1 अब्राहम की सन्तान, दाऊद की सन्तान, यीशु मसीह* की वंशावली*। 2 अब्राहम से इसहाक उत्पन्न हुआ, इसहाक से याकूब उत्पन्न हुआ, और याकूब से यहूदा और उसके भाई उत्पन्न हुए। 3 यहूदा और तामार से पेरेस व जेरह उत्पन्न हुए, और पेरेस से हेस्रोन उत्पन्न हुआ, और हेस्रोन से एराम उत्पन्न हुआ। 4 एराम से अम्मीनादाब उत्पन्न हुआ, और अम्मीनादाब से नहशोन, और नहशोन से सलमोन उत्पन्न हुआ। (रूत 4:19-20) 5 सलमोन और राहाब से बोआज उत्पन्न हुआ, और बोआज और रूत से ओबेद उत्पन्न हुआ, और ओबेद से यिशै उत्पन्न हुआ। 6 और यिशै से दाऊद राजा उत्पन्न हुआ। और दाऊद से सुलैमान उस स्त्री से उत्पन्न हुआ जो पहले ऊरिय्याह की पत्नी थी। (2 शमू. 12:24) 7 सुलैमान से रहबाम उत्पन्न हुआ, और रहबाम से अबिय्याह उत्पन्न हुआ, और अबिय्याह से आसा उत्पन्न हुआ। 8 आसा से यहोशाफात उत्पन्न हुआ, और यहोशाफात से योराम उत्पन्न हुआ, और योराम से उज्जियाह उत्पन्न हुआ। 9 उज्जियाह से योताम उत्पन्न हुआ, योताम से आहाज उत्पन्न हुआ, और आहाज से हिजकिय्याह उत्पन्न हुआ। 10 हिजकिय्याह से मनश्शे उत्पन्न हुआ, मनश्शे से आमोन उत्पन्न हुआ, और आमोन से योशिय्याह उत्पन्न हुआ। 11 और बन्दी होकर बाबेल जाने के समय में योशिय्याह से यकुन्याह*, और उसके भाई उत्पन्न हुए। (यिर्म. 27:20) 12 बन्दी होकर बाबेल पहुँचाए जाने के बाद यकुन्याह से शालतियेल उत्पन्न हुआ, और शालतियेल से जरुब्बाबेल उत्पन्न हुआ। 13 जरुब्बाबेल से अबीहूद उत्पन्न हुआ, अबीहूद से एलयाकीम उत्पन्न हुआ, और एलयाकीम से अजोर उत्पन्न हुआ। 14 अजोर से सादोक उत्पन्न हुआ, सादोक से अखीम उत्पन्न हुआ, और अखीम से एलीहूद उत्पन्न हुआ। 15 एलीहूद से एलीआजार उत्पन्न हुआ, एलीआजार से मत्तान उत्पन्न हुआ, और मत्तान से याकूब उत्पन्न हुआ। 16 याकूब से यूसुफ उत्पन्न हुआ, जो मरियम का पति था, और मरियम से* यीशु उत्पन्न हुआ जो मसीह कहलाता है। 17 अब्राहम से दाऊद तक सब चौदह पीढ़ी हुई, और दाऊद से बाबेल को बन्दी होकर पहुँचाए जाने तक चौदह पीढ़ी, और बन्दी होकर बाबेल को पहुँचाए जाने के समय से लेकर मसीह तक चौदह पीढ़ी हुई।
18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उसकी माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उनके इकट्ठे होने के पहले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। 19 अतः उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की। 20 जब वह इन बातों की सोच ही में था तो परमेश्वर का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, “हे यूसुफ! दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। 21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु* रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।” 22 यह सब कुछ इसलिए हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था, वह पूरा हो (यशा. 7:14) 23 “देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा,” जिसका अर्थ है - परमेश्वर हमारे साथ। 24 तब यूसुफ नींद से जागकर परमेश्वर के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आया। 25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा।
पद 1-17 में यीशु के पूर्वजों के नाम दिए गए हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, "दाऊद का वंशज जो अब्राहम का वंशज था"। अब्राहम और उसके वंशज दाऊद के मध्य अनेक पीढ़ियाँ थी और दाऊद और उसके वंशज यीशु के मध्य अनेक पीढ़ियां रही हैं। "दाऊद का पुत्र" एक पदनाम स्वरूप काम में लिया गया है, तथा अन्य स्थानों में परन्तु यह केवल उसकी वंशावली को दर्शाने के लिए काम में लिया गया है।
वैकल्पिक अनुवाद, "अब्राहम इसहाक का पिता था" या अब्राहम का पुत्र था इसहाक"। इसमें से एक अनुवाद को काम में लेने से आपके पाठकों के लिए अधिक स्पष्ट होगा और इसी को शेष सूची में काम में लें।
जिस भाषा में इस शब्द के पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों शब्द है उसमें स्त्रीलिंग शब्द ही काम में लें।
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती .में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
"सलमोन बोअज का पिता था और बोअज की माता राहाब थी"। या "बोअज के माता-पिता राहाब और सलमोन थे"।
बोअज ओबेद का पिता था और माता रूत थी "या ओबेद के माता-पिता रूत और बोअज थे।"
जिन भाषाओं में इन शब्दों के पुल्लिंग और स्त्रीलिंग शब्द हैं। उनमें इन शब्दों के केवल स्त्रीलिंग रूप ही काम में लिए जाए।
"दाऊद का पुत्र सुलैमान था और सुलैमान की माता उरिय्याह की पत्नी थी। या दाऊद और उरिय्याह की पत्नी सुलैमान के माता-पिता थे"।
"उरिय्याह की विधवा।"
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
कभी-कभी उसके नाम का अनुवाद "आसाप" किया जाता है।
योराम वास्तव में उज्जियाह के दादा का दादा था। अतः दादा के स्थान पर "पूर्वज" लिखा जा सकता है।(यू.डी.बी)
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती .में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
कहीं-कहीं इसका अनुवाद आमोस किया गया है।
योशिय्याह वास्तव में यकुन्याह का दादा था।(देखें: यू.डी.बी)
जब वे बेबीलोन ले जाए गए। या "जब बेबीलोन की सेना ने उन्हें बेबीलोन में बसने पर विवश किया"। यदि आपकी भाषा में स्पष्ट करना है कि कौन बेबीलोन ले जाए गए तो आप कह सकते हैं, "इस्राएली" या यहूदा के रहने वाले इस्राएली"।
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती .में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
शब्दावली वही काम में ले जो में काम में ली गई है।
शालतिएल वास्तव में जरूब्बाबिल का दादा था।(देखे: यू.डी.बी.)
यीशु के पूर्वजों की सूची अभी समाप्त नहीं हुई है, आपने मत्ती में जो शब्दावली काम में ली है उसी को आगे भी काम में लें।
मरियम जिससे यीशु का जन्म हुआ। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य रूप में किया जा सकता है, "मरियम ने यीशु को जन्म दिया"।
शब्दावली वही काम में ले जो में काम में ली गई है।
यहाँ उन घटनाओं का वर्णन है जो यीशु के जन्म से सम्बन्धित हैं। यदि आपकी भाषा में विषय परिवर्तन दिखाने की विधि है तो उसे यहाँ काम में लें।
मरिमय की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई थी। "विवाह की प्रतिज्ञा कर चुकी थी" (यू.डी.बी.) या "विवाह के लिए समर्पित की जा चुकी थी"। माता-पिता सामान्यतः सन्तान के विवाह का प्रबन्ध करते हैं।
इस शिष्टोक्ति का अर्थ है, "इससे पूर्व कि उनमें यौन सम्बन्ध होता"।
"उन्हें पता चला कि वह शिशु को जन्म देने वाली है"।(देखें:: )
"पवित्र आत्मा ने मरियम को शिशु जनने योग्य किया"।
यहाँ यीशु के जन्म से संबन्धित घटनाओं का वर्णन है।
अचानक से ही एक स्वर्गदूत यूसुफ के पास आया।
"मरियम के गर्भ में जो शिशु है वह पवित्र आत्मा से है।"
क्योंकि परमेश्वर ने अपने स्वर्गदूत को भेजा था इसलिए वह जानता था कि वह शिशु पुत्र है।
यह एक आज्ञा हैः "तू उसका नाम रखना" या "उसे नाम देना" या "उसे पुकारना"।
"अपने लोगों का" यहूदियों से संदर्भ है।
मत्ती उस भविष्यद्वाणी का संदर्भ देता है जिसे यीशु पूरी करेगा।
जो कर्तृवाच्य रूप में व्यक्त किया जा सकता है, "प्रभु ने भविष्यद्वक्ता यशायाह को बहुत पहले से लिखने को कहा था।"
वैकल्पिक अनुवाद, "देखो" या "सुनो" या "जो मैं कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दो"।
यह पद यशायाह का उद्धरण है।
यह अंश यीशु के जन्म से संबन्धित घटनाओं की चर्चा करता है।
स्वर्गदूत ने उसे आज्ञा दी कि वह मरियम को अपने यहाँ ले आए और उस पुत्र का नाम यीशु रखे। (पद 20-21)
उसके पास न गया "उसके साथ यौन सम्बन्ध नहीं बनाए"।
यूसुफ ने अपने पुत्र का नाम यीशु रखा।
जिन दो पूर्वजों की सबसे पहले सूची दी गई है वे दाऊद और अब्राहम है।
मरियम, यूसुफ की पत्नी का नाम दिया गया है क्योंकि उसके द्वारा यीशु का जन्म हुआ था।
यूसुफ के साथ सम्बन्ध बनाने से पूर्व मरियम पवित्र-आत्मा से गर्भवती हुई थी।
यूसुफ एक धर्मी जन था।
यूसुफ ने गुप्त में मरियम के साथ मंगनी तोड़ देने की इच्छा की थी।
एक स्वर्गदूत ने यूसुफ को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वह मरियम को अपना ले क्योंकि उसका गर्भ धारण पवित्र-आत्मा से है।
यूसुफ से कहा गया कि वह शिशु का नाम यीशु रखे क्योंकि वह अपने लोगों का पाप से उद्धार करेगा।
पुराने नियम की भविष्यद्वाणी थी कि एक कुंवारी पुत्र को जन्म देगी और वह इम्मानुएल कहलाएगा जिसका अर्थ है, "परमेश्वर हमारे साथ है।"
यीशु के जन्म तक यूसुफ अति सावधान रहा कि वह मरियम के निकट न जाए।
1 हेरोदेस राजा के दिनों में जब यहूदिया के बैतलहम* में यीशु का जन्म हुआ, तब, पूर्व से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछने लगे, 2 “यहूदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है? क्योंकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको झुककर प्रणाम करने आए हैं।” (गिन. 24:17) 3 यह सुनकर हेरोदेस राजा और उसके साथ सारा यरूशलेम घबरा गया। 4 और उसने लोगों के सब प्रधान याजकों और शास्त्रियों* को इकट्ठा करके उनसे पूछा, “मसीह का जन्म कहाँ होना चाहिए?” 5 उन्होंने उससे कहा, “यहूदिया के बैतलहम में; क्योंकि भविष्यद्वक्ता के द्वारा लिखा गया है :
6 “हे बैतलहम, यहूदा के प्रदेश, तू किसी भी रीति से यहूदा के अधिकारियों में सबसे छोटा नहीं; क्योंकि तुझ में से एक अधिपति निकलेगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा बनेगा।” (मीका 5:2) 7 तब हेरोदेस ने ज्योतिषियों को चुपके से बुलाकर उनसे पूछा, कि तारा ठीक किस समय दिखाई दिया था। 8 और उसने यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, “जाकर उस बालक के विषय में ठीक-ठीक मालूम करो और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उसको प्रणाम करूँ।” 9 वे राजा की बात सुनकर चले गए, और जो तारा उन्होंने पूर्व में देखा था, वह उनके आगे-आगे चला; और जहाँ बालक था, उस जगह के ऊपर पहुँचकर ठहर गया। 10 उस तारे को देखकर वे अति आनन्दित हुए। (लूका 2:20) 11 और उस घर में पहुँचकर उस बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा, और दण्डवत् होकर बालक* की आराधना की, और अपना-अपना थैला खोलकर उसे सोना, और लोबान, और गन्धरस की भेंट चढ़ाई। 12 और स्वप्न में यह चेतावनी पा कर कि हेरोदेस के पास फिर न जाना, वे दूसरे मार्ग से होकर अपने देश को चले गए।
13 उनके चले जाने के बाद, परमेश्वर के एक दूत ने स्वप्न में प्रकट होकर यूसुफ से कहा, “उठ! उस बालक को और उसकी माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा; और जब तक मैं तुझ से न कहूँ, तब तक वहीं रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बालक को ढूँढ़ने पर है कि इसे मरवा डाले।” 14 तब वह रात ही को उठकर बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र को चल दिया। 15 और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा। इसलिए कि वह वचन जो प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था पूरा हो “मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया।” (होशे 11:1)
16 जब हेरोदेस ने यह देखा, कि ज्योतिषियों ने उसके साथ धोखा किया है, तब वह क्रोध से भर गया, और लोगों को भेजकर ज्योतिषियों से ठीक-ठीक पूछे हुए समय के अनुसार बैतलहम और उसके आस-पास के स्थानों के सब लड़कों को जो दो वर्ष के या उससे छोटे थे, मरवा डाला। 17 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हुआ
18 “रामाह में एक करुण-नाद सुनाई दिया,
रोना और बड़ा विलाप,
राहेल अपने बालकों के लिये रो रही थी;
और शान्त होना न चाहती थी, क्योंकि वे अब नहीं रहे।” (यिर्म. 31:15)
19 हेरोदेस के मरने के बाद, प्रभु के दूत ने मिस्र में यूसुफ को स्वप्न में प्रकट होकर कहा, 20 “उठ, बालक और उसकी माता को लेकर इस्राएल के देश में चला जा; क्योंकि जो बालक के प्राण लेना चाहते थे, वे मर गए।” (निर्ग. 4:19) 21 वह उठा, और बालक और उसकी माता को साथ लेकर इस्राएल के देश में आया। 22 परन्तु यह सुनकर कि अरखिलाउस* अपने पिता हेरोदेस की जगह यहूदिया पर राज्य कर रहा है, वहाँ जाने से डरा; और स्वप्न में परमेश्वर से चेतावनी पा कर गलील प्रदेश में चला गया। 23 और नासरत नामक नगर में जा बसा, ताकि वह वचन पूरा हो, जो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा गया थाः “वह नासरी* कहलाएगा।” (लूका 18:7)
इस अध्याय में यहूदियों के राजा के रूप में यीशु के जन्म का वर्णन है।
यहूदिया के बैतलहम में , "यहूदिया क्षेत्र के बैतलहम नगर में"।(यु.डी.बी)
"ज्योतिषी - सितारों का ज्ञान रखने वाले"। (यू.डी.बी.)
हेरोदेस यह हेरोदेस महान है।
वे जानते थे कि जो राजा होगा उसका जन्म हो चुका है। वे जानने का प्रयत्न कर रहे थे कि वह कहाँ है। "एक शिशु जो यहूदियों का राजा होगा, उसका जन्म हुआ है, वह कहाँ है"?
"तारा जो उसके बारे में प्रकट करता है", या "उसके जन्म से संबन्धित तारा", उनके कहने का अर्थ यह नहीं था वह शिशु उस तारे का स्वामी है।
इस शब्द के संभावित अर्थ हैं, (1) उनका प्रयोजन था कि उस दिव्य शिशु को प्रणाम करें", या (2) वे उसे मानवीय राजा के रूप में "सम्मान" देना चाहते थे। यदि आपकी भाषा में ऐसा शब्द है जिसका अर्थ इन दोनों अर्थों से निकलता है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
"वह चिन्तित हो गया" कि उसके स्थान पर किसी और को यहूदियों का राजा बनाया जायेगा।
"यरूशलेम में अधिकांश जन" (यू.डी.बी.) भयभीत हो गये कि हेरोदेस अब क्या करेगा।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
वैकल्पिक अनुवाद "बैतलहम नगर में जो यहूदिया प्रदेश में है"।
इसे क्रियाशील रूप में व्यक्त किया जा सकता है, "भविष्यद्वक्ता ने लिखा है।"
भविष्यद्वक्ता के द्वारा यों लिखा गया है , वैकल्पिक अनुवाद, "भविष्यद्वक्ता मीका द्वारा यह लिखा गया है"।
"तुम जो बैतलहम में निवास करते हो, तुम्हारा नगर निश्चय ही बहुत महत्त्वपूर्ण है।" (यू.डी.बी.) या "हे बैतलहम तू सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नगरों में से एक है"। (देखें )
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
इसका अर्थ है कि हेरोदेस ने ज्योतिषियों से अकेले में बात की।
बालक अर्थात शिशु यीशु।
यहाँ अनुवाद में वही शब्द काम में लें जो आपने में काम में लिया है।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
राजा की बात सुनकर , "तब" (यू.डी.बी.) या "राजा की बात सुनने के बाद ज्योतिषी"।
वैकल्पिक अनुवाद, "उनका मार्गदर्शन किया"।
ठहर गया, वैकल्पिक अनुवाद, "रूक गया"।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
ज्योतिषियों ने
यहाँ अनुवाद में वही शब्द काम में लें जो आपने में काम में लिया है।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
"ज्योतिषी चले गए"।
परमेश्वर यूसुफ से बात कर रहा है अतः ये एक वचन शब्द है ।
जब तक हेरोदेस की मृत्यु नहीं हो जाती । इस वाक्य द्वारा उनके मिस्र में रहने का समय प्रकट होता है परन्तु यह नहीं कहा गया है कि इस समय हेरोदस की मृत्यु हुई।
यह होशे का उद्धरण है मत्ती में यूनानी अभिलेख के शब्द होशे की इब्रानी भाषा के शब्दों से भिन्न हैं क्योंकि यहाँ "मिस्र से" पर बल दिया गया है, अन्य किसी देश को नहीं: "मिस्र से ही मैंने अपने पुत्र को बुलाया।"
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
यूसुफ मरियम और यीशु को लेकर चला गया तब हेरोदेस ने क्या किया, इसका यहाँ वर्णन है अब तक हेरोदेस की मृत्यु नहीं हुई है।
"ज्योतिषियों ने उसे धोखा देकर क्रोधित किया"। (देखें यू.डी.बी.)
उसने सब बालकों को मरवा डाला, वैकल्पिक अनुवादः "उसने सब बालाकों की हत्या करने की आज्ञा दी" या "उसने सब बालकों को मार डालने के लिए सैनिक भेजे"(यू.डी.बी.)।
पद 18 यिर्मयाह का उद्धरण है। मत्ती में यूनानी अभिलेख यिर्मयाह के इब्रानी अभिलेख से कुछ भिन्न है।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
जो बालक के प्राण लेना चाहते थे - "जो उस बालक को मार डालना चाहते थे"।
यहाँ वर्णन है कि जब यीशु, यहूदियों के राजा का जन्म हुआ तब क्या हुआ।
परन्तु यह सुनकर, "परन्तु जब यूसुफ ने सुना"।
अपने पिता हेरोदेस अरखिलाउस का पिता
वहाँ जाने से डरा , यूसुफ का संदर्भ है।
वह नासरी कहलाएगा , यहाँ "वह" अर्थात यीशु है।
यीशु का जन्म यहूदिया के बैतलहम में हुआ था।
पूर्वी क्षेत्र से आने वाले ज्योतिषियों ने यीशु को "यहूदियों का राजा" उपाधि दी थी।
ज्योतिषियों ने पूर्व में यहूदियों के राजा का तारा देखा था।
ज्योतिषियों से यह समाचार सुनकर राजा हेरोदेस परेशान हो गया था।
बैतलहम में मसीह के जन्म की भविष्यद्वाणी को वे जानते थे।
पूर्व में जो तारा दिखाई दिया था वह उनके आगे-आगे चला जब तक कि वह उस स्थान पर ठहर न गया जहाँ यीशु का जन्म हुआ था।
जब ज्योतिषी यीशु के पास आए तब वह एक बालक था।
ज्योतिषियों ने यीशु को सोना, लोबान और गन्धरस भेंट में दिया।
ज्योतिषी दूसरे मार्ग से घर लौट गए क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें स्वप्न में सतर्क कर दिया था कि वे हेरोदेस के पास न जाएं।
यूसुफ को चेतावनी दी गई कि वह यीशु और मरियम को लेकर मिस्र चला जाए क्योंकि हेरोदेस यीशु की हत्या करने की खोज में था।
बाद में जब यीशु मिस्र से लौटा तब यह भविष्यद्वाणी पूरी हुई, "मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बुलवाया।"
हेरोदेस ने बैतलहेम में दो वर्ष और दो वर्ष से कम आयु के सब लडकों को मरवा दिया।
यूसुफ को स्वप्न में कहा गया कि वह इस्राएल लौट जाए।
यूसुफ मरियम और यीशु के साथ गलील के नासरत नामक नगर में रहने लगा।
यह भविष्यद्वाणी कि मसीह नासरी कहलाएगा पूरी हुई।
1 उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आकर यहूदिया के जंगल* में यह प्रचार करने लगा : 2 “मन फिराओ*, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” 3 यह वही है जिसके बारे में यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा था :
“जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा है, कि प्रभु का मार्ग तैयार करो,
उसकी सड़कें सीधी करो।” (यशा. 40:3)
4 यह यूहन्ना ऊँट के रोम का वस्त्र पहने था, और अपनी कमर में चमड़े का कमरबन्द बाँधे हुए था, और उसका भोजन टिड्डियाँ और वनमधु था। (2 राजा. 1:8) 5 तब यरूशलेम के और सारे यहूदिया के, और यरदन के आस-पास के सारे क्षेत्र के लोग उसके पास निकल आए। 6 और अपने-अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उससे बपतिस्मा लिया। 7 जब उसने बहुत से फरीसियों* और सदूकियों* को बपतिस्मा के लिये अपने पास आते देखा, तो उनसे कहा, “हे साँप के बच्चों, तुम्हें किसने चेतावनी दी कि आनेवाले क्रोध से भागो? 8 मन फिराव के योग्य फल लाओ; 9 और अपने-अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता अब्राहम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिये सन्तान उत्पन्न कर सकता है। 10 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है।
11 “मैं तो पानी से तुम्हें मन फिराव का बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु जो मेरे बाद आनेवाला है, वह मुझसे शक्तिशाली है; मैं उसकी जूती उठाने के योग्य नहीं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा। 12 उसका सूप उसके हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं।”
13 उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास उससे बपतिस्मा लेने आया। 14 परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, “मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?” 15 यीशु ने उसको यह उत्तर दिया, “अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।” तब उसने उसकी बात मान ली। 16 और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और उसके लिये आकाश खुल गया; और उसने परमेश्वर की आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते देखा। 17 और यह आकाशवाणी हुई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।”* (भज. 2:7)
यह बाइबल अंश अनेक वर्ष बाद का वृत्तान्त है जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला व्यस्क हो गया था और उसने अपनी प्रचार सेवा आरंभ कर दी थी।
सर्वनाम "वही" यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की पहचान है।
वैकल्पिक अनुवाद, "यशायाह भविष्यद्वक्ता यूहन्ना ही के बारे में कह रहा था जब उसने कहा"।
प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो। - यह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के सन्देश में उदाहरण का प्रयोग है, वह लोगों को मन फिराव के लिए तैयार होने की पुकार करता था। वैकल्पिक अनुवाद, "अपनी जीवनशैली को बदलने के लिए तैयार हो जाओ कि तुम्हारा जीवन परमेश्वर को ग्रहण योग्य हो"।
यूहन्ना की प्रचार सेवा आरंभ है।
उन्होंने उससे बपतिस्मा लिया, "यूहन्ना ने उन्हें बपतिस्मा दिया"।
यरूशलेम, यहूदिया और यरदन नदी के आस-पास के क्षेत्र के लोग।
यूहन्ना की प्रचार सेवा आरंभ है।
यह एक उपमा है जहरीले साँप खतरनाक होते हैं और बुराई का प्रतीक हैं। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम दुष्ट जहरीले सांपों" या "तुम जहरीले सांपों के समान दुष्ट हो"।
इस प्रश्न के द्वारा यूहन्ना उन लोगों को झिड़क रहा था क्योंकि वे उससे बपतिस्मा इसलिए लेना चाहते थे कि परमेश्वर उन्हें दण्ड न दे, परन्तु वे पाप करना छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। "तुम इस प्रकार परमेश्वर के क्रोध से बच नहीं सकते", या "यह न सोचो कि बपतिस्मा लेकर तुम परमेश्वर के क्रोध से बच जाओगे"।
वैकल्पिक अनुवाद, "आने वाले दण्ड से" या "परमेश्वर के क्रोध से जिसे वह कार्य रूप देने वाला है"। यहाँ "क्रोध" शब्द को काम में लिया गया है जो परमेश्वर के दण्ड को दर्शाता है क्योंकि उसका क्रोध दण्ड से पहले है।
"अब्राहम हमारा पूर्वज है", या "हम अब्राहम का वंश हैं"।
"परमेश्वर इन पत्थरों से सन्तान उत्पन्न करके अब्राहम को दे सकता है"।
यूहन्ना की प्रचार सेवा आरंभ है।
कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है, - यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, "परमेश्वर तुम्हें दण्ड देने के लिए तैयार है यदि तुम अपने पाप के व्यवहार से मन नहीं फिराओगे, जैसे मनुष्य जिस पेड़ को काटना चाहता है उसकी जड़ पर कुल्हाड़ा रखता है"।
यूहन्ना मन फिराने वालों को बपतिस्मा देता था।
यीशु ही है जो यूहन्ना के बाद आनेवाला था।
यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, "परमेश्वर तुममें पवित्र आत्मा का अन्तर्वास करायेगा और तुम्हें आग से लेकर चलेगा कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने वालों का न्याय करो और उनका शोधन करो"।
यीशु तुम्हें बपतिस्मा देगा।
यह रूपक यीशु द्वारा धर्मियों और अधर्मियों को अलग करने की रीति की तुलना गेहूँ और भूसे को अलग करने से करती है। संबन्ध को स्पष्ट करने के लिए इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, "मसीह उस मनुष्य के समान है जिसके हाथ में सूप है"।
वैकल्पिक अनुवाद, "मसीह के हाथ में सूप है क्योंकि वह तैयार है।"
इससे गेहूँ को उछाला जाता है कि दाना भूसे से अलग हो। गेहूँ का दाना भारी होने के कारण नीचे गिर जाता है और भूसा हवा में उड़ जाता है। ये वैसा ही है जैसा लोहे का पंजा।
भूसे से गेहूँ अलग करने का स्थान। वैकल्पिक अनुवाद, "उसका स्थल" या "वह स्थान जहाँ वह गेहूँ को भूसे से अलग करता है।"
गेहूँ को खत्ते में इकट्ठा करेगा परन्तु भूसी को उस आग में जलायेगा जो बुझने की नहीं। -यह एक रूपक है जिसके द्वारा सचित्र वर्णन किया जा रहा है कि परमेश्वर धर्मियों को अधर्मियों से कैसे अलग करेगा। धर्मी जन स्वर्ग में जाएगे जैसे गेहूँ किसान के खत्ते में सुरक्षित रख दिया जाए और परमेश्वर उन अधर्मियों को जिनकी तुलना भूसी से की गयी है, उन्हें अनंत आग में जलने के लिए डाल देगा।
यहाँ यूहन्ना द्वारा यीशु के बपतिस्मे का वृत्तान्त है।
मुझे तो तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है , "मुझे" यूहन्ना के लिए है और "तेरे" यीशु के लिए है।
यह एक प्रश्न हैजिसके उत्तर की अपेक्षा नहीं की जा रही है। वैकल्पिक अनुवाद, "क्योंकि तू पापी नहीं है, इसलिए तुझे मेरे पास आने की आवश्यकता नहीं कि बपतिस्मा ले"। ध्यान दे कि "तू" यीशु के लिए काम में लिया गया है और "मेरे" यूहन्ना के लिए
यहाँ यूहन्ना द्वारा यीशु के बपतिस्मे का वर्णन किया गया है।
यीशु बपतिस्मा लेकर , इसका अनुवाद किया जा सकता है, "यूहन्ना ने यीशु को बपतिस्मा दे दिया तब"।
वैकल्पिक अनुवाद, "उसने आकाश को खुला देखा" या उसने "उसने स्वर्ग को खुला देखा"
कबूतर समान उतरते, (1) यह एक सरल वाक्य हो सकता है कि परमेश्वर का आत्मा कबूतर के रूप में था। (2) यह एक उपमा हो सकती है कि आत्मा की तुलना कबूतर से की जाए जो यीशु पर बड़ी कोमलता से उतरा।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
यूहन्ना प्रचार करता था, "मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।"
यूहन्ना के बारे में यह भविष्यद्वाणी की गई थी कि वह प्रभु का मार्ग तैयार करेगा।
बपतिस्मा लेते समय लोग अपने पापों का अंगीकार करते थे।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने फरीसियों और सदूकियों से कहा कि वे मन-फिराव के योग्य फल लाएं।
यूहन्ना ने फरीसियों और सदूकियों को चेतावनी दी कि वे इस भ्रम में न रहें कि उनका पिता अब्राहम है।
यूहन्ना कहता था कि जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता वह काटा और आग में झोंका जाता है।
यूहन्ना के बाद जो आएगा वह पवित्र-आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।
यीशु ने कहा कि यूहन्ना द्वारा उसका बपतिस्मा धार्मिकता को पूरा करने के लिए उचित है।
नदी के पानी से बाहर आने पर यीशु ने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर के समान उतरते और उस पर आते देखा।
आकाशवाणी हुई, "यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।"
1 तब उस समय आत्मा यीशु को एकांत में ले गया ताकि शैतान से उसकी परीक्षा हो।* 2 वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। (निर्ग. 34:28) 3 तब परखनेवाले ने पास आकर उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।” 4 यीशु ने उत्तर दिया, “लिखा है,
‘मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं,
परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।’ ”
5 तब शैतान उसे पवित्र नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया। (लूका 4:9) 6 और उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे*।’ ” (भज. 91:11-12) 7 यीशु ने उससे कहा, “यह भी लिखा है, ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।’ ” (व्य. 6:16) 8 फिर शैतान उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर 9 उससे कहा, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा*।” 10 तब यीशु ने उससे कहा, “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।’ ” (व्य. 6:13) 11 तब शैतान उसके पास से चला गया, और स्वर्गदूत आकर उसकी सेवा करने लगे।
12 जब उसने यह सुना कि यूहन्ना पकड़वा दिया गया, तो वह गलील को चला गया। 13 और नासरत को छोड़कर कफरनहूम में जो झील के किनारे जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र में है जाकर रहने लगा। 14 ताकि जो यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो।
15 “जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र,
झील के मार्ग से यरदन के पास अन्यजातियों का गलील-
16 जो लोग अंधकार में बैठे थे उन्होंने बड़ी ज्योति देखी; और जो मृत्यु के क्षेत्र और छाया में बैठे थे, उन पर ज्योति चमकी।”
17 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।”
18 उसने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे। 19 और उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊँगा।” 20 वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। 21 और वहाँ से आगे बढ़कर, उसने और दो भाइयों अर्थात् जब्दी के पुत्र* याकूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधारते देखा; और उन्हें भी बुलाया। 22 वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
23 और यीशु सारे गलील में फिरता हुआ उनके आराधनालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और लोगों की हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। 24 और सारे सीरिया देश में उसका यश फैल गया; और लोग सब बीमारों को, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों और दुःखों में जकड़े हुए थे, और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और मिर्गीवालों और लकवे के रोगियों को उसके पास लाए और उसने उन्हें चंगा किया। 25 और गलील, दिकापुलिस*, यरूशलेम, यहूदिया और यरदन के पार से भीड़ की भीड़ उसके पीछे हो ली।
इस अंश में शैतान द्वारा यीशु की परीक्षा का वर्णन है।
यह उसी व्यक्तित्व के संदर्भ में है, आपको दोनों अनुवाद में वही शब्द काम में लेने होंगे।
यह यीशु के संदर्भ में है।
(1) यह अपने लाभ के लिए आश्चर्यकर्म करने की परीक्षा है, "तू परमेश्वर का पुत्र है इसलिए आज्ञा दे सकता है"। या (2) चुनौती या दोषारोपण, "आज्ञा देकर सिद्ध कर कि तू परमेश्वर का पुत्र है"। (देखें यू.डी.बी.) उत्तम तो यही होगा कि माना जाए कि शैतान जानता था कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
"इन पत्थरों से कह कि वे रोटियाँ बन जाएं।"
शैतान द्वारा यीशु की परीक्षा की चर्चा चल रही है।
(1) या तो यह उसके अपने लाभ के निमित्त आश्चर्यकर्म की परीक्षा है, "क्योंकि तू सच में परमेश्वर का पुत्र है तो अपने आपको नीचे गिरा सकता है", या (2) एक चुनौती या दोषारोपण है, "अपने आप को नीचे गिराकर परमेश्वर का सच्चा पुत्र होना सिद्ध कर"। (देखें यू.डी.बी.) यह मानना उत्तम होगा कि शैतान जानता था कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
भूमि पर
वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा वह तुझे हाथों-हाथ उठा लेंगे"। या "परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा कि तुझे संभाल लें।
शैतान द्वारा यीशु की परीक्षा की चर्चा चल रही है।
यह भी लिखा है , इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, "मैं तुझ से फिर कहता हूँ कि धर्मशास्त्र में लिखा है"।
उससे कहा , "शैतान ने यीशु से कहा"।
मैं यह सब कुछ तुझे दे दूंगा , "मैं तुझे यह सब दे दूंगा"। परीक्षा लेने वाले का कहने का अर्थ है कि उसमें से कुछ भाग नहीं परन्तु पूरा का पूरा।
यह तीसरी बार है कि यीशु ने धर्मशास्त्र के संदर्भ से शैतान को झिड़का।
मत्ती शैतान के लिए एक भिन्न शब्द काम में लेता है परन्तु उसका अर्थ भी शैतान ही है।
"देखो" शब्द यहाँ हमें सतर्क करता है कि आगे जो नई महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है उस पर ध्यान दें।
इस अंश में गलील क्षेत्र में यीशु की सेवा का वर्णन है।
"यूहन्ना बन्दी बना लिया गया है"।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
इसका अनुवाद आप वैसे ही करेंगे जैसे आपने इस विचार का अनुवाद में किया है।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
"जाल डालते देखा।"
यीशु ने अन्द्रियास और शमौन को अपने अनुसरण हेतु आंमन्त्रित किया कि उसके साथ रहें और उसके शिष्य बन जायें। वैकल्पिक अनुवाद, "मेरे शिष्य हो जाओ"।
वैकल्पिक अनुवाद, "जिस प्रकार तुम मछलियां पकड़ते हो वैसे ही मैं तुम्हें परमेश्वर के लिए मनुष्यों को लाना सिखाऊंगा"।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
वे... अपने जालों को सुधार रहे थे। "वे"अर्थात जबदी और उसके दो पुत्र या केवल ये दोनों भाई।
"यीशु याकूब और यूहन्ना को बुलाता है", इस वाक्यांश का अर्थ भी यही है कि यीशु ने उन्हें अपने साथ रहकर और शिष्य बनने का निमंत्रण दिया।
तुरन्त , "उसी पल"।
यहाँ स्पष्ट किया जाता है कि यह जीवन परिवर्तन है। ये लोग अब मछुवे नहीं रहेंगे, अब वे अपने पारिवारिक व्यवसाय को त्याग कर आजीवन यीशु के अनुयायी होंगे।
गलील क्षेत्र में यीशु के प्रचार सेवा ही की चर्चा कर रहा है।
"हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता", "बीमारी" और "दुर्बलता" संबन्धित शब्द है परन्तु संभव हो तो इन्हें दो अलग-अलग शब्दों में ही अनुवाद करना है। "बीमारी" मनुष्य को रोगी बनाती है। दुर्बलता शारीरिक विकार या कष्ट है जो बीमारी के परिणाम स्वरूप होती है।
"दस नगरों" (देखें यू.डी.बी.) गलील सागर के दक्षिण पूर्व में बसा एक क्षेत्र।
पवित्र-आत्मा यीशु को जंगल में ले गया कि शैतान उसकी परीक्षा ले।
जंगल में यीशु ने चालीस दिन और चालीस रात उपवास किया।
शैतान ने यीशु की परीक्षा लेते हुए कहा कि वह पत्थर को रोटी बना दे।
यीशु ने कहा कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।
शैतान ने यीशु से कहा कि वह मंदिर के कंगूरे पर से स्वयं को गिरा दे।
यीशु ने उत्तर दिया, तू अपने प्रभु परमेश्वर की परीक्षा न कर।
शैतान ने परीक्षा ली कि यीशु उसे दण्डवत् करके जगत का राज्य ले ले।
यीशु ने कहा कि केवल प्रभु परमेश्वर की उपासना करना और उसकी ही सेवा करना अनिवार्य है।
यशायाह की भविष्यद्वाणी पूरी हुई कि गलीलवासी अन्धकार में ज्योति देखेंगे।
यीशु प्रचार करने लगा, "मन फिराओ क्योंकि परमेश्वर का राज्य निकट आया है।"
पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना सब मछुवारे थे।
यीशु ने कहा था कि वह पतरस और अन्द्रियास को मनुष्यों के पकड़ने वाले बनाएगा।
यीशु गलील क्षेत्र के आराधनालयों में शिक्षा देता था।
सब रोगी और दुष्टात्माग्रस्त लोग यीशु के पास लाए गए और यीशु ने उन्हें चंगा किया।
उस समय विशाल जनसमूह यीशु के पीछे चलता गया।
1 वह इस भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए। 2 और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा :
3 “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
4 “धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शान्ति पाएँगे।
5 “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। (भज. 37:11)
6 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जाएँगे।
7 “धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
8 “धन्य हैं वे, जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
9 “धन्य हैं वे, जो मेल करवानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।
10 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
11 “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। 12 आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। इसलिए कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था।
13 “तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए। 14 तुम जगत की ज्योति हो। जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। 15 और लोग दिया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उससे घर के सब लोगों को प्रकाश पहुँचता है। 16 उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें।
17 “यह न समझो, कि मैं व्यवस्था* या भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षाओं को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ। (रोम. 10:4) 18 क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा। 19 इसलिए जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उनका पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा। 20 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे।
21 “तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि ‘हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।’ (निर्ग. 20:13) 22 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई को निकम्मा* कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे ‘अरे मूर्ख’ वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा। 23 इसलिए यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, 24 तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर, और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा। 25 जब तक तू अपने मुद्दई के साथ मार्ग में हैं, उससे झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा न हो कि मुद्दई तुझे न्यायाधीश को सौंपे, और न्यायाधीश तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए। 26 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तू पाई-पाई चुका न दे तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।
27 “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’ (व्य. 5:18, निर्ग. 20:14) 28 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका। 29 यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए। 30 और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसको काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।
31 “यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को त्याग दे, तो उसे त्यागपत्र दे।’ (व्य. 24:1-14) 32 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से तलाक दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है।
33 “फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, ‘झूठी शपथ न खाना, परन्तु परमेश्वर के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।’ (व्य. 23:21) 34 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है। (यशा. 66:1) 35 न धरती की, क्योंकि वह उसके पाँवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है। (यशा. 66:1) 36 अपने सिर की भी शपथ न खाना क्योंकि तू एक बाल को भी न उजला, न काला कर सकता है। 37 परन्तु तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इससे अधिक होता है वह बुराई से होता है।
38 “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत। (व्य. 19:21) 39 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे। 40 और यदि कोई तुझ पर मुकद्दमा करके तेरा कुर्ता* लेना चाहे, तो उसे अंगरखा* भी ले लेने दे। 41 और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा। 42 जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उससे मुँह न मोड़।
43 “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर। (लैव्य. 19:18) 44 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो। (रोम. 12:14) 45 जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी पर मेंह बरसाता है। 46 क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या चुंगी लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते?
47 “और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते? 48 इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है। (लैव्य. 19:2)
अध्याय 5-7 एक ही घटना है। यीशु एक पहाड़ पर चढ़कर अपने शिष्यों को शिक्षा देने के लिए बैठ गया।
"यीशु ने कहना आरंभ किया"।
"उन्हें" अर्थात शिष्यों को।
"वे जो समझते थे कि उन्हें परमेश्वर की आवश्यकता है।"
जो शोक करते थे क्योंकि (1) संसार पापी था या (2) उनके अपने पाप थे या (3) किसी की मत्यु। जब तक आपकी भाषा में शोक के कारण की आवश्यकता नहीं तब तक कारण स्पष्ट न करें।
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर उन्हें शान्ति देगा"।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"जितनी उन्हें भोजन-पानी की लालसा थी उतनी ही धर्मी जीवन की आवश्यकता थी।"
"परमेश्वर उन्हें परिपूर्ण करेगा"।
"जिन मनुष्यों के मन साफ हैं"।
"उन्हें परमेश्वर के साथ रहने की अनुमति दी जाएगी" या "परमेश्वर उनके साथ रहने की अनुमति देगा"।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
ये वे लोग हैं जो मनुष्यों को आपस में मेल मिलाप से रहना सिखाते हैं।
ये परमेश्वर की अपनी सन्तान हैं
वैकल्पिक अनुवाद, "जिनके साथ मनुष्य अनुचित व्यवहार करता है।"
"क्योंकि वे परमेश्वर की इच्छा पर चलते हैं।"
"परमेश्वर उन्हें स्वर्ग के राज्य में रहने देगा"। वे स्वर्ग के राज्य के स्वामी तो नहीं हैं परन्तु परमेश्वर उन्हें अपनी उपस्थिति में रहने का अधिकार देता है।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"जो तुम्हारे बारे में सच नहीं परन्तु मेरे अनुसरण के कारण" या मुझमें विश्वास करने की अपेक्षा तुम्हारा कोई दोष नहीं है।
"आनन्दित और मगन" का अर्थ लगभग एक ही है। यीशु चाहता था कि उसके अनुयायी आनन्दित ही नहीं कही अधिक आनन्दित हों।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"तुम पृथ्वी के निवासियों के लिए नमक के समान हो"। या जैसा नमक भोजन में वैसा ही तुम संसार में हो"। इसके अर्थ हो सकते हैं (1) ठीक वैसे ही जैसे नमक भोजन को स्वादिष्ट बनाता है, तुम्हें संसार में लोगों को प्रभावित करना है कि वे भले मनुष्य हों" या (2) जिस प्रकार नमक भोजन को परिरक्षित करता है वैसे ही तुम भी मनुष्य को भ्रष्ट होने से बचाए रखो"।
इसका अर्थ है "यदि नमक की नमकीन करने की क्षमता चली जाए" (जैसा यू.डी.बी. में है) या (2) यदि नमक अपने स्वाद से वंचित हो जाए"।
"वह उपयोगी कैसे किया जाए"? या "उसे उपयोगी बनाने का कोई उपाय नहीं"
"वह एक काम का रह जाता है कि सड़क पर फेंक दिया जाए जहाँ लोग चलते हैं"।
"तुम संसार में लोगों के लिए ज्योति के समान हो"।
"पहाड़ पर बसे नगर की बत्तियां रात में छिप नहीं सकती है"। या "पहाड़ पर बसे नगर की बत्तियां सब देख सकते हैं"। (देखें: और )
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"मनुष्य दीया नहीं जलाते।"
यह एक छोटी कटोरी है जिसमें जैतून के तेल में एक बत्ती डूबी हुई रहती है। महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि वह प्रकाश देता है।
"दीया टोकरी के नीचे रखें" यह एक कहावत है कि प्रकाश उत्पन्न करके उसे छिपाएँ कि लोग दीये का प्रकाश नहीं देख पाएँ।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"छोटे से छोटा लिखित अक्षर या अक्षर का "छोटे से छोटा अंश" या ”वे नियम जो महत्त्वहीन प्रतीत होते हैं"।
"वह सब जो परमेश्वर ने सृजा है"।
"व्यवस्था में जो कुछ लिखा था वह सब परमेश्वर ने कर दिया है"।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"जो एक भी आज्ञा तोड़े चाहे वह महत्त्व में सबसे कम क्यों न हो"।
"परमेश्वर भी कहेगा कि वे सबसे कम महत्त्व के हैं।"
"महत्त्व में सबसे कम"
परमेश्वर की कोई आज्ञा सिखाएगा।
महत्त्वपूर्ण
ये शब्द बहुवचन हैं।
यीशु लोगों के समूह से बातें कर रहा है कि उनके साथ व्यक्तिगत रूप में क्या होगा, "तुम सुन चुके हो", "मैं तुमसे कहता हूँ" ये वाक्यांश जनसमूह से कहे गए हैं अतः बहुवचन में हैं, "हत्या न करना" एक वचन है परन्तु आप इसे बहुवचन में अनुवाद कर सकते हैं।
यहाँ "मैं" पर बल दिया गया है अर्थात यीशु जो कह रहा है वह परमेश्वर की आज्ञाओं के बराबर महत्त्वपूर्ण है। अतः इस वाक्यांश को इस प्रकार अनुवाद करें कि यह बल उभर आए।
यह शब्द हत्या करने के लिए है हत्या के हर एक रूप के लिए नहीं है।
यह शब्द सहविश्वासी के लिए है, न कि भाई या पड़ोसी के लिए है।
यह उन लोगों के लिए अपमान के शब्द हैं जो उचित रूप में सोच नहीं सकते "निकम्मा" शब्द निर्बुद्धि के निकट है जबकि "मूर्ख" में परमेश्वर की अवज्ञा का विचार है।
यह स्थानीय सभा है, न कि यरूशलेम की महासभा।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
यीशु जनसमूह से कह रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनका क्या होगा। "तू" और "तेरा" सब शब्द एकवचन में हैं परन्तु आपकी भाषा में इन्हें बहुवचन में अनुवाद करने की आवश्यकता होगी।
"भेंट चढाएं" या "भेंट लेकर आएं"।
"वेदी के निकट खड़ा हो और तुझे याद आये।"
"यदि किसी को तेरे द्वारा की गई हानि स्मरण हो"।
"अपनी भेंट चढ़ाने से पहले अपने भाई से मेल कर।"
यीशु जनसमूह से कह रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनका क्या होगा। "तू" और "तेरा" सब शब्द एकवचन में हैं परन्तु आपकी भाषा में इन्हें बहुवचन में अनुवाद करने की आवश्यकता होगी।
"इसका परिणाम हो सकता है कि तेरा दोष लगानेवाला तुझे न्यायी को सौंप दे" या "क्योंकि तेरा दोष लगानेवाला तुझे पकड़वा दे"।
"तुझे न्यायालय में पेश करे"।
हाकिम जिस व्यक्ति को न्यायाधीश के निर्णय लेने का अधिकार है।
बन्दीगृह।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम सुन चुके हो" और "मैं तुम से यह कहता हूँ", बहुवचन में हैं। "न करना" एकवचन में है परन्तु आपको इसका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता होगी।
इस शब्द का अर्थ है कार्य रूप देना या कुछ करना।
यहाँ "मैं" पर बल दिया गया है, अर्थात यीशु जो कह रहा है वह परमेश्वर की आज्ञा के बराबर है। इस वाक्यांश को अपनी भाषा में इस प्रकार अनुवाद करें कि उसमें यह बल उभर आए। जैसा में है।
इस रूपक से प्रकट होता है कि किसी स्त्री पर कुदृष्टि डालने वाला पुरूष उतना ही दोषी है जितना कि वास्तव में व्यभिचार करने वाला।
मन में अन्य स्त्री का लालच करने वाला।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है, "तुम" और "तू" के सब शब्द एकवचन हैं परन्तु आपकी भाषा में उनका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता हो सकती है।
बाएँ हाथ या बाईं आँख की तुलना में दाहिनी आँख और हाथ अधिक महत्त्वपूर्ण है। आपको इसका अनुवाद करना होगा "दाहिना" या "सबसे अच्छा" या "एकमात्र"
"यदि तू जो देखता है, वह तुझे ठोकर खिलाए" या "यदि तू जो देखता है उसके कारण तू पाप करना चाहे"। ठोकर खाना एक रूपक है जो "पाप करने के लिए काम में लिया जाता है। यीशु यहाँ व्यंग का उपयोग कर रहा है क्योंकि मनुष्य ठोकर खाने से बचने के लिए आंखें काम में लेता है।
"उसे बलपूर्वक निकाल दे" या "उसे नष्ट कर दे" (देखें यू.डी.बी.) यदि दाहिनी आँख विशेष करके व्यक्त की जाए तो आपको अनुवाद करना होगा, "उसे निकाल दे", यदि "आँखों" शब्द काम में लिया गया है तो आपको अनुवाद करना होगा, "उन्हें निकाल दे"। (देखें यू.डी.बी.)
"उससे छुटकारा पा ले"।
"तुझे अपनी देह का एक अंग नष्ट होने देना होगा"।
यह लाक्षणिक प्रयोग संपूर्ण व्यक्तित्व के कार्यों से हाथ का संबन्ध जताने के लिए हैं।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
परमेश्वर ने "कहा" था (देखें यू.डी.बी.) यीशु यहाँ कर्मवाच्य वाक्य काम में ले रहा है, वह स्पष्ट करना चाहता है कि न तो परमेश्वर से और न ही परमेश्वर के वचन के से असहमत है, इसकी अपेक्षा वह कह रहा है कि तलाक का कारण उचित है तो वह मान्य है। तलाक देना अन्याय है चाहे पुरूष ने लिखित रूप दिया हो।
यह तलाक के लिए शिष्टोक्ति है।
यह एक आज्ञा है, "उसे देना है"।
यदि संकेत दे रहा है कि वह "जो कहा गया है" उससे अलग कुछ कहना चाहता है। यहाँ "मैं" पर बल दिया गया है क्योंकि वह दावा करता है कि वह उससे अधिक महत्त्वपूर्ण है जिसने पहले "कहा" है।
जो पुरूष स्त्री को अनुचित तलाक देता है, वह "उससे व्यभिचार करवाता है" (यहाँ व्यभिचार के लिए वही शब्द काम में ले जो ). में काम में लिए हैं। अनेक संस्कृतियों में उसके लिए दूसरे पुरूष से विवाह करना सामान्य बात है परन्तु यदि तलाक अनुचित है तो ऐसा पुनः विवाह व्यभिचार है। (देखें यू.डी.बी.)
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनका क्या हो सकता है। "तुम सुन चुके हो" में "तुम" और "मैं तुम से यह कहता हूँ" में "मैं" बहुवचन हैं।
"तुम्हारे धर्मगुरूओं ने तुमसे कहा है, पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, झूठी शपथ न खाना, यीशु यहाँ कर्मवाच्य वाक्य काम में ले रहा है कि स्पष्ट कर दे कि वह न तो परमेश्वर न ही परमेश्वर के वचन से असहमत है। इसकी अपेक्षा वह अपने श्रोताओं को कह रहा है कि जो उनका नहीं उसे काम में लेने के लिए मनुष्यों को अपने शब्दों पर विश्वास दिलाएं।
कहा गया या इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा में किया गया है।
इसका अर्थ है (1) परमेश्वर और मनुष्यों से कहें कि आप वही करेंगे जो परमेश्वर चाहता है (देखें: यू.डी.बी.) या (2) मनुष्यों से कहें कि परमेश्वर जानता है कि आपने जो देखा है उसके बारे में आप जो कह रहे हैं वह सच है।
परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ , इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा आपने में किया है।
और भ. से लिया गया यह रूपक परमेश्वर के लिए है कि वह "महाराजा" है जिस प्रकार यीशु के श्रोता नहीं सोच सकते कि सांसारिक राजा का सुन्दर सिंहासन या उसके पाँवों की चौकी या उसके निवासनगर को उसका अपना नहीं सोच सकते कि उसके शब्दों को महत्त्वपूर्ण बनाए, अतः उन्हें स्वर्ग या पृथ्वी या यरूशलेम की शपथ खाकर अपने शब्दों को विश्वासयोग्य बनाएं।
यदि आपकी भाषा में आज्ञा का बहुवचन है तो उसे यहाँ काम में लें। "तू झूठी शपथ न खाना" (पद 33) इससे श्रोता को शपथ खाने की अनुमति है परन्तु झूठी शपथ की नहीं। "कभी शपथ न खाना" किसी भी शपथ का विरोध करता है।
इसका अनुवाद वैसा करें जैसा पद 33 में किया है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। यहाँ "तू" का उपयोग एकवचन में है परन्तु आपको इसका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता हो सकती है, "तुम्हारी बात" में "तुम्हारी" शब्द बहुवचन है। में यीशु ने अपने श्रोताओं से कहा है कि परमेश्वर का सिंहासन, पाँवों की चौकी, उसका निवास स्थान उनका अपना नहीं कि उसकी शपथ खाएं। वह तो यहाँ तक कहता है कि हमारे सिर भी हमारे नहीं कि उनकी शपथ खाएं।
इसके अनुवाद में वही शब्द काम में ले जो में काम में लिया है।
"यदि तुम हाँ कहना चाहते हो तो "हाँ" कहो और यदि नहीं कहना चाहते हो तो "नहीं" कहो।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनका क्या हो सकता है।
इसका अनुवाद वैसा ही करे जैसा में किया है।
यहाँ "तुम" एकवचन में है।
उन्हें बदला लेने की अनुमति थी परन्तु हानि की सीमा तक ही।
इसका अनुवाद वैसा ही करे जैसा में किया है।
"बुरा जन" या "तुम्हें हानि पहुंचाने वाला"। (यू.डी.बी.)
यह सब बहुवचन में हैं।
यीशु की संस्कृति में किसी को थप्पड़ मारना अपमानजनक था। जिस प्रकार आँख और हाथ उपमा दी गई है उसी प्रकार दाहिना गाल रूपक स्वरूप अधिक महत्त्वपूर्ण गाल है और उस पर थप्पड़ मारना अत्यधिक संभावित अपमान था।
क्रिया शब्द से स्पष्ट होता है कि थप्पड़ हथेली के पीछे वाले भाग से मारा गया है।
"उसे दूसरे गाल पर भी मारने दे"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनका क्या हो सकता है। "तुम" तुझ, "तेरे" आदि सब एकवचन हैं जैसे "दे" "जा" "मुँह न मोड़" परन्तु आपको इनका अनुवाद बहुवचन में करना होगा।
कुरता ऊपरी शरीर पर पहना जाता था जैसे शर्ट या बनियान। दोहर इन दोनों में अधिक कीमती थी जो कुर्ते के ऊपर पहना जाता था कि शरीर गर्म रहे, रात में गर्मी के लिए भी इसका उपयोग कम्बल स्वरूप किया जाता था।
"उस मनुष्य को दे दे"।
जो कोई - कोई भी मनुष्य
कोस भर - एक हज़ार कदम, रोमी सैनिक को कानूनी अधिकार प्राप्त था कि किसी को भी अपना समान उठाकर एक कोस चलने के लिए विवश कर सकता था।
वह जो किसी को समान उठाकर चलने के लिए विवश करता है ।
"एक मील चलने के लिए उसने तुझे विवश किया परन्तु एक मील और चला जा"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि उनके साथ क्या हो सकता है। "अपने पड़ोसी से प्रेम रखना और अपने बैरी से बैर" यह एकवचन में है परन्तु आपको इसका अनुवाद बहुवचन में करना होगा। "तुम" के सब उदाहरण तथा आज्ञाएं "प्रेम करना" "प्रार्थना करो", बहुवचन में हैं।
इसका अनुवाद वैसा ही करे जैसा में किया है। यहाँ "पड़ोसी" शब्द का अर्थ है समुदाय के सदस्य या वह जनसमूह जिसके साथ उदारता प्रकट करने की इच्छा हो या सहायता करना आवश्यक हो। इसका संदर्भ पास में रहनेवालों से नहीं है। आपको इसका अनुवाद बहुवचन में करना होगा।
परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ , इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा आपने में किया है।
"तुम्हारा चरित्र अपने पिता का सा होगा"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम", "तुमसे" के सब उदाहरण बहुवचन में हैं।
यह एक सामान्य शब्द है जो श्रोता के कल्याण की मनोकामना प्रकट करता है। इन पदों में चार प्रश्न हैं। यू.डी.बी. में दिखाया गया है कि उन्हें अभिकथन कैसे बनाया गया है।
मन के दीन जन धन्य हैं क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
शोक करने वाले धन्य हैं क्योंकि वे शान्ति पाएंगे।
नम्र जन धन्य हैं क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
धर्म के भूखे और प्यासे धन्य हैं क्योंकि वे तृप्त किए जाएंगे।
यीशु के कारण जिनकी निन्दा की जाए और उन्हें सताया जाए वे धन्य हैं क्योंकि उनके लिए स्वर्ग में बड़ा फल है।
विश्वासी भले कामों द्वारा मनुष्यों के सामने अपना उजियाला चमकाएं।
यीशु पुराने नियम की व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं की वाणी को पूरा करने आया था।
जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करेगा और उन्हें मनुष्यों को सिखाएगा वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा कहलाएगा।
यीशु की शिक्षा थी कि हत्यारे ही नहीं, अपने भाई पर क्रोध करने वाले भी दण्ड पाने के संकट में हैं।
यीशु ने सिखाया कि यदि हमारे भाई के मन में हमारे विरुद्ध कुछ है तो हमें उससे मेल-मिलाप करना है।
यीशु ने सिखाया कि हमें न्यायालय में जाने से पूर्व ही अपने आरोपी से समझौता कर लेना चाहिए।
यीशु ने सिखाया कि व्यभिचार ही गलत नहीं स्त्री की लालसा करना भी अनुचित है।
यीशु ने सिखाया कि हमें उस हर एक बात से मुक्ति पाना है जो हमसे पाप करवाती है।
यीशु ने व्यभिचार के कारण तलाक को स्वीकार किया था।
यदि कोई पति अपनी पत्नी को अनुचित तलाक दे और वह पत्नी पुनर्विवाह कर लें तो वह उससे व्यभिचार करवाता है।
यीशु का कहना था कभी किसी भी बात की शपथ नहीं खाना चाहिए परन्तु हमारी बात "हाँ" की "हाँ" और "नहीं" की "नहीं" हो।
यीशु ने सिखाया कि हमें बुरे का सामना नहीं करना चाहिए।
यीशु ने सिखाया कि हमें अपने बैरियों से प्रेम करना है और अपने सताने वालों के लिए प्रार्थना करना है।
यीशु ने कहा कि यदि हम केवल अपने प्रेम करने वालों से ही प्रेम रखें तो हमें प्रतिफल नहीं मिलेगा क्योंकि हम वही करते हैं जो अन्य जातियाँ करती हैं।
1 “सावधान रहो! तुम मनुष्यों को दिखाने के लिये अपने धार्मिकता के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्गीय पिता से कुछ भी फल न पाओगे।
2 “इसलिए जब तू दान करे, तो अपना ढिंढोरा न पिटवा, जैसे कपटी*, आराधनालयों और गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करें, मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। 3 परन्तु जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायाँ हाथ न जानने पाए। 4 ताकि तेरा दान गुप्त रहे; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
5 “और जब तू प्रार्थना करे, तो कपटियों के समान न हो क्योंकि लोगों को दिखाने के लिये आराधनालयों में और सड़कों के चौराहों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उनको अच्छा लगता है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। 6 परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा। 7 प्रार्थना करते समय अन्यजातियों के समान बक-बक न करो; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बार-बार बोलने से उनकी सुनी जाएगी। 8 इसलिए तुम उनके समान न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या-क्या आवश्यकताएँ है।
9 “अतः तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो:
‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में हैं; तेरा नाम पवित्र* माना जाए। (लूका 11:2)
10 ‘तेरा राज्य आए*। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।
11 ‘हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे।
12 ‘और जिस प्रकार हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर।
13 ‘और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा; [क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही है।’ आमीन।]
14 “इसलिए यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। 15 और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा।
16 “जब तुम उपवास करो, तो कपटियों के समान तुम्हारे मुँह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुँह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। 17 परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुँह धो। 18 ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने। इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
19 “अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर सेंध लगाते और चुराते हैं। 20 परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहाँ न तो कीड़ा, और न काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं। 21 क्योंकि जहाँ तेरा धन है वहाँ तेरा मन भी लगा रहेगा।
22 “शरीर का दीया आँख है: इसलिए यदि तेरी आँख अच्छी हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा। 23 परन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अंधियारा होगा; इस कारण वह उजियाला जो तुझ में है यदि अंधकार हो तो वह अंधकार कैसा बड़ा होगा!
24 “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, या एक से निष्ठावान रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते। 25 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे, और क्या पीएँगे, और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहनेंगे, क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं? 26 आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तो भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते? 27 तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपने जीवनकाल में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?
28 “और वस्त्र के लिये क्यों चिन्ता करते हो? सोसनों के फूलों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं, वे न तो परिश्रम करते हैं, न काटते हैं। 29 तो भी मैं तुम से कहता हूँ, कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में उनमें से किसी के समान वस्त्र पहने हुए न था। 30 इसलिए जब परमेश्वर मैदान की घास को, जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहनाता है, तो हे अल्पविश्वासियों, तुम को वह क्यों न पहनाएगा?
31 “इसलिए तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहनेंगे? 32 क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएँ चाहिए। 33 इसलिए पहले तुम परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ तुम्हें मिल जाएँगी। (लूका 12:31) 34 अतः कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुःख बहुत है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम", "तू", "तेरा" सब बहुवचन में हैं।
अपने आगे तुरही न बजवा - आकर्षण का केन्द्र नहीं बनना जैसे भीड़ के बीच तुरही बजाने वाला करता है।
वही शब्द काम में ले जो में काम में लिए हैं।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि उसके साथ व्यक्तिगत रूप में क्या हो सकता है। "तू", "तेरा" बहुवचन में हैं।
यह पूर्ण गोपनीयता का रूपक है। जिस प्रकार कि हाथ एक साथ काम करते है और कहा जा सकता है कि वे सदैव एक दूसरे के काम जानते हैं। तुम्हें अपने निकटतम व्यक्ति पर भी प्रकट नहीं होने देना है कि तुम गरीबों को कब दान देते हो।
"तू गरीबों को दान दे तो कोई भी जान न पाए"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि उनके साथ व्यक्तिगत रूप में क्या हो सकता है। पद 5 और 7 में "तू" "तुम" बहुवचन में हैं। पद 6 में वे एकवचन में है परन्तु आपको उनका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ"।
वैकल्पिक अनुवाद, "किसी एकान्तवास में जा" या "भीतरी कमरे में जा"
इसका अनुवाद ऐसे किया जा सकता है, "तेरा पिता देखता है कि मनुष्य गुप्त में क्या करते हैं।"
अर्थहीन शब्दों को दोहराना।
"लम्बी प्रार्थनाएं" या "अनेक शब्द"
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि उनके साथ व्यक्तिगत रूप में क्या हो सकता है। वह उनके साथ सामूहिक वार्तालाप कर रहा है, जहाँ तक "इस रीति से प्रार्थना करने का विषय है, "पिता" के साथ जुड़े "तुम्हारा" शब्द सब एकवचन में है।
"हम चाहते हैं कि सबको ज्ञात हो कि तू पवित्र है"।
तेरा राज्य आए -देखना चाहते हैं कि तू सब मनुष्यों और सब वस्तुओं पर राज करे।
"हम", "हमारे" के सब उपयोग उस जनसमूह से संदर्भित हैं जिनसे यीशु बातें कर रहा है। (देखें: : )
अपराध के लिए "कर्ज़" शब्द को भी रूपक स्वरूप काम में लिया गया है जबकि कर्ज़ का अर्थ है किसी से कुछ उधार लेना।
जो किसी का ऋणी है। पापियों के लिए रूपक है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तू" और "तेरा" के सब संदर्भ बहुवचन में हैं।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। पद 17 और 18में "तू", "तेरा" तुझ के सब संदर्भ एकवचन है। आप संभवतः इनका अनुवाद बहुवचन में करना चाहेंगे कि पद 16 में "तुम" से सुसंगत हो।
"यह भी।"
"वैसे ही दिखाई दो जैसे सामान्यतः दिखते थे"। तेल मलने का अर्थ है सामान्य रूप से केश संवारना। इसका अर्थ "मसीह" अर्थात "अभिषिक्त जन" से कुछ नहीं है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है।"तेरा" एकवचन में है।
धन मौलिक वस्तुएं है जिनसे हम प्रसन्न होते हैं।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तेरी", "तेरा" एकवचन में है परन्तु आपको इनका अनुवाद बहुवचन में करने की आवश्यकता हो सकती है।
"दीये के सदृश्य आँख आपको स्पष्ट देखने में सहायक होती है"।
यदि आपकी आंखें स्वस्थ हैं, यदि आप देख सकते है तो आपका संपूर्ण शरीर उचित रूप से काम करेगा, अर्थात आप चल सकते हैं, काम कर सकते हैं आदि। यह एक रूपक है जो परमेश्वर के समान देखने के लिए काम में लिया गया है, विशेष करके उदारता और लालसा के संबन्ध में। (देखें यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद बहुवचन में करना होगा।
यह समझ के लिए रूपक है।
यह जादू नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद, "तू वैसे नहीं देख सकता जैसे परमेश्वर देखता है"। यह लालसा के लिए भी रूपक हो सकता है। देखें यू.डी.बी., "तू कैसा लालची हो गया" और ).
"जिसे तू ज्योति समझता है वह वास्तव में अन्धकार है।" यह एक रूपक है जिसका अभिप्राय है कि मनुष्य सोचता है कि उसका समझना ऐसा ही है जैसा परमेश्वर का समझना है जबकि वह वास्तव में वैसा समझता नहीं हैं।
अन्धकार में रहना बुरा है। अन्धकार में रहकर सोचना कि ज्योति में हैं तो वह और भी अधिक बुरा है।
ये दो वाक्यांश एक ही बात का संदर्भ देते हैं, परमेश्वर और धन दोनों ही से प्रेम एवं भक्ति दिखाने में अयोग्य होना।
"तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा एक साथ नहीं कर सकते।"
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
भोजन और वस्त्र जीवन में सर्वाधिक महत्त्व के नहीं हैं यह अलंकृत प्रश्न का अभिप्राय है, "तुम्हारा जीवन तुम्हारे खाने से और वेशभूषा से बढ़कर है"। वैकल्पिक अनुवाद, "जीवन भोजन से बढ़कर है, नहीं है क्या? और देह वेशभूषा से बढ़कर है, नहीं है क्या"?
फसल रखने का स्थान
इस अलंकृत प्रश्न का अभिप्राय है, "तुम आकाश के पक्षियों से अधिक मूल्यवान हो"। वैकल्पिक अनुवाद: "तुम चिड़ियों से अधिक मूल्यवान हो, नहीं हो क्या"?
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
इस प्रश्न का अभिप्राय है कि मनुष्य चिन्ता करके अधिक नहीं जी सकता। देखें:
एक घड़ी यहाँ रूपक स्वरूप काम में ली गई है यह जीवन का समय बढ़ाने के लिए काम में लिया गया है। (देखें: और )
इस प्रश्न का अभिप्राय है, "तुम्हें चिन्ता नहीं करना है कि क्या पहनेंगे।"
"विचार करो"।
यह जंगल का एक फूल है
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
यदि आपकी भाषा में घास के लिए शब्द है और में आने सोसन के लिए जो शब्द काम में लिया है, उन्हें यहाँ काम में लें।
यीशु के समय यहूदी खाना पकाने के लिए घास जलाते थे। (देखें यू.डी.बी.) वैकल्पिक अनुवाद "आग में डाली जायेगी" या "जलाई जायेगी"।
यीशु उन्हें झिड़क रहा था क्योंकि उनको परमेश्वर पर पूरा भरोसा नहीं था। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम जिनका विश्वास ऐसा कम है“ या एक नया वाक्य, ”तुम्हारा विश्वास इतना कम क्यों है"?
वैकल्पिक अनुवाद "इन बातों के कारण"।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
प्रत्येक शब्द एक नये वाक्य का आरंभ करता है तो का वर्णन करता है। अर्थात अन्यजातीय इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, अतः "चिन्ता न करना", "तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है "अतः चिन्ता न करना"।
वैकल्पिक अनुवाद "इन बातों के कारण"।
दिन का व्यक्तिवाचक संबोधन वास्तव में उस मनुष्य का प्रतीक है जो "कल के दिन के लिए जीता है।" (देखें यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, "आज के दिन के लिए आज की परेशनियाँ ही बहुत हैं"।
हमें गुप्त में धार्मिकता के काम करना है।
जो लोग मनुष्यों को दिखाने के लिए धार्मिकता के काम करते हैं उनका प्रतिफल मनुष्य की प्रशंसा है।
पाखंडी मनुष्यों को दिखाने के लिए प्रार्थना करते हैं तो उनका प्रतिफल मनुष्यों की प्रशंसा है।
जो गुप्त में प्रार्थना करते हैं उनका प्रतिफल पिता से है।
यीशु ने कहा कि हमें व्यर्थ के शब्दों को दोहराते हुए प्रार्थना नहीं करना है क्योंकि स्वर्गीय पिता हमारे मांगने से पहले ही जानता है कि हमें क्या चाहिए।
हमें स्वर्गीय पिता से प्रार्थना करना है कि जैसे उसकी इच्छा स्वर्ग में पूरी होती है वैसे ही पृथ्वी पर भी पूरी हो।
यदि हम किसी के अपराध क्षमा नहीं करेंगे तो स्वर्गीय पिता हमारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।
जब हम उपवास करें तो मुंह लटकाकर मनुष्यों के सामने प्रदर्शन न करें तो स्वर्गीय पिता हमें प्रतिफल देगा।
हमें स्वर्ग में धन एकत्र करना है, क्योंकि वहाँ न तो वह नष्ट होगा न ही चुराया जाएगा।
हमारा मन वहीं होगा जहाँ हमारा धन है।
हमें धन और परमेश्वर में से एक को अपना स्वामी बनाना है।
हमें खाने, पीने और पहनने की चिन्ता नहीं करना है क्योंकि हमारा स्वर्गीय पिता पक्षियों की भी सुधि लेता है और हम तो उनसे कहीं अधिक मूल्यवान हैं।
यीशु हमें स्मरण करवाता है कि हम चिन्ता करके अपने जीवन में एक घड़ी भी बढ़ा नहीं सकते।
हमें सर्वप्रथम परमेश्वर के राज्य की और उसकी धार्मिकता की खोज करना है तब हमारी सब सांसारिक आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी।
1 “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। 2 क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।
3 “तू क्यों अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है, और अपनी आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? 4 जब तेरी ही आँख में लट्ठा है, तो तू अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘ला मैं तेरी आँख से तिनका निकाल दूँ?’ 5 हे कपटी, पहले अपनी आँख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आँख का तिनका भली भाँति देखकर निकाल सकेगा।
6 “पवित्र वस्तु कुत्तों को न दो, और अपने मोती सूअरों के आगे मत डालो; ऐसा न हो कि वे उन्हें पाँवों तले रौंदें और पलटकर तुम को फाड़ डालें।
7 “माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। 8 क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा।
9 “तुम में से ऐसा कौन मनुष्य है, कि यदि उसका पुत्र उससे रोटी माँगे, तो वह उसे पत्थर दे? 10 या मछली माँगे, तो उसे साँप दे? 11 अतः जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को अच्छी वस्तुएँ क्यों न देगा? (लूका 11:13) 12 इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा यही है।
13 “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश की ओर ले जाता है; और बहुत सारे लोग हैं जो उससे प्रवेश करते हैं। 14 क्योंकि संकरा है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।
15 “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेड़िए हैं। (यहे. 22:27) 16 उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या झाड़ियों से अंगूर, या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? 17 इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। 18 अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है। 19 जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। 20 अतः उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।
21 “जो मुझसे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। 22 उस दिन बहुत लोग मुझसे कहेंगे; ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?’ 23 तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।’ (लूका 13:27)
24 “इसलिए जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। 25 और बारिश और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गई थी। 26 परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस मूर्ख मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर रेत पर बनाया। 27 और बारिश, और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।”
28 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो ऐसा हुआ कि भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई। 29 क्योंकि वह उनके शास्त्रियों के समान नहीं परन्तु अधिकारी के समान उन्हें उपदेश देता था।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यकितगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है "तुम", "तुम्हारे" और आज्ञाएं बहुवचन में है।
तुम पर भी दोष लगाया जायेगा, इसे कर्तृवाच्य रूप में व्यक्त किया जा सकता है, "परमेश्वर तुम पर दोष लगायेगा"। (यू.डी.बी.) या "मनुष्य तुम पर दोष लगायेंगे"।
इससे सुनिश्चित होता है कि पाठक को समझना है कि पद 2 पद 1 पर निर्भर है।
इसका संदर्भ (1) दण्ड के परिमाण से (देखें यू.डी.बी.) या (2)दण्ड के मानदण्ड से हो सकता है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तू", "तेरी" एकवचन में हैं परन्तु आपको उनका अनुवाद बहुवचन में करना होगा।
यीशु उन्हें चुनौती दे रहा है कि पहले अपने ही दोष/पाप पर ध्यान दें।
ये दोनों रूपक है जो मनुष्य के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े दोष के लिए काम में लिए गए हैं।
यह शब्द सहविश्वासी के लिए है, न कि भाई या पड़ोसी के लिए है।
यह रूपक जीवन के लिए काम में लिया गया है।
"तिनका" (यू.डी.बी.) या "किरच" या "धूल" सामान्यतः आँख में जो कुछ चला जाता है उसका शब्द काम में लें।
पेड़ का सबसे बड़ा भाग। एक ऐसी बड़ी वस्तु जो आँख में नहीं जा सकती।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप से उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
संभव है कि सूअर "रौदेगें" और कुत्ते "फाड़ डालेगे"(यू.डी.बी)
इन जानवरों को अशुद्ध माना जाता था और परमेश्वर ने उन्हें खाना मना किया था। ये उन अधर्मियों के लिए रूपक है जो पवित्र वस्तुओं को मान प्रदान नहीं करते है। इन शब्दों को अनुवाद में ज्यों का त्यों रखना ही उचित होगा।
ये अनमोल नगीने हैं। ये परमेश्वर के ज्ञान (देखें यू.डी.बी.) या सामान्यतः बहुमूल्य वस्तुओं के लिए काम में लिए जाते हैं।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
ये तीन रूपक लगातार प्रार्थना करने के लिए हैं। यदि आपकी भाषा में बार-बार करने के लिए कोई शब्द है तो उसका उपयोग करें।
परमेश्वर से विनती करना (देखें यू.डी.बी.)
"अपेक्षा" (यू.डी.बी.) या "खोज करो"।
खटखटाना एक नम्र निवेदन है कि घर में उपस्थित जन द्वार खोल दे। यदि खटखटाना आपकी भाषा में अभद्र शब्द है तो आपकी भाषा में द्वार खोलने के नम्र निवेदन के लिए जो शब्द है उसे काम में ले या अनुवाद करें, "परमेश्वर से कहें कि आप उससे द्वार खोलने का निवेदन करते हैं"।
यीशु अपनी बातों को दूसरे शब्दों में कहने जा रहा है इन्हें छोड़ा जा सकता है। (यू.डी.बी.)
इस अलंकृत प्रश्न का अभिप्राय है कि "ऐसा कोई भी नहीं है" (देखें यू.डी.बी. )
इनको ज्यों का त्यों रखें।
"भोजन"
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है।
"तुम अपने लिए मनुष्यों से जैसा व्यवहार चाहते हो"(यू.डी.बी.)।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है कि व्यक्तिगत रूप में उनके साथ क्या हो सकता है। "तुम" बहुवचन में है। अनुवाद करने में "चौड़ा" और "बड़ा" के लिए उचित शब्दों का उपयोग करें जो "सकरा" के विपरीत हैं। यथासंभव इन दोनों फाटकों में गहन अन्तर को उभारें।
आपके लिए इस वाक्यांश को पद 14 के अन्त में रखने की आवश्यकता हो सकती है, "इसलिए सकेत फाटक से प्रवेश करो"।
यह रूपक, अति संभव है कि उन मनुष्यों के लिए है जो "मार्ग" में चलकर "फाटक" तक पहुचते हैं और "जीवन" या "विनाश" में प्रवेश करते हैं (देखें यू.डी.बी. ))। अतः आपको संभवतः अनुवाद इस प्रकार करना होगा, "चौड़ा मार्ग वह है जो विनाश की ओर ले जाता है और चौड़ा फाटक वह है जिससे होकर मनुष्य उसमें प्रवेश करता है"। कुछ लोग "फाटक" और "मार्ग" को hendiadys मानते हैं जिसके उल्लेख की आवश्यकता नहीं है।
यू.एल.बी. में क्रियाओं से पहले विशेषणों का उपयोग किया गया है कि विशेषणों में विरोधाभास प्रकट हो। अपनी अनुवाद की रचना इस प्रकार करें कि आपकी भाषा में विशेषणों का विरोधाभास प्रकट हो।
यह मनुष्यों के संहार के लिए एक सामान्य शब्द है। यहाँ संदर्भ के आधार पर यह वास्तव में शारीरिक मृत्यु है। (देखें यू.डी.बी.) जो सदाकालीन मृत्यु का रूपक है। यह शारीरिक "जीवन" का विलोम है, "जीवन" अनन्त जीवन का रूपक है।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"बचे रहो"
यीशु भविष्यद्वक्ताओं के कार्यों की तुलना पेड़ के फलों से करता है। वैकल्पिक अनुवाद "उनके कामों से"।
"मनुष्य .... से नहीं तोड़ते हैं" यीशु जिन लोगों से बातें कर रहा है वे जानते हैं कि उसके प्रश्न का उत्तर "नहीं" है।
यीशु फल के रूपक द्वारा सच्चे भविष्यद्वक्ताओं का चित्रण करता है जो अच्छे काम और अच्छे शब्द उत्पन्न करते हैं।
यीशु फल के रूपक द्वारा ही झूठे भविष्यद्वक्ताओं के कामों और शब्दों का चित्रण प्रस्तुत करता है।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
यीशु फल के वृक्ष की उपमा द्वारा झूठे भविष्यद्वक्ताओं का अनावरण करता है, यहाँ वह मात्र इतना ही कहता है कि निकम्मे वृक्ष का क्या होता है। यहाँ अभिप्राय अन्तर्निहित हे कि झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी ऐसा ही होगा।
"उनके फलों से" या तो भविष्यद्वक्ता या पेड़ों के संदर्भ में है। इस रूपक का अभिप्राय है कि पेड़ों के फल और भविष्यद्वक्ताओं के काम दोनों ही से प्रकट होता है कि वे अच्छे हैं या बुरे। यदि संभव हो तो इसका अनुवाद इस प्रकार करें कि उसका संदर्भ दोनों ही से हो।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"मेरे पिता की इच्छा को पूरा करनेवाला"।
इसमें यीशु नहीं है।
यीशु ने केवल "उस दिन" कहा क्योंकि उसके श्रोता समझते थे कि उसके कहने का अर्थ है, न्याय के दिन। आपको इस तथ्य को उजागर करना है (जैसा यू.डी.बी. में है) यदि आपके पाठक नहीं समझें कि यीशु के श्रोता समझते थे कि यीशु किस दिन की चर्चा कर रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
"इस कारण"
यीशु उसके वचनों पर चलने वालों की तुलना उस व्यक्ति से करता है जिसने पक्का घर बनाया। ध्यान दें कि वर्षा, आँधी और बाढ़ उस घर को ढा नहीं पाए।
भूमि की अपनी सतह के नीचे की ठोस पत्थरीली परत है, न कि एक चट्टान जो उभरी हुई हो।
यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।
यीशु उसी उपमा को काम में ले रहा है जो उसने में काम में ली है। वह उन लोगों की तुलना एक मूर्ख गृह निर्माता से कर रहा है जो उसके वचनों पर नहीं चलते। केवल एक मूर्ख ही बालू पर मकान खड़ा करेगा कि वर्षा, बाढ़, आंधी बालू को बहा ले जाए।
सामान्य उपयोग का शब्द काम में ले जो यह दर्शाता है कि मकान के गिर जाने पर क्या होता है।
वर्षा, बाढ़ और आंधी से घर बिखर गया।
यदि आपकी भाषा में कहानी के नए मोड़ को दर्शाने का प्रवाधान है तो उसे यहाँ काम में लें। (देखें:TAlink:Discourse))
अपने भाई की सहायता करने से पहले हमें अपने आपको देखकर अपनी आँख का लट्ठा निकालना है।
आप कुत्तों को पवित्र वस्तुएं दे तो वे उसे रौंदेगे और आपको काट लेंगे।
पिता से कुछ प्राप्त करने के लिए हमें मांगना है, ढूंढना है और खटखटाना है।
स्वर्गीय पिता मांगने वालों को भली वस्तुएं देता है।
व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता सिखाते हैं कि जैसा हम चाहते हैं कि मनुष्य हमारे साथ करे वैसा ही हम उनके साथ भी करें।
चौड़ा रास्ता विनाश की ओर ले जाता है।
सकेत मार्ग जीवन की ओर ले जाता है।
हम झूठे भविष्यद्वक्ताओं को उनके जीवन के फलों से पहचान सकते हैं।
स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलने वाले स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।
यीशु कहेगा, "मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।"
यीशु की बातों को सुनकर उनका पालन करने वाला एक बुद्धिमान मनुष्य के समान है।
यीशु के शब्दों को सुनकर उनका पालन न करने वाला मूर्ख है।
यीशु शास्त्रियों के समान नहीं, पूरे अधिकार से शिक्षा देता था।
1 जब यीशु उस पहाड़ से उतरा, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 2 और, एक कोढ़ी* ने पास आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “हे प्रभु यदि तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 3 यीशु ने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ, और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा” और वह तुरन्त कोढ़ से शुद्ध हो गया। 4 यीशु ने उससे कहा, “देख, किसी से न कहना, परन्तु जाकर अपने आप को याजक को दिखा और जो चढ़ावा मूसा ने ठहराया है उसे चढ़ा, ताकि उनके लिये गवाही हो।” (लैव्य. 14:2-32)
5 और जब वह कफरनहूम* में आया तो एक सूबेदार ने उसके पास आकर उससे विनती की, 6 “हे प्रभु, मेरा सेवक घर में लकवे का मारा बहुत दुःखी पड़ा है।” 7 उसने उससे कहा, “मैं आकर उसे चंगा करूँगा।” 8 सूबेदार ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए, पर केवल मुँह से कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। 9 क्योंकि मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ, और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक से कहता हूँ, जा, तो वह जाता है; और दूसरे को कि आ, तो वह आता है; और अपने दास से कहता हूँ, कि यह कर, तो वह करता है।”
10 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और जो उसके पीछे आ रहे थे उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। 11 और मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत सारे पूर्व और पश्चिम से आकर अब्राहम और इसहाक और याकूब के साथ स्वर्ग के राज्य में बैठेंगे। 12 परन्तु राज्य के सन्तान* बाहर अंधकार में डाल दिए जाएँगे: वहाँ रोना और दाँतों का पीसना होगा।” 13 और यीशु ने सूबेदार से कहा, “जा, जैसा तेरा विश्वास है, वैसा ही तेरे लिये हो।” और उसका सेवक उसी समय चंगा हो गया।
14 और यीशु ने पतरस के घर में आकर उसकी सास को तेज बुखार में पड़ा देखा। 15 उसने उसका हाथ छुआ और उसका ज्वर उतर गया; और वह उठकर उसकी सेवा करने लगी। 16 जब संध्या हुई तब वे उसके पास बहुत से लोगों को लाए जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और उसने उन आत्माओं को अपने वचन से निकाल दिया, और सब बीमारों को चंगा किया। 17 ताकि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हो: “उसने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।” (1 पत. 2:24)
18 यीशु ने अपने चारों ओर एक बड़ी भीड़ देखकर झील के उस पार जाने की आज्ञा दी। 19 और एक शास्त्री ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, जहाँ कहीं तू जाएगा, मैं तेरे पीछे-पीछे हो लूँगा।” 20 यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तु मनुष्य के पुत्र* के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।” 21 एक और चेले ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे, कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” (1 राजा. 19:20-21) 22 यीशु ने उससे कहा, “तू मेरे पीछे हो ले; और मुर्दों को अपने मुर्दे गाड़ने दे*।”
23 जब वह नाव पर चढ़ा, तो उसके चेले उसके पीछे हो लिए। 24 और, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढँपने लगी; और वह सो रहा था। 25 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “हे प्रभु, हमें बचा, हम नाश हुए जाते हैं।” 26 उसने उनसे कहा, “हे अल्पविश्वासियों, क्यों डरते हो?” तब उसने उठकर आँधी और पानी को डाँटा, और सब शान्त हो गया। 27 और लोग अचम्भा करके कहने लगे, “यह कैसा मनुष्य है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं।”
28 जब वह उस पार गदरेनियों के क्षेत्र में पहुँचा, तो दो मनुष्य जिनमें दुष्टात्माएँ थीं कब्रों से निकलते हुए उसे मिले, जो इतने प्रचण्ड थे, कि कोई उस मार्ग से जा नहीं सकता था। 29 और, उन्होंने चिल्लाकर कहा, “हे परमेश्वर के पुत्र, हमारा तुझ से क्या काम? क्या तू समय से पहले हमें दुःख देने यहाँ आया है?” (लूका 4:34) 30 उनसे कुछ दूर बहुत से सूअरों का झुण्ड चर रहा था। 31 दुष्टात्माओं ने उससे यह कहकर विनती की, “यदि तू हमें निकालता है, तो सूअरों के झुण्ड में भेज दे।” 32 उसने उनसे कहा, “जाओ!” और वे निकलकर सूअरों में घुस गई और सारा झुण्ड टीले पर से झपटकर पानी में जा पड़ा और डूब मरा। 33 और चरवाहे भागे, और नगर में जाकर ये सब बातें और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं; उनका सारा हाल कह सुनाया। 34 और सारे नगर के लोग यीशु से भेंट करने को निकल आए और उसे देखकर विनती की, कि हमारे क्षेत्र से बाहर निकल जा।
यीशु द्वारा अनेकों की चमत्कारी चंगाई का वृत्तान्त यहाँ आरंभ होता है।
वैकल्पिक अनुवादः "यीशु पहाड़ से उतर कर नीचे आ गया तो एक विशाल जनसमूह उसके पीछे चलने लगा"। यहाँ जनसमूह शब्द से अभिप्राय यह हो सकता है कि जो लोग पहाड़ पर उसके साथ थे और जो यहाँ नीचे थे सब उसके पीछे चलने लगे।
यह शब्द "देखो" कहानी में नए मोड़ की हमें सूचना देता है। आपकी भाषा में इसका प्रावधान होगा।
"कोढ़ रोग से पीड़ित मनुष्य" या "चर्म रोग से ग्रस्त मनुष्य" (यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद, "यदि तेरी इच्छा है" या "यदि तू उचित समझे"। वह रोगी जानता था कि यीशु में चंगाई का सामर्थ्य था परन्तु यीशु उसे स्पर्श करेगा उसका विश्वास उसे नहीं था।
वैकल्पिक अनुवाद, "मुझे निरोग कर सकता है" या "कृपया मेरा रोग निवारण कर"(यू.डी.बी.)।
"तत्काल"
यीशु ने कहा, "शुद्ध हो जा" परिणाम स्वरूप वह रोग मुक्त हो गया। वैकल्पिक अनुवाद, "वह चंगा हो गया" या "उसका कोढ़ चला गया" या "कोढ़ का अन्त हो गया"।
यह भी यीशु द्वारा कोढ़ी की चंगाई का वृत्तान्त है।
रोग मुक्त कोढ़ी से।
चढ़ावा चढ़ाते समय तो उसे याजकों से कहना ही था (देखें यू.डी.बी.) यीशु के कहने का अर्थ था सबको नहीं बताना। इसका अनुवाद ऐसा हो सकता है, "सार्वजनिक चर्चा नहीं करना" या "यह और किसी से नहीं नहीं कहना कि मैंने तुझे रोग मुक्त किया है"।
यहूदियों की व्यवस्था के अनुसार रोग मुक्त मनुष्य याजक को अपनी त्वचा दिखाए जो उसे जन संपर्क की अनुमति दे।
मूसा की व्यवस्था में था कि जब मनुष्य कोढ़ से मुक्ति पाए तब वह याजक के पास धन्यवाद की बली चढ़ाए। याजक उस भेंट को स्वीकार करेगा तो सब जान लेंगे कि वह रोग मुक्त हो चुका है।
यह (1) याजकों के लिए हो सकता है या (2) सबके लिए या (3) यीशु के आलोचकों के लिए। यदि संभव हो तो ऐसा सर्वनाम काम में लें जो वर्ग विशेष का द्योतक हो।
यह यीशु द्वारा अनेकों की चंगाई का वृत्तान्त है।
यीशु
रोग के कारण असमर्थ
"यीशु ने उस सूबेदार से कहा, "मैं तेरे घर आकर उसे निरोग करूँगा"।
यह अनेकों की चंगाई का ही वृत्तान्त है।
"मेरे घर में प्रवेश करे"।
"आज्ञा दे दे"
"प्रशिक्षित योद्धा"
यीशु के श्रोता सोचते थे कि इस्राएल के यहूदी जो परमेश्वर की सन्तान होने का दावा करते थे, उनका विश्वास सबसे अधिक था। यीशु कहता है कि उनका सोचना गलत है, इस सूबेदार का विश्वास उनसे अधिक है।
यह यीशु द्वारा रोमी सेना के सूबेदार के सेवक की रोग मुक्ति का ही वृत्तान्त है।
यह यीशु के पीछे चल रहे लोगों के संदर्भ में है अतः बहुवचन है।
यह उक्ति एक रूपक है जो सम्पूर्णता को प्रकट करती हैः हर जगह से,अर्थात दूर दूर से, न की पूर्व में किसी एक स्थान से और न पश्चिम में किसी एक स्थान से। इसका अनुवाद हो सकता है, "सब जगहों से" या "दूर-दूर से"।
उस संस्कृति में भोजन करते समय मनुष्य आधा लेटकर खाता था। यह प्रथा परिवार और मित्रों की घनिष्ठता को दर्शाने का लाक्षणिक शब्द है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "उसके साथ परिवार और घनिष्ठ मित्रों के समान रहेंगे"।
"परमेश्वर राज्य के संतान को बाहर डाल देगा"।
"के सन्तान" किसी के होने को दर्शाता है यहाँ परमेश्वर के राज्य के होने को दर्शाता है। यहाँ व्यंग भी है कि सन्तान बाहर की जा रही है और परदेशियों का स्वागत किया जा रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "वे जिन्होंने परमेश्वर को अपने जीवन में राज करने दिया होता"
यह अभिव्यक्ति परमेश्वर को अस्वीकार करने वालों की अनन्त नियति को दर्शाती है। "परमेश्वर से अलग अन्धकार का स्थान"।
"मैं वैसा ही तेरे लिए करता हूँ"।
सेवक उसी घड़ी चंगा होगा, "यीशु ने उसे चंगा कर दिया"।
"ठीक उसी पल जब यीशु ने कहा कि वह उसे चंगा करता है"।
यह अनेकों की चंगाई का ही वृत्तान्त है।
यीशु के साथ संभवतः उसके शिष्य थे (जिन्हें उसने "निर्देश दिए" देखें: यू.डी.बी.) यहाँ मुख्य बात है यीशु ने क्या कहा और किया, अतः शिष्यों का उल्लेख तब ही करें जब गलत अर्थ से बचना हो।
"पतरस की पत्नी की माता"
यदि आपकी भाषा में इसका अर्थ यह समझा जाए कि ज्वर सोचने और करने की क्षमता रखता है तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "वह स्वस्थ हो गई" या "यीशु ने उसे चंगा किया"।
"बिस्तरा छोड़ कर"
इसके साथ ही यीशु द्वारा अनेकों की चंगाई का वृत्तान्त समाप्त होता है।
यू.डी.बी. अनुवाद में और से निष्कर्ष निकाला गया है कि जब यीशु कफरनहूम में आया तब वह सब्त का दिन था क्योंकि यहूदी उस दिन न तो काम करते थे और न ही यात्रा करते थे, वे शाम तक रूके रहे कि यीशु के पास रोमियों को लेकर आएं। आपका सब्त के दिन का उल्लेख नहीं करता है जब तक कि गलत अर्थ से बचना न हो।
यह अत्युक्ति है, यीशु ने एक से अधिक शब्दों का उपयोग किया होगा। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "यीशु को एक ही बार कहने की आवश्यकता पड़ी और दुष्टात्माएं निकल गईं"।
"यीशु ने उस भविष्यद्वाणी को पूरा किया जो परमेश्वर ने यशायाह को इस्त्राएल पर प्रकट करने हेतु दी थी"।
"जो यशायाह ने कहा था"
"मनुष्यों को रोगमुक्त किया और स्वाथ्य प्रदान किया"।
यीशु अपने शिष्यों को समझाता है कि वह उनसे क्या अपेक्षा करता है।
ये शब्द यीशु के लिए हैं, और
उसने उन्हें बताया कि क्या करना है।
चेलों को आज्ञा देने के बाद परन्तु नाव में चढ़ने से पूर्व (देखें यू.डी.बी.)
"जिस जिस स्थान में"
कहने का अर्थ है कि सब पशु पक्षियों के अपने अपने घर होते है।
लोमड़ियों, कुत्तों जैसी दिखती है और चिड़ियों के बच्चे तथा अन्य छोटे जानवरों को खाती हैं। यदि आपके यहाँ लोमड़ी नहीं हैं तो कुत्ते जैसे जानवर या अन्य किसी मांसाहारी छोटे जानवर का शब्द काम में लें।
लोमड़ियाँ धरती में छेद करके उसमें रहती हैं। आप यदि लोमड़ियों के स्थान पर दूसरे कोई जानवर का नाम लिख रहें हैं तो उसके रहने के स्थान का नाम लिखें।
"सोने के लिए भी अपनी जगह नहीं"
यीशु अपने शिष्यों से क्या अपेक्षा करता है उसी का वृत्तान्त चल रहा है।
यह एक नम्र निवेदन है। यहूदियों की प्रथा में मृतक को उसी दिन गाड़ने की प्रथा थी। अतः उस पुरूष का पिता संभवतः जीवित था। अतः उसने "गाड़ देना" एक अस्पष्ट (या गोल मोल वचन) स्वरूप काम में लिया कि जब तक उसका पिता जीवित है, कुछ दिन या कुछ वर्ष तब तक उसकी सेवा करे। (देखें यू.डी.बी.) यदि उसका पिता मृतक होता तो वह कुछ ही समय की अनुमति मांगता। पिता के मरने या जीवित रहने का उल्लेख तब ही करें जब गलत अर्थ निकल रहा हो।
यह सार गर्भित है, पूर्ण कथन नहीं है। अत: कम से कम शब्दों को काम में लें और कम से कम व्याख्या करें। यहाँ "गाड़ने" के लिए वही शब्द काम में ले जो उस युवक के निवेदन में काम में लिया है।
यह पिता की सेवा के उसके उत्तरदायित्व का इन्कार करने के प्रबल शब्द है। "मृतकों को गाड़़ने दे" से भी अधिक प्रबल या "मृतकों को गाड़ने दे"। इसका अर्थ अधिक स्पष्टता में है, "मृतकों को किसी बात का चुनाव नहीं करने दे, केवल अपने मृतकों को स्वयं गाड़ें।"
"मुरदों" परमेश्वर के राज्य से अलग जनों का रूपक है, उनके पास अनन्त जीवन नहीं है। "अपने मुरदे" का अर्थ है परमेश्वर के राज्य से अलग जनों के परिजन जो सचमुच में मर जाते हैं।
अब यीशु द्वारा आंधी को शान्त करने का वृत्तान्त आरंभ होता है।
जब वह नाव पर चढ़ा , "यीशु नाव में प्रवेश कर गया "
"शिष्य" और "पीछे हो लिए" के लिए वही शब्द काम में लें जो आपने और में काम में लिए हैं।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
"झील में तूफान उठा"।
"कि लहरें नाव में आने लगी।"
उन्होंने "हमें बचा" कह कर उसे नहीं जगाया था परन्तु जगा कर कहा, "हमें बचा"।
"हम मरने पर हैं।"
यीशु द्वारा आँधी को शान्त करने का वृत्तान्त यहाँ समाप्त होता है।
चेले
बहुवचन
इस प्रश्न के द्वारा यीशु शिष्यों को झिड़क रहा था। इसका अर्थ है "तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं है"।
यह बहुवचन है। इसका अनुवाद भी वैसा ही करे जैसा में किया है।
इस प्रश्न से प्रकट होता है कि शिष्य आश्चर्यचकित थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, यह कैसा मनुष्य है"? या "हमने ऐसा मनुष्य नहीं देखा"। कि आंधी पानी भी उसकी आज्ञा मानें"।
मनुष्य और जानवर आज्ञा माने या न माने, आश्चर्य की बात नहीं है परन्तु आँधी और पानी आज्ञा माने, यह तो वास्तव में आश्चर्यजनक है। मानव फिर से प्राकृतिक बातों को मनुष्य के सदृश्य सुनने और आज्ञा मानने वाला दर्शाता है।
अब दो दुष्टात्माग्रस्त मनुष्यों की चंगाई का वृत्तान्त आरंभ होता है।
"गलील सागर के दूसरी ओर"
गदरेनियों के देश में, गदरेनियों का अर्थ है गदारा नगर के निवासी।
उनमें अन्तर्वासी दुष्टात्माएं ऐसी भयंकर थी कि मनुष्यों का वहाँ से आना जाना असंभव हो गया था।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
यह पहला प्रश्न प्रतिरोधी है।
दुष्टात्माएं उसके इस नाम से प्रकट करती हैं कि यीशु का स्वागत नहीं है क्योंकि वह जो है सो है।
यह दूसरा प्रश्न भी विरोधी है जिसका अर्थ है "तू हमसे परमेश्वर द्वारा निर्धारित समय से पूर्व दण्ड देकर परमेश्वर की अवहेलना नहीं कर सकता"।
यीशु द्वारा दो दुष्टात्मा ग्रस्त मनुष्यों की चंगाई का वृत्तान्त चल रहा है।
इसका अर्थ है कि लेखक पाठकों को कहानी को आगे बढ़ाने से पूर्व कुछ जानकारी देना चाहता है। यीशु के आगमन से पूर्व वहाँ सूअर चर रहे थे।
इसका अर्थ यह भी हो सकता है, "क्योंकि तू हमें निकालने जा रहा है"
विशेषता सूचक शब्द
दुष्टात्माओं से जो उन मनुष्यों में थी।
"दुष्टात्माएं उन पुरूषों में से निकल कर उन जानवरों में प्रवेश कर गई।"
यहाँ "देखो" शब्द हमें अग्रिम जानकारी के प्रति सचेत करता है।
"पहाड़ी ढलान पर से भागे"
"डूब गया"।
दुष्टात्मा ग्रस्त दोनों पुरूषों की मुक्ति का वृत्तान्त वहाँ समाप्त होता है।
"सूअरों को संभालने वाले सेवक"
जिनमें दुष्टात्माएं थी उनका सारा हाल कह सुनाया , यीशु ने उन दुष्टात्माग्रस्त पुरूषों के साथ क्या किया।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
इसका अर्थ यह नहीं कि नगर का हर एक जन परन्तु यह कि अधिकांश जन।
सीमा , "नगर और आसपास का क्षेत्र।"
यीशु ने कोढ़ी को चंगा करके कहा कि वह जाकर याजक को दिखाए कि मनुष्यों में गवाही हो।
यीशु ने कहा कि वह सूबेदार के घर जाकर उसके सेवक को चंगा करेगा।
उस सूबेदार ने कहा कि वह इस योग्य नहीं कि यीशु उसके पास आए, उसके मुख का वचन ही रोगहरण का कारण होगा।
यीशु ने कहा कि संपूर्ण इस्राएल में उसने ऐसा विश्वासी नहीं देखा था।
यीशु ने कहा कि पूर्व और पश्चिम दिशाओं से अनेक जन आकर स्वर्ग के राज्य में साथ बैठेंगे।
यीशु ने कहा कि राज्य के सन्तान बाहर अन्धकार में डाल दिए जाएंगे।
पतरस के घर में यीशु ने उसकी सास को चंगा किया था।
यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी हुई, "उसने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।"
यीशु ने कहा कि उसके पास अपना स्थाई आवास नहीं है।
यीशु ने अपने चेले से कहा, मुरदों को अपने मुरदे गाड़ने दे, तू मेरे पीछे हो ले।
झील में आंधी उठी, उस समय यीशु नाव में सो रहा था।
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, "हे अल्प-विश्वासियों क्यों डरते हो?"
आंधी और पानी ने जब यीशु की आज्ञा मानी तो शिष्य यह देख दंग रह गए।
दो उग्र स्वभाव दुष्टात्माग्रस्त पुरुषों का सामना यीशु से हुआ।
दुष्टात्माएं परेशान हो गईं कि यीशु समय से पहले ही उन्हें दण्ड देने आ गया है।
यीशु ने उनमें से दुष्टात्माएं निकालीं तो वे सूअरों के झुंड में घुस गईं और सूअर झील में डूब मरे।
वहाँ के निवासियों ने यीशु से निवेदन किया कि वह चला जाए।
1 फिर वह नाव पर चढ़कर पार गया, और अपने नगर में आया। 2 और कई लोग एक लकवे के मारे हुए को खाट पर रखकर उसके पास लाए। यीशु ने उनका विश्वास देखकर, उस लकवे के मारे हुए से कहा, “हे पुत्र, धैर्य रख; तेरे पाप क्षमा हुए।” 3 और कई शास्त्रियों ने सोचा, “यह तो परमेश्वर की निन्दा* करता है।” 4 यीशु ने उनके मन की बातें जानकर कहा, “तुम लोग अपने-अपने मन में बुरा विचार क्यों कर रहे हो? 5 सहज क्या है? यह कहना, ‘तेरे पाप क्षमा हुए’, या यह कहना, ‘उठ और चल फिर।’ 6 परन्तु इसलिए कि तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।” उसने लकवे के मारे हुए से कहा, “उठ, अपनी खाट उठा, और अपने घर चला जा।” 7 वह उठकर अपने घर चला गया। 8 लोग यह देखकर डर गए और परमेश्वर की महिमा करने लगे जिसने मनुष्यों को ऐसा अधिकार दिया है।
9 वहाँ से आगे बढ़कर यीशु ने मत्ती* नामक एक मनुष्य को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” वह उठकर उसके पीछे हो लिया। 10 और जब वह घर में भोजन करने के लिये बैठा तो बहुत सारे चुंगी लेनेवाले और पापी आकर यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे। 11 यह देखकर फरीसियों ने उसके चेलों से कहा, “तुम्हारा गुरु चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाता है?” 12 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, “वैद्य भले-चंगों को नहीं परन्तु बीमारों के लिए आवश्यक है। 13 इसलिए तुम जाकर इसका अर्थ सीख लो, कि मैं बलिदान नहीं परन्तु दया चाहता हूँ; क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ।” (होशे 6:6)
14 तब यूहन्ना के चेलों ने उसके पास आकर कहा, “क्या कारण है कि हम और फरीसी इतना उपवास करते हैं, पर तेरे चेले उपवास नहीं करते?” 15 यीशु ने उनसे कहा, “क्या बाराती, जब तक दुल्हा उनके साथ है शोक कर सकते हैं? पर वे दिन आएँगे कि दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, उस समय वे उपवास करेंगे। 16 नये कपड़े का पैबन्द पुराने वस्त्र पर कोई नहीं लगाता, क्योंकि वह पैबन्द वस्त्र से और कुछ खींच लेता है, और वह अधिक फट जाता है। 17 और नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरते हैं; क्योंकि ऐसा करने से मशकें फट जाती हैं, और दाखरस बह जाता है और मशकें नाश हो जाती हैं, परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरते हैं और वह दोनों बची रहती हैं।”
18 वह उनसे ये बातें कह ही रहा था, कि एक सरदार ने आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “मेरी पुत्री अभी मरी है; परन्तु चलकर अपना हाथ उस पर रख, तो वह जीवित हो जाएगी।” 19 यीशु उठकर अपने चेलों समेत उसके पीछे हो लिया। 20 और देखो, एक स्त्री ने जिसके बारह वर्ष से लहू बहता था, उसके पीछे से आकर उसके वस्त्र के कोने को छू लिया। (मत्ती 14:36) 21 क्योंकि वह अपने मन में कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी तो चंगी हो जाऊँगी।” 22 यीशु ने मुड़कर उसे देखा और कहा, “पुत्री धैर्य रख; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” अतः वह स्त्री उसी समय चंगी हो गई। 23 जब यीशु उस सरदार के घर में पहुँचा और बाँसुरी बजानेवालों और भीड़ को हुल्लड़ मचाते देखा, 24 तब कहा, “हट जाओ, लड़की मरी नहीं, पर सोती है।” इस पर वे उसकी हँसी उड़ाने लगे। 25 परन्तु जब भीड़ निकाल दी गई, तो उसने भीतर जाकर लड़की का हाथ पकड़ा, और वह जी उठी। 26 और इस बात की चर्चा उस सारे देश में फैल गई।
27 जब यीशु वहाँ से आगे बढ़ा, तो दो अंधे उसके पीछे यह पुकारते हुए चले, “हे दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” 28 जब वह घर में पहुँचा, तो वे अंधे उसके पास आए, और यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम्हें विश्वास है, कि मैं यह कर सकता हूँ?” उन्होंने उससे कहा, “हाँ प्रभु।” 29 तब उसने उनकी आँखें छूकर कहा, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो।” 30 और उनकी आँखें खुल गई और यीशु ने उन्हें सख्ती के साथ सचेत किया और कहा, “सावधान, कोई इस बात को न जाने।” 31 पर उन्होंने निकलकर सारे क्षेत्र में उसका यश फैला दिया।
32 जब वे बाहर जा रहे थे, तब, लोग एक गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी उसके पास लाए। 33 और जब दुष्टात्मा निकाल दी गई, तो गूंगा बोलने लगा। और भीड़ ने अचम्भा करके कहा, “इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।” 34 परन्तु फरीसियों ने कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।”
35 और यीशु सब नगरों और गाँवों में फिरता रहा और उनके आराधनालयों* में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। 36 जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई चरवाहा न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे। (1 राजा. 22:17) 37 तब उसने अपने चेलों से कहा, “फसल तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। 38 इसलिए फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत में काम करने के लिये मजदूर भेज दे।”
अब यीशु द्वारा लकवे के रोगी की चंगाई का वृत्तान्त आरंभ होता है।
यीशु नाव पर चढ़कर सम्भवतः उसके चेले भी साथ थे।
वही नाव जो में थी। यदि उलझन दूर करना हो तब ही स्पष्ट करें।
"जिस नगर में वह ठहरा हुआ था" (यू.डी.बी.)
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
जो लकवे के रोगी को यीशु के पास लाए। उनमें लकवे का रोगी भी था।
वह यीशु का पुत्र नहीं था। यीशु उसके साथ कोमलता का व्यवहार कर रहा था। यदि इससे उलझन उत्पन्न हो तो अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "मेरे मित्र", "हे युवक" या इसे छोड़ा भी जा सकता है।
"परमेश्वर ने तेरे पाप क्षमा किए" या "मैंने तेरे पाप क्षमा किए"।
यीशु द्वारा लकवे के रोगी की चंगाई का ही वृत्तान्त चल रहा है।
यह कहानी के अगले भाग का आरंभ है। इसमें पिछली घटना की अपेक्षा अन्य जन हैं। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
इसका अर्थ है, "आपस में" अपने विचारों में या "एक दूसरे से" कहने लगे। यीशु का दावा प्रकट है कि वह ऐसे काम कर सकता है जो शास्त्रियों की समझ में केवल परमेश्वर ही करता है।
यीशु उनके मन की बातें दिव्य शक्ति से जान गया था या उनकी काना पूसी के कारण समझ गया था।
इस प्रश्न द्वारा यीशु शास्त्रियों को झिड़कता है।
बहुवचन
यह नैतिक बुराई या दुष्टता है न कि मात्र गलती।
यीशु ने शास्त्रियों को स्मरण कराने के लिए यह प्रश्न पूछा था क्योंकि उनके विचार में वह अपने पापों के कारण रोगी हो गया था और पाप क्षमा द्वारा वह फिर से चलने फिरने लगेगा, अतः जब वह उस रोगी को चंगा करेगा तो शास्त्री जान लेंगे कि वह पाप भी क्षमा कर सकता है।
यह कहना आसान है, "तेरे पाप क्षमा हुए, या यह कहना, उठ और चल फिर"?
इसका अर्थ हो सकता है (1) "मैं तेरे पाप क्षमा करता हूँ"। (यू.डी.बी.) या (2) "परमेश्वर तेरे पास क्षमा कर रहा है"।
"मैं सिद्ध करता हूँ" "तुम" बहुवचन में है।
एकवचन
यीशु उसे अन्य कहीं जाने से मना नहीं कर रहा है, वह उसे घर जाने का अवसर प्रदान कर रहा है।
यह लकवे के रोगी की चंगाई के वृत्तान्त का अन्त है। यीशु चूंगी लेने वाले को अपना शिष्य होने के लिए बुलाता है।
वही शब्द काम में ले जो में काम में लिए हैं।
पाप क्षमा का अधिकार।
कलीसिया की परम्परा के अनुसार यही मत्ती, मत्ती रचित सुसमाचार का लेखक है परन्तु अभिलेख में ऐसा कोई कारण प्रकट नहीं होता की "वह" और "उसके" को "मुझे" और "मै" में बदला गया है।
"यीशु ने मत्ती से कहा"।
यहाँ इस वाक्यांश द्वारा घटना का आरंभ वैसे ही होता है जैसे "देखो" से होता है में। यदि आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान है तो उसे यहाँ काम में लें।
जाने के लिए कोई सामान्य उपयोग का शब्द काम में लें। यहाँ यह स्पष्ट नहीं है कि यीशु पहाड़ पर चढ़ रहा था या उतर रहा था या कफरनहूम की ओर जा रहा था या उसकी विपरीत दिशा में जा रहा था।
"मत्ती उठा और यीशु के पीछे चलने लगा", यीशु के शिष्य रूप में,(देखें यू.डी.बी) न कि उसके साथ तक कहीं जाने के लिए।
यह घटना चूंगी लेने वाले मत्ती के घर की है।
संभवतः मत्ती का घर (देखें यू.डी.बी.) परन्तु यह यीशु का घर भी हो सकता है (भोजन करने के लिए बैठा) आवश्यकता पड़ने पर ही स्पष्ट करें।
यह शब्द "देखो" हमें कहानी में नए लोगों के प्रति सचेत करता है। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान हो सकता है। अंग्रेजी में है "देयर वॉज़ ए मॅन हू वज़..."
वे "जब फरीसियो ने देखा कि यीशु चुंगी लेने वालों और पापियों के साथ भोजन कर रहा है"।
यह घटना चूंगी लेने वाले मत्ती के घर की है।
"यह" अर्थात फरीसियों का प्रश्न सुनकर, चूंगी लेने वालों और पापियों के साथ भोजन करना।
"स्वस्थ मनुष्यों"
डॉक्टर (यू.डी.बी.)
"रोगियों को डॉक्टर की आवश्यकता होती है।"
"तुम्हारे लिए इसका अर्थ समझना आवश्यक है।"
"तुम" सर्वनाम शब्द फरीसियों के लिए है।
यूहन्ना के चेलों ने उसके पास आकर कहा, "तेरे चेले उपवास नहीं करते"।
दुल्हें के साथ हाने पर कोई भी बरातियों से उपवास के लिए नहीं कहेगा।
यीशु के शिष्यों के लिए एक रूपक का प्रयोग है।
"दुल्हा" यीशु है, जीवित होने के कारण वह "उनके साथ है"।
"जब कोई दुल्हें को उनसे अलग कर देगा"। यह मारे जाने के लिए रूपक है।
"विलाप करना... दुःख मनाना"। (यू.डी.बी.)
यीशु यूहन्ना के शिष्यों द्वारा पूछे गए प्रश्न का ही उत्तर दे रहा है।
पुरानी परम्पराओं का पालन करने वाले नई परम्परा को स्वीकार करने के लालायित नहीं होते हैं।
वस्त्र , "परिधान"
"कपड़े का टुकड़ा, जो फटे कपड़े पर लगाया जाता है"।
यीशु यूहन्ना के शिष्यों द्वारा पूछे गए प्रश्न का ही उत्तर दे रहा है।
यूहन्ना के शिष्यों के प्रश्न का उत्तर देने के लिए यह रूपक या दृष्टान्त का उपयोग है, हम और फरीसी इतना उपवास करते हैं पर तेरे चेले उपवास नहीं करते।
"नहीं कोई.... मैं डालता हूँ" (यू.डी.बी.) "लोग नहीं डालते"।
"अंगूर का रस" वह बस जिसका किंणवन नहीं हुआ है। यदि आपके क्षेत्र में अंगूर उगाए जाते हैं तो वहीं नाम काम में ले जो प्रचलित है।
वे मशकें जो कई बार काम में ली जा चुकी हैं।
ये पशुओं के चमड़े से बनी होती थी उन्हें "दाख रस के थैले" या "चमड़े के थैले"(यू.डी.बी.) भी कह सकते हैं।
दाखरस जब किंणवन होता है तब वह फैलता है जिससे पुरानी मशकें जो और अधिक नहीं फैल सकती फट जाती है।
"फट जाती है"। (यू.डी.बी)
"दाखरस के नये थेले" जो कभी काम में नहीं लिए गए।
यहूदी सरदार की पुत्री की चंगाई के वृत्तान्त का आरंभ।
अर्थात यूहन्ना के शिष्यों को दिए गए उत्तर के बाद समय।
"देखो" शब्द हमें कहानी में एक नए व्यक्ति को प्रवेश के प्रति सतर्क करता है। अपनी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
यह यहूदी संस्कृति में सम्मान प्रकट करने की रीति थी।
इसका अर्थ यह हुआ कि वह यहूदी उस पर विश्वास करता था कि यीशु उसकी पुत्री को पुनजीर्वित कर सकता है।
यीशु के शिष्य।
यहाँ यहूदी सरदार के घर जाते समय यीशु द्वारा एक स्त्री की चंगाई का वर्णन है।
"देखो" शब्द हमें कहानी में एक नए व्यक्ति को प्रवेश के प्रति सतर्क करता है। अपनी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
"उस का बहुत लहू बहता था" संभवतः लगातार मासिक धर्म का स्राव। कुछ संस्कृतियों में इसको व्यक्त करने की भद्र शब्दावली होगी। (देखें: )
उसका विश्वास वस्त्र में नहीं यीशु में था कि वह चंगा करेगा।
"बागा"
"इसकी अपेक्षा" इस स्त्री ने जो सोचा था वैसा हुआ नहीं।
वह यीशु की पुत्री नहीं थी, यीशु उसको कोमलता दिखा रहा था। यदि इससे उलझन होती है तो "युवती" काम में लें या छोड़ दें।
यहाँ भी यहूदी सरदार की पुत्री को जीवित करने का ही वृत्तान्त चल रहा है।
यह उस यहूदी सरदार का घर है।
यह एक खोखले बांस का वाद्य यन्त्र है जिसको बजाने के लिए एक सिरे से हवा फूंकी जाती है।
" बाँसुरी बजाने वाले लोग"।
यीशु अनेकों से कह रहा है अतः बहुवचन काम में लें यदि आपकी भाषा में है।
यीशु सोने का रूपक काम में ले रहा है क्योंकि उसकी मृत्यु अधिक है। वह उसे मृतकों में से जीवित करेगा।
यीशु द्वारा यहूदी सरदार की पुत्री की चंगाई का वृत्तान्त इसके साथ समाप्त होता है
"जब यीशु ने भीड़ को हटा दिया" या "जब परिवार वालों ने लोगों को बाहर भेज दिया"।
"बिस्तर छोड़ दिया" यह भावार्थ वही है जो में है।
यहाँ चर्चा का मानवीकरण का अर्थ है कि जो वहाँ थे उन लोगों ने सबको बता दिया। "उस संपूर्ण क्षेत्र के निवासियों को इसका समाचार प्राप्त हुआ" (यू.डी.बी.) या "जिन लोगों ने उस बालिका को जीवित देखा जाकर उस क्षेत्र में सबको इसके बारे में सुनाया"।
अब यीशु द्वारा दो अंधे मनुष्यों की चंगाई का वृत्तान्त आरंभ होता है।
यीशु उस क्षेत्र से निकल रहा था।
स्पष्ट नहीं है कि यीशु ऊपर की ओर जा रहा था या नीचे की ओर जा रहा था, इसलिए जाने के लिए साधारण शब्द का उपयोग करें।
यीशु यथार्थ में दाऊद का पुत्र नहीं था। अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है "हे दाऊद के वंशज" (यू.डी.बी.) परन्तु "दाऊद की सन्तान" यीशु को दिया गया पदनाम है। संभव है कि वे यीशु को इसी पदनाम से पुकार रहे थे।
यह या तो यीशु का अपना घर था (यू.डी.बी.) या का घर था।
"हाँ प्रभु, हमें विश्वास है कि तू हमें चंगा कर सकता है।"
इसके साथ ही उन दोनों अंधों की चंगाई का वृत्तान्त समाप्त होता है।
यहाँ स्पष्ट नहीं है कि उसने दोनों की आंखों को एक साथ स्पर्श किया या अपने दाहिने हाथ से एक को स्पर्श किया फिर दूसरे को, क्योंकि बायां हाथ अशुद्ध काम में लिया जाता था। अतः अति संभव है कि उसने केवल दाहिना हाथ काम में लिया। यह भी स्पष्ट नहीं है कि उसने उन्हें स्पर्श करते समय कहा या पहले स्पर्श किया फिर कहा।
"परमेश्वर ने उनकी आंखें स्वस्थ कर दीं" या "वे दोनों अंधे देखने लगे"
"इसके विपरीत" उन्होंने यीशु के आदेशानुसार नहीं किया।
"बहुतों को बता दिया कि उनके साथ क्या हुआ"।
यीशु द्वारा उसके अधिवास में चंगाई का वृत्तान्त चालू है।
"देखो" शब्द हमें कहानी में एक नए व्यक्ति को प्रवेश के प्रति सतर्क करता है। अपनी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
जो बात नहीं कर सकता है।
"वह गूंगा व्यक्ति बोलने लगा" या "वह व्यक्ति जो गूंगा था बोलने लगा" या "वह व्यक्ति जो अब गूंगा नहीं था बोलने लगा"।
"लोग अचम्भा करने लगे"।
इसका अर्थ हो सकता है, "ऐसा कभी नहीं हुआ" या "किसी ने ऐसा कभी नहीं किया"।
"वह दुष्टात्माओं को निकलने पर विवश करता है"। यहाँ सर्वनाम "वह" यीशु के लिए है।
यह अंश गलील क्षेत्र में यीशु शिक्षा, उपदेश और चंगाई की सेवा का सारांश है।
"अनेक नगरों में"
"बड़े गाँवों और छोटे गाँवों" या "बड़े नगरों और छोटे नगरों"
"हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता", "बीमारी" और "दुर्बलता" संबन्धित शब्द है परन्तु संभव हो तो इन्हें दो अलग-अलग शब्दों में ही अनुवाद करना है। "बीमारी" मनुष्य को रोगी बनाती है। दुर्बलता शारीरिक विकार या कष्ट है जो बीमारी के परिणाम स्वरूप होती है।
"उन लोगों का कोई अगुआ न था"।
यीशु कटनी रूपक द्वारा उन्हें समझाता है कि उन्हें पिछले अंश में दर्शाए गए लोगों की आवश्यकता के प्रति कैसा व्यवहार करना है।
यह रूपक मनुष्यों की एक बहुत बड़ी संख्या को दर्शाता है, वे जो परमेश्वर में विश्वास करके उसके राज्य में प्रवेश करेंगे। ये लोग खेतों के सदृश्य हैं और जो परमेश्वर का प्रचार करते हैं वे मजदूर हैं। इस रूपक का अर्थ है कि इतने अधिक लोगों को परमेश्वर के बारे में बताने वाले बहुत कम हैं
"पक्का फल एकत्र करने के लिए"
"कर्मी"
खेत के स्वामी से विनती करो वही कर्ताधर्ता है।
यीशु ने लकवे के रोगी से कहा कि उसके पाप क्षमा हुए तो शास्त्रियों ने सोचा कि यीशु परमेश्वर की निन्दा कर रहा है।
यीशु ने उस लकवे के रोगी से कहा कि उसके पाप क्षमा हुए क्योंकि वह दिखाना चाहता था कि उसे पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।
लोग यह देखकर डर गए और परमेश्वर की महिमा की कि मनुष्य को ऐसा अधिकार दिया है।
यीशु का चेला बनने से पूर्व मत्ती महसूल लेने वाला था।
यीशु और उसके चेले महसूल लेने वालों और पापियों के साथ भोजन करते थे।
यीशु ने कहा कि वह पापियों को मनफिराव के लिए बुलाने आया है।
यीशु ने कहा कि उसके चेले उपवास नहीं करते क्योंकि वह उनके साथ था।
यीशु ने कहा कि उसके चले जाने के बाद उसके चेले भी उपवास करेंगे।
एक स्त्री जिसे लहू बहने का रोग था, उसने यीशु के वस्त्र का छोर छू लिया क्योंकि उसको विश्वास था कि उसके वस्त्र के स्पर्श से ही उसका रोग दूर हो जाएगा।
यीशु ने कहा कि उस लहू बहने की रोगी स्त्री के विश्वास ने उसे चंगा किया।
यीशु ने उस मृतक बालिका के लिए कहा कि वह सोती है तो लोग उस पर हंसने लगे।
उस मृतक बालिका को जीवित करने का समाचार उस पुरे क्षेत्र में फैल गया।
दो अंधे पुरुष पुकार रहे थे, "हे दाऊद की सन्तान हम पर दया कर।"
यीशु ने उन दोनों अंधों को उनके विश्वास के आधार पर चंगा किया था।
फरीसी यीशु पर दोष लगाते थे कि वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
यीशु को जनसमूह पर तरस आया क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए।
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे खेत के स्वामी से शीघ्रता से प्रार्थना करें वह खेत काटने के लिए मजदूर भेजे।
1 फिर उसने अपने बारह चेलों को पास बुलाकर, उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया, कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें। 2 इन बारह प्रेरितों* के नाम ये हैं पहला शमौन, जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र याकूब, और उसका भाई यूहन्ना; 3 फिलिप्पुस और बरतुल्मै, थोमा, और चुंगी लेनेवाला मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब और तद्दै। 4 शमौन कनानी*, और यहूदा इस्करियोती, जिसने उसे पकड़वाया।
5 इन बारहों को यीशु ने यह निर्देश देकर भेजा, “अन्यजातियों की ओर न जाना, और सामरियों के किसी नगर में प्रवेश न करना। (यिर्म. 50:6) 6 परन्तु इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों के पास जाना। 7 और चलते-चलते प्रचार करके कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। 8 बीमारों को चंगा करो: मरे हुओं को जिलाओ, कोढ़ियों को शुद्ध करो, दुष्टात्माओं को निकालो। तुम ने सेंत-मेंत पाया है, सेंत-मेंत दो। 9 अपने बटुवो में न तो सोना, और न रूपा, और न तांबा रखना। 10 मार्ग के लिये न झोली रखो, न दो कुर्ता, न जूते और न लाठी लो, क्योंकि मजदूर को उसका भोजन मिलना चाहिए।
11 “जिस किसी नगर या गाँव में जाओ तो पता लगाओ कि वहाँ कौन योग्य है? और जब तक वहाँ से न निकलो, उसी के यहाँ रहो। 12 और घर में प्रवेश करते हुए उसे आशीष देना। 13 यदि उस घर के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारा कल्याण उन पर पहुँचेगा परन्तु यदि वे योग्य न हों तो तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आएगा। 14 और जो कोई तुम्हें ग्रहण न करे, और तुम्हारी बातें न सुने, उस घर या उस नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो। 15 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि न्याय के दिन उस नगर की दशा से सदोम और अमोरा के नगरों की दशा अधिक सहने योग्य होगी।
16 “देखो, मैं तुम्हें भेड़ों की तरह भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ इसलिए साँपों की तरह बुद्धिमान और कबूतरों की तरह भोले बनो। 17 परन्तु लोगों से सावधान रहो, क्योंकि वे तुम्हें सभाओं में सौंपेंगे, और अपने आराधनालयों में तुम्हें कोड़े मारेंगे। 18 तुम मेरे लिये राज्यपालों और राजाओं के सामने उन पर, और अन्यजातियों पर गवाह होने के लिये पेश किये जाओगे। 19 जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे तो यह चिन्ता न करना, कि तुम कैसे बोलोगे और क्या कहोगे; क्योंकि जो कुछ तुम को कहना होगा, वह उसी समय तुम्हें बता दिया जाएगा। 20 क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो परन्तु तुम्हारे पिता का आत्मा तुम्हारे द्वारा बोलेगा।
21 “भाई अपने भाई को और पिता अपने पुत्र को, मरने के लिये सौंपेंगे, और बच्चे माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे। (मीका 7:6) 22 मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, पर जो अन्त तक धीरज धरेगा उसी का उद्धार होगा। 23 जब वे तुम्हें एक नगर में सताएँ, तो दूसरे को भाग जाना। मैं तुम से सच कहता हूँ, तुम मनुष्य के पुत्र के आने से पहले इस्राएल के सब नगरों में से गए भी न होंगे।
24 “चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं; और न ही दास अपने स्वामी से। 25 चेले का गुरु के, और दास का स्वामी के बराबर होना ही बहुत है; जब उन्होंने घर के स्वामी को शैतान* कहा तो उसके घरवालों को क्यों न कहेंगे?
26 “इसलिए उनसे मत डरना, क्योंकि कुछ ढँका नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा। 27 जो मैं तुम से अंधियारे में कहता हूँ, उसे उजियाले में कहो; और जो कानों कान सुनते हो, उसे छतों पर से प्रचार करो। 28 जो शरीर को मार सकते है, पर आत्मा को मार नहीं सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है। 29 क्या पैसे में दो गौरैये नहीं बिकती? फिर भी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। 30 तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। (लूका 12:7) 31 इसलिए, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर मूल्यवान हो।
32 “जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूँगा। 33 पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूँगा।
34 “यह न समझो, कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूँ; मैं मिलाप कराने को नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूँ। 35 मैं तो आया हूँ, कि मनुष्य को उसके पिता से, और बेटी को उसकी माँ से, और बहू को उसकी सास से अलग कर दूँ। 36 मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे।
37 “जो माता या पिता को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं और जो बेटा या बेटी को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं। (लूका 14:26) 38 और जो अपना क्रूस लेकर* मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं। 39 जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा।
40 “जो तुम्हें ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है। 41 जो भविष्यद्वक्ता को भविष्यद्वक्ता जानकर ग्रहण करे, वह भविष्यद्वक्ता का बदला पाएगा; और जो धर्मी जानकर धर्मी को ग्रहण करे, वह धर्मी का बदला पाएगा। 42 जो कोई इन छोटों में से एक को चेला जानकर केवल एक कटोरा ठण्डा पानी पिलाए, मैं तुम से सच कहता हूँ, वह अपना पुरस्कार कभी नहीं खोएगा।”
यहाँ यीशु द्वारा शिष्यों को सेवा में भेजने का वृत्तान्त आरंभ होता है।
"अपने बारह चेलों को एकत्र किया"
सुनिश्चित करें कि अनुवाद में यह अधिकार स्पष्ट हो (1) अशुद्ध आत्माओं को निकालना और (2) बीमारियों और दुर्बलताओं को चंगा करना।
अशुद्ध आत्माओं का निष्कासन करें
"हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता", "बीमारी" और "दुर्बलता" संबन्धित शब्द है परन्तु संभव हो तो इन्हें दो अलग-अलग शब्दों में ही अनुवाद करना है। "बीमारी" मनुष्य को रोगी बनाती है। दुर्बलता शारीरिक विकार या कष्ट है जो बीमारी के परिणाम स्वरूप होती है।
यीशु द्वारा अपनी सेवा के निमित्त बारह चेलों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ था।
क्रम में न कि पद में।
इसके संभावित अर्थ हैं (1) "जेलोतेस" या (2) "जोशीला"। जेलोतेस का अर्थ है कि वह उस समूह का सदस्य था जो यहूदियों को रोमी साम्राज्य से मुक्त करना चाहते थे। वैकल्पिक अनुवाद, "देशभक्त" या "राष्ट्रवादी" या "स्वतंत्रता सेनानी"। दूसरा अर्थ, "जोशीला" से समझ में आता है कि वह परमेश्वर के सम्मान के लिए जोशीला था, इसका वैकल्पिक अनुवाद हो सकता है, "उत्साही"।
"मत्ती जो चूंगी लेनेवाला था"।
"जो यीशु के साथ विश्वासघात करेगा"।
यीशु द्वारा अपनी सेवा के निमित्त बाहर शिष्यों के भेजने का वृत्तान्त चल रहा है।
"यीशु ने इन बारह शिष्यों को भेजा", या "यीशु ने जिन बारहों शिष्यों को भेजा वे ये हैं"।
यीशु ने इन बारहों को एक विशेष उद्देश्य से भेजा था। "भेजा" "प्रेरित" का क्रियारूप है जिस शब्द का उपयोग में किया गया है।
यीशु ने यह आज्ञा देकर ,"उसने उन्हें कहा कि उन्हें क्या करना होगा" इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, "उसने उन्हें आदेश दिया"।
यह एक रूपक है जो इस्राएल राष्ट्र की तुलना ऐसी भेड़ों से करता है जो चरवाहे से अलग होकर भटक गई हैं।
यह निर्देश इस्त्राएल जाति से संबन्धित है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "इस्त्राएलियों" या "इस्राएलवंशियों"
यह बारह शिष्यों के संदर्भ में है।
इसका अनुवाद आप वैसे ही करेंगे जैसे आपने इस विचार का अनुवाद में किया है।
यीशु द्वारा अपने सेवाकार्य के निमित्त बारह शिष्यों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ है।
अर्थात बारह प्रेरित (शिष्य)
"सोना, चाँदी, ताँबा कुछ नहीं रखना"।
"प्राप्त करना", "ग्रहण करना" या "लेना”
ये वे धातु थी जिनसे मुद्रा बनती थी। यह पैसों के लिए लाक्षणिक प्रयोग है। यदि आपके लिए ये धातुएं अनजान है तो इनका अनुवाद "पैसा" करें। (यू.डी.बी.)
पटुका का अर्थ है "पैसा रखने वाले कमरबंध" या इसका अभिप्राय पैसा रखने की थैली से भी हो सकता है। "पटुका" कम में बांधने का कपड़े या चमड़े का पट्टा होता था। वह काफी चौड़ा होता था कि यदि उसे मोड़ लें तो उसमें पैसा रखा जा सकता था।
झोली , यात्रा में सामान लेकर चलने के लिए थैला या भोजन या पैसा मांगने के लिए झोली।
यहाँ कुरते के लिए वही शब्द काम में ले जो में काम में लिया गया है।
"कर्मी"
"आवश्यकता की वस्तुएं"
यीशु द्वारा अपने सेवाकार्य के निमित्त बारह शिष्यों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ है।
यह सर्वनाम प्रेरितों के लिए काम में लिया गया है।
जिस किसी नगर या गाँव में आओ , "जब किसी नगर या गाँव में प्रवेश करो", या "उस हर एक नगर या गाँव जिसमें तुम प्रवेश करो"।
"बड़ा गाँव.... छोटा गाँव" या "बड़ा नगर.... छोटा नगर" ये शब्द वही हैं जिसको में काम में लिया गया है।
"उसी मनुष्य के घर में रहना जब तक कि नगर या गाँव से प्रस्थान न करो"।
"घर में प्रवेश करते ही वहाँ रहनेवालों को आशिष देना"। उस समय का प्रचलित आशीर्वाद था, "इस परिवार को शान्ति मिले"।
"यदि उस घर के लोग तुम्हारा अच्छा स्वागत करें" (यू.डी.बी.) या "उस घर के लोग तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करें"।
"उन्हें शान्ति मिलेगी" या "उस घर के लोग शान्ति में जीएंगे"।(देखें: यू.डी.बी.)
वह शान्ति जिसके लिए प्रेरित परमेश्वर से विनती करें कि वह उस परिवार को दे।
"यदि वे तुम्हारा अच्छा स्वागत न करें" (यू.डी.बी.) या "यदि वे तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार न करें"।
इसका अर्थ दो में से एक हो सकता है, (1) यदि वह परिवार योग्य न हुआ तो परमेश्वर अपनी शान्ति या आशिष उस परिवार से रोक लेगा, जैसा यू.डी.बी में व्यक्त किया गया है या (2) यदि वह परिवार योग्य न हुआ तो प्रेरितों से कुछ करने की अपेक्षा की गई है, जैसे, परमेश्वर से विनती करना कि उनका अभिवादन स्वीकार न करे। यदि आपकी भाषा में आशिष को वापस लेने का या उसके प्रभाव को निष्फल करने का शब्द है, जो उसे काम में लें।
यीशु द्वारा अपने सेवाकार्य के निमित्त बारह शिष्यों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ है।
"यदि उस नगर में तुम्हें कोई ग्रहण न करे या तुम्हारी बातें न सुने।"
अर्थात बारह प्रेरित (शिष्य)
"तुम्हारा सन्देश न सुने" (यू.डी.बी.) या "तुम्हें जो कहना है, न सुने"।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"उस घर या नगर की धूल अपने पाँवों में से झाड़ दो" यह एक चिन्ह है कि परमेश्वर ने उस घर या नगर के लोगों को त्याग दिया है। (देखें यू.डी.बी.)
पीड़ा कम होगी।
"सदोम और अमोरा के निवासियों से" जिन्हें परमेश्वर ने स्वर्ग से आग गिराकर भस्म कर दिया था।
जिस नगर के लोग प्रेरितों को ग्रहण न करें या उनका सन्देश न सुने।
यीशु अपने बारह शिष्यों के उस सताव के बारे में चर्चा करता है जो अपने सेवाकार्य को करने के कारण उन्हें सहना होगा।
"देखो" शब्द यहाँ अग्रिम चर्चा पर बल डालता है, इसका वैकल्पिक अनुवाद होगा, "ध्यान दो" या "सुनो" या "जो मैं कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दो"। (देखें यू.डी.बी.)
यीशु उन्हें एक उद्देश्य विशेष के निमित्त भेज रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को जिन्हें वह भेज रहा है उनकी तुलना असुरक्षित भेड़ों से करता है, जो ऐसी जगह जाएंगी जहाँ उन पर वन पशुओं के आक्रमण की संभावना है।
असुरक्षित
आप इस उपमा को स्पष्ट करके कह सकते है, "ऐसे मनुष्यों के मध्य जो खतरनाक भेड़ियें हैं"। या "ऐसे मनुष्यों के मध्य जो खतरनाक पशुओं का सा व्यवहार करते हैं", या सादृश्य व्यक्त करें "उन लोगों के मध्य जो तुम पर आक्रमण करेंगे।"
यहाँ इस उपमा को काम में नहीं लेना ही अच्छा है, "समझदारी और सावधानी से काम करना साथ ही साथ भोलेपन एवं सद्गुणों का प्रदर्शन करना"।
"सावधान रहना क्योंकि वे तुम्हें पकड़वाएंगे"।
"चौकस रहो", "सतर्क रहो",या "अत्यधिक सोच समझ कर चलना",
यीशु के साथ यहूदा ने जो किया उसके लिए यही शब्द है (देखें यू.डी.बी.) वैकल्पिक अनुवादः "धोखे से पकड़वायेंगे" या "तुम्हें पकड़वायेंगे", या "तुम्हें बन्दी बनवाकर मुकदमा चलाएंगे"।
पंचायत , अर्थात स्थानीय धार्मिक अगुवे या जो अगुवे समुदाय में शान्ति बनाए रखते हैं। वैकल्पिक अनुवाद है, "न्यायालयों"।
"कोड़ों से पीटेंगे"।
"तुम्हें लाएंगे" या "तुम्हें घसीटेंगे"
"क्योंकि तुम मेरे हो" (यू.डी.बी.) या "क्योंकि तुम मेरा अनुकरण करते हो"।
सर्वनाम "उन" से अभिप्राय है "हाकिमों और राजाओं" या यहूदी दोष लगाने वाले। (10:17)
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
"जब मनुष्य तुम्हें पकड़वाए" यहाँ वे अर्थात मनुष्य वही है जो में हैं।
इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा में "पकड़वाने" का किया है।
इस संपूर्ण गद्यांश में "तुम" और "तुम्हारे" का संदर्भ प्रेरितों से है।
"विचलित न होना"
"तुम्हें कैसे और क्या कहना है; दोनों विचारों को जोड़ा जा सकता है", "तुम्हें क्या कहना होगा"।
"उसी समय"
यदि आवश्यक हो तो इसका अनुवाद हो सकता है, "तुम्हारे स्वर्गीय पिता की आत्मा" या पद-टिप्पणी लिखी जाए कि यह परमेश्वर पिता का पवित्र आत्मा है, न कि सांसारिक पिता की आत्मा।
"तुम्हारे माध्यम से"
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
वैकल्पिक अनुवाद "भाई-भाई को मरवाने के लिए पकड़़वाएगा और पिता अपनी सन्तान को मरवाने के लिए पकड़वाएगा"।
इसका अनुवाद वैसा ही करना होगा जैसा में "सौपेंगे" का किया है।
"विद्रोह करेंगे" (यू.डी.बी.) या "विरूद्ध हो जायेंगे"
"उन्हें घात करवाएंगे" या "अधिकारियों द्वारा उन्हें मृत्यु दण्ड दिलवाएंगे।"
वैकल्पिक अनुवाद, "सब तुमसे घृणा करेंगे" या "मनुष्य तुमसे घृणा करेंगे"।
अर्थात बारह प्रेरित (शिष्य)
"मेरे कारण" या "क्योंकि तुम मुझमें विश्वास करते हो"।(यू.डी.बी.)
"जो विश्वासी बना रहेगा"।
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर उसे बचा लेगा"।
"दूसरे नगर में चले जाना"
"पहुँच जायेगा"।
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
यह एक सामान्य तथ्य है न कि किसी शिष्य विशेष या उसके गुरू के बारे में है। शिष्य अपने गुरू से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। इसका कारण है कि वह "गुरू से अधिक ज्ञान नहीं रखता है" या उसका "पद बड़ा नहीं है" या "अधिक उत्तम नहीं है"। वैकल्पिक अनुवाद है, "शिष्य सदैव ही गुरू से कम महत्त्वपूर्ण होता है" या "गुरू सदैव ही शिष्य से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।"
"दास अपने स्वामी पर अधिकारी नहीं होता है"यह भी एक सामान्य तथ्य है, न कि किसी दास विशेष या उसके स्वामी से संबन्धित है। दास अपने स्वामी से न तो "अधिक बड़ा" होता है न ही "अधिक महत्त्वपूर्ण" होता है। वैकल्पिक अनुवाद, "दास सदैव ही अपने स्वामी से कम महत्त्वपूर्ण होता है", या "स्वामी सदैव ही दास से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है"।
"दास"
"स्वामी"
"शिष्य" को अपने गुरू के जैसा होने में ही सन्तोष करना है"।
"अपने गुरु के तुल्य ज्ञानवान" या "जैसा गुरू वैसा चेला" होना ही पर्याप्त है।
.... और दास को अपने स्वामी के तुल्य महत्त्वपूर्ण होना ही पर्याप्त है“।
यीशु के साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा था अतः यीशु के शिष्यों को भी वैसे ही व्यवहार वरन् उससे भी बुरे की अपेक्षा करना है।(देखें यू.डी.बी)
वैकल्पिक अनुवाद, "क्योंकि उन्होंने... कहा है।"
यीशु "घर के स्वामी" को अपने लिए उपमा स्वरूप काम में ले रहा है।
मूल भाषा में इसका अर्थ हो सकता है, (1) बालज़बूल (2) या इसका अभिप्रेत अर्थ शैतान होता है।
यीशु "घरवालों को" रूपक स्वरूप शिष्यों के लिए काम में ले रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
"वे" सर्वनाम उन मनुष्यों का बोध करती है जो यीशु के शिष्यों को सताते थे।
इस सादृश्य का अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, "परमेश्वर मनुष्यों की गुप्त बातों को प्रकट कर देगा"। (देखें: : )
इस सादृश्य का अनुवाद हो सकता है, "मैं जो अन्धेरे में कहा उसका दिन में प्रचार करो और जो कान में धीमे स्वर में सुनते हो उसका छतों पर से प्रचार करो"।
“जो मैं तुमसे गुप्त रूप से कहता हूँ“ या ”जो बातें मैं तुमसे अकेले में कहता हूँ” ।
"खुलकर कहो" या "सबको सुनाओं" (देखें यू.डी.बी.)
"मैं तुम्हारे कानों में जो मन्द स्वर में कहता हूँ।"
"सबको ऊंचे शब्दों में सुनाओ" यीशु के युग में घर की छतें समतल होती थी और यदि वहाँ से कोई कुछ कह ले सब सुन सकते थे।
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
"मनुष्यों से मत डरना क्योंकि वे शरीर को घात करते हैं आत्मा को नहीं"।
शरीर को मार सकते हैं यदि ये शब्द अनुचित प्रतीत हों तो इसका अनुवाद हो सकता है, "जो तुम्हारी हत्या करते हैं" या "मनुष्यों की हत्या करते हैं"।
मनुष्य का वह भाग जो हुआ जा सकता है।
मनुष्य के मरने के बाद हानि नहीं पहुंचा सकते।
मनुष्य का वह भाग जिसको स्पर्श नहीं किया जा सकता और जो मरणोपरान्त जीवित रहता है।
इस प्रश्न का अनुवाद हो सकता है, "गौरैयों को देखो। उनका मूल्य कितना कम है कि एक पैसे में दो खरीदी जा सकती हैं"(यू.डी.बी.)।
इन छोटे दाना चुगने वाले पक्षियों को रूपक स्वरूप उन वस्तुओं के लिए काम में लिया जाता है जिन्हें महत्त्वहीन समझा जाता है।
इसका अनुवाद लक्षित भाषा में सबसे छोटी मुद्रा के लिए किया जाए। यह एक ताँबे का सिक्का था जो मजदूर की एक दिन की मजदूरी सौलहवें भाग के बराबर था। इसका अनुवाद "बहुत कम पैसों में" भी हो सकता है।
इस अभिव्यक्ति का अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, "उनमें से एक भी मरेगी तो पिता को उसकी जानकारी होगी"। या "केवल पिता की जानकारी से ही एक भी मरेगी"।
"एक भी गौरैया"
"नहीं मर सकती"
"परमेश्वर जानता है कि तुम्हारे सिर पर कितने बाल हैं।"
"गणना की हुई है"।
परमेश्वर तुम्हें बहुत अधिक गौरैयों से बढ़कर मानता है।
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
“जो मनुष्यों के सामने प्रकट करे कि वह मेरा शिष्य है” या “जो कोई मनुष्यों के समक्ष मेरे प्रति स्वामि-भक्ति स्वीकार करेगा”।
"स्वीकार करेगा" (यू.डी.बी.)
"मनुष्यों के समक्ष" या "दूसरों के समक्ष"
यीशु स्वर्गीय पिता परमेश्वर के बारे में कह रहा है।
जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इंकार करेगा "जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा त्याग करेगा" या "जो मनुष्यों के समक्ष तुमसे विमुख होगा" या "जो मनुष्य के समक्ष मेरा शिष्य होना स्वीकार नहीं करेगा" या "जो मेरे प्रति स्वामिभक्ति का इन्कार करेगा"।
यीशु अपने शिष्यों से उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
"ऐसा नहीं सोचना" या "यह नहीं मानना"
इस रूपक का अर्थ हो सकता है, (1) हिंसक मृत्यु (देखें क्रूस 10:37/10:38) या (2) विभाजन कारी कलह
"बदल दूँ", या "विभाजित कर दूं" या "पृथक कर दूँ"।
"पुत्र को पिता के विरूद्ध"
मनुष्य के बैरी या "मनुष्य के सबसे बड़े दुश्मन"
"उसके परिवार के अपने सदस्य"
यीशु अपने शिष्यों को उनके आने वाले सताव की चर्चा कर रहा है, इसका आरंभ में हुआ है।
वैकल्पिक अनुवाद, "जो .... प्रिय जानते हैं वे .... योग्य नहीं" या "यदि तुम.... प्रेम करते हो तो .... योग्य नहीं।"
इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, "जो कोई" या "वह जो" या "जो मनुष्य"। (देखें यू.डी.बी.)
यहाँ "प्रिय" का अर्थ है "भाईचारे का प्रेम" "या" "मित्र का प्रेम" इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, "चिन्ता करता है" या "समर्पित है” या "लगाव रखता है"।
इसका अनुवाद यह भी हो सकता है, "मेरा होने के योग्य नहीं" या "मेरा होने के योग्य नहीं" या "मेरा शिष्य होने के योग्य नहीं" या "मेरा होने का नहीं"।(देखें यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद, "जो अपना क्रूस न उठाएं वे .... योग्य नहीं" या "यदि तुम अपना क्रूस न उठाओ तो ...योग्य नहीं" या जब तक तुम अपना क्रूस न उठाओ तब तक ... योग्य नहीं"।
यह मरने के लिए तैयार रहने का रूपक है। आपको सामान उठाकर किसी के पीछे चलने का कोई साधारण शब्द काम में लेना होगा। (देखें: Metaphor)
"लेकर" या "उठाकर चलना"।
इनका अनुवाद यथा संभव कम से कम शब्दों में करना होगा। वैकल्पिक अनुवादः "जो खोज में रहेंगे....खोएंगे और जो खोएंगे.... पाएंगे" या "यदि तुम खोजते हो तो खोओगे.... खोओगे तो .... पाओगे"।
यह "रखने" या "बचाने" के लिए लाक्षणिक प्रयोग है। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, "रखने का प्रयास करता है" या "सुरक्षा करने का प्रयास करता है"।
इसका अर्थ यह नहीं कि मनुष्य मर जायेगा। यह "सच्चा जीवन नहीं पाएगा" के लिए प्रयुक्त रूपक है।
वैकल्पिक अनुवाद हैः "त्यागता है" या "त्यागने के लिए तैयार हैं"।
"क्योंकि वह मुझ में विश्वास करता है" (देखें यू.डी.बी.) या "मेरे लिए", या "मेरे लिए"। यह वही विचार है जो में व्यक्त है।
इस रूपक का अर्थ है "सच्चा जीवन पाएगा"
यीशु अब अपने शिष्यों से कहना आरंभ करता है कि जब वे निकलेंगे तब उनकी सहायता करने वालों को वह प्रतिफल देगा।
इसका अनुवाद हो सकता है, "जो कोई" या "हर एक जो" या "वह जो"। (देखें: यू.डी.बी.)
यह वही शब्द है, जो में आया है, "ग्रहण" जिसका अर्थ है अतिथि स्वरूप ग्रहण करना।
"तुम्हें" सर्वनाम का अर्थ है वे शिष्य जिनसे यीशु बातें कर रहा है।"
"मेरे पिता परमेश्वर को ग्रहण करता है जिसने मुझे भेजा है"।
इसके साथ ही यीशु अपने प्रेरितों को ग्रहण करने वालों के प्रतिफल की चर्चा समाप्त करता है।
"जो कोई भी पिलाए"
इन छोटों में से एक को मेरा चेला जानकर एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए । इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, "क्योंकि वह मेरा शिष्य है इन छोटों में से किसी एक को भी" या "मेरे शिष्यों में छोटे से छोटे को भी ठंडा पानी पिलाए"।
"वह मनुष्य निश्चय ही अपना प्रतिफल पाएगा"।
"इन्कार किया जाएगा" अधिकार से इसका कोई संबन्ध नहीं है।
यीशु ने अपने बाहर शिष्यों को अधिकार दिया कि वे अशुद्ध आत्माओं को निकालें और सब रोगों को चंगा करें।
यीशु के साथ विश्वासघात करने वाले चेले का नाम यहूदा इस्करियोती था।
यीशु ने अपने चेलों को केवल इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा था।
चेलों को न पैसा न अधिक कपड़े साथ रखने थे।
चेले गांव में जब तक रहें वे किसी योग्य व्यक्ति के घर ठहरें।
जिन नगरों में चेलों को ग्रहण नहीं किया और उनके वचनों को नहीं सुना गया उनका दण्ड सदोम और अमोरा से अधिक बुरा होगा।
यीशु ने कहा था कि लोग चेलों को पकड़ कर सभाओं में सौंपेंगे, कोड़े मारेंगे और राजाओं और हाकिमों के सामने पहुंचाए जाएंगे।
उनके दोषारोपण के समय परमेश्वर का आत्मा उनके मुख से बोलेगा।
यीशु ने कहा कि जो अन्त समय तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।
यीशु के चेलों से लोग घृणा करेंगे क्योंकि उन्होंने यीशु से भी घृणा की थी।
हमें देह को नष्ट करने वालों से नहीं डरना है क्योंकि वे आत्मा को नष्ट नहीं कर सकते।
हमें उससे डरना है जो आत्मा और देह दोनों को नरक में नष्ट कर देगा।
यीशु स्वर्ग में पिता के सामने उसे स्वीकार करेगा।
यीशु स्वर्ग में पिता के सामने उसका इन्कार करेगा।
यीशु ने कहा कि वह तो परिवारों में भी विभाजन करने आया है।
यीशु के लिए जो जान दे देगा वह जीवन पाएगा।
छोटे से छोटे को यीशु का चेला मानकर को एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए तो उसे प्रतिफल अवश्य मिलेगा।
1 जब यीशु अपने बारह चेलों को निर्देश दे चुका, तो वह उनके नगरों में उपदेश और प्रचार करने को वहाँ से चला गया। 2 यूहन्ना ने बन्दीगृह में मसीह के कामों का समाचार सुनकर अपने चेलों को उससे यह पूछने भेजा, 3 “क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की प्रतीक्षा करें?” 4 यीशु ने उत्तर दिया, “जो कुछ तुम सुनते हो और देखते हो, वह सब जाकर यूहन्ना से कह दो। 5 कि अंधे देखते हैं और लँगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं और बहरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाए जाते हैं, और गरीबों को सुसमाचार सुनाया जाता है। 6 और धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।”
7 जब वे वहाँ से चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को? 8 फिर तुम क्या देखने गए थे? जो कोमल वस्त्र पहनते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं। 9 तो फिर क्यों गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को देखने को? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, वरन् भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को। 10 यह वही है, जिसके विषय में लिखा है, कि
‘देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे भेजता हूँ,
जो तेरे आगे तेरा मार्ग तैयार करेगा।’ (मला. 3:1)
11 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है वह उससे बड़ा* है। 12 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश होता रहा है, और बलवान उसे छीन लेते हैं। 13 यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यद्वाणी करते रहे। 14 और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है*। (मला. 4:5) 15 जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।
16 “मैं इस समय के लोगों की उपमा किस से दूँ? वे उन बालकों के समान हैं, जो बाजारों में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं। 17 कि हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजाई, और तुम न नाचे; हमने विलाप किया, और तुम ने छाती नहीं पीटी। 18 क्योंकि यूहन्ना न खाता आया और न ही पीता, और वे कहते हैं कि उसमें दुष्टात्मा है। 19 मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया, और वे कहते हैं कि देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों और पापियों का मित्र! पर ज्ञान अपने कामों में सच्चा ठहराया गया है।”
20 तब वह उन नगरों को उलाहना देने लगा, जिनमें उसने बहुत सारे सामर्थ्य के काम किए थे; क्योंकि उन्होंने अपना मन नहीं फिराया था। 21 “हाय, खुराजीन*! हाय, बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सूर और सैदा में किए जाते, तो टाट ओढ़कर, और राख में बैठकर, वे कब के मन फिरा लेते। 22 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ; कि न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सूर और सैदा की दशा अधिक सहने योग्य होगी। 23 और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा; जो सामर्थ्य के काम तुझ में किए गए है, यदि सदोम में किए जाते, तो वह आज तक बना रहता। 24 पर मैं तुम से कहता हूँ, कि न्याय के दिन तेरी दशा से सदोम के नगर की दशा अधिक सहने योग्य होगी।”
25 उसी समय यीशु ने कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया है। 26 हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।
27 “मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे।
28 “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे* लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। 29 मेरा जूआ* अपने ऊपर उठा लो; और मुझसे सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। 30 क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।”
यह भाग यूहन्ना के चेलों को दिए गए यीशु के उत्तर का वृत्तान्त है।
इस शब्द का उत्तरार्थ यह दिखाने के लिए है कि यह एक वृत्तान्त का आरंभ है। यदि आपकी भाषा में किसी वृत्तान्त को आरंभ करने का प्रावधान है तो उसका प्रयोग करें। इसका अनुवाद हो सकता है, "तब" या "इसके बाद"
इस शब्द का अनुवाद "शिक्षा" या "आदेश" भी हो सकता है।
यीशु के बारह चयनित शिष्य।
"उस समय" इसको छोड़ा जा सकता है। (देखें यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद, "यूहन्ना जो बन्दीगृह में था, उसने सुना कि" या "किसी ने यूहन्ना को बन्दीगृह में इसके बारे में बताया"।
यूहन्ना ने अपने शिष्यों को सन्देश के साथ यीशु के पास भेजा।
"उससे" सर्वनाम यीशु के लिए काम में लिया गया है।
अनुवाद कैसे भी करें, "आनेवाला" या "जिसकी हम प्रतीक्षा कर रहे हैं" यह मसीह (ख्रीस्त यू.डी.बी.) के लिए शिष्टोक्ति ही है।
"आशा करें" यहाँ सर्वनाम "हम" केवल यूहन्ना और उसके शिष्यों के लिए नहीं है परन्तु सब यहूदियों के लिए है।
इसके साथ ही यूहन्ना के शिष्यों को दिया गया यीशु का उत्तर समाप्त होता है।
"यूहन्ना को सुना दो"।
यीशु जनसमूह से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में चर्चा करता है।
यीशु इस वाक्यांश को तीन प्रश्नों में व्यक्त करता है कि लोग सोचें कि यूहन्ना कैसा मनुष्य था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "क्या तुम देखने गए थे कि...? कदापि नहीं"। या "निश्चय ही तुम... देखने नहीं गए थे"।
इसका अर्थ हो सकता है (1) यरदन नदी के किनारे पर उगने वाले पौधे (देखें यू.डी.बी.) या (2) मनुष्य के लिए एक रूपक, "एक मनुष्य जो सरकण्डे के समान हवा में हिलता था"। इस उपमा के दो संभावित अर्थ हैं, ऐसा मनुष्य (1) हवा द्वारा आसानी से हिलाया जा सकता है, आसानी से विचार बदलने वाला मनुष्य, या (2) हवा चलने पर बहुत आवाज करता है, महत्त्व की बात तो कम पर व्यर्थ की बातें अधिक करने वाला,
एक लम्बी घास
"मंहगे वस्त्र पहने हुए" धनवान लोग ऐसे वस्त्र पहनते थे।
इस शब्द का अनुवाद प्रायः "देखो" किया जाता है कि अग्रिम बात पर बल दिया जाए। वैकल्पिक अनुवाद होगा, "निश्चय ही"
यीशु यूहन्ना जनसमूह से बपतिस्मा देने वाले ही की चर्चा करता है।
यहाँ भी यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से संबन्धित प्रश्नों का क्रम चल रहा है।
यहाँ सर्वनाम बहुवचन में है और जनसमूह के लिए है।
"एक साधारण भविष्यद्वक्ता को नहीं", या "एक साधारण भविष्यद्वक्ता से भी अधिक महत्त्वपूर्ण मनुष्य को"
"यह" अर्थात यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला।
यहाँ "जिसके" वह संदर्भ अगले वाक्यांश में "अपने दूत" से है।
यीशु भविष्यद्वक्ता मलाकी का उद्धरण देते हुए कह रहा है यूहन्ना वही दूत है जिसकी चर्चा मलाकी की पुस्तक में की गई है ।
यहाँ सर्वनाम "मैं" परमेश्वर के लिए काम में लिया गया है। पुराने नियम की भविष्यद्वाणी का लेखक परमेश्वर के शब्दों को ज्यों का त्यों व्यक्त कर रहा है।
"तेरे सामने" या "तुम से आगे चलने के लिए" यहाँ "तेरे" एक वचन में है क्योंकि परमेश्वर मसीह से बातें कर रहा है।
यीशु यूहन्ना जनसमूह से बपतिस्मा देने वाले ही की चर्चा करता है।
"जितनों को स्त्रियों ने जन्म दिया है," उनमें या "जितने मनुष्य अब तक रहे हैं उनमें" (देखें यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद, "यूहन्ना सबसे बड़ा है"।
जिस राज्य की परमेश्वर स्थापना करेगा उसके एक भाग में वैकल्पिक अनुवाद होगा, "जो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे"
"वह यूहन्ना से भी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।"
"जब से यूहन्ना ने प्रचार करना आरंभ किया है"
इसके संभावित अर्थ हैं (1) उग्रवादी वहाँ निरंकुश व्यवहार करते हैं (देखें यू.डी.बी.) या (2) मनुष्य स्वर्ग के राज्य की प्रजा को सताते है, या (3) स्वर्ग के राज्य बल के साथ बढ़ रहा है और बलवान लोग उसमें प्रवेश करना चाहते हैं।
यीशु यूहन्ना जनसमूह से बपतिस्मा देने वाले ही की चर्चा करता है।
व्यवस्था मूसा की व्यवस्था
यूहन्ना , यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला।
यह जनसमूह के संदर्भ में है।
"यही" अर्थात यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, यह वाक्य लाक्षणिक प्रयोग है कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला पुराने नियम में की गई एलिय्याह की भविष्यद्वाणी की पूर्ति है परन्तु वह यह नहीं कहता कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला ही एलिय्याह है।
कुछ भाषाओं में द्वितीय पुरूष काम में लेना अधिक स्वाभाविक होगा। "सुनने के लिए तुम्हारे पास काम हों तो सुन लो"।
"जो सुन सकता है“ या "जो भी मेरी बात सुनता है"
"वह ध्यान से सुन ले" या "वह मेरी बात पर ध्यान दे"।
यीशु यूहन्ना जनसमूह से बपतिस्मा देने वाले ही की चर्चा करता है।
यह प्रश्न का आरंभ है। यीशु इससे अपने युग के मनुष्यों की तुलना करना आरंभ करता है और बाजार में बैठे हुए बालकों से करता है। वह प्रश्न पूछ कर आरंभ करता है (देखें )
इस उपमा का अर्थ हो सकता है (1) यीशु ने बाँसुरी बजाई और यूहन्ना ने ”विलाप किया“ परन्तु ”इस पीढ़ी न तो नाची और न विलाप किया, आज्ञाकारिता की आलोचना की कि वे व्यवस्था का पालन नहीं करते। व्यवस्था में जोड़े गए उनके अपने नियम
"आज जो लोग हैं", या "ये लोग", या "इस पीढ़ी के तुम लोग" (देखें यू.डी.बी.)
यह एक खुला मैदान होता या जहाँ व्यापारी अपना सामान बेचने आते थे।
"हमने" अर्थात बाजार में बैठे बालक "तुम्हारे" अर्थात वह पीढ़ी या वह जनसमूह जो संगीत सुनकर प्रतिक्रिया नहीं दिखाता है।
यह एक लम्बा खोखला वा़द्य यन्त्र है जिसे एक सिरे से फूंक कर बजाया जाता था।
"परन्तु तुम संगीत के अनुसार नहीं नाचे"
"तुम हमारे साथ रोए नहीं"
यीशु जनसमूह से यूहन्ना की चर्चा समाप्त करता है।
"भोजन नहीं करता था", "बहुधा उपवास रखता था" या सामान्य उत्तम भोजन नहीं खाता था (यू.डी.बी.) इसका अर्थ यह नहीं कि यूहन्ना भोजन ही नहीं करता था।
यीशु यूहन्ना के विषय लोगों की बातों का उद्धरण दे रहा है इसका अनुवाद परोक्ष वाक्य में किया जा सकता है, "वे कहते हैं कि उसमें दुष्टात्मा है" या "वे उस पर दुष्टात्माग्रस्त होने का दोष लगाते हैं।"
"वे" अर्थात वह पीढ़ी (पद 16)
क्योंकि यीशु उन लोगों से अपेक्षा करता था कि वे उसे पहचान लें कि वह मनुष्य का पुत्र है, अतः इसका अनुवाद किया जा सकता है, "मैं, मनुष्य का पुत्र"।
यीशु लोगों की बातों का उद्धरण दे रहा है कि वे उसके अर्थात मनुष्य के पुत्र के बारे में क्या कहते हैं। इसका अनुवाद परोक्ष वाक्य में किया जा सकता है, "वे कहते हैं कि वह पेटू मनुष्य है", या "वे उस पर खाते रहने का दोष लगाते हैं।" यदि आप "मनुष्य के पुत्र" का अनुवाद "मैं, मनुष्य का पुत्र" करते हैं तो परोक्ष उद्धरण को अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "वे कहते हैं कि मैं पेटू मनुष्य हूँ"।
"वह खाने का लालची है" या "वह स्वभाव से ही बहुत खाता है"।
"पियक्कड़" या "बहुत मदिरा पीने वाला"
यह संभवतः एक नीतिवचन है जिसे यीशु इस परिस्थिति में प्रासंगिक बना रहा है क्योंकि जिन मनुष्यों ने यीशु को और यूहन्ना को ग्रहण नहीं किया वे बुद्धिमान नहीं हैं। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में है।
ज्ञान को मानव रूप देने की इस अभिव्यक्ति का अभिप्राय यह नहीं कि ज्ञान परमेश्वर के समक्ष उचित ठहरे परन्तु इस अभिप्राय में कि वह सच्चा ठहराया जाता है। (देखें: ))
"अपने" सर्वनाम शब्द के मानवीकरण के संदर्भ में है।
यीशु उन नगरों की आलोचना करना आरंभ करता है जहाँ उसने पहले चमत्कार किए थे।
यीशु लाक्षणिक प्रयोग द्वारा उन नगरों के निवासियों को गलत काम के विषय ठहराते हैं।
शहरी क्षेत्र
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, "आश्चर्यकर्म" या "शक्ति प्रदर्शन के काम" या "चमत्कार" (यू.डी.बी.)
"उन्होंने" उन लोगों के संदर्भ में है जिन्होंने उन नगरों में पश्चाताप नहीं किया था।
यीशु इस प्रकार बोल रहा है कि मानों खुराजीन और बैतसैदा के निवासी सुन रहे हों परन्तु वे वहाँ नहीं हैं।
इन नगरों के नामों का लाक्षणिक प्रयोग किया गया है जो वास्तव में उनके निवासियों ने संदर्भ में है।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्यों में किया जा सकता है, "यदि मैं सूर और सैदा में चमत्कार दिखाता"
यहाँ एकवचन काम में लिया गया है।
"वे" सर्वनाम सूर और सैदा के लोगों के संदर्भ में है।
"वे पापों का दुःख प्रकट करते“
"न्याय के दिन परमेश्वर तुम्हारी अपेक्षा सूर और सैदा पर अधिक दया दिखाएगा" या "परमेश्वर, न्याय के दिन तुम्हें सूर और सैदा के निवासियों से अधिक दण्ड देगा" (देखें यू.डी.बी.) यहाँ सलंग्न जानकारी है, "क्योंकि तुमने मन फिराकर मुझमें विश्वास नहीं किया है जबकि तुमने तो मेरे चमत्कारों को देखा है"।
"तेरी" सर्वनाम एक वचन में है और खुराजीन या बैतसैदा के लिए काम में लिया गया है।
यीशु उन नगरों के विरोध में ही कह रहा है जिसमें उसने पहले चमत्कार दिखाए थे।
अब यीशु कफरनहूम के निवासियों को संबोधन कर रहा है जैसे कि मानों वे सुन रहे हैं परन्तु वे सुन नहीं रहे हैं। (देखें /उत्संबोधन) "तू" सर्वनाम यहाँ एकवचन में है और इन दोनों पदों में हर जगह कफरनहूम का बोध कराता है।
इन नगरों कें नाम लाक्षणिक प्रयोग हैं जिसका अर्थ है वहाँ के निवासी (देखें: /लाक्षणिक प्रयोग)
इस प्रश्न के द्वारा यीशु कफरनहूम के निवासियों को उनके घमण्ड के लिए झिड़कता है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, "क्या तू स्वर्ग तक जायेगा"? या "क्या तू सोचता है कि परमेश्वर तुझे सम्मानित करेगा"?
ऊँचा किया जायेगा "सम्मानित किया जायेगा"
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, "परमेश्वर तुझे अधोलोक में गिराएगा"।
जो सामर्थ्य के काम तुझ में किए गए हैं, यदि सदोम में किए जाते इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, "यदि मैं उन सामर्थी कार्यों को करता जो मैंने तुझ में किए हैं"।
सामर्थ्य के काम, "बड़े-बड़े काम", "शक्ति प्रदर्शन के काम" या "चमत्कार"। (यू.डी.बी.)
"वह" सर्वनाम सदोम का बोध कराता है।
इसका अनुवाद हो सकता है, "न्याय के दिन परमेश्वर तेरी अपेक्षा सदोम को अधिक दया दिखाएगा" या "न्याय के दिन परमेश्वर तुझे सदोम के निवासियों से अधिक दण्ड देगा"
जनसमूह के मध्य रहते हुए यीशु स्वर्गीय पिता से विनती करता है।
इसका अर्थ हो सकता है, (1) 10:05/10:5 में यीशु ने जिन शिष्यों को भेजा था वे लौट आए (देखें 12:01/12:1) और यीशु उनमें से किसी की बात पर प्रतिक्रिया दिखा रहा है या (2) यीशु उन मन न फिराने वाले नगरों के दोषारोपण का समापन कर रहा हैः उसी समय यीशु ने कहा।
हे पिता , यह पिता परमेश्वर है न कि उसका सांसारिक पिता।
इसका अनुवाद लाक्षणिक प्रयोग स्वरूप किया जा सकता है, "स्वर्ग और पृथ्वी की सब वस्तुओं के स्वामी" या स्वरूप "जगत के स्वामी",
"इन बातों" से यीशु का तात्पर्य क्या था स्पष्ट नहीं है। यदि आपकी भाषा में इसका अर्थ स्पष्ट करने की आवश्यकता पड़े तो वैकल्पिक अनुवाद सर्वोत्तम होगा, "तूने अज्ञानियों पर उस सत्य का प्रकाशन किया है जो तूने ज्ञानियों और समझदारों को सीखने नहीं दिया"।
यह क्रिया "प्रकट" का विशेष शब्द है।
"जो मनुष्य ज्ञानवान और समझदार हैं" इसका वैकल्पिक अनुवाद है, "अपने आपको ज्ञानवान और समझदार मानने वाले"। (देखें यू.डी.बी., )
"उन बातों को प्रकट किया।"
संपूर्ण वाक्यांश में एक शब्द का अनुवाद किया गया है जिसका अर्थ है, "छोटे बच्चे", "अबोध" या "अज्ञानी", इसका वैकल्पिक अनुवाद है, "अबोध छोटे बच्चे"।
बालक , यह उन लोगों के लिए उपमा का प्रयोग है जो स्वयं को ज्ञानवान और अधिक शिक्षित नहीं समझते हैं।
"क्योंकि तूने देखा कि ऐसा करना अच्छा है"।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से किया जा सकता है, "मेरे पिता ने सब कुछ मुझे सौंप दिया है" या "मेरे पिता ने सब कुछ मेरे हाथों में कर दिया है"।
"केवल पिता ही पुत्र को जानता है"।
व्यक्तिगत अनुभव से जानता है।
यीशु स्वयं के अन्य पुरूष के रूप में व्यक्त कर रहा है।
केवल पुत्र ही पिता को जानता है।
"व्यक्तिगत" अनुभव से जानता है।
वैकल्पिक अनुवादः "मनुष्य पिता को तब ही जान सकता है जब केवल पुत्र पिता को उस पर प्रकट करना चाहे"।
"उसे" पिता परमेश्वर के लिए काम में लिया गया सर्वनाम है।
यीशु जनसमूह से बातें करना समाप्त करता है।
यह रूपक यहूदियों की व्यवस्था में जूए का संदर्भ देता है
"मैं तुम्हें तुम्हारे परिश्रम और बोझ से विश्राम करने दूँगा"।
इस पद में सर्वनाम "अपने", "सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे हुए लोगों" का बोध कराता है। इस रूपक का अर्थ है, "जो काम मैं तुम्हें दूं उसे स्वीकार कर लो", (देखें यू.डी.बी.) या "मेरे साथ काम करो"।
यहाँ "हल्का" शब्द भारी का विलोम शब्द है।
उपदेश के लिए जाने से पूर्व यीशु ने चेलों को निर्देश दिए थे।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने सन्देश भेजा, "क्या आने वाला तू ही है, या हम किसी दूसरे की बाट जोहें?"
यीशु ने उत्तर दिया, रोगी चंगे किए जाते हैं, मुर्दे जिलाए जाते हैं और कंगालों को सुसमाचार सुनाया जाता है।
जो यीशु के कारण ठोकर न खाए उनको यीशु ने धन्य कहा।
यीशु ने कहा कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला वह दूत है जो आने वाले का मार्ग तैयार करेगा।
यीशु ने कहा कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला एलिय्याह है।
वह पीढ़ी कहती थी कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले में दुष्ट आत्मा थी।
वह पीढ़ी कहती थी कि यीशु पेटू और पियक्कड़ है और महसूल लेने वालों तथा पापियों के साथ भोजन करता है।
यीशु के महान कामों को देखकर भी कुछ नगरों ने मन नहीं फिराया तो यीशु ने उनके दण्ड की भविष्यद्वाणी की थी।
ज्ञानियों और समझदारों से स्वर्ग के राज्य की बातों को छिपाने के कारण यीशु ने परमेश्वर की प्रशंसा की थी।
यीशु ने परमेश्वर की प्रशंसा की कि उसने स्वर्ग का राज्य बालकों जैसे अज्ञानियों पर प्रकट किया है।
यीशु ने कहा कि वह स्वर्गीय पिता को जानता है और जिस पर चाहेगा उस पर प्रकट करेगा।
यीशु ने सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे हुए लोगों के लिए विश्राम की प्रतिज्ञा की है।
1 उस समय यीशु सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेलों को भूख लगी, और वे बालें तोड़-तोड़ कर खाने लगे। 2 फरीसियों ने यह देखकर उससे कहा, “देख, तेरे चेले वह काम कर रहे हैं, जो सब्त के दिन करना उचित नहीं।” 3 उसने उनसे कहा, “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने, जब वह और उसके साथी भूखे हुए तो क्या किया? 4 वह कैसे परमेश्वर के घर में गया, और भेंट की रोटियाँ* खाई, जिन्हें खाना न तो उसे और न उसके साथियों को, पर केवल याजकों को उचित था? 5 या क्या तुम ने व्यवस्था में नहीं पढ़ा, कि याजक सब्त के दिन मन्दिर में सब्त के दिन की विधि को तोड़ने पर भी निर्दोष ठहरते हैं? (गिन. 28:9-10, यूह. 7:22-23) 6 पर मैं तुम से कहता हूँ, कि यहाँ वह है, जो मन्दिर से भी महान है। 7 यदि तुम इसका अर्थ जानते कि मैं दया से प्रसन्न होता हूँ, बलिदान से नहीं, तो तुम निर्दोष को दोषी न ठहराते। (होशे 6:6) 8 मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।” (मर. 2:28)
9 वहाँ से चलकर वह उनके आराधनालय में आया। 10 वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूखा हुआ था; और उन्होंने उस पर दोष लगाने के लिए उससे पूछा, “क्या सब्त के दिन चंगा करना* उचित है?” 11 उसने उनसे कहा, “तुम में ऐसा कौन है, जिसकी एक भेड़ हो, और वह सब्त के दिन गड्ढे में गिर जाए, तो वह उसे पकड़कर न निकाले? 12 भला, मनुष्य का मूल्य भेड़ से कितना बढ़ कर है! इसलिए सब्त के दिन भलाई करना उचित है।” 13 तब उसने उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने बढ़ाया, और वह फिर दूसरे हाथ के समान अच्छा हो गया। 14 तब फरीसियों ने बाहर जाकर उसके विरोध में सम्मति की, कि उसे किस प्रकार मार डाले?
15 यह जानकर यीशु वहाँ से चला गया। और बहुत लोग उसके पीछे हो लिये, और उसने सब को चंगा किया। 16 और उन्हें चेतावनी दी, कि मुझे प्रगट न करना। 17 कि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो:
18 “देखो, यह मेरा सेवक है, जिसे मैंने चुना है; मेरा प्रिय, जिससे मेरा मन प्रसन्न है: मैं अपना आत्मा उस पर डालूँगा; और वह अन्यजातियों को न्याय का समाचार देगा। 19 वह न झगड़ा करेगा, और न धूम मचाएगा;
और न बाजारों में कोई उसका शब्द सुनेगा।
20 वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा;
और धूआँ देती हुई बत्ती को न बुझाएगा,
जब तक न्याय को प्रबल न कराए।
21 और अन्यजातियाँ उसके नाम पर आशा रखेंगी।”
22 तब लोग एक अंधे-गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी, उसके पास लाए; और उसने उसे अच्छा किया; और वह गूँगा बोलने और देखने लगा। 23 इस पर सब लोग चकित होकर कहने लगे, “यह क्या दाऊद की सन्तान है?” 24 परन्तु फरीसियों ने यह सुनकर कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार शैतान की सहायता के बिना दुष्टात्माओं को नहीं निकालता।” 25 उसने उनके मन की बात जानकर उनसे कहा, “जिस किसी राज्य में फूट होती है, वह उजड़ जाता है, और कोई नगर या घराना जिसमें फूट होती है, बना न रहेगा। 26 और यदि शैतान ही शैतान को निकाले, तो वह अपना ही विरोधी हो गया है; फिर उसका राज्य कैसे बना रहेगा? 27 भला, यदि मैं शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो तुम्हारे वंश किसकी सहायता से निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारा न्याय करेंगे। 28 पर यदि मैं परमेश्वर के आत्मा की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुँचा है। 29 या कैसे कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट सकता है जब तक कि पहले उस बलवन्त को न बाँध ले? और तब वह उसका घर लूट लेगा। 30 जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है; और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है। 31 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर पवित्र आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी। 32 जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न ही आनेवाले में क्षमा किया जाएगा।
33 “यदि पेड़ को अच्छा कहो, तो उसके फल को भी अच्छा कहो, या पेड़ को निकम्मा कहो, तो उसके फल को भी निकम्मा कहो; क्योंकि पेड़ फल ही से पहचाना जाता है। 34 हे साँप के बच्चों, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुँह पर आता है। 35 भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है। 36 और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो-जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। 37 क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।”
38 इस पर कुछ शास्त्रियों और फरीसियों ने उससे कहा, “हे गुरु, हम तुझ से एक चिन्ह* देखना चाहते हैं।” 39 उसने उन्हें उत्तर दिया, “इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं; परन्तु योना भविष्यद्वक्ता के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उनको न दिया जाएगा। 40 योना तीन रात-दिन महा मच्छ के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात-दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा। 41 नीनवे के लोग न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएँगे, क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर, मन फिराया और यहाँ वह है जो योना से भी बड़ा* है। 42 दक्षिण की रानी* न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएँगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने के लिये पृथ्वी की छोर से आई, और यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है।
43 “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है, तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और पाती नहीं। 44 तब कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी, लौट जाऊँगी, और आकर उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है। 45 तब वह जाकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें पैठकर वहाँ वास करती है, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है। इस युग के बुरे लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी।”
46 जब वह भीड़ से बातें कर ही रहा था, तो उसकी माता और भाई बाहर खड़े थे, और उससे बातें करना चाहते थे। 47 किसी ने उससे कहा, “देख तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हैं, और तुझ से बातें करना चाहते हैं।” 48 यह सुन उसने कहनेवाले को उत्तर दिया, “कौन हैं मेरी माता? और कौन हैं मेरे भाई?” 49 और अपने चेलों की ओर अपना हाथ बढ़ा कर कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये हैं। 50 क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और बहन, और माता है।”
यीशु अपने शिष्यों को फरीसियों के आरोप से बचाता है क्योंकि उन्होंने भूख मिटाने के लिए सब्त के दिन गेहूँ की बालें तोड़कर खाई थी।
गेहूँ उगने का स्थान। यदि गेहूँ अपरिचित है और "अन्न" अत्यधिक सामान्य शब्द है तो "रोटी के लिए काम में आनेवाले अन्न का खेत" काम में लें।
किसी के खेत से गेहूँ तोड़कर खाना चोरी नहीं माना जाता था (देखें यू.डी.बी.) प्रश्न तो यह था कि यह विधि सम्मत कार्य सब्त के दिन एक विधि सम्मत काम है।
गेहूँ की बालें
यह गेहूँ के पौधे का ऊपरी भाग है इसमें उस पौधे के बीज होते हैं, गेहूँ का पौधा बड़ी घास के जैसा होता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "देखो" या "सुनो" या "जो मैं कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दो"।
यीशु अपने शिष्यों को बचा रहा है जब फरीसी उन पर दोष लगा रहे थे कि वे सब्त के दिन गेहूँ कि बालें तोड़कर खा रहे थे।
फरीसियों से
यीशु फरीसियों को कोमलता से झिड़क रहा है कि उन्होंने पढ़कर भी नहीं सीखा। वैकल्पिक अनुवाद, "तुमने जो पढ़ा है उससे सीखना तो आवश्यक है"।
दाऊद
जो रोटी परमेश्वर को चढ़ाई जाती थी और मेज पर रखी रहती थी(यू.डी.बी)
"जो पुरूष दाऊद के साथ थे"।
"केवल याजक ही उन्हें खा सकते थे।"
यीशु अपने शिष्यों को बचा रहा है जब फरीसी उन पर दोष लगा रहे थे कि वे सब्त के दिन गेहूँ कि बालें तोड़कर खा रहे थे।
फरीसियों से
"तुमने व्यवस्था पढ़ी है इसलिए तुम जानते हो कि वहाँ लिखा है"
"सब्त के दिन दैनिक काम करना"
"परमेश्वर उन्हें दण्ड नहीं देगा"
"वह जो मन्दिर से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है" यीशु स्वयं को मन्दिर से भी बड़ा बता रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को बचा रहा है जब फरीसी उन पर दोष लगा रहे थे कि वे सब्त के दिन गेहूँ कि बालें तोड़कर खा रहे थे।
"तुम नहीं जानते"
फरीसियों से
बलिदान अच्छे हैं पर दया अधिक अच्छी है।
"परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में क्या कहा है"?
"मैं" परमेश्वर का संदर्भ देता है।
यीशु की फरीसियों के प्रति प्रतिक्रिया क्योंकि वे सब्त के दिन यीशु द्वारा चंगाई के कार्य की आलोचना कर रहे थे।
"यीशु खेतों से निकलकर"
उन फरीसियों के आराधनालय में जिनसे वह बातें कर रहा था।
यह शब्द "देखो" कहानी में नए मोड़ की हमें सूचना देता है। आपकी भाषा में इसका प्रावधान होगा।
"कुम्भलाया हुआ" या "मुड़ा हुआ"
यीशु की फरीसियों के प्रति प्रतिक्रिया क्योंकि वे सब्त के दिन यीशु द्वारा चंगाई के कार्य की आलोचना कर रहे थे।
"तुम्हारे मध्य ऐसा कोई है जो सब्त के दिन खड्डे में गिरी अपनी भेड़ को पकड़ कर बाहर न निकाले"? वैकल्पिक अनुवाद, "तुममें से हर एक ... उसे पकड़कर बाहर निकाले"।
फरीसियों से
"यदि उसके पास .... हो"
उसे पकड़ कर न निकाले?
"जो भलाई करते है वे सब्त की अवज्ञा नहीं करते" या "जो भलाई करते हैं वे सब्त पालन ही करते हैं"।
यीशु की फरीसियों के प्रति प्रतिक्रिया क्योंकि वे सब्त के दिन यीशु द्वारा चंगाई के कार्य की आलोचना कर रहे थे।
वह मनुष्य जिसका हाथ सूखा हुआ था।
"अपना हाथ उठा" या "अपना हाथ आगे कर"
उस मनुष्य से
उसका हाथ
"पूरा चंगा हो गया" या "फिर से स्वस्थ होगा"
"उसे घात करने की योजना बनाई"
"मार्ग खोजने लगे"
"यीशु को घात करें"
इस वृत्तान्त में दर्शाया गया है कि यीशु के कामों से यशायाह की भविष्यद्वाणी कैसे पूरी हुई है।
"कि फरीसी इसे घात करने की योजना बना रहे हैं।"
"प्रस्थान किया"
"उसके बारे में किसी से न कहना"।
"यशायाह के लिखे हुए वचनों द्वारा परमेश्वर ने जो कहा था"।
इस वृत्तान्त में भी वही दर्शाया गया है कि यीशु के कामों से भविष्यद्वक्ता यशायाह की एक भविष्यद्वाणी कैसे पूरी होती है। यशायाह ने परमेश्वर के शब्दों को ही लिखा था।
इस वृत्तान्त में भी वही दर्शाया गया है कि यीशु के कामों से भविष्यद्वक्ता यशायाह की एक भविष्यद्वाणी कैसे पूरी होती है। यशायाह ने परमेश्वर के शब्दों को ही लिखा था।
"सेवक" .
"वह दुर्बलों को तुच्छ न जानेगा।"
"थोड़ा टूटा या क्षतिग्रस्त"
धुआं देती हुई बत्ती, बुझाने के बाद जब दीपक की बत्ती धुआं देती है। इसका अर्थ है जो मनुष्य असहाय और बदकिस्मत हैं
इसके लिए एक नया वाक्य लिखा जा सकता है, "वह ऐसा ही करेगा जब तक"
"वह मनुष्यों को विश्वास दिलाता है कि वह न्यायी है"।
फरीसियों द्वारा यीशु पर दोष लगाने का वृत्तान्त यहाँ से आरंभ होता है कि वह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
"जो न देख सकता था न बोल सकता था"।
"लोगों ने देखा कि यीशु ने उसे चंगा किया तो सब चकित हो गए।"
फरीसियों द्वारा यीशु पर दोष लगाने का वृत्तान्त है कि वह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
अंधे गूंगे और दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य की चंगाई का आश्चर्यकर्म
बालज़बूल की सहायता के बिना दुष्टात्माओं को नहीं निकाल सकता। यह बालज़बूल का सेवक होने के कारण ही दुष्टात्मा निकाल सकता है।
फरीसी यीशु का नाम नहीं लेते थे कि उनके द्वारा यीशु का इन्कार प्रकट हो।
उनके .... उनसे .... फरीसियों
फरीसियों द्वारा यीशु पर दोष लगाने का वृत्तान्त है कि वह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
"यदि शैतान अपने ही राज्य के विरूद्ध काम करे"
"शैतान का राज्य कैसे स्थिर रहेगा" या "शैतान के राज्य का पतन हो जायेगा"।
"बाहर निकलने पर विवश करे", या "बहिष्कार करे", या "निकाल दे", या "निष्काषित करे"।
वैकल्पिक अनुवादः बालज़बूल की ही सहायता से तुम्हारे वंश भी दुष्टात्माएं निकालते होंगे“। (देखें यू.डी.बी.)।
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हारा वंश परमेश्वर के सामर्थ्य से दुष्टामाएं निकालता है तो वही तुम्हारा न्याय करे जब तुम कहते हो कि मैं बालज़बूल की सहायता से दुष्टात्माएं निकालता हूँ।"
फरीसियों द्वारा यीशु पर दोष लगाने का वृत्तान्त है कि वह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
फरीसियों के पास
"उस बलवन्त मनुष्य को वंश में किए बिना।"
"जो मेरा साथ नहीं देता" या "जो मेरे साथ काम नहीं करता"।
"मेरे विरूद्ध काम करता है" या "मेरा काम नष्ट करता है।"
यह फसल काटने के लिए एक प्रचलित शब्द था।
फरीसियों द्वारा यीशु पर दोष लगाने का वृत्तान्त है कि वह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
फरीसियों से
"परमेश्वर मनुष्य का हर एक पाप या निन्दा क्षमा करेगा" या "परमेश्वर हर पाप या निन्दा करने वाले हर एक मनुष्य को क्षमा कर देगा"।
"परमेश्वर पवित्र आत्मा विरोधी पाप कभी क्षमा नहीं करेगा।"
"मनुष्य के पुत्र का विरोध क्षमा किया जायेगा।"
वैकल्पिक अनुवाद, "इस समय.... आनेवाले समय में"
फरीसियों द्वारा यीशु पर दोष लगाने का वृत्तान्त है कि वह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
"या तो कहो कि फल अच्छा है तो पेड़ अच्छा है, या यह कहो कि फल निकम्मा है तो पेड़ भी निकम्मा है"।
इसका अर्थ है (1) स्वस्थ ... अस्वस्थ या (2) खाने योग्य... खाने योग्य नहीं।
इसका अर्थ है, (1) मनुष्य फल को देखकर कह सकते हैं कि पेड़ स्वस्थ है या नहीं या (2) मनुष्य फल को देख कर पेड़ की प्रजाति को बता सकता है।
फरीसियों से
"मनुष्य वही कहता है जो उसके मन में है"
भले भण्डार .... बुरे भण्डार ... अच्छे विचार .... बुरे विचार
फरीसियों द्वारा यीशु पर दोष लगाने का वृत्तान्त है कि वह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है।
फरीसियों से
"परमेश्वर उनसे पूछेगा" या "परमेश्वर महत्त्व का मूल्यांकन करेगा"
"निकम्मा" वैकल्पिक अनुवाद "हानिकारक" (देखें: यू.डी.बी.)
"मनुष्य"
"परमेश्वर निर्दोष ठहराया .... परमेश्वर दोषी ठहराया।"
यीशु अविश्वासी फरीसियों और शास्त्रियों को झिड़कता है, क्योंकि उन्होंने उस अंधे दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य की चंगाई के बाद चिन्ह मांगा था।
"ढूँढ़ते"
"इस समय के लोग बुराई से प्रेम करते हैं और परमेश्वर के निष्ठावान नहीं हैं"।
"परमेश्वर इस समय के बुरे और व्यभिचारी लोगों को कोई चिन्ह नहीं देगा।"
इसका अनुवाद हो सकता है, "जो योना के साथ हुआ" या "परमेश्वर ने योना के साथ जो चमत्कार किया"
कब्र के भीतर
यीशु अविश्वासी फरीसियों और शास्त्रियों को झिड़कता है क्योंकि उन्होंने अंधे दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य की चंगाई पर उससे चिन्ह माँगा।
वैकल्पिक अनुवाद; "नीनवे के लोग इस पीढ़ी को दोष देंगे... और परमेश्वर उनका दोषारोपण सुनकर तुम्हें दण्ड देगा" या "परमेश्वर नीनवे के लोगों पर तथा इस पीढ़ी को पाप का दण्ड देगा परन्तु उन्होंने मन फिराया और तुमने नहीं इसलिए वह तुम्हें ही दण्ड देगा"।
यीशु के सेवाकाल के समय के लोग।
"कोई अधिक महत्त्वपूर्ण"
यीशु फरीसियों तथा शास्त्रियों को झिड़कता है क्योंकि उन्होंने उससे चिन्ह माँगा।
वैकल्पिक अनुवादः "दक्षिण की रानी इस पीढ़ी को दोष देगी ... और परमेश्वर उसका दोषारोपण सुनकर तुम्हें दण्ड देगा"। या "परमेश्वर दक्षिण की रानी ... और उस पीढ़ी दोनों को पाप का दण्ड देगा परन्तु क्योंकि उसने सुलैमान के वचन सुने और तुमने मेरे वचन नहीं सुने, वह केवल तुम्हें दण्ड देगा"।
वह शीबा की रानी थी, अन्य जाति राज्य की
"वह बहुत दूर से आई थी" (देखें ))
वे लोग जो यीशु के सेवाकाल के समय थे
"कोई अधिक महत्त्वपूर्ण"
यीशु फरीसियों तथा शास्त्रियों को झिड़कता है क्योंकि उन्होंने उससे चिन्ह मांगा।
"निर्जन जगह" या "जहाँ लोग नहीं रहते"।(देखें यू.डी.बी)
"विश्राम नहीं पाती है"
"वह दुष्टात्मा कहती है।"
वैकल्पिक अनुवाद, "वह दुष्टात्मा देखती है कि किसी ने घर को साफ करके सब कुछ यथा स्थान सजा दिया है।"
यीशु के माता और भाइयों के आने पर उसे अपने आत्मिक परिवार को प्रकट करने का अवसर मिलता है।
यीशु की सांसारिक माता
इसका अर्थ हो सकता है, (1) उसी परिवार या कुटुम्ब के भाई (देखें यू.डी.बी.) या (2) इस्राएल में उसके मित्र या निकट संबन्धी।
"इच्छा रखते हैं"
यीशु के माता और भाइयों के आने पर उसे अपने आत्मिक परिवार को प्रकट करने का अवसर मिलता है।
जिसने यीशु को सन्देश दिया कि उसकी माता और उसके भाई उससे मिलना चाहते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैं बताता हूँ कौन मेरी सच्ची माता है और कौन मेरा सच्चा भाई है"।
"वह हर एक जन"
फरीसियों ने शिकायत की कि यीशु के चेले गेहूं की बालें तोड़कर खा रहे थे जो सब्त के दिन का उल्लंघन था।
यीशु ने कहा कि वह मन्दिर से भी बड़ा है।
मनुष्य का पुत्र, यीशु सब्त का प्रभु है।
फरीसियों ने यीशु से पूछा, "क्या सब्त के दिन चंगा करना उचित है?"
यीशु ने कहा कि सब्त के दिन भलाई करना व्यवस्थापूर्ण है।
फरीसियों ने बाहर जाकर षड्यंत्र रचा कि उसे कैसे घात करें।
यीशु ने कहा कि वह पवित्र-आत्मा के द्वारा दुष्टात्माएं निकालता है तो परमेश्वर का राज्य उनके पास आ पहुंचा है।
यीशु न झगड़ा करेगा, न धूम मचाएगा, न कुचले हुए सरकण्डे को तोड़ेगा, न धुआं देती हुई बत्ती को बुझाएगा।
यीशु ने कहा यदि शैतान ही शैतान को बाहर करे तो उसका राज्य कैसे स्थिर रहेगा।
यीशु ने कहा कि पवित्र-आत्मा की निन्दा क्षमा के योग्य नहीं है।
पेड़ अपने फलों से पहचाना जाता है।
यीशु ने कहा कि फरीसी अपने शब्दों द्वारा न्याय पाएंगे और दण्ड भोगेंगे।
यीशु ने कहा कि वह उस पीढ़ी को योना का चिन्ह देगा, तीन दिन-रात पृथ्वी के गर्भ में रहेगा।
यीशु ने कहा कि वह योना से अधिक महान है।
नीनवे के लोग और दक्षिण की रानी यीशु की पीढ़ी को दोषी ठहरायेंगे क्योंकि उन्होंने योना और सुलैमान से परमेश्वर का वचन ग्रहण किया था परन्तु यीशु की पीढ़ी ने योना और सुलैमान से बड़े के वचनों को ग्रहण नहीं किया।
यीशु ने कहा कि वह सुलैमान से भी बड़ा है।
यीशु की पीढ़ी के लोग उस मनुष्य के तुल्य हैं जिसमें से अशुद्ध आत्मा निकाली गई परन्तु वह अन्य सात दुष्टात्माओं को लेकर लौट आई और उस मनुष्य की दशा पहले से भी अधिक बुरी हो गई।
यीशु ने कहा कि स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलने वाले उसके भाई, बहन और माता है।
1 उसी दिन यीशु घर से निकलकर झील के किनारे जा बैठा। 2 और उसके पास ऐसी बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई कि वह नाव पर चढ़ गया, और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी रही। 3 और उसने उनसे दृष्टान्तों* में बहुत सी बातें कही “एक बोनेवाला बीज बोने निकला। 4 बोते समय कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया। 5 कुछ बीज पत्थरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें बहुत मिट्टी न मिली और नरम मिट्टी न मिलने के कारण वे जल्द उग आए। 6 पर सूरज निकलने पर वे जल गए, और जड़ न पकड़ने से सूख गए। 7 कुछ बीज झाड़ियों में गिरे, और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला। 8 पर कुछ अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना। 9 जिसके कान हों वह सुन ले।”
10 और चेलों ने पास आकर उससे कहा, “तू उनसे दृष्टान्तों में क्यों बातें करता है?” 11 उसने उत्तर दिया, “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उनको नहीं। 12 क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिसके पास कुछ नहीं है, उससे जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा। 13 मैं उनसे दृष्टान्तों में इसलिए बातें करता हूँ, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते। 14 और उनके विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है:
‘तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आँखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा।
15 क्योंकि इन लोगों के मन सुस्त हो गए है,
और वे कानों से ऊँचा सुनते हैं और उन्होंने अपनी आँखें मूंद लीं हैं;
कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें,
और कानों से सुनें और मन से समझें,
और फिर जाएँ, और मैं उन्हें चंगा करूँ।’
16 “पर धन्य है तुम्हारी आँखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं। 17 क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और धर्मियों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो, देखें पर न देखीं; और जो बातें तुम सुनते हो, सुनें, पर न सुनीं।
18 “अब तुम बोनेवाले का दृष्टान्त सुनो 19 जो कोई राज्य का वचन* सुनकर नहीं समझता, उसके मन में जो कुछ बोया गया था, उसे वह दुष्ट आकर छीन ले जाता है; यह वही है, जो मार्ग के किनारे बोया गया था। 20 और जो पत्थरीली भूमि पर बोया गया, यह वह है, जो वचन सुनकर तुरन्त आनन्द के साथ मान लेता है। 21 पर अपने में जड़ न रखने के कारण वह थोड़े ही दिन रह पाता है, और जब वचन के कारण क्लेश या उत्पीड़न होता है, तो तुरन्त ठोकर खाता है। 22 जो झाड़ियों में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनता है, पर इस संसार की चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबाता है, और वह फल नहीं लाता। 23 जो अच्छी भूमि में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।”
24 यीशु ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, “स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के समान है जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया। 25 पर जब लोग सो रहे थे तो उसका बैरी आकर गेहूँ के बीच जंगली बीज बोकर चला गया। 26 जब अंकुर निकले और बालें लगी, तो जंगली दाने के पौधे भी दिखाई दिए। 27 इस पर गृहस्थ के दासों ने आकर उससे कहा, ‘हे स्वामी, क्या तूने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? फिर जंगली दाने के पौधे उसमें कहाँ से आए?’ 28 उसने उनसे कहा, ‘यह किसी शत्रु का काम है।’ दासों ने उससे कहा, ‘क्या तेरी इच्छा है, कि हम जाकर उनको बटोर लें?’ 29 उसने कहा, ‘नहीं, ऐसा न हो कि जंगली दाने के पौधे बटोरते हुए तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो। 30 कटनी तक दोनों को एक साथ बढ़ने दो, और कटनी के समय मैं काटनेवालों से कहूँगा; पहले जंगली दाने के पौधे बटोरकर जलाने के लिये उनके गट्ठे बाँध लो, और गेहूँ को मेरे खत्ते में इकट्ठा करो।’ ”
31 उसने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, “स्वर्ग का राज्य राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपने खेत में बो दिया। 32 वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग-पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं।”
33 उसने एक और दृष्टान्त उन्हें सुनाया, “स्वर्ग का राज्य ख़मीर के समान है जिसको किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिला दिया और होते-होते वह सब ख़मीर हो गया।”
34 ये सब बातें यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों से कहीं, और बिना दृष्टान्त वह उनसे कुछ न कहता था। 35 कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: “मैं दृष्टान्त कहने को अपना मुँह खोलूँगा मैं उन बातों को जो जगत की उत्पत्ति से गुप्त रही हैं प्रगट करूँगा।”
36 तब वह भीड़ को छोड़कर घर में आया, और उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “खेत के जंगली दाने का दृष्टान्त हमें समझा दे।” 37 उसने उनको उत्तर दिया, “अच्छे बीज का बोनेवाला मनुष्य का पुत्र है। 38 खेत संसार है, अच्छा बीज राज्य के सन्तान, और जंगली बीज दुष्ट के सन्तान हैं। 39 जिस शत्रु ने उनको बोया वह शैतान है; कटनी जगत का अन्त है: और काटनेवाले स्वर्गदूत हैं। 40 अतः जैसे जंगली दाने बटोरे जाते और जलाए जाते हैं वैसा ही जगत के अन्त में होगा। 41 मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करनेवालों को इकट्ठा करेंगे। 42 और उन्हें आग के कुण्ड* में डालेंगे, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा। 43 उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य के समान चमकेंगे। जिसके कान हों वह सुन ले।
44 “स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पा कर छिपा दिया, और आनन्द के मारे जाकर अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।
45 “फिर स्वर्ग का राज्य एक व्यापारी के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था। 46 जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उसने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।
47 “फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियों को समेट लाया। 48 और जब जाल भर गया, तो मछवे किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी-अच्छी तो बरतनों में इकट्ठा किया और बेकार-बेकार फेंक दी। 49 जगत के अन्त में ऐसा ही होगा; स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, 50 और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे। वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
51 “क्या तुम ये सब बातें समझ गए?” चेलों ने उत्तर दिया, “हाँ।” 52 फिर यीशु ने उनसे कहा, “इसलिए हर एक शास्त्री जो स्वर्ग के राज्य का चेला बना है, उस गृहस्थ के समान है जो अपने भण्डार से नई और पुरानी वस्तुएँ निकालता है।”
53 जब यीशु ये सब दृष्टान्त कह चुका, तो वहाँ से चला गया। 54 और अपने नगर में आकर उनके आराधनालय में उन्हें ऐसा उपदेश देने लगा; कि वे चकित होकर कहने लगे, “इसको यह ज्ञान और सामर्थ्य के काम कहाँ से मिले? 55 क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं? और क्या इसकी माता का नाम मरियम और इसके भाइयों के नाम याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा नहीं? 56 और क्या इसकी सब बहनें हमारे बीच में नहीं रहती? फिर इसको यह सब कहाँ से मिला?”
57 इस प्रकार उन्होंने उसके कारण ठोकर खाई, पर यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता अपने नगर और अपने घर को छोड़ और कहीं निरादर नहीं होता।” 58 और उसने वहाँ उनके अविश्वास के कारण बहुत सामर्थ्य के काम नहीं किए।
इस अध्याय में यीशु नाव पर चढ़कर प्रचार कर रहा है और जनसमूह के दृष्टान्तों द्वारा समझा रहा है कि परमेश्वर का राज्य क्या है और कैसा है।
पिछले अध्याय की घटनाओं के ही दिन
यह स्पष्ट नहीं है कि यीशु किसके घर में था।
यह संभवतः पाल वाली लकड़ी की नाव थी।
यह वृत्तान्त वही है यीशु जन समूह को परमेश्वर के राज्य के बारे में सम्मान के लिए दृष्टान्त सुना रहा है।
यीशु ने उन्हें बहुत सी बातें दृष्टान्तों में समझाई "यीशु ने उन्हें अनेक बाते दृष्टान्तों में सुनाई "
जनसमूह से
वैकल्पिक अनुवाद, "देखो" या "सुनो", "मैं जो कहने जा रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो"।
"एक किसान खेत में बीज विसर्जन करने निकला"
"जब बीज बोने वाले ने बीज विसर्जन किया"
"खेत के किनारे मार्ग पर" वह मार्ग लोगों के चलने के कारण कठोर हो गया होगा।
"बीजों को खा लिया"
चट्टानों में जो थोड़ी बहुत मिट्टी थी उसमें
"अंकुर निकल आए"
"सूर्य की गर्मी के कारण वे झुलस गए और गर्मी से जल गए"। (देखें: Active or Passive)
"अंकुर सूख कर नष्ट हो गए"।
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।
जहाँ झाड़ियां उग रही थी वहाँ गिरे
"नई पौध को दबा दिया" जंगली घास द्वारा पौधों के नष्ट हो जाने का शब्द काम में लें।
"फसल उगी", या "अधिकाधिक बीज उगे" या "फलदायी हुए"।
कुछ भाषाओं में अधिक स्वाभाविक अनुवाद होगा द्वितीय पुरूष में, "तुम्हारे कान हों तो सुन लो।"
"जो सुन सकता है“ या "जो भी मेरी बात सुनता है"
"वह ध्यान से सुन ले" या "वह मेरी बात पर ध्यान दे"।
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।
शिष्यों को
इसका अनुवाद सलंग्न जानकारी के साथ कर्तृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है, "परमेश्वर ने तुम्हें स्वर्ग के राज्य के भेद को समझने की बुद्धि दी है परन्तु परमेश्वर ने इन लोगों को नहीं दी है।" या "परमेश्वर ने तुम्हें स्वर्ग के भेद समझने योग्य बनाया है परन्तु उसने इन्हें इस योग्य नहीं बनाया है"
चेले
जो सत्य अब तक छिपा हुआ था उसे यीशु अब प्रकट कर रहा है, वैकल्पिक अनुवादः "रहस्य" या "गुप्त सत्य" (देखें यू.डी.बी.)
"जिसमें समझ है" या "जो मेरी शिक्षा ग्रहण करता है"।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जाए, "परमेश्वर उसे और समझ देगा",
"वह स्पष्ट समझ लेगा"।
"जिसे समझ नहीं" या "जो मेरी शिक्षा को ग्रहण नहीं करता"
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है। "परमेश्वर उससे वह भी ले लेगा जो उसके पास है"
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।
"उनसे" इन दोनों पदों में जनसमूह के लिए प्रयुक्त सर्वनाम है।
यीशु इस सदृश्यता द्वारा शिष्यों से कह रहा है कि जनसमूह समझने से इन्कार करता है।
"यद्यपि वे देखते हैं वे ग्रहण नहीं कर पाते" यदि क्रिया को "कर्म" की आवश्यकता हो तो अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, "यद्यपि वे वस्तुओं को देखते हैं वे उन्हें समझते नहीं"। या "यद्यपि वे घटनाओं को घटते देखते हैं, वे समझ नहीं पाते कि उनका अर्थ क्या है"।
"यद्यपि वे सुनते हैं वे समझ नहीं पाते" यदि क्रियाओं का "कर्म" की आवश्यकता है तो इसका अनुवाद होगा, "यद्यपि वे निर्देश सुनते हैं, वे सत्य को समझ नहीं पाते।"
यह यशायाह भविष्यद्वक्ता द्वारा उद्धरण है जो उसके युग में अविश्वासी लोगों के लिए कहा गया था। यीशु इस उद्धरण द्वारा उसके श्रोताओं का वर्णन कर रहा है। यह एक और दृष्टांत है।
इसका अनुवाद हो सकता है, "तुम सुनोगे परन्तु समझोगे नहीं"। यदि क्रिया के लिए "कर्म" की आवश्यकता हो तो इसका अनुवाद इस प्रकार होगा, "तुम बातों को सुनोगे परन्तु उन्हें समझोगे नहीं"।
"तुम देखोगे परन्तु ग्रहण नहीं कर पाओगे"। यदि क्रिया के लिए "कर्म" की आवश्यकता हो तो अनुवाद इस प्रकार होगा, "तुम बातों को देखोंगे परन्तु अंतर्ग्रहण नहीं कर पाओगे।"
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य की शिक्षा दे रहा है। वह में दिए गए यशायाह के उद्धरण को ही सुन रहा है।
"यह लोग अब सीख नहीं सकते" (देखें यू.डी.बी.)
"वे सुनने की इच्छा ही नहीं रखते" (देखें यू.डी.बी.)
"उन्होंने आँखें बंद कर ली हैं", या "वे देखने से इन्कार करते है"
"कि वे आँखों से देख पाएं, कानों से सुन पाएं, मन से समझ पाएं और परिणाम यह हो कि वे मन फिराएँ"।
"लौट आएँ" या "मन फिराएँ"
"और मुझसे चंगाई पाएँ"। वैकल्पिक अनुवाद होगा, "और मैं उन्हें फिर से अपना लूँ"
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।
यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा है।
"कि वे देख पाएँ" या "वे देखने योग्य हों"।
"कि वे सुन पाएँ" या "वे सुनने योग्य हों"
"बातें तुमने मुझे करते देखा।"
"जो बातें तुमने मुझे कहते सुनी"
यीशु दृष्टान्तों द्वारा जनसमूह को परमेश्वर के राज्य की शिक्षा दे रहा है। यहाँ वह में सुनाए गा दृष्टान्त की व्याख्या कर रहा है।
"शैतान उसे परमेश्वर के वचन को भूल जाने पर विवश करता है", जो उसने सुना।
ऐसा शब्द काम में लेने का प्रयास करें जो किसी अधिकृत स्वामी से उसकी किसी वस्तु को छीनने को व्यक्त करता है।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में भी किया जा सकता है, "परमेश्वर ने उसके मन में जो वचन बोया।" (देखें:
श्रोता के मन में
यदि शाब्दिक अनुवाद से अर्थ स्पष्ट नहीं होता तो अनुवाद इस प्रकार करें, कि पाठक को स्पष्ट समझ में आए कि यीशु बीज बोने वालों और सुनने वाले मार्ग के किनारे की भूमि है। संभावित अनुवाद, "जो मार्ग के किनारे बोया गया वह ऐसा ही है"। (देखें: और )
मार्ग के किनारे "मार्ग" या "पगडंडी" इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा में किया गया है।
यीशु दृष्टान्तों द्वारा जनसमूह को परमेश्वर के राज्य की शिक्षा दे रहा है। यहाँ वह में सुनाए गा दृष्टान्त की व्याख्या कर रहा है।
यदि मूल अर्थ आधारित अनुवाद समझने में कठिन है तो अनुवाद इस प्रकार करें कि पाठकों को स्पष्ट समझ में आए कि यीशु बीज बोने वाला है और सन्देश बीज है और सुनने वाला पथरीली भूमि है। संभावित अनुवाद हैः "जो पथरीली भूमि में बोया गया वह ऐसा ही है"।
"उसकी जड़ें गहराई में नहीं गई", या "वह इस अंकुर को जड़ें फैलाने का स्थान नहीं देता है"
"सन्देश के कारण"
"वह तुरन्त ही पथभ्रष्ट हो जाता है" या "वह तुरन्त ही विश्वास का त्याग कर देता है"।
यीशु दृष्टान्तों द्वारा जनसमूह को परमेश्वर के राज्य की शिक्षा दे रहा है। यहाँ वह में सुनाए गए दृष्टान्त की व्याख्या कर रहा है।
यदि मूल अर्थ आधारित अनुवाद समझने में कठिन हो तो अनुवाद इस प्रकार करें कि पाठक को समझ में आ जाए कि यीशु बीज बोने वाला है, सन्देश बीज है और श्रोता झाड़ियों वाली भूमि है। संभावित अनुवाद, "झाड़ियो में बोया गया बीज ऐसा ही है... अच्छी भूमि बोया गया बीज ऐसा ही है।" (देखें: और )
"सन्देश"
इसका अनुवाद हो सकता है, "जिस प्रकार झाड़ियाँ अच्छे पौधे को बढ़ने नहीं देती उसी प्रकार सांसारिक चिन्ताएँ और धन का धोखा इस व्यक्ति को फल लाने से रोकते हैं"
"वे सांसारिक बातें जिनकी चिन्ता मनुष्य करता है।"
निष्फल हो जाता है।
"ये वे लोग हें जो फलवन्त एवं उत्पादक होते हैं" या "स्वस्थ पौधों के समान अच्छा फल लाते हैं", ये लोग बहुत फलते हैं।
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।
यीशु ने जनसमूह को एक और दृष्टान्त सुनाया।
आपका अनुवाद स्वर्ग के राज्य को मनुष्य के तुल्य न दर्शाए, इसकी अपेक्षा स्वर्ग का राज्य उस परिस्थिति के अनुसार है जिसका वर्णन यहाँ किया गया है।
"भोज्य पदार्थों का अच्छा बीज" या "अन्न का अच्छा बीज"। जनसमूह ने सोचा कि यीशु गेहूँ के बीज की चर्चा कर रहा है।
उसका शत्रु खेत में आया
इसका अनुवाद "बुरे बीज" या "जंगली घास के बीज" किया जा सकता है। उगने पर वे एक से दिखते हैं परन्तु होते हैं विष।
"जब गेहूँ के बीज उगे" या "जब पौधा निकले"
"अन्न उत्पन्न हुआ" या "गेहूँ की उपज तैयार हुई"
वैकल्पिक अनुवाद होगा, "उन्होंने देखा कि खेत में जंगली पौधे भी हैं"।
यीशु दृष्टान्तों द्वारा जनसमूह को परमेश्वर के राज्य की शिक्षा दे रहा है। इन पदों में जंगली पौधों का दृष्टान्त ही चल रहा है।
यह वही व्यक्ति है जिसने खेत में अच्छे बीज डाले थे।
"तूने तो खेत में अच्छा बीज डाला था", खेत के स्वामी ने मजदूरों से अच्छा डलवाया था। (देखें: यू.डी.बी.)
खेत के स्वामी ने मजदूरों से कहा
"हम" मजदूरों के संदर्भ में है।
"खरपतवार उखाड़ दें" कि फेंकी जाएँ।
यीशु दृष्टान्तों द्वारा जनसमूह के परमेश्वर के राज्य की शिक्षा दे रहा है। इस पद के साथ जंगली पौधों का दृष्टान्त समाप्त होता है।
"खेत के स्वामी ने मजदूरों से कहा"
इसका अनुवाद परोक्ष उद्धरण में रखा जा सकता है, "मैं कटनी करने वालों से कहूँगा कि वे पहले जंगली पौधों को एकत्र करके जलाने के लिए उनके गट्ठे बाँध लें और फिर गेहूँ को मेरे खत्तों में इकट्ठा करें।"
खत्ता वह गोदाम है जहाँ अन्न रखा जाता है।
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।
"यीशु ने जनसमूह को एक और दृष्टान्त सुनाया"
देखें कि आपने में इसका अनुवाद कैसे किया है
एक बहुत ही छोटा बीज जो बड़ा पौधा बनता है।
मूल श्रोताओं के लिए राई का दाना सबसे छोटा बीज था
"परन्तु जब पौधा पूर्ण विकसित हो जाता है"
"एक बड़ी झाड़ी हो जाता है"
चिड़िएं
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।
"यीशु ने जनसमूह को एक और दृष्टान्त सुनाया।"
देखें कि आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है। राज्य तो खमीर के समान नहीं है परन्तु उसका फैलना खमीर के समान है।
"बहुत से आटे में" या आपकी भाषा में इस नाप के लिए कोई शब्द है तो उसका प्रयोग करें। (देखें: यू.डी.बी.)
"जब आटा पूरा खमीर हो गया" यहाँ सलंग्न अर्थ है कि आटा तन्दूरी रोटी के लिए तैयार हो गया था। (: )
यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।
यहाँ क्रम है, "दृष्टान्तों .... कहीं.... दृष्टान्तों .... कहता था।
वे सब शिक्षाएं जो यीशु ने से देता आ रहा है।
"उसने उन्हें दृष्टान्तों के बिना कोई शिक्षा नहीं दी"। वैकल्पिक अनुवाद, "उनसे उन्हें जो भी शिक्षा दी वह केवल दृष्टान्तों के द्वारा थी"। (देखें: ))
जो वचन भविष्यद्वक्ता द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो, इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से किया जा सकता है, "उसने वह भविष्यवाणी सच सिद्ध कर दी जो एक भविष्यद्वक्ता ने बहुत पहले की थी"। (यू.डी.बी.)
"जो भविष्यद्वक्ता ने कहा था"।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से किया जा सकता है, "जिन बातों को परमेश्वर ने गुप्त रखा था"।
"जगत के आरंभ से" या "जबसे परमेश्वर ने जगत की रचना की"।
यीशु घर में आया कि अपने शिष्यों को परमेश्वर के राज्य के संबन्ध में सुनाए गए दृष्टान्तों का अर्थ समझाए।
"घर के भीतर गया" या "जिस घर में रह रहा था उसमें गया"।
"बीज बोने वाला"
यीशु स्वयं के सन्दर्भ में कह रहा है।
"राज्य के लोग"
"शैतान के लोग"
जंगली बीज डालने वाला शैतान है।
"युगों का अन्त"
यीशु अपने शिष्यों के साथ घर के भीतर गया और उन्हें परमेश्वर के राज्य से संबन्धित दृष्टान्तों का अर्थ समझा रहा है।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है। "अतः जिस प्रकार मनुष्य जंगली पौधे को एकत्र करके जलाता है"।
"युगों का अन्त"
यीशु स्वयं के बारे में कह रहा है इसलिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "मैं, मनुष्य का पुत्र, अपने स्वर्गदूतों को भेजूंगा"।
"जो अव्यवस्था फैलाते है" या "दुष्ट जन"
आग के कुण्ड में "आग के कुण्ड" का अनुवाद हो सकता है, "आग की भट्ठी"। यदि भट्ठी शब्द अपरिचित हो तो "आग" काम में लिया जा सकता है।
"देखने में सूर्य के समान आसान होंगे"
"कुछ भाषाओं में द्वितीय पुरूष काम में लेना अधिक आसान होगा", "तुम जो वचन रखते हो, सुनो" या "तुम्हारे वचन हैं तो सुनो"।
यीशु घर के भीतर गया और अपने शिष्यों को परमेश्वर के राज्य से संबन्धित दृष्टान्तों के अर्थ समझाने लगा। इन दोनों दृष्टान्तों में यीशु दो उपमाओं के द्वारा अपने शिष्यों को समझा रहा है कि स्वर्ग का राज्य कैसा है।
देखें कि आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है। (देखें: ))
धन अत्यधिक मूल्यवान एवं अनमोल वस्तु है या वस्तुओं का संग्रह है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से किया जा सकता है, "किसी ने खेत में धन गाड़ कर छिपाया था।"
"उसे मिट्टी से ढांक दिया"
यहाँ स्पष्ट जानकारी यह है कि वह मनुष्य छिपे हुए धन को प्राप्त करने के लिए अपना सब कुछ बेच देता है
व्यापारी का अर्थ है दूर से समान लाने वाला विक्रेता।
यहाँ स्पष्ट जानकारी यह है कि वह व्यापारी अनमोल मोतियों की खोज में था कि उन्हें खरीद ले।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, "उत्तम मोती" या "सुन्दर मोती"। "मोती" एक चिकना, कठोर, चमकीला, सफेद या हल्के रंग का मोती होता है जो समुद्र में सीपियों में बनता है और नगीने के रूप में उसका मूल्य बहुत होता है, उससे मंहगे आभूषण बनते हैं।
यीशु अपने शिष्यों के साथ घर के भीतर गया और उन्हें परमेश्वर के राज्य से संबन्धित दृष्टान्त का अर्थ समझाने लगा। इस दृष्टान्त में भी यीशु उपमा द्वारा ही अपने शिष्यों को समझा रहा है कि स्वर्ग का राज्य कैसा है।(देखें: Simile)
देखें कि आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है। राज्य जाल के समान नहीं है परन्तु जाल के समान सब मनुष्यों को घेर लेता है।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, "जाल के समान जिसे मछुवे समुद्र में डालते हैं"।
"जाल जो झील में डाला गया"
"नाना प्रकार की मछलियाँ घेर लीं"।
"जाल को किनारे पर लाए" या "जाल खींचते हुए तट पर आए"।
"अच्छी मछलियाँ"
निकम्मी-निकम्मी -"अयोग्य मछलियाँ" या "जो मछलियाँ खाने योग्य नहीं थी"।
"नहीं रखीं"
यीशु अपने शिष्यों के साथ घर के भीतर गया और उन्हें परमेश्वर के राज्य से संबन्धित दृष्टान्तों का अर्थ समझा रहा है।
"युगों का अन्त"
"निकल आएंगे" या "निकलेंगे" या "स्वर्ग से उतरेंगे"।
"दुष्टों को डाल देंगे"
इसका अनुवाद किया जा सकता है "आग की भट्ठी में" यह नरक की आग के लिए रूपक है जो पुराने नियम से दानिय्येल 3:6 से लिया गया है। यदि "भट्ठी" शब्द लक्षित भाषा में नहीं है तो "तन्दूर" शब्द काम में लिया जा सकता है।
"वहाँ दुष्ट दांत पीसेंगे और रोएंगे"।
यीशु अपने शिष्यों के साथ घर के भीतर गया और उन्हें परमेश्वर के राज्य से संबन्धित दृष्टान्तों का अर्थ समझा रहा है।
आवश्यक हो तो इसे विरोधी उद्धरण में भी लिखा जा सकता है, "यीशु ने उनसे पूछा कि क्या वे इन सब बातों को समझ गए तो उन्होंने कहा कि वे समझ गए"।
"सीख गया है"
भण्डार मूल्यवान एवं बहुमूल्य वस्तु है या वस्तुओं का संग्रह है। यहाँ उसका संदर्भ उनके भण्डार गृह से है, "कोषागार" या "गोदाम"।
यीशु के निवास-स्थान के लोगों द्वारा उसके और उसकी शिक्षाओं के परित्याग का यह वृत्तान्त है, जब वह आराधनालय में शिक्षा दे रहा था।
"निवास-स्थान" (देखें यू.डी.बी.)
"उनके" अर्थात वहाँ के लोगों का
"वे विस्मित थे"
"उसे ऐसे चमत्कारों का सामर्थ्य कहाँ से मिला"।
बढ़ई अर्थात लकड़ी का सामान बनाने वाला। यदि आपकी भाषा में बढ़ई शब्द अपरिचित है तो "मिस्त्री" शब्द काम में ले सकते हैं।
यीशु के निवास-स्थान के लोगों ने उनके आराधनालय में दी गई, यीशु की शिक्षाओं का त्याग किया था, उसका वृत्तान्त चल रहा है।
"यीशु के निवास-स्थान के लोगों ने यीशु के कारण ठोकर खाई" या "उसे ग्रहण नहीं किया"।
"भविष्यद्वक्ता सब जगह सम्मान पाता है" या "भविष्यद्वक्ता सर्वत्र सम्मानित होता है" या "मनुष्य हर जगह भविष्यद्वक्ता को सम्मान देते हैं"
"उसके अपने स्थान में" या "अपने ही निवास स्थान में"।
"अपने निवास-स्थान"
"यीशु ने अपने निवास-स्थान में अनेक आश्चर्यकर्म नहीं किए"।
मार्ग के किनारे जो बीज गिरे उन्हें पक्षियों ने खा लिया।
पत्थरीली भूमि पर गिरने वाले बीज तुरन्त उगे परन्तु धूप में जल कर सूख गए।
कुछ बीज कंटीली झाड़ियों में गिरे और शीघ्र ही झाड़ियों ने उन्हें दबा दिया।
जो बीज अच्छी भूमि में गिरे थे वे सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना फल लाए।
यशायाह ने भविष्यद्वाणी की थी कि मनुष्य सुनेंगे परन्तु बुझेंगे नहीं, वे देखेंगे तो परन्तु उन्हें समझेगा नहीं।
यीशु की बातें सुनने वालों का मन मोटा हो गया था वे ऊंचा सुनते थे और उन्होंने आंखे मूंद ली थी।
मार्ग के किनारे बीजों का गिरना उस मनुष्य के सदृश्य था जो राज्य का सुसमाचार सुनता है परन्तु समझता नहीं और शैतान आकर उससे वचन छीन कर ले जाता है।
पत्थरीली भूमि में गिरा बीज वह मनुष्य है जो वचन को सुनकर सर्हष ग्रहण करता है परन्तु सताव के कारण तुरन्त ठोकर खाता है।
झाड़ियों में गिरे बीज, वह मनुष्य है जो वचन को सुनता है परन्तु सांसारिक चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबा देते हैं।
अच्छी भूमि में बोए गए बीज उस मनुष्य के सदृश्य हैं जो वचन को सुनकर उसे अन्तर्ग्रहण करता है और फल लाता है।
एक बैरी ने खेत में जंगली बीज डाल दिए।
खेत के स्वामी ने मजदूरों से कहा कि दोनों की कटनी तक उगने दें तब जंगली पौधों को जलाने के लिए और गेहूं को खत्तों में रखने के लिए अलग-अलग कर दें।
राई का पौधा सब साग-पात से बड़ा हो जाता है और चिड़ियें उसमें घोंसला बनाती हैं।
यीशु ने कहा कि स्वर्ग का राज्य खमीर के जैसा है, जब वह तीन पसेरी आटे में मिलाया गया तो पूरा आटा खमीर हो गया।
अच्छा बीज बोने वाला मनुष्य का पुत्र है, खेत यह संसार है, अच्छे बीज राजा की सन्तान हैं, जंगली पौधे शैतान की सन्तान हैं और उनका बोने वाला शैतान है।
फसल काटने वाले स्वर्गदूत हैं और कटनी संसार का अन्त है।
जगत के अन्त में अपराधी आग में झोंके जायेंगे।
जंगल के अन्त में धर्मी जन सूर्य के समान चमकेंगे।
एक मनुष्य को खजाना मिल जाता है तो वह अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल ले लेता है।
एक व्यापारी को बहुमूल्य मोती मिल गया तो उसने अपना सब कुछ बेचकर उस मोती को खरीद लिया।
जाल में पकड़ी गई हर प्रकार की मछलियों में से अच्छी मछलियां चुनकर निकम्मी फेंक दी जाती हैं इसी प्रकार जगत के अन्त में धर्मियों को अलग करके दुष्टों को अग्नि-कुण्ड में डाल दिया जायेगा।
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यीशु ने कहा कि भविष्यद्वक्ता अपने देश को छोड़ कहीं "निरादर नहीं" होता है।
मनुष्यों के अविश्वास के कारण यीशु ने अपने नगर में बहुत सामर्थ्य के काम नहीं किए।
1 उस समय चौथाई देश के राजा* हेरोदेस ने यीशु की चर्चा सुनी। 2 और अपने सेवकों से कहा, “यह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला है: वह मरे हुओं में से जी उठा है, इसलिए उससे सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।”
3 क्योंकि हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, यूहन्ना को पकड़कर बाँधा, और जेलखाने में डाल दिया था। 4 क्योंकि यूहन्ना ने उससे कहा था, कि इसको रखना तुझे उचित नहीं है। 5 और वह उसे मार डालना चाहता था, पर लोगों से डरता था, क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता मानते थे। 6 पर जब हेरोदेस का जन्मदिन आया, तो हेरोदियास की बेटी ने उत्सव में नाच दिखाकर हेरोदेस को खुश किया। 7 इसलिए उसने शपथ खाकर वचन दिया, “जो कुछ तू माँगेगी, मैं तुझे दूँगा।” 8 वह अपनी माता के उकसाने से बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर थाल में यहीं मुझे मँगवा दे।” 9 राजा दुःखित हुआ, पर अपनी शपथ के, और साथ बैठनेवालों के कारण, आज्ञा दी, कि दे दिया जाए। 10 और उसने जेलखाने में लोगों को भेजकर यूहन्ना का सिर कटवा दिया। 11 और उसका सिर थाल में लाया गया, और लड़की को दिया गया; और वह उसको अपनी माँ के पास ले गई। 12 और उसके चेलों ने आकर उसके शव को ले जाकर गाड़ दिया और जाकर यीशु को समाचार दिया।
13 जब यीशु ने यह सुना, तो नाव पर चढ़कर वहाँ से किसी सुनसान जगह को, एकान्त में चला गया; और लोग यह सुनकर नगर-नगर से पैदल उसके पीछे हो लिए। 14 उसने निकलकर एक बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, और उसने उनके बीमारों को चंगा किया। 15 जब सांझ हुई, तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह तो सुनसान जगह है और देर हो रही है, लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें।” 16 यीशु ने उनसे कहा, “उनका जाना आवश्यक नहीं! तुम ही इन्हें खाने को दो।” 17 उन्होंने उससे कहा, “यहाँ हमारे पास पाँच रोटी और दो मछलियों को छोड़ और कुछ नहीं है।” 18 उसने कहा, “उनको यहाँ मेरे पास ले आओ।” 19 तब उसने लोगों को घास पर बैठने को कहा, और उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लिया; और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़कर चेलों को दीं, और चेलों ने लोगों को। 20 और सब खाकर तृप्त हो गए, और उन्होंने बचे हुए टुकड़ों से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाई। 21 और खानेवाले स्त्रियों और बालकों को छोड़कर* पाँच हजार पुरुषों के लगभग थे।
22 और उसने तुरन्त अपने चेलों को नाव पर चढ़ाया, कि वे उससे पहले पार चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। 23 वह लोगों को विदा करके, प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चढ़ गया; और सांझ को वह वहाँ अकेला था। 24 उस समय नाव झील के बीच लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि हवा सामने की थी। 25 और वह रात के चौथे पहर* झील पर चलते हुए उनके पास आया। 26 चेले उसको झील पर चलते हुए देखकर घबरा गए, और कहने लगे, “वह भूत है,” और डर के मारे चिल्ला उठे। 27 यीशु ने तुरन्त उनसे बातें की, और कहा, “धैर्य रखो, मैं हूँ; डरो मत।” 28 पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, यदि तू ही है, तो मुझे अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे।” 29 उसने कहा, “आ!” तब पतरस नाव पर से उतरकर यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा। 30 पर हवा को देखकर डर गया, और जब डूबने लगा तो चिल्लाकर कहा, “हे प्रभु, मुझे बचा।” 31 यीशु ने तुरन्त हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया, और उससे कहा, “हे अल्प विश्वासी, तूने क्यों सन्देह किया?” 32 जब वे नाव पर चढ़ गए, तो हवा थम गई। 33 इस पर जो नाव पर थे, उन्होंने उसकी आराधना करके कहा, “सचमुच, तू परमेश्वर का पुत्र है।”
34 वे पार उतरकर गन्नेसरत प्रदेश में पहुँचे। 35 और वहाँ के लोगों ने उसे पहचानकर आस-पास के सारे क्षेत्र में कहला भेजा, और सब बीमारों को उसके पास लाए। 36 और उससे विनती करने लगे कि वह उन्हें अपने वस्त्र के कोने ही को छूने दे; और जितनों ने उसे छुआ, वे चंगे हो गए।
यहाँ वर्णित घटनाओं से पूर्व की घटनाओं का वर्णन करता है।
"उन दिनों" या "जब यीशु गलील में उपदेश करता था"।
हेरोदेस एन्तिपास’, चौथाई इस्राएल का शासक था (देखें: ))
"यीशु का समाचार सुना" या "यीशु की ख्याति सुनी"
"हेरोदेस ने कहा"
यह हेरोदेस द्वारा यूहन्ना की हत्या का वृत्तान्त है।
हेरोदेस ने आज्ञा देकर ऐसा करवाया था।
"हेरोदेस ने यूहन्ना को पकड़वाया"।
"क्योंकि यूहन्ना ने उससे कहा था कि उसे रखना नियम विरोधी है"।
"क्योंकि यूहन्ना कहता था" (देखें यू.डी.बी.)
यू.डी.बी. के अनुसार हेरोदियास से हेरोदेस के विवाह के समय फिलिप्पुस जीवित था। मूसा की व्यवस्था के अनुसार भाई की पत्नी से विवाह करना वर्जित था।
यह हेरोदेस द्वारा यूहन्ना की हत्या का वृत्तान्त है।
जन्मदिवस के उत्सव में उपस्थित अतिथियों के सामने"
यह हेरोदेस द्वारा यूहन्ना की हत्या का वृत्तान्त है।
वैकल्पिक अनुवाद, "उसकी माता की शिक्षा के कारण वह बोली"
"सिखाया"
इसका अनुवाद होगा "क्या मांगू" ये शब्द मूल यूनानी में नहीं हैं। ये शब्द स्पष्ट हैं।
वह अर्थात हेरोदियास की पुत्री
"बड़ी थाली"
"उसके आग्रह ने राजा को बहुत दुःखी किया"
चौथाई देश का राजा हेरोदेस एन्तिपास .
यह हेरोदेस द्वारा यूहन्ना की हत्या का वृत्तान्त है।
"किसी ने कटा हुआ सिर लाकर उस लड़की को दे दिया"
यह एक बड़ी थाली है
अविवाहित स्त्री, युवती के लिए शब्द काम में लें।
"यूहन्ना के शिष्य"
उसकी पार्थिव देह
"यूहन्ना के शिष्यों ने जाकर यीशु को बताया कि यूहन्ना के साथ क्या हुआ था"
जब यीशु ने यह सुना तो नाव में चढ़कर वहाँ से किसी सुनसान जगह को एकान्त में चला गया।
"यूहन्ना के साथ जो हुआ उसे सुनकर" या "यूहन्ना के बारे में समाचार सुनकर"
"वह लोगों से दूर चला गया"
"उस स्थान से"
"जब लोगों ने सुना कि वे कहाँ चले गए" (देखें यू.डी.बी.) या "जब लोगों ने सुना कि वे चले गए"।
"जनसमूह" या "जनता"
"जब यीशु किनारे पर पहुंचा तो एक विशाल जनसमूह वहाँ देखा"।
इस निर्जन स्थान में उसके पीछे आने वाले को यीशु भोजन करवाता है।
"यीशु के शिष्य उसके पास आए"
इस निर्जन स्थान में उसके पीछे आने वाले को यीशु भोजन करवाता है।
जनसमूह के लिए आवश्यक नहीं
"तुम" बहुवचन सर्वनाम का संदर्भ शिष्यों से है
"शिष्यों ने यीशु से कहा"
"पांच रोटियाँ और दो मछलियाँ" (देखें: ))
"वे रोटियाँ और मछली यहाँ ले आओ"
इस निर्जन स्थान में उसके पीछे आने वाले को यीशु भोजन करवाता है।
"लेटने को कहा" आपकी संस्कृति में खाना खाते समय जैसे बैठते हैं, वैसे ही अभिव्यक्ति काम में लें।
"अपने हाथों में लिया" चोरी नहीं की।
"रोटियों के टुकड़े" या "पूरी रोटियाँ"
इसका अर्थ हो सकता है (1) देखते हुए या (2) देखने के बाद
"शिष्यों ने एकत्र किए"
"जिन्होंने रोटी और मछली खाई थी"
यीशु पानी पर चलता है।
"पाँच हजार को भोजन कराने के तुरन्त बाद"
"अन्धेरा होने के समय" या "अन्धेरा हो जाने तक"
"लहरे नाव को नियंत्रण से बाहर कर रही थी"
यीशु पानी पर चलता है।
"यीशु पानी के ऊपर चल कर आया"
"शिष्य बहुत डर गए"
मृतक की आत्मा
यीशु पानी पर चलता है।
"पतरस ने यीशु से कहा"
यीशु पानी पर चलता है।
देखें आप इसका अनुवाद कैसे करते हैं .
"तुझे सन्देह नहीं करना था"।
उस निर्जन स्थान से लौट कर यीशु गलील में प्रचार कर रहा है।
"जब यीशु और उसके शिष्य झील के पार पहुंच गए"
गलील सागर के उत्तर-पश्चिमी छोर पर एक छोटा नगर
"उस नगर के लोगों ने समाचार भेजा"
"रोगियों ने उससे निवेदन किया"
"बागा" या "जो भी वह पहने हुए था"।
हेरोदेस सोचता था कि यीशु पुनर्जीवित यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला है।
हेरोदेस ने अपने भाई की पत्नी से विवाह कर लिया था।
हेरोदेस ने यूहन्ना की हत्या तुरन्त नहीं की थी क्योंकि वह लोगों से डर गया जो उसे भविष्यद्वक्ता मानते थे।
हेरोदेस ने शपथ खाकर कहा कि वह हेरोदियास की पुत्री को मुंह मांगा वर देगा।
हेरोदियास ने यूहन्ना को बपतिस्मा देनेवाले का सिर थाली में मांगा।
हेरोदेस ने अपनी शपथ और अतिथियों के कारण हेरोदियास का निवेदन स्वीकार किया था।
यीशु को उन पर तरस आया और उसने उनके रोगियों को चंगा किया।
यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे उस जन समूह को भोजन करवाएं।
यीशु ने स्वर्ग की ओर दृष्टि करके रोटी को आशिष देकर तोड़ा और चेलों को दिया कि जन समूह में बांट दें।
लगभग पांच हज़ार पुरूषों तथा स्त्रियों और बच्चों ने भोजन किया और बारह टोकरियां भरकर रोटियां बची।
यीशु पहाड़ पर अकेले प्रार्थना करने चला गया।
हवा और लहरों के कारण चेले नाव को संभाल नहीं पा रहे थे।
यीशु पानी पर चलकर चेलों के पास आया।
यीशु ने चेलों से कहा ढाढ़स बांधो, डरो मत।
यीशु ने पतरस से कहा कि वह पानी पर चलकर उसके पास आ जाए।
पतरस डर कर पानी में डूबने लगा।
जब यीशु और पतरस नाव में आ गये तब हवा बहना बन्द हुआ।
यह देख कर चेलों ने यीशु को दण्डवत् करके कहा, "सचमुच तू परमेश्वर का पुत्र है"|
यीशु और उसके चेले जब झील के पार उतरे तब लोग अपने रोगियों को लेकर यीशु के पास आए।
1 तब यरूशलेम से कुछ फरीसी और शास्त्री यीशु के पास आकर कहने लगे, 2 “तेरे चेले प्राचीनों की परम्पराओं* को क्यों टालते हैं, कि बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?” 3 उसने उनको उत्तर दिया, “तुम भी अपनी परम्पराओं के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो? 4 क्योंकि परमेश्वर ने कहा, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’, और ‘जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह मार डाला जाए।’ 5 पर तुम कहते हो, कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, ‘जो कुछ तुझे मुझसे लाभ पहुँच सकता था, वह परमेश्वर को भेंट चढ़ाई जा चुका’ 6 तो वह अपने पिता का आदर न करे, इस प्रकार तुम ने अपनी परम्परा के कारण परमेश्वर का वचन टाल दिया। 7 हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक ही की है:
8 ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं,
पर उनका मन मुझसे दूर रहता है।
9 और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं,
क्योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।’ ”
10 और उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “सुनो, और समझो। 11 जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुँह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” 12 तब चेलों ने आकर उससे कहा, “क्या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई?” 13 उसने उत्तर दिया, “हर पौधा जो मेरे स्वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा। 14 उनको जाने दो; वे अंधे मार्ग दिखानेवाले हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड्ढे में गिर पड़ेंगे।”
15 यह सुनकर पतरस ने उससे कहा, “यह दृष्टान्त हमें समझा दे।” 16 उसने कहा, “क्या तुम भी अब तक नासमझ हो? 17 क्या तुम नहीं समझते, कि जो कुछ मुँह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और शौच से निकल जाता है? 18 पर जो कुछ मुँह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। 19 क्योंकि बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती है। 20 यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।”
21 यीशु वहाँ से निकलकर, सूर* और सैदा के देशों की ओर चला गया। 22 और देखो, उस प्रदेश से एक कनानी* स्त्री निकली, और चिल्लाकर कहने लगी, “हे प्रभु! दाऊद के सन्तान, मुझ पर दया कर, मेरी बेटी को दुष्टात्मा बहुत सता रहा है।” 23 पर उसने उसे कुछ उत्तर न दिया, और उसके चेलों ने आकर उससे विनती करके कहा, “इसे विदा कर; क्योंकि वह हमारे पीछे चिल्लाती आती है।” 24 उसने उत्तर दिया, “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया।” 25 पर वह आई, और उसे प्रणाम करके कहने लगी, “हे प्रभु, मेरी सहायता कर।” 26 उसने उत्तर दिया, “लड़कों की* रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं।” 27 उसने कहा, “सत्य है प्रभु, पर कुत्ते भी वह चूरचार खाते हैं, जो उनके स्वामियों की मेज से गिरते हैं।” 28 इस पर यीशु ने उसको उत्तर देकर कहा, “हे स्त्री, तेरा विश्वास बड़ा है; जैसा तू चाहती है, तेरे लिये वैसा ही हो” और उसकी बेटी उसी समय चंगी हो गई।
29 यीशु वहाँ से चलकर, गलील की झील के पास आया, और पहाड़ पर चढ़कर वहाँ बैठ गया। 30 और भीड़ पर भीड़ उसके पास आई, वे अपने साथ लँगड़ों, अंधों, गूँगों, टुण्डों, और बहुतों को लेकर उसके पास आए; और उन्हें उसके पाँवों पर डाल दिया, और उसने उन्हें चंगा किया। 31 अतः जब लोगों ने देखा, कि गूंगे बोलते और टुण्डे चंगे होते और लँगड़े चलते और अंधे देखते हैं, तो अचम्भा करके इस्राएल के परमेश्वर की बड़ाई की।
32 यीशु ने अपने चेलों को बुलाकर कहा, “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है; क्योंकि वे तीन दिन से मेरे साथ हैं और उनके पास कुछ खाने को नहीं; और मैं उन्हें भूखा विदा करना नहीं चाहता; कहीं ऐसा न हो कि मार्ग में थककर गिर जाएँ।” 33 चेलों ने उससे कहा, “हमें इस निर्जन स्थान में कहाँ से इतनी रोटी मिलेगी कि हम इतनी बड़ी भीड़ को तृप्त करें?” 34 यीशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात और थोड़ी सी छोटी मछलियाँ।” 35 तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी। 36 और उन सात रोटियों और मछलियों को ले धन्यवाद करके तोड़ा और अपने चेलों को देता गया, और चेले लोगों को। 37 इस प्रकार सब खाकर तृप्त हो गए और बचे हुए टुकड़ों से भरे हुए सात टोकरे उठाए। 38 और खानेवाले स्त्रियों और बालकों को छोड़ चार हजार पुरुष थे। 39 तब वह भीड़ को विदा करके नाव पर चढ़ गया, और मगदन* क्षेत्र में आया।
यीशु और धर्म गुरूओं में विवाद का आरंभ होता है।
"पूर्वकाल में धर्म के अगुओं द्वारा स्थापित नियमों का पालन नहीं करते है"
"बिना हाथ धोए," - हमारी व्यवस्था में दी गई शोधन विधि के अनुसार हाथ नहीं धोते हैं।
यीशु और शास्त्रिों तथा फरीसियों में विवाद चल रहा है।
"वह हर एक जो" या "यदि कोई"
"पिता की सुधि लेकर उसका आदर करना"।
वैकल्पिक अनुवाद, "तुमने परम्परा को परमेश्वर की वचन से बड़ा बना दिया"।
यीशु तथा फरीसियों एवं शास्त्रियों में विवाद चल रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "यशायाह ने भविष्यद्वाणी में सच ही कहा है।"
वैकल्पिक अनुवाद, "जब उसने परमेश्वर का वचन सुनाया"
वैकल्पिक अनुवाद, "ये लोग उचित शब्दों का उपयोग तो करते हैं।"
वैकल्पिक अनुवाद, "ये मुझे सच में प्रेम नहीं करते हैं"
वैकल्पिक अनुवाद, "उनकी उपासना का मुझ पर प्रभाव नहीं पड़ता है" या "वे उपासना का केवल नाटक रचते हैं"।
"मनुष्यों द्वारा बनाए गए नियम"
यीशु दृष्टान्तों द्वारा शिक्षा देता है।
यीशु अग्रिम अभिकथन का महत्त्व प्रकट कर रहा है।
यीशु इस दृष्टान्त का अर्थ अपने शिष्यों को समझाता है,
वैकल्पिक अनुवाद, "यीशु की यह बात सुनकर फरीसी क्रोधित हुए"? या "इस कथन ने फरीसियों को नाराज़ किया"?
यीशु अपने शिष्यों को इस दृष्टान्त का अर्थ समझा रहा है,
"हमें तेरे शिष्यों को"
"प्रवेश करता है"
मल त्याग के स्थान के लिए भद्र शब्द
यीशु अपने शिष्यों को इस दृष्टान्त का अर्थ समझा रहा है, .
"मनुष्य के मुख के द्वारा"
"मनुष्य की सच्ची भावनाओं और विचारों का परिणाम हैं।"
निर्दोषों की हत्या
"मनुष्यों को चुभने वाली बातें"
विधिपूर्वक हाथ को नहीं धोना
यीशु द्वारा एक कनानी स्त्री की पुत्री को रोग-मुक्त करने का वृत्तान्त अब आरंभ होता है।
उस स्त्री ने इस्राएली सीमा के बाहर अपने देश से आकर इस्राएल में प्रवेश किया और यीशु को खोजा।
कनान देश तो उस समय था नहीं, "कनानी समुदाय की एक स्त्री"
"मेरी बेटी को दुष्टात्मा के उत्पीड़न से बहुत परेशान है"।
"कुछ नहीं कहा"
यीशु द्वारा उस कनानी स्त्री की पुत्री की चंगाई का वृत्तान्त चल रहा है।
"वह कनानी स्त्री आई"
"जो वास्तव में यहूदियों से कह रहा है.... अन्य जातियों को"
यीशु द्वारा उस कनानी स्त्री की पुत्री की चंगाई का वृत्तान्त चल रहा है।
"अन्य जातियों को भी इस योग्य समझा जाए कि वे यहूदियों द्वारा त्यागी गईं भली वस्तुएँ पाएँ"।
"यीशु ने उसकी पुत्री को रोगमुक्त कर दिया" या "यीशु ने उसकी पुत्री को स्वस्थ कर दिया"
"ठीक उसी समय" या "तुरन्त"
यह गलील क्षेत्र में यीशु द्वारा जनसमूह में रोगियों की चंगाई का वृत्तान्त है।
"जो लोग चल नहीं सकते थे, जो देख नहीं सकते थे, जो बोल नहीं सकते थे, और जिनके हाथ और पैर बेकार हो गए थे"। कुछ आरंभिक अभिलेखों में इनका क्रम भिन्न है।
"जनसमूह रोगियों को यीशु के पास लाया"
यह यीशु द्वारा गलील में जनसमूह को भोजन कराने का ही वृत्तान्त है।
संभावित अर्थ हैः (1)"कहीं वे थककर बेहोश न हो जाएं" या (2) "कहीं वे निर्बल न हो जाएँ"
लोग अब खाने के लिए आपके यहाँ कैसे बैठते हैं, टेबल न होने पर उसी शब्द का उपयोग करें, बैठकर या लेटना।
यह यीशु द्वारा गलील में जनसमूह को भोजन कराने का ही वृत्तान्त है।
"यीशु ने लिया" इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया गया है।
"रोटी और मछलियाँ देता गया"
"शिष्यों ने एकत्र किए"
"जिन मनुष्यों ने भोजन किया था"
"प्रदेश के एक भाग"
कभी-कभी मगदाला भी कहलाता है
फरीसियों ने "परमेश्वर को भेंट" चढ़ाने के बहाने सन्तानों को माता-पिता के दायित्व से मुक्त कर दिया था।
यशायाह की भविष्यद्वाणी थी कि फरीसी होंठों से परमेश्वर का आदर करते थे परन्तु उनका मन उससे दूर था।
फरीसी धर्म शिक्षा के नाम पर मनुष्य की परम्परा की शिक्षा देते थे।
यीशु ने कहा कि मनुष्य के मुख से निकलने वाली बातें उसे अशुद्ध करती हैं।
यीशु ने फरीसियों को अन्धे मार्गदर्शक कहा, और यह भी कि वे गड़हे में गिरेंगे।
मन से बुरे विचार, हत्या, व्यभिचार, परस्त्रीगमन, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा उभरती है।
यीशु ने उसे उत्तर नहीं दिया।
यीशु ने कहा कि उसे केवल इस्राएल की खोई हुई भेड़ों के लिए भेजा गया है।
यीशु ने कहा कि उस स्त्री का विश्वास बड़ा है और उसकी इच्छा पूरी की।
यीशु ने गूंगे, लंगड़े, टुण्डे और अंधे लोगों को चंगा किया।
चेलों के पास सात रोटियां और कुछ मछलियां थी।
यीशु ने रोटियां और मछलियां लेकर धन्यवाद दिया और रोटी तोड़कर चेलों को दीं।
सबको भोजन करने के बाद सात टोकरियां भर कर भोजन बच गया।
चार हज़ार पुरुष और स्त्रियों तथा बच्चों ने भोजन किया और तृप्त हुए।
1 और फरीसियों और सदूकियों* ने पास आकर उसे परखने के लिये उससे कहा, “हमें स्वर्ग का कोई चिन्ह दिखा।” 2 उसने उनको उत्तर दिया, “सांझ को तुम कहते हो, कि मौसम अच्छा रहेगा, क्योंकि आकाश लाल है। 3 और भोर को कहते हो, कि आज आँधी आएगी क्योंकि आकाश लाल और धुमला है; तुम आकाश का लक्षण देखकर भेद बता सकते हो, पर समय के चिन्हों का भेद क्यों नहीं बता सकते? 4 इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं पर योना के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा।” और वह उन्हें छोड़कर चला गया।
5 और चेले झील के उस पार जाते समय रोटी लेना भूल गए थे। 6 यीशु ने उनसे कहा, “देखो, फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना।” 7 वे आपस में विचार करने लगे, “हम तो रोटी नहीं लाए। इसलिए वह ऐसा कहता है।” 8 यह जानकर, यीशु ने उनसे कहा, “हे अल्पविश्वासियों, तुम आपस में क्यों विचार करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं? 9 क्या तुम अब तक नहीं समझे? और उन पाँच हजार की पाँच रोटी स्मरण नहीं करते, और न यह कि कितनी टोकरियाँ उठाई थीं? 10 और न उन चार हजार की सात रोटियाँ, और न यह कि कितने टोकरे उठाए गए थे? 11 तुम क्यों नहीं समझते कि मैंने तुम से रोटियों के विषय में नहीं कहा? परन्तु फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना।” 12 तब उनको समझ में आया, कि उसने रोटी के ख़मीर से नहीं, पर फरीसियों और सदूकियों की शिक्षा से सावधान रहने को कहा था।
13 यीशु कैसरिया फिलिप्पी* के प्रदेश में आकर अपने चेलों से पूछने लगा, “लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?” 14 उन्होंने कहा, “कुछ तो यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं और कुछ एलिय्याह, और कुछ यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।” 15 उसने उनसे कहा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” 16 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीविते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।” 17 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है; क्योंकि माँस और लहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है। 18 और मैं भी तुझ से कहता हूँ, कि तू पतरस* है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। 19 मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बँधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।” 20 तब उसने चेलों को चेतावनी दी, “किसी से न कहना! कि मैं मसीह हूँ।”
21 उस समय से यीशु अपने चेलों को बताने लगा, “मुझे अवश्य है, कि यरूशलेम को जाऊँ, और प्राचीनों और प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुःख उठाऊँ; और मार डाला जाऊँ; और तीसरे दिन जी उठूँ।” 22 इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर डाँटने लगा, “हे प्रभु, परमेश्वर न करे! तुझ पर ऐसा कभी न होगा।” 23 उसने फिरकर पतरस से कहा, “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो! तू मेरे लिये ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”
24 तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले। 25 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा। 26 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले में क्या देगा? 27 मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा, और उस समय ‘वह हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा।’ 28 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कितने ऐसे हैं, कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।”
यीशु और धर्म गुरूओं में विवाद का आरंभ होता है।
यहूदी अगुवे परमेश्वर से चिन्ह की माँग कर रहे थे यीशु ने उनसे कहा कि वे आकाश को देखें, दोनों ही शब्दों के लिए वही शब्द काम में ले जहाँ परमेश्वर वास करता है, आकाश शब्द तब ही काम में ले जब पाठक इन भिन्न अर्थों को समझ पाएं।
सूर्यास्त का समय
स्वच्छ, शान्त मनभावन
सूर्यास्त की लाल किरणों की लालिमा
यह भी यीशु और धर्म-गुरुओं के मध्य विवाद का ही वृत्तान्त है।
"बादल और आँधी का मौसम"
"धूमिल और चिंताजनक"
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर तुम लोगों को कोई चिन्ह नहीं देगा"
यीशु धर्म-गुरुओं से विवाद के बाद अपने शिष्यों को सतर्क करता है।
बुरे विचार और अनुचित शिक्षा
"विवाद" या "मतभेद"
यीशु धर्म-गुरुओं से विवाद के बाद अपने शिष्यों को सतर्क करता है।
यीशु उन्हें झिड़क रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें पांच हजार के लिए पाँच रोटियाँ और तुमने बचे टुकड़ों की कितनी टोकरियाँ उठाईं थी स्मरण रखना था। और चार हज़ार के लिए सात रोटियाँ और कितने टोकरे उठाए यह भी स्मरण रखना था।"
यीशु धर्म-गुरुओं से विवाद के बाद अपने शिष्यों को सतर्क करता है।
"तुम्हें समझ लेना था कि मैं वास्तव में रोटी के बारे में नहीं कह रहा था"। (यू.डी.बी.)
बुरे विचार और अनुचित शिक्षा
"शिष्यों को"
पतरस मानता है कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
"परन्तु मैं तुमसे पूछ रहा हूँ, तुम मुझे क्या कहते हो"?
यीशु पतरस के स्वीकरण पर कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है प्रतिक्रिया दिखाता है।
"योना के पुत्र शमौन"
"यह बात मनुष्य ने प्रकट नहीं की है"
संभावित अर्थ हैं: (1) "मृत्यु का सामर्थ्य जयवन्त नहीं होगा" (यू.डी.बी.) या (2) वह मृत्यु में सामर्थ्य को ऐसे ढा देगी जैसे सेना नगर में प्रवेश करती है
यीशु पतरस के अंगीकार, कि वह परमेश्वर पुत्र है, अपनी प्रतिक्रिया दिखाता है।
मनुष्यों के परमेश्वर के लोग होने के लिए मार्ग तैयार करने की योग्यता, जैसे एक दास अपने स्वामी के घर में अतिथियों का स्वागत करता है।
मनुष्य को क्षमा देना या दण्ड देना जैसा वैसा ही स्वर्ग में होगा
यीशु अपने शिष्यों को उसके अनुसरण का मूल्य समझाना आरंभ करता है।
जिस समय यीशु ने अपने शिष्यों को सतर्क किया कि वे किसी से न कहें कि वह मसीह है, उस समय वह उन्हें अपने बारे में परमेश्वर की योजना बताने लगा।
वैकल्पिक अनुवाद, "वे उसे मार डालेंगे"
"तीसरे दिन फिर जीवित हो जाऊँ" या "तीसरे दिन परमेश्वर उसे फिर जीवित करेगा"।
यीशु अपने शिष्यों को उसके अनुसरण का मूल्य समझा रहा है।
"मेरा शिष्य होने के लिए अनुसरण करना चाहता है"।
"अपनी इच्छाओं के अधीन न रहें" या "अपनी इच्छाओं का त्याग करें।"
"अपना क्रूस उठा कर उसे लेकर मेरे पीछे चले" यीशु के समान मरने के लिए तैयार हो जाए।
"किस की इच्छा से"
"संसार में जो कुछ है सब प्राप्त कर ले"
"स्वयं नष्ट हो जाए या भटक जाए"
यीशु अपने शिष्यों को उसके अनुसरण का मूल्य समझा रहा है।
"अपने मरने से पूर्व मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आता देखेंगे"।
"मृत्यु का अनुभव नहीं करेंगे" या "मरेंगे नहीं"
"जब तक वे मुझे अपने राज्य में आते न देखेंगे"
फरीसी और सदूकी यीशु से स्वार्गिक चिन्ह दिखाने की मांग कर रहे थे।
यीशु ने कहा कि वह फरीसियों और सदूकियों को योना का चिन्ह देगा।
यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे फरीसियों और सदूकियों के खमीर से सावधान रहें।
यीशु अपने चेलों को फरीसियों और सदूकियों की शिक्षा से सावधान रहने को कह रहा था।
यीशु ने अपने चेलों से पूछा, "लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?"
कुछ लोग सोचते थे कि यीशु यूहन्ना को बपतिस्मा देने वाला है, या एलिय्याह, या यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से एक है।
पतरस ने उत्तर दिया, "तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है"।
पतरस यीशु के प्रश्न का उत्तर जानता था क्योंकि स्वर्गीय पिता ने उस पर यह प्रकट किया था।
यीशु ने पतरस को राज्य की कुंजी दी कि वह पृथ्वी पर जो बांधेगा वह स्वर्ग में बांधेगा और जो कुछ वह पृथ्वी पर खोलेगा वह स्वर्ग में खुलेगा।
यीशु अपने चेलों को बताने लगा कि उसे यरूशलेम जाना है, वह बहुत दुःख उठाएगा और मार डाला जाएगा और तीसरे दिन जी उठेगा।
यीशु ने पतरस से कहा, "हे शैतान मेरे सामने से दूर हो।"
यीशु के पीछे आने वाले को अपने आपका इन्कार करना होगा और अपना क्रूस उठाना होगा।
?
यीशु ने कहा कि मनुष्य का पुत्र स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आयेगा।
मनुष्य का पुत्र जब आएगा तब वह हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा।
यीशु ने कहा कि कुछ लोग जो इस समय उसके साथ खड़े थे, मनुष्य के पुत्र को अपने राज्य में आता देखेंगे।
1 छः दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया, और उन्हें एकान्त में किसी ऊँचे पहाड़ पर ले गया। 2 और वहाँ उनके सामने उसका रूपांतरण हुआ और उसका मुँह सूर्य के समान चमका और उसका वस्त्र ज्योति के समान उजला हो गया। 3 और मूसा और एलिय्याह* उसके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए। 4 इस पर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, हमारा यहाँ रहना अच्छा है; यदि तेरी इच्छा हो तो मैं यहाँ तीन तम्बू बनाऊँ; एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” 5 वह बोल ही रहा था, कि एक उजले बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं प्रसन्न हूँ: इसकी सुनो।” 6 चेले यह सुनकर मुँह के बल गिर गए और अत्यन्त डर गए। 7 यीशु ने पास आकर उन्हें छुआ, और कहा, “उठो, डरो मत।” 8 तब उन्होंने अपनी आँखें उठाकर यीशु को छोड़ और किसी को न देखा। 9 जब वे पहाड़ से उतर रहे थे तब यीशु ने उन्हें यह निर्देश दिया, “जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से न जी उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है किसी से न कहना।” 10 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “फिर शास्त्री क्यों कहते हैं, कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?” 11 उसने उत्तर दिया, “एलिय्याह तो अवश्य आएगा और सब कुछ सुधारेगा। 12 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि एलिय्याह आ चुका*; और उन्होंने उसे नहीं पहचाना; परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया। इसी प्रकार से मनुष्य का पुत्र भी उनके हाथ से दुःख उठाएगा।” 13 तब चेलों ने समझा कि उसने हम से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के विषय में कहा है।
14 जब वे भीड़ के पास पहुँचे, तो एक मनुष्य उसके पास आया, और घुटने टेककर कहने लगा। 15 “हे प्रभु, मेरे पुत्र पर दया कर! क्योंकि उसको मिर्गी आती है, और वह बहुत दुःख उठाता है; और बार-बार आग में और बार-बार पानी में गिर पड़ता है। 16 और मैं उसको तेरे चेलों के पास लाया था, पर वे उसे अच्छा नहीं कर सके।” 17 यीशु ने उत्तर दिया, “हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” 18 तब यीशु ने उसे डाँटा, और दुष्टात्मा उसमें से निकला; और लड़का उसी समय अच्छा हो गया।
19 तब चेलों ने एकान्त में यीशु के पास आकर कहा, “हम इसे क्यों नहीं निकाल सके?” 20 उसने उनसे कहा, “अपने विश्वास की कमी के कारण: क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर* भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, ‘यहाँ से सरककर वहाँ चला जा’, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अनहोनी न होगी। 21 [पर यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकलती।]”
22 जब वे गलील में थे, तो यीशु ने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा। 23 और वे उसे मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।” इस पर वे बहुत उदास हुए।
24 जब वे कफरनहूम में पहुँचे, तो मन्दिर के लिये कर लेनेवालों ने पतरस के पास आकर पूछा, “क्या तुम्हारा गुरु मन्दिर का कर नहीं देता?” 25 उसने कहा, “हाँ, देता है।” जब वह घर में आया, तो यीशु ने उसके पूछने से पहले उससे कहा, “हे शमौन तू क्या समझता है? पृथ्वी के राजा चुंगी या कर किन से लेते हैं? अपने पुत्रों से या परायों से?” 26 पतरस ने उनसे कहा, “परायों से।” यीशु ने उससे कहा, “तो पुत्र बच गए। 27 फिर भी हम उन्हें ठोकर न खिलाएँ, तू झील के किनारे जाकर बंसी डाल, और जो मछली पहले निकले, उसे ले; तो तुझे उसका मुँह खोलने पर एक सिक्का मिलेगा, उसी को लेकर मेरे और अपने बदले उन्हें दे देना।”
यीशु तीन शिष्यों को अपनी महिमा दिखाता है।
"पतरस, याकूब और याकूब का भाई यूहन्ना"
"परमेश्वर ने यीशु के रूप को पूर्णरूपेण बदल दिया था" या
"कपड़े"
"प्रकाश की नाईं चमकने लगा"।
यह यीशु के तीनो शिष्यों पर उसकी महिमा के प्रदर्शन का ही वृत्तान्त है।
यह हमें सतर्क करने के लिए है कि अग्रिम जानकारी आश्चर्यजनक है।
यीशु के साथ जो शिष्य थे
"कहा" पतरस किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहा है।
संभावित अर्थः (1) "यह तो अच्छा है कि हम शिष्य यहाँ मूसा, एलिय्याह और तेरे साथ हैं" या (2) "यह अच्छा है कि तू, मूसा, एलिय्याह और शिष्य एक साथ हैं"
संभावित अर्थः (1) मनुष्यों के लिए आकर आराधना करने के लिए (देखें यू.डी.बी.) या (2) मनुष्य के सोने के लिए अस्थाई स्थान।
यह यीशु के तीनो शिष्यों पर उसकी महिमा के प्रदर्शन का ही वृत्तान्त है।
यह पाठक को सतर्क करने के लिए है कि आगे आश्चर्यजनक जानकारी दी गई है।
"शिष्यों ने मुँह के बल गिरकर दण्डवत किया"।
यह यीशु के तीनो शिष्यों पर उसकी महिमा के प्रदर्शन का ही वृत्तान्त है।
"जब यीशु और उसके चेलों"
यीशु द्वारा अपने तीन शिष्यों पर उसकी महिमा के प्रदर्शन का वृत्तान्त चल रहा है। यीशु के प्रश्न का उत्तर दे रहा है।
"व्यवस्थित करेगा"
सम्भावित अर्थ है : 1)यहूदी अगुवे (देखें:यू.डी.बी) या 2) सब यहूदी।
यह यीशु द्वारा दुष्टात्माग्रस्त युवक की चंगाई का वृत्तान्त है।
अचेत होकर अनियन्त्रित व्यवहार करने लगता है।
यह यीशु द्वारा दुष्टात्माग्रस्त युवक की चंगाई ही का वृत्तान्त है
यीशु उन लोगों से अप्रसन्न है। वैकल्पिक अनुवाद, "मैं तुम्हारे साथ रहते रहते थक चुका हूँ। मैं तुम्हारे अविश्वास और भ्रष्टाचार से ऊब गया हूँ"।
यह यीशु द्वारा दुष्टात्माग्रस्त युवक की चंगाई ही का वृत्तान्त है
बोलने वाले, न कि सुनने वाले (देखेः )
दुष्टात्मा को निकाल दिया
"तुम कुछ भी कर पाओगे"। (देखेः )
यीशु गलील में अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है।
"शिष्य और यीशु गलील में थे"
वैकल्पिक अनुवाद, "कोई मनुष्य के पुत्र को पकड़वा देगा"
"अधिकारी मनुष्य के पुत्र को मरवा देंगे"।
"परमेश्वर उसे जीवित करेगा" या "वह फिर जीवित हो जाएगा"
यह यीशु द्वारा मन्दिर के कर भुगतान का वृत्तान्त है।
जब यीशु और उसके शिष्य
सह यहूदी पुरूषों पर कर था जो पहले परमेश्वर के लिए भेंट चढ़ाया जाता था।
यीशु के रहने का स्थान
सामान्यतः शासक
शासक या राजा की प्रजा
यह यीशु द्वारा मन्दिर के कर भुगतान का वृत्तान्त है।
प्रजा से
"मछली का मुँह"
"उस सिक्के को लेकर"
पतरस, याकूब और यूहन्ना यीशु के साथ एक ऊंचे पहाड़ पर गए।
यीशु का वहाँ रूपान्तरण हुआ और उसका मुँह सूर्य के समान चमका तथा उसके वस्त्र ज्योति के समान चमकने लगे।
मूसा और एलिय्याह प्रकट हुए और यीशु से बातें करने लगे।
पतरस ने उन तीनों के लिए तीन मण्डप लगाने का प्रस्ताव रखा।
बादल में से एक वाणी सुनाई दी, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूँ: इस की सुनो।”
यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी कि उसके पुनरूत्थान तक दर्शन की इस घटना की चर्चा किसी से न करें।
यीशु ने कहा कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला एलिय्याह था जो पहले आया और उन्होंने उसके साथ जैसा चाहा वैसा व्यवहार किया।
यीशु ने कहा कि निश्चय ही एलिय्याह आकर सब बातों को सुधारेगा।
चेले एक मिर्गी के रोगी युवक को चंगा नहीं कर पाए थे।
यीशु ने उस दुष्टात्मा को झिड़का और वह युवक उसी पल चंगा हो गया।
यीशु ने कहा कि विश्वास की कमी के कारण वे उस युवक को चंगा करने में असफल रहे थे।
यीशु ने जब अपने चेलों पर प्रकट किया कि वह पकड़वाया जाएगा और मारा जाएगा परन्तु तीसरे दिन फिर जी उठेगा।
यीशु ने पतरस से कहा कि वह झील में सहीं जाल डालकर मछली पकड़े, और उस मछली के मुंह में एक सिक्का होगा इससे कर चुका दिया जायेगा।
1 उसी समय चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है?” 2 इस पर उसने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच में खड़ा किया, 3 और कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। 4 जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा। 5 और जो कोई मेरे नाम से एक ऐसे बालक को ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है।
6 “पर जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं एक को ठोकर खिलाएँ, उसके लिये भला होता, कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह गहरे समुद्र में डुबाया जाता। 7 ठोकरों के कारण संसार पर हाय! ठोकरों का लगना अवश्य है; पर हाय उस मनुष्य पर जिसके द्वारा ठोकर लगती है।
8 “यदि तेरा हाथ या तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाएँ, तो काटकर फेंक दे; टुण्डा या लँगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो हाथ या दो पाँव रहते हुए तू अनन्त आग में डाला जाए। 9 और यदि तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसे निकालकर फेंक दे। काना होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो आँख रहते हुए तू नरक की आग में डाला जाए।
10 “देखो, तुम इन छोटों में से किसी को तुच्छ न जानना; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि स्वर्ग में उनके स्वर्गदूत मेरे स्वर्गीय पिता का मुँह सदा देखते हैं। 11 [क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को बचाने आया है।]
12 “तुम क्या समझते हो? यदि किसी मनुष्य की सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक भटक जाए, तो क्या निन्यानवे को छोड़कर, और पहाड़ों पर जाकर, उस भटकी हुई को न ढूँढ़ेगा? 13 और यदि ऐसा हो कि उसे पाए, तो मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वह उन निन्यानवे भेड़ों के लिये जो भटकी नहीं थीं इतना आनन्द नहीं करेगा, जितना कि इस भेड़ के लिये करेगा। 14 ऐसा ही तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं, कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।
15 “यदि तेरा भाई तेरे विरुद्ध अपराध करे, तो जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा; यदि वह तेरी सुने तो तूने अपने भाई को पा लिया। 16 और यदि वह न सुने, तो और एक दो जन को अपने साथ ले जा, कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुँह से ठहराई जाए। 17 यदि वह उनकी भी न माने, तो कलीसिया से कह दे, परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने, तो तू उसे अन्यजाति और चुंगी लेनेवाले के जैसा जान।
18 “मैं तुम से सच कहता हूँ, जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधोगे, वह स्वर्ग पर बँधेगा और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे, वह स्वर्ग में खुलेगा। 19 फिर मैं तुम से कहता हूँ, यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिये जिसे वे माँगें, एक मन के हों, तो वह मेरे पिता की ओर से जो स्वर्ग में है उनके लिये हो जाएगी। 20 क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ।”
21 तब पतरस ने पास आकर, उससे कहा, “हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ, क्या सात बार तक?” 22 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, वरन् सात बार के सत्तर गुने* तक।
23 “इसलिए स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा। 24 जब वह लेखा लेने लगा, तो एक जन उसके सामने लाया गया जो दस हजार तोड़े का कर्जदार था। 25 जब कि चुकाने को उसके पास कुछ न था, तो उसके स्वामी ने कहा, कि यह और इसकी पत्नी और बाल-बच्चे और जो कुछ इसका है सब बेचा जाए, और वह कर्ज चुका दिया जाए। 26 इस पर उस दास ने गिरकर उसे प्रणाम किया, और कहा, ‘हे स्वामी, धीरज धर, मैं सब कुछ भर दूँगा।’ 27 तब उस दास के स्वामी ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका कर्ज क्षमा किया।
28 “परन्तु जब वह दास बाहर निकला, तो उसके संगी दासों में से एक उसको मिला, जो उसके सौ दीनार* का कर्जदार था; उसने उसे पकड़कर उसका गला घोंटा और कहा, ‘जो कुछ तू धारता है भर दे।’ 29 इस पर उसका संगी दास गिरकर, उससे विनती करने लगा; कि धीरज धर मैं सब भर दूँगा। 30 उसने न माना, परन्तु जाकर उसे बन्दीगृह में डाल दिया; कि जब तक कर्ज को भर न दे, तब तक वहीं रहे। 31 उसके संगी दास यह जो हुआ था देखकर बहुत उदास हुए, और जाकर अपने स्वामी को पूरा हाल बता दिया। 32 तब उसके स्वामी ने उसको बुलाकर उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास, तूने जो मुझसे विनती की, तो मैंने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया। 33 इसलिए जैसा मैंने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था?’ 34 और उसके स्वामी ने क्रोध में आकर उसे दण्ड देनेवालों के हाथ में सौंप दिया, कि जब तक वह सब कर्जा भर न दे, तब तक उनके हाथ में रहे।
35 “इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा।”
यीशु शिष्यों को उदाहरण देने के लिए एक बच्चे को खड़ा करता है।
"बच्चों के समान सोच समझ न रखो" (देखें: और )
यीशु शिष्यों के सामने बच्चों का उदाहरण ही रख रहा है।
"जो कोई इस बालक के सदृश्य दीन बनेगा"।
"यदि वे उसके गले में चक्की का पाट बाँधकर उसे गहरे समुद्र में डाल दें"।
एक गोल बड़ा पत्थर जो गेहूँ पीसने के काम आता है। वैकल्पिक अनुवादः "बहुत भारी पत्थर"
यीशु शिष्यों के सामने बच्चों का उदाहरण ही रख रहा है।
यीशु अपने श्रोताओं से इस प्रकार बात करता है कि मानो वे एक ही व्यक्ति हैं।
यीशु शिष्यों के सामने बच्चों का उदाहरण ही रख रहा है।
यह अविश्वास की गंभीरता और उससे हर कीमत पर बचने की आवश्यकता दर्शाता है।
"अनन्त जीवन में प्रवेश करना"
यीशु शिष्यों के सामने बच्चों का उदाहरण ही रख रहा है।
तुच्छ जानना , "प्रबल घृणा करना" या "महत्त्वहीन समझना"
"बच्चों के स्वर्गदूत"
"सदैव निकट रहते हैं"।
यीशु शिष्यों के सामने बच्चों का उदाहरण ही रख रहा है।
"मनुष्यों के व्यवहार के बारे में क्या सोचते हो? ("देखें: )
"वह सदा ही निन्यानवे को छोड़ कर उसे खोजने निकलेगा"
निन्यानवे
"तुम्हारा स्वर्गीय पिता इन सब छोटों को जीवित देखना चाहता है।"
यीशु मन फिराव और क्षमा की शिक्षा देना आरंभ करता है।
"तूने अपने भाई के साथ अच्छे संबन्ध बना लिए"।
"मुँह से निकली" गवाही
यीशु मन फिराव और क्षमा की ही शिक्षा दे रहा है।
गवाहों की बात भी न माने
"उसके द्वारा ऐसा व्यवहार कर जैसा अन्यजातियां चुंगी लेने वाले के साथ करती है।
यीशु अपने शिष्यों को मन फिराव और क्षमा की शिक्षा दे रहा है।
देखें आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है।
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर भी बांधेगा... परमेश्वर खोलेगा"।
"तुम में से दो"
"दो या दो से अधिक" या "कम से कम दो"
"इकट्ठा होते हैं"
यीशु मन फिराव और क्षमा की ही शिक्षा दे रहा है।
"7 बार"
संभावित अर्थ, (1) "7 का 70 बार" (यू.एल.बी.) या (2) 77 बार"(यू.डी.बी..) यदि आंकड़े काम में लेने से उलझन उत्पन्न हो तो आप कह सकते है, "जितना गिन सके उससे अधिक" (देखें यू.डी.बी. और )
यीशु दृष्टान्त द्वारा मन फिराव और क्षमा की शिक्षा दे रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "किसी ने राजा के सेवकों में से एक को लाकर उसके समक्ष उपस्थित किया" )
"10,000 तोड़े" या इतना अधिक ऋण कि वह कभी चुका नहीं पाता"
"राजा ने सेवको को आज्ञा दी कि उसे उस मनुष्य और उसका सब कुछ बेचकर उस पैसे से उसका ऋण चुकाया जाए"।
यीशु दृष्टान्त द्वारा मन फिराव और क्षमा की शिक्षा दे रहा है।
"घुटनों पर गिरकर सिर झुकाया"
"राजा को"
"उसे मुक्त कर दिया"
यीशु दृष्टान्त द्वारा मन फिराव और क्षमा की शिक्षा दे रहा है।
"100 दीनार" या " सौ दिनों की मजदूरी"
"पकड़ा" या "झपटा" (यू.डी.बी)
इसका अनुवाद वैसा ही करे जैसा गिरकर ... धीरज धर मैं सब कुछ भर दूँगा का अनुवाद . में किया गया है।
यीशु दृष्टान्त द्वारा मन फिराव और क्षमा की शिक्षा दे रहा है।
यीशु दृष्टान्त द्वारा मन फिराव और क्षमा की शिक्षा दे रहा है।
"राजा ने उस पहले दास को बुलवाया"
"आवश्यक था कि तू भी दया करता"
यीशु दृष्टान्त द्वारा मन फिराव और क्षमा की शिक्षा दे रहा है।
यीशु ने कहा कि हमें मन फिराकर, बच्चों के समान होना है कि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करें।
यीशु ने कहा कि जो कोई अपने को एक छोटे बालक की नाई दीन बनाएगा वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा।
यीशु में विश्वास करने वाले छोटे लोगों में से किसी के लिए पाप का कारण होने वाले मनुष्य के लिए उचित है कि चक्की का पाट उसके गले में बांध कर उसे गहरे समुन्द्र में डाल दिया जाए।
यीशु ने कहा कि ठोकर खिलाने वाली हर एक बात का हमें त्याग करना आवश्यक है।
हमें छोटों में से किसी को तुच्छ नहीं समझना है क्योंकि उनके स्वर्गदूत सदैव स्वर्गीय पिता का मुंह देखते रहते हैं।
यह स्वर्गीय पिता की इच्छा नहीं कि छोटों में से एक भी नष्ट हो।
पहले आप जाकर अकेले में अपने भाई को समझाए की उसका अपराध क्या है।
आप अपने साथ एक या दो भाई गवाह स्वरूप ले जाएं।
अन्यथा, आप कलीसिया में इस बात को रखें।
अन्त में, यदि वह कलीसिया की भी बात न माने तो उसके साथ अन्यजाति या महसूल लेने वाले के समान व्यवहार किया जाए।
यीशु ने प्रतिज्ञा की है कि जहां दो या तीन उसके नाम से एकत्र हों वहाँ वह उपस्थित होगा।
यीशु ने कहा कि हमें अपने भाई को सत्तर गुना सात बार क्षमा करनी चाहिए।
एक दास अपने स्वामी का दस हज़ार तोड़े का कर्जदार था और वह कर्ज चुकाने योग्य न था।
उसके स्वामी ने तरस खाकर उसका कर्ज क्षमा कर दिया।
वही सेवक अपने साथी सेवक पर दयालु नहीं हुआ और उसे बन्दीगृह में डाल दिया।
उसके स्वामी ने उससे कहा कि उसे भी अपने साथी दास पर दया करना आवश्यक था।
स्वामी ने क्रोध में आकर उसे दण्ड देने वालों के हाथ सौंप दिया।
यदि हम अपने भाई को सच्चे मन से क्षमा नहीं करेंगे तो परमेश्वर भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करेगा।
1 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो गलील से चला गया; और यहूदिया के प्रदेश में यरदन के पार आया। 2 और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, और उसने उन्हें वहाँ चंगा किया। 3 तब फरीसी उसकी परीक्षा करने के लिये पास आकर कहने लगे, “क्या हर एक कारण से अपनी पत्नी को त्यागना उचित है?” 4 उसने उत्तर दिया, “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि जिसने उन्हें बनाया, उसने आरम्भ से नर और नारी बनाकर कहा, 5 ‘इस कारण मनुष्य अपने माता पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे?’ 6 अतः वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” 7 उन्होंने यीशु से कहा, “फिर मूसा ने क्यों यह ठहराया, कि त्यागपत्र देकर उसे छोड़ दे?” 8 उसने उनसे कहा, “मूसा ने तुम्हारे मन की कठोरता के कारण तुम्हें अपनी पत्नी को छोड़ देने की अनुमति दी, परन्तु आरम्भ में ऐसा नहीं था। 9 और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से अपनी पत्नी को त्याग कर, दूसरी से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है: और जो उस छोड़ी हुई से विवाह करे, वह भी व्यभिचार करता है।”
10 चेलों ने उससे कहा, “यदि पुरुष का स्त्री के साथ ऐसा सम्बन्ध है, तो विवाह करना अच्छा नहीं।” 11 उसने उनसे कहा, “सब यह वचन ग्रहण नहीं कर सकते, केवल वे जिनको यह दान दिया गया है। 12 क्योंकि कुछ नपुंसक ऐसे हैं जो माता के गर्भ ही से ऐसे जन्मे; और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य ने नपुंसक बनाया: और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्होंने स्वर्ग के राज्य के लिये अपने आप को नपुंसक बनाया है, जो इसको ग्रहण कर सकता है, वह ग्रहण करे।”
13 तब लोग बालकों को उसके पास लाए, कि वह उन पर हाथ रखे और प्रार्थना करे; पर चेलों ने उन्हें डाँटा। 14 यीशु ने कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है।” 15 और वह उन पर हाथ रखकर, वहाँ से चला गया।
16 और एक मनुष्य ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, मैं कौन सा भला काम करूँ, कि अनन्त जीवन पाऊँ?” 17 उसने उससे कहा, “तू मुझसे भलाई के विषय में क्यों पूछता है? भला तो एक ही है; पर यदि तू जीवन में प्रवेश करना चाहता है, तो आज्ञाओं को माना कर।” 18 उसने उससे कहा, “कौन सी आज्ञाएँ?” यीशु ने कहा, “यह कि हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना; 19 अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना*।” 20 उस जवान ने उससे कहा, “इन सब को तो मैंने माना है अब मुझ में किस बात की कमी है?” 21 यीशु ने उससे कहा, “यदि तू सिद्ध* होना चाहता है; तो जा, अपना सब कुछ बेचकर गरीबों को बाँट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा; और आकर मेरे पीछे हो ले।” 22 परन्तु वह जवान यह बात सुन उदास होकर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
23 तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि धनवान का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कठिन है। 24 फिर तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।” 25 यह सुनकर, चेलों ने बहुत चकित होकर कहा, “फिर किस का उद्धार हो सकता है?” 26 यीशु ने उनकी ओर देखकर कहा, “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।” 27 इस पर पतरस ने उससे कहा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिये हैं तो हमें क्या मिलेगा?” 28 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि नई उत्पत्ति में जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिये हो, बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे। 29 और जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहनों या पिता या माता या बाल-बच्चों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उसको सौ गुना मिलेगा, और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा। 30 परन्तु बहुत सारे जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, पहले होंगे।
यीशु गलील से प्रस्थान करके यहूदिया में शिक्षा दे रहा है।
यदि आपकी भाषा में कहानी को नए मन का आरंभ करने का प्रावधान है तो उसे काम में लें।
के वचन
"प्रस्थान किया" या "कूच किया"
"क्षेत्र में"
यीशु विवाह और तलाक के विषय में शिक्षा देना आरंभ करता है।
"यीशु के निकट आकर"
यीशु फरीसियों को लज्जित करना चाहता था।
यीशु विवाह और तलाक के बारे में ही शिक्षा दे रहा है।
यह के प्रश्न का ही अगला अंश है, "तुमने नहीं पढ़ा कि वह कहता है ...?"
"पत्नी के निकट रहेगा"
"एक जीव"
यीशु विवाह और तलाक के बारे में ही शिक्षा दे रहा है।
"फरीसियों ने यीशु से कहा"
"हम यहूदियों को यह आज्ञा क्यों दी"
विवाह विच्छेद का वैध पत्र
"जब परमेश्वर ने नर और नारी को बनाया था तब तलाक का योजना नहीं थी"
"यौनाचार में अविश्वास को छोड़ कर"।
अनेक आरंभिक अभिलेखों में यह शब्द नहीं हैं।
यीशु विवाह और तलाक के बारे में ही शिक्षा दे रहा है।
"यौन अंगों के बिना जन्मे पुरूष"
संभावित अर्थ हैं, (1) "जिन्होंने अपना लिंग काट दिया" (2) "जो मनुष्य अविवाहित रहकर यौनाचार में शुद्ध रहना चाहते हैं।"
"कि वे परमेश्वर की अधिक अच्छी सेवा कर पाएँ"
देखें कि आपने "इसको ग्रहण कर सकता है ग्रहण करे" का अनुवाद 19:11 में कैसे किया है।
लोग बच्चों को यीशु के पास लाते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, "कुछ लोग बच्चों को लेकर यीशु के पास आए"
"अनुमति दो"
"उन्हें मेरे पास आने से मत रोको"
"स्वर्ग का राजा उन लोगों का है जो इनके समान हैं" या "केवल इन बच्चों के समान मनुष्य ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं"।
यीशु संसार में धन और स्वर्ग में प्रतिफल की शिक्षा देना आरंभ करता है।
लेखक कहानी में एक नए चरित्र को ला रहा है। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
परमेश्वर के प्रसन्न करने वाला काम
"केवल परमेश्वर की पूर्णरूपेण भला है"
यीशु संसार में धन और स्वर्ग में प्रतिफल की शिक्षा दे रहा है।
यीशु संसार में धन और स्वर्ग में प्रतिफल की शिक्षा दे रहा है।
"ढूँढ़ते"
यीशु संसार में धन और स्वर्ग में प्रतिफल की शिक्षा दे रहा है।
धनवानों के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना बहुत ही कठिन है
"सूई के पीछे का छिद्र जिसमें धागा डाला जाता है"।
यीशु संसार में धन और स्वर्ग में प्रतिफल की शिक्षा दे रहा है।
"शिष्य चकित हो गए"
संभावित अर्थ, "वे उत्तर खोज रहे थे" या (2) वैकल्पिक अनुवाद, "फिर तो किसी का उद्धार संभव नहीं"
"हमने तो अपनी संपूर्ण सम्पत्ति का त्याग कर दिया है" या "हमने अपना घर-बार सब छोड़ दिया है"
"परमेश्वर हमें क्या अच्छी वस्तु देगा"?
यीशु अपने शिष्यों को संसार में धन और स्वर्ग में प्रतिफल की ही शिक्षा दे रहा है।
"जब सब कुछ नया हो जायेगा" या "नये युग में"
"उन पर राजा और न्यायी होगे"
फरीसियों ने यीशु से पूछा, "क्या हर एक कारण से अपनी पत्नी को त्यागना उचित है?"
यीशु ने कहा कि सृष्टि के समय ही से परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया है।
यीशु ने कहा कि पुरुष अपने माता पिता से अलग होकर, अपनी पत्नी के साथ रहेगा।
यीशु ने कहा कि जब पति अपनी पत्नी के साथ रहेगा तो वे एक तन होंगे।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर ने जिसे जोड़ा है उसे मनुष्य अलग न करे।
यीशु के अनुसार मूसा ने तलाक की आज्ञा क्यों दी थी।
व्यभिचार को छोड़ अन्य किसी भी कारण से पुरूष अपनी पत्नी को तलाक देकर दूसरा विवाह करे तो वह व्यभिचार करता है और जो पुरूष उस त्यागी हुई स्त्री से विवाह करे वह भी व्यभिचार करता है।
यीशु ने कहा कि जो इसे ग्रहण करे वह नपुंसक होना ग्रहण कर ले।
जब छोटे बच्चों को यीशु के पास लाया जा रहा था तब चेलों ने उन्हे रोका।
यीशु ने कहा बच्चों को मेरे पास आने दो उन्हें मना मत करो क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों का ही है।
यीशु ने उस युवक से कहा कि अनन्त जीवन पाने के लिए वह आज्ञाओं का पालन करे।
इस युवक ने कहा कि वह सब आज्ञाओं को मानता है तो यीशु ने उससे कहा कि वह अपना सब कुछ बेच कर कंगालों में बांट दे।
वह युवक दुःखी होकर चला गया क्योंकि वह बहुत धनवान था।
यीशु ने कहा कि धनवान मनुष्य का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कठिन है परन्तु परमेश्वर के लिए सब संभव है।
यीशु ने अपने शिष्यों से प्रतिज्ञा की कि नये जन्म में वे बारह सिंहासनों पर बैठ कर इस्त्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करेंगे।
यीशु ने कहा कि जो इस समय पिछले हैं वे पहले होंगे और जो पहले हैं वो पिछले होंगे।
1 “स्वर्ग का राज्य किसी गृहस्थ के समान है, जो सवेरे निकला, कि अपने दाख की बारी में मजदूरों को लगाए। 2 और उसने मजदूरों से एक दीनार रोज पर ठहराकर, उन्हें अपने दाख की बारी में भेजा। 3 फिर पहर* एक दिन चढ़े, निकलकर, अन्य लोगों को बाजार में बेकार खड़े देखकर, 4 और उनसे कहा, ‘तुम भी दाख की बारी में जाओ, और जो कुछ ठीक है, तुम्हें दूँगा।’ तब वे भी गए। 5 फिर उसने दूसरे और तीसरे पहर के निकट निकलकर वैसा ही किया। 6 और एक घंटा दिन रहे फिर निकलकर दूसरों को खड़े पाया, और उनसे कहा ‘तुम क्यों यहाँ दिन भर बेकार खड़े रहे?’ उन्होंने उससे कहा, ‘इसलिए, कि किसी ने हमें मजदूरी पर नहीं लगाया।’ 7 उसने उनसे कहा, ‘तुम भी दाख की बारी में जाओ।’
8 “सांझ को दाख बारी के स्वामी ने अपने भण्डारी से कहा, ‘मजदूरों को बुलाकर पिछलों से लेकर पहलों तक उन्हें मजदूरी दे-दे।’ 9 जब वे आए, जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उन्हें एक-एक दीनार मिला। 10 जो पहले आए, उन्होंने यह समझा, कि हमें अधिक मिलेगा; परन्तु उन्हें भी एक ही एक दीनार मिला। 11 जब मिला, तो वह गृह स्वामी पर कुड़कुड़ा के कहने लगे, 12 ‘इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया, और तूने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जिन्होंने दिन भर का भार उठाया और धूप सही?’ 13 उसने उनमें से एक को उत्तर दिया, ‘हे मित्र, मैं तुझ से कुछ अन्याय नहीं करता; क्या तूने मुझसे एक दीनार न ठहराया? 14 जो तेरा है, उठा ले, और चला जा; मेरी इच्छा यह है कि जितना तुझे, उतना ही इस पिछले को भी दूँ। 15 क्या यह उचित नहीं कि मैं अपने माल से जो चाहूँ वैसा करूँ? क्या तू मेरे भले होने के कारण बुरी दृष्टि से देखता है?’ 16 इस प्रकार जो अन्तिम हैं, वे प्रथम हो जाएँगे* और जो प्रथम हैं वे अन्तिम हो जाएँगे।”
17 यीशु यरूशलेम को जाते हुए बारह चेलों को एकान्त में ले गया, और मार्ग में उनसे कहने लगा। 18 “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं; और मनुष्य का पुत्र प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा और वे उसको घात के योग्य ठहराएँगे। 19 और उसको अन्यजातियों के हाथ सौंपेंगे, कि वे उसे उपहास में उड़ाएँ, और कोड़े मारें, और क्रूस पर चढ़ाएँ, और वह तीसरे दिन जिलाया जाएगा।”
20 जब जब्दी के पुत्रों की माता ने अपने पुत्रों के साथ उसके पास आकर प्रणाम किया, और उससे कुछ माँगने लगी। 21 उसने उससे कहा, “तू क्या चाहती है?” वह उससे बोली, “यह कह, कि मेरे ये दो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरे दाहिने और एक तेरे बाएँ बैठे।” 22 यीशु ने उत्तर दिया, “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो। जो कटोरा मैं पीने* पर हूँ, क्या तुम पी सकते हो?” उन्होंने उससे कहा, “पी सकते हैं।” 23 उसने उनसे कहा, “तुम मेरा कटोरा तो पीओगे पर अपने दाहिने बाएँ किसी को बैठाना मेरा काम नहीं, पर जिनके लिये मेरे पिता की ओर से तैयार किया गया, उन्हीं के लिये है।”
24 यह सुनकर, दसों चेले उन दोनों भाइयों पर क्रुद्ध हुए। 25 यीशु ने उन्हें पास बुलाकर कहा, “तुम जानते हो, कि अन्यजातियों के अधिपति उन पर प्रभुता करते हैं; और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं। 26 परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने; 27 और जो तुम में प्रधान होना चाहे वह तुम्हारा दास बने; 28 जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि अपनी सेवा करवाए, परन्तु इसलिए आया कि सेवा करे और बहुतों के छुटकारे के लिये अपने प्राण दे।”
29 जब वे यरीहो* से निकल रहे थे, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 30 और दो अंधे, जो सड़क के किनारे बैठे थे, यह सुनकर कि यीशु जा रहा है, पुकारकर कहने लगे, “हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” 31 लोगों ने उन्हें डाँटा, कि चुप रहे, पर वे और भी चिल्लाकर बोले, “हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” 32 तब यीशु ने खड़े होकर, उन्हें बुलाया, और कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?” 33 उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, यह कि हमारी आँखें खुल जाएँ।” 34 यीशु ने तरस खाकर उनकी आँखें छूई, और वे तुरन्त देखने लगे; और उसके पीछे हो लिए।
यीशु मजदूरों को मजदूरी देने वाले के दृष्टान्त आरंभ करता है।
परमेश्वर पर राज करता है जैसे गृहस्वामी अपनी भूमि पर राज करता है।
देखें कि आपने में इसका अनुवाद कैसे किया है
"जब गृहस्वामी सहमत हो गया"
"एक दिन की मज़दूरी"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मजदूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"वह गृहस्वामी फिर गया"
"कुछ नहीं कर रहे थे" या "जिनके पास काम नहीं था"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मज़दूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"गृहस्वामी फिर बाहर गया"
"कुछ नहीं कर रहे थे" या "उनके पास काम नहीं था"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मजदूरों को मजदूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"जिन्होंने दिन समाप्त होने से एक घंटा पहले आए थे"
"एक दिन की मज़दूरी"
"जिन मज़दूरों ने सबसे अधिक काम किया था उन्होंने सोचा"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मज़दूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"जब सबसे अधिक काम करने वाले मजदूरों को मज़दूरी मिली तो"
"भू स्वामि पर" या "दाख की बारी के स्वामी पर"
"हमने पूरा दिन धूप में काम किया"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मज़दूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
"पूरा दिन काम करने वाले मज़दूरों में से एक"
किसी को कोमलता से झिड़कने का शब्द काम में लें।
वैकल्पिक अनुवाद, "हम सहमत थे कि मैं तुझे एक दीनार दूं।"
"एक दिन की मज़दूरी"
"मैं देने में प्रसन्न हूँ" या "मैं देकर प्रसन्न हूँ"
यीशु गृहस्वामी द्वारा मज़दूरों को मज़दूरी देने का दृष्टान्त सुना रहे है।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैं अपने माल के साथ जैसा चाहूंगा वैसा ही करूंगा" कर सकता हूँ।
"विधि सम्मत" या "निष्पक्ष" या "सही"
"तुझे निराश नहीं होना चाहिए कि मैं उनके साथ भलाई कर रहा हूँ, जिन्होंने कमाया नहीं"।
यरूशलेम की यात्रा के समय यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है
यीशु शिष्यों को भी जोड़ रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "कोई है जो मनुष्य के पुत्र को पकड़वायेगा"
"महायाजक और शास्त्री उसे मृत्युदण्ड के योग्य कहकर अन्यजातियों के समक्ष रखेंगे जो उसका ठट्ठा करेंगे"।
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर उसे जीवित करेगा"
दो शिष्यों की माता यीशु से एक निवेदन करती है
अधिकार के स्थानों पर
यीशु उन दोनों शिष्यों की माता को उत्तर देता है
वे दोनों शिष्य और उनकी माता
"क्या तुम्हारे लिए संभव है कि ..." यीशु केवल पुत्रों से कह रहा है
"जिस कष्ट को मैं उठाने जा रहा हूँ तुम उठा सकते हो"?
दोनों शिष्यों ने
"मेरे साथ बैठने का सम्मान उन्हीं के लिए है जिनके लिए मेरे पिता ने यह सम्मान रखा है"
"निश्चित किया है"
यीशु ने उनकी माता से जो कहा उसके द्वारा शिष्यों को शिक्षा देता है
"अन्य जातियों के शासक उनसे अपनी इच्छा पूरी करवाते हैं"
जिन्हें शासकों ने अधिकार दिया है
"उनके नियंत्रण में रखते है"
"इच्छा रखे" या "लालसा करे"
"मरने के लिए तैयार रहे"
यीशु द्वारा वे अंधों को दृष्टि दान का वृत्तान्त आरंभ होता है।
यह यीशु और उसके शिष्य के बारे में है
"यीशु का अनुसरण करने लगी"
परमेश्वर पाठक का ध्यान आकर्षित करता है कि कोई विस्मयकारी जानकारी आगे है। आपकी भाषा में इसको व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
"उनके पास से निकल रहा है"
"अंधों ने पहले से भी अधिक चिल्लाना आरंभ कर दिया" या "वे और ऊंचे शब्द में चिल्लाए"
यीशु द्वारा दो अंधों को दृष्टि दान का वृत्तान्त चल रहा है।
"उन अंधे मनुष्यों को बुलाया"
"ढूँढ़ते"
वैकल्पिक अनुवाद, "हमारी इच्छा है कि तू हमें देखने योग्य बना दे" या "हम देखने के योग्य होना चाहते है"। (देखें:
"अनुकंपा से" या "उनके लिए करूणा से भरकर"
दाख की बारी के स्वामी ने सुबह लाए गये मजदूरों को एक दीनार पर ठहराया।
बारी के स्वामी ने कहा कि वह उन्हें उचित मजदूरी देगा।
ग्यारहवें घंटे में लाए गए मजदूरों को एक दीनार मिला।
उन्होंने शिकायत की कि उन्होंने पूरा दिन काम किया और उन्हें उतना ही मिला जितना एक घंटे काम करने वाले को।
स्वामी ने उत्तर दिया कि सुबह काम पर लगाए गए मजदूरों को उसने ठहराई गई मजदूरी एक दीनार दी है और अन्य मजदूरों को भी उतनी ही मजदूरी देना उसकी अपनी इच्छा है।
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वह महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जायेगा और वे उसे मृत्यु दण्ड देंगे, और क्रूस पर चढ़ाएंगे परन्तु वह तीसरे दिन जी उठेगा।
वह चाहती थी कि यीशु आज्ञा दे कि उसके पुत्र यीशु के राज्य में उसकी दाहिनी ओर एक और बाईं ओर दूसरा बैठे।
यीशु ने उसे उत्तर दिया, कि स्वर्गीय पिता ने इन स्थानों को उन्हीं के लिए रखा है जिन्हें उसने चुना है।
यीशु ने कहा कि जो बड़ा बनना चाहे वह सेवक बने।
यीशु ने कहा कि वह सेवा करने और अनेकों की छुडौती के लिए अपने प्राण दे।
दो अंधे पुकार रहे थे, "हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर"।
यीशु ने उन दोनों अंधों को चंगा किया क्योंकि उसे उन पर तरस आ गया था।
1 जब वे यरूशलेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ पर बैतफगे के पास आए, तो यीशु ने दो चेलों को यह कहकर भेजा, 2 “अपने सामने के गाँव में जाओ, वहाँ पहुँचते ही एक गदही बंधी हुई, और उसके साथ बच्चा तुम्हें मिलेगा; उन्हें खोलकर, मेरे पास ले आओ। 3 यदि तुम से कोई कुछ कहे, तो कहो, कि प्रभु को इनका प्रयोजन है: तब वह तुरन्त उन्हें भेज देगा।” 4 यह इसलिए हुआ, कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो:
5 “सिय्योन की बेटी से कहो,
‘देख, तेरा राजा तेरे पास आता है;
वह नम्र है और गदहे पर बैठा है;
वरन् लादू के बच्चे पर।’ ”
6 चेलों ने जाकर, जैसा यीशु ने उनसे कहा था, वैसा ही किया। 7 और गदही और बच्चे को लाकर, उन पर अपने कपड़े डाले, और वह उन पर बैठ गया। 8 और बहुत सारे लोगों ने अपने कपड़े मार्ग में बिछाए, और लोगों ने पेड़ों से डालियाँ काटकर मार्ग में बिछाईं। 9 और जो भीड़ आगे-आगे जाती और पीछे-पीछे चली आती थी, पुकार-पुकारकर कहती थी, “दाऊद के सन्तान को होशाना; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना।” 10 जब उसने यरूशलेम में प्रवेश किया, तो सारे नगर में हलचल मच गई; और लोग कहने लगे, “यह कौन है?” 11 लोगों ने कहा, “यह गलील के नासरत का भविष्यद्वक्ता यीशु है।”
12 यीशु ने परमेश्वर के मन्दिर* में जाकर, उन सब को, जो मन्दिर में लेन-देन कर रहे थे, निकाल दिया; और सर्राफों के मेज़ें और कबूतरों के बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं। 13 और उनसे कहा, “लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा’; परन्तु तुम उसे लुटेरों का अड्डा बनाते हो।”
14 और अंधे और लँगड़े, मन्दिर में उसके पास आए, और उसने उन्हें चंगा किया। 15 परन्तु जब प्रधान याजकों और शास्त्रियों ने इन अद्भुत कामों को, जो उसने किए, और लड़कों को मन्दिर में दाऊद की सन्तान को होशाना’ पुकारते हुए देखा, तो क्रोधित हुए, 16 और उससे कहने लगे, “क्या तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?” यीशु ने उनसे कहा, “हाँ; क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा: ‘बालकों और दूध पीते बच्चों के मुँह से तूने स्तुति सिद्ध कराई?’ ” 17 तब वह उन्हें छोड़कर नगर के बाहर बैतनिय्याह* को गया, और वहाँ रात बिताई।
18 भोर को जब वह नगर को लौट रहा था, तो उसे भूख लगी। 19 और अंजीर के पेड़ को सड़क के किनारे देखकर वह उसके पास गया, और पत्तों को छोड़ उसमें और कुछ न पा कर उससे कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे।” और अंजीर का पेड़ तुरन्त सुख गया। 20 यह देखकर चेलों ने अचम्भा किया, और कहा, “यह अंजीर का पेड़ तुरन्त कैसे सूख गया?” 21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं तुम से सच कहता हूँ; यदि तुम विश्वास रखो, और सन्देह न करो; तो न केवल यह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ से किया गया है; परन्तु यदि इस पहाड़ से भी कहोगे, कि उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़, तो यह हो जाएगा। 22 और जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास से माँगोगे वह सब तुम को मिलेगा।”
23 वह मन्दिर में जाकर उपदेश कर रहा था, कि प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने उसके पास आकर पूछा, “तू ये काम किस के अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किस ने दिया है?” 24 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; यदि वह मुझे बताओगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ। 25 यूहन्ना का बपतिस्मा कहाँ से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से था?” तब वे आपस में विवाद करने लगे, “यदि हम कहें ‘स्वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेगा की, ‘फिर तुम ने उसका विश्वास क्यों न किया?’ 26 और यदि कहें ‘मनुष्यों की ओर से’, तो हमें भीड़ का डर है, क्योंकि वे सब यूहन्ना को भविष्यद्वक्ता मानते हैं।” 27 अतः उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” उसने भी उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता, कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ।
28 “तुम क्या समझते हो? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे; उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘हे पुत्र, आज दाख की बारी में काम कर।’ 29 उसने उत्तर दिया, ‘मैं नहीं जाऊँगा’, परन्तु बाद में उसने अपना मन बदल दिया और चला गया। 30 फिर दूसरे के पास जाकर ऐसा ही कहा, उसने उत्तर दिया, ‘जी हाँ जाता हूँ’, परन्तु नहीं गया। 31 इन दोनों में से किस ने पिता की इच्छा पूरी की?” उन्होंने कहा, “पहले ने।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि चुंगी लेनेवाले और वेश्या तुम से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करते हैं। 32 क्योंकि यूहन्ना धार्मिकता के मार्ग से तुम्हारे पास आया, और तुम ने उस पर विश्वास नहीं किया: पर चुंगी लेनेवालों और वेश्याओं ने उसका विश्वास किया: और तुम यह देखकर बाद में भी न पछताए कि उसका विश्वास कर लेते।
33 “एक और दृष्टान्त सुनो एक गृहस्थ था, जिसने दाख की बारी लगाई; और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा; और उसमें रस का कुण्ड खोदा; और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। 34 जब फल का समय निकट आया, तो उसने अपने दासों को उसका फल लेने के लिये किसानों के पास भेजा। 35 पर किसानों ने उसके दासों को पकड़ के, किसी को पीटा, और किसी को मार डाला; और किसी को पत्थराव किया। 36 फिर उसने और दासों को भेजा, जो पहलों से अधिक थे; और उन्होंने उनसे भी वैसा ही किया। 37 अन्त में उसने अपने पुत्र को उनके पास यह कहकर भेजा, कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। 38 परन्तु किसानों ने पुत्र को देखकर आपस में कहा, ‘यह तो वारिस है, आओ, उसे मार डालें: और उसकी विरासत ले लें।’ 39 और उन्होंने उसे पकड़ा और दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला।
40 इसलिए जब दाख की बारी का स्वामी आएगा, तो उन किसानों के साथ क्या करेगा?” 41 उन्होंने उससे कहा, “वह उन बुरे लोगों को बुरी रीति से नाश करेगा; और दाख की बारी का ठेका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।” 42 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम ने कभी पवित्रशास्त्र में यह नहीं पढ़ा:
‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने बेकार समझा था,
वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया?
यह प्रभु की ओर से हुआ, और हमारे
देखने में अद्भुत है।’
43 “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। 44 जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चकनाचूर हो जाएगा: और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” 45 प्रधान याजकों और फरीसी उसके दृष्टान्तों को सुनकर समझ गए, कि वह हमारे विषय में कहता है। 46 और उन्होंने उसे पकड़ना चाहा, परन्तु लोगों से डर गए क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता जानते थे।
यीशु अपने शिष्यों के साथ यरूशलेम जा रहा है।
एक गाँव
"युवा नर गधा"
यह यीशु द्वारा गधे की सवारी करके यरूशलेम जाने का वृत्तान्त है
"परमेश्वर ने वर्षों पूर्व अपने भविष्यद्वक्ता के माध्यम से कहा था कि ऐसा होगा"।
"जो होने से पहले ही भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था"
इस्राएल
गरीबों की सवारी का पशु
युवा गधा
यह यीशु द्वारा गधे की सवारी करके यरूशलेम जाने का वृत्तान्त है
बाहरी वस्त्र या कुर्ता
"यीशु उन कपड़ों पर बैठ गया जो गधे पर डाले गए थे।"
यह यीशु द्वारा गधे की सवारी करके यरूशलेम जाने का वृत्तान्त है
यह एक इब्रानी शब्द है जिसका अर्थ है, "हमें बचा" परन्तु अन्ततः इसका अर्थ हो गया, "याह की स्तुति करो"
"नगर में हर एक जन उसे देखने के लिए उत्सुक था"
"नगर के बहुत से लोगों में" (देखें: और
यह वृत्तान्त मन्दिर में यीशु के प्रवेश का है।
"यीशु ने उनसे कहा जो पैसों का विनिमय कर रहे थे और लेन -देन कर रहे थे"।
"लोगों के लिए प्रार्थना करने का स्थान"
"डाकुओं के छिपने का स्थान"
वे जो चलने योग्य नहीं थे या जिनके पैर बेकार थे
यह वृत्तान्त मन्दिर में यीशु की उपस्थिति का है।
देखें आपने इसका अनुवाद में कैसे किया था।
देखें आपने इसका अनुवाद में कैसे किया था।
"वे यीशु से घृणा करके क्रोधित हुए"
"तू लोगों को अपने लिए ऐसा कहने न दे"।
"हाँ मैं सुन रहा हूँ परन्तु तुम्हें धर्मशास्त्र की पढ़ी हुई बातें स्मरण रखना है"
"यीशु महायाजकों और शास्त्रियों को छोड़कर"
यह वृत्तान्त यीशु द्वारा अंजीर के पेड़ को श्राप देने का है।
"मर गया"
यीशु अंजीर के वृक्ष के श्राप की व्याख्या करता है।
सूख कर मर गया।
धर्मगुरूओं द्वारा यीशु से प्रश्न करने के वृत्तान्त का आरंभ होता है।
धर्मगुरूओं द्वारा यीशु से प्रश्न करने का वृत्तान्त चल रहा है।
"स्वर्ग में परमेश्वर से"
"यीशु हमसे कहेगा"
"हमें डर है कि भीड़ क्या कहेगी या हमारे साथ क्या करेगी"
"उनको विश्वास था कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता था"
यीशु एक दृष्टान्त द्वारा धर्मगुरूओं को उत्तर दे रहा है।
यीशु धर्मगुरूओं को दृष्टान्त द्वारा उत्तर दे रहा है
"महायाजक और पुरनियों ने कहा"
"यीशु ने महायाजकों और पुरनियों से कहा"
"यूहन्ना ने आकर धर्म-गुरूओं और साधारण जनता में प्रचार किया"
यूहन्ना ने दिखाया कि मनुष्य परमेश्वर के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाए और जीवन जीए।
यीशु एक और वृत्तान्त द्वारा धर्मगुरूओं को उत्तर दे रहा है
"एक भूस्वामी जिसके पास बहुत बड़ा खेत था"
"अपनी दाख की बारी किसानों की देखरेख में रखकर वह अब भी उसका स्वामी है।
जो दाखलता और दाख को संभालना जानते हैं
यीशु एक और दृष्टान्त द्वारा धर्मगुरूओं को उत्तर दे रहा है।
उस गृहस्वामी के सेवक"
यीशु एक और दृष्टान्त द्वारा धर्मगुरूओं को उत्तर दे रहा है।
यीशु एक और दृष्टान्त द्वारा धर्मगुरूओं को उत्तर दे रहा है।
"श्रोताओं ने यीशु को उत्तर दिया"
यीशु भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से उस दृष्टान्त का अर्थ समझाता है।
"यीशु ने श्रोताओं से कहा"
वैकल्पिक अनुवाद, "जिस पत्थर को राज मिस्त्रियों ने व्यर्थ कहा था वही सबसे महत्त्वपूर्ण ठहरा" अधिकारी यीशु का परित्याग करेंगे परन्तु परमेश्वर उसे अपने राज्य का सिर बनाएगा।
"परमेश्वर ने इस महान परिवर्तन को किया"
यीशु उस दृष्टान्त का अर्थ समझा रहा है।
यीशु महायाजकों एवं पुरनियों से कह रहा है।
"जो सही है वह करे"
"परमेश्वर के राज्य के फल"
"जो इस पत्थर से टकराएगा" /रूपक
"जिस पर दण्ड आएगा" /रूपक
धर्मगुरू यीशु का दृष्टान्त सुनकर प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं।
"यीशु का दृष्टान्त"
"बन्दी बनाना चाहा"
यीशु ने कहा कि वे एक गदही और उसके बच्चे को देखेंगे।
भविष्यद्वाणी के अनुसार राजा गदहे वरन गदहे के बच्चे पर बैठ कर आयेगा।
जन समूह ने मार्ग में अपने कपड़े और वृक्षों की टहनियां बिछा दीं।
जन समूह चिल्लाता था, "दाऊद की सन्तान को होशाना, धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना"।
यीशु ने मन्दिर में से लेन-देन करने वालों को निकाल दिया और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचने वालों की चौकियाँ उलट दी।
यीशु ने कहा कि व्यापारियों ने परमेश्वर के मन्दिर को डाकूओं की गुफा बना दिया है।
यीशु ने भविष्यद्वक्ता के संदर्भ से उत्तर दिया, बालकों और दूध पीते बच्चों के मुँह से तु ने स्तुति सिद्ध कराई?"
यीशु ने अंजीर के वृक्ष को श्राप दिया और वह सूख गया क्योंकि उसमें फल नहीं लगे थे।
यीशु ने अपने शिष्यों को शिक्षा दी कि यदि वे विश्वास से मांगेंगे तो उन्हें मिलेगा।
महायाजक और पुरनियों ने यीशु से उसका अधिकार जानना चाहा।
यीशु ने उनसे पूछा कि उनके विचार में यूहन्ना का बपतिस्मा स्वर्ग से था या मनुष्यों से।
वे समझ गए थे कि यीशु उनसे पूछेगा कि वे यूहन्ना पर विश्वास क्यों नहीं करते थे।
वे जनसमूह से डरते थे क्योंकि जनसमूह यूहन्ना को भविष्यद्वक्ता मानता था।
पुत्र जिसने कहा है कि वह काम पर नहीं जायेगा और बाद में जाता है।
यीशु ने कहा कि वे राज्य में प्रवेश कर रहे हैं क्योंकि वे यूहन्ना में विश्वास रखते थे परन्तु महायाजक और पुरनिये यूहन्ना का विश्वास नहीं करते थे।
दुष्ट किसानों ने दासों को मारा-पीटा, पत्थरवाह किया और मार डाला।
स्वामी ने अन्त में अपने पुत्र को भेजा।
किसानों ने स्वामी के पुत्र को मार डाला।
उन्होंने उत्तर दिया कि स्वामी आयेगा और इन दुष्ट किसानों को नष्ट करके दूसरे किसानों को ठेका देगा।
जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था वही कोने का पत्थर था।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर का राजा महायाजकों और फरीसियों के हाथ से परमेश्वर राज्य ले लिया जायेगा। और उस जाति को दिया जायेगा जो फल लायेगा।
वे जनसमूह से डरते थे क्योंकि लोग यीशु को भविष्यद्वक्ता मानते थे।
1 इस पर यीशु फिर उनसे दृष्टान्तों में कहने लगा। 2 “स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने पुत्र का विवाह किया। 3 और उसने अपने दासों को भेजा, कि निमंत्रित लोगों को विवाह के भोज में बुलाएँ; परन्तु उन्होंने आना न चाहा। 4 फिर उसने और दासों को यह कहकर भेजा, ‘निमंत्रित लोगों से कहो: देखो, मैं भोज तैयार कर चुका हूँ, और मेरे बैल और पले हुए पशु मारे गए हैं और सब कुछ तैयार है; विवाह के भोज में आओ।’ 5 परन्तु वे उपेक्षा करके चल दिए: कोई अपने खेत को, कोई अपने व्यापार को। 6 अन्य लोगों ने जो बच रहे थे उसके दासों को पकड़कर उनका अनादर किया और मार डाला। 7 तब राजा को क्रोध आया, और उसने अपनी सेना भेजकर उन हत्यारों को नाश किया, और उनके नगर को फूँक दिया। 8 तब उसने अपने दासों से कहा, ‘विवाह का भोज तो तैयार है, परन्तु निमंत्रित लोग योग्य न ठहरे। 9 इसलिए चौराहों में जाओ, और जितने लोग तुम्हें मिलें, सब को विवाह के भोज में बुला लाओ।’ 10 अतः उन दासों ने सड़कों पर जाकर क्या बुरे, क्या भले, जितने मिले, सब को इकट्ठा किया; और विवाह का घर अतिथियों से भर गया।
11 “जब राजा अतिथियों के देखने को भीतर आया; तो उसने वहाँ एक मनुष्य को देखा, जो विवाह का वस्त्र नहीं पहने था*। 12 उसने उससे पूछा, ‘हे मित्र; तू विवाह का वस्त्र पहने बिना यहाँ क्यों आ गया?’ और वह मनुष्य चुप हो गया। 13 तब राजा ने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पाँव बाँधकर उसे बाहर अंधियारे में डाल दो, वहाँ रोना, और दाँत पीसना होगा।’ 14 क्योंकि बुलाए हुए तो बहुत है परन्तु चुने हुए थोड़े हैं।”
15 तब फरीसियों ने जाकर आपस में विचार किया, कि उसको किस प्रकार बातों में फँसाएँ। 16 अतः उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास यह कहने को भेजा, “हे गुरु, हम जानते हैं, कि तू सच्चा है, और परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता। 17 इसलिए हमें बता तू क्या समझता है? कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं।” 18 यीशु ने उनकी दुष्टता जानकर कहा, “हे कपटियों, मुझे क्यों परखते हो? 19 कर का सिक्का मुझे दिखाओ।” तब वे उसके पास एक दीनार ले आए। 20 उसने, उनसे पूछा, “यह आकृति और नाम किस का है?” 21 उन्होंने उससे कहा, “कैसर का।” तब उसने उनसे कहा, “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” 22 यह सुनकर उन्होंने अचम्भा किया, और उसे छोड़कर चले गए।
23 उसी दिन सदूकी जो कहते हैं कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं उसके पास आए, और उससे पूछा, 24 “हे गुरु, मूसा ने कहा था, कि यदि कोई बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी को विवाह करके अपने भाई के लिये वंश उत्पन्न करे। 25 अब हमारे यहाँ सात भाई थे; पहला विवाह करके मर गया; और सन्तान न होने के कारण अपनी पत्नी को अपने भाई के लिये छोड़ गया। 26 इसी प्रकार दूसरे और तीसरे ने भी किया, और सातों तक यही हुआ। 27 सब के बाद वह स्त्री भी मर गई। 28 अतः जी उठने पर वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि वह सब की पत्नी हो चुकी थी।” 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम पवित्रशास्त्र और परमेश्वर की सामर्थ्य नहीं जानते; इस कारण भूल में पड़ गए हो। 30 क्योंकि जी उठने पर विवाह-शादी न होगी; परन्तु वे स्वर्ग में दूतों के समान होंगे। 31 परन्तु मरे हुओं के जी उठने के विषय में क्या तुम ने यह वचन नहीं पढ़ा जो परमेश्वर ने तुम से कहा: 32 ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ?’ वह तो मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवितों का परमेश्वर है।” 33 यह सुनकर लोग उसके उपदेश से चकित हुए।
34 जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने सदूकियों का मुँह बन्द कर दिया; तो वे इकट्ठे हुए। 35 और उनमें से एक व्यवस्थापक ने परखने के लिये, उससे पूछा, 36 “हे गुरु, व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?” 37 उसने उससे कहा, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख*। 38 बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। 39 और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। 40 ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था एवं भविष्यद्वक्ताओं* का आधार है।”
41 जब फरीसी इकट्ठे थे, तो यीशु ने उनसे पूछा, 42 “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो? वह किस की सन्तान है?” उन्होंने उससे कहा, “दाऊद की।” 43 उसने उनसे पूछा, “तो दाऊद आत्मा में होकर उसे प्रभु क्यों कहता है? 44 ‘प्रभु ने, मेरे प्रभु से कहा, मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे की चौकी न कर दूँ।’ 45 भला, जब दाऊद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका पुत्र कैसे ठहरा?” 46 उसके उत्तर में कोई भी एक बात न कह सका। परन्तु उस दिन से किसी को फिर उससे कुछ पूछने का साहस न हुआ।
यीशु ने धर्मगुरूओं को विवाह भोज दृष्टान्त सुनाना आरंभ किया।
देखें कि आपने में इसका अनुवाद कैसे किया है
वैकल्पिक अनुवाद, "राजा के द्वारा आमंत्रित जन"
यीशु धर्मगुरूओं को विवाह भोज का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "सुनो" या "देखो" या "मैं जो कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दो"
यीशु धर्मगुरूओं को विवाह भोज का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
"आमंत्रित अतिथि
"उसकी निमन्त्रण को गम्भीरता से नहीं लिया"
यीशु धर्मगुरूओं को विवाह भोज का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
जहाँ दो रास्ते एक दूसरे को काटते हैं।
एक बड़ा कक्ष
यीशु धर्मगुरूओं को विवाह भोज का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
यीशु धर्मगुरूओं को विवाह भोज का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
यहाँ धर्मगुरूओं द्वारा यीशु को फसाने के प्रयास का वृत्तान्त आरंभ होता है।
"उससे कुछ ऐसा कहलवाऍ जिसे हम उसके विरूद्ध काम में ले पाएं"
यहूदी राजा हेरोदेस के कर्मचारी तथा अनुयायी, हेरोदेस को भी साम्राज्य का मित्र था।
"तू कुछ लोगों को विशेष मान प्रदान नहीं करता है" या "तू बड़े लोगों की चिन्ता नहीं करता है"।
धर्मगुरू कर देने के संबन्ध में यीशु को फसाने का प्रयास करते हैं।
रोमी सिक्का जो एक दिन की मज़दूरी था।
धर्मगुरू कर देने के संबन्ध में यीशु को फसाने का प्रयास करते हैं।
"जो वस्तुएं कैसर की हैं"
"जो वस्तुएं परमेश्वर की हैं"
यहूदी धर्मगुरू यीशु को तलाक के संबन्ध में फसाने का प्रयास कर रहे हैं।
वे उससे धर्मशास्त्र में मूसा के लेख के बारे में प्रश्न कर रहे थे। यदि आपकी भाषा में उद्धरण के भीतर उद्धरण देने का प्रावधान नहीं है तो आप परोक्ष वाक्य का उपयोग कर सकते हैं, "मूसा ने कहा है कि यदि कोई पुरूष ...." (देखें:
उसका भाई ..... उसकी पत्नी .... उसका भाई मृतक का
यहूदी धर्मगुरू यीशु को तलाक के संबन्ध में फसाने का प्रयास कर रहे हैं।
"जब सब भाई उससे विवाह कर चुके" या "जब सब भाई मर गए"
"परमेश्वर जो कर सकता है" यहूदी धर्मगुरू यीशु को तलाक के संबन्ध में फसाने का प्रयास कर रहे हैं।
यहूदी धर्मगुरू यीशु को तलाक के संबन्ध में फसाने का प्रयास कर रहे हैं।
क्या तुमने यह वचन नही पढ़ा .... याकूब , वैकल्पिक अनुवाद, "मैं जानता हूँ कि तुमने यह वचन पढ़ा है परन्तु तुम समझ नहीं पाए .... याकूब"।
जो परमेश्वर ने तुम से कहा , वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर ने जो तुमसे कहा" (देखें: : )
यह उद्धरण में उद्धरण है, "परमेश्वर ने मूसा से कहा कि वह, परमेश्वर, अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर है"
धर्मगुरू यीशु को व्यवस्था के संबन्धों में फसाने का प्रयास कर रहें हैं।
मूसा की व्यवस्था को समझने में योग्य फरीसी
धर्मगुरू यीशु को व्यवस्था के संबन्धों में फसाने का प्रयास कर रहें हैं।
धर्मगुरू यीशु को व्यवस्था के संबन्धों में फसाने का प्रयास कर रहें हैं।
उसी आज्ञा के समान .
यीशु धर्मगुरूओं से मसीह के बारे में प्रश्न कर रहा है
यीशु धर्मगुरूओं से मसीह के बारे में प्रश्न पूछ रहा है
मेरे दाहिने बैठ , दाहिनी ओर प्रायः सम्मान का स्थान दर्शाती है।
"जब तक कि मैं तेरे बैरियों को जीत न लूं"
यीशु धर्मगुरूओं से मसीह के बारे में प्रश्न पूछ रहा है
कुछ लोगों ने निमंत्रण को गंभीरता से स्वीकार नहीं किया और अपने अपने काम में लग गए, कुछ लोगों ने राजा के सेवकों को पकड़कर मार डाला।
राजा ने अपनी सेना भेज कर उन हत्यारों का नाश किया और उनके नगर को फूंक दिया।
तदोपरान्त राजा ने सब भले-बुरे लोगों को भोज में बुलवाया।
राजा ने उसे बंधक कर बाहरी अन्धकार में फिंकवा दिया।
फरीसी यीशु को उसके ही शब्दों में फंसाना चाहते थे।
उन्होंने यीशु से पूछा कि कैसर को कर देना उचित है या नहीं।
यीशु ने कहा कैसर का कैसर को दो और परमेश्वर का परमेश्वर को दो।
सदूकियों का मानना था कि पुनरुत्थान नहीं है।
एक स्त्री के सात पति हुए।
यीशु ने कहा कि सदूकी न तो धर्मशास्त्र को जानते थे और न ही परमेश्वर के सामर्थ्य को।
यीशु ने कहा कि पुनरुत्थान में विवाह नहीं होता है।
यीशु ने धर्मशास्त्र का वह संदर्भ दिया जहां परमेश्वर कहता है कि वह अब्राहम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर है, मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवितों का।
?
यीशु ने उत्तर दिया, तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख और तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
यीशु ने पूछा मसीह किसका पुत्र है।
फरीसियों ने उत्तर दिया कि मसीह दाऊद का पुत्र है।
?
फरीसी यीशु को उत्तर नहीं दे पाए।
1 तब यीशु ने भीड़ से और अपने चेलों से कहा, 2 “शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं; 3 इसलिए वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना, परन्तु उनके जैसा काम मत करना; क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं। 4 वे एक ऐसे भारी बोझ को जिनको उठाना कठिन है, बाँधकर उन्हें मनुष्यों के कंधों पर रखते हैं*; परन्तु आप उन्हें अपनी उँगली से भी सरकाना नहीं चाहते। 5 वे अपने सब काम लोगों को दिखाने के लिये करते हैं वे अपने तावीजों* को चौड़े करते, और अपने वस्त्रों की झालरों को बढ़ाते हैं। 6 भोज में मुख्य-मुख्य जगहें, और आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन, 7 और बाजारों में नमस्कार और मनुष्य में रब्बी* कहलाना उन्हें भाता है। 8 परन्तु तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है: और तुम सब भाई हो। 9 और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। 10 और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात् मसीह। 11 जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने। 12 जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।
13 “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो आप ही उसमें प्रवेश करते हो और न उसमें प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो। 14 [हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम विधवाओं के घरों को खा जाते हो, और दिखाने के लिए बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हो: इसलिए तुम्हें अधिक दण्ड मिलेगा।]
15 “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है, तो उसे अपने से दुगुना नारकीय बना देते हो।
16 “हे अंधे अगुओं, तुम पर हाय, जो कहते हो कि यदि कोई मन्दिर की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की सौगन्ध खाए तो उससे बन्ध जाएगा। 17 हे मूर्खों, और अंधों, कौन बड़ा है, सोना या वह मन्दिर जिससे सोना पवित्र होता है? 18 फिर कहते हो कि यदि कोई वेदी की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु जो भेंट उस पर है, यदि कोई उसकी शपथ खाए तो बन्ध जाएगा। 19 हे अंधों, कौन बड़ा है, भेंट या वेदी जिससे भेंट पवित्र होती है? 20 इसलिए जो वेदी की शपथ खाता है, वह उसकी, और जो कुछ उस पर है, उसकी भी शपथ खाता है। 21 और जो मन्दिर की शपथ खाता है, वह उसकी और उसमें रहनेवालों की भी शपथ खाता है। 22 और जो स्वर्ग की शपथ खाता है, वह परमेश्वर के सिंहासन की और उस पर बैठनेवाले की भी शपथ खाता है।
23 “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम पोदीने और सौंफ और जीरे का दसवाँ अंश देते हो, परन्तु तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों अर्थात् न्याय, और दया, और विश्वास को छोड़ दिया है; चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते, और उन्हें भी न छोड़ते। 24 हे अंधे अगुओं, तुम मच्छर को तो छान डालते हो, परन्तु ऊँट को निगल जाते हो।
25 “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर से तो माँजते हो परन्तु वे भीतर अंधेर असंयम से भरे हुए हैं। 26 हे अंधे फरीसी, पहले कटोरे और थाली को भीतर से माँज कि वे बाहर से भी स्वच्छ हों*।
27 “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम चूना फिरी हुई कब्रों* के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं। 28 इसी रीति से तुम भी ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो।
29 “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रें संवारते और धर्मियों की कब्रें बनाते हो। 30 और कहते हो, ‘यदि हम अपने पूर्वजों के दिनों में होते तो भविष्यद्वक्ताओं की हत्या में उनके सहभागी न होते।’ 31 इससे तो तुम अपने पर आप ही गवाही देते हो, कि तुम भविष्यद्वक्ताओं के हत्यारों की सन्तान हो। 32 अतः तुम अपने पूर्वजों के पाप का घड़ा भर दो। 33 हे साँपो, हे करैतों के बच्चों, तुम नरक के दण्ड से कैसे बचोगे? 34 इसलिए देखो, मैं तुम्हारे पास भविष्यद्वक्ताओं और बुद्धिमानों और शास्त्रियों को भेजता हूँ; और तुम उनमें से कुछ को मार डालोगे, और क्रूस पर चढ़ाओगे; और कुछ को अपनी आराधनालयों में कोड़े मारोगे, और एक नगर से दूसरे नगर में खदेड़ते फिरोगे। 35 जिससे धर्मी हाबिल से लेकर बिरिक्याह के पुत्र जकर्याह तक, जिसे तुम ने मन्दिर और वेदी के बीच में मार डाला था, जितने धर्मियों का लहू पृथ्वी पर बहाया गया है, वह सब तुम्हारे सिर पर पड़ेगा। 36 मैं तुम से सच कहता हूँ, ये सब बातें इस पीढ़ी के लोगों पर आ पड़ेंगी।
37 “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम! तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थराव करता है, कितनी ही बार मैंने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठा कर लूँ, परन्तु तुम ने न चाहा। 38 देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है। 39 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि अब से जब तक तुम न कहोगे, ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम से आता है’ तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।”
यीशु अपने अनुयायियों को सतर्क करता है कि वह धर्मगुरूओं के जैसे न हों।
"उनके पास मूसा का अधिकार है" या "उन्हें मूसा की व्यवस्था का अर्थ समझाने का अधिकार है"
"कुछ भी" या "सब कुछ"
यीशु अपने अनुयायियों को सतर्क कर रहा है कि वे धर्मगुरूओं के समान न हों।
वे ऐसे भारी बोझ को जिनको उठाना कठिन है , "वे तुम पर अनेक नियम लागू करते हैं जिनका पालन करना कठिन है"
"वह थोड़ी सी भी सहायता करना नहीं चाहते"
छोटी-छोटी चमड़े की थैलियों में धर्मशास्त्र के पद को रखकर शरीर पर बाँधा जाता था
यीशु अपने अनुयायियों को सतर्क कर रहा है कि धर्मगुरूओं के समान व्यवहार न करें।
यीशु अपने अनुयायियों को सतर्क कर रहा है कि वे धर्मगुरूओं के समान न हों।
"पृथ्वी पर किसी को भी पिता न कहना" या "कभी न कहें कि पृथ्वी पर कोई तुम्हारा पिता है"
यीशु अपने अनुयायियों को सतर्क कर रहा है कि धर्मगुरूओं के समान व्यवहार न करें।
"अपने आपको महत्त्वपूर्ण बनाए"
"महत्त्व में ऊंचा उठेगा"
यीशु धर्मगुरूओं को पाखंड के कारण उनके विरूद्ध कह रहा है।
"तुम परमेश्वर को स्वयं पर अधिकार नहीं करने देता"
"जिन स्त्रियों के पास सुरक्षा हेतु पुरूष नहीं उन्हें तुम लूटते हो"
"जो व्यक्ति नरक का है" या "जिस व्यक्ति को नरक जाना चाहिए"
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
यद्यपि अगुवे शरीर से अंधे नहीं थे, वे समझ नहीं सकते हैं कि वे गलत हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, "उसने जो प्रतिज्ञा की है उसे करना अनिवार्य है"
यीशु इस प्रश्न द्वारा फरीसियों को झिड़कता है।
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
आत्मिक अंधे
यीशु इस प्रश्न से उस बात को प्रकट कर रहा है जिसे वे पहले से ही जानते हैं
पशु की बलि या परमेश्वर के समक्ष लाया गया आटा जो वेदी पर रखने से पूर्व के हैं, एक बार वेदी पर रख दिए गए तो वे बलि होते हैं।
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
देखें कि आपने इसका अनुवाद
भोजन में स्वाद के लिए काम आने वाले पत्ते और बीज
ये लोग शरीर से तो अंधे नहीं है परन्तु यीशु आत्मिक अंधेपन की तुलना शारीरिक अंधेपन से करता है।
कम महत्त्व के नियमों के पालन में अत्यधिक सावधान रहना और अधिक महत्त्वपूर्ण नियमों को अनेदखा करना ऐसी मूर्खता है कि जैसे सबसे छोटे अशुद्ध पशु का मॉस खा लेना चाहे वह जानबूझ कर हो या अनजाने में हो। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम उस मूर्ख के समान हो जो अपने पेय पदार्थ में गिरनेवाले कीट को तो सावधानीपूर्वक निकाल देता है, परन्तु ऊँट को निगल जाता है"। (देखें: और )
कपड़ा लगाकर पीते हो कि मच्छर मुँह में न चला जाए।
एक छोटा उड़ने वाला कीट
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
देखें इसका अनुवाद में कैसे किया गया है।
"शास्त्री" और "फरीसी" बाहर से बड़े पवित्र दिखाई देते हैं।
"वे लोगों से उनकी वस्तुएं बलपूर्वक छीन लेते हैं कि उनके पास आवश्यकता से अधिक हो जाए।"
फरीसी सत्य को नहीं समझते। वे आँखों से तो अंधे नहीं हैं।
उनके मन परमेश्वर के साथ उचित संबन्ध में होंगे तो उनके जीवन से प्रकट होगा।
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
"तुम अपने पूर्वजों के द्वारा आरंभ किए गए पाप को पूरा करते हो।"
"तुम खतरनाक एवं विषैले सर्पों के जैसे हो"
"नरक के दण्ड से बचने का तुम्हारे लिए कोई मार्ग नहीं है"
यीशु धर्मगुरूओं के पाखण्ड के कारण उनके विरूद्ध है।
हाबिल हत्या का पहला शिकार था और ऐसा माना जाता है कि मन्दिर में घात किया जाने वाला जकरयाह अन्तिम था।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का पिता नहीं
यीशु कहता है कि यरूशलेमवासियों द्वारा उसके परित्याग के कारण वह दुःखी है।
हे यरूशलेम, हे यरूशलेम यीशु यरूशलेमवासियों को नगर के नाम से संबोधित करता है (देखें: और )
संपूर्ण इस्राएल को
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर तुम्हारे घर को त्याग देगा और वह उजड़ा पड़ा रहेगा"। (देखेः )
संभावित अर्थः (1) यरूशलेम नगर (देखें यू.डी.बी.) या (2) मन्दिर (देखेः )
यीशु ने लोगों से कहा कि शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठकर जो कहते हैं उसका वे पालन करें।
यीशु ने कहा कि वे उनके से काम न करें क्योंकि वे कहते तो हैं परन्तु स्वयं करते नहीं।
शास्त्रियों और फरीसियों ने दिखाने के लिए ही सब काम किए थे।
यीशु ने कहा कि हमारा एकमात्र पिता स्वर्ग में है और एकमात्र गुरु मसीह है।
परमेश्वर बड़े को छोटा करता है और छोटे को बड़ा बनाता है।
यीशु बार-बार शास्त्रियों और फरीसियों को पाखंडी कहता था।
शास्त्री और फरीसी जब किसी को अपने धर्म में लाते थे तब वे उसे अपने समान नरक की दोगुणा सन्तान बनाते थे।
यीशु ने शास्त्रियों और फरीसियों को अंधे अगुवे और मूर्ख एवं अन्धे कहा था।
शास्त्रियों और फरीसियों ने व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण बातों को करने में चूक की थी, न्याय, दया और विश्वास।
शास्त्री और फरीसी कटोरे को भीतर से साफ करने में चूक गए थे कि बाहरी भाग भी साफ ही रहता।
शास्त्री और फरीसी भीतर से अन्धेर, असंयम, पाखंड और अधर्म से भरे थे।
शास्त्रियों और फरीसियों के पूर्वजों ने परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं को मारा था।
शास्त्री और फरीसी नरक का दण्ड भोगेंगे।
यीशु ने कहा कि वे परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं में से कुछ को मार डालेंगे, क्रूस पर चढ़ायेंगे आराधनालय में कोड़े मारेंगे, एक नगर से दूसरे नगर में खदेड़ेगे।
जितने धर्मियों का लहू पृथ्वी पर बहाया गया शास्त्रियों और फरीसियों के सिर पर पड़ेगा।
यीशु ने कहा कि उनकी पीढ़ी पर यह सब कुछ आ पड़ेगा।
यीशु ने कहा कि वह यरूशलेम की सन्तान को एकत्र करना चाहता था परन्तु वे तैयार नहीं हुए।
यरूशलेम का घर उस उजाड़ में छोड़ा जाता है।
1 जब यीशु मन्दिर से निकलकर जा रहा था, तो उसके चेले उसको मन्दिर की रचना दिखाने के लिये उसके पास आए। 2 उसने उनसे कहा, “क्या तुम यह सब नहीं देखते? मैं तुम से सच कहता हूँ, यहाँ पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।”
3 और जब वह जैतून पहाड़* पर बैठा था, तो चेलों ने अलग उसके पास आकर कहा, “हम से कह कि ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” 4 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “सावधान रहो! कोई तुम्हें न बहकाने पाए। 5 क्योंकि बहुत से ऐसे होंगे जो मेरे नाम से आकर कहेंगे, ‘मैं मसीह हूँ’, और बहुतों को बहका देंगे। 6 तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे; देखो घबरा न जाना क्योंकि इनका होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा। 7 क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह-जगह अकाल पड़ेंगे, और भूकम्प होंगे। 8 ये सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ* होंगी। 9 तब वे क्लेश दिलाने के लिये तुम्हें पकड़वाएँगे, और तुम्हें मार डालेंगे और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे। 10 तब बहुत सारे ठोकर खाएँगे, और एक दूसरे को पकड़वाएँगे और एक दूसरे से बैर रखेंगे। 11 बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बहुतों को बहकाएँगे। 12 और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा। 13 परन्तु जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा। 14 और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार* किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।
15 “इसलिए जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जिसकी चर्चा दानिय्येल भविष्यद्वक्ता के द्वारा हुई थी, पवित्रस्थान में खड़ी हुई देखो, (जो पढ़े, वह समझे)। 16 तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएँ। 17 जो छत पर हो, वह अपने घर में से सामान लेने को न उतरे। 18 और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे।
19 “उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय, हाय। 20 और प्रार्थना करो; कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े। 21 क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा। 22 और यदि वे दिन घटाए न जाते, तो कोई प्राणी न बचता; परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएँगे। 23 उस समय यदि कोई तुम से कहे, कि देखो, मसीह यहाँ हैं! या वहाँ है! तो विश्वास न करना।
24 “क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएँगे, कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी बहका दें। 25 देखो, मैंने पहले से तुम से यह सब कुछ कह दिया है। 26 इसलिए यदि वे तुम से कहें, ‘देखो, वह जंगल में है’, तो बाहर न निकल जाना; ‘देखो, वह कोठरियों में हैं’, तो विश्वास न करना।
27 “क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती जाती है, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा। 28 जहाँ लाश हो, वहीं गिद्ध इकट्ठे होंगे।
29 “उन दिनों के क्लेश के बाद तुरन्त सूर्य अंधियारा हो जाएगा, और चाँद का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। 30 तब मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे। 31 और वह तुरही के बड़े शब्द के साथ, अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे आकाश के इस छोर से उस छोर तक, चारों दिशा से उसके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे।
32 “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो जब उसकी डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। 33 इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, वरन् द्वार पर है। 34 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का अन्त नहीं होगा। 35 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरे शब्द कभी न टलेंगी।
36 “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूतों, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता। 37 जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। 38 क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी। 39 और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उनको कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। 40 उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। 41 दो स्त्रियाँ चक्की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। 42 इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा। 43 परन्तु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता होता कि चोर किस पहर आएगा, तो जागता रहता; और अपने घर में चोरी नहीं होने देता। 44 इसलिए तुम भी तैयार रहो*, क्योंकि जिस समय के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी समय मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।
45 “अतः वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर-चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे? 46 धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। 47 मैं तुम से सच कहता हूँ; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। 48 परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे, कि मेरे स्वामी के आने में देर है। 49 और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए-पीए। 50 तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा, और ऐसी घड़ी कि जिसे वह न जानता हो, 51 और उसे कठोर दण्ड देकर, उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
यीशु अब अपने शिष्यों के साथ उसके पुनः आगमन की घटनाओं की चर्चा आरंभ करता है।
संभावित अर्थः (1) यीशु मन्दिर के बारे में कह रहा है (वैकल्पिक अनुवाद, "इन इमारतों के बारे में मैं तुमसे कहता हूँ") या (2) यीशु अभी-अभी व्यक्त किए गए विनाश के संदर्भ में कह रहा है। ("तुम्हें समझ लेना था कि मैंने अभी-अभी तुम से क्या कहा था, परन्तु तुम नहीं समझे!") (देखेः )
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
"सावधान रहना कि कोई तुम्हें इन बातों के बारे में झूठ न कहे"।
यीशु अपने शिष्यों से अन्त समय संबन्धित घटनाओं की चर्चा करता है।
"ये घटनाएं तुम्हें परेशान न कर दें"
यीशु शिष्यों से अन्त समय संबन्धित घटनाओं की ही चर्चा कर रहा है।
तुम्हें पकड़वाएंगे "जो तुम्हें सताना चाहते है वे तुम्हें बन्दी बनवाएंगे"
इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा में किया गया है।
यीशु अपने शिष्यों से अन्त समय की घटनाओं की ही चर्चा कर रहा है।
संभावित अर्थः (1) "लोग आपस में प्रेम नहीं रखेंगे" (देखें यू.डी.बी.) या (2) "अधिकांश जन परमेश्वर से प्रेम नहीं रखेंगे"।
वैकल्पिक अनुवाद, "सब जगहों में सब लोग"
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "जिसके बारे में भविष्यद्वक्ता दानिय्येल ने लिखा है"।
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
जो गर्भवती "गर्भवती स्त्रियाँ"
"शीत ऋतु"
लोग
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
"उनकी झूठी बातों पर विश्वास नहीं करना"
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
उसका आगमन बड़ी तेजी से होगा और सब उसे देखेंगे।
संभावित अर्थः (1) जब मनुष्य का पुत्र आयेगा तब सब उसे देखेंगे और जान लेंगे कि वह आ गया है। (देखें यू.डी.बी.) या (2) जहाँ आत्मिकता में मृतक हो, झूठे भविष्यद्वक्ता वहाँ अवश्य होंगे कि उन्हें झूठी बातें सुनाएँ (देखें
मृतक मनुष्यों या जानवरों को खाने वाले बड़े पक्षी।
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
"तत्काल ही"
में चर्चित दिन
"परमेश्वर सूर्य को अन्धेरा कर देगा।" (देखें: Active/Passive)
आकाश की शक्तियाँ हिलाई जायेंगी ।"परमेश्वर आकाश और उसके परे उथल-पुथल करेगा"।(देखें: Active/Passive)
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
वे आनेवाले दण्ड के भय से छाती पीटेंगे।
"उसके स्वर्गदूत चुने हुओं को एकत्र करेंगे"।
जिन्हें मनुष्य के पुत्र ने चुना है।
वैकल्पिक अनुवाद, "पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण से" (देखें यू.डी.बी.) या "सब जगहों से" (देखें: )
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
आक्रमण करने वाली सेना के समान जो नगर में प्रवेश करने ही वाली है
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
"जो लोग इस समय हैं उनके मर जाने तक"
वैकल्पिक अनुवाद, "जब तक परमेश्वर यह सब न कर दे"
"आकाश और पृथ्वी भले ही न रहें"
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
"पुत्र भी नहीं"
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "जिस दिन मनुष्य के पुत्र पुन: आयेगा वह दिन ऐसा समय होगा जैसा नूह के दिनों में था" क्योंकि कोई नहीं जानता था कि विनाश आनेवाला है।
वैकल्पिक अनुवाद, "मनुष्य के पुत्र के आने से पूर्व का समय वैसा ही होगा जैसा जल प्रलय से पूर्व का समय था जब सब खाते-पीते थे... सबको बहा न ले गया"।
यीशु शिष्यों से अपने आगमन की चर्चा कर रहा है।
जब मनुष्य का पुत्र आएगा
संभावित अर्थ, (1) परमेश्वर एक को स्वर्ग ले जाएगा और दूसरे को दण्ड के लिए पृथ्वी पर छोड़ देगा। (देखें यू.डी.बी.) या (2) स्वर्गदूत एक को दण्ड के लिए ले जायेंगे और दूसरे को आशिष के लिए रख देंगे। .
गेहूँ पीसने का साधन
"मैंने जो कहा है, इस कारण"
"ध्यान दो"
यीशु अपने शिष्यों को समझा रहा है कि उसके पुनः आगमन के लिए कैसे तैयार रहें।
यीशु के कहने का अर्थ है कि वह अचानक ही आयेगा, चोरी करने नहीं।
"वह अपने घर की चौकसी करता" कि सुरक्षित रहे।
"वह चोरी के लिए किसी को भी घर में घुसने नहीं देता"।
यीशु अपने शिष्यों को पुनः आगमन की तैयारी ही की शिक्षा दे रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "विश्वासयोग्य और बुद्धिमान सेवक कौन है? जिसे स्वामी ने.... "
"अपने स्वामी के कुटुम्ब के सदस्यों को भोजन दे"।
यीशु अपने शिष्यों को पुनः आगमन की तैयारी ही की शिक्षा दे रहा है।
सोचने लगे "अपने मन में विचार करे"
"उसके साथ व्यवहार करेगा"
यीशु ने भविष्यद्वाणी की थी कि मन्दिर का पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा जो ढाया न जायेगा।
चेलों ने यीशु से पूछा कि ऐसा कब होगा और उसके पुनःआगमन तथा संसार के अन्त के चिन्ह क्या होंगे।
यीशु ने कहा कि अनेक जन स्वयं को मसीह कहते हुए आएंगे और बहुतों को भरमाएंगे।
यीशु ने पीड़ाओं के आरंभ की कौन सी घटनाएं बताई थी।
यीशु ने कहा कि विश्वासी क्लेश भोगेंगे, कुछ विश्वासी ठोकर खाकर एक दूसरे से विश्वासघात करेंगे और बहुतों का प्रेम ठण्डा पड़ जाएगा।
यीशु ने कहा कि जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।
अन्त से पूर्व सुसमाचार संपूर्ण संसार में सुना दिया जायेगा।
यीशु ने कहा कि विश्वासी पहाड़ों में भाग जायेंगे।
उस समय क्लेश ऐसा होगा, जैसे जगत के आरंभ से कभी नहीं हुआ है।
झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता मनुष्यों को भरमाने के लिए बड़े-बड़े चिन्ह और चमत्कार दिखायेंगे।
मनुष्य के पुत्र का आगमन ऐसा होगा जैसे पूर्व से पश्चिम तक बिजली चमकती है।
सूर्य और चांद अन्धियारा हो जायेंगे और आकाश से तारे गिरेंगे।
उस समय पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे।
जब स्वर्गदूत चुने हुओं को एकत्र करेंगे तब तुरही की तीव्र ध्वनि सुनाई देगी।
यीशु ने कहा कि यह सब घटनाएं होने तक वह पीढ़ी समाप्त नहीं होगी।
यीशु ने कहा कि स्वर्ग और पृथ्वी टल जाएंगे परन्तु उसका वचन नहीं टलेगा।
केवल पिता परमेश्वर जानता है कि ऐसा कब होगा।
मनुष्य पीते-खाते होंगे, आनन्द मनाते होंगे और विवाह करते होंगे और आने वाले न्याय के बारे में अज्ञात होंगे कि अकस्मात ही वह आ जायेगा।
यीशु ने कहा कि उसके विश्वासियों को सदा तैयार रहना है क्योंकि वे नहीं जानते यीशु किस दिन आ जायेगा।
एक विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास स्वामी के अनुपस्थिति में उसके घर की निष्ठापूर्वक देखरेख करता है।
लौट आने पर स्वामी इस विश्वासयोग्य एवं बुद्धिमान इसको अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहरायेगा।
दुष्ट दास अपने स्वामी की अनुपस्थिति में अपने साथी दासों को पीटता है और पियक्कड़ों के साथ खाता पीता है।
उसका स्वामी उसे भारी ताड़ना देगा और उसे वहाँ डाल देगा जहां रोना और दांतों का पीसना होगा।
1 “तब स्वर्ग का राज्य उन दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। 2 उनमें पाँच मूर्ख और पाँच समझदार थीं। 3 मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया। 4 परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। 5 जब दुल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब उँघने लगीं, और सो गई।
6 “आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो। 7 तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं। 8 और मूर्खों ने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं।’ 9 परन्तु समझदारों ने उत्तर दिया कि कही हमारे और तुम्हारे लिये पूरा न हो; भला तो यह है, कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो। 10 जब वे मोल लेने को जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चलीं गई और द्वार बन्द किया गया। 11 इसके बाद वे दूसरी कुँवारियाँ भी आकर कहने लगीं, ‘हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे।’ 12 उसने उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता। 13 इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस समय को।
14 “क्योंकि यह उस मनुष्य के समान दशा है जिसने परदेश को जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी संपत्ति उनको सौंप दी। 15 उसने एक को पाँच तोड़, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उसकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया। 16 तब, जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन-देन किया, और पाँच तोड़े और कमाए। 17 इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए। 18 परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी का धन छिपा दिए।
19 “बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा। 20 जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने पाँच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी, तूने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे, देख मैंने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’ 21 उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
22 “और जिसको दो तोड़े मिले थे, उसने भी आकर कहा, ‘हे स्वामी तूने मुझे दो तोड़े सौंपें थे, देख, मैंने दो तोड़े और कमाए।’ 23 उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा, मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’
24 “तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा, ‘हे स्वामी, मैं तुझे जानता था, कि तू कठोर मनुष्य है: तू जहाँ कहीं नहीं बोता वहाँ काटता है, और जहाँ नहीं छींटता वहाँ से बटोरता है।’ 25 इसलिए मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया; देख, ‘जो तेरा है, वह यह है।’ 26 उसके स्वामी ने उसे उत्तर दिया, कि हे दुष्ट और आलसी दास; जब तू यह जानता था, कि जहाँ मैंने नहीं बोया वहाँ से काटता हूँ; और जहाँ मैंने नहीं छींटा वहाँ से बटोरता हूँ। 27 तो तुझे चाहिए था, कि मेरा धन सर्राफों को दे देता, तब मैं आकर अपना धन ब्याज समेत ले लेता। 28 इसलिए वह तोड़ा उससे ले लो, और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसको दे दो। 29 क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा: परन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा। 30 और इस निकम्मे दास को बाहर के अंधेरे में डाल दो, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।
31 “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। 32 और सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएँगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। 33 और वह भेड़ों को अपनी दाहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा*। 34 तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है। 35 क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया, मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया; 36 मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहनाए; मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली, मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझसे मिलने आए।’
37 “तब धर्मी उसको उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया? या प्यासा देखा, और पानी पिलाया? 38 हमने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया या नंगा देखा, और कपड़े पहनाए? 39 हमने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए?’ 40 तब राजा उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से* किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।’ 41 “तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, ‘हे श्रापित लोगों, मेरे सामने से उस अनन्त आग* में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है। 42 क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया; 43 मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली।’
44 “तब वे उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की?’ 45 तब वह उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम ने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया।’ 46 और ये अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”
यीशु बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियाँ का दृष्टान्त सुनाता है।
मशालें , (1) बत्तियाँ (यू.डी.बी.) या (2) लकड़ी की छोर पर कपड़ा लपेट कर तेल में तर करके जलाई जानेवाली बत्ती।
उनमें से पाँच "पाँच कुवारियाँ"
"उसके पास केवल मशालों में ही तेल था"
यीशु बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियों ही का दृष्टान्त सुना रहा है।
"दसों कुवारियां सोने लगी।"
यीशु बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियों ही का दृष्टान्त सुना रहा है।
मशालें ठीक करने लगी "जलाने के लिए अपनी मशालों को ठीक किया कि अधिक प्रकाश दें"
"मूर्ख कुंवारियों ने बुद्धिमान कुंवारियों से कहा"
"हमारी मशालें पूरी रोशनी नहीं दे रही हैं"
यीशु अपने शिष्यों को बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियों का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
"पाँच मूर्ख कुंवारियां जब तेल लेने जा रही थी"
"जिनके पास पूरा तेल था"
वैकल्पिक अनुवाद, "किसी ने द्वार बन्द कर दिया"
"द्वार खोल दे कि हम भीतर आ जाएँ"
"मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो"
यीशु विश्वासयोग्य और विश्वासघाती दासों का दृष्टान्त सुनाता है।
"स्वर्ग का राज्य उसके समान है"
"जाने के लिए तैयार था" या "शीघ्र ही जाने वाला था"
"उन्हें अपनी सम्पत्ति का अधिकारी ठहराया"
"अपनी सम्पदा"
एक "तोड़ा" लगभग बीस वर्ष की मजदूरी थी। इसे आज की मुद्रा में अनुवाद न करें। यह दृष्टान्त पांच, दो और एक की आपेक्षिक तुलना का है तथा बड़ी सम्पदा का। (देखें यू.डी.बी."सोने के पांच बोरे") )
"वह स्वामी यात्रा पर निकल गया"
"पाँच तोड़े और कर लिए"
यीशु विश्वासयोग्य और विश्वासघाती दासों का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
"दो तोड़े और कमाए"
यीशु विश्वासयोग्य और विश्वासघाती दासों का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
"मैंने पाँच और कर लिए"।
देखें आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है।
धन्य है - "तूने अच्छा किया है" या "तूने सही काम किया है"। आपकी भाषा में प्रावधान होगा कि किसी स्वामी (या अधिकारी) द्वारा सेवक (या कनिष्ठ कर्मी) के काम की सराहना को व्यक्त कैसे करें।
यीशु विश्वासयोग्य और विश्वासघाती दासों का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
देखें आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है।
देखें आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है
यीशु विश्वासयोग्य और विश्वासघाती दासों का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "तू उस खेत से फल बटोरता है जहाँ तूने पैसा देकर बीज डलवाया है"।
छींटता , उस युग में वे उपकरणों द्वारा बीज डालने की अपेक्षा बीजों को बिखेर दिया करते थे।
"देख तूने जो दिया था वह यह है"।
यीशु विश्वासयोग्य और विश्वासघाती दासों का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
"तू एक दुष्ट सेवक है जो परिश्रम करना नहीं चाहता है"।
देखें कि आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है।
"अपना सोना ले लेता"
ब्याज , स्वामी के पैसों को काम में लेने का अतिरिक्त भुगतान
यीशु विश्वासयोग्य और विश्वासघाती दासों का ही दृष्टान्त सुना रहा है।
"कहीं अधिक हो जायेगा"।
"जहाँ मनुष्य रोता रहेगा और दांत पीसता रहेगा"
यीशु अब अपने शिष्यों को बताना आरंभ करता है कि अन्त समय में वह कैसे न्याय करेगा।
वैकल्पिक अनुवाद, "वह सब जातिया को एकत्र करेगा।"
"उसके समक्ष"
सब जातियाँ , "हर एक देश के लोग"
बकरियाँ भी भेड़ों के जैसी ही होती है, उन्हें भी भेड़ों के समान पाला जाता है।
"मनुष्य का पुत्र उन्हें खड़ा करेगा"।
यीशु अपने शिष्यों को बता रहा है कि अन्त समय वह कैसे न्याय करेगा।
राजा "मनुष्य का पुत्र"
"भेड़ों से"
वैकल्पिक अनुवाद, "आओ, तुम्हें मेरे पिता ने आशिषित किया है"
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर ने तुम्हारे लिए जो राज्य तैयार किया है उसके अधिकारी हो जाओ"
यीशु अपने शिष्यों को बता रहा है कि अन्त समय वह कैसे न्याय करेगा
"परमेश्वर का पुत्र"
"उसके दाहिनी ओर वालों से कहेगा"
यदि आपकी भाषा में स्त्री-पुरूष दोनों के लिए एक शब्द है तो यहाँ काम में लें।
"मैं उसे मेरी ही सेवा मानता हूँ"।
यीशु अपने शिष्यों को बता रहा है कि अन्त समय वह कैसे न्याय करेगा।
"तुम, जिन्हें परमेश्वर ने श्राप दिया है"
वैकल्पिक अनुवादः "अनन्त भाग जो परमेश्वर ने तैयार किया है"।
उसके सहायकों के लिए
"तुमने मुझे पहनने के लिए कपड़े नहीं दिए"
"मैं बीमार था और बन्दीगृह में था"
यीशु अपने शिष्यों को बता रहा है कि अन्त समय वह कैसे न्याय करेगा।
"जो उसक बाई ओर हैं "वे भी कहेंगे" (देखें
"मेरे लोगों में सबसे कम महत्त्व के जन के साथ"
"मैं यही मानता हूँ कि तुमने मेरे साथ नहीं किया" या "जिसकी तुमने सहायता नहीं की वह वास्तव में मैं ही था"
"दण्ड जिसका कभी अन्त नहीं होगा"।
"धर्मी जन अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे"
मूर्ख कुंवारियों ने अपनी मशालों के लिए तेल साथ नहीं लिया था।
बुद्धिमान कुंवारियों ने अपने साथ तेल का पात्र भी ले लिया था।
दूल्हे ने विलम्ब कर दिया और उसका आगमन मध्य रात्रि हुआ।
मूर्ख कुंवारियां तेल खरीदने गई और जब लौटकर आई तक भोजन कक्ष का द्वार बन्द हो चुका था।
बुद्धिमान कुंवारियां विवाह भोज में दुल्हे के साथ प्रवेश कर गई।
यीशु ने कहा कि विश्वासियों को सतर्क रहना है, क्योंकि वे न उस दिन को जानते हैं न उस समय को।
जिस दास के पास पांच तोड़े थे उसने पांच और कमाए और जिसके पास दो थे उसने दो और कमाएं।
जिस दास को एक तोड़ा दिया गया था उसने उसे जमीन में दबा कर रख दिया।
उनका स्वामी लम्बे समय तक बाहर रहा।
जब स्वामी लौटकर आया तब उसने उन दोनों दासों के साथ क्या किया जिन्हें उसने पांच और दो तोड़े दिए थे।
स्वामी ने उससे कहा, "हे दुष्ट और आलसी सेवक", उससे वह एक तोड़ा ले लिया और उसे बाहर के अंधेरे में डाल दिया।
मनुष्य का पुत्र सब जातियों को एकत्र करेगा और वह मनुष्यों को एक दूसरे से अलग करेगा।
जो राजा के दहिनी ओर होंगे वे राज्य के अधिकारी होंगे जो उनके लिए जगत की नींव से ही तैयार किया गया है।
इसके दाहिनी ओर के मनुष्य वे लोग हैं जिन्होंने भूखों को खाना दिया, प्यासों को पानी पिलाया, परदेशियों की सेवा, नंगों को वस्त्र पहनाए, रोगियों की सेवा की और बन्दियों से भेंट की।
राजा की बाई ओर के लोगों को अनन्त उपमा मिली जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई थी।
राजा के बाई ओर के लोगों ने भूखों को खाना नहीं खिलाया, प्यासों को पानी नहीं पिलाया, परदेशियों की सेवा नहीं की, नंगों को कपड़े नहीं पहनाए, रोगियों की सेवा नहीं की और बन्दियों से भेंट करने नहीं गए।
1 जब यीशु ये सब बातें कह चुका, तो अपने चेलों से कहने लगा। 2 “तुम जानते हो, कि दो दिन के बाद फसह* का पर्व होगा; और मनुष्य का पुत्र क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिये पकड़वाया जाएगा।” 3 तब प्रधान याजक और प्रजा के पुरनिए कैफा नामक महायाजक के आँगन में इकट्ठे हुए। 4 और आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें। 5 परन्तु वे कहते थे, “पर्व के समय नहीं; कहीं ऐसा न हो कि लोगों में दंगा मच जाए।”
6 जब यीशु बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर में था। 7 तो एक स्त्री* संगमरमर के पात्र में बहुमूल्य इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था, तो उसके सिर पर उण्डेल दिया। 8 यह देखकर, उसके चेले झुँझला उठे और कहने लगे, “इसका क्यों सत्यनाश किया गया? 9 यह तो अच्छे दाम पर बेचकर गरीबों को बाँटा जा सकता था।” 10 यह जानकर यीशु ने उनसे कहा, “स्त्री को क्यों सताते हो? उसने मेरे साथ भलाई की है। 11 गरीब तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदैव न रहूँगा। 12 उसने मेरी देह पर जो यह इत्र उण्डेला है, वह मेरे गाड़े जाने के लिये किया है। 13 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।”
14 तब यहूदा इस्करियोती ने, बारह चेलों में से एक था, प्रधान याजकों के पास जाकर कहा, 15 “यदि मैं उसे तुम्हारे हाथ पकड़वा दूँ, तो मुझे क्या दोगे?” उन्होंने उसे तीस चाँदी के सिक्के तौलकर दे दिए। 16 और वह उसी समय से उसे पकड़वाने का अवसर ढूँढ़ने लगा।
17 अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करें?” 18 उसने कहा, “नगर में फलाने के पास जाकर उससे कहो, कि गुरु कहता है, कि मेरा समय निकट है, मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहाँ फसह मनाऊँगा।” 19 अतः चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी, और फसह तैयार किया।
20 जब सांझ हुई, तो वह बारह चेलों के साथ भोजन करने के लिये बैठा। 21 जब वे खा रहे थे, तो उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।” 22 इस पर वे बहुत उदास हुए, और हर एक उससे पूछने लगा, “हे गुरु, क्या वह मैं हूँ?” 23 उसने उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है, वही मुझे पकड़वाएगा। 24 मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य के लिये शोक है जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है: यदि उस मनुष्य का जन्म न होता, तो उसके लिये भला होता।” 25 तब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने कहा, “हे रब्बी, क्या वह मैं हूँ?” उसने उससे कहा, “तू कह चुका।”
26 जब वे खा रहे थे, तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” 27 फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, “तुम सब इसमें से पीओ, 28 क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के लिए बहाया जाता है। 29 मैं तुम से कहता हूँ, कि दाख का यह रस उस दिन तक कभी न पीऊँगा, जब तक तुम्हारे साथ अपने पिता के राज्य में नया न पीऊँ।” 30 फिर वे भजन गाकर जैतून पहाड़ पर गए।
31 तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम सब आज ही रात को मेरे विषय में ठोकर खाओगे; क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा; और झुण्ड की भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’ 32 परन्तु मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।” 33 इस पर पतरस ने उससे कहा, “यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाएँ तो खाएँ, परन्तु मैं कभी भी ठोकर न खाऊँगा।” 34 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि आज ही रात को मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझसे मुकर जाएगा।” 35 पतरस ने उससे कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी हो, तो भी, मैं तुझ से कभी न मुकरूँगा।” और ऐसा ही सब चेलों ने भी कहा।
36 तब यीशु ने अपने चेलों के साथ गतसमनी* नामक एक स्थान में आया और अपने चेलों से कहने लगा “यहीं बैठे रहना, जब तक कि मैं वहाँ जाकर प्रार्थना करूँ।” 37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा। 38 तब उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मेरे प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।” 39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुँह के बल गिरकर, और यह प्रार्थना करने लगा, “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा* मुझसे टल जाए, फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” 40 फिर चेलों के पास आकर उन्हें सोते पाया, और पतरस से कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक घण्टे भर न जाग सके? 41 जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो! आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।” 42 फिर उसने दूसरी बार जाकर यह प्रार्थना की, “हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।” 43 तब उसने आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं। 44 और उन्हें छोड़कर फिर चला गया, और वही बात फिर कहकर, तीसरी बार प्रार्थना की। 45 तब उसने चेलों के पास आकर उनसे कहा, “अब सोते रहो, और विश्राम करो: देखो, समय आ पहुँचा है, और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। 46 उठो, चलें; देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है।”
47 वह यह कह ही रहा था, कि यहूदा जो बारहों में से एक था, आया, और उसके साथ प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों की ओर से बड़ी भीड़, तलवारें और लाठियाँ लिए हुए आई। 48 उसके पकड़वानेवाले ने उन्हें यह पता दिया था: “जिसको मैं चूम लूँ वही है; उसे पकड़ लेना।” 49 और तुरन्त यीशु के पास आकर कहा, “हे रब्बी, नमस्कार!” और उसको बहुत चूमा। 50 यीशु ने उससे कहा, “हे मित्र, जिस काम के लिये तू आया है, उसे कर ले।” तब उन्होंने पास आकर यीशु पर हाथ डाले और उसे पकड़ लिया। 51 तब यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के दास पर चलाकर उसका कान काट दिया। 52 तब यीशु ने उससे कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएँगे। 53 क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह सैन्य-दल से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा? 54 परन्तु पवित्रशास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, कैसे पूरी होंगी?” 55 उसी समय यीशु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिये निकले हो? मैं हर दिन मन्दिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा। 56 परन्तु यह सब इसलिए हुआ है, कि भविष्यद्वक्ताओं के वचन पूरे हों।” तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए।
57 और यीशु के पकड़नेवाले उसको कैफा नामक महायाजक के पास ले गए, जहाँ शास्त्री और पुरनिए इकट्ठे हुए थे। 58 और पतरस दूर से उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन तक गया, और भीतर जाकर अन्त देखने को सेवकों के साथ बैठ गया। 59 प्रधान याजकों और सारी महासभा* यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में झूठी गवाही की खोज में थे। 60 परन्तु बहुत से झूठे गवाहों के आने पर भी न पाई। अन्त में दो जन आए, 61 और कहा, “इसने कहा कि मैं परमेश्वर के मन्दिर को ढा सकता हूँ और उसे तीन दिन में बना सकता हूँ।”
62 तब महायाजक ने खड़े होकर उससे कहा, “क्या तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” 63 परन्तु यीशु चुप रहा। तब महायाजक ने उससे कहा “मैं तुझे जीविते परमेश्वर की शपथ देता हूँ*, कि यदि तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे।” 64 यीशु ने उससे कहा, “तूने आप ही कह दिया; वरन् मैं तुम से यह भी कहता हूँ, कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।” 65 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “इसने परमेश्वर की निन्दा की है, अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन? देखो, तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है! 66 तुम क्या समझते हो?” उन्होंने उत्तर दिया, “यह मृत्यु दण्ड होने के योग्य है।” 67 तब उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसे घूँसे मारे, दूसरों ने थप्पड़ मार के कहा, 68 “हे मसीह, हम से भविष्यद्वाणी करके कह कि किस ने तुझे मारा?”
69 पतरस बाहर आँगन में बैठा हुआ था कि एक दासी ने उसके पास आकर कहा, “तू भी यीशु गलीली के साथ था।” 70 उसने सब के सामने यह कहकर इन्कार किया और कहा, “मैं नहीं जानता तू क्या कह रही है।” 71 जब वह बाहर द्वार में चला गया, तो दूसरी दासी ने उसे देखकर उनसे जो वहाँ थे कहा, “यह भी तो यीशु नासरी के साथ था।” 72 उसने शपथ खाकर फिर इन्कार किया, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।” 73 थोड़ी देर के बाद, जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर उससे कहा, “सचमुच तू भी उनमें से एक है; क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है।” 74 तब वह कोसने और शपथ खाने लगा, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।” और तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी। 75 तब पतरस को यीशु की कही हुई बात स्मरण आई, “मुर्गे के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” और वह बाहर जाकर फूट-फूट कर रोने लगा।
यीशु अब अपने शिष्यों को बताता है कि वह कैसे कष्ट उठाएगा और मरेगा।
यदि आपकी भाषा में कहानी को नए मन का आरंभ करने का प्रावधान है तो उसे काम में लें।
की बातें
"कुछ लोग मनुष्य के पुत्र को ऐसे लोगों को सौंपेगे जो उसे क्रूस पर चढ़ायेंगे"।
यहूदी अगुवे यीशु को पकड़ने और घात करने का षड्यंत्र रच रहे हैं।
गुप्त रूप से
वार्षिक फसह के पर्व के समय
यीशु की मृत्यु से पूर्व एक स्त्री यीशु का अभिषेक करती है।
"वह अपने सहारे पर आधा लेटा था"। आपकी भाषा में भोजन करते समय जो भी आराम दायक होता है उसका शब्द काम में लें।
एक स्त्री यीशु के पास आई
कोमल पत्थर का पात्र जो महंगा होता है
"सुगन्धित द्रव्य"
"इस स्त्री ने इत्र को व्यर्थ गवांकर अच्छा नहीं किया"
अपनी मृत्यु से पूर्व अभिषेक करने वाली स्त्री की यीशु प्रशंसा करता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें इस स्त्री को परेशान करने की आवश्यकता थी"
चेले
यीशु अपनी मृत्यु से पूर्व अभ्यंजन करने वाली स्त्री की प्रशंसा कर रहा है।
शिष्यों में से एक यहूदी अगुओं के हाथ यीशु को पकड़वाने में सहायता करने के लिए तैयार हो जाता है।
"यीशु को तुम्हारे हाथों में कर दूँ" या "यीशु को बन्दी बनाने में तुम्हारी सहायता करूं"
क्योंकि ये शब्द वही है जो पुराने नियम की भविष्यद्वाणी में हैं इसलिए इसे ज्यों का त्यों रखें, आज की मुद्रा में नहीं बदलें।
"यीशु को महायाजकों के हाथों पकड़वाने के लिए"
यीशु अपने शिष्यों के साथ फसह का भोज खाने की तैयारी कर रहा है।
यीशु अपने शिष्यों के साथ किसी मनुष्य को सन्देश भिजवाता है। वैकल्पिक अनुवाद, "यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि नगर में एक व्यक्ति है उसके पास जाकर कहें कि गुरू कहता है, मेरा समय निकट आ गया है, मैं तेरे घर में अपने शिष्यों के साथ तेरे घर में फसह मनाऊँगा" "उसने अपने शिष्यों से कहा कि वे नगर में उस मनुष्य के पास जाकर कहें कि गुरू कहता है कि उसका समय निकट आ गया है और वह उसके घर में अपने शिष्यों के साथ पर्व मनाएगा"।
संभावित अर्थ, (1) "जिस समय के बारे में मैंने तुमसे कहा था" (यू.डी.बी.) या (2) "परमेश्वर ने जो समय मेरे लिए ठहराया है"।
निकट है , संभावित अर्थः (1) "निकट है" (यू.डी.बी.) या (2) "आ गया है"
"फसह का भोज खाऊँ" या "फसह का पर्व मनाने के लिए विशेष भोजन खाऊँ"
फसह का भोज खाते समय यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है।
यहाँ वही शब्द काम में ले जो आपकी संस्कृति में भोजन करते समय काम में लिया जाता है।
"निश्चय ही वह मैं नहीं, प्रभु मैं हूँ क्या"?
फसह के भोजन के समय यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है।
"जो मनुष्य के पुत्र के साथ विश्वासघात करेगा"।
"तूने कहा है, तू ही है" या "तूने अभी-अभी स्वीकार किया है"।
फसह के भोजन के समय यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है।
इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा में किया है।
फसह के भोजन के समय यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है।
इसका अनुवाद वैसा ही करें जैसा में किया है।
"शिष्यों को दी"
"लहू जो वाचा के प्रभाव को सिद्ध करता है" या "लहू जो वाचा को संभव बनाता है"।
"मृत्यु द्वारा बहाया जाता है" या "शीघ्र ही मेरी देह से बहेगा" या "मेरे मरते समय मेरे घावों से बहेगा"
"दाख रस"
यीशु जैतून पर्वत की ओर अग्रसर अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है।
भजन , परमेश्वर का स्तुतिगान
ठोकर खाओगे , "मुझे छोड़ कर भाग जाओगे"
वैकल्पिक अनुवाद, (1) "वे झुण्ड की भेड़ों को तितर-बितर कर देंगे" या (2) "झुण्ड की भेड़ें चारों ओर भाग जायेंगी"।
शिष्य
वैकल्पिक अनुवाद, "जब परमेश्वर मुझे जीवित करेगा तब"
वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर मुझे मृतकों में से जिलाएगा"
यीशु जैतून पर्वत की ओर अग्रसर अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है।
ठोकर खाओगे इसका अनुवाद जैसा ही करें।
वैकल्पिक अनुवाद, "सूर्योदय से पूर्व"
सूर्योदय से पूर्व यह चिड़िया आवाज़ करती है।
मुर्गे की आवाज़
यीशु जैतून पर्वत की ओर अग्रसर अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है।
बहुत दुखी
यह गतसमनी की वाटिका में यीशु की प्रार्थना का वृत्तान्त है।
मुँह के बल गिरा , प्रार्थना के लिए भूमि पर मुंह रखा
गतसमनी की वाटिका में यीशु की प्रार्थना का वृत्तान्त चल रहा है।
"यीशु ने जाकर"
"जब तक मैं कष्ट का यह कटोरा न पी लूँ"
"वे बहुत नींद में थे"
गतसमनी की वाटिका में यीशु की प्रार्थना का वृत्तान्त चल रहा है।
"समय आ गया है"
"पापी लोगों के हाथ"
"ध्यान न दो कि मैं क्या कहने जा रहा हूँ"
गतसमनी की वाटिका में यीशु की प्रार्थना का वृत्तान्त चल रहा है।
वह यह कह रहा था , "यीशु अभी बातें ही कर रहा था"
"उसने कहा कि जिसे वह चूमे उसी को उन्हें पकड़ना है"
"वह जिसे मैं चूमूँ" या "जिस व्यक्ति को मैं चूमूँगा" (यू.डी.बी.)
चूम लूँ , अपने गुरू का सम्मान पूर्वक अभिवादन करना
गतसमनी की वाटिका में यीशु को पकड़ने का वृत्तान्त
यीशु के पास आकर , "यहूदा यीशु के पास आया"
उसको बहुत चूमा , "चूमकर उसका अभिवादन किया"
यीशु की हानि के लिए उसे पकड़ा
उसे बन्दी बना लिया
गतसमनी की वाटिका में यीशु को बन्दी बनाने का वृत्तान्त
लेखक कहानी में एक नए चरित्र को ला रहा है। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
क्या तू सोचता है कि मैं अपने पिता से कहूँ और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक न भेजे? वैकल्पिक अनुवाद, "तू यह जान ले कि मैं अपने पिता से कह सकता हूँ और वह मेरे लिए स्वर्गदूतों की बारह पलटनों से अधिक भेज देगा"।
स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक - स्वर्गदूतों की यथार्थ संख्या महत्त्वपूर्ण नहीं है।
रोमी सेना की एक ईकाई जिसमें छः हज़ार सैनिक होते थे।
गतसमनी की वाटिका में यीशु को बन्दी बनाने का वृत्तान्त
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम तो जानते हो कि मैं डाकू नहीं अतः तलवारें और लाठियाँ लेकर आना गलत है"।
लोगों पर वार करने के लिए बड़ी ठोस लकड़ी
यदि आपकी भाषा में कोई ऐसा शब्द है जो व्यक्त करे कि जब किसी के साथ होना चाहिए तब उसका साथ छोड़ दिया तो उस शब्द को यहाँ काम में लें।
यहाँ महायाजक द्वारा यीशु से पूछ-ताछ करने का वृत्तान्त आरंभ होता है।
महायाजक के घर के बाहर खुला स्थान
महायाजकों द्वारा यीशु से पूछताछ का वृत्तान्त ही चल रहा है।
दो जन आए , "दो जन सामने आए" (यू.डी.बी.) या "दो गवाह उपस्थित हुए"
वैकल्पिक अनुवाद, "उन्होंने गवाही दी कि उन्होंने यीशु को कहते सुना है कि वह परमेश्वर के मन्दिर को ढा देने में और तीन दिन में उसका पुनः निर्माण करने में समर्थ है"।
इसने कहा , "इसने, यीशु ने कहा"
महायाजकों द्वारा यीशु से पूछताछ का वृत्तान्त ही चल रहा है।
ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं , "ये गवाह तेरे विरूद्ध कह रहे हैं"।
यदि तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है तो हमसे कह दे , "यदि तू मसीह है तो हमारे सामने कह"।
"जैसा तूने कहा, मैं हूँ"। या "तूने अभी स्वयं स्वीकार किया है"।
यीशु महायाजक एवं उपस्थित गण से कह रहा है।
अब से तुम परमेश्वर के पुत्र को ... देखोगे , संभावित अर्थः (1) वे मनुष्य के पुत्र को भविष्य में कभी देखेंगे (देखें यू.डी.बी.) या (2) "अब से" से यीशु का अर्थ है उसकी मृत्यु, उसका पुनरूत्थान और स्वर्गारोहण का समय।
"सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दाहिनी ओर"
"आकाश के बादलों पर सवार पृथ्वी पर उतरते"
महायाजकों द्वारा यीशु से पूछताछ का वृत्तान्त ही चल रहा है।
वस्त्र फाड़ना क्रोध और दुख का प्रतीक था।
"यहूदी अगुओं ने उत्तर दिया"
महायाजकों द्वारा यीशु से पूछताछ का वृत्तान्त ही चल रहा है।
संभावित अर्थः (1) "कुछ लोगों ने" या "सैनिकों ने"
अपमान करने के लिए
पतरस द्वारा यीशु के इन्कार का वृत्तान्त है
पतरस भली भांति समझ रहा था कि वह क्या कह रही थी, परन्तु उसने इन शब्दों द्वारा यीशु का इन्कार किया।
यह पतरस द्वारा यीशु के इन्कार का वृत्तान्त चल रहा है।
जब पतरस
आँगन की दीवार का द्वार
यह पतरस द्वारा यीशु के इन्कार का वृत्तान्त चल रहा है।
उनमें से एक "जो यीशु के साथ थे उनमें से एक"
क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है तेरी बोली से हम निश्चित कह सकते है की तू गलीली है।
धिक्कारने लगा "अपने आपको कोसने लगा"
वैकल्पिक अनुवाद, "कि वह उस व्यक्ति को नहीं जानता है"
यीशु ने कहा कि फसह का पर्व दो दिन में आने वाला है।
वे यीशु को छल से पकड़ कर मार डालने का षड्यंत्र रच रहे थे।
उन्हें डर था कि पर्व के समय यदि वे यीशु को मार डालेंगे तो उपद्रव खड़ा हो जायेगा।
चेले अप्रसन्न थे, वे जानना चाहते थे कि इत्र बेचकर कंगालों में पैसा क्यों नहीं बांटा गया।
यीशु ने कहा कि उस स्त्री ने उस पर अन्तिम संस्कार का अभ्यंजन किया है।
यहूदा को चांदी के तीस सिक्के दिए गए थे कि वह यीशु को पकड़वा दे।
यीशु ने कहा कि उसका एक चेला उसे पकड़वाएगा।
यीशु ने कहा कि इसके पकड़वाने वाले के लिए उत्तम होता कि वह पैदा ही नहीं हुआ होता।
यीशु ने उत्तर दिया "तू कह चुका है"।
यीशु ने कहा, "लो खाओ यह मेरी देह है"।
यीशु ने कहा कि वह कटोरा वाचा का उसका लहू है जो अनेकों के पापों की क्षमा के लिए बहाया जाता है।
यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वह सब उस रात उसका साथ छोडकर तित्तर- बित्तर हो जाएगे।
यीशु ने कहा कि अब रात मुर्गे की बांग देने से पहले पतरस तीन बार यीशु का इन्कार करेगा।
यीशु ने उनसे कहा कि वे जागते रहें।
यीशु ने प्रार्थना में कहा कि उसकी नहीं परमेश्वर पिता की इच्छा पूरी हो।
यीशु ने तीन बार शिष्यों को छोड़ प्रार्थना करने गया।
जब यीशु प्रार्थना करके लौटा तब चेले सो रहे थे।
यहूदा ने यीशु को चूमा कि आने वाली भीड़ को पता चले कि उसी को पकड़ना है।
यीशु के चेलों में से एक ने तलवार से महायाजक के सेवक का कान काट दिया।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर पिता से कहकर स्वर्गदूतों की बारह सेना बुलवा सकता है।
यीशु ने कहा कि इन घटनाओं के द्वारा पवित्र शास्त्र पूरा हो रहा है।
यीशु के सब चेलें उसे छोड़कर भाग गए।
वे यीशु को मृत्युदण्ड देने के लिए झूठे गवाहों की खोज कर रहे थे।
महायाजक ने यीशु से कहा कि वह कहे कि वह परमेश्वर का पुत्र मसीह है या नहीं।
यीशु ने कहा, "तूने आप ही कह दिया"।
यीशु ने कहा कि महायाजक मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान के दाहिनी ओर बैठे और आकाश के बादलों पर आता देखेगा।
महायाजक ने यीशु को ईश-निन्दा का दोष दिया।
उन्होंने यीशु के मुंह पर थूंका, उसे घूसे मारे और थप्पड़ मारे।
पतरस ने कहा कि वह यीशु को नहीं जानता है।
ज्यों ही पतरस तीसरी बार यीशु का इन्कार किया त्यों ही मुर्गे ने बांग दी।
पतरस को स्मरण हुआ कि यीशु ने उससे कहा था, वह मूर्गे के बांग देने से पहले तीन बार यीशु का इन्कार करेगा।
1 जब भोर हुई, तो सब प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने यीशु के मार डालने की सम्मति की। 2 और उन्होंने उसे बाँधा और ले जाकर पिलातुस राज्यपाल के हाथ में सौंप दिया।
3 जब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह पछताया और वे तीस चाँदी के सिक्के प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास फेर लाया। 4 और कहा, “मैंने निर्दोषी को मृत्यु के लिये पकड़वाकर पाप किया है?” उन्होंने कहा, “हमें क्या? तू ही जाने।” 5 तब वह उन सिक्कों को मन्दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आप को फाँसी दी।
6 प्रधान याजकों ने उन सिक्कों को लेकर कहा, “इन्हें, भण्डार में रखना उचित नहीं, क्योंकि यह लहू का दाम है।” 7 अतः उन्होंने सम्मति करके उन सिक्कों से परदेशियों के गाड़ने के लिये कुम्हार का खेत मोल ले लिया। 8 इस कारण वह खेत आज तक लहू का खेत* कहलाता है। 9 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हुआ “उन्होंने वे तीस सिक्के अर्थात् उस ठहराए हुए मूल्य को (जिसे इस्राएल की सन्तान में से कितनों ने ठहराया था) ले लिया। 10 और जैसे प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी वैसे ही उन्हें कुम्हार के खेत के मूल्य में दे दिया।”
11 जब यीशु राज्यपाल के सामने खड़ा था, तो राज्यपाल ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने उससे कहा, “तू आप ही कह रहा है।” 12 जब प्रधान याजक और पुरनिए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उसने कुछ उत्तर नहीं दिया। 13 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “क्या तू नहीं सुनता, कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” 14 परन्तु उसने उसको एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहाँ तक कि राज्यपाल को बड़ा आश्चर्य हुआ।
15 और राज्यपाल की यह रीति थी, कि उस पर्व में लोगों के लिये किसी एक बन्दी को जिसे वे चाहते थे, छोड़ देता था। 16 उस समय बरअब्बा नामक उन्हीं में का, एक नामी बन्धुआ था। 17 अतः जब वे इकट्ठा हुए, तो पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम किसको चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूँ? बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है?” 18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है। 19 जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा हुआ था तो उसकी पत्नी ने उसे कहला भेजा, “तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना; क्योंकि मैंने आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दुःख उठाया है।”
20 प्रधान याजकों और प्राचीनों ने लोगों को उभारा, कि वे बरअब्बा को माँग ले, और यीशु को नाश कराएँ। 21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “इन दोनों में से किस को चाहते हो, कि तुम्हारे लिये छोड़ दूँ?” उन्होंने कहा, “बरअब्बा को।” 22 पिलातुस ने उनसे पूछा, “फिर यीशु को जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?” सब ने उससे कहा, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।” 23 राज्यपाल ने कहा, “क्यों उसने क्या बुराई की है?” परन्तु वे और भी चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।” 24 जब पिलातुस ने देखा, कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इसके विपरीत उपद्रव होता जाता है, तो उसने पानी लेकर भीड़ के सामने अपने हाथ धोए, और कहा, “मैं इस धर्मी के लहू से निर्दोष हूँ; तुम ही जानो।” 25 सब लोगों ने उत्तर दिया, “इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो!”
26 इस पर उसने बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े* लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए।
27 तब राज्यपाल के सिपाहियों ने यीशु को किले* में ले जाकर सारे सैनिक उसके चारों ओर इकट्ठी की। 28 और उसके कपड़े उतारकर उसे लाल चोगा पहनाया। 29 और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा; और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे उपहास में उड़ाने लगे, “हे यहूदियों के राजा नमस्कार!” 30 और उस पर थूका; और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। 31 जब वे उसका उपहास कर चुके, तो वह चोगा उस पर से उतारकर फिर उसी के कपड़े उसे पहनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले।
32 बाहर जाते हुए उन्हें शमौन नामक एक कुरेनी मनुष्य मिला, उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। 33 और उस स्थान पर जो गुलगुता* नाम की जगह अर्थात् खोपड़ी का स्थान कहलाता है पहुँचकर। 34 उन्होंने पित्त मिलाया हुआ दाखरस उसे पीने को दिया, परन्तु उसने चखकर पीना न चाहा। 35 तब उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया; और चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। 36 और वहाँ बैठकर उसका पहरा देने लगे। 37 और उसका दोषपत्र, उसके सिर के ऊपर लगाया, कि “यह यहूदियों का राजा यीशु है।” 38 तब उसके साथ दो डाकू एक दाहिने और एक बाएँ क्रूसों पर चढ़ाए गए। 39 और आने-जानेवाले सिर हिला-हिलाकर उसकी निन्दा करते थे। 40 और यह कहते थे, “हे मन्दिर के ढानेवाले और तीन दिन में बनानेवाले, अपने आप को तो बचा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ।” 41 इसी रीति से प्रधान याजक भी शास्त्रियों और प्राचीनों समेत उपहास कर करके कहते थे, 42 “इसने दूसरों को बचाया, और अपने आप को नहीं बचा सकता। यह तो ‘इस्राएल का राजा’ है। अब क्रूस पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्वास करें। 43 उसने परमेश्वर का भरोसा रखा है, यदि वह इसको चाहता है, तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इसने कहा था, कि ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’ ” 44 इसी प्रकार डाकू भी जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे उसकी निन्दा करते थे।
45 दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अंधेरा छाया रहा। 46 तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “एली, एली, लमा शबक्तनी*?” अर्थात् “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” 47 जो वहाँ खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, “वह तो एलिय्याह को पुकारता है।” 48 उनमें से एक तुरन्त दौड़ा, और पनसोख्ता लेकर सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया। 49 औरों ने कहा, “रह जाओ, देखें, एलिय्याह उसे बचाने आता है कि नहीं।” 50 तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए। 51 तब, मन्दिर का परदा* ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया: और धरती डोल गई और चट्टानें फट गईं। 52 और कब्रें खुल गईं, और सोए हुए पवित्र लोगों के बहुत शव जी उठे। 53 और उसके जी उठने के बाद वे कब्रों में से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए। 54 तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भूकम्प और जो कुछ हुआ था, देखकर अत्यन्त डर गए, और कहा, “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था!” 55 वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ जो गलील से यीशु की सेवा करती हुईं उसके साथ आईं थीं, दूर से देख रही थीं। 56 उनमें मरियम मगदलीनी और याकूब और योसेस की माता मरियम और जब्दी के पुत्रों की माता थीं।
57 जब सांझ हुई तो यूसुफ नाम अरिमतियाह का एक धनी मनुष्य जो आप ही यीशु का चेला था, आया। 58 उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा। इस पर पिलातुस ने दे देने की आज्ञा दी। 59 यूसुफ ने शव को लेकर उसे साफ़ चादर में लपेटा। 60 और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उसने चट्टान में खुदवाई थी, और कब्र के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़काकर चला गया। 61 और मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहाँ कब्र के सामने बैठी थीं।
62 दूसरे दिन जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, प्रधान याजकों और फरीसियों ने पिलातुस के पास इकट्ठे होकर कहा। 63 “हे स्वामी, हमें स्मरण है, कि उस भरमानेवाले ने अपने जीते जी कहा था, कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूँगा। 64 अतः आज्ञा दे कि तीसरे दिन तक कब्र की रखवाली की जाए, ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे चुरा ले जाएँ, और लोगों से कहने लगें, कि वह मरे हुओं में से जी उठा है: तब पिछला धोखा पहले से भी बुरा होगा।” 65 पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम्हारे पास पहरेदार तो हैं जाओ, अपनी समझ के अनुसार रखवाली करो।” 66 अतः वे पहरेदारों को साथ लेकर गए, और पत्थर पर मुहर लगाकर कब्र की रखवाली की।
यहाँ यीशु के अभियोग और मृत्यु का वृत्तान्त आरंभ होता है।
लेखक ने यीशु को बन्दी बनाए जाने की कहानी में अन्तराल रखा कि यहूदा द्वारा आत्म हत्या का उल्लेख करे।(27:3- ).
यदि आपकी भाषा में कहानी के अन्तराल में किसी वृत्तान्त के आने को व्यक्त करने का प्रावधान है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
यीशु के साथ विश्वासघात करने की कीमत जो उसे महायाजकों ने दी थी
"वह मनुष्य जो मृत्युदण्ड के योग्य नहीं"
यह यहूदा द्वारा आत्महत्या करने का वृत्तान्त है
उचित नहीं , "हमारी व्यवस्था इसे उचित नहीं ठहराती है"
इस चाँदी को रखना
मनुष्य को मरवाने की कीमत (देखें: और यू.डी.बी.)
यह खेत यरूशलेम में मरने वाले परदेशियों के दफन के लिए हुआ (देखें यू.डी.बी.)
लेखक द्वारा वृत्तान्त लिखने के समय तक
यह यहूदा द्वारा आत्महत्या करने का वृत्तान्त है
"भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने यह भविष्यद्वाणी की थी और वह सच हुई"।
इस्राएल के धर्मगुरू
"यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता को आज्ञा दी थी।"(27:9)
अब रोमी शासक के समक्ष यीशु के अभियोग का आरंभ होता है ।
यदि आपकी भाषा में कहानी अन्तराल के बाद पुनः आरंभ हो तो उसे व्यक्त करने के लिए आपकी भाषा में प्रावधान है तो उसका उपयोग यहाँ करें।
शासक - पिलातुस
"तू ही तो स्वीकार कर रहा है"
वैकल्पिक अनुवाद, "जब महायाजक और पुरनियों उसका दोषारोपण कर रहे थे"
"मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तू इन लोगों को उत्तर नहीं दे रहा है जबकि ये तुझ पर बुरी-बुरी बातों का दोष लगा रहे हैं।"
एक बात का भी उत्तर नहीं दिया यहाँ तक कि शासक को बड़ा आश्चर्य हुआ । वैकल्पिक अनुवाद, "एक दोष का भी प्रतिवाद नहीं, इस पर प्रशासक चकित हुआ"।
रोमी शासक के समक्ष यीशु के अभियोग का ही वृत्तान्त चल रहा है।
यहाँ कहानी में अन्तराल है कि लेखक में आरंभ की दी गई जानकारी को समझने में पाठक की सहायता करे
जिस पर्व में फसह मनाया जाता था।
वैकल्पिक अनुवाद, "जिस बन्दी को जनसमूह चुनें"
कुख्यात
रोमी प्रशासक के समक्ष यीशु के अभियोग का ही वृत्तान्त चल रहा है।
यीशु को पिलातुस के समक्ष लाए कि वह उनका न्याय करे
"जब पिलातुस न्यायासन पर बैठा था"
अपने कर्तव्य का पालन करने के दायित्व से
"सन्देश भेजा"
रोमी प्रशासक के समक्ष यीशु के अभियोग का ही वृत्तान्त चल रहा है।
"जनसमूह से पूछा"
रोमी प्रशासक के समक्ष यीशु के अभियोग का ही वृत्तान्त चल रहा है।
<उसने क्या बुराई की है? - "यीशु ने क्या बुराई की है"
"जनसमूह ने चिल्लाकर कहा"
"मृत्यु"
रोमी प्रशासक के समक्ष यीशु के अभियोग का ही वृत्तान्त चल रहा है।
"हाँ, हम और हमारे वंशज उसकी हत्या के दोषी होने में प्रसन्न हैं"।
अब रोमी सैनिकों द्वारा यीशु का ठट्ठा करने का वृत्तान्त आरंभ होता है।
संभावित अर्थ है, (1) सैनिकों के रहने के स्थान में (यू.डी.बी.) या (2) प्रशासक के निवास में
"उसके वस्त्र खींच कर उतारे"
गहरा लाल रंग
"हम तेरा सम्मान करते हैं" या "दीर्घायु हो"
रोमी सैनिको द्वारा यीशु का ठट्ठा करना चल रहा है।
पिलातुस के सैनिक
यीशु
यहाँ यीशु के क्रूसीकरण का वृत्तान्त आरंभ होता है।
"जब वे यरूशलेम से बाहर निकले"
"उसे विवश किया कि वह उनके साथ यीशु का क्रूस उठा कर चले।"
"जिस स्थान को वहाँ के लोग गुलगुता कहते थे"।
पीले रंग का कडवा द्रव्य जो पाचन क्रिया में काम में आता है
यीशु के क्रुसीकरण का ही वृत्तान्त चल रहा है।
जो वस्त्र यीशु पहना हुआ था
यीशु का क्रूसीकरण और मृत्यु का वृत्तान्त चल रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद: "सैनिकों ने दो डाकुओं को भी यीशु के साथ ही क्रूस पर चढाया"
यीशु का ठट्ठा करने के लिए
यीशु का क्रूसीकरण और मृत्यु का वृत्तान्त चल रहा है।
संभावित अर्थ, (1) यहूदी अगुवे विश्वास नहीं करते थे कि यीशु ने मनुष्यों को बचाया था (देखें: और यू.डी.बी.) या वह स्वयं को बचा सकता है, या (2) वे मानते थे कि उसने मनुष्यों को बचाया परन्तु वे उसका ठट्ठा कर रहे थे कि वह अपने आपको नहीं बचा सकता था।
अगुवे स्वीकार करने को तैयार नहीं थे कि यीशु इस्राएल का राजा है
यीशु का क्रूसीकरण और मृत्यु का वृत्तान्त चल रहा है।
"और जिन डाकूओं को सैनिकों ने यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ाया था"
यीशु का क्रूसीकरण और मृत्यु का वृत्तान्त चल रहा है।
"ऊँची आवाज में कहा" या "चिल्लाया"
अनुवादक इन शब्दों को प्रायः मूल भाषा में ही रहने देते हैं
यीशु का क्रूसीकरण और मृत्यु का वृत्तान्त चल रहा है।
संभावित अर्थ, (1) सैनिकों में से एक या 2) दर्शकों में से एक
समुद्री जीव का घर जिसे तरल पदार्थों को सोखने के लिए काम में लिया जाता था कि बाद में उसे निचोड़ कर निकाल लें।
"यीशु को दिया"
अब यीशु की मृत्यु के समय की घटनाओं का वृत्तान्त आरंभ होता है।
लेखक पाठक का ध्यान अग्रिम आश्चर्यजनक जानकारी की ओर आकर्षित कर रहा है।
कब्रें खुल गई और सोए हुए पवित्र लोगों के बहुत से शव जी उठे । "परमेश्वर ने कब्रों को खोलकर अनेक पवित्र जनों को जो मर गए थे, मृतक देह को जीवित किया"।
"मर गए थे"
घटनाओं का क्रम अस्पष्ट है। संभावित क्रम हैः यीशु के मरने के बाद भूकम्प आया और कब्रें खुल गई (1) पवित्र जन जी उठे, यीशु जी उठा और पवित्र जन नगर में गए और अनेकों ने उन्हें देखा, या (2) यीशु जी उठा, पवित्र जन भी जी उठे, नगर में गए, अनेकों ने उन्हें देखा।
यीशु की मृत्यु पर चमत्कारी घटनाओं का वृत्तान्त चल रहा है
यीशु के दफन का वृत्तान्त आरंभ होता है
"पिलातुस ने सैनिकों को आज्ञा दी कि यीशु का शव यूसुफ को दे दें"
यीशु के दफन का वृत्तान्त चल रहा है
चादर -महंगी चादर
"कब्र के सामने"
यीशु दफन के बाद की घटनाओं का वृत्तान्त चल रहा है।
फसह के लिए तैयार होने का दिन
"जब भरमाने वाला, यीशु जीवित था"
यीशु दफन के बाद की घटनाओं का वृत्तान्त चल रहा है।
4 से 16 रोमी सैनिक
संभावित अर्थ, (1) उन्होंने रस्सी लेकर पत्थर के चारों ओर से कब्र के द्वार की दोनों ओर की दीवारों पर जड़ दी (देखें यू.डी.बी.) या (2) उन्होंने पत्थर और कब्र के बीच मुहर लगा दी।
"सैनिकों को ऐसे खड़ा किया कि वे किसी को कब्र के निकट न आने दें"
सुबह होने पर वे यीशु को पिलातुस हाकिम के पास ले गए।
यहूदा पछताया कि उसने एक निर्दोष के लहू के साथ विश्वासघात किया है और चांदी के सिक्के महायाजकों को लौटा दिए तथा फांसी लगा ली।
उन्होंने उन सिक्कों से कुम्हार का खेत खरीदा कि वहाँ परदेशियों को दफन करें।
इन घटनाओं से यिर्मयाह की भविष्यद्वाणी पूरी हुई।
पिलातुस ने यीशु से पूछा कि क्या वह यहूदियों का राजा है और यीशु ने उत्तर दिया, "तू आप ही कह रहा है"।
यीशु ने एक शब्द भी नहीं कहा।
पिलातुस ने उस पर्व की प्रथा के अनुसार यीशु को छोड़ देना चाहा था।
उसने पिलातुस से कहा कि वह उस निर्दोष के साथ कुछ न करे।
महायाजकों और पुरनियों ने जनता को उभारा कि वे यीशु के स्थान पर बरअब्बा को मांग लें।
जन समूह चिल्लाने लगे कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाया जाये।
पिलातुस ने हाथ घोकर स्वयं को निर्दोष यीशु के लहू का दोषी न मानते हुए उसे जनसमूह को सौंप दिया।
लोग पुकार कर कह रहे थे, "इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो"।
सिपाहियों ने यीशु को बैजिनी रंग का बागा पहनाया और उसके सिर पर कांटों का मुकुट रखा और उसका ठट्ठा किया, उस पर थूका और उसके सिर पर मारा और तब उसे क्रूस पर चढ़ाने ले गए।
उन्होंने शमौन को पकड़ा कि यीशु का क्रूस उठाए।
वे उसे गुलगुता अर्थात खोपड़ी के स्थान ले गए।
सिपाहियों ने यीशु के कपड़े बांटने के लिए चिट्ठियां डाली और बैठकर पहरा देने लगे।
उन्होंने एक दोष पत्र लिखा, "यह यहूदियों का राजा यीशु है"।
यीशु के बाई और दाहिनी ओर दो डाकू भी क्रूस पर लटकाए गए।
सब लोग यीशु को चुनौती दे रहे थे कि वह क्रूस से उतर कर अपने आपको बचा ले।
छठवें घंटे से नौवे घंटे तक संपूर्ण देश में अंधेरा छा गया।
?
यीशु ने प्राण त्याग दिये।
यीशु के मरणोपरान्त मन्दिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फट गया।
यीशु की मृत्यु के बाद अनेक मृतक पवित्रजन जी उठे और बहुतों को दिखाई दिए।
सूबेदार ने गवाही दी, "सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था"।
यीशु के एक धनवान शिष्य, यूसुफ ने पिलातुस से यीशु की पार्थिव देह मांगी और उसे चादर में लपेट कर अपनी नई कब्र में रख दिया।
जिस कब्र में यीशु को रखा गया था उस पर एक बड़ा पत्थर रखा गया।
महायाजक और फरीसी सुनिश्चित करना चाहते थे कि यीशु की मृतक देह को कोई चुरा न ले।
पिलातुस ने उनकी मांग पूरी करके पत्थर पर मुहर लगवा दी और कब्र पर रखवाली करवाई।
1 सब्त के दिन के बाद सप्ताह के पहले दिन पौ फटते ही मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आई। 2 तब एक बड़ा भूकम्प हुआ, क्योंकि परमेश्वर का एक दूत स्वर्ग से उतरा, और पास आकर उसने पत्थर को लुढ़का दिया, और उस पर बैठ गया। 3 उसका रूप बिजली के समान और उसका वस्त्र हिम के समान उज्ज्वल था। 4 उसके भय से पहरेदार काँप उठे, और मृतक समान हो गए। 5 स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, “मत डरो, मैं जानता हूँ कि तुम यीशु को जो क्रूस पर चढ़ाया गया था ढूँढ़ती हो। 6 वह यहाँ नहीं है, परन्तु अपने वचन के अनुसार* जी उठा है; आओ, यह स्थान देखो, जहाँ प्रभु रखा गया था। 7 और शीघ्र जाकर उसके चेलों से कहो, कि वह मृतकों में से जी उठा है; और देखो वह तुम से पहले गलील को जाता है, वहाँ उसका दर्शन पाओगे, देखो, मैंने तुम से कह दिया।” 8 और वे भय और बड़े आनन्द के साथ कब्र से शीघ्र लौटकर उसके चेलों को समाचार देने के लिये दौड़ गई।
9 तब, यीशु उन्हें मिला और कहा; “सुखी रहो” और उन्होंने पास आकर और उसके पाँव पकड़कर उसको दण्डवत् किया। 10 तब यीशु ने उनसे कहा, “मत डरो; मेरे भाइयों से जाकर कहो, कि गलील को चलें जाएँ वहाँ मुझे देखेंगे।”
11 वे जा ही रही थी, कि पहरेदारों में से कितनों ने नगर में आकर पूरा हाल प्रधान याजकों से कह सुनाया। 12 तब उन्होंने प्राचीनों के साथ इकट्ठे होकर सम्मति की, और सिपाहियों को बहुत चाँदी देकर कहा। 13 “यह कहना कि रात को जब हम सो रहे थे, तो उसके चेले आकर उसे चुरा ले गए। 14 और यदि यह बात राज्यपाल के कान तक पहुँचेगी, तो हम उसे समझा लेंगे और तुम्हें जोखिम से बचा लेंगे।” 15 अतः उन्होंने रुपये लेकर जैसा सिखाए गए थे, वैसा ही किया; और यह बात आज तक यहूदियों में प्रचलित है।
16 और ग्यारह चेले गलील में उस पहाड़ पर गए, जिसे यीशु ने उन्हें बताया था। 17 और उन्होंने उसके दर्शन पा कर उसे प्रणाम किया, पर किसी-किसी* को सन्देह हुआ। 18 यीशु ने उनके पास आकर कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार* मुझे दिया गया है। 19 इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, 20 और उन्हें सब बातें जो मैंने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग* हूँ।”
अब यीशु के पुनरूत्थान का वृत्तान्त आरंभ होता है
"सब्त के दिन सप्ताह होने के बाद रविवाद सूर्योदय से पूर्व"
"मरियम नाम की एक और महिला" या "याकूब और यूसुफ और यूसुफ की माता मरियम"
लेखक पाठकों को सूचित कर रहा है कि कोई आश्चर्यजनक बात होने जा रही है, आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने की विधि होगी।
संभावित अर्थ, (1) स्वर्गदूत ने आकर पत्थर को हटाया तो भूकम्प हुआ" (यू.डी.बी.) या (2) ये सब घटनाएं एक साथ हुई (यू.डी.बी.)
भूकम्प अचानक ही भूमि हिलने लगी।
यह भी यीशु के पुनरुत्थान का ही वृत्तान्त है
उसका रूप "स्वर्गदूत का रूप"
"ऐसा चमत्कार की आकाश की बिजली से"
"अत्यधिक श्वेत"
"निश्चेष्ट"
यह भी यीशु के पुनरुत्थान का ही वृत्तान्त है
"मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम"
"जिसे लोगों ने और सैनिकों ने क्रूस पर चढ़ाया था"
"परन्तु परमेश्वर ने उसे जीवित कर दिया है" (देखें: Active/Passive)
यह भी यीशु के पुनरुत्थान का ही वृत्तान्त है
वे - मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम
लेखक पाठकों को सूचित कर रहा है कि कोई आश्चर्यजनक बात होने जा रही है, आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने की विधि होगी।
उसके पाँव पकड़कर "अपने घुटनों पर गिरकर उसका चरण स्पर्श किया"।
मेरे भाइयों से , "यीशु के शिष्यों से
अब यीशु के पुनरूत्थान पर अधिकारियों की प्रतिक्रिया का आरंभ होता है।
मरियम मगदनीनी और दूसरी मरियम
कहानी में घटना के परिवर्तन का संकेत जो वर्णित घटनाओं के नामों से अलग अन्य नायकों का आने की सूचना देता है। आपकी भाषा में इसे व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
"आपस में योजना बनाई" याजकों और पुरनियों ने सैनिकों को रिश्वत देने का निर्णय लिया।
"यदि कोई पूछे तो कहना कि यीशु के शिष्यों ने आकर ... जब हम सो रहे थे"।
अधिकारियों द्वारा सैनिकों को निर्देश का वृत्तान्त चल रहा है
पिलातुस
"जैसा याजकों ने कहा था वैसा ही किया"
मत्ती द्वारा पुस्तक लिखे जाने तक
पुनरूत्थान के बाद यीशु द्वारा शिष्यों से भेंट करने का वृत्तान्त आरंभ होता है।
पुनरूत्थान के बाद यीशु द्वारा शिष्यों से भेंट का वृत्तान्त चल रहा है।
"के अधिकाराधीन"
पुनरूत्थान के बाद यीशु द्वारा शिष्यों से भेंट का वृत्तान्त चल रहा है।
"जिन्हें तुम बपतिस्मा दोगे उन्हें सिखाना"
वैकल्पिक अनुवाद, "सुनो" या "देखो" या "मैं जो कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दो"
सप्ताह के पहले दिन भोर होते-ही वे यीशु की कब्र पर गए।
प्रभु का एक दूत आया और कब्र पर से पत्थर हटा दिया।
स्वर्गदूत को देखकर पहरेदार कांपने लगे और मृतकों के सदृश्य हो गए।
स्वर्गदूत ने कहा कि यीशु जी उठा है और उनसे पहले गलील जा रहा है।
उन स्त्रियों को यीशु दिखाई दिया और उन्होंने उसके पांव पकड़कर उसकी उपासना की।
महायाजकों ने सिपाहियों को बहुत चांदी देकर कहा कि वे अफवाह उड़ा दें कि यीशु के शिष्य उसकी देह को चुराकर ले गए।
चेलों ने यीशु की उपासना की परन्तु कुछ ने सन्देह किया।
यीशु ने कहा कि उसे स्वर्ग और पृथ्वी का पूरा अधिकार दिया गया है।
यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी कि वे चेले बनाएं और उन्हें बपतिस्मा देकर यीशु की सब आज्ञाएं मानना सिखाएं।
यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे पिता, पुत्र और पवित्र-आत्मा के नाम से बपतिस्मा दें।
यीशु ने उनसे प्रतिज्ञा की कि वे जगत के अन्त तक उनके साथ रहेगा।
1 परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के सुसमाचार का आरम्भ। 2 जैसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक में लिखा है:
“देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे भेजता हूँ,
जो तेरे लिये मार्ग सुधारेगा। (मत्ती 11:10, मला. 3:1)
3 जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा है कि
प्रभु का मार्ग तैयार करो, और उसकी
सड़कें सीधी करो।” (यशा. 40:3)
4 यूहन्ना आया, जो जंगल में बपतिस्मा देता, और पापों की क्षमा के लिये मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करता था। 5 सारे यहूदिया के, और यरूशलेम के सब रहनेवाले निकलकर उसके पास गए, और अपने पापों को मानकर यरदन नदी* में उससे बपतिस्मा लिया। 6 यूहन्ना ऊँट के रोम का वस्त्र पहने और अपनी कमर में चमड़े का कमरबन्द बाँधे रहता था और टिड्डियाँ और वनमधु खाया करता था। (2 राजा. 1:8, मत्ती 3:4) 7 और यह प्रचार करता था, “मेरे बाद वह आनेवाला है, जो मुझसे शक्तिशाली है; मैं इस योग्य नहीं कि झुककर उसके जूतों का फीता खोलूँ। 8 मैंने तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा दिया है पर वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देगा।”
9 उन दिनों में यीशु ने गलील के नासरत से आकर, यरदन में यूहन्ना से बपतिस्मा लिया। 10 और जब वह पानी से निकलकर ऊपर आया, तो तुरन्त उसने आकाश को खुलते और आत्मा को कबूतर के रूप में अपने ऊपर उतरते देखा। 11 और यह आकाशवाणी हुई, “तू मेरा प्रिय पुत्र है, तुझ से मैं प्रसन्न हूँ।”
12 तब आत्मा ने तुरन्त उसको जंगल की ओर भेजा। 13 और जंगल में चालीस दिन तक शैतान ने उसकी परीक्षा की; और वह वन-पशुओं के साथ रहा; और स्वर्गदूत उसकी सेवा करते रहे।
14 यूहन्ना के पकड़वाए जाने के बाद यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। 15 और कहा, “समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है*; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो।”
16 गलील की झील* के किनारे-किनारे जाते हुए, उसने शमौन और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछुवारे थे। 17 और यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ; मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊँगा।” 18 वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। 19 और कुछ आगे बढ़कर, उसने जब्दी के पुत्र याकूब, और उसके भाई यूहन्ना को, नाव पर जालों को सुधारते देखा। 20 उसने तुरन्त उन्हें बुलाया; और वे अपने पिता जब्दी को मजदूरों के साथ नाव पर छोड़कर, उसके पीछे हो लिए।
21 और वे कफरनहूम में आए, और वह तुरन्त सब्त के दिन आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा। 22 और लोग उसके उपदेश से चकित हुए; क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियों की तरह नहीं, परन्तु अधिकार के साथ उपदेश देता था। 23 और उसी समय, उनके आराधनालय में एक मनुष्य था, जिसमें एक अशुद्ध आत्मा थी। 24 उसने चिल्लाकर कहा, “हे यीशु नासरी, हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं तुझे जानता हूँ, तू कौन है? परमेश्वर का पवित्र जन!” 25 यीशु ने उसे डाँटकर कहा, “चुप रह; और उसमें से निकल जा।” 26 तब अशुद्ध आत्मा उसको मरोड़कर, और बड़े शब्द से चिल्लाकर उसमें से निकल गई। 27 इस पर सब लोग आश्चर्य करते हुए आपस में वाद-विवाद करने लगे “यह क्या बात है? यह तो कोई नया उपदेश है! वह अधिकार के साथ अशुद्ध आत्माओं को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी आज्ञा मानती हैं।” 28 और उसका नाम तुरन्त गलील के आस-पास के सारे प्रदेश में फैल गया।
29 और वह तुरन्त आराधनालय में से निकलकर, याकूब और यूहन्ना के साथ शमौन और अन्द्रियास के घर आया। 30 और शमौन की सास तेज बुखार से पीड़ित थी, और उन्होंने तुरन्त उसके विषय में उससे कहा। 31 तब उसने पास जाकर उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया; और उसका ज्वर उस पर से उतर गया, और वह उनकी सेवा-टहल करने लगी। 32 संध्या के समय जब सूर्य डूब गया तो लोग सब बीमारों को और उन्हें, जिनमें दुष्टात्माएँ थीं, उसके पास लाए। 33 और सारा नगर द्वार पर इकट्ठा हुआ। 34 और उसने बहुतों को जो नाना प्रकार की बीमारियों से दुःखी थे, चंगा किया; और बहुत से दुष्टात्माओं को निकाला; और दुष्टात्माओं को बोलने न दिया, क्योंकि वे उसे पहचानती थीं।
35 और भोर को दिन निकलने से बहुत पहले, वह उठकर निकला, और एक जंगली स्थान में गया और वहाँ प्रार्थना करने लगा। 36 तब शमौन और उसके साथी उसकी खोज में गए। 37 जब वह मिला, तो उससे कहा; “सब लोग तुझे ढूँढ़ रहे हैं।” 38 यीशु ने उनसे कहा, “आओ; हम और कहीं आस-पास की बस्तियों में जाएँ, कि मैं वहाँ भी प्रचार करूँ, क्योंकि मैं इसलिए निकला हूँ।” 39 और वह सारे गलील में उनके आराधनालयों में जा जाकर प्रचार करता और दुष्टात्माओं को निकालता रहा।
40 एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उससे विनती की, और उसके सामने घुटने टेककर, उससे कहा, “यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 41 उसने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।” 42 और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया। 43 तब उसने उसे कड़ी चेतावनी देकर तुरन्त विदा किया, 44 और उससे कहा, “देख, किसी से कुछ मत कहना, परन्तु जाकर अपने आप को याजक को दिखा, और अपने शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने ठहराया है उसे भेंट चढ़ा, कि उन पर गवाही हो।” (लैव्य. 14:1-32) 45 परन्तु वह बाहर जाकर इस बात को बहुत प्रचार करने और यहाँ तक फैलाने लगा, कि यीशु फिर खुल्लमखुल्ला नगर में न जा सका, परन्तु बाहर जंगली स्थानों में रहा; और चारों ओर से लोग उसके पास आते रहे।
एकवचन
इन दोनों आज्ञाओं का अर्थ एक ही हैः "तैयार करो" अर्थात किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से भेंट करने की तैयारी करो। यदि आपकी भाषा में ये दोनों उक्तियाँ एक ही हैं तो आप दूसरी उक्ति को छोड़ सकते हैं जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
सुनिश्चित करें कि यह वही यूहन्ना है जिसकी चर्चा में की गई है।
यूहन्ना
यहूदिया और यरूशलेम से बहुत से लोग
यूहन्ना प्रचार करता था।
यूहन्ना कहता है कि वह एक दास का सबसे तुच्छ कार्य करने योग्य भी नहीं है।
"झुककर"
पवित्र-आत्मा का बपतिस्मा मनुष्य को पवित्र-आत्मा के संपर्क में लाता है जैसे जल का बपतिस्मा मनुष्यों को पानी के संपर्क में लाता है।
यीशु को जाने के लिए विवश किया।
वह जंगल में रहा
"40 दिन"
"के मध्य"
"यूहन्ना के बन्दीगृह में डाले जाने के बाद" वैकल्पिक अनुवाद, "जब उन्होंने यूहन्ना को बन्दी बना लिया।"
"परमेश्वर से आने वाले सुसमाचार का प्रचार किया"
"अब समय आ गया है"
"यीशु ने शमौन और अन्द्रियास को देखा"
"जाल फैलाते"
"क्योंकि वे मछली पकड़ने वाले थे"
"मेरा अनुसरण करो"
वह उन्हें सिखाएगा कि मनुष्यों को कैसे एकत्र करें जैसे वे मछलियों को एकत्र करते हैं।
"उन्होंने अपने मछली पकड़ने के व्यवसाय का त्याग कर यीशु का अनुसरण किया।"
"उनकी नाव में"
"जाल सुधार रहे थे"
"उनके लिए काम करने वाले"
"याकूब और यूहन्ना यीशु के साथ चले गए"
यीशु और शिष्य आराधनालय में गए, यह वही स्थान है जहाँ उसने उपदेश देना आरंभ किया था।
वैकल्पिक अनुवाद, "हमें नष्ट नहीं करना"
यीशु, शमौन और अन्द्रियास के प्रस्थान के बाद
वैकल्पिक अनुवाद, "शमौन की सास को ज्वर से चंगाई प्राप्त हुई"
वैकल्पिक अनुवाद, "उसने उन्हें भोजन पानी करवाया"
यीशु
"उस नगर के बहुत से लोग द्वार पर एकत्र थे"
"एक ऐसा स्थान जहाँ वह अकेला रह सकता था"
वैकल्पिक अनुवाद, "लोग तेरी प्रतीक्षा में हैं"
यीशु
"हमें कहीं और जाना चाहिए"
"वह गलील में अनेक स्थानों में गया"
"एक कोढ़ी यीशु के पास आया, वह कोढ़ी घुटने टेककर यीशु से विनती करने लगा, उस कोढ़ी ने यीशु से कहा।"
"यदि तू मुझे शुद्ध करना चाहे"
"मुझे निरोग कर सकता है" कोढ़ियों को अशुद्ध माना जाता था। उन्हें समाज से बहिष्कृत किया गया था परन्तु रोग मुक्त होने पर वह समाज में रह सकता था।
"मैं तुझे शुद्ध करने की इच्छा रखता हूँ"
उस कोढ़ी से जो शुद्ध हुआ था
"अपनी त्वचा दिखा"
"वह मनुष्य बाहर गया और प्रचार किया"
"लोगों को वचन बताने लगा"
वह जिससे भी भेंट करता था
"जनसमूह ने यीशु का नगर प्रवेश कठिन कर दिया"
"संपूर्ण क्षेत्र से" (देखें: यू.डी.बी.)
यशायाह ने भविष्यद्वाणी की थी कि परमेश्वर एक दूत को भेजेगा- जंगल में पुकारने वाले का शब्द कि प्रभु का मार्ग तैयार किया जाए।
यूहन्ना पापों की क्षमा के लिए मनफिराव के बपतिस्में का प्रचार करता था।
यूहन्ना से बपतिस्मा पाते समय मनुष्य अपने पापों का अंगीकार करते थे।
यूहन्ना टिड्डियाँ और वन मधु खाता था।
यूहन्ना कहता था कि उसके बाद आने वाला पवित्र-आत्मा का बपतिस्मा देगा।
यूहन्ना से बपतिस्मा पाने के बाद यीशु ने आकाश को खुलते और आत्मा को कबूतर के रूप में उस पर उतरते देखा।
तब आकाशवाणी हुई "तू मेरा प्रिय पुत्र है, तुझसे मैं प्रसन्न हूँ।"
आत्मा यीशु को जंगल में ले गया।
यीशु चालीस दिन जंगल में रहा और शैतान ने उसकी परीक्षा ली।
यीशु प्रचार करता था कि परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है, मनुष्यों को मन फिराकर सुसमाचार ग्रहण करना है।
शमौन, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना सब मछुवे थे।
यीशु ने कहा कि वह शमौन और अन्द्रियास को मनुष्यों का मछुवा बनाएगा।
यीशु की शिक्षा पर लोग आश्चर्य करते थे क्योंकि वह अधिकार के साथ शिक्षा देता था।
आराधनालय में अशुद्ध आत्मा ने यीशु को परमेश्वर का पवित्र जन कहा था।
यीशु के बारे में समाचार सब स्थानों में कैसे फैल गया।
शमौन के घर में यीशु ने उसकी सास को चंगा किया।
संध्या समय लोग सब रोगियों और दुष्टात्माग्रस्त मनुष्यों को लाए और यीशु ने उन्हें चंगा किया।
सूर्योदय से पूर्व यीशु एकान्तवास में प्रार्थना करने चला गया था।
यीशु ने कहा कि वह आसपास की बस्तियों में प्रचार करने आया है।
यीशु को उस कोढ़ी पर तरस आया और उसने उसे चंगा किया।
यीशु ने उस कोढ़ी से कहा कि वह जाकर गवाही स्वरूप मूसा की आज्ञा के अनुसार चढ़ावा चढ़ाए।
1 कई दिन के बाद वह फिर कफरनहूम में आया और सुना गया, कि वह घर में है। 2 फिर इतने लोग इकट्ठे हुए, कि द्वार के पास भी जगह नहीं मिली; और वह उन्हें वचन सुना रहा था। 3 और लोग एक लकवे के मारे हुए को चार मनुष्यों से उठवाकर उसके पास ले आए। 4 परन्तु जब वे भीड़ के कारण उसके निकट न पहुँच सके, तो उन्होंने उस छत को जिसके नीचे वह था, खोल दिया और जब उसे उधेड़ चुके, तो उस खाट को जिस पर लकवे का मारा हुआ पड़ा था, लटका दिया। 5 यीशु ने, उनका विश्वास देखकर, उस लकवे के मारे हुए से कहा, “हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।” 6 तब कई एक शास्त्री जो वहाँ बैठे थे, अपने-अपने मन में विचार करने लगे, 7 “यह मनुष्य क्यों ऐसा कहता है? यह तो परमेश्वर की निन्दा करता है! परमेश्वर को छोड़ और कौन पाप क्षमा कर सकता है?” (यशा. 43:25) 8 यीशु ने तुरन्त अपनी आत्मा में जान लिया, कि वे अपने-अपने मन में ऐसा विचार कर रहे हैं, और उनसे कहा, “तुम अपने-अपने मन में यह विचार क्यों कर रहे हो? 9 सहज क्या है? क्या लकवे के मारे से यह कहना कि तेरे पाप क्षमा हुए, या यह कहना, कि उठ अपनी खाट उठाकर चल फिर? 10 परन्तु जिससे तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के मारे हुए से कहा, 11 “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” 12 वह उठा, और तुरन्त खाट उठाकर सब के सामने से निकलकर चला गया; इस पर सब चकित हुए, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमने ऐसा कभी नहीं देखा।”
13 वह फिर निकलकर झील के किनारे गया, और सारी भीड़ उसके पास आई, और वह उन्हें उपदेश देने लगा। 14 जाते हुए यीशु ने हलफईस के पुत्र लेवी को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” और वह उठकर, उसके पीछे हो लिया।
15 और वह उसके घर में भोजन करने बैठा; और बहुत से चुंगी लेनेवाले और पापी भी उसके और चेलों के साथ भोजन करने बैठे, क्योंकि वे बहुत से थे, और उसके पीछे हो लिये थे। 16 और शास्त्रियों और फरीसियों ने यह देखकर, कि वह तो पापियों और चुंगी लेनेवालों के साथ भोजन कर रहा है, उसके चेलों से कहा, “वह तो चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ खाता पीता है!” 17 यीशु ने यह सुनकर, उनसे कहा, “भले चंगों को वैद्य की आवश्यकता नहीं, परन्तु बीमारों को है: मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ*।”
18 यूहन्ना के चेले, और फरीसी उपवास करते थे; अतः उन्होंने आकर उससे यह कहा; “यूहन्ना के चेले और फरीसियों के चेले क्यों उपवास रखते हैं, परन्तु तेरे चेले उपवास नहीं रखते?” 19 यीशु ने उनसे कहा, “जब तक दुल्हा बारातियों के साथ रहता है क्या वे उपवास कर सकते हैं? अतः जब तक दूल्हा उनके साथ है, तब तक वे उपवास नहीं कर सकते। 20 परन्तु वे दिन आएँगे, कि दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा; उस समय वे उपवास करेंगे। 21 नये कपड़े का पैबन्द पुराने वस्त्र पर कोई नहीं लगाता; नहीं तो वह पैबन्द उसमें से कुछ खींच लेगा, अर्थात् नया, पुराने से, और वह और फट जाएगा। 22 नये दाखरस को पुरानी मशकों में कोई नहीं रखता, नहीं तो दाखरस मशकों को फाड़ देगा, और दाखरस और मशकें दोनों नष्ट हो जाएँगी; परन्तु दाख का नया रस नई मशकों में भरा जाता है।”
23 और ऐसा हुआ कि वह सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था; और उसके चेले चलते हुए बालें तोड़ने लगे। (व्य. 23:25) 24 तब फरीसियों ने उससे कहा, “देख, ये सब्त के दिन वह काम क्यों करते हैं जो उचित नहीं?” 25 उसने उनसे कहा, “क्या तुम ने कभी नहीं पढ़ा, कि जब दाऊद को आवश्यकता हुई और जब वह और उसके साथी भूखे हुए, तब उसने क्या किया था? 26 उसने क्यों अबियातार महायाजक के समय, परमेश्वर के भवन में जाकर, भेंट की रोटियाँ खाई, जिसका खाना याजकों को छोड़ और किसी को भी उचित नहीं, और अपने साथियों को भी दीं?” 27 और उसने उनसे कहा, “सब्त का दिन मनुष्य के लिये बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के दिन के लिये*। 28 इसलिए मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी स्वामी है।”
वहाँ लोगों ने सुना कि वह उस घर में है
"किसी के लिए भी स्थान नहीं था"
"एक मनुष्य को लाए जो चलने में असमर्थ और उसके हाथ-पाव काम नहीं करते थे"
"4 मनुष्य"
"यीशु जहाँ था वहाँ नहीं पहुंच सके"
"यह देखकर कि उनमें विश्वास है" इसके अर्थ हो सकते हैं; (1) उस लकवे के रोगी को लाने वालों का विश्वास या (2) लकवे के रोगी और उसे लाने वालों का विश्वास।
"उस मनुष्य से जो चल नहीं सकता था"
यीशु एक पिता के समान सुधि लेते हुए जैसे एक पिता अपने बेटे की सुधि लेता है।
इसका अर्थ है, (1) परमेश्वर ने तेरे पाप क्षमा किए (देखें: 2:7) या (2) "मैंने तेरे पाप क्षमा किए"
"सोचने लगे"
"इस व्यक्ति को ऐसा नहीं कहना चाहिए"
"केवल परमेश्वर पाप क्षमा कर सकता है"
शास्त्री एक-दूसरे से बातें नहीं कर रहे थे परन्तु अपने मनों में सोच रहे थे।
यीशु शास्त्रियों को झिड़क रहा है क्योंकि उन्होंने उसके अधिकार पर सन्देह किया। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम शास्त्रियों ने मेरे अधिकार पर प्रश्न उठाया।"
यीशु ने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि शास्त्रियों को स्मरण कराए कि उन्हें उस मनुष्य के लकवाग्रस्त होने का विश्वास था कि वह पाप का परिणाम है और यदि उसके पाप क्षमा हो जाएं तो चलने योग्य हो जाएगा अतः जब उसने उस लकवाग्रस्त मनुष्य को चंगा किया तो शास्त्रियों को समझ में आ जाए कि उसे पाप क्षमा करने का अधिकार है।
"क्या यह कहना आसान है... ‘तेरे पाप क्षमा हुए’? या यह कहना आसान है, ‘उठ... चल फिर’?"
"मैं तुम पर सिद्ध करूंगा"
शास्त्री और जनसमूह
"उसने उस मनुष्य से जो चलने योग्य न था, उससे कहा"
"वहाँ उपस्थित जनसमूह की आँखों के सामने"
"लोग वहाँ आ गए जहाँ वह था"
"लेवी के घर"
"अनेक चुंगी लेने वाले और पापी जन जो यीशु के पीछे आए थे, उसके और उसके शिष्यों के साथ भोजन करने बैठे थे।"
शास्त्री और फरीसी प्रकट कर रहे थे कि वे यीशु के इस कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं।(देखें: वैकल्पिक अनुवाद, "उसे पापियों और चुंगी लेने वालों के साथ खाना-पीना नहीं चाहिए।"
"उसने फरीसियों से कहा"
यीशु एक रूपक काम में ले रहा है जिसकी व्याख्या वह अगले अध्याय में करेगा। यीशु उन लोगों के लिए आया है जो स्वीकार करते हैं कि वे पापी हैं, उनके लिए नहीं जो अपने आपको धर्मी मानते हैं।
"मैं उन लोगों के लिए आया हूँ जो अपने को पापी मानते हैं, उनके लिए नहीं जो अपने को धर्मी मानते हैं।"
यीशु अपने प्रश्न द्वारा कटाक्ष कर रहा है। "जब कोई पुरुष किसी स्त्री से ब्याह करता है तब उसके मित्र निश्चय ही भोजन का त्याग नहीं करेंगे, जब वह उनके साथ है।" (यू.डी.बी.)
यीशु अपनी मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के संदर्भ में पूछ रहा है, परन्तु न तो उसके हत्यारे न ही उसे पुनर्जीवित करने वाला परमेश्वर जो उसे स्वर्ग ले जाएगा। दूल्हे को अलग करने वाले नहीं हैं। यदि आपकी भाषा में नायक को स्पष्ट करने की आवश्यकता है वो यथासंभव साधारण भाषा का उपयोग करें। वैकल्पिक अनुवाद, "वे दूल्हे को अलग कर देंगे" या "मनुष्य दूल्हे को ले जाएंगे" या "दूल्हा चला जाएगा।" (देखें: और )
बराती
पुराने वस्त्र पर नए कपड़े का पैबन्द लगाने से वस्त्र और अधिक फट जाता है, यदि पैबन्द का कपड़ा पहले से सिकोड़ा हुआ न हो। पैबन्द और वस्त्र दोनों नष्ट हो जाएंगे।
यह एक रूपक या दृष्टान्त है जो उनके प्रश्न का उत्तर देता है, "यूहन्ना के चेले और फरीसियों के चेले क्यों उपवास रखते हैं, परन्तु तेरे चेले उपवास नहीं रखते?" ( ; देखें: )
"अंगूर के रस को" अर्थात जिस दाखरस का नहीं हुआ है यदि आपके यहाँ अंगूर हैं तो वही शब्द काम में लें।
अर्थात जिन मशकों को पहले काम में लिया जा चुका है
पशुओं के चमड़े से बनाए गए थैले। इन्हें दाखरस के थैले या "चमड़े के थैले" (यू.डी.बी.) भी कहा जा सकता है।
जब नया दाखरस के कारण फैलता है तब वे फट जाएंगी। क्योंकि उनकी फैलने की क्षमता समाप्त हो चुकी है।
"व्यर्थ चले जाएंगे"(यू.डी.बी.)
"नए दाखरस के थैलों में" जिन मशकों को कभी काम में नहीं लिया गया है।
"देख वे सब्त के यहूदी कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।"
किसी के खेत से गेहूं तोड़कर खाना चोरी नहीं मानी जाती थी (देखें यू.डी.बी.) परन्तु प्रश्न इस बात का था कि क्या सब्त के दिन ऐसा विधि-सम्मत काम किया जा सकता है।
गेहूं की बालें
गेहूं के पौधे का सबसे ऊपर का भाग जिसमें उस पौधे के पके हुए बीज होते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, "ध्यान दो कि मैं क्या कहने जा रहा हूँ"
यीशु शास्त्रियों और फरीसियों को सब्त के दिन के बारे में शिक्षा दे रहा है।
यीशु जानता था कि शास्त्रियों और फरीसियों ने यह वृत्तान्त पढ़ा है। वह उन्हें दोष दे रहा है कि वे जानबूझकर इसे गलत समझ रहे हैं। वैकल्पिक अनुवाद "तुम्हें स्मरण है कि दाऊद...उसके साथी...जाकर" या "यदि तुम समझ गए कि दाऊद... उसके साथी- और वह कैसे मन्दिर में गया"
यहूदियों के इतिहास में दाऊद के युग में एक महायाजक था।
"दाऊद परमेश्वर के भवन में गया" (यू.डी.बी.)
यीशु शास्त्रियों और फरीसियों को सब्त के दिन के बारे में शिक्षा दे रहा था।
लोगों ने छत हटाकर लकवे के रोगी को यीशु के पास नीचे उतारा।
यीशु ने उससे कहा, "पुत्र तेरे पाप क्षमा हुए।"
शास्त्रियों में से कुछ सोचने लगे कि पाप क्षमा तो केवल परमेश्वर करता है, अतः यीशु परमेश्वर की निन्दा करता है।
यीशु ने लकवे के रोगी से कहा कि वह अपनी खाट उठाकर घर चला जाए, और उसने ऐसा ही किया।
यीशु ने लेवी को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा तो उसे बुलाया।
यीशु पापियों और चुंगी लेने वालों के साथ भोजन कर रहा था।
यीशु ने कहा कि वह पापियों को बुलाने आया है।
उन्होंने यीशु से कहा कि यूहन्ना के चेले और फरीसियों के चेले उपवास रखते हैं परन्तु उसके चेले उपवास नहीं रखते, क्यों?
यीशु ने कहा कि जब दूल्हा बारातियों के साथ होता है तब वे उपवास नहीं करते, जब दूल्हा चला जाएगा तब वे उपवास करेंगे।
यीशु के चेलों ने सब्त के दिन गेहूं की बालें तोड़कर खाईं।
यीशु ने दाऊद का उदाहरण दिया कि उसने भेंट की रोटियां खाई थीं जबकि उन रोटियों को केवल याजक ही खा सकता था।
यीशु ने कहा कि सब्त मनुष्यों के लिए बनाया गया है।
यीशु ने कहा कि वह सब्त का प्रभु है।
1 और वह फिर आराधनालय में गया; और वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूख गया था। 2 और वे उस पर दोष लगाने के लिये उसकी घात में लगे हुए थे, कि देखें, वह सब्त के दिन में उसे चंगा करता है कि नहीं। 3 उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा, “बीच में खड़ा हो।” 4 और उनसे कहा, “क्या सब्त के दिन भला करना उचित है या बुरा करना, प्राण को बचाना या मारना?” पर वे चुप रहे। 5 और उसने उनके मन की कठोरता से उदास होकर, उनको क्रोध से चारों ओर देखा, और उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने बढ़ाया, और उसका हाथ अच्छा हो गया। 6 तब फरीसी बाहर जाकर तुरन्त हेरोदियों के साथ उसके विरोध में सम्मति करने लगे, कि उसे किस प्रकार नाश करें।
7 और यीशु अपने चेलों के साथ झील की ओर चला गया: और गलील से एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 8 और यहूदिया, और यरूशलेम और इदूमिया से, और यरदन के पार, और सूर और सैदा के आस-पास से एक बड़ी भीड़ यह सुनकर, कि वह कैसे अचम्भे के काम करता है, उसके पास आई। 9 और उसने अपने चेलों से कहा, “भीड़ के कारण एक छोटी नाव मेरे लिये तैयार रहे ताकि वे मुझे दबा न सकें।” 10 क्योंकि उसने बहुतों को चंगा किया था; इसलिए जितने लोग रोग से ग्रसित थे, उसे छूने के लिये उस पर गिरे पड़ते थे। 11 और अशुद्ध आत्माएँ भी, जब उसे देखती थीं, तो उसके आगे गिर पड़ती थीं, और चिल्लाकर कहती थीं कि तू परमेश्वर का पुत्र है। 12 और उसने उन्हें कड़ी चेतावनी दी कि, मुझे प्रगट न करना।
13 फिर वह पहाड़ पर चढ़ गया, और जिन्हें वह चाहता था उन्हें अपने पास बुलाया; और वे उसके पास चले आए। 14 तब उसने बारह को नियुक्त किया, कि वे उसके साथ-साथ रहें, और वह उन्हें भेजे, कि प्रचार करें। 15 और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार रखें। 16 और वे ये हैं शमौन जिसका नाम उसने पतरस रखा। 17 और जब्दी का पुत्र याकूब, और याकूब का भाई यूहन्ना, जिनका नाम उसने बुअनरगिस*, अर्थात् गर्जन के पुत्र रखा। 18 और अन्द्रियास, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, और मत्ती, और थोमा, और हलफईस का पुत्र याकूब; और तद्दै, और शमौन कनानी। 19 और यहूदा इस्करियोती, जिस ने उसे पकड़वा भी दिया।
20 और वह घर में आया और ऐसी भीड़ इकट्ठी हो गई, कि वे रोटी भी न खा सके। 21 जब उसके कुटुम्बियों ने यह सुना, तो उसे पकड़ने के लिये निकले; क्योंकि कहते थे, कि उसका सुध-बुध ठिकाने पर नहीं है। 22 और शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, यह कहते थे, “उसमें शैतान है,” और यह भी, “वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” 23 और वह उन्हें पास बुलाकर, उनसे दृष्टान्तों* में कहने लगा, “शैतान कैसे शैतान को निकाल सकता है? 24 और यदि किसी राज्य में फूट पड़े, तो वह राज्य कैसे स्थिर रह सकता है? 25 और यदि किसी घर में फूट पड़े, तो वह घर क्या स्थिर रह सकेगा? 26 और यदि शैतान अपना ही विरोधी होकर अपने में फूट डाले, तो वह क्या बना रह सकता है? उसका तो अन्त ही हो जाता है।
27 “किन्तु कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट नहीं सकता, जब तक कि वह पहले उस बलवन्त को न बाँध ले; और तब उसके घर को लूट लेगा।
28 “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मनुष्यों की सन्तान के सब पाप और निन्दा जो वे करते हैं, क्षमा की जाएगी। 29 परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरुद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा: वरन् वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है।” 30 क्योंकि वे यह कहते थे, कि उसमें अशुद्ध आत्मा है।
31 और उसकी माता और उसके भाई आए, और बाहर खड़े होकर उसे बुलवा भेजा। 32 और भीड़ उसके आस-पास बैठी थी, और उन्होंने उससे कहा, “देख, तेरी माता और तेरे भाई बाहर तुझे ढूँढ़ते हैं।” 33 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरी माता और मेरे भाई कौन हैं?” 34 और उन पर जो उसके आस-पास बैठे थे, दृष्टि करके कहा, “देखो, मेरी माता और मेरे भाई यह हैं। 35 क्योंकि जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर चले*, वही मेरा भाई, और बहन और माता है।”
"यीशु ने आराधनालय में प्रवेश किया।"
"हाथों से विकलांग एक मनुष्य"
"फरीसी यीशु की प्रतीज्ञा में थे कि वह हाथों से विकलांग उस मनुष्य को चंगा करे"
"भीड़ के बीच में खड़ा हो"
क्योंकि लेखक लिखता है कि वे चुप रहे, इसका अर्थ है कि यीशु उन्हें चुनौती देकर उत्तर की प्रतीक्षा में था। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें जानना है कि सब्त के दिन भलाई करना व्यवस्था-सम्मत है, जीवन बचाना, हत्या न करना।"
मूसा की व्यवस्था के अनुसार उचित
"अपने हाथ आगे कर"
"यीशु ने उसके हाथ को स्वस्थ कर दिया" या "यीशु ने उसका हाथ वैसा ही कर दिया जैसा पहले था"
वैकल्पिक अनुवाद, "हेरोदियों के साथ सभा की" या "हेरोदियों से भेंट करके षड्यन्त्र रचा"
"यीशु द्वारा किए गए आश्चर्यकर्मों की चर्चा सुनकर।"
"जनसमूह वहाँ पहुंचा जहाँ यीशु था"
यीशु ने शिष्यों से कहा, "मेरे लिए नाव तैयार करो"
"भीड़ उसका स्पर्श करने के लिए आगे आ रही थी।"
"सब रोगी उसके स्पर्श हेतु धक्का दे रहे थे।"
"दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य भी"
"कि वे उसके साथ रहेंगे और वह उन्हें प्रचार के लिए भेजेगा" या, "उसके साथ रहने और उसके द्वारा प्रचार के लिए भेजे जाने के लिए" (यू.डी.बी.)
"भीड़ इतनी अधिक हो गई थी कि उन्हें भोजन करने का समय भी नहीं मिला" या "जहाँ वह रह रहा था वहाँ बहुत भीड़ एकत्र हो गई। लोगों ने उसे घेर लिया था। उसे और उसके चेलों को खाना खाने का समय भी नहीं मिला।" (यू.डी.बी.)
"उसके परिजन उस स्थान पर गए जहाँ वह था कि उसे पकड़ कर घर ले आएं।"
"शैतान अपने आपको कैसे निकाल सकता है" या "शैतान अपनी ही दुष्टात्मा के विरुद्ध काम नहीं करेगा।"
"यीशु की माता और छोटे भाइयों ने किसी को भीतर भेजा कि उससे कहें कि वे बाहर है और उसे उनके पास बाहर ले आएं।"
वे प्रतीक्षा में थे कि यीशु सब्त के दिन चंगा करने का काम करे और वे उसे दोषी ठहराएं।
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वे चुप रहे तो यीशु को क्रोध आ गया।
फरीसियों ने बाहर जाकर यीशु की हत्या का षड्यंत्र रचा।
यीशु के पीछे चलने वाला एक विशाल जनसमूह था।
दुष्टात्माओं ने चिल्लाकर कहा कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
यीशु ने बारह चलों को नियुक्त किया कि उसके साथ रहें, प्रचार करें और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार उन्हें दिया।
यीशु के साथ विश्वासघात करने वाला चेला यहूदा था।
यीशु के परिवार ने सोचा कि वह मानसिक सन्तुलन खो बैठा है।
शास्त्रियों ने यीशु पर दोष लगाया कि वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माएं निकालता है।
यीशु ने उनसे कहा कि विभाजित राज्य स्थिर नहीं रह सकता है।
यीशु ने कहा कि पवित्र-आत्मा की निन्दा ना क्षमा किया जानेवाला है।
यीशु ने कहा कि उसकी माता और उसके भाई वे हैं जो परमेश्वर की इच्छा पर चलते हैं।
1 यीशु फिर झील के किनारे उपदेश देने लगा: और ऐसी बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई, कि वह झील में एक नाव पर चढ़कर बैठ गया, और सारी भीड़ भूमि पर झील के किनारे खड़ी रही। 2 और वह उन्हें दृष्टान्तों में बहुत सारी बातें सिखाने लगा, और अपने उपदेश में उनसे कहा, 3 “सुनो! देखो, एक बोनेवाला, बीज बोने के लिये निकला। 4 और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पक्षियों ने आकर उसे चुग लिया। 5 और कुछ पत्थरीली भूमि पर गिरा जहाँ उसको बहुत मिट्टी न मिली, और नरम मिट्टी मिलने के कारण जल्द उग आया। 6 और जब सूर्य निकला, तो जल गया, और जड़ न पकड़ने के कारण सूख गया। 7 और कुछ तो झाड़ियों में गिरा, और झाड़ियों ने बढ़कर उसे दबा दिया, और वह फल न लाया। 8 परन्तु कुछ अच्छी भूमि पर गिरा; और वह उगा, और बढ़कर फलवन्त हुआ; और कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा और कोई सौ गुणा फल लाया।” 9 और उसने कहा, “जिसके पास सुनने के लिये कान हों वह सुन ले।”
10 जब वह अकेला रह गया, तो उसके साथियों ने उन बारह समेत उससे इन दृष्टान्तों के विषय में पूछा। 11 उसने उनसे कहा, “तुम को तो परमेश्वर के राज्य के भेद की समझ दी गई है, परन्तु बाहरवालों के लिये सब बातें दृष्टान्तों में होती हैं। 12 इसलिए कि
“वे देखते हुए देखें और उन्हें दिखाई न पड़े
और सुनते हुए सुनें भी और न समझें;
ऐसा न हो कि वे फिरें, और क्षमा किए जाएँ।” (यशा. 6:9-10, यिर्म. 5:21)
13 फिर उसने उनसे कहा, “क्या तुम यह दृष्टान्त नहीं समझते? तो फिर और सब दृष्टान्तों को कैसे समझोगे? 14 बोनेवाला वचन* बोता है। 15 जो मार्ग के किनारे के हैं जहाँ वचन बोया जाता है, ये वे हैं, कि जब उन्होंने सुना, तो शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उनमें बोया गया था, उठा ले जाता है। 16 और वैसे ही जो पत्थरीली भूमि पर बोए जाते हैं, ये वे हैं, कि जो वचन को सुनकर तुरन्त आनन्द से ग्रहण कर लेते हैं। 17 परन्तु अपने भीतर जड़ न रखने के कारण वे थोड़े ही दिनों के लिये रहते हैं; इसके बाद जब वचन के कारण उन पर क्लेश या उपद्रव होता है, तो वे तुरन्त ठोकर खाते हैं। 18 और जो झाड़ियों में बोए गए ये वे हैं जिन्होंने वचन सुना, 19 और संसार की चिन्ता, और धन का धोखा, और वस्तुओं का लोभ उनमें समाकर वचन को दबा देता है और वह निष्फल रह जाता है। 20 और जो अच्छी भूमि में बोए गए, ये वे हैं, जो वचन सुनकर ग्रहण करते और फल लाते हैं, कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा, और कोई सौ गुणा।”
21 और उसने उनसे कहा, “क्या दीये को इसलिए लाते हैं कि पैमाने या खाट के नीचे रखा जाए? क्या इसलिए नहीं, कि दीवट पर रखा जाए? 22 क्योंकि कोई वस्तु छिपी नहीं, परन्तु इसलिए कि प्रगट हो जाए; और न कुछ गुप्त है, पर इसलिए कि प्रगट हो जाए। 23 यदि किसी के सुनने के कान हों, तो सुन ले।”
24 फिर उसने उनसे कहा, “चौकस रहो, कि क्या सुनते हो? जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा, और तुम को अधिक दिया जाएगा। 25 क्योंकि जिसके पास है, उसको दिया जाएगा; परन्तु जिसके पास नहीं है उससे वह भी जो उसके पास है; ले लिया जाएगा।”
26 फिर उसने कहा, “परमेश्वर का राज्य ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे, 27 और रात को सोए, और दिन को जागे और वह बीज ऐसे उगें और बढ़े कि वह न जाने। 28 पृथ्वी आप से आप फल लाती है पहले अंकुर, तब बालें, और तब बालों में तैयार दाना। 29 परन्तु जब दाना पक जाता है, तब वह तुरन्त हँसिया लगाता है, क्योंकि कटनी आ पहुँची है।” (योए. 3:13)
30 फिर उसने कहा, “हम परमेश्वर के राज्य की उपमा किससे दें, और किस दृष्टान्त से उसका वर्णन करें? 31 वह राई के दाने के समान हैं; कि जब भूमि में बोया जाता है तो भूमि के सब बीजों से छोटा होता है। 32 परन्तु जब बोया गया, तो उगकर सब साग-पात से बड़ा हो जाता है, और उसकी ऐसी बड़ी डालियाँ निकलती हैं, कि आकाश के पक्षी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।” 33 और वह उन्हें इस प्रकार के बहुत से दृष्टान्त दे देकर उनकी समझ के अनुसार वचन सुनाता था। 34 और बिना दृष्टान्त कहे उनसे कुछ भी नहीं कहता था; परन्तु एकान्त में वह अपने निज चेलों को सब बातों का अर्थ बताता था।
35 उसी दिन जब सांझ हुई, तो उसने चेलों से कहा, “आओ, हम पार चलें।” 36 और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ, और भी नावें थीं। 37 तब बड़ी आँधी आई, और लहरें नाव पर यहाँ तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती थी। 38 और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था; तब उन्होंने उसे जगाकर उससे कहा, “हे गुरु, क्या तुझे चिन्ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं?” 39 तब उसने उठकर आँधी को डाँटा, और पानी से कहा, “शान्त रह, थम जा!” और आँधी थम गई और बड़ा चैन हो गया। 40 और उनसे कहा, “तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं?” (भज. 107:29) 41 और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले, “यह कौन है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं?”
"कि वह नाव में चढ़कर झील में चला गया"
"नाव में बैठ गया"
उन्हें दृष्टान्तों में बहुत सी बातें सिखाने लगा
यीशु दृष्टान्त में सुना रहा था
"झुलस गया"
यीशु दृष्टान्त सुना रहा है
"जो ध्यान से सुनेगा वह इस दृष्टान्त का अर्थ समझेगा"
जब यीशु दृष्टान्त सुना चुका
"परमेश्वर ने तुम्हें समझ दी है" या "मैंने तुम्हें समझ दी है"
वे देखते तो हैं परन्तु अन्तर्ग्रहण नहीं करते "देखते हैं परन्तु देखना नहीं चाहते" या "वे देखते हैं परन्तु समझते नहीं"
यीशु अपने शिष्यों को उस दृष्टान्त का अर्थ समझाता है।
"यदि तुम इस दृष्टान्त को समझ नहीं सकते तो अन्य दृष्टान्तों को भी नहीं समझ पाओगे।"
यीशु अपने शिष्यों को उस दृष्टान्त का अर्थ समझाता है।
यीशु अपने शिष्यों को उस दृष्टान्त का अर्थ समझाता है।
यीशु दृष्टान्त का अर्थ समझाना समाप्त करता है और उन्हें एक और दृष्टान्त सुनाता है।
"आप दीया घर में इसलिए नहीं लाते कि उसे पैमाने या खाट के नीचे रखें"
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे आपने में किया है।
यीशु अपने शिष्यों को दृष्टान्त सुना रहा है
तुम जिस नाप को काम में लेते हो उसी के अनुसार तुम प्राप्त करोगे वरन् अधिक पाओगे तुम जितना अधिक अच्छा सुनोगे, परमेश्वर उतनी ही अधिक समझ तुम्हें देगा।"
जिसके पास है "जिसने मेरे वचनों को समझ लिया है"
यीशु अपने शिष्यों को दृष्टान्त सुना रहा है
"जैसे किसान बीज बोता है"
कटनी में काम में आने वाली अर्धचन्द्रकार कतरनी
यीशु अपने शिष्यों को दृष्टान्त सुना रहा है
"इस दृष्टान्त से मैं वर्णन कर सकता हूँ कि परमेश्वर का राज्य कैसा है।"
"वे जितना समझ सकते थे उतना ही"
यीशु और उसके शिष्य झील पार कर रहे थे जब आंधी आई।
"परिस्थिति पर ध्यान दें: हम मरने वाले हैं!"-
"हम" अर्थात यीशु और शिष्य
"कठोरता से सुधारा" या "झिड़कना"
"शान्त रह" और "थम जा" समानार्थक शब्द है।
यीशु और उसके शिष्य झील पार कर रहे थे जब आंधी आई।
"तुम्हें डरता हुआ देखकर मैं निराश हूँ"
"हमें सावधानी-पूर्वक समझाना है कि यह मनुष्य है कौन!"
यीशु उपदेश करने के लिए नाव पर चढ़ गया क्योंकि भीड़ विशाल थी।
चिड़ियों ने उसे चुग लिया।
वे शीघ्र उगे और गहरी जड़ न होने के कारण सूख गए।
कंटीली झाड़ियों ने उन्हें दबा दिया।
बीज तीस, साठ और सौ गुणा फल लाए।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर के राज्य का भेद चेलों पर प्रकट किया गया है, अन्यों पर नहीं।
बीज परमेश्वर का वचन है।
ये वे लोग हैं जो वचन को सुनते तो हैं परन्तु शैतान वचन को उठा ले जाता है।
ये वे लोग हैं जो सहर्ष वचन को सुनते हैं परन्तु सताव के समय वे ठोकर खाते हैं।
ये वे लोग हैं जो वचन को ग्रहण करते हैं परन्तु संसारिक चिन्ताएं उसे दबा देती हैं।
ये वे लोग हैं जो वचन को सुनकर ग्रहण करते हैं और फल लाते हैं।
यीशु ने कहा कि छिपी और गुप्त बातें प्रकट हो जाएंगी।
मनुष्य भूमि में बीज डालता है परन्तु बीजों का उगना और बढ़ना वह नहीं जानता, जब फसल तैयार हो जाती है तब वह कटनी करता है।
राई का दाना सबसे छोटा होता है परन्तु उगकर वह एक बड़ा वृक्ष हो जाता है जिसमें पक्षी बसेरा करते हैं।
झील में ऐसी बड़ी आंधी उठी कि पानी नाव में भरने लगा।
यीशु सो रहा था।
चेलों ने यीशु से कहा कि उसे चिन्ता नहीं कि वे डूब रहे हैं।
यीशु ने आंधी को झिड़का और झील के पानी को शान्त किया।
?
1 वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुँचे, 2 और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा, थी कब्रों से निकलकर उसे मिला। 3 वह कब्रों में रहा करता था और कोई उसे जंजीरों से भी न बाँध सकता था, 4 क्योंकि वह बार-बार बेड़ियों और जंजीरों से बाँधा गया था, पर उसने जंजीरों को तोड़ दिया, और बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था। 5 वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ों में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था। 6 वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया। 7 और ऊँचे शब्द से चिल्लाकर कहा, “हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूँ, कि मुझे पीड़ा न दे।” (मत्ती 8:29, 1 राजा. 17:18) 8 क्योंकि उसने उससे कहा था, “हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।” 9 यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने उससे कहा, “मेरा नाम सेना है*; क्योंकि हम बहुत हैं।” 10 और उसने उससे बहुत विनती की, “हमें इस देश से बाहर न भेज।” 11 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। 12 और उन्होंने उससे विनती करके कहा, “हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उनके भीतर जाएँ।” 13 अतः उसने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर घुस गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा। 14 और उनके चरवाहों ने भागकर नगर और गाँवों में समाचार सुनाया, और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए। 15 यीशु के पास आकर, वे उसको जिसमें दुष्टात्माएँ समाई थी, कपड़े पहने और सचेत बैठे देखकर, डर गए। 16 और देखनेवालों ने उसका जिसमें दुष्टात्माएँ थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उनको कह सुनाया। 17 और वे उससे विनती कर के कहने लगे, कि हमारी सीमा से चला जा। 18 और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिसमें पहले दुष्टात्माएँ थीं, उससे विनती करने लगा, “मुझे अपने साथ रहने दे।” 19 परन्तु उसने उसे आज्ञा न दी, और उससे कहा, “अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।” 20 वह जाकर दिकापुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे।
21 जब यीशु फिर नाव से पार गया, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई; और वह झील के किनारे था। 22 और याईर नामक आराधनालय के सरदारों* में से एक आया, और उसे देखकर, उसके पाँवों पर गिरा। 23 और उसने यह कहकर बहुत विनती की, “मेरी छोटी बेटी मरने पर है: तू आकर उस पर हाथ रख, कि वह चंगी होकर जीवित रहे।” 24 तब वह उसके साथ चला; और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, यहाँ तक कि लोग उस पर गिरे पड़ते थे। 25 और एक स्त्री, जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था। 26 और जिस ने बहुत वैद्यों से बड़ा दुःख उठाया और अपना सब माल व्यय करने पर भी कुछ लाभ न उठाया था, परन्तु और भी रोगी हो गई थी। 27 यीशु की चर्चा सुनकर, भीड़ में उसके पीछे से आई, और उसके वस्त्र को छू लिया, 28 क्योंकि वह कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी, तो चंगी हो जाऊँगी।” 29 और तुरन्त उसका लहू बहना बन्द हो गया; और उसने अपनी देह में जान लिया, कि मैं उस बीमारी से अच्छी हो गई हूँ। 30 यीशु ने तुरन्त अपने में जान लिया, कि मुझसे सामर्थ्य निकली है*, और भीड़ में पीछे फिरकर पूछा, “मेरा वस्त्र किसने छुआ?” 31 उसके चेलों ने उससे कहा, “तू देखता है, कि भीड़ तुझ पर गिरी पड़ती है, और तू कहता है; कि किसने मुझे छुआ?” 32 तब उसने उसे देखने के लिये जिस ने यह काम किया था, चारों ओर दृष्टि की। 33 तब वह स्त्री यह जानकर, कि उसके साथ क्या हुआ है, डरती और काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर, उससे सब हाल सच-सच कह दिया। 34 उसने उससे कहा, “पुत्री, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह।” (लूका 8:48) 35 वह यह कह ही रहा था, कि आराधनालय के सरदार के घर से लोगों ने आकर कहा, “तेरी बेटी तो मर गई; अब गुरु को क्यों दुःख देता है?” 36 जो बात वे कह रहे थे, उसको यीशु ने अनसुनी करके, आराधनालय के सरदार से कहा, “मत डर; केवल विश्वास रख।” 37 और उसने पतरस और याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को छोड़, और किसी को अपने साथ आने न दिया। 38 और आराधनालय के सरदार के घर में पहुँचकर, उसने लोगों को बहुत रोते और चिल्लाते देखा। 39 तब उसने भीतर जाकर उनसे कहा, “तुम क्यों हल्ला मचाते और रोते हो? लड़की मरी नहीं, परन्तु सो रही है।” 40 वे उसकी हँसी करने लगे, परन्तु उसने सब को निकालकर लड़की के माता-पिता और अपने साथियों को लेकर, भीतर जहाँ लड़की पड़ी थी, गया। 41 और लड़की का हाथ पकड़कर उससे कहा, “तलीता कूमी*”; जिसका अर्थ यह है “हे लड़की, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ।” 42 और लड़की तुरन्त उठकर चलने फिरने लगी; क्योंकि वह बारह वर्ष की थी। और इस पर लोग बहुत चकित हो गए। 43 फिर उसने उन्हें चेतावनी के साथ आज्ञा दी कि यह बात कोई जानने न पाए और कहा; “इसे कुछ खाने को दो।”
"उसके पांवों को लोहे की जंजीर से बांधा गया"
"नियन्त्रण में रख सकता था"
"उस दृष्टात्मा ने चिल्लाकर कहा।"
वैकल्पिक अनुवाद, "मुझे तुझसे कोई काम नहीं है"
"मुझे कष्ट मत दे"
उस मनुष्य में उपस्थित दुष्टात्मा ने यीशु से कहा कि उस मनुष्य में एक ही नहीं, अनेक दुष्टात्माएं हैं।
"यीशु ने उन दुष्टात्माओं को अनुमति दे दी।"
"लगभग 2000 सूअर थे।"
"सामान्य मानसिक अवस्था"
"जिस व्यक्ति पर दुष्टात्माओं का अधिकार था।"
गलील सागर के दक्षिण पूर्व का क्षेत्र
"बारह वर्ष से"
वैकल्पिक अनुवाद, "हमें आश्चर्य हो रहा है कि तू कहता है, किसने मुझे छुआ।"
यीशु उस विश्वासी स्त्री के लिए इस शब्द को रूपक स्वरूप काम में ले रहा है।
वैकल्पिक अनुवाद, "हमें गुरु को अब कष्ट नहीं देना है"
"दुःख के कारण विलाप करते देखा"
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें दुःखी नहीं होना है, न ही रोना है"
"वह 12 वर्ष की थी"
"उसने उन्हें कठोरता से कहा"
एक दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य यीशु के सामने आया।
वह मनुष्य कब्रों में रहता था, वह सांकलों को तोड़ देता था और अपने को पत्थरों से घायल करता था।
उस अशुद्ध आत्मा ने यीशु को परम प्रधान परमेश्वर का पुत्र कहा।
यीशु ने कहा, "अशुद्ध आत्मा इस मनुष्य में से निकल आ।"
उस अशुद्ध आत्मा का नाम सेना था क्योंकि वे बहुत थीं।
दुष्टात्माएं उसमें से निकलकर सूअरों में घुस गई और वे झील में डूबकर मर गए।
वह पुरुष वस्त्र पहना यीशु के पास सचेत बैठा था।
वे लोग बहुत डर गए और यीशु से चले जाने की विनती की।
यीशु ने उस मनुष्य से कहा कि वह जाकर अपने लोगों को बताए कि प्रभु ने उसके लिए क्या किया है।
याईर ने यीशु से विनती की कि वह उसके पुत्री पर हाथ रखे क्योंकि वह मरने पर है।
वह स्त्री बारह वर्षों से रक्तस्राव से पीड़ित थी।
वह स्त्री सोचती थी कि यीशु के वस्त्र के स्पर्श मात्र से ही वह रोगमुक्त हो जायेगी।
यीशु को अपने में से सामर्थ्य बहने का बोध हुआ, अतः उसने देखा कि उसका स्पर्श किसने किया।
यीशु ने उससे कहा कि उसके विश्वास ने उसे चंगा किया है, वह कुशलता से जाए।
याईर की पुत्री मर गई।
यीशु ने याईर से कहा, "मत डर केवल विश्वास रख"।
यीशु ने उस बालिका के माता-पिता और पतरस, याकूब, यूहन्ना को साथ लिया।
यीशु ने कहा कि याईर की पुत्री सोती है तो लोग उसका ठट्ठा करने लगे।
इस घटना से लोग भयातुर और चकित थे।
1 वहाँ से निकलकर वह अपने देश में आया, और उसके चेले उसके पीछे हो लिए। 2 सब्त के दिन वह आराधनालय में उपदेश करने लगा; और बहुत लोग सुनकर चकित हुए और कहने लगे, “इसको ये बातें कहाँ से आ गई? और यह कौन सा ज्ञान है जो उसको दिया गया है? और कैसे सामर्थ्य के काम इसके हाथों से प्रगट होते हैं? 3 क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब और योसेस और यहूदा और शमौन का भाई है? और क्या उसकी बहनें यहाँ हमारे बीच में नहीं रहतीं?” इसलिए उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई। 4 यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता का अपने देश और अपने कुटुम्ब और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता।” 5 और वह वहाँ कोई सामर्थ्य का काम न कर सका, केवल थोड़े बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। 6 और उसने उनके अविश्वास पर आश्चर्य किया और चारों ओर से गाँवों में उपदेश करता फिरा।
7 और वह बारहों को अपने पास बुलाकर उन्हें दो-दो करके भेजने लगा; और उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया। 8 और उसने उन्हें आज्ञा दी, कि “मार्ग के लिये लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न झोली, न पटुके में पैसे। 9 परन्तु जूतियाँ पहनो और दो-दो कुर्ते न पहनो।” 10 और उसने उनसे कहा, “जहाँ कहीं तुम किसी घर में उतरो, तो जब तक वहाँ से विदा न हो, तब तक उसी घर में ठहरे रहो। 11 जिस स्थान के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, और तुम्हारी न सुनें, वहाँ से चलते ही अपने तलवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो।” 12 और उन्होंने जाकर प्रचार किया, कि मन फिराओ, 13 और बहुत सी दुष्टात्माओं को निकाला, और बहुत बीमारों पर तेल मलकर* उन्हें चंगा किया।
14 और हेरोदेस राजा ने उसकी चर्चा सुनी, क्योंकि उसका नाम फैल गया था, और उसने कहा, कि “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला मरे हुओं में से जी उठा है, इसलिए उससे ये सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।” 15 और औरों ने कहा, “यह एलिय्याह है*”, परन्तु औरों ने कहा, “भविष्यद्वक्ता या भविष्यद्वक्ताओं में से किसी एक के समान है।” 16 हेरोदेस ने यह सुन कर कहा, “जिस यूहन्ना का सिर मैंने कटवाया था, वही जी उठा है।” 17 क्योंकि हेरोदेस ने आप अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, जिससे उसने विवाह किया था, लोगों को भेजकर यूहन्ना को पकड़वाकर बन्दीगृह में डाल दिया था। 18 क्योंकि यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा था, “अपने भाई की पत्नी को रखना तुझे उचित नहीं।” (लैव्य. 18:16, लैव्य. 20:21) 19 इसलिए हेरोदियास उससे बैर रखती थी और यह चाहती थी, कि उसे मरवा डाले, परन्तु ऐसा न हो सका, 20 क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरुष जानकर उससे डरता था, और उसे बचाए रखता था, और उसकी सुनकर बहुत घबराता था, पर आनन्द से सुनता था। 21 और ठीक अवसर पर जब हेरोदेस ने अपने जन्मदिन में अपने प्रधानों और सेनापतियों, और गलील के बड़े लोगों के लिये भोज किया। 22 और उसी हेरोदियास की बेटी भीतर आई, और नाचकर हेरोदेस को और उसके साथ बैठनेवालों को प्रसन्न किया; तब राजा ने लड़की से कहा, “तू जो चाहे मुझसे माँग मैं तुझे दूँगा।” 23 और उसने शपथ खाई, “मैं अपने आधे राज्य तक जो कुछ तू मुझसे माँगेगी मैं तुझे दूँगा।” (एस्ते. 5:3,6, एस्ते. 7:2) 24 उसने बाहर जाकर अपनी माता से पूछा, “मैं क्या माँगूँ?” वह बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर।” 25 वह तुरन्त राजा के पास भीतर आई, और उससे विनती की, “मैं चाहती हूँ, कि तू अभी यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर एक थाल में मुझे मँगवा दे।” 26 तब राजा बहुत उदास हुआ, परन्तु अपनी शपथ के कारण और साथ बैठनेवालों के कारण उसे टालना न चाहा। 27 और राजा ने तुरन्त एक सिपाही को आज्ञा देकर भेजा, कि उसका सिर काट लाए। 28 उसने जेलखाने में जाकर उसका सिर काटा, और एक थाल में रखकर लाया और लड़की को दिया, और लड़की ने अपनी माँ को दिया। 29 यह सुनकर उसके चेले आए, और उसके शव को उठाकर कब्र में रखा।
30 प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उसको बता दिया। 31 उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग किसी एकान्त स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो।” क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। 32 इसलिए वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। 33 और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहाँ पैदल दौड़े और उनसे पहले जा पहुँचे। 34 उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। (2 इति. 18:16, 1 राजा. 22:17) 35 जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। 36 उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।” 37 उसने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने उससे कहा, “क्या हम सौ दीनार की रोटियाँ मोल लें, और उन्हें खिलाएँ?” 38 उसने उनसे कहा, “जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने मालूम करके कहा, “पाँच रोटी और दो मछली भी।” 39 तब उसने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर समूह में बैठा दो। 40 वे सौ-सौ और पचास-पचास करके समूह में बैठ गए। 41 और उसने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं। 42 और सब खाकर तृप्त हो गए, 43 और उन्होंने टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भर कर उठाई, और कुछ मछलियों से भी। 44 जिन्होंने रोटियाँ खाई, वे पाँच हजार पुरुष थे।
45 तब उसने तुरन्त अपने चेलों को विवश किया कि वे नाव पर चढ़कर उससे पहले उस पार बैतसैदा को चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। 46 और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। 47 और जब सांझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। 48 और जब उसने देखा, कि वे खेते-खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उनके पास आया; और उनसे आगे निकल जाना चाहता था। 49 परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, 50 क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उसने तुरन्त उनसे बातें की और कहा, “धैर्य रखो : मैं हूँ; डरो मत।” 51 तब वह उनके पास नाव पर आया, और हवा थम गई: वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। 52 क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में न समझे थे परन्तु उनके मन कठोर हो गए थे।
53 और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुँचे, और नाव घाट पर लगाई। 54 और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उसको पहचान कर, 55 आस-पास के सारे देश में दौड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहाँ-जहाँ समाचार पाया कि वह है, वहाँ-वहाँ लिए फिरे। 56 और जहाँ कहीं वह गाँवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, तो लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उससे विनती करते थे, कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आँचल ही को छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे।
"यह तो एक साधारण बढ़ई है। हम तो इसे और इसके परिवार को जानते हैं! हम इसकी माता मरियम को जानते हैं। हम इसके छोटे भाइयों याकूब, योसेस, यहूदा और शमौन को भी तो जानते हैं! और इसकी छोटी बहनें यहाँ हमारे बीच में ही तो रहती हैं!" (यू.डी.बी.) यह सन्देह का प्रश्न है कि यीशु ऐसे काम कैसे कर सकता है।
"यह निश्चय ही सच है कि मनुष्य अन्य स्थानों में मेरा और अन्य भविष्यद्वक्ताओं का सम्मान करते हैं। परन्तु अपने ही जन्म-स्थान में नहीं करते! यहाँ तक कि हमारे परिजन और घर के सदस्य हमारा सम्मान नहीं करते" (यू.डी.बी.)
"एक साथ दो दो" या "जोड़े में"
"अतिरिक्त कुरता भी नहीं लेना"
"उस नगर से प्रस्थान करने तक उसी घर में रहना।"
"परमेश्वर ने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को जीवित किया है।"
"उसके भाई फिलिप्पुस की पत्नी"
"उसके विरुद्ध थी"
"उसके विरुद्ध थी"
"वह विमूढ़ था"
"एक परात में"
"क्योंकि उसके अतिथियों ने उसे शपथ खाते सुना था"
"एक परात में"
"पाँच रोटियों और दो मछलियाँ"
"सौ और पचास की संख्या में"
"5 रोटियां और 2 मछलियाँ"
"2 मछलियाँ"
"12 टोकरिया"
वैकल्पिक अनुवादः "पाँच हजार पुरुष और उनके परिवार"
गलील सागर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक नगर
"उन्हें समझना था कि वह कैसा सामर्थी है परन्तु वे समझ नहीं पाए।"
"रोगियों को उठाकर लाने के लिए दरी"
"उसके वस्त्र का छोर" या "उसके बागे का सिरा"
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यीशु ने कहा कि भविष्यद्वक्ता का अपने देश, और अपने कुटुम्ब, और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता है।
यीशु अपने देश में लोगों के अविश्वास पर चकित था।
यीशु ने बारहों को अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया।
बारहों ने लाठी, जूते और एक ही वस्त्र साथ लिया।
यीशु ने बारहों से कहा कि यदि किसी गांव में उनका स्वागत न हो तो गवाही स्वरूप अपने जूतों की धूल वहाँ झाड़कर निकल जाएं।
लोग सोचते थे कि यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला या एलिय्याह या कोई भविष्यद्वक्ता है।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला ने हेरोदेस से कहा कि अपने भाई की पत्नी को रखना व्यवस्था विरोधी है।
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की बातों से हेरोदेस परेशान तो होता था परन्तु फिर भी उसे सुनना उसे अच्छा लगता था।
हेरोदेस ने शपथ खाकर कहा कि वह उसे मुंह मांगा वर देगा, अपना आधा राज्य भी दे देगा।
हेरोदियास ने यूहन्ना का सिर थाल में मांगा।
हेरोदेस दुखी तो हुआ परन्तु अतिथियों के समक्ष अपनी शपथ के कारण उसके आग्रह को ठुकरा नहीं पाया।
लोगों ने यीशु और उसके चेलों को पहचान लिया और उनसे पहले वहाँ पहुंच गए।
यीशु को उन पर तरस आया क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों के समान थे।
चेलों के विचार में उनके लिए रोटी खरीदने के लिए दो सौ दीनार की आवश्यकता थी।
चेलों के पास पांच रोटियां और दो मछलियां ही थी।
यीशु ने रोटियां और मछलियां लेकर स्वर्ग की ओर देखकर उन्हें आशीष दी और रोटी तोड़कर चेलों को दी।
सब खाकर तृप्त हो गए तब बचे हुए भोजन, रोटी और मछलियों से बारह टोकरियां भर गईं।
खाना खाने वालों में केवल पुरूष ही पांच हजार थे।
यीशु झील के पानी पर चलकर चेलों के पास आया।
यीशु ने चेलों से कहा कि वे डरें नहीं ढाढ़स बांधें।
रोटियों के चमत्कार को चेले समझ नहीं पाए क्योंकि उनके मन कठोर हो गए थे।
लोगों ने जब-जब यीशु के आने का समाचार सुना तब-तब वे अपने रोगियों को खाटों पर ले आए।
जो रोगी यीशु के वस्त्र का स्पर्श करते थे वे रोग मुक्त हो जाते थे।
1 तब फरीसी और कुछ शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, उसके पास इकट्ठे हुए, 2 और उन्होंने उसके कई चेलों को अशुद्ध अर्थात् बिना हाथ धोए रोटी खाते देखा। 3 (क्योंकि फरीसी और सब यहूदी, प्राचीन परम्परा का पालन करते है और जब तक भली भाँति हाथ नहीं धो लेते तब तक नहीं खाते; 4 और बाजार से आकर, जब तक स्नान नहीं कर लेते, तब तक नहीं खाते; और बहुत सी अन्य बातें हैं, जो उनके पास मानने के लिये पहुँचाई गई हैं, जैसे कटोरों, और लोटों, और तांबे के बरतनों को धोना-माँजना।) 5 इसलिए उन फरीसियों और शास्त्रियों ने उससे पूछा, “तेरे चेले क्यों पूर्वजों की परम्पराओं पर नहीं चलते, और बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?” 6 उसने उनसे कहा, “यशायाह ने तुम कपटियों के विषय में बहुत ठीक भविष्यद्वाणी की; जैसा लिखा है:
‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं,
पर उनका मन मुझसे दूर रहता है। (यशा. 29:13)
7 और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं,
क्योंकि मनुष्यों की आज्ञाओं को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।’ (यशा. 29:13)
8 क्योंकि तुम परमेश्वर की आज्ञा को टालकर मनुष्यों की रीतियों को मानते हो।” 9 और उसने उनसे कहा, “तुम अपनी रीतियों को मानने के लिये परमेश्वर आज्ञा कैसी अच्छी तरह टाल देते हो! 10 क्योंकि मूसा ने कहा है, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर कर;’ और ‘जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह अवश्य मार डाला जाए।’ (निर्ग. 20:12, व्य. 5:16) 11 परन्तु तुम कहते हो कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, ‘जो कुछ तुझे मुझसे लाभ पहुँच सकता था, वह कुरबान* अर्थात् संकल्प हो चुका।’ 12 तो तुम उसको उसके पिता या उसकी माता की कुछ सेवा करने नहीं देते। 13 इस प्रकार तुम अपनी रीतियों से, जिन्हें तुम ने ठहराया है, परमेश्वर का वचन टाल देते हो; और ऐसे-ऐसे बहुत से काम करते हो।”
14 और उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम सब मेरी सुनो, और समझो। 15 ऐसी तो कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य में बाहर से समाकर उसे अशुद्ध करे; परन्तु जो वस्तुएँ मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं। 16 यदि किसी के सुनने के कान हों तो सुन ले।” 17 जब वह भीड़ के पास से घर में गया, तो उसके चेलों ने इस दृष्टान्त के विषय में उससे पूछा। 18 उसने उनसे कहा, “क्या तुम भी ऐसे नासमझ हो? क्या तुम नहीं समझते, कि जो वस्तु बाहर से मनुष्य के भीतर जाती है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकती? 19 क्योंकि वह उसके मन में नहीं, परन्तु पेट में जाती है, और शौच में निकल जाती है?” यह कहकर उसने सब भोजन वस्तुओं को शुद्ध ठहराया। 20 फिर उसने कहा, “जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। 21 क्योंकि भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से, बुरे-बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, 22 लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। 23 ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।”
24 फिर वह वहाँ से उठकर सूर और सैदा के देशों में आया; और एक घर में गया, और चाहता था, कि कोई न जाने; परन्तु वह छिप न सका। 25 और तुरन्त एक स्त्री जिसकी छोटी बेटी में अशुद्ध आत्मा थी, उसकी चर्चा सुन कर आई, और उसके पाँवों पर गिरी। 26 यह यूनानी और सुरूफिनिकी जाति की थी; और उसने उससे विनती की, कि मेरी बेटी में से दुष्टात्मा निकाल दे। 27 उसने उससे कहा, “पहले लड़कों को तृप्त होने दे, क्योंकि लड़को की रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना उचित नहीं है।” 28 उसने उसको उत्तर दिया; “सच है प्रभु; फिर भी कुत्ते भी तो मेज के नीचे बालकों की रोटी के चूर चार खा लेते हैं।” 29 उसने उससे कहा, “इस बात के कारण चली जा; दुष्टात्मा तेरी बेटी में से निकल गई है।” 30 और उसने अपने घर आकर देखा कि लड़की खाट पर पड़ी है, और दुष्टात्मा निकल गई है।
31 फिर वह सूर और सैदा के देशों से निकलकर दिकापुलिस देश से होता हुआ गलील की झील पर पहुँचा। 32 और लोगों ने एक बहरे को जो हक्ला भी था, उसके पास लाकर उससे विनती की, कि अपना हाथ उस पर रखे। 33 तब वह उसको भीड़ से अलग ले गया, और अपनी उँगलियाँ उसके कानों में डाली, और थूककर उसकी जीभ को छुआ। 34 और स्वर्ग की ओर देखकर आह भरी, और उससे कहा, “इप्फत्तह*!” अर्थात् “खुल जा!” 35 और उसके कान खुल गए, और उसकी जीभ की गाँठ भी खुल गई, और वह साफ-साफ बोलने लगा। 36 तब उसने उन्हें चेतावनी दी कि किसी से न कहना; परन्तु जितना उसने उन्हें चिताया उतना ही वे और प्रचार करने लगे। 37 और वे बहुत ही आश्चर्य में होकर कहने लगे, “उसने जो कुछ किया सब अच्छा किया है; वह बहरों को सुनने की, और गूँगों को बोलने की शक्ति देता है।”
खाते समय उस युग के यहूदी आधा लेटकर खाना खाते थे। वैकल्पिक अनुवाद, "पात्र और यहाँ तक कि खाने के लिए बैठने के आसन भी।"
"तेरे शिष्य पूर्वजों की परम्परा पर नहीं चलते हैं। उन्हें हमारी रीति के अनुसार हाथ धोना चाहिए।"
भोजन
यशायाह के वचन...
प्रभावी रूप से
मान-हर शब्दों का उपयोग करने वाला
शास्त्रियों की परम्परा के अनुसार मन्दिर को यदि कुछ भेंट कर दिया गया (पैसा या वस्तु) तो उसका उपयोग किसी और बात में नहीं किया जा सकता।
लेखक चाहता था कि पाठक को इस शब्द का उच्चारण समझ में आए, अतः अपनी भाषा में इस शब्द के उच्चारण हेतु अक्षरों का उपयोग करें।
"सुनो" और "समझो" अर्थ में समरूप हैं, यीशु बल देने के लिए इन दोनों शब्दों का उपयोग करता है
"यह मनुष्य का आन्तरिक व्यक्तित्व है" या "यह मनुष्य का सोचना, बोलना और करना है।"
इस वाक्य का उद्देश्य है यीशु के कट्टर सिद्धान्त के अधिकार को दर्शाने तथा प्रत्येक निष्ठावान अनुयायी उसके अभी-अभी सिखाई गई बात को समझने की अवश्यकरणीयता पर बल देता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैंने जो कुछ कहा और किया, मैं तुमसे उसे समझने की अपेक्षा करता हूँ।"
"घुटने टेके"
वह सीरिया के फिनिके नगर में जन्मी थी।
"बच्चों को पहले भोजन करना है" या "मुझे पहले बच्चों को भोजन देना है।"
यहूदियों को वैकल्पिक अनुवाद, "मुझे पहले यहूदियों की सेवा करना है।"
भोजन
अन्य जातियों को
"तू मुझ, अन्य जाति को इस प्रकार तुच्छ जानकर सेवा का पात्र बना दे"
रोटी के छोटे टुकड़े
"से चलता हुआ"
"दस नगर" (देखें: यू.डी.बी.) गलील सागर के दक्षिण-पूर्वक का क्षेत्र।
"सुनने में असमर्थ था"
"स्पष्ट बोल नहीं पाता था"
लेखक चाहता था कि पाठक इस शब्द का उच्चारण समझें। अतः अपनी भाषा के अक्षरों द्वारा इस शब्द का निकटतम् उच्चारण लिखें।
दुःख के कारण लम्बी सांस लेना
"उसकी जीभ में जो भी रुकावट का कारण था उसे यीशु ने दूर कर दिया" या "स्पष्ट बोलने में जो भी रुकावट का कारण था उसे यीशु ने चंगा किया।"
चेले बिना हाथ धोए भोजन करते थे।
पुरनियों की परम्परा के अनुसार, हाथ, कटोरे, पात्र, तांबे के बर्तन और भोजन की मेज़ को भोजन करने से पहले धोना आवश्यक था।
यीशु ने कहा कि फरीसी और शास्त्री पाखंडी थे कि वे परमेश्वर की आज्ञाओं को अनदेखा कर मनुष्यों की परम्परा सिखाते थे।
वे अपने माता-पिता के उत्तरदायित्व वहन के खर्चे को कुर्बान कह कर परमेश्वर की आज्ञा को टाल देते थे?
यीशु ने कहा कि जो कुछ मनुष्य के पेट में जाता है वह उसे अशुद्ध नहीं करता है।
यीशु ने कहा कि मनुष्य के मन से निकलने वाली बात उसे अशुद्ध करती है।
यीशु ने सब भोजन वस्तुओं को शुद्ध कहा है।
यीशु ने कहा कि बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता मनुष्य के मन से बाहर निकलती है।
जिस स्त्री की पुत्री में अशुद्ध आत्मा थी वह यूनानी थी।
उस स्त्री ने कहा कि कुत्ते भी बच्चों के गिरे टुकड़़े खाते हैं।
यीशु ने उस स्त्री की पुत्री में से दुष्टात्मा निकाल दी।
यीशु ने उस बहरे और गूंगे मनुष्य के कानों में उंगलियां डालीं और थूक कर उसकी जीभ को छुआ और स्वर्ग की ओर देखकर कहा, "खुल जा"।
यीशु ने लोगों को जितना अधिक चुप रहने को कहा उतना ही अधिक उन्होंने उसकी चर्चा की।
1 उन दिनों में, जब फिर बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और उनके पास कुछ खाने को न था, तो उसने अपने चेलों को पास बुलाकर उनसे कहा, 2 “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है, क्योंकि यह तीन दिन से बराबर मेरे साथ हैं, और उनके पास कुछ भी खाने को नहीं। 3 यदि मैं उन्हें भूखा घर भेज दूँ, तो मार्ग में थककर रह जाएँगे; क्योंकि इनमें से कोई-कोई दूर से आए हैं।” 4 उसके चेलों ने उसको उत्तर दिया, “यहाँ जंगल में इतनी रोटी कोई कहाँ से लाए कि ये तृप्त हों?” 5 उसने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात।”
6 तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी, और वे सात रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके तोड़ी, और अपने चेलों को देता गया कि उनके आगे रखें, और उन्होंने लोगों के आगे परोस दिया। 7 उनके पास थोड़ी सी छोटी मछलियाँ भी थीं; और उसने धन्यवाद करके उन्हें भी लोगों के आगे रखने की आज्ञा दी। 8 अतः वे खाकर तृप्त हो गए और शेष टुकड़ों के सात टोकरे भरकर उठाए। 9 और लोग चार हजार के लगभग थे, और उसने उनको विदा किया। 10 और वह तुरन्त अपने चेलों के साथ नाव पर चढ़कर दलमनूता* देश को चला गया।
11 फिर फरीसी आकर उससे वाद-विवाद करने लगे, और उसे जाँचने के लिये उससे कोई स्वर्गीय चिन्ह माँगा। 12 उसने अपनी आत्मा में भरकर कहा, “इस समय के लोग क्यों चिन्ह ढूँढ़ते हैं? मैं तुम से सच कहता हूँ, कि इस समय के लोगों को कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा।” 13 और वह उन्हें छोड़कर फिर नाव पर चढ़ गया, और पार चला गया।
14 और वे रोटी लेना भूल गए थे, और नाव में उनके पास एक ही रोटी थी। 15 और उसने उन्हें चेतावनी दी, “देखो, फरीसियों के ख़मीर* और हेरोदेस के ख़मीर से सावधान रहो।” 16 वे आपस में विचार करके कहने लगे, “हमारे पास तो रोटी नहीं है।” 17 यह जानकर यीशु ने उनसे कहा, “तुम क्यों आपस में विचार कर रहे हो कि हमारे पास रोटी नहीं? क्या अब तक नहीं जानते और नहीं समझते? क्या तुम्हारा मन कठोर हो गया है? 18 क्या आँखें रखते हुए भी नहीं देखते, और कान रखते हुए भी नहीं सुनते? और तुम्हें स्मरण नहीं? 19 कि जब मैंने पाँच हजार के लिये पाँच रोटी तोड़ी थीं तो तुम ने टुकड़ों की कितनी टोकरियाँ भरकर उठाई?” उन्होंने उससे कहा, “बारह टोकरियाँ।” 20 उसने उनसे कहा, “और जब चार हजार के लिए सात रोटियाँ थी तो तुम ने टुकड़ों के कितने टोकरे भरकर उठाए थे?” उन्होंने उससे कहा, “सात टोकरे।” 21 उसने उनसे कहा, “क्या तुम अब तक नहीं समझते?”
22 और वे बैतसैदा में आए; और लोग एक अंधे को उसके पास ले आए और उससे विनती की कि उसको छूए। 23 वह उस अंधे का हाथ पकड़कर उसे गाँव के बाहर ले गया। और उसकी आँखों में थूककर उस पर हाथ रखे, और उससे पूछा, “क्या तू कुछ देखता है?” 24 उसने आँख उठाकर कहा, “मैं मनुष्यों को देखता हूँ; क्योंकि वे मुझे चलते हुए दिखाई देते हैं, जैसे पेड़।” 25 तब उसने फिर दोबारा उसकी आँखों पर हाथ रखे, और उसने ध्यान से देखा। और चंगा हो गया, और सब कुछ साफ-साफ देखने लगा। 26 और उसने उससे यह कहकर घर भेजा, “इस गाँव के भीतर पाँव भी न रखना।”
27 यीशु और उसके चेले कैसरिया फिलिप्पी के गाँवों में चले गए; और मार्ग में उसने अपने चेलों से पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?” 28 उन्होंने उत्तर दिया, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला; पर कोई-कोई, एलिय्याह; और कोई-कोई, भविष्यद्वक्ताओं में से एक भी कहते हैं।” 29 उसने उनसे पूछा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने उसको उत्तर दिया, “तू मसीह है।” 30 तब उसने उन्हें चिताकर कहा कि मेरे विषय में यह किसी से न कहना।
31 और वह उन्हें सिखाने लगा, कि मनुष्य के पुत्र के लिये अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें और वह तीन दिन के बाद जी उठे। 32 उसने यह बात उनसे साफ-साफ कह दी। इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर डाँटने लगा। 33 परन्तु उसने फिरकर, और अपने चेलों की ओर देखकर पतरस को डाँटकर कहा, “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो; क्योंकि तू परमेश्वर की बातों पर नहीं, परन्तु मनुष्य की बातों पर मन लगाता है।”
34 उसने भीड़ को अपने चेलों समेत पास बुलाकर उनसे कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आप से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले। 35 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा। 36 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? 37 और मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा? 38 जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझसे और मेरी बातों से लजाएगा*, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उससे भी लजाएगा।”
"3 दिन से"
संभावित अर्थः (1) "वे बेहोश हो जाएंगे" या (2) "वे थककर चूर हो जाएंगे"
चेले आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे कि यीशु उसे इतने भोजन का प्रबन्ध करने के लिए कह रहा था। वैकल्पिक अनुवाद, "यह स्थान तो ऐसा निर्जन प्रदेश है कि हम इन लोगों के भोजन का प्रबन्ध कहाँ से करें!" (यू.डी.बी.)
मेज़ न होने पर आपकी संस्कृति में लोग भोजन करने कैसे बैठते हैं, उसे व्यक्त करें।
गलील सागर के उत्तर-पश्चिमी तट का प्रदेश
"ढूंढते हैं"
देखें कि आपने इस अनुवाद में कैसे किया है।
यीशु उनको झिड़क रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, "इस पीढ़ी को चिन्ह खोजने की आवश्यकता नहीं है"
"क्या तुम सबको"
इसका उद्देश्य बल देना है।
वैकल्पिक अनुवाद "फरीसियों की झूठी शिक्षा और हेरोदेस की झूठी शिक्षा।"(देखें: )
यीशु उनके न समझने के कारण निराश है। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम यह न सोचो कि मैं रोटी के बारे में कह रहा हूँ।"
यीशु उनके न समझने के कारण निराश है। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हारे पास आँखें है परन्तु तुम जो देखते हो उसे समझते नहीं! तुम्हारे पास कान हैं परन्तु तुम जो सुनते हो उसे नहीं समझते! तुम्हें स्मरण रखना है।"(देखें:
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें अब तक समझने योग्य हो जाना था कि मैं रोटी के बारे में नहीं कर रहा हूँ।"(देखें: और )
यरदन नदी के पूर्व में स्थित एक नगर
वैकल्पिक अनुवाद, "पुरनिये और प्रधानयाजक और शास्त्री मनुष्य के पुत्र को त्यागकर उसे मार डालें और परमेश्वर उसे फिर जीवित कर दे।"
"3 दिन से"
यीशु पतरस की भर्त्सना का उत्तर दे रहा है।
यीशु अपने शिष्यों को कारण समझा रहा है कि उन्हें क्यों स्वयं को मृत्यु-दण्ड प्राप्त अपराधी के समान समझना है ।
यीशु ने अपने शिष्यों को और जनसमूह को अभी-अभी बताया है कि उसका अनुसरण करना संपूर्ण संसार से अधिक मूल्यवान क्यों है।
यीशु ने कहा कि उसे चिन्ता इस बात की है कि जनसमूह ने भोजन नहीं किया है।
चेलों के पास सात रोटियां थी।
यीशु ने धन्यवाद देकर रोटियां तोड़ी और चेलों को दीं कि लोगों में बांट दें।
जब सब खा चुके तब सात टोकरे भोजन बचा।
खाने वालों में चार हजार पुरूष थे।
फरीसी यीशु से स्वर्गिक चिन्ह मांग रहे थे।
यीशु ने अपने चेलों को फरीसियों के खमीर से सावधान रहने की शिक्षा दी।
चेलों ने सोचा कि यीशु उनसे रोटी के बारे में कह रहा है क्योंकि वे रोटी लाना भूल गए थे।
यीशु ने उन्हें पांच हज़ार और चार हज़ार पुरूषों को भोजन करवाने का स्मरण करवाया।
यीशु ने पहले उसकी आंखों में थूका और उस पर हाथ रखे तब उसकी आंखों पर फिर हाथ रखा।
लोग कहते थे कि यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, एलिय्याह या कोई भविष्यद्वक्ता था।
पतरस ने कहा कि यीशु मसीह है।
यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि मनुष्य के पुत्र के लिए अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, तुच्छ समझा जाए और मार डाला जाए और तीन दिन बाद जी उठे।
यीशु ने पतरस से कहा, "हे शैतान मेरे सामने से दूर हो क्योंकि तू परमेश्वर की बातों पर नहीं, परन्तु मनुष्य की बातों पर मन लगाता है"।
यीशु ने कहा कि जो उसके पीछे आना चाहता है वह स्वयं का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए।
यीशु ने कहा, "जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा"।
यीशु ने कहा कि उसके पुनः आगमन पर वह उन लोगों से लजाएगा जो इस संसार में उसके नाम से और उसके वचन से लजाते हैं।
1 और उसने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कोई ऐसे हैं, कि जब तक परमेश्वर के राज्य को सामर्थ्य सहित आता हुआ न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद कदापि न चखेंगे।” 2 छः दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और यूहन्ना को साथ लिया, और एकान्त में किसी ऊँचे पहाड़ पर ले गया; और उनके सामने उसका रूप बदल गया। 3 और उसका वस्त्र ऐसा चमकने लगा और यहाँ तक अति उज्ज्वल हुआ, कि पृथ्वी पर कोई धोबी भी वैसा उज्ज्वल नहीं कर सकता। 4 और उन्हें मूसा के साथ एलिय्याह* दिखाई दिया; और वे यीशु के साथ बातें करते थे। 5 इस पर पतरस ने यीशु से कहा, “हे रब्बी, हमारा यहाँ रहना अच्छा है: इसलिए हम तीन मण्डप बनाएँ; एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” 6 क्योंकि वह न जानता था कि क्या उत्तर दे, इसलिए कि वे बहुत डर गए थे। 7 तब एक बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है; इसकी सुनो।” (2 पत. 1:17, भज. 2:7) 8 तब उन्होंने एकाएक चारों ओर दृष्टि की, और यीशु को छोड़ अपने साथ और किसी को न देखा। 9 पहाड़ से उतरते हुए, उसने उन्हें आज्ञा दी, कि जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से जी न उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है वह किसी से न कहना। 10 उन्होंने इस बात को स्मरण रखा; और आपस में वाद-विवाद करने लगे, “मरे हुओं में से जी उठने का क्या अर्थ है?” 11 और उन्होंने उससे पूछा, “शास्त्री क्यों कहते हैं, कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?” 12 उसने उन्हें उत्तर दिया, “एलिय्याह सचमुच पहले आकर सब कुछ सुधारेगा, परन्तु मनुष्य के पुत्र के विषय में यह क्यों लिखा है, कि वह बहुत दुःख उठाएगा, और तुच्छ गिना जाएगा? 13 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि एलिय्याह तो आ चुका, और जैसा उसके विषय में लिखा है, उन्होंने जो कुछ चाहा उसके साथ किया।”
14 और जब वह चेलों के पास आया, तो देखा कि उनके चारों ओर बड़ी भीड़ लगी है और शास्त्री उनके साथ विवाद कर रहें हैं। 15 और उसे देखते ही सब बहुत ही आश्चर्य करने लगे, और उसकी ओर दौड़कर उसे नमस्कार किया। 16 उसने उनसे पूछा, “तुम इनसे क्या विवाद कर रहे हो?” 17 भीड़ में से एक ने उसे उत्तर दिया, “हे गुरु, मैं अपने पुत्र को, जिसमें गूंगी आत्मा समाई है, तेरे पास लाया था। 18 जहाँ कहीं वह उसे पकड़ती है, वहीं पटक देती है; और वह मुँह में फेन भर लाता, और दाँत पीसता, और सूखता जाता है। और मैंने तेरे चेलों से कहा, कि वे उसे निकाल दें, परन्तु वे निकाल न सके।” 19 यह सुनकर उसने उनसे उत्तर देके कहा, “हे अविश्वासी लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? और कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे मेरे पास लाओ।” 20 तब वे उसे उसके पास ले आए। और जब उसने उसे देखा, तो उस आत्मा ने तुरन्त उसे मरोड़ा, और वह भूमि पर गिरा, और मुँह से फेन बहाते हुए लोटने लगा। 21 उसने उसके पिता से पूछा, “इसकी यह दशा कब से है?” और उसने कहा, “बचपन से। 22 उसने इसे नाश करने के लिये कभी आग और कभी पानी में गिराया; परन्तु यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर।” 23 यीशु ने उससे कहा, “यदि तू कर सकता है! यह क्या बात है? विश्वास करनेवाले के लिये सब कुछ हो सकता है।” 24 बालक के पिता ने तुरन्त पुकारकर कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ; मेरे अविश्वास का उपाय कर।” 25 जब यीशु ने देखा, कि लोग दौड़कर भीड़ लगा रहे हैं, तो उसने अशुद्ध आत्मा को यह कहकर डाँटा, कि “हे गूंगी और बहरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ, उसमें से निकल आ, और उसमें फिर कभी प्रवेश न करना।” 26 तब वह चिल्लाकर, और उसे बहुत मरोड़ कर, निकल आई; और बालक मरा हुआ सा हो गया, यहाँ तक कि बहुत लोग कहने लगे, कि वह मर गया। 27 परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया, और वह खड़ा हो गया। 28 जब वह घर में आया, तो उसके चेलों ने एकान्त में उससे पूछा, “हम उसे क्यों न निकाल सके?” 29 उसने उनसे कहा, “यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती।”
30 फिर वे वहाँ से चले, और गलील में होकर जा रहे थे, वह नहीं चाहता था कि कोई जाने, 31 क्योंकि वह अपने चेलों को उपदेश देता और उनसे कहता था, “मनुष्य का पुत्र, मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मार डालेंगे; और वह मरने के तीन दिन बाद जी उठेगा।” 32 पर यह बात उनकी समझ में नहीं आई, और वे उससे पूछने से डरते थे।
33 फिर वे कफरनहूम में आए; और घर में आकर उसने उनसे पूछा, “रास्ते में तुम किस बात पर विवाद कर रहे थे?” 34 वे चुप रहे क्योंकि, मार्ग में उन्होंने आपस में यह वाद-विवाद किया था, कि हम में से बड़ा कौन है? 35 तब उसने बैठकर बारहों को बुलाया, और उनसे कहा, “यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सबसे छोटा और सब का सेवक बने।” 36 और उसने एक बालक को लेकर उनके बीच में खड़ा किया, और उसको गोद में लेकर उनसे कहा, 37 “जो कोई मेरे नाम से ऐसे बालकों में से किसी एक को भी ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता, वह मुझे नहीं, वरन् मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।” 38 तब यूहन्ना ने उससे कहा, “हे गुरु, हमने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा और हम उसे मना करने लगे, क्योंकि वह हमारे पीछे नहीं हो लेता था।” 39 यीशु ने कहा, “उसको मना मत करो; क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से सामर्थ्य का काम करे, और आगे मेरी निन्दा करे, 40 क्योंकि जो हमारे विरोध में नहीं, वह हमारी ओर है। 41 जो कोई एक कटोरा पानी तुम्हें इसलिए पिलाए कि तुम मसीह के हो तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह अपना प्रतिफल किसी तरह से न खोएगा।”
42 “जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं, किसी को ठोकर खिलाएँ तो उसके लिये भला यह है कि एक बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वह समुद्र में डाल दिया जाए। 43 यदि तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे काट डाल टुण्डा होकर जीवन में प्रवेश करना, तेरे लिये इससे भला है कि दो हाथ रहते हुए नरक के बीच उस आग में डाला जाए जो कभी बुझने की नहीं। 44 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती। 45 और यदि तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे काट डाल। लँगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो पाँव रहते हुए नरक में डाला जाए। 46 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती 47 और यदि तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे निकाल डाल, काना होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो आँख रहते हुए तू नरक में डाला जाए। 48 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती। (यशा. 66:24) 49 क्योंकि हर एक जन आग से नमकीन किया जाएगा। 50 नमक अच्छा है, पर यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो उसे किससे नमकीन करोगे? अपने में नमक रखो, और आपस में मेल मिलाप से रहो।”
यीशु अभी-अभी अपने शिष्यों और श्रोताओं से अपने अनुसरण की चर्चा कर रहा था।
"बहुत अधिक श्वेत"
कपड़ों पर से दाग हटाने और उन्हें उज्जवल बनाने के लिए एक रसायन काम में लिया जाता है। धोबी कपड़ों में से धाग को हटाता है।
"अत्यधिक भयभीत हो गए"
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को अपने साथ एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया जहाँ यीशु के वस्त्र उज्जवल हो गए थे।
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया जहाँ वह मूसा और एलिय्याह के साथ उज्जवल वस्त्रों में दिखाई देने लगा था।
उन्होंने इस घटना की चर्चा किसी से नहीं की, जिन्होंने इसे देखा नहीं था।
"मरकर जी उठने तक"
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया जहाँ यीशु मूसा और एलिय्याह के साथ उज्जवल वस्त्रों में दिखाई देने लगा था।
भविष्यद्वाणी थी कि एलिय्याह फिर से स्वर्ग से उतरेगा तब मसीह, मनुष्य का पुत्र, राज करने आएगा। अन्य भविष्यद्वाणियां भी थी कि मनुष्य का पुत्र बहुत दुःख उठाएगा और तुच्छ गिना जाएगा। शिष्य विमूढ़ थे कि ये दोनों बातें कैसे होंगी।
भविष्यद्वाणी में प्रायः दो पूर्तियां होती हैं।
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया जहाँ यीशु मूसा और एलिय्याह के साथ उज्जवल वस्त्रों में दिखाई देने लगा था।
"तर्क-वितर्क", या "झगड़ा" या "पूछताछ करना"
यीशु वहां पहुंचता है जहां उसके अन्य शिष्य विधि शास्त्रियों के साथ विवाद में उलझे हुए थे।
"मेरे पुत्र से इस दुष्टात्मा को निकाल दे", या "इस दुष्टात्मा को बाहर कर दे"।
"सहन करूंगा" या "तुम्हारे साथ निर्वाह करूंगा"।
उस बालक का पिता यीशु से कहता है कि उसके शिष्य उसके पुत्र को चंगा नहीं कर पाए।
"दया कर" या "कृपा कर"
यीशु उस मनुष्य के सन्देह की भर्त्सना कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, "यीशु ने उससे कहा", तू क्यों कहता है, यदि तू कर सकता है?...विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ हो सकता है" या "यीशु ने उससे कहा", तुझे ऐसा नहीं कहना था, यदि तू कर सकता है?.... सब कुछ संभव है।"
यीशु ने उस बालक में से अभी-अभी दुष्टात्मा को निकाला है।
"वह बालक मृतक सा प्रतीत होने लगा" या "वह बालक मरा हुआ सा हो गया"।
यीशु ने उस दुष्टात्माग्रस्त बालक को चंगा किया जिसे उसके शिष्य चंगा न कर पाये थे।
उस दुष्टात्माग्रस्त बालक को चंगा करने के बाद यीशु और उसके शिष्य उस स्थान से कूच करते हैं।
"निकल रहे थे" या "आगे जा रहे थे"
"3 दिन से"
यीशु और उसके शिष्य गलील से निकल आये कि वह उन्हें जनसमूह की अनुपस्थिति में शिक्षा दे पायें।
यीशु न अपने शिष्यों को शिक्षा दी कि वे स्वयं को उसमें विश्वास करने वाले बालकों से अधिक न समझें।
"दुष्टात्माओं को बहिष्कृत करते देखा है।"
अन्न का आटा पीसने वाली चक्की
"आग बुझाई नहीं जा सकती"
कुछ प्राचीन लेखों में यह पद है परन्तु कुछ में नहीं है।
"परमेश्वर तुझे नरक में डाले"।
कुछ प्राचीन लेखों में यह पद है परन्तु कुछ में नहीं है।
"उनकी मृतक देह को खाने वाले कीड़े"
यीशु ने कहा कि वहाँ खड़े हुए लोगों में ऐसे जन हैं जो परमेश्वर के राज्य को सामर्थ्य में आता देखे बिना मृत्यु का स्वाद नहीं चखेंगे।
यीशु का रूपान्तरण हुआ और उसके वस्त्र चमकने लगे।
एलिय्याह और मूसा यीशु के साथ बातें कर रहे थे।
वहाँ बादल में से ये शब्द निकले, “यह मेरा प्रिय पुत्र है; उसकी सुनो।”
यीशु ने उनसे कहा कि मनुष्य के पुत्र के मृतकोत्थान तक किसी से कुछ न कहें।
यीशु ने कहा कि एलिय्याह सचमुच पहले आकर सब कुछ सुधारेगा और एलिय्याह आ चुका है।
चेले उस पिता के पुत्र में से दुष्टात्मा नहीं निकाल पाए थे।
वह दुष्टात्मा उस बालक को कभी आग में कभी पानी में गिरा देता था कि वह नष्ट हो जाए।
उस बालक पुत्र ने कहा, "हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अविश्वास का उपाय कर"।
चेले उस दुष्टात्मा को निकालने में असमर्थ रहे क्योंकि उसके लिए प्रार्थना की आवश्यकता थी।
यीशु ने उनसे कहा कि वह मारा जायेगा परन्तु तीन दिन बाद फिर जी उठेगा।
चेले आपस में विवाद कर रहे थे कि उनमें बड़ा कौन है।
यीशु ने कहा कि प्रथम वही है जो सबका सेवक हो।
यदि कोई किसी छोटे बालक को यीशु के नाम में ग्रहण करे तो वह यीशु को और यीशु के भेजने वाले को ग्रहण करता है।
इसके लिए उचित हो कि उसके गले में चक्की का पाट बांधकर उसे गहरे समुद्र में डाल दिया जाए।
यीशु ने कहा कि प्रत्येक ठोकर के कारण को दूर कर दें।
यीशु ने कहा कि नरक में कीड़े नहीं मरते न ही आग कभी बुझती है।
1 फिर वह वहाँ से उठकर यहूदिया के सीमा-क्षेत्र और यरदन के पार आया, और भीड़ उसके पास फिर इकट्ठी हो गई, और वह अपनी रीति के अनुसार उन्हें फिर उपदेश देने लगा। 2 तब फरीसियों* ने उसके पास आकर उसकी परीक्षा करने को उससे पूछा, “क्या यह उचित है, कि पुरुष अपनी पत्नी को त्यागे?” 3 उसने उनको उत्तर दिया, “मूसा ने तुम्हें क्या आज्ञा दी है?” 4 उन्होंने कहा, “मूसा ने त्याग-पत्र लिखने और त्यागने की आज्ञा दी है।” (व्य. 24:1-3) 5 यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे मन की कठोरता के कारण उसने तुम्हारे लिये यह आज्ञा लिखी। 6 पर सृष्टि के आरम्भ से, परमेश्वर ने नर और नारी करके उनको बनाया है। (उत्प. 1:27, उत्प. 5:2) 7 इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा, 8 और वे दोनों एक तन होंगे’; इसलिए वे अब दो नहीं, पर एक तन हैं। (उत्प. 2:24) 9 इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” 10 और घर में चेलों ने इसके विषय में उससे फिर पूछा। 11 उसने उनसे कहा, “जो कोई अपनी पत्नी को त्याग कर दूसरी से विवाह करे तो वह उस पहली के विरोध में व्यभिचार करता है। 12 और यदि पत्नी अपने पति को छोड़कर दूसरे से विवाह करे, तो वह व्यभिचार करती है।”
13 फिर लोग बालकों को उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; पर चेलों ने उनको डाँटा। 14 यीशु ने यह देख क्रुद्ध होकर उनसे कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है। 15 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक की तरह ग्रहण न करे, वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।” 16 और उसने उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।
17 और जब वह निकलकर मार्ग में जाता था, तो एक मनुष्य उसके पास दौड़ता हुआ आया, और उसके आगे घुटने टेककर उससे पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?” 18 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात् परमेश्वर। 19 तू आज्ञाओं को तो जानता है: ‘हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना*, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना।’ (निर्ग. 20:12-16, रोम. 13:9) 20 उसने उससे कहा, “हे गुरु, इन सब को मैं लड़कपन से मानता आया हूँ।” 21 यीशु ने उस पर दृष्टि करके उससे प्रेम किया, और उससे कहा, “तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेचकर गरीबों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।” 22 इस बात से उसके चेहरे पर उदासी छा गई, और वह शोक करता हुआ चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
23 यीशु ने चारों ओर देखकर अपने चेलों से कहा, “धनवानों को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!” 24 चेले उसकी बातों से अचम्भित हुए। इस पर यीशु ने फिर उनसे कहा, “हे बालकों, जो धन पर भरोसा रखते हैं, उनके लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है! 25 परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है!” 26 वे बहुत ही चकित होकर आपस में कहने लगे, “तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?” 27 यीशु ने उनकी ओर देखकर कहा, “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।” (अय्यू. 42:2, लूका 1:37) 28 पतरस उससे कहने लगा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।” 29 यीशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं, जिस ने मेरे और सुसमाचार के लिये घर या भाइयों या बहनों या माता या पिता या बाल-बच्चों या खेतों को छोड़ दिया हो, 30 और अब इस समय* सौ गुणा न पाए, घरों और भाइयों और बहनों और माताओं और बाल-बच्चों और खेतों को, पर सताव के साथ और परलोक में अनन्त जीवन। 31 पर बहुत सारे जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, वे पहले होंगे।”
32 और वे यरूशलेम को जाते हुए मार्ग में थे, और यीशु उनके आगे-आगे जा रहा था : और चेले अचम्भा करने लगे और जो उसके पीछे-पीछे चलते थे वे डरे हुए थे, तब वह फिर उन बारहों को लेकर उनसे वे बातें कहने लगा, जो उस पर आनेवाली थीं। 33 “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और मनुष्य का पुत्र प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उसको मृत्यु के योग्य ठहराएँगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे। 34 और वे उसका उपहास करेंगे, उस पर थूकेंगे, उसे कोड़े मारेंगे, और उसे मार डालेंगे, और तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।”
35 तब जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना ने उसके पास आकर कहा, “हे गुरु, हम चाहते हैं, कि जो कुछ हम तुझ से माँगे, वही तू हमारे लिये करे।” 36 उसने उनसे कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?” 37 उन्होंने उससे कहा, “हमें यह दे, कि तेरी महिमा में हम में से एक तेरे दाहिने और दूसरा तेरे बाएँ बैठे।” 38 यीशु ने उनसे कहा, “तुम नहीं जानते, कि क्या माँगते हो? जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, क्या तुम पी सकते हो? और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूँ, क्या तुम ले सकते हो?” 39 उन्होंने उससे कहा, “हम से हो सकता है।” यीशु ने उनसे कहा, “जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, तुम पीओगे; और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूँ, उसे लोगे। 40 पर जिनके लिये तैयार किया गया है, उन्हें छोड़ और किसी को अपने दाहिने और अपने बाएँ बैठाना मेरा काम नहीं।” 41 यह सुनकर दसों याकूब और यूहन्ना पर रिसियाने लगे। 42 तो यीशु ने उनको पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि जो अन्यजातियों के अधिपति समझे जाते हैं, वे उन पर प्रभुता करते हैं; और उनमें जो बड़े हैं, उन पर अधिकार जताते हैं। 43 पर तुम में ऐसा नहीं है, वरन् जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने; 44 और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने। 45 क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिए नहीं आया, कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिए आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों के छुटकारे के लिये अपना प्राण दे।”
46 वे यरीहो में आए, और जब वह और उसके चेले, और एक बड़ी भीड़ यरीहो से निकलती थी, तब तिमाई का पुत्र बरतिमाई एक अंधा भिखारी, सड़क के किनारे बैठा था। 47 वह यह सुनकर कि यीशु नासरी है, पुकार-पुकारकर कहने लगा “हे दाऊद की सन्तान, यीशु मुझ पर दया कर।” 48 बहुतों ने उसे डाँटा कि चुप रहे, पर वह और भी पुकारने लगा, “हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर।” 49 तब यीशु ने ठहरकर कहा, “उसे बुलाओ।” और लोगों ने उस अंधे को बुलाकर उससे कहा, “धैर्य रख, उठ, वह तुझे बुलाता है।” 50 वह अपना कपड़ा फेंककर शीघ्र उठा, और यीशु के पास आया। 51 इस पर यीशु ने उससे कहा, “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिये करूँ?” अंधे ने उससे कहा, “हे रब्बी, यह कि मैं देखने लगूँ।” 52 यीशु ने उससे कहा, “चला जा, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा कर दिया है।” और वह तुरन्त देखने लगा, और मार्ग में उसके पीछे हो लिया।
यीशु और उसके शिष्यों ने कफरनहूम से कूच किया।
"तुम्हारे हठ के कारण"
यह रूपक पति-पत्नी की शारीरिक एकता को व्यक्त करता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "तेरे कहने का अभिप्राय क्या है उस पर ध्यान दे (या तेरे कहने का अभिप्राय है कि मैं परमेश्वर हूं), मुझे उत्तम कह रहा है, उत्तम तो केवल परमेश्वर ही है।" देखें:
ऊंट का सूई के छिद्र में से निकल जाना असंभव होता है। धनवानों के लिए अपने जीवन को परमेश्वर के अधीन रखना उतना ही कठिन है।
"सूई के नाके" अर्थात सूई के छिद्र।
"तब तो किसी का भी उद्धार नहीं हो सकता"!
"जिसने भी छोड़ दिया है....वह पाएगा"।
"मेरे लाभ के लिए" या "मेरे कारण"
"इस जीवन को" या "इस वर्तमान युग को"
"आने वाले जीवन" या "आने वाले युग"
"लोग मनुष्य के पुत्र को पकड़वायेंगे" या "लोग मनुष्य के पुत्र को....हाथों में दे देंगे"।
याकूब और यूहन्ना ने यीशु से निवेदन किया कि जब वह पृथ्वी पर राज करे तब क्या वे उसे दाहिने बाएं बैठाएं जाएगे।
यीशु इस वाक्यांश में अपनी आने वाली पीड़ा का संदर्भ दे रहा है।
यीशु इस वाक्यांश में अपनी आने वाली पीड़ा का संदर्भ दे रहा है।
"वे जो शासक माने जाते हैं"
"अधीन रखते हैं" या "उन पर अधिकार होता है"
"अधिकार का उपयोग करते हैं"
"सम्मान पाना चाहे" या "प्रशंसा पाना चाहे"
कोई भी
"क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिए नहीं आया कि लोगों से अपनी सेवा करवाए।"
यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम की ओर अग्रसर है।
एक व्यक्ति का नाम
उस अन्धे भिखारी का नाम
यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम की ओर अग्रसर हैं और यरीहो के बाहर एक अंधा व्यक्ति यीशु को पुकारता है।
"उसे बुलाने के लिए लोगों से कहा"
"डर मत"
यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम के लिए अग्रसर हैं।
"देखने की क्षमता प्राप्त करूं"
"तत्काल" या "अविलम्ब"
फरीसियों ने यीशु से पूछा कि पत्नी को तलाक देना क्या उचित है।
तलाक पत्र देने की व्यवस्था मूसा ने की थी।
मूसा ने उनके मनकी कठोरता के कारण ऐसी आज्ञा दी थी।
यीशु ने विवाद के बारे में परमेश्वर की मूल व्यवस्था व्यक्त करने के लिए आरंभ में नर-नारी की सृष्टि का संदर्भ दिया।
यीशु ने कहा कि पति-पत्नी एक देह होंगे।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर ने जिसे जोड़ा है उसे कोई अलग न करे।
यीशु चेलों पर क्रोधित हुआ और कहा कि बच्चों को उसके पास आने दें।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए बालकों के सदृश्य उसे ग्रहण करना है।
यीशु ने उससे कहा, हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना अपने माता-पिता का आदर करना।
यीशु ने उससे कहा कि वह सब कुछ बेचकर उसके पीछे आ जाए।
वह व्यक्ति दुखी होकर चला गया क्योंकि उसके पास बहुत धन संपदा थी।
यीशु ने कहा कि धनवान का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है।
यीशु ने कहा कि मनुष्यों के लिए तो असंभव है परन्तु परमेश्वर के लिए संभव है।
यीशु ने कहा कि वे इस समय सौ गुना पाएंगे पर सताव के साथ और परलोक में अनन्त जीवन पाएंगे।
यीशु और उसके चेले यरूशलेम के मार्ग पर थे।
यीशु ने अपने चेलों से कहा कि उसे घात किया जायेगा परन्तु वह तीन दिन बाद फिर जी उठेगा।
याकूब और यूहन्ना ने यीशु से निवेदन किया कि उसकी महिमा में वे उसके दहिनी ओर बाई ओर बैठाएं जाएं।
?
यीशु ने कहा कि उन्हें दहिनी और बाई ओर बैठाना यीशु का काम नहीं है।
यीशु ने कहा कि अन्यजाति के शासक अपनी प्रजा पर प्रभुता करते हैं।
यीशु ने कहा कि उसके चेलों में जो बड़ा होना चाहे वह सबका सेवक बने।
अंधा बरतिमाई और भी अधिक पुकारने लगा, "हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर" |
यीशु ने कहा कि बरतिमाई के विश्वास ने उसे चंगा कर दिया है।
1 जब वे यरूशलेम के निकट, जैतून पहाड़ पर बैतफगे* और बैतनिय्याह के पास आए, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहकर भेजा, 2 “सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा, जिस पर कभी कोई नहीं चढ़ा, बंधा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोल लाओ। 3 यदि तुम से कोई पूछे, ‘यह क्यों करते हो?’ तो कहना, ‘प्रभु को इसका प्रयोजन है,’ और वह शीघ्र उसे यहाँ भेज देगा।” 4 उन्होंने जाकर उस बच्चे को बाहर द्वार के पास चौक में बंधा हुआ पाया, और खोलने लगे। 5 उनमें से जो वहाँ खड़े थे, कोई-कोई कहने लगे “यह क्या करते हो, गदही के बच्चे को क्यों खोलते हो?” 6 चेलों ने जैसा यीशु ने कहा था, वैसा ही उनसे कह दिया; तब उन्होंने उन्हें जाने दिया। 7 और उन्होंने बच्चे को यीशु के पास लाकर उस पर अपने कपड़े डाले और वह उस पर बैठ गया। 8 और बहुतों ने अपने कपड़े मार्ग में बिछाए और औरों ने खेतों में से डालियाँ काट-काट कर फैला दीं। 9 और जो उसके आगे-आगे जाते और पीछे-पीछे चले आते थे, पुकार-पुकारकर कहते जाते थे, “होशाना*; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है। (भज. 118:26) 10 हमारे पिता दाऊद का राज्य जो आ रहा है; धन्य है! आकाश में होशाना।” (मत्ती 23:39) 11 और वह यरूशलेम पहुँचकर मन्दिर में आया, और चारों ओर सब वस्तुओं को देखकर बारहों के साथ बैतनिय्याह गया, क्योंकि सांझ हो गई थी।
12 दूसरे दिन जब वे बैतनिय्याह से निकले तो उसको भूख लगी। 13 और वह दूर से अंजीर का एक हरा पेड़ देखकर निकट गया, कि क्या जाने उसमें कुछ पाए: पर पत्तों को छोड़ कुछ न पाया; क्योंकि फल का समय न था। 14 इस पर उसने उससे कहा, “अब से कोई तेरा फल कभी न खाए।” और उसके चेले सुन रहे थे।
15 फिर वे यरूशलेम में आए, और वह मन्दिर में गया; और वहाँ जो लेन-देन कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा, और सर्राफों के मेज़ें और कबूतर के बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं।
16 और मन्दिर में से होकर किसी को बर्तन लेकर आने-जाने न दिया। 17 और उपदेश करके उनसे कहा, “क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।” (लूका 19:46, यिर्म. 7:11) 18 यह सुनकर प्रधान याजक और शास्त्री उसके नाश करने का अवसर ढूँढ़ने लगे; क्योंकि उससे डरते थे, इसलिए कि सब लोग उसके उपदेश से चकित होते थे। 19 और सांझ होते ही वे नगर से बाहर चले गए।
20 फिर भोर को जब वे उधर से जाते थे तो उन्होंने उस अंजीर के पेड़ को जड़ तक सूखा हुआ देखा। 21 पतरस को वह बात स्मरण आई, और उसने उससे कहा, “हे रब्बी*, देख! यह अंजीर का पेड़ जिसे तूने श्राप दिया था सूख गया है।” 22 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “परमेश्वर पर विश्वास रखो। 23 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे, ‘तू उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़,’ और अपने मन में सन्देह न करे, वरन् विश्वास करे, कि जो कहता हूँ वह हो जाएगा, तो उसके लिये वही होगा। 24 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कुछ तुम प्रार्थना करके माँगो तो विश्वास कर लो कि तुम्हें मिल गया, और तुम्हारे लिये हो जाएगा। 25 और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थना करते हो, तो यदि तुम्हारे मन में किसी की ओर से कुछ विरोध हो, तो क्षमा करो: इसलिए कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करे। 26 परन्तु यदि तुम क्षमा न करो तो तुम्हारा पिता भी जो स्वर्ग में है, तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा।”
27 वे फिर यरूशलेम में आए, और जब वह मन्दिर में टहल रहा था तो प्रधान याजक और शास्त्री और पुरनिए उसके पास आकर पूछने लगे। 28 “तू ये काम किस अधिकार से करता है? और यह अधिकार तुझे किसने दिया है कि तू ये काम करे?” 29 यीशु ने उनसे कहा, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; मुझे उत्तर दो, तो मैं तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ। 30 यूहन्ना का बपतिस्मा क्या स्वर्ग की ओर से था या मनुष्यों की ओर से था? मुझे उत्तर दो।” 31 तब वे आपस में विवाद करने लगे कि यदि हम कहें ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह कहेगा, ‘फिर तुम ने उसका विश्वास क्यों नहीं की?’ 32 और यदि हम कहें, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तो लोगों का डर है, क्योंकि सब जानते हैं कि यूहन्ना सचमुच भविष्यद्वक्ता था। 33 तब उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं भी तुम को नहीं बताता, कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ।”
यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम के लिए अग्रसर हैं।
"धर्मशास्त्र में लिखा है कि परमेश्वर ने कहा, "मैं चाहता हूँ कि मेरा घर वह स्थान कहलाए जहाँ सब जातियों के लोग प्रार्थना करने आ सकें, "परन्तु तुम डाकुओं ने इसे एक ऐसी गुफा बना दिया जहाँ तुम छिप सकते हो! तुम जानते ही हो।" (: )
वैकल्पिक अनुवाद, "वह अंजीर का पेड़ जड़ तक सूख कर नष्ट हो गया था।"
"ये काम" अर्थात यीशु द्वारा विक्रेताओं की चौकियां उलटना और उनके द्वारा सिखाई गई और की गई बातों के विरुद्ध बोलेगा।
वैकल्पिक अनुवाद, "तुझे इसका अधिकार नहीं है क्योंकि हमने तुझे यह अधिकार नहीं दिया है।"
यद्यपि यीशु इस प्रश्न का उत्तर जानता था परन्तु वह धर्म-गुरुओं द्वारा उससे प्रश्न करने के तर्क को परखना चाहता था।
यीशु ने उन्हें उसके लिए गदही का बच्चा लाने को कहा उस पर किसी ने सवारी नहीं की थी।
कुछ लोगों ने उनसे पूछा कि वे गदही के बच्चे को क्यों खोज रहे हैं तो उन्होंने वही कहा जो यीशु ने उनसे कहा था और लोगों ने उन्हें जाने दिया।
लोगों ने मार्ग में अपने कपड़े बिछाए और खेतों में से डालियां काट डालीं।
लोग पुकारने लगे कि उनके पिता दाऊद का राज्य आ रहा है।
यीशु सब कुछ देखता हुआ बैतनिय्याह गया।
यीशु ने अंजीर के वृक्ष से कहा, "अब से कोई तेरा फल कभी न खाए"।
यीशु ने मन्दिर में से व्यापारियों को बाहर निकाला और किसी को सामान लेकर आने-जाने न दिया।
यीशु ने कहा कि मन्दिर सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर है।
यीशु ने कहा कि उन्होंने मन्दिर को डाकुओं की गुफा बना दिया है।
महायाजक और शास्त्री यीशु की हत्या का षड्यंत्र रच रहे थे।
यीशु ने जिस अंजीर के पेड़ को श्राप दिया था वह जड़ से सूख गया था।
यीशु ने कहा कि हम प्रार्थना में जो भी मांगते है तो विश्वास करें कि वह मिल गया और ऐसा ही होगा।
यीशु ने कहा कि यदि किसी के लिए हमारे मन में विरोध है तो हम उसे क्षमा करें कि हमारा स्वर्गीय पिता भी हमारे अपराध क्षमा करें।
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यीशु ने उनसे पूछा कि यूहन्ना का बपतिस्मा स्वर्ग से था या मनुष्य से।
?
वे उत्तर नहीं देना चाहते थे क्योंकि उन्हें मनुष्य का डर भी था जो उसे भविष्यद्वक्ता मानते थे।
1 फिर वह दृष्टान्तों में उनसे बातें करने लगा: “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा, और रस का कुण्ड खोदा, और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। 2 फिर फल के मौसम में उसने किसानों के पास एक दास को भेजा कि किसानों से दाख की बारी के फलों का भाग ले। 3 पर उन्होंने उसे पकड़कर पीटा और खाली हाथ लौटा दिया। 4 फिर उसने एक और दास को उनके पास भेजा और उन्होंने उसका सिर फोड़ डाला और उसका अपमान किया। 5 फिर उसने एक और को भेजा, और उन्होंने उसे मार डाला; तब उसने और बहुतों को भेजा, उनमें से उन्होंने कितनों को पीटा, और कितनों को मार डाला। 6 अब एक ही रह गया था, जो उसका प्रिय पुत्र था; अन्त में उसने उसे भी उनके पास यह सोचकर भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। 7 पर उन किसानों ने आपस में कहा; ‘यही तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, तब विरासत हमारी हो जाएगी।’ 8 और उन्होंने उसे पकड़कर मार डाला, और दाख की बारी के बाहर फेंक दिया।
9 “इसलिए दाख की बारी का स्वामी क्या करेगा? वह आकर उन किसानों का नाश करेगा, और दाख की बारी औरों को दे देगा। 10 क्या तुम ने पवित्रशास्त्र में यह वचन नहीं पढ़ा:
‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था,
वही कोने का सिरा* हो गया;
11 यह प्रभु की ओर से हुआ,
और हमारी दृष्टि में अद्भुत है’!” (भज. 118:23)
12 तब उन्होंने उसे पकड़ना चाहा; क्योंकि समझ गए थे, कि उसने हमारे विरोध में यह दृष्टान्त कहा है: पर वे लोगों से डरे; और उसे छोड़कर चले गए।
13 तब उन्होंने उसे बातों में फँसाने के लिये कई एक फरीसियों और हेरोदियों को उसके पास भेजा। 14 और उन्होंने आकर उससे कहा, “हे गुरु, हम जानते हैं, कि तू सच्चा है, और किसी की परवाह नहीं करता; क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता, परन्तु परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से बताता है। तो क्या कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं? 15 हम दें, या न दें?” उसने उनका कपट जानकर उनसे कहा, “मुझे क्यों परखते हो? एक दीनार मेरे पास लाओ, कि मैं देखूँ।” 16 वे ले आए, और उसने उनसे कहा, “यह मूर्ति और नाम किस का है?” उन्होंने कहा, “कैसर का।” 17 यीशु ने उनसे कहा, “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्वर का है परमेश्वर को दो।” तब वे उस पर बहुत अचम्भा करने लगे।
18 फिर सदूकियों* ने भी, जो कहते हैं कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, उसके पास आकर उससे पूछा, 19 “हे गुरु, मूसा ने हमारे लिये लिखा है, कि यदि किसी का भाई बिना सन्तान मर जाए, और उसकी पत्नी रह जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी से विवाह कर ले और अपने भाई के लिये वंश उत्पन्न करे। (उत्प. 38:8, व्य. 25:5) 20 सात भाई थे। पहला भाई विवाह करके बिना सन्तान मर गया। 21 तब दूसरे भाई ने उस स्त्री से विवाह कर लिया और बिना सन्तान मर गया; और वैसे ही तीसरे ने भी। 22 और सातों से सन्तान न हुई। सब के पीछे वह स्त्री भी मर गई। 23 अतः जी उठने पर वह उनमें से किस की पत्नी होगी? क्योंकि वह सातों की पत्नी हो चुकी थी।”
24 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम इस कारण से भूल में नहीं पड़े हो कि तुम न तो पवित्रशास्त्र ही को जानते हो, और न परमेश्वर की सामर्थ्य को? 25 क्योंकि जब वे मरे हुओं में से जी उठेंगे, तो उनमें विवाह-शादी न होगी; पर स्वर्ग में दूतों के समान होंगे। 26 मरे हुओं के जी उठने के विषय में क्या तुम ने मूसा की पुस्तक* में झाड़ी की कथा में नहीं पढ़ा कि परमेश्वर ने उससे कहा: ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ?’ 27 परमेश्वर मरे हुओं का नहीं, वरन् जीवितों का परमेश्वर है, तुम बड़ी भूल में पड़े हो।”
28 और शास्त्रियों में से एक ने आकर उन्हें विवाद करते सुना, और यह जानकर कि उसने उन्हें अच्छी रीति से उत्तर दिया, उससे पूछा, “सबसे मुख्य आज्ञा कौन सी है?” 29 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है: ‘हे इस्राएल सुन, प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है। 30 और तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से, और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।’ 31 और दूसरी यह है, ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।’ इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।” 32 शास्त्री ने उससे कहा, “हे गुरु, बहुत ठीक! तूने सच कहा कि वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं। (यशा. 45:18, व्य. 4:35) 33 और उससे सारे मन, और सारी बुद्धि, और सारे प्राण, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना; और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमबलियों और बलिदानों से बढ़कर है।” (व्य. 6:4-5, लैव्य. 19:18, होशे 6:6) 34 जब यीशु ने देखा कि उसने समझ से उत्तर दिया, तो उससे कहा, “तू परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं।” और किसी को फिर उससे कुछ पूछने का साहस न हुआ।
35 फिर यीशु ने मन्दिर में उपदेश करते हुए यह कहा, “शास्त्री क्यों कहते हैं, कि मसीह दाऊद का पुत्र है? 36 दाऊद ने आप ही पवित्र आत्मा में होकर कहा है:
‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा, “मेरे दाहिने बैठ,
जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों की चौकी न कर दूँ।”’ (भज. 110:1)
37 दाऊद तो आप ही उसे प्रभु कहता है, फिर वह उसका पुत्र कहाँ से ठहरा?” और भीड़ के लोग उसकी आनन्द से सुनते थे।
38 उसने अपने उपदेश में उनसे कहा, “शास्त्रियों से सावधान रहो, जो लम्बे वस्त्र पहने हुए फिरना और बाजारों में नमस्कार, 39 और आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन और भोज में मुख्य-मुख्य स्थान भी चाहते हैं। 40 वे विधवाओं के घरों को खा जाते हैं, और दिखाने के लिये बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हैं, ये अधिक दण्ड पाएँगे।”
41 और वह मन्दिर के भण्डार के सामने बैठकर देख रहा था कि लोग मन्दिर के भण्डार में किस प्रकार पैसे डालते हैं, और बहुत धनवानों ने बहुत कुछ डाला। 42 इतने में एक गरीब विधवा ने आकर दो दमड़ियाँ, जो एक अधेले के बराबर होती है, डाली। 43 तब उसने अपने चेलों को पास बुलाकर उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से इस गरीब विधवा ने सबसे बढ़कर डाला है; 44 क्योंकि सब ने अपने धन की बढ़ती में से डाला है, परन्तु इसने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात् अपनी सारी जीविका डाल दी है।”
उस स्वामी ने दाख को संभालने के लिए लोगों का प्रबन्ध किया।
वैकल्पिक अनुवाद, "इसलिए मैं तुम्हें बताता हूँ कि दाख की बारी का स्वामी क्या करेगा..."
वैकल्पिक अनुवाद, "अब इन शब्दों पर सावधानी-पूर्वक ध्यान दो, जिन्हें तुमने धर्मशास्त्र में पढ़ा है।"
"मैं जानता हूँ कि तुम मेरे मुंह से कुछ गलत निकलवाने का प्रयास कर रहे हो कि मुझ पर दोष लगा पाओ।"
दिन भर की मजदूरी में मिलने वाला सिक्का।
वैकल्पिक अनुवाद "पुनरूत्थान के समय जब वे फिर जी उठेंगे तब उसका सातों भाइयों की पत्नी होना संभव नहीं।"
वैकल्पिक अनुवाद "तुम भ्रमित हो क्योंकि....परमेश्वर का सामर्थ्य"
"परमेश्वर उन्हें जीवित करेगा"
वैकल्पिक अनुवाद, "यहूदी व्यवस्था के ये शिक्षक यीशु को मात्र दाऊद का वंशज कहते हैं तो वे गलती करते हैं।"
"पुत्र" शब्द यहां वंश के संदर्भ में काम में लिया गया है।
वैकल्पिक अनुवाद, "तो वह दाऊद का पुत्र नहीं हो सकता!"
"सबसे कम मूल्य के दो सिक्के"-मुद्रा में सबसे कम मूल्य के दो सिक्के
देखें कि आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है।
यह मन्दिर का एक दान पात्र था जो सबके लिए था।
बहुतायात में से
"कमी" या "दरिद्रता में से"
दाख की बारी लगाकर और ठेका देकर उसका स्वामी यात्रा पर चला गया।
किसानों ने स्वामी के सेवकों को मारा पीटा और हत्या कर दी।
स्वामी ने अन्त में अपने प्रिय पुत्र को भेजा।
किसानों ने उसे पकड़ कर मार डाला और बाहर फेंक दिया।
दाख की बारी का स्वामी आयेगा और उन किसानों का सर्वनाश करके अपनी बारी किसी और को दे देगा।
जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था वही कोने का पत्थर हुआ।
उन्होंने यीशु से पूछा कि कैसर को कर देना क्या उचित है।
यीशु ने उनसे कहा की जो कैसर का है वह कैसर को दो और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो।
सदूकी पुनरुत्थान में विश्वास नहीं करते थे।
उस स्त्री के सात पति हुए।
?
यीशु ने कहा कि सदूकी न तो धर्मशास्त्र को जानते हैं और न ही परमेश्वर के सामर्थ्य को समझते हैं।
यीशु ने कहा कि पुनरुत्थान में मनुष्य विवाह नहीं करेंगे वे स्वर्गदूतों के समान होंगे।
यीशु ने मूसा की पुस्तक का संदर्भ दिया जहां परमेश्वर स्वयं को अब्राहम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर कहता है अर्थात वे जीवित हैं।
यीशु ने कहा कि सबसे बड़ी आज्ञा है, तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से, अपने सारे प्राण से और अपनी सारी बुद्धि से और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।
यीशु ने कहा कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख, दूसरी आज्ञा है।
यीशु ने उनसे पूछा कि मसीह यदि दाऊद की सन्तान है तो दाऊद उसे प्रभु क्यों कहता है।
यीशु ने कहा कि शास्त्री मनुष्यों से प्रशंसा पाना चाहते थे परन्तु वे विधवाओं के घरों को खा जाते हैं और दिखाने के लिए बड़ी देर तक प्रार्थना करते है।
यीशु ने कहा कि उसका दान बड़ा है क्योंकि उसने अपनी गरीबी में से दिया जबकि अन्यों ने अपनी बहुतायत में से दिया था।
1 जब वह मन्दिर से निकल रहा था, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, देख, कैसे-कैसे पत्थर और कैसे-कैसे भवन हैं!” 2 यीशु ने उससे कहा, “क्या तुम ये बड़े-बड़े भवन देखते हो: यहाँ पत्थर पर पत्थर भी बचा न रहेगा जो ढाया न जाएगा।”
3 जब वह जैतून के पहाड़ पर मन्दिर के सामने बैठा था, तो पतरस और याकूब और यूहन्ना और अन्द्रियास ने अलग जाकर उससे पूछा, 4 “हमें बता कि ये बातें कब होंगी? और जब ये सब बातें पूरी होने पर होंगी उस समय का क्या चिन्ह होगा?” 5 यीशु उनसे कहने लगा, “सावधान रहो* कि कोई तुम्हें न भरमाए। 6 बहुत सारे मेरे नाम से आकर कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और बहुतों को भरमाएँगे। 7 और जब तुम लड़ाइयाँ, और लड़ाइयों की चर्चा सुनो, तो न घबराना; क्योंकि इनका होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा। 8 क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा। और हर कहीं भूकम्प होंगे, और अकाल पड़ेंगे। यह तो पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा। (यिर्म. 6:24)
9 “परन्तु तुम अपने विषय में सावधान रहो, क्योंकि लोग तुम्हें सभाओं में सौंपेंगे और तुम आराधनालयों में पीटे जाओगे, और मेरे कारण राज्यपालों और राजाओं के आगे खड़े किए जाओगे, ताकि उनके लिये गवाही हो। 10 पर अवश्य है कि पहले सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाए। 11 जब वे तुम्हें ले जाकर सौंपेंगे, तो पहले से चिन्ता न करना, कि हम क्या कहेंगे। पर जो कुछ तुम्हें उसी समय बताया जाए, वही कहना; क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो, परन्तु पवित्र आत्मा है। 12 और भाई को भाई, और पिता को पुत्र मरने के लिये सौंपेंगे, और बच्चे माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे। (लूका 21:16, मीका 7:6) 13 और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे; पर जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।
14 “अतः जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु* को जहाँ उचित नहीं वहाँ खड़ी देखो, (पढ़नेवाला समझ ले) तब जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जाएँ। (दानि. 9:27, दानि. 12:11) 15 जो छत पर हो, वह अपने घर से कुछ लेने को नीचे न उतरे और न भीतर जाए। 16 और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने के लिये पीछे न लौटे। 17 उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय! हाय! 18 और प्रार्थना किया करो कि यह जाड़े में न हो। 19 क्योंकि वे दिन ऐसे क्लेश के होंगे, कि सृष्टि के आरम्भ से जो परमेश्वर ने रची है अब तक न तो हुए, और न कभी फिर होंगे। (मत्ती 24:21) 20 और यदि प्रभु उन दिनों को न घटाता, तो कोई प्राणी भी न बचता; परन्तु उन चुने हुओं के कारण जिनको उसने चुना है, उन दिनों को घटाया। 21 उस समय यदि कोई तुम से कहे, ‘देखो, मसीह यहाँ है!’ या ‘देखो, वहाँ है!’ तो विश्वास न करना। 22 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें। (मत्ती 24:24) 23 पर तुम सावधान रहो देखो, मैंने तुम्हें सब बातें पहले ही से कह दी हैं।
24 “उन दिनों में, उस क्लेश के बाद सूरज अंधेरा हो जाएगा, और चाँद प्रकाश न देगा; 25 और आकाश से तारागण गिरने लगेंगे, और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। (प्रका. 6:13, यशा. 34:4) 26 तब लोग मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और महिमा के साथ बादलों में आते देखेंगे। (दानि. 7:13, प्रका. 1:17) 27 उस समय वह अपने स्वर्गदूतों* को भेजकर, पृथ्वी के इस छोर से आकाश के उस छोर तक चारों दिशा से अपने चुने हुए लोगों को इकट्ठा करेगा। (व्य. 30:4, मत्ती 24:31)
28 “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो जब उसकी डाली कोमल हो जाती; और पत्ते निकलने लगते हैं; तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। 29 इसी रीति से जब तुम इन बातों को होते देखो, तो जान लो, कि वह निकट है वरन् द्वार ही पर है। 30 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो लेंगी, तब तक यह लोग जाते न रहेंगे। 31 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी। (यशा. 40:8, लूका 21:33)
32 “उस दिन या उस समय के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र; परन्तु केवल पिता। 33 देखो, जागते और प्रार्थना करते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा। 34 यह उस मनुष्य के समान दशा है, जो परदेश जाते समय अपना घर छोड़ जाए, और अपने दासों को अधिकार दे: और हर एक को उसका काम जता दे, और द्वारपाल को जागते रहने की आज्ञा दे। 35 इसलिए जागते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का स्वामी कब आएगा, सांझ को या आधी रात को, या मुर्गे के बाँग देने के समय या भोर को। 36 ऐसा न हो कि वह अचानक आकर तुम्हें सोते पाए। 37 और जो मैं तुम से कहता हूँ, वही सबसे कहता हूँ: जागते रहो।”
वैकल्पिक अनुवाद, "तू देख सकता है कि यह कैसे विशाल भवन हैं।"
"झूठा समाचार" या "इधर-उधर की बात"
"घृणित मूर्ति पूजा" या "दुष्टता की निरर्थकता"
"परमेश्वर सूर्य को अंधकारपूर्ण कर देगा"
"परमेश्वर आकाश की शक्तियों को हिला देगा"
यीशु बल देकर कह रहा है कि वह उन्हें जो भी शिक्षा दे रहा है, वह वास्तव में होकर रहेंगी, ठीक वैसे ही जैसा उसने वर्णन किया है।
"समाप्त हो जायेंगे"
सामान्यतः भोर के समय सबसे पहले बोलने वाली चिड़िया
"बोलने के समय" "या"
यीशु ने कहा कि मन्दिर के पत्थरों में एक भी नहीं रहेगा जो ढाया न गया हो।
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यीशु ने चेलों से कहा कि वे सावधान रहें अन्यथा कोई उन्हें भरमाए।
यीशु ने कहा कि पीड़ाओं के आरंभ में युद्ध होंगे, युद्ध की चर्चा होगी, भूकंप होंगे और अकाल पड़ेंगे।
यीशु ने कहा कि चेले महासभाओं में सौंपे जायेंगे, आराधनालयों में पीटे जायेंगे, हाकिमों और राजाओं के सामने खड़े किए जायेंगे कि उनके लिए गवाही हो।
यीशु ने कहा कि पहले सुसमाचार का सब जातियों में प्रचार होना आवश्यक है।
यीशु ने कहा कि एक परिवार के सदस्य एक दूसरे को मरवा डालेंगे।
यीशु ने कहा कि जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।
यीशु ने कहा कि घृणित वस्तु देख कर, यहूदियावासी पर्वतों पर भाग जाएं।
यीशु ने कहा कि चुने हुओं के कारण परमेश्वर ने क्लेश का समय घटा दिया है।
यीशु ने कहा कि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता मनुष्यों को भरमाने आएंगे।
सूर्य और चांद अन्धेरा हो जाएंगे आकाश से सितारे गिरेंगे और आकाश की शक्तियां हिलाई जायेंगी।
वे मनुष्य के पुत्र को महान सामर्थ्य और महिमा के साथ बादलों पर आता देखेंगे।
मनुष्य का पुत्र पृथ्वी के इस छोर से आकाश के उस छोर तक अपने चुने हुओं को इकट्ठा करेगा।
यीशु ने कहा कि जब तक ये सब बातें न हो लें तब तक यह पीढ़ी समाप्त नहीं होगी।
यीशु ने कहा कि उसका वचन कभी नहीं टलेगा।
यीशु ने कहा कि पिता को छोड़ उस दिन और समय को कोई नहीं जानता है।
यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे जागते रहें और सावधान रहें।
1 दो दिन के बाद फसह* और अख़मीरी रोटी का पर्व होनेवाला था। और प्रधान याजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उसे कैसे छल से पकड़कर मार डालें। 2 परन्तु कहते थे, “पर्व के दिन नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोगों में दंगा मचे।”
3 जब वह बैतनिय्याह* में शमौन कोढ़ी के घर भोजन करने बैठा हुआ था तब एक स्त्री संगमरमर के पात्र में जटामांसी का बहुमूल्य शुद्ध इत्र लेकर आई; और पात्र तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर उण्डेला। 4 परन्तु कुछ लोग अपने मन में झुँझला कर कहने लगे, “इस इत्र का क्यों सत्यनाश किया गया? 5 क्योंकि यह इत्र तो तीन सौ दीनार से अधिक मूल्य में बेचकर गरीबों को बाँटा जा सकता था।” और वे उसको झिड़कने लगे। 6 यीशु ने कहा, “उसे छोड़ दो; उसे क्यों सताते हो? उसने तो मेरे साथ भलाई की है। 7 गरीब तुम्हारे साथ सदा रहते हैं और तुम जब चाहो तब उनसे भलाई कर सकते हो; पर मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा। (व्य. 15:11) 8 जो कुछ वह कर सकी, उसने किया; उसने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में पहले से मेरी देह पर इत्र मला है। 9 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम की चर्चा भी उसके स्मरण में की जाएगी।”
10 तब यहूदा इस्करियोती जो बारह में से एक था, प्रधान याजकों के पास गया, कि उसे उनके हाथ पकड़वा दे। 11 वे यह सुनकर आनन्दित हुए, और उसको रुपये देना स्वीकार किया, और यह अवसर ढूँढ़ने लगा कि उसे किसी प्रकार पकड़वा दे।
12 अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, जिसमें वे फसह का बलिदान करते थे, उसके चेलों ने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है, कि हम जाकर तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करे?” (निर्ग. 12:6, निर्ग. 12:15) 13 उसने अपने चेलों में से दो को यह कहकर भेजा, “नगर में जाओ, और एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा, उसके पीछे हो लेना। 14 और वह जिस घर में जाए उस घर के स्वामी से कहना: ‘गुरु कहता है, कि मेरी पाहुनशाला जिसमें मैं अपने चेलों के साथ फसह खाऊँ कहाँ है?’ 15 वह तुम्हें एक सजी-सजाई, और तैयार की हुई बड़ी अटारी दिखा देगा, वहाँ हमारे लिये तैयारी करो।” 16 तब चेले निकलकर नगर में आए और जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया, और फसह तैयार किया। 17 जब सांझ हुई, तो वह बारहों के साथ आया। 18 और जब वे बैठे भोजन कर रहे थे, तो यीशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम में से एक, जो मेरे साथ भोजन कर रहा है, मुझे पकड़वाएगा।” (भज. 41:9) 19 उन पर उदासी छा गई और वे एक-एक करके उससे कहने लगे, “क्या वह मैं हूँ?” 20 उसने उनसे कहा, “वह बारहों में से एक है, जो मेरे साथ थाली में हाथ डालता है। 21 क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो, जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य पर हाय जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है! यदि उस मनुष्य का जन्म ही न होता तो उसके लिये भला होता।”
22 और जब वे खा ही रहे थे तो उसने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और उन्हें दी, और कहा, “लो, यह मेरी देह है।” 23 फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें दिया; और उन सब ने उसमें से पीया। 24 और उसने उनसे कहा, “यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये बहाया जाता है। (निर्ग. 24:8, जक. 9:11) 25 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि दाख का रस उस दिन तक फिर कभी न पीऊँगा, जब तक परमेश्वर के राज्य में नया न पीऊँ।” 26 फिर वे भजन गाकर बाहर जैतून के पहाड़ पर गए।
27 तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम सब ठोकर खाओगे, क्योंकि लिखा है: ‘मैं चरवाहे को मारूँगा, और भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’ 28 परन्तु मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।” 29 पतरस ने उससे कहा, “यदि सब ठोकर खाएँ तो खाएँ, पर मैं ठोकर नहीं खाऊँगा।” 30 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि आज ही इसी रात को मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझसे मुकर जाएगा।” 31 पर उसने और भी जोर देकर कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी पड़े फिर भी तेरा इन्कार कभी न करूँगा।” इसी प्रकार और सब ने भी कहा।
32 फिर वे गतसमनी नाम एक जगह में आए; और उसने अपने चेलों से कहा, “यहाँ बैठे रहो, जब तक मैं प्रार्थना करूँ। 33 और वह पतरस और याकूब और यूहन्ना को अपने साथ ले गया; और बहुत ही अधीर और व्याकुल होने लगा, 34 और उनसे कहा, “मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मैं मरने पर हूँ: तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो।” (भज. 42:5) 35 और वह थोड़ा आगे बढ़ा, और भूमि पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, कि यदि हो सके तो यह समय मुझ पर से टल जाए। 36 और कहा, “हे अब्बा, हे पिता*, तुझ से सब कुछ हो सकता है; इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले: फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, पर जो तू चाहता है वही हो।” 37 फिर वह आया और उन्हें सोते पा कर पतरस से कहा, “हे शमौन, तू सो रहा है? क्या तू एक घंटे भी न जाग सका? 38 जागते और प्रार्थना करते रहो कि तुम परीक्षा में न पड़ो। आत्मा तो तैयार है, पर शरीर दुर्बल है।” 39 और वह फिर चला गया, और वही बात कहकर प्रार्थना की। 40 और फिर आकर उन्हें सोते पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं; और नहीं जानते थे कि उसे क्या उत्तर दें। 41 फिर तीसरी बार आकर उनसे कहा, “अब सोते रहो और विश्राम करो, बस, घड़ी आ पहुँची; देखो मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। 42 उठो, चलें! देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है!”
43 वह यह कह ही रहा था, कि यहूदा जो बारहों में से था, अपने साथ प्रधान याजकों और शास्त्रियों और प्राचीनों की ओर से एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए तुरन्त आ पहुँची। 44 और उसके पकड़नेवाले ने उन्हें यह पता दिया था, कि जिसको मैं चूमूं वही है, उसे पकड़कर सावधानी से ले जाना। 45 और वह आया, और तुरन्त उसके पास जाकर कहा, “हे रब्बी!” और उसको बहुत चूमा। 46 तब उन्होंने उस पर हाथ डालकर उसे पकड़ लिया। 47 उनमें से जो पास खड़े थे, एक ने तलवार खींचकर महायाजक के दास पर चलाई, और उसका कान उड़ा दिया। 48 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम डाकू जानकर मुझे पकड़ने के लिये तलवारें और लाठियाँ लेकर निकले हो? 49 मैं तो हर दिन मन्दिर में तुम्हारे साथ रहकर उपदेश दिया करता था, और तब तुम ने मुझे न पकड़ा: परन्तु यह इसलिए हुआ है कि पवित्रशास्त्र की बातें पूरी हों।” 50 इस पर सब चेले उसे छोड़कर भाग गए। (भज. 88:18) 51 और एक जवान अपनी नंगी देह पर चादर ओढ़े हुए उसके पीछे हो लिया; और लोगों ने उसे पकड़ा। 52 पर वह चादर छोड़कर नंगा भाग गया।
53 फिर वे यीशु को महायाजक के पास ले गए; और सब प्रधान याजक और पुरनिए और शास्त्री उसके यहाँ इकट्ठे हो गए। 54 पतरस दूर ही दूर से उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन के भीतर तक गया, और प्यादों के साथ बैठ कर आग तापने लगा। 55 प्रधान याजक और सारी महासभा यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में गवाही की खोज में थे, पर न मिली। 56 क्योंकि बहुत से उसके विरोध में झूठी गवाही दे रहे थे, पर उनकी गवाही एक सी न थी। 57 तब कितनों ने उठकर उस पर यह झूठी गवाही दी, 58 “हमने इसे यह कहते सुना है ‘मैं इस हाथ के बनाए हुए मन्दिर को ढा दूँगा, और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा, जो हाथ से न बना हो’।” 59 इस पर भी उनकी गवाही एक सी न निकली। 60 तब महायाजक ने बीच में खड़े होकर यीशु से पूछा; “तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” 61 परन्तु वह मौन साधे रहा, और कुछ उत्तर न दिया। महायाजक ने उससे फिर पूछा, “क्या तू उस परमधन्य का पुत्र मसीह है?” 62 यीशु ने कहा, “हाँ मैं हूँ: और तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों के साथ आते देखोगे।” (दानि. 7:13, भज. 110:1) 63 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन है? (मत्ती 26:65) 64 तुम ने यह निन्दा सुनी। तुम्हारी क्या राय है?” उन सब ने कहा यह मृत्यु दण्ड के योग्य है। (लैव्य. 24:16) 65 तब कोई तो उस पर थूकने, और कोई उसका मुँह ढाँपने और उसे घूँसे मारने, और उससे कहने लगे, “भविष्यद्वाणी कर!” और पहरेदारों ने उसे पकड़कर थप्पड़ मारे।
66 जब पतरस नीचे आँगन में था, तो महायाजक की दासियों में से एक वहाँ आई। 67 और पतरस को आग तापते देखकर उस पर टकटकी लगाकर देखा और कहने लगी, “तू भी तो उस नासरी यीशु के साथ था।” 68 वह मुकर गया, और कहा, “मैं तो नहीं जानता और नहीं समझता कि तू क्या कह रही है”। फिर वह बाहर डेवढ़ी में गया; और मुर्गे ने बाँग दी। 69 वह दासी उसे देखकर उनसे जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी, कि “यह उनमें से एक है।” 70 परन्तु वह फिर मुकर गया। और थोड़ी देर बाद उन्होंने जो पास खड़े थे फिर पतरस से कहा, “निश्चय तू उनमें से एक है; क्योंकि तू गलीली भी है।” 71 तब वह स्वयं को कोसने और शपथ खाने लगा, “मैं उस मनुष्य को, जिसकी तुम चर्चा करते हो, नहीं जानता।” 72 तब तुरन्त दूसरी बार मुर्गे ने बाँग दी पतरस को यह बात जो यीशु ने उससे कही थी याद आई, “मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” वह इस बात को सोचकर रोने लगा।
इस व्यक्ति को पहले कोढ़ था परन्तु अब वह स्वस्थ था।
यह एक नर्म "सफेद पत्थर" होता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "ऐसा बहुमूल्य इत्र को व्यर्थ गंवाने में तर्क की कोई बात नहीं है।"
"हम इस इत्र को बेच सकते थे" या "वह इसे बेच सकती थी"
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें उसे दुःख नहीं देना है।"
देखें आपने इसका अनुवाद कैसे किया है।
उनकी प्रथा में भोजन तख्त नीचे होते थे और अतिथियों के लिए भोजन करने हेतु आधा लेटने की स्थिति में गद्दियाँ रखी होती थी।
अर्थात् प्रत्येक शिष्य ने एक के बाद एक उससे पूछा
"निश्चय ही वह मैं तो नहीं जो तुझे पकड़वाने में तेरे बैरियों की सहायता करेगा!" (देखें: और )
भजन भी एक गीत ही होता है। ऐसे समय पर भजन संहिता में से एक भजन गाना उनकी परम्परा थी।
जैतून पर्वत पर गतसमनी की वाटिका में यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को सतर्क रहकर प्रार्थना के लिए छोड़ देता है।
"उसे जिस कष्ट का अनुभव हो रहा था उसे सहन करने की शक्ति उसे मिले।"
"अब्बा" एक यूनानी शब्द है जिसका उपयोग बच्चे अपने पिता के लिए करते थे। यह घनिष्ठ सम्बन्ध को दर्शाता है। क्योंकि पिता ही को संबोधित करता है, इस यूनानी शब्द का ही उपयोग करना महत्वपूर्ण है, "अब्बा"
कटोरा परमेश्वर के प्रकोप का संदर्भ देता है जिसे यीशु को सहन करना है।
यीशु यहूदा को छोड़ अपने सब शिष्यों के साथ गतसमनी की वाटिका ही में है।
"पतरस, याकूब और यूहन्ना को उसने सोते पाया।"
"शमौन, मैंने तुम्हें जागते रहने को कहा और तू सो रहा है"
"तू सजग न रह पाया।"
"तुम्हारा शरीर तुम्हारे मन के अनुसार नहीं चल सकता है।"
"देह"
यीशु यहूदा को छोड़ अपने सब शिष्यों के साथ गतसमनी की वाटिका ही में है।
उन्हें देखा कि वे सो रहे हैं "पतरस, यूहन्ना और याकूब को सोते पाया।"
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम अब भी सो रहे हो! विश्राम कर रहे हो।"
यीशु यहूदा को छोड़ अन्य सब शिष्यों के साथ गतसमनी में है।
"बन्दी बना लिया"
महायाजक को, शास्त्रियों और फरीसियों द्वारा भेजी गई भीड़ ने यीशु को गतसमनी में पकड़ लिया है।
"तुम मुझे पकड़ने के लिए तलवारें और लाठियां लेकर आए हो जैसे कि किसी डाकू को पकड़ने आए हो।"
महायाजकों, शास्त्रियों और पुरनियों द्वारा भेजे गए दल ने यीशु को बन्दी बना लिया है।
सन की चादर
महायाजकों, शास्त्रियों और पुरनियों द्वारा भेजे गए दल ने यीशु को बन्दी बना लिया है।
यीशु बन्दी बनाकर यहूदी महायाजक के समक्ष उपस्थित किया गया।
"हम" अर्थात वे जो यीशु के विरुद्ध झूठी गवाही दे रहे थे
यीशु को बन्दी बनाकर महायाजक के समक्ष लाया गया है।
"महायाजकों, शास्त्रियों और पुरनियों के मध्य खड़े होकर"
पुराने नियम में परमेश्वर स्वयं को यही कहता था।
यीशु को बन्दी बनाकर महायाजक के समक्ष लाया गया है।
यीशु की बात सुनकर क्रोधित होने का संकेत- निन्दा समझा।
"महासभा के सब सदस्यों ने यीशु को दोषी ठहराया।"
यीशु को बन्दी बनाकर महायाजक के समक्ष लाया गया है।
अब तक पतरस एक बार यीशु का इन्कार कर चुका है।
"शिष्यों में से एक"
आग में ताप रहे लोगों ने पतरस को देखकर कहा कि वह भी पतरस यीशु के साथ था।
रोने का अर्थ है कि वह शोकातुर या "पूर्णतः सदमें में था"
देखें कि आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है।
"कहेगा कि मुझे नहीं जानता"
वे षड्यंत्र रच रहे थे कि यीशु को चुपचाप से पकड़ कर मार डालें।
वे डरते थे कि लोगों में बलवा हो जायेगा।
एक स्त्री ने बहुमूल्य इत्र यीशु के सिर पर उण्डेला।
कुछ लोग सोच रहे थे कि वह इस इत्र को बेचकर गरीबों में पैसा बांट देती तो अच्छा होता।
यीशु ने कहा कि उसने यीशु की देह को दफ़न के लिए तैयार किया है।
यीशु ने उससे प्रतिज्ञा की कि संसार में जहां भी सुसमाचार प्रचार किया जायेगा, वहाँ उसके इस काम की चर्चा उसके स्मरण में की जायेगी।
यहूदा इस्करियोती महायाजकों के पास गया कि यीशु को पकड़वा दे।
यीशु ने उनसे कहा, नगर में जाने पर वे एक मनुष्य को जल का घड़ा उठाए हुए देखेंगे, उससे पूछना कि अतिथि कक्ष कहाँ है कि वे फसह का भोज खाएं।
यीशु ने कहा कि उसके साथ भोजन करने वालों में से एक उससे विश्वासघात करेगा।
यीशु ने कहा कि उसके साथ कटोरे में रोटी डालने वाला उसे पकड़वायेगा।
यीशु ने कहा कि वह जन्म ही न लेता तो अच्छा होता।
यीशु ने कहा, "लो यह मेरी देह है"।
यीशु ने कहा, "यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिए बहाया जाता है"।
यीशु ने कहा कि वह दाख का रस उस दिन तक फिर कभी नहीं पीयेगा, जब तक परमेश्वर के राज्य में नया न पीए।
यीशु ने भविष्यद्वाणी की कि उसके चेले सब उसे छोड़ कर भाग जायेंगे।
यीशु ने पतरस से कहा कि मुर्गे के दो बार बाँग देने से पूर्व वह तीन बार उसका इन्कार करेगा।
यीशु ने उससे कहा कि वे वहाँ जागते रहें।
यीशु ने प्रार्थना की कि हो सके तो वह समय टल जाए।
यीशु पिता की इच्छा पूरी करने को तत्पर था।
यीशु ने तीनों चेलों को सोता पाया।
यीशु ने तीनों चेलों को सोता पाया।
यीशु ने तीनों चेलों को सोता पाया।
यहूदा ने यीशु को चूम कर प्रकट किया कि वह यीशु है।
यीशु ने उनसे कहा, क्या तुम डाकू जानकर मुझे पकड़ने के लिए तलवारें और लाठी लेकर निकले हो? इससे धर्मशास्त्र पूरा होता है।
यीशु के साथी उसे छोड़कर भाग खड़े हुए।
एक जवान अपनी चादर छोड़कर नंगा भाग गया।
पतरस पहरेदारों के साथ आग तापने लगा।
यीशु के विरूद्ध की गई गवाहियां झूठी थी और एक सी नहीं थी।
?
यीशु ने कहा कि वह परमधन्य का पुत्र मसीह है।
महायाजक ने कहा कि यीशु ईशनिन्दा का दोषी है।
उन्होंने उस पर थूका, थप्पड़ और उसे घूंसे मारे।
पतरस ने कहा कि वह उस दासी के आरोप को न तो समझ रहा था और न ही जानता था।
पतरस धिक्कारने और शपथ खाने लगा कि वह यीशु को नहीं जानता है।
पतरस ने जब तीसरी बार इन्कार किया तब मुर्गे ने दूसरी बार बांग दी।
मुर्गे की बांग सुनकर पतरस रोने लगा।
1 और भोर होते ही तुरन्त प्रधान याजकों, प्राचीनों, और शास्त्रियों ने वरन् सारी महासभा ने सलाह करके यीशु को बन्धवाया, और उसे ले जाकर पिलातुस के हाथ सौंप दिया। 2 और पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” उसने उसको उत्तर दिया, “तू स्वयं ही कह रहा है।” 3 और प्रधान याजक उस पर बहुत बातों का दोष लगा रहे थे। 4 पिलातुस ने उससे फिर पूछा, “क्या तू कुछ उत्तर नहीं देता, देख ये तुझ पर कितनी बातों का दोष लगाते हैं?” 5 यीशु ने फिर कुछ उत्तर नहीं दिया; यहाँ तक कि पिलातुस को बड़ा आश्चर्य हुआ।
6 वह उस पर्व में किसी एक बन्धुए को जिसे वे चाहते थे, उनके लिये छोड़ दिया करता था। 7 और बरअब्बा नाम का एक मनुष्य उन बलवाइयों के साथ बन्धुआ था, जिन्होंने बलवे में हत्या की थी। 8 और भीड़ ऊपर जाकर उससे विनती करने लगी, कि जैसा तू हमारे लिये करता आया है वैसा ही कर। 9 पिलातुस ने उनको यह उत्तर दिया, “क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?” 10 क्योंकि वह जानता था, कि प्रधान याजकों ने उसे डाह से पकड़वाया था। 11 परन्तु प्रधान याजकों ने लोगों को उभारा, कि वह बरअब्बा ही को उनके लिये छोड़ दे। 12 यह सुन पिलातुस ने उनसे फिर पूछा, “तो जिसे तुम यहूदियों का राजा कहते हो, उसको मैं क्या करूँ?” 13 वे फिर चिल्लाए, “उसे क्रूस पर चढ़ा दे!” 14 पिलातुस ने उनसे कहा, “क्यों, इसने क्या बुराई की है?” परन्तु वे और भी चिल्लाए, “उसे क्रूस पर चढ़ा दे।” 15 तब पिलातुस ने भीड़ को प्रसन्न करने की इच्छा से, बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए।
16 सिपाही उसे किले के भीतर आँगन में ले गए जो प्रीटोरियुम कहलाता है, और सारे सैनिक दल को बुला लाए। 17 और उन्होंने उसे बैंगनी वस्त्र पहनाया और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, 18 और यह कहकर उसे नमस्कार करने लगे, “हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!” 19 वे उसके सिर पर सरकण्डे मारते, और उस पर थूकते, और घुटने टेककर उसे प्रणाम करते रहे। 20 जब वे उसका उपहास कर चुके, तो उस पर बैंगनी वस्त्र उतारकर उसी के कपड़े पहनाए; और तब उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिये बाहर ले गए।
21 सिकन्दर और रूफुस का पिता शमौन, नाम एक कुरेनी* मनुष्य, जो गाँव से आ रहा था उधर से निकला; उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। 22 और वे उसे गुलगुता* नामक जगह पर, जिसका अर्थ खोपड़ी का स्थान है, लाए। 23 और उसे गन्धरस मिला हुआ दाखरस देने लगे, परन्तु उसने नहीं लिया। 24 तब उन्होंने उसको क्रूस पर चढ़ाया*, और उसके कपड़ों पर चिट्ठियाँ डालकर, कि किस को क्या मिले, उन्हें बाँट लिया। (भज. 22:18) 25 और एक पहर दिन चढ़ा था, जब उन्होंने उसको क्रूस पर चढ़ाया। 26 और उसका दोषपत्र लिखकर उसके ऊपर लगा दिया गया कि “यहूदियों का राजा”। 27 उन्होंने उसके साथ दो डाकू, एक उसकी दाहिनी और एक उसकी बाईं ओर क्रूस पर चढ़ाए। 28 तब पवित्रशास्त्र का वह वचन कि वह अपराधियों के संग गिना गया, पूरा हुआ। (यशा. 53:12) 29 और मार्ग में जानेवाले सिर हिला-हिलाकर और यह कहकर उसकी निन्दा करते थे, “वाह! मन्दिर के ढानेवाले, और तीन दिन में बनानेवाले! (भज. 22:7, भज. 109:25) 30 क्रूस पर से उतर कर अपने आप को बचा ले।” 31 इसी तरह से प्रधान याजक भी, शास्त्रियों समेत, आपस में उपहास करके कहते थे; “इसने औरों को बचाया, पर अपने को नहीं बचा सकता। 32 इस्राएल का राजा, मसीह, अब क्रूस पर से उतर आए कि हम देखकर विश्वास करें।” और जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे, वे भी उसकी निन्दा करते थे।
33 और दोपहर होने पर सारे देश में अंधियारा छा गया, और तीसरे पहर तक रहा। 34 तीसरे पहर यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी?” जिसका अर्थ है, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” 35 जो पास खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, “देखो, यह एलिय्याह को पुकारता है।” 36 और एक ने दौड़कर पनसोख्ता को सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया, और कहा, “ठहर जाओ; देखें, एलिय्याह उसे उतारने के लिये आता है कि नहीं।” (भज. 69:21) 37 तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिये। 38 और मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया। 39 जो सूबेदार उसके सामने खड़ा था, जब उसे यूँ चिल्लाकर प्राण छोड़ते हुए देखा, तो उसने कहा, “सचमुच यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र था!”
40 कई स्त्रियाँ भी दूर से देख रही थीं: उनमें मरियम मगदलीनी, और छोटे याकूब और योसेस की माता मरियम, और सलोमी थीं। 41 जब वह गलील में था तो ये उसके पीछे हो लेती थीं और उसकी सेवा-टहल किया करती थीं; और भी बहुत सी स्त्रियाँ थीं, जो उसके साथ यरूशलेम में आई थीं।
42 जब संध्या हो गई, तो इसलिए कि तैयारी का दिन था, जो सब्त के एक दिन पहले होता है, 43 अरिमतियाह का रहनेवाला यूसुफ* आया, जो प्रतिष्ठित मंत्री और आप भी परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा में था। वह साहस करके पिलातुस के पास गया और यीशु का शव माँगा। 44 पिलातुस ने आश्चर्य किया, कि वह इतना शीघ्र मर गया; और उसने सूबेदार को बुलाकर पूछा, कि “क्या उसको मरे हुए देर हुई?” 45 जब उसने सूबेदार के द्वारा हाल जान लिया, तो शव यूसुफ को दिला दिया। 46 तब उसने एक मलमल की चादर मोल ली, और शव को उतारकर उस चादर में लपेटा, और एक कब्र में जो चट्टान में खोदी गई थी रखा, और कब्र के द्वार पर एक पत्थर लुढ़का दिया। 47 और मरियम मगदलीनी और योसेस की माता मरियम देख रही थीं कि वह कहाँ रखा गया है।
"तू ने तो स्वयं ही कह दिया है"
"मुक्त कर दूँ" या "क्षमा कर दूँ" या "जाने दूँ"
सैनिकों के ठहरने का स्थान
"बहुत से सैनिक" या "अनेक सैनिक"
यह ठट्ठा करने का एक स्वांग था। बैंजनी वस्त्र राजसी वस्त्र था और यीशु को पहनाने का अभिप्राय था, उसका उपहास करना कि वह "यहूदियों का राजा है।"
सैनिक यीशु का ठट्ठा कर रहे थे क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह यहूदियों का राजा है
"हथियार-बन्द चोर"
सिरका
परमेश्वर ने मन्दिर के पर्दे को दो भाग कर दिया।
x
"किसी ने एक कब्र को खोदा हुआ था।"
मलमल का कपड़ा (देखें इसका अनुवाद 14:51-52 में कैसे किया है)
यूसुफ और उसके साथ जो थे उन्होंने यीशु के शव को कहाँ रखा था।
भोर होते ही उन्होंने यीशु को बंधवाया और पिलातुस के हाथ सौंप दिया।
पिलातुस को आश्चर्य हुआ कि यीशु ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।
उस पर्व पर पिलातुस उनके लिए एक अपराधी को छोड़ देता था।
जनसमूह ने विनती की बरअब्बा को छोड़ दिया जाए (वह एक हत्यारा था)।
पिलातुस जानता था कि महायाजकों ने उसे डाह के कारण पकड़वाया है।
जनसमूह ने यहूदियों के राजा को क्रूस पर चढ़ाने की मांग की।
सैनिकों ने यीशु को बैंजनी वस्त्र पहनाया और उसके सिर पर कांटों का ताज रखा।
एक यात्री, शमौन कुरेनी को यीशु का क्रूस उठाने के लिए विवश किया गया।
उस स्थान का नाम गुलगुता था अर्थात खोपड़ी का स्थान था।
सैनिकों ने यीशु के वस्त्रों के लिए चिटिठ्यां डालीं।
सैनिकों ने एक दोष पत्र उसके उपर लगवा दिया जिस पर लिखा था, "यहूदियों का राजा"।
आने जाने वालों ने उसकी निन्दा करते हुए कहा, क्रूस पर से उतर कर अपने आपको बचा ले।
महायाजकों ने कहा कि वह क्रूस पर से उतर आए तो वे उसका विश्वास करेंगे।
महायाजकों ने यीशु को मसीह एवं इस्राएल का राजा कहा।
छठवें घंटे संपूर्ण देश में अन्धकार हो गया था।
यीशु ने पुकार कर कहा, "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?"
मरने से पूर्व यीशु ने ऊंचे स्वर में पुकारा।
यीशु की मृत्यु पर मन्दिर का पर्दा ऊपर से नीचे फटकर दो भाग हो गया।
सूबेदार ने गवाही दी कि वह वास्तव में परमेश्वर का पुत्र था।
यीशु सब्त से एक दिन पूर्व मर गया था।
अरिमतिया के यूसुफ ने पिलातुस से यीशु का पार्थिव देह मांगी और उसे क्रूस से उतारकर मलमल की चादर में लपेटकर कब्र में रखकर कब्र के द्वार पर एक पत्थर लुढ़का दिया।
1 जब सब्त का दिन बीत गया, तो मरियम मगदलीनी, और याकूब की माता मरियम, और सलोमी ने सुगन्धित वस्तुएँ मोल लीं, कि आकर उस पर मलें। 2 सप्ताह के पहले दिन बड़े भोर, जब सूरज निकला ही था, वे कब्र पर आईं, 3 और आपस में कहती थीं, “हमारे लिये कब्र के द्वार पर से पत्थर कौन लुढ़काएगा?” 4 जब उन्होंने आँख उठाई, तो देखा कि पत्थर लुढ़का हुआ है! वह बहुत ही बड़ा था। 5 और कब्र के भीतर जाकर, उन्होंने एक जवान को श्वेत वस्त्र पहने हुए दाहिनी ओर बैठे देखा, और बहुत चकित हुई। 6 उसने उनसे कहा, “चकित मत हो, तुम यीशु नासरी को, जो क्रूस पर चढ़ाया गया था, ढूँढ़ती हो। वह जी उठा है, यहाँ नहीं है; देखो, यही वह स्थान है, जहाँ उन्होंने उसे रखा था। 7 परन्तु तुम जाओ, और उसके चेलों और पतरस से कहो, कि वह तुम से पहले गलील को जाएगा; जैसा उसने तुम से कहा था, तुम वही उसे देखोगे।” 8 और वे निकलकर कब्र से भाग गईं; क्योंकि कँपकँपी और घबराहट उन पर छा गई थीं। और उन्होंने किसी से कुछ न कहा, क्योंकि डरती थीं।
9 सप्ताह के पहले दिन भोर होते ही वह जी उठ कर पहले-पहल मरियम मगदलीनी को जिसमें से उसने सात दुष्टात्माएँ निकाली थीं, दिखाई दिया। 10 उसने जाकर उसके साथियों को जो शोक में डूबे हुए थे और रो रहे थे, समाचार दिया। 11 और उन्होंने यह सुनकर कि वह जीवित है और उसने उसे देखा है, विश्वास न की।
12 इसके बाद वह दूसरे रूप में उनमें से दो को जब वे गाँव की ओर जा रहे थे, दिखाई दिया। 13 उन्होंने भी जाकर औरों को समाचार दिया, परन्तु उन्होंने उनका भी विश्वास न किया।
14 पीछे वह उन ग्यारहों को भी, जब वे भोजन करने बैठे थे दिखाई दिया, और उनके अविश्वास और मन की कठोरता पर उलाहना दिया, क्योंकि जिन्होंने उसके जी उठने के बाद उसे देखा था, इन्होंने उसका विश्वास न किया था। 15 और उसने उनसे कहा, “तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो। 16 जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उद्धार होगा, परन्तु जो विश्वास न करेगा वह दोषी ठहराया जाएगा। 17 और विश्वास करनेवालों में ये चिन्ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे; नई-नई भाषा बोलेंगे; 18 साँपों को उठा लेंगे, और यदि वे प्राणनाशक वस्तु भी पी जाएँ तो भी उनकी कुछ हानि न होगी; वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएँगे।”
19 तब प्रभु यीशु उनसे बातें करने के बाद स्वर्ग पर उठा लिया गया, और परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठ गया। (1 पत. 3:22) 20 और उन्होंने निकलकर हर जगह प्रचार किया, और प्रभु उनके साथ काम करता रहा और उन चिन्हों के द्वारा जो साथ-साथ होते थे, वचन को दृढ़ करता रहा। आमीन।
"वह जी उठा है" या "परमेश्वर ने उसे मृतकों में से जीवित कर दिया है" या "वह स्वयं जी उठा है"
"रविवार को"
सप्ताह के पहले दिन सूर्योदय के समय स्त्रियां यीशु की कब्र पर गई।
किसी ने कब्र पर से भारी पत्थर हटा दिया था।
उन स्त्रियों ने एक कब्र में एक जवान को श्वेत वस्त्र पहने हुए दाहिनी ओर बैठे देखा।
उस युवक ने कहा कि यीशु जी उठा है वह वहाँ नहीं है।
उस युवक ने कहा कि चेले गलील में यीशु से भेंट करेंगे।
यीशु सबसे पहले मरियम मगदलीनी को दिखाई दिया।
चेलों ने विश्वास नहीं किया।
चेलों ने विश्वास नहीं किया।
यीशु ने चेलों को अविश्वास के लिए झिड़का।
यीशु ने चेलों को आज्ञा दी कि संपूर्ण विश्व में सुसमाचार सुनाएं।
यीशु ने कहा कि विश्वास करके बपतिस्मा पाने वालों का उद्धार होगा।
यीशु ने कहा कि विश्वास नहीं करने वाले दण्ड के भागी होंगे।
यीशु ने कहा कि विश्वास करने वाले दुष्टात्माएं निकालेंगे, अन्य भाषा बोलेंगे, प्राण नाशक वस्तुओं से भी उनको हानि नहीं होगी, वे बीमारों को चंगा करेंगे।
चेलों से बातें करने के बाद वह स्वर्ग में उठा लिया गया और परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठ गया।
चेलों ने वहाँ से आकर हर जगह प्रचार किया।
प्रभु उनके साथ काम करता रहा और चिन्ह के द्वारा वचन को दृढ़ करता रहा।
1 बहुतों ने उन बातों का जो हमारे बीच में बीती हैं, इतिहास लिखने में हाथ लगाया है। 2 जैसा कि उन्होंने जो पहले ही से इन बातों के देखनेवाले और वचन के सेवक थे हम तक पहुँचाया। 3 इसलिए हे श्रीमान थियुफिलुस मुझे भी यह उचित मालूम हुआ कि उन सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक-ठीक जाँच करके उन्हें तेरे लिये क्रमानुसार लिखूँ। 4 कि तू यह जान ले, कि वे बातें जिनकी तूने शिक्षा पाई है, कैसी अटल हैं।
5 यहूदिया के राजा हेरोदेस के समय अबिय्याह के दल में जकर्याह नाम का एक याजक था, और उसकी पत्नी हारून के वंश की थी, जिसका नाम एलीशिबा था। 6 और वे दोनों परमेश्वर के सामने धर्मी थे, और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियों पर निर्दोष चलने वाले थे। 7 उनके कोई सन्तान न थी, क्योंकि एलीशिबा बाँझ थी, और वे दोनों बूढ़े थे।।
8 जब वह अपने दल की पारी पर परमेश्वर के सामने याजक का काम करता था। 9 तो याजकों की रीति के अनुसार उसके नाम पर चिट्ठी निकली, कि प्रभु के मन्दिर में जाकर धूप जलाए। (निर्ग. 30:7) 10 और धूप जलाने के समय लोगों की सारी मण्डली बाहर प्रार्थना कर रही थी। 11 कि प्रभु का एक स्वर्गदूत धूप की वेदी की दाहिनी ओर खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया। 12 और जकर्याह देखकर घबराया और उस पर बड़ा भय छा गया। 13 परन्तु स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे जकर्याह, भयभीत न हो क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरी पत्नी एलीशिबा से तेरे लिये एक पुत्र उत्पन्न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना। 14 और तुझे आनन्द और हर्ष होगा और बहुत लोग उसके जन्म के कारण आनन्दित होंगे। 15 क्योंकि वह प्रभु के सामने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पीएगा; और अपनी माता के गर्भ ही से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाएगा। (इफि. 5:18, न्याय. 13:4-5) 16 और इस्राएलियों में से बहुतों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर फेरेगा। 17 वह एलिय्याह की आत्मा और सामर्थ्य में होकर उसके आगे-आगे चलेगा, कि पिताओं का मन बाल-बच्चों की ओर फेर दे; और आज्ञा न माननेवालों को धर्मियों की समझ पर लाए; और प्रभु के लिये एक योग्य प्रजा तैयार करे।” (मला. 4:5-6) 18 जकर्याह ने स्वर्गदूत से पूछा, “यह मैं कैसे जानूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ; और मेरी पत्नी भी बूढ़ी हो गई है।” 19 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “मैं जिब्राईल* हूँ, जो परमेश्वर के सामने खड़ा रहता हूँ; और मैं तुझ से बातें करने और तुझे यह सुसमाचार सुनाने को भेजा गया हूँ। (दानि. 8:16, दानि. 9:21) 20 और देख, जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो लें, उस दिन तक तू मौन रहेगा, और बोल न सकेगा, इसलिए कि तूने मेरी बातों की जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास न किया।” 21 लोग जकर्याह की प्रतीक्षा करते रहे और अचम्भा करने लगे कि उसे मन्दिर में ऐसी देर क्यों लगी? 22 जब वह बाहर आया, तो उनसे बोल न सका अतः वे जान गए, कि उसने मन्दिर में कोई दर्शन पाया है; और वह उनसे संकेत करता रहा, और गूँगा रह गया। 23 जब उसकी सेवा के दिन पूरे हुए, तो वह अपने घर चला गया। 24 इन दिनों के बाद उसकी पत्नी एलीशिबा गर्भवती हुई; और पाँच महीने तक अपने आप को यह कह के छिपाए रखा। 25 “मनुष्यों में मेरा अपमान दूर करने के लिये प्रभु ने इन दिनों में कृपादृष्टि करके मेरे लिये ऐसा किया है।” (उत्प. 30:23)
26 छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में, 27 एक कुँवारी के पास भेजा गया। जिसकी मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरुष से हुई थी: उस कुँवारी का नाम मरियम था। 28 और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, “आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर परमेश्वर का अनुग्रह हुआ है! प्रभु तेरे साथ है!” 29 वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी कि यह किस प्रकार का अभिवादन है? 30 स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। 31 और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। (यशा. 7:14) 32 वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा। (भज. 132:11, यशा. 9:6-7) 33 और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (2 शमू. 7:12,16, इब्रा. 1:8, दानि. 2:44) 34 मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं।” 35 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी; इसलिए वह पवित्र* जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा। 36 और देख, और तेरी कुटुम्बिनी एलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बाँझ कहलाती थी छठवाँ महीना है। 37 परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।” (मत्ती 19:26, यिर्म. 32:27) 38 मरियम ने कहा, “देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, तेरे वचन के अनुसार मेरे साथ ऐसा हो।” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
39 उन दिनों में मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई। 40 और जकर्याह के घर में जाकर एलीशिबा को नमस्कार किया। 41 ज्योंही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, त्योंही बच्चा उसके पेट में उछला, और एलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई। 42 और उसने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है! 43 और यह अनुग्रह मुझे कहाँ से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई? 44 और देख ज्योंही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा त्योंही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा। 45 और धन्य है, वह जिस ने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उससे कही गई, वे पूरी होंगी।”
46 तब मरियम ने कहा,
“मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
47 और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले
परमेश्वर से आनन्दित हुई। (1 शमू. 2:1)
48 क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर
दृष्टि की है;
इसलिए देखो, अब से सब युग-युग
के लोग मुझे धन्य कहेंगे। (1 शमू. 1:11, लूका 1:42, मला. 3:12)
49 क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े-
बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
50 और उसकी दया उन पर,
जो उससे डरते हैं,
पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। (भज. 103:17)
51 उसने अपना भुजबल दिखाया,
और जो अपने मन में घमण्ड करते थे,
उन्हें तितर-बितर किया। (2 शमू. 22:28, भज. 89:10)
52 उसने शासकों को सिंहासनों से
गिरा दिया;
और दीनों को ऊँचा किया। (1 शमू. 2:7, अय्यू. 5:11, भज. 113:7-8)
53 उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से
तृप्त किया,
और धनवानों को खाली हाथ निकाल दिया। (1 शमू. 2:5, भज. 107:9)
54 उसने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल
लिया कि अपनी उस दया को स्मरण करे, (भज. 98:3, यशा. 41:8-9)
55 जो अब्राहम और उसके वंश पर सदा रहेगी,
जैसा उसने हमारे पूर्वजों से कहा था।” (उत्प. 22:17, मीका 7:20)
56 मरियम लगभग तीन महीने उसके साथ रहकर अपने घर लौट गई।
57 तब एलीशिबा के जनने का समय पूरा हुआ, और वह पुत्र जनी। 58 उसके पड़ोसियों और कुटुम्बियों ने यह सुन कर, कि प्रभु ने उस पर बड़ी दया की है, उसके साथ आनन्दित हुए। 59 और ऐसा हुआ कि आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए और उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकर्याह रखने लगे। (उत्प. 17:12, लैव्य. 12:3) 60 और उसकी माता ने उत्तर दिया, “नहीं; वरन् उसका नाम यूहन्ना रखा जाए।” 61 और उन्होंने उससे कहा, “तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं।” 62 तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है? 63 और उसने लिखने की पट्टी मंगाकर लिख दिया, “उसका नाम यूहन्ना है,” और सभी ने अचम्भा किया। 64 तब उसका मुँह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर की स्तुति करने लगा। 65 और उसके आस-पास के सब रहनेवालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई। 66 और सब सुननेवालों ने अपने-अपने मन में विचार करके कहा, “यह बालक कैसा होगा?” क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था।
67 और उसका पिता जकर्याह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्वाणी करने लगा।
68 “प्रभु इस्राएल का परमेश्वर धन्य हो,
कि उसने अपने लोगों पर दृष्टि की
और उनका छुटकारा किया है, (भज. 111:9, भज. 41:13)
69 और अपने सेवक दाऊद के घराने में
हमारे लिये एक उद्धार का सींग*
निकाला, (भज. 132:17, यिर्म. 30:9)
70 जैसे उसने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं
के द्वारा जो जगत के आदि से होते
आए हैं, कहा था,
71 अर्थात् हमारे शत्रुओं से, और हमारे सब
बैरियों के हाथ से हमारा उद्धार किया है; (भज. 106:10)
72 कि हमारे पूर्वजों पर दया करके अपनी
पवित्र वाचा का स्मरण करे,
73 और वह शपथ जो उसने हमारे पिता
अब्राहम से खाई थी, (उत्प. 17:7, भज. 105:8-9)
74 कि वह हमें यह देगा, कि हम अपने
शत्रुओं के हाथ से छूटकर,
75 उसके सामने पवित्रता और धार्मिकता
से जीवन भर निडर रहकर उसकी सेवा करते रहें।
76 और तू हे बालक, परमप्रधान का
भविष्यद्वक्ता कहलाएगा*,
क्योंकि तू प्रभु के मार्ग तैयार करने
के लिये उसके आगे-आगे चलेगा, (मला. 3:1, यशा. 40:3)
77 कि उसके लोगों को उद्धार का ज्ञान दे,
जो उनके पापों की क्षमा से प्राप्त होता है।
78 यह हमारे परमेश्वर की उसी बड़ी करुणा से होगा;
जिसके कारण ऊपर से हम पर भोर का प्रकाश उदय होगा।
79 कि अंधकार और मृत्यु की छाया में बैठनेवालों को ज्योति दे,
और हमारे पाँवों को कुशल के मार्ग में सीधे चलाए।” (यशा. 58:8, यशा. 60:1-2, यशा. 9:2)
80 और वह बालक यूहन्ना, बढ़ता और आत्मा में बलवन्त होता गया और इस्राएल पर प्रगट होने के दिन तक जंगलों में रहा।
“विवरण” या “वृत्तान्त” या “सच्ची कहानी”
हमारे यहाँ “हमारे” में थियुफिलुस नहीं आता है परन्तु अभिलेख इसे स्पष्ट नहीं करता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है इन बातों को उसी समय देखा जब वे पहले-पहले हुई थी।
इसके अन्य संभावित अर्थ हैं, “मनुष्यों में परमेश्वर का सन्देश सुनाने की सेवा की है” या “मनुष्यों को यीशु का शुभ सन्देश सुनाया है”
इस वाक्य में “हम” एक अलग शब्द है जो थियुफिलुस को समाहित नहीं करता है।
अर्थात वह घटनाओं की यथा उचित जांच करने में अत्यधिक सावधान रहा है। उसने संभवतः अनेक अलग-अलग मनुष्यों से विचार-विमर्श किया, जिन्होंने इन घटनाओ को अपनी आंखों से देखा था, कि वह इन घटनाओं को लिखे तो वे सही हों। इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, हर एक घटना की सावधानीपूर्वक खोज की है”।
लूका इस शब्द के उपयोग द्वारा थियुफिलुस के प्रति सम्मान एवं आदर व्यक्त कर रहा है। ऐसे संबोधन का अर्थ यह भी होता है कि थियुफिलुस एक महत्त्वपूर्ण सरकारी अधिकारी था। इसके अन्य अनुवाद हो सकते है, “माननीय” या “श्रेष्ठ” कुछ लोग ऐसे संबोधन को आरंभ में रखना अधिक उत्तम समझते है, “थियुफिलुस” या “प्रिय .... थियुफिलुस”।
इस नाम का अर्थ है, “परमेश्वर का मित्र” इससे उसका चरित्र प्रकट होता है या यह वास्तव में उसका नाम रहा होगा। अधिकांश अनुवादों में इस शब्द को उसका नाम माना गया है।
“जिस समय राजा हेरोदेस यहूदिया में राज कर रहा था”।
इसका अनुवाद “यहूदिया के क्षेत्र में” किया जा सकता है या “यहूदिया प्रदेश” कुछ भाषाओं में अधिक उत्तम माना जाता है कि इसका अनुवाद “यहूदिया वासियों पर” किया जाता है।
“नाम का एक" या "एक.. था" यह एक विशिष्ट नायक को प्रवेश कराने की विधि है। आपकी भाषा में यह कैसे हो” उस पर ध्यान दें।
इसको इस प्रकार अनुवाद कर सकते है “याजक मंडल” या “याजको का समूह”
“अबिय्याह के वंशजों में हो” अबिय्याह इस याजक समूह का पूर्वज था। वे सब हारून के वंशज थे। हारून इस्राएल का सर्वप्रथम याजक था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जकरयाह की पत्नी”
“वह .... वंशजों में से एक थी” या “वह हारून की वंशज थी” या इसको इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है। “जकरयाह और उसकी पत्नी दोनों हारून के वंश के थे”।
“परमेश्वर की दृष्टि में” या “परमेश्वर के विचार में”
“आज्ञाकारी”
इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर की सब आज्ञाओं और अनिवार्यताओ”।
इस विषमतासूचक शब्द का अर्थ है कि आगे जो आनेवाला है वह अपेक्षा के विपरीत है। मनुष्यों का मानना था कि यदि वे परमेश्वर की दृष्टि में उचित जीवन रखेंगे तो परमेश्वर उन्हें सन्तान देगा परन्तु यह दम्पत्ति यद्यपि धर्मी था, उनके पास सन्तान नहीं थी।
“परमेश्वर की उपस्थिति में” स्पष्टता के लिए कुछ अनुवादक सलंग्न जानकारी भी जोड़ देते हैं, “यरूशलेम के मन्दिर में”।
“उनकी प्रथा के अनुसार” या “उनके द्वारा महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के अभ्यास के अनुसार”।
यह वास्तव में एक पत्थर होता था जिस पर निशान होते थे। निर्णय लेने के लिए उसे फर्श पर डाला जाता था। उनका मानना था कि वह पत्थर परमेश्वर के नियन्त्रण में रहता था कि जिस याजक को वह चाहता है वह उसके नाम पर गिरे।
“बहुत लोग” या “लोगों की बड़ी संख्या”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मन्दिर के बाहर” या “मन्दिर के बाहर परिसर में”। मन्दिर के बाहर का घिरा हुआ भाग परिसर था।
“प्रभु की ओर से” या “जो प्रभु की सेवा करे” या “जिसे परमेश्वर ने भेजा था”।
“अचानक ही उसके पास आया” या “अचानक ही जकरयाह के साथ प्रकट हुआ”।
“तेरी प्रार्थना सुन ली गई है” -“तूने परमेश्वर से जो मांगा है वह स्वीकार किया गया है” इसका संलग्न अर्थ है, “और वह करेगा” इसे अनुवाद में जोड़ा जा सकता है। परमेश्वर ने जकरयाह की प्रार्थना सुनी ही नहीं पूरी की है।
“उसे यूहन्ना नाम देगा” या “उसे यूहन्ना नाम से पुकारेगा”।
(स्वर्गदूत जकरयाह से बातें कर रहा है)
“इसका कारण है” या “इसके अतिरिक्त” कुछ अनुवादों में यह शब्द नहीं होगा।
इसका अनुवाद हो सकता है, “वह परमेश्वर के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करेगा।"
“खमीर किया हुआ दाखरस” या “नशीला पेय” इसका संदर्भ उन पेय पदार्थों से है जिनसे नशा होता है।
“पवित्र-आत्मा उसे शक्ति देगा” या यदि आप अनुवाद में व्यक्त करते हैं कि “पवित्र-आत्मा उसे वश में रखेगा” तो ध्यान रखें कि इसका अर्थ यह न निकले कि दुष्टात्मा के सदृश्य वशीभूत होगा।
“ही से” दर्शाता है कि यह एक विशेष आश्चर्य का समाचार है। मनुष्यों को पहले भी पवित्र-आत्मा मिला है परन्तु एक शिशु जिसका जन्म नहीं हुआ वह पवित्र-आत्मा से पूर्ण हो, कभी सुना नहीं गया है।
(स्वर्गदूत जकरयाह से बातें कर रहा है)
यदि इससे अर्थ निकलता है कि जकरयाह उनमें से नहीं है तो इसका अनुवाद करें, “तुम इस्राएल के वंशजों में से अनेकों को” या “तुम परमेश्वर के लोगों में से अनेकों को यदि अनुवाद में द्वितीय पुरूष काम में ले रहे हैं तो सुनिश्चित करे कि” "उनके प्रभु" के स्थान पर "तुम्हारे (बहुवचन) प्रभु" का उपयोग करें।
वह पहले से घोषणा करेगा कि प्रभु उनके मध्य रहने के लिए आएगा।
“वही आत्मा और सामर्थ्य जो एलिय्याह में था”। आत्मा का अर्थ या तो यह है की वह परमेश्वर का आत्मा है या एलिय्याह का स्वभाव अथवा या विचार विधा। यहाँ सुनिश्चित करें कि "आत्मा" शब्द का अभिप्राय "प्रेत" या “दुष्टात्मा” न हो।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पिताओं को सन्तान की फिर से सुधि लेने के लिए प्रेरित करेगा” या “पिताओं को विवश” करेगा कि अपनी-अपनी सन्तान के साथ संबन्धों का पुनः स्थापन करें”, इसका संदर्भ माताओं से भी है परन्तु केवल पिताओं का उल्लेख किया गया है।
इसका अनुवाद हो सकता है “प्रभु का सन्देश सुनने के लिए तैयार करे” या “प्रभु की आज्ञा मानने के लिए तैयार करे”। (यह स्वर्गदूत की बातों का अन्त है)
इसका अनुवाद हो सकता है, “मैं कैसे निश्चित जान सकता हूँ कि तूने जो कहा है अवश्य होगा”?
“मेरा बातों का विश्वास नहीं किया”
“सही समय पर” या यह भी हो सकता है, “नियुक्त समय पर”।
इसका अनुवाद, "और" हो सकता है या “जब स्वर्गदूत और जकरयाह में वार्तालाप हो रहा था”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे चकित थे वह मन्दिर में इतना समय क्यों लगा रहा है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जब वह मन्दिर से बाहर आया”
“जकरयाह की पत्नी”
“गर्भधारण किया” (यू.डी.बी.) यहाँ ऐसी अभिव्यक्ति काम में लें जो स्वीकार्य हो और मनुष्यों को लजाए नहीं।
यह अभिव्यक्ति इस तथ्य का संदर्भ देती है कि परमेश्वर उसे गर्भ धारण की अनुमति दी है।
एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “मुझे दया का पात्र समझा है” या “मुझ पर दया की” या “मुझ पर तरस खाया”।
इसे कर्तृवाच्य में अनुवाद किया जा सकता है, “परमेश्वर ने जिब्राईल स्वर्गदूत से कहा कि वह जाये।”
“विवाह करने की प्रतिज्ञा” या “शपथ” ली थी। अर्थात मरियम के माता पिता ने मरियम का विवाह युसूफ के साथ करने का वचन दे दिया था।
“जहाँ मरियम थी वहां आया" या “जहाँ मरियम थी वहां गया”।
“आनन्द” या “मगन हो” यह उस समय के सामान्य अभिवादन थे।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तू जो अनुग्रह में सर्वोच्च है” या “तू जिसे अनुग्रह प्राप्त हुआ है" या “तू जिसने दया प्राप्त की है”।
“विचलित हुई” या “डर कर विमूढ़ हो गई”
मरियम शब्दों का अर्थ तो समझती थी परन्तु वह समझ नहीं पा रही थी कि वह स्वर्गदूत ऐसा अभिवादन क्यों कर रहा है
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “परमेश्वर ने तुझ पर अनुग्रह करने का निर्णय लिया है” या “परमेश्वर तुझ पर अनुग्रहकारी है” या “परमेश्वर तुझ पर दया प्रकट कर रहा है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “मनुष्य उसे परम प्रधान का पुत्र कहेंगे” या “मनुष्य स्वीकार करेंगे फिर वह परम प्रधान परमेश्वर का पुत्र है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “उसके पूर्वज राजा दाऊद के समान राज करने का अधिकार देगा”। सिंहासन राजा के शासन का अधिकार प्रकट करता है
बाइबल में पूर्वजों के लिए सामान्यतः “पिता” शब्द का उपयोग किया गया है और वंशजों के लिए “पुत्र” शब्द का”। उसके शब्द का संदर्भ मरियम के पुत्र से है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यह कैसे संभव हो सकता है”, यदि मरियम को समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे होगा, उसने उस पर सन्देह नहीं किया।
यह वाक्यांश और अगला भी यही अर्थ रखता है कि पवित्र-आत्मा अलौकिक कार्य द्वारा मरियम को कुंवारी होते हुए भी गर्भवती करेगा। यहाँ आपको स्पष्ट करना होगा कि यह एक चमत्कार था। इसमें किसी प्रकार का शारीरिक संबन्ध नहीं था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “उसके सामर्थ्य द्वारा”
इसका अनुवाद हो सकता है “छाया के सदृश्य तुझे आच्छदित करेगा” या “तेरे साथ होगा” या “इसका कारण होगा”। यहाँ भी सावधान रहें कि शारीरिक संबन्ध भाव व्यक्त न हो।
“पवित्र शिशु” या “पवित्र बालक”
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्य कहेंगे कि वह है” या “मनुष्य स्वीकार करेंगे कि वह है”।
(स्वर्गदूत मरियम से बातें कर रहा है)
यदि आप अधिक स्पष्ट व्यक्त करना चाहते हैं तो इलीशिबा मरियम की मौसी या नानी थी।
“यद्यपि वह वृद्ध है उसने गर्भधारण किया है” या “यद्यपि वह वृद्ध है, उसने गर्भधारण किया है और पुत्र जनेगी”। यहाँ यह सुनिश्चित कीजिए कि पाठक को यह भ्रम न हो कि मरियम और इलीशिबा दोनों ही वृद्धावस्था में थी जब उन्होंने गर्भधारण किया था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “क्योंकि परमेश्वर कुछ भी कर सकता है। परमेश्वर ने इलीशिबा के लिए जो किया वह एक कारण है कि परमेश्वर कुछ भी कर सकता है और वह बिना किसी शारीरिक संबन्ध के मरियम के लिए भी गर्भधारण संभव कर सकता है।
इस वाक्यांश के लिए अपनी भाषा में ऐसे शब्दों को चयन करें जो उसकी दीनता एवं आज्ञाकारिता को स्पष्ट व्यक्त करें। वह परमेश्वर की दासी होने का घमण्ड नहीं कर रही थी।
“मेरे साथ ऐसा ही हो” मरियम स्वर्गदूत की भविष्यद्वाणी के प्रति अपना स्वीकरण व्यक्त कर रही थी।
`इन शब्दों के द्वारा कहानी में एक नया मोड़ लाया गया है। आपकी भाषा में इसे प्रकट करने की अभिव्यक्ति पर विचार करें। कुछ अनुवादों में यहाँ “अब” का प्रयोग है तो कुछ में नहीं है।
इसका अनुवाद हो सकता है “निकल पड़ी” या “तैयार होकर”
“पर्वतीय क्षेत्र” या “पहाड़ी प्रदेश” या “इस्राएल के पहाड़ी भाग में”।
इसका अनुवाद हो सकता है “और वह गई” या “जब वह पहुंची, वह गई”
“अकस्मात ही हिला”
यहाँ इलीशिबा का नाम लेना अधिक स्पष्ट एवं स्वाभाविक होगा। यह निर्भर करेगा कि अपने पिछले पद का अनुवाद किस प्रकार किया है।
इसका अनुवाद हो सकता है “तेरे गर्भ में जो शिशु है” या “वह शिशु जिसे तू जन्म देगी”। (यू.डी.बी) (देखे: )
इसका अनुवाद हो सकता है, “यह कैसी अद्भुत बात है कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई है”। इलिशिबा यहाँ जानकारी प्राप्त करने के लिए नहीं कह रही है।वह तो मरियम के आगमन पर चकित थी वरन अत्यधिक आनन्दित थी कि प्रभु की माता उसके पास आई।
इसका अनुवाद हो सकता है, “तू मेरे प्रभु की माता” क्योंकि इसका संदर्भ मरियम से है।
“अकस्मात ही उछला” या “प्रबल गतिविधि दिखाई”
इसका अनुवाद हो सकता है, “तूने विश्वास किया” इसलिए छाया है” या “क्योंकि तूने विश्वास किया है इसलिए तू आनन्दित होगी”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “प्रभु का जो सन्देश उसे दिया गया था” या “परमेश्वर ने तुझसे जो कहा”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “ओह, मैं कैसे” या “मैं कैसे यहाँ गहरी भावनाएं व्यक्त की गई हैं। मरियम काव्य रूप में एक ही बात को दो भिन्न रूपों में व्यक्त कर रही है। “प्राण” और “आत्मा” दोनों मनुष्य के आत्मिक परिप्रेक्ष्य का संदर्भ देते हैं। उसके कहने का अर्थ है कि उसकी भक्ति उसके अन्तरतम भाग से उभर रही है। यदि संभव हो तो इनके अनुवाद में दो परस्पर भिन्न वस्तु संबन्धित शब्दों का उपयोग करे जिनका अर्थ एक ही हो।
“सर्वोच्च सम्मान देता है” या “अत्यधिक स्तुति करता है”।
“बहुत हर्षित हूँ” या “अत्याधिक प्रसन्न है”
“परमेश्वर जो मेरा मोक्षदाता है” या “मेरा मुक्तिदाता परमेश्वर”
(मरियम परमेश्वर की स्तुति कर रही है)
“महत्त्वहीन” या “साधारण” या “सामान्य” या “दरिद्र” मरियम का सामाजिक स्तर ऊंचा नहीं था।
“ध्यान दिया” या “स्मरण किया”, इसका अनुवाद यह भी हो सकता है “भूला नहीं” यहाँ परमेश्वर की स्मरण-शक्ति की बात नहीं है परन्तु यह कि उसने मरियम पर ध्यान देने का चुनाव किया।
“अब और भविष्य में”
यह परमेश्वर के संदर्भ में है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर जो सर्व-शक्तिमान है”
“वह”
(मरियम परमेश्वर की स्तुति कर रही है)
कुछ भाषाओं में इस संयोजक शब्द का उपयोग नहीं किया गया है जो निर्भर करता है कि पिछले पद का अनुवाद किस प्रकार किया गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर की दया उन पर” या “वह उन पर दया करता है” या “वह उन पर कृपालु है”
इसका अनुवाद इस प्रकार होता है, “उन मनुष्यों की हर एक पीढ़ी तक” या “सब पीढ़ियों के मनुष्यों पर” या “हर एक युग के मनुष्यों पर”
इसका अर्थ मात्र भय से कही अधिक है। इसका अर्थ है, परमेश्वर का आदर करना, उसकी प्रतिष्ठा करना, उसकी आज्ञा मानना।
“उसकी भुजा के द्वारा” यह एक रूपक है जो परमेश्वर के सामर्थ्य का संदर्भ देता है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “(उन्हें) विभिन्न दिशाओं में भागने पर विवश किया” या “उन्हें खदेड़ा”
(मरियम परमेश्वर की स्तुति कर रही है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने राजाओं को उनके अधिकार से वंचित किया है” या “उसने शासकों को शासन करने से रोक दिया है”। सिंहासन राजा का आसन होता है और उसके अधिकार का द्योतक है। यदि किसी राजा को उसके सिंहासन से उतार दिया गया तो इसका अर्थ है कि उसके पास राज्य का अधिकार नहीं रहा”।
इस रूपक का अर्थ है, महत्त्वपूर्ण मनुष्य कम महत्त्व के मनुष्यों से बड़े नहीं हैं। यदि आपकी भाषा में इसके तुल्य कोई रूपक नहीं तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “विनम्र मनुष्यों को महत्त्व प्रदान किया” या “उन लोगों का सम्मान प्रदान किया जिन्हें मनुष्यों ने सम्मानित नहीं किया।”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “अच्छे भोजन की बहुतायत”
(मरियम परमेश्वर की स्तुति कर रही है)
“परमेश्वर ने संभाल लिया”
यहाँ “इस्राएल” का अर्थ है इस्राएल राष्ट्र या इस्राएल की प्रजा। यदि पाठक इसे एक मनुष्य इस्राएल समझने की भूल करें तो इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “अपने सेवक इस्राएल राष्ट्र को” या “उसके सेवकों इस्राएल को”
“क्योंकि उसने प्रतिज्ञा की थी”
“अब्राहम के वंश” (यह मरियम के स्तुतिगान का अंत है)
“मरियम अपने घर लौट आई”
“अपने शिशु को जन्म दिया” या “पुत्र उत्पन्न किया”
“इलीशिबा के पड़ोसियों और परिजनों”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “शिशु के जन्म के आठ दिन बाद” या “जब शिशु आठ दिन का हो गया”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जकरयाह और इलीशिबा के मित्र एवं परिजन” या केवल “लोग”
“शिशु के खतने के लिए” या “शिशु के खतने के संस्कार के लिए” शिशु का खतना तो एक ही व्यक्ति करता था परन्तु परिवार के साथ आनन्द मनाने के लिए लोग उपस्थित होते थे।
“वे उसका नाम रखने लगे” या “वे उसे नाम देना चाहते थे”।
“उसके पिता के जैसा नाम” या “उसके पिता के नाम के अनुसार”
इलीशिबा ने उसका नाम यूहन्ना बताया था इसलिए वे उससे कह रहे थे इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “उस नाम से हो”
“उन्होंने” अर्थात उन लोगों ने जो उसके खतना के समय वहां उपस्थित थे।
“शिशु के पिता से”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कि जकरयाह शिशु का क्या नाम रखना चाहता है” या “वह अपने पुत्र को क्या नाम देना चाहता है”।
“जकरयाह ने मांगी” उसने संकेत करके समझाया होगा।
इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “लिखने के लिए कुछ मंगाया” या कुछ अनुवादक यह भी जोड़ना चाहेंगे, “और जब उन्होंनें उसे वह दिया”
विस्मित हुए
ये मुहावरे हैं जिनका अर्थ है कि वह अब बोलने लगा था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जकर्याह और इलीशिबा के आसपास जितने लोग रहते थे सब पर भय छा गया” या “उनके आसपास रहने वाले सब लोग विस्मय एवं भय से अभिभूत हो गए” क्योंकि उन्होंने देखा कि परमेश्वर सामर्थी है “उसके आसपास के सब रहनेवालों” का अर्थ उनके निकट पड़ोसियों से ही नहीं, उस क्षेत्र के सब लोगों से है।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “सब लोग इन बातों की चर्चा कर रहे थे”।
सब सुनने वालों ने सुननेवालों का अर्थ है, जो कुछ वहां हुआ था उसे सुनकर
“सोचने लगे”
“सोचने लगे” या “पूछने लगे”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यह बालक बड़ा होकर कैसा महान मनुष्य होगा” या “यह बालक कैसा महान होगा।” इस प्रश्न से मनुष्यों का आश्चर्य व्यक्त होता है। उन्होंने शिशु के बारे में जो सुना उससे उन्हें यह अनुभूति हुई कि वह एक महापुरूष होगा।
“परमेश्वर का सामर्थ्य उस पर था” या “परमेश्वर उसमें सशक्ति कार्य कर रहा था” यह लाक्षणिक प्रयोग का एक उदाहरण है जिन्हें परमेश्वर के सामर्थ्य के स्थान में “प्रभु का हाथ” उपयोग किया गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “भविष्यद्वाणी करके कहा” अपनी भाषा में अपरोक्ष कथनों को व्यक्त करने की विधि खोजें।
“इस्राएल पर राज करने वाला परमेश्वर” या “जिस परमेश्वर की इस्राएल उपासना करता है” यहाँ इस्राएल से अभिप्राय है, इस्राएल राष्ट्र जकरयाह और वे सब जिससे वह बात कर रहा है सब इस्राएलवासी है।
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है “हमारी सहायता के लिए आया”
“परमेश्वर के लोगों पर”
(जकरयाह भविष्यद्वाणी कर रहा है)
अपने सेवक दाऊद “राजा दाऊद जो उसकी सेवा करता था”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर ने यही करने की तो प्रतिज्ञा की थी”।
अर्थात “अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं को प्रेरित किया कि कहें ”(यू.डी.बी.) जब परमेश्वर अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें करता था तब वाणी तो उनकी होती थी परन्तु सन्देश परमेश्वर देता था।
इन दोनों वाक्यांशों का अर्थ है, कि परमेश्वर के लोगों के विरोधी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो हमसे लड़ते और हमारी हानि करते हैं”।
“अधिपत्य” या “नियंत्रण” यहाँ “हाथ” शब्द परमेश्वर के लोगों की हानि के लिए काम में लिया जानेवाला सामर्थ्य या नियंत्रण।
(जकरयाह भविष्यद्वाणी कर रहा है)
“के प्रति दयालु” या “अपनी दया के अनुसार काम करना”
यहाँ "स्मरण" का अर्थ यह नहीं कि वह भूला नहीं। इसका अर्थ है, “समर्पण को पूरा करना” या “किसी बात को निभाना”
“हमारे बैरियों के अधिपत्य से” या “हमारे बैरियों द्वारा क्षतिग्रस्त किए जाने से या हमारे बैरियों द्वारा दासत्व में लिए जाने से”।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “हमारे बैरियों के भय से रहित रह कर”।
“पवित्र और धार्मिकता के मार्गों से (यू.डी.बी.) या “जब हम पवित्र और धर्म के मार्गों का जीवन जीयेंगे” या “जब हम पवित्र जीवन जीयेंगे और उचित काम करेंगे”।
“उसकी उपस्थिति में” या “उसकी इच्छा के अनुकूल”।
“संपूर्ण जीवन”
(जकरयाह भविष्यद्वाणी कर रहा है परन्तु अब वह अपने नवजात शिशु से सीधा कह रहा है।)
वह वास्तव में एक भविष्यद्वक्ता होगा और लोग उसे भविष्यद्वक्ता मानेंगे भी। इसे स्पष्ट करने के लिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तू एक भविष्यद्वक्ता होगा”।
इसका अनुवाद होगा “जो सर्वोच्च परमेश्वर की सेवा करेगा” या “जो सर्वोच्च परमेश्वर का वक्ता होगा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर उनके पाप क्षमा करके उनका उद्धार कैसे करेगा।”
(जकरयाह अपने नवजात शिशु से ही भविष्यद्वाणी कर रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “क्योंकि वह हम पर कृपालु और दयालु है”
ध्यान दें कि इन सब पदों में “हमारे” और “हम” समाहित हैं।
“उगते हुए सूर्य के समान” या “भोर के समान”
यह एक उपमा है जिसका अर्थ है, “वह ज्ञान प्रदान करेगा”। उसका अनुवाद हो सकता है, “वह आत्मिक ज्योति प्रदान करेगा।”
इस रूपक का अर्थ है, “सत्य से अनभिज्ञ जनों को”
इस पुस्तक का अर्थ है, “जो मरने पर है” या “जिन्हें भय है कि वे शीघ्र ही मर जायेंगे”।
यह रूपक शिक्षा देने को व्यक्त करता है।
यह एक अंग द्वारा दूसरे अंग का निर्देश है जो संपूर्ण मनुष्य का संदर्भ देता है, केवल पांव ही नहीं। इसका अनुवाद हो सकता है, “हमें”
इस रूपक का अर्थ है, “शान्ति के जीवन में” या “परमेश्वर के साथ मेल के जीवन में”। इसका अनुवाद हो सकता है, “शान्ति में लाने वाले मार्ग में चलायेगा” या “ऐसे जीवन में निर्वाह करायेगा जिसके कारण परमेश्वर से मेल होता है। सुनिश्चित करें कि आपका अनुवाद “हमारे पांवों” के अनुवाद से सुसंगत हो।
“आयु और शरीर में विकसित होता गया” (वयस्क हो गया) इसके अनुवाद में स्पष्ट करना होगा कि वह अब बालक नहीं था जब वह निर्जन स्थान में रह रहा था।
“आत्मिकता में परिपक्व हो गया” या “दृढ़ नैतिक चरित्र का विकास किया” या “परमेश्वर के साथ संबन्ध में अधिकाधिक दृढ़ होता गया”
इसका अर्थ यह नहीं कि यूहन्ना अब निर्जन स्थान में नहीं रह रहा था। अपनी सार्वजनिक सेवा आरंभ करने के बाद भी यूहन्ना निर्जन स्थान में ही रहता था। अतः अर्थ स्पष्ट करने के लिए इसका अनुवाद इस प्रकार करे, “के समय भी”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “सबके सामने आने तक” या “आम जनता में प्रचार करने के समय”
"प्रत्यक्ष साक्षी" वे थे जो यीशु के साथ उसकी सेवा के आरंभ से थे।
उन्होंने यीशु के कामों का वृत्तान्त लिखा है।
वह थियुफिलुस को उन बातों की सत्यता बताना चाहता था जो उसने सीखी थी।
परमेश्वर उन्हें धर्मी ठहराया, क्योंकि उन्होंने उसकी आज्ञाएं मानी थी।
वे निःसन्तान थे क्योंकि इलीशिबा बांझ थी और वे दोनों वृद्ध थे।
जकरयाह एक याजक था।
वह परमेश्वर के समक्ष धूप जलाता था।
सभी लोग बाहर आंगन में प्रार्थना कर रहे थे।
मन्दिर में परमेश्वर का एक दूत जकरयाह के समक्ष प्रकट हुआ।
स्वर्गदूत को देखकर जकरयाह डर गया।
स्वर्गदूत ने जकरयाह से कहा कि वह डरे नहीं उसकी पत्नी पुत्र जनेगी, उस पुत्र का नाम यूहन्ना होगा।
स्वर्गदूत ने कहा कि यूहन्ना इस्राएल के वंशजों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर फेर लायेगा।
प्रभु के लिए तैयार किए गए लोग योग्य प्रजा होंगे।
उस स्वर्गदूत का नाम जिब्राईल था वह परमेश्वर के सामने खड़ा रहता था।
पुत्र के जन्म लेने तक जकरयाह बोलने योग्य न रहा।
मरियम नामक एक कुंवारी थी जिसकी मंगनी दाऊदवंशी यूसुफ के साथ हुई थी।
स्वर्गदूत ने मरियम से कहा कि वह गर्भधारण करेगी।
उस बालक का नाम यीशु होगा और वह याकूब के वंशजों पर सर्वदा राज करेगा।
स्वर्गदूत ने कहा कि पवित्र आत्मा मरियम पर उतरेगा और परम प्रधान का सामर्थ्य उस पर छाया करेगा।
उस स्वर्गदूत ने कहा कि वह बालक परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।
कुछ नहीं।
बच्चा उसके पेट में उछला।
इलीशिबा ने कहा कि मरियम और उसका शिशु धन्य है ।
अब्राहम और उसके वंशजों से की गई परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं पूरी होंगी कि वह उन पर दयावान होगा और उन्हें संभालेगा।
जकरयाह।
जकरयाह ने लिखा, "इसका नाम यूहन्ना है" और तब बोलने लगा।
उन्हें समझ में आ गया कि प्रभु का हाथ उस पर है।
परमेश्वर ने अपनी प्रजा को मुक्त करवाने का मार्ग ले लिया है।
यूहन्ना मनुष्यों को बताएगा कि वे अपने पापों की क्षमा द्वारा कैसे बचाए जायेंगे।
यूहन्ना बड़ा होकर जंगल में रहने लगा।
1 उन दिनों में औगुस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे रोमी साम्राज्य के लोगों के नाम लिखे जाएँ। 2 यह पहली नाम लिखाई उस समय हुई, जब क्विरिनियुस* सीरिया का राज्यपाल था। 3 और सब लोग नाम लिखवाने के लिये अपने-अपने नगर को गए। 4 अतः यूसुफ भी इसलिए कि वह दाऊद के घराने और वंश का था, गलील के नासरत नगर से यहूदिया में दाऊद के नगर बैतलहम को गया। 5 कि अपनी मंगेतर मरियम के साथ जो गर्भवती थी नाम लिखवाए। 6 उनके वहाँ रहते हुए उसके जनने के दिन पूरे हुए। 7 और वह अपना पहलौठा पुत्र जनी और उसे कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा; क्योंकि उनके लिये सराय में जगह न थी।
8 और उस देश में कितने गड़ेरिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे। 9 और परमेश्वर का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ; और प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमका, और वे बहुत डर गए। 10 तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “मत डरो; क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ; जो सब लोगों के लिये होगा, 11 कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और वही मसीह प्रभु है। 12 और इसका तुम्हारे लिये यह चिन्ह है, कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।” 13 तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का दल परमेश्वर की स्तुति करते हुए और यह कहते दिखाई दिया,
14 “आकाश में परमेश्वर की महिमा और
पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है शान्ति हो।”
15 जब स्वर्गदूत उनके पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियों ने आपस में कहा, “आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें।” 16 और उन्होंने तुरन्त जाकर मरियम और यूसुफ को और चरनी में उस बालक को पड़ा देखा। 17 इन्हें देखकर उन्होंने वह बात जो इस बालक के विषय में उनसे कही गई थी, प्रगट की। 18 और सब सुननेवालों ने उन बातों से जो गड़ेरियों ने उनसे कहीं आश्चर्य किया। 19 परन्तु मरियम ये सब बातें अपने मन में रखकर सोचती रही। 20 और गड़ेरिये जैसा उनसे कहा गया था, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए।
21 जब आठ दिन पूरे हुए, और उसके खतने का समय आया, तो उसका नाम यीशु रखा गया, यह नाम स्वर्गदूत द्वारा, उसके गर्भ में आने से पहले दिया गया था। (उत्प. 17:12, लैव्य. 12:3) 22 और जब मूसा की व्यवस्था के अनुसार मरियम के शुद्ध होने के दिन पूरे हुए तो यूसुफ और मरियम उसे यरूशलेम में ले गए, कि प्रभु के सामने लाएँ। (लैव्य. 12:6) 23 जैसा कि प्रभु की व्यवस्था में लिखा है: “हर एक पहलौठा प्रभु के लिये पवित्र ठहरेगा।” (निर्ग. 13:2,12) 24 और प्रभु की व्यवस्था के वचन के अनुसार, “पण्डुकों का एक जोड़ा, या कबूतर के दो बच्चे लाकर बलिदान करें।” (लैव्य. 12:8)
25 उस समय यरूशलेम में शमौन नामक एक मनुष्य था, और वह मनुष्य धर्मी और भक्त था; और इस्राएल की शान्ति की प्रतीक्षा कर रहा था, और पवित्र आत्मा उस पर था। 26 और पवित्र आत्मा के द्वारा प्रकट हुआ, कि जब तक तू प्रभु के मसीह को देख न लेगा, तब-तक मृत्यु को न देखेगा। 27 और वह आत्मा के सिखाने से मन्दिर में आया; और जब माता-पिता उस बालक यीशु को भीतर लाए, कि उसके लिये व्यवस्था की रीति के अनुसार करें, 28 तो उसने उसे अपनी गोद में लिया और परमेश्वर का धन्यवाद करके कहा:
29 “हे प्रभु, अब तू अपने दास को अपने
वचन के अनुसार शान्ति से विदा कर दे;
30 क्योंकि मेरी आँखों ने तेरे उद्धार को देख
लिया है।
31 जिसे तूने सब देशों के लोगों के सामने
तैयार किया है। (यशा. 40:5)
32 कि वह अन्यजातियों को सत्य प्रकट करने के
लिए एक ज्योति होगा,
और तेरे निज लोग इस्राएल की महिमा हो।” (यशा. 42:6, यशा. 49:6)
33 और उसका पिता और उसकी माता इन बातों से जो उसके विषय में कही जाती थीं, आश्चर्य करते थे। 34 तब शमौन ने उनको आशीष देकर, उसकी माता मरियम से कहा, “देख, वह तो इस्राएल में बहुतों के गिरने, और उठने के लिये, और एक ऐसा चिन्ह होने के लिये ठहराया गया है, जिसके विरोध में बातें की जाएँगी (यशा. 8:14-15) 35 (वरन् तेरा प्राण भी तलवार से आर-पार छिद जाएगा) इससे बहुत हृदयों के विचार प्रगट होंगे।”
36 और अशेर के गोत्र में से हन्नाह नामक फनूएल की बेटी एक भविष्यद्वक्तिन* थी: वह बहुत बूढ़ी थी, और विवाह होने के बाद सात वर्ष अपने पति के साथ रह पाई थी। 37 वह चौरासी वर्ष से विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी। 38 और वह उस घड़ी वहाँ आकर परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी, और उन सभी से, जो यरूशलेम के छुटकारे की प्रतीक्षा कर रहे थे, उसके विषय में बातें करने लगी। (यशा. 52:9)
39 और जब वे प्रभु की व्यवस्था के अनुसार सब कुछ निपटा चुके तो गलील में अपने नगर नासरत को फिर चले गए। 40 और बालक बढ़ता, और बलवन्त होता, और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया; और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर था।
41 उसके माता-पिता प्रति वर्ष फसह के पर्व में यरूशलेम को जाया करते थे। (निर्ग. 12:24-27, व्य. 16:1-8) 42 जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए। 43 और जब वे उन दिनों को पूरा करके लौटने लगे, तो वह बालक यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे। 44 वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचान वालों में ढूँढ़ने लगे। 45 पर जब नहीं मिला, तो ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए। 46 और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उनकी सुनते और उनसे प्रश्न करते हुए पाया। 47 और जितने उसकी सुन रहे थे, वे सब उसकी समझ और उसके उत्तरों से चकित थे। 48 तब वे उसे देखकर चकित हुए और उसकी माता ने उससे कहा, “हे पुत्र, तूने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूँढ़ते थे।” 49 उसने उनसे कहा, “तुम मुझे क्यों ढूँढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में* होना अवश्य है?” 50 परन्तु जो बात उसने उनसे कही, उन्होंने उसे नहीं समझा। 51 तब वह उनके साथ गया, और नासरत में आया, और उनके वश में रहा; और उसकी माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं। 52 और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया। (1 शमू. 2:26, नीति. 3:4)
इस वाक्यांश से प्रकट होता है कि केवल एक नये विषय का उल्लेख करने जा रहा है।
इस वाक्यांश का अर्थ है कि यह एक वृत्तान्त का आरंभ है। यदि आपकी भाषा में किसी नये वृत्तान्त को आरंभ करने का प्रावधान है, तो आप उसका उपयोग करें। कुछ अनुवादों में इसे काम में नहीं लिया गया है।
“राजा औगस्तुस” या “सम्राट औगुस्तुस” औगुस्तुस रोम का सर्वप्रथम सम्राट था।
आज्ञा का अर्थ है आदेश या अध्यादेश निकाला इसका अनुवाद हो सकता है, राजाज्ञा निकाली” या “आदेश दिया” या “आज्ञा दी”
नाम लिखे जाएं अर्थात् सरकारी जनगणना। किसी क्षेत्र के सब लोगों के नाम लिखे जाएं कि कर भुगतान निर्धारित किया जाए।
सारे जगत के लोगों के नाम लिखे जाएं - इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है "सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य के निवासियों का पंजीकरण किया जाए" या “रोमी साम्राज्य के सब लोगों की गणना करके लेखा तैयार किया जाए।”
इसका अनुवाद हो सकता है, “रोम के अधीन जो संसार था” या "रोमी सम्राट के अधीनस्थ देशों की जनता" या “रोमी साम्राज्य के”।
क्विरिनियुस को सीरिया का प्रशासक नियुक्त किया गया था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “हर एक जन निकल पड़ा” या “हर एक जन जा रहा था”
“उसके पूर्वजों के नगर को”
“अपने अपने नाम का पंजीकरण करवाने के लिए” या “राजसी लेखे में नाम चढ़वाने के लिए”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यहूदिया में बैतलहम नगर गया” बैतलहम नासरत से ऊंचे पर था।
दाऊद के नगर -बैतलहम को उसके महत्त्व के कारण नगर कहा जाता था न कि जनसंख्या के कारण। राजा दाऊद का जन्म वहां हुआ था और भविष्यद्वाणी थी कि मसीह का जन्म उस नगर में होगा। “दाऊद के नगर” का अनुवाद “राजा दाऊद के नगर” किया जा सकता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने नाम का पंजीकरण करवाने” या “जनगणना में लिखवाने”।
मरियम नासरत से यूसुफ के साथ गई। यह एक संभावना है कि स्त्रियों पर भी कर लगाया जाता था। अतः आवश्यक था कि मरियम भी जाकर अपने नाम का पंजीकरण करवाएं।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “होने वाली पत्नी” या “जो उसके साथ वचनबद्ध थी” वहां मंगनी के बाद दम्पत्ति को वैधानिक रूप से विवाहित माना जाता था परन्तु उनमें शारीरिक संबन्ध नहीं था।
“जब यूसुफ और मरियम बैतलहम में थे”
“समय हो गया”
“शिशु के जन्म देने का समय” प्रचलित अभिव्यक्ति काम में लें कि पाठकों को संकोच न हो।
इसका अनुवाद किया जा सकता है “उसे सुविधापूर्वक चादर में लपेटा” या “उसको संभालकर चादर में लपेटा” यह कार्य नवजात शिशु के लिए प्रेम एवं चिन्ता की अभिव्यक्ति है।
यह एक पात्र होता था जिसमें पशुओं को खाने के लिए घास डाला जाता था। अति संभव है कि वह स्वच्छ था और उसमें शिशु के लिए गद्दे का काम करने के लिए सूखा चारा भी होगा। पशुओं को घर के पास ही रखा जाता था। कि वे सुरक्षित रहे और उन्हें चारा डालना आसान हो। स्पष्ट है कि यूसुफ और मरियम उस कक्ष में थे जहाँ पशुओं को रखा जाता था।
यह अतिथियों या यात्रियों के लिए एक पृथक स्थान होता था।
“उनके लिए धर्मशाला में ठहरने का स्थान नहीं था” इसका कारण था कि बैतलहम में जनगणना के लिए आने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक थी।
यह स्पष्ट नहीं है कि मरियम ने अपने प्रभु को चरनी में क्यों रखा। आप सलंग्न जानकारी को स्पष्ट व्यक्त कर सकते हैं कि वे पशुशाला में ठहरे हुए थे और पद 7 में जानकारी का क्रम बदल सकते हैं, उनके लिए सराय में स्थान उपलब्ध नहीं था। इसलिए उन्हें पशुशाला में ठहरना पड़ा। जब मरियम ने अपने पहिलौठे पुत्र को जन्म दिया तब उसने उसे कपड़े में अच्छी तरह लपेटा और चरनी में रख दिया।
“उसके परिवेश में” या “बैतलहम के पास”
“देखभाल कर रहे थे” या “उन्हें सुरक्षित रखने के लिए चौकसी कर रहे थे”।
“भेड़ों के समूह की”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सूर्यास्त के बाद जब अन्धेरा हो गया”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है “प्रभु की ओर से एक स्वर्गदूत” या “प्रभु का सेवक स्वर्गदूत” या “प्रभु का भेजा हुआ एक स्वर्गदूत”
“उनके निकट प्रकट हुआ”
“निडर रहो”
“क्योंकि मैं तुम्हारे लिये शुभ सन्देश लाया हूँ” या "मैं तुम्हे आनन्द का समाचार सुनाता हूँ।"
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जिसे सुनकर सब लोग अति आनन्दित होंगे।”
कुछ विचारकों के अनुसार इसका अर्थ है, “सब यहूदी” और कुछ के अनुसार “सब लोग”
इसका अनुवाद हो सकता है, “दाऊद के नगर बैतलहम में”
इसका अनुवाद हो सकता है “परमेश्वर तुम्हें यह चिन्ह देता है” या “तुम परमेश्वर का यह चिन्ह देखोगे”।
यह या तो स्वर्गदूत की बात को सत्य सिद्ध करने का पता है या शिशु की पहचान का पता है। इसका अनुवाद “प्रमाण” किया जा सकता है, पहली समझ के लिए और दूसरी समझ के लिए “विशिष्ट चिन्ह”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “जिसे चादर में अच्छी तरह लपेटा गया है।"
इसका अर्थ “स्वर्गदूतों की सेना” या रूपक माने तो “व्यवस्थित समूह” हो सकता है।
इसका अनुवाद हो सकता है, “वे परमेश्वर का गुणगान कर रहे थे।"
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “सर्वोच्च स्थान में परमेश्वर की स्तुति करते” या (2) “परमेश्वर की सर्वोत्तम स्थान में चर्चा करो” या “परमेश्वर की सर्वोत्तम स्थान में चर्चा करो” या “परमेश्वर की सर्वोत्तम स्तुति करो”।
“पृथ्वी पर जिन मनुष्यों से परमेश्वर प्रसन्न है उनमें शान्ति हो”
“चरवाहों के पास से”
“एक दूसरे से”
चरवाहे एक दूसरे से बातें कर रहे हैं, अतः जिन भाषाओं में “हम” और “हमें” के समावेशी रूप हैं तो उन रूपों का यहाँ प्रयोग करें।
“चरवाहों ने मनुष्यों में चर्चा की”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “स्वर्गदूत ने उन चरवाहों से जो कहा था”।
“उस शिशु”
“चरवाहे ने उन्हें जो बातें बताई थी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन सब बातों को सावधानीपूर्वक स्मरण रखा” या “उन्हें आनन्दपूर्वक स्मरण रखा” मन में रखने का अर्थ है, कि वह बात अत्यधिक महत्त्वपूर्ण समझा था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे भेड़ों के चारागाहों में लौट गए”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर की महानता का गुणगान करते हुए”
“उन्होंने उसे यीशु नाम दिया” या “उसे यीशु नाम से पुकारा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “स्वर्गदूत ने उसे जो नाम दिया था" या "स्वर्गदूत ने उसे यही नाम दिया था”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “परमेश्वर ने जितने दिन निर्धारित किए थे वे पूरे हुए”
“धार्मिक संस्कार के अनुसार शुद्ध होने के” या “परमेश्वर द्वारा उन्हें शुद्ध स्वीकार करने के दिन”
“उसे प्रभु को समर्पित करें” या “उसे प्रभु की उपस्थिति में प्रस्तुत करें” यह एक संस्कार था जिसमें स्वीकार किया जाता था कि पहिलौठे पुत्र पर परमेश्वर का अधिकार है
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्होंने ऐसा किया क्योंकि विधान में लिखा था।"
“पहला पुत्र” विधान के अनुसार मनुष्य हो या पशु सबकी प्रथम नर सन्तान, परन्तु यहाँ अनुवाद इस प्रकार करें, “पहला जन्मा पुत्र”
ये साधारणतः पाये जाने वाले पक्षी है जो अन्न खाते हैं और खुले स्थानों में रहते हैं। वे छोटे होते हैं कि हाथों से पकड़ लिए जाए। वे खाए भी जाते हैं।
ये भी अन्न-भक्षी पक्षी हैं, और अधिकतर पर्वतों में रहते है। ये छोटे पक्षी होते हैं कि हाथों में आ जाए और खाए भी जाते हैं।
“परमेश्वर का भक्त” या “परमेश्वर का निष्ठावान”
इसका अनुवाद हो सकता है, “इस्राएल के शान्तिदाता” यह “मसीह” या “ख्रीस्त का दूसरा नाम है।
“पवित्र आत्मा उसके साथ था”, परमेश्वर उसके साथ विशेष रूप से उपस्थित था और उसे जीवन में निर्देशन एवं बुद्धि देता था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पवित्र-आत्मा ने उस पर प्रकट किया था” या “पवित्र-आत्मा ने उससे कहा था”।
इसका अनुवाद होगा “वह मरने से पहले परमेश्वर के मसीह को देखेगा” या “वह परमेश्वर के मसीह को देखने के बाद ही मरेगा”। यहाँ “प्रभु” शब्द परमेश्वर के लिए काम में लिया गया है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “गया”
इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर के निर्देशानुसार” या “पवित्र-आत्मा की अगुवाई में”
“यीशु के माता-पिता”
“परमेश्वर के विधान के अनुसार”
“उसे लिया”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “मैं तेरा दास हूँ, मुझे शान्तिपूर्वक विदा होने दे, शमौन अपने बारे में कह रहा था।
यह अलंकृत शैली है, विदा का अर्थ है मृत्यु।
इसका अनुवाद हो सकता है, “जैसा तूने कहा है” या “क्योंकि तूने कहा है कि तू करेगा”
इसका संदर्भ यीशु से है, यीशु के द्वारा परमेश्वर मनुष्यों का उद्धार करेगा।
“योजना बनाई है” या “होने का कारण बताया है”
“संपूर्ण मानवजाति के देखने के लिए”
यह उद्धारकर्ता के संदर्भ में है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है “यह बालक मनुष्यों को समर्थ बनायेगा कि वे परमेश्वर के सत्य को अति उचित ग्रहण करें जैसे ज्योति मनुष्य को देखने में समर्थ बनाती है।
इसका अनुवाद हो सकता है, “तेरी प्रजा इस्राएल में ज्योति के आगमन का कारण होगा”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “इस्राएल में अनेकों को परमेश्वर से विमुख होने या परमेश्वर के निकट आने के लिए ठहराया गया है” इस रूपक में परमेश्वर से विमुख होने तथा परमेश्वर के निकट आने के विचार को “गिरने” तथा “उठने” द्वारा व्यक्त किया गया है। इसका अनुवाद हो सकता है, “उसके लिए परमेश्वर की योजना है कि वह कुछ को परमेश्वर से दूर तथा कुछ को परमेश्वर के निकट लाए”।
यह भी एक रूपक है जो मरियम के अपार दुःख को दर्शाता है। इसका अनुवाद हो सकता है, “तेरी हार्दिक वेदना सहनशक्ति के परे होगी” या "तेरा दुःख ऐसा होगा जैसे तेरा हृदय तलवार से बेधा गया है" या “तेरा हृदय विदीर्ण होगा”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “बहुत लोगों के विचार प्रकट होंगे” या “परमेश्वर के बारे में मनुष्य जो सोचते हैं वह प्रकट हो जायेगा”
“अपने विवाह के बाद”
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) वह चौरासी वर्षों से विधवा थी, (2) वह चौरासी वर्ष की विधवा थी।
यह एक अतिशयोक्ति है कि वह मन्दिर में इतना समय रहती थी कि जैसे वह वहां से कहीं जाती ही नहीं थी। इसका अनुवाद हो सकता है, “वह सदैव मन्दिर में रहती थी” या अतिशयोक्ति-रहित अर्थ व्यक्त किया जा सकता है, “वह प्रायः मन्दिर में ही रहती थी”।
“भोजन न करके प्रार्थना करती थी”
“उनके पास आई” या “मरियम और यूसुफ के पास आई”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यरूशलेम को मुक्त कराने वाले की” या “यरूशलेम के लिए परमेश्वर की आशिषों और अनुग्रह को लौटा लाने वाले की” यहाँ “छुटकारा” शब्द उसके कर्ता के लिए काम में लिया गया है।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “परमेश्वर के विधान के अनुसार जो अनिवार्य था” या (2) “परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उनके लिए जो आवश्यक था”।
“अधिकाधिक बुद्धिमान होता गया” या “बुद्धिमान होना सीखता गया”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर ने उसे आशीष दी” या “परमेश्वर उसके साथ विशेष रूप में था”।
“यीशु के माता-पिता”
यरूशलेम पहाड़ पर था, अतः उपासकों को ऊपर चढ़ना होता था।
“जब पर्व के दिन पूरे हो गए” या “पर्व के जितने दिन थे, उसके बाद”।
“उन्होंने सोचा”
“एक दिन की यात्रा कर चुके” या “एक दिन की पद यात्रा तक आगे निकल गए”।
“जब मरियम और यूसुफ को यीशु नहीं मिला”
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण घटना का बोध करवाया गया है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
इसका अनुवाद हो सकता है, “मन्दिर परिसर में” या “मन्दिर के द्वार”
इसका अर्थ उनके बीचों-बीच नहीं वरन “उनके साथ” या “उनकी संगति में” या “उनके मध्य” (यू.डी.बी.)
“धर्म के शिक्षकों” या “परमेश्वर की शिक्षा देने वालों”
इसका अनुवाद हो सकता है, “वह कितना अधिकार समझता था” या “कि वह परमेश्वर के बारे में इतनी समझ रखता है”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “उसके उचित उत्तरों” या “वह उनके प्रश्नों के ऐसे उचित उत्तर देता था।”
“जब मरियम और यूसुफ ने यीशु को वहां देखा”
इसका अनुवाद हो सकता है, “तू ऐसा कैसे कर सकता है” यह एक प्रकार की अप्रत्यक्ष डांट है क्योंकि वह घर लौटने में उनके साथ नहीं था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम मुझे अन्यत्र क्यों खोज रहे थे?”
यह शब्द एक नई घटना का सूचक है। इसके द्वारा कार्य का आरंभ भी दर्शाया जाता है। यदि आपकी भाषा में इसके लिए शब्द है तो देखें कि उनका उपयोग स्वभाविक होगा।
यह एक ऐसा प्रश्न है, जो जानकारी के लिए नहीं, प्रभाव डालने के लिए पूछा जाता है। यीशु उनकी जानकारी नहीं चाहता था परन्तु उन पर कुछ प्रकट कर रहा था इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम्हें जानता था”।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “मेरे पिता के भवन में” या (2) “मेरे पिता के काम में”, दोनों ही में यीशु जब कहता है, “मेरे पिता” तो वह परमेश्वर को संबोधित कर रहा है। “भवन” से उसका अभिप्राय था मन्दिर। “काम” से उसका तात्पर्य था, परमेश्वर प्रदत्त कार्य। क्योंकि अगले पद में कहा गया है कि उन्होंने उसे नहीं समझा इसलिए उचित होगा कि इसे व्यख्या द्वारा स्पष्ट करें।
“यीशु मरियम और यूसुफ के साथ लौट गया”
“उनकी आज्ञा मानता रहा” या “उनका आज्ञाकारी बना रहा”।
“सावधानीपूर्वक स्मरण रखा” या “आनन्द से विचार किया” मरियम ने अपने पुत्र के कामों और बातों को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण समझा था।
“अधिकाधिक बुद्धिमान और बलवन्त होता गया”
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्य उसे अधिकाधिक चाहने लगे थे और परमेश्वर भी उसे अधिकाधिक आशीष देता रहा था।
लोग नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने नगर को गए।
यूसुफ और मरियम बैतलहम गए क्योंकि यूसुफ दाऊद का वंशज था।
शिशु का जन्म होने पर मरियम ने उसे पशुओं की चरनी में रखा।
अपनी भेड़ो की रखवाली कर रहे चरवाहों को स्वर्गदूत दिखाई दिया।
चरवाहे बहुत डर गए थे।
स्वर्गदूत ने उन चरवाहों से कहा कि उद्धारकर्ता जन्मा है, यही मसीह प्रभु है।
चरवाहे उस नवजात बालक को देखने बैतलहम गए।
जन्म के आठवें दिन यीशु का खतना किया गया।
वे उसे परमेश्वर को समर्पित करने और बलि चढ़ाने के लिए मन्दिर गए जो मूसा की व्यवस्था में एक आज्ञा थी।
पवित्र आत्मा ने शमौन से कहा था कि जब तक वह प्रभु के मसीह को न देख ले तब तक यह नहीं मरेगा।
शमौन ने भविष्यद्वाणी की कि यीशु अन्यजातियों में सत्य प्रकाशन की ज्योति और परमेश्वर की प्रजा की महिमा होगा।
शमौन ने कहा कि उसका प्राण तलवार से छेदा जायेगा।
हन्नाह परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी और उस बालक के विषय में सबसे बातें करने लगी।
यीशु बढ़ता और बलवन्त होता गया और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर था।
उन्हें इसका बोध नहीं था क्योंकि उन्होंने सोचा कि यीशु साथ चल रहे समूह में ही होगा।
उसके माता-पिता ने उसे मन्दिर में पाया, वह मन्दिर में उपदेशकों की बातें सुन रहा था और उनसे प्रश्न पूछ रहा था।
"क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?"
वह उनका आज्ञाकारी रहा।
वह बुद्धि और शरीर में बढ़ता गया और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया।
1 तिबिरियुस कैसर के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष में जब पुन्तियुस पिलातुस यहूदिया का राज्यपाल था, और गलील में हेरोदेस इतूरैया, और त्रखोनीतिस में, उसका भाई फिलिप्पुस, और अबिलेने में लिसानियास चौथाई के राजा थे। 2 और जब हन्ना और कैफा महायाजक* थे, उस समय परमेश्वर का वचन जंगल में जकर्याह के पुत्र यूहन्ना के पास पहुँचा। 3 और वह यरदन के आस-पास के सारे प्रदेश में आकर, पापों की क्षमा के लिये मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करने लगा। 4 जैसे यशायाह भविष्यद्वक्ता के कहे हुए वचनों की पुस्तक में लिखा है:
“जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा है कि,
‘प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो।
5 हर एक घाटी भर दी जाएगी, और हर एक
पहाड़ और टीला नीचा किया जाएगा;
और जो टेढ़ा है सीधा, और जो ऊँचा नीचा
है वह चौरस मार्ग बनेगा।
6 और हर प्राणी परमेश्वर के उद्धार को देखेगा’।” (यशा. 40:3-5)
7 जो बड़ी भीड़ उससे बपतिस्मा लेने को निकलकर आती थी, उनसे वह कहता था, “हे साँप के बच्चों, तुम्हें किस ने चेतावनी दी, कि आनेवाले क्रोध से भागो। 8 अतः मन फिराव के योग्य फल लाओ: और अपने-अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता अब्राहम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिये सन्तान उत्पन्न कर सकता है। 9 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है।” 10 और लोगों ने उससे पूछा, “तो हम क्या करें?” 11 उसने उन्हें उतर दिया, “जिसके पास दो कुर्ते हों? वह उसके साथ जिसके पास नहीं हैं बाँट ले और जिसके पास भोजन हो, वह भी ऐसा ही करे।” 12 और चुंगी लेनेवाले भी बपतिस्मा लेने आए, और उससे पूछा, “हे गुरु, हम क्या करें?” 13 उसने उनसे कहा, “जो तुम्हारे लिये ठहराया गया है, उससे अधिक न लेना।” 14 और सिपाहियों ने भी उससे यह पूछा, “हम क्या करें?” उसने उनसे कहा, “किसी पर उपद्रव न करना, और न झूठा दोष लगाना, और अपनी मजदूरी पर सन्तोष करना।” 15 जब लोग आस लगाए हुए थे, और सब अपने-अपने मन में यूहन्ना के विषय में विचार कर रहे थे, कि क्या यही मसीह तो नहीं है। 16 तो यूहन्ना ने उन सब के उत्तर में कहा, “मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु वह आनेवाला है, जो मुझसे शक्तिशाली है; मैं तो इस योग्य भी नहीं, कि उसके जूतों का फीता खोल सकूँ, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा। 17 उसका सूप, उसके हाथ में है; और वह अपना खलिहान अच्छी तरह से साफ करेगा; और गेहूँ को अपने खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जो बुझने की नहीं जला देगा।” 18 अतः वह बहुत सी शिक्षा दे देकर लोगों को सुसमाचार सुनाता रहा।
19 परन्तु उसने चौथाई देश के राजा हेरोदेस को उसके भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के विषय, और सब कुकर्मों के विषय में जो उसने किए थे, उलाहना दिया। 20 इसलिए हेरोदेस ने उन सबसे बढ़कर यह कुकर्म भी किया, कि यूहन्ना को बन्दीगृह में डाल दिया।
21 जब सब लोगों ने बपतिस्मा लिया, और यीशु भी बपतिस्मा लेकर प्रार्थना कर रहा था, तो आकाश खुल गया। 22 और पवित्र आत्मा शारीरिक रूप में* कबूतर के समान उस पर उतरा, और यह आकाशवाणी हुई “तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्न हूँ।”
23 जब यीशु आप उपदेश करने लगा, तो लगभग तीस वर्ष की आयु का था और (जैसा समझा जाता था) यूसुफ का पुत्र था; और वह एली का, 24 और वह मत्तात का, और वह लेवी का, और वह मलकी का, और वह यन्ना का, और वह यूसुफ का, 25 और वह मत्तित्याह का, और वह आमोस का, और वह नहूम का, और वह असल्याह का, और वह नोगह का, 26 और वह मात का, और वह मत्तित्याह का, और वह शिमी का, और वह योसेख का, और वह योदाह का, 27 और वह यूहन्ना का, और वह रेसा का, और वह जरुब्बाबेल का, और वह शालतियेल का, और वह नेरी का, (एज्रा 3:2, नहे. 12:1) 28 और वह मलकी का, और वह अद्दी का, और वह कोसाम का, और वह इलमोदाम का, और वह एर का, 29 और वह येशू का, और वह एलीएजेर का, और वह योरीम का, और वह मत्तात का, और वह लेवी का, 30 और वह शमौन का, और वह यहूदा का, और वह यूसुफ का, और वह योनान का, और वह एलयाकीम का, 31 और वह मलेआह का, और वह मिन्नाह का, और वह मत्तता का, और वह नातान का, और वह दाऊद का, (2 शमू. 5:14) 32 और वह यिशै का, और वह ओबेद का, और वह बोआज का, और वह सलमोन का, और वह नहशोन का, (रूत 4:20-22) 33 और वह अम्मीनादाब का, और वह अरनी का, और वह हेस्रोन का, और वह पेरेस का, और वह यहूदा का, (1 इति. 2:1-14) 34 और वह याकूब का, और वह इसहाक का, और वह अब्राहम का, और वह तेरह का, और वह नाहोर का, (उत्प. 21:3, उत्प. 25:26, 1 इति. 1:28,34) 35 और वह सरूग का, और वह रऊ का, और वह पेलेग का, और वह एबिर का, और वह शिलह का, 36 और वह केनान का, वह अरफक्षद का, और वह शेम का, वह नूह का, वह लेमेक का, (उत्प. 11:10-26, 1 इति. 1:24-27) 37 और वह मथूशिलह का, और वह हनोक का, और वह यिरिद का, और वह महललेल का, और वह केनान का, 38 और वह एनोश का, और वह शेत का, और वह आदम का, और वह परमेश्वर का पुत्र था। (उत्प. 4:25-5:32, 1 इति. 1:1-4)
वे दोनों प्रधान पुरोहित का कार्यभार उठा रहे थे।
आकर "यूहन्ना ने वहां पहुचकर”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “प्रचार करता था कि मनुष्यों को अपने पापों के त्याग के प्रमाण हेतु बपतिस्मा लेना आवश्यक है।”
“कि उनके पाप क्षमा हों” या “कि परमेश्वर उनके पाप क्षमा करे”, “मन फिराव” पापों की क्षमा के लिए था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “यह वैसा ही हुआ जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने अपनी पुस्तक में लिखा था”, पद 4-6 यशायाह की पुस्तक के उद्धरण हैं। .
“पथ” या “सड़क”
यह अंश इब्रानी कविता का रूप है, जिसमें महत्त्वपूर्ण वाक्यांशों को पर्यायवाची शब्दों में दोहराया जाता है, अतः “प्रभु का मार्ग तैयार करो” को ही व्यक्त करने का दूसरा रूप है, “उसकी सड़के सीधी करो।” यहाँ मुख्य अन्तर है, पहला वाक्यांश प्रकट करता है कि ऐसा पहली बार हुआ है और दूसरा वाक्यांश प्रकट करता है कि ऐसा होते रहता है।
मार्ग के इस रूपक का अर्थ है, “पापों से विमुख होकर प्रभु के आगमन के लिए तैयार करो।”
सड़क की यह उपमा भी एक रूपक है जिसका अर्थ है, “प्रभु के आगमन के लिए लगातार तैयारी करते रहो”।
(यशायाह की भविष्यद्वाणी का उद्धरण अभी समाप्त नहीं हुआ है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मार्ग का हर एक नीचा स्थान भर दिया जायेगा” एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के आगमन की तैयारी में जब वे सड़के तैयार करते हैं तब ऊंचे नीचे स्थानों में मलवा डालकर सड़क को समतल कर दिया जाता है। यह उस रूपक का ही अंश है जिसका आरंभ पिछले पद में हुआ था।
इसका भी अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वे हर एक पर्वत एवं टीले को समतल कर देंगे” या “वे मार्ग के हर एक ऊंचे भाग को सीधा कर देंगे”।
इसका अनुवाद होगा, “सीखेगा कि परमेश्वर मनुष्यों का कैसे उद्धार करता है”।
“कि यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा दे”
यह भी एक रूपक है। विषैले सर्प खतरनाक होते है और बुराई के प्रतीक हैं। इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम दुष्ट विषैले सर्पों” या “तुम विषैले सर्पों के समान दुष्ट हो।”
यूहन्ना यह आलंकारिक प्रश्न पूछ रहा है, “क्योंकि वे बपतिस्मा इसलिए ले रहे थे कि परमेश्वर उन्हें पापों का दण्ड न दे परन्तु वे पाप करना नहीं छोड़ रहे थे”, इसलिये वह उन्हें झिड़क रहा है। इस संपूर्ण प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम इस प्रकार परमेश्वर के हाथ से बच नहीं पाओगे” या “क्या तुम यह सोच रहे हो कि बपतिस्मा लेकर तुम परमेश्वर के क्रोध से बच जाओगे”?
इसका अनुवाद हो सकता है, “आनेवाले दण्ड से” या “परमेश्वर के उस क्रोध से जिसे वह कार्य रूप देगा” या “क्योंकि परमेश्वर तुम्हें दण्ड देने वाला है” यहाँ “क्रोध” परमेश्वर के दण्ड का प्रतीक है क्योंकि दण्ड से पूर्व वह क्रोध करता है।
(यूहन्ना जनसमूह को संबोधित करके कह रहा है)
इसका अनुवाद ऐसे भी हो सकता है, “ऐसे फल लाओ कि तुम्हारा पाप त्याग प्रकट हो”, या “ऐसे भले काम करो जिससे प्रकट हो कि तुम पापों से विमुख हो गए थे” इस रूपक में मनुष्य के आचरण की तुलना फलों से की गई है। जिस प्रकार वृक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने फल उत्पन्न करे, उसी प्रकार मनुष्य जो पापों से विमुख होने का दावा करता है उससे अपेक्षा की जाती है कि वह धार्मिकता का जीवन जीये।
“अपने आपसे यह न कहो” या “मन में यह न कहो” या “मत सोचो”
“अब्राहम हमारा पूर्वज है” या “हम अब्राहम की सन्तान हैं” यह स्पष्ट नहीं कि वे ऐसा क्यों सोचेंगे, आप सलंग्न जानकारी व्यक्त कर सकते हैं, “कि परमेश्वर हमें दण्ड न दे”।
(यूहन्ना जनसमूह से बातें कर रहा है)
कुल्हाडा पेड़ों की जड़ों पर धरा है -, इस रूपक का अर्थ है कि दण्ड का आरंभ होने वाला है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यह ऐसा है कि कुल्हाडा पेड़ों की जड़ो पर प्रहार के लिए तैयार है” या “परमेश्वर उस मनुष्य के समान है जो पेड़ को काटकर गिराने क लिए कुल्हाड़ा उठा चुका है”।
यह कर्मवाच्य वाक्य है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “वह उस हर एक वृक्ष को काटकर गिरा देता है जो अच्छा फल नहीं लाता है।”
आग में झोंका जाता है - इसका अनुवाद कतृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “उसे आग में झोंकता है।”
“उससे प्रश्न किया” या “यूहन्ना से पूछा”
“उनसे प्रत्युत्तर में कहा” या “उनसे कहा” या “कहा”
“इसी प्रकार करो” यहाँ इसका अनुवाद किया जा सकता है, “जिसके पास भोजन नहीं है उसे भोजन दो”।
“कि यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा दे”
“अधिक वसूली मत करो” या “निर्धारित से अधिक कर न लो” चुंगी लेने वाले यथार्थ चुंगी से अधिक वसूल करते थे। उन्हें अपने पाप त्याग के परिणामस्वरूप ऐसा करना था।
“जितना तुम्हें अधिकार दिया गया है”
“सेना में सेवारत”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तूने लोगों को और चुंगी लेने वालो को तो बताया कि वे क्या करें परन्तु हम सैनिकों के बारे में क्या, हम क्या करें”? “हम” और “हमारे” में यूहन्ना नहीं आता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इसी प्रकार किसी पर झूठा दोष लगाकर रिश्वत मत लो” या “किसी निर्दोष को अवैध काम का दोषी मत बनाओ” सैनिक झूठा दोष लगाकर रिश्वत लेते थे।
“अपने वेतन से सन्तुष्ट रहो” या “जो तुम्हें दिया जाता है उसी में सन्तोष करो”।
वही लोग जो यूहन्ना के पास आए थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “क्योंकि मनुष्य”।
“मैं बपतिस्में के लिए पानी काम में लेता हूँ” या “मैं पानी के माध्यम से बपतिस्मा देता हूँ”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं तो उसके जूतों का बन्ध खोलने के लिए भी महत्त्व नहीं रखता”, जूतों का बन्ध खोलना दासों का काम होता था। यूहन्ना के कहने का तात्पर्य था कि वह ऐसा महान है कि यूहन्ना उसके लिए दास-योग्य भी नहीं।
उनके जूते ऐसे होते थे जिनको बन्ध पांव को जूते से बांधते थे जैसे आज की सैंडल।
यह उपमा पानी के बपतिस्में की तुलना आत्मिक बपतिस्में से करते हैं जो मनुष्य को पवित्र-आत्मा और आग के संपर्क में लाता है।
(यूहन्ना मसीह के बारे में ही चर्चा कर रहा था।)
इस रूपक द्वारा धर्मियों को अधर्मियों से चुन कर अलग करने की तुलना अन्न के दानों को भूसी से अलग करने के साथ की गई है। इसका अनुवाद उपमा रूप में किया जा सकता है कि संबन्ध को अधिक स्पष्ट व्यक्त किया जाए, “मसीह उस मनुष्य के सदृश्य है जिसके हाथ में ओसाई कांटा है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह ओसाई कांटा हाथ में लिए हुए है, क्योंकि वह तैयार है”।
यह मूल में ओसाई कांटा है जिसके द्वारा दांवनी किए हुए गेहूँ को हवा में उछाला जाता है, अन्न भारी होने के कारण नीचे गिरता है और भूसी हवा में उड़ जाती है।
यह वह स्थान है जहाँ किसान अन्न को भूसी से अलग करता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इसका स्थान” या “गेहूँ को भूसी से अलग करने का स्थान”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तब वह अन्न एकत्र करेगा”
“कोठार” या “अनाज भण्डार” यहाँ अन्न को भावी उपयोग के लिए सुरक्षित रखा जाता है।
भूसी किसी काम की नहीं होती थी इसलिए लोग उसे जला देते थे।
इसका अनुवाद हो सकता है, “उसके प्रबल प्रबोधनों” या “यूहन्ना ने अनेक बार मनुष्यों को पाप त्याग का प्रोत्साहन देकर और...”
“चौथाई क्षेत्र के राजा हेरोदेस को उसके पापों के बारे में बताया, हेरोदेस चौथाई प्रदेश का प्रशासक था, राजा नहीं। उसके हाथ में गलील का सीमित प्रशासन था।
“क्योंकि हेरोदेस ने अपने सगे भाई की पत्नी से विवाह किया था”।
“उसने अपने सैनिकों को आज्ञा देकर यूहन्ना को कारागार में डलवा दिया था।”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“सब लोगों का अर्थ है, यूहन्ना के साथ उपस्थित सब जन। इसका अनुवाद हो सकता है, “जब यूहन्ना सबको बपतिस्मा दे रहा था”
इसका अनुवाद हो सकता है, “यूहन्ना ने यीशु को भी बपतिस्मा दिया”
“आकाश खुल गया” या “आकाश खुला हो गया” यह बादलों के हटने से कहीं अधिक है परन्तु इसका अर्थ स्पष्ट नहीं है। इसका संभावित अर्थ होगा, कि आकाश में एक छेद दिखाई दिया।
“पवित्र आत्मा यीशु पर उतरा”
कबूतर एक छोटा पक्षी होता है जिसे वे मन्दिर में बलि चढ़ाने या खाने के काम में लेते थे। यह कबूतर जैसा है
“कबूतर के सदृश्य शारीरिक रूप में”
यहाँ कहानी में परिवर्तन आता है। यीशु की आयु और उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि दी गई है। इसका समापन लूका 3:37 में होता है यदि आपकी भाषा में प्रावधान है कि अग्रिम भाग पृष्ठभूमि आधारित जानकारी है तो उसका उपयोग करें।
“यह यीशु” या “यह व्यक्ति यीशु”
“वह भी यूसुफ का पुत्र कहलाता था” या “उसे यूसुफ का पुत्र माना जाता था” लोगों की समझ में वह यूसुफ का पुत्र था”।
कुछ अनुवादक यहाँ एक नया वाक्य आरंभ करना चाहेंगे, “यूसुफ एली का पुत्र था” या “एली यूसुफ का पिता था”।
“का पुत्र” संलग्न जानकारी है। सलंग्न में मात्र यही लिखा है, “एली का .... वह मतात का और वह लेवी का.... इस सूची का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,” वह एली का पुत्र था, और वह मतात का पुत्र था, और वह लेवी का पुत्र था....” या “यूसुफ एली का पुत्र था, एली मतात का पुत्र था, मतात लेवी का पुत्र था” या “एली का पिता मतात, मतात का पिता लेवी....” इस बात का ध्यान रखें कि आपकी भाषा में पूर्वजों की सूची कैसे बनाई जाती है। आप संपूर्ण सूची में वही भाषा काम में लें।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह मत्तियाह का पुत्र था, और वह आमोस का पुत्र था ...” या “यूसुफ मत्तियाह का पुत्र और मत्तियाह आमोस का पुत्र था....” या "युसूफ का पिता मत्तियाह था, मत्तियाह का पिता आमोस..." शब्दावली वही काम में लें जो आपने पिछले पदों में काम में ली है।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वह यूहन्ना का पुत्र था, और वह रेसा का पुत्र था.... “ या “योदाह यूहन्ना का पुत्र था, यूहन्ना रेसा का पुत्र था...” या “योह का पिता यूहन्ना था, यूहन्ना का पिता रेसा था....” शब्दावली वही काम में ले जो पिछले पदों में काम में ली है।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद हो सकता है, “वह शमौन का पुत्र था, और वह यहूदा का पुत्र था....” या “लेवी शमौन का पुत्र था, शमौन यहूदा का पुत्र था....” या “लेवी का पिता शमौन था, शमौन का पिता यहूदा था.....” शब्दावली वही काम में लें जो पिछले पदों में काम में ली है।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद हो सकता है, “वह अम्मीनादाब का पुत्र था और वह अरनी का पुत्र था....” या “लेवी (नहशोन) अम्मीनादाब का पुत्र था, अम्मीनादाब अरनी का पुत्र था....” या “नहशोन का पिता अम्मीनादाब था, अम्मीनादाब का पिता अरनी था....” शब्दावली वही काम में ले जो पिछले पदों में काम में ली है।
(यह यीशु के पूर्वजों की सूची है)
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वह कनान का पुत्र था और वह अरफक्षद का पुत्र था....” या लेवी केनान का पुत्र था और केनान अरफक्षद का पुत्र था....” या “शिलह का पिता केनान या और केनान का पिता अरफक्षद था....” शब्दावली वही काम में लें जो पिछले पदों में काम में ली है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आदम परमेश्वर द्वारा सृजा गया था” या “आदम जो परमेश्वर से था” या “आदम, हम कह सकते हैं परमेश्वर का पुत्र था”।
यूहन्ना पापों की क्षमा के लिए मन फिराव के बपतिस्में का प्रचार करता था।
यूहन्ना ने कहा कि वह प्रभु का मार्ग तैयार कर रहा था।
यूहन्ना ने उससे कहा कि वे मन फिराने के योग्य फल लाएं।
यूहन्ना ने कहा कि वह काटकर आग में डाल दिया जाता है।
यूहन्ना ने कहा कि उन्हें वास्तविक राशी से अधिक कर नहीं लेना चाहिए।
यूहन्ना ने कहा कि कोई आ रहा है, वह पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।
यूहन्ना ने हेरोदेस को झिड़का क्योंकि उसने अपने भाई की पत्नी से विवाह किया था और अनेक दुष्कर्म किये थे।
हेरोदेस ने यूहन्ना को बन्दीगृह में डलवा दिया था।
यीशु जब यूहन्ना से बपतिस्मा ले चुका तब आकाश खुल गया और पवित्र आत्मा कबूतर के रूप में उस पर उतरा।
आकाशवाणी में कहा गया, "तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझसे प्रसन्न हूं"।
यीशु लगभग तीस वर्ष का था जब उसने प्रचार करना आरंभ किया।
1 फिर यीशु पवित्र आत्मा से भरा हुआ, यरदन से लौटा; और आत्मा की अगुआई से जंगल में फिरता रहा; 2 और चालीस दिन तक शैतान उसकी परीक्षा करता रहा*। उन दिनों में उसने कुछ न खाया और जब वे दिन पूरे हो गए, तो उसे भूख लगी। 3 और शैतान ने उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो इस पत्थर से कह, कि रोटी बन जाए।” 4 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है: ‘मनुष्य केवल रोटी से जीवित न रहेगा’।” (व्य. 8:3) 5 तब शैतान उसे ले गया और उसको पल भर में जगत के सारे राज्य दिखाए। 6 और उससे कहा, “मैं यह सब अधिकार, और इनका वैभव तुझे दूँगा, क्योंकि वह मुझे सौंपा गया है, और जिसे चाहता हूँ, उसे दे सकता हूँ। 7 इसलिए, यदि तू मुझे प्रणाम करे, तो यह सब तेरा हो जाएगा।” 8 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर; और केवल उसी की उपासना कर’।” (व्य. 6:13-14) 9 तब उसने उसे यरूशलेम में ले जाकर मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, और उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को यहाँ से नीचे गिरा दे। 10 क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, कि वे तेरी रक्षा करें’ 11 और ‘वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे ऐसा न हो कि तेरे पाँव में पत्थर से ठेस लगे’।” (भज. 91:11,12) 12 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यह भी कहा गया है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न करना’।” (व्य. 6:16) 13 जब शैतान सब परीक्षा कर चुका, तब कुछ समय के लिये उसके पास से चला गया*।
14 फिर यीशु आत्मा की सामर्थ्य से भरा हुआ, गलील को लौटा, और उसकी चर्चा आस-पास के सारे देश में फैल गई। 15 और वह उन ही आराधनालयों में उपदेश करता रहा, और सब उसकी बड़ाई करते थे।।
16 और वह नासरत में आया; जहाँ उसका पालन-पोषण हुआ था; और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ। 17 यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक* उसे दी गई, और उसने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहाँ यह लिखा था :
18 “प्रभु का आत्मा मुझ पर है,
इसलिए कि उसने कंगालों को सुसमाचार
सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है,
और मुझे इसलिए भेजा है, कि बन्धुओं
को छुटकारे का
और अंधों को दृष्टि
पाने का सुसमाचार प्रचार करूँ और
कुचले हुओं को छुड़ाऊँ, (यशा. 58:6, यशा. 61:1,2)
19 और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष* का प्रचार करूँ।”
20 तब उसने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथ में दे दी, और बैठ गया: और आराधनालय के सब लोगों की आँखें उस पर लगी थी। 21 तब वह उनसे कहने लगा, “आज ही यह लेख तुम्हारे सामने पूरा हुआ है।” 22 और सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुँह से निकलती थीं, उनसे अचम्भित हुए; और कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?” (लूका 2:42, भज. 45:2) 23 उसने उनसे कहा, “तुम मुझ पर यह कहावत अवश्य कहोगे, ‘कि हे वैद्य, अपने आप को अच्छा कर! जो कुछ हमने सुना है कि कफरनहूम में तूने किया है उसे यहाँ अपने देश में भी कर’।” 24 और उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कोई भविष्यद्वक्ता अपने देश में मान-सम्मान नहीं पाता। 25 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि एलिय्याह के दिनों में जब साढ़े तीन वर्ष तक आकाश बन्द रहा, यहाँ तक कि सारे देश में बड़ा आकाल पड़ा, तो इस्राएल में बहुत सी विधवाएँ थीं। (1 राजा. 17:1, 1 राजा. 18:1) 26 पर एलिय्याह को उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, केवल सैदा के सारफत में एक विधवा के पास। (1 राजा. 17:9) 27 और एलीशा भविष्यद्वक्ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर सीरिया वासी नामान को छोड़ उनमें से काई शुद्ध नहीं किया गया।” (2 राजा. 5:1-14) 28 ये बातें सुनते ही जितने आराधनालय में थे, सब क्रोध से भर गए। 29 और उठकर उसे नगर से बाहर निकाला, और जिस पहाड़ पर उनका नगर बसा हुआ था, उसकी चोटी पर ले चले, कि उसे वहाँ से नीचे गिरा दें। 30 पर वह उनके बीच में से निकलकर चला गया।।
31 फिर वह गलील के कफरनहूम नगर में गया, और सब्त के दिन लोगों को उपदेश दे रहा था। 32 वे उसके उपदेश से चकित हो गए क्योंकि उसका वचन अधिकार सहित था। 33 आराधनालय में एक मनुष्य था, जिसमें अशुद्ध आत्मा थी। 34 वह ऊँचे शब्द से चिल्ला उठा, “हे यीशु नासरी, हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं तुझे जानता हूँ तू कौन है? तू परमेश्वर का पवित्र जन है!” 35 यीशु ने उसे डाँटकर कहा, “चुप रह और उसमें से निकल जा!” तब दुष्टात्मा उसे बीच में पटककर बिना हानि पहुँचाए उसमें से निकल गई। 36 इस पर सब को अचम्भा हुआ, और वे आपस में बातें करके कहने लगे, “यह कैसा वचन है? कि वह अधिकार और सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आज्ञा देता है, और वे निकल जाती हैं।” 37 अतः चारों ओर हर जगह उसकी चर्चा होने लगी।
38 वह आराधनालय में से उठकर शमौन के घर में गया और शमौन की सास को तेज बुखार था, और उन्होंने उसके लिये उससे विनती की। 39 उसने उसके निकट खड़े होकर ज्वर को डाँटा और ज्वर उतर गया और वह तुरन्त उठकर उनकी सेवा-टहल करने लगी। 40 सूरज डूबते समय जिन-जिनके यहाँ लोग नाना प्रकार की बीमारियों में पड़े हुए थे, वे सब उन्हें उसके पास ले आएँ, और उसने एक-एक पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। 41 और दुष्टात्मा चिल्लाती और यह कहती हुई, “तू परमेश्वर का पुत्र है,” बहुतों में से निकल गई पर वह उन्हें डाँटता और बोलने नहीं देता था, क्योंकि वे जानती थी, कि यह मसीह है।
42 जब दिन हुआ तो वह निकलकर एक एकांत स्थान में गया, और बड़ी भीड़ उसे ढूँढ़ती हुई उसके पास आई, और उसे रोकने लगी, कि हमारे पास से न जा। 43 परन्तु उसने उनसे कहा, “मुझे और नगरों में भी परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना अवश्य है, क्योंकि मैं इसलिए भेजा गया हूँ।” 44 और वह गलील के आराधनालयों में प्रचार करता रहा।
अर्थात यूहन्ना द्वारा यीशु को बपतिस्मा देने के बाद। इसका अनुवाद हो सकता है, “फिर जब यीशु का बपतिस्मा हो गया”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “आत्मा उसे ले गया”
इसका अनुवाद हो सकता है, “शैतान ने परमेश्वर की आज्ञा न मानने के लिए उसे परखा”। स्पष्ट नहीं है कि संपूर्ण समय शैतान उसकी परीक्षा ले रहा था या केवल समय के अन्त में उसकी परीक्षा ली। इसका भी अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है। “वहां शैतान ने उसकी परीक्षा ली”।
“उसने” अर्थात यीशु ने।
शैतान संभव है कि यीशु को चुनौती दे रहा था कि वह स्वयं को परमेश्वर का पुत्र सिद्ध करके दिखाए।
शैतान या तो पत्थर हाथ में लिए हुए था या निकट में पड़े एक पत्थर की ओर संकेत कर रहा था।
“धर्मशास्त्र में लिखा है” या “धर्मशास्त्र कहता है” या “धर्मशास्त्र में परमेश्वर ने कहा है” यह उद्धरण व्यवस्थाविवरण की पुस्तक से है। .
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्य केवल रोटी ही से जीवित नहीं रहता है” या “मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन मात्र की ही आवश्यकता नहीं है”। रोटी का अर्थ है भोजन। मुख्य बात यह है कि भोजन ही जीवन नही है कि मनुष्य का पोषण हो। मनुष्य को परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना है। यीशु धर्मशास्त्र के उद्धरण द्वारा कह रहा था कि वह पत्थर को रोटी क्यों नहीं बनाएगा।
“एक ऊंचे पर्वत पर ले गया”
“पलक झपकते ही” या “तत्काल ही”
“अतः”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि तू मेरे सामने घुटने टेके” या “यदि तू झुक कर मेरी उपासना करे” या “यदि तू मुझे दण्डवत करके मेरी उपासना करे”।
इसका अनुवाद हो सकता है,“मैं यह संपूर्ण साम्राज्य तुझे दे दूंगा”।
“प्रतिक्रिया में कहा” या “उसकी बात काटते हुए कहा”
इसका अनुवाद ऐसा हो सकता है, “धर्मशास्त्र में लिखा है।” या “धर्मशास्त्र कहता है” या “धर्मशास्त्र में परमेश्वर ने कहा है” यीशु व्यवस्थाविवरण की पुस्तक से उद्धरण प्रस्तुत कर रहा है।
यीशु धर्मशास्त्र को एक विधान का संदर्भ दे रहा है, जो उसके लिए शैतान की उपासना न करने का कारण है।
तू अर्थात पुराने नियम के लोग जिन्हें परमेश्वर का विधि-विधान दिया गया था। आप “तू” को एकवचन में काम में लें क्योंकि विधान का पालन करना प्रत्येक जन के लिए अनिवार्य था।
उसे अर्थात प्रभु परमेश्वर की
यह मन्दिर की छत का कोना था यदि कोई वहां से गिरा या कूदा तो गंभीर रूप से घायल हो जाता या मर जाता।
शैतान संभव है कि यीशु को चुनौती दे रहा था कि वह स्वयं को परमेश्वर का पुत्र सिद्ध करके दिखाए।
यहाँ से नीचे गिरा दे - “नीचे कूद जा”
इसका अनुवाद होगा, “धर्मशास्त्र में लिखा है” या “धर्मशास्त्र क्या है” या “परमेश्वर ने धर्मशास्त्र में कहा है” शैतान ने भजनसंहिता का आधा ही उद्धरण दिया था कि यीशु को कूदने पर विवश करे।
"वह" अर्थात परमेश्वर
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “धर्मशास्त्र कहता है”, या “लिखा है” यीशु व्यवस्थाविवरण की पुस्तक का उद्धरण दे रहा था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “अपने प्रभु परमेश्वर को नहीं परखना” यीशु ने धर्मशास्त्र के संदर्भ से स्पष्ट कर दिया कि वह परमेश्वर को परखेगा नहीं कि नीचे कूद जाए। यह आज्ञा परमेश्वर के लोगों के लिए है।
“किसी और अवसर तक के लिए”
आत्मा की सामर्थ्य से भरा हुआ - इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “और आत्मा उसे सामर्थ्य प्रदान कर रहा था” परमेश्वर विशेष रूप में यीशु के साथ था और उसे ऐसे काम करने में समर्थ कर रहा था जो मनुष्य नहीं कर सकता था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्यों ने यीशु की चर्चा चारों ओर की” या “लोगों ने सबको यीशु के बारे में बता दिया” या “उसकी जानकारी मनुष्य से मनुष्य को मिल गई” जिन्होंने यीशु की बातें सुनी उन्होंने दूसरों को उसके बारे में बताया और उन लोगों ने औरों को बताया।
गलील के परिक्षेत्र में सब स्थानों में
“सब उसके बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते थे” या “सब उसके बारे में प्रशंसा करते थे”।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जहाँ उसके माता-पिता ने उसका पालन पोषण किया था” या “जहाँ वह बड़ा हुआ था” या “जहाँ उसका बाल्यकाल बीता था”।
“जैसा वह सामान्यतः करता था” सब्त के दिन आराधनालय में जाना उसका अभ्यास था।
उसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “किसी ने उसे यशायाह की पुस्तक दी”
यशायाह ने वर्षों पूर्व अपनी भविष्यद्वाणियां लिखी थी जिनकी नकल कुंडलीग्रन्थ में की गई थी। अत: यह उक्ति उसी पुस्तक के सन्दर्भ में है।
“उस कुंडलीग्रन्थ में वह स्थान जहाँ लिखा था” या “कुडलीग्रन्थ में जहाँ ये शब्द लिखे थे”
(यीशु ने यशायाह की पुस्तक से पढ़ा )
“परमेश्वर विशेष रूप में मेरे साथ है” किसी के द्वारा ऐसा कहने का अर्थ है कि परमेश्वर के वचनों का कहने का दावा करना।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बन्दी मनुष्यों को मुक्ति का सन्देश सुनाने के लिए” या “युद्ध बंदियों को मुक्त कराने के लिए”
“घोषणा करने के लिए कि अन्धे देखेंगे” या “अन्धों को दृष्टिदान करने के लिए” या “अन्धों को देखने योग्य बनाने के लिए”
“अत्याचार सहनेवालों को मुक्ति दिलाने के लिए”
इसका अनुवाद हो सकता है, “यह घोषणा करूं कि यही वह वर्ष है, जब परमेश्वर अपनी दया प्रकट करेगा” या “सबको बताऊं, कि परमेश्वर लोगों को आशिष देने के लिए तैयार है”।
“तब यीशु ने कुंडलीग्रन्थ लपेट दिया”
आराधनालयों में ऐसे सेवक होते थे, जो सुनिश्चित करते थे कि धर्मशास्त्र आदि पवित्र वस्तुओं को उचित देखरेख में रखा जाए।
“वे अपेक्षा से उसे देख रहे थे” या “उसे निहार रहे थे”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “धर्मशास्त्र में जो भविष्यद्वाणी की गई है वह आज तुम्हारे सुनते-सुनते पूरी हो गई है। यीशु के कहने का अर्थ था कि वह अपने कामों तथा वचनों के द्वारा उस समय ही इस भविष्यद्वाणी को पूरा कर रहा था।
“उसकी अच्छी-अच्छी बातें सुनकर वे चकित थे”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यह यूसुफ का ही तो पुत्र है”। या “यह उस यूसुफ का पुत्र नहीं है क्या? या “इसका पिता यूसुफ ही तो है”। वे उसे मानवीय स्तर पर आंक रहे थे कि वह एक साधारण मनुष्य यूसुफ का पुत्र है। यूसुफ एक धर्मगुरू नहीं या अतः वे आश्चर्य कर रहे थे कि उसका पुत्र ऐसा वचन सुना सकता है ।
अर्थात नासरत में, उसके अधिवास में
यीशु उन पर कटाक्ष कर रहा था, क्योंकि उन्होंने उसे अपने साथ का एक साधारण मनुष्य समझ कर विश्वास नहीं किया था।
इसका अनुवाद हो सकता है, “अपने नगर में” या “अपने गांव में”
(यीशु आराधनालय में उपासकों से बातें कर रहा है)
“मैं तुमसे यथातथ कहता हूँ” इस उक्ति का उपयोग कथा के महत्त्व, सत्य और यार्थता पर बल देने के लिये किया गया था।
जिस स्त्री का पति मर गया तो वह विधवा कहलाती थी
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जब एलिय्याह इस्राएल में भविष्यद्वक्ता रूप में सेवा कर रहा था”, यीशु के श्रोता जानते थे कि एलिय्याह परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता था। यदि आपके पाठकों को एलिय्याह के बारे में समझ नहीं है तो इस अभिप्रेत जानकारी को स्पष्ट करे। जैसा कि यू.डी.बी. में किया गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब आकाश से वर्षा नहीं हुई थी” या “जब वर्षा नहीं हुई थी” यह एक रूपक है जिसका अर्थ है कि आकाश बन्द कर दिया गया था और वर्षा का जल ऊपर रोक दिया गया था कि पृथ्वी पर न आए।
“जब भोजन की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई थी” या “मनुष्य के पास खाने को भोजन नहीं था अकाल का अर्थ है फसल नष्ट हो जाना या फसल नहीं आना, जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य को भोजन की घटी हो जाती है।
सारफत नगर के लोग यहूदी नहीं थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, सारफल नगर की एक गैरयहूदी विधवा (यीशु के श्रोता जानते थे कि सारफल निवासी यहूदी नहीं थे।)
सीरियावासी अर्थात सीरिया देश का नागरिक। सीरिया के नागरिक भी यहूदी नहीं थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सीरिया देश का नामान नामक एक गैर यहूदी”
अनुवाद हो सकता है, “उसे नगर छोड़ने पर विवश किया”
“चट्टान के सिरे पर”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “उनके मध्य से” या “जो उसे मार डालना चाहते थे उनके बीच में से”। इसका अर्थ है कि उसे कोई रोक नहीं पाया।
“कूच कर गया” यीशु जहाँ जाना चाहता था, वहां चला गया, न कि वहां गया जहाँ वे उसे बलपूर्वक ले जाना चाहते थे।
कफरनहूम नासरत से नीचे है अतः यीशु पहाड़ पर से उतर कर कफरनहूम आ गया।
यीशु गलील क्षेत्र ही में था। अतः यहाँ अनुवाद इस प्रकार किया जाए, “गलील के दूसरे नगर कफरनूहम”
“आश्चर्यचकित थे” या “प्रभावित हुए”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसके वचन में एक अधिकार प्रगट होता था” या “वह अधिकार के साथ कहता था”।
“जो अशुद्ध आत्मा के वश में थे”
“वह चिल्लाया” कुछ भाषाओं में इसके लिए मुहावरा भी है जैसे “दिल दहलाने वाली आवाज निकली”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “हममें क्या मेल”? या “हमें तुमसे कुछ नहीं लेना देना” यह एक झगड़ालू प्रतिक्रिया है जिसका अर्थ है, “हमें परेशान करने का तुझे अधिकार नहीं है”
“यीशु ने उस दुष्टात्मा को झिड़कर कर कहा” या “यीशु ने उसे कठोर आज्ञा दी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसे अकेला छोड़ दे” या “उसे परेशान करना छोड़ दे”।
यह आलंकारिक प्रश्न है। लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे कि यीशु के पास दुष्टात्मा को निकल जाने की आज्ञा देने का अधिकार है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “यह वचन आश्चर्यजनक है” या “उसका आदेश विस्मयकारी है”।
“उसके पास अशुद्ध आत्माओं को आज्ञा देने का अधिकार एवं सामर्थ्य है”।
“यीशु का समाचार चारों और फैल गया” या “लोगों ने सर्वत्र उसकी चर्चा की”
कुछ भाषाओं में कहा जाता है, “उसका शरीर तप रहा था”।
“शमौन की पत्नी की माता”
“बुखार को कठोर आज्ञा दी” या “बुखार को उतर जाने की आज्ञा दी” (यू.डी.बी.) इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “आज्ञा दी कि उसके शरीर का ताप सामान्य हो जाए”, या “रोग को शरीर त्याग की आज्ञा दी”।
“ऊंचे स्वर में” या “ऊंची आवाज में”
“यह दुष्टात्माओं से कठोरता से कहता”
“उन्हें अनुमति नहीं देता था”
“सूर्योदय के समय” या “भोर के समय”
“निर्जन स्थान में” या “जहाँ कोई नहीं रहता था” या “जहाँ मनुष्यों का आना जाना नहीं था”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “अन्य नगरों में अनेक लोगों को”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “मुझे परमेश्वर ने इसी लिए भेजा है”
पवित्र आत्मा यीशु को लेकर जंगल में गया।
जंगल में चालीस दिन एक शैतान ने यीशु की परीक्षा ली।
शैतान ने यीशु से कहा कि वह पत्थरों को रोटी बना दे।
मनुष्य केवल रोटी से ही जीवित नहीं रहेगा।
शैतान ने यीशु को संसार का संपूर्ण राज्य दिखाया।
शैतान चाहता था कि यीशु झुककर उसकी उपासना करे।
तू अपने प्रभु परमेश्वर ही की उपासना कर और उसी की सेवा करना।
उसने यीशु से कहा कि वह नीचे कूद जाए।
तू अपने प्रभु परमेश्वर की परीक्षा न करना।
शैतान कुछ समय के लिए यीशु को छोड़कर चला गया।
यीशु ने यशायाह की पुस्तक से पढ़ा।
यीशु ने कहा कि उसने यशायाह की पुस्तक से जो पढ़ा है वह उसी दिन पूरा हुआ।
यीशु ने कहा कि अपने देश में किसी भविष्यद्वक्ता को सम्मान नहीं मिलता है।
परमेश्वर ने एलिय्याह को सैदा के सारफत में एक विधवा के पास भेजा था।
परमेश्वर ने एलीशा द्वारा सीरिया के नामान की सहायता की थी।
वे क्रोध से भर गए और उसे पहाड़ की चोटी पर से नीचे गिराना चाहते थे।
यीशु उनके मध्य से होकर चला गया।
दुष्टात्मा ने कहा कि वह जानता है कि यीशु परमेश्वर का पवित्र जन है।
लोग आश्चर्यचकित होकर आपस में बातें करने लगे।
यीशु ने उनमें से हर एक पर हाथ रखा और उन्हें चंगा किया।
दुष्टात्मा कहते थे कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है और यीशु उन्हें बोलने नहीं देता था क्योंकि वे जानते थे कि वह मसीह है।
यीशु ने कहा कि वह परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार अनेक अन्य नगरों में सुनाने के लिए भेजा गया है।
1 जब भीड़ उस पर गिरी पड़ती थी, और परमेश्वर का वचन सुनती थी, और वह गन्नेसरत की झील* के किनारे पर खड़ा था, तो ऐसा हुआ। 2 कि उसने झील के किनारे दो नावें लगी हुई देखीं, और मछवे उन पर से उतरकर जाल धो रहे थे। 3 उन नावों में से एक पर, जो शमौन की थी, चढ़कर, उसने उससे विनती की, कि किनारे से थोड़ा हटा ले चले, तब वह बैठकर लोगों को नाव पर से उपदेश देने लगा। 4 जब वह बातें कर चुका, तो शमौन से कहा, “गहरे में ले चल, और मछलियाँ पकड़ने के लिये अपने जाल डालो।” 5 शमौन ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, हमने सारी रात मेहनत की और कुछ न पकड़ा; तो भी तेरे कहने से जाल डालूँगा।” 6 जब उन्होंने ऐसा किया, तो बहुत मछलियाँ घेर लाए, और उनके जाल फटने लगे। 7 इस पर उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे, संकेत किया, कि आकर हमारी सहायता करो: और उन्होंने आकर, दोनों नाव यहाँ तक भर लीं कि वे डूबने लगीं। 8 यह देखकर शमौन पतरस यीशु के पाँवों पर गिरा, और कहा, “हे प्रभु, मेरे पास से जा, क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूँ!” 9 क्योंकि इतनी मछलियों के पकड़े जाने से उसे और उसके साथियों को बहुत अचम्भा हुआ; 10 और वैसे ही जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना को भी, जो शमौन के सहभागी थे, अचम्भा हुआ तब यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर, अब से तू मनुष्यों को जीविता पकड़ा करेगा।” 11 और वे नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
12 जब वह किसी नगर में था, तो वहाँ कोढ़ से भरा हुआ एक मनुष्य आया, और वह यीशु को देखकर मुँह के बल गिरा, और विनती की, “हे प्रभु यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 13 उसने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।” और उसका कोढ़ तुरन्त जाता रहा। 14 तब उसने उसे चिताया, “किसी से न कह, परन्तु जा के अपने आप को याजक को दिखा, और अपने शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने चढ़ावा ठहराया है उसे चढ़ा कि उन पर गवाही हो।” (लैव्य. 14:2-32) 15 परन्तु उसकी चर्चा और भी फैलती गई, और बड़ी भीड़ उसकी सुनने के लिये और अपनी बीमारियों से चंगे होने के लिये इकट्ठी हुई। 16 परन्तु वह निर्जन स्थानों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था।
17 और एक दिन ऐसा हुआ कि वह उपदेश दे रहा था, और फरीसी और व्यवस्थापक वहाँ बैठे हुए थे, जो गलील और यहूदिया के हर एक गाँव से, और यरूशलेम से आए थे; और चंगा करने के लिये प्रभु की सामर्थ्य उसके साथ थी। 18 और देखो कई लोग एक मनुष्य को जो लकवे का रोगी था, खाट पर लाए, और वे उसे भीतर ले जाने और यीशु के सामने रखने का उपाय ढूँढ़ रहे थे। 19 और जब भीड़ के कारण उसे भीतर न ले जा सके तो उन्होंने छत पर चढ़कर और खपरैल हटाकर, उसे खाट समेत बीच में यीशु के सामने उतार दिया। 20 उसने उनका विश्वास देखकर उससे कहा, “हे मनुष्य, तेरे पाप क्षमा हुए।” 21 तब शास्त्री और फरीसी विवाद करने लगे, “यह कौन है, जो परमेश्वर की निन्दा करता है? परमेश्वर को छोड़ कौन पापों की क्षमा कर सकता है?” 22 यीशु ने उनके मन की बातें जानकर, उनसे कहा, “तुम अपने मनों में क्या विवाद कर रहे हो? 23 सहज क्या है? क्या यह कहना, कि ‘तेरे पाप क्षमा हुए,’ या यह कहना कि ‘उठ और चल फिर?’ 24 परन्तु इसलिए कि तुम जानो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के रोगी से कहा, “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ और अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” 25 वह तुरन्त उनके सामने उठा, और जिस पर वह पड़ा था उसे उठाकर, परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ अपने घर चला गया। 26 तब सब चकित हुए और परमेश्वर की बड़ाई करने लगे, और बहुत डरकर कहने लगे, “आज हमने अनोखी बातें देखी हैं।”
27 और इसके बाद वह बाहर गया, और लेवी नाम एक चुंगी लेनेवाले को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” 28 तब वह सब कुछ छोड़कर उठा, और उसके पीछे हो लिया।
29 और लेवी ने अपने घर में उसके लिये एक बड़ा भोज* दिया; और चुंगी लेनेवालों की और अन्य लोगों की जो उसके साथ भोजन करने बैठे थे एक बड़ी भीड़ थी। 30 और फरीसी और उनके शास्त्री उसके चेलों से यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, “तुम चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?”
31 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “वैद्य भले चंगों के लिये नहीं, परन्तु बीमारों के लिये अवश्य है। 32 मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूँ।” 33 और उन्होंने उससे कहा, “यूहन्ना के चेले तो बराबर उपवास रखते और प्रार्थना किया करते हैं, और वैसे ही फरीसियों के भी, परन्तु तेरे चेले तो खाते-पीते हैं।” 34 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम बारातियों से जब तक दूल्हा उनके साथ रहे, उपवास करवा सकते हो? 35 परन्तु वे दिन आएँगे, जिनमें दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।” 36 उसने एक और दृष्टान्त* भी उनसे कहा: “कोई मनुष्य नये वस्त्र में से फाड़कर पुराने वस्त्र में पैबन्द नहीं लगाता, नहीं तो नया फट जाएगा और वह पैबन्द पुराने में मेल भी नहीं खाएगा। 37 और कोई नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नया दाखरस मशकों को फाड़कर बह जाएगा, और मशकें भी नाश हो जाएँगी। 38 परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरना चाहिये। 39 कोई मनुष्य पुराना दाखरस पीकर नया नहीं चाहता क्योंकि वह कहता है, कि पुराना ही अच्छा है।”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
वे अपने जाल धो रहे थे कि मछली पकड़ने के लिए फिर से डालें।
“पतरस से कहा कि नाव को झील में थोड़ा अन्दर कर ले”।
बैठकर उपदेश देना गुरू की उचित मुद्रा थी।
“नाव में बैठकर लोगों को उपदेश दे रहा था” यीशु जिस नाव में बैठा था वह किनारे से कुछ ही दूर थी और जनसमूह किनारे पर खड़ा था।
“मनुष्यों को शिक्षा देने के बाद”
यहाँ "स्वामी" का अर्थ मूल भाषा यूनानी में मालिक नहीं है। इसका अर्थ है अधिकार संपन्न मनुष्य, न कि किसी का अधिकृत मालिक। आप इसका अनुवाद इस प्रकार भी कर सकते है, “साहब” या "अधिकर्मी" या किसी अधिकारी के लिए काम में लिया जानेवाला शब्द जैसे “श्रीमान जी”
“तू कहता है तो” या “तेरी बात रखने के लिए”
वे बहुत दूर थे अतः हाथ हिलाकर अन्य मछुवो को संकेत दिया कि नावें लाएं।
“नावें डूबने लगी” यदि समझने में कठिनाई हो तो सलंग्न जानकारी व्यक्त करें, “मछलियों के बोझ के कारण नावें डूबने लगी थी।
इसके संभावित अर्थ हैं (1) यीशु के चरणों में झुका” या (2) यीशु के चरणों में लेट गया या (3) “यीशु के सामने घुटने टेक दिए”। पतरस गिर नहीं गया था वह दीन होकर यीशु का सम्मान कर रहा था।
यहाँ “मनुष्य” का अर्थ है, “वयस्क” न कि सामान्य मनुष्य।
यहाँ “पकड़ेगा” एक रूपक है जिसका अर्थ है मसीह के लिए मनुष्यों को प्रेरित करेगा। इसका अनुवाद भी रूपक द्वारा ही किया जा सकता है, “मनुष्यों का मछुवा” या रूपक रहित अनुवाद होगा, “तू मनुष्यों को एकत्र करेगा” या “तू मनुष्यों को लेकर आयेगा”।
यहाँ कहानी में एक नया मनुष्य आता है। आपकी भाषा में इसकी अभिव्यक्ति हो सकती है। "एक सर्वांग कोढ़ी वहां था।"
“उसने साष्टांग प्रणाम किया” (यू.डी.बी.) या “घुटने टेक कर भूमि पर माथा टेका”
“उससे भीख मांगी” या “याचना की”(यू.डी.बी.)
“यदि तेरी इच्छा हो”
यहाँ सलंग्न जानकारी है, तू रोगमुक्त हो गया है अपने शुद्ध होने के विषय में .....चढ़ावा.... चढ़ा.
यहूदी विधान के अनुसार कोढ़ी को शुद्ध होने पर विशेष बलि चढ़ाना होती थी कि वह सांसारिक रूप से शुद्ध माना जाए और धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागी हो पाए।
“याजकों के लिए गवाही” या “याजक जान ले कि तू सच में शुद्ध हो गया है। मन्दिर में याजक इस तथ्य से अभिज्ञ होगा कि यीशु ने कोढ़ी को रोग मुक्त किया है।
“यीशु का समाचार” इसका अर्थ है, “उस कोढ़ी की रोग मुक्ति का समाचार” या “यीशु द्वारा रोगियों के निरोगीकरण का समाचार”
“उसका समाचार दूर-दूर तक फैल गया” या “मनुष्य विभिन्न स्थानों में यीशु की चर्चा करने लगे”।
“निर्जन स्थानों में” या “शान्त स्थानों में” या “वहां कोई आता जाता नहीं था”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
ये कहानी में नए नायक है। आपकी भाषा में नए मनुष्यों के प्रवेश को दर्शाने की अभिव्यक्ति हो सकती है। “कुछ लोग एक मनुष्य को लेकर आए” या “... को उठाए हुए कुछ लोग आए”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बिस्तर सहित” या “चोखट पर” या “तखत पर”
“निष्क्रिय मनुष्य”
कुछ भाषाओं में इसका रचना रूप बदलना आवश्यक होगा, “मनुष्यों की भीड़ के कारण वे उसे रोगी को भीतर ले जाने में सफल नहीं हुए, अतः....”
उन घरों की छतें समतल होती थी और कुछ घरों की छत पर जाने के लिए बाहर सीढ़ियां होती थी।
“सीधे यीशु के सामने” या “यीशु के समक्ष”
यह एक ऐसा संबोधन है जो अनजान मनुष्य के लिए काम में लिया जाता था। यह अशिष्ट शब्द तो नहीं है परन्तु सम्मान का शब्द भी नहीं है, कुछ भाषाओं में इसके स्थान में “मित्र” या “भाई” या “श्रीमान” शब्दों का प्रयोग होता है।
“तू क्षमा किया गया” या “मैं तेरे पाप क्षमा करता हूँ” (यू.डी.बी.)
“रोष प्रकट करने लगे” या “तर्क करके कहने लगे”, इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “आपस में कहने लगे क्या यीशु को पाप क्षमा करने का अधिकार है”?
इस आलंकारिक प्रश्न से स्पष्ट होता है कि वे यीशु की इस बात पर कैसे विस्मित एवं क्रोधित थे। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “यह मनुष्य परमेश्वर की निन्दा करता है”, या “यह अपने को क्या समझता है कि परमेश्वर की इस प्रकार निन्दा करे”?
इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “केवल परमेश्वर ही पाप क्षमा कर सकता है, अन्य कोई नहीं”, या “पाप क्षमा करने वाला केवल परमेश्वर है, यहाँ संलग्न विचार यह है कि यदि मनुष्य पाप क्षमा करने का दावा कर रहा है तो वह परमेश्वर होने का स्वांग रच रहा है”।(देखें: .)
इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “तुम्हें मन में ऐसा विचार नहीं करना चाहिए” या “तुम्हें सन्देह नहीं करना है कि मैं पाप क्षमा करने का अधिकार रखता हूँ”।
यह एक मुहावरा है जो मनुष्य के सोचने या विश्वास करने की इन्द्रियों की शक्ति का संदर्भ देता है। कुछ भाषाओं में इस उक्ति को काम में नहीं लेना और अधिक स्वाभाविक होता है।
यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा उन्हें तैयार कर रहा था कि वे पाप क्षमा के उसके अधिकार को उसके रोगमुक्ति के चमत्कार से जोड़ें। वह अब उस रोगी को स्वस्थ करेगा। यह संपूर्ण प्रश्न इस प्रकार अनुवाद किया जा सकता है, “यह कहना आसान है, तेरे पाप क्षमा किए गए, परन्तु परमेश्वर ही उस निश्चेष्ट मनुष्य को उठ कर चलने योग्य कर सकता है”।
यीशु विधि-शास्त्रियों और फरीसियों से बातें कर रहा था। यहाँ “तुम” शब्द बहुवचन में है।
यीशु अपरे बारे में कह रहा है
यीशु उस निष्क्रिय मनुष्य को संबोधित कर रहा था। यहाँ “तुम” एकवचन है
“तत्काल ही” या “उसी समय”
“देखने वाले सब विस्मित हो गए”
“भयातुर होकर” या “श्रद्धापूर्ण भय से भर कर”
“आश्चर्यजनक बातें” या “विचित्र बातें”
पिछले पदों में व्यक्त घटनाओं के बाद
“एक चुंगी लेने वाले पर ध्यान दिया” या “एक चुंगी लेने वाले को निहारा”
चुंगी कक्ष में” या “चुंगी स्थल में”, यह या तो एक प्रकार का कमरा था या सड़क के किनारे मेज़ लगा कर वे बैठा करते थे कि लोगों से सरकारी कर वसूल करें।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरा शिष्य हो जा” या “मुझे गुरू मान कर आजा”
“चुंगी लेने का काम त्याग कर”
यह इस प्रकार की दावत थी जिसमें अतिथियों के साथ खाना-पीना होता था।
लेवी के घर में
इसका अनुवाद हो सकता है, “भोजन हेतु आसन ग्रहण किया” या “भोजन आसन पर बैठा था।” यूनानी संस्कार में भोज में तखत पर बाई कोहनी के तकिए पर टिका कर आधा लेटकर भोजन किया जाता था।
“शिकायत करने लगे” या “असन्तोष व्यक्त कर रहे थे”
“यीशु के शिष्यों से”
विधि-शास्त्रियों और फरीसियों ने यह आलंकारिक प्रश्न द्वारा अपनी असहमति प्रकट की क्योंकि वे पापियों के साथ भोजन कर रहे थे। यह “तुम” शब्द बहुवचन में है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है। “तुम्हें पापियों के साथ भोजन नहीं करना है”
“डाक्टर” या "हकीम"
“धर्म गुरूओं ने यीशु से कहा”
यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा उनकी परिचित स्थिति पर विचार करवा रहा था। इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “दुल्हे के साथ विवाह में आनेवालों से उपवास करने के लिए कोई नहीं कहता है, क्योंकि दूल्हा उनके साथ है”।
“अतिथि” या “मित्र”। ये वे लोग है जो विवाह करने वाले पुरूष के साथी हैं।
“परन्तु एक दिन” (यू.डी.बी.) या “परन्तु शीघ्र ही”
यह एक रूपक है। यीशु अपने बारे में कहता था। इसे स्पष्ट करने के लिए इसमें जोड़ा जा सकता है, “इसी प्रकार जब तक मैं उनके साथ हूँ वे उपवास नहीं कर सकते”।
“कोई नया वस्त्र काट कर” या “मनुष्य नया वस्त्र फाड़कर” (यू.डी.बी.)
"सुधारता नहीं है"
“उचित नहीं होगा” या “वैसा ही नहीं होगा”
(यीशु धर्मगुरूओं को एक और शिक्षाप्रद कथा सुनाता है।)
“कोई.... नहीं रखता है” यू.डी.बी. या “मनुष्य कभी नहीं रखते”
“अंगूर का ताजा रस” अर्थात जिस दाखरस का खमीर नहीं उठा है।
ये पशुओं के चमड़े से बनी होती थी उन्हें "दाख रस के थैले" या "चमड़े के थैले"(यू.डी.बी.) भी कह सकते हैं।
“नया दाखरस खमीर होकर फैलेगा तो पुरानी मशकें लचीली न होने के कारण फट जायेंगी” यीशु के श्रोतागण को दाखरस के किणवन की प्रक्रिया की जानकारी थी कि वह फैलता है।
“दाखरस मशकों से बाहर निकल जाएगा
“नई मशकों” अर्थात जिन्हें पहले काम में नहीं लिया गया है।
“जिस दाखरस का खमीर उठ गया है।
यहाँ अतिरिक्त जानकारी देना सहायक सिद्ध होगा। “अतः वह नया दाखरस पीना नहीं चाहता है”। यह एक रूपक है जिसके माध्यम से धर्म-गुरूओं की पुरानी शिक्षा की तुलना यीशु की नई शिक्षा से की गई है। कहने का अर्थ यह है कि जो पुरानी शिक्षाओं के अभ्यास थे वे यीशु की शिक्षा को स्वीकार नहीं करते थे, क्योंकि वे नई थी।
यीशु ने उससे कहा कि गहरे में नाव ले जाकर जाल डाले।
उसने आज्ञा मानकर जाल डाला।
उनके जाल में इतनी मछलियां आई कि जाल फटने लगे।
शमौन ने यीशु से चले जाने को कहा क्योंकि वह जानता था कि वह (शमौन) पापी मनुष्य है।
यीशु ने उससे कहा कि अब आगे से वह मनुष्यों को पकड़ेगा।
यीशु के पास लोगों की भीड़ आ रही थी।
हे मनुष्य, तेरे पाप क्षमा हुए।
क्योंकि परमेश्वर ही पाप क्षमा कर सकता है।
यीशु ने उसे चंगा किया कि प्रकट करे कि उसे पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।
वह पापियों को मन फिराव के लिए बुलाने आया है।
यीशु के चले जाने के बाद उसके चेले उपवास करेंगे।
नया कपड़ा पुराने कपड़े में नहीं लगेगा क्योंकि वह उसे फाड़ देगा।
पुरानी मशकें फट जायेंगी और दाखरस गिर जायेगा।
नया दाखरस नई मशकों में रखना चाहिए।
1 फिर सब्त के दिन वह खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेले बालें तोड़-तोड़कर, और हाथों से मल-मल कर* खाते जाते थे। (व्य. 23:25) 2 तब फरीसियों में से कुछ कहने लगे, “तुम वह काम क्यों करते हो जो सब्त के दिन करना उचित नहीं?” 3 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम ने यह नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने जब वह और उसके साथी भूखे थे तो क्या किया? 4 वह कैसे परमेश्वर के घर में गया, और भेंट की रोटियाँ लेकर खाई, जिन्हें खाना याजकों को छोड़ और किसी को उचित नहीं, और अपने साथियों को भी दी?” (लैव्य. 24:5-9, 1 शमू. 21:6) 5 और उसने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी प्रभु है।”
6 और ऐसा हुआ कि किसी और सब्त के दिन को वह आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा; और वहाँ एक मनुष्य था, जिसका दाहिना हाथ सूखा था। 7 शास्त्री और फरीसी उस पर दोष लगाने का अवसर पाने के लिये उसकी ताक में थे, कि देखें कि वह सब्त के दिन चंगा करता है कि नहीं। 8 परन्तु वह उनके विचार जानता था; इसलिए उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा, “उठ, बीच में खड़ा हो।” वह उठ खड़ा हुआ। 9 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से यह पूछता हूँ कि सब्त के दिन क्या उचित है, भला करना या बुरा करना; प्राण को बचाना या नाश करना?” 10 और उसने चारों ओर उन सभी को देखकर उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने ऐसा ही किया, और उसका हाथ फिर चंगा हो गया। 11 परन्तु वे आपे से बाहर होकर आपस में विवाद करने लगे कि हम यीशु के साथ क्या करें?
12 और उन दिनों में वह पहाड़ पर प्रार्थना करने को निकला, और परमेश्वर से प्रार्थना करने में सारी रात बिताई। 13 जब दिन हुआ, तो उसने अपने चेलों को बुलाकर उनमें से बारह चुन लिए, और उनको प्रेरित कहा। 14 और वे ये हैं: शमौन जिसका नाम उसने पतरस भी रखा; और उसका भाई अन्द्रियास, और याकूब, और यूहन्ना, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, 15 और मत्ती, और थोमा, और हलफईस का पुत्र याकूब, और शमौन जो जेलोतेस कहलाता है, 16 और याकूब का बेटा यहूदा, और यहूदा इस्करियोती, जो उसका पकड़वानेवाला बना।
17 तब वह उनके साथ उतरकर चौरस जगह में खड़ा हुआ, और उसके चेलों की बड़ी भीड़, और सारे यहूदिया, और यरूशलेम, और सूर और सैदा के समुद्र के किनारे से बहुत लोग, 18 जो उसकी सुनने और अपनी बीमारियों से चंगा होने के लिये उसके पास आए थे, वहाँ थे। और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुए लोग भी अच्छे किए जाते थे। 19 और सब उसे छूना चाहते थे, क्योंकि उसमें से सामर्थ्य निकलकर सब को चंगा करती थी।
20 तब उसने अपने चेलों की ओर देखकर कहा,
“धन्य हो तुम, जो दीन हो,
क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है।
21 “धन्य हो तुम, जो अब भूखे हो;
क्योंकि तृप्त किए जाओगे।
“धन्य हो तुम, जो अब रोते हो,
क्योंकि हँसोगे। (मत्ती 5:4,5, भज. 126:5-6)
22 “धन्य हो तुम, जब मनुष्य के पुत्र के
कारण लोग तुम से बैर करेंगे,
और तुम्हें निकाल देंगे, और तुम्हारी निन्दा करेंगे,
और तुम्हारा नाम बुरा जानकर काट देंगे।
23 “उस दिन आनन्दित होकर उछलना, क्योंकि देखो, तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। उनके पूर्वज भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी वैसा ही किया करते थे।
24 “परन्तु हाय तुम पर जो धनवान हो,
क्योंकि तुम अपनी शान्ति पा चुके।
25 “हाय तुम पर जो अब तृप्त हो,
क्योंकि भूखे होंगे।
“हाय, तुम पर; जो अब हँसते हो,
क्योंकि शोक करोगे और रोओगे।
26 “हाय, तुम पर जब सब मनुष्य तुम्हें भला कहें,
क्योंकि उनके पूर्वज झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी ऐसा ही किया करते थे।
27 “परन्तु मैं तुम सुननेवालों से कहता हूँ, कि अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उनका भला करो*। 28 जो तुम्हें श्राप दें, उनको आशीष दो; जो तुम्हारा अपमान करें, उनके लिये प्रार्थना करो। 29 जो तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारे उसकी ओर दूसरा भी फेर दे; और जो तेरी दोहर छीन ले, उसको कुर्ता लेने से भी न रोक। 30 जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तेरी वस्तु छीन ले, उससे न माँग। 31 और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।
32 “यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखते हैं। 33 और यदि तुम अपने भलाई करनेवालों ही के साथ भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते हैं। 34 और यदि तुम उसे उधार दो, जिनसे फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएँ। 35 वरन् अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो, और फिर पाने की आसन रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। (लैव्य. 25:35-36, मत्ती 5:44-45) 36 जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो।
37 “दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: क्षमा करो, तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। 38 दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाम दबा-दबाकर और हिला-हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।”
39 फिर उसने उनसे एक दृष्टान्त कहा: “क्या अंधा, अंधे को मार्ग बता सकता है? क्या दोनों गड्ढे में नहीं गिरेंगे? 40 चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं, परन्तु जो कोई सिद्ध होगा, वह अपने गुरु के समान होगा। 41 तू अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? 42 और जब तू अपनी ही आँख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘हे भाई, ठहर जा तेरी आँख से तिनके को निकाल दूँ?’ हे कपटी*, पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आँख में है, भली भाँति देखकर निकाल सकेगा।
43 “कोई अच्छा पेड़ नहीं, जो निकम्मा फल लाए, और न तो कोई निकम्मा पेड़ है, जो अच्छा फल लाए। 44 हर एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है; क्योंकि लोग झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते, और न झड़बेरी से अंगूर। 45 भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुँह पर आता है।
46 “जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ कहते हो? (मला. 1:6) 47 जो कोई मेरे पास आता है, और मेरी बातें सुनकर उन्हें मानता है, मैं तुम्हें बताता हूँ कि वह किसके समान है? 48 वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने घर बनाते समय भूमि गहरी खोदकर चट्टान में नींव डाली, और जब बाढ़ आई तो धारा उस घर पर लगी, परन्तु उसे हिला न सकी; क्योंकि वह पक्का बना था। 49 परन्तु जो सुनकर नहीं मानता, वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने मिट्टी पर बिना नींव का घर बनाया। जब उस पर धारा लगी, तो वह तुरन्त गिर पड़ा, और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
भूमि के खण्ड जहाँ गेहूँ के दाने विसर्जित किए जाते थे कि अधिक उपज हो।
यह गेहूँ के पौधे का ऊपरी भाग है इसमें उस पौधे के बीज होते हैं, गेहूँ का पौधा बड़ी घास के जैसा होता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम सब्त के दिन गेहूँ क्यों दांवते हो? इस आलंकारिक प्रश्न का तात्पर्य है सब्त के दिन वर्जित कार्य करना। यह परमेश्वर के विधान के विरूद्ध है। “तुम” बहुवचन में है और यीशु के शिष्यों के संदर्भ में है।
यह आलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु उन्हें मीठा कटाक्ष कर रहा है कि उन्होंने धर्मशास्त्र पढ़ कर भी नहीं सीखा। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “निश्चय ही तुमने पढ़ा है” (यू.डी.बी.) या “तुम्हें पढ़ कर तो सीखना है”।
“पवित्र रोटियां” या “परमेश्वर को चढ़ाई हुई रोटियां”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं, मनुष्य का पुत्र हूँ”, यीशु अपने बारे में कह रहा था।
“सब्त का स्वामी है” इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “उसके पास अधिकार है कि सब्त के दिन मनुष्य के लिए निर्धारित करे कि उसे क्या करना है”(यू.डी.बी.)
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
उस मनुष्य का हाथ ऐसा क्षतिग्रस्त था कि वह उसे उठा नहीं सकता था। वह ऐसा मुड़ा हुआ था कि उसकी मुठ्ठी बन्द थी और सूखकर छोटा हो गया था।
“यीशु पर दृष्टि गड़ाए हुए थे”
इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “क्योंकि वे दोष खोजना चाहते थे।"
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सबके सामने” (यू.डी.बी.) यीशु चाहता था कि वह ऐसे स्थान में खड़ा हो जहाँ सब उसे देख सकते थे।
“फरीसियों से”
यह आलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु फरीसियों को सोचने पर विवश कर रहा था कि वे स्वीकार करे कि किसी को सब्त के दिन रोगमुक्त करना उचित है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “नियमोचित क्या है? “भला करना” या “मूसा का विधान किस बात की अनुमति देता है”?
“अपना हाथ आगे कर” या “अपना हाथ उठा”
“स्वस्थ हो गया”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“उसके कुछ ही समय बाद” या “इसके बाद अधिक समय नहीं हुआ था” “तब ही एक दिन”
“यीशु प्रार्थना करने बाहर गया”
“उनमें से बारह को चुन लिया” या “शिष्यों में से बारह को चुन लिया”
“और उसने उन्हें प्रेरित कहा” या “जिन्हें उसने प्रेरित नियुक्त किया” या “जिन्हें उसने प्रेरित बनाया”
(यह उन बारहों की सूची है जिन्हें यीशु ने अपने शिष्य होने के लिए चुना था)
नामों की यह सूची यू.एल.बी. में दी गई है कि सूची स्पष्ट की जाए। कुछ अनुवादक इसका उल्लेख करना आवश्क नहीं समझते।
"शमौन का भाई अन्द्रियास"
इसके संभावित अर्थ हैं (1) जेलोतेस (2) जोशीला पहला अर्थ प्रकट करता है कि वह उस पंथ का सदस्य था जो यहूदियों को रोमी राज्य से मुक्त कराना चाहता था। इसका अनुवाद “देशभक्त” या “राष्ट्रवादी” किया जा सकता है। दूसरे का अर्थ है, वह परमेश्वर का सम्मान करने के लिए जोशीला था। इसका अनुवाद “उत्साही” किया जा सकता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने साथी से विश्वासघात किया” या “अपने मित्र को बैरियों के हाथों पकड़वाया” या “बैरियों को उसकी जानकारी देकर अपने मित्र को संकट में डाल दिया”।
“जिन बारहों को उसने चुना था उनके साथ” या “उसके बारह प्रेरितों के साथ”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “यीशु के हाथों रोगमुक्ति हेतु” यदि आपके पाठकों के लिए इससे स्पष्ट न हो कि यीशु ने उन्हें वास्तव में रोगमुक्त किया तो आप स्पष्ट करके लिख सकते हैं कि यीशु ने उन्हें रोगमुक्त किया”।
“अशुद्ध आत्माओं से परेशान” इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “अशुद्ध आत्माग्रस्त” या “अशुद्ध आत्माओं के बन्धन में थे” कर्तृवाच्य में अनुवाद करने हेतु देखें यू.डी.बी.
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “यीशु ने उन्हें रोगमुक्त किया” अशुद्ध आत्माग्रस्त मनुष्यों के लिए “रोगमुक्त” शब्द का उपयोग अनुचित है इसलिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जाए, “यीशु ने उन्हें मुक्ति प्रदान की” या “यीशु ने अशुद्ध आत्माओं को निकाला”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसमें लोगों को रोगमुक्त करने का सामर्थ्य था” जब यीशु में से सामर्थ्य प्रवाहित होता था तब वह सामर्थ्य में कम नहीं होता था।
यह उक्ति तीन बार दोहराई गई है, प्रत्येक बार इसका अर्थ है कि परमेश्वर किसी को अनुग्रह प्रदान कर रहा है या उनकी स्थिति कपटरहित है या अच्छी है।
“तुम जो दीन हो परमेश्वर के अनुग्रहपात्र बनोगे” या “तुम जो दीन हो लाभ उठाओगे” या “तुम जो दीन हो, तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है”।
“परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है” इसके अर्थ हो सकते हैं, (1) तुम परमेश्वर के राज्य के हो” या (2) परमेश्वर के राज्य में तुम्हारे पास अधिकार होगा”। जिन भाषाओं में राज्य के लिए शब्द नहीं है, वे कह सकते हैं, “परमेश्वर तुम्हारा राजा होगा” या “परमेश्वर तुम पर राज करेगा”
“तुम आनन्द से हंसोगे” या “तुम आनन्दित होंगे”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
धन्य हो तुम, “तुम परमेश्वर के अनुग्रहपात्र होगे” या “तुम लाभ उठाओगे” या “तुम्हारे लिए कैसा भला है।”
“तुम्हारा बहिष्कार करेंगे” या “तुम्हारा परित्याग करेंगे”
“तुम्हारा अपमान करके आलोचना करेंगे”
“मनुष्य के पुत्र के नाम पर” या “क्योंकि तुम मनुष्य के पुत्र से संबन्धित हो” या “क्योंकि वे मनुष्य के पुत्र का त्याग करते हैं”।
“जब वे ऐसा करे” या “जब ऐसा हो”
“अच्छा लाभ” या “इसके कारण अच्छा उपहार है”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
यह उक्ति तीन बार दोहराई गई है यह “धन्य हो तुम” के विपरीत है। हर बार यह प्रकट करती है कि परमेश्वर का क्रोध उन पर है या उनके लिए भविष्य में कुछ हानि या बुराई है।
“तुम धनवालों का कैसा दुर्भाग्य है। या तुम धनवानों पर संकट आएगा, इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम धनवानों के लिए कैसी दुःख की बात है” या “तुम धनवानों को कैसा दुःख होगा”।
“तुम्हें तो सब कुछ बहुतायत से मिल रहा है” या “तुम्हें तो सब कुछ मिल रहा है।”
“तुम्हें सुख देनेवाली बात” या “तुम्हें सन्तोष प्रदान करनेवाली बात” या “तुम्हारा आनन्द”
“जिनके पेट भरे हुए हैं”, या “वो जो खूब खाते हो”
“अब आनन्दित हो”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“तुम्हारा कैसा दुर्भाग्य है”। या “तुम पर विपत्ति आएगी” या “तुम्हें कैसा दुःखी होना पड़ेगा” या “तुम्हें कैसा दुःख होगा”।
अर्थात “सब जन” या “हर एक जन”
झूठे भविष्यद्वक्ताओं की प्रशंसा करते थे।
(स्पष्ट है कि यीशु जनसमूह से बाते कर रहा है जिनमें वे थे जो उसके शिष्य नहीं)
इनमें से प्रत्येक आज्ञा को करते रहना है, न कि एक बार करके समाप्त कर दो।
“अपने बैरियों की सुधि लो” या “अपने बैरियों के लिए जो भला है वह करो”।
“जिनमें तुम्हें श्राप देने का स्वभाव है”
“जिनमें तुम्हारा अपमान करने का स्वभाव है”
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि वे अपने बैरी से प्रेम रखें।)
“यदि कोई तेरे गाल पर मारे”
“चेहरे के एक ओर”
इसका अनुवाद हो सकता है, “अपना चेहरा फेर दे कि वह दूसरी ओर भी मारे”।
“उसे लेने से मत रोक”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि कोई कुछ भी मांगे तो उसे दे”
“उससे लौटाने को मत कह” या “मांग मत रख”
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि वे अपने बैरी से प्रेम रखें।)
कुछ भाषाओं में इसके क्रम को विपरीत करना अधिक स्वाभाविक होता है, “तुम मनुष्यों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें” या “मनुष्यों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम उनसे चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें”।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। इसे कथन रूप में अनुवाद किया जा सकता है, “तुम्हें इसके लिए बड़ाई नहीं मिलेगी” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ऐसा करके तुम्हें क्या प्रशंसा प्राप्त होगी”? या “क्या कोई कहेगा कि तुमने प्रशंसनीय काम किया है”। इसका एक और संभावित अर्थ है, “तुम्हें क्या प्रतिफल मिलेगा”?
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि वे अपने बैरी से प्रेम रखें।)
“तुम्हें महान प्रतिफल मिलेगा”, या “तुम्हें अच्छा लाभ होगा” या “इस कारण तुम अच्छा उपहार पाओगे”।
यहाँ “... की सन्तान” एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है “” इसका तात्पर्य है कि अपने बैरियों से प्रेम करने वाले परमेश्वर के सदृश्य काम करते हैं। इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम परमेश्वर प्रधान के पुत्रों के सदृश्य व्यवहार करोगे” या “तुम परम प्रधान परमेश्वर के जैसे होंगे”, सुनिश्चित करे कि यदि पुत्र शब्द काम में ले रह हैं तो वह बहुवचन में हो कि पाठक उसे “परमेश्वर का पुत्र” यीशु न समझें।
“जो मनुष्य उसे धन्यवाद नहीं करते और जो बुरे हैं”
अर्थात परमेश्वर। इसे अधिक स्पष्ट किया जा सकता है, “तुम्हारा स्वर्गीय पिता”।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि वे दोष न लगाएं)
“किसी पर दोष मत लगाओ” या “किसी की आलोचना मत करो”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “और परिणाम स्वरूप”
यीशु ने यह स्पष्ट नहीं किया कि कौन दोष नहीं लगायेगा। इसके संभावित अर्थ हैं (1) “परमेश्वर तुम पर दोष नहीं लगायेगा”, (2) कोई तुम पर दोष नहीं लगायेगा” दोनों ही अनुवाद स्पष्ट करते हैं कि कौन दोष नहीं लगायेगा।
“किसी को अपराधी मत ठहराओ”
यीशु ने यह स्पष्ट नहीं किया कि कौन दोषी नहीं ठहराएगा। इसके संभावित अर्थ हैं (1) “परमेश्वर तुम्हें अपराधी नहीं ठहराएगा”, (2) कोई भी तुम्हें अपराधी नहीं ठहराएगा। दोनों अनुवादों में स्पष्ट है कि कौन अपराधी नहीं ठहराएगा।
यीशु ने स्पष्ट नहीं किया कि कौन क्षमा करेगा। इसके संभावित अर्थ हैं, (1) परमेश्वर क्षमा करेगा, (2) मनुष्य तुम्हें क्षमा करेंगे पहला अनुवाद स्पष्ट करता है कि कौन क्षमा करेगा।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि दोष न लगाएं)
यहाँ भी यीशु स्पष्ट नहीं करता है कि कौन तुम्हें देगा। इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “कोई तुम्हें देगा”, या (2) “परमेश्वर तुम्हें देगा” इन दोनों अनुवादों में देने वाले स्पष्ट हैं।
“बहुत अधिक मात्रा में”
इस वाक्य का क्रम बदला जा सकता है और कर्तृवाच्य रूप काम में लिया जा सकता है। “वे तुम्हारी गोद में इतना अधिक डालेंगे जो उन्होंने दबा-दबा कर और हिला-हिलाकर और उभरता हुआ डालेंगे”। यीशु ने अनाज भण्डार के एक व्यापारी की उदारता का रूपक काम में लिया है। इसका अनुवाद उपमा द्वारा भी किया जा सकता है, “एक अनाज के व्यापारी के सदृश्य जो अनाज को दबा-दबा कर और हिला-हिलाकर अधिक भरता है कि वह ऊपर से गिरने लगता है, वे तुम्हें बड़ी उदारता से देंगे।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वे तुम्हारे लिए भी इसी नाप से सब वस्तुएं नापेंगे” या “वे उसी मानक से तुम्हारे लिए भी वस्तुएं नापेंगे”।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि दोष न लगाएं)
यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा श्रोताओं को इस चिरपरिचित बात पर विचार करने के लिए उत्प्रेरित करता है। इसका अनुवाद हो सकता है, “अच्छा मनुष्य दूसरे अन्धे मनुष्य का पथ प्रदर्शन नहीं कर सकता है, कर सकता है क्या”? या “यह तो सब ही जानते हैं कि अन्धा अन्धे को रास्ता नहीं दिखा सकता है”।
कुछ भाषाओं के अनुवादक अधिक अच्छा समझते है कि इसका अनुवाद इस प्रकार करें, “यदि कोई करे”।
यह एक और आलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद प्रकार किया जा सकता है, क्या वे दोनों खड्डे में नहीं गिरेंगे”? या "दोनों खड्ड में गिर जाएगे" (यू.डी.बी.)
इसका अर्थ हो सकता है (1) “शिष्य को अपने गुरू से अधिक ज्ञान नहीं होता” या (2) शिष्य के पास अपने गुरू से अधिक अधिकार नहीं होता है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “शिष्य अपने गुरू से आगे नहीं निकल सकता है”।
“हर एक शिष्य जो उचित प्रशिक्षण पा चुका है” इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में भी किया जा सकता है, “हर एक शिष्य जिसने अपने प्रशिक्षण में लक्ष्य प्राप्ति कर ली है” या “वह हर एक शिष्य जिसके गुरू ने उसे पूर्ण प्रशिक्षण प्रदान कर दिया है”।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि दोष न लगाएं)
यह मनुष्यों पर उंगली उठाने या उनका दोष देखने के संबन्ध में एक रूपक है। इसका अनुवाद एक उपमा द्वारा किया जा सकता है जैसे यू.डी.बी. “तुम उंगली क्यो उठाते हो .... जैसे कि ....
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “कण” या “लेश”
अर्थात यहूदी भाई या “यीशु में विश्वासी भाई”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “डंडा” या “फलक”
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है कि दोष न लगाएं)
यह एक तथ्य दर्शाता है कि हमारा चरित्र तर्क रूप में प्रकट किया जाएगा कि हमें अपने भाई पर दोष क्यों नहीं लगाना है।
“पोषित वृक्ष”
"सड़ा गला", इसका अनुवाद हो सकता है, “बुरा”
“उसकी पहचान” इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “मनुष्य वृक्ष को .... पहचानता है” या “मनुष्य .... वृक्ष को जान लेता है”।
एक मीठा फल होता है। इस वृक्ष में कांटे नहीं होते हैं।
“एक कंटीली झाड़ियां”
लता में लगने वाले छोटे-छोटे फलों का गुच्छा। इसमें भी कांटे नहीं होते।
कांटे वाली झाड़ी ये पद एक रूपक है जो मनुष्य के आचरण को व्यक्त करता है कि वे वास्तव में क्या है” (यदि आवश्यकता हो तो इसकी व्याख्या की जा सकती है, जैसी यू.डी.बी. के अन्तिम वाक्य में की गई है “उसी प्रकार”
ये पद एक रूपक है जो मनुष्य के विचारों की तुलना इस भण्डार (खजाने) से करता है जिसे मनुष्य छिपाकर सुरक्षित रखते हैं।
“एक सदाचारी मनुष्य”, यहाँ “भला” शब्द का अर्थ है, धार्मिक या नैतिक अच्छाई, “मनुष्य” अर्थ स्त्री/पुरूष। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सदाचारी मनुष्य” या “सदाचारी लोग”(यू.डी.बी)
“उसके मन में जो अच्छाई है” या “उसकी सदाचार संबन्धित मान्यताएं”
इसका अनुवाद रूपक रहित किया जा सकता है, “जीवन आचरण से” या “प्रकट करता है” या “दिखता है”(यू.डी.बी)
“सदाचार की बातें”
“इसके मन में जो है वही उसके मुंह से निकलता है” या “उसके मन में जो आचार संबन्धित मान्यताएं हैं वही उसके शब्दों को नियंत्रित करती है”। इसका अनुवाद “मन” और “मुंह” शब्दों के उपयोग के बिना भी किया जा सकता है। मनुष्य की बातें वही हैं जो उसके विचार हैं” या “उसके विचार उसके शब्दों पर प्रभाव डालते हैं”।
(यीशु जनसमूह को आज्ञाकारिता के महत्त्व की शिक्षा दे रहा है)
यह रूपक दृढ़ नीव पर घर बनाने वाले मनुष्य की तुलना यीशु की शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले मनुष्य से करता है।
“आधार” या “अवलंब”
यह भूमिगत एक बड़ी और दृढ़ चट्टान है।
“घर की नींव डालने के लिए ऐसी गहरी खुदाई की कि” या “ठोस चट्टान पर घर बनाया” कुछ संस्कृतियों में चट्टान पर घर बनाने का विचार प्रचलित न हो। ऐसी परिस्थिति में अनुवाद अधिक सामान्य परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है, “घर की नींव ठोस भूमि में डाली”।
“जल का प्रबल प्रवाह” या “नदी”
“इससे टकराई”
“क्योंकि उस मनुष्य ने उसे दृढ़ता से बनाया था”
(यीशु जनसमूह को उसकी आज्ञाकारिता की शिक्षा दे रहा है)
“आधार” या “अवलंब”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने गहरी खुदाई करके नींव नहीं डाली”
“जल का प्रबल प्रवाह” या “नदी”
“इससे टकराई”
“टूट गया” या “बिखर गया”
वे गेहूं की बालों को तोड़कर उन्हें हाथ से रगड़कर खा रहे थे।
यीशु ने इस पद का दावा किया, "सब्त का प्रभु"।
वे क्रोध से भर गए और विचार करने लगे कि यीशु के साथ क्या करें।
यीशु ने उन्हें प्रेरित कहा।
जो गरीब हैं, भूखे हैं, दुःखी हैं और मनुष्य के पुत्र के कारण सताए जाते हैं, वे धन्य हैं।
क्योंकि स्वर्ग में उनका बड़ा प्रतिफल है।
उन्हें अपने बैरियों से प्रेम करना है और जो घृणा करे उनका भला करे।
वह उन पर दयालु और कृपालु है।
पहले हमें अपनी आंख से लट्ठा निकालना होगा कि हम पाखंड़ी न हों।
एक भले मनुष्य के मन से भली बातें निकलती हैं।
बुरे मनुष्य के मन से बुराई निकलती है।
वह यीशु की बातें सुनकर उनका पालन करता है।
वह जो यीशु की बातों को सुनकर पालन नहीं करता।
1 जब वह लोगों को अपनी सारी बातें सुना चुका, तो कफरनहूम में आया। 2 और किसी सूबेदार का एक दास जो उसका प्रिय था, बीमारी से मरने पर था। 3 उसने यीशु की चर्चा सुनकर यहूदियों के कई प्राचीनों को उससे यह विनती करने को उसके पास भेजा, कि आकर मेरे दास को चंगा कर। 4 वे यीशु के पास आकर उससे बड़ी विनती करके कहने लगे, “वह इस योग्य है, कि तू उसके लिये यह करे, 5 क्योंकि वह हमारी जाति से प्रेम रखता है, और उसी ने हमारे आराधनालय को बनाया है।” 6 यीशु उनके साथ-साथ चला, पर जब वह घर से दूर न था, तो सूबेदार ने उसके पास कई मित्रों के द्वारा कहला भेजा, “हे प्रभु दुःख न उठा, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए। 7 इसी कारण मैंने अपने आप को इस योग्य भी न समझा, कि तेरे पास आऊँ, पर वचन ही कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। 8 मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ; और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक को कहता हूँ, ‘जा,’ तो वह जाता है, और दूसरे से कहता हूँ कि ‘आ,’ तो आता है; और अपने किसी दास को कि ‘यह कर,’ तो वह उसे करता है।” 9 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उसने मुँह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही थी कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।” 10 और भेजे हुए लोगों ने घर लौटकर, उस दास को चंगा पाया।
11 थोड़े दिन के बाद वह नाईन* नाम के एक नगर को गया, और उसके चेले, और बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी। 12 जब वह नगर के फाटक के पास पहुँचा, तो देखो, लोग एक मुर्दे को बाहर लिए जा रहे थे; जो अपनी माँ का एकलौता पुत्र था, और वह विधवा थी: और नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे। 13 उसे देखकर प्रभु को तरस आया, और उसने कहा, “मत रो।” 14 तब उसने पास आकर अर्थी को छुआ; और उठानेवाले ठहर गए, तब उसने कहा, “हे जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ!” 15 तब वह मुर्दा उठ बैठा, और बोलने लगा: और उसने उसे उसकी माँ को सौंप दिया। 16 इससे सब पर भय छा गया*; और वे परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है, और परमेश्वर ने अपने लोगों पर कृपादृष्टि की है।” 17 और उसके विषय में यह बात सारे यहूदिया और आस-पास के सारे देश में फैल गई।।
18 और यूहन्ना को उसके चेलों ने इन सब बातों का समाचार दिया। 19 तब यूहन्ना ने अपने चेलों में से दो को बुलाकर प्रभु के पास यह पूछने के लिये भेजा, “क्या आनेवाला तू ही है, या हम किसी और दूसरे की प्रतीक्षा करे?” 20 उन्होंने उसके पास आकर कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास यह पूछने को भेजा है, कि क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की प्रतीक्षा करे?” 21 उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों और पीड़ाओं, और दुष्टात्माओं से छुड़ाया; और बहुत से अंधों को आँखें दी। 22 और उसने उनसे कहा, “जो कुछ तुम ने देखा और सुना है, जाकर यूहन्ना से कह दो; कि अंधे देखते हैं, लँगड़े चलते-फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं, बहरे सुनते है, और मुर्दे जिलाए जाते है, और कंगालों को सुसमाचार सुनाया जाता है। (यशा. 35:5-6, यशा. 61:1) 23 धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।”
24 जब यूहन्ना के भेजे हुए लोग चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को? 25 तो तुम फिर क्या देखने गए थे? क्या कोमल वस्त्र पहने हुए मनुष्य को? देखो, जो भड़कीला वस्त्र पहनते, और सुख-विलास से रहते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं। 26 तो फिर क्या देखने गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, वरन् भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को। 27 यह वही है, जिसके विषय में लिखा है:
‘देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे-आगे भेजता हूँ, जो तेरे आगे मार्ग सीधा करेगा।’ (मला. 3:1, यशा. 40:3)
28 मैं तुम से कहता हूँ, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना से बड़ा कोई नहीं पर जो परमेश्वर के राज्य में छोटे से छोटा है, वह उससे भी बड़ा है।” 29 और सब साधारण लोगों ने सुनकर और चुंगी लेनेवालों ने भी यूहन्ना का बपतिस्मा लेकर परमेश्वर को सच्चा मान लिया। 30 पर फरीसियों और व्यवस्थापकों ने उससे बपतिस्मा न लेकर परमेश्वर की मनसा को अपने विषय में टाल दिया।
31 “अतः मैं इस युग के लोगों की उपमा किस से दूँ कि वे किस के समान हैं? 32 वे उन बालकों के समान हैं जो बाजार में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं, ‘हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजाई, और तुम न नाचे, हमने विलाप किया, और तुम न रोए!’ 33 क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न रोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, उसमें दुष्टात्मा है। 34 मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया है; और तुम कहते हो, ‘देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों का और पापियों का मित्र।’ 35 पर ज्ञान अपनी सब सन्तानों से सच्चा ठहराया गया है।”
36 फिर किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; अतः वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा। 37 वहाँ उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई। 38 और उसके पाँवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पाँवों को आँसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पाँव बार-बार चूमकर उन पर इत्र मला। 39 यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, “यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान जाता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिन है।” 40 यह सुन यीशु ने उसके उत्तर में कहा, “हे शमौन, मुझे तुझ से कुछ कहना है।” वह बोला, “हे गुरु, कह।” 41 “किसी महाजन के दो देनदार थे, एक पाँच सौ, और दूसरा पचास दीनार देनदार था। 42 जब कि उनके पास वापस लौटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनों को क्षमा कर दिया। अतः उनमें से कौन उससे अधिक प्रेम रखेगा?” 43 शमौन ने उत्तर दिया, “मेरी समझ में वह, जिसका उसने अधिक छोड़ दिया।” उसने उससे कहा, “तूने ठीक विचार किया है।” 44 और उस स्त्री की ओर फिरकर उसने शमौन से कहा, “क्या तू इस स्त्री को देखता है? मैं तेरे घर में आया परन्तु तूने मेरे पाँव धोने के लिये पानी न दिया, पर इसने मेरे पाँव आँसुओं से भिगाए, और अपने बालों से पोंछा।” (उत्प. 18:4) 45 तूने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूँ तब से इसने मेरे पाँवों का चूमना न छोड़ा। 46 तूने मेरे सिर पर तेल नहीं मला*; पर इसने मेरे पाँवों पर इत्र मला है। (भज. 23:5) 47 “इसलिए मैं तुझ से कहता हूँ; कि इसके पाप जो बहुत थे, क्षमा हुए, क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया; पर जिसका थोड़ा क्षमा हुआ है, वह थोड़ा प्रेम करता है।” 48 और उसने स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए।” 49 तब जो लोग उसके साथ भोजन करने बैठे थे, वे अपने-अपने मन में सोचने लगे, “यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?” 50 पर उसने स्त्री से कहा, “तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है, कुशल से चली जा।”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “श्रोताओं को” या "लोगो को" या “सुनने वाले लोगो को”
“जो उसके लिए मूल्यवान था” या “जिसे वह बहुत मानता था”
“उसने यीशु के बारे में सुना तो ....”
“उसको मरने से बचा ले” या “कुछ कर कि वह न मरे”
“वह शतपति इस योग्य है”
“हमारे लोगों से” अर्थात यहूदियों से
“मरे घर आने का कष्ट न कर” इसका अनुवाद ऐसे भी हो सकता है, “मैं तुझे कष्ट देना नहीं चाहता” वह शतपति यीशु से विनम्र निवेदन कर रहा था।
“मेरे घर में आए”, “छत तले आए” एक मुहावरा है। यदि आपकी भाषा में ऐसा कोई मुहावरा है तो यहाँ उसके उपयोग के औचित्य पर विचार करें।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बस आज्ञा दे”। वह शतपति समझता था कि यीशु कह कर ही उसके सेवक को बचा सकता है।
यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद "सेवक" किया गया है उसका सामान्य अनुवाद “बालक” होता है। इसका अर्थ है कि वह सेवक या तो अल्पायु था या वह शतपति का अति प्रिय सेवक था।
यहाँ दास के मूल यूनानी शब्द का अर्थ “सेवक” है, जो अधीनस्थ काम करने वाले के लिए एक विशिष्ट शब्द है।
यीशु यह कह कर अपनी आगे की आश्चर्यजनक बात पर बल दे रहा है।
कहने का अभिप्राय यह है कि यीशु को इस्त्राएलियों में ऐसे विश्वास की आशा थी परन्तु उनमें ऐसा विश्वास नहीं था। गैरयहूदियों से तो उसे विश्वास की आशा ही नहीं थी परन्तु इस मनुष्य में वह विश्वास था। आपको यह अभिप्रेत जानकारी देने की आवश्यकता होगी जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
“वे लोग जिनसे सूबेदार ने यीशु के पास जाकर निवेदन करने का आग्रह किया था”।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“देखो” शब्द हमें सतर्क करता है कि कहानी में एक मृतक का उल्लेख किया जा रहा है। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति हो सकती है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “नगर के प्रवेश द्वार पर”
“उस स्त्री का एक ही पुत्र”
उसका पति मर चुका था
“उसके लिए उसे बहुत दुःख हुआ”
कुछ भाषाओं में इसका अनुवाद है, “आगे बढ़ कर” या “उस समूह के निकट आकर”
यह एक प्रकार का चौखटा होता है जिस पर शव को रखकर कब्रिस्तान ले जाते थे, यह शव को दफन करने की वस्तु नहीं थी।
यीशु अपने अधिकार को व्यक्त करने के लिए ऐसा कहा था। इसका अर्थ है, “सुन”।
“वह मनुष्य जो मर चुका था”, वह अब मृतक न रहा, वह अब जीवित था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “सब भयातुर हो गए” या “सब भयभीत हो गए”
वे यीशु के बारे में कह रहे थे न कि किसी अन्य भविष्यद्वक्ता के बारे में, अतः इसका अनुवाद होगा, “यह बड़ा भविष्यद्वक्ता”
“हमारे साथ रहने आया है” या “हम पर प्रकट हुआ है” या “हमने आज देखा है”।
हमारी सुधि ली है
"यह वचन" या “यह संदेश” या “यह समाचार”
“पहुंच गई” या “प्रसारित हो गई”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “लोगों ने यीशु की इस बात को सबमें फैला दिया” या "लोगों ने सब लोगों में यीशु के इस काम की चर्चा की", "यह बात"अर्थात पद 16 में लोग यीशु के बारे में जो कह रहे थे।
“यूहन्ना को सुनाया”
“यीशु के कामों का”
(यूहन्ना ने) उन्हें प्रभु के पास भेजा और उनसे कहा कि वे (प्रभु से) पूछें।
“(यूहन्ना) ने हमें तेरे पास भेजा है क्योंकि वह पूछता है, “क्या तू ही वह है जो आनेवाला है”? या “यूहन्ना ने हमें भेजा कि तुझसे पूछें 'क्या तू ही वह है जो आनेवाला है'”? (यू.डी.बी.)
“किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें” या “किसी दूसरे के आने की आशा रखें”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने दुष्टात्माग्रस्त मनुष्यों को मुक्ति दिलाई”
“दिया”
“गरीब लोगों को”
“यूहन्ना को बता दो”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उस मनुष्य का कैसा सौभाग्य है जो मेरे कामों के कारण मुझमें विश्वास करने से टलता नहीं”
यह किसी मनुष्य विशेष के संदर्भ में नहीं है इसलिए इसका अनुवद होगा, “जो मनुष्य” या “जो कोई भी” या “जो भी”
(यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में जनसमूह से कह रहा है)
यीशु ने तीन आलंकारिक प्रश्न पूछे कि श्रोता यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के बारे में पूछें। इसका अनुवाद हो सकता है, “क्या तुम... देखने गए थे? कदापि नहीं”। या “तुम निश्चय ही देखने नहीं गए थे”।
इस रूपक का अनुवाद उपमा द्वारा भी किया जा सकता है, “हवा से हिलते हुए सरकण्डे सदृश्य मनुष्य को” इसकी दो संभावित व्याख्याएं हैं, (1) सरकण्डे हवा में आसानी से हिलते हैं, अतःऐसा मनुष्य जो आसानी से मनोदशा बदल लेते हैं, (2) हवा में सरकण्डे सरसराहट उत्पन्न करते हैं, अतः वह मनुष्य जो अधिक बातें करे परन्तु उसकी बातों का महत्त्वपूर्ण परिणाम न हो ।
“मूल्यवान वस्त्र धारण किए हुए मनुष्य को”, धनवान मनुष्य ऐसे वस्त्र पहनते हैं।
राजभवन वह विशाल स्थान होता है जहाँ राजा रहता है।
तो फिर क्या देखने गए थे?
यीशु इस उक्ति द्वारा अपनी अगली बात के महत्त्व पर बल दे रहा है
“साधारण भविष्यद्वक्ता को नहीं” या “एक भविष्यद्वक्ता से भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण मनुष्य को”।
(यीशु जनसमूह से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में ही चर्चा कर रहा है)
“इसी भविष्यद्वक्ता के विषय में भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा था” या “यूहन्ना ही के बारे में वर्षों पूर्व भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा था”
उस पद में यीशु भविष्यद्वक्ता मलाकी का उद्धरण दे रहा है, और वह कह रहा है कि यूहन्ना ही वह व्यक्ति है, जिसके बारे में मलाकी ने भविष्यद्वाणी की थी।
“तुमसे पहले” या “तेरे आगे चलने के लिए” या “तेरे” एकवचन में है क्योंकि इस भविष्यद्वाणी में परमेश्वर मसीह के बारे में कह रहा है।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा था इसलिए यहाँ “तुम” बहुवचन है। इस उक्ति के उपयोग द्वारा यीशु अपनी अगली बात के महत्त्व पर बल दे रहा था।
“जिन्हें कभी किसी स्त्री ने जन्म दिया” यह एक अलंकार है जो सब मनुष्यों के संदर्भ में है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जितने भी लोग इस दुनिया में आए है”,
इसका सकारात्मक अनुवाद किया जा सकता है, “यूहन्ना महानतम है”।
यह उस मनुष्य के संदर्भ में है जो परमेश्वर द्वारा स्थापित राज्य का सदस्य है। इसका अनुवाद हो सकता है, “जो परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर चुका है।
“यूहन्ना से भी बड़े आत्मिक स्तर पर”
(इस पुस्तक का लेखक लूका यूहन्ना और यीशु के प्रति मनुष्यों की प्रतिक्रिया पर टिप्पणी कर रहा है।)
“उन्होंने कहा कि परमेश्वर ने स्वयं को धर्मी सिद्ध कर दिया है” या “उन्होंने घोषणा की कि परमेश्वर ने अपनी धार्मिकता प्रकट की है”
“जिन्हें यूहन्ना ने बपतिस्मा दिया था” या “जिनका बपतिस्मा यूहन्ना के हाथों हुआ था”
“जिन्हें यूहन्ना ने बपतिस्मा नहीं दिया था” या “जिन्होंने यूहन्ना से बपतिस्मा लेना स्वीकार नहीं किया था” या “जिन्होंने यूहन्ना के बपतिस्मे को तुच्छ जाना था”
“उनके लिए परमेश्वर के उद्देश्य को” या “उनके लिए परमेश्वर की योजना को” या “उनके लिए परमेश्वर की इच्छा को”
“परमेश्वर की अवज्ञा की” या “परमेश्वर की इच्छा पर विश्वास न करने की ठानी”
इसका सलंग्न अर्थ हो सकता है, क्योंकि उन्होंने यूहन्ना के बपतिस्में को तुच्छ समझा था, वे अपने लिए परमेश्वर की इच्छा को स्वीकार करने के लिए आत्मिक परिप्रेक्ष्य में तैयार नहीं थे।
(यीशु उन लोगों के बारे कह रहा है जिन्होंने उसे और यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले को परित्याग किया है)
यह आलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु यह प्रश्न पूछ कर तुलना कर रहा था जिसका उल्लेख वह अगले पद में करेगा। इस संपूर्ण प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है, “मैं इस पीढ़ी की तुलना करते हुए कहता हूँ कि वे उन बालकों के जैसे हैं....”
“आज के लोग” या “ये लोग” या “तुम जो इस पीढ़ी के हो”।
यह यीशु की तुलना का आरंभ है। यह एक उपमा है । यीशु कह रहा था कि उसकी पीढ़ी के लोग उन बालकों के सदृश्य हैं जो अन्य बालकों के खेल से सन्तुष्ट नहीं थे।
यह एक खुला मैदान होता या जहाँ व्यापारी अपना सामान बैचने आते थे।
यह एक लम्बा खोखला संगीत वाद्य़ है जिसमें एक सिरे से हवा फूंक कर बजाया जाता था।
“तुमने संगीत पर नृत्य नहीं किया”
“तुम हमारे साथ दुखी नहीं हुए”
(यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है। वह समझा रहा है कि उसने उनकी तुलना इन बालकों से क्यों की)
यीशु लोगों की बातों का उद्धरण दे रहा है कि वे यूहन्ना के लिए ऐसा कहते थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम कहते हो कि उसमें दुष्टात्मा है,” या “तुम उसे दुष्टात्मा ग्रस्त होने का दोष देते हो”।
“खाना नहीं खाता था” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह अधिकतर उपवास रखता था” इसका अर्थ यह नहीं कि यूहन्ना खाना ही नहीं खाता था।
यीशु चाहता था कि उसके श्रोता जानें कि वह मनुष्य का पुत्र है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं, मनुष्य का पुत्र”।
यीशु अपने मनुष्य के पुत्र के बारे में मनुष्यों की राय व्यक्त कर रहा है, इसका अनुवाद बिना उद्धरण चिन्ह के किया जा सकता है। “तुम कहते हो कि वह पेटू है” या “तुम उसे बहुत खाने का दोष देते हो”। यदि आप “मनुष्य के पुत्र” का “मैं, मनुष्य का पुत्र” लिखते हैं तो अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम कहते हो कि मैं पेटू हूँ”
“वह खाने का लोभी है”, या “उसे बहुत खाने की आदत है”।
“मद्यव्यसनी” या “पीने का आदि”
यह संभवतः एक लोकोक्ति है जिसे यीशु इस परिस्थिति में प्रासंगिक बना रहा था, क्योंकि उसका और यूहन्ना का परित्याग करने वाले बुद्धिमान नहीं थे।
यह एक नया वृत्तान्त का आरंभ है
“भोजन के लिए तख्त पर आधा लेटा” उनकी प्रथा में आराम से आधा लेट कर भोजन किया जाता था।
“जिसकी जीवनशैली पाप की थी” या “जिसकी छवि थी कि वह पापी है”। अति संभव है कि वह एक वैश्या थी।
यह एक लम्बा वाक्य है, कुछ भाषाओं में अधिक स्वभाविक होगा कि इसके छोटे-छोटे वाक्य बनाए जाएं। जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
“मुलायम पत्थर का पात्र” संगमरमर एक मुलायम सफेद चट्टान होती है जिसमें सुराही आदि जैसे बर्तन बनते थे और लोग उनमें बहुमूल्य पदार्थ रखते थे।
“उसके सुगन्धित द्रव्य” इत्र एक तेल होता है जिसकी सुगन्ध मनमोहक होती हे। लोग उसे अपने शरीर पर या वस्त्रों में लगाते थे कि उनके आसपास अच्छी सुंगन्ध व्याप्त हो।
“अपने केश से”
“अपने मन में कहा”
उस फरीसी ने सोचा कि यीशु भविष्यद्वक्ता नहीं है क्योंकि वह उस पापी स्त्री को स्पर्श करने दे रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “स्पष्ट है कि यीशु भविष्यद्वक्ता नहीं है यदि होता तो इस स्त्री को पहचान लेता”।
यह इस फरीसी का नाम है जिसने यीशु को भोजन के लिए अपने घर में आमंत्रित किया था। वह शमौन पतरस नहीं था।
(यीशु ने शमौन फरीसी को क्षमा प्राप्त मनुष्यों की एक कहानी सुनाई।)
"एक महाजन के दो ऋणी थे"
“पांच सौ दिन की मजदूरी” अर्थात एक "दीनार" प्रति दिन
"पचास दिन की मजदूरी"
“ऋण चुकाने के लिए कुछ न था”
उसने उनके ऋण क्षमा कर दिए।
शमौन ने बड़ी सावधानी से उत्तर दिया था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “संभवतः ....”
“तू सही कहता है”
“उस स्त्री को देखकर”, उसकी ओर देखकर यीशु ने शमौन का ध्यान उसकी ओर आकर्षित किया।
अतिथि के लिए शिष्टाचार व्यक्त करने की कुछ मुख्य विधियां थी। (यीशु शमौन में शिष्टाचार की कमी की तुलना उस स्त्री की आभार व्यक्ति से कर रहा है।)
इसका सकारात्मक अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह मेरे पांवों को लगातार चूम रही है”
(यीशु शमौन ही से बातें कर रहा है)
“मेरे सिर में तेल नहीं डाला” यह माननीय अतिथि के स्वागत की रीति थी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरे सिर पर तेल मल कर मेरा स्वागत नहीं किया”
यद्यपि यह एक आम अभ्यास नहीं था, उस स्त्री ने ऐसा करके यीशु को अति सम्मानित किया।
उसका अनुवाद भी कर्तृवाच्य रूप में किया जा सकता है। “जिसने अधिक क्षमादान प्राप्त किया”, या “परमेश्वर ने उसके अधिक पाप क्षमा किया है”।
“इसे क्षमा करनेवाले से अधिक प्रेम किया है” या “परमेश्वर से अधिक प्रेम किया है”। कुछ भाषाओं में आवश्यकता होती है कि जिससे प्रेम किया गया उसका उल्लेख किया जाए।
“जिसे कम क्षमादान प्राप्त है” या “जिसे कम पाप क्षमा हुए”, इस वाक्य में यीशु एक सामान्य सिद्धान्त व्यक्त करता है। तथापि शमौन को समझ जाना था कि उसने यीशु से कम प्रेम किया।
“तू क्षमा की गई है” इसे भी कर्तृवाच्य रूप में अनुवाद किया जा सकता है, “मैं तेरे पाप क्षमा करता हूँ”।
“तेरे विश्वास से तुझे उद्धार हुआ है”, विश्वास को विचार को क्रिया रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है, “क्योंकि तू विश्वास करती है, इसलिए तू उद्धार पाती है”।
यह अलविदा करने का एक रूप है जिसमें आशीर्वाद भी है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जा और चिन्ता मत कर”, या “जा परमेश्वर तुझे शांति दे”।(यू.डी.बी)
उसने यीशु से कहा कि वह उसके घर आकर उसके दास को चंगा करे।
उस सूबेदार ने कहा कि वह इस योग्य नहीं कि यीशु उसके घर आए।
उस सूबेदार ने यीशु से निवेदन किया कि वह बस कह दे कि उसका दास चंगा हो जाएं।
यीशु ने कहा कि उसने इस्राएल में किसी में ऐसा विश्वास नहीं देखा।
उसे उस पर तरस आया।
उन्होंने कहा, हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है और परमेश्वर ने अपने लोगों पर कृपा दृष्टि की है।
यीशु ने अंधों को, लंगड़ों को, कोढ़ियों को, बहरों को चंगा किया और मृतकों को जिलाया।
यीशु ने कहा कि यूहन्ना एक भविष्यद्वक्ता से भी बढ़कर है।
उन्होंने परमेश्वर के अभिप्राय को टाल दिया।
उन्होंने कहा, उसमें दुष्टात्मा है।
वे यीशु को कहते थे कि वह पेटू और पियक्कड़ मनुष्य है।
उसने आंसुओं से यीशु के पांव धोए और अपने बालों से उन्हें पौंछा, उसके पावों को चूमकर उन पर इत्र मला।
उसने बहुत प्रेम किया।
?
1 इसके बाद वह नगर-नगर और गाँव-गाँव प्रचार करता हुआ, और परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा, और वे बारह उसके साथ थे, 2 और कुछ स्त्रियाँ भी जो दुष्टात्माओं से और बीमारियों से छुड़ाई गई थीं, और वे यह हैं मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी*, जिसमें से सात दुष्टात्माएँ निकली थीं, 3 और हेरोदेस के भण्डारी खोजा की पत्नी योअन्ना और सूसन्नाह और बहुत सी और स्त्रियाँ, ये तो अपनी सम्पत्ति से उसकी सेवा करती थीं।।
4 जब बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और नगर-नगर के लोग उसके पास चले आते थे, तो उसने दृष्टान्त में कहा: 5 “एक बोनेवाला बीज बोने निकला: बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पक्षियों ने उसे चुग लिया। 6 और कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु नमी न मिलने से सूख गया। 7 कुछ झाड़ियों के बीच में गिरा, और झाड़ियों ने साथ-साथ बढ़कर उसे दबा लिया। 8 “और कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया।” यह कहकर उसने ऊँचे शब्द से कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन लें।”
9 उसके चेलों ने उससे पूछा, “इस दृष्टान्त का अर्थ क्या है?” 10 उसने कहा, “तुम को परमेश्वर के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर औरों को दृष्टान्तों में सुनाया जाता है, इसलिए कि
‘वे देखते हुए भी न देखें,
और सुनते हुए भी न समझें।’ (मत्ती 4:11, यशा. 6:9-10)
11 “दृष्टान्त का अर्थ यह है: बीज तो परमेश्वर का वचन है। 12 मार्ग के किनारे के वे हैं, जिन्होंने सुना; तब शैतान आकर उनके मन में से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करके उद्धार पाएँ। 13 चट्टान पर के वे हैं, कि जब सुनते हैं, तो आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं, परन्तु जड़ न पकड़ने से वे थोड़ी देर तक विश्वास रखते हैं, और परीक्षा के समय बहक जाते हैं। 14 जो झाड़ियों में गिरा, यह वे हैं, जो सुनते हैं, पर आगे चलकर चिन्ता और धन और जीवन के सुख-विलास में फँस जाते हैं, और उनका फल नहीं पकता। 15 पर अच्छी भूमि में के वे हैं, जो वचन सुनकर भले और उत्तम मन में सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं।
16 “कोई दिया जला कर* बर्तन से नहीं ढाँकता, और न खाट के नीचे रखता है, परन्तु दीवट पर रखता है, कि भीतर आनेवाले प्रकाश पाएँ। 17 कुछ छिपा नहीं, जो प्रगट न हो; और न कुछ गुप्त है, जो जाना न जाए, और प्रगट न हो। 18 इसलिए सावधान रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो? क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जिसे वह अपना समझता है।”
19 उसकी माता और उसके भाई पास आए, पर भीड़ के कारण उससे भेंट न कर सके। 20 और उससे कहा गया, “तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए तुझ से मिलना चाहते हैं।” 21 उसने उसके उत्तर में उनसे कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये ही है, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।”
22 फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उसने उनसे कहा, “आओ, झील के पार चलें।” अतः उन्होंने नाव खोल दी। 23 पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया: और झील पर आँधी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे। 24 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं।” तब उसने उठकर आँधी को और पानी की लहरों को डाँटा और वे थम गए, और शान्त हो गया। 25 और उसने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्वास कहाँ था?” पर वे डर गए, और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, “यह कौन है, जो आँधी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं?”
26 फिर वे गिरासेनियों के देश में पहुँचे, जो उस पार गलील के सामने है। 27 जब वह किनारे पर उतरा, तो उस नगर का एक मनुष्य उसे मिला, जिसमें दुष्टात्माएँ थीं। और बहुत दिनों से न कपड़े पहनता था और न घर में रहता था वरन् कब्रों में रहा करता था। 28 वह यीशु को देखकर चिल्लाया, और उसके सामने गिरकर ऊँचे शब्द से कहा, “हे परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र यीशु! मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे पीड़ा न दे।” 29 क्योंकि वह उस अशुद्ध आत्मा को उस मनुष्य में से निकलने की आज्ञा दे रहा था, इसलिए कि वह उस पर बार-बार प्रबल होती थी। और यद्यपि लोग उसे जंजीरों और बेड़ियों से बाँधते थे, तो भी वह बन्धनों को तोड़ डालता था, और दुष्टात्मा उसे जंगल में भगाए फिरती थी। 30 यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने कहा, “सेना,” क्योंकि बहुत दुष्टात्माएँ उसमें समा गई थीं। 31 और उन्होंने उससे विनती की, “हमें अथाह गड्ढे में जाने की आज्ञा न दे।” 32 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था, अतः उन्होंने उससे विनती की, “हमें उनमें समाने दे।” अतः उसने उन्हें जाने दिया। 33 तब दुष्टात्माएँ उस मनुष्य से निकलकर सूअरों में समा गई और वह झुण्ड कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा गिरा और डूब मरा।
34 चरवाहे यह जो हुआ था देखकर भागे, और नगर में, और गाँवों में जाकर उसका समाचार कहा। 35 और लोग यह जो हुआ था उसको देखने को निकले, और यीशु के पास आकर जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं, उसे यीशु के पाँवों के पास कपड़े पहने और सचेत बैठे हुए पा कर डर गए। 36 और देखनेवालों ने उनको बताया, कि वह दुष्टात्मा का सताया हुआ मनुष्य किस प्रकार अच्छा हुआ। 37 तब गिरासेनियों के आस-पास के सब लोगों ने यीशु से विनती की, कि हमारे यहाँ से चला जा; क्योंकि उन पर बड़ा भय छा गया था। अतः वह नाव पर चढ़कर लौट गया। 38 जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं वह उससे विनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे, परन्तु यीशु ने उसे विदा करके कहा। 39 “अपने घर में लौट जा और लोगों से कह दे, कि परमेश्वर ने तेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए हैं।” वह जाकर सारे नगर में प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए।
40 जब यीशु लौट रहा था, तो लोग उससे आनन्द के साथ मिले; क्योंकि वे सब उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। 41 और देखो, याईर नाम एक मनुष्य जो आराधनालय का सरदार था, आया, और यीशु के पाँवों पर गिरके उससे विनती करने लगा, “मेरे घर चल।” 42 क्योंकि उसके बारह वर्ष की एकलौती बेटी थी, और वह मरने पर थी। जब वह जा रहा था, तब लोग उस पर गिरे पड़ते थे। 43 और एक स्त्री ने जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जीविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी और फिर भी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी, 44 पीछे से आकर उसके वस्त्र के आँचल को छुआ, और तुरन्त उसका लहू बहना थम गया। 45 इस पर यीशु ने कहा, “मुझे किस ने छुआ?” जब सब मुकरने लगे, तो पतरस और उसके साथियों ने कहा, “हे स्वामी, तुझे तो भीड़ दबा रही है और तुझ पर गिरी पड़ती है।” 46 परन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है क्योंकि मैंने जान लिया है कि मुझ में से सामर्थ्य निकली है।” 47 जब स्त्री ने देखा, कि मैं छिप नहीं सकती, तब काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर सब लोगों के सामने बताया, कि मैंने किस कारण से तुझे छुआ, और कैसे तुरन्त चंगी हो गई। 48 उसने उससे कहा, “पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है, कुशल से चली जा।” 49 वह यह कह ही रहा था, कि किसी ने आराधनालय के सरदार के यहाँ से आकर कहा, “तेरी बेटी मर गई: गुरु को दुःख न दे।” 50 यीशु ने सुनकर उसे उत्तर दिया, “मत डर; केवल विश्वास रख; तो वह बच जाएगी*।” 51 घर में आकर उसने पतरस, और यूहन्ना, और याकूब, और लड़की के माता-पिता को छोड़ और किसी को अपने साथ भीतर आने न दिया। 52 और सब उसके लिये रो पीट रहे थे, परन्तु उसने कहा, “रोओ मत; वह मरी नहीं परन्तु सो रही है।” 53 वे यह जानकर, कि मर गई है, उसकी हँसी करने लगे। 54 परन्तु उसने उसका हाथ पकड़ा, और पुकारकर कहा, “हे लड़की उठ!” 55 तब उसके प्राण लौट आए और वह तुरन्त उठी; फिर उसने आज्ञा दी, कि उसे कुछ खाने को दिया जाए। 56 उसके माता-पिता चकित हुए, परन्तु उसने उन्हें चेतावनी दी, कि यह जो हुआ है, किसी से न कहना।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य रूप में किया जा सकता है, “जिन्हें यीशु ने प्रेत मुक्ति और रोग मुक्ति दिलाई थी।
तीन स्त्रियों के नामों का उल्लेख किया गया है, मरियम, योअन्ना और सूसन्नाह।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “यूहन्ना जो हेरोदेस के प्रबन्धक खुज़ा की पत्नी थी।" यूअन्ना खुजा की पत्नी थी और खुजा हेरोदेस का प्रबन्धक था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “एक किसान खेत में बीज डालने निकला”
“मार्ग पर” या “पगडंडी पर” मनुष्यों के आवागमन के कारण वह भूमि कठोर हो गई थी।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पांवों तले दबते रहने के कारण उग नहीं पाए” या कतृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी में है ।
“पक्षी उसे खा गए”
“पौधे सूख कर मर गए”
इसका अनुवाद हो सकता है, “भूमि सूखी होने के कारण”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
झाड़ियों ने खाद, पानी और सूर्य का प्रकाश लेकर उन्हें बढ़ने नहीं दिया”
“फसल लाया” या “कई गुणा बीज लाया”
कुछ भाषाओं में द्वितीय पुरूष काम में लेना अधिक स्वाभाविक होता है।
“जो सुन रहा है” या “जो मेरी वाणी सुनता है”
"वह ध्यान से सुन ले" या "वह मेरी बात पर ध्यान दे"।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य रूप में तथा अभिप्रेत जानकारी के साथ किया जा सकता है, “परमेश्वर ने तुम्हें समझने का वरदान दिया है” या “परमेश्वर ने तुम्हें समझने की क्षमता दी है”।(देखें: और )
ये सत्य छिपे हुए थे परन्तु यीशु ने उन्हें प्रकट किया है।
“यद्यपि वे देखते है, वे अंतर्ग्रहण नहीं कर पायंगे, यदि क्रिया को कर्म की आवश्यकता है तो उसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यद्यपि वे सब बातों को देखते हैं उन्हें समझेंगे नहीं” या “यद्यपि वे घटनाओं को देखेंगे, वे उनका अर्थ नहीं समझेंगे।”(देखें: the section about )
“यद्यपि वे सुनते हैं, वे समझेंगे नहीं, “यदि क्रिया को कर्म की आवश्यकता है तो इसकी रचना इस प्रकार की जाएगी, “यद्यपि वे निर्देशनों को सुनते हैं, वे सत्य को अंतर्ग्रहण नहीं कर पायेंगे”।
(यीशु अपने शिष्यों ही से बातें कर रहा है। वह उन्हें इस शिक्षाप्रद कथा का अर्थ समझा रहा है)
अर्थात उन्होंने परमेश्वर का वचन सुना परन्तु शैतान ने उनसे वह भुला दिया।
कथा में पक्षी द्वारा बीज चुगना एक रूपक है। अपनी भाषा में उन शब्दों का उपयोग करे जो इस रूपक को बनाए रखे।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है। “वे विश्वास करें और परमेश्वर उनका उद्धार करे। क्योंकि यह शैतान की युक्ति है। इसलिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “क्योंकि शैतान सोचता है, वे विश्वास न करें और उद्धार से वंचित हो जाएं”।
“कठिनाइयों के समय वे विश्वास से विमुख हो जाते हैं” या “कठिनाइयां आने पर वे विश्वास करना छोड़ देते हैं।”
(यीशु इस शिक्षाप्रद कथा का ही अर्थ समझा रहा है)
“इस जीवन की चिन्ता, घर का लालच और सुखभोग उनके विश्वास को कुंठित कर देता है” या “जिस प्रकार झाड़ियां अच्छे पौधे को बढ़ने नहीं देती, उसी प्रकार चिन्ताए, धन, लोलुपता और विलासिता की चाह इन मनुष्यों को विश्वास में परिपक्व नहीं होने देते”।
“जिन बातों के लिए मनुष्य परेशान होता है,”
“जीवन में मनुष्यों के सुख-भोग की बातें”
“वे पक्का फल नहीं लाते”, इस रूपक का अनुवाद उपमा द्वारा भी किया जा सकता है, “जैसे एक दृश्य परिपक्व होकर फल नहीं लाता, वे भी परिपक्व होकर भले काम नहीं करते”।
“धीरज से फल लाते हैं”, इस रूपक का अनुवाद उपमा के उपयोग से भी किया जा सकता है, “ऐसे फल लाते हें जैसे एक अच्छा वृक्ष अच्छे फल लाता है, वे यत्न करके भले काम करते हैं”
(यीशु अपने शिष्यों को समझा रहा है)
यह एक छोटी कटोरी होती थी जिसमें वे जैतून का तेल डाल कर उनमें बत्ती लगाकर जलाते थे।
“मेज” या “ताक”
इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में भी किया जा सकता है, “छिपी हुई हर एक बात प्रकट की जाएगी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “हर एक गुप्त बात जान ली जाएगी वरन प्रकाश में आएगी”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम मेरी बातों को किस प्रकार सुनते हो” या “तुम परमेश्वर के वचन को कैसे सुनते हो”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जिसमें समझ है” या “जो मेरी शिक्षाओं को ग्रहण करता है”।
“उसे और अधिक दिया जाएगा”,इसका अनुवाद कतृवाच्य क्रिया में भी किया जा सकता है, “परमेश्वर उसे और अधिक देगा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जिसमें समझ नहीं है” या “जो मेरी शिक्षा को ग्रहण नहीं करता है”।
यीशु के अपने छोटे भाई
“लोगों ने उससे कहा”, या “किसी ने उससे कहा”
“तुझसे भेंट करने की प्रतीक्षा में हैं”, या “वे तुझसे मिलना चाहते हैं”
इस रूपक को उपमा देकर अनुवाद किया जा सकता है, “परमेश्वर का वचन सुनकर उसका पालन करनेवाले मेरे लिए माता और भाई स्वरूप हैं”। या “जो परमेश्वर के वचन को सुनकर उसका पालन करते वे मेरे लिए माता और भाई का स्थान रखते हैं”।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“जब वे नाव में जा रहे थे”
“उसे नींद आ गई”
“अकस्मात की प्रचण्ड आंधी चलने लगी”
यहाँ "स्वामी" का अर्थ मूल भाषा यूनानी में मालिक नहीं है। इसका अर्थ है अधिकार संपन्न मनुष्य, न कि किसी का अधिकृत मालिक। आप इसका अनुवाद इस प्रकार भी कर सकते है, “साहब” या "अधिकर्मी" या किसी अधिकारी के लिए काम में लिया जानेवाला शब्द जैसे “श्रीमान जी”
“कठोरता से कहा”
“आंधी और विचलित पानी शान्त हो गए”।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है, “यीशु उनकी मृदु ताड़ना कर रहा था क्योंकि उनमे विश्वास नहीं था कि वे उसके साथ सुरक्षित है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “तुम्हें विश्वास करना था” या “तुम्हें मुझ पर तो विश्वास होना था”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यह कैसा मनुष्य है”?
यह एक नये वाक्य का आरंभ हो सकता है, “यह आज्ञा देता है......”
गिरासेनी गिरासा नगर के निवासी थे
“झील के पार गलील को देखता हुआ”
"गिरासा नगर का एक व्यक्ति"
“वह दुष्टात्माओं के वश में था”
“वह कपड़े नहीं पहनता था”
जहाँ वे अपने मृतक रखते थे। संभवतः गुफाएं। वह उनमें रहता था, तो इससे प्रकट होता है कि वे कब्र भूमिगत नहीं थी।
"जब उस दुष्टात्माग्रस्त मनुष्य ने यीशु को देखा।"
“उसने ऊंची आवाज में कहा” या “चिल्लाया”
“भूमि पर लेट गया” वह ठोकर खाकर नहीं गिरा था अपितु डर के कारण भूमि पर लेट गया था।
"ऊंचे स्वर में बोला" या “पुकार कर कहा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तू मुझे कष्ट क्यों देता है”?
“वह उस व्यक्ति को वशीभूत करती थी” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह उसे दबाती रहती थी” यह वाक्य और अगला वाक्य स्पष्ट करते हैं कि यीशु के साक्षात्कार से पूर्व उन दुष्टात्माओं ने उस मनुष्य के माध्यम से क्या-क्या किया था।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “यद्यपि लोग उसे वश में करने के लिए जज़ीरों से बान्धते थे”
“इस शब्द का अनुवाद एक ऐसे शब्द से किया जाए जिसका अर्थ हो, बहुत संख्या में सैनिक या मनुष्य। इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “सैन्य दल” या “टोली”
“उस व्यक्ति से निकल कर नरक में जाने की आज्ञा न दे”।
“वहीं पास में पहाड़ पर बहुत से सुअर चर रहे थे”
“तेजी से दौड़कर”
“उन्होंने अतिशीघ्र जाकर”
“जिस व्यक्ति से दुष्टात्माएं निकली थी उसे देखा
“वह कपड़े पहने हुए था”
“वह उचित मानसिक अवस्था में था” या “उसका व्यवहार सामान्य था”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “भूमि पर बैठा यीशु की बातें सुन रहा था”।
“वे यीशु से डर गए”
ये वे लोग थे जो उस मनुष्य की प्रेत मुक्ति के समय वहां थे।
“बचाया गया” या “मुक्त किया गया” या “स्वस्थ किया गया”
“उस क्षेत्र के” या “गिरासेनियों के क्षेत्र के”
“भयभीत हो गए”
कुछ अनुवादक इस वाक्य का आरंभ इस प्रकार करना चाहते हैं, “यीशु और उसके शिष्यों के प्रस्थान से पूर्व, उस मनुष्य ने” या “यीशु और उसके शिष्यों के नाव में सवार होने से पूर्व”
“यीशु ने उसे घर भेज दिया”
“अपने परिवार में” या “अपने कुटुम्ब में”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जनसमूह ने बड़े आनन्द से उसका स्वागत किया”
“इतने में” कहानी में एक नये नायक, याईर की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति हो सकती है।
“स्थानीय आराधनालय का अगुआ” या “वहां के आराधनालय के सदस्यों का अगुआ”
(1) यीशु को दण्डवत किया” या (2) यीशु के चरणों में लेट गया” वह ठोकर खाकर नहीं गिरा था। उसने दीनता और श्रद्धा के साथ ऐसा किया था।
“वह मरनेवाली थी” या “वह मृत्यु के मुंह में थी”
कुछ अनुवादों में आवश्यक होगा कि पहले कहा जाए, “यीशु उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गया”
"लोग यीशु को छूते हुए चल रहे थे"
(यह घटना उस समय की है जब यीशु याईर की पुत्री को रोग-मुक्त करने जा रहा था)।
“रक्त बहता था” संभवतः लगातार रजोधर्म का स्राव। कुछ संस्कृतियों में इसके लिए मृदुभाषी शब्द होगा।
“कोई उसका सफल उपचार नहीं कर पाया”
“उसके चोगे के सिरे को छू लिया” यहूदी पुरूष अपने चोगे के सिरे पर झालन लगवाते थे जो उनके सांस्कारिक वस्त्र के द्योतक थे। यह परमेश्वर की ओर से आदेशित था। अति संभव है कि उसने वह झालन छू लिया था।
(यीशु याईर की पुत्री के रोगहरण हेतु जा रहा था)
यहाँ स्वामी का मूल शब्द है उसका अर्थ दास का स्वामी नहीं है। यह एक अधिकार संपन्न मनुष्य के लिए काम में लिया जाता था न कि किसी दास के मालिक के लिए। आप इसका अनुवाद इस प्रकार कर सकते हैं, “प्रधान जी” या “श्रीमान जी”
पतरस के कहने का अर्थ है कि सब तो उसका स्पर्श कर रहे हैं। यह निहितार्थ आवश्यकता के अनुसार व्यक्त किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
“मुझे अपने में से रोगहरण सामर्थ्य का प्रवाह होता प्रतीत हुआ है, “इसका अर्थ यह नहीं कि यीशु सामर्थ्य में कम या दुर्बल हुआ था। उसके सामर्थ्य से वह स्त्री रोग-मुक्त हो गयी थी।
(यीशु याईर की पुत्री के रोगहरण हेतु जा रहा है)
“उसने देखा कि उसके द्वारा यीशु को स्पर्श करना छिपा नहीं रह सकता”
“सबके समक्ष” या “सब के सुनते हुए” या “सबकी उपस्थिति में”
इसके संभावित अर्थ हें, (1) “यीशु को दण्डवत करके या (2) “वह यीशु के चरणों में नतमस्तक हुई” यहाँ गिरने का अर्थ ठोकर खाकर गिरना नहीं है। यह दीनता और श्रद्धा का चिन्ह है।
यह किसी स्त्री को संबोधित करने का एक दया का शब्द था। आपकी भाषा में इस प्रकार के दयापूर्ण शब्द का पयार्यवाची शब्द हो सकता है।
“यह तेरा विश्वास है जिसने रोग को हर लिया है” यहाँ विश्वास का अनुवाद क्रिया रूप में किया जा सकता है, “क्योंकि तू विश्वास करती है इसलिए तू निरोग हो गई है”।
यह एक प्रकार से आशिषों के साथ विदा करना है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “निश्चिन्त होकर जा” या “जा परमेश्वर तुझे शान्ति दे”(यू.डी.बी)।
(यीशु ने उस स्त्री को विदा किया ही था कि याईर के घर से एक सन्देशवाहक आया)
“यीशु उस स्त्री से अन्तिम वचन कह ही रहा था”
अर्थात याईर के। वह स्थानीय आराधनालय के अगुवों में से एक था।
यीशु ने याईर से कहा- यीशु सन्देशवाहक से नहीं आराधनालय के अगुवे से कह रहा था।
“वह स्वस्थ होगी” “वह जिएगी”(यू.डी.बी)
(उसकी पुत्री के मरने का समाचार सुनकर भी यीशु उसके घर जा रहा है)
यीशु के साथ अन्य लोग भी थे, अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब वे उसके घर पहुंचे तब यीशु .......”
“उसने केवल पतरस, यूहन्ना और याकूब तथा उस मृतक लड़की के माता पिता को भीतर आने दिया”।
“सब लोग उस बालिका की मृत्यु पर दुःख मना रहे थे”
“हे बालिका उठ”
“प्राण” का अनुवाद “सांसें” या “जीवन” भी किया जा सकता है। इस वाक्याँश का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह जीवित हो गई” या “उसमें जान आ गई”
कुछ स्त्रियां अपनी सम्पत्ति से उसकी सेवा करती थी।
बीज परमेश्वर का वचन है।
वे वचन को सुनते तो हैं परन्तु शैतान आकर उसे ले जाता है कि वे विश्वास करके बचाए न जाएं।
ये वे लोग है जो बड़े आनन्द से वचन को ग्रहण करते हैं परन्तु परीक्षा के समय विश्वास करना छोड़ देते हैं।
ये वे लोग हैं जो वचन को सुनते है परन्तु चिन्ता और धन और जीवन के सुख विलास के कारण वह दब जाते हैं और वे परिपक्व होकर फल नहीं लाते।
ये वे लोग हे जो वचन को सुनकर उसे थामते हैं और यत्न से फल उत्पन्न करते हैं।
ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का वचन सुनकर उस पर चलते हैं।
वे आश्चर्य करने लगे कि "यह कौन है जो आंधी और पानी को भी आज्ञा देता है और वे उसकी मानते हैं?"
वे उसे निर्वस्त्र कब्रों में रहने पर विवश करती थी और वह सांकलों और बेड़ियों को तोड़ देता था और वे उसे जंगलों में भगाती थी।
दुष्टात्माएं सूअरों के झुण्ड में चली गई और सूअर झील में डूब कर मर गए।
यीशु ने उससे कहा कि वह घर जाकर बताए कि परमेश्वर ने उसके लिए कैसे महान काम किए।
वह यीशु में विश्वास के कारण रोग मुक्त हो गई थी।
यीशु ने याईर की पुत्री को मृतक से जिलाया।
1 फिर उसने बारहों को बुलाकर उन्हें सब दुष्टात्माओं और बीमारियों को दूर करने की सामर्थ्य और अधिकार दिया। 2 और उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने, और बीमारों को अच्छा करने के लिये भेजा। 3 और उसने उनसे कहा, “मार्ग के लिये कुछ न लेना: न तो लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपये और न दो-दो कुर्ते। 4 और जिस किसी घर में तुम उतरो, वहीं रहो; और वहीं से विदा हो। 5 जो कोई तुम्हें ग्रहण न करेगा उस नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो।” 6 अतः वे निकलकर गाँव-गाँव सुसमाचार सुनाते, और हर कहीं लोगों को चंगा करते हुए फिरते रहे।
7 और देश की चौथाई का राजा हेरोदेस यह सब सुनकर घबरा गया, क्योंकि कितनों ने कहा, कि यूहन्ना मरे हुओं में से जी उठा है। 8 और कितनों ने यह, कि एलिय्याह दिखाई दिया है: औरों ने यह, कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है। 9 परन्तु हेरोदेस ने कहा, “यूहन्ना का तो मैंने सिर कटवाया अब यह कौन है, जिसके विषय में ऐसी बातें सुनता हूँ?” और उसने उसे देखने की इच्छा की।।
10 फिर प्रेरितों ने लौटकर जो कुछ उन्होंने किया था, उसको बता दिया, और वह उन्हें अलग करके बैतसैदा* नामक एक नगर को ले गया। 11 यह जानकर भीड़ उसके पीछे हो ली, और वह आनन्द के साथ उनसे मिला, और उनसे परमेश्वर के राज्य की बातें करने लगा, और जो चंगे होना चाहते थे, उन्हें चंगा किया। 12 जब दिन ढलने लगा, तो बारहों ने आकर उससे कहा, “भीड़ को विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर अपने लिए रहने को स्थान, और भोजन का उपाय करें, क्योंकि हम यहाँ सुनसान जगह में हैं।” 13 उसने उनसे कहा, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने कहा, “हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछली को छोड़ और कुछ नहीं; परन्तु हाँ, यदि हम जाकर इन सब लोगों के लिये भोजन मोल लें, तो हो सकता है।” 14 (क्योंकि वहाँ पर लगभग पाँच हजार पुरुष थे।) और उसने अपने चेलों से कहा, “उन्हें पचास-पचास करके पाँति में बैठा दो।” 15 उन्होंने ऐसा ही किया, और सब को बैठा दिया। 16 तब उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं, और स्वर्ग की और देखकर धन्यवाद किया, और तोड़-तोड़कर चेलों को देता गया कि लोगों को परोसें। 17 अतः सब खाकर तृप्त हुए, और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाई। (2 राजा. 4:44)
18 जब वह एकान्त में प्रार्थना कर रहा था, और चेले उसके साथ थे, तो उसने उनसे पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?” 19 उन्होंने उत्तर दिया, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, और कोई-कोई एलिय्याह, और कोई यह कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है।” 20 उसने उनसे पूछा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने उत्तर दिया, “परमेश्वर का मसीह*।” 21 तब उसने उन्हें चेतावनी देकर कहा, “यह किसी से न कहना।”
22 और उसने कहा, “मनुष्य के पुत्र के लिये अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें, और वह तीसरे दिन जी उठे।”
23 उसने सबसे कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इन्कार करे और प्रति-दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले। 24 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्तु जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा। 25 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपना प्राण खो दे, या उसकी हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? 26 जो कोई मुझसे और मेरी बातों से लजाएगा; मनुष्य का पुत्र भी जब अपनी, और अपने पिता की, और पवित्र स्वर्गदूतों की, महिमा सहित आएगा, तो उससे लजाएगा। 27 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कोई-कोई ऐसे हैं कि जब तक परमेश्वर का राज्य न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद न चखेंगे।”
28 इन बातों के कोई आठ दिन बाद वह पतरस, और यूहन्ना, और याकूब को साथ लेकर प्रार्थना करने के लिये पहाड़ पर गया। 29 जब वह प्रार्थना कर ही रहा था, तो उसके चेहरे का रूप बदल गया, और उसका वस्त्र श्वेत होकर चमकने लगा। 30 तब, मूसा और एलिय्याह*, ये दो पुरुष उसके साथ बातें कर रहे थे। 31 ये महिमा सहित दिखाई दिए, और उसके मरने की चर्चा कर रहे थे, जो यरूशलेम में होनेवाला था। 32 पतरस और उसके साथी नींद से भरे थे, और जब अच्छी तरह सचेत हुए, तो उसकी महिमा; और उन दो पुरुषों को, जो उसके साथ खड़े थे, देखा। 33 जब वे उसके पास से जाने लगे, तो पतरस ने यीशु से कहा, “हे स्वामी, हमारा यहाँ रहना भला है: अतः हम तीन मण्डप बनाएँ, एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” वह जानता न था, कि क्या कह रहा है। 34 वह यह कह ही रहा था, कि एक बादल ने आकर उन्हें छा लिया, और जब वे उस बादल से घिरने लगे, तो डर गए। 35 और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा पुत्र और मेरा चुना हुआ है, इसकी सुनो।” (2पत. 17-18, यशा. 42:1) 36 यह शब्द होते ही यीशु अकेला पाया गया; और वे चुप रहे, और जो कुछ देखा था, उसकी कोई बात उन दिनों में किसी से न कही।
37 और दूसरे दिन जब वे पहाड़ से उतरे, तो एक बड़ी भीड़ उससे आ मिली। 38 तब, भीड़ में से एक मनुष्य ने चिल्लाकर कहा, “हे गुरु, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मेरे पुत्र पर कृपादृष्टि कर; क्योंकि वह मेरा एकलौता है। 39 और देख, एक दुष्टात्मा उसे पकड़ती है, और वह एकाएक चिल्ला उठता है; और वह उसे ऐसा मरोड़ती है, कि वह मुँह में फेन भर लाता है; और उसे कुचलकर कठिनाई से छोड़ती है। 40 और मैंने तेरे चेलों से विनती की, कि उसे निकालें; परन्तु वे न निकाल सके।” 41 यीशु ने उत्तर दिया, “हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, और तुम्हारी सहूँगा? अपने पुत्र को यहाँ ले आ।” 42 वह आ ही रहा था कि दुष्टात्मा ने उसे पटककर मरोड़ा, परन्तु यीशु ने अशुद्ध आत्मा को डाँटा और लड़के को अच्छा करके उसके पिता को सौंप दिया। 43 तब सब लोग परमेश्वर के महासामर्थ्य से चकित हुए। परन्तु जब सब लोग उन सब कामों से जो वह करता था, अचम्भा कर रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा, 44 “ये बातें तुम्हारे कानों में पड़ी रहें, क्योंकि मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाने को है।” 45 परन्तु वे इस बात को न समझते थे, और यह उनसे छिपी रही; कि वे उसे जानने न पाएँ, और वे इस बात के विषय में उससे पूछने से डरते थे।
46 फिर उनमें यह विवाद होने लगा, कि हम में से बड़ा कौन है? 47 पर यीशु ने उनके मन का विचार जान लिया, और एक बालक को लेकर अपने पास खड़ा किया, 48 और उनसे कहा, “जो कोई मेरे नाम से इस बालक को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है, क्योंकि जो तुम में सबसे छोटे से छोटा है, वही बड़ा है।”
49 तब यूहन्ना ने कहा, “हे स्वामी, हमने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा, और हमने उसे मना किया, क्योंकि वह हमारे साथ होकर तेरे पीछे नहीं हो लेता।” 50 यीशु ने उससे कहा, “उसे मना मत करो; क्योंकि जो तुम्हारे विरोध में नहीं, वह तुम्हारी ओर है।”
51 जब उसके ऊपर उठाए जाने के दिन पूरे होने पर थे, तो उसने यरूशलेम को जाने का विचार दृढ़ किया। 52 और उसने अपने आगे दूत भेजे: वे सामरियों के एक गाँव में गए, कि उसके लिये जगह तैयार करें। 53 परन्तु उन लोगों ने उसे उतरने न दिया*, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था। 54 यह देखकर उसके चेले याकूब और यूहन्ना ने कहा, “हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे?” 55 परन्तु उसने फिरकर उन्हें डाँटा [और कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम कैसी आत्मा के हो। क्योंकि मनुष्य का पुत्र लोगों के प्राणों को नाश करने नहीं वरन् बचाने के लिये आया है।”] 56 और वे किसी और गाँव में चले गए।
57 जब वे मार्ग में चले जाते थे, तो किसी ने उससे कहा, “जहाँ-जहाँ तू जाएगा, मैं तेरे पीछे हो लूँगा।” 58 यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर रखने की भी जगह नहीं।” 59 उसने दूसरे से कहा, “मेरे पीछे हो ले।” उसने कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” 60 उसने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मुर्दे गाड़ने दे, पर तू जाकर परमेश्वर के राज्य की कथा सुना।” 61 एक और ने भी कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे पीछे हो लूँगा; पर पहले मुझे जाने दे कि अपने घर के लोगों से विदा हो आऊँ।” (1 राजा. 19:20) 62 यीशु ने उससे कहा, “जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।”
बारहों - उसके बारह शिष्य जिन्हें उसने चुनकर अलग कर लिया था कि वे उसके प्रेरित हों।
सामर्थ्य और अधिकार - इन दोनों शब्दों का उपयोग एक साथ इसलिए किया गया है कि उन बारहों को मनुष्यों के रोग हरण की क्षमता एवं अधिकार दिया गया था। इस वाक्यांश का अनुवाद इन दोनों शब्दों के अभिप्राय को एक साथ रख कर करें।
बिमारियों का अर्थ है मनुष्यों को दुर्बल बनाने के कारण
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्हें विभिन्न स्थानों में भेजा” या “उनसे कहा कि वे जाएं”
“यीशु ने उन बारहों से कहा”
कुछ न लेना - इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने साथ कुछ भी न लेना” या “कुछ भी साथ लेकर न चलना”
“अपनी प्रचार यात्रा में” या “जब तुम जाओ” जब तक वे यीशु के पास लौट कर न आ जाएं, उन्हें अपने गांव-गांव भ्रमण करने में कुछ भी पहले से साथ लेकर नहीं चलना था।
लाठी - “डंडा” या “चलने के लिए लकड़ी” लाठी या डंडा ऊंचे-नीचे रास्तों पर चलने के लिए संतुलन बनाने हेतु और आत्मरक्षा के लिए साथ रखा जाता था।
“जिस घर में प्रवेश करो”
"वहीं ठहरना" या "उसी परिवार का आतिथ्य स्वीकार करना"
“उस शहर से” या “उस स्थान से”
(यीशु अपने शिष्यों को निर्देश दे रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो लोग तुम्हारा स्वागत न करें उनके साथ जो व्यवहार तुम्हें करना है वह यह होगा.”
“जहाँ यीशु था वहां से प्रस्थान किया।”
“सर्वत्र भ्रमण किया”
हेरोदेस एन्तिपास जो चौथाई इस्राएल का प्रशासक था।
“परेशान हो गया” या “समाचार सुनकर बेचैन हो गया” या “विमूढ़ था”(यू.डी.बी)
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “यूहन्ना का तो सिर मैंने ही अपने सैनिकों से कटवाया था”।
“जिन बारहों को यीशु ने भेजा था”।
“यीशु के पास लौटकर आए”
“उन प्रेरितों ने यीशु को ब्योरा सुनाया”
विभिन्न स्थानों में उन्होंने जो शिक्षा दी और रोगियों को रोग-मुक्त किया, यह उसी के सन्दर्भ में है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह उन्हें अकेले में ले गया”, यीशु और उसके शिष्य अकेले गए थे।
“सूर्यास्त के समय” या “दिन के अन्त में” या “संध्या समय”
“जनसमूह को जाने दे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “या फिर हम जाकर भोजन मोल लें” या आप एक नया वाक्य रच सकते हैं, “यदि तू उन्हें भोजन करवाना चाहता है तो हमें जाकर भोजन मोल लेना पड़ेगा”।
स्त्रियों और बच्चों को जो उनके साथ थे नहीं गिना गया था।
“उनसे बैठने के लिए कहो”
शिष्यों ने उन्हें पचास-पचास के समूह में बैठा दिया।
यीशु ने
ये सिकी हुई रोटियों की संख्या है,अर्थात “पूरी रोटियां”
“स्वर्ग की ओर देखते हुए” या “स्वर्ग को देखकर”
अर्थात आकाश की ओर देखकर। यहूदियों का मानना था कि स्वर्ग आकाश के पार है।
“उनको दें” या “उनमें बांटें”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “पेट भर कर खा लिया”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
यह यीशु के सन्दर्भ में है
शिष्य यीशु के साथ थे परन्तु यीशु अपनी निज प्रार्थना कर रहा था
“उन्होंने उससे कहा”
कुछ भाषाओं में कहा जाता है, “कुछ लोग कहते है”, “तू यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला है”
“प्राचीन काल के”, “बहुत समय पहले का”
“जीवित हुआ है”
“यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा”
“पतरस ने कहा” या “इसका उत्तर पतरस ने दिया”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परन्तु यीशु ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा” या “यीशु ने उन्हें कठोर चेतावनी दी” (यू.डी.बी.)
“अपने तक ही रखना” या “किसी से कहने की आवश्यकता नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद: परन्तु यीशु ने चेतावनी देते हुए कहा, 'किसी से इसकी चर्चा न करना'
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “लोग मनुष्य के पुत्र को घोर पीड़ा देंगे” पद 22 का अनुवाद भी यू.डी.बी. के सदृश्य प्रथम पुरूष में किया जा सकता है।
“तीसरे दिन फिर जीवित हो”
“मरने के तीन दिन बाद” या “मृत्यु के बाद तीसरे दिन”
यह यीशु के सन्दर्भ में है
अर्थात यीशु के साथ जो शिष्य थे, उन सबसे।
“मेरा अनुसरण करे” या “मेरा अनुयायी होना चाहता है” या “मेरे शिष्य होना चाहता है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपनी लालसाओं के अधीन न रहे” या “अपनी लालसाओं का त्याग करे”
“अपना क्रूस उठाकर प्रतिदिन चले”, इसका अर्थ है, “प्रतिदिन दुःख उठाने को तैयार रहे”
“मेरे साथ चले” या “मेरे पीछे-पीछे चले और चलता रहे”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य को क्या लाभ” यह आलंकारिक प्रश्न का एक भाग है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “उससे मनुष्य को लाभ नहीं होता है”, या “मनुष्य की भलाई नहीं है”।
“वह संसार में सब कुछ पा ले”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह स्वयं ही भटक जाए या नष्ट हो जाए”।
(यीशु अपने शिष्यों को ही समझा रहा है)
“सो मैं कहता हूँ उससे” या “मेरी शिक्षा से”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य का पुत्र भी उससे लजाएगा”
यीशु अपने बारे में कह रहा है इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं मनुष्य का पुत्र”
यीशु अपने लिए तृतीय पुरूष काम में ले रहा था। इसका अनुवाद प्रथम पुरूष में किया जा सकता है, “जब मैं अपनी महिमा में आऊंगा”।
यहाँ यीशु अपने श्रोताओं में से कुछ के लिए कह रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम जो यहाँ खड़े हो उनमें से कुछ”।(यू.डी.बी)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मरने से पूर्व परमेश्वर का राज्य देखेंगे”।
“उनकी मृत्यु नहीं होगी” या “मरेंगे नहीं”।
आपका अनुवाद “कुछ” पर निर्भर करेगा। आप इसका अनुवाद इस प्रकार भी कर सकते हैं, “जब तक तुम परमेश्वर का राज्य न देख लो”
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण घटना का बोध करवाया गया है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
अर्थात पिछले पद में यीशु ने अपने शिष्यों से जो कहा।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पर्वत के ऊपर” यहाँ स्पष्ट नहीं है कि वह पर्वत पर कितना ऊपर गया था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसके मुखमण्डल की उपमा बदल गई”।
“चमकीला सफेद और उज्जवल” या “चमकीला सफेद और बिजली की सी चमक का” (यू.डी.बी.)
“देखो” शब्द का उपयोग हमें अग्रिम जानकारी के लिए सतर्क करता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अकस्मात ही वहां दो पुरूष बातें करते दिखाई दिए” या “दो पुरूष अकस्मात ही उसकी बातें करते दिखाई दिए”।
यह संबन्धवाचक शब्द वाक्य मूसा और एलिय्याह के बारे में जानकारी देता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “और वे महिमामय दिख रहे थे”
“इसके संसार से कूच करने की” या “वह इस संसार से कैसे कूच करेगा”, इसका अनुवाद किया जा सकता है, “उसकी मृत्यु की”
उसके चारों और उपस्थित तीव्र ज्योति। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्होंने यीशु से निकलनेवाली तीव्र ज्योति को देखा” या “उन्होंने यीशु से निकलने वाले तेज को देखा”
यह मूसा और एलिय्याह हैं।
यह उक्ति गतिविधियों का आरंभ दर्शाती है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसे यहाँ काम में लें
यहाँ "स्वामी" का मूल भाषा यूनानी शब्द सामान्यतः दासों के स्वामी के लिए काम में लिया जाने वाला सामान्य शब्द नहीं है यह शब्द अधिकार संपन्न मनुष्य के लिए काम में लिया जाता था न कि किसी दास के स्वामी के लिए। इसका अनुवाद “प्रधान जी” या “श्रीमान जी” किया जा सकता है या ऐसा शब्द काम में लिया जा सकता है जिसका अभिप्राय एक अधिकार सम्पन्न मनुष्य से हो जैसे "महोदय"।
मण्डप -“तम्बू” या “झोपड़ी”
“पतरस यह कह रही रहा था”
ये वयस्क शिष्य बादल से नहीं डरे थे। इसका वाक्यांश से प्रकट होता है कि बादल के कारण उन पर विचित्र भय छा गया था। इसका अनुवाद, “भयभीत हो गए” हो सकता है।
यदि आकाशवाणी को व्यक्त करना अस्वाभाविक हो तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बादल में से परमेश्वर ने कहा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरा पुत्र, जिसे मैंने चुना है”, (यू.डी.बी.) या “मेरा पुत्र, मेरा चुना हुआ”। “चुना हुआ” शब्द परमेश्वर के पुत्र के बारे में अतिरिक्त जानकारी दे रहा है। इसका अर्थ यह नहीं कि परमेश्वर के पास एक से अधिक पुत्र हैं। (देखें: information about Adjectives on )
अर्थात पुनरुत्थान के बाद यीशु के स्वर्गारोहण तक या संभव है कि यीशु के कथन के बाद।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“देखो” शब्द कहानी में एक नए मनुष्य का प्रवेश करवाता है। आपकी भाषा में इसके तुल्य कोई शब्द होगा। इस अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, "उस भीड़ में एक पुरुष था, उसने निवेदन किया"
“देख” शब्द उस मनुष्य की कहानी में दुष्टात्मा का विषय लाता है। आपकी भाषा में इसके तुल्य कोई शब्द होगा। इस अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, "इसमें एक दुष्टात्मा है...."
इसके संभावित अर्थ हैं (1) वह उसे कठिनाई से ही कभी छोड़ती है” (यू.डी.बी.) या (2) और जब वह उसे छोड़ती है तो मेरे पुत्र के लिए ऐसा कठिन हो जाता है कि”
जब मनुष्य के शरीर में अकड़न आती है तब उसे सांस लेने और निगलने में कठिनाई होती है। इसके कारण मनुष्य के मुंह से झाग निकलता है, यदि आपकी भाषा में इस स्थिति का वर्णन करने के लिए शब्द है तो उनका उपयोग करें।
“यीशु ने उन्हें संबोधित करके कहा”
यीशु ने जनसमूह से कहा था, अपने शिष्यों से नहीं
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। यीशु को इसके उत्तर की अपेक्षा नहीं थी। इसका अर्थ है, “मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ किया परन्तु तुम विश्वास नहीं करते”।
यहाँ यीशु उस दुष्टात्माग्रस्त युवक के पिता से कह रहा है।
“यीशु के पास आते-आते” या “यीशु के निकट आते समय”
“कठोरता से कहा”
प्रत्यक्ष में तो यीशु ने यह कार्य किया परन्तु दर्शकों ने समझ लिया था कि यह परमेश्वर का ही सामर्थ्य है।
“यीशु करता था”।
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “ध्यान से सुनो और स्मरण रखो” या “भूलना नहीं”।
यीशु स्वयं को तृतीय पुरूष में संबोधित कर रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं मनुष्य का पुत्र”।
“पकड़वाया” (यू.डी.बी.) इस संपूर्ण वाक्य का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य, मनुष्य के पुत्र को अधिकारियों के हाथों में दे देगे”।
परन्तु वे... न समझते थे , -इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “वे समझ नहीं पाए थे कि वह अपनी मृत्यु के बारे में कह रहा है।
“शिष्यों में”
“अपने-अपने मन में विचार करने लगे” या “सोच रहे थे”
“परमेश्वर को जिसने मुझे भेजा है”(यू.डी.बी)
“प्रति-उत्तर में यूहन्ना ने कहा” या “यूहन्ना ने यीशु से कहा” यीशु उन्हें समझा रहा था कि बड़ा कौन है तो यूहन्ना ने हस्तक्षेप करते हुए कहा। वह किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहा है वरन वह जानना चाहता था कि वह मनुष्य जो यीशु के नाम से दुष्टात्माएं निकाल रहा था, उसका शिष्यों में क्या स्थान है।
यहाँ "स्वामी" का अर्थ मूल भाषा यूनानी में मालिक नहीं है। इसका अर्थ है अधिकार संपन्न मनुष्य, न कि किसी का अधिकृत मालिक। आप इसका अनुवाद इस प्रकार भी कर सकते है, “साहब” या "अधिकर्मी" या किसी अधिकारी के लिए काम में लिया जानेवाला शब्द जैसे “श्रीमान जी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो तुम्हारे लिए बाधक नहीं वह सहायक जैसा है”, या “जो तुम्हारे विपरीत काम न करे वह तुम्हारे पक्ष में काम करता है”। कुछ आधुनिक भाषाओं में ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ यही है।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“उसके ऊपर जाने का समय आ रहा था” या “उसके ऊपर जाने का समय लगभग निकट था”।
“संकल्प किया” या “इच्छा की”
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “निश्चय किया” या “निर्णय लिया” या “दृढ़ संकल्प किया।”
उसके आगमन की तैयारी करें। संभवतः प्रचार के लिए, ठहरने और भोजन के लिए व्यवस्था करें।
“उसका स्वागत नहीं किया” या “उसके ठहरने की इच्छा न की”
“सामरियों का विरोध देख कर”
याकूब और यूहन्ना ने ऐसा सुझाव दिया क्योंकि वे जानते थे कि एलिय्याह ने परमेश्वर विरोधियों के साथ ऐसा ही किया था।
“यीशु ने याकूब और यूहन्ना को डांटा”। जैसा शिष्यों ने सोचा था, यीशु ने उसके विपरीत सामरियों को दोषी नहीं ठहराया।
शिष्यों में से किसी एक ने नहीं
यीशु के कहने का तात्पर्य था कि यदि वह यीशु के साथ चलेगा तो वह भी बेघर जो जाएगा। यहाँ सलंग्न जानकारी स्पष्ट की जा सकती है, “यह आशा न कर कि तेरे पास घर होगा”।
यह कुत्ते जैसे पशु होते हैं। वे भूमि में छेद करके उसमें रहते हैं।
“हवा में उड़ने वाले पक्षी”
यीशु स्वयं को तृतीय पुरूष में संबोधित कर रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मुझ, मनुष्य के पुत्र को”
“सिर टिकाने को भी नहीं” या “सोने के लिए भी जगह नहीं” यह अतिशयोक्ति है। यीशु इस तथ्य को समझाने के लिए बढ़ा चढ़ाकर कह रहा है कि उसके रहने के लिए कहीं भी उसका स्वागत नहीं है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरा अनुयायी हो जा” या “मेरा शिष्य होकर मेरे साथ चल”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इससे पहले कि में तेरे साथ चलूं मुझे जाकर ....” वह व्यक्ति यीशु से निवेदन कर रहा था।
“मुर्दे गाड़ने का काम मुर्दों के लिए छोड़ दे” मृतक तो कुछ करते नहीं अतः यहाँ अभिप्रेत अर्थ स्पष्ट दिया जा सकता है, “आत्मिकता में मृतकों को मृतक गाड़ने दे”
हे प्रभु मैं तेरे पीछे हो लूंगा - “मैं तेरा शिष्य बनूंगा” या “मैं तेरे साथ चलने को तैयार हूँ” या “मैं तेरे साथ चलने का प्रण करता हूँ”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तेरे साथ चलने से पहले में अपने परिजनों से विदा ले लूं”, या “मैं उन्हें बता दूं कि मैं तेरे साथ जा रहा हूँ”।
“मेरे कुटुम्ब से” या “परिजनों से”
यीशु सबके लिए लागू होने वाला एक सामान्य सिद्धान्त व्यक्त कर रहा था, तथापि उस मनुष्य के लिए अभिप्रेत जानकारी यह है, “यदि तू मेरे अनुसरण की अपेक्षा अपने अतीत के लोगों पर ध्यान देगा तो तू मेरे राज्य के योग्य नहीं है”।
“खेत जोतना आरंभ करके”, किसान बीज डालने से पहले खेत में हल चलाते है। जिन समुदायों को खेती का ज्ञान नहीं उनके लिए अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपना खेत तैयार करना आरंभ कर दे और....”
हल चलानेवाला यदि पीछे देखेगा तो वह हल को यथास्थान नहीं चला पाएगा और वह बैल के पांवों को भी चोट पहुंचायेगा। अतः उनका पूरा ध्यान आगे की ओर होना है।
“कामना” या “उचित”
यीशु ने उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने और रोगियों को चंगा करने भेजा।
कुछ लोग यीशु को पुनर्जीवित यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते थे, कुछ लोग कहते थे कि एलिय्याह आया है, कुछ कहते थे कि प्राचीनकाल का कोई भविष्यद्वक्ता है।
उनके पास पांच रोटियां और दो मछलियां थी।
वहाँ लगभग पांच हजार पुरुष थे।
उसने स्वर्ग को निहार कर उन्हें आशिष दी और रोटी तोड़कर चेलों को देता गया कि भीड़ में बांटें।
बचे हुए भोजन की बारह टोकरियां थी।
उसने कहा, "परमेश्वर का मसीह"।
उसे अपने आपका इन्कार करके प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर यीशु का अनुसरण करना है।
उसका रूप बदल गया और उसके वस्त्र श्वेत होकर चमकने लगे।
मूसा और एलिय्याह यीशु के साथ दिखाई दिए।
वहाँ एक वाणी सुनाई दी, "यह मेरा पुत्र और मेरा चुना हुआ है, इसकी सुनो"।
दुष्टात्मा ने चिल्लाने पर विवश किया, उसका शरीर ऐंठ कर उसके मुंह से फेंन निकाला।
उसने कहा, "कि मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों में पकड़वाया जायेगा।"
उनमें जो सबसे छोटा होगा वही सबसे बड़ा है।
उसने यरूशलेम जाने का निश्चय किया।
उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना है।
1 और इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस-जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो-दो करके अपने आगे भेजा। 2 और उसने उनसे कहा, “पके खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं इसलिए खेत के स्वामी से विनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे। 3 जाओ; देखों मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ। 4 इसलिए न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो। (मत्ती 10:9, 2 राजा. 4:29) 5 जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, ‘इस घर पर कल्याण हो।’ 6 यदि वहाँ कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा। 7 उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ-पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए; घर-घर न फिरना। 8 और जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें उतारें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ। 9 वहाँ के बीमारों को चंगा करो: और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’ 10 परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारों में जाकर कहो, 11 ‘तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पाँवों में लगी है, हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं, फिर भी यह जान लो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’ 12 मैं तुम से कहता हूँ, कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा अधिक सहने योग्य होगी। (उत्प. 19:24-25)
13 “हाय खुराजीन! हाय बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सूर और सैदा में किए जाते, तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते। 14 परन्तु न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सूर और सैदा की दशा अधिक सहने योग्य होगी। (योए. 3:4-8, जक. 9:2-4) 15 और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा। (यशा. 14:13,15)
16 “जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है, और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है।”
17 वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में है।” 18 उसने उनसे कहा, “मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था। (प्रका. 12:7-9, यशा. 14:12) 19 मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदने* का, और शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी। (भज. 91:13) 20 तो भी इससे आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।”
21 उसी घड़ी वह पवित्र आत्मा में होकर आनन्द से भर गया, और कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा। 22 मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंप दिया है; और कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है, केवल पिता और पिता कौन है यह भी कोई नहीं जानता, केवल पुत्र के और वह जिस पर पुत्र उसे प्रकट करना चाहे।”
23 और चेलों की ओर मुड़कर अकेले में कहा, “धन्य हैं वे आँखें, जो ये बातें जो तुम देखते हो देखती हैं, 24 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं।”
25 तब एक व्यवस्थापक उठा; और यह कहकर, उसकी परीक्षा करने लगा, “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूँ?” 26 उसने उससे कहा, “व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?” 27 उसने उत्तर दिया, “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्रेम रख।” (मत्ती 22:37-40, व्य. 6:5, व्य. 10:12, यहो. 22:5) 28 उसने उससे कहा, “तूने ठीक उत्तर दिया, यही कर तो तू जीवित रहेगा।” (लैव्य. 18:5) 29 परन्तु उसने अपने आप को धर्मी ठहराने* की इच्छा से यीशु से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?” 30 यीशु ने उत्तर दिया “एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मार पीटकर उसे अधमरा छोड़कर चले गए। 31 और ऐसा हुआ कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था, परन्तु उसे देखकर कतराकर चला गया। 32 इसी रीति से एक लेवी* उस जगह पर आया, वह भी उसे देखकर कतराकर चला गया। 33 परन्तु एक सामरी* यात्री वहाँ आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया। 34 और उसके पास आकर और उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकर* पट्टियाँ बाँधी, और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की। 35 दूसरे दिन उसने दो दीनार निकालकर सराय के मालिक को दिए, और कहा, ‘इसकी सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे दे दूँगा।’ 36 अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?” 37 उसने कहा, “वही जिस ने उस पर तरस खाया।” यीशु ने उससे कहा, “जा, तू भी ऐसा ही कर।”
38 फिर जब वे जा रहे थे, तो वह एक गाँव में गया, और मार्था नाम एक स्त्री ने उसे अपने घर में उतारा। 39 और मरियम नामक उसकी एक बहन थी; वह प्रभु के पाँवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी। 40 परन्तु मार्था सेवा करते-करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी, “हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सेवा करने के लिये अकेली ही छोड़ दिया है? इसलिए उससे कह, मेरी सहायता करे।” 41 प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है। 42 परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उससे छीना न जाएगा।”
कुछ अनुवादों में “बहत्तर” का उल्लेख किया गया है। आपको इसके लिए पद टिप्पणी लिखनी होगी।
“दो को एक साथ” या “दो-दो के दल में”
उनके प्रस्थान से पूर्व। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने उनसे जो कहा वह यह था” या “उनके प्रस्थान से पूर्व उसने उनसे कहा”।
“फसल तो बहुतायत से खड़ी है परन्तु काटने वालों की कमी है।” इस रूपक का अर्थ है कि परमेश्वर के राज्य में लाने के लिए बहुत लोग हैं। )
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को निर्देश दे रहा है जिन्हें वह भेजने पर है)।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “विभिन्न नगरों में जाओ” या “मनुष्यों में जाओ” या “जाकर मनुष्यों को लाओ”।
यह एक आज्ञा है जिसका अर्थ है कि जिन मनुष्यों के मध्य यीशु उन्हें भेज रहा था, वे उनको हानि पहुंचा सकते हैं। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “मैं तुम्हें भेज तो रहा हूँ परन्तु मनुष्य तुम्हें ऐसे हानि पहुंचा सकते हैं जैसे भेड़िये मेमनों को पहुंचाते हैं।
“भेड़ के बच्चे” वे हिसंक पशुओं से अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं होते हैं।
भेड़िये जंगली कुत्तों के समान बड़े हिंसक मांसाहारी पशु होते है जो छोटे पशुओं को मारकर खाते हैं। “भेड़ियों” का अनुवाद उसी जाति के, “जंगली कुत्ते” या हिंसक कुत्ते किया जा सकता है या कुत्ते जैसे किसी विशेष पशु का नाम रखा जा सकता है, जिससे पाठक परिचित है, जैसे सियार”।
“अपने साथ पैसों की थैली नहीं रखता”
यीशु जिस बात पर बल देता है, वह है, कि वे शीघ्र-अतिशीघ्र नगरों में जाकर प्रचार करें, न कि किसी के साथ रूष्ठ व्यवहार करें।
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को निर्देश दे रहा है जिन्हें वह भेजने पर है)।
“इस परिवार को शान्ति मिले” यह अभिवादन और आशीर्वाद दोनों है।
“शान्तिप्रिय मनुष्य” ऐसा मनुष्य परमेश्वर के साथ और मनुष्यों के साथ मेल करता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “आपका आशीर्वाद उसे शान्ति दिलाएगा”
“यदि वहां कोई शान्तिप्रिय नहीं है” या “यदि गृहस्वामी शान्तिप्रिय नहीं है”
“वह शान्ति तुम्हारे पास ही रह जाएगी”
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “वहीं रातें बिताना” यीशु के कहने का अर्थ है कि दिन भर प्रचार करके वहीं “लौट आना, यह नहीं कि उस घर से बाहर नहीं जाना।
यीशु एक सामान्य सिद्धान्त अपने द्वारा भेजे जाने वालों पर लागू कर रहा था। क्योंकि वे उनको शिक्षा देंगे और रोगियों को रोगमुक्ति प्रदान करेंगे इसलिए उनके ठहरने और भोजन-पानी का उत्तरदायित्व उन लोगों का है।
इसका अर्थ है कि हर रात एक नये परिवार में नहीं ठहरना।
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को निर्देश दे रहा है जिन्हें वह भेजने पर है)।
“यदि वे तुम्हारा स्वागत करें”
“वे जैसा भी भोजन दें उसे खाना”
इसका संदर्भ इस तथ्य से है कि शिष्यों द्वारा रोगमुक्ति के कार्य तथा यीशु की शिक्षाओं के माध्यम से परमेश्वर के राज्य का कार्य सर्वत्र हो रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “तुम इसी समय अपने चारों ओर परमेश्वर के राज्य को देख सकते हो”।
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को निर्देश दे रहा है जिन्हें वह भेजने पर है)।
“यदि वे तुम्हारा तिरस्कार करें”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जैसे तुम हमारा तिरस्कार करते हो वैसे ही हम भी तुम्हें पूर्णतः त्याग देते हैं। हम अपने पांवों से तुम्हारे नगर की धूल तक झाड़ रहे हैं, क्योंकि यीशु ने दो को साथ भेजा था इसलिए वे दोनों एक साथ कहेंगे। अतः जिन भाषाओं में प्रथम पुरूष (मैं) का द्विवचन है, उसका प्रयोग किया जाए।
यह एक चेतावनी है जिसका अर्थ है, “यद्यपि तुम हमें स्वीकार नहीं इसका अर्थ यह नहीं कि परमेश्वर के राज्य के आ जाने के तथ्य का इन्कार होता है।”
“परमेश्वर का राज्य तुम्हारे चारों ओर है,”
यीशु उन सत्तर मनुष्यों से कह रहा था। जिन्हें वह भेज रहा था उसने ऐसा इसलिए कहा कि उसकी अग्रिम महत्त्वपूर्ण बात की ओर उनका ध्यान आकर्षित हो।
शिष्य समझ गए थे कि इसका संदर्भ "उस दिन" से है जब पापियों का न्याय किया जाएगा।
“सदोम को उस नगर के तुल्य कठोर दण्ड नहीं दिया जाएगा, “इसका अर्थ हुआ कि वह नगर सदोम से अधिक कठोर दण्ड पाएगा।
(यीशु अब अपने उन सत्तर शिष्यों से हट कर तीन नगरों के निवासियों से कह रहा है)
यीशु इस प्रकार संबोधन कर रहा है कि मानों खुराजीन और बैतसदा के नगरवासी सुन रहे हैं जबकि वे सुन नहीं रहे थे।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है, “जो सामर्थ्य के काम मैंने तुम्हारे मध्य किए”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “यदि सूर और सैदा में कोई ऐसे कार्य करता”
“वहां के दुष्ट निवासी अपने पापों का दुख प्रकट करते”(यू.डी.बी)
उस युग में दुःख की अति को प्रकट करने के लिए लोग टाट के बने वस्त्र पहनते थे जो शरीर में चुभते थे और वे राख सिर में डालते थे वरन राख पर बैठते भी थे। जब उन्हें परमेश्वर के विरूद्ध पाप का बोध होता तब भी वे ऐसा ही करते थे।
“परमेश्वर तुम्हें सूर और सैदा के निवासियों से अधिक दण्ड देगा” इसका कारण यू.डी.बी में अधिक स्पष्ट किया जा सकता है, “क्योंकि तुमने मेरे सामर्थ्य के काम देखकर भी मुझ में विश्वास नहीं किया”
“उस दिन जब परमेश्वर सब मनुष्यों का न्याय करेगा”। (यू.डी.बी.)
अब यीशु कफरनहूम के निवासियों को संबोधित कर रहा है जैसे कि वे सुन रहें हों, जबकि यथास्थिति यह थी कि वे उसके समक्ष नहीं थे।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है, जिसके द्वारा यीशु कफरनूहम के निवासियों के घमण्ड पर कटाक्ष कर रहा है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “क्या तू स्वर्ग तक ऊंचा उठेगा”? या “तू क्या सोचता है कि परमेश्वर तेरा मान रखेगा”?
“ऊंचा किया जाना एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “प्रतिष्ठा पाना”।
(यीशु उन सत्तर मनुष्यों को शिक्षा देना समाप्त करता है।)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो तुम्हारी बात सुने वह वास्तव में मेरी बात सुनता है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कोई तुम्हें तुच्छ समझे तो वह वास्तव में मुझे तुच्छ समझता है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मुझे तुच्छ जानने का अर्थ है परमेश्वर को तुच्छ जानना”
अर्थात पिता परमेश्वर को। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर को जिसने मुझे भेजा है”। (यू.डी.बी.)
(कुछ समय बाद वे सत्तर शिष्य यीशु के पास लौट आते है)
यहाँ आप पद टिप्पणी लिखना चाहोगे, “कुछ संस्करणों में सत्तर के स्थान पर बहत्तर हैं”।
कुछ भाषाओं में आवश्यक होगा कि पहले सत्तर शिष्यों के जाने का उल्लेख किया जाए जैसा यू.डी.बी. में किया गया है। यह एक अन्तर्निहित जानकारी है जिसे स्पष्ट करना आवश्यक है।
यीशु उपमा देकर वर्णन कर रहा था कि जब वे सत्तर शिष्य प्रचार कर रहे थे तब परमेश्वर शैतान को हरा रहा था।
“सांपों को कुचलने और बिच्छुओं को नष्ट करने का अधिकार। इसके संभावित अर्थ हैं (1) यथार्थ में सांपों और बिच्छुओं को रौंदने का अधिकार या (2) सांप और बिच्छु दुष्टातमाओं के लिए रूपक हैं। यू.डी.बी. में इससका अनुवाद दुष्टात्माओं को रौंदना किया गया है, “मैंने तुम्हें दुष्टात्माओं पर वार करने का अधिकार दिया है।
इसका अभिप्राय है कि ऐसा करने पर उन्हें हानि नहीं होगी। आप इसे सुस्पष्ट कर सकते हें, “सांप और बिच्छुओं पर चल कर भी सुरक्षित रहोगे”।
“मैंने तुम्हें बैरी के सामर्थ्य का दमन करने का अधिकार दिया है” या “मैंने तुम्हें शत्रु को पराजित करने का अधिकार दे दिया है”बैरी शैतान है।
“इससे” अर्थात अगले वाक्यांश से, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर ने तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिख लिए हैं” या “तुम्हारे नाम स्वर्ग के नागरिकों की सूची में हैं”।
(यीशु अपने शिष्यों की उपस्थिति में अपने स्वर्गीय पिता से बातें कर रहा है)
“स्वर्ग और पृथ्वी की सब वस्तुओं के स्वामी”
इसका संदर्भ शिष्यों के अधिकार के संबन्ध में यीशु की पिछली शिक्षाओं से है। अति-उत्तम होगा कि मात्र यही कहा जाए, “इन बातों को” और पाठक पर इसका अर्थ निर्धारण छोड़ दिया जाए।
“बुद्धिमान और समझ रखनेवालों से” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन लोगों से छिपा रखा है जो स्वयं को बुद्धिमान समझते हैं”
यूनानी भाषा में बालक का मूल शब्द छोटे लड़के का बोध कराता है। इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “अशिक्षित बालक” (यू.डी.बी.) या (2) “जो तेरे सत्य को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेते हैं”।
यह निर्बुद्धि एवं अज्ञानियों के लिए उपमा है, या वे मनुष्य जो जानते हैं कि वे बुद्धिमान एवं ज्ञानवान नहीं हैं।
“क्योंकि तूने देखा कि यह अच्छा है”
(अब यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा है) आपको यहाँ टिप्पणी करने की आवश्यकता होगी, (यीशु ने अपने शिष्यों से कहा) (यू.डी.बी.)
यह कर्तृवाच्य में अनुवाद किया जा सकता है:"मेरे पिता ने सारा अधिकार मुझे दे दिया"।
यीशु स्वयं को तृतीय पुरूष में व्यक्त कर रहा है।
जिस शब्द का अनुवाद “जानता” किया गया है, उसका मूल अर्थ है व्यक्तिगत अनुभव द्वारा जानना। पिता परमेश्वर यीशु को ऐसी गहनता से जानता था।
इसका अर्थ है कि केवल परमेश्वर पिता जानता है कि पुत्र कौन है।
यहाँ जिस मूल शब्द का अनुवाद “जानता” किया गया है, इसका अर्थ है, व्यक्तिगत अनुभव से जानना। यीशु अपने पिता परमेश्वर को ऐसी गहनता में जानता था।
इसका अर्थ है कि केवल पुत्र जानता है कि पिता कौन है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य पिता परमेश्वर को तब ही जान सकते हैं जब पुत्र उन पर पिता को प्रकट करना चाहे”।
“निजि रूप में कहा”, यह संभवतः कुछ समय बाद की बात है। यू.डी.बी. इसे स्पष्ट करती है, “जब उसके शिष्य उसके साथ अकेले थे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "कैसा अहोभाग्य उनका जो उन बातों को देखते हैं जिन्हें तुम देखते हो", संभवतः वे सब जो यीशु की शिक्षाओं को सुनने आते थे।
"बातें तुमने मुझे करते देखा।"
“जो बातें तुमने मुझसे सुनी हैं”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
उस धनवाद मनुष्य ने जो अब राजा बन गया था। इसका अनुवाद ऐसे शब्दों में करें कि आपके पाठक समझ पाएं।
“जो लोग उसके पास खड़े थे”
देखें इसका अनुवाद अपने 19:13 में इसका अनुवाद कैसे किया है।
यह कुछ समय बाद की घटना है। आप इसे पाठकों के लिए स्पष्ट कर सकते है। जैसा यू.डी.बी. में है। “एक दिन जब यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा था”,
“देखो” शब्द हमारा ध्यान आकर्षित कराता है कि कहानी में एक नया मनुष्य है। आपकी भाषा में ऐसा शब्द या अभिव्यक्ति हो सकती है। इसका अनुवाद ऐसा भी हो सकता है," यहाँ एक विधिशास्त्री था..."
“यीशु को परखने का प्रयास किया”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “मूसा ने विधान में क्या लिखा है”? या “धर्मशास्त्र क्या कहता है”?
“तूने उसमें क्या पढ़ा है”। या “तू उससे क्या-क्या समझता है”?
उस मनुष्य ने व्यवस्थाविवरण और लैव्यव्यवस्था की पुस्तकों का उद्धरण सुनाया।
इसका संदर्भ समुदाय के सदस्य से है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने स्वदेशी नागरिक से” या “अपने समुदाय के लोगों से”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परन्तु वह स्वयं को धर्मी सिद्ध करना चाहता था, अतः उसने कहा......” या “धार्मिकता का स्वांग रचते हुए उसने कहा”,
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “प्रतिक्रिया में यीशु ने उसे एक कहानी सुनाई”
“लुटेरों में घिर गया” इसका अनुवाद कर्तृवाच्य रूप में किया जा सकता है, “उस पर लुटेरों ने आक्रमण कर दिया”।
“उसका सब कुछ लूट लिया” या “उसका सब कुछ चुरा लिया”।
(यीशु उसी मनुष्य के प्रश्न, "मेरा पड़ोसी कौन है?" के उत्तर में कहानी सुना रहा है)
इसका अर्थ है कि यह योजना के अनुसार नहीं था।
इस अभिव्यक्ति कहानी में किसी मनुष्य को लाती है परन्तु उसका नाम नहीं बताती है।
“जब उस याजक ने इस घायल मनुष्य को देखा” याजक एक धर्मी जन होता है, इसलिए श्रोताओं का पूर्वानुमान था कि वह उस घायल मनुष्य की सहायता अवश्य करेगा। क्योंकि उसने उसकी सहायता नहीं की इसलिए इसका अनुवाद हो सकता है, “परन्तु जब उसने उसे देखा” अप्रत्याशित परिणाम की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु।
“वह मार्ग की दूसरी ओर होकर चला गया”
निहितार्थ यह है कि उसने उस घायल मनुष्य की सहायता नहीं की। इसे स्पष्ट किया जा सकता है, “वह उस पागल मनुष्य की सहायता किए बिना चला गया”।
(यीशु उसी मनुष्य के प्रश्न, "मेरा पड़ोसी कौन है?" के उत्तर में कहानी सुना रहा है)
कहानी में एक नया मनुष्य प्रवेश करता है। उसका भी नाम नहीं दिया गया है। हमें केवल यही बताया गया है कि वह एक सामरियावासी है। यहूदी सामरियों से घृणा करते थे अतः उन्होंने यही सोचा कि वह उस घायल यहूदी की सहायता नहीं करेगा।
“उस घायल व्यक्ति को देखकर उस सामरियावासी”
“उसे देखकर उसे तरस आया”
उसने पहले तेल और दाखरस डाला होगा, इसलिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने उस मनुष्य के घावों पर दाखरस डालकर और तेल लगाकर पट्टियां बान्धी” दाखरस संक्रमण से बचाने के लिए काम में लिया जाता था।
“अपनी सवारी के पशु पर” समान ढोने के लिए वह जिस पशु को लाया था, संभवतः गधा।
दो दिन की मजदूरी के तुल्य पैसा देकर
“सराय का स्वामी” या “प्रबन्धक”
(यीशु उसी मनुष्य को कहानी सुना रहा है जिसने पूछा था, वे मेरा पड़ोसी कौन है)?
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तेरे विचार में इन तीनों में से ....”
“किसने सच्चा पड़ोसी सिद्ध किया”?(यू.डी.बी)
“लुटेरों का शिकार होने वाले का”
“जब यीशु और उसके शिष्य मार्ग में अग्रसर थे।” क्योंकि कहानी में नया परिदृश्य आता है इसलिए कुछ भाषाओं में “वे” को स्पष्ट करना अधिक स्वाभाविक होगा। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति होगी जो प्रकट करे कि यह कहानी का नया परिदृश्य है।
यहाँ गांव को एक नया स्थान दर्शाया गया है परन्तु उस गांव का नाम नहीं दिया गया है।
यहाँ मार्था एक नई नायिका है। आपकी भाषा में नए मनुष्यों को दर्शाने के लिए अभिव्यक्तियां होंगी।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “फर्श पर बैठकर यीशु की शिक्षाप्रद बातें सुन रही थी”। उस युग में सीखने वाले के द्वारा ऐसा स्थान ग्रहण करना सम्मान प्रदर्शन की मुद्रा थी।
मार्था शिकायत कर रही थी कि प्रभु मरियम को वहां बैठाकर उससे बातें करने के लिए मना नहीं कर रहा है जब कि उसे घर में कितना काम करना है। वह प्रभु का बहुत सम्मान करती थी, अतः उसने आलंकारिक प्रश्न पूछा कि उसकी शिकायत में विनम्रता आए। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ऐसा लगता है कि तुझे ज्ञात नहीं कि....”
इसके संभावित अर्थ हैं (1) “मैं उसे इस सौभाग्य से वंचित नहीं करूँगा” या (2) मेरी बातें सुनकर उसने जो लाभ उठाया है, वह कभी नहीं खोएगा”।
वे न बटुआ, न झोली, न जूते लें।
यीशु ने कहा कि वे रोगियों को चंगा करें और प्रचार करें कि परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है।
उनकी दशा सदोम के दण्ड से भी अधिक बुरी होगी।
यीशु ने कहा, "इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे हैं।"
पिता परमेश्वर को यही अच्छा लगा कि उसने इन बातों को अबोध बालकों पर प्रकट किया।
तू अपने प्रभु परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
वह कतराकर चला गया।
वह कतराकर चला गया।
उसने उसके घावों पर पट्टी बांधी और पीठ पर चढ़ाया उसे एक सराय में लाया और उसकी सेवा की।
जाकर दृष्टान्त के उस सामरी के सदृश्य कर।
वह यीशु के चरणों में बैठ कर उसकी बातें सुन रही थी।
वह भोजन तैयार करने में अत्यधिक व्यस्त थी।
यीशु ने कहा कि मरियम ने उत्तम भाग चुन लिया है।
1 फिर वह किसी जगह प्रार्थना कर रहा था। और जब वह प्रार्थना कर चुका, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा, “हे प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया वैसे ही हमें भी तू सीखा दे*।”
2 उसने उनसे कहा, “जब तुम प्रार्थना करो, तो कहो:
‘हे पिता,
तेरा नाम पवित्र माना जाए,
तेरा राज्य आए।
3 ‘हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर।
4 ‘और हमारे पापों को क्षमा कर,
क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं*,
और हमें परीक्षा में न ला’।”
5 और उसने उनसे कहा, “तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास जाकर उससे कहे, ‘हे मित्र; मुझे तीन रोटियाँ दे। 6 क्योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिये मेरे पास कुछ नहीं है।’ 7 और वह भीतर से उत्तर देता, कि मुझे दुःख न दे; अब तो द्वार बन्द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर हैं, इसलिए मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता। 8 मैं तुम से कहता हूँ, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, फिर भी उसके लज्जा छोड़कर माँगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। 9 और मैं तुम से कहता हूँ; कि माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। 10 क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। 11 तुम में से ऐसा कौन पिता होगा, कि जब उसका पुत्र रोटी माँगे, तो उसे पत्थर दे: या मछली माँगे, तो मछली के बदले उसे साँप दे? 12 या अण्डा माँगे तो उसे बिच्छू दे? 13 अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।”
14 फिर उसने एक गूँगी दुष्टात्मा को निकाला; जब दुष्टात्मा निकल गई, तो गूँगा बोलने लगा; और लोगों ने अचम्भा किया। 15 परन्तु उनमें से कितनों ने कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के प्रधान शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” 16 औरों ने उसकी परीक्षा करने के लिये उससे आकाश का एक चिन्ह माँगा। 17 परन्तु उसने, उनके मन की बातें जानकर, उनसे कहा, “जिस-जिस राज्य में फूट होती है, वह राज्य उजड़ जाता है; और जिस घर में फूट होती है, वह नाश हो जाता है। 18 और यदि शैतान अपना ही विरोधी हो जाए, तो उसका राज्य कैसे बना रहेगा? क्योंकि तुम मेरे विषय में तो कहते हो, कि यह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है। 19 भला यदि मैं शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो तुम्हारी सन्तान किस की सहायता से निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारा न्याय चुकाएँगे। 20 परन्तु यदि मैं परमेश्वर की सामर्थ्य से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुँचा। 21 जब बलवन्त मनुष्य हथियार बाँधे हुए अपने घर की रखवाली करता है, तो उसकी संपत्ति बची रहती है। 22 पर जब उससे बढ़कर कोई और बलवन्त चढ़ाई करके उसे जीत लेता है, तो उसके वे हथियार जिन पर उसका भरोसा था, छीन लेता है और उसकी संपत्ति लूटकर बाँट देता है। 23 जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरोध में है, और जो मेरे साथ नहीं बटोरता वह बिखेरता है।
24 “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और जब नहीं पाती तो कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी लौट जाऊँगी। 25 और आकर उसे झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है। 26 तब वह आकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें समाकर वास करती हैं, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है।” 27 जब वह ये बातें कह ही रहा था तो भीड़ में से किसी स्त्री ने ऊँचे शब्द से कहा, “धन्य है वह गर्भ जिसमें तू रहा और वे स्तन, जो तूने चूसे।” 28 उसने कहा, “हाँ; परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।”
29 जब बड़ी भीड़ इकट्ठी होती जाती थी तो वह कहने लगा, “इस युग के लोग बुरे हैं; वे चिन्ह ढूँढ़ते हैं; पर योना के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा। 30 जैसा योना नीनवे के लोगों के लिये चिन्ह ठहरा, वैसा ही मनुष्य का पुत्र भी इस युग के लोगों के लिये ठहरेगा। 31 दक्षिण की रानी न्याय के दिन इस समय के मनुष्यों के साथ उठकर, उन्हें दोषी ठहराएगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने को पृथ्वी की छोर से आई, और देखो यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है। (1 राजा. 10:1-10, 2 इति. 9:1) 32 नीनवे के लोग न्याय के दिन इस समय के लोगों के साथ खड़े होकर, उन्हें दोषी ठहराएँगे; क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर मन फिराया और देखो, यहाँ वह है, जो योना से भी बड़ा है। (योना 3:5-10)
33 “कोई मनुष्य दिया जला के तलघर में, या पैमाने के नीचे नहीं रखता, परन्तु दीवट पर रखता है कि भीतर आनेवाले उजियाला पाएँ। 34 तेरे शरीर का दिया तेरी आँख है, इसलिए जब तेरी आँख निर्मल है, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला है; परन्तु जब वह बुरी है, तो तेरा शरीर भी अंधेरा है। 35 इसलिए सावधान रहना, कि जो उजियाला तुझ में है वह अंधेरा न हो जाए। 36 इसलिए यदि तेरा सारा शरीर उजियाला हो, और उसका कोई भाग अंधेरा न रहे, तो सब का सब ऐसा उजियाला होगा, जैसा उस समय होता है, जब दिया अपनी चमक से तुझे उजाला देता है।”
37 जब वह बातें कर रहा था, तो किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे यहाँ भोजन कर; और वह भीतर जाकर भोजन करने बैठा। 38 फरीसी ने यह देखकर अचम्भा किया कि उसने भोजन करने से पहले हाथ-पैर नहीं धोये। 39 प्रभु ने उससे कहा, “हे फरीसियों, तुम कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर तो माँजते हो, परन्तु तुम्हारे भीतर अंधेर और दुष्टता भरी है। 40 हे निर्बुद्धियों, जिस ने बाहर का भाग बनाया, क्या उसने भीतर का भाग नहीं बनाया*? 41 परन्तु हाँ, भीतरवाली वस्तुओं को दान कर दो, तब सब कुछ तुम्हारे लिये शुद्ध हो जाएगा।।
42 “पर हे फरीसियों, तुम पर हाय! तुम पोदीने और सुदाब का, और सब भाँति के साग-पात का दसवाँ अंश देते हो, परन्तु न्याय को और परमेश्वर के प्रेम को टाल देते हो; चाहिए तो था कि इन्हें भी करते रहते और उन्हें भी न छोड़ते। (मत्ती 23:23, मीका 6:8, लैव्य. 27:30) 43 हे फरीसियों, तुम पर हाय! तुम आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन और बाजारों में नमस्कार चाहते हो। 44 हाय तुम पर! क्योंकि तुम उन छिपी कब्रों के समान हो, जिन पर लोग चलते हैं, परन्तु नहीं जानते।”
45 तब एक व्यवस्थापक ने उसको उत्तर दिया, “हे गुरु, इन बातों के कहने से तू हमारी निन्दा करता है।” 46 उसने कहा, “हे व्यवस्थापकों, तुम पर भी हाय! तुम ऐसे बोझ जिनको उठाना कठिन है, मनुष्यों पर लादते हो परन्तु तुम आप उन बोझों को अपनी एक उँगली से भी नहीं छूते। 47 हाय तुम पर! तुम उन भविष्यद्वक्ताओं की कब्रें बनाते हो, जिन्हें तुम्हारे पूर्वजों ने मार डाला था। 48 अतः तुम गवाह हो, और अपने पूर्वजों के कामों से सहमत हो; क्योंकि उन्होंने तो उन्हें मार डाला और तुम उनकी कब्रें बनाते हो। 49 इसलिए परमेश्वर की बुद्धि ने भी कहा है, कि मैं उनके पास भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को भेजूँगी, और वे उनमें से कितनों को मार डालेंगे, और कितनों को सताएँगे। 50 ताकि जितने भविष्यद्वक्ताओं का लहू जगत की उत्पत्ति से बहाया गया है, सब का लेखा, इस युग के लोगों से लिया जाए, 51 हाबिल की हत्या से लेकर जकर्याह की हत्या तक जो वेदी और मन्दिर के बीच में मारा गया: मैं तुम से सच कहता हूँ; उसका लेखा इसी समय के लोगों से लिया जाएगा। (उत्प. 4:8, 2 इति. 24:20-21) 52 हाय तुम व्यवस्थापकों पर! कि तुम ने ज्ञान की कुंजी* ले तो ली, परन्तु तुम ने आपही प्रवेश नहीं किया, और प्रवेश करनेवालों को भी रोक दिया।”
53 जब वह वहाँ से निकला, तो शास्त्री और फरीसी बहुत पीछे पड़ गए और छेड़ने लगे, कि वह बहुत सी बातों की चर्चा करे, 54 और उसकी घात में लगे रहे, कि उसके मुँह की कोई बात पकड़ें।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
कुछ भाषाओं में सर्वनाम शब्द के स्थान में यीशु का नाम काम में लेना अधिक स्वाभाविक होगा कि “जब वह प्रार्थना कर चुका” से पहले कहा जाए, “यीशु प्रार्थना कर रहा था”। (देखें यू.डी.बी.)
"यीशु ने अपने शिष्यों से कहा"
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य तेरे नाम का सम्मान करें” या “हर एक तेरे नाम का सम्मान करें”। इसका अर्थ "हम चाहते है कि सब तेरे नाम का सम्मान करे"
“अपना राज्य स्थापित कर” या “हम यह विनती करते हैं कि अपने लोगों पर राज कर”।
(यीशु अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखा रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “हमारी दैनिक आवश्यकता का भोजन” रोटी मनुष्यों का दैनिक साधारण भोजन था। रोटी का अर्थ है भोजन।
“तेरे विरूद्ध हमारे पापों को क्षमा कर” या “हमारे पापों को क्षमा कर”
“क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं”
“जिसने हमारे विरूद्ध पाप किया है” या “जिसने हमारी बुराई की है”
यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, “हमें परीक्षा से बचा”
(यीशु अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखा रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मान लो कि तुम्हारा” या “तुम में से किसी का”। यीशु आलंकारिक प्रश्न द्वारा मनुष्यों का ध्यान आकर्षित करवाता था कि वे किसी परिस्थिति में हो तो क्या होगा।
“मुझे तीन रोटियां उधार दे” या “मुझे तीन रोटियां दे दे, मैं लौटा दूंगा”। उसके पास अपने अतिथि को खिलाने के लिए घर में भोजन तैयार नहीं है।
यदि आपके पाठक को यह बात विचित्र लगे कि कोई रोटी मांग रहा है तो इस प्रकार अनुवाद करें, “पका हुआ भोजन” या “तैयार भोजन”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यात्रा करते हुए मेरे घर आया है”
“परोसने के लिए भोजन तैयार नहीं है”
“मेरे लिए उठना आसान नहीं है”
यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा है इसलिए “तुम” शब्द बहुवचन में है
यीशु अपने शिष्यों को इस प्रकार सम्बोधित कर रहा था कि जैसे वे ही रोटी मांगने के लिए गए। यदि आपके पाठकों को इससे उलझन उत्पन्न हो तो इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “मित्र होने के कारण उसे रोटी दे देगा”
इसका अर्थ है कि रोटी मांगने वाला इस तथ्य को अनदेखा कर रहा है कि उसके मित्र के लिए मध्य रात्रि के समय उठ कर उसे रोटियां देना कष्टकारी है।
(यीशु अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखा रहा है)
यीशु ने अपने शिष्यों को यह आज्ञा इसलिए दी कि वे लगातार प्रार्थना करने के लिए उत्साहित रहें। इस प्रसंग में तुम का सर्वाधिक उचित रूप काम में लें। . इन आज्ञाओं का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मांगते रहो.... ढूंढ़ते रहो..... खटखटाते रहो”
कुछ भाषाओं में इस क्रिया के साथ अधिक जानकारी की आवश्यकता होगी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपनी आवश्यकता परमेश्वर से मांगो”, “परमेश्वर से जो चाहते हो उसे ढूंढ़ो”, और “द्वार पर दस्तक दो”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “परमेश्वर तुम्हें देगा”, या “तुम प्राप्त करोगे।”
खटखटाने का अर्थ है, द्वारा पर आकर आवाज करना कि भीतर कोई सुन कर जान ले कि आप बाहर खड़े हैं, इसका अनुवाद आपकी संस्कृति के व्यवहार के अनुसार किया जा सकता है जैसे “पुकारना” या “खांसना” या “ताली बजाना”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “परमेश्वर तुम्हारे लिए द्वार खोल देगा” या “परमेश्वर तुम्हें भीतर लेकर एकमत करेगा”
यीशु एक अर्थ के तीन आलंकारिक प्रश्न पूछ रहा है। जिस प्रकार कि एक पिता अपनी सन्तान को मांगने पर भली वस्तु देता है, उसी प्रकार हम मांगते हैं तो परमेश्वर हमें भली वस्तु ही देगा। .
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि तुम्हारा पुत्र रोटी मांगे तो क्या तुम उसे पत्थर दोगे”? या “यदि तुम्हारी सन्तान खाने को रोटी मांगे तो निश्चय ही तुम उसे पत्थर नहीं दोगे”!
यदि आपके पाठक रोटी नहीं खाते हैं तो आप इसका अनुवाद इस प्रकार कर सकते हैं, “पका हुआ भोजन” या “सब्जी” यीशु एक परिस्थिति सुझा रहा है, वह रोटी की विशेष चर्चा नहीं कर रहा है।
“या वह मछली मांगे तो क्या तुम उसे सांप दोगे”?
बिच्छू मकड़ी से मिलता जुलता कीट है परन्तु उसकी पूंछ लम्बी होती है और उसकी पूंछ पर विषैला डंक होता है। यदि उनके स्थान में बिच्छू नहीं होते तो आप कह सकते हैं, “विषैली मकड़ी” या “काटनेवाली मकड़ी”
“तुम बुरे होकर भी” या “तुम पापी होकर भी”
“तो यह कितना और अधिक निश्चित है कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता तुम्हें पवित्र-आत्मा देगा”। इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “तुम निश्चित जान लो कि तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है, पवित्र-आत्मा देगा”।
“फिर यीशु ने एक मनुष्य से दुष्टात्मा को निकाला” या “और उसने एक मनुष्य से दुष्टात्मा निकाली”
यह तो संभव नहीं कि दुष्टात्मा गूंगी थी। पाठक शायद यह समझें कि उस दुष्टात्मा में किसी को गूंगा बनाए रखने की क्षमता थी। आप इस अभिप्रेत जानकारी को स्पष्ट कर सकते हें। “उस दुष्टात्मा ने उस मनुष्य को बोलने की क्षमता से वंचित किया हुआ था”।
इस शब्द के द्वारा मनुष्यों की प्रतिक्रिया का आरंभ होता है। यदि आपकी भाषा में यहाँ उपयुक्त अभिव्यक्ति लग सकती है तो उसे काम में लें। उस मनुष्य में से दुष्टात्मा के निकल जाने पर कुछ लोग यीशु की आलोचना करने लगे तो यीशु दुष्टात्माओं के बारे में शिक्षा देने पर विवश हुआ।
“उस मनुष्य में से दुष्टात्मा के निष्कासन पर” या “दुष्टात्मा द्वारा उस मनुष्य को त्याग देने पर”
“वह मनुष्य जो अब तक गूंगा था बोलने लगा”
“वह बालजबूल, दुष्टात्माओं के प्रधान, की शक्ति से दुष्टात्माओं को निकालता है”।
“कुछ और भी लोग थे जिन्होंने यीशु को परखने के लिए”, वे परमेश्वर के अधिकार को सिद्ध करने के लिए उससे प्रमाण मांग रहे थे।
“उससे अलौकिक चिन्ह मांगा” या “उससे कहा कि वह कोई स्वर्गीय चिन्ह दिखाए” वे चाहते थे कि यीशु अपने ईश्वरीय अधिकार को इस प्रकार सिद्ध करे
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब किसी राज्य की प्रजा में गृह युद्ध करे”
“तो वह नष्ट हो जाता है”
“जिस परिवार के सदस्यों में आपसी कलह हो, वह विभाजित हो जाता है” या “जिस परिवार के सदस्य एक दूसरे से लड़ते रहें तो वह अखंड परिवार नहीं रहता है”। यहाँ “घर” का अर्थ है, “परिवार” या “घर के सदस्य”
“बिखर कर नष्ट हो जाता है” घर के नष्ट हो जाने की उपमा परिवार के विभाजन को दर्शाती है जब उसके सदस्य आपस में कलह करते हैं।
(यीशु जनसमूह को दुष्टात्माओं के बारे में भी शिक्षा दे रहा है)
यदि शैतान और उसके राज्य की आत्माएं आपस में लड़ें”
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में किया जा सकता है, “शैतान का राज्य स्थिर नहीं रह सकता है” या “शैतान का राज्य नष्ट हो जाएगा”।
“तुम कहते हो कि मैं बालजबूल की सहायता से दुष्टात्माएं निकालता हूँ”, विवाद का अगला चरण स्पष्ट व्यक्त किया जाए, “इसका अर्थ यह हुआ कि शैतान अपने ही विरोध में काम करता है”
“तुम्हारे अनुयायी किसकी सहायता से दुष्टात्माएं निकालते हैं? “यह एक आलंकारिक प्रश्न है जिसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तो तुम्हें मानना होगा कि तुम्हारे अनुयायी भी बाजजबूल की सहायता से दुष्टात्माएं निकालते हैं। इस कथन का अभिप्रेत मूल्यांकन स्पष्ट किया जाए, “हम जानते हैं कि यह सच नहीं है”।
तुम्हारे अनुयायी जो परमेश्वर के सामर्थ्य से दुष्टात्माएं निकालते हैं, मुझ पर बालजबूल की सहायता से दुष्टात्माएं निकालने के तुम्हारे दोष का न्याय करेंगे”।
“परमेश्वर की सहायता से” (देखें Metonymy)
“इसका अर्थ है कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे मध्य आ गया है”।
(यीशु जनसमूह को दुष्टात्माओं के बारे में भी शिक्षा दे रहा है)
यह कहानी एक रूपक है। उस बलवन्त मनुष्य को जिस पर बाहर से आक्रमण करने की तुलना यीशु से की गई है जो दुष्टात्माएं निकालता है तो वह बाहर से शैतान पर आक्रमण करता है।
“उसका सामान कोई चुरा नहीं सकता है”
इसका अनुवादक इस प्रकार किया जा सकता है, “उसका सामान अपने अधिकार में कर लेता है” या “जो वह चाहता है ले जाता है”।
“जो मेरा सहयोगी नहीं” या “जो मेरा सहकर्मी नहीं”
“मेरे विरूद्ध है” यह उन लोगों के सदंर्भ में है, जो यीशु पर बालजबूल की सहायता से काम करने का दोष लगा रहे थे।
(यीशु जनसमूह को दुष्टात्माओं के बारे में भी शिक्षा दे रहा है)
अर्थात् निर्जन स्थानों में, जहाँ दुष्टात्मा भटकती है।
“जब वह दुष्टात्मा कहीं विश्राम नहीं पाती है”
यह एक रूपक है जो उस मनुष्य का संदर्भ देता है जिसमें से वह दुष्टात्मा निकली थी। इसका अनुवाद होगा, “वह मनुष्य जिसमें मैं अन्तर्वास करती थी”। (यू.डी.बी. पद 26 को यू.डी.बी. में उपमा देकर अनुवाद किया गया है।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “आकर देखते है कि किसी ने उस घर को झाड़कर साफ कर दिया है और सब कुछ यथास्थान में रखा हुआ है”
“खा लो” यह रूपक उस मनुष्य को दर्शाता है जिसमें से दुष्टात्मा निकल गई थी परन्तु उसने उसमें पवित्र-आत्मा का अन्तर्वास नहीं होने दिया।
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण घटना का बोध करवाया गया है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“जनसमूह के कोलाहल से और भी ऊँचे स्वर में”
“सौभाग्य उस स्त्री का जिसने तुझे स्तनपान करवाया” “सौभाग्यवती है वह स्त्री जिसने तुझे जन्म दिया और दूध पिलाया”। कहने का अर्थ है कि वह स्त्री जो उसकी माता है। .
इसका अनुवाद किया जा सकता है, कैसी आनन्दित” या “परमेश्वर से आशिषित”
“इस समय के लोग” (यू.डी.बी.)
“वे मुझसे चिन्ह देखना चाहते हैं” या “तुम में से अनेक जन चाहते हैं कि मैं चिन्ह दिखाऊं” वे कैसा चिन्ह देखना चाहते थे इसका अभिप्रेत जानकारी यू.डी.बी. के जैसे स्पष्ट की जा सकती है। (देखें: )
“परमेश्वर उन्हें कोई चिन्ह नहीं देगा”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “योना के साथ जो हुआ” या “योना के लिए परमेश्वर ने जो चमत्कार किया” (यू.डी.बी.)
अर्थात उस युग के यहूदियों के लिए यीशु परमेश्वर का वही चिन्ह होगा जो योना नीनवे के लोगों के लिए परमेश्वर का चिन्ह था।
यीशु स्वयं को संबोधित कर रहा है
अर्थात् शीबा की रानी। शीबा इस्त्राएल के दक्षिण में एक राज्य था।
“खड़ी होकर उन्हें दोष देगी”
“वह बहुत दूर से आई थी”। “पृथ्वी की छोर एक मुहावरा है जिसका अर्थ है “बहुत दूर से”।
यीशु उन्हें झिड़की द्वारा जो समझाना चाहता था, “परन्तु तुमने मेरी बातें नहीं सुनी”।
“नीनवे के लोगों ने पश्चाताप किया”
यीशु अपने बारे में कह रहा था।
यीशु उन्हें झिड़क रहा था, “परन्तु तुमने पश्चाताप नहीं किया”।
यीशु को जनसमूह में सबसे आशा नहीं थी कि वे यीशु की शिक्षा को समझें। अतः यही उचित है कि रूपकों की व्याख्या करने की अपेक्षा उनका ज्यों का त्यों अनुवाद किया जाए।
एक कटोरे में जैतून का तेल डालकर उसमें बत्ती लगाकर जलाया जाता था परन्तु यहाँ मुख्य बात यह है कि उससे प्रकाश फैलता था।
“छिपा कर नहीं रखता है”
“दीपदान पर” या “मेज पर” या “उपले में”
इसके अनेक अलंकार हैं। आँख का लाक्षणिक उपयोग देखने के लिए भी किया जाता है जो समझ का रूपक है। देह मनुष्य के जीवन का भी द्योतक है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तेरी आँख का दीपक है”। (देखें और और ) क्योंकि यीशु सबके लिए एक सत्य की चर्चा कर रहा था इसलिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आँख मानवीय देह का दीपक है।
“जब तेरी दृष्टि उत्तम है” या “जब तू स्पष्ट देख सकता है”,
उजियाला सत्य का रूपक है जिसका अर्थ है, “तेरा संपूर्ण जीवन सत्य ज्योति से पूर्ण है” या “उसका संपूर्ण जीवन सत्य से पूर्ण है”
अन्धेरा झूठ का रूपक है। इसका अर्थ है, “यदि तेरी दृष्टि अच्छी नहीं तो तेरा संपूर्ण जीवन झूठ से भरा है”।
“भोजन तख्त पर बैठा” उनकी प्रथा में भोजन करते समय आधा लेटकर भोजन किया जाता था।
“हाथ नहीं धोए” या “संस्कारिक रीति से हाथ नहीं धोए”, फरीसियों का एक नियम था कि परमेश्वर के समक्ष संस्कारिक शुद्धता के लिए हाथ धोना आवश्यक है।
बर्तनों को बाहर से धोना फरीसियों का सांस्कारिक अभ्यास था।
इस रूपक द्वारा पात्रों के भीतर की शुद्धता की तुलना उनके मन की दशा से की गई है।
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। यीशु उस फरीसी को झिड़क रहा था कि वह समझता नहीं कि परमेश्वर मन को देखता है। इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
“भीतर जो है उसे गरीबों में बांट दो” इसका अर्थ है, “अपने भीतर के भाग को परमेश्वर पर केन्द्रित कर अपेक्षा इसके कि केवल बाहरी सफाई करे”।
(यीशु फरीसी ही से बातें कर रहा है)
“तुम अपने पोदीने, ब्राहमी और सब्जियों का दसवां भाग परमेश्वर को देते हो”। यीशु एक उदाहरण दे रहा था कि फरीसी अपनी आय का दसवां भाग परमेश्वर को देने में कैसे कट्टर थे।
ये पत्ते हैं सुगन्ध के लिए भोजन में डाले जाते है। यदि आपके पाठक पोदीना और ब्राहमी नहीं जानते तो आप किसी मसाले के नाम काम में लें या केवल सुगन्धित पत्ते कहें।
इसके संभावित अर्थ हैं (1) हर एक सब्जी का” या (2) बगीचे के हर एक पौधे का”
यह दोहरी नकारात्मकता को सकारात्मक वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, “अन्य उचित कार्य भी करते”
(यीशु फरीसियों ही से बातें कर रहा है)
“सम्मानित स्थान”
यह एक उपमा है। फरीसी छिपी हुई कब्रों के सदृश्य थे क्योंकि वे सांसारिक रूप से शुद्ध दिखते थे परन्तु उनके कारण मनुष्य अशुद्ध होता था। यह समानता यू.डी.बी. में अधिक स्पष्ट की गई है।
ये कब्रें भूमि में खोद कर मृतकों को गाड़ने की थी। उन्हें सफेद पत्थरों से ढांका नहीं जाता था कि लोग उन्हें देख पाएं। यदि कोई कब्र पर चढ़ जाए तो वह अशुद्ध हो जाता था।
“तुम मनुष्यों पर ऐसा बोझ डालते हो कि वे उठा नहीं सकते, यह एक रूपक है। मनुष्यों को नियमों के अधीन करना ऐसा है जैसा उन पर भारी बोझ डालना। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम मनुष्यों को पालन करने के लिए बहुत नियम देते हो”।
“परन्तु तुम उँगली लगा कर भी बोझ उठाने में उनकी सहायता नहीं करते”। इसका अर्थ है, “परन्तु उन नियमों का पालन करने में तुम मनुष्यों की लेशमात्र भी सहायता नहीं करते।
(यीशु विधि शिक्षकों से ही बातें कर रहा है)
इस उक्ति द्वारा भविष्यद्वक्ताओं के प्रति उनके सम्मान ओर उनके पूर्वजों द्वारा भविष्यद्वक्ताओं की हत्या के मध्य विषमता की ओर ध्यान आकर्षित करवाया गया है।
यहाँ झिड़की निहित है, “तुमने उनके कामों को अनुचित नहीं कहा”। वे भविष्यद्वक्ताओं की हत्याओं के बारे में जानते थे परन्तु उन्हें दोषी नहीं ठहराते थे।
(यीशु धर्म गुरूओं से ही बातें कर रहा है)
यह उंगली अभिव्यक्ति से संबन्धित है। परमेश्वर और भविष्यद्वक्ताओं को भेजेगा कि सिद्ध करे कि वह पीढ़ी अपने पूर्वजों के सदृश्य उनकी हत्या करेगी।
“परमेश्वर ने अपनी बुद्धि के द्वारा कहा” या “परमेश्वर ने बुद्धिमानी से कहा”
“मैं” अपने लोगों में भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को भेजूंगा”।
“मेरे लोग कुछ भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को मार डालेंगे”।
लहू बहाने का संदर्भ भविष्यद्वक्ताओं की हत्या से है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जितने भी भविष्यद्वक्ताओं की आज तक हत्या की गई है उनके लहू का लेखा लिया जाएगा।
वह संभवतः 2 इतिहास में वर्णित भविष्यद्वक्ता है, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का पिता नहीं।
(यीशु विधि शिक्षकों से ठीक कह रहा है कि वे परमेश्वर के विरूद्ध कैसे पाप करते हैं।)
इस रूपक का अर्थ है, “तुमने मनुष्यों को परमेश्वर के सत्य में प्रवेश करने से बाधित किया है”। इसका अनुवाद उपमा देकर भी किया जा सकता है जैसे यू.डी.बी. में किया गया है।
यह पहुंचने का साधन दर्शाता है जैसे किसी घर में या भण्डारगृह में पहुँचना है।
“तुम स्वयं ज्ञान ग्रहण करने हेतु प्रवेश नहीं करते” इस रूपक का अर्थ है, “तुम स्वयं ज्ञान का उपयोग करते हो।
“जब यीशु उस फरीसी के घर से चला गया”
यह एक रूपक है। वे चाहते थे कि यीशु कोई अनुचित बात कहे और वे उस पर दोष लगाएं। इसका अनुवाद रूपक के बिना किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
यीशु ने प्रार्थना की, "हे पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आए, हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर और हमारे पापों को क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं, और हमें परीक्षा में न ला"।
उसके मित्र के निर्लज दबाव के कारण।
वह पवित्र आत्मा देगा।
उन्होंने यीशु पर दोष लगाया कि वह दुष्टात्माओं के सरदार बालजबूल की सहायता से दुष्टात्माएं निकालता है।
वह परमेश्वर के सामर्थ्य से दुष्टात्माएं निकालता था।
अब मनुष्य की अन्तिम दशा पहले से भी बुरी हो जायेगी।
वे जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।
सुलैमान और योना।
यीशु ने कहा कि वे लालसा और दुष्टता से भरे थे।
उन्होंने न्याय और परमेश्वर के प्रेम को अनदेखा किया था।
वे मनुष्यों पर भारी बोझ ला देते थे परन्तु स्वयं उसमें उंगली भी नहीं लगाते थे।
वे संसार के आरंभ से अब तक भविष्यद्वक्ताओं के लहू के दोषी ठहरेंगे।
उन्होंने उसके साथ विवाद करके उसी के शब्दों में उसे फंसाने का प्रयास किया।
1 इतने में जब हजारों की भीड़ लग गई, यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे, तो वह सबसे पहले अपने चेलों से कहने लगा, “फरीसियों के कपटरूपी ख़मीर से सावधान रहना। 2 कुछ ढपा नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा। 3 इसलिए जो कुछ तुम ने अंधेरे में कहा है, वह उजाले में सुना जाएगा; और जो तुम ने भीतर के कमरों में कानों कान कहा है, वह छतों पर प्रचार किया जाएगा।
4 “परन्तु मैं तुम से जो मेरे मित्र हो कहता हूँ, कि जो शरीर को मार सकते हैं और उससे ज्यादा और कुछ नहीं कर सकते, उनसे मत डरो। 5 मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि तुम्हें किस से डरना चाहिए, मारने के बाद जिसको नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो; वरन् मैं तुम से कहता हूँ उसी से डरो। 6 क्या दो पैसे की पाँच गौरैयाँ नहीं बिकती? फिर भी परमेश्वर उनमें से एक को भी नहीं भूलता। 7 वरन् तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं, अतः डरो नहीं, तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।
8 “मैं तुम से कहता हूँ जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा उसे मनुष्य का पुत्र भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने मान लेगा। 9 परन्तु जो मनुष्यों के सामने मुझे इन्कार करे उसका परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने इन्कार किया जाएगा।
10 “जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहे, उसका वह अपराध क्षमा किया जाएगा। परन्तु जो पवित्र आत्मा की निन्दा करें, उसका अपराध क्षमा नहीं किया जाएगा।
11 “जब लोग तुम्हें आराधनालयों और अधिपतियों और अधिकारियों के सामने ले जाएँ, तो चिन्ता न करना कि हम किस रीति से या क्या उत्तर दें, या क्या कहें। 12 क्योंकि पवित्र आत्मा उसी घड़ी तुम्हें सीखा देगा, कि क्या कहना चाहिए।”
13 फिर भीड़ में से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, मेरे भाई से कह, कि पिता की संपत्ति मुझे बाँट दे*।” 14 उसने उससे कहा, “हे मनुष्य, किस ने मुझे तुम्हारा न्यायी या बाँटनेवाला नियुक्त किया है?” (निर्ग. 2:14) 15 और उसने उनसे कहा, “सावधान रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो; क्योंकि किसी का जीवन उसकी संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता।”
16 उसने उनसे एक दृष्टान्त कहा, “किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई। 17 “तब वह अपने मन में विचार करने लगा, कि मैं क्या करूँ, क्योंकि मेरे यहाँ जगह नहीं, जहाँ अपनी उपज इत्यादि रखूँ। 18 और उसने कहा, ‘मैं यह करूँगा: मैं अपनी बखारियाँ तोड़ कर उनसे बड़ी बनाऊँगा; और वहाँ अपना सब अन्न और संपत्ति रखूँगा; 19 ‘और अपने प्राण से कहूँगा, कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिये बहुत संपत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह।’ 20 परन्तु परमेश्वर ने उससे कहा, ‘हे मूर्ख! इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा; तब जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह किसका होगा?’ 21 ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।”
22 फिर उसने अपने चेलों से कहा, “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, अपने जीवन की चिन्ता न करो, कि हम क्या खाएँगे; न अपने शरीर की, कि क्या पहनेंगे। 23 क्योंकि भोजन से प्राण, और वस्त्र से शरीर बढ़कर है। 24 कौवों पर ध्यान दो; वे न बोते हैं, न काटते; न उनके भण्डार और न खत्ता होता है; फिर भी परमेश्वर उन्हें खिलाता है। तुम्हारा मूल्य पक्षियों से कहीं अधिक है (भज. 147:9) 25 तुम में से ऐसा कौन है, जो चिन्ता करने से अपने जीवनकाल में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है? 26 इसलिए यदि तुम सबसे छोटा काम भी नहीं कर सकते, तो और बातों के लिये क्यों चिन्ता करते हो? 27 सोसनों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं; वे न परिश्रम करते, न काटते हैं; फिर भी मैं तुम से कहता हूँ, कि सुलैमान भी अपने सारे वैभव में, उनमें से किसी एक के समान वस्त्र पहने हुए न था। 28 इसलिए यदि परमेश्वर मैदान की घास को जो आज है, और कल भट्ठी में झोंकी जाएगी, ऐसा पहनाता है; तो हे अल्पविश्वासियों, वह तुम्हें अधिक क्यों न पहनाएगा? 29 और तुम इस बात की खोज में न रहो, कि क्या खाएँगे और क्या पीएँगे, और न सन्देह करो। 30 क्योंकि संसार की जातियाँ इन सब वस्तुओं की खोज में रहती हैं और तुम्हारा पिता जानता है, कि तुम्हें इन वस्तुओं की आवश्यकता है। 31 परन्तु उसके राज्य की खोज में रहो, तो ये वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।
32 “हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे। 33 अपनी संपत्ति बेचकर* दान कर दो; और अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते, अर्थात् स्वर्ग पर ऐसा धन इकट्ठा करो जो घटता नहीं, जिसके निकट चोर नहीं जाता, और कीड़ा नाश नहीं करता। 34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहाँ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा।
35 “तुम्हारी कमर बंधी रहें, और तुम्हारे दीये जलते रहें। (निर्ग. 12:11, 2 राजा. 4:29, इफि. 6:14, मत्ती 5:16) 36 और तुम उन मनुष्यों के समान बनो, जो अपने स्वामी की प्रतीक्षा कर रहे हों, कि वह विवाह से कब लौटेगा; कि जब वह आकर द्वार खटखटाएँ तो तुरन्त उसके लिए खोल दें। 37 धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी आकर जागते पाए; मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वह कमर बाँध कर उन्हें भोजन करने को बैठाएगा, और पास आकर उनकी सेवा करेगा। 38 यदि वह रात के दूसरे पहर या तीसरे पहर में आकर उन्हें जागते पाए, तो वे दास धन्य हैं। 39 परन्तु तुम यह जान रखो, कि यदि घर का स्वामी जानता, कि चोर किस घड़ी आएगा, तो जागता रहता, और अपने घर में सेंध लगने न देता। 40 तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।”
41 तब पतरस ने कहा, “हे प्रभु, क्या यह दृष्टान्त तू हम ही से या सबसे कहता है।” 42 प्रभु ने कहा, “वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान भण्डारी कौन है, जिसका स्वामी उसे नौकर-चाकरों पर सरदार ठहराए कि उन्हें समय पर भोजन सामग्री दे। 43 धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। 44 मैं तुम से सच कहता हूँ; वह उसे अपनी सब संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। 45 परन्तु यदि वह दास सोचने लगे, कि मेरा स्वामी आने में देर कर रहा है, और दासों और दासियों को मारने-पीटने और खाने-पीने और पियक्कड़ होने लगे। 46 तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन, जब वह उसकी प्रतीक्षा न कर रहा हो, और ऐसी घड़ी जिसे वह जानता न हो, आएगा और उसे भारी ताड़ना देकर उसका भाग विश्वासघाती के साथ ठहराएगा। 47 और वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था*, और तैयार न रहा और न उसकी इच्छा के अनुसार चला, बहुत मार खाएगा। 48 परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा, इसलिए जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा; और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे बहुत लिया जाएगा।
49 “मैं पृथ्वी पर आग* लगाने आया हूँ; और क्या चाहता हूँ केवल यह कि अभी सुलग जाती! 50 मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है; और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी व्यथा में रहूँगा! 51 क्या तुम समझते हो कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ; नहीं, वरन् अलग कराने आया हूँ। 52 क्योंकि अब से एक घर में पाँच जन आपस में विरोध रखेंगे, तीन दो से दो तीन से। 53 पिता पुत्र से, और पुत्र पिता से विरोध रखेगा; माँ बेटी से, और बेटी माँ से, सास बहू से, और बहू सास से विरोध रखेगी।” (मीका 7:6)
54 और उसने भीड़ से भी कहा, “जब बादल को पश्चिम से उठते देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, कि वर्षा होगी; और ऐसा ही होता है। 55 और जब दक्षिणी हवा चलती देखते हो तो कहते हो, कि लूह चलेगी, और ऐसा ही होता है। 56 हे कपटियों, तुम धरती और आकाश के रूप में भेद कर सकते हो, परन्तु इस युग के विषय में क्यों भेद करना नहीं जानते?
57 “तुम आप ही निर्णय क्यों नहीं कर लेते, कि उचित क्या है? 58 जब तू अपने मुद्दई के साथ न्यायाधीश के पास जा रहा है, तो मार्ग ही में उससे छूटने का यत्न कर ले ऐसा न हो, कि वह तुझे न्यायी के पास खींच ले जाए, और न्यायी तुझे सिपाही को सौंपे और सिपाही तुझे बन्दीगृह में डाल दे। 59 मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक तू पाई-पाई न चुका देगा तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।”
जब वे षड्यंत्र रच रहे थे
“हजारों लोग” या “विशाल जनसमूह”
यह एक अतिशयोक्ति है जो दर्शाती है कि वहां बहुत अधिक लोग थे। इसका अर्थ है कि वे धक्का-मुक्की कर रहे थे।
यीशु ने सबसे पहले अपने शिष्यों से कहा
“अनर्थ से सतर्क रहना” या “अपने को सुरक्षित रखना
यह एक रूपक है। इसका अनुवाद उपमा देकर भी किया जा सकता है, “फरीसियों के पाखंड से जो खमीर जैसा है”। जिस प्रकार कि खमीर संपूर्ण आटे में फैल जाता है उसी प्रकार उनका पाखंड भी संपूर्ण समुदाय में फैल रहा है इस संपूर्ण चेतावनी का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सावधान रहो कि तुम भी फरीसियों के सदृश्य पाखंडी नहीं बन जाओ”। उनका कपटी व्यवहार सबको प्रभावित करता है जिस प्रकार कि खमीर आटे को पूर्णतः प्रभावित कर देता है”।
(यीशु अपने शिष्यों को पाखंड के प्रति चेतावनी दे रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “हर एक छिपी वस्तु प्रगट होगी” या “मनुष्य के गुप्त कामों को लोग जान लेंगे”।
यह वाक्यांश भी वही बात कहता है जो उपरोक्त वाक्यांश में कही गई है, इसलिए कि उसके तथ्य का महत्त्व प्रकट हो।
अर्थात “कानों में फुसफुसाया गया है”
“बन्द कमरों में” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बन्द दरवाजों के पीछे” या “अकेले में” या “गुप्त रूप से”।
“चिल्ला-चिल्लाकर कहा जाएगा” या “मनुष्य उसका प्रचार करेंगे”।
इस्त्राएल के घरों की छतें समतल होती थी। लोग वहां जाकर खड़े हो सकते थे। यदि पाठकों को इसकी कल्पना करने में असुविधा हो तो इसका अनुवाद अधिक सामान्य अभिव्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, “ऊंचे स्थान से जहाँ से सबके लिए सुनना संभव हो”।
(यीशु अपने शिष्यों से ही बातें कर रहा है)
“उससे अधिक और कुछ नहीं कर सकते” या “वे इससे अधिक हानि नहीं पहुंचा सकते” या “वे तुम्हें और अधिक कष्ट नहीं दे सकते”,
“परमेश्वर से डरो” या “जिसको” या “परमेश्वर से डरो क्योंकि”
“तुम्हें मारने के बाद” या “किसी को मार डालने के बाद”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसके पास मनुष्य को नरक में डालने का अधिकार है”
(यीशु अपने शिष्यों को समझा रहा है)
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “गौरेयों पर ध्यान दो। उनका मूल्य कितना कम है कि वे पैसे में पांच मिलती हैं”
ये छोटी-छोटी दाना चुगने वाली चिड़ियाँ होती हैं।
“परमेश्वर उनमें से एक को भी नहीं भूलता है। (यू.डी.बी.) या “परमेश्वर एक भी गौरेया की सुधि लेने से नहीं चूकता है”
“परमेश्वर जानता है कि तुम्हारे सिर पर कितने बाल हैं”
“इसलिए मनुष्यों से डरो नहीं” या “इसलिए तुम्हें हानि पहुंचाने वाले मनुष्यों से मत डरो”।
“परमेश्वर तुम्हें अनेक गौरेयों से अधिक मूल्यवान समझता है”।
(यीशु अपने शिष्यों को समझा रहा है)
“जो लोगों से कहेगा कि वह मेरा शिष्य है” या “जो कोई मनुष्यों के समक्ष मेरे प्रति स्वामी-भक्ति स्वीकार करेगा”।
यीशु स्वयं को संबोधित कर रहा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं, मनुष्य का पुत्र”
“जो मनुष्यों के समक्ष मेरा त्याग करे”, इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो मनुष्यों के समक्ष मेरा शिष्य होना स्वीकार न करे” या “जो मेरे प्रति स्वामी-भक्ति से इन्कार करे”
“त्याग किया जायेगा”। इसका अनुवाद इस प्रकार यिा जा सकता है, “परमेश्वर का पुत्र भी उसका इन्कार करेगा” या “मैं उसे अपना शिष्य स्वीकार नहीं करूंगा”
“जो कोई मनुष्य के पुत्र की बुराई करे”
“वह क्षमा किया जाएगा” या “परमेश्वर उसके लिए उसे क्षमा कर देगा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसे पवित्र-आत्मा के विरूद्ध बुरी बात कहे” या पवित्र-आत्मा को दुष्ट कहे”।
(यीशु अपने शिष्यों से ही बातें कर रहा है)
आराधनालयों में धर्म-गुरूओं के समक्ष पूछताछ के लिए” (यू.डी.बी.)
“देश में जो अधिकार के पद पर नियुक्त हैं”
“उस समय” या “तब”
कुछ अनुवाद इस व्यक्ति को एक अनजान मनुष्य को संबोधित करने की विधि मानते हैं। कुछ के विचार में यीशु किस विशेष मनुष्य को झिड़क रहा था। आपकी भाषा में इन दोनों अभिव्यक्तियों को व्यक्त करने के शब्द होंगे। कुछ लोग इसका अनुवाद ही नहीं करते हैं।
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “मैं तुम्हारा न्यायी या मध्यस्थ नहीं हूँ। जिन भाषाओं में द्विवचन है, वे यहाँ इसका उपयोग करें।
बांटनेवाला अर्थात् समस्या का समाधान खोजने वाला।
यहाँ “उनसे” का संदर्भ संभवतः जनसमूह से है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यीशु ने जनसमूह से कहा”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “सम्पदा प्राप्ति की लालसा मन में न आने दो” या “और अधिक पाने की लालसा के अधीन न हो जाओ”।
यह एक सामान्य तथ्य है। यह किसी व्यक्ति विशेष का बोध नहीं कराता है। कुछ भाषाओं में इसे व्यक्त करने की उक्तियां हैं।
“उसके पास कितना है” या “उसके पास कितनी धन-सम्पदा है”।
संभवतः यीशु अब भी जनसमूह से बातें कर रहा है
“बहुत अधिक फसल आई”
बखारियां वे पक्के गोदाम होते है यहाँ किसान अपनी फसल और भोजन की वस्तुएं सुरक्षित रखते हैं।
“सब सामान”
“अपने आपसे कहूंगा” (यू.डी.बी.)
(यीशु उसी धनवान मनुष्य की कहानी सुना रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तू आज रात ही मर जाएगा” या “तेरी जान आज रात तुझसे ले ली जाएगी”।
“तेरा धन संचय किसका होगा”? या “तेरा एकत्र किया हुआ किसके पास जाएगा”? इस अलंकारिक प्रश्न का उद्देश्य है कि उस मनुष्य को यह बोध हो कि उसकी धन-सम्पदा अन्ततः उसकी नहीं रहेगी।
“मूल्यवान वस्तुएं एकत्र करता है”
“आशीष या “कृपया” या “उदारतारहित”
इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर के विचार में” या “परमेश्वर के संबध में, इसका अर्थ है कि उस मनुष्य ने परमेश्वर के लिए जो महत्त्वपूर्ण है उसमें निवेश नहीं किया है या परमेश्वर जिसका प्रतिफल देगा उसमें निवेश नहीं किया है।
“अतः” या “इस कारण” या “इस कहानी की शिक्षा के द्वारा”
मैं तुम्हें एक महत्त्वपूर्ण बात बताता हूँ” या “तुम्हें ध्यान से सुनने की आवश्यकता है”
इसका अनुवाद हो सकता है, “अपने प्राण और भोजन की चिन्ता न करो” या “जीने के लिए पर्याप्त भोजन की”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपने शरीर की और वस्त्रों की” या “शरीर के लिए वस्त्रों की”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
इसका संदर्भ या तो (1) कौवों से है जो दाना खाने वाली चिडियां हैं या (2) काले कौवों से है जो मृतकों का मांस खाते हैं। यीशु के श्रोता कौवों को व्यर्थ समझते थे क्योंकि उन्हें खाया नहीं जा सकता।
यह संबोधन कारक है जो इस तथ्य पर बल देता है कि परमेश्वर के लिए मनुष्य पक्षियों से अधिक मूल्यवान हैं।
“यह एक रूपक है। मनुष्य का जीवन बढ़ाया नहीं जा सकता है।
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
सोसन जंगलों में उगनेवाले जंगली फूल होते हैं। यदि आपकी भाषा में सोसन का फूल नहीं है तो आप इसी प्रकार के किसी और का नाम ले सकते हैं पर केवल “फूल” शब्द का उपयोग कर सकते हैं।
“ ना ही वे वस्त्र तैयार करने के लिए धागा बनाते हैं” या “वे धागा नहीं बनाते हैं।
“सुलैमान जो बहुत ही अधिक धनवान था” या “सुलैमान जो अनमोल वस्त्र पहनता था”।
“यदि परमेश्वर मैदान में उगने वाली घास को ऐसा विभूषित करता है” या “परमेश्वर मैदान की घास को ऐसा सुसज्जित करता है”। घास को पहनाना एक रूपक है जिसका अर्थ है “घास को सौंदर्य प्रदान करना”
यह संबोधन कारक है कि परमेश्वर घास की तुलना में मनुष्य की अधिक सुधि लेगा
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“खाने-पीने पर ध्यान मत दो” या “बहुत खाने पीने की लालसा मत करो”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “संसारिक लोग” या “संसार में अविश्वासी जातियां” यहाँ अविश्वासियों के लिए लाक्षणिक प्रयोग है।
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“परमेश्वर के राज्य में ध्यान लगाओ या “परमेश्वर के राज्य की लालसा करो”।
“ये सब कुछ तुम्हें मिल जाएगा”, “ये वस्तुएं” अर्थात भोजन ओर वस्त्र।
यीशु अपने शिष्यों को भेड़ों का झुण्ड कह रहा था। भेड़ों के या बकरियों के झुण्ड की रखवाली चरवाहा करता है जिस प्रकार चरवाहा अपनी भेड़ों की रखवाली करता है उसी प्रकार परमेश्वर यीशु के शिष्यों की रखवाली करेगा। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “छोटे समूह” या “प्रिय समूह”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“अपनी सम्पत्ति को बेच कर जो धनराशि प्राप्त हो वह गरीबों में बांट दो”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इस प्रकार तुम अपने लिए ऐसे बटुए बनाओगे....” स्वर्ग में बटुए और धन एक ही बात हैं। दोनों ही परमेश्वर की आशिषों को द्योतक हैं।
“जिन बटुओं में छेद नहीं होता है”
“घटता नहीं” या “कम नहीं होता”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
वे लम्बा चोगा पहनते थे और काम करते समय उसे ऊपर करके कमर पर बान्ध लेते थे कि उससे रुकावट उत्पन्न न हो। इस निहितार्थ को स्पष्ट करने के लिए इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सेवा में तत्पर रहने के लिए वस्त्रों को कमर में कस लो” या “वस्त्र धारण करके सेवा के लिए तैयार हो जाओ।
“अपने दीये जलते हुए रखो”।
ये छोटे कटोरे होते थे जिनमें जैतून का तेल डालकर एक बत्ती लगाई जाती थी जिसे जलाते थे।
यह एक उपमा है जो यीशु के शिष्यों को यीशु के पुनः आगमन के लिए तैयार रहने की तुलना उन सेवकों से करती है जो अपने स्वामी के लौटने की प्रतीक्षा में खड़े हैं। यह एक शिक्षाप्रद कथा का आरंभ है।
“विवाह उत्सव से कब लौटेगा”
(यीशु अपने शिष्यों को एक शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
कैसा सौभाग्य है
“अपने आगमन पर उनका स्वामी उनकी प्रतीक्षा कर रहा था” या “जो अपने स्वामी के लिए आगमन पर तैयार पाए जाएं”।
यह पिछले पद का विपरीत है। क्योंकि सेवक अपने स्वामी के प्रति निष्ठावान थे इसलिए उन पर स्वामी उन्हें अपनी सेवा द्वारा प्रतिफल देगा।
इसके अनुवाद में निहितार्थ को स्पष्ट किया सकता है, “वह कमर कसकर उनकी सेवा करेगा” या “तैयार होकर उनकी सेवा करेगा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “रात में बहुत देर से” या “मध्य रात्री से कुछ ही समय पूर्व” दूसरा पहर रात 9 बजे से 12 बजे के बीच का होता था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि वह रात में बहुत देर से आए” तीसरा यह रात 12 बजे से सुबह 3 बजे तक का होता था।
(यीशु अपने शिष्यों को एक शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
एक चोर और मनुष्य के पुत्र में एकमात्र समानता यह है कि मनुष्य दोनों ही के आगमन के बारे में नहीं जानते हैं इसलिए उन्हें सदैव तैयार रहना है।
यीशु अपने बारे में कह रहा था। अतः इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “जब मैं, मनुष्य का पुत्र आऊंगा
यह अलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु ने पतरस के प्रश्न का सीधा उत्तर नहीं दिया परन्तु यह अपेक्षा की कि जो विश्वासयोग्य प्रबन्धक होना चाहते थे वे इस शिक्षाप्रद कथा को समझें। इसका आरंभ एक सरकारी व्यवस्था से किया जा सकता है, “मैंने उन सबके लिए कहा जो ....”
यीशु एक और शिक्षाप्रद कथा सुनाता है कि सेवक को अपने स्वामी के आगमन की प्रतीक्षा में कैसा विश्वासयोग्य होना है।
“जिसे उसका स्वामी अपने अन्य सेवकों का व्यवस्थापक नियुक्त करे”
“उस सेवक का कैसा सौभाग्य है”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जिसका स्वामी उसे अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभाता पाएं”
(यीशु अपने शिष्यों को एक शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
अर्थात जिस सेवक को उसके स्वामी ने अपने अन्य सेवकों पर व्यवस्थापक नियुक्त किया था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरा स्वामी तो शीघ्र नहीं लौटेगा”
इन शब्दों का मूल अर्थ है “लड़कों” और “लड़कियों” को अर्थात या तो वे युवा थे या स्वामी के प्रिय थे।
“इसे अविश्वासियों में रखेगा”, या “उसे वहां भेज देगा जहाँ उसने अविश्वासियों को रखा है।
(यीशु अपने शिष्यों को एक शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“उसकी बहुत” पिटाई होगी” या “कोड़ों की मार खाएगा”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “उसका स्वामी उसे बहुत मारेगा” या “उसका स्वामी उसे कठोर दण्ड देगा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “स्वामी ने जिसे बहुत सौंपा है, उससे बहुत लेगा। यदि आपने पिछले वाक्य को कर्मवाच्य वाक्य में अनुवाद किया है तो यू.डी.बी. के अनुसार अनुवाद करने का विचार करें।
“जिसे बहुत सम्पदा का उत्तरदायित्व सौंपा गया है” या “जिसको अधिक उत्तरदायित्व सौंपा गया है।
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“मैं पृथ्वी पर आग उगलने आया हूँ” या “मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूँ”
इस वाक्य से प्रकट होता है कि यीशु कैसा चाहता है कि ऐसा हो। इसका अनुवाद ऐसे किया जा सकता है, “मेरी गहन इच्छा है कि आग लग चुकी होती” या अधिक सामान्य रूप में कहें तो “मेरी तो बड़ी इच्छा है कि ऐसा हो चुका होता”, (वाक्यों के प्रकार का अध्याय देखें)
यहाँ बपतिस्मा, “ कष्ट सहने" रूपक स्वरूप काम में लिया गया है। जिस प्रकार बपतिस्में में मनुष्य जल मग्न हो जाता है उसी प्रकार यीशु कष्टों में मग्न हो जाएगा। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं कष्टों का बपतिस्मा लूंगा” या उपमा देकर, “मुझे कष्ट ऐसे डुबा देंगे जैसे बपतिस्मे में पानी मनुष्य को डुब देता है”।
यहाँ “परन्तु” शब्द का अर्थ है कि वह अपने कष्टों के बपतिस्में के लिए पृथ्वी पर आग नहीं लगा पाएगा।
इस वाक्य में उसकी मनोदशा पर बल देता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं अत्यधिक व्याकुल हूं और रहूंगा भी जब तक कि मेरे कष्ट पूरे न हों”।
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। मनुष्यों ने मसीह से अपेक्षा की थी कि वह उन्हें बैरियों से शान्ति दिलाए। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम यह न सोचो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति स्थापित करने आया हूँ।
“इसकी अपेक्षा मैं विभाजन कराने आया हूँ”
“विरोध” या “कलह”
यह एक उदाहरण है कि परिवारों में भी विभाजन होगा।
“वर्षा होने वाली है” या “पानी बरसेगा” (यू.डी.बी.)
मौसम को देखकर
यह अलंकारिक प्रश्न झिड़की के लिए है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम्हें इस समय का भी अर्थ निर्धारण करना चाहिए”।
(यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है)
यह एक अलंकारिक प्रश्न है जो झिड़की है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम्हें तो सत्य को स्वयं ही अन्तर्ग्रहण कर लेना चाहिए” यहाँ भी सत्य के विषय यीशु की शिक्षा आरंभ होती है।
“स्वयं ही पहल करके” या “जब तुम्हारे पास समय है” (यू.डी.बी.) इसका सलंग्न अर्थ है कि श्रोताओं को अपनी रूचि एवं बुद्धि के आधार पर काम करना है कोई उन्हें विवश न करे।
यह एक नई शिक्षाप्रद कथा का आरंभ है। यीशु परमेश्वर के आनेवाले दण्ड के लिए एक काल्पनिक परिस्थिति रच रहा है
यद्यपि यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है, ऐसी परिस्थिति में मनुष्य अकेला ही होता है। अतः आपकी भाषा में “तू” शब्द एकवचन में होना चाहिए।
“अपने विरोधी के साथ समझौता कर ले”
न्यायाधीश, परन्तु मूल शब्द अधिक विशिष्ट एवं भयावह है।
वह उजाले में सुना जाएगा।
जिसको नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो।
यीशु परमेश्वर के स्वर्गदूतों के समक्ष उस व्यक्ति का नाम स्वीकार करेगा।
हमारा जीवन धन संपदा की बहुतायत से नहीं है।
वह अपनी बुखारियां तोड़ कर बड़े-बड़े गोदाम बनायेगा और चैन से बैठ कर खायेगा, पीएगा और आनन्द करेगा।
परमेश्वर ने उससे कहा, "हे मूर्ख इसी रात तेरा प्राण तुझसे ले लिया जाएगा, तब जो कुछ तूने इकट्ठा किया है वह किसका होगा?
हमें परमेश्वर के राज्य की खोज करनी है।
हमें स्वर्ग में धन एकत्र करना है क्योंकि वहाँ न तो चोर आ सकते हैं और न ही उसमें कीड़े लगते हैं।
जो यीशु के आगमन पर सतर्क एवं तैयार पाये जायें वे धन्य हैं।
नहीं।
भारी ताड़ना देकर उसका भाग अविश्वासियों के साथ ठहराएगा।
उससे अधिक अपेक्षा की जाएगी।
एक ही परिवार के सदस्य एक दुसरे के विरोधी होकर विभाजित हो जायेंगे।
हमें पहले ही समझौता करने का प्रयास करना है।
1 उस समय कुछ लोग आ पहुँचे, और उससे उन गलीलियों की चर्चा करने लगे, जिनका लहू पिलातुस ने उन ही के बलिदानों के साथ मिलाया था। 2 यह सुनकर यीशु ने उनको उत्तर में यह कहा, “क्या तुम समझते हो, कि ये गलीली बाकी गलीलियों से पापी थे कि उन पर ऐसी विपत्ति पड़ी?” 3 मैं तुम से कहता हूँ, कि नहीं; परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे* तो तुम सब भी इसी रीति से नाश होंगे। 4 या क्या तुम समझते हो, कि वे अठारह जन जिन पर शीलोह का गुम्मट गिरा, और वे दबकर मर गए: यरूशलेम के और सब रहनेवालों से अधिक अपराधी थे? 5 मैं तुम से कहता हूँ, कि नहीं; परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम भी सब इसी रीति से नाश होंगे।”
6 फिर उसने यह दृष्टान्त भी कहा, “किसी की अंगूर की बारी* में एक अंजीर का पेड़ लगा हुआ था : वह उसमें फल ढूँढ़ने आया, परन्तु न पाया। (मत्ती 21:19-20, मर. 11:12-14) 7 तब उसने बारी के रखवाले से कहा, ‘देख तीन वर्ष से मैं इस अंजीर के पेड़ में फल ढूँढ़ने आता हूँ, परन्तु नहीं पाता, इसे काट डाल कि यह भूमि को भी क्यों रोके रहे?’ 8 उसने उसको उत्तर दिया, कि हे स्वामी, इसे इस वर्ष तो और रहने दे; कि मैं इसके चारों ओर खोदकर खाद डालूँ। 9 अतः आगे को फले तो भला, नहीं तो उसे काट डालना।”
10 सब्त के दिन वह एक आराधनालय में उपदेश दे रहा था। 11 वहाँ एक स्त्री थी, जिसे अठारह वर्ष से एक दुर्बल करनेवाली दुष्टात्मा लगी थी, और वह कुबड़ी हो गई थी, और किसी रीति से सीधी नहीं हो सकती थी। 12 यीशु ने उसे देखकर बुलाया, और कहा, “हे नारी, तू अपनी दुर्बलता से छूट गई।” 13 तब उसने उस पर हाथ रखे, और वह तुरन्त सीधी हो गई, और परमेश्वर की बड़ाई करने लगी। 14 इसलिए कि यीशु ने सब्त के दिन उसे अच्छा किया था*, आराधनालय का सरदार रिसियाकर लोगों से कहने लगा, “छः दिन हैं, जिनमें काम करना चाहिए, अतः उन ही दिनों में आकर चंगे हो; परन्तु सब्त के दिन में नहीं।” (निर्ग. 20:9-10, व्य. 5:13-14) 15 यह सुन कर प्रभु ने उत्तर देकर कहा, “हे कपटियों, क्या सब्त के दिन तुम में से हर एक अपने बैल या गदहे को थान से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता? 16 “और क्या उचित न था, कि यह स्त्री जो अब्राहम की बेटी है, जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बाँध रखा था, सब्त के दिन इस बन्धन से छुड़ाई जाती?” 17 जब उसने ये बातें कहीं, तो उसके सब विरोधी लज्जित हो गए, और सारी भीड़ उन महिमा के कामों से जो वह करता था, आनन्दित हुई।
18 फिर उसने कहा, “परमेश्वर का राज्य किसके समान है? और मैं उसकी उपमा किससे दूँ? 19 वह राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपनी बारी में बोया: और वह बढ़कर पेड़ हो गया; और आकाश के पक्षियों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया।” (मत्ती 13:31-32, यहे. 31:6, दानि. 4:21) 20 उसने फिर कहा, “मैं परमेश्वर के राज्य कि उपमा किस से दूँ? 21 वह ख़मीर के समान है, जिसको किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिलाया, और होते-होते सब आटा ख़मीर हो गया।”
22 वह नगर-नगर, और गाँव-गाँव होकर उपदेश देता हुआ यरूशलेम की ओर जा रहा था। 23 और किसी ने उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या उद्धार पानेवाले थोड़े हैं?” उसने उनसे कहा, 24 “सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से प्रवेश करना चाहेंगे, और न कर सकेंगे। 25 जब घर का स्वामी उठकर द्वार बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े हुए द्वार खटखटाकर कहने लगो, ‘हे प्रभु, हमारे लिये खोल दे,’ और वह उत्तर दे कि मैं तुम्हें नहीं जानता, तुम कहाँ के हो? 26 तब तुम कहने लगोगे, ‘कि हमने तेरे सामने खाया-पीया और तूने हमारे बजारों में उपदेश दिया।’ 27 परन्तु वह कहेगा, मैं तुम से कहता हूँ, ‘मैं नहीं जानता तुम कहाँ से हो। हे कुकर्म करनेवालों, तुम सब मुझसे दूर हो।’ (भज. 6:8) 28 वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा, जब तुम अब्राहम और इसहाक और याकूब और सब भविष्यद्वक्ताओं को परमेश्वर के राज्य में बैठे, और अपने आप को बाहर निकाले हुए देखोगे। 29 और पूर्व और पश्चिम; उत्तर और दक्षिण से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। (यशा. 66:18, प्रका. 7:9, भज. 107:3, मला. 1:11) 30 यह जान लो, कितने पिछले हैं वे प्रथम होंगे, और कितने जो प्रथम हैं, वे पिछले होंगे।”
31 उसी घड़ी कितने फरीसियों ने आकर उससे कहा, “यहाँ से निकलकर चला जा; क्योंकि हेरोदेस तुझे मार डालना चाहता है।” 32 उसने उनसे कहा, “जाकर उस लोमड़ी से कह दो, कि देख मैं आज और कल दुष्टात्माओं को निकालता और बीमारों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन अपना कार्य पूरा करूँगा। 33 तो भी मुझे आज और कल और परसों चलना अवश्य है, क्योंकि हो नहीं सकता कि कोई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम के बाहर मारा जाए।
34 “हे यरूशलेम! हे यरूशलेम! तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए उन्हें पत्थराव करता है; कितनी ही बार मैंने यह चाहा, कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे करूँ, पर तुम ने यह न चाहा। 35 देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है, और मैं तुम से कहता हूँ; जब तक तुम न कहोगे, ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम से आता है,’ तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।” (भज. 118:26, यिर्म. 12:7)
इस उक्ति द्वारा यह घटना अध्याय 12 के अन्त से जोड़ी गई है जिसमें यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा था।
यह एक रूपक है जिसमें उनकी मृत्यु को लहू कहा गया है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब जो बलिदान चढ़ाते समय पिलातुस द्वारा मार डाले गए थे”। पिलातुस ने स्वयं नहीं अपने सैनिकों को आज्ञा देकर उनकी हत्या करवाई थी। (देखें: Metonymy)
“क्या वे गलीलवासी अधिक पापी थे”? या “इससे क्या यह सिद्ध होता है कि ये गलीली अधिक पापी थे”? यह एक अलंकारिक प्रश्न है। यह सकारात्मक वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, “तुम सोचते हो कि ये गलीली अधिक पापी थे” या आदेशात्मक वाक्य में, “यह न सोचों कि ये गलीली अधिक पापी थे”।
यीशु ने कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ” तो वह “नहीं” पर बल देने के लिए था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “निश्चय ही नहीं”। इसके संभावित अर्थ है, “निश्चय ही वे अधिक पापी नहीं थे” या “उनका पीड़ित अन्त निश्चय ही सिद्ध नहीं करता कि वे पापी थे”। इसका अनुवाद हो सकता है, “तुम्हारा यह विचार अनुचित है।
“तुम सब भी मरोगे”, यहाँ “इसी रीति से” का अर्थ है, “परिणाम यही होगा”, न कि “इसी रूप में घात किए जाओगे”
“तुम्हारे जीवन का अन्त” या “मरोगे”
(यीशु जनसमूह से ही बातें कर रहा है)
यीशु ऐसे ही दुर्भाग्य का दूसरा उदाहरण दे रहा है। इसका आरंभ इस प्रकार हो सकता है, “या उन अठारह जनों को ही देख लो” या “उन अठारह जनों पर विचार करो” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम सोचते हो कि वे अधिक पापी थे” या आदेशात्मक वाक्य में
“क्या वे अधिक पापी थे” या “क्या यह सिद्ध होता है कि वे अधिक पापी है?” यह एक अलंकारिक प्रश्न है। यह एक कथन द्वारा अनुवाद किया जा सकता है: “आपको लगता है कि वे अधिक पापी है” या एक आदेश के रूप में “क्या आप को लगता है कि वे अधिक पापी हैl”
“अन्य नागरिकों से”
यहाँ यीशु, “मैं तुमसे कहता हूँ” कह कर “नहीं” पर बल डाल रहा है। इसका अनुवाद किया जा सकता है, “निश्चय ही नहीं”? इसके संभावित अर्थ हैं, “वे निश्चय ही अधिक पापी नहीं थे” या “उनका अनुवाद दुर्भाग्य निश्चय ही को सिद्ध नहीं करता है”, इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम ऐसा सोचते हो तो तुम गलत हो”।
“तुम्हारे जीवन का अन्त” या “मरोगे”
(यीशु जनसमूह से ही बातें कर रहा है)
यीशु ने पिछले पद में कही गई अपनी बात को समझाने के लिए यह कथा सुनाई कि वे या तो अपने पापों से विमुख हों या नष्ट हों।
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद विधान वाचक वाक्य में किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है या आदेशात्मक वाक्य में, “इसे भूमि रोकने न दे”।
(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“इस वृक्ष को अभी छोड़ दे”या “इसे अभी मत काट”
“इसकी जड़ों की मिट्टी में खाद डालूँ” खाद पशुओं का गोबर होता था जिसे वे मिट्टी में मिलाते थे कि पेड़-पौधों का भोजन हो।
इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “तब मुझे काटने दे” या “तब मुझसे काटने को कहना। वह सेवक सुझाव दे रहा था। वह अपने स्वामी को आज्ञा नहीं दे रहा था।
कुछ भाषाओं में इसका अनुवाद “सब्त पर” किया गया है क्योंकि हम नहीं जानते कि वह सब्त कौन सा था।
यहाँ “देखो” कहानी में एक नए मनुष्य के प्रवेश की सूचना देता है। आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति हो सकती है।
“दुर्बल दुष्टात्मा ने उसे दुर्बल कर दिया था”
“तू विकारमुक्त हो गई” यह कह कर यीशु उसकी मुक्ति ला रहा था। इसका अनुवाद आदेशात्मक वाक्य या विधानवाचक वाक्य में किया जा सकता है। (यू.डी.बी.)
“उसने उसे छुआ”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आराधनालय का प्रधान कुपित हुआ “क्योंकि यीशु ने उपचार कार्य किया था”
“निर्देश दिया” या “प्रतिक्रिया दिखाई”
“उन दिनों में रोगमुक्ति हेतु आओ”
प्रभु ने आराधनालय के प्रधान से कहा।
यह एक अलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु ने इस प्रकार उनकी परिचित बात की और ध्यान आकर्षित करवाया। इसका अनुवाद विधानवाचक वाक्य में किया जा सकता है, “तुम अपना गधा खोलते हो।
ये पालतू पशु थे जिन्हें वे पानी पिलाने ले जाते थे।
“अब्राहम की वंशज है”
यह एक रूपक है। इसका अर्थ है, “जिसे शैतान ने कूबड़ा करके रखा हुआ था”। रूपक के साथ अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है।
यीशु के कहने का तात्पर्य था कि अठारह वर्ष उसके कष्टों का बहुत लम्बा समय था। अन्यों भाषाओं में इस बात पर बल देने की अपनी-अपनी अभिव्यक्ति होगी।
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। यीशु ने यह प्रश्न इसलिए किया था कि श्रोता स्वीकार करें कि सब्त के दिन उसे स्वस्थ करने का कार्य उचित था। इसका अनुवाद विधानवाचक वाक्य में किया जा सकता है, “तुम निश्चय ही स्वीकार करोगे कि यह उचित है”
यह एक रूपक है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इसे शैतान से छुड़ाना या इस विकृति के बन्धन से मुक्त कराना”
“जब यीशु ने ये बातें कहीं”
“इस महिमा के कामों से जो यीशु ने किए”
(यीशु आराधनालय में शिक्षा दे रहा है)
यह अलंकारिक प्रश्न यीशु के चर्चा विषय का आरंभ करता है। इसका अनुवाद विधानवाचक वाक्य में किया जा सकता है, “मैं तुम्हें बताता हूँ कि परमेश्वर का राज्य कैसा है”।
यह प्रश्न भी पिछले प्रश्न जैसा ही है। यीशु इस प्रश्न द्वारा अपनी चर्चा का आरंभ करता है। कुछ भाषाओं में दोनों का उपयोग किया जा सकता है और कुछ में केवल एक का।
राई का दाना बहुत ही छोटा होता है परन्तु इसका वृक्ष बहुत बड़ा होता है। यदि राई अपरिचित है तो किसी और बहुत छोटे बीज का नाम लिया जा सकता है या केवल “एक छोटा बीज” कहा जा सकता है।
“उसे उसने अपने बगीचे में डाला” लोग कभी-कभी बीजों को बोने के लिए उन्हें छित्तरा देते है कि वे भूमि में विसर्जित होकर उगें।
यह अतिशयोक्ति है। इसका अनुवाद किया जा सकता है, “वह झाड़ी बन गया”।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “आकाश में उड़ने वाले पक्षी या मात्र “पक्षियों ने”
(यीशु आराधनालय में ही शिक्षा दे रहा है)
यह भी एक अलंकारिक प्रश्न है जो प्रकट करता है कि यीशु इसके बारे में क्या कहेगा। इसका अनुवाद विधानवाचक वाक्य में किया जा सकता है, जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
आटा कितना भी हो थोड़ा सा ही खमीर उसके लिए पर्याप्त होता है। इसे स्पष्ट किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “बहुत आटे में” या “आपकी संस्कृति में बहुत आटे को जो भी कहते हैं उसे लिखें।
“संकीर्ण द्वार से प्रवेश करने के लिए परिश्रम करो” यह परमेश्वर के राज्य का रूपक है इस रूपक में परमेश्वर के राज्य के घर से तुलना की गई है। यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है, अतः “तुम” बहुवचन है।
परमेश्वर के राज्य का नागरिक बनने का अर्थ है संकीर्ण द्वारा से प्रवेश करना। यह तथ्य कि द्वारा संकीर्ण है, बहुत ही कम मनुष्य एक बार में उसमें से प्रवेश कर पाएंगे। अतः इस सीमित अभिप्राय को व्यक्त करते हुए अनुवाद करें।
(यीशु परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के बारे में ही चर्चा कर रहा है)
यह परमेश्वर के संदर्भ में है इसलिए इसका अनुवाद “परमेश्वर” करें
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा था। अतः “तुम” शब्द बहुवचन में है। वह उनसे कह रहा है कि मानो वे उस द्वार से परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे।
“मेरे पास से चले जाओ”
“अनुचित काम करनेवालों”
(यीशु परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के विषय पर ही आख्यान कर रहा है)
“जब तुम स्वयं ही बाहर किए हुए होंगे”
“मनुष्य राज्य में आकर”
यह सम्मान और महत्त्व के बारे में है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कुछ लोग जो महत्त्व में नगण्य है वे सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होंगे” या “कुछ लोगों का यहाँ मान नहीं है उनका वहां सम्मान होगा”।
“यीशु की बात समाप्त होने के शीघ्र बाद ही”
इसका अनुवाद यीशु के लिए चेतावनी स्वरूप करें। वे उसे परामर्श दे रहे थे कि वह वहां से कहीं चला जाये कि सुरक्षित रहे।
“हेरोदेस तेरी हत्या करवाना चाहता है” या “हेरोदेस तेरी हत्या का आदेश देने जा रहा है”
यीशु हेरोदेस को लोमड़ी कह रहा था। लोमड़ी कुत्ते के समान एक छोटा जानवर होती है। यह एक रूपक है। इसके संभावित अर्थ हैं, (1) हेरोदेस की धमकी उसके लिए महत्त्वहीन थी। या (2) हेरोदेस धोखा करने वाला मनुष्य था।
यहूदियों ने भविष्यद्वक्ताओं को यरूशलेम में मारा था और यीशु जानता था कि उसकी हत्या भी यरूशलेम ही में होगी। इसके अनुवाद का एक विकल्प है, “यरूशलेम ही में यहूदी अगुवे परमेश्वर के सन्देश वाहकों को मार डालते हैं”।
(यीशु यरूशलेम जाने से पूर्व फरीसियों से बातें कर रहा है)
यीशु इस प्रकार कह रहा है कि मानों यरूशलेमवासी सुन रहे हैं। यीशु ने दो बार यरूशलेम को पुकारा जिससे प्रकट होता है कि वह कितना दुःखी था।
यदि शहर का नाम लेना आपके पाठकों को असामान्य लगता है तो आप स्पष्ट कर सकते हैं कि यीशु उस शहर के निवासियों से कह रहा था, “तुम जो भविष्यद्वक्ताओं की हत्या करते हो ओर जिन्हें परमेश्वर के भेजे हुओं पर पथराव करते हो”
“तेरे निवासियों को इकट्ठा करूं” या “तुम्हें इकट्ठा करूं”
यह रूप दर्शाता है कि मुर्गी अपने बच्चों को पंखों तले छिपा कर सुरक्षित करती है।
इस रूपक के संभावित अर्थ हैं, (1) “परमेश्वर ने तुम्हें त्याग दिया है” या (2) तुम्हारा नगर निर्जन है”। इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने यरूशलेम की प्रजा की सुरक्षा त्याग दी है। आज बैरी उन पर आक्रमण करके उन्हें खदेड़ सकते हैं। यह एक अवश्यंभावी घटना की भविष्यद्वाणी है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम्हारा घर त्यागा जाएगा” या “परमेश्वर तुम्हें त्याग देगा”
“तुम मुझे उस समय तक नहीं देखोगे जब तक कि तुम यह न कहोगे....” या “अगली बार जब तुम मुझे देखोगे तक कहोगे....”
नहीं।
उस वृक्ष को अधिक खाद पानी दिया गया और एक और वर्ष का समय दिया कि वह फल लाए अन्यथा काट दिया जाए।
शैतान ने उसे अठारह वर्ष से एक दुर्बल करने वाली दुष्टात्मा से बांध रखा था।
क्योंकि यीशु ने उसे सब्त के दिन चंगा किया।
यीशु ने उसे स्मरण करवाया कि वह भी तो सब्त के दिन अपने गदहे को खोलकर पानी पिलाने ले जाता है तो वह यीशु द्वारा उस स्त्री को खोलने पर क्यों क्रोध करता है।
वह एक छोटा सा दाना होता है परन्तु उग कर बड़ा हो जाता है और उसमें आकाश के पक्षियों के लिए डालियों पर बसेरा करने का स्थान होता है।
यीशु ने कहा, "सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो", क्योंकि बहुत से प्रवेश करना चाहेंगे और न कर सकेंगे।
वे रोएंगे और दांत पीसेंगे।
अब्राहम, इसहाक, याकूब और भविष्यद्वक्ता तथा पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से अनेक मनुष्य।
वह यरूशलेम में मारा जायेगा।
उसने उन्हें एकत्र करने की इच्छा की जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखो के नीचे इकट्ठा करती है।
उन्होंने उसका त्याग किया।
उनका घर तब तक उजाड़ छोड़ा गया जब तक वे यह न कहेंगे, धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है।
1 फिर वह सब्त के दिन फरीसियों के सरदारों में से किसी के घर में रोटी खाने गया: और वे उसकी घात में थे। 2 वहाँ एक मनुष्य उसके सामने था, जिसे जलोदर का रोग* था। 3 इस पर यीशु ने व्यवस्थापकों और फरीसियों से कहा, “क्या सब्त के दिन अच्छा करना उचित है, कि नहीं?” 4 परन्तु वे चुपचाप रहे। तब उसने उसे हाथ लगाकर चंगा किया, और जाने दिया। 5 और उनसे कहा, “तुम में से ऐसा कौन है, जिसका पुत्र या बैल कुएँ में गिर जाए और वह सब्त के दिन उसे तुरन्त बाहर न निकाल ले?” 6 वे इन बातों का कुछ उत्तर न दे सके।
7 जब उसने देखा, कि आमन्त्रित लोग कैसे मुख्य-मुख्य जगह चुन लेते हैं तो एक दृष्टान्त देकर उनसे कहा, 8 “जब कोई तुझे विवाह में बुलाए, तो मुख्य जगह में न बैठना, कहीं ऐसा न हो, कि उसने तुझ से भी किसी बड़े को नेवता दिया हो। 9 और जिस ने तुझे और उसे दोनों को नेवता दिया है, आकर तुझ से कहे, ‘इसको जगह दे,’ और तब तुझे लज्जित होकर सबसे नीची जगह में बैठना पड़े। 10 पर जब तू बुलाया जाए, तो सबसे नीची जगह जा बैठ, कि जब वह, जिस ने तुझे नेवता दिया है आए, तो तुझ से कहे ‘हे मित्र, आगे बढ़कर बैठ,’ तब तेरे साथ बैठनेवालों के सामने तेरी बड़ाई होगी। (नीति. 25:6-7) 11 क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”
12 तब उसने अपने नेवता देनेवाले से भी कहा, “जब तू दिन का या रात का भोज करे, तो अपने मित्रों या भाइयों या कुटुम्बियों या धनवान पड़ोसियों को न बुला, कहीं ऐसा न हो, कि वे भी तुझे नेवता दें, और तेरा बदला हो जाए। 13 परन्तु जब तू भोज करे, तो कंगालों, टुण्डों, लँगड़ों और अंधों को बुला। 14 तब तू धन्य होगा, क्योंकि उनके पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, परन्तु तुझे धर्मियों के जी उठने* पर इसका प्रतिफल मिलेगा।”
15 उसके साथ भोजन करनेवालों में से एक ने ये बातें सुनकर उससे कहा, “धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य में रोटी खाएगा।” 16 उसने उससे कहा, “किसी मनुष्य ने बड़ा भोज दिया और बहुतों को बुलाया। 17 जब भोजन तैयार हो गया, तो उसने अपने दास के हाथ आमन्त्रित लोगों को कहला भेजा, ‘आओ; अब भोजन तैयार है।’ 18 पर वे सब के सब क्षमा माँगने लगे, पहले ने उससे कहा, ‘मैंने खेत मोल लिया है, और अवश्य है कि उसे देखूँ; मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे क्षमा कर दे।’ 19 दूसरे ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़े बैल मोल लिए हैं, और उन्हें परखने जा रहा हूँ; मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे क्षमा कर दे।’ 20 एक और ने कहा, ‘मैंने विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’ 21 उस दास ने आकर अपने स्वामी को ये बातें कह सुनाईं। तब घर के स्वामी ने क्रोध में आकर अपने दास से कहा, ‘नगर के बाजारों और गलियों में तुरन्त जाकर कंगालों, टुण्डों, लँगड़ों और अंधों को यहाँ ले आओ।’ 22 दास ने फिर कहा, ‘हे स्वामी, जैसे तूने कहा था, वैसे ही किया गया है; फिर भी जगह है।’ 23 स्वामी ने दास से कहा, ‘सड़कों पर और बाड़ों की ओर जाकर लोगों को बरबस ले ही आ ताकि मेरा घर भर जाए। 24 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि उन आमन्त्रित लोगों में से कोई मेरे भोज को न चखेगा*’।”
25 और जब बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी, तो उसने पीछे फिरकर उनसे कहा। 26 “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता; (मत्ती 10:37, यूह. 12:25, व्य. 33:9) 27 और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता।
28 “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और पहले बैठकर खर्च न जोड़े, कि पूरा करने की सामर्थ्य मेरे पास है कि नहीं? 29 कहीं ऐसा न हो, कि जब नींव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखनेवाले यह कहकर उसका उपहास करेंगे, 30 ‘यह मनुष्य बनाने तो लगा, पर तैयार न कर सका?’ 31 या कौन ऐसा राजा है, कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हजार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हजार लेकर उसका सामना कर सकता हूँ, कि नहीं? 32 नहीं तो उसके दूर रहते ही, वह दूत को भेजकर मिलाप करना चाहेगा। 33 इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता।
34 “नमक तो अच्छा है, परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा। 35 वह न तो भूमि के और न खाद के लिये काम में आता है: उसे तो लोग बाहर फेंक देते हैं। जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले।”
“भोजन करने” या “खाना खाने गया” रोटी भोजन का मुख्य भाग होती है अतः इसका अर्थ है, भोजन।
वे प्रतीक्षा में थे कि यीशु से कोई चूक हो और वे उस पर दोष लगाएं।
कुछ भाषाओं में इस वाक्य के आरंभ में “देखो” शब्द है जिसका अभिप्राय है कि कहानी में एक नाम मनुष्य है। आपकी भाषा में भी ऐसी अभिव्यक्ति हो सकती है।
जलन्धर एक ऐसा रोग है जिसमें शरीर का पानी विभिन्न अंगों में रुक जाता है और परिणामस्वरूप शरीर में सूजन आ जाती है। कुछ भाषाओं में इस विकार का निश्चित नाम है।
“क्या मूसा का विधान हमें सब्त के दिन उपचार की अनुमति देता है”?
धर्मगुरूओं ने यीशु को उत्तर नहीं दिया
“यीशु ने उसको स्पर्श किया”
यह एक अलंकारिक प्रश्न था जिसके द्वारा यीशु उनसे स्वीकार करवाना चाहता था कि वे सब्त के दिन अपने पशु को कुएं से खींचकर निकालने में परिश्रम करते थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, यदि तुम में से किसी का बैल या गधा सब्त के दिन कुंएं में गिर जाए तो तुम अतिशीघ्र उसे खींचकर बाहर निकालोगे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उनके पास इसका प्रत्युत्तर नहीं था”। इसका अर्थ यह नहीं कि उनके पास यीशु के प्रश्न का उत्तर नहीं था, वे जानते थे कि यीशु का कहना सत्य है परन्तु वे अपने मुंह से कहना नहीं चाहते थे।
(यीशु उस फरीसी के घर में उपस्थित जनों से बातें कर रहा है)
माननीय अतिथियों के स्थान
“तब तुझे लज्जित होना पड़ेगा”
(यीशु उस फरीसी के घर में उपस्थित जनों से बातें कर रहा है)
“जो स्थान एक नगण्य मुनष्य हो”
“सम्मानित स्थान पर बैठ”
“महत्त्वपूर्ण होना चाहेगा” या “जो महत्त्वपूर्ण स्थान लेगा”
“वह उसे महत्त्वहीन दर्शाया जाएगा” या “उसे महत्त्वहीन स्थान दिया जाएगा”
“जो स्वयं को दीन हीन बनाएगा” या “जो छोटा स्थान लेगा”
“वह सम्मानित किया जाएगा” या “उसे महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाएगा”
“क्योंकि वे”
(यीशु उस फरीसी से कह रहा है जिसने उसे भोजन हेतु आमंत्रित किया था)
वे बदले में तुझे अपने घर भोज हेतु आमंत्रित नहीं कर सकते हैं।
“जब धर्मी मृतकों में से जी उठेंगे
वह किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं कह रहा था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “धन्य है वह हर एक जन” या “कैसा सौभाग्यशाली है वह हर एक जन”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह जो परमेश्वर के राज्य में भोज पर बैठे”। यहाँ रोटी से अभिप्राय है, भोजन।
“भोजन का समय हुआ तब” या “जब भोजन आरंभ करने का समय आया”
“जिन्हें उसने भोज में आमंत्रित किया था”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
अर्थात वे भोज में न आने का कारण बताने लगे”
“कृपया मुझे क्षमा कर” या “कृपया मेरी क्षमायाचना स्वीकार कर”
बैल नर गाय होते हैं जो बोझ खींचने या कठिन काम करने के लिए काम में लिए जाते है और उन्हें सामान्यतः जोड़े में काम में लिया जाता है।
इसके लिए अपनी भाषा में कोई व्यावहारिक अभिव्यक्ति काम में लें। कुछ भाषाओं में कहा जाएगा, “मेरा विवाह हुआ है” या “पत्नी ब्याही है”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“अपने अतिथियों से क्रोधित होकर”
यहाँ सलंग्न जानकारी को स्पष्ट करना आवश्यक है कि उस सेवक ने अपने स्वामी की आज्ञा के अनुसार किया जैसा यू.डी.बी. में है, “सेवक ने जाकर वैसा ही किया और आकर अपने स्वामी से कहा”,
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
इसका संदर्भ नगर को बाहर की सड़कों और पगडंडिओं से है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “नगर के बाहर मुख्य मार्गों और पगडंडियों में जा”
यहाँ लोगों शब्द का मूल अर्थ है “वयस्क पुरूष” न कि साधारण जनता।
“जिन्हें मैंने निमंत्रण भेजा था”
“मेरे द्वारा तैयार किए गए भोजन का आनन्द नहीं लेने पाएगा”
(यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है)
यह एक अलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। यीशु इस प्रश्न द्वारा श्रोताओं को सोचने पर विवश कर रहा था कि वे ऐसी परिस्थिति में क्या करेंगे। इसका अनुवाद विधानवाचयक वाक्य बनाकर भी किया जा सकता है, यदि तुममें से कोई गढ़ बनाना चाहे तो वह पहले बैठकर उसकी लागत का लेखा अवश्य तैयार करेगा”।
यह संभवतः दाख की बारी में चौकीदारी का गुम्मट होगा। कुछ भाषाओं में इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ऊंची ईमारत” या “चौकसी का मचान”।
“यदि वह पहले लागत को न गिने”
“जब वह उसकी नींव तैयार कर ले” या “जब वह निर्माण कार्य आरंभ कर दे”
(यीशु जनसमूह से ही बातें कर रहा है)
यीशु इस शब्द के द्वारा दूसरी परिस्थिति का वर्णन कर रहा है जिसमें निर्णय लेने से पहले परिणाम सोचना पड़ता है।
यह एक और अलंकारिक प्रश्न है।इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “तुम जानते हो कि राजा ... पहले बैठता है और फिर विचार करता है
इसके संभावित अर्थ हैं (1) “सावधानीपूर्वक विचार करे” या (2) “अपने परामर्शदाताओं की बात पर ध्यान दें।
उसे यह समझ में आ जाए कि वह शत्रु की सेना को नहीं हरा सकता” “वह यह मान ले कि उसकी सेना शत्रु की सेना का सामना नहीं कर सकती है। (यू.डी.बी.)
“सन्देशवाहक” या “प्रतिनिधि”
इसका अनुवाद विधानवाचक वाक्य में भी किया जा सकता है, “तुममें से जो अपना सब कुछ त्याग दे वही मेरा शिष्य हो सकता है”।
“अपना सर्वास्व छोड़ कर”
(यीशु अपने पीछे आ रहे जनसमूह से बातें कर रहा है)
“नमक उपयोगी है”
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “वह फिर नमकीन नहीं किया जा सकता है” या “कोई नहीं है जो उसे फिर से नमकीन कर दे”।
खाद का अनुवाद “कूड़े की खाद” या “उर्वरक” किया जा सकता है। खाद खेतों और बगीचों में डाली जाती थी। खाना खराब हो जाए तो उसे खाद में मिलाया जाता था परन्तु नमक के साथ ऐसा भी नहीं किया जा सकता है। वह पूर्णतः व्यर्थ है।
इसे आदेशसूचक वाक्य में बदला जा सकता है, “तुम्हारे पास सुनने के लिए कान हैं तो ध्यान से सुनो”। या “यदि तुम मेरी बात सुन रहे हो तो ध्यान दो”।
“जो सुन सकता है” जो मेरी बात सुन रहा है”
“वह ध्यान से सुने” या “मेरी बात पर ध्यान दे”,
इसे विधानवाचक वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, यदि कोई मेरे पास आए तो वह मेरा शिष्य तब ही हो सकता है जब वह अपने पिता से लगाव न रखे”।
यह एक अतिशयोक्ति है जो प्रकट करती है कि सबसे अधिक यीशु से प्रेम रखना कितना महत्त्वपूर्ण है। यदि इस अतिशयोक्ति को गलत समझा जाए तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि कोई मेरे पास आए और अपने पिता से अधिक मुझसे प्रेम न रखे तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता है” या “यदि कोई मेरे पास आए तो वह मेरा शिष्य तब ही हो सकता है जब वह अपने पिता से अधिक मुझसे प्रेम रखे”।
“और अपने प्राण को भी”
इसका विधानवाचक वाक्य बनाया जा सकता है, “यदि कोई मेरा शिष्य होना चाहता है तो उसे अपना क्रूस उठा कर मेरे साथ चलना होगा”
इसका अर्थ है मरने के लिए तैयार रहे। उस युग में जिन्हें मृत्यु दण्ड दिया जाता था उन्हें अपना वह क्रूस उठाकर ले जाना होता था जिस पर उन्हें लटकाया जाना होता था। यीशु के अनुयायियों को भावी कष्टों को सहने के लिए तैयार होना था।
सब्त के दिन चंगा करना क्या व्यवस्था सम्मत है या नहीं।
वे चुप रहे।
?
वह छोटा किया जाएगा।
वह बड़ा किया जाएगा।
वे धर्मियों के पुनरूत्थान पर अपना प्रतिफल पायेंगे।
उन्होंने भोज में न आने के बहाने बताए।
कंगालों, टुण्डों, अन्धों और लंगड़ों को ले आओ।
कोई भी भोज को न चखेगा।
यदि कोई अपने परिवार और प्राण को अप्रिय न जाने और अपना क्रूस न उठाए और उसके पीछे न आए, और सर्वस्व त्याग न दे तो वह यीशु का चेला नहीं हो सकता।
मनुष्य को कुल व्यय गिनना है।
वह फेंका जाता है।
1 सब चुंगी लेनेवाले और पापी उसके पास आया करते थे ताकि उसकी सुनें। 2 और फरीसी और शास्त्री कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “यह तो पापियों से मिलता है और उनके साथ खाता भी है।” 3 तब उसने उनसे यह दृष्टान्त कहा: 4 “तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक खो जाए तो निन्यानवे को मैदान में छोड़कर, उस खोई हुई को जब तक मिल न जाए खोजता न रहे? (यहे. 34:11-12,16) 5 और जब मिल जाती है, तब वह बड़े आनन्द से उसे काँधे पर उठा लेता है। 6 और घर में आकर मित्रों और पड़ोसियों को इकट्ठे करके कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है।’ 7 मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्यानवे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं।
8 “या कौन ऐसी स्त्री होगी, जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हों, और उनमें से एक खो जाए; तो वह दिया जलाकर और घर झाड़-बुहारकर जब तक मिल न जाए, जी लगाकर खोजती न रहे? 9 और जब मिल जाता है, तो वह अपने सखियों और पड़ोसिनियों को इकट्ठी करके कहती है, कि ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरा खोया हुआ सिक्का मिल गया है।’ 10 मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने आनन्द होता है।”
11 फिर उसने कहा, “किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। 12 उनमें से छोटे ने पिता से कहा ‘हे पिता, सम्पत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए।’ उसने उनको अपनी संपत्ति बाँट दी। 13 और बहुत दिन न बीते थे कि छोटा पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके एक दूर देश को चला गया और वहाँ कुकर्म में अपनी सम्पत्ति उड़ा दी। (नीति. 29:3) 14 जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया। 15 और वह उस देश के निवासियों में से एक के यहाँ गया, उसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने के लिये* भेजा। 16 और वह चाहता था, कि उन फलियों से जिन्हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे; क्योंकि उसे कोई कुछ नहीं देता था। 17 जब वह अपने आपे में आया, तब कहने लगा, ‘मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहाँ भूखा मर रहा हूँ। 18 मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा कि पिता जी मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। (भज. 51:4) 19 अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊँ, मुझे अपने एक मजदूर के समान रख ले।’
20 “तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला: वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा। 21 पुत्र ने उससे कहा, ‘पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है; और अब इस योग्य नहीं रहा, कि तेरा पुत्र कहलाऊँ।’ 22 परन्तु पिता ने अपने दासों से कहा, ‘झट अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहनाओ, और उसके हाथ में अँगूठी, और पाँवों में जूतियाँ पहनाओ, 23 और बड़ा भोज तैयार करो ताकि हम खाएँ और आनन्द मनाए। 24 क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी गया है: खो गया था*, अब मिल गया है।’ और वे आनन्द करने लगे।
25 “परन्तु उसका जेठा पुत्र खेत में था। और जब वह आते हुए घर के निकट पहुँचा, तो उसने गाने-बजाने और नाचने का शब्द सुना। 26 और उसने एक दास को बुलाकर पूछा, ‘यह क्या हो रहा है?’ 27 “उसने उससे कहा, ‘तेरा भाई आया है, और तेरे पिता ने बड़ा भोज तैयार कराया है, क्योंकि उसे भला चंगा पाया है।’ 28 यह सुनकर वह क्रोध से भर गया और भीतर जाना न चाहा: परन्तु उसका पिता बाहर आकर उसे मनाने लगा। 29 उसने पिता को उत्तर दिया, ‘देख; मैं इतने वर्ष से तेरी सेवा कर रहा हूँ, और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, फिर भी तूने मुझे कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया, कि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्द करता। 30 परन्तु जब तेरा यह पुत्र, जिस ने तेरी सम्पत्ति वेश्याओं में उड़ा दी है, आया, तो उसके लिये तूने बड़ा भोज तैयार कराया।’ 31 उसने उससे कहा, ‘पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है*। 32 परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था फिर जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है’।”
“वह पापियों को पास आने देता है”, या “वह पापियों की संगति करता है”
वे यीशु के बारे में कह रहे थे
“भी” शब्द दर्शाता है कि उनके विचार में यीशु का पापियों से संपर्क रखना बहुत बुरा था और उनके साथ भोजन करना तो और भी बुरा था।
उनसे अर्थात धर्म-गुरुओं से
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। यीशु उन्हें स्मरण करवा रहा है कि वे अपनी एक खोई हुई भेड़ को अवश्य खोजेंगे। इसका अनुवाद विधानवाचक वाक्य में किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है। कुछ भाषाओं में इस काल्पनिक परिस्थिति को व्यक्त करने का प्रावधान है। यह किसी मनुष्य की कहानी नहीं कि उसकी भेड़ खो गई है।
इस शिक्षाप्रद कथा का आरंभ होता है, “तुममें” से कौन है, “इसलिए कुछ भाषाओं में द्वितीय पुरूष ही काम में लिया गया है, “यदि तुम्हारे पास सौ भेड़ें हों”।
(यीशु वही शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“जब वह चरवाहा घर पहुंचता है” या “जब तुम घर पहुंचों” (यू.डी.बी.) भेड़ के मालिक को वैसे ही संबोधित करें जैसे आपने पिछले पद में किया है।
यहाँ “मैं” यीशु के लिए है। वह जनसमूह से बातें कर रहा है इसलिए “तुम” शब्द बहुवचन में है।
“इसी प्रकार” या “जैसे वह चरवाहा ओर उसके मित्र एवं पड़ोसी उसके साथ आनन्द करते हैं”।
“स्वर्ग में हर एक प्राणी आनन्द करेगा”
“निन्यानवे मनुष्य जो सोचते हैं कि वे धर्मी हैं और उन्हें मन परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। “यीशु के कहने का अर्थ यह नहीं है कि कोई धर्मी जन है। इसकी अपेक्षा वह अर्थालंकार काम में ले रहा है या जिसे कटाक्ष कहते हैं क्योंकि उसके श्रोता स्वयं को धर्मी समझते थे जबकि वे थे नहीं।
(यीशु धर्म-गुरूओं ही से बातें कर रहा है)
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। यीशु अपने श्रोताओं को स्मरण करवा रहा है कि उनका चांदी का सिक्का खो जाए तो वे किसी भी प्रकार उसे खोज कर ही सांस लेंगे। इस वाक्य का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम जानते हो कि यदि कोई स्त्री अपने दस चांदी के सिक्कों में से एक को खो दे तो वह दीया जलाकर घर को पूर्णरूपेण झाड़कर उस सिक्के को खोज कर निकालेगी”।
यह एक काल्पनिक परिस्थिति है न कि किसी स्त्री की वास्तविक कहानी है। कुछ भाषाओं में इसे ज्यों का त्यों व्यक्त करने का प्रावधान होगा।
“इसी प्रकार” या जैसे लोग उसके साथ आनन्द मनाते हैं”।
इसका अनुवाद होगा, “जब एक पापी पापों से विमुख होता है”
यह एक शिक्षाप्रद कथा का आरंभ है। इसका अपनी भाषा में व्यावहारिक रूप में प्रस्तुतिकरण करें। कुछ भाषाओं में इसका अनुवाद मात्र ऐसा होगा, “एक मनुष्य के .....”
पुत्र चाहता था कि उसका पिता उसका भाग उसी समय उसे दे दे। जिन भाषाओें में आज्ञासूचक वाक्य रचना हो कि किसी काम का तुरन्त किया जाना दर्शाया जाए तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“सम्पत्ति का वह भाग जो तू मरते समय मेरे नाम पर करेगा”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“अपना सामान बांध कर” या “झोले में अपना समान ले कर”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपना सारा पैसा व्यर्थ में गवां दिया”
“वहां भयंकर अकाल पड़ा” (यू.डी.बी.) या “भोजन की कमी हो गई”
अकाल के समय भोजन की कमी हो जाती है। वर्षा की कमी और फसल नष्ट होने के कारण ऐसा होता है।
“आवश्यकता पूर्ति की कमी” या “कमी हो गई”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“वह” अर्थात वह युवक
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसने नौकरी पकड़ी” या “काम करने लगा”
उस देश के एक नागरिक के पास
“सूअरों को खाना देने के लिए”
“बहुत चाहता था कि उन फलियों को खाए
यह फलियों के छिलके थे। अतः इनका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “फलियों के छिलके” या “फलियों का भूसा”
(यीशु अपनी कहानी सुना रहा है)
“इसकी बुद्धि सही हुई” या “अपनी परिस्थिति को समझा” या “उसकी बुद्धि से पर्दा हटा”
यह संबोधन वाक्य है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरे पिता के सब मजदूरों को आवश्यकता से अधिक भोजन मिलता है”
यह अतिशयोक्ति नहीं है। वह युवक वास्तव में भूखा मर रहा था।
“मैंने परमेश्वर के विरोध में पाप किया है” यहूदी परमेश्वर शब्द को जीभ पर लाना नहीं चाहते थे। इसलिए उसके स्थान पर स्वर्ग शब्द का उपयोग करते थे।
“मैं तेरा पुत्र कहलाने योगय नहीं” पुत्र को अपने पिता की धन-सम्पत्ति का उत्तराधिकार पाने का अधिकार था।
“अब इस योग्य नहीं रहा” (यू.डी.बी.) इसका अर्थ है कि पहले तो वह था परन्तु अब नहीं है।
“मुझे कर्मी के समान नौकरी पर रख ले” या “मुझे एक नौकर की नौकरी दे दे”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“उस देश से कूच करके वह अपने पिता के पास चल पड़ा”
“उस पर दया आई” या “उसके दिल में गहरा प्रेम उभरा”
पिता के इस व्यवहार का अर्थ था कि पुत्र समझ ले कि पिता उससे प्रेम करता है और वह अति प्रसन्न है कि पुत्र घर लौट आया है। यदि पाठकों के विचार में पिता द्वारा पुत्र को गले लगाना और चूमना उचित नहीं तो आप अपनी संस्कृति में पुरूष द्वारा पुरूष के प्रति स्नेह प्रदर्शन की विधि का उपयोग करें, या आप इसका अधिक सामान्य अनुवाद कर सकते हैं, “इसका स्नेह पूर्ण स्वागत किया”।
“परमेश्वर के विरूद्ध पाप किया है”
“तेरे सम्मुख” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तूने देखा है कि मैंने पाप किया है” या “तू जानता है”।
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“घर में जो सबसे अच्छा चोगा है” चोगा एक लम्बा वस्त्र होता था जो कपड़ों के ऊपर से पहना जाता था। जिन स्थानों में चोगा अपरिचित्र वस्त्र है, वहां अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सर्वोत्तम वस्त्र”
अंगूठी अधिकार का प्रतीक थी जिसे पुरूष अपनी उंगली में पहनते थे।
वे वास्तव में सैंडल पहनते थे परन्तु सैंडल अपरिचित हो तो जूतियां ही उचित है।
बछड़ा गाय का युवा नर बच्चा होता था। वे एक बछड़े को अच्छा भोजन खिलाकर मोटा करते थे कि जब विशेष भोज का अवसर आए तब उसे वध करें। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सबसे अच्छा बछड़ा” या “जिस बछड़े को हमने विशेष तैयार किया है”।
यहाँ निहितार्थ स्पष्ट किया जा सकता है कि वे उसे पकाएंगे, “मारकर पकाओ”।
यह एक रूपक है। इसका अनुवाद उपमा देकर किया जा सकता है, “जैसे कि मेरा पुत्र मर कर जी उठा, या “मुझको ऐसा लगा कि मेरा पुत्र मर गया परन्तु वह जीवित है”
यह भी एक रूपक है। इसका अनुवाद उपमा देकर किया जा सकता है, “यह ऐसा है जैसे कि मेरा पुत्र खो गया था और अब मिल गया है” या “मुझे ऐसा लगा कि मेरा पुत्र खो गया है परन्तु वह मिल गया है”, या “मेरा पुत्र भटक गया था और अब घर लौट आया है”।
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
जिस शब्द का अनुवाद यहाँ दास किया गया है उसका मूल अर्थ है, “बालक” इसका अर्थ है कि वह सेवक एक युवक था।
“यह क्या हो रहा है”? (यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा कसता है, “सबसे अच्छा बछड़ा” या “बहुत चारा खिलाया हुआ बछड़ा” या “वह बछड़ा जिसे हम मोटा कर रहे थे”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“सदैव तेरा आज्ञापालन किया है” या “तूने जो भी कहा वही किया है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उत्सव मनाऊं”
“यह तेरा पुत्र”, बड़ा पुत्र इस प्रकार रोष प्रकट करता है।
“तेरी सारी सम्पत्ति वैश्याओं पर गवां दी” या “तेरी सारी सम्पत्ति वैश्याओं में लुटा दी”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा कसता है, “सबसे अच्छा बछड़ा” या “बहुत चारा खिलाया हुआ बछड़ा” या “वह बछड़ा जिसे हम मोटा कर रहे थे”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
पिता बड़े पुत्र को स्मरण करवा रहा है कि घर लौट कर आने वाला उसका भाई है।
यह एक रूपक है। वह पुत्र बहुत समय तक घर से बाहर था इसलिए उसकी तुलना मृतक से की गई है ओर उसका घर लौट आना जी उठने के तुल्य है। इसका अनुवाद उपमा देकर किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में है।
यह एक रूपक है। छोटा पुत्र लम्बे समय तक घर से बाहर था इसलिए उसकी तुलना खोए हुए मनुष्य से की गई है और उसका घर लौट आना ऐसा है कि जैसे खोया हुआ पुत्र मिल गया। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यह ऐसा है जैसे वह खो गया था और अब मिल गया है”, (यू.डी.बी.) या “वह खो गया था और अब घर लौट आया है”
वह निन्यानवे भेड़ों को छोड़ कर एक खोई हुई भेड़ को खोज कर लाता है और आनन्द मनाता है।
परमेश्वर के स्वर्गदूतों की उपस्थिति में आनन्द मनाया जाता है।
वह उसे यत्न से खोज कर अपने मित्रों और पड़ोसियों के साथ आनन्द करती हैं।
जो मेरी संपदा होना है वह मुझे अभी दे दे।
उसने निरंकुश जीवन जीने में अपनी सब सम्पत्ति उड़ा दी।
उसने किसी के सुअर संभालने की नौकरी की।
उसने अपने पिता के पास जाकर अपना पाप स्वीकार करके सेवकों के सदृश्य काम करने का निर्णय लिया।
वह भागकर गया और उसे गले लगाकर चूमा।
पिता ने उसे बागा पहनाया, अंगूठी पहनाई, जूते दिए और भोज की व्यवस्था की।
वह क्रोध से भर गया और भोज में नहीं गया।
बड़े पुत्र ने शिकायत की कि उसने पिता की आज्ञा कभी नहीं टाली परन्तु उसके पिता ने उसे बकरी का बच्चा भी नहीं दिया कि मित्रों के साथ आनन्द मनाता।
पिता ने उससे कहा, "पुत्र तू सर्वदा मेरे साथ है और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है"।
क्योंकि छोटा पुत्र खो गया था, अब मिल गया है।
1 फिर उसने चेलों से भी कहा, “किसी धनवान का एक भण्डारी था, और लोगों ने उसके सामने भण्डारी पर यह दोष लगाया कि यह तेरी सब सम्पत्ति उड़ाए देता है। 2 अतः धनवान ने उसे बुलाकर कहा, ‘यह क्या है जो मैं तेरे विषय में सुन रहा हूँ? अपने भण्डारीपन का लेखा दे; क्योंकि तू आगे को भण्डारी नहीं रह सकता।’ 3 तब भण्डारी सोचने लगा, ‘अब मैं क्या करूँ? क्योंकि मेरा स्वामी अब भण्डारी का काम मुझसे छीन रहा है: मिट्टी तो मुझसे खोदी नहीं जाती; और भीख माँगने से मुझे लज्जा आती है। 4 मैं समझ गया, कि क्या करूँगा: ताकि जब मैं भण्डारी के काम से छुड़ाया जाऊँ तो लोग मुझे अपने घरों में ले लें।’ 5 और उसने अपने स्वामी के देनदारों में से एक-एक को बुलाकर पहले से पूछा, कि तुझ पर मेरे स्वामी का कितना कर्ज है? 6 उसने कहा, ‘सौ मन जैतून का तेल,’ तब उसने उससे कहा, कि अपनी खाता-बही ले और बैठकर तुरन्त पचास लिख दे। 7 फिर दूसरे से पूछा, ‘तुझ पर कितना कर्ज है?’ उसने कहा, ‘सौ मन गेहूँ,’ तब उसने उससे कहा, ‘अपनी खाता-बही लेकर अस्सी लिख दे।’
8 “स्वामी ने उस अधर्मी भण्डारी को सराहा, कि उसने चतुराई से काम किया है; क्योंकि इस संसार के लोग अपने समय के लोगों के साथ रीति-व्यवहारों में ज्योति के लोगों* से अधिक चतुर हैं। 9 और मैं तुम से कहता हूँ, कि अधर्म के धन से अपने लिये मित्र बना लो; ताकि जब वह जाता रहे, तो वे तुम्हें अनन्त निवासों में ले लें। 10 जो थोड़े से थोड़े में विश्वासयोग्य है, वह बहुत में भी विश्वासयोग्य है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है। 11 इसलिए जब तुम सांसारिक धन में विश्वासयोग्य न ठहरे, तो सच्चा धन तुम्हें कौन सौंपेगा? 12 और यदि तुम पराये धन में विश्वासयोग्य न ठहरे, तो जो तुम्हारा है, उसे तुम्हें कौन देगा?
13 “कोई दास दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता क्योंकि वह तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा; या एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा: तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।”
14 फरीसी जो लोभी थे, ये सब बातें सुनकर उसका उपहास करने लगे। 15 उसने उनसे कहा, “तुम तो मनुष्यों के सामने अपने आप को धर्मी ठहराते हो, परन्तु परमेश्वर तुम्हारे मन को जानता है, क्योंकि जो वस्तु मनुष्यों की दृष्टि में महान है, वह परमेश्वर के निकट घृणित है।
16 “जब तक यूहन्ना आया, तब तक व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता प्रभाव में थे। उस समय से परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया जा रहा है, और हर कोई उसमें प्रबलता से प्रवेश करता है। 17 आकाश और पृथ्वी का टल जाना व्यवस्था के एक बिन्दु के मिट जाने से सहज है।
18 “जो कोई अपनी पत्नी को त्याग कर दूसरी से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है, और जो कोई ऐसी त्यागी हुई स्त्री से विवाह करता है, वह भी व्यभिचार करता है।
19 “एक धनवान मनुष्य था जो बैंगनी कपड़े और मलमल पहनता और प्रति-दिन सुख-विलास और धूम-धाम के साथ रहता था। 20 और लाज़र* नाम का एक कंगाल घावों से भरा हुआ उसकी डेवढ़ी पर छोड़ दिया जाता था। 21 और वह चाहता था, कि धनवान की मेज पर की जूठन से अपना पेट भरे; वरन् कुत्ते भी आकर उसके घावों को चाटते थे। 22 और ऐसा हुआ कि वह कंगाल मर गया, और स्वर्गदूतों ने उसे लेकर अब्राहम की गोद में पहुँचाया। और वह धनवान भी मरा; और गाड़ा गया, 23 और अधोलोक* में उसने पीड़ा में पड़े हुए अपनी आँखें उठाई, और दूर से अब्राहम की गोद में लाज़र को देखा। 24 और उसने पुकारकर कहा, ‘हे पिता अब्राहम, मुझ पर दया करके लाज़र को भेज दे, ताकि वह अपनी उँगली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ।’ 25 परन्तु अब्राहम ने कहा, ‘हे पुत्र स्मरण कर, कि तू अपने जीवनकाल में अच्छी वस्तुएँ पा चुका है, और वैसे ही लाज़र बुरी वस्तुएँ परन्तु अब वह यहाँ शान्ति पा रहा है, और तू तड़प रहा है। 26 ‘और इन सब बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक बड़ी खाई ठहराई गई है कि जो यहाँ से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सके, और न कोई वहाँ से इस पार हमारे पास आ सके।’ 27 उसने कहा, ‘तो हे पिता, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज, 28 क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं; वह उनके सामने इन बातों की चेतावनी दे, ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आएँ।’ 29 अब्राहम ने उससे कहा, ‘उनके पास तो मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें हैं, वे उनकी सुनें।’ 30 उसने कहा, ‘नहीं, हे पिता अब्राहम; पर यदि कोई मरे हुओं में से उनके पास जाए, तो वे मन फिराएँगे।’ 31 उसने उससे कहा, ‘जब वे मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की नहीं सुनते, तो यदि मरे हुओं में से कोई भी जी उठे तो भी उसकी नहीं मानेंगे’।”
(यीशु श्रोताओं से ही बातें कर रहा है)
पिछला भाग फरीसियों और विधि-शास्त्रियों के लिए था जबकि यीशु के शिष्य भी श्रोताओं में थे।
“लोगों ने उस धनवान मनुष्य से शिकायत की”
“तेरी सम्पत्ति को गवां रहा है” या “उस धनवान की सम्पत्ति को मूर्खता से व्यर्थ कर रहा है”
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। उस धनवान के कहने का अर्थ था, “मैंने तेरे कामों के बारे में सुना है
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “अपना दायित्व दूसरे को सौंपने के लिए बही खाता तैयार कर ले” या “किसी और को लेखा देने के लिए तैयार हो जा” या “मेरी सम्पत्ति का लेखा बही तैयार कर”।
(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
वह प्रबन्धक अपने आप से कह रहा है, अपने विकल्पों पर विचार करने के लिए।
वह धनवान मनुष्य इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “मेरा नियोजक” यह प्रबन्धक इसका दास नहीं था।
“मुझमें गड्डा खोदने की तो शक्ति नहीं है”, या “मैं मजदूरी करने योग्य नहीं”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “जब मेरा प्रबन्धन कार्य चला जाए”
(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“उसके स्वामी के जो ऋणी थे” या “जिन लोगों ने उसके स्वामी से समान उधार लिया था” यहाँ देनदार वे हैं जिन्होंने उसके स्वामी से तेल और अन्न उधार लिया था।
“प्रबन्धक ने बुलाया” और “प्रबन्धक ने पूछा”
“लगभग 340 लीटर जैतून का तेल”
“ऋणी ने कहा .... प्रबन्धक ने ऋणी से कहा”
“लगभग 22,000 सूखा लीटर गेहूँ”
प्रबन्धक ने पूछा... ऋणी ने कहा.... प्रबन्धक ने कहा
(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
जिन ऋणियों के ऋण कम कर दिए गए थे, उन्होंने सोचा कि यह साहूकार का प्रबन्ध है अतः वे उस धनवान मनुष्य की प्रशंसा करते थे।
“प्रशंसा की” या “इसके लिए अच्छी बातें की” या “अनुमोदन किया”
“उसने समझदारी से काम किया” या “उसने बुद्धिमानी का काम किया”
अर्थात परमेश्वर को न समझने और जानने वाले लोग जो उस धर्मी प्रबन्धक के जैसे हैं। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इस संसार के लोग” या “सांसारिक जन”
अर्थात धर्मी जन जो कुछ नहीं छिपाते। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ज्योति की सन्तान” या “ज्योति में निर्वाह करने वाले मनुष्य”
“मैं” यीशु के लिए है। यीशु की कहानी समाप्त हो गई है। “मैं तुम से कहता हूँ” इस उक्ति द्वारा उसकी बात में परिवर्तन आता है। वह श्रोआतों को समझा रहा है कि इस कहानी की शिक्षा को अपने जीवन में कैसे प्रासंगिक बनाएं।
भौतिक सम्पदा से अर्थात वस्त्र, भोजन, पैसा, बहुमूल्य समान से
इसका संदर्भ स्वर्ग से है जहाँ परमेश्वर रहता है।
(यीशु जनसमूह को शिक्षा दे रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जिससे कि” या “अतः इस सिद्धान्त के अनुसार”।
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “सच्ची सम्पदा के लिए तुम पर कोई विश्वास नहीं करेगा” या “प्रबन्धन हेतु सच्ची सम्पदा तुम्हें कोई नहीं देगा”
यह भी एक अलंकारिक प्रश्न है। “तुम्हारे अपने लिए तुम्हें सम्पदा कोई नहीं देगा”
(यीशु जनसमूह को ही शिक्षा दे रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “एक सेवक.... नहीं कर सकता है”
“समर्पित होगा” “स्वामी-भक्ति दिखाएगा”।
“घृणा करेगा” या “मान में कम समझेगा” या “गिरा हुआ समझेगा”।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है, इसलिए “तुम” शब्द बहुवचन में रखें।
“दासता”
वह सेवक घृणा करेगा”
“वे धन के लालची थे” या “उन्हें धन सम्पदा को एकत्र करना आता था” या “धन लोभियों”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “फरीसियों ने यीशु का उपहास किया”
“यीशु ने फरीसियों से कहा”
“तुम मनुष्यों की दृष्टि में अच्छे बनते हो”
“परमेश्वर तुम्हारी लालसाओं को जानता है” या “परमेश्वर तुम्हारे मनोरथ जानता है”
“मनुष्य की समझ में जो महत्त्वपूर्ण है”
इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर घृणा करता है” या “परमेश्वर के लिए घृणित वस्तु है”।
(यीशु फरीसियों को उपदेश दे रहा है)
परमेश्वर का संपूर्ण लिखित वचन
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यूहन्ना के आगमन और प्रचार करने तक”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “हम मनुष्यों को परमेश्वर के राज्य का शुभ सन्देश सुना रहे थे”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अनेक मनुष्य उसमें प्रवेश करने का यथासंभव प्रयास कर रहे थे”, ये उन मनुष्यों के बारे में है जो यीशु की शिक्षाओं को सुनकर उनका पालन करते थे।
“तुम जानते हो कि आकाश और पृथ्वी नहीं टल सकते, अतः निश्चित जान लो”
“व्यवस्था का छोटे से छोटा अंश भी” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मूसा के विधान की सबसे छोटी बात”
“विधान से हटना”
क्योंकि यह एक नियम का उदाहरण है जो बदला नहीं है, इस पाठ का आरंभ इस प्रकार किया जा सकता है, “उदाहरणार्थ”
“जो पुरूष अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद करके” या “अपनी पत्नी को तलाक देकर” या “यदि पुरूष अपनी पत्नी को तलाक देकर”
वह व्यभिचार का दोषी है”
“ऐसी स्त्री से विवाह करनेवाला पुरूष” या “यदि कोई पुरूष ऐसी स्त्री से विवाह करे”
(यीशु का चर्चा विषय चल रहा है)
यहाँ स्पष्ट नहीं है कि वास्तव में ऐसा कोई पुरूष था या यीशु ने काल्पनिक कथा सुनाई थी कि उसकी बात समझ में आए।
“वह बैंजनी रंग में रंगा हुआ उत्तम कोटी का मलमल पहनता था” या “वह बहुत कीमती वस्त्र पहनता था” बैंजनी रंग में रंगा हुआ मलमल बहुत मंहगा होता था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसका दैनिक भोजन उत्सव स्वरूप होता था” या “प्रतिदिन मंहगे भोजन का आनन्द होता था” या “अपनी लालसा पूर्ति के लिए बहुत पैसा खर्च करता था”।
“लोग लाजर नामक एक कंगाल को उसे फाटक पर छोड़ जाते थे”
“भीख मांग कर भोजन खाने वाला गरीब मनुष्य”।
“उस धनवान के द्वार पर” या “उस धनवान के घर के फाटक पर”
“उसके पूरे शरीर पर घाव थे”
“खाना चाहता था” या “की लालसा करता था”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “धनवान जब खाना खाता था तब जो चूरचार उसकी मेज से नीचे गिरता था” या “उस धनवान की मेज से जो बचा हुआ भोजन फेंका जाता था”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “इसके अतिरिक्त” या “यह भी कि”, इससे प्रकट होता है कि लाजर के लिए जो कहा गया है उससे भी बुरी दशा उसकी अब आगे है।
कुत्तों को अशुद्ध माना जाता था। लाजर इतना दुर्बल एवं लाचार था कि वह कुत्तों को भगा भी नहीं पाता था।
(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“स्वर्गदूत उसे ले गए और अब्राहम की गोद में डाल दिया”
स्पष्ट है कि अब्राहम और लाजर भोज में एक दूसरे के संपर्क में थे और लाजर का सिर अब्राहम की छाती पर था। यह अतिथियों के भोज की यूनानी विधि थी। इस वाक्यांश का अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “अब्राहम के पास में” या “अब्राहम के ऊपर झुका हुआ” या “अब्राहम के साथ बैठा हुआ”
“जब उसे अविराम पीड़ा हो रही थी” या “घोर पीड़ा में”
यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, “ऊपर देखा”
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “और लाजर को अब्राहम की छाती पर लेटे देखा”, या “और लाजर को उसके निकट बैठे देखा” या “ लाजर को उसके साथ देखा
(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“उस धनवान मनुष्य ने पुकारा” या “उसने अब्राहम से चिल्ला कर कहा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कृपया मुझ पर तरस खा” या “कृपया मुझ पर दया कर”
“लाजर को भेज कर” या “कृपया लाजर को मेरे पास भेज दे” या “लाजर से कह कि वह मेरे पास आए”
इससे प्रकट होता है कि पानी की मात्रा कितनी कम थी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह अपनी उंगली पानी में स्पर्श करके”।
"मैं इस आग में असहनीय पीड़ा भोग रहा हूँ" या "मैं इस आग में भयानक कष्ट उठा रहा हूँ"
(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
वह धनवान मनुष्य भी अब्राहम वंशज था।
“सर्वोत्तम वस्तुएं” या “मनभावन वस्तुएं”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “लाजर को सब कुछ बुरा ही मिला” या “उसे वही मिला जिससे उसे कष्ट हुआ”।
“घोर पीड़ा”
“इस सत्य के अतिरिक्त”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर ने तुम्हारे और हमारे मध्य बहुत गहरी खाई रखी है” (यू.डी.बी.)
“गहरी और चौड़ी खाई” या “बहुत बड़ा विभाजन” या “विशाल खाई”।
“जो इस खाई को पार करना चाहे” या “यदि कोई पार आना जाना चाहे”
(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “लाजर से कह कि वह मेरे पिता के परिवार में जाकर” या “कृपया उसे मेरे पिता के परिवार में भेज”
“मेरे परिवार में”, यह ईमारत नहीं है। वह धनवान व्यक्ति चाहता था कि लाजर जाकर उसके परिजनों को चेतावनी दे यद्यपि वे एक ही आवास में नहीं रहते थे।
“लाजर से कह कि उन्हें चेतावनी दे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कि वे भी यहाँ न आएं” (यू.डी.बी.) या “यदि उन्हें चेतावनी न दी गई तो वे भी यही आयेंगे”। यहाँ अभिप्रेत अर्थ है, कि यहाँ आने से बचने के लिए उन्हें पापों से विमुख होना है। इस अभिप्रेत अर्थ को स्पष्ट व्यक्त किया जा सकता है, “कि वे पापों से विमुख हो जाएं और यहाँ न आएं।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यह स्थान जहाँ हमें पीड़ा होती है” या “यह स्थान जहाँ कष्ट असहनीय है” या “इस स्थान में जहाँ हमें पीड़ित किया जाता है”।
“तेरे भाइयों के पास मूसा और भविष्यद्वक्ताओं के लेख है” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्होंने मूसा और भविष्यद्वक्ताओं के लेखों को सुना है”।
“तेरे भाई मूसा और भविष्यद्वक्ताओं पर मनन करें”।
इसका अनुवाद हो सकता है,"यदि कोई मरे हुओं में से उन के पास जाए" या "यदि मरे हुओं में से उन्हें चेतावनी दे."
"यदि वे मूसा और भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखी बातों पर ध्यान न दे"
“ तौभी उसकी नहीं मानेंगे, वे विश्वास नहीं करेंगे”
उस धनवान मनुष्य से सुना कि उसका भण्डारी उसका धन उड़ा रहा है।
उस भण्डारी ने धनवान मनुष्य के देनदारों को एक-एक करके बुलवाया और उनका ऋण घटा दिया।
उस धनवान मनुष्य ने अपने प्रबन्धक की प्रशंसा की क्योंकि उसने चतुराई से काम किया था।
यीशु ने कहा, "अधर्मं के धन से अपने लिये मित्र बना लो; ताकि जब वह जाता रहे, तो वे तुम्हें अनन्त निवासों में ले लें।
वह व्यक्ति अधिक में भी विश्वासयोग्य रहेगा।
हमें परमेश्वर और धन में चुनाव करना है।
व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता यूहन्ना तक रहे।
परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार अब सुनाया जा रहा है।
यह मनुष्य व्यभिचारी है।
वह अब्राहम की गोद में शान्ति से था।
अधोलोग में कष्ट भोगने गया।
उसने कहा, "मुझ पर दया करके लाजर को भेज दे, ताकि वह अपनी उंगली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूं"।
अब्राहम ने कहा, "हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गड़हा ठहराया गया है"।
उसने कहा, "मैं तुम से विनती करता हूँ कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज, इन बातों की गवाही दे"।
अब्राहम ने कहा, "उनके पास मूसा और भविष्यद्वक्ता हैं वे उनकी सुनें।
यदि कोई मर कर भी जी उठे तौभी वे विश्वास नहीं करेंगे।
1 फिर उसने अपने चेलों से कहा, “यह निश्चित है कि वे बातें जो पाप का कारण है, आएँगे परन्तु हाय, उस मनुष्य पर जिसके कारण वे आती है! 2 जो इन छोटों में से किसी एक को ठोकर खिलाता है, उसके लिये यह भला होता कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह समुद्र में डाल दिया जाता। 3 सचेत रहो; यदि तेरा भाई अपराध करे तो उसे डाँट, और यदि पछताए तो उसे क्षमा कर। 4 यदि दिन भर में वह सात बार तेरा अपराध करे और सातों बार तेरे पास फिर आकर कहे, कि मैं पछताता हूँ, तो उसे क्षमा कर।”
5 तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ा।” 6 प्रभु ने कहा, “यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता।
7 “पर तुम में से ऐसा कौन है, जिसका दास हल जोतता, या भेड़ें चराता हो, और जब वह खेत से आए, तो उससे कहे, ‘तुरन्त आकर भोजन करने बैठ’? 8 क्या वह उनसे न कहेगा, कि मेरा खाना तैयार कर: और जब तक मैं खाऊँ-पीऊँ तब तक कमर बाँधकर मेरी सेवा कर; इसके बाद तू भी खा पी लेना? 9 क्या वह उस दास का एहसान मानेगा, कि उसने वे ही काम किए जिसकी आज्ञा दी गई थी? 10 इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुके हो जिसकी आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है’।”
11 और ऐसा हुआ कि वह यरूशलेम को जाते हुए सामरिया और गलील प्रदेश की सीमा से होकर जा रहा था। 12 और किसी गाँव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले। (लैव्य. 13:46) 13 और उन्होंने दूर खड़े होकर, ऊँचे शब्द से कहा, “हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर!” 14 उसने उन्हें देखकर कहा, “जाओ; और अपने आपको याजकों को दिखाओ*।” और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए। (लैव्य. 14:2-3) 15 तब उनमें से एक यह देखकर कि मैं चंगा हो गया हूँ, ऊँचे शब्द से परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ लौटा; 16 और यीशु के पाँवों पर मुँह के बल गिरकर उसका धन्यवाद करने लगा; और वह सामरी* था। 17 इस पर यीशु ने कहा, “क्या दसों शुद्ध न हुए, तो फिर वे नौ कहाँ हैं? 18 क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्वर की बड़ाई करता?” 19 तब उसने उससे कहा, “उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।”
20 जब फरीसियों ने उससे पूछा, कि परमेश्वर का राज्य कब आएगा? तो उसने उनको उत्तर दिया, “परमेश्वर का राज्य प्रगट रूप में नहीं आता। 21 और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहाँ है, या वहाँ है। क्योंकि, परमेश्वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।” 22 और उसने चेलों से कहा, “वे दिन आएँगे, जिनमें तुम मनुष्य के पुत्र के दिनों में से एक दिन को देखना चाहोगे, और नहीं देखने पाओगे। 23 लोग तुम से कहेंगे, ‘देखो, वहाँ है!’ या ‘देखो यहाँ है!’ परन्तु तुम चले न जाना और न उनके पीछे हो लेना। 24 क्योंकि जैसे बिजली आकाश की एक छोर से कौंधकर आकाश की दूसरी छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। 25 परन्तु पहले अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ। 26 जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा। (इब्रा. 4:7, मत्ती 24:37-39, उत्प. 6:5-12) 27 जिस दिन तक नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी; तब जल-प्रलय ने आकर उन सब को नाश किया। 28 और जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे; 29 परन्तु जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और सब को नाश कर दिया। (2 पत. 2:6, यहू. 1:7, उत्प. 19:24) 30 मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा।
31 “उस दिन जो छत पर हो; और उसका सामान घर में हो, वह उसे लेने को न उतरे, और वैसे ही जो खेत में हो वह पीछे न लौटे। 32 लूत की पत्नी को स्मरण रखो! (उत्प. 19:26, उत्प. 19:17) 33 जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, और जो कोई उसे खोए वह उसे बचाएगा। 34 मैं तुम से कहता हूँ, उस रात दो मनुष्य एक खाट पर होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। 35 दो स्त्रियाँ एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। 36 [दो जन खेत में होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ा जाएगा।]” 37 यह सुन उन्होंने उससे पूछा, “हे प्रभु यह कहाँ होगा?” उसने उनसे कहा, “जहाँ लाश हैं, वहाँ गिद्ध इकट्ठे होंगे।” (अय्यू. 39:30)
इसका अनुवाद हो सकता है, “मनुष्य को पाप में ललचाने, बातें तो निश्चय ही होंगी” (यू.डी.बी.) या “परीक्षाओं को रोकना असंभव है” या पाप के प्रलोभनों को रोकना असंभव है”।
“उस पर जिसके द्वारा परीक्षाएं आती हैं” या “उस हर एक मनुष्य पर जिसके द्वारा परीक्षाएं आती हैं।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “उसके गले में चक्की का पाट बान्धकर उसे समुद्र में डाल दिया जाता
यह बहुत बड़ा चक्राकार पत्थर होता था जिससे गेहूँ पीसा जाता था। इसका अनुवाद हो सकता है, “बहुत भारी पत्थर”
इसका अनुवाद हो सकता है, “छोटे बच्चों में से” या “इन छोटे विश्वास के मनुष्यों में से”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “पाप करवाता है”
सामान्यतः “तेरा विश्वासी” तथा “वास्तविक भाई” जो तेरे माता-पिता की सन्तान है।
“उसे कठोर चेतावनी दे” या “दृढ़ता से उससे कह कि उसने अनुचित काम किया है” या “उसे सुधार”
यह एक परिस्थिति आधारित वाक्य है जो संभवतः किसी भावी घटना की चर्चा करता है
यह एक काल्पनिक भावी परिस्थिति है। ऐसा हो नहीं सकता परन्तु यदि हो तो यीशु कहता है क्षमा करो।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “दिन में अनेक बार”, बाइबल में संख्या 7 पूर्णता का प्रतीक है।
“कृपया हमारे विश्वास में बडोतरी कर” या कृपया हमारे विश्वास में अधिक विश्वास उत्पन्न कर”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर थोड़ा सा हो” या “तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर हो परन्तु है नहीं”। वाक्य की रचना का सलंग्न अर्थ व्यक्त करती है कि उनका विश्वास वास्तव में राई के दाने के बाराबर भी नहीं था।
इसका अनुवाद हो सकता है, यहाँ से उखड़ जा और समुद्र में उग जा” या “भूमि से जड़ें उखाड़ कर समुद्र में जड़ पकड़ ले”
“वह वृक्ष तुम्हारी आज्ञा मानता” परिणाम शर्त आधारित है। ऐसा तब ही होगा जब उनमें विश्वास होगा।
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“तुम में ऐसा कोई है” या “परन्तु तुममें से कौन”, यह आलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। इसका अनुवाद विधानवाचक वाक्य में किया जा सकता है, “यदि तुम में से किसी का” या “मान लो कि तुममें से किसी का” इसके उदाहरण हेतु यू.डी.बी. देखें।
यीशु जनसमूह से पूछ रहा था कि यदि ऐसी परिस्थिति आ जाए तो उनमें से कोई क्या करेगा। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परन्तु तुममें ऐसा कौन है जिसका सेवक”
“तुम्हारे खेत जोतने वाला या भेड़ों को चराने वाला सेवक”
हल जोतने का अर्थ है खेत की मिट्टी को हल की सहायता से पलटना कि बीज डालने के लिए तैयार हो।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद हो सकता है, “इसकी अपेक्षा तुम उससे कहोगे”
“कमर कस कर मुझे भोजन परोस” या “उचित वस्त्र पहन कर मेरी सेवा कर” वे अपने वस्त्र को उठाकर कमर पर बान्ध लेते थे कि काम करते समय वस्त्र बाधा उत्पन्न न करें।
“मेरी सेवा करने के बाद”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
पिछले दो पदों के अनुवाद के आधार पर इसका अनुवाद भी इस प्रकार होगा, “वह धन्यवाद नहीं कहेगा” या “तुम धन्यवाद नहीं कहोगे”।
“जो आज्ञा तुमने दी थी”
इसका अनुवाद हो सकता है, “ठीक”? या “क्या यह सच नहीं । इस आलंकारिक प्रश्न के द्वारा यीशु अपने शिष्यों को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करता है कि उसने जो कहा वह स्पष्टतः सच है।
यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा है इसलिए जिन भाषाओं में “तुम” शब्द बहुवचन में है, उसका उपयोग किया जाए।
“परमेश्वर से कहो”
इसका अनुवाद हो सकता है, “हम साधारण दास हैं” हम सेवक तेरी प्रशंसा के योग्य नहीं हैं”।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“जब वे यरूशलेम के मार्ग पर जा रहे थे
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “इसका साक्षात्कार दस पुरूषों से हुआ जो कोढ़ी थे” या “दस कोढ़ के रोगी उसे मिले”
“उन्होंने पुकार कर कहा” या “वे चिल्लाए”
यहाँ "स्वामी" का मूल भाषा यूनानी शब्द सामान्यतः दासों के स्वामी के लिए काम में लिया जाने वाला सामान्य शब्द नहीं है यह शब्द अधिकार संपन्न मनुष्य के लिए काम में लिया जाता था न कि किसी दास के स्वामी के लिए। इसका अनुवाद “प्रधान जी” या “श्रीमान जी” किया जा सकता है या ऐसा शब्द काम में लिया जा सकता है जिसका अभिप्राय एक अधिकार सम्पन्न मनुष्य से हो जैसे "महोदय"।
इसका अनुवाद हो सकता है, “कृपया रोग-मुक्त करने की दया हम पर कर”।
यहाँ निहितार्थ को स्पष्ट किया जा सकता है, “कि वे तुम्हारा परीक्षण करें”
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण बात का होना प्रकट होता है। इसका अनुवाद हो सकता है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसे यहाँ काम में लें।
यही वह महत्त्वपूर्ण बात है जिसको प्रकट करने के लिए “और ऐसा हुआ कि” कहा गया है, इसका अनुवाद हो सकता है, “वे कोढ़ से रोगमुक्त होकर शुद्ध हो गए” या “वे कोढ़ से रोगमुक्त हो गए”
“रोग मुक्ति देखकर” या “उसे यीशु द्वारा रोगमुक्ति की अनुभूति हुई”
“वह फिर से यीशु के पास आया”
“पुकार-पुकार कर परमेश्वर की स्तुति की”
“वह यीशु के चरणों में नतमस्तक होकर” उसने यीशु को सम्मान में ऐसा किया था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यीशु ने जनसमूह से कहा” यीशु ने .... उसके प्रतिक्रिया दिखाते हुए जनसमूह से कहा।
यह तीन आलंकारिक प्रश्नों में से कहता है। यीशु ने इन प्रश्नों द्वारा जनसमूह में विस्मय और निराशा प्रकट की कि दस में से एक ही परमेश्वर की स्तुति करने लौटा। इसका अनुवाद हो सकता है, “दस कोढ़ी रोग-मुक्त किए गए थे” या “परमेश्वर ने दस को रोगमुक्त किया है”
इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद किया जा सकता है, “अन्य नौ को भी तो आना था” या “अन्य नौ क्यों नहीं लौटे”?
इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इस विजातीय पुरूष की अपेक्षा परमेश्वर की स्तुति के लिए अन्य कोई नहीं है? या “दस पुरूष रोगमुक्त किए गए परन्तु केवल यह परदेशी परमेश्वर की स्तुति करने लौटा है” या “क्या यह सब हो सकता है कि इस परदेशी पुरूष के अतिरिक्त परमेश्वर की स्तुति के लिए अन्य कोई नहीं लौटा”?
सामरियों के पूर्वज गैरयहूदी थे और उनकी परमेश्वर की आराधना विधि यहूदियों से भिन्न थी।
“तेरे विश्वास के कारण तेरा रोग दूर हुआ है” यहाँ विश्वास को क्रिया रूप में अनुवाद किया जा सकता है, “क्योंकि तू विश्वास करता है इसलिए तू रोग-मुक्त हो गया है”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है “फरीसियों ने यीशु से पूछा” यहाँ कहानी का नया वृत्तान्त आरंभ होता है। कुछ अनुवादक इसका आरंभ इस प्रकर करते हैं, “एक दिन” (यू.डी.बी.) या “एक बार”
इसे उद्धरण चित्रों में रखा जा सकता है, “परमेश्वर का राज्य कब आएगा”?
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि तुम परमेश्वर के राज्य को प्रत्यक्ष रूप में देखना चाहते हो, परन्तु तुम देखोगे नहीं”। वे देखते नहीं थे कि यीशु राजा रूप में उनके मध्य उपस्थित है, क्योंकि वे एक सांसारिक राज्य की प्रतीक्षा में थे।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर का राज्य तो आ गया है” या “परमेश्वर ने तो तुम्हारे मध्य राज करना आरंभ कर दिया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “एक समय ऐसा आयेगा” या “एक दिन
“तुम देखने की लालसा करोगे” या “तुममें उसका अनुभव करने की मनोकामना होगी”। उसके शिष्य तो चाहते थे कि वह राज करे। परन्तु सताव का समय आएगा और वे यही चाहेंगे कि यीशु राज कर रहा हो।”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य के पुत्र के राज के समय एक दिन”
“उनका अनुसरण नहीं करना”
यह एक उपमा है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जैसे बिजली चमकती है तो सबको दिखाई देती है और” या “जिस प्रकार बिजली आकस्मात ही चमकती है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है “मनुष्य का पुत्र जब राज करने आएगा उस दिन भी ऐसा ही होगा”।
(यीशु अपने चेलों से ही बातें कर रहा है)
“परन्तु मनुष्य के पुत्र को पहले पीड़ित होना आवश्यक है” यीशु स्वयं को तृतीय पुरूष में संबोधित कर रहा है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “नूह के दिनों में मनुष्य का जैसा जीवन था” या “नूह के जीवनकाल में जैसा लोग करते थे”। “नूह के दिनों में” अर्थात उस समय से पूर्व जब परमेश्वर ने संसार को दण्ड दिया था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य के पुत्र के समय भी लोग ऐसा ही जीवन जी रहे होंगे”। या “जब मनुष्य के पुत्र को पुन आगमन का समय होगा तब मनुष्यों का जीवन आचरण वैसा ही होगा”। “मनुष्य के पुत्र के दिनों में जब मनुष्य का पुत्र आनेवाला होगा।
वे सामान्य जीवन जी रहे थे और परमेश्वर के आने वाले दण्ड की उन्हें चिन्ता नहीं थी।
“बड़ी नाव”
(यीशु बातें कर रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “एक और उदाहरण है, लूत के युग में जैसा था” या “लूत के जीवनकाल में लोगों पर जो व्यवहार था”। “लूत के दिनों में अर्थात सदोम और अमोरा नगरों पर परमेश्वर के दण्ड से पूर्व।
“सदोम के लोग खाते-पीते थे”
“आकाश से आग और गन्धक ऐसे गिरे जैसे बरसात”।
(यीशु बातें कर रहा है)
अर्थात “ठीक ऐसा ही तब भी होगा” लूत के युग के लोग क्या करते थे स्पष्ट व्यक्त किया जाए जैसा यू.डी.बी. में है, “मनुष्य तैयार नहीं रहेगा”
“जब मनुष्य का पुत्र प्रकट होगा” या “जब मनुष्य का पुत्र आएगा”
“जो घर की छत पर हो वह नीचे न आए” या “यदि कोई अपने घर की छत पर हो तो वह उतर कर नीचे न आए।
उनके घरों की छतें समतल होती थी। मनुष्य वहां बैठ सकते थे।
“उसकी सम्पदा” या “उसकी वस्तुऍ”
यहाँ अभिप्रेत अर्थ है कि वे घर लौटने की अपेक्षा जान बचाकर भागें, यू.डी.बी. में स्पष्ट व्यक्त किया गया है।
यह एक चेतावनी है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “लूत की पत्नी जैसा मत करना”। उसने मुड़कर सदोम को देखा और सदोम की जनता के साथ दण्ड पाया”।
“अपना जीवन सुरक्षित रखने की खोज करने वाले, अपने प्राण खो देंगे” या “जो अपनी पुरानी जीवनशैली को सुरक्षित रखना चाहेगा उसका प्राण जाएगा”
“मनुष्य को अपना प्राण खाएँगे वे सुरक्षित रहेंगे”। या “जो अपनी पुरानी जीवनशैली का त्याग कर देगा वह जीवित रहेगा”।
(यीशु अपने चेलों से ही बातें कर रहा है)
अर्थात, जिस रात मनुष्य का पुत्र आयेगा उस समय क्या होगा।
यह एक काल्पनिक परिस्थिति है कि उस समय दो मनुष्य क्या कर रहे होंगे। इसका अनुवाद हो सकता है, “दो मनुष्य एक दीवान पर होंगे”।
“दीवान” या “पलंग”
इसका अनुवाद कर्तवाच्य क्रियावाच्य क्रिया में किया जा सकता है, “परमेश्वर एक व्यक्ति को उठा लेगा और दूसरे को यही छोड़ देगा” या “स्वर्गदूत एक व्यक्ति को उठा लेंगे परन्तु दूसरे को छोड़ देंगे”।
यह एक काल्पनिक दृश्य है कि दो स्त्रियाँ क्या कर रही होंगी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “दो स्त्रियाँ एक साथ गेहूँ पीस रही होंगी”। कुछ संस्करणों में इस प्रकार अनुवाद किया गया है, “खेत में दो मनुष्य होंगे, एक उठा लिया जाएगा और दूसरा रह जाएगा”। यह वाक्य लूका रचित सुसमाचार के सर्वोत्तम अभिलेखों में नहीं है।
“हे प्रभु, ऐसा कहाँ होगा”? (यू.डी.बी.)
यह स्पष्टतः एक लोकोक्ति है जिसका अर्थ है, “यह स्पष्ट होगा”, या “जब ऐसा होगा तब तुम जान लोगे”। “यह अनुवाद उपमा देकर भी किया जा सकता है”, गिद्धों के आने से स्पष्ट है कि वहां शव है, इसी प्रकार इन बातों से प्रकट होगा कि मनुष्य का पुत्र प्रकट होने वाला है”।
गिद्ध बड़े पक्षी हैं जो मृतक पशुओं का मांस खाते हैं। आप पक्षियों को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं या आपके यहाँ ऐसे पक्षियों का नाम लिख सकते हैं।
हमें उसे क्षमा करना है।
हमें कहना है, "हम निकम्मे दास हैं, जो हमें करना चाहिए था, हमने केवल वहीं किया है"।
दस कोढ़ी उसके पास आए।
उन्होंने कहा, "हे स्वामी हम पर दया कर"।
यीशु ने उनसे कहा कि वे जाकर याजक को दिखाएं।
वे शुद्ध किए गए।
परन्तु लौटकर एक ही आया।
वह एक सामरी था।
परमेश्वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।
जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंधकर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी प्रकट होगा।
अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए और वह पीढ़ी उसे तुच्छ ठहराए।
लोग खाएंगे-पीएंगे, विवाह करेंगे, लेन-देन करेंगे, पेड़ लगाएंगे, घर बनाएंगे, उन्हें विनाश के दिन के आगमन का बोध भी नहीं होगा।
?
जहाँ लोथ हैं, वहाँ गिद्ध इकट्ठे होंगे।
1 फिर उसने इसके विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और साहस नहीं छोड़ना चाहिए उनसे यह दृष्टान्त कहा: 2 “किसी नगर में एक न्यायी रहता था; जो न परमेश्वर से डरता था और न किसी मनुष्य की परवाह करता था। 3 और उसी नगर में एक विधवा भी रहती थी: जो उसके पास आ आकर कहा करती थी, ‘मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा।’ 4 उसने कितने समय तक तो न माना परन्तु अन्त में मन में विचार कर कहा, ‘यद्यपि मैं न परमेश्वर से डरता, और न मनुष्यों की कुछ परवाह करता हूँ; 5 फिर भी यह विधवा मुझे सताती रहती है, इसलिए मैं उसका न्याय चुकाऊँगा, कहीं ऐसा न हो कि घड़ी-घड़ी आकर अन्त को मेरी नाक में दम करे’।”
6 प्रभु ने कहा, “सुनो, कि यह अधर्मी न्यायी क्या कहता है? 7 अतः क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उसकी दुहाई देते रहते; और क्या वह उनके विषय में देर करेगा? 8 मैं तुम से कहता हूँ; वह तुरन्त उनका न्याय चुकाएगा; पर मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”
9 और उसने उनसे जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और दूसरों को तुच्छ जानते थे, यह दृष्टान्त कहा: 10 “दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेनेवाला। 11 फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि मैं और मनुष्यों के समान दुष्टता करनेवाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेनेवाले के समान हूँ। 12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ; मैं अपनी सब कमाई का दसवाँ अंश भी देता हूँ।’
13 “परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आँख उठाना भी न चाहा, वरन् अपनी छाती पीट-पीटकर* कहा, ‘हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर!’ (भज. 51:1) 14 मैं तुम से कहता हूँ, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहरा और अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”
15 फिर लोग अपने बच्चों को भी उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; और चेलों ने देखकर उन्हें डाँटा। 16 यीशु ने बच्चों को पास बुलाकर कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो: क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है। 17 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक के समान ग्रहण न करेगा वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।”
18 किसी सरदार ने उससे पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?” 19 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्थात् परमेश्वर। 20 तू आज्ञाओं को तो जानता है: ‘व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’।” 21 उसने कहा, “मैं तो इन सब को लड़कपन ही से मानता आया हूँ।” 22 यह सुन, “यीशु ने उससे कहा, तुझ में अब भी एक बात की घटी है, अपना सब कुछ बेचकर कंगालों को बाँट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।” 23 वह यह सुनकर बहुत उदास हुआ, क्योंकि वह बड़ा धनी था।
24 यीशु ने उसे देखकर कहा, “धनवानों का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है! 25 परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।” 26 और सुननेवालों ने कहा, “तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?” 27 उसने कहा, “जो मनुष्य से नहीं हो सकता, वह परमेश्वर से हो सकता है।” 28 पतरस ने कहा, “देख, हम तो घर-बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।” 29 उसने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं जिस ने परमेश्वर के राज्य के लिये घर, या पत्नी, या भाइयों, या माता-पिता, या बाल-बच्चों को छोड़ दिया हो। 30 और इस समय कई गुणा अधिक न पाए; और परलोक में अनन्त जीवन।”
31 फिर उसने बारहों को साथ लेकर उनसे कहा, “हम यरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें मनुष्य के पुत्र के लिये भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखी गई हैं* वे सब पूरी होंगी। 32 क्योंकि वह अन्यजातियों के हाथ में सौंपा जाएगा, और वे उसका उपहास करेंगे; और उसका अपमान करेंगे, और उस पर थूकेंगे। 33 और उसे कोड़े मारेंगे, और मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।” 34 और उन्होंने इन बातों में से कोई बात न समझी और यह बात उनसे छिपी रही, और जो कहा गया था वह उनकी समझ में न आया।
35 जब वह यरीहो के निकट पहुँचा, तो एक अंधा सड़क के किनारे बैठा हुआ भीख माँग रहा था। 36 और वह भीड़ के चलने की आहट सुनकर पूछने लगा, “यह क्या हो रहा है?” 37 उन्होंने उसको बताया, “यीशु नासरी जा रहा है।” 38 तब उसने पुकार के कहा, “हे यीशु, दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!” 39 जो आगे-आगे जा रहे थे, वे उसे डाँटने लगे कि चुप रहे परन्तु वह और भी चिल्लाने लगा, “हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!” 40 तब यीशु ने खड़े होकर आज्ञा दी कि उसे मेरे पास लाओ, और जब वह निकट आया, तो उसने उससे यह पूछा, 41 तू क्या चाहता है, “मैं तेरे लिये करूँ?” उसने कहा, “हे प्रभु, यह कि मैं देखने लगूँ।” 42 यीशु ने उससे कहा, “देखने लग, तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है।” 43 और वह तुरन्त देखने लगा; और परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ, उसके पीछे हो लिया, और सब लोगों ने देखकर परमेश्वर की स्तुति की।
(यीशु अपने शिष्यों से ही बातें कर रहा है)
“फिर यीशु ने”
“सुनाया” (यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “प्रार्थना करने में क्लांत न हों”। या “विश्वास करना न छोड़ें”
“किसी” शब्द का उपयोग घटना के वर्णन हेतु किया गया है जिसमें न तो न्यायी का नाम है और न नगर का नाम है।
“परमेश्वर का भय नहीं मानता था” (यू.डी.बी.)
“न मनुष्यों का ही मान रखता था”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
विधवा वह स्त्री होती है जिसका पति मर गया। यीशु के शिष्य उसे आरक्षित नारी समझे होंगे।
इसका अनुवाद हो सकता है, “उसे दण्ड दे” या “मेरा बदला चुका”
“मेरे शत्रु से” या “मुझे हानि पहंुचाने वाले से” यह कोर्ट केस में बंधी है। यह स्पष्ट नहीं कि उसने इस विधवा पर केस डाला है या इस विधवा ने उस पर केस डाला है।
“परमेश्वर का भय नहीं मानता”
“सामान्यतः मनुष्य”
इसका अनुवाद हो सकता है, “मुझे परेशान करती है”
“मेरा जीना दुश्वार कर दे”
“बार-बार आकर”
(यीशु अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखा रहा है)
“विचार करो कि उस अधर्मी न्यायी क्या कहता है” इसका अनुवाद इस प्रकार करें कि पाठकों को समझ में आ जाए कि यीशु ने अपनी बात उस न्यायी के शब्दों में कह दी है।
यीशु ने इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा यह संकेत दिया कि उसके श्रोताओं को उसकी शिक्षा को समझ लेना चाहिए। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “परमेश्वर निश्चय ही चुकाएगा” या “अतः तुम निश्चित जानो कि परमेश्वर न्याय चुकाएगा”
“जिन मनुष्यों को उसने चुन लिया है”
यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा श्रोताओं को स्मरण कराना चाहता था कि परमेश्वर का यह गुण तो उन्हें पहले ही से जानना आवश्यक था। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “और तुम जानते हो कि वह उनके साथ देर नहीं करता है”।
यीशु स्वयं को संबोधित कर रहा है
इस शिक्षाप्रद कथा का उद्देश्य था कि शिष्यों को विश्वास के साथ प्रार्थना करते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। यीशु का यह एक और आलंकारिक प्रश्न है जिसके द्वारा यीशु नकारात्मक उत्तर पाना चाहता था। इस प्रश्न का अर्थ है, “मैं जानता हूँ कि जब मैं, मनुष्य का पुत्र लौटकर आऊंगा तब मैं ऐसे मनुष्यों को भी देखूंगा जो मुझ में विश्वास नहीं रखते हैं”।
“फिर यीशु ने”
“उन कुछ लोगों से”
“जो पाखंडी थे” या “जो सोचते थे कि वे धर्मी है”
“हीन समझते थे”
“मन्दिर परिसर में”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
इस वाक्यांश की मूल यूनानी भाषा स्पष्ट नहीं है। इसके संभावित अर्थ हैं, (1) फरीसी ने खड़े होकर अपने बारे में इस प्रकार प्रार्थना की” या (2) “फरीसी ने अकेले खड़े होकर प्रार्थना की”।
अन्धेर करनेवाला मनुष्यों को विवश करके उनका समान ले लेता है, या “उन्हें डराकर”
उपवास का अर्थ है, भोजन नहीं करना। फरीसी सप्ताह में दो दिन उपवास रखते थे।
आमदनी का
(यीशु जनसमूह से ही बातें कर रहा है)
यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, “स्वर्ग की ओर देखना” या “ऊपर देखना”
यह शोक प्रकट करने का प्रतीक है ओर उस मनुष्य के पश्चाताप एवं दीनता को दर्शाता है।
इसका अनुवाद हो सकता है, “हे परमेश्वर मुझ पर दया कर क्योंकि मैं एक भयानक पापी हूँ”। या “हे परमेश्वर मुझ पर दया कर, में एक भयानक पापी हूँ”।
“वह चुंगी लेनेवाला”
“उस पहले वाले की अपेक्षा” या “उसकी अपेक्षा” या “वह मनुष्य नहीं” इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “परन्तु वह दूसरा व्यक्ति धर्मी नहीं ठहराया गया”
इस वाक्यांश द्वारा यीशु कहानी से हटकर उस सामान्य सिद्धान्त पर आता है जो इस कहानी द्वारा दर्शाया गया है।
“महान समझा जाएगा”
इसे एक अलग वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, “उन्हें छूएं परन्तु”
शिष्यों ने उन माता-पिता के इस कार्य पर कठोर आपत्ति उठाई
“उन्हें अनुमति दो”
यह शब्द “शिशु” नहीं है। जिन बच्चों को लोग ला रहे थे, वे बालक थे अर्थात शिशु नहीं थे, उनसे बड़े थे।
“उन्हें बाधित मत करो” या “बच्चों को मत रोको”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ऐसे मनुष्यों का है जो इन बच्चों के स्वभाव के हैं”।
“मैं तुमसे निश्चय कहता हूँ” यीशु इस अभिव्यक्ति द्वारा अपने आगामी कथन के महत्त्व पर बल दे रहा था।
यह एक उपमा है जिसके द्वारा परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करनेवालों के स्वभाव की तुलना बच्चों के स्वभाव से की गई है। समानता के विषय हैं, दीनता एवं विश्वास करना। इस उपमा का अर्थ है, वे परमेश्वर के राज्य को जिस विनम्रता से स्वीकार करते हैं वह ठीक वैसी ही है जैसी एक बच्चे में होती है और विश्वास भी।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर के राज्य में प्रवेश”
“सुनने और आज्ञा मानने योग्य”
“मुझे क्या करने की आवश्यकता है” या “मेरे लिए क्या आवश्यक है”?
“अधिकृत स्वामी होने के लिए” यह शब्द सामान्यतः किसी मृतक की सम्पदा के लिए काम में लिया जाता था। लूका इस उपमा के उपयोग द्वारा दर्शाना चाहता है कि वह प्रधान समझ गया था कि अनन्त जीवन कर्मों से नहीं है और हर एक जन को अनन्त जीवन प्राप्त नहीं है।
इसका अनुवाद दो वाक्यों में किया जा सकता है। “मनुष्य तो कोई भी नहीं जो उत्तम हो सकता है। केवल परमेश्वर ही है जो उत्तम है।
“कत्ल न करना”
“इन सब आज्ञाओं को”
“यीशु ने उसकी यह बात सुनकर”
“यीशु ने उसे उत्तर दिया”
“तुम्हें एक और काम करने की आवश्यकता है”। या “एक काम तूने अभी तक नहीं किया है”
“अपनी संपूर्ण सम्पदा बेच कर” या “तेरे पास जो कुछ है सब बेच दे”
“दे दे”
“यह पैसा गरीबों को दे दे”
यह वाक्य अनेक यूनानी पुरालेखों में नहीं है, इसलिए अंग्रेजी अनुवादों में प्रायः इसे छोड़ दिया गया है।
ऊंट के लिए सूई के छिद्र से पार निकलना असंभव है। ऐसा प्रतीत होता है कि यीशु अतिशयोक्ति के उपयोग द्वारा यह कहना चाहता था कि “धनवान मनुष्य के लिए उद्धार पाना बहुत ही कठिन है”।
यह एक बहुत बड़ा पशु है, गाय और घोड़े से भी बड़ा
सूई का छिद्र जिसमें सिलाई करने का धागा डाला जाता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यीशु की इस बात को सुननेवालों ने”
संभव है कि वे उत्तर पाना चाहते थे। परन्तु अति संभव है कि यह एक अलंकारिक प्रश्न है जिसका अर्थ है, “तब तो किसी का भी उद्धार नहीं हो सकता है”।
“पापों से मुक्ति”
“परमेश्वर ही है जो यह कर सकता है”
“अपनी धन सम्पत्ति” या “अपना सब कुछ”
यीशु इस वाक्य द्वारा अपने अग्रिम बात पर बल दे रहा था।
इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में किया जा सकता है, “जिसने भी .... छोड़ दिया हो.... वह पाएगा।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आने वाले संसार में अनन्त जीवन”
यह शब्द यीशु की सेवा में गंभीर परिवर्तन दर्शाता है जब वह अन्तिम समय के लिए यरूशलेम जा रहा है।
पुराने नियम के भविष्यद्वक्ता
“अवश्य घटेंगी” या “होकर रहेंगी”
यीशु स्वयं को मनुष्य का पुत्र कहता है या और अपने लिए “वह” सर्वनाम का उपयोग करता था।
मरणोपरान्त तीसरे दिन। परन्तु शिष्यों की समझ में यह बात न आई। अतः इस पद के अनुवाद में इस व्याख्या को निहित न करना ही अच्छा है।
“वे कुछ भी समझ न पाए”
यरूशलेम में यीशु के कष्टों और मृत्यु का वर्णन और तीसरे दिन उसका पुनरुत्थान।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “परमेश्वर ने उन्हें यीशु की बातें समझने से रोक दिया” (यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद भी कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “यीशु ने जो कहा था”
“पास आया”
“वहां एक अंधा मनुष्य बैठा था” यहाँ केवल वह व्यक्ति महत्त्वपूर्ण है, उसका नाम जानने की आवश्यकता नहीं है।
इसका अनुवाद भी दो वाक्य में किया जा सकता है, “भीख मांग रहा था” जब उसने यीशु के चलने की आहट सुनी तो”
लोगों ने उसे बताया
यीशु नासरत का रहनेवाला था। नासरत गलील का एक नगर था।
“उसके पास से जा रहा है”
“चिल्लाया” या “पुरजोर आवाज दी”
यीशु दाऊद का वंशज था। दाऊद इस्राएल का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण राज्य था।
“मुझ पर तरस खा” या “मुझ पर कृपा कर”
“जनसमूह में लोग”
“शान्त रहे” या “चिल्लाए नहीं”
अर्थात वह और ऊँचे स्वर में चिल्लाने लगा या वह अविराम चिल्लाता जा रहा था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैंने तुझे दृष्टिदान दिया क्योंकि तूने मुझमें विश्वास किया है”।
इसका अनुवाद हो सकता है, “उसके पीछे चलने लगा”
“परमेश्वर की स्तुति करता हुआ” या “परमेश्वर को महान कहता हुआ”
वह उन्हें सिखाना चाहता था कि वे प्रार्थना करते रहें, निराश न हों, परमेश्वर उन पुकारने वालों का न्याय चुकाता है।
उसने अपने मुद्दई के विरूद्ध न्याय मांगा।
उसने कहा,"यह विधवा मुझे सताती रहती है इसलिए मैं इसका न्याय चुकाऊंगा"।
वह सोचता था कि वह अन्य मनुष्यों से अधिक धर्मी है।
एक फरीसी और एक चूंगी लेने वाला मन्दिर में प्रार्थना करने गए।
उसने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर"।
वह चूंगी लेने वाला परमेश्वर के सम्मुख धर्मी ठहरा।
वह बच्चों जैसों का है।
यीशु ने उससे कहा कि वह अपना सब कुछ बेच कर कंगालों में बांट दे।
वह बहुत दुःखी हुआ क्योंकि वह अत्यधिक धनवान था।
यीशु ने उनसे इस संसार में बहुत कुछ देने की और आने वाले संसार में अनन्त जीवन देने की प्रतिज्ञा की।
वह अन्यजाति के हाथ में दिया जायेगा, उसे ठट्ठों में उड़ाया जायेगा, उसे लज्जित किया जायेगा, कोड़े मारे जायेंगे और मृत्यु दी जायेगी परन्तु वह तीसरे दिन मृतकों में से जी उठेगा।
उसने कहा, "हे यीशु, दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर"।
उन्होंने परमेश्वर की महिमा और स्तुति की।
1 वह यरीहो में प्रवेश करके जा रहा था। 2 वहाँ जक्कई* नामक एक मनुष्य था, जो चुंगी लेनेवालों का सरदार और धनी था। 3 वह यीशु को देखना चाहता था कि वह कौन सा है? परन्तु भीड़ के कारण देख न सकता था। क्योंकि वह नाटा था। 4 तब उसको देखने के लिये वह आगे दौड़कर एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि यीशु उसी मार्ग से जानेवाला था। 5 जब यीशु उस जगह पहुँचा, तो ऊपर दृष्टि कर के उससे कहा, “हे जक्कई, झट उतर आ; क्योंकि आज मुझे तेरे घर में रहना अवश्य है।” 6 वह तुरन्त उतरकर आनन्द से उसे अपने घर को ले गया। 7 यह देखकर सब लोग कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “वह तो एक पापी मनुष्य के यहाँ गया है।” 8 जक्कई ने खड़े होकर प्रभु से कहा, “हे प्रभु, देख, मैं अपनी आधी सम्पत्ति कंगालों को देता हूँ, और यदि किसी का कुछ भी अन्याय करके ले लिया है तो उसे चौगुना फेर देता हूँ।” (निर्ग. 22:1) 9 तब यीशु ने उससे कहा, “आज इस घर में उद्धार आया है, इसलिए कि यह भी अब्राहम का एक पुत्र* है। 10 क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।” (मत्ती 15:24, यहे. 34:16)
11 जब वे ये बातें सुन रहे थे, तो उसने एक दृष्टान्त कहा, इसलिए कि वह यरूशलेम के निकट था, और वे समझते थे, कि परमेश्वर का राज्य अभी प्रगट होनेवाला है। 12 अतः उसने कहा, “एक धनी मनुष्य दूर देश को चला ताकि राजपद पा कर लौट आए। 13 और उसने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं, और उनसे कहा, ‘मेरे लौट आने तक लेन-देन करना।’ 14 “परन्तु उसके नगर के रहनेवाले उससे बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतों के द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे।
15 “जब वह राजपद पा कर लौट आया, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने दासों को जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन-देन से क्या-क्या कमाया। 16 तब पहले ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरे मुहर से दस और मुहरें कमाई हैं।’ 17 उसने उससे कहा, ‘हे उत्तम दास, तू धन्य है, तू बहुत ही थोड़े में विश्वासयोग्य निकला अब दस नगरों का अधिकार रख।’ 18 दूसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरी मुहर से पाँच और मुहरें कमाई हैं।’ 19 उसने उससे कहा, ‘तू भी पाँच नगरों पर अधिकार रख।’ 20 तीसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, देख, तेरी मुहर यह है, जिसे मैंने अँगोछे में बाँध रखा था। 21 क्योंकि मैं तुझ से डरता था, इसलिए कि तू कठोर मनुष्य है: जो तूने नहीं रखा उसे उठा लेता है, और जो तूने नहीं बोया, उसे काटता है।’ 22 उसने उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास, मैं तेरे ही मुँह से* तुझे दोषी ठहराता हूँ। तू मुझे जानता था कि कठोर मनुष्य हूँ, जो मैंने नहीं रखा उसे उठा लेता, और जो मैंने नहीं बोया, उसे काटता हूँ; 23 तो तूने मेरे रुपये सर्राफों को क्यों नहीं रख दिए, कि मैं आकर ब्याज समेत ले लेता?’ 24 और जो लोग निकट खड़े थे, उसने उनसे कहा, ‘वह मुहर उससे ले लो, और जिसके पास दस मुहरें हैं उसे दे दो।’ 25 उन्होंने उससे कहा, ‘हे स्वामी, उसके पास दस मुहरें तो हैं।’ 26 ‘मैं तुम से कहता हूँ, कि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं, उससे वह भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा। 27 परन्तु मेरे उन बैरियों को जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर राज्य करूँ, उनको यहाँ लाकर मेरे सामने मार डालो’।”
28 ये बातें कहकर वह यरूशलेम की ओर उनके आगे-आगे चला। 29 और जब वह जैतून नाम पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास पहुँचा, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहके भेजा, 30 “सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, बन्धा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोलकर लाओ। 31 और यदि कोई तुम से पूछे, कि क्यों खोलते हो, तो यह कह देना, कि प्रभु को इसकी जरूरत है।”
32 जो भेजे गए थे, उन्होंने जाकर जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया। 33 जब वे गदहे के बच्चे को खोल रहे थे, तो उसके मालिकों ने उनसे पूछा, “इस बच्चे को क्यों खोलते हो?” 34 उन्होंने कहा, “प्रभु को इसकी जरूरत है।” 35 वे उसको यीशु के पास ले आए और अपने कपड़े उस बच्चे पर डालकर यीशु को उस पर बैठा दिया। 36 जब वह जा रहा था, तो वे अपने कपड़े मार्ग में बिछाते जाते थे। (2 राजा. 9:13) 37 और निकट आते हुए जब वह जैतून पहाड़ की ढलान पर पहुँचा, तो चेलों की सारी मण्डली उन सब सामर्थ्य के कामों के कारण जो उन्होंने देखे थे, आनन्दित होकर बड़े शब्द से परमेश्वर की स्तुति करने लगी: (जक. 9:9)
38 “धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम से आता है!
स्वर्ग में शान्ति और आकाश में महिमा हो!” (भज. 72:18-19, भज. 118:26)
39 तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” 40 उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।”
41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। 42 और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। (व्य. 32:29, यशा. 6:9-10) 43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे। 44 और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्टि की गई न पहचाना।”
45 तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा। 46 और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा,’ परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।” (यशा. 56:7, यिर्म. 7:11) 47 और वह प्रतिदिन मन्दिर में उपदेश देता था : और प्रधान याजक और शास्त्री और लोगों के प्रमुख उसे मार डालने का अवसर ढूँढ़ते थे। 48 परन्तु कोई उपाय न निकाल सके; कि यह किस प्रकार करें, क्योंकि सब लोग बड़ी चाह से उसकी सुनते थे।
अब कहानी में एक नया मनुष्य आता है, आपकी भाषा में किसी नए मनुष्य का प्रवेश व्यक्त करने की अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“जक्कई देखना चाहता था कि यीशु कौन है”
गूलर एक छोटा गोल फल होता है, लगभग 2. से.मी. का। इसका अनुवाद केवल “अंजीर का वृक्ष” या “वृक्ष” मात्र ही किया जा सकता है।
“वह कद में छोटा था”
“उस वृक्ष के नीचे” या “जहाँ जक्कई था”
“यीशु एक पापी के घर में गया है”
“एक प्रकट पापी” या “वास्तव में एक पापी” (यू.डी.बी.) या “एक सन्देहरहित पापी”
यह यीशु के सन्दर्भ में है
इस भाववाचक संज्ञा “उद्धार” का अनुवाद “उद्धार करना” क्रिया में किया जा सकता है, “परमेश्वर ने इस परिवार का उद्धार किया है”
यहाँ जिस शब्द का अनुवाद “घर” किया गया है उसका अर्थ है घर में रहने वाले लोग या परिवार (देखें: Metonymy)
“यह मनुष्य भी” या “जक्कई भी”
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) “अब्राहम का वंशज” या (2) “जिस व्यक्ति का विश्वास अब्राहम के जैसा है”
“परमेश्वर से दूर हो गए मनुष्यों को” या “जो पाप करके परमेश्वर से दूर हो गए हैं”
“कि यीशु उसी समय परमेश्वर के राज्य पर राज करेगा”
“शासक वर्ग का एक मनुष्य” या “किसी महत्त्वपूर्ण परिवार का एक सदस्य”। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “एक महत्त्वपूर्ण मनुष्य” या “ऊँचा पद रखनेवाला एक मनुष्य”
“राजा बनकर” या “अपने प्रदेश का राजा बनकर”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
उसने शब्द उस धनवान मनुष्य के लिए काम में लिया गया है।
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “एक-एक मुहर दी”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “दस कीमती मुहरें” या “बहुत पैसा दिया”। एक मुहर लगभग चार महीनों की मजदूरी होती थी।
“इससे व्यापार करना” या “इससे और अधिक धन कमाना”
“उसके देश के नागरिक”
“प्रतिनिधियों” या “सन्देशवाहकों”
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण घटना का बोध करवाया गया है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“राजा बन कर”
“उन्होंने कितना पैसा और बनाया”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“पहले सेवक ने”
इस धनवान मनुष्य के समक्ष आकर
देखें इसका अनुवाद अपने 19:13 में इसका अनुवाद कैसे किया है।
“तूने बहुत अच्छा काम किया है” आपकी भाषा में नियोजक अनुमोदन दर्शाने के शब्द काम में लेता होगा जैसे “अच्छा काम किया”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
इसका अनुवाद किया जा सकता है “हे प्रभु तूने मुझे जो मुहरें दी थी उनसे मैंने पाँच और अधिक अर्जित की हैं।
देखें इसका अनुवाद अपने 19:13 में इसका अनुवाद कैसे किया है।
“तू पाँच नगरों पर अधिकारी होगा”
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
देखें इसका अनुवाद अपने 19:13 में इसका अनुवाद कैसे किया है।
“तू निर्दयी है” या “तू एक ऐसा मनुष्य है जो सेवकों से अनावश्यक अपेक्षा करता है”। या “एक निष्ठुर मनुष्य है” (यू.डी.बी.)
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “तूने जहाँ निवेश नहीं किया वहां से पाना चाहता है” या “जो तेरा नहीं उसे पाना चाहता है” यह एक लोकोक्ति है जो लालची मनुष्य का चरित्र दर्शाती है।
काटता है अर्थात “फसल उठाता है” या “एकत्र करता है” या “उठाता है”
“जो फसल तेरी नहीं, उसे काटता है” यह एक रूपक है। वह सेवक अपने स्वामी की तुलना एक ऐसे किसान से कर रहा था जो दूसरों की खेती से अपना भोजन लेता है।
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“निष्ठुर मनुष्य”
वह अपने सेवक के शब्दों को दोहरा रहा था वह स्वीकार नहीं कर रहा था कि यह सत्य है।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है जो झिड़की के लिए है। इसका अनुवाद हो सकता है, “तुझे मेरी मुहर सर्राफों के पास क्यों नहीं रख दी”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बैंक में क्यों नहीं डाल दिया। जिन संस्कृतियों में बैंक नहीं है वहां अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ब्याज पर क्यों नहीं चढ़ा दिया”?
सर्राफ ब्याज पर पैसा चलाते हैं। वे आपके पैसों को किसी को ब्याज पर देंगे और ब्याज का एक भाग आपको दे देंगे
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं” आकर अपनी मुहरें और उसका ब्याज वसूल कर लेता” (यू.डी.बी.) या “मैं आकर उसका लाभ उठाता”
पैसों पर कमाया हुआ अतिरिक्त धन।
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
यह राजा के वचन हैं। कुछ अनुवादक इसका आरंभ इस प्रकार करते हैं, “और राजा ने कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ”, या “परन्तु राजा ने कहा,मैं यह कहता हूँ”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जो दी हुई सम्पत्ति का उचित उपयोग करता है” या “जो मेरी दी हुई सम्पत्ति लाभकारी उपयोग करता है”
इसका अनुवाद कर्तृवाय वाक्य में किया जा सकता है, “मैं उसे और दूंगा”
इसका अनुवाद हो सकता है, “जो दी हुई सम्पत्ति का लाभकारी उपयोग नहीं करता है”।
क्योंकि उसके बैरी वहां उपस्थित नहीं हैं इसलिए कुछ भाषाओं में इसका अनुवाद इस प्रकार किया गया है, “मेरे वे बैरी” (यह शिक्षाप्रद कथा का समापन है और जक्कई के घर में होने वाले संवाद का अनत है)।
“वह” यीशु के लिए प्रयुक्त सर्वनाम है न कि पिछले गद्यांश में राजा के लिए। कुछ अनुवादों में स्पष्ट किया गया है, “जब यीशु ये बातें कह चुका”
यरूशलेम यरीहो से लगभग 975 मीटर की ऊंचाई पर है।
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“वह” अर्थात यीशु। उसके शिष्य उसके साथ थे।
बैतफगे जैतून पर्वत पर स्थित एक गांव था। जैतून पर्वत यरूशलेम से किद्रोन नाले के पास था।
“जैतून पर्वत कहलाने वाला पर्वत” या “जैतून के पेड़ों का पर्वत”
इसका कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है, “जिन्हें यीशु ने भेजा था” या “यीशु ने जिन दो शिष्यों को भेजा था”।
“गधे के बच्चे पर अपने बाहरी वस्त्र डालकर”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “लोगों ने अपने वस्त्र मार्ग में बिछाए” या “अन्य जनों ने अपने चोगे मार्ग में बिछाए”
“जब यीशु निकट आ रहा था” या “जब यीशु पहुंच रहा था”, “यीशु के शिष्य उसके साथ चल रहे थे।
इसका अनुवाद हो सकता है, “उन्होंने यीशु के उन आश्चर्य के कामों को देखा था”।
वे यीशु के लिए ऐसा नारा लगा रहे थे
परमेश्वर
इसका अनुवाद हो सकता है, “सर्वोच्च परमेश्वर की स्तुति हो”, या “परम-प्रधान की स्तुति हो”। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है जिसमें कहा जा सकता है कि कौन स्तुति करेगा, जैसा यू.डी.बी में है।
इसका अनुवाद हो सकता है, “अपने अनुयायियों को ऐसा करने से रोक”।
यीशु ने अपनी अगली बात पर बल देने के लिए इस उक्ति का उपयोग किया था।
यह एक काल्पनिक परिस्थिति है। कुछ अनुवादकों के लिए आवश्यक होगा कि यीशु के अभिप्रेत अर्थ को प्रकट करें, “नहीं, मैं उन्हें डांटूँगा नहीं क्योंकि यदि ये चुप हो गए तो ....”
“पत्थर स्तुति करने लगेंगे”
“पहुंचा” या “पास में आया”
यरूशलेम नगर
“उस” यरूशलेम के लिए सर्वनाम है परन्तु इसका अभिप्राय वहां के नागरिकों से है। (देखें: Metonymy)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं कैसे चाहता हूँ कि तुम जानते” या “मैं अत्यधिक दुखी हूँ क्योंकि तुम नहीं जानते” यह एक दुहाई है। वह अपना दुःख प्रकट कर रहा था कि यरूशलेमवासी इन बातों को नहीं जानते थे। इस वाक्य के अन्त में सलंग्न जानकारी जोड़ी जा सकती हे, “तो तुम कुशल से रहते”।
यहाँ “तुम” शब्द एकवचन में है क्योंकि यीशु एक नगर से बातें कर रहा है परन्तु यदि आपकी भाषा में एकवचन सामान्य हो तो बहुवचन ही काम में लें जो नगरवासियों के संदर्भ में होगा।
इसका अनुवाद होगा, “तुम देख नहीं सकते”। या “तुम उसे समझने में असमर्थ हो”
(यीशु यरूशलेम नगर के बाहर बातें कर रहा है)
आगे की बातें यीशु के दुःख का कारण प्रकट करेंगी।
इससे उनके कठिन समय का बोध होता है। कुछ भाषाओं में आनेवाले समय को व्यक्त नहीं किया जा सकता है। अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “भविष्य में तेरे साथ ऐसा होगा” या “तू शीघ्र ही कष्ट का समय देखेगा”।
“तुझे” एकवचन है क्योंकि यीशु एक नगर से बातें कर रहा है। परन्तु यदि आपकी भाषा में एकवचन असामान्य प्रतीत हो तो बहुवचन ही का उपयोग करें जो नगरवासियों के संदर्भ में होगा।
घेराव करके जिससे कि नगरवासियों का बाहर आना जाना बन्द हो जाए।
क्योंकि यीशु एक नगर से बातें कर रहा है इसलिए यह अपनी शहरपनाह और ईमारतों के संदर्भ में है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे तेरी शहरपनाह को नाश कर देंगे और तेरी ईमारतों को तेरे नगर को नष्ट कर देंगे।
अर्थात नगरवासियों को। यदि आपने “तुझ” का बहुवचन काम में लिया है तो इसका अनुवाद होगा “वे नगर में तुम लोगों को घात करेंगे”।
यह अतिशयोक्ति है जिसके द्वारा उस पत्थरों के नगर का सर्वनाश की भविष्यद्वाणी की गई है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे स्वामी पत्थर यथास्थान नहीं रहने देंगे।”
“तूने समझा नहीं” या “तूने स्वीकार नहीं किया”।
“बाहर फेंकने लगा” या “खदेड़ने लगा” या “हटने पर विवश करने लगा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “धर्मशास्त्र कहता है” या “धर्मशास्त्र में भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा है। यह यशायाह की पुस्तक का उद्धरण है।
“मेरा” शब्द परमेश्वर के लिए है।
“मनुष्यों के लिए मुझ से प्रार्थना करने का स्थान”
“डाकुओं कि छिपने का स्थान” यह एक रूपक है। इसका अनुवाद उपमा देकर भी किया जा सकता है, “डाकुओं की गुफा के समान”
“मन्दिर परिसर में” या “मन्दिर
“सबसे बड़ा पुरोहित” या “सर्व प्रतिष्ठित पुरोहित”
“यीशु की बातों पर कान लगाते थे”
वह जक्कई था, एक धनवान चूंगी लेने वाला।
लोग कहने लगे, "वह तो एक पापी मनुष्य के यहां जा उतरा है"।
यीशु ने कहा, "आज इस घर में उद्धार आया है"।
वे सोचते थे कि परमेश्वर का राज्य उसी समय आएगा।
वह राज्य प्राप्त करने दूर देश को जा रहा था, वह फिर लौटेगा।
उसने उन्हें नगरों पर राज करने का अधिकार दिया।
उसने सोचा कि उसका स्वामी एक कठोर व्यक्ति है।
उसने अपने दास से मुहर ले ली।
उसके स्वामी ने राज्य के विरोधियों को उसने सामने घात किया।
गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ था।
लोग ऊंचे शब्दों में कहने लगे, "धन्य है वह राजा जो प्रभु के नाम से आता है"।
यदि मनुष्य आनन्द से नारा लगाना छोड़ दे "तो यीशु ने कहा क्या होगा?"
यीशु रोया।
यीशु ने कहा कि उसके बैरी निवासियों को घात करेंगे और वहाँ पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा।
महायाजक, शास्त्री अनेक पुरनिये यीशु को मार डालने का षड्यंत्र रचने लगे।
क्योंकि लोग ध्यान लगाकर उसकी बातें सुनते थे।
1 एक दिन ऐसा हुआ कि जब वह मन्दिर में लोगों को उपदेश देता और सुसमाचार सुना रहा था, तो प्रधान याजक और शास्त्री, प्राचीनों के साथ पास आकर खड़े हुए। 2 और कहने लगे, “हमें बता, तू इन कामों को किस अधिकार से करता है, और वह कौन है, जिसने तुझे यह अधिकार दिया है?” 3 उसने उनको उत्तर दिया, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; मुझे बताओ 4 यूहन्ना का बपतिस्मा स्वर्ग की ओर से था या मनुष्यों की ओर से था?” 5 तब वे आपस में कहने लगे, “यदि हम कहें, ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह कहेगा; ‘फिर तुम ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ 6 और यदि हम कहें, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तो सब लोग हमें पत्थराव करेंगे, क्योंकि वे सचमुच जानते हैं, कि यूहन्ना भविष्यद्वक्ता था।” 7 अतः उन्होंने उत्तर दिया, “हम नहीं जानते, कि वह किस की ओर से था।” 8 यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि मैं ये काम किस अधिकार से करता हूँ।”
9 तब वह लोगों से यह दृष्टान्त कहने लगा, “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानों को उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनों के लिये परदेश चला गया। (मर. 12:1-12, मत्ती 21:33-46) 10 नियुक्त समय पर उसने किसानों के पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलों का भाग उसे दें, पर किसानों ने उसे पीटकर खाली हाथ लौटा दिया। 11 फिर उसने एक और दास को भेजा, ओर उन्होंने उसे भी पीटकर और उसका अपमान करके खाली हाथ लौटा दिया। 12 फिर उसने तीसरा भेजा, और उन्होंने उसे भी घायल करके निकाल दिया। 13 तब दाख की बारी के स्वामी ने कहा, ‘मैं क्या करूँ? मैं अपने प्रिय पुत्र को भेजूँगा, क्या जाने वे उसका आदर करें।’ 14 जब किसानों ने उसे देखा तो आपस में विचार करने लगे, ‘यह तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, कि विरासत हमारी हो जाए।’ 15 और उन्होंने उसे दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला: इसलिए दाख की बारी का स्वामी उनके साथ क्या करेगा? 16 वह आकर उन किसानों को नाश करेगा, और दाख की बारी दूसरों को सौंपेगा।” यह सुनकर उन्होंने कहा, “परमेश्वर ऐसा न करे।” 17 उसने उनकी ओर देखकर कहा, “फिर यह क्या लिखा है:
‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था,
वही कोने का सिरा हो गया।’ (भज. 118:22, 23)
18 जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा*, और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” (दानि. 2:34,35)
19 उसी घड़ी शास्त्रियों और प्रधान याजकों ने उसे पकड़ना चाहा, क्योंकि समझ गए थे, कि उसने उनके विरुद्ध दृष्टान्त कहा, परन्तु वे लोगों से डरे। 20 और वे उसकी ताक में लगे और भेदिये भेजे, कि धर्मी का भेष धरकर उसकी कोई न कोई बात पकड़ें, कि उसे राज्यपाल के हाथ और अधिकार में सौंप दें। 21 उन्होंने उससे यह पूछा, “हे गुरु, हम जानते हैं कि तू ठीक कहता, और सिखाता भी है, और किसी का पक्षपात नहीं करता; वरन् परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से बताता है। 22 क्या हमें कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं?” 23 उसने उनकी चतुराई को ताड़कर उनसे कहा, 24 “एक दीनार मुझे दिखाओ। इस पर किसकी छाप और नाम है?” उन्होंने कहा, “कैसर का।” 25 उसने उनसे कहा, “तो जो कैसर का है, वह कैसर को दो और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” 26 वे लोगों के सामने उस बात को पकड़ न सके, वरन् उसके उत्तर से अचम्भित होकर चुप रह गए।
27 फिर सदूकी जो कहते हैं, कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, उनमें से कुछ ने उसके पास आकर पूछा। 28 “हे गुरु, मूसा ने हमारे लिये यह लिखा है, ‘यदि किसी का भाई अपनी पत्नी के रहते हुए बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी से विवाह कर ले, और अपने भाई के लिये वंश उत्पन्न करे।’ (उत्प. 38:8, व्य. 25:5) 29 अतः सात भाई थे, पहला भाई विवाह करके बिना सन्तान मर गया। 30 फिर दूसरे, 31 और तीसरे ने भी उस स्त्री से विवाह कर लिया। इसी रीति से सातों बिना सन्तान मर गए। 32 सब के पीछे वह स्त्री भी मर गई। 33 अतः जी उठने पर वह उनमें से किस की पत्नी होगी, क्योंकि वह सातों की पत्नी रह चुकी थी।” 34 यीशु ने उनसे कहा, “इस युग के सन्तानों में तो विवाह-शादी होती है, 35 पर जो लोग इस योग्य ठहरेंगे, की उस युग को और मरे हुओं में से जी उठना प्राप्त करें, उनमें विवाह-शादी न होगी। 36 वे फिर मरने के भी नहीं; क्योंकि वे स्वर्गदूतों के समान होंगे, और पुनरुत्थान की सन्तान होने से परमेश्वर के भी सन्तान होंगे। 37 परन्तु इस बात को कि मरे हुए जी उठते हैं, मूसा ने भी झाड़ी की कथा में प्रगट की है, वह प्रभु को ‘अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर’ कहता है। (निर्ग. 3:2, निर्ग. 3:6) 38 परमेश्वर तो मुर्दों का नहीं परन्तु जीवितों का परमेश्वर है: क्योंकि उसके निकट सब जीवित हैं।” 39 तब यह सुनकर शास्त्रियों में से कितनों ने कहा, “हे गुरु, तूने अच्छा कहा।” 40 और उन्हें फिर उससे कुछ और पूछने का साहस न हुआ*।
41 फिर उसने उनसे पूछा, “मसीह को दाऊद की सन्तान कैसे कहते हैं? 42 दाऊद आप भजन संहिता की पुस्तक में कहता है:
‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा,
43 मेरे दाहिने बैठ,
जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों तले की चौकी न कर दूँ।’
44 दाऊद तो उसे प्रभु कहता है; तो फिर वह उसकी सन्तान कैसे ठहरा?”
45 जब सब लोग सुन रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा। 46 “शास्त्रियों से सावधान रहो*, जिनको लम्बे-लम्बे वस्त्र पहने हुए फिरना अच्छा लगता है, और जिन्हें बाजारों में नमस्कार, और आराधनालयों में मुख्य आसन और भोज में मुख्य स्थान प्रिय लगते हैं। 47 वे विधवाओं के घर खा जाते हैं, और दिखाने के लिये बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हैं, ये बहुत ही दण्ड पाएँगे।”
यह कहानी में नए मोड़ का प्रतीक है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
यीशु ने कहा
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्यों को बपतिस्मा देने का अधिकार यूहन्ना को स्वर्ग से मिला था या मनुष्यों से? या “परमेश्वर ने यूहन्ना को बपतिस्मा देने के लिए कहा था या मनुष्यों ने”?
“परमेश्वर से” यहूदी परमेश्वर का नाम, “यहोवा” अपने मुंह पर नहीं लाते थे। वे परमेश्वर के लिए स्वर्ग शब्द का उपयोग करते थे। (देखें: metonymy)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्होंने आपस में विचार किया” या “उन्होंने उत्तर खोजा”
“परमेश्वर से”, यह निर्भर करता है कि पिछले पद में प्रश्न का अनुवाद कैसे किया गया है। इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर ने दिया” या “परमेश्वर ने अधिकार दिया” कुछ भाषाओं में परोक्ष अभिव्यक्ति अधिक उचित होती हे। इस वाक्य के आरंभ का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि हम कहते हैं कि परमेश्वर ने उसे अधिकार दिया है”।
“तो यीशु कहेगा”
“पत्थर मारकर हमारी हत्या कर देंगे। परमेश्वर के विधान में एक आज्ञा थी कि यदि कोई परमेश्वर की या उसके भविष्यद्वक्ताओं की निन्दा करे तो उसे पत्थरवाह किया जाए।
“प्रधान पुरोहित, विधि-शास्त्रियों तथा पुरनियों ने कहा”
कुछ भाषाओं में अपरोक्ष उद्धरण उचित होता है, “उन्होंने कहा, हम नहीं जानते”
“यूहन्ना का बपतिस्मा किसके अधिकार से था” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यूहन्ना को बपतिस्मा देने का अधिकार किसने दिया था” या “यूहन्ना किसके अधिकर से बपतिस्मा देता था”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं भी नहीं बताऊंगा” या “तुम मुझे बताना नहीं चाहते तो मैं भी तुम्हें नहीं बताऊंगा”।
“किसानों को किराए पर दे दिया” या “किसानों को सौंप दिया कि उसकी फसल संभालें ओर उसे लाभ का अंश दें”।
दाख की बारी को संभालने और दाख की उपज उठाने वाले लोग, “दाख उत्पादक”
“कुछ दाख” या “दाख की फसल का अंश” इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि दाख का उत्पाद या उसकी आय का पैसा।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसे कुछ नहीं दिया और भगा दिया” या “उसे दाख दिए बिना भेज दिया”।
(यीशु वही कथा सुना रहा है)
“उसके साथ बुरा व्यवहार करके”
“मार पीट कर”
यहाँ अनुवाद में “तौ भी” शब्द नहीं है जिसका अर्थ है कि उस दाख की बारी के स्वामी को दूसरा सेवक भेजने की आवश्यकता नहीं थी परन्तु उसने दूसरा ही नहीं तीसरा सेवक भी भेजा।
(यीशु वही शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“जब उन किसानों ने स्वामी के पुत्र को देखा”
(यीशु वही शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)
“किसानों ने उसके पुत्र को दाखकी बारी के बाहर ले जाकर मार डाला”
यीशु इस अलंकारिक प्रश्न द्वारा दाख की बारी के स्वामी की प्रतिक्रिया पर श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करवाना चाहता था। इसका अनुवाद आज्ञा सूचक वाक्य में किया जा सकता है, “अब सुनो कि दाख की बारी का स्वामी उसके साथ क्या करेगा”।
“परमेश्वर ऐसा न होने दे” या “ऐसा कभी न हो” श्रोता समझ गए थे कि परमेश्वर उन्हें यरूशलेम से विस्थापित करेगा क्योंकि उन्होंने मसीह को त्याग दिया था। अतः उन्होंने अपनी प्रबल इच्छा व्यक्त की कि ऐसा दुर्भाग्य उन पर आए।
(यीशु जनसमूह से ही बातें कर रहा है)
“यीशु ने उन्हें घूर कर” या “सीधा उनकी ओर देखकर”, यीशु ने ऐसा इसलिए किया कि वह उन्हें अपनी बात को समझने का लेखादायी माने।
इस अलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “धर्मशास्त्र का यह संदर्भ क्या अर्थ रखता है”? या “तुम्हें धर्मशास्त्र को समझना है”।
यह रूपक भजनसंहिता की भविष्यद्वाणी है कि मनुष्य मसीह का परित्याग करेंगे।
“जिस पत्थर को राज-मिस्त्रियों ने किसी काम का नहीं” कहा या “उस युग में गृह-निर्माण के लिए पत्थर काम में आते थे।
यह ईमारत को दृढ़ता प्रदान करने के लिए लगाया जाता था। इसका उनुवाद हो सकता है, “प्रमुख पत्थर” या “सबसे अधिक महत्वपूर्ण पत्थर”
“जो भी उस पत्थर पर गिरेगा” यह एक रूपक भी एक भविष्यद्वाणी है कि मसीह का त्याग करनेवाले हर एक मनुष्य का क्या होगा।
“टुकड़े-टुकड़ें हो जायेगा, “उस पत्थर पर गिरने का परिणाम ऐसा होगा।
यह मसीह का त्याग करनेवालों को दण्ड देने की भविष्यद्वाणी के लिए काम में लिया गया एक रूपक है।
“यीशु को बन्दी बनाने का उपाए खोजा” पकड़े का अर्थ है बन्दी बनाना।
“तुरन्त”
यीशु को उसी पल न पकड़ने का कारण यही था। लोग यीशु को मान प्रदान करते थे। जिसके कारण धर्म के अगुवे डरते थे कि यदि वे यीशु को बन्दी बनायेंगे तो जनता उसका क्या करेगी। कुछ अनुवादकों को इसे स्पष्ट करना होगा”, उन्होंने उसे बन्दी नहीं बनाया क्योंकि वे जनता से डरते थे।
“विधि-शास्त्रियों और प्रधान पुरोहितों ने यीशु की गतिविधियों की निगरानी हेतु गुप्त में मनुष्य नियुक्त किए”
“वे यीशु की किसी ऐसी बात को पकड़े जो नियम विरोधी हो”।
“उसे प्रशासक के समक्ष उपस्थित करने हेतु” या “कि वे उसे प्रशासक को सौंप दें”
“हाथ” ओर “अधिकार” एक ही बात को कहने की दो विधियां हैं। इसके अनुवाद में एक ही रखें। यीशु को प्रशासक के समक्ष उपस्थित करने का कारण स्पष्ट करने की आवश्यकता है, “कि प्रशासक यीशु को दण्ड दे”।
उस भेदिए ने यीशु के बारे में प्रचलित विचार व्यक्त किया
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) चाहे बड़े से बड़ा मनुष्य पसन्द न करे तू सच्ची बात ही बोलता है” (यू.डी.बी.) या “तू किसी एक का पक्ष नहीं लेता है”
वे सोच रहे थे कि यीशु, “हाँ” कहेगा तो यहूदी उसके विरुद्ध हो जायेंगे कि वह विदेशी सरकार का समर्थ है। यदि वह “नहीं” कहेगा तो धर्मगुरू रोमियों से कह देंगे कि वह रोमी नियम तोड़ने के लिए लोगों को भड़काता है।
वे परमेश्वर के विधान के अनुसार उचित जानना चाहते थे कैसर के विधान के अनुसार नहीं। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “क्या हमारा विधान अनुमति देता है”?
कैसर रोमी राज्य का सम्राट था। वे रोम के लिए मात्र कैसर का नाम लेते थे।
“यीशु उनकी धूर्तता को समझ गया” या “यीशु समझ गया कि वे उसे फसाना चाहते थे”
एक दिन की मजदूरी के बराबर मूल्य का एक सिक्का
“चित्र एवं नाम”
यीशु ने उन भेदियों से कहा
कैसर का अर्थ है रोमी सरकार
“उसकी बात में कोई गलती न पकड़ पाए”
“चकित हुए” या “हैरान हो गए” (यू.डी.बी.)
इस वाक्यांश से सदूकियों को यहूदियों का एक पंथ माना जाता है जो कहता था कि पुनरुत्थान नहीं होता है। इसका अर्थ यह नहीं समझा जाए कि सदूकियों में कुछ पुनरुत्थान को नहीं मानते थे और कुछ मानते थे।
“यदि किसी का भाई विवाह पश्चात निःसन्तान मर जाए”
“सन्तान न उत्पन्न करने से पहले”
“अपने मृतक भाई की पत्नी से विवाह करे”
(सदूकी यीशु को एक काल्पनिक कथा सुना रहे हैं)
ऐसा होना संभव था परन्तु यह संभवतः यीशु को परखने के लिए एक काल्पनिक कहानी थी।
“निःसन्तान मर गए” या “मर गए परन्तु सन्तान उत्पन्न नहीं कर पाए”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “दूसरे ने उससे विवाह किया और ऐसा ही हुआ” या “दूसरे ने अपने मृतक भाई की पत्नी से विवाह किया परन्तु वह भी निःसन्तान मर गया”।
“तीसरे भाई ने उस स्त्री से विवाह किया”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इसी प्रकार सातों भाई उस स्त्री के पति होकर निःसन्तान मर गए”
“जब मृतक जी उठेंगे” (यू.डी.बी.) या “पुनरुत्थान के दिन” कुछ भाषाओं में सदूकियों द्वारा पुनरुत्थान में विश्वास न करने को और स्पष्ट किया गया है जैसे “तथाकथित पुनरुत्थान के दिन”, (मृतकों का जी उठना माना जाता है)
“इस संसार के लोगों में” या इस युग के मनुष्यों में” यह स्वर्गिक प्राणियों या पुनरूत्थान के बाद के मनुष्यों में अन्तर प्रकट करता है।
उस संस्कृति में कहा जाता था कि पुरूष स्त्री से विवाह करता है और स्त्री विवाह में पुरूष को दी जाती है। इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “विवाह करते है”
“जिन्हें परमेश्वर ने योग्य स्वीकार किया है”
“पुनरुत्थान प्राप्त करे” या “फिर जी उठें”।
“विवाह नहीं करेंगे”, यह पुनरूत्थान के बाद है
इसका अनुवाद हो सकता है, “वे फिर कभी नहीं मरेंगे”, पुनरूत्थान के बाद।
“परमेश्वर की सन्तान”
“मृतकों में से जी उठे लोग”
इसका अनुवाद हो सकता है, “मृतकों में से जी उठने के द्वारा वे परमेश्वर की सन्तान होंगे”।
(यीशु अपने चेलों से ही बातें कर रहा है)
“परन्तु मूसा ने भी सिद्ध किया है कि मृतक जी उठते है”, यहाँ “भी” शब्द का उपयोग किया गया है क्योंकि सदूकियों के लिए धर्मशास्त्र में मृतकों के जी उठने का उल्लेख कोई आश्चर्य की बात नहीं थी परन्तु उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि मूसा ऐसा कुछ कहेगा।
“धर्मशास्त्र में जहाँ उसने जलती हुई भस्म न होने वाली झाड़ी का उल्लेख किया है” या “धर्मशास्त्र में अविनाशी जलती हुई झाड़ी की चर्चा करते समय”
“जब मूसा परमेश्वर को”
“अब्राहम, इसहाक और मूसा का परमेश्वर” कहता है”
“परमेश्वर मृतकों का परमेश्वर नहीं है” या “परमेश्वर मृतकों का परमेश्वर नहीं” जिनकी आत्माएं मर चुकी हैं”।
“जीवित मनुष्यों का परमेश्वर है” या “उन मनुष्यों का परमेश्वर है जिनकी आत्माएं अमर हैं”। यदि यह स्पष्ट न हो तो आपको संलग्न जानकारी व्यक्त करने की आवश्यकता होगी, “यद्यपि उनका शरीर मृतक है।
“क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में वे सब जीवित हैं” इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “क्योंकि परमेश्वर जानता है कि उनकी आत्माएं जीवित हैं”
“कुछ विधि-शास्त्रियों ने यीशु से कहा”
“वे उससे पूछने में डरे” या “उससे पूछने का साहस न किया” प्रश्नों के उद्देश्य का निहितार्थ और प्रश्न न पूछने का कारण स्पष्ट किया जा सकता है, “उन्होंने उससे और अधिक चतुराई के प्रश्न नहीं पूछे क्योंकि उन्हें डर था कि उसके उत्तर उन्हें मूर्ख सिद्ध कर देंगे”।
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे क्यों कहते हैं कि” या “मैं उनकी इस बात पर चर्चा करूंगा”
“राजा दाऊद का वंशज”, यहाँ सन्तान शब्द का अर्थ है, वंशज। यह परमेश्वर के राज्य में राज करनेवाले के विषय में कहा गया है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “प्रभु परमेश्वर ने मेरे प्रभु कहा” या “परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा। यह एक भजन का उद्धरण है, “यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा, परन्तु यहूदी “यहोवा” शब्द का उपयोग नहीं करते थे। वे इसके स्थान में “प्रभु” शब्द का उपयोग करते थे।
दाऊद मसीह को अपना प्रभु कह रहा हथा
दाहिनी ओर सम्मान का स्थान होता है। परमेश्वर मसीह को सम्मान देने के लिए कहता है, “मेरे दाहिने बैठ”
यह एक रूपक है। इसका अनुवाद किया जा सकता है, “जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों की चौकी सा न कर दूँ”, या “जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे लिए जीत न लूँ”।
“पाँवों के नीचे”
“तो मसीह दाऊद का वंशज कैसे हुआ”? यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इससे स्पष्ट होता है कि मसीह दाऊद की सन्तान मात्र नहीं है”।
“सावधान रहो”।
लम्बे वस्त्र उनके महत्त्व का प्रतीक थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जिनको सम्मानसूचक वस्त्र धारण करके बाहर निकलना अच्छा लगता है”।
“वे विधवाओं के घर लूटते हैं”। यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, “वे विधवाओं की सम्पदा हड़पते हैं”।
यहाँ “घर” का अर्थ है, सम्पदा।
“वे धर्मी होने का ढोंग रखकर देर तक प्रार्थना की मुद्रा में रहते है” या “वे देर तक प्रार्थना की मुद्रा में खड़े रहते हैं कि लोग उन्हें धर्मी समझें।
“कि मनुष्य उन्हें वह समझे जो वे नहीं हैं” या “कि मनुष्य उन्हें अपने से अधिक अच्छा समझें”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वे अन्यों से अधिक दण्ड पाएंगे” या “परमेश्वर उन्हें दूसरों की तुलना में अधिक कठोर दण्ड देगा”
यीशु ने पूछा, "यूहन्ना का बपतिस्मा स्वर्ग से था या मनुष्यों से"?
वे सोचने लगे कि यीशु पूछेगा कि उन्होंने उसमें विश्वास क्यों नहीं किया।
वे सोचने लगे जन समूह उन पर पत्थराव करेगा।
उन्होंने दासों को मारा-पीटा, उन्हें लज्जित किया और खाली हाथ लौटा दिया।
अन्त में उसने अपने प्रिय पुत्र को भेजा।
उन्होंने उसे दाख की बारी के बाहर करके उसकी हत्या कर दी।
वह उन किसानों को नष्ट करके किसी और को दाख की बारी दे देगा?
उसने शास्त्रियों और महायाजकों पर यह दृष्टान्त सुनाये थे?
यीशु ने कहा जो कैसर का है वह कैसर को दो और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो।
वे मृतकों के पुनरूत्थान में विश्वास नहीं करते थे।
विवाह, इस संसार का है अनन्त जीवन का नहीं।
यीशु ने मूसा और जलती हुई झाड़ी का उदाहरण दिया जहां परमेश्वर को अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर कहा गया है।
यीशु ने उद्धारण दिया, "प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा, मेरे दहिने ओर बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों के तले न कर दूं"।
वे विधवाओं के घरों को खा जाते थे और दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी प्रार्थनाएं करते थे।
वे अधिक दण्ड पाएंगे।
1 फिर उसने आँख उठाकर धनवानों को अपना-अपना दान भण्डार में डालते हुए देखा। 2 और उसने एक कंगाल विधवा को भी उसमें दो दमड़ियाँ डालते हुए देखा। 3 तब उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि इस कंगाल विधवा ने सबसे बढ़कर डाला है। 4 क्योंकि उन सब ने अपनी-अपनी बढ़ती में से दान में कुछ डाला है, परन्तु इसने अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी है।”
5 जब कितने लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे, कि वह कैसे सुन्दर पत्थरों और भेंट* की वस्तुओं से संवारा गया है, तो उसने कहा, 6 “वे दिन आएँगे, जिनमें यह सब जो तुम देखते हो, उनमें से यहाँ किसी पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।”
7 उन्होंने उससे पूछा, “हे गुरु, यह सब कब होगा? और ये बातें जब पूरी होने पर होंगी, तो उस समय का क्या चिन्ह होगा?” 8 उसने कहा, “सावधान रहो, कि भरमाए न जाओ, क्योंकि बहुत से मेरे नाम से आकर कहेंगे, कि मैं वही हूँ; और यह भी कि समय निकट आ पहुँचा है: तुम उनके पीछे न चले जाना। (1 यूह. 4:1, मर. 13:21-23) 9 और जब तुम लड़ाइयों और बलवों की चर्चा सुनो, तो घबरा न जाना; क्योंकि इनका पहले होना अवश्य है; परन्तु उस समय तुरन्त अन्त न होगा।”
10 तब उसने उनसे कहा, “जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा। (2 इति. 15:5-6, यशा. 19:2) 11 और बड़े-बड़े भूकम्प होंगे, और जगह-जगह अकाल और महामारियाँ पड़ेंगी, और आकाश में भयंकर बातें और बड़े-बड़े चिन्ह प्रगट होंगे। 12 परन्तु इन सब बातों से पहले वे मेरे नाम के कारण तुम्हें पकड़ेंगे, और सताएँगे, और आराधनालयों में सौंपेंगे, और बन्दीगृह में डलवाएँगे, और राजाओं और राज्यपालों के सामने ले जाएँगे। 13 पर यह तुम्हारे लिये गवाही देने का अवसर हो जाएगा। 14 इसलिए अपने-अपने मन में ठान रखो कि हम पहले से उत्तर देने की चिन्ता न करेंगे। 15 क्योंकि मैं तुम्हें ऐसा बोल और बुद्धि दूँगा, कि तुम्हारे सब विरोधी सामना या खण्डन न कर सकेंगे। 16 और तुम्हारे माता-पिता और भाई और कुटुम्ब, और मित्र भी तुम्हें पकड़वाएँगे; यहाँ तक कि तुम में से कितनों को मरवा डालेंगे। 17 और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे। 18 परन्तु तुम्हारे सिर का एक बाल भी बाँका न होगा*। (मत्ती 10:30, लूका 12:7) 19 “अपने धीरज से तुम अपने प्राणों को बचाए रखोगे।
20 “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। 21 तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएँ, और जो यरूशलेम के भीतर हों वे बाहर निकल जाएँ; और जो गाँवों में हो वे उसमें न जाएँ। 22 क्योंकि यह पलटा लेने के ऐसे दिन होंगे, जिनमें लिखी हुई सब बातें पूरी हो जाएँगी। (व्य. 32:35, यिर्म. 46:10) 23 उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय, हाय! क्योंकि देश में बड़ा क्लेश और इन लोगों पर बड़ी आपत्ति होगी। 24 वे तलवार के कौर हो जाएँगे, और सब देशों के लोगों में बन्धुए होकर पहुँचाए जाएँगे, और जब तक अन्यजातियों का समय पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्यजातियों से रौंदा जाएगा। (एज्रा 9:7, भज. 79:1, यशा. 63:18, यिर्म. 21:7, दानि. 9:26)
25 “और सूरज और चाँद और तारों में चिन्ह दिखाई देंगे, और पृथ्वी पर, देश-देश के लोगों को संकट होगा; क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएँगे। (भज. 46:2-3, भज. 65:7, यशा. 13:10, यशा. 24:19, यहे. 32:7, योए. 2:30) 26 और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाँट देखते-देखते लोगों के जी में जी न रहेगा* क्योंकि आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। (लैव्य. 26:36, हाग्गै 2:6, हाग्गै 2:21) 27 तब वे मनुष्य के पुत्र को सामर्थ्य और बड़ी महिमा के साथ बादल पर आते देखेंगे। (प्रका. 1:7, दानि. 7:13) 28 जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा।”
29 उसने उनसे एक दृष्टान्त भी कहा, “अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो। 30 ज्यों ही उनकी कोंपलें निकलती हैं, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। 31 इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है। 32 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का कदापि अन्त न होगा। 33 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।
34 “इसलिए सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फन्दे के समान अचानक आ पड़े। 35 क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। (प्रका. 3:3, लूका 12:40) 36 इसलिए जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े* होने के योग्य बनो।”
37 और वह दिन को मन्दिर में उपदेश करता था; और रात को बाहर जाकर जैतून नाम पहाड़ पर रहा करता था। 38 और भोर को तड़के सब लोग उसकी सुनने के लिये मन्दिर में उसके पास आया करते थे।
“पैसों का दान”
“दान पात्र” या “मन्दिर में दान देने का पात्र” (यू.डी.बी.) यह मन्दिर में एक पात्र था जिसमें श्रद्धालु धन डालते थे।
“दो सबसे छोटे सिक्के” या “ताम्बे के दो सिक्के” उस समय की मुद्रा में इन सिक्कों का मूल्य सबसे कम था। इसका अनुवाद आपके पैसों में सबसे कम कीमत के सिक्कों में किया जा सकता है, जैसे दो पैसा”
यीशु अपने शिष्यों से कह रहा है इसलिए “तुम” शब्द बहुवचन है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अपनी बहुतायत में से थोड़ा डाला है”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उसके पास बहुत थोड़ा ही था और उसने वह सब डाल दिया है”
“अपनी आवश्यकता में से” या “उसके पास जो थोड़ा सा था उसमें से”
“मनुष्यों ने जो परमेश्वर को जो भेंट चढ़ाई”
“एक समय ऐसा आयेगा” या “एक दिन”
इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में किया जा सकता है, “हर एक पत्थर उखाड़ा जाएगा” इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “शत्रु पत्थर के ऊपर पत्थर नहीं रहने देंगे।
इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में किया जा सकता है, “पूर्णतः नाश किया जाएगा”, इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में भी किया जा सकता है, “शत्रु एक पत्थर को उखाड़ फेंकेंगे”
“शिष्यों ने यीशु से पूछा” या “यीशु के शिष्यों से उससे पूछा”
जिन बातों के विषय यीशु ने अभी-अभी कहा था। यीशु ने मन्दिर के विनाश के बारे में कहा था।
“कि झूठ पर विश्वास न करो”, यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा था, अतः “तुम” शब्द बहुवचन में है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरे होने का दावा करेंगे” या “मेरे अधिकार का दावा करेंगे”।
“संसार का अन्त” या “सब बातों का अन्त”
“लड़ाइयों” और बलवों के समय तुरन्त अन्त न होगा”। संज्ञा शब्द “अन्त” का अनुवाद क्रिया रूप में भी किया जा सकता है, “इन बातों के साथ संसार समाप्त नहीं होगा”
“तब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा” क्योंकि यह पिछले पद में यीशु की बातों का ही अग्रिम भाग है इसलिए कुछ अनुवादक उचित समझते हैं कि इसका प्रस्तुतिकरण इस प्रकार किया जाए, “तब उसने उनसे कहा”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “एक जाति दूसरी जाति पर आक्रमण करेगी”।
यह देश नहीं जाति है।
एक राज्य दूसरे राज्य के विरूद्ध उठेगा, या “एक राजा दूसरे पर आक्रमण करेगा”
“अकाल पड़ेगे” और बीमारियां फैलेंगी” या “भूख से और बीमारियों से बहुत लोग मर जायेंगे”
“मनुष्यों को भयभीत करने वाली बातें या “ऐसी घटनाएं घटेंगी कि मनुष्य डर से कांप उठेगा”
(यीशु अपने शिष्यों से भविष्यद्वाणी कर रहा है)
यीशु ने जो भयानक भावी घटनाएं सुनाई।
“तुम्हें बन्दी बनाएंगे” या “तुम्हें दबोच लेंगे” कुछ भाषाओं में कर्ता का उल्लेख करना आवश्यक होता है, “लो तुम्हें बन्दी बनाएंगे” या “बैरी तुम्हें बन्दी बनाएंगे”
यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा है इसलिए “तुम” शब्द बहुवचन में है।
“तुम्हें आराधनालयों के अगुओं के हाथों में सौंपेगें”। आराधनालयों के अगुवे यीशु के शिष्यों से संबन्ध रखने से यहूदियों का संबन्ध विच्छेद करवा देंगे क्योंकि ये यीशु के शिष्य हैं।
“कारावास में डलवा देंगे” या “कारावास में डाल देंगे”
“मेरे बारे में अपनी गवाही देने”
(यीशु अपने शिष्यों से भविष्यद्वाणी कर रहा है)
“निश्चय कर लो” या दृढ़ संकल्प कर लो”
“आरोपों के लगाए जाने पर प्रतिवाद में अपनी सुरक्षा हेतु कुछ कहने के लिए समय से पूर्व चिन्ता नहीं करें”
“बुद्धि के वचन” या “बुद्धिमानी की बातें”
“मैं तुम्हें बताऊंगा कि बुद्धि की कैसी बातें करो”
इसका अर्थ है, “तुम्हारे विरोधी निरूत्तर हो जाएंगे या तुम्हारी बात को गलत सिद्ध नहीं कर पाएंगे।
(यीशु अपने शिष्यों से भविष्यद्वाणी कर रहा है)
“तुम्हें अधिकारियों के हाथों में सौंपा जायेंगा” या “तुम्हारे साथ विश्वासघात किया जाएगा”।
“तुममें से कुछ को तो वे मार भी डालेंगे” इसके संभावित अर्थ हैं (1) अधिकारी तुममें से कुछ को मरवा डालेंगे” या (2) जो तुम्हें पकड़वाएंगे वे कुछ को तो मार ही डालेंगे”, पहला अर्थ अधिक उचित है।
“मेरे कारण” या “क्योंकि तुम मेरे अनुयायी हो”
इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में किया जा सकता है, “तुम्हारे सिर का एक-एक बाल सुरक्षित रहेगा”। यह एक अलंकार है जिसका अर्थ है, “तुम्हें कोई हानि न होगी” मनुष्य के सबसे छोटे भाग का संदर्भ देते हुए इस बात पर बल दिया जाता है कि मनुष्य पूरा का पूरा सुरक्षित रहेगा। यीशु ने पहले ही कह दिया है कि कुछ को मार डाला जाएगा। अतः कुछ विचारकों का मानना है कि इसका अभिप्राय आत्मिक सुरक्षा से है जैसा “इनसे तुम्हें वास्तव में कोई हानि न होगी” में है।
“दृढ़ रहने के द्वारा” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि तुमने विश्वास न किया”
“तुम जीवन पाओगे” या “सदा जीवित रहोगे”।
(यीशु अपने शिष्यों से भविष्यद्वाणी कर रहा है)
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “जब तुम देखो कि सेनाओं ने यरूशलेम को घेर लिया है”
“कि वह शीघ्र ही उजड़ जाएगा” या “वे शीघ्र ही उसे नष्ट कर देंगे”।
“संकट से दूर भाग जाएं”
“यह दण्ड के दिन होंगे” या “उन दिनों में मनुष्य को दण्ड दिया जाएगा” या “उस समय परमेश्वर इस नगर को दण्ड देगा”।
“धर्मशास्त्र में जो बातें लिखी है”।
(यीशु अपने शिष्यों से भविष्यद्वाणी कर रहा है)
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) देशवासियों पर विपत्ति आएगी” या (2) देश में शारीरिक कष्ट का समय होगा”
इन लोगों पर क्रोध उगला जाएगा, इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ये लोग परमेश्वर के क्रोध का अनुभव करेंगे” या “परमेश्वर इन लोगों से बहुत क्रोधित होगा”। यहाँ दण्ड का सलंग्न अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है, “इन लोगों को दण्ड दिया जाएगा” या “परमेश्वर इन लोगों को दण्ड देगा”
“वे तलवार से मारे जाएंगे” शत्रु के सैनिक उन्हें मार डालेंगे।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है। उनके बैरी उन्हें बन्दी बनाकर अन्य देशों में ले जाएंगे।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) अन्य जातियाँ यरूशलेम को जीतकर उसमें वास करेगी या (2) अन्य जातियां यरूशलेम के निवासियों को नष्ट कर देंगी।
(यीशु अपने शिष्यों से भविष्यद्वाणी कर रहा है)
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सब जातियों के लोगों पर विपत्ति आएगी” या “सब जातियों में जिज्ञासा उत्पन्न होगी”
“क्योंकि वे समुद्र की गर्जन और लहरों की ध्वनि से घबरा जाएंगे” या “वे समुद्र की प्रबल ध्वनि एवं लहरों की तीव्र गति देख कर डर से भर जाएंगे। यह समुद्री तूफान और विनाशकारी गति के संबन्ध में है।
“संसार में होने वाली घटनाओं” या “संसार पर घटनाओं के घटने के कारण”
“आकाश की शक्तिशाली वस्तुएं हिल जायेंगी” इसके संभावित अर्थ है, (1) सूर्य, चाँद, सितारे अपनी सामान्य गति से विचलित हो जाएंगे या (2) आकाश की शक्तिशाली आत्माएं घबरा जाएंगी। पहला अर्थ अधिक उत्तम है।
(यीशु अपने शिष्यों से भविष्यद्वाणी कर रहा है)
यीशु स्वयं को संबोधित कर रहा है
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “बादल पर सवार उतरते देखेंगे”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “सामर्थ्य ओर महिमा से पूर्ण” या “वह सामर्थी एवं महिमामय होगा” यहाँ सामर्थ्य का अर्थ उसके अधिकार से है कि वह संसार का न्याय करेगा। “महिमा” का यहाँ अर्थ है, तीव्र प्रकाश से आवृत्त। परमेश्वर कभी-कभी अपनी महानता तीव्र प्रकाश द्वारा दर्शाता है।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आत्म-विश्वास के साथ खड़े होकर”। जब मनुष्य डरता है तब वह झुक कर खड़ा होता है कि देखा न जाए या क्षतिग्रस्त न हो। जब वे निडर होते है तब सीना तानकर खड़े होते हैं।
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “ऊपर देखना”। आप देखने पर उन्हें अपना उद्धारक आता दिखाई देगा।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम्हारा उद्धारक तुम्हारे पास आ रहा है” या “तुम शीघ्र ही बचाए जाओगे”।
“जब उनमें नए पत्ते आते है”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मनुष्य स्वयं ही देखकर समझ जाता है”,
“ग्रीष्मकाल का आरंभ होने वाला है”। इस्त्राएल में ग्रीष्मकाल बहुत सूखा होता है। अतः फसल ग्रीष्मकाल के आगमन से पूर्व ही काट ली जाती है। इसका अर्थ है, “कटनी का समय आ गया है” यह सलंग्न जानकारी है जो वे देखकर समझ जाते हैं।
परमेश्वर का राज्य शीघ्र ही स्थापित होगा” या “परमेश्वर अपने राज्य पर शासन करेगा”
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) वह पीढ़ी जो यीशु द्वारा बताए गए चिन्हों में से पहला देखेगी या (2) जिस पीढ़ी से यीशु बातें कर रहा था। पहला अधिक संभव है।
“आकाश और पृथ्वी का अन्त हो जाएगा” यहाँ आकाश का अर्थ है ब्रह्माण्ड और उसके परे सब कुछ”
“मैंने जो कहा है वह अटल है”, या “मेरे वचन अचूक हैं”। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “मेरा कहा पूरा होकर रहेगा” या “मैंने जो कह दिया वह अवश्य होगा”।
“कि तुम व्यस्त न हो जाओ”
“असंयम भोग-विलास” या “अच्छी लगनेवाली बातों में लीन हो जाएं” इसका अनुवाद विशिष्ट उदाहरण देकर किया जा सकता है, जैसे अत्यधिक सुखभोग”।
“इस जीवन में बहुत चिन्ता करने में”
कुछ अनुवादकों को निहितार्थ व्यक्त करने की आवश्यकता पड़ेगी, “यदि तुम सतर्क नहीं रहे तो वह दिन अचानक आ जाएगा” जो सतर्क न रहें और प्रतीक्षारत न रहें उनके लिए वह दिन अचानक ही होगा।
इसका अनुवाद अधिक निश्चित रूप में किया जा सकता है, “वह दिन जब मनुष्य का पुत्र आएगा”
यह एक उपमा है जिसका अर्थ है, जब तुम्हें उसकी आशा न हो जैसे कि फन्दा अचानक ही पशु को फंसा लेता है।
“वह सब पर प्रभावी होगा” या “उस दिन की घटनाएं सबके लिए होंगी।
“संपूर्ण धरातल पर” या “संपूर्ण पृथ्वी पर”
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) इन सब बातों को सहने योग्य शक्तिशाली हो”, (2) इनसे बचने में सामर्थ हो”
“जो बातें होने वाली हैं” यीशु ने अभी-अभी उन्हें होनेवाली भयानक बातों के बारे में बताया जैसे सताव, युद्ध और बन्दीकरण।
“मनुष्य के पुत्र के समक्ष आत्म-विश्वास से खड़े होने योग्य हो” यह संभवत‘ मनुष्य के पुत्र द्वारा सबका न्याय करने के संदर्भ में है। जो मनुष्य तैयार नहीं होगा वह मनुष्य के पुत्र से डरेगा और आत्म-विश्वास के साथ खड़ा नहीं होगा।
“दिन के समय वह मन्दिर में उपदेश देता था” आगे के पदों से ज्ञात होगा कि यीशु और अन्य लोग यीशु की मृत्यु से पूर्व उस सप्ताह प्रतिदिन क्या-क्या करते थे।
इसका अर्थ है, “मन्दिर परिसर में”
“रात में वह नगर से बाहर चला जाता था” या “प्रतिदिन रात में वह नगर से बाहर चला जाता था।
यह एक अतिशयोक्ति है। इसका अर्थ है “बहुत बड़ी संख्या में मनुष्य” या “लगभग सब ही”
“दिन तड़के ही लोग आ जाते थे” या “प्रतिदिन सुबह भोर को ही”
“उसकी शिक्षा सुनने”
क्योंकि उसने अपनी गरीबी में से दिया जबकि अन्यों ने अपनी बहुतायत में से दिया था।
यीशु ने कहा कि मन्दिर ध्वंस किया जायेगा और वहाँ पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा।
?
वे कहेंगे, "मैं वही हूँ", और "समय निकट आ पहुंचा है"।
उस समय युद्ध होंगे, भूकम्प होंगे, अकाल पड़ेंगे, महामारियां होंगी, आकाश में भयंकर बातों के चिन्ह प्रकट होंगे।
इससे उनकी गवाही के लिए अवसर उत्पन्न होंगे।
माता-पिता, भाई, संबन्धी, मित्र और "हर एक जन" उनसे घृणा करेगा।
जब यरूशलेम सेनाओं से घिर जाएगा तब उसका विनाश निकट होगा।
यीशु ने उनसे कहा कि वे पहाड़ों में भाग जाएं, नगर को त्याग दें और नगर में प्रवेश भी न करें।
यीशु ने उस समय को बदला लेने के दिन कहा जिनमें लिखी हुई सब बातें पूरी हो जायेंगी।
जब तक अन्य जातियों का समय पूरा न हो तब तक यरूशलेम अन्य जातियों से रौंदा जायेगा।
यीशु ने कहा कि चांद, सूरज और तारों में चिन्ह दिखाई देंगे, पृथ्वी पर सब जातियों में क्लेश होगा।
यीशु ने अंजीर के वृक्ष का उदाहरण देकर कहा कि जब उसमें कोंपले निकलती हैं तो वे जान लेते हैं कि ग्रीष्मकाल निकट है।
आकाश और पृथ्वी टल जायेंगे।
यीशु की बातें कभी नहीं टलेंगी।
यीशु ने उन्हें चेतावनी दी कि उनके मन खुमार, मतवाले पन, और जीवन की चिन्ता से सुस्त न हो जाएं।
यीशु ने उनसे कहा कि वे सावधान रह कर प्रार्थना करें।
1 अख़मीरी रोटी का पर्व जो फसह कहलाता है, निकट था। 2 और प्रधान याजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उसको कैसे मार डालें, पर वे लोगों से डरते थे।
3 और शैतान यहूदा में समाया*, जो इस्करियोती कहलाता और बारह चेलों में गिना जाता था। 4 उसने जाकर प्रधान याजकों और पहरुओं के सरदारों के साथ बातचीत की, कि उसको किस प्रकार उनके हाथ पकड़वाए। 5 वे आनन्दित हुए, और उसे रुपये देने का वचन दिया। 6 उसने मान लिया, और अवसर ढूँढ़ने लगा, कि बिना उपद्रव के उसे उनके हाथ पकड़वा दे।
7 तब अख़मीरी रोटी के पर्व का दिन आया, जिसमें फसह का मेम्ना बलि करना अवश्य था। (निर्ग. 12:3,6,8,14) 8 और यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा, “जाकर हमारे खाने के लिये फसह तैयार करो।” 9 उन्होंने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है, कि हम तैयार करें?” 10 उसने उनसे कहा, “देखो, नगर में प्रवेश करते ही एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा, जिस घर में वह जाए; तुम उसके पीछे चले जाना, 11 और उस घर के स्वामी से कहो, ‘गुरु तुझ से कहता है; कि वह पाहुनशाला कहाँ है जिसमें मैं अपने चेलों के साथ फसह खाऊँ?’ 12 वह तुम्हें एक सजी-सजाई बड़ी अटारी दिखा देगा; वहाँ तैयारी करना। 13 उन्होंने जाकर, जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया, और फसह तैयार किया।
14 जब घड़ी पहुँची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा। 15 और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी, कि दुःख-भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊँ। 16 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक वह परमेश्वर के राज्य में पूरा न हो तब तक मैं उसे कभी न खाऊँगा।” 17 तब उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया और कहा, “इसको लो और आपस में बाँट लो। 18 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक परमेश्वर का राज्य न आए तब तक मैं दाखरस अब से कभी न पीऊँगा।” 19 फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये दी जाती है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” 20 इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है। (निर्ग. 24:8, 1 कुरि. 11:25, मत्ती 26:28, जक. 9:11) 21 पर देखो, मेरे पकड़वानेवाले का हाथ मेरे साथ मेज पर है। (भज. 41:9) 22 क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके लिये ठहराया गया, जाता ही है, पर हाय उस मनुष्य पर, जिसके द्वारा वह पकड़वाया जाता है!” 23 तब वे आपस में पूछ-ताछ करने लगे, “हम में से कौन है, जो यह काम करेगा?”
24 उनमें यह वाद-विवाद भी हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है? 25 उसने उनसे कहा, “अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं। 26 परन्तु तुम ऐसे न होना; वरन् जो तुम में बड़ा है, वह छोटे के समान और जो प्रधान है, वह सेवक के समान बने। 27 क्योंकि बड़ा कौन है; वह जो भोजन पर बैठा या वह जो सेवा करता है? क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है? पर मैं तुम्हारे बीच में सेवक के समान हूँ।
28 “परन्तु तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे; 29 और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूँ। 30 ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पीओ; वरन् सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।
31 “शमौन, हे शमौन, शैतान ने तुम लोगों को माँग लिया है कि गेंहूँ के समान फटके*। 32 परन्तु मैंने तेरे लिये विनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे और जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।” 33 उसने उससे कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, वरन् मरने को भी तैयार हूँ।” 34 उसने कहा, “हे पतरस मैं तुझ से कहता हूँ, कि आज मुर्गा बाँग देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि मैं उसे नहीं जानता।”
35 और उसने उनसे कहा, “जब मैंने तुम्हें बटुए, और झोली, और जूते बिना भेजा था, तो क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुई थी?” उन्होंने कहा, “किसी वस्तु की नहीं।” 36 उसने उनसे कहा, “परन्तु अब जिसके पास बटुआ हो वह उसे ले, और वैसे ही झोली भी, और जिसके पास तलवार न हो वह अपने कपड़े बेचकर एक मोल ले। 37 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यह जो लिखा है, ‘वह अपराधी के साथ गिना गया,’ उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है; क्योंकि मेरे विषय की बातें पूरी होने पर हैं।” (गला. 3:13, 2 कुरि. 5:21, यशा. 53:12)
38 उन्होंने कहा, “हे प्रभु, देख, यहाँ दो तलवारें हैं।” उसने उनसे कहा, “बहुत हैं।”
39 तब वह बाहर निकलकर अपनी रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछे हो लिए। 40 उस जगह पहुँचकर उसने उनसे कहा, “प्रार्थना करो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।” 41 और वह आप उनसे अलग एक ढेला फेंकने की दूरी भर गया, और घुटने टेककर प्रार्थना करने लगा। 42 “हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, फिर भी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।” 43 तब स्वर्ग से एक दूत उसको दिखाई दिया जो उसे सामर्थ्य देता था*। 44 और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हार्दिक वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी-बड़ी बूँदों के समान भूमि पर गिर रहा था। 45 तब वह प्रार्थना से उठा और अपने चेलों के पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया। 46 और उनसे कहा, “क्यों सोते हो? उठो, प्रार्थना करो, कि परीक्षा में न पड़ो।”
47 वह यह कह ही रहा था, कि देखो एक भीड़ आई, और उन बारहों में से एक जिसका नाम यहूदा था उनके आगे-आगे आ रहा था, वह यीशु के पास आया, कि उसका चूमा ले। 48 यीशु ने उससे कहा, “हे यहूदा, क्या तू चूमा लेकर मनुष्य के पुत्र को पकड़वाता है?” 49 उसके साथियों ने जब देखा कि क्या होनेवाला है, तो कहा, “हे प्रभु, क्या हम तलवार चलाएँ?” 50 और उनमें से एक ने महायाजक के दास पर तलवार चलाकर उसका दाहिना कान उड़ा दिया। 51 इस पर यीशु ने कहा, “अब बस करो।” और उसका कान छूकर उसे अच्छा किया। 52 तब यीशु ने प्रधान याजकों और मन्दिर के पहरुओं के सरदारों और प्राचीनों से, जो उस पर चढ़ आए थे, कहा, “क्या तुम मुझे डाकू जानकर तलवारें और लाठियाँ लिए हुए निकले हो? 53 जब मैं मन्दिर में हर दिन तुम्हारे साथ था, तो तुम ने मुझ पर हाथ न डाला; पर यह तुम्हारी घड़ी है, और अंधकार का अधिकार है।”
54 फिर वे उसे पकड़कर ले चले, और महायाजक के घर में लाए और पतरस दूर ही दूर उसके पीछे-पीछे चलता था। 55 और जब वे आँगन में आग सुलगाकर इकट्ठे बैठे, तो पतरस भी उनके बीच में बैठ गया। 56 और एक दासी उसे आग के उजियाले में बैठे देखकर और उसकी ओर ताक कर कहने लगी, “यह भी तो उसके साथ था।” 57 परन्तु उसने यह कहकर इन्कार किया, “हे नारी, मैं उसे नहीं जानता।” 58 थोड़ी देर बाद किसी और ने उसे देखकर कहा, “तू भी तो उन्हीं में से है।” पतरस ने कहा, “हे मनुष्य मैं नहीं हूँ।” 59 कोई घंटे भर के बाद एक और मनुष्य दृढ़ता से कहने लगा, “निश्चय यह भी तो उसके साथ था; क्योंकि यह गलीली है।” 60 पतरस ने कहा, “हे मनुष्य, मैं नहीं जानता कि तू क्या कहता है?” वह कह ही रहा था कि तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी। 61 तब प्रभु ने घूमकर पतरस की ओर देखा, और पतरस को प्रभु की वह बात याद आई जो उसने कही थी, “आज मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” 62 और वह बाहर निकलकर फूट-फूट कर रोने लगा।
63 जो मनुष्य यीशु को पकड़े हुए थे, वे उसका उपहास करके पीटने लगे; 64 और उसकी आँखें ढाँपकर उससे पूछा, “भविष्यद्वाणी करके बता कि तुझे किसने मारा।” 65 और उन्होंने बहुत सी और भी निन्दा की बातें उसके विरोध में कहीं।
66 जब दिन हुआ तो लोगों के पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री इकट्ठे हुए, और उसे अपनी महासभा में लाकर पूछा, 67 “यदि तू मसीह है, तो हम से कह दे!” उसने उनसे कहा, “यदि मैं तुम से कहूँ तो विश्वास न करोगे। 68 और यदि पूछूँ, तो उत्तर न दोगे। 69 परन्तु अब से मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठा रहेगा।” (मर. 14:62, भज. 110:1) 70 इस पर सब ने कहा, “तो क्या तू परमेश्वर का पुत्र है?” उसने उनसे कहा, “तुम आप ही कहते हो, क्योंकि मैं हूँ।” 71 तब उन्होंने कहा, “अब हमें गवाही की क्या आवश्यकता है; क्योंकि हमने आप ही उसके मुँह से सुन लिया है।”
इस पर्व को अखमीरी रोटी का पर्व इसलिए कहते हैं कि उस दिन यहूदी खमीर किए हुए आटे की रोटी नहीं खाते थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह पर्व का दिन जब वे अखमीरी रोटी खाते थे”
जिस रोटी में आटे को फुलानेवाला खमीर नहीं मिलाया जाता थां इसे “खमीररहित रोटी” भी कह सकते हैं।
“आरंभ होने पर था”
“वे यीशु को मार डालने का उपाय खोज रहे थे” याजकों और विधि-शास्त्रियों को अधिकार नहीं था कि यीशु की हत्या करें परन्तु वे उसकी हत्या करवाने के लिए किसी को खोज रहे थे।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) मनुष्य क्या करेंगे, इसका उन्हें डर था। या (2) डरते थे कि लोग यीशु को राजा बनाएंगे।
यह लगभग दुष्टात्माग्रस्त होने जैसा था
याजकों के प्रधान
“मन्दिर के सुरक्षाकर्मियों के कप्तानों
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यीशु को पकड़ने में कैसे उनकी सहायता कर सकता है”।
“प्रधान पुरोहित और सुरक्षा अधिकारी”
अर्थात यहूदा को
“सहमत हो गया” यद्यपि यह आवृत्तिमय है।
“यीशु को पकड़ने में उनकी सहायता करे”
“अकेले में” या “जब वह भीड़ में न हो”
“खमीररहित रोटी का दिन” या “इस दिन यहूदी अपने घर में से खमीरी रोटी यहूदी अपने घर में से खमीरी रोटी का पूरा निशान मिटा देते थे तदोपरान्त सात दिन तक वे अखमीरी रोटी का पर्व मनाते थे।
“फसह के भोज के लिए मेम्ना वध करना आवश्यक था” प्रत्येक परिवार या कुछ लोग मिलकर एक मेमना मारकर एक साथ खाते थे, बहुत मेम्ने वध किए जाते थे।
हमारे अर्थात उस समय पतरस और यूहन्ना उसके साथ थे। पतरस और यूहन्ना यीशु के फसह भोज के सहभागियों में थे।
यीशु के कहने का अर्थ यह नहीं था कि वे खाना पकाएं परन्तु यह कि उसकी तैयारी करें।
हममें यीशु सम्मिलित नहीं है। यीशु भोज तैयार करने वाले दल में नहीं था।
“भोज की तैयारी करें” या “भोज तैयार करें”।
उसने अर्थात यीशु ने
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम एक मनुष्य को जल का घड़ा लेकर जाते हुए देखोगे”
“पानी से भरा घड़ा लेकर जाते हुए” वह संभवतः अपने कंधे पर घड़ा उठाए हुए होगा
इसका अनुवाद हो सकता है, “उसके पीछे-पीछे उस घर में चले जाना”
शिष्यों को यीशु का निर्देश उद्धरणों में है। यू.डी.बी. में उद्धरणरहित रचना है, “हमारा गुरू कहता है कि हमें वह कक्ष दिखा”।
यह यीशु के सन्दर्भ में है
“फसह का भोज खाऊं”
(यीशु पतरस और यूहन्ना को निर्देश दे रहा है)
“उस मकान का स्वामी तुम्हें दिखाएगा”
“ऊपर का कक्ष” यदि आपके यहाँ घर के ऊपर कमरे नहीं होते है तो आपको शहरों के घरों का वर्णन करना होगा।
“पतरस और यूहन्ना ने जाकर”
मुझे हार्दिक इच्छा थी कि” (यू.डी.बी.)
यह उक्ति यीशु की आगे की बात को महत्त्व पर बल देती है।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) जब तक फसह के पर्व का उद्देश्य पूरा न हो”, (2) जब तक हम अन्तिम फसह भोज को न मनाएं”, इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “जब तक परमेश्वर इसे पूरा न करे” या “जब तक परमेश्वर फसह के पर्व का उद्देश्य पूरा न करे”
“उसने परमेश्वर को धन्यवाद दिया”
“अपने शिष्यों से कहा”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इस दाखरस को आपस में बांट लो” या “सब इसमें से पीओ”
यह उक्ति यीशु की आगे की बात को महत्त्व पर बल देती है।
“अंगूर का रस” अंगूर के रस को खमीर करके यह दाखरस बनाया जाता था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब तक परमेश्वर के राज्य की स्थापना न हो” या जब तक परमेश्वर अपना राज्य स्थापित न करे” या जब तक परमेश्वर अपने राज्य में शासन न करे”
यह खमीररहित रोटी थी।
उसके दो या अधिक टुकड़े किए होंगे और शिष्य में बांट दी। संभव हो तो दोनों ही परिस्थितियों को व्यक्त करने का प्रयास करें।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) यह रोटी मेरी देह है”, या (2) यह रोटी मेरी देह का प्रतीक है”।
“मेरी देह जो मैं तुम्हारे लिए दूंगा” या “मेरी देह जिसे मैं तुम्हारे लिए बलि चढ़ाऊंगा, जिन भाषाओं में प्राप्तिकर्ताओं को प्रकट करना आवश्यक हो, उनमें अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मेरी देह है जो मैं तुम्हारे लिए घात किए जाने हेतु अधिकारियों को देता हूँ”।
“यह रोटी खाया करो”
“मुझे याद करने के लिए”
कटोरा अर्थात उसमें जो दाखरस था। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “इस कटोरे का दाखरस” या “यह दाखरस”।
“नई वाचा जो मेरे लहू से प्रभावी होगी” या “नई वाचा जो मेरे लहू से विधिवत ठहरेगी”। या “उस नई वाचा का प्रतीक है जो जिसे परमेश्वर मेरे बहाए गए लहू से स्थापित करेगा”।
“मेरा लहू जो मेरी मृत्यु में तुम्हारे लिए बहाया जाएगा” या “मेरा लहू जो मेरे मरते समय मेरे घावों से तुम्हारे ही लिए बहेगा”।
(यीशु अपने शिष्यों से ही बातें कर रहा है)
“जो मुझसे विश्वासघात करेगा”
“निःसन्देह मनुष्य का पुत्र तो जाएगा” या “मनुष्य का पुत्र तो मरेगा ही”
“परन्तु हाय उस पर जो मनुष्य के पुत्र के साथ विश्वासघात करे” या “मनुष्य के पुत्र से विश्वासघात करने वाले का कैसा दुर्भाग्य है”।
“शिष्य आपस में विवाद करने लगे”
“सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाता है”
“यीशु ने अपने शिष्यों से कहा”
“उन पर कठोर निर्दयता से शासन करते हैं” या “उन पर अधिकार का उपयोग करना चाहते हैं”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कहलाना चाहते हैं” या “स्वयं को कहते है।” मनुष्य ऐसे शासकों को संभवतः माननीय शासक नहीं समझते थे।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “संरक्षक” या “मनुष्यों के सहायक अगुवे”
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“तुम्हारी मानसिकता ऐसी न हो”
“सबसे कम महत्त्व का” अगुवे अधिकतर आयु में अधिक होते थे जिन्हें “पुरनिये” कहते थे। “सबसे छोटा मनुष्य के लिए अगुआई के पद की संभावना सबसे कम थी”।
यह संपूर्ण पद 26-27 में दी गई यीशु की आज्ञा से संबन्धित है। यहाँ मुख्य विचार है कि सबसे बड़ा सेवा करे क्योंकि मैं एक सेवक हूं। यीशु जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मनुष्य था उसकी सेवा करता था, अतः उनमें जो सबसे बड़ा था उसे उन सबकी सेवा करना आवश्यक था।
“सेवक”
“बड़ा कौन है” या “कौन अधिक महत्त्वपूर्ण है”? यीशु ने यह आलंकारिक प्रश्न पूछ कर परदेश में महानता के विषय में शिष्यों के प्रश्न का उत्तर दिया। इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं चाहता हूं कि तुम विचार करो कि कौन बड़ा है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह जो भोजन कर रहा है”
“वह जो भोजन परोसता है” या “जो भोजन पर बैठनेवाले की सेवा करता है” यह सेवक का संदर्भ है।
यह भी एक आलंकारिक प्रश्न है। इसका संलग्न उत्तर है, “निश्चय ही जो भोजन पर बैठा है, वह सेवक से बड़ा है”।
“परन्तु” शब्द यहाँ इसलिए है कि मनुष्य जो यीशु से अपेक्षा करते थे और जो वह वास्तव में थे दोनों में विषमता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तथापि मैं तुम्हारी सेवा कर रहा हूं”।
(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)
“मेरे संघर्षों में सदा मेरे साथ रहें”
कुछ भाषाओं में अनुवाद के लिए इसका क्रम बदलने की आवश्यकता होगी, “जैसे मेरे पिता ने मुझको एक राज्य दिया है, ठीक वैसे ही मैं भी तुम्हें एक राज्य देता हूं
“मैं तुम्हें परमेश्वर के राज्य के प्रशासक नियुक्त करता हूं”। (यू.डी.बी.) या “मैं तुम्हें इस राज्य में शासन करने का अधिकार देता हूं” या “मैं तुम्हें राजा बनाऊंगा”।
“जिस प्रकार कि मेरे पिता ने मुझे अपने राज्य में राजा होकर राज करने का अधिकार दिया है”
सिंहासनों पर बैठकर एक लाक्षणिक प्रयोग है जो राजा के उत्तरदायित्वों को निभाते के लिए उपयोग किया गया है। इसका अर्थ है, “तुम राजाओं का कार्यभार देखोगे” या राजाओं के सदृश्य काम करोगे”। (देखें: metonymy)
इसका अनुवाद हो सकता है, “राजाओं के आसन”
(यीशु अब सीधा शमौन से बात करता है)
यीशु ने दो बार उसका नाम लिया जिसका अर्थ है कि यीशु जो कहने जा रहा है, वह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बात है।
“तुम” शब्द सब शिष्यों के लिए है। जिन भाषाओं में तुम के अलग-अलग वचन है उनमें बहुवचन काम में लिया जाए।
यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, “तुम्हें परख कर दोष निकाले” इसका अर्थ स्पष्ट किया जाए जैसा यू.डी.बी. में किया गया है, “तुम्हें परखे”। इसका अनुवाद उपमा देकर भी किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है “जैसे कोई सूप में गेहूँ फटकता है”
यहाँ “तुम” शब्द केवल शमौन के लिए है। जिन भाषाओं में “तुम” के अलग-अलग वचन हैं, उनमें एकवचन काम में लिया जाए।
इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में किया जा सकता है, “कि तू विश्वास में बना रहे” या “तू मुझ में विश्वास करता रहे”
यह अन्य शिष्यों के संदर्भ में है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तेरे सहविष्वासियों को” या “विश्वास में तेरे भाइयों को” या “अन्य शिष्यों को”
(यीशु के कथन पर कि शैतान उन्हें परखेगा, पतरस प्रतिक्रिया दिखाता है)
यहाँ मुर्ग का बांग देना दिन के एक निश्चित समय के लिए लाक्षणिक प्रयोग है। मुर्ग प्रायः भोर के समय बांग देता है।
इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में किया जा सकता है, “मुर्ग के बांग देने से पूर्व तू तीन बार मेरा इन्कार कर चुका होगा” इसका क्रम बदला जा सकता है, “आज मुर्ग के बांग देने से पहले तू तीन बार कहेगा कि मुझे नहीं जानता”
यहूदियों का नया दिन सूर्यास्त से आरंभ होता था। यीशु सूर्यास्त के बाद उनसे बातें कर रहा था। मुर्ग भोर के समय बांग देगा। भोर का समय उसी दिन का भाग था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आज रात” या “सुबह”
यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा है अतः जिस भाषाओं में “तुम्हें” बहुवचन में है उनमें “तुम्हें” का बहुवचन काम में लें।
पैसे रखने का थैला परन्तु यहाँ इसका अर्थ है पैसा।
इसका अनुवाद, “यात्री की झोली” या “भोजन” किया जा सकता है क्योंकि यदि वे झोली लेंगे तो उसमें भोजन लेकर भी चलेंगे।
“क्या तुम्हें किसी भी वस्तु की आवश्यकता पड़ी थी कि वह तुम्हारे पास नहीं है”? यह एक अलंकारिक प्रश्न है कि शिष्य सोचें कि जहाँ वे गए उन्होंने उनकी कैसी सेवा की थी।
“हमें किसी बात की कमी नहीं हुई”
“वस्त्रों के ऊपर पहनने वाला चोगा
यीशु किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं कह रहा था कि यदि उसके पास तलवार न हो तो वह एक खरीद ले। अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जाए, “यदि किसी के पास तलवार नहीं है तो वह अपने वस्त्र बेचकर एक मोल ले ले”।
“मेरे बारे में भविष्यद्वक्ता ने धर्मशास्त्र में जो लिखा है” (यू.डी.बी.)
उसके शिष्य यह तो जानते थे कि धर्मशास्त्र में जो भी लिखा है, उसे परमेश्वर पूरा करेगा।
“मनुष्यों ने उसे भी अपराधियों में से एक माना” कुछ भाषाओं में इसे स्पष्ट व्यक्त करने की आवश्यकता होगी, “धर्मशास्त्र में यह लिखा है, “वह अपराधियों में गिना गया”।
“नियमों का पालन नहीं करनेवाला” या “अपराधी”
यूनानी अभिलेखों में यह वाक्य स्पष्ट नहीं है। इसका संभावित अर्थ है, “मेरे जीवन का अन्त होने को है”
यह कम से कम यीशु के दो शिष्यों के संदर्भ में है।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) इतनी तलवारें पर्याप्त हैं” या (2) इनके विषय इतना कहना भी बहुत है”। जब यीशु ने उनसे तलवारें खरीदने के लिए कहा था तो इसका अर्थ था कि उनके लिए अब संकट उत्पन्न होगा। वह वास्तव में तलवारें लेकर युद्ध करने का विचार नहीं कर रहा था।
फसह के भोजन खाने के बाद वहां से बाहर निकला
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम पर परीक्षा न आए” या “जब तुम पर परीक्षा आए तो पाप में न गिरो” या “तुम पर ऐसी घोर परीक्षा न आए कि पाप करो”
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है, “इतनी दूर कि कोई वहां तक पत्थर फेंक दे”। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “कुछ ही दूर” या अनुमानित दूरी जैसे, “लगभग 30 मीटर दूर”। (यू.डी.बी.)
यह एक रूपक है। यीशु अपने आनेवाले कष्टों के बारे में कह रहा है कि माना वह एक कटोरा है और उसमें भरे कष्ट उसे पीने पड़ेंगे। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “कष्टों का यह कटोरा मुझ से दूर कर दे”। या “मेरे इन कष्टों का निवारा कर” या “मुझे इन कष्टों से छुड़ा ले”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परन्तु मैं चाहता हूं कि मेरी नहीं तेरी ही इच्छा पूरी हो”
“यीशु को एक स्वर्गदूत दिखाई दिया”।
“उसे ढाढ़स बँधाता था”
“मनोव्यथा में प्रार्थना करने लगा
“उसका पसीना भूमि पर इस प्रकार टपक रहा था कि जैसे लहू टपक रहा हो”।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब यीशु प्रार्थना करके उठा” या “प्रार्थना करने के बाद यीशु उठा और”
“देखा कि वे सो रहे थे क्योंकि वे बहुत दुखी थे”
यह एक आलंकारिक प्रश्न है जिसके संभावित अर्थ हैं, (1) तुम्हें ऐसे समय सोता हुआ देखकर मुझे आश्चर्य होता है”, या (2) इस समय तो तुम्हें सोना नहीं चाहिए”।
“परीक्षा में न गिरो” या “परीक्षा में पाप न करो”
यहाँ कहानी में एक जनसमूह प्रवेश करता है। अपनी भाषा में ऐसे दृश्य परिवर्तन को व्यक्त करने के लिए शब्द होंगे।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह उनको लेकर यीशु के पास आ रहा था यहूदा उन्हें दिखा रहा था कि यीशु कहां है, वह उन्हें कार्य निर्देशन नहीं दे रहा था।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “उसे चूम कर उसका अभिवादन करे” जब पुरूष अपने परिवार के पुरूषों या मित्रों से भेंट करते थे तब वे उन्हें एक गाल पर या दोनों गालों पर चूमते थे। यदि आपके पाठकों को पुरूषों द्वारा एक दूसरे को चूमने के वर्णन से कि कर्तव्य विमूढ़ हों तो इसका अनुवाद सामान्य अभिवादन में करें, “मित्रतापूर्ण अभिवादन करने आया”
यीशु स्वयं के लिए इस उक्ति का उपयोग करता था।
यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा यहूदा को झिड़क रहा है, “मनुष्य के प्रभु को पकड़वाने के लिए चूमा का दुरूपयोग कर रहा है”। यहूदा हाथ के संकेत से यह यह कहकर बता सकता था कि यीशु कौन है” वह जो उस चट्टान के पास खड़ा है वही यीशु है” परन्तु उसने प्रेम के प्रतीक चुम्बन को धोखे के लिए काम में लिया।
“यीशु के शिष्यों ने”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “याजक और सैनिक यीशु को बन्दी बनाने आए हैं”।
“प्रधान पुरोहित के दास पर तलवार से वार किया तो उसका दाहिना कान कट गया”।
“उसका कटा हुआ कान छूकर अच्छा कर दिया”
“तुम लोग तलवारें और लाठियां लेकर आए हो, क्या मैं डाकू हूं? “यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यह जानते हुए भी कि मैं डाकू नहीं तुम तलवार और लाठियां लेकर मेरे पास आए हो”।
“मैं तो प्रतिदिन तुम्हारे बीच में रहाता था”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मन्दिर परिसर में”।
इस मुहावरे का अर्थ है, “मुझे बन्दी नहीं बनाया”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “अन्धकार के शासक का समय” या “शैतान की इच्छा के अनुसार दुष्ट के कार्यों का पूरा करने का समय है”, (यू.डी.बी.) “अन्धकार का अधिकार एक लाक्षणिक प्रयोग है जिसका अर्थ है, दुष्ट शासक, शैतान।
“यीशु को बन्दी बनाकर उस वाटिका से ले कर चले”
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “कुछ लोगों ने वहां आग जलाई हुई थी” गर्म करने के लिए आग जलाई थी।
यह प्रधान पुरोहित के महल का परिसर था।। चारों ओर दीवारें थी परन्तु छत नहीं थी।
“पतरस को घूरकर देखा और लोगों से कहा।
वह उपस्थित जनों को पतरस के बारे में कह रही थी। वह पतरस का नाम नहीं जानती थी।
“परन्तु पतरस ने कहा, यह सच नहीं है”।
पतरस उस स्त्री का नाम नहीं जानता था वह उसे “नारी” कह कर उसका अपमान नहीं कर रहा था। आप अपनी संस्कृति में नारी शब्द के स्थान पर उपयुक्त शब्द का प्रयोग करें या इस शब्द को छोड़ दें।
स्त्री शब्द के बारे में उपरोक्त टिप्पणी देखें
“बलपूर्वक कहा” या “ऊंचे शब्द में कहा” (यू.डी.बी.)
यह अर्थात पतरस। वह संभवतः पतरस का नाम नहीं जानता था।
मत्ती लिखता है कि पतरस की भाषा-शैली से लोग समझ जाते थे कि वह गलीली है।
इस उक्ति का अभिप्राय है, घोर विरोध के साथ कहना, “तू जो कहता है वह कदापि सच नहीं है”। या “तू जो कह रहा है वह झूठ है”।
“अभी पतरस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि”
“यीशु के वचन” या “यीशु ने कहा था”
यीशु ने पिछली रात पतरस से कहा था कि दिन तड़कने से पूर्व क्या होगा। अतः इसका अनुवाद “आज राज” किया जा सकता है।
“उसकी आंखों पर कपड़ा बान्ध कर कि वह देख न पाए”
सुरक्षाकर्मी विश्वास नहीं करते थे कि यीशु भविष्यद्वक्ता बिना देखे बता सकता था कि उसे किसने मारा है। वे यीशु को भविष्यद्वक्ता तो कहते थे परन्तु वे सिद्ध करना चाहते थे कि वह भविष्यद्वक्ता नहीं है। इसका दूसरा अनुवाद है, “हमें बता कि तुझे किसने मारा और सिद्ध कर कि तू भविष्यद्वक्ता है” या “हे भविष्यद्वक्ता तुझे किसने मारा है, बता”?
“परमेश्वर का वचन सुना” कहने का अर्थ है कि परमेश्वर बताएगा कि यीशु को किसने मारा है क्योंकि यीशु की आंखें तो बन्द थी।
इसके संभावित अर्थ हैं, (1) पुरनियों ने यीशु को परिषद में बुलवाया या (2) सुरक्षाकर्मी यीशु को पुरनियों की सभा में लाए। कुछ भाषाओं में कर्ताओं के लिए केवल सर्वनाम का उपयोग किया गया है, “वे लाए” या कर्मवाच्य वाक्य में अनुवाद किया गया है, “यीशु परिषद के सम्मुख लाया गया”
“पुरनियों ने पूछा यीशु से पूछा”
यदि तू मसीह है
यह यीशु के दो काल्पनिक कथनों में पहला है, यीशु ईश-निन्दा का दोषी कहलाने का अवसर उन्हें नहीं देना चाहता था। आपकी भाषा में ऐसी सांकेतिक अभिव्यक्ति होगी जिससे प्रकट हो कि कार्य वास्तव में हुआ नहीं।
यह दूसरा काल्पनिक कथन है
यीशु के कहने का अर्थ था कि यदि वह स्वयं कुछ कहे या उनसे कहने को कहे तो भी कोई लाभ नहीं। वे सही उत्तर तो देंगे नहीं। यह दो वाक्य यीशु के विचारों को प्रकट करते हें कि उनकी परिषद सत्य की खोज में नहीं थी।
(यीशु पुरनियों की परिषद से बातें कर रहा है)
“आज से” या “आज से आरंभ करके”
यीशु इस उक्ति द्वारा मसीह का संदर्भ दे रहा था। उसका अभिप्राय था कि वह स्वयं के बारे में कह रहा था परन्तु पुरनियों को पूछ कर पता लगाना था कि वह क्या वास्तव में यही कह रहा था।
यहूदी मानते थे कि कोई भी उस स्थान को ग्रहण नहीं कर सकता है। उनके लिए ऐसा कहने का अर्थ था “परमेश्वर के साथ परमेश्वर तुल्य होना”।
“महाप्रतापी परमेश्वर”, यहाँ परमेश्वर के सर्वोच्च अधिकार का विचार है।
परिषद के सदस्यों ने यीशु से यह प्रश्न किया क्योंकि वे चाहते थे कि यीशु स्पष्ट कहे कि वह परमेश्वर का पुत्र है जैसा उन्होंने उसकी बातों से अनुमान लगाया था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तूने ऐसा कहा तो क्या तू वास्तव में परमेश्वर का पुत्र है”?
“हां, ठीक वैसे ही जैसे तुम कहते हो”।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। इसका अर्थ है, “हमें और अधिक गवाही नहीं चाहिए।
इस मुहावरे में मनुष्य के लिए उसके एक अंग (मुंह) का उपयोग किया जाता है। इसका अर्थ है “सीधा उसी से” इससे इस तथ्य पर बात पर बल है कि यीशु ने स्वयं ही वह बात कह दी जिसका वे उस पर दोष लगा रहे थे।
अखमीरी रोटी का पर्व फसह कहलाता था।
वह अवसर की खोज में था कि यीशु कब जनसमूह से अलग हो।
उन्होंने यरूशलेम में एक बड़े सजे हुए कक्ष में फसह का भोजन किया।
यीशु फसह का भोज अब उस समय तक खायेगा जब परमेश्वर के राज्य में पूरा होगा।
यीशु ने कहा, "यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिए दी जाती है, मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।
यीशु ने कहा, "यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है नई वाचा है"।
हां।
नहीं।
सबसे बड़ा वह है जो सेवा करता है।
वह एक सेवक का जीवन जी रहा था।
यीशु ने कहा कि वे सिंहासन पर बैठ कर इस्राएल के बारहों गोत्रों का न्याय करेंगे।
यीशु ने कहा कि मुर्ग की बांग देने से पहले पतरस तीन बार उसका इन्कार करेगा।
धर्मशास्त्र में भविष्यद्वाणी है, "वह अपराधियों में गिना गया"।
यीशु चाहता था कि वे प्रार्थना करते रहें कि परीक्षा में न पड़ें।
यीशु ने प्रार्थना की, "हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले। तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो"।
वे सो रहे थे।
उसने यीशु को चूम कर पकड़वाया।
यीशु ने उसके कान को छूकर चंगा किया।
वह मन्दिर में था।
वे उसे महायाजक के आवास में ले गए।
पतरस ने कहा, "हे नारी मैं उसे नहीं जानता"।
मुर्ग ने बांग दी।
वह बाहर जाकर फूट-फूट कर रोया।
उन्होंने उसका ठट्ठा किया उसे पीटा और उसकी निन्दा की।
वे विश्वास नहीं करेंगे।
महासभा ने क्यों कहा कि उन्होंने गवाहों की आवश्यकता नहीं कि सिद्ध करें कि यीशु स्वयं को मसीह कहता है।
1 तब सारी सभा उठकर उसे पिलातुस के पास ले गई। 2 और वे यह कहकर उस पर दोष लगाने लगे, “हमने इसे लोगों को बहकाते और कैसर को कर देने से मना करते, और अपने आप को मसीह, राजा कहते हुए सुना है।” 3 पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” उसने उसे उत्तर दिया, “तू आप ही कह रहा है।” 4 तब पिलातुस ने प्रधान याजकों और लोगों से कहा, “मैं इस मनुष्य में कुछ दोष नहीं पाता।” 5 पर वे और भी दृढ़ता से कहने लगे, “यह गलील से लेकर यहाँ तक सारे यहूदिया में उपदेश दे देकर लोगों को भड़काता है।” 6 यह सुनकर पिलातुस ने पूछा, “क्या यह मनुष्य गलीली है?” 7 और यह जानकर कि वह हेरोदेस की रियासत* का है, उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्योंकि उन दिनों में वह भी यरूशलेम में था।
8 हेरोदेस यीशु को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुआ, क्योंकि वह बहुत दिनों से उसको देखना चाहता था : इसलिए कि उसके विषय में सुना था, और उसका कुछ चिन्ह देखने की आशा रखता था। 9 वह उससे बहुत सारी बातें पूछता रहा, पर उसने उसको कुछ भी उत्तर न दिया। 10 और प्रधान याजक और शास्त्री खड़े हुए तन मन से उस पर दोष लगाते रहे। 11 तब हेरोदेस ने अपने सिपाहियों के साथ उसका अपमान करके उपहास किया, और भड़कीला वस्त्र पहनाकर उसे पिलातुस के पास लौटा दिया। 12 उसी दिन पिलातुस और हेरोदेस मित्र हो गए। इसके पहले वे एक दूसरे के बैरी थे।
13 पिलातुस ने प्रधान याजकों और सरदारों और लोगों को बुलाकर उनसे कहा, 14 “तुम इस मनुष्य को लोगों का बहकानेवाला ठहराकर मेरे पास लाए हो, और देखो, मैंने तुम्हारे सामने उसकी जाँच की, पर जिन बातों का तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातों के विषय में मैंने उसमें कुछ भी दोष नहीं पाया है; 15 न हेरोदेस ने, क्योंकि उसने उसे हमारे पास लौटा दिया है: और देखो, उससे ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए। 16 इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” 17 पिलातुस पर्व के समय उनके लिए एक बन्दी को छोड़ने पर विवश था। 18 तब सब मिलकर चिल्ला उठे, “इसका काम तमाम कर, और हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।” 19 वह किसी बलवे के कारण जो नगर में हुआ था, और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था। 20 पर पिलातुस ने यीशु को छोड़ने की इच्छा से लोगों को फिर समझाया। 21 परन्तु उन्होंने चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” 22 उसने तीसरी बार उनसे कहा, “क्यों उसने कौन सी बुराई की है? मैंने उसमें मृत्यु दण्ड के योग्य कोई बात नहीं पाई! इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” 23 परन्तु वे चिल्ला-चिल्लाकर पीछे पड़ गए, कि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए, और उनका चिल्लाना प्रबल हुआ। 24 अतः पिलातुस ने आज्ञा दी, कि उनकी विनती के अनुसार किया जाए। 25 और उसने उस मनुष्य को जो बलवे और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था, और जिसे वे माँगते थे, छोड़ दिया; और यीशु को उनकी इच्छा के अनुसार सौंप दिया।
26 जब वे उसे लिए जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नाम एक कुरेनी को जो गाँव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस को लाद दिया कि उसे यीशु के पीछे-पीछे ले चले। 27 और लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली: और बहुत सारी स्त्रियाँ भी, जो उसके लिये छाती-पीटती और विलाप करती थीं। 28 यीशु ने उनकी ओर फिरकर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ; परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ। 29 क्योंकि वे दिन आते हैं, जिनमें लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बाँझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’
30 उस समय
‘वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो,
और टीलों से कि हमें ढाँप लो।’
31 क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?” 32 वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ मार डालने को ले चले। 33 जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया। 34 तब यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर*, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहें हैं?” और उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। (1 पत. 3:9, प्रका. 7:60, यशा. 53:12, भज. 22:18)
35 लोग खड़े-खड़े देख रहे थे, और सरदार भी उपहास कर-करके कहते थे, “इसने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।” (भज. 22:7) 36 सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका उपहास करके कहते थे। (भज. 69:21) 37 “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!” 38 और उसके ऊपर एक दोष पत्र भी लगा था : “यह यहूदियों का राजा है।”
39 जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!” 40 इस पर दूसरे ने उसे डाँटकर कहा, “क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है, 41 और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” 42 तब उसने कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।” 43 उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक* में होगा।”
44 और लगभग दोपहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अंधियारा छाया रहा, 45 और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच से फट गया, (आमो. 8:9, इब्रा.10:19) 46 और यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” और यह कहकर प्राण छोड़ दिए। 47 सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर परमेश्वर की बड़ाई की, और कहा, “निश्चय यह मनुष्य धर्मी था।” 48 और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई थी, इस घटना को देखकर छाती पीटती हुई लौट गई। 49 और उसके सब जान पहचान, और जो स्त्रियाँ गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं। (भज. 38:11, भज. 88:8)
50 और वहाँ, यूसुफ नामक महासभा का एक सदस्य था, जो सज्जन और धर्मी पुरुष था। 51 और उनके विचार और उनके इस काम से प्रसन्न न था; और वह यहूदियों के नगर अरिमतियाह का रहनेवाला और परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा करनेवाला था। 52 उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा, 53 और उसे उतारकर मलमल की चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खोदी हुई थी; और उसमें कोई कभी न रखा गया था। 54 वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था। 55 और उन स्त्रियों ने जो उसके साथ गलील से आई थीं, पीछे-पीछे, जाकर उस कब्र को देखा और यह भी कि उसका शव किस रीति से रखा गया हैं। 56 और लौटकर सुगन्धित वस्तुएँ और इत्र तैयार किया; और सब्त के दिन तो उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया। (निर्ग. 20:10, व्य. 5:14)
“सब यहूदी अगुवे”
“खड़े होकर” या “अपने पांवों पर खड़े होकर”
“पिलातुस के समक्ष” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पितलातुस के सामने खड़ा किया”
“हमारे लोगों को झूठ बोलकर समस्याएं उत्पन्न कर रहा है”
“उनसे कहता है कि कैसर को कर मत दो”
“पिलातुस ने यीशु से पूछा”
इस मुहावरे का अर्थ है, “तू जो कहता है वह सच है”। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ जो तू पूछता है वही है”
“जनसमूह से”
“मैं इसे किसी भी अपराध का दोषी नहीं पाता हूं
“समस्याएं उत्पन्न करता है”
“इसने गलील में समस्याएं उत्पन्न करना आरंभ किया था ओर अब यहाँ भी समस्याएं उत्पन्न कर रहा है”
“यह सुनकर कि यीशु ने गलील में शिक्षा देना आरंभ की”
“यदि यह”
यह यीशु के सन्दर्भ में है
“पिलातुस ने जब जाना कि”
इस वाक्य में सलंग्न जानकारी नहीं दी गई है कि हेरोदेस गलील का प्रशासक था। आप इसे स्पष्ट व्यक्त कर सकते हैं, “यीशु हेरोदेस के न्यायिक क्षेत्र में था क्योंकि गलील पर हेरोदेस का प्रशासन था।
पिलातुस ने भेज दिया
अर्थात हेरोदेस
“फसह के पर्व के समय”
“हेरोदेस बहुत प्रसन्न हुआ”
“हेरोदेस यीशु को देखना चाहता था”
“हेरोदेस ने यीशु के बारे में सुना था”
“हेरोदेस को आशा थी”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है “वह उससे आश्चर्यकर्म देखना चाहता था”
“उत्तर नहीं दिया” (यू.डी.बी.) या “हेरोदेस को कोई उत्तर नहीं दिया”
“वहां खड़े होकर”
“प्रबलता से दोष लगा रहे थे” या “कड़वाहट भरे दोष लगा रहे थे”
आपका अनुवाद इसे यीशु का सम्मान प्रकट न करे। उन्होंने यीशु का ठट्ठा करने और तमाशा बनाने के लिए ऐसा किया था।
यहाँ संलग्न अर्थ है कि पिलातुस ने हेरोदेस को यीशु का न्याय करने का अवसर दिया जिससे हेरोदेस प्रसन्न था। आप इसे स्पष्ट कर सकते हैं, “और हेरोदेस और पिलातुस ने यीशु को न्याय के लिए हेरोदेस के पास भेजा था।
“उस दिन से पूर्व”
“प्रधान पुरोहितो, प्रधानों ओर जनसमूह को एकत्र किया”।
“मैंने तुम्हारे सामने यीशु से पूछताछ की” इसका अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, “मैंने यीशु से पूछताछ की जिसके तुम भी गवाह हो”।
“मेरे विचार में वह दोषी नहीं है”, (यू.डी.बी.)
“हेरोदेस भी इसे दोषी नहीं मानता है” (यू.डी.बी.)
“हम यह जानते हैं क्योंकि”
“हेरोदेस ने यीशु को हमारे पास पुनः भेज दिया है”, “हमारे” शब्द विशिष्ट है। उसका संदर्भ पिता पुत्र और उसके सैनिकों से है, न कि याजकों और विधि-शास्त्रियों से, न ही जनसमूह से है जो हेरोदेस के पास गए थे।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “इसने मृत्यु-दण्ड योग्य कोई अपराध नहीं किया है”।
पिलातुस ने यीशु में कोई दोष नहीं पाया इसलिए उसे यीशु को पिटाई किए बिना मुक्त कर देना चाहिए था। इस वाक्य के अनुवाद में तर्क सम्मत बनाने की आवश्यकता नहीं है। पिलातुस ने यीशु को कोड़े मारने का प्रस्ताव रखा। जबकि वह जानता था कि यीशु निर्दोष है क्योंकि वह जनसमूह से डरता था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “पिलातुस ने ऐसा इसलिए कहा”
यह एक राजनीतिक प्रथा थी। अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है कि उसमें यह सलंग्न जानकारी दी जा सके, “वह प्रथा के कारण विवश था कि उनके लिए फसह के पर्व पर एक अपराधी को मुक्त करे”।
“जनसमूह में से सब चिल्लाने लगे”
“इसे दूर कर” जनसमूह का अभिप्राय था “इसे ले जाकर मार डाल”
“उसके अपराध में हाथ बटाने के कारण” या “के अपराध के कारण”
“जनता को रोम के विरुद्ध भड़काने के कारण” (यू.डी.बी.)
“उनसे फिर कहा” या “जनसमूह को समझाया”
“वह यीशु को मुक्त कर देना चाहता था”
“पिलातुस ने जनसमूह से तीसरी बार कहा”
“जनसमूह बलपूर्वक चिल्लाने लगा”
“बहुत ऊंचे स्वर में”
“यीशु को क्रूस का दण्ड दे”
“जनसमूह चिल्लाकर कह रहा था”
“जनसमूह की इच्छा पूरी की जाए”। (यू.डी.बी.)
“पिलातुस ने जनसमूह की मांग के अनुसार बरअब्बा को छोड़ दिया”
“पिलातुस ने यीशु को जनसमूह की इच्छा के अनुसार सौंप दिया” या “पिलातुस ने यीशु को जनसमूह के निर्णय पर क्रूसीकरण हेतु दे दिया”
“जब सैनिक यीशु को पिलातुस की उपस्थिति से लेकर चले”
रोमी सैनिकों को अधिकार था कि वे किसी से भी अपना बोझ उठवा सकते थे। आपके अनुवाद से ऐसा प्रकट न हो कि शमौन कुरैनी को बन्दी बनाया गया था या उसने अपराध किया था।
“एक मनुष्य जो कुरेनवासी था”
"वह ग्रामीण क्षेत्र से यरूशलेम में आ रहा था "(यू.डी.बी)
“उसके कंधे पर क्रूस रख दिया”
“यीशु के लिए दुःख मना रही थी”
“यीशु के पीछे चल रही थी”
“तुम यरूशलेम की स्त्रियों”
“मेरी दशा पर मत रोओ”
“तुम्हारे और तुम्हारी सन्तान के साथ जो होने वाला है, उस पर रोओ”
“सब लोग कहेंगे”
“जिस स्त्री ने सन्तान को जन्म नहीं दिया”
“उस दिन”
“वे पहाड़ों से कहेंगे”
यह एक अलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम देख सकते हो कि वे वृक्ष के हरे रहते हुए ऐसा बुरे काम कर सकते हैं तो निश्चय जान लो कि वृक्ष के सूख जाने पर वे कितना अधिक बुरा करेंगे। “इसका अर्थ है”, तुम देख सकते हो कि अच्छे समय में वे ऐसा बुरा काम कर रहे है तो निश्चय ही भविष्य में जब बुरा समय आएगा तब वे और कहीं अधिक बुरा करेंगे”।
हरा पेड़ वर्तमान में अच्छाई के लिए काम में लिया गया रूपक है। यदि आपकी भाषा में ऐसा कोई रूपक है तो उसे काम में लें।
सूखी लकड़ी भावी बुराई के लिए प्रयुक्त रूपक है।
अर्थात रोमी या यहूदी अगुवे या विशेष रूप में किसी के लिए नहीं।
“दो अन्य मनुष्यों को जो अपराधी थे” (यू.डी.बी.)
“यीशु को साथ लेकर चले” या “सैनिकों ने यीशु के साथ दो अपराधियों को भी लिया”।
“मारने के लिए” या “मृत्युदण्ड हेतु”
वे अर्थात सैनिक, अपराधी और यीशु
“सैनिकों ने उन्हें क्रूस पर चढ़ाया”
“एक अपराधी को यीशु के दाहिनी ओर क्रूस पर चढ़ाया”
“दूसरे अपराधी को यीशु की बाई ओर क्रूस पर चढ़ाया”।
“इन्हें”, क्षमा कर”
“क्योंकि उन्हें बोध नहीं कि वे क्या करते हैं”
यह एक प्रकार का जुआ था। अतः इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन्होंने जुआ खेला
“कि कौन यीशु का कौन सा वस्त्र ले जाएगा”
“वहां खड़े होकर”
यह यीशु के सन्दर्भ में है
“यीशु अपने आपको बचा ले” या “हम देखना चाहते हैं कि वह क्रूस पर से अपनी रक्षा करके सिद्ध करे कि वह कौन है”।
इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “वह है जिसे परमेश्वर ने चुना है”
“यीशु का”
“यीशु के निकट आकर”
“यीशु को पीने के लिए सिरका देकर”। अनेक बाइबल विद्वान मानते हैं कि सैनिक यीशु का ठट्ठा कर रहे थे। वे जानते थे क यीशु प्यासा है परन्तु वे सिरका उसके होंठों तक लाकर उसे चूसने नहीं देते थे।
“यीशु के सिर के ऊपर क्रूस पर एक तख्ती पर लिखा था”।
“यीशु का ठट्ठा करते हुए”
इस प्रश्न का उद्देश्य उत्तर पाना नहीं परन्तु यीशु के मसीह होने पर सन्देह प्रकट करना था।
“दूसरे अपराधी ने कहा”
“उस अपराधी को डांटकर कहा”
“तू इस दण्ड के योग्य ठहराया गया है” (यू.डी.बी.)
“हम तो इस दण्ड के योग्य है”।
वह यीशु के बारे में कह रहा था
“उस अपराधी ने कहा”
“राजा होकर शासन करे” (यू.डी.बी.)
“सच कहता हूं” यीशु की बात पर बल देता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता हे, “मैं चाहता हूं कि तू जान ले”
यह वह स्थान था जहाँ धर्मी जन मर कर जाते थे। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “आनन्द लोक में” या “धर्मियों के लोक में” या “सुखलोक में” यीशु उसे विश्वास दिला रहा था कि वह परमेश्वर के पास होगा और परमेश्वर उसे ग्रहण करेगा”
“लगभग दोपहर के समय” यह उनके समय गिनने की विधि थी। उनका दिन का आरंभ सुबह छः बजे से गिना जाता था।
“संपूर्ण प्रदेश में अन्धेरा हो गया”
“तीन बजे तक” वे सुबह छः बजे से दिन गिनते थे”
“मन्दिर के भीतर जो पर्दा था”
“फट कर दो भाग हो गया” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “परमेश्वर ने मन्दिर के पर्दे को फाड़ कर दो भाग कर दिया”।
“चिल्लाकर”
“मैं अपनी आत्मा तेरी देखरेख में सौंपता हूं”, “इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में देता हूं और जानता हूं कि तू संभालेगा”।
“यीशु ने यह कह कर”
“यीशु मर गया”
“सब घटनाओं को”
“जनसमूह”
“जो हो रहा था वह देखने को”
“एकत्र थी”
“सब घटनाओं को”
“घर चली गई”
यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, “दुःख प्रकट करने के लिए छाती पीटना”
“जो यीशु को जानते थे” या “जिन्होंने यीशु से भेंट की थी”
“यीशु के पीछे आई थी”
“यीशु से कुछ दूर खड़े होकर”
“जो हो रहा था देख रही थी”
यह शब्द कहानी में एक नये मनुष्य के आगमन का बोध कराता है। अपनी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका उपयोग करें।
“वह यहूदी परिषद का सदस्य था”
“वह एक भला एवं सदाचारी मनुष्य था”
“यूसुफ परिषद के निर्णय से और उनके इस काम से कि यीशु को मृत्यु-दण्ड दिया जाए प्रसन्न नहीं था।
“यूसुफ अरिमतिया नामक यहूदी नगर का निवासी था
“यूसुफ प्रतीक्षारत था”
यूसुफ ने
“पिलातुस के पास जाकर याचना की”
“यीशु के शव को क्रूस से उतार कर”
“यीशु के शव को उत्तम मलमल में लपेटा”
“यीशु के शव को कब्र में रखा”
“किसी ने चट्टान काट कर कब्र बनाई थी”
“उस कब्र में कभी किसी ने शव नहीं रखा था”।
“जिस दिन यहूदी अपने विश्राम दिवस सब्त के लिए तैयारी करते थे”
“शीघ्र ही सूर्यास्त होने वाला था अर्थात सब्त का दिन आरंभ होने वाला था”। (यू.डी.बी.) यहूदियों का नया दिन सूर्यास्त से आरंभ होता था।
“जो यीशु के साथ गलील से यात्रा करके आई थी”
यूसुफ और उसके साथ के लोगों के पीछे जाकर
“उन स्त्रियों ने कब्र को देखा”
“उन स्त्रियों ने देखा कि उन पुरूषों ने यीशु का शव कब्र में कैसे रखा है”।
“वे जहाँ ठहरी हुई थी वहां लौट गई”, (यू.डी.बी.)
“यीशु की देह के दफन हेतु तैयार सामग्री”
“उन स्त्रियों ने कोई काम नहीं किया”
“यहूदी विधान के अनुसार” या यहूदी विधान की अनिवार्यता के अनुसार” या “मूसा द्वारा दिए गए विधान की अनिवार्यता के अनुसार”
उन्होंने दोष लगाया कि यीशु लोगों को बहकाता है और कैसर को कर देने से मना करता है और स्वयं को मसीह, राजा कहता है।
पिलातुस ने कहा, "मैं इस मनुष्य में कोई दोष नहीं पाता"।
हेरोदेस यीशु को देखना चाहता था कि उससे कोई चमत्कार देखे।
यीशु ने कोई उत्तर नहीं दिया।
पिलातुस ने कहा, "मैं इस मनुष्य में कोई दोष नहीं पाता"।
वे एक अपराधी , बरअब्बा को छुड़वाना चाहते थे।
लोगों ने चिल्ला कर कहा, "उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर।"
पिलातुस ने कहा, "उससे ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए"|
क्योंकि वे चिल्लाकर प्रबलता से कह रहे थे।
शमौन कुरेनी ने यीशु का क्रूस उठाया।
उन्हें अपने लिए और अपनी सन्तान के लिए विलाप करना है।
यीशु के साथ दो और अपराधी क्रूस पर चढ़ाए गए थे।
यीशु ने कहा, "हे पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।"
उन्होंने उसे चुनौती दी कि वह स्वयं की रक्षा करे।
उस पर लिखा था, "यह यहूदियों का राजा है"।
उसने यीशु से कहा, "जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना"।
यीशु ने उससे कहा, "आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा"।
संपूर्ण देश में अन्धकार छाया था और मन्दिर का पर्दा बीच में से फट गया।
सूबेदार ने कहा, "निश्चय यह मनुष्य धर्मी था"।
उसने पिलातुस से यीशु का पार्थिव शरीर मांगा और उसे कब्र में रखा।
सब्त का दिन आरंभ होने वाला था।
परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उन्होंने विश्राम किया।
1 परन्तु सप्ताह के पहले दिन बड़े भोर को वे उन सुगन्धित वस्तुओं को जो उन्होंने तैयार की थी, लेकर कब्र पर आईं। 2 और उन्होंने पत्थर को कब्र पर से लुढ़का हुआ पाया, 3 और भीतर जाकर प्रभु यीशु का शव न पाया। 4 जब वे इस बात से भौचक्की हो रही थीं तब, दो पुरुष झलकते वस्त्र पहने हुए उनके पास आ खड़े हुए। 5 जब वे डर गईं, और धरती की ओर मुँह झुकाए रहीं; तो उन्होंने उनसे कहा, “तुम जीविते को मरे हुओं में क्यों ढूँढ़ती हो? (प्रका. 1:18, मर. 16:5-6) 6 वह यहाँ नहीं, परन्तु जी उठा है। स्मरण करो कि उसने गलील में रहते हुए तुम से कहा था, 7 ‘अवश्य है, कि मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ में पकड़वाया जाए, और क्रूस पर चढ़ाया जाए, और तीसरे दिन जी उठे’।” 8 तब उसकी बातें उनको स्मरण आईं, 9 और कब्र से लौटकर उन्होंने उन ग्यारहों को, और अन्य सब को, ये सब बातें कह सुनाई। 10 जिन्होंने प्रेरितों से ये बातें कहीं, वे मरियम मगदलीनी और योअन्ना और याकूब की माता मरियम और उनके साथ की अन्य स्त्रियाँ भी थीं। 11 परन्तु उनकी बातें उन्हें कहानी के समान लगी और उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया। 12 तब पतरस उठकर कब्र पर दौड़ा गया, और झुककर केवल कपड़े पड़े देखे, और जो हुआ था, उससे अचम्भा करता हुआ, अपने घर चला गया।
13 उसी दिन उनमें से दो जन इम्माऊस नामक एक गाँव को जा रहे थे, जो यरूशलेम से कोई सात मील की दूरी पर था। 14 और वे इन सब बातों पर जो हुईं थीं, आपस में बातचीत करते जा रहे थे। 15 और जब वे आपस में बातचीत और पूछ-ताछ कर रहे थे, तो यीशु आप पास आकर उनके साथ हो लिया। 16 परन्तु उनकी आँखें ऐसी बन्द कर दी गईं थी, कि उसे पहचान न सके*। 17 उसने उनसे पूछा, “ये क्या बातें हैं, जो तुम चलते-चलते आपस में करते हो?” वे उदास से खड़े रह गए। 18 यह सुनकर, उनमें से क्लियुपास नामक एक व्यक्ति ने कहा, “क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है; जो नहीं जानता, कि इन दिनों में उसमें क्या-क्या हुआ है?” 19 उसने उनसे पूछा, “कौन सी बातें?” उन्होंने उससे कहा, “यीशु नासरी के विषय में जो परमेश्वर और सब लोगों के निकट काम और वचन में सामर्थी भविष्यद्वक्ता* था। 20 और प्रधान याजकों और हमारे सरदारों ने उसे पकड़वा दिया, कि उस पर मृत्यु की आज्ञा दी जाए; और उसे क्रूस पर चढ़वाया। 21 परन्तु हमें आशा थी, कि यही इस्राएल को छुटकारा देगा, और इन सब बातों के सिवाय इस घटना को हुए तीसरा दिन है। 22 और हम में से कई स्त्रियों ने भी हमें आश्चर्य में डाल दिया है, जो भोर को कब्र पर गई थीं। 23 और जब उसका शव न पाया, तो यह कहती हुई आईं, कि हमने स्वर्गदूतों का दर्शन पाया, जिन्होंने कहा कि वह जीवित है। 24 तब हमारे साथियों में से कई एक कब्र पर गए, और जैसा स्त्रियों ने कहा था, वैसा ही पाया; परन्तु उसको न देखा।” 25 तब उसने उनसे कहा, “हे निर्बुद्धियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दमतियों! 26 क्या अवश्य न था, कि मसीह ये दुःख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करे?” 27 तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्रशास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया। (यूह. 1:45, लूका 24:44, व्य. 18:15)
28 इतने में वे उस गाँव के पास पहुँचे, जहाँ वे जा रहे थे, और उसके ढंग से ऐसा जान पड़ा, कि वह आगे बढ़ना चाहता है। 29 परन्तु उन्होंने यह कहकर उसे रोका, “हमारे साथ रह; क्योंकि संध्या हो चली है और दिन अब बहुत ढल गया है।” तब वह उनके साथ रहने के लिये भीतर गया। 30 जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया, और उसे तोड़कर उनको देने लगा। 31 तब उनकी आँखें खुल गईं*; और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उनकी आँखों से छिप गया। 32 उन्होंने आपस में कहा, “जब वह मार्ग में हम से बातें करता था, और पवित्रशास्त्र का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पन्न हुई?” 33 वे उसी घड़ी उठकर यरूशलेम को लौट गए, और उन ग्यारहों और उनके साथियों को इकट्ठे पाया। 34 वे कहते थे, “प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है।” 35 तब उन्होंने मार्ग की बातें उन्हें बता दीं और यह भी कि उन्होंने उसे रोटी तोड़ते समय कैसे पहचाना।
36 वे ये बातें कह ही रहे थे, कि वह आप ही उनके बीच में आ खड़ा हुआ; और उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” 37 परन्तु वे घबरा गए, और डर गए, और समझे, कि हम किसी भूत को देख रहे हैं। 38 उसने उनसे कहा, “क्यों घबराते हो? और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं? 39 मेरे हाथ और मेरे पाँव को देखो, कि मैं वहीं हूँ; मुझे छूकर देखो; क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।”
40 यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ पाँव दिखाए। 41 जब आनन्द के मारे उनको विश्वास नहीं हो रहा था, और आश्चर्य करते थे, तो उसने उनसे पूछा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास कुछ भोजन है?” 42 उन्होंने उसे भुनी मछली का टुकड़ा दिया। 43 उसने लेकर उनके सामने खाया। 44 फिर उसने उनसे कहा, “ये मेरी वे बातें हैं, जो मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।” 45 तब उसने पवित्रशास्त्र समझने के लिये उनकी समझ खोल दी। 46 और उनसे कहा, “यों लिखा है कि मसीह दुःख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा, (यशा. 53:5, लूका 24:7) 47 और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा। 48 तुम इन सब बातें के गवाह हो। 49 और जिसकी प्रतिज्ञा* मेरे पिता ने की है, मैं उसको तुम पर उतारूँगा और जब तक स्वर्ग से सामर्थ्य न पाओ, तब तक तुम इसी नगर में ठहरे रहो।”
50 तब वह उन्हें बैतनिय्याह तक बाहर ले गया, और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीष दी; 51 और उन्हें आशीष देते हुए वह उनसे अलग हो गया और स्वर्ग पर उठा लिया गया। (प्रेरि. 1:9, भज. 47:5) 52 और वे उसको दण्डवत् करके बड़े आनन्द से यरूशलेम को लौट गए। 53 और वे लगातार मन्दिर में उपस्थित होकर परमेश्वर की स्तुति किया करते थे।
“रविवार को दिन तड़के ही”
“कब्र पर पहुंची” यू.एल.बी. इस प्रकार लिखी गई है कि जैसे लेखक कब्र पर ही था और स्त्रियों को वहां आते देख रहा था। यू.डी.बी. इस प्रकार लिखी गई है कि जैसे लेखक स्त्रियों को उस नामरहित स्थान से कूच करके कब्र पर जाते देख रहा था।
यह कब्र एक चट्टान काट कर बनाई गई थी।
एक बड़ा चट्टान का पत्थर, जो कब्र के द्वार को बन्द करने के लिए रखा गया था। उसे लुड़काने के लिए बहुत लोगों की आवश्यकता पड़ती थी।
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण घटना का बोध करवाया गया है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“ज्योतिमय चमकते हुए वस्त्र” (यू.डी.बी.)
“भयभीत हो गई”
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तुम जीवित मनुष्य को मृतकों में खोज रही हो” या “तुम्हें जीवित मनुष्य को मृतकों के स्थान में नहीं खोजना चाहिए”। (यू.डी.बी.)
यहाँ “तुम” बहुवचन है क्योंकि स्त्रियां एक से अधिक हैं।
(स्वर्गदूत उन स्त्रियों से बातें कर रहे हैं)
“स्मरण करो कि”
यीशु ने कम से कम एक सप्ताह पहले उससे कहा था।
“तुम” बहुवचन में है। तुम अर्थात ये स्त्रियां और शिष्य”
यह परोक्ष उद्धरणों में है और इसका अनुवाद अपरोक्ष उद्धरणों में किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में किया गया है।
“मनुष्य के पुत्र के लिए आवश्यक था कि” यह निश्चित था क्योंकि परमेश्वर निर्णय ले चुका था।
“सौंपा जाए” या “दे दिया जाए” इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “उन्हें मुझे, मनुष्य के पुत्र को पापी मनुष्यों के हाथों में सौंपना आवश्यक है”। (यू.डी.बी.) “कोई तो निश्चय ही पापियों के हाथों मनुष्य के पुत्र को पकड़वाएगा”
“तब यीशु की बातें उन्हें स्मरण आई”
लेखक आ अवलोकन क्षेत्र कब्र और शिष्यों के मध्य का मार्ग है। (यू.डी.बी.) जबकि यू.डी.बी. का अवलोकन क्षेत्र कब्र के पास का है। अतः वह कहता है कि स्त्रियां लौट गई। दोनों ही परिस्थितियों में स्त्रियां कब्र से चलकर शिष्यों के पास गई।
“ग्यारह शिष्यों के साथ जितने भी अनुयायी थे सब”
“परन्तु शिष्यों ने सोचा कि उन स्त्रियों की बात तर्कहीन है”।
यह एक इब्रानी शब्द है जिसका अर्थ है क्रियाशील होना अब पतरस बैठा था या खड़ा था, महत्त्व नहीं रखता है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “निकल पड़ा”
“कब्र में देखने के लिए झुका”
“केवल मलमल की चादर पड़ी थी”
यह एक सर्वथा भिन्न घटना का आरंभ दर्शाता है, जो उन स्त्रियों और पतरस की घटना से भिन्न है।
“उसी दिन” (यू.डी.बी.)
“ग्यारह किलोमीटर” (मूल भाषा में यह दूरी 60 स्टेडिया है। एक स्टेडियम, 185 मीटर का होता था”।
इस उक्ति द्वारा कार्य का आरंभ होना दर्शाया गया है। यीशु के प्रकट होने से कार्य आरंभ होता है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“आप” शब्द यीशु पर और उसके प्रकट होने के विस्मय पर ध्यान केन्द्रित कराता है, क्योंकि अभी तक किसी ने पुनरूत्थित यीशु को नहीं देखा था उन स्त्रियों ने केवल स्वर्गदूतों को देखा था।
“उनकी आंखें यीशु को पहचानने से रोकी गई थी” उनकी क्षमता को उनकी आंखे कहा गया है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “उसे पहचानने से उन्हें रोका गया” या “किसी रुकावट के कारण वे उसे पहचान न सके”।
“तू” अर्थात यीशु (एकवचन) यह एक आलंकारिक प्रश्न का आरंभ है। क्लियोपास ने अपना आश्चर्य व्यक्त किया कि यीशु यरूशलेम की इस घटना से अनभिज्ञ था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तू ही एक ऐसा मनुष्य है”
“क्या हुआ है” या “क्या घटना घटी है”?
“सामर्थ्य के काम करता था और सामर्थी वचन सुनाता था”
इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने यीशु को सामर्थी बनाया और लोगों ने देखा कि वह सामर्थी था। इसका अनुवाद हो सकता है, “परमेश्वर ने उसे महान कार्य करने और महान शिक्षा देने का सामर्थ्य दिया था। और मनुष्य अचम्भा करते थे”।
उसे रोमी प्रशासक के समक्ष पकड़वा दिया कि उसे मृत्युदण्ड दिया जाए”।
यहूदियों पर रोमियों का राज था। उन शिष्यों के कहने का अर्थ था कि वह रोमियों से स्वतंत्रता दिलाएगा, “इस्त्राएल को उनके बैरी, रोमियों से मुक्ति दिलाएगा”।
“उसकी मृत्यु के बाद”
उन पुरूषों ने उन स्त्रियों के समाचार को एक अच्छी बात समझा था, न कि यीशु की मृत्यु के अतिरिक्त एक ओर बुरा समाचार।
“ये स्त्रियां भोर के समय कब्र पर गई थी”
“स्वर्गदूत देखे”
“उनसे का द्विवचन काम में लें।
“तुम्हारे मन सुस्त हो गए हैं और प्रतिक्रिया में मन्द है”
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। “यीशु का कष्ट उठाना उचित था। यदि वह कष्ट नहीं उठाता तो अनुचित होता”।
यह समय की बात है जब यीशु सबको अपना सौंदर्य और महानता दिखाएगा” और आदर और उपासना का पात्र होगा।
“उनसे का द्विवचन काम में लें।
“जब वे उस गांव के निकट आए” (यू.डी.बी.)
वे दोनों शिष्य उसके व्यवहार से यही समझे कि वह आगे कहीं ओर जाना चाहता था। संभवतः जब वे गांव के द्वार में प्रवेश करने को मुड़े तब वह सीधा आगे जा रहा था क्योंकि यीशु के शब्दों से तो ऐसा कुछ प्रकट नहीं होता है।
“रोका” के मूल यूनानी शब्द का अर्थ है शारीरिक बल देर तक लगाए रखना परन्तु यह एक अतिशयोक्ति प्रतीत होती है। उन्हें उसे विवश करने में समय लगा।
“यीशु ने उनके घर में प्रवेश किया”
“उनसे का द्विवचन काम में लें।
इस उक्ति द्वारा कहानी में एक महत्त्वपूर्ण घटना का बोध करवाया गया है। यदि आपकी भाषा में ऐसी अभिव्यक्ति है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“तब वे उसे पहचान गए” या “उन्हें समझ में आ गया”
यह खमीररहित रोटी है, न कि साधारण भोजन है।
“रोटी के लिए धन्यवाद दिया” या “परमेश्वर को उसके लिए धन्यवाद दिया”
विलोप हो गया। वह अदृश्य नहीं हुआ था।
“हमारे मन भीतर ही भीतर उत्तेजित हो रहे थे” (यू.डी.बी.) यह एक अलंकारिक प्रश्न है।
यह एक रूपक है जो यीशु से बातें करते समय उनकी प्रबल भावनाओं का वर्णन करता है। इस प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “जब वह हमसे बातें कर रहा था तब हमारी भावनाएं कैसी विचलित हो रही थी”।
वे दो जन बातें कर रहे हैं इसलिए “हमारे” को द्विवचन में रखें यदि आपकी भाषा में ऐसा अन्तर दर्शाया जा सकता है।
“जब वह धर्मशास्त्र की व्याख्या कर रहा था”
“वे” अर्थात वे दोनों शिष्य जिन भाषाओं में द्विवचन है, उनमें द्विवचन काम में लिया जाए।
“खड़े होकर”
यीशु के शिष्य जिनमें यहूदा नहीं था
यीशु के ग्यारह शिष्य तथा उनके साथ जो अन्य अनुयायी थे यह कहते थे।
“उन दोनों ने बताई”
जब वे इम्माऊस जा रहे थे तब यीशु के साक्षात्कार की चर्चा की।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “उन्होंने यीशु को कैसे पहचाना”।
“जब यीशु ने रोटी तोड़ी”
“आप” यीशु के लिए और उन्हें वास्तव में दर्शन देने के आश्चर्य पर ध्यान केन्द्रित कराता है। उनमें से अधिकांश ने यीशु के पुनरुत्थान के बाद नहीं देखा था।
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “उन सबकी आंखों के सामने”।
“तुम शान्ति पाओ”। या “परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे”। (यू.डी.बी.) “तुम्हें” शब्द बहुवचन है।
“वे विस्मित होकर डर गए”।
उन्हें अभी तक यीशु के जीवित होने की बात समझ में नहीं आई थी।
यहाँ भूत का अर्थ है किसी मृतक की आत्मा
यह एक अलंकारिक प्रश्न है जो उन्हें ढांढ़स बंधाने के लिए था। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मत डरो”।
“तुम्हारे मन में शंका क्यों है”? यह आलंकारिक प्रश्न मृदु झिड़की है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मन में सन्देह न होने दो”। यीशु उनसे कह रहा था कि उसके जीवित होने पर सन्देह न करो। यह यू.डी.बी. में स्पष्ट किया जा सकता है।
यह देह को सिद्ध करने के लिए था।
“वे तब भी विश्वास न कर पाए कि यह सच है”। वे अत्यधिक उत्साहित थे परन्तु साथ ही विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि वह जीवित है।
“और विस्मित थे” (यू.डी.बी.) या “सोच रहे थे कि यह कैसे संभव है”।
“उनकी आंखों के सामने” या “उनके देखते हुए”
“पहले जब मैं तुम्हारे साथ था”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है।
परमेश्वर सब बातें पूरी करेगा।
“मेरे विषय जो कुछ लिखा है सब”
“उसने उन्हें समझने की बुद्धि दी” (यू.डी.बी.)
“वर्षों पूर्व लोगों ने यही लिखा था”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में किया जा सकता है, “मसीह के अनुयायी प्रचार करेंगे कि मनुष्यों को पापों से विमुख होकर परमेश्वर से पापों की क्षमा प्राप्त करना है”।
“दो रातों के बाद”
“मनुष्यों की सब जातियों में” या “सब जनसमुदायों में”
“तुम्हें सबको बताना है कि तुमने मेरे बारे में जो कुछ देखा है, सब सच है। शिष्यों ने यीशु का जीवन उसकी मृत्यु और उसका पुनरूत्थान देखा था और उसने मनुष्यों के लिए क्या किया, इन सबका वर्णन करना है।
“मेरे पिता ने जो प्रतिज्ञा की है वह मैं तुम्हें दूंगा।
“सामर्थ्य से पूर्ण हो” या “सामर्थ्य प्राप्त करो” परमेश्वर का सामर्थ्य उन्हें वैसे ही ढाँप करेगा जैसे वस्त्र शरीर को करते हैं।
“परमेश्वर से”
“यह हुआ कि”
“यीशु उनकी भलाई के लिए परमेश्वर से कह रहा था”
लूका नहीं बताता है कि यीशु को किसने स्वर्ग में उठा लिया। हम नहीं जानते कि वह परमेश्वर स्वयं था या एक स्वर्गदूत था या अनेक स्वर्गदूत थे। यदि आपकी भाषा में आवश्यक हो कि यीशु को स्वर्ग में उठाने वाले का नाम व्यक्त करें तो यू.डी.बी. के जैसा अनुवाद सर्वोत्तम है, “चला गया”
इसका अर्थ है, दीनता एवं श्रद्धा के साथ झुकना, या घुटने टेकना या किसी के चरणों में मुंह के बल लेटना।
वे प्रतिदिन मन्दिर परिसर में जाते थे।
परमेश्वर की स्तुति उपासना करते थे। (यू.डी.बी.)
सप्ताह के प्रथम दिन वे भोर के समय आई।
उन्होंने देखा कि पत्थर लुढ़काया हुआ है और यीशु वहाँ नहीं है।
झलकते वस्त्रधारी उन पुरूषों (स्वर्गदूतों) ने क्या कहा कि यीशु के साथ हुआ है।
उन्होंने इस समाचार को व्यर्थ की बात मानकर अनसुना कर दिया।
उसने वहाँ केवल कपड़े पड़े देखें।
उसे पहचानने के लिए उनकी आंखें बन्द थी।
वे इस आशा में थे कि यीशु इस्राएल को उसके बैरियों से छुड़वायेगा।
उसने अपने बारे में धर्मशास्त्र की बातें उन्हें समझाई।
जब यीशु ने रोटी लेकर धन्यवाद किया, और उसे तोड़कर उनको देने लगा तब उन्होंने यीशु को पहचाना।
वह उनकी आंखों से ओझल हो गया।
यीशु ने कहा, "तुम्हें शान्ति मिले"।
यीशु ने चेलो से कहा कि वे उसे छूकर देखें, उसके हाथ और पांव देखें और उनके सामने मछली खाई।
यीशु ने उनकी बुद्धि खोल दी कि वे समझ पाएं।
मन फिराव और पापों की क्षमा का प्रचार सब जातियों में किया जाना था।
यीशु ने उनसे कहा कि स्वर्ग से सामर्थ्य पाने तक वे प्रतीक्षा करें।
वह स्वर्ग में उठा लिया गया।
वे लगातार मन्दिर में उपस्थित होकर परमेश्वर की स्तुति किया करते थे।
1 आदि में* वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। 2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था। 3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई। 4 उसमें जीवन था*; और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। 5 और ज्योति अंधकार में चमकती है; और अंधकार ने उसे ग्रहण न किया। 6 एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्थित हुआ जिसका नाम यूहन्ना था। 7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएँ। 8 वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था। 9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी। 10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहचाना। 11 वह अपने घर में आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। 12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं 13 वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। 14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा। (1 यूह. 4:9) 15 यूहन्ना ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, “यह वही है, जिसका मैंने वर्णन किया, कि जो मेरे बाद आ रहा है, वह मुझसे बढ़कर है, क्योंकि वह मुझसे पहले था।” 16 क्योंकि उसकी परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात् अनुग्रह पर अनुग्रह। 17 इसलिए कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई, परन्तु अनुग्रह और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुँची। 18 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा*, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।
19 यूहन्ना की गवाही यह है, कि जब यहूदियों ने यरूशलेम से याजकों और लेवियों को उससे यह पूछने के लिये भेजा, “तू कौन है?” 20 तो उसने यह मान लिया, और इन्कार नहीं किया, परन्तु मान लिया “मैं मसीह नहीं हूँ।” 21 तब उन्होंने उससे पूछा, “तो फिर कौन है? क्या तू एलिय्याह है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।” “तो क्या तू वह भविष्यद्वक्ता है?” उसने उत्तर दिया, “नहीं।” 22 तब उन्होंने उससे पूछा, “फिर तू है कौन? ताकि हम अपने भेजनेवालों को उत्तर दें। तू अपने विषय में क्या कहता है?” 23 उसने कहा, “जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, ‘मैं जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हूँ कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो’।” (यशा. 40:3) 24 ये फरीसियों की ओर से भेजे गए थे। 25 उन्होंने उससे यह प्रश्न पूछा, “यदि तू न मसीह है, और न एलिय्याह, और न वह भविष्यद्वक्ता है, तो फिर बपतिस्मा क्यों देता है?” 26 यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “मैं तो जल से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु तुम्हारे बीच में एक व्यक्ति खड़ा है, जिसे तुम नहीं जानते। 27 अर्थात् मेरे बाद आनेवाला है, जिसकी जूती का फीता मैं खोलने के योग्य नहीं।” 28 ये बातें यरदन के पार बैतनिय्याह में हुई, जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देता था।
29 दूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना* है, जो जगत के पाप हरता है। (1 पत. 1:19, यशा. 53:7) 30 यह वही है, जिसके विषय में मैंने कहा था, कि एक पुरुष मेरे पीछे आता है, जो मुझसे श्रेष्ठ है, क्योंकि वह मुझसे पहले था। 31 और मैं तो उसे पहचानता न था, परन्तु इसलिए मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया, कि वह इस्राएल पर प्रगट हो जाए।” 32 और यूहन्ना ने यह गवाही दी, “मैंने आत्मा को कबूतर के रूप में आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया। 33 और मैं तो उसे पहचानता नहीं था, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझसे कहा, ‘जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है।’ 34 और मैंने देखा, और गवाही दी है कि यही परमेश्वर का पुत्र है।” (भज. 2:7)
35 दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलों में से दो जन खड़े हुए थे। 36 और उसने यीशु पर जो जा रहा था, दृष्टि करके कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है।” 37 तब वे दोनों चेले उसकी सुनकर यीशु के पीछे हो लिए। 38 यीशु ने मुड़कर और उनको पीछे आते देखकर उनसे कहा, “तुम किस की खोज में हो?” उन्होंने उससे कहा, “हे रब्बी, (अर्थात् हे गुरु), तू कहाँ रहता है?” 39 उसने उनसे कहा, “चलो, तो देख लोगे।” तब उन्होंने आकर उसके रहने का स्थान देखा, और उस दिन उसी के साथ रहे; और यह दसवें घंटे के लगभग था। 40 उन दोनों में से, जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था। 41 उसने पहले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उससे कहा, “हमको ख्रिस्त अर्थात् मसीह मिल गया।” (यूह. 4:25) 42 वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, “तू यूहन्ना का पुत्र शमौन है, तू कैफा* अर्थात् पतरस कहलाएगा।”
43 दूसरे दिन यीशु ने गलील को जाना चाहा, और फिलिप्पुस से मिलकर कहा, “मेरे पीछे हो ले।” 44 फिलिप्पुस तो अन्द्रियास और पतरस के नगर बैतसैदा का निवासी था। 45 फिलिप्पुस ने नतनएल से मिलकर उससे कहा, “जिसका वर्णन मूसा ने व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हमको मिल गया; वह यूसुफ का पुत्र, यीशु नासरी है।” (मत्ती 21:11) 46 नतनएल ने उससे कहा, “क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है?” फिलिप्पुस ने उससे कहा, “चलकर देख ले।” 47 यीशु ने नतनएल को अपनी ओर आते देखकर उसके विषय में कहा, “देखो, यह सचमुच इस्राएली है: इसमें कपट नहीं।” 48 नतनएल ने उससे कहा, “तू मुझे कैसे जानता है?” यीशु ने उसको उत्तर दिया, “इससे पहले कि फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था, तब मैंने तुझे देखा था।” 49 नतनएल ने उसको उत्तर दिया, “हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र हे; तू इस्राएल का महाराजा है।” 50 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैंने जो तुझ से कहा, कि मैंने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तू इसलिए विश्वास करता है? तू इससे भी बड़े-बड़े काम देखेगा।” (यूह. 11:40) 51 फिर उससे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखोगे।” (उत्प. 28:12)
आकाश और पृथ्वी की रचना से भी बहुत पहले का समय
अर्थात यीशु। यदि संभव होता तो "यह वचन" अनुवाद करें यदि आपकी भाषा में "वचन" स्त्रीलिंग शब्द है तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है "वह जो वचन कहलाता है"।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है, "परमेश्वर ने सब कुछ उसके द्वारा उत्पन्न किया है"।
"परमेश्वर ने उसके बिना कुछ नहीं सृजा" या "परमेश्वर ने सब कुछ उसके साथ सृजा है" (देखें: और )
"यह वही है जिसे वचन कहा गया है, वही है जिसने हर एक प्राणी को जीवन दिया"
"वह हम पर परमेश्वर के सत्य को वैसे ही प्रकट करता है जैसे ज्योति अन्धकार की वस्तुओं को प्रकट करती है।"
"मनुष्य नहीं चाहते कि वह उनकी बुराइयों को प्रकट करे, ठीक वैसे ही जैसे अन्धकार बुराई है, परन्तु जिस प्रकार कि अन्धकार ज्योति को दबा नहीं सकता उसी प्रकार दुष्ट उस ज्योति स्वरूप व्यक्ति को परमेश्वर के सत्य के प्रकटीकरण से रोक नहीं पाता है"।
प्रकाशित करती है, "प्रकाश देती है"
"यद्यपि वह इस संसार में था और परमेश्वर ने यहाँ पर जो कुछ है वह सब कुछ उसी के द्वारा सृजा मनुष्यों ने फिर भी उसे स्वीकार नहीं किया"।
"वह अपने ही स्वदेश-वासियों में आया और उसके अपने ही स्वदेश-वासियों ने भी उसे स्वीकार नहीं किया"।
"उसने उन्हें अधिकार दिया" या "उसने उनके लिए संभव कर दिया"।
"हमसे सदैव दयालु व्यवहार करता है जिसके हम योग्य नहीं"।
यह शब्द परमेश्वर के अनुग्रह के संदर्भ में है जिसका कोई अन्त नहीं।
"आशिषों पर आशिषें"
एकमात्र मनुष्य, स्वयं परमेश्वर, इसका अर्थ हो सकता है, (1) "एकमात्र परमेश्वर" या (2) "एकमात्र पुत्र"
"जो सदैव पिता के पास रहता है", घनिष्ट संबन्ध का अभिप्राय प्रकट करता है। (देखेः )
और उसने यह मान लिया, उसने उनसे सत्य कहा है और स्पष्ट व्यक्त किया। (देखें: और
"यदि तू मसीह नहीं तो सच क्या है"? या "तो फिर से क्या रहा है"? या "तो फिर तू क्या कह रहा है"?
"याजकों और लेवियों ने यूहन्ना से पूछा"
याजक और लेवी, यूहन्ना नहीं
"यहून्ना ने कहा"
"मैं उसके जैसा हूँ जो ऐसे स्थान में घोषणा कर रहा है जहाँ उसकी वाणी कोई न सुने"।
प्रभु के आगमन के लिए अपने आपको तैयार करो जैसे किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के आगमन के लिए लोग मार्ग तैयार करते हैं।
"मेरे बाद यही तुम्हारे लिए प्रचार करेगा"।
जिसकी जूती का बन्ध मैं खोलने के योग्य नहीं, यहून्ना कह रहा है कि वह एक सेवक का सबसे तुच्छ कार्य उसके लिए करना चाहे तो भी योग्य नहीं है।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"नीचे आते"
इस अभिलेख की कुछ प्रतिलिपियों में लिखा है, "परमेश्वर का पुत्र" और कुछ में लिखा है, "परमेश्वर का चुना हुआ"।
दसों घंटे, यह समय दोपहर के बाद, अन्धेरा होने से पूर्व का है जो किसी दूसरे नगर जाने का समय नहीं था।
यह यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला नहीं पर यूहन्ना उनमें एक प्रचलित नाम था।
"नासरत से कोई भी अच्छी वस्तु नहीं निकल सकती है"
"एक पूर्णतः सत्यवादी मनुष्य है"
किसी महत्त्वपूर्ण एवं सत्य बात को व्यक्त करने के लिए आपकी भाषा में जो भी अभिव्यक्ति है उसका उपयोग यहाँ करें।
आदि में वचन था।
वचन परमेश्वर के साथ था।
वचन परमेश्वर था।
सब कुछ उसके द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई है।
उसमें जीवन था।
उसका नाम यूहन्ना था।
वह गवाही देने आया कि ज्योति की गवाही दे ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं।
यूहन्ना जिस ज्योति की गवाही देने आया था उसे जगत ने नहीं पहचाना और इस ज्योति को अपनों ही ने उसे नहीं पहचाना।
जितनों ने उसे ग्रहण किया उन्हें उसने परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया।
वे परमेश्वर से उत्पन्न होकर परमेश्वर की सन्तान बन जाते हैं।
नहीं, वचन ही एक अद्वैत व्यक्तित्व था जो पिता की ओर से आने वाले वचन के सदृश्य था।
उसकी परिपूर्णता में से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात अनुग्रह पर अनुग्रह।
अनुग्रह और सत्य मसीह यीशु से आया।
"किसी भी मनुष्य ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा है।"
एकलौते पुत्र ने जो पिता परमेश्वर की गोद में है, उसी ने उसे हम पर प्रकट किया है।
उसने कहा, "जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, 'मैं जंगल में पुकारने वाले का शब्द हूँ कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो'"।
उसने कहा, "देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है।"
वह जल से बपतिस्मा देता हुआ आया, कि जगत का पाप उठा ले जाने वाला परमेश्वर का मेम्ना, मसीह यीशु इस्राएल पर प्रकट हो जाए।
यूहन्ना जिस पर आकाश से आत्मा को उतर कर ठहरते देखेगा, वही पवित्र आत्मा का बपतिस्मा देने वाले का चिन्ह होगा।
वे यीशु के पीछे हो लिए।
इन दोनों में से एक का नाम अन्द्रियास था।
अन्द्रियास ने शमौन से कहा, "हमको ख्रीस्त, अर्थात मसीह मिल गया है"।
यीशु ने कहा शमौन कैफा (अर्थात पतरस कहलाएगा)।
अन्द्रियास और पतरस बैतसैदा के निवासी थे।
नतनएल ने कहा, "हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है, तू इस्राएल का महाराजा है"।
यीशु ने नतनएल से कहा, कि वह स्वर्ग को खुला हुआ और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखेगा।
1 फिर तीसरे दिन गलील के काना* में किसी का विवाह था, और यीशु की माता भी वहाँ थी। 2 यीशु और उसके चेले भी उस विवाह में निमंत्रित थे। 3 जब दाखरस खत्म हो गया, तो यीशु की माता ने उससे कहा, “उनके पास दाखरस नहीं रहा*।” 4 यीशु ने उससे कहा, “हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? अभी मेरा समय* नहीं आया।” 5 उसकी माता ने सेवकों से कहा, “जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना।” 6 वहाँ यहूदियों के शुद्धीकरण के लिए पत्थर के छः मटके रखे थे, जिसमें दो-दो, तीन-तीन मन समाता था। 7 यीशु ने उनसे कहा, “मटको में पानी भर दो।” तब उन्होंने उन्हें मुहाँमुहँ भर दिया। 8 तब उसने उनसे कहा, “अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ।” और वे ले गए। 9 जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया था और नहीं जानता था कि वह कहाँ से आया हैं; (परन्तु जिन सेवकों ने पानी निकाला था वे जानते थे), तो भोज के प्रधान ने दूल्हे को बुलाकर, उससे कहा 10 “हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है, और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तूने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।” 11 यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहला चिन्ह दिखाकर अपनी महिमा प्रगट की और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया। 12 इसके बाद वह और उसकी माता, उसके भाई, उसके चेले, कफरनहूम को गए और वहाँ कुछ दिन रहे।
13 यहूदियों का फसह का पर्व निकट था, और यीशु यरूशलेम को गया। 14 और उसने मन्दिर में बैल, और भेड़ और कबूतर के बेचनेवालों ओर सर्राफों को बैठे हुए पाया। 15 तब उसने रस्सियों का कोड़ा बनाकर, सब भेड़ों और बैलों को मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफों के पैसे बिखेर दिये, और मेज़ें उलट दीं, 16 और कबूतर बेचनेवालों से कहा, “इन्हें यहाँ से ले जाओ। मेरे पिता के भवन को व्यापार का घर मत बनाओ।” 17 तब उसके चेलों को स्मरण आया कि लिखा है, “तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी*।” (भज. 69:9) 18 इस पर यहूदियों ने उससे कहा, “तू जो यह करता है तो हमें कौन सा चिन्ह दिखाता हैं?” 19 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “इस मन्दिर को ढा दो, और मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा।” 20 यहूदियों ने कहा, “इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हैं, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?” 21 परन्तु उसने अपनी देह के मन्दिर के विषय में कहा था। 22 फिर जब वह मुर्दों में से जी उठा फिर उसके चेलों को स्मरण आया कि उसने यह कहा था; और उन्होंने पवित्रशास्त्र और उस वचन की जो यीशु ने कहा था, विश्वास किया।
23 जब वह यरूशलेम में फसह के समय, पर्व में था, तो बहुतों ने उन चिन्हों को जो वह दिखाता था देखकर उसके नाम पर विश्वास किया। 24 परन्तु यीशु ने अपने आप को उनके भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था, 25 और उसे प्रयोजन न था कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप जानता था कि मनुष्य के मन में क्या है?
पुत्र द्वारा अपनी माता को महिला कहना अभद्र प्रतीत होगा, अतः अपनी भाषा में ऐसा शब्द काम में लें जो विनम्र एवं औपचारिक हो।
"इसका मुझ से क्या संबन्ध" या "मुझे मत कह कि क्या करना है"।
"अभी समय नहीं है"।
"80 से 120 लीटर" उनका जो नाप था टन वह लगभग 40 लीटर का होता था
अर्थात मुँह का या पूरा भर दो
अर्थात भोजन पानी का प्रबन्धक
यह अतिरिक्त जानकारी है।
दाखमधु के प्रभाव के कारण अच्छी और घटिया मय में अन्तर नहीं पहचान पाते हैं।
इसका मतलब यह है कि उन्होंने ऊँचे स्थान से नीचे स्थान की तरफ प्रस्थान किया। काना नगर कफरनहूम से ऊंचे पर स्थित था और दक्षिण-पश्चिम में था।
इस शब्द में भाई-बहन सब है। यीशु के सब भाई बहन उससे कम आयु के थे।
अर्थात वे नीचे से ऊपर की ओर गए यरूशलेम पहाड़ पर स्थित है।
यह मन्दिर का बाहरी आंगन है जहाँ गैर यहूदियों के लिए आराधना करने की व्यवस्था थी।
"परमेश्वर के लिए बलि चढ़ाने के लिए पशु बेचे जाते थे।"
यहूदी अधिकारियों ने अनिवार्य किया हुआ था कि बाहर का पैसा मन्दिर के पैसों में बदल कर ही पशु-पक्षी खरीदे जाएं अतः सर्राफ मुद्रा विनिमय करते थे।
यीशु इस अभिव्यक्ति द्वारा मन्दिर का संदर्भ देता था।
अर्थात परमेश्वर का मन्दिर-परमेश्वर का घर
अर्थात पूर्णतः अभिभूत कर देगी।
अर्थात मन्दिर के व्यापार को ध्वंस करता है
"तीन दिन में इसका पुनः निर्माण करना तेरे लिए संभव नहीं है"
इसका संदर्भ यूह. 02:17 में यीशु के वचन से है। 2:19
यह एक संयोजक शब्द है जो प्रकट करता है कि एक अनापेक्षित घटना आने वाली है, वैकल्पिक अनुवाद, "तथापि"
गलील के काना नगर में यीशु की माता और उसके शिष्य एक विवाह में आमंत्रित थे।
उसने यीशु को परिस्थिति से अवगत करवाया कि वह कुछ करे।
उसने कहा कि वे पानी के बर्तन पानी से भर दें, फिर उसने सेवकों से कहा कि वे उसमें से कुछ पानी लेकर भोज के प्रधान के पास ले जाए।
भोज के प्रधान ने कहा, "हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है, और जब लोग पीकर छक जाते है, तब मध्यम देता है; परन्तु तूने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है"।
यीशु के शिष्यों ने उसमें विश्वास किया।
उसने मन्दिर में बैल, भेड़ और कबूतर के बेचने वाले और सर्राफों को बैठे देखा।
उसने रस्सियों का कोड़ा बनाकर उन सबको मन्दिर से बाहर निकाला, भेड़ों और बैलों को भी, उसने सर्राफों के पैसे बिखेर दिए और उनके पीढ़ों को उलट दिया।
उसने कहा, "इन्हें यहां से ले जाओ, मेरे पिता के घर को व्यापार का घर मत बनाओ"।
उसने उत्तर दिया, "इस मन्दिर को ढा दो और तीन दिन में इसे खड़ा कर दूंगा"।
यीशु अपनी देह को मन्दिर कह रहा था।
लोगों ने उसके द्वारा किए गए चमत्कारी चिन्हों को देख कर विश्वास किया।
यीशु ने स्वयं को उनके भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सबको जानता था और उसे आवश्यकता नहीं थी कि मनुष्य के विषय में गवाही दे।
1 फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम का एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था*। 2 उसने रात को यीशु के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता।” 3 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ*, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।” 4 नीकुदेमुस ने उससे कहा, “मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो कैसे जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है?” 5 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे* तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। 6 क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। 7 अचम्भा न कर, कि मैंने तुझ से कहा, ‘तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है।’ 8 हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसकी आवाज़ सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहाँ से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।” (सभो. 11:5) 9 नीकुदेमुस ने उसको उत्तर दिया, “ये बातें कैसे हो सकती हैं?” 10 यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “तू इस्राएलियों का गुरु होकर भी क्या इन बातों को नहीं समझता? 11 मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि हम जो जानते हैं, वह कहते हैं, और जिसे हमने देखा है उसकी गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते। 12 जब मैंने तुम से पृथ्वी की बातें कहीं, और तुम विश्वास नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूँ, तो फिर क्यों विश्वास करोगे? 13 कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वहीं जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है। (यहू. 6:38) 14 और जिस तरह से मूसा ने जंगल में साँप को ऊँचे पर चढ़ाया, उसी रीती से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए। (यूह. 8:28) 15 ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनन्त जीवन पाए। 16 “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। 17 परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिए नहीं भेजा, कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परन्तु इसलिए कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। 18 जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; इसलिए कि उसने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया। (यूह. 5:10) 19 और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अंधकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे। 20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए। 21 परन्तु जो सच्चाई पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।”
22 इसके बाद यीशु और उसके चेले यहूदिया देश में आए; और वह वहाँ उनके साथ रहकर बपतिस्मा देने लगा। 23 और यूहन्ना भी सालेम के निकट ऐनोन* में बपतिस्मा देता था। क्योंकि वहाँ बहुत जल था, और लोग आकर बपतिस्मा लेते थे। 24 क्योंकि यूहन्ना उस समय तक जेलखाने में नहीं डाला गया था। 25 वहाँ यूहन्ना के चेलों का किसी यहूदी के साथ शुद्धि के विषय में वाद-विवाद हुआ। 26 और उन्होंने यूहन्ना के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साथ था, और जिसकी तूने गवाही दी है; देख, वह बपतिस्मा देता है, और सब उसके पास आते हैं।” 27 यूहन्ना ने उत्तर दिया, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए, तब तक वह कुछ नहीं पा सकता। 28 तुम तो आप ही मेरे गवाह हो, कि मैंने कहा, ‘मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ।’ (यूह. 1:20, मला. 3:1) 29 जिसकी दुल्हिन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उसकी सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हर्षित होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है। 30 अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ।
31 “जो ऊपर से आता है, वह सर्वोत्तम है, जो पृथ्वी से आता है वह पृथ्वी का है; और पृथ्वी की ही बातें कहता है: जो स्वर्ग से आता है, वह सब के ऊपर है। (यूह. 8:23) 32 जो कुछ उसने देखा, और सुना है, उसी की गवाही देता है; और कोई उसकी गवाही ग्रहण नहीं करता। 33 जिसने उसकी गवाही ग्रहण कर ली उसने इस बात पर छाप दे दी कि परमेश्वर सच्चा है। 34 क्योंकि जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर की बातें कहता है: क्योंकि वह आत्मा नाप नापकर नहीं देता। 35 पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उसने सब वस्तुएँ उसके हाथ में दे दी हैं। 36 जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।”
फरीसी समुदाय का एक सदस्य
महासभा, "सेनहेड्रिन" कहलाती थी जो एक यहूदी सभाओं में सर्वोपरि थी।
यहां "हम" विशिष्ट शब्द है जो केवल नीकेदेमुस और महासभा के सदस्यों के लिए है।
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"स्वर्ग से जन्म ले" या "परमेश्वर से जन्म ले"
उसने इस प्रश्न द्वारा इसकी असंभावना पर बल दिया था। वैकल्पिक अनुवाद, "मनुष्य वृद्धावस्था में फिर से जन्म कभी नहीं ले सकता है।"
"वह निश्चय ही अपनी माता के गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकता"।
"फिर से" या "पुनः"
स्त्री गर्भ के शरीर में भ्रूण विकास का स्थानं वैकल्पिक अनुवाद, "पेट"
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया गया है।
इसके तीन संभावित अर्थ हैं (1) पानी में बपतिस्मा लेना या (2) शारीरिक जन्म या (3) पवित्र आत्मा से जन्म लेना वैकल्पिक अनुवाद, "पवित्र आत्मा से आत्मिक जन्म लेना"।(देखें: और )
यीशु नीकुदेमुस से बातें कर रहा है।
"तुझे स्वार्गिक जन्म लेना है" या "परमेश्वर को तुझे जीवन दान देना है"। देखें पर टिप्पणी
इसके दो अर्थ हैं। मूल भाषा में हवा और आत्मा के लिए एक ही शब्द है। वैकल्पिक अनुवाद, "पवित्र आत्मा एक जैसा है वह जहाँ चाहता है वहाँ जाता है"।
यह प्रश्न कथन पर बल देता है। वैकल्पिक अनुवाद "ऐसा नहीं हो सकता" या "ऐसा होना संभव नहीं है"।
यह प्रश्न उसके कथन को बल देने के लिए है। वैकल्पिक अनुवाद, "तू इस्राएलियों का शिक्षक है और मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तू इन बातों को नहीं समझता।"
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
जब यीशु ने कहा, "हम" तो उसमें वह नीकुदेमुस को नहीं गिन रहा है।
दोनों जगह में "तुम" एकवचन में है
"यदि मैं स्वर्ग की बातें कहूँगा" तो तुम निश्चय ही विश्वास नहीं करोगे"।
आत्मिक बातें
वह वास्तविक सांप नहीं था। ताबें का बना सांप था।
जंगल एक निर्जल, निर्जन स्थान था परन्तु यहाँ वह उस स्थान का उल्लेख कर रहा है जहां मूसा और इब्रानी 40 वर्ष तक जंगल में थे।
x
जगत अर्थात संसार का वह हर एक जन जो यीशु में विश्वास रखता है न कि हर एक जन जो संसार में है।
"एकमात्र पुत्र"
"दण्ड"
वैकल्पिक अनुवाद "कि ज्योति उसके कामों को उजागर न कर दे" या "कि ज्योति उसके कामों को प्रकट न कर दे"। (देखें: )
वैकल्पिक अनुवाद, "मनुष्य इसके कामों को स्पष्ट देख पाएं" या "वह जो करता है वह स्पष्ट दिखाई दे"।
"क्योंकि उस स्थान में जल के सोते अनेक थे"।
इसका अर्थ है जल का सोता
यरदन के निकट एक नगर
"यूहन्ना उन्हें बपतिस्मा देता था" या "वह उन्हें बपतिस्मा देता था"।
"तब यूहन्ना के शिष्यों में और एक यहूदी में विवाद होने लगा"।
"विवाद आरंभ हुआ" या "होने लगा"
"शब्दों का झगड़ा"
यहाँ "देख" शब्द एक आज्ञा है अर्थात "ध्यान दे" वैकल्पिक अनुवाद, ध्यान दे कि वह भी बपतिस्मा देता है" या "उसे तो देख, वह भी बपतिस्मा दे रहा है"
"किसी में सामर्थ्य नहीं जब तक कि"
यहां "तुम" शब्द बहुवचन में है जिसका अर्थ है वे सब जिनसे यूहन्ना बातें कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम सब" या "तुम सब के सब"।
"परमेश्वर ने मुझे पहले आने के लिए भेजा है"
"दूल्हा दूल्हन से विवाह करता है" या "दूल्हे के पास ही दूल्हन होती है"
"अतः मैं बहुत आनन्दित हूँ" या "मेरा आनन्द बहुत है"।
शब्द "मेरा" अर्थात यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, वह जो कह रहा है
"वह" अर्थात दुल्हा, यीशु
वैकल्पिक अनुवाद, "जो मनुष्य पृथ्वी पर है" या "पृथ्वी का मनुष्य"
"जो" यीशु के संदर्भ में है।
"बहुत कम लोग उसकी गवाही स्वीकार करते हैं"।
"जिसने" उस व्यक्ति का संदर्भ देता है जो "यीशु की बातें सुनने वाला मनुष्य" है।
"सिद्ध करता है" या "सहमत होता है"
"यह यीशु, जिसे परमेश्वर ने अपना प्रतिनिधि होने के लिए भेजा है"।
"क्योंकि यह वही है जिसे परमेश्वर ने अपनी आत्मा का संपूर्ण सामर्थ्य दे दिया है"
"जो विश्वास करता है" या "विश्वास करने वाला कोई भी"
"परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है"
नीकुदेमुस एक फरीसी था, यहूदी महासभा का सदस्य।
नीकुदेमुस ने यीशु से कहा, "हे रब्बी, हम जानते हैं कि तू परमेश्वर की ओर से गुरू होकर आया है, क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो तो नहीं दिखा सकता"।
यीशु ने नीकुदेमुस से कहा, "यदि कोई नये सिरे से "न जन्में" अर्थात "जल और आत्मा से न जन्में" तो परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता।
नीकुदेमुस ने कहा, "मनुष्य जब बूढ़ा हो गया तो कैसे जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है"? उसने कहा, "ये बातें कैसे हो सकती है"?
यीशु ने नीकुदेमुस को झिड़क कर कहा, "तू इस्राएलियों का गुरू होकर भी इन बातों को नहीं समझता"? "जब मैंने पृथ्वी की बातें कही और तुम विश्वास नहीं करते तो यदि मैं स्वर्ग की बातें कहूँ तो फिर कैसे विश्वास करोगे"?
कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात मनुष्य का पुत्र।
अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए; ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनन्त जीवन पाए।
परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
नहीं, परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।
दण्ड की आज्ञा का कारण है कि जगत में ज्योति आई और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे।
जो बुराई करता है वह ज्योति से बैर रखता है और ज्योति में नहीं आता है क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसके काम प्रकट हों।
वह ज्योति में आता है ताकि उसके काम प्रगट हों कि वे परमेश्वर की आज्ञाओं के पालन के हैं।
यूहन्ना ने कहा, "अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूं"।
उन्होंने सिद्ध कर दिया कि परमेश्वर सच्चा है।
उसने सब वस्तुएं पुत्र के हाथ में दे दीं हैं।
उनमे अनन्त जीवन है।
वह जीवन को नहीं देखेगा, परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।
1 फिर जब प्रभु को मालूम हुआ कि फरीसियों ने सुना है कि यीशु यूहन्ना से अधिक चेले बनाता और उन्हें बपतिस्मा देता है। 2 (यद्यपि यीशु स्वयं नहीं वरन् उसके चेले बपतिस्मा देते थे), 3 तब वह यहूदिया को छोड़कर फिर गलील को चला गया, 4 और उसको सामरिया से होकर जाना अवश्य था। 5 इसलिए वह सूखार* नामक सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को दिया था। 6 और याकूब का कुआँ भी वहीं था। यीशु मार्ग का थका हुआ उस कुएँ पर यों ही बैठ गया। और यह बात लगभग दोपहर के समय हुई। 7 इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई। यीशु ने उससे कहा, “मुझे पानी पिला।” 8 क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे। 9 उस सामरी स्त्री ने उससे कहा, “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों माँगता है?” क्योंकि यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते। (प्रेरि. 108:28) 10 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है, ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उससे माँगती, और वह तुझे जीवन का जल* देता।” 11 स्त्री ने उससे कहा, “हे स्वामी, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कुआँ गहरा है; तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहाँ से आया? 12 क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कुआँ दिया; और आपही अपने सन्तान, और अपने पशुओं समेत उसमें से पीया?” 13 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा, 14 परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा*, वह उसमें एक सोता बन जाएगा, जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।” 15 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊँ और न जल भरने को इतनी दूर आऊँ।” 16 यीशु ने उससे कहा, “जा, अपने पति को यहाँ बुला ला।” 17 स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं बिना पति की हूँ।” यीशु ने उससे कहा, “तू ठीक कहती है, ‘मैं बिना पति की हूँ।’ 18 क्योंकि तू पाँच पति कर चुकी है, और जिसके पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तूने सच कहा है।” 19 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे लगता है कि तू भविष्यद्वक्ता है। 20 हमारे पूर्वजों ने इसी पहाड़ पर भजन किया, और तुम कहते हो कि वह जगह जहाँ भजन करना चाहिए यरूशलेम में है।” (व्य. 11:29) 21 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी, मेरी बात का विश्वास कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे, न यरूशलेम में। 22 तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम जिसे जानते हैं, उसका भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है। (यशा. 2:3) 23 परन्तु वह समय आता है, वरन् अब भी है, जिसमें सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही आराधकों को ढूँढ़ता है। 24 परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से आराधना करें।” 25 स्त्री ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रिस्त कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।” 26 यीशु ने उससे कहा, “मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ।”
27 इतने में उसके चेले आ गए, और अचम्भा करने लगे कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; फिर भी किसी ने न पूछा, “तू क्या चाहता है?” या “किस लिये उससे बातें करता है?” 28 तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चली गई, और लोगों से कहने लगी, 29 “आओ, एक मनुष्य को देखो, जिस ने सब कुछ जो मैंने किया मुझे बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं है?” 30 तब वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे। 31 इतने में उसके चेले यीशु से यह विनती करने लगे, “हे रब्बी, कुछ खा ले।” 32 परन्तु उसने उनसे कहा, “मेरे पास खाने के लिये ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते।” 33 तब चेलों ने आपस में कहा, “क्या कोई उसके लिये कुछ खाने को लाया है?” 34 यीशु ने उनसे कहा, “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूँ और उसका काम पूरा करूँ। 35 क्या तुम नहीं कहते, ‘कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं?’ देखो, मैं तुम से कहता हूँ, अपनी आँखें उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं। 36 और काटनेवाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिये फल बटोरता है, ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनों मिलकर आनन्द करें। 37 क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है: ‘बोनेवाला और है और काटनेवाला और।’ (मीका 6:15) 38 मैंने तुम्हें वह खेत काटने के लिये भेजा जिसमें तुम ने परिश्रम नहीं किया औरों ने परिश्रम किया और तुम उनके परिश्रम के फल में भागी हुए।”
39 और उस नगर के बहुत से सामरियों ने उस स्त्री के कहने से यीशु पर विश्वास किया; जिस ने यह गवाही दी थी, कि उसने सब कुछ जो मैंने किया है, मुझे बता दिया। 40 तब जब ये सामरी उसके पास आए, तो उससे विनती करने लगे कि हमारे यहाँ रह, और वह वहाँ दो दिन तक रहा। 41 और उसके वचन के कारण और भी बहुतों ने विश्वास किया। 42 और उस स्त्री से कहा, “अब हम तेरे कहने ही से विश्वास नहीं करते; क्योंकि हमने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है।” 43 फिर उन दो दिनों के बाद वह वहाँ से निकलकर गलील को गया। 44 क्योंकि यीशु ने आप ही साक्षी दी कि भविष्यद्वक्ता अपने देश में आदर नहीं पाता। 45 जब वह गलील में आया, तो गलीली आनन्द के साथ उससे मिले; क्योंकि जितने काम उसने यरूशलेम में पर्व के समय किए थे, उन्होंने उन सब को देखा था, क्योंकि वे भी पर्व में गए थे।
46 तब वह फिर गलील के काना में आया, जहाँ उसने पानी को दाखरस बनाया था। वहाँ राजा का एक कर्मचारी था जिसका पुत्र कफरनहूम में बीमार था। 47 वह यह सुनकर कि यीशु यहूदिया से गलील में आ गया है, उसके पास गया और उससे विनती करने लगा कि चलकर मेरे पुत्र को चंगा कर दे: क्योंकि वह मरने पर था। 48 यीशु ने उससे कहा, “जब तक तुम चिन्ह और अद्भुत काम न देखोगे तब तक कदापि विश्वास न करोगे।” (दानि. 4:2) 49 राजा के कर्मचारी ने उससे कहा, “हे प्रभु, मेरे बालक की मृत्यु होने से पहले चल।” 50 यीशु ने उससे कहा, “जा, तेरा पुत्र जीवित है।” उस मनुष्य ने यीशु की कही हुई बात पर विश्वास किया और चला गया। 51 वह मार्ग में जा ही रहा था, कि उसके दास उससे आ मिले और कहने लगे, “तेरा लड़का जीवित है।” 52 उसने उनसे पूछा, “किस घड़ी वह अच्छा होने लगा?” उन्होंने उससे कहा, “कल सातवें घण्टे में उसका ज्वर उतर गया।” 53 तब पिता जान गया कि यह उसी घड़ी हुआ जिस घड़ी यीशु ने उससे कहा, “तेरा पुत्र जीवित है,” और उसने और उसके सारे घराने ने विश्वास किया। 54 यह दूसरा चिन्ह था जो यीशु ने यहूदिया से गलील में आकर दिखाया।
"जब" शब्द यहाँ कहानी में परिवर्तन का संकेतक है, कहानी में पूर्व के अध्याय में यूहन्ना के शब्दों से परिवर्तित होकर यीशु के कार्यों का वर्णन करती है।
"असलमे यीशु लोगों को बपतिस्मा नहीं दे रहा था"। "स्वयं" शब्द यीशु पर बल देने के लिए है।
एक विनम्र निवेदन है, आज्ञा नहीं।
"संबन्ध नहीं रखते हैं"।
"तू हमारे पिता याकूब से बड़ा नहीं हो सकता"
"मैं समझ सकती हूं कि तू एक भविष्यद्वक्ता है"
हम उसे जानते हैं "क्योंकि जो मनुष्यों को परमेश्वर के दण्ड से बचाएगा वह जन्म से यहूदी है"।
वैकल्पिक अनुवाद, "परन्तु समय आ चुका है, जब"
"उसके आत्मा के निर्देशन में"
वैकल्पिक मनुष्य, "क्या यह मनुष्य मसीह हो सकता है"?
"जिस प्रकार भोजन भूखे मनुष्य को सन्तुष्ट करता है उसी प्रकार परमेश्वर की इच्छा का पालन करना मुझे सन्तुष्ट करता है"
"क्या यह तुम में प्रचलित कहावत नहीं"?
जिस प्रकार खेत में पकी हुई फसल कटनी के लिए तैयार होती है वैसे ही मनुष्य मेरा सन्देश स्वीकार करने के लिए तैयार हैं“
"तुम" शब्द "तुम" को पिछले उपयोग का फल प्रदान करने के लिए है। इसका अनुवाद अपनी भाषा में उस शब्द से करें जो किसी व्यक्ति को बल प्रदान करता है।
"आप" शब्द बल प्रदान करने के लिए काम में लिया गया है
यह जानकर कि फरीसियों को समाचार मिल गया है कि यीशु यूहन्ना से अधिक बपतिस्मा दे रहा है और शिष्य बना रहा है तो वह यहूदिया को छोड़कर गलील चला गया।
वह सूखार नामक सामरिया के एक नगर में याकूब के कुएँ के पास ठहर गया।
उस कुएँ पर एक सामरी स्त्री पानी भरने आई।
यीशु ने उससे कहा, "मुझे पानी पिला"।
वे नगर में भोजन लेने गए थे।
इस पर मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि यहूदी सामरियों से संबन्ध नहीं रखते थे।
यीशु ने उससे कहा कि यदि वह परमेश्वर के वरदान को जानती और पानी मांगने वाले को पहचानती तो वह उससे मांगती और वह उसे जीवन का जल देता।
उस स्त्री ने कहा, "हे प्रभु तेरे पास तो जल भरने को तो कुछ भी नहीं है और कुआं गहरा है, तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहाँ से आया?"
यीशु ने उस स्त्री से कहा कि जो उसके दिए हुए पानी को पीते हैं वे फिर कभी प्यासे नहीं होते और वह उनमें सोता बन जायेगा जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहेगा।
उसने वह जल मांगा कि उसे फिर प्यास न लगे और उसे पानी लेने कुएं के पास न आना पड़े।
यीशु ने उससे कहा, "जा अपने पति को यहां बुला ला"।
उस स्त्री ने यीशु से कहा कि उसका पति नहीं है।
यीशु ने उससे कहा कि उसने पांच पति किए हैं और जिसके साथ वह रहती है, वह भी उसका पति नहीं है।
अब वह आराधना के स्थान पर उनमें जो मतभेद था उसका विषय ले आती है।
यीशु ने कहा कि परमेश्वर आत्मा है और सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे।
यीशु ने उससे कहा कि वही मसीह है।
उस स्त्री ने पानी का बर्तन वहीं छोड़ा और नगर में जाकर लोगों से कहा, आओ एक मनुष्य को देखो, जिसने सब कुछ जो मैंने किया मुझे बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं है?
वे सब नगर से निकल कर यीशु के पास आए।
यीशु ने कहा, मेरा भोजन यह है कि अपने भेजने वाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।
काटने वाला मजदूरी पाता है और अनन्त जीवन के लिए फल बटोरता है, ताकि बोने वाला और काटने वाला दोनों मिलकर आनन्द करें।
उस स्त्री की बातें सुनकर उस नगर में अनेक सामरियों ने यीशु में विश्वास किया और उसके वचन के कारण और भी बहुतों ने विश्वास किया।
उन्होंने कहा कि अब वे जान गए हैं कि यीशु निश्चय ही जगत का उद्धारकर्ता है।
उन्होंने उसका हार्दिक स्वागत किया क्योंकि उन्होंने पर्व के समय यरूशलेम में उसके द्वारा किए गए सब काम देखे थे।
राजा के एक कर्मचारी ने आकर विनती की, कि वह उसके घर आकर उसके पुत्र को चंगा करे।
यीशु ने उससे कहा, कि मनुष्य चिन्ह चमत्कार देखे बिना विश्वास नहीं करेंगे।
उसने यीशु की बात पर विश्वास किया और घर लौट गया।
परिणाम यह हुआ कि राजा के उस कर्मचारी ने और उसके पूरे घराने ने विश्वास किया।
1 इन बातों के पश्चात् यहूदियों का एक पर्व हुआ, और यीशु यरूशलेम को गया। 2 यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है, जो इब्रानी भाषा में बैतहसदा कहलाता है, और उसके पाँच ओसारे हैं। 3 इनमें बहुत से बीमार, अंधे, लँगड़े और सूखे अंगवाले (पानी के हिलने की आशा में) पड़े रहते थे। 4 क्योंकि नियुक्त समय पर परमेश्वर के स्वर्गदूत कुण्ड में उतरकर पानी को हिलाया करते थे: पानी हिलते ही जो कोई पहले उतरता, वह चंगा हो जाता था, चाहे उसकी कोई बीमारी क्यों न हो। 5 वहाँ एक मनुष्य था, जो अड़तीस वर्ष से बीमारी में पड़ा था। 6 यीशु ने उसे पड़ा हुआ देखकर और यह जानकर कि वह बहुत दिनों से इस दशा में पड़ा है, उससे पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” 7 उस बीमार ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, मेरे पास कोई मनुष्य नहीं, कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुँचते-पहुँचते दूसरा मुझसे पहले उतर जाता है।” 8 यीशु ने उससे कहा, “उठ, अपनी खाट उठा और चल फिर।” 9 वह मनुष्य तुरन्त चंगा हो गया, और अपनी खाट उठाकर चलने फिरने लगा। 10 वह सब्त का दिन था। इसलिए यहूदी उससे जो चंगा हुआ था, कहने लगे, “आज तो सब्त का दिन है, तुझे खाट उठानी उचित नहीं।” (यिर्म. 17:21) 11 उसने उन्हें उत्तर दिया, “जिस ने मुझे चंगा किया, उसी ने मुझसे कहा, ‘अपनी खाट उठाकर चल फिर’।” 12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कौन मनुष्य है, जिस ने तुझ से कहा, ‘खाट उठा और, चल फिर’?” 13 परन्तु जो चंगा हो गया था, वह नहीं जानता था कि वह कौन है; क्योंकि उस जगह में भीड़ होने के कारण यीशु वहाँ से हट गया था। 14 इन बातों के बाद वह यीशु को मन्दिर में मिला, तब उसने उससे कहा, “देख, तू तो चंगा हो गया है; फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इससे कोई भारी विपत्ति तुझ पर आ पड़े।” 15 उस मनुष्य ने जाकर यहूदियों से कह दिया, कि जिस ने मुझे चंगा किया, वह यीशु है। 16 इस कारण यहूदी यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह ऐसे-ऐसे काम सब्त के दिन करता था। 17 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूँ।” 18 इस कारण यहूदी और भी अधिक उसके मार डालने का प्रयत्न करने लगे, कि वह न केवल सब्त के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कहकर, अपने आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता था।
19 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन-जिन कामों को वह करता है, उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है। 20 क्योंकि पिता पुत्र से प्यार करता है* और जो-जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है; और वह इनसे भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो। 21 क्योंकि जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है, उन्हें जिलाता है। 22 पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है, 23 इसलिए कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें; जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिसने उसे भेजा है, आदर नहीं करता। 24 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
25 “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, वह समय आता है, और अब है, जिसमें मृतक परमेश्वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएँगे। 26 क्योंकि जिस रीति से पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उसने पुत्र को भी यह अधिकार दिया है कि अपने आप में जीवन रखे; 27 वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिए कि वह मनुष्य का पुत्र है। 28 इससे अचम्भा मत करो; क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। 29 जिन्होंने भलाई की है, वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्होंने बुराई की है, वे दण्ड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे। (दानि.12:2)
30 “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ, वैसा न्याय करता हूँ, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ। 31 यदि मैं आप ही अपनी गवाही दूँ; तो मेरी गवाही सच्ची नहीं। 32 एक और है जो मेरी गवाही देता है, और मैं जानता हूँ कि मेरी जो गवाही वह देता है, वह सच्ची है। 33 तुम ने यूहन्ना से पुछवाया और उसने सच्चाई की गवाही दी है। 34 परन्तु मैं अपने विषय में मनुष्य की गवाही नहीं चाहता*; फिर भी मैं ये बातें इसलिए कहता हूँ, कि तुम्हें उद्धार मिले। 35 वह तो जलता और चमकता हुआ दीपक था; और तुम्हें कुछ देर तक उसकी ज्योति में, मगन होना अच्छा लगा। 36 परन्तु मेरे पास जो गवाही है, वह यूहन्ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्थात् यही काम जो मैं करता हूँ, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है। 37 और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है; 38 और उसके वचन को मन में स्थिर नहीं रखते, क्योंकि जिसे उसने भेजा तुम उस पर विश्वास नहीं करते। 39 तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते* हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है; 40 फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते। 41 मैं मनुष्यों से आदर नहीं चाहता। 42 परन्तु मैं तुम्हें जानता हूँ, कि तुम में परमेश्वर का प्रेम नहीं। 43 मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ, और तुम मुझे ग्रहण नहीं करते; यदि कोई और अपने ही नाम से आए, तो उसे ग्रहण कर लोगे। 44 तुम जो एक दूसरे से आदर चाहते हो और वह आदर जो एकमात्र परमेश्वर की ओर से है, नहीं चाहते, किस प्रकार विश्वास कर सकते हो? 45 यह न समझो, कि मैं पिता के सामने तुम पर दोष लगाऊँगा, तुम पर दोष लगानेवाला तो है, अर्थात् मूसा है जिस पर तुम ने भरोसा रखा है। 46 क्योंकि यदि तुम मूसा पर विश्वास करते, तो मुझ पर भी विश्वास करते, इसलिए कि उसने मेरे विषय में लिखा है। (लूका 24:27) 47 परन्तु यदि तुम उसकी लिखी हुई बातों पर विश्वास नहीं करते, तो मेरी बातों पर क्यों विश्वास करोगे?”
राजा के कर्मचारी के पुत्र को जीवित करने के बाद
यरूशलेम पहाड़ पर बसा है। यरूशलेम का मार्ग छोटी पहाड़ियों पर ऊपर नीचे होता हुआ जाता है। यदि आपकी भाषा में ऐसा शब्द है जो समतल भूमि पर चलने की अपेक्षा पहाड़ पर चढ़ने को व्यक्त करता है तो उसका उपयोग करें।
भूमि में पानी का गड्डा
"बैतहसदा" का अर्थ है दया का घर
किसी इमारत से लगी छत जिसकी कम से कम एक दीवार नहीं होती है
अनेक
कुछ प्राचीन अभिलेखों में यह पद है परन्तु अन्यों में नहीं है, अतः हमारा सुझाव है कि आप वहां रिक्त स्थान छोड़ने की अपेक्षा पद 3 और पद 4 को जोड़ दें जैसा यू.एल.बी. और यू.डी.बी. में किया गया है।
"बैतहसदा के कुण्ड के पास।"
38 वर्षों से
"वह समझ गया"
"जब स्वर्गदूत पानी हिलाए"
"मुझसे पहले कोई और ही कुण्ड में उतर जाता है" उस कुण्ड में जल तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों से उतर कर जाना होता था।
"खड़ा हो"
"अपना बिछौना उठा"
"वह मनुष्य फिर से स्वस्थ हो गया"
अब मुख्य कहानी में अन्तराल आता है
जिस मनुष्य ने मुझे स्वास्थ्य प्रदान किया
"यहूदी गुरूओं ने स्वास्थ्य लाभ उठाने वाले से पूछा"
"यीशु को वह मनुष्य मिला जिसे उसने चंगा किया था"
वैकल्पिक अनुवाद, "देख" या "सुन" या "मैं जो कहने जा रहा हूँ उस पर ध्यान दे"।
यहाँ कहानी में अन्तराल आता है और यूहन्ना कहानी का एक नये परिदृश्य प्रस्तुत करता है।
"कहता है कि वह परमेश्वर के समान है" या "कहता है कि उसके पास परमेश्वर के समान अधिकार है"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"तुम चकित हो जाओगे" या "तुम भौंचक्के रह जाओगे”।
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
यह बल देने के लिए है। इसका अनुवाद अपनी भाषा में किसी बात पर बल देने के शब्दों में करें
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"मनुष्य के पुत्र की वाणी सुनकर"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
इसका अनुवाद वैसा करें जैसा में किया है
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"मुझे मनुष्यों की गवाही की आवश्यकता नहीं"
"यूहन्ना ने परमेश्वर की पवित्रता को इस प्रकार प्रकट किया जिस प्रकार दीपक ज्योति प्रकट करता है"।
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"तुम उसमें विश्वास नहीं करते जिसे उसने भेजा है, इसी से मैं जानता हूं कि उसका वचन तुममे नहीं है।"
"तुममें अवस्थित"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"यदि तुम धर्मशास्त्र पढ़ो तो तुम्हें अनन्त जीवन प्राप्त होगा" या "धर्मशास्त्र तुम्हें अनन्त जीवन पाने का मार्ग दिखाएगा"।
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
"ग्रहण कर पाओगे"
इसके अर्थ हो सकते हैं (1) "तुम परमेश्वर से सच में प्रेम नहीं करते" (देखें यू.डी.बी.) या (2) "तुम्हें परमेश्वर का प्रेम वास्तव में मिला नहीं"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से ही बातें कर रहा है .
"तुम किसी भी प्रकार विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि तुम एक दूसरे से प्रशंसा पाना चाहते हो .... एकमात्र परमेश्वर की ओर से है"
यीशु यहूदी धर्म-गुरूओं से बातें कर रहा है .
"तुम उसकी लिखी हुई बातों पर विश्वास करते नहीं तो मेरी बातों पर कैसे विश्वास करोगे"।
"जो मैं कहता हूं"
इस कुण्ड का नाम बैतहसदा था।
उस छत के नीचे बहुत से बीमार, अंधे, लंगड़े और सूखे अंग वाले पड़े रहते थे।
वहाँ अड़तीस वर्षों से एक रोगी पड़ा हुआ था यीशु ने उससे साक्षात्कार किया।
उस रोगी ने कहा, "हे प्रभु मेरे पास कोई मनुष्य नहीं कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुँचते-पहुँचते दूसरा मुझसे पहले उतर जाता है।"
वह तुरन्त चंगा हो गया और अपनी खाट उठाकर चलने लगा।
यह देख वे क्रोधित हुए क्योंकि वह सब्त का दिन था और उसे अपनी खाट उठाने की अनुमति नहीं थी।
यीशु ने उससे कहा, "देख, तू चंगा हो गया है। फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इससे भारी विपत्ति तुम पर आ पड़े।"
उसने यहूदियों के अगुवों से कहा कि उसे चंगा करने वाला यीशु था।
यीशु ने उनसे कहा, "मेरा पिता अब तक काम करता है और मैं भी काम करता हूँ"।
यह इसलिए हुआ कि यीशु ने (उनके विचार में) सब्त के दिन का उल्लंघन ही नहीं किया, परमेश्वर को अपना पिता कहा अर्थात उसकी बराबरी की।
उसने वही किया जो उसने पिता को करते देखा।
पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है जिलाता है।
पिता ने न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें।
यदि कोई पुत्र का आदर नहीं करता तो वह भेजने वाले पिता का भी आदर नहीं करता है।
यदि ऐसा है तो अनन्त जीवन उसका है और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
पिता ने पुत्र को अधिकार दिया है कि अपने आपमें जीवन रखे।
जिन्होंने भलाई की है, उनका पुनरूत्थान जीवन के लिए होगा और जिन्होंने बुराई की है, उनका पुनरूत्थान दण्ड के लिए होगा।
उसका न्याय सच्चा है क्योंकि वह अपनी इच्छा पूरी नहीं करता परन्तु उसको भेजने वाले की इच्छा पूरी करता है।
यीशु ने जो काम किया वह पिता ने उसे पूरा करने को सौंपा था, वे गवाही हैं कि पिता ने यीशु को भेजा है और पिता ही ने यीशु की गवाही दी है।
यहूदियों ने न तो कभी परमेश्वर का शब्द सुना न उसका रूप देखा।
वे धर्मशास्त्र में खोजते थे कि उन्हें अनन्त जीवन मिल जाए।
धर्मशास्त्र यीशु की गवाही देते थे।
एकमात्र आदर जो परमेश्वर की ओर से है उसे वे नहीं चाहते थे।
मूसा परमेश्वर के समक्ष यहूदी अगुवों पर दोष लगाएगा।
यीशु ने कहा कि यदि यहूदी अगुवे मूसा पर विश्वास करते तो उसका भी विश्वास करते क्योंकि उसने यीशु के विषय में लिखा था।
1 इन बातों के बाद यीशु गलील की झील अर्थात् तिबिरियुस की झील के पार गया। 2 और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि जो आश्चर्यकर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उनको देखते थे*। 3 तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपने चेलों के साथ वहाँ बैठा। 4 और यहूदियों के फसह का पर्व निकट था। 5 तब यीशु ने अपनी आँखें उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलिप्पुस से कहा, “हम इनके भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएँ?” 6 परन्तु उसने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह स्वयं जानता था कि वह क्या करेगा। 7 फिलिप्पुस ने उसको उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटी भी उनके लिये पूरी न होंगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए।” 8 उसके चेलों में से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उससे कहा, 9 “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं, परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं।” 10 यीशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। तब वे लोग जो गिनती में लगभग पाँच हजार के थे, बैठ गए। 11 तब यीशु ने रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालों को बाँट दी; और वैसे ही मछलियों में से जितनी वे चाहते थे बाँट दिया। 12 जब वे खाकर तृप्त हो गए, तो उसने अपने चेलों से कहा, “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।” 13 इसलिए उन्होंने बटोरा, और जौ की पाँच रोटियों के टुकड़े जो खानेवालों से बच रहे थे, उनकी बारह टोकरियाँ भरीं। 14 तब जो आश्चर्यकर्म उसने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि “वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है।” (मत्ती 21:11) 15 यीशु यह जानकर कि वे उसे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।
16 फिर जब संध्या हुई, तो उसके चेले झील के किनारे गए, 17 और नाव पर चढ़कर झील के पार कफरनहूम को जाने लगे। उस समय अंधेरा हो गया था, और यीशु अभी तक उनके पास नहीं आया था। 18 और आँधी के कारण झील में लहरें उठने लगीं। 19 तब जब वे खेते-खेते तीन चार मील के लगभग निकल गए, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते, और नाव के निकट आते देखा, और डर गए। 20 परन्तु उसने उनसे कहा, “मैं हूँ; डरो मत।” 21 तब वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिये तैयार हुए और तुरन्त वह नाव उसी स्थान पर जा पहुँची जहाँ वह जाते थे।
22 दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो झील के पार खड़ी थी, यह देखा, कि यहाँ एक को छोड़कर और कोई छोटी नाव न थी, और यीशु अपने चेलों के साथ उस नाव पर न चढ़ा, परन्तु केवल उसके चेले ही गए थे। 23 (तो भी और छोटी नावें तिबिरियुस से उस जगह के निकट आई, जहाँ उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई थी।) 24 जब भीड़ ने देखा, कि यहाँ न यीशु है, और न उसके चेले, तो वे भी छोटी-छोटी नावों पर चढ़ के यीशु को ढूँढ़ते हुए कफरनहूम को पहुँचे।
25 और झील के पार उससे मिलकर कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?” 26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिए कि तुम रोटियाँ खाकर तृप्त हुए। 27 नाशवान भोजन के लिये परिश्रम न करो*, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात् परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है।” 28 उन्होंने उससे कहा, “परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें?” 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो।” 30 तब उन्होंने उससे कहा, “फिर तू कौन सा चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तुझ पर विश्वास करें? तू कौन सा काम दिखाता है? 31 हमारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दी’।” (भज. 78:24) 32 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है। 33 क्योंकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।” 34 तब उन्होंने उससे कहा, “हे स्वामी, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।” 35 यीशु ने उनसे कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ*: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा। 36 परन्तु मैंने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तो भी विश्वास नहीं करते। 37 जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी न निकालूँगा। 38 क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन् अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूँ। 39 और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उसने मुझे दिया है, उसमें से मैं कुछ न खोऊँ परन्तु उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँ। 40 क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा।” 41 तब यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिए कि उसने कहा था, “जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूँ।” 42 और उन्होंने कहा, “क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो वह क्यों कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?” 43 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “आपस में मत कुड़कुड़ाओ। 44 कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उसको अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा। 45 भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, ‘वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।’ जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है। (यशा. 54:13) 46 यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा है परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है। 47 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है। 48 जीवन की रोटी मैं हूँ। 49 तुम्हारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए। 50 यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उसमें से खाए और न मरे। 51 जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूँगा, वह मेरा माँस है।” 52 इस पर यहूदी यह कहकर आपस में झगड़ने लगे, “यह मनुष्य कैसे हमें अपना माँस खाने को दे सकता है?” 53 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ जब तक मनुष्य के पुत्र का माँस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। 54 जो मेरा माँस खाता, और मेरा लहू पीता हैं, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अन्तिम दिन फिर उसे जिला उठाऊँगा। 55 क्योंकि मेरा माँस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है। 56 जो मेरा माँस खाता और मेरा लहू पीता है, वह मुझ में स्थिर बना रहता है*, और मैं उसमें। 57 जैसा जीविते पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूँ वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा। 58 जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, पूर्वजों के समान नहीं कि खाया, और मर गए; जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।” 59 ये बातें उसने कफरनहूम के एक आराधनालय में उपदेश देते समय कहीं।
60 इसलिए उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, “यह तो कठोर शिक्षा है; इसे कौन मान सकता है?” 61 यीशु ने अपने मन में यह जानकर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उनसे पूछा, “क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है? 62 और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहाँ वह पहले था, वहाँ ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा? (भज. 47:5) 63 आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं। जो बातें मैंने तुम से कहीं हैं वे आत्मा है, और जीवन भी हैं। 64 परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।” क्योंकि यीशु तो पहले ही से जानता था कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं; और कौन मुझे पकड़वाएगा। 65 और उसने कहा, “इसलिए मैंने तुम से कहा था कि जब तक किसी को पिता की ओर से यह वरदान न दिया जाए तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।”
66 इस पर उसके चेलों में से बहुत सारे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले। 67 तब यीशु ने उन बारहों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” 68 शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, हम किस के पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं। 69 और हमने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।” 70 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुन लिया? तो भी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है।” 71 यह उसने शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा के विषय में कहा, क्योंकि यही जो उन बारहों में से था, उसे पकड़वाने को था।
"इन बातों" अर्थात . की घटनाओं के बाद। वैकल्पिक अनुवाद, "कुछ समय बाद"।
"यीशु पार गया" (यू.डी.बी.) या "यीशु चलकर पहुंचा"
"विशाल जनसमूह"
यह शब्द का उपयोग करके अब मुख्य कहानी में अन्तराल आता है
यूहन्ना कुछ समय कहानी को रोकता है कि कहानी की पृष्ठ भूमि की जानकारी दे कि वह क्या समय था जब ये सब घटनाएं हो रही थी।
यूहन्ना कुछ समय के लिए कहानी की घटनाओं का क्रम रोक देता है कि यीशु द्वारा फिलिप्पुस से रोटी का प्रबन्ध करने की बात की व्याख्या करे।
यह शब्द "आप" स्पष्ट करता है कि "वह" शब्द यीशु के लिए काम में लिया गया है। यीशु जानता था कि वह क्या करेगा।
दो सौ दिनों की मजदूरी के पैसों से खरीदी गई रोटी"
जौ के आटे से बनी रोटी
ये पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ इतने लोगों को भोजन कराने के लिए क्या हैं?
"बैठा दो" आपकी भाषा में भोजन करने के लिए बैठने का शब्द काम में लें।
मनुष्यों के बैठने के लिए वह एक सुविधाजनक स्थान था
जनसमूह
जनसमूह में संभवतः स्त्रियां और बच्चे भी थे , परन्तु गणना केवल पुरूषों की है।
यीशु परमेश्वर से प्रार्थना करके रोटी और मछलियों के लिए उसे धन्यवाद दे रहा है।
यीशु ने रोटियाँ और मछलियाँ तोड़ी और अपने शिष्यों को दे दीं कि वे उन्हें लोगों में बांट दें।
"शिष्यों ने एकत्र किया"
जो भोजन किसी ने नहीं खाया था
यीशु द्वारा पाँच हजार लोगों को पांच रोटियाँ और दो मछलियाँ से भोजन करने का।
अपनी भाषा की अभिव्यक्ति द्वारा इसे व्यक्त करें कि यह जानकारी पृष्ठभूमि की है
नाव में प्रायः दो, चार, छः लोग पतवार चलाते थे। आपकी भाषा में पानी पर नाव चलाने के लिए भिन्न विधि हो सकती है।
भूल भाषा का शब्द है "स्टेडियम" अर्थात 185 मीटर।
गलील सागर
अपनी भाषा की अभिव्यक्ति द्वारा इसे व्यक्त करें कि यह जानकारी पृष्ठभूमि की है
शिष्यों के चले जाने के बाद नावें आई परन्तु इससे पूर्व कि लोग देखते कि "वहाँ कोई नांव न थी"।
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु लोगों से बातें कर रहा है .
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु अपनी तुलना रोटी से कर रहा है। जैसे हमारे शरीर के लिए रोटी आवश्यक है, वैसे ही यीशु हमारे आत्मिक जीवन के लिए आवश्यक है।
यीशु लोगों से बातें कर रहा है .
यीशु अपनी तुलना रोटी से कर रहा है। जैसे हमारे शरीर के लिए रोटी आवश्यक है, वैसे ही यीशु हमारे आत्मिक जीवन के लिए आवश्यक है।
"जो मेरे पास आयेंगे उनमें से हर एक को मैं अपने पास रखूंगा"।
यीशु लोगों से बातें कर रहा है .
"मेरा पिता जिसने मुझे भेजा है"
यीशु जब लोगों से बातें कर रहा था तब यहूदी मनुष्यों ने विघ्न डाला .
अप्रसन्न होकर कुड़कुड़ाना लगे
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु लोगों से बातें कर रहा है परन्तु यहूदी अगुवे भी हैं। .
इसके अर्थ हो सकते हैं, (1) "खींचता है" या (2) "आकर्षित करता है"
"भविष्यद्वक्ताओं ने लिखा है"
अब यीशु श्रोताओं से बातें कर रहा है .
संभावित अर्थ, (1) यूहन्ना अपने शब्दों को जोड़ रहा है आप अपने शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं कि यह कहानी का महत्त्वपूर्ण भाग है। (देखें: [[rc://*/bible/team-info/training/quick-reference/discourse/background]]) यीशु यूह. 06:43/6:45) के संभावित भ्रम को दूर कर रहा है।
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यीशु श्रोताओं से बातें कर रहा है।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे .में किया है।
यीशु श्रोताओं से बातें कर रहा है। .
देखें .
इसके अर्थ हैं, (1) जैसा में जीवन की रोटी का है या (2) "रोटी जो जीवित है" जैसे मनुष्य और पशु जीवित है, मृतक का विपरित।
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
मनुष्य के पुत्र को विश्वास के द्वारा ग्रहण करना ऐसा है जैसे जीवनदायक भोजन-पानी पीना
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
यीशु को विश्वास के द्वारा ग्रहण करना अनन्त जीवन उसी प्रकार देता है जिस प्रकार भोजन-पानी शरीर का पोषण करते हैं।
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
इसके अर्थ हो सकते हैं, (1) "पिता जो जीवन देता है" (देखें यू.डी.बी.) या (2) "पिता जो जीवित है" जैसे मनुष्य और पशु जीवित हैं। मृतक का विपरित। (यूह. 06:50/6:51)
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
"इसे कोई नहीं सुन सकता है" या "यह ग्रहण-योग्य नहीं"
वैकल्पिक अनुवादः "मुझे आश्चर्य होता है कि इससे तुम्हें बुरा लगा"।
"विश्वास त्याग करने पर विवश करता है"
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
"संभवतः तुम मेरा सन्देश स्वीकार करोगे जब तुम मुझे, जो स्वर्ग से आया है, वहीं जाते देखोगे जहां मैं पहले था"।
"सन्देश" संभावित अर्थ है, (1) यूह. 06:32/6:32-58) में उसके वचन/ या (2) उसकी सब शिक्षाएं
इन दोनों शब्दों का अर्थ अत्यधिक समान है। वैकल्पिक अनुवाद, "मैंने जो बातें तुमसे की हैं वे आत्मिक जीवन लाती हैं"।
यीशु सब श्रोताओं से बातें कर रहा है। (यूह. 06:32/6:32)
"मेरे पीछे आओ"
यहाँ चेलों से अर्थ है यीशु के पीछे चलने वालों का समूह
ये 12 शिष्यों का एक विशिष्ट समूह था जो उसकी संपूर्ण सेवा में उसके साथ था। इसका अनुवाद किया जा सकता है, "12 शिष्य"
"मैंने तुम सबको स्वयं चुना है, परन्तु एक शैतान का दास है"।
गलील सागर तिबिरियास की झील भी कहलाता था।
वे उसके पीछे चलते थे, क्योंकि वे रोगियों की चंगाई के चिन्ह देखते थे जो यीशु करता था।
उसने एक विशाल जन समूह को आते देखा।
यीशु ने फिलिप्पुस को परखने के लिए यह कहा था।
फिलिप्पुस ने कहा, "दो सौ दीनार की रोटी भी उनके लिए पूरी न होगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए"।
अन्द्रियास ने कहा, "यहाँ एक लड़का है जिसके पास जौ की पाँच रोटियां और दो मछलियाँ हैं परन्तु इतने लोगों के लिए वे क्या हैं?"
वहाँ लगभग पुरूष ही पांच हजार थे।
यीशु ने रोटियां लीं और धन्यवाद करके बैठने वालों को बांट दी, और वैसे ही मछलियां भी बांट दीं।
वे खाकर तृप्त हो गए।
शिष्यों ने रोटी के बचे हुए टुकड़े उठाए तो बारह टोकरियाँ भर गई थी।
यीशु वहाँ से निकल गया क्योंकि वह जान गया था कि लोग इस चमत्कार(पांच हज़ार को भोजन से तृप्त करना) को देखकर उसे बल पूर्वक राजा बनाना चाहते हैं।
हवा तेज हो गई थी और झील में लहरें उठने लगी थी।
यीशु पानी पर चल कर नाव के पास आया तो वे डर गए।
यीशु ने कहा, "मैं हूँ, डरो मत"।
यीशु ने कहा कि वे आश्चर्यकर्मों के कारण उसे नहीं ढूंढ़ते परन्तु इसलिए कि वे रोटियां खाकर तृप्त हुए थे।
यीशु ने उनसे कहा कि वे नाशमान भोजन के लिए नहीं परन्तु उस भोजन के लिए परिश्रम करें जो अनन्त जीवन तक ठहरता है।
यीशु ने उनसे कहा कि परमेश्वर का कार्य यह है कि तुम उस पर जिसे उसने भेजा है विश्वास करो।
यीशु ने परमेश्वर द्वारा दी गई स्वर्ग की सच्ची रोटी की चर्चा की जो जगत को जीवन देती है और जीवन की वह रोटी वह है।
स्वर्गीय पिता यीशु को जो कुछ देता है वह सब उसके पास आएगा।
यीशु के पिता की इच्छा थी कि जो कुछ उसने यीशु को दिया है उसमें से वह कुछ न खोए। जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।
मनुष्य यीशु के पास तब ही आ सकता है जब पिता उसे खींचे।
जो परमेश्वर की ओर से है, उसी ने पिता को देखा है।
यीशु जो रोटी देगा वह जगत के जीवन के लिए उसकी देह है।
जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।
यीशु का मांस खाकर और उसका लहू पीकर हम उसमें स्थिर बने रहते हैं और वह हम में।
यीशु स्वर्गीय पिता के कारण जीवित है।
उसके अनुयायियों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, "यह कठोर बात है, इसे कौन सुन सकता है?" और उनमे से बहुतों ने यीशु का अनुसरण त्याग दिया।
शमौन पतरस ने कहा, "हे प्रभु, हम किसके पास जाए? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं और हमने विश्वास किया और जान गए हैं कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।"
यीशु ने शमौन इस्करियोती के पुत्र यूहदा के विषय में कहा था, क्योंकि वह बारहों मे से एक था जो उसे पकड़वाने को था।
1 इन बातों के बाद यीशु गलील में फिरता रहा, क्योंकि यहूदी उसे मार डालने का यत्न कर रहे थे, इसलिए वह यहूदिया में फिरना न चाहता था। 2 और यहूदियों का झोपड़ियों का पर्व निकट था। (लैव्य. 23:34) 3 इसलिए उसके भाइयों ने उससे कहा, “यहाँ से कूच करके यहूदिया में चला जा, कि जो काम तू करता है, उन्हें तेरे चेले भी देखें। 4 क्योंकि ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिपकर काम करे: यदि तू यह काम करता है, तो अपने आप को जगत पर प्रगट कर।” 5 क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे। 6 तब यीशु ने उनसे कहा, “मेरा समय अभी नहीं आया; परन्तु तुम्हारे लिये सब समय है। 7 जगत तुम से बैर नहीं कर सकता*, परन्तु वह मुझसे बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूँ, कि उसके काम बुरे हैं। 8 तुम पर्व में जाओ; मैं अभी इस पर्व में नहीं जाता, क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।” 9 वह उनसे ये बातें कहकर गलील ही में रह गया।
10 परन्तु जब उसके भाई पर्व में चले गए, तो वह आप ही प्रगट में नहीं, परन्तु मानो गुप्त होकर गया। 11 यहूदी पर्व में उसे यह कहकर ढूँढ़ने लगे कि “वह कहाँ है?” 12 और लोगों में उसके विषय चुपके-चुपके बहुत सी बातें हुई कितने कहते थे, “वह भला मनुष्य है।” और कितने कहते थे, “नहीं, वह लोगों को भरमाता है।” 13 तो भी यहूदियों के भय के मारे कोई व्यक्ति उसके विषय में खुलकर नहीं बोलता था।
14 और जब पर्व के आधे दिन बीत गए; तो यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश करने लगा। 15 तब यहूदियों ने अचम्भा करके कहा, “इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गई?” 16 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है। 17 यदि कोई उसकी इच्छा पर चलना चाहे*, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूँ। 18 जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बढ़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उसमें अधर्म नहीं। 19 क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? तो भी तुम में से कोई व्यवस्था पर नहीं चलता। तुम क्यों मुझे मार डालना चाहते हो?” 20 लोगों ने उत्तर दिया; “तुझ में दुष्टात्मा है! कौन तुझे मार डालना चाहता है?” 21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैंने एक काम किया, और तुम सब अचम्भा करते हो। 22 इसी कारण मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी है, यह नहीं कि वह मूसा की ओर से है परन्तु पूर्वजों से चली आई है, और तुम सब्त के दिन को मनुष्य का खतना करते हो। (उत्प. 17:10-13, लैव्य. 12:3) 23 जब सब्त के दिन मनुष्य का खतना किया जाता है ताकि मूसा की व्यवस्था की आज्ञा टल न जाए, तो तुम मुझ पर क्यों इसलिए क्रोध करते हो, कि मैंने सब्त के दिन एक मनुष्य को पूरी रीति से चंगा किया। 24 मुँह देखकर न्याय न करो, परन्तु ठीक-ठीक न्याय करो।” (यशा. 11:3, यूह. 8:15)
25 तब कितने यरूशलेमवासी कहने लगे, “क्या यह वह नहीं, जिसके मार डालने का प्रयत्न किया जा रहा है? 26 परन्तु देखो, वह तो खुल्लमखुल्ला बातें करता है और कोई उससे कुछ नहीं कहता; क्या सम्भव है कि सरदारों ने सच-सच जान लिया है; कि यही मसीह है? 27 इसको तो हम जानते हैं, कि यह कहाँ का है; परन्तु मसीह जब आएगा, तो कोई न जानेगा कि वह कहाँ का है।” 28 तब यीशु ने मन्दिर में उपदेश देते हुए पुकार के कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं तो आप से नहीं आया परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है, उसको तुम नहीं जानते। 29 मैं उसे जानता हूँ; क्योंकि मैं उसकी ओर से हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।” 30 इस पर उन्होंने उसे पकड़ना चाहा तो भी किसी ने उस पर हाथ न डाला, क्योंकि उसका समय अब तक न आया था। 31 और भीड़ में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया, और कहने लगे, “मसीह जब आएगा, तो क्या इससे अधिक चिन्हों को दिखाएगा जो इसने दिखाए?”
32 फरीसियों ने लोगों को उसके विषय में ये बातें चुपके-चुपके करते सुना; और प्रधान याजकों और फरीसियों ने उसे पकड़ने को सिपाही भेजे। 33 इस पर यीशु ने कहा, “मैं थोड़ी देर तक और तुम्हारे साथ हूँ; तब अपने भेजनेवाले के पास चला जाऊँगा। 34 तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु नहीं पाओगे; और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।” 35 यहूदियों ने आपस में कहा, “यह कहाँ जाएगा कि हम इसे न पाएँगे? क्या वह उनके पास जाएगा जो यूनानियों में तितर-बितर होकर रहते हैं, और यूनानियों को भी उपदेश देगा? 36 यह क्या बात है जो उसने कही, कि ‘तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु न पाओगे: और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”
37 फिर पर्व के अन्तिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकारकर कहा, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए। (यशा. 55:1) 38 जो मुझ पर विश्वास करेगा*, जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी’।” 39 उसने यह वचन उस आत्मा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्मा अब तक न उतरा था, क्योंकि यीशु अब तक अपनी महिमा को न पहुँचा था। (यशा. 44:3) 40 तब भीड़ में से किसी-किसी ने ये बातें सुन कर कहा, “सचमुच यही वह भविष्यद्वक्ता है।” (मत्ती 21:11) 41 औरों ने कहा, “यह मसीह है,” परन्तु किसी ने कहा, “क्यों? क्या मसीह गलील से आएगा? 42 क्या पवित्रशास्त्र में नहीं आया कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गाँव से आएगा, जहाँ दाऊद रहता था?” (यशा. 11:1, मीका 5:2) 43 अतः उसके कारण लोगों में फूट पड़ी। 44 उनमें से कितने उसे पकड़ना चाहते थे, परन्तु किसी ने उस पर हाथ न डाला। 45 तब सिपाही प्रधान याजकों और फरीसियों के पास आए, और उन्होंने उनसे कहा, “तुम उसे क्यों नहीं लाए?”
46 सिपाहियों ने उत्तर दिया, “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न की।” 47 फरीसियों ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम भी भरमाए गए हो? 48 क्या शासकों या फरीसियों में से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है? 49 परन्तु ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, श्रापित हैं।” 50 नीकुदेमुस ने, (जो पहले उसके पास आया था और उनमें से एक था), उनसे कहा, 51 “क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति को जब तक पहले उसकी सुनकर जान न ले कि वह क्या करता है; दोषी ठहराती है?” 52 उन्होंने उसे उत्तर दिया, “क्या तू भी गलील का है? ढूँढ़ और देख, कि गलील से कोई भविष्यद्वक्ता प्रगट नहीं होने का।” 53 तब सब कोई अपने-अपने घर चले गए।
"सब लोग" या "हर एक जन"
बहुवचन
यरूशलेम ऊंचे पर स्थित है
"हो ही नहीं सकता कि वह धर्मशास्त्र का इतना ज्ञान रखे"।
"उसका" अर्थात यीशु के स्वर्गीय पिता परमेश्वर का
"परन्तु मैं इसलिए ये काम करता हूं कि लोग मेरे भेजनेवाले का आदर करें, और मैं वही हूँ जो सच बोलता हूं। मैं कभी झूठ नहीं बोलता।"
"वह मूसा ही तो था जिसने तुम्हें व्यवस्था दी"
"तुम मुझे मार डालने की खोज में हो"।
"तू पागल है"।
"तुझे कोई भी मार डालना नहीं चाहता है"।
"एक आश्चर्यकर्म" या "एक चिन्ह"
यहाँ लेखक अतिरिक्त जानकारी दे रहा है।
"तुम्हें मुझसे क्रोधित नहीं होना है कि मैंने एक मनुष्य को सब्त के दिन स्वास्थ्य प्रदान किया"।
"यह यीशु है जिसे मार डालने की खोज में वे हैं"।
"तुम" बहुवचन है
"जिसने मुझे भेजा है वह सच्चा गवाह है"।
जब मसीह आयेगा तो क्या इससे अधिक आश्चर्यकर्म दिखायेगा, जो इसने दिखाए? "जब मसीह आयेगा तब वह इस मनुष्य द्वारा किए गए आश्चर्यकर्मों से अधिक चिन्ह नहीं दिखा पायेगा"।
"अब" शब्द का उपयोग यहाँ मुख्य कहानी में अन्तराल है
यह "महान दिन" है क्योंकि यह पर्व का अन्तिम या सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण दिन है।
परमेश्वर की बातों की लालसा करता हो, जैसे मनुष्य पानी की लालसा करता है या प्यासा होता है।
"कोई" शब्द का अर्थ है, "जो भी", "पीए" शब्द का अर्थ है, मसीह में आत्मिक पूर्ति पाना।
"पवित्रशास्त्र" मसीह के बारे में भविष्यद्वाणियों का द्योतक है। यह एक पुराने नियम के किसी एक गद्यांश का उद्धरण नहीं है।
मसीह आत्मिकता के प्यासों के लिए ऐसी राहत दिलाएगा कि वह प्रवाहित होकर आसपास के सब लोगों की सहायता करेगी।
इसके अर्थ हैं, (1) "पानी जो जीवन देता है" या "पानी जिससे मनुष्यों को जीवन मिलता है" या (2) सोते से बहनेवाला प्राकृतिक जल, कुएं से निकलने वाले जल से भिन्न।
“वह”यीशु को दर्शाता है
"मसीह गलील से नहीं आ सकता" (यू.डी.बी.)
"धर्मशास्त्र सिखाता है कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गांव से आयेगा, दाऊद का गांव"।
"भविष्यद्वक्ताओं ने धर्मशास्त्र में लिखा है"
यीशु कौन और क्या है, इस पर जनसमूह एकमत नहीं हो पाया।
"परन्तु किसी ने उसे नहीं पकड़ा"
मन्दिर के सुरक्षाकर्मी
तुम उसे क्यों नहीं लाए? "तुम" अर्थात मन्दिर के सुरक्षाकर्मी।
"उनको" अर्थात मन्दिर के सुरक्षाकर्मियों को।
"तुम भी धोखा खा गए"
"भरमाए गए" - धोखा खा गए
"एक भी सरदार या फरीसी ने उस पर विश्वास नहीं किया है"।
नीकुदेमुस के कहने का अर्थ था कि व्यवस्था के अनुसार चलने वाले अभियोग के बिना किसी पर दोष नहीं लगाते
"हमारी व्यवस्था हमें अनुमति नहीं देती कि .... किसी को दण्ड दें"।
"तू भी गलील के घटिया लोगों में से होगा"।
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं तो कुछ में नहीं है।
एक एक करके यह उन सब मनुष्यों के संदर्भ में है जिनका उल्लेख में किया गया है।
यीशु वहाँ नहीं जाना चाहता था क्योंकि यहूदी उसे मार डालना चाहते थे।
उन्होंने उससे आग्रह किया कि वह यहूदिया को जाए कि वहाँ भी उसके अनुयायी उसके आश्चर्यकर्मों को देखें और संसार पर वह प्रगट हों।
यीशु ने अपने भाइयों से कहा कि उसका समय अभी नहीं आया है और उसका समय पूरा नहीं हुआ है।
यीशु ने कहा कि संसार उससे घृणा करता है क्योंकि वह उसके विरोध में गवाही देता था कि उसके काम बुरे हैं।
उसके भाइयों के यहूदिया प्रस्थान के बाद यीशु गुप्त रूप में वहाँ गया।
कुछ ने कहा, "वह भला मनुष्य है", कुछ लोग कहते थे, "नहीं वह लोगों को भरमाता है"।
यहूदियों के भय के कारण किसी ने यीशु के विरूद्ध कुछ भी कहने का साहस नहीं किया।
पर्व के आधे दिन बीत जाने के बाद यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश करने लगा।
यीशु ने कहा यदि कोई यीशु को भेजने वाले की इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के बारे में जान जायेगा कि वह परमेश्वर की ओर से है।
यीशु ने कहा कि वह मनुष्य सच्चा है और उसमें अधर्म नहीं है।
यीशु ने कहा, तुम में से कोई व्यवस्था पर नहीं चलता है।
यीशु का तर्क था कि मूसा की व्यवस्था का पालन करने के लिए सब्त के दिन खतना कराना अनिवार्य है तो वे उसके द्वारा सब्त के दिन किसी को चंगा करने पर क्रोध क्यों करते थे।
यीशु ने कहा, मुंह देखकर न्याय न करो, परन्तु ठीक-ठीक न्याय करो।
महायाजक और फरीसियों ने यीशु को पकड़ने के लिए सैनिक भेजे।
यीशु ने पवित्र आत्मा के बारे में कहा था, जो उसमें विश्वास करने वालों को मिलना था।
उन सैनिकों ने कहा, "किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें नहीं की"।
नीकुदेमुस ने फरीसियों से कहा, "क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति को, पहले उसकी सुनकर जान न ले कि वह क्या करता है, दोषी ठहराती है?"
1 परन्तु यीशु जैतून के पहाड़* पर गया। 2 और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा। 3 तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उसको बीच में खड़ा करके यीशु से कहा, 4 “हे गुरु, यह स्त्री व्यभिचार करते पकड़ी गई है। 5 व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों को पत्थराव करें; अतः तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?” (लैव्य. 20:10) 6 उन्होंने उसको परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएँ, परन्तु यीशु झुककर उँगली से भूमि पर लिखने लगा। 7 जब वे उससे पूछते रहे, तो उसने सीधे होकर उनसे कहा, “तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे।” (रोम. 2:1) 8 और फिर झुककर भूमि पर उँगली से लिखने लगा। 9 परन्तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक-एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई। 10 यीशु ने सीधे होकर उससे कहा, “हे नारी, वे कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर दण्ड की आज्ञा न दी?” 11 उसने कहा, “हे प्रभु, किसी ने नहीं।” यीशु ने कहा, “मैं भी तुझ पर दण्ड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।”
12 तब यीशु ने फिर लोगों से कहा, “जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अंधकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।” (यूह. 12:46) 13 फरीसियों ने उससे कहा; “तू अपनी गवाही आप देता है; तेरी गवाही ठीक नहीं।” 14 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “यदि मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, तो भी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि मैं जानता हूँ, कि मैं कहाँ से आया हूँ* और कहाँ को जाता हूँ? परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आता हूँ या कहाँ को जाता हूँ। 15 तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता। 16 और यदि मैं न्याय करूँ भी, तो मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं पिता के साथ हूँ, जिस ने मुझे भेजा है। 17 और तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है; कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है। 18 एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिस ने मुझे भेजा।” (व्य. 19:15) 19 उन्होंने उससे कहा, “तेरा पिता कहाँ है?” यीशु ने उत्तर दिया, “न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदि मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।” 20 ये बातें उसने मन्दिर में उपदेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया था।
21 उसने फिर उनसे कहा, “मैं जाता हूँ, और तुम मुझे ढूँढ़ोगे और अपने पाप में मरोगे; जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।” 22 इस पर यहूदियों ने कहा, “क्या वह अपने आप को मार डालेगा, जो कहता है, ‘जहाँ मैं जाता हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते’?” 23 उसने उनसे कहा, “तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं। 24 इसलिए मैंने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वही हूँ, तो अपने पापों में मरोगे।” 25 उन्होंने उससे कहा, “तू कौन है?” यीशु ने उनसे कहा, “वही हूँ जो प्रारंभ से तुम से कहता आया हूँ। 26 तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैंने उससे सुना है, वही जगत से कहता हूँ।” 27 वे न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है। 28 तब यीशु ने कहा, “जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ, और अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूँ। 29 और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूँ, जिससे वह प्रसन्न होता है।” 30 वह ये बातें कह ही रहा था, कि बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
31 तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्होंने उस पर विश्वास किया था, कहा, “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। 32 और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” 33 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हम तो अब्राहम के वंश से हैं, और कभी किसी के दास नहीं हुए; फिर तू क्यों कहता है, कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे?” 34 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है। 35 और दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है। (गला. 4:30) 36 इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे। 37 मैं जानता हूँ कि तुम अब्राहम के वंश से हो; तो भी मेरा वचन तुम्हारे हृदय में जगह नहीं पाता, इसलिए तुम मुझे मार डालना चाहते हो। 38 मैं वही कहता हूँ, जो अपने पिता के यहाँ देखा है; और तुम वही करते रहते हो जो तुम ने अपने पिता से सुना है।” 39 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हमारा पिता तो अब्राहम है।” यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अब्राहम के सन्तान होते, तो अब्राहम के समान काम करते। 40 परन्तु अब तुम मुझ जैसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिस ने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना, यह तो अब्राहम ने नहीं किया था। 41 तुम अपने पिता के समान काम करते हो” उन्होंने उससे कहा, “हम व्यभिचार से नहीं जन्मे, हमारा एक पिता है अर्थात् परमेश्वर।” 42 यीशु ने उनसे कहा, “यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझसे प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्वर में से निकलकर आया हूँ; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा। 43 तुम मेरी बात क्यों नहीं समझते? इसलिए कि मेरा वचन सुन नहीं सकते। 44 तुम अपने पिता शैतान से हो*, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं; जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, वरन् झूठ का पिता है। (प्रेरि. 13:10) 45 परन्तु मैं जो सच बोलता हूँ, इसलिए तुम मेरा विश्वास नहीं करते। 46 तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूँ, तो तुम मेरा विश्वास क्यों नहीं करते? 47 जो परमेश्वर से होता है*, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिए नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो।”
48 यह सुन यहूदियों ने उससे कहा, “क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है?” 49 यीशु ने उत्तर दिया, “मुझ में दुष्टात्मा नहीं; परन्तु मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा निरादर करते हो। 50 परन्तु मैं अपनी प्रतिष्ठा नहीं चाहता, हाँ, एक है जो चाहता है, और न्याय करता है। 51 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु को न देखेगा।” 52 यहूदियों ने उससे कहा, “अब हमने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्मा है: अब्राहम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, ‘यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा।’ 53 हमारा पिता अब्राहम तो मर गया, क्या तू उससे बड़ा है? और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपने आप को क्या ठहराता है?” 54 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं आप अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्वर है। 55 और तुम ने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूँ; और यदि कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारे समान झूठा ठहरूँगा: परन्तु मैं उसे जानता, और उसके वचन पर चलता हूँ। 56 तुम्हारा पिता अब्राहम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उसने देखा, और आनन्द किया।” 57 यहूदियों ने उससे कहा, “अब तक तू पचास वर्ष का नहीं, फिर भी तूने अब्राहम को देखा है?” 58 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ।” 59 तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया।
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं परन्तु कुछ में नहीं।
अनेक लोग
"उन्होंने एक स्त्री को व्यभिचार करते पकड़ा था"
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं परन्तु कुछ में नहीं।
"ऐसे मनुष्यों पर" या "जो ऐसे काम करते है"
यहां पृष्ठभूमि आधारित जानकारी दी गई है जिसे यीशु और यहूदी अधिकारी समझते थे।
इसका अनुवाद आदेश सूचक वाक्य में भी किया जा सकता है, "तू हमें बता कि इसके साथ क्या किया जाए"?
"उसे फंसाने के लिए" इसका अर्थ है, छल का प्रश्न पूछना
कि उस पर दोष लगाने के लिए कोई विषय स्पष्ट सामने आए, जिससे कि वे उस पर किसी गलत बात का दोष लगा पाएं, या "जिससे कि वे उस पर मूसा की व्यवस्था या रोमी विधि के उल्लंघन का आरोप लगा पाएं"
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं परन्तु कुछ में नहीं।
"वे" का संदर्भ फरीसियों और शास्त्रियों से है (देखें यूह. 08:1/8:3)
"यदि तुममें कोई निष्पाप हो" या "तुम में से किसी ने कभी पाप न किया हो"
यीशु शास्त्रियों और फरीसियों और संभवतः जनसमूह से भी कह रहा था।
"वही व्यक्ति"
"वह झुका कि भूमि पर ऊंगली से लिखे"
8:11 कुछ आरंभिक अभिलेखों में ये पद हैं परन्तु कुछ में नहीं।
"एक के बाद एक"
यीशु ने उसे नारी कह कर पुकारा तो उसका अर्थ यह नहीं कि वह उसे तुच्छ समझ रहा था या उसे लज्जित करना चाहता था। यदि कोई यह समझे कि वह ऐसा कर रहा था तो "नारी" शब्द को हटा दें।
देखें आपने "ज्योति" का अनुवाद यूह में कैसे किया है। वैकल्पिक अनुवाद, "मैं ही हूं जो जगत को ज्योति देता हूँ।"
"संसार के मनुष्यों"
"वह हर एक जन जो मेरा अनुसरण करेगा" यह एक रूपक है जिसका अर्थ है, "वह हर एक जन जो मेरी शिक्षाओं पर चलता है“, या "मेरी आज्ञा मानने वाला हर एक जन"
अन्धकार में न चलेगा, यह पाप के जीवन के लिए एक रूपक है। वैकल्पिक अनुवाद, "उसका जीवन ऐसा नहीं रहेगा कि मानो वह अन्धकार में जी रहा है"
"तू तो अपनी ही प्रशंसा कर रहा है"।
"तेरी गवाही उचित नहीं है", "तू स्वयं अपना गवाह नहीं हो सकता" या "जो तू अपने बारे में कहता है वह हो सकता है कि सच न हो"।
"यद्यपि मैं ये बातें अपने पक्ष में कहता हूं"
मानवीय मानकों और मनुष्य की व्यवस्था(यु.डी.बी)
संभावित अर्थ, (1) "मैं अभी किसी का न्याय नहीं करता हूं" या (2) "मैं इस समय किसी का न्याय नहीं कर रहा हूं"।
"यदि मैं मनुष्यों का न्याय करूं", संभावित अर्थ है, (1) "जब मैं मनुष्यों का न्याय करूंगा" (भविष्य में) या (2) "मैं जब भी मनुष्यों का न्याय करूंगा" (अब) या (3) "मैं जब भी मनुष्यों का न्याय करूं" (अभी)
संभावित अर्थ हैं, (1) "मेरा न्याय उचित होगा या (2) मेरा न्याय सही है"।
यहाँ सलंग्न जानकारी है कि न्याय करने में वह अकेला नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद "मैं न्याय करने में अकेला नहीं हूं" या "मैं अकेला न्याय नहीं करता हूं"।
"पिता मेरे साथ न्याय करता है" या "जब मैं न्याय करता हूं तो पिता न्याय करता है"।
"जिसने मुझे भेजा है", पिता के बारे में अधिक जानकारी देता है। वैकल्पिक अनुवाद, "पिता ही है जिसने मुझे भेजा है"
यीशु फरीसियों तथा अन्यों से बातें कर रहा है।
"हाँ" यीशु ने पहले कहा है उसी संबन्ध में अब आगे कह रहा है
"मूसा ने लिखा है"
"यदि दो मनुष्य एक ही बात कहे तो लोग मान लेते हैं कि वह सही है।"
"मैं अपनी गवाही देता हूं" या "मैं अपने बारे में तुम्हारे समक्ष प्रमाण रखता हूं"(यु.डी.बी)
"पाप की दशा में ही मरोगे" या "पाप करते-करते ही मर जाओगे"
"तुम योग्य नहीं कि आओ"
इसका अनुवाद दो अलग-अलग प्रश्नों में किया जा सकता है। "क्या वह आत्म हत्या करेगा? उसने यही क्यों कहा क्या"?
यीशु श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर दे रहा है
"यदि तुम विश्वास नहीं करोगें कि मैं हूं तो अपने पापों में मरोगे।"
"कि मैं परमेश्वर हूं" (यू.डी.बी.)
"उन्होंने" अर्थात यहूदी अगुओं ने
"उसका पिता"
"जब तुम चढ़ाओगे", यह अभी तक नहीं हुआ है।
"वैसे ही जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया है"
शब्द "वह" यीशु का पिता परमेश्वर
"जब यीशु बातें कर ही रहा था"
"मैंने जो कहा है वैसा करोगे"।
सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा, "यदि तुम सत्य का पालन करोगे तो परमेश्वर तुम्हें स्वतंत्र करेगा"।
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"पाप के दास के समान है" इसका अभिप्राय है कि पाप मनुष्य का स्वामि है
"परिवार में"
उनकी प्रथा के अनुसार जेठा पुत्र पारिवारिक दास को स्वतंत्र कर सकता था। इसी प्रकार परमेश्वर का पुत्र मनुष्यों को स्वतंत्र कर सकता है।
मेरी शिक्षाएं
वैकल्पिक अनुवाद, "अब्राहम ने परमेश्वर का सत्य सुनाने वाले को कभी घात नहीं किया था।"
यीशु इस प्रश्न द्वारा मुख्यतः यहूदी अगुओं को झिड़क रहा है क्योंकि वे उसकी बात नहीं सुनते थे।
"तुम में से कोई भी मुझे पापी नहीं कह सकता" यीशु ने इस प्रश्न द्वारा अपने निष्पाप होने पर बल दिया।
"मुझमें विश्वास न करने का तुम्हारे पास कोई कारण नहीं है"। यीशु इस प्रश्न द्वारा यहूदी अगुओं के अविश्वास को झिड़क रहा है।
"मैं जो कहता हूं उसका पालन करेगा"
"तू पचास वर्ष से कम आयु का है। तू अब्राहम को देख ही नहीं सकता"
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
उस स्त्री को यीशु के समक्ष लाने का उनका मुख्य उद्देश्य था कि यीशु को किसी प्रकार उसी की बातों में फंसाकर उस पर दोष लगाएँ।
यीशु ने उनसे कहा, "तुम में जो निष्पाप हो वही पहले उसको पत्थर मारे।"
यीशु का उत्तर सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक सब एक-एक करके निकल गए।
यीशु ने उस स्त्री से कहा, "जा और फिर पाप न करना"।
यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है, एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है, जिसने मुझे भेजा है"।
यीशु ने उन्हीं के ज्ञान के आधार पर कहा, कि वे नीचे के हैं, और वह ऊपर का है, वे संसार के हैं और यीशु संसार का नहीं।
यीशु ने कहा कि वे अपने पापों में मरेंगे, यदि वे विश्वास करें कि यीशु "मैं ही हूं"।
यीशु संसार से वही कहता था जो वह पिता से सुनता था।
पिता परमेश्वर यीशु के साथ था, वह उसे अकेला नहीं छोड़ता था क्योंकि वह सर्वदा वही करता था जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता था।
यदि कोई यीशु के वचन में बना रहे तो वह सच में उसका शिष्य है।
यहूदियों ने सोचा कि यीशु मनुष्य का दास बनने के लिए कह रहा है।
यीशु पापों के दासत्व से स्वतंत्र होने के बारे में कह रहा था।
वे उसे मार डालना चाहते थे क्योंकि उसके वचन का उनके हृदय में स्थान नहीं था।
यीशु ने कहा कि वे अब्राहम की सन्तान नहीं क्योंकि उनके काम अब्राहम के समान नहीं थे। उन्होंने तो यीशु की हत्या करना चाहा।
यीशु ने उनसे कहा, "यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता तो तुम मुझसे प्रेम रखते क्योंकि मैं परमेश्वर की ओर से आया हूँ। मै आप से नहीं आया हूँ, परन्तु उसी ने मुझे भेजा है।"
यीशु कहता है कि उनका पिता शैतान है।
यीशु ने कहा कि शैतान आरंभ ही से हत्यारा है और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं। शैतान झूठ बोलता है तो वह उसका स्वभाव है क्योंकि वह झूठा ही है वरन झूठ का पिता है।
जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर का वचन सुनता है।
यीशु का वचन मानने वाला कभी मृत्यु न देखेगा।
उन्होंने इसलिए ऐसा कहा कि यीशु ने उनसे कहा था, "मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु को न देखेगा"
वे ऐसा सोचते थे क्योंकि उनकी समझ में मृत्यु केवल शारीरिक मृत्यु थी। अब्राहम और भविष्यद्वक्ता भी तो मर गए थे (शरीर से)।
यीशु ने कहा, "तुम्हारा पिता अब्राहम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था और उसने देखा और आनन्द किया"। और "मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ"। (यीशु के इस कथन का अर्थ है कि अब्राहम जीवित है और मसीह यीशु उससे बड़ा है)
1 फिर जाते हुए उसने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म से अंधा था। 2 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “हे रब्बी, किस ने पाप किया था* कि यह अंधा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने?” 3 यीशु ने उत्तर दिया, “न तो इसने पाप किया था, न इसके माता पिता ने परन्तु यह इसलिए हुआ, कि परमेश्वर के काम उसमें प्रगट हों। 4 जिस ने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है। वह रात आनेवाली है जिसमें कोई काम नहीं कर सकता। 5 जब तक मैं जगत में हूँ, तब तक जगत की ज्योति हूँ।” (यूह. 8:12) 6 यह कहकर उसने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अंधे की आँखों पर लगाकर। 7 उससे कहा, “जा, शीलोह के कुण्ड में धो ले” (शीलोह का अर्थ भेजा हुआ है) अतः उसने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया। (यशा. 35:5) 8 तब पड़ोसी और जिन्होंने पहले उसे भीख माँगते देखा था, कहने लगे, “क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख माँगा करता था?” 9 कुछ लोगों ने कहा, “यह वही है,” औरों ने कहा, “नहीं, परन्तु उसके समान है” उसने कहा, “मैं वही हूँ।” 10 तब वे उससे पूछने लगे, “तेरी आँखों कैसे खुल गई?” 11 उसने उत्तर दिया, “यीशु नामक एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आँखों पर लगाकर मुझसे कहा, ‘शीलोह में जाकर धो ले,’ तो मैं गया, और धोकर देखने लगा।” 12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कहाँ है?” उसने कहा, “मैं नहीं जानता।”
13 लोग उसे जो पहले अंधा था फरीसियों के पास ले गए। 14 जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उसकी आँखें खोली थी वह सब्त का दिन था। 15 फिर फरीसियों ने भी उससे पूछा; तेरी आँखें किस रीति से खुल गई? उसने उनसे कहा, “उसने मेरी आँखों पर मिट्टी लगाई, फिर मैंने धो लिया, और अब देखता हूँ।” 16 इस पर कई फरीसी कहने लगे, “यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं*, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता।” औरों ने कहा, “पापी मनुष्य कैसे ऐसे चिन्ह दिखा सकता है?” अतः उनमें फूट पड़ी। 17 उन्होंने उस अंधे से फिर कहा, “उसने जो तेरी आँखें खोली, तू उसके विषय में क्या कहता है?” उसने कहा, “यह भविष्यद्वक्ता है।” 18 परन्तु यहूदियों को विश्वास न हुआ कि यह अंधा था और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिसकी आँखें खुल गई थी, बुलाकर 19 उनसे पूछा, “क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अंधा जन्मा था? फिर अब कैसे देखता है?” 20 उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, “हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अंधा जन्मा था। 21 परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब कैसे देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उसकी आँखें खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपने विषय में आप कह देगा।” 22 ये बातें उसके माता-पिता ने इसलिए कहीं क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे; क्योंकि यहूदी एकमत हो चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए। 23 इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, “वह सयाना है; उसी से पूछ लो।” 24 तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अंधा था दूसरी बार बुलाकर उससे कहा, “परमेश्वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।” 25 उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखता हूँ।” 26 उन्होंने उससे फिर कहा, “उसने तेरे साथ क्या किया? और किस तरह तेरी आँखें खोली?” 27 उसने उनसे कहा, “मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने न सुना; अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो?” 28 तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, “तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं। 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें की; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहाँ का है।” 30 उसने उनको उत्तर दिया, “यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते की कहाँ का है तो भी उसने मेरी आँखें खोल दीं। 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उसकी इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है। (नीति. 15:29) 32 जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्म के अंधे की आँखें खोली हों। 33 यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।” 34 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “तू तो बिलकुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।
35 यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उससे भेंट हुई तो कहा, “क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है?” 36 उसने उत्तर दिया, “हे प्रभु, वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूँ?” 37 यीशु ने उससे कहा, “तूने उसे देखा भी है; और जो तेरे साथ बातें कर रहा है वही है।” 38 उसने कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ*।” और उसे दण्डवत् किया। 39 तब यीशु ने कहा, “मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूँ, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएँ।” 40 जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने ये बातें सुन कर उससे कहा, “क्या हम भी अंधे हैं?” 41 यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अंधे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है।
”हमें" का अर्थ है यीशु और उसके शिष्यों को जिनसे वह बातें कर रहा है।
दिन .... रात यीशु मनुष्यों द्वारा परमेश्वर के काम करने के समय की तुलना दिन से कर रहा है। यीशु उस समय की तुलना रात से कर रहा है जब हम परमेश्वर का काम नहीं कर सकते।
"वह जो सत्य को उजागर करता है जैसे प्रकाश वास्तविकता को प्रकट करता है।"
देखें कि आपने इसका अनुवाद यूह. 09:06/9:6 में कैसे किया है।
सब्त के दिन के नियम का उल्लंघन नहीं करता है
यहूदियों ने उस मनुष्य को बुलाया (यूह. 09:16/9:18)
वे यीशु के लिए कह रहे हैं।
वह मनुष्य जो पहले अंधा था।
"मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं"
यहूदी अगुवे यीशु के बारे में उस मनुष्य से पूछताछ कर रहे हैं जो जन्म से अंधा था (यूह. 09:16/9:18)
यहूदी अगुवे यीशु के बारे में उस मनुष्य से पूछताछ कर रहे हैं जो जन्म से अंधा था (यूह. 09:16/9:18)
यहूदी अगुवे केवल अपने ही बारे में बातें कर रहे हैं।
पापियों की प्रार्थना का उत्तर नहीं देता है ..... उसकी प्रार्थना का उत्तर देता है।
"किसी ने कभी नहीं सुना कि .... आंखें खोली हैं"
"दृष्टिदान दिया कि जन्म का अंधा देखने लगा हो"
"तू तो पूर्णतः पापों में जन्मा है। तू हमें शिक्षा देने योग्य है ही नहीं"।
कि जो आंखों से नहीं देखते वे परमेश्वर को पहचानें और जो आंखों से देखते है वे परमेश्वर को नहीं पहचानें।
शिष्यों के विचार में या तो उस अंधे ने पाप किया था या उसके माता-पिता ने।
यीशु ने कहा कि उसके अंधे होने का कारण था कि परमेश्वर के काम उसमें प्रकट हों।
यीशु ने मिट्टी में थूक कर उसे गीला किया और उसकी आँखों पर लगाई और उससे कहा कि वह जाकर शीलोम के कुण्ड में धो ले।
वह लौटा तो वह देखता था।
उस मनुष्य ने गवाही दी कि वह अंधा भिखारी ही है।
वे उस व्यक्ति को फरीसियों के पास ले गए।
उस अंधे मनुष्य की चंगाई सब्त के दिन हुई थी।
कुछ फरीसियों ने कहा कि यीशु परमेश्वर की ओर से नहीं है, क्योंकि वह सब्त का पालन नहीं करता है (उसने सब्त के दिन चंगाई का काम किया है) अन्य फरीसियों ने कहा कि ऐसा पापी मनुष्य चिन्ह कैसे दिखा सकता है?
उस पूर्वकालिक अंधे ने कहा, "वह एक भविष्यद्वक्ता है।"
उन्होंने उसके माता-पिता को बुलवाया क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह मनुष्य पहले से अंधा था।
उसके माता पिता ने कहा कि वह निश्चय ही उनका पुत्र है और वह अन्धा ही जन्मा था।
उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते कि वह कैसे देख सकता है और उसे किसने दृष्टि दान दिया है?
उन्होंने इसलिए ऐसा कहा क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे क्योंकि यहूदियों ने यह निर्णय लिया था, कि यीशु को मसीह कहने वाले को आराधनालय से बाहर कर दिया जायेगा।
उन्होंने उससे कहा, "परमेश्वर की स्तुति कर। हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।"
उसने कहा, "मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं; मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखता हूँ"।
फरीसियों ने उसका ठट्ठा किया क्योंकि उसने कहा था, "मैं तुमसे कह चुका हूँ और तुमने नहीं सुना, अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो?"
उसने कहा, "यह तो आश्चर्य की बात है कि तुम नहीं जानते कि वह कहाँ का है, तौभी उसने मेरी आँखें खोल दीं। हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता, परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो और उसकी इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है, जगत के आरंभ से यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्म के अंधे की आँखे खोली हों। यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता"।
उन्होंने उससे कहा, तू तो बिल्कुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है? और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।
यीशु ने उसको खोजा और उसे पा लिया।
यीशु ने उससे पूछा कि क्या वह मनुष्य के पुत्र में विश्वास करता है और फिर उससे कहा कि वही (यीशु) मनुष्य का पुत्र है।
उस पूर्वकालिक अंधे मनुष्य ने यीशु से कहा, "हे प्रभु मैं विश्वास करता हूँ" और उसे दण्डवत किया।
यीशु ने उनसे कहा, "यदि तुम अंधे होते तो पापी न ठहरतेः परन्तु अब कहते हो कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है।
1 “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई द्वार से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, परन्तु और किसी ओर से चढ़ जाता है, वह चोर और डाकू है*। 2 परन्तु जो द्वार से भीतर प्रवेश करता है* वह भेड़ों का चरवाहा है। 3 उसके लिये द्वारपाल द्वार खोल देता है, और भेड़ें उसका शब्द सुनती हैं, और वह अपनी भेड़ों को नाम ले लेकर बुलाता है और बाहर ले जाता है। 4 और जब वह अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल चुकता है, तो उनके आगे-आगे चलता है, और भेड़ें उसके पीछे-पीछे हो लेती हैं; क्योंकि वे उसका शब्द पहचानती हैं। 5 परन्तु वे पराये के पीछे नहीं जाएँगी, परन्तु उससे भागेंगी, क्योंकि वे परायों का शब्द नहीं पहचानती।” 6 यीशु ने उनसे यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे न समझे कि ये क्या बातें हैं जो वह हम से कहता है।
7 तब यीशु ने उनसे फिर कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि भेड़ों का द्वार मैं हूँ। 8 जितने मुझसे पहले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ों ने उनकी न सुनी। (यिर्म. 23:1, यूह. 10:27) 9 द्वार मैं हूँ; यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया-जाया करेगा और चारा पाएगा। (भज. 118:20) 10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और हत्या करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ। 11 अच्छा चरवाहा मैं हूँ; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है। (भज. 23:1, यशा. 40:11, यहे. 34:15) 12 मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ों का मालिक है, भेड़िए को आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेड़िया उन्हें पकड़ता और तितर-बितर कर देता है। 13 वह इसलिए भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्ता नहीं। 14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ; मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ*, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं। 15 जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूँ। और मैं भेड़ों के लिये अपना प्राण देता हूँ। 16 और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उनका भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा। (यशा. 56:8, यहे. 34:23, यहे. 37:24) 17 पिता इसलिए मुझसे प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूँ, कि उसे फिर ले लूँ। 18 कोई उसे मुझसे छीनता नहीं*, वरन् मैं उसे आप ही देता हूँ। मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है। यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।” 19 इन बातों के कारण यहूदियों में फिर फूट पड़ी। 20 उनमें से बहुत सारे कहने लगे, “उसमें दुष्टात्मा है, और वह पागल है; उसकी क्यों सुनते हो?” 21 औरों ने कहा, “ये बातें ऐसे मनुष्य की नहीं जिसमें दुष्टात्मा हो। क्या दुष्टात्मा अंधों की आँखें खोल सकती है?”
22 यरूशलेम में स्थापन पर्व हुआ, और जाड़े की ऋतु थी। 23 और यीशु मन्दिर में सुलैमान के ओसारे में टहल रहा था। 24 तब यहूदियों ने उसे आ घेरा और पूछा, “तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।” 25 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने तुम से कह दिया, और तुम विश्वास करते ही नहीं, जो काम मैं अपने पिता के नाम से करता हूँ वे ही मेरे गवाह हैं। 26 परन्तु तुम इसलिए विश्वास नहीं करते, कि मेरी भेड़ों में से नहीं हो। 27 मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं। 28 और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। 29 मेरा पिता, जिस ने उन्हें मुझ को दिया है, सबसे बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। 30 मैं और पिता एक हैं।” 31 यहूदियों ने उसे पत्थराव करने को फिर पत्थर उठाए। 32 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैंने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उनमें से किस काम के लिये तुम मुझे पत्थराव करते हो?” 33 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझे पत्थराव नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण और इसलिए कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।” (लैव्य. 24:16) 34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है कि ‘मैंने कहा, तुम ईश्वर हो’? (भज. 82:6) 35 यदि उसने उन्हें ईश्वर कहा जिनके पास परमेश्वर का वचन पहुँचा (और पवित्रशास्त्र की बात लोप नहीं हो सकती।) 36 तो जिसे पिता ने पवित्र ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो, ‘तू निन्दा करता है,’ इसलिए कि मैंने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’ 37 यदि मैं अपने पिता का काम नहीं करता, तो मेरा विश्वास न करो। 38 परन्तु यदि मैं करता हूँ, तो चाहे मेरा विश्वास न भी करो, परन्तु उन कामों पर विश्वास करो, ताकि तुम जानो, और समझो, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूँ।” 39 तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उनके हाथ से निकल गया। 40 फिर वह यरदन के पार उस स्थान पर चला गया, जहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहा। 41 और बहुत सारे उसके पास आकर कहते थे, “यूहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इसके विषय में कहा था वह सब सच था।” 42 और वहाँ बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
यीशु फरीसियों से बातें कर रहा है
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
बाड़ा लगा हुआ वह सुरक्षित स्थान जहाँ चरवाहा भेड़ों को रखता है।
चोर और डाकू, इन दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है परन्तु यह बल देने के लिए काम में लिए गए हैं।
संभावित अर्थ (1) "शिष्य नहीं समझे" या 2)"जनसमूह नहीं समझा" अतः इसे ऐसे ही रहने दे तो ठीक होगा।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
"मुझ से होकर भेड़ें भेड़शाला में प्रवेश करती हैं," यीशु के कहने का अर्थ है कि वह प्रवेश की अनुमति देता है। यहां ”भेड़“ शब्द परमेश्वर के लोगों के लिए काम में लिया गया है।
जितने मुझसे पहले आए वे सब चोर और डाकू है, "जितने मुझ से पहले आए", यह उक्ति उन उपदेशकों के संदर्भ में है जिन्होंने यीशु से पहले आकर शिक्षा दी। यीशु उन्हें "चोर और डाकू" कहता है। क्योंकि उनकी शिक्षा झूठी थी और वे परमेश्वर के लोगों को, सत्य की समझ से रहित होकर, पथभ्रष्ट करते थे।
यीशु जनसमूह से बातें कर रहा है
स्वयं को "द्वार" कहने में यीशु का अभिप्राय है कि वह सच्चा मार्ग दिखाता है कि भेड़शाला जिसका प्रतीक है वहां कैसे पहुंचे।
चारा वह हरी घास है जिसे भेड़ें खाती है।
"वे" शब्द भेड़ों के संदर्भ में है, "जीवन" अर्थात अनन्त जीवन
यीशु अच्छे चरवाहे का दृष्टान्त ही सुना रहा है।
"मैं एक अच्छे चरवाहे के जैसा हूँ"।
अपना प्राण देता है //-// किसी बात को देने का अर्थ है उसको अपने वश से जाने देना। यह मृत्यु के लिए प्रयुक्त एक कोमल शब्द है, वैकल्पिक अनुवाद ”मर जाता है“।
यीशु अच्छे चरवाहे का दृष्टान्त ही सुना रहा है।
"मैं एक अच्छे चरवाहे के जैसा हूं"।
यह यीशु द्वारा कोमलता से कहता है कि वह अपनी भेड़ों की रक्षा करते हुए मर जायेगा। वैकल्पिक अनुवाद, मैं अपनी भेड़ों के लिए मर जाऊंगा“।
चरवाहे की भेड़ों का वृंद। भेड़शाला का अर्थ है, भेड़ों के रहने का स्थान।
यीशु जनसमूह से ही बातें कर रहा है।
यह यीशु के कोमल शब्द हैं जिनके द्वारा वह कह रहा है कि वह मर जायेगा और फिर स्वयं को मरने दूंगा कि फिर स्वयं को जीवित करूं"।
वैकल्पिक अनुवाद, "उसकी बातें मत सुनो"।
वैकल्पिक अनुवाद, "दुष्टात्मा अंधे को दृष्टिदान नहीं दे सकती है।"
यह आठ दिवसीय शीतकालीन अवकाश था। उसमें यहूदी परमेश्वर के चमत्कार को स्मरण करते थे कि परमेश्वर ने आठ दिन तक दीपों में तेल समाप्त होने न दिया, जब तक कि वे और तेल का प्रबन्ध करते थे। दीपदान इसलिए जलते थे कि परमेश्वर के लिए लोगों का समर्पण दर्शाएं। किसी वस्तु के समर्पण का अर्थ है कि उसे किसी विशेष उद्देश्य के निमित्त ही में लिया जाए।
ओसारे- इमारत से जुड़ी दीवार रहित छत
चमत्कार उसके लिए प्रमाण प्रस्तुत करते हैं जिस प्रकार कि न्यायालय में गवाह प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। वैकल्पिक अनुवाद, "ये चमत्कार मेरे लिए प्रमाण प्रस्तुत करते हैं"।
वैकल्पिक अनुवाद "मेरे अनुयायी नहीं" या "मेरे शिष्य नहीं" या मेरे लोग नहीं।
"हाथ" का अर्थ है पिता की सम्पदा या उसका नियंत्रण एवं सुरक्षा
"परमेश्वर होने का दावा करता है"
"ईश्वर" शब्द प्रायः झूठे देवी-देवताओं के लिए काम में लिया जाता है। सच्चे परमेश्वर के लिए अंग्रेजी में बड़ा "जी" लगता है। यहां यीशु धर्मशास्त्र के संदर्भ द्वारा दर्शाता है कि परमेश्वर ने अपने अनुयायियों को ईश्वर कहता है क्योंकि उसने पृथ्वी पर उसके प्रति निधित्व हेतु उन्हें चुना है।
यीशु ने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि उस जानकारी के उजागर करे जिसे यहूदी धर्मगुरूओं के लिए जानना आवश्यक था, ”लिखा है“।
पवित्रशास्त्र की बात असत्य नहीं हो सकती, यह वाक्य धर्मशास्त्र को हमारा नियंत्रक दर्शाता है और वह नियंत्रण तोड़ा नहीं जा सकता या नियंत्रण मुक्त नहीं किया जा सकता कि हम उसके सत्यवचन से बच पाएं। वैकल्पिक अनुवाद, "धर्मशास्त्र की किसी भी बात को झूठा नहीं कहा जा सकता है" (यू.डी.बी.) या "धर्मशास्त्र सत्य है"।
यीशु अपने विरोधी यहूदी धर्मगुरूओं के समक्ष प्रतिवाद प्रस्तुत कर रहा है।
यह शब्द जो सच है उसे दर्शाने को उपयोग किया गया है, वैकल्पिक अनुवाद-”सत्यता में” अथवा “सच-सच”
जो भेड़शाला में द्वार से प्रवेश नहीं करता परन्तु किसी दूसरी ओर से चढ़ जाता है तो वह चोर और डाकू है।
जो द्वार से भेड़शाला में प्रवेश करे वह उन भेड़ों का चरवाहा है।
भेड़ें चरवाहे के पीछे जाती हैं क्योंकि वह उसका शब्द पहचानती हैं।
नहीं, भेड़ें पराये के पीछे नहीं जाती हैं।
जो यीशु से पहले आए वे सब चोर और डाकू थे और भेड़ों ने उनकी न सुनी।
जो यीशु रूपी द्वार से प्रवेश करते हैं वे उद्धार पाएंगे और भीतर बाहर आया जाया करेंगे और चारा पाएंगे।
अच्छे चरवाहे यीशु अपनी भेड़ों के लिए जान देने को तैयार है।
यीशु ने कहा कि उसकी और भी भेड़ें हैं जो उस भेड़शाला की नहीं हैं, उनका लाना भी उसके लिए आवश्यक है कि एक ही भेड़शाला हो और एक ही चरवाहा हो।
परमेश्वर पिता यीशु से प्रेम करता है क्योंकि यीशु अपनी जान देता है वरन उसे फिर ले लेने का अधिकार भी उसे है।
नहीं, वह स्वयं ही जान देता है।
यीशु ने यह आज्ञा परमेश्वर पिता से प्राप्त की थी।
अनेक लोग कहने लगे, "उसमें दुष्टात्मा है और वह पागल है उसकी क्यों सुनते हो?" अन्यों ने कहा, "ये बातें ऐसे मनुष्य की नहीं जिसमें दुष्टात्मा हो, क्या दुष्टात्मा अंधों की आंखे खोल सकती हैं?"
उन्होंने कहा, "तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है तो हमसे साफ-साफ कह दे।"
यीशु ने कहा कि उसने तो पहले ही कह दिया था (कि वह मसीह है) परन्तु उन्होंने विश्वास नहीं किया क्योंकि वे उसकी भेड़ें नहीं थे।
यीशु ने कहा कि वह अपनी भेड़ों को अनन्त जीवन देता है, वे कभी नष्ट नहीं होंगी और उन्हें उसके हाथ से कोई छीन नहीं सकता।
पिता परमेश्वर ने यीशु को भेड़ें दी थी।
परमेश्वर पिता सबसे महान है।
क्योंकि उनका मानना था कि यीशु ईश्वर की निंदा कर रहा था और स्वयं को परमेश्वर के बराबर बताता था जबकि वह मात्र एक मनुष्य था।
यीशु स्वयं की रक्षा में कहता है, "क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है, मैंने कहा, तुम ईश्वर हो? यदि उसने उन्हें ईश्वर कहा जिनके पास परमेश्वर का वचन पहुंचा और पवित्रशास्त्र की बात असत्य नहीं हो सकती, तो जिसे पिता ने पवित्र ठहरा कर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो, "तू निन्दा करता है“ इसलिए कि मैंने कहा, "मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ"?
यीशु ने यहूदियों से कहा कि वे उसके कामों को देखें, यदि यीशु अपने पिता के काम नहीं कर रहा है तो उस पर विश्वास नहीं करें। यदि वह अपने पिता के काम कर रहा है तो उस पर विश्वास करें।
यीशु ने कहा कि वे जान सकते हैं और समझ सकते हैं कि पिता परमेश्वर यीशु में है और यीशु परमेश्वर में है।
यहूदियों ने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया।
यीशु फिर यरदन पार उस स्थान में चला गया जहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा देता था।
लोग उसके पास आकर कहते थे, "यूहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इसके विषय में कहा था, वह सब सच था"। अनेक मनुष्यों ने वहाँ यीशु में विश्वास किया।
1 मरियम और उसकी बहन मार्था के गाँव बैतनिय्याह का लाज़र नाम एक मनुष्य बीमार था। 2 यह वही मरियम थी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पाँवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाज़र बीमार था। 3 तब उसकी बहनों ने उसे कहला भेजा, “हे प्रभु, देख, जिससे तू प्यार करता है*, वह बीमार है।” 4 यह सुनकर यीशु ने कहा, “यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।” 5 और यीशु मार्था और उसकी बहन और लाज़र से प्रेम रखता था। 6 जब उसने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहाँ दो दिन और ठहर गया। 7 फिर इसके बाद उसने चेलों से कहा, “आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।” 8 चेलों ने उससे कहा, “हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्थराव करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है?” 9 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते? यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है। 10 परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उसमें प्रकाश नहीं।” 11 उसने ये बातें कहीं, और इसके बाद उनसे कहने लगा, “हमारा मित्र लाज़र सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूँ।” 12 तब चेलों ने उससे कहा, “हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।” 13 यीशु ने तो उसकी मृत्यु के विषय में कहा था : परन्तु वे समझे कि उसने नींद से सो जाने के विषय में कहा। 14 तब यीशु ने उनसे साफ कह दिया, “लाज़र मर गया है। 15 और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूँ कि मैं वहाँ न था जिससे तुम विश्वास करो। परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।” 16 तब थोमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपने साथ के चेलों से कहा, “आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें।”
17 फिर यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं। 18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर था। 19 और बहुत से यहूदी मार्था और मरियम के पास उनके भाई के विषय में शान्ति देने के लिये आए थे। 20 जब मार्था यीशु के आने का समाचार सुनकर उससे भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही। 21 मार्था ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता। 22 और अब भी मैं जानती हूँ, कि जो कुछ तू परमेश्वर से माँगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।” 23 यीशु ने उससे कहा, “तेरा भाई जी उठेगा।” 24 मार्था ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ, अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।” (प्रेरि. 24:15) 25 यीशु ने उससे कहा, “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ*, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तो भी जीएगा। 26 और जो कोई जीवित है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा। क्या तू इस बात पर विश्वास करती है?” 27 उसने उससे कहा, “हाँ, हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूँ, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला था, वह तू ही है।”
28 यह कहकर वह चली गई, और अपनी बहन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, “गुरु यहीं है, और तुझे बुलाता है।” 29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई। 30 (यीशु अभी गाँव में नहीं पहुँचा था, परन्तु उसी स्थान में था जहाँ मार्था ने उससे भेंट की थी।) 31 तब जो यहूदी उसके साथ घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिये। 32 जब मरियम वहाँ पहुँची जहाँ यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पाँवों पर गिरके कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।” 33 जब यीशु ने उसको और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास और व्याकुल हुआ, 34 और कहा, “तुम ने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, चलकर देख ले।” 35 यीशु रोया*। 36 तब यहूदी कहने लगे, “देखो, वह उससे कैसा प्यार करता था।” 37 परन्तु उनमें से कितनों ने कहा, “क्या यह जिस ने अंधे की आँखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता?” 38 यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा थी, और एक पत्थर उस पर धरा था। 39 यीशु ने कहा, “पत्थर को उठाओ।” उस मरे हुए की बहन मार्था उससे कहने लगी, “हे प्रभु, उसमें से अब तो दुर्गन्ध आती है, क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।” 40 यीशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।” 41 तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया, फिर यीशु ने आँखें उठाकर कहा, “हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मेरी सुन ली है। 42 और मैं जानता था, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस-पास खड़ी है, उनके कारण मैंने यह कहा, जिससे कि वे विश्वास करें, कि तूने मुझे भेजा है।” 43 यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, “हे लाज़र, निकल आ!” 44 जो मर गया था, वह कफन से हाथ पाँव बंधे हुए निकल आया और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, “उसे खोलकर जाने दो।”
45 तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा था, उनमें से बहुतों ने उस पर विश्वास किया। 46 परन्तु उनमें से कितनों ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया। 47 इस पर प्रधान याजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा के लोगों को इकट्ठा करके कहा, “हम क्या करेंगे? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है। 48 यदि हम उसे यों ही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएँगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।” 49 तब उनमें से कैफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उनसे कहा, “तुम कुछ नहीं जानते; 50 और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।” 51 यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वाणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा; 52 और न केवल उस जाति के लिये, वरन् इसलिए भी, कि परमेश्वर की तितर-बितर सन्तानों को एक कर दे। 53 अतः उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे। 54 इसलिए यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहाँ से जंगल के निकटवर्ती प्रदेश के एप्रैम नाम, एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा। 55 और यहूदियों का फसह निकट था, और बहुत सारे लोग फसह से पहले दिहात से यरूशलेम को गए कि अपने आप को शुद्ध करें। (2 इति. 30:17) 56 वे यीशु को ढूँढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, “तुम क्या समझते हो? क्या वह पर्व में नहीं आएगा?” 57 और प्रधान याजकों और फरीसियों ने भी आज्ञा दे रखी थी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहाँ है तो बताए, कि उसे पकड़ लें।
यह वाक्यांश लाजर के साथ यीशु के घनिष्ठ संबन्ध को दर्शाता है।
"इस बीमारी का उद्देश्य उसकी मृत्यु नहीं है"
वैकल्पिक अनुवाद, "गुरू तू निश्चय ही वहां नहीं जाना चाहता है क्योंकि यहूदी तुझे पत्थराव करना चाहते हैं"।
"यीशु ने दृष्टान्त के द्वारा उत्तर दिया"
वैकल्पिक अनुवाद, "दिन में प्रकाश के बारह घंटे होते हैं।"
संभावित अर्थ है, (1) "वह देख नहीं सकता" (यू.डी.बी.) या (2) "उसके पास प्रकाश नहीं"।
"लाजर मर गया है, परन्तु कुछ समय के लिए"
यीशु लाजर को जीवित करने का विचार व्यक्त कर रहा है।
यीशु अपने शिष्यों से बैतनिय्याह जाने ही की बात कर रहा है
”तुम्हारे लाभ के लिए“
दिद्मुस एक पुलिंग शब्द है, अर्थात जुड़वा
”लगभग तीन किलोमीटर“। मूल भाषा में यह दूरी ”स्टेडियम“ में व्यक्त की गई है। एक स्टेडियम 185 मीटर का होता था।
वैकल्पिक अनुवाद, "जो मुझ में विश्वास रखते है वे परमेश्वर से सदा के लिए अलग नहीं होंगे"।
मरियम ने यीशु के चरणों में घुटने टेके, सम्मान का प्रतीक।
वैकल्पिक अनुवाद, "यह एक अंधे को दृष्टिदान दे सकता है तो यह लाज़र को भी चंगा कर सकता था कि वह मरता नहीं"।
चंगा किया
वैकल्पिक अनुवाद, "स्मरण रख कि मैंने तुझ से कहा है, यदि तू मुझ में विश्वास रखेगी तो देखेगी कि परमेश्वर कैसा महान है"।
उस समय की प्रथा थी कि शव को कपड़े की पट्टियों से बांधा जाए।
"उनसे" शब्द चमत्कार को देखने वालों के लिए है।
काइफा ने ऐसा इसलिए नहीं कहा कि वे अज्ञानी थे परन्तु इसलिए कि उसके समाधान से वे अनभिज्ञ थे। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम तो ऐसे बातें कर रहे हो कि तुम जानते ही नहीं कि क्या करना चाहिए"।
काइफा की योजना को भविष्यद्वाणी माना एवं समझा जा रहा था जबकि काइफा को स्वयं यह बोध नहीं था कि वह भविष्यद्वाणी कर रहा है। यह पृष्ठभूमि संबन्धित जानकारी है। इसे अपनी भाषा में स्पष्ट करने के लिए जो भी शब्द आवश्यक है उनका उपयोग करें।
"जाति" से अभिप्राय है संपूर्ण इस्राएल जाति।
यीशु यरूशलेम के निकट के गाँव बैतनिय्याह से कूच करता है
यदि पद 57 का पद 56 से पहले होने का तथ्य आपके पाठकों को उलझन में डाल देगा तो आप दोनों पदों को संयोजित करके पद 57 के पाठ को पद 56 के पहले लिखें।
"वे" अर्थात यरूशलेम आने वाले यहूदी धर्मगुरू
यह जानकारी पृष्ठभूमि आधारित है कि यहूदी आराधनालों द्वारा यीशु के मन्दिर में आने के विचार की व्याख्या की जाए। यदि आपकी भाषा में ऐसी पृष्ठभूमि गर्मित जानकारी को व्यक्त करने की विधि है तो उसे काम में लें। उसने आसपास के लोगों से उसका विचार पूछा। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हारे विचार में क्या यीशु पर्व में आने से डरेगा"।
तुम क्या सोचते हो? क्या वह पर्व में नहीं आयेगा? - व्यक्ता विमूढ़ था कि यीशु पर्व में आयेगा या नहीं क्योंकि उसे वहां बन्दी बनाए जाने का खतरा था। उसने अन्य साथियों की राय जानना चाहा। वैकल्पिक अनुवाद: "तुम्हारे विचार में क्या यीशु पर्व में आने से नहीं डरेगा"
लाजर बैतनिय्याह का निवासी था। मार्था और मरियम उसकी बहनें थी। यह वहीं मरियम थी जिसने यीशु पर इत्र डालकर अपने बालों से उसके पांव पोंछे थे।
यीशु ने कहा, "यह बीमारी मृत्यु की नहीं; परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिए है कि आपके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो"।
यीशु जहां था वहीं दो दिन और रूक गया।
शिष्यों ने यीशु से कहा, "हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझ पर पत्थरवाह करना चाहते थे, और क्या तू फिर वहीं जाना चाहता है"?
यीशु ने कहा यदि कोई दिन के उजियाले में चले तो ठोकर नहीं खाता है क्योंकि वह इस जगत का उजाला देखता है, परन्तु यदि कोई रात में चले तो ठोकर खाता है क्योंकि उसमें उजाला नहीं।
शिष्यों ने सोचा कि वह प्राकृतिक नींद के बारे में कह रहा है क्योंकि उन्होंने कहा, "हे प्रभु, यदि वह सो गया है तो वह स्वस्थ हो जायेगा"।
यीशु ने कहा, लाजर सो गया है तो उसके कहने का अर्थ था कि वह मर गया है।
यीशु ने कहा, "मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूँ कि मैं वहाँ न था जिससे तुम विश्वास करो"।
थोमा ने सोचा था कि वे सब मारे जायेंगे।
लाजर को कब्र में रखे चार दिन हो गए थे।
यीशु के आगमन का समाचार सुनकर मार्था उससे भेंट करने निकली।
मार्था ने कहा, "मैं जानती हूँ कि जो कुछ तू परमेश्वर से मांगेगा, परमेश्वर तुझे देगा"।
उसने यीशु से कहा, "मैं जानती हूँ कि अन्तिम दिन पुनरूत्थान के समय वह फिर जी उठेगा"।
यीशु ने कहा कि जो कोई उसमें विश्वास करेगा वह मर भी जाए तौभी जीएगा और जो कोई जीवित है और उसमें विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा।
मार्था ने यीशु से कहा, "मैं विश्वास करती हूँ कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आने वाला था, वह तू ही है"।
मरियम यीशु से भेंट करने जा रही थी।
मार्था के घर में उपस्थित यहूदियों ने सोचा कि मरियम कब्र पर रोने जा रही है तो वे उसके साथ चल पड़े।
यीशु ने मरियम और अन्य यहूदियों को रोते देखा तो आत्मा में बहुत ही उदास और व्याकुल हुआ और यीशु रोया।
उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यीशु लाजर से प्रेम रखता था।
मार्था ने कहा, "हे प्रभु, उसमें से अब तो दुर्गन्ध आती होगी क्योंकि उसे मरे अब चार दिन हो गए हैं"।
यीशु ने मार्था से कहा, "क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी"?
यीशु ने स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर अपने पिता से प्रार्थना की।
उसने ऊंचे शब्दों में प्रार्थना की कि वहाँ उपस्थित जन विश्वास करें कि परमेश्वर ने उसे भेजा है।
वह कफ़न से हाथ पांव बन्धे हुए निकल आया और उसका मुंह अंगोछे से लिपटा हुआ था।
अनेक यहूदियों ने यीशु का यह काम देखकर उसमें विश्वास किया परन्तु कुछ ने जाकर फरीसियों को यीशु के इस काम का समाचार सुनाया।
महायाजक कैफा ने कहा, "तुम्हारे लिए यह भला है कि हमारे लोगों के लिए एक मनुष्य मरे और सारी जाति नष्ट न हो"।
उन्होंने यीशु की हत्या की योजना बनाई।
यीशु अब यहूदियों में प्रकट होकर नहीं रहा, वह बैतनिय्याह से निकल कर पास के जंगल के इफ्राईम नाम एक नगर को चला गया और अपने शिष्यों के साथ वहीं रहने लगा।
उन्होंने यह उपदेश दिया कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहाँ है तो बताए ताकि वे उसे पकड़ें।
1 फिर यीशु फसह से छः दिन पहले बैतनिय्याह में आया, जहाँ लाज़र था; जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया था। 2 वहाँ उन्होंने उसके लिये भोजन तैयार किया, और मार्था सेवा कर रही थी, और लाज़र उनमें से एक था, जो उसके साथ भोजन करने के लिये बैठे थे। 3 तब मरियम ने जटामांसी का आधा सेर बहुमूल्य इत्र लेकर यीशु के पाँवों पर डाला, और अपने बालों से उसके पाँव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया। 4 परन्तु उसके चेलों में से यहूदा इस्करियोती नाम एक चेला जो उसे पकड़वाने पर था, कहने लगा, 5 “यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर गरीबों को क्यों न दिया गया?” 6 उसने यह बात इसलिए न कही, कि उसे गरीबों की चिन्ता थी, परन्तु इसलिए कि वह चोर था और उसके पास उनकी थैली रहती थी, और उसमें जो कुछ डाला जाता था, वह निकाल लेता था। 7 यीशु ने कहा, “उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिये रहने दे। 8 क्योंकि गरीब तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा।” (मर. 14:7)
9 यहूदियों में से साधारण लोग जान गए, कि वह वहाँ है, और वे न केवल यीशु के कारण आए परन्तु इसलिए भी कि लाज़र को देखें, जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया था। 10 तब प्रधान याजकों ने लाज़र को भी मार डालने की सम्मति की। 11 क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया।
12 दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आ रहा है। 13 उन्होंने खजूर की डालियाँ लीं, और उससे भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, “होशाना! धन्य इस्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।” (भज. 118:25-26) 14 जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो वह उस पर बैठा, जैसा लिखा है,
15 “हे सिय्योन की बेटी,
मत डर;
देख, तेरा राजा गदहे के बच्चे पर चढ़ा
हुआ चला आता है।”
16 उसके चेले, ये बातें पहले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उनको स्मरण आया, कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुई थीं; और लोगों ने उससे इस प्रकार का व्यवहार किया था। 17 तब भीड़ के लोगों ने जो उस समय उसके साथ थे यह गवाही दी कि उसने लाज़र को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया था। 18 इसी कारण लोग उससे भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना था, कि उसने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है। 19 तब फरीसियों ने आपस में कहा, “सोचो, तुम लोग कुछ नहीं कर पा रहे हो; देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।”
20 जो लोग उस पर्व में आराधना करने आए थे उनमें से कई यूनानी थे। 21 उन्होंने गलील के बैतसैदा के रहनेवाले फिलिप्पुस के पास आकर उससे विनती की, “श्रीमान हम यीशु से भेंट करना चाहते हैं।” 22 फिलिप्पुस ने आकर अन्द्रियास से कहा; तब अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने यीशु से कहा। 23 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “वह समय आ गया है*, कि मनुष्य के पुत्र कि महिमा हो। 24 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जब तक गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है। 25 जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनन्त जीवन के लिये उसकी रक्षा करेगा। 26 यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा सेवक भी होगा; यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा।
27 “अब मेरा जी व्याकुल हो रहा है*। इसलिए अब मैं क्या कहूँ? ‘हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा?’ परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुँचा हूँ। 28 हे पिता अपने नाम की महिमा कर।” तब यह आकाशवाणी हुई, “मैंने उसकी महिमा की है, और फिर भी करूँगा।” 29 तब जो लोग खड़े हुए सुन रहे थे, उन्होंने कहा; कि बादल गरजा, औरों ने कहा, “कोई स्वर्गदूत उससे बोला।” 30 इस पर यीशु ने कहा, “यह शब्द मेरे लिये नहीं परन्तु तुम्हारे लिये आया है। 31 अब इस जगत का न्याय होता है, अब इस जगत का सरदार* निकाल दिया जाएगा। 32 और मैं यदि पृथ्वी पर से ऊँचे पर चढ़ाया जाऊँगा, तो सब को अपने पास खीचूँगा।” 33 ऐसा कहकर उसने यह प्रगट कर दिया, कि वह कैसी मृत्यु से मरेगा। 34 इस पर लोगों ने उससे कहा, “हमने व्यवस्था की यह बात सुनी है, कि मसीह सर्वदा रहेगा, फिर तू क्यों कहता है, कि मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाया जाना अवश्य है? यह मनुष्य का पुत्र कौन है?” (दानि. 7:14) 35 यीशु ने उनसे कहा, “ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है तब तक चले चलो; ऐसा न हो कि अंधकार तुम्हें आ घेरे; जो अंधकार में चलता है वह नहीं जानता कि किधर जाता है। 36 जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के सन्तान बनो।” ये बातें कहकर यीशु चला गया और उनसे छिपा रहा।
37 और उसने उनके सामने इतने चिन्ह दिखाए, तो भी उन्होंने उस पर विश्वास न किया; 38 ताकि यशायाह भविष्यद्वक्ता का वचन पूरा हो जो उसने कहा:
“हे प्रभु, हमारे समाचार पर किस ने विश्वास किया है?
और प्रभु का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?” (यशा. 53:1)
39 इस कारण वे विश्वास न कर सके, क्योंकि यशायाह ने यह भी कहा है:
40 “उसने उनकी आँखें अंधी,
और उनका मन कठोर किया है;
कहीं ऐसा न हो, कि आँखों से देखें,
और मन से समझें,
और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूँ।” (यशा. 6:10)
41 यशायाह ने ये बातें इसलिए कहीं, कि उसने उसकी महिमा देखी; और उसने उसके विषय में बातें की। 42 तो भी सरदारों में से भी बहुतों ने उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियों के कारण प्रगट में नहीं मानते थे, ऐसा न हो कि आराधनालय में से निकाले जाएँ। 43 क्योंकि मनुष्यों की प्रशंसा उनको परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती थी।
44 यीशु ने पुकारकर कहा, “जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं, वरन् मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है। 45 और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है। 46 मैं जगत में ज्योति होकर आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अंधकार में न रहे। 47 यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। 48 जो मुझे तुच्छ जानता है* और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैंने कहा है, वह अन्तिम दिन में उसे दोषी ठहराएगा। 49 क्योंकि मैंने अपनी ओर से बातें नहीं की, परन्तु पिता जिस ने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या-क्या कहूँ और क्या-क्या बोलूँ? 50 और मैं जानता हूँ, कि उसकी आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिए मैं जो बोलता हूँ, वह जैसा पिता ने मुझसे कहा है वैसा ही बोलता हूँ।”
यहां मूल भाषा का शब्द है, "लितरा" जो भार का माप है, रोम का एक पाऊंड लगभग बारह आऊंस या 327.5 ग्राम होता है।
सुगन्धित पौधों से प्राप्त तेल से बना द्रव्य
यह घंटी के आकार के गुलाबी रंग के फूलों से प्राप्त इत्र है, जो नेपाल, चीन और भारत में उगता है।
"इत्र की सुगन्ध संपूर्ण घर में फैल गई"।
जब मरियम यीशु के चरणों पर इत्र लगा रही थी तब वह भोजन हेतु आसीन था।
वैकल्पिक अनुवाद, "जिसने आगे चलकर यीशु को बन्दी बनाने में उसके बैरियों की सहायता की थी"
यूहन्ना यहूदा के इस सुझाव का भेद खोलता है। इस पृष्ठभूमि गर्मित जानकारी को अपने ही प्रकार से अनुवाद करे यदि प्रबन्ध है।
बैतनिय्याह में यीशु भोजन कर रहा है
यहाँ मुख्य कहानी में रूकावट है। यूहन्ना कहानी में एक नए समूह का प्रवेश करता है।
"प्रधान याजकों ने विचार विमर्श किया" या "प्रधान याजकों ने सुझाव खोजे"।
लाज़र के जी उठने के कारण अनेकों ने यीशु पर विश्वास किया था।
अर्थात "परमेश्वर बचाए"।
किसी के नाम में आने का अर्थ है कि उसके अधिकार और सामर्थ्य के साथ आना, या उनका प्रतिनिधि या सन्देशवाहक होना। वैकल्पिक अनुवाद, "परमेश्वर के प्रतिनिधि रूप में आता है।"
"सिय्योन की बेटी", इस्त्राएल को व्यक्त करने का रूपक है, "इस्त्राएल की सन्तान" या "यरूशलेम के लोग"
लेखक पृष्ठभूमि गर्भित जानकारी देता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "जब परमेश्वर ने यीशु को महिमान्वन किया"
लेखक, यूहन्ना यहाँ व्याख्या द्वारा पाठक को बताता है कि यह पृष्ठभूमि आधारित जानकारी है कि शिष्य इसे बाद में समझे।
वैकल्पिक अनुवाद, “ऐसा प्रतीत होता है कि सब ही उसके अनुयायी हो गए हैं”
मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है, परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है, वैकल्पिक अनुवाद, "इस दृष्टान्त पर ध्यान दो जो मैं तुम्हें सुनाता हूं। मेरा जीवन एक बीज के सदृश्य है जो भूमि में डाला गया और मर गया। जब तक वह बोया न जाए वह मात्र एक ही बीज रहता है, परन्तु जब उसे बोया जाता है तब वह बदलकर अनेक बीजों की फसल देने के लिए विकसित होता है।"
जो इस जगत में अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है,वह अनन्त जीवन के लिए उसकी रक्षा करेगा। - वैकल्पिक अनुवाद, "इसी प्रकार जो अपनी इच्छा को प्रिय जानता है वह उसे नष्ट करता है और जो अपनी इच्छा को अनदेखा करता है, क्योंकि वह मेरे अधीन होता है, वह सदा परमेश्वर के साथ रहेगा"।
"मैं प्रार्थना में यह नहीं कहूँगा, हे पिता मुझे ऐसे समय में बचा ले"।
"मैं सब कुछ बाँध लूँगा... कि मैं सदा के लिए राज करूं"
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वैकल्पिक अनुवाद, तब यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया, "मेरे वचन तुम्हारे लिए ज्योति के समान हैं, कि समझने में तुम्हारी सहायता करें कि परमेश्वर की इच्छा का जीवन जीओ। अब मैं अधिक समय तक तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। आवश्यक है कि जब तक मैं हूँ, तुम मेरे निर्देशों का पालन करो। यदि तुम मेरे वचनों को अस्वीकार करते हो तो वह ऐसा है जैसे अन्धकार अकस्मात ही तुम पर छा गया और तुम नहीं जानते कि कहाँ जा रहे हो"।
"हे प्रभु हमारे समाचार का किसने विश्वास किया है? और प्रभु का भुजबल किस पर प्रकट हुआ है"? -वैकल्पिक अनुवाद, "हे प्रभु हमारा सन्देश किसी ने नहीं सुना जबकि उन्होंने देखा है कि तू उन्हें सामथ्र्य के साथ बचाने में योग्य है"।
परमेश्वर की उद्धारक पराक्रमी क्षमता के बारे में है।
"आराधनालय में उनका प्रवेश निषेध हो जाए"
वैकल्पिक अनुवाद, "जो मुझे देखता है वह मेरे भेजनेवाले परमेश्वर को देखता है"।
यीशु यहाँ भी स्वयं की तुलना संसार की अन्धकार विरोधी ज्योति से करता है।
"आत्मिक अन्धेपन में रहे"
वैकल्पिक अनुवाद, "यदि कोई मेरी शिक्षा को सुनकर अस्वीकार करे तो मुझे उसको दोष देने की आवश्यकता नहीं है। मेरी शिक्षा ही ने उसे दोषी ठहरा दिया है क्योंकि उसने उसे अस्वीकार किया। यहां तक मेरी बात है, मैं दोषी ठहराने नहीं, परन्तु मेरे विश्वासियों का उद्धार करने आया हूं"।
पिछले दिन, "जब परमेश्वर मनुष्यों को पापों का न्याय करेगा"।
"मैं जानता हूं कि उसने मुझे जिन वचनों के आख्यान की आज्ञा दी है, वे अनन्तजीवन दायक वचन हैं।
फसह के पर्व के छः दिन पूर्व वह बैतनिय्याह आया।
मरियम ने जटामांसी का आधा सेर इत्र लेकर यीशु के पावों पर डाला और अपने बालों से उसके पांव पोंछे।
यहूदा ने इसलिए नहीं कहा कि उसे गरीबों की चिन्ता थी परन्तु इसलिए कि वह चोर था, उसके पास उनकी थैली रहती थी और जो कुछ उसमें डाला जाता था, वह निकाल लेता था।
यीशु ने कहा, "उसे रहने दो। उसे यह मेरे गाड़े जाने के दिन के लिए रखने दो। कंगाल तो सदैव तुम्हारे साथ रहेंगे परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा नहीं रहूंगा।"
यीशु की वहाँ उपस्थिति का समाचार सुनकर यहूदियों की बड़ी भीड़ यीशु को ही नहीं लाजर को भी देखने आई जिसे यीशु ने जीवित किया था।
वे लाजर को मार डालना चाहते थे क्योंकि उसके कारण अनेक यहूदी यीशु में विश्वास करने लगे थे।
उन्होंने खजूर की डालियां लीं और यह पुकारते हुए उससे भेंट करने निकले, "होशाना! धन्य इस्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है"।
शिष्यों को स्मरण हुआ कि यीशु के बारे में लिखा है, "हे सिय्योन की बेटी, मत डर, देख, तेरा राजा गदहे के बच्चे पर चढ़ा हुआ चला आता है।"
वे यीशु से भेंट करने निकले क्योंकि उन्होंने सुना था कि यीशु ने लाजर को जिलाया था।
तब यह आकाशवाणी हुई, "मैंने उसकी महिमा की है और फिर भी करूंगा"।
यीशु ने कहा, "वह समय आ गया हे कि मनुष्य के पुत्र की महिमा हो"।
यीशु ने कहा कि मरने के बाद वह बहुत फल लाता है।
यीशु ने कहा कि जो अपने प्राण से प्रेम रखेगा वह उसे खोएगा और जो इस संसार में अपने जीवन से घृणा करेगा वह अनन्त जीवन के लिए होगा।
पिता परमेश्वर उसका आदर करेगा।
यीशु ने कहा, "यह शब्द मेरे लिए नहीं परन्तु तुम्हारे लिए आया है"।
यीशु ने कहा, "अब संसार का न्याय होता है, अब इस संसार का सरदार निकाल दिया जायेगा"।
यीशु ने कहा कि यह उसकी मृत्यु के बारे में है कि वह कैसी होगी।
नहीं, उसने उनके प्रश्नों का सीधा उत्तर नहीं दिया।
यीशु ने कहा, "ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है। जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है चले चलो," ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे.... "ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति की सन्तान बनो"।
वे विश्वास करने योग्य नहीं थे क्योंकि यशायाह ने कहा था, "उसने उनकी आंखें अंधी और उनका मन कठोर कर दिया है, कहीं ऐसा न हो कि वे आंखों से देखें और मन से समझें, और फिरें और मैं उन्हें चंगा करूं"।
उसने यह कहा क्योंकि उसने यीशु की महिमा देखी थी।
उन्होंने यीशु में विश्वास का अंगीकार नहीं किया क्योंकि वे फरीसियों से डरते थे कि उन्हें आराधनालय से बहिष्कृत न कर दें, वे परमेश्वर की अपेक्षा मनुष्यों की प्रशंसा चाहते थे।
यीशु ने कहा, "जो मुझ पर विश्वास करता है वह मुझ पर नहीं वरन् मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है, जो मुझे देखता है वह मेरे भेजने वाले को देखता है।"
यीशु ने कहा कि वह संसार का उद्धार करने आया है।
यीशु के द्वारा कहा गया वचन अस्वीकार करने वालों का अन्तिम दिन में न्याय किया जायेगा।
नहीं, पिता जिसने यीशु को भेजा उसी ने उसे आज्ञा दी कि क्या करे और क्या बोले।
यीशु ने वह सब किया क्योंकि वह जानता था कि उसके पिता की आज्ञा अनन्त जीवन है।
1 फसह के पर्व से पहले जब यीशु ने जान लिया, कि मेरा वह समय आ पहुँचा है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊँ, तो अपने लोगों से, जो जगत में थे, जैसा प्रेम वह रखता था, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा। 2 और जब शैतान शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह डाल चुका था, कि उसे पकड़वाए, तो भोजन के समय 3 यीशु ने, यह जानकर कि पिता ने सब कुछ उसके हाथ में कर दिया है और मैं परमेश्वर के पास से आया हूँ, और परमेश्वर के पास जाता हूँ। 4 भोजन पर से उठकर अपने कपड़े उतार दिए, और अँगोछा लेकर अपनी कमर बाँधी।
5 तब बर्तन में पानी भरकर चेलों के पाँव धोने* और जिस अँगोछे से उसकी कमर बंधी थी उसी से पोंछने लगा। 6 जब वह शमौन पतरस के पास आया तब उसने उससे कहा, “हे प्रभु, क्या तू मेरे पाँव धोता है?” 7 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “जो मैं करता हूँ, तू अभी नहीं जानता, परन्तु इसके बाद समझेगा।” 8 पतरस ने उससे कहा, “तू मेरे पाँव कभी न धोने पाएगा!” यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं तुझे न धोऊँ, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी भाग नहीं।” 9 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तो मेरे पाँव ही नहीं, वरन् हाथ और सिर भी धो दे।” 10 यीशु ने उससे कहा, “जो नहा चुका है, उसे पाँव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं।” 11 वह तो अपने पकड़वानेवाले को जानता था इसलिए उसने कहा, “तुम सब के सब शुद्ध नहीं।”
12 जब वह उनके पाँव धो चुका और अपने कपड़े पहनकर फिर बैठ गया तो उनसे कहने लगा, “क्या तुम समझे कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया? 13 तुम मुझे गुरु, और प्रभु, कहते हो, और भला कहते हो, क्योंकि मैं वहीं हूँ। 14 यदि मैंने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पाँव धोए; तो तुम्हें भी एक दूसरे के पाँव धोना चाहिए। 15 क्योंकि मैंने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो। 16 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ* अपने भेजनेवाले से। 17 तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो। 18 मैं तुम सब के विषय में नहीं कहता: जिन्हें मैंने चुन लिया है, उन्हें मैं जानता हूँ; परन्तु यह इसलिए है, कि पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हो, ‘जो मेरी रोटी खाता है, उसने मुझ पर लात उठाई।’ (भज. 41:9) 19 अब मैं उसके होने से पहले तुम्हें जताए देता हूँ कि जब हो जाए तो तुम विश्वास करो कि मैं वहीं हूँ। (यूह. 14:29) 20 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है, और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।”
21 ये बातें कहकर यीशु आत्मा में व्याकुल हुआ और यह गवाही दी, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।” 22 चेले यह संदेह करते हुए, कि वह किस के विषय में कहता है, एक दूसरे की ओर देखने लगे। 23 उसके चेलों में से एक जिससे यीशु प्रेम रखता था, यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा था। 24 तब शमौन पतरस ने उसकी ओर संकेत करके पूछा, “बता तो, वह किस के विषय में कहता है?” 25 तब उसने उसी तरह यीशु की छाती की ओर झुककर पूछा, “हे प्रभु, वह कौन है?” यीशु ने उत्तर दिया, “जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूँगा, वही है।” 26 और उसने टुकड़ा डुबोकर शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती को दिया। 27 और टुकड़ा लेते ही शैतान उसमें समा गया: तब यीशु ने उससे कहा, “जो तू करनेवाला है, तुरन्त कर।” 28 परन्तु बैठनेवालों में से किसी ने न जाना कि उसने यह बात उससे किस लिये कही। 29 यहूदा के पास थैली रहती थी, इसलिए किसी-किसी ने समझा, कि यीशु उससे कहता है, कि जो कुछ हमें पर्व के लिये चाहिए वह मोल ले, या यह कि गरीबों को कुछ दे। 30 तब वह टुकड़ा लेकर तुरन्त बाहर चला गया, और रात्रि का समय था।
31 जब वह बाहर चला गया तो यीशु ने कहा, “अब मनुष्य के पुत्र की महिमा हुई, और परमेश्वर की महिमा उसमें हुई; 32 और परमेश्वर भी अपने में उसकी महिमा करेगा, वरन् तुरन्त करेगा। 33 हे बालकों, मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूँ: फिर तुम मुझे ढूँढ़ोगे, और जैसा मैंने यहूदियों से कहा, ‘जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते,’ वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूँ। 34 मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ*, कि एक दूसरे से प्रेम रखो जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। 35 यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।”
36 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तू कहाँ जाता है?” यीशु ने उत्तर दिया, “जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तू अब मेरे पीछे आ नहीं सकता; परन्तु इसके बाद मेरे पीछे आएगा।” 37 पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, अभी मैं तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तो तेरे लिये अपना प्राण दूँगा।” 38 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू मेरे लिये अपना प्राण देगा? मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि मुर्गा बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा।
यह वाक्यांश परिदृश्य प्रकट करने के लिए पृष्ठभूमिगर्मित जानकारी है। आपकी भाषा में पृष्ठभूमिगर्मित जानकारी को व्यक्त करने के लिए जैसा भी प्रावधान है, उसका उपयोग करें।
वैकल्पिक अनुवाद, "शमौन का पुत्र, कारियोथ निवासी यहूदा"
वह स्थान धूल से भरा था इसलिए अतिथि सत्कार करने वाले को आन्तुकों के पांव धोने के लिए एक सेवक रखना होता था।
वैकल्पिक अनुवाद, "हे प्रभु तू निश्चय ही मेरे पांव नहीं धोएगा"
"तुम" अर्थात शिष्य?
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम सब के सब अपराध से शुद्ध नहीं हो"
वैकल्पिक अनुवाद, "तुम्हें समझना है कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है"।
परमेश्वर ने मूसा को अपना यही नाम बताया था। यह परमेश्वर का पवित्र नाम है जिसे सब यहूदी जानते थे।
"परेशान, चिन्तित हुआ"
उस संस्कृति में लोग अपने पाश्र्व पर आधा लेट कर भोजन करते थे।
यीशु के सीने की ओर
यीशु के सीने की ओर
यह यूहन्ना था
कारियोथ गांव का
इसका कर्तृवाच्य में अनुवाद किया जा सकता है, "जाकर गरीबों को कुछ दान दे"
यीशु "हे बालकों" का उपयोग करता है कि वह व्यक्त करे कि वह अपने शिष्यों से बच्चों के समान प्रेम करता था।
"सब" अर्थात शिष्यों के पारस्परिक प्रेम को देखने वाले सब लोग।
"जान दे दूँगा" या "मर जाउँगा"
वैकल्पिक अनुवाद, "तू कहता है कि तू मेरे लिए मर भी जायेगा" देखें: )
वह अन्त तक अपने लोगों से आरंभ का सा ही प्रेम रखता रहा।
शैतान ने यहूदा इस्करियोती के मन में डाला कि वह यीशु को पकड़वाए।
पिता परमेश्वर ने यीशु के हाथ में सब कुछ कर दिया था।
यीशु परमेश्वर के पास से आया था और वही लौट कर जा रहा था।
यीशु ने अपने ऊपरी वस्त्र उतार दिए और अंगोछा लेकर अपनी कमर बांधी। तब बर्तन में पानी लेकर शिष्यों के पांव धोने और जिस अंगोछे से कमरकस रखी थी उससे पोंछने लगा।
यीशु ने कहा, "यदि मैं तुझे न धोऊं तो मेरे साथ तेरा कुछ भी सांझा नहीं"।
यीशु ने इसलिए पूछा कि वह जानता था कौन उसे पकड़वाएगा।
यीशु ने अपने शिष्यों के पांव धोए कि उनके लिए एक उदाहरण हो कि वे भी ऐसा ही करें।
सेवक अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता और जो भेजा गया वह भेजनेवाले से बड़ा नहीं होता है।
जिसने यीशु की रोटी खाई उसी ने विश्वासघात किया।
यीशु ने होने से पहले उन्हें बता दिया था कि वे विश्वास करें कि यीशु "मैं हूँ" है।
यीशु ने कहा जो मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है; और जो मुझे ग्रहण करता है वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।
शमौन पतरस ने यीशु के प्रिय शिष्य की ओर संकेत करके पूछा, "बता तो वह किसके विषय में कहता है"?
यीशु ने कहा, "जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूंगा वही है।" उस ने टुकड़ा डुबोकर शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती को दिया।
रोटी खाते ही यहूदा में शैतान समा गया और वह तुरन्त चला गया।
मनुष्य के पुत्र में परमेश्वर की महिमा होने वाली थी। जब मनुष्य के पुत्र का महिमान्वन हुआ तो वह परमेश्वर का महिमान्वन था।
नई आज्ञा यह थी कि वे आपस में प्रेम रखें जैसे यीशु ने उनसे प्रेम किया था।
यीशु ने कहा कि यदि वे आपस में प्रेम रखेंगे तो सब जानेंगे कि वे उसके शिष्य हैं।
नहीं, शमौन पतरस नहीं समझा था क्योंकि उसने यीशु से पूछा था, "हे प्रभु तू कहाँ जाता है"?
यीशु ने कहा, "क्या तू मेरे लिए अपना प्राण देगा? मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ कि मुर्ग बांग न देगा जब तक कि तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा"।
1 “तुम्हारा मन व्याकुल न हो*, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। 2 मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। 3 और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो।
4 और जहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।” 5 थोमा ने उससे कहा, “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है; तो मार्ग कैसे जानें?” 6 यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ*; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता। 7 यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।”
8 फिलिप्पुस ने उससे कहा, “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिये बहुत है।” 9 यीशु ने उससे कहा, “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिस ने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है: तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? 10 क्या तू विश्वास नहीं करता, कि मैं पिता में हूँ, और पिता मुझ में हैं? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। 11 मेरा ही विश्वास करो, कि मैं पिता में हूँ; और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्वास करो।
12 “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, वरन् इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ। 13 और जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वही मैं करूँगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो। 14 यदि तुम मुझसे मेरे नाम से कुछ माँगोगे, तो मैं उसे करूँगा।
15 “यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। 16 और मैं पिता से विनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। 17 अर्थात् सत्य की आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा।
18 “मैं तुम्हें अनाथ न छोडूँगा, मैं तुम्हारे पास वापस आता हूँ। 19 और थोड़ी देर रह गई है कि संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिए कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे। 20 उस दिन तुम जानोगे, कि मैं अपने पिता में हूँ, और तुम मुझ में, और मैं तुम में। 21 जिसके पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझसे प्रेम रखता है, और जो मुझसे प्रेम रखता है, उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूँगा, और अपने आप को उस पर प्रगट करूँगा।” 22 उस यहूदा ने जो इस्करियोती न था, उससे कहा, “हे प्रभु, क्या हुआ कि तू अपने आप को हम पर प्रगट करना चाहता है, और संसार पर नहीं?” 23 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यदि कोई मुझसे प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएँगे, और उसके साथ वास करेंगे। 24 जो मुझसे प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन् पिता का है, जिस ने मुझे भेजा।
25 “ये बातें मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही। 26 परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।”
27 मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ*, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। 28 तुम ने सुना, कि मैंने तुम से कहा, ‘मैं जाता हूँ, और तुम्हारे पास फिर आता हूँ’ यदि तुम मुझसे प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते, कि मैं पिता के पास जाता हूँ क्योंकि पिता मुझसे बड़ा है। 29 और मैंने अब इसके होने से पहले तुम से कह दिया है, कि जब वह हो जाए, तो तुम विश्वास करो। 30 मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूँगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ पर उसका कुछ अधिकार नहीं। 31 परन्तु यह इसलिए होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूँ, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूँ। उठो, यहाँ से चलें।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैं तुम्हारे (बहुवचन) साथ पहले ही बहुत समय रह चुका हूँ और प्रकट है कि तुम (एकवचन) मुझे नहीं जानते, फिलिप्पुस"।
वैकल्पिक अनुवाद, "अतः तुझे (एकवचन) कहने की आवश्यकता नहीं, "पिता को हमें दिखा"
"क्या तू (एकवचन) विश्वास नहीं करता"
"जो बातें मैं तुम से (बहुवचन) कहता हूँ"।
"मेरे ये सन्देश जो मैं तुम्हें सुनाता हूँ, अपनी ओर से नहीं सुनाता हूँ।"
पवित्र आत्मा, "वह जो सहायता हेतु निकट आता है" या "जो ढ़ाढस बंधाता है" या "जो सहायता करता है"
पवित्र आत्मा
वे लोग जो यीशु में विश्वास नहीं करते
"जो परमेश्वर के लोग नहीं"
"मुझसे अधिक अधिकार संपन्न है"
यह शैतान का नाम है
उनका मन व्याकुल न होना था क्योंकि यीशु उनके लिए जगह तैयार करने जा रहा था और वह आकर उन्हें अपने यहां ले जायेगा कि जहां वह रहे वहाँ वे भी रहें।
मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं।
यीशु उनके लिए जगह तैयार करने जा रहा था।
पिता के पास आने का एकमात्र मार्ग यीशु है।
फिलिप्पुस ने यीशु से कहा, "हे प्रभु पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिए बहुत है"।
यीशु ने कहाँ, जो वह कहता है वह अपनी ओर से नहीं कहता परन्तु पिता उसमें रहकर अपने काम करता है।
यीशु ने उनसे कहा कि वे इस बात में विश्वास करें कुछ नहीं तो उसके कामों पर ही विश्वास करें।
यीशु ने कहा कि शिष्य उससे भी महान कार्य करेंगे क्योंकि वह पिता के पास जा रहा है।
यीशु ऐसा करेगा जिससे कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो।
यीशु ने कहा कि उसकी आज्ञाओं को मानने का अर्थ है कि हम उससे प्रेम करते हैं।
यीशु उसे सत्य का आत्मा कहता है।
संसार सत्य के आत्मा को ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि वह न तो उसे देख सकता है और न ही उसे जान सकता है।
यीशु ने कहा कि उसके शिष्यों में सत्य का आत्मा होगा।
यीशु ने कहा, जो मुझसे प्रेम रखता है, उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूंगा और अपने आपको उस पर प्रकट करूंगा।
वह सहायक, पवित्र आत्मा शिष्यों को सब कुछ बातें सिखाएगा और यीशु ने जो कुछ कहा है सब स्मरण कराएगा।
यीशु ने कहा कि उन्हें आनन्दित होना है क्योंकि यीशु पिता के पास जा रहा है और पिता यीशु से बड़ा है।
यीशु ने कहा कि इसका कारण है कि इस संसार का सरदार आता है।
1 “सच्ची दाखलता मैं हूँ; और मेरा पिता किसान है। 2 जो डाली मुझ में है*, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छाँटता है ताकि और फले। 3 तुम तो उस वचन के कारण जो मैंने तुम से कहा है, शुद्ध हो। 4 तुम मुझ में बने रहो*, और मैं तुम में जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। 5 मैं दाखलता हूँ: तुम डालियाँ हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते*। 6 यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली के समान फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं। 7 यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो माँगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। 8 मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे। 9 जैसा पिता ने मुझसे प्रेम रखा, वैसे ही मैंने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो। 10 यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे जैसा कि मैंने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ। 11 मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।
12 “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। 13 इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे। 14 जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो। 15 अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं। 16 तुम ने मुझे नहीं चुना* परन्तु मैंने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से माँगो, वह तुम्हें दे। 17 इन बातों की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिए देता हूँ, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।
18 “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उसने तुम से पहले मुझसे भी बैर रखा। 19 यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं वरन् मैंने तुम्हें संसार में से चुन लिया है; इसलिए संसार तुम से बैर रखता है। 20 जो बात मैंने तुम से कही थी, ‘दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता,’ उसको याद रखो यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएँगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे। 21 परन्तु यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते। 22 यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते परन्तु अब उन्हें उनके पाप के लिये कोई बहाना नहीं। 23 जो मुझसे बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है। 24 यदि मैं उनमें वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनों को देखा, और दोनों से बैर किया। 25 और यह इसलिए हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उनकी व्यवस्था में लिखा है, ‘उन्होंने मुझसे व्यर्थ बैर किया।’ (भज. 69:4, भज. 109:3) 26 परन्तु जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूँगा, अर्थात् सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा। 27 और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साथ रहे हो।
अधिकांश संस्करणों में इसका अर्थ व्यक्त किया गया है, "काट कर निकाल देता है" (यू.डी.बी.) एक अल्प संख्यक विचार यह भी है कि डालियों को भूमि से ऊपर उठाता है कि वे फल लाएं।
इस संपूर्ण गद्यांश "तुम" शब्द बहुवचन है और यीशु के शिष्यों का संदर्भ देता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "यह ऐसा है कि मानों तुम पहले ही छांटे जा चुके हो और शुद्ध डालियां हो क्योंकि तुमने मेरी शिक्षाओं का अनुसरण किया है"।
वैकल्पिक अनुवाद, "मैं दाखलता स्वरूप हूँ और तुम शाखाओं के स्वरूप हो"।
"किसान उसे डाली के समान फेंक देता है" (देखें: और )
"दिखाओगे कि मेरे शिष्य हो" या "प्रकट करोगे कि मेरे शिष्य हो"।
"मैं कितना प्रेम करता हूँ इसका बोध सदा तुम्हें रहेगा।"
यदि तुम मेरी शिक्षाओं का अनुसरण करोगे तो तुम्हें मेरे प्रेम का बोध होता रहेगा, ठीक वैसे ही जैसे मैं अपने पिता की आज्ञाओं का पालन करता हूँ और उसके प्रेम का बोध मुझे सदा होता रहता है“।
यीशु इस पद में "संसार" शब्द का उपयोग उन लोगों के संदर्भ में करता है जो परमेश्वर के नहीं हैं।
"भविष्यद्वाणी पूरी हो"
पवित्र आत्मा, "प्रोत्साहन देने वाला" या जो "सहायता करता है"
सच्ची दाखलता यीशु है।
पिता परमेश्वर किसान है।
जो डाली यीशु में है और नहीं फलती उसे वह काट डालता है और जो फलती है उसे वह छांटता है ताकि और फले।
वे यीशु के वचन के द्वारा शुद्ध हैं।
फल लाने के लिए हमें यीशु में बने रहना है।
हम डालियां हैं।
जो यीशु में बना नहीं रहता तो वह डाली के समान फेंक दिया जाता है।
हमें यीशु में और उसके वचन को हममे बने रहना है। तब हम जो भी चाहें मांग सकते हैं और वह हमें दिया जायेगा।
हम बहुत फल लाते हैं तो वह पिता की महिमा है और हम यीशु के शिष्य हैं।
हमें उसकी आज्ञाएं मानना है।
इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्र के लिए प्राण दे।
यदि हम वह करें जो यीशु ने आज्ञा दी है तो हम यीशु के मित्र हैं।
उसने उन्हें मित्र कहा क्योंकि उसने उन्हें वह सब बता दिया जो उसने पिता से सुना था।
संसार यीशु के अनुयायियों से घृणा करता है क्योंकि वे इस संसार के नहीं है क्योंकि यीशु ने उन्हें उस संसार में से चुन लिया है।
उनके पास पाप के लिए कोई बहाना नहीं है क्योंकि यीशु ने उनसे बातें की हैं और उनके मध्य ऐसे काम किए जो अन्य कोई नहीं कर सकता है।
उनके पास पाप के लिए कोई बहाना नहीं है क्योंकि यीशु ने उनसे बातें की हैं और उनके मध्य ऐसे काम किए जो अन्य कोई नहीं कर सकता है।
सहायक अर्थात सत्य का आत्मा और यीशु के शिष्य उसकी गवाही देंगे।
वे यीशु के गवाह होंगे क्योंकि वे आरंभ ही से यीशु के साथ रहे थे।
1 “ये बातें मैंने तुम से इसलिए कहीं कि तुम ठोकर न खाओ। 2 वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन् वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा यह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूँ। 3 और यह वे इसलिए करेंगे कि उन्होंने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं। 4 परन्तु ये बातें मैंने इसलिए तुम से कहीं, कि जब उनके पूरे होने का समय आए तो तुम्हें स्मरण आ जाए, कि मैंने तुम से पहले ही कह दिया था,
“मैंने आरम्भ में तुम से ये बातें इसलिए नहीं कहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था। 5 अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जाता हूँ और तुम में से कोई मुझसे नहीं पूछता, ‘तू कहाँ जाता हैं?’ 6 परन्तु मैंने जो ये बातें तुम से कही हैं, इसलिए तुम्हारा मन शोक से भर गया। 7 फिर भी मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा। 8 और वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा। 9 पाप के विषय में इसलिए कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते; 10 और धार्मिकता के विषय में इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूँ, और तुम मुझे फिर न देखोगे; 11 न्याय के विषय में इसलिए कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है। (यूह. 12:31)
12 “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। 13 परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा। 14 वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा। 15 जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिए मैंने कहा, कि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा।
16 “थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे।” 17 तब उसके कितने चेलों ने आपस में कहा, “यह क्या है, जो वह हम से कहता है, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे?’ और यह ‘इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूँ’?” 18 तब उन्होंने कहा, “यह ‘थोड़ी देर’ जो वह कहता है, क्या बात है? हम नहीं जानते, कि क्या कहता है।” 19 यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझसे पूछना चाहते हैं, उनसे कहा, “क्या तुम आपस में मेरी इस बात के विषय में पूछ-ताछ करते हो, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे’? 20 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा: तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा। 21 जब स्त्री जनने लगती है तो उसको शोक होता है, क्योंकि उसकी दुःख की घड़ी आ पहुँची, परन्तु जब वह बालक को जन्म दे चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ, उस संकट को फिर स्मरण नहीं करती। (यशा. 26:17, मीका 4:9) 22 और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूँगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा। 23 उस दिन* तुम मुझसे कुछ न पूछोगे; मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ माँगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। 24 अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं माँगा; माँगो तो पाओगे* ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।।
25 “मैंने ये बातें तुम से दृष्टान्तों में कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्टान्तों में और फिर नहीं कहूँगा परन्तु खोलकर तुम्हें पिता के विषय में बताऊँगा। 26 उस दिन तुम मेरे नाम से माँगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिये पिता से विनती करूँगा। 27 क्योंकि पिता तो स्वयं ही तुम से प्रेम रखता है, इसलिए कि तुम ने मुझसे प्रेम रखा है, और यह भी विश्वास किया, कि मैं पिता कि ओर से आया। 28 मैं पिता कि ओर से जगत में आया हूँ, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास वापस जाता हूँ।” 29 उसके चेलों ने कहा, “देख, अब तो तू खुलकर कहता है, और कोई दृष्टान्त नहीं कहता। 30 अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और जरूरत नहीं की कोई तुझ से प्रश्न करे, इससे हम विश्वास करते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से आया है।” 31 यह सुन यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम अब विश्वास करते हो? 32 देखो, वह घड़ी आती है वरन् आ पहुँची कि तुम सब तितर-बितर होकर अपना-अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, फिर भी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है। (यूह. 8:29) 33 मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैंने संसार को जीत लिया है*।”
सहायक या पवित्र आत्मा
"वह मनुष्यों से ऐसा कहेगा क्योंकि मैं पिता के पास लौट रहा हूं, और तुम मुझे अब नहीं देखोगे, तुम जान लोगे कि मैं ही हूं जो सच्चा धर्मी हूँ"।
शैतान, संसार में भ्रष्ट बातों का शासक। इस "संसार का राजकुमार", का अनुवाद वैसे ही करना होगा जैसा )में किया है।
यीशु ने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि अपने शिष्यों का ध्यान उन बातों पर केन्द्रित करे जो उसने अभी-अभी उनसे की हैं कि वह और भी समझाए। वैकल्पिक अनुवाद, "तुम आपस में यह पूछ रहो हो कि मैंने जो कहा उसका अर्थ क्या है"।
"मेरे अधिकार से" या "मेरी ओर से"
वैकल्पिक अनुवाद, "अब तुम अन्ततः मुझमें विश्वास करने लगे हो"
"मैंने परमेश्वर के विरोधियों को हरा दिया है"।
यीशु ने उनसे ये बातें इसलिए कहीं कि वे ठोकर न खाएँ।
वे ऐसा इसलिए करेंगे क्योंकि उन्होंने न तो पिता को और न ही यीशु को जाना है।
यीशु ने उनसे आरंभ ये बातें नहीं कही थी क्योंकि वह उनके साथ था।
यीशु का जाना शिष्यों के लिए अच्छा था क्योंकि यदि वह नहीं जायेगा तो सहायक उनके पास नहीं आयेगा।
सहायक आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा।
वह शिष्यों को पूर्ण सत्य में लेकर चलेगा क्योंकि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा और आनेवाली बातें बताएगा।
वह यीशु की बातें शिष्यों को बताएगा।
सत्य का आत्मा पिता की सब बातें बतायेगा, पिता का सब कुछ यीशु का है।
शिष्यों को समझ में नहीं आया जब यीशु ने कहा, "थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे" और "यह इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूं"।
आनन्द में बदल जायेगा।
वे यीशु को फिर से देखेंगे और उनका मन प्रफुल्लित होगा।
यीशु ने कहा मांगोगे तो तुम्हारा आनन्द पूरा हो जायेगा।
पिता शिष्यों से प्रेम करता है क्योंकि शिष्यों ने यीशु से प्रेम किया और विश्वास किया कि वह पिता के पास से आया था।
यीशु पिता के पास से संसार में आया था और अब वह संसार को छोड़ कर पिता के पास जा रहा था।
यीशु ने कहा कि शिष्य तितर-बितर होकर अपना-अपना मार्ग लेंगे और यीशु को अकेला छोड़ देंगे।
पिता तब भी यीशु के साथ होगा।
यीशु ने उनसे कहा कि वे ढाढ़स बांधे क्योंकि उसने संसार को जीत लिया है।
1 यीशु ने ये बातें कहीं और अपनी आँखें आकाश की ओर उठाकर कहा, “हे पिता, वह घड़ी आ पहुँची, अपने पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करे*, 2 क्योंकि तूने उसको सब प्राणियों पर अधिकार दिया, कि जिन्हें तूने उसको दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे। 3 और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जाने। 4 जो काम तूने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है। 5 और अब, हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत की सृष्टि पहले, मेरी तेरे साथ थी।
6 “मैंने तेरा नाम उन मनुष्यों पर प्रगट किया जिन्हें तूने जगत में से मुझे दिया। वे तेरे थे और तूने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है। 7 अब वे जान गए हैं, कि जो कुछ तूने मुझे दिया है, सब तेरी ओर से है। 8 क्योंकि जो बातें तूने मुझे पहुँचा दीं, मैंने उन्हें उनको पहुँचा दिया और उन्होंने उनको ग्रहण किया और सच-सच जान लिया है, कि मैं तेरी ओर से आया हूँ, और यह विश्वास किया है की तू ही ने मुझे भेजा। 9 मैं उनके लिये विनती करता हूँ, संसार के लिये विनती नहीं करता हूँ परन्तु उन्हीं के लिये जिन्हें तूने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं। 10 और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है वह मेरा है; और इनसे मेरी महिमा प्रगट हुई है। 11 मैं आगे को जगत में न रहूँगा, परन्तु ये जगत में रहेंगे, और मैं तेरे पास आता हूँ; हे पवित्र पिता, अपने उस नाम से जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा कर, कि वे हमारे समान एक हों। 12 जब मैं उनके साथ था, तो मैंने तेरे उस नाम से, जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा की, मैंने उनकी देख-रेख की और विनाश के पुत्र को छोड़ उनमें से कोई नाश न हुआ, इसलिए कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो। (यूह. 18:9) 13 परन्तु अब मैं तेरे पास आता हूँ, और ये बातें जगत में कहता हूँ, कि वे मेरा आनन्द अपने में पूरा पाएँ। 14 मैंने तेरा वचन उन्हें पहुँचा दिया है, और संसार ने उनसे बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। 15 मैं यह विनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख। 16 जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। 17 सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर*: तेरा वचन सत्य है। 18 जैसे तूने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैंने भी उन्हें जगत में भेजा। 19 और उनके लिये मैं अपने आप को पवित्र करता हूँ ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएँ।
20 “मैं केवल इन्हीं के लिये विनती नहीं करता, परन्तु उनके लिये भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, 21 कि वे सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिए कि जगत विश्वास करे, कि तू ही ने मुझे भेजा। 22 और वह महिमा जो तूने मुझे दी, मैंने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं। 23 मैं उनमें और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएँ, और जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तूने मुझसे प्रेम रखा, वैसा ही उनसे प्रेम रखा। 24 हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तूने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ हों कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तूने मुझे दी है, क्योंकि तूने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझसे प्रेम रखा। (यूह. 14:3) 25 हे धार्मिक पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैंने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा। 26 और मैंने तेरा नाम उनको बताया और बताता रहूँगा कि जो प्रेम तुझको मुझसे था, वह उनमें रहे और मैं उनमें रहूँ*।”
यीशु प्रार्थना कर रहा है
परमेश्वर को अपने अनुभव से "जानें" न कि परमेश्वर के बारे में बातों को जानें"।
अर्थात यीशु संपूर्ण सांसारिक सेवा जिसमें उसने सुसमाचार सुनाया।
परमेश्वर में विश्वास न करनेवाले सब लोग।
"तेरी शिक्षाओं का अनुसरण किया है"।
धर्मशास्त्र में लिखी हुई बातें
संपूर्ण संसार में हर एक जगह और हर एक मनुष्य के पास।
"उनके लाभ के लिए" या "उनकी भलाई के लिए"
संसार ने तुझे नहीं पहचाना परन्तु मैंने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तूने मुझे भेजा है। - "इस संसार को तुझे जानने का मेरे जैसा अनुभव नहीं है; और इन शिष्यों ने जान लिया है कि तूने मुझे भेजा है"
पिता ने यह इसलिए किया कि यीशु उन सबको अनन्त जीवन दे जिन्हें परमेश्वर ने यीशु को सौंपा है।
अनन्त जीवन यह है कि वे एकमात्र सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को जिसे परमेश्वर ने भेजा है जानें।
उसने पिता द्वारा सौंपे गए काम को पूरा करके यह किया।
यीशु चाहता था कि परमेश्वर उसकी वही महिमा प्रकट करे जो जगत की सृष्टि से पहले उसके साथ उसकी थी।
पिता ने इस संसार में से जितने लोग यीशु को दिए थे उन पर उसने पिता का नाम प्रकट किया था।
उन्होंने यीशु के वचनों को ग्रहण किया और सच में जाना कि यीशु पिता के पास से आया था और उन्होंने विश्वास किया कि पिता ने यीशु को भेजा।
यीशु ने कहा कि वह संसार के लिए विनती नहीं करता है।
यीशु पिता से प्रार्थना करता है कि वह अपने नाम से उनकी रक्षा करे कि वे एक हों और पिता उन्हें उस दुष्ट से बचाए और सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र करे, वे पिता और पुत्र दोनों में बने रहें और जहां यीशु है वहाँ वे भी उसके साथ रहें।
यीशु ने उनकी रक्षा की थी।
यीशु ने स्वयं को पवित्र किया कि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएं।
यीशु ने उनके लिए भी विनती की जो उसके शिष्यों के वचनों के द्वारा उसमें विश्वास करेंगे।
पिता उनसे भी वैसा ही प्रेम करता है जैसा वह यीशु से प्रेम करता है।
यीशु ने प्रकट किया और करेगा भी कि जिस प्रेम से पिता ने यीशु को प्रेम किया वह उनमें हो और यीशु उनमें हों।
1 यीशु ये बातें कहकर अपने चेलों के साथ किद्रोन के नाले के पार गया, वहाँ एक बारी थी, जिसमें वह और उसके चेले गए। 2 और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी वह जगह जानता था, क्योंकि यीशु अपने चेलों के साथ वहाँ जाया करता था। 3 तब यहूदा सैन्य-दल को और प्रधान याजकों और फरीसियों की ओर से प्यादों को लेकर दीपकों और मशालों और हथियारों को लिए हुए वहाँ आया। 4 तब यीशु उन सब बातों को जो उस पर आनेवाली थीं, जानकर निकला, और उनसे कहने लगा, “किसे ढूँढ़ते हो?” 5 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यीशु नासरी को।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं हूँ।” और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी उनके साथ खड़ा था। 6 उसके यह कहते ही, “मैं हूँ,” वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पड़े। 7 तब उसने फिर उनसे पूछा, “तुम किस को ढूँढ़ते हो।” वे बोले, “यीशु नासरी को।” 8 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तो तुम से कह चुका हूँ कि मैं हूँ, यदि मुझे ढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो*।” 9 यह इसलिए हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उसने कहा था: “जिन्हें तूने मुझे दिया, उनमें से मैंने एक को भी न खोया।” 10 शमौन पतरस ने तलवार, जो उसके पास थी, खींची और महायाजक के दास पर चलाकर, उसका दाहिना कान काट दिया, उस दास का नाम मलखुस था। 11 तब यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार काठी में रख। जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे न पीऊँ?”
12 तब सिपाहियों और उनके सूबेदार और यहूदियों के प्यादों ने यीशु को पकड़कर बाँध लिया, 13 और पहले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस वर्ष के महायाजक कैफा का ससुर था। 14 यह वही कैफा था, जिसने यहूदियों को सलाह दी थी कि हमारे लोगों के लिये एक पुरुष का मरना अच्छा है।
15 शमौन पतरस और एक और चेला भी यीशु के पीछे हो लिए। यह चेला महायाजक का जाना पहचाना था और यीशु के साथ महायाजक के आँगन में गया। 16 परन्तु पतरस बाहर द्वार पर खड़ा रहा, तब वह दूसरा चेला जो महायाजक का जाना पहचाना था, बाहर निकला, और द्वारपालिन से कहकर, पतरस को भीतर ले आया। 17 उस दासी ने जो द्वारपालिन थी, पतरस से कहा, “क्या तू भी इस मनुष्य के चेलों में से है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।” 18 दास और प्यादे जाड़े के कारण कोयले धधकाकर खड़े आग ताप रहे थे और पतरस भी उनके साथ खड़ा आग ताप रहा था।
19 तब महायाजक ने यीशु से उसके चेलों के विषय में और उसके उपदेश के विषय में पूछा। 20 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैंने जगत से खुलकर बातें की; मैंने आराधनालयों और मन्दिर में जहाँ सब यहूदी इकट्ठा हुआ करते हैं सदा उपदेश किया और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा*। 21 तू मुझसे क्यों पूछता है? सुननेवालों से पूछ: कि मैंने उनसे क्या कहा? देख वे जानते हैं; कि मैंने क्या-क्या कहा।” 22 जब उसने यह कहा, तो प्यादों में से एक ने जो पास खड़ा था, यीशु को थप्पड़ मारकर कहा, “क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है?” (लूका 22:63, मीका 5:1) 23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मैंने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्यों मारता है?” 24 हन्ना ने उसे बंधे हुए कैफा महायाजक के पास भेज दिया।
25 शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था। तब उन्होंने उससे कहा; “क्या तू भी उसके चेलों में से है?” उसने इन्कार करके कहा, “मैं नहीं हूँ।” 26 महायाजक के दासों में से एक जो उसके कुटुम्ब में से था, जिसका कान पतरस ने काट डाला था, बोला, “क्या मैंने तुझे उसके साथ बारी में न देखा था?” 27 पतरस फिर इन्कार कर गया और तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी।
28 और वे यीशु को कैफा के पास से किले को ले गए और भोर का समय था, परन्तु वे स्वयं किले के भीतर न गए ताकि अशुद्ध न हों परन्तु फसह खा सके। 29 तब पिलातुस उनके पास बाहर निकल आया और कहा, “तुम इस मनुष्य पर किस बात का दोषारोपण करते हो?” 30 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपते।” 31 पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही इसे ले जाकर अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करो।” यहूदियों ने उससे कहा, “हमें अधिकार नहीं कि किसी का प्राण लें।” 32 यह इसलिए हुआ, कि यीशु की वह बात पूरी हो जो उसने यह दर्शाते हुए कही थी, कि उसका मरना कैसा होगा। 33 तब पिलातुस फिर किले के भीतर गया और यीशु को बुलाकर, उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है*?” 34 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू यह बात अपनी ओर से कहता है या औरों ने मेरे विषय में तुझ से कही?” 35 पिलातुस ने उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तेरी ही जाति और प्रधान याजकों ने तुझे मेरे हाथ सौंपा, तूने क्या किया है?” 36 यीशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहाँ का नहीं।” 37 पिलातुस ने उससे कहा, “तो क्या तू राजा है?” यीशु ने उत्तर दिया, “तू कहता है, कि मैं राजा हूँ; मैंने इसलिए जन्म लिया, और इसलिए जगत में आया हूँ कि सत्य पर गवाही दूँ जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।” (1 यूह. 4:6) 38 पिलातुस ने उससे कहा, “सत्य क्या है?” और यह कहकर वह फिर यहूदियों के पास निकल गया और उनसे कहा, “मैं तो उसमें कुछ दोष नहीं पाता।
39 पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह में तुम्हारे लिये एक व्यक्ति को छोड़ दूँ। तो क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?” 40 तब उन्होंने फिर चिल्लाकर कहा, “इसे नहीं परन्तु हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।” और बरअब्बा डाकू था।
"तुम किसकी खोज में हो"?
यहाँ "वही" शब्द अभिलेख में नहीं है परन्तु उसका अभिप्राय यहां है। वैकल्पिक अनुवाद, "मैं ही वह हूं" या "वह व्यक्ति मैं हूँ"।
मूल लेख में "वही" शब्द नहीं है परन्तु अभिप्राय वही है। वैकल्पिक अनुवाद, "मैं ही वही हूँ" या "वह व्यक्ति मैं हूँ"
कटार या तलवार को रखने का उपकरण कि रखनेवाले को चोट न लगे।
इसका संदर्भ हो सकता है, (1) यीशु को जो कष्ट उठाना है उसका परिणाम (देखें: यू.डी.बी.) या (2) परमेश्वर का प्रकोप जिसे उसके लोगों की मुक्ति के निमित्त यीशु को भोगना था।
यीशु इस प्रश्न के द्वारा कष्टों पर बल दे रहा है कि उसे निश्चय ही कष्ट भोगने हैं। वैकल्पिक अनुवाद, "मुझे पीना ही है"।
यह प्रेरित यूहन्ना है जो इस पुस्तक का लेखक है
वैकल्पिक अनुवाद, "तू भी तो इस मनुष्य के शिष्यों में से एक है"।
यह काइफा था
यीशु ने सार्वजनिक सेवा की थी।
वे लोग जिन्होंने यीशु के उपदेश सुने थे
वैकल्पिक अनुवाद, "तुझे महायाजक को इस प्रकार उत्तर नहीं देना है"।
"बता कि मैंने जो कहा उसमें क्या बुराई है"?
"यदि मैं सच कहा है तो मुझे मारने की आवश्यकता नहीं है"
"यह मनुष्य कुकर्मी है और हमें इसे निश्चय ही दण्ड के लिए तेरे पास लाना है"
"कोई नहीं जान सकता कि सत्य क्या है"। और
ये बातें कह कर यीशु अपने शिष्यों के साथ किद्रोन के नाले के पार एक वाटिका में गया।
यह स्थान यीशु का परिचित था क्योंकि वह शिष्यों के साथ प्रायः वहाँ जाता था।
यहूदा सैनिकों के एक दल और प्रधान याजकों और फरीसियों की ओर से प्यादों को लेकर वहाँ आया।
उनके साथ सैनिक पीछे हटकर भूमि पर गिर पड़े।
यह इसलिए हुआ कि वह वचन पूरा हो जो उसने कहा था; "जिन्हें तूने मुझे दिया था उनमें से मैंने एक को भी न खोया"।
यीशु ने पतरस से कहा, "अपनी तलवार म्यान में रख। जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है, क्या मैं उसे न पीऊं?"
वे पहले यीशु को हन्ना के पास ले गए।
हन्ना उस वर्ष के महायाजक काइफा का ससुर था।
एक शिष्य महायाजक का परिचित था वह द्वारपालिन से कह कर पतरस को भीतर ले आया।
एक स्त्री परिसर के द्वार की चौकसी कर रही थी और दास और प्यादे कोयले जलाकर आग ताप रहे थे और महायाजक के उस दास का एक परिजन जिसका कान पतरस ने काट दिया था, सबने पूछा कि क्या पतरस भी यीशु के साथ था या उसका शिष्य तो नहीं।
यीशु ने महायाजक को उत्तर दिया "मैंने संसार में खुलकर बातें की, सुनने वालों से पूछ कि मैंने उनसे क्या कहा?"
हन्ना ने यीशु को महायाजक काइफा के पास भेज दिया।
पतरस ने जब तीसरी बार यीशु का इन्कार किया तब तुरन्त ही मुर्ग ने बांग दी।
वे किले के भीतर नहीं गए कि अशुद्ध न हों और फसह खा सकें।
उन्होंने पिलातुस को उत्तर दिया, "यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपेते"।
यहूदी यीशु को मार डालना चाहते थे परन्तु रोमी राज्य की अनुमति के बिना वे ऐसा नहीं कर सकते थे।
पिलातुस ने यीशु से पूछा कि क्या वह यहूदियों का राजा है, उसने यीशु से यह भी पूछा कि उसने क्या किया है।
पिलातुस ने यीशु से पूछा कि क्या वह यहूदियों का राजा है, उसने यीशु से यह भी पूछा कि उसने क्या किया है।
यीशु ने उत्तर दिया, "मेरा राज्य इस संसार का नहीं।" और न ही यहाँ का है।
यीशु का जन्म राजा होने के लिए हुआ था।
पिलातुस ने यहूदियों से कहा, "मैं तो उसमें कुछ दोष नहीं पाता"।
यहूदियों ने चिल्लाकर कहा, "इसे नहीं, परन्तु हमारे लिए बरअब्बा को छोड़ दे"।
1 इस पर पिलातुस ने यीशु को लेकर कोड़े लगवाए। 2 और सिपाहियों ने काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, और उसे बैंगनी वस्त्र पहनाया, 3 और उसके पास आ आकर कहने लगे, “हे यहूदियों के राजा, प्रणाम!” और उसे थप्पड़ मारे। 4 तब पिलातुस ने फिर बाहर निकलकर लोगों से कहा, “देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूँ; ताकि तुम जानो कि मैं कुछ भी दोष नहीं पाता।”
5 तब यीशु काँटों का मुकुट और बैंगनी वस्त्र पहने हुए बाहर निकला और पिलातुस ने उनसे कहा, “देखो, यह पुरुष।” 6 जब प्रधान याजकों और प्यादों ने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उसमें दोष नहीं पाता।” 7 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र* बताया।” (लैव्य. 24:16) 8 जब पिलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया। 9 और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, “तू कहाँ का है?” परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया। 10 पिलातुस ने उससे कहा, “मुझसे क्यों नहीं बोलता? क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है।” 11 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता; इसलिए जिस ने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।”
12 इससे पिलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा*, परन्तु यहूदियों ने चिल्ला चिल्लाकर कहा, “यदि तू इसको छोड़ देगा तो तू कैसर का मित्र नहीं; जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर का सामना करता है।” 13 ये बातें सुनकर पिलातुस यीशु को बाहर लाया और उस जगह एक चबूतरा था, जो इब्रानी में ‘गब्बता*’ कहलाता है, और न्याय आसन पर बैठा। 14 यह फसह की तैयारी का दिन था और छठे घंटे के लगभग था : तब उसने यहूदियों से कहा, “देखो, यही है, तुम्हारा राजा!” 15 परन्तु वे चिल्लाए, “ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा!” पिलातुस ने उनसे कहा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊँ?” प्रधान याजकों ने उत्तर दिया, “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।” 16 तब उसने उसे उनके हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।
17 तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्थान तक बाहर गया, जो ‘खोपड़ी का स्थान’ कहलाता है और इब्रानी में ‘गुलगुता’। 18 वहाँ उन्होंने उसे और उसके साथ और दो मनुष्यों को क्रूस पर चढ़ाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को। 19 और पिलातुस ने एक दोष-पत्र लिखकर क्रूस पर लगा दिया और उसमें यह लिखा हुआ था, “यीशु नासरी यहूदियों का राजा।” 20 यह दोष-पत्र बहुत यहूदियों ने पढ़ा क्योंकि वह स्थान जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था नगर के पास था और पत्र इब्रानी और लतीनी और यूनानी में लिखा हुआ था। 21 तब यहूदियों के प्रधान याजकों ने पिलातुस से कहा, “‘यहूदियों का राजा’ मत लिख परन्तु यह कि ‘उसने कहा, मैं यहूदियों का राजा हूँ’।” 22 पिलातुस ने उत्तर दिया, “मैंने जो लिख दिया, वह लिख दिया।” 23 जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपड़े लेकर चार भाग किए, हर सिपाही के लिये एक भाग और कुर्ता भी लिया, परन्तु कुर्ता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था; 24 इसलिए उन्होंने आपस में कहा, “हम इसको न फाड़े, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि वह किस का होगा।” यह इसलिए हुआ, कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो, “उन्होंने मेरे कपड़े आपस में बाँट लिए और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली।” (भज. 22:18)
25 अतः सिपाहियों ने ऐसा ही किया। परन्तु यीशु के क्रूस के पास उसकी माता और उसकी माता की बहन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थी। 26 यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिससे वह प्रेम रखता था पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा, “हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।” 27 तब उस चेले से कहा, “यह तेरी माता है।” और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया।
28 इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिए कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो कहा, “मैं प्यासा हूँ।” 29 वहाँ एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, इसलिए उन्होंने सिरके के भिगोए हुए पनसोख्ता को जूफे पर रखकर उसके मुँह से लगाया। (भज. 69:21) 30 जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा, “पूरा हुआ”; और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए। (लूका 23:46, मर. 15:37)
31 और इसलिए कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पिलातुस से विनती की, कि उनकी टाँगें तोड़ दी जाएँ और वे उतारे जाएँ ताकि सब्त के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन था। (मर. 15: 42, व्य. 21:22-23) 32 इसलिए सिपाहियों ने आकर पहले की टाँगें तोड़ी तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे। 33 परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उसकी टाँगें न तोड़ी। 34 परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उसमें से तुरन्त लहू और पानी निकला। 35 जिस ने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उसकी गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो। 36 ये बातें इसलिए हुईं कि पवित्रशास्त्र की यह बात पूरी हो, “उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।” (निर्ग. 12:46, गिन. 9:12, भज. 34:20) 37 फिर एक और स्थान पर यह लिखा है, “जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।” (जक. 12:10)
38 इन बातों के बाद अरिमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला था, (परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था), पिलातुस से विनती की, कि मैं यीशु के शव को ले जाऊँ, और पिलातुस ने उसकी विनती सुनी, और वह आकर उसका शव ले गया। 39 नीकुदेमुस भी जो पहले यीशु के पास रात को गया था पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया। 40 तब उन्होंने यीशु के शव को लिया और यहूदियों के गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साथ कफन में लपेटा। 41 उस स्थान पर जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिसमें कभी कोई न रखा गया था। 42 अतः यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी।
मूल भाषा में "चिरंजीव" शब्द है जो केवल हाथ उठाकर कैसर के लिए कहा जाता था। सैनिकों ने कांटों का मुकुट और बैंगनी वस्त्र पहनाकर यीशु का आहावन किया था, वे वास्तव में उसे राजा नहीं मान रहे थे।
"तू कहाँ का है"? पिलातुस ने यीशु से उसकी पहचान पूछी। आपकी भाषा/संस्कृति में किसी की पहचान पूछने की विशेष रीति हो सकती है।
पिलातुस को आश्चर्य हुआ कि यीशु अपना प्रतिवाद का अवसर खो रहा है। "मुझे उत्तर दे"।
राजा होने का दावा करता है
सैनिकों को आज्ञा दी कि यीशु को जनता के सामने बाहर लाएं।
महत्त्वपूर्ण लोग बैठते थे जबकि साधारण जनता खड़ी रहती थी।
अधिकारिक निर्णय देने के लिए महत्त्वपूर्ण मनुष्य जिस आसन पर बैठता था। आपकी संस्कृति में इस कृत्य के लिए विशेष अभिव्यक्तियां होंगी।
पत्थर का विशेष मंच जहाँ केवल महत्त्वपूर्ण लोग ही जा सकते थे। उसकी संस्कृति में ऐसे विशिष्ट स्थान होंगे।
वैकल्पिक अनुवाद, "पिलातुस ने यहूदी अगुओं से कहा।"
इस सुसमाचार का लेखक यूहन्ना
वैकल्पिक अनुवाद, "हे नारी, देख इस व्यक्ति को अपने पुत्र जैसा स्वीकार कर"।
वैकल्पिक अनुवाद, "इस नारी को अपनी माता स्वरूप ग्रहण कर"।
दाखरस जिसे बहुत समय किण्वन के लिए रखा जाता था।
"रोमी सैनिकों ने रखकर"
तरल पदार्थ को सोखने की वस्तु
यीशु ने अपनी आत्मा परमेश्वर को दे दी और देह को मरने दिया।
फसह के पूर्व का समय जब भोजन तैयार किया जाता था।
यह वाक्य कहानी से अलग है। लेखक (प्रेरित यूहन्ना) हमें बताता है कि वह कहां था और हम विश्वास कर सकते हैं कि जो उसने लिखा वह सच है।
"यहूदी अगुवों के डर से"
देखें कि में आपने उसका अनुवाद कैसे किया है।
सैनिकों ने कांटों का मुकुट गूंथकर उसके सिर पर रखा और उसे बैंजनी वस्त्र पहनाया और उसके पास आकर कहने लगे, "हे यहूदियों के राजा, प्रणाम"। और उसे थप्पड़ भी मारे।
पिलातुस यीशु को बाहर लाया कि लोगों पर प्रकट हो कि पिलातुस ने उसमें कोई दोष नहीं पाया।
यीशु कांटों का मुकुट और बैंजनी वस्त्र धारण किए हुए था।
उन्होंने चिल्लाकर कहा "उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर"।
यहूदियों ने पिलातुस से कहा, "हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उसने अपने आपको परमेश्वर का पुत्र बताया"।
यीशु ने उत्तर नहीं दिया।
यीशु ने कहा, "यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता तो तेरा मुझ पर कोई अधिकार न होता"।
यहूदी नारा लगा रहे थे, "यदि तू इसको छोड़ देगा तो तेरी भक्ति कैसर की ओर नहीं। जो कोई अपने आपको राजा बताता है वह कैसर का सामना करता है"।
महायाजकों ने कहा, "कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं"।
उन्होंने यीशु को गुलगुता अर्थात खोपड़ी का स्थान में क्रूस पर चढ़ाया।
नहीं यीशु के साथ दो और अपराधी उसके दहिनी और बाई ओर क्रूस पर चढ़ाए गये।
उसके दोष पत्र पर लिखा था, "यीशु नासरी यहूदियों का राजा"।
वह दोष इब्रानी, लतीनी और यूनानी में लिखा था।
सैनिकों ने यीशु के वस्त्रों को चार भागों में बांट लिया, हर एक सैनिक के लिए एक भाग, परन्तु उन्होंने उसका बागा जो ऊपर से नीचे तक बिना जोड़ का था उसे फाड़ा नहीं, उस पर चिट्ठी डाली।
ऐसा इसलिए हुआ कि धर्मशास्त्र की बात पूरी हो, "उन्होंने मेरे कपड़े आपस में बांट लिए और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली"।
यीशु की माता और उसकी माता की बहन और क्लोपास की पत्नी मरियम, मरियम मगदलीनी और वह शिष्य जिसे यीशु प्रेम करता था क्रूस के पास खड़े थे।
यीशु ने कहा, "हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है"।
उसी समय से वह चेला उसे अपने घर ले गया।
यीशु ने यह धर्मशास्त्र की पूर्ति के निमित्त कहा था।
सिरका लेकर यीशु ने कहा, "पूरा हुआ", और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिया।
वह तैयारी का दिन था और सब्त के दिन पार्थिव देह क्रूस पर न रहे, यहूदियों ने पिलातुस से निवेदन किया कि अपराधियों की टांगे तोड़ कर उन्हें उतार लिया जाए।
यीशु की टांगे नहीं तोड़ी गई क्योंकि वह मर चुका था।
एक सैनिक ने यीशु की पसलियों में भाला मारा।
जिस ने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उस की गवाही सच्ची है कि तुम विश्वास करो।
यह सब इसलिए हुआ कि धर्मशास्त्र की बात पूरी हो, "उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी" और यह भी लिखा है, "जिसे उन्होंने बेधा है उस पर वे दृष्टि करेंगे"।
अरमतियाह के यूसुफ ने पिलातुस से निवदेन किया कि वह यीशु के शव को ले जाना चाहता है।
नीकुदेमुस भी अरमतियाह के यूसुफ के साथ आया था।
उन्होंने यीशु के शव को पचास सेर के लगभग गन्धरस और एल्वा लगाकर कपड़े में लपेट दिया और वहाँ निकट स्थित एक बारी की कब्र में रखा।
1 सप्ताह के पहले दिन मरियम मगदलीनी भोर को अंधेरा रहते ही कब्र पर आई, और पत्थर को कब्र से हटा हुआ देखा। 2 तब वह दौड़ी और शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास जिससे यीशु प्रेम रखता था आकर कहा, “वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहाँ रख दिया है।” 3 तब पतरस और वह दूसरा चेला निकलकर कब्र की ओर चले। 4 और दोनों साथ-साथ दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा चेला पतरस से आगे बढ़कर कब्र पर पहले पहुँचा। 5 और झुककर कपड़े पड़े देखे: तो भी वह भीतर न गया। 6 तब शमौन पतरस उसके पीछे-पीछे पहुँचा और कब्र के भीतर गया और कपड़े पड़े देखे। 7 और वह अँगोछा जो उसके सिर पर बन्धा हुआ था, कपड़ों के साथ पड़ा हुआ नहीं परन्तु अलग एक जगह लपेटा हुआ देखा। 8 तब दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहले पहुँचा था, भीतर गया और देखकर विश्वास किया। 9 वे तो अब तक पवित्रशास्त्र की वह बात न समझते थे, कि उसे मरे हुओं में से जी उठना होगा। (भज. 16:10) 10 तब ये चेले अपने घर लौट गए।
11 परन्तु मरियम रोती हुई कब्र के पास ही बाहर खड़ी रही और रोते-रोते कब्र की ओर झुककर, 12 दो स्वर्गदूतों को उज्ज्वल कपड़े पहने हुए एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठे देखा, जहाँ यीशु का शव पड़ा था। 13 उन्होंने उससे कहा, “हे नारी, तू क्यों रोती है?” उसने उनसे कहा, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गए और मैं नहीं जानती कि उसे कहाँ रखा है।” 14 यह कहकर वह पीछे फिरी और यीशु को खड़े देखा और न पहचाना कि यह यीशु है*। 15 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी तू क्यों रोती है? किस को ढूँढ़ती है?” उसने माली समझकर उससे कहा, “हे श्रीमान, यदि तूने उसे उठा लिया है तो मुझसे कह कि उसे कहाँ रखा है और मैं उसे ले जाऊँगी।” 16 यीशु ने उससे कहा, “मरियम!” उसने पीछे फिरकर उससे इब्रानी में कहा, “रब्बूनी*!” अर्थात् ‘हे गुरु।’ 17 यीशु ने उससे कहा, “मुझे मत छू क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया, परन्तु मेरे भाइयों के पास जाकर उनसे कह दे, कि मैं अपने पिता, और तुम्हारे पिता, और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूँ।” 18 मरियम मगदलीनी ने जाकर चेलों को बताया, “मैंने प्रभु को देखा और उसने मुझसे बातें कहीं।”
19 उसी दिन जो सप्ताह का पहला दिन था, संध्या के समय जब वहाँ के द्वार जहाँ चेले थे, यहूदियों के डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” 20 और यह कहकर उसने अपना हाथ और अपना पंजर उनको दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए। 21 यीशु ने फिर उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।” 22 यह कहकर उसने उन पर फूँका और उनसे कहा, “पवित्र आत्मा लो। 23 जिनके पाप तुम क्षमा करो* वे उनके लिये क्षमा किए गए हैं; जिनके तुम रखो, वे रखे गए हैं।”
24 परन्तु बारहों में से एक व्यक्ति अर्थात् थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, जब यीशु आया तो उनके साथ न था। 25 जब और चेले उससे कहने लगे, “हमने प्रभु को देखा है,” तब उसने उनसे कहा, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूँ, और कीलों के छेदों में अपनी उँगली न डाल लूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।”
26 आठ दिन के बाद उसके चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनके साथ था, और द्वार बन्द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” 27 तब उसने थोमा से कहा, “अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।” 28 यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” 29 यीशु ने उससे कहा, “तूने तो मुझे देखकर विश्वास किया है? धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।”
30 यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलों के सामने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए। 31 परन्तु ये इसलिए लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।
यीशु के दफन के बाद यह तीसरा दिन है
वैकल्पिक अनुवाद, "रविवार के दिन"
यह वाक्यांश, यूहन्ना द्वारा संपूर्ण पुस्तक में उसके स्वयं के बारे में कहने की विधि है।
"किसी ने प्रभु को कब्र से निकाल लिया"
मरियम ने पतरस और यूहन्ना को बताया कि किसी ने यीशु का शव कब्र से निकाल लिया है।
स्पष्ट है कि यूहन्ना अपना नाम लिखने की अपेक्षा स्वयं को इस प्रकार करता है तो वह उसकी विनम्रता है।
यह यीशु का कफन था। दफन के लिए शव पर लपेटे गए कपड़े।
मरियम ने पतरस और यूहन्ना को अभी-अभी बताया कि यीशु का शव कब्र में नहीं है।
देखें कि आपने "कपड़े" का अनुवाद में कैसे किया है।
सामान्यतः चेहरे पर से पसीना पोंछने का कपड़ा परन्तु इससे मृतक का मुंह भी ढांका जाता था।
पतरस और यूहन्ना आकर देखते हैं कि कब्र खाली है।
यूहन्ना स्वयं का नाम लिखने की अपेक्षा इस प्रकार संबोधित करता है वो यह उसकी विनम्रता है।
पतरस ने देखा
पतरस और यूहन्ना घर लौट आए।
पतरस और यूहन्ना के प्रस्थान के बाद मरियम मगदलीनी वहीं थी।
उसे अर्थात यीशु के शव को
रब्बूनी का अर्थ रब्बी या गुरू ही है। यह मरियम की भाषा का शब्द है जो अरामी मिश्रित इब्रानी थी।
यह रविवार था
यह एक सामान्य अभिवादन था।
"उसने उन्हें अपने हाथ और पसलियों के घाव दिखाए"।
की टिप्पणियां देखें
"परमेश्वर क्षमा कर देगा"।
"परमेश्वर क्षमा नहीं करेगा"
दिद्मुस - देखें इसका नाम का अनुवाद कैसे किया गया है,
उससे अर्थात थोमा से
उसके अर्थात यीशु के
उसके अर्थात यीशु के
की टिप्पणियां देखें
"विश्वास रहित" या "विश्वास से वंचित"
वैकल्पिक अनुवाद, "तूने विश्वास किया कि मैं जीवित हूं"
वैकल्पिक अनुवाद, "जिन्होंने मुझे जीवित नहीं देखा है"
वैकल्पिक अनुवाद, "यीशु के द्वारा तुम्हें जीवन मिले"
वह सप्ताह के पहले दिन यीशु की कब्र पर आई।
उसने देखा कि कब्र पर से पत्थर हटा हुआ है।
उसने कहा "वे प्रभु को कब्र से निकाल ले गए और हम नहीं जानते कि उसे कहाँ रखा है।"
वे दोनों भाग कर कब्र पर आए।
उन्होंने कपड़े वहाँ पड़े हुए देखे और जो अंगोछा सिर पर बंधा था वह अलग एक जगह लिपटा हुआ रखा देखा।
उसने देखा और विश्वास किया।
उसने वहाँ श्वेत वस्त्रों में दो स्वर्गदूत देखे एक उस स्थान के शीर्ष की ओर बैठा था और दूसरा वस्त्रों की ओर जहां यीशु का शव रखा था।
उन्होंने उससे पूछा हे नारी तू क्यों रोती है?
उसने वहाँ यीशु को खड़ा देखा परन्तु पहचाना नहीं।
उसने सोचा कि वह माली है।
उसने यीशु को तब पहचाना जब उसने उसका नाम लिया, "मरियम"।
यीशु ने मरियम से कहा कि वह उसे न छूए क्योंकि वह अभी पिता के पास नहीं गया है।
यीशु ने मरियम से कहा, "मेरे भाइयों के पास जाकर कह दे कि मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूं"।
यीशु आकर उनके मध्य खड़ा हो गया।
उसने उन्हें अपने हाथ और पसलियां दिखाई।
यीशु ने कहा कि वह शिष्यों को वैसे ही भेज रहा है जैसे उसके पिता ने उसे भेजा था।
यीशु ने उनसे कहा, "पवित्र आत्मा लो" जिनके पाप तुम क्षमा करो वे उनके लिए क्षमा किए गए है, जिनके तुम रखो, वे रखे गए हैं"।
थोमा जो दिदुमुस कहलाता है वह उस समय उनके साथ नहीं था, जब यीशु आया।
थोमा ने कहा, "जब तक मैं उनके हाथों में कीलों के छेद न देख लूं और कीलों के छेदों में अपनी उंगली न डाल लूं और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूं तब तक मैं विश्वास न करूंगा?
आठ दिन बाद चेले फिर घर के भीतर थे और थोमा उनके साथ था तब यीशु बन्द द्वार से प्रवेश करके उनके मध्य उपस्थित हुआ।
यीशु ने थोमा से कहा, "अपनी उंगली यहां लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो"।
थोमा ने कहा, "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर"।
यीशु ने कहा, "धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया"।
जी हां, यीशु ने शिष्यों की उपस्थिति में और भी अनेक चिन्ह दिखाए जो यूहन्ना की पुस्तक में नहीं लिखे गए हैं।
वे इसलिए लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है।
1 इन बातों के बाद यीशु ने अपने आप को तिबिरियुस झील के किनारे चेलों पर प्रगट किया और इस रीति से प्रगट किया। 2 शमौन पतरस और थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, और गलील के काना नगर का नतनएल और जब्दी के पुत्र, और उसके चेलों में से दो और जन इकट्ठे थे। 3 शमौन पतरस ने उनसे कहा, “मैं मछली पकड़ने जाता हूँ।” उन्होंने उससे कहा, “हम भी तेरे साथ चलते हैं।” इसलिए वे निकलकर नाव पर चढ़े, परन्तु उस रात कुछ न पकड़ा। 4 भोर होते ही यीशु किनारे पर खड़ा हुआ; फिर भी चेलों ने न पहचाना कि यह यीशु है। 5 तब यीशु ने उनसे कहा, “हे बालकों, क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है?” उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं।” 6 उसने उनसे कहा, “नाव की दाहिनी ओर जाल डालो, तो पाओगे।” तब उन्होंने जाल डाला, और अब मछलियों की बहुतायत के कारण उसे खींच न सके। 7 इसलिए उस चेले ने जिससे यीशु प्रेम रखता था पतरस से कहा, “यह तो प्रभु है*।” शमौन पतरस ने यह सुनकर कि प्रभु है, कमर में अंगरखा कस लिया, क्योंकि वह नंगा था, और झील में कूद पड़ा। 8 परन्तु और चेले डोंगी पर मछलियों से भरा हुआ जाल खींचते हुए आए, क्योंकि वे किनारे से अधिक दूर नहीं, कोई दो सौ हाथ पर थे। 9 जब किनारे पर उतरे, तो उन्होंने कोयले की आग, और उस पर मछली रखी हुई, और रोटी देखी। 10 यीशु ने उनसे कहा, “जो मछलियाँ तुम ने अभी पकड़ी हैं, उनमें से कुछ लाओ।” 11 शमौन पतरस ने डोंगी पर चढ़कर एक सौ तिरपन बड़ी मछलियों से भरा हुआ जाल किनारे पर खींचा, और इतनी मछलियाँ होने पर भी जाल न फटा। 12 यीशु ने उनसे कहा, “आओ, भोजन करो।” और चेलों में से किसी को साहस न हुआ, कि उससे पूछे, “तू कौन है?” क्योंकि वे जानते थे कि यह प्रभु है। 13 यीशु आया, और रोटी लेकर उन्हें दी, और वैसे ही मछली भी। 14 यह तीसरी बार है, कि यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलों को दर्शन दिए।
15 भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इनसे बढ़कर मुझसे प्रेम रखता है?” उसने उससे कहा, “हाँ प्रभु; तू तो जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, “मेरे मेम्नों को चरा।” 16 उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, “हे शमौन यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रेम रखता है?” उसने उनसे कहा, “हाँ, प्रभु तू जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, “मेरी भेड़ों* की रखवाली कर।” 17 उसने तीसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?” पतरस उदास हुआ, कि उसने उसे तीसरी बार ऐसा कहा, “क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?” और उससे कहा, “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा। 18 मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, जब तू जवान था, तो अपनी कमर बाँधकर जहाँ चाहता था, वहाँ फिरता था; परन्तु जब तू बूढ़ा होगा, तो अपने हाथ लम्बे करेगा, और दूसरा तेरी कमर बाँधकर जहाँ तू न चाहेगा वहाँ तुझे ले जाएगा।” 19 उसने इन बातों से दर्शाया कि पतरस कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा; और यह कहकर, उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।”
20 पतरस ने फिरकर उस चेले को पीछे आते देखा, जिससे यीशु प्रेम रखता था, और जिस ने भोजन के समय उसकी छाती की और झुककर पूछा “हे प्रभु, तेरा पकड़वानेवाला कौन है?” 21 उसे देखकर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, इसका क्या हाल होगा?” 22 यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं चाहूँ कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या? तू मेरे पीछे हो ले।” 23 इसलिए भाइयों में यह बात फैल गई, कि वह चेला न मरेगा; तो भी यीशु ने उससे यह नहीं कहा, कि यह न मरेगा, परन्तु यह कि “यदि मैं चाहूँ कि यह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे इससे क्या?”
24 यह वही चेला है, जो इन बातों की गवाही देता है* और जिस ने इन बातों को लिखा है और हम जानते हैं, कि उसकी गवाही सच्ची है। 25 और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक-एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं।
"उजाला होने लगा था"
यह अतिरिक्त जानकारी है।
यह अतिरिक्त जानकारी है।
"नब्बे मीटर" एक हाथ आधे मीटर से कुछ कम होता है।
वैकल्पिक अनुवाद, "मेरे लोगों को जिनकी मैं सुधि लेता हूं, उनका पोषण कर"।
वैकल्पिक अनुवाद "जिन लोगों की मैं सुधि लेता हूं उनकी रखवाली कर"
वैकल्पिक अनुवाद "जिन लोगों की मैं सुधि लेता हूं उनकी रखवाली कर"
उसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
अन्तिम भोज के समय (देखें: यूह. )
"उसे" अर्थात जिस शिष्य से यीशु प्रेम रखता था उसे देखकर
यूह. 21:20 में "वह" अर्थात जिस शिष्य से यीशु प्रेम करता था।
यीशु का पुनः आगमन स्वर्ग से उसका लौट आना
वैकल्पिक अनुवाद, "तू इसकी चिन्ता न कर"
शिष्य यूहन्ना
हम कलीसिया में जानते हैं
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शिष्य तिबिरियास की झील पर थे तब यीशु उन पर फिर प्रकट हुआ।
शमौन पतरस, थोमा जो दिदुमुस कहलाता था और गलील के काना नगर का नतनएल और जबदी के पुत्र और उसके चेलों में से दो और तिबिरियास झील पर थे।
वे पूरी रात व्यर्थ में मछली पकड़ते रहे।
यीशु ने उनसे कहा कि वे नाव की दाहिनी ओर जाल डालें तो पाएंगे।
मछलियों की बहुतायत के कारण वे जाल को खींच नहीं पाए।
उसने अंगरखा कमर में बांधा और झील में कूद पड़ा।
अन्य शिष्य डोंगी पर मछलियों से भरा जाल खींचते हुए आए।
यीशु ने शिष्यों से कहा कि पकड़ी हुई मछलियों में से कुछ लेकर आएं और उसके साथ नाश्ता करें।
यीशु ने शिष्यों से कहा कि पकड़ी हुई मछलियों में से कुछ लेकर आएं और उसके साथ नाश्ता करें।
पुनरूत्थान के बाद यहां तीसरी बार यीशु शिष्यों पर प्रकट हुआ था?
यीशु ने पतरस से पूछा, "हे शमौन यूहन्ना के पुत्र क्या तू इनसे बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है और उसने दो बार और उससे पूछा, ”क्या तू मुझसे प्रेम रखता है"?
हर एक प्रश्न का उत्तर पतरस ने यही दिया, "हां प्रभु, तू जानता है कि मैं तुझसे प्रीति रखता हूं"।
पहली बार यीशु ने पतरस से कहा, "मेरे मेमनों को चराए" दूसरी बार यीशु ने कहा, "मेरी भेड़ों की रखवाली करना" और तीसरी बार यीशु ने कहा, "मेरी भेड़ों को चरा"।
यीशु ने पतरस से कहा कि जब वह वृद्ध हो जायेगा तब वह हाथ फैलाएगा और दूसरा उसकी कमर बांधकर जहां वह नहीं चाहेगा वहाँ उसे ले जायेगा।
इन बातों से यीशु ने संकेत दिया कि पतरस की मृत्यु कैसी होगी।
जिस शिष्य से यीशु प्रेम रखता था उसने यह पुस्तक लिखी है और गवाही देता है कि इसमें व्यक्त सब घटनाएं सच हैं।
पतरस ने यीशु से पूछा, "हे प्रभु इसका क्या हाल होगा"?
यीशु ने पतरस से कहा, "तू मेरे पीछे होले"।
जिस शिष्य से यीशु प्रेम रखता था उसने यह पुस्तक लिखी है और गवाही देता है कि इसमें व्यक्त सब घटनाएं सच हैं।
1 हे थियुफिलुस, मैंने पहली पुस्तिका उन सब बातों के विषय में लिखी, जो यीशु ने आरम्भ किया और करता और सिखाता रहा, 2 उस दिन तक जब वह उन प्रेरितों को जिन्हें उसने चुना था, पवित्र आत्मा के द्वारा आज्ञा देकर ऊपर उठाया न गया। 3 और उसने दुःख उठाने के बाद बहुत से पक्के प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा, और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा।
4 और चेलों से मिलकर उन्हें आज्ञा दी, “यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की प्रतीक्षा करते रहो, जिसकी चर्चा तुम मुझसे सुन चुके हो। (लूका 24:49) 5 क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।” (मत्ती 3:11)
6 अतः उन्होंने इकट्ठे होकर उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल का राज्य पुनः स्थापित करेगा?” 7 उसने उनसे कहा, “उन समयों या कालों को जानना, जिनको पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं। 8 परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ्य पाओगे*; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे।”
9 यह कहकर वह उनके देखते-देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादल ने उसे उनकी आँखों से छिपा लिया। (भज. 47:5) 10 और उसके जाते समय जब वे आकाश की ओर ताक रहे थे, तब, दो पुरुष श्वेत वस्त्र पहने हुए उनके पास आ खड़े हुए। 11 और कहने लगे, “हे गलीली पुरुषों, तुम क्यों खड़े स्वर्ग की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।” (1 थिस्स. 4:16)
12 तब वे जैतून नामक पहाड़ से जो यरूशलेम के निकट एक सब्त के दिन की दूरी पर है, यरूशलेम को लौटे। 13 और जब वहाँ पहुँचे तो वे उस अटारी पर गए, जहाँ पतरस, यूहन्ना, याकूब, अन्द्रियास, फिलिप्पुस, थोमा, बरतुल्मै, मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब, शमौन जेलोतेस और याकूब का पुत्र यहूदा रहते थे। 14 ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ एक चित्त होकर* प्रार्थना में लगे रहे।
15 और उन्हीं दिनों में* पतरस भाइयों के बीच में जो एक सौ बीस व्यक्ति के लगभग इकट्ठे थे, खड़ा होकर कहने लगा। 16 “हे भाइयों, अवश्य था कि पवित्रशास्त्र का वह लेख पूरा हो, जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यहूदा के विषय में जो यीशु के पकड़ने वालों का अगुआ था, पहले से कहा था। (भज. 41:9)
17 क्योंकि वह तो हम में गिना गया, और इस सेवकाई में भी सहभागी हुआ। 18 (उसने अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया; और सिर के बल गिरा, और उसका पेट फट गया, और उसकी सब अंतड़ियाँ निकल गई। 19 और इस बात को यरूशलेम के सब रहनेवाले जान गए, यहाँ तक कि उस खेत का नाम उनकी भाषा में ‘हकलदमा’ अर्थात् ‘लहू का खेत’ पड़ गया।)
20 क्योंकि भजन संहिता में लिखा है,
‘उसका घर उजड़ जाए,
और उसमें कोई न बसे’
और ‘उसका पद कोई दूसरा ले ले।’ (भज. 69:25, भज. 109:8)
21 इसलिए जितने दिन तक प्रभु यीशु हमारे साथ आता जाता रहा, अर्थात् यूहन्ना के बपतिस्मा से लेकर उसके हमारे पास से उठाए जाने तक, जो लोग बराबर हमारे साथ रहे, 22 उचित है कि उनमें से एक व्यक्ति हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह हो जाए।” 23 तब उन्होंने दो को खड़ा किया, एक यूसुफ को, जो बरसब्बास कहलाता है, जिसका उपनाम यूस्तुस है, दूसरा मत्तियाह को।
24 और यह कहकर प्रार्थना की, “हे प्रभु, तू जो सब के मन को जानता है, यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है, 25 कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई का पद ले, जिसे यहूदा छोड़कर अपने स्थान को गया।” 26 तब उन्होंने उनके बारे में चिट्ठियाँ डाली, और चिट्ठी मत्तियाह के नाम पर निकली, अतः वह उन ग्यारह प्रेरितों के साथ गिना गया।
पहली पुस्तिका का आशय लूका रचित सुसमाचार से है।
यह पुस्तिका लूका ने थियुफिलुस नामक व्यक्ति को लिखी थी। उसे संबोधित करने के लिए उसने “हे” शब्द का प्रयोग किया है। कुछ अनुवादों में संस्कृति उपयुक्त संबोधनों का प्रयोग करते हुए वाक्य के आरम्भ में “प्रिय थियुफिलुस” जैसे संबोधन का प्रयोग किया गया है। थियुफिलुस का शाब्दिक अर्थ “परमेश्वर का मित्र” होता है।
इसका आशय यीशु मसीह के स्वर्गारोहण से है।
विशिष्ट कार्यों में शिष्यों की अगुवाई के निमित्त पवित्र आत्मा यीशु की अगुआई करता था।
यह क्रूस पर उठाये गए यीशु के कष्टों व उसकी मृत्यु के विषय में है।
12 मूल शिष्यों के अतिरिक्त यीशु बहुत से अन्य लोगों पर भी प्रकट हुआ था।
अर्थात यीशु जब उनसे मिला।
“उनसे” का आशय यहाँ पर 11 शिष्यों से है।
“और उनसे मिलकर उन्हें आज्ञा दी, यरुशलेम को न छोडो।” इसे हम सीधे उद्धरण के समान भी अनुदित कर सकते हैं, जैसा कि यूडीबी में किया गया है।
इसका आशय पवित्र आत्मा से है।
यीशु यहाँ यूहन्ना द्वारा दिए जानेवाले पानी के बपतिस्मे की तुलना परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले बपतिस्मे से करते हैं जो कि पवित्र आत्मा के साथ दिया जाएगा।
जिन भाषाओं में “बपतिस्मा” को किसी वस्तु के साथ दिया जाना होता है, वहाँ हम ऐसे भी लिख सकते हैं कि, “यूहन्ना ने लोगों को पानी के साथ बपतिस्मा दिया” अथवा, “यूहन्ना ने उन्हें पानी से बपतिस्मा दिया।”
अनुवाद करते समय इसे सक्रिय क्रिया के साथ भी अनूदित किया जा सकता है: “परमेश्वर तुम्हे बप्तिस्मा देगा।”
क्या तू इसी समय इस्राएल राज्य को फेर देगा -“क्या तू इस्राएल को फिर से एक सामर्थी राज्य बना देगा?”
“समय या दिनों”
“तुम आत्मिक रूप से दृढ़ किये जाओंगे।”
यह सामर्थ पाने का परिणाम है। इसका अनुवाद करते समय “मेरे गवाह होने के लिए” भी लिख सकते हैं और बता सकते हैं कि सामर्थ पाने का उद्देश्य यही था।
“पूरे संसार में” अथवा “पृथ्वी के सुदूर प्रदेशों में भी”।
“उसके शिष्य आकाश की ओर देख रहे थे कि”
“वह बादलों में चला गया, और एक बादल ने उसे छिपा लिया और उसे आँखों से ओझल कर दिया।”
“आकाश की ओर टकटकी लगाये थे” अथवा “वे आकाश की ओर एकटक देख रहे थे”
विशेषकर “तुम शिष्यों।” हालाँकि स्वर्गदूतों ने बातचीत शिष्यों से की थी, लेकिन अन्य पदों से इस बात के संकेत मिलते हैं कि इस घटना के समय दूसरे स्त्री व पुरुष भी मौजूद थे।
यूडीबी के समान इस आलंकारिक प्रश्न को एक कथन के रूप में अभी अनूदित किया जा सकता है।
अर्थात “तब शिष्य.....लौटे गए”
सब्त के दिन लोगों को काम करने से रोकने हेतु फरीसियों द्वारा बनाया गया नियम।
“जब वे यरूशलेम में स्थित अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचे”
घर में ऊपर की सतह पर बनाया गया कमरा।
‘शमौन देशभक्त।” उस समय बहुत से जेलोतेस थे, लेकिन शमौन ही केवल अकेला ऐसा शिष्य था जो कि जेलोतेस था। जेलोतेस इस्राएल पर रोमियों का शासन समाप्त करना चाहते थे।
उनका दल एक था और उनमे किसी प्रकार का कोई मतभेद या मनमुटाव नहीं था।
“स्वयं को प्रार्थना के लिए समर्पित कर दिया”
“यीशु मसीह के स्वर्ग में जाने के कुछ ही दिनों बाद”
“भाइयों” शब्द का प्रयोग अधिकतर संगी विश्वासियों के लिए होता है और इसमें स्त्री व पुरुष दोनों शामिल हैं।
पतरस यहाँ विशेष रूप से यहूदा से जुड़ी भविष्यद्वाणियों के विषय में कह रहा है।
“दाऊद के शब्दों से।” “मुख” शब्द यहाँ “शब्दों” के लिए प्रयुक्त हुआ है हालाँकि दाऊद ने उन्हें लिखा था।
में शुरू की गयी अपनी बात को पतरस आगे बढाता है
अर्थात “यीशु के शत्रुओं द्वारा उसे पकड़वाने का अधर्म से भरा कार्य।” इससे यह स्पष्ट हो जायेगा कि कौन से “अधर्म” की बात हो रही है।
और इसी खेत पर यहूदा घातक रूप से सिर के बल गिरा और उसका शरीर फट कर खुल गया। वचन के दूसरे हिस्सों में उसके द्वारा फांसी लगा कर आत्महत्या करने के उल्लेख हैं।
इस मृत्यु के कारण लोग उस खेत को नए नाम से संबोधित करने लगे।
में शुरू की गयी अपनी बात को पतरस आगे बढाता है
यहूदा की इस घटना का विस्तृत ब्यौरा देते समय पतरस को भजन संहिता के कुछ पद याद आ रहे हैं जो कि उसके अनुसार वर्तमान स्थिति से सम्बंधित है।
अनुवाद करते समय हम “भजन पुस्तिका” अथवा “गीत-संहिता” भी लिख सकते हैं। यह पुस्तक वचन का एक हिस्सा है।
घर उजड़ने का आशय यहाँ घर के मालिक की मृत्यु से है।
अर्थात, यह भूमि अशुद्ध है; रहने के योग्य नहीं है।
“उसका पद किसी दूसरे को मिल जाए”
में शुरू की गयी अपनी बात को पतरस आगे बढाता है
पतरस यहाँ बतानेवाला है कि भजन संहिता के उन पदों का सन्दर्भ उसने क्यों दिया था और उसके विषय में अब उन्हें क्या करना चाहिए।
पतरस यहाँ यहूदा के स्थान पर प्रेरित नियुक्त होनेवाले व्यक्ति की अपेक्षित योग्यताओं के विषय में कह रहा है।
यहूदा के स्थान पर नियुक्ति करते समय उन्हें दो योग्य व्यक्ति मिलते हैं।
युसूफ को बर-सबा व यूस्तुस के नाम से भी जाना जाता था।
“तब विश्वासियों ने प्रार्थना की”
अर्थात, “हे प्रभु, तू जो सबके भीतर की प्रेरणाओं और विचारों को जानता है”
यह प्रगट कर कि इन दोनों में तूने किसको चुना है कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई का पद ले - “इसलिए, हे परमेश्वर, हमें दिखा कि प्रेरितों के बीच खाली हुए इस स्थान के लिए तूने किसे चुना है।”
यीशु को धोखा देकर, भाग जाने और मर जाने के बाद खाली हुए यहूदा के स्थान को भरने के लिए
ऐसा उन्होंने युसूफ और मत्तियाह के बीच चुनाव करने के लिए किया।
चिट्ठी ने संकेत दिया कि मत्तियाह को चुना जाना चाहिए।
“प्रेरितों ने उसे भी एक प्रेरित गिना”
लूका ने लूका रचित सुसमाचार और प्रेरितों के कार्य लिखीं।
चालीस दिन तक वह प्रेरितों को जीवित दिखाई देता रहा, और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा।
यीशु ने प्रेरितों को पिता की प्रतिज्ञा की बाट जोहते रहने की आज्ञा दी।
प्रेरितों को पवित्र-आत्मा से बपतिस्मा मिलने वाला था।
यीशु ने उनको उत्तर दिया कि उसे समयों या कालों को जानना उनका काम नहीं।
यीशु ने प्रेरितों से कहा कि वे पवित्र-आत्मा से सामर्थ्य पायेंगे।
यीशु ने कहा की उसके प्रेरित यहूदिया, सामरिया और पृथ्वी की छोर तक उसके गवाह होंगे।
यीशु को ऊपर उठा लिया गया और बादल ने उसे उनकी आँखों से छिपा लिया।
स्वर्गदूतों ने कहा कि यीशु उसी रीति से फिर से आयेगा जैसे वह स्वर्ग को गया है।
वे एक चित्त होकर प्रार्थना कर रहे थे।
यहूदा द्वारा पवित्र-शास्त्र का लेख पूरा हुआ।
यहूदा ने एक खेत मोल लिया, सिर के बल गिरा, उसका पेट फट गया और उसकी सब अन्तड़ियाँ बाहर निकल पड़ीं।
भजनसंहिता में लिखा है कि यहूदा की अगुवाई का पद किसी और को ले लेना चाहिए।
पद लेने वाला व्यक्ति यूहन्ना के बपतिस्मा लेने के समय से प्रेरितों के साथ रहा हो और यीशु के जी उठने का गवाह रहा हो।
प्रेरितों ने प्रार्थना की कि परमेश्वर अपना चुनाव प्रगट करे और फिर उन्होंने चिट्ठियाँ डालीं।
मत्तियाह ग्यारह प्रेरितों के साथ गिना गया।
1 जब पिन्तेकुस्त का दिन* आया, तो वे सब एक जगह इकट्ठे थे। (लैव्य. 23:15-21, व्य. 16:9-11) 2 और अचानक आकाश से बड़ी आँधी के समान सनसनाहट का शब्द हुआ, और उससे सारा घर जहाँ वे बैठे थे, गूँज गया। 3 और उन्हें आग के समान जीभें फटती हुई दिखाई दी और उनमें से हर एक पर आ ठहरी। 4 और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए*, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य-अन्य भाषा बोलने लगे।
5 और आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त-यहूदी यरूशलेम में रहतें थे। 6 जब वह शब्द सुनाई दिया, तो भीड़ लग गई और लोग घबरा गए, क्योंकि हर एक को यही सुनाई देता था, कि ये मेरी ही भाषा में बोल रहे हैं। 7 और वे सब चकित और अचम्भित होकर कहने लगे, “देखो, ये जो बोल रहे हैं क्या सब गलीली नहीं?
8 तो फिर क्यों हम में से हर एक अपनी-अपनी जन्मभूमि की भाषा सुनता है? 9 हम जो पारथी, मेदी, एलाम लोग, मेसोपोटामिया, यहूदिया, कप्पदूकिया, पुन्तुस और आसिया, 10 और फ्रूगिया और पंफूलिया और मिस्र और लीबिया देश जो कुरेने के आस-पास है, इन सब देशों के रहनेवाले और रोमी प्रवासी, 11 अर्थात् क्या यहूदी, और क्या यहूदी मत धारण करनेवाले, क्रेती और अरबी भी हैं, परन्तु अपनी-अपनी भाषा में उनसे परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चा सुनते हैं।”
12 और वे सब चकित हुए, और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे, “यह क्या हो रहा है?” 13 परन्तु दूसरों ने उपहास करके कहा, “वे तो नई मदिरा के नशे में हैं।”
14 पतरस उन ग्यारह के साथ खड़ा हुआ और ऊँचे शब्द से कहने लगा, “हे यहूदियों, और हे यरूशलेम के सब रहनेवालों, यह जान लो और कान लगाकर मेरी बातें सुनो। 15 जैसा तुम समझ रहे हो, ये नशे में नहीं है, क्योंकि अभी तो तीसरा पहर ही दिन चढ़ा है। 16 परन्तु यह वह बात है, जो योएल भविष्यद्वक्ता के द्वारा कही गई है:
17 ‘परमेश्वर कहता है, कि अन्त के दिनों में ऐसा होगा, कि
मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उण्डेलूँगा और
तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ भविष्यद्वाणी करेंगी,
और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे,
और तुम्हारे वृद्ध पुरुष स्वप्न देखेंगे।
18 वरन् मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों
में अपने आत्मा उण्डेलूँगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे।
19 और मैं ऊपर आकाश में अद्भुत काम*,
और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्थात्
लहू, और आग और धुएँ का बादल दिखाऊँगा।
20 प्रभु के महान और तेजस्वी दिन* के आने से पहले
सूर्य अंधेरा
और चाँद लहू सा हो जाएगा।
21 और जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा।’ (योए. 2:28-32)
22 “हे इस्राएलियों, ये बातें सुनो कि यीशु नासरी एक मनुष्य था जिसका परमेश्वर की ओर से होने का प्रमाण उन सामर्थ्य के कामों और आश्चर्य के कामों और चिन्हों से प्रगट है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखलाए जिसे तुम आप ही जानते हो। 23 उसी को, जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई योजना और पूर्व ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधर्मियों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वाकर मार डाला। 24 परन्तु उसी को परमेश्वर ने मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया: क्योंकि यह अनहोना था कि वह उसके वश में रहता। (2 शमू. 22:6, भज. 18:4, भज. 116:3)
25 क्योंकि दाऊद उसके विषय में कहता है,
‘मैं प्रभु को सर्वदा अपने सामने देखता रहा
क्योंकि वह मेरी दाहिनी ओर है, ताकि मैं डिग न जाऊँ।
26 इसी कारण मेरा मन आनन्दित हुआ, और मेरी जीभ मगन हुई;
वरन् मेरा शरीर भी आशा में बना रहेगा।
27 क्योंकि तू मेरे प्राणों को अधोलोक में न छोड़ेगा;
और न अपने पवित्र जन को सड़ने देगा!
28 तूने मुझे जीवन का मार्ग बताया है;
तू मुझे अपने दर्शन के द्वारा आनन्द से भर देगा।’ (भज. 16:8-11)
29 “हे भाइयों, मैं उस कुलपति दाऊद के विषय में तुम से साहस के साथ कह सकता हूँ कि वह तो मर गया और गाड़ा भी गया और उसकी कब्र आज तक हमारे यहाँ वर्तमान है। (1 राजा. 2:10) 30 वह भविष्यद्वक्ता था, वह जानता था कि परमेश्वर ने उससे शपथ खाई है, “मैं तेरे वंश में से एक व्यक्ति को तेरे सिंहासन पर बैठाऊँगा।” (2 शमू. 7:12-13, भज. 132:11) 31 उसने होनेवाली बात को पहले ही से देखकर मसीह के जी उठने के विषय में भविष्यद्वाणी की,
कि न तो उसका प्राण अधोलोक में छोड़ा गया, और न उसकी देह सड़ने पाई। (भज. 16:10)
32 इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिसके हम सब गवाह हैं। 33 इस प्रकार परमेश्वर के दाहिने हाथ से सर्वोच्च पद पा कर, और पिता से वह पवित्र आत्मा प्राप्त करके जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी, उसने यह उण्डेल दिया है जो तुम देखते और सुनते हो।
34 क्योंकि दाऊद तो स्वर्ग पर नहीं चढ़ा; परन्तु वह स्वयं कहता है,
‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा; मेरे दाहिने बैठ,
35 जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों तले की चौकी न कर दूँ।’ (भज. 110:1)
36 अतः अब इस्राएल का सारा घराना निश्चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी।”
37 तब सुननेवालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और अन्य प्रेरितों से पूछने लगे, “हे भाइयों, हम क्या करें?” 38 पतरस ने उनसे कहा, “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने-अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे। 39 क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्तानों, और उन सब दूर-दूर के लोगों के लिये भी है जिनको प्रभु हमारा परमेश्वर अपने पास बुलाएगा।” (योए. 2:32)
40 उसने बहुत और बातों से भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ। (व्य. 32:5, भज. 78:8) 41 अतः जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उनमें मिल गए।
42 और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे।
43 और सब लोगों पर भय छा गया, और बहुत से अद्भुत काम और चिन्ह प्रेरितों के द्वारा प्रगट होते थे। 44 और वे सब विश्वास करनेवाले इकट्ठे रहते थे, और उनकी सब वस्तुएँ साझे की थीं। 45 और वे अपनी-अपनी सम्पत्ति और सामान बेच-बेचकर जैसी जिसकी आवश्यकता होती थी बाँट दिया करते थे।
46 और वे प्रतिदिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, और घर-घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सिधाई से भोजन किया करते थे। 47 और परमेश्वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उनसे प्रसन्न थे; और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रतिदिन उनमें मिला देता था।
“वे” से यहाँ पर आशय संभवतः120 विश्वासियों के दल से था जो लूका 1: 15-26 में इकठ्ठे थे। इसमें बारह प्रेरित भी शामिल थे।
“आकाश से आता एक शोर सुनाई दिया”
“तेज़ वेग से चल रही हवा का स्वर” अथवा “तेज़ी से बह रही हवा का स्वर”
यह घर या बड़ी ईमारत हो सकता है.
संभावित आशय हैं 1) आग से बनी जीभें, अथवा 2) जीभ की शक्ल में आग की छोटी लपटें। लैंप जैसी छोटी जगह में जलते समय आग की लपटें जीभ की शक्ल में लापटती दिखाई दे सकती हैं।
वे भाषाओँ जिनका पहले से उन्हें कोई ज्ञान न था।
परमेश्वर को आदर देनेवाले और उसकी आराधना करनेवाले लोग
“संसार की हर एक जाति”
इसका आशय आंधी के स्वर है। इसका अनुवाद एक सक्रिय क्रियापद के रूप में किया जा सकता है: “जब उन्होंने आंधी का शब्द सुना।”
अर्थात “बहुत से लोगों का विशाल समूह”
अनुवाद करते समय इसे “गलीलवासी” भी लिख सकते हैं।
अनुवाद करते समय इसे 1) लोगों द्वारा असल में पूछे गए प्रश्न की भांति व्यक्त कर सकते हैं, या फिर 2) इसे लोगों के आश्चर्य को प्रकट करनेवाले एक आलंकारिक प्रश्न की भांति अनूदित कर सकते हैं।
अर्थात “पार्थिया, मेदिया और एलाम के लोग।”
“ऐसे गैर यहूदी लोग जो अब यहूदी हो गए हैं” अथवा “वे लोग जिन्होंने अपना धर्मत्याग के द्वारा यहूदी हो गए हैं” अथवा “यहूदी आस्था को अपना चुके लोग।”
सब चकित हुए, और घबरा कर - लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि वहाँ आखिर हो क्या रहा था (यूडीबी)। अनुवाद करते समय इसे “विस्मित और विमूढ़ हो गए” भी लिख सकते हैं।
कुछ लोगों ने इस घटना को गंभीरता से लिया।
“लेकिन दूसरों ने तिरस्कार करते हुए कहा” अथवा “उनका अपमान करते हुए”
अनुवाद करते समय इसे “नशे में धुत” लिख सकते हैं। कुछ लोगों ने इस आश्चर्यकर्म पर विश्वास न कर, प्रेरितों का मज़ाक उड़ाने का चुनाव किया।
सामान्य मदिरा से अधिक नशीली मदिरा
पतरस की कही बात का समर्थन सभी प्रेरितों ने किया।
“अभी तो सुबह के नौ ही बजे हैं” (यूडीबी)। पतरस अपने सुननेवालों से यह जानने की आशा रखता था कि सुबह-सुबह कोई नशे में धुत नहीं होता। यह जानकारी अन्तर्निहित थी, जिसे ज़रुरत पड़ने पर स्पष्ट रूप से व्यक्त किया जा सकता था।
“सुबह के नौ बजे” (यूडीबी)।
में शुरू की गयी अपनी बात को पतरस आगे बढाता है
“यही वह बात है जो परमेश्वर ने कही और योएल नबी से लिखने को कहा” अथवा “परमेश्वर द्वारा कही गयी इन्हीं बातों को योएल नबी ने लिखा था।”
इसे सक्रिय क्रियापद के रूप में भी लिखा जा सकता है: “जो परमेश्वर ने कही थी” या फिर “जिस विषय में परमेश्वर ने कहा था।”
अनुवाद के समय इसे हम “अंतिम दिनों में” भी लिख सकते हैं। जो बातें अब वह बतानेवाला है, वे अंतिम दिनों में घटेंगी। यह परमेश्वर की कही बात का पहला हिस्सा है। यूडीबी के समान, “परमेश्वर कहता है” शब्द को वाक्य में आरम्भ में लगाया गया है।
यह व्यक्त करने के लिए कि परमेश्वर किस प्रकार सभी लोगों को अपना आत्मा देगा, यहाँ आलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है
“सब लोगों पर।”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन में भविष्यद्वक्ता योएल की बात को पतरस आगे बढाता है
परमेश्वर अपना आत्मा पूरी भरपूरी के साथ देता है।
परमेश्वर उन्हें परमेश्वर से जुड़े सत्य बोलने की प्रेरणा देता है
"धूएं" का आशय यहाँ"धुंध अथवा "कोहरे" से है
यह किसी घड़े यह बाल्टी के पानी को तेज़ी से खाली करने के समान है। इसका अनुवाद भी पिछली बार की तरह करें।
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन में भविष्यद्वक्ता योएल की बात को पतरस आगे बढाता है
इस पद का सटीक आशय स्पष्ट नहीं है, इसलिए अपनी भाषा में इसका सशब्द अनुवाद ही करें।
अर्थात प्रार्थना या फिर विनती करेगा
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
परमेश्वर की ठहराई हुई योजना और पूर्व ज्ञान -मसीह की मृत्यु परमेश्वर की पूर्व योजना व पूर्वज्ञान के अनुसार थी।
यह तुम्हारे का बहुवचन रूप है। यदि आपकी भाषा में इसके लिए कोई विशिष्ट शब्द हो तो कृपया उसी का प्रयोग करें।
“लोगों ने उसे पकड़वाया,” “तुमने उसे पकड़वा दिया”
रस्सी के बंधन को खोलने के समान बंधनमुक्त किया
मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया -“मृत्यु की पीढा के बंधन से मुक्त किया।”
मृत्यु अंततः यीशु को बाँध कर न रख सकी
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
घटनाओं के होने से पूर्व दाऊद ने परमेश्वर को अपने जीवन में कार्य करते देखा
अपने सम्मुख, अपने साथ
दाहिने पक्ष को मज़बूत माना जाता था। दाहिनी ओर का व्यक्ति या तो सबसे मज़बूत सेवक, या फिर सबसे मज़बूत सहायक समझा जाता था।
भीतरी आनंद को बाह्य रूप से अभिव्यक्त किया गया है
“मैं जीवन भर परमेश्वर से आशा बांधे रहूँगा”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को, पतरस भजन संहिता में निहित दाऊद के उद्धरणों के साथ आगे बढाता है
“अपने अभिषिक्त अथवा चुने हुओं को”
उसका शरीर मृत न बना रहेगा कि वह सड़ने लगे। अनुवाद करते समय “सड़ने का अनुभव” भी लिख सकते हैं।
“जीवनदायी सत्य”
में प्रारम्भ किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
पिता, पूर्वज पिता
उद्घोषणा का गंभीर कथन
बात की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए एक गंभीर कथन कहना
अर्थात भाइयों और बहनों
प्रेरितों 1:27-28 में दाऊद ने पहले ही मसीह को देख लिया था और उसके विषय में कहा था
में प्रारम्भ किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“विश्वसनीयता, आदर, अनुमोदन, विश्वास, भरोसे, सामर्थ और परमेश्वर के विशेषाधिकारों का स्थान।”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“प्रभु (परमेश्वर) ने मेरे प्रभु (मसीह) से कहा”
मेरे पास “आदर, विश्वास, विशेषाधिकारों और सामर्थ का स्थान ग्रहण कर”,
“जब ताकि मैं तेरे बैरियों को ठिकाने न लगा दूं, या फिर, हरा न दूं”
यह बताने के लिए कि सुननेवालों के लिए इस बात को सुनना कितना कष्टदायी था, लूका आलंकारिक भाषा का प्रयोग करता है।
“यह प्रतिज्ञा तुम्हारे, और संतानों के लिए है”
अपने आप को .......से अलग करो
नैतिक और आत्मिक रूप से भ्रष्ट जाति से बचाओ
विश्वास किया, स्वीकार किया
यीशु के शिष्यों ने उन्हें बपतिस्मा दिया
“उन्होंने अपनी सब वस्तुएं सबके साथ, आपस में बाँट ली”
वस्तुएं दे देते थे, या कि उसे बेचने से मिले धन को बाँट लेते थे, या फिर उस धन को दे देते थे
भय -श्रृद्धापूर्ण भय
विश्वास में एक होकर इकट्ठे रहते थे
जब कोई विश्वासी अपनी आवश्यकता प्रकट करता था, या कि उसकी आवश्यकता दिखाई देती थी तो अन्य विश्वासी उस आवश्यकता को पूरा करते थे
“एक मनसा”
अर्थात “विश्वासी प्रतिदिन....एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे”
भोजन आपस में बाँटते थे, परभू भोज साँझा करते थे (यूडीबी)।
बिना किसी घमंड के, सरल भाव के साथ, बिना किसी औपचारिकता के, बिना किसी पद या विशेषाधिकार के भाव के
सब लोग उनका सम्मान करते थे
पिन्तेकुस्त के दिन प्रेरित इकट्ठे थे।
शिष्य अन्य-अन्य भाषा बोलने लगे।
यहूदी भक्त आकाश के नीचे के हर राष्ट्र से थे।
भीड़ विस्मित हो गई थी क्योंकि हर एक उन्हें अपनी भाषा में बोलते हुए सुनाई दे रहा था।
शिष्य परमेश्वर के बड़े-बड़े कार्यों के बारे में चर्चा कर रहे थे।
जो शिष्यों का ठठ्ठा कर रहे थे, उन्होंने सोचा कि वे नई मदिरा के नशे में हैं।
पतरस ने कहा कि योएल की भविष्यद्वाणी पूरी हो रही थी, क्योंकि परमेश्वर ने कहा था कि वह अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उण्डेलेगा।
योएल की भविष्यद्वाणी के अनुसार हर एक जो प्रभु का नाम लेता है, उद्धार पाया हुआ है।
यीशु की सेवकाई का प्रमाण सामर्थ्य के कामों और आश्चर्य के कर्मों और चिन्हों से प्रगट है जो परमेश्वर ने उसके द्वारा किये।
परमेश्वर की निर्धारित योजना के अनुसार ही यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था।
राजा दाऊद ने भविष्यवाणी की कि परमेश्वर अपने पवित्र जन का नाश नहीं होने देगा।
परमेश्वर ने राजा दाऊद से शपथ खाई कि उसके वंश में से एक सिंहासन पर बैठेगा।
परमेश्वर का वह पवित्र जन कौन था जिसने नाश नहीं देखा और जिसके लिए सिंहासन पर बैठने की भविष्यवाणी की गई?यीशु वह पवित्र जन था जिसके लिए भविष्यद्वाणी की गई थी कि वह राजा होगा।
परमेश्वर ने यीशु को प्रभु और मसीह दोनों बताया।
भीड़ ने पूछा कि वे क्या करें।
पतरस ने भीड़ से मन फिराने और अपने-अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लेने को कहा।
पतरस ने परमेश्वर की प्रतिज्ञा भीड़, उनकी सन्तानों और सब दूर-दूर के लोगों के लिए बताई।
करीब तीन हजार लोगों को बपतिस्मा दिया गया।
वे प्रेरितों से शिक्षा पाने और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे।
उन्होंने अपनी-अपनी सम्पत्ति और सामान बेचा और जैसी जिसको आवश्यकता होती थी, उनको बाँट दी।
विश्वासी मन्दिर में जा रहे थे।
प्रभु उद्धार पाये हुए लोगों को प्रतिदिन उनमें मिला देता था।
1 पतरस और यूहन्ना तीसरे पहर प्रार्थना के समय मन्दिर में जा रहे थे। 2 और लोग एक जन्म के लँगड़े को ला रहे थे, जिसको वे प्रतिदिन मन्दिर के उस द्वार पर जो ‘सुन्दर’ कहलाता है, बैठा देते थे, कि वह मन्दिर में जानेवालों से भीख माँगे। 3 जब उसने पतरस और यूहन्ना को मन्दिर में जाते देखा, तो उनसे भीख माँगी।
4 पतरस ने यूहन्ना के साथ उसकी ओर ध्यान से देखकर कहा, “हमारी ओर देख!” 5 अतः वह उनसे कुछ पाने की आशा रखते हुए उनकी ओर ताकने लगा। 6 तब पतरस ने कहा, “चाँदी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूँ; यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर।”
7 और उसने उसका दाहिना हाथ पकड़ के उसे उठाया; और तुरन्त उसके पाँवों और टखनों में बल आ गया। 8 और वह उछलकर खड़ा हो गया, और चलने-फिरने लगा; और चलता, और कूदता, और परमेश्वर की स्तुति करता हुआ उनके साथ मन्दिर में गया।
9 सब लोगों ने उसे चलते-फिरते और परमेश्वर की स्तुति करते देखकर, 10 उसको पहचान लिया कि यह वही है, जो मन्दिर के ‘सुन्दर’ फाटक पर बैठ कर भीख माँगा करता था; और उस घटना से जो उसके साथ हुई थी; वे बहुत अचम्भित और चकित हुए।
11 जब वह पतरस और यूहन्ना को पकड़े हुए था, तो सब लोग बहुत अचम्भा करते हुए उस ओसारे में जो सुलैमान का कहलाता है, उनके पास दौड़े आए। 12 यह देखकर पतरस ने लोगों से कहा, “हे इस्राएलियों, तुम इस मनुष्य पर क्यों अचम्भा करते हो, और हमारी ओर क्यों इस प्रकार देख रहे हो, कि मानो हमने अपनी सामर्थ्य या भक्ति से इसे चलने-फिरने योग्य बना दिया।
13 अब्राहम और इसहाक और याकूब के परमेश्वर*, हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने अपने सेवक यीशु की महिमा की, जिसे तुम ने पकड़वा दिया, और जब पिलातुस ने उसे छोड़ देने का विचार किया, तब तुम ने उसके सामने यीशु का तिरस्कार किया। 14 तुम ने उस पवित्र और धर्मी* का तिरस्कार किया, और चाहा की, एक हत्यारे को तुम्हारे लिये छोड़ दिया जाए।
15 और तुम ने जीवन के कर्ता को मार डाला, जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया; और इस बात के हम गवाह हैं।
16 और उसी के नाम ने, उस विश्वास के द्वारा जो उसके नाम पर है, इस मनुष्य को जिसे तुम देखते हो और जानते भी हो सामर्थ्य दी है; और निश्चय उसी विश्वास ने जो यीशु के द्वारा है, इसको तुम सब के सामने बिलकुल भला चंगा कर दिया है। 17 “और अब हे भाइयों, मैं जानता हूँ कि यह काम तुम ने अज्ञानता से किया, और वैसा ही तुम्हारे सरदारों ने भी किया। 18 परन्तु जिन बातों को परमेश्वर ने सब भविष्यद्वक्ताओं के मुख से पहले ही बताया था, कि उसका मसीह दुःख उठाएगा; उन्हें उसने इस रीति से पूरा किया।
19 इसलिए, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाएँ जाएँ, जिससे प्रभु के सम्मुख से विश्रान्ति के दिन आएँ। 20 और वह उस यीशु को भेजे जो तुम्हारे लिये पहले ही से मसीह ठहराया गया है।
21 अवश्य है कि वह स्वर्ग में उस समय तक रहे जब तक कि वह सब बातों का सुधार* न कर ले जिसकी चर्चा प्राचीनकाल से परमेश्वर ने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के मुख से की है। 22 जैसा कि मूसा ने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिये मुझ जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा, जो कुछ वह तुम से कहे, उसकी सुनना।’ (व्य.18:15-18)
23 परन्तु प्रत्येक मनुष्य जो उस भविष्यद्वक्ता की न सुने, लोगों में से नाश किया जाएगा। (लैव्य. 23:29, व्य. 18:19)
24 और शमूएल से लेकर उसके बाद वालों तक जितने भविष्यद्वक्ताओं ने बात कहीं उन सब ने इन दिनों का सन्देश दिया है। 25 तुम भविष्यद्वक्ताओं की सन्तान और उस वाचा के भागी हो, जो परमेश्वर ने तुम्हारे पूर्वजों से बाँधी, जब उसने अब्राहम से कहा, ‘तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएँगे।’ (उत्प. 12:3, उत्प. 18:18, उत्प. 22:18, उत्प. 26:4)
26 परमेश्वर ने अपने सेवक को उठाकर पहले तुम्हारे पास भेजा, कि तुम में से हर एक को उसकी बुराइयों से फेरकर आशीष दे।”
“मंदिर क्षेत्र में” या फिर, “मंदिर की ओर।” वे भीतरी भवन में नहीं गए थे, क्योंकि वहां केवल याजक जा सकते थे।
“दोपहर तीन बजे” (यूडीबी)।
“भीख” का आशय उन पैसों से है जो लोग गरीबों को देते हैं। व्यक्ति गरीब था और अपने लिए पैसे मांग रहा था।
“एकटक होकर देख कर” या फिर “उसे ध्यान से देख कर”
“लंगड़ा व्यक्ति उन्हें गौर से देखने लगा”
इन्हें वाक्य की शुरुआत में यह बताने के लिए रखा गया है कि उस लंगड़े व्यक्ति को बस इन्हीं चीज़ों की आस थी, जो कि पतरस के पास नहीं थी, और पतरस के पास जो वस्तु थी, उससे इसकी तुलना दिखाने के लिए भी ऐसा किया गया है।
इसका आशय मंदिर के प्रांगण से होगा। मंदिर के असल भवन के भीतर जाने की अनुमति केवल याजकों को थी।
“सुन्दर कहलाने वाले द्वार”
“देख लिया” अथवा “वे जान गए कि” अथवा “देखा”
“बहुत हैरान हुए” (यूडीबी) या फिर “आश्चर्य और विस्मय से भर उठे”
“जिस समय”
“सुलैमान के ओसारे में।” सुलैमान, बहुत समय पहले हुए इस्राएल के एक राजा का नाम था। ओसारे का आशय स्तंभों की पंक्ति से है जिनके ऊपर एक छत भी होती है, और केवल एक तरफ से खुला होता है। अनुवाद करते समय इसे “सुलैमान का आँगन” भी लिख सकते हैं। सुलैमान का ओसारा बहुत विशाल था।
“अचम्भे से भरे हुए” या फिर “चकित होकर” या फिर “विस्मय से भर कर”
“बढ़ती हुई भीड़ को देख कर पतरस ने” अथवा “लोगों को देख कर पतरस” (यूडीबी)
“हे मेरे संगी इस्राएलियों” (यूडीबी)। पतरस भीड़ को संबोधित कर रहा था, “इस्राएलियों” का आशय वहाँ मौजूद सभी इस्राएलियों से था।
यह आलंकारिक प्रश्न है। अनुवाद के समय यूं भी लिख सकते हैं कि “तुम्हे अचंभित नहीं होना चाहिए” यूडीबी।
इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस तरह भी किया जा सकता है कि, “तुम्हें हम पर यूं दृष्टि लगाने की आवश्यकता नहीं हैं” या फिर, “हमें इस तरह टकटकी लगा कर देखने का कोई कारण नहीं है।”
“हमारी” को यहाँ पतरस व यूहन्ना दोनों के लिए एक साथ और व्यक्तिगत रूप से प्रयुक्त किया गया है।
“हम” को यहाँ पतरस व यूहन्ना दोनों के लिए एक साथ और व्यक्तिगत रूप से प्रयुक्त किया गया है।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि “हमने इसे अपनी सामर्थ्य या भक्ति से नहीं चलाया।” नोट: मूल हिंदी अनुवाद में “चलने-फिरने के योग्य” लिखना बेहतर होगा। कृपया “के” शब्द का भी प्रयोग करें।
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“जिसे तुम पीलातुस के पास ले गए”
“तब तुमने पीलातुस के आगे उसका इनकार किया”
“जब पीलातुस ने यीशु को मुक्त करने का निर्णय लिया”
इसे सक्रिय क्रियापद की भांति अनूदित किया जा सकता है: “कि पीलातुस तुम्हें एक हत्यारा दे दे।”
“तुम्हे दे दे।” इसका आशय “कृपा के रूप में देने” से है। यहाँ बंधन से “मुक्त” करने का भाव नहीं है।
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
"जीवन के कर्ता" (यू.डी.बी)या “जीवन का शासक”
“इस मनुष्य को....जिसे तुम देखते जानते भी हो
कुछ भाषाओँ में “विश्वास” शब्द संज्ञा रूप में नहीं होता, ऐसे में उसे क्रिया रूप में व्यक्त करने की ज़रुरत हो सकती है। यदि वाक्य में कर्ता को लिखना ज़रूरी हो, तो “हम’ शब्द के उपयुक्त रूप का प्रयोग करें।
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“परमेश्वर की ओर फिरो”
“जिस से प्रभु तुम्हें सामर्थ्य दे।”
“दूर किये” अथवा “रद्द कर दिए”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
जैसा कि पहले ही उल्लिखित था कि यीशु स्वर्ग में रहेगा।
“जब तक कि परमेश्वर सभी बातों का सुधार न कर ले”
“परमेश्वर ने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं से सुधार के विषय बोलने को कहा”
“बहुत समय पहले हुए पवित्र भविष्यद्वक्ताओं”
“किसी को भविष्यद्वक्ता होने के लिए चुनेगा” अथवा “किसी को भविष्यद्वक्ता होने का अधिकार देगा”
“हटा दिया जाएगा” या कि “दूर किया जाएगा” अथवा “निकाल दिया जाएगा”
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
“शमूएल के बाद हुए भविष्यद्वक्ता”
“इस समय” अथवा “इस समय जो हो रहा है” या फिर “जो बातें हो रही हैं”
“तुम भविष्यद्वक्ताओं के वारिस हो।” अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं, कि “अपने भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से परमेश्वर ने जो प्रतिज्ञा की है, वे तुम्हें मिलेगी।”
“वाचा की संतान” या फिर, “वाचा के वारिस।” अनुवाद करते समय इसे यूं भी लिख सकते हैं, कि “परमेश्वर ने अपनी वाचा में जिसकी प्रतिज्ञा की है, वे तुम पाओगे।”
“तेरी संतान के कारण”
“परमेश्वर द्वारा अपने सेवक को चुनने के बाद” अथवा “परमेश्वर द्वारा अपने सेवक को अधिकार दिए जाने के बाद”
यहाँ पर आशय परमेश्वर के मसीह से है।
पतरस और यूहन्ना ने मंदिर के द्वार पर एक जन्म के लंगड़े को उनसे भीख माँगते देखा।
पतरस ने उस आदमी को चाँदी और सोना नहीं दिया।
पतरस ने उस आदमी को चलने-फिरने की सामर्थ्य दी।
वह मन्दिर में चलते, कूदते और परमेश्वर की स्तुति करते हुए गया।
लोग बहुत चकित और अचम्भित हुए।
पतरस ने लोगों को याद दिलाया कि उन्होंने यीशु को पीलातुस के लिए पकड़वा दिया, उसका इन्कार किया और उसको मार डाला।
पतरस ने कहा कि यीशु के नाम में उस आदमी के विश्वास ने उसको भला-चंगा कर दिया।
पतरस ने लोगों को मन फिराने के लिए कहा।
पतरस ने कहा कि वह स्वर्ग में उस समय तक रहे जब तक कि सब बातों का सुधार न कर ले।
मूसा ने कहा कि प्रभु परमेश्वर उस जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा, जिसको लोग सुनेंगे।
जो मनुष्य यीशु की न सुने वह पूर्ण रूप से नाश किया जाएगा।
पतरस ने लोगों को याद दिलाया कि वे भविष्यद्वक्ताओं की सन्तान और उस वाचा के भागी हैं जिसे परमेश्वर ने अब्राहम से बाँधा जब परमेश्वर ने कहा, "तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएंगे।"
परमेश्वर ने यहूदियों को आशीष देने की चाहत पहले यीशु को उनके पास भेजकर की ताकि वे अपनी बुराइयों से फिरें।
1 जब पतरस और यूहन्ना लोगों से यह कह रहे थे, तो याजक और मन्दिर के सरदार और सदूकी उन पर चढ़ आए। 2 वे बहुत क्रोधित हुए कि पतरस और यूहन्ना यीशु के विषय में सिखाते थे और उसके मरे हुओं में से जी उठने का प्रचार करते थे। 3 और उन्होंने उन्हें पकड़कर दूसरे दिन तक हवालात में रखा क्योंकि संध्या हो गई थी। 4 परन्तु वचन के सुननेवालों में से बहुतों ने विश्वास किया, और उनकी गिनती पाँच हजार पुरुषों के लगभग हो गई।
5 दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उनके सरदार और पुरनिए और शास्त्री। 6 और महायाजक हन्ना और कैफा और यूहन्ना और सिकन्दर और जितने महायाजक के घराने के थे, सब यरूशलेम में इकट्ठे हुए। 7 और पतरस और यूहन्ना को बीच में खड़ा करके पूछने लगे, “तुम ने यह काम किस सामर्थ्य से और किस नाम से किया है?”
8 तब पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उनसे कहा, 9 “हे लोगों के सरदारों और प्राचीनों*, इस दुर्बल मनुष्य के साथ जो भलाई की गई है, यदि आज हम से उसके विषय में पूछ-ताछ की जाती है, कि वह कैसे अच्छा हुआ। 10 तो तुम सब और सारे इस्राएली लोग जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, और परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया, यह मनुष्य तुम्हारे सामने भला चंगा खड़ा है।
11 यह वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना* और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया। (भज. 118:22-23, दानि. 2:34, 35) 12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सके।”
13 जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का साहस देखा, और यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उनको पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।
14 परन्तु उस मनुष्य को जो अच्छा हुआ था, उनके साथ खड़े देखकर, यहूदी उनके विरोध में कुछ न कह सके।
15 परन्तु उन्हें महासभा के बाहर जाने का आज्ञा देकर, वे आपस में विचार करने लगे, 16 “हम इन मनुष्यों के साथ क्या करें? क्योंकि यरूशलेम के सब रहनेवालों पर प्रगट है, कि इनके द्वारा एक प्रसिद्ध चिन्ह दिखाया गया है; और हम उसका इन्कार नहीं कर सकते। 17 परन्तु इसलिए कि यह बात लोगों में और अधिक फैल न जाए, हम उन्हें धमकाएँ, कि वे इस नाम से फिर किसी मनुष्य से बातें न करें।” 18 तब पतरस और यूहन्ना को बुलाया और चेतावनी देकर यह कहा, “यीशु के नाम से कुछ भी न बोलना और न सिखाना।”
19 परन्तु पतरस और यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “तुम ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्वर के निकट भला है, कि हम परमेश्वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें? 20 क्योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हमने देखा और सुना है, वह न कहें।”
21 तब उन्होंने उनको और धमकाकर छोड़ दिया, क्योंकि लोगों के कारण उन्हें दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला, इसलिए कि जो घटना हुई थी उसके कारण सब लोग परमेश्वर की बड़ाई करते थे। 22 क्योंकि वह मनुष्य, जिस पर यह चंगा करने का चिन्ह दिखाया गया था, चालीस वर्ष से अधिक आयु का था।
23 पतरस और यूहन्ना छूटकर अपने साथियों के पास आए, और जो कुछ प्रधान याजकों और प्राचीनों ने उनसे कहा था, उनको सुना दिया। 24 यह सुनकर, उन्होंने एक चित्त होकर ऊँचे शब्द से परमेश्वर से कहा, “हे प्रभु, तू वही है जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया। (निर्ग. 20:11, भज. 146:6) 25 तूने पवित्र आत्मा के द्वारा अपने सेवक हमारे पिता दाऊद के मुख से कहा,
‘अन्यजातियों ने हुल्लड़ क्यों मचाया?
और देश-देश के लोगों ने क्यों व्यर्थ बातें सोची?
26 प्रभु और उसके अभिषिक्त के विरोध में पृथ्वी के राजा खड़े हुए, और हाकिम एक साथ इकट्ठे हो गए।’ (भज. 2:1,2)
27 क्योंकि सचमुच तेरे पवित्र सेवक यीशु के विरोध में, जिसे तूने अभिषेक किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी अन्यजातियों और इस्राएलियों के साथ इस नगर में इकट्ठे हुए, (यशा. 61:1) 28 कि जो कुछ पहले से तेरी सामर्थ्य और मति से ठहरा था वही करें।
29 अब हे प्रभु, उनकी धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे कि तेरा वचन बड़े साहस से सुनाएँ। 30 और चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ा कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएँ।” 31 जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे हिल गया*, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन साहस से सुनाते रहे।
32 और विश्वास करनेवालों की मण्डली एक चित्त और एक मन के थे यहाँ तक कि कोई भी अपनी सम्पत्ति अपनी नहीं कहता था, परन्तु सब कुछ साझे का था। 33 और प्रेरित बड़ी सामर्थ्य से प्रभु यीशु के जी उठने की गवाही देते रहे और उन सब पर बड़ा अनुग्रह था।
34 और उनमें कोई भी दरिद्र न था, क्योंकि जिनके पास भूमि या घर थे, वे उनको बेच-बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्रेरितों के पाँवों पर रखते थे। 35 और जैसी जिसे आवश्यकता होती थी, उसके अनुसार हर एक को बाँट दिया करते थे।
36 और यूसुफ नामक, साइप्रस का एक लेवी था जिसका नाम प्रेरितों ने बरनबास अर्थात् (शान्ति का पुत्र) रखा था। 37 उसकी कुछ भूमि थी, जिसे उसने बेचा, और दाम के रुपये लाकर प्रेरितों के पाँवों पर रख दिए।
मंदिर के मुख्य पहरेदार
“उनके पास गए” अथवा “उनके पास पहुँच गए”
पतरस ने यीशु और उसके पुनरुत्थान के विषय में उपदेश दिया था। इस बात ने सदूकियों में क्रोध भर दिया था क्योंकि वे यीशु के पुनरुत्थान पर विश्वास नहीं करते थे।
विशेषकर पुरुषों की संख्या।
उन दिनों शाम के समय लोगों से तर्क-वितर्क न करने की परंपरा थी।
“पुरुषों की संख्या लगभग पांच हज़ार हो गयी थी” अथवा “पुरुषों की संख्या बढ़ कर लगभग पांच हज़ार हो गयी थी।”
“तुम्हें यह काम करने की सामर्थ्य किसने दी” (यूडीबी) अथवा “तुम्हें यह काम करने की सामर्थ्य कहाँ से मिली।” उन्हें यह मालूम था कि पतरस व यूहन्ना अपनी सामर्थ्य से उस व्यक्ति को चंगाई नहीं दे सकते थे।
“किसके सामर्थ देने से”
इस्राएलवासियों
में शुरू किये यहूदियों के संबोधन को पतरस आगे बढाता है
कोने के सिरे का पत्थर - यहाँ पर रूपक अलंकार का प्रयोग है। जिस प्रकार कोने को बुनियाद में लगाया जाता है और आगे के निर्माण के लिए उसे आधार की तरह लिया जाता है। यीशु हमारे उद्धार की एकमात्र बुनियाद है।
“उन्होंने” का आशय समूह के अगुओं से है।
“समझ गए” अथवा “जान गए”
“ये” का आशय यहाँ पतरस व यूहन्ना से है
“प्रशिक्षित” अथवा “औपचारिक शिक्षा से रहित”
“हम इस आश्चर्यकर्म को नकार नहीं सकते।” यरूशलेम का हर व्यक्ति उस व्यक्ति की चंगाई के बारे में जान गया था।।
अर्थात पतरस व पौलुस
“किसी से और कुछ न कहें”
हम विवश हैं कि ....वह कहें.
परमेश्वर के समक्ष भला है और उसे आदर देता है
अगुओं यह समझ नहीं आया कि जो लोग उस व्यक्ति की चंगाई के गवाह थे, उनके बीच बिना किसी उपद्रव के वे किस प्रकार पतरस और यूहन्ना को दंड दें
अगुओं ने उन्हें आगे और दंड देने की धमकी डी
यह बात सभी जानते थे कि वह एक अपाहिज था और उसे हाल ही में चंगाई मिली थी।
अपने साथियों के पास आए -वे अन्य विश्वासियों के पास गए
एक चित्त होकर ऊँचें शब्द से परमेश्वर से कहा -वे मन-सबुद्धि से एक थे
बेकार की बातें, अवास्तविक बातें
में, भजन संहिता में निहित राजा दाऊद पर शुरु किये अपने उद्धरण को पतरस आगे बढाता है
वे साथ हो लिए। उन्होंने अपनी सेनायें मिला ली।
विश्वासी जन में शुरू की अपनी प्रार्थना को आगे बढ़ाते हैं
दाऊद ने केवल गैर-यहूदी जातियों को शामिल किया था, लेकिन पतरस में इस्राएल और उसके शासकों को भी मसीह के विरोधियों में गिना
अर्थात यरूशलेम में
विश्वासी जन में शुरू की अपनी प्रार्थना को आगे बढ़ाते हैं
उनकी धमकियों को देख कर -इसी कारण से शिष्यों को परमेश्वर का वचन बोलने का हियाव दिया गया था।
यह शिष्यों का पवित्र आत्मा से भरने का परिणाम था
“विश्वास करनेवालों बहुत से लोग...”
इसका आशय है कि 1)परमेश्वर बहुत से विश्वासियों पर बहुत से वरदान और हियाव उंडेल रहा था या फिर 2) यरूशलेम के अन्य सभी लोग विश्वासियों को आदर की दृष्टि से देखते थे।
बहुत से विश्वासियों ने ऐसा एक बार नहीं, वरन बार-बार ऐसा किया
ऐसा करने के द्वारा विश्वासी यह वयक्त करते थे कि : 1) उनका मन-पर्तिवर्तन हो चुका है और यह कि 2) वरदानों को बांटने का अधिकार वे प्रेरितों को दे रहे थे
ऐसा लगता है कि विश्वासियों की आवश्यकताओं पर नज़र रखी जाती थी; बस किसी के कहने भर से उनसे सामान नहीं दिया जाता था।
कहानी के इस अंश में बरनबास का प्रवेश होता है। आगे चल कर वह लूका रचित प्रेरितों के कार्य की पुस्तक में बड़ी भूमिका निभाता है। कहानी में इस नए व्यक्ति के प्रवेश को व्यक्त करते समय अपनी भाषा में शब्दों के चुनाव पर विशेष ध्यान दें।
इस प्रकार देना विश्वासियों के मध्य आम प्रथा थी, और यह इस बात का प्रतीक थी कि उपहार को अपने अनुसार प्रयोग करने का अधिकार प्रेरितों को सौंप दिया गया है।
पतरस और यूहन्ना यीशु और उसके मरे हुओं में से जी उठने के बारे में शिक्षा दे रहे थे।
उन्होंने पतरस और यूहन्ना को गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया।
करीब पाँच हजार (बहुत से) लोगों ने विश्वास किया।
फिलिप्पुस की चार कुंवारी पुत्रियाँ थीं जो भविष्यद्वाणी करतीं थीं।
पतरस ने उत्तर दिया कि उसने यीशु मसीह के नाम से उस मनुष्य को मन्दिर में चंगा किया।
पतरस ने कहा कि यीशु के अलावा और कोई दूसरा नाम नहीं, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें।
अगुवे कुछ न कह सके क्योंकि जिस मनुष्य को चंगा किया गया था, वह पतरस और यूहन्ना के साथ खड़ा था।
यहूदी अगुवे ने पतरस और यूहन्ना को चेतावनी दी कि यीशु के विषय में न बोलें और न सिखलाएं।
पतरस और यूहन्ना ने उत्तर दिया कि यह तो उनसे हो नहीं सकता कि जो बातें उन्होंने सुनी और देखी है, वह न कहें।
विश्वासियों ने मांगा कि वे यीशु के नाम में बड़े हियाव से वचन को सुना सकें, और चिन्ह और अद्भुत काम कर सकें।
जब विश्वासी अपनी प्रार्थना समाप्त कर चुके तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे हिल गया, वे सब पवित्र-आत्मा से भर गए और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।
विश्वासियों का सब कुछ साझे का था, और जिनके पास सम्पत्ति थी उन्होंने उसे बेचा और उसका दाम लाकर प्रेरितों को दे दिया ताकि आवश्यकता के अनुसार उसे बाँट दिया जाए।
बरनबास नामक व्यक्ति का अर्थ है "शान्ति का पुत्र" ।
1 हनन्याह नामक एक मनुष्य, और उसकी पत्नी सफीरा ने कुछ भूमि बेची। 2 और उसके दाम में से कुछ रख छोड़ा; और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी, और उसका एक भाग लाकर प्रेरितों के पाँवों के आगे रख दिया।
3 परन्तु पतरस ने कहा, “हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली है कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े? 4 जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न थी? और जब बिक गई तो क्या तेरे वश में न थी? तूने यह बात अपने मन में क्यों सोची? तूने मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला है।” 5 ये बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा*, और प्राण छोड़ दिए; और सब सुननेवालों पर बड़ा भय छा गया। 6 फिर जवानों ने उठकर उसकी अर्थी बनाई और बाहर ले जाकर गाड़ दिया।
7 लगभग तीन घंटे के बाद उसकी पत्नी, जो कुछ हुआ था न जानकर, भीतर आई। 8 तब पतरस ने उससे कहा, “मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची थी?” उसने कहा, “हाँ, इतने ही में।”
9 पतरस ने उससे कहा, “यह क्या बात है, कि तुम दोनों प्रभु के आत्मा की परीक्षा के लिए एक साथ सहमत हो गए? देख, तेरे पति के गाड़नेवाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँगे।” 10 तब वह तुरन्त उसके पाँवों पर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए; और जवानों ने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया। 11 और सारी कलीसिया पर और इन बातों के सब सुननेवालों पर, बड़ा भय छा गया।
12 प्रेरितों के हाथों से बहुत चिन्ह और अद्भुत काम लोगों के बीच में दिखाए जाते थे, और वे सब एक चित्त होकर सुलैमान के ओसारे में इकट्ठे हुआ करते थे। 13 परन्तु औरों में से किसी को यह साहस न होता था कि, उनमें जा मिलें; फिर भी लोग उनकी बड़ाई करते थे।
14 और विश्वास करनेवाले बहुत सारे पुरुष और स्त्रियाँ प्रभु की कलीसिया में और भी अधिक आकर मिलते रहे*। 15 यहाँ तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला-लाकर, खाटों और खटोलों पर लिटा देते थे, कि जब पतरस आए, तो उसकी छाया ही उनमें से किसी पर पड़ जाए। 16 और यरूशलेम के आस-पास के नगरों से भी बहुत लोग बीमारों और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुओं को ला-लाकर, इकट्ठे होते थे, और सब अच्छे कर दिए जाते थे।
17 तब महायाजक और उसके सब साथी जो सदूकियों के पंथ के थे, ईर्ष्या से भर कर उठे। 18 और प्रेरितों को पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया।
19 परन्तु रात को प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर लाकर कहा, 20 “जाओ, मन्दिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।” 21 वे यह सुनकर भोर होते ही मन्दिर में जाकर उपदेश देने लगे। परन्तु महायाजक और उसके साथियों ने आकर महासभा को और इस्राएलियों के सब प्राचीनों को इकट्ठा किया, और बन्दीगृह में कहला भेजा कि उन्हें लाएँ।
22 परन्तु अधिकारियों ने वहाँ पहुँचकर उन्हें बन्दीगृह में न पाया, और लौटकर संदेश दिया, 23 “हमने बन्दीगृह को बड़ी सावधानी से बन्द किया हुआ, और पहरेवालों को बाहर द्वारों पर खड़े हुए पाया; परन्तु जब खोला, तो भीतर कोई न मिला।”
24 जब मन्दिर के सरदार और प्रधान याजकों ने ये बातें सुनीं, तो उनके विषय में भारी चिन्ता में पड़ गए कि उनका क्या हुआ! 25 इतने में किसी ने आकर उन्हें बताया, “देखो, जिन्हें तुम ने बन्दीगृह में बन्द रखा था, वे मनुष्य मन्दिर में खड़े हुए लोगों को उपदेश दे रहे हैं।”
26 तब सरदार, अधिकारियों के साथ जाकर, उन्हें ले आया, परन्तु बलपूर्वक नहीं, क्योंकि वे लोगों से डरते थे, कि उन पर पत्थराव न करें। 27 उन्होंने उन्हें फिर लाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया और महायाजक ने उनसे पूछा, 28 “क्या हमने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम इस नाम से उपदेश न करना? फिर भी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो।”
29 तब पतरस और, अन्य प्रेरितों ने उत्तर दिया, “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्त्तव्य है। 30 हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटकाकर मार डाला था। (व्य. 21:22-23) 31 उसी को परमेश्वर ने प्रभु और उद्धारकर्ता ठहराकर, अपने दाहिने हाथ से सर्वोच्च किया, कि वह इस्राएलियों को मन फिराव और पापों की क्षमा प्रदान करे। (लूका 24:47) 32 और हम इन बातों के गवाह हैं, और पवित्र आत्मा भी, जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है, जो उसकी आज्ञा मानते हैं।”
33 यह सुनकर वे जल उठे, और उन्हें मार डालना चाहा। 34 परन्तु गमलीएल* नामक एक फरीसी ने जो व्यवस्थापक और सब लोगों में माननीय था, महासभा में खड़े होकर प्रेरितों को थोड़ी देर के लिये बाहर कर देने की आज्ञा दी।
35 तब उसने कहा, “हे इस्राएलियों, जो कुछ इन मनुष्यों से करना चाहते हो, सोच समझ के करना। 36 क्योंकि इन दिनों से पहले थियूदास यह कहता हुआ उठा, कि मैं भी कुछ हूँ; और कोई चार सौ मनुष्य उसके साथ हो लिए, परन्तु वह मारा गया; और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हुए और मिट गए। 37 उसके बाद नाम लिखाई के दिनों में यहूदा गलीली उठा, और कुछ लोग अपनी ओर कर लिए; वह भी नाश हो गया, और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हो गए।
38 इसलिए अब मैं तुम से कहता हूँ, इन मनुष्यों से दूर ही रहो और उनसे कुछ काम न रखो; क्योंकि यदि यह योजना या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा; 39 परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़नेवाले ठहरो।”
40 तब उन्होंने उसकी बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना। 41 वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के सामने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे। 42 इसके बाद हर दिन, मन्दिर में और घर-घर में, वे लगातार सिखाते और प्रचार करते थे कि यीशु ही मसीह है।
अथवा ‘’लेकिन अब’’। कहानी में आये नए मोड़ का संकेत देने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया गया है। हमें अपनी भाषोचित अभिव्यक्ति का प्रयोग करना है।
यह उस मनुष्य का परिचय देने का एक तरीका है। ध्यान दें कि कहानी में किसी नए व्यक्ति के प्रवेश को आपकी भाषा में किस प्रकार व्यक्त किया जाता है।
बेच कर प्राप्त हुई रकम के विषय में उसने प्रेरितों से झूठ बोला। इसमें अन्तर्निहित जानकारी को उभार कर इस प्रकार भी लिख सकते हैं: “बेच कर प्राप्त हुई रकम में से उसने कुछ राशि चुपके से अपने पास रख ली।”
इस प्रकार देना विश्वासियों के मध्य आम प्रथा थी, और यह इस बात का प्रतीक थी कि उपहार को अपने अनुसार प्रयोग करने का अधिकार प्रेरितों को सौंप दिया गया है।
उसकी पत्नी भी जानती थी -अनुवाद करते समय हम यह भी लिख सकते हैं कि, “उसकी पत्नी को यह बात मालूम थी और वह ऐसा करने के लिए तैयार हो गयी।”
पतरस ने भाषाडम्बर से भरा यह प्रश्न हनन्याह को फटकारने के लिए पूछा था
इस प्रश्न को पूछने के द्वारा पतरस हनन्याह को यह याद दिलाना चाहता है कि : पैसे तब भी हनन्याह के ही थे और वे तब भी हनन्याह के वश में ही थे।
इस प्रश्न के द्वारा पतरस हनन्याह को फटकार लगा रहा है।
यहाँ पर शाब्दिक अर्थ का प्रयोग है, अर्थात “जवान उठ कर आये...” यह किसी काम को करने की पहल को व्यक्त करता है।
किसी की मृत्यु पर शव को अंतिम गाड़ने से पहले तैयार किया जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि हनन्याह के मामले में ऐसा नहीं किया गया।
यह कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है
पतरस ने उसे हाँ या ना में जवाब देने का आदेश दिया
यह कहानी हनन्याह के छल के विषय में है, न कि लेखा देने के विषय में। लूका ने भूमि के असल दाम का उल्लेख नहीं किया है।
यह वास्तविक प्रश्न नहीं है। इसे इस तरह भी अनूदित किया जा सकता है, कि “तुम दोनों ने आत्मा की परीक्षा लेने का एका किया है।”
यह “और वह मर गयी” के लिए शिष्टोक्ति है।
यह आलंकारिक भाषा है। वह हनन्याह को गाड़नेवाले के पैरों पर गिर पड़ी।
“बहुत से आश्चर्यकर्म हो रहे थे” (यूडीबी देखें)
अर्थात, “जो भी कलीसिया का हिस्सा थे, उनमे से किसी को”
यह मंदिर प्रांगण के भीतर स्थित था
“बहुत सम्मान व आदर देते थे”
अर्थात, पतरस की छाया पड़ने पर वे चंगे हो जाएँ
यहाँ से कहानी में बदलाव आता है। इस बदलाव को दिखाते समय अपनी भाषा का एकदम सटीक और सही प्रयोग करें।
“ईर्ष्या” या कि “आक्रोश।” सदूकियों की ईर्ष्या का मुख्य कारण था प्रेरितों को मिल रही ख्याति।
अर्थात “प्रेरितों को बंदी बना कर।”
“उन्हें जेल से बाहर निकाल कर कहा”
रात में मंदिर बंद रहता था। प्रेरितों ने स्वर्गदूत की बात पर यथासम्भव तेज़ी से अमल किया।
(वचन के इस हिस्से के लिए कोई नोट्स नहीं है।)
“वे समझ नहीं पाए” या कि “वे विमूढ़ हो गए”
अर्थात “वे जो उन्होंने अभी-अभी सुनी थी” (कि प्रेरित जेल में नहीं थे)
‘तुमने’ यहाँ बहुवचन में है
कि हम पर पथराव न करें -अनुवाद करते समय इसे यूं भी लिखा जा सकता है कि, “कि मंदिर के रक्षकों पर पथराव न करें।”
“उस व्यक्ति की मृत्यु के लिए हमें ज़िम्मेदार ठहराना चाहते हों”
आज्ञा -आज्ञा (बहु.)
तुमने....भर दिया है -तुमने (बहु.)
इस्राएलियों को मन फिराव की शकित और पापों की क्षमा प्रदान करें -अनुवाद करते समय यूं भी लिखा सकते हैं,कि “इस्राएलियों को अपने पापों से मन फिराने और अपने पापों की क्षमा प्राप्त करने का अवसर दिया।”
और पवित्र आत्मा भी -पवित्र आत्मा को एक व्यक्ति के रूप में संबोधित किया गया है जो यीशु के आश्चर्यकर्म के कार्यों को प्रमाणित कर सकता है।
प्रेरितों द्वारा फटकारे जाने से परिषद् के सदस्यों को बहुत अधिक क्रोध आया।
“इस विषय में ध्यान से सोंचना” (यूडीबी), या फिर, “इस विषय में सावधान रहना”
में शुरू की अपनी बात को गमलीएल आगे बढाता है।
यीशु के लिए कष्ट भोगना एक सौभाग्य था।
हनन्याह और सफीरा ने यह कहकर झूठ बोला कि वे अपनी सम्पत्ति को बेचकर पूरा दाम दे रहे थे जबकि उन्होंने उसके दाम का एक ही भाग दिया।
पतरस ने बताया कि हनन्याह और सफीरा ने पवित्र-आत्मा से झूठ बोला।
परमेश्वर ने हनन्याह और सफीरा दोनों को मार दिया।
कलीसिया में हनन्याह और सफीरा के बारे में सुनने वालों पर बड़ा भय छा गया।
कुछ लोग बीमारों को सड़कों पर ले जा रहे थे, ताकि पतरस की छाया ही उन पर पड़ जाए, और दूसरे लोग दूसरे शहरों से यरूशलेम में बीमारों को ला रहे थे।
सब सदूकी डाह से भर उठे और प्रेरितों को बन्दीगृह में बन्द कर दिया।
एक स्वर्गदूत आया और उसने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर निकाला।
प्यादों में उन्हें बन्दीगृह में न पाया जबकि बन्दीगृह बड़ी चौकसी से बन्द किया गया था और पहरेदार द्वारों पर खड़े हुए थे।
प्यादे डरते थे कि कहीं लोग उन्हें पत्थरवाह न करें।
प्रेरितों ने उत्तर दिया, "हमें मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए।"
प्रेरितों ने उत्तर दिया कि महायाजक और महासभा के सदस्य यीशु को मार डालने के उत्तरदायी थे।
महासभा के सदस्य यह सुनकर जल गये और उन्हें मार डालना चाहा।
गमलीएल ने महासभा को प्रेरितों को अकेला छोड़ देने की सलाह दी।
गमलीएल ने महासभा को चेतावनी दी कि वे परमेश्वर से लड़ाई करना छोड़ दें।
महासभा ने प्रेरितों को पीटा और उन्हें यीशु के नाम से बातें न करने की आज्ञा देकर जाने दिया।
प्रेरित इस बात से आनन्दित हुए कि वे यीशु के नाम के लिए निरादर के योग्य ठहरे।
प्रेरितों ने प्रतिदिन उपदेश दिया और सुसमाचार सुनाया कि यीशु ही मसीह है।
1 उन दिनों में जब चेलों की संख्या बहुत बढ़ने लगी, तब यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानियों पर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रतिदिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती।
2 तब उन बारहों ने चेलों की मण्डली को अपने पास बुलाकर कहा, “यह ठीक नहीं कि हम परमेश्वर का वचन छोड़कर खिलाने-पिलाने की सेवा में रहें। 3 इसलिए हे भाइयों, अपने में से सात सुनाम पुरुषों को जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हो, चुन लो, कि हम उन्हें इस काम पर ठहरा दें। 4 परन्तु हम तो प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।”
5 यह बात सारी मण्डली को अच्छी लगी, और उन्होंने स्तिफनुस नामक एक पुरुष को जो विश्वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था, फिलिप्पुस, प्रुखुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया* वासी नीकुलाउस को जो यहूदी मत में आ गया था, चुन लिया। 6 और इन्हें प्रेरितों के सामने खड़ा किया और उन्होंने प्रार्थना करके उन पर हाथ रखे।
7 और परमेश्वर का वचन फैलता गया* और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के अधीन हो गया।
8 स्तिफनुस अनुग्रह और सामर्थ्य से परिपूर्ण होकर लोगों में बड़े-बड़े अद्भुत काम और चिन्ह दिखाया करता था। 9 तब उस आराधनालय में से जो दासत्व-मुक्त कहलाती थी, और कुरेनी और सिकन्दरिया और किलिकिया और आसिया के लोगों में से कई एक उठकर स्तिफनुस से वाद-विवाद करने लगे।
10 परन्तु उस ज्ञान और उस आत्मा का जिससे वह बातें करता था, वे सामना न कर सके। 11 इस पर उन्होंने कई लोगों को उकसाया जो कहने लगे, “हमने इसे मूसा और परमेश्वर के विरोध में निन्दा* की बातें कहते सुना है।”
12 और लोगों और प्राचीनों और शास्त्रियों को भड़काकर चढ़ आए और उसे पकड़कर महासभा में ले आए। 13 और झूठे गवाह खड़े किए, जिन्होंने कहा, “यह मनुष्य इस पवित्रस्थान और व्यवस्था के विरोध में बोलना नहीं छोड़ता। (यिर्म. 26:11) 14 क्योंकि हमने उसे यह कहते सुना है, कि यही यीशु नासरी इस जगह को ढा देगा, और उन रीतियों को बदल डालेगा जो मूसा ने हमें सौंपी हैं।” 15 तब सब लोगों ने जो महासभा में बैठे थे, उसकी ओर ताक कर उसका मुख स्वर्गदूत के समान देखा*।
यहाँ एक नए प्रकरण की शुरुआत हो रही है। अपनी भाषा के अनुसार उपयुक्त शब्दों का चुनाव करें।
“संख्या में बहुत वृद्धि होने लगी”
ये वे यहूदी थे जिन्होंने अपना लगभग पूरा जीवन इस्राएल से बाहर, रोमी साम्राज्य में कहीं बिताया था, और वे यूनानी भाषा बोलते हुए बड़े हुए थे। उनकी भाषा और संस्कृति भी इस्राएल के मूल यहूदियों से थोड़ी अलग थी। नोट: यहाँ पर “यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदी” लिखना बेहतर होगा।
ये इस्राएल में पले-बड़े अरामी बोलनेवाले यहूदी थे। इस समय तक कलीसिया में केवल यहूदी और यहूदी मत में आनेवाले लोगों को गिना जाता था।
सही मायनों में विधवा वह स्त्री है जिसके पति की मृत्यु हो चुकी है, आयु ढलने के कारण शादी नहीं कर सकती, और जिसकी देखभाल करनेवाला कोई सगा-सम्बन्धी न हो।
प्रेरितों को दी जानेवाली रकम का एक हिस्सा प्रारंभिक कलीसिया की विधवाओं के लिए भोजन खरीदने में लगाया जाता था।
“अवहेलना की गयी” या फिर, “भुला दिया गया।” इतने सारे ज़रूरतमंदों के बीच कभी-कभार ज़रूरतमंद छूट जाते थे।
इसका आशय लोगों को भोजन कराने से है।
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) उन लोगों में तीन गुण हों--अच्छी प्रतिष्ठा, आत्मा की भरपूरी, और बुद्धि की भरपूरी, अथवा 2) लोग अपने दो गुणों के लिए जाने जाते हों---आत्मा की परिपूर्णता, और बुद्धि की परिपूर्णता (यूडीबी)।
“लोग जिन्हें अच्छा मानते हों” अथवा “लोग जिन पर विश्वास करते थे”
उपयुक्त स्थान में अपनी भाषा की विशिष्ट अभिव्यक्ति का प्रयोग करें
उपयुक्त स्थान में अपनी भाषा में बहुवचन के लिए प्रयुक्त होनेवाले शब्दों का प्रयोग करें
यह बात साड़ी मंडली को मंज़ूर/स्वीकार्य थी
ये सभी यूनानी नाम हैं जिससे इस बात का संकेत मिलता है कि चुने गए अधिकतर अथवा सभी लोग यूनानी-यहूदी विश्वासियों में से थे।
अर्थात यहूदी मत को धारण करनेवाला एक गैर-यहूदी व्यक्ति
सात लोगों को आशीष दिया और उन्हें कार्य करने का उत्तरदायित्व व अधिकार दिया
इसका प्रभाव और अधिक फैलता गया
अर्थात यीशु के आज्ञापालकों व अनुयायियों की गिनती
अर्थात “इस नए मत के मार्ग का अनुकरण किया”
आराधनालय से जो लिबिरतीनों की कहलाती थी -:संभवतः ये अलग-अलग स्थान के पूर्व दास थे। यह स्पष्ट नहीं है कि आराधनालय में मौजूद बाकी लोग उस आराधनालय का हिस्सा थे या कि बस स्तिफनुस से वाद-विवाद का हिस्सा थे।
स्तिफनुस से वाद-विवाद करने लगे -“स्तिफनुस से तर्क करने लगे” (यूडीबी) अथवा “स्तिफनुस से चर्चा करने लगे”
“वे उससे बहस न कर सके”
अर्थात पवित्र आत्मा
अर्थात “कई लोगों को इस बात के लिए राज़ी किया कि वे”
अनुवाद करते समय इसे यूं भी लिख सकते हैं कि, “परमेश्वर और मूसा की व्यवस्था के विरोध में”
गुस्सा भड़काकर
“दबोच कर”
“उसे एकटक देखा।” यहाँ पर आलंकारिक भाषा का प्रयोग है।
यहाँ उपमा का प्रयोग है जिसका आशय “दमकता देखा” से है, जो कि यहाँ उल्लिखित नहीं है। अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं कि, “उसका चेहरा स्वर्गदूत के चेहरे सा दमक रहा था” (यूडीबी)।
यूनानी भाषा बोलने वालों ने शिकायत की कि दैनिक भोजन वितरण में उनकी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती।
चेलों (विश्वासियों) ने सात मनुष्य इस काम के लिए चुने।
इन सात मनुष्यों को सुनाम वाला, पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण होना था।
प्रेरित प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहे।
प्रेरितों ने प्रार्थना की और उनके सिर पर हाथ रखे।
यरूशलेम में चेलों की गिनती याजकों समेत बहुत बढ़ती गई।
अविश्वासी यहूदी उस ज्ञान और आत्मा से जिससे स्तिफनुस बातें करता था, सामना न कर सके।
झूठे गवाहों ने दावा किया कि स्तिफनुस ने कहा कि यीशु नासरी इस जगह को ढा देगा और मूसा की रीतियों को बदल डालेगा।
उन्होंने उसका मुखड़ा एक स्वर्गदूत का सा देखा।
1 तब महायाजक ने कहा, “क्या ये बातें सत्य है?” 2 उसने कहा,
“हे भाइयों, और पिताओं सुनो, हमारा पिता अब्राहम हारान में बसने से पहले जब मेसोपोटामिया में था; तो तेजोमय परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया। 3 और उससे कहा, ‘तू अपने देश और अपने कुटुम्ब से निकलकर उस देश में चला जा, जिसे मैं तुझे दिखाऊँगा।’ (उत्प. 12:1)
4 तब वह कसदियों के देश से निकलकर हारान में जा बसा; और उसके पिता की मृत्यु के बाद परमेश्वर ने उसको वहाँ से इस देश में लाकर बसाया जिसमें अब तुम बसते हो, (उत्प. 12:5) 5 और परमेश्वर ने उसको कुछ विरासत न दी, वरन् पैर रखने भर की भी उसमें जगह न दी, यद्यपि उस समय उसके कोई पुत्र भी न था। फिर भी प्रतिज्ञा की, ‘मैं यह देश, तेरे और तेरे बाद तेरे वंश के हाथ कर दूँगा।’ (उत्प. 13:15, उत्प. 15:18, उत्प. 16:1, उत्प. 24:7, व्य. 2:5, व्य. 11:5)
6 और परमेश्वर ने यों कहा, ‘तेरी सन्तान के लोग पराये देश में परदेशी होंगे, और वे उन्हें दास बनाएँगे, और चार सौ वर्ष तक दुःख देंगे।’ (उत्प. 15:13-14, निर्ग. 2:22) 7 फिर परमेश्वर ने कहा, ‘जिस जाति के वे दास होंगे, उसको मैं दण्ड दूँगा; और इसके बाद वे निकलकर इसी जगह मेरी सेवा करेंगे।’ (उत्प. 15:14, निर्ग. 3:12) 8 और उसने उससे खतने की वाचा* बाँधी; और इसी दशा में इसहाक उससे उत्पन्न हुआ; और आठवें दिन उसका खतना किया गया; और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह कुलपति उत्पन्न हुए। (उत्प. 17:10-11, उत्प. 21:4)
9 “और कुलपतियों ने यूसुफ से ईर्ष्या करके उसे मिस्र देश जानेवालों के हाथ बेचा; परन्तु परमेश्वर उसके साथ था। (उत्प. 37:11, उत्प. 37:28, उत्प. 39:2-3, उत्प. 45:4) 10 और उसे उसके सब क्लेशों से छुड़ाकर मिस्र के राजा फ़िरौन के आगे अनुग्रह और बुद्धि दी, उसने उसे मिस्र पर और अपने सारे घर पर राज्यपाल ठहराया। (उत्प. 39:21, उत्प. 41:40, उत्प. 41:43, उत्प. 41:46, भज. 105:21)
11 तब मिस्र और कनान के सारे देश में अकाल पड़ा; जिससे भारी क्लेश हुआ, और हमारे पूर्वजों को अन्न नहीं मिलता था। (उत्प. 41:54, 55, उत्प. 42:5) 12 परन्तु याकूब ने यह सुनकर, कि मिस्र में अनाज है, हमारे पूर्वजों को पहली बार भेजा। (उत्प. 42:2) 13 और दूसरी बार यूसुफ अपने भाइयों पर प्रगट हो गया, और यूसुफ की जाति फ़िरौन को मालूम हो गई। (उत्प. 45:1, उत्प. 45:3, उत्प. 45:16)
14 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब और अपने सारे कुटुम्ब को, जो पचहत्तर व्यक्ति थे, बुला भेजा। (उत्प. 45:9-11, उत्प. 45:18-19, निर्ग. 1:5, व्य. 10:22) 15 तब याकूब मिस्र में गया; और वहाँ वह और हमारे पूर्वज मर गए। (उत्प. 45:5,6, उत्प. 49:33, निर्ग. 1:6) 16 उनके शव शेकेम में पहुँचाए जाकर उस कब्र में रखे गए, जिसे अब्राहम ने चाँदी देकर शेकेम में हामोर की सन्तान से मोल लिया था। (उत्प. 23:16-17, उत्प. 33:19, उत्प. 49:29-30, उत्प. 50:13, यहो. 24:32)
17 “परन्तु जब उस प्रतिज्ञा के पूरे होने का समय निकट आया, जो परमेश्वर ने अब्राहम से की थी, तो मिस्र में वे लोग बढ़ गए; और बहुत हो गए। 18 तब मिस्र में दूसरा राजा हुआ जो यूसुफ को नहीं जानता था। (निर्ग. 1:7-8) 19 उसने हमारी जाति से चतुराई करके हमारे बाप-दादों के साथ यहाँ तक बुरा व्यवहार किया, कि उन्हें अपने बालकों को फेंक देना पड़ा कि वे जीवित न रहें। (निर्ग. 1:9-10, निर्ग. 1:18, निर्ग. 1:22) 20 उस समय मूसा का जन्म हुआ; और वह परमेश्वर की दृष्टि में बहुत ही सुन्दर था; और वह तीन महीने तक अपने पिता के घर में पाला गया। (निर्ग. 2:2) 21 परन्तु जब फेंक दिया गया तो फ़िरौन की बेटी ने उसे उठा लिया, और अपना पुत्र करके पाला। (निर्ग. 2:5, निर्ग. 2:10) 22 और मूसा को मिस्रियों की सारी विद्या पढ़ाई गई, और वह वचन और कामों में सामर्थी था।
23 “जब वह चालीस वर्ष का हुआ, तो उसके मन में आया कि अपने इस्राएली भाइयों से भेंट करे। (निर्ग. 2:11) 24 और उसने एक व्यक्ति पर अन्याय होते देखकर, उसे बचाया, और मिस्री को मारकर सताए हुए का पलटा लिया। (निर्ग. 2:12) 25 उसने सोचा, कि उसके भाई समझेंगे कि परमेश्वर उसके हाथों से उनका उद्धार करेगा, परन्तु उन्होंने न समझा।
26 दूसरे दिन जब इस्राएली आपस में लड़ रहे थे, तो वह वहाँ जा पहुँचा; और यह कहके उन्हें मेल करने के लिये समझाया, कि हे पुरुषों, ‘तुम तो भाई-भाई हो, एक दूसरे पर क्यों अन्याय करते हो?’ 27 परन्तु जो अपने पड़ोसी पर अन्याय कर रहा था, उसने उसे यह कहकर धक्का दिया, ‘तुझे किस ने हम पर अधिपति और न्यायाधीश ठहराया है? 28 क्या जिस रीति से तूने कल मिस्री को मार डाला मुझे भी मार डालना चाहता है?’ (निर्ग. 2:13-14)
29 यह बात सुनकर, मूसा भागा और मिद्यान देश में परदेशी होकर रहने लगा: और वहाँ उसके दो पुत्र उत्पन्न हुए। (निर्ग. 2:15-22, निर्ग. 18:3-4)
30 “जब पूरे चालीस वर्ष बीत गए, तो एक स्वर्गदूत ने सीनै पहाड़ के जंगल में उसे जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में दर्शन दिया। (निर्ग. 3:1) 31 मूसा ने उस दर्शन को देखकर अचम्भा किया, और जब देखने के लिये पास गया, तो प्रभु की यह वाणी सुनाई दी, (निर्ग. 3:2-3) 32 “मैं तेरे पूर्वज, अब्राहम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर हूँ।” तब तो मूसा काँप उठा, यहाँ तक कि उसे देखने का साहस न रहा। 33 तब प्रभु ने उससे कहा, ‘अपने पाँवों से जूती उतार ले, क्योंकि जिस जगह तू खड़ा है, वह पवित्र भूमि है। (निर्ग. 3:5) 34 मैंने सचमुच अपने लोगों की दुर्दशा को जो मिस्र में है, देखी है; और उनकी आहें और उनका रोना सुन लिया है; इसलिए उन्हें छुड़ाने के लिये उतरा हूँ। अब आ, मैं तुझे मिस्र में भेजूँगा। (निर्ग. 2:24, निर्ग. 3:7-10)
35 “जिस मूसा को उन्होंने यह कहकर नकारा था, ‘तुझे किस ने हम पर अधिपति और न्यायाधीश ठहराया है?’ उसी को परमेश्वर ने अधिपति और छुड़ानेवाला ठहराकर, उस स्वर्गदूत के द्वारा जिस ने उसे झाड़ी में दर्शन दिया था, भेजा। (निर्ग. 2:14, निर्ग. 3:2) 36 यही व्यक्ति मिस्र और लाल समुद्र और जंगल में चालीस वर्ष तक अद्भुत काम और चिन्ह दिखा दिखाकर उन्हें निकाल लाया। (निर्ग. 7:3, निर्ग. 14:21, गिन. 14:33) 37 यह वही मूसा है, जिस ने इस्राएलियों से कहा, ‘परमेश्वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिये मेरे जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा।’ (व्य. 18:15-18)
38 यह वही है, जिस ने जंगल में मण्डली के बीच उस स्वर्गदूत के साथ सीनै पहाड़ पर उससे बातें की, और हमारे पूर्वजों के साथ था, उसी को जीवित वचन मिले, कि हम तक पहुँचाए। (निर्ग. 19:1-6, निर्ग. 20:1-17, व्य. 5:4-22, व्य. 9:10-11) 39 परन्तु हमारे पूर्वजों ने उसकी मानना न चाहा; वरन् उसे ठुकराकर अपने मन मिस्र की ओर फेरे, (निर्ग. 23:20-21, गिन. 14:3-4) 40 और हारून से कहा, ‘हमारे लिये ऐसा देवता बना, जो हमारे आगे-आगे चलें; क्योंकि यह मूसा जो हमें मिस्र देश से निकाल लाया, हम नहीं जानते उसे क्या हुआ?’ (निर्ग. 32:1, निर्ग. 32:23)
41 उन दिनों में उन्होंने एक बछड़ा बनाकर, उसकी मूरत के आगे बलि चढ़ाया; और अपने हाथों के कामों में मगन होने लगे। (निर्ग. 32:4,6) 42 अतः परमेश्वर ने मुँह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया*, कि आकाशगण पूजें, जैसा भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखा है,
‘हे इस्राएल के घराने,
क्या तुम जंगल में चालीस वर्ष तक पशु बलि और अन्नबलि मुझ ही को
चढ़ाते रहे? (यिर्म. 7:18, यिर्म. 8:2, यिर्म. 19:13)
43 और तुम मोलेक* के तम्बू
और रिफान देवता के तारे को लिए फिरते थे,
अर्थात् उन मूर्तियों को जिन्हें तुम ने दण्डवत् करने के लिये बनाया था।
अतः मैं तुम्हें बाबेल के परे ले जाकर बसाऊँगा।’ (आमो. 5:25-26)
44 “साक्षी का तम्बू जंगल में हमारे पूर्वजों के बीच में था; जैसा उसने ठहराया, जिस ने मूसा से कहा, ‘जो आकार तूने देखा है, उसके अनुसार इसे बना।’ (निर्ग. 25:1-40, निर्ग. 25:40, निर्ग. 27:21, गिन. 1:50) 45 उसी तम्बू को हमारे पूर्वजों ने पूर्वकाल से पा कर यहोशू के साथ यहाँ ले आए; जिस समय कि उन्होंने उन अन्यजातियों पर अधिकार पाया, जिन्हें परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों के सामने से निकाल दिया, और वह दाऊद के समय तक रहा। (यहो. 3:14-17, यहो. 18:1, यहो. 23:9, यहो. 24:18) 46 उस पर परमेश्वर ने अनुग्रह किया; अतः उसने विनती की, कि मैं याकूब के परमेश्वर के लिये निवास स्थान बनाऊँ। (2 शमू. 7:2-16, 1 राजा. 8:17-18, 1 इति. 17:1-14, 2 इति. 6:7-8, भज. 132:5)
47 परन्तु सुलैमान ने उसके लिये घर बनाया। (1 राजा. 6:1,2, 1 राजा. 6:14, 1 राजा. 8:19-20, 2 इति. 3:1, 2 इति. 5:1, 2 इति. 6:2, 2 इति. 6:10)
48 परन्तु परमप्रधान हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने कहा,
49 ‘प्रभु कहता है, स्वर्ग मेरा सिंहासन
और पृथ्वी मेरे पाँवों तले की चौकी है,
मेरे लिये तुम किस प्रकार का घर बनाओगे?
और मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा?
50 क्या ये सब वस्तुएँ मेरे हाथ की बनाई नहीं?’ (यशा. 66:1-2)
51 “हे हठीले, और मन और कान के खतनारहित लोगों, तुम सदा पवित्र आत्मा का विरोध करते हो। जैसा तुम्हारे पूर्वज करते थे, वैसे ही तुम भी करते हो। (निर्ग. 32:9, निर्ग. 33:3-5, लैव्य. 26:41, गिन. 27:14, यशा. 63:10, यिर्म. 6:10, यिर्म. 9:26) 52 भविष्यद्वक्ताओं में से किसको तुम्हारे पूर्वजों ने नहीं सताया? और उन्होंने उस धर्मी के आगमन का पूर्वकाल से सन्देश देनेवालों को मार डाला, और अब तुम भी उसके पकड़वानेवाले और मार डालनेवाले हुए (2 इति. 36:16) 53 तुम ने स्वर्गदूतों के द्वारा ठहराई हुई व्यवस्था तो पाई, परन्तु उसका पालन नहीं किया।”
54 ये बातें सुनकर वे जल गए और उस पर दाँत पीसने लगे। (अय्यू. 16:9, भज. 35:16, भज. 37:12, भज. 112:10) 55 परन्तु उसने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर की महिमा को* और यीशु को परमेश्वर की दाहिनी ओर खड़ा देखकर 56 कहा, “देखों, मैं स्वर्ग को खुला हुआ, और मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़ा हुआ देखता हूँ।”
57 तब उन्होंने बड़े शब्द से चिल्लाकर कान बन्द कर लिए, और एक चित्त होकर उस पर झपटे। 58 और उसे नगर के बाहर निकालकर पत्थराव करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े शाऊल नामक एक जवान के पाँवों के पास उतार कर रखे।
59 और वे स्तिफनुस को पत्थराव करते रहे, और वह यह कहकर प्रार्थना करता रहा, “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर।” (भज. 31:5) 60 फिर घुटने टेककर ऊँचे शब्द से पुकारा, “हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा।” और यह कहकर सो गया।
परिषद् के सदस्यों को अपने परिवार के सदस्यों के सामन अभिनन्दन देकर स्तिफनुस उनके प्रति अपना आदर व्यक्त कर रहा था।
“हमारा पिता अब्राहम” कहने के द्वारा स्तिफनुस अपने सुननेवालों को भी शामिल कर रहा था
“अपने” का आशय अब्राहम से है (एकवचन)।
में शुरू किये परिषद् के संबोधन और बचाव को स्तिफनुस आगे बढ़ाता है
“तुम” का आशय यहूदी परिषद् के सदस्यों और सभी सुननेवालों से है
वह भूमि सदा अब्राहम की रहेगी
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
तेरे वंशज उनके दास होंगे”
कहानी अब्राहम की ओर मुड़ती है
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
“याकूब के ज्येष्ठ पुत्र” अथवा “युसूफ के बड़े भाई”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
“एक अकाल पड़ा,” भूमि ने कुछ न उपजा
“युसूफ के बड़े भाई”
अनुवाद करते समय इसे “भोजन” लिख सकते हैं
प्रगट हो गया -युसूफ ने स्वयं को अपने भाइयों पर ज़ाहिर कर दिया।
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
वह और हमारे बापदादे -अर्थात “याकूब और उसके बेटे, और हमारे बापदादे”
उनके शव शकेम में पहुंचाए जाकर - अर्थात “याकूब के वंशज, याकूब और उसके बेटों के शव को शकेम लेकर गए”
धन देकर
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
परमेश्वर द्वारा अब्राहम के साथ की प्रतिज्ञा को पूरे करने का समय निकट आया
यह आलंकारिक भाषा है। “युसूफ” का आशय यहाँ असल में युसूफ द्वारा किये कार्यों से है।
“हमारी” से आशय स्तिफनुस और उसके सुननेवालों से भी है।
“बुरा बर्ताव किया” अथवा, “शोषण किया”
अपने बालको को फेंक दिया ताकि वे मर जाएँ।
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
इन शब्दों का प्रयोग कहानी में नए व्यक्ति, मूसा के प्रवेश की भूमिका के रूप में हुआ है।
“परमेश्वर की दृष्टि में” का प्रयोग अतिश्योक्ति के रूप में हुआ है।
अर्थात “जब उसे फिरौन के आदेश पर फेंक दिया गया”
अर्थात “उसे लेपालक पुत्र बना लिया” (संभवतः यह आधिकारिक रूप से नहीं किया गया था)
“अपने पुत्र की तरह पाला”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
मूसा को....सारी विद्या सिखाई गयी अर्थात “मिस्रियों ने मूसा को सारी विद्या सिखाई”।
यहाँ पर अतिश्योक्ति का प्रयोग है। इसका आशय है कि कि “मिस्रियों की बहुत सी विद्या सिखाई गयी।
अर्थात ‘उसकी बातें और काम बहुत प्रभावी थे,” या फिर, “उसकी बातों और कामों में बहुत सामर्थ था” (यूडीबी), अथवा “उसकी बातों और कार्यों में बहुत प्रभाव था”
उनके रहन-सहन के विषय में पता लगाऊं
मूसा ने उस मिस्री को इतनी ज़ोर से मारा कि उसकी मृत्यु हो गयी
उसने विचारा
मेरे द्वारा
अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं कि, “उनका उद्धार कर रहा है”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
यह लड़ते हुए दो इस्राएली पुरुषों से कही गयी बात है
अन्याय का आशय व्यक्ति से किया गया दुर्व्यवहार और बेईमानी से है
यह वास्तविक प्रश्न नहीं है। इसका आशय है कि “तुम्हे बीच में आने का कोई अधिकार नहीं है”।
ऐसा कह हर उस इस्राएली ने मूसा को बहार का घोषित किया है।
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
इससे ज्ञात होता है कि, “मूसा ने सुन लिया था कि इस्राएली पुरुष जानते थे कि एक दिन पहले उसने एक मिस्री की ह्त्या की थी।”
यहाँ यह स्पष्ट है कि स्तिफनुस के सामने बैठे लोग जानते थे कि मूसा ने एक मिद्यानी स्त्री विवाह किया था।
“मूसा के मिस्र से भागने चालीस सालों के बाद
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
मूसा यह देख कर हैरान था कि झाड़ी में आग होने के बावजूद वह भस्म नहीं हो रही थी। यह बात स्तिफनुस के सुननेवालों को पहले से ज्ञात थी।
इसका संभावित अर्थ यह है कि मूसा पहले तो देखने के लिए उसके पास गया, लेकिन फिर भय के कारण पीछे हट गया
मूसा भयभीत हो गया
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
इसका आशय है कि परमेश्वर वहां उपस्थित है, और परमेश्वर के आसपास की सारी भूमि को परमेश्वर पवित्र जानता है, या कि, परमेश्वर की उपस्थिति से भूमि पवित्र हो गयी।
“देखने” पर ज़ोर दिया गया है
अब्राहम, इसहाक, और याकूब के वंशज
मैं स्वय उनके छुटकारे पर दृष्टि रखूंगा
35-38 तक, वचन में मूसा के विषय में आपस में सम्बंधित वाक्यों की श्रृंखला है। हर वाक्य की शुरुआत “जिस मूसा” या “यह वही मूसा”, अथवा यह वही है” जैसे शब्दों से होती है। संभव हो तो मूसा को उजागर करने के लिए ऐसे ही कथनों का प्रयोग करें।
यहाँ पर में घटित हुई घटना का सन्दर्भ है
इसका अनुवाद करते समय में किये अनुवाद का सन्दर्भ लें
“उन पर शासन करने और उन्हें दासत्व से छुडाने”
“स्वर्गदूत के माध्यम से”
“बीहड़ में इस्राएलियों के चालीस सालों के वास के दौरान”
“तुम्हारे अपने लोगों में से” (यूडीबी)
यह खंड में मूसा पर ज़ोर देने के लिए कहे गए वाक्यों को आगे बढ़ाता है
“यह वही मूसा है जो जंगल में इस्राएलियों के बीच” (यूडीबी)
अनुवाद करते समय इसे सक्रिय रूप में ऐसे भी लिख सकते हैं कि, “उसी से परमेश्वर ने जीवित वचन हमें देने के लिए कहे।”
संभावित आशय हैं, 1)“अखंड सन्देश” या फिर 2) “जीवनदायी शब्द।”
यह अलंकार मूसा को नकारे जाने पर ज़ोर देता है। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं को, “उसकी अगुआई को नकार कर”
“जब उन्होंने मिस्र की ओर लौटने का निर्णय किया”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में आगे कहता है कि
“उन्होंने बछड़े की एक मूरत बनायी”
“आकाश की ज्योतियों को पूजे”
यहाँ अलंकार का प्रयोग है, और आशय इस्राएल की समस्त जाति/देश से है।
यह एक आलंकारिक प्रश्न है जो यह कह रहा है कि वे सारी बालियाँ परमेश्वर को नहीं चढ़ाई गयी थीं। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि “वो पशुबलि व अन्नबलि तुमने मुझे नहीं चढ़ाई।”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है। स्तिफनुस यहाँ आमोस के उस उद्धरण को आगे बढाता है जिसकी शुरुआत उसने में की थी
झूठे देवता मोलेक के तम्बू
रिफान देवता के प्रतीक तारे
उन्होंने पूजने के लिए मोलेक और रिफान देवताओं की मूर्तियाँ बनाईं थी।
“मैं तुम्हें बाबुल से हटा दूंगा”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है।
10 आज्ञाएं खुदी पत्थर की तख्तियों वाला वाचा का संदूक
इसमें अन्य जातियों की भूमि, भवन, फसल, पशु और बाकी सभी तरह की संपत्ति शामिल है जिन पर इस्राएल जय प्राप्त कर रहा था।
वाचा का वह संदूक, इस्राएल के राजा दाऊद के समय तक तम्बू में रहा था
दाऊद चाहता था कि वाचा का संदूक यरूशलेम में रहे, न कि इस्राएल का चक्कर लगाते तम्बू में।
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है।
अर्थात “लोगों द्वारा बनाए गए घरों में।”
परमेश्वर की उपस्थिति की महानता और विशालता का बखान करते समय भविष्यद्वक्ता कहता है कि पूरा विश्व उसका सिंहासन है, और एक मनुष्य के इतने इतने विराट और महान परमेश्वर का निवास स्थान बनाना असंभव है क्योंकि यह पृथ्वी तो बस उसके पैरों की पीढी जिंतनी बड़ी है।
मेरे लिए तुम किस प्रकार का घर बनाओगे यह कोई वास्तविक प्रश्न नहीं, वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। असल में इसका आशय है कि “तुम मेरे योग्य घर नहीं बना सकते”
अर्थात “मेरे विश्राम के योग्य स्थान कहीं नहीं है!”
यह वास्तविक प्रश्न नहीं वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। असल में इसका आशय है कि “इन सभी वस्तुएं स्वयं मैं ही ने बनाई हैं।”
स्तिफनुस में शुरू किये परिषद् के संबोधन और अपने मत के पक्ष में अपनी बात जारी रखता है।
यहाँ स्तिफनुस उन यहूदी अगुओं को झिडकी दे रहा है।
“मन से अवज्ञाकारी लोगों।” शायद स्तिफनुस यहाँ उनकी तुलना गैर-यहूदियों से कर रहा है, जो उन्हें अपमानजनक लगता हो।
यह वास्तविक प्रश्न न होकर भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। इसका आशय असल में यह है कि “तुम्हारे बापदादों ने हरेक भविष्यद्वक्ता को सताया है।”
इसका आशय यीशु मसीह से है।
“उस धर्मी के हत्यारे” अथवा, “मसीह के हत्यारे।”
“वे अत्यंत क्रोधित हो उठे” के लिए भाषोक्ति का प्रयोग किया गया है।
ये बातें सुनकर -यहाँ कहानी में एक मोड़ है; इस बिंदु पर उपदेश समाप्त होता है और परिषद् प्रतिक्रिया करती है।
दांत पीसने लगे - यह एक मुहावरा है, जिसका प्रयोग भड़के हुए क्रोध के चरम यह घृणा को व्यक्त करता है। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि, “वे क्रोध में भड़क उठे और दांत पीसने लगे।”
“ऊपर आकाश की ओर देखा।” ऐसा प्रतीत होता है कि स्तिफ्नुस के आलावा और किसी को यह दर्शन नहीं दिखाई दिया था।
ध्यान दें कि यीशु परमेश्वर की दाहिनी ओर “बैठे” नहीं वरन “खड़े” थे। राजा का इस प्रकार किसी अतिथि के लिए खड़ा होना एक सम्मानजनक बात थी।
प्रकाश के समान परमेश्वर की महिमा अथवा तेज/भव्यता। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि, “परमेश्वर की ओर से एक तेज़ प्रकाश।”
स्तिफनुस यहाँ यीशु को “मनुष्य के पुत्र” की उपाधि से जोड़ रहा है।
उन्होंने अपने कान बंद कर लिए ताकि उन्हें स्तिफनुस की बातें न सुनाई दें।
“परिषद् ने स्तिफनुस को पकड़ कर जबरन नगर के बाहर ले गए”
कपड़ों से आशय जैकेट अथवा कोट के समान ऊपर पहननेवाले अंगरखों और लबादों से है।
रखवाली के लिए कपड़े “सामने” रख दिए।
“मेरी आत्मा को ले”
“मर गया” को कोमलता से अभिव्यक्त किया गया है।
स्तिफनुस ने अपना इतिहास परमेश्वर के अब्राहम को दिए गए वायदे से प्रारम्भ करते हुए बताना शुरु किया।
परमेश्वर ने अब्राहम और उसके बाद उसके वंश को वह देश देने की प्रतिज्ञा की थी।
परमेश्वर की प्रतिज्ञा असम्भव इसलिए लगती थी, क्योंकि अब्राहम के पास कोई सन्तान न थी।
परमेश्वर ने कहा अब्राहम के वंशज पराये देश में चार सौ वर्ष तक दास रहेंगे।
परमेश्वर ने अब्राहम से खतने की वाचा बाँधी।
उसके भाई उससे डाह करते थे और उसके मिस्र देश जाने वालों के हाथ बेच दिया।
परमेश्वर ने फिरौन को अनुग्रह और बुद्धि दी और उसने यूसुफ को मिस्र देश पर हाकिम ठहरा दिया।
याकूब ने अपने पुत्रों को मिस्र में भेजा क्योंकि उसने सुना कि वहाँ अनाज था।
यूसुफ ने अपने भाइयों द्वारा याकूब को मिस्र आने के लिए कहला भेजा था।
मिस्र में इस्राएलियों की संख्या बढ़ गयी और वे बहुत हो गये।
मिस्र के नये राजा ने इस्राएलियों को अपने नवजात शिशुओं को फेंक देने की जबरदस्ती की ताकि वे जीवित न रहें।
फिरौन की बेटी ने उसे उठा लिया और अपने बेटे की तरह उसे पाला।
मूसा को मिस्रियों की सारी विद्या पढ़ाई गई।
मूसा ने इस्राएली को बचाया और मिस्री को मार दिया।
मूसा वहां से भाग कर मिद्यान देश को चला गया।
मूसा ने जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में एक स्वर्गदूत को देखा।
परमेश्वर ने मूसा को मिस्र जाने की आज्ञा दी क्योंकि परमेश्वर इस्राएलियों को बचाने जा रहा था।
मूसा ने जंगल में इस्राएलियों की अगुवाई चालीस वर्ष तक की।
मूसा ने इस्राएलियों से भविष्यद्वाणी की कि ‘परमेश्वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिए मुझसा भविष्यद्वक्ता उठाएगा।
इस्राएलियों ने एक बछड़ा बनाया और उसकी मूरत के आगे बलि चढ़ाया।
परमेश्वर ने उनसे मुँह मोड़ लिया और उन्हें छोड़ दिया कि आकाशगण पूजें।
परमेश्वर ने इस्राएलियों को बाबुल के परे ले जाकर बसाने के लिए कहा।
इस्राएलियों ने जंगल में साक्षी का तंबू बनाया।
परमेश्वर ने अन्य जातियों को इस्राएलियों के साम्हने से निकाल दिया।
दाऊद ने परमेश्वर के लिए निवास-स्थान बनाने को कहा और सुलैमान ने परमेश्वर के लिए एक घर बनाया।
परम-प्रधान का सिंहासन स्वर्ग है।
स्तिफनुस ने लोगों पर पवित्र-आत्मा का विरोध करने का आरोप लगाया।
स्तिफनुस ने लोगों से कहा कि उन्होंने उस धर्मी जन के साथ विश्वासघात करके पकड़वा दिया और मार डाला।
महासभा के सदस्य जल गये और स्तिफनुस पर दाँत पीसने लगे।
स्तिफनुस ने कहा कि उसने यीशु को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़ा हुआ देखा।
महासभा के सदस्य एक चित्त होकर उस पर झपटे, और उसे नगर से बाहर निकालकर पत्थरवाह करने लगे।
गवाहों ने अपने बाहरी कपड़े शाऊल नामक एक जवान के पाँव के पास रख दिए।
स्तिफनुस ने परमेश्वर से कहा कि यह पाप उन पर मत लगा।
1 शाऊल उसकी मृत्यु के साथ सहमत था।
उसी दिन यरूशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव होने लगा और प्रेरितों को छोड़ सब के सब यहूदिया और सामरिया देशों में तितर-बितर हो गए। 2 और भक्तों ने स्तिफनुस को कब्र में रखा; और उसके लिये बड़ा विलाप किया। 3 पर शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर-घर घुसकर पुरुषों और स्त्रियों को घसीट-घसीट कर बन्दीगृह में डालता था।
4 मगर जो तितर-बितर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते हुए फिरे। 5 और फिलिप्पुस* सामरिया नगर में जाकर लोगों में मसीह का प्रचार करने लगा।
6 जो बातें फिलिप्पुस ने कहीं उन्हें लोगों ने सुनकर और जो चिन्ह वह दिखाता था उन्हें देख-देखकर, एक चित्त होकर मन लगाया। 7 क्योंकि बहुतों में से अशुद्ध आत्माएँ बड़े शब्द से चिल्लाती हुई निकल गई, और बहुत से लकवे के रोगी और लँगड़े भी अच्छे किए गए। 8 और उस नगर में बड़ा आनन्द छा गया।
9 इससे पहले उस नगर में शमौन* नामक एक मनुष्य था, जो जादू-टोना करके सामरिया के लोगों को चकित करता और अपने आप को कोई बड़ा पुरुष बनाता था। 10 और सब छोटे से लेकर बड़े तक उसका सम्मान कर कहते थे, “यह मनुष्य परमेश्वर की वह शक्ति है, जो महान कहलाती है।” 11 उसने बहुत दिनों से उन्हें अपने जादू के कामों से चकित कर रखा था, इसलिए वे उसको बहुत मानते थे।
12 परन्तु जब उन्होंने फिलिप्पुस का विश्वास किया जो परमेश्वर के राज्य और यीशु मसीह के नाम का सुसमाचार सुनाता था तो लोग, क्या पुरुष, क्या स्त्री बपतिस्मा लेने लगे। 13 तब शमौन ने स्वयं भी विश्वास किया और बपतिस्मा लेकर फिलिप्पुस के साथ रहने लगा और चिन्ह और बड़े-बड़े सामर्थ्य के काम होते देखकर चकित होता था।
14 जब प्रेरितों ने जो यरूशलेम में थे सुना कि सामरियों ने परमेश्वर का वचन मान लिया है तो पतरस और यूहन्ना को उनके पास भेजा। 15 और उन्होंने जाकर उनके लिये प्रार्थना की ताकि पवित्र आत्मा पाएँ। 16 क्योंकि पवित्र आत्मा अब तक उनमें से किसी पर न उतरा था, उन्होंने तो केवल प्रभु यीशु के नाम में बपतिस्मा लिया था। 17 तब उन्होंने उन पर हाथ रखे और उन्होंने पवित्र आत्मा पाया।
18 जब शमौन ने देखा कि प्रेरितों के हाथ रखने से पवित्र आत्मा दिया जाता है, तो उनके पास रुपये लाकर कहा, 19 “यह शक्ति मुझे भी दो, कि जिस किसी पर हाथ रखूँ, वह पवित्र आत्मा पाए।”
20 पतरस ने उससे कहा, “तेरे रुपये तेरे साथ नाश हों, क्योंकि तूने परमेश्वर का दान रुपयों से मोल लेने का विचार किया। 21 इस बात में न तेरा हिस्सा है, न भाग; क्योंकि तेरा मन परमेश्वर के आगे सीधा नहीं। (भज. 78:37) 22 इसलिए अपनी इस बुराई से मन फिराकर प्रभु से प्रार्थना कर, सम्भव है तेरे मन का विचार क्षमा किया जाए।
23 क्योंकि मैं देखता हूँ, कि तू पित्त की कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है।” (व्य. 29:18, विला. 3:15) 24 शमौन ने उत्तर दिया, “तुम मेरे लिये प्रभु से प्रार्थना करो कि जो बातें तुम ने कहीं, उनमें से कोई मुझ पर न आ पड़े।”
25 अतः पतरस और यूहन्ना गवाही देकर और प्रभु का वचन सुनाकर, यरूशलेम को लौट गए, और सामरियों के बहुत से गाँवों में सुसमाचार सुनाते गए।
26 फिर प्रभु के एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस से कहा, “उठकर दक्षिण की ओर उस मार्ग पर जा, जो यरूशलेम से गाज़ा को जाता है। यह रेगिस्तानी मार्ग है। 27 वह उठकर चल दिया, और तब, कूश देश का एक मनुष्य आ रहा था, जो खोजा* और कूशियों की रानी कन्दाके का मंत्री और खजांची था, और आराधना करने को यरूशलेम आया था।
28 और वह अपने रथ पर बैठा हुआ था, और यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ता हुआ लौटा जा रहा था। 29 तब आत्मा ने फिलिप्पुस से कहा, “निकट जाकर इस रथ के साथ हो ले।” 30 फिलिप्पुस उसकी ओर दौड़ा और उसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ते हुए सुना, और पूछा, “तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?” 31 उसने कहा, “जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं कैसे समझूँ?” और उसने फिलिप्पुस से विनती की, कि चढ़कर उसके पास बैठे।
32 पवित्रशास्त्र का जो अध्याय वह पढ़ रहा था, वह यह था :
“वह भेड़ के समान वध होने को पहुँचाया गया,
और जैसा मेम्ना अपने ऊन कतरनेवालों के सामने चुपचाप रहता है, वैसे ही
उसने भी अपना मुँह न खोला,
33 उसकी दीनता में उसका न्याय होने नहीं पाया,
और उसके समय के लोगों का वर्णन कौन करेगा?
क्योंकि पृथ्वी से उसका प्राण उठा लिया जाता है।” (यशा. 53:7-8)
34 इस पर खोजे ने फिलिप्पुस से पूछा, “मैं तुझ से विनती करता हूँ, यह बता कि भविष्यद्वक्ता यह किस के विषय में कहता है, अपने या किसी दूसरे के विषय में?” 35 तब फिलिप्पुस ने अपना मुँह खोला, और इसी शास्त्र से आरम्भ करके उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया।
36 मार्ग में चलते-चलते वे किसी जल की जगह पहुँचे, तब खोजे ने कहा, “देख यहाँ जल है, अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है?” 37 फिलिप्पुस ने कहा, “यदि तू सारे मन से विश्वास करता है तो ले सकता है।” उसने उत्तर दिया, “मैं विश्वास करता हूँ कि यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र है।” 38 तब उसने रथ खड़ा करने की आज्ञा दी, और फिलिप्पुस और खोजा दोनों जल में उतर पड़े, और उसने उसे बपतिस्मा दिया।
39 जब वे जल में से निकलकर ऊपर आए, तो प्रभु का आत्मा फिलिप्पुस को उठा ले गया, और खोजे ने उसे फिर न देखा, और वह आनन्द करता हुआ अपने मार्ग चला गया। (1 राजा. 18:12) 40 पर फिलिप्पुस अश्दोद में आ निकला, और जब तक कैसरिया में न पहुँचा, तब तक नगर-नगर सुसमाचार सुनाता गया।
लूका यहाँ पर कहानी को स्तिफनुस से शाऊल की ओर मोड़ रहा है। इस मोड़ को व्यक्त करने के लिए अनुवाद के समय अपनी भाषा के उपयुक्त शब्दों का चुनाव करें।
उन्हें बलपूर्वक ले जाया गया
अर्थात स्तिफनुस की मृत्यु के दिन
यरुशलेम में रहनेवाले बहुत से अथवा अधिकाँश विश्वासी तितर-बितर हो गए को अतिश्योक्ति के साथ व्यक्त किया गया है।
इसका आशय ही कि प्रेरित वहीँ यरूशलेम में ही बने रहे और वे इस बड़े सताव से बच गए थे।
“परमेश्वर का भय रखनेवाले लोगों ने” अथवा, “वे जो परमेश्वर का भय रखते थे”
“उसके लिए बहुत शोक मनाया” (यूडीबी)
शाऊल द्वारा कई घरों में घुसने की बात को यहाँ अतिश्योक्ति के साथ व्यक्त किया गया है। उसके पास यरूशलेम के हर घर में घुसने की अनुमति नहीं थी।
शाऊल ने यहूदी विश्वासियों को उनके घर से बलपूर्वक निकाल कर उन्हें जेल में डाल दिया।
“वे जो बड़े सताव के कारण तितर-बितर हुए थे।” तितर-बितर होने का कारण वह सताव था जिसके विषय में पहले बताया जा चुका है।
सामरिया नगर : यह स्पष्ट नहीं है कि यहाँ सामरिया के एक नगर (यूएलबी) की बात हो रही है या कि सामरिया नगर (यूडीबी) की ही बात हो रही है। इसलिए, अनुवाद करते समय “सामरिया नगर” लिखना ही सही रहेगा।
“सामरिया नगर के बहुत से लोगों में से।” स्थान की स्थिति पहले ही स्पष्ट की जा चुकी है।
फिलिप्पुस के माध्यम से होनेवाली चंगाइयों के चलते लोग सुनने लगे थे। इस बात को समझ लेना चाहिए।
लोगों के आनंद का कारण फिलिप्पुस के द्वारा मिलनेवाली चंगाइयां थी।
“शमौन नाम का एक मनुष्य था” में इन शब्दों के साथ ही कहानी में एक नए पात्र का प्रवेश है। आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि आपकी भाषा में नए पात्रों का प्रवेश दिखाने के लिए कौन से शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
अर्थात “सामरिया नगर”
यहाँ पर आशय सामरिया के सभी लोगों से प्रतीत होता है, लेकिन यह अतिश्योक्ति है। इसका आशय है “सामरिया के बहुत से लोगों” से है।
लोग कहते थे कि शमौन “महान शक्ति” नाम की अलौकिक शक्ति है।
बपतिस्मा लेने लगे -फिलिप्पुस ने नए विश्वासियों को बपतिस्मा दिया।
“फिलिप्पुस को चिन्ह और महान आश्चर्यकर्म करते देख आकर अचंभित होता था।”
सामरियों ने -सामरिया प्रदेश के बहुत से लोगों (यूडीबी) के स्थान पर “सामरियों ने” का प्रयोग किया गया है। आलंकारिक भाषा।
अर्थात “पतरस व यूहन्ना ने जाकर”
“पतरस और यूहन्ना ने जाकर सामरिया के विश्वासियों के लिए प्रार्थना की”
“कि सामरिया के विश्वासी लोग पवित्र आत्मा पा सकें।”
“फिलिप्पुस ने सामरिया के विश्वासियों को बस बपतिस्मा दिया था।”
तब उन्होंने उन पर हाथ रखे - अर्थात, स्तिफनुस द्वारा दिए सुसमाचार के उपदेश पर विश्वास करनेवालों पर हाथ रखे।
.....कि प्रेरितों के हाथ रखने से पवित्र आत्मा मिलता है.....
“कि जब मैं लोगों पर अपना हाथ रखूँ, तो उन्हें पवित्र आत्मा मिल जाए”
ये सभी सर्वनाम शमौन के लिए प्रयोग किये गए हैं
“तेरे विचार सही नहीं हैं”
अर्थात् लोगों पर हाथ रखने के द्वारा पवित्र आत्मा देने का दान
अर्थात “पवित्र आत्मा देने के दान को खरीदने का विचार”
उपमा अलंकार का प्रयोग। इसका आशय “बहुत अधिक डाह करने” से है। (यूडीबी)
“पाप का दास” अथवा “केवल पाप कर सकता है”
जो बातें तुमने कहीं, उनमें से कोई -यहाँ सन्दर्भ पतरस की झिड़की का है, “तेरी चांदी तेरे साथ नाश हो।”
“तुमने” का आशय पतरस व यूहन्ना से है।
पतरस व यूहन्ना ने सामरियों को वही बताया था जो वे यीशु के बारे में व्यक्तिगत तौर पर जानते थे।
पतरस व यूहन्ना ने सामरियों को बताया कि यीशु के विषय में वचन के कहता है
अर्थात “सामरिया के कई गाँवों के निवासियों को”
कहानी में नयी घटना का प्रारंभ।
ये शब्द कहानी में किसी नए पात्र के आगमन का संकेत देते हैं। अनुवाद करते समय अपनी भाषा के यथोचित शब्दों का चुनाव करें।
यहाँ पर ज़ोर उस व्यक्ति के नपुंसक होने पर नहीं, वरन उसके इथियोपिया के उच्च अधिकारी होने पर है।
जिस प्रकार मिस्र के राजाओं को फिरौन कहते थे, वैसे ही इथियोपिया की रानी को कन्दाके की उपाधि से संबोधित किया जाता था।
यहाँ पर “घोड़ागाड़ी” शब्द का प्रयोग अधिक उपयुक्त है। रथ को प्रायः युद्ध के सन्दर्भ में इस्तेमाल किया जाता था, न कि यातायात के वाहन के सन्दर्भ में।
अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं कि, “यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक में से पढ़ रहा था।” यह पुस्तक बाइबिल के पुराने नियम में है।
अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं, कि “तू जो पढ़ रहा है, क्या तुझे उसका अर्थ भी मालूम है?” इथियोपिया का वह वासी पढ़ सकता था और बुद्धिमान था। यहाँ पर आत्मिक समझ की बात हो रही है।
यह कोई वास्तविक प्रश्न नहीं है, वरन आलंकारिक भाषा का प्रयोग है। उसके कहने का आशय है कि “जब तक कोई मेरा मार्गदर्शन नहीं करेगा, तब तक मैं इसे नहीं समझ सकता।”
इसका आशय यह भी है कि फिलिप्पुस ने उसके साथ यात्रा करना स्वीकार कर लिया था।
जैसा मेम्ना अपने ऊन कतरनेवालों के सामने चुपचाप रहता है -ऊन कतरनेवाला व्यक्ति भेड़ के ऊन कतरता है ताकि उसका तरह-तरह से प्रयोग किया जा सके।
“उसका अपमान किया गया और उसका उचित न्याय नहीं किया”
“उस खोजे को यीशु के सुसमाचार की शिक्षा दी”
यह कोई वास्तविक प्रश्न नहीं है। इसका आशय है कि, “अब मुझे बपतिस्मा देने से तुझे कोई नहीं रोक सकता।”
यह पद हटा दिया गया है क्योंकि कुछ प्राचीन, और अधिक विश्वसनीय शास्त्रों में यह पद नहीं है।
“खोजे ने दोबारा कभी फिलिप्पुस को न देखा”
इस बात के कोई संकेत नहीं मिलते कि जहाँ फिलिप्पुस उस इथियोपियावासी से मिला था, वहां से लेकर अश्दोद तक वह यात्रा करके गया था। गाजा के ओर जाते मार्ग में वह अचानक ही अदृश्य हुआ और अश्दोद में दोबारा से दिखाई दिया।
फिलिप्पुस की कहानी यहाँ कैसरिया में समाप्त होती है
शाऊल स्तिफनुस के वध से सहमत था।
जिस दिन स्तिफनुस को पत्थरवाह किया गया उस दिन यरूशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव होने लगा।
यरूशलेम में विश्वासी यहूदिया और सामरिया देशों में तितर-बितर हो गये और सुसमाचार सुनाते हुए फिरे।
जब चेलों ने फिलिप्पुस द्वारा किए गए चिन्हों को देखा तो लोगों ने एक चित्त होकर मन लगाया।
जब उन्होंने उसका जादू-टोना देखा तो एक चित्त होकर मन लगाया।
शमौन ने भी विश्वास किया और बपतिस्मा लिया।
सामरिया में विश्वासियों ने पवित्र-आत्मा पाया।
शमौन ने प्रेरितों को रुपए दिए ताकि उसके बदले में उसको हाथ रखकर पवित्र-आत्मा देने का वरदान मिले।
पतरस ने कहा कि शमौन पित्त की सी कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है।
एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस को दक्षिण की ओर रेगिस्तानी मार्ग पर जाने को कहा जो गाजा को जाता है।
फिलिप्पुस कूश देश से अपने रथ पर बैठकर और यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़कर आते हुए एक महान अधिकारी खोजा से मिला।
फिलिप्पुस ने उस मनुष्य से पूछा, "तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?"
उस मनुष्य ने फिलिप्पुस को रथ में आकर वह समझाने को कहा जो वह पढ़ रहा था।
वह मनुष्य भेड़ के समान वध होने को पहुंचाया जाता है, किन्तु अपना मुंह नहीं खोलता।
उस मनुष्य ने फिलिप्पुस से पूछा कि क्या वह भविष्यद्वक्ता अपने विषय में कह रहा है या किसी दूसरे मनुष्य के विषय में।
फिलिप्पुस ने समझाया कि धर्मशास्त्र के यशायाह में वह मनुष्य यीशु था।
फिलिप्पुस और खोजा दोनों पानी में उतरे और फिलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया।
जब फिलिप्पुस पानी से बाहर आया तो प्रभु का आत्मा फिलिप्पुस को उठा ले गया।
जब खोजा पानी से बाहर आया तो वह आनन्द करते हुए अपने मार्ग पर चला गया।
1 शाऊल* जो अब तक प्रभु के चेलों को धमकाने और मार डालने की धुन में था, महायाजक के पास गया। 2 और उससे दमिश्क* के आराधनालयों के नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियाँ माँगी, कि क्या पुरुष, क्या स्त्री, जिन्हें वह इस पंथ पर पाए उन्हें बाँधकर यरूशलेम में ले आए।
3 परन्तु चलते-चलते जब वह दमिश्क के निकट पहुँचा, तो एकाएक आकाश से उसके चारों ओर ज्योति चमकी, 4 और वह भूमि पर गिर पड़ा, और यह शब्द सुना, “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?”
5 उसने पूछा, “हे प्रभु, तू कौन है?” उसने कहा, “मैं यीशु हूँ; जिसे तू सताता है। 6 परन्तु अब उठकर नगर में जा, और जो तुझे करना है, वह तुझ से कहा जाएगा।” 7 जो मनुष्य उसके साथ थे, वे चुपचाप रह गए; क्योंकि शब्द तो सुनते थे, परन्तु किसी को देखते न थे।
8 तब शाऊल भूमि पर से उठा, परन्तु जब आँखें खोलीं तो उसे कुछ दिखाई न दिया और वे उसका हाथ पकड़ के दमिश्क में ले गए। 9 और वह तीन दिन तक न देख सका, और न खाया और न पीया।
10 दमिश्क में हनन्याह नामक एक चेला था, उससे प्रभु ने दर्शन में कहा, “हे हनन्याह!” उसने कहा, “हाँ प्रभु।” 11 तब प्रभु ने उससे कहा, “उठकर उस गली में जा, जो ‘सीधी’ कहलाती है, और यहूदा के घर में शाऊल नामक एक तरसुस वासी को पूछ ले; क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है, 12 और उसने हनन्याह नामक एक पुरुष को भीतर आते, और अपने ऊपर हाथ रखते देखा है; ताकि फिर से दृष्टि पाए।”
13 हनन्याह ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैंने इस मनुष्य के विषय में बहुतों से सुना है कि इसने यरूशलेम में तेरे पवित्र लोगों के साथ बड़ी-बड़ी बुराइयाँ की हैं; 14 और यहाँ भी इसको प्रधान याजकों की ओर से अधिकार मिला है, कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सब को बाँध ले।” 15 परन्तु प्रभु ने उससे कहा, “तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्राएलियों के सामने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है। 16 और मैं उसे बताऊँगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा-कैसा दुःख उठाना पड़ेगा।”
17 तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, “हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात् यीशु, जो उस रास्ते में, जिससे तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।” 18 और तुरन्त उसकी आँखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया; 19 फिर भोजन करके बल पाया।
वह कई दिन उन चेलों के साथ रहा जो दमिश्क में थे।
20 और वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है। 21 और सब सुननेवाले चकित होकर कहने लगे, “क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो यरूशलेम में उन्हें जो इस नाम को लेते थे नाश करता था, और यहाँ भी इसलिए आया था, कि उन्हें बाँधकर प्रधान याजकों के पास ले जाए?” 22 परन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे-देकर कि यीशु ही मसीह है, दमिश्क के रहनेवाले यहूदियों का मुँह बन्द करता रहा।
23 जब बहुत दिन बीत गए, तो यहूदियों ने मिलकर उसके मार डालने की युक्ति निकाली। 24 परन्तु उनकी युक्ति शाऊल को मालूम हो गई: वे तो उसके मार डालने के लिये रात दिन फाटकों पर घात में लगे रहे थे। 25 परन्तु रात को उसके चेलों ने उसे लेकर टोकरे में बैठाया, और शहरपनाह पर से लटकाकर उतार दिया।
26 यरूशलेम में पहुँचकर उसने चेलों के साथ मिल जाने का उपाय किया परन्तु सब उससे डरते थे, क्योंकि उनको विश्वास न होता था, कि वह भी चेला है। 27 परन्तु बरनबास ने उसे अपने साथ प्रेरितों के पास ले जाकर उनसे कहा, कि इसने किस रीति से मार्ग में प्रभु को देखा, और उसने इससे बातें की; फिर दमिश्क में इसने कैसे साहस से यीशु के नाम का प्रचार किया।
28 वह उनके साथ यरूशलेम में आता-जाता रहा। 29 और निधड़क होकर प्रभु के नाम से प्रचार करता था; और यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों के साथ बातचीत और वाद-विवाद करता था; परन्तु वे उसे मार डालने का यत्न करने लगे। 30 यह जानकर भाइयों ने उसे कैसरिया में ले आए, और तरसुस को भेज दिया।
31 इस प्रकार सारे यहूदिया, और गलील, और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती गई।
32 फिर ऐसा हुआ कि पतरस हर जगह फिरता हुआ, उन पवित्र लोगों के पास भी पहुँचा, जो लुद्दा* में रहते थे।
33 वहाँ उसे ऐनियास नामक लकवे का मारा हुआ एक मनुष्य मिला, जो आठ वर्ष से खाट पर पड़ा था। 34 पतरस ने उससे कहा, “हे ऐनियास! यीशु मसीह तुझे चंगा करता है। उठ, अपना बिछौना उठा।” तब वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ। 35 और लुद्दा और शारोन के सब रहनेवाले उसे देखकर प्रभु की ओर फिरे।
36 याफा* में तबीता अर्थात् दोरकास नामक एक विश्वासिनी रहती थी, वह बहुत से भले-भले काम और दान किया करती थी। 37 उन्हीं दिनों में वह बीमार होकर मर गई; और उन्होंने उसे नहलाकर अटारी पर रख दिया।
38 और इसलिए कि लुद्दा याफा के निकट था, चेलों ने यह सुनकर कि पतरस वहाँ है दो मनुष्य भेजकर उससे विनती की, “हमारे पास आने में देर न कर।” 39 तब पतरस उठकर उनके साथ हो लिया, और जब पहुँच गया, तो वे उसे उस अटारी पर ले गए। और सब विधवाएँ रोती हुई, उसके पास आ खड़ी हुई और जो कुर्ते और कपड़े दोरकास ने उनके साथ रहते हुए बनाए थे, दिखाने लगीं।
40 तब पतरस ने सब को बाहर कर दिया, और घुटने टेककर प्रार्थना की; और शव की ओर देखकर कहा, “हे तबीता, उठ।” तब उसने अपनी आँखें खोल दी; और पतरस को देखकर उठ बैठी। 41 उसने हाथ देकर उसे उठाया और पवित्र लोगों और विधवाओं को बुलाकर उसे जीवित और जागृत दिखा दिया। 42 यह बात सारे याफा में फैल गई; और बहुतों ने प्रभु पर विश्वास किया। 43 और पतरस याफा में शमौन नामक किसी चमड़े के धन्धा करनेवाले के यहाँ बहुत दिन तक रहा।
कहानी पर फिलिप्पुस से हट कर शाऊल में केन्द्रित हो जाती है। “इस बीच शाऊल” (यूडीबी)
“घात” के स्थान पर हम यूं भी लिख सकते हैं : “अब बी प्रभु के चेलों को धमका रहा था, और उन्हें घात भी कर रहा था”।
“महा याजक से अनुमोदन की चिट्ठियां मांगीं”
“वह” का आशय शाऊल से है।
अर्थात “जिन्हें भी वह यीशु मसीह की शिक्षाओं का अनुकरण करते पाता”
“वह उन्हें यरूशलेम में बंधक बना कर ले आये।” पौलुस के उद्देश्य को स्पष्ट करने के लिए हम यह भी जोड़ सकते हैं कि, “ताकि यहूदी अगुवें उनका न्याय करें और दंड दे सकें।”
(महा याजक द्वारा चिट्ठियाँ देने के बाद , वह दमिश्क के लिए निकल पड़ा)
शाऊल इस समय दमिश्क की ओर यात्रा कर रहा है
कहानी में अचानक आनेवाले बदलाव को व्यक्त करने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया गया है।
आकाश से
यह सपष्ट नहीं है कि 1)”शाऊल स्वयं भूमि पर गिर पड़ा” या कि 2) “उस ज्योति के कारण वह भूमि पर गिर गया था” या 3) “शाऊल बेसुध सा होकर गिर पड़ा था।” यह तो स्पष्ट है कि शाऊल का गिरना संयोग नहीं था।
इस प्रश्न के द्वारा शाऊल को प्रभु झिड़की दे रहे थे। अनुवाद करते समय हम ऐसे भी लिख सकते हैं, कि “तू मुझे सता रहा है।”
“प्रभु” का आशय यहाँ 1) प्रभु, अथवा 2)स्वामी या कि “महोदय” हो सकता है, क्योंकि इस समय तक शाऊल को यह ज्ञात नहीं था कि उसका सामना यीशु मसीह से हुआ है।
“उठ और दमिश्क के नगर में जा....”
कोई तुझे बता देगा
ये सभी एकवचन हैं।
ज्योति का अनुभव केवल शाऊल को हुआ था।
शाऊल अँधा हो गया था
“उसने न खाने और पीने का फैसला किया” अथवा, “वह न खा सका और न पी सका”, क्योंकि उसे “भूख न थी।”
कहानी में एक नए पात्र के प्रवेश को दर्शाने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया गया है।
यीशु का एक चेला जिसने यीशु की आज्ञा मानते हुए शाऊल के पास गया, और उस पर हाथ रख कर उसे चंगाई दी।
“प्रभु ने हनन्याह से कहा”
यहूदा दमिश्क में उस घर का मालिक था जहां हनन्याह रुका था। हालाँकि नए नियम में बहुत से हनन्याह हैं, लेकिन संभव है कि यह हनन्याह हमें दोबारा दिखाई नहीं देता।
“तरसुस के नगर का एक वासी”
यह स्पष्ट है कि इस समय तक शाऊल का अधिकार केवल यहूदियों तक सीमित था।
“चुना हुआ पात्र” का आशय सेवा के लिए अलग किया है। अनुवाद करते समय ऐसे भी लिख सकते हैं, कि “मैंने इसे अपनी सेवा के लिए चुना है।”
“मेरा नाम प्रगट करने के लिए” का आशय यीशु के लिए बोलने और उससे जुड़ना है। अनुवाद करते समय हम “मेरे बारे में बोलने के लिए” भी लिख सकते हैं।
अर्थात “लोगों के मेरे विषय में बताने के लिए।”
हनन्याह ने शाऊल पर अपना हाथ रखकर कहा
हालाँकि यात्रा के दौरान शाऊल के साथ और लोग भी थे, लेकिन “तुझे” का आशय केवल शाऊल (एकवचन) से है।
इसे सक्रिय वाक्यांश के रूप में भी लिख सकते हैं, “उसी ने मुझे भेजा है कि तू फिर से देखने लगे और पवित्र आत्मा तुझमे भर जाए।”
“मछली के शरीर के छिलके जैसे कुछ गिरे”
अनुवाद करते समय ऐसे भी लिख सकते हैं, कि “वह उठा और हनन्याह ने उसे बप्तिस्मा दिया।”
“वह” अर्थात शाऊल
“वह” अर्थात यीशु।
अतिशयोक्ति का प्रयोग है। “सब” के स्थान पर “सुननेवाले कई लोगों” लिख सकते हैं।
यह वास्तविक प्रश्न नहीं वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। यहाँ पूरा ज़ोर इस बात पर है कि विश्वासियों को सताने वाला शाऊल ही था। इसे यूं भी लिख सकते हैं, कि “यह वही है जिसने यीशु का नाम लेनेवालों को यरूशलेम में नाश किया था।
“उसे” का आशय शाऊल से है।
इसे सक्रिय वाक्यांश के रूप में लिख सकते हैं, जैसे कि, “लेकिन किसी ने शाऊल को इस युक्ति की जानकारी दे दी।”
इस नगर के चारो ओर एक दीवार थी। आने-जाने के लिए लोगों को नगर के फाटक का इस्तेमाल करना होता था।
यीशु के विषय में शाऊल के उपदेश पर विश्वास करने और उसकी शिक्षा को माननेवाले लोग।
“सब” एक अतिशयोक्ति है। इसका आशय बहुत से या अधिकाँश से है। अनुवाद करते समय हम यूं लिख सकते हैं, कि “लगभग सभी उससे डरते थे।”
“परन्तु बरनबास ने शाऊल को साथ लिया और”
अर्थात शाऊल ने यीशु के सुसमाचार की शिक्षा दी।
“शाऊल प्रेरितों के साथ मिला और”
अर्थात यीशु मसीह के सुसमाचार के सन्देश का।
शाऊल ने यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों से तर्क-वितर्क किया
यरूशलेम से कैसरिया को जानेवाले मार्ग में ऊंचाई का अंतर था। लेकिन बोलते समय ऐसा कहना सामान्य बात थी कि ऊपर यरूशलेम की और मंदिर की ओर जा रहे है, और दूसरी ओर यरूशलेम से दूर जाते समय कहते थे कि यरूशलेम से नीचे की ओर।
परमेश्वर ने उन्हें उन्नति दी
“प्रभु को आदर व सम्मान देती रही”
“पवित्र आत्मा उन्हें सामर्थ व प्रोत्साहन देता था”
“सारे” शब्द के प्रयोग में संभवतः अतिशयोक्ति का प्रयोग है। इसका आशय “अधिकाँश” से हो सकता है।
यह यीशु मसीह के सुसमाचार पर विश्वास करनेवाले लोगों के लिए प्रयुक्त हुआ आलंकारिक शब्द है।
लुदिया यह याफा नगर के दक्षिणपूर्व में लगभग 18 किमी। पर स्थित था। पुराने नियम में, और आधुनिक इस्राएल में यह लोद कहलाता था।
“वहां पतरस को ऐनियास नामक लकवे का मारा हुआ एक मनुष्य मिला।” यह स्पष्ट है कि पतरस उससे मिलने की मंशा से नहीं गया था।
वह चल-फिर नहीं सकता था, शायद कमर से नीचे से उसका शरीर लाचार था
अर्थात “अपनी चटाई उठा” (यूडीबी)
यह “बहुत से लोगों” को अतिशयोक्तिपूर्ण दिखाया गया है
यहाँ पतरस की कहानी में नया अध्याय जुड़ता है
तबीता उस विश्वासिनी का अरामी और दोरकास यूनानी भाषा में नाम था। दोनों ही नाम का अर्थ है “हिरन” है।
अर्थ सुस्पष्ट है
अर्थात जिन दिनों पतरस लुदिया में था। यह अन्तर्निहित जानकारी है।
शिष्यों ने दो लोग पतरस के पास भेजे
अर्थात जिनके पतियों की मृत्यु हो चुकी है
अर्थात "जब वह जीवित थी और प्रेरितों के साथ थी” (यूडीबी)
अकेले में तबीता के लिए प्रार्थना करने के लिए पतरस ने सभी को बाहर कर दिया था।
पतरस द्वारा तबीता को जिलाए जाने के आश्चर्यकर्म की बात
अर्थात “प्रभु यीशु मसीह के सुसमाचार पर विश्वास किया”।
ऐसा हुआ कि पतरस……यहाँ बहुत दिन तक रहा
शाऊल ने महायाजक से दमिश्क आराधनालयों के नाम पर चिट्ठियाँ माँगी ताकि वह दमिश्क की यात्रा से इस पंथ के प्रत्येक को बाँधकर ला सके।
जब शाऊल दमिश्क के पास पहुँचा, उसने आकाश से अपने चारों ओर ज्योति चमकते हुए देखी।
आवाज ने शाऊल से कहा, "हे शाऊल, हे शाऊल तू मुझे क्यों सताता है? "
उत्तर था, "मैं यीशु हूँ; जिसे तू सताता है।"
जब शाऊल भूमि पर से उठा तो उसे कुछ दिखाई न दिया।
तब शाऊल दमिश्क को गया और तीन दिन तक न खाया न पिया।
प्रभु ने हनन्याह से कहा, जा और शाऊल पर हाथ रख ताकि शाऊल फिर से दृष्टि पाए।
हनन्याह को परवाह थी, कि शाऊल दमिश्क में उन सबको बाँधकर ले जाने आया है, जो प्रभु का नाम लेते हैं।
प्रभु ने कहा कि शाऊल उसके नाम को अन्य जातियों, राजाओं और इस्राएलियों के सामने प्रगट करने के लिए उसका चुना हुआ पात्र है।
प्रभु ने कहा कि शाऊल को उसके नाम के खातिर बहुत दुख उठाना पढ़ेगा।
शाऊल के ऊपर हनन्याह के हाथ रखने के बाद शाऊल ने दृष्टि पायी, बपतिस्मा लिया और खाया।
शाऊल ने तुरन्त आराधनालयों में यह प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
जब यहूदियों ने शाऊल को मार डालने की योजना बनाई तो वह भाग निकला। उसको एक टोकरे में उसके चेलों ने बैठाकर शहरपनाह पर से लटकाकर उसे उतार दिया।
यरूशलेम में शिष्य उससे डरते थे।
तब बरनबास शाऊल को प्रेरितों के पास लाया और समझाया कि दमिश्क में उसके साथ क्या हुआ।
शाऊल ने निधड़क होकर यीशु के नाम का प्रचार किया।
यहूदिया, गलील और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, उसकी बढ़ोत्तरी होती गई और संख्या बढ़ती गई।
लुद्दा में पतरस ने एक लकवे के मारे हुए मनुष्य से बात की जिसे यीशु ने चंगा किया था।
पतरस ने याफा में तबीता नाम की मरी हुई स्त्री के लिए प्रार्थना की और उसे जिंदा कर दिया।
1 कैसरिया में कुरनेलियुस* नामक एक मनुष्य था, जो इतालियानी नाम सैन्य-दल का सूबेदार था। 2 वह भक्त* था, और अपने सारे घराने समेत परमेश्वर से डरता था, और यहूदी लोगों को बहुत दान देता, और बराबर परमेश्वर से प्रार्थना करता था।
3 उसने दिन के तीसरे पहर के निकट दर्शन में स्पष्ट रूप से देखा कि परमेश्वर का एक स्वर्गदूत उसके पास भीतर आकर कहा, “हे कुरनेलियुस।” 4 उसने उसे ध्यान से देखा और डरकर कहा, “हे स्वामी क्या है?” उसने उससे कहा, “तेरी प्रार्थनाएँ और तेरे दान स्मरण के लिये परमेश्वर के सामने पहुँचे हैं। 5 और अब याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को, जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। 6 वह शमौन, चमड़े के धन्धा करनेवाले के यहाँ अतिथि है, जिसका घर समुद्र के किनारे हैं।”
7 जब वह स्वर्गदूत जिसने उससे बातें की थी चला गया, तो उसने दो सेवक, और जो उसके पास उपस्थित रहा करते थे उनमें से एक भक्त सिपाही को बुलाया, 8 और उन्हें सब बातें बताकर याफा को भेजा।
9 दूसरे दिन जब वे चलते-चलते नगर के पास पहुँचे, तो दोपहर के निकट पतरस छत पर प्रार्थना करने चढ़ा। 10 उसे भूख लगी और कुछ खाना चाहता था, परन्तु जब वे तैयार कर रहे थे तो वह बेसुध हो गया। 11 और उसने देखा, कि आकाश खुल गया; और एक बड़ी चादर, पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, पृथ्वी की ओर उतर रहा है। 12 जिसमें पृथ्वी के सब प्रकार के चौपाए और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी थे।
13 और उसे एक ऐसी वाणी सुनाई दी, “हे पतरस उठ, मार और खा।” 14 परन्तु पतरस ने कहा, “नहीं प्रभु, कदापि नहीं; क्योंकि मैंने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।” (लैव्य. 11:1-47, यहे. 4:14) 15 फिर दूसरी बार उसे वाणी सुनाई दी, “जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है*, उसे तू अशुद्ध मत कह।” 16 तीन बार ऐसा ही हुआ; तब तुरन्त वह चादर आकाश पर उठा लिया गया।
17 जब पतरस अपने मन में दुविधा में था, कि यह दर्शन जो मैंने देखा क्या है, तब वे मनुष्य जिन्हें कुरनेलियुस ने भेजा था, शमौन के घर का पता लगाकर द्वार पर आ खड़े हुए। 18 और पुकारकर पूछने लगे, “क्या शमौन जो पतरस कहलाता है, यहाँ पर अतिथि है?”
19 पतरस जो उस दर्शन पर सोच ही रहा था, कि आत्मा ने उससे कहा, “देख, तीन मनुष्य तुम्हें खोज रहे हैं। 20 अतः उठकर नीचे जा, और निःसंकोच उनके साथ हो ले; क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।” 21 तब पतरस ने नीचे उतरकर उन मनुष्यों से कहा, “देखो, जिसको तुम खोज रहे हो, वह मैं ही हूँ; तुम्हारे आने का क्या कारण है?”
22 उन्होंने कहा, “कुरनेलियुस सूबेदार जो धर्मी और परमेश्वर से डरनेवाला और सारी यहूदी जाति में सुनाम मनुष्य है, उसने एक पवित्र स्वर्गदूत से यह निर्देश पाया है, कि तुझे अपने घर बुलाकर तुझ से उपदेश सुने। 23 तब उसने उन्हें भीतर बुलाकर उनको रहने की जगह दी।
और दूसरे दिन, वह उनके साथ गया; और याफा के भाइयों में से कुछ उसके साथ हो लिए।
24 दूसरे दिन वे कैसरिया में पहुँचे, और कुरनेलियुस अपने कुटुम्बियों और प्रिय मित्रों को इकट्ठे करके उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।
25 जब पतरस भीतर आ रहा था, तो कुरनेलियुस ने उससे भेंट की, और उसके पाँवों पर गिरकर उसे प्रणाम किया। 26 परन्तु पतरस ने उसे उठाकर कहा, “खड़ा हो, मैं भी तो मनुष्य ही हूँ।”
27 और उसके साथ बातचीत करता हुआ भीतर गया, और बहुत से लोगों को इकट्ठे देखकर 28 उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि अन्यजाति की संगति करना या उसके यहाँ जाना यहूदी के लिये अधर्म है, परन्तु परमेश्वर ने मुझे बताया है कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहूँ। 29 इसलिए मैं जब बुलाया गया तो बिना कुछ कहे चला आया। अब मैं पूछता हूँ कि मुझे किस काम के लिये बुलाया गया है?”
30 कुरनेलियुस ने कहा, “चार दिन पहले, इसी समय, मैं अपने घर में तीसरे पहर को प्रार्थना कर रहा था; कि एक पुरुष चमकीला वस्त्र पहने हुए, मेरे सामने आ खड़ा हुआ। 31 और कहने लगा, ‘हे कुरनेलियुस, तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरे दान परमेश्वर के सामने स्मरण किए गए हैं। 32 इसलिए किसी को याफा भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुला। वह समुद्र के किनारे शमौन जो, चमड़े का धन्धा करनेवाले के घर में अतिथि है। 33 तब मैंने तुरन्त तेरे पास लोग भेजे, और तूने भला किया जो आ गया। अब हम सब यहाँ परमेश्वर के सामने हैं, ताकि जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा है उसे सुनें।”
34 तब पतरस ने मुँह खोलकर कहा,
अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, (व्य. 10:17, 2 इति. 19:7) 35 वरन् हर जाति में जो उससे डरता और धार्मिक काम करता है, वह उसे भाता है।
36 जो वचन उसने इस्राएलियों के पास भेजा, जब कि उसने यीशु मसीह के द्वारा जो सब का प्रभु है, शान्ति का सुसमाचार सुनाया। (भज. 107:20, भज. 147:18, यशा. 52:7, नहू. 1:15) 37 वह वचन तुम जानते हो, जो यूहन्ना के बपतिस्मा के प्रचार के बाद गलील से आरम्भ होकर सारे यहूदिया में फैल गया: 38 परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक किया; वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था। (यशा. 61:1)
39 और हम उन सब कामों के गवाह हैं; जो उसने यहूदिया के देश और यरूशलेम में भी किए, और उन्होंने उसे काठ पर लटकाकर मार डाला। (व्य. 21:22-23) 40 उसको परमेश्वर ने तीसरे दिन जिलाया, और प्रगट भी कर दिया है। 41 सब लोगों को नहीं वरन् उन गवाहों को जिन्हें परमेश्वर ने पहले से चुन लिया था, अर्थात् हमको जिन्होंने उसके मरे हुओं में से जी उठने के बाद उसके साथ खाया पीया;
42 और उसने हमें आज्ञा दी कि लोगों में प्रचार करो और गवाही दो, कि यह वही है जिसे परमेश्वर ने जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है। 43 उसकी सब भविष्यद्वक्ता गवाही देते है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, उसको उसके नाम के द्वारा पापों की क्षमा मिलेगी। (यशा. 33:24, यशा. 53:5-6, यिर्म. 31:34, दानि. 9:24)
44 पतरस ये बातें कह ही रहा था कि पवित्र आत्मा वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया*। 45 और जितने खतना किए हुए विश्वासी पतरस के साथ आए थे, वे सब चकित हुए कि अन्यजातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उण्डेला गया है।
46 क्योंकि उन्होंने उन्हें भाँति-भाँति की भाषा बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुना। इस पर पतरस ने कहा, 47 “क्या अब कोई इन्हें जल से रोक सकता है कि ये बपतिस्मा न पाएँ, जिन्होंने हमारे समान पवित्र आत्मा पाया है?” 48 और उसने आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह के नाम में बपतिस्मा दिया जाए। तब उन्होंने उससे विनती की, कि कुछ दिन और हमारे साथ रह।
कहानी में कुरनेलियुस नाम के एक नए पात्र का प्रवेश होता है।
“उसका नाम कुनेलियुस था। वह रोमी सेना के इतालवी खंड के 100 सिपाहियों के ऊपर प्रभारी-अधिकारी था।”
अर्थात, “वह परमेश्वर में आस्था रखता था और अपने जीवन में परमेश्वर को आदर देता था और उसकी आराधना करता था।”
“अपने पूरे परिवार के साथ”
अर्थात “गरीब यहूदी लोगों को।” परमेश्वर के प्रति अपने भय को प्रकट करने का उसका यह एक तरीका था।
यहूदियों के दोपहर की प्रार्थना का नियमित समय।
अर्थात “कुरनेलियुस ने स्पष्ट रूप से देखा”
अर्थात चर्मकार के यहाँ
अर्थात “कुरनेलियुस को मिले दर्शन के समाप्त होने पर”
अर्थात कुरनेलियुस ने अपने दो सेवकों और सिपाही को अपने दर्शन बताया
अपने दो सेवकों और सिपाही को याफा भेजा।
कुरनेलियुस के दो सेवक और सिपाही कुरनेलियुस की आज्ञा पर याफा की ओर यात्रा कर रहे थे।
यह वह दशा थी जिसमें दर्शन पाते समय पतरस भी था।
यह पतरस के दर्शन की शुरुआत थी
उस बड़े पात्र का आकार एक बड़ी चादर के समान था
अर्थात उस पात्र के भीतर बहुत तरह के जंतु थे
वक्ता स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह स्पष्ट है कि बोलनेवाला परमेश्वर की ओर से था, न कि शैतान की ओर से।
पतरस ने आदरपूर्वक इस शब्द का प्रयोग किया है।
यह स्पष्ट है कि पात्र में जो जीव-जंतु थे जो मूसा की व्यवस्था के अनुसार अशुद्ध थे और जिन्हें खाना वर्जित था।
अर्थात “घर के द्वार पर आ खड़े हुए।” स्पष्ट है कि घर में एक दीवार और प्रवेश के लिए एक बाड़ा लगा गेट था।
कुरनेलियुस के लोग द्वार के बाहर से ही पतरस के बारे में पूछताछ कर रहे थे।
अर्थ स्पष्ट है
पतरस जो उस दर्शन पर सोच ही रहा था “पतरस जब उस दर्शन पर विचार कर ही रहा था।”
“पवित्र आत्मा”
“सावधान, तीन मनुष्य” या फिर, “जा, तीन मनुष्य”
जिसकी खोज तुम.....तुम्हारे आने का कारण क्या है? “तुम” और “तुम्हारे” का आशय कुरनेलियुस द्वारा भेजे गए तीन लोगों से है.
कुरनेलियुस द्वारा भेजे गए तीन संदेशवाहकों ने पतरस से कहा
अर्थात बहुत से यहूदी लोग कुरनेलियुस के विषय में भली बातें कहते थे।
यहाँ बहुत से यहूदी लोग कुरनेलियुस के विषय में भली बातें कहते थे को अतिशयोक्ति के साथ व्यक्त किया गया है।
“तुझे” अर्थात पतरस को।
“वे” अर्थात पतरस, याफा से पतरस के साथ आया व्यक्ति, और कुरनेलियुस के तीन सेवक
“अपने” का आशय कुरनेलियुस से है।
पांवों पर गिरना यहाँ केवल आदर व्यक्त करने की नहीं, वरन आराधना की क्रिया है (यूडीबी)।
यहाँ पर पतरस की आराधना करने पर कुरनेलियुस को हल्की सी झिड़की दी गयी है।
अर्थात कुरनेलियुस से बातचीत करता हुआ
“बहुत से गैर यहूदी लोगों को इकट्ठे देखकर।” यह स्पष्ट है कि कुरनेलियुस ने जिन्हें बुलाया था वे गैर यहूदी थे।
“यहूदी के लिए वर्जित है”
पतरस यहाँ कुरनेलियुस और आमंत्रित लोगों को संबोधित कर रहा है।
पतरस यहाँ कुरनेलियुस और उपस्थित सभी गैर-यहूदियों से पूछ रहा है।
बाइबिल पर आधारित संस्कृति में वर्तमान दिन को भी शामिल किया जाता है। आज के अनुसार “तीन दिन पहले” लिखा जाएगा।
परमेश्वर से प्रार्थना करने का यहूदियों का समय।
कुछ प्राचीन प्रमाणित लेख “उपवास और प्रार्थना...” कहते हैं
यहाँ आशय केवल कुरनेलियुस (एकवचन) से है।
अर्थात “तेरे दान पर परमेश्वर का ध्यान लगाया है”
“पतरस कहलानेवाले शमौन से आने के लिए कह”
“तेरे” का आशय केवल पतरस (एकवचन) से है।
“हम” का आशय उन लोगों से है जिन्हें कुरनेलियुस ने पतरस को सुनने के लिए बुलाया था।
“तब पतरस ने उन्हें संबोधित करना शुरू किया” (यूडीबी)
“उसका भय रखनेवाले और धर्म के काम करनेवाला हर व्यक्ति उसे भाता है”
(पतरस अपनी बात आगे बढाता है)
“वचन” का आशय “वचन” से ही है
इसमें यहूदी और गैर-यहूदी सभी लोग शामिल हैं।
आशय कुरनेलियुस और उसके पाहुनों से है (बहुवचन)
अर्थात “उसके सभी काम जानते हो”
(पतरस अपनी बात आगे बढ़ाता है)
“हम प्रेरित....गवाह हैं.” इस संबोधन में पतरस ने अपने सुननेवालों को शामिल नहीं किया है।
“जो यीशु ने....में भी किये”
“जिसे यहूदी अगुओं ने मार डाला”
“यीशु को”
परमेश्वर ने यीशु को फिर से जीवित किया
परमेश्वर ने उसे स्वयं को प्रगट करने की अनुमति दी
(पतरस अपनी बात आगे बढ़ाता है)
परमेश्वर ने हम प्रेरितों को आज्ञा दी। इस “यहाँ” शब्द में पतरस को सुननेवाले शामिल नहीं हैं।
कि यीशु ही वही है जिसे परमेश्वर ने ....ठहराया है.
वे जो अब भी जीवित हैं और वे जो मर चुके हैं
सब भविष्यद्वक्ता यीशु की गवाही देते हैं
वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया “सब” का आशय संभवतः घर में मौजूद सब गैर-यहूदियों से है जो पतरस पर विश्वास रखते थे।
“मुफ्त का वरदान”
परमेश्वर ने पवित्र आत्मा का दान उंडेला है
ये लोगों द्वारा बोली जानेवाली भाषाएँ थीं जिससे यहुदियों को यह पता चल पाया कि “उन्हें” अर्थात अन्यजातीय लोग सचमुच परमेश्वर की बड़ाई कर रथे थे।
यह वास्तविक प्रश्न न होकर भाषा का आलंकारिक प्रयोग है। इसका आशय है कि “किसी को उन्हें जल से दूर नहीं रखना चाहिए।”
पतरस यहाँ पर आलंकारिक भाषा का प्रयोग कर रहा है और प्रश्न वास्तविक न होकर केवल आलंकारिक है। कहने का आशय असल में है कि ये लोग बप्तिस्मा पाने के योग्य हैं।
“पतरस ने उन्हें अन्यजतीय लोगों को बप्तिस्मा देने की आज्ञा दी” (निष्क्रिय) अथवा “पतरस ने यहूदी मसीहियों को गैर-यहूदी विश्वासियों को बप्तिस्मा देने की आज्ञा दी”
“तब अन्यजातियों ने पतरस से विनती की”
कुरनेलियुस धर्मी और परमेश्वर से डरने वाला, दयावान और सदैव परमेश्वर से प्रार्थना करने वाला व्यक्ति था।
स्वर्गदूत ने कहा कि कुरनेलियुस की प्रार्थनाओं और निर्धनों को दिये गये दानों ने परमेश्वर को कुरनेलियुस का स्मरण कराया।
स्वर्गदूत ने कुरनेलियुस से पतरस को याफा से लाने के लिए आदमी भेजने को कहा।
पतरस ने एक बहुत बड़ी चादर सब प्रकार के चौपायों, रेंगने वाले जन्तुओं और आकाश के पक्षियों से भरी हुई देखी।
आवाज ने पतरस से कहा, "हे पतरस उठ, मार और खा।"
पतरस ने यह कहकर खाने से मना किया कि उसने कभी कोई अशुद्ध और अपवित्र वस्तु नहीं खाई है।
आवाज ने कहा, "जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अशुद्ध मत कर।"
पतरस से आत्मा ने नीचे जाने और भेजे हुए मनुष्यों के साथ हो लेने को कहा।
कुरनेलियुस के पास से आए हुए मनुष्यों ने कुरनेलियुस के घर आकर पतरस से वचन सुनाने की उम्मीद की।
पतरस ने कुरनेलियुस को खड़ा होने को कहा क्योंकि वह एक मनुष्य ही था।
पतरस अन्य जाति के लोगों से संगति कर रहा था क्योंकि परमेश्वर ने उसे बताया था कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहे।
पतरस ने कहा कोई भी जो परमेश्वर से डरता और धार्मिक कार्य करता है, वह परमेश्वर को स्वीकृत है।
लोगों ने पहले ही सुन रखा था कि यीशु का पवित्र-आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक हुआ था और उसने उन सबको चंगा किया था जो सताए हुए थे, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था।
पतरस ने गवाही दी कि परमेश्वर ने यीशु को तीसरे दिन जिलाया और पतरस ने उसके जी उठने के बाद उसके साथ खाया।
पतरस ने कहा, यीशु ने उनको आज्ञा दी है कि प्रचार करो कि यीशु को परमेश्वर ने जीवतों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है।
पतरस ने कहा कि प्रत्येक जो यीशु पर विश्वास करता है उसे पापों की क्षमा मिलेगी।
उन सभी पर जो पतरस से वचन को सुन रहे थे, पवित्र-आत्मा उतरा।
वे विश्वासी जो खतना किए हुए समूह के थे चकित इसलिए हुए क्योंकि पवित्र-आत्मा का वरदान अन्य जातियों पर भी उण्डेला गया।
वे लोग अन्य भाषाओं में बोल रहे थे और परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे जिससे दिखाई दे रहा था कि पवित्र-आत्मा उन पर उतरा है।
पतरस ने आज्ञा दी कि उन लोगों को यीशु के नाम में बपतिस्मा दिया जाए।
1 और प्रेरितों और भाइयों ने जो यहूदिया में थे सुना, कि अन्यजातियों ने भी परमेश्वर का वचन मान लिया है। 2 और जब पतरस यरूशलेम में आया, तो खतना किए हुए लोग उससे वाद-विवाद करने लगे, 3 “तूने खतनारहित लोगों के यहाँ जाकर उनके साथ खाया।”
4 तब पतरस ने उन्हें आरम्भ से क्रमानुसार कह सुनाया; 5 “मैं याफा नगर में प्रार्थना कर रहा था, और बेसुध होकर एक दर्शन देखा, कि एक बड़ी चादर, एक पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, आकाश से उतरकर मेरे पास आया। 6 जब मैंने उस पर ध्यान किया, तो पृथ्वी के चौपाए और वन पशु और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी देखे;
7 और यह आवाज़ भी सुना, ‘हे पतरस उठ मार और खा।’ 8 मैंने कहा, ‘नहीं प्रभु, नहीं; क्योंकि कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु मेरे मुँह में कभी नहीं गई।’ 9 इसके उत्तर में आकाश से दूसरी आवाज़ आई, ‘जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे अशुद्ध मत कह।’ 10 तीन बार ऐसा ही हुआ; तब सब कुछ फिर आकाश पर खींच लिया गया।
11 तब तुरन्त तीन मनुष्य जो कैसरिया से मेरे पास भेजे गए थे, उस घर पर जिसमें हम थे, आ खड़े हुए। 12 तब आत्मा ने मुझसे उनके साथ बेझिझक हो लेने को कहा, और ये छः भाई भी मेरे साथ हो लिए; और हम उस मनुष्य के घर में गए। 13 और उसने बताया, कि मैंने एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़ा देखा, जिसने मुझसे कहा, ‘याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। 14 वह तुझ से ऐसी बातें कहेगा, जिनके द्वारा तू और तेरा सारा घराना उद्धार पाएगा।’
15 जब मैं बातें करने लगा, तो पवित्र आत्मा उन पर उसी रीति से उतरा, जिस रीति से आरम्भ में हम पर उतरा था। 16 तब मुझे प्रभु का वह वचन स्मरण आया; जो उसने कहा, ‘यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।’
17 अतः जब कि परमेश्वर ने उन्हें भी वही दान दिया, जो हमें प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से मिला; तो मैं कौन था जो परमेश्वर को रोक सकता था?” 18 यह सुनकर, वे चुप रहे, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, “तब तो परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिये मन फिराव का दान दिया है।”
19 जो लोग उस क्लेश के मारे जो स्तिफनुस के कारण पड़ा था, तितर-बितर हो गए थे, वे फिरते-फिरते फीनीके और साइप्रस और अन्ताकिया में पहुँचे; परन्तु यहूदियों को छोड़ किसी और को वचन न सुनाते थे। 20 परन्तु उनमें से कुछ साइप्रस वासी और कुरेनी* थे, जो अन्ताकिया में आकर यूनानियों को भी प्रभु यीशु का सुसमाचार की बातें सुनाने लगे। 21 और प्रभु का हाथ उन पर था, और बहुत लोग विश्वास करके प्रभु की ओर फिरे।
22 तब उनकी चर्चा यरूशलेम की कलीसिया के सुनने में आई, और उन्होंने बरनबास* को अन्ताकिया भेजा। 23 वह वहाँ पहुँचकर, और परमेश्वर के अनुग्रह को देखकर आनन्दित हुआ; और सब को उपदेश दिया कि तन मन लगाकर प्रभु से लिपटे रहें। 24 क्योंकि वह एक भला मनुष्य था; और पवित्र आत्मा और विश्वास से परिपूर्ण था; और बहुत से लोग प्रभु में आ मिले।
25 तब वह शाऊल को ढूँढ़ने के लिये तरसुस को चला गया। 26 और जब उनसे मिला तो उसे अन्ताकिया में लाया, और ऐसा हुआ कि वे एक वर्ष तक कलीसिया के साथ मिलते और बहुत से लोगों को उपदेश देते रहे, और चेले सबसे पहले अन्ताकिया ही में मसीही कहलाए।
27 उन्हीं दिनों में कई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम से अन्ताकिया में आए। 28 उनमें से अगबुस* ने खड़े होकर आत्मा की प्रेरणा से यह बताया, कि सारे जगत में बड़ा अकाल पड़ेगा, और वह अकाल क्लौदियुस के समय में पड़ा।
29 तब चेलों ने निर्णय किया कि हर एक अपनी-अपनी पूँजी के अनुसार यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की सेवा के लिये कुछ भेजे। 30 और उन्होंने ऐसा ही किया; और बरनबास और शाऊल के हाथ प्राचीनों के पास कुछ भेज दिया।
कहानी को आगे बढाने के लिए प्रयुक्त
“जो यहूदिया प्रांत में थे”
यह यीशु मसीह के सुसमाचार पर अन्यजातियों द्वारा विश्वास करने, उन पर पवित्र आत्मा के उतरने व उनके द्वारा बप्तिस्मा लेने को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त की गयी अभिव्यक्ति है।
यरूशलेम पहाड़ी पर स्थित है
ऐसे यहूडी लोग जो यह सिखाते थे कि मसीह के अनुयायियों को खतना करवाना चाहिए और मूसा की व्यवस्था को पालन करना चाहिए
“वे उसके समक्ष मुद्दा उठा रहे थे”
यहूदी व्यवस्था के अनुसार खतना किये लोगों का उन लोगों के साथ भोजन करना वर्जित था जिन्होंने खतना नहीं किया है
तब पतरस ने उन्हें.....कह सुनाया - पतरस ने यहूदी विश्वासियों की निंदा नहीं की वरन उन्हें मैत्रीपूर्ण रीति से समझाया था
चौपाए से आशय शायद पालतू जानवरों से है।
इसका आशय शायद जंगली जानवरों से था जिन्हें लोग पालतू नहीं बनाते अथवा नहीं बना सकते हैं।
अर्थात सरीसृप
(पतरस अपना बोलना जारी रखता है)
स्पष्ट है कि पात्र में वे जानवर थे जिन्हें यहूदी व्यवस्था के अनुसार खाना वर्जित था।
कोई अपवित्र या अशुद्ध यहाँ भोजन की “अपवित्र या अशुद्ध” वस्तुओं की बात हो रही है।
मेरे मुंह में कभी नहीं गयी अर्थात “मैंने कभी नहीं खाई।”
अर्थात “जो पशु परमेश्वर ने शुद्ध ठहराए हैं, उन्हें अशुद्ध मत कह।”
पुराने नियम की यहूदी व्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति कई तरह से अशुद्ध हो जाता था, जैसे कि वर्जित जानवरों को खाना आदि।
(पतरस अपनी बात को आगे बढाता है)
“और तुरंत ही” या फिर “बस उसी पल” (यूडीबी)। इससे मूल कहानी में एक नये प्रकरण की शुरुआत का संकेत मिलता है। आप यहाँ अपनी भाषा में उपलब्ध उचित शब्दों का प्रयोग करें।
अर्थात “यहूदी और गैर-यहूदी का भेदभाव किये बिना साथ हो लेने को कहा”
किसी ने उन्हें भेजा था।
“छ: यहूदी विश्वासी”
“पतरस कहलानेवाले शमौन को बुलवा ले”
“परमेश्वर द्वारा बचाया जाएगा”
(पतरस अपनी बात जारी रखता है।)
“पवित्र आत्मा अन्यजातियों पर उसी रीति से उतरा, जिस रीति से पिन्तेकुस्त के दिन यहूदी विश्वासियों पर उतरा था।”
“हम” का आशय यहाँ पतरस और उन यहूदी विश्वासियों से है जो आरम्भ में थे, लेकिन कमरे में मौजूद सभी लोग शुरू से मौजूद नहीं थे।
आरम्भ में पतरस का आशय यहाँ पिन्तेकुस्त के दिन से है।
“परमेश्वर तुम्हें पवित्र आत्मा से बप्तिस्मा देगा”
(17वें पद में पतरस अपना संबोधन समाप्त करता है)
“उन्हें” का आशय यहाँ कुरनेलियुस और उसके संपर्क में आये गैर-यहूदी लोगों की कहानी से है। लेकिन, यरूशलेम में यहूदी विश्वासियों को वृत्तान्त सुनाते समय पतरस उन्हें गैर-यहूदी कह कर संबोधित नहीं करता
पतरस यहाँ पवित्र आत्मा के वरदान के विषय में कह रहा है
मैं परमेश्वर का विरोध नहीं कर सकता।
यह सुनकर, वे चुप रहे - “वे” का आशय खतना हुए लोगों से है जो पतरस की आलोचना कर रहे थे।
“जीवन की ओर ले जानेवाला मन फिराव का दान दिया है”
प्रेरितो के कार्य के 8वें अध्याय का सारांश कहानी में एक नए प्रकरण के प्रवेश की भूमिका बनाने के लिए है।
“यहूदी अगुवों द्वारा स्तिफनुस की हत्या के बाद बहुत से विश्वासी क्लेश झेलने लगे। ये विश्वासी यरूशलेम छोड़ कर दूसरी जगह चले गए.....”
वे सोचते थे कि परमेश्वर का वचन केवल यहूदियों के लिए है, गैर- यहूदियों (यूनानियों) के लिए नहीं।
अर्थात “परमेश्वर बहुत सामर्थी रीति से उन्हें समर्थ बना रहा था”।
“उनकी” का आशय अन्ताकिया के नए विश्वासियों से है
अर्थात “यरूशलेम के विश्वासियों ने सुना।”
यरूशलेम की कलीसिया के विश्वासियों ने भेजा
“विश्वासियों के प्रति परमेश्वर की दया देखकर” (यूडीबी)
“सब को उपदेश देता रहा”
“प्रभु के विश्वासयोग्य बने रहो”
“”प्रभु के प्रति पूरी तरह समर्पित रहो” अथवा “प्रभु पर सम्पूर्ण रीति से आस्था रखो”(यूडीबी)
पवित्र आत्मा की आज्ञापालन करते समय स्तिफनुस पवित्र आत्मा के वश में था
अर्थात “बहुत से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया।”
अर्थात “तरसुस नगर को चला गया”
“शाऊल से मिलने पर बरनबास शाऊल को ले आया”
अर्थात “बरनबास और शाऊल एक वर्ष तक कलीसिया के साथ मिलते” अथवा “बरनबास और शाऊल एक वर्ष तक नियमित रूप से कलीसिया से मिलते”
चेले सबसे पहले अन्ताकिया में मसीही कहलाए - “अन्ताकियावासियों ने सबसे पहले चेलों को मसीही नाम से बुलाया”
कहानी में नए प्रकरण की शुरुआत
यरूशलेम से अन्ताकिया दोनों अलग स्तर पर थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यरूशलेम, विशेषकर कि मंदिर की बहुत महत्ता है।
“अन्न की भारी कमी हो गयी”
यहाँ अतिशयोक्ति का प्रयोग है। असल में “जगत” का आशय रोमी साम्राज्य से है।
हर एक अपनी अपनी पूँजी के अनुसार - अर्थात धनी लोगों ने अधिक भेजा और गरीब लोगों ने अपनी हैसियत के अनुसार कम
के पास कुछ भेज दिया<“अन्ताकिया के विश्वासियों ने धन-दान में दिया और उन्होंने धन भेज दिया...”
बरनबास और शाऊल के हाथ --अर्थात “यरूशलेम की कलीसिया के प्राचीनो के पास स्वयं बरनबास और शाऊल धन लेकर आये”
प्रेरितों और भाइयों ने यहूदिया में सुना कि अन्य जातियों ने भी परमेश्वर का वचन मान लिया है।
ख़तना किए समूह के लोगों ने पतरस की खतनारहित लोगों के साथ खाने के लिए आलोचना की।
पतरस ने आलोचना का उत्तर चादर के दर्शन और अन्यजातियों के आत्मा से बपतिस्मे की व्याख्या कर के दिया।
उन्होंने परमेश्वर की बड़ाई की और यह कहकर समाप्त किया कि परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिए मन फिराव का दान दिया है।
अधिकतर तित्तर-बित्तर हो गए विश्वासियों ने यहूदियों के इलावा किसी अन्य को यीशु के विषय में वचन नहीं सुनाया।
जब उन्होंने प्रभु यीशु का सुसमाचार यूनानियों को सुनाया, तो बहुत लोग विश्वास करके प्रभु की ओर फिरे।
बरनबास ने यूनानियों को मन से प्रभु यीशु मसीह से लिपटे रहने के लिए प्रोत्साहित किया।
बरनबास और शाऊल ने अन्ताकिया की कलीसिया में एक वर्ष व्यतीत किया।
चेले सबसे पहले अन्ताकिया में ही मसीही कहलाए।
अगबुस ने भविष्यवाणी की कि सारे जगत में बड़ा अकाल पड़ेगा।
चेलों ने बरनबास और शाऊल के हाथों यहूदिया में रहने वाले भाइयों के लिए कुछ मदद भेजी।
1 उस समय हेरोदेस राजा* ने कलीसिया के कई एक व्यक्तियों को दुःख देने के लिये उन पर हाथ डाले। 2 उसने यूहन्ना के भाई याकूब को तलवार से मरवा डाला।
3 जब उसने देखा, कि यहूदी लोग इससे आनन्दित होते हैं, तो उसने पतरस को भी पकड़ लिया। वे दिन अख़मीरी रोटी के दिन थे। 4 और उसने उसे पकड़कर बन्दीगृह में डाला, और रखवाली के लिये, चार-चार सिपाहियों के चार पहरों में रखा, इस मनसा से कि फसह के बाद उसे लोगों के सामने लाए।
5 बन्दीगृह में पतरस की रखवाली हो रही थी; परन्तु कलीसिया उसके लिये लौ लगाकर परमेश्वर से प्रार्थना कर रही थी। 6 और जब हेरोदेस उसे उनके सामने लाने को था, तो उसी रात पतरस दो जंजीरों से बंधा हुआ, दो सिपाहियों के बीच में सो रहा था; और पहरेदार द्वार पर बन्दीगृह की रखवाली कर रहे थे।
7 तब प्रभु का एक स्वर्गदूत आ खड़ा हुआ और उस कोठरी में ज्योति चमकी, और उसने पतरस की पसली पर हाथ मार कर उसे जगाया, और कहा, “उठ, जल्दी कर।” और उसके हाथ से जंजीरें खुलकर गिर पड़ीं। 8 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “कमर बाँध, और अपने जूते पहन ले।” उसने वैसा ही किया, फिर उसने उससे कहा, “अपना वस्त्र पहनकर मेरे पीछे हो ले।”
9 वह निकलकर उसके पीछे हो लिया; परन्तु यह न जानता था कि जो कुछ स्वर्गदूत कर रहा है, वह सच है, बल्कि यह समझा कि मैं दर्शन देख रहा हूँ। 10 तब वे पहले और दूसरे पहरे से निकलकर उस लोहे के फाटक पर पहुँचे, जो नगर की ओर है। वह उनके लिये आप से आप खुल गया, और वे निकलकर एक ही गली होकर गए, इतने में स्वर्गदूत उसे छोड़कर चला गया।
11 तब पतरस ने सचेत होकर कहा, “अब मैंने सच जान लिया कि प्रभु ने अपना स्वर्गदूत भेजकर मुझे हेरोदेस के हाथ से छुड़ा लिया, और यहूदियों की सारी आशा तोड़ दी।” 12 और यह सोचकर, वह उस यूहन्ना की माता मरियम के घर आया, जो मरकुस कहलाता है। वहाँ बहुत लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना कर रहे थे।
13 जब उसने फाटक की खिड़की खटखटाई तो रूदे* नामक एक दासी सुनने को आई। 14 और पतरस का शब्द पहचानकर, उसने आनन्द के मारे फाटक न खोला; परन्तु दौड़कर भीतर गई, और बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है। 15 उन्होंने उससे कहा, “तू पागल है।” परन्तु वह दृढ़ता से बोली कि ऐसा ही है: तब उन्होंने कहा, “उसका स्वर्गदूत होगा।”
16 परन्तु पतरस खटखटाता ही रहा अतः उन्होंने खिड़की खोली, और उसे देखकर चकित रह गए*। 17 तब उसने उन्हें हाथ से संकेत किया कि चुप रहें; और उनको बताया कि प्रभु किस रीति से मुझे बन्दीगृह से निकाल लाया है। फिर कहा, “याकूब और भाइयों को यह बात कह देना।” तब निकलकर दूसरी जगह चला गया।
18 भोर को सिपाहियों में बड़ी हलचल होने लगी कि पतरस कहाँ गया। 19 जब हेरोदेस ने उसकी खोज की और न पाया, तो पहरुओं की जाँच करके आज्ञा दी कि वे मार डाले जाएँ: और वह यहूदिया को छोड़कर कैसरिया में जाकर रहने लगा।
20 हेरोदेस सूर और सैदा के लोगों से बहुत अप्रसन्न था। तब वे एक चित्त होकर उसके पास आए और बलास्तुस को जो राजा का एक कर्मचारी था, मनाकर मेल करना चाहा; क्योंकि राजा के देश से उनके देश का पालन-पोषण होता था। (1 राजा. 5:11, यहे. 27:17) 21 ठहराए हुए दिन हेरोदेस राजवस्त्र पहनकर सिंहासन पर बैठा; और उनको व्याख्यान देने लगा।
22 और लोग पुकार उठे, “यह तो मनुष्य का नहीं ईश्वर का शब्द है।” 23 उसी क्षण प्रभु के एक स्वर्गदूत ने तुरन्त उसे आघात पहुँचाया, क्योंकि उसने परमेश्वर की महिमा नहीं की और उसके शरीर में कीड़े पड़ गए और वह मर गया। (दानि. 5:20)
24 परन्तु परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया*।
25 जब बरनबास और शाऊल अपनी सेवा पूरी कर चुके तो यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेकर यरूशलेम से लौटे।
Now - this begins a new part of the story
उस समय जब यहूदिया के भाइयों की मदद के लिए अन्ताकिया के शिष्यों ने धन भेजा था
अर्थात “पकड़वाने के लिए सिपाही भेजे” अथवा “उन्हें पकड़ कर कैद में डलवाने के लिए सिपाही भेजे।”
स्पष्ट है कि यहाँ कलीसिया के अगुओं की बात हो रह है। अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं, कि “सभा के अगुओं”, अथवा “विश्वासियों की सभा के अगुओं।” नोट: “उन पर हाथ डाले” में व्याकरणिक अशुद्धि है। इसे एकवचन में लिखेंगे, कि “उन पर हाथ डाला।”
“उन्हें कष्ट देने के लिए”
अर्थात “हेरोदेस राजा ने....मरवा डाला” या फिर, “हेरोदेस ने ....मरवाने का आदेश दिया”
यहाँ स्पष्ट किया जा रहा है कि याकूब की किस रीति से हत्या की गयी थी
“जब हेरोदेस को पता चला कि याकूब की मृत्यु से यहूदी अगुवे प्रसन्न होते हैं”
“यहूदी लोग खुश होते हैं”
“हेरोदेस ने पतरस को भी पकड़ने के आदेश दे दिए”
अर्थात “जब ऐसा हुआ” या फिर, “हेरोदेस ने ऐसा किया”
“सिपाहियों द्वारा पतरस को पकड़वाकर, हेरोदेस ने पतरस को बंदीगृह में डलवा दिया’
“सिपाहियों के चार दल” (यूडीबी देखें)। हर दल में चार सिपाही थे और एक समय में चार सिपाहियों का एक दल पतरस पर नज़र रखता था। दो सिपाही दो तरफ, और बाकी के दो प्रवेश द्वार पर।
अर्थात “पतरस को पहरों में रखा”
“हेरोदेस ने योजना बनाई थी कि पतरस का न्याय वह लोगों के सामने करेगा” या फिर, “हेरोदेस ने यहूदी लोगों के सामने पतरस का न्याय करने की योजना बनाई”
बंदीगृह में पतरस की रखवाली हो रही थी -वे लगातार उस पर नज़र रखे थे
अर्थात “पूरी निष्ठा से लगातार” अथवा, “समर्पण भाव के साथ बिना रुके”
यरूशलेम के विश्वासी प्रार्थना कर रहे थे, या फिर, यरूशलेम की कलीसिया प्रार्थना कर रही थी
“पतरस के लिए”
“जब हेरोदेस पतरस को मृत्यु दंड देने के लिए बाहर लाने को था”
“पतरस दो जंजीरों में जकड़ा हुआ था”
“पहरा दे रहे थे”
“तो देखो” में सहसा हुई किसी घटना का संकेत मिलता है।
“पतरस की बगल में आ खड़ा हुआ”
उस कोठरी में - “बंदीगृह के उस कक्ष में”
“स्वर्गदूत ने पतरस थपथपा कर जगाया”
“पतरस को जगाया”
स्वर्गदूत ने पतरस की जंजीरों को छूए बिना ही उन्हें खोल कर गिराया था। अनुवाद करते समय हम यूं लिख सकते हैं, कि “पतरस की जंजीरें आप ही खुल कर गिर पडीं”
अर्थात "पतरस से कहा"
“पतरस ने स्वर्गदूत के कहे अनुसार किया” या फिर, “पतरस ने उनकी आज्ञा मान ली”
“स्वर्गदूत ने पतरस से कहा”
मेरे पीछे हो ले -यहाँ कहने का आशय यह है कि वहाँ से निकलते समय पतरस को अपना ध्यान पतरस पर लगाए रखना था।
“पतरस यह न जानता था” या फिर, “पतरस यह नहीं समझा कि”
जो कुछ स्वर्गदूत कर रहा है, सच है- “स्वर्गदूत सचमुच में वह सब कर रहा है” या फिर, “स्वर्गदूत द्वारा किये कार्य, सचमुच घटित हो रहे थे।”
यह समझा कि मैं दर्शन देख रहा हूँ- “पतरस यह समझा कि वह दर्शन देख रहा था।”
“तब स्वर्गदूत और पतरस”
“निकलकर...गए”
“पहले पहरे”
“पतरस और स्वर्गदूत....पहुँच गए”
“जो नगर की ओर खुलता है”
वह उनके लिए आप से आप खुल गया - “उनके लिए अपने आप खुल गया” या फिर, “उनके लिए स्वयं खुल गया”
“और स्वर्गदूत व पतरस द्वार से होते हुए निकल गए”
“एक गली के किनारे-किनारे चले गए”
“पतरस को अचानक से छोड़ दिया” या फिर, “अचानक अदृश्य हो गया”
“जब पतरस को पूरी तरह होश आया” या फिर, “जब पतरस को यह समझ आया कि जो कुछ भी हुआ, वह सच था”
‘हेरोदेस के हाथ से छुड़ा लिया” का आशय “हेरोदेस की योजना से बचा लिया” है।
“यहूदी जो मेरे साथ होते देखना चाहते थे”
“अर्थात मैंने यह सच जान लिया है”
“.....जो मरकुस भी कहलाता है”
“पतरस ने खिड़की खटखटाई”। घर के भीतर आने से पहले दरवाज़े पर खटखटाना यहूदियों की एक सामान्य रीति थी।
“बाहर के दरवाज़े की खिड़की” या फिर, “आँगन से गली की ओर खुलनेवाले प्रवेश द्वार की खिड़की खटखटाई”
अर्थात “खटखटाने वाले को देखने आई”
“रूदे ने पतरस की आवाज़ पहचान ली”
“वह इतनी आनंदित हो गयी कि” या फिर, “उत्साह के चलते”
अर्थात “द्वार के उस ओर खड़ा है।” इस समय तक पतरस दरवाज़े के बाहर ही था।
“घर के भीतर मौजूद विश्वासियों ने रूदे से कहा”
लोगों को उसकी बात पर विश्वास नही हो रहा था, और उसे पागल कह कर डांट दिया। अनुवाद करते समय हम “तू पागल तो नहीं है” भी लिख सकते हैं।
“रूदे ने ज़ोर देकर कहा कि वह सच बोल रही है”
अर्थात “घर के भीतर मौजूद विश्वासियों ने उत्तर दिया”
“तुमने पतरस का स्वर्गदूत देखा होगा।” कुछ यहूदी संरक्षक दूतों पर विश्वास करते थे और शायद सोंचते होंगे कि पतरस का दूत उनसे मिलने आया है।
परन्तु पतरस खटखटाता ही रहा - अर्थात जितने समय लोग घर के भीतर बातें कर रहे थे, उन पूरे दौरान पतरस खटखटाता रहा।
“दरवाज़ा खोलने पर घर के भीतर बैठे लोग पतरस को देख कर हैरान रह गए”
पतरस ने घर के भीतर के लोगों को हाथ से संकेत देकर चुप रहने को कहा
“ये बातें कह देना”
“पतरस चला गया”
यहाँ पर कहानी में कुछ रोक आया है जो आगे चलकर कहानी को फिर आरम्भ करेगा, इसलिए अनुवाद इस प्रकार होना है, “अब जब भोर हुई, तब....”
यहाँ पर ज़ोर दिया गया है। अनुवाद करते समय यहाँ “बहुत हलचल” लिख सकते हैं।
“हलचल” में यहाँ चरम दुःख, उत्कंठा, भय या भ्रम नकारात्मक भाव है।
“के साथ क्या हुआ”
इसे यूं भी कह सकते हैं कि “जब हेरोदेस ने पतरस की खोज की और पतरस को न खोज सका।”
संभावित अर्थ इस प्रकार हैं, 1) “जब हेरोदेस ने सुना कि पतरस वहां नहीं था, वह स्वयं कैदखाने में उसे खोजने गया” या फिर, 2) “जब हेरोदेस ने सुना कि पतरस गायब था, उसने बंदीगृह की तलाशी लेने सिपाही भेजे।”
“हेरोदेस ने पहरूओं से पूछताछ की और सिपाहियों को आज्ञा दी कि उन पहरूओं को मार डाले
“तब हेरोदेस यहूदिया छोड़ कर”। यरूशलेम की ओर यात्रा करते समय रास्ते में आनेवाले स्थान निचली सतह पर स्थित माने जाते हैं, क्योंकि यरूशलेम पहाडी पर स्थित है।
‘अब उस समय’ का प्रयोग कहानी में आये बदलाव को दर्शाने के लिए किया जाता है। वैकल्पिक अनुवाद:"उस समय"
“हेरोदेस से बातचीत करने के लिए सूर और सैदा से आये प्रतिनिधि लोग मिलकर गए।”
“ये लोग आपस में सलाह करके उसके पास गए”
बलास्तुस हेरोदेस राजा का सहायक अथवा राजमहल का बड़ा अधिकारी था।
“इन लोगों ने शान्ति की विनती की”
बैठक के लिए “नियत दिनों में”
“हेरोदेस ने उन लोगों को भाषण दिया” या फिर, “हेरोदेस ने उन लोगों से कहा”।
हेरोदेस अपना औपचारिक संबोधन यहीं से देता था। “हेरोदेस अपने सिंहासन पर बैठा।” (यूडीबी)
“यह शब्द तो परमेश्वर का शब्द है” अथवा, “यह मनुष्य नहीं परमेश्वर बोल रहा है” (यूडीबी)
तुरंत जबकि लोग हेरोदेस की प्रशंसा कर ही रहे थे कि
“हेरोदेस को मारा” अथवा “हेरोदेस को बीमार कर दिया”
परमेश्वर की बजाय हेरोदेस ने उन लोगों को अपनी आराधना करने दी। “हेरोदेस ने परमेश्वर को महिमा नहीं दी।”
“हेरोदेस के शरीर को कीड़ों ने खा लिया और उसकी मृत्यु हो गयी।”
यहाँ पर आशय “यीशु के उद्धार के उपदेश के फैलने और इस उपदेश पर विश्वास रखनेवालों की संख्या में वृद्धि” से है। अनुवाद करते समय ऐसे भी लिख सकते हैं कि, “परमेश्वर का वचन फैलता गया और विश्वासियों की संख्या बढ़ती चली गयी”।
अर्थात “यरूशलेम की कलीसिया के अगुओं को धन सौंप कर”
“बरनबास और अन्ताकिया को शाऊल लौटे”
“बरनबास और शाऊल, यूहन्ना को अपने साथ लेकर”
“जिसे मरकुस बुलाते हैं”
हेरोदेस राजा ने यूहन्ना के भाई याकूब को तलवार से मरवा डाला।
हेरोदेस ने पतरस को पकड़ कर जेल में डाल दिया ताकि फसह के बाद उसे लोगों के सामने लाए।
कलीसिया लौ लगा कर पतरस के लिए प्रार्थना कर रही थी।
प्रभु का एक स्वर्गदूत उसे दिखाई पड़ा, उसकी जंजीरें गिर पड़ीं, और वह स्वर्गदूत के पीछे जेल से बाहर हो लिया।
रूदे नाम की एक दासी सुनने को आई और दौड़कर भीतर गई और बताया कि पतरस दरवाज़े पर खड़ा है।
पहले उन्होंने सोचा कि वह पागल हो गई है, पर फिर उन्होंने दरवाज़ा खोला और पतरस को देखा।
पतरस ने उन्हें ये बातें याकूब और उसके भाइयों को बताने के लिए कहा।
हेरोदेस ने पहरूओं की जांच करके आज्ञा दी कि वे मार डाले जाएं।
तब लोग पुकार उठे, "यह मनुष्य का नहीं, परमेश्वर का शब्द है"!
क्योंकि हेरोदेस ने परमेश्वर की महिमा नहीं की, परमेश्वर के स्वर्गदूत ने उसे मारा और उसे कीड़े पड़ गए।
परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया।
बरनबास और शाऊल, यूहन्ना जो मरकुस कहलाता है उसे अपने साथ ले गए।
1 अन्ताकिया की कलीसिया में कई भविष्यद्वक्ता और उपदेशक थे; अर्थात् बरनबास और शमौन जो नीगर* कहलाता है; और लूकियुस कुरेनी, और चौथाई देश के राजा हेरोदेस का दूधभाई मनाहेम और शाऊल। 2 जब वे उपवास सहित प्रभु की उपासना कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने कहा, “मेरे लिये बरनबास और शाऊल को उस काम के लिये अलग करो जिसके लिये मैंने उन्हें बुलाया है।” 3 तब उन्होंने उपवास और प्रार्थना करके और उन पर हाथ रखकर उन्हें विदा किया।
4 अतः वे पवित्र आत्मा के भेजे हुए सिलूकिया को गए; और वहाँ से जहाज पर चढ़कर साइप्रस को चले। 5 और सलमीस* में पहुँचकर, परमेश्वर का वचन यहूदियों के आराधनालयों में सुनाया; और यूहन्ना उनका सेवक था।
6 और उस सारे टापू में से होते हुए, पाफुस तक पहुँचे। वहाँ उन्हें बार-यीशु* नामक एक जादूगर मिला, जो यहूदी और झूठा भविष्यद्वक्ता था। 7 वह हाकिम सिरगियुस पौलुस के साथ था, जो बुद्धिमान पुरुष था। उसने बरनबास और शाऊल को अपने पास बुलाकर परमेश्वर का वचन सुनना चाहा। 8 परन्तु एलीमास जादूगर ने, (क्योंकि यही उसके नाम का अर्थ है) उनका सामना करके, हाकिम को विश्वास करने से रोकना चाहा।
9 तब शाऊल ने जिसका नाम पौलुस भी है, पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उसकी ओर टकटकी लगाकर कहा, 10 “हे सारे कपट और सब चतुराई से भरे हुए शैतान की सन्तान, सकल धार्मिकता के बैरी, क्या तू प्रभु के सीधे मार्गों को टेढ़ा करना न छोड़ेगा? (नीति. 10:9, होशे 14:9)
11 अब देख, प्रभु का हाथ तुझ पर पड़ा है; और तू कुछ समय तक अंधा रहेगा और सूर्य को न देखेगा।” तब तुरन्त धुंधलापन और अंधेरा उस पर छा गया, और वह इधर-उधर टटोलने लगा ताकि कोई उसका हाथ पकड़कर ले चले। 12 तब हाकिम ने जो कुछ हुआ था, देखकर और प्रभु के उपदेश से चकित होकर विश्वास किया।
13 पौलुस और उसके साथी पाफुस से जहाज खोलकर पंफूलिया के पिरगा में* आए; और यूहन्ना उन्हें छोड़कर यरूशलेम को लौट गया। 14 और पिरगा से आगे बढ़कर पिसिदिया के अन्ताकिया में पहुँचे; और सब्त के दिन आराधनालय में जाकर बैठ गए। 15 व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक से पढ़ने के बाद आराधनालय के सरदारों ने उनके पास कहला भेजा, “हे भाइयों, यदि लोगों के उपदेश के लिये तुम्हारे मन में कोई बात हो तो कहो।”
16 तब पौलुस ने खड़े होकर और हाथ से इशारा करके कहा, “हे इस्राएलियों, और परमेश्वर से डरनेवालों, सुनो 17 इन इस्राएली लोगों के परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुन लिया, और जब ये मिस्र देश में परदेशी होकर रहते थे, तो उनकी उन्नति की; और बलवन्त भुजा से निकाल लाया। (निर्ग. 6:1, निर्ग. 12:51) 18 और वह कोई चालीस वर्ष तक जंगल में उनकी सहता रहा, (निर्ग. 16:35, गिन. 14:34, व्य. 1:31)
19 और कनान देश में सात जातियों का नाश करके उनका देश लगभग साढ़े चार सौ वर्ष में इनकी विरासत में कर दिया। (व्य. 7:1, यहो. 14:1) 20 इसके बाद उसने शमूएल भविष्यद्वक्ता तक उनमें न्यायी ठहराए। (न्याय. 2:16, 1 शमू. 2:16)
21 उसके बाद उन्होंने एक राजा माँगा; तब परमेश्वर ने चालीस वर्ष के लिये बिन्यामीन के गोत्र में से एक मनुष्य अर्थात् कीश के पुत्र शाऊल को उन पर राजा ठहराया। (1 शमू. 8:5,1 शमू. 8:19,1 शमू. 10:20-21, 1 शमू. 10:24, 1 शमू. 11:15)
22 फिर उसे अलग करके दाऊद को उनका राजा बनाया; जिसके विषय में उसने गवाही दी, ‘मुझे एक मनुष्य, यिशै का पुत्र दाऊद, मेरे मन के अनुसार मिल गया है। वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा।’ (1 शमू. 13:14, 1 शमू. 16:12-13, भज. 89:20, यशा. 44:28)
23 उसी के वंश में से परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस्राएल के पास एक उद्धारकर्ता, अर्थात् यीशु को भेजा। (2 शमू. 7:12-13, यशा. 11:1) 24 जिसके आने से पहले यूहन्ना ने सब इस्राएलियों को मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार किया। 25 और जब यूहन्ना अपनी सेवा पूरी करने पर था, तो उसने कहा, ‘तुम मुझे क्या समझते हो? मैं वह नहीं! वरन् देखो, मेरे बाद एक आनेवाला है, जिसके पाँवों की जूती के बन्ध भी मैं खोलने के योग्य नहीं।’
26 “हे भाइयों, तुम जो अब्राहम की सन्तान हो; और तुम जो परमेश्वर से डरते हो, तुम्हारे पास इस उद्धार का वचन भेजा गया है। 27 क्योंकि यरूशलेम के रहनेवालों और उनके सरदारों ने, न उसे पहचाना, और न भविष्यद्वक्ताओं की बातें समझी; जो हर सब्त के दिन पढ़ी जाती हैं, इसलिए उसे दोषी ठहराकर उनको पूरा किया।
28 उन्होंने मार डालने के योग्य कोई दोष उसमें न पाया, फिर भी पिलातुस से विनती की, कि वह मार डाला जाए। 29 और जब उन्होंने उसके विषय में लिखी हुई सब बातें पूरी की, तो उसे क्रूस पर से उतार कर कब्र में रखा।
30 परन्तु परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, 31 और वह उन्हें जो उसके साथ गलील से यरूशलेम आए थे, बहुत दिनों तक दिखाई देता रहा; लोगों के सामने अब वे ही उसके गवाह हैं।
32 और हम तुम्हें उस प्रतिज्ञा के विषय में जो पूर्वजों से की गई थी, यह सुसमाचार सुनाते हैं, 33 कि परमेश्वर ने यीशु को जिलाकर, वही प्रतिज्ञा हमारी सन्तान के लिये पूरी की; जैसा दूसरे भजन में भी लिखा है,
‘तू मेरा पुत्र है; आज मैं ही ने तुझे जन्माया है।’ (भज. 2:7) 34 और उसके इस रीति से मरे हुओं में से जिलाने के विषय में भी, कि वह कभी न सड़े, उसने यों कहा है,
‘मैं दाऊद पर की पवित्र और अटल कृपा तुम पर करूँगा।’ (यशा. 55:3)
35 इसलिए उसने एक और भजन में भी कहा है,
‘तू अपने पवित्र जन को सड़ने न देगा।’ (भज. 16:10) 36 क्योंकि दाऊद तो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार अपने समय में सेवा करके सो गया, और अपने पूर्वजों में जा मिला, और सड़ भी गया। (न्याय. 2:10, 1 राजा. 2:10) 37 परन्तु जिसको परमेश्वर ने जिलाया, वह सड़ने नहीं पाया।
38 इसलिए, हे भाइयों; तुम जान लो कि यीशु के द्वारा पापों की क्षमा का समाचार तुम्हें दिया जाता है। 39 और जिन बातों से तुम मूसा की व्यवस्था के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सबसे हर एक विश्वास करनेवाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है।
40 इसलिए चौकस रहो, ऐसा न हो, कि जो भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखित है, तुम पर भी आ पड़े:
41 ‘हे निन्दा करनेवालों, देखो, और चकित हो, और मिट जाओ;
क्योंकि मैं तुम्हारे दिनों में एक काम करता हूँ;
ऐसा काम, कि यदि कोई तुम से उसकी चर्चा करे, तो तुम कभी विश्वास न करोगे’।” (हब. 1:5)
42 उनके बाहर निकलते समय लोग उनसे विनती करने लगे, कि अगले सब्त के दिन हमें ये बातें फिर सुनाई जाएँ। 43 और जब आराधनालय उठ गई तो यहूदियों और यहूदी मत में आए हुए भक्तों में से बहुत से पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए; और उन्होंने उनसे बातें करके समझाया, कि परमेश्वर के अनुग्रह में बने रहो।
44 अगले सब्त के दिन नगर के प्रायः सब लोग परमेश्वर का वचन सुनने को इकट्ठे हो गए। 45 परन्तु यहूदी भीड़ को देखकर ईर्ष्या से भर गए, और निन्दा करते हुए पौलुस की बातों के विरोध में बोलने लगे।
46 तब पौलुस और बरनबास ने निडर होकर कहा, “अवश्य था, कि परमेश्वर का वचन पहले तुम्हें सुनाया जाता; परन्तु जब कि तुम उसे दूर करते हो, और अपने को अनन्त जीवन के योग्य नहीं ठहराते, तो अब, हम अन्यजातियों की ओर फिरते हैं। 47 क्योंकि प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है,
‘मैंने तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराया है,
ताकि तू पृथ्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो’।” (यशा. 49:6)
48 यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे, और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया। 49 तब प्रभु का वचन उस सारे देश में फैलने लगा।
50 परन्तु यहूदियों ने भक्त और कुलीन स्त्रियों को और नगर के प्रमुख लोगों को भड़काया, और पौलुस और बरनबास पर उपद्रव करवाकर उन्हें अपनी सीमा से बाहर निकाल दिया। 51 तब वे उनके सामने अपने पाँवों की धूल झाड़कर इकुनियुम को चले गए। 52 और चेले आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे।
“उस समय अन्ताकिया की कलीसिया में”
(देखें: नामों का अनुवाद कैसे करें)
मनाहेम संभवतः हेरोदेस का संगी या साथ पला-बड़ा मित्र था
“मेरी सेवा के लिए....नियुक्त’’ अथवा “शुद्ध” करो
मैंने उन्हें बुलाया है बुलाने से आशय परमेश्वर द्वारा इस कार्य के चुनने से है
अर्थात तब “सभा ने” या फिर, “विश्वासियों की सभा ने”
“परमेश्वर की सेवा के लिए अलग किये उन लोगों पर अपने हाथ रखकर।” यहाँ पर हाथ रखने के द्वारा आत्मा के वरदान देने का उल्लेख नहीं है। यह बरनबास और शाऊल पर पवित्र आत्मा की बुलाहट की पुष्टि करने के लिए प्राचीनों द्वारा निभाई गयी रीति थी।
“उन लोगों को विदा किया” या फिर, “उन लोगों को पवित्र आत्मा द्वारा बताये गए कार्य को करने के लिए विदा किया”
अर्थात “बरनबास और शाऊल”
सिलूकिया को गए - शायद यहाँ सतह की ऊँचाई में अंतर था
सिलूकिया सागर तट के किनारे बसा नगर था
सलमीस नगर कुप्रुस द्वीप में था
संभावित अर्थ हैं: 1) “बरनबास और शाऊल ने सलमीस नगर में उपदेश दिए थे और वहां बहुत से यहूदी आराधनालय थे” या फिर 2) “बरनबास और शाऊल ने उपदेश देने की शुरुआत सलमीस नगर से की और कुप्रुस द्वीप में यात्रा करते हुए बाकी यहूदी आराधनालयों में गए।”
अर्थात बरनबास,शाऊल और यूहन्ना मरकुस पहुंचे
वे टापू की एक छोर से दूसरी छोर तक गए। हो सकता है कि वे टापू के हर नगर में न गए हों। लेकिन अपने रास्ते में आनेवाले हर नगर में उन्होंने सुसमाचार का प्रचार किया होगा।
कुप्रुस टापू का एक मुख्य नगर जहाँ प्रांत का गवर्नर रहता था
“मिला” से आशय अचानक हुई भेंट से है। अनुवाद करते समय हम “संयोगवश उनकी भेंट एक जादूगर से हुई।”
“जादू-टोना करनेवाला व्यक्ति” अथवा “पारलौकिक और जादूई कला का अभ्यास करनेवाला व्यक्ति।”
यूनानी भाषा में इसका अर्थ है “यीशु का बेटा। लेकिन इस व्यक्ति का यीशु मसीह से कोई लेना-देना नहीं था। ‘यीशु’ उन दिनों बहुत आम नाम था।
“अकसर ...के साथ था” या फिर, “अकसर...उनकी संगति में रहता था”
रोमी प्रान्त का गवर्नर अधिकारी। अनुवाद करते समय “गवर्नर” भी लिख सकते हैं
अर्थात "सरगियुस पौलुस"
अर्थात जादूगर बार-यीशु ने
“यूनानी भाषा में वह इसी नाम से बुलाया जाता था”
“उन्हें रोकने के लिए उनसे आमना-सामना किया”
“सरगियुस पौलुस ....ने वचन सुनना चाहा”
“इलिमास ने....चाहा”
“हाकिम को सुसमाचार के सन्देश पर विश्वास करने से रोकना चाहा”
“जिसे लोग पौलुस भी बुलाते थे” या फिर “जो स्वयं को पौलुस भी कहता था”
“शाऊल ने इलिमास टोन्हे को घूर कर देखा”
यहाँ आलंकारिक संबोधन है। अनुवाद करते समय आप 1) “शैतान के बच्चे” या फिर 2) “शैतान के समान” अथवा 3) “हे शैतान जैसे काम करनेवाले” भी लिख सकते हैं।
सारे कपट और सब चतुराई से भरे हुए - “मक्कारी और हमेशा गलत काम करने के द्वारा तू हमेशा दूसरों को झूठी बातों पर विश्वास दिलाना चाहता है”
यहाँ इसका आशय परमेश्वर की व्यवस्था का निष्ठापूर्वक पालन करने में आलस करना और उसे निष्ठापूर्वक नहीं करने से है।
शैतान का अनुकरण करने को लेकर पौलुस उस जादूगर को झिड़की दे रहा है। अनुवाद करते समय हम इसे “तू यह कहना बंद कर कि प्रभु परमेश्वर का सत्य झूठा है”। (यूडीबी) (देखें आलंकारिक प्रश्न)
“प्रभु के विषय में जो सत्य है” को आलंकारिक भाषा के प्रयोग द्वारा व्यक्त किया गया है। प्रभु के विषय में जो सत्य है, उन्हें झूठा बटाने के लिए पौलुस उस जादूगर को झिड़की दे रहा है।
(11वें पद में इलिमास के साथ शुरू हुई बातचीत को पौलुस आगे बढाता है।)
अर्थात परमेश्वर की सामर्थ्य तुझे दंड देने को तैयार है”। अनुवाद करते समय हम इसे “परमेश्वर तुझे दंड देगा” भी लिख सकते हैं।
“परमेश्वर तुझे अँधा बना देगा”
इलिमास पूरी तरह से अँधा हो जाएगा। यहाँ तक कि उसे सूर्य की रोशनी भी नहीं दिखेगी
“कुछ अवधि के लिए” या फिर “परमेश्वर द्वारा नियत समय के लिए”
“तब इलिमास पर एक धुंध और अँधेरा छा गया” या फिर, “एक अंधियारी धुंध इलिमास की आँखों पर छा गयी” या फिर, “तब इलिमास की दृष्टि धुंधली हो गयी और फिर उनमे अँधियारा छा गया” या फिर, “इलिमास की दृष्टि धुंधली हो गयी और फिर उसे दिखना बंद हो गया”
“इलिमास भटकने लगा” या फिर, “इलिमास इधर-उधर छू-छूकर चलने लगा”
रोमी प्रान्त का अधिकारी। अनुवाद करते समय इसे “अधिकारी” भी लिख सकते हैं।
“हाकिम ने विश्वास किया” या फिर, “हाकिम ने यीशु पर विश्वास किया”
“हाकिम उपदेश से चकित हुआ और” या फिर, “हाकिम को बहुत आश्चर्य हुआ”
कहानी में आये नए मोड़ यहाँ प्रकट हो रहा है।
“पौलुस और उसके साथी जहाज के द्वारा ....पहुंचे.” ये साथी बरनबास और यूहन्ना मरकुस थे.
“लेकिन यूहन्ना पौलुस व बरनबास को छोड़ कर....को लौट गया”
“पम्फूलिया स्थित पिरगा में आए”
अर्थात “व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें पढ़ी जाने के बाद”
“किसी के द्वारा पौलुस और उसके साथियों को कहा”
“यदि तुम्हारे में से किसी के पास उपदेश का कोई शब्द हो तो कहो”
“तो कृपया कहें” या फिर, “तो कृपया हमें बताएं”
अपने हाथों को हिलाकर संकेत बनाते हुए कहा कि वह बोलने को तैयार है। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि, “अपने हाथों से इशारा करके बताया कि वह बोलनेवाला है”।
यहाँ पर आशय उन गैर-यहूदियों से है जिन्होंने परमेश्वर की आराधना करने और उस पर विश्वास किया था। अनुवाद करते समय ऐसे भी लिख सकते हैं, कि “तुम जो इस्राएल के तो नहीं हो, लेकिन परमेश्वर की आराधना करते हो।”
मेरी बात सुनों” या फिर, “मैं जो कहनेवाला हूँ, उसे सुनो”
“इस्राएल के लोगों के परमेश्वर ने”
यहाँ “हमारे” सर्वनाम का प्रयोग विशिष्ट है और केवल पौलुस व उसके संगी यहूदियों के विषय में है। यहाँ हम “यहूदी लोगों को चुन लिया” भी लिख सकते हैं।
“जब इस्राएल के लोग मिस्र देश में....रहते थे”
“परमेश्वर इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल लाया”
“परमेश्वर ने उन्हें सहन किया” या फिर “परमेश्वर ने उनकी अवज्ञाओं को सहन किया”
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
अर्थात नाश करने के बाद
“परमेश्वर ने पौलुस के लोगों की मीरास कर दिया”
“इस्राएल के लोगों का देश”
“साढ़े चार सौ साल पहले”
परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों को दे दिया
शमूएल भविष्यद्वक्ता तक - “शमूएल भविष्यद्वक्ता के होने तक”
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
“तब परमेश्वर चालीस साल की अवधि के लिए”
“परमेश्वर ने दाऊद को उनका राजा चुना”
अर्थात “इस्राएल का राजा” अथवा “इस्राएलवासियों पर राजा ठहराया”
“जिसके बारे में परमेश्वर ने कहा”
“मैं ने पाया है कि यिशै का बेटा दाऊद...”
मेरे मन के अनुसार अर्थात “एक ऐसा मनुष्य है, जो वही चाहता है जो मैं चाहता हूँ” (यूडीबी)।
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
“दाऊद के वंश से”
“परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार”
“मन फिराव को व्यक्त करनेवाला बपतिस्मा”
लोगों को उपदेश देते समय बप्तिस्मा देनेवाले यूहन्ना ने उनसे यह प्रश्न क्या था। इसे “सोचों, मैं कौन हूँ” भी लिख सकते हैं।
“मैं तो उसके पैरों की जूतियाँ तक खोलने के योग्य नहीं”
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
“अब्राहम के वंशज हो” (यूडीबी)
यहाँ “तुम्हारे” का आशय पौलुस और आराधनालय में उपस्थित सभी लोगों से है।
“यीशु को न जाना”
“परमेश्वर ने उद्धार का वचन भेजा गया”
यहाँ पर आशय “भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों अथवा उनकी लिखी बातों” से है।
“इसलिए यरूशलेम के अगुओं ने असल में ठीक वही किया जो भविष्यद्वक्ताओं ने कहा था कि वे करेंगे”
“जिन्हें हर सब्त के दिन पढ़ा जाता है”।
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
अर्थात यहूदी अगुओं ने
अर्थात यीशु में
यहूदी अगुवे बस किसी तरह यीशु को मार डालना चाहते थे। अनुवाद करते समय हम यूं लिख सकते अहिं, कि “यहूदी अगुवों को यीशु को मरवाने का कोई कारण न मिला”
नोट: “विनती” के स्थान पर “मांग की” अधिक उपयुक्त है, क्योंकि उन्होंने पीलातुस पर ऐसा करने के लिए दबाव डाला था।
जब उन्होंने उसके विषय में लिखी हुई बातें पूरी की “जब यहूदी अगुओं ने भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में यीशु की मृत्यु के विषय में लिखी हुई बातें पूरी की”
“कुछ अगुओं ने यीशु के मरने के पश्चात उसे क्रूस पर से उतार लिया”
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
“परन्तु परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया”
“यीशु बहुत दिनों तक दिखाई दिया”
“लोगों के सामने अब वे ही यीशु की गवाही दे रहे हैं”
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
“परमेश्वर की उस प्रतिज्ञा के विषय में जो परमेश्वर ने हमारे बापदादों से की थी”
“परमेश्वर ने वह प्रतिज्ञा हमारी संतान के लिए पूरी कि”
“हम, संतानों के लिए”
“कि परमेश्वर ने यीशु को जिलाने के द्वारा”
“जिलाने का सत्य भी”
मरे हुओं में से जिलाने के विषय में ही, कि वह कभी न सड़े, उसने यों कहा है -परमेश्वर ने यीशु के जिलाने के विषय में कहा है ताकि यीशु की देह कभी न सड़े”
“पवित्र और नियत कृपा”
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
इसलिए उसने एक और भजन में - -“इसलिए दाऊद एक और भजन में”
दाऊद यहाँ परमेश्वर से बातें कर रहा है
“के शरीर को सड़ने न देगा”
“अपने जीवनकाल में”
“परमेश्वर की सेवा की” अथवा, “परमेश्वर को प्रसन्न किया”
सो गया - “वह मर गया”
-“और उसे अपने पूर्वजों के साथ मिटटी में गाड़ दिया गया”
“परन्तु...यीशु की देह सड़ने न पायी”
“उसकी देह सड़ने न पाई”
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
“तुम्हारे लिए जानना ज़रूरी है कि”
“हम तुम्हे यह बताया जाता है कि यीशु मसीह के द्वारा तुम्हारे पाप क्षमा हो सकते हैं”
“यीशु के द्वारा”
“पापों से”
(पौलुस अपनी बात जारी रखता है)
“ताकि जो बातें भविष्यद्वक्ताओं ने कही हैं”
“तुम” का आशय आराधनालय में उपस्थित लोगों से है
“हे तिरस्कार से भरे लोगों, सावधान”, अथवा, “मेरा ठट्ठा करनेवालों, सावधान”
“मर जाओ”
“मैं” का आशय परमेश्वर से है
“कुछ कर रहा हूँ”
“तुम्हारे जीवनकाल में”
“मैं कुछ ऐसा काम कर रहा हूँ जो”
“यदि कोई तुम्हे उसके विषय में बताये”
“जब पौलुस और बरनबास बाहर जा रहे थे”
“उनसे बहुत आग्रह किया कि”
ये यहूदी मत को ग्रहण करनेवाले गैर-यहूदी लोग थे
“पौलुस और बरनबास ने उन लोगों से बात करके समझाया”
“कि परमेश्वर के अनुग्रह में अपनी आस्था बनाए रखो”
सशब्द अर्थ
“सब लोग” अतिशयोक्ति प्रतीत होई है, लेकिन “प्रायः” शब्द से बात स्पष्ट हो जाती है
अर्थात “यहूदी अगुवे”
“यहूदी अगुवे डाह से भर उठे” या फिर, “यहूदी अगुवों को जलन होने लगी”
“और पौलुस की निंदा करते हुए”
“कि परमेश्वर का वचन पहले तुम्हे सुनाया जाए”
“पहले तुम यहूदियों को सुनाया जाता”
“जब कि तुम यहूदी परमेश्वर के वचन को नकारते हो”
यहूदी लोगों ने यीशु मसीह के माध्यम से अनंत जीवन के पौलुस द्वारा दिए सन्देश को ठुकरा दिया था
की ओर फिरते हैं “हम” का आशय पौलुस व बरनबास से है न कि भीड़ से।
यह कथन पुराने नियम से उद्धृत है जहाँ “मैंने” का आशय परमेश्वर से और “तुझे” का आशय मूल रूप से यीशु मसीह से था। पौलुस बताता है कि किस प्रकार यह कथन उस पर और बरनबास पर भी लागू होती है और वे अन्यजातियों में वचन बांटते हैं।
“वे सब जिन्हें परमेश्वर ने अनंत जीवन के लिए चुना था”
“परमेश्वर ने अनंत जीवन के लिए चुना था”
तब जिन्होंने विश्वास किया, वे जाकर यीशु मसीह के वचन को दूसरों में बांटने लगे
“परन्तु यहूदी अगुओं ने”
“उकसाया” अथवा “मनाया”
“इन कुलीन स्त्री-पुरुषों ने सताव को भड़काया”
“पौलुस व बरनबास को अपने नगर से निकाल दिया” या फिर, “पौलुस व बरनबास को अपने क्षेत्र से निष्कासित कर दिया”
प्रतीकात्मक रूप से किया गया कार्य जो यह व्यक्त करता है कि परमेश्वर ने उन्हें नकार दिया है और उन्हें दंड देगा।
“पौलुस व बरनबास.....चले गए”
अन्ताकिया की कलीसिया उपवास सहित प्रभु की आराधना कर रहे थे जब पवित्र आत्मा ने उनसे बात की।
पवित्र आत्मा ने उनसे कहा कि बरनबास और शाऊल को उस काम के लिए अलग करने के लिए ।
कलीसिया ने उपवास और प्रार्थना कर के, बरनबास और शाऊल पर हाथ रख कर उन्हें विदा किया।
सलमीस में, यूहन्ना मरकुस उनका सेवक था।
बार-यीशु एक झूठा यहूदी भविष्यवक्ता था और हाकिम के सम्पर्क में था।
हाकिम ने बरनबास और शाऊल को इसलिए बुलाया क्योंकि वह परमेश्वर का वचन सुनना चाहता था।
शाऊल को पौलुस के नाम से भी जाना जाता था।
पौलुस ने बार-यीशु से कहा कि वह शैतान की संतान है और वह कुछ समय के लिए अंधा हो जाएगा।
हाकिम ने विश्वास किया।
यूहन्ना मरकुस उन्हें छोड़कर यरूशलेम को लौट गया।
पिसदिया के अन्ताकिया में, पौलुस को यहूदियों के आराधनालय में बोलने के लिए कहा गया था।
पौलुस ने अपने उपदेश में इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन किया।
राजा दाऊद के द्वारा परमेश्वर ने इस्राएलियों को उद्धारकर्ता दिया।
पौलुस ने कहा कि यूहन्ना बप्तिस्मा देने वाले ने आने वाले उद्धारकर्ता के लिए मार्ग तैयार किया।
लोगों और यरूशलेम के सरदारों के भविष्यवक्ताओं की कही बातें यीशु को मृत्यु के लिए दोषी ठहराकर पूरी कीं।
जिन लोगों ने यीशु को मर कर जी उठने के पश्चात् देखा वही अब उसकी गवाही थे।
परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाकर दिखाया कि उसने यहूदियों से अपना वायदा निभाया है।
परमेश्वर ने वायदा किया कि वह अपने पवित्र जन को सड़ने न देगा।
पौलुस ने हर एक विश्वास करने वाले के लिए पापों की क्षमा की घोषणा की।
पौलुस ने अपने सुनने वालों को चेतावनी दी कि उन लोगों जैसे न बनें जिनका वर्णन भविष्यवक्ताओं की पुस्तक में है,जो चर्चा सुन कर भी, विश्वास नहीं करते।
अगले दिन प्राय: सब लोग सब्त के दिन परमेश्वर का वचन सुनने आए।
यहूदी डाह से भर गए और पौलुस के उपदेश के विरोध में बोलने लगे, उसकी निन्दा करते हुए।
परमेश्वर ने कहा कि यहूदी परमेश्वर के वचन को दूर कर रहे थे जिसे परमेश्वर ने उनसे कहा था।
अन्यजातीय आनन्दित हुए और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे।
जितने अनन्त जीवन के लिए ठहराए गए थे उन्होंने विश्वास किया।
यहूदियों ने पौलुस और बरनबास के खिलाफ़ लोगों को भड़काया और नगर से बाहर फिकवा दिया।
पौलुस और बरनबास ने अन्ताकिया के लोगों के खिलाफ़ अपने पांवों की धूल को झाड़ा।
1 इकुनियुम में ऐसा हुआ कि पौलुस और बरनबास यहूदियों की आराधनालय में साथ-साथ गए, और ऐसी बातें की, कि यहूदियों और यूनानियों दोनों में से बहुतों ने विश्वास किया। 2 परन्तु विश्वास न करनेवाले यहूदियों ने अन्यजातियों के मन भाइयों के विरोध में भड़काए, और कटुता उत्पन्न कर दी।
3 और वे बहुत दिन तक वहाँ रहे, और प्रभु के भरोसे पर साहस के साथ बातें करते थे: और वह उनके हाथों से चिन्ह और अद्भुत काम करवाकर अपने अनुग्रह के वचन पर गवाही देता था। 4 परन्तु नगर के लोगों में फूट पड़ गई थी; इससे कितने तो यहूदियों की ओर, और कितने प्रेरितों की ओर हो गए।
5 परन्तु जब अन्यजाति और यहूदी उनका अपमान और उन्हें पत्थराव करने के लिये अपने सरदारों समेत उन पर दौड़े। 6 तो वे इस बात को जान गए, और लुकाउनिया* के लुस्त्रा और दिरबे नगरों में, और आस-पास के प्रदेशों में भाग गए। 7 और वहाँ सुसमाचार सुनाने लगे।
8 लुस्त्रा में एक मनुष्य बैठा था, जो पाँवों का निर्बल था। वह जन्म ही से लँगड़ा था, और कभी न चला था। 9 वह पौलुस को बातें करते सुन रहा था और पौलुस ने उसकी ओर टकटकी लगाकर देखा कि इसको चंगा हो जाने का विश्वास है। 10 और ऊँचे शब्द से कहा, “अपने पाँवों के बल सीधा खड़ा हो।” तब वह उछलकर चलने फिरने लगा।
11 लोगों ने पौलुस का यह काम देखकर लुकाउनिया भाषा में ऊँचे शब्द से कहा, “देवता मनुष्यों के रूप में होकर हमारे पास उतर आए हैं।” 12 और उन्होंने बरनबास को ज्यूस, और पौलुस को हिर्मेस कहा क्योंकि वह बातें करने में मुख्य था। 13 और ज्यूस के उस मन्दिर का पुजारी जो उनके नगर के सामने था, बैल और फूलों के हार फाटकों पर लाकर लोगों के साथ बलिदान करना चाहता था।
14 परन्तु बरनबास और पौलुस प्रेरितों ने जब सुना, तो अपने कपड़े फाड़े, और भीड़ की ओर लपक गए, और पुकारकर कहने लगे, 15 “हे लोगों, तुम क्या करते हो? हम भी तो तुम्हारे समान दुःख-सुख भोगी मनुष्य हैं, और तुम्हें सुसमाचार सुनाते हैं, कि तुम इन व्यर्थ वस्तुओं से अलग होकर जीविते परमेश्वर की ओर फिरो, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया। (निर्ग. 20:11, भज. 146:6) 16 उसने बीते समयों में सब जातियों को अपने-अपने मार्गों में चलने दिया।
17 तो भी उसने अपने आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।” (भज. 147:8, यिर्म. 5:24) 18 यह कहकर भी उन्होंने लोगों को बड़ी कठिनाई से रोका कि उनके लिये बलिदान न करें।
19 परन्तु कितने यहूदियों ने अन्ताकिया और इकुनियुम से आकर लोगों को अपनी ओर कर लिया, और पौलुस को पत्थराव किया, और मरा समझकर उसे नगर के बाहर घसीट ले गए। 20 पर जब चेले उसकी चारों ओर आ खड़े हुए, तो वह उठकर नगर में गया और दूसरे दिन बरनबास के साथ दिरबे को चला गया।
21 और वे उस नगर के लोगों को सुसमाचार सुनाकर, और बहुत से चेले बनाकर, लुस्त्रा और इकुनियुम और अन्ताकिया को लौट आए। 22 और चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे कि विश्वास में बने रहो; और यह कहते थे, “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।”
23 और उन्होंने हर एक कलीसिया में उनके लिये प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्थना करके उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्होंने विश्वास किया था। 24 और पिसिदिया से होते हुए वे पंफूलिया में पहुँचे; 25 और पिरगा में वचन सुनाकर अत्तलिया में आए।
26 और वहाँ से जहाज द्वारा अन्ताकिया गये, जहाँ वे उस काम के लिये जो उन्होंने पूरा किया था परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपे गए। 27 वहाँ पहुँचकर, उन्होंने कलीसिया इकट्ठी की और बताया, कि परमेश्वर ने हमारे साथ होकर कैसे बड़े-बड़े काम किए! और अन्यजातियों के लिये विश्वास का द्वार खोल दिया*। 28 और वे चेलों के साथ बहुत दिन तक रहे।
“इकुनियुम में भी ऐसा ही हुआ”
“परन्तु अवज्ञाकारी यहूदियों ने अन्यजातियों को विश्वासियों के विरुद्ध कर दिया’
पौलुस व बरनबास कई दिनों तक इकुनियुम में रहे। यदि “और” शब्द के प्रयोग से भ्रम पैदा होता हो, तो उसे हटाया जा सकता है।
“प्रभु अपने अनुग्रह के वचन पर......”
अर्थात “प्रभु के अनुग्रह के”
“वचन की सत्यता की गवाही देता था”
अर्थात पौलुस व बरनबास के हाथों से।
यीशु ने पौलुस व बरनबास को चिन्ह व अद्भुत कार्य करने की सामर्थ दी। अनुवाद करते समय यूँ भी लिख सकते हैं कि, “चिन्ह और अद्भुत काम करने की सामर्थ दी” (यूडीबी)
“की ओर हो गए” का आशय है “के पक्ष में हो गए”
यहाँ लूका ने पौलुस व बरनबास को प्रेरित कहते हुए, उन्हें यीशु के बारह चेलों की बराबरी देता है।
“इकुनियुम के सरदारों समेत”
“तब पौलुस व बरनबास उन्हें चोट पहुंचाने के लिए बनाई गयी उनकी योजना को जान गए”
एशिया माइनर का एक जिला
इकुनियुम के दक्षिण और दिरबे के उत्तर में स्थित एशिया माइनर का एक नगर
इकुनियुम और लुस्त्रा के दक्षिण में स्थित एशिया माइनर का एक नगर
“और पौलुस व बरनबास वहाँ सुसमाचार सुनाने लगे”
“पौलुस ने उस लंगड़े व्यक्ति से कहा”
“वह पैदाइशी लंगड़ा था, और चलने से लाचार था”
“पौलुस ने सीधा उसे देखा”
“कि इस लंगड़े व्यक्ति को”
“चंगाई पाने का”
“जोश से चिल्लाया” (यूडीबी)
बहुत लोगों को लगता था कि पौलुस व बरनबास उनके देवता है जो आकाश या स्वर्ग से उतर कर उनके पास आये थे। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि, “देवता स्वर्ग से उतर कर हमारे पास आये हैं।”
लोगों को लगता था कि देवता लोग पूरी तरह से मनुष्य नहीं दिखते होंगे।
“क्योंकि पौलुस बातें करने में”
बलि के लिए जानवर, और पौलुस व बरनबास अथवा बलि के जानवर के लिए फूलों के हार।
“मंदिर का पुजारी...और भीड़” (यूडीबी)
लूका यहाँ पौलुस व बरनबास को “प्रेरित” कह रहा है और यीशु के 12 मूल चेलों के साथ उनकी बराबरी कर रहा है।
जब लोग पौलुस और बरनबास के लिए बलिदान देना चाहते थे, तब पौलुस और बरनबास ने उन्हें झिड़की दी। इस हम इस प्रकार भी लिख सकते हैं, कि “हे लोगों, तुम्हे ये सब नहीं करना चाहिए!”
अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं, कि “हम भी तुम्हारी तरह”
“इन बेकार की मूरतों की आराधना बंद करों” या फिर, “इन झूठे देवताओं की आराधना बंद कर”
“बजाय इसके, जीवते परमेश्वर की आराधना करो”
“अपने अनुसार जीने दिया”
(पौलुस व बरनबास अपना उपदेश जारी रखते हैं)
“परमेश्वर ने स्वयं को”
अनुवाद करते समय “उस पर भी” का प्रयोग भी कर सकते हैं।
“तुम्हारे” से पौलुस का आशय सभी सुननेवालों से है
“तुम्हे खाने को पर्याप्त भोजन और आनंददायक वस्तुएं देता रहा”
भीड़ ने पौलुस व बरनबास के लिए बैल को लगभग बलि कर ही दिया था
“लोगों को पौलुस के विरोध में कर दिया”
पौलुस के विषय में है
“पौलुस फिर से विश्वासियों के साथ लुस्त्रा में गया”
“पौलुस दिरबे चला गया”
यहाँ पौलुस व बरनाबास के विषय में बात हो रही है
अर्थात “दिरबे”
पौलुस व बरनबास ने विश्वासियों को दृड़ बनाया और सुसमाचार के सत्य में और अधिक मज़बूत बनाया
पौलुस व बरनबास लोगों को यीशु में विश्वास बनाए रखने का प्रोत्साहन दे रहे थे
यह प्रत्यक्ष भाष्य है। अनुवाद करते समय हम इसे कर्मप्रधान भी बना सकते हैं। जैसे कि, “उन्होंने बताया कि वे उन्हें क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना था।”
अर्थात "पौलुस व बरनबास लुस्त्रा, इकुनियुम और अन्ताकिया के विश्वासियों से कहते थे"
पौलुस यहाँ बरनबास, विश्वासियों और स्वयं के विषय में भी कह रहा है।
“पौलुस और बरनबास ने.... विश्वासियों की नयी सभाओं के लिए अगुवे नियुक्त किये”
“पौलुस और बरनबास ने नियुक्त किये प्राचीनों को प्रभु के हाथ सौंपा”
“जिस पर नए विश्वासियो ने विश्वास किया था”
“वे” और “उन्होंने” का आशय पौलुस व बरनबास से है
“जहां अन्ताकिया के लोगों ने प्रार्थना की थी कि परमेश्वर पौलुस व बरनबास की देखरेख और रक्षा करे”
“वहां पहुंचकर पौलुस व बरनबास ने”
“परमेश्वर ने पौलुस व बरनबास के साथ कैसे बड़े-बड़े काम किए”
परमेश्वर ने....किस प्रकार
यहाँ पर अलंकार का प्रयोग है। कहने का आशय है कि “परमेश्वर ने अन्यजातियों के लिए विश्वास का एक मार्ग बना दिया” या फिर, “परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी विश्वास का अवसर दिया”। जिस प्रकार व्यक्ति बंद दरवाज़े से नहीं गुज़र सकता, वैसे ही अन्यजातीय लोगों के लिए भी परमेश्वर पर विश्वास करना तब तक असंभव है जब तक कि परमेश्वर उनके लिए यह संभव न बनाए।
अर्थात पौलुस व बरनबास
विश्वास न करने वाले लोगों ने अन्यजातियों के मन भाईयों के विरोध में भड़काए और उनके मन में कटुता उत्पन्न कर दी।
परमेश्वर ने पौलुस और बरनबास के हाथों से चिन्ह और अद्भुत काम करवाकर अपने अनुग्रह की गवाही दी।
कुछ अन्यजातीय और यहूदियों ने अपने सरदारों को भड़का कर पौलुस और बरनबास पर पथराव करने और उनका अपमान करने की कोशिश की।
पौलुस ने जन्म से लंगड़े आदमी को चंगा कर दिया।
वे लोग ज्यूस के पुजारी के द्वारा पौलुस और बरनबास को बलिदान चढ़ाना चाहते थे।
बरनबास और पौलुस ने अपने कपड़े फाड़े और, भीड़ की ओर लपक गए और पुकारकर कहने लगे कि उन्हें इन व्यर्थ वस्तुओं से अलग होकर जीवते परमेश्वर की ओर फिरना चाहिए।
परमेश्वर उन्हें वर्षा और फलवन्त ऋतु दे कर, उनके मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।
लुस्त्रा की भीड़ ने बाद में पौलुस पर पथराव कर उसे घसीट कर नगर के बाहर छोड़ दिया।
पौलुस उठा और नगर में चला गया।
पौलुस के अनुसार बड़ा क्लेश उठाकर चेलों को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना चाहिए।
हर एक कलीसिया में, पौलुस और बरनबास ने प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्थना करके उन्हें प्रभु के हाथों में सौंपा।
और जब वे अन्ताकिया लौटे, उन्होंने कलीसिया को बताया कि परमेश्वर ने कैसे उनके साथ होकर बड़े-बड़े काम किए,और कैसे अन्यजातियों के लिए विश्वास का द्वार खोला।
1 फिर कुछ लोग यहूदिया से आकर भाइयों को सिखाने लगे: “यदि मूसा की रीति पर तुम्हारा खतना न हो तो तुम उद्धार नहीं पा सकते।” (लैव्य. 12:3) 2 जब पौलुस और बरनबास का उनसे बहुत मतभेद और विवाद हुआ तो यह ठहराया गया, कि पौलुस और बरनबास, और उनमें से कुछ व्यक्ति इस बात के विषय में प्रेरितों और प्राचीनों के पास यरूशलेम को जाएँ।
3 अतः कलीसिया ने उन्हें कुछ दूर तक पहुँचाया; और वे फीनीके और सामरिया से होते हुए अन्यजातियों के मन फिराने का समाचार सुनाते गए, और सब भाइयों को बहुत आनन्दित किया। 4 जब वे यरूशलेम में पहुँचे, तो कलीसिया और प्रेरित और प्राचीन उनसे आनन्द के साथ मिले, और उन्होंने बताया कि परमेश्वर ने उनके साथ होकर कैसे-कैसे काम किए थे।
5 परन्तु फरीसियों के पंथ में से जिन्होंने विश्वास किया था, उनमें से कितनों ने उठकर कहा, “उन्हें खतना कराने और मूसा की व्यवस्था को मानने की आज्ञा देनी चाहिए।” 6 तब प्रेरित और प्राचीन इस बात के विषय में विचार करने के लिये इकट्ठे हुए।
7 तब पतरस ने बहुत वाद-विवाद हो जाने के बाद खड़े होकर उनसे कहा,
“हे भाइयों, तुम जानते हो, कि बहुत दिन हुए, कि परमेश्वर ने तुम में से मुझे चुन लिया, कि मेरे मुँह से अन्यजातियाँ सुसमाचार का वचन सुनकर विश्वास करें।” 8 और मन के जाँचने वाले परमेश्वर ने उनको भी हमारे समान पवित्र आत्मा देकर उनकी गवाही दी; 9 और विश्वास के द्वारा उनके मन शुद्ध करके हम में और उनमें कुछ भेद न रखा।
10 तो अब तुम क्यों परमेश्वर की परीक्षा करते हो। कि चेलों की गर्दन पर ऐसा जूआ रखो, जिसे न हमारे पूर्वज उठा सकते थे और न हम उठा सकते है। 11 हाँ, हमारा यह तो निश्चय है कि जिस रीति से वे प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएँगे*; उसी रीति से हम भी पाएँगे।”
12 तब सारी सभा चुपचाप होकर बरनबास और पौलुस की सुनने लगी, कि परमेश्वर ने उनके द्वारा अन्यजातियों में कैसे-कैसे बड़े चिन्ह, और अद्भुत काम दिखाए।
13 जब वे चुप हुए, तो याकूब कहने लगा,
“हे भाइयों, मेरी सुनो। 14 शमौन ने बताया, कि परमेश्वर ने पहले पहल अन्यजातियों पर कैसी कृपादृष्टि की, कि उनमें से अपने नाम के लिये एक लोग बना ले।
15 और इससे भविष्यद्वक्ताओं की बातें भी मिलती हैं, जैसा लिखा है,
16 ‘इसके बाद मैं फिर आकर दाऊद का गिरा हुआ डेरा उठाऊँगा,
और उसके खंडहरों को फिर बनाऊँगा,
और उसे खड़ा करूँगा, (यिर्म. 12:15)
17 इसलिए कि शेष मनुष्य, अर्थात् सब अन्यजाति जो मेरे नाम के कहलाते हैं, प्रभु को ढूँढें,
18 यह वही प्रभु कहता है जो जगत की उत्पत्ति से इन बातों का समाचार देता आया है।’ (आमो. 9:9-12, यशा. 45:21)
19 इसलिए मेरा विचार यह है, कि अन्यजातियों में से जो लोग परमेश्वर की ओर फिरते हैं, हम उन्हें दुःख न दें; 20 परन्तु उन्हें लिख भेजें, कि वे मूरतों की अशुद्धताओं* और व्यभिचार और गला घोंटे हुओं के माँस से और लहू से परे रहें। (उत्प. 9:4, लैव्य. 3:17, लैव्य. 17:10-14) 21 क्योंकि पुराने समय से नगर-नगर मूसा की व्यवस्था के प्रचार करनेवाले होते चले आए है, और वह हर सब्त के दिन आराधनालय में पढ़ी जाती है।”
22 तब सारी कलीसिया सहित प्रेरितों और प्राचीनों को अच्छा लगा, कि अपने में से कुछ मनुष्यों को चुनें, अर्थात् यहूदा, जो बरसब्बास कहलाता है, और सीलास को जो भाइयों में मुखिया थे; और उन्हें पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें। 23 और उन्होंने उनके हाथ यह लिख भेजा: “अन्ताकिया और सीरिया और किलिकिया के रहनेवाले भाइयों को जो अन्यजातियों में से हैं, प्रेरितों और प्राचीन भाइयों का नमस्कार!
24 हमने सुना है, कि हम में से कुछ ने वहाँ जाकर, तुम्हें अपनी बातों से घबरा दिया; और तुम्हारे मन उलट दिए हैं परन्तु हमने उनको आज्ञा नहीं दी थी। 25 इसलिए हमने एक चित्त होकर ठीक समझा, कि चुने हुए मनुष्यों को अपने प्रिय बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजें। 26 ये तो ऐसे मनुष्य हैं, जिन्होंने अपने प्राण हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिये जोखिम में डाले हैं।
27 और हमने यहूदा और सीलास को भेजा है, जो अपने मुँह से भी ये बातें कह देंगे। 28 पवित्र आत्मा को, और हमको भी ठीक जान पड़ा कि इन आवश्यक बातों को छोड़; तुम पर और बोझ न डालें; 29 कि तुम मूरतों के बलि किए हुओं से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से दूर रहो। इनसे दूर रहो तो तुम्हारा भला होगा। आगे शुभकामना।” (उत्प. 9:4, लैव्य. 3:17, लैव्य. 17:10-14)
30 फिर वे विदा होकर अन्ताकिया में पहुँचे, और सभा को इकट्ठी करके उन्हें पत्री दे दी। 31 और वे पढ़कर उस उपदेश की बात से अति आनन्दित हुए। 32 और यहूदा और सीलास ने जो आप भी भविष्यद्वक्ता थे, बहुत बातों से भाइयों को उपदेश देकर स्थिर किया।
33 वे कुछ दिन रहकर भाइयों से शान्ति के साथ विदा हुए कि अपने भेजनेवालों के पास जाएँ। 34 (परन्तु सीलास को वहाँ रहना अच्छा लगा।) 35 और पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में रह गए: और अन्य बहुत से लोगों के साथ प्रभु के वचन का उपदेश करते और सुसमाचार सुनाते रहे।
36 कुछ दिन बाद पौलुस ने बरनबास से कहा, “जिन-जिन नगरों में हमने प्रभु का वचन सुनाया था, आओ, फिर उनमें चलकर अपने भाइयों को देखें कि कैसे हैं।” 37 तब बरनबास ने यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेने का विचार किया। 38 परन्तु पौलुस ने उसे जो पंफूलिया में उनसे अलग हो गया था, और काम पर उनके साथ न गया, साथ ले जाना अच्छा न समझा।
39 अतः ऐसा विवाद उठा कि वे एक दूसरे से अलग हो गए; और बरनबास, मरकुस को लेकर जहाज से साइप्रस को चला गया।
40 परन्तु पौलुस ने सीलास को चुन लिया, और भाइयों से परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपा जाकर वहाँ से चला गया। 41 और कलीसियाओं को स्थिर करता हुआ, सीरिया और किलिकिया से होते हुए निकला।
अर्थ स्पष्ट है
“ऊपर यहूदिया से आये” (अन्ताकिया की अपेक्षा यहूदिया अधिक ऊँचाई पर स्थित है)। यहूदी लोग यरूशलेम व मंदिर की और जाने को “ऊपर जाना” कहते थे, और यरूशलेम व मंदिर से दूर जाने को “नीचे जाना”
“अन्ताकिया के विश्वासियों को सिखाने लगे” या फिर, “अन्ताकिया में विश्वासियों को सिखाने लगे”
“रिवायत के अनुसार” या फिर, “शिक्षा के अनुसार”
अर्थात “यहूदिया के लोगों से बहुत बड़ा”
(ऊपर दिए गए टिप्पणी देखे: "यरूशलेम की और")
“इस मुद्दे के विषय”
इसे परोक्ष कथन के रूप में इस प्रकार भी लिख सकते हैं कि “अतः पौलुस, बरनबास और कुछ अन्य विश्वासी लोग कलीसिया द्वारा कुछ दूर तक पहुंचाए गए।”
“से होते हुए” और “समाचार सुनाते गए” इस बात का संकेत देते हैं कि परमेश्वर के कार्यों का बखान करते हुए वे जगह-जगह गए।
बहुत से अन्यजातीय लोग यूनानी व रोमी देवताओं को छोड़ यीशु में विश्वास करने लगे थे।
अर्थात “कलीसिया के सदस्यो और प्रेरितों ने उनका स्वागत किया..”
“उनके माध्यम से”
लूका विश्वासियों के दो समूहों की तुलना करता है, पहले वे जो “केवल यीशु के द्वारा उद्धार” में विश्वास रखते हैं, और दूसरे वे फरीसी जो यीशु में विश्वास तो रखते हैं लेकिन यह भी मानते हैं कि “उद्धार के लिए खतना करवाना भी अनिवार्य है।”
“उन्हें” का आशय खतराहित गैर-यहूदी विश्वासियों से हैं।
“व्यवस्था का पालन करने के लिए”
“विश्वास से जुड़े इस अंतर पर विचार करने के लिए।” अर्थात, पौलुस द्वारा दिए जानेवाले उद्धार के उपदेश (यीशु द्वारा उद्धार) और फरीसियों के सुसमाचार (खतना और व्यवस्था द्वारा उद्धार) के बीच के अंतर पर बहस करने के लिए इकट्ठे हों।
“खड़े होकर उपस्थित प्रेरितों, प्राचीनों और अन्य विश्वासियों से कहा”
पतरस यहाँ उपस्थित पुरुषों को संबोधित कर रहा है
“बहुत दिन पहले” (यूडीबी)
यहूदी विश्वासियों के बीच में से मुझे
पतरस यहाँ अपने विषय में कह रहा है।
“अन्यजातिय सुसमाचार का वचन सुनें”
“अन्यजातीय की गवाही दी”
"and God made"
परमेश्वर ने यहूदी विश्वासियों और गैर-यहूदी विश्वासियों के बीच कोई अंतर न रखा
“हम में” में पतरस स्वयं को भी शामिल कर रहा है, और “उनमें” का आशय गैर-यहूदियों से है।
(पतरस अपनी बात जारी रखता है।)
यह वास्तविक प्रश्न है जहाँ पतरस यहूदी विश्वासियों से यह कह रहा है कि गैर-यहूदी विश्वासियों को मूसा की व्यवस्था और विशेषकर खतना कराने की ज़रुरत नहीं थी। इसे यूं भी लिख सकते हैं, कि “जिस बोझ को हम यहूदी ही न उठा सके, उस बोझ को अन्यजातिय विश्वासियों पर लाद कर परमेश्वर की परीक्षा न लो!”
पतरस यहाँ “हमारे” और “हम” शब्द में अपने सुननेवालों को भी शामिल कर रहा है।
पतरस यहाँ अपने यहूदी श्रोताओं के साथ स्वयं को शामिल कर रहा है।
“जिस रीति से गैर-यहूदी...”
अर्थात प्रेरित, प्राचीन, और उपस्थित दूसरे विश्वासी
“परमेश्वर ने.....काम किये”
“उनके” का आशय पौलुस व बरनबास से है
“जब बरनबास और पौलुस ने बोलना बंद किया”
”लोगों का समूह”
“उनके बीच से”
यह शब्द स्वयं के लिए प्रयोग किया है। अनुवाद करते समय इसे “स्वयं अपने लिए” भी लिख सकते हैं।
(याकूब अपने बात जारी रखता है)
“इस सत्य की पुष्टि करती हैं”
“मैं” आशय परमेश्वर से है जो भविष्यद्वक्ताओं के शब्दों के माध्यम से बोल रहा है
इसका आशय परमेश्वर द्वारा दाऊद के वंशजों में से एक राजा को चुनने से है। (यूडीबी)
“मैं राजा दाऊद के वंशजो से एक राजा बनाऊंगा और उसे खड़ा करूँगा, ताकि शेष लोग....प्रभु को ढूढें”
“खंडहरों” से आशय ईमारतों, दीवारों, और पीछे छोड़ गयी संपत्ति से है जो नगर के तबाह होने पर, कई वर्षों के दौरान पड़े-पड़े खराब हो जाती हैं।
“जो प्राचीनकाल से इन बातों का समाचार देता आया है”
(याकूब अपने बात जारी रखता है)
“हमें अन्यजातीय लोगों का खतना करने और मूसा की व्यवस्था को मानने को नहीं कहना चाहिए”
“हम” में याकूब प्रेरितों, प्राचीनों और खतना हुए लोगों को शामिल कर रहा है।
अशुद्धताएं, जानवरों का गला घोंटना, और लहू पीना अकसर इन मूरतों और झूठे देवताओं की आराधना का हिस्सा होते थे।
मूसा की व्यवस्था का आशय परमेश्वर द्वारा मूसा को दी गयी व्यवस्था से है।
अर्थात व्यवस्था का प्रचार करनेवाले लोग
यह व्यक्त करता है कि कलीसिया के सभी सदस्य प्रेरितों और प्राचीनोंसे सहमत थे। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं, कि “यरूशलेम की पूरी कलीसिया।”
यरूशलेम की कलीसिया का एक अगुआ
यरूशलेम की कलीसिया का एक अगुआ
“यहूदा और सीलास को अन्ताकिया भेजे”
“प्रेरितों, दूसरे प्राचीनों और यरूशलेम के विश्वासियों ने यह लिखा”
कुप्रुस टापू में, एशिया माइनर उत्तर का एक प्रांत
(यरूशलेम की कलीसिया से अन्ताकिया के गैर-यहूदी विश्वासियों को लिखे पत्र में आगे है.....)
“हम में से कुछ लोगों ने”
हम ने उनको ये सब प्रचार करने को नहीं कहा था
सहमत हुए
यह स्नेहपूर्ण संबोधन है। “जिन्हें हम इतना स्नेह करते हैं” (यूडीबी)
(यरूशलेम की कलीसिया से अन्ताकिया के गैर-यहूदी विश्वासियों को लिखे पत्र में आगे है.....)
“इसलिए हम ने यहूदा और सीलास को भेजा है” या फिर, “इस कारण हमने.....”
“जो स्वयं ही ये बातें के देंगे”
जानवरों के लहू का सेवन करने के विषय में है।
मारा गया जानवर जिसका लहू नहीं बहाया गया हिया
पत्र के अंत में लिखा जानेवाला अभिनन्दन। इसे “अलविदा” भी लिख सकते है।
“वे” का आशय यहूदा, सिलास, पौलुस और बरनबास से है
अर्थात “जाने की अनुमति दे दी गयी” या फिर, “उन्हें विदा किया”
“अन्ताकिया पहुंचे।” यरूशलेम से किसी भी अन्य नगर जाने की बात को यहूदी नीचे उतरना कहते थे।
“वे” का आशय अन्ताकिया के विश्वासियों से है
“अन्ताकिया के विश्वासियों को उपदेश देकर स्थिर किया”
भविष्यद्वक्ता होने के कारण परमेश्वर से मिलनेवाले अधिकार का विशेष रीति से प्रयोग किया. अनुवाद करते समय यूं लिखा जा सकता है कि “क्योंकि वे भविष्यद्वक्ता थे” या फिर, “भविष्यद्वक्ता होने के कारण” (यूडीबी).
“वे” अर्थात यहूदा और सिलास
“कुछ अवधि” या फिर “कई सप्ताह तक”
“विदा लेते समय विश्वासियों ने अभिनन्दन दिया”
भाइयों से शांति के साथ अन्ताकिया की कलीसिया से मित्रों के समान
“यहूदा और सीलास को भेजनेवाली यरूशलेम की कलीसिया के पास”
“जबकि पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में ही रहे”
प्राचीन हस्तलेखों में यहाँ कुछ अंतर है।
यहाँ सुझाव का भाव है
“चलकर” अर्थात उनके पास “जाकर”
“अपने भाइयों के वर्तमान हालात का पता लगाए और देखें कि जो सत्य उन्हें दिया गया था, वे उसे कैसे निबाह रहे हैं।”
“पौलुस और अपने (बरनबास) साथ यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेने का विचार किया”
पौलुस और बरनबास एकमत अथवा सहमत न हो सके
“पौलुस व बरनबास एक दूसरे से अलग हो गए”
“और बरनबास ने मरकुस को साथ लिया, और वहां से रवाना हो गए”
“अन्ताकिया के विश्वासियों से”
सीरिया और किलिकिया से होते हुए निकल ये एशिया माइनर स्थित जगहें थी।
“कलीसियाओं को आत्मिक रूप से मज़बूत बनाता हुआ”
यहूदिया से आए कुछ लोगों के भाइयों को सिखाया कि यदि उन्होंने मूसा की रीति से ख़तना न किया हो तो वे उद्धार नहीं पा सकते।
भाइयों ने निश्चित किया कि पौलुस और बरनबास और कुछ और लोग यरूशलेम में प्रेरितों और प्राचीनों के पास जाएं।
पौलुस और अन्यों ने अन्यजातीयों के मन फिराने का समाचार सुनाया।
फरीसियों के पंथ का विश्वास था कि अन्यजातियों को खतना कराना और मूसा की व्यवस्था का पालन करना चाहिए।
पतरस ने कहा परमेश्वर ने अन्यजातियों को पवित्र आत्मा दिया और विश्वास के द्वारा उनके मन को शुद्ध किया।
पतरस ने कहा कि यहूदी और अन्यजाति दोनों ने प्रभु यीशु के अनुग्रह द्वारा उद्धार पाया।
पौलुस और बरनबास ने बताया कि किस प्रकार परमेश्वर ने अन्यजातियों में कैसे-कैसे बड़े चिन्ह और अद्भुत काम कर दिखाए।
भविष्यद्वाणी के अनुसार परमेश्वर दाऊद का गिरा हुआ डेरा उठाएगा और इसमें अन्यजातीय शामिल होंगे।
याकूब ने आज्ञा दी कि मन फिराने वाले अन्यजातियों को मूरतों की अशुदधता और व्यभिचार और गला घोटे हुओं के मांस और लहू से परे रहना चाहिए।
पत्र के लेखकों और पवित्र आत्मा ने इस निर्णय से सहमति जताई।
अन्यजातियों ने पत्र के प्रोत्साहन से अत्यन्त आनन्द उठाया।
पौलुस और बरनबास ने परमेश्वर के वचन से उपदेश सुनाया और सिखाया।
पौलुस ने बरनबास से कहा कि जिन-जिन नगरों में उन्होंने परमेश्वर का वचन सुनाया था वहां वापिस लौटकर भाइयों को देखें कि कैसे हैं।
बरनबास मरकुस को साथ ले जाना चाहता था, पर पौलुस ने उसको साथ ले जाना अच्छा न समझा।
1 फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और वहाँ तीमुथियुस नामक एक चेला था। उसकी माँ यहूदी विश्वासी थी, परन्तु उसका पिता यूनानी था। 2 वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था। 3 पौलुस की इच्छा थी कि वह उसके साथ चले; और जो यहूदी लोग उन जगहों में थे उनके कारण उसे लेकर उसका खतना किया, क्योंकि वे सब जानते थे, कि उसका पिता यूनानी था।
4 और नगर-नगर जाते हुए वे उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराई थीं, मानने के लिये उन्हें पहुँचाते जाते थे। 5 इस प्रकार कलीसियाएँ विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रतिदिन बढ़ती गई।
6 और वे फ्रूगिया और गलातिया प्रदेशों में से होकर गए, क्योंकि पवित्र आत्मा ने उन्हें आसिया में वचन सुनाने से मना किया। 7 और उन्होंने मूसिया* के निकट पहुँचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्मा ने उन्हें जाने न दिया। 8 अतः वे मूसिया से होकर त्रोआस* में आए।
9 वहाँ पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा हुआ, उससे विनती करके कहता है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ, और हमारी सहायता कर।” 10 उसके यह दर्शन देखते ही हमने तुरन्त मकिदुनिया जाना चाहा, यह समझकर कि परमेश्वर ने हमें उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिये बुलाया है।
11 इसलिए त्रोआस से जहाज खोलकर हम सीधे सुमात्राके और दूसरे दिन नियापुलिस में आए। 12 वहाँ से हम फिलिप्पी* में पहुँचे, जो मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर, और रोमियों की बस्ती है; और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे। 13 सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए कि वहाँ प्रार्थना करने का स्थान होगा; और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे।
14 और लुदिया नाम थुआतीरा नगर की बैंगनी कपड़े बेचनेवाली एक भक्त स्त्री सुन रही थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर ध्यान लगाए। 15 और जब उसने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उसने विनती की, “यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो,” और वह हमें मनाकर ले गई।
16 जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली, जिसमें भावी कहनेवाली आत्मा थी; और भावी कहने से अपने स्वामियों के लिये बहुत कुछ कमा लाती थी। 17 वह पौलुस के और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी, “ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।” 18 वह बहुत दिन तक ऐसा ही करती रही, परन्तु पौलुस परेशान हुआ, और मुड़कर उस आत्मा से कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ, कि उसमें से निकल जा और वह उसी घड़ी निकल गई।”
19 जब उसके स्वामियों ने देखा, कि हमारी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़कर चौक में प्रधानों के पास खींच ले गए। 20 और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले जाकर कहा, “ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं; (1 राजा. 18:17) 21 और ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं, जिन्हें ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं।
22 तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उनके कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी। 23 और बहुत बेंत लगवाकर उन्होंने उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया और दरोगा को आज्ञा दी कि उन्हें सावधानी से रखे। 24 उसने ऐसी आज्ञा पा कर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए।
25 आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और कैदी उनकी सुन रहे थे। 26 कि इतने में अचानक एक बड़ा भूकम्प हुआ, यहाँ तक कि बन्दीगृह की नींव हिल गईं, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल गए।
27 और दरोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि कैदी भाग गए, अतः उसने तलवार खींचकर अपने आपको मार डालना चाहा। 28 परन्तु पौलुस ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, “अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यहीं हैं।”
29 तब वह दिया मँगवाकर भीतर आया और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा;
30 और उन्हें बाहर लाकर कहा, “हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?” 31 उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।”
32 और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया। 33 और रात को उसी घड़ी उसने उन्हें ले जाकर उनके घाव धोए, और उसने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया। 34 और उसने उन्हें अपने घर में ले जाकर, उनके आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्द किया।
35 जब दिन हुआ तब हाकिमों ने सिपाहियों के हाथ कहला भेजा कि उन मनुष्यों को छोड़ दो। 36 दरोगा ने ये बातें पौलुस से कह सुनाई, “हाकिमों ने तुम्हें छोड़ देने की आज्ञा भेज दी है, इसलिए अब निकलकर कुशल से चले जाओ।”
37 परन्तु पौलुस ने उससे कहा, “उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहराए बिना लोगों के सामने मारा और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या चुपके से निकाल देते हैं? ऐसा नहीं, परन्तु वे आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।” 38 सिपाहियों ने ये बातें हाकिमों से कह दीं, और वे यह सुनकर कि रोमी हैं, डर गए, 39 और आकर उन्हें मनाया, और बाहर ले जाकर विनती की, कि नगर से चले जाएँ।
40 वे बन्दीगृह से निकलकर लुदिया के यहाँ गए, और भाइयों से भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए।
ये शब्द कहानी में किसी नए पात्र के आगमन का संकेत देते हैं। अनुवाद करते समय अपनी भाषा के यथोचित शब्दों का चुनाव करें।
“मसीह पर विश्वास रखनेवाली एक यहूदी स्त्री का पुत्र था”
“तीमुथियुस की साख अच्छी थी” अथवा, “विश्वासी उसके विषय में भली बातें कहते थे”
“पौलुस चाहता था कि तीमुथियुस उसके साथ चले” अत: पौलुस ने तीमुथियुस को साथ ले लिया इस सब गद्यांश में उत्तम पुरुष सर्वनाम है वे सब तीमुथियुस के संदर्भ में है|
एक यूनानी होने के नाते तीमुथियुस का खतना कराने पिता स्वयं नहीं गया होगा; इसलिए पौलुस ने खतना कर दिया। खतना की रस्म अकसर एक यहूदी धर्मगुरु करता था।
“वे” सर्वनाम यहाँ पौलुस, सीलास, और तीमुथियुस के लिए प्रयुक्त हुआ है
“कलीसिया के सदस्यों द्वारा मानने के लिए” अथवा “विश्वासियों द्वारा मानने के लिए”
“जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने लिखी हैं”
“पौलुस, सिलास, और तीमुथियुस द्वारा कलीसियाएँ विश्वास में स्थिर होती गयी”
एशिया के प्रांत।
ये भी एशिया के दो और प्रांत हैं
“पवित्र आत्मा ने उन्हें...रोका” या फिर, “पवित्र आत्मा ने उन्हें...अनुमति नहीं दी”
“पवित्र आत्मा”
यह सपना नहीं दर्शन था
“पौलुस से निवेदन कर रहा है”
“हमारी” में सभी शामिल नहीं हैं।
सर्वनाम “हमने” का आशय पौलुस व उसके साथियों से है। प्रेरितों के कार्य की पुस्तक का लेखक, लूका, इस समय पौलुस के साथियों में से एक था।
सर्वनाम “हमने” का आशय पौलुस व उसके साथियों से है। प्रेरितों के कार्य की पुस्तक का लेखक, लूका, इस समय पौलुस के साथियों में से एक था।
“मकदूनिया के लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए”
सर्वनाम “हमने” का आशय पौलुस व उसके साथियों से है। प्रेरितों के कार्य की पुस्तक का लेखक, लूका, इस समय पौलुस के साथियों में से एक था।
फिलिप्पी के तटीय नगर।
रोमियों द्वारा जीती गयी जगह जहां विशेषकर उनके सैनिक रहते थे
लुदिया नाम की .....एक भक्त स्त्री
“बैंजनी रंग के कपड़ों की व्यपारिन”
भक्त से तात्पर्य उन गैर-यहूदियों से है जो परमेश्वर की प्रशंसा व स्तुति और उसका अनुकरण तो करते थे, लेकिन यहूदी व्यवस्था को सम्पूर्ण रीति से नहीं मानते थे।
उनकी बातें सुन रही थी
“पौलुस के कही बातों पर चित्त लगाए”
“जब उन्होंने लुदिया और उसके घराने को बप्तिस्मा दिया”
“वहाँ एक दासी मिली”
एक दुष्टात्मा उसे लोगों के निकट भविष्य में होनेवाली घटनाएं बताती थी
“और वह आत्मा तुरंत उसमें से निकल गयी”
“परन्तु पौलुस को उससे बहुत परेशानी होती थी” अथवा “उसके ऐसा करने से पौलुस को बहुत परेशानी होती थी”
“पौलुस मुड़ा और’ या फिर, “मुड़ कर स्त्री से कहा”
उस दासी के मालिक
दासी में मौजूद भावी की आत्मा थी और लोग उसे भविष्य बताने के लिए धन देते थे
केवल पौलुस व सीलास को खींच कर ले गए थे, लूका व तीमुथियुस के दल के बाकी सदस्यों को नही।
“प्रधानों के समक्ष” या फिर, “प्रधानों के पास उनका न्याय कराने के लिए”
“पौलुस व सीलास को फौजदारी के हाकिमों के पास ले जाकर दासी के स्वामियों ने कहा”
“पौलुस व सीलास ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं”
दासी के स्वामी रोमी थे, इसलिए अधिकारियों को अपने पक्ष में मान रहे थे।
हाकिमों ने पौलुस व सीलास के कपड़े फाड़ डाले
उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी “हाकिम ने सिपाहियों को पौलुस व सिलास को बेंत मारने की आज्ञा दी।”
“हाकिमों ने पौलुस व सीलास को बंदीगृह में डलवा दिया” या फिर, “हाकिमों ने सिपाहियों को आज्ञा दी कि वे पौलुस व सीलास को बंदीगृह में डाल दें।”
“दरोगा को यह पक्का करने की आज्ञा दी कि वे बंदीगृह से बाहर न जाएँ।” बंदीगृह अथवा जेल में मौजूद सब लोगों की ज़िम्मेदारी दरोगा पर होती है।
कोठरी में बंद कर दिया
“काठ” का आशय लकड़ी के गुटके से है जिसके बीच में कैदी के पैर दाल कर कसने के लिए छेद होता है ताकि वो भाग न सके (यूडीबी)
“उनकी” का आशय पौलुस व सीलास से है, जो उस समय प्रार्थना व स्तुति गान में लगे थे।
“जिस कारण बंदीगृह की नींव हिल गयी”
“सब के बंधन खुल गए”
ये सभी सर्वनाम दरोगा के लिए प्रयुक्त हुए हैं।
“मार डालना चाहा।” कैदियों के भागने की सजा भुगतने की अपेक्षा दरोगा आत्महत्या करना चाहता था।
“हम” का आशय पौलुस, सिलास और बाकी के कैदी से भी है।
“तेज़ी से भीतर गया”
पौलुस और सीलास के आगे दरोगा विनीत हुआ और उनके आगे गिरा
उन्हें जेल से बाहर लाया
पौलुस और सीलास ने दरोगा के परिवार से अपना संपर्क बनाए रखा
“उन्हें ले जाकर।” पौलुस और सीलास को दरोगा अपने घर ले गया।
इस कथन को हम यूं भी लिख सकते हैं कि, “पौलुस व सिलास ने दरोगा व उसके परिवार के सदस्यों को बप्तिस्मा दिया।”
ये दोनों सर्वनाम दरोगा के लिए प्रयुक्त हुए हैं।
“दरोगा के परिवार के सभी सदस्यों ने परमेश्वर पर विश्वास किया और....”
अर्थात “अगली सुबह” (यूडीबी)। यहाँ नए प्रकरण की शुरुआत है
“सन्देश भेजा” यह फिर “आज्ञा भेजी”
“उन लोगों को जाने दो”
“अब जेल से बाहर निकल कर”
“पौलुस ने सिपाहियों से कहा”
“हाकिम ने लोगों के सामने”
“हमें” का आशय केवल पौलुस व सीलास से है।
“ऐसा कभी न होगा।” हालाँकि पौलुस यहाँ बात दरोगा से कर रहा है, लेकिन उसका आशय नगर के हाकिमों या फिर अगुओं से है।
रोमी से आशय रोम साम्राज्य के कानूनी तौर पर नागिरक लोगों से है। उनके अधिकारों में स्वतंत्र रहने और सुनवाई का अधिकार शामिल है। नगर के अगुवों को डर था कि यदि रोम को पौलुस व सीलास के साथ हुए दुर्व्यवहार की खबर हो गई तो क्या होगा।
“नगर के हाकिम खुद आकर उनसे विनती करें”
“हाकिमों ने आकर पौलुस व सीलास को मनाया”
“पौलुस व सीलास को बाहर ले जाकर”
“लुदिया के घर”
“पौलुस व सीलास ने उन भाइयों को शांति दी” या फिर, “पौलुस व सीलास ने विश्वासियों को शांति दी”
पौलुस ने तीमुथियुस का खतना किया क्योंकि उन जगहों में जो यहूदी थे वे जानते थे कि तीमुथियुस का पिता यूनानी था।
पौलुस ने उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराईं थीं मानने के लिए निर्देशित किया।
पौलुस ने दर्शन देखा कि मकिदुनी पुरुष खड़ा हुआ उसे सहायता के लिए पुकार रहा है।
पौलुस ने सोचा कि वहां प्रार्थना करने का स्थान होगा।
प्रभु ने लुदिया का मन खोला ताकि पौलुस की बातों पर चित्त लगाए।
पौलुस के बोलने के पश्चात् लुदिया और उसके घराने ने बप्तिस्मा लिया।
वह अपने स्वामियों के लिए भविष्य बता कर धन कमाती थी।
पौलुस ने मुँह फेरकर उस आत्मा से कहा मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ उसमें से निकल जा।
उन्होंने पौलुस और सीलास पर आरोप लगाया कि वे ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं जिन्हें करना या मानना रोमियों के लिए ठीक नहीं।
उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी, बंदीग्रह में डाल दिया और उनके पाँव काठ में ठोक दिए।
वह प्रार्थना कर रहे और परमेश्वर के भजन गा रहे थे।
एक बड़ा भूकम्प आया, बंदीग्रह के सारे द्वार खुल गए, और सबके बंधन भी खुल गए।
दरोगा ने पौलुस और सीलास से पूछा,"सज्जनों, मैं उद्धार पाने के लिए क्या करूँ" ।
पौलुस और सीलास ने उत्तर दिया, "प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा”।
उस रात दरोगा और उसके घराने का बप्तिस्मा हुआ।
हाकिम डरे हुए थे क्योंकि उन्हें यह बोध हो गया था कि उन्होंने दो निर्दोष रोमी नागरिकों को लोगों के सामने मारा है।
पौलुस और सीलास लुदिया के घर गए, भाईयों को शान्ति दी, और फिलिप्पी छोड़ कर चले गए।
1 फिर वे अम्फिपुलिस* और अपुल्लोनिया होकर थिस्सलुनीके में आए, जहाँ यहूदियों का एक आराधनालय था। 2 और पौलुस अपनी रीति के अनुसार उनके पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्रशास्त्रों से उनके साथ वाद-विवाद किया;
3 और उनका अर्थ खोल-खोलकर समझाता था कि मसीह का दुःख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; “यही यीशु जिसकी मैं तुम्हें कथा सुनाता हूँ, मसीह है।” 4 उनमें से कितनों ने, और भक्त यूनानियों में से बहुतों ने और बहुत सारी कुलीन स्त्रियों ने मान लिया, और पौलुस और सीलास के साथ मिल गए।
5 परन्तु यहूदियों ने ईर्ष्या से भरकर बाजारू लोगों में से कई दुष्ट मनुष्यों को अपने साथ में लिया, और भीड़ लगाकर नगर में हुल्लड़ मचाने लगे, और यासोन के घर पर चढ़ाई करके उन्हें लोगों के सामने लाना चाहा। 6 और उन्हें न पा कर, वे यह चिल्लाते हुए यासोन और कुछ भाइयों को नगर के हाकिमों के सामने खींच लाए, “ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आए हैं।
7 और यासोन ने उन्हें अपने यहाँ ठहराया है, और ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।” 8 जब भीड़ और नगर के हाकिमों ने ये बातें सुनीं, तो वे परेशान हो गये। 9 और उन्होंने यासोन और बाकी लोगों को जमानत पर छोड़ दिया।
10 भाइयों ने तुरन्त रात ही रात पौलुस और सीलास को बिरीया में भेज दिया, और वे वहाँ पहुँचकर यहूदियों के आराधनालय में गए। 11 ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रतिदिन पवित्रशास्त्रों में ढूँढ़ते रहे कि ये बातें ऐसी ही हैं कि नहीं। 12 इसलिए उनमें से बहुतों ने, और यूनानी कुलीन स्त्रियों में से और पुरुषों में से बहुतों ने विश्वास किया।
13 किन्तु जब थिस्सलुनीके के यहूदी जान गए कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्वर का वचन सुनाता है, तो वहाँ भी आकर लोगों को भड़काने और हलचल मचाने लगे। 14 तब भाइयों ने तुरन्त पौलुस को विदा किया कि समुद्र के किनारे चला जाए; परन्तु सीलास और तीमुथियुस वहीं रह गए। 15 पौलुस के पहुँचाने वाले उसे एथेंस तक ले गए, और सीलास और तीमुथियुस के लिये यह निर्देश लेकर विदा हुए कि मेरे पास अति शीघ्र आओ।
16 जब पौलुस एथेंस में उनकी प्रतीक्षा कर रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल उठा। 17 अतः वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उनसे हर दिन वाद-विवाद किया करता था।
18 तब इपिकूरी* और स्तोईकी दार्शनिकों में से कुछ उससे तर्क करने लगे, और कुछ ने कहा, “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” परन्तु दूसरों ने कहा, “वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है,” क्योंकि वह यीशु का और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था।
19 तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस* पर ले गए और पूछा, “क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? 20 क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि इनका अर्थ क्या है?” 21 (इसलिए कि सब एथेंस वासी और परदेशी जो वहाँ रहते थे नई-नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे।)
22 तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा,
“हे एथेंस के लोगों, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो। 23 क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, ‘अनजाने ईश्वर के लिये।’ इसलिए जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ।
24 जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। (1 राजा. 8:27, 2 इति. 6:18, भज. 146:6) 25 न किसी वस्तु की आवश्यकता के कारण मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और श्वांस और सब कुछ देता है। (यशा. 42:5, भज. 50:12, भज. 50:12)
26 उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उनके ठहराए हुए समय और निवास के सीमाओं को इसलिए बाँधा है, (व्य. 32:8) 27 कि वे परमेश्वर को ढूँढ़े, और शायद वे उसके पास पहुँच सके, और वास्तव में, वह हम में से किसी से दूर नहीं हैं। (यशा. 55:6, यिर्म. 23:23)
28 क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है,
“हम तो उसी के वंश भी हैं।” 29 अतः परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं कि ईश्वरत्व, सोने या चाँदी या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। (उत्प. 1:27, यशा. 40:18-20, यशा. 44:10-17)
30 इसलिए परमेश्वर ने अज्ञानता के समयों पर ध्यान नहीं दिया, पर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। 31 क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिसमें वह उस मनुष्य के द्वारा धार्मिकता से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” (भज. 9:8, भज. 72:2-4, भज. 96:13, भज. 98:9, यशा. 2:4)
32 मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो उपहास करने लगे, और कितनों ने कहा, “यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।” 33 इस पर पौलुस उनके बीच में से चला गया। 34 परन्तु कुछ मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया; जिनमें दियुनुसियुस जो अरियुपगुस का सदस्य था, और दमरिस नाम एक स्त्री थी, और उनके साथ और भी कितने लोग थे।
“वे” का आशय पौलुस व सीलास से है। लूका व तीमुथियुस उनके साथ नहीं हैं।
अर्थात “ये यात्रा करते हुए.....में आये”
ये मकदूनिया के तटीय नगर थे।
“अपनी आदत के अनुसार” या फिर, “सामान्य अभ्यास के अनुसार।” पौलुस अकसर यहूदी आराधनालयों में सब्त के दिन जाता था जब वहां यहूदी लोग मौजूद होते थे।
“उनके” का आशय यहूदी आराधनालय और उसमें मौजूद यहूदियों से था
“आराधनालय में मौजूद यहूदियों से तर्क-वितर्क किया” या फिर, “आरधनालयों के यहूदियों से चर्चा की”
संभावित अर्थ : 1) “पौलुस वचन की विस्तार से व्याख्या देता था ताकि लोगों को उसके उपदेश समझ आ सकें” या फिर 2) “पौलुस वचन की पुस्तक या कि स्क्रॉल खोल रहा था”
“योजना का हिस्सा था” या फिर, “तो होना ही था”
“मर कर दोबारा जी उठाना”
“....ने विश्वास कर लिया” या फिर, “.....को विश्वास में जीत लिया”
“पौलुस और सिलास के साथी बन गए”
वे जो परमेश्वर की आराधना करते थे लेकिन खतना कराने के द्वारा यहूदी मत में नहीं आये थे
“और एक बड़ी भीड़ बनाकर”
“डाह के कारण”
“कुछ बुरे लोगों को।” यहाँ “मनुष्यों” का आशय विशिष्ट रूप से पुरुषों से है।
“चीज़ों, मवेशियों, अथवा सेवाओं की ख़रीद-फरोख्त की जगह के लोग” (यूडीबी)
“नगर में हुल्लड़ करने लगे”
“के घर पर हिंसात्मक कार्यवाही”
यह सर्वनाम बाजार के अविश्वासी यहूदी और दुष्ट पुरुष को दर्शाता है।
“सार्वजनिक तौर पर निर्णय लेने के लिए सरकारी अथवा कानूनी तौर पर नागरिक लोगों के सामने”
“नगर के हाकिमों की उपस्थित में”
“ये लोग” से यहूदी लोगों का आशय पौलुस व सीलास से था।
“उल्टा-पुल्टा करना” एक मुहावरा है, जिसका आशय “अस्त-व्यस्त करने से है” (यूडीबी)। पौलुस व सिलास के उपदेशों के प्रभाव को यहूदी अगुवे बढ़ा-चढ़ा कर बता रहे थे।
यहाँ पर संकेत मिलता है कि प्रेरितों के उपदेश से यासोन सहमत था..
“चिंता में डाल दिया” या फिर “मानसिक तनाव में डाल दिया”
“ज़मानत” अथवा “धरोहर” या कि “शुल्क” (यूडीबी)। यह अच्छे बर्ताव की प्रतिज्ञा राशि थी, जो अच्छे बर्ताव करने पर वापित कर दी जाती थी, या फिर बुरे बर्ताव से होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए प्रयुक्त हो जाती थी।
“यासोन के अतिरिक्त अन्य विश्वासी”
“और अधिकारियों ने यासोन और बाकी बंदी बनाए गए अन्य विश्वासियों को छोड़ दिया”
यहाँ “भले” होने का आशय उनकी ग्रहणशीलता व “खुले मन से सुनने की तत्परता” से है। “खुले मन से सुनने की तत्परता” शिक्षित एवं उच्च वर्ग के परिवारों का लक्षण होता है जहाँ विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जाता है
“उपदेशों को सुना”
बिरीया के लोग पौलुस के उपदेशों को वचन की कसौटी पर परखने को तैयार थे
“वे पवित्र शास्त्र के पदों का हर दिन गहराई से मूल्यांकन करते थे”
“जब..... यहूदियों को बताया गया” या फिर, “जब....यहूदियों ने सुना कि...” (यूडीबी)
“वहाँ भी आकर लोगों को उत्तेजित करने लगे” या फिर, “वहाँ भी आकर लोगों के मन में संदेह पैदा करने लगे”
“लोगों में संदेह और भय पैदा करने लगे”
“पौलुस के साथ जाने वाले” या फिर, “वे लोग जो पौलुस के साथ थे”
“वह बहुत परेशान हो उठा” या फिर, “वह बहुत अशांत हो गया” या फिर, “वह बहुत दुखी हो गया” (यूडीबी)
“इसलिए उसने.......तर्क किया” या फिर, “इसलिए उसने..... चर्चा किया करता था”. यहाँ इस बात के संकेत हैं कि वह उपदेश की तुलना में यहाँ लोगों से अधिक सवाल-जवाब होता था।
व्यापार करने की जगह, जहां वस्तुओं, मवेशियों और सेवाओं की खरीद-फरोख्त होती थी; “सार्वजनिक चौक” (यूडीबी)
वे लोग जो यह मानते हैं कि सभी चीज़ों का अस्तित्व संयोग से हुआ है। वे यह भी मानते थे कि देवता स्वयं अपने में ही संतुष्ट और खुश हैं, और उन्हें विश्व के संचालन की चिंता नही है। वे पुनरुत्थान को नहीं मानते थे।
इन लोगों का मानना था कि स्वयं को भाग्य के हवाले कर देने से ही मुक्ति मिलती है। वे जीवते परमेश्वर और पुनरुत्थान को नहीं मानते थे।
“पौलुस से तर्क करने लगे”
“और कुछ दार्शनिकों ने कहा”
“बकवादी” कहने से आशय उलटी-पुलती बातें कहने से है। यह “वक्ता” के लिए प्रयुक्त होनेवाला एक नकारात्मक शब्द है। दार्शनिकों कहते थे कि पौलुस अधूरे-कच्चे ज्ञान की बातें कर रहा है जिसे सुनना बेकार है।
“परन्तु दार्शनिकों के अतिरिक्त अन्य लोगों ने कहा”
“वह....... उद्घोषणा करनेवाला लगता है” या फिर, “ऐसा लगता है कि वह...... सन्देश को बांटने के मिशन पर निकला हैके विश्वासियों ने धन-दान में दिया और उन्होंने धन भेज दिया...”
“अन्य” से तात्पर्य दूसरे लोगों के देवताओं से है; गैर-यहूदी/गैर रोमी देवताओं से है।
“तब इपिकूरी और स्तोईकी दार्शनिक पौलुस को अपने साथ”
एथेंस की एक पहाडी पर ले गए जहां एथेंस का सर्वोच्च न्यायलय रहा होगा।
“हम” का आशय यहाँ केवल दार्शनिकों से है। अनुवाद करते समय हम यह भी लिख सकते हैं कि “इन चीज़ों के जो होने का तू दावा कर रहा है, हम उसके आधार पर न्याय करना चाहते हैं। “
मकदूनिया (आधुनिक यूनान) के एक तटीय नगर एथेंस के बाशिंदे।
अर्थात एथेंस वासियों के समुदाय में एक नया व्यक्ति
समय बिताने से आशय समय लगाने, अथवा समय का इस्तेमाल करने से है
“नए-नए दार्शनिक विचारों पर चर्चा करने के सिवाय” (यूडीबी)
पौलुस यहाँ एथेंसवासियों द्वारा प्रार्थना, वेदियों और बलिदानों के द्वारा अपने देवताओं के प्रति अपनी निष्ठा के सार्वजनिक प्रदर्शन के विषय में कह रहा है।
“क्योंकि मैंने घूमते हुए”
संभावित आशय: 1) “किसी विशिष्ट अनजाने ईश्वर के लिए” या फिर, 2) “किसी भी अनजाने ईश्वर के लिए”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
यहाँ पौलुस उन अनजाने प्रभु परमेश्वर के बारे में बता रहा है. अनुवाद करते समय यह भी लिख सकते हैं कि, “क्योंकि वह पृथ्वी का स्वामी है...”
“लोगों के बनाए हुए”
“सेवा” का आशय यहाँ उपचार-सेवा से है। वैकल्पिक अनुवाद: “देखरेख।”
“लोगों के हाथों”
“क्योंकि वह स्वयं”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
संभावित अर्थ: 1) परमेश्वर द्वारा रचित पहला आदम 2) इसमें आदम और हव्वा दोनों भी शामिल हो सकते हैं
“मनुष्यों की सब जातियां.....परमेश्वर, सृष्टिकर्ता ने बनाई है”
यहाँ पर “उनके” और “वे” का आशय पृथ्वी पर मौजूद सभी मनुष्यों से है
“परमेश्वर को खोजे”
“उसकी ज़रुरत को महसूस करें”
इसमें पौलुस अपने श्रोताओं के साथ स्वयं को भी शामिल कर रहा है।
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“क्योंकि हम परमेश्वर में”
पौलुस यहाँ अपने श्रोताओं के साथ स्वयं को भी शामिल कर रहा है।
उसी के वंशज है। “उसी” सर्वनाम का संज्ञा मूल यहाँ स्पष्ट नहीं है।
परमेश्वर की प्रकृति अथवा गुण
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
संभावित अर्थ: 1) “किसी बात के विषय में जानकारी न होना” या फिर, 2) “स्वयं इंकार करना”।
“उस मनुष्य के द्वारा.....जिसे परमेश्वर ने ठहराया है”
“अपने चुनाव को परमेश्वर ने सबके समक्ष प्रकट किया है”
इस बात को सुननेवाले लोग एथेंस से थे
“कितनों ने पौलुस का ठट्ठा उड़ाया” या “कुछ लोगों ने पौलुस की हंसी उड़ाई।” उन्हें इस बात का विश्वास नहीं था कि कोई मरने के बाद जीवन में लौट सकता है।
“हम” का आशय यहाँ पौलुस को सुनने की इच्छा रखनेवाले एथेंसवासियों से है। वे पौलुस से बात कर रहे थे लेकिन उसे अपने समूह का हिस्सा नहीं मानते थे।
दियुनुसियुस एक पुरुष का नाम था और दमरिस एक स्त्री का।
पौलुस यहूदियों के आराधनालय यीशु के विषय में वचन बताने गया।
पौलुस ने समझाया कि यीशु के लिए दुःख उठाना और मरे हुओं में से जी उठना आवश्यक था।
पौलुस और सीलास पर आरोप लगाया गया कि वे कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं और कहते हैं कि एक और राजा है-यीशु।
पौलुस और सीलास यहूदियों के आराधनालय गए।
बिरीया के लोगों ने वचन ग्रहण किया और पवित्र शास्त्रों में ढूँढ़ते थे कि ये बातें यूं हैं कि नहीं।
पौलुस को बिरिया छोड़ना पड़ा क्योंकि थिस्सलुनीके के यहूदियों ने लोगों को भड़काया और इसलिए पौलुस एथेंस चला गया।
पौलुस यहूदी आराधनालय में गया और चौक में ताकि परमेश्वर के वचन से वाद-विवाद कर सके।
पौलुस को अरियुपगुस लाया गया ताकि आगे सिखा सके।
पौलुस ने एक ऐसी वेदी पाई जिस पर लिखा था, अनजाने ईश्वर के लिए, जिसकी व्याख्या वह लोगों को करना चाहता था।
पौलुस ने कहा जिस परमेश्वर ने सब वस्तुओं को बनाया, वह ही सबको जीवन, श्वास और सब कुछ देता है।
एक ही मूल से परमेश्वर ने मनुष्य की सब जातियां बनाईं।
पौलुस ने कहा परमेश्वर किसी से भी दूर नहीं था।
पौलुस ने कहा कि हमें परमेश्वर को मनुष्य द्वारा सोने, चांदी या पत्थर से मनुष्य की कारीगरी से बनाया नहीं समझना चाहिए।
परमेश्वर अब हर जगह मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है।
परमेश्वर ने एक दिन ठहराया है जिसमें वह धर्म से जगत का न्याय करेगा।
परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाकर प्रमाणित कर दिया है कि यीशु धर्म से जगत का न्याय करेगा।
मरे हुओं के पुनरुत्थान के विषय में सुन कर कुछ लोगों ने पौलुस का ठट्ठा किया।
हाँ, कुछ लोगों ने पौलुस का विश्वास किया और उनके साथ कई अन्य भी थे।
1 इसके बाद पौलुस एथेंस को छोड़कर कुरिन्थुस में आया। 2 और वहाँ अक्विला नामक एक यहूदी मिला, जिसका जन्म पुन्तुस में हुआ था; और अपनी पत्नी प्रिस्किल्ला के साथ इतालिया से हाल ही में आया था, क्योंकि क्लौदियुस ने सब यहूदियों को रोम से निकल जाने की आज्ञा दी थी, इसलिए वह उनके यहाँ गया। 3 और उसका और उनका एक ही व्यापार था; इसलिए वह उनके साथ रहा, और वे काम करने लगे, और उनका व्यापार तम्बू बनाने का था।
4 और वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद-विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को भी समझाता था। 5 जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस वचन सुनाने की धुन में लगकर यहूदियों को गवाही देता था कि यीशु ही मसीह है। 6 परन्तु जब वे विरोध और निन्दा करने लगे, तो उसने अपने कपड़े झाड़कर उनसे कहा, “तुम्हारा लहू तुम्हारी सिर पर रहे! मैं निर्दोष हूँ। अब से मैं अन्यजातियों के पास जाऊँगा।”
7 और वहाँ से चलकर वह तीतुस यूस्तुस नामक परमेश्वर के एक भक्त के घर में आया, जिसका घर आराधनालय से लगा हुआ था।
8 तब आराधनालय के सरदार क्रिस्पुस* ने अपने सारे घराने समेत प्रभु पर विश्वास किया; और बहुत से कुरिन्थवासी ने सुनकर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया। 9 और प्रभु ने रात को दर्शन के द्वारा पौलुस से कहा, “मत डर, वरन् कहे जा और चुप मत रह; 10 क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हानि न करेगा; क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।” (यशा. 41:10, यशा. 43:5, यिर्म. 1:8) 11 इसलिए वह उनमें परमेश्वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा।
12 जब गल्लियो अखाया देश का राज्यपाल था तो यहूदी लोग एका करके पौलुस पर चढ़ आए, और उसे न्याय आसन के सामने लाकर कहने लगे, 13 “यह लोगों को समझाता है, कि परमेश्वर की उपासना ऐसी रीति से करें, जो व्यवस्था के विपरीत है।”
14 जब पौलुस बोलने पर था, तो गल्लियो ने यहूदियों से कहा, “हे यहूदियों, यदि यह कुछ अन्याय या दुष्टता की बात होती तो उचित था कि मैं तुम्हारी सुनता। 15 परन्तु यदि यह वाद-विवाद शब्दों, और नामों, और तुम्हारे यहाँ की व्यवस्था के विषय में है, तो तुम ही जानो; क्योंकि मैं इन बातों का न्यायी बनना नहीं चाहता।”
16 और उसने उन्हें न्याय आसन के सामने से निकलवा दिया। 17 तब सब लोगों ने आराधनालय के सरदार सोस्थिनेस को पकड़ के न्याय आसन के सामने मारा। परन्तु गल्लियो ने इन बातों की कुछ भी चिन्ता न की।
18 अतः पौलुस बहुत दिन तक वहाँ रहा, फिर भाइयों से विदा होकर किंख्रिया में इसलिए सिर मुण्डाया, क्योंकि उसने मन्नत मानी थी और जहाज पर सीरिया को चल दिया और उसके साथ प्रिस्किल्ला और अक्विला थे। (गिन. 6:18) 19 और उसने इफिसुस* में पहुँचकर उनको वहाँ छोड़ा, और आप ही आराधनालय में जाकर यहूदियों से विवाद करने लगा।
20 जब उन्होंने उससे विनती की, “हमारे साथ और कुछ दिन रह।” तो उसने स्वीकार न किया; 21 परन्तु यह कहकर उनसे विदा हुआ, “यदि परमेश्वर चाहे तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊँगा।” तब इफिसुस से जहाज खोलकर चल दिया;
22 और कैसरिया में उतर कर (यरूशलेम को) गया और कलीसिया को नमस्कार करके अन्ताकिया में आया।
23 फिर कुछ दिन रहकर वहाँ से चला गया, और एक ओर से गलातिया और फ्रूगिया में सब चेलों को स्थिर करता फिरा।
24 अपुल्लोस नामक एक यहूदी जिसका जन्म सिकन्दरिया* में हुआ था, जो विद्वान पुरुष था और पवित्रशास्त्र को अच्छी तरह से जानता था इफिसुस में आया। 25 उसने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक-ठीक सुनाता और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था। 26 वह आराधनालय में निडर होकर बोलने लगा, पर प्रिस्किल्ला और अक्विला उसकी बातें सुनकर, उसे अपने यहाँ ले गए और परमेश्वर का मार्ग उसको और भी स्पष्ट रूप से बताया।
27 और जब उसने निश्चय किया कि पार उतरकर अखाया को जाए तो भाइयों ने उसे ढाढ़स देकर चेलों को लिखा कि वे उससे अच्छी तरह मिलें, और उसने पहुँचकर वहाँ उन लोगों की बड़ी सहायता की जिन्होंने अनुग्रह के कारण विश्वास किया था। 28 अपुल्लोस ने अपनी शक्ति और कौशल के साथ यहूदियों को सार्वजनिक रूप से अभिभूत किया, पवित्रशास्त्र से प्रमाण दे देकर कि यीशु ही मसीह है।
“एथेन्स में हुई इन घटनाओं के बाद”
संभावित आशय : 1) “वह संयोगवश उससे मिला” 2) “स्वयं पौलुस उससे जाकर मिला।”
कृष्ण सागर के दक्षिण तट पर स्थित एक प्रान्त
शायद पिछले साल आया हो।
वर्तमान रोमी सम्राट।
“आदेश दिया था”
“वह” अर्थात पौलुस और “वाद-विवाद” का आशय दो व्यक्तियों के बीच आमने-सामने की चर्चा से है. वैकल्पिक अनुवाद “ “इसलिए पौलुस......तर्क-वितर्क किया” या फिर, “इसलिए पौलुस ने चर्चा की.”
अनुवाद करते समय “समझाने का प्रयास करता रहा” भी लिख सकते हैं।
पौलुस इस संकेत द्वारा यह व्यक्त कर रहा था कि अविश्वासी यहूदियों से वह अपना नाता तोड़ रहा था और उन्हें परमेश्वर के न्याय पर छोड़ रहा था।
यहाँ आलंकारिक भाषा का प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ है कि मन फिराव से इनकार करने और अपनी ढीठाई के कारण स्वयं पर पडनेवाले न्याय के लिए यहूदी स्वयं ज़िम्मेदार हैं।
“और तब पौलुस वहां से चला गया और ...”
एक यहूदी विश्वासी।
“आराधनालय के प्रशासन व उसे सहायता देनेवाला व्यक्ति
एक और यहूदी विश्वासी।
“उसके साथ रहनेवाले परिवार के सभी सदस्य और रिश्तेदार”
बहुत से कुरिन्थ वासी जो यहूदी नहीं थे
“सुसमाचार के प्रचार को बंद मत कर”
“मैं” अर्थात प्रभु, जो उस समय पौलुस से बातें कर रहा था
“तेरे” का आशय पौलुस से है जिसके साथ परमेश्वर एक दर्शन में बातचीत कर रहा था
“इस नगर में बहुत से लोग मुझ पर विश्वास करते हैं”
अखाया एक रोमी प्रान्त था और कुरिन्थ इसका हिस्सा था, जो कि अब आज दक्षिण यूनान में है।
यहूदी लोग पौलुस को जबरन न्यायालय ले गए। वैकल्पिक अनुवाद : “अधिकारी द्वारा उसका न्याय करवाने के लिए उसके समक्ष ले गए।”
यहूदी लोग जानबूझ कर पौलुस पर यहूदी व्यवस्था और रीतियों के विरोध में होने का दोष लगा रहे थे, और उसे रोमी व्यवस्था का विरोधी दिखाने का प्रयास कर रहे थे।
प्रान्त के रोमी हाकिम ने यहूदियों से कहा
यह मूसा की व्यवस्था और पौलुस के समय की यहूदी रीतियों के विषय में है
“मैं इन बातों का न्याय करने से इनकार करता हूँ।”
“सब लोगों” या फिर “तब सभी ने।” यहाँ अतिशयोक्ति है क्योंकि भीड़ का हरेक जन का उसे पकड़ना संभव नहीं है।
कुरिन्थ की आराधनालय का एक यहूदी सरदार।
“सामने पीटा” या फिर, “सामने लात-घुसें लगाए।” सोस्थिनेस की पिटाई की गयी थी।
पौलुस जहाज के द्वारा सीरिया गया। प्रिस्किल्ला और अक्विला भी उसके साथ गए
किन्ख्रिया एक बंदरगाह था जो कि कुरिन्थ नगर का हिस्सा था।
अर्थात परमेश्वर के लिए कुछ करने का प्रण लिया। इसके द्वारा लेवियों के बाहर के लोग भी परमेश्वर की सेवा कर सकते थे।
“पौलुस, प्रिस्किल्ला और अक्विवल के इफिसुस पहुँचने पर”
“चर्चा करने लगा” या कि “तर्क-वितर्क करने लगा”
“जब यहूदियों ने....विनती की”
“उनसे विदा लेकर”
“कैसरिया पहुंचा”
“पौलुस यरूशलेम को गया”
“यरूशलेम की कलीसिया के सदस्यों को नमस्कार करके”
यरूशलेम से अन्ताकिया को गया।
“पौलुस वहाँ से चला गया”
एशिया के प्रान्त जो आज टर्की में है।
“सब चेलों को मज़बूत किया”
“सिकंदरिया नगर में पैदा हुआ व्यक्ति।” संभावित अर्थ : 1) “मिस्र में उत्तर तट पर स्थित सिकंदरिया” या फिर, 2) “एशिया में पश्चिम तट पर स्थित सिकंदरिया।”
पूरे जोश के साथ
“यूहन्ना द्वारा दिए गए बपतिस्मे”
उसकी वाक्पटुता देखकर
“और भी सम्पूर्णता के साथ”
“और जब अपुल्लोस ने”
अखाया एक रोमी प्रान्त है जो आधुनिक यूनान के दक्षिण खंड में स्थित था।
“अखाया के मसीहियों को पत्र लिखा”
“और अपुल्लोस ने पहुँच कर”
अपुल्लोस ने यहूदियों को सबके सामने वाद-विवाद में हराया
पौलुस ने अपनी उपजीविका के लिए तम्बू बनाने का काम किया।
पौलुस ने यहूदियों को यीशु के ही मसीह होने की गवाही दी।
पौलुस ने यहूदियों को कहा कि तुम्हारा लहू तुम्हारी गर्दन पर रहे, और फिर वह अन्यजातियों की ओर चला गया।
परमेश्वर ने पौलुस से कहा कि चुप मत रह, क्योंकि वहाँ उसे कोई भी हानि नहीं पहुँचाएगा।
यहूदियों ने आरोप लगाया कि पौलुस लोगों को समझाता है कि परमेश्वर की उपासना इस रीति से करें जो व्यवस्था के विपरीत है।
हाकिम ने कहा यदि उनका वाद-विवाद उनकी व्यवस्था के विषय में है तो वह न्यायी नहीं बनना चाहता।
अक्विला और प्रिस्किल्ला पौलुस के साथ इफिसुस गए।
इफिसुस छोड़ने के बाद पौलुस यरूशलेम और फिर अन्ताकिया गया।
अपुल्लोस यीशु के विषय में ठीक से जानता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मे की बात जानता था।
प्रिस्किल्ला और अक्विला उसे अपने साथ ले गए और परमेश्वर का मार्ग उसे और भी ठीक-ठीक बताया।
अपुल्लोस सबके सामने बड़ी प्रबलता से पवित्र शास्त्र से प्रमाण दे कर कि यीशु ही मसीह है, निरुत्तर करता रहा।
1 जब अपुल्लोस कुरिन्थुस में था, तो पौलुस ऊपर के सारे देश से होकर इफिसुस में आया और वहाँ कुछ चेले मिले। 2 उसने कहा, “क्या तुम ने विश्वास करते समय पवित्र आत्मा पाया*?” उन्होंने उससे कहा, “हमने तो पवित्र आत्मा की चर्चा भी नहीं सुनी।”
3 उसने उनसे कहा, “तो फिर तुम ने किसका बपतिस्मा लिया?” उन्होंने कहा, “यूहन्ना का बपतिस्मा।” 4 पौलुस ने कहा, “यूहन्ना ने यह कहकर मन फिराव का बपतिस्मा दिया, कि जो मेरे बाद आनेवाला है, उस पर अर्थात् यीशु पर विश्वास करना।”
5 यह सुनकर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा लिया। 6 और जब पौलुस ने उन पर हाथ रखे, तो उन पर पवित्र आत्मा उतरा, और वे भिन्न-भिन्न भाषा बोलने और भविष्यद्वाणी करने लगे। 7 ये सब लगभग बारह पुरुष थे।
8 और वह आराधनालय में जाकर तीन महीने तक निडर होकर बोलता रहा, और परमेश्वर के राज्य के विषय में विवाद करता और समझाता रहा। 9 परन्तु जब कुछ लोगों ने कठोर होकर उसकी नहीं मानी वरन् लोगों के सामने इस पंथ को बुरा कहने लगे, तो उसने उनको छोड़कर चेलों को अलग कर लिया, और प्रतिदिन तुरन्नुस की पाठशाला में वाद-विवाद किया करता था। 10 दो वर्ष तक यही होता रहा, यहाँ तक कि आसिया के रहनेवाले क्या यहूदी, क्या यूनानी सब ने प्रभु का वचन सुन लिया।
11 और परमेश्वर पौलुस के हाथों से सामर्थ्य के अद्भुत काम दिखाता था। 12 यहाँ तक कि रूमाल और अँगोछे उसकी देह से स्पर्श कराकर बीमारों पर डालते थे, और उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती थी; और दुष्टात्माएँ उनमें से निकल जाया करती थीं।
13 परन्तु कुछ यहूदी जो झाड़ा फूँकी करते फिरते थे, यह करने लगे कि जिनमें दुष्टात्मा हों उन पर प्रभु यीशु का नाम यह कहकर फूँकने लगे, “जिस यीशु का प्रचार पौलुस करता है, मैं तुम्हें उसी की शपथ देता हूँ।” 14 और स्क्किवा* नाम के एक यहूदी प्रधान याजक के सात पुत्र थे, जो ऐसा ही करते थे।
15 पर दुष्टात्मा ने उत्तर दिया, “यीशु को मैं जानती हूँ, और पौलुस को भी पहचानती हूँ; परन्तु तुम कौन हो?” 16 और उस मनुष्य ने जिसमें दुष्ट आत्मा थी; उन पर लपककर, और उन्हें काबू में लाकर, उन पर ऐसा उपद्रव किया, कि वे नंगे और घायल होकर उस घर से निकल भागे। 17 और यह बात इफिसुस के रहनेवाले यहूदी और यूनानी भी सब जान गए, और उन सब पर भय छा गया; और प्रभु यीशु के नाम की बड़ाई हुई।
18 और जिन्होंने विश्वास किया था, उनमें से बहुतों ने आकर अपने-अपने बुरे कामों को मान लिया और प्रगट किया। 19 और जादू टोना करनेवालों में से बहुतों ने अपनी-अपनी पोथियाँ इकट्ठी करके सब के सामने जला दीं; और जब उनका दाम जोड़ा गया, जो पचास हजार चाँदी के सिक्कों के बराबर निकला। 20 इस प्रकार प्रभु का वचन सामर्थ्यपूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।
21 जब ये बातें हो चुकी तो पौलुस ने आत्मा में ठाना कि मकिदुनिया और अखाया* से होकर यरूशलेम को जाऊँ, और कहा, “वहाँ जाने के बाद मुझे रोम को भी देखना अवश्य है।” 22 इसलिए अपनी सेवा करनेवालों में से तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया में भेजकर आप कुछ दिन आसिया में रह गया।
23 उस समय उस पन्थ के विषय में बड़ा हुल्लड़ हुआ। 24 क्योंकि दिमेत्रियुस नाम का एक सुनार अरतिमिस के चाँदी के मन्दिर बनवाकर, कारीगरों को बहुत काम दिलाया करता था। 25 उसने उनको और ऐसी वस्तुओं के कारीगरों को इकट्ठे करके कहा, “हे मनुष्यों, तुम जानते हो कि इस काम से हमें कितना धन मिलता है। 26 और तुम देखते और सुनते हो कि केवल इफिसुस ही में नहीं, वरन् प्रायः सारे आसिया में यह कह कहकर इस पौलुस ने बहुत लोगों को समझाया और भरमाया भी है, कि जो हाथ की कारीगरी है, वे ईश्वर नहीं। 27 और अब केवल इसी एक बात का ही डर नहीं कि हमारे इस धन्धे की प्रतिष्ठा जाती रहेगी; वरन् यह कि महान देवी अरतिमिस का मन्दिर तुच्छ समझा जाएगा और जिसे सारा आसिया और जगत पूजता है उसका महत्व भी जाता रहेगा।”
28 वे यह सुनकर क्रोध से भर गए और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “इफिसियों की अरतिमिस, महान है!” 29 और सारे नगर में बड़ा कोलाहल मच गया और लोगों ने गयुस और अरिस्तर्खुस, मकिदुनियों को जो पौलुस के संगी यात्री थे, पकड़ लिया, और एक साथ होकर रंगशाला में दौड़ गए।
30 जब पौलुस ने लोगों के पास भीतर जाना चाहा तो चेलों ने उसे जाने न दिया। 31 आसिया के हाकिमों में से भी उसके कई मित्रों ने उसके पास कहला भेजा और विनती की, कि रंगशाला में जाकर जोखिम न उठाना। 32 वहाँ कोई कुछ चिल्लाता था, और कोई कुछ; क्योंकि सभा में बड़ी गड़बड़ी हो रही थी, और बहुत से लोग तो यह जानते भी नहीं थे कि वे किस लिये इकट्ठे हुए हैं।
33 तब उन्होंने सिकन्दर को, जिसे यहूदियों ने खड़ा किया था, भीड़ में से आगे बढ़ाया, और सिकन्दर हाथ से संकेत करके लोगों के सामने उत्तर देना चाहता था।
34 परन्तु जब उन्होंने जान लिया कि वह यहूदी है, तो सब के सब एक स्वर से कोई दो घंटे तक चिल्लाते रहे, “इफिसियों की अरतिमिस, महान है।” 35 तब नगर के मंत्री ने लोगों को शान्त करके कहा, “हे इफिसियों, कौन नहीं जानता, कि इफिसियों का नगर बड़ी देवी अरतिमिस के मन्दिर, और आकाश से गिरी हुई मूरत का रखवाला है। 36 अतः जब कि इन बातों का खण्डन ही नहीं हो सकता, तो उचित है, कि तुम शान्त रहो; और बिना सोचे-विचारे कुछ न करो। 37 क्योंकि तुम इन मनुष्यों को लाए हो, जो न मन्दिर के लूटनेवाले है, और न हमारी देवी के निन्दक हैं।
38 यदि दिमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों को किसी से विवाद हो तो कचहरी खुली है, और हाकिम भी हैं; वे एक दूसरे पर आरोप लगाए। 39 परन्तु यदि तुम किसी और बात के विषय में कुछ पूछना चाहते हो, तो नियत सभा में फैसला किया जाएगा। 40 क्योंकि आज के बलवे के कारण हम पर दोष लगाए जाने का डर है, इसलिए कि इसका कोई कारण नहीं, अतः हम इस भीड़ के इकट्ठा होने का कोई उत्तर न दे सकेंगे।” 41 और यह कह के उसने सभा को विदा किया।
“ऐसा हुआ कि जब…..वहां कुछ चेले मिले”
सारे देश में यात्रा करते हुए
अर्थात एशिया (आधुनिक टर्की) में स्थित एक क्षेत्र जो इफिसुस और सिकंदरिया त्रोआस और भीतरी क्षेत्र के पूर्व की ओर था।
पवित्र आत्मा ग्रहण किया
“हमने पवित्र आत्मा की चर्चा नहीं सुनी थी”
पौलुस इफिसुस के नए विश्वासियों के साथ अपनी चर्चा जारी रखता है
“तो फिर तुमने किसके नाम से बपतिस्मा लिया?”
“चेलों ने कहा”
“यूहन्ना के बपतिस्मा से”
“अपने पापों से मन फिराते समय लोग जो बपतिस्मा लेते हैं।”
“जो बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना के बाद आनेवाला”
जब पौलुस ने उससे बातचीत कर रहे इफिसुस के विश्वासियों पर
“प्रार्थना करते समय उनके सिर पर हाथ रखे” (यूडीबी)
इस बात के संकते नहीं दिए गए हैं कि उनकी बातें कितनो को समझ आई होगी।
“ ...पौलुस से बपतिस्मा लेकर पवित्र आत्मा पाने वाले लगभग 12 लोग थे” (यूडीबी)...(देखें: [[rc://*/ta/संस्क1/अनुवाद/अंजीर-स्पष्ट]]
अनुवाद कते समय यूं भी लिख सकते हैं, कि “तीन महीने तक पौलुस आराधनालय जाता रहा और हियाव के साथ बोलता रहा।”
“लोगों को बोले गए सत्य का विश्वास दिलाता रहा”
“कुछ यहूदियों ने ढीठाई के साथ उपदेश को स्वीकारने से मना कर दिया”
“के बारे में बुरा-बुरा कहने लगे”
अर्थात “यीशु मसीह के द्वारा उद्धार की बात को”
“विश्वासियों को अलग किया”
संभावित अर्थ: 1) “पौलुस ने पूरे आसिया में कई लोगों के साथ सुसमाचार बांटा” या फिर, 2) “सारे आसिया से इफिसुस में आनेवाले यात्रियों के द्वारा पौलुस का उपदेश इफिसुस से पूरे आसिया में फैल गया।”
“पौलुस के द्वारा”
अनुवाद करते समय यूं भी लिख सकते हैं, कि “यहाँ तक कि पौलुस द्वारा स्पर्श किये रुमाल और अंगोछे बीमारों पर डालते थे”
लोगों व जगहों से बुरी आत्माएं निकालनेवाले लोग
हालाँकि वे यीशु पर विश्वास नहीं करते थे, लेकिन वे उसके नाम को जादूई शब्द की तरह इस्तेमाल करने का प्रयास करते थे
“बुरी आत्मा से ग्रस्त लोग”
“उन पर नाम फूंकते थे”
“मैं यीशु और पौलुस को तो जानती हूँ;” या फिर, “मैंने यीशु और पौलुस के बारे में तो सुना है”
यह वास्तविक प्रश्न नहीं है; यह कथन असल में बुरी आत्मा पर उनके अधिकार को लेकर संदेह को व्यक्त करता है। अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं, कि “तुम्हारे पास कौन सा अधिकार है?” या फिर, “तुम्हारा को अधिकार नहीं है।”
अर्थात “उन झाड़ा फूंकी करनेवालों” पर लपक कर। यहाँ पर उसी शब्द का प्रयोग करने जिसका प्रयोग आप पहले 13वें पद में किया है
वे झाड़ा-फूंकी करनेवालों के कपड़े तार-तार हो गए और वे भागे
“इफिसुस के यहूदी और यूनानी लोग बहुत डर गए”
जादूई तंत्रों-मन्त्रों वाली किताबें और स्क्रॉल
“सब के आगे”
चांदी के एक सिक्के का दाम एक दैनिक मजदूर की एक दिन की दिहाड़ी के बराबर था।
“प्रभु से सम्बंधित उपदेश इतना प्रभावी था कि वह फैलता गया और पहले अधिक प्रभावशाली होता गया।”
अर्थात इफिसुस में अपनी सेवा करने के बाद पौलुस ने
आधुनिक यूनान के प्रांत
संभावित अर्थ: 1) पौलुस ने पवित्र आत्मा की मदद से निर्णय लिया” या फिर, 2) पौलुस की अपनी आत्मा ने निर्णय लेने में उसकी अगुवाई की।
“मुझे रोम की भी यात्रा करनी ज़रूरी है”
आगामी पदों में स्पष्ट हो जाएगा कि पौलुस इफिसुस में रुका था
उपद्रव जैसी स्थिति
मसीहत के लिए इस्तेमाल किया जानेवाला शब्द
सोने-चांदी की आकृतियाँ आदि गढ़नेवाला कारीगर
इफिसुस का एक सुनार पौलुस व स्थानीय कलीसिया के विरोध में था।
इफिसुस में अरतिमिस को समर्पित एक विशाल मंदिर था
वे चाँदी से बनी अरतिमिस की कई मूरतें बेचता था
देमेत्रियुस नाम का एक सुनार अपने कारीगरों से बातचीत जारी रखता है
“तुम जानते-बूझते हो”
“बहुत से लोगों को स्थानीय देवताओं की पूजा न करने और मसीह की ओर मुड़ने का विश्वास दिलाया है”
अरतिमिस की महानता केवल लोगों की सोच से है
यहाँ अतिशयोक्ति का प्रयोग है। बहुत से लोग पूजते हैं की जगह सारा आसिया और जगत पूजता है कहा गया है।
“कारगर यह सुनकर”
“बहुत क्रोधित हो उठे”
“और ज़ोर से चिल्ला कर बोलने लगे”
“लोगों ने पौलुस के साथियों को पकड़ लिया”
यह दंगे-फसाद जैसे स्थिति हो गयी थी
इफिसुस की रंगशाला प्रयोग जनता के मनोरंजन हेतु नाटक व संगीत आदि के लिए होता था
गयुस व अरिस्तर्खुस मकदूनिया से आये थे और उस समय इफिसुस में पौलुस के साथ कार्य कर रहे थे
अर्ध-गोलाकार की आकृति वाली जगह जहाँ लोगों के बैठने के लिए बेंच लगे होते हैं, और इसमे हज़ारों की तादात में लोग आ सकते हैं।
सिकंदर को लेकर पौलुस तीमुथियुस को चेतावनी दे रहा है
“देखनेवालों की तरफ संकेत किया”
वह अपने बचावे में कुछ कहना चाहता था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वह क्या कहना चाहता था।
यह वास्तविक प्रश्न नहीं वरन भाषा का आलंकारिक प्रयोग है. अनुवाद करते समय हम यूं भी लिख सकते हैं कि “हर कोई जानता है कि......”
इफिसुस के लोग अरतिमिस के मंदिर की देखरेख और सुरक्षा करते थे
अरतिमिस के मंदिर में देवी की एक मूरत थी जो उल्कापिंड पर गढ़ी गए थी, और उल्कापिंड सीधे ज्यूस से भेजा माना जाता था
भीड़ को संबोधन जारी रहता है
इफिसुस का एक सुनार जो पौलुस व स्थानीय कलीसिया का विरोधी था
गवर्नर अथ्वास शासक के लिए प्रोकंसल्स शब्द है।
चेलों ने पवित्र आत्मा के विषय में नहीं सुना था।
यूहन्ना का बप्तिस्मा मन फिराव का बप्तिस्मा था।
यूहन्ना ने लोगों को कहा था कि जो मेरे बाद आने वाला है उस पर विश्वास करना।
पौलुस ने उन्हें प्रभु यीशु के नाम का बप्तिस्मा दिया।
उन पर पवित्र आत्मा ठहरा और वे भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलने और भविष्यद्वाणी करने लगे।
पौलुस ने उनको छोड़कर चेलों को अलग कर लिया और तुरन्नुस की पाठशाला में वाद-विवाद करने लगा।
जब पौलुस से रूमाल और अंगोछे लेकर, बीमारों को चंगा और दुष्टात्माओं को निकाला जाता था।
दुष्टात्मा ने उन्हें वश में लाकर ऐसा उपद्रव किया कि वे नंगे और घायल होकर घर से निकल भागे।
जादू करने वालों में से बहुतों ने अपनी पोथियाँ सबके सामने जला दीं।
पौलुस ने कहा कि यरूशलेम जाने के बाद वह रोम जाएगा।
देमेत्रियुस की चिन्ता का विषय यह था कि पौलुस लोगों को सिखा रहा था कि जो हाथ की कारीगरी है वह ईश्वर नहीं, और यह कि अरतिमिस देवी को भी तुच्छ माना जाएगा।
लोग क्रोध से भर गए और चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगे कि अरतिमिस महान है,और सारे नगर में कोलाहल मच गया।
चेलों और कुछ हाकिमों ने पौलुस से विनती की कि वहां न जाए।
नगर के मन्त्री ने लोगों को कचहरी में अपना विवाद लाने को कहा।
नगर के मन्त्री ने कहा कि लोग बलवे के कारण उन पर दोष लगाए जाने का डर है और इस भीड़ के इकट्ठा होने का कोई उत्तर नहीं है।
1 जब हुल्लड़ थम गया तो पौलुस ने चेलों को बुलवाकर समझाया, और उनसे विदा होकर मकिदुनिया की ओर चल दिया। 2 उस सारे प्रदेश में से होकर और चेलों को बहुत उत्साहित कर वह यूनान में आया। 3 जब तीन महीने रहकर वह वहाँ से जहाज पर सीरिया की ओर जाने पर था, तो यहूदी उसकी घात में लगे, इसलिए उसने यह निश्चय किया कि मकिदुनिया होकर लौट जाए।
4 बिरीया के पुरूर्स का पुत्र सोपत्रुस और थिस्सलुनीकियों में से अरिस्तर्खुस और सिकुन्दुस और दिरबे का गयुस, और तीमुथियुस और आसिया का तुखिकुस और त्रुफिमुस आसिया तक उसके साथ हो लिए। 5 पर वे आगे जाकर त्रोआस में हमारी प्रतीक्षा करते रहे। 6 और हम अख़मीरी रोटी के दिनों के बाद फिलिप्पी से जहाज पर चढ़कर पाँच दिन में त्रोआस में उनके पास पहुँचे, और सात दिन तक वहीं रहे।
7 सप्ताह के पहले दिन जब हम रोटी तोड़ने के लिये इकट्ठे हुए, तो पौलुस ने जो दूसरे दिन चले जाने पर था, उनसे बातें की, और आधी रात तक उपदेश देता रहा। 8 जिस अटारी पर हम इकट्ठे थे, उसमें बहुत दीये जल रहे थे।
9 और यूतुखुस नाम का एक जवान खिड़की पर बैठा हुआ गहरी नींद से झुक रहा था, और जब पौलुस देर तक बातें करता रहा तो वह नींद के झोके में तीसरी अटारी पर से गिर पड़ा, और मरा हुआ उठाया गया। 10 परन्तु पौलुस उतरकर उससे लिपट गया*, और गले लगाकर कहा, “घबराओ नहीं; क्योंकि उसका प्राण उसी में है।” (1 राजा. 17:21)
11 और ऊपर जाकर रोटी तोड़ी और खाकर इतनी देर तक उनसे बातें करता रहा कि पौ फट गई; फिर वह चला गया।
12 और वे उस जवान को जीवित ले आए, और बहुत शान्ति पाई।
13 हम पहले से जहाज पर चढ़कर अस्सुस को इस विचार से आगे गए, कि वहाँ से हम पौलुस को चढ़ा लें क्योंकि उसने यह इसलिए ठहराया था, कि आप ही पैदल जानेवाला था। 14 जब वह अस्सुस में हमें मिला तो हम उसे चढ़ाकर मितुलेने* में आए।
15 और वहाँ से जहाज खोलकर हम दूसरे दिन खियुस के सामने पहुँचे, और अगले दिन सामुस में जा पहुँचे, फिर दूसरे दिन मीलेतुस में आए। 16 क्योंकि पौलुस ने इफिसुस के पास से होकर जाने की ठानी थी, कि कहीं ऐसा न हो, कि उसे आसिया में देर लगे; क्योंकि वह जल्दी में था, कि यदि हो सके, तो वह पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में रहे।
17 और उसने मीलेतुस से इफिसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया। 18 जब वे उसके पास आए, तो उनसे कहा,
“तुम जानते हो, कि पहले ही दिन से जब मैं आसिया में पहुँचा, मैं हर समय तुम्हारे साथ किस प्रकार रहा। 19 अर्थात् बड़ी दीनता से, और आँसू बहा-बहाकर, और उन परीक्षाओं में जो यहूदियों के षड़यंत्र के कारण जो मुझ पर आ पड़ी; मैं प्रभु की सेवा करता ही रहा। 20 और जो-जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उनको बताने और लोगों के सामने और घर-घर सिखाने से कभी न झिझका। 21 वरन् यहूदियों और यूनानियों को चेतावनी देता रहा कि परमेश्वर की ओर मन फिराए, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करे।
22 और अब, मैं आत्मा में बंधा हुआ* यरूशलेम को जाता हूँ, और नहीं जानता, कि वहाँ मुझ पर क्या-क्या बीतेगा, 23 केवल यह कि पवित्र आत्मा हर नगर में गवाही दे-देकर मुझसे कहता है कि बन्धन और क्लेश तेरे लिये तैयार है। 24 परन्तु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझता कि उसे प्रिय जानूँ, वरन् यह कि मैं अपनी दौड़ को, और उस सेवा को पूरी करूँ, जो मैंने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिये प्रभु यीशु से पाई है।
25 और अब मैं जानता हूँ, कि तुम सब जिनमें मैं परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता फिरा, मेरा मुँह फिर न देखोगे। 26 इसलिए मैं आज के दिन तुम से गवाही देकर कहता हूँ, कि मैं सब के लहू से निर्दोष हूँ। 27 क्योंकि मैं परमेश्वर की सारी मनसा को तुम्हें पूरी रीति से बताने से न झिझका। 28 इसलिए अपनी और पूरे झुण्ड की देख-रेख करो; जिसमें पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने लहू से मोल लिया है। (भज. 74:2) 29 मैं जानता हूँ, कि मेरे जाने के बाद फाड़नेवाले भेड़िए तुम में आएँगे, जो झुण्ड को न छोड़ेंगे। 30 तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे-ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।
31 इसलिए जागते रहो, और स्मरण करो कि मैंने तीन वर्ष तक रात दिन आँसू बहा-बहाकर, हर एक को चितौनी देना न छोड़ा। 32 और अब मैं तुम्हें परमेश्वर को, और उसके अनुग्रह के वचन को सौंप देता हूँ; जो तुम्हारी उन्नति कर सकता है, और सब पवित्र किये गये लोगों में सहभागी होकर विरासत दे सकता है।
33 मैंने किसी के चाँदी, सोने या कपड़े का लालच नहीं किया। (1 शमू. 12:3) 34 तुम आप ही जानते हो कि इन्हीं हाथों ने मेरी और मेरे साथियों की आवश्यकताएँ पूरी की। 35 मैंने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना, और प्रभु यीशु की बातें स्मरण रखना अवश्य है, कि उसने आप ही कहा है: ‘लेने से देना धन्य है’।”
36 यह कहकर उसने घुटने टेके और उन सब के साथ प्रार्थना की। 37 तब वे सब बहुत रोए और पौलुस के गले लिपट कर उसे चूमने लगे। 38 वे विशेष करके इस बात का शोक करते थे, जो उसने कही थी, कि तुम मेरा मुँह फिर न देखोगे। और उन्होंने उसे जहाज तक पहुँचाया।
“हुल्लड़ के थमने के बाद”
एक-दूसरे से विदा ली
“चेलों का उत्साह बढाने के लिए बहुत सी बातें कहीं”
“तीन महीने रहने के बाद”
“यहूदियों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र किया”
“उसके विरुद्ध एक गुप्त योजना बना ली’
“सीरिया की ओर जाने को तैयार था”
“पौलुस के साथ यात्रा कर रहे हैं”
प्रेरितों का लेखक,लूका, दल में फिर से शामिल हो गया है। वैकल्पिक अनुवाद: हमसे आगे यात्रा की है।
“रविवार को”
प्रभु भोज के दौरान रोटी तोड़ी और खाई गयी (यूडीबी)
“बातें करता रहा”
यह शायद घर की मंजिल का तीसरा तल था।
वह गहरी नींद में सोया हुआ था
“भूतल से दो तल ऊपर”
मारा हुआ उठाया गया - जब वे उसे नीचे उठाने गए तो देख कि वह मर चुका है।
गले लगाकर - “छाती से लगाकर”(यूडीबी)
गले लगाकर कहा - “गले लगाकर पौलुस ने कहा”
“युतुखुस अभी जीवित है”
“पौलुस ऊपर गया”
“सबके साथ भोजन किया।” रोटी तोड़कर सबमे बांटना इसी में शामिल है।
“वह वहाँ से चला गया”
संभावित अर्थ: 1) 14 साल से बड़ा लड़का (यूडीबी), 2) सेवक या दास, 3) या फिर 9-14 के बीच की उम्र का कोई लड़का.
यहाँ ये शब्द बताते हैं कि लूका और सहयात्रियों को पौलुस से अलग करता है, जो जहाज से नहीं गया था।
“वह पैदल जाना चाहता था”
आधुनिक बेहराम, तुर्की के ठीक नीचे, एजियन समुद्र के तट पर स्थित एक नगर है।
“हम” शब्द का आशय लूका और उसके सहयात्रियों से है, लेकिन इसमें पौलुस शामिल नहीं है।
एजियन समुद्र के तट पर आधुनिक मितिलिनी, तुर्की में स्थित एक नगर।
“हम” का आशय पौलुस, लूका, और उनके सहयात्रियों से है।
खियुस एजियन समुद्र से घिरे आधुनिक तुर्की के तट से दूर स्थित टापू।
खियुस के दक्षिण में स्थित टापू। वैकल्पिक अनुवाद: “हम सामुस टापू पर पहुंचें”
मीलेतुस, पश्चिम एशिया माइनर में मीऐनडर नदी के मुहाने पर स्थित एक बंदरगाह है।
पौलुस इफिसुस से होते हुए आगे दक्षिण में मीलेतुस की ओर गया
प्रेरितों में मीलेतुस के अनुवाद का सन्दर्भ
आसिया में आते ही - “आसिया में प्रवेश करते ही”
“नम्रता” अथवा “विनय के साथ”
प्रभु की सेवा करते हुए मैं कई बार रोया
“न कतराया” अथवा “स्वयं को न रोका”
घर-घर सिखाने -अर्थात, उसने लोगों को उनके घरों में जाकर व्यक्तिगत रूप से सिखाया।
“अपने पाप से फिर कर परमेश्वर की ओर आना”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“पवित्र आत्मा द्वारा विवश होकर यरूशलेम को जाता हूँ”
“पवित्र आत्मा ये चेतावनियाँ मुझे देता है”
“कि मैं बंधनों में जकड़ कर कैद में डाला जानेवाला और शारीरिक कष्ट भोगनेवाला हूँ”
“परमेश्वर के दिए काम पूरे करूं”
“गवाह हूँ”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“मैं जानता हूँ कि तुम सभी”
“जिन्हें मैंने परमेश्वर के राज्य का उपदेश दिया”
“अब मुझे फिर न देखोगे”
“परमेश्वर द्वारा किसी को अपराधी ठहराए जाने पर मुझे दोष नहीं दिया जा सकता”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
यह एक आलंकारिक अभिव्यक्ति है। जिस प्रकार एक गडरिया भेडियों से अपनी भेड़ों की रक्षा करता है, वैसे ही कलीसिया के अगुओं को अपनी अगुवाई के अंतर्गत आनेवाले लोगों की देखरेख व शत्रु से रक्षा करनी चाहिए।
“क्रूस पर अपने लहू को बहा कर मसीह ने जिन्हें मोल लिया है।
“मसीह का अनुकरण करनेवालों को अपनी, झूठी शिक्षा का विश्वास दिलाने का प्रयास करेंगे”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“सावधान और सचेत रहो” या फिर, “रखवाली करते रहो” (यूडीबी)
“और लगातार याद करों” या फिर, “भूलो मत”
इसे यूं भी लिख सकते हैं कि : 1) “सतर्क रहो और याद करो” या फिर, 2) “याद करते समय जागते रहो” अथवा 3) याद करो और सतर्क रहो
पौलुस ने उन्हें तीन सालों तक लगातार शिक्षा नहीं दी थी, वरन तीन सालों के दौरान बीच-बीच में शिक्षा दी थी
संभावित अर्थ: 1) “चेताना न छोड़ा” या फिर 2) “मैंने सुधार करना और प्रोत्साहन देना न छोड़ा।”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“मैंने किसी की चांदी की इच्छा नहीं की” या फिर, “मुझे किसी की चांदी नहीं चाहिए”
कपड़ों को निधि समझा जाता था; जितने अधिक कपड़े आपके पास हैं, आप उतने ही अमीर है।
“आप ही” को बात में प्रभाव उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया गया है।
" मैं अपने हाँथों से काम करके पैसा कमाते है और अपना कर्चा उठाते हूँ।"
“कड़ा परिश्रम करो ताकि उन लोगों की मदद कर सकों जो लाचार हैं”
देने से व्यक्ति को पमरेश्वर के अनुग्रह एवं आनंद का अधिक अनुभव होता है।
“पौलुस से गले लग कर” या फिर, “पौलुस से गले मिले”
मध्यपूर्व में किसी को चूमना उसके प्रति भाईचारा और स्नेह व्यक्त करने का तरीका है।
"वे पौलुस को पृथ्वी पर फिर नहीं देख पाएगा" “ मुंह” पौलुस के सन्दर्भ में है
सीरिया की ओर जाने पर था, तो यहूदी उसकी घात में लगे, इसलिये उस ने यह सलाह की कि मकिदुनिया होकर लौट आए।
सप्ताह के पहले दिन पौलुस और अन्य विश्वासी रोटी तोड़ने के लिए इकट्ठे हुए।
जवान तीसरी अटारी पर से गिर पड़ा और मरा हुआ उठाया गया, पर पौलुस उतरकर उससे लिपट गया और लड़का जीवित हो गया।
पौलुस को यरूशलेम जाने की जल्दी थी क्योंकि वह वहां पिन्तेकुस्त के दिन रहना चाहता था।
पौलुस ने कहा कि उसने यहूदियों और यूनानियों दोनों को मन फिराने और प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने की चेतावनी दी।
पवित्र आत्मा पौलुस को गवाही दे रही थी कि बन्धन और क्लेश तेरे लिए तैयार है।
पौलुस की सेवकाई सुसमाचार पर गवाही देने के लिए जो उसने प्रभु यीशु से पाई है थी।
पौलुस ने कहा कि वह किसी भी मनुष्य के लहू से निर्दोष है क्योंकि उसने परमेश्वर के सारे अभिप्राय उन्हें पूरी रीति से बताए थे।
पौलुस ने प्राचीनों को पूरे झुंड की चौकसी से निगरानी करने का निर्देश दिया।
पौलुस ने कहा कि कुछ प्राचीन चेलों को अपने पीछे खींचने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें करेंगे।
पौलुस ने इफिसियों के प्राचीनों को परमेश्वर के हाथों में सौंपा।
पौलुस ने अपनी और अपने साथियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने हाथों से काम किया और निर्बलों की सहायता की।
इफिसियों के प्राचीनों ने सबसे अधिक इस बात का शोक किया कि पौलुस ने उनसे कहा कि तुम मेरा मुँह फिर न देखोगे।
1 जब हमने उनसे अलग होकर समुद्री यात्रा प्रारंभ किया, तो सीधे मार्ग से कोस में आए, और दूसरे दिन रूदुस में, और वहाँ से पतरा में; 2 और एक जहाज फीनीके को जाता हुआ मिला, और हमने उस पर चढ़कर, उसे खोल दिया।
3 जब साइप्रस दिखाई दिया, तो हमने उसे बाएँ हाथ छोड़ा, और सीरिया को चलकर सूर में उतरे; क्योंकि वहाँ जहाज का बोझ उतारना था। 4 और चेलों को पा कर हम वहाँ सात दिन तक रहे। उन्होंने आत्मा के सिखाए पौलुस से कहा कि यरूशलेम में पाँव न रखना।
5 जब वे दिन पूरे हो गए, तो हम वहाँ से चल दिए; और सब स्त्रियों और बालकों समेत हमें नगर के बाहर तक पहुँचाया और हमने किनारे पर घुटने टेककर प्रार्थना की। 6 तब एक दूसरे से विदा होकर, हम तो जहाज पर चढ़े, और वे अपने-अपने घर लौट गए।
7 जब हम सूर से जलयात्रा पूरी करके पतुलिमयिस* में पहुँचे, और भाइयों को नमस्कार करके उनके साथ एक दिन रहे। 8 दूसरे दिन हम वहाँ से चलकर कैसरिया में आए, और फिलिप्पुस सुसमाचार प्रचारक के घर में जो सातों में से एक था, जाकर उसके यहाँ रहे। 9 उसकी चार कुँवारी पुत्रियाँ थीं; जो भविष्यद्वाणी करती थीं। (योए. 2:28)
10 जब हम वहाँ बहुत दिन रह चुके, तो अगबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता यहूदिया से आया। 11 उसने हमारे पास आकर पौलुस का कमरबन्द लिया, और अपने हाथ पाँव बाँधकर कहा, “पवित्र आत्मा यह कहता है, कि जिस मनुष्य का यह कमरबन्द है, उसको यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बाँधेंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे।”
12 जब हमने ये बातें सुनी, तो हम और वहाँ के लोगों ने उससे विनती की, कि यरूशलेम को न जाए। 13 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “तुम क्या करते हो, कि रो-रोकर मेरा मन तोड़ते हो? मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिये यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने ही के लिये वरन् मरने के लिये भी तैयार हूँ।” 14 जब उसने न माना तो हम यह कहकर चुप हो गए, “प्रभु की इच्छा पूरी हो।”
15 उन दिनों के बाद हमने तैयारी की और यरूशलेम को चल दिए। 16 कैसरिया के भी कुछ चेले हमारे साथ हो लिए, और मनासोन नामक साइप्रस के एक पुराने चेले को साथ ले आए, कि हम उसके यहाँ टिकें।
17 जब हम यरूशलेम में पहुँचे, तो भाई बड़े आनन्द के साथ हम से मिले। 18 दूसरे दिन पौलुस हमें लेकर याकूब के पास गया, जहाँ सब प्राचीन इकट्ठे थे। 19 तब उसने उन्हें नमस्कार करके, जो-जो काम परमेश्वर ने उसकी सेवकाई के द्वारा अन्यजातियों में किए थे, एक-एक करके सब बताया।
20 उन्होंने यह सुनकर परमेश्वर की महिमा की, फिर उससे कहा, “हे भाई, तू देखता है, कि यहूदियों में से कई हजार ने विश्वास किया है; और सब व्यवस्था के लिये धुन लगाए हैं। 21 और उनको तेरे विषय में सिखाया गया है, कि तू अन्यजातियों में रहनेवाले यहूदियों को मूसा से फिर जाने को सिखाता है, और कहता है, कि न अपने बच्चों का खतना कराओ ओर न रीतियों पर चलो।
22 तो फिर क्या किया जाए? लोग अवश्य सुनेंगे कि तू यहाँ आया है। 23 इसलिए जो हम तुझ से कहते हैं, वह कर। हमारे यहाँ चार मनुष्य हैं, जिन्होंने मन्नत मानी है। 24 उन्हें लेकर उसके साथ अपने आप को शुद्ध कर; और उनके लिये खर्चा दे, कि वे सिर मुँड़ाएँ। तब सब जान लेंगे, कि जो बातें उन्हें तेरे विषय में सिखाई गईं, उनकी कुछ जड़ नहीं है परन्तु तू आप भी व्यवस्था को मानकर उसके अनुसार चलता है। (गिन. 6:5, गिन. 6:13-18, गिन. 6:21)
25 परन्तु उन अन्यजातियों के विषय में जिन्होंने विश्वास किया है, हमने यह निर्णय करके लिख भेजा है कि वे मूर्तियों के सामने बलि किए हुए माँस से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से, बचे रहें।” 26 तब पौलुस उन मनुष्यों को लेकर, और दूसरे दिन उनके साथ शुद्ध होकर मन्दिर में गया, और वहाँ बता दिया, कि शुद्ध होने के दिन, अर्थात् उनमें से हर एक के लिये चढ़ावा चढ़ाए जाने तक के दिन कब पूरे होंगे। (गिन. 6:13-21)
27 जब वे सात दिन पूरे होने पर थे, तो आसिया के यहूदियों ने पौलुस को मन्दिर में देखकर सब लोगों को भड़काया, और यों चिल्ला-चिल्लाकर उसको पकड़ लिया, 28 “हे इस्राएलियों, सहायता करो; यह वही मनुष्य है, जो लोगों के, और व्यवस्था के, और इस स्थान के विरोध में हर जगह सब लोगों को सिखाता है, यहाँ तक कि यूनानियों को भी मन्दिर में लाकर उसने इस पवित्रस्थान को अपवित्र किया है।” 29 उन्होंने तो इससे पहले इफिसुस वासी त्रुफिमुस* को उसके साथ नगर में देखा था, और समझते थे कि पौलुस उसे मन्दिर में ले आया है।
30 तब सारे नगर में कोलाहल मच गया, और लोग दौड़कर इकट्ठे हुए, और पौलुस को पकड़कर मन्दिर के बाहर घसीट लाए, और तुरन्त द्वार बन्द किए गए। 31 जब वे उसे मार डालना चाहते थे, तो सैन्य-दल के सरदार को सन्देश पहुँचा कि सारे यरूशलेम में कोलाहल मच रहा है।
32 तब वह तुरन्त सिपाहियों और सूबेदारों को लेकर उनके पास नीचे दौड़ आया; और उन्होंने सैन्य-दल के सरदार को और सिपाहियों को देखकर पौलुस को मारना-पीटना रोक दिया। 33 तब सैन्य-दल के सरदार ने पास आकर उसे पकड़ लिया; और दो जंजीरों से बाँधने की आज्ञा देकर पूछने लगा, “यह कौन है, और इसने क्या किया है?”
34 परन्तु भीड़ में से कोई कुछ और कोई कुछ चिल्लाते रहे और जब हुल्लड़ के मारे ठीक सच्चाई न जान सका, तो उसे गढ़ में ले जाने की आज्ञा दी। 35 जब वह सीढ़ी पर पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि भीड़ के दबाव के मारे सिपाहियों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा। 36 क्योंकि लोगों की भीड़ यह चिल्लाती हुई उसके पीछे पड़ी, “उसका अन्त कर दो।”
37 जब वे पौलुस को गढ़ में ले जाने पर थे, तो उसने सैन्य-दल के सरदार से कहा, “क्या मुझे आज्ञा है कि मैं तुझ से कुछ कहूँ?” उसने कहा, “क्या तू यूनानी जानता है? 38 क्या तू वह मिस्री नहीं, जो इन दिनों से पहले बलवाई बनाकर चार हजार हथियारबंद लोगों को जंगल में ले गया?”
39 पौलुस ने कहा, “मैं तो तरसुस का यहूदी मनुष्य हूँ! किलिकिया के प्रसिद्ध नगर का निवासी हूँ। और मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मुझे लोगों से बातें करने दे।” 40 जब उसने आज्ञा दी, तो पौलुस ने सीढ़ी पर खड़े होकर लोगों को हाथ से संकेत किया। जब वे चुप हो गए, तो वह इब्रानी भाषा में बोलने लगा:
"हमने" का आशय लुका, पौलुस और उनके सहयात्रियों से है।
“सीधे कोस में आये” या फिर, “हम सीधे कोस नगर में गए”
कोस एक यूनानी द्वीप दक्षिण एजियन सागर क्षेत्र में आधुनिक दीन के तुर्की के तट पर है।
रुदुस एक यूनानी टापू है जो आधुनिक तुर्की के तट से दूर दक्षिण एजियन समुद्र क्षेत्र, कोस के दक्षिण व क्रेते के उत्तरपूर्व में है.
पतरा भूमध्यसागर के क्षेत्र में एजियन समुद्र के दक्षिण में आधुनिक तुर्की के दक्षिण पश्चिमी तट पर स्थित है
“उतरे” शब्द में बहुवचन का संकेत है जिसका आशय लूका, पौलुस और उनके सहयात्रियों से है
“टापू की बाईं ओर से गए”
“उन्होंने (चेलों ने) पौलुस को बताया कि परमेश्वर ने उन पर क्या उद्घाटित किया है"
“जब चलने/प्रस्थान करने का समय आया”
“सब” का आशय सूर के विश्वासियों से है। लूका आगे कहता है कि “सब” स्त्रियों और बालकों समेत
मित्रों से विदाई ली
“हम” शब्द से आशय लूका, पौलुस और उनके सहयात्रियों से है
तुलिमयिस दक्षिण के सूर, लेबनान के एक शहर था। आधुनिक दिन एकड़ इस्राएल है
प्रेरितों के पिछले अध्यायों में विधवाओं में भोजन व सहायता बांटने के लिए चुने गए सात लोगों में से एक
"फिलिप्पुस"
"चार कुंवारी बेटियाँ थीं, जो परमेश्वर से उसके सन्देश को प्राप्त कर लोगों को सुनाने के लिए जानी जाती थीं।"
यह व्यक्ति परमेश्वर से सन्देश प्राप्त कर उसे लोगों को सुनाने के लिए जाना जाता था।
अगबुस यहूदिया का निवासी था।
“पौलुस की कमर से उसका कटिबंध निकला”
अर्थात “पौलुस की कटिबंध से”
“के आगे डाल देंगे” या फिर, “के हाथों में दे देंगे”
“कानूनी हिरासत में”। अन्यजातीय लोग पौलुस को गिरफ्तार कर अपनी हिरासत में ले लेंगे।
"हमने" शब्द लूका, पौलुस और उसके साथ के लोग के सन्दर्भ में है।
को साथ ले आये में बहुवचन का संकेत है। साथ लानेवाले ये लोग कैसरिया के चेले थे
नासोन साइप्रस द्वीप का एक मनुष्य था।
“विश्वासियों के प्रथम समूह से एक विश्वासी”
बड़े सताव के बाद यरूशलेम में रह गए यहूदी विश्वासी लोग।
“प्राचीनों का अभिनन्दन करने के बाद पौलुस ने...एक-एक करके सबको बताया” या फिर, “प्राचीनों का अभिनन्दन करने के बात, पौलुस ने बताया”
“पौलुस ने अपनी सेवकाई”
“पौलुस ने परमेश्वर द्वारा किये कार्यों का विस्तार से ब्यौरा दिया”
“यह सुनकर प्राचीनों ने परमेश्वर की महिमा कि, और पौलुस से बोले”
“यहूदी विश्वासी धुन लगाए हैं”
"लोगों ने यहूदी विश्वसिओं को बताया"
“कि तू……….से कहता है कि”
यरूशलेम के प्राचीन पौलुस से अपनी बात कहना जारी रखते हैं।
यह किसी निश्चित अवधि के लिए शराब न पीने या बाल न काटने की मन्नत थी. वैकल्पिक अनुवाद: “चार मनुष्य हैं, जिन्होंने परमेश्वर से मन्नत मानी थी”
नर और मादा मेम्नें, एक मेंढा, और अन्न व पेय बलिदान की खरीद पर होने वाले खर्च के लिए. वैकल्पिक अनुवाद: “उनकी ज़रुरत की खरीद के भुगतान के लिए”
“मूसा की व्यवस्था और यहूदी रीतियों के अनुसार जीवन को जीता है”
यरूशलेम के प्राचीन पौलुस से अपनी बातचीत जारी रखते हैं।
"हमने" पुरनियों से है।
“वे जानवर जिन्हें खाने के लिए उनका रक्त बहाए बिना ही मारा गया है”
मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करने से पहले यहूदियों को विधिपूर्वक स्वयं की शुद्धि करनी होती थी। यह गैर-यहूदियों से संपर्क से शुद्धि थी।
यह लोगों की मन्नतों से जुड़ी शुद्धिकरण की प्रक्रिया थी, और यह मंदिर प्रांगण में प्रवेश से पूर्व विधिपूर्वक की जानेवाली शुद्धि से बिलकुल थी।
“उनके द्वारा चढ़ावे में जानवर की भेंट चढ़ाए जाने तक”
“एक बड़ी भीड़ द्वारा विरोध शुरू करवाया”
“उसे हाथों से पकड़ लिया”
मंदिर के भीतरी गृह में जाने की अनुमति केवल यहूदी पुरुषों को थी।
यह एक यूनानी था जिसे मंदिर के भीतरी गृह में लाने का दोष पौलुस पर लगा था
“तब नगर के बहुत से लोग पौलुस पर क्रोधित हो उठे”
"पौलुस के बाहर निकने के बाद निकलने के बाद रखवालों ने मन्दिर का द्वारा तुरंत बंद कर दिया। "यहूदियों ने मन्दिर का द्वार तुरंत बंद कर दिया।"
लगभग 600 सैनिकों पर सेना का अधिकारी
“यरूशलेम के बहुत से लोग कोलाहल मचा रहे हैं।” घटना से उत्पन्न हुए तनाव को व्यक्त करने के लिए अतिशयोक्ति का प्रयोग किया गया ही।
तब पलटन का सरदार तुरंत
गढ़ से नीचे गृह की ओर जाती हुई सीढियां हैं
लगभग 600 सैनिकों पर सेना का अधिकारी
“पौलुस को अपनी गिरफ्त में ले लिया” या फिर, “पौलुस को गिरफ्तार कर लिया”
लगभग 600 सैनिकों पर सेना का अधिकारी
गढ़ सेना द्वारा सुरक्षित ईमारत को कहते हैं
"जब पौलुस पर पहुंचा तो सिपाहियों उसे ले गए"
"उसे मार डाला।" भीड़ ने विनम्र भाषा में पौलुस की मृत्यु की मांग की।
"जब सिपाहियों पौलुस को ला रहे थे
जैसा आपने पूर्व पद में किया है
लगभग 600 सैनिकों पर सेना का अधिकारी
"सेना का सरदार इन प्रश्नों द्वारा अपने आश्चर्यता को प्रकट करता है। पौलुस ओ नहीं है जो वह समझता हैं।
पौलुस के आगमन से कुछ समय पहले एक अज्ञात मिस्री व्यक्ति ने यरूशलेम में रोम के विरुद्ध द्रोह की शुरुआत की थी। बाद में वह “जंगल में भाग गया था, और सरदार सोच रहा था कि कहीं पौलुस ही वह व्यक्ति तो नहीं।
“4000 लोग जिन्होंने अपने से भिन्न मत रखनेवालों को मार डालते थे।”
"मेरा तुझसे विनती है" or "“मेरा तुझसे निवेदन है”"
“कृपया मुझे.....करने दे”
अर्थात पलटन के सरदार ने।
अर्थात गढ़ की सीढ़ियों पर खड़े होकर
चेलों ने आत्मा के सिखाए पौलुस को कहा कि वहां पाँव मत रखना।
अगबुस ने बताया कि यरूशलेम में यहूदी पौलुस को बांधेंगे और उसे अन्यजातियों के हवाले कर देंगे।
पौलुस ने कहा कि वह प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिए यरूशलेम में न केवल बांधे जाने वरन मरने के लिए भी तैयार है।
पौलुस याकूब और प्राचीनों से मिला।
यहूदियों ने पौलुस पर अन्यजातियों के मध्य रहते यहूदियों को मूसा से फिर जाने का आरोप लगाया।
वे चाहते थे कि सब जान जाएं कि पौलुस एक यहूदी के रूप में व्यवस्था को मानकर उसके अनुसार चलता है।
याकूब ने कहा कि अन्यजातियों को मूर्तियों के सामने बलि किए हुए मांस से, और लहू से, गला घोंटे हुओं के मांस से,और व्यभिचार से बचे रहें।
यहूदियों ने पौलुस को व्यवस्था के विपरीत और यूनानियों को मन्दिर में ला कर मन्दिर को अपवित्र करने का आरोप लगाया।
यहूदी पौलुस को मंदिर के बाहर घसीट कर लाए और उसे मारने की कोशिश की।
पलटन के सरदार ने पौलुस को पकड़ लिया और उसे दो जंजीरों से बाँधने की आज्ञा देकर पूछने लगा कि यह कौन है और इसने क्या किया है।
भीड़ चिल्ला रही थी,"उसका अन्त कर दो!"
पौलुस ने विनती की कि उसे लोगों से बात करने की आज्ञा दी जाए।
पौलुस ने इब्रानी भाषा में यरूशलेम के लोगों से बात की।
1 “हे भाइयों और पिताओं, मेरा प्रत्युत्तर सुनो, जो मैं अब तुम्हारे सामने कहता हूँ।”
2 वे यह सुनकर कि वह उनसे इब्रानी भाषा में बोलता है, वे चुप रहे। तब उसने कहा:
3 “मैं तो यहूदी शिक्षा पाए हूँ, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल* के पाँवों के पास बैठकर शिक्षा प्राप्त की, और पूर्वजों की व्यवस्था भी ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो। 4 मैंने पुरुष और स्त्री दोनों को बाँधकर, और बन्दीगृह में डालकर, इस पंथ को यहाँ तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला। 5 स्वयं महायाजक और सब पुरनिए गवाह हैं; कि उनमें से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियाँ लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहाँ हों उन्हें दण्ड दिलाने के लिये बाँधकर यरूशलेम में लाऊँ।
6 “जब मैं यात्रा करके दमिश्क के निकट पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग अचानक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी। 7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह वाणी सुना, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?’ 8 मैंने उत्तर दिया, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ उसने मुझसे कहा, ‘मैं यीशु नासरी हूँ, जिसे तू सताता है।’
9 और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझसे बोलता था उसकी वाणी न सुनी। 10 तब मैंने कहा, ‘हे प्रभु, मैं क्या करूँ?’ प्रभु ने मुझसे कहा, ‘उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहाँ तुझे सब बता दिया जाएगा।’ 11 जब उस ज्योति के तेज के कारण मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया।
12 “तब हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहाँ के रहनेवाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया, 13 और खड़ा होकर मुझसे कहा, ‘हे भाई शाऊल, फिर देखने लग।’ उसी घड़ी मेरी आँखें खुल गई और मैंने उसे देखा।
14 तब उसने कहा, ‘हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने तुझे इसलिए ठहराया है कि तू उसकी इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुँह से बातें सुने। 15 क्योंकि तू उसकी ओर से सब मनुष्यों के सामने उन बातों का गवाह होगा, जो तूने देखी और सुनी हैं। 16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर*अपने पापों को धो डाल।’ (योए. 2:32)
17 “जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया। 18 और उसको देखा कि मुझसे कहता है, ‘जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा; क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे।’
19 मैंने कहा, ‘हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करनेवालों को बन्दीगृह में डालता और जगह-जगह आराधनालय में पिटवाता था। 20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लहू बहाया जा रहा था तब भी मैं वहाँ खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके हत्यारों के कपड़ों की रखवाली करता था।’ 21 और उसने मुझसे कहा, ‘चला जा: क्योंकि मैं तुझे अन्यजातियों के पास दूर-दूर भेजूँगा’।”
22 वे इस बात तक उसकी सुनते रहे; तब ऊँचे शब्द से चिल्लाए, “ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहना उचित नहीं!” 23 जब वे चिल्लाते और कपड़े फेंकते और आकाश में धूल उड़ाते थे*; 24 तो सैन्य-दल के सूबेदार ने कहा, “इसे गढ़ में ले जाओ; और कोड़े मारकर जाँचो, कि मैं जानूँ कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं।”
25 जब उन्होंने उसे तसमों से बाँधा तो पौलुस ने उस सूबेदार से जो उसके पास खड़ा था कहा, “क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारो?” 26 सूबेदार ने यह सुनकर सैन्य-दल के सरदार के पास जाकर कहा, “तू यह क्या करता है? यह तो रोमी मनुष्य है।”
27 तब सैन्य-दल के सरदार ने उसके पास आकर कहा, “मुझे बता, क्या तू रोमी है?” उसने कहा, “हाँ।” 28 यह सुनकर सैन्य-दल के सरदार ने कहा, “मैंने रोमी होने का पद बहुत रुपये देकर पाया है।” पौलुस ने कहा, “मैं तो जन्म से रोमी हूँ।” 29 तब जो लोग उसे जाँचने पर थे, वे तुरन्त उसके पास से हट गए; और सैन्य-दल का सरदार भी यह जानकर कि यह रोमी है, और उसने उसे बाँधा है, डर गया।
30 दूसरे दिन वह ठीक-ठीक जानने की इच्छा से कि यहूदी उस पर क्यों दोष लगाते हैं, इसलिए उसके बन्धन खोल दिए; और प्रधान याजकों और सारी महासभा को इकट्ठे होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया।
पौलुस भीड़ को संबोधित करता है
अपने बराबर और अपने से बड़े पुरुषों को आदरपूर्वक संबोधित कर रहा है
“कृपया मेरा प्रत्युत्तर सुनो”
“जो मैं अब तुम्हारे सामने रखता हूँ”
“उनकी इब्रानी भाषा में”
पौलुस भीड़ से अपनी बात जारी रखता है।
“यरूशलेम में गमलीएल रब्बी का विद्यार्थी था”
"उन्होंने मुझे हमारे पूर्वजों के व्यवस्था के सख्त तरीके के अनुसार निर्देश दिए" या "जो निर्देश सटीक रूप से बापदादों की व्यवस्था से था।"
“परमेश्वर की इच्छा के प्रति मैं अपने मन में बहुत गहराई से महसूस करता हूँ और उसके अनुसार करता हूँ” या फिर, “मैं परमेश्वर की सेवक को तत्पर हूँ”
“जिस रीति से आज तुम सब रहते हो” या फिर, “जैसे कि आज तुम हो।” पौलुस यहाँ स्वयं की तुलना भीड़ से कर रहा है।
पिन्तेकुस्त के बाद यरूशलेम में विश्वासियों की स्थानीय देह को “पंथ” का नाम दिया गया था।
पौलुस पंथ के अनुयायियों को मार डालने को भी तैयार था
“पुरनिये इसकी गवाही देते हैं” या “प्रमाणित करते हैं”
“महा याजक और प्राचीनों से चिट्ठियां लेकर”
“मुझे आदेश था कि मैं उन्हें कड़ियों में बाँध कर यरूशलेम वापिस ले आऊँ”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“यीशु की आवाज़ सुनी”
“ज्योति के तेज़ के कारण मैं अँधा हो गया।”
गढ़ की सीढ़ियों पर खड़ी यहूदियों की भीड़ से पौलुस अपनी बात जारी रखता है
परमेश्वर की व्यवस्था का हनन्याह बहुत गंभीरता से पालन करता था
“लोगों के बीच उसकी छवि बहुत अच्छी थी”
“तुरंत ही” या फिर, “तभी के तभी।” यह एक मुहावरा है जिसका मतलब है जो कुछ तुरंत होता है
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“तब हनन्याह ने कहा”"
“परमेश्वर की इच्छा को”
वैकल्पिक अनुवाद: "इंतजार नहीं करना!" या " "देरी मत करो!" (यू.डी.बी). यह एक आलंकारिक प्रश्न है.
जैसे अपने शरीर को धोने से शरीर की बहरी गंदगी हो हटाता है, यीशु मसीह का नाम पाप की क्षमा के लिए पुकारने से आंतरिक शुद्धिकरण होता है।" अपने पापों के लिए क्षमा मांगे"
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“मुझे एक दर्शन दिखाई दिया” या फिर, “परमेश्वर ने मुझे एक दर्शन दिखाया”
“और यीशु को देखा जो मुझसे कहता था कि”
“यरूशलेम वासी .....न मानेंगे”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
यरूशलेम के अविश्वासी यहूदी तो स्वयं जानते हैं
“उन्हें कोड़े पड़वाने की सज़ा करवाता था”
पौलुस, यरूशलेम के हर आराधनालय में उपस्थित यहूदी विश्वासियों को ढूंढता फिरता था
किसी को निर्मम रीति से तब तक पीटना जब तक कि उसकी मृत्यु न हो जाए।
“इसे मार डालो”
"सिपाहियों को निर्देश दिए की पौलुस को लाए"(देखें: [[rc://*/ta/संस्क2/अनुवाद/अंजीर-सक्रियनिष्क्रिय]]
पिछले अनुवाद का सन्दर्भ लें
“कि सूबेदार स्वयं जान ले कि”
ये चमड़े और जानवर के भीतरी अंगों से बनी पट्टियां थीं
यह वास्तविक प्रश्न न होकर भाषा का आलंकारिक प्रयोग है, जिसके द्वारा सरदार को पौलुस को कोड़े लगवाने की आज्ञा पर विचार करने को प्रेरित किया गया है। वैकल्पिक अनुवाद : “यह उचित नहीं है कि तुम एक रोमी, और वह भी बिना दोषी ठहराए कोड़े मारो!”
यह वास्तविक प्रश्न न होकर भाषा का आलंकारिक प्रयोग है, जिसके द्वारा सरदार को पौलुस को कोड़े लगवाने की आज्ञा पर विचार करने को प्रेरित किया गया है। इसका आशय है, “तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए!”
सरदार ने पौलुस से कहा
“मैंने रोमी नागरिकता बहुत रूपये देकर पाई है” या फिर, “मैं बहुत रुपये देकर रोमी नागरिक हुआ हूँ।”
“मैं तो रोमी नागरिकों के परिवार में जन्मा हूँ, इसलिए जन्म से रोमी हूँ।”
“जो लोग उसे जांचने की सोंच रहे थे” या कि, “जो लोग उसे जांचने की तैयारी कर रहे थे”
लगभग 600 सैनिकों पर सेना का अधिकारी
गढ़ से नीचे मंदिर के प्रांगण की ओर सीढियां जाती हैं।
पौलुस को इब्रानी भाषा में बोलते देख वे चुप हो गए।
पौलुस ने यरूशलेम में शिक्षा पाई, और गमलीएल उसका शिक्षक था।
पौलुस ने व्यवस्था पर चलने वालों को सताव करके मरवा डाला और बंदीगृह में भिजवाया।
आवाज ने शाऊल से कहा, "हे शाऊल, हे शाऊल तू मुझे क्यों सताता है? "
पौलुस यीशु नासरी को सताया करता था।
पौलुस उस ज्योति के तेज के कारण जो उसने दमिश्क के निकट आते हुए देखी थी, कुछ नहीं देख पा रहा था।
हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार का एक भक्त आया और खड़ा होकर उससे कहा,“हे भाई शाऊल, फिर देखने लग”।
हनन्याह ने पौलुस को उठ कर बप्तिस्मा लेने और अपने पापों को धो डालने के लिए कहा।
यीशु ने कहा कि यहूदी यीशु के विषय में पौलुस की गवाही पर विश्वास नहीं करेंगे।
यीशु ने पौलुस को अन्यजातियों के पास भेजा।
लोग चिल्लाते और कपड़े फेंकते, आकाश में धूल उड़ाते थे।
पौलुस ने उनसे कहा, "क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारो?"
पौलुस जन्म से रोमी था।
पलटन के सरदार ने उसके सारे बन्धन खोल दिए, और महायाजकों की सारी महासभा इकट्ठी होने की आज्ञा दी,और पौलुस को उनके मध्य खड़ा कर दिया।
1 पौलुस ने महासभा की ओर टकटकी लगाकर देखा, और कहा, “हे भाइयों, मैंने आज तक परमेश्वर के लिये बिलकुल सच्चे विवेक से जीवन बिताया है।” 2 हनन्याह महायाजक ने, उनको जो उसके पास खड़े थे, उसके मुँह पर थप्पड़ मारने की आज्ञा दी। 3 तब पौलुस ने उससे कहा, “हे चूना फिरी हुई भीत, परमेश्वर तुझे मारेगा। तू व्यवस्था के अनुसार मेरा न्याय करने को बैठा है, और फिर क्या व्यवस्था के विरुद्ध मुझे मारने की आज्ञा देता है?” (लैव्य. 19:15, यहे. 13:10-15)
4 जो पास खड़े थे, उन्होंने कहा, “क्या तू परमेश्वर के महायाजक को बुरा-भला कहता है?” 5 पौलुस ने कहा, “हे भाइयों, मैं नहीं जानता था, कि यह महायाजक है; क्योंकि लिखा है,
‘अपने लोगों के प्रधान को बुरा न कह’।” (निर्ग. 22:28)
6 तब पौलुस ने यह जानकर, कि एक दल सदूकियों और दूसरा फरीसियों का हैं, महासभा में पुकारकर कहा, “हे भाइयों, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूँ, मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा मुकद्दमा हो रहा है।” 7 जब उसने यह बात कही तो फरीसियों और सदूकियों में झगड़ा होने लगा; और सभा में फूट पड़ गई। 8 क्योंकि सदूकी तो यह कहते हैं, कि न पुनरुत्थान है, न स्वर्गदूत और न आत्मा है; परन्तु फरीसी इन सबको मानते हैं।
9 तब बड़ा हल्ला मचा और कुछ शास्त्री जो फरीसियों के दल के थे, उठकर यों कहकर झगड़ने लगे, “हम इस मनुष्य में कुछ बुराई नहीं पाते; और यदि कोई आत्मा या स्वर्गदूत उससे बोला है तो फिर क्या?” 10 जब बहुत झगड़ा हुआ, तो सैन्य-दल के सरदार ने इस डर से कि वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर डालें, सैन्य-दल को आज्ञा दी कि उतरकर उसको उनके बीच में से जबरदस्ती निकालो, और गढ़ में ले आओ।
11 उसी रात प्रभु ने उसके पास आ खड़े होकर कहा, “हे पौलुस, धैर्य रख; क्योंकि जैसी तूने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी।”
12 जब दिन हुआ, तो यहूदियों ने एका किया, और शपथ खाई कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, यदि हम खाएँ या पीएँ तो हम पर धिक्कार। 13 जिन्होंने यह शपथ खाई थी, वे चालीस जन से अधिक थे।
14 उन्होंने प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास आकर कहा, “हमने यह ठाना है कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक यदि कुछ भी खाएँ, तो हम पर धिक्कार है। 15 इसलिए अब महासभा समेत सैन्य-दल के सरदार को समझाओ, कि उसे तुम्हारे पास ले आए, मानो कि तुम उसके विषय में और भी ठीक से जाँच करना चाहते हो, और हम उसके पहुँचने से पहले ही उसे मार डालने के लिये तैयार रहेंगे।”
16 और पौलुस के भांजे ने सुना कि वे उसकी घात में हैं, तो गढ़ में जाकर पौलुस को सन्देश दिया। 17 पौलुस ने सूबेदारों में से एक को अपने पास बुलाकर कहा, “इस जवान को सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाओ, यह उससे कुछ कहना चाहता है।”
18 अतः उसने उसको सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाकर कहा, “बन्दी पौलुस ने मुझे बुलाकर विनती की, कि यह जवान सैन्य-दल के सरदार से कुछ कहना चाहता है; इसे उसके पास ले जा।” 19 सैन्य-दल के सरदार ने उसका हाथ पकड़कर, और उसे अलग ले जाकर पूछा, “तू मुझसे क्या कहना चाहता है?”
20 उसने कहा, “यहूदियों ने एका किया है, कि तुझ से विनती करें कि कल पौलुस को महासभा में लाए, मानो तू और ठीक से उसकी जाँच करना चाहता है। 21 परन्तु उनकी मत मानना, क्योंकि उनमें से चालीस के ऊपर मनुष्य उसकी घात में हैं, जिन्होंने यह ठान लिया है कि जब तक वे पौलुस को मार न डालें, तब तक न खाएँगे और न पीएँगे, और अब वे तैयार हैं और तेरे वचन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
22 तब सैन्य-दल के सरदार ने जवान को यह निर्देश देकर विदा किया, “किसी से न कहना कि तूने मुझ को ये बातें बताई हैं।”
23 उसने तब दो सूबेदारों को बुलाकर कहा, “दो सौ सिपाही, सत्तर सवार, और दो सौ भालैत को कैसरिया जाने के लिये तैयार कर रख, तू रात के तीसरे पहर को निकलना।” 24 और पौलुस की सवारी के लिये घोड़े तैयार रखो कि उसे फेलिक्स राज्यपाल* के पास सुरक्षित पहुँचा दें।”
25 उसने इस प्रकार की चिट्ठी भी लिखी:
26 “महाप्रतापी फेलिक्स राज्यपाल को क्लौदियुस लूसियास को नमस्कार; 27 इस मनुष्य को यहूदियों ने पकड़कर मार डालना चाहा, परन्तु जब मैंने जाना कि वो रोमी है, तो सैन्य-दल लेकर छुड़ा लाया।
28 और मैं जानना चाहता था, कि वे उस पर किस कारण दोष लगाते हैं, इसलिए उसे उनकी महासभा में ले गया। 29 तब मैंने जान लिया, कि वे अपनी व्यवस्था के विवादों के विषय में उस पर दोष लगाते हैं, परन्तु मार डाले जाने या बाँधे जाने के योग्य उसमें कोई दोष नहीं। 30 और जब मुझे बताया गया, कि वे इस मनुष्य की घात में लगे हैं तो मैंने तुरन्त उसको तेरे पास भेज दिया; और मुद्दइयों को भी आज्ञा दी, कि तेरे सामने उस पर आरोप लगाए।”
31 अतः जैसे सिपाहियों को आज्ञा दी गई थी, वैसे ही पौलुस को लेकर रातों-रात अन्तिपत्रिस में लाए। 32 दूसरे दिन वे सवारों को उसके साथ जाने के लिये छोड़कर आप गढ़ को लौटे। 33 उन्होंने कैसरिया में पहुँचकर राज्यपाल को चिट्ठी दी; और पौलुस को भी उसके सामने खड़ा किया।
34 उसने पढ़कर पूछा, “यह किस प्रदेश का है?” 35 और जब जान लिया कि किलिकिया का है; तो उससे कहा, “जब तेरे मुद्दई भी आएँगें, तो मैं तेरा मुकद्दमा करूँगा।” और उसने उसे हेरोदेस के किले में, पहरे में रखने की आज्ञा दी।
दीवारों को सफ़ेद रंग से रंगने का अभ्यास ताकि वे साफ़-सुथरी दिखें। जिस प्रकार दीवार की सुन्दरता बढाने के लिए उसे रंगा जाता है, उसी प्रकार, एक व्यक्ति भीतर से बुरा होते हुए भी बाहर से भला दिख सकता है।
“लोगों के मुझे मारने की आज्ञा देता है” या फिर, “इन लोगों से मुझे मारने को कहता है”
लोगों ने पौलुस को उसकी कही बातों के कारण फटकारते हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर के महायाजक का अपमान न करों!”
संभावित अर्थ: 1) “पौलुस को मालूम नहीं था कि यह एक महायाजक था क्योंकि वह महायाजक की भांति पेश नहीं आ रहा था” या फिर, 2) “पौलुस बहुत समय से यरूशलेम से दूर रहा था, और शायद इस दौरान नए महायाजक की नियुक्ति हो गयी थी और पौलुस को यह नहीं पता था।”
“तुम मुझ पर मुकद्दमा करते हो”
“सभा के सदस्यों में आपस में असहमति हो गयी”
संभावित अर्थ: 1) वे पुनरुत्थान, स्वर्गदूत या आत्मा में विश्वास नहीं करते थे या फिर, 2) उनका मानना था कि परमेश्वर लोगों को न तो स्वर्गदूत और न ही आत्मा के रूप में जिलाएगा
आत्मा और स्वर्गदूतों के होने की पुष्टि करने के द्वारा फरीसी लोग सदूकियों को फटकार रहे हैं। वैकल्पिक अनुवाद : “शायद आत्मा या स्वर्गदूत उससे बोला है।”
“वे पौलुस को गंभीर रूप से घायल न कर दें”
“पौलुस को बलपूर्वक ले गए”
यहसैनिक शक्ति और महत्व् की ईमारत है,जहाँ अकसर सिपाही रहते है, (यूडीबी)। पिछले अनुवाद का सन्दर्भ लें
संभावित अर्थ: 1) “बोला” या “अपने उद्धार की गवाही दी या फिर, 2) उद्धार का उपदेश दिया
“औपचारिक रूप से सहमत हुए”
40 लोग
“चालीस यहूदियों ने.....आकर कहा”
“पौलुस को गढ़ से यहाँ मंदिर में परिषद के सदस्यों से मिलने के लिए ले आए”
उसकी घात में हैं -वे लोग, जिन्होंने पौलुस की हत्या करने का प्रण लिया है, वे उस पर घात लगाए बैठे थे।
पलटन के सरदार से वह युवा कुछ कहना चाहता है
जैसा आपने पूर्व पद में किया है
“बंदी पौलुस ने मुझे आकर उससे बात करने को कहा”
पलटन के सरदार ने उस जवान का हाथ पकड़ा था, इससे प्रतीत होता है कि पौलुस का वह रिश्तेदार कम उम्र का ही रहा होगा। शायद 12 से 15 साल का।
“40 लोग”
“पौलुस को घात करने की ताक में हैं”
दो सूबेदारों ने
सत्तर घुड़सवार
भालों से लैस 200 सिपाही
यह लगभग रात के 9:00 बजे हैं।
फेलिक्स रोमन हाकिम है जो कैसरिया के क्षेत्र में रहता है।
फेलिक्स पुरे क्षेत्र का रोमन हाकिम है।
यहूदी पौलुस मारने को तैयार थे।
अर्थात “पलटन लेकर उनके पास गया और उन्हें छुड़ा लिया”
क्लौदियुस का पत्र जारी है नोट: 26वें पद में “कौल्दियुस का” लिखा जाना चाहिए। कृपया सुधार करें
“मैं” का आशय क्लौदियुस लूसियास से है।
“यहूदी किस कारण पौलुस पर दोष लगाते हैं”
"बाद में मुझे पता चल गया"
हेरोदेस द्वारा उसके पिता अन्तिपतेर के सम्मान में बसाया गया नगर। यह मध्य इस्राएल में स्थित था।
“जब हाकिम को पता चला कि पौलुस किलिकिया से है”
पहरे में रखने की आज्ञा दी -“सिपाहियों को उसे पहरे में रखने की आज्ञा दी” या फिर, “सिपाहियों को उसे अधीन रखने की आज्ञा दी”
महायाजक गुस्से में था क्योंकि पौलुस ने कहा कि उसने परमेश्वर के लिए बिल्कुल सच्चे विवेक से जीवन बिताया है।
पौलुस ने कहा कि पुनरुत्थान पर उसके भरोसे के कारण उसका मुक़दमा हो रहा है।
सभा में झगड़ा होने लगा क्योंकि फरीसियों का मानना है कि पुनरुत्थान है पर सदूकी कहते हैं कि पुनरुत्थान नहीं है।
पलटन के सरदार को इस बात का डर था कि कहीं सभा के सदस्य उसके टुकड़े-टुकड़े न कर दें।
परमेश्वर ने पौलुस को ढांढस बंधने को कहा क्योंकि उसे अभी यरूशलेम की तरह रोम में भी गवाही देनी थी।
लगभग चालीस यहूदी जनों ने शपथ खाई कि जब तक वे पौलुस को मार न डालें वे न कुछ खाएँगे और न पीएंगे।
उन्होंने महायाजकों और पुरनियों को कहा कि पौलुस को महासभा में लेकर आएं ताकि वे उसे यहाँ पहुँचने से पहले ही मार डालें।
पौलुस के भांजे ने योजना सुनी और जाकर पलटन के सरदार को इसके विषय में बताया।
पलटन के सरदार ने दो सूबेदारों को बुलाकर, बड़ी संख्या में पहरेदारों के साथ पौलुस को फेलिक्स हाकिम के पास कुशलता से रात के तीसरे पहर जाने की आज्ञा दी।
पलटन के सरदार ने कहा कि व्यवस्था के विवादों के विषय में उस पर दोष लगे हैं परन्तु मारे डाले जाने या बांधे जाने योग्य उसमें कोई दोष नहीं।
फेलिक्स ने कहा कि जब पौलुस के मुद्दई भी आ जाएँगे तो वह उसका मुक़दमा सुनेगा।
पौलुस को हेरोदेस के किले में मुक़दमे की सुनवाई तक रखा गया।
1 पाँच दिन के बाद हनन्याह महायाजक कई प्राचीनों और तिरतुल्लुस नामक किसी वकील को साथ लेकर आया; उन्होंने राज्यपाल के सामने पौलुस पर दोषारोपण किया। 2 जब वह बुलाया गया तो तिरतुल्लुस उस पर दोष लगाकर कहने लगा, “हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरे द्वारा हमें जो बड़ा कुशल होता है; और तेरे प्रबन्ध से इस जाति के लिये कितनी बुराइयाँ सुधरती जाती हैं।
3 इसको हम हर जगह और हर प्रकार से धन्यवाद के साथ मानते हैं।
4 परन्तु इसलिए कि तुझे और दुःख नहीं देना चाहता, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि कृपा करके हमारी दो एक बातें सुन ले। 5 क्योंकि हमने इस मनुष्य को उपद्रवी और जगत के सारे यहूदियों में बलवा करानेवाला, और नासरियों के कुपंथ का मुखिया पाया है। 6 उसने मन्दिर को अशुद्ध करना चाहा*, और तब हमने उसे बन्दी बना लिया। [हमने उसे अपनी व्यवस्था के अनुसार दण्ड दिया होता;
7 परन्तु सैन्य-दल के सरदार लूसियास ने आकर उसे बलपूर्वक हमारे हाथों से छीन लिया, 8 और इस पर दोष लगाने वालों को तेरे सम्मुख आने की आज्ञा दी।] इन सब बातों को जिनके विषय में हम उस पर दोष लगाते हैं, तू स्वयं उसको जाँच करके जान लेगा।” 9 यहूदियों ने भी उसका साथ देकर कहा, ये बातें इसी प्रकार की हैं।
10 जब राज्यपाल ने पौलुस को बोलने के लिये संकेत किया तो उसने उत्तर दिया: “मैं यह जानकर कि तू बहुत वर्षों से इस जाति का न्याय करता है, आनन्द से अपना प्रत्युत्तर देता हूँ।, 11 तू आप जान सकता है, कि जब से मैं यरूशलेम में आराधना करने को आया, मुझे बारह दिन से ऊपर नहीं हुए। 12 उन्होंने मुझे न मन्दिर में, न आराधनालयों में, न नगर में किसी से विवाद करते या ना भीड़ लगाते पाया; 13 और न तो वे उन बातों को, जिनके विषय में वे अब मुझ पर दोष लगाते हैं, तेरे सामने उन्हें सच प्रमाणित कर सकते हैं।
14 परन्तु यह मैं तेरे सामने मान लेता हूँ, कि जिस पंथ को वे कुपंथ कहते हैं, उसी की रीति पर मैं अपने पूर्वजों के परमेश्वर* की सेवा करता हूँ; और जो बातें व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में लिखी है, उन सब पर विश्वास करता हूँ। 15 और परमेश्वर से आशा रखता हूँ जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा। (दानि. 12:2) 16 इससे मैं आप भी यत्न करता हूँ, कि परमेश्वर की और मनुष्यों की ओर मेरा विवेक सदा निर्दोष रहे।
17 बहुत वर्षों के बाद मैं अपने लोगों को दान पहुँचाने, और भेंट चढ़ाने आया था। 18 उन्होंने मुझे मन्दिर में, शुद्ध दशा में, बिना भीड़ के साथ, और बिना दंगा करते हुए इस काम में पाया। परन्तु वहाँ आसिया के कुछ यहूदी थे - और उनको उचित था, 19 कि यदि मेरे विरोध में उनकी कोई बात हो तो यहाँ तेरे सामने आकर मुझ पर दोष लगाते है।
20 या ये आप ही कहें, कि जब मैं महासभा के सामने खड़ा था, तो उन्होंने मुझ में कौन सा अपराध पाया? 21 इस एक बात को छोड़ जो मैंने उनके बीच में खड़े होकर पुकारकर कहा था, ‘मरे हुओं के जी उठने के विषय में आज मेरा तुम्हारे सामने मुकद्दमा हो रहा है’।”
22 फेलिक्स ने जो इस पंथ की बातें ठीक-ठीक जानता था, उन्हें यह कहकर टाल दिया, “जब सैन्य-दल का सरदार लूसियास आएगा, तो तुम्हारी बात का निर्णय करूँगा।” 23 और सूबेदार को आज्ञा दी, कि पौलुस को कुछ छूट में रखकर रखवाली करना, और उसके मित्रों में से किसी को भी उसकी सेवा करने से न रोकना।
24 कुछ दिनों के बाद फेलिक्स अपनी पत्नी द्रुसिल्ला* को, जो यहूदिनी थी, साथ लेकर आया और पौलुस को बुलवाकर उस विश्वास के विषय में जो मसीह यीशु पर है, उससे सुना। 25 जब वह धार्मिकता और संयम और आनेवाले न्याय की चर्चा कर रहा था, तो फेलिक्स ने भयभीत होकर उत्तर दिया, “अभी तो जा; अवसर पा कर मैं तुझे फिर बुलाऊँगा।”
26 उसे पौलुस से कुछ धन मिलने की भी आशा थी; इसलिए और भी बुला-बुलाकर उससे बातें किया करता था। 27 परन्तु जब दो वर्ष बीत गए, तो पुरकियुस फेस्तुस, फेलिक्स की जगह पर आया, और फेलिक्स यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को बन्दी ही छोड़ गया।
रोमी सिपाहियों द्वारा पौलुस को कैसरिया ले जाने के पांच दिन बाद।
पिछले अनुवाद का सन्दर्भ लें
“लेकर केसरिया गया, जहाँ पौलुस था”
“अदालत में बोलनेवाला व्यक्ति।” वैकल्पिक अनुवाद: “विधिवक्ता”
एक व्यक्ति का नाम है।
“जब पौलुस हाकिम के सामने, जो कि अदालत में न्यायी था, पेश किया गया”
“उसके विरोध में कहने लगा” या फिर, “उस पर रोमी व्यवस्था का विरोधी होने का दोष लगाने लगा” नोट: यहाँ अनुवाद में “उन पर” के स्थान पर “उस पर” होना चाहिए क्योंकि यहाँ एकवचन है।
“तेरे” का आशय हाकिम से है।
“तेरी प्रजा में बड़ी शान्ति है।”
पिछले अनुवाद का सन्दर्भ लें
तिरतुल्लुस अपनी बात फेलिक्स के आगे जारी रखता है।
संभावित अर्थ: 1) इसलिए मैं आपका अधिक समय नहीं लूँगा (यूडीबी) या फिर, 2) “इसलिए मैं आपको अधिक कष्ट नहीं दूंगा”
“मेरी छोटी सी बात सुन ले”
“हम ने इस मनुष्य को.........देखा है”. “हम ने” से आशय हनन्याह, कुछ अगुवे और तिरतुल्लुस से है
“जगत के बहुत से यहूदियों”
“मदिर की धार्मिकता का अपमान करना चाहा”
6ब पद से 8अ तक - कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में इनमे भिन्नता है। "[6ब]और हम अपनी व्यवस्था के अनुसार इसका न्याय करना चाहते थे। "[7]लेकिन पलटन का सरदार लूसियास आया, और जबरन इसे हमारे हाथों से ले गया। "[8ब] तब उसने इस पर दोष लगानेवालों को तेरे सामने पेश होने की आज्ञा दी।”
तिरतुल्लुस फेलिक्स के आगे अपनी बात को जारी रखता है.
“लूसियास” के लिए पिछले अनुवाद का सन्दर्भ लें
“उसे” अर्थात “पौलुस को”। “सिपाहियों ने आकर पौलुस को हमारे हाथों से बलपूर्वक छीन लिया।” "बलपूर्वक" का आशय यहाँ पूरी ताकत के ज़ोर से है।
“पौलुस से पूछताछ करके”या “उससे न्यायालय में पूछताछ करके”
“पौलुस पर दोष लगते है” या “जिन के विषय में हम पौलुस पर दोष लगाते हैं”
“जब हाकिम ने पौलुस को बोलने का इशारा किया”
“अपनी बात समझाता हूँ”
“तू आप यह परख सकता है”
“बारह दिन से”
“न नगर की शांति भंग करते.....पाया” या फिर, “न नगर को भड़काते...पाया”
“गलत काम करने के आरोप” या फिर, “अपराध के आरोप”
हाकिम फेलिक्स के सामने पौलुस अपनी बात जारी रखता है।
“मैं यह तेरे सामने स्वीकारता हूँ” या कि “मैं तेरे आगे अंगीकार करता हूँ”
“वे जिसे अधर्म कहते हैं”
इसका आशय यह है कि पौलुस एक प्राचीन धर्म का पालन करने का दावा कर रहा है, और इसलिए यह एक नया, बदनाम “कुपंथ” नही है।
“धर्मी लोग”
"मैं व्यायाम करता हूं" या “मैं अभ्यास करता हूँ”
"परमेश्वर की .....उपस्थिति में"
हाकिम फेलिक्स के सामने पौलुस अपनी बात जारी रखता है।
“अपने लोगों को दान और पैसों की भेंट चढाने”
“मैंने किसी गलत रीति से भीड़ नहीं जमा की”
“एशिया के यहूदियों की”
“कुछ कहना हो”
हाकिम फेलिक्स के सामने पौलुस अपनी बात जारी रखता है।
कैसरिया में हो रही पौलुस की सुनवाई में मौजूद परिषद् के सदस्य।
“लूसियास जब भी आएगा” या फिर, “लूसियास के आने पर”
“तेरे विरुद्ध लगाए दोषों का निर्णय करूँगा” या फिर, “मैं न्याय करूँगा कि तू दोषी है या नहीं।”
पौलुस को कैद में थोड़ी छूट दी गयी जो अन्यथा कैदियों को नहीं दी जाती।
“बहुत दिनों बाद”
फेलिक्स के अनुवाद के लिए पिछले अनुवाद का सन्दर्भ लें
पत्नी द्रुसिल्ला एक स्त्री का नाम।
फेलिक्स को संभवतः अपने पापों को लेकर अपराधबोध हो रहा हो
“अभी के लिए तो जा” या "तब तक"
“पौलुस फेलिक्स को कुछ धन देगा।” फेलिक्स को आशा थी कि पौलुस छूटने के लिए उसे कुछ घूंस वगैरह देगा।
“इसलिए फेलिक्स अकसर पौलुस को बुलाकर उससे बातें किया करता था”
ये फेलिक्स के बदले आया न्य रोमन हकीम है
तिरतुल्लुस ने पौलुस पर यहूदियों से बलवा करवाने और मन्दिर को अशुद्ध करने के आरोप लगाए।
तिरतुल्लुस ने कहा कि पौलुस नासरियों के कुपन्थ का मुखिया था।
पौलुस ने कहा कि उसने न तो किसी के साथ विवाद किया और न ही भीड़ लगाई।
पौलुस ने कहा कि वह जो बातें व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में लिखी है वे उन सब पर विश्वास करता है।
वे परमेश्वर पर धर्मी और अधर्मी दोनों के जी उठने के विषय में समान दृढविश्वास रखते हैं।
पौलुस के अनुसार वह अपने लोगों को दान पंहुचाने और भेंट चढ़ाने आया था।
पौलुस ने कहा कि वह मन्दिर में शुद्धिकरण समारोह में था जब उसे वहां पाया गया।
फेलिक्स हाकिम इस पंथ के विषय में अच्छे से जानता था।
फेलिक्स ने कहा कि जब पलटन का सरदार लुसियास यरूशलेम से आएगा तब वह पौलुस के मुक़दमे का निर्णय करेगा।
पौलुस ने फेलिक्स को यीशु मसीह में विश्वास, धर्म, संयम और आने वाले न्याय के विषय में बताया।
फेलिक्स ने भयभीत हो कर उसे उस समय जाने के लिए कहा।
फेलिक्स पौलुस को बन्दी ही छोड़ गया क्योंकि वह यहूदियों को खुश करना चाहता था।
1 फेस्तुस उस प्रान्त में पहुँचकर तीन दिन के बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया। 2 तब प्रधान याजकों ने, और यहूदियों के प्रमुख लोगों ने, उसके सामने पौलुस पर दोषारोपण की; 3 और उससे विनती करके उसके विरोध में यह चाहा कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात* लगाए हुए थे।
4 फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में कैदी है, और मैं स्वयं जल्द वहाँ जाऊँगा।” 5 फिर कहा, “तुम से जो अधिकार रखते हैं, वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है, तो उस पर दोष लगाएँ।”
6 उनके बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया गया: और दूसरे दिन न्याय आसन पर बैठकर पौलुस को लाने की आज्ञा दी। 7 जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आस-पास खड़े होकर उस पर बहुत से गम्भीर दोष लगाए, जिनका प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। 8 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के और न मन्दिर के, और न कैसर के विरुद्ध कोई अपराध किया है।”
9 तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को उत्तर दिया, “क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहाँ मेरे सामने तेरा यह मुकद्दमा तय किया जाए?”
10 पौलुस ने कहा, “मैं कैसर के न्याय आसन के सामने खड़ा हूँ; मेरे मुकद्दमें का यहीं फैसला होना चाहिए। जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैंने कुछ अपराध नहीं किया।
11 यदि अपराधी हूँ और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है, तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उनमें से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उनके हाथ नहीं सौंप सकता। मैं कैसर की दोहाई देता हूँ।” 12 तब फेस्तुस ने मंत्रियों की सभा के साथ विचार करके उत्तर दिया, “तूने कैसर की दोहाई दी है, तो तू कैसर के पास ही जाएगा।”
13 कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा* और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। 14 उनके बहुत दिन वहाँ रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस के विषय में राजा को बताया, “एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्दी छोड़ गया है। 15 जब मैं यरूशलेम में था, तो प्रधान याजकों और यहूदियों के प्राचीनों ने उस पर दोषारोपण किया और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। 16 परन्तु मैंने उनको उत्तर दिया, कि रोमियों की यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक आरोपी को अपने दोष लगाने वालों के सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले।
17 अतः जब वे यहाँ उपस्थित हुए, तो मैंने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को की आज्ञा दी। 18 जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी बुरी बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था। 19 परन्तु अपने मत के, और यीशु नामक किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया था, और पौलुस उसको जीवित बताता था, विवाद करते थे। 20 और मैं उलझन में था, कि इन बातों का पता कैसे लगाऊँ? इसलिए मैंने उससे पूछा, ‘क्या तू यरूशलेम जाएगा, कि वहाँ इन बातों का फैसला हो?’
21 परन्तु जब पौलुस ने दोहाई दी, कि मेरे मुकद्दमें का फैसला महाराजाधिराज के यहाँ हो; तो मैंने आज्ञा दी, कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूँ, उसकी रखवाली की जाए।” 22 तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “मैं भी उस मनुष्य की सुनना चाहता हूँ। उसने कहा, “तू कल सुन लेगा।”
23 अतः दूसरे दिन, जब अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम से आकर सैन्य-दल के सरदारों और नगर के प्रमुख लोगों के साथ दरबार में पहुँचे। तब फेस्तुस ने आज्ञा दी, कि वे पौलुस को ले आएँ। 24 फेस्तुस ने कहा, “हे महाराजा अग्रिप्पा, और हे सब मनुष्यों जो यहाँ हमारे साथ हो, तुम इस मनुष्य को देखते हो, जिसके विषय में सारे यहूदियों ने यरूशलेम में और यहाँ भी चिल्ला-चिल्लाकर मुझसे विनती की, कि इसका जीवित रहना उचित नहीं।
25 परन्तु मैंने जान लिया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया कि मार डाला जाए; और जब कि उसने आप ही महाराजाधिराज की दोहाई दी, तो मैंने उसे भेजने का निर्णय किया। 26 परन्तु मैंने उसके विषय में कोई ठीक बात नहीं पाई कि महाराजाधिराज को लिखूँ*, इसलिए मैं उसे तुम्हारे सामने और विशेष करके हे राजा अग्रिप्पा तेरे सामने लाया हूँ, कि जाँचने के बाद मुझे कुछ लिखने को मिले। 27 क्योंकि बन्दी को भेजना और जो दोष उस पर लगाए गए, उन्हें न बताना, मुझे व्यर्थ समझ पड़ता है।”
संभावित अर्थ: 1) “फेस्तुस बस वहां पहुँच गया” या फिर, 2) “फेस्तुस अपने शासन की शुरुआत करने वहां पहुंचा।” (यूडीबी)
मूल भाषा में “केसरिया से (ऊपर) यरूशलेम की ओर” जैसा भाव है, जिसके संभावित आशय हैं कि 1) यरूशलेम को ऊंचा स्थान प्राप्त था; या फिर 2) यरूशलेम ऊंचे स्थान पर स्थित था।
अदालत में औपचारिक तौर पर आरोप दायर किये गए। वैकल्पिक अनुवाद: “पौलुस पर व्यवस्था का उल्लंघन करने का आरोप लगाया,”
“और फेस्तुस से विनती की” या फिर, “उन्होंने फेस्तुस से आग्रह किया”
“कि फेस्तुस पौलुस को यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात लगाए हुए थे"
“यरूशलेम में भिजवाए”
वे रस्ते ही में पौलुस को मार डालने वाले थे
पौलुस कैसरिया में पहरे में है - वैकल्पिक अनुवाद: “पौलुस कैसरिया में बंदी है, और मैं स्वयं भी जल्द ही वहाँ लौटूंगा।”
“यदि पौलुस ने कुछ अनुचित काम किया है या नहीं”
“उस पर आरोप लगाए” या फिर, “उस पर व्यवस्था का उल्लंघन करने का दोष लगाए”
“कोई आठ दस दिन रह कर फेस्तुस”
“न्यायी की भूमिका निभाने न्याय-आसन पर बैठा”
“पौलुस को लाने को कहा”
“पौलुस के आने पर वह फेस्तुस के समक्ष खड़ा हुआ”
"यहूदियों की व्यवस्था" यूडीबी के अनुसार
इसका आशय यह है कि यरूशलेम के मंदिर में प्रवेश को लेकर उसने कोई अपराध नहीं किया है।
“यहूदियों को खुश करना चाहता था”
“जहाँ मैं तुझ पर लगे आरोपों का न्याय करूँगा”
"यह स्थान कौन सा है जहाँ मेरा न्याय होना है।"
फेस्तुस के समक्ष पौलुस अपने बचाव में बोलना जारी रखता है।
“यदि मैंने कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिए मुझे मृत्यु दंड मिलना चाहिए”
“परन्तु यदि मुझ पर लगाए गए आरोप सच न निकलें”
संभावित आशय: 1)फेस्तुस के पास पौलुस को इन झूठे आरोप लगानेवालों को सौंपने का कानूनी अधिकार नहीं है, अथवा 2) पौलुस कह रहा था कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है, और हाकिम को उसे यहूदियों के हाथों नहीं सौंपना चाहिए।
“मैं कैसर के सामने पेश होने की दुहाई देता हूँ”
“तब फेस्तुस ने अपने सलाहकारों से बातचीत की”
अग्रिप्पा वर्तमान राज करने वाला राजा था और बिरनीके उसकी बहन थी।
“आधिकारिक बातों के विषय में फेस्तुस से भेंट की”
कार्यकाल पूरा होने पर कार्यालय छोड़ते समय उसने एक व्यक्ति को बंदीगृह में छोड़ दिया था।
फेस्तुस अपनी बात जारी रखता है
“जब यहूदी अगुवे मुझसे मिलने यहाँ आये”
“न्यायी के पद पर आसीन होकर”
“मैं ने सिपाहियों से पौलुस को मेरे समक्ष लाने की आज्ञा दी”
“मत” का आशय जीवन व आलौकिक बातों के प्रति लोगों की आस्था से है।
“कि यहूदी परिषद् इन बातों का फैसला करे”
21वें पद में फेस्तुस अपनी बात जारी रखता है।
“तो आज्ञा दी.....उसे कैद में ही रखा जाए।”
अर्थात “तू कल पौलुस को सुन लेगा”
नामों के अनुवाद के लिए पिछले अनुवाद का सन्दर्भ लें।
उन्होंने पौलुस को अपने सम्मुख पेश किया।
“ऊंची आवाज़ में मुझसे विनती की”
“इसलिए मैं पौलुस को तुम सबके सामने, और विशेषकर, हे राजा अग्रिप्पा, तेरे सामने लाया हूँ”
“जांचने के बाद मेरे पास कुछ लिखने को हो” अथवा, “जांचने के बाद मुझे पता चल सके कि मुझे क्या लिखना है”
संभावित आशय: 1) यहूदी अगुओं द्वारा लगाए गए आरोप अथवा, 2) रोमी व्यवस्था के अंतर्गत आरोप लगाए
उन्होंने फेस्तुस से विनती की कि पौलुस को यरूशलेम बुलाए ताकि वे उसे रास्ते में ही मार डालें।
फेस्तुस ने उन्हें कैसरिया जाने के लिए कहा, जहाँ फेस्तुस स्वयं जा रहा था, ताकि वे वहां पौलुस पर दोष लगा सकें।
फेस्तुस ने पूछा कि क्या वह चाहता है कि उसे यरूशलेम ले जाकर उसका निर्णय किया जाए।
फेस्तुस ने पौलुस से यह प्रश्न यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पूछा।
पौलुस ने कहा कि उस ने यहूदियों का कुछ अपराध नहीं किया है, और उसने कैसर के द्वारा न्याय किए जाने की दुहाई दी।
फेस्तुस ने निर्णय सुनाया कि यदि पौलुस कैसर के पास ही जाना चाहता है तो उसे कैसर के पास ही ले जाया जाएगा।
फेस्तुस ने कहा कि रोमी, अपराधियों को उस पर दोष लगाने वालों के द्वारा लगाए दोषों के लिए आमने-सामने खड़े होकर अपना पक्ष रखने का अवसर देते हैं।
फेस्तुस ने कहा कि जो दोष उसपर लगाए गए है वे उनके मत के और यीशु नामक किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया था और जिसके जीवित होने का पौलुस दावा करता था, विषय में विवाद था।
फेस्तुस राजा अग्रिप्पा की सहायता चाहता था कि कैसर के सामने पौलुस के मुक़दमे के विषय में कुछ तर्कसंगत लिखने को मिले।
फेस्तुस ने कहा कि पौलुस के खिलाफ़ जो दोष लगाएं हैं उन्हें न बताना व्यर्थ जान पड़ता है।
1 अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तुझे अपने विषय में बोलने की अनुमति है।” तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा,
2 “हे राजा अग्रिप्पा, जितनी बातों का यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं, आज तेरे सामने उनका उत्तर देने में मैं अपने को धन्य समझता हूँ, 3 विशेष करके इसलिए कि तू यहूदियों के सब प्रथाओं और विवादों को जानता है*। अतः मैं विनती करता हूँ, धीरज से मेरी सुन ले।
4 “जैसा मेरा चाल-चलन आरम्भ से अपनी जाति के बीच और यरूशलेम में जैसा था, यह सब यहूदी जानते हैं। 5 वे यदि गवाही देना चाहते हैं, तो आरम्भ से मुझे पहचानते हैं, कि मैं फरीसी होकर अपने धर्म के सबसे खरे पंथ के अनुसार चला।
6 और अब उस प्रतिज्ञा की आशा के कारण जो परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से की थी, मुझ पर मुकद्दमा चल रहा है। 7 उसी प्रतिज्ञा के पूरे होने की आशा लगाए हुए, हमारे बारहों गोत्र अपने सारे मन से रात-दिन परमेश्वर की सेवा करते आए हैं। हे राजा, इसी आशा के विषय में यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं। 8 जब कि परमेश्वर मरे हुओं को जिलाता है*, तो तुम्हारे यहाँ यह बात क्यों विश्वास के योग्य नहीं समझी जाती?
9 “मैंने भी समझा था कि यीशु नासरी के नाम के विरोध में मुझे बहुत कुछ करना चाहिए। 10 और मैंने यरूशलेम में ऐसा ही किया; और प्रधान याजकों से अधिकार पा कर बहुत से पवित्र लोगों को बन्दीगृह में डाला, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उनके विरोध में अपनी सम्मति देता था। 11 और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला-दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता था, यहाँ तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया कि बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था।
12 “इसी धुन में जब मैं प्रधान याजकों से अधिकार और आज्ञा-पत्र लेकर दमिश्क को जा रहा था; 13 तो हे राजा, मार्ग में दोपहर के समय मैंने आकाश से सूर्य के तेज से भी बढ़कर एक ज्योति, अपने और अपने साथ चलनेवालों के चारों ओर चमकती हुई देखी। 14 और जब हम सब भूमि पर गिर पड़े, तो मैंने इब्रानी भाषा में, मुझसे कहते हुए यह वाणी सुनी, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है।’
15 मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है। 16 परन्तु तू उठ, अपने पाँवों पर खड़ा हो; क्योंकि मैंने तुझे इसलिए दर्शन दिया है कि तुझे उन बातों का भी सेवक और गवाह ठहराऊँ, जो तूने देखी हैं, और उनका भी जिनके लिये मैं तुझे दर्शन दूँगा। (यहे. 2:1) 17 और मैं तुझे तेरे लोगों से और अन्यजातियों से बचाता रहूँगा, जिनके पास मैं अब तुझे इसलिए भेजता हूँ। (1 इति. 16:35) 18 कि तू उनकी आँखें खोले, कि वे अंधकार से ज्योति की ओर*, और शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर फिरें; कि पापों की क्षमा, और उन लोगों के साथ जो मुझ पर विश्वास करने से पवित्र किए गए हैं, विरासत पाएँ।’ (व्य. 33:3-4, यशा. 35:5-6, यशा. 42:7, यशा. 42:16, यशा. 61:1)
19 अतः हे राजा अग्रिप्पा, मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की बात न टाली, 20 परन्तु पहले दमिश्क के, फिर यरूशलेम के रहनेवालों को, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियों को समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्वर की ओर फिर कर मन फिराव के योग्य काम करो। 21 इन बातों के कारण यहूदी मुझे मन्दिर में पकड़कर मार डालने का यत्न करते थे।
22 परन्तु परमेश्वर की सहायता से मैं आज तक बना हूँ और छोटे बड़े सभी के सामने गवाही देता हूँ, और उन बातों को छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होनेवाली हैं, 23 कि मसीह को दुःख उठाना होगा, और वही सबसे पहले मरे हुओं में से जी उठकर, हमारे लोगों में और अन्यजातियों में ज्योति का प्रचार करेगा।” (यशा. 42:6, यशा. 49:6)
24 जब वह इस रीति से उत्तर दे रहा था, तो फेस्तुस ने ऊँचे शब्द से कहा, “हे पौलुस, तू पागल है। बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है।” 25 परन्तु उसने कहा, “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परन्तु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूँ। 26 राजा भी जिसके सामने मैं निडर होकर बोल रहा हूँ, ये बातें जानता है, और मुझे विश्वास है, कि इन बातों में से कोई उससे छिपी नहीं, क्योंकि वह घटना तो कोने में नहीं हुई।
27 हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं का विश्वास करता है? हाँ, मैं जानता हूँ, कि तू विश्वास करता है।” 28 अब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “क्या तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है?” 29 पौलुस ने कहा, “परमेश्वर से मेरी प्रार्थना यह है कि क्या थोड़े में, क्या बहुत में, केवल तू ही नहीं, परन्तु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, मेरे इन बन्धनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाएँ।”
30 तब राजा और राज्यपाल और बिरनीके और उनके साथ बैठनेवाले उठ खड़े हुए; 31 और अलग जाकर आपस में कहने लगे, “यह मनुष्य ऐसा तो कुछ नहीं करता, जो मृत्यु-दण्ड या बन्दीगृह में डाले जाने के योग्य हो*। 32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “यदि यह मनुष्य कैसर की दोहाई न देता, तो छूट सकता था।”
“भीड़ का ध्यान खींचने के लिए पौलुस ने उनकी तरफ हाथ बढ़ा कर”
“स्वयं पर लगे आरोपों से अपना बचाव करने लगा”
अग्रिप्पा के समक्ष प्रस्तुत होने को पौलुस धन्य समझता था क्योंकि वह उसे सुसमाचार के विषय में बोलने का अवसर मानता था।
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
संभावित आशय: 1) पौलुस के साथ पले-बढे फरीसी उसे एक फरीसी के रूप में जानते थे, या फिर, 2) “पहले एक जोशीले फरीसी और अब एक विश्वासी के रूप में पौलुस विख्यात था”
संभावित आशय: 1) संभावित रूप से यहाँ सभी यहूदियों की बात न होकर, उसके अपने यहूदी लोगों का सन्दर्भ हो, या फिर, 2) समस्त इस्राएल जाति से है।
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“मैं यहाँ पर हूँ, जहां मुझ पर मुकद्दमा चलाया जा रहा है”
पौलुस को मसीह के आने की आशा है
“परमेश्वर द्वारा की गयी प्रतिज्ञा के पूरे होने की आशा लगाए हुए”
ऐसा कहते हुए पौलुस परमेश्वर द्वारा लोगों को जिलाने की बात से जुडी अग्रिप्पा की आस्था से अपने द्वारा कही जा रही बातों को जोड़ने का प्रयास कर रहा है लो
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“यीशु के अनुयायियों के विरोध में”
संभावित आशय: 1) पौलुस ने कुछ विश्वासियों को कई बार दण्डित किया या फिर, 2) पौलुस ने बहुत से विश्वासियों को सताया
“उन्हें ताड़ना देनेवालों को अपनी सम्मति देता था”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
पौलुस के पास यहूदी अगुओं द्वारा जारी किये गए अधिकार पत्र थे जो उसे यहूदी विश्वासियों को ताड़ना देने की अनुमति देते थे।
पौलुस द्वारा परमेश्वर की योजना के विरोध की तुलना परमेश्वर किसान के बैल द्वारा छड़ी को लात मारने से करते हैं। यूडीबी देखें। इसका आशय है कि पौलुस के लिए परमेश्वर की योजना से बचना विकट है।
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“मेरे बनाए गए हैं” (यूडीबी) या फिर, “मेरे लिए अभिषिक्त किये गए हैं”
यहाँ पर आशय परमेश्वर द्वारा अलग किये गए लोगों के परमेश्वर में विश्वास से है
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“मैंने उस स्वर्गीय दर्शन में दिए सन्देश का पालन किया।”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
यहाँ पौलुस का आशय पुराने नियम में भविष्यदवक्ताओं द्वारा लिखी गयी सभी बातों से है।
“कि मसीह को दुःख उठाकर मरना होगा”
अर्थात “सुसमाचार का प्रचार करेगा”
“तू बकवास कर रहा है” या फिर, “तू पगला गया है”
“गंभीर बातें” अथवा “गंभीर विषय की”
“मैं राजा अग्रिप्पा से खुल कर बोल रहा हूँ”
इसे सर्वविदित कर दिया गया। वैकल्पिक अनुवाद: “वह घटना चोरी-चुपके से नहीं हुई।”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
ऐसा पूछते हुए पौलुस अग्रिप्पा को याद दिलाना चाहता है कि अग्रिप्पा को तो पहले से भविष्यद्वक्ताओं की कही बातों का विश्वास करता है। इसलिए अग्रिप्पा को यीशु के विषय में कही बातों का भी विश्वास करना चाहिए।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
पौलुस राजा अग्रिप्पा के सामने अपना प्रतिवाद प्रस्तुत करने इ लिए बहुत खुश था क्योंकि अग्रिप्पा यहूदी व्यवहारों और विवादों को जानता था।
पौलुस अपने धर्म के सबसे कट्टर पंथ, फरीसी आचरण के अनुसार चला।
पौलुस के अनुसार वह और यहूदी पुनरुत्थान की प्रतिज्ञा पर आशा लगाए बैठे हैं।
पौलुस बहुत से पवित्र सन्तों को बंदीगृह में डालता, उनके मारे जाने पर उनके विरोध में सम्मति देता और यहाँ तक कि बाहर के नगरों में जाकर भी उनको ताड़ना देता।
पौलुस ने मार्ग में सूर्य के तेज से भी बढ़कर एक ज्योति देखी।
पौलुस ने सुना,“हे शाऊल, हे शाऊल! तू मुझे क्यों सताता है?”
पौलुस से दमिश्क के मार्ग में यीशु बात कर रहा था।
यीशु ने पौलुस को सेवक और अन्यजातियों के लिए गवाह नियुक्त किया।
यीशु ने कहा वह चाहता था कि अन्यजातियाँ अपने पापों की क्षमा और परमेश्वर से मीरास पाएं।
पौलुस के अनुसार उसने लोगों से मन फिराने और परमेश्वर की ओर मुड़ने के लिए, और मन फिराव के योग्य काम करने के लिए कहा।
भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने कहा था कि मसीह को दुःख उठाना होगा, मरे हुओं में से जी कर उठेगा और यहूदियों और अन्यजातियों में ज्योति का प्रचार करेगा।
फेस्तुस ने सोचा कि पौलुस पागल हो गया था।
पौलुस की इच्छा थी कि राजा अग्रिप्पा मसीही हो जाए।
वे सब इस बात पर सहमत थे कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया जो मृत्यु दण्ड, या बन्दीग्रह में डालने योग्य हो, यदि यह कैसर की दुहाई न देता तो छूट सकता था।
1 जब यह निश्चित हो गया कि हम जहाज द्वारा इतालिया जाएँ, तो उन्होंने पौलुस और कुछ अन्य बन्दियों को भी यूलियुस नामक औगुस्तुस की सैन्य-दल के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। 2 अद्रमुत्तियुम* के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हमने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नामक थिस्सलुनीके का एक मकिदूनी हमारे साथ था।
3 दूसरे दिन हमने सैदा में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहाँ जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। 4 वहाँ से जहाज खोलकर हवा विरुद्ध होने के कारण हम साइप्रस की आड़ में होकर चले; 5 और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया* के मूरा में उतरे। 6 वहाँ सूबेदार को सिकन्दरिया का एक जहाज इतालिया जाता हुआ मिला, और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया।
7 जब हम बहुत दिनों तक धीरे-धीरे चलकर कठिनता से कनिदुस के सामने पहुँचे, तो इसलिए कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले; 8 और उसके किनारे-किनारे कठिनता से चलकर ‘शुभलंगरबारी’ नामक एक जगह पहुँचे, जहाँ से लसया नगर निकट था।
9 जब बहुत दिन बीत गए, और जलयात्रा में जोखिम इसलिए होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर चेतावनी दी, 10 “हे सज्जनों, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि, न केवल माल और जहाज की वरन् हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।” 11 परन्तु सूबेदार ने कप्तान और जहाज के स्वामी की बातों को पौलुस की बातों से बढ़कर माना।
12 वह बन्दरगाह जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था; इसलिए बहुतों का विचार हुआ कि वहाँ से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके तो फीनिक्स* में पहुँचकर जाड़ा काटें। यह तो क्रेते का एक बन्दरगाह है जो दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर खुलता है।
13 जब दक्षिणी हवा बहने लगी, तो उन्होंने सोचा कि उन्हें जिसकी जरूरत थी वह उनके पास थी, इसलिए लंगर उठाया और किनारे के किनारे, समुद्र तट के पास चल दिए।
14 परन्तु थोड़ी देर में जमीन की ओर से एक बड़ी आँधी उठी, जो ‘यूरकुलीन’ कहलाती है। 15 जब आँधी जहाज पर लगी, तब वह हवा के सामने ठहर न सका, अतः हमने उसे बहने दिया, और इसी तरह बहते हुए चले गए। 16 तब कौदा* नामक एक छोटे से टापू की आड़ में बहते-बहते हम कठिनता से डोंगी को वश में कर सके।
17 फिर मल्लाहों ने उसे उठाकर, अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बाँधा, और सुरतिस के रेत पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर बहते हुए चले गए। 18 और जब हमने आँधी से बहुत हिचकोले और धक्के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे;
19 और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का साज-सामान भी फेंक दिया। 20 और जब बहुत दिनों तक न सूर्य न तारे दिखाई दिए, और बड़ी आँधी चल रही थी, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही।
21 जब वे बहुत दिन तक भूखे रह चुके, तो पौलुस ने उनके बीच में खड़ा होकर कहा, “हे लोगों, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर, क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत्ति आती और न यह हानि उठाते।
22 परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूँ कि ढाढ़स बाँधो, क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, पर केवल जहाज की। 23 क्योंकि परमेश्वर जिसका मैं हूँ, और जिसकी सेवा करता हूँ, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा, 24 ‘हे पौलुस, मत डर! तुझे कैसर के सामने खड़ा होना अवश्य है। और देख, परमेश्वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है।’ 25 इसलिए, हे सज्जनों, ढाढ़स बाँधो; क्योंकि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, कि जैसा मुझसे कहा गया है, वैसा ही होगा। 26 परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा।”
27 जब चौदहवीं रात हुई, और हम अद्रिया समुद्र में भटक रहे थे, तो आधी रात के निकट मल्लाहों ने अनुमान से जाना कि हम किसी देश के निकट पहुँच रहे हैं। 28 थाह लेकर उन्होंने बीस पुरसा गहरा पाया और थोड़ा आगे बढ़कर फिर थाह ली, तो पन्द्रह पुरसा पाया। 29 तब पत्थरीली जगहों पर पड़ने के डर से उन्होंने जहाज की पीछे चार लंगर डाले, और भोर होने की कामना करते रहे।
30 परन्तु जब मल्लाह जहाज पर से भागना चाहते थे, और गलही से लंगर डालने के बहाने डोंगी समुद्र में उतार दी; 31 तो पौलुस ने सूबेदार और सिपाहियों से कहा, “यदि ये जहाज पर न रहें, तो तुम भी नहीं बच सकते।” 32 तब सिपाहियों ने रस्से काटकर डोंगी गिरा दी।
33 जब भोर होने पर थी, तो पौलुस ने यह कहकर, सब को भोजन करने को समझाया, “आज चौदह दिन हुए कि तुम आस देखते-देखते भूखे रहे, और कुछ भोजन न किया। 34 इसलिए तुम्हें समझाता हूँ कि कुछ खा लो, जिससे तुम्हारा बचाव हो; क्योंकि तुम में से किसी के सिर का एक बाल भी न गिरेगा।” 35 और यह कहकर उसने रोटी लेकर सब के सामने परमेश्वर का धन्यवाद किया और तोड़कर खाने लगा।
36 तब वे सब भी ढाढ़स बाँधकर भोजन करने लगे। 37 हम सब मिलकर जहाज पर दो सौ छिहत्तर जन थे। 38 जब वे भोजन करके तृप्त हुए, तो गेंहूँ को समुद्र में फेंककर जहाज हलका करने लगे।
39 जब दिन निकला, तो उन्होंने उस देश को नहीं पहचाना, परन्तु एक खाड़ी देखी जिसका चौरस किनारा था, और विचार किया कि यदि हो सके तो इसी पर जहाज को टिकाएँ। 40 तब उन्होंने लंगरों को खोलकर समुद्र में छोड़ दिया और उसी समय पतवारों के बन्धन खोल दिए, और हवा के सामने अगला पाल चढ़ाकर किनारे की ओर चले। 41 परन्तु दो समुद्र के संगम की जगह पड़कर उन्होंने जहाज को टिकाया, और गलही तो धक्का खाकर गड़ गई, और टल न सकी; परन्तु पिछली लहरों के बल से टूटने लगी।
42 तब सिपाहियों का यह विचार हुआ कि बन्दियों को मार डालें; ऐसा न हो कि कोई तैर कर निकल भागे। 43 परन्तु सूबेदार ने पौलुस को बचाने की इच्छा से उन्हें इस विचार से रोका, और यह कहा, कि जो तैर सकते हैं, पहले कूदकर किनारे पर निकल जाएँ। 44 और बाकी कोई पटरों पर, और कोई जहाज की और वस्तुओं के सहारे निकल जाए, और इस रीति से सब कोई भूमि पर बच निकले।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
अग्रिप्पा स्पष्ट कर रहा है कि इतने संक्षिप्त भाषण के द्वारा पौलुस उसके भीतर मसीह के लिए विश्वास पैदा नहीं कर सकता।
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, जीवित रहने दिया है”
हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा “हमें अपना जहाज किसी टापू पर ले जाना होगा”
अद्रिया समुद्र - इटली और यूनान के बीच स्थित समुद्र।
समुद्र के पानी की गहराई माप कर। (यूडीबी)
“20 बिरसा गहरा पाया” या फिर, “40 मीटर गहरा पाया)। बिरसा मापने की इकाई है।
“पंद्रह पुरसा पाया” या फिर “तीस मीटर पाया”
“जहाज के पिछले हिस्से से”
“सब लोग इस से बिना किसी हानि के बच निकलेंगे।”
अर्थात “रोटी……….उसके टुकड़े करके खाने लगा” अथवा “रोटी…..का एक टुकड़ा तोडा”
“276 लोग”
“उस जगह को पहचान नहीं पाए”
“रस्सियाँ काट कर लंगर को पीछे छोड़ दिया”
“जहाज को किनारे पर ले गए”
“तब सिपाही योजना बना रहे थे कि”
“जहाज से पानी में कूद कर किनारे पर निकल जाएं”
यूलियुस ने पौलुस पर कृपा कर के उसे मित्रों के यहाँ जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए।
जहाज़ को क्रेते के टापू के पास चलने में कठिनाई हुई।
यूलियुस ने पौलुस की चेतावनी की ओर इसलिए ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसने जहाज़ के स्वामी की बातों को बढ़कर माना।
अच्छी शुरुआत के पश्चात्, यूरकुलीन कहलाने वाली हवा ने जहाज़ पर लगना शुरू कर दिया।
कई दिनों के पश्चात्, मल्लाहों ने बचने की सारी आशाएं छोड़ दीं।
परमेश्वर के स्वर्गदूत ने कहा कि वह और सारे मल्लाह बच जाएंगे, पर जहाज़ टूट जाएगा।
मल्लाहों ने अनुमान लगाया कि वे किसी देश के निकट पहुँच रहे हैं।
मल्लाह जहाज़ छोड़कर भागना चाहते थे।
पौलुस ने सूबेदार और सिपाहियों को बताया कि ये जहाज़ पर न रहें तो तुम भी नहीं बच सकते।
पौलुस ने हर किसी को भोजन करने के लिए समझाया।
मल्लाहों के दल ने सीधे समुंद्र तट की ओर जहाज़ ले जाने का निर्णय किया, पर जहाज़ का गलही तो धक्का खाकर गड गई और टल न सकी परन्तु पिछाड़ी लहरों के बल से टूटने सी लगी।
सिपाही बन्दियों को मार डालने का विचार करने लगे ताकि उनमे से कोई बच न निकले।
सूबेदार ने सिपाहियों की योजना को रोका क्योंकि वह पौलुस को बचाना चाहता था।
जो कोई तैर सकते थे पहले किनारे पर गए, फिर बाकी कोई पटरों और जहाज़ की अन्य वस्तुओं के द्वारा भूमि पर बच निकले।
1 जब हम बच निकले, तो पता चला कि यह टापू माल्टा* कहलाता है। 2 और वहाँ के निवासियों ने हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह के कारण जो बरस रहा था और जाड़े के कारण, उन्होंने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया।
3 जब पौलुस ने लकड़ियों का गट्ठा बटोरकर आग पर रखा, तो एक साँप* आँच पा कर निकला और उसके हाथ से लिपट गया। 4 जब उन निवासियों ने साँप को उसके हाथ में लटके हुए देखा, तो आपस में कहा, “सचमुच यह मनुष्य हत्यारा है, कि यद्यपि समुद्र से बच गया, तो भी न्याय ने जीवित रहने न दिया।”
5 तब उसने साँप को आग में झटक दिया, और उसे कुछ हानि न पहुँची। 6 परन्तु वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह सूज जाएगा, या एकाएक गिरके मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे और देखा कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो और ही विचार कर कहा, “यह तो कोई देवता है।”
7 उस जगह के आस-पास पुबलियुस नामक उस टापू के प्रधान की भूमि थी: उसने हमें अपने घर ले जाकर तीन दिन मित्रभाव से पहुनाई की। 8 पुबलियुस के पिता तेज बुखार और पेचिश से रोगी पड़ा था। अतः पौलुस ने उसके पास घर में जाकर प्रार्थना की, और उस पर हाथ रखकर उसे चंगा किया। 9 जब ऐसा हुआ, तो उस टापू के बाकी बीमार आए, और चंगे किए गए। 10 उन्होंने हमारा बहुत आदर किया, और जब हम चलने लगे, तो जो कुछ हमारे लिये आवश्यक था, जहाज पर रख दिया।
11 तीन महीने के बाद हम सिकन्दरिया के एक जहाज पर चल निकले, जो उस टापू में जाड़े काट रहा था, और जिसका चिन्ह दियुसकूरी था। 12 सुरकूसा* में लंगर डाल करके हम तीन दिन टिके रहे।
13 वहाँ से हम घूमकर रेगियुम* में आए; और एक दिन के बाद दक्षिणी हवा चली, तब दूसरे दिन पुतियुली में आए। 14 वहाँ हमको कुछ भाई मिले, और उनके कहने से हम उनके यहाँ सात दिन तक रहे; और इस रीति से हम रोम को चले। 15 वहाँ से वे भाई हमारा समाचार सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन-सराए तक हमारी भेंट करने को निकल आए, जिन्हें देखकर पौलुस ने परमेश्वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बाँधा।
16 जब हम रोम में पहुँचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उसकी रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा हुई।
17 तीन दिन के बाद उसने यहूदियों के प्रमुख लोगों को बुलाया, और जब वे इकट्ठे हुए तो उनसे कहा, “हे भाइयों, मैंने अपने लोगों के या पूर्वजों की प्रथाओं के विरोध में कुछ भी नहीं किया, फिर भी बन्दी बनाकर यरूशलेम से रोमियों के हाथ सौंपा गया। 18 उन्होंने मुझे जाँच कर छोड़ देना चाहा, क्योंकि मुझ में मृत्यु के योग्य कोई दोष न था।
19 परन्तु जब यहूदी इसके विरोध में बोलने लगे, तो मुझे कैसर की दोहाई देनी पड़ी; यह नहीं कि मुझे अपने लोगों पर कोई दोष लगाना था। 20 इसलिए मैंने तुम को बुलाया है, कि तुम से मिलूँ और बातचीत करूँ; क्योंकि इस्राएल की आशा के लिये मैं इस जंजीर से जकड़ा हुआ हूँ।”
21 उन्होंने उससे कहा, “न हमने तेरे विषय में यहूदियों से चिट्ठियाँ पाई, और न भाइयों में से किसी ने आकर तेरे विषय में कुछ बताया, और न बुरा कहा। 22 परन्तु तेरा विचार क्या है? वही हम तुझ से सुनना चाहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें करते हैं।”
23 तब उन्होंने उसके लिये एक दिन ठहराया, और बहुत से लोग उसके यहाँ इकट्ठे हुए, और वह परमेश्वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा-समझाकर भोर से सांझ तक वर्णन करता रहा। 24 तब कुछ ने उन बातों को मान लिया, और कुछ ने विश्वास न किया।
25 जब आपस में एकमत न हुए, तो पौलुस के इस एक बात के कहने पर चले गए, “पवित्र आत्मा ने यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा तुम्हारे पूर्वजों से ठीक ही कहा, 26 ‘जाकर इन लोगों से कह,
कि सुनते तो रहोगे, परन्तु न समझोगे,
और देखते तो रहोगे, परन्तु न बुझोगे;
27 क्योंकि इन लोगों का मन मोटा,
और उनके कान भारी हो गए है,
और उन्होंने अपनी आँखें बन्द की हैं,
ऐसा न हो कि वे कभी आँखों से देखें,
और कानों से सुनें,
और मन से समझें
और फिरें,
और मैं उन्हें चंगा करूँ।’ (यशा. 6:9-10)
28 अतः तुम जानो, कि परमेश्वर के इस उद्धार की कथा अन्यजातियों के पास भेजी गई है, और वे सुनेंगे।” (भज. 67:2, भज. 98:3, यशा. 40:5)
29 जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहाँ से चले गए।
30 और पौलुस पूरे दो वर्ष अपने किराये के घर में रहा, 31 और जो उसके पास आते थे, उन सबसे मिलता रहा और बिना रोक-टोक बहुत निडर होकर* परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा।
“लोगों से पता चला” या फिर, “हमें वहां के निवासियों से पता चला कि”। यहाँ पौलुस और प्रेरितों के कार्य के लेखक, लूका की बात हो रही है।
“माल्टा,” आधुनिक सिसीली द्वीप के दक्षिण में स्थित एक टापू है।
“निवासियों” का आशय उन लोगों से है जो न तो यूनानी भाषा में बोलते हैं और न ही उन्होंने यूनानी संस्कृति को अपनाया है।
“बहुत बड़ी कृपा”
“टहनियों और शाखाओं को इकठ्ठा करके जलाया”
संभावित आशय: 1) “जहाज के सभी लोगों का स्वागत किया” या फिर, 2) “पौलुस और उसके सभी साथियों का स्वागत किया।”
“एक ज़हरीला सांप लकडियों के ढेर से निकल आया”
“पौलुस के हाथ को काट कर वही लिपट गया”
“अवश्य ही, यह आदमी एक हत्यारा है” या फिर, “यह मनुष्य निश्चय ही एक हत्यारा है”
“न्याय की देवी ने उसे मृत्यु से बचने न दिया”
“तब उसने अपना हाथ झटक कर सांप को आग में फ़ेंक दिया”
संभावित आशय : 1) “तेज़ बुखार हो जाएगा” या फिर, 2) “सूजन हो जाएगी।”
ऐसा माना जाता था कि यदि ज़हरीले सांप द्वारा डसे जाने के बाद भी यदि कोई जीवित रहता है तो वह व्यक्ति एक देवता है
कहानी में नए व्यक्ति का आगमन होता है।
संभावित आशय: 1) जन समुदाय का मुख्य अगुआ या फिर, 2) टापू का सबसे अमीर व प्रभावशाली व्यक्ति
“पौलुस व उसके साथियों का स्वागत किया और पहुनाई की”
“हम अजनबियों के प्रति मित्रभाव से पहुनाई की”
“का रोगी था”
“आंव लहू (पेचिश) आंतो का एक संक्रामक रोग है”
“अपने हाथों से छूकर”
“और वे भी चंगे किये गए”
संभावित आशय: 1) “सिकंदरिया की ओर से आया जहाज” या फिर, 2) “सिकंदरिया में पंजीकृत और वहाँ का लाइसेंसधारी जहाज। नाम के अनुवाद के लिए पिछले अनुवाद का सन्दर्भ लें।
“दियुसकूरी” से आशय यूनानी देवता ज़ीअस के जुड़वाँ बेटों, कास्टर व पोलक्स से है। वे जहाज़ों के रक्षक माने जाते the।
आधुनिक सिसीली द्वीप के दक्षिणपूर्वी तट पर, इटली के बस दक्षिणपश्चिम पर स्थित एक नगर।
इटली के दक्षिणपश्चिमी छोर पर स्थित एक बंदरगाह नगर।
“दक्षिण की ओर से हवा चलने लगी”
“पुतियुली” आधुनिक नेपल्स में इटली के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।
“उनके साथ सात दिन बिताने के बाद, हम रोम चले गए।” पुतियुली में पहुँचने के बाद की सारी यात्रा भूमि पर की गयी यात्रा है।
रोम के दक्षिण में 50किमी पर अप्पियन वे नामक राजमार्ग पर स्थित के आरामगाह।
“जब हम रोम पहुंचे, तो राज्य ने पौलुस को....अनुमति दी”
रोम में मौजूद यहूदियों के नागरिक अथवा धार्मिक अगुवे
“मैंने मृत्यु दंड के योग्य कोई कार्य नहीं किया था”
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“यरूशलेम के यहूदी इसके विरोध बोलने लगे”
“रोमी अगुओं की इच्छा के विरुद्ध बोलने लगे”
“मेरे पास कैसर को दोहाई देने के अतिरिक्त कोई विकल्प न बचा।”
कि परमेश्वर इस्राएल में मसीह को भेजेगा
अर्थात, “इस स्वतंत्र समुदाय के विषय में तेरा क्या विचार है”
रोमी साम्राज्य में रहनेवाले वे यहूदी, जो सुसमाचार के सन्देश को नकार चुके थे, वे लोग “पंथ” की बुराई करते थे। रोम के यहूदियों को इन्हीं लोगों से सूचनाएं मिल रही थी।
वह ये बातें यहूदी अगुओं से कह रहा था
“पौलुस ने कुछ लोगों को विश्वास दिला दिया”
पौलुस यशायाह से बोलना जारी रखता है
पौलुस अपनी बात जारी रखता है
“और उनमें से कुछ अवश्य सुनेंगे”
“और उसके ऐसा कहने के बाद, आपस में बहस करते हुए चले गए।” इस पद को शामिल नहीं किया गया था क्योंकि कुछ प्राचीन लेखों में यह नहीं है।
वहां के निवासियों ने उन पर अनोखी कृपा की।
लोगों ने सोचा कि पौलुस हत्यारा है जिसे न्याय के कारण जीवित न रहने दिया।
लोगों ने सोचा कि पौलुस कोई देवता है।
उस टापू के अन्य लोग जो बीमार थे आए और चंगाई पाई।
पौलुस और अन्य सदस्य माल्टा नामक टापू पर तीन माह तक रहे।
जब उसने भाइयों को देखा, उसने परमेश्वर का धन्यवाद किया और ढाढस बांधा।
पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उसकी रखवाली करता था अकेले रहने की आज्ञा हुई।
पौलुस ने यहूदियों के प्रमुख को बताया कि उसे इस्राएल की आशा के लिए उसे जंजीरों में जकड़ा हुआ है।
रोम में यहूदियों के प्रमुख जानते थे कि हर जगह लोग इस मत के विरोध में बातें करते हैं।
पौलुस ने उन्हें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों से समझा-समझा कर भोर से सांझ तक वर्णन करता रहा।
कुछ यहूदी प्रमुखों ने उन बातों को मान लिया, जबकि अन्यों ने विश्वास न किया।
पवित्र शास्त्र से पौलुस द्वारा दिए गए अंतिम हवाले के अनुसार वे जिन्होंने विश्वास नहीं किया उन्होंने परमेश्वर के वचन की ओर से कान बंद और आँखे मूँद लीं हैं।
पौलुस ने कहा कि परमेश्वर के उद्धार का सन्देश अन्यजातियों के पास भेजा गया है और वे सुनेगें।
पौलुस ने परमेश्वर के राज्य का प्रचार किया और प्रभु यीशु मसीह के विषय में निडर होकर सिखाया।
उसे किसी ने भी नहीं रोका।
1 पौलुस* की ओर से जो यीशु मसीह का दास है, और प्रेरित होने के लिये बुलाया गया, और परमेश्वर के उस सुसमाचार के लिये अलग किया गया है 2 जिसकी उसने पहले ही से अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्रशास्त्र में, 3 अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के विषय में प्रतिज्ञा की थी, जो शरीर के भाव से तो दाऊद के वंश से उत्पन्न हुआ।
4 और पवित्रता की आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्थ्य के साथ परमेश्वर का पुत्र ठहरा है। 5 जिसके द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली कि उसके नाम के कारण सब जातियों के लोग विश्वास करके उसकी मानें, 6 जिनमें से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिये बुलाए गए हो।
7 उन सब के नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने* के लिये बुलाए गए है: हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (इफि. 1:2)
8 पहले मैं तुम सब के लिये यीशु मसीह के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है। 9 परमेश्वर जिसकी सेवा मैं अपनी आत्मा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूँ, वही मेरा गवाह है, कि मैं तुम्हें किस प्रकार लगातार स्मरण करता रहता हूँ, 10 और नित्य अपनी प्रार्थनाओं में विनती करता हूँ, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आने को मेरी यात्रा परमेश्वर की इच्छा से सफल हो।
11 क्योंकि मैं तुम से मिलने की लालसा करता हूँ, कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक वरदान दूँ जिससे तुम स्थिर हो जाओ, 12 अर्थात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पाऊँ।
13 और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम इससे अनजान रहो कि मैंने बार-बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियों में फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्तु अब तक रुका रहा। 14 मैं यूनानियों और अन्यभाषियों का, और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूँ। 15 इसलिए मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूँ।
16 क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लज्जाता, इसलिए कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिये, पहले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये, उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ्य है। (2 तीमु. 1:8) 17 क्योंकि उसमें परमेश्वर की धार्मिकता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, “विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।” (हब. 2:4, गला. 3:11)
18 परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं। 19 इसलिए कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उनके मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
20 क्योंकि उसके अनदेखे गुण*, अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्वरत्व, जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहाँ तक कि वे निरुत्तर हैं। (अय्यू. 12:7-9, भज. 19:1) 21 इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहाँ तक कि उनका निर्बुद्धि मन अंधेरा हो गया।
22 वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए, (यिर्म. 10:14) 23 और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशवान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला। (व्य. 4:15-19, भज. 106:20)
24 इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उनके मन की अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें। 25 क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन। (यिर्म. 13:25, यिर्म. 16:19)
26 इसलिए परमेश्वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहाँ तक कि उनकी स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को उससे जो स्वभाव के विरुद्ध है, बदल डाला। 27 वैसे ही पुरुष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरुषों ने पुरुषों के साथ निर्लज्ज काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया। (लैव्य. 18:22, लैव्य. 20:13)
28 और जब उन्होंने परमेश्वर को पहचानना न चाहा, इसलिए परमेश्वर ने भी उन्हें उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।
29 वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैर-भाव से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर, 30 गपशप करनेवाले, निन्दा करनेवाले, परमेश्वर से घृणा करनेवाले, हिंसक, अभिमानी, डींगमार, बुरी-बुरी बातों के बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाले, 31 निर्बुद्धि, विश्वासघाती, प्रेम और दया का आभाव है और निर्दयी हो गए।
32 वे तो परमेश्वर की यह विधि जानते हैं कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले मृत्यु के दण्ड के योग्य हैं, तो भी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं वरन् करनेवालों से प्रसन्न भी होते हैं।
पौलुस की ओर से आपकी भाषा में पत्र के लेखक का अपना परिचय देने की अपनी ही विधि होगी। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, मैं पौलुस इस पत्र को लिख रहा हूँ। आपको यह भी दर्शाने की आवश्यकता हो सकती है कि पत्र किसे लिखा जा रहा है। ( देखें यू.डी.बी
इसका अनुवाद एक नये वाक्य में कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है। “परमेश्वर ने मुझे एक प्रेरित होने के लिए बुलाया और मनुष्यों में शुभ सन्देश सुनाने के लिए मुझे चुन लिया है”।
परमेश्वर ने अपनी प्रजा से प्रतिज्ञा की थी कि वह अपना राज्य स्थापित करेगा। उसने भविष्यद्वक्ताओं से कह दिया था कि वे इन प्रतिज्ञाओं को धर्मशास्त्र में लिख लें।
यह “परमेश्वर के शुभ सन्देश” के संदर्भ में है। शुभ सन्देश यह है कि परमेश्वर अपने पुत्र को इस संसार में भेजने पर था।
यहाँ “शरीर” का अर्थ है यह पार्थिव शरीर। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “जो प्राकृतिक रूप से दाऊद का वंशज होगा” या “जिसका जन्म दाऊद के परिवार में होगा”।
“वह” अर्थात मसीह यीशु। “ठहरा” को कर्तृवाच्य क्रिया में व्यक्त किया जा सकता है”। परमेश्वर ने उसे घोषित किया है।
अर्थात पवित्र आत्मा से
“मरने के बाद उसे फिर जीवित करने के द्वारा”
“परमेश्वर ने अति करूणामय होकर मुझे एक वरदान दिया कि मुझे प्रेरित नियुक्त करे”। वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर ने मुझे प्रेरित होने का यह करूणामय वरदान दिया है”। यहाँ “हमें” का अर्थ है, पौलुस और यीशु के 12 शिष्य। इसमें रोम की कलीसिया को नहीं गिना गया है।
पौलुस यीशु के लिए “नाम” शब्द भी काम में लेता है। वैकल्पिक अनुवाद, “कि सब जातियों को उसमें विश्वास करने के कारण आज्ञा मानना सिखाएं”।
उन सबके नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिए बुलाए गए हैं। - इसका अनुवाद एक नए वाक्य में कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “मैं तुम सबको जो रोम में है यह पत्र लिख रहा हूँ, क्योंकि परमेश्वर तुमसे प्रेम करता है और तुम्हें अपने लोग होने के लिए चुन लिया है”।
तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जाता है “मेरा अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे”।
यह अतिशयोक्ति है जिसका अर्थ है उनका परिचित संसार अर्थात रोमी साम्राज्य
पौलुस इस बात पर बल देता है कि वह उनके लिए सच्चे दिल से प्रार्थना करता है और परमेश्वर उसे प्रार्थना करते हुए देखता भी है, यहाँ “क्योंकि” शब्द के अनुवाद में प्रार्थना को छोड़ दिया है।
“मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर से बातें करता हूँ”।
“मैं जब भी प्रार्थना करता हूँ तब परमेश्वर से यही माँगता हूँ कि मेरा तुम्हारे पास आना संभव हो जाए”।
“परमेश्वर कैसे भी करे”
“अन्ततः”, अन्त में” या “अन्ततोगत्वा”
“क्योंकि परमेश्वर चाहता है”
“क्योंकि मैं तुमसे भेंट करने की उत्कट अभिलाषा रखता हूँ”
“मेरे कहने का अर्थ है कि हम यीशु में विश्वास के अनुभवों को बाँटते हुए एक दूसरे को प्रोत्साहित करें।”
पौलुस उन्हें यह जानकारी देने पर बल देता है वैकल्पिक अनुवाद “मैं चाहता हूँ कि तुम निम्नलिखित बातें जान लोः
“कोई न कोई बात मुझे रोकती रही”
"फल" से पौलुस का अभिप्राय है रोम के निवासी जिन्हें पौलुस शुभ सन्देश में विश्वास करने के लिए प्रेरित करना चाहता था।
"जैसा अन्य स्थानों में विजातीय लोगों ने शुभ सन्देश में विश्वास किया।"
“मुझे शुभ सन्देश सुनाना है”
पौलुस रोम में शुभ सन्देश सुनाने का कारण बताता है।
इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “चाहे कितने भी लोग मेरे द्वारा सुनाए गए इस सन्देश का तिरस्कार कर दें, मैं आत्म-विश्वास के साथ सुनाता हूँ।” )
पौलुस समझता है कि वह आत्म-विश्वास से शुभ सन्देश क्यों सुनाता है।
“शुभ सन्देश के द्वारा परमेश्वर मसीह में विश्वास करने वाले हर एक मनुष्य का बड़े सामर्थ्य से उद्धार करता है”।
“यहूदियों को” और यूनानियों को”
यूनानियों से पूर्व यहूदियों को यह शुभ सन्देश सुनाया गया था। अतः यहाँ इसका मूल हो सकता है, 1) समय के क्रम में पूर्व परन्तु इसका अर्थ यह भी हो सकता है, 2) “अत्यधिक महत्त्व में”।
“परमेश्वर ने प्रकट कर दिया है कि आरंभ से अन्त तक विश्वास ही के द्वारा मनुष्य धर्मी ठहरता है”। दूसरा अनुवाद, “परमेश्वर ने अपनी न्यायनिष्ठा विश्वास करनेवाले पर प्रकट की है और इसका परिणाम यह हुआ कि उनका विश्वास और अधिक हो गया है”। या “क्योंकि परमेश्वर विश्वासयोग्य है, वह अपनी धार्मिकता प्रकट करता है जिससे मनुष्यों का विश्वास बढ़ता है”।
“परमेश्वर में विश्वास करनेवालों को परमेश्वर अपने साथ उचित संबन्ध में मानता है और वे सदा जीवित रहेंगे”।
पौलुस समझाता है कि मनुष्य को यह शुभ समाचार सुनना क्यों आवश्यक है।
दूसरा अनुवाद, “परमेश्वर अपना क्रोध प्रकट करता है,
“के लिए”
वैकल्पिक अनुवाद, “मनुष्य जो भी अभक्ति और अधर्म के काम करते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “वे परमेश्वर के बारे में सच्ची जानकारी को छिपाते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद, “वे परमेश्वर को जान सकते हैं क्योंकि वे देख सकते हैं”
पौलुस स्पष्ट करता है कि ये लोग परमेश्वर का ज्ञान कैसे रखते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने उन्हें दिखाया है”
पौलुस समझाता है कि परमेश्वर स्वयं को मनुष्यों पर कैसे प्रकट किया है।
“अनदेखे” का अर्थ जो दिखाई देता है वह सब “देखने में आते हैं” क्योंकि मनुष्य अब समझ गए हैं कि दिखाई न देते हुए भी वे हैं।
आकाश और पृथ्वी एवं सब कुछ जो उनमें है।
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर के सब गुण एवं लक्षण” या "परमेश्वर की वे बातें जो उसे परमेश्वर बताता है।”
विकल्प, “मनुष्य परमेश्वर की सृष्टि को देखकर उसके बारे में ज्ञान ग्रहण कर सकता है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “वे कभी नहीं कह सकते कि वे नहीं जानते।
“मानवजाति”
“मूर्खता की बातों में मन लगाया” (यू.डी.बी.)
इस अभिव्यक्ति में मन का अन्धेरा होने का अर्थ है उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई, विकल्प, “उनके मन में समझ ही नहीं रही”।
“बुद्धिमान होने का दावा करके, वे वास्तव में मूर्ख ही बने।”
“मानवजाति”
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर महिमा से पूर्ण है और अविनाशी है इस सत्य को बदल डाला” या “परमेश्वर को महिमामय एवं अविनाशी मानना त्याग दिया”
वैकल्पिक अनुवाद, “इसकी अपेक्षा मूर्तियों की उपासना करने का चुनाव किया ... जैसी दिखती थी”
“कुछ मनुष्य मर जायेंगे”
इसके लिए
“परमेश्वर ने उन्हें करने दिया” (देखें: “परमेश्वर ने अनुमति दे दी)
“मानवजाति”
“जिन अनैतिक बातों की उनके मन में अभिलाषा थी”
“उन्होंने यौन संबन्धित अनाचार एवं अनादर के काम किए”
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “कि अपेक्षा” या “अन्यथा” या 2.) “इसके साथ”
“मूर्तिपूजा और यौन संबन्धित पाप”।
“परमेश्वर ने उन्हें अनुमति दी”
“लज्जाजनक यौन अभिलाषाएँ”
“उनकी स्त्रियों ने भी”
मनुष्यों की स्त्रियाँ
“यौनाचार को वैसा बना दिया जैसा परमेश्वर ने नहीं रचा था।
“यौन वासना से जलने लगे”
“अपमानजनक” या “लज्जाजनक” या “पापी”
इसे एक नए वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, “उन्होंने अपने इस भ्रष्टाचार का परमेश्वर से उचित दण्ड पाया है”
व्यवहार जो बुरा और घृणित हो
“उन्होंने परमेश्वर को मानना उचित नहीं समझा”
“मानवजाति”
उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया “परमेश्वर ने उनके मन को अनाचार से भर जाने के लिए छोड़ दिया”
“नीच” या “निर्लज्ज” या “पापी”
“उनके मन में उत्कट अभिलाषाएं भरी हुई थी” या “ऐसे काम करने की लालसा में लिप्त थे”।
“मानवजाति”
वे जानते हैं कि परमेश्वर उनसे धर्मनिष्ठा की अपेक्षा करता है
“दुष्टता के काम करने वाले”
“वह मृत्यु के योग्य है”
इसे एक नए वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, “परन्तु वे ही ऐसे काम करते हैं।”
परमेश्वर ने पवित्र धर्मशास्त्र में अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा सुसमाचार की पूर्व प्रतिज्ञा की थी।
शरीर के अनुसार परमेश्वर का पुत्र दाऊद के वंशजों में जन्मा था।
मसीह यीशु पुनरुत्थान के द्वारा परमेश्वर का पुत्र कहलाया।
सब जातियों में आज्ञाकारिता और विश्वास के लिए पौलुस को अनुग्रह और प्रेरिताई मिली।
पौलुस परमेश्वर का धन्यवाद करता है कि उनके विश्वास की चर्चा संपूर्ण जगत में हो रही थी।
पौलुस उनसे भेंट करने की कामना करता है कि वह उन्हें कोई आत्मिक वरदान दे जिससे वे स्थिर हो जाएं।
पौलुस उनसे भेंट नहीं कर पाया था क्योंकि उसके मार्ग में अब तक बाधाएं आ रही थीं।
पौलुस कहता है कि हर एक विश्वासी के लिए सुसमाचार उद्धार के निमित्त परमेश्वर का सामर्थ्य है।
पौलुस धर्मशास्त्र का उद्धरण देता है, "विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।"
अभक्त और अधर्मी सत्य को दबाए रहते हैं जबकि परमेश्वर का ज्ञान उनके मनों में प्रकट किया जा चुका है।
परमेश्वर के बारे में अप्रत्यक्ष बातें सृजित वस्तुओं से स्पष्ट प्रकट है।
परमेश्वर का अनन्त सामर्थ्य और उसका दिव्य स्वभाव स्पष्ट प्रकट है।
जो परमेश्वर का महिमान्वन नहीं करते और न ही उसका धन्यवाद करते हैं, अपने विचारों में मूर्ख बनते हैं और उनके मन अन्धकारपूर्ण होते हैं।
परमेश्वर ने उन्हें अशुद्धता के लिए उनके मन की अभिलाषा के अनुसार छोड़ दिया कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।
स्त्रियां एक-दूसरे के लिए और पुरुष एक-दूसरे के लिए कामातुर होने लगे।
परमेश्वर उन्हें उनके भ्रष्ट मन पर छोड़ दिया कि वे अनुचित काम करें।
जिनके मन भ्रष्ट हैं वे डाह, हत्या, झगड़े और छल और सब बुरी अभिलाषाओं से घिरे रहते हैं।
जिनके मन भ्रष्ट हैं वे जानते हैं कि ऐसे काम करने वाले मृत्यु दण्ड के योग्य हैं।
वे फिर भी अधर्म के काम करते हैं और ऐसे काम करने वालों को मान्यता प्रदान करते हैं।
1 इसलिए हे दोष लगानेवाले, तू कोई क्यों न हो, तू निरुत्तर है*; क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपने आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिए कि तू जो दोष लगाता है, स्वयं ही वही काम करता है। 2 और हम जानते हैं कि ऐसे-ऐसे काम करनेवालों पर परमेश्वर की ओर से सच्चे दण्ड की आज्ञा होती है।
3 और हे मनुष्य, तू जो ऐसे-ऐसे काम करनेवालों पर दोष लगाता है, और स्वयं वे ही काम करता है; क्या यह समझता है कि तू परमेश्वर की दण्ड की आज्ञा से बच जाएगा? 4 क्या तू उसकी भलाई, और सहनशीलता, और धीरजरूपी धन* को तुच्छ जानता है? और क्या यह नहीं समझता कि परमेश्वर की भलाई तुझे मन फिराव को सिखाती है?
5 पर अपनी कठोरता और हठीले मन के अनुसार उसके क्रोध के दिन के लिये, जिसमें परमेश्वर का सच्चा न्याय प्रगट होगा, अपने लिये क्रोध कमा रहा है। 6 वह हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला देगा। (भज. 62:12, नीति. 24:12) 7 जो सुकर्म में स्थिर रहकर महिमा, और आदर, और अमरता की खोज में हैं, उन्हें वह अनन्त जीवन देगा;
8 पर जो स्वार्थी हैं और सत्य को नहीं मानते, वरन् अधर्म को मानते हैं, उन पर क्रोध और कोप पड़ेगा। 9 और क्लेश और संकट हर एक मनुष्य के प्राण पर जो बुरा करता है आएगा, पहले यहूदी पर फिर यूनानी पर;
10 परन्तु महिमा और आदर और कल्याण हर एक को मिलेगा, जो भला करता है, पहले यहूदी को फिर यूनानी को। 11 क्योंकि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता। (व्य. 10:17, 2 इति. 19:7) 12 इसलिए कि जिन्होंने बिना व्यवस्था पाए पाप किया, वे बिना व्यवस्था के नाश भी होंगे, और जिन्होंने व्यवस्था पा कर पाप किया, उनका दण्ड व्यवस्था के अनुसार होगा;
13 क्योंकि परमेश्वर के यहाँ व्यवस्था के सुननेवाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्था पर चलनेवाले धर्मी ठहराए जाएँगे। 14 फिर जब अन्यजाति लोग जिनके पास व्यवस्था नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों पर चलते हैं, तो व्यवस्था उनके पास न होने पर भी वे अपने लिये आप ही व्यवस्था हैं।
15 वे व्यवस्था की बातें अपने-अपने हृदयों में लिखी हुई दिखाते हैं और उनके विवेक भी गवाही देते हैं, और उनकी चिन्ताएँ परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है। 16 जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्यों की गुप्त बातों का न्याय करेगा।
17 यदि तू स्वयं को यहूदी कहता है, व्यवस्था पर भरोसा रखता है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड करता है, 18 और उसकी इच्छा जानता और व्यवस्था की शिक्षा पा कर उत्तम-उत्तम बातों को प्रिय जानता है; 19 यदि तू अपने पर भरोसा रखता है, कि मैं अंधों का अगुआ, और अंधकार में पड़े हुओं की ज्योति, 20 और बुद्धिहीनों का सिखानेवाला, और बालकों का उपदेशक हूँ, और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्था में है, मुझे मिला है।
21 क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, आप ही चोरी करता है? (मत्ती 23:3) 22 तू जो कहता है, “व्यभिचार न करना,” क्या आप ही व्यभिचार करता है? तू जो मूरतों से घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरों को लूटता है?
23 तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्था न मानकर, परमेश्वर का अनादर करता है? 24 “क्योंकि तुम्हारे कारण अन्यजातियों में परमेश्वर का नाम अपमानित हो रहा है,” जैसा लिखा भी है। (यशा. 52:5, यहे. 36:20)
25 यदि तू व्यवस्था पर चले, तो खतने से लाभ तो है, परन्तु यदि तू व्यवस्था को न माने, तो तेरा खतना* बिन खतना की दशा ठहरा। (यिर्म. 4:4) 26 तो यदि खतनारहित मनुष्य व्यवस्था की विधियों को माना करे, तो क्या उसकी बिन खतना की दशा खतने के बराबर न गिनी जाएगी? 27 और जो मनुष्य शारीरिक रूप से बिन खतना रहा यदि वह व्यवस्था को पूरा करे, तो क्या तुझे जो लेख पाने और खतना किए जाने पर भी व्यवस्था को माना नहीं करता है, दोषी न ठहराएगा?
28 क्योंकि वह यहूदी नहीं जो केवल बाहरी रूप में यहूदी है; और न वह खतना है जो प्रगट में है और देह में है। 29 पर यहूदी वही है, जो आंतरिक है; और खतना वही है, जो हृदय का और आत्मा में है; न कि लेख का; ऐसे की प्रशंसा मनुष्यों की ओर से नहीं, परन्तु परमेश्वर की ओर से होती है। (फिलि. 3:3)
पौलुस यहाँ एक काल्पनिक यहूदी से विवाद करता है
यहाँ मूल भाषा में “अतः” का जो शब्द है वह एक नया अंश का आरंभ दर्शाता है साथ ही जो कहा जा चुका है उसका समाप्त भी दर्शाता है वैकल्पिक अनुवाद“क्योंकि परमेश्वर पाप करने वाले को दण्ड देता है, इसलिए वह निश्चय ही तेरे पापों को क्षमा नहीं करेगा”।
यहाँ “तू” शब्द एक वचन में है। पौलुस यहां किसी वास्तविक मनुष्य से बातें नहीं कर रहा है, परन्तु वह विवाद करने वाले एक काल्पनिक मनुष्य से प्रतिवाद कर रहा है। पौलुस अपने श्रोतागण को सिखाने के लिए ऐसा विवाद कर रहा है कि परमेश्वर पाप करने वाले को अवश्य दण्ड देता है, वह चाहे यहूदी हो या अन्यजाति
यहाँ मूल भाषा में “तू” के स्थान में है मनुष्य तू जो उसकी झिड़की का संकेत देता है क्योंकि मनुष्य परमेश्वर का स्थान लेकर मनुष्य पर दोष लगाता है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तू केवल एक मनुष्य है, परन्तु तू फिर भी मनुष्यों का न्याय करके कहता है कि वे परमेश्वर के दण्ड के योग्य हैं।”
यहाँ एक नया वाक्य आरंभ किया जा सकता है, “सच तो यह है कि तू इस प्रकार अपना ही न्याय करता है क्योंकि तू भी तो वैसे ही दुष्टता के काम करता है”।
यहाँ “हम” में मसीही विश्वासी एवं अविश्वासी यहूदी दोनों आते हैं।
“परमेश्वर सच्चा एवं निष्कपट न्याय करता है”
“जो दुष्टता के ऐसे काम करते हैं”
पौलुस एक काल्पनिक यहूदी से विवाद कर रहा है, जिसे वह प्रभावजनक प्रश्नों के द्वारा झिड़कता है।
“अतः” (यू.डी.बी.)
“विचार कर कि मैं क्या कह रहा हूँ”
यहाँ मनुष्य के लिए सामान्य शब्द का उपयोग करें।वैकल्पिक अनुवाद, “तू जो भी है”
“जो ऐसा कहता है कि कोई परमेश्वर” जो किसी को परमेश्वर के दण्ड का दोषी ठहराता है परन्तु स्वयं ही ऐसे काम करता है”।
वैकल्पिक अनुवाद, “तू भी परमेश्वर के दण्ड से नहीं बचेगा”।
वैकल्पिक अनुवाद, “तू तो ऐसा दिखाता है जैसे परमेश्वर का भला होना अर्थहीन है और कि वह दण्ड देने से पहले बहुत प्रतीक्षा करता है।
“उनके धन .... धीरज को महत्त्वहीन समझता है” या “उनको किसी काम का नहीं समझता”
यहाँ एक नया वाक्य आरंभ किया जा सकता है, “तुझे समझ लेना है कि परमेश्वर तुझे दिखाता है कि वह भला है जिससे कि तू पापों से विमुख हो जाए”।
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
पौलुस परमेश्वर की वाणी नहीं सुनने वाले और उसकी आज्ञा नहीं मानने वाले की तुलना एक कठोर पत्थर से करता है। मन संपूर्ण व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि तू सुनना नहीं चाहता, पापों से विमुख होना नहीं चाहता है”।
“कमा रहा है” अर्थात धन सम्पदा एकत्र करके सुरक्षित करना। पौलुस के कहने का अर्थ है धन-संग्रह के स्थान पर परमेश्वर के दण्ड का भण्डारण करना। वे मन फिराव में जितना विलम्ब करेंगे उतना ही अधिक उनका दण्ड कठोर होता जाएगा, वैकल्पिक अनुवाद , “तू अपने दण्ड को अधिकाधिक कठोर बनाता जा रहा है”।
ये एक ही दिन होगा विकल्प, “जब परमेश्वर सब पर प्रकट करेगा कि वह क्रोधित है और सबका निष्पक्ष न्याय करेगा” (यू.डी.बी.)
“निष्पक्षता के साथ प्रतिफल देगा या दण्ड देगा”
“मनुष्यों ने जैसे काम किए हैं उसके अनुसार हर एक को बदला देगा”।
“जिन्होंने सदैव भले कामों के द्वारा दर्शाया है कि वे महिमा, प्रतिष्ठा और शाश्वत जीवन के खोजी है, उन्हें वह सदा का जीवन देगा”।
इसका अर्थ है कि उनके काम ऐसे हैं कि न्याय के दिन उनके लिए परमेश्वर का निर्णय सकरात्मक होगा।
वे परमेश्वर से सुनाम और महिमा पाना चाहते हैं, तथा अमर हो जाना चाहते हैं।
शारीरिक अनश्वरता, न कि नैतिक, क्षय
उसी काल्पनिक यहूदी से पौलुस का विवाद चल रहा है।
“स्वार्थी” या “केवल अपनी प्रसन्नता के खोजी हैं”
परमेश्वर के क्रोध को व्यक्त करने के दो रूप हैं वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर अपना भयानक क्रोध प्रकट करेगा
यहाँ भी दो रूपों में एक ही बात कही गई है कि परमेश्वर के अति भयानक क्रोध को प्रकट करे। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “और अतिभयानक क्रोध दण्ड दिया जायेगा”
यहाँ पौलुस संपूर्ण मनुष्य को दर्शाने के लिए “प्राण” शब्द का उपयोग करता है विकल्प “प्रत्येक मनुष्य”
“जो सदैव बुराई में लिप्त रहता है”
एक नए वाक्य में दूसरा अनुवाद: "परमेश्वर यहूदियों को पहले दण्ड देगा तदोपरान्त गैर यहूदियों को"
क्योंकि शुभ सन्देश अन्यजातियों से पूर्व यहूदियों को सुनाया गया था। यहाँ मूल अर्थ है, 1) समय के क्रम में प्रथम, या 2) “निश्चय ही” (यू.डी.बी.)
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
“परन्तु परमेश्वर की महिमा, सम्मान और शान्ति के पात्र होंगे
“जो भलाई करने से चूकता नहीं है”
यह एक नया वाक्य बनाया जा सकता है, “परमेश्वर पहले यहूदियों को प्रतिफल देगा उसके बाद अन्यजातियों को प्रतिफल मिलेगा”।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे
“परमेश्वर एक जाति को दूसरी जाति से बड़ा या छोटा नहीं मानता है” विकल्प, “परमेश्वर सबके साथ समता का व्यवहार करता है”
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “क्योंकि जिन्होंने... पाप किए”।
“बिना व्यवस्था “ पौलुस इसे दोहराता इसलिए है कि वे परमेश्वर प्रदत्त मूसा के नियमों को नहीं जानते हैं। यदि वे पाप करेंगे तब परमेश्वर उन्हें भी दण्ड देगा। विकल्प, “मूसा द्वारा दिए गए नियमों को नहीं जानने वाले फिर भी आत्मिक मृत्यु के वारिस होते हैं।”
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “और वे सब जिन्होंने मूसा के नियमों के रहते हुए पाप किया”
“जो मूसा के नियमों को जानते हैं, उनका न्याय उन नियमों के पालन के आधार पर किया जाएगा।”
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
“अतः” यदि आपकी भाषा में पद 14 का आरंभ दर्शाने की विधि है और पौलुस के प्रमुख विवाद की व्यवस्था करने में, पाठक को अतिरिक्त जानकारी देने का प्रावधान है। हो सकता है कि आपको 2:14-15 या तो 2:13 के पहले या 2:16 के बाद व्यक्त करने की आवश्यकता हो।
“मूसा के नियमों को सुननेवाले नहीं”
“जो परमेश्वर को प्रसन्न करेंगे”
“परन्तु मूसा प्रदत्त नियमों का पालन करने वाले”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर उन्हें ग्रहण करेगा” (देखें:
“उनके मन में परमेश्वर प्रदत्त नियम रहते हैं”
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
“स्वभाविक रूप से ही वे जो नियम दर्शाते हैं उनका पालन करते हैं”
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर ने उनके मन में अंकित कर दिया है कि नियमों का कैसे पालन करें” या “वे भलिभांति जानते हैं कि नियम उन्हें क्या करने की आज्ञा देते हैं”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से ही किया जाए, “नियम अनिवार्यता प्रकट करते है” या “नियमों के अनुसार परमेश्वर क्या चाहता है”
“उनके मन विवेक में प्रकट करते हैं कि वे गलत कर रहे हैं या सही”
यहाँ पौलुस के विचारों का अन्त होता है एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “जिस दिन परमेश्वर न्याय करेगा तब ऐसा होगा”।
पौलुस का विवाद एक काल्पनिक यहूदी से ही चल रहा है।
अब इस पत्र का एक नया भाग आरंभ होता है। यहाँ “यदि” का अर्थ यह नहीं है कि पौलुस को सन्देह है या वह अनिश्चित है। वह इस कथन की यर्थाथता पर बल दे रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम स्वयं को यहूदी समुदाय का सदस्य मानते हो”
“और तू मूसा प्रदत्त नियमों पर निर्भर करता है तथा परमेश्वर पर घमण्ड करता है।”
इसका अनुवाद किया जा सकता है, “पथ-भ्रष्ट किए गए थे”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “क्योंकि तू जानता है कि मूसा ने जो नियम दिए उनकी शिक्षा क्या है”
यदि आपकी भाषा में 2:19-20 को पौलुस का मुख्य विचार दर्शाने की सुविधा है तो इसका यहाँ उपयोग करें। 2:17/17/18 और 02:21 (21) हो सकता है कि आपके अनुवाद में 2:19-20 को 2:17 के पहले रखने की आवश्यकता हो।
“तू निश्चय है”
इन दोनों उक्तियों का तात्पर्य एक ही है। एक यहूदी किसी को जो देख नहीं सकता, सहायता के लिए उसे यहूदी नियम बताता है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “तू उस मार्गदर्शक के तुल्य है जो किसी अंधे मनुष्य को मार्ग दिखाता है, और तू अन्धकार में भटके हुए मनुष्य के लिए प्रकाश जैसा है।
इसका अनुवाद एक नये वाक्य में किया जा सकता है, “तू अनुचित कार्य करने वालों को सुधारता है”
परमेश्वर प्रदत्त मूसा के नियमों के अज्ञानियों को पौलुस बालक कहता है। वैकल्पिक अनुवाद, “तू उनको शिक्षा देता है जो मूसा द्वारा लाए गए नियमों को नहीं जानते हैं।”
“क्योंकि तुझे विश्वास है कि तू मूसा द्वारा लाए गए नियमों में निहित सत्य को समझता है।”
पौलुस एक काल्पनिक यहूदी से विवाद कर रहा है जिसे वह प्रभावजनक प्रश्नों के द्वारा झिड़कता है।
पौलुस अपने श्रोता को झिड़कने के लिए इस प्रश्न का उपयोग कर रहा है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “परन्तु तू दूसरों को शिक्षा देता है स्वयं को क्यों नहीं सिखा पाता”
पौलुस अपने श्रोता को प्रश्न के माध्यम से झिड़कता है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तू चोरी न करने की शिक्षा देकर स्वयं चोरी करता है”।
पौलुस अपने श्रोता को झिड़कने के लिए प्रश्न का उपयोग कर रहा है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तू व्यभिचार न करने की शिक्षा देकर स्वयं व्यभिचार करता है”।
पौलुस अपने श्रोता को प्रश्न के माध्यम से झिड़कता है। इसके अनुवाद में एक नया वाक्य बनाया जा सकता है, “तू कहता है कि तुझे मूर्तियों से घृणा है परन्तु स्वयं मन्दिरों में चोरी करता है।”
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “स्थानीय मन्दिरों का सामान चुराकर बेचता है।" 2) "यरूशलेम के मन्दिर में जो पैसा परमेश्वर के लिए है उसे पूरा नहीं भेजता है।" 3)“स्थानीय देवताओं का उपहास करता है”
पौलुस एक काल्पनिक यहूदी से विवाद कर रहा है जिसे वह प्रभावजनक प्रश्नों द्वारा झिड़कता है।
पौलुस प्रश्न के माध्यम से अपने श्रोता को झिड़कता है। “तू व्यवस्था पर घमण्ड करता है तो वह तेरी दुष्टता है क्योंकि तू उसका उल्लंघन करके अन्यजातियों के मन में परमेश्वर के लिए लज्जा उत्पन्न करवाता है।
यहाँ “नाम” शब्द परमेश्वर की पूर्णता का प्रतीक है केवल नाम का ही नहीं। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “तुम्हारे ऐसी दुष्टता के काम अन्यजातियों के मन में परमेश्वर के लिए निन्दा उत्पन्न करते हैं।
पौलुस एक काल्पनिक यहूदी से विवाद कर रहा है जिसे वह प्रभावजनक प्रश्नों द्वारा झिड़कता है।
“मैं यह सच कहता हूँ, क्योंकि खतना करवाना निश्चय ही तुझे लाभ पहुँचाता है।”
यदि तू व्यवस्था न माने - “यदि तू उन नियमों का पालन करे जो विधान में निहित हैं”
यह नियमों के उल्लंघन करनेवाले की तुलना उस मनुष्य से करता है जिसका शारीरिक खतना हो गया परन्तु वह इस विधि को विपरीत कर देता है। वह चाहे यहूदी हो, वह वास्तव में एक अन्यजाति ही हुआ। “यह तो ऐसा है जैसे तेरा खतना नहीं हुआ”
“जिस मनुष्य का खतना नहीं हुआ”
“विधान में जो आज्ञाएं हैं उनका पालन करे”
पौलुस इस प्रश्न के द्वारा इस बात पर बल दे रहा है कि खतना अपने आप में मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष धर्मी नहीं बनाता है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में भी किया जा सकता है, “परमेश्वर तो उसे खतना किया हुआ ही मानेगा, “जिनका खतना नहीं हुआ वह तुझे... दोषी ठहराएगा”।
“जिसके पास लिखित धर्मशास्त्र है और जिसका खतना भी हुआ है परन्तु नियमों का पालन नहीं करता”।
अर्थात् दिखाई देने वाली यहूदी विधियों द्वारा
यह पुरूष के गुप्त अंग पर एक चिन्ह है जो एक धार्मिक संसार है।
यह दो प्रमाण हैं कि “जो मन से यहूदी है वही सच्चा यहूदी है। इससे इस उक्ति की परिभाषा समझ में आ जाती है, “खतना वही है जो हृदय का है।”
यह परमेश्वर द्वारा परिवर्तित मनुष्य के मान और अभिप्रेरणा को प्रकट करता है।
यह संभवतः मनुष्य के भीतर उसके आत्मिक मनुष्यत्व का संदर्भ देता है, बाहरी “विधान” की तुलना में। तथापि यह भी संभत है कि इसका संदर्भ पवित्र आत्मा से है (देखें यू.डी.बी.)
यहाँ “लेखा” से अभिप्राय है लिखित धर्मशास्त्र। वैकल्पिक अनुवाद, “पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार न कि नियमों की जानकारी के अनुसार”।
दोष लगाने वाले निरुत्तर हैं क्योंकि वे जिस बात का दोष लगाते हैं उसी के वे भी दोषी हैं।
परमेश्वर जब अधर्म के काम करने वालों का न्याय करता है तब वह सत्य के आधार पर ऐसा करता है।
परमेश्वर का धीरज और उसकी भलाई मनुष्य के मन फिराने के उद्देश्य से है।
कठोर और हठीले मन वाले लोग परमेश्वर के धर्मी न्याय के दिन के लिए क्रोध कमा रहे हैं।
जो लगातार अच्छे काम करते हैं उन्हें अनन्त जीवन का दान मिलेगा।
जो अधर्म को मानते हैं उन पर क्रोध और कोप और क्लेश और संकट आ पड़ेगा।
परमेश्वर पक्षपात नहीं करता है, यहूदी हो या यूनानी पाप करने वाला नष्ट ही होगा।
व्यवस्था पालन करने वाले परमेश्वर के सम्मुख धर्मी ठहराए जाएंगे।
अन्य जाति व्यवस्था की बातों को पूरा करके दिखाते है कि व्यवस्था की अनिवार्यताएं उसके मन में लिखी हैं।
पौलुस उन्हें चुनौती देता है कि जब वे किसी को व्यवस्था सिखाते हैं तो वे स्वयं को भी सिखाएं।
पौलुस चोरी और व्यभिचार और मन्दिर लूटने के पापों का उल्लेख करता है।
परमेश्वर के नाम की निन्दा होती है क्योंकि व्यवस्था के यहूदी शिक्षक व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं।
पौलुस कहता है कि यदि कोई यहूदी व्यवस्था का उल्लंघन करे तो उसका खतना खतनारहित हो सकता है।
पौलुस कहता है कि अन्य जाति मनुष्य को खतनाधारी माना जा सकता है यदि वह व्यवस्था की अनिवार्यताओं को पूरा करता है।
पौलुस कहता है कि एक सच्चा यहूदी मन से यहूदी होता है, उसके मन का खतना होता है।
एक सच्चा यहूदी परमेश्वर से प्रशंसा पाता है।
1 फिर यहूदी की क्या बड़ाई, या खतने का क्या लाभ? 2 हर प्रकार से बहुत कुछ। पहले तो यह कि परमेश्वर के वचन उनको सौंपे गए। (रोम. 9:4)
3 यदि कुछ विश्वासघाती निकले भी तो क्या हुआ? क्या उनके विश्वासघाती होने से परमेश्वर की सच्चाई व्यर्थ ठहरेगी? 4 कदापि नहीं! वरन् परमेश्वर सच्चा और हर एक मनुष्य झूठा ठहरे, जैसा लिखा है,
“जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे
और न्याय करते समय तू जय पाए।” (भज. 51:4, भज. 116:11)
5 पर यदि हमारा अधर्म परमेश्वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें? क्या यह कि परमेश्वर जो क्रोध करता है अन्यायी है? (यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ)। 6 कदापि नहीं! नहीं तो परमेश्वर कैसे जगत का न्याय करेगा?
7 यदि मेरे झूठ के कारण परमेश्वर की सच्चाई उसकी महिमा के लिये अधिक करके प्रगट हुई, तो फिर क्यों पापी के समान मैं दण्ड के योग्य ठहराया जाता हूँ? 8 “हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले*?” जैसा हम पर यही दोष लगाया भी जाता है, और कुछ कहते हैं कि इनका यही कहना है। परन्तु ऐसों का दोषी ठहराना ठीक है।
9 तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं। 10 जैसा लिखा है:
“कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। (सभो. 7:20)
11 कोई समझदार नहीं;
कोई परमेश्वर को खोजनेवाला नहीं।
12 सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए;
कोई भलाई करनेवाला नहीं, एक भी नहीं। (भज. 14:3, भज. 53:1)
13 उनका गला खुली हुई कब्र है:
उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है:
उनके होंठों में साँपों का विष है। (भज. 5:9, भज. 140:3)
14 और उनका मुँह श्राप और कड़वाहट से भरा है। (भज. 10:7)
15 उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं।
16 उनके मार्गों में नाश और क्लेश है।
17 उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना। (यशा. 59:8)
18 उनकी आँखों के सामने परमेश्वर का भय नहीं।” (भज. 36:1)
19 हम जानते हैं, कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के अधीन हैं इसलिए कि हर एक मुँह बन्द किया जाए, और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे। 20 क्योंकि व्यवस्था के कामों* से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिए कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहचान होती है। (भज. 143:2)
21 पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं, 22 अर्थात् परमेश्वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालों के लिये है। क्योंकि कुछ भेद नहीं;
23 इसलिए कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा* से रहित है, 24 परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत-मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।
25 उसे परमेश्वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए, और जिन पर परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से ध्यान नहीं दिया; उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे। 26 वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।
27 तो घमण्ड करना कहाँ रहा? उसकी तो जगह ही नहीं। कौन सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्वास की व्यवस्था के कारण। 28 इसलिए हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है।
29 क्या परमेश्वर केवल यहूदियों का है? क्या अन्यजातियों का नहीं? हाँ, अन्यजातियों का भी है।
30 क्योंकि एक ही परमेश्वर है, जो खतनावालों को विश्वास से और खतनारहितों को भी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा। 31 तो क्या हम व्यवस्था को विश्वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते हैं? कदापि नहीं! वरन् व्यवस्था को स्थिर करते हैं।
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद में ऐसे प्रश्नों का उत्तर दे रहा है जो वह पूछ सकता है।
वैकल्पिक अनुवाद, “अतः यहूदियों को परमेश्वर की वाचा का कोई लाभ नहीं जबकि परमेश्वर तो लाभ की प्रतिज्ञा की थी”
“लाभ तो बहुत है”
वैकल्पिक अनुवाद, “समय के क्रम में पहले” या “अति निश्चित रूप से” (देखें यू.डी.बी.) या “आवश्यक रूप से”
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद कर रहा है और ऐसे मनुष्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे रहा है।
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों द्वारा मनुष्यों को सोचने पर विवश करता है। कुछ यहूदियों के साथ स्वामिभक्ति नहीं निभाते तो कुछ का कहना था कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं करेगा।
“असंभव है”। या “निश्चय ही नहीं” यह अभिव्यक्ति दृढ़ता से इन्कार करती है कि ऐसा होने की संभावना है। आप अपनी भाषा में ऐसी ही अभिव्यक्ति को काम में लेना चाहेंगे।
“इसकी अपेक्षा हमें कहना है”
“यहूदी धर्मशास्त्र भी मेरी बात से सहमत है”
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद कर रहा है और ऐसे मनुष्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे रहा है।
पौलुस इन शब्दों को उस काल्पनिक यहूदी के मुँह में रख रहा है जिससे वह बात कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि हमारी ईश्वर-भक्ति दर्शाती है कि परमेश्वर न्यायोचित है मैं एक प्रश्न पूछता हूँ”
यदि आप यह वैकल्पिक अनुवाद काम में ले रहे हैं तो सुनिश्चित करें कि पाठक को समझ में आ जाए कि इसका उत्तर “नहीं” है। क्या परमेश्वर जो मनुष्यों पर क्रोध करता है, वह न्यायोचित नहीं है”?
“मैं एक अलग मनुष्य के सदृश्य कह रहा हूँ,
पौलुस इस प्रभावोत्पाद प्रश्न द्वारा दर्शाता है कि मसीही शुभ सन्देश के विरूद्ध विवाद करना बेतुका है, क्योंकि सब यहूदियों का मानना है कि परमेश्वर मुनष्यों का न्याय कर सकता है वरन करता भी है और हम सब जानते हैं कि परमेश्वर वास्तव के संसार का न्याय करेगा”।
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद कर रहा है और ऐसे मनुष्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे रहा है।
यहाँ पौलुस कल्पना करता है कि एक मनुष्य मसीही सुसमाचार का परित्याग करता है; तो बैरी विवाद करता है कि परमेश्वर उसे न्याय के दिन पापी न ठहराए यदि उदाहरणार्थ उसने झूठ कहा है।
यह पौलुस का अपना प्रश्न है जो दर्शाता है कि उसके काल्पनिक विरोधों का विवाद कैसा बेतुका है, वैकल्पिक अनुवाद, “उचित तो यह होगा कि मैं कहूँ कि हम बुरे काम करें कि परिणामस्वरूप भलाई उत्पन्न हो”।
वैकल्पिक अनुवाद
परमेश्वर, पौलुस के इन बैरियों को जब दण्ड देगा तब वह न्यायनिष्ठ ही होगा, क्योंकि वे पौलुस की शिक्षा के बारे में झूठी बातें कहते हैं।
पौलुस उस काल्पनिक यहूदी के साथ विवाद कर रहा है और ऐसे मनुष्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे रहा है।
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) हम विश्वासी जन उन दुष्टता के कामों को नहीं छिपाते जिनके लिए हमें कहा जाता है कि हम करते हैं। या 2) हम यहूदियों को कल्पना करने की आवश्यकता नहीं कि हम परमेश्वर क दण्ड से बच जाएंगे क्योंकि हम यहूदी हैं। (यू.डी.बी.)
ये शब्द मात्र “नहीं” से अधिक प्रबल हैं परन्तु इतने प्रबल भी नहीं जितने “कदापि नहीं” होते हैं।
“कोई भी परमेश्वर के सत्य को नहीं समझता है”
“कोई भी नहीं है जो परमेश्वर के साथ न्यायोचित संबन्ध बनाने का प्रयास करता है”
“सबने परमेश्वर का त्याग करके उस धर्मपराण्यता इच्छा तिरस्कार किया है”।
“जहाँ तक उनके लिए परमेश्वर की इच्छा का प्रश्न है, सब निकम्मे हो गए हैं”
“यहूदियों और यूनानियों”
पौलुस एक अलंकार द्वारा दर्शा रहा है कि मनुष्य की हर एक बात धर्मविरोधी एवं घृणाजन्य है
“मनुष्य झूठ बोलते हैं”
“मनुष्य जो भी कहता है वह हानिकारक है और अन्यों की हानि के अभिप्राय से होता है”।
“यहूदी और यूनानी”
“वे मनुष्यों को हानि पहुंचाने और उनकी हत्या करने के लिए विलम्ब नहीं करते हैं”।
“हर एक मनुष्य की जीवनशैली ऐसी है कि वे जानबूझ अन्यों को नाश करना चाहते हैं और उन्हें कष्ट पहुँचाना चाहते हैं।
“मार्ग” अर्थात “रास्ता”, “पथ” इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “अन्यों के साथ मेल-मिलाप से कैसे रहना है” (देखें:
“परमेश्वर को उसके योग्य सम्मान अर्पित करने से सब इन्कार करते है”
“मनुष्यों के लिए नियमों के पालन की जो भी अनिवार्यता है वह उनके लिए ही है” या “मूसा ने विधान में जितनी भी आज्ञाएँ दी है, वे उनके लिए है”
“कि कोई भी अपने प्रतिवाद में कुछ भी न कहने पाए जो उचित हो” कर्तृवाच्य वाक्य में इसका अनुवाद हो सकता है, इस प्रकार परमेश्वर मनुष्य को इस योग्य नहीं छोड़ता है कि वह कहे, “मैं निर्दोष हूँ”
इसके अर्थ हो सकते हैं, 1) “कि” या 2) “और इस प्रकार” या 3) “वरन”
“जब मनुष्य को परमेश्वर के नियमों का ज्ञान होता है तो उसे यह बोध हो जाता है कि धार्मिकता नहीं, परमेश्वर की दृष्टि में पापी है”
पौलुस अपनी प्रस्तावना समाप्त करके अब अपना प्रमुख विचार व्यक्त करना चाहता है।
“अब” शब्द उस समय के संदर्भ में है जब से यीशु इस पृथ्वी पर आया।
इसका अनुवाद एक सक्रिय क्रिया के रूप में किया जा सकता है : "परमेश्वर ने प्रगट नहीं किया"
इसका संबन्ध “न्यायोचित होने” से है, न कि “ऐसी विधि प्रकट की है” से है।
“व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता” यहूदी धर्मशास्त्र के उस अंश को दर्शाते हैं जिसकी रचना मूसा और भविष्यद्वक्ताओं ने की है जिस प्रकार कि कोई न्यायालय में गवाही देने जा रहा है। इसका वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “मूसा और भविष्यद्वक्ताओं ने जो कहा वह इसको सत्यापित करते हैं
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “मैं इस धार्मिकता के विषय में कह रहा हूँ जो परमेश्वर हमें देता है जब हम मसीह यीशु में विश्वास करते है”।
“क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में यहूदी और अन्यजाति बराबर हैं”
उसके अनुग्रह उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है - इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है। “परमेश्वर ने अपनी करूणा के द्वारा उन्हें न्यायोचित ठहराया है क्योंकि मसीह यीशु ने उन्हें मुक्ति दिलाई है।
इसके अर्थ हो सकते हैं, 1) अनदेखा करना, या 2) क्षमा करना।
“उसने इस समय अपनी न्यायनिष्ठा को प्रकट करने के लिए ऐसा किया वह दर्शाता है कि वह न्यायनिष्ठ है और यीशु में विश्वास करने वाले हर एक मनुष्य को न्यायोचित ठहराता है।
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों का उत्तर देकर प्रबलता-पूर्वक दर्शाना चाहता है कि वह जो बात कह रहा है वह निश्चय ही सच है।
“किस कारण से? या “घमण्ड का निराकरण क्यों?” या “हम घमण्ड क्यों नहीं कर सकते हैं”?
“घमण्ड का निराकरण क्या नियमों के पालन करने के कारण है”
“क्योंकि हम यीशु में विश्वास करते हैं”
“पृथक होकर”
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों का ही उत्तर दे रहा है कि उसके द्वारा कही गई बात का महत्त्व प्रकट हो।
“यदि परमेश्वर केवल उसके नियमों का पालन करनेवालों ही को धर्मी ठहराता है तो क्या वह केवल यूहदियों का ही परमेश्वर नहीं हुआ”?
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों का ही उत्तर दे रहा है कि उसके द्वारा कही गई बात का महत्त्व प्रकट हो।
वैकल्पिक अनुवाद, “क्या हम विश्वास के कारण नियमों के विधान का निराकरण करें?
“यह तो सच हो ही नहीं सकता”। या “ऐसा कभी नहीं हो सकता” (यू.डी.बी.) यह उक्ति पूर्व व्यक्त प्रभावोत्पादक प्रश्न की अति प्रबल नकारात्मक अभिव्यक्ति है। आप अपनी भाषा में ऐसी ही अभिव्यक्ति काम में लेना चाहेंगे।
वैकल्पिक अनुवाद, “हम नियमों का पालन करते हैं”।
इस सर्वनाम का संदर्भ पौलुस से, अन्य विश्वासियों से तथा पाठकों से है।
यहूदियों के सौभाग्यों में सबसे पहला है, उन्हें परमेश्वर का प्रकाशन सौंपा गया है।
यद्यपि हर एक मनुष्य झूठा है, परमेश्वर सच्चा है।
क्योंकि परमेश्वर धर्मी है, वह संसार का न्याय करने योग्य है।
जो कहता है, "हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले" वे दोषी ठहराए जाएंगे।
लिखा है, कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
जो लिखा है उसके अनुसार कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं।
व्यवस्था के कामों से कोई धर्मी नहीं ठहरेगा।
पाप का बोध व्यवस्था से होता है।
व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की गवाही द्वारा व्यवस्थारहित धार्मिकता प्रकट हुई है।
व्यवस्थारहित धार्मिकता मसीह में विश्वास के द्वारा सब विश्वासियों के लिए परमेश्वर की धार्मिकता है।
मनुष्य मसीह यीशु में निहित उद्धार के द्वारा परमेश्वर के सम्मुख उसके अनुग्रह से निर्मोल धर्मी ठहरता है।
परमेश्वर ने विश्वास के द्वारा मसीह के लहू के कारण प्रायश्चित्त ठहराया है।
परमेश्वर ने प्रकट किया कि वही है जो किसी को भी यीशु में विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराता है।
मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराया जाता है।
परमेश्वर दोनों को विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराता है।
हम विश्वास के द्वारा व्यवस्था को स्थिर करते हैं।
1 तो हम क्या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता अब्राहम को क्या प्राप्त हुआ? 2 क्योंकि यदि अब्राहम कामों से धर्मी ठहराया जाता*, तो उसे घमण्ड करने का कारण होता है, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं। (उत्प. 15:6) 3 पवित्रशास्त्र क्या कहता है? यह कि “अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।”
4 काम करनेवाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु हक़ समझा जाता है।
5 परन्तु जो काम नहीं करता वरन् भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना जाता है।
6 जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाऊद भी धन्य कहता है:
7 “धन्य वे हैं, जिनके अधर्म क्षमा हुए,
और जिनके पाप ढांपे गए।
8 धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।” (भज. 32:2)
9 तो यह धन्य वचन, क्या खतनावालों ही के लिये है, या खतनारहितों के लिये भी? हम यह कहते हैं, “अब्राहम के लिये उसका विश्वास धार्मिकता गिना गया।” 10 तो वह कैसे गिना गया? खतने की दशा में या बिना खतने की दशा में? खतने की दशा में नहीं परन्तु बिना खतने की दशा में।
11 और उसने खतने का चिन्ह* पाया, कि उस विश्वास की धार्मिकता पर छाप हो जाए, जो उसने बिना खतने की दशा में रखा था, जिससे वह उन सब का पिता ठहरे, जो बिना खतने की दशा में विश्वास करते हैं, ताकि वे भी धर्मी ठहरें; (उत्प. 17:11) 12 और उन खतना किए हुओं का पिता हो, जो न केवल खतना किए हुए हैं, परन्तु हमारे पिता अब्राहम के उस विश्वास के पथ पर भी चलते हैं, जो उसने बिन खतने की दशा में किया था।
13 क्योंकि यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न अब्राहम को, न उसके वंश को व्यवस्था के द्वारा दी गई थी, परन्तु विश्वास की धार्मिकता के द्वारा मिली। 14 क्योंकि यदि व्यवस्थावाले वारिस हैं, तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी। 15 व्यवस्था तो क्रोध उपजाती है और जहाँ व्यवस्था नहीं वहाँ उसका उल्लंघन भी नहीं।
16 इसी कारण प्रतिज्ञा विश्वास पर आधारित है कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि वह सब वंश के लिये दृढ़ हो, न कि केवल उसके लिये जो व्यवस्थावाला है, वरन् उनके लिये भी जो अब्राहम के समान विश्वासवाले हैं वही तो हम सब का पिता है 17 जैसा लिखा है, “मैंने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है” उस परमेश्वर के सामने जिस पर उसने विश्वास किया* और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उनका नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं। (उत्प. 17:15)
18 उसने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिए कि उस वचन के अनुसार कि “तेरा वंश ऐसा होगा,” वह बहुत सी जातियों का पिता हो। 19 वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ, (इब्रा. 11:11)
20 और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की, 21 और निश्चय जाना कि जिस बात की उसने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में भी सामर्थी है। 22 इस कारण, यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।
23 और यह वचन, “विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया,” न केवल उसी के लिये लिखा गया*, 24 वरन् हमारे लिये भी जिनके लिये विश्वास धार्मिकता गिना जाएगा, अर्थात् हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। 25 वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया। (यशा. 53:5, यशा. 53:12)
पौलुस प्रभावोत्पादक प्रश्नों का ही उत्तर दे रहा है कि उसके द्वारा कही गई बात का महत्त्व प्रकट हो।
“हमारे पूर्वज अब्राहम ने यही तो पाया। पौलुस पाठकों का ध्यानाकर्षित करने हेतु प्रश्न पूछ कर एक नई बात कहता है।
" हम इसे पवित्र शास्त्र में देख सकते है"
“और परमेश्वर अब्राहम को धर्मी कहा”।
वैकल्पिक अनुवाद: इसी कारण दाऊद भी उस मनुष्य को आशीषित कहता है जिसे परमेश्वर कर्मों बिना धर्मी कहता है”।
वैकल्पिक अनुवाद, “जिसके अपराध परमेश्वर ने ढाँप दिए... जिनके पापों का लेखा परमेश्वर ने मिटा दिया”। यहाँ एक ही विचार को तीन विभिन्न अभिव्यक्तियों में प्रकट किया गया है, दो भिन्नार्थक शब्द तीन भिन्नार्थक शब्द होते हैं।
वैकल्पिक अनुवाद, “क्या परमेश्वर केवल उनको ही आशीष देता है जिनका खतना हुआ है या जिनका खतना नहीं हुआ है उनको भी।
पौलुस यहूदियों और गैर यहूदियों दोनों ही के लिए कहता है।
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर ने अब्राहम के विश्वास को धर्मी माना था”।
“खतना एक प्रकट चिन्ह था कि परमेश्वर ने उसे खतना करवाने से पहले परमेश्वर में विश्वास करने के कारण न्यायोचित ठहरा दिया था।
वैकल्पिक अनुवाद, “उन्होंने खतना नहीं करवाया तौभी”
वैकल्पिक अनुवाद, “कि परमेश्वर उन्हें धर्मी माने।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर उन्हें ग्रहण करेगा” (देखें:
परन्तु विश्वास की धार्मिकता के द्वारा मिली इस वाक्य में परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की, छोड़ दिया गया है क्योंकि वह समझा जा सकता है। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु परमेश्वर ने इसमें विश्वास ही के कारण यह प्रतिज्ञा की थी जिसे वह न्यायोचित मानता है”।
वैकल्पिक अनुवाद, यदि परमेश्वर प्रदत्त मूसा के नियमों का पालन करनेवाले पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
तो विश्वास का कोई अर्थ नहीं और प्रतिज्ञा व्यर्थ हो गई”।
“परन्तु यदि नियम न हों तो उनके उल्लंघन का प्रश्न ही नहीं उठता है। इसका अनुवाद सकारात्मक वाक्य में भी किया जा सकता है, मनुष्य नियमों का उल्लंघन तब ही करता है जब नियम हों”।
“परमेश्वर में विश्वास करने पर हमें आशिष पाने का कारण है कि वह उपहार हो”।
“कि अब्राहम का संपूर्ण वंश निश्चय ही प्रतिज्ञाओं के वारिस हों।
अर्थात यहूदी जो परमेश्वर प्रदत्त मूसा के नियमों को मानते हैं।
वे जो अब्राहम के सदृश्य विश्वास रखते हैं अर्थात उसके खतने से पूर्व का विश्वास ।
यहाँ “हम” का अभिप्राय पौलुस तथा सब विश्वासी चाहे वे यहूदी हैं या गैर यहूदी। अब्राहम यहूदियों का शारीरिक पूर्वज था परन्तु वह मसीह के विश्वासियों का आत्मिक पिता है।
जहाँ लिखा है वह स्पष्ट किया जा सकता हैः “जैसा धर्मशास्त्र में लिखा है”
यहाँ “तू” शब्द एक वचन है और अब्राहम का बोध करवाता है
इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “अब्राहम परमेश्वर की उपस्थिति में था जिस पर उसने विश्वास किया था और वह मृतकों को जीवन दान देता है”
इसका पूर्ण अर्थ स्पष्ट व्यक्त किया जा सकता है, “यद्यपि इसके लिए वंश उत्पन्न करना असंभव था”
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “और अब्राहम द्वारा विश्वास करने का परिणाम यह हुआ कि वह अनेक जातियों का पिता हुआ”।
“ठीक उसी बात पर जो परमेश्वर ने उससे कहीं थी”
यहाँ परमेश्वर की पूरी प्रतिज्ञा को स्पष्ट व्यक्त किया जा सकता है, “तेरा वंश अनगिनत होगा”
वैकल्पिक अनुवाद, “विश्वास में दृढ़ रहा”
यहाँ अब्राहम की वृद्धावस्था और सन्तानोत्पत्ति में सारा को अक्षम होने को मृतक तुल्य माना गया है। इसका बल इस बात पर है कि उनके लिए सन्तान उत्पन्न करना असंभव था। वैकल्पिक अनुवाद, “अब्राहम जानता था कि वह बहुत वृद्ध था और सारा सन्तान उत्पन्न नहीं कर सकती थी।
“सन्देह कभी नहीं किया”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, परन्तु उसका विश्वास दृढ़ होता गया”
“और परमेश्वर की स्तुति की”
“अब्राहम को पूर्ण निश्चय था”
“परमेश्वर में उसे पूरा करने की सामर्थ्य है
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर ने अब्राहम के विश्वास को धर्मी कहा” या “परमेश्वर ने अब्राहम को धर्मी कहा क्योंकि उसने विश्वास किया था।
इस शब्द के द्वारा पत्र के एक नए भाग का आरंभ होता है। पौलुस अब्राहम के बारे में बातें करने से हट कर अब मसीह के विश्वासियों के बारे में बातें करेगा।
“न केवल अब्राहम के लिए”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है, “परमेश्वर ने उसे धर्मी माना” या “परमेश्वर ने उसे धर्मी गिना”
“हमारे” का अभिप्राय है पौलुस और सब विश्वासी
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “यह हमारे लाभ के लिए भी था क्योंकि परमेश्वर हमें भी धर्मी कहेगा यदि हम विश्वास करें”।
“परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर ने उसे उसके हत्यारों के हाथों में दे दिया था”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “जिसे परमेश्वर ने पुनः जीवित किया कि हम परमेश्वर के साथ उचित संबन्ध में हो जाएं”।
यदि अब्राहम कामों द्वारा धर्मी ठहरता तो उसके पास गर्व करने का कारण होता।
पवित्र शास्त्र स्पष्ट कहता है कि अब्राहम ने परमेश्वर में विश्वास किया और वह उसके लिए धार्मिकता गिना गया।
परमेश्वर अधर्मी को धर्मी ठहराता है।
दाऊद कहता है कि धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म क्षमा हुए और धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।
अब्राहम के खतने से पूर्व वह विश्वास द्वारा धर्मी ठहराया गया था।
अब्राहम सब विश्वासियों का पिता है चाहे वे धर्मी खतना वाले हों या खतनारहित हों।
अब्राहम और उसके वंशजों से प्रतिज्ञा की गई थी कि वे संसार के उत्तराधिकारी होंगे।
यदि प्रतिज्ञा व्यवस्था द्वारा आई थी तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी।
प्रतिज्ञा विश्वास के कारण दी गई थी कि वह अनुग्रह के कारण हो वह सच हो।
पौलुस कहता है कि परमेश्वर मृतकों में जान डालता है और जो नहीं है उसे अस्तित्व में लाता है।
जब परमेश्वर ने अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी तब वह सौ वर्ष का था और सारा का गर्भ मरा हुआ था।
अब्राहम परमेश्वर पर लगातार विश्वास करता रहा और अविश्वास में संकोच नहीं किया।
यह वचन अब्राहम ही के लिए नहीं परन्तु हमारे लिए भी लिखा गया है।
हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने यीशु को मृतकों में से जिलाया, वह हमारे पापों के लिए पकड़वाया गया था और हमें धर्मी ठहराने के लिए जिलाया भी गया।
1 क्योंकि हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें, 2 जिसके द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक जिसमें हम बने हैं, हमारी पहुँच* भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें।
3 केवल यही नहीं, वरन् हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज, 4 और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है; 5 और आशा से लज्जा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।
6 क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा। 7 किसी धर्मी जन* के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है; परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का धैर्य दिखाए।
8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। 9 तो जब कि हम, अब उसके लहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा परमेश्वर के क्रोध से क्यों न बचेंगे?
10 क्योंकि बैरी होने की दशा में उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ, फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएँगे? 11 और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा, जिसके द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर में आनन्दित होते है।
12 इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया। (1 कुरि. 15:21-22) 13 क्योंकि व्यवस्था के दिए जाने तक पाप जगत में तो था, परन्तु जहाँ व्यवस्था नहीं, वहाँ पाप गिना नहीं जाता।
14 तो भी आदम से लेकर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगों पर भी राज्य किया*, जिन्होंने आदम की आज्ञाकारिता के समान पाप नहीं किया, जो उस आनेवाले का चिन्ह है।
15 पर जैसी अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुत से लोगों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ।
16 और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुत से अपराधों से ऐसा वरदान उत्पन्न हुआ कि लोग धर्मी ठहरे। 17 क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्मरूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे।
18 इसलिए जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धार्मिकता का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। 19 क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।
20 व्यवस्था* बीच में आ गई कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहाँ पाप बहुत हुआ, वहाँ अनुग्रह उससे भी कहीं अधिक हुआ, 21 कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिये धर्मी ठहराते हुए राज्य करे।
“इस कारण”
"हम और अपना" यह दो शब्द सब विश्वासियों के लिए हैं और समाविष्ट करना हैं
“अपने प्रभु यीशु मसीह के कारण”
पौलुस कृपा प्राप्त विश्वासियों की तुलना उस मनुष्य से करता है जो एक राजा के सम्मुख खड़ा होने के योग्य होता है। क्योंकि हम यीशु में विश्वास करते हैं परमेश्वर के कृपापात्र होकर उसके समक्ष उपस्थित हो सकते हैं।
“हम आनन्द करते है क्योंकि हमें परमेश्वर की महिमा के अनुभव की आशा है।”
“यह” शब्द उन विचारों के संदर्भ में है जिनके वर्णन में किया गया है।
"हम हमारा हमारे" शब्द सब विश्वासियों का संदर्भ देते हैं और आवश्यक है कि वे समावेशी हैं
अर्थात् परमेश्वर कहे, “अच्छा है”
वैकल्पिक अनुवाद, “आशा”
“हम” शब्द सब विश्वासियों के लिए है अतः इसे समावेशी होना है,
वैकल्पिक अनुवाद, “दर्शाता है” या “सिद्ध करता है”
“हम” और “हमारे”, ये सब शब्द समस्त विश्वासियों के लिए है। अतः इन्हें समावेश होना है।
वैकल्पिक अनुवाद, “अब क्योंकि हम उसके लहू के द्वारा धर्मी ठहरे तो वह हमारे लिए अब कितना अधिक कुछ करेगा”।
“हम” के सब रूप विश्वासियों का संदर्भ देते है, इसलिए इन्हें समावेश होना आवश्यक है।
“परमेश्वर के पुत्र... परमेश्वर के पुत्र के जीवन”
“अब क्योंकि हम पुनः उसके मित्र हैं” “वैकल्पिक अनुवाद, “अब क्योंकि परमेश्वर हमें पुनः अपना मित्र मानता है”
अग्रिम शब्द पौलुस के पिछला विवाद पर आधारित हैं कि सब विश्वासी विश्वास के द्वारा धर्मी माने जाते हैं। (यू.डी.बी.)
पौलुस “पाप” को एक घातक बात कहता है, जिसका आगमन “एक मनुष्य” आदम द्वारा स्थान देने से हुआ और “पाप” एक ऐसा द्वार बन गया जिसके द्वारा एक घातक बात, “मृत्यु” ने संसार में प्रवेश किया। (देखें: )
“तथापि” या “आदम के समय से लेकर मूसा तक लिखित नियमावली नहीं थी परन्तु”
पौलुस मृत्यु की तुलना एक राजा से करता है . वैकल्पिक अनुवाद, “मनुष्य तो आदम के समय से लेकर मूसा के समय तक उनके पापों के परिणामस्वरूप मर रहे थे”।
“जिन मनुष्यों के पाप आदम के पाप जैसे न थे वे भी मर रहे थे”।
आदम मसीह का प्रतिरूप था, मसीह जो बहुत बाद में आया। इसमें उसकी बहुत समानता थी।
“बहुत लोग मरे” महत्त्वपूर्ण है परन्तु “अनुग्रह और इसका जो दान... अधिकाई से हुआ और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
“अनुग्रह” और “दान” “पापों” से अधिक महान एवं प्रबल हैं।
“दान आदम के पाप का परिणाम नहीं है”
“क्योंकि एक ओर”
“क्योंकि” और “तो” किसी एक ही बात पर विचार करने की दो धाराएं हैं। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “एक मनुष्य के कारण दण्ड का निर्णय लिया गया, तो”
“अनेकों के पापों के कारण”
आदम के अपराध
“हर एक मनुष्य मरा”
“मसीह यीशु के जीवन द्वारा”
आदम के एक ही पाप के द्वारा। वैकल्पिक अनुवाद, “आदम के पाप के कारण”
मसीह यीशु का बलिदान
आदम की अवज्ञा
यीशु की आज्ञाकारिता के कारण
“नियमों ने प्रवेश किया” (देखें:
इसके अर्थ दोनों हो सकते हैं, “मनुष्य को अपने पाप के भयानक होने का बोध हो” (यू.डी.बी.) और “मनुष्य अधिक पाप करे”
“प्रचुर”
“जैसे पाप ने मृत्यु द्वारा राज किया”
“हमारे प्रभु यीशु मसीह की पवित्रता के द्वारा कृपा मनुष्यों को अनन्त जीवन प्रदान करती है”
'हमारे' अर्थात पौलुस के इस पत्र के पाठक और सब विश्वासी
क्योंकि विश्वासी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाते हैं, प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर से उनका मेल है।
क्लेश, धीरज, खराई और आशा उत्पन्न होती है।
परमेश्वर हम पर अपना प्रेम इस रीति से प्रकट करता है कि हम जब पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा।
मसीह के लहू द्वारा धर्मी ठहराए जाकर विश्वासी परमेश्वर के क्रोध से बचाए गए हैं।
मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल करवाने से पहले अविश्वासी परमेश्वर के बैरी है।
एक मनुष्य के पाप करने के कारण पाप संसार में आ गया और पाप के द्वारा मृत्यु आई और मृत्यु सब लोगों में फैल गई।
आदम वह एक मनुष्य था जिसके द्वारा पाप संसार में आया।
आदम के अपराध से बहुत लोग मरे परन्तु परमेश्वर को वदान्य अनुग्रह बहुतों पर बहुतायत से हुआ।
आदम के पाप के कारण दण्ड की आज्ञा हुई। परन्तु परमेश्वर के वरदान के कारण लोग धर्मी ठहरे।
आदम के अपराध के कारण मृत्यु ने राज किया, परन्तु जो परमेश्वर के वदान्य को पाते हैं वे मसीह यीशु के जीवन के द्वारा राज्य करेंगे।
आदम की अवज्ञा के कारण अनेक जन पापी हुए परन्तु मसीह की आज्ञाकारिता के द्वारा अनेक जन धर्मी ठहराए जायेंगे।
व्यवस्था बीच में आ गई कि अपराध बहुत हो।
परमेश्वर का अनुग्रह पाप से अधिक हुआ।
1 तो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें कि अनुग्रह बहुत हो? 2 कदापि नहीं! हम जब पाप के लिये मर गए* तो फिर आगे को उसमें कैसे जीवन बिताएँ? 3 क्या तुम नहीं जानते कि हम सब जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उसकी मृत्यु का बपतिस्मा लिया?
4 इसलिए उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नये जीवन के अनुसार चाल चलें। 5 क्योंकि यदि हम उसकी मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएँगे।
6 क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर नाश हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें। 7 क्योंकि जो मर गया, वह पाप से मुक्त हो गया है।
8 इसलिए यदि हम मसीह के साथ मर गए, तो हमारा विश्वास यह है कि उसके साथ जीएँगे भी, 9 क्योंकि हम जानते है कि मसीह मरे हुओं में से जी उठा और फिर कभी नहीं मरेगा। मृत्यु उस पर प्रभुता नहीं करती।
10 क्योंकि वह जो मर गया तो पाप के लिये एक ही बार मर गया; परन्तु जो जीवित है, तो परमेश्वर के लिये जीवित है। 11 ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो।
12 इसलिए पाप तुम्हारे नाशवान शरीर में राज्य न करे, कि तुम उसकी लालसाओं के अधीन रहो। 13 और न अपने अंगों को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आपको मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो। 14 तब तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हो।
15 तो क्या हुआ? क्या हम इसलिए पाप करें कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं! 16 क्या तुम नहीं जानते कि जिसकी आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों के समान सौंप देते हो उसी के दास हो: चाहे पाप के, जिसका अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिसका अन्त धार्मिकता है?
17 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे अब मन से उस उपदेश के माननेवाले हो गए, जिसके साँचे में ढाले गए थे, 18 और पाप से छुड़ाए जाकर* धार्मिकता के दास हो गए।
19 मैं तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूँ। जैसे तुम ने अपने अंगों को अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिये धार्मिकता के दास करके सौंप दो। 20 जब तुम पाप के दास थे, तो धार्मिकता की ओर से स्वतंत्र थे। 21 तो जिन बातों से अब तुम लज्जित होते हो, उनसे उस समय तुम क्या फल पाते थे? क्योंकि उनका अन्त तो मृत्यु है।
22 परन्तु अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिससे पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है। 23 क्योंकि पाप की मजदूरी* तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।
पौलुस ने कृपा (अनुग्रह) के बारे में जो लिखा है उस पर एक प्रश्न की कल्पना करता है कि कोई पूछ सकता है।
सर्वनाम “हम” का संदर्भ पौलुस उसके पाठकों और अन्य सब से है।
इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “बढ़ता जाए”
यह विश्वासी के पानी के बपतिस्मे की तुलना यीशु की मृत्यु और उसके दफन से की गई है। यहाँ इस बात को बल दिया गया है मसीह में विश्वास करने वाला मसीह की मृत्यु का लाभार्थी है। इसका अर्थ है कि पाप को अब विश्वासी पर अधिकार नहीं।
यहाँ विश्वासी के आत्मिक पुनर्जीवन की तुलना यीशु के पुनः जीवित होने से की गई है। विश्वासी का यह नया जीवन आत्मिक जीवन विश्वासी को परमेश्वर का आज्ञाकारी बनाता है। वैकल्पिक अनुवाद, में कर्तृवाच्य क्रिया का उपयोग किया जा सकता है, “जिस प्रकार पिता परमेश्वर ने यीशु के मरणोपरान्त पुनः जीवित किया, उसी प्रकार हमें भी नया आत्मिक जीवन मिलता है कि हम परमेश्वर की आज्ञाकारिता में रहें।
“हम उसकी मृत्यु की समानता में हो गए तो, मरणोपरान्त जीवन में भी उसकी समानता में होंगे।
यहाँ पौलुस कहता है कि विश्वासी यीशु के विश्वास में आने से पूर्व एक मनुष्य होता है तो विश्वास में आने के बाद वह एक सर्वथा भिन्न मनुष्य होता है। “पुराना मनुष्यत्व” अर्थात मसीह को ग्रहण करने से पूर्व का अविश्वासी मनुष्य वास्तव में आत्मिकता में मृतक होता है और मृत्यु के आधीन रहता है। पौलुस कहता है कि हमारा यह पापी मनुष्यत्व मसीह में विश्वास करने पर उसके साथ मर जाता है। वैकल्पिक अनुवाद, “हमारा पापी मनुष्यत्व यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका है”।
“मनुष्य का पूर्वकालिक जीवन”, मनुष्य जैसा पहले था वैसा अब नहीं है।
संपूर्ण पापी मनुष्य
“मर जाए”
पौलुस मनुष्य पर पाप की प्रभुता की तुलना एक स्वामी से करता है जो दास पर स्वामित्व दर्शाती है। पवित्र आत्मा से रहित मनुष्य सदैव पाप का चुनाव करता है। वह परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाले कामों का चुनाव नहीं कर सकता है। वैकल्पिक अनुवाद, “हमें अब पाप के दास नहीं रहना है”
वैकल्पिक अनुवाद, कर्तृवाच्य क्रिया के उपयोग से भी किया जा सकता है, “जो पाप की प्रभुता के लिए मर गया उसे परमेश्वर धर्मी ठहराता है”
यद्यपि मसीह की शारीरिक मृत्यु हुई परन्तु विश्वासियों की मृत्यु से उसका अर्थ है पाप के प्रति आत्मिक मृत्यु। वैकल्पिक अनुवाद, “हम मसीह की मृत्यु के साथ आत्मिकता में मर गए”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में भी किया जा सकता है, “परमेश्वर ने यीशु को मरने के बाद फिर जीवित किया”
यहाँ “मृत्यु” को एक राजा या शासक स्वरूप व्यक्त किया गया है जो मनुष्यों पर प्रभुता करती है, इसका अनुवाद इस प्रकार भी हो सकता है, “वह फिर कभी नहीं मरेगा”
“एक ही बार” इस उक्ति का अर्थ है, किसी बात का सदा के लिए अन्त कर देना। इसका परिपूर्ण अर्थ स्पष्ट किया जा सकता हैः “क्योंकि जब मरा तब उसने पाप की प्रभुता का सदा के लिए अन्त कर दिया” (देखें: और )
“इसी प्रकार तुम भी.... समझो” या “इस प्रकार तुम भी समझो”
“स्वयं को समझो” या “ऐसा मान लो कि तुम भी”
यहाँ “पाप” का अर्थ है, वह व्यक्ति जो हम में निहित है और हमें पाप करने के लिए विवश करता है। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “पाप की शक्ति के लिए मरा हुआ”
यहाँ “परन्तु” एक ही विचारधारा को विभाजित करके प्रकट करता है। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “पाप के लिए मृतक परन्तु परमेश्वर के लिए जीवित”
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर की आज्ञाकारिता के लिए मसीह यीशु के सामर्थ्य द्वारा जीवित।”
“पाप” .... को यहाँ मनुष्य का राजा या स्वामी जैसा दर्शाया गया है
यह उक्ति मनुष्य के शारीरिक अंगों के बारे में कहती है। जो वह मर जाएंगी। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “अपने को”
स्वामी “पाप” चाहता है कि पापी उसके स्वामी की आज्ञा मानकर बुरे काम करे”।
यहाँ परिदृश्य यह है कि पापी अपनी देह के अंग उसके स्वामी के अधीन करता है। वैकल्पिक अनुवाद, “अपने आप को पाप के अधीन मत करो कि जो उचित नहीं है वह करो”।
“परन्तु स्वयं को परमेश्वर के अधीन करो क्योंकि उसने तुम्हें नया आत्मिक जीवन दिया है”।
“परमेश्वर जिन बातों से प्रसन्न होता है उसके लिए अपनी देह को काम में आने दो”।
“पाप की अभिलाषाएं तुम पर प्रभुता करके तुमसे काम न कराने पाए” या “जिन पाप की बातों को तुम करना चाहते हो उन्हें मत होने दो”।
इसका संपूर्ण अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है, “क्योंकि तुम मूसा प्रदत्त विधान के अधीन नहीं जो तुम्हें पाप से बचने का सामर्थ्य प्रदत्त नहीं कर सकता है।
इसका पूर्ण अर्थ उजागर किया जा सकता है, “परन्तु तुम परमेश्वर की कृपा से बन्धे हो जो तुम्हें पाप से बचने का सामर्थ्य प्रदान करती है”।
पौलुस दासत्व को एक रूपक स्वरूप काम में लेता है कि परमेश्वर की आज्ञा पालन एवं अवज्ञा को स्पष्ट कर पाए।
पौलुस यह प्रश्न पूछ कर इस बात को महत्त्व प्रदान करता है कि कृपा पाकर जीने का अर्थ यह नहीं कि पाप करते रहें। वैकल्पिक अनुवाद हो सकता है, “तथापि, मूसा प्रदत्त विधान की अपेक्षा परमेश्वर की कृपा के अधीन होने का अर्थ निश्चय ही यह नहीं कि हमें पाप करने की छूट है”
“हम कभी नहीं चाहेंगे कि ऐसा हो” या “या परमेश्वर मेरी सहायता करे कि ऐसा न करूं”। इस अभिव्यक्ति से एक अत्यधिक प्रबल इच्छा प्रकट होती है कि ऐसा न हो। अपनी भाषा में भी ऐसी ही अभिव्यक्ति काम में लेना चाहेंगा देखें कि अपने यहाँ कैसा अनुवाद किया है।
पौलुस इस प्रश्न के द्वारा उस हर एक मनुष्य को झिड़कता है जो परमेश्वर की कृपा को पाप करते रहने का कारण बनाता है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम्हें इस तथ्य का ज्ञान होना चाहिए कि तुम जिसे स्वामी की आज्ञा मानने का चुनाव करते हो, उसके दास हो जाते हो।
यहाँ “पाप” और “आज्ञाकारिता” को दास के स्वामियों की उपमा दी गई है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तुम या तो पाप के दास हो, जिससे आत्मिक मृत्यु होती है, या तुम आज्ञाकारिता के दास हो जिससे परमेश्वर तुम्हें धार्मिकता कहता है।
पौलुस दासत्व की उपमा देकर परमेश्वर के आज्ञापालन एवं अवज्ञा पर चर्चा करता है।
“परन्तु मैं परमेश्वर का आभारी हूँ”
यहाँ पाप को एक स्वामी-स्वरूप दिखाया गया है। जिसकी दास सेवा करते हैं। यह भी कि “पाप” एक शक्ति है जो हम में वास करती है जो हमें पाप करने पर विवश करती है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम जो पाप की शक्तियों के अधीन दास बन कर जी रहे थे”। (देखें:
यहाँ “मन” से अभिप्राय है काम को करने के लिए सच्ची एवं निष्ठावान अभिप्रेरणा। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु तुमने सच में आज्ञा मानी”।
यहाँ “उस उपदेश” का अर्थ है धर्मनिष्ठा की ओर ले जाने वाला आचरण एवं जीवनशैली। विश्वासी अपनी पुरानी जीवनशैली को बदल कर इस नई जीवन शैली के अनुरूप हो जाता है जिसकी शिक्षा उन्हें मसीही अगुवे देते है। इसका वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से किया जा सकता है, “मसीही अगुओं ने जो तुम्हें शिक्षा दी”। (देखें:
कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा वैकल्पिक अनुवाद, “मसीह ने तुम्हें पाप की प्रभुता से मुक्त करा लिया।
“अब तुम उचित कामों को करने के लिए दास हो”
पौलुस परमेश्वर की आज्ञापालन और अवज्ञा के लिए दासत्व की उपमा दे रहा है।
पौलुस “पाप” और “आज्ञा पालन” को “दासत्व” के रूप में व्यक्त कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “मैं दासता की चर्चा करके पाप और आज्ञापान को समझाने का प्रयास कर रहा हूँ।
पौलुस प्रायः “अंग” शब्द को आत्मा के विपरीत काम में लेता है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि तुम आत्मिक बातों को पूर्णतः समझ नहीं पाते”।
यहाँ “अंगों” से अर्थ है संपूर्ण मनुष्यत्व। वैकल्पिक अनुवाद, “स्वयं को दास बनाकर हर एक बुरी एवं परमेश्वर को प्रसन्न न करने वाली बात।
“स्वामी को उचित काम के लिए परमेश्वर के समक्ष दास बनाओ जिससे कि वह तुम्हें पृथक करके उसकी सेवा के लिए सामर्थ्य प्रदान करे”।
अतः जिन बातों से अब तुम लज्जित होते हो, उनसे उस समय तुम क्या फल पाते थे? - पौलुस इस प्रश्न द्वारा इस बात पर बल देता है कि पाप का परिणाम भलाई कभी नहीं होता है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुमने उन बातों को करने में जिनसे अब तुम लज्जित होते हो कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं किया।
इसका वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया के साथ पूर्ण वाक्य में होगा, “परन्तु अब मसीह ने तुम्हें पाप से मुक्त करा दिया और परमेश्वर का दास बना दिया”
“इसका परिणाम है कि तुम परमेश्वर के साथ सदा जीवित रहोगे”।
यहाँ “मज़दूरी” का अभिप्रायः है काम करने का परिश्रमिक। वैकल्पिक अनुवाद “यदि तुम दास की सेवा करोगे तो तुम्हारा परिश्रमिक सदा के लिए मृत्यु है” या “यदि तुम पाप करते रहोगे तो परमेश्वर तुम्हें आत्मिक मृत्यु का दण्ड देगा।
“परन्तु परमेश्वर हमारे प्रभु यीशु मसीह के विश्वासियों को अनमोल अनन्त जीवन दान देता है।
कदापि नहीं।
जिन्होंने मसीह का बपतिस्मा लिया है उन्होंने उसकी मृत्यु में बपतिस्मा लिया है।
विश्वासियों को नये जीवन की चाल चलना है।
विश्वासी मसीह की मृत्यु और पुनरूत्थान में मसीह के साथ एक होंगे।
हमारा पुराना मनुष्यत्व मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका है कि हम आगे को पाप के बन्दी न रहें।
हम जानते हैं कि मसीह पर मृत्यु की प्रभुता नहीं है क्योंकि मसीह मृत्तकों में से जी उठा है।
मसीह मरा तो एक ही बार मरा।
विश्वासी स्वयं को पाप के लिए मरा हुआ समझे।
विश्वासी परमेश्वर के लिए जी रहा है।
विश्वासी के लिए आवश्यक है वह अपने अंगों को धार्मिकता के साधन होने के लिए परमेश्वर के हाथों में दे दे।
विश्वासी अनुग्रह के अधीन हैं जिससे वह पाप पर प्रभुता करता है।
जो मनुष्य स्वयं को पाप का दास होने के लिए दे देता है, उसका अन्त मृत्यु है।
जो मनुष्य स्वयं को परमेश्वर का दास होने के लिए दे देता है उसका फल धार्मिकता है।
परमेश्वर के दास होने का फल पवित्रता है।
पाप की मजदूरी मृत्यु है।
परमेश्वर का निर्मोल वरदान अनन्त जीवन है।
1 हे भाइयों, क्या तुम नहीं जानते (मैं व्यवस्था के जाननेवालों से कहता हूँ) कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है?
2 क्योंकि विवाहित स्त्री व्यवस्था के अनुसार अपने पति के जीते जी उससे बंधी है, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्था से छूट गई। 3 इसलिए यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरुष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्था से छूट गई, यहाँ तक कि यदि किसी दूसरे पुरुष की हो जाए तो भी व्यभिचारिणी न ठहरेगी।
4 तो हे मेरे भाइयों, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिये मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा: ताकि हम परमेश्वर के लिये फल लाएँ। 5 क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषाएँ जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं।
6 परन्तु जिसके बन्धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन् आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं।
7 तो हम क्या कहें? क्या व्यवस्था पाप है*? कदापि नहीं! वरन् बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहचानता व्यवस्था यदि न कहती, “लालच मत कर” तो मैं लालच को न जानता। (रोम. 3:20) 8 परन्तु पाप ने अवसर पा कर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया, क्योंकि बिना व्यवस्था के पाप मुर्दा है।
9 मैं तो व्यवस्था बिना पहले जीवित था, परन्तु जब आज्ञा आई, तो पाप जी गया, और मैं मर गया। 10 और वही आज्ञा जो जीवन के लिये थी*, मेरे लिये मृत्यु का कारण ठहरी। (लैव्य. 18:5)
11 क्योंकि पाप ने अवसर पा कर आज्ञा के द्वारा मुझे बहकाया, और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला। (रोम. 7:8) 12 इसलिए व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा पवित्र, धर्मी, और अच्छी है।
13 तो क्या वह जो अच्छी थी, मेरे लिये मृत्यु ठहरी? कदापि नहीं! परन्तु पाप उस अच्छी वस्तु के द्वारा मेरे लिये मृत्यु का उत्पन्न करनेवाला हुआ कि उसका पाप होना प्रगट हो, और आज्ञा के द्वारा पाप बहुत ही पापमय ठहरे। 14 क्योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शारीरिक हूँ और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ।
15 और जो मैं करता हूँ उसको नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वह नहीं किया करता, परन्तु जिससे मुझे घृणा आती है, वही करता हूँ। 16 और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूँ, तो मैं मान लेता हूँ कि व्यवस्था भली है।
17 तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, वरन् पाप है जो मुझ में बसा हुआ है। 18 क्योंकि मैं जानता हूँ, कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझसे बन नहीं पड़ते। (उत्प. 6:5)
19 क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ। 20 परन्तु यदि मैं वही करता हूँ जिसकी इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है। 21 तो मैं यह व्यवस्था पाता हूँ कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूँ, तो बुराई मेरे पास आती है।
22 क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूँ। 23 परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।
24 मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा*? 25 हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो। इसलिए मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ।
पौलुस इसका उदाहरण में देता है।
पौलुस ने जो सिद्धान्त प्रस्तुत किया है उसका उद्धरण में देता है।
कौन उसे व्यभिचारिणी कहता है, स्पष्ट नहीं है अतः यथासंभव सामान्य अभिव्यक्ति करें, “वे उसे व्यभिचारिणी कहेंगे”। वैकल्पिक अनुवाद है, “मनुष्य उसे व्यभिचारिणी कहते हैं”। या “परमेश्वर उसे व्यभिचारिणी कहता है।
इसका संबन्ध पूर्वोक्ति से है
परमेश्वर के लिए फल लाए - “हम ऐसे काम कर पाएंगे जिनसे परमेश्वर प्रसन्न होता है”।
यह सर्वनाम पौलुस और विश्वासियों के स्थान पर है।
मूसा द्वारा लाया गया विधान
पौलुस ने एक नया प्रसंग छेड़ा है
“निश्चय ही यह असत्य है”। पूर्वोक्त प्रभावोत्पादक प्रश्न का इस उक्ति द्वारा यथा संभव अतिप्रबल नकारात्मक उत्तर है। आप यहाँ अपनी भाषा में भी ऐसी ही उक्ति का उपयोग करना चाहेंगे। देखें कि आपने में इसका अनुवाद कैसे किया है।
पौलुस पाप की तुलना एक सक्रिय मनुष्य से करता है
परमेश्वर के विधान में हमें कुछ करना मना है तो इसका अर्थ है कि हम कुछ करना चाहते हैं जो वर्जित है और हम उसे अधिक करने की कामना करते हैं। “पाप ने मुझे उस आज्ञा का स्मरण कराया जो किसी न किसी अनुचित बात के लिए मना करती है, अतः मैं पहले से भी अधिक उस अनुचित काम की लालसा करता हूँ” या “क्योंकि मैं ने पाप करने की इच्छा की इसलिए जब मैंने अनुचित काम की लालसा को वर्जित पाया तब मैंने तुझ में लालसा उत्पन्न हुई”।
“पाप की मेरी अभिलाषा”
इस शब्द में पराई वस्तुओं का लालच (यू.डी.बी.) और यौन लालसा दोनों हैं।
“यदि विधान नहीं होता तो नियमों के उल्लंघन का प्रश्न ही नहीं उठता और पाप नहीं होता”।
इसका अर्थ हो सकता है, 1) “मुझे पाप का बोध हुआ”।
पौलुस वास्तव में मरा नहीं। वैकल्पिक अनुवाद “परमेश्वर ने तो मुझसे जीवित रहने के लिए आज्ञा दी थी परन्तु उसने मेरी हत्या कर दी”
जैसा में है पौलुस पाप को एक व्यक्तिस्वरूप दर्शा रहा है जो तीन काम कर सकता है, अवसर पाना, बहकाना, और हत्या करना। “क्योंकि मैं पाप करना चाहता था मैंने यह विचार करके स्वयं को धोखा दिया कि मैं पाप भी कर सकता हूँ और आज्ञा का पालन भी कर सकता हूँ परन्तु परमेश्वर ने मुझे अवज्ञा का दण्ड दिया जो उनसे पृथक होने का था।
“पाप करने की मेरी लालसा”
देखें कि आपने इसका अनुवाद कैसे किया है।
“परमेश्वर से मेरा संबन्ध विच्छेद कर दिया” (देखें यू.डी.बी. )
क्योंकि व्यवस्था पाप को धोखा देने वाला और हत्यारा कहता है
पौलुस एक नया प्रसंग छेड़ रहा है।
परमेश्वर का विधान
“मेरे लिए मृत्यु का कारण हुई”
“निश्चय ही यह असत्य है” यह उक्ति पूर्वोक्त प्रश्न का प्रबल नकारात्मक उत्तर है। आप यहां अपनी भाषा में ऐसी ही उक्ति काम में लेना चाहेंगे।
पौलुस पाप को एक कर्ता के रूप में दर्शा रहा है
“परमेश्वर से मेरा संबंध विच्छेद कर दिया।”
“क्योंकि मैंने आज्ञा का उल्लंघन किया”
“मुझे समझ में नहीं आता कि कुछ काम मैं करता हूँ तो क्यों करता हूँ”
“मैं समझ नहीं पाता कि मैं जो करता हूँ क्यों करता हूँ, क्योंकि”
वैकल्पिक अनुवाद, “जिन बातों को में जानता हूँ कि उचित नहीं हैं, उन्हीं को करता हूँ”
“तथापि”
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं जानता हूँ कि परमेश्वर प्रदत्त विधान उत्तम हैं
पौलुस पाप को एक जीवन्त वस्तु कहता है जिसमें उसे प्रभावित करने का सामर्थ्य है।
“मेरे मानवीय स्वभाव में”
“भले काम” या “उचित काम”
“बुरे काम” या “अनुचित कार्य”
शरीर की मृत्यु के बाद जो बचता है
“मैं वही कर पाता हूँ जो मेरा पुराना मनुष्यत्व कहता है, न कि आत्मा द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलता हूँ”।
पुराना मनुष्यत्व, मनुष्य जन्म से जैसा होता है
आत्मिकता का जीवित नया स्वभाव
“मेरा पापी स्वभाव, जिसको लेकर मेरा जन्म हुआ है”
“मेरी तो यही इच्छा है कि कोई मुझे मेरे शरीर की अभिलाषाओं से मुक्ति दिलाए”। (यू.डी.बी.) यदि आपकी भाषा में विस्मय और प्रश्न दोनों को सर्वोच्च भावनात्मक दर्शाने का प्रावधान है, तो उसका उपयोग अवश्य करें।
यह 7:24 के प्रश्न का उत्तर है।(देखे: यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद, “मेरा मन तो परमेश्वर को प्रसन्न करने का चुनाव करता है, परन्तु मेरा शरीर पाप की आज्ञा मानने का चुनाव करता है”। यहाँ मन और शरीर के उपयोग द्वारा दर्शाया गया है कि वे कैसे परमेश्वर के नियमों या पाप की आज्ञाओं का पालन करना चाहते हैं। मन या समझ के द्वारा तो मनुष्य परमेश्वर के आज्ञापालन का चुनाव करता है परन्तु शरीर या शारीरिक प्रकृति से पाप की सेवा करना चाहता है।
मनुष्य जब तक जीवित रहता है उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है।
एक विवाहित स्त्री पति की मृत्यु तक विवाह की व्यवस्था के अनुसार उससे बंधी है।
जब वह विवाह की व्यवस्था से मुक्त हो गई तो पुनर्विवाह कर सकती है।
विश्वासी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिए मर गए हैं।
व्यवस्था के लिए मर जाने से विश्वासी मसीह के साथ एक होते हैं।
व्यवस्था पाप का बोध करवाती है।
व्यवस्था पवित्र है, आज्ञा पवित्र, धर्मी और अच्छी है।
व्यवस्था की आज्ञाओं के माध्यम से पाप मनुष्य में लालच उत्पन्न करता है।
पौलुस कहता है कि पाप व्यवस्था के माध्यम से उसमें मृत्यु लाता है।
जब पौलुस वह काम करता है जिसे वह करना नहीं चाहता तो मान लेता है कि व्यवस्था भली है।
पौलुस में जो पाप है वह उससे अनिच्छा के काम करवाता है।
पौलुस की देह में कुछ भी अच्छा नहीं है।
पौलुस अपनी देह में एक सिद्धान्त देखता है, वह भले काम तो करना चाहता है परन्तु उसकी देह में केवल बुराई वास करती है।
पौलुस को यह बोध होता है कि उसकी अन्तरात्मा परमेश्वर की व्यवस्था से प्रसन्न है परन्तु उसकी देह के अंग पाप के बन्दी बने हुए है।
पौलुस मसीह यीशु के द्वारा उसकी युक्ति के लिए परमेश्वर को धन्यवाद चढ़ाता है।
1 इसलिए अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं*। 2 क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।
3 क्योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल होकर न कर सकी*, उसको परमेश्वर ने किया, अर्थात् अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप के बलिदान होने के लिये भेजकर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी। 4 इसलिए कि व्यवस्था की विधि हम में जो शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए। 5 क्योंकि शारीरिक व्यक्ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं।
6 शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है। 7 क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। 8 और जो शारीरिक दशा में हैं, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते।
9 परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं। 10 यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धार्मिकता के कारण जीवित है।
11 और यदि उसी का आत्मा जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है; तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी मरनहार देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा।
12 तो हे भाइयों, हम शरीर के कर्जदार नहीं, कि शरीर के अनुसार दिन काटें। 13 क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे, तो मरोगे, यदि आत्मा से देह की क्रियाओं को मारोगे, तो जीवित रहोगे।
14 इसलिए कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र* हैं। 15 क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिससे हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं।
16 आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं। 17 और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन् परमेश्वर के वारिस* और मसीह के संगी वारिस हैं, जब हम उसके साथ दुःख उठाए तो उसके साथ महिमा भी पाएँ।
18 क्योंकि मैं समझता हूँ, कि इस समय के दुःख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं। 19 क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की प्रतीक्षा कर रही है।
20 क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर अधीन करनेवाले की ओर से व्यर्थता के अधीन इस आशा से की गई। 21 कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पा कर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी। 22 क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।
23 और केवल वही नहीं पर हम भी जिनके पास आत्मा का पहला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं; और लेपालक होने की, अर्थात् अपनी देह के छुटकारे की प्रतीक्षा करते हैं। 24 आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहाँ रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उसकी आशा क्या करेगा? 25 परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उसकी आशा रखते हैं, तो धीरज से उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं।
26 इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये विनती करता है। 27 और मनों का जाँचनेवाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है।
28 और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। 29 क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहलौठा ठहरे। 30 फिर जिन्हें उनसे पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।
31 तो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? (भज. 118:6) 32 जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा?
33 परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है। 34 फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह वह है जो मर गया वरन् मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्वर की दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है।
35 कौन हमको मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? 36 जैसा लिखा है, “तेरे लिये हम दिन भर मार डाले जाते हैं; हम वध होनेवाली भेड़ों के समान गिने गए हैं।” (भज. 44:22)
37 परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, विजेता से भी बढ़कर हैं। 38 क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएँ, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊँचाई, 39 न गहराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।
“इस कारण” या “क्योंकि जो मैं अभी-अभी कहता हूँ वह सच है”
यहाँ “व्यवस्था” का संदर्भ स्वाभाविक क्रिया से है, मानवीय नियमों से इसका कोई अभिप्राय नहीं है ।
यहाँ परमेश्वर के विधान को एक कर्ता के रूप में दर्शाया गया है जो पाप की शक्ति से टकरा नहीं पाया। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि विधान में सामर्थ्य न था कि हमें पाप करने से रोक ले क्योंकि हम में जो पाप की शक्ति थी वह अत्यधिक प्रबल थी। परन्तु परमेश्वर ने हमें पाप करने से रोक लिया”।
“मनुष्यों के पापी स्वभाव के कारण”
वैकल्पिक अनुवाद, नया वाक्य आरंभ करके “वह किसी भी पापी मनुष्य के स्वरूप दिखता था”
“कि वह हमारे पापों के लिए मरे”।
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर ने अपने पुत्र के शरीर के द्वारा पाप की शक्ति को निरस्त किया”।
कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा वैकल्पिक अनुवाद, “हम परमेश्वर के विधान की अनिवार्यता पूरी करें”
“हम जो अपनी पापी अभिलाषाओं की पूर्ति नहीं करते”
“परन्तु पवित्र आत्मा की आज्ञा मानते हें”
“पापियों की मानसिकता... पवित्र आत्मा के आज्ञाकारियों की मानसिकता”
देखें कि इन वाक्यांशों का अनुवाद में कैसे किया गया है
ये सब पवित्र आत्मा के संदर्भ में है
इसका अर्थ यह नहीं कि पौलुस सन्देह में है कि किसी में परमेश्वर का आत्मा नहीं है। पौलुस उन्हें बोध कराना चाहता था कि उन सबमें परमेश्वर का आत्मा है। वैकल्पिक अनुवाद, “मान लो कि किसी में”
मसीह किसी में अन्तर्वास कैसे करता है स्पष्ट किया जा सकता है, “यदि मसीह पवित्र आत्मा के द्वारा तुम में वास करता है,
"एक ओर" और "किन्तु दूसरी ओर" व्यख्यांश द्वारा दो अलग-अलग तारीके पेश किया गया है। वैकल्पिक अनुवाद: " देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु ."
संभावित अर्थ है 1) मनुष्य आत्मिक रूप से मृतक है। या 2) पार्थिव देह तो पाप के कारण मरेगी ही।
इसके संभावित अर्थ हें 1) मनुष्य आत्मिक रूप से जीवन्त होकर परमेश्वर प्रदत्त सामर्थ्य में भले काम करता है। या 2) परमेश्वर विश्वासी को मरणोपरान्त पुनजीर्वित करेगा क्योंकि परमेश्वर, धर्मनिष्ठ है और विश्वासी को अनन्त जीवन देता है।
पौलुस यह मानता है कि उसके पाठकों में पवित्र-आत्मा का अन्तर्वास है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि उसका ही आत्मा... तुममें अन्तर्वासी है”
“परमेश्वर का आत्मा जिसने उसे मृतकों में से जिलाया।
“पार्थिव शरीर” या “मरणहार शरीर”
“क्योंकि मैंने तुमसे अभी-अभी जो कहा वह सच है”
“सहविश्वासियों में”
पौलुस आज्ञापालन की तुलना ऋण चुकाने से कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “हमें आज्ञा मानना है” (देखें:
“हमें अपनी पापी अभिलाषाओं का पालन नहीं करना है”
“क्योंकि यदि तुम केवल अपनी पापी अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए जीओगे”
“तो तुम निश्चय ही परमेश्वर से अलग हो जाओगे”
वैकल्पिक अनुवाद, एक नया वाक्य, “यदि पवित्र-आत्मा के सामर्थ्य से तुम अपनी पापी अभिलाषाओं का दमन करोगे”
कर्तृवाच्य क्रिया के साथ वैकल्पिक अनुवाद, “जिन्हें परमेश्वर ने चुन लिया है”।
“क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें वह आत्मा नहीं दी जो तुम्हें फिर से पाप का दास बनाए और परमेश्वर के दण्ड से डरनेवाला बनाए।”
“जो हमें पुकारने की प्रेरणा देती है”
अरामी भाषा में अब्बा का अर्थ है पिता
इन वाक्यांशों मे क्रिया का उपयोग नहीं किया गया है क्योंकि वह समझा जा सकता है। वैकल्पिक अनुवाद है, “यदि हम परमेश्वर की सन्तान हैं तो उसके उत्तराधिकारी भी हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर के वारिस तो हैं ही, साथ में मसीह के सहवारिस भी हैं”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया के साथ भी किया जा सकता है, “उसके साथ हमारी भी महिमान्वित करे।
“क्योंकि” शब्द द्वारा “मैं समझता हूँ” पर बल दिया गया है। इसका अर्थ सामान्य “क्योंकि” न समझें
मेरा तो मानना है कि.... तुलना के योग्य भी नहीं है।
कर्तृवाच्य क्रिया के साथ वैकल्पिक अनुवाद होगा, “परमेश्वर प्रकट करेगा” या “जब परमेश्वर का अनावरण करेगा”।
परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया है वह बड़ी जिज्ञासा से, एक मनुष्य के सदृश्य, प्रतिज्ञा कर रहा है।
“जिस समय परमेश्वर अपने पुत्रों को प्रकट करेगा”
कर्तृवाच्य क्रिया के साथ वैकल्पिक अनुवाद होगा, “क्योंकि परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया है उसे उस उद्देश्य प्राप्ति में अयोग्य कर दिया है जिसके उद्देश्य से उसकी रचना की गई थी।
यहाँ “सृष्टि को एक इच्छा रखने वाले मनुष्य का मान दिया गया है। इसका वैकल्पिक अनुवाद होगा, “इसलिए नहीं कि सृजित वस्तुएं स्वयं चाहती थी “परन्तु इसलिए कि परमेश्वर चाहता था”।
वैकल्पिक अनुवाद में कर्तृवाच्य क्रिया के साथ एक नया वाक्य रचा जा सकता है, “तथापि सृजित वस्तुएं पूर्णतः आश्वस्त है कि परमेश्वर उनका उद्धार करेगा।
पौलुस सृष्टि की हर एक वस्तु को उसके स्वामी के दासत्व में तथा “विनाश” के अधीन मानता है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्षय एवं अपक्षय से”
“जब वह अपनी सन्तानों का महिमान्वन करेगा तब वह उन्हें स्वतंत्र कर देगा।”
सृष्टि की तुलना एक स्त्री से की गई है जो प्रसव पीड़ा में है, “क्योंकि हम जानते है कि संपूर्ण सृष्टि इस समय भी पीड़ा के कारण कहराती है”
पौलुस विश्वासियों की तुलना द्वारा पवित्र आत्मा पाने की तुलना ऋतु के पहले फल तथा फसल से करता है।
स्पष्ट किया जा सकता है कि परमेश्वर हमें किससे छुटकारा दिलाएगा। “परमेश्वर के परिवार के पूर्ण सदस्य होने की प्रतिज्ञा में है कि वह हमारी देह को क्षय और मृत्यु से मुक्ति दिलाएगा।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “क्योंकि हमें विश्वास है कि परमेश्वर ने हमारा उद्धार किया है
पौलुस प्रश्न पूछ कर अपने पाठकों को समझाता है कि “आशा” क्या है। इसका वैकल्पिक अनुवाद है, “परन्तु यदि हमें आशा है तो इसका अर्थ है कि हमें अभी तक वह वस्तु प्राप्त नहीं हुई है जिसकी हम आशा करते हैं। यदि किसी के पास कुछ है तो वह उसकी आशा नहीं करता है”।
“इसकी आहों को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है”।
कर्तृवाच्य क्रिया के साथ वैकल्पिक अनुवाद, “जिन्हें परमेश्वर ने चुन लिया है”।
“जिन्हें उसने उनके सृजन से पहले से जान लिया है”।
“उसने उनकी नियति निर्धारित कर दी है” या “पहले ही से उनके लिए योजना बना ली है”।
इसका अनुवाद एक सक्रिय क्रिया के रूप में किया जा सकता है : "परमेश्वर ने प्रगट नहीं किया"
“कि उसका पुत्र पहिलौठा हो”
इसका अर्थ पूर्णतः स्पष्ट किया जा सकता है, “परमेश्वर के परिवार के अनेक भाइयों-बहनों में”
“जिनके लिए परमेश्वर ने पहले से योजना बनाई है”
यहां “महिमा” को भूतकाल में रखा गया है कि इसका होना निश्चित हो। वैकल्पिक अनुवाद, “उन्हें वह निश्चय ही महिमान्वित करेगा”।
पौलुस जब प्रश्न पूछता है तो वह अपनी पूर्वोक्त बात को महत्त्व देना चाहता है। वैकल्पिक अनुवाद, “इन सब बातों से हम यही निष्कर्ष निकालते हैं कि परमेश्वर हमारी ओर है तो हमें कौन पराजित कर सकता है।
“उसके बैरियों के हाथों में कर दिया”
यहाँ भी पौलुस बल देने के लिए प्रश्न पूछ रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “वह हमें सब कुछ निश्चय ही और बहुतायत से देगा”
यहाँ भी पौलुस बल देने के लिए प्रश्न पूछता है। वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर के समक्ष हमें कोई दोष नहीं दे सकता, क्योंकि परमेश्वर हमें न्यायोचित ठहराता है”।
पौलुस बल देने ही का प्रश्न पूछता है। वैकल्पिक अनुवाद, “हमें कोई दोष नहीं दे सकता क्योंकि मसीह यीशु ही है... और हमारी मध्यस्थता भी करता है”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “जिसे परमेश्वर ने अति विशिष्टता में मृतकों में से पुनजीर्वित किया” या “जो अति विशिष्ट रूप में मर कर जी उठा”
वैकल्पिक अनुवाद, “यदि कोई हमें कष्ट देना चाहे, हमें हानि पहुँचाना चाहे, हमें वस्त्र, भोजन विहीन कर दे या हत्या भी कर दे, तो यह संभव नहीं”
इन दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है।
यहाँ तुम्हारे”एक वचन में है और परमेश्वर के लिए काम में लिया गया है, वैकल्पिक अनुवाद, “तेरे लिए”
यहाँ “हम” धर्मशास्त्र के इस अंश के लेखक को संबोधित करता है और उसके साथ परमेश्वर के सब भक्तों को समाहित करता है, “दिन भर” यह उक्ति एक अतिशयोक्ति है जो इनके संकट को उजागर करती है। यहाँ पौलुस दर्शाना चाहता है कि जो परमेश्वर के हैं उन्हें विषम परिस्थितियों की अपेक्षा करता है आवश्यक है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया से भी किया जा सकता है, “हमारे बैरी हमारी हत्या करने की खोज में लगे रहते हैं।”
परमेश्वर के भक्त जिन्हें लोग मार डालते हैं उनकी तुलना बलि के पशुओं से भी गई हे। इसका वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “हमारा जीवन तो उनके लिए ऐसा है जैसा भेड़ें जिन्हें वे वध करते हैं"
“हमें पूर्ण विजय प्राप्त है”।
यीशु ने हमसे जो प्रेम किया वह स्पष्ट किया जा सकता है, “यीशु के द्वारा जिसने हमसे इतना अधिक प्रेम किया कि हमारे लिए मर भी गया”।
“मुझे पूरा विश्वास है” या “मैं आश्वस्त हूँ”
इसके संभावित अर्थ हैं 1) दुष्टात्माएं (यू.डी.बी.) या मानवीय राजा एवं प्रशासक
इसके संभावित अर्थ हैं 1) सामर्थी आत्माएं या 2) सामर्थी मनुष्य
मसीह यीशु में जीवन की आत्मा के सिद्धान्त ने पौलुस को पाप और मृत्यु की व्यवस्था से मुक्ति दिला दी है।
व्यवस्था अक्षम थी क्योंकि देह के कारण वह दुर्बल थी।
जो आत्मा के अनुसार चलते हैं वे आत्मा की बातों में मन लगाते हैं।
देह परमेश्वर की विरोधी है इसलिए वह व्यवस्था के अधीन नहीं हो सकती है।
जो मनुष्य परमेश्वर के नहीं अन्तर्वासी मसीह की आत्मा से वंचित होते हैं।
परमेश्वर विश्वासी में अन्तर्वासी अपनी आत्मा के द्वारा उसकी नश्वर देह को जीवन देता है।
परमेश्वर के पुत्र परमेश्वर की आत्मा द्वारा चलाए जाते हैं।
विश्वासी परमेश्वर के परिवार में लेपालक है।
परमेश्वर की सन्तान होने के कारण विश्वासी परमेश्वर के उत्तराधिकारी वरन् मसीह के सह उत्तराधिकारी है।
वर्तमान कष्टों को सहना आवश्यक है जिससे कि विश्वासी परमेश्वर के पुत्रों के प्रकट होने पर मसीह के साथ महिमान्वित हों।
वर्तमान में सृष्टि विनाश के दासत्व में है।
सृष्टि परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।
विश्वासियों को विश्वास और धीरज धर कर देह के छुटकारे की प्रतीक्षा करना है।
आत्मा स्वयं ही परमेश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्रजनों की ओर से मध्यस्थता करती है।
परमेश्वर अपने प्रेम करने वालों के लिए सब बातों को मिलाकर भलाई ही को उत्पन्न करता है अर्थात जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए गए हैं उनके लिए।
क्योंकि परमेश्वर ने जिन्हें पहले से जान लिया है उन्हें पहले से निश्चित भी कर लिया है कि वे उसके पुत्र के स्वरूप में हों।
जिन्हें उसने पहले से निश्चित कर लिया है उन्हें बुलाया और धर्मी ठहराया और महिमा दी है।
विश्वासी जानते हैं कि परमेश्वर उन्हें सब कुछ वदान्य देगा क्योंकि उसने विश्वासियों के लिए अपना निज पुत्र दे दिया है।
मसीह परमेश्वर की दाहिनी ओर उपस्थित पवित्र जनों के लिए मध्यस्था करता है।
विश्वासी उसके द्वारा जो उनसे प्रेम करता है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं।
पौलुस को पूर्ण विश्वास है कि कोई भी सृजित वस्तु विश्वासी को परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती।
1 मैं मसीह में सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता और मेरा विवेक भी पवित्र आत्मा में गवाही देता है। 2 कि मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुःखता रहता है।
3 क्योंकि मैं यहाँ तक चाहता था, कि अपने भाइयों, के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से श्रापित और अलग हो जाता। (निर्ग. 32:32) 4 वे इस्राएली हैं, लेपालकपन का हक़, महिमा, वाचाएँ, व्यवस्था का उपहार, परमेश्वर की उपासना, और प्रतिज्ञाएँ उन्हीं की हैं। (भज. 147:19) 5 पूर्वज भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ, जो सब के ऊपर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य है। आमीन।
6 परन्तु यह नहीं, कि परमेश्वर का वचन टल गया, इसलिए कि जो इस्राएल के वंश हैं, वे सब इस्राएली नहीं; 7 और न अब्राहम के वंश होने के कारण सब उसकी सन्तान ठहरे, परन्तु (लिखा है) “इसहाक ही से तेरा वंश कहलाएगा।” (इब्रा. 11:18)
8 अर्थात् शरीर की सन्तान परमेश्वर की सन्तान नहीं, परन्तु प्रतिज्ञा के सन्तान वंश गिने जाते हैं। 9 क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है, “मैं इस समय के अनुसार आऊँगा, और सारा का एक पुत्र होगा।” (उत्प. 18:10, उत्प. 21:2)
10 और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी। (उत्प. 25:21) 11 और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था, इसलिए कि परमेश्वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं, परन्तु बुलानेवाले पर बनी रहे। 12 उसने कहा, “जेठा छोटे का दास होगा।” (उत्प. 25:23) 13 जैसा लिखा है, “मैंने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।” (मला. 1:2-3)
14 तो हम क्या कहें? क्या परमेश्वर के यहाँ अन्याय है? कदापि नहीं! 15 क्योंकि वह मूसा से कहता है, “मैं जिस किसी पर दया करना चाहूँ, उस पर दया करूँगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूँ उसी पर कृपा करूँगा।” (निर्ग. 33:19) 16 इसलिए यह न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्वर की बात है।
17 क्योंकि पवित्रशास्त्र में फ़िरौन से कहा गया, “मैंने तुझे इसलिए खड़ा किया है, कि तुझ में अपनी सामर्थ्य दिखाऊँ, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृथ्वी पर हो।” (निर्ग. 9:16) 18 तो फिर, वह जिस पर चाहता है, उस पर दया करता है; और जिसे चाहता है, उसे कठोर कर देता है।
19 फिर तू मुझसे कहेगा, “वह फिर क्यों दोष लगाता है? कौन उसकी इच्छा का सामना करता हैं?” 20 हे मनुष्य, भला तू कौन है, जो परमेश्वर का सामना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है, “तूने मुझे ऐसा क्यों बनाया है?” 21 क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं, कि एक ही लोंदे में से, एक बर्तन आदर के लिये, और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? (यशा. 64:8)
22 कि परमेश्वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ्य प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही। (नीति. 16:4) 23 और दया के बरतनों पर जिन्हें उसने महिमा के लिये पहले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की? 24 अर्थात् हम पर जिन्हें उसने न केवल यहूदियों में से वरन् अन्यजातियों में से भी बुलाया। (इफि. 3:6, रोम. 3:29)
25 जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है,
“जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूँगा,
और जो प्रिया न थी, उसे प्रिया कहूँगा; (होशे 2:23)
26 और ऐसा होगा कि जिस जगह में उनसे यह कहा गया था, कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो,
उसी जगह वे जीविते परमेश्वर की सन्तान कहलाएँगे।”
27 और यशायाह इस्राएल के विषय में पुकारकर कहता है, “चाहे इस्राएल की सन्तानों की गिनती समुद्र के रेत के बराबर हो, तो भी उनमें से थोड़े ही बचेंगे। (यहे. 6:8) 28 क्योंकि प्रभु अपना वचन पृथ्वी पर पूरा करके, धार्मिकता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा।” 29 जैसा यशायाह ने पहले भी कहा था,
“यदि सेनाओं का प्रभु हमारे लिये कुछ वंश न छोड़ता,
तो हम सदोम के समान हो जाते,
और अमोरा के सरीखे ठहरते।” (यशा. 1:9)
30 तो हम क्या कहें? यह कि अन्यजातियों ने जो धार्मिकता की खोज नहीं करते थे, धार्मिकता प्राप्त की अर्थात् उस धार्मिकता को जो विश्वास से है; 31 परन्तु इस्राएली; जो धार्मिकता की व्यवस्था की खोज करते हुए उस व्यवस्था तक नहीं पहुँचे।
32 किस लिये? इसलिए कि वे विश्वास से नहीं, परन्तु मानो कर्मों से उसकी खोज करते थे: उन्होंने उस ठोकर के पत्थर पर ठोकर खाई। 33 जैसा लिखा है,
“देखो मैं सिय्योन में एक ठेस लगने का पत्थर, और ठोकर खाने की चट्टान रखता हूँ,
और जो उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।” (यशा. 28:16)
यह वाक्यांश एक नए वाक्य में रचा जा सकता है, “पवित्र आत्मा मेरे विवेक को नियंत्रित करती है और जो मैं कहता हूँ उसके सत्यापित करती है”।
यह एक अलग वाक्य बनाया जा सकता है, “मुझे वास्तव में बहुत गहरा दुःख है”। यदि उस व्यक्ति की चर्चा की जाए जिसके पौलुस को गहरा दुःख है तो यू.डी.बी. अनुवाद को देखें
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं तो यह भी चाहता हूँ कि परमेश्वर शापित ठहराए और मसीह से सदा के लिए अलग कर दे यदि इससे मेरे इस्त्राएली भाइयों को, मेरी अपनी जाति को मसीह में विश्वास करने में सहायता मिले।”
वे, मेरे सदृश्य, इस्त्राएली हैं। परमेश्वर ने उन्हें याकूब के वंशज चुना है। (यू.डी.बी.)
“यही वह वंश है जिसमें मसीह के मानव रूप धारण करके जन्म लिया”।
इसका अनुवाद एक अलग वाक्य में किया जा सकता है, “मसीह सर्वेसर्वा है और परमेश्वर ने उसे सदा के लिए आशिषित किया है।
“परन्तु परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं में चूकता नहीं है”।
“परमेश्वर ने इस्राएल (याकूब) के सब वंशओं से प्रतिज्ञा नहीं की है। उसने इसके आत्मिक वंशजों से ही प्रतिज्ञा की है अर्थात उनसे जिन्हें यीशु में विश्वास है।
“नहीं वे सब अब्राहम की सन्तान होने के कारण परमेश्वर की सन्तान हैं।
यह अब्राहम के शारीरिक वंश के संदर्भ में है।
ये वे लोग हैं जो यीशु में विश्वास के द्वारा आत्मिक वंश हैं
अर्थात वे लोग जो प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी होंगे
“मैं सारा को एक पुत्र दूँगा”
हो सकता है कि आपको 9:17, 9:12 के बाद रखना हो, “हमारे पिता इसहाक, उसने कहा, जेठा छोटे का दास होगा। अभी तक न तो बालक जन्मे थे... बुलाने वाले के कारण है”
इसहाक पौलुस और रोम के विश्वासियों का पूर्वज था।
“गर्भवती हुई”
“सन्तान के जन्म से पूर्व और अच्छा या बुरा करने से पूर्व”
“फिर परमेश्वर के चुनाव के अनुसार जो होना है वह होकर रहे”।
“सन्तानोत्पत्ति से पूर्व”
“नही उनके कर्मो के कारण”
परमेश्वर के कारण
परमेश्वर ने रिबका से कहा, “बड़ा पुत्र छोटे की सेवा करेगा”
परमेश्वर ने एसाव को अप्रिय जाना अर्थात याकूब से प्रेम करने की तुलना में।(देखें: )
पौलुस उनसे उत्तर की खोज नहीं कर रहा है वह प्रश्न पूछने के द्वारा वह उस भ्रम को दूर कर रहा है कि परमेश्वर धर्मी नहीं है।
“असंभव है”। या “निश्चय ही नहीं” यह अभिव्यक्ति दृढ़ता से इन्कार करती है कि ऐसा होने की संभावना है। आप अपनी भाषा में ऐसी ही अभिव्यक्ति को काम में लेना चाहेंगे।
“क्योंकि परमेश्वर ने मूसा से कहा है”
“यह मनुष्यों के चाहने या उनके कठोर परिश्रम से नहीं”।
पौलुस एक धावक की तुलना लक्ष्य प्राप्ति के लिए कठोर परिश्रम करनेवाले से करता है।
यहाँ धर्मशास्त्र को मानव रूप दिया गया है जैसे परमेश्वर फिरौन से बात कर रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “धर्मशास्त्र में परमेश्वर ने कहा”
परमेश्वर अपने बारे में कहता है
एकवचन
“कि मनुष्य संपूर्ण पृथ्वी पर मेरा नाम ले”
“परमेश्वर जिसे चाहे हठीला बना देता है”
पौलुस उसकी शिक्षा के आलोचकों को संबोधित कर रहा है, वह एक मनुष्य से बात कर रहा है। आपको संभवतः बहुवचन काम में लेने की आवश्यकता हो सकती है।
परमेश्वर की
पौलुस तुम्हारे अधिकार का उदाहरण दे रहा है कि वह जैसा पात्र चाहे मिट्टी से बनाता है जो सृजनहार के अधिकार का एकरूपक है कि वह अपनी सृष्टि के साथ जैसा चाहे वैसा कर सकता है।
परमेश्वर.... परमेश्वर का/की
“क्रोध भाजक मनुष्य... दयापात्र मनुष्य”
“उसकी महिमा जो अपार है”।
“जिन्हें उसने समय से पहले महिमान्वन के लिए तैयार किया है”
पौलुस तथा उसके सहविश्वासी भाई
“जैसा परमेश्वर होशे रचित पुस्तक में भी कहता है”
होशे भविष्यद्वक्ता है
“मैं उन लोगों को चुन कर अपने लोग बना लूँगा जो मेरे लोग न थे”
“और मैं उसे चुनकर अपनी प्रिय बनाऊँगा जो मेरी प्रिय न थी”।
“जीवते” का अर्थ है कि परमेश्वर ही एकमात्र “सच्चा” परमेश्वर है, झूठी मूर्तियों के सदृश्य नहीं। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “सच्चे परमेश्वर की सन्तान”। (यू.डी.बी.)
“सार्वजनिक घोषणा करता है”
असंख्य
यहाँ “बचेंगे” आत्मिक अभिप्राय में है। मनुष्य बचाया जाता है तो वह क्रूस पर यीशु की मृत्यु के द्वारा है। परमेश्वर ने उसे क्षमा कर दिया और उसके पापों के दण्ड से बचा लिया।
सब कुछ जो परमेश्वर ने कहा और आज्ञा दी।
अर्थात यशायाह और इस्राएली
आप और अधिक स्पष्ट रूप से समझा सकते हैं कि इस्त्राएली सदोम और अमोरा के सदृश्य कैसे हो सकते थे, “हम सब का ठीक वैसे सर्वनाश हो जाता जैसे सदोम और अमोरा का हुआ था। (यू.डी.बी.)
“अतः हमें यही कहना होगा”
“हम कहेंगे कि अन्यजातियाँ”
“जो परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास नहीं करते थे”
“परमेश्वर के पुत्र मे विश्वास करके परमेश्वर को प्रसन्न किया”
“नियमों के पालन से न्यायोचित अवस्था को प्राप्त नहीं किया”।
“वे न्यायोचित अवस्था को प्राप्त क्यों नहीं कर पाए”?
“परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले कामों से” (देखें यू.डी.बी.) या “विधान के नियमों का पालन करके”।
“पत्थर जिससे लोगों को ठोकर लगती है”
“जैसा भविष्यद्वक्ता यशायाह ने लिखा है”।
यह वहाँ एक स्थान का नाम है
यह पत्थर एक मनुष्य के स्थान में आया है (देखें यू.डी.बी.) अतः आपके इस प्रकार अनुवाद करना होगा, “जो उस में विश्वास करेगा”
पौलुस को शरीर के भाव से अपने भाइयों, इस्राएलियों के लिए शोक और दुःख है।
?
पौलुस कहता है कि इस्राएल में हर एक जन परमेश्वर का नहीं है और अब्राहम के वंशज उसकी सच्ची सन्तान नहीं है।
शरीर से उत्पन्न परमेश्वर की सन्तान नहीं गिनी जाती है।
प्रतिज्ञा की सन्तान को परमेश्वर की सन्तान गिना जाता है।
सन्तानोत्पत्ति से पूर्व ही रिबका से कहा गया था, "जेठा छोटे का दास होगा," रिबका से कही गई इस बात में निहित उद्देश्य क्या था?"
परमेश्वर की दया और उसकी अनुकंपा के वरदान का कारण उसका चुनाव है।
परमेश्वर की दया और अनुकंपा के वरदान में निहित कारण वरदान प्राप्त करनेवालों की इच्छा और कार्य नहीं हैं।
पौलुस उत्तर देता है, "भला तू कौन है, जो परमेश्वर का साम्हना करता है?"
परमेश्वर ने विनाश के लिए तैयार किए गए मनुष्यों को अत्यधिक धीरज धर कर सहन किया है।
परमेश्वर ने उन पर अपनी महिमा का धन प्रकट किया है।
परमेश्वर ने यहूदियों और अन्य जातियों दोनों में से उनको बुलाया है जिन पर उसकी दया है।
इस्राएल की सन्तानों में से कुछ शेष जन बचे रहेंगे।
अन्यजातियों ने विश्वास के द्वारा धार्मिकता से उसे प्राप्त किया।
इस्राएली धार्मिकता प्राप्त नहीं कर पाए क्योंकि उन्होंने विश्वास से नहीं कर्मों से धार्मिकता की खोज की।
इस्राएलियों ने ठोकर खाने के पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान से ठोकर खाई थी।
जो ठोकर नहीं खाते, विश्वास करते है लज्जित नहीं होंगे।
1 हे भाइयों, मेरे मन की अभिलाषा और उनके लिये परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है, कि वे उद्धार पाएँ*। 2 क्योंकि मैं उनकी गवाही देता हूँ, कि उनको परमेश्वर के लिये धुन रहती है, परन्तु बुद्धिमानी के साथ नहीं। 3 क्योंकि वे परमेश्वर की धार्मिकता* से अनजान होकर, अपनी धार्मिकता स्थापित करने का यत्न करके, परमेश्वर की धार्मिकता के अधीन न हुए।
4 क्योंकि हर एक विश्वास करनेवाले के लिये धार्मिकता के निमित्त मसीह व्यवस्था का अन्त है। 5 क्योंकि मूसा व्यवस्था से प्राप्त धार्मिकता के विषय में यह लिखता है: “जो व्यक्ति उनका पालन करता है, वह उनसे जीवित रहेगा।” (लैव्य. 18:5)
6 परन्तु जो धार्मिकता विश्वास से है, वह यों कहती है, “तू अपने मन में यह न कहना कि स्वर्ग पर कौन चढ़ेगा?” (अर्थात् मसीह को उतार लाने के लिये), 7 या “अधोलोक में कौन उतरेगा?” (अर्थात् मसीह को मरे हुओं में से जिलाकर ऊपर लाने के लिये!)
8 परन्तु क्या कहती है? यह, कि
“वचन तेरे निकट है,
तेरे मुँह में और तेरे मन में है,”
यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं। 9 कि यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। (प्रेरि. 16:31) 10 क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार* किया जाता है।
11 क्योंकि पवित्रशास्त्र यह कहता है, “जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।” (यिर्म. 17:7) 12 यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं, इसलिए कि वह सब का प्रभु है; और अपने सब नाम लेनेवालों के लिये उदार है। 13 क्योंकि “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।” (प्रेरि. 2:21, योए. 2:32)
14 फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्यों लें? और जिसकी नहीं सुनी उस पर क्यों विश्वास करें? और प्रचारक बिना क्यों सुनें? 15 और यदि भेजे न जाएँ, तो क्यों प्रचार करें? जैसा लिखा है, “उनके पाँव क्या ही सुहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (यशा. 52:7, नहू. 1:15)
16 परन्तु सब ने उस सुसमाचार पर कान न लगाया। यशायाह कहता है, “हे प्रभु, किस ने हमारे समाचार पर विश्वास किया है?” (यशा. 53:1) 17 इसलिए विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।
18 परन्तु मैं कहता हूँ, “क्या उन्होंने नहीं सुना?” सुना तो सही क्योंकि लिखा है,
“उनके स्वर सारी पृथ्वी पर,
और उनके वचन जगत की छोर तक पहुँच गए हैं।” (भज. 19:4)
19 फिर मैं कहता हूँ। क्या इस्राएली नहीं जानते थे? पहले तो मूसा कहता है,
“मैं उनके द्वारा जो जाति नहीं, तुम्हारे मन में जलन उपजाऊँगा,
मैं एक मूर्ख जाति के द्वारा तुम्हें रिस दिलाऊँगा।” (व्य. 32:21)
20 फिर यशायाह बड़े साहस के साथ कहता है,
“जो मुझे नहीं ढूँढ़ते थे, उन्होंने मुझे पा लिया;
और जो मुझे पूछते भी न थे, उन पर मैं प्रगट हो गया।”
21 परन्तु इस्राएल के विषय में वह यह कहता है “मैं सारे दिन अपने हाथ एक आज्ञा न माननेवाली और विवाद करनेवाली प्रजा की ओर पसारे रहा।” (यशा. 65:1-2)
“मेरी उत्कट अभिलाषा है”
“परमेश्वर यहूदियों का उद्धार करे”
“क्योंकि मसीह ने विधान के नियमों का पूर्णतः पालन किया”
“कि वह उसमें विश्वास करनेवाले हर एक मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित बना दे”।
“जैसे विधान के नियम मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित ठहराते हैं”
“विधान के नियमों के पालन में सिद्ध मनुष्य जीवित रहेगा, क्योंकि नियम उसे परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित ठहराएंगे”
इसका संदर्भ 1) अनन्त जीवन से (यू.डी.बी.) या 2) परमेश्वर की संगति में नैतिक जीवन से है।
यहाँ “धार्मिकता के एक व्यक्ति की संज्ञा दी गई है कि वह बोलती है। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु मूसा लिखता है कि विश्वास मनुष्य को कैसे परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित ठहराता है”।
“तू यह न सोचना”, मूसा जनसमूह को एक वचन में संबोधित कर रहा है।
मूसा ऐसा प्रश्न पूछ कर अपने श्रोतागण को कुछ सिखाना चाहता है। इसका पूर्वाक्त निर्देश, मन में यह न कहना, को नकारात्क उत्तर की आवश्यकता है, वैकल्पिक अनुवाद, “स्वर्ग जाने का प्रयास कोई न करे”।
“कि वे मसीह को पृथ्वी पर ले आएं”
मूसा अपने श्रोतागण को सिखाने के लिए प्रश्न पूछता है। उसकी पूर्वोक्त उक्ति, “तू अपने मन में कहना” को नकारात्मक उत्तर की आवश्यकता है। वैकल्पिक अनुवाद, “जहाँ मृतकों की आत्माएं हैं वह किसी को उतरने की आवश्यकता नहीं है”
“कि वे मसीह को मृतकों में से ऊपर ले आएं”
“वह” अर्थात धर्मनिष्ठा 10:6 यहां पौलुस धर्मनिष्ठा को एक मनुष्य के रूप में व्यक्त कर रहा है, जो बोल सकता है। पौलुस प्रश्न पूछ कर जो उत्तर देगा उस पर बल देता है। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु मूसा जो कहता है, वह है कि”
“सन्देश ठीक यही है”
“मूँह” का अर्थ होता है शब्दोच्चारण। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “वचन तेरे शब्दोच्चारण में है”।
“मन” से अभिप्राय है, मनुष्य का मस्तिष्क या उसका सोचना। वैकल्पिक अनुवाद, “और वह तेरे सोचने में है”
“यदि तू स्वीकार करे कि यीशु प्रभु है”
“सच माने”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “परमेश्वर तेरा उद्धार करेगा”
“क्योंकि मन से विश्वास करके मनुष्य परमेश्वर के समक्ष न्यायोचित ठहरता है और मुँह से वह स्वीकरण करता है तो परमेश्वर उसे न्यायोचित ठहराता है”
“उसमें विश्वास करनेवाला कोई भी मनुष्य लज्जित नहीं होगा”। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जाता है, “परमेश्वर उसमें विश्वास करनेवाले किसी भी मनुष्य को लज्जित नहीं होने देगा”। वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर उसमें विश्वास करनेवाले हर एक मनुष्य को महिमान्वित करेगा”।
“इस प्रकार, परमेश्वर यहूदियों और गैर यहूदियों के साथ समता का व्यवहार करता है”। (यू.डी.बी.)
“वह सब विश्वासियों को विपुल आशिषें देता है”
“नाम” का अभिप्राय संपूर्ण व्यक्ति से है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “परमेश्वर उसमें विश्वास करनेवाले हर एक मनुष्य का उद्धार करेगा”।
पौलुस प्रश्न पूछने के द्वारा मसीह का शुभ सन्देश उन लोगों तक पहुँचाने के महत्त्व पर बल देता है, जिन्होंने अब तक शुभ सन्देश ही सुना है। यहां “वे” उन लोगों के संदर्भ में है जो परमेश्वर के लोग नहीं हैं। वैकल्पिक अनुवाद, “जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते उसका नाम नहीं ले सकते हैं”
पौलुस उसी कारण के निमित्त एक और प्रश्न पूछता है। वैकल्पिक अनुवाद, “और वे उसमें विश्वास नहीं कर पाते। “या” यदि उन्होंने उसका सन्देश नहीं सुना होता”। या “यदि उन्होंने उसका सन्देश नहीं सुना तो उसमें विश्वास करना संभव नहीं”।
पौलुस फिर उसी कारण प्रश्न पूछता है। वैकल्पिक अनुवाद, “और यदि कोई सुनाए नहीं तो वे सन्देश नहीं सुन पाएंगे”
पौलुस फिर उसी कारण से प्रश्न पूछता है। यह परमेश्वर के लोगों के संबन्ध में कहा गया है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “और वे शुभ सन्देश सुना नहीं सकते यदि कोई उन्हें भेजे नहीं”।
पौलुस का अभिप्राय “पांव” से है कि अमनशील प्रचारक उन लोगों में शुभ सन्देश सुनाते हैं, जिन्होंने कभी शुभ सन्देश नहीं सुना। वैकल्पिक अनुवाद, “यह अति मनोहर बात है कि सन्देशवाहक आकर हमें शुभ सन्देश सुनाते हैं”।
“परन्तु सब यहूदियों ने शुभ सन्देश सुनना नहीं चाहा”
पौलुस इस प्रश्न के संदर्भ द्वारा इस बात पर बल दे रहा है कि यशायाह ने धर्मशास्त्र में अपनी भविष्यद्वाणी लिख दी है कि अनेक यहूदी यीशु में विश्वास नहीं करेंगे। यहां “हमारे” परमेश्वर और यशायाह का बोध करवाता है। वैकल्पिक अनुवाद, “हे प्रभु, उनमें से कितने हैं जो हमारे सन्देश पर विश्वास नहीं करते हैं।
मैं कहता हूँ, क्या उन्होंने नहीं सुना? सुना तो सही , पौलुस बल देने के लिए प्रश्न करता है। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु मैं कहता हूँ कि यहूदियों ने निश्चय ही मसीह का शुभ सन्देश सुना है
इन दोनों कथनों का अर्थ एक ही है और महत्त्व उजागर करने के लिए हैं। “उनके सूर्य, चाँद और सितारों के लिए काम में लिया गया है। यहाँ उन्हें मानवीय सन्देशवाहक के रूप में व्यक्त किया गया है जो मनुष्यों को परमेश्वर का सन्देश सुनाते हैं। इसका अर्थ है कि उनका अस्तित्व परमेश्वर के सामर्थ्य और उसकी महिमा की गवाही देता है। स्पष्ट किया जा सकता है कि यहां पौलुस धर्मशास्त्र का संदर्भ दे रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “जैसा धर्मशास्त्र में लिखा है, सूर्य, चाँद, और सितारे परमेश्वर के सामर्थ्य और उसकी महिमा का प्रमाण हैं और संसार में हर एक जन उन्हें देखकर परमेश्वर के सत्य को जान पाता है”। (देखें: और और )
पौलुस महत्त्व उजागर करने के लिए ही प्रश्न का उपयोग कर रहा है। “इस्राएल शब्द उन लोगों के लिए है जो इस्राएल देश के निकले हैं, वैकल्पिक अनुवाद, “मैं पुनः कहता हूँ कि इस्राएलवासी निश्चय ही शुभ सन्देश का ज्ञान रखते थे”। (देखें: और )
इसका अर्थ है मूसा परमेश्वर की वाणी को लिख रहा था। “मैं” अर्थात परमेश्वर और “तुम्हारे” अर्थात इस्त्राएली। वैकल्पिक अनुवाद, “पहले तो मूसा कहता है कि परमेश्वर तुम्हें उपदेश दिलाता है.... परमेश्वर तुम्हें उत्तेजित करता है... ”
“जो एक जाति नहीं माने जाते हैं”। (यू.डी.बी.) या “उन लोगों के द्वारा जो किसी जाति के नहीं”।
“उस जाति के लोगों के द्वारा जो मुझे या मेरी आज्ञाओं को नहीं जानते”।
“मैं तुम्हें क्रोध करने पर विवश करूँगा”।
इसका अर्थ है कि यशायाह ने परमेश्वर के वचन लिखे।
“मुझे” अर्थात परमेश्वर को। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “यद्यपि अन्य जातियाँ मेरी खोज में नहीं थी, उन्होंने मुझे पा लिया”। भविष्यद्वक्ता भविष्य की बातों की इस प्रकार लिखते थे कि मानों वे हो रही हैं। यह भविष्यद्वाणी की सत्य पूर्ति पर बल देता है। वैकल्पिक अनुवाद, “यद्यपि अन्य जातियों मेरी खोज नहीं करेंगी। वे मुझे पा लेंगी”
“मैंने अपनी उपस्थिति का बोध करवाया” वैकल्पिक अनुवाद, “मैं अपनी उपस्थिति दर्शाऊंगा”
परमेश्वर यशायाह के माध्यम से कहता है
इस उक्ति द्वारा परमेश्वर को लगातार प्रयास पर बल दिया गया है। वैकल्पिक अनुवाद, “लगातार”
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं तुम्हारा स्वागत करने और तुम्हारी सहायता करने का प्रयास किया, परन्तु तुमने मेरी सहायता से इन्कार करके आज्ञा नहीं मानते रहे। “मैं” अर्थात परमेश्वर
पौलुस इस्राएलियों के उद्धार की इच्छा रखता था।
इस्राएली अपनी धार्मिकता स्थापित करने का यत्न करते थे।
इस्राएली परमेश्वर की धार्मिकता से अनजान हैं।
मसीह सब विश्वासियों के लिए धार्मिकता की व्यवस्था की पूर्ति है।
विश्वास का वचन निकट है, मुंह और मन में है।
पौलुस कहता है कि मनुष्य अपने मुंह से मसीह को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन में विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मृतकों में से जिलाया है।
मसीह का नाम लेने वाला हर एक जन उद्धार पायेगा।
पौलुस कहता है पहले प्रचारक भेजा जाता है तब सुसमाचार सुना जाता है और उस पर विश्वास किया जाता है जिससे कि मनुष्य मसीह का नाम लेता है।
मसीह का वचन सुना जाता है और विश्वास उत्पन्न करता है।
हां, इस्राएल ने सुसमाचार सुना था और जानते थे।
परमेश्वर ने कहा कि वह उन लोगों पर प्रकट होकर इस्राएल को रिस दिलाएगा जो उसे पूछते भी नहीं थे।
परमेश्वर ने इस्राएल की ओर हाथ फैलाए तो देखा कि वह आज्ञा न मानने वाली और हठीली प्रजा है।
1 इसलिए मैं कहता हूँ, क्या परमेश्वर ने अपनी प्रजा को त्याग दिया? कदापि नहीं! मैं भी तो इस्राएली हूँ; अब्राहम के वंश और बिन्यामीन के गोत्र में से हूँ। 2 परमेश्वर ने अपनी उस प्रजा को नहीं त्यागा, जिसे उसने पहले ही से जाना: क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्रशास्त्र एलिय्याह की कथा में क्या कहता है; कि वह इस्राएल के विरोध में परमेश्वर से विनती करता है। (भज. 94:14) 3 “हे प्रभु, उन्होंने तेरे भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला, और तेरी वेदियों को ढा दिया है; और मैं ही अकेला बच रहा हूँ, और वे मेरे प्राण के भी खोजी हैं।” (1 राजा. 19:10, 1 राजा. 19:14)
4 परन्तु परमेश्वर से उसे क्या उत्तर मिला “मैंने अपने लिये सात हजार पुरुषों को रख छोड़ा है जिन्होंने बाल के आगे घुटने नहीं टेके हैं।” (1 राजा. 19:18) 5 इसी रीति से इस समय भी, अनुग्रह से चुने हुए कुछ लोग बाकी हैं*।
6 यदि यह अनुग्रह से हुआ है, तो फिर कर्मों से नहीं, नहीं तो अनुग्रह फिर अनुग्रह नहीं रहा। 7 फिर परिणाम क्या हुआ? यह कि इस्राएली जिसकी खोज में हैं, वह उनको नहीं मिला; परन्तु चुने हुओं को मिला और शेष लोग कठोर किए गए हैं। 8 जैसा लिखा है, “परमेश्वर ने उन्हें आज के दिन तक* मंदता की आत्मा दे रखी है और ऐसी आँखें दी जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।” (व्य. 29:4, यशा. 6:9-10, यशा. 29:10, यहे. 12:2)
9 और दाऊद कहता है,
“उनका भोजन उनके लिये जाल, और फन्दा,
और ठोकर, और दण्ड का कारण हो जाए।
10 उनकी आँखों पर अंधेरा छा जाए ताकि न देखें,
और तू सदा उनकी पीठ को झुकाए रख।” (भज. 69:23)
11 तो मैं कहता हूँ क्या उन्होंने इसलिए ठोकर खाई, कि गिर पड़ें? कदापि नहीं परन्तु उनके गिरने के कारण अन्यजातियों को उद्धार मिला, कि उन्हें जलन हो। (व्य. 32:21) 12 अब यदि उनका गिरना जगत के लिये धन और उनकी घटी अन्यजातियों के लिये सम्पत्ति का कारण हुआ, तो उनकी भरपूरी से कितना न होगा।
13 मैं तुम अन्यजातियों से यह बातें कहता हूँ। जब कि मैं अन्यजातियों के लिये प्रेरित हूँ, तो मैं अपनी सेवा की बड़ाई करता हूँ, 14 ताकि किसी रीति से मैं अपने कुटुम्बियों से जलन करवाकर उनमें से कई एक का उद्धार कराऊँ।
15 क्योंकि जब कि उनका त्याग दिया जाना* जगत के मिलाप का कारण हुआ, तो क्या उनका ग्रहण किया जाना मरे हुओं में से जी उठने के बराबर न होगा? 16 जब भेंट का पहला पेड़ा पवित्र ठहरा, तो पूरा गुँधा हुआ आटा भी पवित्र है: और जब जड़ पवित्र ठहरी, तो डालियाँ भी ऐसी ही हैं।
17 और यदि कई एक डाली तोड़ दी गई, और तू जंगली जैतून होकर उनमें साटा गया, और जैतून की जड़ की चिकनाई का भागी हुआ है। 18 तो डालियों पर घमण्ड न करना; और यदि तू घमण्ड करे, तो जान रख, कि तू जड़ को नहीं, परन्तु जड़ तुझे सम्भालती है।
19 फिर तू कहेगा, “डालियाँ इसलिए तोड़ी गई, कि मैं साटा जाऊँ।” 20 भला, वे तो अविश्वास के कारण तोड़ी गई, परन्तु तू विश्वास से बना रहता है इसलिए अभिमानी न हो, परन्तु भय मान, 21 क्योंकि जब परमेश्वर ने स्वाभाविक डालियाँ न छोड़ी, तो तुझे भी न छोड़ेगा।
22 इसलिए परमेश्वर की दयालुता और कड़ाई को देख! जो गिर गए, उन पर कड़ाई, परन्तु तुझ पर दयालुता, यदि तू उसमें बना रहे, नहीं तो, तू भी काट डाला जाएगा।
23 और वे भी यदि अविश्वास में न रहें, तो साटे जाएँगे क्योंकि परमेश्वर उन्हें फिर साट सकता है। 24 क्योंकि यदि तू उस जैतून से, जो स्वभाव से जंगली है, काटा गया और स्वभाव के विरुद्ध* अच्छी जैतून में साटा गया, तो ये जो स्वाभाविक डालियाँ हैं, अपने ही जैतून में साटे क्यों न जाएँगे।
25 हे भाइयों, कहीं ऐसा न हो, कि तुम अपने आप को बुद्धिमान समझ लो; इसलिए मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो, कि जब तक अन्यजातियाँ पूरी रीति से प्रवेश न कर लें, तब तक इस्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा।
26 और इस रीति से सारा इस्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है,
“छुड़ानेवाला सिय्योन से आएगा,
और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा। (यशा. 59:20)
27 और उनके साथ मेरी यही वाचा होगी,
जब कि मैं उनके पापों को दूर कर दूँगा।” (यशा. 27:9, यशा. 43:25)
28 वे सुसमाचार के भाव से तो तुम्हारे लिए वे परमेश्वर के बैरी हैं, परन्तु चुन लिये जाने के भाव से पूर्वजों के कारण प्यारे हैं। 29 क्योंकि परमेश्वर अपने वरदानों से, और बुलाहट से कभी पीछे नहीं हटता।
30 क्योंकि जैसे तुम ने पहले परमेश्वर की आज्ञा न मानी परन्तु अभी उनके आज्ञा न मानने से तुम पर दया हुई। 31 वैसे ही उन्होंने भी अब आज्ञा न मानी कि तुम पर जो दया होती है इससे उन पर भी दया हो। 32 क्योंकि परमेश्वर ने सब को आज्ञा न मानने के कारण बन्द कर रखा ताकि वह सब पर दया करे।
33 अहा, परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गम्भीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!
34 “प्रभु कि बुद्धि को किस ने जाना?
या कौन उनका सलाहकार बन गया है? (अय्यू. 15:8, यिर्म. 23:18)
35 या किस ने पहले उसे कुछ दिया है
जिसका बदला उसे दिया जाए?” (अय्यू. 41:11)
36 क्योंकि उसकी ओर से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिये सब कुछ है: उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
“इसलिए मैं पौलुस कहता हूँ”
पौलुस यह प्रश्न इसलिए पूछता है कि यहूदियों के प्रश्नों का उत्तर दे क्योंकि वे अन्यजातियों के परमेश्वर के लोग होने से अप्रसन्न थे और उनके हृदय कठोर हो गए थे।
“यह संभव नहीं”। या “निश्चय ही नहीं”। इस उक्ति से प्रबल इन्कार होता है कि ऐसा होगा। आप उसकी भाषा में समानार्थक अभिव्यक्ति यहाँ काम में लेना चाहेंगे। देखें कि आपने इसका अनुवाद में कैसे किया है।
परमेश्वर ने इस्राएल को बारह गोत्रों में विभाजित किया था उनमें से एक गोत्र अर्थात बिन्यामीन का वंशज हूँ।
“वह समय से पहले ही उसे जानता था”।
“निश्चय ही तुम जानते हो कि धर्मशास्त्र में लिखा है कि एलिय्याह ने इस्त्राएल के विरूद्ध परमेश्वर से विनती की थी
पौलुस धर्मशास्त्र का संदर्भ दे रहा है
इस्त्रालियों ने घात किया
यहाँ सर्वनाम “मैं” एलिय्याह के लिए है।
पौलुस इस प्रश्न के द्वारा पाठकों को अपनी अगली बात पर ला रहा है
“परमेश्वर कैसे उत्तर देता है”?
“उसे” अर्थात एलिय्याह को
“7,000 पुरूष”
पौलुस समझा रहा है कि परमेश्वर की दया कैसे काम करती है। “परन्तु क्योंकि परमेश्वर की दया अनुग्रह से कार्य करती है”।
“हमें क्या निष्कर्ष निकालना होगा? वैकल्पिक अनुवाद, “हमें यह स्मरण रखना है”
यह उनकी आत्मिक कठोरता के लिए प्रयुक्त एक रूपक है। वे आत्मिक सत्य को न तो देख सके और न ही सुन सके।
आँख से देखने का अर्थ है, समझ प्राप्त करना।
कानों से सुनना आज्ञापालन के लिए प्रयुक्त रूपक है
“भोजन” अर्थात उनकी दावतें और “जाल और फंदा” अर्थात दण्ड”। “हे परमेश्वर उन्हें पकड़ कर उनकी दावतों में ही उन्हें फंसा दे”।
“पाप का कारण”
“ऐसा कारण कि उनसे तू बदला ले”
दाऊद परमेश्वर से याचना करता है कि वह उसके बैरियों को दास बना दे जो सदा अपनी पीठ पर भारी बोझ उठाए रहते हैं।
“क्या परमेश्वर ने उनके पापों के कारण उनका सदा के लिए त्याग कर दिया?”
“यह संभव नहीं”। या “निश्चय ही नहीं” इस उक्ति से ऐसा होना प्रबलता से इन्कार किया गया है। आपकी भाषा में यहाँ काम में लेने हेतु समानार्थक उक्ति हो सकती है। देखें आने अनुवाद कैसे किया है।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
इसका अनुवाद वैसे ही करें जैसे में किया है।
यह सर्वनाम यहूदी अविश्वासियों के स्थान पर है।
“तो जब वे मसीह में विश्वास करेंगे तो परमेश्वर उन्हें कैसे ग्रहण करेगा? यह ऐसा होगा जैसे वे मर कर जी उठे”।
पौलुस अब्राहम, इसहाक और याकूब इस्त्राएलियों के पूर्वजों की तुलना कर रहा है कि वे फसल का पहला फल थे और उनके वंशज इस्त्राएली बाद की गेहूँ की फसल का आटा हैं।
पौलुस इस्त्राएलियों के पूर्वजों अब्राहम, इसहाक और याकूब की तुलना जड़ से कर रहा है और उनके वंशजों, इस्त्राएलियों की तुलना डालियों से कर रहा है।
पवित्र लोग परमेश्वर के हैं और परमेश्वर की सेवा एवं महिमान्वन के लिए अलग कर दिए गए हैं।
पौलुस अन्यजाति विश्वासियों को इस प्रकार संबोधित कर रहा है कि वे मानों एक ही व्यक्ति हैं
“तू” सर्वनाम शब्द और “जंगली जैतून” यीशु के द्वारा उद्धार प्राप्त करने वाले अन्य जाति विश्वासी हैं।
“अन्य शाखाओं के साथ वृक्ष में रोपित किया गया”
परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं का भागी हुआ
“यह नहीं कहना कि तू परमेश्वर के परित्यक्त यहूदियों से उत्तम है”।
“तू परमेश्वर से आशिष पाता है परमेश्वर तुझ से नहीं”
पौलुस अन्यजाति विश्वासियों को इस प्रकार संबोधित कर रहा है कि वे मानों एक ही व्यक्ति हैं
यह उक्ति यहूदियों के संदर्भ में है जिन्हें परमेश्वर ने त्याग दिया। इसको कर्तृवाच्य में बदला जा सकता है, “परमेश्वर ने शाखाओं को तोड़ दिया
यह उक्ति अन्यजाति विश्वासियों के संदर्भ मे है जिन्हें परमेश्वर ने स्वीकार कर लिया है। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य में भी किया जा सकता है, “कि वह मुझे रोपित करे”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में भी किया जा सकता है, “उसने उन्हें तोड़”
अर्थात विश्वास न करने वाले यहूदी
“परन्तु अपने विश्वास के कारण जुड़ा हुआ है”।
“क्योंकि यदि परमेश्वर स्वाभाविक शाखाओं को नहीं छोड़ता है तो तुझे भी नहीं छोड़ेगा”
अर्थात यहूदी जनों
पौलुस अन्यजाति विश्वासियों को इस प्रकार संबोधित कर रहा है कि वे मानों एक ही व्यक्ति हैं
पौलुस अन्यजाति विश्वासियों को स्मरण करवा रहा है कि परमेश्वर यद्यपि उनके साथ दया का व्यवहार करे वह उनका न्याय करने और उन्हें दण्ड देने में संकोच नहीं करेगा।
“अन्यथा परमेश्वर तुझे भी काट देगा”
पौलुस अन्यजाति विश्वासियों को इस प्रकार संबोधित कर रहा है कि वे मानों एक ही व्यक्ति हैं
“यदि यहूदी मसीह में विश्वास कर लें”
“परमेश्वर उन्हें पुनः रोपित कर देगा”
यह एक प्रक्रिया है जिसमें एक वृक्ष की टहनी दूसरे वृक्ष में प्रत्यारोपित की जाती है कि वह उसमें उगने लगे।
पौलुस परमेश्वर के लोगों की तुलना वृक्ष की डालियों से कर रहा है वैकल्पिक अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में, “यदि परमेश्वर तुम्हें उस जैतून के वृक्ष में से काट कर निकाल लिया जो स्वभाव से जंगली है और प्रकृति के विरूद्ध तुम्हें अच्छे जैतून के वृक्ष में प्रत्यरोपित कर दिया है तो वह इन यहूदियों को कितना अधिक अपने ही जैतून के वृक्ष में रोपित करेगा जो स्वभाव से उसकी अपनी टहनियाँ हैं।
अर्थात यहूदी
“मैं” सर्वनाम पौलुस के लिए है।
अर्थात अन्यजाति विश्वासी
“कि तुम अपने आपको आवश्यकता से अधिक बुद्धिमान न समझो” अन्यजाति विश्वासी स्वयं को अविश्वासी यहूदियों से अधिक बुद्धिमान समझने की भूल कर सकते थे
कुछ यहूदियों ने मसीह के द्वारा उद्धार को ग्रहण करना स्वीकार नहीं किया था।
“जब तक” का यहाँ अर्थ है कि जब परमेश्वर अन्य जातियों को कलीसिया में ले आयेगा तब अनेक यहूदी विश्वास करेंगे।
इस वाक्य का अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है, “इस प्रकार परमेश्वर संपूर्ण इस्त्राएल का उद्धार करेगा”।
यह एक अतिशयोक्ति है। अनेक यहूदी उद्धार पायेंगे।
यह एक ही विषय के दो तथ्यों की तुलना हेतु है। पौलुस इसके द्वारा यह दिखाना चाहता है कि परमेश्वर ने यहूदियों का परित्याग तो किया है परन्तु वह अब भी उनसे प्रेम करता है।
परमेश्वर तुम अन्यजाति विश्वासियों के कारण यहूदियों से घृणा करता है। परमेश्वर ने अन्य जातियों से इतना अधिक प्रेम किया कि यहूदियों के लिए उसका प्रेम घृणा सा प्रतीत हाने लगा।
“क्योंकि परमेश्वर के वरदान और उसकी बुलाहट बदल नहीं सकते है”।
“पहले तो तुम आज्ञा माननेवाले न थे”। “तुम सर्वनाम शब्द अन्यजाति विश्वासियों के लिए बहुवचन में है।
इसका अर्थ यह भी हो सकता है, कि परमेश्वर ने सबको उसकी आज्ञा न मानने में अक्षम बना कर रखा है, जैसे बन्दी कारागार से बचकर नहीं निकल सकते। “परमेश्वर ने सब को उनकी अवज्ञा का बन्दी बनाकर रखा है”।
“परमेश्वर की बुद्धि और उसके ज्ञान दोनों ही की गहराई का धन कैसा अद्भुत है”।
“हम उसके निर्णयों को समझने में पूर्णतः अक्षम हैं और वह हमारे लिए कैसे काम करता है उसके मार्ग जानने में सक्षम नहीं”
11:35 में सर्वनाम “उसे” उस व्यक्ति के लिए काम में लिया गया है जो परमेश्वर को देता है।
“कि परमेश्वर उसे बदला चुकाए”
11:36 में “उसे” अर्थात परमेश्वर को
कदापि नहीं।
पौलुस कहता है कि इस्राएल के परमेश्वर के शेष जन है, जो अनुग्रह के चुनाव से सुरक्षित किए जाते हैं।
इस्राएलियों में जो चुने गए थे उनका उद्धार हो गया शेष जन कठोर हो गए।
नींद के कारण उनकी आंखें देख नहीं पाई और उनके कान सुन नहीं पाए।
अन्य जातियों का उद्धार हुआ।
अन्य जातियों का उद्धार इस्राएलियों के मन में ईर्ष्या उत्पन्न करेगा।
इस्राएल जड़ है और अन्य जातियां डालियां हैं।
पौलुस कहता है कि जंगली डालियां को उन प्राकृतिक डालियों के विरुद्ध घमण्ड नहीं करना है।
पौलुस जंगली डालियों को चेतावनी देता है कि परमेश्वर ने अविश्वास के लिए स्वाभाविक डालियों को नहीं छोड़ा तो वह जंगली डालियों को भी नहीं छोड़ेगा।
परमेश्वर उन स्वभाविक डालियों को अविश्वास में नहीं रहें पुनः जैतून के वृक्ष में रोपित कर सकता है।
इस्राएल का एक भाग कब तक कठोर बना रहेगा जब तक अन्य जातियां इसी रीति से प्रवेश कर लें।
परमेश्वर इस्राएलियों को प्रेम अब भी करता है, उनके पूर्वजों के कारण क्योंकि वह बदलता नहीं।
यहूदी और अन्य जाति दोनों ही ने आज्ञा नहीं मानी है।
परमेश्वर ने यहूदी और अन्य जाति दोनों ही के अवज्ञाकारियों पर दया की है।
परमेश्वर के निर्णयों को कौन समझ सकता है और कौन उसे परामर्श दे सकता है?
सब कुछ उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए है।
1 इसलिए हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिलाकर विनती करता हूँ, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ; यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।
2 और इस संसार के सदृश न बनो*; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिससे तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।
3 क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूँ, कि जैसा समझना चाहिए, उससे बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे; पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बाँट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।
4 क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही जैसा काम नहीं; 5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न-भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिसको भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे। 7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखानेवाला हो, तो सिखाने में लगा रहे; 8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।
9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो। (आमो. 5:15) 10 भाईचारे के प्रेम* से एक दूसरे पर स्नेह रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।
11 प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरे रहो; प्रभु की सेवा करते रहो। 12 आशा के विषय में, आनन्दित; क्लेश के विषय में, धैर्य रखें; प्रार्थना के विषय में, स्थिर रहें। 13 पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उसमें उनकी सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो।
14 अपने सतानेवालों को आशीष दो; आशीष दो श्राप न दो। 15 आनन्द करनेवालों के साथ आनन्द करो, और रोनेवालों के साथ रोओ। (भज. 35:13) 16 आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनों के साथ संगति रखो; अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो। (नीति. 3:7, यशा. 5:21)
17 बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उनकी चिन्ता किया करो। 18 जहाँ तक हो सके, तुम भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो*।
19 हे प्रियों अपना बदला न लेना; परन्तु परमेश्वर को क्रोध का अवसर दो, क्योंकि लिखा है, “बदला लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूँगा।” (व्य. 32:35)
20 परन्तु “यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला,
यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला;
क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा।” (नीति. 25:21-22)
21 बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।
“मेरे विश्वासी भाइयों, परमेश्वर ने तुम पर जो महान दया दर्शाई है, मैं चाहता हूँ”
यहाँ पौलुस “शरीरों” शब्द के उपयोग द्वारा संपूर्ण व्यक्तित्व का संदर्भ दे रहा है। पौलुस मसीही विश्वासी परमेश्वर का आज्ञाकारी की तुलना एक बलि पशु से करता है जिसे यहूदी परमेश्वर को चढ़ाते थे। वैकल्पिक अनुवाद, “जीवित रहते समय ही अपने आपको परमेश्वर को बलिदान कर दो जैसे कि तुम मन्दिर की वेदी पर एक मृतक बलि हो”। (देखें: और )
इसके अर्थ हो सकते हैं 1) नैतिकता में परिशुद्ध, “परमेश्वर को भावता “ या 2) “परमेश्वर ही को समर्पित एवं उसे ग्रहणयोग्य”
उसके संभावित अर्थ है, 1) परमेश्वर की उपासना की उचित विधि”, या 2) इस प्रकार तुम अपनी आत्मा में परमेश्वर” की उपासना करते हैं।
इसके अर्थ हो सकते हैं, 1) “संसार के जैसा आचरण मत रखो” (देखें यू.डी.बी.) या 2) “संसार के जैसी मानसिकता मत रखो”।
इसके अर्थ हो सकते हैं, 1) “संसार के जैसा आचरण मत रखो” (देखें यू.डी.बी.) या 2) “संसार के जैसी मानसिकता मत रखो”।
इस संसार के अविश्वासियों के
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “परन्तु परमेश्वर को अपनी मानसिकता बदलने दो” या “परमेश्वर को अपना आचरण बदलने दो, अपनी मानसिकता के परिवर्तन द्वारा”।
यहाँ “अनुग्रह” से पौलुस का अभिप्राय है परमेश्वर द्वारा पौलुस का प्रेरित होना और कलीसिया का अगुवा होना चुना जाना। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि परमेश्वर ने मुझे प्रेरित होने के लिए अनमोल चुना है”
“कि कोई यह न समझे कि वह दूसरे से बढ़कर है”।
इसका अनुवाद नए वाक्य में किया जा सकता है, “परन्तु तुम अपने को क्या समझते हो बुद्धि से समझो”।
“क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें उचित समझने के लिए विश्वास का परिमाण दिया है।”
पौलुस यह समझा रहा है कि मसीही विश्वासी स्वयं को किसी से बड़ा क्यों न समझें।
पौलुस सब मसीही विश्वासियों की तुलना देह के अंगों से करता है। यह इस बात पर बल देता है कि विश्वासी विभिन्न रूपों में मसीह की सेवा करें, प्रत्येक विश्वासी मसीह का है और उसकी सेवा महत्त्वपूर्ण है।
जैसे आँख, पेट और हाथ
"प्रत्येक विश्वासी दुसरे विश्वासी की देह का अंग है। (देखें: \ ) वैकल्पिक अनुवाद, "प्रत्येक विश्वासी अन्य सब विश्वासियों से जुड़ा है।
“परमेश्वर ने हममें से हर एक को अनमोल योग्यता प्रदान की है कि उसके लिए विभिन्न कार्य करें”।
इसके संभावित अर्थ हैं 1) “वह परमेश्वर प्रदत्त विश्वास के परिमाण के परे की भविष्यद्वाणी न करे “ या 2) वह हमारी विश्वास की शिक्षा से सुसंगत भविष्यद्वाणी करे”।
इसका अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है, “यदि किसी को पैसा या वस्तुएं देने का वरदान मिला है”
वैकल्पिक अनुवाद, “प्रेम सत्यनिष्ठ हो” या “प्रेम सच्चा हो”।
पौलुस 9 बातों की सूची देता है और विश्वासियों को समझाता है कि उन्हें किस प्रकार के लोग होना है। आपको कुछ बातों का अनुवाद, “की बात है... तो करो” सूची है।
“तुम अपने विश्वासी भाइयों से ऐसा प्रेम रखो”
वैकल्पिक अनुवाद, “परिवार के सदस्यों की नाई” निष्ठावान बने रहो”
“एक दूसरे का सम्मान एवं आदर करो” या एक नया वाक्य बनाएं “तुम्हें अपने विश्वासी भाई का सम्मान कैसे करना है उसका आदर करो”
पौलुस विश्वासियों को समझा रहा है कि उन्हें किस प्रकार के मनुष्य होना चाहिएं। सूची का आरंभ में हुआ है।
“अपने कर्तव्य पालन में आलसी न हो परन्तु आत्मा के अनुसरण के जिज्ञासु होकर प्रभु की सेवा करो”।
“आनन्द करो कि हमारी हियाव परमेश्वर में है”
यह एक नया वाक्य हो सकता है, “कठिन समयों में धीरज रखो”।
यह एक नया वाक्य हो सकता है, “सदा प्रार्थना में लगे रहना मत भूलो”।
यह उस सूची की अन्तिम बात है जो में आरंभ हुई, “पवित्र जनों की आवश्यकता में उनके साथ बाँटों” या “जहाँ तक... “ या “जब विश्वासी भाई परेशानी में हों तो उनकी आवश्यकता में सहायता करो।
“जब उन्हें ठहरने का स्थान चाहिए तो अपने घरों में उनका स्वागत करो”
वैकल्पिक अनुवाद, “आपस में सहमति रखो” या “एक दूसरे के साथ मेल-मिलाप से रहो”
“अपने आप को दूसरे से बड़ा न समझो”
“जो लोग महत्त्वपूर्ण प्रतीत न हों उनका सम्मान करो”
“स्वयं को सबसे अधिक बुद्धिमान न समझो”।
12:17 - में पौलुस विश्वासियों को समझाता हूँ कि बुराई करने वालों के साथ कैसा व्यवहार करें।
“तुम्हारे साथ जिसने बुराई की है उसके साथ बुराई मत करो”।
“ऐसे काम करो जिन्हें सब लोग अच्छा मानते हैं”
“यथासंभव प्रयास करके सबके साथ मेल मिलाप रखो”
“जितना तुम्हारे वश में है”
पौलुस विश्वासियों को समझा रहा है कि बुराई करनेवालों के साथ कैसा व्यवहार करें में आरंभ हुआ है।
इन दोनों उक्तियों का एक ही अर्थ है और इनको दो बार कहना महत्त्व उजागर करने के लिए है। वैकल्पिक अनुवाद, “मैं निश्चय ही तुम्हारा बदला लूँगा”
“तुम और तेरा” एक ही शक्ति को संबोधित किए गए हैं
12:20 में पौलुस धर्मशास्त्र के एक और अंश का उद्धरण देता है। वैकल्पिक अनुवाद, “क्योंकि लिखा है, यदि तेरा बैरी भूखा हो.... उसके सिर पर
उसे खाना खिला - “उसे भोजन दो”
पौलुस बैरियों के दण्ड की तुलना आग के अंगारों के ढेर से करता है जो उनके सिर पर डाला जाएगा। इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करने वाले को उसके बुरे काम का बोध हो” या 2) “परमेश्वर को अवसर दो कि वह तुम्हारे बैरी को कठोर दण्ड दे।
पौलुस “बुराई” की चर्चा इस प्रकार कर रहा है कि मानों वह एक जीवित प्राणी हो। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है। “बुरे मनुष्यों को अपने पर विजयी न होने दो, परन्तु भलाई के द्वारा बुरे मनुष्य को जीत लो”। (देखें: और )
विश्वासी की आत्मिक सेवा है कि वह परमेश्वर को स्वयं का जीवित बलिदान चढ़ाए।
मन नया हो जाने से विश्वासी परमेश्वर की भली, भावती और सिद्ध इच्छा अनुभव से ज्ञात कर लेते हैं।
विश्वासी को जैसा स्वयं को समझना है उससे बढ़कर वह स्वयं को न समझे।
विश्वासी सब मसीह में एक देह हैं और व्यक्तिगत रूप से एक दूसरे के सदस्य हैं।
प्रत्येक विश्वासी को विश्वास के परिमाण के अनुसार वरदानों का उपयोग करना है।
विश्वासी एक दूसरे से प्रेम रखें और एक दूसरे का सम्मान करें।
विश्वासियों को पवित्र जनों की आवश्यकता में हाथ बंटाना चाहिए।
विश्वासी अपने सताने वालों को कोसे नहीं; आशीर्वाद दें।
विश्वासी दीनों को ग्रहण करें।
यथासंभव सब मनुष्यों के साथ विश्वासी मेल रखें।
विश्वासी बदला न लें क्योंकि बदला लेना परमेश्वर का काम है।
विश्वासी भलाई से बुराई को जीत लें।
1 हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के अधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं। (तीतु. 3:1) 2 इसलिए जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का विरोध करता है, और विरोध करनेवाले दण्ड पाएँगे।
3 क्योंकि अधिपति अच्छे काम के नहीं, परन्तु बुरे काम के लिये डर का कारण हैं; क्या तू अधिपति से निडर रहना चाहता है, तो अच्छा काम कर* और उसकी ओर से तेरी सराहना होगी; 4 क्योंकि वह तेरी भलाई के लिये परमेश्वर का सेवक है। परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्योंकि वह तलवार व्यर्थ लिए हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है*; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे। 5 इसलिए अधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्तु डर से अवश्य है, वरन् विवेक भी यही गवाही देता है।
6 इसलिए कर भी दो, क्योंकि शासन करनेवाले परमेश्वर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं। 7 इसलिए हर एक का हक़ चुकाया करो; जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे चुंगी चाहिए, उसे चुंगी दो; जिससे डरना चाहिए, उससे डरो; जिसका आदर करना चाहिए उसका आदर करो।
8 आपस के प्रेम को छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदार न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है। 9 क्योंकि यह कि “व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, लालच न करना,” और इनको छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (निर्ग. 20:13-16, लैव्य. 19:18) 10 प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिए प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है।
11 और समय को पहचान कर ऐसा ही करो, इसलिए कि अब तुम्हारे लिये नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुँची है; क्योंकि जिस समय हमने विश्वास किया था, उस समय की तुलना से अब हमारा उद्धार निकट है। 12 रात* बहुत बीत गई है, और दिन निकलने पर है; इसलिए हम अंधकार के कामों को तजकर ज्योति के हथियार बाँध लें।
13 जैसे दिन में, वैसे ही हमें उचित रूप से चलना चाहिए; न कि लीलाक्रीड़ा, और पियक्कड़पन, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न झगड़े और ईर्ष्या में। 14 वरन् प्रभु यीशु मसीह को पहन लो, और शरीर की अभिलाषाओं को पूरा करने का उपाय न करो।
“प्रत्येक विश्वासी आज्ञा माने” (देखें यू.डी.बी.) या “प्रत्येक जन आज्ञा माने”।
“राजकीय अधिकारियों”
“क्योंकि”
“अधिकारियों को परमेश्वर ने वह स्थान दिया है, इसलिए वे वहाँ हैं”
“वह राजकीय अधिकारी”
“जो राजकीय अधिकार का विरोध करते हैं”
इसलिए - पौलुस समझाता है और यदि सरकार किसी को दोषी ठहराए तो क्या होगा।
शासक भले मनुष्य के लिए डर का कारण नहीं है
मनुष्य अच्छे कामों या बुरे कामों से पहचाना जाता है
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं बताता हूँ कि तुम सरकार से निडर कैसे रह सकते हो”।
भलाई करनेवालों की सरकार भी प्रशंसा करेगी
“उसके हाथ में दण्ड देने का अधिकार है और वह मनुष्यों को दण्ड देगा”।
रोमी प्रशासक अपने अधिकार के प्रतीक स्वरूप एक छोटी तलवार रखते थे।
“बुराई के प्रति सरकार के क्रोध को व्यक्त करने के लिए जो व्यक्ति मनुष्य को दण्ड देता है”।
“इसलिए ही नहीं कि सरकार तुम्हें दण्ड दे परन्तु परमेश्वर के समक्ष अपना विवेक स्वच्छ रखने के लिए भी”।
“क्योंकि सरकार बुरा करने वाले को दण्ड देती है
पौलुस विश्वासियों से बातें कर रहा है
“इसलिए जिसे कर चाहिए उसे कर दो”
“सेवा करे” या “काम करो”
“अधिकारी कर”
“अपना संपूर्ण ऋण चुका दो चाहे सरकार का या मनुष्यों” पौलुस विश्वासियों को पत्र लिख रहा है।
नया वाक्यः “विश्वासियों से प्रेम करना एक ऐसा ऋण है जिसके अधीन तुम रह सकते हो”
पौलुस अब प्रकट करेगा कि प्रेम परमेश्वर की संपूर्ण अनिवार्यताओं को पूरा करता है।
यहाँ 13:9 में द्वितीय पुरूष एक वचन में है वक्ता जनसमूह को ऐसे संबोधित कर रहा है कि वह एक वचन है। अतः आपको यहाँ बहुवचन शब्द के उपयोग की आवश्यकता होगी।
किसी ऐसी वस्तु की लालसा करना जो मनुष्य के पास नहीं है और उसे हथियाना उसके लिए वर्जित है।
यह उक्ति प्रेम को एक व्यक्तिस्वरूप दर्शाती है जो मनुष्यों के साथ दयालु है
“क्योंकि प्रेम बुराई नहीं करता”
“पाप का वर्तमान समय लगभग पूरा हो गया है”
“मसीह शीघ्र ही आ जायेगा”
मनुष्य रात में जो कार्य करना उचित समझते हैं जब कोई उन्हें देखता न हो।
“हमें ऐसे कामों को करना चाहते है जो कि मनुष्य हमें करते देखे, परमेश्वर की सुरक्षा के अधीन होना है”
पौलुस अपने पाठकों और अन्य विश्वासियों को अपने साथ गिनता है।
“प्रत्यक्ष रूप में” या “यह जानकर कि सब देखते हैं”
“किसी के विरुद्ध षड्यंत्र रचने या लोगों से विवाद करने”
“किसी की सफलता या लाभ के प्रति ईर्ष्या”
अर्थात मसीह का नैतिक स्वभाव ऐसे अपना लो जैसे कि वह हमारा बाहरी वस्त्र है जिसे लोग देख सकते हैं।
यदि आपकी भाषा में आज्ञाओं का बहुवचन है तो उसे यहाँ काम में लें।
“अपने पुराने बुरे मन को दुष्टता के काम करने का अवसर मत दो”
सांसारिक अधिकारी परमेश्वर की ओर से नियुक्त हैं।
जो सांसारिक अधिकारियों का विरोध करते हैं वे दण्ड पायेंगे।
पौलुस विश्वासियों से कहता है कि वे भलाई करें जिससे कि वे अधिकारियों से निर्भय रहें।
परमेश्वर ने शासकों को तलवार उठाने का अधिकार दिया है कि बुरा करने वालों को क्रोध के अनुसार दण्ड दे।
परमेश्वर ने शासकों को कर वसूलने का अधिकार दिया है।
पौलुस कहता है कि वे प्रेम के ऋणी बनें।
विश्वासी अपने पड़ोसी से प्रेम करके व्यवस्था पूरी करता है।
पौलुस व्यभिचार न करना, हत्या न करना, लालच न करना व्यवस्था बताता है।
पौलुस कहता है कि विश्वासी अन्धकार के काम त्याग कर ज्योति के हथियार बान्ध लें।
विश्वासियों को लीला क्रीड़ा, पियक्कड़पन, व्यभिचार, लुचपन, झगड़े और डाह में न पड़ें।
विश्वासी शारीरिक अभिलाषा को स्थान न दें।
1 जो विश्वास में निर्बल है*, उसे अपनी संगति में ले लो, परन्तु उसकी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं। 2 क्योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग-पात ही खाता है।
3 और खानेवाला न-खानेवाले को तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है। 4 तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, वरन् वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।
5 कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर मानता है, और कोई सब दिन एक सा मानता है: हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले। 6 जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है।
7 क्योंकि हम में से न तो कोई अपने लिये जीता है, और न कोई अपने लिये मरता है। 8 क्योंकि यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं*; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं; फिर हम जीएँ या मरें, हम प्रभु ही के हैं। 9 क्योंकि मसीह इसलिए मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवितों, दोनों का प्रभु हो।
10 तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के सामने खड़े होंगे। 11 क्योंकि लिखा है,
“प्रभु कहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध कि हर एक घुटना मेरे सामने टिकेगा,
और हर एक जीभ परमेश्वर को अंगीकार करेगी।” (यशा. 45:23, यशा. 49:18)
12 तो फिर, हम में से हर एक परमेश्वर को अपना-अपना लेखा देगा।
13 इसलिए आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ पर तुम यही ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे।
14 मैं जानता हूँ, और प्रभु यीशु से मुझे निश्चय हुआ है, कि कोई वस्तु अपने आप से अशुद्ध नहीं, परन्तु जो उसको अशुद्ध समझता है, उसके लिये अशुद्ध है। 15 यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता; जिसके लिये मसीह मरा उसको तू अपने भोजन के द्वारा नाश न कर।
16 अब तुम्हारी भलाई की निन्दा न होने पाए। 17 क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना-पीना नहीं; परन्तु धार्मिकता और मिलाप और वह आनन्द है जो पवित्र आत्मा से होता है।
18 जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्वर को भाता है और मनुष्यों में ग्रहणयोग्य ठहरता है। 19 इसलिए हम उन बातों का प्रयत्न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो।
20 भोजन के लिये परमेश्वर का काम* न बिगाड़; सब कुछ शुद्ध तो है, परन्तु उस मनुष्य के लिये बुरा है, जिसको उसके भोजन करने से ठोकर लगती है।
21 भला तो यह है, कि तू न माँस खाए, और न दाखरस पीए, न और कुछ ऐसा करे, जिससे तेरा भाई ठोकर खाए।
22 तेरा जो विश्वास हो, उसे परमेश्वर के सामने अपने ही मन में रख*। धन्य है वह, जो उस बात में, जिसे वह ठीक समझता है, अपने आप को दोषी नहीं ठहराता। 23 परन्तु जो सन्देह कर के खाता है, वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह विश्वास से नहीं खाता, और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है।
पौलुस विश्वासियों को उचित जीवन के निर्देश दे रहा है।
यह उन लोगों के संदर्भ में है जो खाने और पीने के विषय संकोच करते थे।
“इसलिए नहीं कि इन बातों पर उनसे विवाद करो”
यहाँ एक ही बात को व्यक्त करने के दो रूप है, वैकल्पिक अनुवाद, “एक को सब कुछ खाने का विश्वास है, परन्तु”
पौलुस विश्वासियों को उचित जीवन के निर्देश दे रहा है।
पौलुस इस प्रश्न द्वारा उन लोगों को डाँटता है जो दूसरों का न्याय करते थे। वैकल्पिक अनुवाद: "तू परमेश्वर नहीं है कि किसी के सेवक का न्याय करने का तुझे अधिकार हो"
एकवचन
वैकल्पिक अनुवाद: "केवल उसका स्वामी ही इस बात का निर्णय लेगा की वह उस सेवक को ग्रहण करे या नहीं।"
क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।
"कोई तो" और "और कोई" इन दोनों व्याक्यांशों से यह एक ही बात को कहने के दो रूप समझ में आते हैं। वैकल्पिक अनुवाद, “एक मनुष्य के विचार में एक दिन अन्य दिनों से बड़ा है परन्तु दूसरा सोचता है कि सब दिन समान हैं”
इसका पूर्ण अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है, “प्रत्येक मनुष्य निश्चित कर ले कि वह प्रभु के महिमान्वन के लिए क्या कर रहा है”।
“जो किसी दिन को विशेष मानकर आराधना करता है तो वह वास्तव में प्रभु ही की आराधना करता है”
“और जो कैसा भी भोजन खाता है, वह प्रभु के सम्मान देने के लिए वह भोजन खाता है”
“और जो किसी प्रकार का भोजन नहीं खाता है, वह भी प्रभु ही के सम्मान के निमित्त ऐसा करता है”
इस सर्वनाम शब्दों द्वारा पौलुस अपने पाठकों को संबोधित करता है।
वैकल्पिक अनुवाद, “जो मर चुके हैं और जो जीवित हैं
पौलुस विश्वासियों को उचित जीवन के निर्देश दे रहा है।
पौलुस दिखा रहा है कि वह अपने पाठकों को किस प्रकार झिडकना आवश्यक होगा वैकल्पिक अनुवाद, “किसी को दोष देना उचित नहीं” ... किसी को तुच्छ समझना उचित नहीं”। (देखें यू.डी.बी.) या “दोष लगाना छोड़ दो.... किसी को तुच्छ समझना छोड़ दो”
“न्याय सिंहासन” अर्थात परमेश्वर का न्याय करने का अधिकार। वैकल्पिक अनुवाद है, “क्योंकि परमेश्वर हम सब का न्याय करेगा”
यह एक शपथ या गंभीर प्रतिज्ञा है। वैकल्पिक अनुवाद होगा, “निश्चय जान लो कि यह सच है”
“घुटना” और “जीभ” द्वारा पौलुस संपूर्ण मनुष्यत्व का संदर्भ दे रहा है, और परमेश्वर ही “परमेश्वर” शब्द का उपयोग कर रहा है जो उसी के लिए है। वैकल्पिक अनुवाद होगा, “प्रत्येक मनुष्य मेरे सामने झुक कर मेरी स्तुति करेगा”। (देखें: और )
“हमें परमेश्वर के समक्ष अपने कर्मों का स्पष्टीकरण देना होगा”
यहाँ इन दोनों शब्दों “ठेस”, “ठोकर का कारण” का अर्थ एक ही है। वैकल्पिक अनुवाद होगा, “सुनिश्चित करो कि न तो ऐसा कुछ करो और न ही कहो कि उसके परिणाम स्वरूप किसी विश्वासी भाई पर पाप करने की परीक्षा आए।
“मैं प्रभु यीशु के साथ अपने संबन्धों के कारण निश्चित जानता हूँ”
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “यदि मनुष्य किसी वस्तु को अशुद्ध समझे तो वह उस मनुष्य के लिए अशुद्ध है। अतः उसे उससे दूर रहना चाहिए”।
यहाँ “तेरा” अर्थात विश्वास में दृढ़ भाई और “अपने भाई” अर्थात जिसका विश्वास दुर्बल है।
“तो तू प्रेम प्रदर्शन नहीं करता है”
वैकल्पिक अनुवाद, “यदि तुम किसी बात को भला मानते हो और मनुष्य उसे बुरा कहें तो उसे मत करो”।
दृढ़ विश्वास रखने वालों के काम
प्रसंग से अति संभव है कि यह शब्द अन्य विश्वासियों के संदर्भ में है। (यू.डी.बी.)
“परमेश्वर ने अपने राज्य की स्थापना इसलिए नहीं की कि हमारे खाने पीने पर राज करने। उसने राज्य की स्थापना इसलिए की है कि हम उसके साथ उचित संबन्ध में रहें और पवित्र आत्मा हमें शान्ति एवं आनन्द दे”।
“इस प्रकार मसीह की सेवा करता है”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में किया जा सकता है, “मनुष्य उसे स्वीकार करेंगे” या “मनुष्य उसका सम्मान करेंगे”
“हम परस्पर शान्ति के जीवन तथा विश्वास में अधिकाधिक दृढ़ता के जीवन का यत्न करें”।
“उचित तो यह है कि अपने विश्वासी भाई को ठोकर खाने से बचाने के लिए मांस, मदिरा एवं ठोकरदायक कर्मों का त्याग कर दो” यहा “तू” दृढ़ विश्वासी के लिए तथा “भाई” विश्वास में दुर्बल जन के लिए है।
यह भी पिछले पद में खाने-पीने के संबन्ध में है।
सब एक वचन में हें। क्येांकि पौलुस विश्वासियों को संबोधित कर रहा है, इसलिए उनका अनुवाद बहुवचन में किया जाए
“धन्य है वह” वे जो कुछ करते हैं तो स्वयं को दोषी न समझें।
इसका अनुवाद, “परमेश्वर कहेगा कि मनुष्य को किसी बात का निश्चय नहीं तो उसका वह काम अनुचित है जैसे भोजन पर सन्देह करने के उपरान्त भी उसे खा लेना”। (यू.डी.बी.) या “यदि किसी को भोजन पर सन्देह हो, परन्तु वह उसे खा ले तो उसका विवेक उसे दोषी ठहराएगा”
इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “परमेश्वर उसे अनुचित कहेगा क्योंकि वह उस भोजन को खा रहा है जिसे उसका विवेक कहता है कि परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं है”
“यदि आपकी समझ में आप परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध कुछ करते हैं तो वह पाप है”।
भोजन के बारे में मतभेद रखने वाले विश्वासी एक दूसरे का न्याय न करें।
विश्वास में दृढ़ मनुष्य कुछ भी खा लेता है परन्तु जिसका विश्वास दृढ़ नहीं वह केवल सब्जियां खाता है।
परमेश्वर ने सब कुछ खाने वाले को और केवल सब्जी खाने वाले दोनों को ग्रहण किया है।
किसी दिन को दूसरे से बड़ा मानता या सब दिनों को बराबर मानना पौलुस के विचार में व्यक्तिगत विश्वास है।
विश्वासी प्रभु के लिए जीते हैं और प्रभु के लिए मरते हैं।
अन्त में सब विश्वासी परमेश्वर के न्याय आसन के समक्ष खड़े होकर अपना-अपना लेखा देंगे।
व्यक्तिगत मान्यताओं के कारण भाई किसी भाई के लिए ठोकर का कारण न बने या फन्दा न बने।
पौलुस का मानना है कि कोई भी भोजन अपने आप में अशुद्ध नहीं है।
परमेश्वर का राज्य धर्म और मेल-मिलाप और वह आनंद है जो पवित्र आत्मा से होता है।
पौलुस का कहना है कि अन्य भाई के सामने मांस न खायें और मदिरा न पीये तो अच्छा है।
विश्वास के काम नहीं करना पाप है।
1 निदान हम बलवानों को चाहिए, कि निर्बलों की निर्बलताओं में सहायता करे, न कि अपने आप को प्रसन्न करें। 2 हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उसकी भलाई के लिये सुधारने के निमित्त प्रसन्न करे।
3 क्योंकि मसीह ने अपने आप को प्रसन्न नहीं किया, पर जैसा लिखा है, “तेरे निन्दकों की निन्दा मुझ पर आ पड़ी।” (भज. 69:9) 4 जितनी बातें पहले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्रशास्त्र के प्रोत्साहन के द्वारा आशा रखें।
5 धीरज, और प्रोत्साहन का दाता परमेश्वर तुम्हें यह वरदान दे, कि मसीह यीशु के अनुसार आपस में एक मन रहो। 6 ताकि तुम एक मन* और एक स्वर होकर हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता परमेश्वर की स्तुति करो।
7 इसलिए, जैसा मसीह ने भी परमेश्वर की महिमा के लिये तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो।
8 मैं कहता हूँ, कि जो प्रतिज्ञाएँ पूर्वजों को दी गई थीं, उन्हें दृढ़ करने के लिये मसीह, परमेश्वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिये खतना किए हुए लोगों का सेवक बना। (मत्ती 15:24) 9 और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की स्तुति करो, जैसा लिखा है,
“इसलिए मैं जाति-जाति में तेरी स्तुति करूँगा,
और तेरे नाम के भजन गाऊँगा।” (2 शमू. 22:50, भज. 18:49)
10 फिर कहा है,
“हे जाति-जाति के सब लोगों, उसकी प्रजा के साथ आनन्द करो।”
11 और फिर,
“हे जाति-जाति के सब लोगों, प्रभु की स्तुति करो;
और हे राज्य-राज्य के सब लोगों; उसकी स्तुति करो।” (भज. 117:1)
12 और फिर यशायाह कहता है,
“यिशै की एक जड़* प्रगट होगी,
और अन्यजातियों का अधिपति होने के लिये एक उठेगा,
उस पर अन्यजातियाँ आशा रखेंगी।” (यशा. 11:11)
13 परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए।
14 हे मेरे भाइयों; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्चय जानता हूँ, कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को समझा सकते हो।
15 तो भी मैंने कहीं-कहीं याद दिलाने के लिये तुम्हें जो बहुत साहस करके लिखा, यह उस अनुग्रह के कारण हुआ, जो परमेश्वर ने मुझे दिया है। 16 कि मैं अन्यजातियों के लिये मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक के समान करूँ; जिससे अन्यजातियों का मानो चढ़ाया जाना, पवित्र आत्मा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए।
17 इसलिए उन बातों के विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, मैं मसीह यीशु में बड़ाई कर सकता हूँ। 18 क्योंकि उन बातों को छोड़ मुझे और किसी बात के विषय में कहने का साहस नहीं, जो मसीह ने अन्यजातियों की अधीनता के लिये वचन, और कर्म। 19 और चिन्हों और अद्भुत कामों की सामर्थ्य से, और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से मेरे ही द्वारा किए। यहाँ तक कि मैंने यरूशलेम से लेकर चारों ओर इल्लुरिकुम तक मसीह के सुसमाचार का पूरा-पूरा प्रचार किया।
20 पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहाँ-जहाँ मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनाऊँ; ऐसा न हो, कि दूसरे की नींव पर घर बनाऊँ। 21 परन्तु जैसा लिखा है, वैसा ही हो,
“जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुँचा, वे ही देखेंगे
और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।” (यशा. 52:15)
22 इसलिए मैं तुम्हारे पास आने से बार-बार रुका रहा। 23 परन्तु अब इन देशों में मेरे कार्य के लिए जगह नहीं रही, और बहुत वर्षों से मुझे तुम्हारे पास आने की लालसा है।
24 इसलिए जब इसपानिया को जाऊँगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जाऊँगा क्योंकि मुझे आशा है, कि उस यात्रा में तुम से भेंट करूँ, और जब तुम्हारी संगति से मेरा जी कुछ भर जाए, तो तुम मुझे कुछ दूर आगे पहुँचा दो। 25 परन्तु अभी तो पवित्र लोगों की सेवा करने के लिये यरूशलेम को जाता हूँ।
26 क्योंकि मकिदुनिया और अखाया के लोगों को यह अच्छा लगा, कि यरूशलेम के पवित्र लोगों के कंगालों के लिये कुछ चन्दा करें। 27 अच्छा तो लगा, परन्तु वे उनके कर्जदार भी हैं, क्योंकि यदि अन्यजाति उनकी आत्मिक बातों में भागी हुए, तो उन्हें भी उचित है, कि शारीरिक बातों में उनकी सेवा करें।
28 इसलिए मैं यह काम पूरा करके और उनको यह चन्दा सौंपकर तुम्हारे पास होता हुआ इसपानिया को जाऊँगा। 29 और मैं जानता हूँ, कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मसीह की पूरी आशीष के साथ आऊँगा।
30 और हे भाइयों; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्मा के प्रेम का स्मरण दिलाकर, तुम से विनती करता हूँ, कि मेरे लिये परमेश्वर से प्रार्थना करने में मेरे साथ मिलकर लौलीन रहो। 31 कि मैं यहूदिया के अविश्वासियों से बचा रहूँ, और मेरी वह सेवा जो यरूशलेम के लिये है, पवित्र लोगों को स्वीकार्य हो। 32 और मैं परमेश्वर की इच्छा से तुम्हारे पास आनन्द के साथ आकर तुम्हारे साथ विश्राम पाऊँ।
33 शान्ति का परमेश्वर तुम सब के साथ रहे। आमीन।
इसके स्थान पर वह शब्द काम में लें जो आपकी भाषा में नया विवाद आरंभ करने का प्रतीक है।
“हम जो विश्वास में दृढ़ हैं” यहां सर्वनाम “हम” पौलुस उसके पाठकों तथा एक विश्वासियों के लिए है
“विश्वास में दुर्बल भाइयों”
“उसका विश्वास दृढ़ हो”
परमेश्वर के निन्दकों की निन्दा मसीह पर गिरी”
“धर्मशास्त्र में जो कुछ लिख दिया गया था, वह हमारी जानकारी के लिए है”
पौलुस के पाठक तथा अन्य सब विश्वासी
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं प्रार्थना करता हूँ कि... परमेश्वर करे कि...”
“परस्पर सहमत रहो” “या” संगठित रहो”
वैकिल्पक अनुवाद, “इस प्रकार स्तुति करो कि एक ही मुख से निकल रही है”।
“मैं” अर्थात पौलुस
“मसीह यीशु यहूदियों की सेवा के लिए आया था”
“कि परमेश्वर यहूदियों के पूर्वजों से की गई प्रतिज्ञाओं की पुष्टि करे”
“जैसा धर्मशास्त्र में लिखा है”
“और मसीह अन्य जातियों का सेवक बना”
“मूसा फिर कहता है”
“परमेश्वर के लोगों के साथ”
“परमेश्वर की स्तुति करो”
वैकल्पिक अनुवाद, “यिशै के वंशज” यिशै राजा दाऊद का संसारिक पिता था
“तुम्हें महान आनन्द और शान्ति प्रदान करे”
“तुम आशा से उभरते जाओ”
“परमेश्वर के अनुसरण हेतु पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करो”
“एक दूसरे को शिक्षा दे सकते हो”
“परमेश्वर ने मुझे जो वरदान दिया” यह वरदान उसकी प्रेरिताई का है जब कि वह पूर्वकाल में विश्वासियों को सताने वाला था।
“अन्य जातियों के आज्ञा पालन से परमेश्वर प्रसन्न हो” (यू.डी.बी.)
“अतः मेरे पास परमेश्वर प्रदत्त सेवा के लिए मसीह यीशु में घमण्ड करने का कारण है”।
“अन्य जातियों के आज्ञापालन के विषय में तो वही कहूँगा जो मसीह ने मेरे द्वारा किया है अर्थात मेरे शब्दों, कार्यों तथा चमत्कारों एवं आश्चर्यकर्मों द्वारा जो केवल पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से हुए हैं।”
यरूशलेम से लेकर इल्लुरिकुम (इटली देश के निकट) तक प्रचार किया।
वैकल्पिक अनुवाद, “मेरी एक ही लालसा है कि उन सब स्थानों में शुभ सन्देश सुनाऊं जहां मसीह का प्रचार नहीं किया गया”।
“जिन्हें किसी ने मसीह के बारे में नहीं सुनाया है”
पौलुस की वाचा का वर्णन करना महत्त्वपूर्ण नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद, “उन्होंने बाधा उत्पन्न की” या “मनुष्यों ने मुझे रोका”
“रोम से होकर” या “मार्ग में”
“तुम्हारे साथ समय बिताने का आनन्द लूं” या “तुमसे भेंट करने का आनन्द मिले”
देखें: और
वैकल्पिक अनुवाद, “मकिदुनिया और अखया के विश्वासी प्रसन्न हुए कि...” या “.... ऐसा करके आनन्द प्राप्त हुआ”
“निःसन्देह मकिदुनिया और अखया के विश्वासी यरूशलेम के विश्वासियों के ऋणी हैं”
“क्योंकि अन्य जातियों ने यरूशलेम के विश्वासियों की आत्मिकता बाँटी इसलिए अन्यजाति विश्वासी यरूशलेम के विश्वासियों की सेवा के निमित्त ऋणी हैं।”
“सुरक्षित सौंपकर”
पैसा और
वैकल्पिक अनुवाद, “मैं मसीह की आशिष की परिपूर्णता में आऊँगा”
यदि आपकी भाषा में ऐसा प्रावधान है कि पौलुस जिन अच्छी बातों की चर्चा कर अन्त करके अब उसके संकटों की चर्चा आरंभ कर रहा है तो उसका यहाँ उपयोग करें।
“तुम्हें प्रोत्साहित करता हूँ”
“परिश्रम करो” या “संघर्ष करो”
“सुरक्षित रहूँ” या “बचाया जाऊं”
विश्वास में दृढ़ जन विश्वास में दुर्बल भाई को सह ले कि उसका निर्माण हो।
मसीह स्वयं को प्रसन्न करने के लिए नहीं, लोगों की सेवा करने के लिए जीता था।
जो पवित्र शास्त्र हमारे लिए पहले लिखे गये थे वे हमारे निर्देश के लिए थे।
पौलुस की मनोकामना है कि विश्वासी आपस में एक मन रहें।
पवित्र शास्त्र कहता है कि अन्य जातियां आनन्द करेंगी और प्रभु की स्तुति करेंगी, उसमें विश्वास के साथ।
विश्वासी आनन्द और शान्ति से पूर्ण विश्वास में परिपूर्ण होंगे।
पौलुस का दूतकार्य है, अन्य जातियों में भेजा गया मसीह यीशु का सेवक बने।
मसीह ने शब्दों एवं कार्यों द्वारा पौलुस के माध्यम से चिन्ह और चमत्कारों द्वारा, पवित्रआत्मा के सामर्थ्य ही काम किया है।
पौलुस वहां सुसमाचार सुनाना चाहता था जहां मसीह का नाम नहीं सुना था।
पौलुस स्पेन की यात्रा की योजना बना रहा था कि मार्ग में रोम जा पाए।
पौलुस इस समय यरूशलेम जा रहा था कि वहां के पवित्र जनों के लिए अन्यजातियों द्वारा एकत्र किया गया दान उन्हें सौंप दे।
अन्यजाति यहूदी विश्वासियों के भौतिक वस्तुओं में ऋणी हैं क्योंकि वे यहूदी विश्वासियों की आत्मिक बातों में सहभागी हुए हैं।
पौलुस की मनोकामना है कि यहूदिया में वह अवज्ञाकारियों से बचाया जाए।
1 मैं तुम से फीबे के लिए, जो हमारी बहन और किंख्रिया की कलीसिया की सेविका है, विनती करता हूँ। 2 कि तुम जैसा कि पवित्र लोगों को चाहिए, उसे प्रभु में ग्रहण करो; और जिस किसी बात में उसको तुम से प्रयोजन हो, उसकी सहायता करो; क्योंकि वह भी बहुतों की वरन् मेरी भी उपकारिणी हुई है।
3 प्रिस्का* और अक्विला को जो यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, नमस्कार। 4 उन्होंने मेरे प्राण के लिये अपना ही सिर दे रखा था और केवल मैं ही नहीं, वरन् अन्यजातियों की सारी कलीसियाएँ भी उनका धन्यवाद करती हैं। 5 और उस कलीसिया को भी नमस्कार जो उनके घर में है। मेरे प्रिय इपैनितुस को जो मसीह के लिये आसिया का पहला फल है, नमस्कार।
6 मरियम को जिस ने तुम्हारे लिये बहुत परिश्रम किया, नमस्कार। 7 अन्द्रुनीकुस और यूनियास को जो मेरे कुटुम्बी हैं, और मेरे साथ कैद हुए थे, और प्रेरितों में नामी हैं, और मुझसे पहले मसीही हुए थे, नमस्कार। 8 अम्पलियातुस को, जो प्रभु में मेरा प्रिय है, नमस्कार।
9 उरबानुस को, जो मसीह में हमारा सहकर्मी है, और मेरे प्रिय इस्तखुस को नमस्कार। 10 अपिल्लेस को जो मसीह में खरा निकला, नमस्कार। अरिस्तुबुलुस के घराने को नमस्कार। 11 मेरे कुटुम्बी हेरोदियोन को नमस्कार। नरकिस्सुस के घराने के जो लोग प्रभु में हैं, उनको नमस्कार। 12 त्रूफैना और त्रूफोसा* को जो प्रभु में परिश्रम करती हैं, नमस्कार। प्रिय पिरसिस को जिस ने प्रभु में बहुत परिश्रम किया, नमस्कार। 13 रूफुस को जो प्रभु में चुना हुआ है, और उसकी माता को जो मेरी भी है, दोनों को नमस्कार। 14 असुंक्रितुस और फिलगोन और हर्मास, पत्रुबास, हिर्मेस और उनके साथ के भाइयों को नमस्कार। 15 फिलुलुगुस और यूलिया और नेर्युस और उसकी बहन, और उलुम्पास और उनके साथ के सब पवित्र लोगों को नमस्कार। 16 आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो: तुम को मसीह की सारी कलीसियाओं की ओर से नमस्कार।
17 अब हे भाइयों, मैं तुम से विनती करता हूँ, कि जो लोग उस शिक्षा के विपरीत जो तुम ने पाई है, फूट डालने, और ठोकर खिलने का कारण होते हैं, उन्हें ताड़ लिया करो; और उनसे दूर रहो। 18 क्योंकि ऐसे लोग हमारे प्रभु मसीह की नहीं, परन्तु अपने पेट की सेवा करते है; और चिकनी चुपड़ी बातों से सीधे सादे मन के लोगों को बहका देते हैं।
19 तुम्हारे आज्ञा मानने की चर्चा सब लोगों में फैल गई है; इसलिए मैं तुम्हारे विषय में आनन्द करता हूँ; परन्तु मैं यह चाहता हूँ, कि तुम भलाई के लिये बुद्धिमान, परन्तु बुराई के लिये भोले बने रहो। 20 शान्ति का परमेश्वर* शैतान को तुम्हारे पाँवों के नीचे शीघ्र कुचल देगा।
हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे। (उत्प. 3:15)
21 तीमुथियुस मेरे सहकर्मी का, और लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस मेरे कुटुम्बियों का, तुम को नमस्कार। 22 मुझ पत्री के लिखनेवाले तिरतियुस का प्रभु में तुम को नमस्कार।
23 गयुस का जो मेरी और कलीसिया का पहुनाई करनेवाला है उसका तुम्हें नमस्कार: इरास्तुस जो नगर का भण्डारी है, और भाई क्वारतुस का, तुम को नमस्कार। 24 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे।
25 अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्थात् यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्थिर कर सकता है, उस भेद* के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा। 26 परन्तु अब प्रगट होकर सनातन परमेश्वर की आज्ञा से भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों के द्वारा सब जातियों को बताया गया है, कि वे विश्वास से आज्ञा माननेवाले हो जाएँ।
27 उसी एकमात्र अद्वैत बुद्धिमान परमेश्वर की यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन।
पौलुस रोम के विश्वासियों में अनेकों के नाम लेकर नमस्कार कह रहा है। (देखें: और )
“फीबे के सम्मान का निवेदन करता हूँ”
एक स्त्री का नाम है
“मसीह में हमारी बहन”, यहां “हमारी” अर्थात पौलुस और सब विश्वासियों की
यूनान का एक बन्दरगाह
उसे ग्रहण करो क्योंकि हम सब प्रभु के हैं”
“जैसे विश्वासियों को अन्य विश्वासियों का स्वागत करना चाहिए”
इसका अनुवाद एक नये वाक्य में किया जा सकता है, “मैं यह भी चाहता हूँ कि तुम उसकी सहायता करो”।
“उसने अनेकों की सहायता की है, मेरी भी सहायता की है”।
पौलुस रोम की कलीसिया में अनेक विश्वासियों के नाम लेकर नमस्कार कह रहा है। (देखें: और )
प्रिस्का को प्रिस्किल्ला भी कहा गया है। वह अक्विला की पत्नी थी।
“वे मेरे साथ मसीह यीशु के प्रचार में सेवारत हैं”
“उनकी आवासीय कलीसिया को भी नमस्कार कहना”
एक पुरूष का नाम
अर्थात वह आसिया में प्रथम विश्वासी था।
पौलुस रोम की कलीसिया में अनेक विश्वासियों के नाम लेकर नमस्कार कह रहा है। (देखें: और
एक स्त्री का नाम है
यह या तो 1)यूनिया, एक स्त्री या 2) यूनिआस, एक पुरूष हो सकता है।
ये पुरूषों के नाम हैं
“मेरे प्रिय मित्र, एवं विश्वासी भाई”
ये सब विश्वासी पुरूष थे
“जिन्हें मसीह ने स्वीकार किया है।” यहां “प्रभु में हैं” का अर्थ है, परख कर सच्चा पाया गया मनुष्य
पौलुस रोम की कलीसिया में अनेक विश्वासियों का नाम लेकर नमस्कार कर रहा है (देखें: और )
स्त्रियों के नाम हैं
ये पुरूषों के नाम हैं
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “जिसे प्रभु ने विशेष गुणों के कारण चुन लिया है”। (यू.डी.बी.)
“मैं उसकी माता को अपनी माता भी मानता हूँ”
पौलुस रोम की कलीसिया में अनेक विश्वासियों के नाम लेकर नमस्कार कह रहा है। (देखें: और )
ये पुरूषों के नाम हैं
यह एक स्त्री का नाम है। वह संभवतः फिलुलुगुस की पत्नी थी।
“उनके प्रति सतर्क रहो”
“आपसी मतभेद और परमेश्वर में विश्वास के परित्याग का कारण होते हैं”
इसका एक नया वाक्य बनाया जा सकता है। “वे ऐसी शिक्षा देते हैं जो तुम्हारे द्वारा सीखे गए सत्य के विरूद्ध है”
“उनसे बच कर रहो”
यहाँ “पेट” का अर्थ भौतिक लालसाएं। वैकल्पिक अनुवाद, “परन्तु वे अपनी स्वार्थ की पूर्ति करना चाहते हैं”।
चिकनी चुपड़ी का अर्थ एक ही है। पौलुस उन्हें समझा रहा है कि वे कैसे विश्वासियों को छलते हैं, वैकल्पिक अनुवाद, “वे ऐसी बातों के द्वारा.... छलते हैं जो कर्णभावन एवं सत्य प्रतीत होते हैं।”
अबोध, अनुभवहीन तथा नवदीक्षित। वैकल्पिक अनुवाद, “जो निष्कपट विश्वास कर लेते है” या “वे जो समझ नहीं पाते कि ऐसे प्रचारक उन्हें मूर्ख बनाते हैं”।
“तुम यीशु की आज्ञाओं को मानते हो और यह तथ्य सब विश्वासियों में चर्चित है”।
“पांवों से.... कुचल देगा” वैरी पर पूर्ण विजय का द्योतक हैं। वैकल्पिक अनुवाद, “परमेश्वर तुम्हें शीघ्र ही शैतान पर पूर्ण विजय प्रदान करेगा”।
“बुराई के भ्रम में न पड़ो”
ये पुरूषों के नाम है।
तिरतियुस पौलुस का लिपित था
“प्रभु में विश्वासी भाई को नमस्कार”
ये पुरूषों के नाम है।
इससे प्रकट होता है कि विश्वासी उसके घर में आराधना करते थे।
किसी समूह के पैसों का लेखा रखनेवाला
यह पद छोड़ा गया है क्योंकि कुछ अधिक पुराने अधिक विश्वसनीय अभिलेखों में यह पद नहीं है
“अब” शब्द पत्र के अन्तिम भाग का समापन दर्शाता है।
वैकल्पिक अनुवाद, “तुम्हारे विश्वास को दृढ़ कर सकता है”
“मेरे द्वारा सुनाए गए मसीह यीशु के शुभ सन्देश के अनुसार”
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया द्वारा भी किया जा सकता है, “क्योंकि परमेश्वर ने हम विश्वासियों पर उस रहस्य को प्रकट किया जो वह वर्षों से गुप्त रखे हुए था”।
इसका अनुवाद कर्तृवाच्य क्रिया में भी किया जा सकता है, “परन्तु अब अनादि परमेश्वर ने धर्मशास्त्र द्वारा यह स्पष्ट कर दिया है”।
“कि सब जातियां परमेश्वर में विश्वास के कारण उसकी आज्ञाकारी हो जाएं”।
यह समापन अभिकथन.
बहन फीबे पौलुस और अनेक अन्य विश्वासियों की सहायक रही है।
प्रिस्का और अक्विला ने पहले पौलुस के लिए अपनी जान जोखिम में डाली थी।
रोम के विश्वासी प्रिस्का और अक्विला के घर में एकत्र होते थे।
अन्द्रुनीकुस और यूनियास पूर्वकाल में पौलुस के साथ बन्दी बनाए गए थे।
वे आपस में एक दूसरे को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करें।
कुछ लोग शिक्षा के विपरीत चल रहे थे और सीधे-सादे मनवाले विश्वासियों को बहका रहे थे।
पौलुस उन्हें निर्देश देता है कि वे फूट डालने वालों और ठोकर का कारण होने वालों से दूर रहें।
पौलुस विश्वासियों को चेतावनी देता है कि वे भलाई के लिए बुद्धिमान और बुराई के लिए भोले बने रहें।
शान्ति का परमेश्वर शैतान को शीघ्र ही उनके पांवों से कुचलवा देगा।
तिरतियुस इस पत्र का लेखक है।
इरास्तुस उस कलीसिया का भण्डारी था।
पौलुस मसीह यीशु के सुसमाचार के प्रकाशन का प्रचार कर रहा है।
पौलुस अन्य जातियों में आज्ञा मानने के लिए प्रचार करता था।
1 पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा* से यीशु मसीह का प्रेरित होने के लिये बुलाया गया और भाई सोस्थिनेस की ओर से। 2 परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, अर्थात् उनके नाम जो मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिये बुलाए गए हैं; और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करते हैं। 3 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
4 मैं तुम्हारे विषय में अपने परमेश्वर का धन्यवाद सदा करता हूँ, इसलिए कि परमेश्वर का यह अनुग्रह तुम पर मसीह यीशु में हुआ। 5 कि उसमें होकर तुम हर बात में अर्थात् सारे वचन और सारे ज्ञान में धनी किए गए। 6 कि मसीह की गवाही तुम में पक्की निकली।
7 यहाँ तक कि किसी वरदान में तुम्हें घटी नहीं, और तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने की प्रतीक्षा करते रहते हो। 8 वह तुम्हें अन्त तक दृढ़ भी करेगा, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में निर्दोष ठहरो। 9 परमेश्वर विश्वासयोग्य है*; जिस ने तुम को अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाया है। (व्य. 7:9)
10 हे भाइयों, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा विनती करता हूँ, कि तुम सब एक ही बात कहो और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो। 11 क्योंकि हे मेरे भाइयों, खलोए के घराने के लोगों ने मुझे तुम्हारे विषय में बताया है, कि तुम में झगड़े हो रहे हैं।
12 मेरा कहना यह है, कि तुम में से कोई तो अपने आप को “पौलुस का,” कोई “अपुल्लोस का,” कोई “कैफा का,” कोई “मसीह का” कहता है। 13 क्या मसीह बँट गया? क्या पौलुस तुम्हारे लिये क्रूस पर चढ़ाया गया? या तुम्हें पौलुस के नाम पर बपतिस्मा मिला?
14 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, कि क्रिस्पुस और गयुस को छोड़, मैंने तुम में से किसी को भी बपतिस्मा नहीं दिया। 15 कहीं ऐसा न हो, कि कोई कहे, कि तुम्हें मेरे नाम पर बपतिस्मा मिला। 16 और मैंने स्तिफनास के घराने को भी बपतिस्मा दिया; इनको छोड़, मैं नहीं जानता कि मैंने और किसी को बपतिस्मा दिया।
17 क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने को नहीं, वरन् सुसमाचार सुनाने को भेजा है, और यह भी मनुष्यों के शब्दों के ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्थ ठहरे।
18 क्योंकि क्रूस की कथा नाश होनेवालों के निकट मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पानेवालों के निकट परमेश्वर की सामर्थ्य है। 19 क्योंकि लिखा है,
“मैं ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूँगा,
और समझदारों की समझ को तुच्छ कर दूँगा।” (यशा. 29:14)
20 कहाँ रहा ज्ञानवान? कहाँ रहा शास्त्री? कहाँ रहा इस संसार का विवादी? क्या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया? (रोम. 1:22) 21 क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करनेवालों को उद्धार दे।
22 यहूदी तो चिन्ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं, 23 परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियों के निकट मूर्खता है;
24 परन्तु जो बुलाए हुए हैं क्या यहूदी, क्या यूनानी, उनके निकट मसीह परमेश्वर की सामर्थ्य, और परमेश्वर का ज्ञान है। 25 क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता* मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है।
26 हे भाइयों, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए। 27 परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों* को चुन लिया है, कि ज्ञानियों को लज्जित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे।
28 और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को, वरन् जो हैं भी नहीं उनको भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए। 29 ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करने पाए।
30 परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात् धार्मिकता, और पवित्रता, और छुटकारा। (इफि. 1:7, रोम. 8:1) 31 ताकि जैसा लिखा है, वैसा ही हो, “जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।” (2 कुरि. 10:17)
इससे प्रकट होता है कि कुरिन्थ के विश्वासी और पौलुस दोनों ही सोस्थिनेस से परिचित थे। वैकल्पिक अनुवाद: “सोस्थिनेस जिसे तुम और मैं दोनों ही जानते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने उन्हें पवित्र जन होने के लिए बुलाया है”
सब विश्वासियों के साथ। वै.अ. “के साथ”
प्रभु यीशु पौलुस का, कुरिन्थ की कलीसिया का और सब कलीसियाओं का प्रभु है।
कुरिन्थ नगर के विश्वासी
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं पौलुस परमेश्वर को आभार व्यक्त करता हूं”।
“तुम जो मसीह यीशु में परमेश्वर के अनुग्रह के पात्र हो”
संभावित अर्थ है 1) “मसीह ने तुम्हें समृद्ध किया” या 2) “परमेश्वर ने तुम्हे संपन्न बनाया है”।
“अनेक आत्मिक आशिषों से समृद्ध किया”
परमेश्वर ने तुम्हें अनेक प्रकार से मनुष्यों में परमेश्वर का वचन सुनाने योग्य किया है।
परमेश्वर ने तुम्हें उसका सन्देश अनेक प्रकार से समझने योग्य किया है।
“मसीह का सन्देश”
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम्हारे जीवन स्पष्ट रूप से बदल गए”
“परिणाम स्वरूप”
“तुम्हारे पास हर एक आत्मिक वरदान है”।
संभावित अर्थ हैं 1) “जिस समय परमेश्वर मसीह यीशु को प्रगट करेगा” या 2) “जिस समय हमारा प्रभु यीशु मसीह प्रकट होगा”।
“तुम्हें दोषी ठहराने का परमेश्वर के पास कोई कारण न हो”।
परमेश्वर ने तुम्हें अपने पुत्र, मसीह यीशु की संगति में बुलाया है
“कि तुम परस्पर सामंजस्य में रहो”
“कि तुम में विभाजन न हो”
“एकता में”
परिवार के सदस्य, खलोए के कुटुम्ब के दास आदि सब, उनकी मुखिया एक स्त्री है।
“तुम लोग अलग-अलग गुट बनाकर झगड़ते हो”
पौलुस विभाजन की एक सामान्य मानसिकता व्यक्त कर रहा है
पौलुस तथ्य पर बल दे रहा है कि मसीह विभाजित नहीं है वह एक है। “तुम जैसा व्यवहार करते हो उसके अनुसार मसीह को भी विभाजित करना संभव नहीं है”।
पौलुस इस तथ्य पर बल देना चाहता है कि न पौलुस न अपुल्लोस क्रूस पर चढ़ाया गया, मसीह ही था जो क्रूस पर चढ़ाया गया। "उन्होंने तुम्हारे उद्धार के लिए पौलुस को क्रूस की मृत्यु नहीं दी थी।"
पौलुस इस बात पर बल देता है कि हम सब ने मसीह के नाम में बपतिस्मा पाया है। "तुम्हे पौलुस के नाम में बपतिस्मा नहीं दिया गया है।"
पौलुस कुछ बड़ा चड़ा कर ही कह रहा है कि वह अत्यधिक आभारी है कि उसने कुरिन्थ की कलीसिया में अधिक लोगों को बपतिस्मा नहीं दिया।
वह यहूदी आराधनालय का सरदार था जिसने मसीह को ग्रहण कर लिया था।
वह पौलुस के साथ यात्रा करके आया था।
"मैने अधिक लोगों को बपतिस्मा देने से अपने आप को रोका क्योंकि मैं डरता था कि वे आगे चलकर घमंड से कहे कि मैने उन्हें बपतिस्मा दिया था।"
स्तिफनास के घराने का अभिप्राय है, उसके परिवार के सदस्य और उसके दास
इसका अर्थ है कि बपतिस्मा देना पौलुस की मसीही सेवा का मुख्य लक्ष्य नहीं था।
"केवल मानवीय ज्ञान के शब्द"
वैकल्पिक अनुवाद: "मानवीय ज्ञान मसीह के क्रूस को सामर्थ्य से वंचित न कर दे।"
"मसीह के क्रूसीकरण का प्रचार" या "मसीह की क्रूस पर मृत्यु के बारे में संदेश"(यू.डी.बी.)
"निर्बुद्धि" या "मतिहीन"
नाश होने वालों के निकट - "नाश" का अर्थ है आत्मिक मृत्यु"
"परमेश्वर हम में सामर्थ्य का काम कर रहा है"
ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूंगा - वैकल्पिक अनुवाद: "ज्ञानवानों को उलझन में डाल दूंगा" या "बुद्धिमानों की योजना को पूर्णत: व्यर्थ कर दूंगा"
पौलुस इस बात पर बल दे रहा है कि सच्चे ज्ञानवान मनुष्य कही नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद: सुसमाचार की तुलना में कोई भी मनुष्य, ज्ञानवान नहीं है, चाहे कोई विद्वान हो या विवाद करने वाला हो।
वह व्यक्ति जिसने बहुत अधिक अध्ययन किया हो
वह व्यक्ति जो अपने ज्ञान के आधार पर विवद करता है या जो विवाद करने में दक्ष हो
पौलुस इस प्रश्न द्वारा बल देना चाहता है कि परमेश्वर ने इस संसार के ज्ञान का क्या कर दिया है। वैकल्पिक अनुवाद: "परमेश्वर ने निश्चय ही इस संसार के ज्ञान को मुर्खता ठहरा दिया है" या "परमेश्वर उस संदेश से प्रसन्न हुआ जिसे उन लोगो ने मुर्खता समझा था"(यू.डी.बी.)
इसके संभावित अर्थ है 1) "वे सब जो विश्वास करते है" (UDB) या 2) "जो उस मे विश्वास करते है"
यहाँ "हम" शब्द का अर्थ है पौलुस और अन्य सुसमाचार प्रचारक।
"मसीह के बारे में जो क्रूस पर मर गया था"(यू.डी.बी.)
ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य मार्ग में किसी पत्थर से ठोकर खाता है, यहूदियों के लिए क्रूस पर चढ़ाये गए मसीह के द्वारा उद्धार का संदेश भी ठोकर का कारण है। वैकल्पिक अनुवाद: "अस्वीकार्य" या "रोषकारी"।
“जिन्हें परमेश्वर ने बुलाया”
वैकल्पिक अनुवाद: “हम मसीह की शिक्षा देते हैं “ या “हम मनुष्यों में मसीह का सन्देश सुनाते हैं”।
“मसीह ही है जिसके द्वारा परमेश्वर अपना सामर्थ्य और ज्ञान प्रकट करता है”
यह परमेश्वर के स्वभाव और मनुष्य के स्वभाव में अन्तर है। यद्यपि परमेश्वर मूर्खता करे या दुर्बलता दिखाए तौभी वह मनुष्य के सर्वोत्तम स्वभाव से कहीं अधिक श्रेष्ठ होगी।
“परमेश्वर ने तुम्हें पवित्र जन होने के लिए कैसे बुलाया है”
“तुम में बहुत ही कम”
“मनुष्यों के विचार में” या “भलाई के विषय में मनुष्यों की समझ के अनुसार”
“परिवार के महत्वपूर्ण होने” या “राजसी” होने के द्वारा
परमेश्वर ने उन दीन जनों को चुन लिया जिन्हें यहूदी नगण्य मानते थे कि परमेश्वर की दृष्टि में उन जनमान्य अगुओं का महत्व नगण्य ठहरे।
यह पिछले वाक्य के विचार को दूसरे शब्दों में व्यक्त करना है।
संसार के परित्यक्त जन, वैकल्पिक अनुवाद: “दीन एवं त्यागे हुए लोग”
“जिन्हें मनुष्य अमान्य समझता है” (देखें:Active/Passive)
“उनका महत्व समाप्त कर दे”
“जिन्हें मनुष्य मूल्यवान मानता है” या “जिन्हें मनुष्य खरीदने योग्य या सम्मान के योग्य समझता है”
“परमेश्वर ने चुन लिया”
अर्थात क्रूस पर मसीह का कार्य
“हमारे” में पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को भी समाहित करता है।
“तुम ने मसीह यीशु के द्वारा उद्धार पा लिया है”
“मसीह यीशु ने हम पर स्पष्ट प्रकट कर दिया कि परमेश्वर कितना बुद्धिमान है”। (यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद: “यदि कोई घमण्ड करे तो वह प्रभु की महानता पर घमण्ड करे”
मसीह यीशु ने पौलुस को प्रेरित होने के लिए बुलाया था।
पौलुस कामना करता है कि हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से इस कलीसिया को अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
परमेश्वर ने उन्हें सारे वचन और सारे ज्ञान में धनी बनाया है।
उन्हें किसी भी आत्मिक वरदान में घटी नहीं थी।
वह तुम्हें अन्त तक दृढ़ भी करेगा, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में निर्दोष ठहरो।
पौलुस उनसे आग्रह करता है कि वे सब एक मन और एकमत होकर रहें और उनमें फूट न हो और एक चित्त तथा एक ही उद्देश्य के निमित्त संगठित होकर रहें।
खलोए के घराने के लोगों ने पौलुस को समाचार दिया था कि उनमें झगड़े हो रहे थे।
पौलुस के कहने का अर्थ था कि उनमें से कुछ लोग कहते थे कि वे पौलुस के दल के हैं; कुछ कहते थे कि वे अपुल्लोस के दल के हैं, तो कुछ कैफा के दल के तो कुछ मसीह के हैं।
पौलुस परमेश्वर का धन्यवाद करता है कि ऐसा समय नहीं आया कि कोई कहे कि उसने पौलुस के नाम में बपतिस्मा लिया है।
मसीह ने पौलुस को सुसमाचार सुनाने भेजा था।
क्रूस का सन्देश नाश होने वालों के लिए मूर्खता है।
यह उद्धार पाने वालों के लिए परमेश्वर का सामर्थ्य है।
परमेश्वर ने सांसारिक ज्ञान को मूर्खता बना दिया है।
परमेश्वर इससे प्रसन्न हुआ क्योंकि संसार ने अपने ज्ञान के कारण परमेश्वर को नहीं जाना।
परमेश्वर ने ऐसे अनेकों को नहीं बुलाया है।
परमेश्वर ने ऐसा इसलिये किया कि ज्ञानवान और बलवानों को लज्जित करे।
परमेश्वर ने नीचों और तुच्छों को वरन् जो हैं भी नहीं उनको भी चुन लिया।
वे मसीह में थे क्योंकि परमेश्वर ने ऐसा किया।
मसीह परमेश्वर की ओर से हमारे लिए ज्ञान ठहरा अर्थात धार्मिकता, और पवित्रता और छुटकारा।
जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।
1 हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। 2 क्योंकि मैंने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन् क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूँ।
3 और मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ तुम्हारे साथ रहा। 4 और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं*; परन्तु आत्मा और सामर्थ्य का प्रमाण था, 5 इसलिए कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर हो।
6 फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैं परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमों का ज्ञान नहीं; 7 परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया।
8 जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। (प्रेरि. 13:27) 9 परन्तु जैसा लिखा है,
“जो आँख ने नहीं देखी*,
और कान ने नहीं सुनी,
और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं,
जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं।” (यशा. 64:4)
10 परन्तु परमेश्वर ने उनको अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन् परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जाँचता है। 11 मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उसमें है? वैसे ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा। (नीति. 20:27)
12 परन्तु हमने संसार की आत्मा* नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं। 13 जिनको हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु पवित्र आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मा, आत्मिक ज्ञान से आत्मिक बातों की व्याख्या करती है।
14 परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उसकी दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उनकी जाँच आत्मिक रीति से होती है। 15 आत्मिक* जन सब कुछ जाँचता है, परन्तु वह आप किसी से जाँचा नहीं जाता।
16 “क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखाए?”
परन्तु हम में मसीह का मन है। (यशा. 40:13)
“विवश कराने वाले उत्तम शब्दों के साथ नहीं”
पौलुस का मुख्य विचार मानवीय ज्ञान की अपेक्षा मसीह के क्रूसीकरण पर था। “और किसी बात को न जानूं” अर्थात संपूर्ण एकाग्रता मसीह पर ही
“जब तुम्हारे मध्य रहा”
संभावित अर्थ हैं 1) “शारीरिक दुर्बलता”(देखें यू.डी.बी.), 2) “अपूर्ण शक्ति के बोध के साथ”
आश्वस्त कराने वाली या मनुष्य को कुछ करने या विश्वास करने के लिए विवश करने वाली बातें।
पौलुस का प्रचार और शुभ सन्देश
“ज्ञान की बातें सुनाते है”
वैकल्पिक अनुवाद:“परिपक्व विश्वासियों में”
“हमारी भावी महिमा सुनिश्चित करने के लिए”
“यीशु महिमामय प्रभु”
यहाँ मनुष्यत्व की इन तीन ईन्द्रीयों पर बल देने का अभिप्राय यह है कि कोई भी मनुष्य परमेश्वर द्वारा तैयार की गई बातों को कभी समझ नहीं पाया है।
परमेश्वर ने अपने प्रेमियों के लिए स्वर्ग में अद्भुत आश्चर्य की बातें रखी है
यीशु और उसके क्रूस के सत्य
पौलुस इस प्रश्न द्वारा इस तथ्य पर बल दे रहा है कि विचार करनेवाले को छोड़ और कोई उसके विचार नहीं जान सकता है या मनुष्य की अपनी आत्मा के अतिरिक्त कोई नहीं जो उसके विचारों को जान पाए”।
ध्यान दें, “आत्मा” मनुष्य की अशुद्ध एवं दुष्ट आत्मा का संदर्भ है जो परमेश्वर के आत्मा से भिन्न है।
“हम” अर्थात पौलुस एवं उसके पाठक
“परमेश्वर ने हमें बिना मोल दिया है” या “परमेश्वर ने हमें मुझ में दिया है”।
पवित्र आत्मा अपने ही शब्दों में मिलकर विश्वासी तक परमेश्वर का सत्य पहुंचाता है और उन्हें अपना ज्ञान प्रदान करता है।
अविश्वासी मनुष्य जिसने आत्मा नहीं पाया है
“क्योंकि इन बातों को स्वीकरण आत्मा की सहायता की आवश्यकता है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “आत्मा पाया हुआ विश्वासी”
प्रभु का मन किसने जाना है कि उसे सिखाए पौलुस इस प्रश्न के द्वारा इस तथ्य पर बल दे रहा है कि प्रभु का मन किसी ने नहीं जाना है? वैकल्पिक अनुवाद:“प्रभु का मन कोई नहीं जान सकता। अतः कोई उसे ऐसी बात नहीं सिखा सकता जो वह पहले से नहीं जानता है”।
पौलुस परमेश्वर का भेद सुनाने के लिए शब्दों और ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया था।
भण्डारियों को विश्वास योग्य होना चाहिये।
यह इसलिए कि उनका विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं परन्तु परमेश्वर के सामर्थ्य पर निर्भर हो।
उन्होंने गुप्त सत्यों में निहित परमेश्वर के ज्ञान को भेद की नीति पर बताया। गुप्त ज्ञान जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिए ठहराया।
यदि हाकिम उस ज्ञान को जान पाते तो वे तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते।
परमेश्वर ने आत्मा के द्वारा उन पर यह प्रकट किया था।
आत्मा परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।
उन्होंने आत्मा पाया जो परमेश्वर की ओर से है जिससे कि वे उन बातों को समझें जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
शारीरिक मनुष्य परमेश्वर की आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता है क्योंकि वे उसकी दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उनकी जांच आत्मिक रीति से होती है।
पौलुस कहता है कि उनमें मसीह का मन है।
1 हे भाइयों, मैं तुम से इस रीति से बातें न कर सका, जैसे आत्मिक लोगों से परन्तु जैसे शारीरिक लोगों से, और उनसे जो मसीह में बालक हैं। 2 मैंने तुम्हें दूध पिलाया*, अन्न न खिलाया; क्योंकि तुम उसको न खा सकते थे; वरन् अब तक भी नहीं खा सकते हो,
3 क्योंकि अब तक शारीरिक हो। इसलिए, कि जब तुम में ईर्ष्या और झगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं? और मनुष्य की रीति पर नहीं चलते? 4 इसलिए कि जब एक कहता है, “मैं पौलुस का हूँ,” और दूसरा, “मैं अपुल्लोस का हूँ,” तो क्या तुम मनुष्य नहीं?
5 अपुल्लोस कौन है? और पौलुस कौन है? केवल सेवक, जिनके द्वारा तुम लोगों ने विश्वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया।
6 मैंने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्वर ने बढ़ाया। 7 इसलिए न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर जो बढ़ानेवाला है।
8 लगानेवाला और सींचनेवाला दोनों एक हैं; परन्तु हर एक व्यक्ति अपने ही परिश्रम के अनुसार अपनी ही मजदूरी पाएगा। 9 क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्वर की खेती और परमेश्वर की रचना हो। 10 परमेश्वर के उस अनुग्रह के अनुसार, जो मुझे दिया गया, मैंने बुद्धिमान राजमिस्त्रि के समान नींव डाली, और दूसरा उस पर रद्दा रखता है। परन्तु हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह उस पर कैसा रद्दा रखता है। 11 क्योंकि उस नींव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है, कोई दूसरी नींव नहीं डाल सकता। (यशा. 28:16)
12 और यदि कोई इस नींव पर सोना या चाँदी या बहुमूल्य पत्थर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखे, 13 तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिए कि आग के साथ प्रगट होगा और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है।
14 जिसका काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा। 15 और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो वह हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते-जलते।
16 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में वास करता है? 17 यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नाश करेगा तो परमेश्वर उसे नाश करेगा; क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है, और वह तुम हो।
18 कोई अपने आप को धोखा न दे। यदि तुम में से कोई इस संसार में अपने आप को ज्ञानी समझे, तो मूर्ख बने कि ज्ञानी हो जाए। 19 क्योंकि इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है, जैसा लिखा है,
“वह ज्ञानियों को उनकी चतुराई में फँसा देता है,” (अय्यू. 5:13)
20 और फिर, “प्रभु ज्ञानियों के विचारों को जानता है, कि व्यर्थ हैं।” (भज. 94:11)
21 इसलिए मनुष्यों पर कोई घमण्ड न करे, क्योंकि सब कुछ तुम्हारा है। 22 क्या पौलुस, क्या अपुल्लोस, क्या कैफा, क्या जगत, क्या जीवन, क्या मरण, क्या वर्तमान, क्या भविष्य, सब कुछ तुम्हारा है, 23 और तुम मसीह के हो, और मसीह परमेश्वर का है।
आत्मा के सामर्थ्य से पूर्ण लोगों से
अपनी अभिलाषाओं के अनुसार चलने वालों में से
कुरिन्थ के विश्वासियों की उन बालकों से तुलना की गई है जो आयु में बहुत कम और अबोध हैं, जैसे मसीह में बहुत कम आयु के विश्वासी।
कुरिन्थ के विश्वासी नवजात शिशुओं के सदृश्य केवल दूध जैसे सत्य ही को ग्रहण कर सकते थे। वे विकसित बालकों की नाई ठोस आहार सदृश्य सत्य को अन्तर्ग्रहण नहीं कर सकते थे।
“तुम मसीह के अनुसरण की कठिन बातों को ग्रहण करने योग्य नहीं हो”
अब तब पापी या सांसारिक अभिलाषाओं के दास हो
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को उनकी पापी प्रकृति के लिए झिड़कता है। “तुम अपने पापी स्वभाव के अनुसार जीवन जी रहे हो”।
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को मानवीय मानकों के अनुसार जीवन निर्वाह हेतु झिड़कता है। वैकल्पिक अनुवाद: “तुम मानवीय मानकों पर जीवन आचरण रखते हो”।
पौलुस उन्हें पवित्र आत्मा रहित मनुष्यों का सा जीवन जीने के लिए झिड़कता है।
पौलुस जिस बात पर बल दे रहा है, वह है कि वह और अपुल्लोस सुसमाचार के मूल स्रोत नहीं हैं, अतः विश्वासियों के प्रचारक समूहों को सुसमाचार का स्रोत न बनाए। वैकल्पिक अनुवाद:"यह उचित नहीं कि विश्वासी पौलुस या अपुल्लोस के कारण अलग-अलग दल बनाकर सुसमाचार को विभाजित करे"
पौलुस स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर देता है कि वे दोनों ही परमेश्वर के सेवक हैं। वैकल्पिक अनुवाद: “तुम ने पौलुस और अपुल्लोस की शिक्षाओं द्वारा शुभ सन्देश में विश्वास किया है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने पौलुस को और अपुल्लोस को अपना-अपना काम दिया है”।
परमेश्वर के ज्ञान की तुलना एक बीज से की गई है, जिसे विकसित होने के लिए बोना आवश्यक है।
जैसे बीज को विकसित होने के लिए पानी की आवश्यकता होती है वैसे ही विश्वास की उन्नति करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है।
जिस प्रकार पौधे विकसित होकर बढ़ते हैं उसी प्रकार विश्वास और परमेश्वर का ज्ञान विकसित होकर गहरा और अधिक दृढ़ होता है।
पौलुस बल देकर कह रहा है कि विश्वासियों के आत्मिक विकास के लिए न तो उस और न ही अप्पुलोस को श्रेय जाता है परन्तु केवल परमेश्वर ही का कार्य है।
लगाए और सींचना दोनों एक ही काम हैं जिसकी तुलना पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया में मसीह सेवा निमित्त उसके और अप्पुलोस के कामों से करता है।
मजदूर की मजदूरी उसके काम के अनुसार दी जाती है।
पौलुस और अप्पुलोस, कुरिन्थ की कलीसिया नहीं
परमेश्वर के सहकर्मी हैं पौलुस अप्पुलोस को और स्वयं को परमेश्वर का सहकर्मी मानता है साथ काम करने वाले।
परमेश्वर कुरिन्थ की कलीसिया की बागवानी करता है जैसे मनुष्य बगीचे की बागवानी करके उसे फल देने योग्य बनाते हैं।
परमेश्वर ने कुरिन्थ की कलीसिया को रूप देकर रचा है जैसे मनुष्य एक भवन का निर्माण करता है
“उस दायित्व के अनुसार जो परमेश्वर ने मुझे अनुग्रह करके दिया”।
पौलुस विश्वास और मसीह यीशु में उद्धार की अपनी शिक्षा की तुलना एक भवन की नींव डालने से करता है।
दूसरा प्रचारक इन विश्वासियों को आत्मिक सहायता प्रदान करते हुए कलीसिया में सुसमाचार प्रचार का निर्माण ही करता है।
सामान्य रूप में परमेश्वर के सेवक। वैकल्पिक अनुवाद:“परमेश्वर की सेवा करनेवाला हर एक मनुष्य”
नींव पर निर्माण हो जाने के बाद वह बदली नहीं जा सकती है। यहां मसीह रूपी नींव पर कुरिन्थ की कलीसिया का निर्माण जो पौलुस द्वारा किया गया है। “मुझ पौलुस ने जो नींव डाली उसके अतिरिक्त”
किसी भवन का नवनिर्माण सामग्री की तुलना उन आत्मिक बातो से की जा रही है जिनके द्वारा मनुष्य के संपूर्ण जीवन का व्यवहार एवं कार्य ढाले जाते हैं। “मनुष्य बहुमूल्य स्थाई सामग्री काम में लेता है या घटिया ज्वलनशील सामग्री काम में लेता है”
“मूल्यवान पत्थर”
“जिस प्रकार दिन का प्रकाश निर्माण में काम करने वाले के परिश्रम को प्रकट करता है उसी प्रकार परमेश्वर की उपस्थिति का प्रकाश मनुष्य के परिश्रम एवं कार्य की गुणवत्ता को प्रकट करेगा। “दिन का प्रकाश उसके काम की गुणवत्ता को प्रकट करेगा”।
“जिस प्रकार दिन का प्रकाश निर्माण में काम करने वाले के परिश्रम को प्रकट करता है उसी प्रकार परमेश्वर की उपस्थिति का प्रकाश मनुष्य के परिश्रम एवं कार्य की गुणवत्ता को प्रकट करेगा।वैकल्पिक अनुवाद “दिन का प्रकाश उसके काम की गुणवत्ता को प्रकट करेगा”।
“नष्ट न होगा” या “ज्यों का त्यों रहेगा”। (यू.डी.बी.)
“यदि आग किसी का काम भस्म कर देगी” या “किसी का काम आग में जल कर नष्ट हो गया”
ये शब्द उस मनुष्य से संदर्भित है जो सेवा करता है, वैकल्पिक अनुवाद “वह व्यक्ति” या “वह”(यू.डी.बी.)
“वह उस काम से वंचित हो जाएगा और उस प्रतिफल से भी जो अग्नि परीक्षा के बाद उसके काम के स्थिर रहने पर उसे मिलता, परन्तु परमेश्वर उसे बचा लेगा”
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम परमेश्वर का मन्दिर हो और परमेश्वर की आत्मा तुम में वास करता है”।
“नष्ट करेगा” या “क्षतिग्रस्त करेगा”
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर उसका सर्वनाश करेगा क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है और तुम भी पवित्र हो”।
कोई इस भ्रम में न रहे कि वही इस संसार में बुद्धिमान है
“इस समय”
“वह इस संसार द्वारा निर्धारित मूर्खता का अपनाए कि परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त करे”।
“वह ज्ञानियों को उनकी चतुराई में फंसा देता है और उन्हीं की योजनाओं को उनके लिए जाल बना देता है।
वैकल्पिक अनुवाद: “जो सोचते हैं कि वे बुद्धिमान है परन्तु परमेश्वर उनकी योजनाओं को जानता है”। या “परमेश्वर बुद्धिमानों की सब योजनाओं को सुनता है”। (यू.डी.बी.)
“व्यर्थ”, वैकल्पिक अनुवाद: “निकम्मी”, या “निरर्थक”
पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया को निर्देश दे रहा है। वैकल्पिक अनुवाद, “घमण्ड करना छोड़ दो कि हमारा अगुआ दूसरे से अधिक ज्ञानी है”।
“अत्यधिक गर्व करना” कुरिन्थ की कलीसिया में विभाजित दल मसीह यीशु की उपासना की अपेक्षा अपने नायकों पर गर्व करते थे।
“तुम मसीह के हो और मसीह परमेश्वर का है”
पौलुस उनसे आत्मिक मनुष्यों की नाईं बातें नहीं कर सकता था क्योंकि वे शारीरिक थे, उनमें डाह और झगड़े थे।
जिनके माध्यम से कुरिन्थ की कलीसिया ने मसीह में विश्वास किया वे परमेश्वर के सहकर्मी और सेवक थे।
परमेश्वर बढ़ाता है।
मसीह यीशु नींव है।
उसके काम दिन के प्रकाश में और आग से प्रकट होंगे।
आग हर एक के कामों की गुणकारिता प्रकट करेगी।
वह प्रतिफल पायेगा।
वह मनुष्य हानि तो उठाएगा पर वह आप बच जायेगा परन्तु जलते-जलते।
हम परमेश्वर के मन्दिर हैं और परमेश्वर का आत्मा हममें वास करता है।
परमेश्वर के मंदिर को नष्ट करने वालों को परमेश्वर नष्ट करेगा।
पौलुस कहता है, मनुष्य ".....मूर्ख बने कि ज्ञानी हो जाये।"
प्रभु ज्ञानियों के विचारों को जानता है कि वे व्यर्थ हैं।
उसने उनसे कहा कि घमण्ड करना छोड़ दें, "क्योंकि सब कुछ तुम्हारा है" क्योंकि "तुम मसीह के हो और मसीह परमेश्वर का है"।
1 मनुष्य हमें मसीह के सेवक और परमेश्वर के भेदों के भण्डारी समझे। 2 फिर यहाँ भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि विश्वासयोग्य निकले।
3 परन्तु मेरी दृष्टि में यह बहुत छोटी बात है, कि तुम या मनुष्यों का कोई न्यायी मुझे परखे, वरन् मैं आप ही अपने आप को नहीं परखता। 4 क्योंकि मेरा मन मुझे किसी बात में दोषी नहीं ठहराता, परन्तु इससे मैं निर्दोष नहीं ठहरता, क्योंकि मेरा परखनेवाला प्रभु है। (भज. 19:12)
5 इसलिए जब तक प्रभु न आए, समय से पहले किसी बात का न्याय न करो: वही तो अंधकार की छिपी बातें* ज्योति में दिखाएगा, और मनों के उद्देश्यों को प्रगट करेगा, तब परमेश्वर की ओर से हर एक की प्रशंसा होगी।
6 हे भाइयों, मैंने इन बातों में तुम्हारे लिये अपनी और अपुल्लोस की चर्चा दृष्टान्त की रीति पर की है, इसलिए कि तुम हमारे द्वारा यह सीखो,
कि लिखे हुए से आगे न बढ़ना,
और एक के पक्ष में और दूसरे के विरोध में गर्व न करना। 7 क्योंकि तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है? और तेरे पास क्या है जो तूने (दूसरे से) नहीं पाया और जब कि तूने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है, कि मानो नहीं पाया?
8 तुम तो तृप्त हो चुके; तुम धनी हो चुके, तुम ने हमारे बिना राज्य किया; परन्तु भला होता कि तुम राज्य करते कि हम भी तुम्हारे साथ राज्य करते। 9 मेरी समझ में परमेश्वर ने हम प्रेरितों को सब के बाद उन लोगों के समान ठहराया है, जिनकी मृत्यु की आज्ञा हो चुकी हो; क्योंकि हम जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिये एक तमाशा ठहरे हैं।
10 हम मसीह के लिये मूर्ख है*; परन्तु तुम मसीह में बुद्धिमान हो; हम निर्बल हैं परन्तु तुम बलवान हो। तुम आदर पाते हो, परन्तु हम निरादर होते हैं। 11 हम इस घड़ी तक भूखे-प्यासे और नंगे हैं, और घूसे खाते हैं और मारे-मारे फिरते हैं;
12 और अपने ही हाथों के काम करके परिश्रम करते हैं। लोग बुरा कहते हैं, हम आशीष देते हैं; वे सताते हैं, हम सहते हैं। 13 वे बदनाम करते हैं, हम विनती करते हैं हम आज तक जगत के कूड़े और सब वस्तुओं की खुरचन के समान ठहरे हैं। (विला. 3:45)
14 मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये ये बातें नहीं लिखता, परन्तु अपने प्रिय बालक जानकर तुम्हें चिताता हूँ। 15 क्योंकि यदि मसीह में तुम्हारे सिखानेवाले दस हजार भी होते, तो भी तुम्हारे पिता बहुत से नहीं, इसलिए कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ। 16 इसलिए मैं तुम से विनती करता हूँ, कि मेरी जैसी चाल चलो।
17 इसलिए मैंने तीमुथियुस को जो प्रभु में मेरा प्रिय और विश्वासयोग्य पुत्र है, तुम्हारे पास भेजा है, और वह तुम्हें मसीह में मेरा चरित्र स्मरण कराएगा, जैसे कि मैं हर जगह हर एक कलीसिया में उपदेश करता हूँ। 18 कितने तो ऐसे फूल गए हैं, मानो मैं तुम्हारे पास आने ही का नहीं।
19 परन्तु प्रभु चाहे तो मैं तुम्हारे पास शीघ्र ही आऊँगा, और उन फूले हुओं की बातों को नहीं, परन्तु उनकी सामर्थ्य को जान लूँगा। 20 क्योंकि परमेश्वर का राज्य बातों में नहीं, परन्तु सामर्थ्य में है। 21 तुम क्या चाहते हो? क्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊँ या प्रेम और नम्रता की आत्मा के साथ?
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि हम भण्डारी हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “हमारे लिए अनिवार्य है कि”
पौलुस मनुष्य के न्याय और परमेश्वर के न्याय में तुलना कर रहा है। परमेश्वर मनुष्य का न्याय करता है तब उसके सामने मनुष्य द्वारा किया गया न्याय कोई अर्थ नहीं रखता है।
वैकल्पिक अनुवाद: “मैंने अपने ऊपर कोई दोष लगाया गया नहीं सुना है”।
दोष न होना मेरी निर्दोषिता को सिद्ध नहीं करता है। केवल प्रभु जानता है कि मैं निर्दोष हूं या दोषी।
प्रभु जब आएगा तक वह न्याय करेगा, हमें न्याय करने की आवश्यकता नहीं है
प्रभु के पुनः आगमन तक
“मनुष्यों के आन्तरिक उद्देश्यों को”
परमेश्वर मनुष्य के मन के विचार और उद्देश्यों को सामने लाएगा। प्रभु के समक्ष कुछ भी छिपा नहीं है।
”तुम्हारे लाभ के लिए“
“धर्मशास्त्र में जो लिखा है उसके विपरीत कुछ न करना”
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को झिड़क रहा है क्योंकि वे सोचते थे कि पौलुस या अप्पुलोस द्वारा शुभ सन्देश सुनने के कारण वे दूसरों से अधिक अच्छे हैं। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम अन्य मनुष्यों से श्रेष्ठ नहीं”।
पौलुस बल देकर कहता है कि उनके पास जो है वह परमेश्वर ने उन्हें अनर्जित दिया है, वैकल्पिक अनुवाद, “तुम्हारे पास जो कुछ भी है, वह परमेश्वर ने तुम्हें दिया है”
पौलुस उन्हें झिड़क रहा है कि क्योंकि वे अपनी सम्पदा पर घमण्ड करते थे, “तुम्हें घमण्ड करने का अधिकार नहीं है” या “घमण्ड कभी नहीं करना”
पौलुस उपहास द्वारा अपनी बात समझाता है
परमेश्वर ने हम प्रेरितों को.... एक तमाशा ठहरे परमेश्वर दो प्रकार से व्यक्त करता है कि परमेश्वर ने संसार में प्रेरितों का प्रदर्शन कैसे किया।
रोमी सैनिक जुलूस के अन्त में बन्दियों को मृत्युदण्ड से पूर्व अपमानित किया जाता था वैसे ही परमेश्वर ने प्रेरितों के साथ किया है।
परमेश्वर ने प्रेरितों को मृत्युदण्ड प्राप्त मनुष्यों के सदृश्य प्रदर्शन में रख दिया है।
अलौकिक और लौकिक दोनों के लिए
पौलुस संसारिक दृष्टिकोण और मसीह में विश्वास के मसीही दृष्टिकोण में विषमता दर्शाता है।
मसीह में विश्वास करने के दृष्टिकोण और संसारिक दृष्टिकोण की विषमता पौलुस प्रकट करता है
“मनुष्य तुम कुरिन्थवासियों को सम्मान देते है”
“मनुष्य हम प्रेरितों का अनादर करते हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “अब तक” या “आज भी”
वैकल्पिक अनुवाद: “हमें कठोरता से पीटा जाता है”
“जब लोग हमारी निन्दा करते हैं तब हम उन्हें आशीर्वाद देते हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “ठट्ठा” संभवतः “अपशब्द” या “कोसते हैं” (यू.डी.बी.)
“जब मनुष्य हमें सताते हैं”
“जब लोग अनुचित रूप से हमें बुरा करने वाला कहते हैं”
हम आज तक जगत का कूड़ा “हम तो हो ही गए है और लोग हमें आज तक संसार का कूड़ा कहते है”।
पौलुस उनके अभिमानी स्वभाव को झिड़कने पर ध्यान देता है
“मैं तुम्हारे मध्य उपस्थित होऊंगा”
वैकल्पिक अनुवाद: “शब्दों का जाल नहीं है” या “तुम्हारे कहने ही से नहीं है”। (यू.डी.बी.)
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को उनकी चूक पर झिड़कते हुए अन्तिम बार आग्रह कर रहा है। “मुझे बताओ कि तुम अब क्या कहते हो कि किया जाए”।
पौलुस उनसे कह रहा है कि जब उनके मध्य आए तो दो से एक व्यवहार करे। “क्या तुम चाहते हो कि जब मैं आऊं तो कठोरता के साथ शिक्षा दूं या तुम चाहते हो कि तुम से तुम्हारे साथ प्रेम का सा नम्रता का व्यवहार करूं”?
वैकल्पिक अनुवाद: “दया” या “कोमलता”
वे उन्हें सेवक और परमेश्वर के भेद के भण्डारी समझें।
पौलुस कहता है कि प्रभु उसका न्याय करता है।
वह अंधकार की बातों को प्रकाश में लाकर मन के उद्देश्यों को उजागर करेगा।
पौलुस ने कुरिन्थ के विश्वासियों के लिए यह उदाहरण दिया कि वे उनसे सीखें कि लिखे हुए से आगे नहीं बढ़ना चाहिये, कि एक के पक्ष में और दूसरे के विरोध में गर्व न करें।
पौलुस कहता है, "भला होता कि राज्य करते कि हम भी तुम्हारे साथ राज्य करते।"
पौलुस कहता है, "हम मसीह के लिए मूर्ख हैं परन्तु तुम मसीह में बुद्धिमान हो, हम निर्बल हैं परन्तु तुम बलवान हो, तुम आदर पाते हो परन्तु हम निरादर होते हैं।"
पौलुस ने कहा कि वे भूखे, प्यासे और नंगे रहे, घूसे खाते रहे और मारे-मारे फिरते रहे।
जब उनकी निन्दा की गई तो उन्होंने आशिष दी, उन्हें सताया गया तो उन्होंने सहन किया, उन्हें बदनाम किया गया तो उन्होंने विनती की।
उसने उन्हें प्रिय बालकों की नाईं सुधारने के लिए यह पत्र लिखा।
पौलुस उनसे कहता है कि उसकी सी चाल चलें।
पौलुस ने तीमुथियुस को कुरिन्थ भेजा कि उन्हें मसीह में पौलुस का जो चरित्र है उसका स्मरण कराए।
उनमें से कुछ तो ऐसे घमण्डी हो गए थे कि मानो पौलुस वहाँ कभी नहीं जाएगा।
परमेश्वर का राज्य सामर्थ्य में है।
1 यहाँ तक सुनने में आता है, कि तुम में व्यभिचार होता है, वरन् ऐसा व्यभिचार जो अन्यजातियों में भी नहीं होता, कि एक पुरुष अपने पिता की पत्नी को रखता है। (लैव्य. 18:8, व्य. 22:30) 2 और तुम शोक तो नहीं करते, जिससे ऐसा काम करनेवाला तुम्हारे बीच में से निकाला जाता, परन्तु घमण्ड करते हो।
3 मैं तो शरीर के भाव से दूर था, परन्तु आत्मा के भाव से तुम्हारे साथ होकर, मानो उपस्थिति की दशा में ऐसे काम करनेवाले के विषय में न्याय कर चुका हूँ। 4 कि जब तुम, और मेरी आत्मा, हमारे प्रभु यीशु की सामर्थ्य के साथ इकट्ठे हों, तो ऐसा मनुष्य, हमारे प्रभु यीशु के नाम से। 5 शरीर के विनाश के लिये शैतान को सौंपा जाए, ताकि उसकी आत्मा प्रभु यीशु के दिन में उद्धार पाए।
6 तुम्हारा घमण्ड करना अच्छा नहीं; क्या तुम नहीं जानते, कि थोड़ा सा ख़मीर* पूरे गुँधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है। 7 पुराना ख़मीर निकालकर, अपने आप को शुद्ध करो कि नया गूँधा हुआ आटा बन जाओ; ताकि तुम अख़मीरी हो, क्योंकि हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है। 8 इसलिए आओ हम उत्सव में आनन्द मनायें, न तो पुराने ख़मीर से और न बुराई और दुष्टता के ख़मीर से, परन्तु सिधाई और सच्चाई की अख़मीरी रोटी से।
9 मैंने अपनी पत्री में तुम्हें लिखा है*, कि व्यभिचारियों की संगति न करना। 10 यह नहीं, कि तुम बिलकुल इस जगत के व्यभिचारियों, या लोभियों, या अंधेर करनेवालों, या मूर्तिपूजकों की संगति न करो; क्योंकि इस दशा में तो तुम्हें जगत में से निकल जाना ही पड़ता।
11 मेरा कहना यह है; कि यदि कोई भाई कहलाकर, व्यभिचारी, या लोभी, या मूर्तिपूजक, या गाली देनेवाला, या पियक्कड़, या अंधेर करनेवाला हो, तो उसकी संगति मत करना; वरन् ऐसे मनुष्य के साथ खाना भी न खाना। 12 क्योंकि मुझे बाहरवालों का न्याय करने से क्या काम*? क्या तुम भीतरवालों का न्याय नहीं करते? 13 परन्तु बाहरवालों का न्याय परमेश्वर करता है:
इसलिए उस कुकर्मी को अपने बीच में से निकाल दो।
“अन्यजाति लोग भी ऐसा व्यवहार स्वीकार नहीं करते हैं”।
“यौन संबन्ध रखता है”
उसके पिता की पत्नी जो संभवतः उसकी माता नहीं है
यह प्रभावोत्पादक प्रश्न उन्हें झिड़कने के लिए है, “इसकी अपेक्षा तुम्हें क्या शोक नहीं करना चाहिए”?
“उसे तुम अपनी संगति से बहिष्कृत कर दो”
पौलुस के मन में सदैव उनका विचार था। “मैं अपने विचारों में तुम्हारे मध्य था”।
“मैंने उसे दोषी पाया है”
“सभा करें”
मसीह यीशु की आराधना में एकत्र होने के लिए यह एक मुहावरा है।
उस मनुष्य को परमेश्वर के लोगों से अलग कर दिया जाए कि वह शैतान के राज्य में वास करे, कलीसिया के बाहर के संसार में।
कि वह रोग ग्रस्त हो जाए, परमेश्वर से पाप का दण्ड पाए।
जिस प्रकार कि थोड़ा सा खमीर पूरे गूंधे हुए आटे को खमीर कर देता है उसी प्रकार एक छोटा पाप भी संपूर्ण मसीही सहभागिता को दूषित कर देता है”।
“प्रभु परमेश्वर ने मसीह यीशु की बलि चढ़ाई”
जिस प्रकार फसह का मेमना इस्राएल के पापों को ढांप देता था विश्वास के द्वारा प्रतिवर्ष उसी प्रकार मसीह की मृत्यु मसीह में विश्वास करनेवालों के पाप अनन्तकाल के लिए ढांप देती है।
वे लोग जो मसीह में विश्वास का दावा करके ऐसी व्यवस्था करते हैं।
अविश्वासी जो अनैतिक जीवन जी रहें हैं।
“लालची लोग” या “दूसरों के पास जो है उसकी लालसा करते है”।
अंधेर करने वालों अर्थात वे लोग जो पैसे या सम्पदा के लिए धोखा करते हैं।
संसार में ऐसे व्यवहार से बचा कोई स्थान नहीं है, वैकल्पिक अनुवाद: “इससे बचने के लिए तुम्हें सब मनुष्यों से बचना होगा”
जो स्वयं को मसीह का विश्वासी कहे
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं कलीसिया से बाहर के मनुष्य का न्याय नहीं करता हूं”।
“तुम्हें कलीसिया के सदस्यों का न्याय करना है”। (देखे: )
पौलुस को समाचार मिला था कि वहां व्यभिचार था, एक मनुष्य ने अपने पिता की पत्नी को रखा था।
उसने अपने पिता की पत्नी के साथ पाप किया उसे कलीसिया से निकाल दिया जाए।
जब कुरिन्थ की कलीसिया प्रभु यीशु के नाम में एकत्र हो तब वे उस पाप करने वाले मनुष्य को देह के विनाश हेतु शैतान को सौंप दें जिससे कि प्रभु के दिन के लिए उसकी आत्मा बच जाए।
पौलुस उनकी तुलना खमीर से करता है।
पौलुस अखमीरी रोटी को विश्वासयोग्यता और सत्य की उपमा स्वरूप काम में लेता है।
पौलुस ने उन्हें लिखा कि व्यभिचारियों से संबन्ध न रखें।
पौलुस का अभिप्राय संसार के भौतिक लोगों से नहीं था क्योंकि ऐसे में तो उन्हें संसार से बाहर चले जाना होगा।
पौलुस के कहने का अर्थ क्या था कि कुरिन्थ के विश्वासी किसकी संगति न करें।
उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे कलीसिया के सदस्यों का न्याय करें।
बाहर वालों का न्याय परमेश्वर करता है।
1 क्या तुम में से किसी को यह साहस है, कि जब दूसरे के साथ झगड़ा* हो, तो फैसले के लिये अधर्मियों के पास जाए; और पवित्र लोगों के पास न जाए? 2 क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र लोग* जगत का न्याय करेंगे? और जब तुम्हें जगत का न्याय करना है, तो क्या तुम छोटे से छोटे झगड़ों का भी निर्णय करने के योग्य नहीं? (दानि. 7:22) 3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? तो क्या सांसारिक बातों का निर्णय न करे?
4 यदि तुम्हें सांसारिक बातों का निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं? 5 मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये यह कहता हूँ। क्या सचमुच तुम में से एक भी बुद्धिमान नहीं मिलता, जो अपने भाइयों का निर्णय कर सके? 6 वरन् भाई-भाई में मुकद्दमा होता है, और वह भी अविश्वासियों के सामने।
7 सचमुच तुम में बड़ा दोष तो यह है, कि आपस में मुकद्दमा करते हो। वरन् अन्याय क्यों नहीं सहते? अपनी हानि क्यों नहीं सहते? 8 वरन् अन्याय करते और हानि पहुँचाते हो, और वह भी भाइयों को।
9 क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। 10 न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अंधेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे। 11 और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।
12 सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुएँ लाभ की नहीं, सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित हैं, परन्तु मैं किसी बात के अधीन न हूँगा। 13 भोजन पेट के लिये, और पेट भोजन के लिये है, परन्तु परमेश्वर इसको और उसको दोनों को नाश करेगा, परन्तु देह व्यभिचार के लिये नहीं, वरन् प्रभु के लिये; और प्रभु देह के लिये है।
14 और परमेश्वर ने अपनी सामर्थ्य से प्रभु को जिलाया, और हमें भी जिलाएगा। 15 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह मसीह के अंग हैं? तो क्या मैं मसीह के अंग लेकर उन्हें वेश्या के अंग बनाऊँ? कदापि नहीं।
16 क्या तुम नहीं जानते, कि जो कोई वेश्या से संगति करता है, वह उसके साथ एक तन हो जाता है क्योंकि लिखा है, “वे दोनों एक तन होंगे।” (मर. 10:8) 17 और जो प्रभु की संगति में रहता है*, वह उसके साथ एक आत्मा हो जाता है।
18 व्यभिचार से बचे रहो जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर हैं, परन्तु व्यभिचार करनेवाला अपनी ही देह के विरुद्ध पाप करता है।
19 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है*; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? 20 क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिए अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो।
वैकल्पिक अनुवाद: “मतभेद” या “विवाद”
न्यायालय जहां न्यायाधीश अभियोग के निर्णय देता है
पौलुस कहता है कि विश्वासियों को अपने झगड़े स्वयं निपटा लेना चाहिए। वैकल्पिक अनुवाद: “अपने विश्वासी भाई पर लगाया गया आरोप एक अविश्वासी न्यायधीश के पास न ले जाएं। विश्वासी भाइयों को अपने झगड़े स्वयं निपटा लेना चाहिए।”
पौलुस संसार के न्याय के भावी परिप्रेक्ष्य की चर्चा कर रहा है।
पौलुस कहता है कि भविष्य में उन्हें संपूर्ण संसार का न्याय करने का उत्तरदायित्व एवं योग्यता प्रदान की जायेगी। इस कारण उन्हें वर्तमान के छोटे मोटे झगड़े आपस ही में निपटा लेने चाहिए। “तुम भविष्य में संसार का न्याय करोगे, अतः इन छोटी-छोटी बातो का न्याय उस समय स्वयं ही करो”।
“मतभेद” या “विवाद”
“तुम जानते हो कि हम स्वर्गदूतो का न्याय करेंगे”
पौलुस और कुरिन्थ की कलीसिया
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि हमें स्वर्गदूतों का न्याय करने का उत्तरदायित्व एवं योग्यता प्रदान की जाएगी इसलिए हम निश्चय ही इस जीवन की बातों का न्याय कर सकते हैं”।
वैकल्पिक अनुवाद: “यदि तुम्हें दैनिक जीवन की बातों का निर्णय करना हो” या “तुम्हें इस जीवन के विषयों के संबन्ध में निर्णय लेना हो”। (यू.डी.बी.)
“तुम्हें ऐसे लोगों को नहीं बैठाना है”
पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया को झिड़क रहा है कि वे इन बातों का कैसे न्याय कर रहे है”। इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “तुम्हें अपने विषय कलीसिया में उचित निर्णय लेने में अयोग्य मनुष्यों के समक्ष नहीं रखना चाहिए 2) “तुम्हें कलीसिया के बाहर के लोगों के समक्ष अपने विषय नहीं रखने चाहिए”। 3) “तुम इन विषयों को कलीसिया के उन सदस्यों के समक्ष भी रख सकते हो जिनका मान कलीसिया में नहीं है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “तुम्हारे अपमान के लिए” या “तुम पर प्रकट करने के लिए कि तुम कैसे चूक गए हो”(यू.डी.बी)।
“तुम्हें एक बुद्धिमान विश्वासी को खोजकर विश्वासियों के विवाद सुलझाना चाहिए”।
“विवाद” या “मतभेद”
वैकल्पिक अनुवाद: “जैसा हो रहा है” या “इसकी अपेक्षा” (यू.डी.बी.)
वैकल्पिक अनुवाद: “आपस में झगड़ने वाले विश्वासी अविश्वासी न्यायधीशों के पास न्याय के लिए जाते है”।
“विश्वासी मुकद्दमा करता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “विफलता” या “क्षति”
वैकल्पिक अनुवाद: “धूर्तता” या “धोखा”
वैकल्पिक अनुवाद: उचित तो यह है कि न्यायालय में जाने की अपेक्षा अन्याय सह लो, हानि उठा लो।
सब मसीही विश्वासी आपस में भाई-बहन हैं,वैकल्पिक अनुवाद: “साथी विश्वासियों को”
वैकल्पिक अनुवाद: “कुछ लोग कहते हैं, मैं कुछ भी कर सकता हूं” या “मुझे कुछ भी करने की अनुमति है”।
“परन्तु मेरे लिए सब लाभकारी नहीं है”
वैकल्पिक अनुवाद: “मुझ पर कुछ भी स्वामी होकर प्रभुता नहीं करे”।
परमेश्वर दोनों का अन्त कर देगा “कुछ का कहना है, भोजन पेट के लिए और पेट भोजन के लिए, परन्तु परमेश्वर भोजन और पेट दोनों का अन्त कर देगा।
शरीर का अंग पेट
“अन्त कर देगा”
“यीशु को पुर्नजीवित किया”
जिस प्रकार हमारे हाथ और पैर हमारी देह के अंग हैं उसी प्रकार हमारी देह मसीह की देह अर्थात कलीसिया का अंग है। वैकल्पिक अनुवाद: “तुम्हारी देह मसीह का अंग है”।
वैकल्पिक अनुवाद:“तुम मसीह की देह का अंग हो, मैं तुम्हें वैश्या से जुड़ने नहीं दूंगा”?
वैकल्पिक अनुवाद: “ऐसा कभी ना हो”
“तुम जानते हो”। पौलुस इस तथ्य पर बल दे रहा है कि वे उस बात को जानते है।
वैकल्पिक अनुवाद: “जो प्रभु के साथ जुड़ता है, वह उसके साथ आत्मा में एक हो जाता है”।
मनुष्य वैसे संकट से दूर भागता है वैसे ही पाप से भागने का भाव यहां व्यक्त है। “दूर हो जाओ”।
वैकल्पिक अनुवाद: “करता है” या “भागी होता है”
व्यभिचार का पाप का परिणाम मनुष्य के शरीर को रोग ग्रस्त करता है, परन्तु अन्य पाप उसके अपने शरीर को ऐसी हानि नहीं पंहुचाते है।
“तुम जानते हो” पौलुस बल देकर कहता है कि वे इस सत्य से अभिज्ञ हैं।
प्रत्येक विश्वासी का शरीर पवित्र आत्मा का निवास स्थान है।
मन्दिर अलौकिक शक्ति को समर्पित किया जाता है और वह उसमें वास करती है। इसी प्रकार कुरिन्थ के प्रत्येक विश्वासी की देह एक मन्दिर है, जिसमें पवित्र आत्मा वास करता है।
परमेश्वर ने कुरिन्थ के विश्वासियों को दाम देकर पाप के दासत्व में से निकाल लिया था।। वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने तुम्हारी स्वतंत्रता के लिए कीमत दी है”
वैकल्पिक अनुवाद: “अतः” या “क्योंकि यह सच है इसलिए....” या “इस सत्य के कारण”
पौलुस कहता है कि उन्हें आपसी झगड़े बाहर नहीं ले जाने चाहिए स्वयं ही न्याय करें।
पवित्र जन जगत का और स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे।
विश्वासी विश्वासी के विरूद्ध न्यायलय में जाता है, वहां एक अविश्वासी न्यायधीश है।
यह उनकी पराजय का संकेत है।
अधर्मी; वेश्यागामी, मूर्तिपूजक, परस्त्रीगामी, लुच्चे, पुरूषगामी, चोर, लोभी, पियक्कड़, गाली देने वाले, अन्धेर करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।
वे यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।
पौलुस कहता है कि वह भोजन और यौनाचार के अधीन नहीं होगा।
विश्वासियों की देह मसीह के अंग हैं।
नहीं कदापि नहीं।
वह आपके साथ एक तन हो जाता है।
वह उसके साथ एक आत्मा हो जाता है।
व्यभिचार अपनी ही देह के विरूद्ध पाप है।
अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो क्योंकि वह पवित्र आत्मा का मन्दिर है और हम दाम देकर मोल लिए गए हैं।
1 उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छूए। 2 परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो।
3 पति अपनी पत्नी का हक़ पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। 4 पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी को।
5 तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति* से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो; ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे।
6 परन्तु मैं जो यह कहता हूँ वह अनुमति है न कि आज्ञा। 7 मैं यह चाहता हूँ, कि जैसा मैं हूँ, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष वरदान* मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का।
8 परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ, कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ। 9 परन्तु यदि वे संयम न कर सके, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है।
10 जिनका विवाह हो गया है, उनको मैं नहीं, वरन् प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्नी अपने पति से अलग न हो। 11 (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिना दूसरा विवाह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले) और न पति अपनी पत्नी को छोड़े।
12 दूसरों से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूँ, यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े। 13 और जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो; वह पति को न छोड़े। 14 क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे बाल-बच्चे अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं।
15 परन्तु जो पुरुष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्वर ने तो हमें मेल-मिलाप के लिये बुलाया है। 16 क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरुष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्नी का उद्धार करा लेगा?
17 पर जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है*; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ। 18 जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारहित न बने: जो खतनारहित बुलाया गया हो, वह खतना न कराए। 19 न खतना कुछ है, और न खतनारहित परन्तु परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है।
20 हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे। 21 यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर। 22 क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है। 23 तुम दाम देकर मोल लिये गए हो, मनुष्यों के दास न बनो। 24 हे भाइयों, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्वर के साथ रहे।
25 कुँवारियों के विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली, परन्तु विश्वासयोग्य होने के लिये जैसी दया प्रभु ने मुझ पर की है, उसी के अनुसार सम्मति देता हूँ। 26 इसलिए मेरी समझ में यह अच्छा है, कि आजकल क्लेश के कारण मनुष्य जैसा है, वैसा ही रहे।
27 यदि तेरे पत्नी है, तो उससे अलग होने का यत्न न कर: और यदि तेरे पत्नी नहीं, तो पत्नी की खोज न कर: 28 परन्तु यदि तू विवाह भी करे, तो पाप नहीं; और यदि कुँवारी ब्याही जाए तो कोई पाप नहीं; परन्तु ऐसों को शारीरिक दुःख होगा, और मैं बचाना चाहता हूँ।
29 हे भाइयों, मैं यह कहता हूँ, कि समय कम किया गया है, इसलिए चाहिए कि जिनके पत्नी हों, वे ऐसे हों मानो उनके पत्नी नहीं। 30 और रोनेवाले ऐसे हों, मानो रोते नहीं; और आनन्द करनेवाले ऐसे हों, मानो आनन्द नहीं करते; और मोल लेनेवाले ऐसे हों, कि मानो उनके पास कुछ है नहीं। 31 और इस संसार के साथ व्यवहार करनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।
32 मैं यह चाहता हूँ, कि तुम्हें चिन्ता न हो। अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को कैसे प्रसन्न रखे। 33 परन्तु विवाहित मनुष्य संसार की बातों की चिन्ता में रहता है, कि अपनी पत्नी को किस रीति से प्रसन्न रखे। 34 विवाहिता और अविवाहिता में भी भेद है: अविवाहिता प्रभु की चिन्ता में रहती है, कि वह देह और आत्मा दोनों में पवित्र हो, परन्तु विवाहिता संसार की चिन्ता में रहती है, कि अपने पति को प्रसन्न रखे।
35 यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिये कहता हूँ, न कि तुम्हें फँसाने के लिये, वरन् इसलिए कि जैसा उचित है; ताकि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो।
36 और यदि कोई यह समझे, कि मैं अपनी उस कुँवारी का हक़ मार रहा हूँ, जिसकी जवानी ढल रही है, और प्रयोजन भी हो, तो जैसा चाहे, वैसा करे, इसमें पाप नहीं, वह उसका विवाह होने दे। 37 परन्तु यदि वह मन में फैसला करता है, और कोई अत्यावश्यकता नहीं है, और वह अपनी अभिलाषाओं को नियंत्रित कर सकता है, तो वह विवाह न करके अच्छा करता है। 38 तो जो अपनी कुँवारी का विवाह कर देता है, वह अच्छा करता है और जो विवाह नहीं कर देता, वह और भी अच्छा करता है।
39 जब तक किसी स्त्री का पति जीवित रहता है, तब तक वह उससे बंधी हुई है, परन्तु जब उसका पति मर जाए, तो जिससे चाहे विवाह कर सकती है, परन्तु केवल प्रभु में। 40 परन्तु जैसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूँ, कि परमेश्वर का आत्मा मुझ में भी है।
पौलुस अपनी शिक्षा में एक नया प्रसंग आरंभ करता है।
उन्होंने कुछ बातों के बारे में पौलुस से पत्र लिखकर पूछा था
यहाँ कहने का अर्थ है पति
वैकल्पिक अनुवाद: “यह उचित एवं स्वीकार्य है”
“पति का पत्नी के साथ यौन संबन्ध नहीं बनाना भी कभी उचित होता है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि मनुष्य यौनाचार के पाप की परीक्षा में गिर सकता है”।
इसे बहु विवाह की संस्कृति के लिए इसे स्पष्ट करता है। “प्रत्येक पुरूष की एक ही पत्नी हो और प्रत्येक स्त्री का एक ही पति हो”।
पति-पत्नी दोनों ही परस्पर यौन दायित्व पूरा करें।
वैकल्पिक अनुवाद: “अपने जीवन साथी को यौनतुष्टि से वंचित मत करो”।
आपसी सहमति से यौनाचार से वंचित होना उचित है परन्तु केवल गहन प्रार्थना के लिए यहूदियों में यह अवकाश 1-2 सप्ताह का होता था।
“समर्पित रहो”
“यौन संबन्धों में लौट आओ”
वैकल्पिक अनुवाद: “क्योंकि कुछ समय पश्चात तुम्हारी वासना वश में नहीं रहेगी”।
पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को परामर्श देता है कि प्रार्थना ही के लिए वे यौन संबन्ध में अन्तराल रखें परन्तु यह एक अलग बात है, एक सतत् अनिवार्यता नहीं है।
पौलुस के सदृश्य अविवाहित (या तो पूर्वकालिक विवाहित या अविवाहित)
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर ने एक मनुष्य को एक योग्यता से संवारा है तो दूसरे को दूसरी से”
“जो इस समय विवाह के बंधन में नहीं हैं” इसमें अविवाहित और विवाह विच्छेदित एवं विधुर सब हैं।
जिस स्त्री का पति मर गया है,
अच्छा है - यहां “अच्छा शब्द का अर्थ उचित एवं स्वीकार्य है। वैकल्पिक अनुवाद: “उचित एवं स्वीकार्य है”।
पति-पत्नी हो जाएं
कामातुर - लगातार यौन वासना के वश में रहने से”
जीवनसाथी से (पति या पत्नी)
अधिकांश यूनानी शब्द स्पष्ट नहीं करते कि वैध विवाह विच्छेद न हो मात्र अलग हों। अधिकांश दम्पतियों के लिए अलग रहने का अर्थ था विवाह विच्छेद।
इसका अर्थ भी विवाह विच्छेद से ही है। उपरोक्त टिप्पणी देखें। इसका तात्पर्य वैध विवाह विच्छेद या मात्र अलग रहने से है।
“वह अपने पति से समझौता करके लौट आए”
“इच्छुक हो” या “सन्तुष्ट है”
“परमेश्वर ने उस अविश्वासी पति को पवित्र कर दिया है”
“परमेश्वर ने इस अविश्वासी पत्नी को पवित्र कर दिया है” )
परमेश्वर ने उन्हें पवित्र कर दिया है।
“ऐसी स्थिति में विश्वासी पति/पत्नी पर विवाह का बन्धन नहीं है”
“तू नहीं जानती कि अपने अविश्वासी पति का उद्धार करा पाएगी या नहीं”?
“तू नहीं जानता कि अपनी अविश्वासी पत्नी का उद्धार करा पाएगा या नहीं”।
“प्रत्येक विश्वासी को”
पौलुस सब कलीसियाओं में विश्वासियों को ऐसी ही आचरण की शिक्षा दे रहा था।
पौलुस खतना वालों (यहूदियों से कह रहा है) जिन्होंने खतना करा लिया था वे बुलाहट के समय खतना की दशा में थे।
अब पौलुस खतनारहितों को कह रहा है। “खतनारहितों परमेश्वर ने जब तुम्हें बुलाया था तब तुम्हारा खतना नहीं हुआ था।”
यहां “बुलाया गया” का संदर्भ सेवावृत्ति या सामाजिक स्तर से है जिसमें आप थे “वैसे ही रहो और काम करो जैसे थे”।(यू.डी.बी)
वैकल्पिक अनुवाद: “परमेश्वर की बुलाहट के समय दास था”
यह स्वतंत्रता प्रभु की देन है, अतः शैतान और पाप से मुक्त है
वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह ने अपनी जान देकर तुम्हें मोल लिया है
“जब परमेश्वर ने हमें बुलाया कि उसमें विश्वास करें”
सब विश्वासी
कुँवारियों के विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली - ऐसी स्थिति के बारे में पौलुस को प्रभु की शिक्षा स्मरण नहीं है। वैकल्पिक अनुवाद: “जिन्होंने कभी विवाह नहीं किया उनके लिए मुझे प्रभु से कोई आज्ञा प्राप्त नही है”
पौलुस स्पष्टीकरण देता है कि विवाह संबन्धित ये निर्देशन उसके विचार से हैं, प्रभु की आज्ञाएं नहीं हैं।
वैकल्पिक अनुवाद: “अतः” या “ इस कारण”
वैकल्पिक अनुवाद: “आनेवाले विनाश के कारण”
पौलुस विवाहित पुरूषों से कह रहा है, वैकल्पिक अनुवाद: “यदि तू विवाहित है”।
वैकल्पिक अनुवाद: “विवाह के बन्धन से मुक्त होने का प्रयास मत कर”
अब पौलुस अविवाहितों से कह रहा है, वैकल्पिक अनुवाद: “यदि इस समय तुम पत्नी रहित हो”
वैकल्पिक अनुवाद: “विवाह का विचार मत कर”
“किया” या “सहभागी”
वैकल्पिक अनुवाद: “मैं नहीं चाहता कि...”
वैकल्पिक अमुवाद: “समय बहुत कम है” या “समय लगभग समाप्त हो गया है”
वैकल्पिक अनुवाद: “रोएं” या “आंसू बहाकर दुःखी हों”
वैकल्पिक अनुवाद: “उनके पास सम्पदा है ही नहीं”
वैकल्पिक अनुवाद:“जो प्रतिदिन अविश्वासियों के साथ लेन-देन करते है"
वैकल्पिक अनुवाद: “जैसे कि उन्होंने अविश्वासियों के साथ कोई व्यवहार नहीं किया”
क्योंकि संसार पर शैतान का राज शीघ्र ही समाप्त होगा
वैकल्पिक अनुवाद: “शान्ति मिले” या “निश्चिन्त रहो”
वैकल्पिक अनुवाद: “ध्यान में रहता है”
वैकल्पिक अनुवाद:“परमेश्वर को और अपनी पत्नी दोनों को प्रसन्न करना चाहता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “बोझ डालने के लिए” या “बन्धन में रखने के लिए”
वैकल्पिक अनुवाद: “प्रभु में ध्यान लगाए रहो”
“कठोरता का व्यवहार कर रहा हूं” या “मान प्रदान नहीं करता”
इसके संभावित अर्थ हैं, 1) “जिसे उसे मैंने उसे विवाह का वचन दिया है।” 2)“उसकी कुंवारी पुत्री”
संभावित अर्थ है, 1)“वह अपनी मंगेतर से विवाह करे।” 2) “अपनी पुत्री का विवाह कर दे।”
“जब तक वह मर न जाए”
वैकल्पिक अनुवाद: “अपनी इच्छा से”
वैकल्पिक अनुवाद: “यदि उसका दूसरा पति विश्वासी है”
“परमेश्वर के वचन की मेरी समझ में”
“अधिक आनन्दित है” या “अधिक संतुष्टि पाएगी”
वैकल्पिक अनुवाद:“अविवाहित रहे”
व्यभिचार के डर से प्रत्येक पुरूष की अपनी पत्नी हो और प्रत्येक स्त्री का अपना पुरूष हो।
नहीं, पति को अपनी पत्नी की देह पर अधिकार है और पत्नी को अपने पति की देह पर अधिकार है।
उचित तो यह है कि पति-पत्नी आपसी सहमति से निश्चित समय निकाल कर केवल प्रार्थना के लिए एक दूसरे से अलग हों।
पौलुस कहता है कि अविवाहित रहना उचित है।
यदि वे संयम न रख पायें और कामातुर हो तो विवाह करना ही उचित है।
पत्नी पति से अलग न हो, यदि पत्नी अलग हो तो या तो वह पुनः विवाह न करे और यदि करना चाहे तो अपने ही पति से मेल कर ले। पति भी अपनी पत्नी को तलाक न दे।
यदि अविश्वासी पति या पत्नी अपने जीवन साथी के साथ रहने से सन्तुष्ट है तो विश्वासी पक्ष अविश्वासी को तलाक न दे।
विश्वासी अविश्वासी जीवन साथी को जाने दे।
नियम यह हैः प्रत्येक जीवन परमेश्वर प्रदत्त जीवन जीए, जैसी परमेश्वर की बुलाहट है।
जो खतना किया हुआ बुलाया गया है वह खतनारहित न बने और जो खतनारहित बुलाया गया है वह खतना न कराए।
यदि परमेश्वर ने किसी दास को बुलाया है तो वह चिन्ता न करे, परन्तु यदि वह स्वतंत्र हो सके तो ऐसा ही करे क्योंकि दास परमेश्वर के लिए स्वतंत्र है, उन्हें मनुष्य का दास नहीं होना है।
पौलुस के अपने विचार में आनेवाले क्लेश के कारण मनुष्य के लिए अविवाहित रहना ही उचित है।
विवाहित पुरूषों को पत्नी से अलग होने का यत्न नहीं करना है।
पौलुस अविवाहितों और पत्नीरहितों से क्यों कहता है, "पत्नी की खोज न कर"?उसने ऐसा इसलिए कहा कि वह उन्हें उन अनेक समस्याओं से बचाना चाहता था जो विवाहितों पर आती हैं।
उन्हें ऐसा व्यवहार करना है क्योंकि इस संसार का तौर तरीका समाप्त हो जाता है।
यह कठिन है क्योंकि विश्वासी पति या पत्नी सांसारिक चिन्ता में लगे रहते हैं कि अपनी पत्नी या अपने पति को प्रसन्न कैसे करें।
जो अविवाहित रहने का चुनाव करे वह और भी अच्छा काम करता है।
वह जब तक जीवित है अपने पति से बंधी है।
यदि एक विश्वासी स्त्री का पति मर जाए तो वह किससे पुनः विवाह कर सकती है?वह जिससे चाहे विवाह कर सकती है परन्तु केवल उससे जो प्रभु में विश्वास रखता है।
1 अब मूरतों के सामने बलि की हुई* वस्तुओं के विषय में हम जानते हैं, कि हम सब को ज्ञान है: ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है, परन्तु प्रेम से उन्नति होती है। 2 यदि कोई समझे, कि मैं कुछ जानता हूँ, तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता। 3 परन्तु यदि कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है*, तो उसे परमेश्वर पहचानता है।
4 अतः मूरतों के सामने बलि की हुई वस्तुओं के खाने के विषय में हम जानते हैं, कि मूरत जगत में कोई वस्तु नहीं*, और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं। (व्य. 4:39) 5 यद्यपि आकाश में और पृथ्वी पर बहुत से ईश्वर कहलाते हैं, (जैसा कि बहुत से ईश्वर और बहुत से प्रभु हैं)।
6 तो भी हमारे निकट तो एक ही परमेश्वर है:
अर्थात् पिता जिसकी ओर से सब वस्तुएँ हैं, और हम उसी के लिये हैं,
और एक ही प्रभु है, अर्थात् यीशु मसीह
जिसके द्वारा सब वस्तुएँ हुई, और हम भी उसी के द्वारा हैं। (यूह. 1:3, रोम. 11:36)
7 परन्तु सब को यह ज्ञान नहीं; परन्तु कितने तो अब तक मूरत को कुछ समझने के कारण मूरतों के सामने बलि की हुई को कुछ वस्तु समझकर खाते हैं, और उनका विवेक निर्बल होकर अशुद्ध होता है।
8 भोजन हमें परमेश्वर के निकट नहीं पहुँचाता, यदि हम न खाएँ, तो हमारी कुछ हानि नहीं, और यदि खाएँ, तो कुछ लाभ नहीं। 9 परन्तु चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता कहीं निर्बलों के लिये ठोकर का कारण हो जाए। 10 क्योंकि यदि कोई तुझ ज्ञानी को मूरत के मन्दिर में भोजन करते देखे, और वह निर्बल जन हो, तो क्या उसके विवेक में मूरत के सामने बलि की हुई वस्तु के खाने का साहस न हो जाएगा।
11 इस रीति से तेरे ज्ञान के कारण वह निर्बल भाई जिसके लिये मसीह मरा नाश हो जाएगा। 12 तो भाइयों का अपराध करने से और उनके निर्बल विवेक को चोट देने से तुम मसीह का अपराध करते हो। 13 इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाएँ, तो मैं कभी किसी रीति से माँस न खाऊँगा, न हो कि मैं अपने भाई के ठोकर का कारण बनूँ।
पौलुस इस अभिव्यक्ति द्वारा कुरिन्थ की कलीसिया द्वारा पूछे गए अगले प्रश्न पर आता है
विजातियां अपने देवताओं को अन्न, मछली, मुर्गी या मांस चढ़ाते थे। पुजारी वेदी पर उसका एक अंश जला देता था परन्तु जो भाग शेष रहता था वह उपासक को लौटा दिया जाता था या बाजार में बेचा जाता था। पौलुस इसी के बारे में चर्चा कर रहा है।
पौलुस कुछ कुरिन्थ वासियों द्वारा की गई युक्ति का उद्धरण दे रहा है, वैकल्पिक अनुवाद: “हम सब जानते है, जैसा तुम स्वयं कहना चाहते हो कि” हम सब को ज्ञान है”।
“मनुष्य को घमण्डी बनाता है” या “मनुष्य जो वास्तव में है नहीं उससे अधिक स्वयं को समझे”।
“अपने विचार में कुछ बातों का सर्वज्ञानी है”
“परमेश्वर उसे जानता है”
पौलुस और कुरिन्थ के विश्वासी
“हम सब जानते हें, जैसा तुम स्वयं जानना चाहते हो, वैकल्पिक अनुवाद: “मूर्ति हमारे लिए असमर्थ एवं निरर्थक हैं”
वैकल्पिक अनुवाद: “संसार में मूर्ति कुछ भी नहीं है”
बहुत से ईश्वर और बहुत से प्रभु - पौलुस बहुदेववाद में विश्वास नहीं करता था परन्तु वह स्वीकार करता है कि विजातियों की यह मान्यता थी।
पौलुस और कुरिन्थ के विश्वासी
“हम विश्वास करते हैं”
“सब मनुष्यों को... कुछ मनुष्य तो”
“नष्ट” या “क्षतिग्रस्त”
“भोजन हमें परमेश्वर का अनुग्रह पात्र नहीं बनाता” या “हमारा भोजन परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करता है”।
“यदि हम खाएं तो हमें कोई हानि नहीं और खाएं तो कोई लाभ नहीं।”
“प्रोत्साहन न मिलेगा”
“विश्वास में अस्थिर भाई”
“भोज में” या “खाते देखें”(यू.डी.बी)
“भाई बहन जो विश्वास में दृढ़ नहीं वह पाप में गिरेगा/गिरेगी या विश्वास से भटक जाएगा/जाएगी”
“इस अन्तिम सिद्धान्त के कारण”
“यदि भोजन करने से” या “भोजन के प्रोत्साहन से”
पौलुस मूर्तियों को चढ़ाए हुए भोजन के बारे में कहता है।
ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है परन्तु प्रेम से उन्नति होती है।
नहीं, मूर्ति जगत में कोई वस्तु नहीं, एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं।
केवल एक ही परमेश्वर पिता है, उसी से सब कुछ है और हम उसी के लिए हैं।
एक ही प्रभु है अर्थात यीशु मसीह, जिसके द्वारा सब कुछ अस्तित्व में है और हम भी उसी के द्वारा हैं।
उनका विवेक निर्बल होने के कारण अशुद्ध हो जाता है।
भोजन हमें परमेश्वर के निकट नहीं पहुंचाता है, यदि हम नहीं खाएं तो कोई हानि नहीं और यदि खाएं तो कोई लाभ नहीं।
हमें सावधान अवश्य रहना है कि हमारी स्वतंत्रता विश्वास में दुर्बल जन के लिए ठोकर का कारण न हो।
हमारी स्वतंत्रता विश्वास में दुर्बल भाई या बहन के लिए विनाशक होती है।
हमारे कारण भाई या बहन ठोकर खाए तो हम उनके विरूद्ध अपराध करते हैं और मसीह के विरूद्ध अपराधी ठहरते है।
पौलुस कहता है कि यदि उसका मांसाहारी होना भाई या बहन के लिए ठोकर का कारण हो तो वह कभी मांस नहीं खाएगा।
1 क्या मैं स्वतंत्र नहीं*? क्या मैं प्रेरित नहीं? क्या मैंने यीशु को जो हमारा प्रभु है, नहीं देखा? क्या तुम प्रभु में मेरे बनाए हुए नहीं? 2 यदि मैं औरों के लिये प्रेरित नहीं, फिर भी तुम्हारे लिये तो हूँ; क्योंकि तुम प्रभु में मेरी प्रेरिताई पर छाप हो।
3 जो मुझे जाँचते हैं, उनके लिये यही मेरा उत्तर है। 4 क्या हमें खाने-पीने का अधिकार नहीं? 5 क्या हमें यह अधिकार नहीं, कि किसी मसीही बहन को विवाह कर के साथ लिए फिरें, जैसा अन्य प्रेरित और प्रभु के भाई और कैफा करते हैं? 6 या केवल मुझे और बरनबास को ही जीवन-निर्वाह के लिए काम करना चाहिए।
7 कौन कभी अपनी गिरह से खाकर सिपाही का काम करता है? कौन दाख की बारी लगाकर उसका फल नहीं खाता? कौन भेड़ों की रखवाली करके उनका दूध नहीं पीता? 8 क्या मैं ये बातें मनुष्य ही की रीति पर बोलता हूँ?
9 क्या व्यवस्था भी यही नहीं कहती? क्योंकि मूसा की व्यवस्था में लिखा है “दाँवते समय चलते हुए बैल का मुँह न बाँधना।” क्या परमेश्वर बैलों ही की चिन्ता करता है? (व्य. 25:4) 10 या विशेष करके हमारे लिये कहता है। हाँ, हमारे लिये ही लिखा गया, क्योंकि उचित है, कि जोतनेवाला आशा से जोते, और दाँवनेवाला भागी होने की आशा से दाँवनी करे। 11 यदि हमने तुम्हारे लिये आत्मिक वस्तुएँ बोई, तो क्या यह कोई बड़ी बात है, कि तुम्हारी शारीरिक वस्तुओं की फसल काटें।
12 जब औरों का तुम पर यह अधिकार है, तो क्या हमारा इससे अधिक न होगा? परन्तु हम यह अधिकार काम में नहीं लाए; परन्तु सब कुछ सहते हैं, कि हमारे द्वारा मसीह के सुसमाचार की कुछ रोक न हो। 13 क्या तुम नहीं जानते कि जो मन्दिर में सेवा करते हैं, वे मन्दिर में से खाते हैं; और जो वेदी की सेवा करते हैं; वे वेदी के साथ भागी होते हैं? (लैव्य. 6:16, लैव्य. 6:26, व्य. 18:1-3) 14 इसी रीति से प्रभु ने भी ठहराया, कि जो लोग सुसमाचार सुनाते हैं, उनकी जीविका सुसमाचार से हो।
15 परन्तु मैं इनमें से कोई भी बात काम में न लाया, और मैंने तो ये बातें इसलिए नहीं लिखीं, कि मेरे लिये ऐसा किया जाए, क्योंकि इससे तो मेरा मरना ही भला है; कि कोई मेरा घमण्ड व्यर्थ ठहराए। 16 यदि मैं सुसमाचार सुनाऊँ, तो मेरा कुछ घमण्ड नहीं; क्योंकि यह तो मेरे लिये अवश्य है; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊँ, तो मुझ पर हाय!
17 क्योंकि यदि अपनी इच्छा से यह करता हूँ, तो मजदूरी मुझे मिलती है, और यदि अपनी इच्छा से नहीं करता, तो भी भण्डारीपन मुझे सौंपा गया है। 18 तो फिर मेरी कौन सी मजदूरी है? यह कि सुसमाचार सुनाने में मैं मसीह का सुसमाचार सेंत-मेंत कर दूँ; यहाँ तक कि सुसमाचार में जो मेरा अधिकार है, उसको मैं पूरी रीति से काम में लाऊँ।
19 क्योंकि सबसे स्वतंत्र होने पर भी मैंने अपने आप को सब का दास बना दिया* है; कि अधिक लोगों को खींच लाऊँ। 20 मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना कि यहूदियों को खींच लाऊँ, जो लोग व्यवस्था के अधीन हैं उनके लिये मैं व्यवस्था के अधीन न होने पर भी व्यवस्था के अधीन बना, कि उन्हें जो व्यवस्था के अधीन हैं, खींच लाऊँ।
21 व्यवस्थाहीनों के लिये मैं (जो परमेश्वर की व्यवस्था से हीन नहीं, परन्तु मसीह की व्यवस्था के अधीन हूँ) व्यवस्थाहीन सा बना, कि व्यवस्थाहीनों को खींच लाऊँ। 22 मैं निर्बलों के लिये* निर्बल सा बना, कि निर्बलों को खींच लाऊँ, मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूँ, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊँ। 23 और मैं सब कुछ सुसमाचार के लिये करता हूँ, कि औरों के साथ उसका भागी हो जाऊँ।
24 क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो। 25 और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरझानेवाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुरझाने का नहीं। 26 इसलिए मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूँ, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूँ, परन्तु उसके समान नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है। 27 परन्तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूँ; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूँ।
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा पौलुस उन्हें अपने अधिकार स्मरण कराता है। वैकल्पिक अनुवाद: “मैं स्वतंत्र हूं”।
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा पौलुस उन्हें अपने प्रेरित होने का और अपने अधिकार का स्मरण कराता है, “मैं एक प्रेरित हूं”।
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा पौलुस उन्हें स्मरण कराता है कि वह कौन है। “मैंने अपने प्रभु यीशु को देखा है”।
इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा पौलुस उन्हें उसके साथ उसके संबन्धों का स्मरण कराता है। “मसीह में तुम्हारा विश्वास मेरी मसीही सेवा का परिणाम है।”
वैकल्पिक अनुवाद: “मसीह में तुम्हारा विश्वास पुष्टि करता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “हमें पूरा अधिकार है कि हम कलीसियाओं से भोजन-पानी लें”
अर्थात पौलुस और बरनबास
“यदि हमारे पास विश्वासी पत्नियां हों तो हमें अधिकार है कि उन्हें साथ लेकर यात्रा करें क्योंकि अन्य प्रेरित भी ऐसा ही करते हें, प्रभु का भाई और कैफा”
वैकल्पिक अनुवाद: “बरनबास और मुझे अधिकार है कि काम करना छोड़ दें” या “परन्तु तुम बरनबास और मुझ से अपेक्षा करते हो कि पैसा कमाने के लिए काम करें”।
“सैनिक अपने पैसे से सेवा नहीं करता है”
वैकल्पिक अनुवाद: “दाख की बारी लगाने वालों निश्चय ही उसका फल खाएगा” या “दाख की बारी लगानेवाले से कोई भी उसका फल न खाने की अपेक्षा नहीं करता है”। )
“भेड़ों का रखवाला उनका ही दूध पीता है” या “भेड़ों को रखवाले से कोई अपेक्षा भी करता है कि उनका दूध न पीए”।
“मैं ये बातें मानवीय अभ्यास पर आधारित नहीं करता हूं”।
“मूसा के विधान में भी यही लिखा है”
“परमेश्वर केवल बैल ही की चिन्ता सबसे अधिक नहीं करता है”।
वैकल्पिक अनुवाद:“परमेश्वर निश्चय ही हमारे बारे में कह रहा है” )
“हमारे” अर्थात पौलुस और बरनबास
“तुम से भौतिक सहायता लेना हमारे लिए कोई अनहोनी बात नहीं है”।
“शुभ सन्देश सुनाने वाले अन्य सेवकों को”
पौलुस जिस अधिकार की बात कर रहा है वह है कि कुरिन्थ की कलीसिया पौलुस की जीविका का बोझ उठाए क्योंकि उन्हें सर्वप्रथम शुभ सन्देश सुनानेवाला वही था।
“हमारा” अर्थात पौलुस और बरनबास का “हमारा अधिकार और भी अधिक है”। (देखें:
“बोझ न हो” या “प्रचार में बाधा न हो”
“शुभ सन्देश सुनाने के द्वारा दैनिक सहयोग प्राप्त करे”
वैकल्पिक अनुवाद: “ये लाभ” या “जिनके हम योग्य हैं”
वैकल्पिक अनवाद: “तुमसे कुछ प्राप्त करूं” या “तुम मेरे लिए दैनिक प्रबन्ध करो”
वैकल्पिक अनुवाद: “वंचित करे” या “पहुंचने न दे”
“मुझे शुभ सन्देश सुनाना अनिवार्य है”
वैकल्पिक अनुवाद: “मेरा भाग्य फूटे”
“यदि स्वैच्छा से शुभ सन्देश सुनाता हूं”
वैकल्पिक अनुवाद: “सहर्ष” या “अपनी इच्छा पर निर्भर”
वैकल्पिक अनुवाद: “मुझे यह काम करना है क्योंकि परमेश्वर ने इसे संपन्न करने के लिए मुझ पर भरोसा किया है”
वैकल्पिक अनुवाद: “यह मेरा प्रतिफल है”
वैकल्पिक अनुवाद: “शुभ सन्देश सुनाने के मेरा जो प्रतिफल है वह है कि मैं किसी के भी आभार से मुक्त शुभ सन्देश सुना सकता हूं”
वैकल्पिक अनुवाद: “शुभ सन्देश सुनाने के निमित्त”
वैकल्पिक अनुवाद: “मेरी प्रचार यात्राओं के लिए विश्वासियों से आर्थिक सहयोग लूं”।
“मनुष्यों को विश्वास करने के लिए प्रेरित करूं” या “मनुष्यों को मसीह में विश्वास करने में सहायता करूं”
वैकल्पिक अनुवाद: “मैंने यहूदियों का सा व्यवहार किया” या “यहूदियों की परम्परा का पालन किया”
वैकल्पिक अनुवाद:“यहूदी अगुओं की आज्ञा के अधीन रहा और वे धर्मशास्त्र की जैसी भी व्याख्या करते थे, उसे स्वीकार किया”।
वे लोग मूसा प्रदत्त नियमों का पालन नहीं करते थे अर्थात अन्य जातियों के लिए, वैकल्पिक अनुवाद: “यहूदियों के विधि-विधान से मुक्त मनुष्यों के लिए”।
इस प्रश्न के तथ्यों की समझ की प्रतिक्रिया अपेक्षित है, “हां, मैं जानता हूं कि दौड़ प्रतियोगिता में अनेक प्रतिद्वंदी होते हैं, परन्तु इनाम पाने वाला एक ही होता है”।
पौलुस मसीही जीवन और परमेश्वर की सेवा की तुलना दौड़ और धावक से करता है। जैसे दौड़ का अनुशासन कठोर होता है उसी प्रकार मसीही जीवन और सेवा में भी कठोर अनुशासन तथा एक ही लक्ष्य होता है।
एक समर्पण के साथ दौड़ना कि सफलता प्राप्त हो, इसकी तुलना उस सेवा से की गई है जो परमेश्वर हमसे चाहता है।
मुकुट सफलता का प्रतीक है जो उस कार्यक्रम के अधिकारी द्वारा दिया जाता है। यह रूपक परमेश्वर को सम्मान प्रदान करने के जीवन की एक उपमा है। परमेश्वर उद्धार का प्रतीक मुकुट देता है।
इसका कर्तृवाच्य अनुवाद होगा, “न्यायी कहीं मुझे अयोग्य न घोषित कर दे”
पौलुस कहता है कि कुरिन्थ के विश्वासी प्रभ