पष्ट व्यक्त किया गया है कि यह पत्र पौलुस ने लिखा था।
"वचन तुम्हें" अर्थात थिस्सलोनिका की कलीसिया के विश्वासियों को
यह एक अतिशयोक्ति है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “हम लगातार तुम्हारे लिए परमेश्वर को धन्यवाद कहते हैं”।
वचन अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस के लिए न कि थिस्सलुनीकियों के विश्वासियों के लिए|
“हम तुम्हारे लिए प्रार्थना करते है”।
हम लगातार याद रखते हैं
“विश्वास के कृत्य” या “विश्वास आधारित काम जो परमेश्वर में विश्वासी हैं”।
“आशा की धीरजवत प्रतीज्ञा”
“सभी विश्वासी भाइयों और बहनों”
“हम जानते हैं कि परमेश्वर ने तुम्हें अपना होने के लिए चुन लिया है”। (यू.डी.बी.) “हम जानते हैं कि परमेश्वर ने तुम्हें विशेष सेवा के लिए चुन लिया है”।
“हम” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस, न कि थिस्सलोनिकिया के विश्वासी
इसके संभावित अर्थ हैं 1) पौलुस और उसके साथी पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से प्रभावी प्रचार करते हैं। या 2) विश्वासियों पर शुभ सन्देश का प्रभाव गहरा है जो पवित्र आत्मा का विश्वास दिलानेवाला काम है।
“इसी रूप में” (यू.डी.बी.)
“हमारा व्यवहार कैसा था”। (यू.डी.बी.)
“अनुकरण या अनुसरण”। “तुमने हमारा अनुकरण किया”
“शिक्षा ग्रहण करके” या “शिक्षा के अनुसार”
“बड़े कष्टों में भी” या “सताव के मध्य भी”
प्राचीन क्षेत्र जहां आज का यूनान है
“व्याप्त हो गई”
आज का यूनान
“संपूर्ण क्षेत्र में अनेक स्थानों में”
आसपास की कलीसियाएं जिन्होंने थिस्सलोनिका के विश्वासियों की चर्चा सुनी थी
आप ही सब देने के लिए काम में लिया गया है
“तुमने हमारा कैसा स्वागत किया था।” (यू.डी.बी.)
“स्वर्ग से परमेश्वर के पुत्र के आने की”
"जिसे परमेश्वर ने पुनजीर्वित किया"
सब विश्वासियों को बचाता है
पौलुस उनके विश्वास के काम, और प्रेम का परिश्रम और प्रभु यीशु मसीह में उनकी आशा की धीरता को लगातार स्मरण करता था।
थिस्सलुनीके नगर में सुसमाचार वचन रूप में ही नहीं, वरन् सामर्थ्य, और पवित्र आत्मा और बड़े निश्चय के साथ पहुंचा था।
थिस्सलुनीके के विश्वासियों ने भारी विरोध में सुसमाचार सुना था।
थिस्सलुनीके के विश्वासियों ने बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन पर विश्वास किया था।
उनके विश्वास की चर्चा हर जगह फैल गई थी।
सच्चे परमेश्वर में विश्वास करने से पूर्व वे मूर्तिपूजक थे।
पौलुस और थिस्सलुनीके के विश्वासी स्वर्ग से मसीह के पुनः आगमन की प्रतीक्षा में थे।
यीशु हमें आनेवाले प्रकोप से बचाता है।
1 हे भाइयों, तुम आप ही जानते हो कि हमारा तुम्हारे पास आना व्यर्थ न हुआ। 2 वरन् तुम आप ही जानते हो, कि पहले फिलिप्पी में दुःख उठाने और उपद्रव सहने पर भी हमारे परमेश्वर ने हमें ऐसा साहस दिया, कि हम परमेश्वर का सुसमाचार भारी विरोधों के होते हुए भी तुम्हें सुनाएँ।
3 क्योंकि हमारा उपदेश न भ्रम से है और न अशुद्धता से, और न छल के साथ है। 4 पर जैसा परमेश्वर ने हमें योग्य ठहराकर सुसमाचार सौंपा, हम वैसा ही वर्णन करते हैं; और इसमें मनुष्यों को नहीं*, परन्तु परमेश्वर को, जो हमारे मनों को जाँचता है, प्रसन्न करते हैं। (तीतु. 1:3, इफि. 6:6)
5 क्योंकि तुम जानते हो, कि हम न तो कभी चापलूसी की बातें किया करते थे, और न लोभ के लिये बहाना करते थे, परमेश्वर गवाह है। 6 और यद्यपि हम मसीह के प्रेरित होने के कारण तुम पर बोझ डाल सकते थे, फिर भी हम मनुष्यों से आदर नहीं चाहते थे, और न तुम से, न और किसी से।
7 परन्तु जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही हमने भी तुम्हारे बीच में रहकर कोमलता दिखाई है। 8 और वैसे ही हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्वर का सुसमाचार, पर अपना-अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिए कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे। 9 क्योंकि, हे भाइयों, तुम हमारे परिश्रम और कष्ट को स्मरण रखते हो, कि हमने इसलिए रात दिन काम धन्धा करते हुए तुम में परमेश्वर का सुसमाचार प्रचार किया, कि तुम में से किसी पर भार न हों।
10 तुम आप ही गवाह हो, और परमेश्वर भी गवाह है, कि तुम्हारे बीच में जो विश्वास रखते हो हम कैसी पवित्रता और धार्मिकता और निर्दोषता से रहे। 11 जैसे तुम जानते हो, कि जैसा पिता अपने बालकों के साथ बर्ताव करता है, वैसे ही हम भी तुम में से हर एक को उपदेश देते और प्रोत्साहित करते और समझाते थे। 12 कि तुम्हारा चाल-चलन परमेश्वर के योग्य हो, जो तुम्हें अपने राज्य और महिमा में बुलाता है।
13 इसलिए हम भी परमेश्वर का धन्यवाद निरन्तर करते हैं; कि जब हमारे द्वारा परमेश्वर के सुसमाचार का वचन तुम्हारे पास पहुँचा, तो तुम ने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहण किया और वह तुम में जो विश्वास रखते हो, कार्य करता है।
14 इसलिए कि तुम, हे भाइयों, परमेश्वर की उन कलीसियाओं के समान चाल चलने लगे, जो यहूदिया में मसीह यीशु में हैं, क्योंकि तुम ने भी अपने लोगों से वैसा ही दुःख पाया, जैसा उन्होंने यहूदियों से पाया था। 15 जिन्होंने प्रभु यीशु को और भविष्यद्वक्ताओं को भी मार डाला और हमको सताया, और परमेश्वर उनसे प्रसन्न नहीं; और वे सब मनुष्यों का विरोध करते हैं। 16 और वे अन्यजातियों से उनके उद्धार के लिये बातें करने से हमें रोकते हैं, कि सदा अपने पापों का घड़ा भरते रहें; पर उन पर भयानक प्रकोप आ पहुँचा है।
17 हे भाइयों, जब हम थोड़ी देर के लिये मन में नहीं वरन् प्रगट में तुम से अलग हो गए थे, तो हमने बड़ी लालसा के साथ तुम्हारा मुँह देखने के लिये और भी अधिक यत्न किया। 18 इसलिए हमने (अर्थात् मुझ पौलुस ने) एक बार नहीं, वरन् दो बार तुम्हारे पास आना चाहा, परन्तु शैतान हमें रोके रहा। 19 हमारी आशा, या आनन्द या बड़ाई का मुकुट क्या है? क्या हमारे प्रभु यीशु मसीह के सम्मुख उसके आने के समय, क्या वह तुम नहीं हो? 20 हमारी बड़ाई और आनन्द तुम ही हो।
“वचन तुम” अर्थात थिस्सलोनिका के विश्वासी कों
“हमारा” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस”
“बड़ा काम का हुआ”
फिलिपोस में पौलुस को पीटकर कारागार में डाल दिया गया था। वैकल्पिक अनुवाद “हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया और हमें अपमानित किया गया था”।
“घोर विरोध के उपरान्त भी”
“हमारा” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस का
“सत्यवादी, शुद्ध और सच्चाई से पूर्ण”
“परमेश्वर हमारे मन और काम परखता है” (देखें:
“हम” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस
“झूठी प्रशंसा की बातें”
“लोभ के लिए बहाना”
“तुमसे सांसारिक वस्तुएं लेते”
जैसे माता बड़ी कोमलता से अपनी सन्तान को शान्ति देती है, वैसे ही पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस ने थिस्सलोनिका के विश्वासियों में प्रचार किया था।
“हमने तुमसे प्रेम किया”
“हमने तुम्हारी बहुत चिन्ता की”
ये दोनों शब्द समानार्थक है जिसका अभिप्राय है भलिभांति यत्न से काम करना। “हमारा परिश्रम”
"हमने अपने जीविकोपार्जन हेतु परिश्रम किया कि तुम्हें हमारी सहायता न करनी पड़े।"
“धार्मिक”
पिता द्वारा सन्तान के अनुशासन की तुलना पौलुस अपने द्वारा विश्वासियों को शिक्षा देने एवं प्रोत्साहित करने से करता है कि वे परमेश्वर के योग्य आचरण रखें।
“जिसने तुम्हें चुना है”
“हम परमेश्वर को लगातार धन्यवाद कहते हैं”
थिस्सलोनिका के विश्वासियों ने पौलुस के प्रचार को उसके अपने ज्ञान की बातें नहीं परमेश्वर का वचन मानकर ग्रहण किया था।
वे भी अन्य थिस्सलोनिका वासियों के विरोध का सामना कर रहे थे जैसे आरंभिक विश्वासियों ने यहूदी अगुओं से सताव सहा था। “तुम भी उन कलीसियाओं के सदृश्य थे....”
अन्य, थिस्सनोलिका वासियों से”
“वे हमारे प्रचार को रोकना चाहते है।”
“पाप करते रहें”
“परमेश्वर का दण्ड उन पर आ गया है” या “परमेश्वर का क्रोध उन पर है”।
“शारीरिक रूप से अलग हो गए थे परन्तु तुम्हारे लिए प्रार्थना करते रहे”
“तुमसे भेंट करने के लिए” या “तुम्हारे साथ उपस्थित होने के लिए”
“मुझ पौलुस ने दो बार”
हमारी भावी आशा, आनन्द और मसीह के आगमन पर महिमा का मुकुट तुम हो”
पौलुस और उसके साथियों ने कष्ट उठाकर और दुर्व्यवहार सहकर प्रचार किया था।
पौलुस अपने सुसमाचार प्रचार द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहता था।
पौलुस ने न तो चापलूसी की बातें कीं और न ही लोभ का बहाना किया।
पौलुस ने माता या पिता के सदृश्य थिस्सलुनीके के विश्वासियों के साथ अपनेपन का व्यवहार किया था।
पौलुस और उसके साथियों ने रात दिन काम धन्धा करते हुए परमेश्वर का सुसमाचार वहां सुनाया था।
पौलुस थिस्सलुनीके के विश्वासियों से कहता है कि वे परमेश्वर के योग्य चाल-चलन रखें जो उन्हे अपने राज्य और महिमा में बुलाता है।
थिस्सलुनीके के विश्वासियों ने वचन को मनुष्यों का नहीं परमेश्वर का मानकर ग्रहण किया था।
अविश्वासी यहूदी यहूदिया में कलीसियाओं को सताते थे, उन्होने प्रभु यीशु और भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला और पौलुस को बाहर कर दिया था तथा वे पौलुस को अन्यजातियों में प्रचार करने से रोकते थे।
पौलुस उनके पास आ नहीं पा रहा था क्योंकि शैतान उसका रास्ता रोक रहा था।
प्रभु के आने पर थिस्सलुनीके के विश्वासी पौलुस की आशा, आनन्द और बड़ाई का मुकुट होंगे।
1 इसलिए जब हम से और न रहा गया, तो हमने यह ठहराया कि एथेंस में अकेले रह जाएँ। 2 और हमने तीमुथियुस को जो मसीह के सुसमाचार में हमारा भाई, और परमेश्वर का सेवक है, इसलिए भेजा, कि वह तुम्हें स्थिर करे; और तुम्हारे विश्वास के विषय में तुम्हें समझाए। 3 कि कोई इन क्लेशों के कारण डगमगा न जाए; क्योंकि तुम आप जानते हो, कि हम इन ही के लिये ठहराए गए हैं।
4 क्योंकि पहले भी, जब हम तुम्हारे यहाँ थे, तो तुम से कहा करते थे, कि हमें क्लेश उठाने पड़ेंगे, और ऐसा ही हुआ है, और तुम जानते भी हो। 5 इस कारण जब मुझसे और न रहा गया, तो तुम्हारे विश्वास का हाल जानने के लिये भेजा, कि कहीं ऐसा न हो, कि परीक्षा करनेवाले* ने तुम्हारी परीक्षा की हो, और हमारा परिश्रम व्यर्थ हो गया हो।
6 पर अभी तीमुथियुस ने जो तुम्हारे पास से हमारे यहाँ आकर तुम्हारे विश्वास और प्रेम का समाचार सुनाया और इस बात को भी सुनाया, कि तुम सदा प्रेम के साथ हमें स्मरण करते हो, और हमारे देखने की लालसा रखते हो, जैसा हम भी तुम्हें देखने की। 7 इसलिए हे भाइयों, हमने अपनी सारी सकेती और क्लेश में तुम्हारे विश्वास से तुम्हारे विषय में शान्ति पाई।
8 क्योंकि अब यदि तुम प्रभु में स्थिर रहो तो हम जीवित हैं। 9 और जैसा आनन्द हमें तुम्हारे कारण अपने परमेश्वर के सामने है, उसके बदले तुम्हारे विषय में हम किस रीति से परमेश्वर का धन्यवाद करें? 10 हम रात दिन बहुत ही प्रार्थना करते रहते हैं, कि तुम्हारा मुँह देखें, और तुम्हारे विश्वास की घटी पूरी करें।
11 अब हमारा परमेश्वर और पिता आप ही और हमारा प्रभु यीशु, तुम्हारे यहाँ आने के लिये हमारी अगुआई करे। 12 और प्रभु ऐसा करे, कि जैसा हम तुम से प्रेम रखते हैं; वैसा ही तुम्हारा प्रेम भी आपस में, और सब मनुष्यों के साथ बढ़े, और उन्नति करता जाए, 13 ताकि वह तुम्हारे मनों को ऐसा स्थिर करे, कि जब हमारा प्रभु यीशु अपने सब पवित्र लोगों के साथ आए*, तो वे हमारे परमेश्वर और पिता के सामने पवित्रता में निर्दोष ठहरें। (कुलु. 1:22, इफि. 5:27)
“जब हम तुम्हारी चिन्ता को सहन न कर पाए” “हम” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस, थिस्सलोनिका के विश्वासी नहीं।
सिलवानुस और मैंने एथेन्स में रूक जाना उचित समझा”।
अखया का एक नगर जो आज यूनान है
“हमारा मसीही विश्वासी भाई”
“कोई पथ भ्रष्ट न हो” या “कोई विचलित न हो”
यही हमारी नियति है।
“हम” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस
“लोग हमारे साथ दुर्व्यवहार करेंगे”
“मुझसे” अर्थात पौलुस से। “मैं बहुत अधीर होकर जानना चाहता था”
यह एक मुहावरा है, किसी बात के लिए अधीर होना।
“मैंने तीमुथियुस को भेजा”
“निष्फल”
पौलुस, सिलवानुस के पास।(देखें:
“तुम्हारे विश्वास और प्रेम का समाचार सुनाया”
“तुम लगातार हमें स्मरण करते हो”
“तुम हमसे भेंट करने के लिए उत्सुक हो”
“मसीह में तुम्हारे विश्वास के बारे में शान्ति पाई” या “मसीह में तुम्हारे सतत् विश्वास के बारे में”
“हम अत्यधिक प्रोत्साहित है”
“हम” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस
यह एक मुहावरा है। “तुम्हारा विश्वास दृढ़ है। (यू.डी.बी.)
यह एक प्रभावोत्वादक प्रश्न है जो कृतज्ञता को व्यक्त करता है। “परमेश्वर ने तुम्हारे लिए जो किया उसके लिए हम परमेश्वर को धन्यवाद देने योग्य भी नहीं। परमेश्वर से प्रार्थना करने समय हम तुम्हारे लिए अत्यधिक आनन्द करते हैं”
“लगातार”
“उत्साह से प्रार्थना करते है”
“तुमसे भेंट करें”
“हम प्रार्थना करते हैं कि हमारा परमेश्वर”
“हमारा” अर्थात् पौलुस का सेवादल और थिस्सलोनिका के विश्वासी।
“आप ही” पिता से संदर्भित होने पर बलवर्धन हेतु है।
“ तुम्हारे पास आने में मार्ग तैयार करे” “हमारी अर्थात पौलुस और उसके साथियों की।”
“हम” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस।
“हम प्रार्थना करते हैं कि प्रभु करे”
“जब यीशु पृथ्वी पर पुनः आएगा”।
“जो उसके हैं उनके साथ” (यू.डी.बी.)
पौलुस ने थिस्सलुनीके के विश्वासियों को स्थिर करने और विश्वास के विषय में, समझाने के लिए भेजा था।
पौलुस ने कहां कि क्लेशों के लिए ही ठहराए गए हैं।
पौलुस को चिन्ता थी कि परीक्षा करनेवाले ने उनकी परीक्षा की हो और उनका परिश्रम व्यर्थ ठहरे।
पौलुस थिस्सलुनीके के विश्वासियों के विश्वास और प्रेम और उन्हे देखने की लालसा का समाचार सुनकर शान्ति पाई।
पौलुस कहता है कि थिस्सलुनीके के विश्वासी प्रभु में स्थिर रहें तो वे जीवित हैं।
पौलुस थिस्सलुनीके के विश्वासियों से भेंट करने के लिए दिन रात प्रार्थना में लगा रहता था कि उनको विश्वास की घटी पूरी करे।
पौलुस की मनोकामना थी कि थिस्सलुनीके के विश्वासियों का आपसी प्रेम और वरन् सब मनुष्यों के साथ उनका प्रेम बढ़े।
पौलुस चाहता था कि थिस्सलुनीके के विश्वासी जब प्रभु यीशु अपने सब पवित्र जनों के साथ आए तब वे पवित्रता में निर्दोष पाए जाएं।
1 इसलिए हे भाइयों, हम तुम से विनती करते हैं, और तुम्हें प्रभु यीशु में समझाते हैं, कि जैसे तुम ने हम से योग्य चाल चलना, और परमेश्वर को प्रसन्न करना सीखा है, और जैसा तुम चलते भी हो, वैसे ही और भी बढ़ते जाओ। 2 क्योंकि तुम जानते हो, कि हमने प्रभु यीशु की ओर से तुम्हें कौन-कौन से निर्देश पहुँचाए।
3 क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम पवित्र बनो* अर्थात् व्यभिचार से बचे रहो, 4 और तुम में से हर एक पवित्रता और आदर के साथ अपने पात्र* को प्राप्त करना जाने। 5 और यह काम अभिलाषा से नहीं, और न अन्यजातियों के समान, जो परमेश्वर को नहीं जानतीं। 6 कि इस बात में कोई अपने भाई को न ठगे, और न उस पर दाँव चलाए, क्योंकि प्रभु इस सब बातों का पलटा लेनेवाला है; जैसा कि हमने पहले तुम से कहा, और चिताया भी था। (भज. 94:1)
7 क्योंकि परमेश्वर ने हमें अशुद्ध होने के लिये नहीं, परन्तु पवित्र होने के लिये बुलाया है। 8 इसलिए जो इसे तुच्छ जानता है, वह मनुष्य को नहीं, परन्तु परमेश्वर को तुच्छ जानता है, जो अपना पवित्र आत्मा तुम्हें देता है।
9 किन्तु भाईचारे के प्रेम के विषय में यह आवश्यक नहीं, कि मैं तुम्हारे पास कुछ लिखूँ; क्योंकि आपस में प्रेम रखना तुम ने आप ही परमेश्वर से सीखा है; (1 यहू. 3:11, रोम. 12:10) 10 और सारे मकिदुनिया के सब भाइयों के साथ ऐसा करते भी हो, पर हे भाइयों, हम तुम्हें समझाते हैं, कि और भी बढ़ते जाओ, 11 और जैसा हमने तुम्हें समझाया, वैसे ही चुपचाप रहने और अपना-अपना कामकाज* करने, और अपने-अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न करो। 12 कि बाहरवालों के साथ सभ्यता से बर्ताव करो, और तुम्हें किसी वस्तु की घटी न हो।
13 हे भाइयों, हम नहीं चाहते, कि तुम उनके विषय में जो सोते हैं, अज्ञानी रहो; ऐसा न हो, कि तुम औरों के समान शोक करो जिन्हें आशा नहीं। 14 क्योंकि यदि हम विश्वास करते हैं, कि यीशु मरा, और जी भी उठा, तो वैसे ही परमेश्वर उन्हें भी जो यीशु में सो गए हैं, उसी के साथ ले आएगा। 15 क्योंकि हम प्रभु के वचन के अनुसार तुम से यह कहते हैं, कि हम जो जीवित हैं, और प्रभु के आने तक बचे रहेंगे तो सोए हुओं से कभी आगे न बढ़ेंगे।
16 क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा*, और परमेश्वर की तुरही फूँकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहले जी उठेंगे। 17 तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उनके साथ बादलों पर उठा लिए जाएँगे, कि हवा में प्रभु से मिलें, और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे। 18 इसलिए इन बातों से एक दूसरे को शान्ति दिया करो।
पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस विनती करते हैं, थिस्सलोनिका के विश्वासी नहीं
“जैसी तुम्हें हमने शिक्षा दी है”।
चलना अर्थात जीवन-आचरण। “तुम्हें वैसा जीवन आचरण भी रखना है”।
“यौन सम्बन्धित अनाचार से बचो”
“साथ रहना समझे”
“अनुचित यौनाचार”
“कोई भी व्यक्ति” या “कोई भी जन”
यह एक ही बात के लिए दो शब्द हैं कि विचार पर बल उत्पन्न हो। वैकल्पिक अनुवाद “अनुचित काम”
“प्रभु.... अपराधी को दण्ड देगा और जिसके साथ अनुचित किया गया उसकी रक्षा करेगा”।
“तुम से कहा और कठोर चेतावनी भी दी”
“हमें” अर्थात सब विश्वासियों को। (देखें:
“जो इस शिक्षा को मान प्रदान नहीं करता है” या “जो इस शिक्षा को अनदेखा करता है”
“विश्वासियों से प्रेम”
“तुम संपूर्ण मकिदुनिया में विश्वासियों से प्रेम करते हो”
“प्रयास करते हैं” या “सच्चे दिल से यत्न करते हैं”
अन्यों के काम में हस्तक्षेप मत करो। वैकल्पिक अनुवाद: “अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करो”
“अपना काम करके जीविका कमाओ”
“सम्मानित एवं योग्य आचरण रखो”
“जो मसीह के विश्वासी नहीं हैं”
“तुम्हें कोई कमी न हो”
“हमारे” अर्थात पौलुस और तीमुथियुस के लिए, कुलुस्से के विश्वासी उसके नहीं गिने गए हैं।
“हम चाहते हैं कि तुम समझ लो”
“तुम विलाप न करो”
“जो विश्वास नहीं करते उनके समान”
“हम” अर्थात पौलुस और उसके पाठक
“सदा जीवित रहने को जीआ”
“मृतकों को जीवित करके यीशु के साथ ले आया जब यीशु पृथ्वी पर लौट आएगा”।
“हम” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस
“प्रभु के पुनः आगमन दिवस तक”
“निश्चय ही उनसे पहले न जाएंगे
“प्रभु स्वयं नीचे आएगा”
“बड़ा स्वर्गदूत”
“मसीह के मृतक विश्वासी पहले जी उठेंगे”
“हम” अर्थात सब विश्वासी
“उनके” अर्थात जिन विश्वासी मृतकों का पुनरूत्थान हुआ है और मसीह के साथ हैं
“आकाश में प्रभु यीशु भेंट करेंगे”
पौलुस चाहता था कि थिस्सलुनीके के विश्वासी योग्य चाल चलना और परमेश्वर को प्रसन्न करना सीखें वरन उससे भी बढ़कर करें।
पौलुस कहता है कि उनके बारे में परमेश्वर की इच्छा थी कि वे पवित्र बनें।
पति अपनी पत्नी के साथ पवित्रता और आदर का संबन्ध रखे।
जो भाई व्यभिचार में पाप करता है उससे परमेश्वर पलटा लेगा।
जो मनुष्य पवित्रता की बुलाहट को तुच्छ समझता है, वह परमेश्वर को तुच्छ समझता है।
पौलुस चाहता था कि थिस्सलुनीके के भाई एक दूसरे से और भी अधिक प्रेम रखें।
थिस्सलुनीके के विश्वासियों को चुपचाप रहना, अपना अपना काम काज करना और अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न करना था।
थिस्सलुनीके के विश्वासियों को अपने मृतकों के बारे में भ्रम था।
जो मसीह में सो गए हैं उन्हे परमेश्वर फिर से मसीह के साथ लाएगा।
प्रभु स्वर्ग से एक ललकार के साथ आएगा और स्वर्ग से तुरही फूंकी जाएगी।
मसीह में जो मृतक हैं वे पहले जी उठेंगे तदोपरान्त जो जीवित हैं उसके साथ बादलों पर उठा लिए जाएंगे।
उठाए गए लोग प्रभु से बादलों में भेंट करेंगे और फिर सदैव प्रभु के साथ रहेंगे।
पौलुस थिस्सलुनीके के विश्वासियों से कहां कि वे एक दूसरे को ऐसी बातों से शान्ति दें।
1 पर हे भाइयों, इसका प्रयोजन नहीं, कि समयों और कालों* के विषय में तुम्हारे पास कुछ लिखा जाए। 2 क्योंकि तुम आप ठीक जानते हो कि जैसा रात को चोर आता है, वैसा ही प्रभु का दिन आनेवाला है। 3 जब लोग कहते होंगे, “कुशल हैं, और कुछ भय नहीं,” तो उन पर एकाएक विनाश आ पड़ेगा, जिस प्रकार गर्भवती पर पीड़ा; और वे किसी रीति से न बचेंगे। (मत्ती 24:37-39)
4 पर हे भाइयों, तुम तो अंधकार में नहीं हो, कि वह दिन तुम पर चोर के समान आ पड़े। 5 क्योंकि तुम सब ज्योति की सन्तान, और दिन की सन्तान हो, हम न रात के हैं, न अंधकार के हैं। 6 इसलिए हम औरों की समान सोते न रहें, पर जागते और सावधान रहें। 7 क्योंकि जो सोते हैं, वे रात ही को सोते हैं, और जो मतवाले होते हैं, वे रात ही को मतवाले होते हैं।
8 पर हम जो दिन के हैं, विश्वास और प्रेम की झिलम पहनकर और उद्धार की आशा का टोप पहनकर सावधान रहें। (यशा. 59:17) 9 क्योंकि परमेश्वर ने हमें क्रोध के लिये नहीं*, परन्तु इसलिए ठहराया कि हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा उद्धार प्राप्त करें। 10 वह हमारे लिये इस कारण मरा, कि हम चाहे जागते हों, चाहे सोते हों, सब मिलकर उसी के साथ जीएँ। 11 इस कारण एक दूसरे को शान्ति दो, और एक दूसरे की उन्नति के कारण बनो, निदान, तुम ऐसा करते भी हो।
12 हे भाइयों, हम तुम से विनती करते हैं, कि जो तुम में परिश्रम करते हैं, और प्रभु में तुम्हारे अगुवे हैं, और तुम्हें शिक्षा देते हैं, उन्हें मानो। 13 और उनके काम के कारण प्रेम के साथ उनको बहुत ही आदर के योग्य समझो आपस में मेल-मिलाप से रहो। 14 और हे भाइयों, हम तुम्हें समझाते हैं, कि जो ठीक चाल नहीं चलते, उनको समझाओ, निरुत्साहित को प्रोत्साहित करों, निर्बलों को संभालो, सब की ओर सहनशीलता दिखाओ।
15 देखो के कोई किसी से बुराई के बदले बुराई न करे; पर सदा भलाई करने पर तत्पर रहो आपस में और सबसे भी भलाई ही की चेष्टा करो। (1 पत. 3:9) 16 सदा आनन्दित रहो। 17 निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो। 18 हर बात में धन्यवाद करो: क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यहीं इच्छा है।
19 आत्मा को न बुझाओ। 20 भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न जानो। 21 सब बातों को परखो जो अच्छी है उसे पकड़े रहो। 22 सब प्रकार की बुराई से बचे रहो। (फिलि. 4:8)
23 शान्ति का परमेश्वर आप ही तुम्हें पूरी रीति से पवित्र करे; तुम्हारी आत्मा, प्राण और देह हमारे प्रभु यीशु मसीह के आने तक पूरे और निर्दोष सुरक्षित रहें। 24 तुम्हारा बुलानेवाला विश्वासयोग्य है, और वह ऐसा ही करेगा।
25 हे भाइयों, हमारे लिये प्रार्थना करो।
26 सब भाइयों को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो। 27 मैं तुम्हें प्रभु की शपथ देता हूँ, कि यह पत्री सब भाइयों को पढ़कर सुनाई जाए।
28 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे।
“मसीह के पुनः आगमन का समय” (यू.डी.बी.)
“सही” या “निश्चित”
जैसे कोई नहीं जानता कि चोर रात में कब आयेगा, उसी प्रकार मसीह के आगमन का समय भी कोई नहीं जानता है। “अकस्मात ही”
“जब लोग कहेंगे”
“अनापेक्षित विनाश”
जैसे गर्भवती की प्रसव पीड़ा अकस्मात आती है और शिशु के जन्म तक नहीं रूकती है, उसी प्रकार विनाश आयेगा और वे बचेंगे नहीं।
“इस दुष्ट संसार के मनुष्यों के सदृश्य नहीं हो जो अन्धकार में रहने जैसा है”
प्रभु के आगमन का दिन तुम्हारे लिए आश्चर्य का दिन नहीं होगा जैसे चोर का आगमन होता है। “तुम्हें सतर्क न पाए”
“ज्योति की सन्तान” अर्थात मसीह के अनुयायी “रात के” अर्थात अन्य सब सांसारिक जन।
पौलुस का “सोते” से अभिप्राय है, संसार का न्याय करने क लिए प्रभु के पुनः आगमन से अनभिज्ञ। “हम उन लोगों के सदृश्य न हों जो मसीह के पुनः आगमन से अनभिज्ञ हैं।
“हम” अर्थात पौलुस और थिस्सलोनिका के विश्वासी।
“हम मसीह के पुनः आगमन के लिए सतर्क रहें और आत्मसंयमी हों”।
जिस प्रकार कि मनुष्य रात में अचेत सोता है, वैसे ही संसार है। जिसे मसीह के पुनः आगमन का ज्ञान नहीं है।
पौलुस कहता है कि मनुष्य रात ही में नशे में रहता है वैसे ही मसीह के पुनः आगमन से अनभिज्ञ मनुष्यों का जीवन संयमी नहीं होता है।
मसीह के विश्वासी।वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह के विश्वास” या “ज्योति के लोग”
“संयमी हों”
सैनिक अपनी देह की रक्षा के लिए वक्ष स्त्राण धारण करता है उसी प्रकार विश्वास और प्रेम में रहने वाला विश्वासी भी सुरक्षा पायेगा, “से अपनी आत्मरक्षा करो”
टोप सैनिक के सिर की रक्षा करता है, उसी प्रकार उद्धार का आश्वासन विश्वासी की रक्षा करता है, “और जान लें”
“उद्धार प्राप्त करें”
“हम चाहे मृतक हों या जीवित हों”
“एक दूसरे को उत्साहित करो “
स्थानीय कलीसिया के अगुवों का सम्मान करो और उनको प्रतिष्ठित करो”
विश्वासियों के स्थानीय समुदाय में नियुक्त धर्मवृद्ध एवं पास्टर।
क्योंकि तुम उनके प्रेम करते हो इसलिए उनका सम्मान करते हुए उन्हें प्रतिष्ठा प्रदान करो”
पौलुस विश्वासियो को शिक्षा दे रहा है कि सब बातों में आनन्दित रहने का आत्मिक स्वभाव बनाए रखो, प्रार्थना में सावधानी रखो और सब बातों में धन्यवाद दो।
“पवित्र आत्मा के काम को अपने मध्य बाधित मत करो”।
“भविष्यद्वाणी की अवहेलना मत करो” “पवित्र आत्मा किसी को प्रकाशन प्रदान करे तो उससे घृणा मत करो”
कार्य और शब्द परमेश्वर के आत्मा द्वारा दिए गए है। उन्हें सुनिश्चित करना उचित है कि वह स्वयं वचन हैं।
“तुम्हें पृथक करे” या “तुम्हें दोषरहित करे कि पाप न करो”
वो समानान्तर शब्द है आत्मा, प्राण और देह बदल देने के लिए काम में लिए गए हैं।
“पाप से बचे रहें”
वैकल्पिक अनुवाद: “जिसने तुम्हें बुलाया है वह विश्वासयोग्य है”
“वह तुम्हारी सहायता करेगा”
“मैं तुमसे ऐसे कहता हूं जैसे स्वयं प्रभु कह रहा है”।
पौलुस कहता है कि प्रभु का दिन एक चोर के समान आएगा।
कुछ लोग कहेंगे, "कुशल है और कुछ भय नहीं।"
विश्वासी अन्धकार में नहीं हैं वे ज्योति की सन्तान हैं प्रभु का दिन चोर के समान उनपर न आ पड़ें।
पौलुस विश्वासियों से कहता है कि वे विश्वास और प्रेम की झिलम पहनकर और उद्धार की आशा का टोप पहनकर सावधान रहें।
विश्वासी प्रभु यीशु मसीह के माध्यम से परमेश्वर द्वारा उद्धार के लिए नियत हैं।
पौलुस कहता है कि वे प्रेम के साथ उन्हे बहुत ही आदर के योग्य समझें।
पौलुस कहता है कि विश्वासियों को बुराई के बदले बुराई नहीं करनी है।
पौलुस कहता है कि विश्वासी हर बात में धन्यवाद दें क्योंकि उनके लिए परमेश्वर की यही इच्छा है।
पौलुस विश्वासियों को निर्देश देता है कि वे भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न जानें, सब प्रकार की बातों को परखें, जो अच्छी हैं उन्हे पकड़े रहें।
पौलुस प्रार्थना करता है कि परमेश्वर विश्वासियों को आत्मा, प्राण और देह में पूरी रीति से पवित्र करे।
पौलुस प्रार्थना करता है कि प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह विश्वासियों पर होता रहे।
1 पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनीकियों की कलीसिया के नाम, जो हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में है:
2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
3 हे भाइयों, तुम्हारे विषय में हमें हर समय परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, और यह उचित भी है इसलिए कि तुम्हारा विश्वास बहुत बढ़ता जाता है, और आपस में तुम सब में प्रेम बहुत ही बढ़ता जाता है। 4 यहाँ तक कि हम आप परमेश्वर की कलीसिया में तुम्हारे विषय में घमण्ड करते हैं, कि जितने उपद्रव और क्लेश तुम सहते हो, उन सब में तुम्हारा धीरज और विश्वास प्रगट होता है। 5 यह परमेश्वर के सच्चे न्याय का स्पष्ट प्रमाण है; कि तुम परमेश्वर के राज्य के योग्य ठहरो, जिसके लिये तुम दुःख भी उठाते हो*।
6 क्योंकि परमेश्वर के निकट यह न्याय है, कि जो तुम्हें क्लेश देते हैं, उन्हें बदले में क्लेश दे। 7 और तुम जो क्लेश पाते हो, हमारे साथ चैन दे; उस समय जब कि प्रभु यीशु अपने सामर्थी स्वर्गदूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा। (यहू. 1:14-15, प्रका. 14:13) 8 और जो परमेश्वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उनसे पलटा लेगा। (भज. 79:6, यशा. 66:15, यिर्म. 10:25)
9 वे प्रभु के सामने से, और उसकी शक्ति के तेज से दूर होकर* अनन्त विनाश का दण्ड पाएँगे। (प्रका. 21:8, मत्ती 25:41,46, यशा. 2:19,21) 10 यह उस दिन होगा, जब वह अपने पवित्र लोगों में महिमा पाने, और सब विश्वास करनेवालों में आश्चर्य का कारण होने को आएगा; क्योंकि तुम ने हमारी गवाही पर विश्वास किया। (1 थिस्स. 2:13, 1 कुरि. 1:6, भज. 89:7, यशा. 49:3)
11 इसलिए हम सदा तुम्हारे निमित्त प्रार्थना भी करते हैं, कि हमारा परमेश्वर तुम्हें इस बुलाहट के योग्य समझे, और भलाई की हर एक इच्छा, और विश्वास के हर एक काम को सामर्थ्य सहित पूरा करे, 12 कि हमारे परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह के अनुसार हमारे प्रभु यीशु का नाम तुम में महिमा पाए, और तुम उसमें। (यशा. 24:15, यशा. 66:5, 1 पत. 1:7-8)
“तुम्हें” अर्थात थिस्सलुनीकियों की कलीसिया के विश्वासियों को
“सिलवानुस” सिलास के लिए लातीनी शब्द है। यह वह सिलास है जो प्रेरितों के काम की पुस्तक में पौलुस के साथ प्रचार यात्राओं में था।
"हमे" अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस के लिए था न की थिस्सलुनीकियों के लिए।
“परमेश्वर का लगातार धन्यवाद करना चाहिए”
“क्योंकि ऐसा करना उचित है” या “यह सही है”
“अपने विश्वासी भाइयों-बहनों के प्रति”
“तुम्हारे” अर्थात थिस्सलोनिका के विश्वासी
यह कर्ता संबन्धित सर्वनाम है जो पौलुस के गर्व करने पर बल देता है। कुछ अनुवादों में केवल “हम” है।
उपद्रव और क्लेश तुम सहते हो दो विभिन्न शब्दों द्वारा एक ही तथ्य को व्यक्त किया गया है कि वे घोर कष्टों में थे।
“कि परमेश्वर तुम्हें अपने राज्य में महत्त्वपूर्ण समझे”
“परमेश्वर खरा है” या “परमेश्वर न्यायनिष्ठ है”
पद लोप का यह उद्धारण “बदले में परमेश्वर उक्ति को काम में नही ले रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार होता है, बदले में परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे”।
“परमेश्वर के महा सामर्थी स्वर्गदूत”
“वह प्रचण्ड अग्नि में दण्ड देगा” (यू.डी.बी.) “प्रभु यीशु प्रचण्ड अग्नि से दण्ड देगा”
“वे जो शुभ सन्देश पर नहीं चलते दण्ड पाएंगे”
“आशारहित विनाश की अनन्त प्रक्रिया”
जब यीशु प्रभु के दिन आएगा
इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “यीशु के विश्वासी उसकी महिमा करेंगे”
“चकित होने” या “श्रद्धा से मर जाने”
थिस्सलोनिका के विश्वासियों को
“हम प्रार्थना भी करते हैं”
“हम” अर्थात पौलुस सिलवानुस और तीमुथियुस
“बार-बार”
बहुवचन सर्वनाम है अर्थात थिस्सलोनिका के विश्वासियों के लिए।
“तुम्हारी इच्छा के कामों को हर प्रकार से उत्तम रीति से करने में समर्थ हो”
“कि तुम हमारे प्रभु यीशु के नाम का महिमान्वन करो”।
“और यीशु तुम्हें महिमान्वित करे”
“हमारे परमेश्वर के अनुग्रह के कारण”
उनके विश्वास के बढ़ते जाने और आपसी प्रेम की वृद्धि के लिए पौलुस परमेश्वर को धन्यवाद कहता है।
विश्वासी उपद्रव और क्लेश सह रहे थे।
विश्वासी परमेश्वर के राज्य के योग्य गिने जाएंगे।
परमेश्वर उन लोगों को दण्ड देगा जो विश्वासियों को सताते हैं उन्हे धधकती हुई आग से दण्ड दिया जाएगा।
जब मसीह यीशु स्वर्ग से प्रकट होगा तब विश्वासी चैन पाएंगे।
जो परमेश्वर को नहीं जानते उनका दण्ड अनन्त होगा।
जो परमेश्वर को नहीं जानते वे दण्ड स्वरूप प्रभु की उपस्थिति से अलग किए जाएंगे।
जब मसीह आएगा तब वह विश्वासियों के लिए आश्चर्य का कारण होगा।
उनके भले कामों का परिणाम होगा कि प्रभु यीशु मसीह के नाम की महिमा होगी।
1 हे भाइयों, हम अपने प्रभु यीशु मसीह के आने, और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में तुम से विनती करते हैं। 2 कि किसी आत्मा, या वचन, या पत्री के द्वारा जो कि मानो हमारी ओर से हो, यह समझकर कि प्रभु का दिन आ पहुँचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर न हो जाए; और न तुम घबराओ।
3 किसी रीति से किसी के धोखे में न आना क्योंकि वह दिन न आएगा, जब तक विद्रोह नहीं होता, और वह अधर्मी पुरुष अर्थात् विनाश का पुत्र प्रगट न हो। 4 जो विरोध करता है, और हर एक से जो परमेश्वर, या पूज्य कहलाता है, अपने आप को बड़ा ठहराता है, यहाँ तक कि वह परमेश्वर के मन्दिर में बैठकर अपने आप को परमेश्वर प्रगट करता है। (यहे. 28:2, दानि. 11:36-37)
5 क्या तुम्हें स्मरण नहीं, कि जब मैं तुम्हारे यहाँ था, तो तुम से ये बातें कहा करता था? 6 और अब तुम उस वस्तु को जानते हो, जो उसे रोक रही है, कि वह अपने ही समय में प्रगट हो। 7 क्योंकि अधर्म का भेद अब भी कार्य करता जाता है, पर अभी एक रोकनेवाला है, और जब तक वह दूर न हो जाए, वह रोके रहेगा।
8 तब वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु अपने मुँह की फूँक से मार डालेगा*, और अपने आगमन के तेज से भस्म करेगा। (अय्यू. 4:9, यशा. 11:4) 9 उस अधर्मी का आना शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की झूठी सामर्थ्य, चिन्ह, और अद्भुत काम के साथ। 10 और नाश होनेवालों के लिये अधर्म के सब प्रकार के धोखे के साथ होगा; क्योंकि उन्होंने सत्य के प्रेम को ग्रहण नहीं किया जिससे उनका उद्धार होता।
11 और इसी कारण परमेश्वर उनमें एक भटका देनेवाली सामर्थ्य को भेजेगा ताकि वे झूठ पर विश्वास करें*। 12 और जितने लोग सत्य पर विश्वास नहीं करते, वरन् अधर्म से प्रसन्न होते हैं, सब दण्ड पाएँ।
13 पर हे भाइयों, और प्रभु के प्रिय लोगों चाहिये कि हम तुम्हारे विषय में सदा परमेश्वर का धन्यवाद करते रहें, कि परमेश्वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया; कि आत्मा के द्वारा पवित्र बनकर, और सत्य पर विश्वास करके उद्धार पाओ। (इफि. 1:4-5, 1 पत. 1:1-5, व्य. 33:12) 14 जिसके लिये उसने तुम्हें हमारे सुसमाचार के द्वारा बुलाया, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को प्राप्त करो। 15 इसलिए, हे भाइयों, स्थिर रहो; और जो शिक्षा तुमने हमारे वचन या पत्र के द्वारा प्राप्त किया है, उन्हें थामे रहो।
16 हमारा प्रभु यीशु मसीह आप ही, और हमारा पिता परमेश्वर जिस ने हम से प्रेम रखा, और अनुग्रह से अनन्त शान्ति और उत्तम आशा दी है। 17 तुम्हारे मनों में शान्ति दे*, और तुम्हें हर एक अच्छे काम, और वचन में दृढ़ करे।।
“अब” प्रसंग में परिवर्तन का प्रतीक है
“मैं तुमसे आग्रह करता हूं”। (यू.डी.बी.)
“हम” अर्थात् पौलुस सिलवानुस और तीमुथियुस
“तुम” अर्थात थिस्सलोनिका के विश्वासी
यह घटनाएं तुम्हारा मन विचलित न कर दें
“किसी बात या पत्र को हमारी ओर से मानकर”
“कि तुम्हें निर्देश दे रहा है”
थिस्सलोनिका के विश्वासियों को
“प्रभु का दिन नहीं आएगा”
“परमेश्वर विनाश के पुत्र को प्रकट न करे”
“जो यथासंभव सब कुछ नष्ट कर देगा” या “विनाशक” वह अपने पिता, शैतान की आज्ञा मानेगा
“हर एक वस्तु जिसकी मनुष्य पूजा करते हैं”
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा विश्वासियों को पौलुस की शिक्षाओं का स्मरण करवाया गया है। इसका अनुवाद हो सकता है, “मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हें स्मरण है”।
“तुम्हें” अर्थात थिस्सलोनिका के विश्वासियों को
यीशु के पुनः आगमन की बातें तथा पाप के पुरूष के बारे में चर्चा
“वह अपने समय पर प्रगट होगा” - जब तब परमेश्वर पाप के पुरूष को प्रकट करने का निर्णय न ले।
एक ऐसा मर्म जो मनुष्य अपनी बुद्धि से समझ नहीं सकता, केवल परमेश्वर के प्रकाशन से ज्ञात होता है।
“तब परमेश्वर उस पाप के पुरूष को प्रकट करेगा।” यह मसीह विरोधी का एक और नाम है
“उसके वचन के सामर्थ्य से”
जब यीशु लौटकर आएगा तब वह उस पाप के पुरूष को नष्ट कर देगा।
झूठी सामर्थ्य और चिन्ह और अद्भुत काम
“मनुष्यों द्वारा सत्य से प्रेम न करने के कारण
“परमेश्वर उस पाप के पुरूष को मनुष्य को धोखा देने की अनुमति देगा”
“परमेश्वर उन सबको दण्ड देगा”
"परन्तु" अब प्रसंग में परिवर्तन आता है
“हमें बार-बार धन्यवाद देना है”
हम अर्थात् पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस
“तुम्हें” बहुवचन है और थिस्सलोनिका के विश्वासियों के लिए है।
“भाइयों, प्रभु तुमसे प्रेम करता है”।
“विश्वास करने वालों में प्रथम (यू.डी.बी.)
“कि परमेश्वर तुम्हारा उद्धार करके आत्मा के माध्यम से तुम्हें अपने लिए पृथक करे” (यू.डी.बी.)
“सत्य में विश्वास करो” या “सत्य पर भरोसा करके”
ये परम्पराएं वे शिक्षाएं है जो पौलुस और सम्भवतः अन्य प्रेरितों द्वारा मसीह के सत्यों वे, बारे में उन्हें सोंपी गई थी।
“हमने तुम्हें सिखाई है” (यू.डी.बी)
हमने जो कहकर सिखाया या पत्र लिखकर सिखाया
प्रसंग में परिवर्तन
“हमारा” और “हमसे” अर्थात पौलुस के पाठक
“आप ही” प्रभु यीशु के उल्लेख पर बल देने के लिए
यह बहुवचन शब्द थिस्सलोनिका की कलीसिया के विश्वासियों के संदर्भ में है।
“तुम्हें शान्ति देकर दृढ़ करे”
पौलुस कहता है कि अब वह मसीह यीशु के आने के बारे में लिखेगा।
पौलुस ने उनसे कहा कि वे विश्वास न करें कि प्रभु का दिन आ गया है।
प्रभु के दिन से पूर्व धर्म का त्याग होगा और पाप का पुरुष अर्थात विनाश का पत्र प्रकट होगा।
वह विरोधी स्वयं को परमेश्वर से बड़ा ठहराएगा और परमेश्वर के मन्दिर में बैठकर अपने आपको ईश्वर ठहराएगा।
वह अपने समय में प्रकट होगा क्योंकि अभी एक रोकनेवाला है।
जब यीशु प्रकट होगा तब वह उस अधर्मी को भस्म कर देगा।
शैतान उस अधर्मी को सामर्थ्य, चिन्ह और अद्भुत काम की शक्ति देगा।
कुछ लोग उस अधर्मी से धोखा खाएंगे क्योंकि उन्होने सत्य के प्रेम को ग्रहण नहीं किया जिस से उन का उद्धार होता।
जो धोखा खाएंगे और विनाश होंगे वे अर्धम से प्रसन्न होंगे।
परमेश्वर ने थिस्सलुनीके के विश्वासियों को आदि ही से चुन लिया था कि सुसमाचार के द्वारा मसीह की महिमा प्राप्त करें।
पौलुस थिस्सलुनीके के विश्वासियों से कहता है कि वे स्थिर रहें और जो शिक्षाएं पौलुस से पाई हैं उन्हे थामे रहें।
पौलुस की मनोकामना है कि थिस्सलुनीके के विश्वासी हर एक अच्छे काम और वचन में दृढ़ रहें।
1 निदान, हे भाइयों, हमारे लिये प्रार्थना किया करो, कि प्रभु का वचन ऐसा शीघ्र फैले, और महिमा पाए, जैसा तुम में हुआ। 2 और हम टेढ़े और दुष्ट मनुष्यों से बचे रहें क्योंकि हर एक में विश्वास नहीं। 3 परन्तु प्रभु विश्वासयोग्य है*; वह तुम्हें दृढ़ता से स्थिर करेगा: और उस दुष्ट से सुरक्षित रखेगा।
4 और हमें प्रभु में तुम्हारे ऊपर भरोसा है, कि जो-जो आज्ञा हम तुम्हें देते हैं, उन्हें तुम मानते हो, और मानते भी रहोगे। 5 परमेश्वर के प्रेम और मसीह के धीरज की ओर प्रभु तुम्हारे मन की अगुआई करे।
6 हे भाइयों, हम तुम्हें अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देते हैं; कि हर एक ऐसे भाई से अलग रहो, जो आलस्य में रहता है, और जो शिक्षा तुमने हम से पाई उसके अनुसार नहीं करता। 7 क्योंकि तुम आप जानते हो, कि किस रीति से हमारी सी चाल चलनी चाहिए; क्योंकि हम तुम्हारे बीच में आलसी तरीके से न चले। 8 और किसी की रोटी मुफ़्त में न खाई; पर परिश्रम और कष्ट से रात दिन काम धन्धा करते थे, कि तुम में से किसी पर भार न हो। 9 यह नहीं, कि हमें अधिकार नहीं; पर इसलिए कि अपने आप को तुम्हारे लिये आदर्श ठहराएँ, कि तुम हमारी सी चाल चलो।
10 और जब हम तुम्हारे यहाँ थे, तब भी यह आज्ञा तुम्हें देते थे, कि यदि कोई काम करना न चाहे, तो खाने भी न पाए। 11 हम सुनते हैं, कि कितने लोग तुम्हारे बीच में आलसी चाल चलते हैं; और कुछ काम नहीं करते, पर औरों के काम में हाथ डाला करते हैं*। 12 ऐसों को हम प्रभु यीशु मसीह में आज्ञा देते और समझाते हैं, कि चुपचाप काम करके अपनी ही रोटी खाया करें।
13 और तुम, हे भाइयों, भलाई करने में साहस न छोड़ो। 14 यदि कोई हमारी इस पत्री की बात को न माने, तो उस पर दृष्टि रखो; और उसकी संगति न करो, जिससे वह लज्जित हो; 15 तो भी उसे बैरी मत समझो पर भाई जानकर चिताओ।
16 अब प्रभु जो शान्ति का सोता है आप ही तुम्हें सदा और हर प्रकार से शान्ति दे: प्रभु तुम सब के साथ रहे। 17 मैं पौलुस अपने हाथ से* नमस्कार लिखता हूँ। हर पत्री में मेरा यही चिन्ह है: मैं इसी प्रकार से लिखता हूँ। 18 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम सब पर होता रहे।
प्रसंग में परिवर्तन का प्रतीक है
“हमारे” और “हम” पौलुस सिलवानुस और तीमुथियुस के लिए हैं-पाठक नहीं
कि अधिकाधिक मनुष्य प्रभु यीशु की चर्चा सुनें
कि मनुष्य मसीह यीशु के समाचार को मान प्रदान करें
थिस्सलोनिका के विश्वासियों को
“परमेश्वर हमारी रक्षा करेगा” या “परमेश्वर हमें बचाएगा”
“वह तुम्हें शक्ति देगा”
“शैतान से”
“प्रभु से जुड़े हुओं” (यू.डी.बी.)
हमें - "हमें अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस
बारे में
थिस्सलोनिका के विश्वासियों के विषय
सब विश्वासियों की अगुआई करे। “तुम्हारे मन का मार्गदर्शन करे”
यहां से एक नया प्रसंग आरंभ होता है।
“हम” “हम से” अर्थात पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस से।
अर्थात थिस्सलोनिका के विश्वासी
“हम तुम्हें आदेश देते है” या “हम तुम्हें आज्ञा देते है”
“अपने” में थिस्सलोनिका के विश्वासी भी हैं।
“आलसी है या रोजगार कमाना नहीं चाहता।”
“हमारा अनुकरण करो”
“हमने कठोर परिश्रम करके”
“हमें अधिकार है”
“हम” अर्थात पौलुस, सिलवानुस, तीमुथियुस
अर्थात थिस्सलोनिका के विश्वासियों के मध्य।
काम करना न चाहे - “आलसी” या “कामचोर”
“शान्ति के साथ”
परन्तु -"परन्तु" आलसी विश्वासियों और परिश्रमी विश्वासियों में विषमता का प्रतीक
तुम थिस्सलोनिका के विश्वासी
यह निराश न होने के लिए एक मुहावरा है।
“उसे सबके समक्ष उभारो” (यू.बी.डी.)
“आप” शान्ति के प्रभु के काम पर बल देता है
तुम थिस्सलोनिका के विश्वासियों के साथ (देखें:
“मैं पौलुस रूप में नमस्कार लिख रहा हूं।
पौलुस चाहता है कि थिस्सलुनीके के विश्वासी प्रार्थना करें कि प्रभु का वचन शीघ्र फैले और महिमा पाए।
पौलुस की यही इच्छा है कि वे टेढ़े और दुष्ट मनुष्यों से बचे रहें जिनमें विश्वास नहीं है।
पौलुस थिस्सलुनीके के विश्वासियों से कहता है कि उसने उन्हे जो जो आज्ञा दी हैं, उन्हे वे मानते रहेंगे।
उन विश्वासियों से पौलुस ने कहां कि अनुचित चाल चलने वाले भाई से वे अलग रहें।
पौलुस ने दिन रात परिश्रम करके अपने भोजन का प्रबन्ध किया और किसी पर बोझ नहीं बना।
पौलुस ने आज्ञा दी कि जो काम नहीं करता वह खाने भी न पाए।
पौलुस काम नहीं करने वालों को आज्ञा देता और समझाता था कि वे चुपचाप काम करके अपनी ही रोटी खाया करें।
जो इस पत्र में लिखे पौलुस के निर्देशों को न मानें तो वे उसके साथ संगति न रखें।
पौलुस की मनोकामना है कि प्रभु थिस्सलुनीके के विश्वासियों को हर प्रकार की शान्ति दे।
पौलुस ने अपने हाथों से अभिवादन लिखा कि वही लेखक है।
1 पौलुस की ओर से जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, और हमारी आशा के आधार मसीह यीशु की आज्ञा से मसीह यीशु का प्रेरित है, 2 तीमुथियुस के नाम जो विश्वास में मेरा सच्चा पुत्र है: पिता परमेश्वर, और हमारे प्रभु मसीह यीशु की ओर से, तुझे अनुग्रह और दया, और शान्ति मिलती रहे।
3 जैसे मैंने मकिदुनिया को जाते समय तुझे समझाया था, कि इफिसुस में रहकर कुछ लोगों को आज्ञा दे कि अन्य प्रकार की शिक्षा न दें, 4 और उन कहानियों और अनन्त वंशावलियों पर मन न लगाएँ*, जिनसे विवाद होते हैं; और परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार नहीं, जो विश्वास से सम्बन्ध रखता है; वैसे ही फिर भी कहता हूँ।
5 आज्ञा का सारांश यह है कि शुद्ध मन और अच्छे विवेक, और निष्कपट विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो। 6 इनको छोड़कर कितने लोग फिरकर बकवाद की ओर भटक गए हैं, 7 और व्यवस्थापक तो होना चाहते हैं, पर जो बातें कहते और जिनको दृढ़ता से बोलते हैं, उनको समझते भी नहीं। 8 पर हम जानते हैं कि यदि कोई व्यवस्था को व्यवस्था की रीति पर काम में लाए तो वह भली है।
9 यह जानकर कि व्यवस्था धर्मी जन के लिये नहीं पर अधर्मियों, निरंकुशों, भक्तिहीनों, पापियों, अपवित्रों और अशुद्धों, माँ-बाप के मारनेवाले, हत्यारों, 10 व्यभिचारियों, पुरुषगामियों, मनुष्य के बेचनेवालों, झूठ बोलनेवालों, और झूठी शपथ खानेवालों, और इनको छोड़ खरे उपदेश के सब विरोधियों के लिये ठहराई गई है। 11 यही परमधन्य परमेश्वर की महिमा के उस सुसमाचार के अनुसार है, जो मुझे सौंपा गया है।
12 और मैं अपने प्रभु मसीह यीशु का, जिस ने मुझे सामर्थ्य दी है, धन्यवाद करता हूँ; कि उसने मुझे विश्वासयोग्य समझकर अपनी सेवा के लिये ठहराया। 13 मैं तो पहले निन्दा करनेवाला, और सतानेवाला, और अंधेर करनेवाला था; तो भी मुझ पर दया हुई, क्योंकि मैंने अविश्वास की दशा में बिन समझे बूझे ये काम किए थे। 14 और हमारे प्रभु का अनुग्रह उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, बहुतायत से हुआ।
15 यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है कि मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिये जगत में आया, जिनमें सबसे बड़ा मैं हूँ। 16 पर मुझ पर इसलिए दया हुई कि मुझ सबसे बड़े पापी में यीशु मसीह अपनी पूरी सहनशीलता दिखाए, कि जो लोग उस पर अनन्त जीवन के लिये विश्वास करेंगे, उनके लिये मैं एक आदर्श बनूँ। 17 अब सनातन राजा अर्थात् अविनाशी* अनदेखे अद्वैत परमेश्वर का आदर और महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
18 हे पुत्र तीमुथियुस, उन भविष्यद्वाणियों के अनुसार जो पहले तेरे विषय में की गई थीं, मैं यह आज्ञा सौंपता हूँ, कि तू उनके अनुसार अच्छी लड़ाई को लड़ता रह। 19 और विश्वास और उस अच्छे विवेक को थामे रह जिसे दूर करने के कारण कितनों का विश्वास रूपी जहाज डूब गया। 20 उन्हीं में से हुमिनयुस और सिकन्दर हैं जिन्हें मैंने शैतान को सौंप दिया कि वे निन्दा करना न सीखें।
“पौलुस की ओर से” या “मैं ,पौलुस, यह पत्र लिख रहा हूँ”।
“के आदेश से” या “के अधिकार से” या “क्योंकि परमेश्वर ने मुझे प्रेरित होने की आज्ञा दी है”
पौलुस, तीमुथियुस और संभवतः अन्य विश्वासी भी।
“परमेश्वर जिसने हमारा उद्धार किया है”
“मसीह यीशु, जो हमारी आशा है” या “मसीह यीशु जिसमें हम भविष्य के लिए विश्वास करते हैं।"
“तीमुथियुस के लिए यह पत्र”
“सच्चा पुत्र” - पौलुस और तीमुथियुस में पिता-पुत्र का सा संबन्ध दर्शाता है। यद्यपि तीमुथियुस पौलुस का अपना पुत्र नहीं था, वह पौलुस के लिए वही सम्मान, आज्ञापालन तथा सेवा करता था जो एक पुत्र अपने पिता के लिए करता है। वैकल्पिक अनुवाद: “तू मेरे लिए एक पुत्र स्वरूप है"
“अनुग्रह, दया और शान्ति तेरी हो” या “तुझे कृपा, दया और शान्ति का अनुभव हो”
“परमेश्वर, जो हमारा पिता है”
“और यीशु मसीह, जो हमारा प्रभु है”
तुझे समझाया था “जैसे मैंने तुम से विनती की थी” या “जैसी मैंने तुझे आज्ञा दी थी” या “जैसा मैंने कहा था”
एकवचन
इफिसोस में रहकर -“इफिसोस में मेरी प्रतीक्षा करना”
“वे ध्यान न दें” या “उन्हें आज्ञा दे कि अनदेखा करें”
अर्थात किसी के पूर्वजों का लिखित लेखा। यहूदियों के लिए यह अत्यावश्यक था कि वह इस्त्राएल के किस गोत्र का था सिद्ध हो। मत्ती और लूका उसके उत्तम उदाहरण हैं
“जिनसे क्रोधित मतभेद उत्पन्न होता है” मनुष्य कथाओं और वंशावलियों पर विवाद करते हैं, जिनकी सत्यता अनिश्चित है।
“इसकी अपेक्षा परमेश्वर की योजना को बढ़ा” या “इसकी अपेक्षा परमेश्वर की बातों का प्रबन्ध कर”
“विश्वास से प्राप्त” या “विश्वास से संपन्न”
“निर्देशन का लक्ष्य” या “हम प्रेरित जो तुझे करने के लिए कहते हैं”।
या “आदेश”
संभावित अर्थ हैं 1) “परमेश्वर के लिए प्रेम” (यू.डी.बी.) या 2) पड़ोसी के लिए प्रेम”।
“अपने किसी भी काम में पाप की इच्छा न रखना”
अच्छे विवेक -अनुचित की अपेक्षा उचित का चुनाव करनेवाला विवेक” या “अनुचित नहीं उचित के चुनाव में सक्षम विवेक”।
“सत्यनिष्ठ” या “सच्चा” या “आडंबररहित” यह जाचं पर उपस्थित नायक का नकारात्मक शब्द है।
मूसा प्रदत्त विधान के शिक्षक
समझते भी नहीं - “वे उन्हें समझते नहीं” या “फिर भी अज्ञानी है”
“जिस पर वे बल देते हैं” या “संपूर्ण भरोसे से व्यक्त करते है”।
“अब”
व्यवस्था की रीति पर काम में लाए, तो वह भली है - “हम जानते है कि विधान उपयोगी है” या “हम जानते हैं कि विधान लाभकारी है”।
उचित रीति से काम में लाएं “यदि उसका उचित निर्वाह किया जाए” या “यदि जैसा उससे अपेक्षित है वैसा निर्वाह किया जायेगा
हम यह समझते हैं या “हमें इसका ज्ञान है” या “हम इससे अभिज्ञ हैं”
“उल्लंघन न करनेवाले के लिए नहीं” “उसका पालन करने वाले के लिए नहीं है” या “परमेश्वर की दृष्टि में उचित मनुष्य के लिए नहीं है”
“जो माता या पिता की हत्या करें” या “जो अपनी माता या पिता को शारीरिक क्षति पहुँचाएं”
यह एक पुल्लिंग शब्द है जो वैश्याओं के लिए काम में लिया गया है। अन्य स्थानों में इस शब्द का उपयोग उन मनुष्यों के लिए किया गया है जो परमेश्वर के निष्ठावान नहीं हैं। यहाँ इसका संदर्भ उन सबके लिए किया गया है जो विवाह के बाहर यौन संबन्ध रखते हैं।
यूनानी में यह शब्द स्पष्ट रूप से उस पुरूष के लिए है जो पुरूष के साथ यौन संबन्ध बनाता है।
“जो मनुष्यों को पकड़कर दास होने के लिए बेचते हैं” या "जो मनुष्यों को दास के रूप में बेचते है"
“सच्ची शिक्षा” या “सच्चे निर्देश”
“महिमा का शुभ सन्देश जो धन्य परमेश्वर का है” या “महिमामय और धन्य परमेश्वर का सन्देश”
“जो परमेश्वर ने मेरे उत्तरदायित्व निमित्त मुझे दिया है”
धन्यवाद करता हूँ - “मैं आभारी हूँ”, “मैं कृतज्ञ हूँ”
“उसने मझे इस योग्य समझा” या “मुझे भरोसेमन्द समझा”
अपनी सेवा के लिए ठहराया - “अपनी इस सेवा में नियुक्त किया” या “सेवा के स्थान में रखा”
मैं तो पहले निन्दा करनेवाला - “मैंने पहले मसीह की बुराई की” या “पूर्वकाल में निन्दा करनेवाला था”।
“मनुष्यों को क्षति पहुँचानेवाला” अर्थात मनुष्यों को हानि पहुंचाना अपना अधिकार समझने वाला।
मुझ पर दया हुई - “परन्तु मुझ पर परमेश्वर ने दया की” या “परमेश्वर ने मुझ पर दया दर्शाई”
क्योंकि मैंने अविश्वास की दशा में बिन समझे हुए काम किए थे - व्याख्या करें।
“और”
“प्रचुर था” या “आवश्यकता से अधिक था”
यह बात सच - “यह कथन सच है”
हर प्रकार से मानने योग्य है - “निःसन्देह स्वीकार्य है” या “पूर्ण विश्वास से ग्रहण करने योग्य है”
मुझ पर इसलिए दया हुई -“परमेश्वर ने पहले मुझ पर दया की” या “मुझे परमेश्वर से दया प्राप्त हुई”।
“शाश्वत राजा” या “सदाकालीन प्रधान शासक”
"उसकी प्रतिष्ठा हो और वह महिमान्वित हो" या “मनुष्य उसकी प्रतिष्ठा करें और महिमान्वित करें”
मैं यह आज्ञा सौंपता हूँ - “मैं तुझे आज्ञा देता हूँ” या “तुझे आदेश देता हूँ”
यह पुत्र-पुत्री से अधिक एक सामान्य शब्द है परन्तु पिता के साथ संबन्ध दर्शाता है। पौलुस तीमुथियुस के लिए अपने प्रेम को प्रकट करने के लिए इसका रूपक स्वरूप उपयोग करता है।
“परिश्रम के योग्य संघर्ष में सहभागी रह” या “बैरियों को हराने में परिश्रम करता रह” यह “प्रभु के लिए परिश्रम कर” के लिए एक रूपक है।
पौलुस एक और रूपक द्वारा उनके विश्वास की दशा दर्शाता है। एक जहाज जो चट्टानों में टूट जाता है। “उनके विश्वास का विनाश हो गया” (यू.डी.बी.) यदि आपकी भाषा में समझ में आए तो इस रूपक का ही उपयोग करें या कोई अन्य रूपक का उपयोग करें।
“कि परमेश्वर उन्हें सिखाए”
पौलुस परमेश्वर की आज्ञा से मसीह यीशु का प्रेरित है।
तीमुथियुस विश्वास में पौलुस का सच्चा पुत्र था।
तीमुथियुस को इफिसुस में रहना था।
उसे वहां कुछ लोगों को आज्ञा देनी थी कि अन्य प्रकार की शिक्षा न दें।
पौलुस द्वारा ऐसी आशा देने में निहित लक्ष्य था, कि शुद्ध मन और अच्छे विवेक और कपट रहित विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो।
व्यवस्था अधर्मियों, निरंकुशों, भक्तिहिनों, पापियों, अपवित्र और अशुद्ध मनुष्यों के लिए है।
वे हत्या करते हैं, व्यभिचार करते हैं, अपहरण करते हैं,और झूठ बोलते हैं.
वे हत्या करते हैं, व्यभिचार करते हैं, अपहरण करते हैं,और झूठ बोलते हैं.
पौलुस स्वयं ही कभी निन्दा करनेवाला, सतानेवाला और अन्धेर करनेवाला मनुष्य था।
पौलुस पर प्रभु का अनुग्रह बहुतायत से हुआ।
मसीह यीशु इस संसार में पापियों का उद्धार करने आया ।
पौलुस कहता है कि वह एक उदाहरण हैं क्योंकि वह पापियों में सबसे बड़ा है परन्तु फिर भी उस पर परमेश्वर की दया हुई।
पौलुस कहता है कि वह एक उदाहरण है क्योंकि वह पापियों में सबसे बड़ा है।
तीमुथियुस के विषय में जो भविष्यद्वाणियाँ की गई थीं उनसे पौलुस सहमत था कि वह उस अच्छे विवेक और विश्वास के साथ अच्छी लड़ाई को लड़ता रहे।
तीमुथियुस के विषय में जो भविष्यद्वाणियाँ की गई थीं उनसे पौलुस सहमत था कि वह उस अच्छे विवेक और विश्वास के साथ अच्छी लड़ाई को लड़ता रहे।
पौलुस ने उन्हे शैतान को सौंप दिया था कि वे परमेश्वर की निन्दा न करना सीखें।
1 अब मैं सबसे पहले यह आग्रह करता हूँ, कि विनती, प्रार्थना, निवेदन, धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिये किए जाएँ। 2 राजाओं और सब ऊँचे पदवालों के निमित्त इसलिए कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गरिमा में जीवन बिताएँ। 3 यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को अच्छा लगता और भाता भी है, 4 जो यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली-भाँति पहचान लें। (यहे. 18:23)
5 क्योंकि परमेश्वर एक ही है, और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है*, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है, 6 जिसने अपने आप को सबके छुटकारे के दाम में दे दिया; ताकि उसकी गवाही ठीक समयों पर दी जाए। 7 मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता, कि मैं इसी उद्देश्य से प्रचारक और प्रेरित और अन्यजातियों के लिये विश्वास और सत्य का उपदेशक ठहराया गया।
8 इसलिए मैं चाहता हूँ, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें। 9 वैसे ही स्त्रियाँ भी संकोच और संयम के साथ सुहावने* वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूँथने, सोने, मोतियों, और बहुमूल्य कपड़ों से, 10 पर भले कामों से, क्योंकि परमेश्वर की भक्ति करनेवाली स्त्रियों को यही उचित भी है।
11 और स्त्री को चुपचाप पूरी अधीनता में सीखना चाहिए। 12 मैं कहता हूँ, कि स्त्री न उपदेश करे और न पुरुष पर अधिकार चलाए, परन्तु चुपचाप रहे।
13 क्योंकि आदम पहले, उसके बाद हव्वा बनाई गई। (1 कुरि. 11:8) 14 और आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकावे में आकर अपराधिनी हुई। (उत्प. 3:6) 15 तो भी स्त्री बच्चे जनने के द्वारा उद्धार पाएगी, यदि वह संयम सहित विश्वास, प्रेम, और पवित्रता में स्थिर रहें।
“सर्वाधिक महत्त्व की बात है” या “कि कुछ भी कहने से पूर्व” प्रार्थना करना ( निवेदन, विनती, मध्यस्था तथा धन्यवाद ) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है पौलुस यह नहीं कहता है कि यह उसका सर्वप्रथम आग्रह है, न ही यह कि सबसे पहले मनुष्य (ख) सब मनुष्यों के लिए (ख)
आग्रह करता हूँ -“मैं याचना करता हूँ” या “निवेदन करता हूँ”
“इस प्रकार कि मनुष्य तुम्हारा सम्मान करे” “भक्ति” के साथ इसका अर्थ है, “इस प्रकार कि मनुष्य परमेश्वर का सम्मान करके हमें मान प्रदान करें”।
बिचवई दो विपरीत पक्षों में शान्ति का समझौता करवाता है। यहाँ यीशु एक बिचवई है जो मनुष्यों की सहायता करता है कि वे परमेश्वर के साथ शान्ति के संबन्ध में हो जाएं”
“स्वेच्छा से मरा”
छुटकारे के दाम में -“स्वतंत्रता के दाम में” या “स्वतंत्रता प्राप्त करने का मूल्य”
उसकी गवाही ठीक समय पर दी गई - “यह उसकी सही समय की गवाही है” या “इन समयों में उसकी गवाही है”।
“इसी के लिए” या “इसी कारण” या “इस गवाही के निमित्त”
प्रचारक -“प्रचारक नियुक्त किया गया” या मसीह द्वारा प्रचारक नियुक्त किया गया”
मैं सच कहता हूँ - “मैं सत्य की घोषणा कर रहा हूँ” या “मैं सच कह रहा हूँ”
“मैं असत्य नहीं कह रहा हूँ”
विश्वास और सत्य का - “विश्वास और सत्य” या “विश्वास और सत्य के साथ”
हर जगह पुरूष “सब स्थानों में पुरूष” या “पुरूष सर्वत्र”
उठाकर - “ऊपर करके” या “ऊपर उठाकर”
“परमेश्वर के लिए नियुक्त हाथों को” यह पाप से बचने वाले मनुष्य के लिए लाक्षणिक उपयोग है।
“किसी पर क्रोध किए बिना” या “मतभेद के बिना” या “किसी से क्रोधितयत तथा परमेश्वर पर सन्देह किए बिना”
“कि उन पर अनुचित ध्यान न जाए” या “परमेश्वर एवं मनुष्य के प्रति उचित सम्मान के साथ”
“बालों के सौदंर्य हेतु परिश्रम करना”
“अपने भले कामों से प्रकट करें कि वे परमेश्वर की हैं”
स्त्री को.... सीखना चाहिए - “स्त्री सीखे” या “स्त्री के लिए सीखना आवश्यक है”
चुपचाप - “शान्ति के साथ” या “शान्त स्वभाव रह कर”
“परमेश्वर की आज्ञा के पालन हेतु तत्पर”
मैं कहता हूँ -“मैं स्त्रियों को अनुमति नहीं देता”
“आदम पहला मनुष्य था जिसे परमेश्वर ने बनाया” या “परमेश्वर ने पहले आदम की सृष्टि की”
उसके बाद हव्वा बनाई गई -“उसके बाद हव्वा की रचना की गई” या “हव्वा बाद में बनाई गई”
“आदम को शैतान ने नहीं बहकाया था”
“पूर्णतः धोखा बताकर पापी हुई” मुख्य बात यह है कि आदम नहीं स्त्री ने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया। उसने पूर्णतः धोखे में आकर पाप किया।
“परमेश्वर उसे जीवन के सामान्य मार्ग में सुरक्षित रखेगा”
“यदि वे बनी रहें” या “यदि वे ऐसा जीवन जीती रहें”
“यीशु में विश्वास, मनुष्यों से प्रेम और पवित्र जीवन रखें”
“आत्म संयम” या “सर्वोत्तम के बोध के साथ”
पौलुस कहता है कि सबके लिए प्रार्थना की जाए, राजाओं और सब उंचे पद वालों के लिए भी।
पौलुस कहता है कि सबके लिए प्रार्थना की जाए, राजाओं और सब उंचे पद वालों के लिए भी।
पौलुस की मनोकामना थी कि वे विश्राम और चैन के साथ भक्ति और गंभीरता से जीवन जीएं।
पौलुस की इच्छा थी कि सब मनुष्य उद्धार पाएं और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।
मसीह यीशु मनुष्य और परमेश्वर के मध्य एक ही मध्यस्थ है।
मसीह यीशु ने सब के लिए अपने आप को छुटकारे के दाम में दे दिया।
पौलुस अन्यजातियों में शिक्षक है।
पौलुस चाहता है कि लोग प्रार्थना करते हुए अपने पवित्र हाथों को ऊँचा उठाएँ।
स्त्रियां संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारें।
पौलुस स्त्रियों को अनुमति नहीं देता है कि वे पुरुष को शिक्षा दें या उन पर अधिकार का प्रयोग करें।
पौलुस कहता है कि उसके कारण हैं कि आदम पहले सृजा गया था और कि आदम के साथ छल नहीं किया गया था।
पौलुस कहता है कि उसके कारण हैं कि आदम पहले सृजा गया था और कि आदम के साथ छल नहीं किया गया था।
पौलुस चाहता था कि स्त्रियां मन की शुद्धता के साथ विश्वास, प्रेम और पवित्रता में स्थिर रहे।
1 यह बात सत्य है कि जो अध्यक्ष होना चाहता है, तो वह भले काम की इच्छा करता है। 2 यह आवश्यक है कि अध्यक्ष निर्दोष, और एक ही पत्नी का पति, संयमी, सुशील, सभ्य, अतिथि-सत्कार करनेवाला, और सिखाने में निपुण हो। 3 पियक्कड़ या मार पीट करनेवाला न हो; वरन् कोमल हो, और न झगड़ालू, और न धन का लोभी हो।
4 अपने घर का अच्छा प्रबन्ध करता हो, और बाल-बच्चों को सारी गम्भीरता से अधीन रखता हो। 5 जब कोई अपने घर ही का प्रबन्ध करना न जानता हो, तो परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली कैसे करेगा?
6 फिर यह कि नया चेला न हो, ऐसा न हो कि अभिमान करके शैतान के सामान दण्ड पाए। 7 और बाहरवालों में भी उसका सुनाम हो ऐसा न हो कि निन्दित होकर शैतान के फन्दे में फँस जाए।
8 वैसे ही सेवकों* को भी गम्भीर होना चाहिए, दो रंगी, पियक्कड़, और नीच कमाई के लोभी न हों; 9 पर विश्वास के भेद को शुद्ध विवेक से सुरक्षित रखें। 10 और ये भी पहले परखे जाएँ, तब यदि निर्दोष निकलें तो सेवक का काम करें।
11 इसी प्रकार से स्त्रियों को भी गम्भीर होना चाहिए; दोष लगानेवाली न हों, पर सचेत और सब बातों में विश्वासयोग्य हों। 12 सेवक एक ही पत्नी के पति हों और बाल-बच्चों और अपने घरों का अच्छा प्रबन्ध करना जानते हों। 13 क्योंकि जो सेवक का काम अच्छी तरह से कर सकते हैं, वे अपने लिये अच्छा पद और उस विश्वास में, जो मसीह यीशु पर है, बड़ा साहस प्राप्त करते हैं।
14 मैं तेरे पास जल्द आने की आशा रखने पर भी ये बातें तुझे इसलिए लिखता हूँ, 15 कि यदि मेरे आने में देर हो तो तू जान ले कि परमेश्वर के घराने में जो जीविते परमेश्वर की कलीसिया है, और जो सत्य का खम्भा और नींव है; कैसा बर्ताव करना चाहिए।
16 और इसमें सन्देह नहीं कि
भक्ति का भेद* गम्भीर है, अर्थात्,
वह जो शरीर में प्रगट हुआ,
आत्मा में धर्मी ठहरा,
स्वर्गदूतों को दिखाई दिया,
अन्यजातियों में उसका प्रचार हुआ,
जगत में उस पर विश्वास किया गया,
और महिमा में ऊपर उठाया गया।
अर्थात उसकी एक ही पत्नी हो। इसका अनुवाद सामान्यतः किया जा सकता है “उसकी एक ही पत्नी हो” (यू.डी.बी.)
“किसी बात की अति न करता हो”
“बुद्धि का उपयोग करने वाला” या “खरा निर्णय लेनेवाला” या “तर्क करने वाला” या “बुद्धिमान”
“शिष्टाचार वाला”
“परदेशियों का स्वागत करनेवाला”
“मद्यव्यसनी न हो” या “बहुत मदिरापान न करता हो”
“लड़ने-झगड़ने और विवाद प्रिय न हो”
“चोरी करके या धोखे से पैसा कमानेवाला न हो” वह ईमानदारी से धनोपार्जन करने वाला भी हो सकता है जो अन्यों की सुधि लेनेवाला नहीं।
“सम्मानित काम”
संभावित अर्थ हैं 1) अध्यक्ष के बच्चे उसके अधीन रहेंगे तो दूसरों का सम्मान भी करेंगे। (यू.डी.बी.) या 2) अध्यक्ष घर के प्रबन्ध में उसका सम्मान भी करता हो।
“उसके परिवार की सुधि लेना” या “उसके परिवार के सदस्यों का मार्गदर्शन करना”।
सारी का अभिप्राय हो सकता है, “सब लोग” या “हर समय” या “हर परिस्थिति में”
जब कोई...प्रबन्ध करना न जानता हो “यदि मनुष्य.... न जानता हो” या “यदि मनुष्य न कर पाए” या “यह मान लो कि वह ना कर पाए”।
यह एक प्रभावोत्पादक प्रश्न है। “वह परमेश्वर की कलीसिया को संभाल नहीं पाएगा” “वह परमेश्वर की कलीसिया की अगुआई नहीं कर पाएगा”
“वह नव-विश्वासी न हो” या “वह एक परिपक्व विश्वासी हो”
“बाहर वालों में भी उसका सुनाम हो” शैतान के समान घमण्ड करके शैतान के सदृश्य दण्ड का भागी हो” उसकी छवि बाहर भी अच्छी हो।
“जो यीशु में विश्वास नहीं करते उसके बारे में अच्छा कहते हों।” या “कलीसिया से बाहर के लोग भी उसे भला मनुष्य कहते हों”।
“अपने लिए लज्जा का कारण हो” या “किसी को उसकी बुराई करने का अवसर मिले”।
“शैतान को जाल में फंसाने का अवसर दें, शैतान का फंदा एक रूपक है जिस का अर्थ है शैतान न किसी विश्वासी को अनजाने में पाप में गिरा दे”।
वैसे ही सेवकों की भी - “अध्यक्षों के सदृश्य सेवकों के लिए भी कुछ अनिवार्यताएं हैं”
गंभीर होना चाहिए - “सम्मान के योग्य होना चाहिए”
“कहे कुछ और अर्थ कुछ और हो” या “किसी से कुछ कहे और दूसरे से कुछ और कहे”
“मद्यव्यसनी” या “बहुत मदिरापान करनेवाला”
“अनर्थ काम की इच्छा न रखता हो”
विश्वास के भेद को.... सुरक्षित रखे “वे परमेश्वर के सच्चे सन्देशों में विश्वास रखते हों जिसे परमेश्वर ने प्रकाशित किया और हमने विश्वास किया” वह सत्य जो है और परमेश्वर इस समय उन पर प्रकट कर रहा है।
शुद्ध विवेक से - “ऐसा विवेक जो उन्हें अनुचित काम का दोषी ठहराता हो”
पहले परखे जाएं “उन्हें पहले जांच कर देखा जाए कि वे सेवा के लिए योग्य हैं या नहीं”। या “पहले वे स्वयं को योग्य सिद्ध करें”
क्योंकि वे निर्दोष निकलें - “यदि उनमें दोष न पाया जाए” या “निर्दोष होने पर” या “उन्होंने कुछ भी अनुचित नहीं किया हो”
इसी प्रकार से स्त्रियों को भी - इसी प्रकार पत्नियों के लिए भी अनिवार्यताएं हैं। “सेवकों के सदृश्य सेविकाओं के लिए भी अनिवार्यताएं हैं” “स्त्रियों” के लिए प्रयुक्त सामान्य शब्द का अर्थ मूल में “स्त्रियां हैं परन्तु यहाँ उसका संदर्भ सेवकों की पत्नियों से है या सेविकाओं से है क्योंकि पूर्व एवं आगामी पद सेवकों के बारे में चर्चा करते हैं।
गंभीर - “उचित आचरण”
दोष लगाने वाली न हो - “किसी की बुराई न करती हों”
“किसी बात में अति न करती हों”
एक ही पत्नी के पति -अर्थात उसकी एक ही पत्नी हो। “प्रत्येक सेवक की एक ही पत्नी हो” यहाँ विवाद का विषय है विधुर या तलाक शुदा या अविवाहित पुरूषों की सेवा में न लें।
“बच्चों और परिवार के सदस्यों की सुधि लेते हों और अच्छा मार्गदर्शन करते हों”।
क्योंकि जो - “क्यों किसी सेवक” या “क्योंकि जो अध्यक्ष, सेवक और सेविका” या “ये कलीसियाई अगुवे”
वे निर्लज्जता से अपनी ही सेवा करते थे। -“अपने लिए पाते है।” या “ग्रहण करते हैं”।
(1) कलीसिया में मान-सम्मान। 2) परमेश्वर के समक्ष स्थान। 3) कलीसिया में पदोन्नति जैसे बिशप ।
वह विश्वास में..... बड़ा साहस करते हैं। -“अपने विश्वास की चर्चा में साहस प्राप्त करते हैं” या “उन्हें अपने विश्वासियों पर पूरा भरोसा होता है”। या “परमेश्वर और मनुष्य के समक्ष उन्हें आत्म-विश्वास होता है कि उनका विश्वास सच्चा है” या “अपने विश्वास की चर्चा पर उन्हें साहस होता है”।
ये बातें तुझे इसलिए लिखता हूँ - “मैं तुझे ये निर्देश लिख रहा हूँ कि”
और जल्द आने की आशा रखने पर भी - “यद्यपि मैं शीघ्र ही तरे पास आने की आशा में हूँ”
यदि मेरे आने में देर हो -“यदि मैं वहाँ शीघ्र न आ पाया तो” या “यदि मेरे शीघ्र आगमन में बाधा उत्पन्न हुई”
इसलिए लिखता हूँ - “मेरे लिखने का उद्देश्य है”
“तुझे परमेश्वर के घराने की अगुआई कैसे करनी है”।
इस रूपक में एक बड़ा दृढ़ मंच है जिस पर परमेश्वर सत्य का प्रदर्शन करता है। इस मंच को उसके मांगों द्वारा व्यक्त किया गया है नींव और खंभा।
हम परस्पर सहमत हों “निःसन्देह” या निर्विवाद” इसके आगे के पद एक गीत या गीत का अभिकथन है जिसका उपयोग आरंभिक कलीसिया करती थी, महत्त्वपूर्ण धर्म शिक्षा की सूची दे जिसमें सब विश्वासी सहभागी थे।
“वास्तविक मनुष्य”
“यह सत्य ही परमेश्वर ने हम पर प्रकट किया कि ईश्वर-भक्ति का जीवन कैसे जीएं अति महान है”।
“पवित्र-आत्मा ने सत्यापित किया कि मसीह यीशु वही है जो वह कहता था”।
“मनुष्यों ने सब जातियों में यीशु की चर्चा की”
“संसार के अनेक भागों में उसका विश्वास किया गया”
अध्यक्ष का कार्य भले काम करना है।
अध्यक्ष को सिखाने में निपुण होना चाहिए।
अध्यक्ष पियक्कड़ और धन का लोभी न हो।
अध्यक्ष की सन्तान उसकी आज्ञाकारी एवं सम्मान करनेवाली हों।
यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि वह अपने घर का प्रबन्धन न कर पाता तो संभव है कि वह कलीसिया की अच्छी देखभाल नहीं कर पाएगा।
ऐसे में खतरा इस बात का है कि वह अभिमानी हो सकता है और परीक्षा में पड़ सकता है।
अध्यक्ष को कलीसिया से बाहरवालों में भी सुनाम होना चाहिए।
सेवा में प्रवेश से पूर्व सेवकों को परखा जाए।
भक्त स्त्रियों को गरिमापूर्ण होना है, वे दोष लगानेवाली न हों परन्तु सचेत और सब बातों में विश्वासयोग्य हों।
परमेश्वर का घराना जीवित परमेश्वर की कलीसिया है।
यीशु का प्रचार अन्यजातियों में हुआ, जगत में उस पर विश्वास किया गया और वह महिमा में ऊपर उठाया गया।
1 परन्तु आत्मा स्पष्टता से कहता है कि आनेवाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएँगे, 2 यह उन झूठे मनुष्यों के कपट के कारण होगा, जिनका विवेक मानो जलते हुए लोहे से दागा गया है,
3 जो विवाह करने से रोकेंगे, और भोजन की कुछ वस्तुओं से परे रहने की आज्ञा देंगे; जिन्हें परमेश्वर ने इसलिए सृजा कि विश्वासी और सत्य के पहचाननेवाले उन्हें धन्यवाद के साथ खाएँ। (उत्प. 9:3) 4 क्योंकि परमेश्वर की सृजी हुई हर एक वस्तु अच्छी है*, और कोई वस्तु अस्वीकार करने के योग्य नहीं; पर यह कि धन्यवाद के साथ खाई जाए; (उत्प. 1:31) 5 क्योंकि परमेश्वर के वचन और प्रार्थना के द्वारा शुद्ध हो जाती है।
6 यदि तू भाइयों को इन बातों की सुधि दिलाता रहेगा, तो मसीह यीशु का अच्छा सेवक ठहरेगा; और विश्वास और उस अच्छे उपदेश की बातों से, जो तू मानता आया है, तेरा पालन-पोषण होता रहेगा। 7 पर अशुद्ध और बूढ़ियों की सी कहानियों से अलग रह; और भक्ति में खुद को प्रशिक्षित कर। 8 क्योंकि देह के प्रशिक्षण से कम लाभ होता है, पर भक्ति सब बातों के लिये लाभदायक है, क्योंकि इस समय के और आनेवाले जीवन की भी प्रतिज्ञा इसी के लिये है।
9 यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है। 10 क्योंकि हम परिश्रम और यत्न इसलिए करते हैं कि हमारी आशा उस जीविते परमेश्वर पर है; जो सब मनुष्यों का और विशेष रूप से विश्वासियों का उद्धारकर्ता है।
11 इन बातों की आज्ञा देकर और सिखाता रह।
12 कोई तेरी जवानी को तुच्छ न समझने पाए*; पर वचन, चाल चलन, प्रेम, विश्वास, और पवित्रता में विश्वासियों के लिये आदर्श बन जा। 13 जब तक मैं न आऊँ, तब तक पढ़ने और उपदेश देने और सिखाने में लौलीन रह।
14 उस वरदान से जो तुझ में है, और भविष्यद्वाणी के द्वारा प्राचीनों के हाथ रखते समय तुझे मिला था, निश्चिन्त मत रह। 15 उन बातों को सोचता रह और इन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्नति सब पर प्रगट हो। 16 अपनी और अपने उपदेश में सावधानी रख। इन बातों पर स्थिर रह, क्योंकि यदि ऐसा करता रहेगा, तो तू अपने, और अपने सुननेवालों के लिये भी उद्धार का कारण होगा।
“यीशु में विश्वास का त्याग कर देंगे” या “अपने विश्वास से विमुख हो जाएंगे”।
इसको संभावित अर्थ हैं, 1) पौलुस के बाद का समय। “आगमी युग में” या “भविष्य में” या 2) पौलुस ही के समय में, “अन्त के इस समय में”
“स्वीकार करके” या “उनकी शिक्षाओं को मानकर” या “सुन कर” या “वे जो उनकी शिक्षाओं को ग्रहण करेंगे”।
“मनुष्यों को छलने वाली आत्माएं और शैतान की शिक्षाएं”
“पाखंडी का झूठ”
दासों और पशुओं पर लाल लोहे से मुहर लगाई जाती थी जिसके द्वारा उनके स्वामी का पता चलता था। संभावित अर्थ हैं। उनके विवेक अचेत हैं। जैसे कि उनका विवेक गर्म लोहे से जलाकर चेतना-शून्य कर दिया गया है। 1) यह दाग उनकी पहचान है। “वे जानते हैं कि वे पाखंडी हैं फिर भी वे ऐसा करते हैं।”
“ये लोग”
विवाह करने से रोकेंगे “विश्वासियों को विवाह करने के विरूद्ध प्रेरित करेंगे” या “विश्वासियों को विवाह न करने पर विवश करेंगे”
“मनुष्यों को सब प्रकार का भोजन नहीं करने देंगे” या “मनुष्यों को कुछ भोजन विशेष से रोकेंगे” यहाँ विश्वासियों के संदर्भ में कहा जा रहा है। (यू.डी.बी.)
सत्य के पहचानने वाले - “सत्य को जानने वाले विश्वासी” या “सत्य की शिक्षा प्राप्त विश्वासी”।
हमने जिसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया है उसे फैंकना उचित नहीं है” या “हमने जिस वस्तु के लिए धन्यवाद दिया उसे अमान्य न ठहराएं।” या “धन्यवाद के साथ जो कुछ भी खाएं, स्वीकार्य है”
“हमने परमेश्वर के वचन का पालन करके और प्रार्थना करके उसे परमेश्वर के उपयोग हेतु पृथक कर दिया है” या “हमने प्रार्थना के द्वारा उसे परमेश्वर के उपयोग हेतु पृथक कर दिया है, वह परमेश्वर के प्रकट सत्य से सहमत है”।
“विश्वासियों के मन में यह डाले” या “विश्वासियों को इन बातो को स्मरण रखने में सहायता करे” “बातों” अर्थात 3:16 से 4:5 तक सब शिक्षाएं।
“प्रशिक्षण” (यू.डी.बी.) परमेश्वर तीमुथियुस को अधिक दृढ़ बना रहा था और उसने परमेश्वर को ग्रहण योग्य बातों की शिक्षा दे रहा था।
“मनुष्यों में विश्वास उत्पन्न करने वाले उपदेश”
“अशुद्ध और बूढ़ियों की कल्पित कथाएं यहाँ कहानियों का अर्थ है कपोल कल्पित कथाएं” , अतः इसका अनुवाद ऐसा ही करें। बूढ़ी स्त्रियों से अभिप्राय है, “मूर्खता की” या “निरर्थक” यहाँ “बूढ़ियों” के उपयोग द्वारा पौलुस स्त्रियों का अपमान नहीं कर रहा है। वह और उसके पाठक जानते थे कि पुरूष स्त्रियों से कम आयु में मर जाते थे। अतः दुर्बल मस्तिष्क की स्त्रियां संख्या में पुरूषों से अधिक थी”
“आदिकालिक भक्ति का प्रशिक्षण प्राप्त कर” या “परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले अचरण में अधिकाधिक प्रशिक्षण हो” या अधिक ईश्वर भक्त होने के लिए परिश्रम कर”
“शारीरिक व्यायाम”
“इस जीवन में लाभदायक है” या “इस जीवन को अधिक उत्तम बनाने में सहायक है”।
“तुम्हारे पूर्ण विश्वास के योग्य है” या “तुम्हारे पूर्ण भरोसे के योग्य है”
“यही कारण है कि”
“हम पूर्ण-शक्ति परिश्रम करते हैं” या “हम अपने बैरियों से युद्ध करते हुए कठोर परिश्रम करते हैं”।
“हमने जीवित परमेश्वर पर आशा रखी है” या हमने जीवित परमेश्वर में आशा लगाई है”। या “हमारी आशा जीवित परमेश्वर में है”।
“परन्तु वह विशेष करके विश्वासियों का उद्धारक है”
इन बातों की आज्ञा दे और सिखाता रह - “इन बातों के निर्देश एवं शिक्षा दे” या “मैंने जो बातें अभी बताई है उनकी शिक्षा दे और आज्ञा दे”
“तू युवा है इसलिए कोई तेरे महत्त्व को कम न समझने पाए”
वचन पढ़ने - “धर्मशास्त्र पढ़” या “धर्मशास्त्र मंच से पढ़कर सुनाता रह”
“उपदेश दे” या “परमेश्वर के वचन को जीवन में अपनाने के लिए विश्वासियों को उपदेश दे”।
यह एक कलीसियाई अनुष्ठान जिसमें कलीसिया के अगुओं ने तीमुथियुस के सिर पर हाथ रखकर परमेश्वर से प्रार्थना की थी कि, वह तीमुथियुस के उस काम को करने योग्य बनाए जो उसने उसे सौंपा था।
“तू स्वयं और अपने श्रोताओं को झूठी शिक्षाओं और अनुचित कामों से सुरक्षित रख पाएगा” जो झूठी शिक्षाओं पर चलकर अनुचित काम करते हैं वे परिणामस्वरूप कष्ट भोगेंगे। पौलुस नहीं चाहता था कि तीमुथियुस और उसके मित्र अनुचित बातों में विश्वास करने और वैसे काम करने के कारण कष्ट उठाएं”।
“परमेश्वर ने जो वरदान तुझे दिया है उसका पूरा उपयोग कर"
“जब परमेश्वर की कलीसिया के अगुओं ने परमेश्वर की इच्छा प्रकट की थी”।
“हम सब बातों के अनुरूप जीवन जी और वैसा ही कर भी”
“कि मनुष्य तेरा उत्थान देख पाएं” या “मनुष्य तेरे कामों में उन्नति देख पाएं”।
“अपना आचरण सावधानीपूर्वक कर” या “अपने व्यवहार को नियंत्रित कर”
“ऐसे काम करता रह”।
कुछ विश्वासी भटकर कर भ्रमित करने वाली आत्माओं की शिक्षा में मन लगाएंगे।
वे विवाह और कुछ प्रकार का भोजन निषेध करते हैं।
हम जो कुछ भी खाते हैं वह परमेश्वर के वचन और प्रार्थना द्वारा शुद्ध एवं स्वीकार्य हो जाता है।
पौलुस तीमुथियुस से आग्रह करता है कि वह सब को यही शिक्षा दे।
पौलुस तीमुथियुस से कहता है कि अच्छे उपदेश की बातों में उसका प्रशिक्षण होता रहे।
भक्ति अधिक लाभदायक है क्योंकि इसमें इस जीवन और आनेवाले जीवन की भी प्रतिज्ञा शामिल है।
पौलुस तीमुथियुस को आदेश देता है कि वह उन बातों का प्रचार करे वरन शिक्षा भी दे।
तीमुथियुस को वचन, और चाल चलन, और प्रेम और विश्वास और पवित्रता में विश्वासियों के लिए आदर्श बनना था।
उसे भविष्यद्वाणी और प्राचीनों के हाथ रखने के द्वारा आत्मिक वरदान दिया गया था।
वह अपने लिए और अपने सुननेवालों के लिए उद्धार का कारण होगा।
1 किसी बूढ़े को न डाँट; पर उसे पिता जानकर समझा दे, और जवानों को भाई जानकर; (लैव्य. 19:32) 2 बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर; और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहन जानकर, समझा दे।
3 उन विधवाओं का जो सचमुच विधवा हैं आदर कर*। 4 और यदि किसी विधवा के बच्चे या नाती-पोते हों, तो वे पहले अपने ही घराने के साथ आदर का बर्ताव करना, और अपने माता-पिता आदि को उनका हक़ देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्वर को भाता है।
5 जो सचमुच विधवा है, और उसका कोई नहीं; वह परमेश्वर पर आशा रखती है, और रात-दिन विनती और प्रार्थना में लौलीन रहती है। (यिर्म. 49:11) 6 पर जो भोग विलास में पड़ गई, वह जीते जी मर गई है।
7 इन बातों की भी आज्ञा दिया कर ताकि वे निर्दोष रहें। 8 पर यदि कोई अपने रिश्तेदारों की, विशेष रूप से अपने परिवार की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।
9 उसी विधवा का नाम लिखा जाए जो साठ वर्ष से कम की न हो, और एक ही पति की पत्नी रही हो, 10 और भले काम में सुनाम रही हो, जिसने बच्चों का पालन-पोषण किया हो; अतिथि की सेवा की हो, पवित्र लोगों के पाँव धोए हो, दुःखियों की सहायता की हो, और हर एक भले काम में मन लगाया हो।
11 पर जवान विधवाओं के नाम न लिखना, क्योंकि जब वे मसीह का विरोध करके सुख-विलास में पड़ जाती हैं, तो विवाह करना चाहती हैं, 12 और दोषी ठहरती हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी पहली प्रतिज्ञा को छोड़ दिया है।
13 और इसके साथ ही साथ वे घर-घर फिरकर आलसी होना सीखती है, और केवल आलसी नहीं, पर बक-बक करती रहती और दूसरों के काम में हाथ भी डालती हैं और अनुचित बातें बोलती हैं। 14 इसलिए मैं यह चाहता हूँ, कि जवान विधवाएँ विवाह करें; और बच्चे जनें और घरबार संभालें, और किसी विरोधी को बदनाम करने का अवसर न दें। 15 क्योंकि कई एक तो बहक कर शैतान के पीछे हो चुकी हैं। 16 यदि किसी विश्वासिनी के यहाँ विधवाएँ हों, तो वही उनकी सहायता करे कि कलीसिया पर भार न हो ताकि वह उनकी सहायता कर सके, जो सचमुच में विधवाएँ हैं।
17 जो प्राचीन अच्छा प्रबन्ध करते हैं, विशेष करके वे जो वचन सुनाने और सिखाने में परिश्रम करते हैं, दो गुने आदर के योग्य समझे जाएँ। 18 क्योंकि पवित्रशास्त्र कहता है, “दाँवनेवाले बैल का मुँह न बाँधना,” क्योंकि “मजदूर अपनी मजदूरी का हकदार है।” (लैव्य. 19:13, व्य. 25:4)
19 कोई दोष किसी प्राचीन पर लगाया जाए तो बिना दो या तीन गवाहों के उसको स्वीकार न करना। (व्य. 17:6, व्य. 19:15) 20 पाप करनेवालों को सब के सामने समझा दे, ताकि और लोग भी डरे।
21 परमेश्वर, और मसीह यीशु, और चुने हुए स्वर्गदूतों को उपस्थित जानकर मैं तुझे चेतावनी देता हूँ कि तू मन खोलकर इन बातों को माना कर, और कोई काम पक्षपात से न कर। 22 किसी पर शीघ्र हाथ न रखना* और दूसरों के पापों में भागी न होना; अपने आपको पवित्र बनाए रख।
23 भविष्य में केवल जल ही का पीनेवाला न रह, पर अपने पेट के और अपने बार-बार बीमार होने के कारण थोड़ा-थोड़ा दाखरस भी लिया कर*। 24 कुछ मनुष्यों के पाप प्रगट हो जाते हैं, और न्याय के लिये पहले से पहुँच जाते हैं, लेकिन दूसरों के पाप बाद में दिखाई देते हैं। 25 वैसे ही कुछ भले काम भी प्रगट होते हैं, और जो ऐसे नहीं होते, वे भी छिप नहीं सकते।
पौलुस के ये सब आदेश एक ही व्यक्ति के लिए हैं। तीमुथियुस के लिए। जिन भाषाओं में “तुम” के विभिन्न रूप है या आज्ञाओं के विविध रूप हैं, वैसे एक वचन का उपयोग किया जाए।
किसी बूढ़े को न डांट - “किसी वृद्ध जन के साथ कठोर भाषा का उपयोग मत कर”
पर उसे पिता जानकर समझा दे “परन्तु उसे ऐसे समझा जैसे अपने पिता को समझाता है।
“युवाओं को ऐसे प्रोत्साहित कर कि जैसे वे तेरे भाई हैं” या “युवकों के साथ भाई का सा व्यवहार कर”
बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर - “वृद्ध स्त्रियों को माता के स्वरूप समझ” या “वृद्ध स्त्रियों को ऐसे प्रोत्साहित कर जैसे तू अपनी माता से बातें करता है”
जवान स्त्रियों को... बहन जान कर समझा दे”। - “युवा स्त्रियों के साथ ऐसी बात कर जैसे अपनी बहन के साथ करता है” या “युवा स्त्री के साथ बहन का सा व्यवहार कर”।
“शुद्ध विचार एवं कामों के साथ” या “पवित्रता में”
"...प्रावधान करें..."
सचमुच विधवा है - “जो विधवाएं आवश्यकता-ग्रस्त हैं” या “जिन विधवाओं का कोई नहीं है”।
“परन्तु जिस विधवा के बच्चे....”
“जिसे वह अपनी सन्तान मानती है” या “कोई उसके साथ मां का सा व्यवहार करता है”,
“जिसे वह अपना वंशज मानती है” या “इसे कोई मां या नानी-दादी कहता है”।
वे पहले “उन्हें पहले” या “वे अपनी प्रथामिकता मानें”
“अपनी श्रद्धा प्रकट करें” या “भक्ति प्रकट करे” या “धर्म को सिद्ध करे” या “कर्तव्य निभाना सीखें”।
अपने ही घराने - “अपने परिवार में” या “अपने परिवार के सदस्यों के साथ”
माता-पिता को उनका हक दें। - “माता-पिता का ऋण चुकाएं” या “अपने माता-पिता द्वारा की गई भलाई का बदला चुकाएं”
“वे ऐसा करते हें तो परमेश्वर प्रसन्न होता है” या “सम्मान को ऐसा प्रदर्शन परमेश्वर को प्रसन्न करता है”।
जो सचमुच विधवा है, और उसका कोई नहीं -“परन्तु जिस विधवा का कोई परिजन नहीं वह वास्तविक विधवा है”
“वह धीरज धरकर परमेश्वर से विनती एवं प्रार्थना करती रहती है”।
“परन्तु”
"वह कनानी स्त्री आई" “जो अपनी सुख भोग के लिए जी रही है”
इस रूपक का अर्थ है वह परमेश्वर का ध्यान नहीं करती हे। “वह एक मृतक के सदृश्य परमेश्वर को प्रतिक्रिया नहीं दिखा सकती है”।
शारीरिक जीवन
इन बातों की भी आज्ञा दिया कर -“इनको भी आज्ञा दे” या “अधिकार के साथ ये बातें सिखा”। तीमुथियुस को भी परमेश्वर के वचन का पालन करना आवश्यक था और अन्य विश्वासियों को पौलुस के आदेशों के पालन की आज्ञा देना भी।
“कि कोई उनमें दोष न देख पाए” इसके संभावित अर्थ हैं 1) “वे विधवाएँ और उनके परिवार” (यू.डी.बी.) या 2) “कलीसिया। उचित तो यही होगा कि इसे केवल “वे” तक ही रखें।
“अपने परिजनों की सुधि न ले” या “अपने परिजनों की आवश्यकता में सहायता न करता हो”
अपने घराने की - “अपने परिवार के सदस्यों की” या “कुटुम्बियों की आवश्यकता में सहायता न करता हो”
“अपने पारिवारिक सदस्यों की” या “परिवार में उपस्थित जनों की”
विश्वास से मुकर गया है - “वह अविश्वासी का सा व्यवहार करता है”। या “वह इस सत्य के विरूद्ध चलता है जिसमें हम विश्वास करते हैं” या वह विश्वास से विमुख हो गया है”
“वह यीशु में विश्वास नहीं करने वालों से भी बुरा है” या “जो यीशु में विश्वास नहीं करते उससे अच्छे हैं”। जिन्हें यीशु का ज्ञान नहीं वे भी अपने परिवारों की सुधि लेते है तो विश्वासी को कितना अधिक ऐसा करना चाहिए”।
ऐसा प्रतीत होता है कि विधवाओं की सूची तैयार की गई थी, या वे लिखित में थी या नहीं। कलीसिया उन विधवाओं के लिए आश्रय, वस्त्र और भोजन की व्यवस्था करती थी और इन विधवाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे कलीसिया की सेवा में समर्पित रहें।
साठ वर्ष से कम की विधवाओं के पुनः विवाह की संभावना होती थी। कलीसिया के लिए आवश्यक था कि साठ वर्ष से अधिक आयु की विधवाओं की सुधि ले।
“पतिव्रता रही हो”
अग्रिम वाक्य किसी स्त्री द्वारा भले कामों में प्रसिद्ध होने के उदाहरण हैं
“सहायता का एक अति सह सामान्य कार्य” “यात्रियों के पाव धोना एक रूपक है जिसका अर्थ है मनुष्यों की आवश्यकता में सहायता करना तथा जीवन को अधिक आनन्द से पूर्ण बनाना।
“परमेश्वर के लोगों पर”
“भले कामों के लिए जानी जाती हो”
वह सूची 60 वर्ष से अधिक आयु की विधवाओं की थी कि कलीसिया उनकी देखरेख करे।
“अपनी यौन अभिलाषाओं के कारण मसीह से विमुख हो जाती है” या “अपनी अभिलाषाओं के कारण आत्मिक समर्पण का त्याग करना चाहती हैं।
“अपने समर्पण का त्याग कर देती हैं” या “जो शपथ खाई है उसकी निष्ठावान नहीं रहती है”।
यदि कलीसिया उनकी आवश्यकताएं पूरी करे तो वे अजीवन कलीसिया की सेवा करेंगी। यह उनका विश्वास (समर्पण) था।
जो किसी के निजि जीवन के बारे में अन्यों से चर्चा करता है
दूसरों के कामों में हस्तक्षेप करती हैं।
“जिन बातों की चर्चा करना उचित नहीं”
यह उन विधवाओं के विषय में है
“शैतान का अनुसरण करने हेतु मसीह की शिक्षा और त्याग कर दिया है।
“मसीह स्त्री” या “मसीह में विश्वास करनेवाली स्त्री।”
“अपने परिजनों में विधवा हो”
“जिनकी सुधि लेनेवाला कोई नहीं है।”
“सब विश्वासी उन्हें योग्य समझें”
संभावित अर्थ हैं 1) सम्मान एवं आर्थिक सहयोग देनों के योग्य” या 2)“अन्यों से अधिक सम्मान के योग्य”
“परमेश्वर के वचन के शिक्षक एवं उपदेशक”
“मुंह न खोले उसके लिए मुंह पर बंधन लगाया जाता है”।
बड़ा पशु-गाय
गेहूं को एक पत्थर से दबा कर बालियों में से निकालने की प्रक्रिया। बैल को उस गेहूं में से खाने की अनुमति थी।
“वह योग्य है”
“सुनो” या "स्वीकार”
"कम से कम दो" या "दो या दो से अधिक"
“झिड़क” या “सुधार कर”
“किस को देखें”
“कि अन्य लोग पाप करने से डरें”
तीमुथियुस एकवचन - को। अतः तू के स्वरूप एवं आज्ञाएं एकवचन में हों।
“समय से पूर्व निर्णय लेना” या “सबकी बातें सुनने से पूर्व निर्णय लेना” तीमुथियुस के लिए आवश्यक था कि निर्णय लेने से पूर्व तथ्यों पर ध्यान दे।
“किसी अपने पर अधिक अनुग्रह मत करना” या “मित्रों का ध्यान रखते हुए निर्णय न लेना” तीमुथियुस के लिए आवश्यक था कि मनुष्य का ध्यान न करके तथ्यों का अवलोकन करे।
यह एक अनुष्ठान था जिसमें एक से अधिक अगुवे किसी के सिर पर हाथ रख कर प्रार्थना करते थे कि वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने के योग्य हो। तीमुथियुस को ऐसे मनुष्य के लिए लम्बें समय तक अच्छे चरित्र की जांच करके उसे कलीसियाई सेवा के लिए इस अनुष्ठान में सम्मिलित करना था।
इसके संभावित अर्थ हैं 1)यदि तीमुथियुस किसी पापी की कलीसियाई सेवा में चुन ले तो परमेश्वर उसके पाप का लेखादायी तीमुथिसुस को बनाएगा। या 2) तीमुथियुस अन्यों के पापों को स्वयं न करें।
(पद 23 का पद 22 और पद 24-25 के साथ संयोजन नहीं हो रहा है। यह मात्र एक ऐसी बात हो सकती है जिसका उल्लेख करना पौलुस भूल गया और वह भूलने से पूर्व उसकी चर्चा करना चाहता है। यदि इसका संबन्ध अग्रिम एवं पिछले पदों से है तोइसका अर्थ होगा कि पिछले पद में “पवित्र” शब्द का अर्थ उसके चरित्र से है न कि भोजन से)।
“केवल जल पीना ही त्याग दे जो केवल जल ही पीता है। (यू.डी.बी.) पौलुस पानी पीने का निशेध नहीं कर रहा है अपितु औषधि स्वरूप दाखरस के उपयोग की अनुमति दे रहा है।
(पद 24 में पौलुस पद 22 के ही विषय चला रहा है। कुछ मनुष्यों के पाप यहाँ संभवतः संदर्भ उन मनुष्यों से है जिनके सिरों पर शीघ्रता से हाथ रखे गए थे। (पद 22))
“उनके पास न्याय के लिए उससे पहले उपस्थित जो जाते हैं। इसके संभावित अर्थ हैं1)किसी का अगुआई के पद पर रखने के कलीसियाई निर्णय से पूर्व ही उसके पाप प्रकट हो जाते हैं। या 2) उसके पाप उसका चरित्र प्रकट कर देते हैं कि वह कलीसिया के समक्ष दोषी होने या न होने का निर्णय पाए। या 3)उनके पाप प्रकट हैं और परमेश्वर उन्हें इसी समय दण्ड देगा।
इसके संभावित अर्थ हैं इसके संभावित अर्थ हैं इसके संभावित अर्थ हैं1) कुछ के पाप तीमुथियुस बाद में ही देख पाएगा। 2) कलीसिया कुछ मनुष्यों को पाप आगे चलकर देख पाएगी। 3) परमेश्वर अन्तिम न्याय के दिन तक उनका न्याय नहीं करेगा।
“अन्य भले काम भविष्य ही में प्रकट होंगे”
पौलुस ने तीमुथियुस से कहा कि वह वृद्ध पुरुष के साथ पिता का सा व्यवहार करे।
किसी विधवा के बच्चे या नाती पोते माता पिता को उनका हक देना तथा उसकी सुधि लेना सीखें।
वह विश्वास से मुकर गया है और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।
विधवा का भले कामों में नाम हो।
युवा विधवाएं उत्तरकाल में अपने पहले समर्पण को त्याग कर विवाह करने की लालसा करें तो यह एक ख़तरा हो सकता हैं।
यदि युवा विधवाएं उत्तरकाल में अपने पहले समर्पण को त्याग कर विवाह करने की लालसा करें तो यह एक ख़तरा हो सकता हैं।
पौलुस चाहता है कि जवान विधवाएं विवाह करें और बच्चे जनें और घरबार संभालें।
जो प्राचीन अच्छी अगुवाई देते हैं वे दो गुने आदर के योग्य समझे जाएं।
किसी प्राचीन के विरुद्ध दोषारोपण में दो या तीन गवाह होना आवश्यक है।
पौलुस तीमुथियुस को आज्ञा देता है कि वह पक्षपात बिना इन नियमों का पालन करने की सावधानी रखे।
कुछ लोगों के पाप न्याय होने तक गुप्त रहते हैं।
1 जितने दास जूए के नीचे हैं, वे अपने-अपने स्वामी को बड़े आदर के योग्य जानें, ताकि परमेश्वर के नाम और उपदेश की निन्दा न हो। 2 और जिनके स्वामी विश्वासी हैं, इन्हें वे भाई होने के कारण तुच्छ न जानें; वरन् उनकी और भी सेवा करें, क्योंकि इससे लाभ उठानेवाले विश्वासी और प्रेमी हैं। इन बातों का उपदेश किया कर और समझाता रह।
3 यदि कोई और ही प्रकार का उपदेश देता है और खरी बातों को, अर्थात् हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातों को और उस उपदेश को नहीं मानता, जो भक्ति के अनुसार है। 4 तो वह अभिमानी है और कुछ नहीं जानता, वरन् उसे विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है, जिनसे डाह, और झगड़े, और निन्दा की बातें, और बुरे-बुरे सन्देह, 5 और उन मनुष्यों में व्यर्थ रगड़े-झगड़े उत्पन्न होते हैं, जिनकी बुद्धि बिगड़ गई है और वे सत्य से विहीन हो गए हैं, जो समझते हैं कि भक्ति लाभ का द्वार है।
6 पर सन्तोष सहित भक्ति बड़ी लाभ है। 7 क्योंकि न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं। (अय्यू. 1:21, भज. 49:17) 8 और यदि हमारे पास खाने और पहनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।
9 पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फन्दे और बहुत सी व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फँसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डुबा देती हैं। (नीति. 23:4, नीति. 15:27) 10 क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है*, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आपको विभिन्न प्रकार के दुःखों से छलनी बना लिया है।
11 पर हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से भाग; और धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धीरज, और नम्रता का पीछा कर। 12 विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले*, जिसके लिये तू बुलाया गया, और बहुत गवाहों के सामने अच्छा अंगीकार किया था।
13 मैं तुझे परमेश्वर को जो सबको जीवित रखता है, और मसीह यीशु को गवाह करके जिसने पुन्तियुस पिलातुस के सामने अच्छा अंगीकार किया, यह आज्ञा देता हूँ, 14 कि तू हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने तक इस आज्ञा को निष्कलंक और निर्दोष रख,
15 जिसे वह ठीक समय पर* दिखाएगा, जो परमधन्य और एकमात्र अधिपति और राजाओं का राजा, और प्रभुओं का प्रभु है, (भज. 47:2) 16 और अमरता केवल उसी की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है, और न उसे किसी मनुष्य ने देखा और न कभी देख सकता है। उसकी प्रतिष्ठा और राज्य युगानुयुग रहेगा। आमीन। (1 तीमु. 1:17)
17 इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे कि वे अभिमानी न हों और अनिश्चित धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है। (भज. 62:10) 18 और भलाई करें, और भले कामों में धनी बनें, और उदार और सहायता देने में तत्पर हों, 19 और आनेवाले जीवन के लिये एक अच्छी नींव डाल रखें, कि सत्य जीवन को वश में कर लें।
20 हे तीमुथियुस इस धरोहर की रखवाली कर। जो तुझे दी गई है और मूर्ख बातों से और विरोध के तर्क जो झूठा ज्ञान कहलाता है दूर रह। 21 कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके विश्वास से भटक गए हैं। तुम पर अनुग्रह होता रहे।
यह एक रूपक है जिसका संदर्भ दास से है जैसे किसी बलिष्ठ पशु को लकड़ी के जुए के नीचे रखा जाता था कि हल चलाए। यह दासों के लिए भी भिन्नार्थक शब्द है। यदि इस रूपक का प्रयोग कठिन है तो इसे काम में न लें। इसका अनुवाद यू.डी.बी. के सदृश्य भी किया जा सकता है जिसमें इसका निहितार्थ विश्वासी जन से है।
“कलीसिया के बाहर के लोग परमेश्वर और परमेश्वर की बातों के विरूद्ध ऐसी बातें न करें।"
“क्योंकि उनके विश्वासी स्वामी भाई है इसलिए दास उनका तिरस्कार न करें।
“विश्वासी स्वामियों के दास उनकी निष्ठापूर्वक सेवा करें”
“जो भिन्न शिक्षा दे” या “जो कुछ और सिखाए” पौलुस के विचार में कुछ लोग भिन्न शिक्षा दे रहे थे। यह कल्पना नहीं है।
यू.डी.बी. में बहुवचन का उपयोग किया गया है, “कुछ लोग... ऐसे लोग.... वे” कि शिक्षका को स्त्री या पुरूष या एक या अनेक दर्शाया जाए। अतः आपकी भाषा में ऐसा शब्द रूप काम में लें जिसमें अर्थ की विविधता प्रकट हो।
“वह केवल विवाद करना चाहते है” या “वे विवाद प्रिय हैं” ऐसे मनुष्य केवल विवाद करते हें। वे समझौता करना नहीं चाहते हैं।
“अर्थ पर विवाद” या “झड़गा उत्पन्न करने वाले शब्द” या “दुःख पहुँचाने वाले शब्दों का उपयोग”
“अन्यों के पास जो है उसकी लालसा करना”
“विश्वासियों में परस्पर विवाद”
“एक दूसरे के विरूद्ध झूठी बातें कहना”
यह कहना कि उनसे जो असहमत है वह दुष्टता करता है
“दीर्घकालीन झगड़े”
“बुरे विचारों से भ्रष्ट बुद्धि”
“बहुत लाभकारी है” या “हमारे लिए अनेक भलाई उत्पन्न करती है”
“जन्म के साथ कुछ ले कर नहीं आए हैं”
“मरने पर इस संसार से कुछ लेकर भी नहीं जाएंगे”
हमें चाहिए कि
“परमेश्वर के सेवक” या “परमेश्वर के जन”
“उन्हें ऐसे प्राणी समझ जो तेरी हानि करना चाहते है” इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “धन की लालसा” 2) भिन्न शिक्षाएं, घमण्ड तथा विवाद और “पैसे से प्रेम”
“पीछे भाग” या “पीछे पड़ जा” या “यथासंभव ऐसा काम कर”
कुछ के विचारों में यह खेल प्रतियोगिता का रूपक है जिसमें कुश्ती का विजेता पुरूस्कार “धर” लेता है।
कुछ के विचार में इस रूपक का अर्थ है अच्छी कुश्ती लड़। “जीवन पाने के लिए यथासंभव प्रयास कर”।
“गवाही दी है”
“उपस्थिति में”
“विश्वास कें संबन्ध में”
इसके संभावित अर्थ है, 1) परमेश्वर को तीमुथियुस में कोई दोष दिखाई न दे। (यू.डी.बी.) या 2) मनुष्य तीमुथियुस पर उंगली न उठा पाए।
“जब तक हमारा प्रभु यीशु लौट कर न आए”।
“परमेश्वर की उपस्थिति में” या “परमेश्वर के गवाह होने के समय”
“मसीह की उपस्थिति में” या मसीह के गवाह होने पर”
“पुन्तियुस पिलातुस के समक्ष”
“उचित समय पर” (यू.डी.बी.)
“द्वारा निश्चित” या “द्वारा चुना हुआ”
“जिसमें सब आशिषें निहित हैं” या “परमेश्वर जो सब आशिषों का देनेवाला है” यह पिता परमेश्वर के संदर्भ में है जो यीशु को प्रगट करता है।
“उनकी सम्पदा जाती रहेगी” यह भौतिक सम्पत्ति है”
“हमें सच्चा सुख देनेवाली वस्तुएं” ये भौतिक सम्पदा है परन्तु मुख्यतः प्रेम, आनन्द और शान्ति का संदर्भ देते हैं जिन्हें मनुष्य सांसारिक वस्तुओं से पाना चाहता है।
“जिस प्रकार तुम धन सम्पदा की खोज करते हो उसी प्रकार भले कामों के अवसर खोजो” या “भौतिक सम्पदा का आनन्द लेने के तुल्य भले कामों का भी आनन्द लो”
भवन निर्माण का पहला चरण। यह “सच्ची धन सम्पदा के प्रथम चरण का और “सच्चे जीवन” के आरंभ का रूपक है जो परमेश्वर अपने लोगों को अनन्त जीवन में देगा।
यह खेल कूद का रूपक है। जहाँ विजेता पुरूस्कार को वास्तव में अपने हाथों में थामता है। यहाँ पुरूस्कार सच्चा जीवन है।
“तेरी बातों पर व्यर्थ विवाद करने वालों से दूर रह”
तुम पर अनुग्रह होता रहे “मेरी प्रार्थना है कि परमेश्वर तुम सब पर जो वहाँ है कृपा दर्शाता रहे “ या “वह तुम पर अनुग्रह दर्शाए”।
पौलुस कहता है कि दास अपने स्वामियों को आदर के योग्य समझें।
जो मनुष्य खरी बातों को और भक्ति से भरी उपेदश को नहीं मानता वह अभिमानी हो गया है और कुछ नहीं जानता है।
जो मनुष्य खरी बातों को और भक्ति के आदेशों को नहीं मानता वह अभिमानी हो गया है और कुछ नहीं जानता है।
पौलुस कहता है कि सन्तोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है।
हमें संतोष करना है क्योंकि हम न तो जगत में कुछ लाए हैं और न ही इसमें से कुछ अपने साथ ले जा सकते हैं।
हमें संतोष करना है क्योंकि हम न तो जगत में कुछ लाए हैं और न ही इसमें से कुछ अपने साथ ले जा सकते हैं।
जो धनवान होना चाहते हैं वे परीक्षाओं और फंदे में पड़ जाते हैं।
रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है।
कुछ लोग पैसों के लोभ के कारण विश्वास से भटक गए हैं।
पौलुस कहता है कि तीमुथियुस को विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ना है।
वह परम धन्य उस अगम्य ज्योति में रहता है जहां उसे किसी ने भी नहीं देखा है।
धनवानों को परमेश्वर में आशा रखना है क्योंकि परमेश्वर हमारे सुख के लिए सब कुछ बहुतायत से देता है।
जो अच्छे कामों के धनी हैं वे आगे के लिए एक अच्छी नींव डालते हैं और सच्चे जीवन को थाम लेते हैं।
पौलुस तीमुथियुस से कहता है कि वह उस धरोहर की रखवाली करे।
1 पौलुस की ओर से जो उस जीवन की प्रतिज्ञा के अनुसार जो मसीह यीशु में है, परमेश्वर की इच्छा से* मसीह यीशु का प्रेरित है, 2 प्रिय पुत्र तीमुथियुस के नाम। परमेश्वर पिता और हमारे प्रभु मसीह यीशु की ओर से तुझे अनुग्रह और दया और शान्ति मिलती रहे।
3 जिस परमेश्वर की सेवा मैं अपने पूर्वजों की रीति पर शुद्ध विवेक से करता हूँ, उसका धन्यवाद हो कि अपनी प्रार्थनाओं में रात दिन तुझे लगातार स्मरण करता हूँ, 4 और तेरे आँसुओं की सुधि कर करके तुझ से भेंट करने की लालसा रखता हूँ, कि आनन्द से भर जाऊँ। 5 और मुझे तेरे उस निष्कपट विश्वास की सुधि आती है, जो पहले तेरी नानी लोइस, और तेरी माता यूनीके में थी, और मुझे निश्चय हुआ है, कि तुझ में भी है।
6 इसी कारण मैं तुझे सुधि दिलाता हूँ, कि तू परमेश्वर के उस वरदान को जो मेरे हाथ रखने के द्वारा तुझे मिला है प्रज्वलित रहे। 7 क्योंकि परमेश्वर ने हमें भय की नहीं* पर सामर्थ्य, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है।
8 इसलिए हमारे प्रभु की गवाही से, और मुझसे जो उसका कैदी हूँ, लज्जित न हो, पर उस परमेश्वर की सामर्थ्य के अनुसार सुसमाचार के लिये मेरे साथ दुःख उठा। 9 जिस ने हमारा उद्धार किया, और पवित्र बुलाहट से बुलाया, और यह हमारे कामों के अनुसार नहीं; पर अपनी मनसा और उस अनुग्रह के अनुसार है; जो मसीह यीशु में अनादि काल से हम पर हुआ है। 10 पर अब हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु के प्रगट होने के द्वारा प्रकाशित हुआ, जिस ने मृत्यु का नाश किया, और जीवन और अमरता को उस सुसमाचार के द्वारा प्रकाशमान कर दिया। 11 जिसके लिये मैं प्रचारक, और प्रेरित, और उपदेशक भी ठहरा। 12 इस कारण मैं इन दुःखों को भी उठाता हूँ, पर लजाता नहीं, क्योंकि जिस पर मैंने विश्वास रखा है, जानता हूँ; और मुझे निश्चय है, कि वह मेरी धरोहर की उस दिन तक रखवाली कर सकता है।
13 जो खरी बातें तूने मुझसे सुनी हैं उनको उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, अपना आदर्श बनाकर रख। 14 और पवित्र आत्मा के द्वारा जो हम में बसा हुआ है, इस अच्छी धरोहर की रखवाली कर।
15 तू जानता है, कि आसियावाले सब मुझसे फिर गए हैं, जिनमें फूगिलुस और हिरमुगिनेस हैं। 16 उनेसिफुरूस के घराने पर प्रभु दया करे, क्योंकि उसने बहुत बार मेरे जी को ठण्डा किया, और मेरी जंजीरों से लज्जित न हुआ। 17 पर जब वह रोम में आया, तो बड़े यत्न से ढूँढ़कर मुझसे भेंट की। 18 (प्रभु करे, कि उस दिन उस पर प्रभु की दया हो)। और जो-जो सेवा उसने इफिसुस में की है उन्हें भी तू भली भाँति जानता है।
पौलुस - “पौलुस की ओर से” या “मैं तुझे यह पत्र लिख रहा हूं”।
“क्योंकि परमेश्वर की इच्छा के कारण” या “क्योंकि परमेश्वर चाहता था” पौलुस इसलिए प्रेरित हुआ कि परमेश्वर चाहता था कि वह प्रेरित हो। इसे किसी मनुष्य ने प्रेरित होने के लिए नहीं चुना था।
संभावित अर्थ हैं 1) “के अनुपालन में” अर्थात जैसा परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की कि यीशु जीवनदाता है, उसने पौलुस को प्रेरित नियुक्त किया, 2) “के उद्देश्य से” अर्थात परमेश्वर ने पौलुस को नियुक्त किया कि वह मनुष्यों में मसीह में जीवन की परमेश्वर की प्रतिज्ञा की घोषणा करे।
“परमेश्वर ने मसीह के लोगों से जीवनदान की प्रतिज्ञा की है।”
“पुत्र जो मेरा प्रिय है” या “जिस पुत्र से मैं प्रेम करता हूं”। पौलुस की माध्यम से तीमुथियुस ने मसीह यीशु को ग्रहण किया था। इस कारण पौलुस उसे अपने पुत्र के समान प्रेम करता था।
“अनुग्रह, दया और शान्ति तेरी हो” या “तुझे अनुग्रह, शान्ति और दया का आन्तरिक अनुभव हो”
“परमेश्वर जो हमारा पिता है”
“मसीह यीशु जो हमारा प्रभु है”
पौलुस अपने पूर्वजों के परमेश्वर का ही उपासक था। इसका अनुवाद हो सकता है, “जिसके लिए मैं एक विश्वासी होकर सेवा करता हूं, ठीक वैसे ही जैसे मेरे पूर्वजों ने की थी”।
“शुद्ध विवेक से” वह अनुचित कामों के विचार से मुक्त था, क्योंकि उसने सदैव ही उचित काम करने की चेष्टा की है।
लगातार स्मरण करता हूं - “मैं तुझे सदैव स्मरण करता हूं” या “जब मैं तुझे स्मरण करता रहता हूं” या “मैं तुझे स्मरण करने से नहीं चूकता”
“दिन रात मेरी प्रार्थनाएं” 2) मैं दिन रात तुझे स्मरण करता हूं” या “मैं तुझे सदा स्मरण करता हूं” या “मैं तुझे स्मरण करने से नहीं रुकता”
“तुमसे भेंट करने की प्रतीक्षा में हूं”
“तेरे सब दुःखों को मन में रख कर”
“कि मुझे अत्यधिक आनन्द प्राप्त हो” या “आनन्दित हो जाऊं”।
सुधि आती है - “क्योंकि मुझे स्मरण होता है” या “जब मुझे स्मरण होता है” या “क्योंकि मुझे.... स्मरण होता है” या “स्मरण करके”
“तेरा सच्चा विश्वास” या “तेरा पांखड-रहित विश्वास” यहां जिस शब्द का अनुवाद “निष्कपट” किया गया है, वह नाटक में के नायक का विलोम शब्द है। इसका अर्थ है, “सत्यनिष्ठ” या “सच्चा”
तीमुथियुस की नानी एक ईश्वर भक्त स्त्री थी और पौलुस तीमुथियुस के विश्वास की तुलना उसके विश्वास से करता है।
इसी कारण - “इस कारण” या “यीशु में तेरे सत्यनिष्ठ विश्वास के कारण” या “क्योंकि यीशु में तेरा सच्चा विश्वास है”।
सुधि दिलाता हूं - “मैं तुझे स्मरण कराता हूं” या “तुझे फिर से कहता हूं”
पौलुस ने तीमुथियुस के सिर पर हाथ रखकर उसे पवित्र-आत्मा का दान दिया था। आत्मिक या क्षमता या वरदान। पौलुस तीमुथियुस से कहता है कि मसीह सेवा में वह उसे नवजीवित या पुनः सक्रिय कर दे। कोयले पर हवा करके उसने धधकाना एक रूपक है जो तीमुथियुस द्वारा आत्मिक क्षमताओं और वरदानों को अनदेखा करने के संदर्भ में है।
क्योंकि परमेश्वर - “इसलिए कि परमेश्वर” या “क्योंकि परमेश्वर”
पौलुस ने परमेश्वर से आत्मा प्राप्त किया था। ठीक उसने तीमुथियुस पर हाथ रखे थे तब वही आत्मा उसमें समा गया था। वह आत्मा मनुष्यों या परमेश्वर से डरने का नहीं था।
संभावित अर्थ हैं 1) परमेश्वर का आत्मा आत्म नियंत्रण में समर्थ बनाता है। (यू.डी.बी.) 2) परमेश्वर का आत्मा हमें चुकने वालों का सुधार करने योग्य बनाता है।
लज्ज्ति न हो - “अतः डर मत” या “भयभीत मत हो”
पौलुस सुसमाचार के लिए जो कष्ट वहन कर रहा था वे उचित नहीं थे। वह तीमुथियुस से कह रहा था कि ऐसे ही कष्टों से भयभीत न हो।
“परमेश्वर को तुझे सामर्थी बनाने दे”
“हम अपने कर्मों के अनुसार उद्धार नहीं पाते हैं” या “हमारे काम चाहे बुरे रहे हों परमेश्वर हमारा उद्धार करता है।
“हमारे उद्धार की योजना परमेश्वर की थी और अब उसने उसे पूरा भी किया है” परमेश्वर ने ठान लिया था कि हमारा उद्धार करेगा और उसने निश्चय कर लिया कि ऐसे हमारा उद्धार करेगा और अब हमारा उद्धार किया है”। या “उसने हमारा उद्धार किया जो उसकी योजना के अनुसार था”।
“संसार की उत्पत्ति से पूर्व” या “समय के आरंभ से पूर्व”
यह संपूर्ण अस्तित्व, ब्रह्माण्ड के लिए एक रूपक है
परमेश्वर ने अब दिखा दिया कि वह हमारा उद्धार कैसे करेगा। उसने मसीह यीशु के अविभक्ति से यह प्रकट कर दिया है”।
“उसने हम पर मृत्यु की प्रभुता का नाश किया”
“सिखाया कि शाश्वत जीवन का शुभ सन्देश के प्रचार द्वारा है”
“परमेश्वर ने मुझे यह सन्देश सुनाने के लिए चुना है”।
“क्योंकि मैं एक प्रेरित हूं”
“मैं बन्दी हूं”
मुझे पूरा विश्वास है कि मार्ग है.
संभावित अर्थ हैं 1) जिस दिन प्रभु पुनः आएगा। या 2) जिस दिन प्रभु मनुष्यों का न्याय करेगा।
“मैंने जो उचित शिक्षा दी है उसे लोगों को सिखाता रह” या “अपने शिक्षण विधि के नमूने स्वरूप मेरे वचनों और शिक्षण विधि का अनुकरण करा”
“उचित विचार” या “सत्य वचन”
सुसमाचार का उचित प्रचार करना
तीमुथियुस को सावधान रहना या क्योंकि मनुष्य उसके कामों का विरोध करेंगे, उसे पूरा करने का प्रयास करेंगे और उसकी शिक्षाओं को विकृत करेंगे।
“केवल वही सब कुछ कर जो पवित्र आत्मा कहता है
वे उससे अलग हो गए क्योंकि वह बन्दी बनाकर बंदीगृह में डाला गया था।
उनेसिफुरूस पौलुस से लज्जित नहीं था वरन उससे भेंट करने बार-बार आता था। जंजीर कारागार में होने का एक रूपक है।
संभावित अर्थ हैं 1) जिस दिन प्रभु पुनः आएगा। या 2) जिस दिन प्रभु मनुष्यों का न्याय करेगा।
पौलुस परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित था।
तीमुथियुस पौलुस का आत्मिक पुत्र था।
पौलुस तीमुथियुस से भेंट करने की लालसा करता था।
तीमुथियुस की नानी और माता दोनों का विश्वास सच्चा था।
परमेश्वर ने तीमुथियुस को भय की नहीं पर सामर्थ्य और प्रेम और संयम की आत्मा दी थी।
पौलुस ने तीमुथियुस से कहा कि वह प्रभु की गवाही से लज्जित न हो।
इसकी अपेक्षा पौलुस तीमुथियुस से कहता था कि वह सुसमाचार के लिए दुःख उठाए।
हमारा उद्धार और हमारे लिए परमेश्वर का उद्देश्य सनातन से था।
परमेश्वर के उद्धार कि योजना हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु के प्रकट होने पर प्रकाशित हुई है।
यीशु ने मृत्यु का नाश किया और सुसमाचार के द्वारा जीवन और अमरता को प्रकाशमान किया।
पौलुस को पूरा विश्वास था कि परमेश्वर उसकी धरोहर को उस दिन तक संभाले रखने में सक्षम है।
तीमुथियुस को पवित्र आत्मा के द्वारा उस अच्छी धरोहर की रखवाली करनी थी जो परमेश्वर ने उसे सौंपी थी।
आसियावाले सब पौलुस से फिर गए थे।
पौलुस प्रार्थना करता है कि प्रभु उनेसिफुरुस के घराने पर दया करे क्योंकि उसने कई बार पौलुस की सहायता की थीं।
1 इसलिए हे मेरे पुत्र, तू उस अनुग्रह से जो मसीह यीशु में है, बलवन्त हो जा। 2 और जो बातें तूने बहुत गवाहों के सामने मुझसे सुनी हैं, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो औरों को भी सिखाने के योग्य हों।
3 मसीह यीशु के अच्छे योद्धा के समान मेरे साथ दुःख उठा*। 4 जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिए कि अपने वरिष्ठ अधिकारी को प्रसन्न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फँसाता 5 फिर अखाड़े में लड़नेवाला यदि विधि के अनुसार न लड़े तो मुकुट नहीं पाता।
6 जो किसान परिश्रम करता है, फल का अंश पहले उसे मिलना चाहिए। 7 जो मैं कहता हूँ, उस पर ध्यान दे और प्रभु तुझे सब बातों की समझ देगा।
8 यीशु मसीह को स्मरण रख, जो दाऊद के वंश से हुआ, और मरे हुओं में से जी उठा; और यह मेरे सुसमाचार के अनुसार है। 9 जिसके लिये मैं कुकर्मी के समान दुःख उठाता हूँ, यहाँ तक कि कैद भी हूँ; परन्तु परमेश्वर का वचन कैद नहीं*। 10 इस कारण मैं चुने हुए लोगों के लिये सब कुछ सहता हूँ, कि वे भी उस उद्धार को जो मसीह यीशु में हैं अनन्त महिमा के साथ पाएँ।
11 यह बात सच है, कि
यदि हम उसके साथ मर गए हैं तो उसके साथ जीएँगे भी।
12 यदि हम धीरज से सहते रहेंगे, तो उसके साथ राज्य भी करेंगे;
यदि हम उसका इन्कार करेंगे तो वह भी हमारा इन्कार करेगा।
13 यदि हम विश्वासघाती भी हों तो भी वह विश्वासयोग्य बना रहता है,
क्योंकि वह आप अपना इन्कार नहीं कर सकता। (1 थिस्स. 5:24)
14 इन बातों की सुधि उन्हें दिला, और प्रभु के सामने चिता दे, कि शब्दों पर तर्क-वितर्क न किया करें, जिनसे कुछ लाभ नहीं होता; वरन् सुननेवाले बिगड़ जाते हैं। 15 अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।
16 पर अशुद्ध बकवाद से बचा रह; क्योंकि ऐसे लोग और भी अभक्ति में बढ़ते जाएँगे। 17 और उनका वचन सड़े-घाव की तरह फैलता जाएगा: हुमिनयुस और फिलेतुस उन्हीं में से हैं, 18 जो यह कहकर कि पुनरुत्थान हो चुका है सत्य से भटक गए हैं, और कितनों के विश्वास को उलट पुलट कर देते हैं। 19 तो भी परमेश्वर की पक्की नींव बनी रहती है, और उस पर यह छाप लगी है: “प्रभु अपनों को पहचानता है,” और “जो कोई प्रभु का नाम लेता है, वह अधर्म से बचा रहे।” (नहू. 1:7) 20 बड़े घर में न केवल सोने-चाँदी ही के, पर काठ और मिट्टी के बर्तन भी होते हैं; कोई-कोई आदर, और कोई-कोई अनादर के लिये। 21 यदि कोई अपने आप को इनसे शुद्ध करेगा, तो वह आदर का पात्र, और पवित्र ठहरेगा; और स्वामी के काम आएगा, और हर भले काम के लिये तैयार होगा। 22 जवानी की अभिलाषाओं से भाग; और जो शुद्ध मन से प्रभु का नाम लेते हैं, उनके साथ धार्मिकता, और विश्वास, और प्रेम, और मेल-मिलाप का पीछा कर। 23 पर मूर्खता, और अविद्या के विवादों से अलग रह; क्योंकि तू जानता है, कि इनसे झगड़े होते हैं।
24 और प्रभु के दास को झगड़ालू नहीं होना चाहिए, पर सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण, और सहनशील हो। 25 और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहचानें। 26 और इसके द्वारा शैतान की इच्छा पूरी करने के लिये सचेत होकर शैतान के फन्दे से छूट जाएँ।
संभावित अर्थ हैं 1) “परमेश्वर ने तुम्हें बलवन्त करने के लिए मसीह यीशु में अनुग्रह प्रदान किया है उसका उपयोग करे”। (यू.डी.बी.) या 2) साहस धरो कि परमेश्वर ने तुम्हें वह अनुग्रह प्रदान किया है जो केवल मसीह यीशु से है।
“मरे वचनों की सत्यता के अनेक गवाह जो वहां थे
“विश्वासयोग्य जन”
पद 4,5 और 6 में पौलुस तीन रूपकों द्वारा मसीह के सेवक की जीवनशैली को सुव्यक्त करता है।
संभावित अर्थ 1) “मेरे कष्ट उठा” (यू.डी.बी.) या 2) मेरे दुःखों में सहभागी हो”।
“जीवन की दैनिक गतिविधियों में फंसा हुआ सैनिक अयोग्य होता है”। या “सेवारत सैनिक सामान्य मनुष्यों के सदृश्य दैनिक कार्यों में विचलित नहीं होता है”। यह तीन में से कहता रूपक है। पाठक को समझ लेना है कि मसीह के सेवक दैनिक जीवन के कार्य-कलापों के कारण मसीह की सेवा से अलग न हों।
सांसारिक बातों से मसीह की सेवा में बाधित होने को जाल में फंसने की उपमा दी गई है।
“जिसने उसे सेना में भर्ती किया है”
यह पौलुस द्वारा तीमुथियुस को लिखा दूसरा रूपक है। पाठक को समझ लेना है कि मसीही सेवकों को मसीह की आज्ञाओं के अनुसार काम करना है।
“वह पुरस्कार नहीं जीत पाता है”
“नियमों का पालन न करें” या “नियमों के अनुसार खेल पूरा न करें”
यह पौलुस द्वारा प्रयुक्त तीसरा रूपक है। पाठकों को समझना है कि मसीही सेवक को परिश्रम करना आवश्यक है।
पौलुस ने तीमुथियुस को तीन दृष्टान्त लिखे परन्तु उनका अर्थ स्पष्ट नहीं किया। वह चाहता था कि पौलुस इनके द्वारा मसीही सेवक के लिए क्या कर रहा है उसे तीमुथियुस स्वयं समझे।
“प्रभु समझ देगा”
“अर्थात मेरे सुसमाचार”
“शुभ सन्देश जिसके लिए मैं कष्ट भोग रहा हूं”।
“बंदीगृह में हूं”
“बाधित नहीं है” या “बन्दी नहीं हो सकता” या “पूर्णतः स्वतंत्र है”
“परमेश्वर द्वारा चुने हुओं के लिए”
“उद्धार प्राप्त करें” या “परमेश्वर उनका उद्धार करे”
“परमेश्वर का सत्त महिमान्वन करते हुए” या “मनुष्यों को परमेश्वर का कार्य दिखाते हुए”
“ये वचन”
“यदि हम परमेश्वर को निराश भी करें” या “यदि हम वह काम न करें जो हमारी समझ में परमेश्वर हमसे करवाना चाहता है”।
“वह सदैव अपने गुणों के अनुसार काम करता है” या “वह अपने गुणों के विपरीत काम नहीं कर सकता है”
संभावित अर्थ हैं 1) “शिक्षक” (यू.डी.बी.) या “कलीसिया के सदृश्य”
“परमेश्वर की उपस्थिति में” या “यह जानते हुए कि परमेश्वर तुम्हें और उन्हें देख रहा है”।
“शब्दों के अर्थों पर विवाद न करें” या “कलह उत्पन्न करने वाले शब्दों का उपयोग न करें” या “किसी को दुःख देने वाले शब्द न कहें”
“किसी को लाभ नहीं पहुंचाते है” या “निरर्थक हैं”
यहां भाव भवन के नष्ट होने का है। झगड़ों को देखकर मनुष्य मसीही सन्देश का सम्मान नहीं करता है।
“श्रोता”
“स्वयं को ऐसा मनुष्य बना जिसे उसने योग्य निश्चित कर दिया है”
“कर्मी” या “सेवक”
“सही व्याख्या करता हो”।
उनकी बातें संक्रामक रोग के समान फैलती है “जिस प्रकार कि मासूर शीघ्र ही फैलकर खीर को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार इन लोगों की शिक्षाएं मनुष्यों में फैलकर विश्वासियों के विश्वास को नष्ट कर देती है”। उनके वचन मासूर के समान शीघ्र फैल कर विनाश कर देते हैं”। या “मनुष्य उनकी बातें शीघ्र मानकर अपनी हानि करते हैं”।
मृतक सड़ रही मांस पेशियां। नासूर से बचने का एक ही उपाय है, उस शारीरिक भाग को काट कर अलग कर दिया जाए।
इसके संभावित अर्थ हैं 1) “सत्य के बारे में चूक की है” या “सत्य के बारे में भ्रमित है”। “जैसे एक तीर लक्ष्य से विपथ हो जाता है। या 2)“सत्य में विश्वास करना छोड़ दिया है”।
“परमेश्वर ने मृतकों को अनन्त जीवन के लिए जीवित कर दिया है”।
“विश्वासियों में सन्देह उत्पन्न कर रहे हैं” या कुछ विश्वासियों को विश्वास त्याग के लिए आश्वस्त कर रहे हैं।
“जो मसीह का विश्वासी होने का दावा करता है”
संभावित अर्थः 1) “जिस कलीसिया की रचना परमेश्वर ने आरंभ से की है” 2) “परमेश्वर का सत्य” (यू.डी.बी.) 3) “परमेश्वर की विश्वासयोग्यता”।
संभावित अर्थः 1) “बुरा होने से बचा रहता है” 2) “बुराई करने से बचा रहता है”।
कटोरे, थालियां या मटकों जैसे वस्तुएं। यदि आपकी भाषा में ऐसा कोई शब्द नहीं है जो सामान्य उपयोग का हो तो कटोरे या मटके का शब्द काम में लें यह मनुष्यों के लिए एक रूपक है।
संभावित अर्थ हैं, 1) विशेष अवसर के लिए साधारण समय पर” (यू.डी.बी.); 2) भले मनुष्यों के सार्वजनिक काम... भले मनुष्यों के निजि काम”
संभावित अर्थ हैं 1) अनादर के मुनष्यों से अलग रहेगा। 2) स्वयं को शुद्ध रखेगा”।
“विशेष अवसर पर काम में आनेवाला बर्तन” या “भले मनुष्यों के सार्वजनिक कामों में उपयोगी”
इस रूपक में जो दिया है वह बहुत तेज दौड़ने का है। “भाग” का अर्थ है हानिकारक बात से दूर भाग। और “पीछा कर” का अर्थ है लाभकारी बात की ओर दौड़।
“युवागण को लालयित करने वाली परीक्षाओं से” जैसे मनुष्य किसी आक्रमणकारी हिंसक पशु या हत्यारे से भागता है। यदि आपकी भाषा में अभिलाषा के लिए संज्ञा शब्द नहीं है तो इसका अनुवाद होगा, “युवा जिस बात की प्रबल इच्छा रखते हैं उनका पूर्णतः इन्कार कर” या “यथासंभव प्रयास करके दूर रह”।
“धर्म-निष्ठा, विश्वास, प्रेम, शान्ति का पीछा कर” यदि आपकी भाषा में इन शब्दों का संज्ञा रूप नहीं है तो इसका अनुवाद होगा, “उचित काम का यथासंभव प्रयास कर”।
संभावित अर्थ हैं: 1) देखें
संभावित अर्थ हैं 1) “संगति” अर्थात विश्वासियों के साथ धर्म की खोज कर” 2) जब तू संबन्ध बनाए”। “यथासंभव प्रयास करके... अन्य विश्वासियों के साथ मेल-मिलाप रखना”
“मसीह विश्वासी” या “वे जो स्वयं को प्रभु के जन कहते हैं”।
“सच्चे उद्देश्यों से” या “भली इच्छा से”
“मूर्खता के प्रश्न और अज्ञान के प्रश्नों के उत्तर न दे”
“मनुष्य ऐसे प्रश्न पूछें जिनमें परमेश्वर का सम्मान निहित न हो।
“जो मनुष्य सत्य जानना चाहते है उसके प्रश्नअविधा
“दीनता” या “विनम्रता”
“निर्देशन में” या “शिक्षण में” या “सुधार करने में”
“पापों के त्याग का अवसर”
“कि वे सत्य का ज्ञान ग्रहण करें”।
“बुरे विचार मन में ना लाएं” या “वे पुनः परमेश्वर की बातें सुनें”
वे जो शैतान के फंदे में फंस गए हैं। यह एक रूपक है जो उन मनुष्यों को दर्शाता है जो सोचते हैं कि वे परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हैं परन्तु वे वास्तव में शैतान के अभिकर्ता हैं।
शैतान ने उन्हें फंसा लिया है और उनसे अपनी इच्छा पूरी करवाता है।
तीमुथियुस पौलुस का आत्मिक पुत्र था।
तीमुथियुस उन बातों को जो उसने पौलुस से सुनी हैं उन्हे विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे जो औरों को भी सिखाने के योग्य हों।
एक अच्छा योद्धा इस जीवन की चिन्ताओं में नहीं फंसता है।
पौलुस एक अपराधी की समान जंजीरों में बन्धा कष्ट उठा रहा था।
परन्तु परमेश्वर का वचन कैद नहीं है।
पौलुस परमेश्वर के चुने हुओं के लिए सब कुछ सहता था कि वे भी उद्धार पाएं।
यदि हम धीरज से सहते रहेंगे तो उसके साथ राज्य भी करेंगे।
जो मसीह का इन्कार करते हैं उनका मसीह भी इन्कार करता है।
आवश्यक है कि तीमुथियुस विश्वासियों को समझाए कि वे शब्दों पर तर्क वितर्क न करें।
वे सिखाते थे कि मृतकों का पुनरुत्थान हो चुका है।
विश्वासी अपमान के उपयोग से बचकर अपने आप को शुद्ध करें।
तीमुथियुस को जवानी की अभिलाषाओं से भागना था।
प्रभु के दास को झगड़ालू नहीं होना है, वह सब के साथ कोमल हो शिक्षा में निपुण हो और सहनशील हो और विरोधियों को नम्रता से समझाए।
शैतान ने अविश्वासियों को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए फंदे में बांध रखा है।
1 पर यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएँगे। 2 क्योंकि मनुष्य स्वार्थी, धन का लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, अपवित्र, 3 दया रहित, क्षमा रहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी, 4 विश्वासघाती, हठी, अभिमानी और परमेश्वर के नहीं वरन् सुख-विलास ही के चाहनेवाले होंगे।
5 वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उसकी शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना। 6 इन्हीं में से वे लोग हैं, जो घरों में दबे पाँव घुस आते हैं और उन दुर्बल स्त्रियों को वश में कर लेते हैं, जो पापों से दबी और हर प्रकार की अभिलाषाओं के वश में हैं। 7 और सदा सीखती तो रहती हैं पर सत्य की पहचान तक कभी नहीं पहुँचतीं।
8 और जैसे यन्नेस और यम्ब्रेस* ने मूसा का विरोध किया था वैसे ही ये भी सत्य का विरोध करते हैं ये तो ऐसे मनुष्य हैं, जिनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है और वे विश्वास के विषय में निकम्मे हैं। (प्रेरि. 13:8) 9 पर वे इससे आगे नहीं बढ़ सकते, क्योंकि जैसे उनकी अज्ञानता सब मनुष्यों पर प्रगट हो गई थी, वैसे ही इनकी भी हो जाएगी।
10 पर तूने उपदेश, चाल-चलन, मनसा, विश्वास, सहनशीलता, प्रेम, धीरज, 11 उत्पीड़न, और पीड़ा में मेरा साथ दिया, और ऐसे दुःखों में भी जो अन्ताकिया और इकुनियुम और लुस्त्रा में मुझ पर पड़े थे। मैंने ऐसे उत्पीड़नों को सहा, और प्रभु ने मुझे उन सबसे छुड़ाया। (भज. 34:19) 12 पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएँगे। 13 और दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा* देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएँगे।
14 पर तू इन बातों पर जो तूने सीखी हैं और विश्वास किया था, यह जानकर दृढ़ बना रह; कि तूने उन्हें किन लोगों से सीखा है, 15 और बालकपन से पवित्रशास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।
16 सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है* और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धार्मिकता की शिक्षा के लिये लाभदायक है, 17 ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।
पद 2-4 में व्यक्त मनुष्यों द्वारा संकट जो कुछ दिनों, महिनों या वर्षों में हो।
“परिवारों के प्रेम से विरक्त”
"वह हर एक जन"
“झूठा दोषारोपण करने वाले”
“उग्र” या “पाशविक” या “मनुष्यों को सदा हानि पहुंचाने वाले”
भले के बैरी
कठोर
“वे स्वयं को अन्यों से अच्छा मानते हैं”
वे भक्ति का भेष तो करेंगे “धर्मी प्रतीत होंगे” या “धर्मपरायण प्रतीत होंगे”
संभावित अर्थ हैं 1) वे परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले वास्तविक सामर्थ्य का इन्कार करेंगे। (यू.डी.बी.) या 2) उनका जीवन उनकी स्वांगपूर्ण धर्म-निष्ठा को सिद्ध नहीं करेगें।
“बचना”
“अज्ञात प्रवेश करते हैं”
संभावित अर्थ हैं 1) परिवार या परिवार के लोगों में या 2) “आवासों में” (यू.डी.बी.)
“प्रभाव डालते हैं”
“आत्मिकता में दुर्बल स्त्रियों को” इसका कारण है कि वे भक्ति में चूक जाती हैं या वे आलसी हैं या “वे पापों के वशीभूत हैं”।
संभावित अर्थ हैं 1) पापों की बहुतायत के नीचे हैं। या 2) बार-बार पाप करती रही हैं, कहने का अर्थ है कि वे पाप से बच नहीं पाती हैं।
इसका अनुवाद एक अलग वाक्य में किया जा सकता है। “इन विधवाओं में इतनी अधिक अभिलाषाएं है कि वे मसीह के आज्ञापालन से चूक जाती हैं”, या “ये स्त्रियां मसीह के अनुसरण को त्याग कर अपनी अभिलाषाओं के पीछे दौड़ती हैं।”
इसका अर्थ ऐसा है, किसी मनुष्य को लम्बे समय तक परखने के बाद आप उसके बारे में जान जाते हैं।
ये दो नाम संपूर्ण बाइबल में केवल यहीं पाए जाते हैं। एक परम्परा के अनुसार ये दो मिस्री जादूगर हैं जिन्होने मूसा का सामना किया था निर्ग. 7-8
“सामना किया था”
“इसी प्रकार”
“मसीह का शुभ सन्देश”
“वे अब सोच नहीं पाते कि उचित क्या है”
कुछ लोगों ने सिद्ध कर दिया है कि झूठे शिक्षक मसीह के बारे में जो शिक्षा देते हैं वह सब झूठ है अतः “इन शिक्षकों का कोई स्थान नहीं है” या “वे अयोग्य हैं”।
“प्रगति नहीं कर सकते”
“मूर्खता”
“आसानी से दिखाई देती है” या “आसानी से समझ में आ जाती है”
“परन्तु तूने सावधानीपूर्वक मनन किया है
“निर्देशन”
“जीवन आचरण”
“निर्णय” या “संकल्प”
“मनुष्यों के साथ सहनशीलता”
“कष्टों एवं परेशानियों में भी मैं परमेश्वर की सेवा में अटल रहा”। (यू.डी.बी.) या “मैंने अगम परिस्थितियों में भी अपनी मानसिकता को उचित ही रखा है”।
“बचा लिया”
“इच्छा रखते हैं”
“जो अपने बारे में मनुष्यों को मुझमें रखते हैं” या “जो मनुष्य अपनी वास्तविकता से भिन्न दिखावा करते हैं।”
इसके संभावित अर्थ हैं 1) “जो बातें तूने सीखी हैं उन्हें करता रह” (यू.डी.बी.) या 2) “तूने जो सीखा है उसे भूलना नहीं” दोनों वाक्यों में “अटल” रहने का भाव है।
“वे तुझे आवश्यक बुद्धि प्रदान कर सकते हैं
“कि परमेश्वर मसीह में तेरे विश्वास को उद्धार के निमित्त रखेगा”
इसके संभावित अर्थ हैं 1) “परमेश्वर तुझे अनन्त जीवन देगा”। 2) परमेश्वर तुम्हें इस संसार की मूर्खता से बचा कर रखेगा”।
“परमेश्वर ने अपनी आत्मा के द्वारा संपूर्ण धर्मशास्त्र को उच्चारित किया है और वह लाभदायक है” (यू.डी.बी.), “संपूर्ण धर्मशास्त्र परमेश्वर का श्वास उत्पन्न है”। परमेश्वर ने मनुष्यों को निर्देश दिया कि क्या लिखें”। उनकी आत्मा ने उन्हें वचन दिया।
“उपयोगी” “लाभ पहुंचानेवाला”
“भूल चूक दिखाने के लिए”
“भूल चूक को ठीक करने के लिए”
“अनुशासन” या “विकास के लिए”
“परिपूर्ण हो”
पौलुस कहता है कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे।
अन्तिम दिनों में मनुष्य स्वार्थी लोभी और सुखविलास के चाहनेवाले होंगे परमेश्वर के प्रेमी नहीं होंगे।
पौलुस तीमुथियुस से कहता है कि वह ऐसे लोगों से दूर रहें जो ऐसा स्वभाव रखते हैं।
ऐसे कुछ प्रचारक घरों में दबे पांव घुस जाते थे और अभिलाषाओं की वशीभूत स्त्रियों को वश में कर लेते हैं।
ये अभक्त लोग झूठे शिक्षक थे जो सत्य का विरोध करते थे जैसे यन्नेस और यम्ब्रेस ने किया था।
तीमुथियुस ने पौलुस का साथ दिया था।
प्रभु ने पौलुस को सब दु:खों से छुड़ा लिया था।
पौलुस कहता है कि जो मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते है वे सब सताए जाएंगे।
अन्तिम दिनों में दुष्ट और बहकानेवाले अधिकाधिक बुरे होते जाएंगे।
तीमुथियुस बचपन से ही धर्मशास्त्र को जानता था।
संपूर्ण धर्मशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है।
धर्मशास्त्र उपदेश और समझाने, और सुधारने और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है।
धर्मशास्त्र परमेश्वर के जन को सिद्ध बनाने और हर एक भले काम के लिए तत्पर करने हेतु दिया गया है।
1 परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवितों और मरे हुओं का न्याय करेगा, उसे और उसके प्रगट होने, और राज्य को सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूँ। 2 कि तू वचन का प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दे, और डाँट, और समझा।
3 क्योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुत सारे उपदेशक बटोर लेंगे। 4 और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएँगे। 5 पर तू सब बातों में सावधान रह, दुःख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर।
6 क्योंकि अब मैं अर्घ के समान उण्डेला जाता हूँ*, और मेरे संसार से जाने का समय आ पहुँचा है। 7 मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। 8 भविष्य में मेरे लिये धार्मिकता का वह मुकुट* रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन् उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं।
9 मेरे पास शीघ्र आने का प्रयत्न कर। 10 क्योंकि देमास ने इस संसार को प्रिय जानकर मुझे छोड़ दिया है, और थिस्सलुनीके को चला गया है, और क्रेसकेंस गलातिया को और तीतुस दलमतिया को चला गया है।
11 केवल लूका मेरे साथ है मरकुस को लेकर चला आ; क्योंकि सेवा के लिये वह मेरे बहुत काम का है। 12 तुखिकुस को मैंने इफिसुस को भेजा है। 13 जो बागा मैं त्रोआस में करपुस के यहाँ छोड़ आया हूँ, जब तू आए, तो उसे और पुस्तकें विशेष करके चर्मपत्रों को लेते आना।
14 सिकन्दर ठठेरे ने मुझसे बहुत बुराइयाँ की हैं प्रभु उसे उसके कामों के अनुसार बदला देगा। (भज. 28:4, रोम. 12:19) 15 तू भी उससे सावधान रह, क्योंकि उसने हमारी बातों का बहुत ही विरोध किया। 16 मेरे पहले प्रत्युत्तर करने के समय में किसी ने भी मेरा साथ नहीं दिया, वरन् सब ने मुझे छोड़ दिया था भला हो, कि इसका उनको लेखा देना न पड़े।
17 परन्तु प्रभु मेरा सहायक रहा, और मुझे सामर्थ्य दी; ताकि मेरे द्वारा पूरा-पूरा प्रचार हो*, और सब अन्यजाति सुन ले; और मैं तो सिंह के मुँह से छुड़ाया गया। (भज. 22:21, दानि. 6:21) 18 और प्रभु मुझे हर एक बुरे काम से छुड़ाएगा, और अपने स्वर्गीय राज्य में उद्धार करके पहुँचाएगा उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
19 प्रिस्का और अक्विला को, और उनेसिफुरूस के घराने को नमस्कार। 20 इरास्तुस कुरिन्थुस में रह गया, और त्रुफिमुस को मैंने मीलेतुस में बीमार छोड़ा है। 21 जाड़े से पहले चले आने का प्रयत्न कर: यूबूलुस, और पूदेंस, और लीनुस और क्लौदिया, और सब भाइयों का तुझे नमस्कार।
22 प्रभु तेरी आत्मा के साथ रहे, तुम पर अनुग्रह होता रहे।
“परमेश्वर और मसीह यीशु देखते हैं” या “परमेश्वर और मसीह यीशु की उपस्थिति में” या “परमेश्वर और मसीह यीशु गवाह हैं और न्याय करते हैं”।
न्याय करेगा - “जो न्याय के लिए शीघ्र आनेवाला है”
“प्रबलता से” या “गंभीरता से” या “प्रत्येक शब्द का अर्थ उजागर करता है”।
“जिस समय असुविधा भी से”
“उनकी चूक प्रकट कर” या “उन्हें बता कि उन्होंने यह गलती की है”
“गंभीरता से चेतावनी दे”
“सहिष्णुता”
इसके संभावित अर्थ हैं 1) आवश्यक है कि तीमुथियुस विश्वासियों को ही उपदेश दे”। या 2) पद 2 और 3) में तीमुथियुस अन्तिम वाक्य में ऐसा ही करे।
“अत्यधिक सहिष्णुता के साथ” या “बहुत ही सब्र के साथ”
“क्योंकि भविष्य में एक समय”
संदर्भ से प्रतीत होता है कि ये लोग कलीसिया के सदस्य हैं। (देखें यू.डी.बी.)
जिस शिक्षा को कलीसिया सत्य एवं उचित मानती है।
इसका संभावित अर्थ हैं 1) “अपनी निजि अभिलाषाओं के कारण वे ऐसे उपदेशकों का स्वागत करेंगे जो उनकी मनोकामना के अनुरूप प्रचार करते हैं” या 2) “वे ऐसे ही प्रचारकों का अनुसरण करेंगे जो उनकी अभिलाषाओं को उचित ठहरा कर वैसा ही प्रचार करते हें”। या 3) “उनकी अभिलाषाओं के अनुसार ऐसे प्रचारकों के आसपास रहते हैं जो वही सुनाते हैं। जो उन्हें अच्छा लगता है”।
“अपनी मनोकामनाओं के अनुसार”
“वे कर्म लुभावन बातें सुनने के लिए वैसे ही शिक्षकों का स्वागत करेंगेा”। “कानों की खुजली” एक रूपक है जो किसी के आनन्द के लिए कही गई बातों का द्योतक है वे सुनकर प्रसन्न होते हें”।
अर्थात यीशु कौन है, यीशु ने मानवजाति के लिए क्या किया और मनुष्य को उसके लिए कैसा जीवन जीना है, इसी का प्रचार कर
क्योंकि - इसके कारण प्रकट होता है कि पौलुस ने पद 5 में तीमुथियुस को ऐसी आज्ञा क्यों दी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इस कारण” या “इसलिए”
“मैं शीघ्र ही मर कर इस संसार से चला जाऊंगा” (यू.डी.बी.) पौलुस को यह बोध हो रहा है कि वह अब अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा।
यह खेलों में कुश्ती प्रतियोगिता का एक रूपक है (जैसे मुक्केबाजी) पौलुस ने अपना सर्वोत्तम प्रयास किया है। “मैंने तो अपनी यथाशक्ति अच्छे से अच्छा काम किया है” या “मैंने अपनी सर्वशक्ति से सेवा की है”।
मैंने अपनी दौड़ कर ली है यह रूपक दौड़ प्रतियोगिता की अन्तिम रेखा का है जिसके द्वारा पौलुस के कहने का अर्थ है कि उसने अपने जीवन की दौड़ पूरी कर ली है। “मेरे लिए जो भी आवश्यक था मैंने किया है”।
संभावित अर्थ हैं 1) “मैंने अपने विश्वास की शिक्षाओं को किसी भ्रमित शिक्षा से सुरक्षित किया है” या 2) “मैं अपनी सेवा में निष्ठावान रहा हूं”। (यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“मुझे धर्म-निष्ठा का मुकुट दिया जायेगा”
संभावित अर्थ हैं 1) धर्म-निष्ठ जीवन जीने वालों को दिया जानेवाला प्रतिफल मुकुट कहलाता है। (यू.डी.बी.) मुकुट धर्म परायता का एक रूपक है। जिस प्रकार कि न्यायी दौड़ जीतने वाले को मुकुट देता है उसी प्रकार जब पौलुस का जीवन समाप्त हो जायेगा तब परमेश्वर पौलुस को धर्म-सिद्ध कहेगा।
दौड़ प्रतियोगिता के विजेता को एक विशिष्ट पेड़ के पत्तों का मुकुट पहनाया जाता था।
“प्रभु के पुनः आगमन के दिन” या “जिस दिन प्रभु मनुष्यों का न्याय करेगा”।
शीघ्र - “यथासंभव अविलम्ब”
“कारण यह है कि”
“क्यों देमास संसार से अधिक लगाव रखता है”
इस संसार को संभावित अर्थ हैं 1) “संसार की नाशमान वस्तुओं को” “इस संसार के सुख और सुविधा को” या 2) इस वर्तमान जीवन और मृत्यु से बचने के लिए” (देमास को भय था कि यदि वह पौलुस के साथ रहा तो लोग उसे मार डालेंगे)।
“देमास चला गया है”।
ये दो व्यक्ति पौलुस के पास से चले गए थे परन्तु पौलुस यह नहीं कह रहा है कि वे संसार से लगाव के कारण चले गए हैं।
वह मेरे बहुत काम का है - इसके संभावित अर्थ हैं 1) “वह मेरी सेवा में सहायक होगा” या 2) “वह मेरी सेवा करके एक सहायक सिद्ध होगा”।
अर्थात उसे बाहरी वस्त्र को
मुझ से बहुत बहुत बुराइयां की हैं “मेरे साथ बुरा किया है” या “मेरी हानि के काम किए है”
तू भी उस से सावधान रह “तू भी उससे संभल कर रहना” या “तू स्वयं भी उस से सतर्क रहना” या “उस से अपने आपको बचा कर रखना”
ये सब सर्वनाम सिकंदर ठठेरे के लिए प्रयुक्त हैं
“उसने हमारे संदेश के विरोध में बहुत कुछ किया है” या “उसने हमारे वचनों का खण्डन किया है”।
“किसी ने मेरी सहायता नहीं की वरन् मुझे छोड़कर चले गए थे”
“मैं प्रार्थना करता हूं कि परमेश्वर उनके परित्याग का दण्ड उन्हें न दे”।
“मेरी सहायता के लिए खड़ा रहा”
इसके संभावित अर्थ हैं 1) ऐसा हो चुका है (देखें यू.डी.बी.) या 2) पौलुस के लिए वह एक भावी कार्य है, “कि मैं उसका वचन संपूर्णता में सुना पाऊं। कि सब अन्य जातियां सुन लें”।
“यह एक रूपक है। इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “मैं घोर संकटों में बचाया गया”। यह संकट शारीरिक या आत्मिक या दोनों हो सकते थे।
नमस्कार “मेरी ओर से प्रणाम” या “कहना कि मैं उनके बारे में सोचता रहता हूं”।
“उनेसिकुरूस के कुटुम्ब”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आने को संभव बना”
ये सब भाई तुझे नमस्कार कहते हैं।
सब भाइयों और बहनों
“मैं प्रभु से तेरी आत्मा के सामर्थ्य के लिए प्रार्थना करता हूं”
तुम पर अनुग्रह होता रहे - “मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूं कि तुम सब पर उसकी कृपादृष्टि हो”। या “मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि तुम पर अनुग्रह प्रकट करे”।
मसीह यीशु जीवितों और मृतकों का न्याय करेगा।
पौलुस ने तीमुथियुस को राज्य की सुधि दिलाकर आदेश दिया कि वह वचन का प्रचार करे।
मनुष्य खरी शिक्षा नहीं सुनेंगे परन्तु अपनी अभिलाषाओं के अनुसार उपदेशक बटोर लेंगे।
तीमुथियुस को एक प्रचारक का कार्य एवं सेवा दी गई थी।
पौलुस ने कहा कि उसके कूच करने का समय आ गया था।
पौलुस कहता है कि जो मसीह के प्रकट होने को प्रिय जानते हैं उन्हे धर्म का मुकुट मिलेगा।
देमास ने संसार को प्रिय जानकर पौलुस का साथ छोड़ दिया था।
एकमात्र लूका ही था जो अब तक पौलुस के साथ था।
पौलुस कहता है कि उसका विरोधी अपने कर्मो का फल पाएगा।
पहले प्रतिवाद के समय केवल प्रभु ने पौलुस का साथ दिया था।
1 पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर का दास और यीशु मसीह का प्रेरित है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के विश्वास को स्थापित करने और सच्चाई का ज्ञान स्थापित करने के लिए जो भक्ति के साथ सहमत हैं, 2 उस अनन्त जीवन की आशा पर, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने जो झूठ बोल नहीं सकता सनातन से की है, 3 पर ठीक समय पर* अपने वचन को उस प्रचार के द्वारा प्रगट किया, जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार मुझे सौंपा गया।
4 तीतुस के नाम जो विश्वास की सहभागिता के विचार से मेरा सच्चा पुत्र है: परमेश्वर पिता और हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु की ओर से तुझे अनुग्रह और शान्ति होती रहे।
5 मैं इसलिए तुझे क्रेते में छोड़ आया था, कि तू शेष रही हुई बातों को सुधारें, और मेरी आज्ञा के अनुसार नगर-नगर प्राचीनों को नियुक्त करे।
6 जो निर्दोष और एक ही पत्नी के पति हों, जिनके बच्चे विश्वासी हो, और जिन पर लुचपन और निरंकुशता का दोष नहीं। 7 क्योंकि अध्यक्ष को परमेश्वर का भण्डारी होने के कारण निर्दोष होना चाहिए; न हठी, न क्रोधी, न पियक्कड़, न मार पीट करनेवाला, और न नीच कमाई का लोभी।
8 पर पहुनाई करनेवाला, भलाई का चाहनेवाला, संयमी, न्यायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो; 9 और विश्वासयोग्य वचन पर जो धर्मोपदेश के अनुसार है, स्थिर रहे; कि खरी शिक्षा से उपदेश* दे सके; और विवादियों का मुँह भी बन्द कर सके।
10 क्योंकि बहुत से अनुशासनहीन लोग, निरंकुश बकवादी और धोखा देनेवाले हैं; विशेष करके खतनावालों में से। 11 इनका मुँह बन्द करना चाहिए: ये लोग नीच कमाई के लिये अनुचित बातें सिखाकर घर के घर बिगाड़ देते हैं।
12 उन्हीं में से एक जन ने जो उन्हीं का भविष्यद्वक्ता हैं, कहा है, “क्रेती लोग सदा झूठे, दुष्ट पशु और आलसी पेटू होते हैं।” 13 यह गवाही सच है, इसलिए उन्हें कड़ाई से चेतावनी दिया कर, कि वे विश्वास में पक्के हो जाएँ।
14 यहूदियों की कथा कहानियों और उन मनुष्यों की आज्ञाओं पर मन न लगाएँ, जो सत्य से भटक जाते हैं।
15 शुद्ध लोगों के लिये सब वस्तुएँ शुद्ध हैं, पर अशुद्ध और अविश्वासियों के लिये कुछ भी शुद्ध नहीं वरन् उनकी बुद्धि और विवेक दोनों अशुद्ध हैं। 16 वे कहते हैं, कि हम परमेश्वर को जानते हैं पर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं*, क्योंकि वे घृणित और आज्ञा न माननेवाले हैं और किसी अच्छे काम के योग्य नहीं।
पौलुस “पौलुस की ओर से” आपकी भाषा में पत्र लिखने वाले के परिचय की अपनी विधि होगी। “मैं, पौलुस यह पत्र लिख रहा हूं”
यहां “मैं... हूं” अभिप्रेत है आप एक नया वाक्य रच कर इसे स्पष्ट कर सकते हैं, “मैं” परमेश्वर का दास हूं और मसीह यीशु का प्रेरित हूं।”
विश्वास को स्थिर करने यह एक नया वाक्य हो सकता है, “मैं विश्वास के दृढ़ीकरण का काम करता हूं”। या “में विश्वास को बढ़ाने हेतु से करता हूं”।
परमेश्वर के चुने हुए लोगों “परमेश्वर के चयनित जन” या “परमेश्वर के द्वारा अलगे किए हुओं”।
“दृढ़ता से यथा स्थान रखने के लिए”
“परमेश्वर के नियमों के अनुसार” या “पवित्र जनों के लिए जो उचित है”।
“परमेश्वर जो कभी झूठ नहीं बोलता है”
“समय के आरंभ से पूर्व”
ठीक समय पर “उचित समय आने पर”
मुझे सौंप गया “मुझे प्रचार के लिए बड़े विश्वास से सौंप गया” या “उसने मुझे प्रचार करने का उत्तरदायित्व सौंपा”।
“हमें बचानेवाला परमेश्वर”
क्योंकि तीतुस पौलुस का अपना पुत्र नहीं था, इसका अनुवाद किया जा सकता है, “तू मेरे पुत्र के समान है”।
विश्वासी की सहभागिता - “मसीह यीशु में विश्वास जो हम दोनों का है” या “वही शिक्षाएं जिनका हम दोनों पालन करते हैं”।
यह उस समय का एक सामान्य अभिवादन होता था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“तुझे अनुग्रह, दया और शान्ति मिले” या “तू मन में दया, करूणा और शान्ति पाए”
हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु “मसीह यीशु जो हमारा उद्धारकर्ता है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“इस उद्देश्य के निमित्त”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैंने तुझे क्रेते में रुकने के लिए इसलिए कहा था”
कि तू उन बातों को पूरा करे जो अधूरी रह गई थी - “कि तू उन बातों को व्यवस्थित करे जिनका किया जाना है”
अर्थात धर्म-वृद्धों को चुन कर उनका अभिषेक करें
(देखें यू.डी.बी.)इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “एक निष्ठ हो” या “उनकी अच्छी छवि हो”
इसका अर्थ है, “एक ही पत्नी हों। इसका अनुवाद सामान्य इस प्रकार किया जा सकता है, उसकी एक ही पत्नी होनी चाहिए” (यू.डी.बी.) यहां विवाद का विषय है कि यदि कोई विधुर है, या तलाकशुदा है या अविवाहित है।
इसके संभावित अर्थ हैं 1) मसीह में विश्वास करनेवाली सन्तान या 2) केवल विश्वासयोग्य सन्तान।
“जाने न जाते हों” या “उनकी छवि ऐसी न हो”
“विद्रोही न हों “या “नियमनिष्ठ हों”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पर्यवेक्षक के लिए आवश्यक है कि”
“परमेश्वर का गृह प्रबन्धक” या “परमेश्वर के परिवार की देखरेख का दायित्व उठाने वालो को”
“मद्यव्यसनी” या “शराबी” या “अत्यधिक मदिरापान करनेवाला”।
“उग्र स्वभाव का” या “लड़ने झगड़ने वाला” (यू.डी.बी.)
पौलुस तीतुस को समझाता है कि वह कलीसिया में कैसे मनुष्यों को धर्म-वृद्ध नियुक्त करें।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आदर सत्कार करने वाला”
“अच्छी बातों का प्रेमी” (यू.डी.बी.)
“समर्पित रहे” या “उचित ज्ञान रखे” या “दृढ़ समझ रखे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वचन के सत्य पर” या “विश्वासयोग्य वचन की शिक्षा पर”
“उचित शिक्षा” या “लाभकारी शिक्षा”
“जिनका खतना हुआ है” या “जो खतना के पक्षधर हैं, यह यहूदियों के संदर्भ में है जिन सबका खतना हो चुका है।
अनुचित बातें सिखा कर “उनके शब्दों से किसी को लाभ नहीं होता है”
इनका मुंह बन्द करना चाहिए। - “उनको अपनी शिक्षा प्रसारण से रोकना आवश्यक है” या “उन्हें रोकना आवश्यक है कि वे मनुष्यों को पथभ्रष्ट न करें।”
“वे शिक्षाएं जो शिक्षण हेतु उचित नहीं”
“कि मनुष्य उन्हें पैसा दे। यह बड़ी लज्जा की बात है” (यू.डी.बी.) इसका अभिप्राय है कि लोग अनिष्ठ बातें सिखाकर धनोपार्जन करते हैं।
“संपूर्ण परिवार नष्ट कर देते हैं” अर्थात “संपूर्ण परिवारों के विश्वास को नष्ट कर देते हैं।”
(पौलुस कलीसिया में घुस आए झूठे शिक्षकों के विरूद्ध चेतावनी दे रहा है)
“क्रेते वासियों में से ही एक ने” या “क्रेते के नागरिकों में से ही एक ने”
“जिसे वहां के नागरिक भविष्यद्वक्ता मानते थे”
“क्रेतेवासी सदा झूठ बोलते हैं” या “क्रेतेवासी झूठ बोलना नहीं छोड़ते यह एक अतिशयोक्ति है।”
इस रूपक द्वारा क्रेतेवासियों की तुलना खतरनाक पशुओं से की गई है।
“निरूघम और बहुत खानेवाले” या “कुछ करते नहीं, खाते बहुत हैं” यह उनके पेट को उनके तुलना उनके संपूर्ण व्यक्तित्व से की गई है।
“उन्हें कठोरता से समझा कि वे गलत हैं”।
“कि उनका विश्वास सद्भावपूर्ण हो जाए” या “कि वे सत्य में विश्वास करें” या “कि उनका विश्वास सच्चा हो”।
(पौलुस तीतुस को समझाता है कि झूठे शिक्षकों का सामना कैसे करे।
“सुनने में समय न गवाएं"
यहूदियों की झूठी शिक्षाओं पर
“मनुष्य को विश्वास करने से भड़का कर दूर करना”
(पौलुस तीतुस को झूठे शिक्षकों का स्वभाव समझाता है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो स्वयं शुद्ध है उसके लिए सब शुद्ध है” “मनुष्य का मन शुद्ध हो तो उनके काम भी शुद्ध होंगे।
“पवित्र” या “परमेश्वर को स्वीकार्य”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“जो नैतिकता में अशुद्ध है और विश्वास नहीं करता, शुद्ध नहीं हो सकता”
“नैतिकता में अशुद्ध” या “भ्रष्ट” या “भ्रष्ट”
“उनके कामों से प्रकट होता है कि वे उसे नहीं जानते”
“ग्लानि-जनक”
“किसी भी अच्छे काम के अयोग्य होते हैं” या “दर्शा देते हैं कि किसी भी भले काम के योग्य नहीं”
उसका उद्देश्य था कि परमेश्वर के चुने हुओं का विश्वास स्थिर रहे और सत्य के ज्ञान को स्थापित करे।
उसने इसकी प्रतिज्ञा सनातन से की है।
नहीं।
परमेश्वर ने प्रेरित पौलुस को काम में लिया था।
तीतुस विश्वास की एकता में पौलुस का सच्चा पुत्र था।
उसे एक पत्नी का पति होना है और उसकी सन्तान विश्वासयोग्य और अनुशासित हों।
उसे संयमी होना है, वह पियक्कड़ न हो, विवाद करनेवाला न हो, धन का लोभी न हो, अतिथि सत्कार करनेवाला हो और पवित्र हो।
वह परमेश्वर के घराने का प्रबन्धक है।
एक प्राचीन को अतिथिसत्कार करने वाला होना चाहिए, भलाई करने वाला, समझदार, धर्मी, पवित्र और आत्म-नियंत्रित होना चाहिए।
वह उनको डांटकर उनका मुंह बन्द कराने और उन्हे कड़ी चेतावनी देने के योग्य हो।
वे लोगों को धोखा दे रहे थे और परिवारों को तोड़ रहे थे।
वे नीच कमाई के लिए काम करते थे।
उसे उन्हें बुरी तरह से डांटना होगा, ताकि वे विश्वास में दृढ हो सकें
उन्हे यहूदियों की कथा कहानियों पर और मनुष्यों की आज्ञाओं पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
उनका मन और विवेक दोनों ही भ्रष्ट हैं।
वह अपने कामो से परमेश्वर का इन्कार करता है।
1 पर तू, ऐसी बातें कहा कर जो खरे सिद्धांत के योग्य हैं। 2 अर्थात् वृद्ध पुरुषों सचेत और गम्भीर और संयमी हों, और उनका विश्वास और प्रेम और धीरज पक्का हो।
3 इसी प्रकार बूढ़ी स्त्रियों का चाल चलन भक्तियुक्त लोगों के समान हो, वे दोष लगानेवाली और पियक्कड़ नहीं; पर अच्छी बातें सिखानेवाली हों। 4 ताकि वे जवान स्त्रियों को चेतावनी देती रहें*, कि अपने पतियों और बच्चों से प्रेम रखें; 5 और संयमी, पतिव्रता, घर का कारबार करनेवाली, भली और अपने-अपने पति के अधीन रहनेवाली हों, ताकि परमेश्वर के वचन की निन्दा न होने पाए।
6 ऐसे ही जवान पुरुषों को भी समझाया कर, कि संयमी हों। 7 सब बातों में अपने आप को भले कामों का नमूना बना; तेरे उपदेश में सफाई, गम्भीरता 8 और ऐसी खराई पाई जाए, कि कोई उसे बुरा न कह सके; जिससे विरोधी हम पर कोई दोष लगाने का अवसर न पा कर लज्जित हों।
9 दासों को समझा, कि अपने-अपने स्वामी के अधीन रहें, और सब बातों में उन्हें प्रसन्न रखें, और उलटकर जवाब न दें; 10 चोरी चालाकी न करें; पर सब प्रकार से पूरे विश्वासी निकलें, कि वे सब बातों में हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर के उपदेश की शोभा बढ़ा दें।
11 क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह प्रगट है, जो सब मनुष्यों में उद्धार लाने में सक्षम है*। 12 और हमें चिताता है, कि हम अभक्ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर* इस युग में संयम और धार्मिकता से और भक्ति से जीवन बिताएँ; 13 और उस धन्य आशा की अर्थात् अपने महान परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की महिमा के प्रगट होने की प्रतीक्षा करते रहें।
14 जिस ने अपने आप को हमारे लिये दे दिया, कि हमें हर प्रकार के अधर्म से छुड़ा ले, और शुद्ध करके अपने लिये एक ऐसी जाति बना ले जो भले-भले कामों में सरगर्म हो। (निर्ग. 19:5, व्य. 4:20, व्य. 7:6, व्य. 14:2, भज. 72:14, भज. 130:8, यहे. 37:23)
15 पूरे अधिकार के साथ ये बातें कह और समझा और सिखाता रह। कोई तुझे तुच्छ न जानने पाए।
(अब पौलुस झूठे शिक्षकों से ध्यान हटाकर तीतुस और विश्वासियों पर केन्द्रित करता है)।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“पर इन झूठे शिक्षकों के विपरीत तीतुस तू”
“जो शिक्षा अनुचित न हो” या “उचित शिक्षाओं”
“मिताचारी” या “शान्त-चित्त” इसका अनुवाद होगा, “स्वशासित”
“आत्म संयमी” या “अपनी लालसाओं को वश में रखने वाले”
इससे अगली तीन बातें का वर्णन होता है, विश्वास, प्रेम और धीरज। “खरी” का अर्थ है “जो अनुचित नहीं”
“उचित विश्वास” या “मान्यताओं के अचूक है”
“सद्भावना का प्रेम”
“दृढ़” या “अड़िग” या “अथक”
“इसी रीति से” इसका अनुवाद हो सकता है, “जिस प्रकार तूने वृद्ध पुरूषों को निर्देश दिए हैं, उसी प्रकार वृद्ध स्त्रियों को भी निर्देश दे”।
“पवित्र लोगों का सा चालचलन होना चाहिए” या “के जैसा जीवन रखें”
जिस मूल शब्द का अनुवाद “दोष लगाने वाली” किया गया है उसका अर्थ है “शैतान” या “मानहानि करने वाली” या “बैरी”
बुलाया - “शिक्षा दे” या “अनुशासित करें” या “प्रोत्साहित करें”
“बुद्धिमानी से सोचनेवाली”
इसका अनुवाद हो सकता है, “अच्छे विचार रखनेवाली तथा अच्छे काम करनेवाली”या “पवित्र विचारों एवं कर्मों वाली”
“परमेश्वर के वचन का तिरस्कार न हो” इसका अनुवाद होगा “कि परमेश्वर के वचन की आलोचना न हो यदि स्त्रियों के कामों से परमेश्वर के वचन की आलोचना या परित्याग न हो”।
इसका संदर्भ कलीसिया में स्त्रियों के प्रशिक्षण से है। तीतुस पुरूषों को भी ऐसे ही निर्देश दे।
“शिक्षा दे” या “उपदेश दे” या “प्रोत्साहित कर”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “आवश्यक है कि तू... नमूना बन” या “स्वयं को प्रकट कर”
“उचित एवं सही कामों का नमूना बना”
“अचूक शिक्षा”
यह एक काल्पनिक स्थिति है जिसमें तीतुस का विरोध करनेवाला स्वयं लज्जित हो जाता है। वह कोई होने वाली घटना को व्यक्त नहीं कर रहा है। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने की विधि हो सकती है।
“जिसके वे दास हैं”।
“हर परिस्थिति में” या “सदैव”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “अपने स्वामी की प्रसन्न रखें” या “अपने स्वामी को सन्तुष्ट रखें”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “अपने स्वामी के स्वामि-भक्त हों” या “प्रकट करें कि वे अपने स्वामी के भरोसेमन्द हैं”।
“परमेश्वर जो हमारा उद्धार करता है”
यहां “शोभा” शब्द का मूल अर्थ है, किसी वस्तु का ऐसा सौंदर्यकरण करना कि वह देखनेवाले को ललचाए”।
“उनके हर एक काम में”
“तीतुस, तू समझता है”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“परमेश्वर का उद्धारक अनुग्रह सबके लिए प्रकाश में आ गया है
“प्रकाश में आ गया है” या “दिखने लगता है”
“हमें सही काम करने की शिक्षा देता है।” इसका अनुवाद होगा, “हमें गलत काम करने की परीक्षा का विरोध करने की शिक्षा दे”
यह एक रूपक है जो परमेश्वर के अनुग्रह को मानव रूप में दर्शाता है जो मनुष्यों को प्रशिक्षण देता है एवं अनुशासन सिखाता है कि वे पवित्र जीवन जीएं।
“संसार की वस्तुओं की उत्कट अभिलाषा” या सांसारिक सुख की लालसा”
“इस सांसारिक जीवन में” या “इस समय में”
“उसके स्वागत की प्रतीक्षा करें”
“महिमा” और “प्रकट होने” को जोड़कर कहा जा सकता है, “महिमामय प्रकटीकरण”
“मृत्यु के निमित्त हमारे लिए दे दिया”
“हमारी पाप की दशा से उभार ले” यह एक रूपक है जो पाप मुक्ति की तुलना एक दास की स्वतंत्रता से करता है जो मोल देकर उसे प्राप्त हुई है।
“पवित्र बना कर”
अर्थात “ऐसे मनुष्यों का समूह जिसे वह कीमती समझता है”।
“उत्कट अभिलाषा रखो”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“इन बातों को सिखा और श्रोताओं को उन पर आचरण करने के लिए प्रोत्साहित कर”
“जो ऐसा न करें उनका सुधार कर”
“किसी को अवसर न दे कि....”
अर्थात “तेरी शिक्षाओं से मुंह न मोड़ने पाए” या “तेरा सम्मान करने से इन्कार करे”
उन्हे सचेत, गंभीर और संयमी होना है और उनका विश्वास, प्रेम और धीरज दृढ हो।
उनका चालचलन पवित्र लोगों सा हो, दोष लगानेवाली और पियक्कड़ नही पर अच्छी बातें सिखानेवाली हों।
उनका चालचलन पवित्र लोगों सा हो, दोष लगानेवाली और पियक्कड़ नही पर अच्छी बातें सिखानेवाली हों।
उसके उपदेशों में सफाई, गंभीरता और खराई पाई जाए ताकि कोई दोष नहीं लगा पाए।
जो लोग उसका विरोध करते हैं, वे लज्जित होंगे क्योंकि उनके पास उसके बारे में कहने के लिए कुछ भी बुरा नहीं है।
उन्हें अपने स्वामियों की आज्ञा का पालन करना चाहिए, प्रसन्न होना चाहिए, और बहस नहीं करनी चाहिए।
इससे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर के उपदेश की शोभा बढ़ती है।
परमेश्वर का अनुग्रह सबके उद्धार का कारण है।
परमेश्वर का अनुग्रह हमें चेतावनी देता है कि हम अभक्ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फिराएं।
विश्वासी अपने महान परमेश्वर और उद्धारकर्ता मसीह की महिमा के प्रकट होने की बाट जोहते रहें।
उसने अपने आप को हमारे लिए दे दिया कि हमें हर प्रकार के अधर्म से छुड़ा ले और भले कामों में सरगर्म होने के लिए शुद्ध करके एक जाति बनाया।
1 लोगों को सुधि दिला, कि हाकिमों और अधिकारियों के अधीन रहें, और उनकी आज्ञा मानें, और हर एक अच्छे काम के लिये तैयार रहे, 2 किसी को बदनाम न करें*; झगड़ालू न हों; पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें।
3 क्योंकि हम भी पहले, निर्बुद्धि और आज्ञा न माननेवाले, और भ्रम में पड़े हुए, और विभिन्न प्रकार की अभिलाषाओं और सुख-विलास के दासत्व में थे, और बैर-भाव, और डाह करने में जीवन निर्वाह करते थे, और घृणित थे, और एक दूसरे से बैर रखते थे।
4 पर जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की भलाई, और मनुष्यों पर उसका प्रेम प्रकट हुआ 5 तो उसने हमारा उद्धार किया और यह धार्मिक कामों के कारण नहीं, जो हमने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार, नये जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ।
6 जिसे उसने हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा हम पर अधिकाई से उण्डेला। (योए. 2:28) 7 जिससे हम उसके अनुग्रह से धर्मी ठहरकर, अनन्त जीवन की आशा के अनुसार वारिस बनें।
8 यह बात सच है, और मैं चाहता हूँ, कि तू इन बातों के विषय में दृढ़ता से बोले इसलिए कि जिन्होंने परमेश्वर पर विश्वास किया है, वे भले-भले कामों में लगे रहने का ध्यान रखें ये बातें भली, और मनुष्यों के लाभ की हैं।
9 पर मूर्खता के विवादों, और वंशावलियों, और बैर विरोध, और उन झगड़ों से, जो व्यवस्था के विषय में हों बचा रह; क्योंकि वे निष्फल और व्यर्थ हैं। 10 किसी पाखण्डी को एक दो बार समझा बुझाकर उससे अलग रह। 11 यह जानकर कि ऐसा मनुष्य भटक गया है, और अपने आप को दोषी ठहराकर पाप करता रहता है।
12 जब मैं तेरे पास अरतिमास या तुखिकुस को भेजूँ, तो मेरे पास निकुपुलिस आने का यत्न करना: क्योंकि मैंने वहीं जाड़ा काटने का निश्चय किया है। 13 जेनास व्यवस्थापक और अपुल्लोस को यत्न करके आगे पहुँचा दे, और देख, कि उन्हें किसी वस्तु की घटी न होने पाए।
14 हमारे लोग भी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अच्छे कामों में लगे रहना सीखें ताकि निष्फल न रहें।
15 मेरे सब साथियों का तुझे नमस्कार और जो विश्वास के कारण हम से प्रेम रखते हैं, उनको नमस्कार। तुम सब पर अनुग्रह होता रहे।
“कलीसिया को अपनी शिक्षाएं फिर से सुना” या “उन्हें स्मरण कराता रह”
हाकिमों और अधिकारियों के आधीन रहें - “राजनीति के शासक एवं सरकारी अधिकारी जो कहते है। उसे कर”।
ये दोनों शब्द एक से हैं और इनका संयोजित उपयोग उस हर एक व्यक्ति के लिए है जो सरकारी पद पर है।
“जबकि अवसर मिले मन अच्छे काम करने के लिए तत्पर रहें”।
“किसी के लिए बुरा न कहें”
“कोमलता का व्यवहार करें”।
(पौलुस समझाता है कि वह क्यों कह रहा है कि हम दीनतापूर्वक शिक्षा दें।)
“इसलिए कि”
“किसी समय” या “इससे पूर्व” या “पूर्वकाल में”
“मूर्ख” या “अविवेकी”
इस रूपक द्वारा हमारी पापी लालसाओं के द्वारा हमें दास बनना दिखाया गया है। “हमारी पापी अभिलाषाएं हमें भोग विलास की लालसा का दास बना देती थी”।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “पथ-भ्रष्ट किए गए थे”
“लालसाओं” या “प्रलोभनों”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “हम सदैव बुरे काम करते थे और पराए धन का लालच करते थे”।
“हम घृणा योग्य थे” अनुवाद, “हमने मनुष्यों को हमसे घृणा करने का अवसर दिया”
(पौलुस तीतुस को समझा रहा है कि हमें दीनतापूर्वक शिक्षा क्यों देना है)
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर ने मनुष्यों पर अपना प्रेम और कृपा प्रकट की”
मनुष्यों पर - “मनुष्यों के लिए”
“के द्वारा हमारा उद्धार किया” या “उस माध्यम से हमें उद्धार प्रदान किया”
इसका अनुवाद किया जा सकता है,“हमारे आत्मिक नए जन्म द्वारा हमें नया बनाया।
“नव निर्माण द्वारा” इसका अनुवाद हो सकता है “पवित्र आत्मा ने हमें नया कर दिया” या “पवित्र आत्मा ने हमे नए मनुष्य बना दिया”
“हमारे सद्कर्मों के कारण नहीं
“उसी परिश्रम में”
(पौलुस हमें दीनतापूर्वक शिक्षा देने का स्मरण करता है क्योंकि हमें अनुग्रह प्राप्त होता है)
यह रूपक पुरोहितों के अभिषेक का है। इसका अनुवाद होगा “हमें पवित्र आत्मा व उदारता से दिया”
"शाश्वत"
“बहुतायत से” या “उदारतापूर्वक”
“जब यीशु ने हमारा उद्धार किया”
इसका अनुवाद होगा, “हम परमेश्वर द्वारा न्यायोचित ठहराए जा चुकें है”
इसका अनुवाद होगा, “परमेश्वर हमें उत्तराधिकार का अधिकार देकर पुत्र बनाया है”
“हम निश्चय ही जानते हैं कि हमें शाश्वत जीवन प्राप्त है”।
यह पिछले पद में परमेश्वर के बारे में कहे गए कथनों के संदर्भ में है कि वह हमें यीशु के माध्यम से पवित्र आत्मा देता है।
“ध्यान केन्द्रित करें” या “लगातार विचारते रहें”
“जो परमेश्वर ने उन्हें करने के लिए कहीं हैं”
“परन्तु तीतुस तू”
“महत्त्वहीन विषयों पर विवाद”
“वाद-विवाद”
“परमेश्वर का विधान”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“उनके साथ परिचर्चा न कर” या “उनके साथ समय नहीं बिता” या “बचा रह”
“ऐसे व्यक्ति को एक दो बार समझाने के बाद”
“ऐसा पाखंडी मनुष्य”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “स्वयं के लिए दण्ड का कारण होता है”
(पत्र के अन्त में पौलुस तीतुस से कहता है कि क्रेते में धर्म-वृद्धों की नियुक्ति करने के बाद वह क्या करे)
“मैं जब.... भेजूं”
“शीत ऋतु वहां बिताने का निश्चय किया है”
“तू शीघ्रता से आने का प्रयास करना” या “शीघ्र आ जाना”
“शीघ्रता कर” या “भेजने में विलम्ब न कर”
“अपुल्लोस को भी भेज दे”
(पौलुस समझाता है कि जेनास और अपुल्लोस के लिए प्रबन्ध करना महत्त्वपूर्ण क्यों है)
“करने में व्यस्त रहें”
यह द्विनकारात्मक शब्दों का कथनात्मक रूप में भी अनुवाद किया जा सकता है, “कि वे फलवन्त हों” या “वे परमेश्वर के लिए फल लाएं” या “उनका जीवन फलवन्त हो”
(पौलुस तीतुस के पत्र का अन्त करता है)
“वे सब लोग”
जो विश्वास के कारण हम सबसे प्रीति नहीं रखते हैं इसके प्रभावित अर्थ है 1)“हमसे प्रेम रखने वाला विश्वासी” या 2) “विश्वासी के उसी विश्वास के कारण हमसे प्रेम रखते हैं”।
तुम सब पर अनुग्रह होता रहे यह उस समय का एक सामान्य अभिवादन था। इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर का अनुग्रह तुम्हारे साथ बना रहे” या “मैं प्रार्थना करता हूं कि परमेश्वर तुम सब पर अनुग्रहकारी हो”
विश्वासी को अधीन रहकर आज्ञाकारी होना है और हर एक अच्छे काम के लिए तैयार रहना है।
उन्हें विभिन्न प्रकार की अभिलाषाएँ और सुखविलास के कारण भटकाते हैं और दास बनाते हैं।
उसने नये जन्म के स्नान और पवित्र आत्मा के नवीकरण द्वारा हमारा उद्धार किया है।
हम केवल परमेश्वर की दया से उद्धार पाते हैं।
पमरेश्वर हमें अपना वारिस बनाता है।
विश्वासी भले भले कामों में लगे रहने का ध्यान रखें जो परमेश्वर ने रखे हैं।
विश्वासियों को मूर्खतापूर्ण बहस, वंशावली, संघर्ष और धार्मिक व्यवस्था के बारे में झगड़ों से बचना चाहिए।
किसी पाखंडी को एक या दो बार समझाकर उसे अलग कर देना है।
विश्वासी आवश्यक्ताओं को पूरा करने के लिए अच्छे कामों में लगे रहना सीखें।
1 पौलुस की ओर से जो मसीह यीशु का कैदी* है, और भाई तीमुथियुस की ओर से हमारे प्रिय सहकर्मी फिलेमोन। 2 और बहन अफफिया*, और हमारे साथी योद्धा अरखिप्पुस और फिलेमोन के घर की कलीसिया के नाम। 3 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे।
4 मैं सदा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ; और अपनी प्रार्थनाओं में भी तुझे स्मरण करता हूँ। 5 क्योंकि मैं तेरे उस प्रेम और विश्वास की चर्चा सुनकर, जो प्रभु यीशु पर और सब पवित्र लोगों के साथ है। 6 मैं प्रार्थना करता हूँ कि, विश्वास में तुम्हारी सहभागिता हर अच्छी बात के ज्ञान के लिए प्रभावी हो जो मसीह में हमारे पास है। 7 क्योंकि हे भाई, मुझे तेरे प्रेम से बहुत आनन्द और शान्ति मिली है, इसलिए, कि तेरे द्वारा पवित्र लोगों के मन हरे भरे हो गए हैं।
8 इसलिए यद्यपि मुझे मसीह में बड़ा साहस है, कि जो बात ठीक है, उसकी आज्ञा तुझे दूँ। 9 तो भी मुझ बूढ़े पौलुस को जो अब मसीह यीशु के लिये कैदी हूँ, यह और भी भला जान पड़ा कि प्रेम से विनती करूँ।
10 मैं अपने बच्चे उनेसिमुस के लिये जो मुझसे मेरी कैद में जन्मा है तुझ से विनती करता हूँ। 11 वह तो पहले तेरे कुछ काम का न था, पर अब तेरे और मेरे दोनों के बड़े काम का है। 12 उसी को अर्थात् जो मेरे हृदय का टुकड़ा है, मैंने उसे तेरे पास लौटा दिया है। 13 उसे मैं अपने ही पास रखना चाहता था कि तेरी ओर से इस कैद में जो सुसमाचार के कारण हैं, मेरी सेवा करे।
14 पर मैंने तेरी इच्छा बिना कुछ भी करना न चाहा कि तेरा यह उपकार दबाव से नहीं पर आनन्द से हो। 15 क्योंकि क्या जाने वह तुझ से कुछ दिन तक के लिये इसी कारण अलग हुआ कि सदैव तेरे निकट रहे। 16 परन्तु अब से दास के समान नहीं, वरन् दास से भी उत्तम, अर्थात् भाई के समान रहे जो मेरा तो विशेष प्रिय है ही, पर अब शरीर में और प्रभु में भी, तेरा भी विशेष प्रिय हो।
17 यदि तू मुझे अपना सहभागी समझता है, तो उसे इस प्रकार ग्रहण कर जैसे मुझे। 18 और यदि उसने तेरी कुछ हानि की है*, या उस पर तेरा कुछ आता है, तो मेरे नाम पर लिख ले। 19 मैं पौलुस अपने हाथ से लिखता हूँ, कि मैं आप भर दूँगा; और इसके कहने की कुछ आवश्यकता नहीं, कि मेरा कर्ज जो तुझ पर है वह तू ही है। 20 हे भाई, यह आनन्द मुझे प्रभु में तेरी ओर से मिले, मसीह में मेरे जी को हरा भरा कर दे।
21 मैं तेरे आज्ञाकारी होने का भरोसा रखकर, तुझे लिखता हूँ और यह जानता हूँ, कि जो कुछ मैं कहता हूँ, तू उससे कहीं बढ़कर करेगा। 22 और यह भी, कि मेरे लिये ठहरने की जगह तैयार रख; मुझे आशा है, कि तुम्हारी प्रार्थनाओं के द्वारा मैं तुम्हें दे दिया जाऊँगा।
23 इपफ्रास जो मसीह यीशु में मेरे साथ कैदी है 24 और मरकुस और अरिस्तर्खुस और देमास और लूका जो मेरे सहकर्मी है; इनका तुझे नमस्कार।
25 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा पर होता रहे। आमीन।
यह पत्र पौलुस ने फिलेमोन नामक एक विश्वासी को लिखा था।
आपकी भाषा में पत्र के लेखक का परिचय देने को अपनी विशिष्ट विधि होगी इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मसीह यीशु का कैदी पौलुस और भाई तीमुथियुस, हमारे प्रिय सहकर्मी फिलेमोन को यह पत्र लिखते हैं।”
“जो मसीह यीशु की शिक्षाओं के प्रसारण के कारण आज कारागार में है”। जिन लोगों के मन में प्रभु यीशु के लिए स्थान नहीं था उन्होंने पौलुस को दण्ड देने के लिए कारागार में डाल दिया था।
“हमारा प्रिय विश्वासी भाई” या “हमारा आत्मिक भाई जिससे हम प्रेम करते हैं”
“जो हमारे जैसे सुसमाचार को बढ़ाने वाली है”
“अफिया हमारी सहकर्मी” या “ अफिया हमारी आत्मिक बहन”
एक विश्वासी भाई का नाम है
यहां “योद्धा” एक रूपक है जो शुभ सन्देश प्रसारण में परिश्रम करनेवाले का द्योतक है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “आत्मिक युद्ध में हमारा सहयोद्धा” या “जो हमारे साथ आत्मिकता में सहभागी है।”
“तुम्हारे आवास में आराधना हेतु एकत्र होने वाले विश्वासियों के नाम”। (यू.डी.बी.)
यह फिलेमोन के घर के संदर्भ में है
“हमारा पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्रदान करे”। यह आशीर्वाद है यहां “तुम” शब्द बहुवचन में है और पद 1 और 2 में पौलुस ने जितने विश्वासियों के नाम लिए हैं सबके संदर्भ में है।
“अपनी प्रार्थनाओं में में सदैव तेरे लिए परमेश्वर को धन्यवाद देता हूं”। (यू.डी.बी.)
यह पत्र पौलुस ने लिखा था। “मैं” और अपने इस पत्र में पौलुस के लिए है।
यहां और पत्र में अधिकांश स्थानों में तू शब्द फिलेमोन के लिए काम में लिया गया है।
“कि हमारे जैसा तेरा मसीही विश्वास तुझे भलाई की पहचान के योग्य बनायेगा”।
“क्योंकि तू मसीह में वैसा ही विश्वास करता है जैसा हम करते हैं।”(यू.डी.बी)
इसका संभावित अर्थ है, “जो मसीह के कारण हममें हैं।
“ह्रदय” शब्द विश्वासियों के साहस का प्रतीक है। “हरे भरे हो गए हैं यह कर्मवाच्य वाक्य है। इसका अनुवाद कतृवाच्य में भी किया जा सकता है” तूने विश्वासियों को ढांढ़स बंधा दिया है”।
पौलुस फिलेमोन को भाई कहा है क्योंकि वे दोनों विश्वासी थे। वह अपनी मित्रता पर भी बल दे रहा है। इसका अनुवाद ऐसे भी हो सकता है, “प्रिय भाई” या “प्रिय मित्र”
इसके संभावित अर्थ हैं, “मसीह के कारण अधिकार” या “मसीह के कारण साहस”। इसका अनुवाद ऐसे भी हो सकता है, “मसीह का प्रेरित होने के कारण अधिकार”
“परन्तु प्रेम के कारण मैं तुझ से कहता हूं”।
संभावित अर्थ हैं, 1) “क्योंकि मैं जानता हूं कि तू परमेश्वर के लोगों से प्रेम करते हो” या (यू.डी.बी.) 2) “क्योंकि तू मुझसे प्रेम करता है” या 3) क्योंकि तुझसे प्रेम करता हूं”।
इन कारणों से फिलेमोन को पौलुस का निवेदन स्वीकार करना आवश्यक है।
यह एक पुरूष का नाम है।
पौलुस उनेसिमुस के साथ अपने घनिष्ठ सम्बन्ध की तुलना एक पिता-पुत्र के सम्बन्ध से करता है।
“जो मेरा पुत्र बन गया है” या “जो मेरे पुत्र जैसा हो गया है उनेसिमुस पौलुस के लिए पुत्र जैसा कैसे है इसको स्पष्ट किया जा सकता है”
अर्थात “जब मैं कारागार में हूं” उस समय कैदियों को अधिकतर जंजीरों से बांध कर रखा होता था। पौलुस अपने कारागार में ही उनेसिमुस को मसीही शिक्षा दे रहा था। इस पत्र को लिखते समय भी वह कारागार में था।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “पहले तो वह किसी काम का नहीं था”
अनुवाद इस नाम का अनुवाद भी पद टिप्पणी में व्यक्त कर सकते हैं। “उपयोगी” या “लाभकारी”
“मैंने उनेसिमुस को तेरे पास पुनः भेज दिया है।। संभव है कि पौलुस उनेसिमुस से प्रस्थान के कुछ समय पहले ही यह पत्र लिख रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है “मैं उसे तेरे पास फिर से भेज रहा हूं”(यू.डी.बी.)
हृदय का टुकड़ा अर्थात अतिप्रिय। इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “जिससे में बहुत अधिक प्रेम रखता हूं”। पौलुस उनेसिमुस के लिए ऐसा लिख रहा है।
“मैं” तो उसे अपने पास ही रखना चाहता था”
“क्योंकि तू तो यहां नहीं है, वही मेरी सेवा करे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब कि मैं कारागार में हूं” या “क्योंकि मैं कारागार में हूं”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “क्योंकि में शुभ सन्देश सुनाता हूं”।
“परन्तु तेरी अनुमति बिना मैं उसे यहां रखना नहीं चाहता हूं” या “यदि तू अनुमति देता तो ही मैं उसे यहां रखता”
पद 14-16 में ये सर्वनाम एकवचन में है और फिलेमोन के संदर्भ में है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कि तू वह करे जो सही है परन्तु बिना दबाव के”
“परन्त इसलिए कि तू चाहता है” या “परन्तु इसलिए कि तू उचित काम करने की अपनी इच्छा रखता है।”
इसका अनुवाद कतृवाच्य में भी किया जा सकता है, “परमेश्वर ने संभवतः उनेसिमुस को तुम से इसलिए अलग किया।”
“संभवतः”
“इस समय”
“दास से अधिक अच्छा” या “दास से अधिक महत्त्व का”
“प्रिय भाई” या “एक प्रिय भाई के स्वरूप”
“मसीह में भाई”
“और निश्चय ही तेरे लिए और भी अधिक”
“मनुष्य के तुल्य” या “तेरे मानवीय सम्बन्ध में” इस मानवीय सम्बंध को अधिक स्पष्ट किया जा सकता है, “क्योंकि वह तेरा दास है”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “प्रभु में भाई स्वरूप” या “क्योंकि वह भी मसीह का है”
“यदि तू मुझे मसीह के लिए सहकर्मी समझता है”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“मुझ से ले” या “मान ले कि मैं तेरा ऋणी हूं”
“मैं पौलुस, स्वयं लिख रहा हूं” पौलुस द्वारा इस उक्ति का अभिप्राय था कि फिलेमोन उसे सच माने और कि पौलुस वास्तव में क्षति की पूर्ति करेगा।
“उस पर तेरा जो भी ऋण है, मैं उसकी पूर्ति करूंगा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मुझे आवश्यकता नहीं कि तुझे स्मरण कराऊ” या “तू स्वयं जानता है”।
“तू अपने जीवन के लिए मेरा ऋणी है”। फिलेमोन अपने जीवन के लिए पौलुस का ऋणी कैसे है, इसे स्पष्ट किया जा सकता है। “तू मेरा अत्यधिक ऋणी है क्येांकि मैंने तेरे जीवन को बचा लिया है” या “तू जीवन के लिए मेरा ऋणी है क्योंकि मैंने जो शिक्षा दी उससे तेरा जीवन नाश होने से बच गया”। पौलुस के कहने का अभिप्राय था कि फिलेमोन यह नहीं कह सकता कि पौलुस या उनेसिमुस उसके ऋणी हें क्योंकि उनेसिमुस फिलेमोन पौलुस का और भी अधिक ऋणी था
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरा दिल खुश कर दे” या “मुझे प्रसन्न कर दे” या “मुझे शान्ति प्रदान कर दे” पौलुस कैसे चाहता था कि फिलेमोन यह करे तो उसे स्पष्ट करें कि कैसे। “उनेसिमुस को दया करके ग्रहण करके मेरा मन हर्षित कर दे”।
“क्योंकि मुझे पूरा भरोसा है कि तू मेरी बात मानेगा”
पौलुस फिलेमोन को लिख रहा है।
“मुझे विश्वास है”
“मैं” मेरी बात
"यह भी।"
“तेरे घर में मेरे ठहरने का कक्ष तैयार कर” पौलुस फिलेमोन से कह रहा है
“तुम्हारी” और “तुम्हें” फिलेमोन और उसकी आवासीय कलीसिया के लिए हैं।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम्हारी प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप” या “तुम सब मेरे लिए प्रार्थना कर रहे इसलिए”
इसका अनुवाद कतृवाच्य में किया जा सकता है, “परमेश्वर मुझे तुम्हारे पास आने देगा” या “परमेश्वर मुझे कारागार में रखनेवालों को प्रेरित करेगा कि मुझे मुक्त कर दें और मैं तुम्हारे पास आ जाऊं
ये सब पुरूषों के नाम हैं।
“मसीह की सेवा हेतु वह मेरे साथ कारागार में हैं”
“तुझे” फिलेमोन के संदर्भ में है।
“मेरे सहकर्मी प्रचारक मरकुस, अरिस्तर्खुस, देमास और लूका तुझे नमस्कार कहते हैं।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरे साथ काम करने वाले” या “ये सब जो मेरे सहकर्मी हैं”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “हमारा प्रभु यीशु तुम्हारी आत्मा पर दया करे।"
“तुम्हारी” फिलेमोन और उसकी आवासीय कलीसिया के संदर्भ में है”
यह पत्र पौलुस ने अपने प्रिय सहकर्मी फिलेमोन को लिखा।
वहाँ की कलीसिया घर में आराधना करती थी।
पौलुस ने फिलेमोन के प्रेम और विश्वास की चर्चा सुनी थी।
फिलेमोन के द्वारा पवित्र लोगों के मन हरे-भरे हो गए थे।
पौलुस फिलेमोन से सप्रेम विनती करता है।
जब पौलुस बन्दीगृह में था तब उसने उनेसिमुस को अपना पुत्र बनाया था।
उनेसिमुस ने पौलुस को फिलेमोन के पास पुनः भेज दिया था।
पौलुस चाहता था कि उनेसिमुस उसकी सेवा करे।
पौलुस चाहता था कि फिलेमोन उनेसिमुस को स्वतंत्र करके पौलुस के पास लौटा दे।
पौलुस चाहता था कि फिलेमोन उनेसिमुस को प्रिय भाई माने।
पौलुस चाहता था कि उनेसिमुस ने यदि फिलेमोन कोई हानि की है तो उसे पौलुस के नाम पर लिखले।
फिलेमोन अपने जीवन के लिए पौलुस का उनेसिमुस ऋणी था।
पौलुस को पूरा विश्वास था कि फिलेमोन उनेसिमुस को पौलुस के पास भेज देगा।
यदि पौलुस बन्दीगृह से निकल पाया तो वह फिलेमोन से अवश्य भेंट करेगा।
1 पूर्व युग में परमेश्वर ने पूर्वजों से थोड़ा-थोड़ा करके और भाँति-भाँति से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें की, 2 पर इन अन्तिम दिनों में हम से पुत्र के द्वारा बातें की, जिसे उसने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया और उसी के द्वारा उसने सारी सृष्टि भी रची है। (1 कुरि. 8:6, यूह. 1:3) 3 वह उसकी महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है, और सब वस्तुओं को अपनी सामर्थ्य के वचन से संभालता है: वह पापों को धोकर ऊँचे स्थानों पर महामहिमन् के दाहिने जा बैठा।
4 और स्वर्गदूतों से उतना ही उत्तम ठहरा*, जितना उसने उनसे बड़े पद का वारिस होकर उत्तम नाम पाया।
5 क्योंकि स्वर्गदूतों में से उसने कब किसी से कहा,
“तू मेरा पुत्र है;
आज मैं ही ने तुझे जन्माया है?”
और फिर यह,
“मैं उसका पिता हूँगा,
और वह मेरा पुत्र होगा?” (2 शमू. 7:14, 1 इति. 17:13, भज. 2:7)
6 और जब पहलौठे को जगत में फिर लाता है, तो कहता है, “परमेश्वर के सब स्वर्गदूत उसे दण्डवत् करें।” (व्य. 32:43, 1 पत. 3:22) 7 और स्वर्गदूतों के विषय में यह कहता है,
“वह अपने दूतों को पवन,
और अपने सेवकों को धधकती आग बनाता है।” (भज. 104:4)
8 परन्तु पुत्र के विषय में कहता है,
“हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन युगानुयुग रहेगा,
तेरे राज्य का राजदण्ड न्याय का राजदण्ड है।
9 तूने धार्मिकता से प्रेम और अधर्म से बैर रखा;
इस कारण परमेश्वर, तेरे परमेश्वर, ने
तेरे साथियों से बढ़कर हर्षरूपी तेल से तुझे अभिषेक किया।” (भज. 45:7)
10 और यह कि, “हे प्रभु, आदि में तूने पृथ्वी की नींव डाली,
और स्वर्ग तेरे हाथों की कारीगरी है। (भज. 102:25, उत्प. 1:1)
11 वे तो नाश हो जाएँगे*; परन्तु तू बना रहेगा और
वे सब वस्त्र के समान पुराने हो जाएँगे।
12 और तू उन्हें चादर के समान लपेटेगा,
और वे वस्त्र के समान बदल जाएँगे:
पर तू वही है
और तेरे वर्षों का अन्त न होगा।” (इब्रा. 13:8, भज. 102:25-26)
13 और स्वर्गदूतों में से उसने किस से कभी कहा,
“तू मेरे दाहिने बैठ,
जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे की चौकी न कर दूँ?” (मत्ती 22:44, भज. 110:1)
14 क्या वे सब परमेश्वर की सेवा टहल करनेवाली आत्माएँ नहीं; जो उद्धार पानेवालों के लिये सेवा करने को भेजी जाती हैं? (भज. 103:20-21)
“ज्योति”
पुत्र को देखकर परमेश्वर का बोध होता है कि वह कैसा है
“वचन के सामर्थ्य ”
“उसने हमें पापों से शुद्ध कर दिया है”
“क्योंकि परमेश्वर ने कब किसी भी स्वर्गदूत से नहीं कहा...”
“और फिर उसने स्वर्गदूतों में से किसी में से किसी ने नहीं कहा”
स्वर्गदूत
संभावित अर्थ हैं 1) वह स्वर्गदूतों को आत्मा बताता है जो आग के सदृश्य उसकी सेवा करते हें। (यू.डी.बी.) वह हवा और आग को अपने सन्देशवाहक बनाता है।
“पुत्र के विषय परमेश्वर कहता है”
राजा या रानी द्वारा अपना अधिकार दर्शाने का दण्ड
“तुझे और अधिक आनन्द किया है”
संभावित अर्थ हैं 1) वे लोग उत्सव के समय सुगन्धित तेल लगाते थे। (यू.डी.बी.) इसी तेल से राज्याभिषेक के समय राजाओं का अभ्यंजन किया जाता था और उस समय परमेश्वर प्रदत्त सम्मान से आनन्द प्राप्त होता था।
लेखक धर्मशास्त्र के संदर्भ से सिद्ध करता है, कि पुत्र स्वर्गदूतों से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
जीर्णशीर्ण हो जायेंगे
कपड़ो
जब पुराने वस्त्रों को काम में नहीं लेते तो उनके साथ क्या करते हैं, उस क्रिया शब्द का उपयोग करें।
बागा या बाहरी वस्त्र
“कभी समाप्त नहीं होंगे”
बैठते समय पावों को रखने की चौकी
वे जो
वैकल्पिक अनुवाद: “सभी स्वर्ग दूत वे आत्माएं हैं जो....”
पूर्वकाल में परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा समय समय पर अनेक रूपों में बातें की थीं।
इन दिनों परमेश्वर ने अपने पुत्र के द्वारा बातें की थीं।
संपूर्ण जगत की सृष्टि परमेश्वर के पुत्र ने की है।
वह सब वस्तुओं को अपने सामर्थ्य से संभालता है।
वह उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्त्व की छाप है।
परमेश्वर का पुत्र स्वर्गदूतों से उत्तम ठहरा है।
परमेश्वर ने सब स्वर्गदूतों को आज्ञा दी कि उसे दण्डवत करें, जब वह जगत में लाया गया।
नहीं, स्वर्गदूत आत्माएं हैं।
पुत्र सदा सर्वदा के लिए राजा होकर राज करेगा।
पुत्र धार्मिकता से प्रसन्न होता है परन्तु अधर्म से बैर रखता है।
पृथ्वी और स्वर्ग वस्त्र के समान पुराने होकर नष्ट हो जाएंगे।
परमेश्वर ने पुत्र से कहा कि वह उसके दाहिनी ओर बैठे जब तक कि वह उसके बैरियों को उसके पांवों के नीचे की पीढ़ी न कर दें।
स्वर्गदूत उद्धार पानेवालों की सेवा के लिए हैं।
1 इस कारण चाहिए, कि हम उन बातों पर जो हमने सुनी हैं अधिक ध्यान दे, ऐसा न हो कि बहक कर उनसे दूर चले जाएँ।
2 क्योंकि जो वचन स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया था, जब वह स्थिर रहा और हर एक अपराध और आज्ञा न मानने का ठीक-ठीक बदला मिला। 3 तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार से उपेक्षा करके कैसे बच सकते हैं*? जिसकी चर्चा पहले-पहल प्रभु के द्वारा हुई, और सुननेवालों के द्वारा हमें निश्चय हुआ। 4 और साथ ही परमेश्वर भी अपनी इच्छा के अनुसार चिन्हों, और अद्भुत कामों, और नाना प्रकार के सामर्थ्य के कामों, और पवित्र आत्मा के वरदानों के बाँटने के द्वारा इसकी गवाही देता रहा।
5 उसने उस आनेवाले जगत को जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधीन न किया। 6 वरन् किसी ने कहीं, यह गवाही दी है,
“मनुष्य क्या हैं, कि तू उसकी सुधि लेता है?
या मनुष्य का पुत्र क्या है, कि तू उस पर दृष्टि करता है?
7 तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया*;
तूने उस पर महिमा और आदर का मुकुट रखा और उसे अपने हाथों के कामों पर अधिकार दिया।
8 तूने सब कुछ उसके पाँवों के नीचे कर दिया।”
इसलिए जब कि उसने सब कुछ उसके अधीन कर दिया, तो उसने कुछ भी रख न छोड़ा, जो उसके अधीन न हो। पर हम अब तक सब कुछ उसके अधीन नहीं देखते। (भज. 8:6, 1 कुरि. 15:27)
9 पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुःख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से वह हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे। 10 क्योंकि जिसके लिये सब कुछ है, और जिसके द्वारा सब कुछ है, उसे यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुँचाए, तो उनके उद्धार के कर्ता को दुःख उठाने के द्वारा सिद्ध करे।
11 क्योंकि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जाते हैं, सब एक ही मूल से हैं, अर्थात् परमेश्वर, इसी कारण वह उन्हें भाई कहने से नहीं लजाता। 12 पर वह कहता है,
“मैं तेरा नाम अपने भाइयों को सुनाऊँगा,
सभा के बीच में मैं तेरा भजन गाऊँगा।” (भज. 22:22)
13 और फिर यह,
“मैं उस पर भरोसा रखूँगा।”
और फिर यह,
“देख, मैं उन बच्चों सहित जिसे परमेश्वर ने मुझे दिए।” (यशा. 8:17-18, यशा. 12:2)
14 इसलिए जब कि बच्चे माँस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी*, अर्थात् शैतान को निकम्मा कर दे, (रोम. 8:3, कुलु. 2:15) 15 और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फँसे थे, उन्हें छुड़ा ले।
16 क्योंकि वह तो स्वर्गदूतों को नहीं वरन् अब्राहम के वंश को संभालता है। (गला. 3:29, यशा. 41:8-10) 17 इस कारण उसको चाहिए था, कि सब बातों में अपने भाइयों के समान बने; जिससे वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने ताकि लोगों के पापों के लिये प्रायश्चित करे। 18 क्योंकि जब उसने परीक्षा की दशा में दुःख उठाया, तो वह उनकी भी सहायता कर सकता है, जिनकी परीक्षा होती है।
"भरमाए गए"
सत्य सिद्ध हुआ
वैकल्पिक अनुवाद: “पाप करने वाला और आज्ञाकारी प्रत्येक मनुष्य न्यायोचित दण्ड पाएगा”।
“चिन्ता नहीं करते” या “स्वीकार नहीं करते”
वितरण के द्वारा
“ठीक वैसे ही जैसे वह करना चाहता था”
मनुष्य जाति
वैकल्पिक अनुवाद: “उसने सब उसके अधीन कर दिया”
इसका अनुवाद वैसा ही करे जैसा में किया है।
“वह उन्हें भाई कहने में प्रसन्न होता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “एक भविष्यद्वक्ता ने धर्मशास्त्र में एक संदर्भ लिखा है कि मसीह ने परमेश्वर के बारे में क्या कहा है” (यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद: “सब मनुष्य हैं” (यू.डी.बी.)
यह एक रूपक है और मृत्यु के डर से दासत्व का द्योतक है।
वैकल्पिक अनुवाद: “प्राप्त कर ले”
विश्वासी उन बातों पर और भी मन लगाएं जो उन्होने सुनी हैं कि बहक कर उनसे दूर न चले जाएं।
हर एक अपराध और आज्ञा न मानने का ठीक ठीक बदला मिला।
परमेश्वर ने अपनी इच्छा के अनुसार चिन्हों और अद्भुत कामों और नाना प्रकार के सामर्थ्य के कामों और पवित्र आत्मा के वरदानों के बांटने के द्वारा सुसमाचार की गवाही दी।
स्वर्गदूत आनेवाले संसार पर राज नहीं करेंगे।
आनेवाले संसार पर मनुष्य राज करेंगे।
मसीह यीशु अपने कष्टों और मृत्यु के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहने हुए है।
यीशु ने प्रत्येक मनुष्य के लिए मृत्यु का स्वाद चख चुका है।
परमेश्वर को अच्छा लगा कि बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुंचाए।
पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जाते हैं सब एक ही मूल परमेश्वर से हैं।
यीशु मृत्यु के द्वारा शैतान निष्प्रभाव हो गया है।
यीशु की मृत्यु के द्वारा मनुष्य मृत्यु के भय से मुक्त हो गया है।
वह सब बातों में एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बनें ताकि लोगों के पापों के लिए प्रायश्चित करे।
वह उनकी भी सहायता कर सकता है जिनकी परीक्षा होती है।
1 इसलिए, हे पवित्र भाइयों, तुम जो स्वर्गीय बुलाहट में भागी हो, उस प्रेरित और महायाजक यीशु पर जिसे हम अंगीकार करते हैं ध्यान करो। 2 जो अपने नियुक्त करनेवाले के लिये विश्वासयोग्य था, जैसा मूसा भी परमेश्वर के सारे घर में था। 3 क्योंकि यीशु मूसा से इतना बढ़कर महिमा के योग्य समझा गया है, जितना कि घर बनानेवाला घर से बढ़कर आदर रखता है। 4 क्योंकि हर एक घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, पर जिस ने सब कुछ बनाया वह परमेश्वर है*।
5 मूसा तो परमेश्वर के सारे घर में सेवक के समान विश्वासयोग्य रहा, कि जिन बातों का वर्णन होनेवाला था, उनकी गवाही दे। (गिन. 12:7) 6 पर मसीह पुत्र के समान परमेश्वर के घर का अधिकारी है*, और उसका घर हम हैं, यदि हम साहस पर, और अपनी आशा के गर्व पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।
7 इसलिए जैसा पवित्र आत्मा कहता है,
“यदि आज तुम उसका शब्द सुनो,
8 तो अपने मन को कठोर न करो,
जैसा कि क्रोध दिलाने के समय और
परीक्षा के दिन जंगल में किया था। (निर्ग. 17:7, गिन. 20:2-5,13)
9 जहाँ तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे जाँच कर परखा
और चालीस वर्ष तक मेरे काम देखे।
10 इस कारण मैं उस समय के लोगों से क्रोधित रहा,
और कहा, ‘इनके मन सदा भटकते रहते हैं,
और इन्होंने मेरे मार्गों को नहीं पहचाना।’
11 तब मैंने क्रोध में आकर शपथ खाई,
‘वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएँगे’।” (गिन. 14:21-23, व्य. 1:34-35)
12 हे भाइयों, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीविते परमेश्वर से दूर हटा ले जाए। 13 वरन् जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए।
14 क्योंकि हम मसीह के भागीदार हुए हैं*, यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।
15 जैसा कहा जाता है,
“यदि आज तुम उसका शब्द सुनो,
तो अपने मनों को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय किया था।”
16 भला किन लोगों ने सुनकर भी क्रोध दिलाया? क्या उन सब ने नहीं जो मूसा के द्वारा मिस्र से निकले थे? 17 और वह चालीस वर्ष तक किन लोगों से क्रोधित रहा? क्या उन्हीं से नहीं, जिन्होंने पाप किया, और उनके शव जंगल में पड़े रहे? (गिन. 14:29) 18 और उसने किन से शपथ खाई, कि तुम मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाओगे: केवल उनसे जिन्होंने आज्ञा न मानी? (भज. 106:24-26) 19 इस प्रकार हम देखते हैं, कि वे अविश्वास के कारण प्रवेश न कर सके।
वैकल्पिक अनुवाद: “जिसे हम अपना कहते है” या “जिसमें हम विश्वास करते हैं”
परमेश्वर के परिवार के लोग
“जिसमें हम गर्व करते हैं कि हमें आशा है”
“अप्रसन्न रहा”
वैकल्पिक अनुवाद: “वे मेरे अनुसरण से सदा इन्कार करते हैं”
“मैं उन्हें अपनी उपस्थिति में प्रवेश नहीं करने दूंगा”।
तुम में से किसी में भी बुरा और विश्वासविरोधी मन न हो”।
“ऐसा मन जो तुम्हें विधर्मी बनाए” एक नया वाक्य बनाएं “विमुख न हो”
संभावित अर्थ हैं 1) “सच्चा परमेश्वर जो जीवित है” (यू.डी.बी.) या 2) “जीवन दाता परमेश्वर”
जब तक कि अवसर है
“हठीला होकर मनुष्य को धोखा देने दे और पाप करे” (यू.डी.बी.) या “तुम पाप करके स्वयं को धोखा दो और हठीले हो जाओ”
लेखक एवं सब विश्वासी
“पूर्ण विश्वास पर”
मृत्यु तक
“परमेश्वर की वाणी” या “परमेश्वर जो कहता है”
देखें कि आपने इसका अनुवाद” में कैसे किया है।
“परमेश्वर उन्हें अपने स्थान में विश्राम नहीं करने देगा”।
लेखक और उसके पाठक
लेखक यीशु को प्रेरित और महायाजक कहता है।
यीशु को मूसा से बढ़कर महिमा के योग्य समझा गया क्योंकि मूसा संपूर्ण घराने में विश्वासयोग्य था तो यीशु घर का बनानेवाला है।
मूसा परमेश्वर के घर में सेवक स्वरूप विश्वासयोग्य था।
मूसा ने उन बातों की गवाही दी जिनका वर्णन होनेवाला था।
यीशु पुत्र के समान परमेश्वर के घर का अधिकारी है।
यदि हम साहस पर दृढ़ रहे तो हम परमेश्वर का घर हैं।
इस्राएलियों ने अपने मन कठोर कर लिए थे।
परमेश्वर ने शपथ खाई कि वे उसके विश्राम में प्रवेश करने न पाएंगे।
विश्वासी भाइयों को चेतावनी दी गई है कि वे अविश्वास के कारण जीवते परमेश्वर से दूर न हो जाएं।
विश्वासी भाई हर दिन एक दूसरे को समझाते रहें।
मसीह के भागीदार होने के कारण विश्वासी अपने आरंभिक विश्वास पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।
जंगल में पाप करनेवालों से परमेश्वर क्रोधित हुआ था।
उनके शव जंगल में ही पड़े रहे।
आज्ञा न मानने वाले इस्राएली परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाए थे।
1 इसलिए जब कि उसके विश्राम में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा* अब तक है, तो हमें डरना चाहिए; ऐसा ने हो, कि तुम में से कोई जन उससे वंचित रह जाए। 2 क्योंकि हमें उन्हीं के समान सुसमाचार सुनाया गया है, पर सुने हुए वचन से उन्हें कुछ लाभ न हुआ; क्योंकि सुननेवालों के मन में विश्वास के साथ नहीं बैठा।
3 और हम जिन्होंने विश्वास किया है, उस विश्राम में प्रवेश करते हैं;
जैसा उसने कहा, “मैंने अपने क्रोध में शपथ खाई,
कि वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएँगे।” यद्यपि जगत की उत्पत्ति के समय से उसके काम हो चुके थे। 4 क्योंकि सातवें दिन के विषय में उसने कहीं ऐसा कहा है,
“परमेश्वर ने सातवें दिन अपने सब कामों को निपटा करके विश्राम किया।” 5 और इस जगह फिर यह कहता है,
“वे मेरे विश्राम में प्रवेश न करने पाएँगे।”
6 तो जब यह बात बाकी है कि कितने और हैं जो उस विश्राम में प्रवेश करें, और इस्राएलियों को, जिन्हें उसका सुसमाचार पहले सुनाया गया, उन्होंने आज्ञा न मानने के कारण उसमें प्रवेश न किया। 7 तो फिर वह किसी विशेष दिन को ठहराकर इतने दिन के बाद दाऊद की पुस्तक में उसे ‘आज का दिन’ कहता है, जैसे पहले कहा गया,
“यदि आज तुम उसका शब्द सुनो,
तो अपने मनों को कठोर न करो।” (भज. 95:7-8)
8 और यदि यहोशू उन्हें विश्राम में प्रवेश करा लेता, तो उसके बाद दूसरे दिन की चर्चा न होती। (व्य. 31:7, यहो. 22:4) 9 इसलिए जान लो कि परमेश्वर के लोगों के लिये सब्त का विश्राम बाकी है। 10 क्योंकि जिस ने उसके विश्राम में प्रवेश किया है, उसने भी परमेश्वर के समान अपने कामों को पूरा करके विश्राम किया है। (प्रका. 14:13, उत्प. 2:2) 11 इसलिए हम उस विश्राम में प्रवेश करने का प्रयत्न करें, ऐसा न हो, कि कोई जन उनके समान आज्ञा न मानकर गिर पड़े। (इब्रा. 4:1, 2 पत. 1:10-11)
12 क्योंकि परमेश्वर का वचन* जीवित, प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत उत्तम है, प्राण, आत्मा को, गाँठ-गाँठ, और गूदे-गूदे को अलग करके, आर-पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है। (यिर्म. 23:29, यशा. 55:11) 13 और सृष्टि की कोई वस्तु परमेश्वर से छिपी नहीं है वरन् जिसे हमें लेखा देना है, उसकी आँखों के सामने सब वस्तुएँ खुली और प्रगट हैं।
14 इसलिए, जब हमारा ऐसा बड़ा महायाजक है, जो स्वर्गों से होकर गया है, अर्थात् परमेश्वर का पुत्र यीशु; तो आओ, हम अपने अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें। 15 क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुःखी न हो सके*; वरन् वह सब बातों में हमारे समान परखा तो गया, तो भी निष्पाप निकला। 16 इसलिए आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट साहस बाँधकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएँ, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे।
क्योंकि परमेश्वर आज्ञा न मानने वालों को निश्चय ही दण्ड देगा
“परमेश्वर तुममें से किसी से न कहे कि वह उसके स्थान में विश्राम नहीं करेगा” या “परमेश्वर तुम सबके लिए कहे कि तुम उसके स्थान में प्रवेश करोगे”
लेखक और पाठकों को
लेखक और पाठकों को
वैकल्पिक अनुवाद: “जिन्होंने मसीह का शुभ सन्देश तो सुना पर विश्वास नहीं किया”।
वैकल्पिक अनुवाद: “यह योजना उसके द्वारा ब्रह्माण्ड की रचना से पूर्व की पूर्णतः प्राप्त कर चुकी थी”।
“ये मेरे स्थान में विश्राम करने नहीं पाएंगे”।
“परमेश्वर अब भी कुछ लोगों को अपने साथ विश्राम करने देता है”
“परमेश्वर “ या “परमेश्वर जो कहता है” (देखे: )
वैकल्पिक अनुवाद: “हठ करके उसकी अवज्ञा मत करो”
“जो परमेश्वर की उपस्थिति में उसके साथ विश्राम कर रहे हैं”
“हमें परमेश्वर के साथ विश्राम करने का यथासंभव परिश्रम करना है”।
“इच्छुक होना है”
वैकल्पिक अनुवाद: “उसी प्रकार आज्ञा न मानो”
“जंगल में परमेश्वर की आज्ञा न मानने वालों के समान”
परमेश्वर के लिखित और उच्चारित शब्द
परमेश्वर का वचन ऐसा है जैसे जीवित है और वह सामर्थी है।
“परमेश्वर का वचन हमारे अन्तरतम भाग में प्रवेश करता है”
परमेश्वर का वचन हमारे गुप्त विचारों को भी प्रकट करता है। and
“हमारे जीवन का न्याय करनेवाला परमेश्वर सब कुछ देख सकता है”
“हमारे पास ऐसा महायाजक है जो हमसे सहानुभूति रखता है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “उसने पाप नहीं किया”
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर का सिंहासन जहां अनुग्रह है” या “जहां अनुग्रहकारी परमेश्वर अपने सिंहासन पर बैठा है।”
विश्वासियों और इस्राएलियों दोनों ने परमेश्वर के विश्राम का सुसमाचार सुना था।
सुसमाचार से इस्राएलियों को कुछ लाभ न हुआ क्योंकि उन्होने विश्वास नहीं किया था।
जो सुसमाचार सुनकर विश्वास करते हैं वे परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करते हैं।
परमेश्वर ने जगत की उत्पत्ति के समय से अपने सब काम पूरे करके सातवे दिन विश्राम किया था।
परमेश्वर ने शपथ खाई थी कि इस्राएली उसके विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।
मनुष्यों के लिए विश्राम का दिन उसने "आज का दिन" ठहराया है।
मनुष्य को परमेश्वर का शब्द सुनकर अपना मन कठोर नहीं करना चाहिए।
परमेश्वर के लोगों के लिए सब्त का विश्राम बाकी है।
जिसने परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश किया उसने भी परमेश्वर के समान अपने काम पूरे कर लिए हैं।
विश्वासियों को परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने का प्रयत्न करना होगा ऐसा न हो कि कोई उन के समान आज्ञा न मानकर गिर पड़े।
परमेश्वर का वचन एक दो धारी तलवार से भी बहुत चोखा है।
परमेश्वर का वचन प्राण और आत्मा को और गांठ और गुदे को अलग करके आर पार छेदता है।
परमेश्वर का वचन भावनाओं और विचारों को जांचता है।
परमेश्वर की दृष्टि से कोई सृजित वस्तु छिपी नहीं है।
परमेश्वर का पुत्र यीशु विश्वासियों का महायाजक है।
यीशु विश्वासियों की निर्बलता में उनके साथ दु:खी होता है क्योंकि वह हमारे ही समान परखा गया था।
यीशु निष्पाप था।
आओं हम विश्वासी अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बांधकर चलें।
1 क्योंकि हर एक महायाजक मनुष्यों में से लिया जाता है, और मनुष्यों ही के लिये उन बातों के विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, ठहराया जाता है: कि भेंट और पापबलि चढ़ाया करे। 2 और वह अज्ञानियों, और भूले भटकों के साथ नर्मी से व्यवहार कर सकता है इसलिए कि वह आप भी निर्बलता से घिरा है। 3 और इसलिए उसे चाहिए, कि जैसे लोगों के लिये, वैसे ही अपने लिये भी पाप-बलि चढ़ाया करे। (लैव्य. 16:6)
4 और यह आदर का पद कोई अपने आप से नहीं लेता, जब तक कि हारून के समान परमेश्वर की ओर से ठहराया न जाए। (निर्ग. 28:1)
5 वैसे ही मसीह ने भी महायाजक बनने की महिमा अपने आप से नहीं ली, पर उसको उसी ने दी, जिस ने उससे कहा था,
“तू मेरा पुत्र है,
आज मैं ही ने तुझे जन्माया है।” (भज. 2:7)
6 इसी प्रकार वह दूसरी जगह में भी कहता है,
“तू मेलिकिसिदक की रीति पर
सदा के लिये याजक है।”
7 यीशु ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकार-पुकारकर, और आँसू बहा-बहाकर उससे जो उसको मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएँ और विनती की और भक्ति के कारण उसकी सुनी गई। 8 और पुत्र होने पर भी, उसने दुःख उठा-उठाकर आज्ञा माननी सीखी।
9 और सिद्ध बनकर*, अपने सब आज्ञा माननेवालों के लिये सदा काल के उद्धार का कारण हो गया। (यशा. 45:17) 10 और उसे परमेश्वर की ओर से मेलिकिसिदक की रीति पर महायाजक का पद मिला। (इब्रा. 2:10, भज. 110:4)
11 इसके विषय में हमें बहुत सी बातें कहनी हैं, जिनका समझाना भी कठिन है; इसलिए कि तुम ऊँचा सुनने लगे हो।
12 समय के विचार से तो तुम्हें गुरु हो जाना चाहिए था, तो भी यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए? तुम तो ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। 13 क्योंकि दूध पीनेवाले* को तो धार्मिकता के वचन की पहचान नहीं होती, क्योंकि वह बच्चा है। 14 पर अन्न सयानों के लिये है, जिनकी ज्ञानेन्द्रियाँ अभ्यास करते-करते, भले-बुरे में भेद करने में निपुर्ण हो गई हैं।
वैकल्पिक अनुवाद: “उनका प्रतिनिधित्व करता था”
वैकल्पिक अनुवाद: “उसके लिए आवश्यक था”
परमेश्वर और एक स्थान में भी कहता है।
वैकल्पिक अनुवाद: “जब वह पृथ्वी पर रहता था”।
तुम ऊंचा सुनने लगे हो - “तुम समझने में मन्दबुद्धि हो” (यू.डी.बी.) “तुम सुनना नहीं चाहते”।
आत्मिक आधारभूत सत्य
“कठिन आत्मिक सत्य”
महायाजक मनुष्यों के लिए भेंट और पाप बलि चढ़ाता था।
महायाजक को भी अपने पाप के लिए पाप बलि चढ़ाना आवश्क था।
परमेश्वर का महायाजक होने के लिए मनुष्य को ठहराया जाना होता था।
परमेश्वर ने मसीह यीशु को महायाजक बनाया है।
मसीह सदा के लिए परमेश्वर का महायाजक है।
मसीह यीशु मलिकिसीदक की रीति पर महायाजक है।
भक्ति के कारण परमेश्वर ने मसीह यीशु की विनती सुनी।
यीशु ने कष्ट उठाकर आज्ञा पालन सीखा था।
हर एक विश्वास करनेवाले के लिए मसीह सदा काल के उद्धार का कारण हो गया है।
इस पत्र के मूल पाठक उंचा सुनने लगे थे, और उन्हे परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा की आवश्यक्ता थी।
विश्वासियों की आत्मिक उन्नति उचित और अनुचित में अंतर पहचानने - भले बुरे में भेद करने के अभ्यास के द्वारा होती है।
1 इसलिए आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़कर, हम सिद्धता की ओर बढ़ते जाएँ, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने, 2 और बपतिस्मा और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अनन्त न्याय की शिक्षारूपी नींव, फिर से न डालें। 3 और यदि परमेश्वर चाहे, तो हम यहीं करेंगे।
4 क्योंकि जिन्होंने एक बार ज्योति पाई है, और जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुके हैं और पवित्र आत्मा के भागी हो गए हैं, 5 और परमेश्वर के उत्तम वचन का और आनेवाले युग की सामर्थ्य का स्वाद चख चुके हैं*। 6 यदि वे भटक जाएँ; तो उन्हें मन फिराव के लिये फिर नया बनाना अनहोना है; क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र को अपने लिये फिर क्रूस पर चढ़ाते हैं और प्रगट में उस पर कलंक लगाते हैं।
7 क्योंकि जो भूमि वर्षा के पानी को जो उस पर बार-बार पड़ता है, पी पीकर जिन लोगों के लिये वह जोती-बोई जाती है, उनके काम का साग-पात उपजाती है, वह परमेश्वर से आशीष पाती है। 8 पर यदि वह झाड़ी और ऊँटकटारे उगाती है, तो निकम्मी और श्रापित होने पर है, और उसका अन्त जलाया जाना है। (यूह. 15:6)
9 पर हे प्रियों यद्यपि हम ये बातें कहते हैं तो भी तुम्हारे विषय में हम इससे अच्छी और उद्धारवाली बातों का भरोसा करते हैं। 10 क्योंकि परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की, और कर भी रहे हो।
11 पर हम बहुत चाहते हैं, कि तुम में से हर एक जन अन्त तक पूरी आशा के लिये ऐसा ही प्रयत्न करता रहे। 12 ताकि तुम आलसी न हो जाओ; वरन् उनका अनुकरण करो, जो विश्वास और धीरज के द्वारा प्रतिज्ञाओं के वारिस होते हैं।
13 और परमेश्वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा देते समय* जब कि शपथ खाने के लिये किसी को अपने से बड़ा न पाया, तो अपनी ही शपथ खाकर कहा, 14 “मैं सचमुच तुझे बहुत आशीष दूँगा, और तेरी सन्तान को बढ़ाता जाऊँगा।” (उत्प. 22:17) 15 और इस रीति से उसने धीरज धरकर प्रतिज्ञा की हुई बात प्राप्त की।
16 मनुष्य तो अपने से किसी बड़े की शपथ खाया करते हैं और उनके हर एक विवाद का फैसला शपथ से पक्का होता है। (निर्ग. 22:11) 17 इसलिए जब परमेश्वर ने प्रतिज्ञा के वारिसों पर और भी साफ रीति से प्रगट करना चाहा, कि उसकी मनसा बदल नहीं सकती तो शपथ को बीच में लाया। 18 ताकि दो बे-बदल बातों के द्वारा जिनके विषय में परमेश्वर का झूठा ठहरना अनहोना है, हमारा दृढ़ता से ढाढ़स बन्ध जाए, जो शरण लेने को इसलिए दौड़े है, कि उस आशा को जो सामने रखी हुई है प्राप्त करें। (गिन. 23:19, 1 शमू. 15:29)
19 वह आशा हमारे प्राण के लिये ऐसा लंगर है जो स्थिर और दृढ़ है*, और परदे के भीतर तक पहुँचता है। (गिन. 23:19, 1 तीमु. 2:13) 20 जहाँ यीशु ने मेलिकिसिदक की रीति पर सदा काल का महायाजक बनकर, हमारे लिये अगुआ के रूप में प्रवेश किया है।
वैकल्पिक अनुवाद: “हमें प्रगति करनी चाहिए”
यह एक अभ्यास था जिसके द्वारा किसी विशेष सेवा या पद के लिए किसी को पृथक किया जाता था।
जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुके हैं यह उन विश्वासियों के संदर्भ में है जिनका परमेश्वर ने उद्धार किया है।
यह उन विश्वासियों के संदर्भ में है जिन्होंने स्वयं परमेश्वर के वचन का अनुभव किया है।
परमेश्वर से विमुख होने का अर्थ है यीशु को फिर से क्रूस पर चढ़ाना(देखन: )
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर से विमुख हो जाएं”
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर न्यायसंगत है और भूलता नहीं”
यह निर्देश दिया जाता के विश्वासी इस सम्बन्ध में बने रहे।
सावधानी के साथ परिश्रम
मन्दल
किसी के व्यवहार की नकल करना
परमेश्वर ने कहा
“जो हमसे पहले मरा”
इब्रानियों का लेखक चाहता है कि विश्वासी सिद्धता की ओर बढ़ते जाएं।
मसीह की शिक्षा की आरंभिक बातें हैं, मरे हुए कामों से मन फिराना, परमेश्वर में विश्वास, बपतिस्मा, हाथ रखना, पुनरुत्थान और अन्तिम न्याय।
जो पवित्र आत्मा के भागी हुए है, यदि वे भटक जाए तो उन्हे मन फिराव के लिए फिर नया बनना अन्होना है।
उन्होने एक बार ज्योति पाई है और स्वर्गीय वरदान का और परमेश्वर के वचन का और आनेवाले युग की सामर्थ्य का स्वाद चख चुके हैं।
उन्हे फिर नया बनाना अन्होना है क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र को अपने लिए फिर क्रूस पर चढाते है।
यदि भूमि वर्षा के उपरान्त भी झाड़ी और ऊंटकटारे उगाए तो वह श्रापित है और उसका अन्त जलाया जाना है।
लेखक इन विश्वासियों से अधिक अच्छी और उद्धार वाली बातों का भरोसा रखता है।
पवित्र जनों के प्रति उनके कार्य, उनका प्रेम और उनकी सेवा को परमेश्वर भूल जाए, ऐसा नहीं हो सकता।
विश्वासियों को उनके विश्वास और धीरज का अनुकरण करना है जो प्रतिज्ञाओं के वारिस हैं।
अब्राहम को परमेश्वर की प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए धीरज रखा था।
परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा को शपथ खाकर पक्का किया कि उसके उद्देश्य को अपरिवर्तनीय सिद्ध किया था।
परमेश्वर के लिए झूठ बोलना संभव नहीं।
परमेश्वर पर विश्वास करना विश्वासी के प्राण के लिए लंगर है।
यीशु ने विश्वासियों का अगुआ बनकर परदे के पीछे भीतरी स्थान में प्रवेश किया।
1 यह मेलिकिसिदक* शालेम का राजा, और परमप्रधान परमेश्वर का याजक, जब अब्राहम राजाओं को मारकर लौटा जाता था, तो इसी ने उससे भेंट करके उसे आशीष दी, 2 इसी को अब्राहम ने सब वस्तुओं का दसवाँ अंश भी दिया। यह पहले अपने नाम के अर्थ के अनुसार, धार्मिकता का राजा और फिर शालेम अर्थात् शान्ति का राजा है। 3 जिसका न पिता, न माता, न वंशावली है, जिसके न दिनों का आदि है और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्वर के पुत्र के स्वरूप ठहरकर वह सदा के लिए याजक बना रहता है।
4 अब इस पर ध्यान करो कि यह कैसा महान था* जिसको कुलपति अब्राहम ने अच्छे से अच्छे माल की लूट का दसवाँ अंश दिया। 5 लेवी की संतान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है, कि लोगों, अर्थात् अपने भाइयों से चाहे, वे अब्राहम ही की देह से क्यों न जन्मे हों, व्यवस्था के अनुसार दसवाँ अंश लें। (गिन. 18:21) 6 पर इसने, जो उनकी वंशावली में का भी न था अब्राहम से दसवाँ अंश लिया और जिसे प्रतिज्ञाएँ मिली थी उसे आशीष दी।
7 और उसमें संदेह नहीं, कि छोटा बड़े से आशीष पाता है। 8 और यहाँ तो मरनहार मनुष्य दसवाँ अंश लेते हैं पर वहाँ वही लेता है, जिसकी गवाही दी जाती है, कि वह जीवित है। 9 तो हम यह भी कह सकते हैं, कि लेवी ने भी, जो दसवाँ अंश लेता है, अब्राहम के द्वारा दसवाँ अंश दिया। 10 क्योंकि जिस समय मेलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय यह अपने पिता की देह में था। (उत्प. 14:18-20)
11 तब यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिसके सहारे से लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी, कि दूसरा याजक मेलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए? 12 क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है? तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है।
13 क्योंकि जिसके विषय में ये बातें कही जाती हैं, वह दूसरे गोत्र का है, जिसमें से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की। 14 तो प्रगट है, कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजक पद की कुछ चर्चा नहीं की। (उत्प. 49:10, यशा. 11:1)
15 हमारा दावा और भी स्पष्टता से प्रकट हो जाता है, जब मेलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्पन्न होनेवाला था। 16 जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ्य के अनुसार नियुक्त हो। 17 क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है,
“तू मेलिकिसिदक की रीति पर
युगानुयुग याजक है।”
18 निदान, पहली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। 19 (इसलिए कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की*) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिसके द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं।
20 और इसलिए मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई। 21 क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उसकी ओर से नियुक्त किया गया जिस ने उसके विषय में कहा,
“प्रभु ने शपथ खाई, और वह उससे फिर न पछताएगा,
कि तू युगानुयुग याजक है”।
22 इस कारण यीशु एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा। 23 वे तो बहुत से याजक बनते आए, इसका कारण यह था कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती थी। 24 पर यह युगानुयुग रहता है; इस कारण उसका याजक पद अटल है।
25 इसलिए जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा-पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये विनती करने को सर्वदा जीवित है। (1 यूह. 2:1-2, 1 तीमु. 2:5) 26 क्योंकि ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊँचा किया हुआ हो।
27 और उन महायाजकों के समान उसे आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन पहले अपने पापों और फिर लोगों के पापों के लिये बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उसने अपने आप को बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार निपटा दिया। (लैव्य. 16:6, इब्रा. 10:10,12,14) 28 क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है; परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगानुयुग के लिये सिद्ध किया गया है।
मलिकिसिदक का पिता नहीं था
मलिकिसिदक के न तो आरंभ की और न अन्त की जानकारी है।
वैकल्पिक अनुवाद: “लेवी के वंशज जो पुरोहित बने” लेवी की सब वंशज पुरोहित नहीं हुए थे।
यहां संपूर्ण देह के लिए सामान्य शब्द का उपयोग करें
वैकल्पिक अनुवाद: “दूसरे पुरोहित की किसी को भी आवश्यकता नहीं थी जो मलिकिसिदक का सा हो न कि हारून का सा”।
मसीह लेवी वंश के बिना पुरोहित है
वैकल्पिक अनुवाद: “मलिकिसिदक के समान”
इससे स्पष्ट होता है कि “विधान अशक्त एवं व्यर्थ है” अतः उसका निराकरण किया जाए।
“निकट आ सकते हैं”।
किसी को तो शपथ खानी थी कि हमें और भी अधिक उत्तम कोई बात प्राप्त होती कि उसमें आशा बन्धी रहती” या “.... कि मसीह एक पुरोहित होता”
“तू एक पुरोहित है और शाश्वत है”।
“आश्वासन” या “प्रतिज्ञा”
“वह शाश्वत पुरोहित है”
“क्योंकि मसीह हमारा अनन्तकालीन याजक है”।
“उसने हमारे लिए जो किया उसके कारण”
वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह को आवश्यकता नहीं”
“परमेश्वर ने विधान में नियुक्ति की है”
“विधान देने के बाद परमेश्वर ने शपथ खाकर अपने पुत्र को नियुक्त किया।”
“जिसने परमेश्वर का पूर्ण आज्ञापालन किया और सिद्ध हुआ”
मलिकिसिदक, शालोम का राजा, और परमप्रधान परमेश्वर का याजक था।
अब्राहम ने उसे सब वस्तुओं का दशमांश दिया था।
मलिकिसिदक नाम के अर्थ हैं, "धर्म का राजा" और "शान्ति का राजा।"
मलिकिसिदक के